मजबूरी में बनी कोठे की जीनत

मैनब नेपाल के जिला लुंबिनी की रहने वाली थी. उस की शादी पटना के मोहल्ला धोबीघाट  निवासी आरिफ से हुई थी. आरिफ और उस के 2 बच्चे थे. लगभग 4 साल पहले की बात है, मैनब अपने मायके जाने के लिए ससुराल से निकली. उस के साथ उस के दोनों बच्चे भी थे. जनसेवा जननायक एक्सप्रेस से वह बस्ती रेलवे स्टेशन पर उतर गई, क्योंकि वहां से उसे बस पकड़ कर लुंबिनी जाना था.

जब तक मैनब की ट्रेन बस्ती पहुंची, तब तक रात हो चुकी थी. मैनब ने बच्चों के साथ नाश्ता वगैरह किया और अपना सामान प्लेटफार्म के एक कोने में रख कर बच्चों को वहीं सुला दिया. वह खुद इधरउधर टहल कर रात गुजारने की कोशिश करने लगी.

24 साल की मैनब को देख कर यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वह 2 बच्चों की मां होगी. उस का छरहरा बदन, गोरा रंग किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता था. रेलवे स्टेशन पर मौजूद जावेद की नजर मैनब पर पड़ी तो उस की आंखों में चमक आ गई. वह मैनब से बात करने का कोई बहाना तलाशने लगा. जावेद चालू किस्म का आदमी था.

वह किसी ऐसे ही शिकार की तलाश में था. इसलिए अकेली महिलाओं से बात करने का हुनर अच्छी तरह जानता था. उस ने बिना किसी परिचय, बिना किसी भूमिका के मैनब के पास जा कर पूछा, ‘‘इतनी रात में स्टेशन पर परेशान सी घूम रही हो, कहीं जाना है क्या?’’

जावेद का हमदर्दी भरा लहजा देख कर मैनब ने कह दिया, ‘‘मुझे नेपाल जाना है, लेकिन समझ में नहीं आ रहा है, कैसे जाऊं?’’

जावेद पहले ही समझ चुका था कि वह अकेली और इस जगह से अनजान है. इसलिए उस ने इस मौके का फायदा उठाने की सोच ली थी. जावेद बस्ती रेलवे स्टेशन के पास ही पुरानी बस्ती थाने के मोहल्ला रसूलपुर का रहने वाला था. बस्ती रेलवे स्टेशन के पास स्थित देह की मंडी में उस का आनाजाना लगा रहता था. मैनब की नासमझी का लाभ उठाने के लिए उस ने उसे देहव्यापार की मंडी में पहुंचाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने मन ही मन योजना भी बना ली.

अपनी उसी योजना के मद्देनजर उस ने मैनब से कहा,  ‘‘देखो, नेपाल जाने के लिए तुम्हें बस पकड़नी पड़ेगी. बसअड्डा यहां से थोड़ी दूर है. तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें वहां छोड़ दूंगा. रात भर स्टेशन पर पड़े रहने का कोई फायदा नहीं है. तुम्हें अकेली देख कर पुलिस वाले अलग तंग करेंगे. बेहतर होगा, अभी निकल जाओ. नेपाल के लिए बसें जाती रहती हैं. सुबह तक अपने मायके पहुंच जाओगी.’’

अकेलेपन की वजह से मैनब पहले ही घबराई हुई थी. जावेद की हमदर्दी से वह पिघल गई. बिना सहीगलत का अंदाजा लगाए वह परेशान से स्वर में बोली, ‘‘ठीक है, मैं बच्चों को ले लेती हूं. आप हमें बसअड्डे पहुंचा दीजिए, बड़ी मेहरबानी होगी.’’

बच्चों का नाम सुन कर जावेद ने आश्चर्य से उस की ओर देखा. वह उसे अकेला समझ रहा था. उस ने मैनब से पूछा, ‘‘तुम्हारे बच्चे भी हैं? तुम्हें देख कर तो ऐसा लगता जैसे तुम्हारी शादी हालफिलहाल ही हुई होगी?’’

अपनी तारीफ हर इंसान को अच्छी लगती है. जावेद का कमेंट सुन कर मैनब को भी अच्छा लगा. बातचीत हुई तो परिचय के नाम पर दोनों ने अपनेअपने नाम एकदूसरे को बता दिए. मैनब को यह जान कर अच्छा लगा कि उस की मदद करने वाला भी मुसलमान है. वह न तो भेड़ की खाल में छिपे भेडि़ए को समझ पाई और न यह कि गलत और गंदे लोगों का कोई ईमान धर्म नहीं होता.

मैनब अपने बच्चों को साथ ले कर उस के साथ जाने को तैयार हो गई. जावेद उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर बसअड्डे ले गया. वहां जा कर पता चला कि सिद्धार्थनगर होते हुए ककहरा बौर्डर के लिए बस सुबह 7 बजे जाएगी.

जावेद इस बात को अच्छी तरह जानता था कि बस सुबह जाती है. वह मैनब को जानबूझ कर बसअड्डे ले गया था. बस नहीं मिली तो उस ने मैनब से कहा, ‘‘तुम मेरे साथ चलो, रात को आराम कर के सुबह चली जाना. मैं तुम्हें बस में बैठा दूंगा.’’

मैनब उस पर भरोसा कर के उस के घर आ गई. घर पर जावेद ने उसे चाय पिलाई, जिस में नशीली दवा मिली हुई थी. चाय पी कर उसे नींद आ गई. तब तक उस के बच्चे भी सो चुके थे. नींद के आगोश में डूबी मैनब और भी सुंदर दिख रही थी. जावेद उस के यौवन का स्वाद लेने के लिए बेचैन हो उठा. नशे की हालत में मैनब कुछ समझ नहीं पाई. वह जावेद का साथ देती गई. वह 2 बच्चों की मां जरूर थी, पर उस के बदन की गरमी किसी को भी पिघला सकती थी.

सुबह को जब मैनब का नशा टूटा और वह नींद से जागी तो उसे सब कुछ समझ में आ गया. लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी. वह जावेद से बस अड्डे पहुंचाने की जिद करने लगी. इस पर जावेद ने समझाया, ‘‘तुम कुछ दिन हमारे साथ रह कर पैसा कमा लो, फिर मायके चली जाना. तुम खूबसूरत हो, जवान भी. तुम पर पैसे लुटाने वाले मैं ढूंढ लाऊंगा. यहां रहोगी तो पटना और नेपाल की गरीबी से भी पीछा छूट जाएगा. हम तुम्हारे बच्चों का यहीं के स्कूल में दाखिला करा देंगे.’’

मैनब इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने घरेलू मारपीट से तंग आ कर पति का साथ और घर छोड़ कर मायके में रहने का फैसला किया था. वहीं वह जा भी रही थी. लेकिन बीच रास्ते में यह मुसीबत आ गई थी. मैनब चूंकि घरेलू युवती थी, इसलिए वह जावेद की बात मानने के लिए तैयार नहीं हुई. जबकि वह उसे सोने की अंडा देने वाली मुर्गी मान चुका था. उस ने मैनब को बस्ती की देहव्यापार मंडी में उतारने की योजना बना ली थी.

इसी योजना के तहत उस ने उसे अपने जाल में फंसाया. इस के लिए उस ने मोहरा बनाया उस के बच्चों को. जब मैनब समझाने से नहीं मानी तो जावेद ने उस पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए. वह उस के साथ मनमानी करता, नशे की गोलियां खिला कर ज्यादा से ज्यादा नशे में रखने की कोशिश करता. इस से भी बात नहीं बनती तो उस के बच्चों को मार डालने की धमकी देता.

एक हफ्ते तक किए गए अत्याचारों से मैनब टूट गई. अपने बच्चों की खातिर अंतत: वह अपनी देह बेचने को राजी हो गई. इस के बाद जावेद ने उसे पूरी तरह तैयार कर के देहव्यापार की मंडी में उतार दिया. बाजारू लड़कियों के बीच रह कर वह भी जल्दी ही उन की तरह ग्राहक फंसाने के लटकेझटके सीख गई.

वह शाम ढलते ही मेकअप कर के सड़क किनारे खड़ी हो जाती. जावेद उस के लिए ग्राहक ले आता. मैनब कमाने लगी तो जावेद ने उसे एक कमरा अलग से किराए पर दिलवा दिया. वह उसी कमरे में रहने लगी. जावेद ने उस के दोनों बच्चों को स्कूल में दाखिल करवा दिया. उन्हें वह अपने साथ अपने घर में रखता था, ताकि उस की डोर उस के हाथ में रहे.

उधर जब नेपाल के रहने वाले मैनब के पिता हबीब को यह चला कि उस की बेटी अपनी ससुराल से नाराज हो कर मायके के लिए निकली थी तो उसे आश्चर्य हुआ. क्योंकि वह मायके नहीं पहुंची थी. मैनब के पिता हबीब ने आरिफ से बात की तो उस ने किसी भी तरह की जानकारी नहीं दी. उस ने दो टूक कह दिया कि मैनब उस के लिए मर चुकी है.

पति भले ही कितना भी निष्ठुर क्यों न हो जाए, पिता अपनी बेटी को कभी नहीं भूल सकता. हबीब का मैनब के साथ बहुत लगाव था. हबीब ने उसे तलाश करने की बहुत कोशिश की, पर वह कहीं नहीं मिली. उधर जावेद के जाल में फंसी मैनब दिनरात वहां से भागने के मंसूबे बनाती रहती थी. लेकिन जावेद ने उस के बच्चों को उस से अलग अपने कब्जे में रख कर उस के पर काट दिए थे.

वेश्या बाजार में काम करने वाली औरतें 3-4 माह में एक बार सरकारी अस्पताल में यौन रोगों की जांच कराने के लिए जाती थीं. एक बार मैनब भी उन के साथ अस्पताल जाने लगी तो उस ने बच्चों की बीमारी का वास्ता दे कर उन्हें भी साथ ले लिया था. उस का इरादा चुपचाप भाग जाने का था. लेकिन पता नहीं कैसे जावेद को उस के मंसूबे का पता चल गया. उस ने मैनब को अस्पताल से बाहर निकलते ही पकड़ लिया. इस के बाद उस ने मैनब को बुरी तरह मारापीटा.

कुछ दिनों के बाद मैनब ने फिर से भागने की योजना बनाई, लेकिन  इस बार भी वह पकड़ी गई. इस के बाद भी वह वहां से भागने की कोशिश करती रही, पर कामयाब नहीं हो सकी. देखतेदेखते करीब साढ़े 4 साल गुजर गए. मैनब जब नरक भोग रही थी, तभी एक दिन उस के साथ रात गुजारने के लिए लुंबिनी का रहने वाले श्यामप्रसाद आया. श्यामप्रसाद की बहन बस्ती में ब्याही थी.

श्याम जब भी बस्ती आता था, वहां की धंधा करने वाली औरतों के पास जरूर जाता था. उस दिन इत्तेफाक से वह मैनब के पास पहुंच गया था. श्याम के बातचीत करने के तौर तरीके से मैनब समझ गई कि वह उस के ही इलाके का रहने वाला है. उस ने उसे अपनी पूरी कहानी बताई.

मैनब की कहानी सुन कर श्याम को बहुत दुख हुआ. उस ने मैनब से वादा किया कि वह उस के पिता को तलाश कर रहेगा. श्याम मैनब से उस के पिता का नामपता ले कर लुंबिनी आया और उस के पिता हबीब से मिला. उस ने उन्हें मैनब के बारे में कुछ न बता कर उन का फोन नंबर ले लिया. उस ने सोचा था कि इस बार जब वह बस्ती जाएगा तो उन की मैनब से सीधी बात करा देगा.

मौका निकाल कर श्याम बस्ती आया. इस बार उस ने फोन कर के सीधे मैनब से ही मिलने का वक्त तय किया. मिलने पर उस ने उसे सारी बात बताई. साथ ही कहा भी कि वह उसे उस के पिता से मिला कर रहेगा. उस ने मैनब से शारीरिक संबंध बनाने से भी मना कर दिया. बातोंबातों में श्याम ने मैनब के पिता को फोन लगा दिया.

पिता की आवाज सुन कर मैनब खुद पर काबू नहीं रख सकी. वह फोन पर ही फफक कर रोने लगी. कुछ देर तो हबीब को समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे? फिर उस ने खुद को संभाल कर बेटी को दिलासा दी. हबीब बूढ़ा जरूर हो चुका था, पर बेटी से मिलने की इच्छा ने उसे अलग तरह की ताकत दे दी थी. वह बोला, ‘‘बेटी, तू परेशान मत हो, मैं जल्दी ही बस्ती आऊंगा तुम्हें लेने. अब तुम्हें वहां कोई नहीं रोक पाएगा.’’

पिता की बातों से मैनब को भरोसा होने लगा कि अब वह उस नरक से निकल जाएगी. हां उसे शातिर दिमाग जावेद से जरूर डर लग रहा था. साथ ही वह यह सोच कर भी डर रही थी कि कहीं उस की वजह से उस का बूढ़ा बाप किसी मुश्किल में न पड़ जाए. एक बार तो उस ने सोचा भी कि पिता को मना कर दे और अपनी बाकी की जिंदगी उसी दलदल में निकाल दे. लेकिन अपने बच्चों के बारे में सोच कर वह हर तरह का खतरा उठाने को तैयार हो गई.

जनवरी, 2014 के पहले सप्ताह में हबीब मैनब को तलाश करने के लिए बस्ती की देहव्यापार मंडी में आ पहुंचा. बस्ती रेलवे स्टेशन के पास ही बसा वेश्या बाजार पुरानी पतली गलियों में बने छेटेछोटे बदबूदार कमरों से भरा हुआ था. दोपहर के समय हबीब इस बस्ती में गया. वह मैनब को तलाशने के लिए जानबूझ कर श्याम का सहारा नहीं लेना चाहता था. उसे डर था कि कहीं उस की मौजूदगी से जावेद को शक न हो जाए.

हबीब जब वेश्या बाजार की तरफ जाने लगा तो उस का जमीर साथ नहीं दे रहा था. बुढापे में उसे वेश्या बाजार में जाना ठीक नहीं लग रहा था. लेकिन इस के अलावा उस के पास कोई रास्ता भी नहीं था. कई लोगों ने उसे व्यंग्य भरी नजरों से देखा भी, लेकिन उस ने उन की परवाह नहीं की.

वेश्या बाजार में आदमी की उम्र नहीं, पैसा देखा जाता है. हबीब ने भी पैसे दिखाने शुरू किए तो देहजीवा उस के करीब आने लगीं. हबीब उन से बात करता और आगे बढ़ जाता. इस तरह उस ने कई दिन मंडी में इधरउधर घूमते निकाल दिए. वेश्या बाजार में बेटी की तलाश में भटकते एक पिता को ग्राहक बन कर घूमना पड़ रहा था.

बस्ती के वेश्या बाजार में हर उम्र की औरतें देह व्यापार करती हैं. ये सभी औरतें खुद को एकदूसरी से ज्यादा जवान और कमउम्र की समझती हैं. कई बार वह उम्रदराज पुरुषों का मजाक उड़ाने से भी नहीं चूकतीं. कई जगह हबीब का भी मजाक उड़ाया गया. लेकिन उस ने परवाह नहीं की.

2 दिन इसी तरह निकाल गए. तीसरे दिन हबीब को मैनब दिख गई. बाजार की बात थी, इसलिए हबीब ने उसे इशारा कर के अपने पास बुलाया और ग्राहक की तरह बात की. मैनब ने भी पिता से उसी अंदाज में बात की और उन्हें ले कर अपने कमरे में आ गई. अकेले में वह पिता से लिपट कर फूटफूट कर रोई. बेटी का हालत देख हबीब ने सोचा कि क्यों न वह अपने बल पर ही मैनब को बाहर ले जाए.

उस ने अपनी यह इच्छा मैनब को भी बताई तो उस ने समझाया, ‘‘आप नहीं जानते, यहां गुंडों का राज है. किसी को जरा सा भी शक हो गया तो मुझे कहीं ऐसी जगह छिपा देंगे कि पता भी नहीं चल पाएगा.’’

‘‘बेटी, तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें कल यहां से बाहर निकाल ले जाऊंगा.’’ कह कर हबीब वहां से बाहर आ गया. बाहर आ कर वह सीधे पुरानी बस्ती थाने गया. बस्ती का वेश्या बाजार इसी थानाक्षेत्र में आता है. लोगों ने हबीब को बताया था कि पुरानी बस्ती थाने के थानाप्रभारी प्रदीप सिंह तुम्हारी बेटी को वेश्या बाजार से बाहर निकालने का काम कर सकते हैं.

हबीब थानाप्रभारी प्रदीप सिंह के पास गया और उन के पैर पकड़ कर पूरी दास्तान बताई. प्रदीप सिंह ने हबीब की बात सुन कर बस्ती के एसपी वी.पी. श्रीवास्तव से संपर्क किया. उन्होंने आदेश दिया कि तुरंत काररवाई करें. इस के बाद प्रदीप सिंह ने पुलिस फोर्स के साथ 11 जनवरी, 2014 को बस्ती के वेश्या बाजार पर छापा मारा.

नतीजतन मैनब और उस के बच्चों को देहव्यापार कराने वालों के चंगुल से बाहर निकाल लिया गया. पुलिस ने मैनब से पूछ कर देहव्यापार कराने वाले रसूलनगर मोहल्ले के जावेद को भी पकड़ लिया. उस के खिलाफ अनैतिक देहव्यापार अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भेज दिया गया.

वेश्या बाजार से आजाद होने के बाद मैनब ने बताया कि उस ने वहां 4 साल से ज्यादा समय तक नरक जैसी जिंदगी गुजारी थी. हर रोज उस के शरीर को 5-10 ग्राहकों द्वारा रौंदा और नोचाखसोटा जाता था. वह तो जिल्लतभरी जिंदगी से बाहर निकल आई, पर अभी भी वहां उस की जैसी कई और लड़कियां हैं. मैनब ने बताया कि वहां जो लड़की आती है, वह पूरी तरह से दलालों के चंगुल में फंस कर रह जाती है.

शुरू में उसे नशे की गोलियां खिला कर मारपीट कर इस धंधे में उतरने के लिए तैयार किया जाता है. बाद में मजबूर हो कर उसे उन की बात माननी पड़ती है. यहां नेपाल और बिहार की गरीब और लाचार लड़कियों को लाया जाता है. उस की किस्मत अच्छी थी कि देर से ही सही, पर बच गई. उस के पिता बहुत अच्छे हैं, जिन्होंने यहां रहने के बाद भी मुझे अपना लिया.

मैनब के पिता हबीब ने बताया कि उस ने तो अपनी बेटी को मरा समझ कर भुला दिया था. उस की बेटी इस स्थिति में मिलेगी, उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

मैनब के बरामद होने के बाद बस्ती के एसपी वी.पी. श्रीवास्तव ने इस वेश्या बाजार को जबरन देहव्यापार का अड्डा नहीं बनने देने का संकल्प लिया और एक मुहिम चला कर दलालों को वहां से खदेड़ने की शुरुआत कर दी. देखने वाली बात यह है कि वह कब तक अपना संकल्प पूरा कर पाते हैं. मैनब अपने पिता के साथ अपने घर नेपाल चली गई है, जहां वह मेहनतमजदूरी कर के अपनी जिंदगी का बोझ खुद उठाएगी और अपने बच्चों को पालेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों और मैनब की बातचीत पर आधारित. कहानी में कुछ नाम बदल दिए गए हैं.

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 2

फैसले में सुनाई सजा ए मौत

पीडि़त व बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं की दलीलों को गौर से सुनने के बाद अब फैसले की बारी थी. कोर्ट रूम में मौजूद सभी की नजरें न्यायाधीश पर टिकी हुई थीं. सामने रखी फाइल के पृष्ठों को पलटने के कुछ समय बाद विद्वान न्यायाधीश ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा-

“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए कोर्ट इस नतीजे पर पंहुची है कि सारे सबूत और एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी गवाह घर की नौकरानी रेनू शर्मा की अहम गवाही घटना को सच साबित करती है. दोष सिद्ध अपराधी तरुण गोयल जनपद मेरठ का मूल निवासी है. उस ने स्वयं स्वीकार किया है कि वह मेरठ में सट्टे में पैसे हार गया था. उस के पिता से उस का कोई संबंध नहीं है. इसी कारण अपनी ससुराल फिरोजाबाद में आ गया था. फिरोजाबाद में उस के ससुरालीजनों ने उस का सहयोग किया.

“मृतका कमला देवी भी दोषसिद्ध अपराधी की पत्नी की नानी हैं और उन के यहां मुजरिम का सामान्य आवागमन था. घटना के दिन तरुण गोयल का पुत्र अर्नव गोयल व परिवार के अन्य सदस्य भी फिल्म देखने फिरोजाबाद के डीडी भारत सिनेमा में अर्पित जिंदल के परिवार के साथ गए थे. मृतका कमला देवी के घर पर अकेले रहने की जानकारी अपराधी को थी. इसी अवसर का लाभ उठा कर वह मृतका के घर गया.

“मुजरिम घरेलू नौकरानी रेनू शर्मा की मौजूदगी में मृतका के कमरे में लगभग सवा 2 बजे अपराह्न गया और 4 बजे के लगभग रेनू शर्मा ने उसे हाथ में पेचकस लिए तथा श्रीमती कमला देवी का शव बैड पर पड़ा देखा. इस के बाद उस ने रेनू शर्मा पर भी जान से मारने के आशय से वार किए ताकि कोई साक्ष्य शेष न रहे.

“मुजरिम तरुण गोयल का अपने मूल परिवार से कोई संबंध नहीं है. न्यायिक काररवाई के दौरान उस के परिवार का कोई सदस्य न्यायालय नहीं आया. अपने मूल परिवार से संबंध न होने के कारण उसे उस की ससुराल पक्ष द्वारा सहारा दिया गया.

“जिस परिवार द्वारा उसे सहारा दिया गया, उसी परिवार की वृद्ध महिला कमला देवी की लूट के आशय से पेचकस द्वारा वार कर के दर्द व पीड़ा दे कर नृशंस हत्या कर दी. यह परिस्थिति दर्शाती हैं कि रिहाई के बाद उस के सुधार की कोई संभावनाएं नहीं हैं.

“माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्णित विधि व्यवस्था में दिए गए दिशानिर्देशों को दृष्टिगत रखते हुए मृतका श्रीमती कमला देवी की जघन्य हत्या विरल से विरलतम श्रेणी का मामला है और इस के लिए दोषसिद्ध अपराधी तरुण गोयल मृत्युदंड पाने का अधिकारी है. उसे भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत मृत्युदंड से दंडित किया जाता है और उसे फांसी पर तब तक लटकाया जाए, जब तक उस की मृत्यु न हो जाए. इस के अलावा उसे 20 हजार रुपए अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने पर एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास और भोगेगा.

“इस के अलावा भादंवि की धारा 307 के तहत आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने पर भविष्यवर्ती परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास भोगेगा. भादंवि की धारा 394 के अंतर्गत आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए अर्थदंड तथा इसे अदा न करने पर एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास भोगेगा.

“भादंवि की धारा 411 के अंतर्गत 3 वर्ष कारावास और 5 हजार रुपए अर्थदंड, जिस के अदा न करने पर 3 माह का अतिरिक्त कारावास भोगेगा. भादंवि की धारा 506 के अंतर्गत 7 वर्ष कारावास और 5 हजार रुपए अर्थदंड, इसे अदा न करने पर 3 माह का अतिरित कारावास भोगेगा. दोषसिद्ध अपराधी की सभी सजाएं एक साथ चलेंगी.”

लोकेश जिंदल थे संपन्न व्यवसायी

आइए आप को बताते हैं कि एक साल पहले यह घटना कैसे हुई थी-

कांच की चूडिय़ों के लिए फिरोजाबाद शहर विश्व भर में प्रसिद्ध है. अब यहां चूडिय़ों के साथ ही कांच के अन्य सामान झाड़ (झूमर), लैंप, रंगबिरंगे खिलौने आदि भी बनाए जाने लगे हैं. आर्यनगर घनी आबादी वाला मोहल्ला है. आर्यनगर मोहल्ले की गली नंबर 9 में अपने पुश्तैनी मकान में कोयला व्यवसायी लोकेश जिंदल उर्फ बबली अपनी पत्नी शोभा, बेटे अर्पित व वृद्ध मां कमला देवी के साथ रहते थे.

असली कहानी एक साल पहले शुरू होती है. उस दिन शुक्रवार 1 अप्रैल, 2022 का दिन था. अर्पित अपनी मां, बुआ व चाचा के परिवार के सदस्यों के साथ अपने घर से करीब 6 किलोमीटर दूर आसफाबाद स्थित डीडी भारत टाकीज में फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ का इवनिंग शो देखने गए थे.

घर पर 70 वर्षीय वृद्धा कमला देवी रह गई थीं. वह अस्वस्थ चल रही थीं. इसलिए जाने से पहले उन की देखभाल के लिए घर की नौकरानी रेनू शर्मा को फोन कर के बुला लिया था. अपराह्न 2 बजे रेनू घर आ गई थी. रेनू के आते ही सभी लोग घर से निकल गए थे.

रेनू को आए अभी मात्र 15 मिनट ही हुए थे कि डोरबैल बज उठी. घंटी की आवाज सुन कर नौकरानी रेनू ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर तरुण गोयल खड़ा था. रेनू तरुण को अच्छी तरह जानती थी. क्योंकि वह घर का दामाद था. तरुण रेनू से बिना कुछ बोले कमला देवी के कमरे में चला गया.

उस समय कमला देवी सो रही थीं. कुछ देर बैठने के बाद तरुण ने रेनू को बुलाया और चाय बनाने के लिए कहा. उस ने रेनू से कहा, “अम्माजी सो रही हैं इसलिए चाय बना कर वहीं रख देना, मैं ले लूंगा.”

रेनू किचन में चाय बनाने चली गई.

उस समय कमला देवी सो रही थीं. तरुण ने जैसे ही कमरे में रखी अलमारी को खोला. आहट सुन कर कमला देवी जाग गईं. इस पर कमला देवी ने टोकते हुए कहा, “कौन है?”

तभी तरुण ने कहा, “नानी सास, कोई नहीं, मैं हंू.”

उन्होंने तेज आवाज में कहा, “अलमारी क्यों खोल रहे हो?”

इस पर तरुण ने कमरे में रखे पेचकस से उन के गले, छाती व पेट पर वार करने शुरू कर दिए. अचानक हुए हमले से कमला देवी की चीख निकल गई. उन्होंने शोर मचाया इस पर तरुण ने वाशबेसिन का शीशे को तोड़ दिया और उस के कांच से कमला देवी पर हमला कर उन्हें लहूलुहान कर दिया. हमले से बैड की चादर खून से रंग गई.

                                                                                                                                                क्रमशः

कलेक्टर को हनीट्रैप में फंसाने की साजिश

गुजरात के जिला अहमदाबाद के वीरमगांव के देसाई पोल के रहने वाले वासुदेवभाई भट्ट (व्यास) की अखबारों की एजेंसी तो थी ही, साथ ही वह कर्मकांड यानी पूजापाठ भी कराते थे. उनके परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और 3 बेटियां थीं. उन का एक बेटा अमेरिका में रहता है तो दूसरा आणंद के पास विद्यानगर में. बेटियों में एक डाकोर में रहती है तो दूसरी अहमदाबाद में.

उन की तीसरी बेटी केतकी व्यास ने वीरमगांव के ही देसाई चंदूलाल मगनलाल आटïï्स एंड कामर्स कालेज से बीकौम किया था. वह पढऩे में ठीकठाक थी, इसलिए वह गुजरात पब्लिक सर्विस कमीशन (जीपीएससी) की परीक्षा देना चाहती थी. परिवार की स्थिति सामान्य थी, इसलिए कोचिंग वगैरह करना उस के लिए संभव नहीं था. तब वह वीरमगांव में ही एक अधिकारी के पास मार्गदर्शन के लिए जाने लगी थी. उस अधिकारी के मार्गदर्शन और अपनी मेहनत की बदौलत केतकी व्यास जीपीएससी की परीक्षा पास करने में सफल रही.

जीपीएससी की परीक्षा पास करने के बाद केतकी व्यास की पहली नियुक्ति नीलामी विभाग में चीफ अफसर के रूप में हुई. संयोग से उस समय नीलामी विभाग में पीएसआई के रूप में नौकरी करने वाले भास्कर व्यास से परिचय हुआ तो उस ने उन से विवाह कर लिया. केतकी व्यास को अपनी इस नौकरी से संतोष नहीं था, इसलिए वह लगातार मेहनत करती रही. परिणामस्वरूप उसने वर्ग-1 की परीक्षा पास कर ली, जिस से उस का कद और बढ़ गया.

अब केतकी व्यास बावणा में तहसीलदार हो गई. इस के बाद वह महेमदाबाद में स्टांप ड्यूटी में डिप्टी कलेक्टर बनी. पर उन की असली पहचान तो तब हुई, जब वह कडी में प्रांत अधिकारी बनी.

इतने दिनों से नौकरी करने वाली केतकी व्यास की जानपहचान अनेक राजनीतिक पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से हो गई थी. सरकारी काम से उन का गांधीनगर आनाजाना होता ही रहता था. उसी बीच उन की जानपहचान मुख्यमंत्री कार्यालय में काम करने वाले भारतीय जनता पार्टी के एक नेता से हो गई।

उस नेता के परिचय में आने के बाद तो केतकी व्यास का कद आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गया.  अखबारों में अकसर समाचार आता रहता कि सरकार ने इतने अधिकारियों का तबादला कर दिया, जिसकी लंबी लिस्ट होती थी. यह एक सामान्य प्रक्रिया थी, पर अपवादस्वरूप कभी ऐसा भी होता है कि मात्र एक अधिकारी का ट्रांसफर होता थी. पर इस सिंगल ट्रांसफर के पीछे कोई बड़ी वजह होती है. यह ट्रांसफर या तो सजा के रूप में होता है या फिर किसी विशेष काम के लिए.

पर दिसंबर, 2021 में जब केतकी व्यास कडी में प्रांत अधिकारी थी तो उन का प्रमोशन के साथ सिंगल ट्रांसफर और्डर हुआ था. इस आर्डर के आते ही केतकी व्यास आणंद जिले की एडिशनल कलेक्टर बन गई थी. आणंद में पद संभालने के साथ ही केतकी का नाता विवादों से जुड़ गया.

सामान्य रूप से किसी अधिकारी का तात्कालिक रूप से ट्रांसफर होता है तो उसे सरकारी आवास मिलने में समय लगता है. ऐसे में ट्रांसफर पर आया अधिकारी जब तक सरकारी आवास नहीं मिलता, सर्किट हाउस में रहता है. उसी तरह आणंद आई केतकी व्यास भी सर्किट हाउस में ठहरीं.

एडिशनल कलेक्टर बनते ही घमंडी हो गई केतकी व्यास

नौकरी पूरी होने की वजह से एडिशनल कलेक्टर पी.सी. ठाकोर रिटायर हुए थे. उन्हीं की जगह केतकी व्यास ट्रांसफर हो कर आई थी. रिटायर होते ही पी.सी. ठाकोर ने सरकारी आवास खाली कर दिया था.  वही आवास केतकी व्यास को अलाट कर दिया गया था. सरकारी आवास मिल जाने के बावजूद केतकी व्यास सर्किट हाउस में ही रहती रहीं. जब इस बात के समाचार अखबारों छपे तब अधिकारियों ने उन से सॢकट हाउस खाली कराया था.

एडिशनल कलेक्टर बनते ही केतकी व्यास में कलेक्टर वाला रुतबा आ गया था। यह स्वाभाविक भी था. पर वह स्टाफ के साथ भी बदतमीजी से बात करने लगी थीं, जिस की वजह से स्टाफ ने हड़ताल कर दी थी. इस बात की भनक जब मुख्यमंत्री कार्यालय को लगी तो अधिकारियों ने बीच में आ कर मामला रफादफा कराया था.

आणंद आते ही केतकी व्यास मलाई काटने के लिए छटपटाने लगी थी. अपने स्वभाव के अनुसार उन की नजरें कलेक्टर औफिस पर जम गई थीं. उन की नजरें हमेशा इस बात पर रहने लगीं कि कलेक्टर औफिस में क्या चल रहा है, कलेक्टर साहब से कौन मिलनेजुलने आ रहा है? कोई हिसाबकिताब तो नहीं हो रहा है, यह जानने के  लिए वह हर वक्त बेचैन रहती थीं.

किसी ने आ कर हिसाबकिताब कर लिया तो मलाई कलेक्टर साहब अकेले ही काट लेंगे और वह वंचित रह जाएंगी. इस के लिए उसे लगा कि अगर उस का कोई आदमी कलेक्टर औफिस में सेट हो जाए तो उन्हें अंदर की सारी जानकारी तो मिलती ही रहेगी, अपने कुछ काम करा कर वह भी कुछ कमाई कर सकेंगी.

फिर क्या था, केतकी व्यास ने जोड़तोड़ लगा कर अपने एक आदमी नायब तहसीलदार जे.डी. पटेल को कलेक्टर डी.एस. गढवी के औफिस में उन के पीए के रूप में रखवा दिया. इस के बाद कलेक्टर औफिस में चलने वाली तमाम गतिविधियों की जानकारी उन्हें होने लगी.

केतकी व्यास के अनुसार जब से वह ट्रांसफर हो कर आणंद आई थी, तभी से कलेक्टर डी.एस. गढवी उन से नजदीकी बनाने की कोशिश कर रहे थे. आतेजाते उन से मिलने, बाहर साथ घूमने चलने तथा साथ में कहीं बाहर खाने चलने के साथसाथ उन के व्यक्तिगत जीवन में रुचि लेने का प्रयास कर रहे थे. यही नहीं, उन के घर आने की भी बात करते थे. इस से केतकी व्यास को उन की रंगीनमिजाजी के बारे में पता चल गया. उन्हें लगा कि कलेक्टर साहब महिलाओं के शौकीन हैं.

पुलिस के अनुसार, कलेक्टर डी.एस. गढवी के स्वभाव से एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास परिचित हो गईं तो एक दिन उन्होंने नायब तहसीलदार जयेश पटेल को अपनी केबिन में बुला कर कहा, ”कलेक्टर मेरे पीछे पड़ा है. इस का मतलब कलेक्टर रंगीनमिजाज है. इसलिए औफिस में स्पाई कैमरा लगा कर किसी लड़की को बुला कर उसे उस के प्रेमजाल में फंसाओ.

इस के बाद उसे वीडियो दिखा कर वायरल करने तथा दुष्कर्म में फंसाने की धमकी दे कर विवादास्पद जमीनों की फाइलें क्लियर करा लो. जिन की जमीनें क्लियर होंगीं, उन से जो पैसा मिलेगा, उसे बराबर बराबर बांट लिया जाएगा. अगर कलेक्टर फाइल क्लियर करने से मना करेगा तो वीडियो वायरल कर दी जाएगी, जिस के बाद उस का ट्रांसफर हो जाएगा.’‘

एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास की यह योजना नायब तहसीलदार जयेश पटेल को भी पसंद आ गई. क्योंकि गुजरात में जमीनें अनमोल हैं. अगर योजना सफल हो जाती तो करोड़ो की कमाई हो सकती थी. इसलिए जयेश पटेल ने इस बातचीत के 10 दिन बाद अपने फोन के मारफत अपने दोस्त हरीश चावड़ा के नाम औनलाइन 3 जासूसी कैमरे मंगा लिए. इस की डिलीवरी के लिए गणेश दुग्धालय का पता दिया गया था.

3 जासूसी कैमरों का पार्सल हरीश चावड़ा ने रिसीव किया और उन्हें कलेक्टर औफिस में काम करने वाले जयेश पटेल तक पहुंचा दिया. इस के बाद जयेश पटेल ने कैमरों को एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास को दिखाया तो उनके पीए गौतम चौधरी ने कैमरों की जांच की.

कलेक्टर औफिस और चैंबर में लगवा दिए जासूसी कैमरे

इस तरह इस मंडली ने मिल कर तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी को हनीट्रेप में फंसाने की पूरी तैयारी कर ली. जयेश पटेल के दोस्त हरीश चावड़ा की एक युवती से अच्छी दोस्ती थी. हरीश उसे अपनी स्कूटी पर बैठा कर कलेक्टर औफिस तक ले आया.

उस युवती को एक बार कलेक्टर औफिस जाने के लिए 5 हजार रुपए देने का लालच दिया गया. इस के अलावा उस से यह भी कहा गया था कि अगर उस के द्वारा कोई फाइल क्लियर होगी तो प्रत्येक फाइल पर उसे 25 हजार रुपए अलग से दिए जाएंगे.

उसी बीच जयेश पटेल ने कलेक्टर औफिस में कलेक्टर के चैंबर तथा एंटी चैंबर के स्विच बोर्ड में जासूसी कैमरे लगा दिए. हरीश चावडा द्वारा लाई गई युवती का परिचय जयेश पटेल ने कलेक्टर डीएस गढवी से एक वकील के रूप में कराया था. पहली ही मुलाकात में उस युवती को कलेक्टर के पास जमीनों की दोतीन फाइलें दे कर भेजा गया था.

एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावड़ा का इरादा उस युवती को भेज कर कलेक्टर डी.एस. गढवी से कुछ जमीनों की फाइलें क्लियर कराने का था. इन फाइलों में खडोल उमेटा गांव और करमसद गांव की फाइलें प्रमुख थीं. पुलिस के अनुसार, अगर ये फाइलें क्लियर हो जातीं तो सरकार को प्रीमियम का बहुत बड़ा नुकसान होता, शायद इसीलिए कलेक्टर गढवी ने उन फाइलों को क्लियर करने से मना कर दिया था.

जयेश पटेल द्वारा भेजी गई युवती कलेक्टर गढवी से 4-5 बार मिलने उन के चैंबर में गई थी. उसी बीच कलेक्टर गढवी और उस युवती के बीच काफी नजदीकी बढ़ गई थी. लेकिन केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावड़ा को युवती और कलेक्टर गढवी की एक ही मुलाकात की फुटेज मिली थी, जिस में कलेक्टर डी.एस. गढवी उस युवती का हाथ पकड़ कर अपने एंटी चैंबर में ले जाते हुए दिखाई दे रहे थे. इन तीनों ने एंटी चैंबर में भी कैमरा लगाया था. परंतु एंटी चैंबर के इलेक्ट्रिक बोर्ड में किसी खराबी की वजह से वीडियो रिकौर्ड नहीं हो सकी थी.

पुलिस के अनुसार, फुटेज के आधार पर केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावड़ा तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी को ब्लैकमेल करने लगे थे. बदनामी से बचने के लिए डी.एस. गढवी तीनों से दबने ही लगे थे. इसी वजह से धीरेधीरे तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी की पकड़ कलेक्टर औफिस पर कम होने लगी थी और कलेक्टर पर केतकी व्यास की पकड़ बढ़ती जा रही थी.

पुलिस के अनुसार, इन तीनों से तत्कालीन कलेक्टर डीएस गढवी इस हद तक दबने लगे थे कि कलेक्टर औफिस का कोई भी काम या फाइल होती, गढवी उसे केतकी व्यास के पास भेज देते थे. इस तरह आणंद कलेक्टर औफिस पर केतकी व्यास ने अपना लगभग आधिपत्य जमा लिया था.

किसी भी मामले में कलेक्टर के रूप में हस्ताक्षर भले ही डीएस गढवी के होते थे, पर उस पर नोट केतकी व्यास का होता था. चेहरा भले ही गढवी का होता था, पर परदे के पीछे खेल और आयोजन केतकी व्यास का होता था.

जैसा कि कहा जाता है कि लालच बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है, वैसा ही कुछ केतकी व्यास के साथ भी हुआ. डी.एस. गढवी को पूरी तरह कब्जे में लेने के लिए दोबारा ट्रेप करने की कोशिश की गई. इस के लिए फिर से चैंबर के इलेक्ट्रिक बोर्ड में जासूसी कैमरा लगाया गया. इस बीच तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी सूरत की अपनी एक महिला मित्र के साथ यौन गतिविधि करते जासूसी कैमरे में कैद हो गए.

केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावडा ने ये सारी फुटेज कलेक्टर औफिस के कंप्यूटर औपरेटर के द्वारा निकलवा ली. इस के बाद इन फुटेज के आधार पर जयेश पटेल ने गढवी को बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर ब्लैकमेल करने की कोशिश की. जबकि यह फुटेज उन लोगों के द्वारा भेजी गई युवती की नहीं थी.

यह फुटेज गढवी की महिला मित्र के साथ की थी। इसलिए गढवी ने पलट कर परिणाम भुगतने की धमकी दे दी, ”तुम लोगों की जो इच्छा हो कर लो.’‘ क्योंकि उन्हें अपनी उस महिला मित्र पर भरोसा था कि वह उन के खिलाफ कभी कोई बयान नहीं देगी.

कलेक्टर के आचरण की न्यूज चैनलों पर प्रसारित हुई खबर

तत्कालीन कलेक्टर डीएस गढवी की इस धमकी के बाद केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावडा ने डीएस गढवी को बदनाम करने की पूरी तैयारी कर ली. अब तक यह घटना काफी संवेदनशील बन चुकी थी.

इस के लिए उन्होंने 8 जीबी की 5 पेनड्राइव मंगाई. इन्हीं पांचों पेनड्राइव में केतकी व्यास ने सूरत वाली महिला की फुटेज कापी कराई और अपने पीए गौतम चौधरी से तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी के खिलाफ बदनाम करने वाला पत्र लिखवा कर पेन ड्राइव के साथ अलगअलग आसमानी रंग के लिफाफे में भर कर हरीश चावड़ा को सौंप दिया. हरीश चावड़ा ने उन लिफाफों को अलगअलग 6 चैनलों को पोस्ट कर दिया. इस के बाद यह फुटेज कुछ चैनलों पर प्रसारित हो गई.

इस फुटेज के प्रसारित होते ही आईएएस लौबी में ही नहीं, सरकार में भी हड़कंप मच गया. ज्यादा कुछ बवाल होता, उस के पहले ही राज्य सरकार ने तत्काल प्रभाव से आईएएस डीएस गढवी को अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के तहत कदाचार और नैतिक अधमता के गंभीर आरोप में निलंबन का आदेश दिया. इस के अलावा इस मुद्दे को देखने के लिए 5 महिलाओं की एक उच्च स्तरीय समिति भी बनाई गई.

राज्य सरकार ने इस मामले की जांच गुजरात पुलिस से कराने के बजाय सीधे गुजरात पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते एटीएस से कराने का निर्णय लिया. इस मामले की सच्चाई का पता लगाने की जिम्मेदारी एटीएस को सौंपी गई. जांच के बाद एटीएस ने कलेक्टर औफिस में काम करने वाली एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास, नायब तहसीलदार जयेश पटेल और आणंद जिला कलेक्टर औफिस में राजस्व संबंधी मामले देखने वाले हरीश चावड़ा के आरोपी होने की पुष्टि कर दी.

तब आणंद पुलिस ने औपचारिक रूप से एटीएस के इंसपेक्टर जे.पी. रोजिया की ओर से (आरएसी) रेजीडेंस एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास, नायब तहसीलदार जयेश पटेल और उस के दोस्त हरीश चावडा के खिलाफ आईपीसी की धारा 389, 354सी, आईटी अधिनियम 66ई और 120बी के तहत शिकायत दर्ज कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार आरोपियों में केतकी व्यास के बारे में आप पहले जान ही चुके हैं. रही बात जयेश पटेल की तो वह आणंद के बाकरोल के पास रामभाई काका रोड पर स्थित एक सोसायटी के भव्य बंगले में रहता है. वर्ग 3 का अधिकारी होने के बावजूद उस के पास लगभग 5 करोड़ का बंगला है.

हरीश चावडा का 2 मंजिला मकान था, जिस में नीचे की मंजिल में पर मातापिता रहते थे तो ऊपर वाली मंजिल में वह अपने परिवर के साथ रहता था. कलेक्टर हनीट्रेप में गिरफ्तारी के बाद अब इन तीनों की नौकरी खतरे में पड़ गई है.

एडिशनल कलेक्टर और गैंग के सदस्य हुए गिरफ्तार

केतकी व्यास के पीए के रूप में काम करने वाले गौतम चौधरी ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अदालत में अर्जी दी है कि वह इस मामले में गवाह बनने को तैयार है. अगर गौतम चौधरी इस मामले में गवाह बन जाता है तो केतकी व्यास की तमाम व्यक्तिगत बातों का रहस्य उजागर हो सकता है.

आरोपियों को जब लगा कि अब वे इस मामले में खुद ही फंसने वाले हैं तो उन्होंने साक्ष्यों को नष्ट करने की कोशिश की थी, फिर भी तमाम साक्ष्य जांच अधिकारियों के हाथ लग चुके हैं.

एटीएस ने केतकी व्यास सहित 3 लोगों के खिलाफ आणंद के थाना टाउन में केस दर्ज कराया था. पता चला था कि आणंद के लांभवेल रोड पर स्थित निशाआटोमोबाइल गैरेज में हनीट्रेप में उपयोग में लाए गए जासूसी कैमरे जलाए गए थे. पुलिस ने एफएसएल की टीम के साथ छापा मार कर वहां से राख बरामद कर वैज्ञानिक परीक्षण के लिए भेज दी.

20 अगस्त, 2023 की रात केतकी व्यास से पूछताछ में खुलासा हुआ था कि 2 हार्डडिस्क एक प्लास्टिक की थैली में डाल कर उन्हें संदेशर नहर में फेंक दी थीं. अगले दिन पुलिस ने गोताखोरों की मदद से दोनों हार्डडिस्क बरामद कर ली थीं.

एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावड़ा द्वारा किए गए इस कार्य से अधिकारी जगत शर्मशार हुआ. खास कर आईएएस लौबी में भारी नाराजगी है. जिस की वजह से पुलिस को आरोपियों के खिलाफ सख्ती से काररवाई करने का आदेश दिया गया है.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि तीनों अधिकारियों ने एक युवती को हथियार बना कर हनीट्रेप किया था, आगे चल कर इस घटना को इम्मोरल ट्रैफिकिंग के अंतर्गत दर्ज किया जा सकता है. इस के लिए जो युवती कलेक्टर से मिलने गई थी, उसे गवाह बनाया जाएगा.

इस के अलावा इस मामले में कलेक्टर डीएस गढवी को ब्लैकमेल कर के पैसे वसूलने का भी मामला बनता है. डी.एस. गढवी ने तो ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं कराया, पर एटीएस ने अपनी ओर से ब्लैकमेल कर के पैसों की मांग करने का मामला दर्ज कराया है.

अब केतकी व्यास का कहना है कि कलेक्टर डी.एस. गढवी उन के व्यक्तिगत जीवन में दखल दे कर उन से नजदीकी बनाने की कोशिश कर रहे थे. उन से बचने के लिए उन्होंने यह सब किया था.

कलेक्टर को ब्लैकमेल करने के मामले में अभी भी ऐसे तमाम सवाल हैं, जिन के जवाब मिलना बाकी है. तत्कालीन कलेक्टर को कब से ब्लैकमेल किया जा रहा है, इस की कोई जानकारी नहीं है. जासूसी कैमरा कब लगाया गया, इस के बारे में भी कुछ पता नहीं चला है.

ब्लैकमेल कर के कितनी फाइलें क्लियर कराई गईं, पुलिस के पास इस की भी कोई जानकारी नहीं है. हाईप्रोफाइल मामला होने के बावजूद पुलिस ने तीनों आरोपियों को रिमांड पर नहीं लिया था. बहरहाल, तीनों आरोपी कथा लिखने तक जेल में थे.

मौडल नेहा का हनीट्रैप रैकेट – भाग 4

चैट करने के दौरान धीरेधीरे नेहा उर्फ मेहर सोशल मीडिया के दोस्तों से नजदीकियां बढ़ाने लगती थी. वह उन से अब खुल कर बातें करती, उन को यह जताने की कोशिश करती कि वह उन से दिल से प्यार करने लगी है. इस के बाद वह उन से खुल कर सैक्स चैट करने लग जाती थी. जब युवक उस के जाल में फंस जाते थे, तब वह उन्हें अपने घर बुलाने के लिए आमंत्रित करती थी.

जो युवक पूरी तरह से उस के जाल में फंस जाते थे तो नेहा के घर उस से मिलने आ जाते थे. इस के लिए नेहा उर्फ मेहर ने बंगलुरु में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. यहां पर उस ने हनीट्रैप में युवाओं को फंसाने के सारे इंतजाम कर रखे थे. जब युवक मेहर के घर पर आते थे तो वह बिकिनी पहन कर उन का जोरदार  स्वागत करती थी.

जैसे ही युवक आते, सब से पहले वह उन्हें अपने गले से लगा लेती थी. उस के बाद उन को किस करती थी. इसी दौरान कमरे में छिपे उस के अन्य साथी चुपके से उन दोनों की वीडियो बना लेते थे. वीडियो बना कर नेहा के साथी अचानक सामने आ जाते थे और युवकों को धमकाने लग जाते थे.

मौडल मेहर अब तक 12 पीडि़तों से कर चुकी है उगाही

पुलिस पूछताछ मैं नेहा उर्फ मेहर ने स्वीकार किया है कि उस का गिरोह अब तक 12 लोगों से जबरन वसूली कर चुका है. कर्नाटक पुलिस इस गिरोह के और भी अन्य मामलों में शामिल होने की आशंका जता रही है. पुलिस ने बताया कि इस गिरोह का एक अन्य आरोपी नदीम अभी तक फरार है, जिस को पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है.

कथा लिखी जाने तक कर्नाटक पुलिस गिरफ्तार चारों आरोपियों से पूछताछ कर के उन्हें जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कहानी में गोपाल कृष्णनन परिवर्तित नाम है.

हनीट्रैप क्या है? कैसे फंसते हैं इस में लोग?

असल में हनीट्रैप का इस्तेमाल हमारे देश में प्राचीन काल से ही होता रहा है. प्राचीन समय में राजा महाराजाओं के पास विषकन्याएं हुआ करती थीं, जो उन के सब से खतरनाक दुश्मन को मारने या कोई भेद निकालने के काम आती थीं. असल में ये सब वे बच्चियां होती थीं, जो अकसर राजाओं की अवैध संतानें होती थीं.

जैसे दासियों के साथ उन के संपर्क में आई संतानें अथवा गरीब बच्चियां कुछ दिनों बाद इन्हें जहरीली बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती थी. इन्हें कम उम्र में ही कम मात्रा में अलगअलग तरह का जहर देना शुरू कर दिया जाता था. फिर धीरेधीरे जहर की मात्रा बढ़ाई जाती थी. इस प्रक्रिया में, अधिकतर बच्चियां मर जाया करती थीं, कुछ विकलांग हो जाती थीं, मगर जो बच्चियां सहीसलामत रहतीं, उन्हें और भी अधिक घातक बनाया जाता था.

उस के बाद उन को नृत्य गीत, सजनेसंवरने और दूसरों को आकर्षित करने की कला में पारंगत बनाया जाता था ताकि वे किसी से भी बातचीत कर उन्हें अपने वश में कर सकें . युवा होतेहोते वे युवतियां इतनी घातक और जहरीली हो जाती थीं कि उन के शरीर का स्पर्श भी जानलेवा हो जाता था.

उस विषकन्या का पूरा शरीर यानी कि उन का थूक, पसीना और खून सब कुछ जहरीला हो चुका होता था, इसलिए इन से किसी भी प्रकार का शारीरिक संबंध जानलेवा साबित होता था. इन विषकन्याओं का इस्तेमाल दूसरे राजाओं, सेनापतियों को मारने या फिर जरूरी जानकारियों को हासिल करने के लिए किया जाता था.

आजकल यह भी प्रचलन में है कि दुश्मन देश की खूबसूरत महिला एजेंट्स सेना के अधिकारियों और सेना के जवानों को अपने हुस्न के जाल में फंसाती हैं. दुनिया का हर देश हर वक्त अपने दुश्मन को मात देने की कोशिशों में लगा रहता है. वर्तमान युग की जंग सीधी जंग नहीं होती और हर बार केवल जंग के मैदान में ही मात नहीं दी जाती, बल्कि खुफिया तरीकों से भी अब अपने दुश्मनों को मात देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है.

‘हनीट्रैप’ जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि हनी यानी शहद और ट्रैप मतलब जाल, एक ऐसा मीठा जाल जिस में फंसने वाले को कभी अंदाजा भी नहीं हो पाता कि वह किस तरह इस में फंस गया है. दुश्मन देश की खूबसूरत एजेंट्स सेना के अधिकारियों व अन्य कर्मचारियों को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर उन से महत्त्वपूर्ण जानकारियां हासिल कर लेती हैं. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी अकसर भारतीय थल सेना, वायुसेना और नौसेना से जुड़े लोगों को हनीट्रैप में फंसाने की कोशिश करती रहती है.

आजकल कुछ युवतियां मोटी रकम वसूलने के लिए लोगों को हनीट्रैप में फांस रही हैं.

असली पुलिस पर भारी नकली पुलिस – भाग 1

शबाना परवीन सबइंसपेक्टर बनना चाहती थी, इसलिए बीए करने के बाद वह मन लगा कर सबइंसपेक्टर की परीक्षा की तैयारी करने लगी  थी. पिता असलम खान भी उस की हर तरह से मदद कर रहे थे.

मध्य प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर की जगह निकली तो शबाना परवीन ने आवेदन कर दिया. मेहनत कर के परवीन ने परीक्षा भी दी, लेकिन रिजल्ट आया तो शबाना परवीन का नाम नहीं था, जिस से उस का चेहरा उतर गया.

बेटी का उतरा चेहरा देख कर असलम ने उस की हौसलाअफजाई करते हुए फिर से परीक्षा की तैयारी करने को कहा. परवीन फिर से परीक्षा की तैयारी में लग गई. लेकिन अफसोस कि अगली बार भी वह सफल नहीं हुई.  लगातार 2 बार असफल होने से परवीन के सब्र का बांध टूट गया. पिता ने उसे बहुत समझाया और फिर से परीक्षा की तैयारी करने को कहा. लेकिन परवीन की हिम्मत नहीं पड़ी.

परवीन 20 साल से ऊपर की हो चुकी थी. आज नहीं तो कल उस की शादी करनी ही थी. नौकरी के भरोसे बैठे रहने पर उस की शादी की उम्र निकल सकती थी. रही बात नौकरी की तो शौहर के यहां रह कर भी वह तैयारी कर सकती थी.

इसलिए असलम खान परवीन के लिए लड़का देखने लगे. थोड़ी भागादौड़ी के बाद उन्हें राजस्थान के कोटा शहर में एक लड़का मिल गया. अफसर खान एक शरीफ खानदान से था और अपना बिजनैस करता था. असलम को लगा कि परवीन इस के साथ सुखचैन से रहेगी. इसलिए अफसर खान के घर वालों से बातचीत कर के असलम ने शबाना परवीन की शादी उस से कर दी.

शादी के बाद परवीन अपनी घरगृहस्थी में रम गई. एक साल बाद वह एक बेटे की मां भी बन गई. मां बनने के बाद उस की जिम्मेदारियां और बढ़ गईं. वह घरपरिवार में व्यस्त जरूर हो गई थी, लेकिन अभी भी पुलिस की वरदी पहनने की उस की तमन्ना खत्म नहीं हुई थी.

यही वजह थी कि अकसर वह इंदौर आतीजाती रहती थी. अफसर खान कभी पूछता तो वह कहती, ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि मैं पुलिस सबइंसपेक्टर की तैयारी कर रही हूं. उसी के चक्कर में इंदौर आतीजाती हूं.’’

परवीन का इंदौर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया तो एक दिन अफसर खान ने उसे समझाया, ‘‘तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है. अल्लाह का दिया हमारे पास क्या कुछ नहीं है. रुपए पैसे तो हैं ही, एक खूबसूरत बेटा भी है. इसी को संभालो और खुश रहो.’’

लेकिन परवीन इस में खुश नहीं थी. वह पुलिस की नौकरी के लिए अपनी जिद पर अड़ी थी. इसलिए घर में रोज किचकिच होने लगी. दोनों के बीच तनाव बढ़ने लगा. पति के लाख समझाने पर भी परवीन नहीं मानी. अफसर खान ज्यादा रोकटोक करने लगा तो एक दिन परवीन ने साफसाफ कह दिया, ‘‘अब हमारी और तुम्हारी कतई निभने वाली नहीं है. इसलिए तुम मुझे तलाक दे कर मुक्त कर दो.’’

अफसर खान अपनी बसीबसाई गृहस्थी बरबाद होते देख परेशान हो उठा. उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने अपने ससुर को फोन किया. असलम खान ने भी कोटा जा कर बेटी को समझाया. लेकिन परवीन टस से मस नहीं हुई. मजबूर हो कर अफसर खान को तलाक देना ही पड़ा. तलाक के बाद परवीन अपने 5 साल के बेटे को ले कर अपने पिता के घर उज्जैन आ गई.

पिता के घर आने के बाद भी परवीन का वही हाल रहा. वह पिता के घर से भी सुबह इंदौर के लिए निकल जाती तो देर रात तक लौटती. ऐसा कई दिनों तक हुआ तो एक दिन असलम खान ने पूछा, ‘‘बेटी, तुम रोज सुबह निकल जाती हो तो देर रात तक लौट कर आती हो, इस बीच तुम कहां रहती हो?’’

‘‘आप को पता नहीं,’’ परवीन ने कहा, ‘‘अब्बू, मैं ने मध्य प्रदेश पुलिस की सबइंसपेक्टर की परीक्षा दे रखी है. जल्दी ही मुझे नौकरी मिलने वाली है.’’

‘‘सच…?’’ असलम खान ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां अब्बू… अब जल्दी ही आप को मेरे सबइंसपेक्टर होने की खुशखबरी मिलने वाली है.’’ परवीन ने कहा.

और फिर कुछ दिनों बाद सचमुच परवीन ने घर वालों को खुशखबरी दी कि वह प्रदेश पुलिस की परीक्षा पास कर के सबइंसपेक्टर हो गई है. असलम खान को बेटी की बात पर भरोसा तो नहीं हुआ, फिर भी उन्होंने उस की बात मान ली. लेकिन जब एक दिन परवीन सब इंसपेक्टर की वरदी में घर पहुंची तो असलम खान परवीन को देखते ही रह गए. वह चहकते हुए अब्बू से बोली, ‘‘देखो अब्बू ,मैं दरोगा हो गई हूं. मेरे कंधे पर 2 सितारे चमक रहे हैं.’’

मारे खुशी के असलम खान की आंखों में आंसू आ गए. उन के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. वह कुछ कहते, उस के पहले ही साथ लाए मिठाई के डिब्बे से एक टुकड़ा मिठाई उस के मुंह में ठूंसते हुए परवीन ने कहा, ‘‘अब्बू, पुलिस वरदी में मै कैसी लग रही हूं?’’

असलम ने अल्लाह को सजदा करते हुए कहा, ‘‘अल्लाह ने हमारी तमन्ना पूरी कर दी. मेरी बेटी बहुत सुंदर लग रही है. तू बेटी नहीं बेटा है. लेकिन बेटा, इस समय तुम्हारी पोस्टिंग कहां है?’’

‘‘अभी तो मैं इंदौर के डीआरपी लाइन में हूं. जल्दी ही किसी थाने में पोस्टिंग हो जाएगी. एक साल तक मेरी ड्यूटी इंदौर में रहेगी. उस के बाद मेरा तबादला उज्जैन हो जाएगा. जब तक तबादला नहीं हो जाता, मुझे उज्जैन से इंदौर आनाजाना पड़ेगा. जरूरत पड़ने पर वहां रुकना भी पड़ सकता है.’’ परवीन ने कहा.

इस के बाद तो असलम खान ने पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवाई तो सभी को पता चल गया कि परवीन सबइंसपेक्टर हो गई है. लोग उस की मिसालें देने लगे. बात थी ही मिसाल देने वाली. एक साधारण घर की बेटी का दरोगा बन जाना छोटी बात नहीं थी, वह भी शादी और एक बेटे की मां बन जाने के बाद.

परवीन रोजाना बस से इंदौर जाती और देर रात तक वापस घर आ जाती थी. कभीकभार न आती तो फोन कर देती कि आज वह घर नहीं आ पाएगी. उस के सबइंसपेक्टर होते ही घर के सभी वाहनों पर पुलिस का लोगो चिपकवा दिया गया था, जिस से चैकिंग में कोई पुलिस वाला उन्हें परेशान न करे.

लूट फार एडवेंचर – भाग 1

तीनों बैंकों से कुल मिला कर लगभग 65 लाख की लूट हुई थी. किसी भी बैंक में 21 लाख से कम की रकम नहीं थी, जो इन तीनों दोस्तों की कल्पना के अनुरूप ही थी. तीनों लूट के बाद एकदूसरे से अनजान अलगअलग शहर में चले गए.

दूसरे दिन देश के सभी अखबारों और न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर सिर्फ और सिर्फ इस दुस्साहसी घटनाओं का ही जिक्र था. पुलिस और प्रशासन अपनी नाकामी से हाथ मल रही थी. लंबे समय तक लोगों के होंठों पर इस घटना का बखान था.

“अब हम तीनों को लूट का पैसा वापस बैंकों को लौटाना है. मैं इस बोझ के साथ मरना नहीं चाहता कि हम ने अपने स्वार्थ के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों को लूटा. आज हम तीनों स्थापित हैं और इस कंडीशन में हैं कि उन पैसों को बिना किसी आपत्ति के वापस लौटा सकते हैं.” जगन बोला.

20 दिनों के बाद तीनों दोस्त एक बार फिर गेलार्ड कैफे में पार्टी कर रहे थे. सभी न्यूजपेपर्स और चैनल्स पर उन के एडवेंचर की कहानियां सुनाई जा रही थीं.

जगन, छगन और मगन गहरे दोस्त थे. तीनों ही अच्छे खिलाड़ी थे. काफी दिनों बाद वे फुरसत में बैठे बातें कर रहे थे. उसी दौरान छगन बोला, “शहर में नया डेस्टिनेशन खुला है. जहां पर एडवेंचरस एक्टिविटीज करवाई जाती हैं. हम लोग भी चलें. काफी दिनों से कोई एडवेंचर किया भी नहीं है.”

“किस तरह की एक्टिविटीज करवाते हैं वहां पर?” मगन ने कौतूहल से पूछा.

“500 फीट ऊपर रोप क्लाइंबिंग, रौक क्लाइंबिंग, पैरासिलिंग, रिवर राफ्टिंग जैसी कई एक्टिविटीज इन्वौल्व हैं उस में.” छगन ने बताया.

“कितनी टिकट है उस की?” मगन ने फिर प्रश्न किया.

“वैसे तो एक हजार रुपए पर हैड है. लेकिन अगर हम तीनों चलते हैं तो मैं कहीं से जुगाड़ कर कुछ कम करवा सकता हूं,” छगन उत्साहित हो कर बोला.

“अरे मूर्खों, अगर अपनी जेब से पैसा खर्च कर के एडवेंचर किया तो क्या किया? एडवेंचर तो वह है, जो हम करें और उस के लिए दुनिया हमें याद करे और हमें पैसे भी मिलें.” जगन जो अब तक चुपचाप दोनों की बातें सुन रहा था, बीच में बोल पड़ा.

“क्या ऐसा हो सकता है? हमें हमारे एडवेंचर के बदले कौन मूर्ख पैसे देगा?” छगन उपहास से बोला.

“क्यों अपने आप को कमतर आंकें हम? याद रखो, हम तीनों के ही नाम के अंत में गन है. हम चाहें तो ऐसा फायर कर सकते हैं, जिस की तीव्रता की कल्पना सिर्फ सपनों में ही की जा सकती है. मैं खुद एक रेसलर हूं, मगन जूडो कराटे और छगन को ताइक्वांडो जैसे खेल में महारथ हासिल है. हम तीनों खिलाड़ी चाहें तो इतना बड़ा एडवेंचर कर सकते हैं कि दुनिया वाले दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो सकते है,” जगन बोला.

“सच है, जब हम में खुद में इतना हुनर है तो क्यों न ऐसा कोई एडवेंचर करें?” मगन बोला.

“मगर ऐसा एडवेंचर होगा क्या?” छगन ने पूछा.

“यह तो हम तीनों को मिल कर सोचना पड़ेगा,” जगन बोला.

“देखो, ऐसा कोई सा भी एडवेंचर जो खतरनाक की श्रेणी में आता हो, जिस में जान का जोखिम हो. पुलिस और प्रशासन की जानकारी के बगैर नहीं किया जा सकता है,” मगन ने जानकारी दी.

“जान हमारी है रिस्क हमारा है तो इस के लिए किसी भी अपने या पराए को जानकारी क्यों दी जाए? और जो कुछ भी होगा, इस के नतीजे के जवाबदेह भी हम ही होंगे. मजा तो तब है कि जब हम अपनी सोची हुई एडवेंचरस घटना को अंजाम दें और बरसों तक लोग उस घटना को घटना के नाम से याद करें न कि हमारे नाम से.” जगन बोला.

“तो क्या तूने ऐसा कोई कारनामा सोच रखा है, ऐसा कोई एडवेंचर करने का?” मगन ने पूछा.

“नहीं. अभी तक तो नहीं. यदि हम मिल कर सोचें तो शायद कुछ योजना बना सकें. यदि योजना सफल रही तो 50-60 लाख रुपए तो हासिल हो ही जाएंगे,” जगन बोला.

“यह कौन सा काम है? इस में लाइफ रिस्क कितना है?” छगन ने पूछा.

“अगर एडवेंचरस काम करने में जान का रिस्क न हो तो वह एडवेंचर ही कैसा? तुम लोग एडवेंचर के द्वारा ही पैसा बनाना चाहते हो न? तो मेरा आइडिया ही सब से उत्तम होगा.” जगन बोला.

“ऐसा कौन सा आइडिया सोचा है तुम ने?” मगन ने कौतूहल से पूछा.

“बिना खूनखराबा किए, बिना वास्तविक हथियार के बैंकों को लूटने का. और वह भी एक नहीं 3 बैंकों को लूटने का.” जगन बिना किसी रूपरेखा के सीधे और स्पष्ट बोला.

“क्याऽऽ.. यह कैसा एडवेंचर है? यह काम तो गैरकानूनी होगा.” मगन के चेहरे पर डर के भाव साफ दिखाई पड़ रहे थे.

एडवेंचर के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता

“अगर पकड़े गए तो जेल में बंद होंगे हम,” छगन भी मगन की बात से सहमत था.

“तुम लोगों का डर सही है. मगर एडवेंचर तो वही है जो लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दे. किसी और ने अगर वही काम तुम से पहले कर दिया तो उसे लीक पर चलना कहा जाएगा, एडवेंचर नहीं.”

“तुम्हें एडवेंचर की परिभाषा मालूम है? ऐसा कोई काम जिस में साहस, शौर्य और पराक्रम होने के साथ ही सर्वप्रथम किया हो. वही रियल एडवेंचर है.”

“हां, यह डर निश्चित ही जायज है कि अगर हम पकड़े गए तब क्या होगा. इस के परिणाम के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है. उस समय केवल जेल ही हमारा घर होगा.

“दूसरी तरफ अगर हम सफल होते हैं तो इतिहास में एक साहसी टीम के रूप में जाने जाएंगे और लोग हमारा उदाहरण देंगे. तुम लोगों को एक मशहूर विज्ञापन की टैग लाइन तो याद ही है न? डर के आगे सिर्फ जीत है. हमें अपनी योजना भी कुछ इसी तरह बनानी है कि हम अपने डर को अपने आत्मविश्वास से समाप्त कर देंगे.” जगन दोनों को समझाता हुआ बोला.

“हां, तो समझाओ जगन, योजना क्या है.” छगन बोला.

“योजना साहसिक और विस्फोटक है. हमें एक ही दिन में 3 बैंकों में लूट की वारदात को अंजाम देना है और वह भी बिना किसी वास्तविक हथियार के.” जगन बोला.

“क्या? 3 बैंकों में एक ही दिन में लूट? वह भी बिना किसी वास्तविक हथियार के?” छगन आश्चर्य से बोला.

“हां, यही तो एडवेंचर होगा हमारी योजना का. हमें सिर्फ एक जोरदार धमाका करने वाली एयरगन चाहिए होगी, जो दूर से असली जैसी लगे. इस के अलावा हमें 3 अच्छे और मजबूत किस्म के ताले और रुपए भरने के लिए बड़ी साइज के बैग्स.” जगन ने अपनी योजना के लिए प्रारंभिक जरूरत बतलाई.

“वहां तोता मैना जैसे पक्षी होंगे, जो एयरगन के धमाके से उड़ जाएंगे और हम रुपए थैलों में भर कर टहलते हुए निकल जाएंगे,” मगन मजाक करता हुआ बोला.

“तीन बैंकों को लूटना है तो कम से कम एक व्हीकल तो चाहिए ही. ऐसे कामों में हम अपना व्यक्तिगत व्हीकल तो इस्तेमाल कर ही नहीं सकते,” छगन बोला.

“बिलकुल सही है. हम अपना व्हीकल इस्तेमाल करेंगे भी नहीं, बल्कि हम तो बैंक का ही व्हीकल उपयोग करेंगे.” जगन शांत भाव से बोला.

“बैंक का व्हीकल? वो कैसे?” छगन के स्वर में अविश्वास था.

“हमारे पास में रहने वाले रहमत एक सीएमएस वैन के ड्राइवर हैं. वह रोज शाम को काम खत्म होने के बाद गाड़ी को अपने घर के सामने ही पार्क करता है. मेरी उस से अच्छी जानपहचान है. मैं ने पिछले 3 दिनों में 3 बार उस वैन से कालोनी के चक्कर लगाए है. कल तो चालाकी से उस की वैन की चाबी का इंप्रैशन एक नरम साबुन पर ले लिया है. मोबाइल में चाबी का फोटो भी रखा हुआ है.” जगन उत्साह से बोला.

“यह लो पहले कदम पर ही गलती. रहमत तो तुम्हें जानता ही है न? वारदात को अंजाम देने के बाद तफ्तीश में रहमत तो फंसेगा ही और वह तुम्हारा ही नाम लेगा.” छगन बोला.

एक लाश ने लिया प्रतिशोध – भाग 1

स्लेड ने तय कर लिया था कि उसे किसी भी तरह स्पेल्डिंग की हत्या करनी है. क्योंकि उसे पता था कि अगर उस ने स्पेल्डिंग की हत्या नहीं की तो वह उस का कैरियर बरबाद कर देगा. एक वकील होने के नाते उसे बचाव  के लिए दलीलें देनी तो आती थीं, लेकिन हत्या किस तरह की जाए कि न तो मैडिकल साइंस पकड़ सके और न कानून. क्योंकि जब हत्या साबित ही नहीं होगी तो वह पकड़ा ही नहीं जाएगा.

स्पेल्डिंग की हत्या कैसे की जाए, इस पर वह काफी दिनों तक सोचता रहा. इस की वजह यह थी कि वह नहीं चाहता था कि हत्या जैसे अपराध में फंस कर उस का कैरियर और जिंदगी बरबाद हो. क्योंकि कैरियर और जिंदगी बचाने के लिए ही तो वह हत्या जैसा जघन्य अपराध करने पर विचार कर रहा था. लेकिन उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह स्पेल्डिंग की हत्या कैसे करे कि कानून की नजरों से साफ बच जाए.

आज की तरह तब इंटरनेट तो था नहीं कि इंटरनेट पर सर्च कर के वह हत्या की तरकीब खोज निकालता. यह ऐसा काम था, जिस के लिए किसी से सीधे सलाह भी नहीं ली जा सकती थी. स्लेड को किसी भी तरह स्पेल्डिंग की हत्या करनी थी. जब उसे कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने अपने दोस्त डा. मैथ्यू से हत्याओं पर चर्चा कर के कोई तरीका निकालने का विचार किया.

इस के लिए उस ने उन्हें एक शाम खाने पर बुला लिया. खाना खाते हुए स्लेड ने कहा, ‘‘आजकल अपराध कुछ ज्यादा ही होने लगे हैं. खासकर हत्या जैसे अपराधों की तो जैसे बाढ़ सी आ गई है. लगता है, पुलिस हत्यारों को पकड़ नहीं पा रही है?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है, हत्यारा कितनी भी होशियारी से हत्या करे, उस से कोई न कोई चूक हो ही जाती है. और फिर उसी चूक की वजह से वह पकड़ा जाता है. तब उस की कश्ती किनारे पर आ कर भी डूब जाती है. हत्या करने के बाद सब से कठिन काम है लाश को ठिकाने लगाना. लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं इस काम को बखूबी अंजाम दे सकता हूं.’’ डा. मैथ्यू ने कहा.

‘‘जी हां.’’ स्लेड ने कहा. लेकिन वह जानता था कि इस मामले में उसे डा. मैथ्यू से कहीं ज्यादा अनुभव है.

‘‘दरअसल यह बहुत ही खतरनाक और पेचीदा मसला है. यह इतना मुश्किल काम है कि मेरी समझ में यह नहीं आता कि लोग कत्ल करने जैसा गैरबुद्धि वाला काम करते ही क्यों हैं?’’

‘‘मेरा भी कुछ ऐसा ही खयाल है,’’ स्लेड ने कहा. लेकिन मन में वह कुछ और ही सोच रहा था. उस का खयाल था कि इस दुनिया में आदमी के लिए कोई भी काम कठिन नहीं है.

‘‘लोग सोचते हैं कि किसी को जहर दे कर मारना बहुत आसान है,’’ डा. मैथ्यू ने आगे कहा, ‘‘लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि पोस्टमार्टम में जहर का पता लग जाता है. और जब हत्या का पता चल जाएगा तो हत्यारा पकड़ा ही जाएगा. मेरा तो काम ही जहर का पता लगाना है. मैं ही क्या, जाहिल से जाहिल डाक्टर भी जहर का पता लगा सकता है.’’

‘‘मैं आप की राय से पूरा इत्तफाक रखता हूं, डाक्टर.’’ स्लेड ने कहा.

चूंकि वह स्पेल्डिंग की हत्या के लिए जहर का इस्तेमाल करने की सोच ही नहीं रहा था, इसलिए उसे इस बारे में विचार ही नहीं करना था. उस ने तो कोई और ही उपाय सोच रखा था.

‘‘अगर तुम जहर दे कर हत्या नहीं करते तो लोग यही सोचेंगे कि वह अपनी मौत मरा होगा. हत्या करने के बाद अगर हत्यारा बचना चाहता है तो वह कुछ ऐसी तिकड़म करे कि लोगों को लगे कि मृत व्यक्ति ने खुदकुशी की है. मगर मेरी तरह तुम भी जानते हो कि यह काम इतना आसान नहीं है. वैसे भी खुदकुशी के मामले में बड़ी गहराई से जांच होती है. तुम खुद वकील हो, खुदकुशी के कितने मामलों को तुम ने निपटाए हैं. तुम्हें तो पता ही है कि ऐसे मामलों में कितनी परेशानी होती है. और फिर नतीजा क्या निकलता है?’’

‘‘आप ने सही कहा,’’ स्लेड ने कहा.

उस ने इस मामले पर काफी गहराई से विचार किया था. काफी सोचविचार कर वह इस नतीजे पर पहुंचा था कि इस तरह स्पेल्डिंग की हत्या कर लाश को गायब करेगा कि उसे कोई पकड़ नहीं पाएगा. अगर स्पेल्डिंग की लाश मिल भी गई तो पुलिस यही समझेगी कि उस ने आत्महत्या की है.

‘‘हां, तो मैं उसी मसले पर फिर आता हूं. हत्यारे के लिए लाश से पीछा छुड़ाना आसान नहीं है.’’ डा. मैथ्यू ने कहा.

‘‘जी हां,’’ स्लेड ने कहा, ‘‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं.’’

लेकिन स्लेड को पूरा विश्वास था कि स्पेल्डिंग की लाश से वह आसानी से पीछा छुड़ा लेगा.

‘‘जानते ही हो, लाश को ठिकाने लगा कर उस से मुक्ति पाना बहुत ही कठिन काम है,’’ डा. मैथ्यू ने कहा, ‘‘कुछ लोग रासायनिक पदार्थों और तेजाब से लाश को जला गला देते हैं. लेकिन एक डाक्टर होने के नाते मैं इस तरकीब को पसंद नहीं करता.’’

‘‘वह क्यों?’’ स्लेड ने पूछा.

‘‘लाश कितनी भारी होती है. उसे उठाना, ढोना, संदूक, तहखाने या नदीनाले में छिपाते फिरना, कितना खतरनाक काम है.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. मैं ने इस के बारे में पहले कभी नहीं सोचा.’’ स्लेड ने कहा. जबकि उसे लग रहा था कि डाक्टर बिलकुल बेकार की बातें कर रहा है.

‘‘वैसे एक ऐसी तरकीब है, जिस में बचने की काफी गुंजाइश है. वकील होने के नाते तुम उस में जरूर दिलचस्पी लोगे, क्योंकि इस में एक कानूनी नुक्ता है.’’

‘‘कौन सा?’’ स्लेड ने अचकचा कर पूछा.

‘‘जब तक तुम किसी अभियुक्त को मुजरिम नहीं साबित कर देते, तब तक उसे सजा नहीं दिला सकते. और जब तक लाश नहीं मिल जाती, तब तक किसी अपराधी को पकड़ने या उस पर मुकदमा चलाने का सवाल ही नहीं उठता. किसी को हत्यारा साबित करने के लिए लाश का मिलना बहुत जरूरी है.’’

‘‘आप ने बिलकुल सही कहा. हैरानी की बात यह है कि इतनी बढि़या बात मेरे जेहन में पहले क्यों नहीं आई?’’ स्लेड ने कहा.

लेकिन अचानक उसे लगा कि उस के मुंह से यह बात निकल कैसे गई? उस ने तुरंत खुद को सहज बनाने की कोशिश की. उस ने अपने दिल की खुशी भी छिपाई, ताकि डाक्टर जान न सके कि उस के मन में क्या है.   जबकि डाक्टर ने उस की बात पर गौर ही नहीं किया था.

उस ने कहा, ‘‘मेरे खयाल से लाश को पूरी तरह से नष्ट करना आसान नहीं है. लेकिन अगर कोई अपराधी लाश गायब करने में सफल हो जाता है तो निश्चित ही वह पकड़ में नहीं आएगा. उस पर कितना भी जबरदस्त शक क्यों न हो. पुलिस बिना लाश बरामद किए उस के खिलाफ सुबूत नहीं जुटा पाएगी. इस तरह के कत्ल की कहानी सचमुच एक अनोखी कहानी होगी.’’

‘‘जरूर,’’ स्लेड ने हंसते हुए कहा. इस के बाद उस ने मन ही मन सोचा, ‘सचमुच स्पेल्डिंग के कत्ल की कोई कहानी नहीं बन सकेगी.’

‘‘अच्छा स्लेड, अब मैं चलूंगा. खाते खाते काफी बकबक कर ली. तुम्हारी इस शानदार दावत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. आज मौसम भी कुछ ठीक नजर नहीं आ रहा है. अब चल देना ही ठीक है.’’ डा. मैथ्यू ने उठते हुए कहा.

क्या स्लेड हत्या करने में कामयाब हो सकेगा ? जानने के लिए पढ़ें crime thriller story का अगला भाग..

15 शादियां करने वाला लुटेरा दूल्हा – भाग 4

उस ने बताया कि बचपन से ही उस की अपने मांबाप से नहीं बनती थी. इसलिए उस ने घर छोड़ दिया था. शक्लसूरत अच्छी थी, इसलिए उस ने सोचा कि चलो कन्नड़ फिल्मों में भाग्य आजमाते हैं. उस ने कन्नड़ फिल्मी दुनिया का रुख किया, पर वहां उसे कोई काम नहीं मिला. इस से महेश को बहुत बड़ा झटका लगा. क्योंकि वह ज्यादा पढ़ालिखा भी नहीं था कि उसे कोई ढंग की नौकरी मिल पाती. उस की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे.

तभी उस ने किसी अखबार में समाचार पढ़ा कि कोई व्यक्ति मैट्रीमोनियल साइट से विवाह कर के पत्नी के लाखों रुपए ले कर फरार हो गया है. उस ठग की कहानी पढ़ कर उस के दिमाग में आइडिया आया कि इस तरह विवाह कर के भी पैसा कमाया जा सकता है. बस, उस ने सोच लिया अब वह भी इसी तरह विवाह कर के पैसे कमाएगा.

मन में यह विचार आते ही महेश ने मैट्रीमोनियल साइट पर अपनी फेक आईडी बनानी शुरू की. किसी में डाक्टर तो किसी में इंजीनियर तो किसी में सौफ्टवेयर इंजीनियर तो किसी में बिजनैसमैन तो किसी में सरकारी अफसर बन कर उस ने प्रोफाइल बना डालीं.

करीब 35 साल की महिलाओं को फांसता था महेश

मजे की बात यह थी कि वह साइट पर जा कर यह उन्हीं महिलाओं को चुनता था, जिन की उम्र 35 साल या उस से अधिक होती थी. अगर डिवोर्सी होती तो उसे और अधिक बेहतर लगती. लेकिन अमीर होनी चाहिए और देखने में ठीकठाक लगनी चाहिए.

जब शुरुआत हुई तो जैसा शुरू में बताया गया है, ठीक उसी तरह बात होती और फिर शादी की तारीख तय हो जाती. शुरू में ही महेश लडक़ी वालों से बता देता था कि उस के मांबाप नहीं हैं. परिवार में प्रौपर्टी के बंटवारे को ले कर झगड़ा चल रहा है, इसलिए परिवार का भी कोई सदस्य शादी में नहीं आएगा. बस, दोचार रिश्तेदार और दोस्त ही विवाह में आ सकते हैं.

इसलिए महेश के विवाह में उस की ओर से दसपांच लोग ही शामिल होते थे. लेकिन ये लोग भी न उस के रिश्तेदार होते थे और न दोस्त. ये लोग किराए के होते थे. इस तरह के लोगों को उसे ढूंढने भी नहीं जाना पड़ता था. क्योंकि उस ने कन्नड़ फिल्मों में काम करने के लिए खूब धक्के खाए थे, इसलिए तमाम जूनियर कलाकारों से उस की जानपहचान हो गई थी.

अपने विवाह पर वह इन्हीं लोगों को किसी को 3 हजार पर तो किसी को 5 हजार पर तो किसी को 10 हजार रुपए पर यानी हुलिए के हिसाब से फीस दे कर बाराती के रूप में ले आता था. उन्हें पैसे तो मिलते ही थे, अच्छे से अच्छे होटल में ठहरने के साथ में अच्छे से अच्छा खाना मिलता था और विदाई के समय कुछ न कुछ उपहार भी मिल जाते थे.

विवाह होते ही किराए के बाराती अपने घर चले जाते और महेश पत्नी को ले कर मैसूर आ जाता, जहां यह शादी होते ही किराए का एक घर ले लेता था. अपने घर के बारे में तो वह पहले ही बता देता था कि पुश्तैनी प्रौपर्टी को ले कर उस का झगड़ा चल रहा है.

इस के बाद वह किसी पत्नी से कहता कि उसे क्लीनिक खोलनी है तो किसी से कुछ और कह कर पैसे ले लेता था. जो न देतीं उन के पैसे और गहने चुरा कर किसी न किसी बहाने यह कह कर निकल जाता था. जाते समय वह यह भी कह जाता था कि वह उस के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगीं, पुलिस को भी नहीं, क्योंकि प्रौपर्टी के झगड़े में कुछ भी हो सकता है, उस की जान भी ली जा सकती है और पुलिस से भी पकड़वा कर जेल भिजवाया जा सकता है. क्योंकि करोड़ों की प्रौपर्टी का मामला है.

3 पत्नियों से उस के हैं 5 बच्चे

इसी तरह महेश ने एक डाक्टर से भी डाक्टर बन कर विवाह कर लिया था. शादी के बाद महेश डाक्टर पत्नी के साथ क्लीनिक भी गया और वहां एक डाक्टर के रूप में अपने तमाम फोटो खींच लिए थे. उन्हीं फोटो को उस ने एक डाक्टर के रूप में मैट्रीमोनियल साइट पर पोस्ट कर दिए थे.

इसी तरह कोई इंजीनियर या कोई और मिल जाती तो उस के औफिस में जा कर फोटो खींच पर मैट्रीमोनियल साइट पर पोस्ट कर देता. इसी तरह उस ने कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में कुल 15 शादियां कर डालीं. इन 15 शादियों में से 3 पत्नियों से उसे 5 बच्चे भी हुए. पर किसी भी पत्नी के साथ महेश एक महीने से अधिक नहीं रहा. इस के बाद वह किसी काम की बात कह कर निकल जाता.

जब महेश को गए ज्यादा समय हो जाता और दूसरी ओर उस के गहने और पैसे भी लुट गए होते, तब उन की समझ में आता कि उन के साथ धोखा हुआ है. पर वे अपना यह दर्द कहें किस से. क्योंकि वे अपना यह दर्द किसी से कहतीं तो जगहंसाई ही होती. इसलिए कोई भी महिला किसी से भी अपनी यह तकलीफ नहीं बताती थी. क्योंकि इस के लिए वह खुद को दोषी मानती थीं.

2013 में बेंगलुरु की एक महिला, जो इंजीनियर थी, उस ने भी महेश से विवाह किया था. 3 दिन बाद जब यह उसे छोड़ कर चला गया था और लौट कर नहीं आया था, तब उस ने उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई थी. तब पुलिस ने उस की रिपोर्ट पर खास ध्यान नहीं दिया था.

अगर उसी समय पुलिस ने ऐक्शन लिया होता तो तमाम महिलाएं इस ठग लुटेरे दूल्हे का शिकार होने से बच जातीं. पुलिस की लापरवाही का ही नतीजा था कि महेश शादियों पर शादियां करता गया और उस ने 15 शादियां कर डालीं. इस के बाद जो जानकारी मिली थी, उस के अनुसार 9 महिलाएं उस से शादी करने की कतार में थीं. उसे 9 पत्नियां मिल चुकी थीं, जो अलगअलग पेशे वाली थीं. वह जल्दी ही 9 शादियां और करने वाला था, लेकिन इस से पहले ये 9 शादियां होतीं, पुलिस उस तक पहुंच गई और ये 9 महिलाएं बरबाद होने से बच गईं.

मजे की बात यह थी कि महेश ने जितनी भी शादियां कीं, इन में कोई भी महिला गांव देहात की अनपढ़ महिला नहीं थी. सब की सब उच्चशिक्षित थीं, कोई डाक्टर तो कोई इंजीनियर, यहां तक कि असिस्टेंट प्रोफेसर भी थीं. सभी उस के झांसे में आ गईं और शादी के बाद किसी ने उस के खिलाफ रिपोर्ट भी नहीं दर्ज कराई.

पूछताछ में महेश ने यह भी बताया कि कुछ लड़कियां तो विवाह करतेकरते रह गईं. इस की वजह यह थी कि महेश ज्यादा पढ़ालिखा तो था नहीं, इसलिए वह जो अंगरेजी बोलता था, उस में गलतियां बहुत होती थीं. वह अच्छी अंगरेजी बोल नहीं पाता था, इसलिए सामने वाली लड़कियों को शक हो गया कि एक डाक्टर हो कर यह इतनी गलत अंगरेजी बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से शादी नहीं की थी.

महेश का कहना था कि अगर वह अच्छी अंगरेजी बोल लेता तो 15 ही नहीं, अब तक वह कम से कम सौ शादियां कर चुका होता. लोगों को दिखाने के लिए बेंगलुरु के तुमकुरु में उस ने अपना एक नकली क्लीनिक भी बना रखा था, जहां वह कभीकभी डाक्टर के रूप में बैठता भी था. लोगों को शक न हो, इस के लिए उस ने एक नर्स भी नौकरी पर रखी थी.

एसआई राधा एम के अनुसार महेश नायक ने 15 शादियां कर के अब तक करीब 3 करोड़ के गहनों और रुपयों की चोरी की है. संपत्ति के नाम पर उस के पास 2 कारें थीं, लेकिन कोई मकान आदि नहीं है. पत्नियों के पैसे और गहने चुरा कर वह विलासितापूर्ण जीवन जीता था. पत्नियों को छोड़ कर जाने के बाद वह होटलों में ठहरता था.

उस ने जब पहली शादी की थी, तब वह 24 साल का था. इन 19 सालों में उस ने 15 शादियां कर ली थीं. पुलिस ने आरोपी महेश केबी से पूछताछ के बाद उसे भादंवि की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी), 406 (आपराधिक विश्वासघात), 506 (आपराधिक धमकी), 380 (चोरी) के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में निशा बदला हुआ नाम है

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 1

25 अप्रैल, 2023 को उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अपर जिला एवं सत्र न्यायालय के कक्ष-6 में गहमागहमी कुछ अधिक ही दिखाई दे रही थी. विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) आजाद सिंह की अदालत में साल 2022 में फिरोजाबाद नगर में हुए बहुचर्चित कमला देवी मर्डर व लूट के संबंध में फैसला आने वाला था.

पूरे न्यायालय परिसर में पुलिस और अधिवक्ताओं की भीड़ दिखाई दे रही थी. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया के पत्रकार भी वहां उत्सुकता से फैसले का इंतजार कर रहे थे. क्योंकि फैसला आते ही उन्हें ब्रेकिंग न्यूज जो बनानी थी.

न्यायाधीश ने दोपहर साढ़े 12 बजे जैसे ही न्यायालय में प्रवेश किया तो वहां मौजूद सभी लोग सम्मानस्वरूप अपनी जगह पर खड़़े हो गए. न्यायाधीश के कुरसी पर बैठते ही अदालत में मौजूद लोगों ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया. कुरसी पर बैठते ही न्यायाधीश ने अदालत के रीडर को इस केस से संबंधित पत्रावली पेश करने का आदेश दिया. दोनों ही पक्षों के वकील न्यायालय कक्ष में मौजूद थे. आरोपी तरुण गोयल को जेल से अदालत लाया गया था.

वकीलों की हुई जोरदार बहस

न्यायाधीश ने विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा को अपनी दलीलें पेश करने को कहा. इस पर शासन की ओर से पैरवी करते हुए अजय कुमार शर्मा ने कहा कि वे अब तक माननीय न्यायालय में 6 गवाहों को पेश कर चुके हैं. इन में चश्मदीद गवाह घर की नौकरानी रेनू शर्मा की गवाही शेष है.

अब तक के गवाहों के बयानों व अन्य सबूतों से साफ जाहिर है कि कोर्ट के कटघरे में तरुण गोयल नाम का जो व्यक्ति खड़ा है, उस ने ही रुपयों व गहनों के लालच में अपनी नानी सास 70 वर्षीय कमला देवी की उन के घर में घुस कर नृशंस तरीके से हत्या की थी. साथ ही घटना के समय घर में मौजूद नौकरानी रेनू शर्मा द्वारा विरोध करने पर उसे भी गंभीर रूप से घायल कर दिया और नकदी व गहने लूट कर ले गया.

घटना के समय मृतका के घर वाले पिक्चर देखने गए थे. इस बात की जानकारी आरोपी को थी, क्योंकि आरोपी के घर वाले भी उन के साथ गए थे.

“ये आरोप गलत है हुजूर. मेरे मुवक्किल को झूठा फंसाया जा रहा है,” बचाव पक्ष के अधिवक्ता लियाकत अली (विधि सहायक) ने अभियुक्त का बचाव करते हुए कहा, “अभियुक्त और घटना की रिपोर्ट लिखाने वाले अर्पित जिंदल आपस में रिश्तेदार हैं. अभियुक्त सैनेट्री का बिजनैस करता है और अर्पित ने अभियुक्त से पैसे उधार लिए थे और अब वह सैनेट्री के पूरे बिजनैस पर कब्जा करना चाहता है. इसी कारण अभियुक्त को झूठा फंसाया गया है.”

बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने अपने मुवक्किल का बचाव करते हुए कहा, “अभियुक्त से दर्शाई गई बरामदगी के समय रिपोर्टकर्ता अर्पित जिंदल घटनास्थल पर उपस्थित नहीं था. सर्वप्रथम घटना देखने वाले पड़ोसी भाटियाजी को परीक्षित नहीं कराया गया है. घटना में बरामदशुदा नोट (रुपए) आदि की द्वितीय प्रति नहीं बनाई गई है. साथ ही प्रथम सूचना रिपोर्टकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए नोट व जेवरात का मिलान नहीं होता है.

“अभियुक्त का इस घटना से कोई संबंध नहीं है. इस के साथ ही विधि विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट को किसी गवाह से पुष्ट नहीं कराया गया है. घटना के समय अभियुक्त अपने बिजनैस के सिलसिले में मार्केट गया हुआ था. इस प्रकार अभियोजन अपने बयान को संदेह से परे सिद्ध करने में पूरी तरह असफल रहा है. इसलिए अदालत से गुजारिश की जाती है कि आरोप से अभियुक्त तरुण गोयल को दोषमुक्त किया जाए.”

“मी लार्ड, मेरे पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि कमला देवी की नृशंस हत्या उन के दामाद तरुण गोयल ने जेवरात व रुपए लूटने के उद्देश्य से ही की थी. विरोध करने पर नौकरानी रेनू शर्मा को गंभीर रूप से घायल कर दिया था.”

“अदालत का वक्त जाया न करें. आप के पास इस केस से संबंधित जो भी सबूत हैं, पेश किए जाएं,” न्यायाधीश ने आदेश दिया.

“मी लार्ड, मैं इस केस की एक प्रत्यक्षदर्शी गवाह रेनू शर्मा को अदालत में पेश करने की अनुमति चाहता हंू,” पीडि़त की ओर से पैरवी कर रहे विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने अदालत से दरख्वास्त करते हुए कहा.

“इजाजत है,” न्यायाधीश ने कहा.

नौकरानी की रही अहम गवाही

रेनू शर्मा गवाह के कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. तभी विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने उस से पूछा, “रेनू शर्मा, क्या आप बता सकती हैं कि जिस दिन तुम्हारी मालकिन का मर्डर हुआ था, उस समय तुम क्या कर रही थीं और तुमने क्या देखा?”

“जी, सर. घटना पहली अप्रैल, 2022 की है. मुझे कमला देवी ने फोन कर के बुलाया था. मैं घर पर दोपहर 2 बजे पहुंच गई थी. उस समय घर के लोग पिक्चर देखने भारत टाकीज गए हुए थे. मुझ से यह कह कर गए थे कि हम लोग जा रहे हैं, हमारे पीछे अम्मा का ध्यान रखना. इन लोगों के जाने के बाद सवा 2 बजे तरुण गोयल वहां आए थे, जोकि अम्माजी के धेवते दामाद लगते हैं. मैं ने ही दरवाजा खोला था. मैं इन्हें पहले से ही जानती थी. जब यह आए तो सीधे अम्माजी के कमरे में चले गए.

“तरुण गोयल ने मुझ से कहा कि चाय बना लो. फिर मैं किचन में चाय बनाने चली गई. उन्होंने कहा कि चाय वहीं रख दो मैं ले जाऊंगा, अम्मा सो रही हैं. चाय बनाने के बाद मैं दूसरे रूम में आराम करने चली गई. घटना के समय मैं गर्भवती थी, लेकिन बाद में हुए एक हादसे में मेरे पेट का बच्चा खराब हो गया.

“तरुण को अम्मा की हत्या करते देखने पर मैं वहां पहुंची और मैं ने तरुण से कहा, ‘तुम ने यह क्या कर दिया?’ इस पर तरुण ने मुझ से कहा, ‘तू अपना मुंह बंद रख, नहीं तो मैं तुझे भी मार दूंगा.’ फिर तरुण ने मुझ से कहा कि तुझे जिंदा छोडऩा बेकार है. तरुण गोयल ने मेरे सिर, बाजुओं व गले पर शीशा मार दिया, जिस से मेरे भी चोटें आईं. इस घटना में मुझे भी मारा और अम्माजी को भी मारा, जिस से चारों तरफ कपड़ों पर, बिस्तरों पर खून फैल गया था. मेरी चुन्नी व सूट पर खून फैल गया था.

“तब मैं ने तरुण गोयल से कहा कि मुझे छोड़ दो मेरी क्या गलती है तो तरुण गोयल ने कहा कि तुझे कैसे छोड़ सकता हंू तू तो असली गवाह है और तू तो गवाही दे देगी. चोट लगने से मैं जमीन पर बेसुध हो कर गिर पड़ी. तरुण गोयल वहां से चला गया. जब मुझे होश आया तो किचन से ही छज्जे के लिए जो रास्ता है वहां से पड़ोसी अंकल भाटियाजी का घर दिखाई देता है, मैं ने उन्हें आवाज दे कर बुलाया.”

“औब्जेक्शन मी लार्ड,” बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा, “क्या रेनू यह बता सकती हैं कि घर के लोग कौन सा शो देखने गए थे?”

इस पर रेनू शर्मा ने कहा कि मुझे नहीं पता कि ये लोग फिल्म का कौन सा शो देखने गए थे, न मैं ने उन से पूछा था. क्योंकि मैं घर की नौकरानी थी, मालिक नहीं.

“मी लार्ड मैं अदालत से दरख्वास्त करता हंू कि कमला देवी की हत्या व लूट तथा रेनू शर्मा को गंभीर रूप से घायल करने के आरोपी तरुण गोयल को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए.” सरकारी वकील अजय कुमार शर्मा इतना कह कर अपने स्थान पर बैठ गए.

                                                                                                                                         क्रमशः

मौडल नेहा का हनीट्रैप रैकेट – भाग 3

रोमांस हो गया छूमंतर

उन के कमरे में पहुंचते ही गोपाल के चेहरे से हवाइयां सी उडऩे लगी थीं. वे दोनों पुरुष पूर्णरूप से नग्न गोपाल के वीडियो बना रहे थे. उन्हें देख कर गोपाल ने नेहा से कहा, “नेहाजी, ये लोग कौन हैं और यहां पर कैसे आ गए?”

“देख भाई, हम नेहा के दोस्त हैं. अब तू हमें यह बता कि क्या तू भी नेहा से प्यार करता है?” उन में से एक आदमी बोला.

“हां, मैं नेहाजी से प्यार करता हूं. वह भी मुझे प्यार करती हैं. इसीलिए नेहाजी ने ही मुझे अपने रूम पर बुलाया था,” गोपाल ने कहा.

“देख गोपाल ,नेहा का नाम मेहर है. मेहर एक मुसलिम युवती है. उस के साथ तुझे निकाह करना होगा अपना धर्म बदल कर इसलाम धर्म स्वीकार करना पड़ेगा. बोल, अब यह सब तू कर पाएगा?” अब दूसरे आदमी ने गोपाल को धमकाते हुए कहा.

“देखो भाई, प्यार में धर्म या मजहब कोई मायने नहीं रखता. मैं हिंदू हूं और अगर नेहाजी मुसलिम भी हैं तो मैं उन्हें स्वीकार कर सकता हूं.” गोपाल ने कहा.

“अबे चूतिए, लगता है कि तुझे हमारी बात समझ में नहीं आ पा रही है. अब मैं तुझे समझाता हूं. थोड़ा ध्यान से सुन. तुझे नेहा उर्फ मेहर से निकाह करने के लिए अपना धर्म छोड़ कर इसलाम धर्म स्वीकार करना होगा. इस के लिए सब से पहले हम तेरा खतना करेंगे, उस के बाद तुझे मसजिद में ले जा कर मुसलिम धर्म स्वीकार करना होगा और तुझे मुसलिम बनना पड़ेगा. बोल, तुझे ये सब मंजूर है?” उन में से पहले आदमी ने गोपाल को धमकाते हुए कहा.

“देख भाई गोपाल, अगर तुझे इस मुसीबत से छुटकारा पाना है तो कुछ जेब ढीली करनी पड़ेगी.” नेहा उर्फ मेहर ने कहा.

“नेहाजी, मुझे आप से तो यह बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी.” गोपाल ने कहा.

“कभीकभी जिंदगी में ऐसे मोड़ भी आ जाते हैं, जिन से बच कर निकलना ही सेहत के लिए फायदेमंद होता है. मेरे आदमी तुम्हारा कोई और जुलूस वायरल कर दें, उस से पहले तुम्हें कुछ देना पड़ेगा.” नेहा ने कहा.

“नेहाजी, मेरे पास जो कुछ भी है, मैं दे दूंगा, बस आप अपने आदमियों से कहें कि मुझे कपड़े पहनने दें.” गोपाल ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

नेहा ने इशारा किया तो उन में से एक आदमी ने गोपाल के कपड़े उसे दे दिए. और गोपाल ने जब अपने कपड़े पहन लिए तो उन में से एक आदमी ने गोपाल के पर्स से सारे रुपए निकाल लिए. इस के अलावा उन्होंने गोपाल से 7 लाख रुपए औनलाइन भी ट्रांसफर करवा लिए थे.

गोपाल आटो में बैठ कर जब अपने घर आया तो उस ने हिसाब लगाया कि उस के पर्स और जेब में पूरे 50 हजार रुपए कैश था. उस के बाद उस के मोबाइल में उस का एक अकाउंट नंबर फीड था, जिस में से नेहा और उस के गिरोह ने उस के खाते से पूरे 7 लाख रुपए भी निकाल लिए थे.

वह यह सोच कर शुक्र मना रहा था कि साढ़े 7 लाख रुपए दे कर उस का पिंड छूट गया, मगर आज उसे एक फोन प्रकाश की ओर से आया और अब उस से 20 लाख रुपए की डिमांड की गई. वह अब अच्छी तरह से समझ चुका था कि वह एक मकडज़ाल में फंस गया है और उस से बाहर निकलने का एक ही रास्ता बचा है कि उसे पुलिस के पास जा कर सब कुछ सचसच बता देना चाहिए तभी उस का कुछ उद्धार हो सकता है.

गोपाल की रिपोर्ट पर हुई काररवाई

गोपाल कृष्णनन ने 2 दिन की छुट्टी ली और दूसरे दिन सुबहसुबह बेंगलुरु के डीसीपी (अपराध) बद्रीनाथ एस के कार्यालय पहुंच गया और अपनी पूरी आपबीती डीसीपी को सुना दी. चूंकि यह मामला बेंगलुरु के पुत्तेनहल्ली पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता था. गोपाल कृष्णनन को पुत्तेनहल्ली थाने भेज दिया, जहां डीसीपी के आदेश पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

बी. दयानंद, आईपीएस, पुलिस आयुक्त बेंगलुरु ने तुरंत आवश्यक दिशानिर्देश जारी कर त्वरित काररवाई के लिए डी. देवराज, पुलिस उपायुक्त (उत्तर), डा. एस.डी. शरणप्पा, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), आर. श्रीनिवास गौड़ा, पुलिस उपायुक्त (केंद्रीय), बद्रीनाथ एस., पुलिस उपायुक्त (अपराध टू), डा. भीमशंकर एस. गुलेड, पुलिस उपायुक्त (पूर्व) और रमन गुप्ता, अपर पुलिस आयुक्त (प्रशासन प्रभारी) के नेतृत्व में विशेष टीमों का गठन कर दिया गया.

गठित टीमों द्वारा पहली अगस्त, 2023 को हनीट्रैप में लोगों को फंसाने और उन से उगाही करने वाले 3 लोगों को पुलिस ने बेंगलुरु से जाल बिछा कर गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार होने वाले अब्दुल खादर, शरण प्रकाश और यासीर थे. ये तीनों मैसूर के रहने वाले थे. ये तीनों आरोपी विभिन्न आपराधिक मामलों में केंद्रीय कारागार में बंद थे तो इन की जेल में ही आपस में दोस्ती हो गई थी.

इन के साथ इन का एक और साथी नदीम था, जो फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया था. इन चारों ने बेंगलुरु की मशहूर मौडल नेहा उर्फ मेहर के साथ दोस्ती की और लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर मोटी रकम वसूलने का लालच दिया, जिस के बाद नेहा उर्फ मेहर भी इन के गिरोह में शामिल हो गई थी.

तीनों अभियुक्तों से पुलिस ने कड़ी पूछताछ कर नेहा उर्फ मेहर के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि नेहा मुंबई में भी मौडलिंग का काम करती थी जबकि हनीट्रैप का काम बेंगलुरु में किया जाता था. नेहा उर्फ मेहर को गिरफ्तार करने के लिए कर्नाटक पुलिस की एक विशेष टीम को मुंबई रवाना किया गया जहां से नेहा उर्फ मेहर को 16 अगस्त, 2023 को गिरफ्तार कर लिया गया.

खुद को मौडल बता कर करती थी अपना प्रचार

नेहा का असली नाम मेहर है. इस के सोशल मीडिया में नेहा नाम से अकाउंट्स बना रखे थे. अपने इन अकाउंट्स में उस ने अपनी मौडलिंग की तसवीरें लगा रखी थीं. सोशल मीडिया में वह हर समय ऐक्टिव रहा करती थी. वह कमउम्र के युवक, धनी लोगों, और अच्छी नौकरी करने वाले युवकों और पुरुषों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजती थी. उस की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लेते थे तो वह फिर उन से दिल खोल कर चैट करने लगती थी.