कैसे हुईं 9 दिन में 3 बहनें गायब – भाग 3

स्टेशन पर भारत और राहुल कुछ बात करने लगेे. उस के बाद भारत ने राहुल को पैसे दिए, पैसे काफी अधिक दिख रहे थे. उस के बाद उन्होंने दोनों बहनों को मिठाई खाने के लिए दी. मिठाई खाने के बाद मनतारा की आंखें खुलीं तो वह पंजाब में थी. उस के साथ उस की बहन नहीं थी. वह एक कमरे में लेटी हुई थी. उस के सामने भारत बैठा हुआ था.

मनतारा ने उस से दीदी के बारे में पूछा तो वो बोला, “तुम्हारी दीदी दिल्ली में हैं. अभी हम लोग भी वहां चलेंगे.” उस के बाद भारत उसे भी दिल्ली ले कर चला गया. वहां उसे किसी के घर में रखा.

मनतारा हो चुकी थी गर्भवती

मनतारा ने बताया कि जहां रह रहे थे, उन्हें भारत ने बताया कि वो मुझे जौब दिलाने के लिए ले कर आया है. वहां भी उस की बहन नहीं थी. वह जब भी दीदी के बारे में पूछती तो भारत बोलता, “जल्द ही तुम अपनी दीदी से मिलोगी.”

फिर एक दिन भारत ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए. भारत को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना. उस ने उसे भरोसा दिया कि वह उस से शादी करेगा और जौब भी दिला देगा. इसी तरह के आश्वासन दे कर उस ने कई बार उस के साथ संबंध बनाए. वह कभी दिल्ली तो कभी पंजाब उसे ले जाता.

मनतारा को डर बना रहता था कि कहीं विरोध करने पर वह उसे मार न डाले. फिर एक दिन उस घर में एक महिला आई, वह उसे ले कर पंजाब चली गई. वहां उस के साथ गलत काम होता. कभी होश में तो कभी बेहोशी में, उसे याद भी नहीं रहता था. मनतारा समझ गई थी कि उस के साथ बहुत गलत हुआ है. वे लोग उसे हमेशा घर में कैद रखते थे.

मनतारा किसी को देख नहीं सकती थी, न किसी से बात कर सकती थी. वह हमेशा रोती रहती थी. एक कमरे में ही उसे खाना और पानी दिया जाता था. मनतारा यह समझ गई थी कि बड़ी बहन ने ही उस के साथ छल किया है. वह बहुत परेशान रहती थी. वह समझ गई थी कि ये लोग उस से जिस्मफरोशी का धंधा कराना चाहते हैं.

निशा व राहुल को किया गिरफ्तार

अपहरण करने वाला आरोपी राहुल निवासी टिमरख तथा शमशाद की बड़ी बेटी निशा को इस बात का पता चल गया कि छोटी बहन मनतारा व भारत को पुलिस ने पकड़ लिया है. इस पर दोनों 19 मार्च, 2023 को मैनपुरी जायजा लेने के लिए आए.

उन की लोकेशन मिलने व मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने दबिश दे कर राहुल को मैनपुरी के तखरऊ पुल से गिरफ्तार कर लिया. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई. राहुल की गिरफ्तारी की जानकारी होने पर निशा एसपी औफिस पहुंच गई. इस पर उसे पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया.

दोनों को थाने लाया गया, जहां उन से गहराई से पूछताछ की गई. पूछताछ में बहुत ही चौंकाने वाला खुलासा हुआ. निशा और राहुल की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने इस पूरे घटनाक्रम का परदाफाश कर दिया.

पता चला कि बड़ी बहन निशा ने ही षडयंत्र रच कर इस घटना को अंजाम दिया था. उस ने अपनी दोनों नाबालिग बहनों को अपने प्रेमी राहुल की मदद से गायब कराया और अपने प्रेमी के दोस्त भारत सिंह को सौंपा था. पुलिस ने राहुल व निशा को जेल भेज दिया.

इस पूरी घटना के बाद घर वाले अब बीच वाली बेटी खुशबू के लिए परेशान थे. पिता का कहना था कि हम लोग एक बार बड़ी बेटी से मिलना चाहते हैं, उस से पूछना चाहते हैं उस ने ऐसा क्यों किया? निशा घर की बड़ी बेटी थी. उसे समझदार समझते थे, लेकिन वो तो अपनी ही बहनों की दुश्मन निकली. अपने इस कृत्य से उस ने पूरे परिवार की बदनामी करा दी है. हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे हैं.

बहन के धोखे का शिकार हुई मनतारा गर्भवती होने के बाद अब न्याय के लिए कानून के दरवाजे खटखटा रही है. राज्य बाल आयोग की सदस्य की ओर से पीडि़ता के न्यायालय में दोबारा बयान दर्ज कराने की बात कही है. उधर मामले में पीडि़ता किशोरी के गर्भपात को ले कर अभी कोई आदेश प्राप्त नहीं हुए हैं. जबकि थाना पुलिस ने तीसरी बहन की तलाश और तेजी के साथ शुरू कर दी.

2 बहनों के मिलने के बाद पुलिस ने हार नहीं मानी. तीसरी किशोरी की बरामदगी के लिए अपने स्तर से प्रयास जारी रखे. राहुल और निशा की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को उन के विभिन्न ठिकानों की जानकारी हो गई थी. इसी बीच पुलिस को तीसरी बेटी खुशबू के बारे में जानकारी मिली.

तब एक पुलिस टीम को राजस्थान के गंगानगर के लिए रवाना किया गया, जहां दबिश दे कर एक स्थान से 6 अप्रैल, 2023 को बीच वाली बेटी खुशबू को भी बरामद करने के साथ ही भारत सिंह को गिरफ्तार कर लिया. मैनपुरी ला कर पुलिस ने खुशबू का मैडिकल कराने के बाद न्यायालय में पेश किया. न्यायालय ने पिता शमशाद की सुपुर्दगी में उस की बीच वाली बेटी खुशबू को सौंप दिया.

एएसपी राजेश कुमार ने बताया कि इस पूरी साजिश में निशा और उस का प्रेमी राहुल शामिल थे. जौब के बहाने निशा अपने प्रेमी राहुल के साथ पहले भी दिल्ली और पंजाब जा चुकी है. इन दोनों ने ही षडयंत्र रच कर खुशबू और मनतारा को दिल्ली लाने को तैयार किया था.

इन लड़कियों को राहुल अपने दोस्तों के साथ रखने वाला था. उन की साजिश यह थी कि इन लड़कियों को यहां ला कर इन से जिस्मफरोशी का धंधा करा के पैसे कमाएंगे. दिसंबर महीने से ही दोनों बहनों को लाने की साजिश शुरू कर दी गई थी. निशा ने सब से पहले अपनी सब से छोटी बहन मनतारा को तैयार किया.

21 दिसंबर को निशा ने गुपचुप तरीके से रात के समय मनतारा को घर से निकाल दिया. इस की घर वालों को कानोंकान खबर तक नहीं हुई. सुबह होने पर मनतारा के गायब होने की जानकारी हुई. उस के 9 दिन बाद 30 दिसंबर, 2022 को जब पिता छोटी बेटी मनतारा की तलाश में पंजाब गए हुए थे, उस ने बीच वाली बहन खुशबू को बरगलाया और उसे अपने साथ ले कर घर से निकल गई.

 

कोर्ट से गर्भपात कराने की मांगी अनुमति

गर्भवती मनतारा की ओर से न्यायालय में प्रार्थनापत्र दे कर गर्भपात करवाने की अनुमति मांगी गई. इस पर न्यायालय ने चिकित्सक की रिपोर्ट पर मनतारा का गर्भपात कराने की अनुमति प्रदान कर दी. परिजनों द्वारा अनुमति मिलने के बाद मनतारा का अस्पताल ले जा कर गर्भपात करा दिया गया.

निशा, उस का प्रेमी राहुल व उस का दोस्त भारत इस समय जेल में हैं. भारत को अपहरण, रेप व पोक्सो एक्ट की धाराओं में जेल भेजा गया है.

ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता है कि सगी बड़ी बहन अपने स्वार्थ की खातिर अपनी नाबालिग छोटी बहनों की लाइफ से खिलवाड़ कर सकती है. अपने प्रेमी व उस के दोस्तों के साथ षडयंत्र रच कर अपनी बहनों व परिवार की बदनामी करा कर निशा को क्या हासिल हुआ? उसे मिली जेल की सलाखें जिस की वह हकदार थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में मनतारा व खुशबू परिवर्तित नाम हैं

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 2

आरोपी विवेक सिंह से तृप्ति सोनी हत्या के संबंध में पूछताछ की तो जो कहानी सामने आई वह चौंकाने वाली निकली-

अजमेर आरावली पर्वत श्रृंखला की सुंदर पहाङियों से घिरा राजस्थान का एक खूबसूरत शहर है, जो पर्यटन स्थल होने के साथ ही एक धार्मिक नगरी भी है. भौगोलिक नजरिए से राजस्थान राज्य के मध्य में स्थित होने के चलते इस नगर को राजस्थान का दिल भी कहा जाता है. साल के हर दिन यहां श्रद्धालुओं तीर्थ यात्रयों के साथ ही दुनियाभर के घुमक्कड़ सैलानियों का आनाजाना लगा रहता है.

मई का महीना चल रहा था जिस में प्रचंड गरमी थी, लेकिन आकाश में काले बादल मंडरा रहे थे और जल्द ही बारिश होने के आसार नजर आ रहे थे. लिहाजा हर कोई शाम होने से पहले घर पहुंचने की जल्दी में दिखाई दे रहा था इसीलिए टैंपो सवारियों से ठसाठस भरे नजर आ रहे थे. तृप्ति ने च्वगम चबाते हुए इधरउधर नजरें घुमाईं पर किसी भी टैंपो में खाली जगह न देख कर वह बड़बड़ाई. “आज कोई घर में नहीं रहेगा. ऐसा लगता है कि जैसे पूरा शहर ही दूसरी तरफ शिफ्ट हो रहा है.

अब तो अगले चौक तक पैदल ही जाना पड़ेगा. आगे तो मिल ही जाएगा कोई न कोई टैंपो. बड़बड़ाते हुए उस ने कदम आगे बढ़ाया ही था कि तभी एक कार उस के पास आ कर रुकी. उस ने किनारे हट कर आगे बढ़ जाना चाहा. पर तभी कार चालक की आवाज सुन कर चौंक गई. कार चालक ने उस नाम ले कर आवाज दी थी, “हेलो तृप्ति कहां जा रही हो?”

पलट कर तृप्ति ने देखा तो सामने विवेक उर्फ विवान था, उस का नया दोस्त. जिस से कुछ दिन पहले ही उस की सोशल मीडिया पर दोस्ती हुई थी. पर अभी तक दोनों की रूबरू मुलाकात नहीं हुई थी. बिगडते मौसम के दौरान टैंपो नहीं मिलने से फिक्रमंद हो रही तृप्ति अंदर ही अंदर खुश होते हुए बोली, “अरे वाह विवान, तुम इधर ही रहते हो क्या?”

“अरे नहीं यार, मैं तो तुम्हें देख कर रुका था. सोचा कि तुम इधर ही रहती होगी. आज शाम की चाय यहीं पी लेंगे.”

सुन कर हंसते हुए तृप्ति बोली, “नहीं जी, मैं तो मेयो कालेज के पास धौलाभाटा कालोनी में रहती हूं. यहां तो मैं टीचर हूं एक प्राइवेट स्कूल मेें.”

तब तक बरसात शुरू हो गई तो विवान ने कार का गेट खोलते हुए कहा, “जल्दी बैठो मुझे भी रामगंज जाना है. उधर ही रहता हूं. तृप्ति कार में बैठ गई. दोनों रास्ते में बातचीत करते हुए आना सागर चौपाटी गए. वहां पर पर पहुंच कर दोनों ने गर्मागर्म समोसे के साथ कुल्हड़ वाली चाय पी फिर घर की तरफ रवाना हो गए.

मौसम ठंडा हो गया था इसलिए तृप्ति को उस के घर ड्राप कर के विवेक सिंह अपने घर राम गंज चला गया. जातेजाते तृप्ति से अगले दिन स्कूल टाइम पर रेलवे स्टेशन के पास मार्टिडल ब्रिज पर मिलने को कहा जो दोनों के घर के रास्ते में ही आता था.

फेसबुक फ्रेंड बन गया प्रेमी

अगले दिन तृप्ति जब स्कूल के लिए निकली तो देखा मार्टिडल ब्रिज पर विवेक की कार खड़ी है तो वह टैंपो से उतर कर कार में बैठ गई और कार पुष्कर रोड की तरफ रवाना हो गई. बड़े शहरों में तो वैसे भी किसी को किसी की खबर नहीं रहती है कि कौन कहां जा रहा है और फिर बिंदास नेचर की तृप्ति तो वैसे भी अकेली ही रहती थी. लिहाजा स्कूल के बहाने दोनों का रोजाना मिलने और आने जाने का सिलसिला शुरू हो गया.

उन की मुलाकातें जल्दी ही पक्की दोस्ती में बदल हो गईं. धीरेधीरे दोनों एक दूसरे के बारे में सब कुछ जान गए. 30 वर्षीय विवेक ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था किसी सेठ की कार चलाता था, आगेपीछे कोई था नहीं, कुंवारा था. इसलिए बनसंवर कर रहता था. वह ठीकठाक कमा भी लेता था. वह पहली नजर में ही तृप्ति की खूबसूरती पर मर मिटा था. यह बात जानने के बाद कि तृप्ति शादीशुदा है और उस की एक 7 साल की बेटी भी है. वह पति से अलग हो कर रह रही है.

विवेक उस के साथ घर बसाने के सपने देखने लगा. आधुनिक विचारों वाली युवती तृप्ति ने भी उस से कुछ नहीं छिपाया और दोस्त समझ कर. बातों ही बातों में बता दिया था कि उस का परिवार तो बीकानेर का रहने वाला है, परंतु अजमेर निवासी सूरज चौहान के साथ साल 2012 में उस ने प्रेम विवाह किया था. तब से ही अजमेर में रह रही है और उन की एक बेटी भी है.

उस ने बताया कि प्रेम विवाह से ले कर बेटी के जन्म तक पतिपत्नी के बीच सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन बाद में उन दोनों के बीच पैसों की तंगी को ले कर गृह कलह होने लगी और पैसे कमाने के चक्कर में उस के पति सूरज की संगत खराब हो गई और वह चेक बाउंस के एक मामले में फंस गया और पारिवारिक तनाव बढऩे पर तृप्तिऔर सूरज के बीच रोजाना झगड़ा होने लगा.

एक दिन मामला फैमली कोर्ट यानी पारिवारिक न्यायालय तक पहुंच गया. उस के बाद अदालत में प्रकरण विचाराधीन होने के दौरान ही दोनों एक दूसरे से अलगअलग रहने लग. कुछ दिन बाद ही चैक बाउंसिंग के मामले में सूरज को 2 साल की सजा हो गई और उसे अजमेर सेंट्रल जेल भेज दिया गया.

तृप्ति ने बताया कि इस अनजान शहर में वह बेटी के साथ अकेली रह गई थी. वह पढ़ीलिखी स्मार्ट युवती थी इसलिए उस ने दौङ़धूप कर पुष्कर रोड स्थित एक प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली और एक परिचित सहेली की मदद से धोलाभाटा कालोनी में किराए का घर ले कर रहने लगी.

विवेक ने तृप्ति के प्यार में पड़ कर उस की ख्वाहिशें पूरी करनी शुरू कर दीं. साथ ही जरूरत पङऩे पर रुपएपैसे से भी उस की मदद करने लगा और तृप्ति भी विवेक को दोस्त मान कर उस से तोहफे लेने लगी पर वह शायद यह बात भूल गयी ,आज की इस मतलब परस्त दुनिया में एक मर्द और औरत कभी दोस्त नहीं हो सकते हैं.

लिहाजा तृप्ति की दोस्ती को प्यार समझ कर एक तरफा प्यार में पागल विवेक ने उस के नाम का टैटू भी अपने हाथ पर गोदवा लिया था. वह जल्दी ही तृप्ति के सामने शादी का प्रस्ताव रख कर उसे अपनी पत्नी बनाने की योजना बना चुका था, लेकिन पारिवारिक न्यायालय में तृप्ति का मामला विचाराधीन होने के कारण् वह फैमली कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा था.

कातिल प्रेम पुजारी – भाग 3

प्रीति के घरवालों ने मनोज को खूब समझाने की कोशिश की, लेकिन उस की शंका का समाधान नहीं हुआ. धीरेधीरे मनोज ने प्रीति या उस के घर वालों से कोई संपर्क नहीं किया. वह उन का फोन तक नहीं उठाता था. जवान बेटी अपने बच्चे को ले कर मायके में रह रही थी, इस से प्रीति के पिता की समाज में बदनामी हो रही थी.

प्रीति के पिता ने परेशान हो कर कटनी पुलिस थाने में मनोज के खिलाफ दहेज उत्पीडऩ की शिकायत कर दी और रिपोर्ट दर्ज हो गई. मनोज को रिश्तेदारों ने समझाया, “किसी तरह प्रीति से राजीनामा कर लो मनोज, नहीं तो दहेज अधिनियम के तहत तुम्हें जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी.”

जेल जाने के डर से मनोज प्रीति को साथ ले जाने के लिए तैयार हो गया. दोनों फिर से भोपाल में साथ रहने लगे थे. मनोज के खिलाफ प्रीति ने जो दहेज उत्पीडऩ का केस लगाया था, प्रीति ने उस में राजीनामा नहीं किया था. मनोज कई बार कह चुका था कि हम साथ रह रहे हैं, सब ठीक है फिर तुम केस वापस क्यों नहीं ले लेती.

इस बीच प्रीति अपने परिवार में रम चुकी थी. उस का तीसरा बच्चा भी हो चुका था. प्रीति अपने प्रेम संबंधों को भुला नहीं पाई थी, उस के घर रामनिवास का आनाजाना फिर से शुरू हो चुका था. इधर रामनिवास की पत्नी शालिनी को भी पति के प्रीति से नाजायज संबंधों की जानकारी हो गई थी. रामनिवास की पत्नी शालिनी के मन में भी शंका पैदा हो गई कि उस के पति और प्रीति के बीच कुछ चल रहा है. इसे ले कर शालिनी का अपने पति से आए दिन झगड़ा होता था.

दोनों परिवार आपस में रिश्तेदार थे, इस के बावजूद दोनों परिवारों में मनमुटाव इतना बढ़ गया था कि वे आपस में दुश्मन बन चुके थे और किसी भी हद तक जाने तैयार थे. फिर से मामला बिगड़ते देख प्रीति ने रामनिवास से बातचीत बंद कर दी थी. वह उस का फोन भी नहीं उठाती थी.

रामनिवास को लगता था कि प्रीति का अब किसी और से अफेयर चल रहा है. इस कारण वह उस से दूरियां बना रही है. प्रीति की वजह से शालिनी के परिवार में कलह होने लगी थी और शालिनी प्रीति से नफरत करने लगी थी. रामनिवास ने प्रीति को सबक सिखाने का प्लान बना लिया था.

प्रेमिका से पीछा छुड़ाने में पत्नी ने दिया साथ

पुलिस पूछताछ में पता चला कि प्रीति की हत्या की वजह रामनिवास के प्रीति के साथ प्रेम संबंध थे. रामनिवास ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस का और प्रीति का अफेयर चल रहा था. पिछले कुछ दिनों से उस ने मुझ से बात करनी बंद कर दी थी. मुझे शक था कि शायद उस का किसी और से अफेयर चलने लगा है. इसी बात को ले कर हमारे बीच झगड़ा हुआ और मैं ने उसे सबक सिखाने के लिए उस की हत्या करने का फैसला ले लिया.

5 अगस्त, 2023 की दोपहर को रामनिवास ने पत्नी शालिनी से कहा, “चलो, आज मनोज के घर चलते हैं और प्रीति से मिल कर मामले को सुलझा लेते हैं. तुम्हारे मन में जो भी शंका है, वह दूर हो जाएगी.”

शालिनी झटपट चलने को तैयार हो गई, लेकिन मनोज के मन में कुछ और चल रहा था. उस ने पहले से ही एक चाकू खरीद कर अपने पास रख लिया था. उस दिन बारिश हो रही थी तो रेनकोट पहन कर और मुंह पर नकाब बांध कर दोनों प्रीति के घर जाने के लिए तैयार हुए. रेनकोट में दोनों को पहचानना मुश्किल था. शालिनी ने जब उस से पूछा, “ये नकाब की क्या जरूरत है?”

तो मनोज ने कहा, “वैसे ही हमारा क्लेश चल रहा है, लोग हमारे बारे में तरहतरह की बातें करते हैं तो हमें छिप कर ही जाना चाहिए.”

इस के बाद रामनिवास ने अपनी पहचान के चंदन नाम के आटो वाले को फोन लगा कर कहा, “चंदन, तुम जल्दी से आटो ले कर आ जाओ, हमें छोला मंदिर तक जाना है.”

दोपहर का वक्त था, चंदन खाना खा कर घर से निकलने ही वाला था जैसे ही रामनिवास का फोन आया वह बोला, “हां पंडितजी, 5 मिनट में आटो ले कर पहुंच जाऊंगा.”

आटो में बैठ कर दोनों भानपुर इलाके के लीलाधर कालोनी में पहुंच गए. रामनिवास ने चंदन को प्रीति के घर से दूर वाली गली में खड़ा किया और उसे वहीं रुकने को कहा. दोनों आटो से उतरे और सीधे प्रीति के घर पहुंच गए. करीब आधे घंटे बाद शालिनी और रामनिवास उसी आटो में बैठ कर घर वापस आ गए.

रामनिवास की पत्नी शालिनी मिश्रा ने पुलिस को बताया, “सुबह मेरे पति ने मुझे अपने साथ प्रीति के घर चलने के लिए कहा था. उन्होंने मुझे सलवार सूट के साथ ग्लव्स, काला चश्मा और नीले जूते दिए, फिर कहा कि हम प्रीति के पास चल रहे हैं. उस से बातचीत कर के सब प्रौब्लम सौल्व कर लेंगे. ऐसे चलेंगे तो लोग पहचान लेंगे, इसलिए कवर हो कर चलना पड़ेगा.”

शालिनी ने आगे बताया, “मुझे मेरे पति और प्रीति के अफेयर की जानकारी थी और इसे ले कर घर में हर दिन झगड़ा होता रहता था. मैं प्रीति से पति का पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उन के साथ चली गई. मुझे पता नहीं था कि मेरे पति उस की हत्या करने के मकसद से जा रहे हैं. जब हम वहां पहुंचे और मेरे पति ने उस पर वार करना शुरू कर दिए, ऐसे में मुझे उन का साथ देना पड़ा. वहीं पर प्रीति का एक डेढ़ साल का बच्चा भी था, मैं ने बस उसे ही संभाला था. इस के अलावा मैं ने और कुछ नहीं किया.”

पुलिस ने प्रीति की हत्या के आरोप में 35 वर्षीय रामनिवास मिश्रा, और उस की पत्नी 30 वर्षीया शालिनी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें भोपाल जेल भेज दिया गया. नाजायज संबंधों की खातिर प्रीति अपनी जान से हाथ धो बैठी और उस के बच्चे बिन मां के रह गए. जबकि प्रेम में पागल पुजारी रामनिवास मिश्रा को अपनी पत्नी के साथ जेल की चारदीवारी में कैद होना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या – भाग 2

तान्या रचित और टीटू को बहुत पहले से जानती थी. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. पुलिस पूछताछ में तान्या व उसके दोस्तों से जो जानकारी प्राप्त हुई वह इस प्रकार थी.

मध्य प्रदेश के धार जिले के बागटांडा के बरोड़ निवासी तान्या कुछ समय पहले पढ़ाई करने के लिए इंदौर आई थी. इंदौर आते ही उस ने एक ब्रोकर के माध्यम से पलासिया इलाके के गायत्री अपार्टमेंट में एक किराए का फ्लैट लिया, और वहीं रह कर उस ने अपनी पढ़ाई शुरू कर दी थी.

तान्या खातेपीते परिवार से थी. उस के पास रुपयोंपैसों की कमी नही थी. उस के मम्मीपापा उस का भविष्य सुधारने के लिए काफी रुपए खर्च कर रहे थे. खूबसूरत तान्या के कालेज में एडमिशन लेते ही उस के कई दीवाने हो गए थे. वह शुरू से ही बनठन कर रहती थी. मम्मीपापा खर्च के लिए पैसा भेजते तो वह खुले हाथ से पैसा खर्च भी करती थी.

इंदौर आते ही उस के जैसे पंख निकल आए थे. वह खुली हवा में घूमने लगी. उस की कुछ फ्रेंड गलत संगत में पड़ी हुई थीं. तान्या उन के संपर्क में आई तो उस पर भी उन का रंग चढ़ने लगा. वह भी अपनी दोस्तों के साथ शराब और सिगरेट का नशा करने लगी थी. उसी नशे के कारण उस की दोस्ती आवारा लड़कों से हो गई. जवानी के जोश में उस के कदम बहके तो वह पढ़ाई करना भूल गई.

उसी दौरान उस की मुलाकात रचित उर्फ टीटू से हुई. टीटू ने उसे एक बार प्यार से देखा तो देखता ही रह गया. दोनों के बीच परिचय हुआ और फिर जल्दी ही दोनों ने दोस्ती के लिए हाथ बढ़ा दिए थे. दोस्ती के सहारे ही उन के बीच प्यार बढ़ा और कुछ ही दिनों में वह एकदूसरे को दिलो जान से चाहने लगे.

तान्या से दोस्ती हो जाने के बाद रचित का उस के फ्लैट पर भी आनाजाना शुरू हो गया था. रचित घंटों उस के पास पड़ा रहता था. जिस के कारण उस के आसपास रहने वाले लोग परेशान रहने लगे थे. चूंकि तान्या ने वह फ्लैट किराए पर लिया था. इसी कारण उस के पड़ोसी उसे वहां से जाने के लिए भी नहीं कह सकते थे.

पहले तो उस के फ्लैट पर रचित ही आता था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद अन्य कई युवक भी आने लगे. थे. तान्या के फ्लैट में लडकों का आनाजान शुरू हुआ तो पड़ोसियों को परेशानी हुई. .उस की हरकतों से तंग आ कर पड़ोसियों ने उस फ्लैट के मालिक से उस की शिकायत कर उस से फ्लैट खाली कराने के लिए दबाव बनाया.

पड़ोसियों के दबाव में आ कर फ्लैट मालिक ने तान्या से तुरंत ही फ्लैट खाली करने को कहा. मालिक के कहने पर तान्या ने फ्लैट खाली करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा. तान्या ने यह बात अपने दोस्त रचित को बताई. साथ ही उसने उस से उस के लिए एक मकान ढूंढने को कहा, लेकिन इस मामले में रचित ने उस की कोई भी सहायता करने से साफ मना कर दिया था.

रचित ने तान्या को समझाने का किया प्रयास

रचित के अलाबा तान्या का एक ओर दोस्त था छोटू. उस का भी उस के पास बहुत आना जाना लगा रहता था. यह बात उस ने छोटू के सामने रखी तो उस ने उस के लिए फ्लैट ढूंढना शुरू कर दिया. छोटू परदेशीपुरा इलाके में रहता था. छोटू एक दबंग किस्म का युवक था. छोटेमोटे अपराध और मारपीट कर उस ने अपने इलाके में दहशत फैला रखी थी. उस पर 3 मुकदमे दर्ज थे.

कुछ सयम पहले ही तान्या की उस से मुलाकात हुई थी. छोटू को लड़कियों को परखने की महारत हासिल थी. उस ने तान्या के लिए कुछ ही दिनों में एक किराए के फ्लैट की व्यवस्था कर दी. उस के बाद वह उसी के इलाके में आ कर रहने लगी थी. तान्या की छोटू से दोस्ती पक्की हो गई थी. छोटू के साथ दोस्ती हो जाने के बाद तान्या को नशे की लत भी लग गई थी. जिस के बाद उसमें अच्छा बुरा सोचने की क्षमता भी खत्म हो गई. थी.

यह बात रचित को पता चली तो उस ने उसे समझाने की कोशिश की, ”तान्या तुम पढ़ीलिखी हो, तुम्हें ऐसे आवारा किस्म के साथ दोस्ती नही करनी चाहिए. छोटू के साथ दोस्ती करने के बाद तुम पछताओगी.”

लेकिन तान्या ने उस की एक न सुनी. फिर रचित ने भी उस से बात करनी ही बंद कर दी. फिर भी तान्या रचित को छोड़ने को तैयार न थी. वह बारबार रचित को फोन लगाती, लेकिन वह उस का फोन रिसीव नहीं कर रहा था. जिस के कारण वह उस से मिल भी नहीं पा रही थी.

उस के बाद तान्या ने छोटू सेे कहा कि वह किसी भी तरह से एक बार उसे रचित से मिलवा दे. छोटू ने रचित से मिलकर तान्या का मैसेज देते हुए. मिलने को कहा, लेकिन उस के बाद भी रचित उस से नहीं मिला.

जब रचित ने तान्या से रिश्ता तोड़ लिया तो तान्या ने उसे सबक सिखाने की योजना बनाई. छोटू पहले से ही आपराधिक प्रवृत्ति का था. हर वक्त उस के साथ कई आवारा किस्म के लड़के घूमते थे. एक दिन तान्या ने छोटू से कहा कि वह रचित को धमकाना चाहती है, जिस से घबरा कर वह उसके संपर्क में आ जाए.

तान्या पर मौडल बनने का भूत था सवार

छोटू अय्याश किस्म का था. उस से ज्यादा वह हवाबाज होने के बाद शेखी बघारने में भी कम नही था. यही कारण था कि सामने वाला जल्दी ही उस की बातों में आ जाता था. तान्या उस के सम्पर्क में आई तो उसे भी लगा कि छोटू जो कहता है, उसे कर भी देता है.

तान्या इंदौर आ कर हवा में उड़ने लगी और शीघ्र उच्च स्तर की मौडल बनने का सपना देखने लगी थी. छोटू से दोस्ती करते ही उसे लगने लगा था कि वह उस के सपनों को जल्दी ही पूरा कर सकता है. तान्या उस के संपर्क में आने के बाद कई बार उस से बोल चुकी थी कि उस की मुलाकात एक दो मौडल लड़कों से करवा देना.

फेसबुकिया प्यार बना जी का जंजाल

जाना अनजाना सच : जुर्म का भागीदार – भाग 2

मेरी और मेराज की शादी भी इत्तफाक ही थी. सच कहूं तो 2 बड़े परिवारों के बीच अचानक बना एक खोखला संबंध भर. यह संबंध भी इसलिए बना था क्योंकि मेरे अब्बू अम्मी को मेरी शादी की जल्दी थी. उन की चाहत पूरी हुई और सब कुछ जल्दीजल्दी में हो गया. इस के पीछे भी एक रहस्य था जिस के लिए जिम्मेदार मैं ही थी.

बात उन दिनों की है जब मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ा करती थी. एक दिन जब मैं अपनी फाइल उठा कर यूनिवर्सिटी जाने के लिए निकली तो अब्बू बोले, ‘‘सलमा, इन से मिलो, यह हैं मेरे जिगरी दोस्त जुबैर. इन के साहबजादे अनवर मियां भी लखनऊ यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में एमएससी करने आए हैं. उन्हें हौस्टल में जगह नहीं मिल पा रही है इसलिए कुछ दिन हमारे यहां ही रहेंगे. तुम शाम तक कोठी की ऊपरी मंजिल के दोनों कमरे साफ करवा देना. अनवर शाम को आ जाएगा.’’

‘‘आदाब चचाजान’’ कह कर मैं अब्बू की तरफ मुखातिब हो कर बोली, ‘‘अब्बू, मैं शाम तक कमरे तैयार करवा दूंगी. अभी जा रही हूं, देर हुई तो मेरी क्लास छूट जाएगी.’’

खुदा हाफिज कह कर मैं सीढि़यां उतर कर चली गई. चचाजान और अब्बू हाथ हिलाते रहे. वापस आते ही मैं ने सब से पहले कमरे साफ करवाए. फूलों वाली नई चादर बिछाई, गुलदानों में नए फूल सजाए. टेबल पर अपने हाथ का कढ़ा हुआ मेजपोश बिछाया, उस पर पानी से भरा जग और नक्काशीदार ग्लास रखा.

नीचे आई तो लगा कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. मेरे कपड़े और मलिन सा चेहरा धूल से भरे हुए थे. पर मैं करती भी तो क्या, दस्तक तेज होती जा रही थी. मैं ने फाटक खोल दिया.

बाहर एक युवक खड़ा था. वह अपना परिचय देते हुए बोला, ‘‘मैं अनवर.’’

कसरती जिस्म, स्याह घुंघराले बाल, उसे देख मैं तो पलक झपकना ही भूल गई. लगा जैसे किसी ने सम्मोहन सा कर दिया हो. ‘‘आइए तशरीफ लाइए.’’ कह कर मैं ने चुन्नी सर पर डाल ली. फिर उसे कमरे में ले गई.

कमरे की सजावट देख कर वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओह, तो आप कमरे की सफाई कर रही थीं, बहुत सुंदर सजाया है.’’

‘‘सुबह चचाजान से मुलाकात हुई, पता चला आप को हौस्टल में जगह नहीं मिली.’’ मैं ने कहा, ‘‘इसी बहाने हमें आप की खिदमत का मौका मिल जाएगा.’’

‘‘नाहक ही आप को परेशान किया, माफ कीजिएगा. जैसे ही वहां कमरा मिलेगा, मैं चला जाऊंगा.’’ अनवर ने कहा तो मैं बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हैं आप? यह तो हमारी खुशकिस्मती है कि आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ लाए.’’

‘‘आप को एक तकलीफ और दूंगा, अगर एक कप चाय मिल जाए तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ओह श्योर.’’ कह कर मैं तेजी से जीना उतरने लगी, उस वक्त मेरा दिल मेरे ही बस में नहीं था.

मैं ने उसे चाय ला कर दे दी. उस दिन बात वहीं खत्म हो गई. फिर भी न जाने क्यों मैं उसे ले कर खुश थी.

अनवर को हमारे यहां रहते लंबा वक्त गुजर गया. मैं उस का और उस की हर चीज का ध्यान रखती. उस की गैरहाजरी में उस का कमरा सजाती. अपनी ड्रैसेज पर भी खूब ध्यान देती. उस के सामने बनसंवर कर जाना, मुझे अच्छा लगता था. वह भी ऐसी ही कोशिश करता था.

मुझ में आए बदलाव पर अम्मी ने कभी भी ध्यान नहीं दिया. इस की वजह थी अब्बू का देर से घर आना. भाईभाभी अमेरिका में थे, जबकि अम्मी का ज्यादातर वक्त किटी पार्टियों में गुजरता था. घूमनेफिरने की शौकीन अम्मी को मुझ पर नजर रखने का वक्त ही नहीं मिलता था.

मैं और अनवर यूनिवर्सिटी में आतेजाते अकसर आमनेसामने पड़ जाते थे. कभी टैगोर लायब्रेरी में, कभी बौटेनिकल गार्डन में. वह जब भी मुझे देखता, उस की प्यासी नजरें कुछ पैगाम सा देती नजर आतीं. एक दिन सुबहसुबह जब मैं उस के कमरे में चाय देने गई, तो उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘सलमा, क्या हम दोस्ती के लायक भी नहीं हैं?’’

यह मेरे लिए अप्रत्याशित जरूर था, लेकिन मेरे मन के किसी कोने में दबी तमन्नाओं को जैसे पंख मिल गए और मैं आसमान में उड़ने लगी. कब से दबा कर रखी चाहत ने जोर मारा तो एक झटके में मन के सभी बंधन टूट गए.

उस दिन आसमान पर कालेकाले बादल छाए थे. इतवार का दिन था, मैं ने हलका मेकअप कर के फिरोजी रंग का गरारा, कुरता और फिरोजी चूडि़यां पहनी. दरअसल उस दिन मेरी खास फ्रैंड नसीमा आने वाली थी.

अम्मी तैयार हो कर निकलते हुए बोलीं, ‘‘सलमा, मैं आज पिक्चर जा रही हूं, सभी किटी मैंबर हैं. बुआ से लंच बनवा दिया है, जल्दी ही आऊंगी. ऊपर भी लंच बुआ दे आएंगीं. वह 2 बजे दोबारा आएंगी.’’

अम्मी के जाते ही मैं यह सोच कर खुशी से उछल पड़ी कि आज नसीमा से खूब दिल की बातें करूंगी.

मैं चाय ले कर ऊपर गई तो अनवर कुछ रोमांटिक मूड में लगा. मैं ने चाय रखी तो वह मेरी तरफ देख कर बोला, ‘‘आज तो आप कयामत लग रही हैं. क्या करूं, मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं.’’

मैं कुछ सोच पाती, इस से पहले ही अनवर ने मुझे बाहों में भर लिया. उस की बाहों में मुझे जन्नत नजर आ रही थी. लेकिन तभी जैसे जलजला सा आ गया. मेरे पांवों के नीचे से जमीन निकल गई.

सामने अम्मी रौद्र रूप में खड़ी थीं. वह जोर से चीख कर बोलीं, ‘‘भला हुआ जो मैं अपना पर्स भूल गई थी, वरना इस नौटंकी का पता ही नहीं चलता. इसे कहते हैं आस्तीन का सांप. जिसे फ्री में खिलापिला रहे हैं, वही हमें डंस रहा है. हम ने तुम्हें पनाह दी थी और तुम ने ही हमारा गिरेबां चाक कर दिया. जाओ, चले जाओ यहां से. यहां गुंडे मवालियों का कोई काम नहीं है.’’

मैं और अनवर दोनों ही अपराधियों की तरह मुंह लटकाए खड़े थे. अम्मी बहुत गुस्से में थीं. वह अनवर का सामान उठाउठा कर नीचे फेंकने लगीं. जरा सी देर में सारा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. अनवर गुनहगार बना खामोश खड़ा था, उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे. अब जाना ही उस के लिए बेहतर था. उस ने खामोशी से अपना सामान समेटा और टैक्सी स्टैंड की ओर निकल गया.

वह तो चला गया पर मेरी जिंदगी में तूफान बरपा गया. उस के जाने के बाद अम्मी ने मोहल्ले वालों से कह दिया कि किराया नहीं देता था, कब तक रखती.

अम्मी ने मुझे खूब मारा, लेकिन उन की मार मेरे प्यार की आग को बुझा नहीं सकी. एक दिन अनवर मेरे सोशियोलौजी सोशल वर्क डिपार्टमेंट के आगे खड़ा था. रूखे बाल, उदास चेहरा. मैं दौड़ कर उस के पास जा पहुंची और उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है अनवर, मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकती.’’

अनवर मेरी तरफ देख कर बोला, ‘‘यूनिवर्सिटी के पास ही एक कमरा लिया है, अम्मी भी आई हुई हैं. मैं ने उन्हें तुम्हारे बारे में सब कुछ बता रखा है. अम्मी मेरी दुलहन को देखना चाहती हैं. 2 मिनट के लिए चल सकोगी? अम्मी हमारी शादी का कोई रास्ता निकालना चाहती हैं.’’

अनवर की आवाज में जो दर्द था, उसे देख मैं रो पड़ी और उस के पीछेपीछे चल दी.

सपना का अधूरा सपना – भाग 2

सपना के परिवार में पिता कुंवरपाल सिंह यादव, मां उर्मिला यादव, 3 बहनें प्रार्थना, मधु और भावना के अलावा 1 छोटा भाई आशीष था. कुंवरपाल का दूध का अच्छाखासा व्यवसाय था. फिरोजाबाद के ही थाना सिरसागंज के गांव सिकरामऊ में उस की खेती की काफी जमीन भी थी. फिरोजाबाद के सुदामानगर की जिस नवनिर्मित कालोनी में कुंवरपाल रहता था, उस में उस की गिनती संपन्न लोगों में होती थी. उस का काफी बड़ा मकान भी था.

कुंवरपाल को राजनीति से लगाव था, इसलिए उस ने तमाम नेताओं से संबंध बना रखे थे. संबंध की ही वजह से उस के यहां तमाम नेताओं का आनाजाना लगा रहता था. सिरसागंज के विधायक से तो कुंवरपाल की दांत काटी दोस्ती थी. कुंवरपाल के 2 साले थे. दोनों ही एक राजनीतिक दल में पदाधिकारी थे. उन का अपने क्षेत्र में खासा रुतबा था. इस का असर उन की बहन यानी कुंवरपाल की पत्नी उर्मिला पर भी था. रौबरुतबे की ही वजह से पतिपत्नी कालोनी में किसी को कुछ नहीं समझते थे. वे जल्दी से किसी से बात भी नहीं करते थे.

सपना ने घर के नजदीक ही स्थित लिटिल ऐंजल्स कान्वेंट स्कूल से इंटर करने के बाद एम.जी. कालेज से ग्रैजुएशन किया. इस के बाद वह कोई प्रोफेशनल कोर्स करना चाहती थी. थोड़ी कोशिश के बाद उस का बीएड में हो गया, जिस के लिए उस ने दाऊदयाल महिला महाविद्यालय में दाखिला ले लिया.

सपना जिन दिनों हाईस्कूल में पढ़ रही थी, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात अभिनय राणा से हुई थी. अभिनय सुदामानगर से 2 किलोमीटर दूर स्थित लोहियानगर में रहता था. उस के परिवार में पिता शिशुपाल सिंह जादौन, मां प्रेमा देवी जादौन और एक बड़ा भाई अभिषेक जादौन था. पिता उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही थे. जादौन परिवार के पास काफी पुश्तैनी प्रौपर्टी थी, इसलिए इस परिवार का रहनसहन रईसों जैसा  था. उन दिनों वह बारहवीं में पढ़ रहा था.

एक दिन सपना स्कूटी से कोचिंग से घर जा रही थी, तभी एक बाइक सवार की टक्कर से गिर पड़ी. बाइक सवार तो भाग गया, लेकिन डिवाइडर से टकराने की वजह से सपना के पैर से खून बहने लगा. पीछे से आ रहे अभिनय ने उसे उठाया और मरहमपट्टी करा कर उसे उस के घर पहुंचाया. अभिनय का यह सेवाभाव सपना के दिल को छू गया. उस की छवि उस के दिल में एक अच्छे युवक की बन गई.

सपना जिस कोचिंग में पढ़ती थी, उसी में अभिनय भी पढ़ता था. अभिनय की गिनती कोचिंग इंस्टीट्यूट में अच्छे लड़कों में होती थी. ऐसी ही बातों से वह सपना के दिल की धड़कन बन गया. आमनेसामने पड़ने पर दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. कभीकभार बातचीत भी हो जाती थी. किसी दिन दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए तो दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होतेहोते प्यार का भी सिलसिला शुरू हो गया.

दोनों में प्यार गहराया तो वे एकदूसरे की पसंद का खयाल रखने लगे. इस तरह प्यार की नाव पर सवार हुए उन्हें एकएक कर के 5 साल बीत गए. इस बीच सपना ने ग्रैजुएशन कर लिया तो अभिनय बीएसपी कर के ठेकेदारी करने लगा. इस समय वह फिरोजाबाद का एक बड़ा शराब व्यवसाई माना जाता है. शहर और कस्बों में उस की अंग्रेजी शराब और देशी शराब की तमाम दुकानें हैं. उस के कई बार भी हैं. अभिनय भले ही शराब का बड़ा कारोबारी बन चुका था, लेकिन सपना के प्रति उस का प्यार वैसा ही था.

सपना ने ग्रैजुएशन कर के बीएड में दाखिला ले लिया था. 5 सालों से उस का जो प्यार चोरीछिपे चल रहा था, अब तक कई लोगों की नजरों में आ चुका था. वे कुंवरपाल के परिचित थे, इसलिए यह बात उस तक पहुंच गई. जानकारी होने पर कुंवरपाल ने सपना को बुला कर अभिनय और उस से प्यार के बारे में पूछा तो उस ने इस बात को इसलिए नहीं छिपाया, क्योंकि अभिनय हर तरह से कुंवरपाल का दामाद बनने लायक था.

लेकिन जब कुंवरपाल को पता चला कि सपना का प्रेमी ठाकुर है तो वह बौखला उठा. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘यादवों ने चूड़ी पहन रखी है क्या, जो ठाकुर का लौंडा उन की लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाएगा.’’

बाप के गुस्से को देख कर सपना की समझ में आ गया कि उस का बाप ऊंची जाति से भी उतनी ही नफरत करता है, जितनी नीची जाति वालों से. कुंवरपाल ने उस से साफसाफ कह दिया कि आज से ही वह उस लड़के से सारे संबंध खत्म कर ले. अगर उस के साथ कहीं दिखाई दे गई तो वह उसे काट कर रख देगा.

कुंवरपाल ने भले ही अपना आदेश सुना दिया था, लेकिन सपना को अभिनय के बिना अपनी दुनिया अंधकारमय नजर आ रही थी. इसलिए उस ने भी तय कर लिया कि कुछ भी हो जाए, वह अभिनय का साथ किसी भी हालत में नहीं छोड़ेगी. इसलिए उस ने तुरंत फोन कर के सारी बातें अभिनय को बता दीं. अभिनय ने उस का हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चिंता करने की कोई बात नहीं है. हम दोनों ही बालिग हैं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने में सक्षम हैं.’’

प्रेमी की इस बात से सपना को काफी सुकून मिला. लेकिन अब उस के घर से अकेली निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. इसी के साथ कुंवरपाल ने उस की शादी के लिए लड़के की तलाश भी जोरशोर से शुरू कर दी. वह बीएड की पढ़ाई पूरी होते ही सपना की शादी कर देना चाहता था.

इधर कुंवरपाल सपना की शादी के लिए लड़का ढूंढ रहा था, उधर उस ने अभिनय से शादी करने का फैसला कर लिया था. यह अप्रैल, 2014 की बात है.

दरअसल, सपना मौका निकाल कर अभिनय से बातें तो कर ही लेती थी, कभीकभार घर वालों की चोरी से मिल भी लेती थी. कुंवरपाल को संदेह था कि बेटी कोई भी उल्टासीधा कदम उठा सकती है, इसलिए उस ने रजिस्ट्रार औफिस के कर्मचारियों से सांठगांठ कर ली थी कि अगर सपना वहां विवाह के लिए आवेदन करती है तो तुरंत उसे इस बात की जानकारी दे दी जाए.

सपना के घर से निकलने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई, जिस से उस का बीएड भी पूरा नहीं हो सका. उस का फोन भी छीन लिया गया था. ऐसे में सपना का साथ उस की छोटी बहन प्रार्थना ने दिया. बहन की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह कभीकभार अपने फोन से उस की बात अभिनय से करा देती थी.

29 मई, 2014 को प्रार्थना की मदद से सपना घर से बाहर निकली और वहां पहुंच गई, जहां अभिनय 2-3 महिलाओं और 4-5 पुरुषों के साथ उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने फिरोजाबाद के ही उलाऊखेड़ा प्रांगण में बने आर्यसमाज मंदिर में विधिविधान से विवाह करने की व्यवस्था पहले से ही कर रखी थी, इसलिए सपना को साथ ले कर वह सीधे वहीं पहुंच गया.

चाहत का कहर : माशूका की खातिर – भाग 2

रामू की इस करतूत से पूरा परिवार हैरान रह गया था. यह कोई अच्छी बात नहीं थी, इसलिए मां ने ही नहीं, भाइयों ने भी रामू को रोका. मारपीट भी की, लेकिन रामू नहीं माना तो नहीं माना. कुसुमा से उसे जो सुख मिलता था, उस की चाहत में वह उस के पास पहुंच ही जाता था. परेशान हो कर एक दिन शांति कुसुमा के घर जा पहुंची और उसे बुराभला कहने लगी.

तब कुसुमा ने कहा, ‘‘काकी, मैं तुम्हारे बेटे को बुलाने नहीं जाती, वह खुद ही मेरे पास आता है. तुम उसी को क्यों नहीं रोक लेती. अब तुम्हारे ही घर कोई आएगा, तो क्या तुम उसे भगा दोगी? तुम उसे तो रोकती नहीं, मुझे बेकार में बदनाम करने चली आई.’’

शांति चुपचाप घर लौट आई. उसी बीच मुकेश गांव आया तो किसी ने उस से रामू और कुसुमा के संबंधों के बारे में बताया. उस ने इस बारे में कुसुमा से पूछा तो रोते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं कब से कह रही हूं कि तुम मुझे अपने साथ ले चलो. बीवी को इस तरह गांव में अकेली छोड़ोगे तो दिलजले लोग ऐसी ही बातें करेंगे.’’

मुकेश को लगा कि कुसुमा सच कह रही है, इसलिए उस की बात पर विश्वास कर के वह निश्चिंत हो कर दिल्ली चला गया. लेकिन अब मुकेश जब भी घर आता, गांव का कोई न कोई आदमी कुसुमा और रामू को ले कर उसे जरूर टोकता. इन बातों से उसे लगने लगा कि कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ है. इस के बाद उस ने कुसुमा को मारपीट कर धमकाया कि अब अगर उस ने उस के बारे में कुछ सुना तो वह उसे उस के मायके पहुंचा देगा. यही नहीं, उस ने शांति के घर जा कर उस से भी कहा कि वह रामू को रोके अन्यथा ठीक नहीं होगा.

इस पर जलीभुनी शांति ने कहा, ‘‘मैं खुद ही तुम्हारी पत्नी से परेशान हूं. इस के लिए मैं पंचायत बुलाने वाली हूं.’’

शांति की इस धमकी से मुकेश परेशान हो गया. अगर शांति ने पंचायत बुलाई तो गांव में उस की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. नाराज और दुखी मुकेश ने सारा गुस्सा और क्षोभ घर आ कर कुसुमा की पिटाई कर के निकाला.

अगले दिन शांति ने पंचायत बुलाई, जिस में मुकेश और कुसुमा को भी बुलाया गया. पंचायत में कुसुमा ने साफ कहा कि रामू से उस का कोई संबंध नहीं है. इस बात को ले कर उसे बेकार ही गांव में बदनाम किया जा रहा है.

पंचों ने जब मुकेश से कुछ कहना चाहा तो उस ने कहा, ‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि कुसुमा अब मेरे वश में नहीं है.’’

पंचायत बिना किसी फैसले के ही खत्म हो गई. मुकेश दूसरे दिन शाम को दिल्ली चला गया. इस पंचायत के बाद मोहल्ले का हर आदमी कुसुमा को अपना दुश्मन नजर आने लगा. इसलिए वह मोहल्ले के हर आदमी से पंगा ले कर उस की ऐसीतैसी करने लगी. उस की इस हरकत से हर कोई उस से घबराने लगा. अब किसी की हिम्मत उस से कुछ कहने की नहीं पड़ती थी. इस के बाद उस की और रामू की मोहब्बत की गाड़ी आराम से चलने लगी. डर के मारे मोहल्ले वालों ने उन की ओर से आंखें मूंद लीं.

शांति रामू को कुसुमा से किसी भी तरह अलग नहीं कर पाई तो उस ने सोचा कि रामू की शादी कर दे. नईनवेली दुलहन पा कर वह खुद ही कुसुमा का पीछा छोड़ देगा. उस ने रामू के लिए लड़कियां देखनी शुरू कर दीं. जल्दी ही उस ने जिला मैनपुरी के थाना एलांद के गांव सुशनगढ़ी के रहने वाले मान सिंह की बेटी सुमन से उस की शादी तय कर दी.

कुसुमा को जब पता चला कि रामू की शादी तय हो गई है तो वह सुलग उठी. वह किसी भी कीमत पर यह शादी नहीं होने देना चाहती थी. भला वह कैसे चाहती कि उस का प्रेमी किसी से शादी कर के उसे सुलगने के लिए छोड़ दे. इसलिए उस ने रामू से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने यह शादी की तो वह जान दे देगी.

‘‘शादी के बाद भी मैं तुम्हारा ही रहूंगा भाभी. मां बहुत परेशान हैं. मैं अब उसे और दुखी नहीं कर सकता.’’ रामू ने कुसुमा को समझाना चाहा.

‘‘वाह, क्या बात कही है? तुम्हारी वजह से मैं कितनी बदनामी झेल रही हूं, तुम्हें पता है. लोग मुझे चरित्रहीन कहते हैं. अब बीच मंझधार में तुम मुझे छोड़ कर किसी और का होना चाहते हो. कान खोल कर सुन लो, जीते जी मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी.’’ कुसुमा ने चेतावनी दी.

रामू घर वालों के बारे में सोच रहा था कि वह घर वालों को क्या जवाब दे. तभी कुसुमा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, हम कहीं दूर भाग चलते हैं. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो मेरा मरा मुंह देखोगे.’’

कुसुमा के तेवर देख कर रामू को यकीन हो गया कि अगर उस ने शादी कर ली तो कुसुमा सचमुच आत्महत्या कर लेगी. तब वह फंस सकता है. काफी सोचसमझ कर उस ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी करो. मैं तुम्हें साथ ले कर भागने को तैयार हूं.’’

1 जून, 2013 को रामू की शादी होनी थी. दोनों ओर जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. शादी की तारीख से 2 दिन पहले रामू घर से गायब हो गया. रामू का गायब होना घर वालों के लिए सदमे की तरह था. उन के लिए परेशानी यह थी कि वे लड़की वालों को क्या जवाब देंगे. रिश्तेदारों को कौन सा मुंह दिखाएंगे. क्योंकि अब तक कार्ड भी बंट गए थे.

कुसुमा भी घर से गायब थी, इसलिए सब को पूरा यकीन था कि जहां भी हैं, दोनों एक साथ हैं. सब से बड़ी परेशानी यह थी कि लड़की वालों को कैसे समझाया जाए. शांति बेटे मनोज को ले कर सुशनगढ़ी पहुंची. जब उस ने मान सिंह को सारी बात बताई तो उस ने अपना सिर पीट लिया. उस की बेटी का क्या होगा, कौन करेगा उस से शादी? लोग पूछेंगे कि शादी क्यों टूटी तो वह क्या जवाब देगा?

मान सिंह को इस तरह परेशान देख कर शांति ने कहा, ‘‘हम बहुत शर्मिंदा हैं समधीजी. अब इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है. अगर आप मान जाएं तो सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘कौन सा रास्ता?’’ मान सिंह ने पूछा.

‘‘मेरे बेटे शिवशंकर को तो आप ने देखा ही है. वह बहुत ही नेक है. कमाताधमाता भी ठीकठाक है. वह आप की बेटी को खुश रखेगा. अगर आप तैयार हों तो…?’’

मान सिंह के पास उन की बात मानने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. उस ने उदास मन से कहा, ‘‘ठीक है, इज्जत बचाने के लिए शिवशंकर से ही सुमन की शादी कर देता हूं.’’

इस के बाद शिवशंकर ने चुपचाप मां की बात मान ली तो 1 जून, 2013 को सुमन से उस की शादी हो गई. इस तरह उस ने 2 परिवारों की इज्जत बचा ली.

11 जून, 2013 को रामू और कुसुमा लौट आए. पत्नी की इस हरकत की जानकारी दिल्ली में रह रहे मुकेश को भी हो गई थी. लेकिन वह हालात के सामने हारा हुआ था. इसलिए चुप्पी साधे दिल्ली में ही पड़ा रहा.

सप्ताह भर बाद रामू घर लौटा तो सभी ने उसे

खूब खरीखोटी सुनाई. इस पर उस ने कहा, ‘‘मैं सुमन को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मैं कुसुमा के साथ चला गया था.’’

शांति ने सोचा, जो होता है, वह अच्छा ही होता है.

दो बहनों का एक प्रेमी – भाग 2

11 दिसंबर, 2013 को अब्दुल रशीद और अतीक सुबह को अपने काम पर चले गए. शमीम और आफरीन घर में अकेली रह गईं. उस दिन शमीम के बड़े भाई की पत्नी जरीना ने खीर बनाई थी. शाम को 6 बजे वह एक कटोरे में खीर ले कर शमीम को देने आई. दरवाजा शमीम की जगह आफरीन ने खोला. वह जरीना को देखते ही घबराई सी बोली, ‘‘भाभी, अंदर आओ. देखो, अप्पी को पता नहीं क्या हो गया है. किसी ने उन का गला काट दिया है, लगता है मर गई हैं.’’

जरीना उस वक्त मुख्य दरवाजे की दहलीज पर खड़ी थी. आफरीन की बात सुन कर वह 2 कदम पीछे हट गई. उस ने सहमते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे घर में दाखिल नहीं होऊंगी. मोहल्ले के लोगों को बुला लो.’’

आफरीन ने यह बात सामने पान की गुमटी पर बैठने वाले व्यक्ति को बताई. लेकिन उस ने भी अंदर जा कर देखने की हिम्मत नहीं की. अलबत्ता उस ने यह बात आसपास के लोगों को जरूर बता दी. इस का नतीजा यह हुआ कि कुछ ही देर में यह खबर पूरे इलाके में फैल गई. अब्दुल रशीद के घर के सामने तमाम लोग जमा हो गए. लेकिन डर की वजह से कोई भी अंदर नहीं गया.

इसी बीच किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर दिया. शमीम और आफरीन की बड़ी बहन तहसीन और दूसरे भाई की पत्नी भी उसी मोहल्ले में रहती थीं. खबर मिलते ही वे दोनों भी आ गईं. हिम्मत कर के बड़ी बहन और भाभी अंदर गईं. अंदर शमीम की लाश खून से लथपथ पड़ी थी. वे उसे देखते ही रोने लगीं. जरा सी देर में कोहराम मच गया.

पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही यशोदानगर पुलिस चौकी के इंचार्ज जय वीर सिंह अपने सहयोगियों कांस्टेबल राम नारायण, आजाद, शिव प्रताप यादव, रामलखन और राजेश सिंह के साथ घटनास्थल पर आ गए. घटनास्थल की स्थिति देखने के बाद जयवीर सिंह ने इस मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

राजीवनगर के एफ ब्लौक में एक युवती का कत्ल हो गया है, यह पता चलते ही थाना नौबस्ता के प्रभारी आलोक कुमार यादव कांस्टेबल सुमित नारायण यादव, नीरज कुमार यादव, रणजीत सिंह यादव, देवेश कुमार आदि के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. पुलिस ने अंदर जा कर देखा तो शमीम तख्त के ऊपर बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ी थी. उस के गले से काफी मात्रा में खून रिसा था, जिस से बिस्तर गीला हो गया था.

बिस्तर पर बिछी चादर के एक कोने पर संभवत: हत्यारे ने अपने खून सने हाथ पोंछे थे. वहां भी काफी खून लगा हुआ था. अभी थानाप्रभारी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सीओ रोहित मिश्र फौरेंसिक टीम के साथ आ पहुंचे.

पुलिस ने नंबर पूछ कर शमीम के पिता को इस घटना की खबर देनी चाहिए तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. आफरीन कुछ नहीं बता पा रही थी, इसलिए पुलिस घर के मुखिया अब्दुल रशीद के आने का इंतजार करने लगी.

अब्दुल रशीद रात 9 बजे अपने बेटे अतीक के साथ घर लौटे तो दरवाजे पर पुलिस की जीप और पुलिस वालों को खड़ा देख परेशान हो गए. उन की समझ में नहीं आया कि उन के घर के बाहर इतनी भीड़ क्यों है. उन्होंने घर के अंदर जा कर देखा तो वह गश खा कर गिरतेगिरते बचे. 3-4 लोगों ने मिल कर उन्हें जैसेतैसे संभाला.

अब्दुल रशीद से भी कोई महत्त्वपूर्ण बात पता नहीं चली तो थानाप्रभारी आलोक कुमार यादव ने प्राथमिक काररवाई पूरी कर के मृतका शमीम की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के साथ ही अब्दुल रशीद की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया.

अब्दुल रशीद ने पुलिस को बताया कि दिल्ली में रहने वाले सिराज के साथ शमीम के प्रेमसंबंध थे. जबकि वह उस की शादी अपनी पसंद के लड़के से करना चाहते थे. उन्होंने उस की शादी भी तय कर दी थी. इस पर सिराज ने धमकी दी थी कि अगर शमीम की शादी कहीं और की तो उसे जान से मार देगा. अब्दुल रशीद ने यह भी बताया कि सिराज से शमीम की जानपहचान रूबीना ने ही कराई थी.

आफरीन ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि दोपहर 2 बजे शमीम के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद शमीम ने उस से कहा था कि कोई उस से मिलने आ रहा है, इसलिए वह कुछ समय के लिए घर से बाहर चली जाए और उस के सामने न पड़े, क्योंकि उस की नजर अगर उस पर पड़ गई तो वह उसे पसंद कर लेगा.

आफरीन ने आगे बताया कि पहले तो वह घर से बाहर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन जब शमीम ने आने वाले की एक फोटो दिखाई तो वह मान गई और घर से निकल कर अंबेडकर पार्क की तरफ चली गई. उस वक्त शमीम भी उस के साथ थी, क्योंकि आने वाले ने उस से अंबेडकर मूर्ति के पास मिलने को कहा था. यह साढ़े 3 बजे की बात है.

आफरीन के अनुसार वह अंबेडकर पार्क के पास से होते हुए घर के पीछे वाली गली में चली गई थी और वहीं बैठ कर बहन के फोन का इंतजार करने लगी थी. अगले 3 घंटे उस ने वहीं बिताए और जब 6 बजने को आए और अंधेरा छाने लगा तो वह वहां से उठ कर घर लौट आई. उस समय घर का दरवाजा उढ़का हुआ था. वह अंदर पहुंची तो उस ने शमीम को खून से लथपथ मरा हुआ पाया.

यह सब बताने के बाद आफरीन कमरे में गई और एक तसवीर थानाप्रभारी को देते हुए कहा कि शमीम से यही लड़का मिलने आने वाला था. उस ने यही फोटो उसे दिखाई थी.

थानाप्रभारी ने फोटो को गौर से देखा, वह किसी 16-17 साल के लड़के की फोटो थी. उस फोटो को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वह हत्यारा हो सकता है. दूसरी बात यह भी थी कि उस लड़के का नामपता किसी को मालूम नहीं था. ऐसे में उसे तलाश करना आसान नहीं था.

फरेब के जाल में फंसी नीतू – भाग 2

यह एक अजीब सी बात इस लिहाज से थी कि हत्या के मामले में किसी भी पिता की कोशिश बेटे को बचाने की रहती है. लेकिन बाबूलाल इस का अपवाद था. हालांकि संभावना इस बात की भी थी कि वह वाकई सच बोल रहा हो क्योंकि रामजी घोषित तौर पर मंदबुद्धि वाला था और गुस्सा आ जाने पर ऐसा कर भी सकता था. लेकिन इस थ्यौरी में आड़े यही बात आ रही थी कि कोई मंदबुद्धि इतनी प्लानिंग से हत्या नहीं कर सकता.

अभयराज सिंह ने नीतू के बारे में जानकारियां इकट्ठी करने के लिए एक लेडी कांस्टेबल को काम पर लगा दिया था. अलबत्ता अभी तक की जांच में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई थी जिस से यह लगे कि नीतू के चालचलन में कोई खोट थी. ये सब बातें अभयराज ने जब आला अफसरों से साझा कीं तो उन्होंने बाबूलाल को टारगेट करने की सलाह दी.

महिला कांस्टेबल की दी जानकारियों ने मामला सुलझाने में बड़ी मदद की. पता यह चला कि नीतू दूसरी महिलाओं के साथ मजदूरी करने ब्यौहारी जाती थी और शाम तक लौट आती थी. 25 मार्च को यानी हादसे के दिन भी वह मजदूरी करने गई थी. लेकिन लौटते वक्त वह गांव के बाहर से ही अपने ससुर बाबूलाल से मिलने खेत की तरफ चली गई थी.

बाबूलाल शक के दायरे में तो पहले से ही था पर इस खुलासे से उस पर शक और गहरा गया था. चूंकि उसे धर दबोचने के लिए कोई पुख्ता सबूत या गवाह नहीं था. इसलिए पुलिस ने बारबार पूछताछ करने का अपना परंपरागत तरीका आजमाया.

इस पूछताछ में उस के साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गई और न ही कोई यातना दी गई. पुलिस ने तरहतरह से उसे धर्मग्रंथों का हवाला दिया कि जो जैसे कर्म करता है उसे वैसा ही फल भुगतना पड़ता है. फिर चाहे वह नीचे धरती पर मिले या ऊपर कहीं मिले.

धर्मगुरुओं  की तरह प्रवचन दे कर जुर्म कबूलवाने का शायद यह पहला मामला था. कर्म फल और पाप पुण्य की पौराणिक कहानियों का बाबूलाल पर वाजिब असर पड़ा और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

यह डर था या ग्लानि थी यह तो शायद बाबूलाल भी न बता पाए, लेकिन नीतू की हत्या की जो वजह उस ने बताई वह वाकई अनूठी थी. कहानी सुनने से पहले पुलिस ने उस की निशानदेही पर खेत में छिपाई गई चप्पलें व साड़ी बरामद करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई.

बहू नीतू की हत्या की वजह बताते हुए बाबूलाल का चेहरा सपाट था. बाबूलाल तब किशोरावस्था में था जब उस के पिता संतोषी राठौर की मौत हो गई थी. शादी के बाद पत्नी भी ज्यादा साथ नहीं निभा पाई, लेकिन इन तकलीफों से बड़ी उस की तकलीफ मंदबुद्धि बेटा रामजी था.

जवान होते रामजी को देख बाबूलाल का कलेजा मुंह को आता था कि उस के बाद यह लड़का किस के भरोसे रहेगा. कम अक्ल रामजी को पालतेपोसते बाबूलाल ने कई जगह उस की शादी की बात चलाई लेकिन जिस ने भी रामजी की मंदबुद्धि के चर्चे सुने उस ने बाबूलाल के सामने हाथ जोड़ लिए. खेतीकिसानी बहुत ज्यादा भी नहीं थी, इसलिए बाबूलाल ज्यादा पैसों के लिए खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करता था, जिस के चलते 54 साल की उम्र भी उस पर हावी नहीं हो पाई थी.

फिर एक दिन पागल कहे जाने वाले रामजी की तब मानो लाटरी लग गई, जब बात चलाने पर नीतू के घर वाले रामजी से उस की शादी करने तैयार हो गए. नीतू गठीले बदन की चंचल लड़की थी, जिसे पत्नी बनाने का सपना आसपास के गांवों के कई युवक देख रहे थे.

गोरीचिट्टी नीतू की खूबसूरती के चर्चे हर कहीं थे पर लोग यह जानकर हैरान रह गए कि उस की शादी रामजी से हो रही है, जिसे गांव की भाषा में पागल, सभ्य लोगों की भाषा में मंदबुद्धि और आजकल सरकारी जुबां में मानसिक रूप से दिव्यांग कहा जाता है.

जब नीतू के घर वालों ने रिश्ते के बाबत हां भर दी तो बाबूलाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. घर में बहू के पांव पड़ेंगे, अरसे बाद छमछम पायल बजेगी और जल्द ही पोता उस की गोद में होगा जैसी बातें सोच कर वह अपनी गुजरी और मौजूदा जिंदगी के दुख भूलता जा रहा था.

उधर रामजी पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था, वह तो अपनी दुनिया में मस्त था, जैसे कुछ हो ही नहीं रहा हो. शादी के नए कपड़े, धूमधड़ाका, बैंडबाजा बारात वगैरह उस के लिए बच्चों के खेल जैसी बातें थीं. पर बाबूलाल का मन कह रह था कि बहू के आते ही वह सुधर भी सकता है.

खुशी से फूले नहीं समा रहे बाबूलाल को आने वाली परेशानियों और दुश्वारियों का अहसास तक नहीं था. नीतू बहू बन कर आई तो वाकई घर में रौनक आ गई. पर यह रौनक चार दिन की चांदनी सरीखी साबित हुई.

सुहागरात के वक्त नीतू शर्माती लजाती कमरे में बैठी पति का इंतजार कर रही थी कि वह आएगा, रोमांटिक और प्यार भरी बातें करेगा, फिर मन की बातों के बाद धीरे से तन की बात करेगा और फिर… फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखे सुहागरात के दृश्य नीतू की जवानी और सपनों को पर लगा रहे थे जिन्हें सोच कर ही वह रोमांचित हुई जा रही थी.

रामजी कमरे में आया और बगैर कुछ कहे सुने बिस्तर पर गया तो नीतू एकदम से कुछ समझ नहीं पाई. उस रात रामजी ने कुछ नहीं किया तो यह सोच कर नीतू ने खुद के मन को तसल्ली दी कि होगी कोई वजह और आजकल के मर्द भी शर्माने में औरतों से कम नहीं हैं.

यह सिलसिला लगातार चला तो शर्म छोड़ते खुद नीतू ने पहल की लेकिन यह जानसमझ कर वह सन्न रह गई कि रामजी मानसिक ही नहीं बल्कि शारीरिक तौर पर भी अक्षम है. एक झटके में आसमान से जमीन पर गिरी नीतू की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी.

घर के कामकाज करती नीतू को लगने लगा था कि उस की हैसियत एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं है और बाबूलाल व रामजी ने उसे धोखा दिया है. यह सोच कर वह चोट खाई नागिन की तरह फुंफकारने लगी. इस पर रामजी ने उसे मारना पीटना शुरू कर दिया तो वह मायके चली गई और दहेज की रिपोर्ट भी लिखा दी. बेटेबहू के बीच अनबन की असल वजह जब बाबूलाल को पता चली तो वह अवाक रह गया.

अब उसे समझ आया कि क्यों बातबात पर नीतू गुस्सा होती रहती है. इधर दहेज की रिपोर्ट तलवार बन कर उस के सिर पर लटक रही थी. रामजी को तो कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन पुलिस काररवाई से उस का नप जाना तय था.