ये प्यार था या कुछ और था – भाग 4

जिस तरह अचानक आलोक ने रिंकी की मांग भर दी थी, वह हैरान रह गई. एकबारगी उस की समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो गया? पल भर बाद वह गुस्से में बोली, ‘‘यह कैसा बेहूदा मजाक है. मुझे तुम्हारी यह हरकत बिलकुल अच्छी नहीं लगी. तुम ने जो किया, वह ठीक नहीं है.’’

रिंकी को इस तरह नाराज देख कर आलोक उसे मनाते हुए बोला, ‘‘रिंकी, यह बेहूदा मजाक नहीं, सच्चे प्यार की निशानी है. तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं.’’

इस के बाद आलोक न जाने और क्या क्या कहता रहा. आलोक ने रिंकी को अपनी इमोशनली ब्लैकमेलिंग वाली बातों से इस तरह इमोशनल कर दिया कि उसे लगा कि आलोक सचमुच उस का सहारा बन सकता है. उस की बातों का उस ने कोई जवाब नहीं दिया तो आलोक उसे झकझोरते हुए बोला, ‘‘क्या सोच रही हो रिंकी, लगता है तुम्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है? अब तुम्हीं बताओ, तुम्हें भरोसा दिलाने के लिए मैं क्या करूं? अब एक ही उपाय बचा है कि अपने पेट में चाकू घुसेड़ लूं.’’

यह कह कर आलोक एकदम से उठा और रिंकी का सब्जी काटने वाला चाकू उठा कर जैसे ही हाथों को ऊपर उठाया, रिंकी ने उस के हाथ से चाकू छीन कर दूर फेंक दिया और उसे सीने से लग कर बोली, ‘‘आप के बाद इस तरह की बात मुंह से भी मत निकालना.’’

इस के बाद रिंकी ने खाना बनाया तो दोनों ने एक साथ खाना ही नहीं खाया, बल्कि वह रात आलोक ने रिंकी के साथ ही बिताई. इस के बाद तो जैसे रास्ता ही खुल गया. आलोक का जब मन होता, रिंकी से मिलने उस के कमरे पर पहुंच जाता. पैसे की उस के पास कमी नहीं थी, वह रिंकी को शहर में घुमाता, होटल में खाना खिलाता और रात उसी के कमरे पर बिताता. यही नहीं, वह कहीं बाहर जाता तो वहां भी रिंकी को साथ ले जाता. वह जिस होटल में ठहरता, वहां रिंकी को पत्नी के रूप में दर्ज कराता.

रिंकी के अनुसार, आलोक 9 महीने पटना और 3 महीने गया में रहा तो उसे अपने साथ रखा. जब भी कोई आलोक से उस के बारे में पूछता, वह उस का परिचय अपनी पत्नी के रूप में कराता था. गया के बेलागंज स्थित काली मंदिर में आलोक ने देवी के सामने एक बार फिर उस की मांग में सिंदूर भर कर उस के गले में माला डाल कर शादी की थी.

धीरे धीरे दोनों को साथ रहते डेढ़ साल का समय बीत गया. रिंकी आलोक के साथ लिव इन रिलेशन में इस विश्वास के साथ रहती रही कि एक न एक दिन आलोक घरवालों के सामने उसे पत्नी बना कर ले जाएगा. आलोक के साथ जगह जगह घूमना और मौजमस्ती करना उसे भी अच्छा लग रहा था. इस बीच रिंकी 2 बार गर्भवती भी हुई, लेकिन दोनों ही बार आलोक ने उस का गर्भपात करा दिया. पहली बार तो उस ने आसानी से गर्भपात करा दिया था, लेकिन दूसरी बार वह गर्भपात नहीं कराना चाहती थी. तब आलोक ने कसम दिला कर उस का गर्भपात कराया था.

आलोक ने जब रिंकी का दूसरी बार गर्भपात कराया तो रिंकी को लगा कि आलोक उसे बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है. रिंकी की इस सोच के पीछे की मुख्य वजह यह थी कि आलोक उसे अब तक अपने घर नहीं ले गया था. रिंकी जब कभी घर चलने और मांबाप से मिलाने को कहती, वह ऐसा बहाना करता कि उसे चुप हो जाना पड़ता.

रिंकी इसी कशमकश से जूझ रही थी कि अचानक आलोक की जिंदगी में एक नया मोड़ आ गया. संयोग से उसे सीआरपीएफ में क्लर्क की नौकरी मिल गई. टे्रनिंग के बाद उस की पहली पोस्टिंग हरियाणा के गुड़गांव में हुई. आलोक को नौकरी मिलने की खुशी रिंकी को भी थी. उस का सोचना था कि पोस्टिंग होते ही आलोक उसे अपने पास बुला लेगा. लेकिन नौकरी मिलते ही आलोक एकदम से बदल गया. वह रिंकी से कटने लगा. अब वह रिंकी को फोन भी नहीं करता था.

रिंकी को समझते देर नहीं लगी कि आलोक बदल गया है. अब वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता है. पोस्टिंग के बाद आलोक जहानाबाद पहुंचा तो रिंकी ने उस से मिल कर कहा, ‘‘अब तो तुम्हें नौकरी ही नहीं मिल गई, बल्कि सरकारी क्वार्टर भी मिल गया है. इसलिए मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी.’’

आलोक सचमुच उस से पिंड छुड़ाना चाहता था, इसलिए रिंकी को पट्टी पढ़ा कर लापता हो गया. उस के अचानक लापता होने से रिंकी समझ गई कि आलोक उसे बिना बताए गुड़गांव चला गया है. वहां का पता पिंकी के पास था ही, इसलिए उस के पीछेपीछे वह भी गुड़गांव आ गई.

रिंकी के गुड़गांव पहुंचने की जानकारी आलोक को हुई तो वह परेशान हो उठा. वह खुद ही रिंकी से मिला और उसे समझाया कि वह यहां कोई बखेड़ा न खड़ा करे. इस के बाद उस ने रिंकी को ले जा कर एक लौज में यह कह कर ठहरा दिया कि वह व्यवस्था कर के उसे अपने कमरे पर ले जाएगा. लेकिन 2-3 दिन बीत जाने पर भी आलोक उसे अपने कमरे पर नहीं ले गया तो चौथे दिन रिंकी खुद ही सीआरपीएफ कैंप कार्यालय जा कर वरिष्ठ अधिकारी से मिली.

उस ने उस अधिकारी से बताया कि वह यहां औफिस में काम करने वाले आलोक भारती की पत्नी है. उस ने उसे अपने साथ रखने के बजाय एक लौज में ठहरा दिया है. अधिकारी ने आलोक को बुला कर पूछताछ की तो उस ने रिंकी को पहचानने से मना कर दिया.

रिंकी के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. वह वहां से तो चुपचाप चली आई, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. वह गुड़गांव के थाना बादलपुर जा पहुंची. उस ने सारी बात थानाप्रभारी दिलबाग सिंह को बताई तो वह रिंकी को साथ ले कर सीआरपीएफ कैंप कार्यालय पहुंचे और आलोक भारती से थाने चलने को कहा.

खुद को फंसते देख आलोक घबरा गया. उस ने सीआरपीएफ के अधिकारियों और थानाप्रभारी के सामने वादा किया कि वह 1 महीने के अंदर रिंकी से शादी कर लेगा. सीआरपीएफ अधिकारियों ने आलोक को रिंकी से शादी करने के लिए एक महीने की छुट्टी भी दे दी.

आलोक ने रिंकी को समझाबुझा कर जहानाबाद भेज दिया और वादा किया कि 4 दिनों बाद वह घर आ जाएगा. इस के बाद वह वहीं घर वालों से कह कर सब के सामने पूरे रस्मोरिवाज के साथ उस से शादी करेगा.  रिंकी आलोक की बातों पर विश्वास कर के जहानाबाद आ गई. 4 दिनों की कौन कहे, धीरेधीरे एक साल बीत गया, आलोक जहानाबाद नहीं पहुंचा.

रिंकी ने आलोक को पाने के लिए न्याय की शरण ली है. उधर आलोक का कहना है कि वह रिंकी को इसलिए जानता पहचानता है क्योंकि जहानाबाद में जहां उस का घर है, उस के ठीक सामने स्थित नर्सिंगहोम में वह नर्स के रूप में काम किया करती थी.

अकसर घर से निकलते या घर में जाते समय वह दिख जाती थी. दोनों के बीच बातचीत भी होती थी, एकदो बार उस ने मुसीबत के समय उस की आर्थिक मदद भी की थी, इस से ज्यादा उस का उस से कोई संबंध नहीं है. रिंकी उस पर झूठा आरोप लगा कर उसे बदनाम कर रही है. क्योंकि उस ने उसे सरकारी अस्पताल में नर्स के रूप में काम दिलाने की बात कही थी, जो किन्हीं कारणों से पूरा नहीं हो सका.

(प्रस्तुत कथा रिंकी के बयान और मीडिया सूत्रों से प्राप्त जानकारी पर आधारित)

खतरनाक है रिश्तों की मर्यादा तोड़ना – भाग 1

मार्निंग वौक पर निकले कुछ लोगों ने हाईवे के किनारे एक महिला की लाश पड़ी देखी तो उन्होंने  इस बात की सूचना थाना नौबस्ता पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां काफी लोग इकट्ठा थे, लेकिन उन में से कोई भी महिला की शिनाख्त नहीं कर सका.

मृतका की उम्र 35 साल के आसपास थी. वह साड़ीब्लाउज और पेटीकोट पहने थी. उस के सिर पर गंभीर चोट लगी थी, चेहरा किसी नुकीली चीज से गोदा गया था. गले में भी साड़ी का फंदा पड़ा था.

लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए कानपुर स्थित लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया. लेकिन घटनास्थल की काररवाई में पुलिस ने काफी समय बरबाद कर दिया था, इसलिए देर हो जाने की वजह से उस दिन लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका. यह 5 जुलाई, 2014 की बात थी.

अगले दिन यानी 6 जुलाई को कानपुर से निकलने वाले समाचार पत्रों में जब एक महिला का शव नौबस्ता में हाईवे पर मिलने का समाचार छपा तो थाना चकेरी के मोहल्ला रामपुर (श्यामनगर) के रहने वाले शिवचरन सिंह भदौरिया को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि उस की पत्नी नीलम उर्फ पिंकी पिछले 2 दिनों से गायब थी. इस बीच उस ने अपने हिसाब से उस की काफी खोजबीन की थी, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला था.

अखबार में समाचार पढ़ने के बाद शिवचरन सिंह अपने दोनों बेटों, सचिन और शिवम को साथ ले कर थाना नौबस्ता पहुंचा और थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह को बताया कि उस की पत्नी परसों से गायब है. वह हाईवे के किनारे मिली महिला की लाश को देखना चाहता है.

चूंकि शव पोस्टमार्टम हाऊस में रखा था, इसलिए थानाप्रभारी ने उन लोगों को एक सिपाही के साथ वहां भेज दिया. शिवचरन सिंह बेटों के साथ वहां पहुंचा तो लाश देखते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा. क्योंकि वह लाश उस की पत्नी नीलम की थी. उस के दोनों बेटे सचिन और शिवम भी मां की लाश देख कर रोने लगे थे.

इस तरह हाईवे के किनारे मिले महिला के शव की शिनाख्त हो गई थी. लाश की शिनाख्त कर शिवचरन सिंह बेटों के साथ थाने आ गए. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने शिवचरन से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी नीलम 4 जुलाई की शाम 4 बजे से गायब है. घर से निकलते समय उस ने बच्चों से कहा था कि वह उन की स्कूली ड्रेस लेने दर्जी के यहां जा रही है. उधर से ही वह घर का सामान भी ले आएगी. लेकिन वह गई तो लौट कर नहीं आई.

आज सुबह उस ने अखबार में महिला के शव मिलने की खबर पढ़ी तो वह थाने आया और पोस्टमार्टम हाउस जा कर देखी तो पता चला कि उस की तो हत्या हो चुकी है.

‘‘हत्या किस ने की होगी, इस बारे में तुम कुछ बता सकते हो?’’ थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, हमें संदेह नहीं, पूरा विश्वास है कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है. वह हमारे बड़े भाई का चचेरा साला है. उस का हमारे घर बहुत ज्यादा आनाजाना था. उस के नीलम से अवैध संबंध थे. पीछा छुड़ाने के लिए उसी ने उस की हत्या की है. वह अपने परिवार के साथ बर्रा में रहता है. इन दिनों उस की तैनाती लखनऊ में है.’’

शिवचरन सिंह ने जैसे ही कहा कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है, थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने उसे डांटा, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है. नीलम की हत्या नहीं हुई है. मुझे लगता है, उस की मौत एक्सीडेंट से हुई है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आएगी तो पता चल जाएगा कि वह कैसे मरी है.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नीलम की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस की मौत सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. उस के चेहरे को चाकू की नोक से गोदा गया था. गला भी साड़ी से कसा गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो गया था कि नीलम की हत्या हुई थी. इस के बावजूद थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस का मतलब था कि जगराम सिंह ने सिफारिश कर दी थी. विभागीय मामला था, इसलिए थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह उस का पक्ष ले रहे थे.

हत्या के इस मामले को दबाने की खबर जब स्थानीय अखबारों में छपी तो आईजी आशुतोष पांडेय ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने इस मामले को ले कर थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह से 2 बार बात की, लेकिन उस ने उन्हें कोई उचित जवाब नहीं दिया. इस के बाद उन्होंने क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश को इस मामले की जांच कर के तुरंत रिपोर्ट देने को कहा.

क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश ने उन्हें जो रिपोर्ट दी, उस में सबइंसपेक्टर जगराम सिंह पर हत्या का संदेह व्यक्त किया गया था. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने जो किया था, उस से पुलिस की छवि धूमिल हुई थी, इसलिए आईजी आशुतोष पांडेय ने उन्हें लाइनहाजिर कर दिया और खुद 10 जुलाई को थाना नौबस्ता जा पहुंचे. उन्होंने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को थाने बुला कर पूछताछ की और उसे साथ ले कर घटनास्थल का निरीक्षण भी किया.

मृतका नीलम और जगराम सिंह के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस में नीलम के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन जगराम सिंह का ही आया था. दोनों के बीच बात भी हुई थी. इस के बाद नीलम का फोन बंद हो गया था. नीलम के मोबाइल फोन की अंतिम लोकेशन थाना चकेरी क्षेत्र के श्यामनगर की थी. काल डिटेल्स से पता चला कि जगराम और नीलम की रोजाना दिन में कई बार बात होती थी. कभीकभी दोनों की घंटों बातें होती थीं.

सारे सुबूत जुटा कर आईजी आशुतोष पांडेय ने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह से नीलम की हत्या के बारे में पूछा तो उसने स्वीकार कर लिया कि साले की मदद से उसी ने नीलम की हत्या की थी और लाश ले जा कर नौबस्ता में हाईवे के किनारे फेंक दी थी.

ये प्यार था या कुछ और था – भाग 3

रिंकी ने भले ही आलोक से दोस्ती के लिए मना कर दिया था, लेकिन आलोक निराश नहीं हुआ था. अब वह रोजाना नर्सिंग होम के गेट पर खड़े हो कर रिंकी का इंतजार करने लगा. लेकिन रिंकी उस की ओर देखे बगैर आगे बढ़ जाती थी. रिंकी की यह बेरुखी उसे काफी पीड़ा पहुंचा रही थी. जब काफी दिन गुजर गए और रिंकी ने उसे लिफ्ट नहीं दी तो रिंकी को अपने जाल में फांसने के लिए उस ने एक योजना बना डाली.

डिलीवरी के केस के चलते एक दिन रिंकी कुमारी नर्सिंग होम से कुछ देर से निकली. देर हो जाने की वजह से उस का खाना बनाने का मन नहीं हो रहा था, इसलिए रास्ते में पड़ने वाले एक होटल में उस ने खाना खाया. इस तरह उसे और देर हो गई. काम की अधिकता की वजह से वह काफी थक गई थी, इसलिए कमरे पर पहुंच कर उस ने कपड़े बदले और आराम करने के लिए लेट गई. लेटते ही उस की आंखें बंद होने लगीं. तभी उस के कानों में दरवाजा थपथपाने की आवाज पड़ी. अर्द्धनिद्रा में वह थी ही, इसलिए उस ने बाहर से किस ने दरवाजा खटाखटाया है, यह पूछे बगैर ही दरवाजा खोल दिया.

रिंकी के दरवाजा खोलते ही गुपचुप तरीके से पीछा कर रहे आलोक ने फुरती से अंदर आ कर इस तरह दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी कि रिंकी समझ ही नहीं पाई. जब तक मामला उस की समझ में आया, आलोेक अंदर आ चुका था. उतनी रात को आलोक को कमरे के अंदर देख कर रिंकी सहम उठी.

उस ने डांटने वाले अंदाज में कहा, ‘‘तुम, यहां क्यों आ गए? तुरंत मेरे कमरे से बाहर निकल जाओ, वरना मैं शोर मचा कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर लूंगी. उस के बाद तुम्हारी क्या गति होगी, तुम कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘यार, तुम बेकार ही गुस्सा करती हो. हम प्यार करने के मूड में आए हैं और तुम मुझे दुत्कार रही हो. प्यार करने वाले से प्यार से बात की जाती है, इस तरह भगाया नहीं जाता.’’ आलोक ने प्यार से कहा.

आलोक के यह कहने पर रिंकी का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने आगे बढ़ कर आलोक का गिरेबान पकड़ कर दरवाजे की ओर धकेलते हुए कहा, ‘‘सीधी तरह से यहां से जाते हो या बुलाऊं पड़ोसियों को?’’

रिंकी के इस गुस्से पर आलोक सहम उठा. उस ने झटके से अपना गिरेबान छुड़ाया और जेब से चाकू निकाल कर बोला, ‘‘अब एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. यह चाकू देख रही हो न, यह किसी के साथ कोई रियायत नहीं करता. तुम्हारे इसी कमरे में यह चाकू अपने पेट में घुसेड़ लूंगा. उस के बाद मेरी हत्या के आरोप में तुम्हें जेल जाना पड़ेगा. तुम लाख सफाई दोगी, लेकिन तुम्हारी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा. तुम्हें तो पता ही है कि मैं तुम्हारे प्यार में पागल हूं. पागल प्रेमी के लिए ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है.’’

रिंकी हाथ जोड़ कर कातर स्वर में बोली, ‘‘मैं तो वैसे ही बेबस और लाचार हूं. क्यों मेरी बेबसी का फायदा उठा रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारी लाचारी का फायदा नहीं उठा रहा. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. मैं तुम से शादी करूंगा रिंकी.’’ आलोक ने कहा.

‘‘यह सब कहने की बातें हैं. आज तुम प्यार की बात कह कर मुझ से शादी करने का वादा कर रहे हो. मुझे पाने के बाद अपना यह वादा भूल जाओगे. तुम्हारे घर वाले मुझ जैसी लाचार मजबूर लड़की से तुम्हारी शादी क्यों करेंगे? ये सब कहने की बातें हैं. प्यार का नाटक कर के मेरा सब लूट लोगे, उस के बाद छोड़ कर चल दोगे.’’

‘‘रिंकी, मैं ने तुम्हारे बारे में सब पता कर लिया है. मुझे तुम्हारी पिछली जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं है. तुम अपने भविष्य के बारे में सोचो. नर्स की इस मामूली सी नौकरी में यह जीवन बीतने वाला नहीं है. अकेली औरत का इस समाज में जीना आसान नहीं है. मेरा अपना मकान है ही, मेरे घर में भी किसी चीज की कमी नहीं है. मेरे पिता भी मेरी खुशियों में आडे़ नहीं आएंगे. मैं अपनी बात कह कर जा रहा हूं. तुम मेरी बातों पर गौर करना. मैं तुम से झूठ नहीं बोल रहा हूं, यह याद रखना.’’

कह कर आलोक ने दरवाजा खोला और निकलने से पहले उस ने रिंकी के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर उस के माथे को चूम कर कहा, ‘‘तुम ठंडे दिमाग से विचार करना. मैं तुम्हें सोचने के लिए पूरे 15 दिन दे रहा हूं. इस के बाद तुम अपना फैसला बता देना. अगर तुम नहीं चाहोगी तो मैं तुम्हारे रास्ते में कभी नहीं आऊंगा.’’

आलोक के जाने के बाद रिंकी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर बैठ गई. अब उस की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी. वह अपनी जिंदगी के बारे में सोचने लगी. आलोक ने उसे ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया था, जहां से उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह किधर जाए. उसे एक मजबूत सहारे की जरूरत तो थी ही. अगर आलोक अपने वादे पर खरा उतरता है तो वह मजबूत सहारा बन सकता है. यही सब सोचते हुए आखिर रिंकी को नींद आ ही गई.

रिंकी सोई भले देर से थी, लेकिन सुबह अपने समय पर ही उठी. घर के सारे काम निपटा कर वह समय से नर्सिंग होम पहुंच गई. लेकिन उस पूरे दिन उस का मन काम में नहीं लगा. उसे आलोक के किए वादे याद आते रहे. इसी सोचविचार में एकएक कर के 15 दिन बीत गए. 16वें दिन नर्सिंग होम की अपनी ड्यूटी समाप्त कर के रिंकी कमरे पर पहुंची. वह खाना बनाने की तैयारी कर रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

रिंकी को समझते देर नहीं लगी कि कौन होगा. उस ने दरवाजा खोला, सचमुच बाहर आलोक खड़ा था. रिंकी कुछ कहती या पूछती, उस के पहले ही वह पूरे अधिकार के साथ अंदर आ गया और दरवाजा बंद कर लिया.

इस के बाद चारपाई पर आराम से बैठ कर बोला, ‘‘मैं आज तुम्हारा जवाब जानने आया हूं. तुम अपना निर्णय सुनाओ, उस के पहले एक बार फिर मैं तुम्हें बता दूं कि मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. तुम्हारे मना करने से मैं तुम्हारे रास्ते से तो हट जाऊंगा, लेकिन शायद जी न पाऊं. इसलिए जो भी जवाब देना, खूब सोचविचार कर देना. क्योंकि अब मेरी यह जिंदगी तुम्हारे इसी निर्णय पर निर्भर है.’’

आलोक रिंकी को पूरी तरह इमोशनली ब्लैकमेल कर रहा था. यह बात रिंकी की समझ में नहीं आई. वह इस सोच में डूबी थी कि उसे क्या जवाब दे. वह नासमझ थी, तभी उस के पिता ने उस का विवाह उम्र में दोगुने आदमी के साथ कर दिया था. वह उस के प्रति समर्पित थी, इस के बावजूद वह उसे ठीक से नहीं रख सका. 22 साल की इस छोटी सी जिंदगी में वह परेशानियां ही परेशानियां उठाती आ रही थी. इस स्थिति में वह आलोक पर कैसे भरोसा करे.

रिंकी ने कोई जवाब नहीं दिया तो आलोक ने उस का एक हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘अभी पढ़ना चाहती हो न? तुम पढ़ो. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. तम्हें शायद पता नहीं है कि मेरा छोटा भाई गूंगाबहरा है. इसलिए मैं अपने मांबाप का लाडला हूं. मैं अपने घर में जो कहता हूं, उसे मान लिया जाता है. मैं ने मास मीडिया की डिग्री ली है, जल्दी ही मुझे कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. अगर मेरे घर वाले तुम्हें नहीं भी अपनाएंगे तो अपने पैरों पर खड़े होने के बाद मैं तुम्हें अपने साथ रखूंगा.’’

इतना कह कर आलोक ने जेब से सिंदूर की डिब्बी निकाली और उस में से एक चुटकी सिंदूर निकाल कर रिंकी की मांग भर दी.

ये प्यार था या कुछ और था – भाग 2

रिंकी को पता था कि उस के ससुर विघ्नेश्वरदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. अब उन का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा था. इसलिए वह स्वयं ही कुछ करने के बारे में सोचने लगी. पहले तो उस ने दलितों के लिए सरकार से मिलने वाले लाभ के बारे में पता किया. इस के बाद उस ने जहानाबाद के अपने उसी रिश्तेदार की मदद से इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत मिलने वाले आवास के लिए आवेदन किया. महादलित समाज की गरीब महिला होने की वजह से रिंकी को जल्दी ही इंदिरा आवास योजना के तहत एक घर मिल गया.

इंदिरा आवास योजना के तहत रिंकी कुमारी को घर मिलने की जानकारी कोलकाता में रह रहे अशोक को हुई तो यह बात उसे अच्छी नहीं लगी. इस की वजह यह थी कि वह घर रिंकी ने अपने नाम से एलाट कराया था. उस का कहना था कि उसे यह मकान पिता विघ्नेश्वरदास या फिर उस के नाम से एलाट कराना चाहिए था. इस बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार भी हुई. इसी के बाद दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं, जो समय के साथ बढ़ती ही गईं.

फिर एक समय ऐसा भी आ गया कि रिंकी कुमारी पति के साथ एक पल भी रहना नहीं चाहती थी. उस ने तय कर लिया कि अब वह अशोक के साथ कोई संबंध नहीं रखेगी. यह निर्णय लेने के बाद उस ने पंचायत और कुछ खास रिश्तेदारों की मौजूदगी में अशोक से संबंध खत्म कर लिए. इस तरह रिंकी कुमारी अशोक के बंधन से आजाद हो गई.

पति और ससुराल से संबंध खत्म होने के बाद रिंकी कुमारी कभी मायके में तो कभी इंदिरा आवास योजना के तहत मिले अपने घर में रहने लगी. रिंकी के ये संघर्षों भरे दिन थे. उस के इस संघर्ष में जहानाबाद के उस रिश्तेदार ने उस की पूरी मदद की. उसी ने रिंकी को सुझाव दिया कि अगर वह नर्स की टे्रनिंग कर ले तो भविष्य में उसे खर्च की कोई दिक्कत नहीं रहेगी. अपने रिश्तेदार की सलाह पर रिंकी कुमारी ने दौड़धूप की तो जहानाबाद के राजाबाजार के नया टोला की विंध्यवासिनी मार्केट स्थित मंजू सिन्हा के नर्सिंग होम में उसे प्रशिक्षु नर्स की नौकरी मिल गई.

रिंकी कुमारी जिस नर्सिंग होम में काम करती थी, उसी के सामने स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करने वाले सुनील कुमार चौधरी का 2 मंजिला मकान था. उन की नियुक्ति तो अरवल में थी, लेकिन उन का परिवार जहानाबाद के अपने इसी मकान में रहता था. उन के परिवार में श्रीमती रीता देवी के अलावा 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बेटियों में सब से बड़ी बेटी का विवाह हो चुका था. बड़े बेटे 24 वर्षीय आलोक भारती ने ग्रैजुएशन पूरा कर लिया तो सुनील ने उसे बीएचयू से मास कम्युनिकेशन (मास मीडिया) का कोर्स करने के लिए वाराणसी भेज दिया.

आलोक का छोटा भाई मूकबधिर था, इसलिए सुनील कुमार की सारी उम्मीदें आलोक पर ही टिकी थीं. उन पर अभी 3 बेटियों की शादी की भी जिम्मेदारी थी, इसलिए वह चाहते थे कि बेटा पढ़ाई पूरी कर के कहीं नौकरी से लग जाए तो उन की जिम्मेदारी में मदद मिलेगी. लेकिन दुर्भाग्य से आलोक की नौकरी नहीं लग पाई. शायद इस की एक वजह यह भी थी कि वह खुद भी नौकरी के लिए गंभीर नहीं था. बाप के पास पैसा तो था ही, उन पैसे से वह दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा था.

आलोक भारती का घर नर्सिंग होम के ठीक सामने था, इसलिए उस की छत से नर्सिंग होम की सारी गतिविधियां दिखाई देती थीं. आलोक जब भी खाली होता, छत पर जा कर नर्सिंग होम की ओर ताकता रहता. इसी ताकझांक में आलोक ने रिंकी कुमारी में ऐसा न जाने क्या देखा कि वह उस की ओर आकर्षित होने लगा.

जल्दी ही उस की हालत यह हो गई कि दिन भर में जब तक वह उसे 2-4 बार देख नहीं लेता, उसे चैन नहीं मिलता. बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो आलोक ने निर्णय लिया कि छुट्टी के बाद जब रिंकी नर्सिंग होम से घर जाने लगेगी तो उस से मिल कर वह अपने दिल की बात कहेगा.

आलोक ने निर्णय ही नहीं लिया, बल्कि शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर के रिंकी घर जाने के लिए नर्सिंग होम से निकली तो उस ने थोड़ा आगे बढ़ कर जहां एकांत था, रिंकी को रोक कर कहा, ‘‘जहां तक मुझे लगता है कि आप मुझे जरूर पहचानती होंगी, क्योंकि मेरा घर आप के नर्सिंग होम के ठीक सामने है?’’

आलोक का इस तरह बीच रास्ते में रोक कर बातें करना रिंकी कुमारी को अटपटा सा लगा. फिर भी उस ने जवाब में कहा, ‘‘हां, मैं ने आप को सामने वाले घर की छत पर कई बार खड़े देखा है.’’

‘‘मैं आप को पसंद करता हूं, इसलिए आप से दोस्ती करना चाहता हूं. उम्मीद है कि आप को मुझ से दोस्ती करने में ऐतराज नहीं होगा.’’ आलोक ने अपने मन की बात कह दी.

आलोक ने जैसे ही अपनी बात पूरी की, रिंकी कुमारी ने तुरंत जवाब में कहा, ‘‘मुझे यह नहीं पता कि आप मुझ से दोस्ती क्यों करना चाहते हैं? लेकिन मैं आप को बता दूं कि मेरे पास आप से दोस्ती करने का समय बिलकुल नहीं है. नर्सिंग होम की ड्यूटी करने के बाद थकीमांदी अपने कमरे पर पहुंचती हूं तो खाना बनाने में लग जाती हूं. बनाते खाते ही रात 11 बज जाते हैं. उस के बाद सो जाती हूं. सुबह 8 बजे ड्यूटी पर आना होता है, इसलिए जल्दी उठना पड़ता है. क्योंकि सुबह भी नाश्ताखाना बनाना होता है. ऐसे में मेरे पास दोस्ती का समय कहां है?’’

आलोक ने रिंकी कुमारी को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिंकी आलोक के मनसूबों पर पानी फेरते हुए दो टूक जवाब दे कर आगे बढ़ गई. हताश निराश आलोक उसे जाते हुए तब तक देखता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. कोई सुनसान सड़क या गली होती तो शायद आलोक उस का पीछा कर के बात करने की कोशिश करता. लेकिन भीड़भाड़ वाली सड़क होने की वजह से पीछा नहीं कर सका. क्योंकि अगर वह शोर मचा देती तो बेकार ही उसे तमाशा बनना पड़ता.

ये प्यार था या कुछ और था – भाग 1

बिहार के जिला अरवल के थाना कुर्था के गांव निगवां के रहने वाले फागूदास की 9 संतानों  में रिंकी कुमारी बचपन से ही अपने बहनभाइयों में सब से अलग थी. देश के कई राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार के ऐसे तमाम ग्रामीण इलाके हैं, जहां आज भी पिछड़ी जातियों में बालविवाह होता है.

इस बालविवाह के पीछे इन रूढि़वादियों का सोचना है कि अगर उन्होंने अपनी कन्या का विवाह (दान) रजस्वला होने से पहले कर दिया तो बहुत बड़ी पुण्य होगी. इसी पुण्य की लालसा में वे अपनी नादान बेटियों का भविष्य यानी जिंदगी दांव पर लगा देते हैं. जबकि उन लड़कियों को सही मायने में शादी का पता भी नहीं होता.

फागूदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी भले नहीं थी, लेकिन इतनी खराब भी नहीं थी कि उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ता. उन का गुजरबसर आराम से हो रहा था. बड़े हो कर बेटे पिता की मदद करने लगे तो फागूदास की आर्थिक स्थिति में और भी सुधार आ गया.

फागूदास जिस जाति के थे, उस जाति में बेटियों की शादी कमउम्र में ही कर दी जाती थी. लड़की की पसंद और नापसंद का कोई मतलब नहीं था. जो कुछ करना होता था, मांबाप अपनी मर्जी से करते थे.

रिंकी कुमारी 10-11 साल की हुई नहीं कि फागूदास ने तय कर लिया कि वह रिंकी की शादी उस के रजस्वला होने से पहले ही कर के पुण्य का लाभ कमा लेंगे. उन्होंने रिंकी के लिए लड़के की तलाश भी शुरू कर दी. थोड़ी भागदौड़ के बाद उन्हें रिंकी के लिए घरवर मिल गया. लड़का पड़ोसी जिला जहानाबाद के प्रखंड शर्कुराबाद के गांव रतनी फरीदपुर के रहने वाले विघ्नेश्वरदास का 23 वर्षीय बेटा अशोकदास था. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. लेकिन शादी की तारीख उन्होंने पूरे एक साल बाद रखी.

रिंकी की शादी तय होने के बाद फागूदास तैयारी में जुट गया. एक एक दिन कर के समय बीत रहा था. रिंकी पूरे 12 साल की हो गई. महीने भर बाद ही उस की शादी होने वाली थी. लेकिन संयोग देखो, जिस पुण्य की लालसा में फागूदास नाबालिग बेटी की शादी दोगुनी उम्र के लड़के से कर रहा था, उस की यह लालसा पूरी नहीं हो सकी.

विवाह के महीना भर पहले रिंकी 12 साल की उम्र में ही रजस्वला हो गई. रिंकी की मां ने जब फागूदास को बेटी के रजस्वला होने की बात बताई तो वह अपने भाग्य को कोसने लगा. लेकिन कुदरत पर इंसान का कोई वश नहीं है, इसलिए फागूदास भी सिर पीट कर रह गया.

बुझे मन से ही सही, फागूदास ने भाग्य को कोसते हुए पहले से तय तारीख पर रिंकी की शादी उस से दोगुनी उम्र के मैट्रिक पास अशोकदास के साथ कर दी. फागूदास ने रिंकी की शादी तो कर दी थी, लेकिन विदा नहीं किया था. इसलिए मांबाप के यहां रहते हुए रिंकी आगे की पढ़ाई करने लगी. वह गांव के ही मिडिल स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शादी के साल भर बाद सन 2000 में वादे के अनुसार फागूदास ने रिंकी को विदा कर दिया. रिंकी कुमारी विदा हो कर ससुराल पहुंची तो उस समय उस की उम्र 14 साल कुछ महीने थी. लगभग महीने भर ससुराल में रह कर रिंकी आ गई. रिंकी की पढ़ाई में रुचि थी, इसलिए शादी के समय ही उस ने कह दिया था कि वह अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ेगी. यही वजह थी कि शादी के बाद भी उस ने पढ़ाई जारी रखी. वह ग्रैजुएशन कर के कुछ करना चाहती थी.

ससुराल वालों की रजामंदी से रिंकी कुमारी ने गांव से इंटरमीडिएट कर के आगे की पढ़ाई के लिए जहानाबाद के अपने एक रिश्तेदार की मदद से जहानाबाद के मुरलीधर उच्च महाविद्यालय में दाखिला ले लिया. रिंकी ने बीए फर्स्ट ईयर की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की. इस के बाद उस का पति अशोक उसे अपने साथ कोलकाता ले कर चला गया. वहां वह किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. 2 सालों तक वह पति के साथ कोलकाता में रही. इस बीच वह 1-2 बार ही जहानाबाद आई.

जिस समय रिंकी कुमारी की शादी अशोकदास से हुई थी, उस समय वह बेरोजगार था. घरगृहस्थी की सारी जिम्मेदारी रिंकी के ससुर विघ्नेश्वरदास के कंधों पर थी. यही वजह थी कि शादी के बाद भी रिंकी ने पढ़ाई जारी रखी थी. उस का सोचना था कि युवा और हट्टाकट्टा हो कर भी उस का पति कुछ नहीं करता तो अपनी जरूरतों के लिए वह कब तक सासससुर और मांबाप का मुंह ताकती रहेगी. यही वजह थी कि रिंकी ने सोच लिया था कि जैसे भी हो, वह पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बनने (अपने पैरों पर खड़े होने) का प्रयास करेगी.

मैट्रिक तक पढ़े उस के पति अशोकदास को सरकारी नौकरी तो मिल नहीं सकती थी. कोई छोटामोटा काम वह करना नहीं चाहता था. इसलिए जब उसे कोलकाता में नौकरी मिली तो उसे वह नौकरी मनमाफिक लगी, जिस से वह वहां चला गया था.

कुछ दिनों बाद उस ने रिंकी को भी वहीं बुला लिया था. लेकिन वहां जा कर जल्दी ही रिंकी को लगने लगा कि जैसा कुछ उस ने सोचा था, वैसा यहां भी नहीं है. उस ने सोचा था कि अब तो पति की नौकरी लग ही गई है, इसलिए अब वह अपनी मनमरजी का खर्च कर सकेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि अभी भी उसे अपनी कुछ खास जरूरतों के लिए दूसरों के सामने ही हाथ फैलाना पड़ रहा है.

दरअसल, रिंकी कुमारी को जब पति की नौकरी के बारे में पता चला था तो उसे लगा था कि अब उसे अपनी छोटीमोटी जरूरतों के लिए मांबाप या सासससुर के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा. लेकिन जल्दी ही रिंकी का यह भ्रम टूट गया. क्योंकि अशोकदास खाने कपड़े के अलावा उस की अन्य जरूरतों के लिए पैसे नहीं देता था.

कभी वह कोई सामान लेने की जिद करती तो अशोक उसे दिलाने के बजाय समझाबुझा कर सामान लेने से मना कर देता. अगर इस पर रिंकी न मानती तो वह डांटफटकार कर या मारपीट कर उसे शांत करा देता. रिंकी ने जब भी अशोक से यह जानना चाहा कि उसे वेतन कितना मिलता है तो बताने के बजाए वह टाल देता. वह उसे यह कह कर चुप करा देता कि पति कितना कमाता है, पत्नी को इस सब से क्या मतलब. उसे अपने खाने कपडे़ से मतलब होना चाहिए. उसे यह सब मिल ही रहा है.

अशोक की इन बातों से रिंकी ने महसूस किया कि नौकरी लगने के बाद उस में काफी बदलाव आ गया है. वह उस के साथ पति जैसा व्यवहार न कर के अपने दायित्वों से भाग रहा है. रिंकी को लगता था कि अशोक उस की उपेक्षा करने के साथ उस का शारीरिक और मानसिक शोषण भी करने लगा है. रिंकी के लिए जब यह सब बरदाश्त से बाहर होने लगा तो अपने पैरों पर खड़ी होने का निर्णय ले कर वह कोलकाता से अपनी ससुराल जहानाबाद आ गई.

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 4

रामकुमार ने अपने बयान में बताया कि 22 नवंबर को कालिंदी उस के घर आ कर उस की पत्नी पूनम से बहस करने लगी तो उसे उस पर बहुत गुस्सा आया. जब उस से बरदाश्त नहीं हुआ तो वह उसे समझाबुझा कर अपनी मोटरसाइकिल पर दुर्ग बस स्टैंड छोड़ आया. जहां से वह अपने मायके चली गई.

अभी घर लौटे उसे डेढ़ घंटा ही हुआ था कि उस के मोबाइल पर कालिंदी का फोन आ गया. उस ने बताया कि वह मायके न जा कर बीच रास्ते में ही बस से उतर गई है और अब रायपुर लौट रही है. इसलिए वह उसे हीरापुर में मिले. कारण पूछने पर उस ने कहा कि उस के मायके वालों को ही नहीं बल्कि रिश्ते नातेदारों तक को हकीकत पता चल गई है. ऐसे में उसे कोई भी घर में नहीं रखेगा.

रामकुमार के अनुसार उसे कालिंदी की इस हरकत पर काफी गुस्सा आया. अगर वह हीरापुर में बताई गई जगह पर नहीं पहुंचता तो कालिंदी उस के घर पहुंच जाती. इसलिए वह उस की बताई जगह पर पहुंच गया. तब तक साढ़े 7 बज चुके थे. वहां से वह कालिंदी को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर गोगांव नाले की ओर निकल गया क्योंकि उस रास्ते पर लोगों का कम ही आनाजाना होता है.

नाले के पास पहुंच कर उस ने अपनी बाइक नाले के किनारे खड़ी कर दी और कालिंदी पर गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘मेरे इतना कहने और समझाने के बावजूद तुम हफ्ते भर अपने मायके में नहीं रह सकीं. अब बताओ मैं तुम्हें कहां रखूं? पूनम तो साथ रहने नहीं देगी.’’

इस पर कालिंदी नाराज होते हुए बोली, ‘‘अब न तो मेरा कोई मायका है और न ससुराल. मैं सब कुछ पीछे छोड़ आई हूं. तुम्हीं बताओ, ऐसे में कहां जाऊं?’’

‘‘जहन्नुम में जाओ, पर मेरा पीछा छोड़ दो.’’ रामकुमार ने कहा तो कालिंदी बिफर उठी और उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गरदन पर रखते हुए गुस्से में बोली, ‘‘मुझे जहन्नुम भेजना चाहते हो तो भेज दो. अभी इसी वक्त जहन्नुम में भेज दो मुझे.’’

रामकुमार के अनुसार वह अपने हाथोें से उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गरदन पर दबाव बनाने लगी. इस पर उस ने कालिंदी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह गुस्से में आग बबूला होती हुई बारबार जहन्नुम भेजने की बात कह कर उसे गुस्सा दिलाने लगी. आखिर उसे गुस्सा आ ही गया और उस का हाथ सचमुच कालिंदी की गरदन पर कसने लगा. फिर देखते ही देखते उस के हलक से गूं…गूं…गूं… की आवाजें निकलने लगीं. फिर कुछ देर में उस का शरीर रामकुमार के कंधे पर लुढ़क गया.

कालिंदी को निष्प्राण हुआ देख वह डर गया. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो वहां दूरदूर तक कोई भी नहीं था. यह देख उस ने राहत की सांस ली और पैंट व अंडरवियर पहने पहने ही कालिंदी के शव को ले कर नाले में उतर गया. किनारे से 2-4 कदम आगे जा कर उस ने उस की लाश को पानी में छोड़ा और फिर किनारे से वजनी पत्थर ला कर उस के ऊपर रख दिया. ताकि वह तुरंत पानी से ऊपर न आ सके. वहां से वह सीधे अपने घर लौट आया.

रामकुमार ने पश्चाताप जाहिर करते हुए कहा, ‘‘काश! कालिंदी बार बार जहन्नुम भेजने की बात कह कर मुझे गुस्सा न दिलाती तो शायद मेरे हाथों इतना बड़ा अनर्थ न होता. दरअसल वह यह नहीं समझ पा रही थी कि मेरी पत्नी और 2 बच्चे हैं और मुझे उन्हें भी देख कर चलना पड़ेगा.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी कालिंदी की मौत की वजह दम घुटना ही बताई गई थी. उस की मौत पानी में दम घुटने से नहीं बल्कि गला दबाने से हुई थी. थानाप्रभारी संजय तिवारी ने कालिंदी की हत्या कर के लाश को छुपाने के आरोप में राकुमार के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 201 का इस्तेमाल किया. जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने रामकुमार को 25 नवंबर को अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में रायपुर जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर

आशिकी में भाई को किया दफन – भाग 3

कोतवाल सिंह ने सेठपाल से उस के पूरे परिवार के सदस्यों के बारे में पूछताछ की. सेठपाल की बातें सुन कर श्री सिंह भी चौंक पड़े, क्योंकि 6 फरवरी की रात से ही कुलवीर के लापता होने की बात बताई गई थी. उन्हें इस के पीछे दाल में काला होने का शक हुआ.

यानी वह समझ गए कि इस मामले में परिवार या पासपड़ोस का ही कोई न कोई शामिल हो सकता है. यह भी सवाल था कि कुलवीर ने ही सब को बेहोश कर दिया हो और खुद भी घर से फरार हो गया हो? लेकिन यह जांच का विषय था कि उस ने आखिर ऐसा क्यों किया होगा? घर में गहने या रुपएपैसे सहीसलामत थे.

उसी तरीख से कुलवीर का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. श्री सिंह ने मामले की जांच करने के लिए एसएसआई अंकुर शर्मा को सेठपाल के साथ उस के गांव भेज दिया.

अंकुर शर्मा ने ढाढेकी ढाणा पहुंच कर सेठपाल के सभी परिजनों से उस की बेहोशी की हालत के बारे में गहन तहकीकात की. इस बाबत पड़ोसियों से भी बात की. इस की सिलसिलेवार जानकारी उन्होंने कोतवाल अमरजीत सिंह को दे दी.

श्री सिंह शर्मा की रिपोर्ट पढ़ कर इस निर्णय पर पहुंचे कि कुलवीर ही अपने घर वालों को बेहोश कर फरार हो गया होगा. सेठपाल की तहरीर पर कुलवीर की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद मामले की विवेचना महिला थानेदार एकता ममगई को सौंप दी गई.

नहीं मिला ठोस सुराग

इस की सूचना सीओ मनोज ठाकुर और एसपी (देहात) स्वप्न किशोर को भी दे दी गई. उन से आगे की जांच और काररवाई के निर्देश के बाद विवेचक एकता ममगई ने कुलवीर के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच शुरू तो हो गई थी, कुलवीर की सरगरमी से तलाश हो रही थी. लेकिन कुलवीर के बारे में कोई ठोस जानकारी हाथ नहीं लगी थी. जबकि उस की फोटो के साथ आसपास के क्षेत्रों में पैंफ्लेट चिपका दिए गए थे.

कुलवीर के कुछ दोस्तों और घर वालों से भी उस के बारे में और उस की आदतों को ले कर पूछताछ की गई थी. यह सब करते हुए 3 सप्ताह से अधिक का समय निकल गया था. पुलिस को कुलवीर के बारे में कोई भी सटीक जानकारी नहीं मिल पाई थी.

अब बारी थी परिवार के सभी सदस्य और गांव के दूसरे लोगों से बारीबारी पूछताछ की. इस पर जब गहनता से काम किया जाने लगा किसी ने दबी जुबान में बताया कि उस की नाबालिग बहन गीता का पड़ोसी राहुल के साथ प्रेम संबंध है.

पुलिस ने गीता से की पूछताछ

इस सूचना के बाद देरी किए बगैर गीता से पूछताछ करने के लिए उसे थाने बुलाया गया. पहले तो गीता ने पुलिस को झूठी बातों में उलझाने की कोशिश की. उस ने बताया था कि कुलवीर पिता सेठपाल से नाराज हो कर घर से चला गया है. लेकिन वह नाराजगी की कोई ठोस वजह नहीं बता पाई.

इस के बाद जब अमरजीत सिंह ने गीता से उस के पड़ोसी शादीशुदा राहुल से चल रहे प्रेम संबंधों के बारे में पूछा तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. थाने में महिला सिपाही की सख्ती के सामने वह अधिक समय तक नहीं टिक पाई.

12 मार्च, 2023 को गीता ने स्वीकार कर लिया कि उसे कुलवीर पीटता रहा है, क्योंकि वह राहुल से प्यार करती है. उस ने उसे राहुल से दूर रहने की सख्त हिदायत दी थी. भाई की धमकी सुन कर वह डर गई थी. उस ने औनर किलिंग के बारे में काफी कुछ सुन रखा था कि कैसे मांबाप, भाई और रिश्तेदार अपनी प्रतिष्ठा की खातिर प्रेमी प्रेमिका को मौत के घाट उतार देते हैं.

इस बारे में उस ने राहुल को बताया, जिस से राहुल भी कुलवीर के खिलाफ आग उगलने लगा. और फिर उस ने गीता के साथ मिल कर एक योजना बनाई. इस से पहले कुलवीर गीता के खिलाफ कोई गंभीर कदम उठाए, उस से पहले क्यों न वही कुलवीर को ही निपटा दे.

इस योजना में उस ने अपने दोस्त कृष्णा को भी 40 हजार रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस योजना को उन्होंने 6 फरवरी, 2023 की रात को अंजाम भी दे दिया.

आशिकी में निपटाया बहन ने भाई को

रात को 11 बजे राहुल ने सेठपाल के दरवाजे पर हल्की सी दस्तक दी थी. गीता ने तुरंत दरवाजा खोल दिया था. उस के साथ एक लड़का कृष्णा भी था. राहुल जब उसे ले कर घर में घुसा, तब बाहर के कमरे में कुलवीर को खाट पर गहरी नींद में सोया पाया.

गीता धीमे से राहुल से बोली, “इसे जल्दी निपटाओ.’’

इस के बाद गीता ने अपने भाई कुलवीर के हाथ पकड़ लिए, जबकि कृष्णा ने कुलवीर के पैर. उस के बाद राहुल ने दोनों हाथों से कुलवीर का गला घोंट दिया.

कुलवीर का शरीर कुछ समय में ही बेजान हो गया. राहुल और कृष्णा ने उस की लाश को एक चादर में बांध लिया. उसे कृष्णा अपने घर में ले आ आया. कृष्णा अपने घर में एक गड्ढा पहले से ही खोद कर रखा था. उस ने कुलवीर की लाश उसी में दबा दी. दूसरी ओर गीता ने कुलवीर का मोबाइल फोन स्विच औफ कर पास के तालाब में फेंक दिया और खुद नींद की गोलियां खा कर घर में ही सो गई.

पुलिस ने गीता से मिली जानकारी के बाद राहुल से भी उसी दिन पूछताछ की. इस के लिए उसे थाने बुलाया. उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया गया. इस से भी बात नहीं बनी तब पुलिस सेवा की धमकी दी गई. इस धमकी से वह टूट गया और उस ने न केवल गीता के साथ अनैतिक संबंध की बात स्वीकार की, बल्कि कुलवीर की हत्या का जुर्म भी स्वीकार कर लिया.

कुलवीर के बारे में गीता और राहुल से वारदात के बारे में मिली जानकारी के बाद सीओ मनोज ठाकुर कोतवाली लक्सर आ गए थे. उन्होंने भी गीता से गहनता से पूछताछ की. इस के बाद एसएसआई अंकुर शर्मा और महिला थानेदार एकता ममगई ने कृष्णा को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया.

गीता, राहुल और कृष्णा के बयान दर्ज कर लिए गए. तीनों के बयानों में एकरूपता थी. गीता और कृष्णा ने भी राहुल के ही बयान का समर्थन किया था. इस के बाद पुलिस ने कुलवीर की गुमशुदगी के मामले में हत्या कर लाश छिपाने की धाराएं जोड़ दीं. इस के बाद पुलिस ने राहुल की निशानदेही पर कृष्णा के घर से कुलवीर का शव भी बरामद कर लिया. उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

अगले दिन पुलिस ने राहुल और कृष्णा को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. गीता की उम्र 18 वर्ष से कम होने के कारण उसे कोर्ट ने बाल संरक्षण गृह भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक कुलवीर हत्याकांड की विवेचना महिला थानेदार एकता ममगई द्वारा की जा रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में गीता नाम परिवर्तित है.

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 3

उस वक्त तो वह खून का घूंट पी कर रह गई पर अगले दिन 22 नवंबर को सुबह लगभग 10 बजे वह पूनम के घर जा पहुंची और पूनम से साफसाफ कह दिया, ‘‘रामकुमार जब उस का पति था तब था, अब वह उस का भी है. वह उसे अपना तनमन सौंप कर अपना पति मान चुकी है.’’

उस दिन रामकुमार की मौजूदगी में उन दोनों के बीच काफी कहासुनी हुई. कालिंदी ने पूनम से साफसाफ कह दिया कि उस ने दिलीप को छोड़ दिया है और अब रामकुमार के साथ ही रहेगी.

कालिंदी का पूनम से इस तरह बहस करना रामकुमार को अच्छा नहीं लग रहा था. जब उस से नहीं रहा गया तो वह कालिंदी का हाथ पकड़ कर घर से बाहर ले आया. रामकुमार ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें जो भी कहना सुनना है मुझसे कहो लेकिन यहां नहीं, चलो हम कहीं बाहर चलते हैं. मैं वहीं तुम्हारी सारी बातों का जवाब दूंगा.’’

कालिंदी तैयार हो गई तो रामकुमार उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर एक रेस्टोरेंट में ले गया. वहां चायनाश्ते के दौरान उस ने कालिंदी को समझाया, ‘‘जब मैं तुम्हें अपने साथ रखने को तैयार हूं तो इस तरह घर आ कर तमाशा खड़ा करने का क्या मतलब? अब मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम हफ्ते दस दिन के लिए अपनी मां के घर चली जाओ. इस बीच मैं यहां पर तुम्हारे रहने का कोई इंतजाम कर के तुम्हें फोन कर दूंगा.’’

रामकुमार ने समझाबुझा कर कालिंदी को मायके जाने के लिए राजी कर लिया. इस के बाद टिकट और रास्ते के खर्च के लिए 5 सौ रुपए दे कर उस ने कालिंदी को दुर्ग बस स्टैंड पर छोड़ दिया. उसे दुर्ग बस स्टैंड छोड़ने के बाद रामकुमार रायपुर लौट आया. रात में लगभग 10 बजे जब वह घर पहुंचा तब भी पूनम का मिजाज गरम था. लेकिन वह उस से बिना कोई बात किए खाना खा कर चुपचाप सो गया.

खमतराई थानाप्रभारी संजय तिवारी को 23 नवंबर की सुबह सूचना मिली कि गोगांव नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. लाश की खबर मिलते ही संजय तिवारी एसआई आर.पी. मिश्रा, हेडकांस्टेबल साबिर खान, कांस्टेबल शिवशंकर तिवारी, उमेश पटेल, बच्चन सिंह ठाकुर, गिरधर गोपाल द्विवेदी और एस.एस. ठाकुर को साथ ले कर गोगांव नाले के पास पहुंचे तो वहां काफी भीड़ जमा थी.

वहां पीले रंग की साड़ी पहने एक महिला का शव नाले के किनारे पानी में पड़ा था. पानी कम होने की वजह से लाश साफ दिख रही थी. थानाप्रभारी ने 2 सिपाहियों को नाले से लाश को बाहर निकलवाया तो पता चला लाश को वजनी पत्थर से दबाने की कोशिश की गई थी. मौके पर मौजूद भीड़ में कोई भी लाश को नहीं पहचान सका.

जब लाश की शिनाख्त नहीं हुई तो पुलिस ने नियमानुसार उस के फोटो करा कर पंचनामा तैयार किया और उसे पोस्टमार्टम के लिए रायपुर भेज दिया. घटनास्थल की प्राथमिक औपचारिकता पूरी कर के संजय तिवारी अपनी टीम के साथ थाने लौट आए. इस बाबत हत्या का मुकदमा दर्ज कर के पुलिस अधीक्षक ओ.पी. पाल को भी सूचना दे दी गई.

अगले दिन थानाप्रभारी संजय तिवारी को एक दिन की छुट्टी पर घर जाना था. वह एसआई आर.पी. मिश्रा को लावारिस लाश की शिनाख्त के लिए निर्देश दे कर चले गए. लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस के पास एक ही रास्ता था कि उस का फोटो अखबारों में छपाया जाए.

सबइंसपेक्टर आर.पी. मिश्रा ने लाश का फोटो बनवा कर सिपाही बच्चन सिंह को देते हुए कहा कि वह उसे अखबार के दफ्तर में दे आए. सिपाही बच्चन सिंह उस फोटो को 2-3 बार ध्यान से देखते हुए बोला, ‘‘साहब, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि इस औरत की शक्ल 3-4 दिन पहले अपने पति के साथ थाने आई उस महिला से मिलती है जिस का पति से झगड़ा हुआ था.’’

आर.पी. मिश्रा ने गौर से देखा तो उन्हें भी बच्चन सिंह की बात में दम नजर आया. उन्होंने बच्चन सिंह से कहा, ‘‘रिकौर्ड से उस के पति का पता ले कर उस के घर जाओ. पहले उस से उस की पत्नी के बारे में पूछना. उस की बातों से कई चीजें साफ हो जाएंगी. कुछ गड़बड़ लगे तो उसे थाने ले आना.’’

सबइंसपेक्टर आर.पी. मिश्रा के निर्देश पर बच्चन सिंह ने दिलीप कौशिक के घर जा कर उस की पत्नी कालिंदी के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वह 2 दिन पहले सुपरवाइजर रामकुमार से मिलने की बात कह कर घर से निकली थी. तब से वह वापस नहीं लौटी है. सिपाही बच्चन सिंह दिलीप से ज्यादा सवालजवाब न कर के उसे अपने साथ थाने ले आया.

थाने में एसआई आर.पी. मिश्रा ने जब गोगांव नाले में मिली लावारिस लाश के फोटो दिलीप के सामने रखे तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह लाश उस की पत्नी कालिंदी की ही है. अब सवाल यह था कि कालिंदी जब रामकुमार से मिलने की बात कह कर घर से निकली थी तो उस की लाश गोगांव नाले में कैसे पहुंच गई?

अगर दिलीप की बात सही थी तो इस सवाल का जवाब रामकुमार ही दे सकता था. आर.पी. मिश्रा 2 सिपाहियों को साथ ले कर रामकुमार के घर पहुंचे. रामकुमार तो घर पर नहीं मिला पर उस की पत्नी पूनम से यह पता जरूर चल गया कि वह 9 बजे ही अपनी कंस्ट्रक्शन साइट पर चला गया था. यह जानकारी भी मिली कि 22 नवंबर को कालिंदी पूनम के घर आई थी और उस से खूब लड़ी थी. बाद में रामकुमार उसे ले कर घर से बाहर निकल गया था. पूनम से कुछ और जानकारी और रामकुमार का मोबाइल नंबर ले कर थाने लौट आए.

थाने आ कर आर.पी. मिश्रा ने रामकुमार के मोबाइल पर फोन मिलाया तो पता चला वह संतोषी नगर जोन 4 में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग की साइट पर काम करा रहा है. इस पर उन्होंने उस से कहा, ‘‘रामकुमार, मैं ने तुम्हें फोन इसलिए किया है कि दिलीप कौशिक अपनी पत्नी कालिंदी के साथ थाने में बैठा है. इन लोगों का कहना है कि तुम ने कालिंदी के सामने दिलीप को जान से मारने की धमकी दी है. इसलिए तुरंत थाने चले आओ. हम आप लोगों का समझौता करा देते हैं.’’

आर.पी. मिश्रा की बात सुन कर रामकुमार हड़बड़ी में बोला, ‘‘देखिए सर, अभी मैं अपनी साइट पर काम कर रहा हूं. काम खत्म होते ही मैं थाने आ जाऊंगा.’’

आर.पी. मिश्रा और कुछ कह पाते इस से पहले ही रामकुमार ने फोन काट दिया. इस के बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया. एसआई मिश्रा को लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि पहले तो रामकुमार थाने में कालिंदी की मौजूदगी की बात सुन कर चौंका था और फिर उस ने फोन बंद कर दिया था. उन्होंने तुरंत सिपाही बच्चन सिंह, शिवशंकर तिवारी और साबिर अली को संतोषी नगर के लिए रवाना कर दिया. जब पुलिस वहां पहुंची तो रामकुमार फरार होने की तैयारी में था.

पुलिस उसे पकड़ कर थाने ले आई. थाने में रामकुमार से पूछताछ की गई तो पहले तो वह कालिंदी की हत्या से इनकार करता रहा लेकिन जब उस से थोड़ी सख्ती की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

आशिकी में भाई को किया दफन – भाग 2

एक बार राहुल और गीता के प्रेमसंबंध का खुला प्रदर्शन कुलवीर की नजरों के सामने आ गया. कुलवीर की आंखों में खून उतर आया. उस ने राहुल और गीता दोनों को जबरदस्त डांट लगाई. इतना ही नहीं, पारिवारिक रिश्ते और समाज की मानमर्यादा का हवाला देते हुए राहुल को घर आने से मना कर दिया. बहन गीता पर भी राहुल के घर आनेजाने से रोक लगा दी. दरअसल, गीता और राहुल को कुलवीर ने आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था.

गीता हुई राहुल की प्रेम दीवानी

बीते साल 2022 में दशहरे का त्योहार था, इस मौके पर घर के सभी सदस्य मेला घूमने लक्सर गए हुए थे. जबकि गीता किसी कारण साथ नहीं जा पाई थी. उसी समय कुलवीर ने राहुल को गीता के साथ देख लिया था. तभी से उस के दिमाग में खलबली मची हुई थी. वह गीता पर पैनी नजर रखे हुए था और राहुल से भी खिन्न रहने लगा था.

जब कभी राहुल उस के घर आता, तब वह उस से रूखेपन से बात करता. राहुल भी उस के इस व्यवहार से तंग आ गया था. गीता को तो घर से बाहर निकलने तक पर पाबंदी लगा दी थी. गीता जब इस का विरोध जताती थी तब वह उस की पिटाई कर देता था. कुलवीर ने गीता को राहुल से दूर रहने की सख्त चेतावनी दे दी थी. इस के उलट गीता का राहुल से छिप कर मिलना जारी था.

नाबालिग गीता पर राहुल ने ऐसा जादू कर दिया था कि वह उस की प्रेम दीवानी बनी हुई थी, जबकि वह विवाहित और 2 बच्चों का बाप था. उन की आशिकी चरम पर थी. अकसर उन की मुलाकातें रात को होने लगी थीं. उन्हें जब भी मिलना होता था, गीता रात को अपने घर वालों को दूध में नींद की गोलियां मिला कर दे देती थी फिर दोनों एकांत में मिल लेते थे.

एक बार राहुल प्रेमिका को बाहों में भरता हुआ बोला, “गीता, आखिर हम लोग इस तरह छिप कर कब तक मिलते रहेंगे. कुलवीर हम पर हमेशा नजरें गड़ाए रहता है.’’

“हां, सही कहते हो, केवल वही हमारे प्यार का दुश्मन बना बैठा है. मुझे लग रहा है कि उसे ठिकाने लगाना होगा.’’ गीता तल्ख आवाज में बोली.

“क्या मतलब है तुम्हारा.’’ राहुल बोला.

“यही कि कोई तरीका निकालो उसे खत्म करने का,’’ गीता बोली.

“ठीक है, तुम तैयारी करो, मैं किसी से बात करता हूं.’’ राहुल बोला और कपड़े सहेज कर अपने घर चला गया.

राहुल और गीता ने एक योजना बना ली थी. योजना के अनुसार 6 फरवरी, 2023 को रात के खाने के बाद गीता ने अपने घर वालों को दूध में नींद की गोलियां पीस कर दे दीं. कुछ समय में ही घर के सभी लोग अचेतावस्था में आ गए थे.

पूरा परिवार हो गया बेहोश

7 फरवरी की सुबह सूर्योदय होने के काफी समय बाद 55 वर्षीय सेठपाल के मंझले बेटे पंकज की नींद टूट गई. घर में सन्नाटा पा कर वह कुछ समझ नहीं पाया. हालांकि वह भी काफी सुस्ती महसूस कर रहा था. किसी तरह उठ कर अपने कमरे से बाहर निकला तो बाहर पिता को बेसुध सोया पाया. इतनी देर तक सोए रहने पर उसे आश्चर्य हुआ, जबकि वह सुबह के 5 बजे तक उठ जाते थे.

पंकज ने उन्हें झकझोर कर जगाया. उन्होंने आंखें खोलीं जरूर, मगर अर्द्धबेहोशी की हालत में ही रहे. उस वक्त भी उस पर कुछ बेहोशी छाई हुई थी. उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि नींद आ रही है. उस ने पाया कि घर में मां और बहन गीता की भी कोई चहलपहल नहीं हो रही है. रसोई में सन्नाटा है. बाथरूम में भी किसी तरह की आवाज नहीं आ रही है. कुलवीर के कमरे में भी सन्नाटा है.

सेठपाल ने बेटे पंकज से चाय लाने को बोला. पंकज ने गीता, मां, छोटे भाई और यहां तक कि अपने बड़े भाई कुलवीर तक को बारीबारी से कई आवाजें लगाईं. उस का कोई जवाब नहीं मिला. वह खुद सुस्ती में था, इसलिए पहले चाय पीने की सोची और रसोई में चाय बनाने चला गया.

चाय का पानी गैस पर चढ़ा कर खुद बाथरूम में मुंह धोने लगा. ब्रश करने और मुंह धोने के क्रम में उस ने चेहरे को कई बार ठंडे पानी से धोया. तब उस की थोड़ी सुस्ती कम हुई. रसोई में आ कर उस ने चाय बनाई और 2 कप में ले कर पिता के कमरे में गया.

पिता वहीं कंबल में ही अधलेटे थे. आंखें बंद कर रखी थीं. पंकज ने उन से मुंहहाथ धोने के लिए कहा. जबकि सेठपाल ने सहारे से उन्हें उठाने का इशारा किया. उस वक्त भी उन्हें नींद आ रही थी. ऐसा लग रहा था, मानो उन की नींद पूरी नहीं हुई हो. एक तरह से वह अर्धनिद्रा की हालत में ही थे. पंकज उन की हालत को देख कर घबरा गया. किसी तरह से उस ने अपनी चाय पी और पड़ोसियों को आवाज लगाई.

पंकज की आवाज सुन कर कुछ पड़ोसी वहां आ गए. उन्होंने सेठपाल की हालत देखते ही पूछा, “इन्होंने कोई दवा खाई है क्या? इन पर किसी नशीली दवाई का रिएक्शन हुआ लगता है.’’

पड़ोसियों ने पाया कि सेठपाल की पत्नी, बेटी और छोटा बेटा भी एक कमरे में बेसुध सोए हैं. जबकि बड़ा बेटा कुलवीर अपने कमरे में नहीं है. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जरूर घर में कोई विवाद हुआ है. हो सकता है इसी कारण कुलवीर ने सभी को नशे की कोई दवा खिला दी हो और घर से चला गया हो.

पड़ोसियों ने सब से पहले गांव के एक आयुर्वेद डाक्टर को सेठपाल के घर पर बुलाया. परिवार के सभी सदस्यों के स्वास्थ्य की जांच करवाई. उन्होंने जांच में पाया था कि सेठपाल के परिवार वालों ने या तो किसी नशीली वस्तु का सेवन किया है या उन्हें किसी ने धोखे से ज्यादा मात्रा में नींद की गोलियां खिला दी हैं.

उन्हें कुछ दवाइयां दे कर प्राथमिक उपचार कर दिया गया. बाद में सभी को सरकारी अस्पताल में भरती करवाया गया. वहां वे 2 दिनों तक भरती रहने के बाद पूरी तरह से ठीक हो पाए. तब तक कुलवीर का कोई पता नहीं था. वह घर से गायब ही था.

कुलवीर की गुमशुदगी कराई दर्ज

तब सेठपाल व उस की पत्नी सुमन ने कुलवीर को ढूंढना शुरू कर दिया था. सेठपाल को कुलवीर की चिंता होनेलगी थी. उन्होंने उस के लापता होने की जानकारी कोतवाली लक्सर को देने का मन बनाया, जो उन के गांव से 5 किलोमीटर दूरी पर है.

वहां वह 10 फरवरी को दिन में 11 बजे के करीब पहुंचे और कोतवाल अमरजीत सिंह को बेटे कुलवीर के लापता होने की जानकारी दी. उस के बयानों के आधार पर कुलवीर की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कर ली गई. शिकायत में उन्होंने पूरे परिवार को किसी के द्वारा बेहोशी दवा खिलाए जाने के बारे में भी बताया.

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 2

जहां कालिंदी और चांदनी काम करती थीं, वहां रामकुमार सुपरवाइजर था. 25 वर्षीय रामकुमार बघेल का काम था बिल्डिंग निर्माण में लगे मजदूरों पर नजर रखना और इस्तेमाल होने वाले सामान का खयाल रखना. रामकुमार की नजर जवान औरतों पर रहती थी. चांदनी उस की गिरफ्त में थी जबकि कालिंदी पर उस की नजरें जमी हुई थीं. चांदनी से रामकुमार ने कहा था कि वह कालिंदी को उस के करीब ले आएगी तो वह उसे इनाम देगा. वैसे भी वह कालिंदी का खास खयाल रखता था.

कालिंदी जवान थी. पुरुष सान्निध्य की चाह उस के मन में भी थी. चांदनी के उकसाने पर वह भी धीरेधीरे रामकुमार की ओर आकर्षित होने लगी. जल्दी ही रामकुमार समझ गया कि वह समर्पण के लिए तैयार है. उस ने थोड़ा प्रयास किया तो वह उस की बांहों में सिमट गई.

रामकुमार बघेल का घर कालिंदी के घर से महज एक किलोमीटर दूर भनपुरी इलाके में था. उस के परिवार में पत्नी पूनम के अलावा 2 बच्चे थे. 4 साल का बेटा जीतू और 2 साल की बेटी जूली.

रामकुमार की कालिंदी से नजदीकी बढ़ी तो वह उसे शहर घुमाने ले जाने लगा. कालिंदी ने भी उसे अपने घर बुलाना शुरू कर दिया. वह जिस तरह से उस की खातिरदारी करती थी और जैसे उस से हंसीठिठोली करती थी उस से दिलीप को समझते देर नहीं लगी कि कालिंदी के पांव बहक गए हैं. चूंकि घर का खर्च कालिंदी की कमाई से ही चल रहा था. इसलिए शुरू शुरू में दिलीप जानबूझ कर चुप रहा.

उस की इस चुप्पी का कालिंदी ने नाजायज फायदा उठाया और रामकुमार के साथ घर में ही रास रचाने लगी. रामकुमार आता तो वह कभी बेटे बबलू को घुमाने के बहाने तो कभी कोई सामान लाने के बहाने दिलीप को घर से बाहर भेज देती थी और रामकुमार को ले कर अंदर से कमरा बंद कर के मस्ती में डूब जाती थी. ऐसा नहीं था कि दिलीप कालिंदी की इस चाल को समझता नहीं था. लेकिन मुहल्ले वालों और पड़ोसियों के बीच तमाशा न बने इसलिए चुप रह जाता था.

कोई भी पति शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से भले ही कितना भी कमजोर क्यों न हो, यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा कि उस की पत्नी उस की नजरों के सामने किसी पराए मर्द के साथ हमबिस्तर हो. यह बात दिलीप के साथ भी थी. एक तरफ दिलीप पत्नी और रामकुमार के संबंधों को ले कर परेशान था तो दूसरी तरफ कालिंदी की आंखों से शर्मोहया का परदा बिलकुल हट गया था. वह पूरी तरह बेशर्म और निर्लज्ज हो गई थी. अब वह पति की मौजूदगी में ही उसे ले कर कमरे में चली जाती और अंदर से दरवाजा बंद कर लेती.

जब यह सब दिलीप के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो गया तो एक दिन उस ने रामकुमार के सामने ही कालिंदी से साफसाफ कह दिया, ‘‘अब मैं और ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकता. अपने यार से कहो यहां न आया करे.’’

‘‘आएंगे…जरूर आएंगे. इस घर पर जितना तुम्हारा हक है उतना ही मेरा भी है. यह मत भूलो कि मेरी कमाई से ही घर का सारा खर्च चलता है. मैं अगर किसी को घर बुलाती हूं तो तुम्हें क्यों जलन होती है.’’ कालिंदी उल्टे अपने पति पर ही बिफर पड़ी.

देखते देखते दोनों में तूतू, मैंमैं होने लगी जिस ने बढ़ते बढ़ते झगड़े का रूप ले लिया. मामला बिगड़ते देख रामकुमार वहां से चुपचाप खिसक गया. रामकुमार के जाने के बाद इस झगड़े ने और भी विकराल रूप ले लिया. कालिंदी और दिलीप दोनों आपे से बाहर हो कर मार पिटाई पर उतर आए.

पतिपत्नी को लड़ते देख अड़ोसी पड़ोसी भी आ गए. पड़ोसियों ने दोनों को समझाया लेकिन कोई भी झुकने को तैयार नहीं हुआ. इसी बीच किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. झगड़े की सूचना पा कर खमतराई के थानाप्रभारी संजय तिवारी ने 2 सिपाहियों को मामला सुलझाने के लिए बुनियादनगर में दिलीप के घर भेज दिया. सिपाही साबिर खान व उमेश पटेल जब दिलीप के घर पहुंचे तब भी दोनों में तकरार जारी थी. मामला गंभीर देख पुलिस वाले दोनों को थाने ले आए.

थाने में दिलीप कौशिक ने थानाप्रभारी संजय तिवारी के सामने कालिंदी की हकीकत बता कर कहा, ‘‘आप ही बताइए सर, कौन पति होगा जो अपनी आंखों के सामने पत्नी को दूसरे की बांहों में सिमटते हुए देखेगा? मैं इसे रोकता हूं तो यह लड़ने को आमादा हो जाती है.’’

थानाप्रभारी तिवारी ने जब इस बारे में कालिंदी से बात की तो उस ने दिलीप की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब, आप इन की हालत देखिए. इन से कामधाम तो कुछ होता नहीं, ऊपर से पत्नी की जरूरतों को भी पूरा नहीं कर सकते. आप ही बताइए ऐसे आदमी के साथ मैं कितने दिन तक निभा सकूंगी. मैं ने इन से साफ कह दिया है कि अब मैं इन के साथ नहीं रह सकती. रामकुमार मुझे अपनाने के लिए तैयार है.’’

कालिंदी और दिलीप दोनों ने ही अपने बयानों में रामकुमार का जिक्र किया था. इसलिए थानाप्रभारी संजय तिवारी ने एक सिपाही भेज कर रामकुमार को बुलवा लिया. थाने में रामकुमार से पूछताछ हुई तो उस ने नजरें झुका कर स्वीकार कर लिया कि कालिंदी के साथ उस के जिस्मानी संबंध हैं. लेकिन जब उसे पत्नी बना कर साथ रखने की बात आई तो रामकुमार ने साफ कह दिया कि जब तक दिलीप और कालिंदी का कानूनन तलाक नहीं हो जाता वह कालिंदी को अपने साथ नहीं रख सकता. क्योंकि उसे अपने परिवार के बारे में भी सोचना है.

इस मुद्दे पर थाने में घंटों तक बात हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. जहां एक तरफ कालिंदी किसी भी कीमत पर दिलीप के साथ रहने को तैयार नहीं थी, वहीं दूसरी ओर दिलीप इस शर्त पर कालिंदी को छोड़ने को राजी हो गया कि कालिंदी की डिलीवरी के समय उस ने जो कर्ज लिया था उस की पूरी भरपाई कालिंदी करेगी. इस पर भी दोनों में काफी देर तक बहस हुई.

इसे पतिपत्नी के आपसी विवाद का मामला समझ कर संजय तिवारी ने इस मामले में थाने में 155 सीआरपीसी के तहत दर्ज कर के उस की एक कौपी दिलीप को सौंप दी. इस के बाद उन्होंने रामकुमार, दिलीप और कालिंदी को समझाबुझा कर वापस भेज दिया. यह 20 नवंबर, 2013 की बात है.

इस पूरे मामले की जानकारी रामकुमार की पत्नी पूनम बघेल को हुई तो उस ने रामकुमार से इस बारे में तमाम तरह के सवालजवाब किए. फिर अगले दिन वह गुस्से में उफनती हुई सीधे कालिंदी के घर पहुंची और उसे खूब खरीखोटी सुनाई. उस ने कालिंदी से साफसाफ कह दिया कि वह उस के पति का पीछा करना छोड़ दे. उस की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा कर उसे कुछ हासिल नहीं होगा. कालिंदी को खरीखोटी सुना कर पूनम अपने घर लौट गई. कालिंदी को पूनम का इस तरह घर आ कर दिलीप के सामने ही अच्छा बुरा कहना अच्छा नहीं लगा.