Hindi Story : तवायफ की आजादी

Hindi Story : शब्बो अपनी मरजी से तवायफ नहीं बनी थी. उसे इस की ट्रेनिंग उस के अपने घर वालों ने ही दी थी. 16 साल की उम्र में उस के मामूजान ने उसे एक मर्द के साथ कमरे में धकेला था. इस के बाद तो उस के पास मुल्लामौलवी, साधुपुजारी, नेता, माफिया, अधिकारी आदि आते रहे. इस के बाद उसे समाज से ही नफरत सी हो गई. फिर एक दिन एक प्रोफेसर साहब ने उस की ऐसी जिंदगी बदली कि…

मैं एक तवायफ हूं. तवायफ होना बुरी बात है या अच्छी बात, यह तो मैं नहीं जानती. मैं तो बस इतना जानती हूं कि मैं अपनी मरजी से तवायफ नहीं बनी थी, बल्कि मेरी खाला ने मुझे मेरी अम्मी की ढलती उम्र, बीमारी और घर की माली हालत को ध्यान में रखते हुए मुझे तवायफ बना कर बाजार में खड़ा कर दिया था बिकने के लिए. मगर मैं कभी बिकी नहीं, केवल यह लोचदार गोरी देह बिकती रही, जो घुंघरुओं के साथ जब सज कर खड़ी होती थी तो मेरी दादी के जेवर उस पर खूब फबते थे.

मीना बाजार की तीसरी गली के आखिरी छोर के कोने वाला मकान दुमंजिला तो था ही, उस के दाएं हाथ मंदिर और बाएं हाथ मसजिद थी. जैसे वह 2 संस्कृतियों के संगम पर स्थित पावन धाम हो, जहां गरीबअमीर, पढ़ेलिखे, अनपढ़ और ग्रामीणशहरी सभी स्नेहिल स्नान कर स्वयं को कृतार्थ करते थे.

सीढिय़ां चढऩेउतरने वालों में विवाहितों की संख्या ज्यादा और कुंवारों की कम होती थी. वह जैसा भी था, अच्छा था. इस लिहाज से कि यह मकान दादी के जमाने से किराएदारी में था. इस के नीचे की मंजिल की फर्श लोना लगने और सीलन की वजह से टूटने लगी थी, मगर ऊपर के फर्श में अम्मीजान के जमाने में पत्थर लगाया गया था और इस इमारत की दूसरी मंजिल सजधज कर पूरे साजशृंगार के साथ सुगंधपूरित किसी दुलहन से कम न थी. दरवाजों और खिड़कियों के परदे नए थे, मगर रसोई से बेहतर उस के बाथरूम थे.

आज ईद का दिन था. दिन में किसी से मिलनाजुलना सख्त मना था, मगर शाम बड़े ओहदेदार लोगों की होनी थी. कुछ अफसर, कुछ राजघराने और कुछ माफियाओं से भरी पूरी महफिल हो, इस के लिए दलालों को विशेष लालच दिया गया था. नृत्यशाला का मुख्यद्वार खुला था, जिस की सीढिय़ों के दोनों ओर महाबली चाचा लोग बैठाए गए थे.

भीतर की ओर परदे के बगल में खूब लालीसुरमा लगा कर पान खा कर बैठी थीं खाला और दूसरी ओर पीछे के दरवाजे पर सज कर बैठी थीं अम्मीजान, जहां से एक रास्ता आंगन को जाता था और दूसरा 2 कमरों की ओर. जहां पलंग पर सजावट के साथ गुलाब की पंखुडिय़ां बिछाई गई थीं. पलंग के दोनों ओर सुंदर सिरहानों की तरफ 2 मालाएं टंगी थीं और पास की मेज पर इत्रदान, ब्रांडी, 2 गिलास और पान के बीड़े रखे गए थे.

कमरों से लगे बाथरूम थे, जहां साबुन और तौलिए हर समय टंगे रहते थे. बाथरूम के बाहर की ओर एक बड़ा शृंगारदान था, जिस में लंबा शीशा और बेहतरीन शृंगार सामान उपलब्ध था. यह मेरी बाजारू जिंदगी की पहली रात जो सुहागरात थी, जहां किसी मर्द से एक औरत को प्यार करने पर बख्शीश मिलनी थी. मैं सुबह से ही घबराई सी इधरउधर दुबक जाती थी, मगर मेरी खाला मुझे बारबार थपकियां देते हुए अपनी पहली रात की आपबीती सुनाती थीं और कभी अम्मीजान. मुझे यह लगता था कि जैसे मैं किसी कसाई के खूंटे में बंधी एक गाय थी, जिसे पूज कर, फूलपत्र भेंट कर और खिलापिला कर बलि के लिए तैयार किया जा रहा था.

कोई कहे कि मेरी आंखें खंजर की तरह कंटीली हैं तो कोई कहे मेरे होंठ बिंबाफल और मेरे दांत अनार के दाने जैसे लगते हैं. मेरे कपोल सेब की तरह गोल सुर्ख थे, जिस के बीच में काला तिल बड़ेबड़े झुमके से छू जाता था. मेरे केश थे कि देखने वालों की आंखें बांध कर महफिल को जिंदादिली देते थे. माथे की बिंदी और हाथों के कंगन जैसे किसी जवानी का स्पर्श पाने के लिए बेताब रहा करते थे. चांदी का कामदार घाघरा अंगुलियों से फिसलफिसल जाता था.

फिर मेरी उम्र ही क्या थी, मात्र 16 के पायदान पर खड़ी थी. मगर अम्मीजान के साथ नाचतेगाते मेरी शौक के पंख उग आए थे. मैं लोगों को आतेजाते, अम्मीजान से हंसतेबोलते देखती थी और कमरे में बंद चुपचाप उन हिलती परछाइयों की ताकाझांकी कर चुकी थी. तब मेरा मन मेरे तन से पहले जवान हो उठा था. यूं तो आंखमिचौनी खेलने की आदत तो मुझे 14 की उम्र से ही बन चुकी थी. कभीकभी ख्वाबों में कोई मनचाही सूरत मुझे उठा लेती थी. कभी जब सपनों में जाती तो कोई मेरी जवान देह को मरोड़ कर इस तरह कस लेता था कि मैं बेदम हो कर सुबह बिस्तर से उठती थी. तब मैं बिलकुल नासमझ थी और मुझे कोई अनुभव न था.

हालांकि एक दिन मेरे मामू मुझे किसी मर्द के साथ अंधेरे बंद कमरे में मिलने की ट्रेनिंग दे चुके थे. वह बेशर्म रात मेरे माथे पर पसीना छोड़ चुकी थी. वस्त्र पहनने और वस्त्रहीन होने के लिए मेरी अम्मीजान ने मुझे सब हुनर सिखा दिए थे. फिर भला मामू के सामने किस की बोलने की हिम्मत थी. उसी दिन मैं ने जान लिया था कि किसी तवायफ से जिंदगी में कहनेसुनने के रिश्ते होते हैं, मगर दैहिक रूप उस के किसी से भी मर्द और औरत के ही रिश्ते दिए थे.

बाजार के पहले दिन की शाम गहरा गई थी. मेरी यह कोमल गोरी देह बिक चुकी थी. मंदिर के पुजारी को मेरे गुलाब की 2 पंखुड़ी से खिले होंठ और कजराई आंखें भा गई थीं. नाचतेनाचते आज मैं बहुत थक गई थी. चारों ओर से महफिल में मुझ पर रुपए लुटाए जा चुके थे. ढेर सारे रुपयों से मामू की थैलियां भर गई थीं और उधर मेरी खाला ने मंदिर के पुजारी को इशारा कर दिया था.

आज की रात मुझे पुजारी के साथ बितानी थी. आईने के सामने मेकअप पूरा हो चुका था. केश में फूलों के गुच्छे मोतियों की लडिय़ों के साथ गूंथे गए थे. होंठों पर लालिमा थी. कानों में कर्णफूल झूल रहे थे. माथे पर तिलक खिल रहा था. गेंद जैसे कपोलों पर सुर्खी छाई हुई थी. आंखों से चांदनी फूट रही थी. स्वर्णमालाएं थीं, जो वक्ष पर झूल रही थीं, सफेद झीने गाउन पर लाल चूनर और हाथों के कंगन मिल जा रहे थे. यूं समझो कि अम्मीजान ने उस रात मुझे इंद्र की अप्सरा बना कर कक्ष में धीरेधीरे प्रवेश करने की इजाजत देते हुए बाहर से दरवाजे बंद कर लिए थे.

कमरे में पूरा उजाला था. मैं धीरेधीरे शृंगारदान के सामने आ कर चुपचाप खड़ी हो गई थी, क्योंकि मेरी नाक की नथ मेरे चेहरे पर पड़ी चूनर से अटक गई थी. अकस्मात मुझे ऐसा लगा कि मैं डरी बकरी सी भेडि़ए की मांद में खड़ी हूं. पुजारी पलंग पर गिर्दे के सहारे बैठा मुझे घूरता रहा और मैं शराब की बोतल खोल कर उड़ेल चुकी थी. गिलास दोनों भरे थे. मैं ने जिस हाथ से गिलास बढ़ाया था, वही पकड़ा गया था. हम दोनों ने एकदूसरे को बारबार शराब पिलाई. नशा इतना चढ़ चुका था कि हम दोनों होश में न थे.

जब बाहर से दरवाजा खुला और मैं होश में आई तो सुबह के सूरज की किरणें रोशनदान से भीतर झांकने लगी थीं और मैं अर्धनग्न बिस्तर पर उल्टी पड़ी थी. मेरे हाथ खून से सने थे और एक खून से सना चाकू पलंग के नीचे पड़ा था. यह देख कर मैं चौंक पड़ी और घबरा गई. मैं ने अपने बगल पड़े पुजारी को देखा तो उस के पेट के घावों से खून बह कर बिस्तर पर फैल गया था. फिर तो मैं थरथरा गई थी और जोरों से चिल्ला उठी.

मेरे मामू भागते हुए मेरे कमरे में आए और मेरा मुंह अपने हाथों से दबा कर मुझे दूसरे कमरे में ले गए, जहां मेरी खाला अम्मीजान के साथ मशविरा कर रही थीं. जैसे इन लोगों को इस घटना की जानकारी मुझ से पहले थी. मुझे पहले डांटा गया, फिर पुलिस के सामने चुपचाप उन के बताए अनुसार बयान देने की तमीज सिखाई गई.

औरत अपनी जिंदगी में क्या कुछ नहीं देखती, मगर मैं ने इतनी छोटी उम्र में जो कुछ देखा था, वह किसीकिसी को ही देखने को मिलता होगा. उस दिन मुझे लगा था कि जिंदगी तमाम घटनाओं का योग है जो आम आदमी की जिंदगी में नदी की धार की तरह हिलकोरें मारती और कगारों को तोड़ती हुई पत्थर को भी रेत बना देती है. जहां आदमी के आदमी होने का मकसद अधूरा रहा जाता है, जहां हाशिए का आदमी उछाल मार कर मुखपृष्ठ पर आ जाता है और फिर मुखपृष्ठ अपनी जगह से गायब हो जाता है.

कई बरस बीत गए. घटना की पुलिसिया जांचपड़ताल होती रही. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नशे की हालत में आत्महत्या कर लेने की बात जगजाहिर हो चुकी थी और रोजरोज अखबार के पन्नों पर अक्षरों की स्याही चढ़ती रही. मगर कुछ नहीं हुआ. पुलिस के कुत्ते मेरे जिस्म से खिलवाड़ करते रहे, पूरीपूरी रात अंधेरे कमरों में ले जा कर मुझे भोगते रहे और मेरे मामू मोहल्ले के माफियाओं तथा नेताओं की शागिर्दी करते रहे.

बाद में एक रात मसजिद के मौलवी मामू से मिलने आए थे. रुपयों की गड्डियां पकड़ाते हुए बोले, ”रहमान भाई, मुकदमे की परवाह न करना. खुदा चाहेगा तो सब ठीक हो जाएगा मगर हम मसजिद के बगल के मंदिर में कोई पुजारी नहीं देखना चाहते.’’

मामू बोले, ”खुदा की कसम, सच कहता हूं मौलवी साहब, अगर आप का हाथ मेरे सिर पर है तो कोई पुजारी मेरी खूबसूरत शब्बो को छू भी नहीं सकता.’’

मौलवी ने कहा, ”ये साला पुजारी, जब नमाज पढऩे का वक्त होता, तभी अपने घंटेघडिय़ाल, शंख बजाने लगता था और यह सुन कर मेरी आंखों में खून उतर जाता था.’’

मामू हंस कर बोले, ”चलो, अब तो चेहरे पर मुसकान लाओ, मैं ने तो अब आप के पांव का कांटा निकाल कर फेंक दिया.’’

मौलवी उठ कर चलने को हुए ही थे कि अम्मीजान ने उन के गले में अपनी बाहें डालते हुए अंगड़ाई ले कर कहा, ”तो मेरी ओर न देखो, मगर शब्बो को तो चूमते जाओ.’’

यह सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मैं सोचने लगी, ‘ये मसजिद के नमाजी लोग भी इन कोठों पर कैसे सीढिय़ां चढ़ कर अपनी हवस मिटाने आते हैं? इन्हें खुदा से भी डर नहीं लगता.’

मैं बड़बड़ा ही रही थी, तभी पीछे से किन्हीं 2 हाथों ने मेरी दोनों आंखें बंद कर मुझे घसीट लिया था और मैं बिस्तर पर पांव मलतेमलते शिथिल हो गई थी. पूरी रात वो मुझे भोगता रहा. उस दिन से मुझे नेता, माफिया और अधिकारियों की तरह मुल्लाओं, मौलवियों, साधुओंपुजारियों से नफरत हो गई थी. नफरत क्यों न हो जाती? इन्हीं लोगों ने तो हम लोगों को तवायफ होने के लिए मजबूर किया था. एक औरत को बाजार में बिकने की इजाजत दी थी. फिर तवायफ न होती तो क्या होती?

पेट की भूख मिटाने के लिए हम ने इंसानी भेडिय़ों को अपना मांस नोचने का आमंत्रण दे डाला था. इसीलिए मुझे किसी एक व्यक्ति से शिकायत नहीं, बल्कि उस व्यवस्था से थी, जो तरहतरह के मुखौटे लगा कर मेरे तलवे चाटने आती थी. कहीं ऊंट की चोरी निहुरेनिहुरे करने वाले सच्चाई से मुकाबला करने का साहस जुटा सके हैं?

सच कहती हूं मैं. मेरा जिस्म भले ही मैला हो गया था या बेजान हो कर पाप में पथरा गया था, मगर मेरे भीतर की चेतना सच का सामना करने से कभी कतराई नहीं थी. वह तो आईने की तरह पाकसाफ थी, क्योंकि मैं ने कभी किसी को छला नहीं था, किसी से कुछ मांगा नहीं था और किसी की परछाई से अपना रिश्ता जोड़ा नहीं था. इसलिए कि मेरे लिए प्रेम का कोई नया अर्थ होता था, जहां देह से देह का मिलन होता है, आत्मा से आत्मा का नहीं. जहां नदी की गहराई और सागर की संवेदना से कभी दूरदूर का ताल्लुक नहीं होता बल्कि तट की सीढिय़ों को कुचल कर आगे बढऩे वाले हमें घूम कर भी नहीं देखते.

शायद उन के लिए औरत एक वस्तु होती है, जो जरूरत पूरी होने पर फेंक दी जाती है. जिसे इस दुनिया के लोग मौका पा कर अपनाते तो हैं, चोरी से ही सही, मगर वे ही समाज के धरातल पर उस के घृणा और छुआछूत का ढोंग रचाते हैं और वह है कि सब कुछ जान कर अपनी आंखों पर चश्मा चढ़ाए हुए कुछकुछ अनदेखा कर जाती है. उन मर्यादा पुरुषोत्तम की आंखों से अपनी आंखें मिलाती भी नहीं. वह दिन मेरी जिंदगी में एक भूकंप ले कर आया था, जिस दिन प्रो. लक्ष्मण मेरे कोठे पर नशे की हालत में चढ़ आए थे. उन का शहर में बड़ा नाम था. उन्होंने कई उपन्यास और नाटक लिखे थे और शहर में जब कोई उत्सव होता था तो वे उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हुआ करते थे.

उन का न तो कभी किसी तवायफ से ताल्लुक था और न इन संकरी गलियों से, लेकिन न जाने कैसे उन के डगमगाते पांव कोठे की सीढिय़ां चढ़ कर मुजरा सुनने आ गए थे. उन्होंने आते ही खाला और अम्मीजान से मुजरा सुनाने की अपनी इच्छा जाहिर की. अधेड़ उम्र, सांवला चेहरा, सुंदर बनावट, घुंघराले बाल. सब कुछ कुरतापैजामे में एक शरीफ आदमी के भटक कर किसी तवायफ के जाल में फंस जाने की पहचान दे रहे थे. कभी वह हम सब को देख कर हंसते तो कभी अपनी शायरी सुनाते हुए पैनी आंखों से घूरघूर कर संदेह की नजर से देखते थे.

उस दिन मैं ने अपना मनचाहा ग्राहक समझ कर उन्हें कई गजलें सुनाई थीं. मैं उन के पास ही बैठी थी और वह मुझे बख्शीश देते जा रहे थे. हर गजल उन के लिए लाखों की लग रही थी. पहली बार मैं ने किसी गजल के उस्ताद को देखा था, जो हर गजल को सुन कर अपनी राय देता था और उस के बदले में बख्शीश भी.

कुछ देर बाद वह बोले, ”आप का नाम क्या है?’’

मैं ने धीरे से उत्तर दिया, ”शब्बो!’’

उन्होंने मुझे पास बुला कर मेरी पीठ थपथपाई और कहा, ”क्या किसी मंच पर पहुंच कर गजलें पेश कर सकती हो?’’

न जाने क्यों यह सुनते ही मैं रोमांचित हो उठी थी और उस समय वह मुझे एक पैगंबर लगे थे. मेरी आंखों के आंसू उन के रुमाल पर गिर गए थे और मैं खालाजान के डर के मारे वहां से उठ कर भीतर भाग गई थी. इस रहस्य को उन्होंने नजदीक से समझ लिया था. इसीलिए उन्होंने मेरी अम्मीजान से रात कोठे पर ही बिताने की इच्छा जाहिर की थी. जब मैं सजधज कर उन के कमरे में गई तो वे नशे में चूर थे. शीशे के सामने पहुंचते ही मुझे पुजारी की याद आई. मेरी आंखों के आगे प्रो. लक्ष्मण की जगह पर उस की लाश पड़ी दिखाई देने लगी थी क्योंकि वह नशे में धुत पड़े थे. मैं दोबारा वह घटना घटित होने नहीं देना चाहती थी. इसलिए मैं ने भीतर से भी दरवाजा बंद कर लिया था.

हालांकि इस बात के लिए मैं कई बार डांट खा चुकी थी. खाला ने मुझे डांट कर कहा था, ”तू दरवाजा भीतर से मत बंद किया कर, कभी तवायफ का कसाइयों से पाला पड़ जाता है, तब तुझे कौन बचाएगा?’’

यह सुन कर मैं सहम जाती थी. मैं ने कई बार लक्ष्मणजी को जगाने और उठाने की कोशिश की, मगर वे आंखें नहीं खोल सके. मैं ने उन की दशा देख कर यह समझ लिया था कि न तो वे कभी शराब पिए थे और न ही किसी तवायफ के कोठे पर चढ़े थे. बालकों की तरह निश्ंिचत हो कर वह चुपचाप पड़े रहे और मैं बिस्तर पर बैठी उन के हाथपैर सीधे करती रही. उन की जेब के ढेर सारे रुपए बिखर कर बिस्तर पर पंखुडिय़ों के साथ मिल गए थे. मैं उन के घुंघराले बालों से खेलती हुई कब सो गई, मुझे भी पता नहीं था.

रात गहरी थी और मैं एक बार जाग कर फिर लेट गई थी. कुछ देर में उन्हें उठता देख कर मैं ने अपनी आंखें मूंद लीं. उन्होंने मुझे अपनी गोद में ले लिया और धीरेधीरे मेरे चेहरे पर बिखरे हुए बाल संवारने लगे थे. मुझे उन की यह आत्मीयता और किसी से नहीं मिल पाई थी. मुझे लगा कि मैं किसी शरीफ की गोद में लावारिस सी विश्राम कर रही हूं. मुझे जिस के सहारे की जरूरत थी, वह मिल गया था. उन्होंने मुझे जगाते हुए कहा, ”शब्बो! हमारे देश में औरत एक ढोल की तरह है. आदमी उसे जिस तरह चाहता है, उस तरह बजाता है. औरत को आदमी की इच्छानुसार बजना भी पड़ता है, मगर ढोल भीतर से खाली होती है तभी बजता है.’’

मैंने कहा, ”जी, हुजूर! औरत तो ‘यूज ऐंड थ्रो’ के लिए होती है आजकल. फिर तवायफ को इस समाज की वह वस्तु समझ लीजिए जो अंधेरे में चूमी जाती है और उजाला होते ही फेंक दी जाती है.’’

वह बोले, ” शब्बो, इस का मुझे अफसोस है. मैं तो अपने घर की दीवार लांघ कर कहीं नहीं गया मगर आज..!’’

मैं ने तुरंत पूछा, ”मगर आज क्या?’’

वह गंभीर हो कर बोले, ”आज तुम मेरी बाहों में हो. मैं स्वयं यहां अपने को पा कर आश्चर्य में हूं. शराब के नशे में मेरे पांव इधर आ गए… और यह शराब जो तुम्हारी तरह पहली बार मेरे सिर पर सवार हो गई है.’’

मैं तुरंत उन की ओर देख कर उठ बैठी और बोली, ”नहीं, हुजूर! मैं तो आप के पैरों की जूती हूं, मैं आप के सिर चढऩे का हक कहां रखती हूं.’’

यह सुनते ही उन्होंने मुझे कई बार अपने हृदय से लगाया और कई बार चूमा. थोड़ी देर खामोश रह कर फिर बोले, ”शब्बो, क्या तुम इस नर्क से बाहर निकलना पसंद करोगी?’’

यह सुन कर मैं चौंक पड़ी, जैसे कोई मेरे मुंह की बात छीन ले गया हो. मैं ने उन के होंठ पर अंगुली रखते हुए कहा, ”हुजूर, आप मेरा इम्तिहान न लें, बल्कि यह वादा करें कि आप इस कोठे पर मेरे लिए आते रहेंगे.’’

प्रो. लक्ष्मण ने कहा, ”यह मेरे प्रश्न का उत्तर तो नहीं है. हो सके तो तुम्हें पिंजरे से बाहर अपने मन को खोल कर खुले आकाश में खुली सांस लेनी चाहिए.’’

”कौन पिंजरे का पक्षी है, जो उस आकाश को छूना नहीं चाहता. मगर उस के पर खुलें तब न..!’’

”बस, बहुत हो गया शब्बो! अब तुम बाहर चलने के लिए तैयार हो जाओ.’’ वे बोले.

मैं ने कहा, ”क्या बात करते हैं आप. अब अंधेरा और गहराने लगा है.’’

मैं मन ही मन सोचने लगी कि अभी तक हमारे पीछे दुनिया थी तो मैं भाग रही थी और जब दुनिया के पीछे मैं हो गई हूं तो वह भाग रही है. यह समाज की कैसी विडंबना है. प्रो. लक्ष्मण किसी तरह भी कोठे पर बारबार आने के लिए राजी न थे और न ही मुझे इस पेशे में बंधे रहना ही देख सकते थे.

उन्होंने नारी निकेतन में पहुंच कर मुझे सुरक्षित रहने के लिए प्रेरित किया था. वह चाहते थे कि मैं इस माहौल से बाहर निकल कर नारी के वजूद के लिए संघर्ष करने की हिम्मत जुटाऊं. प्रोफेसर सारी रात नारी विमर्श करते रहे और यह भूल गए कि वह इस कोठे पर क्यों चढ़े थे? उन की अंदरूनी सच्चाई उन की आंखों से झांकने लगी थी और वे मुझे इस जमाने के बहादुर योद्धा की तरह दिखाई देने लगे थे. कुछ शरीफ लोग मुझे झूठे आश्वासन दे कर मेरे भोलेपन का फायदा उठा रहे थे. मगर प्रोफेसर मुझे भोले लग रहे थे और मैं उन के भोलेपन का फायदा उठाने की कोशिश करने लगी थी.

आज मैं कोठे से उतर चुकी थी और पुलिस की मदद से नारी निकेतन के उस सहायता केंद्र में पहुंच चुकी थी, जहां प्रो. लक्ष्मण मेरा इंतजार कर रहे थे. मेरे पहुंचने से पहले मेरे मामू अम्मीजान के साथ वहां मौजूद थे. यह देख कर मैं संकुचित हो गई थी, एक भय जो मामू की पिछली मार का मेरे मन में भरा था, उभर आया था, लेकिन प्रोफेसर को देखते ही मैं फिर से सचेत हो गई थी. उन्होंने मुझे अपने पास बुला कर बैठा लिया था. मेरे भीतर की पीड़ा अब आग बन कर धधक उठी थी.

अब मैं कोठे के पिंजरे से बाहर निकल कर हकीकत की जमीन पा चुकी थी. एक नई जिंदगी का एहसास मेरे दिलोदिमाग की खिड़की खोल चुका था. भले ही मेरे हाथों में मेहंदी और मांग में सिंदूर न लगा हो, मगर औरत को दुनिया में औरत होने की समझ मुझ में विकसित होने लगी थी. हां, एक बात और भी थी, जिंदगी कई कोणों पर चमकने लगी थी. प्रो. लक्ष्मण ने मुझे नारी निकेतन के पुस्तकालय का इंचार्ज बनवा दिया था. अब मैं पुस्तकों के बीच अपने युग के पन्नेपन्ने से परिचित होने लगी थी.

उन्होंने मुझे कूप मंडूक होने से बचा लिया था. जब भी समय मिलता तो लक्ष्मण मुझ से मिलने के लिए आ जाते थे और जब मुझे मौका लगता तो मैं उन से मिलने की इच्छा रखते हुए भी नारी निकेतन की सीमा से बाहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी. एक तो मेरे मामू का भय जो मुझे था. दूसरे प्रो. लक्ष्मण जैसे महान लोगों की मर्यादा और प्रतिष्ठा को मेरी वजह से कोई चोट पहुंचे, यह मैं सहन भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि वे ही मेरे संरक्षक और आराध्य थे.

मैं हिंदी उर्दू दोनों भाषाओं की अच्छी जानकारी रखती थी, जिस के कारण पुस्तकों का रखरखाव और पठनपाठन भली प्रकार कर लेती थी. इधर मैं नारी निकेतन की नारियों को पढ़ाने भी लगी थी और छोटी बच्चियों को नृत्य भी सिखाने लगी थी. पूरा निकेतन मेरा कार्यस्थल था और मैं हर दरवाजे पर दस्तक दे कर सभी की खोजखबर लेती थी. इन दिनों मेरे परिचय का दायरा भी बढऩे लगा था. कई स्कूलों में मुझे नारी विमर्श के लिए आमंत्रित भी किया जा चुका था. धीरेधीरे सभाओं और समारोहों में जाने का सिलसिला शुरू हो गया था. एक दिन मैं प्रो. लक्ष्मण के निवास पर पहुंच गई.

जाने क्यों मेरा मन अशांत था. मैं उन के निकट पहुंचना चाहती थी. प्रोफेसर बिस्तर पर जाने ही वाले थे कि मैं ने दरवाजे पर दस्तक दी. उन्होंने उस रात इस अचानक मेरे आने का कारण पूछा, ”शब्बो तुम, इतनी रात बीते यहां, कहो सब कुशल तो है?’’

मैं ने उत्तर दिया, ”जी, सब कुशल है. बस, यूं ही कमरे में जी नहीं लग रहा था तो आप की तरफ चली आई.’’

”यह तो मेरे प्रश्न का सही उत्तर नहीं.’’ उन्होंने कहा.

मैं चुपचाप खड़ी रही.

वह बोले, ”बैठ जाओ, तुम्हारे आने से मुझे कोई परेशानी नहीं, मगर यह मिलने का समय नहीं है.’’

मैं हंस कर बोली, ”तो क्या जब आप कोठे पर गए थे, तब मुजरा सुनने का वक्त था.’’

वह थोड़ी देर मौन रहे फिर बोले, ”हूं, तो तुम कहना क्या चाहती हो?’’

मैं उन से धड़ल्ले से बोली, ”मैं आप के साथ आई थी और अब आप बिना एक पल नहीं रह सकती.’’

”क्या तुम्हें नारी निकेतन में कोई परेशानी है.’’ उन्होंने मुझ से पूछा.

”नहीं, मगर नारी केवल रोटियों पर जिंदा नहीं रह सकती.’’ मैं ने अपनी बात उन के आगे रख दी.

वह बोले, ”इसीलिए मैं ने तुम्हें भारतीय समाजवादी पार्टी का बैनर दिया है. जाओ, इलेक्शन की तैयारी करो और नारी के अधिकारों के लिए लड़ो. इस देश में नारी का कभी शोषण न होने पाए.’’

”मगर मुझे आप का प्यार चाहिए, संरक्षण चाहिए.’’ मैं बोल उठी.

”हांहां, ये दोनों मिलेंगे तुम्हें. पहले तुम्हें एक संपूर्ण नारी हो कर जीना सीखना होगा.’’

”क्या मैं कहीं से कमतर हूं? आप को नारी नहीं लगती?’’ मैं पुन: बोल पड़ी.

वह बोले, ”अभी तुम्हारे भीतर कहीं तवायफ जिंदा है, तुम्हें उसे भी मारना होगा.’’

मैं उन के करीब जा कर बोली, ”जरा आप मेरी आंखों में झांक कर देखिए, क्या मैं अब भी आप को तवायफ दिखाई देती हूं. क्या मेरी देह से आप को किसी तवायफ की बू आ रही है.’’

”नहीं, शब्बो नहीं, तुम एक सहज नारी हो, मगर भारतीयता का आदर्श ओढ़ कर मेरे पास आ गई हो. तुम भीतर से तवायफ और बाहर से नारी क्रांति की अपराजिता लगती हो.’’ यह कहते हुए वह मुझे अपने हाथों से थपथपाने लगे थे.

मैं सुबह होतेहोते प्रोफेसर के मकान से बाहर निकल चुकी थी. मेरा माथा घूम रहा था. मेरी देह थरथरा रही थी. मेरे होंठों से किसी के निश्छल प्यार की गंध उठ रही थी. मेरी आंखों में नींद की जगह उन के चुंबन का स्पर्श कड़ुवाने लगा था. सुबह जब मैं कमरे में बैठ कर चाय पी रही थी, तभी किसी के दस्तक की आवाज सुनाई पड़ी. मैं ने अपने को ठीक से संभाला. आज मैं बहुत खुश थी, मेरे पांव उडऩे लगे थे. मुझे लगा कि प्रोफेसर मेरे घर आ पहुंचे हैं, किंतु जब दरवाजा खोला तो अपर्णा को सामने देखा. मुझे लगा कि दुनिया के झोंके मुझे धकिया रहे हैं.

आज का दिन मेरी जिंदगी की खुशहाली का दिन था, जिस का अहसास कोई औरत अपने प्यार को प्रियतम के हाथों पा कर ही कर सकती थी. प्रोफेसर मेरी जिंदगी में बहार बन कर आए थे. मेरे घर कहीं दीवाली थी तो कहीं होली थी. मैं ने न जाने कितने रूपों, रंगों में आज अपने खिले हुए गुलाबी मन को गुब्बारे की तरह उड़ाया था. आज प्रोफेसर के आने की प्रतीक्षा हो रही थी. मैं ने गेट से ले कर पूरे नारी निकेतन के भीतरी कक्ष को फूलों से सजाया था. मुख्यद्वार से अपने कक्ष तक पंखुडिय़ों के पांवड़े बिछवाए थे. गजरों से मंच को सजाया गया था. न जाने क्यों, मेरा मन उड़उड़ जाता था.

मगर प्रतीक्षा की घड़ी धीरेधीरे समाप्त हो रही थी. एक औरत को अपनेपन का आभास तब तक होता है, जब तक उस का प्रिय उस के द्वार पर दस्तक देने आता है. मन शून्य में बिचर रहा था और आशंका भरी मेरी देह मुझे ही काटने लगी थी. आज उन का अभिनंदन समारोह मनाया जाना था. सभाकक्ष के लोग एकएक कर जाने लगे थे. मगर उन के पांव नारी निकेतन के द्वार तक न आ सके. फोन की घंटी कई बार बज चुकी थी. मैं ने बेमन उसे उठा ही लिया था. कोई कह रहा था, ”प्रो. लक्ष्मण अब इस संसार में नहीं रहे. जब वह समारोह की ओर आ रहे थे, तभी असमय उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था.’’

इतना सुन कर मैं ने फोन जमीन पर फेंक दिया था. वह जमीन मेरे पांव के नीचे से खिसक गई थी.

 

 

Crime story : लूटे हुए लाखों रुपए को घर की ही जमीन में गाड़ा

Crime story : राजामहाराजाओं का बसाया हुआ जयपुर शहर सैकड़ों साल पुराना है. कभी इस शहर के चारों ओर परकोटा हुआ करता था. अब ये परकोटे टूट चुके हैं. फिर भी पुराने शहर को परकोटा ही कहते हैं. इसी परकोटे में किशनपोल बाजार है. इस बाजार में एक खूंटेटों का रास्ता है. खूंटेटों का रास्ता की एक संकरी गली में भूतल पर केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी का औफिस है. इसे कंपनी का औफिस भले ही कह लें, लेकिन यह पुराने शहर के एक मकान का कमरा है. कमरे में 2-4 कुर्सियां और एक काउंटर आदि रखे हैं. दरअसल, यह एक

हवाला कंपनी का औफिस है. आजकल हवाला कंपनी को मनी ट्रांसफर कंपनी भी कहते हैं. इस औफिस में न तो बिक्री लायक कोई सामान है और न ही यहां ग्राहक आते हैं. दिनभर में यहां 10-20 लोग आते हैं. वे कोई पर्ची या मोबाइल में सबूत दिखाते हैं और औफिस में काम करने वाले कर्मचारी उस की पहचान कर पर्ची या मोबाइल में मौजूद सबूत के आधार पर रकम गिन कर दे देते हैं. हवाला का कामकाज ऐसे ही चलता है. हवाला का काम सभी बड़े शहरों में होता है. यह काम बैंकों जैसा ही है. फर्क बस इतना है कि बैंकों में लिखापढ़ी और नियमकानून हैं. जबकि हवाला में कोई नियमकानून नहीं है. हवाला को आप घरेलू बैंक भी कह सकते हैं. इस के जरिए मामूली कमीशन पर एक से दूसरी जगह पैसे भेजे जाते हैं.

एक पर्ची पर रकम लिख कर दे दी जाती है. यह पर्ची दिखाने पर जहां रकम भेजी जाती है, वहां से ली जा सकती है. हवाला के जरिए कितनी भी रकम भेजी जा सकती है. 10-20 हजार से लेकर 10-20 लाख और 10-20 करोड़ रुपए तक. कानून की नजर में यह काम अवैध है, फिर भी यह धंधा बहुत सालों से चल रहा है. केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी. बात इसी 10 मार्च की है. केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी के 2 कर्मचारी प्रियांशु उर्फ बंटी और पार्थ औफिस में बैठे थे. दोनों के पास कोई खास काम तो था नहीं, इसलिए मोबाइल पर वाट्सऐप चैटिंग कर रहे थे. दोपहर के तकरीबन साढ़े 12 बज चुके थे. उन्हें भूख लगने लगी थी.

कंपनी के इस औफिस में कोई लंच ब्रेक नहीं होता. इसलिए भूख लगने पर वे एक ही मेज पर टिफिन खोल कर घर से लाया भोजन कर लेते थे. कभी कुछ खाने या किसी दूसरी चीज की जरूरत होती, तो उन में से एक कर्मचारी बाजार जा कर जरूरत की चीज ले आता था. प्रियांशु और पार्थ लंच बौक्स लाए थे. वे लंच करने के लिए आपस में बात कर रहे थे, तभी एक युवक सीढि़यां चढ़ कर औफिस में आया. उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. सफेद रंग की शर्ट और जींस के अलावा उस के पैरों में स्पोर्ट्स शूज थे. सिर पर हेलमेट लगा होने के कारण उस का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था. युवक के कंधे पर एक बैग लटक रहा था.

पार्थ और प्रियांशु ने युवक को आया देख सोचा कि वह रकम लेने आया होगा. वे दोनों उस से कुछ कहते या पूछते, इस से पहले ही उस ने फुरती से अपने बैग से एक पिस्तौल निकाली और दोनों को धमकाते हुए कहा, ‘‘चिल्लाना मत, वरना ठोक दूंगा.’’

पिस्तौल देख और युवक की धमकी सुन कर दोनों कर्मचारी सहम गए. दोनों को धमकाते हुए युवक ने उन के मुंह पर सेलो टेप चिपका दी ताकि वे शोर ना मचा सकें. सेलो टेप वह अपनी जेब में डाल कर लाया था. उसी सेलो टेप से उस ने दोनों कर्मचारियों के हाथ भी बांध दिए. हाथ बांधने के बाद युवक ने उन से पूछा कि रकम कहां रखी है? पार्थ और प्रियांशु के मुंह पर टेप चिपकी थी, वे कैसे बोलते? दोनों चुप रहे, तो युवक ने खुद ही काउंटर की दराजें खोल कर देखी. एक दराज में रुपयों से भरा बैग था. उस बैग में 45 लाख रुपए थे. वह बैग युवक ने अपने बैग में डाला और दोनों कर्मचारियों को धमकाते हुए चला गया.

3 मिनट में 45 लाख रुपए लूट की वारदात कर वह युवक वापस चला गया. उस गली और औफिस में इक्कादुक्का लोगों की आवाजाही रहती है. इसलिए न तो किसी ने उसे आते देखा और न ही जाते हुए. लुटेरे के जाने के काफी देर बाद तक पार्थ और प्रियांशु डर के मारे चुपचाप बैठे रहे. बाद में उन्होंने अपने हाथों और मुंह पर बंधी चिपकी टेप हटाई. फिर मकान मालिक राधावल्लभ शर्मा को वारदात के बारे में बताया, शोर मचाया. आसपास के लोगों ने इधरउधर देखा भी, लेकिन लुटेरे का कुछ पता नहीं चला.

बाद में कर्मचारियों ने कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा को वारदात के बारे में बताया. रोहित ने औफिस पहुंच कर दोनों से लूट के बारे में पूछा. वारदात के करीब ढाई घंटे बाद दोपहर करीब 3 बजे पुलिस को सूचना दी गई. जयपुर के प्रमुख बाजार से दिनदहाड़े हवाला कंपनी के औफिस से 45 लाख रुपए लूटे जाने की वारदात की बात सुन कर पुलिस अफसर भी हैरान रह गए.

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सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नरेट और नौर्थ पुलिस जिले के अधिकारी मौके पर पहुंचे. पुलिस ने हवाला कंपनी के दोनों कर्मचारियों पार्थ और प्रियांशु से पूछताछ की. डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद ने भी मौके पर पहुंच कर उन दोनों से पूछताछ की. पुलिस अधिकारियों ने आसपास के सीसीटीवी फुटेज दिखवाए. इन में हेलमेट लगाए हुए एक युवक पैदल आ कर हवाला औफिस में जाता हुआ दिखा. युवक ने हेलमेट के नीचे मुंह पर मास्क भी लगाया हुआ था. हाथों में दस्ताने पहन रखे थे. वारदात के बाद लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता दिखा.

पूछताछ में पता चला कि गुजरात के पाटन जिले के रहने वाले रोहित कुमार शर्मा ने एक महीने पहले ही राधावल्लभ के मकान में यह औफिस किराए पर लिया था. फरवरी में बसंत पंचमी पर औफिस का मुहूर्त किया गया था. औफिस में पार्थ और प्रियांशु ही काम करते थे. यही औफिस खोलते और लेनदेन करते थे. रोहित इस कंपनी का मैनेजर था. रोहित की कंपनी के देश के विभिन्न शहरों में करीब 15 औफिस हैं. इन सभी औफिसों में मनी ट्रांसफर का ही काम होता है.

मौके के हालात और पूछताछ में मिली जानकारियों से पुलिस अधिकारियों के गले कई बातें नहीं उतर रही थीं. सब से बड़ी बात यह थी कि 45 लाख की लूट होने के बावजूद दोनों कर्मचारी न तो चिल्लाए और न ही लुटेरे का पीछा किया. पुलिस को 3 घंटे देरी से सूचना देने के बारे में भी वे लोग संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. पुलिस अधिकारियों को शुरुआती जांच में यह अहसास हो गया कि वारदात में किसी नजदीकी आदमी का हाथ हो सकता है. इस का कारण यह था कि इस औफिस को खुले एक महीना भी नहीं हुआ था. इसलिए कोई बाहरी आदमी इतनी आसानी से वारदात नहीं कर सकता था.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर लुटेरे की तलाश शुरू कर दी. फुटेज में लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता हुआ दिखाई दिया. इस के बाद उस के फुटेज नहीं मिले. इस से अनुमान लगाया गया कि वह आगे किसी वाहन से भागा होगा. पुलिस ने हुलिए के आधार पर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और जयपुर से बाहर जाने वाले रास्तों पर नाकेबंदी करा दी, लेकिन शाम तक कोई सुराग नहीं मिला. इस बीच, गुजरात के पाटन जिले के हारिज बोरतवाड़ा निवासी हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा ने जयपुर नौर्थ पुलिस जिले के कोतवाली थाने में इस लूट का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मुकदमा आईपीसी की धारा 392 के तहत दर्ज कर लिया.

पुलिस के सामने हेलमेट से चेहरा छिपाए हुए लुटेरे को तलाश करना बड़ा चुनौती भरा काम था. इस का कारण यह था कि सीसीटीवी फुटेज में लुटेरे का चेहरा हेलमेट और मास्क लगा होने के कारण नजर नहीं आ रहा था. केवल उस की कदकाठी का ही अनुमान लग रहा था. हवाला कंपनी के कर्मचारियों और आसपास के लोगों से पूछताछ में भी कोई ऐसा क्लू नहीं मिला, जिस से लुटेरे का पता चलता. लुटेरे का पता लगाने के लिए पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर (प्रथम) अजयपाल लांबा के निर्देश पर 3 टीमों का गठन किया गया. एक टीम में एडिशनल डीसीपी धर्मेंद्र सागर और प्रशिक्षु एसीपी कल्पना वर्मा के सुपरविजन में कोतवाली थानाप्रभारी विक्रम सिंह चारण और नाहरगढ़ थानाप्रभारी मुकेश कुमार को रखा गया.

दूसरी टीम में डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद के सुपरविजन में एडिशनल डीसीपी सुलेश चौधरी और सीएसटी प्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह को शामिल किया गया. तीसरी टीम में डीएसटी नौर्थ प्रभारी जयप्रकाश पूनिया के नेतृत्व में डीएसटी टीम को लिया गया. इन तीनों टीमों में 50 से ज्यादा Crime story पुलिसवाले शामिल किए गए. तीनों पुलिस टीमों ने वारदातस्थल खूंटेटों का रास्ता से किशनपोल बाजार, अजमेरी गेट, अहिंसा सर्किल, गवर्नमेंट प्रेस चौराहा, विशाल मेगामार्ट, अजमेर पुलिया और 2 सौ फुट बाइपास तक सैकड़ों सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इन मार्गों पर चलने वाले आटो चालकों, मिनी व लो फ्लोर बस चालकों और कंडक्टरों से पूछताछ की गई.

दूसरे दिन फुटेज देखने से पता चला कि लुटेरा किशनपोल बाजार से आटो में सवार हो कर अहिंसा सर्किल तक गया. तीसरे दिन देखी गई फुटेज से पता चला कि लुटेरा अहिंसा सर्किल से मिनी बस में सवार हो कर पुलिस कमिश्नरेट तक गया. वहां से दूसरी बस में बैठ कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा. हेलमेट, मास्क व दस्ताने पहन कर वारदात करने और इस के बाद बारबार वाहन बदलने से पुलिस को यह अहसास जरूर हो गया कि लुटेरा बहुत शातिर है. चौथे दिन पुलिस को कुछ और सुराग मिले. इस बीच, पुलिस अधिकारी हवाला औफिस के दोनों कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु को रोजाना थाने बुला कर पूछताछ करते रहे.

आखिर पुलिस ने 14 मार्च को हवाला कंपनी के औफिस से हुई 45 लाख रुपए की लूट का खुलासा कर 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके के कंबोई गांव का रहने वाला प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी, उस का भाई रवि शर्मा, इन की मां हंसा शर्मा उर्फ पूजा के अलावा गुजरात के पाटन जिले के चंद्रूमाणा गांव के रहने वाले पार्थ व्यास, जयपुर के भांकरोटा इलाके में केशुपुरा का रहने वाला हनुमान सहाय बुनकर और जयपुर के चित्रकूट इलाके में गोविंद नगर डीसीएम का रहने वाला मोहित कुमावत शामिल थे.

इनमें प्रियांशु अपनी मां हंसा उर्फ पूजा और भाई रवि शर्मा के साथ आजकल जयपुर में चित्रकूट थाना इलाके के वैशाली नगर में सेल बी हौस्पिटल के पास रहता था. प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी इसी हवाला कंपनी में करता था. लुटेरे ने प्रियांशु और दूसरे कर्मचारी पार्थ को धमका कर टेप से उन के मुंह बंद कर दिए और हाथ बांध दिए थे. आरोपी पार्थ व्यास को गुजरात के पाटन और बाकी 5 अपराधियों को जयपुर से पकड़ा गया. पुलिस ने इन आरोपियों से लूट की पूरी 45 लाख रुपए की रकम बरामद कर ली.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों से पुलिस की पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह रिश्तों में विश्वासघात का किस्सा था. गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके में आने वाले गांव कंबोई की रहने वाली हंसा देवी शर्मा उर्फ पूजा का पति कैलाश चंद शर्मा लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम करता था. मार्च, 2020 में कोरोना के कारण हुए लौकडाउन के दौरान उस का काम ठप हो गया. मजदूर अपने गांव चले गए. लौकडाउन खुलने के बाद भी वह परेशानी से नहीं उबर पाया. उसे लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम मिलना कम हो गया. इस से कैलाश के परिवार को आर्थिक परेशानी होने लगी.

इस से पहले कैलाश और हंसा ने मिल कर जयपुर की वैशाली नगर कालोनी में लोन पर एक फ्लैट ले लिया था. पहले लौकडाउन और फिर आई आर्थिक परेशानी के कारण उन के सामने फ्लैट के लोन की किश्तें चुकाना मुश्किल हो गया था. फ्लैट की कुर्की की नौबत आने लगी थी. उन पर बाजार का कर्ज भी चढ़ गया था. हंसा देवी के 2 बेटे हैं. एक रवि और दूसरा प्रियांशु. इन में रवि शर्मा प्राइवेट नौकरी कर रहा था, लेकिन उसे तनख्वाह कम मिलती थी. दूसरा बेटा प्रियांशु कोई काम नहीं कर रहा था. परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था.

परेशानी की इस हालत में हंसा को पता चला कि गुजरात के पाटन का रहने वाला रोहित शर्मा जयपुर में हवाला कंपनी केडीएम एंटरप्राइजेज का मैनेजर है. रोहित शर्मा दूरदराज के रिश्ते में हंसा का भाई लगता था. उस ने रोहित से रिश्तेदारी निकाल कर फरवरी में बेटे प्रियांशु को उस की हवाला कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया. गुजरात के ही रहने वाले पार्थ व्यास ने जयपुर की ही एक हवाला फर्म में नौकरी की थी. करीब एकडेढ़ साल पहले उसे किसी बात पर नौकरी से हटा दिया गया था. पार्थ व्यास भी रिश्ते में प्रियांशु का मामा और हंसादेवी का भाई लगता था.

पार्थ व्यास नौकरी से हटाए जाने से खफा था. उसे शक था कि केडीएम एंटरप्राइजेज के मालिक और उस के रिश्तेदार रोहित तथा दूसरे लोगों के कहने से ही उसे हवाला कंपनी से नौकरी से हटाया गया था. वह इस का बदला लेना चाहता था. जब उसे पता चला कि उस के भांजे प्रियांशु ने रोहित की हवाला फर्म में नौकरी कर ली है, तो वह अपनी बहन हंसा के जरिए इस फर्म को लूटने की योजना बनाने लगा. पार्थ व्यास को हवाला कारोबार के बारे में सब कुछ जानकारी थी. कब और कैसे रकम आती है. कंपनी का क्या काम है? कैसे रुपयों का लेनदेन होता है. रकम की क्या सुरक्षा व्यवस्था है? कंपनी के औफिस में कौनकौन लोग काम करते हैं? पार्थ व्यास को इन सब बातों का पता था. भांजे प्रियांशु के इसी फर्म में नौकरी पर लग जाने से उसे ताजा जानकारियां भी मिल गईं.

इस के बाद हंसा, पार्थ व्यास और प्रियांशु मिल कर इस हवाला कंपनी से रकम लूटने की योजना बनाने लगे. ये लोग फोन पर बात कर योजना बनाते. बीच में एकदो बार पार्थ व्यास Crime story गुजरात से जयपुर भी आया था. आखिर इन्होंने रकम लूटने का फैसला कर लिया.

तय योजना के अनुसार, पार्थ व्यास अहमदाबाद से 10 मार्च को सुबह 6 बजे जयपुर पहुंच गया. वह सुबह करीब 8 बजे वैशाली नगर में बहन के घर गया. वहां उसे बहन हंसा, भांजे प्रियांशु और रवि मिले. इन्होंने मिल कर योजना बनाई कि किस तरह वारदात करनी और कैसे भागना है. सारी बातें तय हो जाने पर प्रियांशु उर्फ बंटी सुबह 9 बजे अपनी नौकरी पर खूंटेटों का रास्ता स्थित हवाला कंपनी चला गया. कंपनी का दूसरा कर्मचारी पार्थ भी अपने तय समय पर औफिस आ गया. पार्थ वैसे तो हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित का साला था, लेकिन कर्मचारी के रूप में काम करता था. बाद में पार्थ व्यास ओला बाइक बुक कर वैशाली नगर से किशनपोल बाजार पहुंचा. इस दौरान उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. बाद में उस ने चेहरे पर मास्क लगाया और हाथों में दस्ताने पहने और सिर पर हेलमेट लगा कर वह पैदल चल कर हवाला कंपनी के औफिस पहुंचा और 45 लाख रुपए से भरा बैग लूट कर चला गया. यह कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं.

पार्थ व्यास पैदल ही किशनपोल बाजार पहुंचा. वहां से आटो फिर 2 बसें बदल कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा, यह फुटेज पुलिस को तीसरे दिन मिल गए थे. अजमेर पुलिया पर प्रियांशु की मां हंसा शर्मा, दोस्त मोहित और ड्राइवर हनुमान सहाय बुन कर उसे लेने के लिए आए थे. शातिर पार्थ व्यास पुलिस को गुमराह करने के लिए वारदात के समय 2 शर्ट पहन कर आया था. हंसा के साथ कार में बैठने के दौरान अजमेर पुलिया के पास उस ने एक शर्ट उतार कर रेल की पटरियों पर फेंक दी.

पार्थ व्यास हंसा व मोहित के साथ कार से प्रियांशु के घर पहुंचा. वहां पार्थ व्यास और प्रियांशु की मां हंसा ने लूटी गई रकम का आधाआधा बंटवारा किया. हंसा ने साढ़े 22 लाख रुपए खुद रख लिए और साढ़े 22 लाख रुपए पार्थ व्यास को दे दिए. पार्थ व्यास उसी दिन 2 सौ फुट बाइपास से बस में सवार हो कर गुजरात चला गया. उस ने गुजरात पहुंच कर लूट की रकम अपने घर में जमीन में गाड़ कर छिपा दी थी. जबकि हंसा शर्मा ने लूट की रकम में से 50 हजार रुपए अपने घर में बने मंदिर में चढ़ा दिए थे.

सीसीटीवी फुटेज के सहारे पुलिस हंसा के मकान के आसपास तक पहुंच गई. इस बीच, हवाला कंपनी के कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु से पुलिस लगातार पूछताछ करती रही. चौथे दिन प्रियांशु ने लूट की वारदात की सारी कहानी बता दी. पुलिस को प्रियांशु पर पहले से शक था. उसी ने अपने साथी कर्मचारी और हवाला कंपनी मैनेजर रोहित के साले पार्थ को पुलिस को सूचना देने से रोका था. पुलिस जब हंसा के मकान पर पहुंची, तो वह परिवार के साथ गुजरात भागने की तैयारी में थी, लेकिन पालतू कुत्ते के कारण फंस गई थी. वारदात के बाद से ही वह अपने पालतू कुत्ते को किसी के यहां छोड़ कर जाने की सोच रही थी, लेकिन ऐसे किसी परिवार का इंतजाम नहीं हो सका, जो कुछ दिनों के लिए उन के कुत्ते को रख लेता.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने पार्थ व्यास की निशानदेही पर अजमेर पुलिया के पास रेल की पटरियों से उस की फेंकी हुई शर्ट बरामद की. हंसा के घर में बने मंदिर से 50 हजार रुपए भी बरामद हो गए. हंसा के पास राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक एवं मानवाधिकार संस्था के Crime story फरजी आईकार्ड भी मिले. इन में उसे स्टेट सेक्रेटरी बताया गया था. बहरहाल, रिश्तों के विश्वासघात ने मां और 2 बेटों सहित 6 आरोपियों को जेल पहुंचा दिया. पार्थ व्यास ने बदला लेने और प्रियांशु ने लालच में अपने मामा के भरोसे को तोड़ दिया था. इस वारदात से रिश्तों के साथ मालिक और कर्मचारी के भरोसे की दीवार भी दरक गई.

Extra marital affair : छुटकारा पाने के लिए पत्नी ने सब्जी में मिलाया जहर लेकिन बच गया पति

Extra marital affair : बबली परिवार की बजाए अपनी शारीरिक जरूरतों को ज्यादा महत्त्व देती थी तभी तो 3 बच्चों की मां बनने के बावजूद कई युवकों से उस के अवैध संबंध हो गए. अपने एक प्रेमी के साथ हमेशा के लिए रहने को उस ने ऐसी चाल चली कि…

खुशबू और अंशिका रोज की तरह 5 दिसंबर, 2013 को भी स्कूल गई थीं. वैसे वे दोपहर 2 बजे तब स्कूल से घर लौट आती थीं लेकिन जब ढाई बजे तक घर नहीं पहुंचीं तो मां बबली बेचैन हो गई. उस के बच्चों की क्लास में मोहल्ले के कुछ और बच्चे भी पढ़ते थे. उस ने उन बच्चों के घर पहुंच कर अपने बच्चों के बारे में पूछा तो बच्चों ने बताया कि खुशबू और अंशिका आज स्कूल आई ही नहीं थीं. बच्चों की बात सुन कर बबली हैरान रह गई क्योंकि उस ने दोनों बेटियों को स्कूल भेजा था तो वे कहां चली गईं. बदहवास बबली ने अपने पिता गुलाबचंद और भाइयों को सारी बात बताते हुए जल्दी से बेटियों का पता लगाने को कह कर रोनेबिलखने लगी.

उस के पिता और भाई भी नहीं समझ पा रहे थे कि जब दोनों बहनें स्कूल गई थीं तो वे स्कूल न पहुंच कर कहां चली गईं? बबली को सांत्वना दे कर वे सब अपने स्तर से दोनों बच्चियों को ढूंढ़ने में जुट गए. काफी खोजबीन के बाद भी उन का पता नहीं लग सका. दोनों बच्चे रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गए, इस बात से पूरा परिवार परेशान था. मोहल्ले के कुछ लोग कहने लगे कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने फिरौती के लिए बच्चों का अपहरण कर लिया हो. लेकिन इस की उम्मीद कम थी क्योंकि बबली या उस के घर वालों की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे कोई फिरौती दे सकें.

बबली की अपने पति जितेंद्र से कुछ अनबन चल रही थी, तभी तो वह तीनों बेटियों के साथ मायके में रह रही थी. घर वालों को इसी बात का शक हो रहा था कि बच्चियों को उन का पिता जितेंद्र या फिर दादा बृजनारायण पांडेय ही फुसला कर अपने साथ ले गए होंगे. संभावित स्थानों पर तलाश के बाद जब खुशबू और अंशिका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के नाना गुलाबचंद थाना नगरा पहुंचे और थानाप्रभारी एस.पी. चौधरी से मिल कर बच्चियों के गायब होने की बात बताई. उन्होंने अपने दामाद जितेंद्र और समधी बृजनारायण पर बच्चियों को गायब करने का अंदेशा जाहिर किया.

गुलाबचंद की तहरीर पर 5 दिसंबर, 2013 को अपहरण का मुकदमा दर्ज करवा कर मामले की विवेचना सबइंसपेक्टर उमेशचंद्र यादव को करने के निर्देश दिए. साथ ही उन्होंने दोनों बच्चियों के गायब होने की सूचना से अपर पुलिस अधीक्षक के.सी. गोस्वामी और पुलिस अधीक्षक अरविंद सेन को अवगत करा दिया.  सबइंसपेक्टर उमेशचंद्र यादव मामले की छानबीन करने में जुट गए. चूंकि गुलाबचंद ने अपने दामाद और समधी पर बच्चियों को गायब करने का शक जाहिर किया था. लिहाजा पुलिस बलिया के सिकंदरपुर थाने के गांव उचवार में रहने वाले जितेंद्र के घर पहुंच गई और वहां से उसे व उस के 80 वर्षीय बुजुर्ग पिता बृजनारायण पांडेय को पूछताछ के लिए थाने ले आई.

उन्होंने दोनों से अलगअलग तरीके से पूछताछ की. उन की बातों से जांच अधिकारी को लगा कि बच्चों के गायब होने में उन का कोई हाथ नहीं है. बल्कि अपने दोनों बच्चों के गायब होने की जानकारी पा कर जितेंद्र परेशान हो गया था. इन दोनों से पूछताछ के दौरान उन्हें यह पता चल गया था कि बबली एक बदचलन औरत है. एसआई उमेशचंद्र यादव के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. उन्होंने जितेंद्र और उस के पिता को घर भेज दिया और खुद गोपनीय रूप से यह पता लगाने में जुट गए कि बबली के संबंध किन लोगों से हैं.  इस काम में उन्हें सफलता मिल गई और पता चला कि उस के संबंध औरैया जिले के हीरनगर गांव के रहने वाले कुलदीप से हैं और वह दिल्ली में नौकरी करता है.

एसआई उमेशचंद्र ने इस जानकारी से थानाप्रभारी को अवगत करा दिया. इस के बाद उन्होंने कुलदीप की तलाश शुरू कर दी और उस का पता लगाने के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया. उधर खुद पर बच्चों के अपहरण का आरोप लगने पर जितेंद्र को बहुत दुख हुआ. उस ने अपहरण के आरोप लगाए जाने पर अपने बचने के लिए एसपी अरविंद सेन को तहरीर दे कर कहा कि उसे और उस के पिता को झूठा फंसाया जा रहा है. न्याय की गुहार लगाते हुए उस ने बच्चों को जल्द तलाशने की मांग की. 13 दिसंबर, 2013 की शाम को एसआई उमेशचंद्र को मुखबिर ने एक खास सूचना दी. जानकारी मिलते ही वह महिला कांस्टेबल निकुंबला, कांस्टेबल रामबहादुर यादव आदि के साथ बिल्थरा रोड रेलवे स्टेशन पहुंच गए. अपने साथ वह जितेंद्र को भी ले गए थे ताकि वह अपनी बेटियों को पहचान सके.

मुखबिर ने जिस व्यक्ति के बारे में उन्हें सूचना दी थी वह उसे इधरउधर तलाशने लगे. कुछ देर बाद उन्हें प्लेटफार्म पर एक युवक आता दिखाई दिया. उस के साथ 2 बच्चियां भी थीं. जितेंद्र ने बच्चियों को पहचानते हुए कहा, ‘‘सर, यही मेरी बेटियां हैं.’’

उधर उस युवक ने स्टेशन पर पुलिस को देखा तो वह तेज कदमों से दूसरी ओर चल दिया. लेकिन पुलिस ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया और बच्चियों को भी अपने कब्जे में ले लिया. बच्चियों को सकुशल बरामद कर पुलिस खुश थी. जिस युवक को पुलिस ने हिरासत में लिया था उस ने अपना नाम कुलदीप बताया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने आ गई. पूछताछ करने पर उस ने बताया कि वह बबली से प्यार करता है और बच्चों का अपहरण उस ने उसी के कहने पर ही किया था. उस की बात सुन कर पुलिस भी चौंक गई कि क्या एक मां ही अपने बच्चों का अपहरण करा सकती है. लेकिन कुलदीप ने खुशबू और अंशिका के अपहरण के पीछे की जो कहानी बताई, सभी को चौंका देने वाली निकली.

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित और बिहार प्रांत से सटा एक जिला है बलिया. इस जिले के नगरा थाना क्षेत्र के देवरहीं गांव के रहने वाले गुलाबचंद के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 3 बेटे थे. बबली उन की दूसरे नंबर की बेटी थी. वह बहुत खूबसूरत थी. लेकिन जब उस ने लड़कपन के पड़ाव को पार कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में Extra marital affair और भी निखार आ गया. वह जवान हुई तो घर वालों को उस की शादी की चिंता सताने लगी. वे उस के लिए सही लड़का तलाशने लगे. जल्द ही उन की मेहनत रंग लाई और बलिया जिले के ही सिकंदरपुर थाना क्षेत्र के उचवार गांव में रहने वाले बृजनारायण पांडेय के बेटे जितेंद्र से उस की शादी तय कर दी और सामाजिक रीतिरिवाज से 2003 में दोनों का विवाह हो गया.

बबली जब अपनी ससुराल पहुंची तो अपने व्यवहार और काम से उस ने सभी का दिल जीत लिया. ससुराल में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. परिवार भी बड़ा नहीं था. इसलिए गृहस्थी की गाड़ी ठीक तरह से चल पड़ी. शादी के साल भर बाद बबली ने एक बेटी को जन्म दिया. उस का नाम रखा गया खुशबू. परिवार बढ़ा तो घर का खर्च भी बढ़ गया. जितेंद्र अपने बीवीबच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखना चाहता था. लिहाजा वह काम की तलाश में दिल्ली चला गया. जल्द ही दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में उस की नौकरी लग गई. उन की जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर आ गई. इस दौरान जितेंद्र साल में 1-2 बार ही बीवीबच्चों से मिलने अपने गांव आ पाता और कुछ दिन घर रहने के बाद दिल्ली चला जाता था.

वक्त यूं ही हंसीखुशी से गुजरता रहा. 3 साल बाद बबली एक और बच्ची की मां बन गई. उस का नाम अंशिका रखा. ज्यादा दिनों तक पति से दूर रहने की कमी बबली को खलने लगी थी. उस ने 1-2 बार पति से कहा भी कि वह हर महीने घर आ जाया करें. यदि हर महीने न भी आ सकेंतो 2 महीने में तो आ ही जाया करें, बच्चे बहुत याद करते हैं. लेकिन कुलदीप ने बारबार आने पर किराए में पैसे खर्च होने की बात बताई. जल्दजल्द घर आने में उस ने असमर्थता जता दी. लिहाजा अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बबली ने पड़ोस के एक युवक से नजदीकियां बढ़ा लीं. फिर दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. इस दौरान बबली एक और बेटी की मां बन गई.

बबली ने घरवालों और जमाने से अपनी मोहब्बत की कहानी को छिपाने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सकी और जल्दी ही उन के प्रेमप्रसंग Extra marital affair की खबर घर वालों को लग गई. फिर क्या था परिवार में खलबली सी मच गई और बबली को अपने प्रेमी से मिलने पर रोक लगा दी गई. इस के बाद तो उस की हालत पिंजरे में उस बंद पंछी की तरह हो कर रह गई जो सिर्फ फड़फड़ा सकता है लेकिन कोशिश करने पर भी उड़ नहीं सकता. अपनी आजादी पर घर वालों द्वारा पहरे लगाए जाने से बबली चिढ़ गई. लगभग 2 साल पहले एक दिन अपने पिता की तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वह मायके आ गई. वहीं पड़ोस में एक लड़का रहता था, जो दिल्ली में नौकरी करता था.

वह जितेंद्र को जानता था और उसे यह भी पता था कि जितेंद्र कहां रहता है. बबली को पति के बिना सब सूनासूना सा लग रहा था. इसलिए वह उस लड़के के साथ पति के पास दिल्ली चली गई. पत्नी के अचानक दिल्ली आ जाने पर जितेंद्र चौंक गया. पत्नी के साथ रहना उसे अच्छा तो लग रहा था लेकिन पत्नी और बच्चों के आने पर उस का खर्च बढ़ गया जिस से घर चलाने में परेशानी होने लगी. परेशानी देखते हुए बबली ने भी कोई काम कर घर के खर्चे में हाथ बंटाने की बात कही तो जितेंद्र मान गया. फिर वह अपने आसपास रहने वाली महिलाओं के सहयोग से काम तलाशने लगी. कुछ दिनों बाद उसे एक प्राइवेट कंपनी में काम मिल गया. जब दोनों ही काम करने लगे तो घर का खर्च ठीक से चलने लगा. बबली खुले विचारों की थी.

रूपयौवन से परिपूर्ण बबली की देहयष्टि इतनी आकर्षक थी कि किसी को भी पहली नजर में लुभा लेती थी. फिर अलग काम करने से उसे मनमानी करने का पूरा मौका भी मिल रहा था. इस मौके का लाभ उठा कर बबली ने अपने साथ काम करने वाले कुलदीप से अवैध संबंध बना लिए. मूलरूप से औरैया जिले के फफूंद थाना क्षेत्र के हीरनगर गांव के निवासी रविशंकर का बेटा कुलदीप दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता था. कुलदीप से एक बार संबंध बने तो बबली जैसे उस की दीवानी हो गई. फिर तो उन का वासना का खेल चलने लगा. लेकिन एक दिन वह कुलदीप के साथ अपने कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में थी तभी मकान मालिक की नजर उस पर पड़ी. उस ने उस समय तो उस से कुछ नहीं कहा, लेकिन जितेंद्र को बात बताते हुए उस से कमरा खाली करा लिया.

फिर जितेंद्र ने पास में ही दूसरा कमरा किराए पर ले लिया. जितेंद्र बहुत ही शांत स्वभाव का था. पत्नी की करतूत का पता चल जाने के बावजूद भी उस ने उस से कोई सख्ती नहीं की बल्कि समझाने के बाद उस ने पत्नी को चेतावनी दे दी थी. लेकिन बबली ने उस की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. बबली ने पास में ही रहने वाले एक और युवक से अवैध संबंध बना लिए. दोनों चोरीछिपे रंगरलियां मनाने लगे. उसी समय जितेंद्र ने पत्नी की नौकरी छुड़वा दी. कुछ समय तक सब कुछ गुपचुप चलता रहा. लेकिन धीरेधीरे लोगों को उन दोनों के संबंधों के बारे में पता चल गया. फिर बात जितेंद्र के कानों तक भी पहुंची. पत्नी को सही रास्ते पर लाने के लिए उस ने उसे डांटा. बबली ने इस का विरोध किया. फिर क्या था इसी बात को ले कर उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. एक दिन झगड़ा इतना बढ़ा कि बबली ने पुलिस से शिकायत कर पति को पिटवा दिया.

पत्नी के बदले हुए रुख से जितेंद्र डर गया. उस ने तय कर लिया कि पत्नी चाहे कुछ भी करे, उस के काम में वह दखल नहीं करेगा. यानी उस ने एकदम से अपना मुंह बंद कर लिया. फिर तो बबली ने कुलदीप को भी अपने साथ रख लिया और खुल कर उस के साथ रंगरलियां मनाने लगी. सब कुछ देखते हुए भी डर के कारण जितेंद्र चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता था. बल्कि उसे बबली से अपनी जान का भी खतरा महसूस होने लगा था. इस का कारण यह था कि एक दिन बबली ने जितेंद्र के खाने में छिपकली मार कर डाल दी थी. संयोग से उस दिन जितेंद्र ने लंच कंपनी की कैंटीन में कर लिया था. बाद में जब उस ने लंच में पत्नी द्वारा दी गई आलू की भुजिया देखी तो उस का रंग बदला हुआ था.

उसे लगा कि इस में जहर है तो उस ने सब्जी फेंक दी. घर आ कर जब उस ने पत्नी से इस बारे में पूछा तो उस ने बहाना बनाते हुए कह दिया कि खाना बनाते हुए कुछ गिर गया होगा. हादसे से जितेंद्र एकदम से डर गया था. जान का खतरा महसूस होने पर जितेंद्र 13 जुलाई, 2013 को बबली और बच्चों को दिल्ली में ही छोड़ कर बलिया चला आया और उस ने वाराणसी में ही काम तलाश लिया. पति के वापस गांव चले जाने पर बबली आजाद हो गई और खुल कर कुलदीप के साथ मौजमस्ती करने लगी. कुलदीप बबली के साथ उस के बच्चों को भी बहुत प्यार करता था. कुल मिला कर दोनों का समय हंसीखुशी बीतने लगा.

इधर बबली के मायके वालों को जब पता चला कि झगड़ा होने के बाद जितेंद्र बबली को दिल्ली में छोड़ कर वापस आ गया है तो उस के पिता गुलाबचंद दिल्ली पहुंच गए और बबली तथा उस के बच्चों को घर लिवा लाए. तब से वह मायके में रहने लगी. बबली ने भी पिता से कह दिया था कि अब वह जितेंद्र के यहां नहीं जाएगी. तब गुलाबचंद ने बच्चों का नाम गांव के ही स्कूल में लिखवा दिया. ननिहाल में बच्चे तो खुश थे लेकिन बबली का मन अपने आशिक कुलदीप के बिना नहीं लगता था. वह मोबाइल से कुलदीप से बात कर अपना मन बहला लेती थी, लेकिन जब Extra marital affair कुलदीप की जुदाई उसे अधिक खलने लगी तो मायके वालों को बिना कुछ बताए वह एक दिन अकेले ही दिल्ली चली गई और कुलदीप के साथ रहने लगी. मायके वालों को जब पता लगा कि वह दिल्ली चली गई है तो उन्हें बहुत बुरा लगा. तब बबली का भाई प्रीतम दिल्ली जा कर उसे वापस ले आया.

वक्त गुजरता रहा. बबली पति जितेंद्र को भूल चुकी थी. उस ने तय कर लिया था कि जीवन भर कुलदीप के साथ ही रहेगी. इसलिए वह कुलदीप को हमेशा के लिए पाने के बारे में सोचने लगी. उसे कुलदीप के बिना एक पल भी गुजार पाना नामुमकिन लगने लगा तो उस ने उस के पास जाने के लिए एक प्लान बनाया. प्लान के अनुसार 4 दिसंबर, 13 को बबली ने दिल्ली फोन कर के कुलदीप को अपने गांव के पास परसिया चट्टी पर बुलाया. तय समय के अनुसार कुलदीप परसिया चट्टी पहुंच गया. इधर रोज की तरह 8 वर्षीय खुशबू और 6 वर्षीय अंशिका स्कूल जाने के लिए घर से निकलीं तो रास्ते में बबली मिली. वह दोनों बच्चों को ले कर परसिया चट्टी पहुंची.

चूंकि कुलदीप उन्हें खूब प्यार करता था इसलिए उसे देख कर दोनों बच्चियां खुश हो गईं. बबली ने खुशबू और अंशिका को यह समझाते हुए उस के साथ दिल्ली भेज दिया कि 10 दिन के अंदर वह भी दिल्ली आ जाएगी. मां के कहने पर दोनों बहनें कुलदीप के साथ दिल्ली चली गईं. इस प्लान के पीछे बबली की यह सोच थी कि जब बेटियों के लापता होने पर घर के लोगों का सारा ध्यान उस ओर चला जाएगा तो वह आसानी से अपनी 3 साल की छोटी बेटी साक्षी को ले कर कुलदीप के पास चली जाएगी. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई.

कुलदीप से पूछताछ के बाद पुलिस ने इस केस की नायिका बबली को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों अभियुक्तों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने कुलदीप को अपहरण और बबली को साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर के अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया तथा दोनों बच्चियों को उस के पिता जितेंद्र के संरक्षण में दे दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Story : 17 महीने तक लाश को जीवीत मानकर सफाई की

Family Story : कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं, जिन पर विश्वास कर पाना बहुत ही कठिन होता है. ऐसी अविश्वसनीय घटनाएं या तो अंधविश्वास में घटित होती हैं या फिर मनोरोग विकार में. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भी ऐसी ही एक अविश्वसनीय घटना घटित हुई, जिस ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया.

कानपुर शहर का एक मिश्रित आबादी वाला मोहल्ला रोशन नगर है. इसी मोहल्ले के कृष्णापुरी के मकान नं. 7/401 में रामऔतार गौतम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 3 बेटे दिनेश, सुनील व विमलेश थे. रामऔतार गौतम फील्डगन फैक्ट्री में मशीनिष्ट के पद पर कार्यरत थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का अपना तीनमंजिला मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं मौजूद थीं.

रामऔतार गौतम के तीनों बेटे होनहार थे. बड़ा बेटा दिनेश सिंचाई विभाग में है और वह कानपुर के फूलबाग कार्यालय में तैनात है. जबकि सुनील बिजली उपकरणों की ठेकेदारी करता है. दिनेश व सुनील शादीशुदा हैं. दिनेश की शादी अर्चना से तथा सुनील की गुडि़या से हुई थी. दिनेश व सुनील अपने परिवार के साथ पिता के मकान में ही रहते हैं. रामऔतार गौतम का सब से छोटा बेटा विमलेश कुमार था. वह अपने अन्य भाइयों से ज्यादा तेज दिमाग का था. विमलेश ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई रामलला स्कूल से की, फिर बीकौम व एमकौम की पढ़ाई छत्रपति शाहूजी महाराज महाविद्यालय से पूरी की.

उस के बाद विमलेश की नौकरी आयकर विभाग में लग गई. वर्तमान में वह अहमदाबाद में आयकर विभाग में असिस्टेंट एकाउंट औफिसर के पद पर कार्यरत था. विमलेश कुमार की शादी मिताली दीक्षित के साथ हुई थी. यह अंतरजातीय प्रेम विवाह था. विमलेश अनुसूचित जाति के थे, जबकि मिताली दीक्षित ब्राह्मण थी. दरअसल, विमलेश कुमार मिताली को उन के किदवई नगर स्थित घर पर ट्यूशन पढ़ाने जाते थे. ट्यूशन पढ़ाने के दौरान ही दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए और उन के बीच प्यार पनपने लगा.

मोहब्बत परवान चढ़ी तो दोनों ने शादी का निश्चय किया. विमलेश के घरवाले शादी को राजी थे, लेकिन मिताली के घर वाले राजी नहीं थे. लेकिन घरवालों के विरोध के बावजूद मिताली दीक्षित ने वर्ष 2015 में विमलेश कुमार के साथ विवाह रचा लिया और विमलेश की दुलहन बन कर रोशन नगर स्थित ससुराल आ गई. ससुराल में मिताली को सासससुर व पति का भरपूर प्यार मिला, जिस से वह अपने भाग्य पर इतरा उठी. शादी के 2 साल बाद मिताली ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने संभव रखा. संभव के जन्म से परिवार की खुशियां और बढ़ गईं. मिताली संयुक्त परिवार में जरूर रहती थी, लेकिन कभी उसे किसी तरह की परेशानी नहीं हुई.

मिताली दीक्षित पढ़ीलिखी सभ्य महिला थी. वह किदवई नगर स्थित कोऔपरेटिव बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत थी. सुबह वह सास व जेठानियों के साथ घर का काम निपटाती फिर बैंक जाती. बैंक से वापस आ कर वह फिर घरेलू काम निपटाती. यही उन की दिनचर्या बन गई थी. वह हर तरह से खुशहाल थी. वर्ष 2019 में विमलेश का ट्रांसफर अहमदाबाद (गुजरात) हो गया. पति के बाहर जाने से मिताली विचलित नहीं हुई और अपने कर्तव्य का पालन करती रही. पति का आनाजाना लगा रहता था. वह अपने बेटे संभव से बहुत प्यार करते थे. बेटे के अलावा उन्हें अपने मातापिता व भाइयों से भी बेहद लगाव था. मां से उन्हें कुछ ज्यादा ही लगाव था.

इस बीच मिताली दोबारा गर्भवती हुई और उस ने मार्च 2021 में एक बेटी कोे जन्म दिया. इस का नाम उस ने दृष्टि रखा. नवजात की देखभाल हेतु मिताली ने 6 महीने की छुट्टी बैंक से ले ली.

22 अप्रैल, 2021 को हुई थी मौत

इधर आयकर अधिकारी विमलेश कुमार गौतम 16 अप्रैल, 2021 को विभागीय कार्य हेतु अहमदाबाद स्थित आयकर कार्यालय से निकले तो वह बीमार हो गए. उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी. उन दिनों कोरोना काल की दूसरी भयंकर लहर चल रही थी और लोग कीड़ेमकोड़ों की तरह मर रहे थे. अत: घबरा कर विमलेश कुमार ने अहमदाबाद से लखनऊ की फ्लाइट पकड़ी, फिर Family Story लखनऊ से अपने घर कानपुर आ गए.

19 अप्रैल, 2021 को घर वालों ने विमलेश कुमार को बिरहाना रोड के मोती हौस्पिटल में भरती करा दिया. अस्पताल में विमलेश का महंगा इलाज शुरू हुआ. लेकिन डाक्टर काल के हाथों से विमलेश कुमार को बचा न सके. 22 अप्रैल, 2021 की सुबह 4 बजे विमलेश ने दम तोड़ दिया. विमलेश के शव को निजी वाहन से रोशन नगर स्थित घर लाया गया. अस्पताल में लगभग 9 लाख रुपया खर्च हुआ तथा अस्पताल की तरफ से घर वालों को मौत का सर्टिफिकेट भी थमा दिया. आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत से गौतम परिवार में हाहाकार मच गया. नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा शुरू हो गया. मातापिता जहां बेटे की मौत पर आंसू बहा रहे थे, वहीं मिताली की आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. भाई सुनील व दिनेश भी बेहाल थे.

इसी बीच एक रिश्तेदार महिला ने रोते हुए विमलेश के सीने पर सिर रखा तो उसे विमलेश के सीने से धड़कन महसूस हुई. वह आंसू पोंछते हुए रामदुलारी से बोली, ‘‘बहना, तुम्हारा बिटवा जीवित है.’’

फिर तो बारीबारी से रामदुलारी व दिनेश ने भी धड़कन महसूस की. इस के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी रोक दी गई और पड़ोस में रहने वाले एक डाक्टर को बुलाया गया. उस ने विमलेश की मृत देह की अंगुली में पल्स औक्सीमीटर लगाया तो औक्सीजन 77 और पल्स 62 आने लगी. उसे देख मौत का सर्टिफिकेट हाथ में थामने के बावजूद घर वालों ने विमलेश को जीवित मान लिया. इस के बाद सभी अपने घरों को चले गए.

जीवित मान कर शव की करते रहे साफसफाई

परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी, इसलिए परिवार के लोग विमलेश कुमार को तुरंत पनेशिया, केएमसी, फार्च्यून व सिटी हौस्पिटल ले गए. लेकिन सभी आरटीपीसीआर रिपोर्ट मांग रहे थे. रिपोर्ट उन के पास नहीं थी. इसलिए शहर के किसी भी अस्पताल ने विमलेश को भरती नहीं किया. घर वालों को लाश में आस नजर आ रही थी. इसलिए उन्होंने अपने घर को ही अस्पताल बना दिया. उन्होंने विमलेश को घर के एसी रूम में तख्त पर लिटा दिया और इलाज शुरू कर दिया. इस इलाज पर उन्होंने करीब 30 लाख रुपए भी खर्च कर दिए. विमलेश की मां रामदुलारी गंगाजल छिड़क कर उस के शरीर को पोछतीं फिर साफसुथरे कपड़े पहनातीं. इस काम में उन का पति रामऔतार भी मदद करते. रामदुलारी चम्मच से 2-4 बूंद गंगाजल उस के मुंह में भी डालतीं.

किसी तरह की बदबू न आए. इस के लिए कमरे में सुगंधित अगरबत्ती, धूपबत्ती भी जलाई जाती. गुप्तरूप से झोलाछाप डाक्टर व कथित तांत्रिक भी आते व पूजापाठ व तंत्रमंत्र करते. अब तक रामदुलारी व उन का पूरा परिवार अंधविश्वास व मनोरोग विकार का शिकार बन गया था. सभी मानने लगे थे कि विमलेश कुमार कोमा में है और एक दिन जीवित हो जाएगा. पढ़ीलिखी तथा बैंक मैनेजर मिताली दीक्षित भी मनोरोगी बन गई थी. उसने भी मान लिया था कि पति कोमा में है और एक दिन वह जीवित हो जाएंगे.

वह रोज बैंक जाने से पहले पति का माथा छू कर बतियाती थी. सिरहाने बैठ कर उसे निहारती थी, उन के सिर पर हाथ फेरती थी और उसे बोल कर जाती थी कि जल्दी ही औफिस से लौट कर मिलती हूं. भाई दिनेश व सुनील जब काम से लौटते थे तो विमलेश से उस का हालचाल पूछते थे. विमलेश की खामोशी के बावजूद वे उन्हें जीवित मान रहे थे.

मिताली को कचोट रही थी आत्मा

मिताली दीक्षित परिवार के प्रभाव में थी. इसलिए वह उन की हां में हां मिला रही थी. लेकिन उस की अंतरात्मा उसे कचोट रही थी. यही कारण था कि उस ने पति की मौत के 5 दिन बाद ही एक पत्र अहमदाबाद स्थित आयकर विभाग को भेज दिया था. पत्र में उस ने लिखा था कि विमलेश कुमार की मौत कोरोना से हो गई है. पेंशन संबंधी औपचारिकताओं का जल्दी से जल्दी निपटारा किया जाए.

आयकर विभाग ने पत्र के आधार पर प्रक्रिया शुरू कर दी थी कि तभी मिताली का एक और पत्र अहमदाबाद आयकर विभाग को प्राप्त हुआ. उस में लिखा था कि औक्सीमीटर से जांच में पति विमलेश की पल्स चलती हुई पाई गई है और वह जीवित है. इसलिए पेंशन व फंड भुगतान की प्रक्रिया को रोक दिया जाए. विभाग ने तब विमलेश की पेंशन, फंड समेत अन्य भुगतान की प्रक्रिया रोक दी. इस के बाद आयकर विभाग ने विमलेश कुमार के मैडिकल बिल और सैलरी भुगतान संबंधी 7 पत्र पत्नी मिताली को भेजे. लेकिन मिताली ने कोई जवाब नहीं दिया.

दरअसल, जैसेजैसे समय बीतता गया वैसेवैसे विमलेश का शरीर काला पड़ता गया. शरीर जब पूरी तरह से सूख गया तो मिताली को यकीन हो गया कि अब शरीर में कुछ नहीं बचा. मिताली ने सासससुर को समझाने का प्रयास किया तो वे उस से झगड़ने लगे. परेशान हो कर मिताली ने एक गुमनाम पत्र अहमदाबाद स्थित आयकर औफिस को भेजा, जिस में उस ने विमलेश की लाश घर पर होने की सनसनीखेज जानकारी दी. इस पत्र के मिलने के बाद आयकर विभाग में खलबली मच गई.

इस के बाद अहमदाबाद से जोनल एकाउंट्स की एक टीम विमलेश के कानपुर स्थित घर पहुंची. लेकिन परिजनों ने टीम को घर के अंदर घुसने नहीं दिया और न ही टीम को कोई जानकारी दी. अहमदाबाद से आई टीम वापस लौट गई और फिर कानपुर आयकर विभाग को पत्र लिख कर शक जताया कि आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत हो चुकी है. कानपुर सीएमओ के जरिए इस की Family Story पुष्टि कराएं और जांच रिपोर्ट अहमदाबाद औफिस भिजवाएं.

इस पत्र के बाद कानपुर के आयकर अधिकारियों ने डीएम विशाख जी को सारी जानकारी दी और सीएमओ से विमलेश की जांच कराने का अनुरोध किया. चूंकि मामला पेचीदा था, सो डीएम ने सीएमओ को जांच का आदेश दिया.

डीएम के आदेश पर सीएमओ ने कराई जांच

कानपुर के सीएमओ आलोक रंजन ने तब 3 डाक्टरों की एक टीम जांच हेतु बनाई. इस टीम में डा. ए.वी. गौतम, डा. आशीष तथा डा. अविनाश को शामिल किया गया. सीएमओ ने टीम को निर्देशित किया कि विमलेश कुमार के जीवित या मृत्यु होने की जांच हैलट अस्पताल में ही होगी. अत: उन्हें अस्पताल ही लाया जाए. 23 सितंबर, 2022 की सुबह 11 बजे डाक्टरों की टीम विमलेश कुमार गौतम के घर पहुंची. टीम की मुलाकात विमलेश की मां रामदुलारी व पिता रामऔतार गौतम से हुई. लेकिन उन्होंने जांच कराने से साफ मना कर दिया और कहा कि उन के बेटे विमलेश की धड़कनें चल रही हैं. वह जिंदा है. इसी के साथ उन्होंने मिताली को भी सूचित कर दिया तो वह भी बैंक से घर आ गई.

डाक्टरों की टीम को जब विमलेश के घरवालों ने रोका तो उन्होंने जानकारी सीएमओ आलोक रंजन को दी. आलोक रंजन ने तब पुलिस कमिश्नर वी.पी. जोगदंड को जानकारी दी. उस के बाद जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी, एडिशनल सीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव तथा प्रभारी निरीक्षक संजय शुक्ला विमलेश के आवास पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घर के मुखिया रामऔतार गौतम तथा उन की पत्नी रामदुलारी से बात की और बेटे विमलेश का स्वास्थ परीक्षण कराने को कहा.

विमलेश की पत्नी मिताली तो पति का स्वास्थ परीक्षण कराने को राजी थी, लेकिन बाकी सदस्य टालमटोल कर रहे थे. काफी कहासुनी व पुलिस से झड़प के बाद सभी राजी हो गए. पुलिस के साथ डाक्टरों की टीम ने उस कमरे में प्रवेश किया, जहां विमलेश तख्त पर लेटा था. विमलेश को देख कर पुलिस अफसर व डाक्टर हैरान रह गए. विमलेश का शरीर पूरी तरह से सूख चुका था और काला पड़ गया था. मांस हड्डियों में चिपक गया था. लेकिन डाक्टर व पुलिस अफसर इस बात से हैरान थे कि कमरे से किसी प्रकार की बदबू नहीं आ रही थी और न ही उस के शव से.

डाक्टरों ने कर दिया मृत घोषित

डाक्टरों की टीम ने जांच कर घर वालों को बताया कि विमलेश की मौत हो चुकी है. वह भ्रम न पालें कि वह जिंदा है. इस पर परिवार वाले डाक्टरों से भिड़ गए और जांच को गलत ठहराने लगे. उस के बाद विमलेश कुमार के शव को हैलट अस्पताल लाया गया और परिवार वालों के सामने ईसीजी किया गया. रिपोर्ट में सीधी लकीर दिख रही थी, फिर भी परिवार के लोग संदेह जताते रहे. परिवार के लोग विमलेश के शव का पोस्टमार्टम नहीं कराना चाहते थे. उन्होंने लिख कर भी दे दिया. पुलिस भी बला टालना चाहती थी. और वैसे भी कोई आपराधिक मामला नहीं बनता था सो पुलिस ने लिखित में ले कर घर वालों को शव सौंप दिया. इस के बाद घर वालों ने शव का अंतिम संस्कार भैरवघाट पर कर दिया.

17 माह तक घर में अफसर बेटे का शव रखने का मामला अखबारों में प्रकाशित हुआ तो लोग अवाक रह गए. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि मृत व्यक्ति का शव इतने दिनों तक रखा जा सकता है. टीवी चैनलों के माध्यम से यह मामला देशदुनिया में कई दिनों तक सुर्खियां बटोरता रहा. कानपुर पुलिस भी हैरान थी कि ऐसी क्या वजह थी कि शव 17 महीने तक घर में रखा रहा. कहीं परिवार किसी तांत्रिक के चक्कर में तो नहीं फंसा था. कहीं अफसर का वेतन तो परिवार वाले नहीं हड़पना चाहते थे. कहीं पूरा परिवार अंधविश्वास या मनोरोग का शिकार तो नहीं हो गया था.

इन्हीं सब बिंदुओं की जांच के लिए जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी ने जांच एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव को सौंपी. लाखन सिंह यादव ने इस प्रकरण की बड़ी बारीकी से जांच की और परिवार के मुख्य सदस्यों से अलगअलग बात की. जांच में यही तथ्य निकला कि मां के अंधविश्वास में 17 माह तक विमलेश का शव घर में रखा रहा.

खराब औक्सीमीटर से हुई थी गलतफहमी

मातापिता के इस अंधविश्वास को पूरे घर ने अपना विश्वास बना लिया और उसी तरह से विमलेश की सेवा करने लगे. श्री यादव ने घर के सामान की जांच की पर कोई लेप नहीं मिला. औक्सीजन सिलेंडर तथा तख्त की भी जांच की. जांच में यह बात सामने आई कि जो औक्सीमीटर विमलेश को लगाया गया था, वह खराब था. खराबी के कारण ही वह गलत रीडिंग बता रहा था. जांच से यह भी पता चला कि परिवार ने विमलेश का वेतन नहीं लिया था.

एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव ने मृतक विमलेश के मातापिता से पूछताछ की और कई सवाल दागे. इन सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी कोई कैमिकल विमलेश की बौडी पर नहीं लगाया. वह गंगाजल के पानी से उस का शरीर पोछते थे और कपड़ा बदलते थे. सफाई का विशेष ध्यान रखते थे. उन्होंने बताया कि वह तो अंतिम क्रिया की तैयारी कर रहे थे लेकिन एक रिश्तेदार महिला ने धड़कन महसूस की, तब पता चला कि बेटा जिंदा है. पुलिस अफसर लाखन सिंह यादव ने मृतक विमलेश कुमार की पत्नी मिताली से भी पूछताछ की तो उस का दर्द उभर पड़ा. उस ने हर सवाल का जवाब बड़ी तत्परता से दिया.

मृतक विमलेश के घर वालों की मनोदशा समझने के लिए एडीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव ने जीएसवीएम मैडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर गणेश शंकर से बातचीत की. उन्होंने कहा कि यह अपने आप में एक अनोखा मामला है. इस तरह के बहुत कम मामले देखे गए हैं. प्रथमदृष्टया यह मामला शेयर्ड डिलीवरी डिसऔर्डर नाम की बीमारी का प्रतीत होता है. यह एक ऐसी बीमारी है, जो बहुत कम लोगों को होती है. इस बीमारी में एक व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति से नियंत्रण खो देता है. वह अन्य लोगों को भी इस के प्रभाव में ले लेता है, जिस से वे लोग भी उसी बात पर भरोसा कर लेते हैं, जिस का सच्चाई से दूरदूर तक नाता नहीं होता है. उन का मानना है कि मृतक विमलेश का परिवार भी इसी बीमारी से ग्रसित था.

बहरहाल कथा संकलन तक एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) ने अपनी जांच रिपोर्ट जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी को सौंप दी थी. इस के अलावा सीएमओ आलोक रंजन ने भी विमलेश की मौत हो जाने की जांच रिपोर्ट अहमदाबाद के आयकर विभाग को भेज दी. मृतक विमलेश के परिवार वालों ने भी सच्चाई को स्वीकार कर लिया है. फिर भी स्वास्थ विभाग की टीम परिवार की निगरानी में जुटी है.

 

 

Wife murder story : सिर कटी लाश का रहस्य छिपाने के लिए काट डाला बीवी के होंठ का तिल 

Wife murder story  : मुंबई के पास वसई थाना क्षेत्र के भुईगांव समुद्र तट पर झाडि़यों के बीच एक लावारिस काले रंग का बड़ा सा ट्रौली बैग देख लोगों ने पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही वसई पुलिस मौकाएवारदात पर पहुंच गई. पुलिस को पहली ही नजर में मामला संदिग्ध नजर आया. क्योंकि एक सुनसान समुद्र किनारे पर किसी सूटकेस के पड़े होने का और कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा है.

फिलहाल पुलिस ने उस ट्रौली बैग को अपने कब्जे में ले लिया और उसे खोला. जैसी आशंका थी, वही हुआ. सूटकेस खोलते ही पुलिस की आंखें फटी रह गईं. बैग से एक सिर कटी लाश बरामद हुई थी. कदकाठी आदि देख कर लग रहा था कि उस युवती की उम्र 26-27 की होगी. लग रहा था कि हत्यारे ने शातिर तरीके से लाश ठिकाने लगाने की कोशिश की थी. सिर कटी लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर सिर कटी लाश यानी धड़ को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पुलिस ने उस के कटे सिर को ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी कटा सिर बरामद नहीं हो सका. यह बात 26 जुलाई, 2021 की थी.

चूंकि पहली ही नजर में यह बात साफ हो गई थी कि हत्यारा बेहद चालाक और शातिर है. वसई पुलिस ने बिना देर किए आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत हत्या का मामला अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया. मृतका की शिनाख्त के लिए पुलिस ने उस के कपड़ों, सूटकेस के विभिन्न एंगिल से फोटो खिंचवा कर उस के 200 बड़े बैनर और पोस्टर बनवा लिए. फिर वह पूरे महाराष्ट्र के साथ ही आसपास के राज्यों में लगवा दिए ताकि कहीं से भी अगर कोई इन तसवीरों को देख कर पुलिस से संपर्क करे तो आगे जांच की जा सके. जिस के बाद हत्यारों को पकड़ा जा सके.

इतना ही नहीं पुलिस ने पड़ोसी राज्य के बौर्डर के थानों में संपर्क किया, आसपास के थानों में फोन घुमाए. इस के अलावा क्राइम ऐंड क्रिमिनल ट्रैकिंग ऐंड मिसप्स पर भारत भर में हजारों गुमशुदा शिकायतों की जांच की गई, लेकिन वहां भी कोई सुराग नहीं मिला.

एक साल बाद भी नहीं मिला सुराग

पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने के साथ ही लाश का डीएनए सैंपल सुरक्षित रखवा दिया. इस के बाद पुलिस मामले में कोई सुराग मिलने का इंतजार करने लगी. पुलिस ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए लाश की शिनाख्त के लिए पूरी ताकत लगा दी.  जोनल डीसीपी संजय कुमार पाटिल ने 6 टीमों का गठन किया, जिस में इंसपेक्टर ऋषिकेश पावल, इंसपेक्टर (क्राइम) अब्दुल हक, एपीआई राम सुरवासे, सुनील पवार, सागर चव्हाण, एसआई विष्णु वघानी, कांस्टेबल सुनील मालवकर, विनोद पाटिल, मिलिंद घरत, शरद पाटिल, विनायक कचरे शामिल थे.

इस के साथ ही सीसीटीवी कैमरों की जांच भी की गई. लेकिन इतने प्रयास के बाद भी पुलिस को कोई क्लू नहीं मिला. दिन गया रात आई, रात गई दिन आया और धीरेधीरे दिन, महीने इस तरह पूरा एक साल गुजर गया. लेकिन इस बीच पुलिस को इस सिर कटी युवती की लाश के सिलसिले में कहीं से कोई सूचना नहीं मिली. कर्नाटक के बेलगाम में रहने वाले जावेद शेख पिछले एक साल से अपनी 25 वर्षीय बेटी सान्या उर्फ सानिया शेख से बात करने के लिए परेशान थे. जब भी वह फोन मिलाते, बेटी का मोबाइल स्विच्ड औफ मिलता था. जबकि उस के पति के नंबर पर फोन मिलाने पर रौंग नंबर कह कर फोन काट दिया जाता था. अपनी बेटी से बात करने के लिए पूरा परिवार तरस गया था. उस की कोई खोजखबर भी नहीं मिल रही थी.

जावेद इस बात से बहुत परेशान थे. अपनी बेटी से उन की आखिरी बार बात 8 जुलाई, 2021 को हुई थी. बेटी की ससुराल मुंबई के नालासोपारा में थी. उन दिनों कोविड के चलते यात्रा करना व कहीं आनाजाना मुश्किल हो रहा था.

बेटी की तलाश में पहुंचे मुंबई

आखिर काफी सोचविचार के बाद जावेद और उन के घर वालों ने मुंबई जा कर सानिया शेख के बारे में पता करने का निर्णय लिया. जावेद शेख अपने बेटों व कुछ परिचितों के साथ 27 अगस्त, 2022 को मुंबई के लिए रवाना हुए. मुंबई पहुंच कर जावेद नालासोपारा स्थित सानिया की ससुराल पहुंचे. वहां पहुंच कर उन्हें जो जानकारी मिली, उस से उन के पैरों तले की जमीन जैसे खिसक गई. यह जान कर वह हैरान रह गए कि जिस फ्लैट में सानिया के ससुराल वाले रहते थे, एक साल पहले बेच कर वे लोग यहां से चले गए थे. ससुराल वाले कहां चले गए, इस की वहां किसी को जानकारी नहीं थी.

अब सानिया के घर वालों को दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगी थी. क्योंकि ससुराल वालों के फ्लैट बेचने की जानकारी उन्हें मुंबई आने के बाद ही हुई थी. इस संबंध में उन्हें किसी ने कोई बात नहीं बताई थी. इधर सानिया से पिछले एक Wife murder story साल से बात नहीं हो पाना, फ्लैट को बेच देना, ये बातें किसी साजिश की ओर इशारा कर रही थीं. तब जावेद शेख 29 अगस्त, 2022 को बिना देर किए नालासोपारा के अचोले थाने पहुंच गए. उन्होंने पुलिस को बताया कि सानिया के मातापिता की मौत उस के बचपन में ही हो गई थी. भतीजी सानिया को उन्होंने अपनी बेटी मान कर पालापोसा था.

5 साल पहले 2017 में उस की शादी मुंबई के ठाणे जिले के नालासोपारा इलाके के रश्मि रीजेंसी अपार्टमेंट निवासी आसिफ शेख के साथ कर दी. आसिफ मुंबई के अंधेरी इलाके में एक लौजिस्टिक कंपनी में काम करता था. 2 बैडरूम वाले फ्लैट में आसिफ के मातापिता और उस का भाई अपने परिवार के साथ रहते थे. जावेद शेख ने बताया कि पिछले एक साल से वह सानिया से बात करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन दामाद आसिफ हर बार रौंग नंबर बता कर काट देता था. पुलिस ने जावेद से कहा कि वह अपने फोन में ससुराल वालों के अन्य नंबरों को तलाश कर उन पर फोन करें.

एक साल से नहीं हो पा रही थी बात

इत्तफाक से जावेद को फोन बुक में आसिफ की मां का मोबाइल नंबर मिल गया. उन्होंने उन्हें फोन लगाया. उस समय जावेद सानिया की सास से बात करने में कामयाब हो गए. बातचीत के दौरान आसिफ की मां ने धोखे में आ कर उन्हें ये बता दिया कि अब वे लोग नालासोपारा की प्रौपर्टी बेच कर मुंब्रा शिफ्ट हो गए हैं और मुंब्रा में मैरिज होम के पास रहते हैं. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने जावेद से मुंब्रा जा कर ससुराल वालों से मिलने की बात कही. इस पर जावेद परिचितों के साथ मुंब्रा स्थित आसिफ के घर जा पहुंचे. वहां उन्होंने सानिया और आसिफ की 4 साल की बेटी अमायरा को तो घर में देखा, लेकिन सानिया उन्हें कहीं नजर नहीं आई.

जब जावेद ने बेटी सानिया के बारे में उस के पति आसिफ से पूछा तो उस ने टका सा जवाब दे दिया. कहा, ‘‘शादी के बाद भी सानिया किसी से प्यार करती थी. उस के किसी से रिश्ते भी थे. एक साल पहले वह अपनी बेटी को छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई.

‘‘सानिया फरार होने से पहले एक पत्र लिख कर छोड़ गई थी. पत्र में लिखा था कि मैं अपनी मरजी से अपने प्रेमी के साथ जा रही हूं. मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना.’’

जावेद ने आसिफ से पूछा, ‘‘तब आप ने पुलिस में शिकायत तो की होगी?’’

इस पर आसिफ ने कहा कि बदनामी के डर से हम ने पुलिस में कोई शिकायत नहीं की और न आप लोगों को इस बारे में बताए. यहां तक कि बदनामी के डर से हमें अपना फ्लैट तक बेचने को मजबूर होना पड़ा. उस की यह बात जावेद और अन्य के गले नहीं उतरी. उन्होंने पुलिस को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. पुलिस ने इस संबंध में सानिया की गुमशुदगी दर्ज कर नए सिरे से मामले की जांच शुरू कर दी.

फोटो से की शिनाख्त

अचोले पुलिस ने साल भर पहले वसई भुईगांव बीच से मिली सिर कटी युवती की लाश की फोटो सानिया के पति आसिफ और अन्य ससुराल वालों को दिखाई तो उन्होंने लाश को पहचानने से ही इंकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने वह फोटो बेलगाम से आए सानिया के घर वालों को दिखाए तो उन्होंने देखते ही पहचान लिया कि ये उन की बेटी की लाश है. घर वालों ने Wife murder story लाश के साथ मिले कपड़ों वगैरह की भी पहचान कर ली. इस तरह पुलिस अब साल भर पहले सूटकेस में बंद मिली युवती की सिर कटी लाश की पहचान कर चुकी थी. लेकिन पुलिस को अब यह पता करना बाकी था कि आखिर सानिया की हत्या किस ने और क्यों की? क्या उस के प्रेमी ने सानिया के साथ यह हैवानियत की थी?

अब प्रश्न यह था कि क्या सानिया के प्रेमी को ससुराल वाले जानते थे? लिहाजा पुलिस ने मायके वालों की शिकायत पर सब से पहले सानिया के ससुराल वालों को ही पूछताछ के लिए बुला लिया. ससुराल वालों ने पुलिस के सामने भी सानिया के अपने प्रेमी के साथ घर से भाग जाने की वही कहानी दोहराते हुए उस के कत्ल पर हैरानी जताई. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे सानिया के प्रेमी के बारे में कुछ नहीं जानते. जबकि मायके वालों ने किसी से सानिया के अफेयर की बात को सिरे से खारिज कर दिया.

ससुराल वालों के हावभाव देख कर व उन की बातों से सानिया के मायके वालों के अलावा पुलिस को भी लगने लगा था कि हो ना हो सानिया के कत्ल में ससुराल वालों का ही हाथ है. लेकिन पुलिस के पास कोई सबूत न होने के चलते उस ने किसी को भी गिरफ्तार करने से पहले पूरे मामले को समझ लेना ठीक समझा. इस के लिए पुलिस ने मृतका के पति आसिफ शेख और उस की बेटी अमायरा के डीएनए सैंपल एकत्र कर लिए. जबकि सानिया की लाश का डीएनए सैंपल पहले ही लिया जा चुका था. पुलिस ने तीनों सैंपल को मैचिंग के लिए कलीना फोरैंसिक लैब भेजा. इसी लैब में सानिया का डीएनए सैंपल पिछले एक साल से सुरक्षित रखा था.

पति आसिफ, बेटी अमायरा तथा सानिया के डीएनए सैंपल का मिलान करने पर लैब ने अपनी जो रिपोर्ट दी, उस के अनुसार सिर कटी लाश किसी और की नहीं, आसिफ की पत्नी सानिया शेख की ही थी.

डीएनए से हुई लाश की शिनाख्त

इस पर बिना देर किए पुलिस ने 14 सितंबर, 2022 को सानिया की हत्या के आरोप में उस के 30 वर्षीय पति आसिफ शेख को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ की गई. आसिफ वही रटीरटाई कहानी फिर से दोहराने लगा. उस ने वह लैटर भी पुलिस को दिखाया, जो सानिया जाते समय छोड़ गई थी. मृतका के चाचा ने बताया कि जो लैटर की लिखावट है वह सानिया की नहीं है. शक यकीन में तब्दील हो गया. तब पुलिस ने अपने तरीके से आसिफ से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के सामने आसिफ टूट गया और उस ने सच उगल दिया. आसिफ ने अपने घर वालों के साथ सानिया की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

पता चला कि आसिफ की सानिया के साथ दूसरी शादी थी. आसिफ ने अफेयर के शक के चलते पहली बीवी को तलाक दे दिया था. पुलिस ने आसिफ के साथ ही उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ तथा बहनोई यूसुफ को भी गिरफ्तार कर लिया. सवाल यह था कि एक परिवार ने अपने ही परिवार की बहू की हत्या आखिर क्यों की?

उस सिर कटी लाश का खौफनाक राज खुला तो सब के होश उड़ गए. आरोपियों ने सानिया के कत्ल की वजह के बारे में जो बताया, उसे सुन कर मृतका के घर वालों के साथ ही पुलिस भी हैरान रह गई. सानिया शेख अपने पति और ससुराल वालों के निशाने पर उस वक्त आ गई, जब वे लोग सानिया की बेटी अमायरा को सानिया की निस्संतान ननद को सौंपना चाहते थे. सानिया अपने कलेजे के टुकड़े को किसी भी हाल में गोद देने को तैयार नहीं थी. उस ने साफ इंकार कर दिया. बेटी के लिए मां के दिल में उमड़ी ममता थी, जो उस की मौत का सबब बनी.

21 जुलाई, 2021 को बकरीद का दिन था. सुनियोजित तरीके से आरोपियों ने सानिया के हाथपैर बांध दिए. फिर उसे पानी से भरे एक बड़े टब में डुबो दिया. कुछ देर बाद ही पानी में डूबने से सानिया की मौत हो गई. इस के बाद उन के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी. हनीफ ने किया सानिया का सर धड़ से अलग इस के लिए शुरुआत में पति आसिफ ने उस का गला काटना शुरू किया. लेकिन कुछ मिनटों के बाद ही उस के हाथ थम गए, उस ने हार मान ली. तब आसिफ के पिता हनीफ ने आगे का काम किया और सानिया का सिर धड़ से अलग कर दिया.

उस की पहचान छिपाने के लिए कातिल हैवानियत की हदों से आगे निकल गए. उन्होंने उस के सिर के लंबे बालों को काटने के लिए इलैक्ट्रिक ट्रिमर का इस्तेमाल किया और सिर से बालों का पूरी तरह से सफाया कर दिया. इतना ही नहीं, हत्यारों ने सोचा कि अगर फिर भी सिर पुलिस को मिल गया तो कहीं वे पकड़े न जाएं, इसलिए मृतका के ऊपरी होंठ पर जो तिल था उसे चाकू से हटा दिया. ऐसी गिरी हुई हरकत ससुराल वालों ने सानिया की बच्ची को जबरन गोद लेने के लिए की.

अब हत्यारे पूरी तरह निश्चिंत थे कि यदि सिर पुलिस को मिल भी जाएगा तो वे 7 जन्मों तक इस की पहचान नहीं कर पाएंगे. आसिफ ने सिर को एक पौलीथिन की थैली में पैक कर दिया. इस के बाद वह सिर को कपड़े में छिपा कर अपने बड़े भाई यासीन के साथ बाइक पर बैठ कर साथ ले गया और सिर को मुंबई अहमदाबाद हाईवे पर खानीवाडे क्रीक में फेंक कर घर लौट आए.

लाश ठिकाने लगा कर मनाई बकरीद

अब उन्हें सानिया के धड़ को निपटाना था. इस के लिए उस के धड़ को चादर में लपेट कर एक बड़े काले रंग के ट्रौली बैग में भर दिया. आसिफ ने मुंब्रा में ही रहने वाले कैब चलाने वाले अपने बहनोई यूसुफ को फोन किया कि वह अपनी गाड़ी ले कर घर आ जाए ताकि शव को आसानी से ठिकाने लगाया जा सके. इस पर यूसुफ कार ले कर कुछ ही देर में घर आ गया. इस के बाद आसिफ ने कार में ट्रौली बैग रखा और यूसुफ के साथ जा कर उसे मुंबई के वसई के भुईगांव समुद्र तट पर फेंक आए.

आरोपियों ने खून से सने फर्श की सफाई करने के साथ ही अपनेअपने कपड़े बदले. सभी ने शाम को बकरीद का त्यौहार मनाया. क्योंकि विवाद की मुख्य वजह ही अब समाप्त हो गई थी. यूसुफ भी खुश था कि अब उसे सानिया की बेटी अमायरा मिल जाएगी. इसलिए उस ने लाश को ठिकाने लगाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. सानिया की हत्या करने के 3 महीने बाद आसिफ और उस के परिवार ने वह घर बेच दिया और परिवार मुंब्रा इलाके में रहने लगा.

वसई थाने के सीनियर इंसपेक्टर कल्याणराव ए. कर्पे ने बताया कि यह एक सुनियोजित हत्या थी, क्योंकि जिस दिन सानिया की हत्या की गई, उस दिन ससुराल वालों ने मृतका की बेटी अमायरा को बकरीद का त्यौहार मनाने के बहाने यूसुफ की पत्नी के साथ उस के घर भेज दिया था. जावेद शेख ने बताया, ‘‘अमायरा के जन्म के बाद सानिया के ससुराल वाले इस बात पर जोर देते थे कि सानिया अपनी ननद को अपनी बेटी अमायरा को गोद दे दे. वे हमेशा उस पर दबाव डालते थे और उस की बच्ची को छीनने की कोशिश करते थे.

‘‘कोविड के दौरान जब आसिफ दुबई में फंसा था तो ससुर हनीफ ने नालासोपारा में इस बात को ले कर सानिया के साथ मारपीट भी की थी. इस पर सानिया ने अचोल थाने में भी शिकायत की थी. लेकिन रिश्तेदारों की दखलअंदाजी के बाद कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था.’’

पुलिस को पति आसिफ ने सानिया के घर से जाते समय का जो लैटर दिया वह फरजी निकला. पुलिस ने पति आसिफ, उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ, बहनोई यूसुफ  को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

सानिया की हत्या के 6 दिन बाद ही उस की सिर कटी लाश पुलिस को मिल गई थी. लेकिन साल भर का वक्त सिर कटी लाश के रहस्य से परदा उठने में लग गया. पुलिस नहीं जानती थी कि सिर कटी लाश के कातिल घर में ही बैठे हुए हैं. परदाफाश भी एक शख्स (चाचा) के प्रयासों से संभव हो सका, जो अपनी बेटी को तलाशते हुए एक साल बाद मुंबई पहुंचे थे. वहीं वसई पुलिस की भी समझदारी भी काम आई, जो उस ने लाश के कपड़ों, बैग आदि के फोटो कराने के साथ ही डीएनए सैंपल सुरक्षित रखा.

इसी डीएनए सैंपल ने अनसुलझे हत्या का राज खोल दिया. सानिया के मायके वालों को 13 महीने के लंबे इंतजार के बाद सानिया के बारे में खबर तो जरूर मिली, लेकिन बेटी की मौत की. यह बात साफ है कि जुर्म करने वाला अपराधी किसी भी क्राइम को अंजाम देने से पहले खुद के बच निकलने का हर रास्ता अपनी समझ से पूरी तरह तैयार रखता है. होशियारी बरतने के बाद भी जानेअनजाने या हड़बड़ी में ही सही, वह ऐसा कोई न कोई सबूत छोड़ जाता है जिस पर पहुंच कर जांच करने वाली एजेंसी की नजर पड़ ही जाती है.

लिहाजा शातिर से शातिर अपराधी भी अपने द्वारा भूल से भी छोड़े गए अपने मूक गवाह की चाल में फंस कर कानून के शिकंजे में अपनी गरदन खुद ही फंसा बैठता है. सानिया के जीवन में दुख और गम के सिवाए कुछ नहीं था. बचपन में ही Wife murder story मांबाप के गुजरने के बाद वह अकेली रह गई थी. तब उस के चाचाचाची ने उसे अपनी बेटी की तरह पालपोस कर बड़ा किया और पढ़ाया. कहते हैं कि जब किसी की किस्मत खराब होती है तो उसे कहीं भी सुकून नहीं मिलता. साल 2017 में जब सानिया 20 साल की थी, चाचा ने उस की शादी आसिफ के साथ कर दी थी.

बेटी पैदा होने के बाद ससुरालीजन उस की जान के प्यासे बन गए. मां की ममता सानिया की जिंदगी पर भारी पड़ गई. चाचा को सपने में भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि बच्ची के लिए ससुरालीजन सानिया की जान ले लेंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Suicide : 77 पन्नों के सुसाइड नोट में लिखी मां को मारने की डिटेल

Suicide story in Hindi : रविवार 4 सितंबर, 2022 को रात 8-साढ़े 8 बजे का वक्त था. दिल्ली के रोहिणी स्थित बुद्ध विहार थाने के प्रभारी विपिन यादव अपने मातहतों के साथ दिन भर के कार्यों की समीक्षा में व्यस्त थे. तभी उन्हें सूचना मिली कि उन के इलाके के एक घर का दरवाजा लाख खटखटाए जाने के बावजूद नहीं खुल रहा है और भीतर से उठ रही सड़ांध से मोहल्ले के लोग परेशान हैं. थानाप्रभारी विपिन यादव इस सूचना की भयावहता को तुरंत भांप गए और तुरंत अपनी टीम ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

सूचना के अनुसार रोहिणी सेक्टर-24 के पौकेट 18 में वह जिस घर के बंद दरवाजे पर पहुंचे, वह श्रीनिवास पाल का 3 मंजिला मकान था. बिजली विभाग में कार्यरत रहे श्रीनिवास पाल को गुजरे तो 10 साल हो चुके थे. इस घर में उन की विधवा मिथिलेश पाल अपने इकलौते बेटे क्षितिज उर्फ सोनू के साथ रहती थीं. मगर मोहल्ले के लोगों ने कई दिनों से दोनों को देखा नहीं था. घर के चारों ओर अजीब सी बदबू फैली हुई थी. यह बदबू किसी अनहोनी को बयां कर रही थी. विपिन यादव ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई, मगर दरवाजा नहीं खुला. वे काफी देर तक घंटी बजाते रहे, मगर भीतर से कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली.

हार कर उन्होंने ऊपर की ओर देखा. मकान की पहली मंजिल कोई बहुत ज्यादा ऊंची नहीं थी. उन्होंने अपने सिपाही को घर की पहली मंजिल की बालकनी पर चढ़ने का आदेश दिया. सिपाही बालकनी के रास्ते तुरंत ऊपर चढ़ गया. उस ने पहली मंजिल से नीचे जाने वाली सीढि़यों का दरवाजा तोड़ा और नीचे उतर कर मेन गेट खोल दिया. थानाप्रभारी विपिन यादव अपने सहयोगी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह और अन्य सिपाहियों के साथ जैसे ही अंदर पहुंचे, मारे बदबू के उन का सिर घूम गया. पूरे घर में सड़ांध भरी हुई थी. सामने के दरवाजे पर एक कागज चिपका था, जिस पर लिखा था, ‘मेरी मां का शव इस दरवाजे के पीछे बाथरूम में है.’

थानाप्रभारी विपिन यादव तेजी से बाथरूम में घुसे. वहां का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. जमीन पर सड़ीगली हालत में घर की मालकिन मिथिलेश पाल का शव पड़ा था. उन के शरीर पर कीड़े रेंग रहे थे. गरदन पर तेज धार वाली किसी वस्तु से काटे जाने का निशान था और शरीर का सारा खून बह कर बाथरूम के फर्श पर जम चुका था. विपिन यादव के साथ आए सिपाही अन्य कमरों की पड़ताल करने लगे. दूसरे कमरे में उन्हें मिथिलेश पाल के 25 वर्षीय बेटे क्षितिज की लाश बैड पर पड़ी मिली. पुलिस यह देख कर हैरान रह गई कि बैड के दोनों तरफ पानी से भरी 2 बाल्टियां रखी थीं, जिन से क्षितिज ने अपने पैरों के अंगूठे बांधे हुए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और पूरा पलंग उस के खून से सना हुआ था.

क्षितिज के सिरहाने की तरफ 2 मोबाइल फोन पड़े थे और बिजली के स्विच से कनेक्ट किया हुआ एक इलैक्ट्रिक कटर खून से सना हुआ नीचे जमीन पर पड़ा था. वहीं पास में एक बड़े साइज (250 पेज) का रजिस्टर भी मिला, जिस के शुरुआती पेजों पर कार्बन पेंसिल से अध्यात्म की बातें लिखी थीं. गंधर्व विवाह और देव विवाह जैसी बातें भी उस में लिखी हुई थीं और उस के बाद के 77 पेजों में एक लंबाचौड़ा सुसाइड नोट था. यह सुसाइड नोट क्षितिज पाल द्वारा लिखा गया था. थानाप्रभारी विपिन यादव को यह देख कर हैरत हुई कि ये पूरा रजिस्टर किसी पेन के बजाय कार्बन पेंसिल से लिखा गया था, जो आमतौर पर कम ही इस्तेमाल होती हैं. हालांकि 77 पेज के सुसाइड नोट के आखिर में क्षितिज ने स्याही से अपने दोनों हाथ के अंगूठे के निशान लगाए थे.

थानाप्रभारी विपिन यादव को यह समझते देर नहीं लगी कि पूरा मामला हत्या और Suicide story in Hindi आत्महत्या का है. क्षितिज ने पहले अपनी 60 वर्षीय मां मिथिलेश को मारा और फिर खुद आत्महत्या कर ली. लेकिन इलैक्ट्रिक कटर से हत्या और आत्महत्या का जो तरीका उस ने अपनाया, वह बेहद खौफनाक था. विपिन यादव ने तुरंत फोरैंसिक जांच के लिए क्राइम टीम और एफएसएल टीम को बुलाया. आसपास के लोगों से पूछताछ में पता चला कि इस घर में मिथिलेश अपने इकलौते बेटे क्षितिज के साथ रहती थीं. अन्य कोई रिश्तेदार नहीं था, बस झांसी में मिथिलेश की छोटी बहन और जीजा थे, जो कभीकभार यहां आतेजाते थे.

लोगों ने यह भी बताया कि क्षितिज की मां बड़ी धार्मिक थीं और हर हफ्ते सत्संग भी जाया करती थीं. वहीं क्षितिज अकसर घर पर ही रहता था. मोहल्ले में उस का कोई दोस्तयार नहीं था और वह बहुत कम लोगों से मिलता था. लोग यह जान कर आश्चर्यचकित थे कि क्षितिज ने अपनी मां की हत्या कर खुद आत्महत्या कर ली. आखिर क्षितिज ने ऐसा क्यों किया? अपनी उस मां को क्यों मार दिया, जिस से वह बेहद प्यार करता था? हत्या में इलैक्ट्रिक कटर का इस्तेमाल भी अचरज में डालने वाला था. लोगों को यह सवाल भी परेशान कर रहा था कि खुद की गरदन इलैक्ट्रिक कटर से काटने से पहले क्षितिज ने पानी से भरी बाल्टियों से अपने पैर के अंगूठे क्यों बांधे?

लेकिन इन सभी सवालों के जवाब सामने आए क्षितिज के 77 पेज के सुसाइड नोट से. उस रजिस्टर में क्षितिज ने न सिर्फ पूरी घटना के एकएक पल का ब्यौरा लिखा था, बल्कि अपनी पूरी जिंदगी की दास्तान उस में दर्ज कर दी थी. पुलिस के मुताबिक क्षितिज 2 साल से खुद को मारने की उधेड़बुन में लगा था. हत्या और आत्महत्या के लिए क्या उपाय अपनाए जाएं, ये सब वह लंबे समय से गूगल पर सर्च कर रहा था. यह वारदात भागतीदौड़ती दिल्ली के एक घर की चारदीवारी में घिरे अकेले पुरुष के अवसाद की कहानी है. क्षितिज, जिसे अपने नाम की तरह बचपन से ही क्षितिज को छूने की चाह थी, मगर उस के अकेलेपन ने उसे ऐसी मानसिक स्थिति में धकेल दिया कि वह जिंदगी की जेल से आजाद होने के लिए बेचैन हो उठा.

उसे अपने चारों ओर उदासी और नकारात्मकता ही दिखाई देने लगी. वह खुद को अकेला और हताश महसूस करने लगा और आखिर में जो कदम उठाया, उसे देख कर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए. रजिस्टर के 77 पेज में जो लिखा गया, वह हत्या और आत्महत्या की खतरनाक कहानी है. यह सुसाइड नोट दिल दहला देने वाला है. यह बताता है कि युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन यानी अवसाद और हताशा के लक्षणों को नजरंदाज करने का अंजाम कितना खतरनाक हो सकता है. क्षितिज की मां मिथिलेश उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की रहने वाली थीं. उन की शादी दिल्ली के श्रीनिवास पाल से हुई, जो बिजली विभाग में कार्यरत थे. शादी के बाद मिथिलेश अपने पति के पास दिल्ली आ गईं. उन की एक बहन भी हैं, जो झांसी में अपने पति और बच्चों के साथ रहती हैं.

शादी के 14 साल बाद जब मिथिलेश की गोद भरी तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बेटे क्षितिज को पा कर पतिपत्नी बहुत खुश थे. वे प्यार से उसे सोनू कह कर पुकारते थे. श्रीनिवास ने बेटे की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. बहुत प्यार दिया. अच्छे नामचीन स्कूल में पढ़ाया और उस से बहुत सारी उम्मीदें बांधी. मगर अफसोस कि वे अपनी उम्मीदों को पूरा होते नहीं देख सके. 10 साल पहले बीमारी के चलते उन की मौत हो गई. पति का यूं अचानक चले जाना मिथिलेश पर गाज बन कर टूटा. वह बुरी तरह टूट गईं. हताशा और अकेलेपन ने उन्हें घेरा तो वह सत्संग और मंदिरों में सहारा तलाशने लगीं. वहीं श्रीनिवास का लाडला बेटा क्षितिज उर्फ सोनू पिता की अचानक मौत से सहम सा गया. 15 साल की नाजुक उम्र में जब उसे पिता के प्यार और मार्गदर्शन की सब से ज्यादा जरूरत थी, वह उसे छोड़ कर चले गए.

इस घटना ने क्षितिज को डरा दिया. वह सब से कटाकटा सा रहने लगा. स्कूल में भी वह अकेला और अन्य बच्चों से अलग रहता. उस का कोई दोस्त नहीं था. इस अकेलेपन ने उसे मानसिक रूप से तोड़ दिया, उसे दब्बू और डरपोक बना दिया. वह टीचर के सवालों से डरने लगा. वह दोस्तों के हंसीमजाक से डरने लगा. यहां तक कि अपनी स्कूल बस में चढ़नेउतरने में भी उस के पांव कांपने लगे. वह न तो खेलों में हिस्सा लेता और न ही किसी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में. बस अपने आप में ही गुमसुम रहता. धीरेधीरे सब उस से कटने लगे. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. इस बात का जिक्र क्षितिज ने अपने सुसाइड नोट में किया है.

दरअसल, क्षितिज साइकोलौजिकल डिसऔर्डर का शिकार हो चुका था. अपने हालात की वजह से डिप्रेशन में जा रहा था, मगर उस के इन लक्षणों को न उस के स्कूल के टीचर भांप सके और न घर में उस की मां. उस ने लिखा, ‘मेरी मां मेरी उम्मीद थीं. पापा के जाने के बाद मां और मैं अकेले पड़ गए. मेरे पापा हम सब को ऐसे समय में छोड़ कर चले गए जब हमें सब से ज्यादा जरूरत थी. 10वीं कक्षा में था मैं उस समय, जब पापा की मौत हो गई.

‘बाद में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसओएल में एडमिशन लिया. लेकिन किस्मत धोखा दे गई. 2 बार फिसल गया. डिप्रेशन रहता है. एक रात, 2 रात, 3 रात, 5 रात तक जगा रहता हूं. कई बार बेहोश सा पड़ा रहता हूं. बीमारियां मेरे अंदर भरती जा रही हैं. मां कई बार टोकती थीं. मां भी हाई ब्लडप्रेशर से परेशान रहती थीं.’

क्षितिज पढ़ाई में पिछड़ने लगा. लगातार फेल होता रहा और अंत में उस ने पढ़ाई छोड़ दी. वह ज्यादा समय घर पर अपने कमरे में बंद रहने लगा. उस की मां उस से बारबार कोई काम करने या पढ़ाई करने को कहतीं, लेकिन अवसाद का शिकार क्षितिज मां की कोई बात पूरी नहीं कर पा रहा था. Suicide story in Hindi सुसाइड नोट में उस ने लिखा है, ‘मेरी अच्छी परवरिश के लिए मां ने सिलाई भी की. मां कहती थी कुछ ट्यूशन कर लो. छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दो. सुन कर मैं डर गया था.’

क्षितिज अपने पापा को अपना हीरो समझता था. उन के जाने का घाव उस के दिल पर गहरा हुआ था. मां का अकेलापन और पिता के लिए उन का रोना उस से देखा नहीं जाता था. वह मां से भी बहुत प्यार करता था. पिता की पेंशन से दोनों का गुजारा किसी तरह चल रहा था, लेकिन उस की मां चिंताओं के कारण बीमार सी रहने लगी थीं. उन की आंखों से कम दिखने लगा था. कभीकभी वह क्षितिज पर झुंझलाने लगतीं तो कभी बहुत प्यार लुटाती थीं. मगर एकदूसरे के दिलदिमाग में क्या चल रहा था, इस से दोनों ही अनभिज्ञ थे. दोनों अपनेअपने दुख के साथ अकेले थे.

क्षितिज ने तय कर लिया कि अब जीना नहीं है. वह मां को इस दुनिया में अकेला नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए उस ने उन की भी हत्या करने का प्रण कर लिया. पहली सितंबर को उस ने बाइक बांधने वाली डोरी निकाली और पलंग पर बैठी मां के पीछे से आ कर उन के गले में डोरी लपेट कर कस दी. मिथिलेश छटपटाईं मगर अपना गला नहीं छुड़ा पाईं. कुछ ही देर में वह बेसुध हो कर एक ओर लुढ़क गईं. क्षितिज ने तुरंत मां का सिर अपनी गोद में रख कर उन का मुंह दबा लिया. चंद सेकेंड में मिथिलेश के प्राणपखेरू उड़ गए.

मां को मारने के बाद क्षितिज ने भागने या बचने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि वह आत्महत्या के उपाय सोचने लगा. मां के सिवा उस का कोई भी नहीं था. दरअसल, वह खुद मरना चाहता था मगर मां को दुनिया में अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था. अपने 77 पेज के सुसाइड नोट में क्षितिज ने लिखा, ‘2 साल से मरना चाह रहा था. मैं मरने से पहले अपनी मां को उस दुख से आजाद करना चाहता हूं. हर इतवार को मां सत्संग में जाती थीं. इस बार भी (पिछले हफ्ते) मां जब आईं, थोड़ी हंसी भी हुई थी. मां की आंखों में जाला आ गया है, लगता है मोतियाबिंद है. अब तो मैं मर जाना चाहता हूं. गुरुवार है आज. बाइक की डोरी से मां का गला इसलिए घोटा ताकि मां को मरने से पीड़ा न हो.’

मां का गला घोटने के बाद क्षितिज ने रजिस्टर उठा लिया और लिखा, ‘जैसे ही मैं ने मां के गले में डोरी कसी, मां 4 से 5 सेकेंड में निढाल हो कर गिर गईं. मुझे पता था दिमाग में औक्सीजन नहीं पहुंचने पर मौत हो जाती है. मां के गिरते ही मैं ने उन का सिर गोद में रख लिया. 8-10 मिनट तक गला दबा कर रखा. मैं मुंह दबा कर रोए जा रहा था. गुरुवार दिन भर और पूरी रात रोता रहा हूं. मुझे पापा की बहुत याद आ रही है. मरने के बाद भी मां की आंखें खुली थीं. मैं ने बंद करने की कोशिश की, मगर हो न सकीं.

‘शुक्रवार है आज. मां के शव को देखा नहीं जा रहा. मैं ने अपनी मां के चेहरे को गंगाजल से नहलाया है. उन के पास बैठ कर भगवत गीता का 18वां अध्याय पढ़ा. पूरी भगवत गीता नहीं पढ़ सका. मैं ने फिर गीता मां के सीने पर रख दी.’

मां की हत्या करने के बाद क्षितिज खुद को मारने के रास्ते ढूंढने लगा. वह मां के शव को कमरे में बंद कर के बाजार गया और एक इलैक्ट्रिक कटर खरीद कर लाया. कई दुकानें तलाशने के बाद आखिरकार एक दुकान पर उसे कटर और ब्लेड मिल गया. घर आ कर उस ने सब से पहले अपनी मृत मां के गले पर कटर चलाया. ऐसा शायद उस ने ट्रायल के तौर पर किया था. ताकि जब खुद की गरदन उड़ानी हो तो कटर ठीक से चला सके शायद इसलिए.

उस ने लिखा, ‘पहले मैं ने पिस्टल खरीदने की कोशिश की. नहीं मिली. फिर इलैक्ट्रिक कटर का विचार आया है. इलैक्ट्रिक कटर ले कर रात को घर लौटा था. मां के शव के पास खूब रोया हूं.’

उस ने रजिस्टर में आगे लिखा, ‘मां की मौत को आज 71 घंटे हो चुके हैं. बदबू आने लगी है. मां की गरदन कटर से काट दी है. शरीर से अलग नहीं की है.

‘शुक्रवार शाम से शव में बदबू आने लगी थी. मां के शव को बाथरूम में घसीट कर ले गया. दरवाजा बंद कर दिया है ताकि बदबू न आए. मैं बस सुसाइड नोट पूरा करना चाहता हूं. बदबू घर में भर चुकी है. अब बारी है मेरे सुसाइड करने की.’

मरने से पहले क्षितिज अपने जीवन के एकएक पल को जैसे उस रजिस्टर में कैद कर देना चाहता था. कभी मुंह पर कपड़ा रख कर तो कभी अगरबत्ती सुलगा कर वह किसी तरह बदबू से बचता हुआ लगातार लिखे ही जा रहा था.

‘आज शनिवार है. 3 दिन से खाली पेट हूं. कुछ खाया ही नहीं. मुझे याद आया रसोई में मैं ने गर्म पानी पीने को रखा है. कमरे में बदबू नहीं रुक रही. इस से मेरी भी तबीयत बिगड़ने लगी है. मैं ने पेंसिल के बुरादे को जलाया है. धूपबत्ती जलाई है. घर में एक जायफल रखा था, उसे भी जलाया है. सारा डियो भी छिड़क दिया. फिर भी बदबू नहीं रुक रही है. लेकिन मैं मास्क लगा कर सुसाइड नोट पूरा करूंगा.’

इस बीच क्षितिज के घर पर कई लोग आए. उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो वापस चले गए. क्षितिज की मां मिथिलेश हर इतवार पड़ोस में रहने वाली एक सहेली के साथ सत्संग जाती थी. मगर उस दिन जब वह नहीं आई तो उन की सहेली ने कई फोन मिथिलेश के फोन पर किए. फोन नहीं उठा तो उन्होंने क्षितिज का फोन मिलाया. 2-3 घंटियां बजने के बाद आखिरकार क्षितिज ने फोन उठा लिया. उधर से आवाज आई, ‘आज मिथिलेश सत्संग में नहीं आई. फोन भी नहीं उठा रही है. मेरी जरा उस से बात करा दो.’

क्षितिज पहले तो घबरा गया, लेकिन फिर कड़ाई से बोला, ‘मां मर चुकी हैं. 4 दिन पहले मैं ने उन्हें मार दिया. अब मैं भी मरने की तैयारी कर रहा हूं.’

मिथिलेश की सहेली ने तुरंत फोन काट दिया. शायद वह क्षितिज की बात सुन कर डर गई. उस ने यह बात किसी को नहीं बताई. अगर वह उसी वक्त शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा कर लेती और अपनी सहेली का घर खुलवा लेती या पुलिस को फोन कर देती तो शायद क्षितिज पुलिस को जीवित मिल जाता. लेकिन दूसरे के पचड़े में कौन पड़े, यह सोच उस महिला पर हावी हो गई और वह चुप मार गई. फिर उस ने आगे लिखा, ‘आज रविवार है. इस समय दोपहर के 2 बज रहे हैं. 3 दिन से प्रौपर्टी डीलर फ्लोर किराए पर दिखाने के लिए 3 बार किराएदारों के साथ आ चुका है. मैं ने दरवाजा नहीं खोला. आज हर हालत में नोट पूरा कर लूंगा. यह सब देखना बहुत डरावना लगता है.

‘पापा के जाने के बाद मां के जीजा ने हमारी पिता की तरह देखभाल की. इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरी बाइक उन के नाम होगी. मेरी इच्छा है कि मां का अंतिम संस्कार मेरी मौसी करें.’

सुसाइड नोट पूरा करने के बाद क्षितिज ने बाथरूम में जा कर मां के शव पर नजर डाली. बदबू के मारे वह उस के पास नहीं बैठा. अब वह जल्द से जल्द खुद को खत्म कर लेना चाहता था. उस ने बाथरूम में रखी दोनों बाल्टियों में पानी भरा और उन्हें अपने बैडरूम में ले आया. उस ने इलैक्ट्रिक कटर को स्विच बोर्ड में लगाया. चला कर देखा और पलंग पर रख दिया. इस के बाद उस ने पानी भरी बाल्टियों से अपने दोनों पैरों के अंगूठे बांध लिए ताकि जब वह इलैक्ट्रिक कटर अपने गले पर चलाए और दर्द से छटपटाए तो बैड से नीचे न गिरे.

शायद उसे इस बात का अंदेशा था कि कहीं ऐसा न हो कि छटपटाहट के कारण गला पूरा न कट पाए या कटर उस के हाथों से छूट जाए. ऐसे में जो पीड़ा होगी, वह असहनीय होगी. इसलिए वह पूरी तैयारी कर के बिस्तर पर लेटा. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह भी कहते हैं कि पैरों को बाल्टी से बांधने के पीछे क्षितिज का मकसद रहा होगा कि मौत के समय छटपटाहट हो तो पैर बंधे रहें. खुद को मारने के लिए इतनी हिम्मत जुटाना यह साबित करता है कि अब क्षितिज किसी भी कीमत पर इस दुनिया में नहीं रहना चाहता था. वह अपनी मां से बहुत प्रेम करता था और उन के बगैर अपने जीवन की कल्पना वह नहीं कर सका था.

बुद्ध विहार थाने में इस घटना की एफआईआर हत्या की धाराओं में दर्ज हुई है. हालांकि मरने वाला और मारने वाला दोनों ही नहीं हैं, मगर पुलिस को तो अपनी जांच करनी ही है. दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के बाद मिथिलेश की बहन और जीजा के सुपुर्द कर दिया गया, जिन्होंने उन का अंतिम संस्कार किया. मिथिलेश के घर को पुलिस ने फिलहाल सील कर दिया है. डिप्रेशन एक खतरनाक बीमारी है. इस का शिकार व्यक्ति आम व्यक्ति की तरह ही नजर आता है. इस से ग्रसित व्यक्ति को कई बार स्वयं को भी इस का पता नहीं चल पाता. बाहर के लोग तो समझ ही नहीं पाते कि उस की मानसिक हालत कैसी है और वह कब क्या कदम उठा ले, लेकिन साथ रहने वाले उस के बदलते व्यवहार को पकड़ सकते हैं और बातचीत के जरिए उस की मानसिक स्थिति का पता लगा सकते हैं.

यदि समय रहते इस का इलाज हो जाए तो इस के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है तथा संपूर्ण मुक्ति भी पाई जा सकती है. इस के 2 मुख्य परिणाम भयावह हैं— एक तो आत्महत्या जो हम आए दिन अखबारों और मीडिया के माध्यम से देखसुन रहे हैं, दूसरा है मानसिक संतुलन खो देना यानी पागलपन. जब दिमाग दबाव को झेल नहीं पाता तो यही स्थिति आती है. अन्य शारीरिक जटिलताएं और बीमारियां भी शरीर में इस अवस्था के कारण पैदा हो सकती हैं जो अनगिनत हैं. आज के समय में इस के मुख्य कारणों में से एक है करीबी लोगों से निकटता का अभाव.

लोग एक घर में रहते हुए भी एकदूसरे से कोसों दूर हो गए हैं. जरूरत से ज्यादा मोबाइल या आभासी दुनिया में डूबे रहना भी इस का कारण और लक्षण दोनों हो सकते हैं. आज के समय में भागमभाग ज्यादा है, भावनात्मक जुड़ाव मंद पड़ गए हैं, वे चाहे मातापिता के बच्चों से हों या बच्चों के उन से या अन्य परिवारजनों, रिश्तेदारों के परस्पर हों. मित्रता भी स्वार्थपरायण हो रही है. आसपड़ोस से बातचीत निजता में खलल की परिभाषा में हो गया है. पुस्तकें पढ़ने और सृजनात्मक कार्यों में आम लोगों की रुचि कम हुई है. कला और संस्कृति से बहुत कम लोग जुड़े हैं. सेवा, देखभाल, आत्मीयता सब घरपरिवारों से गायब सा दिख रहा है. ईर्ष्या और द्वेष संतोष और प्रसन्नता पर भारी पड़ रहे हैं. अकेलापन बढ़ रहा है. काफी लोग परिवार की खिचखिच की वजह से अलग व अकेले भी रहने लगे हैं.

व्यावसायिक कारणों से भी बहुत लोग अकेले रहते हैं तथा व्यावसायिक जीवन के दबाव से भी परेशान रहते हैं. विद्यार्थी और युवा वर्ग अनिश्चितताओं के चलते घर या सामाजिक दबाव के कारण भी अवसादग्रस्त हो रहे हैं. विचलित करने वाली खबरें, महामारी में डर का माहौल आदि आग में घी का काम करता है. दिखावे का जीवन और अनावश्यक स्पर्धा का माहौल तन और मन दोनों को भटकाए रखता है.

यह सच है कि ऊपर से सामान्य सी लगने वाली अवसाद की इस समस्या ने बहुत नुकसान किया है, परंतु इस का मतलब यह भी नहीं कि यह लाइलाज है. इस में घर से ले कर समाज के लिए यह एक जिम्मेदारी का काम हो जाए तो क्षितिज और मिथिलेश जैसे अनेक जीवन बचाए जा सकते हैं.

Rajasthan stories : राजा के महल में जिंदा लाश बनकर रह गई थी मौली

Rajasthan stories : मनचाहा शिकार तो मिल गया, लेकिन शिकारी थक कर चूर हो चुका था. एक तो थकान, दूसरे ढलती सांझ और तीसरे 10 मील  का सफर. उस में भी 3 मील पहाड़ी चढ़ाई, फिर उतनी ही ढलान. समर सिंह ने पहाड़ी के पीछे डूबते सूरज पर निगाह डाल कर घोड़े की गरदन पर हाथ फेरा. फिर घोड़े की लगाम थामे खड़े सरदार जुझार सिंह की ओर देखा. उन की निगाह डूबते सूरज पर जमी थी.

समर सिंह उन्हें टोकते हुए थके से स्वर में बोले, ‘‘अंगअंग दुख रहा है, सरदार. ऊपर से सूरज भी पीठ दिखा गया. धुंधलका घिरने वाला है. अंधेरे में कैसे पार करेंगे इस पहाड़ी को?’’

जुझार सिंह थके योद्धा की तरह सामने सीना ताने खड़ी पहाड़ी पर नजर डालते हुए बोले, ‘‘थक तो हम सभी गए हैं हुकुम. सफर जारी रखा तो और भी बुरा हाल हो जाएगा. अंधेरे में रास्ता भटक गए तो अलग मुसीबत. मेरे खयाल से तो…’’ जुझार सिंह सरदार की बात का आशय समझते हुए बोले, ‘‘लेकिन इस बियाबान जंगल में कैसे रात कटेगी? हम लोगों के पास तो कोई साधन भी नहीं है. ऊपर से जंगली जानवरों का अलग भय.’’

पीछे खड़े सैनिक समर सिंह और जुझार सिंह की बातें सुन रहे थे. उन दोनों को चिंतित देख एक सैनिक अपने घोड़े से उतर कर सरदार के पास खड़ा हो गया. सरदार समझ गए, सैनिक कुछ कहना चाहता है. उन्होंने पूछा तो सैनिक उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘सरदार, अगर रात इधर ही गुजारनी है तो सारा बंदोबस्त हो सकता है. आप हुक्म करें.’’

‘‘क्या बंदोबस्त हो सकता है, मोहकम सिंह?’’ जुझार सिंह ने सवाल किया तो सैनिक दाईं ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘ये छोटी सी पहाड़ी है. इस के पार मेरा गांव है. बड़ी खूबसूरत और रमणीक जगह है उस पार. इस पहाड़ी को पार करने के लिए हमें सिर्फ एक 2 मील चलना पड़ेगा. 1 मील की चढ़ाई और 1 मील उस ओर की ढलान. रास्ता बिलकुल साफ है. अंधेरा घिरने से पहले हम गांव पहुंच जाएंगे. मेरे गांव में हुकुम को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

जुझार सिंह ने प्रश्नसूचक नजरों से समर सिंह की ओर देखा. वह शांत भाव से घोड़े की पीठ पर बैठे थे. उन्हें चुप देख सरदार ने कहा, ‘‘सैनिक की सलाह बुरी नहीं है हुकुम. रात भी चैन से बीत जाएगी और इस बहाने आप अपनी प्रजा से भी मिल लेंगे. जो लोग आप के दर्शन को तरसते हैं, आप को सामने देख पलकें बिछा देंगे.’’

और ऐसा ही हुआ भी. मोहकम सिंह का प्रस्ताव स्वीकार कर के जब समर सिंह अपने साथियों के साथ उस के गांव पहुंचे तो गांव वालों ने उन के आगे सचमुच पलकें बिछा दीं. छोटा सा पहाड़ी गांव था राखावास. साधन विहीन. फिर भी वहां के लोगों ने अपने राजा के लिए ऐसे ऐसे इंतजाम किए, जिन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. हुकुम के आने से मोहकम सिंह को तो जैसे पर लग गए थे. उस ने गांव के युवकों को एकत्र कर के सूखी मुलायम घास का आरामदेह आसन लगवाया. उस पर सफेद चादर बिछवाई. सरदार के लिए अलग आसन का प्रबंध किया और सैनिकों के लिए अलग. चांदनी रात थी, फिर भी लकडि़यां जला कर रोशनी की गई.

आननफानन सारा इंतजाम कराने के बाद गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को शिकार भूनने और बनाने की जिम्मेदारी सौंप कर मोहकम सिंह घोड़ा दौड़ाता हुआ 3 मील दूर समालखा गांव गया और वहां से वीरन देवल से 4 बोतल संतूरी ले आया. 36 साल बाद पाकिस्तान से घर लौटा पति की बेहतरीन शराब जो केवल राजामहाराजाओं के लिए बनाई जाती थी. अदना सा एक (Rajasthan stories) सिपाही कितने काम का साबित हो सकता है, यह बात समर सिंह को तब पता चली, जब अपने हाथों मारे गए शिकार के जायकेदार गोश्त और संतूरी का लुत्फ लेते हुए उन की नजर घुंघरू छनका कर मस्त अदाओं के साथ नाचती मौली पर पड़ी.

ऐसा रूपलावण्य, ऐसा अछूता सौंदर्य, ऐसा मदमाता यौवन और अंगअंग में ऐसी लोच समर सिंह ने पहली बार देखा था. उन के महल तक में नहीं थी ऐसी अनिंद्य सुंदरी. ऊपर से फिजाओं में रंग बिखेरती मौली का सधा हुआ स्वर और एक ही लय में बजते घुंघरुओं की रुनझुन. रहीसही कसर मानू की ढोलक की थाप पूरी कर रही थी. घुंघरुओं की रुनझुन और ढोलक की थाप को सुन लगता था, जैसे दोनों एकदूसरे के पूरक हों. पूरक थे भी. मौली का सधा स्वर, घुंघरुओं की रुनझुन और मानू की ढोलक की थाप ही नहीं, बल्कि वे दोनों भी. यह अलग बात थी कि इस बात को गांव वाले जानते थे, पर समर सिंह और उस के साथी नहीं.

मौली और मानू खूब खुश थे. उन्हें यह सोच कर खुशी हो रही थी कि अपने राजा का मनोरंजन कर रहे हैं. इस के लिए उन दोनों ने अपनी ओर से भरपूर कोशिश भी की. लेकिन उन की सोच, उन के उत्साह, उन के समर्पण भाव और कला पर पहली बिजली तब गिरी, जब शराब के नशे में झूमते राजा समर सिंह ने मौली को पास बुला कर उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आज हम ने अपने जीवन में सब से बड़ा शिकार किया है. हमारी शिकार यात्रा सफल रही. ये रात कभी नहीं भूलेगी.’’

इस तरह मौली का हाथ कभी किसी ने नहीं पकड़ा था. मानू ने भी नहीं. मानू के हाथों का स्पर्श उसे अच्छा लगता था. लेकिन उस ने उस के पैरों के अलावा कभी किसी अंग को नहीं छुआ था. मौली के पैरों में भी उस के हाथों का स्पर्श तब होता था, जब वह अपने हाथों से उस के पैरों में घुंघरू बांधता था. मौली को राजा द्वारा यूं हाथ पकड़ना अच्छा नहीं लगा. उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो समर सिंह उस की कलाई पर दबाव बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आज के बाद तुम सिर्फ हमारे लिए नाचोगी, हमारे महल में. हम मालामाल कर देंगे तुम्हें. तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को ही नहीं, इस गांव को भी.’’

घुंघरुओं की रुनझुन भी थम चुकी थी और ढोलक की थाप भी. सब लोग विस्मय से राजा की ओर देख रहे थे. कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. मानू भी अवाक बैठा था. मौली राजा से हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘मौली रास्ते की धूल है हुकुम…और धूल उन्हीं रास्तों पर अच्छी लगती है, जो उस की गगनचुंबी उड़ानों के बाद भी उसे अपने सीने में समेट लेते हैं. इस खयाल को मन से निकाल दीजिए हुकुम. मैं इस काबिल नहीं हूं.’’

समर सिंह Raja Ki Kahani ने लोकलाज की वजह से मौली का हाथ तो छोड़ दिया, लेकिन उन्हें मौली की यह बात अच्छी नहीं लगी. रात बड़े ऐशोआराम से गुजरी. मोहकम सिंह और गांव वालों ने हुकुम तथा उन के साथियों की खातिरतवज्जो में कोई कसर न उठा रखी थी. सुबह जब सूरज की किरणों ने पहाड़ से उतर कर राखावास की मिट्टी को छुआ तो वहां का कणकण निखर गया. राजा समर सिंह ने उस गांव का प्राकृतिक सौंदर्य देखा तो लगा जैसे स्वर्ग के मुहाने पर बैठे हों. मौली की तरह ही खूबसूरत था उस का गांव. चारों ओर खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा, नीलमणि से जलवाली आधा मील लंबी झील के किनारे स्थित. पहाड़ों से उतर कर आने वाले बरसाती पानी का करिश्मा थी वह झील.

रवाना होने से पहले समर सिंह ने मौली के मांबाप को तलब किया. दोनों हाथ जोड़े आ खड़े हुए तो समर सिंह बोले, ‘‘तुम्हारी बेटी महल की शोभा बनेगी. उसे ले कर महल आ जाना. हम तुम्हें मालामाल कर देंगे.’’

‘‘मौली को हम महल ले आएंगे हुकुम,’’ मौली के मांबाप डरते सहमते बोले, ‘‘नाचनागाना हमारा पेशा है, पर मौली के साथ मानू को भी आप को अपनी शरण में लेना पड़ेगा. उस के बिना तो मौली का पैर तक नहीं उठ सकता.’’

‘‘हम समझे नहीं.’’ समर सिंह ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा तो मौली के पिता बोले, ‘‘मौली और मानू बचपन के साथी हैं. नाचगाना भी दोनों ने साथसाथ सीखा. बहुत प्यार है दोनों में. मौली तभी नाचती है, जब मानू खुद अपने हाथों उस के पांव में घुंघरू बांध कर ढोलक पर थाप देता है. आप लाख साजिंदे बैठा दें मौली नहीं नाचेगी हुकुम…इस बात को सारा इलाका जानता है.’’

‘‘हमारे लिए भी नहीं?’’ समर सिंह ने अपमान का सा घूंट पीते हुए गुस्से में कहा तो मौली के पिता बोले, ‘‘आप के लिए नाचेगी हुकुम…जरूर नाचेगी. लेकिन उस के साथ मानू का होना जरूरी है. सारा गांव जानता है, मौली और मानू दो जिस्म एक जान हैं. अलग कर के सिर्फ दो लाशें रह जाएंगी. उन्हें अलग करना संभव नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे मुंह से बगावत की बू आ रही है…और हमें बागी बिलकुल पसंद नहीं.’’ समर सिंह गुस्से में बोले, ‘‘मौली को खुद महल ले कर आते तो हम मालामाल कर देते तुम्हें, लेकिन अब हम खुद उसे साथ ले कर जाएंगे. जा कर तैयार करो उसे. यह हमारा हुक्म है.’’

अच्छा तो किसी को नहीं लगा, लेकिन राजा की जिद के सामने किस की चलती? वही हुआ, जो समर सिंह चाहते थे. रोतीबिलखती मौली को उन के साथ जाने को तैयार कर दिया गया. विदा बेला में मौली ने पहली बार मानू का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मौली तेरी है मानू, तेरी ही रहेगी. राजा इस लाश से कुछ हासिल नहीं कर पाएगा.’’

मानू के होंठों से जैसे शब्द रूठ गए थे. वह पलकों में आंसू समेटे चुपचाप देखता रहा. आंसू और भी कई आंखों में थे, लेकिन राजा के भय ने उन्हें पलकों से बाहर नहीं आने दिया. अंतत: मौली राखावास से राजा के साथ विदा हो गई. राखावास में देवल, राठौर, नाड़ीबट्ट और नट आदि कई जातियों के लोग रहते थे. मौली और मानू दोनों ही नट जाति के थे. दोनों साथसाथ खेलतेकूदते बड़े हुए थे. दोनों के परिवारों का एक ही पेशा था—नाचगाना और भेड़बकरियां पालना.

मानू के पिता की झील में डूबने से मौत हो गई थी. घर में मां के अलावा कोई नहीं था. जब यह हादसा हुआ, मानू कुल 9 साल का था. पिता की मौत के बाद मां ने कसम खा ली कि वह अब जिंदगी भर न नाचेगी, न गाएगी. घर में 10-12 भेड़बकरियों के अलावा आमदनी का कोई साधन नहीं था. भेड़बकरियां मांबेटे का पेट कैसे भरतीं? फलस्वरूप घर में रोटियों के लाले पड़ने लगे. मानू को कई बार जंगली झरबेरियों के बेर खा कर दिन भर भेड़बकरियों के पीछे घूमना पड़ता.

मौली बचपन से मानू के साथ रही थी. वह उस का दर्द समझती थी. उसे मालूम था, मानू कितना चाहता है उसे. कैसे अपने बदन को जख्मी कर के झरबेरियों से कुर्ते की झोली भरभर लाल लाल बेर लाता था उस के लिए और बकरियों के पीछे भागतेदौड़ते उस के पांव में कांटा भी चुभ जाता था तो कैसे तड़प उठता था वह. खून और दर्द रोकने के लिए उस के गंदे पांवों के घाव पर मुंह तक रखने से परहेज नहीं करता था वह. कोई अमीर परिवार मौली का भी नहीं था. बस, जैसेतैसे रोजीरोटी चल रही थी. मौली को जो भी घर में खाने को मिलता, उसे वह अकेली कभी नहीं खाती. बहाना बना कर भेड़बकरियों के पीछे साथ ले जाती. फिर किसी बड़े पत्थर पर बैठ कर अपने हाथों से मानू को खिलाती. मानू कभी कहता, ‘‘मेरे नसीब में भूख लिखी है. मेरे लिए तू क्यों भूखी रहती है?’’

तो मौली उस के कंधे पर हाथ रख कर, उस की आंखों में झांकते हुए कहती, ‘‘मेरी आधी भूख तुझे देख कर भाग जाती है और आधी रोटी खा कर. मैं भूखी कहां रहती हूं मानू.’’

इसी तरह भेड़बकरियां चराते, पहाड़ी ढलानों पर उछलकूद मचाते मानू 14 साल का हो गया था और मौली 12 साल की. दुनियादारी को थोड़ाबहुत समझने लगे थे दोनों. इस बीच मानू की मां उस के पिता की मौत के गम को भूल चुकी थी. उस ने गांव के ही एक दूसरे आदमी का हाथ थाम कर अपनी दुनिया आबाद कर ली थी. सौतेला बाप मानू को भी साथ रखने को तैयार था, लेकिन उस ने इनकार कर दिया.

मानू और मौली जानते थे, नाचगाना उन का खानदानी पेशा है. थोड़ा और बड़ा होने पर उन्हें यही पेशा अपनाना पड़ेगा. उन्हें यह भी मालूम था कि उन के यहां जो अच्छे नाचनेगाने वाले होते हैं, उन्हें राज दरबार में जगह मिल जाती है. ऐसे लोगों को धनधान्य की कमी नहीं रहती. हकीकतों से अनभिज्ञ वे दोनों सोचते, बड़े हो कर वे भी कोशिश करेंगे कि उन्हें राज दरबार में जगह मिल जाए. एक दिन बकरियों के पीछे दौड़ते, पत्थर से टकरा कर मौली का पांव बुरी तरह घायल हो गया. मानू ने खून बहते देखा तो कलेजा धक से रह गया. उस ने झट से अपना कुरता उतार कर खून पोंछा. लेकिन खून था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था. मानू का पूरा कुरता खून से तर हो गया, पर खून नहीं रुका. चोट मौली के पैर में लगी थी, पर दर्द मानू के चेहरे पर झलक रहा था.

उसे परेशान देख मौली बोली, ‘‘कुरता खून में रंग दिया, अब पहनेगा क्या?’’

हमेशा की तरह मानू के चेहरे पर दर्द भरी मुसकान तैर आई. वह खून रोकने का प्रयास करते हुए दुखी स्वर में बोला, ‘‘कुरता तेरे पांव से कीमती नहीं है. 10-5 दिन नंगा रह लूंगा तो मर नहीं जाऊंगा.’’

काफी कोशिशों के बाद भी खून बंद नहीं हुआ तो मानू मौली को कंधे पर डाल कर झील के किनारे ले गया. मौली को पत्थर पर बैठा कर उस ने झील के पानी से उस का पैर धोया. आसपास झील का पानी सुर्ख हो गया, पर खून था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. कुछ नहीं सूझा तो मानू ने अपने खून सने कुरते को पानी में भिगो कर उसे फाड़ा और पट्टियां बदलबदल कर घाव पर रखने लगा. उस की यह युक्ति कारगर रही. थोड़ी देर में मौली के घाव से खून बहना बंद हो गया. उस दिन मौली को पहली बार पता चला कि मानू उसे कितना चाहता है. मानू मौली का पांव अपनी गोद में रखे धीरेधीरे उस के घाव को सहला रहा था, ताकि दर्द कम हो जाए. तभी मौली ने उसे टोका, ‘‘खून बंद हो चुका है, मानू. दर्द भी कम हो गया. तेरे शरीर पर, धवले (लुंगी) पर खून के दाग लगे हैं. नहा कर साफ कर ले.’’

मौली का पैर थामे बैठा मानू कुछ देर शांत भाव से झील को निहारता रहा. फिर उस की ओर देख कर उद्वेलित स्वर में बोला, ‘‘झील के इस पानी में तेरा खून मिला है मौली. मैं इस झील में कभी नहीं नहाऊंगा…कभी नहीं.’’

थोड़ी देर शांत रहने के बाद मानू उस के पैर को सहलाते हुए गंभीर स्वर में बोला, ‘‘अपने ये पैर जिंदगी भर के लिए मुझे दे दे मौली. मैं इन्हें अपने हाथों से सजाऊंगा संवारूंगा.’’

‘‘मेरा सब कुछ तेरा है मानू,’’ मौली उस के कंधे पर हाथ रख कर उस की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘सब कुछ. अपनी चीज को कोई खुद से मांगता है क्या?’’

पलभर के लिए मानू अवाक रह गया. उसे वही जवाब मिला था जो वह चाहता था. वह मौली की ओर देख कर बोला, ‘‘मौली, अब हम दोनों बड़े हो चुके हैं. अब और ज्यादा दिन इस तरह साथसाथ नहीं रह पाएंगे. लोग देखेंगे तो उल्टीसीधी बातें करेंगे. जबकि मैं तेरे बिना नहीं रह सकता. हमें ऐसा कुछ करना होगा, जिस से जिंदगी भर साथ न छूटे.’’

‘‘ऐसा क्या हो सकता है?’’ मौली ने परेशान से स्वर में पूछा तो मानू सोचते हुए बोला, ‘‘नाचनागाना हमारा खानदानी पेशा है न. हम वही सीखेंगे. तू नाचेगी गाएगी, मैं ढोलक बजाऊंगा. हम दोनों इस काम में ऐसी महारत हासिल करेंगे कि दो जिस्म एक जान बन जाएं. कोई हमें अलग करने की सोच भी न सके.’’

मौली खुद भी यही चाहती थी. वह मानू की बात सुन कर खुश हो गई.

मौली का पांव ठीक होने में एक पखवाड़ा लगा और मानू को दूसरा कुरता मिलने में भी. इस बीच वह पूरे समय नंगा घूमता रहा. आंधी, धूप या बरसात तक की चिंता नहीं की उस ने. उसे खुशी थी कि उस का कुरता मौली के काम तो आया. मानू के पिता की ढफ घर में सही सलामत रखी थी. कभी उदासी और एकांत के क्षणों में बजाया करता था वह उसे. मौली का पैर ठीक हो गया तो एक दिन मानू उसी ढफ को झाड़पोंछ कर ले गया जंगल. मौली अपने घर से घुंघरू ले कर आई थी.

मानू ने एक विशाल शिला को चुन कर अपना साधनास्थल बनाया और मौली के पैरों में अपने हाथ से घुंघरू बांधे. उसी दिन से मानू की ढफ की ताल पर मौली की नृत्य साधना शुरू हुई जो अगले 2 सालों तक निर्बाध चलती रही. इस बीच ढफ और ढोलक पर मानू ने नएनए ताल ईजाद किए और मौली ने नृत्य एवं गायन की नईनई कलाएं. अपनी अपनी कलाओं में पारंगत होने के बाद मौली और मानू ने होली के मौके पर गांव वालों के सामने अपनीअपनी कलाओं का पहला प्रदर्शन किया तो लोग हतप्रभ रह गए. उन्होंने इस से पहले न ऐसा ढोलक बजाने वाला देखा था, न ऐसी अनोखी अदाओं के  साथ नृत्य करने वाली.

कई गांव वालों ने उसी दिन भविष्यवाणी कर दी थी कि मौली और मानू की जोड़ी एक दिन राजदरबार में जा कर इस गांव का मान बढ़ाएगी. समय के साथ मानू और मौली का भेड़बकरियां चराना छूट गया और नृत्यगायन पेशा बन गया. कुछ ही दिनों में इलाके भर में उन की धूम मच गई. आसपास के गांवों के लोग अब उन दोनों को तीजत्योहार और विवाह शादियों के अवसर पर बुलाने लगे. इस के बदले उन्हें धनधान्य भी काफी मिल जाता. मानू ने अपनी कमाई के पैसे जोड़ कर सब से पहले मौली के लिए चांदी के घुंघरू बनवाए. वह घुंघरू मौली को सौंपते हुए बोला, ‘‘ये मेरे प्यार की पहली निशानी है. इन्हें संभाल कर रखना. लोग घुंघरुओं को नाचने वाली के पैरों की जंजीर कहते हैं, लेकिन मेरे विचार से किसी नृत्यांगना के लिए इस से बढि़या कोई तोहफा नहीं हो सकता. तुम इन्हें जंजीर मत समझना. इन घुंघरुओं को तुम्हारे पैरों में बाधूंगा भी मैं, और खोलूंगा भी मैं.’’

मौली को मानू की बात भी अच्छी लगी और तोहफा भी. उस दिन के बाद से वही हुआ जो मानू ने कहा था. मौली को जहां भी नृत्यकला का प्रदर्शन करना होता, मानू खुद उस के पैरों में घुंघरू बांध कर ढोलक पर ताल देता. ताल के साथ ही मौली के पैर थिरकने लगते. जब तक मौली नाचती, मानू की निगाह उस के पैरों पर ही जमी रहती. प्रदर्शन के बाद वही अपने हाथों से मौली के पैरों के घुंघरू खोलता. प्यार क्या होता है, यह न मौली जानती थी, न मानू. वे तो केवल इतना जानते थे कि दोनों बने ही एकदूसरे के लिए हैं. मरेंगे तो साथ, जिएंगे तो साथ. मौली और मानू अपने प्यार की परिभाषा भले ही न जानते रहे हों, पर गांव वाले उन के अगाध प्रेम को देख जरूर जान गए थे कि वे दोनों एकदूसरे के पूरक हैं. उन्हें उन के इस प्यार पर नाज भी था. किसी ने उन के प्यार में बाधा बनने की कोशिश भी नहीं की. मौली के मातापिता तक ने नहीं.

एक बार एक पहुंचे हुए साधु घूमते घामते राखावास आए तो गांव के कुछ युवकयुवतियां उन से अपना अपना भविष्य पूछने लगे. उन में मौली भी शामिल थी. साधु बाबा उस के हाथ की लकीरें देखते ही बोले, ‘‘तेरी किस्मत में राजयोग लिखा है. किसी राजा की चहेती बनेगी तू.’’

मौली ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, मानू से बिछड़ने की. उस के लिए वह राजयोग तो क्या, सारी दुनिया को ठोकर मार सकती थी. उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘मेरी किस्मत में राजयोग लिखा है, तो मानू का क्या होगा बाबा? …वह तो मेरे बिना…’’

साधु बाबा पलभर आंखें बंद किए बैठे रहे. फिर आंखें खोल कर सामने की झील की ओर निहारते हुए बोले, ‘‘वह इस झील में डूब कर मरेगा.’’

मौली सन्न रह गई. लगा, जैसे धरती आकाश एक साथ हिल रहे हों. न चाहते हुए भी उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. मुझे मानू से कोई अलग नहीं कर सकता.’’

उस की बात सुन कर साधु बाबा ठहाका लगा कर हंसे. थोड़ी देर हंसने के बाद शांत स्वर में बोले, ‘‘होनी को कौन टाल सकता है बालिके.’’

बाबा अपनी राह चले गए. मौली को लगा, जैसे उस के सीने पर सैकड़ों मन वजन का पत्थर रख गए हों. यह बात सोचसोच कर वह पागल हुई जा रही थी कि बाबा की भविष्यवाणी सच निकली, तो क्या होगा. उस दिन जब मानू मिला तो मौली उसे खींचते हुए झील किनारे ले गई और उस का हाथ अपने सिर पर रख कर बोली, ‘‘मेरी कसम खा मानू, तू आज के बाद जिंदगी भर कभी इस झील में कदम तक नहीं रखेगा.’’

मानू को मौली की यह बात बड़ी अजीब लगी. वह उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘यह कसम तो मैं ने उसी दिन खा ली थी, जब तेरा खून इस झील के पानी में मिल गया था. फिर भी तू कहती है तो एक बार फिर कसम खा लेता हूं… पर बात क्या है? इतनी घबराई क्यों है?’’

मानू के कसम खा लेने के बाद मौली ने बाबा की बात उसे बताई तो मानू हंसते हुए बोला, ‘‘तू इतना डरती क्यों है? जब मैं झील के पानी में कभी उतरूंगा ही नहीं तो डूबूंगा कैसे? कोई जरूरी तो नहीं कि बाबा की भविष्यवाणी सच ही हो.’’

साधु की भविष्यवाणी को सालों बीत चुके थे. इस बीच मौली 17 साल की हो गई थी और मानू 19 का. दोनों ही बाबा की बात भूल चुके थे.

…और तभी शिकार से लौटते राजा समर सिंह राखावास में रुके थे.

तो क्या साधु महाराज की भविष्यवाणी सच होने वाली थी? 

समर सिंह मौली को अपने साथ क्या ले गए, राखावास के प्राकृतिक दृश्यों की शोभा चली गई, गांव वालों का अभिमान चला गया और मानू की जान. पागल सा हो गया मानू. बस झील किनारे बैठा उस राह को निहारता रहता, जिस राह राजा के साथ मौली गई थी. खानेपीने का होश ही नहीं था उसे. लगता, जैसे राजा उस की जान निकाल ले गया हो. बात तब की है, जब हिंदुस्तान में मुगलिया सल्तनत का पराभव हो चुका था और ईस्ट इंडिया कंपनी का परचम पूरे देश में फहराने के प्रयास किए जा रहे थे. देश के कितने ही राजारजवाड़े विलायती झंडे के नीचे आ चुके थे और कितने भरपूर संघर्षों के बाद भी आने को मजबूर थे.

उन्हीं दिनों अरावली (Rajasthan stories) पर्वतमाला की घाटियों में बसी एक छोटी सी रियासत थी चंदनगढ़. इस रियासत के राजा समर सिंह थे तो अंगरेज विरोधी, पर शक्तिहीनता की वजह से उन्हें भी ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे तले आना पड़ा था. अंगरेजों का उन पर इतना प्रभाव था कि उन्हें अपने घोड़े गोरा का नाम बदल कर गोरू करना पड़ा था. समर सिंह उन राजाओं में थे, जो रासरंग में डूबे रहने के कारण राजकाज और प्रजा का ठीक से ध्यान नहीं रख पाते थे. राजा समर सिंह को 2 ही शौक थे—पहला शिकार का और दूसरा नाचगाने, मौजमस्ती का. मौली को भी उन्होंने इसी उद्देश्य से चुना था. लेकिन यह उन की भूल थी. वह नहीं जानते थे कि मौली दौलत की नहीं, प्यार की दीवानी है.

राजा समर सिंह मौली के रूपलावण्य, मदमाते यौवन और उस की नृत्यकला से प्रभावित हो कर उसे साथ जरूर ले आए थे, लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी भान नहीं था कि यह सौदा उन्हें सस्ता नहीं पड़ेगा. राजमहल में पहुंच कर मौली का रंग ही बदल गया. राजा ने उस की सेवा के लिए दासियां भेजीं, नएनए वस्त्र, आभूषण और शृंगार प्रसाधन भेजे, लेकिन मौली ने किसी भी चीज की ओर आंख उठा कर नहीं देखा. वह जिंदा लाश सी शांत बैठी रही. किसी से बोली तक नहीं, मानो गूंगी हो गई हो. दासियों ने समझाया, पड़दायतों ने मनुहार की, पर कोई फायदा नहीं.

राजा समर सिंह को पता चला तो स्वयं मौली के पास पहुंचे. उन्होंने उसे पहले प्यार से समझाने की कोशिश की, फिर भी मौली कुछ नहीं बोली तो राजा गुस्से में बोले, ‘‘तुम्हें महल ला कर हम ने जो इज्जत बख्शी है, वह किसी को नहीं मिलती, और एक तुम हो जो इस सब को ठोकर मारने पर तुली हो. यह जानते हुए भी कि अब तुम्हारी लाश भी राखावास नहीं लौट सकती. हां, तुम अगर चाहो तो हम तुम्हारे वजन के बराबर धनदौलत तुम्हारे मातापिता को भेज सकते हैं. लेकिन अब तुम्हें हर हाल में हमारी बन कर हमारे लिए जीना होगा.’’

मौली को मौत का डर नहीं था. डर था तो मानू का. वह जानती थी, मानू उस के विरह में सिर पटकपटक कर जान दे देगा. उसे यह भी मालूम था कि उस की वापसी संभव नहीं है. काफी सोचविचार के बाद उस ने राजा समर सिंह के सामने प्रस्ताव रखा, ‘‘अगर आप चाहते हैं कि मौली आप के महल की शोभा बन कर रहे तो इस के लिए पहाड़ों के बीच वाली उसी झील के किनारे महल बनवा दीजिए, जिस के उस पार मेरा गांव है.’’

अपने इस प्रस्ताव में मौली ने 2 शर्तें भी जोड़ीं. एक यह कि जब तक महल बन कर तैयार नहीं हो जाता, राजा उसे छुएंगे तक नहीं और दूसरी यह कि महल में एक ऐसा परकोटा बनवाया जाएगा, जहां वह हर रोज अपनी चुनरी लहरा कर मानू को बता सके कि वह जिंदा है. मानू उसी के सहारे जीता रहेगा. मौली मानू को जान से ज्यादा चाहती है, यह बात समर सिंह को अच्छी नहीं लगी थी. कहां एक नंगाभूखा लड़का और कहां राजमहल के सुख. लेकिन उस की जिद के आगे वह कर भी क्या सकते थे. कुछ करते तो मौली जान दे देती. मजबूर हो कर उन्होंने उस की शर्तें स्वीकार कर लीं.

राखावास के ठीक सामने झील के उस पार वाली पहाड़ी पर राजा ने महल बनवाना शुरू किया. बुनियाद कुछ इस तरह रखी गई कि झील का पानी महल की दीवार छूता रहे. झील के तीन ओर बड़ीबड़ी पहाडि़यां थीं. चौथी ओर वाली छोटी पहाड़ी की ढलान पर राखावास था. महल से राखावास या राखावास से महल तक आधा मील लंबी झील को पार किए बिना किसी तरह जाना संभव नहीं था. उन दिनों आज की तरह न साधनसुविधाएं थीं, न मार्ग. ऐसी स्थिति में चंदनगढ़ से 10 मील दूर पहाड़ों के बीच महल बनने में समय लगना स्वाभाविक ही था. मौली इस बात को समझती थी कि यह काम एक साल से पहले पूरा नहीं हो पाएगा और इस एक साल में मानू उस के बिना सिर पटकपटक कर जान दे देगा. लेकिन वह कर भी क्या सकती थी, राजा ने उस की सारी शर्तें पहले ही मान ली थीं.

लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. मोहब्बत कहीं न कहीं अपना रंग दिखा कर ही रहती है. मौली के जाने के बाद मानू सचमुच पागल हो गया था. उस का वही पागलपन उसे चंदनगढ़ खींच ले गया. मौली के घुंघरू जेब में डाले वह भूखाप्यासा, फटेहाल महीनों तक चंदनगढ़ की गलियों में घूमता रहा. जब भी उसे मौली की याद आती, जेब से घुंघरू निकाल कर आंखों से लगाता और जारजार रोने लगता. लोग उसे पागल समझ कर उस का दर्द पूछते तो उस के मुंह से बस एक ही शब्द निकलता-मौली.

मानू चंदनगढ़ आ चुका है, मौली भी इस तथ्य से अनभिज्ञ थी और समर सिंह भी. उधर मानू ने राजमहल की दीवारों से लाख सिर टकराया, पर वह मौली की एक झलक नहीं देख सका. महीनों यूं ही गुजर गए. राजा समर सिंह जिस लड़की को राजनर्तकी बनाने के लिए राखावास से चंदनगढ़ लाए हैं, उस का नाम मौली है, यह बात किसी को मालूम नहीं थी. राजा स्वयं उसे मालेश्वरी कह कर पुकारते थे, अत: दासदासियां और पड़दायतें तक उसे मालेश्वरी ही कहती थीं.

राजा ने मौली के लिए अपने महल के एक एकांत कक्ष में रहने की व्यवस्था की थी, जहां उसे रानियों जैसी सुविधाएं उपलब्ध थीं. उस की सेवा में कई दासियां रहती थीं. एक दिन उन्हीं में से एक दासी ने बताया, ‘‘नगर में एक दीवाना मौली मौली पुकारता घूमता है. पता नहीं कौन है मौली, उस की मां, बहन या प्रेमिका. बेचारा पागल हो गया है उस के गम में. न खाने की सुध, न कपड़ों की. एक दिन महल के द्वार तक चला आया था, पहरेदारों ने धक्के दे कर भगा दिया. कहता था, इन्हीं दीवारों में कैद है मेरी मौली.’’

मौली ने सुना तो कलेजा धक से रह गया. प्राण गले में अटक गए. लगा, जैसे बेहोश हो कर गिर पड़ेगी. वह संज्ञाशून्य सी पलंग पर बैठ कर शून्य में ताकने लगी. दासी ने उस की ऐसी स्थिति देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, आप मेरी बात सुन कर परेशान क्यों हो गईं? आप को क्या, होगा कोई दीवाना. मैं ने तो जो सुना था, आप को यूं ही बता दिया.’’

मौली ने अपने आप को लाख संभालना चाहा, लेकिन आंसू पलकों तक आ ही गए. दासी पलभर में समझ गई, जरूर कोई बात है. उस ने मौली को कुरेदना शुरू किया तो वह न चाहते हुए भी उस से दिल का हाल कह बैठी. दासी सहृदय थी. मौली और मानू की प्रेम कहानी सुनने और उन के जुदा होने की बात सुन उस का हृदय पसीज उठा.

क्या मानू मौली से मिल सकेगा या राजा के महलों में कैद होकर रह जायेगा? 

मौली ने उस से निवेदन किया कि वह किसी तरह मानू तक यह संदेश पहुंचा दे कि वह उस से मिले बिना न मरेगी, न नाचेगी. वह वक्त का इंतजार करे. एक न एक दिन उन का मिलन होगा जरूर. जब तक मिलन नहीं होता, तब तक वह अपने आप को संभाले. प्यार में पागल बनने से कुछ नहीं मिलेगा. दासी ने जैसे तैसे मौली का संदेश मानू तक पहुंचाया भी, लेकिन उस पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उन्हीं दिनों एक अंगरेज अधिकारी को चंदनगढ़ आना था. राजा समर सिंह ने अधिकारी को खुश करने के लिए उस की खातिर का पूरा इंतजाम किया. महल को विशेष रूप से सजाया गया. नाचगाने का भी प्रबंध किया गया. राजा समर सिंह चाहते थे कि मौली अपनी नृत्यकला से अंगरेज रेजीडेंट का दिल जीते.

उन्होंने इस के लिए मौली से मानमनुहार की तो उस ने शर्त बता दी, ‘‘मानू नगर में मौजूद है, उसे बुलाना पड़ेगा. वह आ कर मेरे पैरों में घुंघरू बांध देगा तो मैं नाचूंगी.’’

समर सिंह जानते थे कि जो बात मौली की नृत्यकला में है, वह किसी दूसरी नर्तकी में नहीं. अंगरेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. राजा ने मौली की शर्त स्वीकार कर ली. मानू को ढुंढवाया गया. उस का हुलिया बदला गया. अगले दिन जब रेजीडेंट आया तो पूरी तैयारी के बाद मौली को सभा में लाया गया. सभा में मौजूद सब लोगों की निगाहें मौली पर जमी थीं और उस की निगाहें उन सब से अनभिज्ञ मानू को खोज रही थीं. मानू सभा में आया तो उसे देख मौली की आंखें बरस पड़ीं. मन हुआ, आगे बढ़ कर उस से लिपट जाए, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा नहीं कर सकी. करती तो दोनों के प्राण संकट में पड़ जाते. उस ने लोगों की नजर बचा कर आंसू पोंछ लिए.

आंसू मानू की आंखों में भी थे, लेकिन उस ने उन्हें बाहर नहीं आने दिया. खुद को संभाल कर वह ढोलक के साथ अपने लिए नियत स्थान पर जा बैठा. मौली धीरेधीरे कदम बढ़ा कर उस के पास पहुंची तो मानू थोड़ी देर अपलक उस के पैरों को निहारता रहा. फिर उस ने जेब से घुंघरू निकाल कर माथे से लगाए और मोली के पैरों में बांध दिए. इस बीच मौली उसे ही निहारती रही. घुंघरू बांधते वक्त मानू के आंसू पैरों पर गिरे तो मौली की तंद्रा टूटी. मानू के दर्द का एहसास कर उस के दिल से आह भी निकली, पर उस ने उसे जैसे तैसे जज्ब कर लिया.

इधर ढोलक पर मानू की थाप पड़ी और उधर मौली के पैर थिरके. पलभर में समां बंध गया. मौली उस दिन ऐसा नाची, जैसे वह उस का अंतिम नाच हो. लोगों के दिल धड़क धड़क उठे. अंगरेज रेजीडेंट बहुत खुश हुआ. उस ने नृत्य, गायन और वादन का ऐसा अनूठा समन्वय पहली बार देखा था. राजा समर सिंह का जो मकसद था, पूरा हुआ. महफिल समाप्त हुई तो मौली ने मानू से हमेशा की तरह घुंघरू खोलवाने चाहे, लेकिन राजा ने इस की इजाजत नहीं दी. अंगरेज अधिकारी वापस चला गया तो मानू को महल के बाहर कर दिया गया. मौली अपने कक्ष में चली गई. उस ने कसम खा ली कि उस के पैरों से घुंघरू खुलेंगे तो मानू के हाथ से ही.

झील वाला महल तैयार होने में एक साल लगा. छोटे से इस महल में राजा समर सिंह ने मौली के लिए सारी सुविधाएं जुटाई थीं. मौली की इच्छानुसार एक परकोटा भी बनवाया गया था, जहां खड़ी हो कर वह झील के उस पार स्थित अपने गांव को निहार सके. राजा समर सिंह जानते थे कि मौली और मानू एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं. प्यार में वे दोनों किसी भी हद तक जा सकते थे. इसी बात को ध्यान में रख कर राजा समर सिंह ने महल से सौ गज दूर झील के पानी में एक ऐसी अदृश्य दीवार बनवाई, जिस के आरपार पानी तो जा सके लेकिन जीवों का आनाजाना संभव न हो. दीवार के इस पार उन्होंने पानी में 2 मगरमच्छ छुड़वा दिए. यह सब उन्होंने इसलिए किया था ताकि मानू झील में तैर कर इस पार न आ सके, आए तो मगरमच्छों का शिकार हो जाए.

पूरी तैयारी हो गई तो मौली को झील किनारे नवनिर्मित महल में भेज दिया गया. जिस दिन मौली को महल में ले जाया गया, उस दिन महल को खूब सजाया गया था. राजा समर सिंह की उस दिन वर्ष भर पुरानी आरजू पूरी होनी थी. वादे के अनुसार मौली ने राजा के सामने स्वयं को समर्पित कर दिया. उस दिन उस ने अपना शृंगार खुद किया था. बेहद खूबसूरत लग रही थी वह. समर सिंह की बांहों में सिमटते हुए उस ने सिर्फ इतना कहा था, ‘‘आज से मेरा तन आप का है पर मन को आप कभी छू नहीं पाएंगे. मन पर मानू का ही अधिकार रहेगा.’’

राजा को मौली के मन से क्या लेनादेना था. उन की जिद भी पूरी हो गई और हवस भी. उस दिन के बाद मौली स्थाई रूप से उसी महल में रहने लगी. सेवा में दासदासियां और सुरक्षा के लिए पहरेदार सैनिकों की व्यवस्था थी ही. महीने में 6-7 दिन मौली के साथ गुजारने के लिए राजा समर सिंह झील वाले महल में आते रहते थे. वहीं रह कर वह पास वाले जंगल में शिकार भी खेलते थे. मौली का रोज का नियम था. हर शाम वह महल के परकोटे पर खड़े हो कर अपनी वही चुनरी हवा में लहराती जो गांव से ओढ़ कर आई थी. मानू को मालूम था कि मौली झील वाले महल में आ चुकी है. वह हर रोज झील के किनारे बैठा मौली की चुनरी को देखा करता. इस से उस के मन को काफी तसल्ली मिलती. कई बार उस का दिल करता भी कि वह झील को पार कर के मौली के पास जा पहुंचे, लेकिन मौली की कसम उस के पैर बांध देती थी.

देखतेदेखते एक साल और गुजर गया. मौली को गांव छोड़े 2 साल होने को थे. तभी एक दिन राजा समर सिंह को अंगरेज रेजीडेंट का संदेश मिला कि वह उन की रियासत के मुआयने पर आ रहे हैं और उसी नर्तकी का नृत्य देखना चाहते हैं, जो पिछली यात्रा में उन के सामने पेश की गई थी. राजा समर सिंह ने जब यह बात मौली को बताई तो उस ने अपनी शर्त रखते हुए कहा, ‘‘यह तभी संभव है, जब मानू मेरे साथ हो. उस के बिना नृत्य का कोई भी आयोजन मेरे बूते में नहीं है.’’

समर सिंह ने मौली को समझाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. अंगरेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. फलस्वरूप राजा समर सिंह को झुकना पड़ा. मौली ने राजा से कहा कि वह चंदनगढ़ जाने के बजाय उसी महल में नृत्य करेगी और मानू को भी वहीं बुलाना होगा.

क्या मानू और मौली का महामिलान हो पायेगा? या दो प्रेमी फिर एक दूसरे से हमेशा के लिए बिछड़ जायेंगे? 

राजा समर सिंह नहीं चाहते थे कि मानू किसी भी रूप में मौली के सामने आए जबकि अंगरेज रेजीडेंट को खुश करना भी उन की मजबूरी थी. सोचविचार कर राजा ने झील में बनी अदृश्य दीवार पर ठीक महल के परकोट के सामने पत्थरों का एक बड़ा सा गोल चबूतरा बनवा कर उस पर प्रकाश स्तंभ स्थापित कराया. इस चबूतरे और महल के बीच ही वह कुंड था, जिस में मगरमच्छ रहते थे. मगरमच्छों का भोजन चूंकि उसी कुंड में डाला जाता था, अत: वे वहीं मंडराते रहते थे. महल के परकोटे से 2 मजबूत रस्सियां इस प्रकार प्रकाश स्तंभ में बांधी गईं कि आदमी एक रस्सी के द्वारा स्तंभ तक जा सके और दूसरी से आ सके.

अंगरेज रेजीडेंट के आने का दिन तय हो चुका था. उसी हिसाब से राजा ने झील वाले महल में मेहमाननवाजी की तैयारियां कराईं. जिस दिन रेजीडेंट को आना था, उस दिन 2 सैनिक इस आदेश के साथ राखावास भेजे गए कि वे झील के रास्ते मानू को प्रकाश स्तंभ तक भेजेंगे. मौली ने मानू को झील में न उतरने की कसम दे रखी थी, यह बात समर सिंह नहीं जानते थे. तयशुदा दिन जब अंगरेज रेजीडेंट चंदनगढ़ पहुंचा, राजा समर सिंह यह कह कर उसे झील वाले महल में ले गए कि उन्होंने इस बार उन के मनोरंजन की व्यवस्था प्रकृति की गोद में की है. राजा का झील वाला महल अंगरेज रेजीडेंट को खूब पसंद आया.

मौली भी उस दिन खूब खुश थी. मानू से मिलने की खुशी उस के चेहरे से फूटी पड़ रही थी. उसे क्या मालूम था कि मानू को उस के सामने झील वाले रास्ते से लाया जाएगा और वह ठीक से उस की सूरत भी नहीं देख पाएगी. जब सारी तैयारियां हो गईं और अंगरेज रेजीडेंट भी आ गया तो महल के परकोटे से मौली की चुनरी से राखावास की ओर मौजूद सैनिकों को इशारा किया गया. सैनिकों ने मानू से झील के रास्ते प्रकाश स्तंभ तक तैर कर जाने को कहा तो उस ने इनकार कर दिया कि वह मौली की कसम नहीं तोड़ सकता. इस पर सैनिकों ने उस से झूठ बोला कि मौली ने अपनी कसम तोड़ दी है, वही अपनी चुनरी लहरा कर उसे बुला रही है. मानू ने महल के परकोटे पर चुनरी लहराते देखी तो उसे सैनिकों की बात सच लगी. उस ने बिना सोचेसमझे मौली के नाम पर झील में छलांग लगा दी.

जिस समय मानू झील को पार कर प्रकाश स्तंभ तक पहुंचा, तब तक राजा समर सिंह का एक कारिंदा ढोलक ले कर रस्सी के सहारे वहां जा पहुंचा था. उसी ने मानू को बताया कि महल और प्रकाश स्तंभ के बीच मगरमच्छ हैं. उसे उसी स्थान पर बैठ कर ढोलक बजानी होगी और मौली उसी धुन पर परकोटे पर नाचेगी. कारिंदा राजा का हुक्म सुना कर दूसरी रस्सी के सहारे वापस लौट आया. मौली को जब राजा की इस चाल का पता चला तो वह मन ही मन खूब कुढ़ी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि आज वह अंतिम बार राजा की महफिल में नाचेगी और नाचते नाचते ही हमेशा हमेशा के लिए अपने मानू से जा मिलेगी.

राजा की महफिल छत पर सजी थी. प्रकाश स्तंभ और महल की छत पर विशेष प्रकाश व्यवस्था कराई गई थी. जब अंधेरा घिर आया और चारों ओर निस्तब्धता छा गई तो मौली को महफिल में बुलाया गया. उस समय उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. सजीधजी मौली घुंघरू खनकाती महफिल में पहुंची तो लोगों के दिल धड़क उठे. मौली ने परकोटे पर खड़े हो कर श्वेत ज्योत्सना में नहाई झील को देखा. प्रकाश स्तंभ के पास सिकुड़े सिमटे बैठे मानू को देखा और फिर आकाश के माथे पर टिकुली की तरह चमकते चांद को निहारते हुए बुदबुदाई, ‘‘हे मालिक, तुझ से कभी कुछ नहीं मांगा, पर आज मांगती हूं. इस नाचीज को एक बार, सिर्फ एक बार उस के प्यार के गले जरूर लग जाने देना.’’

मन की मुराद मांग कर मौली ने एक बार जोर से पुकारा, ‘‘मानू…’’

मौली की आवाज के साथ ही मानू के हाथ ढोलक पर चलने लगे. ढोलक की आवाज वादियों में गूंजने लगी और उस के साथ ही मौली के पैरों के घुंघरू भी. पलभर में समां बंध गया. सभा में मौजूद लोग दिल थामे मौली की कला का आनंद लेने लगे. अभी महफिल जमे ज्यादा देर नहीं हुई थी. मौली का पहला नृत्य पूरा होने वाला था. लोग वाहवाह कर रहे थे. तभी मौली तेजी से पीछे पलटी और कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही मानू का नाम ले कर चीखते हुए परकोटे से प्रकाश सतंभ तक जाने वाले रस्से को पकड़ कर झूल गई. मौली का यह दुस्साहसिक रूप देख पूरी सभा सन्न रह गई.

महल के परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक आनेजाने वाले कारिंदे रस्सों में विशेष प्रकार के कुंडे में बंधा झूला डाल कर आतेजाते थे. काम के बाद कुंडे और झूला निकाल कर रख दिए जाते थे. मौली चूंकि रस्से को यूं ही पकड़ कर झूल गई थी और रस्सा नीचे की ओर आ गया था. फलस्वरूप रस्से की रगड़ से उस के हाथ बुरी तरह घायल हो गए थे. वह ज्यादा देर अपने आप को संभाल नहीं पाई और झटके के साथ कुंड में जा गिरी.

हतप्रभ मानू यह दृश्य देख रहा था. मौली के गिरने से छपाक की आवाज उभरी तो मानू ने भी कुंड में छलांग लगा दी. अंगरेज रेजीडेंट, राजा और उस की महफिल इस भयावह दृश्य को देखती रह गई. कुछ देर मानू और मौली पानी में डूबते उतराते दिखाई दिए भी, लेकिन थोड़ी ही देर में वे आंखों से ओझल हो गए हमेशा के लिए. दोनों ही मगरमच्छों का शिकार बन चुके थे.

संगीत सुनाकर वैज्ञानिक करता था मर्डर

डा. सैम फ्रांसिस अपनी साउंडप्रूफ लैबोरेटरी में किसी भी व्यक्ति को इतनी तेज आवाज में म्यूजिक सुनाता था कि उस व्यक्ति की हार्टअटैक से मौत हो जाती थी. एकएक कर वह लोगों को अपना शिकार बनाता जा रहा था. वैज्ञानिक होने के बावजूद आखिर वह ऐसा क्यों कर रहा था?

पुलिस कप्तान ए.के. समीर अपने कार्यालय में बैचेनी से चहलकदमी कर रहे थे. उन की बेचैनी का कारण अखबार में छपी एक खबर थी. हालांकि अखबार स्थानीय स्तर का ही था और आसानी से दबाया भी जा सकता था, मगर फिर भी कप्तान साहब पूरी चौकसी रखना चाहते थे. इसी कारण उन्होंने संबंधित क्षेत्र के डीएसपी आशीष चौबे और एसएचओ अविनाश मलिक को तुरंत अपने औफिस में तलब किया. संबंधित दोनों अधिकारी कप्तान साहब का आदेश पाते ही उन के औफिस में पहुंच गए.

क्या आप को पता है कि मैं ने आप दोनों को यहां क्यों बुलाया है?’’ एसपी साहब ने दोनों से प्रश्न किया.

मेरे विचार से किसी लीडर के आकस्मिक आने की सूचना आदरणीय कलेक्टर साहब ने दी होगी और उन की सुरक्षा के लिए प्रोटोकाल ड्यूटी की व्यवस्था करनी होगी. आजकल नेता लोग इतने भड़काऊ भाषण जो दे रहे हैं.’’ डीएसपी चौबे ने अनुमान लगाया.

आजकल सड़क पर कोई कुत्ता भी मर जाए तो लोग समझते हैं कि उस की मौत की जांच करवाने के लिए चक्का जाम कर देंगे.’’ इंसपेक्टर मलिक थोड़े जोश में बोले.

मैं ने कोई फिक्शन या कहानी बताने के लिए नहीं बुलाया है. और हां, यहां मौत एक कुत्ते की नहीं बल्कि 3 आदमियों की हुई है.’’ एसपी साहब बोले.

”3 आदमी?’’ दोनों अधिकारी चौंक कर बोले.

मगर अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है सर,’’ एसएचओ बोले. 

परसों आप के क्षेत्र में उस हैंडपंप के पास पीपल के पेड़ के नीचे एक आदमी की लाश मिली थी. उस के बारे में क्या खबर है?’’ एसपी साहब ने पूछा. उन के स्वर में गंभीरता थी.

जी सर, उस की रिपोर्ट मैं ने आप को भेजी थी. उस लाश के बारे में स्पष्ट उल्लेख है कि उस आदमी की मौत हार्ट अटैक से स्वाभाविक परिस्थितियों में हुई थी. इस संदर्भ में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला भी दिया गया था.’’ इंसपेक्टर मलिक ने अपना स्पष्टीकरण दिया.

हां और उस रिपोर्ट के आधार पर ही मैं ने केस को खत्म करने की अनुशंसा भी की थी,’’ डीएसपी चौबे ने अपना पक्ष रखा.

”आप लोग नया केस आने के बाद पुराने केस को भूल जाते हो क्या?’’ एसपी साहब ने पूछा.

”बिलकुल नहीं सर,’’ इंसपेक्टर ने कहा.

क्या मरा हुआ व्यक्ति हमारे विभाग से संबंधित था? हमारे पास उस मृतक से संबंधित कोई सूचना है क्या?’’ डीएसपी चौबे ने पूछा. 

मेरे सामने यह स्थानीय अखबार योद्धारखा है, इसे पढ़ा आप लोगों ने?’’ एसपी साहब ने पूछा.

अरे सर, यह तो 2 कौड़ी का अखबार है. इसे तो वैसे भी कोई नहीं पढ़ता.’’ इंसपेक्टर ने मुसकराते हुए कहा.

सर, इस पेपर को तो रद्ïदी वाले भी नहीं खरीदते हैं. ऐसी क्या खबर छाप दी उस ने कि आप इतने गंभीर हो गए?’’ डीएसपी आशीष चौबे बोले.

”खबर छोटी, मगर महत्त्वपूर्ण है. पुलिस की नजर ऐसी ही छोटीछोटी खबरों पर होनी चाहिए. इस अखबार ने छापा है कि उस पीपल के पेड़ के नीचे पिछले 6 महीनों में यह तीसरी मौत है, जो हार्टअटैक से हुई है. उस ने प्रश्न उठाया है कि क्या उस पेड़ के नीचे कोई भूत रहता है जो राहगीरों की जान ले लेता है?’’ एसपी साहब ने पेपर में छपी खबर का विवरण दिया.

लेकिन सर, अगर कोई स्वाभाविक मौत मरता है तो हम क्या कर सकते हैं? ‘‘ इंसपेक्टर ने कहा. 

एसपी ए.के. समीर ने कहा, ”एक जगह पर 6 महीनों में 3 लोगों की स्वाभाविक मौत एक ही बिंदु पर होती है तो वह अस्वाभाविक जरूर हो जाती है और फिर पुलिस का काम ही शक करना है. एक बात और है, सभी मौतें उस समय पर हुई हैं, जब लोग मौर्निंग वाक के लिए निकलते हैं. इसलिए शक लाजिमी है.’’ 

यह एक संयोग भी हो सकता है सर.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”अगर यह कोई प्राकृतिक संयोग है तब तो ठीक है, लेकिन लगातार इस तरह की घटनाएं होने से लोगों में भूतप्रेत के प्रति अंधविश्वास बढ़ सकता है, जिस की आड़ में असामाजिक तत्त्व अपनी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं. इसलिए जांच जरूरी है.’’  एसपी साहब निर्णयात्मक स्वर में बोले.

ठीक है सर, मैं उस इलाके में अपने मुखबिर छोड़ देता हूं.’’ इंसपेक्टर मलिक बोले. 

देखो, जो भी मुखबिर छोड़ो, वह पूरी तरह विश्वसनीय होना चाहिए. क्योंकि एक ही स्थान पर 3 एक जैसी मौतें किसी बड़े षडयंत्र का हिस्सा भी हो सकती हैं. और अगर यह षडयंत्र है तो इस के पीछे जरूर किसी मास्टरमाइंड का दिमाग होगा. साधारण हत्यारे इस तरह सफाई से अपने काम को अंजाम नहीं देते.’’ एसपी साहब अपना अंतिम निर्देश देते हुए बोले.

जी, मैं किसी खास मुखबिर को ही वहां पर तैनात करूंगा.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया.

क्या था 3 मौतों का राज

इंसपेक्टर मलिक ने कप्तान साहब के आदेशों का पालन किया और एक खास मुखबिर को काम पर लगा दिया. इस घटना को 3 महीने गुजर चुके थे, मगर वहां कोई घटना नहीं हुई, न ही कोई संदेहास्पद व्यक्ति दिखाई दिया.

सर, मुखबिर को काम पर लगाए 3 महीने हो चुके हैं. अभी तक कोई ऐसी घटना न ही कोई व्यक्ति दिखाई पड़ा, जिस पर शक किया जा सके. क्या हम अपने मुखबिर को वहां से हटा लें?’’ इंसपेक्टर मलिक ने एसपी साहब से पूछा.

नहीं, अभी नहीं. अगर ये घटनाएं किसी अपराध के तहत हुई हैं तो अपराधी एक बार फिर उस जगह जरूर आएगा, यह पुलिस की क्राइम साइकोलौजी कहती है. हमें उस समय तक इंतजार करना चाहिए.’’ एसपी साहब बोले.

जैसा आप का आदेश सर.’’ कह कर इंसपेक्टर बाहर निकल गए. कुछ समय गुजर जाने के बाद एक दिन. 

”सर, उस स्थान पर पिछले 2 घंटे से एक कार 3 चक्कर काट चुकी है और हर बार कुछ पलों के लिए रुकी भी है.’’ मुखबिर ने फोन लगा कर इंसपेक्टर को सूचना दी.

”मामला कुछ गड़बड़ लगता है. उस कार का नंबर नोट करो और उस की गतिविधियों पर नजर रखो.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

सर, गाड़ी का नंबर एससी 02 बीबी 2222 है.’’ मुखबिर ने बताया 

इंसपेक्टर मलिक की दिलचस्पी बढ़ गई. वह बोले, ”ठीक है, तुम वहीं रहो मैं एसपी साहब को सूचित कर वहां पहुंचता हूं.’’ कह कर इंसपेक्टर ने अपने स्टाफ को गाड़ी के नंबर की जानकारी निकालने के आदेश दे दिए और एसपी साहब को फोन लगाया. 

हां, कहिए इंसपेक्टर मलिक,’’ एसपी साहब ने फोन उठाते ही कहा.

सर, एक सस्पेक्टेड गाड़ी उस इलाके में देखी गई है.’’ इंसपेक्टर ने कहा. 

आप ने गाड़ी के नंबर की जानकारी निकलवाई? किस की है वो गाड़ी? क्या एक्टिविटी है गाड़ी के ड्राइवर की?’’ एसपी साहब ने प्रश्नों की बौछार लगा दी.

इंसपेक्टर मलिक ने पूरा विवरण देते हुए कहा, ”जी सर, गाड़ी का नंबर साइंटिस्ट प्रोफेसर सैम फ्रांसिस का है. स्वयं सैम फ्रांसिस 3 बार गाड़ी उस स्थान पर ला कर मुआयना कर चुका है. गाड़ी की रफ्तार उस स्थान पर आ कर बहुत ही कम हो जाती है. शक करने का एक कारण और भी है कि ड्राइवर के होने के बावजूद सैम फ्रांसिस खुद गाड़ी ड्राइव कर रहा है.’’

ओह! मुझे पहले से ही शक था कि यह काम किसी प्रोफेशनल किलर का न हो कर किसी पढ़ेलिखे व्यक्ति का हो सकता है. आप तुरंत सर्च वारंट जारी करवाइए और सैम फ्रांसिस के घरदफ्तर की जांच कीजिए.’’ एसपी साहब ने आदेश दिया. 

यस सर,’’ कह कर इंसपेक्टर मलिक आदेश को तामील करने के लिए निकल पड़े. 

वैज्ञानिक ने क्यों की थीं 3 हत्याएं

कुछ ही देर में पुलिस पार्टी सैम फ्रांसिस के घर व दफ्तर में थी, जोकि मुख्य शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर सड़क से 200 मीटर अंदर की तरफ था. सैम फ्रांसिस का घर क्या था, वह तो एक किलेनुमा रचना थी.  यह किला काफी बड़े इलाके में फैला हुआ था और सुरक्षा की दृष्टिकोण से चारों तरफ से चौड़ी बाउंड्री वाल से घिरा हुआ था. बाहर नेमप्लेट लगी हुई थी— ‘डा. सैम फ्रांसिसऔर नीचे छोटेछोटे अक्षरों में लिखा था— ‘न्यू एक्सपेरिमेंटल लैब’. मतलब सैम फ्रांसिस का घर और दफ्तर एक ही जगह पर है. मन ही मन इंसपेक्टर ने सोचा.

सर, सैम फ्रांसिस के दादाजी अंगरेजों के जमाने में बहुत बड़े अधिकारी थे. ब्रिटेन से भारत नियुक्त होने पर उन्हें इस स्थान की आबोहवा इतनी पसंद आई कि इन्होंने कभी ब्रिटेन वापस जाने के बारे में सोचा ही नहीं. अपने प्रभाव से अपने पुत्र मतलब सैम फ्रांसिस के पिताजी को भी भारत सरकार में ऊंचे ओहदे पर नौकरी लगवा दी.

यह सब जमीनजायदाद उसी समय खरीदी हुई है. सैम भी पढऩे में बहुत अच्छा था और उस ने उच्च शिक्षा ग्रहण की है. अभी सैम गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कालेज में प्रोफेसर है और खाली समय में कुछकुछ प्रयोग भी करता रहता है. इसी कारण घर में एक प्रयोगशाला भी खोली हुई है.’’ एक स्थानीय सिपाही ने जानकारी दी.

किस तरह के प्रयोग करता है डा. सैम फ्रांसिस?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

सर, इस के बारे में जानकारी तो अंदर काम करने वाले लोग ही दे सकते हैं.’’ सिपाही  ने जवाब दिया. 10 मीटर के अंतराल से लगे 2 सिक्युरिटी गेट से गुजरने के बाद पुलिस पार्टी की गाड़ी सैम फ्रांसिस के पोर्टिको में खड़ी थी. 

आइए इंसपेक्टर.’’ पोर्टिको में स्वागत करने के लिए खुद सैम फ्रांसिस खड़ा था. 

जी, डा. फ्रांसिस, आप से ही मिलना था.’’ इंसपेक्टर अविनाश मलिक ने सीधेसीधे विषय पर आते हुए कहा.

मैं जानता हूं इंसपेक्टर, आप मुझ से मिलना और बहुत कुछ जानना चाहते हैं.’’ डा. फ्रांसिस मुसकराते हुए बोला. 

फिर तो आप यह भी जानते होंगे कि मैं आप से क्यों मिलना चाहता हूं?’’ इंसपेक्टर ने कहा. 

बेशक मैं जानता हूं कि आप उन 3 नैचुरल डेथ के बारे में जानना चाहते हैं, जिन की मौतें उस पीपल के पेड़ के नीचे हुई हैं. वैसे आप के डिपार्टमेंट का शक सही है. वे सभी मौतें नैचुरल नहीं, बल्कि इंड्यूस्ड हैं.’’ डा. सैम फ्रांसिस ने बताया.

जी हां डा. सैम, हम यह जानना चाहते हैं कि ये हत्याएं प्राकृतिक मौत में तब्दील कैसे हुईं?’’ इंसपेक्टर मलिक ने पूछा. 

हत्या? हां साहब, वह सौ प्रतिशत हत्याएं ही थीं और उन हत्याओं को मैं ने प्राकृतिक रूप में कैसे बदला, यह जानना हो तो आप को मेरी लैब में चलना होगा. वैसे कुल कितने लोग हैं इस पुलिस टीम मेंïï?’’ डा. सैम फ्रांसिस ने पूछा.

ड्राइवर समेत हम कुल 9 लोग हैं.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया. डा. फ्रांसिस बोला, ”लैब यहां से 200 मीटर पीछे इसी बाउंड्री में है. ड्राइवर सहित आप सभी उस लैब में पहुंचिए. चूंकि विज्ञान की बातें है, अत: यदि एक को समझ में नहीं आए तो दूसरा समझा दे.’’ 

जी नहीं, मेरी पार्टी जीप से वहां जाएगी, मगर मैं आप के साथ ही वहां जाऊंगा. मैं आप को अकेला भागने के लिए नहीं छोड़ सकता.’’ इंसपेक्टर ने दृढ़ता से कहा. 

यह भी ठीक है. यदि मुझे भागना ही होता तो मैं कब का भाग चुका होता.’’ डा. फ्रांसिस बोला. 

बातें करते हुए दोनों सैम फ्रांसिस की प्रयोगशाला में पहुंच गए. वैसे इंसपेक्टर मलिक डा. फ्रांसिस के ज्ञान के आगे अपने आप को बौद्धिक रूप से बौना समझ रहे थे तथा डा. फ्रांसिस के ज्ञान का सम्मान करते हुए सम्मोहित रूप से उस का अनुसरण कर रहे थे. 

म्यूजिक के साथ मौत का क्या था कनेक्शन

डा. सैम फ्रांसिस की प्रयोगशाला किसी आडिटोरियम से कम नहीं थी. एक बहुत बड़ा हाल था, जिस में बैठने के लिए लगभग 50 आरामदायक कुरसियां लगी हुई थीं. एक छोटा सा स्टेजनुमा प्लेटफार्म बना हुआ था, जिस के पीछे एक ब्लैकबोर्डनुमा बोर्ड लगा हुआ था.

डा. फ्रांसिस लेक्चर देगा क्या हम लोगों को?’’ एक सिपाही ने पूछा. 

पता नहीं?’’ दूसरा बोला. 

सुनिए, आप लोग ध्यान से,’’ सैम फ्रांसिस स्टेज पर चढ़ कर बोला, ”मैं आप को अपने नए प्रयोगों के बारे में कुछ बताऊंगा और शायद आप भी साक्षी बनें इस लैबोरेटरी में होने वाले पहले एक्सपेरिमेंट का. जी हां, आज इस लैबोरेटरी का उद्ïघाटन आप लोगों के द्वारा ही होगा.

”प्रयोग शुरू करने से पहले मैं आप लोगों को इस हाल की रचना के बारे में बता दूं. यह हाल पूरी तरह से साउंडप्रूफ है. इस हाल को बनाने के लिए 2 परतों वाली दीवार बनाई गई है और इन दोनों परतों के बीच का गैप 2 इंच का रखा गया है. इस गैप को भरने के लिए 6 एमएम मोटी ग्लास फाइबर की शीट तथा थर्मोकोल डाला गया है.’’

सैम फ्रांसिस ने आगे बताया, ”पूरी तरह से साउंडप्रूफ बनाने के लिए सौ प्रतिशत सुरक्षा बरती गई है. इसी कारण इस हाल के अंदर और बाहर विशेष तरह के मटीरियल का प्लास्टर किया गया है, जो चावल की भूसी से बना होता है और एक बेहतरीन साउंडप्रूफ एजेंट का काम करता है.

”अब अगर इस प्रयोगशाला में 10 डीजे भी एक साथ बजाए जाएं तो रत्ती भर भी आवाज इस हाल के बाहर नहीं जाएगी. साउंड के वाइब्रेशन से इस बिल्डिंग को नुकसान न पहुंचे, इसलिए हाल की छत को डोमनुमा बनाया गया है और एक 12 इंच डक्ट निकालते हुए उसे जमीन में ले जा कर गाड़ दिया गया. इस से यहां ध्वनि से पैदा की गई छोटी से  छोटी तरंग जमीन में समाहित हो जाएगी और बिल्डिंग सुरक्षित रहेगी.’’

लेकिन यह सब आप हमें क्यों बता रहे हैं? इस का हमारे केस से क्या संबंध है?’’ इंसपेक्टर मलिक ने सैम फ्रांसिस को बीच में टोकते हुए कहा. 

इंसपेक्टर साहब, इन सब बातों का सीधा और गहरा संबंध है इस केस से. मैं प्रयोग कर रहा था कि आदमी को कैसे मारा जाए कि उस की मौत प्राकृतिक लगे, जबकि वह हो सुनियोजित हत्या. और सब से बड़ी बात उस तकनीक को मास यानी कई लोगों पर एक साथ आजमाया जा सके.

जिस तरह निर्जीव रबर एक सीमा तक ही तनाव सह सकती है, उस के बाद टूट जाती है. उसी प्रकार आदमी भी एक स्तर तक ही तनाव सह सकता है, उस के बाद उस के शारीरिक अवयव जैसे दिमाग और दिल इसे सहने की क्षमता खो देते हैं और परिणामस्वरूप या तो उसे ब्रेन हैमरेज हो जाता है फिर सिवियर हार्ट अटैक आ जाता है. 

अपनी स्टडी के दौरान मैं ने पाया कि एक स्वस्थ आदमी 60 डेसिबल तक का साउंड आसानी से सह सकता है. उस के बाद का साउंड कुछ सीमा तक असहनीय होने लगता है और शरीर पर प्रतिकूल असर डालने लगता है. 

यद्यपि कुछ म्यूजिक कांसट्र्स में साउंड 120 डेसिबल तक का होता है. इसे इंसान का शरीर इसलिए सहन करता है, क्योंकि यह उस की पसंद का होता है तथा सब से बड़ी बात यह खुले आसमान के नीचे कुछ सीमित समय के लिए ही होता है. अत: इस का हानिकारक प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम होता है.

मधुर लगने वाले और पेड़ पौधों तक को जीवन देने वाले संगीत को मैं मौत के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता था. इसी कारण मैं ने इस लैबोरेटरी का निर्माण किया.’’ डा. सैम फ्रांसिस कह रहा था. सस्पेंस बढऩे पर इंसपेक्टर मलिक ने पूछा, ”मगर तुम तो कह रहे थे कि आज इस लैब का उद्ïघाटन है तो इस से पहले जिन 3 आदमियों पर तुम ने प्रयोग किए, वह कैसे और कहां पर किए?’’

”वो यहीं मेरे घर के ऊपरी मंजिल वाले हाल में किए थे. पहला आदमी बेचारा कई दिनों से भूखा इधरउधर घूम रहा था. मुझे अपने प्रयोग के परीक्षण के लिए आदमी की जरूरत थी. मैं ने नौकरी का झांसा दे कर अपने पास रख लिया. 2 दिन भर पेट खाने के बाद वह स्वस्थ हो गया. फिर उसे तेज संगीत सुना कर मार डाला.’’ सैम फ्रांसिस ने बताया.

लेकिन उस ने इतनी आसानी से मौत को गले लगाना स्वीकार कैसे कर लिया?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

”आसानी से कहां? उसे तो पता ही नहीं था कि वह मरने जा रहा है. मैं ने उसे समझाया कि मैं संगीत के जरिए ऐसा प्रयोग करने जा रहा हूं, जिस से आदमी अपनी शक्ति बिना खोए और बिना खायपिए एक बरस तक जिंदा रह सकता हैं.’’ सैम ने बताया.

”क्या ऐसा संभव है?’’ उस आदमी ने पूछा. 

बिलकुल संभव है और मुझे खुशी है कि मैं ने अपने इस प्रयोग को पूरा करने के लिए पहले आदमी के रूप में तुम्हें चुना है.’’ सैम बोला, ”मैं जानता था कि खुले हाल में इतना तेज संगीत लगातार नहीं बजाया जा सकता है, अत: मैं ने उस के कानों में उच्च तकनीकी क्षमता वाले ईयर फोंस लगा दिए.

”इतना निश्चित था कि ध्वनि की तीव्रता बढऩे पर वह उन ईयर फोंस को निकाल कर फेंक देता. अत: मैं ने उसे समझाया कि एक साल के लिए शक्ति संचय करने के लिए उस का निश्चल रहना जरूरी है और यह तभी संभव होगा जबकि शक्ति संचय के लिए उस के शरीर को अच्छे से बांध दिया जाए. 

”बांधने का कोई निशान नहीं आए, इस के लिए पहले उसे मोटी बैडशीट में रैप किया गया, फिर ऊपर से एक ब्लैंकेट से लपेटा गया और सब से आखिर में चौड़े पैकिंग टेप से कस कर इस तरह से पैक किया गया कि वह हिलडुल भी न सके. 

”अब उस के ईयरफोन को एक डीजे से कनेक्ट कर दिया. यह डीजे से 150 डेसिबल का शोर उत्पन्न कर सकता था. उस की इच्छा थी कि उसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ सुनाया जाए.

”उस के ईयरफोन में वाल्यूम बढऩे के साथ ही वह तड़पने लगा और छोड़ देने की विनती करने लगा. मगर मैं अपने प्रयोग को अधूरा कैसे छोड़ सकता था. मैं ने साउंड को फुल वाल्यूम तक बढ़ाया.

”लगभग 6 घंटे बाद बाद वह बेहोश हो गया और जैसे ही होश आने को हुआ मैं ने उसे मौत का संगीत उसी तीव्रता के साथ फिर से सुनाना शुरू कर दिया. बेचारा 2 घंटों में ही मौत की नींद सो गया. यह एक प्लांड मर्डर था, जिसे मैं ने स्वाभाविक मौत का जामा पहना दिया था. मैडिकल की भाषा में इसे इंड्यूस्ड हार्ट अटैक कहते हैं.

इसी तरह मैं ने दूसरे और तीसरे प्रयोग भी किए, जो सफल रहे. अब इस प्रयोग को मैं एकएक आदमी पर अलगअलग करना नहीं चाहता. इसीलिए मैं जानबूझ कर उस पेड़ के सामने रुका था. वह तो शिकार को फंसाने के लिए फेंका चारा था, जिस में 9 बकरियां फंस गईं.

बताइए इंसपेक्टर, आप कौन सा संगीत सुनते हुए मरना पसंद करेंगे?’’ सैम फ्रांसिस ने पूछा.

देखिए डाक्टर साहब, आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं. मैं ने अपने मोबाइल पर आप के बयान रिकौर्ड कर लिए हैं. मैं अभी इसे अपने सीनियर्स को फारवर्ड कर देता हूं.’’ इंसपेक्टर यह कह कर अपनी कुरसी से उठने लगे.

लेकिन वह कुरसी से उठ नहीं पाए, क्योंकि उन की कलाइयां और बाहें किसी नर्म कुशन वाले रबर की बेल्ट से बंध गई थीं. सभी 9 पुलिसकर्मी अपनीअपनी कुरसियों से बंध गए थे.

”हाहाहा…’’ हंसते हुए सैम फ्रांसिस बोला, ”इतना मूर्ख समझते हो क्या साइंटिस्ट को? मैं इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकता था इंसपेक्टर? तुम ने इस हाल में घुसने से पहले अपने मोबाइल की रिकौर्डिंग औन जरूर की थी, मगर इस में घुसते ही मैं ने अपने फ्रीक्वेंसी कंट्रोलर से सभी के मोबाइल आटो औफ मोड में डाल दिए हैं. अब किसी को तुम्हारी लोकेशन की भनक तक नहीं लगेगी.

कुरसियों पर जो बेल्ट बंधी हैं, उन के अंदर एक विशेष तरह के फोम का कुशन लगा हुआ है. इस से आप लोगों को किसी तरह की तकलीफ नहीं  होगी और आप लोगों के शरीर पर किसी तरह का निशान तक नहीं आएगा. और यह लीजिए, मैं आप लोगों को कमर के ऊपर के हिस्से को भी जकड़ देता हूं. अब आप लोग चैन की मौत मर सकते हैं. एंजौय द म्यूजिकल डेथ. हाहाहा…’’ सैम फ्रांसिस ने कुटिलता से हंसते हुए पूछा, ”कोई आखिरी इच्छा?’’

आखिर तुम यह सब क्यों कर रहे हो? क्या उद्ïदेश्य  है तुम्हारा?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

मरते दम तक भी अपनी कर्तव्यनिष्ठा नहीं छोड़ रहे हो इंसपेक्टर.’’ सैम फ्रांसिस शब्दों को चबा कर बोला, ”ठीक कहते हो इंसपेक्टर, हर काम के पीछे एक मोटिव होना तो जरूरी है और मेरा मोटिव है बदला सिर्फ बदला.’’ 

अगर बदला लेना ही मोटिव है तो उन 3 लोगों के बारे में तो पता नहीं, मगर हम 9 लोगों में से तो किसी ने भी तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया. फिर बदला किस बात का?’’ इंसपेक्टर ने बात को लंबा करने के लिहाज से पूछा.

बदला… बदला तो मुझे भारत में रहने वाले हर व्यक्ति से लेना है. सोच रहे होगे क्यों? मैं बताता हूं. हम अंगरेज तो कुछ घूमने कुछ ढूंढने के मकसद से यहां आए थे. मगर तुम्हारे पूर्वजों की मूर्खता के कारण हमें यहां अपने पर शासन करने का अवसर दिया. 

अच्छा बताओ अंगरेजों के आने से पहले तुम क्या थे? अनपढ़, जाहिल और गंवार न? हम अंगरेजों ने तुम्हें सभ्य लोगों की तरह रहना, बोलना, पढऩा और व्यवहार करना सिखाया.

मगर उन सब बातों का अहसान न मानते हुए तुम लोगों ने हमारे ही खिलाफ विद्रोह कर दिया. मेरे दादाजी पता नहीं क्या सोच  कर यहीं रुक गए. उन के इस निर्णय से हम न तो भारतीय हो पाए और न ही अपने देश के हो पाए. लेकिन मेरी रगों में अभी भी ब्रिटिश हुकूमत दौड़ रही है.

इसी कारण सम्मेलनों में, साहित्य में या फिल्मों में जब किसी अंगरेज का अपमान किया जाता है तो मेरा खून खौल उठता है और मैं हर भारतीय से बदला लेने को बेचैन हो जाता हूं. 

बहुत अहिंसा…अहिंसा का पाठ पढ़ते हो न? इसी कारण बदला लेने के लिए यह अहिंसात्मक हत्याएं करता हूं. इस में न कोई हथियार उठता है और न कोई खूनखराबा होता है. कोई सबूत भी नहीं रहता है तो कोई मुझ पर आरोप नहीं लगा सकता. न ही कोई शक कर सकता है.

आज तुम 9 लोग अपनी मौत की ध्वनि सुनोगे. इस के बाद इस प्रयोगशाला में 50 ऐसे लोग आएंगे, जो लकी ड्रा के माध्यम से बुलाए जाएंगे. मरने के बाद लाशों को यहां से बहुत दूर अलगअलग जगहों पर फेंका जाएगा. अगर मैं हजार पांच सौ को मारने के बाद पकड़ा भी जाऊं तो मैं समझूंगा कि मेरा बदला पूरा हो गया.’’

देखो डाक्टर, ऐसा मत करो. हम ने कई अंगरेज विद्वानों का सम्मान भी किया है. अगर तुम्हारी नजर में हम ने कुछ गलती की भी है तो उसे माफ कर देने में तुम्हारा बड़प्पन ही दिखाई देगा.’’ इंसपेक्टर ने एक बार फिर अनुरोध किया.

चलो बातें बहुत हो गईं. अब इस प्रयोग को शुरू करते हैं. इस में संगीत की आवृत्ति धीरेधीरे बढ़ते हुए अपने चरम पर जाएगी और तुम लोगों को मौत की नींद सुलाएगी. फाइनली गुडबाय टू एवरीवन. इट्स टाइम टू प्ले म्यूजिक फौर मर्डर. हैव अ नाइस जर्नी टू हेवन.’’ कहता हुआ सैम फ्रांसिस म्यूजिक चालू कर के लैबोरेटरी से बाहर निकल गया.

एसपी ने कैसे बचाई 9 पुलिसकर्मियों की जान

उधर पुलिस मुख्यालय में एसपी ए.के. समीर ने डीएसपी आशीष चौबे को फोन किया, ”हैलो डीएसपी चौबे?’’

यस सर, बोल रहा हूं.’’ डीएसपी ने जवाब दिया.

इंसपेक्टर को सैम फ्रांसिस के यहां गए 3 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके हैं, मगर कोई फीडबैक नहीं मिला. आप के पास कोई सूचना है क्या?’’ एसपी ने पूछा.

नहीं सर, अभी तक कोई नहीं.’’ उधर से जवाब आया. 

”तुरंत दूसरी टीम तैयार करो, हमें अभी वहां के लिए निकलना पड़ेगा, शायद वे लोग किसी परेशानी में हों.’’ एसपी समीर ने कहा. 

कुछ ही देर में लगभग 15 लोगों की दूसरी टीम सैम फ्रांसिस के घर पर थी. एसपी ए.के. समीर ने सैम फ्रांसिस से सीधे और कड़क लहजे में पूछा, ”इंसपेक्टर सहित हमारी पुलिस पार्टी कहां है?’’ 

वे लोग तो काफी समय पहले ही यहां से निकल चुके हैं.’’ सैम को पुलिस पार्टी से इतनी त्वरित प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी, अत: उस ने झूठ बोला, जबकि उस की घबराहट चेहरे से झलक रही थी.

यह झूठ बोल रहा है, इसे पुलिस की भाषा में अच्छा सबक सिखाओ. शायद इंसपेक्टर मलिक कुछ नरमी कर गया, इसी कारण मुसीबत में फंस गया लगता है.’’ एसपी साहब ने साथ आए जवानों को आदेश दिया.

कप्तान साहब का आदेश मिलते ही पुलिसकर्मियों ने डा. सैम फ्रांसिस को हिरासत में ले लिया. पुलिस की थोड़ी सी पिटाई के बाद सैम ने पीछे वाली लैब का पता बता दिया. फिर एसपी टीम के साथ वहां पहुंचे तो लैबोरेटरी में इंसपेक्टर सहित पूरी पुलिस पार्टी लगभग बेहोशी की अवस्था में मिली. सभी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 2-3 घंटे बाद इंसपेक्टर मलिक और अन्य पुलिसकर्मी होश में आ गए. फिर इंसपेक्टर मलिक ने सारी बात एसपी साहब को बता दी. इस के बाद पुलिस ने सैम फ्रांसिस को कई धाराओं के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

काश! इस वैज्ञानिक ने अपने ज्ञान का प्रयोग जन उपयोगी कार्यों के लिए किया होता तो समाज का कितना भला होता.’’ घटना सुनाने वाला हर शख्स यही कह रहा था.

 

अंग्रेज अफसर ने दी चोर को जानलेवा चुनौती

यह कहानी बंटवारे से पहले अंगरेजी राज की है. उस समय लोगों के स्वास्थ्य बहुत अच्छे हुआ करते थे. बीड़ी सिगरेट, वनस्पति घी का प्रयोग नहीं हुआ करता था. उस जमाने के लोग बहुत निडर होते थे. हत्या, डकैती की कोई घटना हो जाती थी तो पुलिस और जनता उस में रुचि लिया करती थी. गांवों में पुलिस आ जाती तो पूरे गांव में खबर फैल जाती कि थाना आया हुआ है.

एक अंगरेज डिप्टी कमिश्नर इंग्लैंड से रावलपिंडी स्थानांतरित हो कर आया था. जब भी कोई नया अंगरेज अधिकारी आता तो उसे उस इलाके की पूरी जानकारी कराई जाती थी, जिस से वह अच्छा कार्य कर के अपनी सरकार का नाम ऊंचा कर सके. उस अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को बताया गया कि भारत में अनोखी घटनाएं होती हैं, जिन में डाके और चोरियां शामिल हैं. अपराधियों की खोज करना बहुत कठिन होता है. कई घटनाएं ऐसी होती हैं कि सुन कर हैरानी होती है.

नए अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने एसपी से कहा कि मेरे बंगले पर 24 घंटे पुलिस की गारद रहती है साथ ही 2 खूंखार कुत्ते भी. इस के अलावा मेरे इलाके में पुलिस भी रहती है. रात भर लाइट जलती है, क्या ऐसी हालत में भी चोर मेरे घर में चोरी कर सकता है?

एसपी ने जवाब दिया कि ऐसे में भी चोरी की संभावना हो सकती है. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने कहा, ‘‘मैं इस बात को नहीं मानता, इतनी सावधानी के बावजूद कोई चोरी कैसे कर सकता है?’’

एसपी ने कहा, ‘‘अगर आप आजमाना चाहते हैं तो एक काम करें. एक इश्तहार निकलवा दें, जिस में यह लिखा जाए कि अंगरेज डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर अगर कोई चोरी कर के निकल जाए, तो उसे 500 रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा. अगर वह पुलिस या कुत्तों द्वारा मारा जाता है तो अपनी मौत का वह स्वयं जिम्मेदार होगा. अगर वह मौके पर पकड़ा या मारा नहीं गया तो पेश हो कर अपना ईनाम ले सकता है. उसे गिरफ्तार भी नहीं किया जाएगा और न ही कोई सजा दी जाएगी.’’

डिप्टी कमिश्नर ने एसपी की बात मान ली. इश्तहार छपा कर पूरे शहर में लगा दिए गए. इश्तहार निकलने के 2 महीने बाद यह बात उड़ते उड़ते चकवाल गांव भी पहुंची. उस जमाने में गांवों के लोग शाम को चौपालों पर एकत्र हो कर गपशप किया करते थे. चकवाल की एक ऐसी चौपाल पर अमीर नाम का आदमी बैठा हुआ था, जो 10 नंबरी था.

उस ने वहीं डिप्टी कमिश्नर के इश्तहार वाली बात सुनी. उस ने लोगों से पूछा कि 2 महीने बीतने पर भी वहां चोरी करने कोई नहीं आया क्या? एक आदमी ने उसे बताया कि पिंडी से आए एक आदमी ने बताया था कि उस बंगले में किसी की हिम्मत नहीं है जो चोरी कर सके. वहां चोरी करने का मतलब है अपनी मौत का न्यौता देना.

अमीर ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह उस बंगले में चोरी जरूर करेगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को वह ऐसा सबक सिखाएगा कि वह पूरी जिंदगी याद रखेगा. उस ने अपनी योजना के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

कुत्तों के लिए उस ने बैलों के 2 सींग लिए और देशी घी की रोटियों का चूरमा बना कर उन सींगों में इस तरह से भर दिया कि कुत्ते कितनी भी कोशिश करें, रोटी न निकल सकें. उस जमाने में रेल के अलावा सवारी का कोई साधन नहीं था. गांव के लोग 30-40 मील तक की यात्रा पैदल ही कर लिया करते थे.

चूंकि अमीर 10 नंबरी था  इसलिए कहीं बाहर जाने से पहले इलाके के नंबरदार से मिलता था. इसलिए अमीर सुबह जा कर उस से मिला, जिस से उसे लगे कि अमीर गांव में ही है. चकवाल से रावलपिंडी का रास्ता ज्यादा लंबा नहीं था. अमीर दिन में ही पैदल चल कर डिप्टी कमिश्नर की कोठी के पास पहुंच गया.

उस ने संतरियों को कोठी के पास ड्यूटी करते हुए देखा. बंगले के बाहर की दीवार आदमी की कमर के बराबर ऊंची थी. बंगले के अंदर संतरों के पेड़ थे, और बड़ी संख्या में फूलों के पौधे भी थे.

बंगले के चारों ओर लंबे लंबे बरामदे थे, बरामदे के 4-4 फुट चौड़े पिलर थे. अमीर को अंदर जा कर कोई भी चीज चुरानी थी और यह साबित करना था कि भारत में एक ऐसी भी जाति है, जो बहुत दिलेर है और जान की चिंता किए बिना हर चैलेंज कबूल करने के लिए तैयार रहती है.

जब आधी रात हो गई तो वह बंगले की दीवार से लग कर बैठ गया और संतरियों की गतिविधि देखने लगा. जिन सींगों में घी लगी रोटियों का चूरमा भरा था, उस ने वे सींग बड़ी सावधानी से अंदर की ओर रख दिए. वह खुद दीवार से 10-12 गज दूर सरक कर बैठ गया. कुत्तों को घी की सुगंध आई तो वे सींगों में से चूरमा निकालने में लग गए. फिर दोनों कुत्ते सींगों को घसीटते हुए काफी दूर अंदर ले गए.

अब अमीर ने संतरियों को देखा, वे 4 थे. बरामदे में इधर से उधर घूमते हुए थोड़ी थोड़ी देर के बाद एकदूसरे को क्रौस करते थे. संतरी रायफल लिए हुए थे और उन्हें ऐसा लग रहा था कि 2 महीने से भी ज्यादा बीत चुके हैं. अब किसी में यहां आने की हिम्मत नहीं है. वैसे भी वह थके हुए लग रहे थे.

अमीर दीवार फांद कर पौधों की आड़ में बैठ गया. वह ऐसे मौके की तलाश में था जब संतरियों का ध्यान हटे और वह बरामदे से हो कर अंदर चला जाए. उसे यह मौका जल्दी ही मिल गया. क्रौस करने के बाद जब संतरियों की पीठ एकदूसरे के विपरीत थी, अमीर जल्दी से कूद कर बरामदे के पिलर की आड़ में खड़ा हो गया.

अमीर फुर्तीला था. दौड़ता हुआ ऐसा लगता था, मानो जहाज उड़ा रहा हो. उसे यकीन था कि काम हो जाने के बाद अगर वह बंगले के बाहर निकल गया तो संतरियों का बाप भी उसे पकड़ नहीं पाएगा.

दूसरा अवसर मिलते ही वह कमरे का जाली वाला दरवाजा खोल कर कमरे में पहुंच गया. लकड़ी का दरवाजा खुला हुआ था. चारों ओर देख कर वह बंगले के बीचों बीच वाले कमरे के अंदर पहुंचा. उस ने देखा कमरे के बीच में बहुत बड़ा पलंग था. उस पर एक ओर साहब सोया हुआ था और दूसरी ओर उस की मेम सो रही थी. मध्यम लाइट जल रही थी.

कमरे में लकड़ी की 2-3 अलमारियां थीं, चमड़े के सूटकेस भी थे. उस ने एक सूटकेस खोला, उस में चांदी के सिक्के थे. उस ने एकएक कर के सिक्के अपनी अंटी में भरने शुरू कर दिए. जब अंटी भर गई तो उस ने मजबूती से गांठ बांध ली. वह निकलने का इरादा कर ही रहा था कि उस की नजर सोई हुई मेम के गले की ओर गई, जिस में मोतियों की माला पड़ी थी.

मध्यम रोशनी में भी मोती चमक रहे थे. उस ने सोचा अगर यह माला उतारने में सफल हो गया तो चैलेंज का जवाब हो जाएगा. मेम  और साहब गहरी नींद में सोए हुए थे. उस ने देखा कि माला का हुक मेम की गरदन के दाईं ओर था. उस ने चुपके से हुक खोलने की कोशिश की. हुक तो खुल गया, लेकिन मेम ने सोती हुई हालत में अपना हाथ गरदन पर फेरा और साथ ही करवट बदल कर दूसरी ओर हो गई.

अब माला खुल कर उस की गरदन और कंधे के बीच बिस्तर पर पड़ी थी, अमीर तुरंत पलंग के नीचे हो गया. 5 मिनट बाद उसे लगा कि अब मेम फिर गहरी नींद में सो गई. उस ने पलंग के नीचे से निकल कर धीरेधीरे माला को खींचना शुरू कर दिया. माला निकल गई. उस ने माला अपनी लुंगी की दूसरी ओर अंटी में बांध ली.

अमीर जाली वाले दरवाजे की ओट में देखता रहा कि संतरी कब इधरउधर होते हैं. उसे जल्दी ही मौका मिल गया. वह जल्दी से खंभे की ओट में खड़ा हो कर बाहर निकलने का मौका देखने लगा. कुत्ते अभी तक सींग में से रोटी निकालने में लगे हुए थे.

उसे जैसे ही मौका मिला, वह दीवार फांद कर बाहर की ओर कूद कर भागा. संतरी होशियार हो गए और जल्दबाजी में अंटशंट गोलियां चलाने लगे. लेकिन उन की गोली अमीर का कुछ नहीं बिगाड़ सकीं. वह छोटे रास्ते से पगडंडियों पर दौड़ता हुआ रात भर चल कर अपने घर पहुंच गया.

बाद में अमिर को पता लगा कि गोलियों की आवाज सुन कर मेम और साहब जाग गए थे. जागते ही उन्होंने कमरे में चारों ओर देखा. सिक्कों की चोरी को उन्होंने मामूली घटना समझा. लेकिन जब मेम साहब ने अपनी माला देखी तो उस ने शोर मचा दिया. वह कोई साधारण माला नहीं थी, बल्कि अमूल्य थी.

एसपी साहब और नगर के सभी अधिकारी एकत्र हो गए. उन्होंने नगर का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन चोर का पता नहीं लगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर हैरान था कि इतनी सिक्योरिटी के होते हुए चोरी कैसे हो गई. उस ने कहा कि चोर हमारी माला वापस कर दे और अपनी 5 सौ रुपए के इनाम की रकम ले जाए. साथ में उसे एक प्रमाणपत्र भी मिलेगा.

इश्तहार लगाए गए, अखबारों में खबर छपाई गई लेकिन 6 माह गुजरने के बाद भी चोर सामने नहीं आया. दूसरी तरफ मेमसाहब तंग कर रही थी कि उसे हर हालत में अपनी माला चाहिए. माला की फोटो हर थाने में भिजवा दी गई. साथ ही कह दिया गया कि चोर को पकड़ने वाले को ईनाम दिया जाएगा.

उधर अमीर चोरी के पैसों से अपने घर का खर्च चलाता रहा, उस समय चांदी का एक रुपया आज के 2-3 सौ से ज्यादा कीमत का था. अमीर के घर में पत्नी और एक बेटी थी, बिना काम किए अमीर को घर बैठे आराम से खाना मिल रहा था. उस ने सोचा, पेश हो कर अपने लिए क्यों झंझट पैदा करे, हो सकता है उसे जेल में डाल दिया जाए.

उस की पत्नी ने माला को साधारण समझ कर एक मिट्टी की डोली में डाल रखा था. एक दिन उस ने उस माला के 2 मोती निकाले और पास के एक सुनार के पास गई. उस ने सुनार से कहा कि उस की बेटी के लिए 2 बालियां बना दे और उन में एक मोती डाल दे. सुनार ने उन मोतियों को देख कर अमीर की पत्नी से कहा, ‘‘यह मोती तो बहुत कीमती हैं. तुम्हें ये कहां से मिले?’’

उस ने झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मेरा पति गांव के तालाब की मिटटी खोद रहा था, ये मोती मिट्टी में निकले हैं. मैं ने सोचा बेटी के लिए बालियां बनवा कर उस में ये मोती डाल दूं, इसलिए तुम्हारे पास आई हूं.’’ सुनार ने उस की बातों पर यकीन कर के बालियां बना दीं. उस ने अपनी बेटी के कानों में बालियां पहना दीं.

दुर्भाग्य से एक दिन अमीर की बेटी अपने घर के पास बैठी रो रही थी. तभी एक सिपाही जो किसी केस की तफ्तीश के लिए नंबरदार के पास जा रहा था, उस ने रास्ते में अमीर के घर के सामने लड़की को रोते हुए देखा. देख कर ही वह समझ गया कि किसी गरीब की बच्ची है, मां इधरउधर गई होगी. इसलिए रो रही होगी.

लेकिन जब उस की नजर बच्ची के कानों पर पड़ी तो चौंका. उस की बालियों में मोती चमक रहे थे. उसे लगा कि वे साधारण मोती नहीं हैं. उस ने नंबरदार से पूछा कि यह किस की लड़की है. उस ने बता दिया कि वह अमीर की लड़की है, जो दस नंबरी है.

हवलदार को कुछ शक हुआ. उस ने पास जा कर मोतियों को देखा तो वे मोती फोटो वाली उस माला से मिल रहे थे. जो थाने में आया था.

उस ने अमीर को बुलवा कर कहा कि वह बच्ची की बालियां थाने ले जा रहा है, जल्दी ही वापस कर लौटा देगा.  थाने ले जा कर उस ने चैक किया तो वे मोती मेम साहब की माला के निकले. अमीर पहले से ही संदिग्ध था, नंबरी भी. उसे थाने बुलवा कर पूछा गया कि ऊपर से 10 मोती उसे कहां से मिले. सब सचसच बता दे, नहीं तो मारमार कर हड्डी पसली एक कर दी जाएगी.

पहले तो अमीर थानेदार को इधरउधर की बातों से उलझाता रहा, लेकिन जब उसे लगा कि बिना बताए छुटकारा नहीं मिलेगा तो उस ने पूरी सचाई उगल दी. उस के घर से माला भी बरामद कर ली गई.

थानेदार बहुत खुश था कि उस ने बहुत बड़ा केस सुलझा लिया है, अब उस की पदोन्नति भी होगी और ईनाम भी मिलेगा. अमीर को एसपी रावलपिंडी के सामने पेश किया गया. साथ ही डिप्टी कमिश्नर को सूचना दी गई कि मेम साहब की माला मिल गई है.

डीसी और मेम साहब ने उन्हें तलब कर लिया. मेम साहब ने माला को देख कर कहा कि माला उन्हीं की है. डिप्टी कमिश्नर ने अमीर के हुलिए को देख कर कहा कि यह चोर वह नहीं हो सकता, जिस ने उन के बंगले पर चोरी की है. क्योंकि उस जैसे आदमी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती कि माला गले से उतार कर ले जाए.

एसपी ने अमीर से कहा कि अपने मुंह से साहब को पूरी कहानी सुनाए. अमीर ने पूरी कहानी सुनाई और बीचबीच में सवालों के जवाब भी देता रहा. उस ने यह भी बताया कि सोते में मेम साहब ने अपनी गरदन पर हाथ भी फेरा था. डिप्टी कमिश्नर ने उस की कहानी सुन कर यकीन कर लिया, साथ ही हैरत भी हुई.

उन्होंने कहा, ‘‘तुम ने हमें बहुत परेशान किया है, अगर तुम उसी समय हमारे पास आ जाते तो हमें बहुत खुशी होती, लेकिन हम चूंकि वादा कर चुके हैं, इसलिए तुम्हें तंग नहीं किया जाएगा. हम तुम्हें सलाह देते हैं कि बाकी की जिंदगी शरीफों की तरह गुजारो.’’

अमीर ने वादा किया कि अब वह कभी चोरी नहीं करेगा. वह एक साधू का चेला बन गया और उस की बात पर अमल करने लगा. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से नहीं जाता. वह छोटी मोटी चोरी फिर भी करता रहा. धीरेधीरे उस में शराफत आती गई.

अकाल बाल मौत प्रेम की