महामिलन : दो जिस्म एक जान थे वो – भाग 1

मनचाहा शिकार तो मिल गया, लेकिन शिकारी थक कर चूर हो चुका था. एक तो थकान, दूसरे ढलती सांझ और तीसरे 10 मील  का सफर. उस में भी 3 मील पहाड़ी चढ़ाई, फिर उतनी ही ढलान. समर सिंह ने पहाड़ी के पीछे डूबते सूरज पर निगाह डाल कर घोड़े की गरदन पर हाथ फेरा. फिर घोड़े की लगाम थामे खड़े सरदार जुझार सिंह की ओर देखा. उन की निगाह डूबते सूरज पर जमी थी.

समर सिंह उन्हें टोकते हुए थके से स्वर में बोले, ‘‘अंगअंग दुख रहा है, सरदार. ऊपर से सूरज भी पीठ दिखा गया. धुंधलका घिरने वाला है. अंधेरे में कैसे पार करेंगे इस पहाड़ी को?’’

जुझार सिंह थके योद्धा की तरह सामने सीना ताने खड़ी पहाड़ी पर नजर डालते हुए बोले, ‘‘थक तो हम सभी गए हैं हुकुम. सफर जारी रखा तो और भी बुरा हाल हो जाएगा. अंधेरे में रास्ता भटक गए तो अलग मुसीबत. मेरे खयाल से तो…’’ जुझार सिंह सरदार की बात का आशय समझते हुए बोले, ‘‘लेकिन इस बियाबान जंगल में कैसे रात कटेगी? हम लोगों के पास तो कोई साधन भी नहीं है. ऊपर से जंगली जानवरों का अलग भय.’’

पीछे खड़े सैनिक समर सिंह और जुझार सिंह की बातें सुन रहे थे. उन दोनों को चिंतित देख एक सैनिक अपने घोड़े से उतर कर सरदार के पास खड़ा हो गया. सरदार समझ गए, सैनिक कुछ कहना चाहता है.

उन्होंने पूछा तो सैनिक उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘सरदार, अगर रात इधर ही गुजारनी है तो सारा बंदोबस्त हो सकता है. आप हुक्म करें.’’

‘‘क्या बंदोबस्त हो सकता है, मोहकम सिंह?’’ जुझार सिंह ने सवाल किया तो सैनिक दाईं ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘ये छोटी सी पहाड़ी है. इस के पार मेरा गांव है. बड़ी खूबसूरत और रमणीक जगह है उस पार. इस पहाड़ी को पार करने के लिए हमें सिर्फ एक 2 मील चलना पड़ेगा. 1 मील की चढ़ाई और 1 मील उस ओर की ढलान. रास्ता बिलकुल साफ है. अंधेरा घिरने से पहले हम गांव पहुंच जाएंगे. मेरे गांव में हुकुम को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

जुझार सिंह ने प्रश्नसूचक नजरों से समर सिंह की ओर देखा. वह शांत भाव से घोड़े की पीठ पर बैठे थे. उन्हें चुप देख सरदार ने कहा, ‘‘सैनिक की सलाह बुरी नहीं है हुकुम. रात भी चैन से बीत जाएगी और इस बहाने आप अपनी प्रजा से भी मिल लेंगे. जो लोग आप के दर्शन को तरसते हैं, आप को सामने देख पलकें बिछा देंगे.’’

और ऐसा ही हुआ भी. मोहकम सिंह का प्रस्ताव स्वीकार कर के जब समर सिंह अपने साथियों के साथ उस के गांव पहुंचे तो गांव वालों ने उन के आगे सचमुच पलकें बिछा दीं.

छोटा सा पहाड़ी गांव था राखावास. साधन विहीन. फिर भी वहां के लोगों ने अपने राजा के लिए ऐसे ऐसे इंतजाम किए, जिन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. हुकुम के आने से मोहकम सिंह को तो जैसे पर लग गए थे. उस ने गांव के युवकों को एकत्र कर के सूखी मुलायम घास का आरामदेह आसन लगवाया. उस पर सफेद चादर बिछवाई. सरदार के लिए अलग आसन का प्रबंध किया और सैनिकों के लिए अलग. चांदनी रात थी, फिर भी लकडि़यां जला कर रोशनी की गई.

आननफानन सारा इंतजाम कराने के बाद गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को शिकार भूनने और बनाने की जिम्मेदारी सौंप कर मोहकम सिंह घोड़ा दौड़ाता हुआ 3 मील दूर समालखा गांव गया और वहां से वीरन देवल से 4 बोतल संतूरी ले आया. राजस्थान की बेहतरीन शराब जो केवल राजामहाराजाओं के लिए बनाई जाती थी.

अदना सा एक सिपाही कितने काम का साबित हो सकता है, यह बात समर सिंह को तब पता चली, जब अपने हाथों मारे गए शिकार के जायकेदार गोश्त और संतूरी का लुत्फ लेते हुए उन की नजर घुंघरू छनका कर मस्त अदाओं के साथ नाचती मौली पर पड़ी.

ऐसा रूपलावण्य, ऐसा अछूता सौंदर्य, ऐसा मदमाता यौवन और अंगअंग में ऐसी लोच समर सिंह ने पहली बार देखा था. उन के महल तक में नहीं थी ऐसी अनिंद्य सुंदरी. ऊपर से फिजाओं में रंग बिखेरती मौली का सधा हुआ स्वर और एक ही लय में बजते घुंघरुओं की रुनझुन. रहीसही कसर मानू की ढोलक की थाप पूरी कर रही थी. घुंघरुओं की रुनझुन और ढोलक की थाप को सुन लगता था, जैसे दोनों एकदूसरे के पूरक हों.

पूरक थे भी. मौली का सधा स्वर, घुंघरुओं की रुनझुन और मानू की ढोलक की थाप ही नहीं, बल्कि वे दोनों भी. यह अलग बात थी कि इस बात को गांव वाले जानते थे, पर समर सिंह और उस के साथी नहीं.

मौली और मानू खूब खुश थे. उन्हें यह सोच कर खुशी हो रही थी कि अपने राजा का मनोरंजन कर रहे हैं. इस के लिए उन दोनों ने अपनी ओर से भरपूर कोशिश भी की. लेकिन उन की सोच, उन के उत्साह, उन के समर्पण भाव और कला पर पहली बिजली तब गिरी, जब शराब के नशे में झूमते राजा समर सिंह ने मौली को पास बुला कर उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आज हम ने अपने जीवन में सब से बड़ा शिकार किया है. हमारी शिकार यात्रा सफल रही. ये रात कभी नहीं भूलेगी.’’

इस तरह मौली का हाथ कभी किसी ने नहीं पकड़ा था. मानू ने भी नहीं. मानू के हाथों का स्पर्श उसे अच्छा लगता था. लेकिन उस ने उस के पैरों के अलावा कभी किसी अंग को नहीं छुआ था. मौली के पैरों में भी उस के हाथों का स्पर्श तब होता था, जब वह अपने हाथों से उस के पैरों में घुंघरू बांधता था.

मौली को राजा द्वारा यूं हाथ पकड़ना अच्छा नहीं लगा. उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो समर सिंह उस की कलाई पर दबाव बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आज के बाद तुम सिर्फ हमारे लिए नाचोगी, हमारे महल में. हम मालामाल कर देंगे तुम्हें. तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को ही नहीं, इस गांव को भी.’’

घुंघरुओं की रुनझुन भी थम चुकी थी और ढोलक की थाप भी. सब लोग विस्मय से राजा की ओर देख रहे थे. कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. मानू भी अवाक बैठा था. मौली राजा से हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘मौली रास्ते की धूल है हुकुम…और धूल उन्हीं रास्तों पर अच्छी लगती है, जो उस की गगनचुंबी उड़ानों के बाद भी उसे अपने सीने में समेट लेते हैं. इस खयाल को मन से निकाल दीजिए हुकुम. मैं इस काबिल नहीं हूं.’’

समर सिंह ने लोकलाज की वजह से मौली का हाथ तो छोड़ दिया, लेकिन उन्हें मौली की यह बात अच्छी नहीं लगी.

रात बड़े ऐशोआराम से गुजरी. मोहकम सिंह और गांव वालों ने हुकुम तथा उन के साथियों की खातिरतवज्जो में कोई कसर न उठा रखी थी. सुबह जब सूरज की किरणों ने पहाड़ से उतर कर राखावास की मिट्टी को छुआ तो वहां का कणकण निखर गया.

राजा समर सिंह ने उस गांव का प्राकृतिक सौंदर्य देखा तो लगा जैसे स्वर्ग के मुहाने पर बैठे हों. मौली की तरह ही खूबसूरत था उस का गांव. चारों ओर खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा, नीलमणि से जलवाली आधा मील लंबी झील के किनारे स्थित. पहाड़ों से उतर कर आने वाले बरसाती पानी का करिश्मा थी वह झील.

रवाना होने से पहले समर सिंह ने मौली के मांबाप को तलब किया. दोनों हाथ जोड़े आ खड़े हुए तो समर सिंह बोले, ‘‘तुम्हारी बेटी महल की शोभा बनेगी. उसे ले कर महल आ जाना. हम तुम्हें मालामाल कर देंगे.’’

‘‘मौली को हम महल ले आएंगे हुकुम,’’ मौली के मांबाप डरते सहमते बोले, ‘‘नाचनागाना हमारा पेशा है, पर मौली के साथ मानू को भी आप को अपनी शरण में लेना पड़ेगा. उस के बिना तो मौली का पैर तक नहीं उठ सकता.’’

‘‘हम समझे नहीं.’’ समर सिंह ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा तो मौली के पिता बोले, ‘‘मौली और मानू बचपन के साथी हैं. नाचगाना भी दोनों ने साथसाथ सीखा. बहुत प्यार है दोनों में. मौली तभी नाचती है, जब मानू खुद अपने हाथों उस के पांव में घुंघरू बांध कर ढोलक पर थाप देता है. आप लाख साजिंदे बैठा दें मौली नहीं नाचेगी हुकुम…इस बात को सारा इलाका जानता है.’’

‘‘हमारे लिए भी नहीं?’’ समर सिंह ने अपमान का सा घूंट पीते हुए गुस्से में कहा तो मौली के पिता बोले, ‘‘आप के लिए नाचेगी हुकुम…जरूर नाचेगी. लेकिन उस के साथ मानू का होना जरूरी है. सारा गांव जानता है, मौली और मानू दो जिस्म एक जान हैं. अलग कर के सिर्फ दो लाशें रह जाएंगी. उन्हें अलग करना संभव नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे मुंह से बगावत की बू आ रही है…और हमें बागी बिलकुल पसंद नहीं.’’ समर सिंह गुस्से में बोले, ‘‘मौली को खुद महल ले कर आते तो हम मालामाल कर देते तुम्हें, लेकिन अब हम खुद उसे साथ ले कर जाएंगे. जा कर तैयार करो उसे. यह हमारा हुक्म है.’’

अच्छा तो किसी को नहीं लगा, लेकिन राजा की जिद के सामने किस की चलती? वही हुआ, जो समर सिंह चाहते थे. रोतीबिलखती मौली को उन के साथ जाने को तैयार कर दिया गया. विदा बेला में मौली ने पहली बार मानू का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मौली तेरी है मानू, तेरी ही रहेगी. राजा इस लाश से कुछ हासिल नहीं कर पाएगा.’’

मानू के होंठों से जैसे शब्द रूठ गए थे. वह पलकों में आंसू समेटे चुपचाप देखता रहा. आंसू और भी कई आंखों में थे, लेकिन राजा के भय ने उन्हें पलकों से बाहर नहीं आने दिया. अंतत: मौली राखावास से राजा के साथ विदा हो गई.

क्या मौली महलों में रह कर मानू को भूल जाएगी? जानेंगे कहानी के अगले अंक में…

मामी का जानलेवा प्यार – भाग 1

आरती के गांव के पास ही मानवेंद्र सिंह की ननिहाल थी. वह वहीं पर रह कर पढ़ता था. उस वक्त वह कक्षा 9 में पढ़ रहा था. पड़ोस में मामा के घर रहते हुए ही उस की जानपहचान आरती से हो गई थी.

कुछ समय बाद ही वह जानपहचान दोस्ती में बदली और फिर जल्दी ही दोनों के बीच प्यार हो गया. दोनों ही एकदूसरे को जीजान से चाहने लगे थे. समय के साथ बात यहां तक बढ़ी कि दोनों ने शादी करने का फैसला भी ले लिया था. उन के बीच जल्दी ही शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

इस बात की जानकारी आरती के घर वालों को हुई तो उन्होंने आरती को समझाने के बाद उस के घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी थी. वह चोरीछिपे मानवेंद्र से मिलने लगी थी. जब उस के घर वालों को लगने लगा कि वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही है तो उन्होंने कम उम्र में ही उस की शादी करने का फैसला किया.

उसी दौरान घर वालों ने 2019 में आरती की शादी बरेली जिले के शिवपुरी में रहने वाले रामवीर से कर दी. आरती शादी के बाद जितने दिन भी ससुराल में रही, वह खुश नहीं रही. शादी के बाद अनचाहे पति के साथ रात काटना उस की मजबूरी बन गई थी क्योंकि वह तो मानवेंद्र से प्यार करती थी.

बरेली के थाना फतेहगंज (पूर्वी) क्षेत्र के गांव शिवपुरी निवासी रामवीर 20 सितंबर, 2023 को टिसुआ में नौकरी की तलाश के लिए निकला था, लेकिन वह देर रात तक घर नहीं पहुंचा तो उस के घर वालों को उस की चिंता सताने लगी थी. उन्होंने कई बार उस के मोबाइल पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उस का मोबाइल बंद आ रहा था. उस के बाद उन्होंने उसे हर जगह तलाशा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला.

अगले ही दिन सुबह किसी ने उन्हें बताया कि रामवीर की बाइक महेशपुरा रेलवे क्रौसिंग के पास पड़ी हुई है. यह जानकारी मिलते ही रामवीर का भाई अशोक बाइक देखने पहुंचा तो वह रामवीर की ही निकली. उस के कुछ ही देर बाद पता चला कि देर शाम एक युवक की ट्रेन से कट कर मौत हो गई. उस की लाश रेलवे ट्रैक के पास ही पड़ी हुई है.

यह जानकारी मिलते ही अशोक तुरंत ही रेलवे लाइनों में पड़ी लाश को देखने पहुंच गया. वहां पर पहले से ही राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) के जवान मौजूद थे. जीआरपी अपनी काररवाई में लगी हुई थी, तभी अशोक ने उस लाश को पहचानते हुए बताया कि मृतक उस का भाई रामवीर है, जो रात से गायब था. रामवीर की लाश 2 हिस्सों में कटी हुई थी, जिसे देख कर लग रहा था कि उस ने जानबूझ कर ही रेलवे ट्रैक पर लेट कर अपनी जान दी होगी.

देखते ही देखते आसपास के क्षेत्र में रामवीर के रेल से कट कर आत्महत्या करने वाली बात फैल गई. उस की मौत की खबर सुन कर उस की पत्नी आरती भी घटनास्थल पर पहुंची. वहां पहुंचते ही आरती ने रोनाधोना शुरू कर दिया था. घर वालों ने उसे जैसेतैसे कर के चुप कराया.

शव की शिनाख्त हो जाने के बाद जीआरपी पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. हालांकि पुलिस रामवीर की मौत को आत्महत्या मान रही थी. लेकिन उस का भाई अशोक जीआरपी की बात से सहमत नहीं था.

उस ने बरेली के थाना फतेहगंज (पूर्वी) के एसएचओ ओमप्रकाश गौतम से मिल कर बताया कि शाम को उस के भाई को किसी ने फोन किया था. फोन आते ही वह बाइक ले कर घर से निकला था. इसी कारण उसे शक है कि उस ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि किसी ने उस की जानबूझ कर रेल के सामने धक्का दे कर हत्या की है.

भाई अशोक की तरफ से पुलिस ने धारा 302, 120बी, 34 भादंवि के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी. एसपी (देहात) मुकेश चंद्र मिश्र इस केस को सुलझाने के लिए पुलिस की एक टीम गठित की. जिस में एसएचओ ओमप्रकाश गौतम, एसआई इशरत अली खां, कांस्टेबल पूजा, शिवांशु पांडेय आदि को शामिल किया गया था.

पुलिस ने सब से पहले मृतक रामवीर के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि रामवीर के मोबाइल पर अंत में किसी मानवेंद्र नामक व्यक्ति का फोन आया था. पुलिस ने रामवीर के घर वालों से मानवेंद्र के बारे में जानकारी ली तो वह मृतक का गांव के रिश्ते का भांजा निकला. पुलिस को एक बार तो लगा कि एक भांजा मामा की हत्या क्यों करेगा. फिर भी पुलिस ने मानवेंद्र को पूछताछ के लिए थाने बुलाया.

भांजा ही निकला कातिल

मानवेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस ने तो केवल मामा को शराब पिलाने के लिए ही फोन किया था. उस के बाद मामा मेरे पास आए और फिर दोनों ने एक साथ बैठ कर शराब भी पी. बाद में मामा अपनी बाइक ले कर वहां से चले गए थे. मामा ने रेल से कट कर आत्महत्या क्यों की, उसे कुछ नहीं पता.

लेकिन पुलिस को जानकारी मिली थी कि वह अकसर रामवीर की अनुपस्थिति में उस के घर आताजाता था, जिस से उस के परिवार वालों को पूरा शक था कि जरूर मानवेंद्र और आरती के बीच कुछ खिचड़ी पक रही थी. उसी शक के आधार पर फिर पुलिस ने आरती के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि आरती ने मानवेंद्र का फोन आने से कुछ समय पहले ही उस से बात की थी. जिस से पुलिस को पूरा शक हो गया था कि जरूर मानवेंद्र से मिल कर ही आरती ने अपने पति को मौत की नींद सुला दिया है.

इस मामले को शक की निगाहों से देखते हुए पुलिस ने फिर मानवेंद्र से सख्ती से पूछताछ की तो वह जल्दी ही टूट गया. मानवेंद्र ने स्वीकार किया कि रामवीर मामा की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे, जिस के चलते रामवीर अपनी पत्नी पर शक करने लगा था. इतना ही नहीं, वह अपनी पत्नी को भलाबुरा कहते हुए मारतापीटता था. पति की हरकतों से परेशान हो कर आरती ने ही उसे मौत की नींद सुलवा दिया.

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने मानवेंद्र के साथसाथ मृतक की पत्नी आरती को भी हिरासत में ले लिया था. दोनों को हिरासत में लेने के बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची, जहां से शराब के कुछ खाली पव्वे और डिस्पोजल गिलास भी बरामद किए.

आरोपियों और रामवीर के घर वालों से पूछताछ के दौरान इस केस की कहानी जो उभर कर सामने आई, वह दिल को दहला देने वाली थी. रामवीर की मौत की साजिश रचने वाली कोई और नहीं बल्कि उस की पत्नी आरती थी.

शादी से पहले ही थे मानवेंद्र से संबंध

उत्तर प्रदेश के जनपद बरेली के फतेहगंज (पूर्वी) के शिवपुरी गांव में रहता था रामवीर का परिवार. रामवीर का सामान्य परिवार था. उस के पापा शिवराज सिंह के पास न तो कोई जुतासे की जमीन थी और न ही कोई सरकारी नौकरी. वह अपने गांव के खेतों में ही मेहनतमजदूरी कर के परिवार का पालनपोषण करते आ रहे थे.

उन के 2 बेटे थे. बड़ा रामवीर और उस से छोटा अशोक. कई साल पहले रामवीर की शादी शाहजहांपुर के तिलहर थाना क्षेत्र के गांव धुनकपुर निवासी आरती से हुई थी. आरती की शादी कम उम्र यानी 16 साल में ही हो गई थी. उसी दौरान शादी से पहले ही उस की मुलाकात मानवेंद्र से हुई थी.

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 2

रमन पाल शक के दायरे में था. यह बात इंसपेक्टर एस.एन. सिंह भी अपने सीनियर अधिकारियों को बता चुके थे, अत: डीएसपी तनु उपाध्याय व एएसपी राजेश कुमार पांडेय ने रमन पाल को सामने बिठा कर सरिता की हत्या के बारे में पूछताछ की.

शुरू में लगभग 2 घंटे तक वह पुलिस अधिकारियों को गुमराह करता रहा और बदमाशों द्वारा सरिता का अपहरण व हत्या की बात कहता रहा, लेकिन जब डीएसपी तनु उपाध्याय ने कड़ा रुख अपनाया तो रमन पाल टूट गया. फिर सरिता की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया.

रमन पाल ने बताया कि उस ने सरिता की हत्या का षडयंत्र अपने 3 दोस्तों रंजीत उर्फ गुल्लू, अखिल पाल व सौरभ गौतम के साथ मिल कर रचा था. उन तीनों ने ही अपहरण का नाटक किया, फिर हम सब ने मिल कर सरिता को मार डाला. ये तीनों चौबेपुर कस्बा में पुराने शराब ठेका के पास रहते हैं.

हत्या की निकली हैरतअंगेज कहानी

रंजीत, अखिल व सौरभ को गिरफ्तार करने के लिए इंसपेक्टर एस.एन. सिंह की अगुवाई में पुलिस टीम बनाई गई. इस टीम ने शाम 5 बजे रंजीत, अखिल व सौरभ के घर दबिश दी, लेकिन तीनों अपने घर से फरार थे. इसी बीच किसी ने इंसपेक्टर एस.एन. सिंह को फोन पर सूचना दी कि रंजीत उर्फ गुल्लू अपने दोस्त अखिल पाल के साथ बेला विधूना रोड पर स्थित शिवली नहर पुल पर मौजूद हैं.

इस सूचना पर पुलिस टीम शिवली नहर पुल पर पहुंची और रंजीत व अखिल को गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों को थाने लाया गया. थाने की हवालात में जब उन दोनों ने रमन पाल को देखा तो समझ गए कि अब उन के बचने का कोई रास्ता नहीं है. अत: उन दोनों ने भी हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. सौरभ फरार हो गया था.

एसएचओ एस.एन. सिंह ने सरिता की हत्या का खुलासा करने व आरोपियों को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति को दी तो उन्होंने तुरंत आननफानन में पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित की और हत्या का खुलासा कर दिया.

चूंकि हत्यारोपियों ने अपहरण व हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: एसएचओ एस.एन. सिंह ने मृतका के पिता कमलेश पाल की तरफ से भादंवि की धारा 364/302/120बी के तहत रमन पाल, रंजीत उर्फ गुल्लू, अखिल पाल तथा सौरभ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा इन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

इन से की गई पूछताछ में एक ऐसी नारी की कहानी सामने आई, जो पति को सब कुछ मानती रही और उस के जुल्म सहती रही. उस की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर उस का पति हैवान बन गया और उस ने पत्नी को मौत की नींद सुला दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले का एक चर्चित कस्बा है- रूरा. यह उत्तर रेलवे का बड़ा स्टेशन भी है. व्यापारिक कस्बा होने के कारण यहां ज्यादातर एक्सप्रेस गाड़ियों का स्टापेज है. रूरा कस्बे से 3 किलोमीटर दूर एक गांव है- गहलों. कमलेश पाल इसी गांव का निवासी है. उस के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटियां तथा एक बेटा लाखन था. कमलेश पाल किसान था. किसानी से ही वह परिवार का भरणपोषण करता था. बड़ी बेटी के वह हाथ पीले कर चुका था. भाईबहनों में सरिता छोटी थी.

गरीब की दौलत उस की इज्जत होती है. कमलेश पाल भी गरीब था. सरिता उस की इज्जत थी. इस पर किसी की बुरी नजर पड़े, उस के पहले ही वह उस के हाथ पीले कर के निश्चिंत हो जाना चाहता था. अत: वह अपनी खूबसूरत और भोलीभाली बेटी के लिए सही लड़के की तलाश में जुट गया था. काफी दौड़भाग के बाद उस के कदम रमन पाल के घर जा कर रुके.

रमन के पिता रामपाल कानपुर नगर के थाना चौबेपुर के गांव पनऊपुरवा के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी उमा पाल के अलावा 2 बेटे अमन व रमन थे. अमन का विवाह हो चुका था. वह गुड़गांव (हरियाणा) में किसी फैक्ट्री में काम करता था और वहीं अपने परिवार के साथ रहता था.

रमन अविवाहित था. वह चौबेपुर कस्बा स्थित लोहिया स्टार लिंगर फैक्ट्री में सफाई कर्मचारी था. कुछ उपजाऊ खेती की जमीन भी थी, जिस की रामपाल खुद देखभाल करता था. कुल मिला कर उस की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी.

रमन पाल सरिता के मुकाबले कम पढ़ालिखा था और उम्र में भी बड़ा था. लेकिन घर की माली हालत ठीक समझ कर व उसे काम पर लगा देख कर कमलेश पाल ने रमन को अपनी बेटी सरिता के लिए पसंद कर लिया था. फिर सामाजिक रीतिरिवाज से 17 फरवरी, 2018 को सरिता का विवाह रमन के साथ हो गया.

सरिता को किया जाने लगा प्रताड़ित

ससुराल आने के 2 दिन बाद तो सरिता को ऐसा नहीं लगा था कि वह कहीं नई जगह आ गई है. घर में आए मेहमानों के सामने सास का व्यवहार सरिता की उम्मीदों से अधिक अच्छा था, परंतु तीसरे ही दिन सुबहसुबह सास के तेवर बदले हुए थे. सास का वह रूप देख कर सरिता का मन आशंका से कांप उठा था.

डरतेडरते उस ने हिम्मत कर के सास से पूछा, “मुझ से कुछ गलती हो गई क्या मम्मी?’’

“गलती तुझ से नहीं मुझ से हुई है, जो तेरे कंगाल बाप की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई.’’

“ऐसा क्या किया है मेरे पापा ने, जो आप उन्हें मेरे सामने इस तरह बोल रही हैं.’’

“अच्छा, तो तेरा 2 दिन में ही इतना रुतबा हो गया कि मैं तेरे सामने तेरे दो कौड़ी के बाप को कुछ कहने की   हिम्मत न कर सकूं. तुझे सुनना ही है तो सुन अपने बाप की करतूत. उस ने मेरे बेटे का शादी में अपमान  किया है. हमारी हैसियत के मुताबिक उसे मोटरसाइकिल तो देनी ही चाहिए थी.

“शायद तुझे नहीं मालूम कि कई लोग मेरे घर के चक्कर काट रहे थे, जो लाखों रुपए का सामान देने का वादा कर रहे थे, लेकिन हमारी ही किस्मत फूटी थी, जो हम तेरे बाप की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर ठगे गए.’’ उमा तमक कर एक ही सांस में बोल गई.

यह सब सुन कर सरिता को ऐसा लगा, जैसे किसी ने उस के कानों में गर्म शीशा उड़ेल दिया हो. उसे सारा घर घूमता हुआ नजर आया. वह धम्म से वहीं जमीन पर बैठ गई. उस की आंखों से आंसुओं का सैलाब फूट पड़ा. उस दिन सरिता को पहली बार अपनी सास का असली चेहरा दिखा था. उस के पिता ने उस की शादी में अपनी हैसियत के अनुसार बहुत कुछ दिया था. जबकि शादी के पहले उस के सासससुर दहेज विरोधी थे और शादी के बाद कितना अंतर आ गया था उन के रवैए में. सरिता इसे अपने भाग्य का क्रूर मजाक ही समझ रही थी.

उधर उमा पाल बराबर बड़बड़ाए जा रही थी, “चल उठ, सुबहसुबह यह रोधो कर किसे नखरे दिखा रही है?’’

अपनी मां को चिल्लाते देख कर रमन पाल कमरे में आ गया था. उस ने उमा से पूछा था, “मम्मी, क्या हो गया, क्यों चिल्ला रही हो?’’

“क्या बताऊं बेटा, हमारे तो भाग्य ही फूट गए. मैं ने बहू से रसोई में काम करने को क्या कह दिया, इस ने तो मुझे ही बुराभला कह डाला.’’ उमा पाल भोली बन कर बेटे को बताने लगी थी.

उमा का इतना कहना था कि रमन पाल बिफर पड़ा. उस ने आव देखा न ताव घुटने में मुंह छिपा कर रो रही सरिता का चेहरा बाल पकड़ कर ऊपर उठाया और बोला, “2 कौड़ी की लड़की, तेरी इतनी हिम्मत कि इस घर में आते ही मेरी मां का अपमान करे. मैं तुझे तभी माफ करूंगा, जब तू मेरी मां के पैर पकड़ कर अपनी गलती की माफी मांगेगी.’’ इतना कहने के साथ ही रमन ने सरिता को अपनी मां के पैरों पर ढकेल दिया.

सरिता ने रोतेरोते सास से पूछा, “मम्मी, क्यों आप एक के बाद एक झूठ बोल कर मुझ से कलह कर रही हो. मैं ने कब आप से कुछ कहा. आप ही तो खुद मुझे व मेरे घर वालों को बुराभला कह रही थीं कि उन्होंने दहेज में मोटरसाइकिल नहीं दी. रसोई में काम करने की बात आप ने मुझ से कहां कही?’’

उमा कुटिल मुसकान लिए चुप रही. रमन ही गुस्से में बोला, “अगर मेरी मां ने तुझे यह सब कहा तो क्या गलत कहा. यदि तेरे बाप को मेरी हैसियत का खयाल होता तो शादी में मुझे बाइक जरूर देते.’’

सरिता तड़प कर बोली, “नहीं देंगे मेरे पिता मोटरसाइकिल. एक पैसा भी मैं उन से नही मांगूंगी. यदि मुझे तुम्हारे व तुम्हारे बेटे की ऐसी सोच का पता होता तो मैं भी शादी के लिए कभी हां न करती.’’

सरिता की इस बात को चुनौती मान कर रमन कमीनेपन पर उतर आया. उस ने सरिता पर लातघूंसों की बरसात शुरू कर दी. सरिता चुपचाप मार खाती रही. उस के सभी सुहाने सपने टूट गए थे. इस के बाद तो यह क्रम ही बन गया. सास झूठी शिकायत करती और रमन सरिता को बुरी तरह पीट देता था.

क्यों रमन अपने नई ब्याहता पत्नी पर इस कदर जुल्म करता था? क्या सरिता चुपचाप ये जुल्म सहती रहेगी? पढ़ें इस क्राइम स्टोरी के अगले अंक में.

सूटकेस में बंद हुआ लिवइन रिलेशन

लेडी कांस्टेबल मर्डर का कालगर्ल कनेक्शन – भाग 5

अभियुक्तों की हुई गिरफ्तारी

क्राइम ब्रांच ने पवन को गिरफ्तार किया और उस फोटो को दिखा कर पूछा कि यह फोटो किस की है तो पवन ने राजपाल का नाम लिया. उस के बताए पते से राजपाल को भी उठा कर क्राइम ब्रांच के औफिस लाया गया.

थोड़ी सी सख्ती करते ही राजपाल ने बताया, “सर, यह सिम मेरे नाम से है, जो मैं ने राबिन को इस्तेमाल को दे दिया था. पवन मेरा दोस्त है, उस का कोई रोल इस सिम के मामले में नहीं है. उस का मैं ने आधार कार्ड इस्तेमाल किया था.”

“राबिन कहां रहता है?”

राजपाल ने राबिन का पता बता दिया. एक घंटे में राबिन को क्राइम ब्रांच की टीम पकड़ कर ले आई. उस से भी थोड़ी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने बता दिया कि सारा खेल सुरेंद्र जीजा का है. उसी ने उसे अरविंद बना कर एक कालगर्ल के साथ भिन्नभिन्न होटलों में भेजा और मोनिका के डाक्यूमेंट वहां छोडऩे का प्लान बनाया ताकि होटल वाले मोनिका के परिवार वालों को यकीन दिला सके कि मोनिका जिंदा है.”

“मोनिका कहां है?”

“उस की मेरे जीजा ने गला घोंट कर 2 साल पहले हत्या कर दी थी.”

इस रहस्योद्घाटन पर इंसपेक्टर राजीव कक्कड़ ने गहरी सांस ली. उन्होंने सुरेंद्र राणा को गिरफ्तार करने के लिए सितंबर, 2023 के आखिरी सप्ताह में ही टीम को अलीपुर भेजा. वह घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर क्राइम ब्रांच औफिस लाया गया तो उस के चेहरे पर पसीने की असंख्य बूंदे छलक आई थीं. सुरेंद्र राणा ने आसानी से अधिकारियों के समक्ष कुबूल कर लिया कि उसी ने मोनिका की गला दबा कर 8 सितंबर, 2021 के दिन हत्या कर दी थी.

“मोनिका की हत्या तुम ने क्यों की?” राजीव कक्कड़ ने पूछा.

“मैं उसे चाहने लगा था. मैं उसे पाना चाहता था, इसलिए झूठ बोल कर कि मैं कुंवारा हूं, मैं ने मोनिका को किसी तरह शादी के लिए राजी कर लिया था, लेकिन वह 8 सितंबर को मेरा घर देखने के इरादे से अलीपुर पहुंच गई. उसे गांव में घुसता देख मैं डर गया.

“मोनिका को मेरे बीवीबच्चों का पता चल जाता तो मेरी सारी प्लानिंग फेल हो जाती. मैं अपनी कार ले कर मोनिका के सामने गया और उसे जबरन कार में बिठा कर कहा, ‘मां शहर गई हैं. घर में ताला बंद है. आओ, थोड़ा घूम आते हैं, तब तक मां आ जाएंगी.’

“मैं मोनिका को बुराड़ी की ओर यमुना पुश्ता पर ले गया. एक सुनसान जगह कार रोक कर मैं ने मोनिका को नीचे उतारा और पानी की तरफ बढ़ते हुए मोनिका की गरदन दबोच ली. वह मर गई तो मैं ने वहीं पर गड्ढा खोद कर उस की लाश दबा दी थी. उस के ऊपर पत्थर डाल दिए.”

इंसपेक्टर कक्कड़ ने पूछा, “2 साल तक तपस्या को तुम बहकाते रहे कि मोनिका जीवित है. शादी कर के अपने पति के साथ खुश है. ऐसा तुम क्यों कर रहे थे?”

“सर, मैं तपस्या के दिल में यह बात बिठा देना चाहता था कि मोनिका जिंदा है और वह शरम के कारण सामने नहीं आ रही है. मैं ने अपने साले राबिन के साथ एक कालगर्ल को अलगअलग होटलों में भेज कर मोनिका की आईडी वहां छुड़वा कर तपस्या को यह जताना चाहा कि मोनिका जीवित है. और होटल वाले यह भी बताएं कि दोनों पतिपत्नी के रूप में उन के होटल में रुके थे.”

“सर, मैं ने मोनिका के फोन से उस की वायस रिकौर्ड को अपने फोन में ले ली थी. एक सौफ्टवेयर की मदद से मैं मोनिका के शब्दों को वाक्य में बनाता और तपस्या को मोनिका के फोन से फोन कर के वह वायस सुनाता ताकि तपस्या समझे मोनिका बोल रही है और जीवित है.”

“इस के पीछे तुम्हारा क्या मकसद था सुरेंद्र?”

“यही कि तपस्या अपनी बहन मोनिका को जीवित समझे और यह मान ले कि मोनिका शरम के कारण वापस नहीं आ रही है. तपस्या उसे भुला देती तो पुलिस भी मामले से पीछे हट जाती और मोनिका की हत्या का राज राज ही बना रह जाता.”

सुरेंद्र राणा ने जुर्म कुबूल कर लिया था. उसे कोर्ट में पेश कर के 5 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि में सुरेंद्र ने यमुना किनारे दबाया मोनिका का कंकाल में तब्दील हो चुका शव बरामद करवा दिया. शव को डीएनए टेस्ट के लिए उस की मां का ब्लड ले कर लैब में भेज दिया गया. फोरैंसिक जांच के बाद ही पता चलेगा कि बरामद कंकाल मोनिका यादव का है भी या नहीं.

कंकाल मोनिका का हुआ तो वह परिजनों को अंतिम क्रियाकर्म के लिए सौंप दिया जाएगा. सुरेंद्र राणा, उस के साले राबिन और जयपाल को पुलिस ने जेल भेज दिया. मोनिका का फोन और बैग पुलिस ने कब्जे में ले लिया है. तीनों को कठोर से कठोर सजा दिलवाने के लिए पुलिस पुख्ता सबूत एकत्र करने में लगी हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लेडी कांस्टेबल मर्डर का कालगर्ल कनेक्शन – भाग 4

दिन गुजरते गए, मोनिका सामने तो नहीं आई. ऋषिकेश, मसूरी आदि होटलों में मोनिका के द्वारा कोई न कोई डाक्यूमेंट छोडऩे की सूचना तपस्या को जरूर मिलती रही और तपस्या कभी अकेली, कभी सुरेंद्र के साथ उन होटलों में जा कर मोनिका के डाक्यूमेंट घर ले कर आती रही. इस से उसे यह विश्वास तो होने लगा कि मोनिका ठीक है और पति के साथ सैरसपाटा कर रही है. लेकिन तपस्या पूरी तरह आश्वस्त नहीं हुई.

इतना ही नहीं, 2021 में ही एक दिन तपस्या को मोनिका का दिल्ली के अरुणा आसफ अली अस्पताल में कोरोना वैक्सीन लगवाने का सर्टिफिकेट भी मिला. इस के अलावा मोनिका के बैंक खाते से भी लेनदेन होते रहने के सबूत मिले.

2 साल ऐसे ही गुजर गए, लेकिन तपस्या इन सब से संतुष्ट नहीं थी, क्योंकि मोनिका सामने नहीं आ रही थी. उसे मामला गड़बड़ लग रहा था. आखिर एक दिन तपस्या दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा से मिलने पहुंच गई.

उस ने पुलिस कमिश्नर को बताया, “सर, मेरी बहन मोनिका यादव 2 साल से लापता है. वह पहले थाना मुखर्जी नगर में कांस्टेबल के पद पर तैनात थी. सन 2020 में उस ने यूपी पुलिस में सबइंसपेक्टर का एग्जाम पास कर लिया था, इसलिए उस ने दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी और मुखर्जी नगर के पीजी में रह कर यूपीएससी की तैयारी कर रही थी. 8 सितंबर, 2021 के दिन वह अचानक लापता हो गई है. मैं ने पुलिस में रिपोर्ट की थी, लेकिन थोड़ी जांच के बाद पुलिस ने फाइल बंद कर दी है.”

“क्यों?” पुलिस कमिश्नर ने पूछा.

“सर, मोनिका किसी अरविंद नाम के युवक के साथ शादी कर के घूम रही है. उस के द्वारा उन होटलों जैसे ऋषिकेश, देहरादून, मसूरी आदि जगहों में डाक्यूमेंट छोड़े जा रहे हैं. वह मैं वहां जा कर लाती रही हूं, लेकिन इन 2 सालों में मोनिका ने न हमें फोन किया है, न सामने आई है.

“इस से मुझे संदेह है कि मोनिका अब नहीं है. मुझे उस की चीजों से गुमराह किया जा रहा है. मेरे पिता ब्रह्मपाल यूपी पुलिस में एसआई के पद पर थे. एक अपराधी को बस में दबोचने गए थे, बदमाश ने गोली चला दी, जिस से वह शहीद हो गए थे. मोनिका ही घर संभाल रही थी, उसी पर घर की उम्मीदें टिकी हुई थीं सर. आप उस की तलाश करवाने की कृपा करें.”

“ठीक है. मैं मोनिका का केस क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर करवा देता हूं. तुम निश्चिंत रहो, क्राइम ब्रांच उसे जरूर ढूंढ निकालेगी.”

क्राइम ब्रांच को सौंपी जांच

पुलिस कमिश्नर ने क्राइम ब्रांच के स्पैशल कमिश्नर रविंद्र यादव को फोन कर के मोनिका यादव का केस उन्हें सौंप कर संक्षिप्त में सारी बातें बता दीं. रविंद्र यादव ने यह केस रोहिणी क्राइम ब्रांच के हाथ सौंप दिया.

क्राइम ब्रांच ने 12 अप्रैल, 2023 को मोनिका की गुमशुदगी को अपहरण की धारा 365 आईपीसी में तरमीम कर दी. डीसीपी संजय भाटिया की देखरेख में जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर राजीव कक्कड़ को सौंपी गई. उन्होंने अपनी टीम के साथ जांच शुरू की.

वह तपस्या से मिले. तपस्या से इंसपेक्टर राजीव कक्कड़ को मालूम हुआ कि मोनिका यूपीएससी की तैयारी कर रही थी. इंसपेक्टर राजीव कक्कड़ को तपस्या ने सभी होटल जहां कहीं मोनिका ठहरी थी और उस के द्वारा डाक्यूमेंटस छोड़े गए थे, उन का नाम बता दिया.

तपस्या ने यह भी बताया कि मोनिका ने 2-3 बार उसे फोन किया था, लेकिन ज्यादा नहीं बोली. एक बार उस के कथित पति अरविंद ने फोन कर के बताया था कि मोनिका उस के साथ गुडग़ांव में है, उन्होंने शादी कर ली है.

इंसपेक्टर अपनी टीम के साथ तपस्या द्वारा बताए गए होटलों में गए. उन्होंने रिसैप्शन काउंटर पर लगे सीसीटीवी कैमरों की उस दिन की फुटेज हासिल की. जिसजिस दिन मोनिका उन होटलों में रुकी थी, सभी जगह की फुटेज ले कर वह दिल्ली आ गए.

उन्होंने तपस्या को अपने औफिस में बुला कर ऋषिकेश, देहरादून, मसूरी के होटलों के रिसैप्शन पर खड़े अरविंद और मोनिका की वह सीसीटीवी फुटेज दिखा कर तपस्या से कहा, “होटल वाले इन दोनों को अरविंद और मोनिका बता रहे हैं. इसे देख कर बताइए, यह आप की बहन मोनिका ही है?”

तपस्या ने देखा तो चौंक कर बोली, “सर, यह मोनिका नहीं है. मोनिका की तसवीर मेरे मोबाइल में है. आप देख लीजिए.”

बहन ने क्राइम ब्रांच को दिए सबूत

तपस्या ने मोबाइल निकाला तो इंसपेक्टर कक्कड़ मुसकरा कर बोले, “मेरे पास मोनिका की तसवीर है. मुझे पूरा शक था कि फुटेज में नजर आ रही युवती मोनिका नहीं है. फिर भी तसल्ली के लिए आप को बुलाया गया.”

“सर, मुझे शक है कि किसी ने मोनिका को कत्ल कर दिया है और 2 साल से उस की चीजें यहांवहां फेंक कर मुझे बेवकूफ बनाया है. आप साथ में खड़े इस युवक का पता लगाइए.”

“तपस्याजी, हमें भी अब शक है कि मोनिका की हत्या कर दी गई है.” इंसपेक्टर कक्कड़ गंभीर स्वर में बोले, “आप को अरविंद ने फोन किया. क्या वह नंबर आप की काल डिटेल में होगा.”

तपस्या ने वह नंबर इंसपेक्टर को दे दिया. कुछ सोच कर तपस्या ने कहा, “सर, सुरेंद्र राणा मुझ पर कई बार यह दबाब बनाने की कोशिश करवा रहा है कि मैं मोनिका को जीवित मान लूं और भूल जाऊं, क्योंकि वह अब शादी कर के अपनी जिंदगी जी रही है.”

“ओह!” इंसपेक्टर कक्कड़ ने होंठों को गोल सिकोड़ा, “वह इस मामले में रुचि क्यों ले रहा है?”

“दरअसल, मोनिका उस से प्यार करती थी. सुरेंद्र राणा उस से शादी करने वाला था.”

इसपेक्टर कक्कड़ मुसकराए, “सुरेंद्र राणा शादीशुदा और बालबच्चेदार है. वह पत्नी के साथ अलीपुर में रहता है.”

“ओह!” तपस्या चौंकी, “इतना बड़ा धोखा हमारे साथ…”

“मुझे अब इस नंबर को उपयोग करने वाले व्यक्ति तक पहुंचना है, जो आप को फोन करता है. और हां, तब तक आप सुरेंद्र राणा से दूर रहेंगी. समझ रही हैं न?”

“जी हां.” तपस्या ने सिर हिलाया.

इंसपेक्टर कक्कड़ ने तपस्या को जाने को कहा और उस नंबर के उपभोक्ता का पता निकालने के लिए एक हवलदार को फोन सेवा प्रदाता कंपनी भेज दिया.

एक घंटे में ही हवलदार पूरी डिटेल्स निकाल कर ले आया. यह नंबर किसी पवन नाम के व्यक्ति के नाम पर था, लेकिन यहां एक गड़बड़ यह थी कि आधार कार्ड तो पवन का लगाया गया था, फोटो किसी और व्यक्ति की थी जो आधार से मेल नहीं खा रही थी.

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 1

जब अखिल मनमानी करने लगा तो सरिता का माथा ठनका. शराब के नशे में जब एक रोज उस ने सरिता का हाथ पकड़ा और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा तो सरिता ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया और उसे घर के बाहर खदेड़ दिया. अपमानित हो कर अखिल वहां से चला गया.

एक शाम सरिता कमरे में अकेली थी और अपनी बेटी अनिका को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश कर रही थी. तभी भड़ाक से दरवाजा खुला. सामने अखिल व रंजीत खड़े थे. उन दोनों की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. सरिता को उन दोनों ने दबोचना चाहा तो वह भाग कर रसोई में जा पहुंची. वे दोनों वहां भी आ पहुंचे.

बचाव के लिए सरिता ने रसोई में रखा चाकू उठा लिया और बोली, “चले जाओ वरना पेट में चाकू घुसेड़ दूंगी. भूल जाऊंगी कि तुम मेरे पति के दोस्त हो.’’

इस पर रमन ने सरिता को फिर पीटा और बोला, “साली, हरामजादी, कुतिया तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे दोस्तों से भिड़ने की. हम तीनों एक प्याला, एक निवाला हैं. हर चीज मिलबांट कर खाते हैं. तुझे उन की बात मान लेनी चाहिए थी.’’

सरिता का पति रमन सिर से पांव तक कर्ज में डूबा था. इस कर्ज को उतारने के लिए वह सरिता को गलत रास्ते पर ढकेलने की कोशिश कर रहा था. सरिता उस की बात मानने को राजी नहीं थी. जिस से वह उसे आए दिन शराब पी कर पीटता था.

कानपुर देहात जिले के थाना शिवली के एसएचओ एस.एन. सिंह को सूचना मिली कि केशरी निवादा गांव के पास से सरिता नाम की विवाहित युवती का कुछ बदमाशों ने अपहरण कर लिया है और उसे जंगल की ओर ले गए हैं. यह सूचना 5 सितंबर, 2023 की रात 8 बजे सरिता के पति रमन पाल ने फोन के जरिए दी थी.

चूंकि खबर किडनैपिंग की थी, इसलिए इंसपेेक्टर एस.एन. सिंह पुलिस टीम के साथ जल्द ही घटनास्थल पहुंच गए. उस समय गांव के बाहर नहर की पक्की सड़क पर कुछ ग्रामीण मौजूद थे. उन ग्रामीणों में से एक व्यक्ति बदहवास हालत में निकल कर आया और एसएचओ से बोला, “साहब, मेरा नाम रमन पाल है, मेरी पत्नी सरिता का बदमाशों ने अपहरण कर लिया है. उसे जल्द ढूंढने की कोशिश करें. कहीं ऐसा न हो कि उस के साथ कोई अनहोनी हो जाए.’’ इतना कह कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने रमन पाल को धैर्य बंधाया, फिर पूरी घटना विस्तार से बताने को कहा. तब रमन पाल ने बताया कि वह चौबेपुर थाने के पनऊ पुरवा गांव का रहने वाला है. उस की ससुराल गहलों गांव में है.

आज वह पत्नी सरिता को लेने ससुराल गया था. वह सरिता व मासूम बेटी अनिका को बाइक पर बिठा कर अपने गांव की ओर शाम 7 बजे रवाना हुआ. जब वह केशरी निवादा गांव के पास मैथा नहर रोड पर गगनी देवी मंदिर के नजदीक पहुंचा, तभी 3 बदमाशों ने उस की बाइक रोकी और सरिता से छेड़खानी करने लगे. विरोध करने पर वे उस से उलझ गए और चाकू से हमला किया, जिस से उस का हाथ जख्मी हो गया और खून बहने लगा.

इस के बाद वे सरिता को उठा कर जंगल की ओर ले गए. कुछ देर तक वह समझ नहीं पाया कि क्या करे. थोड़ी देर बाद उस ने पहले ससुर कमलेश पाल को फिर पुलिस को सूचना दी. रमन पाल की बात पर विश्वास कर पुलिस ने सर्च औपरेशन शुरू कर दिया, लेकिन कोशिश बेकार रही. न तो सरिता का कुछ पता चला और न ही बदमाशों का. रात का गहरा अंधेरा भी छा गया था, अत: हताश हो कर पुलिस वापस थाने आ गई.

रमन पाल घायल था. उस के हाथ से खून बह रहा था. इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शिवली में रमन पाल के हाथ की मरहमपट्टी कराई, फिर उसे थाने ले आए. बेटी सरिता के अपहरण की सूचना पा कर सुबह कमलेश पाल भी थाना शिवली पहुंच गया. वह बेहद दुखी था.

एसएचओ एस.एन. सिंह ने उस से पूछताछ की तो कमलेश पाल ने बताया कि उस का दामाद रमन पाल बेहद कमीना व नीच इंसान है. वह जुुआरी व शराबी भी है. मेरी बेटी को वह जानवरों की तरह पीटता है और भूखाप्यासा रखता है. वह इंसान नहीं, हैवान है. सरिता के अपहरण की वह नौटंकी कर रहा है. उस ने या तो सरिता को बेच दिया है या फिर उस के साथ कोई अनहोनी हुई है. सारा रहस्य रमन पाल के ही सीने में छिपा है.

कमलेश पाल की बात एसएचओ को भी सच लगी. क्योंकि घटनास्थल पर उन्हें अपहरण का कोई सबूत नहीं मिला था, न ही लूट की बात सच थी. क्योंकि सरिता के शरीर पर न तो आभूषण थे और न ही उन दोनों के पास नकदी थी. घटना का ऐसा गवाह भी नहीं था, जिस ने यह सब देखा हो. मासूम अनिका डरीसहमी थी. वह कुछ भी बोल नहीं पा रही थी.

एसएचओ एस.एन. सिंह को लगा कि रमन पाल कुछ छिपा रहा है. अत: उन्होंने उस से एक बार फिर पूछताछ शुरू की. लेकिन वह यही कहता रहा कि उस की पत्नी सरिता का बदमाशों ने अपहरण किया है. वह उसे कहां ले गए, क्या किया, उसे कुछ भी मालूम नहीं है.

सुबह 10 बजे शिवली थाने की पुलिस फिर से सरिता की खोज में घटनास्थल पहुंची. साथ में सरिता का पिता कमलेश व पति रमन पाल भी था. इस बार पुलिस ने बड़ी सावधानी से नहर के किनारे झाड़ियों व जंगल में सरिता को ढूंढना शुरू किया. डौग स्क्वायड भी मौके पर पहुंच कर झाड़ियों में सरिता की खोज शुरू कर दी.

खोजी कुत्ते से टीम को सफलता नहीं मिली, लेकिन खोज में जुटा शिवली थाने का सिपाही रामवीर हांफतादौड़ता हुआ आया और इंसपेक्टर एस.एन. सिंह से बोला, “सर, बबूल के पेड़ के नीचे एक युवती की लाश पड़ी है. आप वहां जल्दी चलिए.’’

इंस्पेक्टर एस.एन. सिंह पुलिसकर्मियों के साथ बबूल के पेड़ के पास पहुंचे. पेड़ के नीचे एक महिला का शव पड़ा था. उस के गले में पीला दुपट्टा लिपटा था. देख कर लग रहा था कि दुपट्टे से गला कस कर उस की हत्या की गई थी. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे. कुछ पुराने जख्म भी थे. शव के पास ही चप्पल व टूटी चूड़ियां पड़ी थीं. देखने से ऐसा लग रहा था कि महिला का मृत्यु से पहले हत्यारों से संघर्ष हुआ था. महिला की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी.

महिला के शव को जब कमलेश पाल ने देखा तो वह फफक पड़ा और इंसपेक्टर एस.एन. सिंह से बोला, “साहब, यह लाश मेरी बेटी सरिता की है.’’

रमन पाल ने भी लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी सरिता के रूप में की और वह रोने धोने लगा. इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने उन दोनों को धैर्य बंधाया और जल्दी ही सरिता के हत्यारों को गिरफ्तार करने की तसल्ली दी.

एस.एन. सिंह ने सरिता की अपहरण के बाद हत्या किए जाने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद ही एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी राजेश कुमार पांडेय तथा डीएसपी तनु उपाध्याय घटनास्थल पर आ गईं.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा घटना के संबंध में एसएचओ एस.एन. सिंह से जानकारी हासिल की. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने सरिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल माती भिजवा दिया.

एक ही घुड़की में उगल डाला राज

मृतका सरिता के पिता कमलेश पाल तथा पति रमन पाल को थाने लाया गया. यहां डीएसपी तनु उपाध्याय ने कमलेश पाल से पूछताछ की तो उस ने कहा कि उस की बेटी का हत्यारा कोई और नहीं, उस का दामाद रमन पाल ही है. वह बेटी सरिता को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था. रक्षाबंधन वाले दिन भी उस ने सरिता को खूब पीटा था. उस के बाद वह मायके आ गई थी. रमन पाल ने ही षडयंत्र रच कर अपने साथियों के साथ मेरी बेटी को मार डाला और पुलिस से बचने के लिए उस ने उस के अपहरण की झूठी कहानी गढ़ दी.

क्या रमन ने ही सरिता की हत्या की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज – भाग 4

सुजित के दोस्त सुरेश पर कसा शिकंजा

आखिर कुछ दिनों बाद एक छोटा सा सुराग टौम के हाथ लग गया. सुजित के दोस्तों के बारे में पता करते करते उन के सामने एक नाम आया सुरेश का. वह सुजित का खास दोस्त था. वह आटो चलाता था. पता चला था कि जिन दिनों शकुंतला गुम हुई थीं, उन दिनों वह शकुंतला के घर 2-3 बार दिखाई दिया था. एक बार तो रात 2 बजे वह शकुंतला के घर के पास आटो ले कर जाते हुए दिखाई दिया था और उस समय उस के आटो में कोई बड़ा सामान भी था.

टौम के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. उन्होंने तत्काल सुरेश को उठा लिया और थाने ला कर पूछताछ शुरू कर दी, “सुरेश, तुम सुजित को पहचानते थे?”

“जी, वह मेरा दोस्त था. बहुत भला आदमी था. बेचारा चला गया.” सुरेश ने जवाब में कहा.

“वह भला था या बुरा, यह मैं तय कर लूंगा. तुम सिर्फ उसी बात का जवाब दो, जो मैं पूछूं और दूसरी बात यह कि अब सुजित जीवित नहीं है, इसलिए उस के सभी गुनाहों की सजा तुझे अकेले ही भोगनी है, यह सोच कर जवाब देना. सच बोलोगे तो सजा कम हो सकती है, वरना भोगोगे.”

सुरेश को पसीना आ गया. टौम ने पूछा, “तुम शकुंतला को जानते थे?”

“नहीं. कौन शकुंतला?” सुरेश ने कहा.

इसी के साथ उस के बाएं गाल पर 2 तमाचे पड़े. तमाचे इतने जोरदार थे कि उस की आंखों के सामने सितारे नाचने लगे तो कानों में भंवरे गुनगुनाने लगे. टौम ने कहा, “अभी तो सिर्फ भंवरे ही गुनगुना रहे हैं. सच नहीं बोला तो शेर और बाघ की गर्जना सुनाई देगी. मैं उस शकुंतला की बात कर रहा हूं, तुम आटो ले कर जिस के घर के चक्कर लगा रहे थे. जिसे तुम ने और सुजित ने मिल कर मार डाला. उस के बाद सीमेंट और कंक्रीट के साथ भर कर सरोवर में फेंक दिया. याद आया… हत्यारा कहीं का.”

टौम की आवाज डराने वाली थी. सुरेश घबरा गया. उस ने कहा, “साहब, हत्या मैं ने नहीं की है. हत्या सुजित ने की है.”

टौम नीचे बैठ कर बोले, “ठीक है, जो भी है सचसच और विस्तार से बताओ.”

इस के बाद सुरेश ने जो बताया, वह इस प्रकार था.

सुजित अस्वती को धोखा दे रहा था. वह शादीशुदा था, फिर भी खुद को कुंवारा बता कर अस्वती के घर में उस के साथ रह रहा था. शकुंतला को इस बात की जानकारी हो गई थी. पर यह बात वह बेटी को बता कर उस का दिल नहीं तोडऩा चाहती थी. इसलिए उस ने सुजित को समझाया कि वह उस की बेटी के जीवन से चला जाए, पर सुजित नहीं माना.

सुरेश ने उगल दिया सारा राज

शकुंतला को लगा कि सुजित सीधे नहीं मानने वाला तो उस ने उसे धमकाया कि अगर उस ने अस्वती को नहीं छोड़ा तो वह सारी हकीकत अस्वती को बता देगी. शकुंतला की इस धमकी से सुजित घबरा गया. उस ने अस्वती को मां के खिलाफ भडक़ाना शुरू कर दिया, दूसरी ओर साथ ही साथ शकुंतला की हत्या की योजना भी बनाता रहा.

एक्सीडेंट के बाद शकुंतला को चिकन पौक्स हो गया. अस्वती बच्चों को ले कर लौज में रहने चली गई तो सुजित को शकुंतला की हत्या करने के मौका मिल गया. उस ने सुरेश से बात कर के मदद मांगी. सुरेश ने हत्या करने के अलावा दूसरी अन्य मदद का आश्वासन दिया.

इस के बाद 22 सितंबर, 2016 को दोनों बाजार से एक ड्रम, सीमेंट, कंक्रीट, रस्सी आदि खरीद कर ले आए. यह सारा सामान सुरेश शकुंतला के घर पहुंचा कर चला गया. यह सारा सामान देख कर शकुंतला ने उस से पूछा भी, पर बिना कुछ बोले ही वह चला गया था. उसी रात सुजित शकुंतला के घर गया और गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस के बाद लाश को ड्रम में डाल कर ऊपर से सीमेंट और कंक्रीट भर कर पैक कर दिया. इस के बाद रात को सुरेश को फोन किया.

सुरेश आटो ले कर शकुंतला के घर आया तो ड्रम को आटो में रख कर दोनों पनंगद सरोवर पर ले गए और ड्रम को पानी के अंदर डुबो कर अपनेअपने घर चले गए.

इतनी बात बता कर सुरेश ने कहा, “साहब, इतनी भर बात है. इस के आगे मैं कुछ नहीं जानता. मैं ने हत्या करने में कोई मदद नहीं की थी.”

टौम ने कहा, “हत्या में मदद नहीं की, पर अपराध को छिपाने और लाश को ठिकाने लगाने का तो अपराध किया है.” कह कर मार्च 2023 में सुरेश को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद उस का वह आटो भी जब्त कर लिया गया, जिस से उस ने लाश को ठिकाने लगाया था. सारे सबूत जुटाने के बाद सुरेश को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

आखिर इंसपेक्टर सी.बी. टौम ने एक ऐसा केस हल कर दिया था, जिस में न मरने वाले का पता था, न कोई सबूत था, फिर भी अपराधी पकड़ा गया था. इस तरह का काम सी.बी. टौम जैसे होशियार पुलिस वाले ही कर सकते हैं.

पाक प्यार में नापाक इरादे – भाग 3

सर्वेश के घर के आसपास ज्यादा मकान तो थे नहीं, इसलिए नेत्रपाल को उस के यहां आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. साप्ताहिक छुट्टी के दिन तो पाकेश के ड्यूटी पर चले जाने के बाद नेत्रपाल पूरा दिन उसी के यहां पड़ा रहता. इस तरह यह सिलसिला काफी दिनों तक बिना किसी रोकटोक के चलता रहा.

एक दिन शाम को किसी वजह से पाकेश जल्दी घर आ गया. संयोग से नेत्रपाल उस समय उस के घर पर ही मौजूद था. तब सर्वेश ने पाकेश से उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह नेत्रपाल हैं. हमारी कंपनी में सुपरवाइजर हैं. यह भी यहीं आसपास प्लौट खरीदना चाहते हैं. इन्हें मैं ने ही यह बगल वाला प्लौट दिखाने के लिए बुलाया था.’’

सर्वेश ने ऐसी चाल चली थी कि पाकेश को नेत्रपाल पर जरा भी शक नहीं हुआ. पाकेश शराब का आदी था. वह ड्यूटी से छूटने के बाद अकसर रास्ते में पड़ने वाले ठेके से शराब पी कर घर आता था. उस शाम सर्वेश ने नेत्रपाल से उस का परिचय कराया तो वह उस के लिए भी ठेके से शराब ले आया. दोनों ने साथसाथ बैठ कर शराब पी तो उन में दोस्ती हो गई.

पाकेश पहले से ही शराब पिए था, नेत्रपाल के साथ भी पी तो उसे इतना नशा हो गया कि वह बिना खाना खाए ही सो गया. बच्चे पहले ही सो चुके थे. जेठ मंदबुद्धि ही था, वह खाना खा कर बाहर निकल गया तो नेत्रपाल और सर्वेश ने इस मौके का लाभ अच्छी तरह उठाया.

उस रात नेत्रपाल समझ गया कि पाकेश को पत्नी से भी ज्यादा शराब से प्रेम है. इस के बाद उसे जब भी सर्वेश से एकांत में मिलना होता, वह शराब की बोतल ले कर पाकेश के घर पहुंच जाता. पाकेश शराब पी कर लुढ़क जाता तो उसे सर्वेश से एकांत में मिलने का मौका आराम से मिल जाता.

लेकिन एक दिन पाकेश ने नेत्रपाल को सर्वेश की छाती पर हाथ लगाते देख लिया तो नशे में होने की वजह से उसे एकदम से गुस्सा आ गया. वह नेत्रपाल और सर्वेश को भद्दीभद्दी गालियां देने लगा. नेत्रपाल समझ गया कि अब यहां रुकना ठीक नहीं है, इसलिए वह तुरंत चला गया.

इस के बाद नेत्रपाल ने पाकेश के रहते सर्वेश के घर आना बंद कर दिया. लेकिन एक दिन पाकेश ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. तब पाकेश ने शराब पी कर सर्वेश की जम कर पिटाई की और इस के बाद उसे उस की मां के घर भेज दिया.

सर्वेश ने नेत्रपाल के सामने अपना दुखड़ा रोया तो उस ने हर हालत में उस का साथ देने का आश्वासन दिया. इसी के बाद दोनों ने अपने संबंधों के बीच रोड़ा बन रहे पाकेश को हटाने की योजना बना डाली. इस के लिए उन्होंने रक्षाबंधन वाला दिन तय किया. दोनों ने सलाह की कि उस दिन किसी भी कीमत पर पाकेश को ठिकाने लगा देना है.

योजना के अनुसार, सर्वेश ने पाकेश से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने के लिए गांव चलने को कहा. पाकेश जाना तो नहीं चाहता था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे जाना ही पड़ा. जेठ को भी वह गांव ले गई. रक्षाबंधन का त्यौहार मना कर वह पाकेश और बेटी को ले कर काशीपुर आ गई. घर वालों से उस ने बहाना बनाया कि रात को घर खाली छोड़ना ठीक नहीं है. जेठ और बेटे को उस ने गांव में ही छोड़ दिया था.

काशीपुर आने के बाद वह खाना बनाने को ले कर पाकेश से उलझ गई. उस ने कहा कि वह बुरी तरह से थकी है, इसलिए खाना नहीं बना सकती. पाकेश से उलझना भी उस की योजना में शामिल था. सर्वेश ने खाना बनाने से मना किया तो पाकेश उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए घर से निकल गया. उस के जाते ही उस ने नेत्रपाल को फोन कर दिया.

योजना के अनुसार, उस दिन नेत्रपाल काशीपुर में ही रुका था. सर्वेश का संदेश मिलते ही वह उस के घर पहुंच गया. घर से निकल कर पाकेश सीधे ठेके पर गया और घर लौटा तो नशे में धुत था. पाकेश को देख कर नेत्रपाल दूसरे कमरे में छिप गया.

पाकेश के जाने के बाद सर्वेश ने जल्दीजल्दी रोटियां बना ली थीं. वापस आने पर सर्वेश ने उसे रोटियां खाने को दीं तो वह उसे गालियां देते हुए मारपीट करने लगा.

सर्वेश की पिटाई होते देख नेत्रपाल को गुस्सा आ गया. वह निकल कर बाहर आ गया और पाकेश को समझाने लगा. लेकिन नेत्रपाल को देख कर पाकेश का गुस्सा और बढ़ गया. वह सर्वेश को छोड़ कर नेत्रपाल को गालियां देने लगा. वह उसे मारने के लिए कोई औजार ढूंढ रहा था, तभी पहले से छिपा कर रखी लोहे की रौड उठा कर सर्वेश ने नेत्रपाल को थमा दी.

नेत्रपाल को लोहे की रौड थमा कर सर्वेश ने पाकेश को बांहों में दबोच लिया. नेत्रपाल ने इस मौके का लाभ उठाते हुए उस के सिर पर लोहे की रौड का जोरदार वार कर दिया. एक ही वार में वह जमीन पर गिर पड़ा. उस ने दूसरा वार किया तो पाकेश के गिरने की वजह से वह सर्वेश के सिर में लग गया. उस के सिर से भी खून रिसने लगा. लेकिन उस ने अपनी चोट पर ध्यान न दे कर बेहोश पड़े पाकेश को दबोच लिया तो नेत्रपाल ने उस का गला दबा दिया.

थोड़ी देर छटपटा कर पाकेश हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया. इस के बाद बचाव का तरीका समझा कर नेत्रपाल चला गया. सर्वेश सवेरा होने का इंतजार करने लगी.

वह पूरी रात यही सोचती रही कि यह बात वह घर वालों को कैसे बताएगी? सुबह उस ने फोन कर के जेठानी को किसी तरह सूचना भी दे दी और बचाव के लिए गढ़ी गई कहानी भी सुना दी, लेकिन वह खुद को पुलिस की नजरों से बचा नहीं सकी.

सर्वेश के बयान के बाद पुलिस ने नेत्रपाल को भी उस के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार करने के बाद वही पूरी कहानी दोहरा दी, जो सर्वेश सुना चुकी थी. नेत्रपाल और सर्वेश के अनुसार पाकेश को खत्म कर के दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन उन का यह सपना पूरा नहीं हो सका.

पूछताछ के बाद कोतवाली पुलिस ने नेत्रपाल और सर्वेश को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. मजे की बात यह थी कि इतना बड़ा अपराध कर के भी सर्वेश को जरा भी पछतावा नहीं था. जेल जाते समय उस ने मां से भी बात नहीं की थी. अब उस के दोनों बच्चे सलेमपुर में ब्याही उस की बहन मुन्नी के पास हैं. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी की सुपारी का राज