दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 3

एक दिन बिजनैस ट्रिप की बात कह कर मनु अहमदाबाद जा पहुंचा. मनु को रिसीव करने मिंटू और रश्मि स्टेशन पर आई थीं. मिंटू के पापा वहां किसी फैक्ट्री में काम करते थे. उन की 12 घंटे की नौकरी थी. प्राइवेट नौकरी, ऊपर से महंगाई में पूरे परिवार का खर्च. मनु उन के यहां 2 दिन रुका. सुकृति जानती थी कि वह मुंबई गया है. यह अस्वाभाविक भी नहीं था, क्योंकि अकसर बिजनैस के काम से वह वहां जाता रहता था.

अहमदाबाद में किराए के छोटे से मकान में मिंटू का परिवार जैसेतैसे गुजर कर रहा था. भले ही मनु की शाही आवभगत नहीं हुई, लेकिन उसे वहां जो प्यार और अपनत्व मिला, वह उस के लिए अप्रत्याशित था. बातोंबातों में रश्मि ने मनु के सामने अपनी दिली ख्वाहिश भी जाहिर कर दी थी कि 10 लाख में एक मकान मिल रहा है, लेकिन पैसे नहीं हैं. मनु के लिए उन की हैल्प कर देना मुश्किल नहीं था.

2 दिन और 2 रात का समय कम नहीं होता. इस बीच मनु की उन लोगों से जी भर कर बातें हुईं. सब से अहम बात तो यह थी कि रश्मि ने उसे मिंटू से बातचीत करने, उस के साथ घूमनेफिरने का भरपूर मौका दिया था. वह मिंटू को सिनेमा दिखाने भी ले गया था. यहां गांव जैसी पाबंदियां तो थी नहीं, सब खुले विचारों वाले लोग थे, सो मनु को यह सब बहुत अच्छा लग रहा था.

मनु ने अपनी अहमदाबाद की 2 दिनों की यात्रा में जम कर पैसा खर्च किया. अंकलआंटी और अन्य बच्चों को बहुत से उपहार ला कर दिए. मिंटू को उस ने एक गोल्डन रिंग भी गिफ्ट की थी, जिस में डायमंड जड़े थे. शायद उस की असली कीमत का अहसास मिंटू को तो क्या, उस के मम्मीपापा को भी नहीं था.

रात में जब रश्मि और मिंटू से मनु की बातें हो रही थीं तो सुकृति का जिक्र आना स्वाभाविक था. नजदीकियां बढ़ चुकी थीं, सो मनु ने रश्मि से सुकृति के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में बता दिया. अपने जीवन के एकाकीपन को उस ने इन नए अपनों के सामने खुली किताब की तरह स्पष्ट कर दिया. रश्मि के अनुभव की गहराई की थाह वह नहीं ले पाया था. उस ने अभी दुनिया देखी ही कहां थी?

मौके का फायदा उठा कर रश्मि ने कहा था, ‘‘बेटा, तुम सुकृति से शादी कर के फंस गए. अगर तुम पहले मिले होते तो मिंटू की शादी मैं तुम्हीं से करती.’’

रश्मि ने यह बात मजाक में कही थी या गंभीरता से, यह मनु नहीं समझ पाया. लेकिन इस बात से मनु इतना प्रभावित हुआ कि अब वह उन्हीं का हो कर रह गया. रश्मि आंटी और मिंटू अब उस के लिए खास बन चुके थे.

मनु शब्द के पीछे छिपी विवशता के आगे मौन था, लेकिन अब हो भी क्या सकता था? मिंटू सामने बैठी अपलक उसे ही निहारे जा रही थी. मनु के दिमाग में एक अनोखा विचार चल रहा था. शायद वैसा ही विचार इस परिवार के दिलोदिमाग में कब से बैठा था, इस का मनु को अहसास भी नहीं हो पाया था.

रश्मि उठी और दूसरे कमरे में चली गई. उस के जाते ही मिंटू ने कहा, ‘‘आई लव यू जीजू, मैं अब आप के बगैर नहीं रह सकती.’’

यह सब संयोगवश हुआ था अथवा इस के पीछे कोई पूर्व योजना काम कर रही थी, मनु को इस बारे में सोचने का मौका नहीं मिला. अब उसे मिंटू के अलावा दुनिया में कुछ नहीं दिखाई दे रहा था. रश्मि दूसरे कमरे में जा कर सो चुकी थी. दरवाजा भिड़ा दिया गया था. यह किस बात का संकेत था, मनु समझ नहीं पाया.

मिंटू आ कर उस के एकदम नजदीक सट कर बैठ गई. भावनाओं पर परिस्थितिजन्य असर होने लगा. मिंटू का स्पर्श पाते ही मनु उस की बांहों में समा गया. धीरेधीरे सब दीवारें ढह गईं. रश्मि गहरी नींद में सो चुकी थी. यह नींद कितनी गहरी थी, मनु को कुछ पता नहीं था.

मनु को लगा कि मिंटू में जोश और प्रेम का जो उफान है, वह सुकृति जैसी साधारण लड़की में नहीं है. वह बर्फ की मूरत जैसी थी, जो घर में अपने सासससुर और बड़ों की सेवा करना ही अपना धर्म समझती थी. पति को ऐसा विलक्षण सुख देने में शायद वह पूरी तरह असफल थी.

उस पूरी रात मनु और मिंटू एकदूसरे के हो कर जिए. उसी बीच उन्होंने संग जीने और मरने की कसमें भी खा लीं. सुबह रश्मि ने साफ कह दिया कि अगर वह सुकृति से तलाक ले लो तो वह उसे अपना दामाद बनाने को तैयार है.

तब मनु ने यह भी नहीं सोचा कि रश्मि ने सुबहसुबह यह बात कह कैसे दी? क्योंकि रात में मिंटू की अपनी मम्मी से कोई बात भी नहीं हुई थी. ऐसे में उन्हें बीती रात की घटना के बारे में कैसे अनुमान हो गया? शायद इसे ही बुद्धि कहते हैं. रश्मि ने 45 साल की उम्र तक भाड़ नहीं झोंका था. शतरंज का खिलाड़ी चाल चलने से पहले ही सब सोच लेता है.

मनु ने रश्मि की बातों को सिरआंखों से स्वीकार कर लिया. बैग से उस ने चैक बुक निकाली और 3 लाख रुपए का चैक रश्मि को थमाते हुए कहा, ‘‘लीजिए आंटीजी, आप मकान लेना चाहती हैं न, एडवांस दे कर सौदा कर लीजिए.’’

रश्मि ने चैक झपट लिया. सौदा मकान का हो रहा था या किसी और चीज का, इस पर बात करना बेकार है. 2 दिन अहमदाबाद में रह कर मनु ने जीभर कर एंजौय किया. उस का मन घर लौटने का नहीं हो रहा था, लेकिन मजबूरी थी, सो लौटना पड़ा. मिंटू ने जल्द आने का प्रौमिस करवा कर ही उसे छोड़ा था.

मनु में आए बदलाव को घर के लगभग हर आदमी ने महसूस किया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. मनु अब अक्सर घर से बाहर रहने लगा था. घर का कोई शख्स कहता भले कुछ नहीं था, लेकिन यह जरूर सोचने लगा था कि मसला क्या है.

गर्मियां शुरू हो चुकी थीं. कुछ दिनों बाद एक दिन मनु सूटकेस ले कर जाने लगा तो बड़े भाई ने टोका, ‘‘क्या हुआ, कहां जा रहे हो?’’

‘‘मुंबई, एक डील करनी है.’’ मनु ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.

मां से नहीं रहा गया. उस ने सख्ती से कहा, ‘‘कोई जरूरत नहीं बाहर जाने की. पहले इस बिजनैस को संभालो, आगे की बाद में देखी जाएगी.’’

मनु को यह टोकाटाकी अच्छी नहीं लगी. उस ने नाराजगी से कहा, ‘‘45 लाख की डीलिंग है मां, नहीं जाऊंगा तो हाथ से निकल जाएगी. आप कह रही हैं तो नहीं जाता. आप दे देंगी 45 लाख रुपए.’’

मां भला बिजनैस की बात क्या समझती. सुकृति ने मनु का पक्ष लेते हुए सास को समझाया, ‘‘बड़ी डीलिंग है मम्मी, 2-4 दिन में लौट आएंगे. इन्हें जाने दीजिए ना.’’

मां लाचार हो गई. मनु आराम से चला गया. जिंदगी रोजमर्रा की तरह आगे बढ़ती रही. 2 दिनों में लौटने को कहा था, लेकिन 4 दिन बीत गए और मनु नहीं लौटा. चिंता की बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन बंद था. सभी घबराने लगे. एक दिन और इंतजार किया गया. लेकिन मनु का कोई मेसेज नहीं आया. इस बीच एक बात जरूर पता चली कि उस ने किसी मित्र से मौरिशस जाने और एक सप्ताह बाद लौटने की बात कही थी.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 3

यदि लाडो को कुरेदा जाए तो दिव्या के विषय में बहुत कुछ मालूम हो सकता था. एसएचओ चतुर्वेदी कंचन के घर पहुंचे. कंचन पुलिस को दरवाजे पर देख कर डर गई. उस के चेहरे का रंग उड़ता देख इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने भांप लिया कि वह बहुत कुछ जानती है.

“क्या नाम है तुम्हारा?” कंचन को घूरते हुए उन्होंने पूछा.

“कं…च..न.” कांपती आवाज में वह बोली.

“तुम्हारा भाई बनवारी लाडो को रात 11 बजे तुम्हारे घर ले कर आया था. उस के साथ उस की सहेली दिव्या भी थी, बनवारी ने उसे कहां छोड़ दिया.”

“म… मैं नहीं जानती साहब, बनवारी यहां तो लाडो को ही ले कर आया था. उस ने मुझे कुछ नहीं बताया.”

“लेकिन जब लाडो और दिव्या के मांबाप तुम्हारे घर बनवारी से पूछताछ करने आए तो तुम ने बनवारी को भगा दिया.”

“मैं ने नहीं भगाया, वो खुद चला गया.”

“कहां गया है?”

“मैं नहीं जानती. शायद घर गया होगा.”

“उस के घर का पता बताओ.” चतुर्वेदी ने पूछा.

बनवारी के डर से मुंह नहीं खोल रही थी लाडो

कंचन ने घर का पता बता दिया. एसएचओ ने अपने साथ आए हैडकांस्टेबल को 2 पुलिस वालों के साथ बनवारी के घर दबिश डालने के लिए भेज दिया. वह लाडो से पूछताछ करने के लिए रुक गए. वह बहुत डरी हुई थी.

लाडो से उन्होंने दिव्या के विषय में प्यार से पूछा, “तुम अपनी सहेली दिव्या के साथ लाला की परचून की दुकान पर गई थी, वहां से तुम कहां गई थी? और बनवारी तुम्हें कहां मिला था.”

लाडो ने कोई उत्तर नहीं दिया. वह जमीन की तरफ देखती रही. इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने महसूस किया कि लाडो किसी सदमे से डरी हुई है. यह मुंह नहीं खोलेगी. वह कुछ सोचने लगे. यदि बनवारी लाडो को साथ लाया था तो दिव्या भी बनवारी के साथ जरूर रही होगी. कहीं ऐसा तो नहीं कि बनवारी ने ही दिव्या का रेप किया हो और उस की हत्या कर दी हो.

लाडो साथ थी, उस ने सब अपनी आंखों से देखा होगा. बनवारी ने उसे भी धमकाया होगा कि किसी से कुछ नहीं कहेगी. लाडो के भय का कारण यही हो सकता है. बनवारी ही दिव्या का कातिल है, उसी ने दिव्या को अपनी हवस का शिकार बनाया है.

चतुर्वेदी की नजर में बनवारी संदिग्ध बन गया था. उसे भगाने में कंचन का हाथ था, इसलिए वह भी दोषी थी. चतुर्वेदी विचारों के तानेबाने बना रहे थे, तभी हैडकांस्टेबल ने फोन कर के बताया कि बनवारी अपने घर से फरार है.

“उसे तलाश करो. अपने खास मुखबिर लगा दो. बनवारी इस केस का मुख्य अभियुक्त है.” इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने आदेश दिया.

बनवारी छटा हुआ बदमाश था. वह पुलिस को छका रहा था. उस के बारे में जब मालूम होता कि वह फलां जगह पर है, पुलिस वहां पहुंचती तो वह वहां से भाग चुका होता था. मगर वह कब तक भागता. पुलिस के मुखबिर उस की टोह में लगे हुए थे.

6 सितंबर को उसे कोसीकलां में मुखबिर ने देखा तो थाना यमुनापार को सूचना दे दी. पुलिस ने बहुत सावधानी से उसे कोसीकलां पहुंच कर घेरे में लिया तो वह गोलियां चलाने लगा. पुलिस ने भी गोलियां दागीं. आखिर में गोलियां खत्म हो जाने पर बनवारी हाथ उठा कर दीवार की ओट से बाहर आ गया. उसे गिरफ्तार कर के थाने लाया गया.

उस पर पुलिस ने सख्ती की तो उस ने कुबूल कर लिया कि उसी ने दिव्या से रेप किया और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. उस ने बताया कि 31 अगस्त, 2020 को वह लाला की परचून की दुकान पर सिगरेट लेने गया था. वहां अपनी भांजी लाडो के साथ दिव्या को देख कर उस के हवस का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

वह दोनों को बाइक पर बिठा कर मावली गांव के एक खेत में ले गया. जहां उस ने अपनी भांजी लाडो के सामने ही दिव्या के साथ रेप कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी. भांजी लाडो को उस ने डराधमका दिया था.

बनवारी से पूछताछ करने के बाद एसएचओ चतुर्वेदी ने उसे विधिवत गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट में पेश कर दिया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया. एसएचओ ने 5 दिन में बनवारी के खिलाफ पुख्ता सबूत, गवाह आदि एकत्र कर के पोक्सो कोर्ट के जज रामकिशोर यादव-3 की अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी.

यह केस 3 साल तक चला और अंत में डरी हुई लाडो का मुंह खुलवा कर डीजीसी (स्पैशल) वकील अलका उपमन्यु ने इस केस का रुख बदल दिया. लाडो ने अपने मामा बनवारी की करतूत कोर्ट को बताई.

कोर्ट में लाडो के बयान देने के बाद कोर्टरूम में सन्नाटा भर गया, जिसे माननीय जज राम किशोर यादव ने तोड़ा, “इस बच्ची लाडो का चश्मदीद बयान सुन लेने के बाद मुझे अपना फैसला सुनाने का रास्ता मिल गया है.

बनवारी को हुई सजा ए मौत

जज महोदय राम किशोर यादव थोड़ी देर के लिए रुके, फिर बोलने लगे, “यह वकील अलका उपमन्यु की सूझबूझ का कमाल है. इन्होंने उस बच्ची के मन से उस के मामा बनवारी का भय निकाल कर उसे न्याय के कटघरे में ला कर सच्चाई बयान करने के लिए तैयार किया. उन के उसी गवाह ने सारे केस का रुख पलट दिया. दूध का दूध और पानी का पानी हो गया.

यह कटघरे में खड़ा व्यक्ति अलका उपमन्यु की ठोस दलीलों के कारण ही आज हत्या, बलात्कार, अपहरण और साक्ष्य नष्ट करने का दोषी सिद्ध हुआ है. इस का अपराध अक्षम्य है. इस पर रहम नहीं किया जा सकता.

“इसे आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 376 (बलात्कार), 302 (हत्या) के लिए और 201 (साक्ष्य नष्ट करने) के लिए दोषी माना जाता है. पोक्सो अधिनियम 2012 की धारा 5/61 भी इस पर लगाई जाती है. यह सब 11 व्यक्तियों की गवाही, मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मृतका के स्लाइड सैंपल, डीएनए परीक्षण की बदौलत संभव हुआ. ये सब बातें इस अभियुक्त के खिलाफ जाती हैं, इसलिए इस का अपराध दुर्लभतम मान कर इसे मैं फांसी की सजा देता हूं. इसे तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक इस के प्राण न निकल जाएं.

“इस पर एक लाख रुपए का जुरमाना हत्या के लिए और रेप के लिए 30 हजार का जुरमाना भी लगाया जाता है. इस राशि का 80 प्रतिशत मृतका के पिता और मां को दिया जाए.”

सबूत न मिलने पर कंचन को बाइज्जत रिहा कर दिया गया

जज महोदय अपना फैसला सुना कर खड़े हो गए और अपने चैंबर में चले गए. फांसी की सजा सुनते ही कटघरे में खड़ा बनवारी रोने लगा. उसे उसी हालत में पुलिस वाले ले कर बाहर खड़ी कैदियों की गाड़ी की तरफ ले आए. उसे अब जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की तैयारी शुरू हो गई थी. फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति की मनोदशा को ध्यान में रख कर जेल अधीक्षक ने बनवारी को अपने संरक्षण में ले लिया. वह उसे अपनी निगरानी में रखना चाहते थे.

—कथा कोर्ट के जजमेंट व पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में दिव्या परिवर्तित नाम है.

फूल खिलने से पहले ही उजड़ गया गुलिस्तां – भाग 3

इस के बाद एक दिन जसवंत सिंह के घर श्री गुरुग्रंथ साहिब का पाठ था. जो युवक पहले हरप्रीत कौर को गिफ्ट देने आए थे, वही दोनों उस दिन भी उन के यहां फिर आ गए. उस दिन भी वे हरप्रीत को गिफ्ट देने की बात कर रहे थे. वे हरप्रीत से मिलने की जिद कर रहे थे. जब जसवंत सिंह ने उन से कहा कि हरप्रीत किसी से नहीं मिलेगी. जो गिफ्ट है वह उन्हें ही दे दें तो उन्होंने गिफ्ट उन्हें नहीं दिया और वहां से चले गए.

शादी के लिए लड़के वालों ने लुधियाना का स्टर्लिंग रिजौर्ट बुक करा लिया था. तब फोन पर जसवंत सिंह को यह भी धमकी मिली कि वे लोग लुधियाना आएं. लेकिन उन्होंने धमकियों को गंभीरता से नहीं लिया. शादी की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. शादी से 2 दिन पहले जसवंत सिंह परिवार के साथ लुधियाना पहुंच गए.

रंजीत सिंह बेटे की शादी पूरे शानोशौकत के साथ करना चहते थे. तभी तो उन्होंने स्टर्लिंग रिजौर्ट को किसी फिल्म के सैट जैसा सजवा रखा था. शादी के समारोह में पंजाब और कोलकाता के कई वीआईपी के भी शामिल होने की संभावना थी, लेकिन ऐन मौके पर अमितपाल ने पल भर में इस खुशी को रंज में बदल दिया. लाखों रुपए से बना शादी का मंडप भी वीरान हो गया. शादी समारोह में शामिल होने के लिए जो लोग रिजौर्ट पहुंच रहे थे, दुखद समाचार सुन कर वे अस्पताल पहुंचने लगे थे.

पूरे प्रकरण में अब सवाल यह उठता है कि आखिर बेकुसूर हरप्रीत कौर के ऊपर तेजाब क्यों डाला गया. उस की न तो तेजाब फेंकने वाले से कोई दुश्मनी थी और न डलवाने वाली अमितपाल कौर से. फिर हरप्रीत कौर इस की शिकार कैसे बनी? इस बारे में पूछताछ करने पर अमितपाल कौर की दिलचस्प कहानी सामने आई.

अमितपाल कौर उर्फ डिंपी उर्फ परी लुधियाना के दुगरी के रहने वाले सोहन सिंह की बेटी थी. सोहन सिंह सन 2003 में पटियाला आ गए थे और वहां ग्रिड रोड स्थित रंजीतनगर में एक कोठी खरीद कर रहने लगे थे. उन के 2 बच्चे थे. एक बेटा और एक बेटी अमितपाल कौर.

अमितपाल की शिक्षा लुधियाना में ही हुई थी. महत्त्वाकांक्षी अमितपाल बचपन से ही स्वच्छंद और अपनी इच्छा से जिंदगी जीने की आदी थी. वह खूबसूरत तो थी ही. अपनी आदतों की वजह से वह युवा होने से पहले ही बहक गई थी. कई युवकों से उस के संबंध बन गए थे. उस के जिद्दी और झगड़ालू स्वभाव की वजह से पिता भी उस पर अंकुश नहीं लगा पाए थे. थकहार कर उन्होंने उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया था.

अपनी मरजी से जिंदगी जीते हुए सन 2003 में उस ने सरदार रंजीत सिंह के बड़े बेटे तरनजीत सिंह से विवाह कर लिया और उस के साथ कोलकाता चली गई थी. कोलकाता में तरनजीत सिंह बार का बिजनेस संभालता था. शुरूशुरू में अपने प्यार से अमितपाल कौर ने रंजीत सिंह के परिवार का दिल जीत लिया, जिस के बाद रंजीत सिंह ने उसे अपने एक बार का कैशियर मैनेजर बना दिया.

शादी के कुछ दिनों बाद ही अमितपाल को पता चला कि उस का पति नपुंसक है. भले ही वह करोड़ों की संपत्ति की मालकिन बन गई थी, लेकिन पति की एक कमी ने उसे चिड़चिड़ा बना दिया था. इस के बाद घर में क्लेश होना शुरू हो गया.

इस तरह दिनप्रतिदिन वह परिवार पर हावी होती गई. अपनी शारीरिक कमजोरी की वजह से तरनजीत उस के सामने कुछ नहीं बोल पाता था. फिर भी वह उसे प्यार से समझाता, लेकिन अमितपाल कौर उस की एक न सुनती. वह यह समझता था कि अमितपाल को शायद कोई मानसिक प्राब्लम है, जिस की वजह से वह अकसर टेंशन में रहती है. इसलिए अपनी शारीरिक और पत्नी की मानसिक बीमारी का इलाज कराने के लिए तरनजीत सिंह पत्नी के साथ विदेश चला गया.

दोनों वहीं पर कई साल रहे. वहीं पर अमित पाल ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया. बाद में जिन के नाम अनंत और मिरर रखे गए. कुछ साल विदेश में रहने के बाद वे बच्चों के साथ कोलकाता लौट आए. वापस लौटने के बाद घरेलू झगड़ा, क्लेश कम होने के बजाय बढ़ता गया और तलाक तक की नौबत आ गई. तरनजीत सिंह का आरोप था कि अमितपाल कौर के कई लोगों से अवैध संबंध हैं. वह अधिकतर घर से बाहर रहती है और अपने प्रेमियों से मिलती है.

आखिर में इस विवाद का निपटारा तलाक होने पर ही खत्म हुआ. इस तलाक में अमितपाल कौर ने अपने ससुरालियों से करीब 74 लाख रुपए की चलअचल संपत्ति ली. तलाक के बाद अमितपाल दोनों बच्चों को तरनजीत के पास छोड़ कर मायके चली आई.

तरनजीत से तलाक होने के बाद अमितपाल पूरी तरह से आजाद हो गई थी. इस के बाद उस ने फरवरी, 2013 में एक एनआरआई अमरेंद्र सिंह से शादी कर ली. अमरेंद्र सिंह वेस्ट लंदन में रहता था. शादी के बाद वह वापस लंदन चला गया और अमितपाल अपने मायके पटियाला आ कर रहने लगी. लंदन जाने के बाद अमरेंद्र जैसे उसे भूल गया.

पटियाला में ही अमितपाल की मुलाकात पलविंदर सिंह उर्फ पवन से हुई. पलविंदर आपराधिक प्रवृत्ति का था, जिस वजह से उस के पिता अजीत सिंह ने उसे घर से बेदखल कर दिया था. अमितपाल को भी एक सहारे की जरूरत थी, इसलिए उस ने पलविंदर सिंह से नजदीकियां बना लीं. उन दोनों के बीच संबंध भी बन गए. फिर तो पलविंदर उस के इशारों पर नाचने लगा.

मार्च, 2013 में जब अमितपाल को इस बात का पता चला कि उस के पूर्व पति तरनजीत सिंह के छोटे भाई हरप्रीत की शादी बरनाला की एक खूबसूरत लड़की से तय हुई है तो बेवजह की एक सनक उसे चढ़ गई. उस ने ठान ली कि चाहे कुछ भी हो, वह उस के परिवार में किसी सदस्य की शादी नहीं होने देगी.

इसी ईर्ष्या के चलते उस ने अपने पूर्व ससुर रंजीत सिंह व पूर्व पति तरनजीत सिंह को भी धमकी दे डाली, ‘‘मैं तुम्हारे घर में दोबारा शहनाई नहीं बजने दूंगी.’’

ऐसी ही धमकी अमितपाल कौर ने तलाक के समय भी दी थी, इसलिए उन लोगों ने इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया था. अपने मन की बात उस ने अपने नए प्रेमी पलविंदर को भी बताई. अमितपाल के पास पैसे की कमी तो थी नहीं, जिस से वह कुछ भी करा सकती थी.

सब से पहले उस ने योजना बनाई कि कोलकाता जा कर इस परिवार का अनिष्ट किया जाए. काफी सोचनेविचारने के बाद भी वे दोनों ऐसा कोई ठोस विचार नहीं बना सके कि जिस से कोलकाता जा कर काम को आसानी से अंजाम दिया जा सके.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 2

पुलिस ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस के साथी मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. प्रमोद और मुकेश के बयान से अर्चना की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार, निर्दोष अर्चना पति प्रमोद के प्रेमसंबंधों की भेंट चढ़ गई थी.

हाईस्कूल पास करने के बाद प्रमोद ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर के कामों से वह कोई मतलब नहीं रखता था, इसलिए दिन भर गांव में घूमघूम कर अड्डेबाजी करता रहता था. अड्डेबाजी करने में ही उस की नजर गांव की सरिता पर पड़ी तो उस पर उस का दिल आ गया. फिर तो वह उस के पीछे पड़ गया. उस की मेहनत रंग लाई और सरिता का झुकाव भी उस की ओर हो गया. दोनों ही एकदूसरे को प्यार करने लगे. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सरिता पढ़ रही थी, जबकि प्रमोद पढ़ाई छोड़ चुका था. उस का पिता के साथ खेतों में काम करने में मन भी नहीं लग रहा था, न ही उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल रही थी. उसी बीच वह सरिता में रम गया तो उस का पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया. वह अपने भविष्य की चिंता करने के बजाय सरिता को सुनहरे सपने दिखाने लगा. इसी के साथ अन्य प्रेमियों की तरह साथ जीनेमरने की कसमें भी खाता रहा. लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस के पास न तो कोई व्यवस्था थी, न ही समाज उस के साथ था.

सरिता और प्रमोद का मिलनाजुलना लोगों की नजरों में आया तो गांव में उन्हें ले कर चर्चा होने लगी. ऐसे में सरिता को डर सताने लगा कि उस के प्यार का क्या होगा? क्योंकि अब तक उसे लगने लगा था कि वह प्रमोद के बिना जी नहीं पाएगी. वह यह भी जानती थी कि उस का बाप किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा, वह उस के साथ मनमरजी से भी शादी नहीं कर सकती थी, क्योंकि न तो प्रमोद ज्यादा पढ़ालिखा था, न ही वह कोई कामधाम कर रहा था. ऐसे लड़के को कौन अपनी लड़की देना चाहेगा?

यह बात सरिता प्रमोद से कहती तो वह उसे आश्वस्त करते हुए कहता, ‘‘तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाऊंगा. लेकिन हर हालत में तुम्हें हासिल कर के रहूंगा.’’

प्रमोद सरिता को कितना भी आश्वस्त करता, लेकिन वह हर वक्त तनाव में रहती. उस के लिए परेशानी यह थी कि वह प्रमोद को छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि उस का दिल इस के लिए तैयार नहीं था. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने प्रमोद से कहा कि वह कोई नौकरी कर ले, जिस से अगर घर छोड़ कर भागना पड़े तो गृहस्थी बसाने के लिए उस के पास कुछ पैसे तो हों. लेकिन तो केवल हाईस्कूल पास था. इतने पढ़े पर भला उसे कौन सी नौकरी मिल सकती थी.

प्रमोद और सरिता जीवन के रंगीन सपने तो देख रहे थे, लेकिन उन के इन सपनों का कोई भविष्य नहीं था. गांव में प्रमोद और सरिता के प्रेमसंबंधों की चर्चा हो और उन के घर वालों को पता न चले, भला ऐसा कैसे हो सकता था. सरिता के पिता जीवनराम को भी किसी ने इस बारे में बता दिया.

एक तो इज्जत की बात थी, दूसरे जीवनराम की नजरों में प्रमोद ठीक लड़का नहीं था. इसलिए वह परेशान हो उठा. घर जा कर पहले तो उस ने पत्नी को डांटा कि वह जवान हो रही बेटी का ध्यान नहीं रखती. उस के बाद सरिता को बुला कर पूछा ‘‘यह प्रमोद के साथ तेरा क्या चक्कर है? वह आवारा तेरा कौन है, जो तू उस से मिलतीजुलती है.’’

बाप की इन बातों से सरिता कांप उठी. वह जान गई कि पिता को उस के संबंधों की जानकारी हो गई है. वह उन के सामने सीधेसीधे तो अपने और प्रमोद के संबंधों को स्वीकार नहीं कर सकती थी, इसलिए उस ने कहा, ‘‘पापा, प्रमोद से मेरा कोई संबंध नहीं है. कभीकभार स्कूल आतेजाते रास्ते में मिल जाता है तो पढ़ाई के बारे में पूछ लेता है.’’

जीवनराम जानता था कि बेटी झूठ बोल रही है. जवान बेटी से ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. फिर उन्हें यह भी पता नहीं था कि बात कहां तक पहुंची है, इसलिए उन्होंने सरिता को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि तुम्हारी जिंदगी बन जाए, लेकिन अगर मुझे कुछ ऐसावैसा सुनने को मिलेगा तो मैं तुम्हारी पढ़ाई छुड़ा कर शादी कर दूंगा.’’

‘‘पापा, आप बिलकुल चिंता न करें. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कोई परेशानी हो.’’

सरिता के इस आश्वासन पर जीवनराम को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन वह निश्चिंत नहीं हुए. उन्होंने पत्नी से तो सरिता पर नजर रखने के लिए कहा ही, खुद भी उस पर नजर रखते थे. जब उन्हें लगा कि इस तरह बात नहीं बनेगी तो एक दिन वह प्रमोद के बाप से मिल कर उस की शिकायत करते हुए बोले, ‘‘प्रमोद सरिता का पीछा करता है. यह अच्छी बात नहीं है. आप उसे रोकें.’’

प्रमोद का बाप वैसे ही बेटे की आवारगी से परेशान था. जब उसे इस बात की जानकारी हुई तो वह बेचैन हो उठा, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई ऐसी स्थिति आए कि उसे मुंह छिपाना पड़े. इसलिए जीवनराम के जाते ही उस ने प्रमोद को बुला कर पूछा, ‘‘जीवनराम शिकायत ले कर आया था, सरिता से तुम्हारा क्या चक्कर है?’’

प्रमोद साफ मुकर गया. लेकिन उस का बाप अपने आवारा बेटे के बारे में जानता था, इसलिए उसे डांटफटकार कर कहा, ‘‘प्रमोद, बेहतर होगा कि तुम कोई कामधाम करो, वरना हमारा घर छोड़ दो. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी करतूतों की वजह से गांव में मेरा सिर नीचा हो.’’

प्रमोद सिर झुकाए बाप की बातें सुनता रहा. उस ने सोचा, सरिता भी कोई कामधाम करने के लिए कह रही थी. अब बाप भी घर से भगा रहा है. इसलिए अब कुछ कर लेना ही ठीक है. बाप किसी बिजनैस के लिए पैसे दे नहीं सकता था, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का मन बना लिया. उस का एक दोस्त सुरेश दिल्ली में पहले से ही रहता था. उस ने उस से बात की और दिल्ली आ गया.

प्रमोद का विचार था कि वह काम कर के खुद को इस काबिल बनाएगा कि कोई उस का विरोध नहीं कर सकेगा. दिल्ली में सुरेश ने उसे एक जींस बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी दिला दी थी. काम भी बढि़या था और पैसे भी ठीकठाक मिल रहे थे, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रमोद को सरिता की याद सताने लगी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव चला गया. उस के बाहर जाने से जहां जीवनराम ने राहत की सांस ली थी, वहीं वापस आने से उस की चिंता फिर बढ़ गई थी.

फूल खिलने से पहले ही उजड़ गया गुलिस्तां – भाग 2

उधर नगरवासियों का पुलिस पर दबाव बढ़ रहा था, जिस से पुलिस अधिकारी भी इस संवेदनशील मामले को ले कर बहुत चिंतित थे. डीसीपी ने इस केस को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी हरपाल सिंह ग्रेवाल की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में सबइंस्पेक्टर मनजीत सिंह, हेडकांस्टेबल अमरजीत सिंह, स्वर्ण सिंह, कमलजीत सिंह, बिशन सिंह, सुरेंद्र सिंह, महिला कांस्टेबल कलविंदर कौर व राजवंत कौर को शामिल किया गया.

थानाप्रभारी अब हरप्रीत के घर वालों से बात करना चाहते थे. उस समय उस के घर वाले डीएमसी अस्पताल में ही थे, इसलिए वह अस्पताल पहुंच गए. पूछताछ के दौरान हरप्रीत की मां दविंदर कौर से उन्हें कई काम की बातें मालूम हुईं.

उन्होंने बताया कि जब से हरप्रीत की शादी तय हुई है, तब से 2 युवक उन्हें कभी फोन पर तो कभी घर पर आ कर धमकी देते आ रहे थे. वे कहते थे कि अपनी लड़की की शादी वहां न करो, जहां कर रहे हो. 2 दिन पहले भी एक अनजान युवक हमारे घर फिर आया था. उस ने हम से फिर कहा था कि हरप्रीत की शादी करने लुधियाना न जाएं.

‘‘क्या हरप्रीत कौर उस युवक को जानती हैं?’’

‘‘नहीं, मेरी बच्ची उन्हें नहीं जानती.’’ दविंदर कौर ने कहा.

बातचीत में दविंदर कौर ने पुलिस को आगे बताया था कि वह बरनाला की रहने वाली हैं और विशाल नाम के किसी लड़के को नहीं जानतीं.

यह मामला कहीं एकतरफा प्यार का तो नहीं है, यह जानने के लिए थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम बरनाला भेज दी और खुद एक बार फिर उसी ब्यूटीपार्लर में पहुंचे, जहां घटना घटी थी.

थानाप्रभारी ने ब्यूटीपार्लर के संचालक संजीव से पूछा, ‘‘हरप्रीत के मेकअप की बुकिंग किस ने करवाई थी और तब से अब तक पार्लर में हरप्रीत के बारे में किसकिस के फोन आए और फोन करने वालों से तुम्हारी क्याक्या बातें हुई थीं?’’

‘‘बुकिंग तो हरप्रीत कौर के घर वालों ने कराई थी, लेकिन यहां अमितपाल कौर नाम की एक महिला का फोन अकसर आता था. वह हरप्रीत कौर के बारे में ज्यादा पूछती थी. मसलन वह ब्यूटी ट्रीटमेंट लेने और मेकअप कराने कबकब पार्लर आएगी?’’

अमितपाल कौन है, इस बारे में थानाप्रभारी ने दविंदर कौर से बात की तो उन्होंने बताया कि अमितपाल कौर उर्फ परी उन के होने वाले दामाद हरप्रीत उर्फ हनी की तलाकशुदा भाभी है.

तलाकशुदा भाभी का ब्यूटीपार्लर में फोन कर हरप्रीत के विषय में पूछताछ करना थानाप्रभारी की समझ में नहीं आया. उन्होंने हरप्रीत कौर के होने वाले ससुर रंजीत सिंह से पूछा. रंजीत सिंह ने थानाप्रभारी को जो बात बताई, उस से उन के सामने मामले की तसवीर स्पष्ट होने लगी.

उन्होंने एक पुलिस टीम पटियाला स्थित अमितपाल कौर के घर भेज दी. अमितपाल घर पर ही मिल गई. पुलिस उसे ले कर लुधियाना आई. पूछताछ में अमितपाल पहले तो इधरउधर की बातें करती रही, लेकिन जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई तो पता चला कि हरप्रीत कौर पर तेजाब डलवाने की मास्टरमाइंड वही थी. दिल दहलाने वाले इस मामले की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

पंजाब के बरनाला जिले के ढनोला रोड पर स्थित फतहनगर के रहने वाले जसवंत सिंह के परिवार में पत्नी दविंदर कौर के अलावा 2 बेटे और एक बेटी हरप्रीत कौर थी. बाल काटने की उन की एक दुकान थी. इसी पुश्तैनी काम से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. तंगी झेल कर उन्होंने बच्चों की पढ़ाई कराई.

हरप्रीत कौर का पढ़ाई के प्रति उत्साह और लगन देख कर उन्होंने उसे बीएड कराया. वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन आर्थिक हालात के कारण वह उसे और नहीं पढ़ा सके. तब हरप्रीत ने सिलाईकढ़ाई सीख ली.  बेटी जवान थी और उस की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी, इसलिए जसवंत सिंह उस के लिए कोई अच्छा घरवर देखने लगे, ताकि वह उस के हाथ पीले कर सकें.

लुधियाना में हरप्रीत की बुआ भोली रहती थी. उस की मार्फत फरवरी, 2013 में हरप्रीत कौर की शादी की बात सरदार रंजीत सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह उर्फ हनी से चली. रंजीत सिंह एक संपन्न व्यक्ति थे. वैसे तो वह मूलरूप से दोराहा के रहने वाले थे, लेकिन कई वर्ष पहले वह कोलकाता जा कर रहने लगे थे. वहां उन का होटल और बार का काफी बड़ा व्यवसाय था.

धनदौलत की उन के पास कमी न थी, इसलिए वह किसी गरीब और शरीफ खानदान की लड़की से अपने बेटे हरप्रीत उर्फ हनी की शादी करना चाहते थे. उन के पास जसवंत सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की शादी का प्रस्ताव आया तो जांचपड़ताल करने के बाद उन्हें यह रिश्ता पसंद आया और उन्होंने बेटे की शादी के लिए हां कर दी और मार्च, 2013 में रिश्ता पक्का हो गया. 7 दिसंबर, 2013 को शादी का दिन भी मुकर्रर कर दिया गया.

जसवंत सिंह और रंजीत सिंह की हैसियत में जमीनआसमान का अंतर था. जसवंत सिंह तो बेटी के लिए अपनी हैसियत का परिवार देख रहे थे. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि बेटी के लिए इतना संपन्न परिवार मिलेगा. वह इस बात से खुश हो रहे थे कि बेटी को वहां किसी तरह की परेशानी नहीं होगी.

रिश्ता तय होने के कुछ दिनों बाद ही जसवंत सिंह के यहां किसी अज्ञात व्यक्ति के फोन आने शुरू हो गए. वह कहता था कि इस रिश्ते को तोड़ दो अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होगा. जसवंत सिंह परेशान होने लगे कि पता नहीं कौन है, जो इस तरह के फोन कर रहा है? उन्होंने इस बारे में अपने होने वाले समधी रंजीत सिंह से बात की.

तब रंजीत सिंह ने कहा, ‘‘कुछ लोगों से हमारी रंजिश है, इसलिए वही लोग आप के यहां फोन करते होंगे. लेकिन आप चिंता न करें. हमारी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं है.’’

समधी से बात हो जाने के बाद जसवंत सिंह शादी की तैयारियों में जुट गए. शादी की तारीख से करीब एक, डेढ़ महीने पहले 2 अनजान युवक जसवंत सिंह के घर बरनाला आए. उन के हाथों में कुछ सामान था. उन्होंने कहा था कि वह हरप्रीत कौर की होने वाली ससुराल की तरफ से आए हैं. ये गिफ्ट हरप्रीत कौर को ही देने हैं.

जसवंत सिंह के पास पहले भी धमकी भरे फोन आए थे. उन्हें उन दोनों युवकों पर शक हो रहा था, इसलिए उन्होंने उन्हें बेटी से मिलने से मना कर दिया. इस के बाद वे युवक लौट गए थे.

जसवंत सिंह ने इस बारे में रंजीत सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी होने वाली बहू को कोई गिफ्ट नहीं भेजा था. इस बात को ले कर वह भी परेशान थे कि ऐसा कौन सा शख्स है, जो इस रिश्ते को तोड़वाने की कोशिश लगातार कर रहा है. उन्होंने जसवंत सिंह से भी कह दिया था कि ऐसे लोगों से सतर्क रहें.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 2

रुखसाना की हरकतों से सारा गांव वाकिफ था. गांव वालों से इस बात की जानकारी उस के मातापिता को हुई तो उन्होंने उसे मारापीटा और समझाया भी. आखिर मांबाप की बात रुखसाना की समझ में आ गई. इसलिए वह जाबिर से निकाह के लिए राजी हो गई. जाबिर तो उस के लिए पागल था ही, इसलिए रुखसाना के हामी भरते ही उस ने अपने अब्बू नौशे मियां से कहा, ‘‘अब्बू, मैं रुखसाना से निकाह करना चाहता हूं.’’

जाबिर की बात सुन कर नौशे मियां हैरान रह गए. क्योंकि रुखसाना अब तक गांव में इस कदर बदनाम हो चुकी थी कि निकाह की छोड़ो, कोई भला आदमी उस से बातचीत करना भी पसंद नहीं करता था. ऐसी लड़की से जाबिर निकाह की बात कर रहा था. नौशे मियां की गांव में अच्छी इज्जत थी. उन्होंने इस निकाह के लिए साफ मना कर दिया. लेकिन जाबिर ने तो इरादा पक्का कर लिया था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘अगर मेरा निकाह रुखसाना से नहीं  किया गया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा.’’

मजबूरन नौशे मियां को राजी होना पड़ा. रुखसाना के घर वालों की ओर से इनकार का सवाल ही नहीं था. क्योंकि उन की बदनाम बेटी से और कौन शादी करता. इस तरह जाबिर और रुखसाना का निकाह हो गया.

निकाह के बाद रुखसाना पूरी तरह बदल गई थी. वह पति की ही नहीं, सासससुर और देवर की सेवा पूरे लगन से करने लगी थी. घर के सारे कामों की जिम्मेदारी ले ली थी. नौशे मियां के पास काफी जमीन थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. जाबिर गांव में रह कर पिता की मदद करता था.

समय के साथ जाबिर 4 बच्चों का बाप बन गया. परिवार बढ़ा तो जिम्मेदारी और खर्च बढ़ा. जाबिर को लगा कि अब गांव में गुजारा नहीं होगा तो गांव छोड़ कर वह दिल्ली चला गया.

दिल्ली के दिलशाद गार्डेन में उस ने कबाड़ी का काम शुरू किया. कबाड़ी का काम नाम से भले ही छोटा है, लेकिन अगर मेहनत से किया जाए तो इस काम में मोटी कमाई है. जाबिर ने मन लगा कर मेहनत की. जिस का उसे फायदा भी मिला. उस की ठीकठाक कमाई होने लगी. वह जरूरत भर का पैसा रख कर बाकी गांव भेज देता था. जाबिर की कमाई बढ़ी तो उस ने रहने के लिए एक जनता फ्लैट खरीद लिया. अपना मकान हो गया तो गांव से वह अपना परिवार ले आया. बच्चों का उस ने यहीं एडमिशन करा दिया. अब समय आराम से गुजरने लगा.

जाबिर ने देखा कि कबाड़ी के काम में पैसा तो खूब है, लेकिन इज्जत नहीं है. अगर वह इसी तरह कबाड़ी का काम करता रहा तो उस के बच्चों की शादी ठीकठाक घरों में नहीं हो सकेगी. उस ने कबाड़ी का काम बंद कर दिया और स्टील वर्क्स का काम शुरू कर दिया. इस काम में भी उस ने मन लगा कर मेहनत की. उस की मेहनत रंग लाई और उस के पास सब कुछ हो गया. वह दिन में मेहनत करता और रात को चैन की नींद सोता. जाबिर अपने अब्बू को दिल्ली लाना चाहता था. लेकिन नौशे मियां ने दिल्ली आने से साफ मना कर दिया. तब जाबिर ने उन की मदद के लिए एक नौकर रख दिया. इस नौकर का नाम भी जाबिर था.

वह नौशे मियां के साथ उन के खेतों पर काम करता था. समय निकाल कर जाबिर कभीकभार पिता से मिलने रमजानपुर आ जाता और एकाध दिन रह कर चला जाता था.

काम बढ़ा तो जाबिर की व्यस्तता भी बढ़ गई. जिस की वजह से वह पत्नी और बच्चों को समय कम दे पाता था. अब तक रुखसाना 30 साल की हो गई थी तो जाबिर 45 साल का. दिन भर काम कर के जाबिर बुरी तरह थक जाता तो देर रात घर आने पर उसे बिस्तर ही दिखाई देता था. वह जल्दी से खाना खा कर सो जाता. जबकि भरपूर जवान रुखसाना को उस की नजदीकी की जरूरत होती थी. पति के सो जाने से उस के अरमान दिल में ही रह जाते थे.

रुखसाना चाहती थी कि पति घर आए तो उस से बातें करे, प्यार करे. उस के बच्चों को समय दे. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था, जिस की वजह से वह खीझने लगी थी. उसे लगता था कि जाबिर को जैसे पत्नी और बच्चों को जरूरत ही नहीं है. बस उसे पैसे चाहिए. उस के अरमानों और भावनाओं की उसे कोई परवाह नहीं है. ऐसे में अगर औरत जवान हो तो वह क्या करे? इस स्थिति में उसे उम्र के लंबे अंतराल का खयाल आया और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ.

वह देखती थी कि लोग अभी भी उसे चाहतभरी नजरों से ताकते हैं, जबकि पति उस की ओर ध्यान ही नहीं देता. पति की इस बेरुखी से उस का मन बहकने लगा तो उस की नजरें किसी मर्द को तलाशने लगीं.

रुखसाना के बच्चों को एक सरदार ट्यूशन पढ़ाने आता था. वह हट्टाकट्टा गठीले बदन का कुंवारा नौजवान था. रुखसाना का दिल उसी पर आ गया. क्योंकि वही उस के सब से करीब था. रुखसाना ने उसे लटकेझटके दिखाए तो सरदार को समझते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. फिर एक दिन रुखसाना ने उसे मौका दिया तो उस सरदार ने खुशीखुशी उस की इच्छा पूरी कर दी. सरदार ने उसे इस तरह खुश किया कि वह उस की दीवानी हो गई.

धीरेधीरे रुखसाना उस की इस कदर दीवानी हुई कि उसे लगने लगा कि वह सरदार के बिना जी नहीं पाएगी. कुछ ऐसा ही सरदार को भी लगने लगा तो एक दिन वह रुखसाना को भगा ले गया. यह सन 2008 की बात है. रुखसाना को न पति की चिंता थी, न बच्चों की. इसलिए सरदार के साथ जाने के बाद उस ने उन की कोई खबर नहीं ली.

पत्नी की बेवफाई से जाबिर को गहरा आघात लगा. लेकिन इस आघात को बच्चों की परवरिश में लग कर उस ने भुला दिया. फिर भी वह रुखसाना की तलाश करता रहा. 5 महीने बाद उसे किसी से पता चला कि रुखसाना अपने प्रेमी के साथ पंजाब में रह रही है. पत्नी को वापस लाने के लिए वह पंजाब गया. सचमुच वहां रुखसाना उस सरदार के साथ रवीना कौर नाम से रह रही थी. रुखसाना आने को तैयार नहीं थी. लेकिन उस की असलियत जब सरदार के घर वालों को पता चली तो उन्होंने जबरदस्ती उसे जाबिर के साथ भेज दिया.

जाबिर को अब रुखसाना पर यकीन नहीं रह गया था. इसलिए उस ने उसे पिता के पास गांव पहुंचा दिया. 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी रुखसाना के रुखसार में कोई कमी नहीं आई थी. साथ ही उस के अरमान भी पहले जैसे ही चिंगारी की तरह थे, जिसे सिर्फ हवा देने की जरूरत थी. आखिर गांव में जाबिर ने पिता की मदद के लिए जाबिर नाम के जिस नौकर को रखा था, उस ने हवा देने का काम किया. उसे देखते ही रुखसाना की आग भड़क उठी. उन के पास मौका ही मौका था. जाबिर घर का नौकर था, इसलिए उस का अंदर तक आनाजाना था.  रुखसाना ने इसी का फायदा उठाया और नौकर जाबिर को बिस्तर का साथी बना लिया.

रुखसाना का जब मन होता, नौकर जाबिर के साथ हमबिस्तर हो जाती. पहले तो यह काम बहुत चोरीछिपे होता रहा, लेकिन धीरेधीरे वे लापरवाह होते गए. गांव वालों को संदेह हुआ तो लोग उन पर नजर रखने लगे. जब उन्हें यकीन हो गया कि सचमुच कुछ गड़बड़ है तो उन्होंने इस बारे में नौशे मियां से बात की. उन्होंने फोन कर के सारी बात बेटे को बता दी. अगले ही दिन जाबिर गांव पहुंचा और पहले तो उस ने रुखसाना की जम कर पिटाई की, उस के बाद तुरंत नौकर को भगा दिया. 4-5 दिन गांव में रह कर जाबिर दिल्ली चला गया.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 2

पुलिस को नहीं मिला हत्यारे का सुराग

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिंह ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था.

हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था. रेनू के भाई अजय सिन्हा बारबार कह रहे थे कि उन की बहन की हत्या पति नितिन नाथ ने ही की है. पुलिस को तलाश में रेनू सिन्हा का मोबाइल नहीं मिला था, लेकिन यह तभी पता चल सकता था कि रेनू की हत्या पति ने की है या किसी अन्य ने.

बहरहाल, पुलिस ने फोरैंसिक टीम को बुला कर मौके से साक्ष्य एकत्र करने की काररवाई पूरी की और रेनू सिन्हा के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. दिलचस्प बात यह रही कि उस समय पुलिस को पूरी कोठी की तलाशी लेने का खयाल तक नहीं आया, लेकिन नितिन का कुछ पता नहीं चला.

सेक्टर 20 थाने आ कर उच्चाधिकारियों के निर्देश पर एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने भादंसं की धारा 302 में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने पास ही रखी. इस के बाद नितिन नाथ का पता लगाने और रेनू सिंह के मोबाइल की जानकारी लेने के लिए पहले दोनों के फोन की काल डिटेल्स व उन के फोन की लोकेशन निकलवाई.

लोकेशन निकलवाई गई तो पुलिस का माथा ठनका, क्योंकि रेनू सिन्हा और नितिन नाथ दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन उसी डी-40 कोठी के आसपास की नजर आ रही थी, जहां वे रहते थे. इस का मतलब साफ था कि रेनू और उन के पति के फोन कोठी के भीतर ही हैं.

आखिरकार रात 12 बजे पुलिस दोबारा और सही मायने में हरकत में आई. तब पुलिस ने रेनू सिन्हा की कोठी और उस के आसपास के मकानों की सीसीटीवी फुटेज चैक करने का काम शुरू किया. इसी दौरान पुलिस ने ये गौर किया कि रेनू का पति नितिन पिछले 24 घंटों से ज्यादा वक्त में कभी बाहर ही नहीं निकला है. हां, दिन में करीब 2 बजे एकदो लोग घर में जरूर आए थे, लेकिन उन्हें किसी ने कोठी के मेन गेट पर लगा छोटा दरवाजा खोल कर अंदर बुला लिया था.

करीब आधे घंटे बाद आगंतुक चले गए और दरवाजा फिर किसी ने अंदर से बंद कर लिया था. उस के बाद घर के भीतर किसी के आने या किसी के बाहर निकलने की कोई फुटेज नहीं थी. पुलिस ने एक बार फिर से रेनू के घर वालों को मौके पर बुलाया. सीसीटीवी कैमरे में नितिन के घर से बाहर न जाने की पुष्टि होने की बात साफ होने के बाद पुलिस ने फिर से कोठी के निचले और दूसरी मंजिल की तलाशी लेने का काम शुरू किया.

कहानी में असली ट्विस्ट तब आया, जब रेनू का पति नितिन पुलिस को उसी कोठी में छिपा हुआ मिला. असल में नितिन अपने ही मकान के पहले माले में बने स्टोररूम में छिपा हुआ था.

पुलिस ने जब रेनू की लाश बरामद की थी, तब उस ने ऊपर की मंजिल पर केवल कमरों में ही सरसरी तौर पर तलाशी ली थी. जबकि स्टोर रूम छोड़ दिया था. लेकिन रात को दूसरे चरण में पूरे घर का चप्पाचप्पा छानने की कवायद में पुलिस को घर में स्टोररूम में नितिन नाथ छिपा हुआ मिल गया.

स्टोररूम में बंद मिला हत्यारा पति

इस के लिए भी पुलिस ने एक तरकीब निकाली थी. पुलिस टीम ने 4 अलगअलग मोबाइल फोन से लगातार रेनू और नितिन के मोबाइल पर काल करने का काम शुरू किया और जबकि कुछ टीम घर के अलगअलग हिस्सों में सर्च का काम कर रही थी.

पुलिस को तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि नितिन घर में छिपा मिलेगा. पुलिस तो रेनू व नितिन के मोबाइल को तलाशने के लिए घर में सर्च कर रही थी, क्योंकि दोनों फोन की लोकेशन लगातार घर में ही आ रही थी. पुलिस जब तलाश करते हुए पहली मंजिल के स्टोररूम तक पहुंची तो इंसपेक्टर डी.पी. शुक्ला की टीम को कुछ घनघनाने की आवाज आई. लगा मानो किसी का मोबाइल वाइब्रेट कर रहा है. जहां से आवाजें आ रही थीं, वह एक स्टोररूम था.

स्टोररूम में 2 दरवाजे थे, एक दरवाजा अंदर से बंद था, जबकि उस के दूसरे गेट पर बाहर से ताला लगा था. पुलिस ने स्टोररूम के दरवाजे का ताला तोड़ा तो अंदर नितिन नाथ छिपा बैठा था. पुलिस ने जब स्टोररूम का दरवाजा खोला तो अंदर नितिन मोबाइल फोन, चार्जर, कौफी मग सब कुछ ले कर इत्मीनान से बैठा हुआ था. तब तक रात के 3 बज चुके थे. यानी जो शख्स पिछले कई घंटों से लाश मिलने वाली जगह से महज 2 मीटर के फासले पर छिपा था, पुलिस को उस तक पहुंचने में कत्ल का खुलासा होने के बाद भी 8 घंटे का वक्त लग गया.

पुलिस को अब लगा कि अगर उन्होंने सीसीटीवी फुटेज की जांच, कोठी की सही तरीके से तलाशी की होती तो ये कामयाबी दोपहर में ही मिल जाती. बहरहाल, नितिन नाथ को जब पकड़ा गया तो उस के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था. उस ने कुबूल कर लिया कि अपनी पत्नी रेनू की हत्या उस ने ही गला दबा कर की है. उस ने एकएक सच से परदा उठा दिया.

रेनू सिन्हा को जीवन में सब कुछ मिला. वह सुप्रीम कोर्ट की अच्छी वकील थीं, बेटा गिरीश अमेरिका में जौब करता है, शादी भी एक समृद्ध परिवार में हुई. लेकिन, एक चीज थी जो बीते 33 साल से सही नहीं थी. वो था रेनू का वैवाहिक जीवन.

रेनू और नितिन 33 साल पहले एकदूसरे के हुए थे, लेकिन उन का रिश्ता खुशहाल नहीं था. नितिन नाथ सिन्हा पैसे का लालची और ऐशभरी जिंदगी जीने का ख्वाहिशमंद जिद्दी इंसान था, लेकिन रेनू सीधीसादी और रिश्ते की कद्र करने वाली महिला थीं. उन का एकमात्र बेटा 15 साल पहले अमेरिका चला गया और वहीं बस गया. रेनू के भाई भी हर महीने उस से मिलने आते थे.

मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले नितिन नाथ सिन्हा का जन्म वैसे तो ब्रिटेन में हुआ था. उन के पिता ब्रिटेन में एक प्रमुख नेत्र सर्जन थे, जिन्होंने 15 साल तक लंदन में प्रैक्टिस की थी, लेकिन उस के बाद वह भारत आ गए. यहां आ कर नितिन ने उच्चशिक्षा हासिल की और बाद में 1986 बैच का भारतीय सूचना सेवा विभाग का अधिकारी चुना गया.

उस ने 25 साल पहले यानी 1998 में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली थी. इस के बाद उस ने अमेरिका की एक कंपनी में नौकरी की. यही नहीं, वह इंडियन मैडिकल एसोसिएशन में भी पदाधिकारी रह चुका है. पत्नी रेनू सिन्हा को कैंसर था, जिन का इलाज अमेरिका में चल रहा था. कुछ दिन पहले ही वह कैंसर से जीत कर घर लौटी थीं.

इधर कुछ समय से नितिन नाथ अब किसी भी तरह की नौकरी नहीं होने के कारण आर्थिक रूप से परेशान रहने लगा था. वह अपने फिजूल खर्चों के लिए रेनू या उस के भाई पर आश्रित रहता था.

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 2

बारात जनवासे पहुंच गई. मिंटू साए की तरह मनु के आगेपीछे घूम रही थी. सुकृति रिश्तेदारों में व्यस्त थी, इसलिए मनु को समय नहीं दे पा रही थी. उस ने देखा कि उस की चचेरी बहन उस की जिम्मेदारी निभा रही है. मनु बोर नहीं हो रहा, यही उस के लिए पर्याप्त था. मिंटू ने लहंगाओढ़नी पहना था.

दुलहन सी सजी मिंटू ने मनु से पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं जीजू?’’

‘‘माइंड ब्लोइंग रियली.’’ मनु ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जीजू, झूठी प्रशंसा कर के आप मुझे झाड़ पर चढ़ा रहे हैं.’’

ऐसी बात कह कर शायद मिंटू मनु को और कुरेदना चाह रही थी. अब तक मनु भी काफी खुल चुका था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘मिंटू, अपनी लाइफ में मैं ने इतनी सुंदर लड़की पहले नहीं देखी. जी चाहता है कि…’’

मनु का वाक्य पूरा होता, उस के पहले ही मिंटू तपाक से बोली, ‘‘क्या चाहता है जीजू आप का दिल? जरा हमें भी तो पता चले.’’

मिंटू की इस बात से मनु का साहस बढ़ा. उस ने बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘अगर सामने कोई खूबसूरत अप्सरा खड़ी हो तो पुरुष का दिल क्या चाहेगा?’’

‘‘क्या चाहेगा, आप ही बता दीजिए?’’ मिंटू ने मुसकराते हुए पूछा.

मनु ने कोई जवाब नहीं दिया तो पल भर बाद मिंटू ही बोली, ‘‘आप तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हैं. आय एम योर फ्रैंड जीजू, प्लीज बताइए ना.’’

मनु अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाया और दिल की ख्वाहिश जाहिर करते हुए बोला, ‘‘वांट ए किस, आई मीन लव…’’

‘‘इस में इतना शरमाने की क्या बात थी जीजू? मैं ने तो सोचा था आप…’’ इस बार मिंटू ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी. लेकिन मनु की बात उस के दिल को भेद गई थी. थोड़ा रुक कर मिंटू बोली, ‘‘मैं आप को एक गिफ्ट देना चाहती हूं जीजू.’’

‘‘क्या?’’ मनु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘एक ऐसा गिफ्ट, जो आप को बहुत पसंद आएगा.’’ मिंटू ने हंसते हुए कहा.

‘‘दीजिए, देखें तो क्या दे रही हैं अपने जीजू को?’’ मनु ने पूछा.

‘‘अभी नहीं. समय आने दो, फिर देखना.’’

मनु कुछ और कहता, जानवासे से बारात चल पड़ी. बारातियों में तमाम लोग डांस कर रहे थे. लेकिन जब मिंटू ने डांस शुरू किया तो उस ने तुरंत भीड़ से मनु को अपने साथ डांस करने के लिए खींच लिया. सुकृति भी अब उस के साथ डांस करने लगी.

बारात लड़की वालों के घर पहुंच गई. अचानक सुकृति को याद आया कि वह अपना सूटकेस लौक करना भूल गई थी. उस ने यह बात मनु से कही तो वह अपनी कार से जनवासे जाने लगा. वह पंडाल से बाहर आया था कि पीछे से दौड़ती हुई मिंटू आई और उस के साथसाथ चलने लगी. चलते हुए ही उस ने पूछा, ‘‘जनवासे जा रहे हैं क्या जीजू?’’

‘‘हां, तुम्हें भी कोई काम है क्या?’’

‘‘मुझे भी वहां से अपनी एक ड्रेस लानी है.’’ मिंटू ने कहा.

मनु के साथ मिंटू भी कार में बैठ गई. कार में सिर्फ वही दोनों थे. कार थोड़ी दूर ही चली होगी कि मिंटू ने मनु का हाथ दबा कर कार रुकवा ली. मनु कुछ समझ पाता, बिजली की सी फुर्ती से मिंटू ने मनु के गाल पर चुंबनों की बौछार कर दी. मनु भौचक्का रह गया. मिंटू ने कहा, ‘‘जीजू मेरी गिफ्ट कैसी लगी? बदले में अब आप मुझे गिफ्ट में क्या दे रहे हैं?’’

मनु की भी भावनाएं भड़क उठी थीं. उस ने भी आगे बढ़ कर मिंटू के होठों पर अपने होंठ रख दिए. मनु ने स्वयं को जैसेतैसे संयत किया. रिश्तों की नाजुकता ने आवेश पर ब्रेक लगाया तो कार आगे बढ़ी. जनवासा आ चुका था. मनु कार में ही बैठा रहा. मिंटू जा कर सुकृति का सूटकेस और अपनी ड्रेस ले आई.

भावावेश में यह सब जो हुआ था, मनु को पश्चाताप हो रहा था. उसे परेशान देख कर मिंटू ने कहा, ‘‘इतने टैंस क्यों हो रहे हैं जीजू? मैं आप की साली ही तो हूं. साली यानी आधी घर वाली. इतना हक तो बनता ही है आप का?’’

मनु थोड़ा संयत हुआ. मिंटू की दिलकश अदाएं उस पर भारी पड़ने लगी थीं. दोनों बारात में शामिल हो गए. लड़की वालों का घर आ गया. शादी की वह रात इसी तरह हंसीमजाक में बीत गई. सुबह दुलहन की विदाई के बाद सुकृति मनु की कार में बैठ गई थी. शादी निपट चुकी थी. मनु को अपना बिजनैस देखना था, इसलिए उसे लौटना था. वह चला आया, लेकिन सुकृति 2-4 दिनों के लिए रुक गई. रश्मि और उस की बेटी मिंटू के व्यवहार ने उस की जिंदगी में नए रंग भर दिए थे. मिंटू उस से रुकने के लिए जिद कर रही थी, लेकिन बिजनैस की वजह से उस का रुकना संभव नहीं था.

मनु रास्ते में ही था कि उस के मोबाइल फोन पर मिंटू के एसएमएस धड़ाधड़ आने लगे. मनु के पास इतना समय नही था कि वह जवाब देता. 2-4 के जवाब दिए, बाकी फोन पर बात कर ली. 2-4 दिनों बाद मिंटू मां के साथ अहमदाबाद चली गई.

सुकृति ने शायद उन के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता को भांप लिया था, इसलिए मनु को सचेत किया, ‘‘आप इन लोगों से ज्यादा नजदीकी मत बढ़ाइए. आप उन लोगों को नहीं जानते, धोखा उन की रगरग में बसा है.’’

मनु पशोपेश में पड़ गया. अपनों के बारे में सुकृति के विचार जान कर उसे बड़ा अजीब लगा. इस के बाद उस ने सुकृति को उन लोगों के बारे में बताना बंद कर दिया. मिंटू बारबार मनु से अहमदाबाद आने की जिद कर रही थी. उस की डिमांड पर मनु ने कुरियर से उस के लिए एक कीमती मोबाइल सेट और कुछ शानदार ड्रेसेज भेज दी थीं. यह सब पा कर मिंटू बहुत खुश हुई थी.

मनु अकसर मिंटू के लिए कुछ न कुछ भेजने लगा था. उस के मोबाइल में पैसे डलवाना तो आम बात थी. वह थी ही इतनी बातूनी. वही क्या, उस की मम्मी यानी रश्मि भी मनु से घंटों बातें करती थी. मनु को मोबाइल के बिल की उतनी चिंता नही थी, लेकिन उस के पास समय नहीं होता था.

शोरूम में ग्राहकों के सामने ज्यादा देर मोबाइल पर बात नहीं कर सकता था. इधर वह मोबाइल में इतना उलझा रहने लगा था कि शोरूम का सिस्टम गड़बड़ाने लगा था. उस में आए इस बदलाव से शोरूम के कर्मचारी हैरान थे.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 2

भांजी ने बनवारी के खिलाफ दी गवाही

लाडो कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. उस ने बड़ी निर्भीकता से कहना शुरू किया, “उस रात दिव्या की मां ने दिव्या को लाला की दुकान पर सुई लाने भेजा था. उसे मैं मिल गई तो वह मेरे साथ लाला की दुकान पर गई थी. वहां बनवारी जो मेरा मामा लगता है और डहरुआ में ही रहता है, हमें मिल गया. उस ने हमें पास बुला कर कहा, ‘कोल्डड्रिंक पिओगी तुम दोनों.’

“हम ने हां कर दी तो वह लाला से कोल्डड्रिंक ले आया. उस ने गिलास, नमकीन, सौस और प्लेट खरीदी. बनवारी मामा हम दोनों को बाइक पर बिठा कर एक गांव मावली में बाजरे के खेत में ले गया. हम ने वहां लाने के बारे में पूछा तो बोला कि तुम यहां आराम से कोल्डड्रिंक पीना, मैं दारू पी लूंगा. वहां बनवारी ने हमें गिलास में कोल्डड्रिंक भर कर पीने को दी. हम कोल्डड्रिंक पी रही थीं, मामा दारू पी रहा था.

“जब वह दारू पी चुका तो उस ने अचानक दिव्या को दबोच लिया. दिव्या चीखी तो उसे थप्पड़ मार कर जमीन पर गिरा दिया, उस की पाजामी उतार कर यह उस के साथ गंदा काम करने लगा. दिव्या रोती चीखती रही, मैं भी बदहवास हो कर चीखती रही. इस ने दिव्या को लहूलुहान कर के छोड़ा. वह दर्द से रोने लगी थी. कहने लगी मां को बताऊंगी. इस  पर मामा ने उस का गला पकड़ कर दबाया तो वह छटपटा कर मर गई. इस ने मुझे धमकाया कि किसी से गांव में कहा तो मेरा भी गला दबा देगा.

“मैं बहुत डर गई थी. यह मुझे बाइक पर बिठा कर मेरी मां कंचन के नौगांव ले गया और जब मेरी मां ने मेरे लिए परेशान हो रहे छोटे मामा को बताया कि मुझे बनवारी घर ले आया है तब मेरे छोटे मामा भोला हमें दिव्या के पिता और चाचा के साथ गांव में ढूंढ रहे थे. दिव्या के दोनों चाचा संतोष और दाजू ने कहा कि वेनौगांव आ रहे हैं तो मां को मामा बनवारी यह कह कर भाग गया कि उसे कोई जरूरी काम है. मैं ने सब अपनी आंखों से देखा है.”

एडवोकेट किशन बेधडक़ गहरी सांस भर कर कुरसी पर आ बैठे. अब उन के पास कहने को कुछ नहीं बचा था. पूरी कहानी समझने के लिए हमें घटना के अतीत में जाना होगा.

बनवारी की नीयत हुई खराब

रात के 8 बजने को आए थे. परचून की दुकान पर दाल लेने गई दिव्या अभी तक वापिस नहीं आई थी.

“कहां मर गई यह लडक़ी. आधा घंटे से ऊपर हो गया दुकान पर गए, अभी तक नहीं लौटी.” दिव्या की मां अपने आप में बड़बड़ाने लगी.

“अरी क्या हुआ, क्यों बड़बड़ा रही हो?” दिव्या के पिता ने हाथ का थैला खूंटी पर टांगते हुए पूछा.

“आप की लाडली को आधा घंटा पहले लाला की दुकान पर दाल लेने भेजा था, अभी तक वापस नहीं आई है.”

“आधा घंटा हो गया?” दिव्या का पिता हैरानी से बोला, “तुम ने देखा नहीं जा कर?”

“मैं मसाला पीसने बैठी थी… अब जा कर देखती हूं.”

“ठहरो, मैं देख कर आता हूं.” दिव्या के पिता ने कहा और तेजी से वह बाहर निकल गया.

मथुरा के यमुनापार की इस बस्ती में लाला की परचून की दुकान थी. दिव्या का पिता दुकान पर पहुंचा तो लाला दुकान बंद करने के लिए सामान अंदर रख रहा था. वहां लाला के अलावा कोई और नहीं था. दिव्या के पिता की धडक़नें बढ़ गईं. वह अपनी बेटी को वहां न देख कर घबरा गया.

उस ने लाला से पूछा, “मेरी बेटी दिव्या आधा घंटा पहले यहां दाल लेने आई थी लाला, वह घर नहीं पहुंची है.”

“दाल लेने आई थी? नहीं, दिव्या बेटी ने तो मुझ से दाल नहीं मांगी, वह तो यहां अपनी सहेली लाडो के साथ आई थी. फिर मुझे नहीं पता, मैं सामान देने में व्यस्त था.”

“कहां चली गई यह लडक़ी,” बड़बड़ाते हुए वह घर लौट आया. उस ने अपनी पत्नी को बताया कि दिव्या दुकान पर और रास्ते में कहीं नहीं दिखाई दी है तो उस की पत्नी घबरा गई. वह तेजी से घर से निकली, पीछे उस का पति भी था. बेटी को ले कर मांबाप हुए परेशान दोनों अपनी बेटी को बस्ती में तलाश करने लगे.

दिव्या की मां लाडो के घर भी गई. मालूम हुआ वह भी घर पर नहीं है. वह भी अपनी बेटी के लिए परेशान हो गए. अब दोनों ही अपनीअपनी बेटी को तलाश करने लगे. दिव्या और लाडो साथ ही थीं. दोनों में से कोई एक भी मिल जाती तो मालूम हो जाता दूसरी कहां पर है.

पूरी बस्ती छान डाली गई, लेकिन दोनों लड़कियों का कुछ पता नहीं चला. एक घंटे से ऊपर होने को आया, तब लाडो की अच्छी खबर फोन द्वारा मिली. लाडो की ममेरी बहन कंचन ने फोन कर पापा को बताया कि लाडो अपने मामा बनवारी के साथ उस के घर आई है. बनवारी अच्छा आदमी नहीं था. उस का नाम सुनते ही दिव्या के पिता और मां घबरा गए.

“कंचन से पूछो लाडो वहां आई है तो दिव्या कहां पर है?” दिव्या की मां ने परेशान स्वर में कहा.

“कंचन… लाडो के साथ दिव्या भी थी. दिव्या भी वहां आई होगी?”

“नहीं, दिव्या तो यहां नहीं आई है.” कंचन ने बताया, “बनवारी केवल लाडो को ही साथ लाया है.”

“तुम बनवारी को रोक कर रखो, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं.” लाडो के पिता ने कहा और फोन काट कर बोला, “बनवारी बुरा आदमी है. मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है. अभी बनवारी कंचन के यहां ही है. उस से मालूम होगा, दिव्या कहां पर है. आओ.”

सभी लगभग भागते हांफते हुए कंचन के घर पहुंचे जो उसी बस्ती में था. वहां कंचन और लाडो ही मिली. बनवारी वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था.

“तुम ने बनवारी को क्यों जाने दिया?” दिव्या के पिता ने गुस्से से पूछा.

“मैं ने रोका, लेकिन वह एक जरूरी काम की कह कर चला गया.” कंचन ने बताया.

उन लोगों ने लाडो से दिव्या के विषय में पूछा तो वह कुछ भी नहीं बता पाई. वह बहुत डरी हुई और सदमे में नजर आ रही थी.

पहली सितंबर, 2020 को थाना यमुनापार में दिव्या का पिता रोते हुए पहुंचा. एसएचओ महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी उस वक्त अपने कक्ष में आ कर सुबह का अखबार पढ़ रहे थे. उस ने एसएचओ को बेटी के गायब होने की पूरी बात बता दी.

एसएचओ ने दिव्या की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एक कांस्टेबल ने आ कर एसएचओ को बताया, “साहब, कंट्रोल रूम से एक संदेश हमारे लिए फ्लैश किया जा रहा है. हमारे थाना क्षेत्र के गांव मावली में एक लडक़ी की क्षतविक्षत लाश पड़ी हुई है. हमें तुरंत वहां पहुंचने के लिए कहा गया है.”

एसएचओ चतुर्वेदी के जेहन में तुरंत खयाल आया. कहीं वह लाश दिव्या की न हो. कुछ सोच कर उन्होंने दिव्या के पिता से कहा, “कंचन से हम बाद में मिल लेंगे. पास के मावली गांव में किसी लडक़ी की लाश पड़ी होने की सूचना मिल रही है. आओ, पहले मावली गांव चलते हैं.”

कुछ ही देर में यमुना पार थाने की पुलिस मावली गांव की ओर रवाना हो गई थी.

बच्ची के साथ बलात्कार के मिले संकेत

मावली गांव के एक खेत में 9 साल की मासूम लडक़ी का क्षतविक्षत शव पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर नोंचखसोट के चिह्न थे. उस के नीचे के कपड़े फटे हुए थे और खून के धब्बे उस पर दिखाई दे रहे थे. पहली नजर में लग रहा था कि उस मासूम के साथ दुष्कर्म हुआ है.

लाश देख कर दिव्या का पिता दहाड़ मार कर रोने लगा. एसएचओ को उस के रोने से ही पता चल गया कि यह बच्ची उस की बेटी दिव्या है, जिस की गुमशुदगी की वह रिपोर्ट लिखवाने आया था. एसएचओ ने फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया और उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी.

मौके पर आसपास के खेत वाले इकट्ठा हो गए थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद एसएचओ फोरैंसिक टीम का कार्य पूरा होने का इंतजार करते रहे. फिर उन्होंने दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

थाने में आ कर उन्होंने अज्ञात बलात्कारी और हत्यारे के खिलाफ एफआईआर 287/2020 में आईपीसी की धाराएं 363, 366, 302, 376 और 201 लगा कर उस पर पोक्सो एक्ट की धारा-6 भी लगा दी.

अब उन्हें दिव्या के हत्यारे तक पहुंचना था. सुखिया के अनुसार दिव्या के साथ लाडो भी थी और लाडो अपने मामा के साथ रात को 11 बजे अपनी मौसी कंचन के घर आ गई थी. दिव्या लापता थी जिस के विषय में वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

कैसे पकड़ा गया मासूम दिव्या का अपराधी? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से  आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस आ कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में आ कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है.

उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था.

जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा.

थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’

प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने आ गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है.

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई.

डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा.

पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है. लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा.