Extramarital Affair: दोस्त की पत्नी पर प्यार का पासा

Extramarital Affair: घर में आर्थिक तंगी क्या हुई, एक बच्चे की मां नेहा रौनियार ने पति नागेश्वर रौनियार को दरकिनार कर उस के दोस्त जितेंद्र का हाथ थाम लिया. वह प्रेमी जितेंद्र के साथ ही लिवइन रिलेशन में रहने लगी. इन्हीं संबंधों ने एक दिन ऐसे अपराध को जन्म दिया कि…

नेहा पति को रास्ते से हटाने के लिए प्रेमी जितेंद्र पर दबाव डाल रही थी कि उसे जल्द से जल्द रास्ते से हटा दे, ताकि वे दोनों जल्द से जल्द एक हो जाएं. उसे अब उस की दूरी और जुदाई बरदाश्त नहीं होती.

”बताओ मुझे कि रास्ते से उसे कैसे हटाओगे?’’ नेहा ने प्रेमी से सवाल किया.

”तुम्हीं बताओ, रास्ते से हटाने के लिए मैं क्या करूं?’’ जितेंद्र ने उसी भाषा में उत्तर दिया.

”मार दो. मैं ने उस के नाम के सिंदूर को अपनी मांग से बहुत पहले ही धो डाला है. रही बात पछतावे की तो उस की मैयत पर घडिय़ाली आंसू बहा लूंगी. लोग तो यही कहेंगे कि बेचारी भरी जवानी में विधवा हो गई.’’

”कहती तो तुम ठीक ही हो, तलाक तुम्हें तो वो दे नहीं रहा है तो उसे रास्ते से हटाना ही अच्छा होगा. मगर कैसे? सोचना पड़ेगा. उस की मौत भी हो जाए और हम पर कोई आंच भी न आए.’’

”मैं भी यही सोचती हूं कि उसे ऐसी मौत दें, जिस से उस की मौत एक हादसा लगे. मगर कैसे होगा ये? मैं कुछ समझ नहीं पा रही.’’

”वो ऐसे बनाया जा सकता है कि वह एक नंबर का दारूबाज है. इसी का हम दोनों फायदा उठा सकते हैं. दारू पिला कर उस की हत्या कर देंगे और बाइक उसी के ऊपर गिरा देंगे. ऐसा लगेगा जैसे बाइक से गिर कर उस की मौत हुई हो?’’

”वाह! कमाल का आइडिया आया है तुम्हारे दिमाग में.’’ नेहा भी खुशी से झूम उठी.

नागेश्वर को अपने कमरे में बुलाने के लिए दोनों ने आपस में गुफ्तगू की. जितेंद्र जानता था कि उस के बुलाने पर नागेश्वर नहीं आएगा, लेकिन अगर नेहा बुलाए तो संभव है कि वह यहां (कमरे) आ जाए. यह घटना से करीब एक महीने पहले की बात थी.

पत्नी के जाल में ऐसे फंसा नागेश्वर

नागेश्वर पत्नी नेहा और बेटे से बेहद प्यार करता था. उस के रोमरोम में पत्नी नेहा रचीबसी थी. बेटा तो उस के दिल की धड़कन था. उस के बिना एक पल भी जीना उस के लिए गवारा न था. नेहा जब से बेटे को ले कर प्रेमी जितेंद्र के पास रहने चली गई थी, तब से ले कर अब तक हजारों बार उस ने फोन कर के उसे वापस घर लौट आने को कहा था. घर छोड़ कर प्रेमी के साथ चले जाने पर गांवसमाज में नागेश्वर और उस के फेमिली वालों की चारों ओर थूथू हो रही थी. नातेरिेश्तेदार उस पर हंस रहे थे, उस की खिल्ली उड़ा रहे थे, लेकिन उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही थी.

वह प्रेमी जितेंद्र को छोड़ कर उस के पास लौट कर आने के लिए तैयार नहीं थी. नागेश्वर के दबाव से जितेंद्र और नेहा दोनों डर गए थे कि कहीं वह उन्हें एकदूसरे से अलग न कर दे. इस से पहले कि नागेश्वर कोई ठोस कदम उठाए और वह अपने मकसद में कामयाब हो पाए, वे दोनों जल्द से जल्द नागेश्वर को खत्म कर देना चाहते थे.

”जितेंद्र, एक बात का डर मुझे खाए जा रहा है.’’ नेहा ने कहा.

”किस बात का डर?’’

”यही कि लाश को ठिकाने कहां लगाएंगे?’’ नेहा बोली.

”मैं ने पहले से सोच लिया है कि लाश का क्या करना है. अब सुनो मेरी प्लानिंग क्या है. उसे दारू पिलाने के बाद गला दबा कर मार डालेंगे. फिर उसी की बाइक पर बैठा कर यहां से कहीं दूर सुनसान जगह ले जाएंगे, जहां कोई आताजाता न हो और लाश नीचे गिरा कर उस पर बाइक पलट देंगे, ताकि लगे कि दारू पी कर बाइक चला रहा था, एक्सीडेंट हुआ और उस में इस की मौत हो गई. फिर हम दोनों सुरक्षित बच जाएंगे और हमारे रास्ते का कांटा हमेशाहमेशा के लिए साफ भी हो जाएगा. बोलो, कैसा लगा हमारा प्लान?’’

”क्या शैतानी दिमाग पाया है यार.’’

आया तो था संबंधों को सुलझाने लेकिन…

जितेंद्र और नेहा ने मिल कर नागेश्वर की हत्या की जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार सब कुछ चल रहा था. 12 सितंबर, 2025 की दोपहर में नेहा ने पति नागेश्वर को फोन कर महाराजगंज सिटी अपने किराए के कमरे पर समझौता करने के बहाने से बुलाया. नागेश्वर पत्नी नेहा को बहुत प्यार करता था. पहले तो उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसे मनाने के लिए नेहा ने फोन किया था. उस का फोन रिसीव कर के वह इतना खुश था कि उस के मुंह से बोल तक नहीं फूट रहे थे कि वह उस से क्या कहे. यही नहीं, पत्नी की बातों पर विश्वास कर के बात अपने तक ही सीमित रखी. फेमिली वालों को कुछ भी नहीं बताया था. उसे क्या पता था कि जिस नेहा से वह समुद्र की गहराइयों से भी ज्यादा प्यार करता था, उसी पत्नी नेहा ने उस के लिए मौत का जाल बिछाया है.

नागेश्वर ने उस दिन शाम 4 बजे अपने पापा केशवराज रौनियार से झूठ बोलते हुए कहा कि बाजार जा रहा हूं, थोड़ी देर में लौटता हूं और कह कर अपनी बाइक पर सवार हो कर निकला था. पत्नी से मिलन को ले कर वह इतना उतावला हुआ जा रहा था कि करीब 40 किलोमीटर की दूरी जान की परवाह किए बिना उस ने 40 मिनट में तय कर ली थी. इधर नेहा ने प्रेमी जितेंद्र को कुछ देर के लिए अपने कमरे में बैड के नीचे छिपा कर उस पर चादर इस तरह बिछा कर ढक दिया कि नीचे क्या है? कोई भी सामान किसी को आसानी से दिखाई न दे.

पत्नी नेहा के दिए एड्रेस पर नागेश्वर पहुंचा तो देखा नेहा दरवाजे पर खड़ी उसी के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार करती खड़ी मिली. उसे देखते ही नागेश्वर ने अपनी सुधबुध खो दी थी. बाइक पर सवार ही उसे अपलक निहारता रहा. थोड़ी देर बाद जब वह होश में आया तो वह झेंप गया और बाइक से नीचे उतर कर उस के साथ कमरे में चला गया. कमरे में पहुंचते ही बैड पर बेटे को बैठा देख उस का प्यार जाग गया और झट उठा कर उसे अपने सीने से चिपका लिया. 6 महीने हो गए थे नेहा को पति नागेश्वर का घर छोड़े हुए. पत्नी और बेटे की याद में दिनरात वह तड़प रहा था.

नेहा पति की आवभगत में लगी हुई थी, ताकि उसे उस पर कहीं से शक न हो. और वह तो यह सोचसोच कर मन ही मन खुश हो रही थी. क्योंकि उस के रास्ते का बड़ा कांटा हमेशा के लिए साफ होने जा रहा है. इधर नागेश्वर सारे गिलेशिकवे भूल चुका था. वह नेहा को एक बार फिर समझाने की कोशिश में जुटा रहा कि जो हुआ, उसे अब से भुला दो. मम्मीपापा के साथ नहीं रहना चाहती हो, न सही. दोनों शहर में कहीं किराए का कमरा ले कर अलग रहेंगे, लेकिन एक बार मेरे लिए घर वापस लौट चलो. उस की बात सुन कर नेहा ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी, बल्कि इतना ही कहा कि आज अभी रुक तो रहे ही हो, सुबह होने दो, तब हम इस टौपिक पर बात करेंगे.

नागेश्वर पत्नी की बात मान गया. कब 3 घंटे बीत गए, नागेश्वर को पता ही नहीं चला. रात के समय नागेश्वर बाजार से आधा किलोग्राम चिकन खरीद कर ले आया. नेहा ने उसे पकाया. इधर पहले से नींद की गोली मिठाई में मिला कर बेटे को खिला दी. मिठाई खाने के थोड़ी देर बाद बेटे को गहरी नींद आ गई. वह जगा रहता तो शायद नेहा अपने बुरे मकसद में कामयाब नहीं हो पाती. नेहा ने चिकन के साथ अंगरेजी शराब की एक बोतल पति के सामने रख दी. मंहगी शराब देख नागेश्वर की आंखों में अजीब सी चमक जाग उठी थी. नेहा अपने हाथों से पैग बना कर पति को देती गई. देखते ही देखते नागेश्वर ने पूरी शराब की बोतल खाली कर दी. थोड़ी देर बाद वह नशे के आगोश में समा गया और शरीर बेकाबू होने लगा तो नेहा ने बैड के नीचे से प्रेमी जितेंद्र को बाहर निकलने का इशारा किया.

नागेश्वर बेसुध हो कर बिस्तर पर अचेतावस्था में गिर पड़ा था. फिर क्या था? उस ने छाती पर डाल रखा अपना दुपट्टा उतारा और पति के पैरों के पास जा कर खड़ी हो गई. फिर उसी दुपट्टे से उस के दोनों पैर बांध दिए, ताकि वह कोई हरकत न कर सके. जितेंद्र ने खा जाने वाली नजरों से उसे घूर कर देखा और कूद कर उस के सीने पर जा बैठा तो नेहा ने कस कर मजबूती के साथ उस के दोनों पैर पकड़ लिए तो जितेंद्र ने पूरी ताकत के साथ नागेश्वर का गला तब तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत न हो गई. दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी और लाश वहीं बिस्तर पर छोड़ दी थी. उस समय रात काफी हो चुकी थी.

उस समय रात का करीब एक बज रहा होगा. पहले से तय की गई योजना के अनुसार, रात डेढ़ बजे के करीब जितेंद्र ने कमरे से बाहर गली में निकल कर इधरउधर झांक कर देखा. उस समय चारों ओर गली में दूरदूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था. फिर तेजी से वह भीतर कमरे की ओर लौट आया. नेहा से उस ने कहा कि रास्ता साफ है, लाश को ठिकाने लगा देते हैं. इस के बाद दबेपांव जितेंद्र ने नागेश्वर की बाइक बाहर निकाली. धीरे से उस पर नागेश्वर के शव को बैठाया. खुद बाइक को संभाला और नेहा से लाश को कस कर पकड़ कर बैठने को कहा. नेहा ने वैसा ही किया, जैसा उसे जितेंद्र ने करने को कहा.

केशवराज की टूट गई सहारे की लाठी

महाराजगंज शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर सिंदुरिया-निचलौल हाइवे पर स्थित दमकी गैस एजेंसी के सामने जितेंद्र ने बाइक रोक दी और लाश को सड़क की बाईं पटरी पर लिटा कर उस पर बाइक गिरा दी, ताकि यह एक्सीडेंट लगे. उस के बाद दोनों पैदल वापस लौटे तो कुछ दूरी पर एक टैक्सी खड़ी मिली. टैक्सी में सवार हो कर दोनों वापस कमरे पर लौट आए. दोनों खुश थे, क्योंकि उन के रास्ते का कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकल चुका था. उस के बाद दोनों ने जिस्मानी संबंध बनाए और सो गए.

इधर 12/13 सितंबर, 2025 की रात 3 बजे निचलौल थाने के इंसपेक्टर अखिलेश कुमार वर्मा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि सिंदुरिया-निचलौल हाइवे पर एक्सीडेंट हुआ है, जिस में 25-26 साल के युवक की मौके पर ही मौत हो गई है. सूचना मिलते ही गश्त पर निकले एसएचओ अखिलेश कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे, जहां दुर्घटना होने की बात कही गई थी. मौके पर पहुंची पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो उसे एक्सीडेंट जैसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, क्योंकि मृतक युवक के शरीर पर एक खरोंच तक नहीं आई थी. मामला पूरी तरह संदिग्ध लग रहा था. जामातलाशी लेने पर युवक की पैंट की जेब से एक मोबाइल फोन बरामद हुआ था. पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले लिया. फिर उसी रात लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया और बाइक को भी कब्जे में ले लिया.

बाइक के नंबर से मृतक की पहचान नागेश्वर रौनियार निवासी राजाबारी, थाना ठूठीबारी, जिला महराजगंज के रूप में हुई थी. पुलिस ने मृतक की जेब से जो मोबाइल फोन बरामद किया था, उस पर कई मिस्ड कौल पड़े थे. उसी में एक मिस्ड कौल पापा के नाम से भी थी. एसएचओ अखिलेश कुमार वर्मा ने उस नंबर पर कौल बैक की. मोबाइल की घंटी बजते ही केशवराज रौनियार की नींद उचट गई. बेटे के इंतजार में वह रात भर सो नहीं पाए थे. जैसे ही फोन बजा तो बिस्तर पर उठ कर बैठ गए और दीवार घड़ी की ओर देखा. उस समय सुबह के 5 बज रहे थे.

उन्होंने कौल रिसीव की तो दूसरी ओर से आवाज आई, ”हैलो! आप कौन साहब बोल रहें हैं?’’

”मैं केशवराज रौनियार, राजाबारी से बोल रहा हूं आप कौन?’’ केशवराज रौनियार ने सवाल किया.

”इंसपेक्टर अखिलेश कुमार वर्मा, निचलौल थाने से बोल रहा हूं.’’

”इंसपेक्टर…’’ पुलिस का नाम सुनते ही  केशवराज बुरी तरह चौंक पड़े, ”सुबहसुबह पुलिस का फोन. क्या बात है साहब, मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई है.’’

”नहीं…नहीं… दरअसल, बीती रात सिंदुरिया-निचलौल हाइवे स्थित दमकी गैस एजेंसी के सामने सड़क किनारे एक युवक की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. जामातलाशी लेने पर उस की जेब से एक मोबाइल फोन बरामद हुआ था, उसी फोन से यह नंबर मिला था तो मैं ने कौल किया था. निचलौल थाने आ कर उस की पहचान कर लीजिए. मृतक का नाम नागेश्वर रौनियार पता चला है.’’

”क्याऽऽ नागेश्वर रौनियार.’’ इतना सुनते ही उन के मुंह से चीख निकल गई और फोन हाथ से छूट कर नीचे फर्श पर जा गिरा था.

पति की चीख सुनते ही ममता भी झट से बिस्तर पर उठ कर बैठ गईं और पति से पूछने लगी, ”ऐ जी क्या हुआ? सुबहसुबह किस का फोन था? क्या बात कर रहे थे उस से? सब ठीक तो है न. क्यों कुछ बोल नहीं रहे?’’ पत्नी ममता पति को जोरजोर से हिलाने लगीं.

लेकिन केशवराज को जैसे काठ मार गया हो. वह एकदम मौन से हो गए थे. थोड़ी देर बाद जब वह खुद से नारमल हुए तो दहाड़ मार कर रोने लगे, ”हम लो लुट गए नागेश्वर की मम्मी. अब हम कैसे जिएंगे. हमारे बुढ़ापे का सहारा छिन गया. हमारा बेटा नागेश्वर नहीं रहा. थाने से बड़े साहब का फोन आया था. उन्होंने निचलौल थाने लाश की शिनाख्त के लिए बुलाया है. हमारी तो कमर ही टूट गई. कैसे देखेंगे बचवा की लाश को. कैसी विपदा में आ गए हम?’’ कह कर केशवराज पत्नी से लिपट कर रोने लगे.

काम न आए घडिय़ाली आंसू

उधर पत्नी ममता बेटे की मौत की खबर सुनते ही दहाड़ मार कर रोने लगीं. सुबहसुबह केशवराज के घर में कोहराम सुन कर पड़ोसी भी हैरान रह गए थे कि आखिर क्या हो गया जो सब के सब रो रहे हैं. पड़ोसी जब वहां पहुंचे तो उन्हें पता चला कि नागेश्वर की एक्सीडेंट में मौत हो गई है. गांव के कुछ संभ्रात लोगों को साथ ले कर केशवराज सुबह निचलौल थाने पहुंचे. फोटो देख कर उन्होंने मृतक की अपने बेटे के रूप में शिनाख्त कर ली थी. इस बात से पुलिस को थोड़ी राहत मिली. उसी दिन यानी 13 सितंबर की शाम को पोस्टमार्टम रिपोर्ट इंसपेक्टर अखिलेश कुमार वर्मा की टेबल पर थी. रिपोर्ट पढ़ कर उन के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह एक्सीडेंट नहीं, दम घुटने से हुई दर्ज थी. यानी नागेश्वर की गला दबा कर हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरे केस को उझला कर रख दिया था.

इंसपेक्टर अखिलेश कुमार वर्मा ने फोन कर के केशवराज को दोबारा निचलौल थाने बुलाया और बताया कि तुम्हारे बेटे की मौत एक्सीडेंट से नहीं बल्कि गला घोंटने से हुई है. यह सुन कर केशवराज रौनियार एकदम से सन्न रह गए थे. इंसपेक्टर वर्मा ने उन से किसी पर शक होने की बात पूछी तो उन्होंने बिना सोचेसमझे अपनी बहू नेहा रौनियार और उस के प्रेमी जितेंद्र कुमार का नाम लिया और कहा कि इन्हीं दोनों ने मिल कर बेटे की हत्या की होगी. पीडि़त केशवराज रौनियार ने बहू नेहा रौनियार और उस के प्रेमी जितेंद्र कुमार के खिलाफ लिखित तहरीर दी.

तहरीर के आधार इंसपेक्टर अखिलेश कुमार वर्मा ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की हत्या और साक्ष्य मिटाने की धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया और आवश्यक काररवाई शुरू कर दी. इंसपेक्टर अखिलेश कुमार ने घटना से एसपी सोमेंद्र मीणा को भी अवगत करा दिया. एसपी सोमेंद्र मीणा के दिशानिर्देश पर जांच की काररवाई आगे बढ़ाई. पुलिस ने नेहा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में घटना वाले दिन पत्नी नेहा और नागेश्वर के बीच कई बार लंबीलंबी बातें हुई थीं. वैज्ञानिक साक्ष्य को ठोस आधार मान पुलिस आगे बढ़ती गई तो मामला लव अफेयर का नजर आया. यह भी शीशे की तरह साफ हो गया था कि घटना वाले दिन नागेश्वर नेहा से मिलने महराजगंज सिटी गया था.

15 सितंबर की भोर में इंसपेक्टर अखिलेश कुमार वर्मा अपनी टीम के साथ नेहा के कमरे पर पहुंचे और मौके से उसे और उस के प्रेमी जितेंद्र को हिरासत में ले कर थाना निचलौल लौट आए. थाने में दोनों से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. एसपी सोमेंद्र मीणा ने उसी दिन शाम 3 बजे पुलिस लाइंस के मनोरंजन कक्ष में प्रैसवार्ता बुलाई और नागेश्वर रौनियार हत्या से परदा उठा दिया.

चट्टान जैसे इरादों वाली नेहा के चेहरे पर पति की मौत का जरा भी अफसोस नहीं था. गिरफ्तारी के समय वह मुसकरा रही थी. पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस पूछताछ में हत्या के पीछे की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

दिल लगा बैठी नेहा

 

26 वर्षीय नागेश्वर रौनियार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के राजाबारी गांव का रहने वाला था. उस के पापा केशवराज रौनियार थे. 2 बेटों और एक बेटी में नागेश्वर सब से बड़ा था. था तो वह इकहरे बदन वाला, लेकिन उस में गजब का जोश और फुरती थी. केशवराज रौनियार प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. वह इतना कमा लेते थे कि अपने 5 सदस्यों वाले परिवार का पालनपोषण बड़े मजे से कर लेते थे. नागेश्वर बड़ा था और काफी समझदार भी. वह बचपन की गलियों को पीछे छोड़ कर जैसेजैसे जवानी की दहलीज पर पांव रखता गया, उस में अपने पैरों पर खड़े होने और पिता का हाथ बंटाने की ललक जोर मारने लगी थी.

वैसे भी नागेश्वर जिस जगह रहता था, वहां से नेपाल करीब 10-15 किलोमीटर दूर था. नेपाल की खूबसूरत वादियां राजाबारी (ठूठीबारी) से साफ दिखती थीं तो उन्हें देखने के लिए वह हमेशा लालायित रहता था. उसी के गांव में जितेंद्र भी रहता था. उस से उस की काफी निभती थी. दोनों अच्छे दोस्त भी थे और हमराज और हमउम्र भी. जितेंद्र की ठूठीबारी कस्बे में बाइक के स्पेयर पाट्र्स की दुकान थी. दुकान अच्छीखासी चलती थी. आमदनी भी अच्छी होती थी. नागेश्वर उस की दुकान पर नौकरी करता था. पाट्र्स को बेचने के लिए वह अकसर नेपाल के खूबसूरत जिला नवलपरासी आताजाता रहता था. जातेआते वक्त इसी जिले के गोपालपुर की रहने वाली बेहद खूबसूरत युवती नेहा पर उस की नजर पड़ी तो वह उस पर मर मिटा था.

नागेश्वर पहली नजर में ही उसे अपना दिल दे बैठा था. इस के बाद उस का नवलपरासी आनाजाना और बढ़ गया था. धीरेधीरे दोनों में प्यार हो गया और फेमिली वालों की रजामंदी से प्रेम विवाह कर लिया था. यह करीब 6 साल पहले की बात है, तब उस की उम्र 20 साल के आसपास रही होगी. नागेश्वर अपने प्यार को पा कर बेहद खुश था. फेमिली वाले भी चांद सी बहू पा कर फूले नहीं समा रहे थे. शादी के 3 साल बाद नेहा ने एक बेटे को जन्म दिया. पोते के पैदा होने पर केशवराज में जीने की लालसा और बढ़ गई थी. बेटे के जन्म के बाद नागेश्वर के बाद उस के खर्चे बढ़ गए थे. वह जो कमाता था, उस से उस के खर्चे पूरे नहीं होते थे. धीरेधीरे उस का झुकाव नशीले पदार्थों की ओर बढ़ता गया और नशा बेचने का काम शुरू कर दिया.

जितेंद्र जब भी नागेश्वर से मिलने उस के घर जाता तो नेहा को जितेंद्र से बात करना अच्छा लगता था. इसी दरमियान नागेश्वर के साथ एक घटना घटी. वह नशीले पदार्थ के साथ पकड़ा गया. पुलिस ने गिरफ्तार कर उसे जेल भेज दिया. नागेश्वर के जेल जाते ही जितेंद्र की तकदीर खुल गई. वह नेहा के साथ हमदर्दी दिखाता था. उस ने अपने दिल में नेहा के लिए जगह तो पहले ही बना ली थी, बस साक्षात उस के सामने होना शेष रह गया था. जितेंद्र के दिल में उसे पाने की हसरतें उमडऩे लगीं. जितेंद्र के सामने नेहा के करीब आने का एक ही रास्ता दिख रहा था, वह था उस का जमानत कराना.

जितेंद्र ने कुछ महीनों बाद नागेश्वर की जमानत करा कर नेहा के दिल पर कब्जा जमा लिया. धीरेधीरे वह भी जितेंद्र की ओर आकर्षित होती गई और दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे. जमानत पर छूट कर जेल से आने के बाद नागेश्वर के व्यवहार में काफी बदलाव आ चुका था. नागेश्वर को पत्नी नेहा की हरकतों के बारे में पता चल गया था कि उस का जितेंद्र के साथ कुछ चक्कर चल रहा है. इस बात को ले कर दोनों के बीच तकरार होती गई और दांपत्य जीवन में दरारें बढ़ती गईं. नागेश्वर ने पत्नी को बहुत समझाने की कोशिश की कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है. भले ही आज वह आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है, कल उस के पास भी पैसे आ जाएंगे.

वह बुरी आदतों और बुरी लत से तौबा कर लेगा, अपनी बसीबसाई गृहस्थी में अपने हाथों आग न लगाओ. पर नेहा ने उस की एक नहीं सुनी और बेटे को साथ ले कर प्रेमी जितेंद्र के साथ रहने के लिए महाराजगंज सिटी में एक किराए का कमरा ले कर लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी.

नागेश्वर नेहा पर घर वापस लौट आने का दबाव बनाने लगा था. नेहा उस के पास लौटने के लिए तैयार नहीं थी. नेहा रौनियार और जितेंद्र ताउम्र साथ रहना चाहते थे, लेकिन उन के लिए यह आसान नहीं था. नेहा का पति नागेश्वर अभी जिंदा था. उस के जीते जी उन के यह ख्वाब कभी पूरे नहीं हो सकते थे. पत्नी ने पति पर तलाक देने का दबाव डाला था. वह उस के साथ अब रहना नहीं चाहती थी. बाकी की जिंदगी वह अपने प्रेमी जितेंद्र के साथ उस की बांहों में बिताना चाहती थी. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच कई बार झगड़े भी हुए थे और उस ने पत्नी नेहा को तलाक देने से साफतौर पर मना कर दिया था. इसी खुन्नस में नेहा और उस के प्रेमी जितेंद्र के साथ मिल कर पति नागेश्वर रौनियार की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी.

पुलिस को दिए बयान में नेहा ने बताया था कि पति पैसों के अभाव में गैरमर्दों के पहलू में भेज कर उस से धंधा कराना चाहता था. यह बात उसे गवारा नहीं थी. उस के जमीर को गहराइयों तक झकझोर दिया था, इसलिए उस का झुकाव जितेंद्र की ओर तेजी से बढ़ा था. और उस ने फैसला कर लिया कि वह जितेंद्र के साथ अपना बाकी का जीवन गुजारेगी. कथा लिखे जाने तक नागेश्वर रौनियार हत्याकांड के दोनों आरोपी नेहा रौनियार और उस का प्रेमी जितेंद्र जेल की सलाखों के पीछे कैद थे. पति की हत्या की नेहा के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी और न ही पश्चाताप का कोई भाव था.

जेल से छूटने के बाद नेहा ने प्रेमी के साथ रहने की इच्छा जताई है. उस का बेटा अपने दादा केशवराज रौनियार के साथ रह रहा था. Extramarital Affair

 

Best Crime Story: प्यार का अधिकार

Best Crime Story: देवेंद्र को जहां सहानुभूति और आत्मीयता की जरूरत थी, वहीं ममता को धैर्य और विश्वास  की. आखिर  ऐसा क्या हुआ  था कि न उसे सिंपथी मिली   और न वह धैय से काम ले  सकी. कुछ दिनों पहले कानपुर के एक नामीगिरामी इंजीनियरिंग संस्थान के गर्ल्स हौस्टल में कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी, क्योंकि अगले दिन रविवार होने की वजह से संस्थान में छुट्टी थी. अधिकतर लड़कियां हौस्टल के बरामदे में बैठी गपशप कर रही थीं तो कुछ अगले दिन पिकनिक मनाने का प्रोग्राम बना रही थीं. अचानक किसी लड़की के चीखने की आवाज ने सभी को चौंका दिया.

लड़कियां यह जानने की कोािशश करने लगीं कि चीख की आवाज आई कहां से. काजोल, ज्योति और निशा अपनेअपने कमरे से निकल कर बाहर आईं. काजोल ने कहा, ‘‘शायद आवाज कमरा नंबर 212 से आई है.’’

वह कमरा एमटेक की छात्रा ममता शुक्ला का था. ज्योति और निशा ने ममता को आवाज दे कर दरवाजा खटखटाया. लेकिन कमरे के अंदर से कोई जवाब नहीं आया. दरवाजा अंदर से बंद था. तब तक कई अन्य लड़कियां वहां आ गई थीं. उन में से एक लड़की ने कहा, ‘‘रोशनदान से झांक कर देखो कि ममता दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है.’’

कुछ लड़कियां एक मेज उठा लाईं. मेज पर कुरसी रख कर 2 लड़कियों ने उसे मजबूती से पकड़ लिया. दीप्ति ने कुरसी पर खड़े हो कर दरवाजे के ऊपर लगे रोशनदान से अंदर झांका. लेकिन कमरे के अंदर कुछ दिखाई नहीं पड़ा. तब दीप्ति ने रोशनदान का शीशा तोड़ दिया और अंदर हाथ डाल कर दरवाजे की सिटकनी खोल दी. दरवाजा खुलते ही काजोल और ज्योति कमरे के अंदर गईं. अंदर का दृश्य देख कर वे स्तब्ध रह गईं. तब तक दीप्ति और अन्य कई लड़कियां भी अंदर पहुंच गईं. अंदर का हाल देख कर सभी डर गईं. दीप्ति ने सभी लड़कियों को कमरे से बाहर निकाल कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया. उस ने निशा और ज्योति को दरवाजे के बाहर रुकने को कहा और खुद काजोल के साथ वार्डन को सूचना देने चल पड़ी.

सूचना मिलते ही वार्डन डा. आर.पी. अस्थाना, मुख्य सुरक्षा अधिकारी डी.पी. गोयल, सहायक मुख्य सुरक्षा अधिकारी आर.एन. श्रीवास्तव के साथ कमरे पर आ पहुंचे. वार्डन श्री अस्थाना ने सुरक्षा अधिकारियों के साथ कमरे में प्रवेश किया. कमरे की दक्षिणी दीवार के पास फर्श पर ममता पड़ी थी. उस से थोड़ी दूरी पर एक युवक पड़ा था. फर्श पर ढेर सी उल्टी पड़ी थी. वार्डन श्री अस्थाना ने फौरन सुरक्षा अधिकारी को भेज कर संस्थान के हेल्थ सेंटर से डा. एस.के. तिवारी को बुलवाया. डा. तिवारी ने ममता का परीक्षण कर के उसे मृत घोषित कर दिया. युवक बेहोश था. उसे होश में लाने का प्रयास किया गया तो थोड़ी देर में वह होश में आ गया.

युवक ने अपना नाम देवेंद्र सिंह बताया. उस ने यह भी बताया कि वह ममता से प्रेम करता था. प्रेम में निराश हो कर उस ने ममता को जहर दे दिया था और खुद भी जहर खा लिया था. वार्डन श्री अस्थाना ने आर.एन. श्रीवास्तव के साथ देवेंद्र को अस्पताल भिजवा दिया. फिर एक सिक्योरिटी गार्ड को लिखित सूचना दे कर कोतवाली भेज दिया. सिक्योरिटी गार्ड कोतवाली पहुंचा तो उस समय कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर इंद्रनाथ अपने कक्ष में बैठे थे. गार्ड ने वार्डन द्वारा दी गई लिखित सूचना उन्हें दे दी. सूचना पढ़ कर इंसपेक्टर ने रिपोर्ट लिखने का आदेश दिया. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी घटना की सूचना दे दी और खुद पुलिस दल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर इंद्रनाथ ने ममता के शव का निरीक्षण किया. ममता के कपड़े अस्तव्यस्त थे. उस के चेहरे पर सफेद पाउडर जमा हुआ था. शरीर पर कोई घाव का निशान नहीं था. आसपास का सामान बिखरा पड़ा था. देखने से ही लगता था कि ममता ने जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. इसी बीच तमाम पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. ममता के कमरे की तलाशी लेने पर पुलिस को आर्सेनिक पाउडर 500 ग्राम, आर्सेनिक पाउडर की रसीद, मिठाई, दवा के कुछ कैप्सूल, एक टेप रिकौर्डर, कैसेट, 2 मोबाइल फोन, 3 पोस्टर, जिन पर देवेंद्र ने अपनी प्रेमकथा लिखी थी. एक सीरिंज और देवेंद्र सिंह के नाम की एक चैकबुक मिली. इन सब चीजों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. कमरे में पड़ी उल्टी को भी पुलिस ने सील कर के कब्जे में ले लिया. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने ममता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इंसपेक्टर इंद्रनाथ ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर जयकरन को सौंप दी. अभियुक्त देवेंद्र सिंह पुलिस के कब्जे में था. जयकरन ने सब से पहले उसी से पूछताछ की. देवेंद्र का कहना था कि वह ममता से प्रेम करता था. उस ने ममता को मारा नहीं था. जबकि घटनास्थल पर प्राप्त साक्ष्य कुछ और ही कह रहे थे. जांच के दौरान पूरी कहानी कुछ इस तरह प्रकाश में आई. देवेंद्र सिंह के पिता आर.के. सिंह लखनऊ स्थित सचिवालय में मुख्य प्रशासनिक अधिकारी थे. देवेंद्र के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. देवेंद्र अकेला बेटा था, इसलिए वह मातापिता का बड़ा दुलारा था. वह देवेंद्र को किसी बात की कमी नहीं होने देते थे. इस प्यारदुलार ने देवेंद्र को जिद्दी बना दिया था. वह जिस चीज के लिए अड़ जाता, उसे ले कर ही मानता था. घर में किसी बात की कमी तो थी नहीं, इसलिए उस की हर ख्वाहिश पूरी हो जाती थी.

देवेंद्र में कई गुण भी थे. वह बहुत महत्त्वाकांक्षी तथा धुन का पक्का था. पिता उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे. विज्ञान से पढ़ाई पूरी करने के बाद देवेंद्र इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी में जुट गया. वह मेहनती तो था ही. इलाहाबाद के मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज में बीटेक के लिए उसे चुन लिया गया. वह लखनऊ से इलाहाबाद चला गया और वहां हौस्टल में रह कर पढ़ाई करने लगा. नया सत्र शुरू हुआ था, इसलिए कालेज में इंट्रोडक्शन चल रहा था. पुराने छात्र नए लड़केलड़कियों की खिंचाई कर रहे थे. ऐसे में देवेंद्र की मुलाकात एक लड़की से हुई, जिस ने उसी साल बीटेक में प्रवेश लिया था. लड़की का नाम था ममता शुक्ला. ममता आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी. पहली मुलाकात में ही देवेंद्र ममता से बहुत प्रभावित हुआ.

ममता के पिता महिपाल शुक्ला लखनऊ में रेलवे विभाग में अभियंता थे. श्री शुक्ल की 3 बेटियां थीं. उन में ममता दूसरे नंबर पर थी. चूंकि देवेंद्र भी लखनऊ का रहने वाला था, इसलिए ममता और देवेंद्र में मित्रता हो गई. देवेंद्र जब लखनऊ जाता, ममता उसे अपने भी काम सौंप देती. इस तरह वह ममता के घर भी आनेजाने लगा. कुछ ही दिनों में वे अच्छे दोस्त बन गए. उसी बीच ममता बीमार पड़ गई. इलाहाबाद में देवेंद्र के सिवा उस का कोई अन्य आत्मीय नहीं था. उस समय देवेंद्र ने बड़ी लगन से ममता की देखभाल की. कुछ ही दिनों में ममता स्वस्थ हो गई. देवेंद्र की सेवा ने ममता का दिल जीत लिया. वह देवेंद्र से प्रेम करने लगी. देवेंद्र तो मन ही मन ममता को पहले से ही चाहता था.

दोनों प्यार की राह पर चल पड़े. उन की मुलाकातें ही नहीं होने लगीं, बल्कि दोनों की फोन पर लंबीलंबी बातें भी होने लगीं. जल्दी ही उन का प्रेम चर्चा का विषय बन गया. न जाने कैसे  इस बात की खबर ममता के घर वालों तक पहुंच गई. महिपाल शुक्ला को यह बात नागवार गुजरी. ममता किसी अन्य जाति के लड़के से संबंध जोड़े, यह उन्हें पसंद नहीं था. लेकिन जवान बेटी से खुल कर कुछ कह भी नहीं सकते थे. हां, अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने ममता को कई बार अवश्य टोका. लेकिन ममता ने उस पर ध्यान नहीं दिया. ममता जब भी लखनऊ आती, देवेंद्र के घर अवश्य जाती. देवेंद्र के परिवार वाले ममता को बहुत मानते थे, खासतौर पर उस की मां. वह ममता को अपनी बहू बनाने के लिए बहुत लालायित थीं.

देवेंद्र ने बीटेक पूरा कर लिया तो लखनऊ आ गया. उसे ममता से दूर होने का बहुत दुख हुआ. लेकिन मजबूरी थी. लखनऊ और इलाहाबाद के बीच ज्यादा फासला नहीं था. इसलिए वह बीचबीच में इलाहाबाद का चक्कर लगा लेता था. ममता भी छुट्टी मिलते ही लखनऊ अपने घर पहुंच जाती थी. कुछ समय बाद देवेंद्र को भारत इलैक्ट्रौनिक्स लिमिटेड, गाजियाबाद में नौकरी मिल गई. अब देवेंद्र   का ममता से मिलना और कम हो गया. सिर्फ फोन से वह ममता से दिल की बातें कर लेता था. इसी दौरान एक ऐसी घटना घट गई, जिस ने ममता और संजय को बेचैन कर दिया.

उन दिनों ममता की छुट्टियां चल रही थीं. वह लखनऊ में थी. देवेंद्र व्यस्तता के कारण काफी दिनों तक ममता से मिलने नहीं आ सका था. इसलिए एक दिन ममता खुद उस के घर जा पहुंची. ममता को देख कर देवेंद्र की मां बहुत खुश हुईं. उन्होंने ममता को अपने पास बिठा कर कहा, ‘‘बेटी, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहिए आंटीजी, क्या बात है?’’ ममता ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘बेटी, जब तक बच्चा छोटा होता है, मां उसे अपने आंचल तले हर बुराई से दूर रखती है. लेकिन उस के बड़े होने पर मांबाप का नियंत्रण कम हो जाता है. फिर वह अपनी जिंदगी में दखल पसंद नहीं करता.’’

‘‘आंटीजी, मैं समझी नहीं. आप कहना क्या चाहती हैं?’’

‘‘ममता, देवेंद्र में एक बहुत बड़ा अवगुण है, जो शायद तुम्हें नहीं मालूम. वह नशीली दवाएं खाने लगा है. मैं तो उसे समझासमझा कर थक गई. वह मेरी एक नहीं सुनता. लेकिन बेटी, मुझे विश्वास है कि अगर तुम समझाओगी तो वह जरूर मान जाएगा.’’

यह सुन कर ममता सन्न रह गई. देवेंद्र ऐसा होगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. उस के निश्छल एवं भावुक हृदय को गहरी ठेस लगी. आंखों में आंसू भर आए. वह उसी वक्त अपने घर लौट आई. दिन भर अपने कमरे में पड़ी रोती रही. शाम को जब महिपाल शुक्ला घर लौटे तो बेटी का उतरा चेहरा देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘ममता, बहुत सुस्त हो, तबीयत तो ठीक है न?’’

ममता ने पिता की बात पर कोई जवाब नहीं दिया. बस गुमसुम बैठी रही. श्री शुक्ला दिन भर के थके थे, इसलिए उन्होंने ज्यादा पूछताछ नहीं की. वह अपने कमरे में चले गए. 2 दिनों बाद रविवार को नौकर ने आ कर कहा, ‘‘बिटिया, देवेंद्र बाबू आए हैं.’’

देवेंद्र का नाम सुनते ही ममता उत्तेजित हो गई. भावावेश में वह नौकर को डांटते हुए बोली, ‘‘उन से कह दो, यहां से चले जाएं. मैं उन का मुंह नहीं देखना चाहती.’’ नौकर सिर झुका कर चला गया.

फिर देवेंद्र खुद वहां आ गया. उसे देखते ही ममता उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी तो उस ने उस का हाथ पकड़ कर बिठाते हुए कहा, ‘‘क्या बात है, सरकार के तेवर बदलेबदले से हैं?’’

‘‘छोड़ो देवेंद्र, मुझे तुम्हारा मजाक हर समय अच्छा नहीं लगता.’’ ममता उस का हाथ झटक कर बोली.

‘‘लो छोड़ दिया, पर इतना तो बता दो, बंदे से खता क्या हुई है?’’

‘‘गलती तुम से नहीं, मुझ से हुई है, वरना तुम्हारे फरेब को पहले ही समझ लेती.’’

‘‘ममता, तुम्हें गलतफहमी हो गई है.’’

‘‘नहीं देवेंद्र, अब मेरी आंखें खुल गई हैं.’’

‘‘लेकिन मैं ने किया क्या है, पहले यह तो बताओ.’’

‘‘देवेंद्र, तुम ड्रग्स लेते हो. यह बात तुम ने मुझे कभी नहीं बताई.’’ ममता कांपते स्वर में बोली. यह सुन कर देवेंद्र को झटका लगा. अगले क्षण खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘यह तुम से किस ने कहा?’’

‘‘तुम्हारी मम्मी ने मुझे बताया है. देवेंद्र, आज से हमारा रिश्ता खत्म. मैं तुम से शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘ऐसा न कहो ममता, मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.’’ देवेंद्र भावुक हो गया. वह बहुत देर तक ममता को समझाता रहा कि वह सारी बुरी आदतें छोड़ देगा. लेकिन ममता पर उस का कोई असर नहीं हुआ. अंत में देवेंद्र उठ कर चला गया. उस के जाने के बाद ममता ने यह बात घर में सब को बता दी. महिपाल शुक्ला मन ही मन आश्वस्त हुए कि चलो यह कांटा अपने आप ही निकल गया. घर में छुट्टियां बिता कर ममता इलाहाबाद आ गई. इस बीच देवेंद्र ने कई बार ममता से मिलने की कोशिश की. लेकिन ममता उस के सामने नहीं आई. उस के इस तरह रूठ जाने से देवेंद्र बहुत परेशान था. वह ममता को लगातार फोन भी करता रहा, पर उस का नंबर देखते ही ममता फोन काट देती. बाद में उस ने अपना नंबर ही बदल लिया. वह ममता से मिलने कई बार इलाहाबाद भी गया, लेकिन वहां भी ममता ने उस से सीधे मुंह बात नहीं की.

प्यार के बदले उपेक्षा मिलने के बावजूद देवेंद्र ममता को भूल नहीं सका. वह उस के पीछे लगा रहा. उसे समझाता रहा. उसे विश्वास था कि एक न एक दिन ममता का गुस्सा शांत हो जाएगा. फिर वह उसे पहले की तरह चाहने लगेगी. लेकिन उस का सोचना गलत निकला. ममता उस से दूर होती गई. वह पागलों की तरह उस के इर्दगिर्द मंडराता रहा. अब वह नशा भी कुछ ज्यादा ही करने लगा था. कहा जाता है कि उस ने एक बार आत्महत्या करने की भी कोशिश की थी. कुछ दिनों बाद देवेंद्र पर एक और कहर टूटा. उसे कहीं से पता चला कि ममता किसी हरिहर तिवारी नामक लड़के से प्रेम करने लगी थी. ममता ऐसा करेगी, उसे यकीन नहीं हुआ. वह ममता से मिलने इलाहाबाद जा पहुंचा. उसे देखते ही ममता बोली, ‘‘देवेंद्र, मैं ने कितनी बार कहा कि तुम मुझ से मिलने मत आया करो.’’

‘‘ममता, मैं तुम से कुछ पूछने आया हूं.’’ देवेंद्र ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अब क्या पूछना बाकी है?’’

‘‘ममता, क्या यह सच है कि तुम किसी और को चाहने लगी हो?’’

‘‘क्यों, आप को कोई ऐतराज है क्या?’’

‘‘ममता, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं. तुम मेरी हो, मेरी ही रहोगी.’’

ममता चिल्ला कर बोली, ‘‘देवेंद्र, होश की दवा करो. मैं तुम्हारी बांदी नहीं हूं, जो तुम्हारे हुक्म की तामील करूं. फिर तुम मुझे राकेने वाले होते कौन हो? क्या अधिकार है मुझ पर तुम्हारा? सुनना ही चाहते हो तो सुन लो, मैं हरि से प्रेम करती हूं और उसी से शादी भी करूंगी.’’

देवेंद्र का खून खौल उठा. वह गुस्से से आगे बढ़ा, फिर कुछ सोच कर पीछे हट गया. तभी ममता की कुछ सहेलियां वहां आ गईं. देवेंद्र उठ कर चला गया.  इस के बाद से देवेंद्र के विचार बदलने लगे. उसे लगा कि अब वह ममता को कभी नहीं पा सकेगा. धीरेधीरे ममता के प्रति देवेंद्र का प्यार नफरत में बदलने लगा. उसे जब भी ममता के अंतिम शब्द याद आते, वह पागल हो उठता. उस के मन में प्रतिशोध की लहरें उठने लगतीं. उस ने कई बार ममता को धमकी दी कि वह उस से विवाह कर ले, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा. लेकिन ममता ने उस की धमकियों की परवाह नहीं की. अंत में उस ने ममता से बदला लेने के लिए एक खतरनाक योजना बना डाली.

ममता का बीटेक पूरा हो गया था. उस के पिता चाहते थे कि ममता एमटेक करे. इसलिए ममता ने कानपुर के उस संस्थान में प्रवेश ले लिया और वहीं हौस्टल में रहने लगी. चूंकि देवेंद्र हर वक्त ममता की टोह में रहा करता था, इसलिए उसे सारी जानकारी थी. दिसंबर महीने में देवेंद्र ने अपनी योजना के अनुसार, लखनऊ के अमीनाबाद से 5 सौ ग्राम आर्सेनिक पाउडर खरीदा. फिर उसी शाम वह अपनी मारुति आल्टो कार से ममता से मिलने के लिए रवाना हो गया. रास्ते में उस ने मिठाई भी खरीद ली थी. 15 दिसंबर की दोपहर 3 बजे देवेंद्र कानपुर पहुंच गया और अपने एक दोस्त के घर ठहरा. आराम करने के बाद देवेंद्र गर्ल्स हौस्टल पहुंचा. ममता का कमरा ढूंढ़ने में उसे खास दिक्कत नहीं हुई.

लेकिन कमरे में ताला लगा देख कर वह सोच में पड़ गया, आखिर ममता कहां चली गई? उस ने हौस्टल में पूछा तो पता चला कि वह अपनी सहेली के घर गई है. पर वह किस सहेली के घर, कहां गई है, यह कोई नहीं बता सका. वहां से निराश हो कर देवेंद्र ममता के परिचितों के यहां चक्कर काटने लगा. काफी भागदौड़ के बाद उसे ममता के बारे में पता चल गया. ममता अपनी सहेली सुष्मिता के यहां गई थी. सुष्मिता ममता के साथ पढ़ती थी. इसलिए देवेंद्र भी उस से परिचित था. वह उसी दिन सुष्मिता के घर जा पहुंचा. वहां उस की मुलाकात सुष्मिता के पिता डा. डी.एन. मेहरा से हुई. उस ने डा. मेहरा को बताया कि वह ममता का दोस्त है और उस से मिलना चाहता है तो उन्होंने ममता को बुलवा दिया. अचानक उसे देख कर ममता हैरान रह गई. उस ने तीखे स्वर में पूछा, ‘‘यहां क्यों आए हो?’’

उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ममता, मैं तुम्हें लेने आया हूं. मैं ने घूमने का प्रोग्राम बनाया है. बस तुम जल्दी तैयार हो जाओ.’’

‘‘मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम इसी वक्त यहां से चले जाओ.’’

‘‘नहीं, तुम को चलना ही पड़ेगा. आज मैं तुम्हें साथ लिए बगैर नहीं जाऊंगा.’’ कह कर देवेंद्र ने ममता का हाथ पकड़ लिया. ममता चिल्ला पड़ी. शोर सुन कर डा. मेहरा आ गए. उन्हें देवेंद्र की बदतमीजी पर बड़ा क्रोध आया. उन्होंने आगे बढ़ कर ममता को छुड़ाया और उसे डांट कर घर से बाहर निकाल दिया.

अगले दिन ममता अपने हौस्टल आ गई. वह पिछले दिन की घटना से काफी परेशान थी. कुछ देर बाद उस की सहेलियां उसे बुलाने आईं. लेकिन ममता ने तबीयत खराब होने का बहाना बना कर क्लास में जाने से इनकार कर दिया. लड़कियों के जाने के बाद वह कमरा बंद कर के बिस्तर पर लेट गई. सोचतेसोचते ही उस की आंख लग गई. करीब साढ़े 11 बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया. ममता ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक पड़ी. सामने देवेंद्र खड़ा था. ममता की भृकुटि तन गई. उस ने गुस्से से पूछा, ‘‘अब यहां क्या लेने आए हो?’’

देवेंद्र ने धीमे से कहा, ‘‘ममता, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

‘‘देवेंद्र प्लीज, तुम यहां से चले जाओ. मैं कुछ सुनना नहीं चाहती हूं.’’

‘‘नहीं ममता, आज तो तुम्हें सुनना ही पड़ेगा.’’ कहते हुए देवेंद्र कमरे के अंदर आ गया. उस की इस जबरदस्ती पर ममता को बड़ा क्रोध आया. लेकिन कुछ बोली नहीं. अपना सामान रखने के बाद देवेंद्र ने भीतर से दरवाजा बंद कर दिया. फिर कुरसी पर बैठ कर बोला, ‘‘तुम ने सुष्मिता के घर मेरे साथ बड़ा बुरा सुलूक किया.’’

ममता ने उस की बात का जवाब देने के बजाय पूछा, ‘‘देवेंद्र, तुम इस तरह मुझे क्यों तंग कर रहे हो? आखिर तुम चाहते क्या हो?’’

‘‘यह तुम अच्छी तरह जानती हो.’’ देवेंद्र ने कहा.

‘‘लेकिन अब वह संभव नहीं है.’’

‘‘मैं नहीं मानता ममता, तुम्हें मैं अपना कर ही रहूंगा. कुछ पा कर खो देना मेरी फितरत में नहीं है.’’

‘‘यह तुम्हारी भूल है देवेंद्र, ऐसा कभी नहीं होगा.’’

‘‘एक बार फिर सोच लो ममता.’’

‘‘मैं ने खूब सोच लिया है. तुम से शादी कर के मैं अपना जीवन नष्ट नहीं कर सकती,’’ ममता उठते हुए बोली, ‘‘अपनी बात कह चुके हो तो जा सकते हो.’’

‘‘अरे तुम तो नाराज हो गई. बैठो तो सही. देखो, मैं तुम्हारे लिए मिठाई लाया हूं.’’ देवेंद्र ने हंसते हुए कहा.

‘‘मुझे नहीं खानी तुम्हारी मिठाई.’’ ममता ने रूखे स्वर में कहा.

लेकिन देवेंद्र नहीं माना. वह खुद ही उठ कर पानी भी ले आया. फिर उस के बहुत जोर देने पर ममता ने मिठाई खा ली. दोनों काफी देर तक बैठे बातें करते रहे. बातों का सिलसिला अंत में फिर शादी पर आ कर अटक गया. देवेंद्र ने ममता को बहुत समझाया, पर वह अपने पर अड़ी रही. तब देवेंद्र उग्र हो उठा. वह बोला, ‘‘ममता, तुम मेरी हो, मेरी ही रहोगी. हमें कोई अलग नहीं कर सकता.’’

इस के बाद उस ने बलपूर्वक ममता के मुंह में आर्सेनिक का घोल उड़ेल दिया. ममता ने बचाव के लिए बहुत हाथपांव मारे, चीखीचिल्लाई. पर देवेंद्र की पकड़ से छूट न सकी. इस हाथापाई में थोड़ा सा घोल ममता के चेहरे पर भी छलक गया. धीरेधीरे ममता पर जहर का असर होने लगा. उस की पलकें बंद होने लगीं. ममता के अचेत होने तक संजय भी होश खो बैठा. वह पागलों की तरह दीवार पर लगे पोस्टरों पर अपनी प्रेमकथा लिखने लगा. कुछ समय बाद उस की भी हालत ममता जैसी होने लगी. वह भी जमीन पर गिर पड़ा. तभी हौस्टल की लड़कियां आ कर दरवाजा पीटने लगी थीं.

कथा लिखे जाने तक देवेंद्र जेल में था. उस की जमानत नहीं हो सकी थी. वह प्यार का अधिकार पाने के लिए बेचैन था. लेकिन यह नहीं समझ पाया कि प्यार कोई वस्तु नहीं, जिसे जबरदस्ती हासिल किया जा सके. Best Crime Story

(कथा सत्य घटना पर आधारित है. कुछ पात्रों एवं स्थान के नाम बदल दिए गए हैं.)

 

Romantic Stories Hindi: पत्नी के प्रेमी से सुख की लालसा

Romantic Stories Hindi: उस दिन मई 2021 की 11 तारीख थी. तीर्थनगरी हरिद्वार के पथरी थाने के थानाप्रभारी अमर चंद्र शर्मा अपने औफिस में बैठे कुछ आवश्यक काम निपटा रहे थे, तभी उन के पास एक महिला आई और बोली, ‘‘साहब, मेरी मदद कीजिए.’’

वह महिला बड़े ही दुखी लहजे में बोली, ‘‘मेरा नाम अंजना है और मैं रानी माजरा गांव में रहती हूं. साहब, परसों 9 मई को मेरा पति संजीव सुबह फैक्ट्री गया था, लेकिन शाम को वापस नहीं लौटा. उस के न लौटने पर उस की फैक्ट्री व परिचितों के घर जा कर पता किया लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. उस के बारे में कुछ पता न चलने पर मैं आप के पास मदद मांगने आई हूं. अब आप ही मेरे पति को तलाश सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, हम तुम्हारे पति को खोज निकालेंगे. तुम लिखित तहरीर दे दो और साथ में अपने पति की एक फोटो दे दो.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘ठीक है साहब. मुझे शक है कि मेरे गांव के ही प्रधान ने मेरे पति को गायब कराया है. कहीं उस ने मेरे पति के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. इस बात से मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’ वह बोली.

‘‘ठीक है, जांच में सब पता लगा लेंगे. अगर प्रधान का इस सब में हाथ हुआ तो उसे सजा जरूर दिलाएंगे.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘ठीक है साहब,’’ कह कर वह महिला अंजना वहां से चली गई. कुछ ही देर में वह वापस लौटी और एक तहरीर और फोटो थानाप्रभारी शर्मा को दे गई तो उन्होंने संजीव की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.

थानाप्रभारी शर्मा अभी कुछ प्रयास करते, उस से पहले ही अगले दिन फिर अंजना उन से मिलने आ गई. उस ने गांव के प्रधान द्वारा अपने पति को मार देने का आरोप लगाते हुए लाश जंगल में पड़ी होने की आशंका जाहिर की. उस ने यह बात उस की इस हरकत से इंसपेक्टर शर्मा को उस पर शक हो गया. ऐसी हरकत तो इंसान तभी करता है, जब वह खुद उस मामले में संलिप्त हो और दूसरे को फंसाने की कोशिश करता है. अंजना भी जिस तरह से गांव के प्रधान को बारबार इंगित कर रही थी, उस से यही लग रहा था कि अंजना का अपने पति संजीव को गायब कराने में हाथ है और इस में वह गांव के प्रधान को फंसाना चाहती है.

संजीव ने गांव के कई विकास कार्यों के बारे में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग रखी थी. इस से प्रधान और संजीव के बीच विवाद चल रहा था. इसी का फायदा शायद अंजना उठाना चाहती थी.

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अंजना पर शक हुआ तो इंसपेक्टर शर्मा ने अंजना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर पर अंजना की काफी बातें होने की बात पता चली. 9 मई को भी कई बार बातें हुई थीं. दोनों की लोकेशन भी कुछ देर के लिए साथ में मिली. अंजना पर जब शक पुख्ता हो गया तो 16 मई, 2021 को थानाप्रभारी शर्मा ने अंजना को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. फिर महिला कांस्टेबलों बबीता और नेहा की मौजूदगी में अंजना से काफी सवाल किए, जिन का सही से अंजना जवाब नहीं दे पाई. जब सख्ती की गई तो अंजना ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

अंजना ने ही अपने पति संजीव की हत्या की थी. हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी शिवकुमार उर्फ शिब्बू ने दिया था, जोकि धनपुरा गांव में रहता था. उसी ने हत्या के बाद संजीव की लाश पैट्रोल डाल कर जलाई थी. पुलिस ने शिवकुमार को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. दोनों की निशानदेही पर पीपली गांव के जंगल के काफी अंदर जा कर संजीव की अधजली लाश पुलिस ने बरामद कर ली. मौके से ही हत्या में प्रयुक्त रस्सी और प्लास्टिक बोरी भी बरामद हो गई.

लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद जो कहानी निकल कर सामने आई, वह काफी हैरतअंगेज थी. उत्तराखंड के शहर हरिद्वार के पथरी थाना क्षेत्र के गांव रानी माजरा में रहता था संजीव. संजीव पदार्था स्थित पतंजलि की फूड पार्क कंपनी में काम करता था. परिवार के नाम पर उस की पत्नी और 12 साल का बेटा सनी था.

जब परिवार का मुखिया सही न चले तो परिवार का बिगड़ना तय होता है. संजीव में कई गलत आदतें थीं, जिस से अंजना काफी परेशान रहती थी. संजीव को अप्राकृतिक यौन संबंध बनवाने का शौक था, जिस के चलते वह शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार भी रहता था. कभीकभी उस की मानसिक स्थिति काफी बदतर हो जाती थी. घर के सामने से कोई कुत्ता गुजर जाता तो वह कुत्ते को जम कर मारतापीटता था. कई बार उस ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर के पुलिसकर्मियों को गालियां दीं. पुलिसकर्मियों ने शिकायत की तो उस की हालत देख कर थाना स्तर से कोई काररवाई नहीं की जाती. उस के दिमाग में कब क्या फितूर बस जाए कोई नहीं जान सकता था.

धनपुरा गांव में रहता था 45 वर्षीय शिवकुमार उर्फ शिब्बू. शिवकुमार के परिवार में पत्नी, एक बेटी और एक बेटा था. शिवकुमार दूध बेचने का काम करता था. संजीव के घर वह पिछले 10 सालों से दूध देने आता था. संजीव से उस की दोस्ती थी. संजीव ने शिवकुमार को अपनी पत्नी अंजना से मिलाया. दोनों मे दोस्ती कराई. दोस्ती होने पर शिवकुमार दूध देने घर के अंदर तक आने लगा. अंजना से वह घंटों बैठ कर बातें करने लगा. कुछ ही दिनों में वे दोनों काफी घुलमिल गए. उन के बीच हंसीमजाक भी होने लगा.

एक दिन दूध देने के बाद शिवकुमार अंजना के पास बैठ गया. उसे देखते हुए बोला, ‘‘भाभी, लगता है आप अपना खयाल नहीं रखती हो?’’

अंजना को उस की बात सुन कर हैरत हुई, बोली, ‘‘अरे, भलीचंगी तो हूं …और कैसे खयाल रखूं?’’

‘‘सेहत पर तो आप ध्यान दे रही हो, जिस से स्वस्थ हो लेकिन अपने हुस्न को निखारनेसंवारने में बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रही हो.’’

‘‘ओह! तो यह बात है. मैं भी सोचूं कि मैं तो अच्छीखासी हूं.’’ फिर दुखी स्वर में बोली, ‘‘अपने हुस्न को संवार कर करूं भी तो क्या.  जिस के साथ बंधन में बंधी हूं, वह तो ध्यान ही नहीं देता. उस का शौक भी दूसरी लाइन का है. मुझे खुश करने के बजाय खुद को खुश करने के लिए लोगों को ढूंढता फिरता है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ चौंकते हुए बोला.

शिवकुमार कुछकुछ समझ तो गया था लेकिन अंजना से खुल कर पूछने के लिए उस से सवाल किया.

‘‘यही कि वह आदमी है और आदमी से ही प्यार करता है, उसे औरत में कोई लगाव नहीं है. जैसेतैसे उस ने कुछ दिन मुझे बेमन से खुशी दी, जिस की वजह से एक बेटा हो गया. उस के बाद उस ने मेरी तरफ देखना ही बंद कर दिया. उस के शौक ही निराले हैं.’’

इस पर शिवकुमार उस से सुहानुभूति जताते हुए बोला, ‘‘यह तो आप के साथ अत्याचार हो रहा है, शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से. आप कैसे सह लेती हो इतना सब?’’

‘‘क्या करूं…जब नसीब में ही सब लिखा है तो भुगतना तो पडे़गा ही.’’ दुख भरे लहजे में अंजना ने कहा.

‘‘जैसे वह आप का खयाल नहीं रखता, वैसे आप भी उस का खयाल मत रखो. आप का भी अपना वजूद है, आप को भी अपनी खुशी का खयाल रखने का हक है.’’ उस ने उकसाया.

‘‘खुद को खुश रखने की कोशिश भी करूं तो कैसे, संजीव मेरी खुशियों में आग लगाने में पीछे नहीं हटता. अब उस से बंध गई हूं तो उस के साथ ही निभाना पड़ेगा.’’

‘‘आप अपनी खुशी के लिए कोई भी कदम उठा सकती हैं. इस के लिए आप पर कोई बंधन नहीं है. जरूरत है तो आप के एक कदम बढ़ाने की.’’

‘‘कदम तो तभी बढ़ेंगे, जब कोई मंजिल दिखे. बिना मंजिल के कदम बढ़ाने से कोई फायदा नहीं, उलटा कष्ट ही होगा.’’ वह बेमन से बोली.

‘‘मंजिल तो आप के सामने ही है लेकिन आप ने देखने की कोशिश ही नहीं की.’’ शिवकुमार ने अंजना की आंखों में देखते हुए कहा.

शिवकुमार की बात सुन कर अंजना ने भी उस की आंखों में देखा तो वहां उसे अपने लिए उमड़ता प्यार दिखा. अंजना के दिल को सुकून मिला कि उसे भी कोई दिल से चाहता है और उस का होना चाहता है.

‘‘लेकिन शिव, हम दोनों का ही अपना बसाबसाया परिवार है. ऐसे में एकदूसरे की तरफ कदम बढ़ाना सही होगा.’’ अंजना ने सवाल किया.

‘‘मेरी छोड़ो, अपनी बात करो. कौन सा परिवार… परिवार के नाम पर पति और एक बेटा. पति ऐसा कि जो अपने लिए ही मस्ती खोजता रहता है, जिसे अपनी पत्नी की जरूरतों का कोई खयाल नहीं और न ही उस की भावनाओं की कद्र करता है. ऐसे इंसान से दूर हो जाना बेहतर है.’’

‘‘कह तो तुम ठीक रहे हो शिव. जब उसे मेरा खयाल नहीं तो मैं क्यों उस की चिंता करूं.’’

‘‘हां भाभी, मैं आप को वह सब खुशियां दूंगा, जिस की आप हकदार हैं. बस आप एक बार हां तो कहो.’’

अंजना ने उस की बात सुन कर मूक सहमति दी तो शिवकुमार ने उसे बांहों में भर कर कर सीने से लगा लिया. उस के बाद शिवकुमार ने अंजना को वह खुशी दी, जो अंजना पति से पाने को तरसती थी. उस दिन शिवकुमार ने अंजना की सूखी जमीन को फिर से हराभरा कर दिया. फिर तो उन के बीच नाजायज संबंध का यह रिश्ता लगभग हर रोज निभाया जाने लगा. अंजना का चेहरा अब खिलाखिला सा रहने लगा. वह अब अपने को सजानेसंवारने लगी थी. शिवकुमार के बताए जाने पर वह शिवकुमार के दिए जाने वाले कच्चे दूध से चेहरे की सफाई करती. दूध उबालने के बाद पड़ने वाली मोटी मलाई को अपने चेहरे पर लगाती, जिस से उस के चेहरे की चमक बनी रहे.

समय का पहिया निरंतर आगे बढ़ता गया. संजीव से उन के संबंध छिपे नहीं रहे. उसे पता चला तो उसे बिलकुल गुस्सा नहीं आया. अमूमन कोई भी पति अपनी पत्नी के अवैध रिश्ते के बारे में जानता तो गुस्सा करता, पत्नी के साथ मारपीट लड़ाईझगड़ा करता, लेकिन संजीव के मामले में ऐसा कुछ नहीं था. उस के दिमाग में तो और ही कुछ चल रहा था. जो उस के दिमाग में चल रहा था उसे सोच कर वह मंदमंद मुसकरा रहा था. अब संजीव दोनों पर नजर रखने लगा. एक दिन उस ने दोनों को शारीरिक रिश्ता बनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. उसे आया देख कर शिवकुमार और अंजना सहम गए.

संजीव ने दोनों को एक बार खा जाने वाली नजरों से देखा, फिर उन के सामने कुरसी डाल कर आराम से बैठ गया और बोला, ‘‘तुम दोनों अपना कार्यक्रम जारी रखो.’’

उस के बोल सुन कर शिवकुमार और अंजना हैरत से एकदूसरे को देखने लगे. उन के आश्चर्य की सीमा नहीं थी. संजीव ने जो कहा था उन की उम्मीद के बिलकुल विपरीत था. संजीव के दिमाग में क्या चल रहा है, दोनों यह जानने के लिए उत्सुक थे. उन दोनों को हैरत में पड़ा देख कर संजीव मुसकरा कर बोला, ‘‘चिंता न करो, मुझे तुम दोनों के संबंधों से कोई एतराज नहीं है. मैं तो खुद तुम दोनों को संबंध बनाते देखने को आतुर हूं.’’

संजीव के बोल सुन कर अंजना के अंदर की औरत जागी, ‘‘कैसे मर्द हो जो अपनी ही बीवी को पराए मर्द के साथ बिस्तर पर देखना चाहते हो. तुम इतने गिरे हुए इंसान हो, मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी.’’

‘‘तुम्हारे प्रवचन खत्म हो गए हों तो आगे का कार्यक्रम शुरू करो.’’ बड़ी ही बेशरमी से संजीव बोला.

‘‘क्यों कोई जबरदस्ती है, हम दोनों ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’ अंजना ने सपाट लहजे में बोल दिया.

संजीव ठहाके लगा कर हंसा, फिर बोला, ‘‘मुझे न बोलने की स्थिति में नहीं हो तुम दोनों. मैं ने बाहर वालों को तुम दोनों के नाजायज संबंधों के बारे में बता दिया तो समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे.’’

बदनामी का भय इंसान को अंदर तक हिला कर रख देता है. अंजना और शिवकुमार भी बदनाम नहीं होना चाहते थे. वैसे भी जिस से उन को डरना चाहिए था, वह खुद उन को संबंध बनाने की छूट दे रहा था. ऐसे में दोनों ने संबंध बनाए रखने के लिए संजीव की बात मान ली. अंजना और शिवकुमार शारीरिक संबंध बनाने लगे. संजीव उन के पास ही बैठ कर अपनी आंखों से उन को ऐसा करते देखता रहा और आनंदित होता रहा. किसी पोर्न मूवी में फिल्माए जाने वाले दृश्य की तरह ही सब कुछ वहां चल रहा था.

अंजना के साथ संबंध बनाने के बाद संजीव ने शिवकुमार से अपने साथ अप्राकृतिक संबंध बनाने को कहा. शिवकुमार ने न चाहते हुए उस की बात मान ली. संजीव को उस की खुशी दे दी. अब तीनों के बीच बेधड़क संबंधों का यह नाजायज खेल बराबर खेला जाने लगा. अंजना और शिवकुमार को संजीव ब्लैकमेल कर रहा था. दोनों को अपने प्यार में बाधा पहुंचाने वाला और बदनाम करने की धमकी देने वाला संजीव अब अखरने लगा था. उस से छुटकारा पाने का एक ही तरीका था, वह था उसे मौत की नींद सुला देने का. दोनों ने संजीव को ठिकाने लगाने का फैसला किया तो उस पर योजना भी बना ली.

शिवकुमार का फेरूपुर गांव में खेत था, उसी में उस ने अपना एक अलग मकान बनवा रखा था. 9 मई को अंजना संजीव को यह कह कर वहां ले गई कि वहीं तीनों मौजमस्ती करेंगे. संजीव अंजना के जाल में फंस गया. उस के साथ शिवकुमार के मकान पर पहुंच गया. शिवकुमार वहां पहले से मौजूद था. शिवकुमार के पहुंचते ही शिवकुमार ने अंजना को इशारा किया. अंजना ने तुरंत पीछे से संजीव को दबोच लिया. दुबलापतला संजीव अंजना के चंगुल से तमाम कोशिशों के बाद भी छूट न सका. शिवकुमार ने संजीव के गले में रस्सी का फंदा डाल कर कस दिया, जिस से दम घुटने से संजीव की मौत हो गई. शिवकुमार ने उस की लाश प्लास्टिक बोरी में डाल कर बोरी बंद कर दी और उस बोरी को बाइक पर रख कर वह पीपली गांव के जंगल में ले गया और जंगल में काफी अंदर जा कर संजीव की लाश फेंक दी. लाश ठिकाने लगा कर वह वापस आ गया.

योजना के तहत 11 मई, 2021 को अंजना ने पथरी थाने में पति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अंजना ने ग्राम प्रधान पर हत्या का शक जाहिर किया, जिस से हत्या में ग्रामप्रधान फंस जाए. इधर अंजना को पता नहीं क्यों भय सताने लगा कि वे दोनों किसी बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं. इस भय के कारण 14 मई को ईद के दिन अंजना ने शिवकुमार से संपर्क किया और शिवकुमार से कहा कि लाश को पैट्रोल डाल कर जला दो. शिवकुमार ने फिर से जंगल जा कर संजीव की लाश पर पैट्रोल डाल कर जला दी.

लेकिन दोनों की ज्यादा होशियारी काम न आई, दोनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए. चूंकि अंजना ही वादी थी, ऐसे में पीडि़त को गुनहगार साबित करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है. लेकिन थानाप्रभारी अमर चंद्र शर्मा ने बड़ी सूझबूझ से पहले पुख्ता सुबूत जुटाए, फिर अंजना को उस के प्रेमी शिवकुमार के साथ गिरफ्तार किया. थानाप्रभारी शर्मा ने दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. Romantic Stories Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

Stories in Hindi Love: बहार आई भी तो उदासउदास

लेखक – रुखसाना, Stories in Hindi Love: कागज का पुर्जा मेरे हाथों में फड़फड़ा रहा था. मेरी रगों में भयानक बेचैनी दौड़ने लगी थी. दिल में दहकती हुई आग भर गई थी. बड़े घरों में बसने वाले लोग कितने बेबस और मजबूर होते हैं, यह अब मेरी समझ में अच्छी तरह आ रहा था. आ पी ने खीर की प्लेट अपनी तरफ सरका कर चोर नजरों से बारीबारी सबकी तरफ देखा. मैं अनजान बन गई, लेकिन जिम्मी भाई ने मम्मी से बात करतेकरते तेज नजरों से आपी को घूर कर तल्ख लहजे में कहा, ‘‘ज्यादा खाने ने तुम्हें तबाह कर दिया है आपी जान! पता नहीं तुम वाकई नासमझ हो या जानबूझ कर ऐसा करती हो. अगर तुम्हें अपने पर तरस नहीं आता तो कम से कम हम पर तो तरस खाओ.’’

लेकिन

‘‘तुम ने तो जहां मुआपी ने जिम्मी भाई की तरफ नजर उठा कर भी न देखा. वह उसी तरह अपने दिलबहलाव यानी खाने में यों मगन रहीं, जैसे जिम्मी भाई ने किसी और से कहा हो.

मम्मी ने उन्हें टोका, ‘‘फरजाना, यह जमशेद तुम से कुछ कह रहा है. क्या तुम उस की बात सुन नहीं रही हो?’’झे खाते देखा, टोकना शुरू कर दिया,’’ कह कर खाली प्याली मेज पर पटक कर आपी उठ खड़ी हुईं और धपधप करती खाने के कमरे से बाहर चली गईं. उन के बाहर जाते ही जिम्मी भाई अपना सिर दोनों हाथों में थाम कर बोले, ‘‘इस का क्या होगा मम्मी? मैं तो इसे समझासमझा कर हार गया हूं. अगर यह खुद अपनी जिंदगी संवारना नहीं चाहती तो हम सब क्या कर सकते हैं इस के लिए?’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो जिम्मी.’’ मम्मी ठंडी आह भर कर बोलीं, ‘‘मेरी तो समझ में नहीं आता कि इसे कैसे समझाऊं? किसी नसीहत, किसी डांट का इस पर असर ही नहीं होता. खानदान में तो कोई इस के लिए तैयार नहीं और बाहर से जो रिश्ता आता है, इस का डीलडौल देख कर भाग जाता है. ऊपर से इस की आदतें…’’

मैं बेजार हो कर मेज से उठ गई. रोज खाने पर ऐसी ही बहस छिड़ जाती. मम्मी को आपी की बहुत फिक्र थी. बात भी ठीक थी. उन की उम्र शादी की उम्र को पार कर गई थी. ऊपर से उन के बेपनाह खाने की आदत ने उन का मोटापा हद से ज्यादा बढ़ा दिया था. उन पर मानो गोश्त चढ़ता जा रहा था. थोड़ा-सा चलतीं तो उन की सांस फूलने लगती. उन्हें और किसी चीज में दिलचस्पी नहीं थी. न घर के कामकाज में, न सिलाईकढ़ाई में. वह कहीं आनाजाना भी पसंद नहीं करती थीं. सैरसपाटे का भी उन्हें कोई शौक नहीं था. बस उन के 2 ही शौक थे, खाना और सोना. जाहिर है, मोटी उन्हें होना ही था. कोई भी मेहमान हमारी हवेली में आता, कहीं से भी आता, वह जरा भी किसी को लिफ्ट न देतीं. किसी से कोई मतलब न रखतीं.

आपी का रंग साफ था. नैननक्श भी बुरे नहीं थे. मम्मी का खयाल था कि अगर उन का वजन कम हो जाए तो वह भद्दी नहीं लगेंगी और अल्लाह का कोई बंदा उस के जाल में फंस जाएगा. लेकिन मम्मी और जिम्मी भाई के लाख समझाने का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था. यों लगता था, जैसे उन्हें अपनी शादी से भी कोई दिलचस्पी नहीं थी. अगर बड़ी हवेली और कीमती दहेज की कशिश में एकाध रिश्ता आ भी जाता तो रिश्ता लाने वाले आपी को देख कर और उन से मिल कर दोबारा हवेली का रुख न करते. मम्मी को आपी की फिक्र थी, क्योंकि वह मां थीं, लेकिन जिम्मी भाई की फिक्र में उन की अपनी गरज शामिल थी. मैं यह बताना भूल गई कि हमारी हवेली खुदगर्ज लोगों का डेरा थी.

यहां हर इंसान सिर्फ अपने लिए सोचता था. जिम्मी भाई की मोहब्बत बड़े जोरदार तरीके से अपनी फुफेरी बहन नाइला से चल रही थी और वह चाहते थे कि जल्दी से जल्दी नाइला को दुलहन बना कर हवेली में ले आएं. लेकिन हमारे खानदान में रिवाज था कि छोटों की शादी उस वक्त तक नहीं हो सकती थी, जब तक कि बड़ी बहन या बड़े भाई की शादी न हो जाए. अगर ऐसा किया जाता तो खानदान वाले एक तरह से उस घराने का बायकाट कर देते थे. इसलिए उस रिवाज को तोड़ने में सब डरते थे. हमारी मम्मी गैरखानदान से थीं. मेरे वालिद इलाके के बहुत बड़े रईस थे. मम्मी से शादी उन्होंने अपनी मरजी से की थी. आपी मम्मी और डैडी की पहली औलाद थीं. दूसरे नंबर पर जमशेद भाई थे.

सब से छोटी मैं थी. मैं एक साल की थी, जब डैडी का दिल के दौरे से इंतकाल हो गया था. उन के बाद मम्मी ने इतनी बड़ी हवेली में हम तीनों बच्चों और ढेर सारे नौकरों के बीच अपना वक्त गुजारा. वह काफी पढ़ीलिखी थीं. हवेली को उन्होंने अपनी पसंद के मुताबिक ढाला था. वह पुराने रिवाज पसंद नहीं करती थीं. इसलिए आपी की शादी से मायूस हो कर उन्होंने जमशेद भाई के लिए फुफ्फू जानी से नाइला का रिश्ता मांगा. लेकिन फुफ्फू पुराने खयालात की औरत थीं. उन्होंने साफ कह दिया था कि जब तक फरजाना की डोली नहीं उठेगी, जमशेद की शादी नाइला या किसी और से नहीं हो सकती.

फुफ्फू जानी का हमारे यहां बहुत दखल था. वह डैडी की एकलौती बहन थीं और हर काम, हर बात में उन से सलाह ली जाती थी. फिर भी आखिरी कोशिश के तौर पर मम्मी ने उन से कहा कि अगर सारी उम्र फरजाना बिनब्याही बैठी रही तो क्या होगा? इस के जवाब में फुफ्फू ने कहा था, ‘‘अव्वल तो ऐसा होगा नहीं. और अगर ऐसा हुआ भी तो जमशेद और नाइला को भी सारी उम्र क्वांरे रहना होगा.’’

हर तरह से हार कर मम्मी ने आपी की शादी के लिए अपनी कोशिशें फिर से तेज कर दीं. इस से पहले जिम्मी भाई को आपी से कोई सरोकार नहीं था. शायद वह समझते थे कि मम्मी इस मसले को संभाल लेंगी और फूफ्फू को राजी कर लेंगी. लेकिन अब तो आपी के लिए दूल्हा तलाश करना उन का ‘मिशन’ बन गया था. मैं ने एमए पास कर लिया था और हौस्टल छोड़ कर हवेली में आ गई थी. लेकिन हवेली आ कर मैं सख्त बोर हो रही थी. सारासारा दिन किसी बदरूह की तरह सारी हवेली में घूमती रहती या किताबें पढ़पढ़ कर अपना वक्त बिताया करती. आपी और मेरे बीच उम्र का फर्क था. बहनों वाली बेतकल्लुफी भी नहीं थी, हमारी आदतों और खयालों में भी कोई तालमेल नहीं था.

आपी को हर वक्त खाते रहने का शौक था, जबकि मैं दोपहर को फलों का लंच करती और अकसर रात का खाना गोल कर जाती. इसलिए मेरा बदन स्मार्ट था. नैननक्श तीखे थे. बाल लंबे और घने थे. यूनिवर्सिटी में तालीम हासिल कर के मैं खासी सोशल हो गई थी. हर मामले में अच्छा बोल लेती थी और सुनने वाला मेरी आवाज के जादू में खो जाता था. इसलिए जब से मैं घर आई, मेरे लिए तमाम रिश्ते आ रहे थे. लेकिन मम्मी को मेरी तरफ से कोई फिक्र नहीं थी. जिम्मी भाई की जरूरत आपी की शादी से ही पूरी हो सकती थी, मेरी शादी से नहीं. इसलिए मेरे लिए आया हुआ अच्छे से अच्छा रिश्ता भी बेजारी से रद्द कर दिया जाता. मुझे खुद भी अभी शादी में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. इसलिए हर रिश्ते पर मेरी राय भी मम्मी या जिम्मी भाई से अलग न होती.

मैं भी चूंकि खुदगर्जी के इसी माहौल में पलीबढ़ी थी, सो मुझे न तो आपी के मोटापे से सरोकार था, न उन की शादी से. आपी की एक खामी तालीम की कमी भी थी. मम्मी के लाख चाहने के बावजूद वह मैट्रिक से आगे न पढ़ी सकी थीं. मैट्रिक भी उन्होंने 2 साल में किया था. सर्दियों के दिन थे. मौसम बहुत खुशगवार हो रहा था. शाम का समय था. मैं, मम्मी और आपी, तीनों लौन में बैठे शाम की चाय पी रहे थे. आपी गुलाबजामुनों के साथ इंसाफ कर रही थीं. मैं और मम्मी चाय की प्यालियां हाथों में थामे बातों में मशगूल थीं कि अचानक जिम्मी भाई गेट के अंदर दाखिल हुए और बड़ी खुशदिली से करीब आए. उन्हें यों खुश देख कर मम्मी बोलीं, ‘‘कहां से आ रहे हो?’’

‘‘फुफ्फू की तरफ से आ रहा हूं. नाइला ने बुलाया था.’’

हमारे खानदान में मां से ऐसी बातचीत नहीं की जाती थी, लेकिन मम्मी ने हमारी परवरिश अलग तरीके से की थी. उन्होंने हमें अपने खानदान के उसूलों, रस्मों और रिवाजों से दूर रखा था. वह औलाद और मांबाप के बीच फासलों के हक में नहीं थी. औलाद पर बंदिशें लगाना उन्हें पसंद नहीं था. इसलिए हम अपने दिल की बात मम्मी से खुल कर कह सकते थे. इस वक्त भी मम्मी को जिम्मी भाई की बात बुरी नहीं लगी. हंस कर वह बोलीं, ‘‘चलो, तुम्हारी मुलाकात तो हो गई. लेकिन मेरा खयाल है, तुम वह काम फिर भूल गए होगे?’’

‘‘कौन सा काम?’’ जिम्मी भाई मम्मी को देखने लगे. अचानक उन्हें याद आया तो वह शर्मिंदा हो गए, ‘‘ओह मम्मी, मैं तो बिलकुल ही भूल गया. वह चुड़ैल नाइला जब भी बुलाती है, मैं सब कुछ भूल जाता हूं.’’

‘‘जिम्मी डियर, एक जवान और सेहतमंद जेहन को इतना भुलक्कड़ नहीं होना चाहिए. तुम जानते हो, यह कितना अहम काम है? बहरहाल कल तुम जरूर जा कर नए असिस्टैंट कमिश्नर से मिल लो और उसे खाने की दावत दे दो.’’

‘‘कल जरूर याद रखूंगा मम्मी.’’ फिर उन्होंने मुझ से कहा, ‘‘रुखसाना, एक कप चाय बना दो मेरे लिए और खाने को भी कुछ दो. मैं ने अभी तक लंच नहीं किया.’’

मैं ने मेज पर गुलाबजामुनों की तलाश में नजरें दौड़ाईं, लेकिन आपी जिम्मी के टोकने के डर से गुलाबजामुनों समेत नौ दो ग्यारह हो गई थीं. मम्मी ने नौकर को बिस्कुट लाने के लिए कहा और मैं चाय बनाने लगी.

डैडी की जिंदगी में हमारी हवेली का यह रिवाज था कि जो भी सरकारी अफसर किसी सरकारी या निजी दौरे पर इलाके में आता, हमारी हवेली में उस की दावत जरूर होती. डैडी की मौत के बाद मम्मी ने इस रिवाज को जिंदा रखा और हर बार जो भी असफर आता, हमारी हवेली का मेहमान जरूर बनता. इस बार कोई नया असिस्टैंट कमिश्नर दौरे पर आया था और रेस्ट हाउस में ठहरा था. उसे आए हुए दूसरा दिन था. मम्मी रोजाना जिम्मी भाई को याद दिलातीं कि वह उस से मिल कर खाने पर बुला लें. लेकिन जिम्मी भाई भूल जाते.

उस दिन शाम को मैं गुलाबों के कुंज में बैठी ‘रिमूवर’ से अपने नाखूनों का रंग साफ कर रही थी. मम्मी ने बालों में हेयर कलर लगा लिया था और उन्हें खुश्क करने लौन में आ कर मेरे पास बैठ गईं. आपी अपने कमरे में थीं. मैं ने देखा, जिम्मी भाई सीधा रास्ता अपनाने के बजाए मोतियों की बाड़ फलांगते हुए हमारे करीब आ गए. उन का रंग जोश से तमतमा रहा था और वह कुछ कहनेसुनने के लिए बेचैन हो रहे थे. मैं एक निगाह उन पर डाल कर फिर से अपने काम में लग गई. मम्मी ने पूछ लिया, ‘‘क्या बात है, बहुत पुरजोश नजर आ रहे हो?’’

‘‘हां मम्मी, बड़ी अजीब खबर लाया हूं. आप सुनेंगी तो सख्त हैरान होंगी.’’

‘‘अच्छा, ऐसी कौन सी खबर है, जिस ने तुम्हें इतना हैरानपरेशान कर दिया है?’’ मम्मी हंस पड़ीं. मैं ने तीखे अंदाज से जिम्मी भाई की तरफ देखा. उन की खबरें सदा ‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया’ वाली कहावत साबित होती थीं, सो मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी उन की खबर सुनने में. वह मुझे नहीं, मम्मी को बता रहे थे.

‘‘आप अंदाजा भी नहीं लगा सकतीं मम्मी कि मैं किस से मिल कर आ रहा हूं.’’

‘‘तुम शायद उस नए असिस्टैंट कमिश्नर से मिलने गए थे?’’

‘‘हां, लेकिन आप को यह जान कर हैरत का शदीद धक्का लगेगा कि वह असिस्टैंट कमिश्नर कौन है?’’

‘‘क्या सनसनी फैला रहे हो जिम्मी? सीधी बात करो न, क्या वह हमारा कोई जानने वाला है?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘आप उसे जानने वाला नहीं कह सकती मम्मी, वह इस हवेली में पल कर बड़ा हुआ है. खैर, बड़ा तो हम नहीं कह सकते, लेकिन अपनी जिंदगी का एक हिस्सा उस ने इसी हवेली में गुजारा है.’’

मम्मी के साथसाथ मैं भी चौंक उठी. मम्मी हैरत से पूछ रही थीं, ‘‘कौन है वह? तुम बताते क्यों नहीं हो जिम्मी? पहेलियां क्यों बुझा रहे हो?’’

‘‘वह जैदा है मम्मी, हमारी आया का बेटा. अब वह जावेद खां बन गया है.’’

‘‘क्या?’’ मम्मी को सचमुच हैरत का झटका लगा. वह जिम्मी भाई को देखते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हें यकीनन कोई बड़ी गलतफहमी हुई है. कहां एक बेसहारा लड़का जैदा और कहां असिस्टैंट कमिश्नर.’’

‘‘लेकिन मम्मी, उस ने मुझे खुद बताया है. जब मैं उस से मिला और मैं ने अपना परिचय दिया तो वह बेअख्तियार अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और मुझे गले लगाते हुए बोला, ‘अरे जिम्मी भाई, तुम ने मुझे पहचाना नहीं? मैं जैदा हूं तुम्हारी आया का बेटा. तुम ने यहां आने की तकलीफ क्यों की? मैं तो खुद हवेली आने वाला था.’ फिर उस ने बारीबारी सब के बारे में पूछा. अपने हालात बताते हुए उसे जरा भी शरम नहीं आ रही थी. वहां और भी लोग बैठे थे, लेकिन उन सब के सामने अपनी गरीबी की दास्तान सुना रहा था. वैसे मम्मी, मैं तो उस की हिम्मत की दाद देता हूं. यह मुकाम उस ने अपनी मेहनत, हिम्मत और कोशिश से हासिल किया है. और मम्मी, वह मरियल सा लड़का ऐसा गबरू जवान निकल आया है कि आप देखेंगी तो हैरान रह जाएंगी. अगर वह खुद न बताता तो मैं कयामत तक उसे पहचान नहीं सकता. ऊपर से अपने ओहदे का जरा भी गरूर नहीं.’’

मैं और मम्मी सकते की हालत में जिम्मी भाई की बातें सुन रही थीं. मेरे दिल में बड़े जोर की धड़कन हो रही थी. मैं मुंह फाड़े जिम्मी भाई की तरफ देखे जा रही थी. मम्मी भी सन्न थीं. फिर कुछ दबेदबे लहजे में उन्होंने जिम्मी भाई से पूछा, ‘‘तुम ने खाने की दावत दे दी उसे?’’

‘‘हां, कल रात की दावत दी है. वह तो दावत कबूल ही नहीं कर रहा था. कह रहा था कि खुद आऊंगा और सब से मिलूंगा. लेकिन मैं ने उस से मनवा कर ही छोड़ा.’’

जिम्मी भाई काफी देर तक उस की बातें करते रहे. मम्मी बारबार कह रही थीं कि उन्हें यकीन नहीं आ रहा  कि जैदा इस मुकाम तक पहुंच गया है. मम्मी और जिम्मी भाई वहां से उठ गए लेकिन मैं वहीं बैठी रही. फिजा में ठंडक उतर आई थी. मैं अपने जिस्म के गिर्द चादर लपेटे लगातार उस के बारे में सोच रही थी, जिस का नाम एक अरसे के बाद सुना था. मेरे दिल में उस की यादों के साथ उदासी उतरने लगी. मैं ने कुर्सी की पुश्त के टेक लगा कर आंखें बंद कर लीं. मेरी नजरों के सामने बहुत पहले का जमाना आ गया.

तब हम बहुत छोटे थे. हमारी आया बहुत बूढ़ी हो गई थी. इसलिए आए दिन बीमार रहती थी. जब वह काम के काबिल नहीं रही तो उस ने अपनी बेवा बेटी को बुलवा लिया, जिस के साथ एक बेटा भी था. वह अपने जेठ के साथ रहती थी और जेठानी के जुल्मों से तंग आ गई थी. मम्मी को उस के बेटे पर खासा ऐतराज था. लेकिन आया बहुत मेहनती और ईमानदार औरत थी, इसलिए मम्मी को चुप रहना पड़ा. जैदा का असली नाम जावेद था. आया कभीकभी दुलार से उसे जावेद खां कह कर बुलाती थी. जैदा मेरा हमउम्र था. हम दोनों जब भी एक साथ खेलते, मम्मी को गुस्सा आ जाता. वह डांट कर उसे भगा देतीं और मुझे अपने कमरे में ले आतीं. जैदे को पढ़ाई का बहुत शौक था.

जब मैं पढ़ती तो न जाने कहां से वह निकल आता और हसरतभरी नजरों से मुझे देखता रहता. अक्सर जब मेरी कोर्स की किताबें फट जातीं तो मैं मम्मी से छिपा कर उसे दे देती. वह बहुत खुश होता. फटे हुए पेजों को गोंद से चिपका देता और अकसर मेरे पास बैठ कर उन किताबों को पढ़ने की कोशिश करता रहता. हवेली में मेरे साथ खेलने वाला कोई नहीं था. बच्चों को आम तौर पर अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलने का शौक होता है. आपी और जिम्मी भाई, दोनों मुझ से बड़े थे. मैं जब कीमती खिलौनों से खेलखेल कर उकता जाती तो मम्मी से छिप कर जैदे की तरफ चली जाती और जब तक मम्मी अनजान रहतीं, हम दोनों खेलते रहते.

मम्मी ने सब नौकरों को ताकीद की थी कि मुझे जैदे के साथ न खेलने दिया जाए, सो हर तरफ से मेरी निगरानी की जाती थी, यहां तक कि जैदे की मां और नानी भी मेरी मिन्नत करतीं कि मैं जैदे के साथ न खेलूं. वह कहतीं, ‘‘छोटी बीबी, हवेली में चली जाएं. बेगम साहिबा आप को इधर देखेंगी तो नाराज होंगी. उन का सारा गुस्सा हम पर उतरेगा.’’

लेकिन मुझे मम्मी की परवाह न होती. वक्ती तौर पर उन की डांट से मैं सहम जाती, मगर बाद में हम दोनों सब कुछ भुला कर दोबारा खेलने में लग जाते. मम्मी ने कई बार जैदे के गाल पर थप्पड़ मारे थे. उसे बुराभला कहा था और हवेली में तो उस का घुसना ही मना कर दिया गया था. नौकरों को सख्ती से ताकीद थी कि जैदे को हवेली में आने न दिया जाए. लेकिन इन सारी पाबंदियों ने हमारे इकट्ठे खेलने के शौक को और ज्यादा भड़का दिया था. वह हवेली न आता तो मैं उस के कमरे में चली जाती. मम्मी अक्सर मुझे समझातीं, ‘‘रुखसाना बेटी, छोटे लोगों को ज्यादा मुंह नहीं लगाते. इस तरह तुम्हारी आदतें बिगड़ जाएंगी. तुम जैदे के साथ मत खेला करो. वह छोटा है. हमारा उन का कोई जोड़ नहीं.’’

मम्मी न जाने क्याक्या कहती रहतीं, लेकिन उस छोटी सी उम्र में मम्मी की ‘बड़ीबड़ी’ बातें मेरी समझ में न आतीं और मैं उकता कर वहां से उठ जाती. पढ़ाई के जैदे के बेपनाह शौक को देख कर उस की मां ने उसे प्राइमरी स्कूल में दाखिल करवा दिया था. हम रोजाना अपनी जीप में शहर जाया करती थीं, जहां चोटी के एक स्कूल में हम पढ़ती थीं. जैदे के स्कूल में अंग्रेजी नहीं पढ़ाई जाती थी, लेकिन उसे अंग्रेजी पढ़ने और सीखने का शौक था. इसलिए अपने स्कूल की छुट्टी के बाद वह मेरी पुरानी किताबें पढ़ा करता था. जो उस की समझ में न आता, वह मुझ से पूछ लिया करता. बचपन में टीचर बनने में बहुत मजा आता था. इसी तरह साथसाथ खेलते और पढ़ते हुए हम छठी जमात तक आ गए थे.

उन्हीं दिनों जैदे पर 2 इतने बड़े दुख आ पड़े कि उस का नन्हा वजूद उन दुखों तले दब कर रह गया. हमारे इलाके में हैजे की जबरदस्त बीमारी फैली थी. तब इलाज की सहूलियतें न के बराबर थीं. लोग मर रहे थे. जैदे की मां और नानी भी उस की लपेट में आ गईं. जैदे की नानी बेचारी तो पहले ही झटके में मर गईं. जैदे की मां अलबत्ता कुछ दिन जिंदा रही. मम्मी ने उस की दवादारू का इंतजाम भी किया. लेकिन उस का वक्त पूरा हो चुका था. इसलिए वह जैदे को रोताबिखलता छोड़ कर चल बसी. जैदा बिलकुल अकेला और बेसहारा रह गया. वह सारासारा दिन रोता रहता. मेरे सिवा हवेली में उस का कोई हमदर्द नहीं था. मैं खुद भी नासमझ थी. लेकिन हर मुमकिन तरीके से उस का दुख बांटा करती.

मम्मी को तो शुरू से जैदा नापसंद रहा था. इसलिए उन्होंने एक नौकर को जैदे के ताया का पता करने भेजा, ताकि वह आ कर बकौल मम्मी के, इस मुसीबत से उन्हें छुटकारा दिला दे. लेकिन जैदे का ताया उसे लेने नहीं आया, बल्कि उस ने हवेली के नौकर को अपनी गरीबी की लंबीचौड़ी दास्तान सुनाई, जिस का निचोड़ यही था कि वह अपने बच्चों को ही नहीं पाल सकता तो जैदे को कहां से खिलाएगा? नौकर जब नाकाम लौटा तो मम्मी ने अपना सिर दोनों हाथों में थाम लिया कि वह जैदे का क्या करेंगी? लेकिन खुदा बड़ा कारसाज है. हमारी हवेली का चौकीदार एक बूढ़ा था. मम्मी ने उसे अलग कमरा दे रखा था. वह बिलकुल अकेला रहता था. उस ने मम्मी से कह कर अपना सामान समेटा और जैदे के पास रहने लगा. इस तरह दोनों को एकदूसरे का सहारा मिल गया.

हालांकि जैदा कमउम्र था, फिर भी बेहद सुलझा हुआ था. छोटी सी उम्र में तल्ख तजुर्बों ने उस की दिमागी उम्र बढ़ा दी थी. उस ने स्कूल जाना नहीं छोड़ा. खाली समय में वह किराने की एक दुकान पर काम करता. अपनी पढ़ाई के खर्च के लिए वह रात गए तक बैठा लिफाफे बनाता रहता. छोटी सी उम्र में वह बेहद संजीदा हो गया था. मैं उसे अब भी अपना साथी और दोस्त समझती थी. मम्मी से छिप कर मैं उस के कमरे में चली जाया करती. लेकिन अब हम खेलने से ज्यादा पढ़ा करते थे. मैं जो भी सबक स्कूल में पढ़ती, वह जैदे को जरूर पढ़ाया करती. जैदा मेरे लाख कहने पर भी हवेली में न आता, बल्कि मुझे भी अपने कमरे में आने से मना करता.

उस दिन मेरे सिर में मामूली सा दर्द था. मैं ताजा सबक जैदे को पढ़ाना चाहती थी, लेकिन कमरे में जाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. सुस्ती सी महसूस हो रही थी. मम्मी किसी जलसे में शरीक होने चली गईं तो मैं ने नौकर को भेज कर जैदे को बुलवा लिया. वह पढ़ने के शौक में आ तो गया, लेकिन बेहद सहमा हुआ था. बारबार कह रहा था, ‘‘रुखसाना, बेगम साहिबा ने देख लिया तो बहुत मारेंगी.’’

‘‘अरे कुछ नहीं होता. मम्मी तो हवेली में मौजूद ही नहीं हैं. वह किसी जलसे में हिस्सा लेने शहर गई हैं. रात गए लौटेंगी.’’

मैं और जैदा गुलाबों के कुंज में बैठ गए. मैं उसे पढ़ाने लगी. वह बहुत मन लगा कर पढ़ रहा था कि न जाने कहां से आपी आ गईं. आपी ने तेज नजरों से हमें घूरा और कुछ कहेसुने बगैर अंदर चली गईं. जैदा बेहद घबरा गया और सहमी आवाज में बोला, ‘‘अब मैं जाता हूं रुखसाना. आपी ने देख लिया है. अब वह बेगम साहिबा से शिकायत करेंगी.’’

‘‘अरे बैठो, मम्मी हवेली में मौजूद ही नहीं, तो किस से शिकायत करेंगी? तुम आराम से पढ़ो.’’

जैदा सहमा सा बैठा पढ़ता रहा. लेकिन उस का शक सही था. मम्मी शहर से आ गई थीं और आपी ने जा कर उन से हमारी शिकायत कर दी थी. कुछ देर बाद मम्मी हमारे सामने खड़ी थीं. गुस्से की शिदद्त से वह हांफ रही थीं. उन्होंने आव देखा न ताव, जैदे को पकड़ कर बेतहाशा मारने लगीं. साथसाथ वह बोल भी रही थीं, ‘‘कमबख्त, जलील, कमीने, सौ बार तुझे मना किया कि हवेली में मत आया कर, पर तू मानता ही नहीं.’’

मैं गुमसुम खड़ी उसे मार खाते देखती रही. मम्मी जब उसे मारमार कर थक गईं तो नौकर को बुला कर हुक्म दिया, ‘‘शैदे, क्वार्टर से इस का सामान निकाल कर फेंक दो. देखती हूं, अब यह यहां कैसे रहता है.’’ फिर वह जैदे से कहने लगीं, ‘‘निकल जा, अभी और इसी वक्त निकल जा. अगर आइंदा तू हवेली के आसपास भी देखा गया तो तेरी लाश किसी गंदे नाले में फेंकवा दूंगी.’’

जैदा रोता हुआ वहां से चला गया. आपी और जिम्मी भाई यह तमाशा देखदेख कर खुश हो रहे थे, जबकि मैं मम्मी का दामन पकड़े रो रही थी, ‘‘जैदे को माफ कर दो मम्मी, इसे क्वार्टर से न निकालो. मम्मी, यह कहां जाएगा? यह तो एकदम अकेला है.’’

मम्मी ने मेरे हाथ झटक कर मुझे नौकरानी के सुपुर्द कर दिया, जो मुझे मेरे कमरे में ले गई. वह जैदे से मेरी आखिरी मुलाकात थी. उस दिन के बाद उस का कोई पता न चल सका. बाद में मैं एक अरसे तक उसे याद करकर के रोती रही. मम्मी ने मुझे और जिम्मी भाई को हौस्टल में दाखिल करवा दिया, क्योंकि अब हमारी क्लासें बड़ी हो गई थीं और घर में पढ़ाई का हर्ज होता था. मैं अक्सर जैदे के बारे में सोचती रहती थी कि वह हवेली से जाने के बाद कहां गया होगा? उस का तो कोई अपना न था, किस ने उसे पनाह दी होगी?

लेकिन आज… आज एक लंबे अरसे के बाद मैं ने उस का नाम सुना भी तो किस अंदाज में? एक इज्जतदार शख्स की शक्ल में, जिस के पास एक बड़ा ओहदा था, इज्जत थी और जिसे मेरा भाई इस बड़ी और आनबान वाली हवेली के मालिक की हैसियत से दावत दे आया था. यह सब क्या था? सब हैरान थे कि यह कैसे हो गया? एक ही छलांग में जैदा जावेद खां कैसे बन गया? जमीन से आसमान तक का यह सफर कैसे तय किया उस ने? लेकिन मुझे कोई हैरानी नहीं थी. उसे तालीम हासिल करने की लगन थी. दीवानगी की हद तक पढ़ने का शौक था और जब शौक जुनून बन जाए तो राह की सारी रुकावटें दूर हो जाती हैं. इसलिए अगर वह कुछ न बनता तो मुझे हैरत होती, लेकिन अब जब वह अपनी मंजिल तक पहुंच गया था, मुझे दूसरों की तरह कोई हैरत नहीं, बल्कि एक इत्मीनान था.

अगले दिन वह हमारे बीच बैठा था. यह वही हवेली थी, जिस में उस का कदम रखना मना था, जहां से उसे मारपीट कर बेइज्जत कर के निकाला गया था. लेकिन आज हालात बदल गए थे. आज मम्मी उस की आवभगत में बिछी जा रही थीं. खाने की मेज पर एकएक चीज उस के सामने रख कर आग्रह से उसे खिला रही थीं, ‘‘खाओ जावेद मियां, तुम तो बराए नाम खा रहे हो. यह शामी कबाब तो तुम ने चखे भी नहीं.’’

‘‘बस बेगम साहिबा, बहुत खा चुका हूं. अब और गुंजाइश नहीं बेगम साहिबा.’’

मैं और जिम्मी भाई बेसाख्ता हंस पड़े. मम्मी बनावटी नाराजगी से कहने लगीं, ‘‘आंटी कहो बेटा.’’

‘‘मैं अपनी औकात नहीं भूला हूं बेगम साहिबा.’’ वह संजीदगी से बोला, ‘‘मैं बहुत छोटा आदमी हूं और इस हवेली के मुझ पर बेशुमार एहसान हैं. खासतौर पर रुखसाना साहिबा का तो मैं बेहद शुक्रगुजार हूं. इन्होंने मेरे मन में पढ़ाई का शौक दोगुना कर दिया था.’’

उस ने गहरी नजरों से मेरी तरफ देखा तो मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई. मैं गड़बड़ा गई. बेअख्तियार हो कर मैं ने अपनी नजरें झुका लीं. उसे अब नजर भर कर देखना भी मुमकिन नहीं रहा था. वह बड़ा खूबसूरत जवान निकल आया था. वह बारबार मुझे मुखातिब करता और पिछली बातें याद दिलाता, लेकिन मैं जो हर बात पर जम कर बोला करती थी, बहस कर के उसे हरा दिया करती थी, अब उस के सामने बोलना भूल गई थी. अल्फाज जैसे खो गए थे मुझ से. मैं तो उस की शख्सियत के जादू में डूब कर रह गई थी. वह एक अदा से सिगरेट पी रहा था. चेहरे पर कमतरी के निशान बिलकुल नहीं थे. वह कीमती सूट पहने था. मैं गुमसुम बैठी हां में जवाब देती रही.

आपी खाने में मगन थीं. मेहमानों की मौजूदगी में उन्हें खाने पर टोका नहीं जा सकता था और वह ऐसे मौके का खूब फायदा उठाती थीं. रात गए जब वह वापस जाने लगा तो मम्मी ने बड़ी मोहब्बत से उसे आते रहने को कहा. पूरी रात मैं सो न सकी. जावेद मेरे खयालों में आता रहा. उस की रौबदार शख्सियत बारबार मेरी नजरों के सामने आ जाती. उस की धीमी मुसकराहट मेरे दिल में नई उमंग जगाने लगी. फिर सब से ज्यादा उस का बड़प्पन कि एक बार भी उस ने मम्मी को उन का वह सुलूक याद नहीं दिलाया, जो उन्होंने उस के साथ किया था. हां, अपनी जद्दोजहद और कोशिशों की कहानी उस ने जरूर सुनाई कि किस तरह वह अपनी मंजिल तक पहुंचा. लेकिन उस ने एक बार भी मम्मी से यह नहीं कहा कि मुझ यतीम और बेसहारे के सिर पर अगर आप लोग हाथ रख देते तो आप की दौलत में क्या कमी आ जाती? मम्मी शर्मिंदा सी लग रही थीं.

सुबह नाश्ते पर फिर जावेद का जिक्र छिड़ गया. मम्मी हैरानी से कह रही थीं, ‘‘मुझे कभी उस की काबिलियत का अंदाजा नहीं हो सका था. एक छोटा इंसान इतनी मेहनत भी कर सकता है, यकीन नहीं आता.’’

जिम्मी भाई टोस्ट पर जैम लगाते हुए बोले, ‘‘लेकिन आंखों देखे पर तो यकीन करना ही पड़ता है मम्मी. वैसे आप कल बारबार जावेद को हवेली आने के लिए कह रही थीं. क्या आप भूल गईं कि एक दिन वह इसी हवेली से दुत्कार कर निकाला गया था और उस का छोटामोटा सामान आप ने नौकरों के हाथों बाहर फेंकवा दिया था.’’

‘‘आप भूल गए हैं जिम्मी भाई,’’ मैं तल्खी से बोली, ‘‘जब मम्मी ने ऐसा किया था, तब जावेद ‘जैदा’ था, बिन मांबाप का गरीब बच्चा. लेकिन आज वह एक बहुत बड़े ओहदे पर लगा हुआ है, इज्जतदार बंदा है. मम्मी दरअसल जावेद की नहीं, उस के ओहदे की इज्जत कर रही हैं.’’

मम्मी ने तेज नजरों से मुझे घूरा और बोलीं, ‘‘रुखसाना, बड़ों से ऐसी बात नहीं की जाती. क्या तुम ने बाहर रह कर यही सब कुछ सीखा है? जाओ, अपने कमरे में चली जाओ.’’

मैं मुंह बना कर उठ खड़ी हुई. जिम्मी भाई भी उठने लगे तो मम्मी ने उन से कहा, ‘‘तुम बैठो जिम्मी, तुम से कुछ बात करना है मुझे.’’

मैं कमरे से निकल तो आई, लेकिन मेरे कदम रुक गए. मम्मी यकीनन जावेद के बारे में ही जिम्मी भाई से बात करना चाहती थीं. मैं सांस रोक कर दरवाजे की आड़ में खड़ी हो गई. मम्मी धीमी आवाज में जिम्मी भाई से कह रही थी, ‘‘जिम्मी, जब से मैं ने जावेद को देखा है, एक अनोखा खयाल मेरे दिमाग में आ रहा है.’’

‘‘कैसा खयाल मम्मी?’’ जिम्मी भाई की आवाज में हैरत थी.

‘‘सोचती हूं,’’ मम्मी जरा सा रुक कर बोलीं, ‘‘अगर फरजाना का रिश्ता जावेद से तय हो जाए तो कैसा रहेगा?’’

‘‘लेकिन…’’ जिम्मी भाई हकलाते हुए बोले, ‘‘जावेद तो उम्र में मुझ से भी छोटा है और आपी उम्र में मुझ से बड़ी हैं. यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘होने को क्या नहीं हो सकता जिम्मी?’’ मम्मी खुदगर्जी से बोलीं, ‘‘बस जरा चालाकी की जरूरत है. वैसे भी यह तो जावेद के लिए इज्जत की बात है कि हम उसे हवेली का दामाद बना रहे हैं, वरना तालीम और ओहदे को उस की शख्सियत से अलग कर दो तो उस की क्या हैसियत रह जाती है? हवेली की एक नौकरानी का बेटा और बस.’’

‘‘अगर ऐसा हो जाए मम्मी तो हमारी बहुत बड़ी मुश्किल हल हो जाएगी और आपी की जिंदगी सही मायनों में संवर जाएगी. खानदान के जिन लड़कों ने आपी को ठुकराया है, वे मुंह देखते रह जाएंगे. उन में से कोई भी इतने बड़े ओहदे पर नहीं है.’’ जिम्मी भाई जोश से बोल रहे थे और मम्मी शेखी से कह रही थीं, ‘‘यह भी तो कहो न जिम्मी कि तुम्हारे लिए रास्ता साफ हो जाएगा और तुम नाइला को दुलहन बना कर जल्दी ला सकोगे.’’

‘‘अच्छा मम्मी,’’ वह हंस कर बोले, ‘‘आप तो मजाक कर रही हैं.’’

वे दोनों इसी मुद्दे पर बातें करते रहे. लेकिन मेरे सीने में बडे़ जोर का दर्द उठने लगा था. मेरे अंदर जोरदार धमाके होने लगे थे. हाथपांव ठंडे पड़ने लगे. मेरी आंखों में अंधेरा लहरें लेने लगा. मेरा दिल चाहा कि मैं धड़ाम से दरवाजा खोल कर अंदर घुस जाऊं और चिल्लाचिल्ला कर उन से कह दूं, ‘‘ऐ बड़ी हवेली के अंदर बसने वाले छोटे लोगों, जरा अपने गरेबान में झांक कर देखो कि तुम क्या कर रहे हो? क्या जावेद की किस्मत में कूड़ा ही लिखा है? जावेद ने जिस मेहनत और जिस लगन से अपनी जिंदगी बनाई है, तुम लोग आपी को उस की जिंदगी में दाखिल कर के उस की जिंदगी तबाह कर दोगे. यही इंसाफ है तुम्हारा?’’

लेकिन मैं कुछ भी न कर सकी, कुछ भी न कह सकी. बस बेजान कदमों से अपने कमरे में आ गई. यह बात इतनी छोटी नहीं थी कि मैं इस पर चुप रहती. मैं ने जोरशोर से इस पर ऐतराज किया और आपी के सामने कह दिया, ‘‘मम्मी, आप ज्यादती कर रही हैं. आपी और जावेद का कोई जोड़ नहीं है, किसी भी लिहाज से. उम्र में भी आपी जावेद से बहुत बड़ी हैं. खुदा के लिए यह जुल्म न कीजिए, ऐसी शादियां ज्यादा दिन पनप नहीं सकतीं. अंजाम अच्छा नहीं होता ऐसी शादियों का.’’

‘‘तुम बीच में मत बोलो.’’ मम्मी का रंग गुस्से के मारे सुर्ख हो गया.

जिम्मी भाई ने नाराजगी से मुझे घूरा, ‘‘तुम से किस ने राय मांगी है रुखसाना?’’

मैं ने आपी की तरफ देखा. शायद वही ऐतराज कर दे इस बेजोड़ रिश्ते पर, लेकिन उन्हें तो खाने के सिवा किसी बात से कोई सरोकार ही नहीं था. वे सब क्या कर रहे थे? किस के लिए कर रहे थे? उन्हें परवाह ही नहीं थी कोई. थकहार कर मैं चुप हो गई. जावेद 2-3 बार हवेली में आया. सब साथ ही बैठे रहते. वह अक्सर कहता, ‘‘तुम बहुत चुपचुप सी हो गई हो रुखसाना. बचपन में तो तुम ऐसी नहीं थीं. बहुत ही शरारती और बातूनी हुआ करती थीं. तुम्हें याद है जब तुम ने…’’ वह बचपन का कोई किस्सा सुनाने लगा. मैं खोईखोई बैठी रहती….खालीखाली नजरों से उसे देखती रहती. जिम्मी भाई और मम्मी बेमकसद हंसने लगते. मम्मी उस की खूब आवभगत करतीं. आपी को हर रोज बेहतरीन सूट पहनातीं. जावेद जब मेरे बारे में बात करता तो मम्मी घुमाफिरा कर आपी की बात शुरू कर देतीं.

वह जावेद के दौरे का आखिरी दिन था. कल उसे वापस जाना था. उस दिन वह सब से मिलने के लिए हवेली आया तो उस ने सब को दावत दी कि शहर आ कर कुछ दिन उस को मेजबानी का मौका दें. मुझ से वह बारबार कह रहा था, ‘‘रुखसाना, मैं ने अपने लौन में मोतिया के बेशुमार पौधे लगाए हैं. तुम्हें बचपन में मोतिया की खुशबू कितनी पसंद थीं, तुम मेरे घर आना. तुम्हें बेहद भला लगेगा.’’

मेरे बजाय मम्मी ने जवाब दिया, ‘‘हां…हां… जावेद मियां, जरूर आएंगे.’’

वह चला गया. उस के जाने के बाद मुझे यों लगा, जैसे चिरागों में रोशनी न रही हो. मेरे अंदर अंधेरा फैलने लगा. जिम्मी भाई और मम्मी क्या बातें कर रहे थे, मुझे सुनाई नहीं दे रहा था. मैं अपने वजूद को संभालती हुई अपने कमरे में आ गई और बेदम हो कर बिस्तर पर ढह गई. यों सुबह मेरी आंखें देर से खुलीं. रात भर मैं परेशान रही थी. मुझे चाहिए था कि मैं जावेद को खबरदार कर देती कि कहीं वह मम्मी के बिछाए जाल में न फंस जाए. मैं खुद को मुजरिम समझ रही थी, लेकिन कुसूर मेरा भी नहीं था. मम्मी और जिम्मी भाई ने एक मिनट के लिए भी मुझे अकेले नहीं छोड़ा जावेद के पास. शायद वे समझ गए थे कि मैं मौका पा कर जावेद को सारी बात बता दूंगी.

मेरा दिल हौल रहा था. मैं ने जल्दीजल्दी मुंह पर पानी के छपाके मारे और ड्राइंगरूम की तरफ चल दी. लेकिन मुझे ठिठक कर रुकना पड़ गया. वहां तो नजारा ही और था. मम्मी गुस्से के मारे लालपीली हो रही थीं. हमेशा नरम आवाज में बात करने वाली मम्मी बुरी तरह चीख रही थीं, ‘‘कमीना, बदजात, गंदी नाली का कीड़ा, दो टके का आदमी, आज हमारी बराबरी करना चाहता है?’’

उधर जिम्मी भाई मुट्ठियां भींचभींच कर तैश में कह रहे थे, ‘‘मैं उस खबीस के टुकड़ेटुकडे़ कर दूंगा. उस की यह हिम्मत कैसे हुई? जलील इंसान अपनी हैसियत भूल गया. लेकिन मैं उसे अपनी हैसियत याद दिलाऊंगा. समझता क्या है खुद को?’’

‘‘क्या हुआ मम्मी?’’ मैं घबराकर बोली. आपी जो टोस्ट पर मक्खन की तह लगा रही थीं, मुझे देख कर अजीब बेढंगेपन से हंसने लगीं. मैं घबरा कर बारीबारी सब की तरफ देखने लगी, ‘‘आप सब मुझे बताते क्यों नहीं कि आखिर क्या बात हुई है?’’

अजीब ठंडे अंदाज में मम्मी ने एक मुड़ातुड़ा कागज मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो, उस खबीस की हिम्मत खुद देख लो.’’ मम्मी कमरे से बाहर चली गईं. उन के पीछेपीछे जिम्मी भाई भी चले गए. आपी अपना नाश्ता खत्म कर चुकी थीं. सो उन के रुकने की भी कोई वजह नहीं थी. वह मुझे देखती और मुसकराती हुई कमरे से बाहर निकल गईं. अजीब बेवकूफी भरी मुसकराहट थी उन के होंठों पर. या खुदा, मैं पागल हो गई हूं या ये सब पागल हो गए हैं? मैं ने झुंझला कर वह मुड़ातुड़ा कागज खोला और मेरी नजरें तेजी से उन सतरों पर दौड़ने लगीं. वह जावेद का खत था मम्मी के नाम. लिखा था : बेगम साहिबा,

आदाब! आप का पैगाम मिला. इज्जतअफजाई का शुक्रिया. मैं यकीनन इस रुतबे और मकाम के काबिल नहीं हूं और आप का जितना भी शुक्रिया अदा करूं, कम होगा. लेकिन गुस्ताखी माफ बेगम साहिबा! आपी को मैं ने हमेशा से अपनी बड़ी बहन का दर्जा दिया है. इस नजर से मैं ने उन्हें कभी नहीं देखा. उन की शख्सियत मेरे लिए काबिलेइज्जत रही है और सारी उम्र काबिलेइज्जत रहेगी.

दरअसल, खुद मैं भी आप से हाथ जोड़ कर दरख्वास्त करना चाहता था, लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही थी. ऐसा लगता था, जैसे छोटे मुंह बड़ी बात कह दी जाए. आप की नाराजगी और कहर का डर था. अपनी कमतरी का अहसास था. इसलिए मैं अपने दिल की सारी ख्वाहिशें दिल में ही छिपा कर यहां से विदा होना चाहता था. लेकिन आज जब आप का पैगाम मिला तो मेरे अंदर भी हिम्मत पैदा हो गई और मैं ने सोचा कि अगर आप मुझे दामाद की हैसियत देना ही चाहती हैं तो रुखसाना का हाथ मेरे हाथ में दे दीजिए. मैं सारी जिंदगी आप का एहसान नहीं भूलूंगा बेगम साहिबा! यह आज की ख्वाहिश नहीं, मुद्दतों पहले की ख्वाहिश है, तब की, जब आप की डांट और मार के बावजूद हम इकट्ठे खेलने और इकट्ठे पढ़ने से बाज नहीं आते थे. तब मैं कुछ भी नहीं था और आज जो कुछ बना हूं, इसी ख्वाहिश की बदौलत बना हूं. मैं जल्दी ही आ कर आप का जवाब लूंगा.

—खैरअंदेश जावेद खां

कागज का पुर्जा मेरे हाथों में फड़फड़ा रहा था. मेरी रगों में भयानक बेचैनी दौड़ने लगी थी. दिल में दहकती हुई आग भर गई थी. बड़े घरों में बसने वाले लोग कितने बेबस और मजबूर होते हैं, यह अब मेरी समझ में अच्छी तरह आ रहा था.

मैं भागीभागी अपने कमरे में आई. मुलायम बिस्तर जहरीले कांटों की सेज लग रहा था. रोती रही… सैलाब आ गया था मेरी आंखों में. …फिर उठी और सोचने लगी.

आखिरकार मेरे दिल ने और मेरे दिमाग ने भी वह फैसला ले लिया, जो कभी मेरे तसव्वुर में भी न आया था. एक दिन सहेली के घर जाने के बहाने निकली तो फिर हवेली लौटी ही नहीं. आज मेरी जिंदगी के गुलशन में बेहद प्यारी खुशबू वाले दो फूल खिले हैं. बताने को कहिए बता दूं कि आपी के लिए एक गरीब दूल्हा खरीद लिया गया और फिर जिम्मी भाई की भी नाइला से शादी हो गई. लेकिन इतना सब होने में इतनी आंधियां चलीं, इतना गुबार उठा कि खुदा न करे, किसी खानदान में वैसा हो. इसीलिए तो कभीकभी शिद्दत से महसूस होता है कि बहार आई भी तो …

 

Love Story Hindi Kahani: प्रेमिका ही क्यों झेले शक के ताने

Love Story Hindi Kahani: 29 वर्षीय रितिका सेन को 2 बच्चों के बाप सचिन राजपूत से प्यार हो गया. सचिन भी रितिका को अपना दिल दे बैठा. सचिन उस के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगा. एकदूसरे को दिलोजान से चाहने वाले इस प्रेमी युगल के संबंधों में कड़वाहट भी पैदा हो गई. फिर एक दिन यही कलह उस मुकाम पर पहुंची कि…

27 जून, 2025 की रात को भी रितिका देर से घर लौटी तो उस के चरित्र को ले कर सचिन ने एक बार फिर से गंभीर टीकाटिप्पणी की तो रितिका की उस से तीखी नोकझोंक हो गई.

”मैं जानता हूं कि तू अपने बौस के साथ गुलछर्रे उड़ा कर आ रही है, इसी कारण घर आने में देर हुई.’’

”तुम्हें शर्म आनी चाहिए ऐसी बात कहते हुए.’’ रितिका कह देती, ”कोई एक बात तो बताओ जो मुझे चरित्रहीन साबित कर दे. कम से कम तोहमत लगाने से पहले मेरी नौकरी करने वाली कंपनी में जा कर लोगों से पूछ तो लेते मेरा चरित्र कैसा है. मैं नौकरी सिर्फ इसलिए करती हूं कि जब तक तुम बेरोजगार हो, तब तक घर अच्छे से चल सके.’’ रितिका ने समझाया.

”मुझे किसी से पूछने की जरूरत नहीं है, मैं सब जानता हूं. तुझे घर चलाने की फिक्र नहीं, बौस से मिलने की फिक्र ज्यादा होती है.’’ सचिन ने ताना दिया.

उसी समय सचिन ने एक खतरनाक फैसला ले लिया था. सचिन देर रात तक जागता रहा. रात तकरीबन 12 बजे का समय था, समूचे गायत्री नगर में सन्नाटा पसरा हुआ था, तभी सचिन ने पूरी ताकत से रितिका का गला दबा दिया. उस की चीख भी नहीं निकल सकी. सचिन के शक्की मिजाज ने उसे हैवान बना दिया था. लगभग साढ़े 3 साल से सचिन राजपूत के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह रही रितिका को मौत के घाट उतारते वक्त उस के हाथ नहीं कांपे. हत्या करने के बाद उस की लाश चादर में लपेट कर बैड पर रख दिया और 2 दिनों तक लाश के बगल में शराब पी कर बिना किसी हिचकिचाहट के सोता रहा.

अपनी प्रेमिका की हत्या करने के बाद जैसे ही सचिन राजपूत नशे की हालत से बाहर आया तो उस ने मिसरोद में रहने वाले अपने दोस्त अनुज उपाध्याय को फोन कर अपनी प्रेमिका रितिका की हत्या की सूचना दे दी. रितिका की हत्या बात सुन कर पहले तो अनुज को सचिन की बात पर भरोसा नहीं हुआ, लेकिन जब सचिन ने जोर दे कर कहा तो अनुज उपाध्याय ने बिना देरी किए बजरिया थाने की एसएचओ शिल्पा कौरव को इस की सूचना दे दी. हत्या की सूचना पा कर एसएचओ शिल्पा कौरव तुरंत अपने सहायकों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गईं. रास्ते में ही उन्होंने इस मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

कुछ देर में वह गायत्री नगर, भोपाल के फ्लैट नंबर 34 पर पहुंच गईं. उन्होंने घटनास्थल और शव का बारीकी से निरीक्षण किया. रितिका की लाश 48 घंटे से ज्यादा समय तक चादर में लिपटे पड़े रहने से डीकंपोज (खराब) होने लगी थी, अत: उन्होंने जरूरी काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और फ्लैट में ही मौजूद मृतका के हत्यारे लिवइन पार्टनर सचिन राजपूत को गिरफ्तार कर पूछताछ शुरू कर दी. पूछताछ में सचिन ने अपनी प्रेमिका रितिका सेन की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

उधर जिस फ्लैट में रितिका और सचिन पिछले 9 महीने से किराए पर रह रहे थे, उस के मालिक शैलेंद्र वर्मा ने पुलिस को बताया कि वह तो दोनों को पतिपत्नी ही समझते थे. फ्लैट किराए पर लेते वक्त सचिन ने रितिका को अपनी पत्नी बताया था. हालांकि रितिका की मांग में सिंदूर भरा न देख मेरी पत्नी ने रितिका को टोका भी था. तब रितिका ने कहा था कि आंटीजी, मैं प्राइवेट कंपनी में काम करती हूं, वहां कोई भी शादीशुदा महिला मांग भर कर नहीं आती, इसलिए मैं भी नहीं भरती. वैसे भी मैं नए खयालातों की हूं. गहनता से की गई पूछताछ में ऐसी कहानी निकल कर सामने आई कि पुलिस भी सोचने पर मजबूर हो गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि सचिन राजपूत ऐसा हैवान था, जिसे अपनी प्रेमिका की हत्या करने का तनिक भी मलाल नहीं था.

29 वर्षीय रितिका सेन और सचिन राजपूत के बीच शुरुआत में मोबाइल पर प्यार भरी बातों का सिलसिला शुरू हुआ, फिर छोटीछोटी मुलाकातें जब आगे बढ़ीं तो दोनों के दिलों में प्यार का अंकुर फूटने लगा. कुछ ही दिनों में उस ने वृक्ष का रूप अख्तियार कर लिया. कुछ समय तक पिकनिक स्पौट, कैफे और पार्क में मुलाकातें करने के बाद दोनों ने बिना किसी हिचकिचाहट के लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला कर लिया. यह बात जैसे ही दोनों के फेमिली वालों को मालूम हुई तो उन्होंने इस का विरोध किया. क्योंकि रितिका सेन समाज की थी, जबकि सचिन जाति से राजपूत था. इतना ही नहीं, वह 2 बच्चों का बाप था और रितिका के चक्कर में पत्नी से तलाक लेने की कोशिश कर रहा था. दोनों के फेमिली वाले उन की आशिकी को ले कर परेशान थे.

फेमिली वालों ने उन्हें हर तरह से समझाया. ऊंचनीच का वास्ता दिया, लेकिन फेमिली वालों के विरोध की परवाह किए बिना ही दोनों भोपाल के गायत्री नगर इलाके में किराए पर फ्लैट ले कर रहने लगे. शुरुआत के दिनों में दोनों लिवइन रिलेशनशिप में रहते हुए बेहद खुश थे. सचिन विदिशा जिले के सिरोंज का रहने वाला था, जबकि रितिका भोपाल की. वह अपने फेमिली वालों को छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगी. इस का असर यह हुआ कि वे एकदूसरे की अच्छाइयों और कमजोरी को जान गए. समय अपनी गति से गुजरता रहा. इस बीच सचिन रितिका के मोबाइल फोन के हर वक्त बिजी रहने से काफी तनावग्रस्त रहने लगा था. क्योंकि वह जब भी उसे फोन करता, उस का मोबाइल व्यस्त ही आता था. सचिन समझ नहीं पा रहा था कि वह हर वक्त किस से बात करती है.

इसी हकीकत को जानने के लिए सचिन ने एक दिन उस का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह घंटों अपने बौस से बातें करती है. सचिन समझ गया कि रितिका और उस के बौस के बीच अवश्य चक्कर है. चरित्र पर संदेह करने की वजह से दोनों में अकसर लड़ाई होने लगी थी. यह लड़ाई कभीकभी मारपीट तक पहुंच जाती थी. सचिन बेरोजगार था. रितिका के नौकरी करने से किसी तरह उस की गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी. रितिका को प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने की वजह से घर आने में अकसर देर हो जाती थी. उधर अकसर उस का मोबाइल फोन भी व्यस्त रहता था.

यह बात सचिन को कतई पसंद नहीं थी. रितिका जिस दिन भी घर देर से आती, सचिन जरूर उस से झगड़ा करता. अनेक बार रितिका ने सचिन को समझाया भी कि देखो, तुम्हारा शक झूठा है. तुम्हें घर पर निठल्ले बैठेबैठे शक करने की बीमारी हो गई है. इस उम्र में मैं अपने बौस से इश्क लड़ा कर क्या अपना भविष्य चौपट करूंगी.

”मैं सब जानता हूं, तुम जैसी लड़कियां अपने प्रेमी को बहलाने के लिए इसी तरह की नौटंकियां किया करती हैं,’’ सचिन ने गहरी नजर से घूरते हुए कहा.

रितिका ने कहा, ”तुम्हें तो कोई चिंता है नहीं, तुम यूं ही शक करते रहे तो न जाने एक दिन क्या होगा.’’

सचिन अपने शक से बाहर निकलने को कतई तैयार नहीं था. रितिका सचिन को समझातेसमझाते थक चुकी थी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता था.

27 जून, 2025 की रात रितिका ने सचिन से दोटूक शब्दों में कहा, ”आए दिन तुम मेरे चरित्र पर तोहमत लगाते रहते हो, यह अच्छी बात नहीं है.’’

रितिका की बात पर सचिन को ताव आ गया. बोला, ”तेरी जुबान आजकल कुछ ज्यादा ही चलने लगी है,’’ कहते हुए उस ने रितिका पर हाथ छोड़ दिया. कहते हैं कि शक इंसान को किसी भी हद तक सोचने पर मजबूर कर देता है, एक बार शक ने पैर जमाए तो वह दिमाग में घर कर के बैठ गया, लाख समझाने के बाद भी सचिन का शक बढ़ता गया तो वह खोयाखोया रहने लगा. शक पूरी तरह से उस की जिंदगी का हिस्सा बन चुका था. जिस दिन भी रितिका देर शाम अपनी नौकरी से घर वापस आती, सचिन ने घर में तूफान खड़ा कर देता.

बात 26 जून, 2025 की है. शाम के 6 बजे थे. उस दिन सचिन का मन रितिका से तकरार हो जाने की वजह से कुछ उखड़ा हुआ था, लेकिन इस के बावजूद भी वह अपने मित्र अनुज उपाध्याय को ले कर अपने फ्लैट पर आया था. फ्लैट के भीतर कदम रखते ही सचिन ने मित्र को बैठक में बिठा दिया और रितिका को आवाज लगाई. कई बार आवाज लगाने के बावजूद रितिका ने कोई जवाब नहीं दिया, इस पर सचिन बैडरूम का दरवाजा धकेल कर जैसे ही बैडरूम में घुसा, उस ने रितिका को गहरी नींद में सोता हुआ पाया. तब वह बोला, ”रितिका डार्लिंग, देखो मेरे साथ कौन आया है?’’

फिर भी रितिका ने कोई उत्तर नहीं दिया. तब सचिन अपने दोस्त की ओर मुंह कर धीरे से बोला, ”गहरी नींद में सो रही है.’’

जबकि असलियत यह थी कि उसे नींद से जगाने का साहस सचिन जुटा नहीं पा रहा था. इस की वजह थी, बीती रात रितिका के साथ हुई उस की तीखी नोकझोंक. रितिका के चरित्र को ले कर शुरू हुई नोकझोंक में जितना सचिन ने कहा, उस से कहीं ज्यादा जलीकटी बातें रितिका ने उसे सुना दी थीं. एक तरह से रितिका ने अपना सारा गुस्सा उस पर उतार दिया था. सुबह होने पर सचिन ने रितिका को गुस्से के मूड में ही पाया. वह अपनी नौकरी पर जाने से पहले गुमसुम रह कर किचन में अपने लिए लंच तैयार करने में जुटी हुई थी. इस दौरान न तो सचिन ने रितिका से एक भी शब्द बोला और न रितिका ने अपनी जुबान खोली. यहां तक कि उस ने बेमन से नाश्ता तैयार किया.

दरअसल, रितिका अपना काम मेहनत और लगन से करती थी, जिस से उस के बौस उस से काफी खुश थे. रितिका का अपने बौस से बेझिझक और खुल कर बातें करना सचिन के संदेह का कारण बन गया, जो वक्त के साथ गंभीर होता जा रहा था. सचिन इस के लिए रितिका को कई बार समझा भी चुका था, लेकिन रितिका ने उस पर ध्यान नहीं दिया था. उस का कहना था कि कंपनी में वह जिस माहौल में काम करती है, उस में बौस से ले कर अन्य कर्मचारियों से संपर्क में रहना ही पड़ता है. मगर सचिन यह मानने को तैयार नहीं था. रितिका के चरित्र को ले कर सचिन राजपूत का संदेह दिनप्रतिदिन गहरा होता जा रहा था.

सचिन बीती रात से ले कर सुबह होने तक की यादों से तब बाहर निकला, जब उस के दोस्त अनुज ने आवाज लगाई, ”सचिन, क्या हुआ, सब खैरियत तो है न? रितिका भाभी कहीं गई हैं क्या?’’

”अरे नहीं यार, अभी तक वह सो रही है. लगता है गहरी नींद में है, उसे गहरी नींद से जगाना उचित नहीं होगा.’’ सचिन वहीं से तेज आवाज में बोला.

”कोई बात नहीं, तुम यहां आ जाओ.’’ अनुज बोला और सचिन ने बैडरूम का दरवाजा खींच कर बंद कर दिया.

संयोग से दरवाजे के हैंडल पर उस का हाथ लग गया और दरवाजा खट से तेज आवाज के साथ बंद हो गया. इसी खटाक की आवाज से रितिका की नींद भी खुल गई. सचिन बैडरूम से निकल कर अपने दोस्त अनुज के पास आ कर बैठ गया. कुछ देर में रितिका भी आंखें मलती हुई बैडरूम से किचन में चली गई. किचन में जाते हुए उस की नजर बैठक में बैठे सचिन के दोस्त अनुज उपाध्याय पर पड़ गई थी. अनुज ने भी रितिका को देख लिया था और देखते ही तुरंत बोल पड़ा, ”भाभीजी नमस्ते, कैसी हैं आप?’’

थोड़ी देर में रितिका ने एक ट्रे में पानी से भरे 2 गिलास टेबल पर रख दिए. अनुज ने भी पानी पीने के बाद खाली गिलास ट्रे में रख दिया. रितिका अनुज से परिचित थी और यह भी जानती थी कि यह सचिन का करीबी दोस्त है. इस कारण उस के मानसम्मान में कभी कोई कमी नहीं रखती थी. अनुज से अनौपचारिक बातें करने के बाद दोबारा वह किचन में चली गई. कुछ मिनट में ही रितिका अनुज और सचिन के पास 3 कप चाय के ट्रे में ले कर उन के सामने ही सोफे पर बैठ गई थी. हकीकत में अनुज को सचिन के साथ आया देख कर रितिका कुछ सुकून महसूस कर रही थी. वह भी बीती रात से ले कर कुछ समय पहले तक के मानसिक तनाव से उबरना चाह रही थी.

रितिका ने चाय का कप उठा कर मुसकराते हुए अनुज की ओर बढ़ा दिया. अनुज हाथ में कप लेते हुए बोला, ”भाभीजी, आप ठीक तो हैं न? कैसी हालत बना रखी है आप ने? लगता है, सारी रात ठीक से सो नहीं पाई हो?’’

रितिका मौन बनी रही. उधर सचिन भी मौन रहा. कुछ पल बाद रितिका धीमे स्वर में बोली, ”यह अपने जिगरी दोस्त से पूछो, तुम्हारे सामने ही बैठा है.’’

”क्यों भाई सचिन, क्या बात है?’’

”अरे यह क्या बोलेगा, इस ने तो मेरी जिंदगी में तूफान ला दिया है. अब शेष बचा ही क्या है, अपने दोस्त को तुम ही समझाओ.’’ रितिका थोड़ा तल्ख आवाज में बोली.

”क्या बात हो गई? क्या तुम दोनों के बीच फिर से तूतूमैंमैं हुई है?’’ अनुज बोला.

”आप तूतूमैंमैं की बात करते हो,’’ कुछ देर मौन रह कर रितिका ने फिर बोलना शुरू किया, ”साढ़े 3 साल मेरे साथ गुजारने के बाद तुम्हारा मित्र कहता है कि मैं चरित्रहीन हूं, मेरा अपने बौस के साथ चक्कर चल रहा है. मुझे अब भलीभांति समझ में आ गया है कि तुम्हारे बेरोजगार दोस्त को सिर्फ मेरे कमसिन जिस्म और पैसों में दिलचस्पी थी. उसे न मेरी जिंदगी से कोई मतलब और न ही मेरी भावनाओं से, वह तो सिर्फ मेरे जिस्म से अपनी कामोत्तेजना शांत कर मेरे द्वारा नौकरी कर के मेहनत से लाए पैसों से मौज कर रहा है.

”साढ़े 3 साल तक मेरे साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने के बाद अब तुम्हारे दोस्त को मैं चरित्रहीन नजर आने लगी. इस के इश्क के चक्कर में मैं ने अपने घर वालों से नाता तोड़ लिया. और अब ये कह रहा है कि तू चरित्रहीन है, मैं अब तेरे साथ नहीं रह सकता, तू तो अपने बौस के साथ रह. अनुज, अब तुम ही बताओ कि मैं कहां जाऊं? क्या करूं? क्या जहर खा कर आत्महत्या कर लूं?’’

”भाभीजी, आप ऐसा कुछ भूल कर भी मत कर लेना वरना सचिन को जेल की हवा खानी पड़ेगी.’’ अनुज ने सचिन को समझाने का भरपूर प्रयास किया.

”यही तो मेरी जिंदगी बन गई है. कहां तो मुझ पर बड़ा प्यार उमड़ता था. कहता था जानेमन, तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता. कहां गईं वो प्यार की बातें? कहां गए वादे, जिस के भरोसे मैं ने अपने पेरेंट्स और भाई से नाता तोड़ दिया था.’’

रितिका भाभी ने जब अपने मन की भड़ास पूरी तरह से निकाल ली, तब अनुज सचिन से बोला, ”क्यों भाई सचिन, ये मैं क्या सुन रहा हूं? रितिका भाभी जो कुछ कह रही हैं, क्या वह सही है? यदि हां तो तुम्हें रितिका भाभी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए.’’

सचिन दोस्त अनुज की बातें चुपचाप सुनता रहा. उस की जुबान से एक शब्द नहीं निकला. सचिन की चुप्पी देख कर अनुज फिर बोलने लगा, ”तुम्हें रितिका भाभी के चरित्र पर संदेह करते हुए जरा भी शर्म नहीं आती?

”भाभी का अपने बौस के साथ चक्कर चलने का बेबुनियाद आरोप लगा कर तुम उन की चारित्रिक हत्या करने के साथ जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हो. देखो, तुम दोनों की भलाई इसी में है कि तुम जितनी जल्दी हो सके, रितिका भाभी से माफी मांगने के बाद विधिवत शादी कर लो और उन्हें समाज में सिर उठा कर पूरे मानसम्मान के साथ जीने का अधिकार दे दो.’’

मानसम्मान की बात सुनते ही सचिन बिफर पड़ा. तल्ख स्वर में बोला, ”अनुज, किस मानसम्मान की बात कर रहे हो, रितिका के चरित्र को ले कर इस के औफिस के लोगों से ले कर कालोनी के लोग क्या कुछ नहीं कहते हैं. ये भी रोज ताना मारती है कि मैं यदि नौकरी करने नहीं जा रही होती तो नानी याद आ जाती, कहां से देते फ्लैट का भाड़ा, लाइट का बिल, दूध और किराने वाले को पैसे. खुद बेरोजगार होते हुए भी काम की तलाश में नहीं जाते, सारा दिन मोबाइल फोन और टीवी सीरियल देखने में वक्त जाया करते रहते हो.’’

इतना सब सुनने के बाद अजीब दुविधा में फंसा अनुज समझ नहीं पा रहा था कि वह किस का पक्ष ले और किसे समझाए? फिर भी अनुज ने दोनों को बात का बतंगड़ न बनाने और प्रेम से मिल कर रहने की सलाह दे सचिन के घर से विदा ली. अनुज उपाध्याय के जाते ही दोनों आपस में फिर से उलझ गए. दोनों में तूतूमैंमैं होने लगी. दोनों तेज आवाज में एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगाने लगे कि उन के आपसी विवाद में अनुज को क्यों लाया गया? इसी बात को ले कर रितिका और सचिन में नोकझोंक होती रही.

उन दोनों में नोकझोंक होने की आवाज पड़ोसियों को सुनाई दे रही थी, लेकिन उस के भाड़े के फ्लैट के आसपास कोई ऐसा पड़ोसी नहीं था, जो उन दोनों को झगडऩे से रोक सके, उन को शांत कर सके या फिर उन्हें समझा सके. पड़ोसियों के लिए तो उन के झगड़े आए दिन की बात हो चुकी थी. फिर रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर सचिन राजपूत ने रितिका सेन की हत्या कर दी. पूछताछ के बाद पुलिस ने सचिन राजपूत को अदालत में पेश किया, जहां से उसे हिरासत में जेल भेज दिया गया. सचिन ने यदि अपने शक्की मिजाज को काबू रख कर अपनी प्रेमिका की बात पर भरोसा कर के जिंदगी जी होती तो शायद जेल जाने की नौबत नहीं आती. Love Story Hindi Kahani

 

 

Short Love Story in Hindi: प्रेमिका से मौजमस्ती तो शादी क्यों नहीं

Short Love Story in Hindi: काशीपुर के सलमान को मोहल्ले की ही रहने वाली शादीशुदा सीमा खातून से प्यार हो गया था. सीमा भी उस पर इस कदर फिदा हुई कि वह सलमान की खातिर अपने पति तक को छोडऩे के लिए तैयार हो गई. वह उस से शादी की जिद करने लगी. अविवाहित सलमान तो उसे केवल मौजमस्ती का साधन ही समझता रहा. फिर एक दिन सीमा की शादी करने की जिद उस मुकाम पर पहुंची कि…

सलमान और सीमा खातून के प्रेम संबंध पिछले 2 सालों से चले आ आ रहे थे. शादीशुदा सीमा उसे दिलोजान से चाहती थी. पिछले एक साल से सलमान सीमा से किनारा करना चाहता था, क्योंकि उस के फेमिली वाले किसी और लड़की से उस की शादी करना चाहते थे. लेकिन सीमा किसी भी हालत में उस से जुदा नहीं होना चाहती थी. जब वह नहीं मानी तो सलमान ने परेशान हो कर सीमा को रास्ते से हटाने की योजना बना ली थी. मोहल्ले की ही रहने वाली नशा तसकर मेहरुन्निसा भी सीमा से अपनी दुश्मनी का हिसाब पूरा करना चाहती थी, यह बात सलमान जनता था. इस के बाद सलमान और मेहरुन्निसा ने सीमा को ठिकाने लगाने की योजना बना ली.

योजना के मुताबिक 17 अक्तूबर, 2025 की शाम को मेहरुन्निसा ने फोन कर के सीमा को काशीपुर के केवीआर तिराहे पर बुलाया. सीमा वहां पहुंच गई. इस के बाद वे तीनों कंटेनर के केबिन में बैठ कर बातें करने लगे. उसी दौरान सीमा सलमान से उस के साथ शादी करने की जिद करने लगी. समझाने पर भी जब सीमा नहीं मानी तो सलमान ने पास बैठी मेहरुन्निसा को इशारा किया. तभी मेहरुन्निसा ने सीमा के दोनों हाथ पकड़ लिए. इस के बाद सलमान ने सीमा की चुन्नी से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. मेहरुन्निसा सीमा को अपने हाथों से तब तक जकड़े रही, जब तक सीमा की मौत न हो गई.

सीमा के मरने के बाद मेहरुन्निसा वापस चली गई और सलमान कंटेनर में सीमा की लाश ठिकाने लगाने के लिए हरिद्वार की ओर निकल पड़ा. जब कंटेनर ले कर वह नगीना पहुंचा था तो उस ने एक जेरीकेन में कंटेनर के डीजल टैंक से 6-7 लीटर डीजल निकाल कर रख लिया था ताकि मौका मिलने पर सीमा की लाश को जला सके. फिर सलमान ने हरिद्वार की ओर कंटेनर को दौड़ा दिया. कंटेनर चलाते समय वह सीमा के शव को ठिकाने लगाने के लिए सुनसान जगह की भी तलाश कर रहा था.

रात 12 बजे के बाद उस का कंटेनर एक सुनसान जगह पर पहुंचा. इस के बाद उस ने कंटेनर को अंधेरे में एक साइड में खड़ा कर दिया. फिर अंधेरे में उस ने केबिन से सीमा की लाश नीचे उतारी. सीमा की लाश को वह खींच कर एक झाड़ी के पास ले गया. लाश के ऊपर उस ने एक दरी डालने के बाद जेरीकेन का सारा डीजल उस के ऊपर छिड़क कर उस में आग लगा दी. सीमा की लाश को आग के हवाले करने के बाद वह तुरंत कंटेनर ले कर देहरादून के लिए निकल गया.

डा. सुधांशु शुक्ला सुबह अपनी पत्नी के साथ गांव गजीवाली के जंगल में सुबह की सैर कर रहे थे. यह उन का रोज का नियम था. सैर करने के लिए वह सुबह लगभग 5 बजे अपनी पत्नी के साथ घर से निकल जाते थे. जिस क्षेत्र में डा. शुक्ला सैर करने के लिए निकलते थे, वहां यदाकदा बंदर, जहरीले सांप, जंगली हाथी, गुलदार आदि भी विचरण करते हुए दिखाई पड़ जाते थे. जंगली इलाका होने के कारण डा. शुक्ला वहां पर सदैव सतर्क हो कर पत्नी के साथ  सैर करते थे, लेकिन 18 अक्तूबर, 2025 को जब वह थोड़ी देर सैर करने के बाद एक झाड़ी के पास पहुंचे थे तो उन्हें वहां पर जलाई गई एक झाड़ी दिखाई दी. जब वह उस जली हुई झाड़ी के थोड़ा पास पहुंचे तो उन्होंने वहां पर एक जली हुई डैड बौडी देखी.

‘सुनसान जंगल में वह जली हुई डैड बौडी किस की होगी और उसे किस ने यहां ला कर जलाया होगा?’ यह सोच कर डा. शुक्ला घबरा गए. उन के साथ सैर कर रहीं उन की पत्नी भी डर गई थीं. तभी वहां से गुजर रहे लोगों को रोक कर उन्होंने डैड बौडी के बारे में बताया. कुछ ही देर में वहां पर काफी लोग इकट्ठे हो गए. सब ने देखा था कि वह डैड बौडी काफी हद तक जल चुकी थी, सिर्फ शव के दोनों पंजे तथा दोनों हाथों की कलाइयां ही जलने से बची हुई थीं. पैरों के बिछुओं से अंदाजा लगाया कि किसी शादीशुदा महिला को जलाया गया है. वहां पर उस समय दहशत का वातावरण था. अत: वहां पर मौजूद लोगों ने इस मामले की सूचना पुलिस को देने का फैसला किया. यह इलाका जिला हरिद्वार के नजीबाबाद रोड पर स्थित थाना श्यामपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए एक व्यक्ति ने फोन द्वारा घटना की सूचना थाने में दे दी.

उस समय सुबह के 7 बजे थे. थाना श्यामपुर के एसएचओ मनोज शर्मा को जब यह सूचना मिली थी तो वह तत्काल ही एसएसआई मनोज रावत व कुछ अन्य पुलिसकर्मियों को ले कर सूचना में बताए गए पते की तरफ निकल गए. उन्होंने यह सूचना सीओ एस.एस. नेगी, एसपी (सिटी) पंकज गैरोला, एसपी (क्राइम) जितेंद्र मेहरा तथा एसएसपी प्रमेंद्र डोभाल को दी थी. घटनास्थल वहां से मात्र 3 किलोमीटर दूर हरिद्वार नजीबाबाद रोड पर गांव गाजीवाली में खैरा ढाबे के पीछे झाडिय़ों का इलाका था, इसलिए एसएचओ थोड़ी देर में ही वहां पहुंच गए.

जब पुलिस वहां पहुंची तो उस समय वहां दरजनों लोगों की भीड़ थी. एसएचओ ने वहां पर जलाई गई लाश का निरीक्षण करना शुरू कर दिया. वैसे तो लाश पूरी जल गई थी, मगर लाश के पैरों के पंजे व कलाइयां नहीं जल सकी थीं. लाश के पैरों में बिछुए होने तथा पंजे में काला कपड़ा होने से श्री शर्मा को लगा कि यह लाश किसी महिला की है. अज्ञात हत्यारों ने जंगल में ला कर महिला के शव को इसलिए जलाया होगा, जिस से कि उस की पहचान न हो सके. इस के बाद श्री शर्मा ने डा. सुधांशु से इस शव के पहली बार देखे जाने के बारे में जानकारी ली थी. शव महिला का होने के कारण श्री शर्मा ने शव का पंचनामा भरने के लिए थाने से महिला थानेदार अंजना चौहान को मौके पर बुलवा लिया था.

घटनास्थल पर पुलिस की काररवाई चल ही रही थी कि सीओ एस.एस. नेगी, एसपी (सिटी) पंकज गैरोला, एसपी (क्राइम) जितेंद्र मेहरा तथा फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई थी. इस के बाद फोरैंसिक टीम व पुलिस ने शव के कई कोणों से फोटो खींचे तथा आसपास से अन्य सबूत भी जुटाए. मृतका की शिनाख्त न होने से पुलिस के लिए यह ब्लाइंड मर्डर था. महिला के इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी को सुलझाने के लिए एसपी (क्राइम) जितेंद्र मेहरा ने सीआईयू यूनिट प्रभारी नरेंद्र बिष्ट की टीम को भी मौके पर बुलवा लिया था.

इस मामले में मृतका की पहचान करना पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती थी. पुलिस ने वहां मौजूद स्थानीय लोगों से पहले मृतका के बारे में पूछताछ की थी, मगर अभी तक पुलिस को मृतका के बारे में कोई भी जानकारी हासिल नहीं हो सकी थी. इस के बाद एसपी जितेंद्र मेहरा के निर्देश पर महिला थानेदार अंजना चौहान ने मृतका की जली हुई डैडबौडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस के बाद एसएसपी प्रमेंद्र डोवाल ने ब्लाइंड मर्डर केस की गुत्थी सुलझाने के लिए एसपी (क्राइम) जितेंद्र मेहरा के निर्देशन और सीओ एस.एस. नेगी की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में एसएचओ मनोज शर्मा, सीआईयू इंसपेक्टर नरेंद्र बिष्ट, एसआई गगन मैठाणी, नवीन चौहान, मनोज रावत, कांस्टेबल राहुल देव आदि को शामिल किया गया. एसएसपी ने वहां आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने के आदेश टीम को दिए. उन के दिशानिर्देश पर पुलिस टीम जांच में जुट गई.

जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि नजीबाबाद से हो कर हरिद्वार की ओर रास्ते में पहले पीनाक होटल व बाद में उमेश्वर धाम में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. पुलिस टीम ने दोनों स्थानों के बीती रात के कैमरों की फुटेज को चैक किया. पुलिस ने जांच में पाया कि उस रात लगभग 842 छोटेबड़े वाहन इस रास्ते से गुजरे थे. पुलिस को शक था कि किसी छोटे वाहन से मृतका को हत्यारों द्वारा यहां लाया गया होगा. इस के बाद अगले दिन भी पुलिस टीम ने हरिद्वार से रायवाला तक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की.

वैसे तो पुलिस टीम को विशेष जानकारी मृतका के बारे में नहीं मिली, मगर एक बात सीआईयू प्रभारी नरेंद्र बिष्ट के गले नहीं उतर रही थी कि पीनाक होटल व उमेश्वर धाम की दूरी लगभग 500 मीटर है. सभी वाहन पीनाक होटल से उमेश्वर धाम मात्र 2 या 3 मिनट में पहुंचे थे. मगर एक सफेद कंटेनर घटना वाली रात को पीनाक होटल से उमेश्वर धाम 19 मिनट में पहुंचता कैमरों में दिखाई दिया था. इस बात पर बिष्ट का शक सफेद कंटेनर पर गहरा गया था.

इस सफेद कंटेनर पर शक गहराने के कारण पुलिस ने इस केस को सुलझाने के लिए इस की डोर पकड़ ली थी. इस के बाद पुलिस ने कंटेनर के रजिस्ट्रैशन नंबर यूके18 सीए 4788 के मालिक की जानकारी की. पता चला कि यह कंटेनर जिंदल वेजिटेबल कंपनी, नारायण नगर इंडस्ट्रियल एरिया, काशीपुर उत्तराखंड के नाम से रजिस्टर्ड है. एक पुलिस टीम काशीपुर जाने के लिए निकल पड़ी. पुलिस टीम ने उत्तराखंड के ही शहर काशीपुर पहुंच कर उक्त नंबर के सफेद कलर के कंटेनर के स्वामी से संपर्क किया तो उन्हें जानकारी मिली कि घटना वाली रात को कंटेनर चालक सलमान निवासी मझरा लक्ष्मीपुर, कोतवाली काशीपुर ही देहरादून मंडी के लिए ले कर गया था. इस के बाद सलमान 2 दिनों के बाद वापस लौटा था. यह भी पता चला कि इस समय सलमान कंटेनर ले कर पानीपत (हरियाणा) गया हुआ है.

पुलिस टीम ने जब सलमान के बारे में स्थानीय लोगों से जानकारी ली तो कुछ हैरान करने वाली जानकारी मिली. पता चला कि सलमान का एक भाई व 2 बहनें हैं. सलमान के प्रेम संबंध मोहल्ले की ही सीमा खातून नाम की एक महिला से चल रहे हैं. इस के अलावा गत 17 अक्तूबर, 2025 से ही सीमा खातून यहां से लापता चल रही है. सीमा खातून की गुमशुदगी कोतवाली काशीपुर की पुलिस चौकी बासकुडाव में दर्ज थी. सीमा खातून अंतिम बार मोहल्ले की एक महिला मेहरुन्निसा के साथ देखी गई थी. उस के बाद से ही सीमा लापता हो गई थी. काशीपुर पुलिस द्वारा भी सीमा खातून की तलाश की जा रही है.

इस के बाद टीम ने लापता सीमा की फोटो देखी. फोटो में सीमा का चेहरा जली हुई महिला के शरीर से काफी मेल खा रहा था. अंत में पुलिस टीम ने लापता होने वाले दिन की वीडियो काशीपुर के एक सीसीटीवी कैमरे में देखी थी तो टीम को पूरा विश्वास हो गया कि श्यामपुर के जंगल में मिला जला हुआ शव सीमा खातून का ही था, क्योंकि उस समय सीमा खातून ने काला सूट पहन रखा था. बरामद जले हुए शव के पैरों के पास भी पुलिस ने अधजला काला कपड़ा बरामद किया था. अब श्यामपुर पुलिस टीम ने कोतवाली काशीपुर में ही मेहरुन्निसा से पूछताछ करने का मन बनाया था. कोतवाली में जब मेहरुन्निसा को बुलाया गया, तब उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. पुलिस ने जब मेहरुन्निसा से सीमा के लापता होने की बाबत पूछा तो वह पुलिस के सामने शांत खड़ी रही.

इस के बाद सीआईयू इंचार्ज श्री बिष्ट ने मेहरुन्निसा को सख्ती से फटकारते हुए कहा, ”तुम या तो सीधी तरह से सीमा के लापता होने की सच्चाई पुलिस को सचसच बता दो, वरना पुलिस के सामने मुर्दे भी बोलने लगते हैं, यह तुम जान लो.’’

बिष्ट की इस धमकी का मेहरुन्निसा पर  जादू की तरह असर हुआ. उस ने पुलिस को बताया कि उस ने व सलमान ने गत 17 अक्तूबर, 2025 को सीमा की हत्या कर दी थी. फिर सलमान ने उस की लाश ठिकाने लगाई थी. मेहरुन्निसा के ये बयान दर्ज करने के बाद पुलिस की टीम सीमा के कपड़े व फोटो से उस की शिनाख्त करने के लिए सीमा के शौहर शादाब, भाई मेहंदी हसन व मेहरुन्निसा को ले कर थाना श्यामपुर आ गई थी. यहां पहुंचने के बाद सीमा के शौहर शादाब ने उस के जले हुए शव से ही सीमा की पहचान कर ली थी. सीमा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण उस का गला घोंटा जाना बताया गया था.

मेहरुन्निसा की गिरफ्तारी के बाद उसी दिन शाम को ही श्यामपुर पुलिस ने चैकिंग के दौरान रसियाबड के पास से आरोपी सलमान को उस के कंटेनर सहित गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद सलमान को थाना श्यामपुर लाया गया. थाने में मेहरुन्निसा को देख कर सलमान समझ गया कि मेहरुन्निसा ने पुलिस को सब कुछ बता दिया होगा, इसलिए उस ने पुलिस के सामने सीमा की हत्या मेहरुन्निसा के साथ मिल कर करने का जुर्म कुबूल कर लिया था. पूछताछ में सलमान ने सीमा से प्रेम संबंध से ले कर उस की हत्या किए जाने तक की सारी कहानी उगल दी. सलमान और मेहरुन्निसा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने सलमान की निशानदेही पर डीजल की जेरीकेन भी बरामद कर ली.

एसएचओ मनोज शर्मा ने सलमान व मेहरुन्निसा की गिरफ्तारी की सूचना एसपी (क्राइम) जितेंद्र मेहरा व एसएसपी प्रमेंद्र डोभाल को दे दी. तब 24 अक्तूबर, 2025 की शाम को ही हरिद्वार के मायापुर स्थित एसपी (सिटी) कार्यालय में पुलिस अधिकारियों ने एक प्रैसवार्ता का आयोजन कर ब्लाइंड मर्डर केस का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने आरोपी सलमान व मेहरुन्निसा को कोर्ट में पेश किया था, जहां से उन दोनों को जेल भेज दिया गया. सीमा हत्याकांड की तफ्तीश एसएचओ मनोज शर्मा द्वारा की जा रही थी. श्री शर्मा शीघ्र ही आरोपियों के विरुद्ध साक्ष्य एकत्र कर के चार्जशीट कोर्ट में भेजने की तैयारी कर रहे थे. Short Love Story in Hindi

 

Love Story in Hindi: प्यार में न बनें बौयफ्रेंड का खिलौना

Love Story in Hindi: एक निजी अस्पताल में नर्स 24 वर्षीय समरीन की दिनचर्या भले ही व्यस्त थी, लेकिन उस के दिल का कोना खाली था. अपने सपनों के राजकुमार की उसे भी तलाश थी. इंस्टाग्राम के जरिए उस की जिंदगी में 25 वर्षीय गौसे आलम ने एंट्री तो की, लेकिन उस ने समरीन को एक ऐसा खिलौना समझा कि…

समरीन ने इंस्टाग्राम पर अपनी जो फोटो पोस्ट की थी, उस में उस का चेहरा आधा दिखता, आधा छिपा हुआ था. उस का हिजाब उस की पहचान बन चुका था. लोग यही समझते थे कि वह एक शरीफ मुसलिम लड़की है, परदे में रहती है. वह जनपद मुरादाबाद के गांव रुस्तम नगर सहसपुर में स्थित अपने घर से करीब 12 किलोमीटर दूर सेफनी कस्बे के एक अस्पताल में नर्स थी. समरीन अस्पताल की लंबी शिफ्ट से थक जाती थी, लेकिन मरीजों की देखभाल में अपना सारा दर्द भूल जाती थी, परंतु रात में अकेलापन उसे घेर लेता.

वह अस्पताल में हर दिन मौत और जिंदगी की जंग देखती थी. रोजाना घर से अस्पताल जाना और वापस घर आना सफर की थकान, साथ में अस्पताल के काम की थकान यह सब समरीन की जिंदगी का हिस्सा था. फिर भी उस के दिल में प्यार की गहराई, भावनाओं का सैलाब, दर्द, तड़प सब कुछ अनुभव करने की अपार क्षमता थी. अपने सपनों के राजकुमार की उसे भी तलाश थी. समरीन को इंस्टाग्राम पर नएनए लोगों से दोस्ती करना अच्छा लगता था. वह फोटोग्राफी और किताबों की तसवीरें डालती, छोटेछोटे कैप्शन में अपने दिल की बातें लिखती.

एक दिन उसे एक युवक का मैसेज मिला. उस की प्रोफाइल खंगाली तो वहां थोड़ेबहुत सुंदर फोटो थे, गौसे आलम नाम था उस का. नाम ऐसा था जो सुनने में सुकून दे रहा था. शुरुआत में तो बस सामान्य ‘हाय’ लिखा मैसेज देखा तो नसरीन ने भी उस का उत्तर ‘हाय’ में ही दे दिया. गौसे आलम एक 25 साल का ट्रक ड्राइवर था, जो लंबी दूरी की सड़कों पर जीवन बिताता था. अकेलापन, परिवार की जिम्मेदारी और जीवन की कठोर सच्चाइयां उस की साथी थीं. गौसे आलम की जिंदगी ट्रक की स्टीयरिंग और राजमार्गों पर लंबीलंबी दूरी तक माल ढोते हुए ही गुजर रही थी. कहीं वह रात में विश्राम करता तो वह रातों में खुद को अकेला महसूस करता. परिवार के लिए पैसा कमाता, लेकिन दिल खाली था. रात में मोबाइल की स्क्रीन पर दुनिया घूमना उस का शौक था.

वह जनपद मुरादाबाद के ही थाना कुंदरकी के चकफाजलपुर गांव का निवासी था. उस का इंस्टाग्राम अकाउंट जैसे उस की छोटी सी दुनिया था. तसवीरें, शायरी और कभीकभी दिल की बातें. हर रात वह अपनी किसी पोस्ट के नीचे लिखता, ‘कोई तो होगी, जो मेरे दिल की बात समझेगी’. वह चाहता था कोई ऐसी लड़की, जो उस की पोस्टों में छिपे जज्बात को महसूस कर सके, उस की अकेली जिंदगी में रंग भर सके. धीरेधीरे उसे समझ आया कि तमाम लड़के आजकल इंस्टाग्राम पर किस तरह की मोहब्बत ढूंढते हैं. कभी लाइक के जरिए, कभी कमेंट से बात शुरू कर के तो कभी किसी की स्टोरी पर रिप्लाई दे कर. गौसे आलम भी वही करने लगा. हर नई तसवीर पर मुसकराहट के साथ एक दिल भेज देता, कभी किसी शायरी पर ‘वाह!’ लिख देता.

एक रात ट्रक सड़क किनारे खड़ा कर के  उस ने इंस्टाग्राम ओपन किया. उस की निगाहें हिजाब पहने हुए एक फोटो पर टिक गईं. उस का नाम था समरीन. वह काफी देर चेहरे को देखता रहा. उस की एक पोस्ट ने गौसे आलम का ध्यान खींचा. अस्पताल की बालकनी से ली गई तसवीर, जहां वह मास्क लगाए एक बच्चे को गोद में ले कर मुसकरा रही थी. यह पोस्ट उस की भावनात्मक थकान दिखाती थी. नर्स की जिम्मेदारी में छिपा दर्द उस की आंखों से छलक रहा था. फिर उस ने समरीन की प्रोफाइल देखी. उस की प्रोफाइल की तसवीर में हल्की मुसकान थी और बायो में लिखा था, ‘दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए.’

गौसे आलम ने हिम्मत की और उस की  शायरी पर कमेंट किया, ‘लफ्ज तो बहुत लोग लिखते हैं, पर एहसास सिर्फ तुम लाती हो.’ समरीन ने भी उसे ‘शुक्रिया’ लिखा, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. धीरेधीरे चैट शुरू हुई, फिर देर रात तक चलने लगी. दोनों अपनीअपनी जिंदगी की खाली जगहों को एकदूसरे के शब्दों से भरने लगे. गौसे आलम अब हर सुबह उस की ‘गुड मार्निंग’ का इंतजार करता. समरीन उसे अपने कालेज की बातें बताती और गौसे आलम अपने लंबे सफर की दास्तान सुनाता. अपनी दिन भर की थकान के बीच उस की हंसी में सुकून ढूंढता. उस दिन के बाद से इंस्टाग्राम अब सिर्फ एक ऐप नहीं रहा, वो उन की मोहब्बत की गवाही देने वाला आईना बन गया.

गौसे आलम अब रोज नई तसवीर नहीं डालता, बस एक ही कैप्शन लिखता है ‘मिल गई वो, जिस से जिंदगी रंगीन हो गई.’ इस तरह दोनों तरफ से मैसेज का सिलसिला शुरू हो गया. समरीन हर रोज सुबहशाम 1-2 लाइनें हंसीमजाक, मजहबी और कभी गहराई की बातें पोस्ट किया करती थी. जैसे कोई साथी मिल गया हो. गौसे आलम ने एक दिन दिल  की गहराई से एक पोस्ट लिखी, ‘तुम्हारी मुसकराहट तो मेरी रातों की थकान मिटा देती है. तुम्हारे जैसे लोगों को सलाम, जो दूसरों के लिए हर वक्त लगे रहते हैं. मैं एक ट्रक ड्राइवर हूं, इसलिए मेरी सड़कें भी बहुत तनहा होती हैं.’

गौसे आलम की यह पोस्ट समरीन के दिल में उतर गई. गौसे आलम एक आम युवक था. उम्र बस 25 की, पर सपने बहुत बड़े. समरीन और गौसे आलम एकदूसरे के मोबाइल फोन नंबर ले ही चुके थे. इसलिए दिल खोल कर प्यारमोहब्बत की बातें होने लगीं. जिंदगी भर साथ निभाने की कसमें भी खाई जाने लगीं. गौसे आलम का कहना था कि जल्दी एक मुलाकात हो जाए तो हमारा प्यार और भी परवान चढऩे लगेगा.

समरीन ने महसूस किया कि गौसे आलम उस के लिए बेहद समझदार है और सहानुभूति दिखाने लगा है. उस की बातों पर समरीन का दिल खोयाखोया सा रहने लगा. वह सोचती कि कोई तो है, जो उस की बात ध्यान से सुनता है, उस की परेशानी पर संवेदना दिखाता है और मुश्किल में साथ देने का वादा करता है. वह कहता कि समरीन मैं तुम से शादी करूंगा. तुम मेरी जिंदगी हो. समरीन भी उस की बातों पर गहरा विश्वास करने लगी थी. वह सोचती कि गौसे आलम दिल का सच्चा है. भले ही वह एक ट्रक ड्राइवर है, लेकिन दिल का अच्छा है.

 

इन दोनों की कहानी में पहला मोड़ तब आया, जब वह अकसर ‘सिर्फ तुम्हारे लिए’ जैसी बातें करता. वह कहता कि समरीन मेरा साथ कभी मत छोडऩा, मेरा इस दुनिया में तुम्हारे अलावा कोई नहीं है. मैं तुम्हें दिल से प्यार करता हूं. मुझे कभी किसी से कोई प्यार नहीं मिला. यदि तुम ने मेरा दिल तोड़ दिया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा. इसलिए समरीन को यह अहसास होता कि उन दोनों का यह रिश्ता कुछ खास है. उस ने अपनी सब से करीबी सहेली को ये सारी बातें बताईं.

तब सहेली ने कहा, ”तेरी बातों से तो ऐसा लगता है कि वह तुझ से सच्चा प्यार करता है.’’

कुछ दिनों में उन का रिश्ता इंस्टाग्राम की स्क्रीन से निकल कर असल जिंदगी में उतरने लगा. उन का प्यार परवान चढऩे लगा.

पहली मुलाकात में जब गौसे आलम ने समरीन को देखा तो कहा, ”समरीन, तुम तो तसवीरों से ज्यादा हसीन हो और हकीकत में ज्यादा सच्ची भी.’’

समरीन भी मुसकराती हुई बोली, ”और तुम इंस्टाग्राम से ज्यादा शरमीले हो.’’

फिर दोनों हंस पड़े.

गौसे आलम को जब यकीन हो गया कि समरीन अब उस के फरेबी प्यार के जाल में फंस चुकी है तो  एक दिन वह अपने असली रूप में आ गया. उस ने ‘ओयो होटल’ में एक कमरा बुक किया. फोन कर के उस ने होटल में समरीन को भी बुला लिया.

जनपद मुरादाबाद में ‘ओयो’ जैसे और भी बहुत से केंद्र काफी चर्चित हो चुके हैं, जहां प्रेमी युगल दिन में 2-4 घंटे के लिए कमरा बुक करते हैं और मौजमस्ती कर के चले जाते हैं. होटल में पहुंच कर समरीन को जब गौसे आलम के इरादे का पता चले तो उस ने साफ इनकार किया. उस ने कहा कि शादी से पहले प्यार की अंतिम चरम सीमा पर नहीं पहुंचना चाहिए. तब गौसे आलम ने कहा, ”प्यार में सब जायज है. शादी तो होगी ही. जब हमें जिंदगी भर साथ ही रहना है तो फिर हम दोनों के बीच में किसी भी तरह की यह दूरी क्यों?’’

इस तरह हमबिस्तरी के पक्ष और विपक्ष में दोनों के बीच काफी चर्चा हुई और अंत में वह सब कुछ हो गया, जो सिर्फ सुहागरात को होना चाहिए था. समय बीतता रहा, समरीन ने महसूस किया कि गौसे आलम पहले की तरह प्यारमोहब्बत के लिए नहीं मिलता है. वह तो सिर्फ अंतिम प्यार का मौका देखता है. बस अपनी हवस मिटा लेता है. जब उसे शक हुआ तो समरीन ने उस से शादी के लिए कहा. शादी की बात सुनते ही गौसे आलम का तो नजरिया बदल गया. वैसे तो इन दोनों के प्यार के किस्से दोनों के फेमिली वालों और रिश्तेदारियों में आम हो चुके थे. समरीन ने उस के फेमिली वालों से भी कहा कि उस की शादी अब जल्द करा दी जाए. उन दोनों के प्यार को अब कई महीने बीत चुके हैं.

चारों तरफ से घिरता देख 25 वर्षीय गौसे आलम अब प्रेमिका समरीन से पीछा छुड़ाने के तरीके सोचने लगा. इस का एक कारण दोनों की जातियों का अलगअलग होना भी था. गौसे आलम की जाति के लोग इस क्षेत्र में अपने आप को उच्च जाति का समझते हैं. जबकि समरीन सलमानी यानी पिछड़ी जाति की थी.

 

‘एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद ओ अयाज, न कोई बंदा रहा, न कोई बंदा नवाज.’ यह कहावत यहां शादीविवाह में लागू नहीं होती. खासकर तो तुर्क बिरादरी के लोगों के लड़के तो अपनी बिरादरी में ही शादी करते हैं.

सलमानी बिरादरी के लोग भी जनपद में निवास करते हैं. ये लोग अभी तक अपने पारंपरिक कार्य को अंजाम दे रहे हैं. दूसरों के सिर के बाल, दाढ़ी और मूंछें संभालना इन का पेशा है. इन्हें अभी समानता का दरजा इस क्षेत्र में नहीं मिला है. जाति को ले कर भी गौसे आलम के फेमिली वाले समरीन से शादी करने के लिए राजी नहीं थे. समरीन को ले कर गौसे आलम की चिंता अब बढ़ती जा रही थी. इसलिए उसे लगा कि अब इसे ठिकाने लगा कर ही वह पीछा छुड़ा सकता है.

गौसे आलम को समरीन के व्यवहार से ऐसा लग रहा था कि वह शादी न करने पर उसे कानूनी पेंच में फंसा कर जेल भिजवा सकती है. समरीन पढ़ीलिखी थी. एक नर्स का काम करती है. समाज में अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से उस की डीलिंग अस्पताल में रहती है. इसलिए वह भी बड़ी दिलेरी से शादी  करने  के लिए अड़ी हुई थी. अधिकतर ड्राइवरों के चेहरे पर हमेशा एक मुसकान, लेकिन आंखों में हवस की चमक छिपी होती है. ऐसा ही गौसे आलम था. वह खुद को प्यार का पुजारी कहता, लेकिन सच तो यह थी कि वह हवस का गुलाम था.

छोटेछोटे गांवों और शहरों में उस की कई कहानियां बिखरी पड़ी थीं. लड़कियां जो उस के मीठे व झूठे वादों में फंसतीं और फिर छोड़ दी जातीं. लेकिन समरीन की कहानी अलग थी. यह कहानी प्यार की नहीं, बेवफाई की थी, जो दिल को छलनी कर देती है. इस से पहले कि समरीन नाम की फांस गौसे आलम के लिए नासूर बन जाए, उस ने एक दिन अपने इरादे को अंजाम दे दिया. यह काम गौसे आलम ने इतनी चालाकी और प्लानिंग के साथ किया कि पुलिस के हाथ उस की गरदन तक न पहुंचें. समय बलवान होता है. अपराधी कोई न कोई सबूत छोड़ जाता है. अब तो डिजिटल युग है. कोई न कोई सबूत कहीं न कहीं से मिल ही जाता है. आखिरकार वही हुआ यह सब उस ने कैसे किया? यह घटना बहुत ही दिल दहलाने वाली है.

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है तहसील बिलारी. इसी तहसील का एक गांव रुस्तम नगर सहसपुर है. यह बिलारी से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है. बिलारी और सहसपुर के बीच की इस दूरी में भी मकान बन रहे हैं. आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि कुछ ही सालों में गांव सहसपुर भी बिलारी का एक मोहल्ला जैसा हो जाएगा. रुस्तम नगर सहसपुर तहसील क्षेत्र का सब से बड़ा गांव है. इस को नगर पंचायत बनाने की बात भी चल रही है. इस का प्रस्ताव सरकार को भेजा जा चुका है. इसी गांव के मोहल्ला साहूकारा में रियासत हुसैन का परिवार निवास करता है. नर्स समरीन इन्हीं की बेटी थी. अपने 4 भाईबहनों में वह सब से छोटी थी. इस की बड़ी बहन फरहा की शादी हो चुकी है. जबकि 2 बड़े भाई सुहेल और रिजवान दिल्ली में सैलून पर काम करते हैं. उस की अम्मी शाहिदा परवीन की 10 साल पहले मौत हो चुकी है.

रियासत हुसैन शादीविवाह में कौफी मशीन चलाते हैं. सर्दियों में अधिकांश समारोह में कौफी की व्यवस्था मेहमानों के लिए की जाती है. कौफी का स्टाल लगाने वाले अलग लोग होते हैं. इन का हलवाइयों के स्टाल से कोई मतलब नहीं होता है. एक तरह की मजदूरी का काम है. रियासत हुसैन ने भी एक कौफी मशीन ले रखी है. सर्दियों में अधिकांशत: रात में ही बुकिंग मिलती है. यह अपनी कौफी मशीन ले जा कर अपनी स्टाल सजा कर शादी समारोह में बैठ जाते हैं. दूध और काफी बाकी सामान की व्यवस्था समारोह के आयोजकों द्वारा की जाती है. इन की तो सिर्फ मशीन और खुद की मेहनत होती है.

रियासत हुसैन की बेटी समरीन रामपुर जिले के सेफनी कस्बे में स्थित इनाया हेल्थकेयर क्लीनिक में नर्स का काम करती थी. उस से परिवार को बहुत सारी उम्मीदें थीं. सेफनी जिला रामपुर की तहसील शाहबाद के अंतर्गत एक नगर पंचायत है, यानी सेफनी जिला मुरादाबाद की सीमा से एकदम सटा हुआ है. 22 वर्षीय समरीन 24 अगस्त, 2025 की सुबह 10 बजे रोजाना की तरह घर से नर्सिंग होम जाने की बात कह कर निकली थी, लेकिन देर शाम तक वह वापस नहीं लौटी. रियासत हुसैन ने उस के क्लीनिक पर कौल की तो पता चला कि समरीन क्लीनिक पर आज नहीं पहुंची थी.

यह जानकारी मिलने पर फेमिली वालों के होश उड़ गए. इस के बाद परिजन उस की तलाश में जुट गए. अपने सभी रिश्तेदारों और परिचितों को मोबाइल फोन पर संपर्क कर के समरीन के बारे में पूछा गया, लेकिन कहीं से भी यह जवाब नहीं मिला कि समरीन को उन्होंने कहीं देखा है या उन के घर आई है. तब रियासत हुसैन ने दिल्ली में रह रहे अपने दोनों बेटों को फोन से सूचना दी कि समरीन आज सुबह से लापता है. दोनों बेटे भी रात में ही दिल्ली से घर के लिए रवाना हो गए. सुबह रियासत हुसैन और उन के बेटों ने अपने सभी रिश्तेदारों और परिचितों से राय ली. सब की सहमति के बाद उन्होंने 25 अगस्त, 2025 को बिलारी कोतवाली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

समरीन के मोबाइल की पुलिस ने कौल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह बिलारी से 7 किलोमीटर दूर थाना कुंदरकी क्षेत्र के रहने वाले गौसे आलम नाम के युवक से बात करती थी. पुलिस गौसे आलम की तलाश में जुट गई. गौसे आलम ट्रक ले कर कहीं गया हुआ था. उस की लोकेशन पुलिस लगातार ट्रेस कर रही थी. पुलिस की कई टीमें इस मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए लगाई गईं. आखिरकार 30 अगस्त, 2025 दिन शनिवार को गौसे आलम पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. चूंकि घटना थाना कुंदरकी क्षेत्र की थी, इसलिए गौसे आलम से कुंदरकी पुलिस ने पूछताछ शुरू की. पहले तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा. यह साबित करने की कोशिश करता रहा कि उसे समरीन के बारे में कोई जानकारी नहीं है. वह ट्रक ले कर बाहर गया हुआ था, लेकिन पुलिस द्वारा थोड़ी सख्ती करने पर गौसे आलम टूट गया. उस ने समरीन की हत्या करना कुबूल कर लिया.

इस के बाद गौसे आलम की निशानदेही पर पुलिस ने 30-31 अगस्त की रात को थाना कुंदरकी क्षेत्र के चकफजालपुर गांव के गन्ने के खेत से समरीन का सड़ागला शव बरामद कर लिया. समरीन की लाश मिलने की सूचना पर उस के अब्बू, भाई और रिश्तेदार भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटना की सूचना जंगल की आग की तरह आसपास के गांवों में फैल गई. बड़ी संख्या में लोग घटनास्थल पर जमा हो गए. थाना कुंदरकी के एसएचओ प्रदीप सहरावत मय फोर्स के घटना स्थल पर मौजूद थे. सूचना पर एसपी (देहात) कुंवर आकाश सिंह भी घटनास्थल का मुआयना करने पहुंच गए. गौसे आलम को थाने भेज दिया गया. फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई. उस ने मौके पर जांच कर के साक्ष्य जुटाए.

मौके की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय मुरादाबाद भेज दिया. थाना कुंदरकी के एसएचओ प्रदीप सहरावत की गहन पूछताछ के बाद हत्या का एक दिल दहलाने वाला खुलासा हुआ. समरीन का यह कोई पहला मौका नहीं था, जो उस ने किसी युवक पर भरोसा किया था. पहले भी एक युवक उस की जिंदगी में आया था. उस ने भी उस से कहा था, ”चेहरा क्या है, मैं तुम्हारे दिल से प्यार करता हूं.’’ जब शादी की बात आई तो वही आशिक उस के चेहरे व गले पर स्पष्ट दिखाई देने वाले जलने के निशान देख कर पीछे हट गया.

समरीन ने उस से लाख कहा कि इन दागों के नीचे भी मैं वही लड़की हूं. पर उस युवक और उस के फेमिली वालों ने उसे ‘अधूरी’ कह दिया. इसी तरह गौसे आलम ने उसे स्वीकार नहीं किया तो वह टूट गई. उस ने जिद की कि तुम शादी नहीं करोगे तो मैं खुद को खत्म कर दूंगी. इन बातों का समरीन के प्रेमी पर कोई असर नहीं हुआ. उस के फेमिली वालों ने भी समरीन की विनती को ठुकरा दिया. मामला पुलिस तक भी पहुंचा. मगर नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला. मजबूरन समरीन और उस के परिवार को समझौता करना पड़ा.

दरअसल, कुछ साल पहले समरीन ने किसी कलह के चलते खुद को आग लगा दी थी. आग की चपेट में आ जाने से वह काफी झुलस गई थी. उस के चेहरे पर आग से जले हुए निशान अब भी स्पष्ट दिखाई देते थे. उस की गरदन पर भी जले हुए के निशान थे. शरीर के और भी हिस्सों पर निशान थे, जो कपड़ों से दब जाया करते थे. जबकि गरदन और चेहरे के निशान ढकने के लिए वह अकसर हिजाब पहना करती थी. समरीन की जले हुए की घटना की जिन्हें जानकारी नहीं थी, वो यही समझते थे कि बहुत ही मजहबी लड़की है. इसलाम और शरीयत की रोशनी में घर से हिजाब पहन कर ही निकलती है. बाहर के लोगों ने कभी उसे बिना हिजाब के नहीं देखा.

गौसे आलम ने जब पहली मर्तबा समरीन के चेहरे और गरदन के जले हुए निशान देखे थे, तब एकदम उस के चेहरे की रंगत बदल गई थी. वह उदास हो गया था. समरीन उस की हालत देख कर घबरा गई थी. वह रोने लगी थी. कहने लगी कि शायद मेरे चेहरे के निशान देख कर आप मायूस हो रहे हैं. निराश हो रहे हैं. आप मुझ से नहीं मेरे चेहरे से मोहब्बत करते हैं. गौसे आलम ने कहा कि ऐसी बात नहीं है. उस ने एकदम अपने चेहरे की रंगत बदली. चेहरे पर शगुफ्तगी लाने की कोशिश की और कहा कि मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं. ऐसा कभी मत सोचना. मैं तुम्हारा जिंदगी भर साथ निभाऊंगा.

कस्बा बिलारी से करीब 7 किलोमीटर दूर बिलारी तहसील का ही एक कस्बा कुंदरकी है. गौसे आलम  कुंदरकी कस्बे से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित चकफाजलपुर गांव का निवासी है. यह 3 भाई और 2 बहनें हैं. गौसे आलम बीच का है. एक बहन की शादी हो चुकी है. एक बहन मानसिक रूप से विकलांग है. गौसे आलम के चेहरे पर मासूमियत और बातों में जादू होता था. गांव में उसे सब ‘आशिक आलम’ कह कर चिढ़ाते थे. असली दुनिया उस की इंस्टाग्राम थी. हर शाम हाथ में मोबाइल आता और फिर शुरू होती उस की औनलाइन मोहब्बत की दुनिया.

गौसे आलम का अंदाज ऐसा कि कोई भी लड़की उस की बातों में जल्दी बहक जाती. सिर्फ दोस्ती के नाम पर शुरू होने वाली बातें धीरेधीरे रोमांस में बदल जातीं. शेर ओ शायरी लिखता और हर चैट के अंत में दिल का इमोजी डाल देता. वह कई लड़कियों से चैट करता था. हर किसी से वही बातें ‘तुम बहुत अलग हो’, ‘काश तुम मेरे शहर में होतीं’, ‘तुम्हारी मुसकान दिल में उतर जाती है’.

उस के चेहरे पर एक ऐसी मासूमियत थी, जो किसी भी इंसान के दिल में भरोसा जगा दे. बड़ीबड़ी आंखों में अजीब सी शांति थी, जैसे उस में कभी तूफान उठा ही न हो. चेहरे की वो हलकी मुसकान, मानो किसी दर्द को छिपाने का हुनर हो. कोई पहली नजर में उसे देखे तो कहेगा ‘इतना सादा, इतना खूबसूरत चेहरा कैसे किसी का खून कर सकता है?’ लेकिन वही चेहरा था, जिस ने मोहब्बत की आड़ में मौत की कहानी लिखी थी.

एक दिन गलती से उस ने सना को वही मैसेज भेज दिया जो किसी और को भेजना था. ‘कह दो न, तुम भी मुझ से प्यार करती हो, शाइस्ता?’

मैसेज पड़ कर सना चौंक गई, ”शाइस्ता..? मैं तो सना हूं!’’

गौसे आलम की पोल खुल गई. उस दिन के बाद सना ने उसे ब्लौक कर दिया, उस के बाद से गौसे आलम ने बड़ी ऐहतियात बरतनी शुरू कर दी. इस तरह समरीन उस के प्यार के जाल में तो फंस गई, लेकिन बाद में गले की हड्ïडी भी बन गई. गौसे आलम ने यह एहसास समरीन को होने नहीं दिया. हमेशा की तरह उस ने समरीन को फोन कर के कहा कि बह बिलारी के महाराणा प्रताप चौक पर आ जाए. गौसे आलम बाइक ले कर वहीं खड़ा था. बिलारी का यह वही स्थान था, जहां से अकसर गौसे आलम अपनी बाइक पर बैठा कर समरीन को ले जाया करता था.

उस समय सुबह के लगभग 10 बजे थे. यही वह समय था, जब समरीन अपनी ड्यूटी करने जाया करती थी. अपने गांव रुस्तम नगर सहसपुर से समरीन बैटरी रिक्शा में बैठ कर आई थी. बैटरी रिक्शा से उतर कर समरीन गौसे आलम की बाइक पर बैठ गई और दोनों मौजमस्ती करने मुरादाबाद चले गए. गौसे आलम ने वादा किया था कि आज घर वालों से मिल कर शादी की बात करेंगे और जल्दी ही तारीख भी तय कर लेंगे. समरीन भी चाहती थी कि फेमिली वालों की मंजूरी व सामाजिक नियमकानून के अनुसार शादी होगी तो समाज में दोनों के फेमिली वालों की इज्जत बनी रहेगी.

गौसे आलम की योजना के अनुसार रास्ते में एक निश्चित स्थान पर उस का दोस्त मिल गया, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखने  वाला था, लेकिन अभी नाबालिग था. गौसे आलम ने अपने मित्र से ऐसे अनजान बन कर बात की जैसे पहले से कोई प्लानिंग न हो. समरीन ने पूछा कौन है तो उस ने बताया कि यह मेरा कजिन है. उसे भी बाइक पर बैठा लिया. अपने गांव चकफाजलपुर और रूपपुर के बीच रेलवे ट्रैक के पास बाइक रोकी. उस की आंखों में वही मोहब्बत थी, वही भरोसा, जो समरीन को इस जंगल तक लाया था.

अभी तक समरीन को गौसे आलम पर किसी तरह का कोई शक नहीं था. वो नहीं जानती थी कि उसी के साथ में उस का कातिल भी है. गौसे आलम के मन में कुछ और ही तूफान उमड़ रहा था. विश्वास की नींव पर खड़ी उन की कहानी, अब धोखे की चट्टानों से टकराने वाली थी. समरीन बाइक से नीचे उतर गई. गौसे आलम ने मुसकरा कर उस की ओर देखा. वह उसे यहां लाया था, प्रेम की मिठास का वादा कर के.

नीचे उतर कर समरीन ने पूछा, ”क्या हुआ?’’

गौसे आलम ने कहा, ”कुछ नहीं, बस हलका होना है.’’

इस से पहले कि समरीन कुछ समझ पाती गौसे आलम ने उसे वहीं गिरा लिया. उस के साथी ने दबोच लिया. फिर उन्होंने उस की हत्या कर दी. उस की चीख सुनने वाला भी वहां कोई नहीं था. दोनों ने लाश को उठा कर गन्ने के खेत में डाल दिया. प्यार के वादों से शुरू हुई कहानी, उस शाम विश्वासघात की आग में जल कर राख हो गई. गौसे आलम की दास्तान सुन कर पुलिस भी दंग रह गई. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया. अदालत ने गौसे आलम को जेल भेज दिया और उस के नाबालिग दोस्त को बाल सुधार गृह के हवाले कर दिया.

पुलिस ने घटना में इस्तेमाल की गई बाइक भी बरामद कर ली. समरीन के मोबाइल को गौसे आलम ने तोड़ कर फेंक दिया था, जो कहानी लिखने तक पुलिस बरामद नहीं कर सकी. Love Story in Hindi

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UP News: मांगा सिंदूर मिली मौत

UP News: रचना की मांग में सिंदूर भले ही पति शिवराज के नाम का होता था, लेकिन वह प्रेमी संजय पटेल को ही पति मानती थी. वह प्रेमी के लिए तनमन से पूरी तरह समर्पित थी. पति शिवराज की मौत के बाद रचना ने संजय पर शादी का दबाव डाला तो ऐसी घटना घटी, जिस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी…

संजय के लिए रचना से विवाह रचाना नामुमकिन था. वह गांव का पूर्वप्रधान था. गांव में उस की प्रतिष्ठा थी. रचना से विवाह कर वह अपनी मानमर्यादा को मिट्टी में नहीं मिलाना चाहता था, अत: उस ने रचना से पीछा छुड़ाने की सोची. मन में यह विचार आते ही संजय को रिश्ते के भतीजे संदीप पटेल व उस के दोस्त प्रदीप अहिरवार की सुध आई. दोनों अपराधी प्रवृत्ति के थे. एक शाम संजय ने भतीजे संदीप और उस के दोस्त प्रदीप अहिरवार से मुलाकात कर रचना से छुटकारा दिलाने में मदद की गुहार की.

रुपयों के लालच में वे दोनों राजी हो गए. इस के बाद संजय ने संदीप व प्रदीप की मदद से रचना की हत्या करने व उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. संजय ने रचना की मौत का सौदा एक लाख रुपए में किया और प्रदीप को 15 हजार रुपए पेशगी दे दी. शेष रकम काम होने के बाद देने का वादा किया. 13 अगस्त, 2025 की दोपहर झांसी जनपद के थाना टोड़ी फतेहपुर के किशोरपुरा गांव निवासी विनोद पटेल पशुओं का चारा काटने अपने महेबा रोड स्थित खेत पर पहुंचा. वहां खेत किनारे बने कुएं से तेज बदबू आ रही थी. उस ने कुएं में झांक कर देखा तो कुएं के पानी में 2 बोरियां तैर रही थीं.

विनोद ने अपने खेत के कुएं में पड़ी 2 बोरियों से तेज बदबू आने की सूचना थाना टोड़ी फतेहपुर पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही एसएचओ अतुल कुमार राजपूत पुलिस बल के साथ किशोरपुरा गांव के बाहर स्थित विनोद के कुएं पर जा पहुंचे. उस समय वहां ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. एसएचओ अतुल कुमार राजपूत ने पुलिसकर्मियों व ग्रामीणों की मदद से दोनों बोरियों को कुएं से बाहर निकलवाया. बोरियां खोली गईं तो सभी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. प्लास्टिक की एक बोरी में महिला की लाश का गरदन से ले कर कमर तक का हिस्सा था, जबकि दूसरी बोरी में कमर से ले कर जांघ तक का हिस्सा था.

इस के बाद कुएं को खाली कराया गया तो उस में एक बोरी और मिली, जिस में कटा हुआ एक हाथ था. कलाई में लाल रंग का धागा बंधा हुआ था. महिला का सिर और पैर अब भी नहीं मिले थे. बिना सिर के लाश की शिनाख्त होनी मुश्किल थी. बोरियों में शव के टुकड़ों के साथ ईंटपत्थर भी भरे गए थे, ताकि बोरियां पानी में उतरा न सकें. इंसपेक्टर अतुल कुमार ने टुकड़ों में विभाजित महिला की लाश मिलने की सूचना पुलिस के आला अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद ही एसएसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एसपी (ग्रामीण) डा. अरविंद कुमार तथा सीओ (सिटी) अनिल कुमार राय घटनास्थल आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मृतका के अन्य अंगों की खोज में पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन सफलता नहीं मिली तो बरामद अंगों को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल झांसी भेज दिया. 72 घंटे बाद भी शव की शिनाख्त न होने पर उन का पोस्टमार्टम करा कर पुलिस ने अज्ञात में दाह संस्कार कर दिया गया. एसएसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति ने महिला के इस ब्लाइंड मर्डर को बड़ी गंभीरता से लिया और उस की शिनाख्त व हत्याकांड के खुलासे के लिए एसपी (ग्रामीण) डा. अरविंद कुमार व सीओ अनिल कुमार की देखरेख में 18 टीमें गठित कीं.

टीम में टोड़ी फतेहपुर थाने के एसएचओ अतुल राजपूत, स्वाट प्रभारी जितेंद्र तक्खर, सर्विलांस टीम से दुर्गेश कुमार, रजनीश तथा तेजतर्रार दरोगा रजत सिंह, शैलेंद्र, हर्षित आदि को शामिल किया गया. टीम में शामिल पुलिसकर्मियों ने आंगनबाड़ी गु्रप, ग्राम पंचायत गु्रप, आशा वर्कर तथा राशन कोटेदारों का भी सहयोग लिया. 500 से अधिक सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इतनी मशक्कत के बाद भी शव की पहचान नहीं हो पाई. अब तक यह मामला डीआईजी (झांसी रेंज) केशव चौधरी के संज्ञान में भी आ गया था. अत: उन्होंने इस ब्लाइंड मर्डर केस को जल्द से जल्द खोलने व हत्यारों को पकडऩे का आदेश एसपी व एसएसपी को दिया. इस आदेश के बाद पुलिस और भी सक्रिय हो गई.

इधर एसपी (ग्रामीण) की टीम भी जांच में जुटी थी. शव के टुकड़े जिन बोरियों में पाए गए थे, वे खाद की बोरियां थीं. उन पर कृभको लिखा था, लेकिन कोड नंबर साफ नजर नहीं आ रहा था. टीम यह जानना चाहती थी कि बोरी किस सहकारी समिति से खरीदी गईं और यह किस गांव के किसान ने खरीदी थीं. जांच के लिए टीम ने खाद की कई सहकारी समितियों से संपर्क किया, लेकिन कोड नंबर स्पष्ट न होने से कोई खास जानकारी हासिल न हो सकी. टीम ने बोरी से बरामद ईंट की मिट्टी का भी परीक्षण कराया तो जांच में टोड़ी फतेहपुर की मिट्टी पाई गई. जांच से यह बात स्पष्ट हो गई कि महिला टोड़ी फतेहपुर क्षेत्र के ही किसी गांव की हो सकती है.

इसी बीच मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के थाना चंदेरा के मैलवारा गांव निवासी दीपक यादव को किसी महिला के कटे अंग मिलने की खबर लगी. उस की बहन रचना भी 8 दिनों से गायब थी. 19 अगस्त, 2025 की सुबह 10 बजे दीपक यादव गांव के सरपंच मोनू यादव के साथ थाना टोड़ी फतेहपुर पहुंचा. उस ने इंसपेक्टर अतुल राजपूत को बताया कि उस की बहन रचना यादव इसी थाना क्षेत्र के महेबा गांव निवासी शिवराज यादव को ब्याही थी. शिवराज की मौत हो चुकी है.

इन दिनों रचना महेबा गांव के ही पूर्वप्रधान संजय पटेल के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी. 8 अगस्त को उस ने रचना से बात करने की कोशिश की थी. वह किसी अस्पताल में भरती थी. बात करने के दौरान पूर्वप्रधान संजय पटेल ने रचना के हाथ से मोबाइल फोन छीन लिया और मुझे धमकाया कि फोन मत किया करो. 2 रोज बाद फोन किया तो संजय बोला कि मैं ने तेरी बहन को मार डाला है. यह सुन कर उसे लगा कि वह गुस्से व नशे में बात कर रहा है. लेकिन अब लग रहा है कि संजय पटेल ने उसे सचमुच मार डाला है. आप सच्चाई का पता लगाइए. दीपक यादव की बात सुन कर एसएचओ अतुल राजपूत ने रचना का फोन नंबर सर्विलांस पर लगाया. इस से पता चला कि रचना और पूर्वप्रधान संजय के बीच बातचीत होती रहती थी.

इस के बाद पुलिस टीम महेबा गांव पहुंची. वहां ग्रामीणों से पता चला कि रचना और पूर्व ग्राम प्रधान संजय के बीच अफेयर है. अब रचना लापता है. पुलिस टीम ने 20 अगस्त की रात नाटकीय ढंग से संजय पटेल व उस के भतीजे संदीप को टोड़ी फतेहपुर क्षेत्र के लखेरी बांध के पास से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर उन्होंने रचना की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया. संजय की निशानदेही पर पुलिस टीम ने हत्या में प्रयुक्त कार व मृतका रचना का मोबाइल फोन भी संजय के घर से बरामद कर लिया. संजय पटेल व संदीप को थाने लाया गया. थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस ने अपने भतीजे संदीप व उस के दोस्त प्रदीप के साथ मिल कर रचना की हत्या की थी. फिर उस ने शव के 7 टुकड़े कर 4 बोरियों में भरे थे. 3 बोरियां कुएं में फेंक दी थी तथा चौथी बोरी लखेरी नदी में डाल दी थी.

संजय व संदीप की निशानदेही पर पुलिस ने लखेरी नदी में नाव से सर्च औपरेशन चलाया और रचना का सिर, पैर व एक हाथ भी बरामद कर लिया. ये अंग भी बोरी में भरे गए थे. बरामद अंगों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए झांसी के जिला अस्पताल भेज दिया. अभी तक पुलिस टीम ने 2 आरोपियों को तो गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन तीसरा आरोपी प्रदीप अहिरवार फरार था. 21 अगस्त, 2025 की रात 10 बजे पुलिस टीम ने एक मुठभेड़ के बाद प्रदीप अहिरवार को भी गिरफ्तार कर लिया. मुठभेड़ के दौरान उस के पैर में गोली लगी थी. कातिलों के पकड़े जाने के बाद डीआईजी केशव कुमार चौधरी, एसएसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति तथा एसपी (ग्रामीण) डा. अरविंद कुमार ने झांसी पुलिस सभागार में एक संयुक्त प्रैस कौन्फ्रैंस कर रचना यादव हत्याकांड का खुलासा किया.

कातिलों को पकडऩे वाली पुलिस टीम पर आला कमान अधिकारियों ने इनामों की खूब बौछार की. डीआईजी केशव चौधरी ने टीम को 50 हजार रुपए नकद इनाम देने की घोषणा की. एसएसपी ने 20 हजार रुपए नकद पुलिस टीम को दिया. वहीं एसपी (ग्रामीण) डा. अरविंद कुमार ने भी 20 हजार रुपए नकद पुलिस टीम को पुरस्कार के रूप में दिए. चूकि कातिलों ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: एसएचओ अतुल राजपूत ने मृतका रचना के भाई दीपक यादव की तरफ से बीएनएस की धारा 103(1) तथा 201(3)(5) के तहत संजय पटेल, संदीप पटेल तथा प्रदीप अहिरवार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

रचना कौन थी? वह संजय पटेल के संपर्क में कैसे आई? संजय ने उस की हत्या क्यों और कैसे कराई? यह सब जानने के लिए रचना के अतीत की ओर झांकना होगा. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के चंदेरा थाना अंतर्गत एक गांव है मैलवारा. इसी गांव में फूलसिंह यादव सपरिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी लौंगश्री के अलावा एक बेटा दीपक तथा बेटी रचना थी. फूलसिंह प्राइवेट नौकरी करता था. फूलसिंह की बेटी रचना खूबसूरत थी. 16 बसंत पार करने के बाद जब उस ने जवानी की डगर पर पैर रखा तो उस की खूबसूरती में और भी निखार आ गया. जो भी उसे देखता, मंत्रमुग्ध हो जाता. रचना खूबसूरत तो थी, लेकिन पढ़ाई में उस का मन नहीं था. जैसेतैसे कर के उस ने दसवीं की परीक्षा पास की फिर घर के काम में मम्मी का हाथ बंटाने लगी.

फूल सिंह ने रचना की शादी टीकमगढ़ शहर के मोहल्ला सलियाना में रहने वाले जयकरन यादव से कर दी. वह तहसील में काम करता था. उस के 2 अन्य भाई थे, जो पन्ना शहर में नौकरी करते थे. शादी के बाद ससुराल में रचना के हंसीखुशी से 5 साल बीत गए. इस बीच वह 2 बेटियों की मां बन गई. बेटियों के जन्म के बाद जब खर्च बढ़ा तो घर में आर्थिक परेशानी रहने लगी. घर खर्च को ले कर रचना व जयकरन के बीच झगड़ा होने लगा. धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच इतना मनमुटाव बढ़ गया कि रचना अपनी दोनों मासूम बेटियों को पति के हवाले कर मायके में आ कर रहने लगी.

मायके में कुछ समय तो उस का ठीक से बीता, उस के बाद घरपरिवार के लोगों के ताने मिलने लगे. भाई दीपक को भी रचना का ससुराल छोड़ कर मायके में रहना नागवार लगता था. गांव में उस की बदनामी होने लगी थी. घरपरिवार के तानों से परेशान रचना ने जैसेतैसे 2 साल मायके में बिताए. उस के बाद एक रिश्तेदार के माध्यम से रचना ने शिवराज यादव से विवाह कर लिया. शिवराज यादव झांसी जनपद के थाना टोड़ी फतेहपुर के गांव महेबा का रहने वाला था. वह किसान था. उस के पास 10 बीघा उपजाऊ भूमि थी. वह अपने बड़े भाई रघुराज के साथ रहता था.

शादी रचाने के बाद रचना अपने दूसरे पति शिवराज के साथ महेबा गांव में रहने लगी. रचना स्वच्छंद स्वभाव की थी. उसे घूंघट में रहना पसंद न था, अत: वह न जेठ से परदा करती थी और न ही बड़ीबुजुर्ग महिलाओं से. उस की अपनी जेठानी से भी नहीं पटती थी. घरेलू कामकाज को ले कर दोनों में अकसर तूतूमैंमैं होती रहती थी. रचना को संयुक्त परिवार में रहना पसंद न था, अत: वह पति पर अलग रहने का दबाव बनाने लगी. घर और जमीन के बंटवारे को ले कर रचना और शिवराज के बीच मनमुटाव शुरू हो गया. दोनों के बीच झगड़ा व मारपीट होने लगी. बंटवारे को ले कर रचना की कहासुनी जेठजेठानी से भी होने लगी.

अत: उस ने जेठ रघुराज पर इलजाम लगाना शुरू कर दिया कि वह उस पर बुरी नजर रखता है. 25 मई, 2023 की शाम रेप हत्या के इलजाम को ले कर रचना का जेठजेठानी व पति से झगड़ा हुआ. तीनों ने मिल कर रचना की जम कर पिटाई की. इस पिटाई ने आग में घी डालने जैसा काम किया. सुबह होते ही रचना थाना टोड़ी फतेहपुर में जेठ व पति के खिलाफ रेप व हत्या की कोशिश करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने रचना के जेठ रघुराज व पति शिवराज को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस घटना के बाद रचना का ससुराल में रहना संभव न था, अत: वह एक बार फिर मायके आ गई. उस ने अपने भाई दीपक के सामने आंसू बहाए तो उस ने बहन को घर में शरण दे दी.

रचना के रेप व हत्या के प्रयास का मामला झांसी के गरौठा कोर्ट में शुरू हो चुका था. केस की पैरवी हेतु रचना को कोर्ट आना पड़ता था. गरौठा कोर्ट आतेजाते ही एक रोज रचना की मुलाकात संजय पटेल से हुई. दोनों एकदूसरे को पहले से ही जानते थे. जिस महेबा गांव में रचना की ससुराल थी, संजय पटेल भी उसी गांव का रहने वाला था. वह गांव का प्रधान भी रह चुका था. रचना और संजय की दोस्ती हो गई. दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. संजय अब रचना के केस की पैरवी करने लगा और उस की आर्थिक मदद भी करने लगा.

संजय नहीं चाहता था कि उस की प्रेमिका रचना उस से दूर मायके में रहे, अत: उस ने झांसी के गुरदासपुर में एक मकान किराए पर लिया और रचना को इस मकान में शिफ्ट कर दिया. संजय ने मकान में सारी सुविधाएं भी मुहैया करा दीं. इस के बाद रचना और संजय इस किराए के मकान में लिवइन रिलेशन में रहने लगे. रचना जो भी डिमांड करती, संजय उस डिमांड को पूरी करता. उस ने गहनोंकपड़ों से रचना को लाद दिया था. लाखों रुपए नकद भी दे चुका था. संजय पटेल शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. बड़ा बेटा 20 वर्ष की उम्र पार कर चुका था, लेकिन रचना से नाजायज रिश्ता जोडऩे के बाद उसे अपनी पत्नी ममता फीकी लगने लगी थी.

ममता को जब पता चला कि पति संजय व गांव के शिवराज की पत्नी रचना के बीच नाजायज रिश्ता है तो उसे अपना व बच्चों का भविष्य अंधकारमय लगने लगा. उस ने दोनों के नाजायज संबंधों का जम कर विरोध किया. घर में कलह मचाई, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई. संजय और रचना के संबंध आम हो गए थे. शिवराज यादव को जब पत्नी रचना के नाजायज संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने माथा पीट लिया. वह पहले भी उस के परिवार को बदनाम कर चुकी थी, लेकिन अब तो उस ने हद ही कर दी थी. पत्नी के कृत्य से वह इतना टूट गया कि बीमार पड़ गया. जून, 2025 की 10 तारीख को उस की बीमारी के चलते मौत हो गई.

पति की मौत के बाद रचना विधवा हो गई, लेकिन रचना को विधवा कहलाना तथा विधवा का जीवन बिताना मंजूर नहीं था. एक शाम संजय पटेल अपनी प्रेमिका रचना से मिलने आया तो वह उदास बैठी थी. संजय ने उदासी का कारण पूछा तो वह बोली, ”संजय, तुम्हें तो पता ही है कि मैं विधवा हो गई हूं. लोग मुझे विधवा की नजर से देखें, यह मुझे पसंद नहीं है.’’

”तो तुम चाहती क्या हो?’’ संजय ने रचना से पूछा.

रचना बोली, ”संजय, तुम मेरी मांग में सिंदूर भर कर मुझे अपनी पत्नी बना लो. शेष जीवन मैं तुम्हारी पत्नी बन कर तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूं.’’

रचना की बात सुन कर संजय को लगा कि जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो. वह असमंजस की स्थिति में बोला, ”रचना, मैं कपड़ा, गहना, रुपयापैसा जैसी तुम्हारी हर डिमांड को पूरा कर रहा हूं. फिर यह सिंदूर जैसी अटपटी डिमांड क्यों?’’

रचना तुनक कर बोली, ”तुम्हें मेरी डिमांड अटपटी लग रही है. औरत का सब से कीमती गहना उस का सिंदूर होता है. वही मैं तुम से मांग रही हूं. सिंदूर के आगे बाकी सारी सुविधाएं फीकी हैं.’’

”रचना, मैं शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप हूं. तुम्हारी मांग में सिंदूर भर कर मैं अपनी पत्नी से विश्वासघात नहीं कर सकता.’’ संजय ने समझाया.

”जब मेरे साथ रात बिताते हो, मेरे शरीर को रौंदते हो, तब तुम पत्नी के साथ विश्वासघात नहीं करते. सिंदूर की मांग की तो मुझे विश्वासघात का पाठ पढ़ा रहे हो. मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगी. तुम्हें मेरी मांग में सिंदूर भर कर पत्नी का दरजा देना ही होगा.’’

इस के बाद तो आए दिन सिंदूर की बात को ले कर रचना और संजय में तकरार होने लगी. संजय जब भी रचना से मिलने जाता, वह मांग में सिंदूर भरने और पत्नी का दरजा देने का दबाव बनाती. रचना अब उसे ब्लैकमेल करने पर उतर आई थी. रचना ने शादी की जिद पकड़ी तो संजय घबरा उठा. उस ने रचना को बहुत समझाया, लेकिन जब वह नहीं मानी तो उस ने रचना को खत्म करने का निश्चय किया. इस के लिए उस ने भतीजे संदीप व उस के दोस्त प्रदीप अहिरवार को चुना. दोनों अपराधी प्रवृत्ति के थे.

संदीप झांसी के बिजौली कस्बे में रहता था और एक फैक्ट्री में काम करता था. साल 2022 में उस ने एक महिला की हत्या की थी. हत्या के मामले में वह जेल गया था, जेल में ही संदीप की दोस्ती प्रदीप से हुई थी. प्रदीप अहिरवार मूलरूप से झांसी के थाना गरौंठा के गांव पसौरा का रहने वाला था, लेकिन मऊरानीपुर में किराए पर रहता था. वह आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहता था. संजय पटेल ने संदीप व प्रदीप अहिरवार से संपर्क कर रचना की मौत का सौदा किया. फिर हत्या करने व लाश को ठिकाने लगाने तथा किसी भी सूरत में पकड़े न जाने का प्लान बनाया.

संजय व उस के साथी रचना की हत्या करते, उस के पहले ही रचना 6 अगस्त, 2025 को बीमार पड़ गई. संजय ने उसे झांसी के प्राइवेट अस्पताल रामराजा में भरती कराया. रचना को ब्लीडिंग हो रही थी. 2 दिन में रचना ठीक हो गई. 8 अगस्त को संजय उसे डिस्चार्ज करा कर घर लाने पहुंचा तो वह बोली, ”यहीं से कोर्ट चलो. शादी करने के बाद ही घर में जाएंगे.’’ संजय ने उसे समझाया, लेकिन वह मान नहीं रही थी. संजय ने तब रचना को ठिकाने लगाने की ठान ली. उस ने संदीप से बात की और उसे अस्पताल बुला लिया. संदीप ने तब दोस्त प्रदीप से बात की और उसे तैयार रहने को कहा. उस ने तेजधार वाली कुल्हाड़ी का इंतजाम करने की भी बात प्रदीप से कही.

सब कुछ तय होने के बाद संजय ने रचना को 9 अगस्त, 2025 की शाम 5 बजे अस्पताल से डिस्चार्ज कराया. हालांकि वह डिस्चार्ज होने से मना कर रही थी, लेकिन जब संजय ने दूसरे रोज 10 अगस्त को शादी करने का वचन दिया तो वह मान गई. संजय की कार अस्पताल के बाहर ही खड़ी थी. वह कार की पीछे की सीट पर बैठ गई. उस के बगल में संजय भी बैठ गया. संदीप कार ले कर हाइवे पर आया तो संजय बोला, ”रचना, तुम इतने दिन अस्पताल में रही, तुम्हारा मन खराब हो गया होगा. थोड़ा घूम कर आते हैं.’’

लगभग एक घंटा सफर के बाद संजय मऊरानीपुर हाइवे पहुंचा. यहां प्रदीप अहिरवार उस का पहले से इंतजार कर रहा था. उस ने प्लास्टिक बोरी में लिपटी कुल्हाड़ी कार की डिक्की में रखी. फिर आगे की सीट पर संदीप के बगल में आ कर बैठ गया. इस के बाद यह लोग घूमते रहे. एक जगह रुक कर संजय ने शराब खरीदी और तीनों ने मिल कर कार के अंदर ही शराब पी. घूमते हुए सभी लहचूरा बांध पर कार ले कर पहुंचे. अब तक अंधेरा हो गया था. वहां सन्नाटा छाया था. प्रदीप कार में बैठी रचना से बोला, ”भाभी, तुम कितनी भी जिद कर लो, लेकिन संजय भैया तुम से शादी नहीं करेंगे.’’

इतना सुनते ही रचना भड़क गई और प्रदीप से बोली, ”तुम कौन होते हो यह सब कहने वाले?’’

रचना ने संजय से पूछा तो उस ने भी कह दिया कि प्रदीप ठीक बोल रहा है. वह उस से शादी नहीं कर सकता. तब रचना गुस्से से बोली, ”मैं क्या सिर्फ मजे लेने के लिए हूं. शहर वापस चलो. तुम सब को देख लूंगी. सब के दिमाग ठिकाने लग जाएंगे.’’

रचना की धमकी सुनते ही संदीप व प्रदीप ने उसे दबोच लिया और संजय ने कार में ही गला घोंट कर रचना को मार डाला. शव में पत्थर बांध कर लहचूरा डैम में फेंकने गए तो वहां पुलिस की गाड़ी खड़ी थी. कार में लाश थी, इसलिए तीनों वहां से भाग निकले. फिर वह लाश फेंकने खजूरी नदी पहुंचे, लेकिन वहां गार्ड था, इसलिए शव को नहीं फेंक सके. आधी रात को संजय साथियों के साथ किशोरपुरा गांव पहुंचा. गांव के बाहर सड़क किनारे उस ने कार रोकी. यहां खेत के पास कुआं था. तीनों ने मिल कर रचना के शव को कार से निकाला और कुएं में फेंकने को ले आए. लेकिन यहां से संजय का गांव महेबा मात्र 5 किलोमीटर दूर था, जिस से शव की पहचान हो सकती थी. अत: उन्होंने समूचा शव कुएं में नहीं फेंका.

शातिर अपराधी प्रदीप कार से कुल्हाड़ी ले आया, फिर रचना के शव के 7 टुकड़े किए. शव के अंगों को 4 बोरियों में भरा गया. बोरियां पानी में न उतराएं, इस के लिए बोरियों में ईंटपत्थर भी भर दिए. फिर बोरियों का मुंह बांध कर 3 बोरियां कुएं में फेंक दीं और चौथी बोरी जिस में सिर व पैर थे, कार में रख कर वहां से 7 किलोमीटर दूर रेवन गांव के पास लखेरी नदी के पुल पर आए. इस के बाद पुल के नीचे नदी में बोरी फेंक दी. शव को ठिकाने लगाने के बाद संजय ने कार से प्रदीप को मऊरानीपुर तथा संदीप को विजौली पहुंचाया, फिर खुद कार ले कर अपने गांव महेबा आ गया.

संजय को विश्वास था कि उस का अपराध उजागर नहीं होगा, लेकिन यह उस की भूल थी. भीषण बरसात के कारण कुएं का जलस्तर बढ़ा तो बोरियां उतराने लगीं. 13 अगस्त, 2025 की दोपहर किशोरपुरा गांव का विनोद पटेल चारा काटने खेत पर गया तो कुएं में बोरियां उतराती दिखीं और उन से दुर्गंध भी आ रही थी. उस ने सूचना पुलिस को दी. पूछताछ करने के बाद 23 अगस्त, 2025 को पुलिस ने आरोपी संजय पटेल, संदीप पटेल तथा प्रदीप अहिरवार को झांसी कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. UP New

 

Love story in Hindi: कालेज स्टूडेंट का खूनी प्रेमी

Love story in Hindi : कालेज में पढ़ाई के दौरान 19 साल की वर्षिता चेतन नाम के युवक को दिल दे बैठी थी. बाद में पता चला कि चेतन स्टेज थ्री का कैंसर पेशेंट है. इस के बावजूद हालात ऐसे बन गए कि वर्षिता के पेरेंट्स को कैंसर पीडि़त चेतन के साथ सगाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन शादी होने से पहले चेतन ने एक दिन न सिर्फ वर्षिता की हत्या कर दी, बल्कि उस की लाश पेट्रोल से जला दी. आखिर मंगेतर क्यों बना खूनी?

कर्नाटक के जिला चित्रदुर्ग के रहने वाले चेतन को पता चला कि उसे तीसरी स्टेज का कैंसर है. यह जानकारी होने के बाद 19 वर्षीय प्रेमिका वर्षिता उस से कटीकटी रहने लगी थी. इस बीच उस ने किसी अन्य युवक से संबंध बना लिए थे. बस, इसी बात से चेतन नाराज हो गया था और वर्षिता को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा था. उसी बीच जब वर्षिता के गर्भवती होने का पता चलने के बाद उस की चाची ने चेतन से वर्षिता से विवाह की बात की तो उस की नाराजगी और बढ़ गई. वह धोखेबाज और स्वार्थी वर्षिता से विवाह बिलकुल नहीं करना चाहता था.

जबकि वर्षिता के फेमिली वाले उस पर विवाह के लिए दबाव डाल रहे थे. इसलिए चेतन वर्षिता से बचने के उपाय सोचने लगा. वर्षिता से बचने का जब कोई उपाय चेतन को नहीं सूझा तो उस ने उस की हत्या की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत उस ने 14 अगस्त, 2025 को वर्षिता को फोन कर के कहीं घूमने चलने के लिए कहा. वर्षिता को पता था कि उस के पेरेंट्स उस के विवाह की बात चेतन से कर रहे हैं, इसलिए वह खुशीखुशी उस के साथ जाने के लिए राजी हो गई.

शाम को अपनी बाइक ले कर चेतन वर्षिता के हौस्टल पहुंचा तो वर्षिता ने वार्डन से घर जाने के बहाने छुट्टी ली और चेतन के साथ घूमने के लिए निकल पड़ी. चेतन अपनी योजना के अनुसार, पूरी तैयारी कर के आया था. शाम के धुंधलके में गोनूर के पास सुनसान स्थान देख कर एक ब्रिज के पास उस ने बाइक रोक दी. चेतन के मन में क्या है, यह तो वर्षिता को पता नहीं था. इसलिए जब चेतन ने बाइक रोकी तो उस ने हंसते हुए कहा, ”जंगल में मंगल मनाने का मन है क्या?’’

”वह तो बाद की बात है. मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम्हारे पेट में जो बच्चा है, वह किस का है? क्योंकि जब तुम्हें पता चला कि मुझे कैंसर है, तब तुम ने किसी दूसरे युवक से संबंध बना लिए थे.’’ चेतन ने कहा.

”तुम से किस ने कहा कि मैं ने दूसरे से संबंध बना लिए थे?’’ वर्षिता ने पूछा.

”हर चीज कहने से ही पता नहीं चलती. कुछ बातें हवा में फैल जाती हैं, जो अपने आप कानों तक पहुंच जाती हैं.’’ चेतन ने तल्खी से कहा, ”अब जब उस का पाप तुम्हारे पेट में पलने लगा है तो तुम्हारे फेमिली वाले तुम्हें मेरे गले में बांधना चाहते हैं. लेकिन अब मैं तुम से विवाह नहीं करने वाला.’’

”क्यों नहीं करोगे मुझ से विवाह? विवाह तो तुम्हें मुझ से हर हालत में करना होगा.’’ वर्षिता गुस्से में बोली.

”मैं और तुम से विवाह, कतई नहीं. मैं तुम से बिलकुल विवाह नहीं करूंगा. तुम्हें जो करना हो, कर लेना.’’ चेतन ने कहा.

”मैं तुम्हारे खिलाफ पुलिस में शिकायत करूंगी. तुम्हें जेल भिजवा दूंगी.’’ वर्षिता चिल्लाई.

तभी चेतन ने उसे धक्का देते हुए कहा, ”तू मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर मुझे जेल भिजवाएगी? मैं तुझे उस लायक ही नहीं छोड़ूंगा. मैं अभी तुझे खत्म कर दूंगा.’’

इतना कह कर चेतन लातघूंसों से वर्षिता की पिटाई करने लगा. जब वर्षिता की पिटाई करतेकरते उस का मन भर गया और वर्षिता अधमरी हो गई तो गला दबा कर उस की हत्या कर चेतन ने साथ लाए पेट्रोल को उस के ऊपर डाल कर आग लगा दी. इस के बाद अपनी बाइक ले कर वह चित्रदुर्ग अपने घर वापस आ गया. नैशनल हाइवे नंबर-48 पर गोनूर ब्रिज के नीचे विश्राम के लिए रुके 2 लोगों ने सड़क किनारे एक अधजली लाश देखी. इस बात की सूचना चित्रदुर्ग थाना पुलिस को दी गई. पुलिस ने लाश की पहचान की कोशिश की, लेकिन तत्काल उस की शिनाख्त नहीं हो सकी.

लेकिन जब पुलिस को पता चला कि सरकारी डिग्री कालेज में पढऩे वाली एक लड़की वर्षिता की गुमशुदगी हिरियूर थाने में दर्ज कराई गई है. तब चित्रदुर्ग पुलिस ने तुरंत वर्षिता के पेरेंट्स को बुला लिया. पेरेंट्स ने अस्पताल पहुंच कर वर्षिता के शरीर के टैटू से लाश की शिनाख्त की. वर्षिता की लाश मिलने के बाद दलित संगठनों ने हत्यारे को गिरफ्तार करने के लिए आंदोलन भी किया था. उन की मांग थी कि जब तक हत्यारे को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक वह अपना आंदोलन जारी रखेंगे. मृतका की मम्मी ज्योति थिप्पेस्वामी ने हत्यारे को जल्द गिरफ्तार कर फांसी की सजा दिए जाने की मांग की.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आरोपी चेतन को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मामले की जांच शुरू की. सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल लोकेशन, दोस्तों व रिश्तेदारों से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि वर्षिता और चेतन के बीच पिछले लगभग 10 महीने से प्रेम संबंध था. लोगों ने यह भी बताया कि चेतन ने उसे नौकरी का लालच दिया था. परेशानी की बात यह थी कि कोई चश्मदीद नहीं था, जो घटना की सटीक जानकारी देता. पर वर्षिता के हौस्टल से निकलने के बाद सीसीटीवी फुटेज में दोनों साथ जाते नजर आए थे. आगे चेतन चल रहा था और उस के पीछे वर्षिता चल रही थी.

हौस्टल से निकलने के बाद दोनों बाइक से जाते समय पेट्रोल पंप पर पहुंचे और वहां बाइक में पेट्रोल भराया था. वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में भी दोनों साथ नजर आए थे. इस के अलावा दोनों के मोबाइल की लोकेशन भी एक साथ मिली थी. यही नहीं, वर्षिता के हौस्टल से निकलने से पहले चेतन ने उस से फोन पर बात भी की थी. इस के बाद पुलिस ने वर्षिता के प्रेमी चेतन को गिरफ्तार कर लिया. उस ने चित्रदुर्ग के एसपी रंजीत कुमार बंडारू की मौजूदगी में वर्षिता की हत्याकांड की चौंकाने वाली कहानी बताई.

कर्नाटक के जिला चित्रदुर्ग के थाना हिरियूर के गांव कोवरहट्टी की रहने वाली 19 साल की वर्षिता चित्रदुर्ग के सरकारी डिग्री कालेज में सेकेंड ईयर की छात्रा थी और वहीं एससीएसटी हौस्टल में रहती थी. मम्मीपापा गांव में रह कर मेहनतमजदूरी करते थे. एकलौती संतान होने की वजह से वर्षिता ही अपने मम्मीपापा के जीवन का आधार थी. गरीब होने की वजह से वे यही सोचते थे कि बेटी पढ़लिख कर कुछ बन जाएगी तो कम से कम उन का बुढ़ापा तो सुख से कट जाएगा. इसीलिए गरीब होने के बावजूद वे उसे एक बेटे की तरह पढ़ालिखा रहे थे.

दूसरी ओर वर्षिता सरकार से मिलने वाली सहायता यानी स्कौलरशिप से अपनी पढ़ाई कर रही थी. मम्मीपापा तो किसी तरह अपना ही खर्च चला रहे थे, इसलिए उन से उसे कोई ज्यादा उम्मीद नहीं रहती थी. फिर भी वे मिलने वाली मजदूरी से कुछ न कुछ रुपए बचा कर वर्षिता को देते ही रहते थे, जबकि वह वर्षिता के लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान था. गरीबी में जीने वाली वर्षिता हमेशा मुसकराती रहती थी. लडख़ड़ाते सपनों और किताबों में उलझी होने के बावजूद उसे उम्मीद थी कि एक दिन वह अपने सपने पूरे करने में सफल जरूर होगी. पर उस के भीतर कुछ और भी था. मजबूर होने के

बाद भी वह किसी की चाह में डूब चुकी थी. इंस्टाग्राम पर मैसेज करतेकरते उस की धीरेधीरे चेतन नाम के युवक से दोस्ती हो गई थी. दोस्ती ने भरोसा दिया. फिर भरोसे ने उम्मीद जगाई और उसी उम्मीद में वह उस के प्यार के रंग में रंग गई. चेतन देखने में साधारण, पर सोच से बेहद चालाक और स्वार्थी था. वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करता था. वह उस कंपनी में भरती का काम देखता था. वह बातचीत में थोड़ा झिझकता था, क्योंकि उस पर जिम्मेदारियों का बोझ था. दोनों की जानपहचान इंस्टाग्राम से हुई थी. चेतन से जब वर्षिता ने अपनी परेशानी बता कर उस से नौकरी दिलाने को कहा तो उस ने कहा था कि वह उस के लिए जरूर कुछ करेगा. वह उसे कहीं न कहीं नौकरी जरूर दिला देगा.

इसी उम्मीद में वर्षिता ने उस का हाथ थाम लिया था. उन की बातचीत शाम की गपशप तक ही सीमित नहीं रही थी, दोनों ही एकदूसरे का भरोसा बनते गए और रिश्ते के तार गुंथते गए थे. वे एकदूसरे का इस तरह भरोसा बन गए थे कि उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.फिर जो सच सामने आया, वह बहुत ही दुखद था. पता चला कि चेतन को कैंसर हो गया है. डौक्टरों के अनुसार उसे तीसरी स्टेज का कैंसर था. चेतन की जिंदगी अब सवालों में घिर गई थी. उस का जीवन भरोसे का नहीं रह गया था. इसलिए उस पर भरोसा करना वर्षिता के लिए मुश्किल हो गया था. इलाज, खर्च, भविष्य के फैसले, ये सब चीजें अचानक रिश्ते के बीच आ गई थीं.

वर्षिता ने चेतन से दूरी बढ़ानी शुरू कर दी, जिस से चेतन को झटका सा लगा. दोनों ने शादी के बारे में सोच लिया था. ऐसे में चेतन को वर्षिता से प्यार और सहारे की उम्मीद थी. जबकि वह उस से दूर जाने लगी थी. दोनों की दुनिया में दरारें पडऩे लगी थीं.फिर वह खबर आई, जिस ने वर्षिता के परिवार को हिला कर रख दिया. पता चला कि वर्षिता गर्भवती थी. जब घर वालों को इस बात का पता चला तो सभी घबरा गए. बात इज्जत की थी, इसलिए घर वाले इज्जत बचाने के लिए वर्षिता और चेतन की शादी के बारे में सोचने ही नहीं लगे, बल्कि वर्षिता की चाची ने चेतन से वर्षिता से विवाह करने की बात की. उन्होंने कहा कि वर्षिता जिस स्थिति में है, उस में अब उसे उस से विवाह कर लेना चाहिए, वरना वे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

चेतन ने वर्षिता से विवाह के लिए मना करते हुए कहा कि वर्षिता का अब किसी अन्य युवक से संबंध है. इसलिए हो सकता है, यह बच्चा उसी का हो. इस के बाद चेतन वर्षिता से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा था. क्योंकि अब वह वर्षिता को धोखेबाज और स्वार्थी मानने लगा था और ऐसी लड़की से वह विवाह नहीं करना चाहता था. 14 अगस्त, 2025 को वर्षिता ने घर जाने के लिए हौस्टल से छुट्टी ली. पर वह गांव गई नहीं.  मम्मीपापा तो यही सोच रहे थे कि बेटी हौस्टल में होगी, लेकिन जब अगले दिन वर्षिता से फेमिली वालों की बात नहीं हुई तो फेमिली वालों को चिंता हुई. पापा ने हौस्टल में पता किया तो मालूम हुआ कि वह तो एक दिन पहले ही घर के लिए हौस्टल से छुट्टी ले कर निकल चुकी है.

यह सुन कर फेमिली वाले घबरा गए और वर्षिता के पापा थिप्पेस्वामी ने तुरंत हिरियूर थाने में बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. बाद में उन्हें बेटी की हत्या की सूचना मिली. पुलिस ने आरोपी चेतन से पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. Love story in Hindi

 

 

MP News: रिश्तों की बलिवेदी

MP News: मुकेश रिश्तेनातों को भूल कर अपनी ही सगी बहन पूजा को एकतरफा प्यार करने लगा था. पूजा को उस की हकीकत पता चली तो उसे दुत्कार कर वह उस से कन्नी काटने लगी. उसे क्या पता था कि भाई कसाई भी बन सकता है. एएसआई के.के. दुबे अपनी पत्नी माया व कुछ रिश्तेदारों के साथ शाम लगभग 5 बजे अपने क्वार्टर पहुंचे. उन का क्वार्टर थाना रांझी के प्रांगण में था. दरवाजा खुलवाने के लिए उन्होंने अपनी बेटी पूजा को आवाज दी. लेकिन घर के अंदर से न तो कोई जवाब मिला और न कोई हलचल ही हुई. वह पूजा को अकेली ही छोड़ कर गए थे, इसलिए सोचा कि वह सो रही होगी. उसे जगाने के लिए उन्होंने जोरजोर से दरवाजा पीटा, साथ ही उस का नाम ले कर आवाजें दीं.

क्वार्टर में जाने के लिए एक दरवाजा पीछे से भी था. जब आवाजें देने के बाद भी पूजा ने दरवाजा नहीं खेला तो के.के. दुबे क्वार्टर के पीछे गए. पिछला दरवाजा खुला देख कर उन्हें मामला कुछ गड़बड़ लगा. वह दबे पांव खुले दरवाजे के अंदर घुस कर कमरे में पहुंचे तो फर्श पर पूजा को लहूलुहान अवस्था में देख कर अवाक रह गए. आंखों से आंसू टपकने लगे. जब तक वह कमरे से बाहर निकले, तब तक पत्नी और रिश्तेदार भी पीछे वाले दरवाजे की तरफ आ गए थे. पति की आंखों में आंसू देख कर माया समझ गई कि कुछ न कुछ गड़बड़ है. उन्होंने पति से पूजा के बारे में पूछा तो उन की कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं हुई और वह जोरजोर से रोने लगे. यह देख कर माया भी घबरा गई. वह तुरंत कमरे में गई. उस के पीछेपीछे रिश्तेदार भी पहुंच गए.

उन के क्वार्टर से थाने का दफ्तर करीब 100 मीटर दूर था, इसलिए रोने की आवाजें दफ्तर तक पहुंच गईं. रोनेधोने की आवाज सुन कर थानाप्रभारी अनिल सिंह मौर्य के.के. दुबे के क्वार्टर पर पहुंच गए. उन्होंने जब सुना कि दुबे की बेटी की हत्या कर दी गई है तो उन के भी होश उड़ गए. कमरे का मुआयना करने के बाद उन्होंने अपने अधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया. एएसआई की बेटी की हत्या थाना प्रांगण स्थित उन के क्वार्टर में हुई थी, इसलिए यह खबर हैरान कर देने वाली थी. सूचना पा कर डीएम एस.एन. रूपला, एसपी हरिनारायणचारी मिश्रा, एएसपी अमरेंद्र सिंह, एसपी (सिटी) जे.पी. मिश्रा, एसपी सिटी (ओमती) आजम खान भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने फोरेंसिक और डाग स्क्वायड टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पूजा की लाश के पास ही एक टेप कटर और एक ईअर फोन पड़ा था. टेप कटर पर खून के धब्बे लगे थे. फोरेंसिक एक्सपर्ट ने टेप कटर और अन्य सामानों से फिंगर प्रिंट इकट्ठे किए. खोजी कुत्ता लाश सूंघ कर दरवाजे के पास जा कर रुक गया. उस से भी पुलिस को कोई खास सहायता नहीं मिली. बाद में पुलिस ने मौके से सुबूत जब्त कर लिए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का मुआयना किया तो उस की गरदन पर 3 घाव थे और उस की दोनों कलाइयों की नसें कटी हुई थी. छानबीन के बाद पुलिस ने मृतका पूजा की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल जबलपुर भेज दी.

श्वांस नली और दोनों कलाइयों की नसें कटी होने की वजह से कुछ पुलिस वाले इसे आत्महत्या का मामला मान रहे थे. जब कोई पढ़ालिखा व्यक्ति आत्महत्या करता है तो वह सुसाइड नोट लिख कर ऐसी जगह रख देता है, जिस पर सभी की नजर पड़े. पुलिस ने पूरा कमरा छान मारा, लेकिन कहीं भी सुसाइड नोट नहीं मिला. थानाप्रभारी अनिल सिंह मौर्य को यह मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का लग रहा था. इस की वजह यह थी कि कोई भी व्यक्ति धारदार हथियार से अपना गला नहीं काट सकता. पूजा के गले पर तो कटने के 3 निशान थे. इस के अलावा उस की कलाइयों की नसें भी काटी थीं.

उन्हें लग रहा था कि हत्यारे ने इस मामले को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की है. घर का कोई सामान भी चोरी नहीं हुआ था. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्यारे का मकसद केवल पूजा की हत्या करना था. हत्यारा कौन हो सकता है, इस का पता लगाने के लिए उन्होंने मृतका के पिता एएसआई के.के. दुबे से बात की. के.के. दुबे ने बताया कि उन की 5 बेटियां हैं, जिस में से 4 बेटियों की वह शादी कर चुके हैं. शादी के लिए सब से छोटी बेटी पूजा दुबे ही रह गई थी. वह एमए की पढ़ाई कर रही थी. थाने के सरकारी क्वार्टर में वह पत्नी माया दुबे और छोटी बेटी पूजा के साथ रहते थे. चूंकि पूजा भी शादी योग्य हो चुकी थी.

उस की पढ़ाई भी पूरी होने वाली थी इसलिए उन्होंने उस की शादी पनानगर के एक अच्छे परिवार के लड़के से तय कर दी थी. फरवरी, 2015 में उस की शादी होनी थी. लेकिन इस से पहले ही यह घटना घट गई. बतातेबताते दुबेजी की आंखें भर आईं. थानाप्रभारी ने उन्हें ढांढस बंधाया तो के.के. दुबे ने आगे बताया कि 29 जनवरी, 2015 को उन की सुसराल बूढ़ानगर में तेरहवीं का कार्यक्रम था. उस में भोपाल के रहने वाले उन के साढ़ू मुनेंद्र उपाध्याय को भी शामिल होना था. इसलिए 28 जनवरी को वह अपने बच्चों के साथ हमारे क्वार्टर पर आ गए थे. यहीं से हम सब 29 जनवरी को साढ़े 11 बजे बूढ़ानगर के लिए निकल गए. पूजा से हम ने चलने को कहा तो उस ने पढ़ाई की वजह से जाने से मना कर दिया. क्वार्टर थाने के प्रांगण में था, इसलिए उस के घर रुकने पर वह निश्चिंत थे.

दुबे के अनुसार तेरहवीं का कार्यक्रम खत्म होने के बाद उन्होंने रांझी के लिए वापसी की. शाम करीब 5 बजे वह अपने क्वार्टर पर आए. यहां आ कर दरवाजा खुलवाने के लिए उन्होंने पूजा को कई आवाजें दीं और दरवाजा खटखटाया. लेकिन घर के अंदर से न तो पूजा की कोई आवाज आई और न ही कोई हलचल सुनाई दी. तब वह पीछे के दरवाजे पर पहुंचे. पीछे वाला दरवाजा खुला पड़ा था. उन्होंने कमरे में जा कर देखा तो बैड के करीब फर्श पर पूजा की लहूलुहान लाश पड़ी थी.

के.के. दुबे ने बताया कि पूजा आत्महत्या नहीं कर सकती, क्योंकि वह बहुत हिम्मत वाली लड़की थी. पढ़नेलिखने में भी वह तेज थी. शादी तय हो जाने के बाद से वह काफी खुश थी. जब थानाप्रभारी ने उन से किसी पर शक वगैरह होने की बात पूछी तो उन्होंने अपने साढू मुनेंद्र के बेटे मुकेश उपाध्याय पर हल्का शक जाहिर किया. उन्होंने बताया कि शहपुरा और जबलपुर के थानों में तैनाती के दौरान मुकेश ने उन के यहां कुछ ज्यादा आनाजाना कर दिया था. उस दौरान उस ने पूजा के साथ कुछ ऐसी हरकतें कीं, जो बहनभाई के संबंधों में नहीं होनी चाहिए थीं. पूजा ने जब यह बात उन्हें बताई थी तो वह उस के साथ उपेक्षा भरा बर्ताव कर के उस से बेरुखी से पेश आने लगे. इस के बाद मुकेश पूजा के मोबाइल पर ऐसी बातें करने लगा जो पूजा को पसंद नहीं थीं.

मुकेश के बारबार फोन करने से पूजा परेशान हो उठी. उस ने मुकेश को डांटा और उसे फोन न करने की सख्त हिदायत दी. लेकिन मुकेश ने अपनी हरकतें बंद नहीं कीं. परेशान हो कर अंत में उन्होंने उस के मातापिता से शिकायत की. इस से वह और उग्र हो गया और फोन बदलबदल कर पूजा को धमकियां देने लगा. इसी दौरान दिसंबर, 2014 में उन्होंने पूजा की शादी तय कर दी थी. बाद में जनवरी, 2015 के प्रथम सप्ताह में उन्होंने पूजा की मंगनी भी कर दी थी. जब इस बात की जानकारी मुकेश को हुई तो वह 14 जनवरी को भोपाल से जबलपुर आ गया. वह घर न आ कर सीधे पूजा के कोचिंग सेंटर के बाहर पहुंच गया. जैसे ही वह कोचिंग सेंटर से बाहर निकली तो रास्ते में उस ने पूजा को रोक लिया और उस से विवाह करने की जिद करने लगा.

पूजा ने उसे झिड़क दिया और घर आ कर अपनी मां को मुकेश की हरकतों के बार में बताया. मुकेश की पागलपन की इन हरकतों से वे लोग बेहद परेशान थे, लेकिन लोकलाज के कारण चुप थे. मौसेरे भाई की एकतरफा प्यार की कहानी सुन कर थानाप्रभारी अनिल सिंह मौर्य ने मृतका पूजा व मुकेश के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई और मुकेश के नंबर को सर्विलांस पर लगा कर केस के खुलासे की कोशिश शुरू कर दी. मुकेश की काल डिटेल्स की समीक्षा से पता चला कि घटना के दौरान उस के फोन की लोकेशन जबलपुर और थाना रांझी के टावरों के पास थी. इस से पुलिस का शक मुकेश पर और गहरा गया.

थानाप्रभारी अनिल मौर्य ने दलबल के साथ पहली फरवरी, 2015 को कोहेफिजा, भोपाल स्थित मुकेश के घर छापा मारा. मुकेश घर पर ही मिल गया. तलाशी लेने पर उस के घर में खून लगी जैकेट मिली. वह पुलिस ने बरामद कर ली. पुलिस ने उसी समय उसे हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए थाना रांझी ले आई. थाने में मुकेश से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह पुलिस के सामने ज्यादा देर तक नहीं टिक सका. उस ने स्वीकार कर लिया कि पूजा की हत्या उसी ने की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली.

मुकेश मध्य प्रदेश के जिला भोपाल के कस्बा कोहेफिजा के रहने वाले मुनेंद्र उपाध्याय का बेटा था. मुनेंद्र उपाध्याय प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. मुकेश गलत साथियों की संगत में पड़ जाने की वजह से इंटरमीडिएट से आगे की पढ़ाई नहीं कर सका. वह दिन भर आवारागर्दी करता. मातापिता ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं सुधरा. करीब 7 साल पहले की बात है. मुकेश पहली बार परिवार वालों के साथ पूजा के घर गया था. जब उस ने पहली बार पूजा को देखा तो वह उसे भा गई. उस की सुंदरता के आकर्षण में वह ऐसा डूबा कि उस का दीवाना हो गया. मुकेश चूंकि पूजा का मौसेरा भाई था, इसलिए वह उस से घुलमिल कर बातें करती थी. पूजा के इसी अपनत्व भरे व्यवहार को मुकेश पूजा की चाहत समझ बैठा. इस तरह उस के दिल में पूजा के प्रति एकतरफा प्यार उमड़ने लगा.

इस के बाद वह अकसर कोई न कोई बहाना बना कर भोपाल से जबलपुर स्थित पूजा के घर आनेजाने लगा. बहन का बेटा होने की वजह से पूजा की मां माया उसे बड़े प्यारदुलार से रखती थी. मानसम्मान पा कर मुकेश अकसर पूजा के घर आने लगा. वह वहां कईकई दिन रुकता था. मुकेश की नजरें पूजा पर ही लगी रहती थीं, इसलिए वह जब भी वहां आता, पूजा के आसपास ही मंडराता रहता था. चूंकि मुकेश सगा रिश्तेदार था, इसलिए परिवार वाले उस पर किसी तरह का शक नहीं करते थे. धीरेधीरे वह पूजा के साथ अजीब तरह की हरकतें करने लगा. फिर भी पूजा मुकेश के अटपटे व्यवहार को उस का भोलापन मान कर नजरअंदाज करती रही. इसे मुकेश पूजा के प्यार करने की मूक सहमति समझने लगा.

समय के साथ मुकेश का प्यार विकृत हो कर भयावह होता जा रहा था. वहीं दूसरी ओर पूजा के दिल में मुकेश के प्रति भाई का प्यार पवित्र और सामान्य स्थिति में था. मुकेश एकतरफा प्यार में अंधा होता जा रहा था. इतना ही नहीं, वह गलतफहमी में पूजा को अपना जीवनसाथी बनाने के सतरंगी सपने देखने लगा. समय गुजरता गया. 6 साल कब गुजर गए, पता तक नहीं चल पाया. इधर पूजा एमए कर रही थी. शादी योग्य समझ कर उस के घर वालों ने उस का विवाह तय कर दिया. यह खबर सुन कर मुकेश की स्थिति कटे हुए वृक्ष जैसी हो गई. वह कई बार पूजा के घर बहाना बना कर आया, लेकिन समय न पा कर मुकेश पूजा से अपने दिल की बात नहीं कह पाया.

जब मुकेश को पता चला कि पूजा की मंगनी नए साल के पहले सप्ताह में होने वाली है तो वह विचलित हो उठा. उस ने मोबाइल से फोन कर के पूजा से पहली बार प्यार का इजहार करते हुए कहा, ‘‘पूजा, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं. मैं तुम से विवाह करना चाहता हूं. अगर तुम ने मुझ से विवाह न किया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा.’’

‘‘मुकेश, यह तुम क्या कह रहे हो. लगता है तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. तुम मेरे मौसेरे भाई हो. आइंदा ऐसी गंदी सोच वाली बात मुझ से न करना.’’ डांटते हुए पूजा बोली.

‘‘पूजा, तुम अच्छी तरह सुन लो कि मैं तुम्हें जान से ज्यादा चाहता हूं और तुम्हें अपना मान चुका हूं. मैं ने तय कर लिया है कि शादी तुम से ही करूंगा. अगर तुम ने मुझे धोखा दिया तो समझ लो परिणाम गंभीर होंगे.’’ चेतावनी देते हुए मुकेश बोला, ‘‘यह याद रखो पूजा, अगर तुम मेरी न हुई तो मैं तुम्हें किसी और की भी नहीं बनने दूंगा. भले ही नतीजा कुछ भी हो.’’

‘‘मुकेश भइया तुम पागल हो चुके हो. कहीं भाईबहन में शादी होती है?’’ कह कर पूजा ने फोन काट दिया.

दूसरी तरफ मुकेश पूजा की बेरुखी को देख कर गहरे तनाव में आ गया. उसे पूरी रात नींद नहीं आई. उस के मनमस्तिष्क में पूजा की ही तस्वीर घूमती रही. सुबह उठा तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. तनाव से वह बेहद खामोश एवं गंभीर हो गया. मुकेश की खामोशी को घरपरिवार वाले समझ नहीं पा रहे थे. वह अकसर गुमशुम रहने लगा. उधर मुकेश की बहकीबहकी बातें सुन कर पूजा बहुत परेशान हो उठी. उस ने मुकेश के मोबाइल की काल को रिसीव करना बंद कर दिया, जिस से मुकेश और बेचैन हो गया. पूजा की मंगनी होने की बात सुन कर मुकेश 14 जनवरी, 2015 को भोपाल से जबलपुर आ गया और जब पूजा अपने कोचिंग सेंटर से बाहर निकली तो उस ने पूजा को रोक लिया.

उस ने पूजा के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘पूजा, मैं तुम्हें जान से ज्यादा चाहता हूं. तुम किसी और से विवाह न कर के मुझ से कर लो. हम दोनों के बीच जो भी रोड़े आएंगे, हम उन से निपट लेंगे. लेकिन तुम मेरी चाहत और प्यार को धोखा मत दो.’’

‘‘मुकेश, मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ रही हूं, लेकिन हम दोनों के बीच भाईबहन का पवित्र रिश्ता है. बेहतर यही है कि तुम होश में आ जाओ. अगर तुम मुझे ज्यादा परेशान करोगे तो मैं तुम्हारी शिकायत मौसाजी से कर दूंगी.’’ पूजा उसे सख्त हिदायत देते हुए बोली. घर लौट कर पूजा ने यह बात अपनी मां माया दुबे को बताई तो उन्होंने उसी समय अपनी बहन और बहनोई को फोन कर के उन से मुकेश की शिकायत कर दी. उस ने कहा कि मुकेश को समझाओ. उस की हरकतों से पूजा की शादी में व्यवधान पडे़गा और अगर शादी के बाद किसी तरह यह बात उस के ससुराल वालों को मालूम हो गई तो उस का पारिवारिक जीवन नरक हो जाएगा.

मुकेश के घर वालों ने उसे डांटा. इस से वह आगबबूला हो गया. उस ने पूजा की हत्या करने की ठान ली. संयोग से मुकेश को पता चला कि 29 जनवरी, 2015 को उस के मातापिता मौसामौसी के साथ बूढ़ानगर स्थित ननिहाल में तेरहवीं कार्यक्रम में जाएंगे. पूजा की हत्या करने का उस के लिए यह अच्छा मौका था. 28 जरवरी, 2015 को मुकेश के मातापिता भोपाल से पूजा के घर के लिए चल दिए. मुकेश भी उन्हीं के पीछेपीछे रवाना हो गया. उसी दिन देर रात वे लोग पूजा के घर पहुंच गए. जबकि मुकेश जबलपुर स्टेशन पर पहुंच गया. अपनी योजना के मुताबिक वह पूरी रात स्टेशन पर ही रहा. 29 जनवरी की सुबह 10 बजे मुकेश रांझी पहुंच गया और थाना रांझी से कुछ दूर खड़े हो कर अपने और पूजा के मातापिता के घर से निकलने का इंतजार करने लगा.

वे लोग साढे़ 11 बजे के लगभग थाने के क्वार्टर के बाहर आ गए तो कुछ देर बाद वह पूजा के घर पहुंच गया. उन के जाने के बाद उस ने निश्चिंत हो कर दरवाजा खटखटाया. जैसे ही पूजा ने दरवाजा खोला, वह अंदर घुस गया. फुरती से अंदर घुस कर उस ने दरवाजा बंद कर लिया. फिर वह पूजा को पकड़ कर पीछे वाले कमरे में ले गया और उस से शादी करने के लिए उस पर घर से भाग चलने का दबाव बनाने लगा. पूजा मुकेश पर बिगड़ी और पिता को उस की बातें बताने की धमकी दे कर बैड पर पड़े अपना मोबाइल उठाने के लिए लपकी.

पूजा की हरकत देख कर मुकेश ने जेब से टेप कटर निकाला और पूजा की गरदन को 3 बार रेत दिया. वह लहूलुहान हो कर फर्श पर गिर गई. उस के बाद पूजा की हत्या को आत्महत्या के रूप में दर्शाने के लिए उस ने उस के दोनों हाथों की कलाई की नसों को काट दिया और कमरे में उसे तड़पता छोड़ कर चुपचाप पीछे वाले दरवाजे से निकल गया. उस की जैकेट पर खून के छींटे आ गए थे, इसलिए उस ने जैकेट उतार कर हाथ में पकड़ ली थी. फिर वह अपने घर भोपाल आ गया. मुकेश ने थानाप्रभारी अनिल सिंह मौर्य को बताया कि पहले पूजा भी उसे खूब चाहती थी. जब भी उस से मिलताजुलता था, वह उस से बड़े प्यार से बातें करती थी.

लेकिन शादी तय हो जाने के बाद वह पूरी तरह बदल गई और उस से  नफरत करने लगी थी. उस ने पूजा को अपने साथ शादी करने के लिए बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं मानी तो मजबूर हो कर उस ने उस की हत्या कर डाली. मुकेश से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 302, 450 के तहत गिरफ्तार कर 2 फरवरी, 2015 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल जबलपुर भेज दिया. एसपी हरिनारायणचारी मिश्रा ने इस मामले का खुलासा करने वाली टीम को बधाई देते हुए उन्हें पुरस्कृत किया. MP News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित