बाहरी प्यार के चक्कर में पति मारा – भाग 2

4 सितंबर, 2023 की सुबह 10 बजे एडीसीपी अंकिता शर्मा ने अनस हाशमी से रविकांत की हत्या के संबंध में पूछताछ की. कुछ देर वह पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन सख्ती करने पर टूट गया और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने मृतक रविकांत का मोबाइल फोन तथा हत्या में प्रयुक्त खून सना चाकू भी बरामद करा दिया.

अनस हाशमी और प्रियंका से पुलिस से विस्तार से पूछताछ की तो रविकांत की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अवैध संबंधों की चाशनी में डूबी निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर के थाना विधनू के अंतर्गत एक गांव है- मटियारा. इसी गांव में हरविलास शुक्ला अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सरला के अलावा 2 बेटियां राधिका व प्रियंका तथा एक बेटा शिव था. हरविलास किसान थे. वह अपने खेतों में सब्जियां उगाते थे और शहरकस्बे की मंडियों में बेचते थे. इस से होने वाली आमदनी से ही वह परिवार का भरणपोषण करते थे.

बड़ी बेटी का विवाह वह औंग (फतेहपुर) निवासी राधेश्याम तिवारी से कर चुके थे.

सास से क्यों झगड़ती थी प्रियंका

राधिका से छोटी प्रियंका थी. वह भी जवान हुई तो उस के योग्य वर की खोज करने लगे. काफी प्रयास के बाद उन्हें रविकांत पसंद आ गया.

रविकांत के पिता रामबहादुर पांडेय नौबस्ता (कानपुर) के राजे नगर मोहल्ले में सपरिवार रहते थे. परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे रविकांत, अनूप तथा बेटी सीमा थी. सीमा की शादी हो चुकी थी. बड़ा बेटा रविकांत एक इनवर्टर बनाने वाली कंपनी में काम करता था.

उचित घर वर देख कर रामविलास ने प्रियंका का रिश्ता रविकांत से पक्का कर दिया. इस के बाद 8 फरवरी, 2016 को उन्होंने प्रियंका का विवाह रविकांत से कर दिया.

खूबसूरत पत्नी पा कर रविकांत खुद को बहुत खुशकिस्मत समझ रहा था. जबकि अपने से अधिक उम्र का पति पा कर प्रियंका खुश नहीं थी. प्रियंका को यह बात हमेशा सालती रहती थी कि उस का पति उम्र में उस से काफी बड़ा है. यही टीस कभी दर्द बन जाती तो पतिपत्नी में झगड़ा हो जाता. हालांकि लड़ाईझगड़ा रविकांत को पसंद नहीं था.

शादी के एक साल बाद प्रियंका ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से प्रियंका की सास शकुंतला भी खुश थी, लेकिन प्रियंका बेटे की परवरिश को ले कर चिंतित रहने लगी थी. दरअसल, रविकांत जो भी कमाता था, वह मां के हाथ पर रखता था. प्रियंका को यह बात अखरती थी. वह चाहती थी कि पति पैसा केवल उसे ही दे ताकि वह बेटे की देखभाल ठीक से कर सके.

प्रियंका को संयुक्त परिवार में रहना भी पसंद न था. इसलिए वह घर में कलह करने लगी थी. किसी न किसी बात को ले कर उस का हर रोज सास से झगड़ा होने लगा था. वह पति पर अलग रहने का भी दबाव डालने लगी थी.

रोज रोज की कलह से परेशान हो कर रविकांत ने मां का घर छोड़ दिया और पत्नी प्रियंका के साथ नौबस्ता गल्ला मंडी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. इसी बीच प्रियंका ने दूसरे बेटे को जन्म दिया. प्रियंका को आर्थिक परेशानी खलती थी. पति की कमाई इतनी नहीं थी कि वह बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी सके.

अनस हाशमी कौन था और क्यों आता था रविकांत के घर

रविकांत जिस इनवर्टर कंपनी में काम करता था, उसी में 20 साल का अनस हाशमी भी काम करता था. साथ काम करते दोनों में दोस्ती हो गई थी.

अनस हाशमी मूलरूप से उत्तर भारत के बलरामपुर जिले के गांव लालपुर का रहने वाला था. रविकांत व अनस हाशमी खानेपीने के शौकीन थे, इसलिए दोनों की महफिल जमती रहती थी.

एक रोज रविकांत ड्यूटी नहीं गया तो अनस हाशमी देर शाम उस का हालचाल लेने उस के घर आ गया. यहां पहली बार प्रियंका की मुलाकात अनस हाशमी से हुई. दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए और उन के बीच बातचीत भी हुई. इस के बाद जबतब अनस हाशमी का रविकांत के घर आनाजाना होने लगा. लेकिन इस बीच प्रियंका व अनस हाशमी मर्यादा में रहे. हालांकि दोनों के दिलों में हलचल शुरू हो चुकी थी.

रविकांत का एक रिश्तेदार अनुज तिवारी था. वह गुजरात के राजकोट में किसी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड था. उसे अच्छा वेतन मिलता था. जनवरी 2021 में रविकांत की पारिवारिक शादी समारोह में अनुज तिवारी से मुलाकात हुई. बातचीत के दौरान रविकांत ने आर्थिक समस्या बताई तो अनुज ने उसे राजकोट में नौकरी दिलाने का वादा किया.

अनुज के साथ रविकांत राजकोट चला गया. वहां अनुज ने एक खिलौना बनाने वाली कंपनी में रविकांत को सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा दी. इस तरह रविकांत राजकोट में नौकरी करने लगा और प्रियंका दोनों बच्चों के साथ नौबस्ता गल्ला मंडी में रहने लगी. रविकांत को जब छुट्टी मिलती, तभी वह कानपुर आता और हफ्ते भर तक रुक कर वापस चला जाता.

प्रियंका के क्यों बहके थे कदम

अनस हाशमी को जब पता चला कि उस का दोस्त रविकांत दूरदराज शहर में नौकरी करने लगा है तो उस की नीयत में खोट आ गई. वह उस की पत्नी प्रियंका से नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस के घर आनेजाने लगा.

वह जब भी आता बच्चों को खानेपीने की चीजें लाता. खानेपीने की चीजें पा कर बच्चे खुश होते. बच्चों ने प्रियंका से अनस हाशमी के बारे में पूछा तो उस ने बच्चों से कहा कि यह तुम्हारे संदीप मामा हैं. प्रियंका भी उसे संदीप कह कर ही बुलाती थी.

अनस हाशमी विवाहित था, लेकिन उस की बीवी की मौत हो गई थी. स्त्री सुख से वंचित होने से वह प्रियंका पर डोरे डालने लगा था. पति के राजकोट जाने के बाद उस के जिस्म की भूख फिर सिर उठाने लगी. वह उदास हो गई. तब उस के दिलोदिमाग में अनस हाशमी घूमने लगा. वह उस से मिलने को उतावली हो उठी.

प्रियंका ने इस का कोई विरोध नहीं किया. इस से अनस की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद प्रियंका भी खुद को नहीं रोक सकी तो मर्यादा तारतार होते वक्त नहीं लगा. जोश उतरने पर जब होश आया तो दोनों में से किसी के भी मन में पछतावा नहीं था.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 3

सुबहसुबह साल्वी का फोन घनघना उठा. सोहम का एक दोस्त जो उस के साथ वाले फ्लैट में रहता था, उस ने जो बताया, सुन कर साल्वी के पैरों तले से जमीन खिसक गई. अकबकाई सी वह जिन कपड़ों में थी, उन्हीं कपड़ों में भागी. उस के साथ निधि भी थी.

दोनों सोहम के कमरे पर पहुंच गईं. वहां जा कर देखा तो सोहम बेहोशी की हालत में पड़ा था. इस हालत में उसे देख कर साल्वी घबरा गई. दोनों किसी तरह उसे पास के अस्पताल में ले गईं. मगर डाक्टर ने यह कह कर इलाज करने से मना कर दिया कि यह पुलिस केस है. जब तक पुलिस नहीं आ जाती, वह इलाज नहीं कर सकते.

अस्पताल से पुलिस को फोन कर दिया गया. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. साल्वी का तो रोरो कर बुरा हाल था. अगर निधि वहां नहीं आती तो पता नहीं कौन उसे संभालता. इस बीच उस के दोस्त ने बताया कि रात को उस ने बड़े अनमनेपन से थोड़ा सा खाना खाया था. उस ने पूछा भी कि सब ठीक तो है, कोई परेशानी तो नहीं पर वह सब ठीक है कह कर कमरे में जा कर सो गया.

जब कुछ देर बाद वह भी कमरे में गया तो दंग रह गया क्योंकि वहां नींद की गोलियों की खाली शीशी पड़ी थी और सोहम अचेत पड़ा हुआ था. उसे समझते देर नहीं लगी कि सोहम ने नींद की गोलियां खा ली हैं लेकिन उस की सांसें चल रही थीं. कुछ न सूझा तो घबरा कर उस ने साल्वी को फोन कर दिया था.

घंटों इंतजार के बाद जब डाक्टर ने आ कर बताया कि सोहम खतरे से बाहर है और पुलिस उस का बयान ले सकती है, तो सब की जान में जान आई.

पुलिस पूछताछ के दौरान सोहम बस यही कहता रहा कि किसी ने उसे मरने पर मजबूर नहीं किया, बल्कि उस ने अपनी मरजी से यह फैसला लिया था, क्योंकि थक चुका था वह अपनी जिंदगी से.

पूछताछ कर के पुलिस तो चली गई लेकिन साल्वी यह मानने को तैयार नहीं थी कि सोहम जो बोल रहा है, वह सच है. कोई तो बात जरूर है, जो वह सब से छिपा रहा है.

अस्पताल से आने के बाद साल्वी ने उस से पूछा, ‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा सोहम? क्या एक बार भी तुम्हें अपने मातापिता का खयाल नहीं आया? तुम ने यह नहीं सोचा कि तुम्हारी 2-2 जवान बहनें हैं, उन का क्या होगा? बताओ न क्यों किया तुम ने ऐसा? जानती हूं कोई तो ऐसी बात है जो तुम हम से छिपा रहे हो. बोलो, क्या बात है, तुम्हें मेरी कसम. हमारे प्यार की कसम.’’

यह सब सुनने के बाद सोहम अपने आंसुओं का सैलाब रोक नहीं पाया और एकएक कर साल्वी को सारी बातें बता दीं. सुन कर साल्वी का पूरा शरीर कंपकंपा गया.

‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और तुम ने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा. लेकिन तुम ने आत्महत्या करने की कोशिश क्यों की? यह नहीं सोचा कि उस नागिन को सजा दिलवानी है.’’ साल्वी हैरानी से सवाल पर सवाल किए जा रही थी और सोहम अपने बहते आंसू पोंछे जा रहा था.

‘‘अब बच्चों की तरह रोना बंद करो और मेरी बात सुनो. वह तुम्हें फिर बुलाएगी और तुम जाओगे. हां, जाओगे तुम. लेकिन ऐसे नहीं पूरी तैयारी के साथ. उस से पहले हमें पुलिस के पास जा कर सारी सच्चाई बतानी होगी.’’

साल्वी के समझाने के बाद सोहम थाने पहुंच गया और एकएक कर सारी बातें पुलिस को बताईं. हकीकत जानने के बाद थानाप्रभारी समझ गए कि मामला गंभीर है. इसलिए उन्होंने सोहम को फिर मनोरमा के पास जाने को कहा, मगर पूरी तैयारी के साथ, जिस से सबूत के साथ उसे पकड़ा जा सके.

4-5 दिन बाद मनोरमा ने सोहम को फोन किया, ‘‘सोहम, कहां थे तुम इतने दिनों तक? अपना फोन भी नहीं उठा रहे हो. एक काम करो, आज रात यहां आ जाओ. एक जगह माल पहुंचाना है.’’

योजनानुसार सोहम उस के यहां पहुंच गया. उस ने वहां जा कर फिर से वही बात छेड़ी, ‘‘नहीं, अब मैं आप की एक भी बात नहीं मानने वाला और क्या लगता है आप को, आप अपनी अंगुलियों पर मुझे नचाती रहेंगी और मैं नाचता रहूंगा. नहीं, अब ऐसा नहीं होगा मैडम.’’

‘‘पता भी है तुम्हें, तुम क्या बोल रहे हो? एक मिनट भी नहीं लगेगा मुझे तुम्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने में. समझ रहे हो तुम?’’ मनोरमा ने धमकी दी.

‘‘हां, मैं सब समझ रहा हूं और देख भी रहा हूं कि एक औरत ऐसी भी हो सकती है. आप को पता है न आंटी, उस वीडियो में जो भी है, वह गलत है. मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरी बेहोशी का फायदा उठाया और मेरे साथ…’’

‘‘चुप क्यों हो गए, बोलो न कि मैं ने तुम्हारा रेप किया. हां, किया ताकि तुम्हें अपनी मुट्ठी में कर सकूं.’’ बोलते बोलते मनोरमा ने अपने ड्रग्स के सालों से चले आ रहे धंधे के बारे में भी बोलना शुरू कर दिया. वह बोलती चली गई, मगर उसे यह नहीं पता था कि उस की सारी बातें रिकौर्ड हो रही थीं और बाहर खड़ी पुलिस भी उस की बातें सुन रही थी.

‘‘देख लिया न इंसपेक्टर साहब, इस औरत का असली चेहरा?’’ पुलिस के साथ अंदर आते ही साल्वी ने कहा.

अचानक पुलिस को अपने सामने देख कर मनोरमा के होश फाख्ता हो गए. जुबान तो जैसे हलक में ही अटक गई. किसी तरह मुंह से कुछ शब्द निकाल पाई, ‘‘आ…प आप यहां किसलिए इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप को नमस्ते करने के लिए मैडम.’’ कह कर जब इंसपेक्टर ने लेडीज कांस्टेबल को उसे हथकड़ी लगाने को कहा तो वह चीख उठी, ‘‘किस जुर्म में आप मुझे हथकड़ी लगा रहे हैं? पता भी है आप को, मैं कौन हूं? ’’ अपने रुतबे की धौंस दिखाते हुए मनोरमा चीखी.

‘‘मैं बताता हूं कि तुम कौन हो? तुम निहायत ही बदचलन और बददिमाग औरत हो.’’ कह कर सोहम ने एक जोर का थप्पड़ उस के गाल पर दे मारा और कहने लगा, ‘‘तुम्हें क्या लगा, तुम बच जाओगी और यूं ही मुझे इस्तेमाल करती रहोगी. आज तुम्हारे कारण मेरा परिवार अनाथ हो जाता. अगर साल्वी न होती तो शायद आज मैं इस दुनिया में ही नहीं होता. बचा लिया इस ने मुझे और मेरे परिवार को भी. शर्म नहीं आई तुम्हें अपने बेटे जैसे लड़के के साथ संबंध बनाते हुए?’’

गुस्से से आज सोहम की आंखें धधक रही थीं. उस के शरीर का खून इतना उबल रहा था कि वश चलता तो वह खुद ही मनोरमा की जान ले लेता. पर कानून को वह अपने हाथों में नहीं लेना चाहता था.

‘‘इंसपेक्टर साहब ले जाइए इसे और इतनी कड़ी सजा दिलवाइए कि यह अपनी मौत की भीख मांगे और इसे मौत भी नसीब न हो.’’ गुस्से से साल्वी ने कहा, ‘‘इसे ऐसी सजा दिलाना कि अब ये मुट्ठी भर उजियारे के लिए तरसती रह जाए.’’ कह कर वह सोहम का हाथ पकड़ कर वहां से निकल गई.

प्राथमिक पूछताछ में गिरफ्तार मनोरमा ने पुलिस को बताया कि वह सालों से नेपाल से ड्रग्स मंगवा कर महानगर के विभिन्न बड़े क्लबों, रेव पार्टियों व अन्य रेस्तराओं में सप्लाई करती आ रही थी. वह कुछ युवकों को गुप्त तरीके से नेपाल भेज कर ड्रग्स मंगवाती थी.

सोहम से मिल कर उसे लगा कि यह लड़का उस के धंधे को और आगे तक ले जा सकता है, इसलिए पहले उस ने उसे अपने जाल में फंसाया और फिर उस का इस्तेमाल करती रही. मनोरमा के साथ इस धंधे में और कौन कौन लोग जुड़े थे, पुलिस ने उन का भी पता लगा लिया.

खुद को बचाने और निर्दोष साबित करने के लिए मनोरमा ने एड़ीचोटी का जोर लगाया, लेकिन असफल रही. क्योंकि पुलिस के पास उस के खिलाफ पक्के सबूत और गवाह थे.

मनोरमा को अब मौत की सजा मिले या उम्रकैद, सोहम और साल्वी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. साल्वी के लिए तो बस इतना काफी था कि सोहम को इंसाफ मिल गया और मनोरमा को उस के कर्मों की सजा.

सोहम को आज साल्वी पर गर्व महसूस हो रहा था. सोच रहा था कि उस के लिए इस से अच्छा जीवनसाथी कोई हो ही नहीं सकता. उधर साल्वी भी सोहम की बांहों में मंदमंद मुसकरा रही थी. खुले आसमान के नीचे दो मुट्ठी उजियारा उन के लिए काफी था.

प्रेमी के लिए कातिल बनी रक्षा

बाहरी प्यार के चक्कर में पति मारा – भाग 1

एक रोज अनस हाशमी दोपहर में प्रियंका के घर आया और चारपाई पर बैठ कर उस ने इधरउधर की बातें करने लगा. तभी अचानक वह उस  के पास आ कर बोला, ”भाभी, तुम जानती हो कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

अनस हाशमी की बात सुन कर पहले तो प्रियंका चौंकी, उस के बाद हंस कर बोली, ”मजाक अच्छा कर लेते हो.’’

”नहीं भाभी, ये मजाक नहीं है, तुम मुझे सचमुच बहुत अच्छी लगती हो. तुम्हें देखने को दिल चाहता है, तभी तो मैं तुम्हारे यहां आता हूं.’’ अनस ने मुसकराते हुए कहा.

अनस की बात सुन कर प्रियंका के माथे पर बल पड़ गए. उस ने कहा, ”तुम यह क्या कह रहे हो अनस? क्या मतलब है तुम्हारा?’’

”कुछ नहीं भाभी, तुम यहां बैठो और यह बताओ कि भाईजान कब आएंगे?’’

”उन्हें छुट्टी कहां मिलती है. तुम सब कुछ जानते तो हो, फिर भी पूछ रहे हो?’’ प्रियंका ने थोड़ा गुस्से में कहा.

”तुम्हारे ऊपर दया आती है भाभी, भाईजान को तो तुम्हारी फिक्र ही नहीं है. अगर उन्हें फिक्र होती तो इतने दिनों बाद घर न आते. वह चाहते तो यहीं कोई दूसरी नौकरी कर लेते.’’ यह कह कर अनस हाशमी ने जैसे प्रियंका की दुखती रग पर हाथ रख दिया.

इस के बाद प्रियंका के करीब आ कर वह उस का हाथ पकड़ते हुआ बोला, ”भाभी, अब तुम चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’

उस दिन अनस हाशमी के जाने के बाद प्रियंका देर तक उसी के बारे में सोचती रही कि आखिर अनस चाहता क्या है. उस रात प्रियंका को देर तक नींद भी नहीं आई.

3 सितंबर, 2023 की सुबह 10 बजे कानपुर शहर के थाना नौबस्ता के एसएचओ जगदीश पांडेय को फोन के जरिए सूचना मिली कि हंसपुरम बंबा की पुलिया नंबर 3 के पास माया स्कूल के सामने वाले सूखे नाले में एक युवक की लाश पड़ी है. चूंकि खबर हत्या की थी, इसलिए उन्होंने इस सूचना से पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया. उस के बाद वह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

थाना नौबस्ता से घटनास्थल की दूरी 5 किलोमीटर उत्तरपश्चिम दिशा में थी, इसलिए पुलिस को वहां तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. उस समय वहां लोगों की भीड़ थी. पुलिस को देखते ही भीड़ हट गई. पुलिसकर्मियों ने नाले में पड़े शव को बाहर निकाला.

मृतक युवक की उम्र 35 साल के आसपास थी. उस की हत्या किसी तेजधार हथियार से गला रेत कर की गई थी. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि हत्या 1-2 दिन पहले की गई होगी. जामातलाशी में उस के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ. अब तक तमाम लोग शव को देख चुके थे, लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हो पाई थी.

जांच के दौरान ही एसएचओ जगदीश पांडेय को याद आया कि शकुंतला पांडेय नाम की महिला ने उन के थाने में एक दिन पहले अपने बेटे रविकांत की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. कहीं यह लाश उस के बेटे की तो नहीं? यह खयाल आते ही उन्होंने शकुंतला को घटनास्थल पर बुलाने के लिए एसआई आर.के. सिंह और एक सिपाही को भेज दिया.

पुलिस जीप राजे नगर (गल्ला मंडी) स्थित शकुंतला के घर पर रुकी तो वह सकते में आ गईं. उन्होंने पूछा, ”साहब, मेरे बेटे का कुछ पता चला?’’

जवाब देने के बजाय एसआई आर.के. सिंह ने शकुंतला से कहा कि वह उस के साथ चलें. वहां उन्हें सब पता चल जाएगा.

शकुंतला अपने छोटे बेटे अनूप के साथ घटनास्थल पहुंचीं. वहां एसएचओ जगदीश पांडेय ने उन्हें युवक का शव दिखाया तो वह फफक पड़ीं और बोलीं, ”साहब, यह लाश मेरे बड़े बेटे रविकांत की है.’’

अनूप भी भाई का शव देख कर बिलखने लगा.

प्रियंका को पति रविकांत की हत्या की जानकारी हुई तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गई और शव देख कर विलाप करने लगी. शकुंतला ने उसे नफरतभरी नजर से देखा फिर बोली, ”आखिर तुम ने रास्ते का कांटा निकाल ही दिया. अब रोने धोने का नाटक क्यों कर रही हो?’’

प्रियंका ने शकुंतला के कटाक्ष का कोई जवाब नहीं दिया. वह छाती पीटपीट कर रोती रही. एकदो बार उस ने बेहोशी का भी नाटक किया.

इसी चीखपुकार के बीच एडिशनल सीपी (साउथ) अंकिता शर्मा तथा एसीपी अभिषेक पांडेय घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर प्रभारी निरीक्षक जगदीश पांडेय से घटना के संबंध में कुछ जरूरी जानकारी हासिल की.

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मौके पर मृतक की मां शकुंतला पांडेय मौजूद थीं. एडीसीपी अंकिता शर्मा ने उन से पूछा, ”मांजी, तुम्हारे बेटे रवि की हत्या किस ने और क्यों की? क्या तुम्हें किसी पर शक है?’’

”हां जी, मुझे अपनी बहू प्रियंका पर ही शक है.’’ शकुंतला ने बताया.

”वह कैसे?’’ अंकिता शर्मा ने पूछा.

”साहब, प्रियंका बदचलन है. वह लड़ झगड़ कर परिवार से अलग किराए का कमरा ले कर बेटे के साथ रहने लगी थी. बेटा परदेश कमाने गया तो प्रियंका बहक गई. वह अपने आशिक के साथ मौजमस्ती में डूब गई. बेटे ने विरोध जताया तो उसे मौत की नींद सुला दिया. प्रियंका ने ही अपने आशिक के साथ मिल कर मेरे बेटे की हत्या की है. आप उसे गिरफ्तार कर लीजिए वरना वह फरार हो जाएगी.’’ इतना कह कर वह सुबकने लगी.

पुलिस ने मौके की काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दी.

एडिशनल डीसीपी ने प्रियंका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि प्रियंका की एक मोबाइल नंबर पर लगातार बात होती थी. उस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि वह नंबर बलरामपुर जिले के लालपुर गांव निवासी अनस हाशमी का है.

एडीसीपी ने थाने में प्रियंका से अनस हाशमी के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह उस के पति रविकांत का दोस्त है. वह नौबस्ता के कबीर नगर मछरिया में बरकती मसजिद के पास किराए पर रहता है. उस का उस के घर में आनाजाना था.

प्रियंका के मोबाइल फोन में एक युवक की फोटो थी. वह फोटो जब प्रियंका के बच्चों को दिखाई गई तो उन्होंने बताया कि यह फोटो संदीप मामा की है. संदीप के संबंध में पूछने पर प्रियंका ने बताया कि अनस हाशमी ही संदीप है. उस ने बच्चों को अनस हाशमी का नाम संदीप बताया था और कहा था कि यह तुम्हारे मामा है, अत: बच्चे उसे संदीप मामा कहते थे.

अनस हाशमी को गिरफ्तार करने के लिए अंकिता शर्मा ने एसीपी अभिषेक पांडेय की अगुवाई में एक पुलिस टीम का गठन किया. पुलिस टीम ने अनस हाशमी के कबीर नगर (मछरिया) स्थित किराए वाले कमरे पर पहुंची, लेकिन उस के कमरे पर ताला लटका मिला.

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पुलिस टीम जब वापस लौट रही थी तो फारुख अली गली के मोड़ पर पुलिस के मुखबिर ने जीप रुकवाई और बताया कि अनस हाशमी बरकती मसजिद में छिपा बैठा है. कुछ देर बाद वह अपने कमरे पर जाएगा.

मुखबिर की इस सूचना पर पुलिस टीम सतर्क हो गई. रात 12 बजे के आसपास अनस हाशमी जैसे ही मसजिद से बाहर निकला, पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. उसे थाने लाया गया.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 2

एग्जाम्स के बाद साल्वी और पीजी की सारी लड़कियां और सोहम के दोस्त अपने अपने घर चले गए. मगर सोहम नहीं गया. पार्टटाइम नौकरी करने की वजह से वह अहमदाबाद में ही रुक गया था. साल्वी के यहां न रहने पर सोहम कभीकभार मनोरमा के घर चला जाता था और वह भी तब जब मनोरमा किसी काम के लिए उसे बुलाती थी, वरना वह व्यस्त रहता था.

एक रोज सोहम के पास मनोरमा का फोन आया, ‘‘हैलो सोहम, मैं मनोरमा आंटी बोल रही हूं. कहीं बिजी हो क्या?’’

‘‘नहीं तो आंटी, कहिए न?’’ सोहम बोला.

‘‘बस ऐसे ही बेटा, अगर फुरसत मिले तो आ जाना. लेकिन अगर बिजी हो तो रहने दो.’’ मनोरमा बड़ी धीमी आवाज में बोली.

‘‘नहींनहीं आंटी, कोई बात नहीं. बस थोड़ा काम है, खत्म कर के अभी आता हूं.’’ सोहम ने कहा और कुछ देर बाद ही वह मनोरमा के घर पहुंच गया.

‘‘क्या बात है आंटी, आज मुझे कैसे याद किया?’’ अपनी आदत के अनुसार हंसी बिखेरते हुए सोहम ने कहा.

‘‘मैं तो तुम्हें हमेशा याद करती हूं पर तुम ही अपनी आंटी को भूल जाते हो. वैसे जब साल्वी रहती है तब तो खूब आते हो मेरे पास.’’ मनोरमा हंसते हुए बोली.

सोहम झेंप गया और कहने लगा कि ऐसी कोई बात नहीं है. बस काम और पढ़ाई के चक्कर में वक्त नहीं मिलता.

‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी बेटा, पर तुम तो सीरियस हो गए. अच्छा बताओ क्या लोगे, चाय, कौफी या फिर कोल्ड ड्रिंक्स लाऊं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ भी चलेगा आंटी.’’ कहते हुए सोहम टेबल पर रखी मैगजीन उठा कर उलटने पलटने लगा, ‘‘अरे क्या बात है आंटी, आप भी सरिता मैगजीन पढ़ती हो? मेरी मां तो इस मैगजीन की कायल हैं. पता है क्यों, क्योंकि सरिता धर्म की आड़ में छिपे अधर्म की पोल खोलती है इसलिए.

‘‘मां के साथसाथ हम भाईबहनें भी इसे पढ़ने के आदी हो गए हैं और चंपक मैगजीन की तो पूछो मत आंटी. हम भाईबहनों में लड़ाई हो जाती थी उसे ले कर कि पहले कौन पढ़ेगा.’’ बोलते हुए सोहम की आंखें चमक उठीं.

चाय पी कर वह जाने को हुआ तो मनोरमा ने उसे रोक लिया और कहा कि अब वह रात का खाना खा कर ही जाए. सोहम ने मना किया पर मनोरमा की जिद के आगे उस की एक न चली. खाने के बाद एकएक कप कौफी हो जाए कह कर मनोरमा ने फिर उसे कुछ देर रोक लिया.

लेकिन कौफी पीतेपीते ही अचानक सोहम को न जाने क्या हुआ कि वह वहीं सोफे पर लुढ़क गया. इस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं चला. सुबह उस ने जो दृश्य देखा, उस के होश उड़ गए. रोरो कर मनोरमा कह रही थी कि उस ने जिसे बेटे जैसा समझा और उसी ने उस का ही रेप कर डाला.

‘‘पर आंटी, मम..मैं ने कुछ नहीं किया.’’ सोहम मासूमियत से बोला.

सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है और आंटी ऐसा क्यों बोल रही हैं.

‘‘तो किस ने किया? कौन था यहां हम दोनों के सिवा. तुम्हें पता है कि रात में तुम ने पी कर कितना तमाशा किया था. मैं लाख कहती रही कि तुम्हारी मां जैसी हूं पर तुम ने मेरी एक नहीं सुनी. मुझे कहीं का नहीं छोड़ा तुम ने सोहम.’’ कह कर सिसकते हुए मनोरमा ने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया.

अपने कमरे में आ कर वह 2 दिन तक यूं ही पड़ा रहा. न तो वह कालेज जा रहा था और न ही काम पर. वह अपने किसी दोस्त से भी बातचीत नहीं कर रहा था, क्योंकि वह खुद में ही शर्मिंदा था. एक ही बात उस के दिल को मथे जा रही थी कि उस से इतनी बड़ी गलती कैसे हुई. धिक्कार रहा था वह खुद को. उधर मनोरमा ने भी इस बीच न तो उसे कोई फोन किया और न ही उसे मिलने के लिए बुलाया.

लेकिन एक दिन मनोरमा ने उसे खुद फोन कर अपने घर बुलाया. वह वहां जाना तो नहीं चाह रहा था, पर डरतेसहमते चला गया.

‘‘आ गया सोहम.’’ मनोरमा ने उस से ऐसे बात की, जैसे उन दोनों के बीच कुछ हुआ ही न हो.

‘‘ये बैग तुम्हें इस होटल में पहुंचाना होगा. ये रहा होटल का पता. देखो, इस नाम के आदमी के हाथ में ही बैग जाना चाहिए, समझे?’’  आज मनोरमा का व्यवहार और उस की बातें सोहम को कुछ अटपटी सी लग रही थीं.

बड़ी हिम्मत कर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘इस बैग में है क्या और इतनी रात को ही क्या इसे उस आदमी तक पहुंचाना जरूरी है?’’

‘‘ज्यादा सवाल मत करो. जानना चाहते हो इस बैग में क्या है, तो सुनो, इस में ड्रग्स और अफीम है.’’ सुनते ही सोहम के रोंगटे खड़े हो गए और बैग उस के हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया.

‘‘अरे, इतना पसीना क्यों आ रहा है तुम्हारे माथे पर. बैग उठाओ और जाओ जल्दी, वह आदमी तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा.’’ इस बार मनोरमा की आवाज जरा सख्त थी.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो सोहम. क्या उस रात के बारे में सोच रहे हो. भूल जाओ उस बात को और जैसा मैं कहती हूं, वैसा ही करो. ऐसी छोटीमोटी गलतियां तो होती रहती हैं इंसान से.’’

मनोरमा की बातें और हरकतें देख सोहम दंग था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही औरत है जिसे वह एक अच्छी और सच्ची औरत समझता था. इस तरह मजबूरी में ही कई बार वह ड्रग्स से भरा बैग यहांवहां लोगों के पास पहुंचाता रहा. लेकिन उस ने सोच लिया कि अब वह यह गलत काम नहीं करेगा. मना कर देगा मनोरमा को.

एक दिन सोहम ने कह ही दिया, ‘‘नहीं मैडम, अब मुझ से यह गंदा काम नहीं होगा. कल को अगर मैं पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो क्या आप बचाने आएंगी मुझे? और क्यों करूं मैं यह काम?’’

कह कर वह वहां से जाने लगा तो मनोरमा ठठा कर हंसी और कहने लगी, ‘‘तुम ने मुझे क्या बेवकूफ समझ रखा है? क्या सोचा मैं भूल गई उस रात की बात? नहीं सोहम, मैं उन लोगों में से नहीं हूं. देखो, गौर से देखो इस वीडियो को. इस में साफसाफ दिख रहा है कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हो और मैं तुम से बचने की कोशिश कर रही हूं. समझ रहे हो इस का क्या मतलब हुआ?’’

वीडियो देख कर सोहम के होश उड़ गए. वह समझ गया कि यह कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि मनोरमा की सोचीसमझी चाल थी, जो उस ने उसे फंसाने के लिए चली थी. वह बोला, ‘‘तो यह सब आप की सोचीसमझी साजिश थी और रेप मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरा किया है.’’

‘‘हां, पर वीडियो तो यही बता रहा है कि रेप तुम ने किया. तुम्हें पता है सोहम, अगर मैं चाहूं तो यह वीडियो पुलिस तक पहुंचा सकती हूं. लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी, क्योंकि मैं तुम्हारी लाइफ बरबाद नहीं करना चाहती और फिर तुम्हारी 2 जवान बहनें हैं. उन का क्या होगा? कौन शादी करेगा उन से?

‘‘तुम्हारे बूढ़े मांबाप उन का क्या होगा? यह सब सोच कर मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. पर तुम मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर रहे हो.’’  मनोरमा का चेहरा उस समय किसी विलेन से कम नहीं लग रहा था.

‘‘पर क्यों, क्या बिगाड़ा था मैं ने आप का? मैं तो आप को अपनी मां समान समझता था और आप ने…’’ सोहम चीखते हुए बोला. आज उसे साल्वी की कही बातें याद आने लगीं कि इस मनोरमा मैडम को कम मत समझना. बिना अपने मतलब के कुछ नहीं करती. पर मैं ही बेवकूफ था, उसे ही चुप करा दिया था.

‘‘अब छोड़ो ये सब बातें और चलो अपने काम पर लग जाओ. कल एक रेव पार्टी में तुम्हें एक बैग पहुंचाना है. समय से आ जाना.’’

सोहम मनोरमा के जाल में इस तरह से फंस चुका था कि उसे निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाला हाल हो गया था उस का. हंसने और सब को हंसाने वाला सोहम अब चुप रहने लगा था. अपने सारे दोस्तों से भी वह कटाकटा सा रहने लगा था. उस से कोई कुछ कहतापूछता तो वह चिढ़ कर उसी से लड़ पड़ता.

अपने आप को वह एक हारे हुए इंसान के रूप में देखने लगा था जो मुट्ठी भर उजियारा तलाशने यहां आया था, अब उसे अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा था. कभी वह सोचता कि सारी बातें साल्वी को बता दे, लेकिन फिर मनोरमा की धमकी उसे याद आने लगती थी और वह सहम कर मुंह सिल लेता.

‘‘सोहम, क्या हो गया है तुम्हें, जब से आई हूं देख रही हूं कि न तो मुझ से मिलने आते हो और न ही कभी फोन करते हो. जब मैं फोन करती हूं तो बाद में करता हूं, कह कर फोन काट देते हो. बोलो न, हो क्या गया है तुम्हें सोहम?’’ तैश में आ कर साल्वी ने पूछा.

‘‘हां, नहीं बोलना. मैं क्या तुम्हारा गुलाम हूं कि जब तुम बुलाओ दौड़ा चला आऊं तुम्हारे पास? अरे मैं यहां पढ़ने आया हूं, तुम्हारा दिल बहलाने नहीं, समझीं. बड़ी आई.’’ कह कर सोहम वहां से चलता बना और साल्वी अवाक उसे देखती रह गई. सोहम ने एक बार पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा कि वह उसे ही देखे जा रही है.

जब भी साल्वी उस से बात करने की कोशिश करती, चुप्पी साधने का कारण पूछती तो वह झुंझला जाता. इतना ही नहीं, वह उसे अनापशनाप बोलने लगता था. धीरेधीरे साल्वी का मन भी उस से खट्टा होने लगा. उस ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया.

इस बीच कई महीनों तक दोनों के बीच कोई खास बातचीत नहीं हुई. बस ‘हां..हूं..’ में ही बातें हो जातीं कभीकभार. सोहम तो जान रहा था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, पर साल्वी नहीं समझ पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो सोहम उस से कटाकटा रहने लगा है. एक दिन साल्वी ने सोहम को मनोरमा मैडम के घर से निकलते देखा तो वह हैरान रह गई. साल्वी ने उस से पूछा भी कि वह यहां क्या कर रहा था.

‘‘मैं कुछ भी कर रहा हूं, तुम्हें इस से क्या मतलब?’’ सोहम ने कहा तो साल्वी चुप हो गई.

सोहम के जाने के बाद साल्वी सोचने लगी, ‘अच्छा, तो अब मुझ से ज्यादा मनोरमा मैडम उस की अपनी हो गई.’

दूसरी ओर सोहम एक पंछी की तरह बंद पिंजरे से निकलने के लिए फड़फड़ा रहा था. एक तो साल्वी के लिए उस की बेरुखी और ऊपर से मनोरमा मैडम का उसे जबतब बुला कर उस का यूज करना, अब उस के बरदाश्त के बाहर हो रहा था. लेकिन उस दिन बड़ी हिम्मत कर के उस ने बड़ा फैसला ले लिया कि अब वह मनोरमा की एक भी बात नहीं मानेगा, चाहे जो भी हो जाए.

जैसे ही मनोरमा का फोन आया, सोहम ने कहा, ‘‘नहीं, मैं नहीं करूंगा अब ये काम. आप क्या समझती हैं कि आप इस तरह से मुझे अपनी कैद में रख पाएंगी. दिखा दो जिसे भी वीडियो दिखाना हो. एक काम करो, मुझे वह वीडियो भेजो, मैं खुद ही उसे वायरल कर देता हूं. अब सारी सच्चाई दुनिया वालों के सामने आ ही जानी चाहिए. नहीं डरना अब मुझे किसी से भी, जो होगा देखा जाएगा.’’

कह कर सोहम ने फोन काट दिया और साल्वी को सब कुछ बताने के लिए फोन कर ही रहा था कि उस की मां का फोन आ गया. मां कहने लगीं कि उस की बहन का रिश्ता तय हो गया है, वह घर आ जाए. इधर मनोरमा मैडम उसे फोन पर धमकी दिए जा रही थी कि अगर उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को पुलिस को सौंप देगी.

ऐसे में सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह सोचने लगा कि फिर क्या होगा उस की बहन का?

सोचतेसोचते सोहम को लगा कि उस का दिमाग फट जाएगा. मन तो कर रहा था कि वह कहीं भाग जाए या मर जाए. हर तरफ बस अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था. आखिर उस ने एक फैसला ले ही लिया.

अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 3

सुनील की कमाई का एकमात्र जरिया टैंपो ही थे. अचानक से दोनों टैंपो ने जवाब दे दिया. जिस से जो पैसे घर में आ रहे थे, वो आने बंद हो गए. अचानक आई मुसीबत से सुनील की गृहस्थी की गाड़ी डगमगा गई थी. रेनू के ब्यूटीपार्लर से इतनी कमाई नहीं हो पा रही थी कि गृहस्थी की गाड़ी चल सके. जबकि खर्चे अपनी जगह पूरे थे. ऐसे में घर का खर्च चल पाना मुश्किल हो गया था.

अचानक आई मुसीबत से पति और पत्नी परेशान हो गए. सुनील को कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह करे तो क्या करे. टैंपो बंद हो जाने के बाद सुनील घर में मुट्ठी बंद कर के बैठ गया. उस ने बाहर कहीं हाथपांव मारने की कोशिश नहीं की. पति की उदासीनता देख कर रेनू के हाथपांव फूल गए कि गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलेगी?

आगे का जीवन कैसे कटेगा. ये सोचसोच कर रेनू चिड़चिड़ी हो गई थी. वह पति को कहीं और जा कर नौकरी करने की सलाह देती. पत्नी की सलाह सुनील को अच्छी नहीं लगती थी. वह महसूस करता कि पत्नी उसे अपनी तरह से हांकना चाहती है. इसलिए वह उस पर बिगड़ जाता था. तब पति को डराने के लिए रेनू अपने इंसपेक्टर भाई की धौंस दे देती थी कि उस की बात नहीं मानी तो वह भाई से कह कर उसे जेल भेजवा देगी.

पत्नी की धौंस सुन कर सुनील गुस्से के मारे लाल हो जाता था. अब तो बातबात पर पतिपत्नी के बीच तूतू मैंमैं होने लगी थी. दोनों के बीच प्रेम की जगह नफरत खड़ी हो गई. एक ही छत के नीचे रह कर दोनों किसी अजनबी की तरह जीवन के दिन काटने लगे.

दोनों के बीच बातचीत भी कम होने लगी थी. इस का सीधा असर उन के बेटे शिवम पर पड़ रहा था. शिवम बड़ा हो चुका था और समझदार भी. मांबाप के रोजरोज के झगड़े से वह आजिज आ चुका था. इस से उस की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा था.

बेटे के भविष्य को देखते हुए रेनू ने फैसला किया कि वह बेटे को अपने पास नहीं रखेगी. इस से उस के जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है. इसलिए इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर लेने के बाद आगे की तैयारी के लिए रेनू ने बेटे को दिल्ली भेज दिया. शिवम दिल्ली में रह कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगा था. ये बात जून, 2018 की है.

इसी बीच रेनू बीमार पड़ गई. अकसर उस के पेट में असहनीय दर्द रहने लगा था. डाक्टर से चैकअप कराने पर पता चला उसे एपेंडिक्स हुआ है. उस के औपरेशन और दवा के खर्च में करीब 15-20 हजार रुपए तक खर्च आ सकते हैं. यह सुन कर सुनील अपना माथा पकड़ कर बैठ गया.

वह समझ नहीं पा रहा था कि इलाज के लिए पैसे कहां से आएंगे? खैर, जो भी हो, रेनू थी आखिर उस की पत्नी. भले ही वह एक छत के नीचे अजनबियों की तरह रह रहे थे, लेकिन पत्नी की अस्वस्थता देख कर उस का मन पसीज गया था. पत्नी को तकलीफ में जीता हुआ वह नहीं देख सकता था. इस बीमारी ने दोनों के सारे गिलेशिकवे भुला कर दोनों को एकदूसरे के करीब ला दिया था. दोनों एकदूसरे के करीब भले ही आ गए थे लेकिन उन के मन की कड़वाहट अभी भी ताजा बनी हुई थी.

सुनील ने जैसे तैसे रुपयों का बंदोबस्त किया और जून, 2018 में पत्नी का औपरेशन करवा दिया. डाक्टर ने रेनू को पूरी तरह बेड रेस्ट करने की सलाह दी. दिन भर चहलकदमी करने वाली रेनू बैड पर पड़ीपड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी. पति की किसी भी बात को सुनते ही उस पर झल्ला उठती थी. ये लगभग रोज की ही उस की आदत बन गई थी.

अब तो वो किसी भी बात को ले कर इंसपेक्टर भाई की धौंस दे देती थी कि तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो भैया से शिकायत कर के तुम्हें जेल भिजवा दूंगी. पत्नी के व्यवहार से सुनील सिंह बुरी तरह दुखी था और टूट भी गया था.

पत्नी के रवैये से आजिज आ कर सुनील उस से छुटकारा पाने की युक्ति सोचने लगा कि कैसे इस से जल्द से जल्द मुक्ति पा सके. पत्नी से छुटकारा पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो गया था.

बात 11 सितंबर, 2018 की है. पत्नी को दिखाने सुनील को डाक्टर के पास जाना था. सुनील ने रेनू से कहा कि वह किसी जानने वाले से कार ले कर आता है. उसी से सुनील ने डाक्टर के पास चलने की बात कही तो रेनू भड़क गई. उस ने कह दिया कि वह मांगी हुई कार से चेकअप कराने नहीं जाएगी. चाहे कुछ भी हो जाए. कार अपनी होनी चाहिए. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच जो झगड़ा शुरू हुआ तो वो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

देखा जाए तो इस बात में कोई दम नहीं था लेकिन रेनू ने तो उसे एक इश्यू बना लिया था. शाम में झगड़ा शुरू हुआ तो रात के 12 बजे तक चला. घर में चूल्हा तक नहीं जला. दोनों भूखे ही रहे. सुनील को पत्नी से छुटकारा पाने का ये मौका बेहतर लगा.

गुस्से में आपा खोए सुनील ने सिलबट्टे से रेनू के सिर के पीछे ऐसा वार किया कि वह फर्श पर जा गिरी और छटपटाने लगी. फिर धीरेधीरे वह मौत की आगोश में समाती चली गई.  खून देख कर सुनील के होश उड़ गए. डर के मारे वह कांपने लगा था. उस की आंखों के सामने जेल की सलाखें नजर आने लगी थीं. पुलिस से बचने के लिए उस ने एक अनोखी कहानी गढ़ डाली.

हत्या को लूट का रूप देने के लिए उस ने फर्श पर पड़े खून को गीले कपड़े से साफ कर दिया. फिर पत्नी की लाश को खींच कर बेड पर लिटा दिया. अलमारी के सामान को चौकी और फर्श पर बिखेर दिया. फिर पत्नी के गले और कान की बालियां निकाल लीं. एक बाली को फर्श पर ऐसे गिरा दिया जैसे लगे कि बदमाशों से जाते समय लूटे गए सामान से वह बाली गिर गई.

क्राइम औफ सीन को उस ने ऐसा बनाने की कोशिश की, जिस से लगे कि लूट के लिए बदमाशों ने रेनू की हत्या की हो. सुनील ने पत्नी की हत्या कर बड़ी सफाई से सबूत मिटा दिए थे. लेकिन सीसीटीवी कैमरे ने उस की सारी कहानी से परदा उठा दिया. पतिपत्नी अगर आपस में सामंजस्य बना कर रहते तो रेनू जीवित रहती और सुनील को जेल भी नहीं जाना पड़ता. लेकिन दोनों के अविवेक ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया.

प्रेमियों के लिए मचलने वाली विवाहिता – भाग 3

जल्द ही रीना और सुरेंद्र ग्वालियर के शील नगर में लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे. सुरेंद्र ने अपने मकान मालिक से रीना का परिचय पत्नी के रूप में करवाया. हालांकि इस फैसले को ले कर रीना को उस की एक सहेली ने काफी समझाया था कि वह गलत कर रही है. सुरेंद्र उस से 13 साल छोटा भी था. किंतु तब तक रीना पर सुरेंद्र के इश्क का भूत ठीक उसी तरह सवार हो चुका था, जिस तरह एक समय में वह कुणाल के इश्क की दीवानी बनी हुई थी.

रीना ने अपने नाबालिग बेटे दीपेश को भी ननिहाल से बुलवा लिया था. उसे सुरेंद्र पास की एक बेकरी में काम पर लगवा दिया था. वह दोपहर बेकरी पर जाता था और रात के 9 बजे सुरेंद्र उसे अपने साथ वापस कमरे पर ले आता था.

कुछ दिनों तक सुरेंद्र ने रीना को अच्छी तरह से रखा. बाद में वह एकएक पैसे के लिए मोहताज रहने लगी. अब उसे कुणाल को छोड़ कर सुरेंद्र की बातों में आने का पछतावा होने लगा था. कुछ दिनों से रीना फिर से कुणाल के संपर्क में आ गई. उन के पुराने रिश्ते फिर से रंग भरने लगे. एकदूसरे के साथ जीवन भर निर्वाह करने के कसमेवादे करने लगे. रीना चाहत थी कि वह कुणाल के पास फिर से रहने लगे.

प्रेमी क्यों बना कातिल?

18 फरवरी, 2023 की दोपहर एक बजे के करीब सुरेंद्र शिवमंदिर में पूजा अर्चना कर के लौटा तो बेडरूम में रीना को कुणाल के साथ हंस हंस कर बातें करते सुन लिया. यह देखते ही उस का खून खौल उठा. रीना की बेवफाई और बेरुखी ने सुरेंद्र के गुस्से को हवा दे दी.

वह रीना को गालियां देते हुए उस के साथ मारपीट करने लगा. इस पर रीना को भी गुस्सा आ गया. वह बोली, ”मैं तुझे छोड़ कर हमेशा के लिए अपने कुणाल के पास जा रही हूं.’’

रीना के मुंह से इतना सुनते ही सुरेंद्र भी गुस्से में बोल पड़ा, ”देखता हूं हरामजादी तू वहां कैसे जाती है.’’

रीना भी कहां चुप रहने वाली थी. वह सुरेंद्र के साथ बदतमीजी से पेश आने लगी. उसे गालियां देने लगी और  बोली, ”तो क्या तू मुझे जबरदस्ती जाने से रोकेगा, कान खोल कर सुन ले कि जहां मेरी मरजी होगी, मैं वहां जाऊंगी. जिस से मेरा मन मिलेगा, वहीं रहूंगी.’’

रीना का इतना कहना था कि सुरेंद्र ने उसे धमकी दी और बोला, ”रीना, जिद मत कर यही तेरे लिए बेहतर रहेगा. वरना मैं भी अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा हूं.’’

”कमीने शिवरात्रि के व्रत के दिन तूने मेरे साथ मारपीट की है. मैं अब किसी भी सूरत में तेरे पास एक भी पल के लिए नहीं रुकने वाली.’’

रीना भदौरिया की यह बात सुरेंद्र को बहुत ही बुरी लगी. उस ने उसे धक्का दे दिया. वह जमीन पर गिर पड़ी. इस बीच सुरेंद्र ने उस की साड़ी को उस के बदन से खींच कर गले में फंदा डाल दिया. वह तब तक साड़ी के फंदे को खींचता रहा,जब तक रीना बेसुध नहीं हो गई. उस के बाद सुरेंद्र मेला घूमने चला गया और रात के करीब 9 बजे उस के बेटे को ले कर कमरे पर आया.

वहां रीना को मृत अवस्था में देख कर परेशान होने का नाटक किया. फिर उस ने अपने एक दोस्त कालू के माध्यम से एंबुलेंस बुलाई. उस पर रीना की लाश रखवा कर उस के गांव इंगुरी भेज दी. साथ में उस के बेटे दीपेश को भी बिठा दिया. सुरेंद्र ने इस की जानकारी रीना के पति दशरथ भदौरिया को फोन पर दे दी

लाश को गांव पहुंचने से पहले ही कुछ दूरी पर एंबुलेंस से उतरवा दी. दीपेश वहां से भागता हुआ अपने पिता दशरथ के पास गया और मम्मी की मृत्यु की सूचना दी.

दशरथ घबराया हुआ लाश के पास पहुंच गया. उस ने जैसे ही रीना के कान से खून और गले पर किसी चीज से कसे जाने के निशान देखे तो उसे हत्या का शक हुआ. उस ने तुरंत पवई पुलिस को इस की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और जांच की तो मामला संदिग्ध नजर आया.

घटनास्थल ग्वालियर होने की वजह से पवई पुलिस ने रीना के शव को मृतका के परिजनों के साथ वापस ग्वालियर भेज दिया. मृतका के परिजन शव को ले कर ग्वालियर थाने पहुंचे तो पुलिस ने मामला दर्ज कर रीना का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

19 फरवरी, 2023 की सुबह ग्वालियर थाने के एसएचओ राजेंद्र परिहार की टीम ने सुरेंद्र धाकड़ को जलालपुर फिल्टर प्लांट से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. इस टीम में एसआई रमाकांत उपाध्याय, हेमेंद्र राजपूत, योगेंद्र मावई, एएसआई हरिराम नागर शामिल थे. पुलिस के सामने उस ने अपने जुर्म स्वीकार कर लिया.

पूछताछ के बाद सुरेंद्र धाकड़ को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 1

अहमदाबाद में इंजीनियरिंग पढ़ने आई साल्वी ने कई पीजी देखे, पर उसे एक भी पसंद नहीं आया. किसी में सुबह का नाश्ता नहीं मिलता था तो कहीं किराया उस के अनुरूप नहीं था. जो पीजी उसे पसंद आता, वह उस के कालेज से कई किलोमीटर दूर पड़ता था. देखते भालते आखिरकार उसे एक पीजी मिल ही गया जो उस के कालेज से नजदीक भी था और उस के अनुरूप भी.

‘‘यहां तुम्हें साढ़े 8 हजार में 2 शेयरिंग वाला रूम मिलेगा. इन्हीं पैसों में तुम्हें सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात के खाने के अलावा लौंड्री की भी सुविधा मिलेगी.’’ पीजी की मालकिन मनोरमा ने कहा.

‘‘जी मैडम,’’ साल्वी बोली.

‘‘यह मैडम मैडम नहीं चलेगा, दीदी बोलो मुझे, जैसे यहां की सारी लड़कियां बोलती हैं.’’ मनोरमा ने कहा, ‘‘और हां, एक महीने का भाड़ा एडवांस डिपौजिट करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक दीदी, मैं कल ही सारे पैसे दे दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हूं…और एक बात, रात के 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है. बहुत हुआ तो साढ़े 9 बजे तक, उस से ज्यादा नहीं, समझी? वैसे कोई बौयफ्रैंड का चक्कर तो नहीं है न?’’ मनोरमा ने पूछा तो साल्वी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘वैरी गुड, वैसे कहां से हो तुम? हां, तुम्हारा कोई लोकल गार्जियन है?’’

‘‘जी, मैं पटना से हूं और मेरा कोई लोकल गार्जियन नहीं है दीदी,’’ अपने आप को खुद में समेटते हुए साल्वी ने कहा.

‘‘ठीक है तो फिर…’’ कह कर मनोरमा मुसकरा दी.

वैसे तो मनोरमा 44-45 साल की थी, पर उस ने अपने आप को इतना मेंटेन कर रखा था कि 30-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी. देखने में भी वह किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. ठाठ तो ऐसे कि पूछो मत. इतना बड़ा घर, 2-2 गाडि़यां, नौकरचाकर सब कुछ था उस के पास.

होता भी क्यों न, मनोरमा के पति का अमेरिका में अपना बिजनैस था. एक बेटा भी था जो मैंगलूर रह कर पढ़ाई कर रहा था. जब भी मौका मिलता, बाप बेटा मनोरमा से मिलने आ जाते थे. मनोरमा का भी जब मन होता, उन से मिलने चली जाती थी.

मनोरमा से बात कर के साल्वी अपने कमरे में पहुंची तो वहां उस की रूममेट निधि मिली. निधि ने मुसकरा कर साल्वी का स्वागत किया. आपसी परिचय के बाद निधि ने पूछा, ‘‘साल्वी, तुम कहां से हो?’’

‘‘जी, मैं पटना से.’’ साल्वी ने जवाब दिया.

‘‘ओह, और मैं इंदौर से.’’ कह कर निधि मुसकराई तो साल्वी भी मुसकरा दी.

‘‘यहां पढ़ने आई हो या नौकरी करने?’’ निधि ने सवाल किया.

‘‘जी, यहां के एक कालेज से मैं इंजीनियरिंग करने आई हूं और आप?’’ साल्वी बोली.

‘‘मैं नौकरी करती हूं,’’ निधि ने कहा.

साल्वी के साथ सोहम नाम का एक लड़का भी बीटेक कर रहा था. उस के साथ साल्वी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. अच्छी दोस्ती होने का एक कारण यह भी था कि दोनों बिहार से थे. साल्वी ने जब यह बात अपने मम्मी पापा को बताई तो जान कर उन्हें बहुत अच्छा लगा कि चलो इतने बड़े अनजान शहर में कोई तो है अपने राज्य का.

सोहम ने ही साल्वी को बताया था कि उस से बड़ी उस की 2 बहनें हैं, जिन की अभी शादी होनी बाकी है. उस के पापा रेलवे में फोरमैन हैं और किसी तरह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहे हैं. पिता को सोहम से उम्मीद है कि एक न एक दिन वह अपने घर की गरीबी जरूर दूर करेगा और उन का सहारा बनेगा.

‘‘लेकिन तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे? वह सब कैसे हो पाता है?’’ साल्वी ने पूछा.

‘‘वैसे तो मेरा इस कालेज में मेरिट पर एडमिशन हुआ है, लेकिन फिर भी एडमिशन के वक्त पापा को जमीन का एक टुकड़ा बेचना पड़ा था, जो उन्होंने दीदी की शादी के लिए रखा था. फिर भी रहनेखाने के लिए भी तो पैसे चाहिए थे न, इसलिए मैं ने पार्टटाइम नौकरी कर ली. उस से मेरे पढ़ने और रहने खाने के खर्चे निकल जाते हैं.’’ सोहम ने चेहरे पर स्माइल लाते हुए बताया.

सोहम के बारे में जानने के बाद साल्वी उस से बहुत प्रभावित हुई, क्योंकि आज से पहले वह उस के बारे में इतना ही जान पाई थी कि वह बहुत बड़बोला और मस्तीखोर लड़का है. लेकिन आज उसे पता चला कि कालेज के बाद वह अपने दोस्तों के साथ टाइम पास नहीं करता, बल्कि कहीं पार्टटाइम नौकरी पर जाता है.

‘‘हैलो,’’ साल्वी के आगे चुटकी बजाते हुए सोहम ने पूछा, ‘‘कहां खो गईं मैडम?’’

‘‘मैडम!’’ अपने मोबाइल पर नजर डालते हुए साल्वी चौंक कर उठ खड़ी हुई.

‘‘मैडम से याद आया कि साढ़े 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है और देखो 10 बजने जा रहे हैं. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे 10 बज गए तो क्या हो गया? कौन सा आसमान फट गया? चलो, मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ आता हूं और तुम्हारी उस मैडम से भी मिल लूंगा. वैसे भी तुम्हारा पीजी यहां पास में ही तो है.’’ कह कर सोहम उस के साथ चल दिया.

पीजी के नजदीक पहुंचते ही साल्वी ने उस से कहा, ‘‘सोहम, अब तुम यहां से लौट जाओ क्योंकि मनोरमा मैडम ने मुझे सख्त हिदायत दी है कि कोई लड़का पीजी के आसपास भी दिखाई नहीं देना चाहिए.’’ कह कर जैसे ही वह मुड़ी, मनोरमा मैडम बालकनी से उसे ही घूर रही थीं.

मैडम को देखते ही साल्वी घबरा गई. घबराहट के मारे उस की जुबान तालू से चिपक गई तो सोहम नीचे से बोला, ‘‘नमस्ते मैडम, हम एक ही कालेज में पढ़ते हैं इसलिए हमारी दोस्ती हो गई. वैसे भी मैं यहीं पास में ही रहता…’’ बोलते बोलते सोहम की भी घिग्घी बंध गई, जब मनोरमा की घूरती हुई नजर उस पर आ टिकी.

‘‘तुम ने तो कहा था कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड नहीं, फिर?’’ मनोरमा साल्वी को घूरते हुए बोली.

‘‘नहीं दीदी, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. हम लोग बस दोस्त हैं.’’ किसी तरह साल्वी बोल पाई.

‘‘देखो, बौयफ्रैंड रखना गलत बात नहीं है पर झूठ मुझे पसंद नहीं और वक्त तो देखो. वैसे लड़का अच्छा है.’’ कह कर मनोरमा मुसकराई तो दोनों की जान में जान आई.

‘‘कोई बात नहीं, तुम भी अंदर आ जाओ.’’ हुक्म मिलते ही सोहम भी साल्वी के पीछे लग गया.

‘‘साल्वी, तुम तो कहती थीं कि तुम्हारी मैडम बड़ी सख्त है, पर ये तो बड़ी रहमदिल है.’’ सोहम ने फुसफुसाते हुए कहा तो साल्वी ने उसे कोहनी मार कर चुप करने को कहा. यह करते हुए मनोरमा ने उसे देख लिया.

वह बोली, ‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं दीदी, यह कह रहा था कि अब मैं चलता हूं और कुछ नहीं.’’ साल्वी ने सोहम को इशारे से जाने के लिए कहा.

‘‘अरे इस में क्या है, आया है तो बैठने दो थोड़ी देर.’’ मनोरमा बोली.

सोहम यहां कब से है, कहां रहता है, किस चीज की पढ़ाई कर रहा है और उस के घर में कौनकौन हैं. यह सब जानने के बाद मनोरमा उस से काफी इंप्रैस हुई. फिर वह अपने बारे में भी बताने लगी, ‘‘तुम्हारी ही उम्र का मेरा भी एक बेटा है, जो मैंगलूर में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.’’

धीरेधीरे सोहम की भी मनोरमा मैडम से अच्छी बनने लगी. अब वह जब भी वक्त मिलता बेधड़क मनोरमा मैडम के घर चला आता.  मनोरमा को भी उस का आना अच्छा लगता था. कुछ न कुछ छोटे मोटे काम, जो भी मनोरमा कहती, वह इसलिए कर दिया करता, क्योंकि कहीं न कहीं उस में उसे अपनी मां की छवि दिखाई देती थी.

फिर मनोरमा भी तो उसे अपने बेटे की तरह ही समझती थी. मनोरमा ने उस से यह भी कहा था कि वह उस के लिए एक अच्छी नौकरी देखेगी, जहां उसे ज्यादा सैलरी मिले और उस की पढ़ाई में भी हर्ज न हो. शायद इस लोभ से भी वह मनोरमा का कोई भी काम, जो वह कहती, हंसतेहंसते कर देता था.

जब सोहम का मनोरमा के यहां आनाजाना बढ़ गया तो एक दिन साल्वी बोली, ‘‘सोहम, क्या बात है, आजकल मनोरमा मैडम से बड़ी पट रही है तुम्हारी. कहीं कोई लोचा तो नहीं. देखो, उस औरत को कम मत समझना. मुझे तो वो बड़ी शातिर दिखती है और वैसे भी बिना अपने फायदे के वह किसी की भी मदद नहीं करती.’’

‘‘तुम लड़कियां भी न, कितनी बेकार की कहानियां बनाती हो. कितना अच्छा तो व्यवहार है उस का और तुम कहती हो कि बड़ी सख्त है.’’ कह कर सोहम ठहाका लगा कर हंसने लगा.

‘‘अच्छा छोड़ो ये सब बातें. चलो, आज हम कहीं बाहर खाना खाते हैं.’’

‘‘हांहां चलो, वैसे भी पीजी का खाना खा खा कर बोर हो गई हूं. मगर पैसे मैं दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हां, ठीक है.’’

इस के बाद दोनों ने एक अच्छे होटल में जा कर खाना खाया. कुछ देर बातें कीं. फिर अपनेअपने रास्ते चल दिए. दोनों ऐसा अकसर छुट्टी के दिन करते थे. दोनों की छुट्टी बड़े मजे से गुजर जाती थी. इन की दोस्ती और पढ़ाई का भी हंसते खेलते एक साल चुटकियों में निकल गया. अब दूसरे साल का एग्जाम भी नजदीक था, सो सोहम और साल्वी अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गए.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 3

तुषार ने 4-5 दिनों में पेपर तैयार कर के दीपिका को दिए तो वह धर्मसंकट में पड़ गई कि सिग्नेचर करूं या न करूं. इसी उधेड़बुन में 3 दिन बीत गए तो घर में झाड़ूपोंछा लगाने वाली सरोजनी अचानक उस से बोली, ‘‘मेमसाहब, सुना है कि आप बैंक से लोन ले कर तुषार बाबू को देंगी?’’

‘‘तुम्हें किस ने बताया?’’ दीपिका ने हैरत से पूछा.

‘‘कल आप के घर से काम कर के जा रही थी तो बरामदे में तुषार बाबू और उस की मां के बीच हुई बात सुनी थी. तुषार बाबू कह रहे थे, ‘चिंता मत करो मां. लोन ले कर दीपिका रुपए मुझे दे देगी तो उसे घर में रहने नहीं दूंगा. उस पर तरहतरह के इल्जाम लगा कर घर से बाहर कर दूंगा.’’

सरोजनी चुप हो गई तो दीपिका को लगा उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी. पर जल्दी ही उस ने अपने आप को संभाल लिया. सरोजनी को डांटते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो.’’

सरोजनी डांट खा कर पल दो पल तो चुप रही. फिर बोली, ‘‘कुछ दिन पहले मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हुई थी तो आप ने रुपए से मेरी बहुत मदद की थी. इसीलिए मैं ने कल जो कुछ भी सुना था, आप को बता दिया.’’

वह फिर बोली, ‘‘मेमसाहब, तुषार बाबू से सावधान रहिएगा. वह अच्छे इंसान नहीं हैं. उन की नजर हमेशा अमीर लड़कियों पर रहती थी. उन्होंने आप से शादी क्यों की, मेरी समझ से बाहर की बात है. इस में भी जरूर उन का कोई न कोई मकसद होगा.’’

शक घर कर गया तो दीपिका ने अपने मौसेरे भाई सुधीर से तुषार की सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया. सुधीर पुलिस इंसपेक्टर था. सुधीर ने 10 दिन में ही तुषार की जन्मकुंडली खंगाल कर दीपिका के सामने रख दी.

पता चला कि तुषार आवारा किस्म का था. प्राइवेट जौब से वह जो कुछ कमाता था, अपने कपड़ों और शौक पर खर्च कर देता था. वह आकर्षक तो था ही, खुद को ग्रैजुएट बताता था. अमीर घर की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर उन से पैसे ऐंठना वह अच्छी तरह जानता था.

दीपिका को यह भी पता चल चुका था कि उस से 50 लाख रुपए ऐंठने का प्लान तुषार ने अपनी मां के साथ मिल कर बनाया था.  मां ऐसी लालची थी कि पैसों के लिए कुछ भी कर सकती थी. उस ने तुषार को दीपिका से शादी करने की इजाजत इसलिए दी थी कि तुषार ने उसे 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. विवाह के एक साल बाद तुषार ने अपना वादा पूरा भी कर दिया था.

तुषार पर दीपिका से किसी भी तरह से रुपए लेने का जुनून सवार था. रुपए के लिए वह उस के साथ कुछ भी कर सकता था.  तुषार की सच्चाई पता लगने पर दीपिका को अपना अस्तित्व समाप्त होता सा लगा. अस्तित्व बचाने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए दीपिका ने तुषार को कह दिया कि वह बैंक से किसी भी तरह का लोन नहीं लेगी.

तुषार को बहुत गुस्सा आया, पर कुछ सोच कर अपने आप को काबू में कर लिया. उस ने सिर्फ  इतना कहा, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’

कुछ दिन खामोशी से बीत गए. तुषार और उस की मां ने दीपिका से बात करनी बंद कर दी.

दीपिका को लग रहा था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. पर क्या, समझ नहीं पा रही थी.

एक दिन सास तुषार से कह रही थी, ‘‘दीपिका को कब घर से निकालोगे? उस ने तो लोन लेने से भी मना कर दिया है. फिर उसे बरदाश्त क्यों कर रहे हो?’’

‘‘उस से तो 50 लाख ले कर ही रहूंगा मां.’’ तुषार ने कहा.

‘‘पर कैसे?’’

‘‘उस का कत्ल कर के.’’

उस की मां चौंक गई, ‘‘मतलब?’’

‘‘मुझे पता था कि फरजी कागजात पर वह लोन नहीं लेगी. इसलिए 7 महीने पहले ही मैं ने योजना बना ली थी.’’

‘‘कैसी योजना?’’

‘‘दीपिका का 50 लाख रुपए का जीवन बीमा करा चुका हूं. उस का प्रीमियम बराबर दे रहा हूं. उस की हत्या करा दूंगा तो रुपए मुझे मिल जाएंगे, क्योंकि नौमिनी मैं ही हूं.’’

तुषार की योजना पर मां खुश हो गई. कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘अगर पुलिस की पकड़ में आ जाओगे तो सारी की सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा मां. दीपिका की हत्या कुछ इस तरह से कराऊंगा कि वह रोड एक्सीडेंट लगेगा. पुलिस मुझे कभी नहीं पकड़ पाएगी. बाद में गौरांग का भी कत्ल करा दूंगा.’’

कुछ देर चुप रह कर तुषार ने फिर कहा, ‘‘दीपिका की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर बैंक में मुझे नौकरी भी मिल जाएगी. फिर किसी अमीर लड़की से शादी करने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

दीपिका ने दोनों की बात मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. मांबेटे के षडयंत्र का पता चल गया था. अब उस का वहां रहना खतरे से खाली नहीं था.

इसलिए एक दिन वह बेटे गौरांग को ले कर किसी बहाने से मायके चली गई. सारा घटनाक्रम मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने तुषार से तलाक लेने की सलाह दी. दीपिका तुषार को सिर्फ तलाक दे कर नहीं छोड़ना चाहती थी. बल्कि वह उसे जेल की हवा खिलाना चाहती थी. यदि उसे यूं छोड़ देती तो वह फिर से किसी न किसी लड़की की जिंदगी बरबाद कर देता.

फिर थाने जा कर दीपिका ने तुषार के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. सबूत में मोबाइल में रिकौर्ड की गई बातें पुलिस को सुना दीं. तब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर तुषार को गिरफ्तार कर लिया. कुछ महीनों बाद ही दीपिका ने तुषार से तलाक ले लिया. इस के बाद पापा ने उसे फिर से शादी करने का सुझाव दिया.

शादी के नाम का कोई ठप्पा अब दीपिका नहीं लगाना चाहती थी. पापा को समझाते हुए बोली, ‘‘मुझे किस्मत से जो मिलना था, मिल चुका है. फिलहाल जिंदगी से बहुत खुश भी हूं. फिर शादी क्यों करूं. आप ही बताइए पापा कि इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? खुशी और संतुष्टि, यही न? बेटे की परवरिश करने से जो खुशी मिलेगी, वही मेरी उपलब्धि होगी. फिर मैं बारबार किस्मत आजमाने क्यों जाऊं?’’

पापा को लगा कि दीपिका सही रास्ते पर है. फिर वह चुप हो गए.

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