Hindi Crime Story : हनीमून में बीवी लाई मौत

Hindi Crime Story : 21 वर्षीय राज कुशवाहा इंदौर में स्थित सोनम रघुवंशी (24 वर्ष) के भाई की प्लाईवुड फैक्ट्री में नौकरी करता था. वहीं पर सोनम को राज कुशवाहा से प्यार हो गया. दोनों ने जीवन भर साथ रहने का वादा कर लिया. इसी दौरान फेमिली वालों ने सोनम की शादी राजा रघुवंशी से कर दी. फिर प्रेमी राज कुशवाहा के साथ मिल कर सोनम ने हनीमून के बहाने पति राजा रघुवंशी को ठिकाने लगाने की ऐसी योजना बनाई, जिस की गूंज पूरे देश में फैल गई.

सोनम रघुवंशी नहीं चाहती थी कि उस की शादी उस के प्रेमी राज कुशवाहा के अलावा किसी और के साथ हो, लेकिन उस के न चाहते हुए भी पेरेंट्स ने उस की शादी राजा रघुवंशी के साथ तय कर दी थी. शादी तय हो जाने के बाद वह बहुत परेशान थी, क्योंकि तनमन से वह प्रेमी राज की थी. इसलिए वह ताउम्र उसी के साथ रहना चाहती थी. उस ने प्रेमी को फोन कर कहा, ”राज, पापा ने मेरी शादी तय कर दी है. और मालूम है शादी की तारीख क्या है, 11 मई 2025.’’

”शादी से क्या होता है सोनम, कागज के एक टुकड़े और कुछ मंत्र पढ़ देने से कोई रिश्ता नहीं बनता.’’ राज ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा.

”राज, मैं किसी और की नहीं हो सकती. मैं सिर्फ तुम्हारी हूं और अगर तुम ने मुझे नहीं अपनाया तो मैं सच कह रही हूं, मैं मर जाऊंगी. आज वो जो लड़का मुझे देखने आया था राजा रघुवंशी, वो मुझे देख कर मुसकरा रहा था. जिसे देख कर मेरे अंदर ऐसी आग लग रही थी कि एक घूंसा मार कर उस की वो मुसकान वहीं दबा दूं. पर पापा वहीं थे, इसलिए कुछ कर नहीं पाई. लेकिन मेरी बात ध्यान से सुन लो राज, अगर तुम ने मेरा साथ नहीं दिया तो मैं दुनिया में ऐसा तूफान ला दूंगी कि लोग मेरे नाम से भी डरेंगे. मैं सब कुछ जला दूंगी खुद को, इस दुनिया को और हर रिश्ते को.’’

”तुम मेरी थी, मेरी हो और मेरी ही रहोगी सोनम,’’ राज ने कहा.

”मैं सिर्फ तुम्हारे लिए बनी हूं राज, किसी और के लिए नहीं.’’

”चिंता मत करो और विश्वास रखो सोनम, अगर उस की परछाई भी तुम्हें छुएगी तो मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

”मैं तुम्हें पहले ही बता चुकी हूं, पापा हार्ट के पेशेंट हैं. मैं ऐसा कोई भी कदम नहीं उठा सकती, जिस का उन की सेहत पर असर हो. घर से भाग कर कहीं और जा कर रहने का खयाल तो दिल से निकाल दो.’’

”फिर तुम ही कुछ बताओ कि क्या किया जाए?’’

”मेरा आइडिया यह है कि मेरी कदकाठी की कोई लड़की तलाश की जाए. उस की हत्या कर के जला दिया जाए. मेरी स्कूटी में भी वहीं आग लगा दी जाए. यह काम किसी ऐसी सुनसान जगह पर किया जाए, जिस से कि कोई देख न सके. तब यह साबित हो जाएगा कि सोनम मर गई. फिर हम दोनों किसी और शहर में जा कर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.’’

सोनम ने कहा कि घरों में काम करने वाली किसी लड़की की तलाश आसानी से हो सकती है. लेकिन काफी तलाश के बाद भी घर में साफसफाई चौकाबरतन करने के लिए ऐसी कोई लड़की हाथ नहीं लगी, जिस की कदकाठी सोनम जैसी हो. इस से राज ने राहत की सांस ली. इस की वजह यह थी कि इस से राज और उस के परिवार की जिंदगी ही तबाह हो जाती. घर में आर्थिक साधन जुटाने के लिए वह अकेला ही था. घर का खर्च उस के वेतन में मुश्किल से चल पाता था. सोनम अगर अपने घर वालों के लिए मर गई होती तो नई परेशानी ही खड़ी हो जाती. यदि वह घर से 30 या 40 लाख रुपए ले कर भी आ जाती तो भी कब तक उस से गुजारा होता.

सेफ गेम खेलना चाहता था राज कुशवाहा

दूसरी जगह दोनों को नौकरी मिलना भी आसान नहीं था. कोई बिजनैस करने के लिए बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता. इस तरह राज भी अपने परिवार के लिए एक तरह से मर ही चुका होता. राज कुशवाहा ने सोनम को समझाया कि इस तरह की दुर्घटना से तुम्हारे पापा तुम्हारी मौत का सदमा शायद बरदाश्त नहीं कर पाएंगे. अगर हार्टअटैक से बच भी जाएं तो जीते जी भी उन की मौत हो जाएगी. उस की पहली योजना घर से भागने की भी मेरी समझ से परे थी, क्योंकि उस का अंजाम भी वही होता. आर्थिक संकट से राज का परिवार ही नहीं, बल्कि राज और सोनम भी जूझ रहे होते.

यह सोच कर राज ने उस की दोनों ही योजनाओं को फेल करने में पूरा दिमाग लगा दिया. वह चाहता था कि सोनम से शादी कर के फैक्ट्री का मालिक बन जाएगा, जिस में अब तक नौकरी करता था. वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता था, जिस से कि सोने के अंडे देती मुरगी उस के हाथ से निकल जाए.

सोनम की शादी की तारीख करीब आ चुकी थी. उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. सोनम की चिंता दूर करने के लिए राज ने एक ऐसा प्लान तैयार किया, जिसे सुन कर सोनम खुशी से उछल पड़ी. उस ने कहा, ”इस का मतलब यह है कि मैं विधवा हो जाऊंगी और बिरादरी का कोई व्यक्ति विधवा से शादी करने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगा. फिर विधवा से शादी किसी और बिरादरी के युवक से करने के लिए मेरे पापा भी राजी हो जाएंगे. यानी हम दोनों पतिपत्नी के रूप में जिंदगी बिता कर अपने सपनों को साकार कर सकेंगे. बहुत बढिय़ा.’’

”लेकिन एक वादा करो,’’ राज ने कहा.

”क्या?’’

”शादी के बाद उस दुष्ट को सुहागरात की रस्म अदा करने नहीं दोगी.’’

”इस का मतलब यह कि मुझे सुहागन बनते ही यानी सुहागरात मनाने से पहले विधवा करना चाहते हो.’’ सोनम ने मुसकराते हुए कहा, ”यह पक्का वादा है, मुझे चाहे जो भी जतन करना पड़े, मैं उसे सुहागरात को हाथ नहीं लगाने दूंगी.’’

इंदौर मध्य प्रदेश का सब से बड़ा और सब से व्यस्त शहर है. यह ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और व्यावसायिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. यह शहर एक तरफ अपने गौरवशाली अतीत की गवाही देता है तो दूसरी ओर आधुनिकता और प्रगति का प्रतीक भी है. इस शहर का नाम इंद्रेश्वर महादेव मंदिर से लिया गया है, जो अब भी शहर के मध्य में स्थित है.

राजवाड़ा, इंदौर की 7 मंजिला ऐतिहासिक इमारत मराठा, मुगल और फ्रांसीसी वास्तुकला का अद्भुत संगम है. यह शहर के दिल में स्थित है. यह महल होलकर शासकों की विलासिता और कलात्मक रुचि का प्रतीक है. यूरोपीय शैली में बना यह महल अपने भव्य फरनीचर, दीवारों पर सुंदर चित्रों और विशाल गार्डन के लिए प्रसिद्ध है. इंदौर केवल एक शहर नहीं, बल्कि अनुभवों का संगम है, जहां इतिहास बोलता है, स्वाद महकता है, शिक्षा ऊंचाइयां छूती है और स्वच्छता संस्कृति बन जाती है.

इतनी खूबियों वाले इसी शहर में देवी सिंह नाम के एक व्यक्ति निवास करते हैं. उन का एक बेटा गोविंद रघुवंशी और बेटी सोनम रघुवंशी है. उन की पत्नी संगीता रघुवंशी घरेलू काम संभालती हैं. दरअसल, सोनम रघुवंशी का मूल निवास गुना जिला है. सोनम अपने भाई गोविंद से उम्र में छोटी है. गोविंद की शादी करीब 8 साल पहले विदिशा से हुई थी और उस के 2 बच्चे हैं. सोनम का परिवार पिछले कुछ सालों से इंदौर में रह रहा है. बताया जाता है कि उन्होंने गुना से इंदौर आने का फैसला उस वक्त लिया, जब गोविंद ने व्यापार में कदम रखा. शुरुआत में गोविंद एक निजी कंपनी में नौकरी करता था. लेकिन साल 2020 के आसपास उस ने माइका (सनमाइका) के व्यापार में कदम रखा और खुद की कंपनी खड़ी की.

शुरुआत में गोविंद केवल तैयार माल खरीद कर बेचने का काम करता था, लेकिन बाद में उस ने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने का फैसला लिया. अब उस की एक माइका मैन्युफैक्चरिंग यूनिट गुजरात में स्थापित है, जहां से वह माल तैयार कर विभिन्न शहरों में सप्लाई करता है. सोनम के परिवार का बिजनैस अग्रणी कारोबार में से एक था. परिवार की इंदौर में एक सनमाइका बनाने की यूनिट है. देवी सिंह को पैरालाइसिस का अटैक हुआ था, जिस के कारण वह फैक्ट्री में सक्रिय भूमिका नहीं निभा पाते. सोनम रघुवंशी और गोविंद रघुवंशी दोनों भाईबहन मिल कर कारोबार संभालते हैं. सोनम अपने ही पिता की कंपनी में बतौर एचआर काम करती थी.

इसी शहर में अशोक रघुवंशी का एक परिवार है. इन के 3 बेटे और एक बेटी है. एक बेटे का नाम सचिन रघुवंशी, दूसरे का विपिन रघुवंशी, तीसरा सब से छोटा 28 वर्षीय बेटा राजा रघुवंशी और बेटी सृष्टि है. उन का ट्रांसपोर्ट का प्रमुख व्यवसाय है. राजा रघुवंशी व 2 बड़े भाई सचिन और विपिन भी संयुक्त परिवार के रूप में रहते हैं.  ‘रघुवंशी ट्रांसपोर्ट’ नामक कंपनी परिवार के सभी लोग 2007 से संयुक्त रूप से चलाते थे. इस कंपनी का मुख्य काम स्कूलों और कोचिंग संस्थानों को किराए पर बसें उपलब्ध कराना है. सोनम रघुवंशी और राजा रघुवंशी दोनों के परिवार का आपस में कोई रिश्ता नहीं था. इन में से कोई एकदूसरे को जानता तक नहीं था. दोनों परिवारों की मुलाकात बहुत ही रोचक तरीके से हुई.

पहली अक्तूबर, 2024 को हर साल की तरह रामनवमी के दिन रघुवंशी समाज का सामूहिक भंडारा आयोजित हुआ था. यह कार्यक्रम इंदौर के रघुवंशी बिरादरी के लिए अपनेअपने बच्चे के लिए अपने ही समाज में लड़का और लड़की के विवाह के लिए रिश्ता तलाशने का एक बेहतरीन माध्यम है.

सामाजिक रीतिरिवाज से हुई शादी

रघुवंशी समाज के लोग रामनवमी के दिन एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और यहां पर अपनेअपने बच्चों की जानकारी एक परची में लिख कर रख दिया करते हैं. इस में लड़के या लड़की का नाम, उम्र, पढ़ाई और काम के बारे में जानकारी लिखी होती है. एक तरह से इसे बायोडाटा कहा जा सकता है. रघुवंशी संस्थान बायोडाटा के आधार पर रजिस्ट्रैशन कर लेता है. इस डाटा को व्यवस्थित कर के रघुवंशी समाज की एक पत्रिका जारी की जाती है, जिस में रघुवंशी परिवारों द्वारा रजिस्ट्रैशन में दी गई जानकारी को प्रकाशित किया जाता है. इस पत्रिका में जिसे लड़की की तलाश है तो वो लड़की का बायोडाटा देखता है और जिसे लड़के की तलाश है, वो लड़के का.

यहां सोनम और राजा रघुवंशी के परिवार के लोगों ने भी इन दोनों का रजिस्ट्रैशन कराया था. यहीं से ही इन दोनों का परिवार आपस में मिला. दोनों के परिवार वालों को सब सही लगा. दोनों ही मांगलिक थे. कुंडली भी मिल गई, इसलिए बात शादी तक जा पहुंची. राजा रघुवंशी का एक संपन्न परिवार है. घर में सब से छोटा होने के कारण राजा रघुवंशी की शादी का सब को बहुत अरमान था. शादी समारोह को भव्य बनाने के लिए काफी तैयारी की गई. जम कर पैसा खर्च किया गया.

उधर सोनम का परिवार राजा की टक्कर का परिवार था. सोनम की शादी के भी उस के परिवारजनों को बहुत अरमान थे, लेकिन खर्च करने में काफी कंजूसी की गई और वह उत्साह सोनम की शादी में नजर नहीं आया, जिस की अपेक्षाएं की जा रही थीं. बहरहाल, 11 मई को एक भव्य शादी समारोह हुआ. सात फेरे हुए. सभी सामाजिक और धार्मिक रस्में पूरी की गईं. 12 मई, 2025 को सोनम दुलहन बन कर राजा रघुवंशी के घर आ गई. दोनों परिवार और पतिपत्नी सभी खुश थे. किसी तरह का कोई भी विवाद नहीं था. राजा रघुवंशी की ओर से दहेज की कोई मांग की ही नहीं गई थी.

सोनम 4 दिन ससुराल में रहने के बाद मायके चली गई. मायके से ही सोनम रघुवंशी ने हनीमून का कार्यक्रम भी अचानक बना लिया. सोनम ने अपने पति राजा रघुवंशी को इस बात के लिए राजी किया कि शारीरिक संबंधों के जरिए शादी को परिपूर्ण करने से पहले उन्हें कामाख्या देवी मंदिर में पूजाअर्चना करनी चाहिए. पहले तय हुआ कि दोनों असम के कामाख्या देवी मंदिर जाएंगे. फिर वहीं से कश्मीर के लिए निकल जाएंगे. सोनम अपने मातापिता के घर से सीधे एयरपोर्ट गई, जबकि राजा रघुवंशी अपने घर से 10 लाख रुपए से अधिक के गहने पहन कर निकला था. इस में एक हीरे की अंगूठी, एक चेन और एक ब्रेसलेट शामिल था.

दोनों 20 मई को पहले असम के कामाख्या देवी मंदिर पहुंचे. यह असम के गुवाहाटी शहर में नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है. कामाख्या मंदिर से उन्होंने कश्मीर की जगह मेघालय जाने का प्रोग्राम बनाया. 20 मई, 2025 को ही दोनों मेघालय पहुंचे. 21 मई को राजा और सोनम रघुवंशी शिलांग पहुंचे थे और एक होमस्टे में रुके थे. 22 मई को उन्होंने एक स्कूटी किराए पर ली और सोहरारिम चले गए. शाम तक वे मावलखियात पहुंचे और एक गाइड लिया. गाइड की मदद से वे शिप्रा होमस्टे में रुके. इस के बाद गाइड को उन्होंने छोड़ दिया.

अगले दिन यानी 23 मई को सोनम और राजा रघुवंशी से उन के फेमिली वालों का कांटेक्ट बंद हो गया. दोनों के परिजन चिंतित हो गए और उन के लापता होने की खबरें आम हो गईं. सोनम का भाई गोविंद रघुवंशी और राजा का भाई विपिन रघुवंशी लापता पतिपत्नी की तलाश करने मेघालय पहुंचे. उन्होंने शिलांग की पुलिस से कांटेक्ट किया. उम्मीद के मुताबिक रिस्पौंस न मिलने पर दोनों वापस इंदौर लौट आए. इंदौर के एडिशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया से शिकायत की और बात मुख्यमंत्री तक भी पहुंच गई. यहां की सरकार ने मेघालय की सरकार से संपर्क साधा. इस बीच मामला बहुत तूल पड़ चुका था.

मेघालय सरकार की बदनामी होने लगी. यहां की अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत पर्यटकों से है. इस घटना से पर्यटकों में दहशत का माहौल हो गया. पर्यटक देर शाम अपने होटल के कमरों से निकलने में डरने लगे. अफवाह यह थी कि कपल का अपहरण कर के बांग्लादेश ले जाया गया है और उन के सारे पैसे और ज्वैलरी लूट ली गई है. मध्य प्रदेश सरकार ने तो केंद्र सरकार को पत्र लिख कर मामले की सीबीआई जांच करने की सिफारिश भी कर दी. 2 जून, 2025 को फिर राजा रघुवंशी का शव वेईसावडांग झरने के पास गहरी खाई में मिला. शव बुरी तरह सड़ चुका था. राजा के भाई विपिन ने ही शव की पहचान की. वह भी उन के हाथ पर बने ‘राजा’ टैटू से. लेकिन सोनम नहीं मिली.

शुरुआत में लगा कि दोनों का एक्सीडेंट हुआ होगा, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि राजा की हत्या धारदार हथियार से की गई थी. इंदौर शहर के हर घर में इस घटना को ले कर अफसोस जताया जा रहा था, सब लोग सोनम के जिंदा मिल जाने की कामना कर रहे थे. मेघालय पुलिस सोनम को बरामद करने और मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए औपरेशन चला रही थी, जिस का नाम ‘औपरेशन हनीमून’ रखा गया. मेघालय सरकार ने एसआईटी गठित कर पुलिस की कई टीमें मामले का राज फाश करने के लिए लगा दीं.

पुलिस को जांच में पता चला कि 22 मई को राजा और सोनम शिलांग के मावलखियात गांव पहुंचे और वहां से नोंग्रियाट गांव में मशहूर ‘लिविंग रूट ब्रिज’ देखने गए. दोनों ने रात एक होमस्टे में बिताई. 23 मई की सुबह 6 बजे दोनों होटल से बाहर निकल आए. किराए की स्कूटी पर सैर के लिए निकले. इस के बाद दोनों रहस्यमय ढंग से लापता हो गए.

टूर गाइडों से मिली खास जानकारी

24 मई की रात को उन की स्कूटी ओसारा हिल्स की पार्किंग में लावारिस हालत में मिली, जो होमस्टे से 25 किलोमीटर दूर थी. 28 मई को जंगल में 2 बैग मिले. मावलाखियात से नोंग्रियात तक की यात्रा पर उन्हें ले जाने वाले गाइड भकुपर वानशाई थे. पुलिस को उन से महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ लगे. गाइड ने पुलिस को बताया कि कपल ने 22 मई को फोन किया. उस समय शाम के करीब साढ़े 3 बजे थे, लेकिन मैं ने मना नहीं किया और उन्हें नोंग्रियात तक गाइड करने का फैसला किया. उन्हें शिपारा होमस्टे पर छोडऩे के बाद हम वहां से निकल पड़े.

एक अन्य गाइड अल्बर्ट पीडी भी उन के साथ थे. गाइड ने यह भी बताया कि 3 व्यक्ति इस कपल के साथ और थे. वे तीनों हिंदी में बात कर रहे थे. वह हिंदी कम जानता है, इसलिए समझ नहीं पाया. वानशाई ने कहा कि हम ने अगले दिन (23 मई) के लिए अपनी सेवा की पेशकश की, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि उन्हें रास्ता पता है. वानशाई ने अपने पुलिस बयान में कहा कि सोनम ने उन से ज्यादातर बातचीत अंगरेजी में की. केस को खोलने के लिए पुलिस पर बहुत दबाव था, पुलिस की टीमें अपना काम कर रही थीं. वह हत्यारों तक पहुंच गई थी. हत्या के 3 आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया था. इस से पहले 8 मई की रात करीब 11 बजे मेघालय पुलिस पूरे लावलश्कर के साथ कोतवाली महरौनी के ग्राम चौकी पहुंची थी.

यहां राजा रघुवंशी हत्याकांड का आरोपी आकाश कमरे में सोते हुए मिला था. मेघालय पुलिस ने आकाश से पूछा कि सोनम रघुवंशी कहां है? उसे कहां छिपाया है. आकाश ने सोनम के बारे में कोई जानकारी होने से मना कर दिया था. तब परिजनों से सोनम के बारे में पूछताछ की. उन्होंने भी इंकार कर दिया था.  आकाश राजपूत (19 वर्ष) और उस के परिजन के इंकार करने के बाद भी मेघालय और जनपद की पुलिस ने मकान का चप्पाचप्पा छाना. यहां तक कि मकान के टपरे में रखे भूसे के ढेर के अंदर तक सोनम को तलाशा था.

पुलिस की यह काररवाई करीब एक घंटे तक चलती रही. जब पुलिस को यकीन हुआ कि सोनम यहां नहीं है, तब वह आकाश राजपूत और उस के 3 साथियों को अपने साथ ले गई थी. मध्य प्रदेश की पुलिस के सहयोग से मेघालय पुलिस ने इस हत्या में शामिल 3 हमलावरों आकाश राजपूत (19 वर्ष) के बाद विशाल सिंह चौहान (22 वर्ष) और राज सिंह कुशवाह (21 वर्ष) को भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद ही नाटकीय ढंग से सोनम ने सरेंडर किया. आधी रात के बाद सोनम उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में स्थित काशी चाय जायका होटल पर पहुंची. यह होटल रात भर खुलता है.

गाजीपुर के नंदगंज थाने के अंतर्गत आता है. होटल संचालक साहिल यादव उस समय मौजूद थे. साहिल यादव से उस ने मोबाइल मांगा. अपने भाई को फोन मिलाया, लेकिन रोती रही बात नहीं कर पाई. साहिल यादव ने सोनम के भाई गोविंद से बात की, उस ने इस होटल का पता बताया. आधे घंटे के भीतर नंदगंज थाना पुलिस वहां पहुंच गई. सोनम को हिरासत में ले लिया गया. मध्य प्रदेश और मेघालय पुलिस को इस की सूचना दी गई. सोनम ने दावा किया कि उसे अगवा करने के बाद उस के साथ क्या हुआ, इस बारे में उसे कुछ याद नहीं है. उस ने कहा कि उसे अंधेरे कमरे में रखा गया था, बाहर की दुनिया से उस का कोई संपर्क नहीं था. वह जैसेतैसे वहां से निकली.

सोनम से पूछताछ के बाद पुलिस ने आनंद कुर्मी को भी पकडऩे में सफलता हासिल की. आरोपी आनंद कुर्मी (23) खिमलासा थाना क्षेत्र के बसाहरी गांव में अपने चाचा भगवानदास कुर्मी के घर में छिपा हुआ था. मेघालय से आई पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से आरोपी को पकड़ा. डीएसपी एस.ए. संगमा के नेतृत्व में आई टीम ने आगासौद, खिमलासा और बीना थाना पुलिस के साथ मिल कर घेराबंदी की. आरोपी को पकडऩे के बाद खिमलासा थाने में पूछताछ की गई. एसडीओपी नितेश पटेल ने बताया कि आरोपी का पिता दौलतराम कुर्मी करीब 20-22 साल पहले परिवार के साथ इंदौर चला गया था. आनंद वहां जियोमार्ट में काम करता था. वह मुख्य आरोपी राज कुशवाहा के संपर्क में था. आनंद मूलरूप से भानगढ़ थाना क्षेत्र के मिर्जापुर गांव का रहने वाला है.

पूछताछ में पता चला कि उस के पिता 4 भाई हैं. बड़े भाई हरिशंकर कुर्मी मिर्जापुर में रहते हैं. वहां 5 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं. देवाराम और दौलतराम इंदौर चले गए थे. भगवानदास अपनी ससुराल बसाहरी में रह रहे थे. मेघालय पुलिस यहां से कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पांचों को मेघालय ले गई. शिलांग में ही एफआईआर दर्ज कराई गई. इंदौर से शुरू हो कर शिलांग और फिर गाजीपुर तक राजा रघुवंशी हत्या कांड फैल गया. शिलांग की अदालत से आरोपियों का 8 दिन का रिमांड मिल गया तो फिर प्याज के छिलकों की तरह परतदरपरत मामला खुलता गया.

सोनम और राजा रघंवुशी चेरापूंजी में झरना देखने जा रहे थे. वक्त बीतने के साथ ही सोनम की बेचैनी बढऩे लगी, योजना के अनुसार वह जल्द से जल्द राजा को ठिकाने लगाना चाहती थी, लेकिन सही जगह नहीं मिल पा रही थी. दोपहर 12 बजते ही पीछे से तेजी से आए तीनों किलर्स राजा से अच्छे से बातचीत करने लगे, ऐसे में राजा को भी कोई शक नहीं हुआ. दोपहर करीब डेढ़ बजे सोनम ने राजा की हत्या के लिए अपना प्लान ऐक्टिव किया. इस के तहत उस ने सब से पहले अपनी सास यानी कि राजा की मम्मी को फोन लगाया. उन के साथ मीठीमीठी बातें कीं. इस का मकसद यही था कि वह परिवार को भरोसा दिला रही थी कि सब कुछ ठीक है.

फोन पर बातचीत के दौरान सोनम ने अपने उपवास की भी चर्चा की. सास के कहने पर उन के बेटे राजा से भी कुछ देर बाद बात कराई. चेरापूंजी की करीब 10 किलोमीटर ऊंची चढ़ाई पर एक सेल्फी स्पौट बना था. उस से पहले पार्किंग स्थल था, सोनम राजा एक स्कूटी से गए थे. तीनों किलर्स ने 2 दुपहिया वाहन किराए पर लिए थे. तीनों गाडिय़ां पार्किंग में खड़ी की गई थीं. उस के बाद किलर्स राजा के पीछे चल दिए. वहां पहुंच कर पतिपत्नी मौसम का नजारा कर रहे थे. तभी सोनम ने मौका पाते ही किलर्स को इशारा किया और अपने पति राजा रघुवंशी को सेल्फी के लिए तैयार करने लगी. इतने में पीछे से एक किलर ने कुल्हाड़ीनुमा एक तेज धार वाले हथियार से पूरी ताकत से राजा पर वार कर दिया. राजा नीचे गिर गया. राजा ने उठने की कोशिश की. तभी दूसरे ने दूसरे हथियार से सामने से उस के सिर पर जोरदार वार किया.

योजना के अनुसार की थी राजा की हत्या

राजा वहीं ढेर हो गया, उस के बाद भी मिनी कुल्हाड़ी से एक वार उस पर और किया गया. उस का काम तमाम हो जाने पर और शरीर का सारा खून निकल जाने पर तीनों ने सेल्फी पौइंट पर उसे उठा कर रखा. वहां  करीब 3 फीट ऊंची ग्रिल लगी हुई थी. राजा की लाश को उठा कर नीचे गहरी खाई में फेंकने की तीनों ने कोशिश की, मगर सफलता नहीं मिली. तब सोनम ने आगे बढ़ कर लाश को ऊपर उठा कर खाई में फेंकने के लिए मदद की. ऐसा करने से उन के कपड़ों पर खून लग गया तो उन्होंने खून में सने कपड़े उतार कर वहीं फेंक दिए. उस के बाद तीनों पार्किंग स्थल पर पहुंचे. वहां से तीनों किलर्स वाली 2 स्कूटियों पर बैठ कर चारों निकल लिए.

पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि एक बुरका, जो विशाल ले कर आया था, सोनम को दिया. सोनम वह बुरका पहन कर अकेले वहां से निकली, ताकि बीच में जो टोल आते हैं या सीसीटीवी में उस का चेहरा  कैद न होने पाए. उस के बाद सोनम वहां से गुवाहाटी पहुंची. वहां के आईएसबीटी से वह बस ले कर पटना के लिए और फिर पटना से वह आरा पहुंच गई. आरा से वह लखनऊ पहुंची और लखनऊ से 26 तारीख को इंदौर पहुंच गई. इंदौर में राज कुशवाहा से उस की मुलाकात हुई. देवास नाके के पास एक किराए के फ्लैट में वह 8 जून तक इंदौर में रही. इस बीच राज कुशवाहा ने सोनम की सहूलियत का पूरा खयाल रखा था.

4 जून, 2025 को राजा के शव को इंदौर लाया गया. सोनम ने अपने पति राजा की अर्थी के लिए कफन और फूल मालाओं का इंतजाम कर के अपने प्रेमी राज के हाथ अपनी ससुराल भिजवाया. राजा के परिवार में सब से ज्यादा उस की मम्मी और बहन सृष्टि का रोरो कर बुरा हाल था. पूरे इंदौर में रघुवंशी समाज में रोष व्याप्त था. शोक की लहर दौड़ गई थी. इस के लिए एक दिन कैंडल मार्च का आयोजन हुआ. इस में बड़ी संख्या में समाज के लोग उपस्थित हुए.

शिलांग के एसपी विवेक सिएम ने प्रैस कौन्फ्रेंस कर कहा कि पहले राजा के कत्ल करने का प्लान गुवाहाटी में था, लेकिन यह प्लान फेल होने पर शिलांग में राजा रघुवंशी मारा गया. 3 बार कत्ल करने का प्रयास किया गया, लेकिन किलर्स असफल हो गए और चौथी बार में हत्या कर पाए. उन्होंने बताया कि राजा मर्डर केस का मास्टरमाइंड राज कुशवाहा है, सोनम ने उस का साथ दिया. पहले दिन की पूछताछ में आरोपियों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. तीनों आरोपी राज कुशवाहा और सोनम के दोस्त हैं, जिस में एक राज का चचेरा भाई था. दोस्ती के कारण तीनों आरोपी हत्या में शामिल हुए. शिलांग एसपी विवेक सिएम ने आगे कहा कि यह मामला सुपारी का नहीं है. तीनों आरोपी भी 19 मई को गुवाहाटी आ गए थे.

पुलिस की जांच में यह भी पता चला कि सोनम रघुवंशी और राज कुशवाहा राजा रघुवंशी की हर हालत में हत्या करना चाहते थे. उन्होंने इस के लिए एक पिस्टल खरीदी थी. यदि कुछ भी नहीं हो पाता तो सोनम सेल्फी देने के बहाने राजा को सेल्फी पौइंट से नीचे गहरी खाई में जिंदा ही धकेल देती. पुलिस को यह भी पता चला कि राज और सोनम ने हीराबाग के फ्लैट में एक बैग छिपाया था. इस बैग में कपड़ों के बीच देसी पिस्टल, 5 लाख रुपए, सोने की चेन, अंगूठी और राजा की हत्या से संबंधित कुछ अन्य सबूत वाली चीजें थीं. मेघालय पुलिस ने पांचों अपराधियों से पूछताछ कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

अभी इंदौर में मेघालय पुलिस की टीम एक बैग की तलाश कर रही है. यह ट्रौली बैग मेघालय से विशाल चौहान ने देवास नाका के उस फ्लैट पर पहुंचाया था, जहां पर सोनम हत्या के बाद रुकी थी. अब एक प्रौपर्टी डीलर, जिस का नाम है सिलोन जेम्स, की गिरफ्तारी हुई है. यह वही प्रौपर्टी डीलर है, जिस ने सोनम को राजा रघुवंशी की हत्या के बाद जब सोनम इंदौर लौटी थी तो इंदौर में रेंट पर फ्लैट दिलाया था. गुना का एक सिक्योरिटी गार्ड भी अब शिलांग पुलिस के शक के घेरे में है. पुलिस सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा गार्ड बलबीर अहिरवार उर्फ बल्लू को गिरफ्तार कर लिया गया है. इसी मामले में आठवें आरोपी की भी गिरफ्तारी हुई है.

प्रौपर्टी डीलर ने पुलिस को बताया कि किसी स्थान पर बैग जला दिया है. पुलिस ने  उस स्थान की भी जांच की. कुछ नमूने लिए हैं. पुलिस ने उसे मेघालय ले जा कर अदालत में पेश किया. आठवें आरोपी ग्वालियर निवासी लोकेंद्र सिंह तोमर को मेघालय पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जो उस फ्लैट का मालिक है जिस में हत्या के बाद फरार हुई सोनम रघुवंशी इंदौर में छिपी थी.

सोनम की फैक्ट्री में एंप्लाई था राज

राज कुशवाहा गाजीपुर थाना क्षेत्र के रामपुर गांव का निवासी है. राज कुशवाहा के पापा 3 भाई थे. 2 भाई रामपुर सुकेति गांव में अभी भी रहते हैं. 15 साल पहले राज कुशवाहा के पिता की स्थिति अच्छी नहीं थी. वह इंदौर चले गए थे. वहां फल की दुकान लगाने लगे. परिवार की हालत सुधरने पर करीब 10 साल पहले परिवार को वहीं बुला लिया. राज कुशवाहा की मम्मी चुन्नीबाई, बड़ी बहन सुहानी और छोटी बहन प्रिया और राज कुशवाहा अपने पापा के पास इंदौर चले आए. कोरोना काल में उस के पापा परिवार के साथ गांव आ गए. उस समय राज कुशवाहा भी आ गया.

कोरोना काल में ही राज के पापा की मौत हो गई. राज कुशवाहा परिवार के साथ फिर इंदौर आ गया. यहां राज कुशवाहा  प्लाईवुड की एक कंपनी में काम करने लगा. यह कंपनी सोनम रघुवंशी की थी. सोनम के यहां पर राज प्लाईवुड का काम करता था. उस ने ज्यादा तो नहीं, लेकिन हाईस्कूल परीक्षा पास कर रखी थी. इस कंपनी में उसे अकाउंट के काम पर लगा लिया गया. एक दिन राज कुशवाहा सोनम रघुवंशी के केबिन में पहुंचा. उसे देखते ही सोनम रघुवंशी ने पूछा, ”हां बताओ, कैसे आना हुआ?’’

”मैडम, मुझे 5 हजार रुपए की जरूरत है.’’

सोनम मलिकाना तेवर में बोली, ”अभी एक हफ्ता पहले ही तो वेतन मिला है. अभी से एडवांस लेने आ गए.’’

कुछ और खरीखोटी सुनाई. राज कुशवाहा बड़ा निराश हुआ, उस की आंखें डबडबा गईं. औफिस से बाहर जाने के लिए राज कुशवाहा जैसे ही मुड़ा, सोनम की आवाज आई, ”रुपए किस काम के लिए चाहिए?’’

राज कुशवाहा ने कहा, ”मम्मी की तबीयत खराब है. उन के इलाज के लिए जरूरत है.’’ मासूम चेहरे पर बड़ीबड़ी आंखों में छलकते आंसू देख कर सोनम का दिल पसीज गया. सोनम ने दराज से 5 हजार रुपए निकाल कर राज को दे दिए. सोनम के अहसान के बोझ को सिर पर लिए डगमगाते कदमों से राज औफिस से बाहर आ गया. यहीं से उम्र में करीब 5 साल छोटे अपने कर्मचारी राज के लिए सोनम के दिल में हमदर्दी का बीज अंकुरित हो गया. दूसरे दिन फैक्ट्री की साप्ताहिक छुट्टी थी.

अगले दिन राज अपनी ड्यूटी पर समय से फैक्ट्री आ गया और अपने काम में जुट गया. अचानक कदमों की आहट उसे सुनाई दी. उस के टेबल के पास तक कोई आया. इस से पहले कि वह सिर उठा कर देखता, तभी उस के कानों में एक मधुर आवाज सुनाई दी, ”ये लो एक हजार रुपए. यह एडवांस में नहीं जुड़ेंगे. यह मेरी तरफ से अपनी मम्मी की दवाई में खर्च कर लेना. और हां, अब उन की तबीयत कैसी है?’’

इतना सुन कर राज अपनी सीट से उठ कर खड़ा हो गया. नजरें नीची रहीं. अपनी मम्मी की तबीयत के बारे में जानकारी दी. राज ने कहा, ”मैम, आप का दिल कितना बड़ा है, आप जैसे लोग समाज में अब कम ही मिलते हैं. यह एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता.’’

एक दिन इंदौर के खूबसूरत मार्केट में राज गया था, तभी अचानक किसी ने उसे आवाज दी. उस ने मुड़ कर देखा तो सोनम स्कूटी रोके खड़ी थी. उस ने पास की ही एक कौफी हाउस की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यहां आओ, मैं भी पहुंच रही हूं.

उस दिन फैक्ट्री का साप्ताहिक अवकाश था. कौफी हाउस पहुंच कर दोनों आमनेसामने की सीट पर बैठे. सोनम ने कोई बात नहीं की, बल्कि अपने मोबाइल में मगन रही. वेटर 2 कौफी टेबल पर रख गया. राज नजरें नीचे किए हुए बैठा था. राज को सोनम की उस बात का इंतजार था, जिस के लिए उसे यहां कौफी हाउस में बुलाया था.

अचानक सोनम ने कहा, ”हां राज, बताओ मम्मी की कैसी तबीयत है?’’

सिर झुकाए बैठे राज ने कहा, ”अब तो काफी ठीक है.’’

”चलो, कौफी पियो!’’

राज ने कौफी का कप उठाया. उस की नजर सोनम की तरफ गई तो उस के हाथ कांप गए. बड़ी मुश्किल से कप को गिरने से रोक पाया. फिर भी थोड़ी सी कौफी छलक कर गिरी. सोनम की नजरें उस पर गड़ी थीं, उस प्यार भरी नजरों को कोई भी आसानी से समझ सकता था. कातिलाना नजरें और जादुई मुसकराहट उस के दिल में उतर गई. राज ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला. इस तरह हमदर्दी के साथ प्रेम के बीज की भी बुवाई हो गई.

रातें अब ख्वाबों में और दिन उस की यादों में गुजरने लगे. प्रेम का ये अंकुर धीरेधीरे एक विशाल वृक्ष बनने को बेताब था. उस की बातें जैसे ठंडी हवा की तरह गर्म दुपहरी में सुकून दे रही हों. आंखों ही आंखों में जो बातें होतीं, वो लफ्जों से परे थीं. राज का दिल अब हर धड़कन में उस का नाम लेने लगा. वह साथ हो या न हो, उस की मौजूदगी हर पल महसूस होती. राज को अब समझ आने लगा कि ये सिर्फ आकर्षण नहीं, कुछ गहरा ताल्लुक है.

इस तरह हमदर्दी से शुरू हुआ रिश्ता अब इश्क की दहलीज पर दस्तक दे रहा था. राज के दिन अब मस्ती में गुजरने लगे. आर्थिक संकट भी दूर हो गया था, क्योंकि 20 हजार रुपए महीने की नौकरी में उस के परिवार का गुजारा करना मुश्किल होता था. अब तो ठाट ही ठाट थे. दिन गुजरते गए, प्यार की पींगें बढ़ती रहीं और फिर 2 जिस्म एक जान हो गए. साथ जीनेमरने की कसमें खाई गईं और एकदूसरे का साथ न छोडऩे का वादा किया गया.

राजा रघुवंशी हत्याकांड खुल जाने के बाद मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा ने  कहा कि जिन लोगों ने मेघालय को बदनाम किया है, उन्हें माफी मांगनी चाहिए, नहीं तो उन के खिलाफ काररवाई की जाएगी. मेघालय के गृहमंत्री बोले, ”हमारी पुलिस को बेवजह बदनाम किया गया.’’

पुलिस के गले की फांस बन गया था यह केस

मेघालय के गृहमंत्री प्रेस्टोन टेनसांग ने अपने बयान में कहा कि मेघालय पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए. ये बात शुरू से हजम नहीं हो रही थी कि यहां के स्थानीय लोग लूटपाट के लिए किसी पर्यटक की हत्या कर दें. अब हमारी पुलिस ने सब दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया. इस केस में जल्दी से जल्दी तसवीर साफ होना इसलिए भी जरूरी था कि मेघालय में हर साल 11 लाख टूरिस्ट आते हैं. उन के भरोसे के लिए भी ये जरूरी था कि जल्द से जल्द इस केस का खुलासा हो. उधर सोनम रघुवंशी अपने प्रेमी राज कुशवाहा और अन्य लोगों के पकड़े जाने पर इंदौर से गाजीपुर कैसे गई, उस रहस्य का भी पुलिस ने परदाफाश कर दिया. जिस टैक्सी से सोनम इंदौर से उत्तर प्रदेश रवाना हुई थी, उस के ड्राइवर पीयूष तक भी पुलिस पहुंच गई है.

टैक्सी ड्राइवर पीयूष से भी एक घंटे तक क्राइम ब्रांच थाने में पूछताछ की गई. उधर उजाला यादव ने यह दावा किया था सोनम मुझे वाराणसी कैंट स्टेशन पर मिली थी. एक ड्राइवर और एक व्यक्ति उसे वहां तक छोडऩे आए थे. तुरंत ट्रेन न होने पर सोनम वाराणसी के बस अड्डे पर आई और उसी बस में बैठ गई, जिस में वह बैठी थी. उजाला ने बताया कि वह गोरखपुर जाने के लिए कह रही थी. उस ने एक लड़के से फोन करने के लिए मोबाइल मांगा. उस ने नहीं दिया. मुझ से भी उस ने मोबाइल मांगा, मैं ने दिया. एक नंबर डायल कर के डिलीट कर दिया. काल नहीं की.

ऐसा हो सकता है कि उस के पास कोई मोबाइल होगा. कहीं बीच में उस के पास काल आई होगी कि सभी लोग पकड़े गए हैं. गाजीपुर ही उतर जाए. गाजीपुर उतर कर उस ने वह छोटा मोबाइल नष्ट कर दिया होगा. तभी वह रात के 2 बजे चाय की दुकान पर पहुंच गई. वरना राज और सोनम का इरादा गोरखपुर से नेपाल भाग जाने का था. राज इतना शातिरदिमाग होगा, यह अंदाजा किसी को नहीं था.  ऐसा प्लान पेशेवर अपराधी भी नहीं बना पाते. यदि मामला हाईप्रोफाइल नहीं बनता तो सोनम और राज अपनी योजना में सफल हो जाते. वह तो मेघालय की पुलिस ने ड्रोन कैमरे से रघुवंशी की डेडबौडी तलाश कर ली थी.

एक तरफ राजा की मम्मी हैं, जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को खोया है, उन पर क्या बीत रही होगी. दूसरी तरफ सोनम की मम्मी का दर्द है, जिसे मर्डर की मास्टरमाइंड बताया जा रहा है. तीसरी मां उस आरोपी राज की है, जिसे सोनम का बौयफ्रेंड बताया जा रहा है. तीनों मां का अपना अलगअलग दर्द है. राज कुशवाह की मम्मी चुन्नीबाई, बड़ी बहन सुहानी और छोटी बहन प्रिया मानने को तैयार नहीं हैं कि राज कुशवाहा राजा रघुवंशी की हत्या कर सकता है. सुहानी ने कहा, ”मेरा भाई ऐसा कर ही नहीं सकता. वह तो सोनम को दीदी कहता था.’’

जहां मृतक राजा की बहन सृष्टि अपने भाई के खोने का दर्द बयां कर रही है, वहीं आरोपी सोनम के प्रेमी राज कुशवाहा की बहन अपने भाई को बेगुनाह बताते हुए साजिश का आरोप लगा रही है. दोनों बहनों का दर्द, एक भाई की हत्या और दूसरे की गिरफ्तारी ने इस हनीमून मर्डर को और मार्मिक बना दिया है. Hindi Crime Story

 

 

UP Crime News : बीमा क्लेम के करोड़ों हड़पने वाला गैंग

UP Crime News : यूपी के जिला संभल की पुलिस ने बीमा क्लेम हड़पने वाले गैंग के 30 लोगों को गिरफ्तार कर बड़ी सफलता हासिल की है. यह गैंग मरे हुए लोगों का भी मोटी धनराशि का जीवन बीमा करा कर बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से क्लेम ले लेता था. पिछले 8 सालों से देश के विभिन्न राज्यों में गैंग धड़ल्ले से काम कर रहा था. आप भी जानें कि गैंग किस तरह से अपने शिकार तलाशता था?

ओंकारेश्वर मिश्रा बीमा पौलिसी का सर्वे करने वाली फस्र्ट सोल्यूशन सर्विस कंपनी में बतौर जांच अधिकारी के रूप में काम करता था. करीब 8 वर्ष पहले की बात है. वह एक जीवन बीमा क्लेम से संबंधित जांच करने गया था.

जांच में पता चला कि जिस व्यक्ति का इंश्योरेंस क्लेम लेने के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया है, उस की बीमा पौलिसी मृत्यु से 3 महीने पहले ही कराई गई थी. ओंकारेश्वर मिश्रा ने और गहनता से जांच की तब पता चला कि वह व्यक्ति कई महीनों से कैंसर से पीडि़त था. उस की जो इंश्योरेंस पौलिसी की गई थी, वह नियम के अनुसार नहीं थी.

मृतक के फेमिली वालों ने मिश्राजी से सांठगांठ की. कुछ लेनदेन की बात चली. कुल मिला कर क्लेम की धनराशि के आधेआधे पर फैसला हो गया. नौमिनी को पौलिसी की राशि का भुगतान हो गया. इस तरह मिश्राजी को इस सांठगांठ से इतनी रकम हासिल हो गई, जितनी उस की एक महीने की सैलरी भी नहीं थी.

इस के बाद ओंकारेश्वर मिश्रा की बुद्धि में चेतना जागी. उस ने इस तरह के घोटाले को अपना धंधा बनाने के विचार पर मंथन शुरू कर दिया. इस के लिए उस ने अपने एक साथी अमित कुमार से विचारविमर्श किया. अमित भी इसी लाइन से जुड़ा था. दोनों ने मिल कर योजना तैयार की. वह किसी ऐसे बीमार व्यक्ति की तलाश में लग गए, जिस की मृत्यु निकट दिनों में ही संभव हो. कई दिनों के प्रयास के बाद भी ऐसा कोई मरणासन्न बीमार उन दोनों के हत्थे नहीं चढ़ा.

ओंकारेश्वर मिश्रा उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के कस्बा फुलवारिया का रहने वाला था. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद ओंकारेश्वर और अमित को सफलता नहीं मिली. कई दिनों से थकेहारे दोनों के चेहरे पर एक दिन चमक जाग उठी. दोनों ने तय किया कि ग्रामीण क्षेत्र की किसी आशा दीदी से कांटेक्ट किया जाए.

अमित की जानकारी में एक आशा दीदी थी. दोनों ने उस महिला से संपर्क किया. वह एक सक्रिय आशा थी. उसे अपने पूरे गांव की जानकारी थी. आशा ने इन दोनों को बताया कि गांव की एक महिला कैंसर से पीडि़त है और इस समय वह मरणासन्न स्थिति में है.

गांव के ही झोलाछाप डाक्टर से दवाई ले कर उस की जिंदगी के दिन पूरे कर रहे थे. महिला 50 प्लस की उम्र में पहुंच चुकी थी.

ओंकारेश्वर और अमित ने उस के परिवार वालों से बातचीत की उन्हें समझाया कि यदि इन का बीमा कर दिया जाए तो काफी रकम उन की मृत्यु के बाद परिजनों को मिल सकती है. परिवार के लोगों ने कहा कि बीमा कराने के लिए उन के पास पैसे नहीं है. मिश्राजी इसी जुमले का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तुरंत कहा कि पैसा हम लगाएंगे, कागज सब तैयार हम करेंगे, लेकिन आप को बीमा की आधी रकम हमें देनी पड़ेगी.

फेमिली के लोग उस की बात पर बिना किसी नानुकुर के तैयार हो गए. पूरा खाका तैयार कर लिया गया. जुगाड़ बाजी करके महिला का बीमा करा दिया गया. इन दोनों ने मिलकर बता दिया कि 5 लाख रुपए का बीमा कराया गया है.

बीमा की 2 किस्तें इन दोनों ने अपनी जेब से भर दीं. इत्तेफाक कहिए या इन लोगों का मुकद्दर, 2 महीने बाद ही महिला की मृत्यु हो गई. इन्होंने क्लेम कर के बीमा राशि निकाल ली और शर्त के अनुसार रकम आधीआधी बांट ली. वृद्धा की फेमिली भी खुश और मिश्राजी भी खुश. इस कामयाबी के बाद ये लोग इसी धंधे में लग गए.

इस के बाद ये लोग किसी बीमार मरणासन्न व्यक्ति की तलाश करते. उस का बीमा करवाते उस की मृत्यु के बाद बीमा राशि क्लेम कर के निकलवा लेते और उस का बंदरबांट कर लेते. इस तरह इन के इस धंधे में और भी लोग जुड़ते रहे और एक गैंग तैयार हो गया. सभी सदस्य भरपूर कमाई कर रहे थे. भरपूर आमदनी हो रही थी. फिर एक दिन अचानक गैंग पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. देखते ही देखते एक आलीशान मजबूत किला रूपी गैंग रेत के घरौंदे की तरह बिखर गया.

बात 17 जनवरी, 2025 की है. रात का समय था. ठंड पड़ रही थी. इस दौरान उत्तर प्रदेश के जिला संभल की एडिशनल एएसपी अनुकृति शर्मा अपनी गाड़ी से थाना रजपुरा पुलिस की रात्रि गस्त की निगरानी कर रही थीं. तभी रास्ते में एक काले रंग की स्कौर्पियो ने उन की गाड़ी को ओवरटेक किया. गाड़ी की स्पीड और ओवरटेक करने का ढंग देख एएसपी अनुकृति शर्मा को शक हुआ. उन्होंने अपने ड्राइवर को निर्देश दिया कि इस स्कौर्पियो को रोका जाए.

पुलिस ने उस स्कौर्पियो का पीछा किया. स्कौर्पियो ने स्पीड और तेज कर दी. एएसपी अनुकृति शर्मा ने भी अपने ड्राइवर को कार का पीछा करने के निर्देश दिए. पुलिस की 2 गाडिय़ां पीछे आते देख कर स्कौर्पियो का ड्राइवर घबरा गया. जैसे ही मौका लगा, एएसपी अनुकृति शर्मा के ड्राइवर ने ओवरटेक कर के स्कौर्पियो रुकवाई. उस में ओंकारेश्वर मिश्रा और अमित कुमार नाम के 2 शख्स बैठे थे.

अमित कार ड्राइव कर रहा था. उन से सामान्य नागरिक की तरह ही कुछ जानकारी पुलिस ने करनी शुरू कर दी. पहले तो वो पुलिस के सवालों को टालते रहे. इस पर एएसपी ने उन की गाड़ी की तलाशी लेने के निर्देश दिए. तलाशी में उन के पास से 16 डेबिट कार्ड, कई बीमा कंपनियों से जुड़े कागजात और 11 लाख से अधिक रुपए नकद मिले. यह सब बरामद होने पर एएसपी को मामला संदिग्ध लगा तो वह उन दोनों को कार सहित थाने ले गई.

संभल रजपुरा थाने में उन से पूछताछ का सिलसिला व्यापक होता गया. बातबात में बात बढ़ती गई. जब आगे जांच हुई तो पता चला कि यह कोई सामान्य लोग नहीं थे, बल्कि ये अंतरराज्यीय बीमा घोटाले के सरगना निकले.

पुलिस ने जब ओंकारेश्वर मिश्रा से पूछताछ की तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं. यह गैंग फरजी बीमा पौलिसी से जुड़ा था. ओंकारेश्वर ने कुबूला कि हम बीमा पौलिसी का सर्वे करने वाली कंपनी में बतौर इन्वेस्टिगेटर काम करते हैं.

मिश्रा और अमित ने दिल्ली स्थित 2 बीमा जांच कंपनियों, ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ और ‘फस्र्ट साल्यूशंस एजेंसी’ के लिए काम किया था, जो कई बीमा कंपनियों के दावों को वेरिफाई करने का काम किया करती थीं. उन का काम पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद नौमिनी के क्लेम की जांच करना था, लेकिन वे उल्टा काम कर रहे थे.

थाना रजपुरा पुलिस द्वारा इन दोनों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद जेल भेज दिया गया और इन से बरामद कागजात व अन्य सामग्री के आधार पर जांच चलती रही.

इन के द्वारा बताए गए अन्य साथियों पर भी पुलिस की निगरानी बढ़ गई. जगहजगह छापे मारे गए. जहां से जो आरोपी हाथ लगा उसे गिरफ्तार किया जाता रहा. यह सिलसिला कई महीने तक चलता रहा. पुलिस ने बीमा घोटाले में शामिल रहे 30 आरोपियों को 15 अप्रैल, 2025 तक गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया.

शुरू के दिनों में गिरोह के लोग बीमार व्यक्ति के फेमिली वालों से संपर्क करते थे. उन्हें सरकारी मदद का झांसा देते थे और आधार कार्ड और पैन कार्ड ले लेते थे. मरीज के इलाज की फाइल के साथ सिग्नेचर या फिर अंगूठे का इंप्रेशन ले लेते थे. गांव में कौन व्यक्ति बीमार है, किस को कैंसर हुआ है. कौन मरने वाला है, उन्हें तलाश कर उन की जीवन बीमा पौलिसी करा दिया करते थे. यह लोग गरीब और अशिक्षित लोगों को ही अपना टारगेट किया करते थे.

यह लोग अब तो किसी मरणासन्न व्यक्ति का ही नहीं अपितु मृत्यु के बाद भी मृतक व्यक्ति का बीमा कराने में कामयाब होने लगे. अब गैंग ने पूरी रकम हड़पने की योजना तैयार कर ली. ऐसा ही एक मामला संभल पुलिस की जांच में देश की राजधानी दिल्ली का सामने आया.

उत्तरी दिल्ली के शक्तिनगर निवासी त्रिलोक कुमार बीते वर्ष 19 जून को बीमारी से मौत हो गई. 25 सितंबर को उन्हें जिंदा दर्शा कर बीमा घोटाला गैंग ने बीमा की 2 पौलिसी करा दी. त्रिलोक कुमार कैंसर से पीडि़त थे. 15 जून, 2024 को वह दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में भरती हुए. 19 जून, 2024 को उन की मौत हो गई थी.

20 जून को दिल्ली के निगम बोध घाट पर उन का अंतिम संस्कार हो गया. फेमिली वालों के पास एमसीडी दिल्ली की श्मशान घाट की रसीद मौजूद थी, जिस पर मौत का कारण कैंसर लिखा था. इस के अलावा राजीव गांधी हौस्पिटल के डाक्यूमेंट्स भी थे. त्रिलोक कुमार के नाम पर कुल 2 जीवन बीमा पौलिसी एलआईसी से कराई गईं. इस में दूसरी वाली पौलिसी 20.48 लाख रुपए की थी. गिरोह ने इन की बीमा धनराशि हड़प ली.

ऐसा ही एक मामला बुलंदशहर जिले के डिबाई थाना क्षेत्र में भीमपुर गांव का सामने आया. पुलिस को सुनीता ने बताया कि उस के पति सुभाष की मौत बीमारी की वजह से पिछले साल हुई. मरने से कुछ दिनों पहले ही गांव की आशा दीदी नीलम उन के पास आई. उस ने कहा कि वह सरकार से कुछ मदद दिला सकती है.

वह सारे कागजात ले गई और वो उस ने इंश्योरेंस गिरोह को सौंप दिए. घोटाले का मामला सोशल मीडिया पर चर्चा में होने के बाद सुनीता को भी उस के पति के बीमे के कागज चैक कराने की याद आई. बाद में पता चला कि उस के पति के नाम पर लाखों रुपए की बीमा राशि निकाली जा चुकी है.

इसी तरह गाजियाबाद में लोनी थाना क्षेत्र की पूजा कालोनी में रहने वाले सौराज की 9 नवंबर, 2022 को मौत हो गई. उसी दिन पूजा कालोनी के श्मशान घाट में उस का अंतिम संस्कार हो गया. फेमिली वालों के पास इस श्मशान घाट की रसीद भी मौजूद है. इस में अंतिम संस्कार 9 नवंबर, 2022 को दोपहर साढ़े 3 बजे होना लिखा है. सौराज की मौत के बाद फरजी बीमा पौलिसी गैंग ऐक्टिव हुआ और उस के घर पहुंच गया.

मर चुके लोगों का भी गैंग ने कराया बीमा

इस गैंग ने सौराज के मृत्यु प्रमाणपत्र अन्य कागजात में हेराफेरी कर के उस की 2 जीवन बीमा पौलिसी करा दीं. एक पौलिसी मौत के 20 दिन बाद 29 नवंबर, 2022 को हुई. यह साढ़े 8 लाख रुपए की थी. दूसरी पौलिसी अन्य बीमा कंपनी से 7 दिसंबर, 2022 को हुई. यह 19 लाख 91 हजार 970 रुपए की थी.

मामला उत्तर प्रदेश के ही जिला बदायूं के गांव सिठौली का सामने आया. यहीं के रहने वाले सुरजीत सिंह की मौत एक लंबी बीमारी के बाद हो गई थी. गैंग ने उन के 2 बीमे करा दिए. सुरजीत सिंह को इसकी भनक भी नहीं लगी. गैंग ने बीमा कंपनी से क्लेम कर के फरजी तरीके से बीमा राशि हड़प ली. इस फरजीवाड़े में बैंककर्मियों की मिलीभगत की संभावना व्यक्त की गई.

घोटाले के एक अन्य मामले में सर्वेश के पति मुकेश कुमार की मृत्यु किडनी फेल होने से हुई थी. उन के नाम पर 20 लाख रुपए का बीमा था. गैंग के लोगों ने सभी दस्तावेज लेकर सर्वेश से उस पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे. इस के बावजूद बीमे की धनराशि सर्वेश के खाते में नहीं आई. 2 जनवरी, 2025 को गिरोह ने सर्वेश के नाम पर खोले गए फरजी खाते से सेल्फ चैक के जरिए से 9 लाख 90 हजार रुपए निकाल लिए.

चौंकाने वाली बात यह रही कि सर्वेश ने दावा किया कि उन्होंने ऐसा कोई खाता नहीं खुलवाया और न ही बैंक जा कर कोई चैक साइन किया. उन का एकमात्र बैंक खाता रजपुरा में था, जबकि नोएडा के सूरजपुर स्थित यस बैंक में उन के नाम से नया खाता खोल दिया गया था.

घोटाले का मामला हाईलाइट हो जाने पर बीमा राशि हड़पने की एक शिकायत जनपद संभल के थाना कुडफ़तेहगढ़ और एक थाना बनियाठेर में दर्ज हुई.

यह मामला अप्रैल 2025 का है. थाना कुडफ़तेहगढ़ क्षेत्र के गांव स्योडारा निवासी मीरावती के पति सुदामा, जो कैंसर से पीडि़त थे. इन की 2020 में मृत्यु हुई थी. इन के नाम की भी एक पौलिसी एलआईसी से कराई गई थी. इन के भी फरजी दस्तावेज तैयार किए गए. बीमा का पैसा मीरावती के खाते में

आया था.

आरोपियों ने प्रथमा ग्रामीण बैंक स्योडारा में मीरावती का खाता खुलवाया था . बैंक से चेक बुक ले कर मीरावती से खाली चेक पर अंगूठा लगवा लिया. मीरावती के खाते से कई लाख रुपए आराम सिंह नाम के व्यक्ति ने अपने बेटे पंकज सिंह के खाते में ट्रांसफर करा लिए.

हर विभाग में कर रखी थी सैटिंग

दूसरे मामले में बनियाढेर क्षेत्र के निवासी सत्यवीर सिंह की पत्नी मृतका सुकरवती को काला पीलिया था. जनवरी 2020 को उन की मृत्यु हो गई. जनवरी 2021 में उन्हें जीवित दिखा कर बीमा कराया गया.

मार्च में मृत्यु दिखा कर दूसरा मृत्यु सर्टिफिकेट ब्लौक बिलारी से ही बनवाया गया. बीमा कंपनियों में क्लेम कर के बीमा राशि प्राप्त कर ली और हेराफेरी कर के नौमिनी के खाते से निकाल ली. इन दोनों फरजीवाड़े के मामलों में नामजद आराम सिंह को नामजद किया गया.

पुलिस द्वारा आराम सिंह निवासी अल्लापुर, बिलारी को गिरफ्तार किया गया. आराम सिंह अंतरराज्यीय बीमा गिरोह का एक सदस्य निकला.

मुख्य आरोपी आराम सिंह ने पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे किए. उस ने बताया कि ओंकारेश्वर मिश्रा, सचिन शर्मा उर्फ मोनू आदि के साथ मिल कर यह धोखाधड़ी की जाती थी. यह गिरोह पिछले 8 सालों से सक्रिय था. संभल, धनारी, बबराला, बिलारी और मुरादाबाद समेत कई क्षेत्रों में इन का नेटवर्क फैला हुआ था. गिरोह ने 12 राज्यों के सैकड़ों लोगों के साथ इस तरह की धोखाधड़ी करनी स्वीकार की.

एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा की निगरानी में संभल पुलिस को जांच में एक व्यक्ति पंचम सिंह के 2 आधार कार्ड बरामद हुए. एक में उन की जन्मतिथि जनवरी 1955 और एक दूसरे आधार कार्ड में जुलाई 1976 दर्ज थी. दोनों आधार कार्ड का नंबर सेम था.

पंचम सिंह के बेटे विनोद कुमार को 2 आधार कार्ड इस्तेमाल करने के जुर्म में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया. क्योंकि बीमा घोटाला गैंग ने पंचम सिंह की मृत्यु के बाद उन की बीमा राशि हड़प ली थी. पुलिस ने दोनों आधार कार्ड यूआईडीआई का डेटाबेस से चेक कराए.

डुप्लीकेट आधार कार्ड में पंचम सिंह की आयु 21 वर्ष काम कराई गई थी. क्योंकि पीएम जेजेवाई (प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना) का लाभ के लिए उम्र 50 साल से कम की उम्र होनी चाहिए, जबकि पंचम सिंह 70 साल के थे. इसलिए आधार में आयु कम कराई गई थी.

पुलिस के लिए चिंता की बात यह थी कि यह सब हुआ कैसे? पंचम सिंह के बेटे विनोद ने आधार कार्ड में जन्मतिथि की हेराफेरी करने की जानकारी दी.

हैरान करने वाली बात यह थी कि आम नागरिक को अगर अपना एड्रेस चेंज कराना हो या मोबाइल नंबर दर्ज करना हो या बदलवाना हो तो लोगों को व्यक्तिगत रूप से आधार के अधिकृत सेंटर पर उपस्थित होना होता है, लेकिन पंचम सिंह ने यह कैसे करा लिया? यह सब कैसे हो गया?

पुलिस की तहकीकात में इल्लीगल तरीके से इन लोगों ने एकदम लुक लाइक पोर्टल बनाया था, जोकि आधार की तरह दिखता था. ये लोग वेब डिजाइनिंग व कोडिंग में बहुत माहिर थे.

पुलिस ने बदायूं और अमरोहा जिले से 4 लोगों को गिरफ्तार किया. जिन के पास से लैपटाप और कंप्यूटर सिस्टम के अलावा बायोमैट्रिक डाटा लेने वाले कई उपकरण बरामद किए गए, जिस में रबड़ के फरजी फिंगरप्रिंट, आइरिस कापी, फरजी पासपोर्ट, कई राज्यों के फरजी जन्म प्रमाणपत्र, मोडिफाई फिंगरप्रिंट स्कैनिंग मशीन, मोबाइल फोन, पैन कार्ड प्रपत्र, फिंगर अपडेशन, आवेदन प्रपत्र 400 से अधिक आधार संशोधन के लिए एनरोलमेंट आवेदन, 8 पासपोर्ट फोटो आदि बरामद किए गए. बीमा घोटाला गैंग की यह टीम आधार कार्ड में संशोधन करने की जिम्मेदारी खुद निभाती थी.

हिरासत में लिए गए लोगों की सूचना पर 6 लोगों को और गिरफ्तार किया गया. इस गिरोह के अन्य सदस्यों के पास से पुलिस ने 81 पासबुक, 35 चेकबुक के अलावा 31 मृत्यु प्रमाण पत्र, कई बैंकों की मोहरें, लैपटाप भी बरामद किए.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में प्रेमपाल और प्रेम सिंह फरजी तरीके से सिम देने का काम करते थे. दोनों ही युवक एक मोबाइल कंपनी के एजेंट थे. जिन के पास से भी पुलिस ने फरजी दस्तावेज बरामद किए.

इन से मोबाइल फोन और 7 भिन्नभिन्न कंपनियों के सिम बरामद किए गए. बरामद डाक्यूमेंट्स राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल के रहने वाले व्यक्तियों से संबंधित हैं जो या तो खुद जीवन बीमा की पौलिसी धारक हैं या फिर मृतक के नौमिनी हैं.

ऐसा ही एक और मामला पुलिस की जांच में सामने आया. बुलंदशहर जिले के पहासू थाना क्षेत्र के मोहल्ला चमारान कला अशोकनगर की रुखसार के पति असलम का बीमा क्लेम गिरोह ने ठग लिया. असलम गंभीर रूप से बीमार थे. गिरोह को जब यह जानकारी हुई तब गैंग के सदस्यों ने असलम का जीवन बीमा करा दिया.

रुखसार को उस का नौमिनी बनाया गया. जब उस के पति की मृत्यु हुई, रुखसार के नाम से एक फरजी खाता खोला गया और उस में बीमा की रकम डाल कर गैंग के सदस्यों द्वारा निकाल ली गई. बैंक में दिए गए मोबाइल नंबर भी गलत थे, जिस से रुखसार को कोई जानकारी नहीं मिली.

रुखसार ने बीमा कंपनी से संपर्क किया तो उसे पता चला कि उस के पति का बीमे का क्लेम पहले ही हो चुका है. रुखसार के बैंक खाते में क्लेम की रकम नहीं आई.

कई राज्यों में फैला हुआ था जालसाजी का नेटवर्क

इस मामले की जांच में सामने आया कि बुलंदशहर जिले के कस्बा अनूपशहर स्थित यस बैंक के 2 डिप्टी मैनेजरों ने फरजी दस्तावेजों पर गिरोह के सदस्य का खाता खोला था. रुखसार के क्लेम की रकम गिरोह के खाते में आई और वह निकाल कर ले गए.

जब पुलिस ने जांच की तो बैंकिंग प्रक्रियाओं में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का पता चला. बैंककर्मियों ने खाताधारक की उपस्थिति के बिना ही खाते खोल दिए, जिस से ठगी की योजना को अंजाम दिया गया. उक्त बैंक के दोनों डिप्टी मैनेजरों को पुलिस ने जेल भेज दिया.

एएसपी अनुकृति शर्मा के निर्देश पर गैंग का खुलासा करने के बाद सभी 10 बीमा कंपनियों को एक लेटर लिखा. उन से 2 साल का डेटा मांगा. इस में सिर्फ उन पौलिसी की डिटेल्स मांगी गईं, जिन में बीमा होने और मरने में सिर्फ एक साल का अंतर रहा हो.

डेटा एनालिसिस करने के बाद एसबीआई लाइफ की 7.27 करोड़, पीएनबी मेटलाइफ की 2 करोड़ रुपए से ज्यादा, कैनरा एचएसबीसी की 7.44 करोड़ रुपए, इंडिया फस्र्ट की 10.33 करोड़ रुपए, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ की 4. कुछ ही कंपनियों द्वारा भेजे गए डेटा में 50 करोड़ रुपए की बीमा पौलिसी सस्पेक्टेड पाई गईं. बाकी बीमा कंपनियों ने कथा संकलन तक डेटा नहीं दिया था.

इन में करीब 70 फीसदी लोगों की मौत का कारण हार्टअटैक बताया है. इस से स्पष्ट होता है कि गैंग ने डाक्टरी रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाण पत्र सब स्वयं के द्वारा तैयार किए गए होंगे. बीमा कंपनियों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार बीमा पौलिसी उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, दिल्ली, बिहार, असम, वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में हुई थीं.

यानी इन का नेटवर्क पूरे देश में फैला था. चूंकि यह गैंग पिछले 8 सालों से काम कर रहा था और अभी पुलिस को सिर्फ 2 साल का डेटा मिला है, इसलिए अनुमान है कि फरजी पौलिसी की रकम 100 करोड़ रुपए से भी पार पहुंच सकती है. पुलिस अप्रैल 2025 तक गैंग के 30 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में मुख्य रूप से अमित ड्राइवर, ओंकारेश्वर मिश्रा के अतिरिक्त धनारी थाना क्षेत्र के गांव भैयापुर का शाहरुख खान, संजू, अरुण किशोर, हीरेंद्र कुमार, प्रेमपाल, प्रेम सिंह, बुलंदशहर जिले की थाना डिबाई क्षेत्र के गांव बाधौर की नीलम थी.

नीलम आशा कार्यकर्ता है, अन्य मुख्य अभियुक्त अमित पुत्र हीरालाल निवासी मसजिद मोहल्ला बबराला, हाल निवासी अलीपुर चोपला, थाना गजरौला, नितिन चौधरी (डिप्टी मैनेजर, यस बैंक, अनूप शहर ब्रांच) निवासी देवीपुरा मोहल्ला, बुलंदशहर, अभिनेश राघव (डिप्टी मैनेजर, यस बैंक, बुलंदशहर ब्रांच), ईस्ट इंडिया इनवेस्टिगेशन कंपनी के मालिक शैलेंद्र कुमार, नरेश कुमार तथा नरेश का बेटा आकाश यादव निवासी मोहल्ला बाजार कस्बा बिलारी जिला मुरादाबाद है. कुछ लोग अभी फरार हैं, जिन के खिलाफ अदालत में काररवाई की जा रही है.

संभल में हुए बीमा घोटाले में कई थानों की पुलिस ने काररवाई की. इस घोटाले में रजपुरा और गुन्नौर थाना पुलिस ने मुख्य रूप से अंतरराज्यीय गिरोह के सदस्यों को गिरफ्तार किया.

बीमा घोटाला गैंग के खिलाफ प्रभावी काररवाई एसएचओ (थाना रजपुरा) हरीश कुमार, एसएचओ (गुन्नौर) अखिलेश कुमार, दीपक कुमार (सीओ गुन्नौर), एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा और एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई के नेतृत्व में हुई.

कथा लिखने तक जांच जारी थी. घोटाला कहां तक पहुंचेगा, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

50 लाख के क्लेम के लिए विकलांग को कुचला

पहली अगस्त, 2024 को संभल जिले के बिसौली थाना क्षेत्र के ढीलवारी गांव निवासी राजेंद्र ने अपने भाई दरियाब जाटव की मौत के संबंध में एफआईआर दर्ज कराई थी. दरियाब 21 जुलाई, 2024 को बाजार जाने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन वह देर शाम तक भी घर वापस नहीं आया. संभावित स्थानों पर तलाश भी किया गया, दरियाब का पता नहीं चला.

सैनिक चौराहे से चंदौसी के आटा गांव जाने वाली सड़क पर करीब डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर रात 10 बजे दरियाब का शव मिला सूचना मिलने पर राजेंद्र भी मौके पर पहुंचा. घटनास्थल देख कर ऐसा लग रहा था कि दरियाब की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है.

राजेंद्र के कहने पर और लोगों ने भी अज्ञात वाहन की टक्कर से उसकी मृत्यु होना स्वीकार कर लिया. पुलिस को सूचना दी गई. मौका मुआयना करने के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण सिर में चोट और पूरे शरीर पर छिलने जैसे निशान बताए गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट एक्सीडेंट मामले की ओर इशारा कर रही थी. 2 अगस्त 2024 को राजेंद्र की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात वाहन द्वारा टक्कर मार देने से हुई मृत्यु का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मामले को सड़क हादसा दिखाते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी.

बीमा कंपनी टाटा एआईए को इस मामले में शक हुआ. दरियाब के नाम की एक साल पहले बीमा पौलिसी की गई थी. बीमा कंपनी ने पुलिस को सूचना दी. संभल जिले में बीमा घोटाला माफिया गिरोह पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. उस की जांच भी चल रही थी. इस घोटाले की जांच का नेतृत्व एएसपी अनुकृति शर्मा कर रही थीं. इसलिए बीमा कंपनी की शिकायत संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई ने एएसपी अनुकृति शर्मा को जांच हेतु सौंप दी. 9 महीने पहले दिव्यांग दरियाब की सड़क दुर्घटना की फाइल बंद चुकी थी.

बीमा कंपनी की शिकायत पर फिर से फाइल ओपन की गई. जांच में पता चला कि सड़क दुर्घटना में मौत का शिकार हुए व्यक्ति की 5 बीमा पौलिसी कराई गई थीं. एक सवाल था कि दिव्यांग दरियाब कोई काम नहीं करता था. 5 पौलिसी की किस्तें जमा करने के लिए उस के पास पैसा कहां से आता था.

जांच में सामने आया कि दरियाब दिव्यांग होने के कारण ट्राई साइकिल पर चलता था. उस का एक्सीडेंट उस के घर से करीब 27 किलोमीटर दूर हुआ था. अब सवाल यही उठ रहा था कि वह आखिर 27 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर कैसे पहुंच गया. क्योंकि घटनास्थल पर दिव्यांग की ट्राई साइकिल बरामद नहीं हुई थी.

इस के बाद पुलिस ने आगे की जांच की तो पता चला एक्सिस बैंक के एडवाइजर पंकज राघव ने दरियाब की पौलिसी की थी. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स खंगाली. काल डिटेल्स में पंकज, हरिओम और विनोद की बात सामने आई. पुलिस ने तीनों से पूछताछ की तो पूरा मामला खुल गया.

दरअसल, हरिओम और विनोद नामक 2 सगे भाई एक्सिस बैंक में लोन लेने के लिए गए थे. वहां उन का सिविल खराब होने के कारण लोन देने से मना कर दिया. यहां उन की मुलाकात एक्सिस बैंक के इंश्योरेंस पौलिसी एडवाइजर पंकज राघव से हुई. लोन न मिलने पाने की स्थिति में तीनों की बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा तो शातिर दिमाग पंकज राघव ने पौलिसी हड़पने का घटिया प्लान तैयार किया.

दोनों भाइयों ने मिल कर गरीब दिव्यांग का प्लानिंग के अनुसार दरियाब का 50.68 लाख रुपए का 5 अलगअलग बीमा कंपनियों से एक्सीडेंटल बीमा करवाया. दरियाब के भाई राजेंद्र को विश्वास में लिया. पंकज ने खुद को बचाते हुए बीमा में नौमिनी तो राजेंद्र को बनाया, लेकिन मोबाइल नंबर अपना डलवा दिया, ताकि भविष्य में मैसेज उसी को मिलें. खाते खुलवाए गए आधार कार्ड आदि सभी कागजात राजेंद्र से अपने कब्जे में ले लिए.

क्लेम के कागज तैयार कर के उस पर राजेंद्र के अंगूठे, हस्ताक्षर भी ले लिए. बीमा की किस्तें भी एक साल तक लगातार जमा करते रहे. 31 जुलाई को प्रताप, हरिओम और विनोद दरियाब को कार में बैठा कर चंदौसी लाए.

दरियाब को शराब पिलाई गई और फिर आटा गांव रोड के पास सुनसान जगह पर कार से बाहर निकल कर नशे में बेहोश दरियाब को सड़क पर डाल दिया. उस के ऊपर कार चढ़ा दी गई. कार से कुचलने के बाद भी उस की मौत नहीं हुई तो हथौड़े से उस के सिर पर वार किए गए. जिस से उस की मौत हो गई.

दरियाब की मौत के बाद 50.68 लाख रुपए के कुल बीमे में से इन लोगों ने 15.68 लाख रुपए पुलिस की गिरफ्त में आने से पहले ही हड़प लिए थे. बाकी राशि उन को नहीं मिल पाई थी. दिलचस्प बात यह है कि राजेंद्र के हाथ एक पैसा नहीं लगा. राजेंद्र को प्लानिंग की कोई जानकारी भी नहीं दी गई.

इस खुलासे को अंजाम देने वाली टीम को विभाग की तरफ से 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की गई. गिरोह के 4 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. सड़क दुर्घटना के 9 महीने बाद 30 अप्रैल, 2025 को पूरे मामले का खुलासा संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई ने प्रैस कौन्फ्रैंस में किया.  UP Crime News

 

 

Romantic Story in Hindi : लिवइन प्रेमिका की कीमत एक करोड़

Romantic Story in Hindi : प्रौपर्टी डीलर गीता शर्मा और एडवोकेट गिरिजाशंकर पाल के फेमिली वालों को उन के अंतरजातीय प्रेम संबंध पर कोई आपत्ति नहीं थी और लिवइन में रहने पर कोई शिकायत भी नहीं थी. दोनों परिपक्व थे, प्रोफेशनल थे. पतिपत्नी नहीं थे, फिर भी गीता का नौमिनी बन कर प्रेमी ने एक करोड़ रुपए का इंश्योरेंस करवा रखा था. आपस में लाखों का लेनदेन करते थे. फिर क्या हुआ, जो गीता की रक्तरंजित लाश बीच सड़क पर पाई गई. पढ़ें, नए जमाने की लंबी चली प्रेम कहानी, जिस का अंत चौंका गया…

दोपहर का वक्त था. तारीख थी 18 जनवरी, 2025. रोजाना की तरह लंच करने के बाद प्रौपर्टी डीलर गीता शर्मा लखनऊ के पीजीआई स्थित नीलगिरी अपार्टमेंट में बने अपने औफिस में आ गई थी. कुछ परेशान लग रही थी. कभी मोबाइल फोन को हाथ में लेती तो कभी सामने लैपटौप की स्क्रीन पर खुले वाट्सऐप मैसेज को स्क्राल करने लगती. अंदर की बेचैनी उस के हावभाव से साफ झलक रही थी. दरअसल, गीता शर्मा कई दिनों से परेशान चल रही थी. गिरिजा न तो उस के उधार के पैसे लौटा रहा था और न ही उस का फोन उठा रहा था. उस से लाखों रुपए लेने थे. वह कोई गैर नहीं, बल्कि उस का प्रेमी था.

सालों से लिवइन में भी था. हालांकि वे अलगअलग रहते थे. जब से उस ने शादी की जिद की थी, तब से कारोबारी लेनदेन में बाधाएं आने लगी थीं. औफिस में अकेली बैठी हुई काफी समय तक वह खयालों में खोई रही. अचानक उस का मोबाइल फोन बज उठा. वीडियो काल था. स्क्रीन पर दिखे चेहरे को देखते ही एकाएक मुसकरा उठी और बोली, ” हैलो!’’

”देखो, शिकायत मत करना…नाराज मत होना. मैं गुनहगार हूं तुम्हारा. फोन नहीं रिसीव किया, मैं कोर्ट में था.’’ उधर से काल पर गिरिजाशंकर पाल था.

गीता नाराज होती हुई बोली, ”कैसे नहीं करूं शिकायत! तुम्हारे साथ लिवइन में रहते हुए मुझे 10 साल हो गए, लेकिन जब से मैं ने तुम से शादी की बात छेड़ी है, तब से तुम्हारा रवैया ही बदल गया है.’’

”देखो, तुम गुस्से में भी सुंदर दिख रही हो.’’ गिरिजा बोला.

”वह सब तो ठीक है, मेरे भाई का फोन आया था. पूछ रहा था शादी का मुहूर्त निकलवाना है.’’ गीता बोली.

”अरे वह भी हो जाएगा, थौड़ा बैंक बैलेंस बढ़ जाने दो.’’ गिरिजा का जवाब था.

”फिर टाल रहे हो!’’

”अरे नहीं मेरी जान! तुम ने भी कौन सा राग छेड़ दिया. मैं आज तुम्हें कैंडल डिनर देना चाहता हूं. एक बड़ा मुकदमा हाथ आने वाला है, इस खुशी में…’’ गिरिजा शंकर आंखें मटकते हुए बोला.

”अच्छा!’’

”आज शाम को 5 बजे मैं गांव जा रहा हूं. कल संडे है. चाहो तो तुम भी गांव चल सकती हो. रास्ते में रेस्टोरेंट में डिनर करेंगे. अगर वहीं से लौटना चाहो तो वापस हो जाना. कुछ देर तुम्हारे साथ बैठेंगे. मुझे अच्छा लगेगा!’’ गिरिजा शंकर बोला.

इस पर गीता ताना मारती हुई बोली, ”मैं क्या करूंगी गांव जा कर! वहां वही ताने सुनने को मिलेंगे. कब दुलहन बन रही हो?’’

दोनों का गांव रायबरेली जनपद में सदर कोतवाली क्षेत्र का अकबरपुर कछुबाहा, मटिया है. गीता अपने गांव जाने से कतराती थी. अपने काम के सिलसिले में लखनऊ के नीलगिरी अपार्टमेंट में कई सालों से अकेली रह रही थी. वहां गिरिजाशंकर बेरोकटोक आताजाता रहता था. उस रोज भी उन्होंने वीडियो कालिंग में गीता को शाम के 5 बजे तैयार रहने को कहा था. जवाब में गीता बोली थी, ”बड़ी बेकरारी से इंतजार करूंगी.’’

गिरिजाशंकर पाल अपनी सफारी गाड़ी से निर्धारित समय पर वृंदावन कालोनी के निकट नीलगिरी अपार्टमेंट के गेट पर पहुंच गया. उस रोज उस ने बाहर से ही काल कर गीता को बुला लिया. गीता हैरान थी कि जो कुछ दिनों से उस का फोन बारबार काट देता था. वह ठीक समय पर आ गया. हालांकि उस ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उस की सफारी गाड़ी में साथ वाली सीट पर जा कर बैठ गई.

”बहुत जरूरी बात करनी है.’’ गीता बोली.

”कर्ज के बारे में! जल्द लौटा दूंगा.’’ गिरिजा बोला.

”मैं उस की नहीं, शादी के मुहूर्त की बात कर रही हूं.’’

”देखो, तुम ने फिर से दुखती रग पर हाथ रख दिया…’’ गिरिजा बोला ही था कि गीता तुरंत बोल पड़ी, ”तुम्हारे लिए दुखती रग है, लेकिन मेरे लिए दिल का दर्द है!’’

”जब तक मैं गले मढ़ी पत्नी से कानूनी छुटकारा नहीं पा लेता, तब तक तुम से शादी संभव नहीं है.’’

”अभी तक झूठा वादा करते रहे?’’

”कैसा वादा?’’ गिरिजाशंकर की यह बात गीता को चुभ गई.

बोली, ”तो अब मुकर रहे हो…’’

”मैं एडवोकेट हूं…सब कुछ कानूनी दायरे में करता हूं.’’ गिरिजाशंकर के इस तर्क से वह और भी मायूस हो गई. उदासी चेहरे पर झलक आई थी. वह एकदम से चुप हो गई. गिरिजाशंकर कार भगाए जा रहा था. गीता काफी देर तक गुमसुम उस का चेहरा देखती रही. उस के चेहरे पर कई तरह के भाव आजा रहे थे. उस के जरिए

गीता समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर गिरिजाशंकर के दिमाग में क्या चल रहा है. शाम का अंधेरा घिर चुका था. थोड़ी देर की खामोशी के बाद गिरिजाशंकर और गीता एक रेस्टोरेंट में थे. एक टेबल पर आमनेसामने. उन के सामने चाय और गीता के पसंद की सैंडविच आ चुकी थी. चाय पीते हुए गिरिजाशंकर अपने नए मुकदमे की बात करने लगा, जबकि गीता उस की बातें सुनते हुए अपने असली मकसद पर आ गई थी.

गीता बोली, ”गिरिजा, आज तुम मुझे साफसाफ बताओ कि मुझ से शादी करने की तारीख किस महीने की निश्चित कर रहे हो.’’

”गांव से लौटते ही जवाब मिल जाएगा.’’ मुंह बनाता हुआ गिरिजा बोला. गीता ने महसूस किया कि गिरिजा के चेहरे पर तनाव था.

”मैं तुम से पिछले 5 सालों से आग्रह कर रही हूं. अब पानी सिर से काफी ऊपर हो चुका है. और ज्यादा दिन तक मैं इंतजार नहीं कर सकती.’’ गीता बोली.

”समझो, इंतजार का अखिरी वक्त आ चुका है. वैसे मैं ने तुम्हारा एक करोड़ का इंश्योरेंस कर भविष्य सुरक्षित कर दिया है. जरा इस पर भी तो सोचो.’’ गिरिजाशंकर अपनी सफाई में बोला.

गीता बोली, ”वह तो ठीक है मगर!’’

”अब अगरमगर छोड़ो, चलो, तुम्हें अपार्टमेंट के रास्ते में छोड़ता हुआ अपने गांव निकल जाऊंगा.’’

कुछ समय में ही दोनों रेस्टोरेंट से बाहर निकल आए. गीता गिरिजाशंकर के साथ सफारी में बैठ गई. हालांकि गीता उस के साथ जाने के मूड में नहीं थी, लेकिन रात गहरी होने के कारण वह उस के साथ बैठ गई थी. गिरिजाशंकर मेन रोड छोड़ कर सन्नाटे की ओर सफारी को तेजी से चला रहा था. कुछ समय में ही वह लखनऊ में डिफेंस एक्सपो मैदान के सामने की सड़क पर पहुंच गया था. वहां काफी सन्नाटा था. गिरिजा ने एक किनारे कार रोक दी और कहा, ”तुम यहीं उतर जाओ. यहां से तुम्हारा अपार्टमेंट ज्यादा दूर नहीं है. मैं कैब बुक कर देता हूं.’’

उस वक्त सड़क पर इक्कादुक्का गाडिय़ां चल रही थीं. उन में बड़े ट्रक भी थे. गीता उस की कार से बाहर निकल आई थी.

”तुम सड़क के दूसरी तरफ चली जाओ. मेरे कुछ साथी सामने की बिल्डिंग से आने वाले हैं. वह भी मेरे गांव जाएंगे.’’ गिरिजाशंकर बोला और मोबाइल से कैब बुक करने लगा, लेकिन गीता ने मना कर दिया. वह बोली, ”मैं खुद कैब बुक कर लूंगी, मैं यहां की कोई नई नहीं हूं.’’

”ओके! संभल कर सड़क क्रौस करना!’’ कहते हुए गिरिजाशंकर ने अपनी सफारी वहां से थोड़ी आगे बढ़ा ली.

अगले रोज 19 जनवरी, 2025 की अल सुबह लखनऊ की वृंदावन कालोनी सेक्टर 10 में डिफेंस एक्सपो मैदान का इलाका रात को जितना सुनसान दिख रहा था, सुबह होते ही वहां का माहौल चहलपहल में बदल गया था. लोगों का मार्निंग वाक के लिए आना शुरू हो चुका था. उन में नजदीक की कालोनी में रहने वाली महिलाएं और मर्द ही अधिक थे. ट्रैकसूट में मैदान की सड़क से सटे किनारे दौड़ लगा रही एक युवती की नजर एक पेड़ की जड़ के पास गई. वह चौंक गई.

तुरंत कुछ अन्य लोगों को इकट्ठा किया. सभी पेड़ के पास गए. देखा, वहां एक महिला खून से लथपथ पड़ी थी. उस का चेहरा खून से पुता हुआ लाल था. उसे पहचानना मुश्किल था. कपड़े भी कई जगह से फटे हुए थे. तुरंत इस की सूचना वृंदावन पुलिस चौकी को दी गई. वहां के इंचार्ज एसआई विकास कुमार तिवारी सूचना मिलते ही कुछ पुलिसकर्मियों हैडकांस्टेबल आकाश गुप्ता और असिंदर कुमार यादव के साथ मौके पर पहुंच गए. मृत महिला की उम्र 35 वर्ष के करीब लग रही थी. उस लाश को अपने कस्टडी में लेने के बाद पुलिस ने उस की शिनाख्त के लिए जांच शुरू की. पहने हुए कपड़े बहे खून से शरीर पर चिपके हुए थे.

शरीर के कई जगहों पर घाव के निशान साफ दिख रहे थे. लग रहा था कि शायद वह किसी वाहन से कुचली गई हो. सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई थी. लाश की हालत देख कर ऐसा लगता था, मानो उस पर कई बार वाहन के पहिए चढ़े हों. सूचना मिलने पर डीसीपी (पूर्वी) शशांक सिंह और एडिशनल डीसीपी (पूर्वी) पंकज कुमार सिंह भी मौके पर पहुंच गए. उस की पहचान के लिए पीजीआई थाने ने वृंदावन कालोनी और नीलगिरी अपार्टमेंट के आसपास के लोगों से पूछताछ की. जल्द ही उस की पहचान हो गई. उस का नाम गीता शर्मा था, जो नीलगिरी अपार्टमेंट में अकेली किराए पर रहती थी.

आसपास की कालोनी के कई लोग उसे जानतेपहचानते थे. आगे की जानकारी पुलिस ने जुटा ली. गीता नाम की वह महिला मूलरूप से रायबरेली के अकबर कछुबाहा (मटिया) की निवासी थी. गीता के बारे में पुलिस ने रायबरेली की सदर कोतवाली को सूचना दे दी गई. कुछ घंटे में ही उस के फेमिली वालों को इस की सूचना मिल गई. उस का भाई लालचंद पीजीआई, लखनऊ पहुंच गया. उस ने उस की पहचान कर ली. एसएचओ रविशंकर तिवारी को लालचंद्र ने बहन की मौत का कारण भी बताया. साथ ही हत्या का आरोप एडवोकेट गिरिजाशंकर पाल पर लगाया.

इस आधार पर पीजीआई कोतवाली में गीता की हत्या का मुकदमा धारा 103 (1) बीएनएस के तहत गिरिजाशंकर पाल के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. इस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार सिंह को सौंपी गई. इस के बाद पीजीआई पुलिस ने सेक्टर 11-12 में पुलिस चौकी के निकट मामा चौराहे के कालिंदी पार्क से ले कर ट्रामा सेंटर के किनारे लगे तमाम सीसीटीवी कैमरों को फुटेज निकाली. उन की जांच के बाद कुछ फुटेज में एक कार रात के समय ट्यूबलाइट की रोशनी में डिफेंस एक्सपो मैदान की ओर जाती दिखाई दी.

कार का नंबर पढ़ा जा रहा था. उस नंबर से कार के मालिक का पता चल गया. वह एक सफारी कार थी, जो गिरिजाशंकर पाल पुत्र राम पाल के नाम रजिस्टर्ड थी. पुलिस द्वारा गीता की लाश के पास मिले सामान की जांच की गई. उस के मोबाइल नंबर की सर्विलांस जांच से गिरिजाशंकर के मोबाइल का नंबर आया. जिस से घटना के दिन कई बार बातें हुई थीं. यहां तक कि वीडियो कालिंग का विवरण भी मालूम हो गया, जो 18 जनवरी की दोपहर से ले कर रात तक का था. रिपोर्ट भी गिरिजाशंकर के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इसलिए पुलिस ने देर किए बिना गिरिजाशंकर की गिरफ्तारी की पहल की. जल्द ही वह सफारी कार समेत गिरफ्तार कर लिया गया.

गीता की सड़क दुर्घटना में मौत और इस से पहले उस से हुई मोबाइल पर बात के बारे में पूछे जाने पर उस ने बगैर किसी नानुकुर के अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि गीता उस की प्रेमिका थी. उन का प्रेम संबंध लंबे समय से चल रहा था. वे शादी करने वाले थे, किंतु उस ने योजना बना कर उसे मार डाला. उस की मौत को दुर्घटना बनाने की कोशिश की, ताकि उस के नाम एक करोड़ रुपए के इंश्योरेंस की रकम को वह हासिल कर ले. वह एक एडवोकेट था, इसलिए उस ने बचाव के तरीके निकाल लिए थे. गीता की हत्या स्वीकार करते हुए उस ने जो कहानी सुनाई, वह स्वार्थ से भरी काफी रोमांचक निकली.

गिरिजाशंकर पाल 8 साल पहले एलएलबी की पढ़ाई के लिए अपने गांव से लखनऊ आ गया था. वह महत्त्वाकांक्षी और फितरती दिमाग वाला इंसान था. बातों को सुनसमझ कर वह शीघ्र ही उस पर पकड़ बना लेता था और उस के अनुरूप खुद का ढाल लेता था. उस की शादी किशोरावस्था में ही उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के बगराहा गांव के निवासी श्यामपाल की बेटी रीना के साथ हो गई थी. लखनऊ में पढ़ाई के दौरान हर रविवार को वह अपने गांव मटिया आताजाता था. एलएलबी की पढ़ाई पूरी होने के बाद उस ने लखनऊ में रह कर वकालत की प्रैक्टिस करने का मन बना लिया था.

इस के लिए रायबरेली रोड पर कल्ली पश्चिम के कस्बे में एक छोटा सा मकान किराए पर ले कर रहने लगा था. वह वकालत की प्रैक्टिस में बहुत जल्द ही रम गया. हर किस्म के प्रोफेशनल लोगों के साथ उस का उठनाबैठना हो गया. समय बीतने के साथ वह एक तजतर्रार एडवोकेट बन गया था. अपने गांवघर को तो वह करीबकरीब भूल गया था. शहरी लड़कियां उसे अच्छी लगने लगी थीं और उन में से ही किसी को जीवनसाथी बनाने के सपने देखने लगा था. एक तरह से वह नई जिंदगी में रंग चुका था. संयोग से उस की जानपहचान प्रौपर्टी मे लगे लोगों से अधिक थी.

साल 2011 के जनवरी महीने में गिरिजाशंकर की मुलाकात गीता से कोर्ट परिसर में तब हो गई थी, जब वह किसी प्रौपर्टी की रजिस्ट्री के सिलसिले में वहां गई थी. गीता को देखते ही गिरिजा ने उसे पहचान लिया था. दरअसल, एक समय में दोनों ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई साथसाथ की थी. उस के बाद गिरिजा लखनऊ चला आया, जबकि गीता की पढ़ाई छूट गई थी. एक ही गांव के होने के चलते उन के बीच फिर से दोस्ती हो गई. गीता ने बताया कि वह लखनऊ में रह कर प्रौपर्टी का काम करती है. गिरिजा ने बताया कि खरीदबिक्री में कानूनी मदद कर सकता है और उसे नए ग्राहक भी दे सकता है. गीता यह सुन कर खुश हो गई. इस के बाद गीता ने उसे अपने अपार्टमेंट में रात के खाने पर बुला लिया.

एडवोकेट गिरिजाशंकर जब गीता से मिलने उस के फ्लैट पर गया, तब उसे बड़े फ्लैट में अकेली देख कर काफी हैरानी हुई. वह रोमांचित हो गया. दिल की धडकनें बढ़ गईं. उस की तारीफ में बोला, ”गीता, तुम गांव की देसी गर्ल से शहर की बोल्ड लड़की बन गई हो…अच्छा लग रहा है!’’

”मुझे भी तुम से मिल कर बहुत खुशी हुई. तुम अगर साथ दो तो मैं कंस्ट्रक्शन में भी हाथ आजमा लूं.’’ गीता बोली.

”हांहां, क्यों नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ कहते हुए गिरिजा ने गीता का हाथ पकड़ लिया.

”देख लो, हाथ पकड़े हो, वरना हाथ मिलाने वाले तो कई होते हैं.’’ गीता मजाकिया लहजे में बोली.

”कैसी बात करती हो, मैं ने जो कह दिया, वह अटल है और अटल रहेगा. किंतु हां, मेरे वाजिब मुनाफे का भी खयाल रखना.’’

इस तरह उन के बीच प्रोफेशनल बातें होने लगीं. गीता ने गिरिजा की खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ी. दरअसल, उसे प्रोफेशनल मदद की जरूरत थी. उस की बदौलत वह अपने कारोबार को फैलाने का सपना बुनने लगी, जिस से उसे अच्छा मुनाफा होने वाला था. उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई. उस ने बताया कि गांवघर से बाहर इसलिए निकली है कि परिवार की आर्थिक मदद करे. उस के पिता नहीं हैं. परिवार में अकेली मम्मी किरण देवी और छोटा भाई लालचंद की जिम्मेदारी उसी के ऊपर ही है.

गीता शर्मा गिरिजाशंकर का साथ पा कर खुश हो गई थी. जल्द ही उसे महसूस हो गया कि गिरिजा के सहारे वह अपने कारोबार में बहुत कुछ अच्छा कर सकती है. इस की जानकारी उस ने अपनी मम्मी और छोटे भाई को भी दे दी. गिरिजा के बातव्यवहार से गीता ने उसे अपने दिल के काफी करीब पाया. वह एक काल पर हाजिर हो जाने वाला इंसान था. उस ने कभी भी कोई मोबाइल काल मिस नहीं होने दी. मिस काल पर तुरंत कालबैक किया या वाट्सऐप मैसेज भेज दिया. गीता उस की व्यवहारकुशलता और हाजिरजवाबी से प्रभावित हो गई थी. वह अपने प्रोफेशन में माहिर मुश्किल से मुश्किल काम निकाल लेता था.

गीता को गिरिजाशंकर की मदद से नीलगिरी अपार्टमेंट में सोसाइटी का सस्ता फ्लैट मिल गया था. गिरिजा अमूमन हर रोज गीता से मुलाकात कर लेता था. धीरेधीरे गीता और गिरिजा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. इस तरह दोनों गहरे दोस्त और प्रेमी युगल के बाद लिवइन में थे. उन के बीच पैसों का लेनदेन भी होने लगा. गीता का काम चल पड़ा था. उसे आमदनी होने लगी. गिरिजा की सलाह पर उस ने एक करोड़ का बीमा करवा दिया. उस का नौमिनी गिरिजा को ही बना दिया, क्योंकि उस ने उस से शादी का वादा किया था. जरूरत पडऩे पर गिरिजा गीता से रुपए उधार मांग लेता था. जब उसे लौटाने में देरी होती, तब भी गीता उस से कुछ नहीं कहती थी.

गिरिजा के पास सफारी कार थी, गीता को जहां भी जाना होता, वह उसे अपनी गाड़ी से ले जाता था. कालोनी के लोग उन के संबंध से वाकिफ थे तो गीता के फेमिली वालों को भी कोई आपत्ति नहीं थी. आपत्ति थी तो गिरिजा की ब्याहता पत्नी के मायके वालों को. हालांकि उन की जातियां भिन्न थीं. कुछ साल पहले तक गिरिजा जब भी गांव जाता तो गीता को भी साथ ले कर जाता था और वापस भी साथ लाता था. कभीकभी गीता अपनी मम्मी को लखनऊ ले आती थी. भाई भी आताजाता रहता था. किंतु कुछ महीने से गिरिजा के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया था. ऐसा तब से हुआ था, जब से गीता उस के साथ गांव जाने से मना कर चुकी थी.

गीता जब भी गिरिजा से मिलती थी, उसे शादी के बारे में जरूर कहती. आए दिन के रोकनेटोकने से वह तंग आ चुका था. वह चाहता था कि पहले कानूनी स्तर पर उस का पूर्वपत्नी से तलाक हो जाए, उस के बाद ही गीता से कोर्ट मैरिज करे. इस के अलावा गिरिजा ने गीता से लाखों रुपए उधार ले रखे थे. जिस कारण वह गीता से कन्नी काटने लगा था. यहां तक कि वह कई बार गीता की काल रिसीव नहीं करता था या कट कर देता था. गीता की मौत के कुछ दिन पहले भी गिरिजा ऐसा ही कर रहा था. बारबार गीता के फोन करने पर वह उस का जवाब नहीं दे रहा था. गीता परेशान हो गई थी.

खासकर जब से उस ने इंश्योरेंस के सर्टिफिकेट में नौमिनी की जगह अपनी मम्मी या भाई का नाम नहीं देखा था, तब से वह कुछ अधिक बेचैन रहने लगी थी. उस का मोटा पैसा भी कारोबार में फंसा हुआ था. गिरिजा अगर उसे पैसे लौटा देता, तब उस की कुछ परेशानी खत्म हो सकती थी. 18 जनवरी, 2025 की दोपहर में जब गिरिजाशंकर ने उसे फोन कर बुलाया और अपने साथ चलने की बात की, तब गीता आसानी से तैयार हो गई. उस के मन में जरा भी अनहोनी की आशंका नहीं थी. किंतु इस के विपरीत गिरिजाशंकर ने उस के खिलाफ योजना बना रखी थी. वह अपनी योजना को अंजाम देने में सफल भी हो गया, किंतु जुर्म को छिपाने में कामयाब नहीं हो पाया.

वारदात को दुर्घटना बनाने के लिए उस ने गीता को अपनी कार से पीछे से तब टक्कर मार दी, जब वह सड़क पार कर रही थी. वह जानबूझ कर उसे सुनसान इलाके में ले गया था. गीता के सड़क पर गिरते ही गिरिजा ने अपनी सफारी कार से उसे कुचल दिया. उस ने उसे कई बार रौंदा और उस की लाश को सुनसान इलाके में एक्सपो मैदान के किनारे जा कर फेंक दिया. गीता शर्मा की मौत के बाद गिरिजाशंकर घबरा गया. वह फरार होने के लिए तेजी से कार भगाने लगा, जिस से उस की कार डिवाइडर से टकरा गई. गाड़ी का शीशा टूट गया. तब उस ने गाड़ी में लगे खून की धुलाई, सफाई एवं गाड़ी की रिपेयर के लिए गाड़ी को गैराज में लगा दिया. उस के बाद उस ने होटल में जा कर देर रात तक आराम किया.

आधी रात के बाद वह होटल से अपने गांव चला गया. वहां सुबह उस ने गीता के भाई लालचंद को घर जा कर गीता की दुर्घटना के बारे में बताया. उस ने यह भी बताया कि सड़क दुर्घटना में उस की घटनास्थल पर ही मौत हो चुकी है. लालचंद्र शर्मा उसी वक्त भागाभागा लखनऊ के पीजीआई पुलिस स्टेशन जा पहुंचा. उस ने पुलिस को अपनी बहन की मौत का दोषी गिरिजाशंकर को ही बताया. उस ने यह भी बताया कि गिरिजा ने उस की बहन के साथ लिवइन में रहते हुए अपनी विवाहिता पत्नी को छोड़ रखा था. उस ने पुलिस को यह भी बताया कि गिरिजा ने गीता से 13 लाख रुपए उधार ले रखे थे. इसे ले कर उन के बीच कई बार झगड़ा हो चुका था.

उस की हरकतों से गीता काफी तंग आ चुकी थी. गिरिजा ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था. उस से पूछताछ कर पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर दिया, वहां से उसे जेल भेज दिया गया था. Romantic Story in Hindi

 

 

Delhi News : बौयफ्रेंड क्यों बना कातिल

Delhi News :  22 वर्षीय कोमल और 26 वर्षीय मोहम्मद आसिफ की पिछले 4 सालों से गहरी दोस्ती थी. कैब ड्राइवर आसिफ उसे जीजान से चाहता था, इसलिए वह उसे इधरउधर घुमाता और शौपिंग कराता था. फिर एक दिन आसिफ ने कार में ही कोमल की न सिर्फ हत्या कर दी, बल्कि उस की लाश को गहरे नाले में ठिकाने लगा दिया. आखिर बौयफ्रेंड क्यों बना कातिल?

उत्तरपूर्वी दिल्ली के सुंदरनगरी के रहने वाले 26 वर्षीय मोहम्मद आसिफ का चेहरा उदास था. वह बहुत परेशान नजर आ रहा था. उस का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. वह कैब ड्राइवर था. उस की कैब बुक करने के लिए सुबह से कितने ही फोन आ चुके थे, लेकिन वह किसी की बुकिंग स्वीकार नहीं कर रहा था. उस दिन वह सुबह उठ कर वह नहाया भी नहीं था, बस बिस्तर में पड़ा हुआ कुछ सोच रहा था. उस के विचारों में कौन है, यह केवल वही जानता था, लेकिन उसी के खयालों में वह खोया हुआ था और परेशान हुए जा रहा था. उस का मोबाइल उस के पास ही पड़ा हुआ था. जिस पर उस वक्त किसी का मैसेज फ्लैश हो रहा था.

एकाएक आसिफ का ध्यान मोबाइल पर चला गया. उस ने मोबाइल उठा कर मैसेज पढ़ा, ‘यार, तुम्हें कितनी बार फोन किया है, तुम फोन ही नहीं उठा रहे हो. खैरियत तो है? हार कर मैसेज करना पड़ा है. फोन कर के बताओ, क्या बात है? —मोहम्मद जुबैर उर्फ जावेद.’

आसिफ ने काल डिटेल्स में देखा, जुबैर की 4 मिस्ड काल थीं. आसिफ को हैरानी हुई, वह इतना परेशान था कि किसी की काल आने का भी पता नहीं चला.

कुछ सोच कर आसिफ ने जुबैर को फोन लगाया. जुबैर को जैसे यकीन था कि आसिफ फोन जरूर करेगा. उस ने तुरंत आसिफ की काल अटेंड कर ली, ”हां आसिफ, कहां बिजी हो तुम, मेरा फोन भी नहीं उठा रहे हो?’’

”बस, ऐसे ही यार…’’ आसिफ धीरे से बोला.

”चलो, हम कनाट प्लेस चलते हैं, मुझे पालिका बाजार से 2 जींस खरीदनी हैं.’’

”तुम जाओ जुबैर, मेरी कहीं आने जाने की इच्छा नहीं है.’’

”क्यों? घर में पड़ेपड़े क्या मुरगी के अंडे निकाल रहे हो.’’ जुबैर झल्ला कर बोला, ”तुम्हारे कहने पर तो मैं जहन्नुम तक चलने को तैयार हो जाता हूं.’’

”कहा न जुबैर, मेरा मूड नहीं है. आज तुम अकेले चले जाओ.’’ आसिफ ने कह कर फोन काट दिया.

उस ने फोन को टेबल पर रख दिया और एक गहरी सांस लेने के बाद वह फिर खयालों में डूब गया.

कुछ ही देर हुई थी कि बाहर के दरवाजे पर आहट हुई. आसिफ दरवाजा धकेल कर अंदर आ रहा था.

”क्या हुआ है तुझे? आज तूने मुझे पहली बार कहीं चलने से इंकार किया है.’’ जुबैर अंदर आ कर कुरसी पर बैठते हुए बोला, ”तेरी तबियत तो ठीक है न?’’

”तबियत ठीक है.’’ आसिफ मरी सी आवाज में बोला.

”तो तेरा चेहरा क्यों मुरझाया हुआ है?’’

”ऐसे ही.’’

”ऐसे तो नहीं है आसिफ, कुछ बात जरूर है जो तू मुझ से छिपा रहा है.’’

”कोई बात नहीं है जुबैर, मैं ठीक हूं.’’

”तुझे मेरी कसम है, बता क्या बात है?’’ जुबैर इस बार आसिफ के हाथ को पकड़ कर जिद्ïदी स्वर में बोला.

आसिफ ने गहरी सांस ली और बोला, ”मैं कोमल को ले कर परेशान हूं जुबैर.’’

”कोमल! उसे क्या हुआ है. वह तो तेरी चाहत है, उस पर तू जान छिड़कता है यार.’’

”वह कई दिनों से मुझ से बात नहीं कर रही है जुबैर.’’

”कमाल है.’’ जुबैर मुसकराया, ”वह किसी घरेलू टेंशन से परेशान होगी, इसलिए बात नहीं कर रही है. यह कोई टेंशन का इशू नहीं है आसिफ.’’

”टेंशन का ही विषय है. कोमल मुझ से नहीं किसी दूसरे लड़के से बातें करने लगी है. मैं ने उसे ऐसा करते हुए 2-3 बार देखा है.’’

”तू कोमल से पूछ लेता कि वह दूसरे लड़के में दिलचस्पी क्यों ले रही है?’’

”पूछा है यार.’’ आसिफ धीरे से बोला, ”कोमल कहती है, मैं किसी से बात करती हूं तो तुम्हें जलन क्यों हो रही है. मैं तुम्हारी दासी नहीं हूं, जो तुम्हारे कहने पर चलूं. अब बता, मैं क्या करूं?’’

”तू एक बार कोमल से मिल कर उसे समझा दे, उस पर पहला हक तेरा है. तेरी उस से मोहब्बत 4 साल पुरानी है, वह तुझे धोखा नहीं दे सकती.’’ जुबैर ने समझाया.

”वह फिर वैसा ही जवाब देगी.’’ आसिफ ने निराशा भरे स्वर में कहा.

”देख आसिफ, हमारी डिक्शनरी में लिखा होता है जिसे चाहो, उस को अपना बनाओ. वह सिर्फ अपनी होनी चाहिए. यदि वह ऐसा नहीं करती जो उस के पर कतर दो.’’

”तू कहना क्या चाहता है.’’ आसिफ ने चौंक कर जुबैर की तरफ देखा.

”देख, तू आज कोमल से मिल कर साफसाफ पूछ ले कि उस के मन में क्या है. वह तुझे चाहती है या किसी और को. यदि वह किसी और को चाहती है तो उस का टेंटुआ दबा कर किस्सा खत्म कर दो. बेकार की टेंशन मत पालो.’’

आसिफ ने सिर झटका, ”तू कहता है तो मैं ऐसा ही करूंगा. चल, अब तू कहां चलना चाहता है.’’

”हम कनाट प्लेस जा रहे हैं.’’ जुबैर उठते हुए बोला, ”तू फटाफट तैयार हो जा, मैं बाहर खड़ा हूं.’’

आसिफ ने जल्दीजल्दी फ्रैश हो कर कपड़े चेंज किए और बाहर आ गया. कुछ देर में ही दरवाजे को ताला लगा कर वह जुबैर के साथ कनाट प्लेस जाने के लिए निकल पड़ा था.

आसिफ ने क्यों की गर्लफ्रेंड की हत्या

12 मार्च, 2025 बुधवार का दिन था. आसिफ शाम को 5 बजे ही अपनी कैब ले कर निर्माण विहार पहुंच गया था. उस ने कैब को एक तरफ पार्क कर लिया और मोबाइल निकाल कर कोमल का नंबर मिलाया. दूसरी ओर घंटी बजी. पहली बार में उस की काल अटेंड नहीं की गई तो उस ने फिर ट्राई किया. दूसरी बार में उस का फोन उठा लिया गया.

कोमल का झुंझलाया हुआ स्वर उभरा, ”क्या बात है, मुझे बारबार फोन क्यों मिला रहे हो?’’

”कोमल, आज मेरा मूड बहुत अच्छा है. मैं तुम्हें आइसक्रीम खिलाना चाहता हूं.’’

”मेरे को आइसक्रीम नहीं खानी है आसिफ.’’

”क्यों? तुम्हें तो मैंगो फ्लेवर वाली आइसक्रीम बहुत पसंद है.’’

”हां, लेकिन आज मेरी तबियत खराब है, मैं आइसक्रीम नहीं खाऊंगी.’’ कोमल का स्वर कुछ नरम हो गया.

”चलो, कुछ और खा लेना. मैं तुम्हें शौपिंग भी करवाना चाहता हूं.’’

”अरे! कहीं गड़ा खजाना हाथ लग गया है क्या?’’ कोमल ने उपहास भरे स्वर में कहा, ”तुम्हारी जेब में मैं ने इकट्ठे 5 सौ रुपए भी कभी नहीं देखे.’’

”हर समय एक जैसा नहीं रहता कोमल. आज मेरी जब में 5 हजार रुपए हैं, तुम बढिय़ा सा सूट खरीद लेना.’’

”हूं.’’ कोमल ने स्वीकार करते हुए कहा, ”कहां पर हो तुम?’’

”मैं यहीं दिल्ली के निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर-1 के सामने खड़ा हूं.’’ आसिफ ने अपनी लोकेशन समझा दी. फिर पूछा, ”कितनी देर में आ रही हो कोमल?’’

”आधाएक घंटा लग सकता है, इस वक्त प्रीत विहार में थोड़ा जाम लगा होता है, फिर भी मैं पहुंच जाऊंगी.’’

”मैं इंतजार कर रहा हूं.’’ आसिफ ने कहने के बाद फोन काट दिया. वह पुश्त से लग गया और आराम से लेट गया.

करीब 40 मिनट में ही कोमल उस की कैब के पास आटो से आ गई. वह काफी खुश नजर आ रही थी. उसे देख कर आसिफ ने कैब का दरवाजा खोल दिया. कोमल अंदर बैठ गई. आसिफ ने कैब को आगे बढ़ा दिया, वह नई दिल्ली की तरफ कैब ले जा रहा था.

”हम कहां जा रहे हैं?’’

”मैं आज तुम्हें नई मार्केट दिखाऊंगा कोमल. तुम बैठी रहो. हम बस 10-15 मिनट ने वहां पहुंच जाएंगे.’’

आसिफ ने मुसकराते हुए कहा और कैब की स्पीड बढ़ा दी. काफी देर बाद एक सुनसान सड़क का किनारा देख कर आसिफ ने कैब को रोक लिया.

”यह तुम मुझ को कहां ले आए हो आसिफ?’’ कोमल परेशान स्वर में बोली.

”घबराओ मत यार, मैं तुम्हें घर पहुंचा दूंगा. तुम पानी पी लो, गरमी कुछ ज्यादा है.’’ आसिफ ने अपनी पानी की बोतल कोमल को देते हुए कहा.

कोमल ने बोतल ले ली और ढक्कन खोल कर पानी पीने लगी. आसिक उस का चेहरा देखता रहा.

”ऐसे क्यों देख रहे हो?’’ कोमल ने मुसकरा कर पूछा.

”देखने में तुम कितनी भोली और शरीफ लगती हो कोमल.’’

”वो तो मैं हूं ही.’’ कोमल इठला कर बोली.

”हो नहीं, मेरे सामने बन जाती हो.’’ आसिफ गंभीर हो गया, ”तुम्हें मैं 4 साल से प्यार करता हूं, लेकिन अब तुम मुझे कुछ दिनों से भाव नहीं दे रही हो.’’

कोमल ने आसिफ को घूरा, फिर शब्दों को चबाते हुए बोली, ”तुम मुझे यह सब सुनाने के लिए यहां लाए हो क्या?’’

”मुझे आज तुम से फैसला करना है कोमल.’’ आसिफ गंभीर हो गया, ”मुझे बताओ, तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?’’

”मैं इस बारे में कुछ नहीं बोलूंगी आसिफ, यह मेरे दिल पर निर्भर करता है कि मैं किसी को प्यार करूं या न करूं.’’ कोमल शुष्क स्वर में बोली, ”तुम मुझे कैब से उतार दो, मैं आटो कर के घर चली जाऊंगी.’’

”ऐसे कैसे चली जाओगी, तुम्हें मेरी बात का जवाब देना है पहले. मुझे बताओ, आज तुम्हारे को महसूस हो रहा है कि दिल जिसे चाहेगा, उसी से करोगी. अगर ऐसा है तो मुझ से 4 साल से क्या प्यार करने का नाटक कर रही थी? क्या तुम्हें मैं बेवकूफ नजर आता था?’’

”मैं ने ऐसा कभी नहीं सोचा आसिफ, तुम मेरे घर के नजदीक रहते हो, उस नाते मैं तुम से हंसतीबोलती रही हूं.’’

”नहीं, वह पड़ोस में रहने वाला प्यार नहीं था कोमल, तुम मुझे चाहती थी. मेरे एक इशारे पर मेरे साथ शौपिंग करने चल देती थी, मेरे साथ पार्कों में टहलती थी, लेकिन अब तुम्हारी नजरें बदल गई हैं. सिर्फ इसलिए कि अब तुम्हारी जिंदगी में दूसरा युवक आ गया है.’’

कोमल चुप रही.

”मैं ने कई बार तुम्हें किसी युवक से हंसहंस कर बातें करते देखा है, उसी की वजह से तुम ने मुझ से किनारा करना अब शुरू कर दिया है.’’

”यह तुम्हारी सोच है आसिफ, मेरी जिंदगी में कोई और नहीं आया है.’’

”झूठ मत बोलो कोमल, मैं ने तुम्हें अपनी आंखों से एक युवक से कई बार बात करते देखा है. बताओ, वह कौन है और कहां रहता है?’’

”बता दूंगी तो क्या करोगे तुम?’’ कोमल ऐंठ कर बोली.

”मैं उस का खून कर दूंगा, फिर तुम्हारी भी जान ले लूंगा.’’ आसिफ गुस्से से चीख कर बोला, ”बताओ, वह कौन है?’’

”नहीं बताऊंगी.’’ कोमल कंधे झटक कर बोली और उस ने कार का दरवाजा खोलने के लिए हैंडल की तरफ हाथ बढ़ाया.

आसिफ ने उस का हाथ झटक कर एक थप्पड़ कोमल के गाल पर रसीद कर दिया.

”तेरी ये हिम्मत… तू मुझ पर हाथ उठाएगा.’’ कोमल चीखी, ”आज मैं पछता रही हूं तेरे जैसे आदमी को मुंह लगा कर. तू आवारा और बदतमीज है.’’

आसिफ का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. गुस्से में वह अपना होश खो बैठा. उस ने कोमल को बगल की सीट पर गिरा दिया और दोनों हाथों से गला पकड़ कर दबाने लगा. कोमल की सांसें फंसीं तो वह जोरजोर से हाथपांव पटकने लगी. आसिफ अपने हाथों का दबाव बढ़ाता चला गया, वह तब रुका, जब कोमल निर्जीव हो गई. आसिफ के होश लौटे तो वह घबरा गया. कोमल की आंखें गले पर गहरा दबाव पडऩे से बाहर फैल गई थीं.

आसिफ ने जल्दी से मोबाइल निकाल कर जुबैर का नंबर मिलाया. दूसरी तरफ जुबैर ने फोन उठाया तो आसिफ कांपती आवाज में बोला, ”जुबैर, मैं ने कोमल को मार डाला है. उस की लाश कैब में है, अब मै क्या करूं.’’

”तू घबरा मत आसिफ, मुझे बता इस वक्त तू कहां पर है?’’

”यह दिल्ली के द्वारका का इलाका है, तू आ जा दोस्त.’’ कहने के साथ आसिफ ने अपनी कैब की स्थिति समझा दी.

”मैं आ रहा हूं आसिफ. तू कैब में ही रह, दरवाजा तब तक मत खोलना, जब तक मैं तेरे पास न आ आऊं!’’ जुबैर ने आगाह किया और फोन काट दिया.

दोनों दोस्तों ने इत्मीनान से लगाई लाश ठिकाने

आसिफ कोमल की लाश के पास बैठ गया. उस की सांसें भारी होने लगी थीं और दिल बुरी तरह घबरा रहा था. करीब एक घंटे बाद आटो कर के जुबैर आसिफ के पास पहुंच गया. अब तक रात का अंधेरा अच्छी तरह जमीन पर उतर आया था. जुबैर को देख कर आसिफ की घबराहट कम हुई. जुबैर अपने साथ नायलौन की रस्सी लाया था. कैब में घुस कर जुबैर ने कोमल की लाश के हाथपांव नायलौन की रस्सी से बांध दिए. आसिफ चुपचाप खड़ा था.

”आसिफ, हम इसे आसपास किसी नदीनाले में डाल देते हैं. यह डूब जाए, इस के लिए एक भारी पत्थर लाश के साथ बांधना होगा हमें. तुम कैब चलाते हो, सोचो यहां आसपास कोई नाला है?’’

आसिफ ने दिमाग दौड़ाया और फिर धीमे से बोला, ”नजफगढ़ में एक गहरा नाला है. हम लाश वहां फेंक सकते हैं.’’

”तो कैब चलाओ और सुनसान जगह पहुंच कर नाले के पास कैब को रोक देना.’’

”ठीक है.’’ आसिफ ने कहा और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. उस ने कैब स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दी. नजफगढ़ में नाले के पास पहुंच कर एक सुनसान जगह पर उस ने कैब रोक दी. जुबैर के साथ वह कैब से उतरा. यहां गहरा सन्नाटा था.

जुबैर ने एक भारी पत्थर तलाश किया और कोमल की लाश के साथ बांध दिया. फिर आसिफ को इशारा किया. दोनों ने कोमल की लाश को कैब से निकाल कर नजफगढ़ नाले में डाल दिया.

”अब कोमल की कहानी का लव चैप्टर यहां पर समाप्त हो गया है. कल से नारमल जिंदगी जिओ. रोज की तरह कैब चलाओ, ताकि कोई तुम पर संदेह न करे.’’ जुबैर ने समझाया तो आसिफ ने सिर हिला कर इस बात को स्वीकार करने की स्वीकृति दी. अब यहां रुकना खतरा मोल लेना था. दोनों चुपचाप कैब में बैठ गए. आसिफ अब कैब को सावधानी से नंदनगरी की ओर ले जा रहा था.’’

12 मार्च, 2025 को उधर कोमल की मम्मी विमला देवी की नजरें बारबार घड़ी की तरफ जा रही थीं. रात के 9 बजने को आ गए थे, लेकिन बेटी कोमल अभी तक घर नहीं लौटी थी. और दिन तो वह 7 बजे ही ड्ïयूटी से घर आ जाती थी.

विमला देवी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरने लगीं. कोमल अंगदनगर में स्थित एक औफिस में नौकरी करती थी. जब घड़ी की सूइयां और आगे बढऩे लगीं तो परेशान हो कर विमला देवी ने अपने बेटे अजय को आवाज लगाई, ”अजय …ओ अजय, यहां आ.’’

अजय बाहर बैठा मोबाइल देख रहा था. वह उठ कर मम्मी के पास आ गया, ”हां मम्मी, क्या कह रही हो?’’

”बेटा, आज कोमल तभी तक घर नहीं आई है, साढ़े 9 बजने को आ गए हैं. तू जरा मालूम तो कर वह कहां रह गई है?’’

”मम्मी, कोमल बच्ची नहीं रह गई है, औफिस से लेट निकली होगी, आ जाएगी.’’ अजय ने कहा.

”तू फोन तो कर ले, कोमल को घर आने में कभी इतनी देर नहीं हुई है. मालूम करने में तेरा क्या जा रहा है.’’ विमला देवी ने अपनी बात पर जोर दिया तो अजय ने मोबाइल निकाल कर कोमल का नंबर मिलाया.

कोमल के फेमिली वाले हुए परेशान

दूसरी ओर से फोन स्विच्ड औफ होने की सूचना मिली. अजय ने 2-3 बार और ट्राई किया. कोमल का फोन स्विच्ड औफ होने की जानकारी बारबार मिलती रही.

अजय के माथे पर बल पड़ गए. वह परेशान हो कर बड़बड़ाया, ‘कोमल कहां रह गई. उस का फोन क्यों स्विच औफ आ रहा है.’

”क्या हुआ बेटा?’’ विमला देवी ने बेटे को परेशान देख कर पूछा.

”मम्मी, कोमल का फोन नहीं लग रहा है.’’ अजय परेशान स्वर में बोला, ”अब समय भी ज्यादा हो गया है, कहां रह गई यह लड़की. और दिन तो समय से घर आ जाती थी.’’

”तू जा कर पता लगा, जवान लड़की का इतनी देर तक घर न लौटना, अच्छी बात नहीं है. जमाना खराब है.’’ विमला देवी की आवाज में कंपन था.

”मैं जा कर देखता हूं मम्मी.’’ अजय ने कहा और चप्पलें पहन कर वह घर से बाहर निकल गया.

अजय अपनी बहन कोमल की 2-3 सहेलियों के नाम और घर जानता था. बर्थडे पार्टी या किसी जरूरी काम से कोमल उसे अपने साथ उन सहेलियों के घर ले जा चुकी थी.

अजय ने उन सहेलियों के घर जा कर मालूम किया, लेकिन तीनों के यहां से पता चला कोमल आज उन से न तो मिली है, न उस से फोन पर बात हुई है.

निराश हो कर अजय वहां से निकल कर कोमल के अंगदनगर में स्थित औफिस में गया. वहां ताला लगा हुआ था. अजय को वहां से भी निराश लौटना पड़ा. उस ने हर संभावित स्थान पर कोमल की तलाश की, लेकिन वह उसे नहीं मिली.

अब रात के साढ़े 12 बज गए थे. कोमल की गुमशुदगी दर्ज करवाने का इरादा ले कर अजय उत्तरपूर्वी दिल्ली के नंदनगरी थाने में पहुंच गया.

ड्यूटी अफसर ने उसे ऊपर से नीचे तक देख कर पूछा, ”क्या हुआ है?’’

”सर, मेरी बहन कल सुबह काम पर गई थी, लेकिन वह अभी तक घर नहीं लौटी है. मैं उस की गुमशुदगी लिखवाना चाहता हूं.’’

”देखो, किसी के गुम होने की रिपोर्ट 24 घंटे बाद लिखी जाती है. तुम्हारी बहन पढ़ीलिखी है, अपनी मरजी से कहीं रुक गई होगी. तुम कल तक इंतजार करो, वह घर लौट कर आ जाएगी. नहीं आई तो हम रिपोर्ट लिख लेंगे.’’ ड्यूटी अफसर ने गंभीर स्वर में कहा तो अजय चुपचाप घर लौट आया.

कोमल पूरी रात घर नहीं लौटी. फेमिली वाले पूरी रात सो नहीं पाए. दिन निकलने पर अजय ने फिर बहन की तलाश शुरू की, लेकिन कोमल का कुछ पता नहीं चला.

गहरे नाले में मिली कोमल की लाश

अजय रिश्तेदारों को साथ ले कर फिर नंदनगरी थाने में पहुंच गया. उसे वहां से उत्तरपूर्वी जिले के ही सीमापुरी थाने में जा कर बहन की गुमशुदगी दर्ज कराने की सलाह दी गई. अजय सीमापुरी थाने में पहुंच गया. वहां उस की रिपोर्ट एफआईआर नंबर 126/25 पर लिखी गई. पुलिस ने अजय से कोमल की तसवीर ले कर सभी थानों में फ्लैश कर दी, लेकिन 3 दिन बीत जाने के बाद भी कोमल का कुछ पता नहीं चल पाया. उधर 17 मार्च, 2025 की सुबह 8 बज कर 40 मिनट पर दिल्ली के द्वारका जिले के थाना छावला में सूचना मिली कि नजफगढ़ नाले (नजदीक बाड़ूसराय गांव) में एक लड़की की लाश पानी पर तैर रही है.

छावला थाने के एसएचओ राजकुमार मिश्रा अपने साथ एसआई दीपक, एएसआई बहादुर, हैडकांस्टेबल भूपेंद्र, महेंद्र, हेतराम और एटीओ सुरेंद्र कुमार को साथ ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे, वहां अच्छीखासी भीड़ जमा हो चुकी थी. नाले के पानी में एक जवान लड़की की फूली हुई लाश तैर रही थी. लड़की के हाथपांव प्लास्टिक की डोरी से बंधे दिख रहे थे. एसएचओ राजकुमार मिश्रा ने एक पुलिसकर्मी को गहरे नाले में उतारा, वह तैरना जानता था. उस ने लाश के पास पहुंच कर उसे किनारे की ओर लाना चाहा तो वह किसी चीज में अटकी हुई मिली.

पुलिसकर्मी ने नीचे टटोल कर देखा तो उसे लाश किसी भारी पत्थर से बंधी महसूस हुई. उस ने चाकू मंगवाया और लाश से बंधी डोरी को काट कर पत्थर से अलग कर दिया. फिर वह लाश को बड़े आराम से खींच कर किनारे पर ले आया. लाश को दूसरे पुलिस वालों ने बाहर निकाल कर जमीन पर लिटा दिया. एसएचओ राजकुमार मिश्रा ने लाश की जांच की तो उस जवान युवती की हत्या गला दबा कर की गई प्रतीत हुई. वह हरे रंग की नायलौन रस्सी से बंधी थी और उस की पैंट कमर से नीचे खिसकी हुई थी. युवती के शरीर पर चोट के निशान नहीं मिले.

पानी में डुबोने के लिए उस के हाथपांव और बौडी को रस्सी से बांध कर बड़े पत्थर के साथ पानी में डाला गया था, ताकि वह किसी को ऊपर सतह पर नजर न आए. लाश फूल कर हलकी हुई तो ऊपर सतह पर आ गई. मृतका की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस की तलाशी में पुलिस को कुछ नहीं मिला तो उन्होंने फोरैंसिक जांच के लिए टीम को बुला लिया. साथ ही डीसीपी अंकित सिंह को भी इस लाश की जानकारी दे दी.

थोड़ी देर में उच्चाधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश का मुआयना कर के वह आवश्यक निर्देश दे कर चले गए. फोरैंसिक टीम आ कर अपने काम में लग गई थी. एसएचओ ने भीड़ को लाश की शिनाख्त करने के लिए कहा, लेकिन भीड़ में से कोई उस लड़की को नहीं पहचानता था. इस से अनुमान लगाया गया कि लाश को कहीं दूसरी जगह से ला कर यहां पर फेंका गया है.

उन्होंने कागजी काररवाई पूरी की और लाश को पोस्टमार्टम के लिए राव तुलाराम अस्पताल में भिजवा दिया. थाने में लौट कर इस मामले को दर्ज कर लिया गया. युवती की शिनाख्त जरूरी थी. इस के लिए उस के पोस्टर छपवा कर छावला तथा द्वारका क्षेत्र में चिपकाए गए, लेकिन 2 दिन बीत जाने पर भी कोई भी जानकार सामने नहीं आया. पुलिस अपने तरीके से मृतका की पहचान करने की कोशिश कर थी. उन्हें 19 मार्च को मालूम हुआ कि उत्तरपूर्वी दिल्ली के सीमापुरी थाने में एक हफ्ता पहले कोमल नाम की एक युवती के किडनैपिंग का मामला दर्ज किया था. पुलिस ने शिकायतकर्ता का मोबाइल नंबर ले कर फोन मिलाया तो कोमल के भाई अजय को लगा.

घंटी बजने पर अजय ने फोन उठा कर धीमे स्वर में कहा, ”मैं अजय बोल रहा हूं, आप कौन हैं?’’

”मैं छावला थाने से एसआई दीपक बोल रहा हूं. क्या आप की ओर से सीमापुरी थाने में किसी लड़की की किडनैपिंग का मामला दर्ज कराया गया था अजयजी?’’

अजय कुमार खुशी से चहक पड़ा, ”वह मेरी बहन है साहब. कोमल नाम है उस का, क्या वह आप को मिल गई है?’’

”एक लड़की की लाश हमें नजफगढ़ ड्रेन से मिली है, आप आ कर शिनाख्त करें. आप को राव तुलाराम अस्पताल की मोर्चरी में आना है, लाश अभी वहीं है.’’

”मैं 1-2 घंटे में अस्पताल पहुंच रहा हूं साहब.’’ अजय रो देने वाले स्वर में बोला और फिर काल कट होने पर वह अपने रिश्तेदारों के साथ राव तुलाराम अस्पताल के लिए निकल गया.

दोनों आरोपी ऐसे चढ़े पुलिस के हत्थे

डेढ़ घंटे बाद वे लोग राव तुलाराम अस्पताल की मोर्चरी में पहुंच गए. वहां एसआई दीपक कुमार और एटीओ (एडिशनल एसएचओ) सुरेंद्र कुमार मिल गए. उन्होंने उन्हें मोर्चरी में ले जा कर लड़की की लाश दिखाई तो देखते ही कोमल की मम्मी, दादी गश खा कर गिर पड़ीं. अजय फफकफफक कर रोने लगा. रोतेरोते ही बोला, ”यह मेरी बहन कोमल है साहब, इस की यह हालत किस ने की?’’

”हम जांच कर रहे हैं. जहां लाश मिली है, वहां के सीसीटीवी फुटेज चैक किए जा रहे हैं. आप बताएं, कोई ऐसा व्यक्ति आप की पहचान में है, जो आप की बहन का दुश्मन रहा हो?’’ एसआई दीपक ने पूछा.

”दुश्मन तो नहीं साहब, एक युवक है जो काफी दिनों से मेरी कोमल के पीछे पड़ा है. एक बार मैं ने उसे गुस्से में थप्पड़ भी मार दिया था साहब. वह मेरी बहन का पीछा करता था.’’ अजय ने बताया.

”उस का नाम बताइए,’’ एटीओ सुरेंद्र ने कौतूहल से पूछा.

”उस का नाम मोहम्मद आसिफ है. मेरी गली में ही रहता है और कैब ड्राइवर है.’’

एसआई दीपक ने यह जानकारी थाना छावला में दी तो एसएचओ राजकुमार मिश्रा ने तुरंत अपनी टीम को तैयार किया और एसआई दीपक से मोर्चरी के बाहर अजय को साथ ले कर खड़े मिलने को कहा. एटीओ सुरेंद्र और एसआई दीपक अपने साथ अजय को ले कर मोर्चरी से बाहर आ गए. थोड़ी देर में छावला थाने की पुलिस जीप वहां आ गई. उस में एसएचओ राजकुमार मिश्रा टीम के साथ मौजूद थे. उन तीनों को उन्होंने साथ लिया और उत्तरपूर्वी दिल्ली के सुंदरनगरी के लिए रवाना हो गए. रास्ते से उन्होंने थाना सीमापुरी से एक पुलिस टीम को सुंदरनगरी आने को कह दिया.

करीब एक घंटे बाद छावला थाना के साथ सीमापुरी थाने के पुलिस दल से सुंदर नगरी में अजय द्वारा बताए घर को घेर लिया. वह घर मोहम्मद आसिफ का था. उस समय वह घर में ही था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस का मोबाइल एसएचओ ने अपने कब्जे में ले कर जांच की तो उस की काल डिटेल्स में 12 मार्च, 2025 की शाम 5 से 6 बजे के बीच कोमल से बात करने की डिटेल्स मिल गई. यह आसिफ को शक के दायरे में ले आया. थाने में आसिफ से कड़ी पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि वह 4 साल से कोमल को प्यार करता था. कोमल भी उसे चाहती थी, लेकिन कुछ दिनों से कोमल किसी और लड़के से बात करने लगी थी. इस से वह कोमल से खफा था.

12 मार्च को उस ने कोमल को दिल्ली के निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन पर बुलाया तो वह आ गई. उसे ले कर वह द्वारका के इलाके में आ गया. उस ने कोमल से उस लड़के से बात करने का कारण पूछा तो वह गुस्से में बोली, ”वह जिसे चाहेगी, उस से बात करेगी.’’

उस ने मुझे बुराभला भी कहा तो मैं ने गुस्से में उस का गला दबा कर मार डाला. फिर अपने दोस्त मोहम्मद जुबैर उर्फ जावेद के साथ मिल कर कोमल के हाथपांव बांध कर एक पत्थर से बांध कर उसे नजफगढ़ के नाले में फेंक दिया. आसिफ ने अपने दोस्त जुबैर का घर दिखा दिया. वह पास में ही स्थित ओ ब्लौक, गली नंबर 2 में रहता था. उस के पिता का नाम मोहम्मद सलीम खान था. जुबैर घर में ही था.

उसे पकड़ कर थाना सीमापुरी लाया गया. उस ने भी अपना गुनाह कुबूल कर लिया. दोनों को दूसरे दिन सक्षम न्यायालय में पेश किया गया तो दोनों को जेल भेज दिया गया. कोमल का शव परिजनों को सौंप दिया गया. कथा लिखने तक पुलिस हत्या से संबंधित पुख्ता सबूत एकत्र करने में लगी थी. Delhi News

 

 

Chhattisgarh News : अपनी मौत की कुंडली देखने वाला कारोबारी

Chhattisgarh News : ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले कोरबा के ज्वैलर गोपाल राय सोनी ने अपनी मौत की कुंडली खुद बांचने का दावा किया था. पत्नी को इस की तारीख तक बता दी थी, लेकिन पत्नी को इस पर जरा भी विश्वास नहीं हुआ. हालांकि उसे मालूम था कि पति की पिछली कई भविष्यवाणियां सच होती रही थीं. क्या उन की यह भविष्यवाणी भी सही साबित हुई?

छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा का रहने वाला सूरज गिरि गोस्वामी थोड़ा परेशान था. उस की बुलेट बाइक की 7 जनवरी को किस्त जानी थी. पूरे 4 हजार रुपए खाते में रखने थे. जबकि उस के खाते में मात्र 12 सौ रुपए ही थे. वह इसी उधेड़बुन में था. तभी उस का खास दोस्त मोहन मिंज उस से मिलने आया. आते ही बोला, ”सूरज, आज बुलेट की सवारी नहीं करवाएगा?’’

”चलो न, कहां चलना है?’’ सूरज बोला.

”थोड़ा माल वाला मार्केट घूम आते हैं.’’ मोहन बोला.

”चलो, अभी बुलेट निकालता हूं.’’ कहता हुआ सूरज घर के बरामदे में खड़ी अपनी बुलेट निकालने चला गया.

थोड़ी देर में दोनों बुलेट पर सवार थे. हाइवे पर बुलेट की खास आवाज के साथ दोनों आसपास के नजारों के आनंद में खोए हुए थे.

अचानक मोहन मिंज बोला, ”यार, बुलेट की आवाज मुझे बहुत अच्छी लगती है. सोचता हूं कि मैं भी खरीद लूं.’’

”मत खरीद, महंगी है और तेल का खर्च भी है. मुझे इस की चाल बहुत पसंद है, फिर भी…’’

”फिर भी क्या? तेरी तो जिंदगी मजे में गुजर रही है.’’

”क्या खाक मजे में गुजर रही है, मैं कितनी परेशानी में हूं तुझे नहीं मालूम.’’ सूरज हंसते हुए बोला.

”वह कैसे?’’ मोहन मिंज ने सवाल किया.

”बुलेट मैं ने किस्त पर ली है. इस के पैसे भी नहीं चुका पा रहा हूं, तभी तो मैं ने कहा मत खरीद अभी.’’ सूरज निराशा से बोला.

”तो कैसे कर रहे हो पूरा? सच तो यह है दोस्त कि मैं भी अपनी इस जिंदगी से निराश हो चुका हूं. न रजनी से शादी कर पा रहा हूं और न परिवार को खुशी दे रहा हूं.’’ मोहन बोला.

दोनों अपनीअपनी समस्या और पैसे की तंगी को ले कर दुखी हो गए थे. उन की समस्या पर्याप्त पैसा नहीं होने की थी. कुछ देर उन के बीच चुप्पी बनी रही. सूरज ने सड़क के किनारे एकांत देख कर बुलेट रोक दी.

”अब क्या हुआ, गाड़ी क्यों रोकी?’’ मोहन मिंज पूछ बैठा.

”अभी बताता हूं. पहले नीचे उतर. मेरे सामने आ.’’

सूरज ने जैसा बोला, मोहन ने वैसा ही किया.

”अब बताओ, क्या कहना चाहते हो. बहुत गंभीर दिख रहे हो.’’ मोहन मजाकिया लहजे में बोला.

”बात मजाक की नहीं सीरियस है. मेरे पास एक प्लान है. अगर हम उस में सक्सेस हो गए, तब समझो हमारे पास पैसा ही पैसा होगा?’’ सूरज ने कहा.

”अच्छा! वह कैसे?’’ मोहन ने आश्चर्य से पूछा.

”लेकिन तुम को साथ देना होगा.’’ सूरज बोला.

”चलो, मैं तैयार हूं. अब प्लान बताओ.’’ मोहन ने कहा.

”तू तो जानता ही है कि मैं पहले जहां काम करता था, वह एक धन्ना सेठ है. शहर का सब से अमीर ज्वैलर. उस की तिजोरी में कितना माल है, वह सब मुझे पता है.’’ सूरज के बात पूरा करने से पहले ही मोहन बोल पड़ा, ”तो फिर उस से क्या होगा?’’

”पहले पूरी बात तो सुनो. हमें उसी तिजोरी पर हाथ साफ करना है.’’ सूरज ने कहा.

”तिजोरी पर हाथ साफ करना आसान है क्या? वह कितनी मजबूत होती है, क्या तुम को नहीं मालूम है?’’ मोहन मिंज बोला.

”उसे तोडऩा नहीं खोलना है. उस की चाबी का इंतजाम करवाने में मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत होगी.’’ सूरज बोला.

”वह कैसे होगा?’’ मोहन ने पूछा.

”मेरे पास उस का ही प्लान है. सिर्फ तुम साथ देने की हामी भरो.’’

”मैं तैयार हूं. मुझे डिटेल में बताओ, क्या करना होगा?’’

मोहन के तैयार होते ही सूरज ने कहा, ”समझो कि मेरे पास फुलप्रूफ ऐसा प्लान है कि हमारे पास पैसे ही पैसे होंगे.’’

और फिर सूरज गिरि ने पूरी प्लानिंग मोहन मिंज के सामने रख दी. इस पर मोहन मिंज ने थोड़ी देर सोचा और फिर बोला, ”ठीक है, यह तो एकदम आसान काम है, लेकिन खतरा भी कम मत समझो.’’

”अधिक खतरा नहीं है. उस के बारे में भी तुम्हें बताऊंगा. सेठ करोड़पति है, बस हमें रात को घर में घुस कर उस की दुकान की चाबी अपने कब्जे में करनी है और उसी रात उस की दुकान का सारा माल पार कर रांची निकल जाएंगे.’’

यह बात दिसंबर 2024 के आखिरी सप्ताह की है. मोहन मिंज सूरज गिरि की बताई योजना को सुन कर मन ही मन बहुत खुश हुआ. उस की आंखों के आगे रजनी, बुलेट गाड़ी और मकान की तसवीरें घूमने लगीं. सूरज के प्लान के मुताबिक दोनों को शहर के मशहूर आभूषण कारोबारी गोपाल राय सोनी के घर में घुस कर लूट करनी थी. वहां से सेठ सोनी की दुकान की चाबी हासिल करनी थी. गोपाल राय सोनी कोरबा स्थित पावर हाउस का मुख्य सड़क पर स्थित एस.एस. प्लाजा में अमृत ज्वैलर्स नाम का भव्य शोरूम था. शोरूम की चाबी सेठ अपने पास एक छोटी सी अटैची में रखता था.

वह जहां भी जाता, अटैची साथ लिए रहता था. इस बात की जानकारी सूरज को इसलिए थी, क्योंकि वह एक समय में उस का ड्राइवर हुआ करता था. बाद में उस का भाई आकाश सेठ की गाड़ी चलाने लगा था. सूरज सेठ की रोजाना की तमाम गतिविधियों और आदतों से वाकिफ था. उसे इस बात का भी अंदाजा था कि वह कितना डरपोक है. इसी आधार पर उस ने मोहन को आश्वस्त कर दिया कि उस की प्लानिंग आसानी से सफल हो जाएगी.

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा के नए ट्रांसपोर्ट नगर में स्थित लालूराम कालोनी में गोपाल राय सोनी का आवास है. उन के छोटे से परिवार में सेठ सोनी के अलावा उन की पत्नी रेखा सोनी और बेटा नचिकेता रहते थे. बड़ा बेटा अभिषेक सोनी रायपुर में व्यवसाय करता है. गोपाल राय सोनी की 2 बेटियां हैं. एक का विवाह नेपाल में हुआ है जो वहीं की हो कर रह गई है. दूसरी का विवाह मुंबई के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ है.

कहने को तो गोपाल राय सोनी एक सेठ थे, किंंतु उन में एक और खूबी ज्योतिषीय ज्ञान की भी थी. वह कुंडली देखना अच्छी तरह से जानते थे. ग्रहदशा और उस के होने वाले प्रभाव की गणना बहुत ही सटीक कर लेते थे. यहां तक कि अपने ग्राहकों को भी ग्रहनक्षत्रों के आधार सोनाचांदी और जेवरात खरीदने की सलाह देते थे. उन्होंने अपने कारोबार में ज्योतिषीय असर को काफी महत्त्व दिया था. इस बारे में पत्नी को पूरी जानकारी देते थे. कोरोना काल के दरम्यान उन्होंने अपने बारे में जितनी भी भविष्यवाणियां की थीं, करीबकरीब सभी सही निकली थीं.

पिछले साल की दीपावली से ठीक पहले गोपाल राय सोनी ने अपनी कुंडली देखनी शुरू की थी. कुंडली के मुताबिक अंतरदशा महादशा देखते हुए वह चौंक पड़े थे. उन्होंने जो गणना की थी, उस बारे में पत्नी को बताना उचित समझा था. गोपाल राय अपनी ही कुंडली देखने में लगे हुए थे. उन के सामने कुछ कागजात बिखरे हुए थे. उन पर कुछ हिसाबकिताब बना था तो 12 खाने वाली कई कुंडलियां बनी हुई थीं. उन्होंने पत्नी रेखा को आवाज दी. रेखा थोड़ी देर में चाय की प्याली और प्लेट में बिसकुट ले कर आई थीं. उन्होंने देखा. पति के चेहरे पर पसीने की बूंदें झलक रही थीं. वह चौंकती हुई पूछ बैठी, ”इस सर्दी में आप को पसीना आ रहा है… आश्चर्य है!’’

”रेखा रानी, हैरानी तो तुम्हें तब और होगी, जब मैं तुम्हें एक भविष्यवाणी के बारे में बताऊंगा.’’ गोपाल ने बामुश्किल से कहा और पत्नी को बैठने के लिए इशारा किया.

रेखा चुपचाप पति के सामने बैड पर बैठ गई तो वह बोले, ”मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं. ध्यान से सुनना.’’

”क्या सुनना है, फिर कोई भविष्यवाणी किए होंगे.. दुकान में चोरी होने वाली है…घाटा लगने वाला है…छापा पडऩे वाला है…और क्या होगा?’’ रेखा मजाकिया अंदाज में बोलीं.

”यह मजाक करने का वक्त नहीं है. मैं तुम्हें गहरी बात बताने वाला हूं, वह हमारीतुम्हारी और हम सब की जिंदगी से जुड़ी है.’’ गोपाल राय बोलतेबोलते गंभीर हो गए.

”ठीक है बताइए.’’ रेखा बोली.

थोड़ी देर चुप रहने के बाद गोपाल राय धीमे स्वर में बोले, ”मैं कुछ कहूं तो तुम घबराना मत. देखो संसार में जो आया है, वह तो जाएगा ही.’’ यह कहतेकहते गोपाल राय रेखा की ओर देखने लगे. पहले तो गोपाल राय ने ऐसी बात कभी नहीं की तो फिर अब क्यों? रेखा सोच में पड़ गईं, आश्चर्य से बोलीं, ”यह सब क्यों कह रहे हैं आप?’’

”सामने यह जो मेरी जन्मपत्री पड़ी हुई है, इसे मैं ने कई बार बांचा है… और बारबार यही पाया कि मेरा अंतिम समय अब आ गया है.’’ कह कर गोपाल राय ने अपनी आंखें बंद कर लीं.

रेखा ने उन का हाथ पकड़ लिया, ”आखिर आप कहना क्या चाहते हैं?’’

”रेखा, यह साल मुझ पर भारी है. सन 2024 में मैं…’’ कह कर गोपाल राय सोनी अचानक से चुप हो गए.

एकदम निशब्द की स्थिति में देख कर रेखा ने किसी तरह तसल्ली भरे लहजे में कहा, ”आप गलत भी हो सकते हो, जरूरी नहीं कि तुम्हारी गणना इस बार भी सही हो.’’

”मैं ने कई बार हिसाबकिताब लगा कर देख लिया है. मेरा 2024 में अंत निश्चित है. यही सच है. तुम्हें बताने का मतलब भी यही है कि तुम्हें मालूम होना चाहिए. कोई बात हो जाए तो हिम्मत से काम लेना है.’’ कहतेकहते गोपाल राय सोनी के चेहरे पर एक धूमिल सी मुसकराहट आ गई.

कहने को तो रेखा ने पति की भविष्यवाणी को झूठा होने की बात कह डाली थी, लेकिन भीतर से वह भी कांप गई थीं. वह चिंता से घिर गईं. पत्नी को उदास देख कर गोपाल राय बोले, ”तुम बेकार में उदास हो रही हो. अब जाने की बेला आ गई है, मुझे इस साल के बचे दिन हंसीखुशी से बिताने हैं. मैं अपनी सारी जिम्मेदारियां से मुक्त भी होना चाहता हूं. ताकि मन में कोई मलाल न रह जाए.’’

पति की बात सुन कर रेखा की आंखों में आंसू आ गए. उन की पिछली भविष्यवाणियां याद आ गईं. कई दफा अपनी कुंडली की लंबी गणना की गोपाल राय सोनी जो कुछ कहते थे, बाद में लगभग वह सच हो जाया करता था.

अपनी दिनचर्या के मुताबिक गोपाल राय सोनी रविवार 5 जनवरी, 2025 की रात 9 बजे के करीब खाना खा कर अपने ड्राइंगरूम में जा कर बैठे गए थे. सामने की खिड़की के शीशे से बाहर का कुछ हिस्सा सीलिंग लैंप की रोशनी में दिख रहा था. अचानक उन्होंने देखा कि एक शख्स दीवार फांद कर घर में घुस आया है. वह तुरंत खिड़की की तरफ गए. वहां जा कर शीशे से झांकने लगे.

कुछ नजर नहीं आया. कुछ सेकेंड बाद फिर किसी के दीवार फांदने की आवाज सुनाई दी. वह ड्राइंगरूम के मुख्य दरवाजे की तरफ गए. किंतु तब तक एक नकाबपोश व्यक्ति उन के सामने आ चुका था. गोपाल राय चिल्लाने वाले ही थे कि नकाबपोश व्यक्ति ने धारदार हथियार लहराते हुए उन्हें धक्का दे कर गिरा दिया. तभी दूसरा नकाबपोश व्यक्ति उन के सीने पर सवार हो गया. एक ने गुर्राते हुए कहा, ”सोनी सेठ, मुंह से आवाज नहीं निकालो… नहीं तो…’’

एकाएक 2 नकाबपोशों को सामने देख कर गोपाल राय की घिग्गी बंध गई थी. मगर फिर खुद को संभालते हुए कहा, ”ओह, तो तुम लोग आ गए…’’

”क्या मतलब है तेरा?’’ हथियार सीने पर टिकाए हुए एक नकाबपोश गुस्सा में बोला, ”तुम तो ऐसे बात कर रहे हो, जैसे हमें जानते हो.’’

”हां, मैं तुम्हें जानता हूं, तुम दोनों का ही मैं इंतजार कर रहा था.’’

यह सुन कर दोनों नकाबपोश व्यक्ति एकदूसरे की तरफ देखने लगे. एक ने कहा, ”सेठ, तुम बहुत धूर्त हो, चालाक बनते हो. तुम भला हमारा इंतजार क्यों कर सकते हो?’’

इस पर ज्वैलर गोपाल राय सोनी ने कहा, ”मैं तुम्हें थोड़ाथोड़ा जानता हूं, मैं ज्योतिषी भी हूं न!’’

सेठ गोपाल राय की ये बातें उन्हें बकवास लगीं. नकाबपोशों ने समझा कि वह उन्हें अपनी बातों में उलझाना चाहता है. एक ने गुस्से में बोला, ”अच्छा, खैर यह बताओ, चाबी कहां रखी है?’’

गोपाल राय अब मुसकराने लगे थे, ”तुम दोनों ही जेल जाओगे, नहीं जानते कि मैं कौन हूं. मैं तुम दोनों का एक साल से इंतजार कर रहा था. मैं यह भी जानता हूं कि तुम मुझे लूट नहीं पाओगे.’’

”तुम फालतू की बात कर रहे हो, अभी तुम्हारा काम तमाम किए देता हूं.’’ कह कर एक नकाबपोश ने धारदार चाकू लहराया.

”अरे, यहां घर पर कोई धनदौलत तो है नहीं, यहां घर में तो कुछ रखा ही नहीं है. तुम यहां से ले कर क्या जाओगे?’’

गोपाल राय की रहस्यमयी बातें सुन कर के नकाबपोश सकते में आ गए. उन्हें लगा कि गोपाल ने उन्हें पहचान लिया है और उस का जिंदा रहना उन के लिए खतरनाक होगा. एक ने गोपाल राय को कवर कर लिया, जबकि दूसरे ने पूरे घर को छान मारा. दूसरे कमरे में गोपाल राय की बीमार पत्नी रेखा गहरी नींद में सोई हुई थी. एक नकाबपोश ने जा कर उसे जगाया और धमका कर लौकर की चाबी ले ली. खोल कर देखा, वहां कुछ भी नहीं मिला तो पास में रखी अटैची को अपने कब्जे में ले लिया, जिस में दस्तावेज और दुकान की चाबियां थी.

इसी दरमियान गोपाल राय के मोबाइल पर काल आ गई. जैसे ही उन्होंने काल रिसीव करने की कोशिश की, एक नकाबपोश ने उसे रोक दिया. गुस्से से आगबबूला हो उस ने सेठ के गले पर चाकू से वार कर दिया. वह वहीं फर्श पर गिर कर तड़पने लगे. उन्हें उसी हालत में छोड़ कर दोनों नकाबपोश अटैची, सीसीटीवी का डीवीआर और घर के बाहर खड़ी क्रेटा कार को ले कर निकल भागे. उन के भागने के कुछ समय बाद ही गोपाल राय का बेटा नचिकेता घर में आया. अधखुले दरवाजे को खोलते ही सामने पापा को फर्श पर खून से लथपथ तड़पता देखा. वह घबरा गया और चिल्ला कर पड़ोसियों को बुलाया.

मम्मी रेखा बगल के कमरे में बंद थीं. नकाबपोशों ने भागने से पहले रेखा के कमरे की बाहर से कुंडी लगा दी थी. रेखा देवी ने बेटे को बताया कि 2 लोग आए थे और वारदात कर भाग गए. तुरंत यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे कोरबा शहर में फैल गई. ट्रांसपोर्ट नगर में सेठ गोपाल राय पर हमला और लूट की खबर सुन कर पूरे इलाके के लोग भयभीत हो गए. गोपाल राय नगर के प्रतिष्ठित व्यापारी थे. एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी थी कि घटनास्थल से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर कोतवाली थाना है. भीड़भाड़ वाली जगह होने के बाद इस तरह की घटना घटित होने पर लोग तरहतरह की आशंकाओं से घिर गए थे.

घटनास्थल पर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. नेताओं का भी उन के घर आना शुरू हो गया. थोड़ी देर में सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने वहां मोर्चा संभाल लिया. एसपी सिद्धार्थ तिवारी घटनास्थल पर पहुंचे और घटना का मुआयना कर फोरैंसिक और डौग स्क्वायड को बुलावा लिया. एसपी सिद्धार्थ तिवारी ने गोपाल राय सोनी के बेटे और पत्नी रेखा से बात कर उन्हें आश्वस्त किया कि आरोपियों को शीघ्र पकड़ लिया जाएगा. उसी रात यह खबर आ गई कि इलाज के दौरान घायल गोपाल राय सोनी की निजी अस्पताल में मृत्यु हो गई है. इस से शहर का माहौल और भी गमगीन हो गया.

एसपी सिद्धार्थ तिवारी ने तुरंत रात में ही एक टीम का गठन कर दिया. जिले के सभी थानों व पुलिस चौकी प्रभारियों को सतर्क रहने और नाकेबंदी के निर्देश दे दिए. इधर घटना इतनी संवेदनशील थी कि बिलासपुर संभागीय मुख्यालय से आईजी (जोन) डा. संजीव शुक्ला दूसरे दिन 6 जनवरी को सुबह ही घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने वहां की जांच की. सर्राफा कारोबारी मृतक गोपाल राय सोनी के बेटे नचिकेता राय सोनी ने घटना की रिपोर्ट रात 11बज कर 40 मिनट को सीएसईबी चौकी में दर्ज करवा दी थी. अपनी रिपोर्ट में उन्होंने घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि रात 10 बजे जब वह घर पहुंचे, तब पोर्च में उन की हुंडई क्रेटा कार नहीं थी.

उन्होंने अपने ड्राइवर आकाश पुरी गोस्वामी को फोन कर कार के बारे में पूछा, तब ड्राइवर ने बताया कि चाबी घर में जहां रखता था, वहीं रख कर वह अपने घर आ चुका है. जिस से उसे स्पष्ट हो गया कि कथित आरोपी हत्याकांड को अंजाम देने के बाद गाड़ी ले कर फरार हो गए हैं. नचिकेता राय सोनी की रिपोर्ट पर धारा 103(1), 307, 309(4), 332(क), 333 भारतीय न्याय संहिता के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया, जिसे बाद में सिविल लाइन थाने में ट्रांसफर कर दिया.

पुलिस ने इस हत्याकांड के परदाफाश के लिए भारतीय पुलिस सेवा तथा राज्य पुलिस सेवा संवर्ग के 2-2 तथा जिले के इंसपेक्टर से ले कर कांस्टेबल स्तर के 80 तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. इन्हें 14 टीमों में विभाजित किया गया. सभी को अलगअलग कामों की जिम्मेदारी दी गई. इन टीमों में एएसपी यू. बी. एस. चौहान के अलावा आईपीएस रविंद्र कुमार मीणा, एसपी (सिटी दर्री) आईपीएस विमल पाठक, एसपी (सिटी कोरबा) भूषण एक्का शामिल थे. सारी टीमें एसपी सिद्धार्थ तिवारी के निर्देशन में काम में जुट गईं.

पुलिस के सामने गोपाल राय सोनी हत्याकांड एक अंधे कत्ल की तरह था. कोई सूत्र नहीं मिल रहा था. इसी बीच गोपाल राय की क्रेटा गाड़ी खड़ी किए जाने के स्थान पर खून के धब्बे मिले, जो फोरैंसिक टीम ने जांच के लिए भेज दिए. इस के अलावा 370 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच की गई. इन फुटेजों से पुलिस को महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. फुटेज से एक व्यक्ति पहचानने में आ गया. इस आधार पर पुलिस ने जांच शुरू कर दी. जांच के बाद पुलिस ने 24 वर्षीय आकाश गिरि को हिरासत में ले लिया, जो कोरबा जिले के ही कुआंभट्टा का निवासी था. उस से पुलिस ने पूछताछ की. बातोंबातों में उस ने 23 वर्षीय मोहन मिंज के चोट के बारे में बता दिया.

पुलिस ने उसे भी पूछताछ के लिए बुलवा लिया. जब उस से मध्यमा अंगुली में आई चोट के बारे में कड़ाई से पूछताछ की तो वह बोला कि उसे यह चोट टाइल्स कटिंग के समय लगी थी. दूसरी तरफ फोरैंसिक जांच में गोपाल राय सोनी के आवास पर मिले खून के धब्बे और मोहन मिंज के खून के सैंपल से मेल हो गया. इस पर जब उस के साथ सख्ती बरती गई, तब उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. आकाश ने बताया कि उस ने अपने भाई 28 वर्षीय सूरज गिरि और मोहन मिंज के साथ मिल कर लूट की योजना बनाई थी. वारदात के समय पहचान लिए जाने के चलते गोपाल राय की हत्या कर दी गई थी.

इस तरह लूट के लिए हत्या का खुलासा हफ्ते भर के भीतर हो गया. 12 जनवरी, 2025 को पूरे मामले के बारे में मीडिया को बता दिया गया. मोहन मिंज समेत आकाश गिरि गोस्वामी और सूरज गिरि गोस्वामी की गिरफ्तारी कर ली गई. उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

 

 

UP News : नोएडा की कोठी में पोर्न स्टूडियो

UP News : नोएडा के पौश इलाके की कोठी में चल रहे स्टूडियो में पोर्न वीडियो शूट कराने वाली मौडल को एक वीडियो के 25 हजार से एक लाख रुपए मिलते थे. एक डाक्टर की कोठी में चल रहे इस पोर्न स्टूडियो पर जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने धंधा संचालक दंपति को गिरफ्तार किया तो ऐसे चौंकाने वाले राज खुले कि…

नोएडा देश की राजधानी दिल्ली से सटा एक ऐसा शहर है, जो पिछले 2 दशकों में इतनी तेजी से विकसित हुआ कि यहां गगनचुंबी इमारतों और आलीशान कोठियों का ऐसा मायावी जाल बिछ गया कि सपनों की नगरी मुंबई शहर भी इस के सामने फीका पड़ जाए. कभी ग्रामीण दुनिया का बड़ा हिस्सा रहे  नोएडा शहर में इतनी तेजी से शहरीकरण होने के बाद जो लोग रहते हैं, उन्हें 3 श्रेणियों में बांट सकते हैं. पहले वो मजदूर तबका, जो देश के दूरदराज हिस्सों से रोजीरोटी की तलाश में नोएडा आया और इस शहर के विकास में उस ने अपना खूनपसीना लगाया. बाद में वह यहां के गांवों और सस्ती कालोनियों का बाशिंदा बन गया.

दूसरी श्रेणी उन लोगों की है, जो मध्यम श्रेणी के नौकरीपेशा या छोटेमोटे व्यवसाय करने वाले हैं. इन में भी ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जो दिल्ली या एनसीआर में सरकारी और गैरसरकारी नौकरी से जुड़े हैं. देश के विभिन्न प्रांतों के रहने वाले बहुभाषी लोग हैं. ऐसे लोग आमतौर पर प्राधिकरण की बनाई कालोनियों और बिल्डर या सोसाइटी के फ्लैटों में रहते हैं. तीसरी श्रेणी है उन लोगों की जो या तो बड़े सरकारी पदों पर हैं, बड़ी कंपनियों के मालिक हैं, नोएडा की अपनी जमीनें बेच कर बने नवधनाढ्य हैं या फिर ऐसे राजनेता जिन्होंने अपनी कालीपीली कमाई से बहुत सारा पैसा कमा कर यहां आलीशान कोठियां और फार्महाउस बना लिए हैं.

आमतौर पर यही वो तीसरा वर्ग है, जो भले ही नोएडा के किसी भी हिस्से में रहता हो, लेकिन वो पुलिस, प्रशासन, आम आदमी सभी की पहुंच से दूर हैं. यह अभिजात्य वर्ग क्या करता है, उस की कमाई के क्या स्रोत हैं, उन की कोठियों में कौन लोग रहते हैं, इस बारे में कोई नहीं जानता. जाने भी तो कैसे, उन की आलीशान कोठियों के बाहर जो नेमप्लेट लगी होती है या बोर्ड लगा होता है उसी से पता चलता है कि अंदर रहने वाले की पहचान क्या है.

दरअसल, इन आलीशान कोठियों में रहने वाली अभिजात्य वर्ग की इन बड़ी हस्तियों में किस के संबंध देश और प्रदेश की सत्ता में बैठे ताकतवर नेताओं, नौकरशाहों से हैं, किसी को नहीं पता होता. पता तब चलता है जब इन महलनुमा बंगलों में रहने वाले लोगों से कोई सरकारी कर्मचारी किसी कारणवश उन की पहचान पूछने की नादानी कर देता है. तब पता चलता है कि अमुक कोठी में रहने वाले साहब की पहचान लखनऊ में पंचम तल तक है या फिर वो खुद एक बड़ा नौकरशाह है.

इसलिए इस अभिजात्य वर्ग से नोएडा शहर में प्रशासन और पुलिस दूरी ही बना कर रखते हैं. हां, यदाकदा जब कभी वीआईपी ऐसे लोगों के घर मेहमान बन कर पहुंचते हैं, तब जरूर सुरक्षा कारणों या प्रोटोकाल के चलते पुलिस और प्रशासन के अधिकारी ऐसे खास लोगों के बंगलों की चौखट के बाहर हाजिरी लगाने जाते हैं. नोएडा में रहने वाले इन वर्गों के साथ एक और भी वर्ग है, जो पिछले कुछ सालों में यहां पांव पसार चुका है. वह तीसरा वर्ग अभिजात्य वर्ग की वेशभूषा में ही रहता है, लेकिन वह इस की आड़ में कुछ ऐसे काम करता है, जिसे जानने के बाद इंसानियत भी शरमा जाए.

किस पोर्न साइट को बेचते थे वीडियो

28 मार्च, 2025 को भी नोएडा शहर के इसी अभिजात्य वर्ग की आड़ में एक ऐसे खेल का खुलासा हुआ कि इंसानियत शरमा गई और लोग यह देख कर हैरत में रह गए कि उन के शहर में ऐसा काम हो रहा था. यह मामला है नोएडा के सेक्टर-105 में बंगला नंबर सी 234 का. जिस के मालिक हैं एक नामचीन डाक्टर, उन से यह कोठी उज्जवल किशोर और उस की पत्नी नीलू श्रीवास्तव ने पिछले कुछ सालों से किराए पर ली हुई थी. कोठी बेहद आलीशान थी. इस में रहने वाले दंपति और उन के यहां हर रोज आने वाले मेहमान महंगी गाडिय़ों में आयाजाया करते थे.

ऐसे इलाकों में पड़ोसियों तक को पता नहीं होता कि उन की बगल में रहने वाला शख्स कौन है तो फिर प्रशासन या पुलिस को कैसे पता होगा कि इस महलनुमा कोठी में कौन रहता है. वैसे भी इस कोठी में रहने वाले उज्जवल किशोर और उस की पत्नी नीलू श्रीवास्तव किसी से ज्यादा वास्ता नहीं रखते थे. उन की पहचान भी 28 मार्च को तब पता चली, जब तड़के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एक टीम स्थानीय पुलिस को ले कर इस कोठी पर पहुंची.

ऐसी आलीशान कोठी में ईडी की टीम का पहुंचना और करीब 25 घंटे तक वहां तलाशी अभियान चला कर कोठी में रहने वाले और मौजूद लोगों से पूछताछ करने से लोगों में कौतूहल बढ़ गया. खबरनवीसों और खबरिया चैनलों के नुमाइंदे कोठी के गेट पर आ डटे. आखिरकार 24 घंटे बाद पता चला कि उज्जवल किशोर और उस की पत्नी नीलू श्रीवास्तव ने इस कोठी को उस के मालिक डाक्टर से किराए पर लिया हुआ था. दंपति यहां पोर्न साइट के लिए वीडियो शूट कराता था. इस के बाद वीडियो को साइप्रस की एक कंपनी को बेचता था, जो अंतरराष्ट्रीय पोर्नोग्राफी साइटों को होस्टिंग सेवा प्रदान करती है.

ईडी ने इस कोठी में यह काररवाई एक लंबी पड़ताल और निगरानी के बाद विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत की थी. चूंकि ईडी के कामकाज की शैली बेहद गोपनीय ढंग से होती है और जांच के तथ्यों को मीडिया से भी बहुत ज्यादा सार्वजनिक नहीं किया जाता, लेकिन इस के बावजूद एजेंसी द्वारा प्रस्तुत जानकारी में जो कहानी सामने आई, वो बेहद दिलचस्प और साथ ही शर्मसार व हैरान कर देने वाली थी.

ईडी की यह जांच सबडिजी वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी के खिलाफ की जा रही थी. इस कंपनी के मालिक उज्जवल किशोर और उस की पत्नी नीलू श्रीवास्तव हैं, जो कथित तौर पर साइप्रस स्थित कंपनी टेक्नियस लिमिटेड के लिए अपने घर से एक वयस्क वेबकैम स्ट्रीमिंग स्टूडियो चलाते थे. टेक्नियस लिमिटेड एक्समास्टर और स्ट्रिपचैट जैसी पोर्नोग्राफी वयस्क वेबसाइटें चलाती है, जो भारत में प्रतिबंधित हैं.

ईडी को कैसे हुआ शक

अब जानते हैं कि अचानक ईडी को इन पर शक कैसे हुआ? दरअसल, ईडी की टीमें विदेशों से लोगों के बैंक खातों में आने वाले धन व उस के स्रोतों की निगरानी करती है और शक होने पर लगातार निगरानी करती है. उज्जवल किशोर और उस की पत्नी नीलू श्रीवास्तव ने अपने बैंक खातों में आने वाले विदेशी धन के बारे में बैंकों को गलत जानकारी दे रखी थी कि उन्हें विज्ञापन, मार्केट रिसर्च और जनमत सर्वेक्षण जैसे कार्यों के लिए यह धन प्राप्त होता है.

सबडिजी वेंचर्स और इस के निदेशकों को नियमित रूप से विदेशी धनराशि प्राप्त होने की जानकारी सामने आने के बाद जब खातों की आगे की जांच की गई तो पता चला कि जिस फंड को विज्ञापन, मार्केट रिसर्च और जनमत सर्वेक्षण जैसी सेवाओं के बहाने लिया जा रहा था, वो काम तो कहीं था ही नहीं. ये फंड्स वास्तव में एक्समास्टर पोर्न वेबसाइट पर स्ट्रीम किए गए अश्लील कंटेंट के बदले मिल रहे थे. लेकिन शक के चलते ईडी ने दंपति के निजी और कंपनी के खातों के ट्रांजैक्शन की जांच की तो पता चला कि साइप्रस स्थित कंपनी टेक्नियस लिमिटेड के खाते से नीदरलैंड में एक बैंक खाते में भी करीब 7 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए गए थे.

आश्चर्य की बात यह थी कि ये विदेशी बैंक खाते में प्राप्त इस फंड को अंतरराष्ट्रीय डेबिट कार्ड की मदद से दिल्ली और एनसीआर की अलग अलग लोकेशन में बैंक व डेबिट कार्ड के जरिए या तो विड्रा किया गया अथवा भारत में अलगअलग खातों में छोटीछोटी रकमें ट्रांसफर की गईं. इन सभी खातों के ट्राजैक्शन देख ईडी की टीम का माथा ठनका और फिर कंपनी के कामकाज से ले कर उन के बैंक खातों पर बारीकी से निगरानी रखी जाने लगी.

जांच जैसेजैसे आगे बढ़ी, वैसेवैसे ईडी के अफसरों का ये शक यकीन में बदलने लगा कि सबडिजी वेंचर्स और उसे चलाने वाले उज्जवल किशोर और उस की पत्नी नीलू श्रीवास्तव कुछ तो ऐसा धंधा कर रहे हैं, जिस में कानूनों को ताक पर रखा जा रहा है.  बस, फिर क्या था, ईडी के अफसरों ने विदेशी फंडिंग की निगरानी के साथ एक टीम को कोठी नंबर 234 की निगरानी के काम टीम पर लगा दिया. टीम लगातार वहां आनेजाने वाले लोगों की गतिविधियों पर नजर रखने लगी. टीम को पता चला कि कोठी के अंदर सबडिजी कंपनी के संचालक पोर्न साइट के लिए एडल्ट कंटेंट तैयार कर विदेश में भेजते हैं, जिस के बदले उन्हें विदेश से फंड मिल रहा था.

बस फिर क्या था, 28 मार्च, 2025 को ईडी की टीम ने सबडिजी वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के औफिस कोठी नंबर 234 पर छापा मारा. कंपनी के डायरेक्टर उज्जवल किशोर और नीलू श्रीवास्तव को दबोच लिया गया. दंपति कोठी के अंदर अवैध रूप से स्टूडियो बना कर पोर्न वीडियो शूट करा रहे थे. कोठी के अंदर ईडी की टीम को छापेमारी के दौरान कुछ मौडल भी मिलीं, जो इन वीडियो में दिखाई दे रही थीं. ईडी की टीम ने उन के भी बयान दर्ज किए. करीब 24 घंटे की पड़ताल के बाद ईडी ने घर से मिले सभी दस्तावेजों और अश्लील कंटेट को अपने कब्जे में ले कर पूरे स्टूडियो को सील कर दिया गया.

ईडी की टीम उज्जवल किशोर व उस की पत्नी नीलू श्रीवास्तव को गिरफ्तार कर अपने साथ दिल्ली ले गई. तब तक मीडिया में कोठी नंबर 234 में पोर्न साइट के लिए चल रहे पोर्न स्टूडियो की जानकारी जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी. अफवाह यहां तक फैल गई कि बौलीवुड से ले कर छोटे परदे पर काम करने वाली बहुत सारी सहअभिनेत्रियां भी पोर्न स्टूडियो से जुड़ी थीं और न्यूड कंटेट तैयार कराने व मोटा पैसा कमाने के लिए वहां आती थीं. लेकिन इन अफवाहों में कितना दम है, ईडी ने इस बारे में कोई पुष्टि नहीं की.

हालांकि अब तक की जांच में यह सामने आया है कि अब तक कंपनी और उस के निदेशकों के बैंक खातों में विदेशों से 15.66 करोड़ रुपए का आदानप्रदान हुआ है. इस धनराशि को कई खातों में घुमाया गया. जांच में यह भी पता कि उज्जवल किशोर व उस की पत्नी की जो कमाई होती थी, उस का 75 फीसदी अपने पास और शेष मौडलों को देते थे.

मौडल को मिलते थे 1 से ले कर 5 लाख रुपए

पोर्न साइट्स को अश्लील वीडियो उपलब्ध कराने वाली कंपनी सबडिजी के डायरेक्टर उज्जवल किशोर और उस की पत्नी नीलू श्रीवास्तव की गिरफ्तारी के बाद जब गहन पूछताछ हुई तो कई अहम जानकारी भी सामने आई. पता चला कि नोएडा की किराए की इस कोठी में चल रहे इस अश्लील स्टूडियो में महज 4 घंटे में अश्लील वीडियो तैयार होते थे.

जब स्थानीय लोगों से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि अकसर दिन में 2 से 3 महिला मौडल कोठी पर आती थीं और करीब 4 घंटे बाद वापस चली जाती थीं. मतलब साफ है कि अश्लील कंटेंट का एक हिस्सा करीब 4 घंटे में शूट होता था. ज्यादातर मौडल सुबह 11 से दोपहर 1 बजे के बीच कोठी पर आती थीं. दंपति आसपास के लोगों से संबंध नहीं रखते थे, ऐसे में पड़ोसियों ने कभी कोठी में होने वाली गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया. स्थानीय लोगों को लगता था कि दंपति विदेश में रहने के बाद वापस लौटे हैं तो जो महिलाएं उन से मिलने आती हैं, वह उन की जानकार ही होंगी.

जांच में यह बात भी सामने आई है कि किराए पर लिए दोमंजिला कोठी के ऊपरी हिस्से में दंपति ने जो स्टूडियो बनाया हुआ था, वहां औडिशन के नाम पर महिला मौडलों को बुला कर अश्लील और न्यूड कंटेंट बनाने का काम होता था. पोर्न साइट के धंधे का नेटवर्क साइप्रस के अलावा यूरोप और अफ्रीका के कई देशों में भी है. वहां पर भी मौडल की एडल्ट वेबकैम पर वीडियो शूट कराई जाती है. छापेमारी के दौरान ईडी की टीम को लाखों की नकदी और केस से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण सुराग मिले. गिरफ्तार उज्जवल किशोर व नीलू साइप्रस की जिस पोर्न कंपनी के लिए पोर्न कंटेंट बना कर वेबसाइट पर चलाते थे, उन के बारे में ईडी के अधिकारी और जानकारी जुटा रहे हैं.

प्राथमिक जांच में पता चला है कि मौडल्स लड़कियां सोशल मीडिया पेज के माध्यम से आरोपियों से संपर्क करते थे. इस के लिए फेसबुक पर एक पेज बनाया गया था. धंधा जब चल निकला तो दंपति ने इंस्टाग्राम और वाट्सऐप समेत अन्य प्लेटफार्म पर भी इस का विस्तार किया. ज्यादातर मौडल दिल्ली-एनसीआर की होती थीं. नीलू श्रीवास्तव अपने सहयोगियों के साथ मिल कर लड़कियों को बतातीं कि एक पोर्न साइट के लिए उन का चयन किया जा रहा है. उन्हें महीने में 4 से 5 शूट करने होंगे और बदले में 1 से 4 लाख रुपए तक की कमाई होगी.

कमाई शूट के आधार पर 4 से 5 कैटेगरी में बंटी थी. वीडियो शूट के लिए हाफ फेस शो, फुल फेस शो और न्यूड जैसी करीब 5 कैटेगरी थीं. यानी इस सिंडिकेट में लड़कियों के लिए अलगअलग काम होता था. लड़कियां जिस हिसाब से ऐक्ट करती थीं, उसी के हिसाब से रकम दी जाती थी. जैसे हाफ फेस शो (आधा चेहरा दिखना), फुल फेस शो (पूरा चेहरा दिखना), न्यूड (पूरी तरह नग्न) कैटेगरी होती थी. उन्हें यह भी बताया जाता था कि ये पोर्न वीडियो भारतीय नहीं, विदेशी साइट पर अपलोड किए जाएंगे. जाहिर है फुल फेस शो और न्यूड कैटेगरी के लिए मौडल्स को ज्यादा पैसा दिया जाता था.

विदेशों से जो रकम आरोपियों और कंपनी के खाते में आती थी, उसी में से करीब 25 प्रतिशत तक का भुगतान मौडल्स और स्टूडियो में काम करने वाले लोगों को दिया जाता, बाकी का हिस्सा आरोपी दंपति अपने पास रखते थे. वीडियो शूट होने के बाद आरोपी दंपति सिर्फ एक नहीं, बल्कि कई वेबसाइट पर वीडियो अपलोड करते थे. जांच में पता चला है कि इस रैकेट का सरगना पहले रूस के सैक्स सिंडिकेट का हिस्सा रह चुका है. इस के बाद भारत में पत्नी के साथ आपत्तिजनक सामग्री का रैकेट शुरू किया.

आरोपी दंपति ने गलत तरीके से ‘पर्पज कोड’ दे कर अपने बैंक खातों में विदेशी पैसा लिया. इन दोनों ने बैंकों को विज्ञापन,  मार्केट रिसर्च से ले कर जनमत संग्रह के नाम पर गलत तरीके से पर्पज कोड दिए थे. दरअसल, पर्पज कोड एक विशिष्ट कोड होता है, जो किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किया जाता है. यह कोड अंतरराष्ट्रीय भुगतान के लिए लेनदेन की प्रकृति को स्पष्ट करता है.

ईडी अब आरोपियों के बैंक खातों और मोबाइल डेटा की गहन जांच कर रही है. इस रैकेट के पीछे और कौनकौन लोग शामिल हैं, इस का पता लगाने के लिए पूछताछ जारी है. इस मामले की जांच नोएडा स्थित कंपनी सबडिजी वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड और उस के प्रमोटर्स के खिलाफ की जा रही है. इस के अलावा ईडी की टीम अब पोर्न स्टूडियो के देशव्यापी लिंक ढूंढने का प्रयास कर रही है.

 

 

Gujarat News : 3 गुने का लालच दे कर ले उड़े 6 हजार करोड़

Gujarat News : 30 वर्षीय भूपेंद्र सिंह झाला ने बीजेड कंपनी में 11 हजार लोगों से 6 हजार करोड़ रुपए जमा कर के ठगी की. आखिर हजारों लोग किस तरह फंसते गए इस शातिर के जाल में? पढ़ें, कई हजार करोड़ के स्कैम की यह चौंकाने वाली कहानी…

नवंबर के दूसरे सप्ताह में गुजरात की सीआईडी पुलिस को जानकारी मिली कि हिम्मतनगर, अरवल्ली, मेहसाणा, गांधीनगर बड़ौदा आदि जिलों में बीजेड नाम की संस्था द्वारा पोंजी स्कीम चला कर लोगों को बेवकूफ बना कर उन से पैसा जमा कराया जा रहा है. इस के बाद सीआईडी के एडिशनल डीजीपी राजकुमार पांडियन के निर्देश पर सीआईडी टीम ने 26 नवंबर, 2024 को उक्त 5 जिलों में छापा मारा, जिस में बीजेड ग्रुप के औफिसों से पोंजी स्कीम के डाक्यूमेंट और वहां काम करने वाले कुछ लोग मिले. इसी के साथ रुपए जमा कराने वाला एक एजेंट आनंद दरजी भी मिला. छापे के दौरान टीम ने 16 लाख रुपए नकद, कंप्यूटर, फोन, डाक्यूमेंट आदि जब्त किए.

इन सभी लोगों से पूछताछ में पता चला कि यह पोंजी स्कीम साल 2020-21 से चलाई जा रही थी. इस का मुख्य सूत्रधार यानी कर्ताधर्ता भूपेंद्र सिंह झाला है, जिस का मेन औफिस गुजरात के जिला साबरकांठा की तहसील तालोद के रणासण में है. इस संस्था के औफिस हर जिले में हैं. यह भी पता चला कि इस के टारगेट अध्यापक और रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी रहते हैं.

 

ऐसे लोगों को मौखिक रूप से लालच दिया जाता था कि उन के यहां इनवेस्टमेंट करने पर उन्हें एक साल बाद 36 प्रतिशत रिटर्न दिया जाएगा. जबकि एग्रीमेंट में 7 प्रतिशत ही बताया जाता था. इस के अलावा इनवेस्ट करने वालों को गिफ्ट में मोबाइल फोन, टीवी आदि भी दिए जाते थे. साथ ही रुपए इनवेस्ट कराने वाले एजेंटों को भी अच्छा इंसेटिव 5 प्रतिशत से ले कर 25 प्रतिशत तक दिया जाता था.

बीजेड ग्रुप का सीईओ भूपेंद्र सिंह झाला और बाकी के तमाम कर्मचारी फरार हो गए थे. सीआईडी ने बीजेड के औफिसों से जो डाक्यूमेंट जब्त किए थे, उन की जांच से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. पता चला कि भूपेंद्र सिंह झाला की इन स्कीमों में लोगों का थोड़ा पैसा नहीं लगा, बल्कि लगभग 6 हजार करोड़ रुपए लगे हैं यानी यह बहुत बड़ी ठगी थी. लोगों को उल्लू बना कर भूपेंद्र सिंह ने उन के 6 हजार करोड़ रुपयों की ऐसीतैसी कर दी थी. लोगों को लालच दे कर उन के जीवन भर की कमाई हड़प कर वह खुद मजे की जिंदगी जी रहा था.

ऐसे गिरफ्त में आया मास्टरमाइंड

तब सीआईडी की टीम उसे गिरफ्तार करने के लिए छापे मारने लगी. लगभग डेढ़ महीने की दौड़भाग के बाद सीआईडी के डीसीपी चैतन्य मांडलिक की टीम भूपेंद्र सिंह के भाई रणजीत झाला का पीछा करते हुए हिम्मतनगर के ग्रोमोर गांव पहुंची. वहां जा कर पता चला कि भूपेंद्र सिंह झाला मेहसाणा भाग गया है. इस के बाद सीआईडी टीम को सूचना मिली कि भूपेंद्र सिंह मेहसाणा के दवाडा गांव में छिपा है. इस सूचना पर सीआईडी की टीम दवाडा गांव पहुंच गई, पर टीम को यह पता नहीं था कि भूपेंद्र सिंह किस के यहां छिपा है. तब कई टीमों ने सर्च औपरेशन शुरू किया. पर वह गांव में नहीं मिला.

पुलिस को पक्की खबर मिली थी कि भूपेंद्र सिंह दवाडा गांव में ही छिपा है, इसलिए पुलिस ने उसे खेतों में भी तलाशना शुरू किया. आखिर एक फार्महाउस में भूपेंद्र सिंह झाला मिल गया. सीआईडी की टीमों ने उसे घेर कर हिरासत में ले लिया.

राजनीति की डगर पर क्यों रखा कदम

भूपेंद्र सिंह झाला को हिरासत में लेने के बाद उसे स्पैशल कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे 7 दिनों की रिमांड पर ले लिया. सरकारी वकील ने अदालत को बताया था कि बीजेड कंपनी की अलगअलग 18 शाखाओं में रुपए जमा कराए गए थे. उन रुपयों से कौनकौन सी संपत्ति किस के नाम खरीदी गई, इस की जांच करनी है. इस के अलावा भूपेंद्र सिंह ने जो 8 कंपनियां बनाई थीं, उन का हिसाब करना है. एक शाखा से 52 करोड़ रुपए का हिसाब मिला, वे रुपए रिकवर करने हैं.

भूपेंद्र सिंह झाला के पास 10 करोड़ रुपयों का कारों का काफिला है, इन कारों को खरीदने का पैसा कहां से आया, कारें किस के नाम से खरीदी गई हैं, इस की जांच करनी है. वकील ने यह भी बताया कि भूपेंद्र सिंह झाला एक महीने से फरार था, इस बीच वह कहांकहां रहा, उस की किसकिस ने मदद की, इस की भी जांच करनी है. भूपेंद्र सिंह ने एक साल में 17 संपत्तियां खरीदी हैं. इस के अलावा गुजरात के बाहर कितनी संपत्ति खरीदी गई है, यह भी पता करना है. सरकारी वकील की इन्हीं बातों को सुन कर कोर्ट ने उस की 7 दिनों की रिमांड मंजूर की थी.

भूपेंद्र सिंह झाला के खिलाफ सीआईडी ने जीपीआईडी (गुजरात प्रोटेक्शन इंटरेस्ट औफ डिपौजिटर्स) के अंतर्गत मामला दर्ज किया था. इस के अंतर्गत 5 साल तक की कैद और 10 लाख रुपए तक के जुरमाने का प्रावधान है. यहां सोचने वाली बात यह है कि लोगों का करोड़ों रुपए हजम कर जाने वाले को 5 साल ही जेल में रहना होगा. जिस ने लोगों के करोड़ों रुपए ले लिए हों, उस के लिए 10 लाख रुपए के जुरमाने की क्या अहमियत है.

गुजरात और राजस्थान में पोंजी स्कीम से करीब 6 हजार करोड़ रुपए की ठगी करने वाले मुख्य आरोपी भूपेंद्र सिंह झाला से पुलिस ने पूछताछ की तो जानकारी मिली कि भूपेंद्र सिंह झाला भाजपा से जुड़ा हुआ है. गुजरात और राजस्थान में पोंजी स्कीम चला कर हजारों करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा करने वाले भूपेंद्र सिंह ने जीरो से 6 हजार करोड़ का साम्राज्य आखिर कैसे स्थापित किया?

गुजरात के जिला साबरकांठा की तहसील हिम्मतनगर के रायगढ़, झालानगर का रहने वाले 30 वर्षीय भूपेंद्र सिंह झाला ने बीएससी, एमएड करने के बाद वकालत की पढ़ाई की और फिर वह फोरेक्स ट्रेडिंग की एक प्राइवेट कंपनी के औफिस में नौकरी करने लगा. तब वह अलगअलग लोगों से अलगअलग तरह से पैसे जमा कराता था. बाद में वह खुद भी अन्य लोगों से क्रिप्टो करेंसी में रुपए इनवैस्ट कराने लगा. उस ने अलगअलग लोगों से रुपए उधार ले कर करीब 9 करोड़ रुपए क्रिप्टो करेंसी में लगा दिए.

4 कंपनियां, 5 बैंक और 20 अकाउंट

भूपेंद्र सिंह झाला ने ये 9 करोड़ रुपए वाईएफआई कोइन में लगाए थे, जिस के प्रौफिट के रूप में उसे 9 करोड़ रुपए मिले थे. इस रकम से उस ने उधार लिए गए 9 करोड़ रुपए लौटा दिए. सभी के रुपए अदा करने के बाद उसे करीब करोड़ों रुपए का प्रौफिट हुआ था, इसलिए उसे यह धंधा फायदे का नजर आया.

इतना मोटा प्रौफिट होने के बाद भूपेंद्र सिंह ने नौकरी छोड़ दी और अपना अलग धंधा शुरू किया. अपना धंधा करने के लिए उस ने साल 2020 में 4 अलगअलग नामों से कंपनियां खोलीं. उन कंपनियों का नाम रखा बीजेड फाइनेंस, बीजेड प्रौफिट प्लस, बीजेड मल्टी ट्रेड ब्रोकिंग और बीजेड इंटरनैशनल प्राइवेट लिमिटेड. चारों कंपनियों में पहली 2 कंपनियों का मालिक वह खुद था, जबकि तीसरी और चौथी कंपनी के रजिस्ट्रैशन उस ने पार्टनरशिप में कराया था.

कंपनी शुरू होने बाद अब लोगों से रुपए जमा कराने थे. उस रुपए का ट्रांजेक्शन हो सके, इस के लिए उस ने एक बैंक में कंपनी के नाम से 4 अकाउंट खुलवाए. इतना ही नहीं, इसी तरह उस ने 5 प्राइवेट बैंकों में कुल 20 अकाउंट खुलवाए. इस तरह भूपेंद्र सिंह झाला ने एक तरह से चेन मार्केटिंग जैसी मोडस आपरेंडी अपनाई. भूपेंद्र सिंह झाला ने लोगों से पैसा वसूलने के लिए अलगअलग लेयर बना रखे थे. लेयर के अनुसार रुपए जमा कराने वालों को कमीशन दिया जाता था. 5 लेयर में रुपए जमा करने की पूरी चेन चलती थी. 5 लेयर पूरी होने के बाद सब से पहले रुपए जमा कराने वाले को मिलने वाला कमीशन बंद हो जाता था.

अगर पहली बार रुपए जमा कराने वाले को अपना कमीशन चालू रखना होता था तो उसे फिर से नए लोगों से रुपए जमा कराने होते. पांचवें व्यक्ति तक यह चेन चलती रहती थी. जमा कराया गया रुपया जब तक वापस नहीं हो जाता था, यानी जब तक उस का समय पूरा नहीं हो जाता था, तब तक कमीशन की रकम मिलती रहती थी. धंधे की शुरुआत करने से पहले ही भूपेंद्र सिंह झाला ने 5 प्राइवेट बैंकों में 20 अकाउंट खुलवा रखे थे. यह था उस का मनी सर्कुलेशन का फार्मूला. इसी फार्मूले के आधार पर वह रुपए जमा कराने वालों को मोटी रकम ब्याज से देता था. अनेक गिफ्ट भी देता था और खुद भी रईसों वाली जिंदगी जी रहा था.

भूपेंद्र सिंह झाला पहली बैंक के अकाउंट में एक करोड़ रुपए पूरे एक महीने के लिए जमा कराता था. उस खाते में एक महीने बाद जो ब्याज आता था, उसे निकाल कर एक करोड़ रुपए को उसी बैंक के दूसरे अकाउंट में जमा करा देता था. एक महीने बाद दूसरे अकाउंट में जमा कराई रकम का एक करोड़ का एक महीने का ब्याज वह निकाल कर उस एक करोड़ की रकम को तीसरे अकाउंट में जमा करा देता था. इस तरह 5 बैंकों के 20 अकाउंटों में हमेशा एक करोड़ की रकम घूमती रहती थी. इस पद्धति को मनी सर्कुलेशन भी कहा जाता है.

मनी सर्कुलेशन का खेल अच्छी तरह से जान लेने के बाद भूपेंद्र सिंह झाला अलगअलग 20 स्टेप में अलगअलग बैंकों में मनी सर्कुलेशन करता रहता. इस ट्रांजेक्शन से मिलने वाले ब्याज की रकम वह रुपया जमा कराने अपने इनवैस्टर्स को अच्छा ब्याज और महंगे गिफ्ट के रूप में देता था. जो लोग बड़ी रकम जमा कराते थे, उन्हें वह 3 प्रतिशत महीना

की दर से ब्याज देता था और छोटी रकम वालों को डेढ़ प्रतिशत महीना की दर से ब्याज देता था. भूपेंद्र सिंह झाला जिस तरह लोगों से कैश में रुपए लेता था, उसी तरह ब्याज भी कैश में देता था. इस कैश का किसी के पास कोई हिसाब न रहे अथवा किसी कानूनी काररवाई में न फंस जाए, इस के लिए वह जरूरत पडऩे पर अपने स्कूल के स्टाफ के अकाउंट में रुपए जमा कर के उन से कैश ले लेता था. स्टाफ के बैंक अकाउंट में जो रकम जमा कराता था, उस का टीडीएस झाला अदा कर देता था.

भूपेंद्र सिंह झाला की गिरफ्तारी होने के साथ ही सीआईडी के इकोनौमिक सेल में लोगों की चहलपहल बढ़ गई थी. औफिस में ज्यादातर भीड़ ऐसे लोगों की देखने को मिल रही थी, जो भूपेंद्र सिंह झाला की ठगी का शिकार हुए थे.

आम लोगों से ले कर खास तक ऐसे फंसे उस के जाल में

जांच में यह भी सामने आया है कि केवल आम लोग और टीचर ही इस घोटाले का शिकार नहीं हुए, बल्कि 3 क्रिकेटर भी भूपेंद्र सिंह झाला की इस ठगी का शिकार हुए 2 क्रिकेटरों ने क्रमश: 10 और 25 लाख रुपए भूपेंद्र सिंह झाला की स्कीम में जमा कराए थे तो तीसरे क्रिकेटर शुभमन गिल ने एक करोड़ से अधिक की रकम जमा कराई थी. ये क्रिकेटर एजेंट द्वारा फंसाए गए थे. पुलिस उन एजेंटों की तलाश में जुट गई.

भूपेंद्र सिंह झाला ने अपनी कंपनी में इनवैस्ट करने के लिए साल 2020 में सब से पहले एक टीचर को अपने जाल में फंसाया था. मोडासा के एक स्कूल में नौकरी करने वाले उस टीचर को उस ने एक साल में पूरी होने वाली 10 लाख रुपए की एक स्कीम बताई. 10 लाख रुपए की उस स्कीम में हर महीने 3 प्रतिशत ब्याज देने की बात बताई. एक साल तक लगातार ब्याज देने के बाद भूपेंद्र सिंह ने उस अध्यापक के 10 लाख रुपए वापस कर दिए थे. इस के अलावा बढ़ा हुआ ब्याज भी दिया था.

इस तरह अध्यापक को अपनी मूल रकम के साथ ब्याज तथा एक साल बढ़ा हुआ ब्याज मिला तो उसे भूपेंद्र सिंह झाला पर विश्वास हो गया. तब उसने अन्य अध्यापकों को भी उस की स्कीम में रुपए जमा कराने की सलाह दी. इस तरह धीरेधीरे भूपेंद्र सिंह झाला का धंधा बढऩे लगा. पुलिस ने उस अध्यापक का भी बयान दर्ज किया है, जिस ने सब से पहले भूपेंद्र सिंह झाला की कंपनी में रुपए जमा कराए थे और अन्य अध्यापकों को रुपए जमा करने की सलाह दी थी. सीआईडी जब भूपेंद्र सिंह झाला के औफिस में जांच करने पहुंची थी, झाला ने उस के पहले ही अपनी वेबसाइट बंद करने के साथ सारा डाटा डिलीट कर दिया था. पुलिस अब उस डाटा को रिकवर करने का प्रोसेस कर रही है.

फिर भी जानकारी मिली है कि भूपेंद्र सिंह झाला की स्कीम में सब से अधिक साल 2021 में 6.5 करोड़ रुपए जमा हुए थे. भूपेंद्र सिंह झाला की इस स्कीम में रुपए जमा करने वाले लगभग 11,200 लोग शामिल हो गए थे. मात्र 30 साल का अविवाहित भूपेंद्र सिंह झाला तब लोगों के बीच चर्चा में आया था, जब उस ने पिछले (2024) लोकसभा चुनाव में साबरकांठा से भाजपा से टिकट न मिलने पर निर्दलीय पर्चा भर दिया था. लेकिन फिर अपना नौमिनेशन वापस ले लिया था. तब भाजपा के एक बड़े नेता ने मोडासा की एक सभा में कहा था कि भूपेंद्र सिंह झाला ने उन के कहने पर अपना नाम वापस लिया था.

भूपेंद्र सिंह झाला ने नौमिनेशन के समय जो एफिडेविट दिया था, उस के अनुसार परिवार में पिता परबत सिंह और मां मधुबेन हैं. घोटाले का खुलासा होने के बाद उस के फरार होने से रायगढ़ के झालानगर में स्थित उस की राजमहल जैसी कोठी सुनसान थी. कोठी के सामने लग्जरीयस कारें खड़ी थीं. शपथपत्र के अनुसार लोकसभा के चुनाव तक उस के खिलाफ किसी भी तरह का कोई मुकदमा दर्ज नहीं था.

भूपेंद्र दुबई में क्यों बनाना चाहता था ठगी का अड्डा

बीजेड समूह की ब्रांचों में पुलिस द्वारा छापा मारने से गुजरात के ऐसे राजनेताओं में खलबली फैल गई है, जिन का भूपेंद्र के बीजेड समूह से सीधा संबंध था. एक का डबल करने की बात कह कर अभी तक ठगी करने की बात सामने आती रही है, पर भूपेंद्र सिंह झाला की स्कीम में एक का 3 करने की बात कही जा रही थी. इस स्कीम में रिटायर्ड कर्मचारियों और टीचर्स को लालच दे कर उन से रुपए जमा कराए जा रहे थे. पर यह आधा सच है. भूपेंद्र सिंह की स्कीम में तमाम नेता और पुलिस अफसर अपनी काली कमाई जमा करा रहे थे. सुनने में तो यह भी आया कि झाला की स्कीम में कुछ डाक्टरों ने भी रुपए इनवैस्ट कराए थे.

ग्रुप से जुड़े लोगों का कहना था कि झाला को ब्याज से अधिक कमाई क्रिप्टो करेंसी से होती थी. उस का धंधा इतना अधिक फूलाफला था कि कुछ समय पहले आणंद में ब्राच खोलने के साथ ही वह दुबई में औफिस खोलने की सोच रहा था. भूपेंद्र के साथ उस के कुछ पार्टनर भी थे, जो जमा रकम को व्यवस्थित करते थे. जमा रकम क्रिप्टो करेंसी में ट्रांसफर होती थी. भूपेंद्र सिंह दुबई में इसलिए शिफ्ट होना चाहता था, क्योंकि दुबई में यह काम गैरकानूनी नहीं माना जाता.

बीजेड समूह के सीईओ भूपेंद्र सिंह झाला को मुंबई में आयोजित बीआईएए बौलीवुड कार्यक्रम में बौलीवुड अभिनेता सोनू सूद ने अवार्ड दे कर सम्मानित भी किया था. जबकि भूपेंद्र सिंह झाला ने सोनू सूद को हाथ की बनी उन की तसवीर भेंट की थी. गुजरात में बायड के विधायक धवल सिंह का एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिस में वह एक तरह से भूपेंद्र सिंह झाला की स्कीम का प्रचार करते हुए कह रहे हैं कि किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है. जिसे रुपए डबल करना आता है, वह सब कुछ कर सकता है.

भूपेंद्र सिंह झाला के गिरफ्तार होने से पहले सीआईडी ने बीजेड पोंजी स्कीम में जिन 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया था, अहमदाबाद की ग्रामीण कोर्ट ने उन की जमानत की अरजी को कैंसिल करते हुए सभी को जेल भेज दिया था. सरकारी वकील ने उन की जमानत देने के खिलाफ दलील दी थी कि यह कुल 6 हजार करोड़ का स्कैम है, जिस में पता चला है कि शुरुआत में 1.09 करोड़ रुपए एजेंट मयूर दरजी ने वसूल किया है. वर्तमान जांच में 360 करोड़ रुपए के लेनदेन का पता चला है. हिम्मतनगर के औफिस की डायरी में 52 करोड़ रुपए के लेनदेन का पता चला है.

ठगी की रकम से खरीदी प्रौपर्टी

इस मामले में आरोपियों के वकील का कहना था कि आरोपी बीजेड कंपनी में काम करने वाले चपरासी या औफिस बौय हैं. उन का इस ठगी से कोई लेनादेना नहीं है. पुलिस मुख्य आरोपी को नहीं पकड़ सकी थी, इसलिए इन्हें पकड़ लिया था. जबकि सरकारी वकील का कहना था कि बीजेड कंपनी में आरोपी राहुल राठौर 10 हजार रुपए महीने के वेतन पर नौकरी करता था तो उस के बैंक खाते में 10,91,472 रुपए का बैलेंस और 17.40 लाख रुपए के लेनदेन की हिस्ट्री क्यों मिली है?

आरोपी विशाल झाला को 12,500 रुपए सैलरी मिलती थी, लेकिन इस के अकाउंट में भी 19, 77,676 रुपए जमा मिले. 19 करोड़ से अधिक का लेनदेन हुआ था. साथ ही एक करोड़ 85 लाख ट्रांसफर भी हुए थे. आरोपी रणबीर चौहाण 12 हजार रुपए महीने की सैलरी पर नौकरी करता था. उस के खाते से 13,35,000 रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ था. आरोपी संजय परमार 7 हजार रुपए मासिक वेतन पर सफाई का काम करता था. उस के खाते में 4,54,000 रुपए जमा थे. इस के अलावा 1.56 करोड़ रुपए का लेनदेन तथा 60 लाख रुपए ट्रांसफर किए गए थे.

आरोपी दिलीप सोलंकी 10 हजार महीने की सैलरी पर नौकरी करता था. उस के अकाउंट में 10,072 मिले और 1.20 करोड़ रुपए का लेनदेन मिला. आरोपी आशिक भरथरी 7 हजार रुपए पर सफाई का काम करता था. उस के अकाउंट में 8,400 रुपए मिले और 44.98 लाख का हेरफेर तथा 8,04,620 रुपए का ट्रांजैक्शन मिला. सरकारी वकील की इन्हीं दलीलों पर अदालत ने सभी आरोपियों को जमानत देने से मना कर दिया था.

बीजेड कंपनी की आमदनी से खरीदी गई संपत्ति में मोडासा में 10 बीघा जमीन, साकरिया गांव में 10 बीघा जमीन, लिंभोई गांव में 3 बीघा जमीन, हिम्मतनगर के रायगढ़ में 5 दुकानों का एक कौंप्लेक्स, हडियोल गांव में 10 दुकानें, ग्रोमोर कैंपस के पीछे 4 बीघा जमीन हिम्मतनगर के अडपोदरा गांव में 5 बीघा जमीन, तालोद के रणासण गांव में 4 दुकानें, मोडासा चौराहे पर एक दुकान, मालपुरा में एक दुकान की जानकारी मिली.

ठगी से जुटाई गई रकम वापस करने के लिए पुलिस ने तमाम संपत्ति जब्त करने की काररवाई शुरू कर दी है. यह काररवाई पूरी हो जाने के बाद सरकार के आदेश पर जब्त की गई संपत्ति नीलाम कर के लोगों का पैसा वापस किया जाएगा. सीआईडी कथा लिखने तक बीजेड के औफिसों से जब्त किए गए 250 करोड़ रुपए लोगों को दे चुकी थी. अभी 172 करोड़ रुपए और देने हैं, जो नीलामी की रकम से दिए जाएंगे.

 

Social Crime : बीटेक छात्रा से रेप करने के बाद सबूत मिटाने के लिए कपड़े और फोन को जलाया

Social Crime : अपराधी प्रवृत्ति का राहुल हत्या और बलात्कार के मामले में पकड़ा गया और उसे जेल भेज दिया गया. लेकिन वह पैरोल पर आ कर भाग निकला. उस ने कई लड़कियों के साथ व्यभिचार किया और उन्हें मार डाला. ऐसे खतरनाक अपराधी…

झारखंड की राजधानी रांची स्थित सीबीआई कोर्ट के जज ए.के. मिश्र की अदालत में 22 दिसंबर, 2019 को कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. वकीलों के अलावा कुछ अन्य लोग भी अदालत की काररवाई शुरू होने से पहले कोर्टरूम में पहुंच चुके थे. अदालत परिसर में तमाम मीडियाकर्मी भी थे. दरअसल, उस दिन रांची के बहुचर्चित बीटेक की छात्रा माही हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. करीब 3 साल पहले हुई हत्या की यह वारदात काफी दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में रही थी. जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम की टीम ने लंबी जांच के बाद न सिर्फ इस केस का परदाफाश किया, बल्कि आरोपी राहुल कुमार उर्फ राहुल राज उर्फ आर्यन उर्फ रौकी राज उर्फ अमित उर्फ अंकित को भी गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

पता चला कि रेप की वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो जाता था या नाम बदल कर कहीं दूसरी जगह रहने लगता था. इस तरह वह एकदो नहीं, बल्कि 10 लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बना चुका था. एक तरह से वह साइको किलर बन चुका था. इस वहशी दरिंदे के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत में केस चल रहा था. सीबीआई की ओर से इस मामले में 30 गवाह पेश किए गए थे. जज ए.के. मिश्र ने तमाम गवाह और सबूतों के आधार पर 30 अक्तूबर, 2019 को छात्रा माही हत्याकांड में आरोप तय करते हुए राहुल कुमार को दोषी ठहराया. उन्होंने सजा सुनाए जाने के लिए 22 दिसंबर, 2019 का दिन निश्चित किया.

सीबीआई की विशेष अदालत में 22 दिसंबर को जितने भी लोग बैठे थे, उन सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि जज साहब साइको किलर राहुल कुमार को क्या सजा सुनाएंगे. इस वहशी दरिंदे ने जिस तरह कई लड़कियों की जिंदगी तबाह की थी, उसे देखते हुए उन्हें उम्मीद थी कि उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए. राहुल कुमार कौन है और वह कामुक दरिंदा कैसे बना, यह जानने के लिए उस के अतीत को जानना होगा. 25 वर्षीय राहुल कुमार बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय थाना क्षेत्र के गांव धुर का रहने वाला था. उस के पिता उमेश प्रसाद पेशे से आटो चालक थे. 3 भाईबहनों में राहुल सब से बड़ा था.

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ राहुल के साथ भी हुआ. बचपन से ही राहुल जिद्दी और झगड़ालू किस्म का था. वह एक बार जो करने की ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. इस दौरान वह किसी की भी नहीं सुनता था. मांबाप की डांटफटकार का भी उस पर कोई असर नहीं होता था. राहुल जैसेजैसे बड़ा होता गया, उस की संगत आवारा किस्म के लड़कों से होती गई. घर से उस का मतलब केवल 2 वक्त की रोटी से होता था. जब उस के पिता उमेश प्रसाद आटो ले कर शहर की ओर निकलते, वह भी घर से निकल जाता था. फिर दिन भर आवारा दोस्तों के साथ घूमता रहता था.

बचपन से ही जिद्दी आवारा था राहुल मटरगश्ती करने के लिए वह मां से जबरन पैसे लिया करता था. अगर मां उसे पैसे नहीं देती तो वह लड़झगड़ कर पैसे छीन लेता था. दिन भर दोस्तों के बीच घूमनेफिरने के बाद वह शाम ढलने पर घर लौटता था. घर का वह एक काम तक नहीं करता था, रात को जब आटो चला कर उमेश प्रसाद घर लौटता तो उस की पत्नी राहुल की दिन भर की शिकायतों की पोटली खोल कर बैठ जाती. उमेश राहुल को डांटता और समझाता, पर पिता की बातों को वह अनसुना कर देता. ऐसे में उमेश माथे पर हाथ रख कर चिंता में डूब जाता.

उमेश प्रसाद ने राहुल को समझाने और सही राह पर लाने के बहुत उपाय किए, लेकिन राहुल सुधरने के बजाए दिनबदिन जरायम की दलदल में उतारता गया. शुरुआत उस ने अपने घर के पैसे चुराने से की थी. इस के बाद उस ने औरों के घरों में भी चोरी करनी शुरू की. भेद न खुलने पर उस की हिम्मत बढ़ती गई. चोरी के साथसाथ राहुल लड़कियों को अपनी हवस का शिकार भी बनाने लगा. बात सन 2012 की है. राहुल ने पटना के जीरो रोड पर स्थित एक घर में चोरी की. इतना ही नहीं, उस ने वहां एक युवती को अपनी हवस का शिकार भी बनाया. युवती से दुष्कर्म के मामले में 29 जून, 2012 को उसे बेउर जेल भेजा गया. जब वह जेल में था, तभी उस के चाचा की मौत हो गई. श्राद्धकर्म में शामिल होने के लिए वह 4 सितंबर, 2016 को पैरोल पर अपने गांव गया, उस समय वह पुलिस की सुरक्षा में था.

श्राद्धकर्म के बाद शातिर राहुल ने सिपाहियों को शराब पिलाई और अनुष्ठान का बहाना बना कर फरार हो गया. इस के बाद पुलिस उसे छू तक नहीं सकी. पुलिस अभिरक्षा से फरार होने के बाद उस ने जो कांड किया, उस ने समूचे झारखंड को हिला कर रख दिया. राहुल नालंदा से भाग कर रांची आ गया था और वहां वह नाम बदल कर राज के नाम से रहने लगा. राहुल हर बार जुर्म करने के बाद अपना नाम बदल लेता था, ताकि पुलिस उस तक आसानी से न पहुंच सके. खैर, वह राहुल से राज बन कर रांची की बूटी बस्ती में पीतांबरा पैलेस के सामने वाली गली में स्थित दुर्गा मंदिर के कमरे में रहने लगा. यहां उस ने मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों से आग्रह किया था. कमेटी के बंटी नामक युवक ने उस पर तरस खा कर वहां रखवाया था.

यहां रह कर राहुल उर्फ राज कमरा खोजने लगा. कमरे की तलाश में वह बीटेक की छात्रा माही के घर पहुंच गया. लेकिन वहां कमरा किराए पर नहीं मिला. राहुल का मुख्य पेशा चोरी था. उसे घूमतेघूमते पता चल गया कि माही के घर में सिर्फ लड़कियां रहती हैं. उस दिन के बाद से वह आतेजाते माही का पीछा करने लगा. माही इतनी खूबसूरत थी कि एक ही नजर में उस पर मर मिटा था. 23 वर्षीया माही मूलरूप से झारखंड के बरकाकाना जिले के थाना सिल्ली क्षेत्र की रहने वाली थी. उस के पिता संजीव कुमार बरकाकाना में सेंट्रल माइन प्लानिंग ऐंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (सीएमपीडीआई) में नौकरी करते थे.

संजीव कुमार की 2 बेटियां रवीना और माही थीं. दोनों पढ़ने में अव्वल थीं. इसीलिए पिता संजीव भी उन्हें उन के मनमुताबिक पढ़ाना चाहते थे. वह अपनी बेटियों पर पानी की तरह पैसे बहा रहे थे. बच्चों के भविष्य के लिए संजीव कुमार ने सन 2005 में रांची की बूटी बस्ती में एक प्लौट खरीदा था. उस पर उन्होंने घर भी बनवा दिया था. घटना से करीब 2 साल पहले यानी 2017 में उन की दोनों बेटियां रवीना और माही वहीं रह कर पढ़ाई करती थीं. संजीव और परिवार के अन्य सदस्य बरकाकाना में रहते थे. बड़ी बेटी रवीना रांची शहर के एक प्रतिष्ठित कालेज से स्नातक कर रही थी, जबकि छोटी बेटी माही ओरमांझी के एक इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक के चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा थी. माही का 15 दिसंबर, 2016 को रिजल्ट आने वाला था. उस के पिता रिजल्ट देखने बरकाकाना से रांची आए थे. रिजल्ट देखने के लिए वह माही के कालेज गए और वहीं से बरकाकाना वापस लौट गए.

दरिंदे ने भांप लिया था कि अकेली है माही बहरहाल, रिजल्ट देखने के बाद माही जब कालेज से बूटी बस्ती स्थित अपने आवास जाने लगी तो पहले से घात लगाए बैठा राज पीछेपीछे उस के घर तक पहुंच गया. माही घर में बैग रख कर वापस बाहर आई. उस ने अपने घर के पास एक दुकान से मैगी खरीदी और वापस चली गई. इस से राज आश्वस्त हो गया था कि घर में माही अकेली है. घर में अगर कोई और होता तो माही के बजाए वही सामान खरीदने आता. इत्तफाक की बात यह थी कि कुछ दिनों पहले बड़ी बहन रवीना किसी जरूरी काम से अपने गांव बरकाकाना चली गई थी. माही के घर पर अकेला होने की जानकारी शातिर राज को पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए वह निश्चिंत हो गया और उस ने फैसला कर लिया कि आज रात माही को अपनी हवस का शिकार बना कर रहेगा.

उसी रात करीब साढ़े 10 से 11 बजे के बीच राहुल कुमार उर्फ राज माही के घर पहुंचा. उस के मुख्य दरवाजे पर लोहे का मजबूत ग्रिल लगा था. ग्रिल पर भीतर की ओर से बड़ा ताला लगा था. उस के पास मास्टर चाबी रहती थी, जिस से वह कोई भी ताला आसानी से खोल सकता था. मास्टर चाबी से उस ने माही की ग्रिल का ताला खोल लिया. माही जिस कमरे में सो रही थी, उस में सिटकनी नहीं लगी थी. दबेपांव वह उस के कमरे में आसानी से पहुंच गया और गहरी नींद में सोई माही का गला दबाने लगा. तभी माही की आंखें खुल गईं. उसे देख कर वह डर गई.

इस से पहले कि वह शोर मचाती, राज ने उसे धमका दिया. डर की वजह से माही चुप हो गई. राहुल ने उस के साथ रेप किया. उस दौरान उस ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दीं. इस दरम्यान माही के नाजुक अंग से रक्तस्राव हुआ, जिस से वह बेहोश हो गई. उस के बाद दरिंदे राहुल उर्फ राज ने मोबाइल के चार्जर वाले तार से उस का गला घोंट दिया ताकि वह किसी को कुछ बता न सके. हैवानियत पर उतरे राज ने सबूत मिटाने के लिए माही को निर्वस्त्र कर दिया, फिर उस के कपड़ों को एक जगह रख कर उस पर मोबिल औयल डाल कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद वह वहां से फरार हो गया. दरअसल, साक्ष्य मिटाने का यह तरीका उस ने अपने ही एक जुर्म से सीखा था.

अपराध की दुनिया में कदम रखते समय राहुल पहली बार पटना में एक घर में चोरी करने की नीयत से घुसा था. यह भी इत्तफाक था कि घर के एक कमरे में 11 वर्षीय नेहा अकेली सो रही थी. बाकी के लोग दूसरे कमरे में सो रहे थे. उस समय रात के करीब 3 बज रहे थे. अकेली नेहा को देख कर उस के जिस्म में वासना की आग धधक उठी. हैवान राहुल जिस्म की आग ठंडी करने के लिए मासूम नेहा की जिंदगी तारतार कर के भाग गया. लेकिन कानून के लंबे हाथों से कुकर्मी राहुल ज्यादा दिनों तक नहीं बच सका. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तब राहुल को पता चला कि नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन (वीर्य) मिला था, जिस से वह दोषी पाया गया था. इस घटना से ही सीख लेते हुए उस ने बीटेक की छात्रा माही से दुष्कर्म के बाद उस के अंडरगारमेंट के साथ अन्य कपड़े भी जला दिए थे ताकि वह पकड़ा न जा सके.

खैर, अगली सुबह यानी 16 दिसंबर, 2019 की सुबह रहस्यमय तरीके से जली हुई माही की लाश उस के कमरे में पाई गई थी. दरअसल, रात में उस के पिता संजीव कुमार फोन कर के उस का हालचाल लेना चाहते थे. चूंकि दिन में कालेज का रिजल्ट आ चुका था. वह कालेज तक उस के साथ गए भी थे, इसलिए वह फोन कर उसे घर आने के लिए कहना चाहते थे. लेकिन उस का फोन नहीं लग रहा था. फोन बारबार स्विच्ड औफ बता रहा था. बेटी का फोन स्विच्ड औफ होने से वह परेशान हो गए. रात भी काफी गहरा चुकी थी, इसलिए किसी और के पास फोन भी नहीं कर सके थे, जिस से माही का हालचाल मिल पाता. अगली सुबह जब सदर थाने के थानेदार बांकेलाल का फोन उन के पास पहुंचा तो बेटी की मौत की सूचना पा कर संजीव सकते में आ गए.

केस की जांच पर निगाह रखे था राहुल बेटी की मौत की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया था. परिवार के लोगों को साथ ले कर संजीव रांची पहुंचे. शराफत का चोला पहने दरिंदा राज भी अपने दोस्त बंटी के साथ घटनास्थल पर पहुंचा था. वहां पहुंच कर वह यह जानना चाहता था कि पुलिस क्या काररवाई कर रही है. तब उस के दोस्त बंटी ने उस के सामने ही अज्ञात दरिंदे को भद्दीभद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं तो राज ने बंटी को समझाया कि किसी को भी इस तरह गालियां देना ठीक नहीं है. उस दिन के बाद से वह बंटी से पुलिस की गतिविधि पूछता था कि माही के हत्यारों तक पुलिस पहुंची या नहीं. उस के केस में क्या हो रहा है. यह बात बंटी को बड़ी अटपटी लगती थी कि राहुल उर्फ राज माही के केस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है.

बहरहाल, पुलिस ने अपनी काररवाई कर माही की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट पढ़ कर थानाप्रभारी बांकेलाल दंग रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले पीडि़ता के साथ बलात्कार किया गया था, फिर किसी पतले तार से गला कस कर उस की हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376, 499, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर मामले की छानबीन शुरू कर दी. घटना के करीब 6 महीने बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां की तहां खड़ी रही. न तो वह हत्या का कारण जान सकी और न ही हत्यारों का पता लगा पाई.

माही हत्याकांड को ले कर रांची समेत समूचे झारखंड में बवाल मचा हुआ था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग अंगुलियां उठा रहे थे. पीडि़ता के पिता संजीव ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. यह आवाज प्रदेश सरकार के कान तक पहुंची तो सरकार ने जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी. जब मामला सीबीआई के पास पहुंचा तो सीबीआई के तेजतर्रार इंसपेक्टर परवेज आलम के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल प्रभात कुमार, आरिफ हुसैन, नैमन टोप्पो, अशोक कुमार, रितेश पाठक, महिला सिपाही जूही खातून आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर परवेज आलम झारखंड पुलिस में सन 1994 में एसआई पद पर भरती हुए थे. वह ड्यूटी मीट के ओवरआल चैंपियन भी रह चुके थे. झारखंड पुलिस में उन का डीएसपी पद पर प्रमोशन हो चुका था. फिर भी सीबीआई में इंसपेक्टर थे. इंसपेक्टर परवेज आलम ने माही का केस लेने के बाद झारखंड पुलिस द्वारा दिए गए दस्तावेजों व साक्ष्यों का पूरा अध्ययन किया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से पूरी रिपोर्ट पर चर्चा की. डाक्टरों ने सीबीआई को बताया कि मृतका के नाखूनों और वैजाइनल स्वैब राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेजे गए हैं. इंसपेक्टर परवेज आलम ने एफएसएल की रिपोर्ट में पाया कि नाखून व वैजाइनल स्वैब में केवल एक ही पुरुष होने के सबूत मिले हैं.

इस से जांच टीम आश्वस्त हो गई थी कि केवल एक ही व्यक्ति ने इस घटना को अंजाम दिया है. घटना की तह तक जाने के लिए इंसपेक्टर परवेज आलम ने अपने अधिकारियों से बूटी बस्ती में रहने की इजाजत मांगी. सीबीआई मुख्यालय के आदेश पर परवेज आलम अपनी टीम के साथ बूटी बस्ती में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. वहीं रह कर वह गुप्त तरीके से हत्यारोपी के बारे में छानबीन करने में जुट गए. बूटी बस्ती की रहने वाली एक बूढ़ी महिला ने उन्हें बताया कि एक युवक यहां अकसर घूमता था, जो मंदिर परिसर के एक कमरे में रहता था. वह अब दिखाई नहीं दे रहा.

इंसपेक्टर आलम के लिए यह सुराग महत्त्वपूर्ण साबित हुआ. इसी सुराग के आधार पर उन्होंने 300 से अधिक लोगों के काल डंप डाटा के आधार पर छानबीन की. जांच में पता चला कि उन में से करीब 150 फोन नंबर घटनास्थल के आसपास के हैं, उन में कुछ नंबर मृतका के संबंधियों और दोस्तों के भी थे. सीबीआई ने शक के आधार पर 150 संदिग्धों में से 11 लोगों के खून के नमूने ले कर जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला, दिल्ली भेजे. इस बीच सीबीआई राहुल के दोस्त बंटी तक पहुंच गई. बंटी से उस संदिग्ध युवक यानी राज के बारे में पूछताछ की गई जो मंदिर के पास अकसर घूमता था.

बंटी ने बताया कि उस का नाम राहुल उर्फ राज है. वह बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय के गांव धुर का रहने वाला है. इंसपेक्टर परवेज आलम की मेहनत रंग लाई. उन्हें संदिग्ध युवक राहुल उर्फ राज का पता मिल चुका था. वह टीम के साथ नालंदा स्थित उस के घर जा पहुंचा. वहां से पता चला कि राहुल फरार है. परवेज आलम ने एकएक तथ्य जुटाया वहां उन्हें एक और चौंकाने वाली बात पता चली कि राहुल दुष्कर्म के आरोप में पटना की बेउर जेल में बंद था. चाचा की मौत पर वह जेल से पैरोल पर घर आया था और चकमा दे कर पुलिस हिरासत से भाग गया था. तब से वह फरार है. इस के बाद सीबीआई की टीम ने राहुल की मां निर्मला देवी व पिता उमेश प्रसाद को बुलाया.

संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने उस के मातापिता के खून के नमूने लिए और जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला दिल्ली भेज दिए. वहां माही के नाखून व वैजाइनल स्वैब से मिले पुरुष के डीएनए से संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की मां निर्मला देवी का डीएनए मैच कर गया. जबकि पिता उमेश प्रसाद का मैच नहीं किया. डीएनए रिपोर्ट के आधार पर यह तय हो गया कि माही का कातिल राहुल उर्फ राज ही है. राहुल उर्फ राज की तलाश में सीबीआई ने कोलकाता, वाराणसी सहित कई जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला.

इसी बीच 15 जून, 2019 को राहुल उर्फ राज लखनऊ में मोबाइल चोरी के एक केस में पकड़ा गया. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम राहुल के पीछे पड़े ही थे. उन्हें उस की गिरफ्तारी की सूचना मिली, तो वह लखनऊ पहुंच गए. वहां से राहुल उर्फ राज को ट्रांजिट रिमांड पर 22 जून, 2019 को रांची लाया गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने माही हत्याकांड की पूरी कहानी बयां कर दी. राहुल ने सीबीआई को बताया कि पटना में 11 साल की नेहा से दुष्कर्म करने के मामले में वह पकड़ा गया था. तभी उसे पता चला नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन मिला था, जिस से वह पकड़ा गया था. सीख लेते हुए उस ने माही से दुष्कर्म के बाद उस के कपड़े जला दिए थे.

यही नहीं, उस ने फरारी के दौरान इसी जिले की अगस्त 2018 की एक घटना का भी राजफाश किया. जिस घर में वह चोरी की नीयत से घुसा तो वहां 9 वर्षीय सोनी को अकेली सोता देख कर वह उस पर टूट पड़ा. बेटी की चीख सुन कर मां के बेटी के कमरे में आ जाने से सोनी की अस्मत लुटने से तो बच गई लेकिन उस दिन की घटना के बाद से वह आज तक सदमे से उबर नहीं पाई है. सीबीआई की पूछताछ में क्रूर दरिंदे राहुल उर्फ राज ने कबूल किया कि उस ने हर घटना में अपना नाम बदल कर अपराध किया था. अब तक उस ने 10 मासूमों की जिंदगी तबाह की थी, जिस में कई तो असमय काल का ग्रास बन गई थीं और कई विक्षिप्त अवस्था में पहुंच गई थीं.

बहन ने पहचाना दरिंदे को राहुल उर्फ राज की शिनाख्त माही की बड़ी बहन रवीना से कराई गई तो उस ने आरोपी राहुल उर्फ राज को देख कर शिनाख्त कर ली. रवीना से इस मामले में अदालत में गवाही दर्ज कराई. रवीना ने अदालत को बताया कि घटना के कुछ दिन पहले राहुल किराए का कमरा लेने के लिए उस के घर आया था. हम ने उसे कमरा देने से मना कर दिया था. उस दिन के बाद कई बार अहसास हुआ कि राहुल उस की बहन का पीछा करता है. घटना से पहले उसे घर के आसपास घूमते हुए भी देखा था. जबकि घटना के बाद से उसे कभी नहीं देखा गया. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर परवेज आलम ने सूक्ष्मता से एकएक सबूत जुटाया. फिर विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की. जज ए.के. मिश्र ने सजा सुनाए जाने से पहले केस की फाइल पर नजर डाली.

तभी शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि योर औनर, मुजरिम राहुल कुमार ने जो अपराध किया है, वह रेयरेस्ट औफ रेयर है. ऐसे व्यक्ति का समाज में रहना ठीक नहीं है. यह समाज के लिए जहर के समान है. ऐसे पेशेवर अपराधी को फांसी की सजा देनी चाहिए. तभी बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि मुजरिम राहुल को अपने किए पर पछतावा है, इसलिए उसे सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए. उन्होंने उसे कम से कम सजा सुनाए जाने की अपील की. दोनों वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज ए.के. मिश्र ने कहा कि कटघरे में खड़ा यह अपराधी समाज के लिए एक कलंक है. इस ने योजनाबद्ध तरीके से घटना को अंजाम दिया था. इस के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है. इस का अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर है. इसलिए इसे मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाया जाए.

फैसला सुनाने के बाद पुलिस ने मुजरिम राहुल कुमार को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया. वहीं फैसला आने के बाद कोर्ट में मौजूद मृतका के पिता संजीव कुमार घटना को याद कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि फांसी की सजा भी अपराधी के लिए कम ही है, परंतु संतोष है कि अदालत ने न्याय किया है. इस प्रकार के फैसले से समाज को शुभ संदेश जाएगा.

—कथा में माही, नेहा और सोनी परिवर्तित नाम हैं.

 

 

Madhya Pradesh Crime : इंस्टाग्राम प्रेमिका की दगाबाजी

Madhya Pradesh Crime : मुकेश लोधी ने अपनी 2 प्रेमिकाओं के साथ मिल कर पदम सिंह के इकलौते बेटे अभिषेक लोधी को प्यार के जाल में फांस कर बंधक बना लिया था. बेटे को रिहा करने के एवज में उस ने पदम सिंह से 20 लाख रुपए की फिरौती मांगी. मुकेश को यह रकम मिली या कुछ और? पढि़ए, यह दिलचस्प कहानी.

13 दिसंबर, 2024 को सुबह के यही कोई 6 बजे का समय रहा होगा. तभी मुरैना (मध्य प्रदेश) के कस्बा पोरसा के गांव परदूपुरा निवासी वीरपाल के मोबाइल की घंटी बज उठी. सिरहाने रखा मोबाइल फोन उठा डिसप्ले पर आए नंबर को ध्यान से देखा. वह नंबर पोरसा के परदूपुरा में रहने वाले रिश्तेदार पदम सिंह लोधी का था. फौरन वह काल रिसीव करते हुए बोला, ”हैलो पदम सिंहजी, इतनी सुबहसुबह कैसे याद किया?’’

अरे, कुछ जरूरी बात करनी थी आप से.’’ 

बताओ, क्या बात करनी है? आप की आवाज कुछ भर्राई हुई क्यों है?’’ 

अरे वीरपालजी, बड़ी परेशानी में हूं बेटे को ले कर. अभिषेक कहीं तुम्हारे घर तो नहीं आया?’’ 

वह अभी तक तो मेरे यहां पर नहीं आया.’’ वीरपाल ने बताया.

दरअसल, वह 11 दिसंबर की सुबह ग्वालियर से जरूरी काम से मुरैना जाने की बात कह कर निकला था. उस ने जाते समय अपने साथ रहने वाले रूममेट को बताया था कि वह शाम तक हर हाल में वापस आ जाएगा, लेकिन उसे गए 3 दिन बीत गए…’’ पदम सिंह ने बताया. पदम सिंह ने आगे कहा, ”वह कमरे पर वापस लौट कर नहीं आया और न ही उस से फोन पर संपर्क हो पाया तो उस के रूममेट ने इस की जानकारी मुझे दी. तभी से घर के सभी लोग दरवाजे की तरफ टकटकी लगा कर उस के लौट कर आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. इस वजह से मन में तरहतरह के खयाल आ रहे हैं.’’

वीरपाल ने अपने रिश्तेदार को तसल्ली देते हुए कहा, ”आप चिंता मत करो. अभिषेक जल्द ही घर लौट आएगा, वह कोई छोटा बच्चा नहीं है. फिर भी मैं अपने स्तर पर जानकारी जुटाता हूं.’’

इस के बावजूद अभिषेक के फेमिली वालों को चैन कहां था. वो अभिषेक को सगेसंबंधियों से ले कर रिश्तेदारियों और परिचितों में खोजते रहे. अभिषेक के दोस्तों से भी पदम सिंह ने पूछताछ कर ली थी.  दोस्तों ने एक ही उत्तर दिया कि 11 दिसंबर के बाद से उन की अभिषेक से कोई बात नहीं हुई. 3 दिन तक अभिषेक के पेरेंट्स ने अपने स्तर से उस का पता लगाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन उन के बारे में जब कुछ भी पता नहीं चला तो वह 14 दिसंबर को दोपहर के डेढ़ बजे के करीब मुरैना के गोला का मंदिर थाने पहुंच गए.

पदम सिंह ने एसएचओ हरेंद्र शर्मा से मिल कर उन्हें अपने 25 वर्षीय बेटे अभिषेक के गायब होने की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि अभिषेक ग्वालियर की रणधीर कालोनी में किराए का कमरा लेकर पीजीडीसीए की पढ़ाई कर रहा था. एसएचओ हरेंद्र शर्मा ने पदम सिंह की बात गौर से सुनी. अभिषेक लोधी की गुमशुदगी दर्ज कर ली. अभिषेक का फोटो, मोबाइल नंबर और उस के हुलिए से संबंधित जानकारी लेने के बाद एसएचओ ने उन से कहा, ”यदि किसी प्रकार का धमकी भरा फोन आप के पास आए तो बिना घबराए इस की सूचना तुरंत थाने में देना.’’ 

एसएचओ से मिले आश्वासन के बाद पदम सिंह अपने घर तो लौट आए थे, लेकिन उन के मन में बेटे को ले कर एक भय बना हुआ था.

उधर गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस ने उस का पता लगाने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. इस की अहम वजह यह थी कि अभिषेक कोई मासूम बच्चा तो था नहीं, जो उस के किडनैप की आशंका होती. एसएचओ ने सोचा कि वह अपनी किसी सहपाठी के साथ कहीं प्रेम प्रसंग में डूबा होगा या फिर किसी के साथ बैठ कर अपनी पढ़ाई से संबंधित नोट्स आदि बना रहा होगा. वह अपने आप ही घर पर लौट आएगा.

किस की थी नहर में मिली लाश

इसी बीच 14 दिसंबर, 2024 की सुबह 10 बजे के करीब मुरैना जिले के  दिमनी थाना क्षेत्र में आने वाले बड़ागांव व महादेव पुरा के बीच बहने वाली नहर के किनारे बनी सड़क से हो कर गुजर रहे ग्रामीणों को बीच नहर में एक युवक की लाश तैरती हुई दिखाई दी, जिस के पैर और आंखें लाल रंग के स्टोल से बंधी हुई थीं. नहर में लाश पड़ी होने की खबर से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई. लाश को करीब से देखने के लिए वहां पर लोगों का जमघट लगने लगा. इसी बीच किसी ने इस की सूचना दिमनी थाने को दे दी. कुछ ही देर में एसएचओ शशिकुमार कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस के पहुंचने तक घटनास्थल पर अच्छाखासा जमावड़ा लग चुका था. मृतक को ले कर लोग तरहतरह की चर्चा कर रहे थे. मौके पर मौजूद लोगों में यह जानने की बेहद लालसा थी कि आखिरकार मृतक युवक कौन है?

एसएचओ शशिकुमार भीड़ को हटवा कर नहर के पास पहुंचे तो पता चला कि लाश किसी नवयुवक की है. शशिकुमार ग्रामीणों की मदद से युवक की डैडबौडी नहर से निकलवा कर उस का निरीक्षण कर ही रहे थे कि उन्हीं की सूचना पर एडिशनल एसपी गोपाल सिंह धाकड़, एसडीपीओ विजय सिंह भदौरिया भी घटनास्थल पर पहुंच गए. दोनों पुलिस अधिकारियों ने भी बारीकी से लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 24-25 साल रही होगी. वह काले रंग की जैकेट और नीले रंग की जींस पहने हुए था. डैडबौडी देख कर ही लग रहा था कि यह हत्या का मामला है. क्योंकि उस के पैरों और आंखों पर लाल रंग का स्टोल बंधा था.

एसएचओ शशि कुमार ने वहां मौजूद भीड़ से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी डैडबौडी की शिनाख्त नहीं कर सका. मृतक के पास से कोई पहचान पत्र, पर्स या और कोई ऐसी चीज बरामद नहीं हुई, जिस से उस की शिनाख्त करने में मदद मिलती. मौके की काररवाई निपटा कर एसएचओ ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए  भिजवा दिया. थाने लौट कर उन्होंने अज्ञात के खिलाफ धारा 103(1) बीएनएस के तहत मुकदमा दर्ज करा कर मामले की जांच शुरू कर दी. 

हत्या के इस मामले की जांच के लिए लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए जांच टीम ने मृतक की लाश के फोटो और उस का हुलिया ग्वालियर, चंबल संभाग के सभी पुलिस थानों में ईमेल और वायरलेस द्वारा भेज दिया और उन से पूछा कि इस तरह के हुलिया के किसी नवयुवक की गुमशुदगी किसी थाने में दर्ज तो नहीं है. यह सूचना जैसे ही गोला का मंदिर थाने के एसएचओ ने वायरलेस पर सुनी, उन्होंने टेबल की दराज में संभाल कर रखे गुमशुदा युवक के फोटो को निकाल कर देखा. वह फोटो पदम सिंह ने अपने 25 वर्षीय बेटे अभिषेक की गुमशुदगी की सूचना लिखवाते वक्त उन्हें दिया था. उस से उस की कदकाठी मेल खा रही थी.

उन्होंने तुरंत दिमनी थाने के एसएचओ को फोन कर बताया कि 14 दिसंबर, 2024 की दोपहर इस हुलिए के एक युवक, जिस का नाम अभिषेक लोधी है, की गुमशुदगी की सूचना मुरैना जिले के ही थाना गोला का मंदिर के गांव परदूपुरा निवासी पदम सिंह लोधी ने कराई थी. इस जानकारी के मिलते ही दिमनी थाने के एसएचओ शशिकुमार ने पोरसा के परदूपुरा निवासी पदम सिंह लोधी से उन के मोबाइल पर संपर्क कर एक युवक की लाश बरामद होने की सूचना देते हुए उन्हें थाने बुलाया. पदम सिंह अपने एक करीबी रिश्तेदार को ले कर दिमनी थाने पहुंच गए. एसएचओ शशिकुमार ने उन्हें नहर से बरामद लाश के फोटो दिखाए तो फोटो देखते ही वह फफक कर रोने लगे.

कौन निकला अभिषेक का हत्यारा

शशिकुमार ने किसी तरह उन्हें दिलासा दे कर शांत कराया. तब पदम सिंह लोधी ने एसएचओ को बताया कि जब मेरे बेटे की हत्या हो चुकी है तो फिर उस के मोबाइल से मेरे मोबाइल पर 20 लाख रुपए की फिरौती मांगने के मैसेज कौन भेज रहा है

शशिकुमार ने इस बात का जल्द पता लगाने का आश्वासन देते हुए एसआई और कांस्टेबल के साथ पदम सिंह को मुरैना के जिला चिकित्सालय की मोर्चरी भेज दिया. वहां डीप फ्रीजर में रखी डैडबौडी पदम सिंह को दिखाई तो उन्होंने उसे देखते ही कहा, ”हां, यह लाश मेरे बेटे अभिषेक की ही है.’’

लाश की शिनाख्त हो गई तो पुलिस को यह पता लगाना था कि हत्या किस ने और क्यों की? तथा मृतक के मोबाइल से उस के पापा को वाट्सऐप मैसेज कौन भेज रहा है?

उधर इस सनसनीखेज हत्या की घटना को गंभीरता से लेते हुए मुरैना के एसपी समीर सौरभ द्वारा कत्ल की घटना का शीघ्र खुलासा करने के लिए 2 पुलिस टीमें गठित कर दीं. अभिषेक हत्याकांड का परदाफाश करने वाली टीम में एसएचओ शशिकुमार के साथ एसआई अभिषेक जादौन, सौरभ पुरी, प्रताप सिंह, हैडकांस्टेबल रघुनंदन, सुदेश, मंगल सिंह, योगेंद्र, रामकिशन, दुष्यंत, गिरजेश आदि को शामिल किया गया. दोनों टीमें एडिशनल एसपी गोपाल सिंह धाकड़ एवं एसडीपीओ (हैडक्वार्टर) विजय सिंह भदौरिया व दिमनी थाने के एसएचओ शशिकुमार के निर्देशन में इस मामले की तह में जा कर हत्यारे को खोजने में जुट गई. 

शशिकुमार मुखबिरों से पलपल की खबर ले रहे थे. इस काम में उन्हें एक सप्ताह का समय तो लगा, लेकिन उन्होंने इस ब्लाइंड मर्डर को हल करने के लिए जरूरी सबूत जुटा लिए. पुलिस ने अभिषेक लोधी का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. इसी के साथ उन्होंने उस की काल डिटेल्स भी निकलवा ली, ताकि यह पता लगाया जा सके कि अंतिम बार उस की किस से बात हुई थी और उस की आखिरी लोकेशन कहां की थी. पुलिस ने काल डिटेल्स और इंस्टाग्राम अकाउंट को खंगाला तो पायल राजपूत नाम की किसी युवती से वक्तबेवक्त बात करने की जानकारी मिली. अभिषेक के लापता होने वाले दिन भी पायल राजपूत ने अभिषेक को इंस्टाग्राम पर मैसेज भेज कर अपने पास मुरैना बुलाया था, जिस पर वह राजी हो गया.

पुलिस टीम ने जांच का सिलसिला घटनास्थल से शुरू करते हुए मृतक के फेमिली वालों से पूछताछ करने के बाद हत्यारे तक पहुंचने के लिए तमाम तकनीकों का इस्तेमाल किया. इस से पुलिस टीम को जल्द ही सफलता मिल गई. मर्डर के इस मामले में 3 लोगों के नाम सामने आए, जिन में एक युवक मुकेश लोधी का भी नाम था. मुकेश का नाम ही नहीं आया, बल्कि पुलिस ने उसे ही अभिषेक हत्याकांड का मास्टरमाइंड बताया. लोगों को हैरानी तब हुई, जब पुलिस को मालूम हुआ कि इस वारदात को अंजाम देने में मुकेश की प्रेमिका शशि और पायल उर्फ काजल भी शामिल रहीं.

एसएचओ शशि कुमार अवंतीबाई कालोनी, रामनगर में इसी केस के सिलसिले में लोगों से पूछताछ कर रहे थे, उसी दौरान उन्हें एक व्यक्ति अपने गले में लाल रंग का स्टोल बांधे हुए दिखाई दिया. उक्त स्टोल देखने में मृतक के पैर और आंखों से बंधे स्टोल से मेल खा रहा था. इस के अलावा उस शख्स की गतिविधियां भी संदिग्ध लग रही थीं. क्योंकि वह लगातार पुलिस टीम की गतिविधियों पर चौकस निगाहें रखे हुए था. उक्त शख्स के बारे में मुखबिर से जानकारी लेने पर पता चला कि उस का नाम मुकेश लोधी है. वह अवंतीबाई कालोनी में शशि लोधी नाम की शादीशुदा युवती के साथ लिवइन रिलेशन में रह रहा है. क्योंकि शशि ने अपने पति को छोड़ रखा है. 

मुकेश कुछ साल पहले तक दिल्ली में रह कर ओला की टैक्सी चलाता था. दिल्ली से आने के बाद वह ग्वालियर के गोले का मंदिर इलाके में कियोस्क सेंटर चलाने लगा था. इसी दौरान उसे औनलाइन सट्टा खेलने का चस्का लग गया, जिस के चलते वह मोटी रकम सट्टे में हार गया तो उस ने कियोस्क सेंटर को बंद कर दिया और मुरैना में किराए पर कमरा ले कर प्रेमिका शशि के साथ रहने लगा. उस ने परिस्थितियों से निकलने का कतई प्रयास नहीं किया, बल्कि अपनी प्रेमिका शशि और पायल उर्फ काजल के साथ शानोशौकत से रहने के लिए ब्याज पर परिचितों से काफी पैसा ले लिया, जिस से वह कर्जदार हो गया था. इस कर्ज से छुटकारा पाने के लिए ही उस ने शशि और पायल के साथ मिल कर एक गंभीर अपराध को अंजाम दिया.

मर्डर के बाद क्यों मांगी जा रही थी फिरौती

14 दिसंबर, 2024 का दिन था. पदम सिंह लोधी अपने बेटे अभिषेक की तलाश में जाने के लिए तैयार हो रहे थे कि अचानक उन के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. जब तक वह काल रिसीव करते, घंटी बंद हो गई थी. मोबाइल फोन की स्क्रीन पर उन्होंने नजर डाली तो पता चला कि काल बेटे के मोबाइल नंबर से आई थी. उन्होंने बेटे के नंबर पर कालबैक कर बात करना उचित समझा. उन्होंने जैसे ही काल रिसीव की, दूसरी तरफ से आवाज आई, ”हैलो, पदम सिंह लोधी बोल रहे हैं?’’

जी बोल रहा हूं. आप कौन?’’ पदम सिंह ने कहा.

काल करने वाले की बात उन्हें थोड़ी अटपटी लगी, फिर भी उन्होंने सोचा कि अभिषेक का कोई दोस्त होगा. इस से ज्यादा कुछ और पूछ पाते कि दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने तपाक से अपनी बात कह डाली, ”सुनो, मैं कौन बोल रहा हूं, कहां से बोल रहा हूं, यह सब पता चल जाएगा. पहले जो मैं कह रहा हूं उसे ध्यान से सुनो. तुम्हारा बेटा अभिषेक हमारे कब्जे में है, यदि उस को सहीसलामत हमारी गिरफ्त से आजाद कराना चाहते हो तो 20 लाख रुपए का इंतजाम कर लो, वरना अंजाम बहुत बुरा होगा. हां, एक बात और याद रखना, ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करना और पुलिस को भूल कर भी मत बताना अन्यथा अंजाम इतना बुरा होगा, जिस की कल्पना भी तुम नहीं कर सकते…’’

इतना सुनते ही सर्द मौसम के बावजूद पदम सिंह को पसीना आ गया. वह अपनी जेब से रूमाल निकाल कर पसीना पोंछ भी नहीं पाए थे कि बेटे के मोबाइल फोन से वाट्सऐप कालिंग करने वाले ने फिर धमकी देते हुए कहा, ”सुनो, फिरौती की रकम कब, कहां और कैसे देनी है, मैं तुम्हें बाद में वाट्सऐप काल कर के बताऊंगा. लेकिन एक बात ध्यान देना कि मैं ने जो भी कहा है, उसे हलके में मत लेना, वरना अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना.’’ इतना कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

अपने बेटे को बंधक बनाने और उस की सकुशल वापसी के एवज में 20 लाख रुपए की फिरौती मांगी जाने से पदम सिंह के होश उड़ गए. वह अपना माथा पकड़ कर बैठ गए. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उन के साथ यह हो क्या रहा है. उन्होंने और उन के बेटे अभिषेक ने तो किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं था और न ही उन का और बेटे का किसी से कोई झगड़ा हुआ था. फिर बेटे को बंधक बना कर क्यों रखा है.

सिर पकड़ कर वह इसी सोच में उलझे हुए थे कि तभी अचानक घर के भीतर से उन की पत्नी ने आवाज लगाई, ”अरे, आप अभी तक यहीं बैठे हुए हैं. आप तो बेटे को ढूंढने जा रहे थे फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि सिर पकड़ कर बैठ गए. कोई बात है क्या?’’ पत्नी का इतना कहना था कि पदम सिंह फफक पड़े और पूरी आपबीती सुना दी. पति के मुंह से बेटे के किडनैप की बात सुन कर पत्नी के भी होश उड़ गए. वह भी सिर पकड़ कर बैठ गई थी.

पतिपत्नी को अब कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करें? काफी देर तक दोनों मौन रह कर एक ही कमरे में बैठे रहे. वे इसी सोच में उलझे हुए थे कि बेटे को बंधक बना कर रखने की हरकत किस ने की है?

यही सब सोच कर जहां उन का भीतर से तनमन कांपे जा रहा था, वहीं वे दोनों शंकाओंआशंकाओं से उलझे हुए थे. कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें. फिरौती की मांग करने वाले ने कहा था कि पुलिस को इस बारे में कुछ बताया तो अपने इकलौते बेटे को हमेशा के लिए खो बैठोगे. इसलिए पदम सिंह ने बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराते वक्त वाट्सऐप पर हुई बातचीत का कतई जिक्र नहीं किया था.

उधर शातिरदिमाग मुकेश लोधी ने अभिषेक की हत्या के बाद उस का मोबाइल अपने पास रख लिया था. लेकिन जैसे ही  अभिषेक की लाश नहर से बरामद हुई और पुलिस ने उसके हत्यारे की तलाश तेज की तो  मुकेश लोधी ने मृतक के मोबाइल से पदम सिंह को वाट्सऐप मैसेज भेज कर बता दिया कि अभिषेक की हत्या हो चुकी है. यदि अब यह जानना चाहते हो कि उस की हत्या किस ने की और किस के कहने पर की है तो तुरंत 5 लाख रुपए अपने बेटे के मोबाइल पर फोनपे के माध्यम से भेज दो. ध्यान रहे, पुलिस हमारे बारे में कुछ भी पता नहीं कर सकती, क्योंकि हम सैकड़ों किलोमीटर दूर निकल चुके हैं. इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी.

प्रेमिका को योजना में क्यों किया शामिल

20 दिसंबर को मध्य प्रदेश के शहर मुरैना के एसपी समीर सौरभ और दिमनी के एसएचओ शशिकुमार ने पत्रकार वार्ता में घटना में शामिल तीनों आरोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी देते हुए बताया कि अभिषेक लोधी की हत्या भिंड के रावतपुरा निवासी मुकेश लोधी (23 वर्ष) ने अपनी 2 प्रेमिकाओं शशि लोधी (21 वर्ष) निवासी परदूपुरा और पायल उर्फ काजल लोधी (23 वर्ष) निवासी सिरमिती हाल निवासी बड़ोखर के साथ मिल कर की थी. 

पायल लोधी ग्वालियर में अपने मामा के घर पर रह कर पीएससी की तैयारी कर रही थी. इसी दौरान मुकेश लोधी ने प्रेमिका पायल लोधी के माध्यम से पैसे वाले किसी युवक को प्रेम जाल में फंसा कर पैसा कमाने की योजना बनाई, क्योंकि उस पर 5 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. अत: उस ने प्रेमिका काजल लोधी की पायल राजपूत के नाम से फरजी ईमेल आईडी बना कर इंस्टाग्राम के माध्यम से अभिषेक लोधी से जानपहचान की. फिर 8 दिसंबर, 2024 को काजल ने इंस्टाग्राम पर मैसेज भेज कर अभिषेक को मुलाकात के लिए मुरैना बुलाया. लेकिन उस दिन अभिषेक अपने एक फ्रेंड को साथ ले कर उस की कार से मुरैना पहुंचा तो पायल (काजल) ने उस फ्रेंड की मौजूदगी में अभिषेक से मुलाकात करने में असमर्थता जताई. तब अभिषेक उस से बिना मिले ही वापस लौट गया.

11 दिसंबर को पायल (काजल) ने फिर इंस्टाग्राम पर मैसेज भेज कर अभिषेक को अकेले में मिलने के बहाने मुरैना बुलाया. काजल ने अपने मैसेज में यह भी लिखा कि इस बार ग्वालियर से बस में बैठ कर मुरैना आना, मैं बसस्टैंड पर खड़ी मिल जाऊंगी. बसस्टैंड से मैं सीधे तुम्हें अपनी सहेली शशि के वडोखर स्थित कमरे पर ले चलूंगी. शशि इन दिनों अपने प्रेमी मुकेश के साथ मौजमस्ती करने मुरैना से बाहर गई हुई है, इसलिए उस के कमरे में एकांत में बैठ कर आराम से बिना किसी हिचकिचाहट के प्रेमालाप करेंगे. 

प्लान के अनुसार, शशि के कमरे में छिप कर पहले से ही शशि और उस का प्रेमी मुकेश रसोई घर में बैठ गए थे. अपनी प्रेमिका पायल का इंस्टाग्राम पर मैसेज देख कर अभिषेक बस में बैठ कर मुरैना पहुंच गया.  बस से उतर कर जैसे ही अभिषेक ने अपनी नजर घुमाई, पायल उर्फ काजल इंतजार में खड़ी दिखाई दे दी. वह अभिषेक को अपनी स्कूटी पर बैठा कर सीधे शशि के कमरे पर ले गई और कमरे का ताला खोल कर अभिषेक से कहा कि तुम तसल्ली के साथ पलंग पर बैठो, मैं तुम्हारे और अपने लिए गरमागरम चाय और नाश्ता ले कर आती हूं. फिर चाय की चुस्की के साथ नाश्ते का लुत्फ उठाते हुए जम कर मौजमस्ती करेंगे. 

पायल ने योजना को अंजाम देने के लिए मुकेश के कहने पर अभिषेक की चाय में नशीला पाउडर मिला दिया. चाय पीतेपीते कुछ देर तक तो अभिषेक पायल (काजल) से बातचीत करता रहा, लेकिन चाय खत्म होने से पहले ही उसे अपना सिर चकराता हुआ महसूस हुआ. उस के होश कब गुम हो गए, उसे पता ही नहीं चला. उस के बेहोशी की हालत में पहुंचते ही मुकेश और शशि ने अभिषेक के हाथपैर और आंखें काजल के स्टोल से बांध दीं. तकरीबन 3 घंटे बाद जैसे ही नशा कम हुआ, उस ने काजल से पूछा, ”क्या यही सब हरकतें करने के लिए तुम ने मुझे ग्वालियर से बुलाया था?’’ 

इसी बीच शशि का प्रेमी मुकेश कमरे में आ धमका. वह बोला, ”चल, तेरे हाथ खोले देता हूं. अपने बाप को फोन लगा कर बोल कि मुझे कुछ लोगों ने बंधक बना लिया है. आप मेरी जिंदगी बचाना चाहते हो तो मेरे फोनपे के माध्यम से फिरौती कि रकम 20 लाख रुपए भेज दो.’’ 

इतना सुनते ही अभिषेक ने शोर मचाना शुरू कर दिया. उस के ऐसा करने से घबरा कर शशि रसोई से बेलन उठा लाई और अभिषेक के सिर पर उस से ताबड़तोड़ वार कर दिए. तब अभिषेक अपनी जान बचाने के लिए जोरजोर से बचाओ…बचाओचिल्लाने लगा. मुकेश और काजल को लगा कि यदि कमरे से बाहर किसी ने अभिषेक की आवाज सुन ली तो उन की सारी योजना पर तो पानी फिर ही जाएगा, साथ ही उन सभी को जेल की हवा भी खानी पड़ेगी. अत: मुकेश और काजल ने ताकिए से अभिषेक का मुंह दवा दिया, जिस से उस की दम घुटने से उस की मौत हो गई. 

उस की मौत के बाद तीनों के हाथपांव फूल गए. डर के मारे मुकेश, शशि और काजल 12 नवंबर की रात तक अभिषेक की लाश के साथ कमरे में ही रहे. फिर लाश को ठिकाने लगाने के लिए ग्वालियर से सेल्फ ड्राइविंग पर 24 घंटे के लिए कार भाड़े पर ला कर 13 दिसंबर की रात को अभिषेक की लाश को इसी कार में रख कर बड़ागांव और महादेवपुरा के बीच बहने वाली नहर में फेंक दी. लाश ठिकाने लगाने के बाद मुकेश, शशि और काजल उसी कार से दिल्ली चले गए. फिर 14 दिसंबर की सुबह यह पता करने  के लिए मुरैना वापस लौट आए कि इस मामले में पुलिस क्या कर रही है. दिल्ली से लौट कर मुकेश लोधी और उस के साथ लिवइन में रहने वाली शशि ने वह कमरा खाली कर के दूसरी जगह कमरा ले लिया था.

वैसे मुकेश, शशि और पायल उर्फ काजल का जुर्म की दुनिया से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन तीनों ने पेशेवर हत्यारों को भी मात दे दी थी. तीनों ने फुलप्रूफ मर्डर की प्लानिंग बड़ी होशियारी से की थी. लेकिन उन की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई. पुलिस ने 21 दिसंबर, 2024 को इस हत्याकांड के मुख्य साजिशकर्ता मुकेश लोधी सहित इस अपराध में शामिल उस की प्रेमिका शशि लोधी और अभिषेक की इंस्टाग्राम प्रेमिका पायल उर्फ काजल लोधी को न्यायालय में पेश कर 3 दिनों के रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में मुकेश के पास से अभिषेक का मोबाइल फोन सहित अन्य सबूत हासिल किए. फिर तीनों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया. 

डेटिंग ऐप का शौक पड़ा भारी

अभिषेक के रूम पार्टनर ने पुलिस को बताया कि अभिषेक अपने अकेलेपन और पढ़ाई के उबाऊ बोझ को कम करने के लिए डेटिंग ऐप का सहारा लिया करता था. कुछ वक्त के लिए औनलाइन डेटिंग की दुनिया में तफरीह कर वह अपने आप को तरोताजा महसूस करता था. दरअसल, उसे एक गर्लफ्रेंड की तलाश थी क्योंकि अभी तक उस की कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी. इस के चलते उस ने तमाम सारे डेटिंग ऐप पर अपने अकाउंट खोल रखे थे. उन पर उस की प्रोफाइल के मुताबिक किसी वैसी लड़की से दोस्ती नहीं हो पाई थी, जिस की उस ने कल्पना कर रखी थी. 

एक दिन उस की नजर इंस्टाग्राम पर पायल राजपूत नाम से रजिस्टर्ड आईडी पर पड़ी. उस ने फटाफट पायल को अपने अकाउंट से जोडऩे के लिए रिक्वेस्ट भेज दी. कुछ ही सेकेंड में पायल ने उसे एक्सेप्ट भी कर लिया. अभिषेक ने उसे ओके कर दिया, फिर उस से उस की चैटिंग के साथ डेटिंग शुरू हो गई. वे डिजिटल जमाने के प्रेमी थे, अत: उन के डेटिंग मैसेज बौक्स में गुडमौर्निंग और गुडनाइट से होती थी. पायल और अभिषेक इंस्टाग्राम के माध्यम से अपने दिल की भावनाएं एकदूसरे से जाहिर करते रहते थे. दोनों में देर रात तक चैटिंग होती रहती थी. 2-3 दिनों की लुभावनी और मजेदार चैटिंग के बाद पायल ने अभिषेक को फंसाने के लिए एक साथ अपने तमाम सारे सैक्सी फोटो भी भेज दिए थे. 

पायल के जाल में अभिषेक के फंसते ही पायल बहुत खुश हुई. फिर पायल ने अपने प्रेमी मुकेश के कहने पर 11 दिसंबर की सुबह इंस्टाग्राम पर अभिषेक को मैसेज भेज कर कहा कि यदि मुझ से रूबरू मुलाकात करना चाहते हो तो बस में बैठ कर मुरैना आ जाओ. इस मैसेज को पढ़ कर अभिषेक पायल से मुलाकात के लिए मुरैना चला गया. मुरैना पहुंचने के बाद उस के संग जो कुछ घटा, उस का जिक्र कथा में किया जा चुका है.

कथा लिखे जाने तक मुकेश लोधी, शशि लोधी और पायल उर्फ काजल लोधी जेल की सलाखों के पीछे थे. उन्हें अभिषेक की हत्या का जरा भी मलाल नहीं था. दिमनी थाने के एसएचओ शशिकुमार द्वारा अभिषेक हत्याकांड की विवेचना की जा रही थी. वह जांच पूरी कर शीघ्र ही अदालत में चार्जशीट भेजने की तैयारी कर रहे थे.

पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

फिल्म हीर रांझा की Actress प्रिया राजवंश : महंगी पड़ी शादीशुदा से प्यार

Actress – दमदार अभिनय और संवाद से दर्शकों में मशहूर रहे अभिनेता राजकुमार की फिल्म ‘हीर रांझा’ को लोग आज भी याद करते हैं. इस फिल्म में जितनी हसीन ऐक्ट्रैस Actress थी, उस की लाइफ उतनी ही मुश्किलभरी थी. इस ऐक्ट्रैस की रियल लाइफ स्टोरी सुन कर आज भी लोगों की रूह कांप जाती है.

यह हीरोइन थी बौलीवुड की प्रिया राजवंश जो उस समय खूबसूरत हीरोइनों में शामिल थी. यही नहीं, प्रिया ने 70 के दशक में अपनी बेहतरीन अदाकारी से बौलीवुड फिल्मों पर खूब राज किया था.

अंदाज से बनाया दीवाना

फिल्म ‘हीर रांझा’ का एक गाना ‘मिले न तुम तो हम घबराएं…’ में अपने अंदाज से लोगों के दिलों प्रिया ने खूब जगह बना ली थी.

अपने समय की इस मशहूर ऐक्ट्रैस Actress ने अपनी पढ़ाई इंगलैंड में की थी. इसलिए भी उन के लाइफस्टाइल का अंदाज देखने लायक हुआ करता था.

प्रिया राजवंश ने अपनी लाइफ में लगभग 7 फिल्मों में काम किया था. ये सारी फिल्में भी प्रिया ने चेतन आंनद के साथ की थीं. फिल्मों में साथ काम करने के दौरान दोनों के बीच पहले दोस्ती हुई फिर प्यार हो गया.

शादी बगैर बनी दुलहन

चेतन और प्रिया राजवंश के बीच प्यार इतना गहरा हुआ कि दोनों ने एकसाथ रहने का फैसला कर लिया था, लेकिन कभी शादी नहीं की.

चेतन शादी इसलिए नहीं करना चाहते थे, क्योंकि वे पहले से ही शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता थे. फिर भी वे अपनी पत्नी से अलग रहा करते थे. चेतन 82 साल के हुए तो इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उन के मरने के बाद घर में मनमुटाव होने लग गया था. मनमुटाव इतना हुआ कि एक वसीयत की वजह से प्रिया और सौतेले बेटों में तनाव बढ़ता ही चला गया क्योंकि चेतन ने मरने के बाद अधिकतर प्रौपर्टी प्रिया के नाम कर दी थी जिसे उन के सौतेले बेटों ने नकार दिया था और यही वजह थी कि वे अपने पिता की प्रौपर्टी किसी भी हाल में प्रिया को देना नहीं चाहते थे।

खौफनाक साजिश

बात नहीं बनी तो चेतन के बेटों ने प्रिया राजवंश के खिलाफ खौफनाक साजिश रचने का फैसला कर डाला. बताया जाता है कि चेतन के दोनों बेटों ने 27 मार्च, 2000 में कुछ लोगों को अपने साथ मिला कर प्रिया की हत्या कर डाली. प्रिया की मौत का राज सालों तक छिपा रहा. किसी को नहीं पता था कि उस की हत्या हो चुकी है.

पुलिस के द्वारा इस हत्या की जांच की गई तो उस में एक खुलासा हुआ था जिस में चेतना की मेड माला और उस के कजिन भी शामिल थे. इस के बाद दोनों को सजा मिली और चेतना के बेटों केतन और विवेक को साजिश के आरोप में अरैस्ट कर लिया गया था.

रहस्य ही है

चेतन के दोनों बेटों ने कोर्ट में अपील की तो दोनों को सुबूत के अभाव में छोड़ दिया गया. आज भी देखा जाए तो प्रिया के कातिलों को सजा नहीं मिली है, यह एक रहस्य ही है।