Love Stories : प्रेमिका को गद्दे में लपेटा और लगा दी आग

Love Stories : समीर ने विवाहिता सोफिया से प्यार केवल उस का शरीर पाने के लिए किया था. जबकि सोफिया उस के साथ जिंदगी बिताने के सपने देख रही थी. कभी किसी के सपने पूरे हुए हैं जो सोफिया के पूरे होते.

आग भड़की तो धुआं खिड़कियों और दरवाजों की दराजों से बाहर निकलने लगा. पड़ोसियों ने तुरंत इस बात की जानकारी फायर और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने तत्काल इस बात की सूचना मुंबई के उपनगर चैंबूर के थाना पुलिस को दी. सूचना के अनुसार लल्लूभाई कंपाउंड की इमारत की पांचवीं मंजिल के किसी फ्लैट में आग लगी थी. उस में से निकलने वाले धुएं से मानव शरीर के जलने की गंध आ रही थी. उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर माली थे. सूचना गंभीर थी, इसलिए घटना की सूचना अपने सीनियर पुलिस इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को दे कर वह तुरंत कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

सबइंसपेक्टर माली के पहुंचने तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. आग बुझाने वाली गाडि़यां भी आ चुकी थीं और उन्होंने आग पर काबू भी पा लिया था. सबइंसपेक्टर माली साथियों के साथ फ्लैट के अंदर पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर स्तब्ध रह गए. कमरे में एक औरत बेहोशी की हालत में रुई के गद्दे में लिपटी थी. गद्दे के साथ उस के सारे कपड़े ही नहीं, सीना, पेट, हाथ, कमर और दोनों पैर भी बुरी तरह जल गए थे. गौर से देखने पर पता चला कि उस के सिर के ऊपरी हिस्से में गहरा घाव था, जिस से अभी भी खून रिस रहा था. वहां तेज धार वाला एक बड़ा सा खून से सना चाकू पड़ा था. साफ था, पहले हत्यारों ने महिला पर चाकू से वार किया था. उस के बाद सुबूत मिटाने के लिए उसे गद्दे में लपेट कर आग लगा दी थी.

सबइंसपेक्टर माली ने देखा कि महिला की सांस चल रही है तो उन्होंने उसे तुरंत एंबुलैंस में डाल कर उपचार के लिए घाटकोपर राजा वाड़ी असपताल भिजवा दिया. इस के बाद वह सुबूतों की तलाश में फ्लैट का कोनाकोना छानने में लग गए. पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि महिला का नाम सोफिया शेख था. वह अपनी बेटी के साथ वहां रहती थी. श्री माली अपने सहायकों के साथ सोफिया के बारे में जानकारी जुटा रहे थे कि घटना की सूचना पा कर ज्वाइंट सीपी कैसर खालिद, एडिशनल सीपी लखमी गौतम, एसीपी विजय मेरु, सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत, इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े, प्रमोद कदम घटनास्थल पर आ पहुंचे थे.

अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर के सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने सहायकों की मदद से चाकू, खून का नमूना, सोफिया का मोबाइल फोन कब्जे में लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए. थाने आ कर सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत हत्यारों तक पहुंचने का रास्ता तलाश करने लगे. घटनास्थल की स्थिति से साफ था कि यह लूटपाट का मामला नहीं था, क्योंकि फ्लैट का सारा समान यथास्थिति पाया गया था. ऐसे में सावाल यह था कि तब सोफिया की हत्या की कोशिश क्यों की गई थी.

सोफिया इस स्थिति में नहीं थी कि वह इस सवाल का जवाब देती. वह उस समय जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. वैसे भी उस के बचने की संभावना कम थी. आखिर वही हुआ, जिस का सभी को अंदाजा था. लाख कोशिश के बाद भी डाक्टर सोफिया को बचा नहीं सके. उसी दिन शाम लगभग 6 बजे सोफिया ने दम तोड़ दिया था. सोफिया की मौत के बाद हत्यारों के बारे में पता चलने की पुलिस की उम्मीद खत्म हो गई थी. अब उन्हें अपने तरीके से कातिलों तक पहुंचना था. सोफिया की हत्या किस ने और क्यों की, वे कहां के रहने वाले थे? अब पुलिस के लिए यह एक रहस्य बन गया था.

सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को सौंप दी थी. सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े ने इंसपेक्टर प्रमोद कदम, असिस्टेंट इंसपेक्टर पोपट सालुके, सबइंसपेक्टर संदेश मांजरेकर, सिपाही भरत ताझे, राजेश सोनावणे की एक टीम बना कर मामले की तफ्तीश तेजी से शुरू कर दी. चंद्रशेखर की इस टीम ने सोफिया की बेटी, इमारत में रहने वालों और उस के नातेरिश्तेदारों से लंबी पूछताछ की. इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी उस के कातिलों तक पहुंचने का पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला.

जब इस पूछताछ से पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने सोफिया के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस की नजरें काल डिटेल्स के उस नंबर पर जम गईं, जो उस दिन सोफिया पर हमला होने से पहले आया था. वही अंतिम फोन भी था. वह फोन 12 बज कर 03 मिनट पर आया था. सोफिया ने उसे रिसीव भी किया था. इस का मतलब उस समय तक वह जीवित थी. इस के बाद ही उस फ्लैट में आग लगने की सूचना पुलिस और फायरब्रिगेड को दी गई थी. इस का मतलब फोन करने के बाद 15 मिनट के अंदर हत्यारे अपना काम कर के चले गए थे.

इंसपेक्टर चंद्रशेखर की टीम ने एक बार फिर इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. उस समय की तस्वीरों को गौर से देखा गया. लेकिन कोई स्पष्ट तस्वीर पुलिस को दिखाई नहीं दी. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. तब पुलिस ने यह पता किया कि वह नंबर किस के नाम है और वह कहां रहता है? पुलिस को इस संबंध में तुरंत जानकारी मिल गई. वह किसी जावेद के नाम था. पुलिस को उस का पता भी मिल गया था. पुलिस उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर जावेद की बहन और भाभी मिलीं तो पुलिस ने पूछा कि उस का फोन बंद क्यों है? तब दोनों ने बताया कि उस का फोन इन दिनों उस के जिगरी दोस्त पप्पू के पास है. पप्पू का पता भी दोनों ने बता दिया था. इसलिए पुलिस टीम वहां से सीधे पप्पू के घर जा पहुंची.

पप्पू भी घर से गायब था. पुलिस टीम ने उस फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस का उपयोग पप्पू कर रहा था. इस के बाद सर्विलांस की मदद से 12 दिसंबर, 2013 की दोपहर 2 बजे पुलिस टीम ने पप्पू को शिवडी के झकरिया बंदर रोड से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब पप्पू से सोफिया की हत्या के बारे में पूछताछ की जाने लगी तो पहले उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ ढेर सारे सुबूत थे, इसलिए उसे घेर कर सच्चाई उगलवा ली. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि मुन्ना उर्फ परवेज शेख के साथ उसी ने दुबई में रहने वाले समीर के कहने पर सोफिया की हत्या की थी.

इस के बाद पुलिस ने पप्पू की निशानदेही पर घाटकोपर के तिलकनगर के सावलेनगर के रहने वाले मुन्ना को उस के घर छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया. पप्पू के पकड़े जाने से पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों को मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर के 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में दोनों ने जो बताया, उस के अनुसार सोफिया की हत्या की यह कहानी कुछ इस तरह थी. 40 वर्षीया सोफिया शेख अपने 2 बच्चों के साथ चैंबूर मानखुर्द के लल्लूभाई कंपाउंड की बिल्डिंग नंबर 60 की बी-विंग के फ्लैट नंबर 5/3 में रहती थी. उस का 13 वर्षीय बेटा रत्नागिरि के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था और वहीं बोर्डिंग के हौस्टल में रहता था. जबकि 10 वर्षीया बेटी सोफिया के साथ ही रहती थी. घटना के समय वह स्कूल गई हुई थी.

सन 1991 में सोफिया शेख का निकाह चैंबूर के शिवाजीनगर के रहने वाले इमरान हाजीवर शेख के बड़े भाई के साथ हुआ तो मानो उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. इस की वजह यह थी कि उस का पति उसे जान से ज्यादा प्यार करता था. उस का दांपत्यजीवन बड़ी हंसीखुशी से बीत रहा था. दोनों अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक उन की इस गृहस्थी पर किसी की काली नजर पड़ गई. अभी सोफिया के हाथों की मेहंदी भी ठीक से नहीं छूटी थी कि जिस पति ने उस का हाथ थाम कर जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था, वह हाथ ही नहीं, बल्कि हमेशाहमेशा Love Stories के लिए उस का साथ छोड़ कर चला गया. हैवानियत की एक ऐसी आंधी आई, जिस में उस का सुहाग पलभर में उड़ गया. सन 1992 में मुंबई में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस में उस का पति मारा गया था.

पति की आकस्मिक मौत ने सोफिया को तोड़ कर रख दिया. उसे दुनिया से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी नफरत हो गई. वह जीना नहीं चाहती थी, लेकिन आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. वह हमेशा सोच में डूबी रहने लगी. मुसकराने की तो छोड़ो, वह बातचीत भी करना लगभग भूल सी गई थी. उस की हालत देख कर मातापिता परेशान रहने लगे थे. उस ने जिंदगी शुरू की थी कि उस के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था. अभी उस की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की जिंदगी को संवारने के लिए उस के मातापिता उस के दूसरे निकाह के बारे में सोचने लगे.

सोफिया के मातापिता उस का दूसरा निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख से करना चाहते थे. सोफिया की ससुराल वालों से बातचीत कर के जब उस के मातापिता ने इमरान से निकाह का प्रस्ताव सोफिया के सामने रखा तो उस ने मना कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे ऊंचनीच का हवाला दे कर खूब समझायाबुझाया तो वह देवर इमरान हाजीवर शेख के साथ निकाह करने को तैयार हो गई. इस के बाद दोनों परिवारों की उपस्थिति में बड़ी सादगी से सोफिया का निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख के साथ हो गया. यह 1996 की बात थी. इमरान औटो चलाता था.

निकाह के बाद सोफिया अपने दूसरे पति से भी वैसा ही प्यार चाहती थी, जैसा उसे पहले पति से मिला था. यही वजह थी कि वह उसे भी उसी तरह प्यार कर रही थी. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो इमरान ने उसे उसी तरह प्यार किया, जिस तरह उस के पहले पति ने किया था. तब वह अपनी सारी कमाई ला कर सोफिया के हाथों में रख देता था. उस बीच उस ने उस के हर दुखसुख का खयाल भी रखा. उसी बीच सोफिया उस के 2 बच्चों की मां बनी. पहला बच्चा बेटा था तो दूसरा बेटी. बच्चों के बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खर्च बढ़ा, जिस के लिए इमरान को कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा समय देना पड़ता था.

अब वह पहले की तरह न सोफिया को प्यार कर पाता था, न समय दे पाता था. इस से सोफिया का मन बेचैन रहने लगा, जिस से छोटीछोटी बातों को ले कर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे. धीरेधीरे ये झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने अलग रहने का निर्णय ले लिया. इस तरह दोनों के संबंध खत्म हो गए. पति से अलग होने के बाद सोफिया दोनों बच्चों को ले कर मानखुर्द में मुंबई म्हाण द्वारा मिले मकान में आ कर रहने लगी. बच्चों के साथ यहां आ कर सोफिया खुश तो थी, लेकिन एक बात यह भी है कि पति से अलग होने के बाद हर औरत बहुत दिनों तक अपने दिलोदिमाग पर काबू नहीं रख पाती. अगर वह जवान हो तो यह समस्या और बढ़ जाती है. क्योंकि इस उम्र में जो जोश होता, उसे संभालना हर किसी के वश की बात नहीं होती. उस औरत के लिए यह और मुश्किल हो जाता है, जो उस का स्वाद चख चुकी होती है. ऐसे में वह उस सुख के लिए मर्यादा तक भूल जाती है.

ऐसा ही सोफिया Love Stories के साथ भी हुआ. पति इमरान हाजीवर से अलग होने के बाद वह अपने तनमन पर काबू नहीं रख पाई और स्वयं को समीर शेख की बांहों में झोंक दिया. 25 वर्षीय समीर शेख अपने भाई के साथ गोवड़ी शिवाजीनगर के उसी इलाके में रहता था, जहां सोफिया अपने पति इमरान हाजीवर शेख के साथ रहती थी. समीर शेख देखने में जितना सुंदर और स्वस्थ था, उतना ही दिलफेंक भी था. इसी वजह से लड़कियां उस की कमजोरी बन चुकी थीं. समीर के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. वह दुबई की किसी कंपनी में नौकरी करता था. अच्छी कमाई थी, इसलिए खर्च करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह हमेशा हीरो की तरह सजधज कर रहता था. उस की शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी.

अपने दिलफेंक स्वभाव की ही वजह से जब उस ने सोफिया को अपने एक रिश्तेदार के यहां देखा तो पहली ही नजर में उसे अपने दिल में बैठा लिया. कुंवारा समीर अपनी उम्र से बड़ी और 2 बच्चों की मां सोफिया पर मर मिटा. सोफिया जब तक अपने उस रिश्तेदार के घर रही, तब तक महिलाओं को पटाने में माहिर समीर की नजरें सोफिया के इर्दगिर्द ही घूमती रहीं. सोफिया को भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो उस के भटकते तनमन को काबू में ला सके. इसलिए समीर से नजरें मिलते ही उस ने उस के दिल की बात जान ली. सोफिया ने समीर को तब देखा था, जब वह लड़का था. आज वही समीर जवान हो कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था.

समीर का भरापूरा चेहरा, चौड़ी छाती और मजबूत बांहें देख कर सालों से शारीरिक सुख से वंचित सोफिया का मन विचलित हो उठा. वह उसे चाहत भरी नजरों से ताक ही रहा था, इसलिए सोफिया ने भी उस पर अपनी नजरें इनायत कर दीं तो बातचीत में होशियार समीर को उस पर अपना प्रभाव जमाने में देर नहीं लगी. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर भी ले लिए. इस के बाद मोबाइल पर शुरू हुई बातचीत जल्दी ही मेलमुलाकात में ही नहीं, प्यार और शारीरिक संबंधों में बदल गई.

2 बच्चों की मां होने के बावजूद सोफिया की सुंदरता में जरा भी कमी नहीं आई थी. उस के रूपसौंदर्य और शालीन स्वभाव में समीर डूब सा गया. औरतों का रसिया समीर शेख जब तक दुबई में रहता, फोन से बातें कर के सोफिया को अपने Love Stories प्यार में इस कदर उलझाए रहता कि उसे उस की दूरी का अहसास नहीं हो पाता.

दुबई से आने पर समीर सोफिया के लिए ढेर सारे उपहार तो लाता ही, उसे इस कदर प्यार करता कि बीच का खालीपन भर जाता. जब तक वह यहां रहता, सोफिया को इतना प्यार देता कि वह पूरी दुनिया भूली रहती. समीर के प्यार को पा कर सोफिया एक सुंदर भविष्य के सपनों में खो गई. उस के मन में उम्मीद जाग उठी कि समीर उस का पूरे जीवन साथ देगा. समीर ने वादा भी किया था, इसलिए सोफिया उस से निकाह के लिए कहने लगी. जबकि समीर टालता रहा.

जब समीर और अपने से दोगुनी उम्र की सोफिया के प्यार की जानकारी समीर के घर वालों की हुई तो वे परेशान हो उठे. उन्हें इज्जत के साथसाथ उस के भविष्य की भी चिंता सताने लगी. उन्होंने दुनियादारी बता कर उसे समझायाबुझाया तो वह शादी के लिए राजी हो गया. इस के बाद उस के लिए पारिवारिक लड़की खोजी जाने लगी. समीर शादी के लिए तैयार तो हो गया था, लेकिन वह जानता था कि सोफिया आसानी से मानने वाली औरतों में नहीं है. उस ने सिर्फ शारीरिक जरूरत के लिए ही उस से प्यार नहीं किया था. उस ने उसे दिल से प्यार किया था, इसलिए वह जानता था कि सोफिया आसानी से उसे छोड़ने वाली नहीं है.

समीर भले ही उस से शादी का वादा करता रहा था, लेकिन सच्चाई यह थी कि उस ने मात्र शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए सोफिया से प्यार किया था. यही वजह थी कि घर वालों ने उस के लिए लड़की की तलाश शुरू की तो वह सोफिया को ले कर परेशान रहने लगा. क्योंकि वह जानता था कि सोफिया आसानी से तो क्या, बिलकुल ही नहीं मानने वाली. पता चलने पर यह भी हो सकता था कि वह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दे.

तब बदनामी भी होती और समीर कानूनी शिकंजे में भी फंस जाता. इसलिए सोफिया नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से निकालने के लिए उस ने एक खतरनाक फैसला ले कर इस की जिम्मेदारी अपने एक दोस्त पप्पू उर्फ इस्माइल शेख को सौंप दी. इस के बाद वह सोफिया से एक बार फिर शादी का वादा कर के 20 नवंबर, 2013 को दुबई चला गया.

28 वर्षीय पप्पू उर्फ इस्माइल शेख शिवाजीनगर में उसी इमारत में रहता था, जिस में समीर शेख का परिवार रहता था. उस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने लगभग साल भर पहले व्यवसाय करने के लिए समीर से 35 हजार रुपए उधार लिए थे. समीर से रुपए ले कर उस ने जो व्यवसाय किया था, संयोग से वह चला नहीं. फायदा होने की कौन कहे, उस में उस की जमापूंजी भी डूब गई. जब पैसे ही नहीं रहे तो पप्पू समीर का कर्ज कहां से अदा कर पाता. समीर ने रुपए ब्याज पर दिए थे, जो ब्याज के साथ 50 हजार रुपए हो गए थे. समीर ने अपने रुपए मांगे तो पप्पू ने रुपए लौटाने में मजबूरी जताई और कुछ दिनों की मोहलत मांगी. समीर जानता था कि पप्पू जल्दी रुपए नहीं लौटा सकता, इसलिए उस ने मौका देख कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हारा यह कर्ज माफ कर दूंगा.’’

‘‘ऐसा कौन सा काम है, जिस के लिए तुम इतना कर्ज माफ करने को तैयार हो?’’ पप्पू ने पूछा.

‘‘भाई, इतनी बड़ी रकम माफ करने को तैयार हूं तो काम भी बड़ा ही होगा.’’ समीर ने कहा.

‘‘ठीक है, काम बताओ.’’

‘‘सोफिया शेख की हत्या करनी है.’’ समीर ने कहा तो पप्पू को झटका सा लगा. क्योंकि काम काफी खतरनाक था. लेकिन समीर के 50 हजार रुपए देना भी उस के लिए काफी मुश्किल था, इसलिए मजबूरी में वह यह मुश्किल और खतरनाक काम करने को राजी हो गया. इस के बाद सोफिया की हत्या कैसे और कब करनी है, समीर ने पूरी योजना उसे समझा दी.

समीर के दुबई चले जाने के बाद पप्पू उस के द्वारा बनाई योजना को साकार करने की कोशिश में लग गया. यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए मदद के लिए उस ने अपने एक परिचित 15 वर्षीय मुन्ना उर्फ परवेज शेख को साथ ले लिया. इस के बाद अपने दोस्त जावेद का मोबाइल फोन ले कर 9 दिसंबर, 2013 को मुन्ना के घर जा पहुंचा. पूरी रात दोनों समीर द्वारा बताई योजना पर विचार करते रहे.

अगले दिन 10 दिसंबर, 2013 की सुबह पप्पू मुन्ना के साथ बाजार गया और वहां से एक तेज धार वाला बड़ा सा चाकू खरीदा. अब उसे यह पता करना था कि सोफिया घर में है या कहीं बाहर. इस के लिए उस ने सोफिया को फोन किया. उस ने फोन रिसीव किया तो पप्पू ने छूटते ही कहा, ‘‘समीरभाई ने मेरा पासपोर्ट और कुछ जरूरी कागजात तुम्हारे घर पर रखे हैं, मैं उन्हें लेने आ रहा हूं. आप उन्हें ढूंढ़ कर रखें.’’

सोफिया कुछ कहती, उस के पहले ही पप्पू ने फोन काट दिया. इस के बाद पप्पू ने आटो किया और मुन्ना के साथ सोफिया के घर जा पहुंचा. उस ने घंटी बजाई तो सोफिया ने दरवाजा खोल दिया. पप्पू ने अपने पासपोर्ट और कागजातों के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘समीर मेरे पास न तो कोई पासपोर्ट रख गया है न कोई कागजात. जा कर उसी से पूछो, उस ने कहां रखे हैं.’’

इसी बात को ले कर पप्पू सोफिया से बहस करने लगा तो उस ने नाराज हो कर पप्पू को घर से निकल जाने को कहा. तभी पप्पू ने चाकू निकाल कर उस के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. वार इतना तेज था कि सोफिया संभल नहीं पाई और गिर पड़ी. गिरते ही वह बेहोश हो गई. इस के बाद पप्पू और मुन्ना ने सोफिया के सारे गहने उतार कर उसे उसी हालत में गद्दे में लपेट कर आग लगा दी. अपना काम कर के वे बाहर आ गए और काम हो जाने की सूचना समीर को दे दी.

रिमांड अवधि खत्म होने पर एक बार फिर पप्पू और मुन्ना को महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. हत्या की साजिश रचने वाला समीर शेख दुबई में था. पुलिस उसे वहां से भारत बुलाने की कोशिश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Stories : पिता ने दामाद के साथ मिलकर किया बेटी के प्रेमी का कत्ल

Crime Stories :  जिस इज्जत और बेटी की जिंदगी बचाने के लिए सुरेश ने राजू की हत्या की, उस के जेल जाने से इज्जत तो गई ही, बेटी की जिंदगी भी बरबाद हो गई राजू को पड़ोस में रहने वाली सर्वेश से प्यार हुआ तो हर वक्त वह उस की एक झलक पाने की फिराक में रहने लगा. पूरापूरा दिन वह उसे देखने के लिए दरवाजे पर चारपाई डाले पड़ा रहता. वह उस से मिल कर अपने दिल की बात कहना चाहता था. मौके तो उसे तमाम मिले, लेकिन उन मौकों पर वह उस से दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं कर सका.

राजू जिला कांशीरामनगर की कोतवाली खोरो के गांव दतलाना के रहने वाले रामवीर के 2 बेटों में छोटा बेटा था. बड़े बेटे अमर की शादी हो गई थी. शादी के बाद वह खेती के कामों में पिता की मदद करने लगा था. राजू ने हाईस्कूल कर के भले पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन घर का लाडला होने की वजह से घर का कोई काम नहीं करता था. घर का कोई आदमी उस से किसी काम के लिए कहता भी नहीं था. मांबाप के लिए वह अभी भी बच्चा था, इसलिए वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला उन की आंखों से ओझल हो, इसलिए राजू ने दिल्ली जा कर नौकरी करने की इच्छा जताई तो उन्होंने उसे वहां भी नहीं जाने दिया. क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला बेटा अभी से किसी की गुलामी करे. इसलिए कोई कामधाम न होने की वजह से राजू दिनभर इधरउधर भटकता रहता था.

चारपाई पर पड़ेपड़े ही उस की नजर सर्वेश पर पड़ी थी तो कोई कामधाम न होने की वजह से उस की ओर आकर्षित हो गया था. कोई कामधाम न होने की ही वजह से हुआ था. जबकि सर्वेश को वह बचपन से ही देखता आया था. पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था. सर्वेश राजू के पड़ोस में ही रहने वाले सुरेश की बेटी थी. वह कासगंज में किसी मशीनरी स्टोर पर नौकरी करता था, इसलिए सुबह टे्रन से कासगंज चला जाता था तो रात को ही लौटता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी सर्वेश तथा एक बेटा नीरज था. अपने इस छोटे से परिवार को सुखी रखने के लिए वह रातदिन मेहनत करता था.

पड़ोसी होने के नाते सर्वेश और राजू का आमनासामना होता ही रहता था. लेकिन जब से उस के लिए राजू के मन में आकर्षण पैदा हुआ, तब से सर्वेश के सामने पड़ने पर उस का दिल तेजी से धड़कने लगता. राजू अब सर्वेश के लिए बेचैन रहने लगा था. बेचैनी बरदाश्त से बाहर होने लगी तो एक दिन सर्वेश जब अपने दरवाजे पर खड़ी थी तो उस के पास जा कर राजू ने कहा, ‘‘सर्वेश, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं. अगर आज शाम को तुम प्राइमरी स्कूल में आ जाओ तो मैं वह बात कह कर अपने दिल का बोझ हलका कर लूं.’’

‘‘जो बात कहनी है, यहीं कह दो. अंधेरे में वहां जाने की क्या जरूरत है?’’ सर्वेश ने बोली.

‘‘नहीं, वह बात यहां नहीं कही जा सकती. शाम को स्कूल में मिलना.’’ कह कर राजू चला गया.

सर्वेश इतनी भी बेवकूफ नहीं थी कि वह स्कूल में बुलाने का मकसद न समझती. वह सोच में पड़ गई कि उस का वहां जाना ठीक रहेगा या नहीं? वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. उस के मन में भी लालसा उठ रही थी कि वह स्कूल जा कर देखे तो राजू उस से क्या कहता है? वहां जाने में हर्ज ही क्या है? शाम होतेहोते उस ने स्कूल जा कर राजू से मिलने जाने का निर्णय कर लिया. शाम को वह प्राइमरी स्कूल पहुंची तो राजू उसे वहां इंतजार करता मिल गया. राजू ने उस के पास आ कर कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘लेकिन अब बताओ तो सही कि तुम ने मुझे यहां बुलाया क्यों है?’’

राजू ने उस का हाथ पकड़ कह कहा, ‘‘सर्वेश, मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

सर्वेश को पता था कि राजू कुछ ऐसी ही बात कहेगा. लेकिन अभी वह इस के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘यह अच्छी बात नहीं है. अगर यह बात मेरे पापा को पता चल गई तो वह दोनों को ही मार डालेंगे.’’

‘‘अब प्यार हो गया है तो मरने से कौन डरता है. तुम भले ही मुझ से प्यार न करो, लेकिन मैं तुम से प्यार करता रहूंगा.’’ राजू ने कहा.

राजू की इस दीवानगी पर सर्वेश ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो? मुझे मरवाना चाहते हो क्या?’’

‘‘प्यार में आदमी पागल ही हो जाता है. सर्वेश सचमुच मैं पागल हो गया हूं. अगर तुम ने मना किया तो मैं मर जाऊंगा.’’ राजू रुआंसा सा हो कर बोला. प्यार सचमुच दीवाना होता है. इस का नशा दिल और दिमाग में चढ़ने में देर कहां लगती है. राजू ने सर्वेश की जवान उमंगों को हवा दी तो उस पर भी प्यार का सुरूर चढ़ने लगा. उसे राजू की बात भा गई. प्रेमी के रूप में वह उसे अच्छा लगने लगा. लेकिन उसे मांबाप का भी डर लग रहा था. इस के Crime Stories बावजूद उस ने अपना हाथ राजू की ओर बढ़ा दिया.

उसी दिन के बाद यह प्रेमी युगल जिंदगी के रंगीन सपने देखने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते. इन मुलाकातों में दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. लेकिन एक बात का डर तो था ही कि वे कसमें चाहे जितनी खाते, यह इतना आसान नहीं था. मुलाकातों में दोनों इतने करीब आ गए कि उन के शारीरिक संबंध भी बन गए. सर्वेश जानती थी कि उस के मांबाप उस की शादी किसी अच्छे परिवार के कमाने वाले लड़के से करना चाहते हैं. जबकि राजू कोई कामधाम नहीं करता था. वह ज्यादा पढ़ालिखा भी नहीं था. इसलिए किसी दिन एकांत में मिलने पर उस ने राजू से कहा, ‘‘राजू, अगर तुम मुझे पाना चाहते हो तो अपने पिता की खेती संभालो या फिर कोई नौकरी कर लो. तभी हमारे घर वाले मेरा हाथ तुम्हें दे सकते हैं.’’

गांव में कोई नौकरी तो थी नहीं, खेती वह कर नहीं सकता था. इसलिए उस ने कहा, ‘‘सर्वेश, मैं तुम से दूर जाने की सोच भी नहीं सकता. खेती मुझ से हो नहीं सकती. लेकिन तुम कह रही हो तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा.’’

राजू और सर्वेश अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचा पाते, उस के पहले ही लोगों की नजर उन पर पड़ गई. गांव के किसी आदमी ने दोनों को एकांत में मिलते देख लिया. उस ने यह बात सुरेश को बताई तो घर आ कर उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने पत्नी को भी डांटा और सर्वेश को भी. उस ने सर्वेश को चेतावनी भी दे दी, ‘‘अब तुम अकेली कहीं नहीं जाओगी.’’

सुरेश जानता था कि बेटी इतनी आसानी से नहीं मानेगी. इसलिए खाना खा कर वह पत्नी मोहिनी के पास लेटा तो चिंतित स्वर में बोला, ‘‘मुझे लगता है, अब हमें सर्वेश की शादी कर देनी चाहिए. क्योंकि अगर कोई ऊंचनीच हो गई तो हम गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रह पाएंगे.’’

‘‘मैं भी यही सोच रही हूं. आप लड़का देख कर उस की शादी कर दीजिए. सारा झंझट अपने आप खत्म हो जाएगा.’’ मोहिनी ने कहा.

सुरेश ने रामवीर से भी कहा था कि वह राजू को सर्वेश से मिलने से रोके. गांव का मामला था, इसलिए रामवीर को राजू को डांटाफटकारा ही नहीं, गांव के लड़कों के साथ दिल्ली भेज दिया. वे लड़के पहले से ही दिल्ली में रहते थे. उन्होंने राजू को भी दिल्ली में नौकरी दिलवा दी. राजू दिल्ली चला गया तो सुरेश को थोड़ी राहत महसूस हुई. उस ने सोचा कि राजू के वापस आने से पहले वह अगर सर्वेश की शादी कर दे तो ठीक रहेगा. किसी रिश्तेदार की मदद से उस ने अलीगढ़ के थाना दादों के गांव बरतोलिया के रहने वाले डोरीलाल के बेटे भूरा से सर्वेश की शादी तय कर दी.

डोरीलाल का खातापीता परिवार था. बेटा भूरा गुजरात में रहता था. सुरेश का सोचना था कि शादी के बाद भूरा सर्वेश को ले कर गुजरात चला जाएगा तो वह पूरी तरह से निश्चिंत हो जाएगा. यही सब सोच कर सुरेश ने सर्वेश की शादी भूरा से कर दी. सर्वेश की शादी की जानकारी राजू को हुई तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ. सर्वेश ने कसम तो उस के साथ जीनेमरने की खाई थी, फिर उस ने दूसरे से शादी क्यों कर ली. प्रेमिका की बेवफाई पर उसे बहुत गुस्सा आया. इस के बाद उस का मन नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ कर गांव आ गया.

राजू का आना मांबाप को बहुत अच्छा लगा. अब उन्हें चिंता भी नहीं थी, क्योंकि सर्वेश की शादी हो गई थी. लेकिन राजू काफी तनाव में था. वह सर्वेश से मिलना चाहता था, लेकिन वह ससुराल में थी. इसलिए तनाव कम करने के लिए उस ने शराब का सहारा लिया. कुछ दिनों बाद भूरा अपनी नौकरी पर गुजरात चला गया तो सुरेश सर्वेश को लिवा लाया. राजू को सर्वेश के आने का पता चला तो वह उस से मिलने की कोशिश करने लगा. चाह को राह मिल ही जाती है, राजू को भी सर्वेश मिल गई. सुरेश अपनी नौकरी पर कासगंज चला गया था तो मोहिनी दवा लेने डाक्टर के पास गई थी. उसी बीच सर्वेश ने राजू को गली में जाते देखा तो घर के अंदर बुला लिया. अंदर आते ही राजू ने कहा, ‘‘तुम बेवफा कैसे हो गई सर्वेश?’’

‘‘मैं बेवफा कहां हुई. बेवफा होती तो तुम्हें क्यों बुलाती. मेरी मजबूरी थी. किस के भरोसे मैं विरोध करती. तुम दिल्ली में थे और तुम्हें संदेश देने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था. भूरा से शादी कर के मैं बिलकुल खुश नहीं हूं. तुम कुछ करो वरना मैं मर जाऊंगी.’’

‘‘अभी तुम्हें थोड़ा इंतजार करना होगा. पहले मैं कामधाम की व्यवस्था कर लूं. उस के बाद तुम्हें अपने साथ दिल्ली ले चलूंगा.’’ राजू ने कहा.

सर्वेश को राजू पर पूरा भरोसा था. इसलिए उस ने उस की यह बात भी मान ली और मौका निकाल कर उस से मिलने लगी. उन के इस तरह एकांत में मिलने की जानकारी सुरेश को हुई तो वह परेशान हो उठा. शादीशुदा बेटी पर वह हाथ भी नहीं उठा सकता था. क्योंकि बात खुल जाती तो उसी की बदनामी होती. दामाद गुजरात में था. वह चाहता था कि दामाद सर्वेश को अपने साथ ले जाए. उस ने यह बात भूरा से कही भी. तब भूरा ने कहा, ‘‘बाबूजी, मेरी इतनी कमाई नहीं है कि मैं पत्नी को अपने साथ रख सकूं. इसलिए सर्वेश को अभी वहीं रहने दो.’’

सुरेश दामाद को असली बात बता भी नहीं सकता था. बहरहाल इज्जत बचाने के लिए वह सर्वेश को उस की ससुराल पहुंचा आया. लेकिन इस से भी उस की परेशानी दूर नहीं हुई, क्योंकि राजू सर्वेश से मिलने उस की ससुराल भी जाने लगा. ससुराल में पति नहीं था, इसलिए सर्वेश का जब मन होता, मायके आ जाती. मायके आने पर सुरेश सर्वेश पर नजर तो रखता था, लेकिन वह राजू से मिल ही लेती थी. इसी का नतीजा था कि एक रात सुरेश ने छत पर सर्वेश को राजू के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया.

सुरेश को देख कर राजू तो भाग गया, लेकिन सर्वेश पकड़ी गई. वह उसे खींचता हुआ नीचे लाया और फिर उस की जम कर पिटाई की. सुरेश की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपनी बेटी को राजू से मिलने से रोके. उस ने उस की शादी भी कर दी थी. इस के बावजूद सर्वेश ने उस से मिलना बंद नहीं किया था.

काफी सोचविचार कर सुरेश भूरा के आने का इंतजार करने लगा. वह जानता था कि एक न एक दिन दामाद को बेटी की करतूतों का पता चल ही जाएगा. तब वह सर्वेश को छोड़ भी सकता था. ऐसे में सर्वेश की जिंदगी तो बरबाद होती ही, बदनामी भी होती. इसलिए उस ने सोचा कि वह खुद ही दामाद को सब कुछ बता कर कोई उचित राय मांगे. इस के बाद भूरा गांव आया तो उस ने कहा, ‘‘बेटा भूरा, गांव का ही राजू सर्वेश के पीछे पड़ा है. मैं ने कई बार उसे समझाया, लेकिन वह मानता ही नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मैं उस से बात करता हूं.’’ भूरा ने कहा.

‘‘इस तरह बात करने से काम नहीं चलेगा. इस से हमारी ही बदनामी होगी. मैं इस कांटे को जड़ से ही खत्म कर देना चाहता हूं, जिस से सर्वेश और तुम चैन से जिंदगी जी सको.’’ सुरेश ने कहा.

भूरा को भी ससुर की बात उचित लगी. फिर दोनों ने राजू को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत भूरा सर्वेश को लिवा कर अपने यहां चला गया.

इस के सप्ताह भर बाद ही थाना खोरों के थानाप्रभारी रामअवतार कर्णवाल को उठेर बांध के पास एक कंकाल के पड़े होने की सूचना मिली. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. नरकंकाल सिरविहीन था. कंकाल के पास एक बनियान और पैंट पड़ी थी. उन्हें याद आया कि 7 दिनों पहले दतलाना के रहने वाले रामवीर के भाई फूल सिंह ने भतीजे राजू की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. उन्होंने सूचना दे कर फूल सिंह को वहीं बुला लिया. कंकाल से तो कुछ पता चल नहीं सकता था, उस के पास पड़े पैंट को देख कर फूल सिंह ने बताया कि यह पैंट उस के भतीजे राजू की है.

फूल सिंह ने राजू की हत्या का संदेह सुरेश पर व्यक्त किया था. उस ने पुलिस को वजह भी बता दी थी कि राजू के संबंध उस की बेटी सर्वेश से थे. थानाप्रभारी ने सुरेश को बुलाने के लिए सिपाही भेजा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. वह दामाद के साथ गुजरात चला गया था. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि राजू की हत्या कर के सुरेश गुजरात भाग गया था. कपड़ों के अनुसार कंकाल राजू का ही हो सकता था, लेकिन पक्के सुबूत के लिए उस की डीएनए जांच जरूरी थी. डीएनए जांच के लिए हड्डियां विधि विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ भेज दी गईं. रिपोर्ट आने से पहले रामअवतार कर्णवाल का तबादला हो गया. उन की जगह पर आए सुरेश कुमार.

जनवरी महीने में डीएनए रिपोर्ट आई तो पता चला कि वह कंकाल रामवीर के बेटे राजू का ही था. पुलिस को सुरेश पर ही नहीं, उस के दामाद भूरा, गंगा सिंह और रूप सिंह पर भी संदेह था. क्योंकि ये सभी उसी समय से गायब थे. संयोग से उसी बीच गंगा सिंह गांव आया तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने राजू की Crime Stories हत्या का सारा राज उगल दिया. गंगाराम ने बताया था कि 1 अक्तूबर की शाम को भूरा ने राजू को शराब और मुर्गे की दावत के लिए बुलाया. उस दावत में राजू को इतनी शराब पिला दी गई कि उसे होश ही नहीं रहा. इस के बाद उस की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

उस की लाश Crime Stories को ठिकाने लगाने के लिए उठेर बांध पर ले जाया गया, जहां उस के सिर को धड़ से अलग कर दिया गया. सिर को नहर में फेंक दिया गया, जबकि धड़ को बांध के पास ही छोड़ दिया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने गंगा सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने मोहिनी से फोन करा कर सुरेश को बहाने से गांव बुलवाया और उसे भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी राजू की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का कहना था कि इज्जत और बेटी की जिंदगी बचाने की खातिर उस ने यह कदम उठाया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक भूरा और रूप सिंह पकड़े नहीं जा सके थे. शायद उन्हें गंगा सिंह और सुरेश के पकड़े जाने की जानकारी हो गई थी, इसलिए पुलिस के बहाने से लाख बुलाने पर भी वे गांव नहीं आए. दोनों गुजरात में कहीं छिपे हैं. सुरेश ने जिस इज्जत को बचाने के लिए यह कू्रर कदम उठाया, राज खुलने पर इज्जत तो गई ही, सब के सब जेल भी पहुंच गए. बेटी की भी जिंदगी बरबाद हुई. एक तरह इसे नासमझी ही कहा जाएगा. अगर वह चाहता तो किसी और तरीके से इस मामले को सुलझा सकता था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Stories in Hindi : शादीशुदा प्रेमिका ने रची खौफनाक साजिश

Murder Stories in Hindi : आशा पति से जिन संबंधों को छिपा कर उस की नजरों में पाक साफ बनी रहना चाहती थी, प्रेमी की हत्या करने के बाद उन संबंधों के बारे में पति को ही नहीं पूरी दुनिया को पता चल गया…

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना औरास के अंतर्गत आने वाले गांव गागन बछौली का रहने वाला उमेश कनौजिया बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का था. इसी वजह से उस का सामाजिक और राजनीतिक दायरा काफी बड़ा था. उन्नाव ही नहीं, इस से जुड़े लखनऊ और बाराबंकी जिलों तक उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. वह अपने सभी परिचितों के ही सुखदुख में नहीं बल्कि पता चलने पर हर किसी के सुखदुख में पहुंचने की कोशिश करता था. उस की इसी आदत ने ही उसे इतनी कम उम्र में क्षेत्र का नेता बना दिया था. मात्र 25 साल की उम्र में वह जिला पंचायत सदस्य बना तो इस उम्र का कोई दूसरा सदस्य पूरे जिले में नहीं था.

नेता बनने की यह उस की पहली सीढ़ी थी. वह और आगे बढ़ना चाहता था, इसलिए उस ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया था. वैसे तो उस ने यह चुनाव भाजपा के समर्थन से जीता था, लेकिन उस के संबंध लगभग हर पार्टी के नेताओं से थे. इस की वजह यह थी कि उस की कोई ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं थी कि लोग उसे नेता मान लेते. उस के पिता सूबेदार कनौजिया दुबई में नौकरी करते थे. उमेश भी पढ़लिख कर नौकरी करना चाहता था, लेकिन जब उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो वह छुटभैया नेता बन कर गांव वालों की सेवा करने लगा. उसी दौरान उस की जानपहचान कुछ नेताओं से हुई तो वह भी नेता बनने के सपने देखने लगा. उस का यह सपना तब पूरा होता नजर आया, जब जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने पर भाजपा ने उस का समर्थन कर दिया.

उमेश अपनी मेहनत और जनता की सेवा कर के नेता बना था. वह राजनीति में लंबा कैरियर बनाना चाहता था, इसलिए अपने क्षेत्र की जनता से ही नहीं, क्षेत्र के लगभग सभी पार्टी के नेताओं से जुड़ा था. उस का सोचना था कि कभी भी किसी की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में उस के निजी संबंध ही काम आएंगे. इस का उसे लाभ भी मिल रहा था. बसपा के सांसद ब्रजेश पाठक उसे भाई की तरह मानते थे. उन्नाव के विकास खंड औरासा के वार्ड नंबर 2 से जिला पंचायत सदस्य चुने जाने के बाद उमेश ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा था. अपनी कार्यशैली की वजह से ही वह कम समय में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था.

उत्तर प्रदेश का जिला उन्नाव लखनऊ और कानपुर जैसे 2 बड़े शहरों को जोड़ने का काम करता है. यह लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर है तो कानपुर से मात्र 20 किलोमीटर दूर. एक तरफ प्रदेश की राजधानी है तो दूसरी ओर कानपुर जैसा महानगर है. इस के बावजूद इस की गिनती पिछड़े जिलों में होती है. शायद यही वजह है कि यहां नशा और अपराध अन्य शहरों की अपेक्षा ज्यादा हैं. जिला भले ही पिछड़ा है, लेकिन कानपुर और लखनऊ की सीमा से जुड़ा होने की वजह से यहां की जमीन काफी महंगी है. इसलिए यहां के लोग अपनी जमीनें बेच कर अय्याशी करने लगे हैं. इस के अलावा गांवों के विकास के लिए पंचायती राज कानून लागू होने की वजह से गांवों में सरकारी योजनाओं का पैसा भी खूब आ रहा है, जिस से पंचायतों से जुड़े लोग प्रभावशाली बनने लगे हैं.

यही सब देख कर युवा चुनाव की ओर आकर्षित होने लगे हैं. वे चुनाव जीत कर समाज और राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. उमेश कनौजिया भी कुछ ऐसा ही सोच नहीं रहा था, बल्कि इस राह पर उस ने कदम भी बढ़ा दिए थे. लेकिन उस का यह सपना पूरा होता, उस के साथ एक हादसा हो गया. 14 नवंबर, 2013 की सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना मलिहाबाद के गांव गढ़ी महदोइया के लोगों ने गांव के बाहर शारदा सहायक नहर के किनारे एक लाश पड़ी देखी. मृतक यही कोई 25-26 साल का था. वह धारीदार सफेदनीला स्वेटर, नीली जींस और हरे रंग की शर्ट पहने था. उस के दाहिने हाथ में कलावा बंधा था, जिस का मतलब था कि वह हिंदू था. उस के गले पर रस्सी का निशान साफ नजर आ रहा था. जिस से साफ था कि उस की हत्या की गई थी. हालांकि उस के दाहिने गाल से खून भी बह रहा था.

लाश से थोड़ी दूरी पर एक पैशन प्रो मोटरसाइकिल भी पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी 32 ईवाई 1778 था. उस में चाबी लगी थी. पहली नजर में देख कर यही कहा जा सकता था कि यह दुर्घटना का मामला है. लेकिन गले पर जो रस्सी का निशान था, उस से अंदाजा साफ लग रहा था कि यह एक्सीडेंट नहीं, हत्या का मामला  है. जिन लोगों ने लाश देखी थी, उन्हें लगा कि यह हत्या का मामला है तो उन्होंने इस बात की सूचना ग्रामप्रधान को दी. उस समय सुबह के यही कोई 7 बज रहे थे. ग्रामप्रधान के पति राजेश कुमार ने नहर के किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना मलिहाबाद पुलिस को दी तो एसएसआई श्याम सिंह सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, तो वहां जमा लोगों में से कोई भी उस की पहचान नहीं कर सका. लाश के कपड़ों की तलाशी में भी ऐसा कोई सामान नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती. मोटरसाइकिल के नंबर से अंदाजा लगाया गया कि मृतक लखनऊ का रहने वाला है, क्योंकि उस पर पड़ा नंबर लखनऊ का ही था. संयोग से मोटरसाइकिल की डिग्गी खोली गई तो उस में से उस के कागजात मिल गए. मोटरसाइकिल उमेश कनौजिया के नाम रजिस्टर्ड थी. उस पर पता एकतानगर, थाना ठाकुरगंज, लखनऊ का था. इस से साफ हो गया कि मारा गया युवक लखनऊ का ही रहने वाला था.

थाना मलिहाबाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद एसएसआई श्याम सिंह ने घटना की सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को एकता नगर भेज दिया. थाना मलिहाबाद के सिपाहियों ने थाना ठाकुरगंज के एकतानगर पहुंच कर उमेश कनौजिया के बारे में पता किया तो वहां पर उस की मौसी शशिकला मिलीं. पुलिस वालों ने जब उमेश की लाश मिलने की बात उन्हें बताई तो वह बेहोश हो गईं. घर वाले पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में ले आए तो उन्होंने बताया, ‘‘उमेश हमारी बहन का बेटा है. वह उन्नाव का रहने वाला है. जब वह मेरे यहां रह कर पढ़ाई कर रहा था, तभी उस ने यह मोटरसाइकिल खरीदी थी. इसीलिए उस के कागजातों में मेरा पता लिखा है.’’

इस के बाद पुलिस वालों ने शशिकला से उमेश के घर वालों का फोन नंबर ले कर उमेश की मौत की सूचना उस के घर वालों को दी. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही उमेश के घर वाले थाना मलिहाबाद पहुंच गए. उमेश के पिता सूबेदार कनौजिया ने उमेश की हत्या किए जाने की बात कह कर 2 लड़कों के नाम भी बताए. लेकिन थाना मलिहाबाद पुलिस का कहना था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद ही हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाएगा. इस पर उमेश के घर वाले भड़क उठे. धीरेधीरे यह बात फैलने लगी कि जिला पंचायत सदस्य उमेश कनौजिया की हत्या हो गई है और थाना मलिहाबाद पुलिस मुकदमा दर्ज करने में आनाकानी कर रही है. मलिहाबाद उन्नाव की सीमा से जुड़ा है, इसलिए खबर मिलने के बाद मृतक उमेश की जानपहचान वाले थाना मलिहाबाद पहुंचने लगे.

15 नवंबर, 2013 की सुबह से ही हत्या का मुकदमा दर्ज करने के लिए धरनाप्रदर्शन शुरू हो गया. अब तक शव घर वालों को मिल चुका था. घर वालों ने बसपा सांसद ब्रजेश पाठक, भाजपा के पूर्व विधायक मस्तराम, किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह के नेतृत्व में रहीमाबाद चौराहे पर लाश रख कर रास्ता रोक दिया. सांसद ब्रजेश पाठक का कहना था कि समाजवादी पार्टी के राज में पुलिस आम जनता की नहीं सुन रही है, इसलिए ऐसा करना पड़ रहा है. जाम लगने से आनेजाने वाले ही नहीं, रहीमाबाद कस्बे के लोग भी परेशान हो रहे थे. जाम लगाने वाले लोग उमेश कनौजिया के हत्यारों को गिरफ्तार करने, थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह को निलंबित करने, पीडि़त परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने और उमेश के छोटे भाई सुधीर को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे थे. जाम का नेतृत्व कर रहे नेताओं को लग रहा था कि उन के इस आंदोलन से राजनीतिक लाभ मिल सकता है, इसलिए वे आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे.

जाम लगाए लोगों को हटाने के लिए रहीमाबाद चौकी के प्रभारी अनंतराम सिपाही ज्ञानधर यादव, छेदी यादव, अशोक और होमगार्ड श्रीपाल यादव को साथ ले कर वहां पहुंचे तो गुस्साए लोगों ने अनंतराम और उन के साथ आए सिपाहियों के साथ मारपीट कर के उन्हें भगा दिया. इस बात की सूचना लखनऊ के एसपी (ग्रामीण) सौमित्र यादव, क्षेत्राधिकारी (मलिहाबाद) श्यामकांत त्रिपाठी और इंसपेक्टर (मलिहाबाद) जे.पी. सिंह को मिली तो आसपास के 3 थानों की पुलिस रहीमाबाद भेज दी गई. काफी समझानेबुझाने और भरोसा दिलाने के बाद लगभग 4 घंटे बाद जाम खुला. तब रहीमाबाद के लोगों ने राहत की सांस ली. इस के बाद उमेश के घर वाले उस का शव अंतिम संस्कार के लिए ले कर गांव चले गए. उस समय तो यह खतरा टल गया, लेकिन पुलिस को अंदेशा था कि अगले दिन भी राजनीतिक लोग इस घटना का लाभ उठाने के लिए धरनाप्रदर्शन कर सकते हैं.

इसी बात पर विचार कर के लखनऊ के एसएसपी जे. रवींद्र गौड ने मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए अपने मातहत अधिकारियों पर दबाव बनाया. इस के बाद थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह ने उमेश के घर वालों से मिल कर यह जानने की कोशिश की कि उन की किसी से रंजिश तो नहीं है. लेकिन घर वालों ने किसी भी तरह की राजनीतिक या पारिवारिक रंजिश से इनकार कर दिया. उमेश के पास इतना पैसा भी नहीं था कि लूटपाट के लिए उस की हत्या की जाती. वह पैसे का भी लेनदेन नहीं करता था. अब पुलिस के पास उमेश हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने का एकमात्र सहारा उस का मोबाइल फोन था.

पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस के अध्ययन से पता चला कि 13 नवंबर को एक ही नंबर पर उस ने 32 बार फोन किया था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर जिला उन्नाव के थाना हसनगंज के गांव शाहपुर तोंदा की रहने वाली आशा का निकला. आशा का विवाह थाना मलिहाबाद के अंतर्गत आने वाले गांव सिंधरवा के रहने वाले राजू से हुआ था. राजू दुबई में लांड्री का काम करता था. आशा यहीं रहती थी. पति बाहर रहता था, इसलिए वह ससुराल में कम, मायके शाहपुर तोंदा में ज्यादा रहती थी. उमेश का उस के यहां नियमित आनाजाना  था. जब भी आशा मायके में रहती, उमेश उस से मिलने के लिए दूसरेतीसरे दिन आता रहता था. अगर किसी वजह से वह नहीं आ पाता था तो उसे फोन जरूर करता था.

दरअसल आशा कनौजिया की मां महेश्वरी देवी ने भी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था. उमेश बिरादरी का नेता माना जाता था, इसलिए महेश्वरी देवी उमेश को अपने साथ रखने लगी थी. उसे लगता था कि उमेश साथ रहेगा तो बिरादरी के वोट उसे मिल जाएंगे. चुनाव महेश्वरी देवी लड़ रही थी, लेकिन उस का पूरा कामकाज पति प्रकाश कनौजिया देखता था. यही वजह थी कि उमेश और प्रकाश में गहरी छनने लगी थी. प्रकाश कनौजिया को भी लगता था कि उमेश के साथ रहने से बिरादरी का सारा वोट उसे ही मिलेगा.

चुनाव के दौरान महेश्वरी देवी के यहां आनेजाने में उमेश की नजर उस की 24 वर्षीया विवाहित बेटी आशा पर पड़ी तो वह उसे भा गई. भरेपूरे बदन वाली आशा पर उमेश की नजरें गड़ गईं. फिर तो जल्दी ही आशा की भी उमंगें हिलोरे लेने लगीं. यही वजह थी कि जल्दी ही दोनों के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उमेश स्मार्ट और खुशदिल इंसान था. अपने इसी स्वभाव की बदौलत वह आशा को भा गया था. चुनाव के दौरान अकसर दोनों का एकसाथ आनाजाना होता रहा. उसी बीच एकांत मिलने पर दोनों ने अपने इस प्रेमसंबंध को शारीरिक संबंध में तबदील कर दिया था.

समय के साथ उमेश और आशा के संबंध प्रगाढ़ हुए तो उमेश आशा को अपनी जागीर समझने लगा. जबकि आशा को यह बिलकुल पसंद नहीं था. क्योंकि आशा के संबंध कुछ अन्य लोगों से भी थे. यही बात उमेश को पसंद नहीं थी. वह चाहता था कि आशा उस के अलावा किसी और से संबंध न रखे. इस के लिए उस ने आशा को रोका भी, लेकिन वह नहीं मानी. उस का कहना था कि वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है, वह उसे रोकने वाला कौन होता है. उमेश के पास आशा के पति राजू का दुबई का फोन नंबर था. कभीकभी राजू की उस से बात भी होती रहती थी. आशा ने उमेश का कहना नहीं माना तो उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली.

एक दिन जब उस के पास राजू का फोन आया तो उमेश ने उस से बता दिया कि यहां आशा के कई लोगों से प्रेमसंबंध हैं. इस के बाद राजू और आशा में जम कर तकरार हुई. उमेश की यह हरकत आशा को बिलकुल पसंद नहीं आई. उस का इस तरह जिंदगी में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा तो उस ने उमेश को फोन कर के कहा, ‘तुम ने हमारे बारे में झूठ बोल कर राजू से मेरी जो लड़ाई कराई है, यह मुझे अच्छा नहीं लगा.’ अब तुम मुझ से न तो मिलने की कोशिश करना और न ही मुझे फोन  करना.

‘‘आशा, तुम मेरी बात का बेकार ही बुरा मान रही हो. मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसलिए चाहता हूं कि तुम मेरे अलावा किसी और से न मिलो.’’ उमेश ने सफाई दी.

‘‘लेकिन राजू से शिकायत कर के तुम ने मुझे उस की नजरों में गिरा दिया. वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा? शक तो वह पहले से ही करता था. अब उसे विश्वास हो गया कि मैं सचमुच गलत हूं.’’ आशा ने झल्ला कर कहा.

‘‘मैं गुस्से में था, इसलिए मुझ से गलती हो गई. अब ऐसा नहीं होगा. तुम मुझे समझने की कोशिश करो आशा.’’ उमेश ने आशा को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम्हारी यह पहली गलती नहीं है. इस के पहले तुम ने मेरे साथ मारपीट की थी, मैं ने उस का भी बुरा नहीं माना था. लेकिन यह जो किया, अच्छा नहीं किया. यह गलती माफ करने लायक नहीं है. मैं तुम जैसे आदमी से अब संबंध नहीं रखना चाहती.’’ आशा ने कहा.

‘‘आशा, 13 नवंबर को मैं तुम से मिलने आ रहा हूं. तब बैठ कर आराम से बातें कर लेंगे.’’ उमेश ने कहा.

‘‘मैं तुम से बिलकुल नहीं मिलना चाहती, इसलिए तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’ आशा ने उसे आने से रोका.

‘‘आशा इतना भी नाराज मत होओ बस एक बार मेरी बात सुन लो, उस के बाद सब साफ हो जाएगा. बात इतनी बड़ी नहीं है, जितना तुम बना रही हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भले ही यह बात बड़ी नहीं है, लेकिन मेरे लिए यह बड़ी बात है. मैं अभी तक तुम्हारी हरकतें नजरअंदाज करती आई थी, यह उसी का नतीजा है. लेकिन अब बरदाश्त के बाहर हो गया है.’’ कह कर आशा ने फोन काट दिया.

13 नवंबर को उमेश आशा से मिलने उस के घर जाने वाला था. 14 नवंबर को बाराबंकी में उस के दोस्त पंकज के यहां शादी थी. उमेश ने योजना बनाई थी कि वह आशा से मिलते हुए दोस्त के यहां शादी में चला जाएगा. 13 नवंबर की शाम को यही कोई 7 बजे उमेश ने अपने घर फोन कर के बताया भी था कि वह मलिहाबाद में अपने दोस्त से मिल कर बाराबंकी चला जाएगा. इस के बाद उमेश ने घर वालों से संपर्क नहीं किया. रात में उस के छोटे भाई सुधीर ने उसे फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. 13 नवंबर को उमेश ने दिन में 32 बार फोन कर के आशा को मनाने की कोशिश की थी. लेकिन आशा को अब उमेश से नफरत हो गई थी. उमेश ने उस के साथ जो किया था, अब वह उस से उस का बदला लेना चाहती थी.

आशा के संबंध गांव के ही रहने वाले रामनरेश, शकील और हरौनी के रहने वाले छोटे उर्फ पुत्तन से थे. आशा ने इन्हीं लोगों की मदद से उमेश से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाने का निश्चय कर लिया था. शाम को जब उमेश आशा से मिलने उस के घर पहुंचा तो आशा ने उस के साथ ऐसा व्यवहार किया, जैसे उस से उसे कोई शिकायत नहीं है. उस ने उसे खाना खिलाया और सोने के लिए बिस्तर भी लगा दिया. सोने से पहले उमेश ने शारीरिक संबंध की इच्छा जताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद आशा ने उस की यह इच्छा भी पूरी कर दी. आशा की यही अदा उमेश को अच्छी लगती थी. आशा के इस व्यवहार से उमेश को लगा कि वह मान गई है. वह उसे बांहों में लिएलिए ही निश्चिंत हो कर सो गया.

उमेश के सो जाने के बाद आशा उठी और अपने कपड़े ठीक कर के घर के बाहर आई. उस ने गांव का माहौल देखा. गांव में सन्नाटा पसर गया था. उस ने रामनरेश, शकील और छोटे को पहले से ही तैयार कर रखा था. उन के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘चलो उठो, वह सो चुका है. गांव में भी सन्नाटा पसर गया है. जल्दी से उसे खत्म कर के लाश ठिकाने लगा दो.’’

रामनरेश और आशा ने उमेश के पैर पकड़े तो छोटे ने हाथ पकड़ लिए. उस के बाद शकील ने गला दबा कर उसे खत्म कर दिया. छोटे महदोइया गांव का ही रहने वाला था, इसलिए उसे गांव की एकएक गली का पता था. सभी ने मिल कर उमेश की लाश को टैंपो नंबर 35 ई 8902 में डाला और ले जा कर गांव से काफी दूर नहर के किनारे फेंक दिया. शकील और छोटे टैंपो के पीछेपीछे उमेश की मोटरसाइकिल ले कर गए थे. उसे भी वहीं डाल दिया था. लाश ले जाने से पहले आशा ने उमेश की पैंट की जेब से मोबाइल और पर्स निकाल लिया था, जिस से उस की पहचान न हो सके.

शकील और छोटे ने उमेश की लाश को नहर के किनारे इस तरह फेंका था कि देखने वालों को यही लगे कि रात में दुर्घटना की वजह से इस की मौत हुई है. अपनी इस योजना में वे सफल भी हो गए थे, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पोल खुल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस की मौत Murder Stories in Hindi गला दबाने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर के मामले की जांच शुरू की तो हत्यारों तक पहुंचने में उसे देर नहीं लगी. आशा से पूछताछ के बाद पुलिस ने रामनरेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस शकील और छोटे की तलाश कर रही थी, लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों पुलिस के हाथ नहीं लगे थे. पुलिस हत्या के इस मामले में आशा के मांबाप की भूमिका की भी जांच कर रही है. आशा ने जो किया, उस से उमेश का ही नहीं, उस का खुद का भी परिवार छिन्नभिन्न हो गया. जिस पति से वह अपने जिन संबंधों को छिपाना चाहती थी, उमेश की हत्या के बाद पति को ही नहीं, पूरी दुनिया को पता चल गया. अब उस का क्या होगा, यह तो अदालत के फैसले के बाद ही पता चलेगा.

Jiah Khan : लव स्टोरी से हत्या तक की अनसुलझी कहानी

Jiah Khan : ऐक्ट्रैस जिया खान न सिर्फ खूबसूरत थी, बौलीवुड की जानीमानी अदाकारा थी. मगर इस ऐक्ट्रैस के साथ ऐसा क्या हुआ कि वह मौत के मुंह में चली गई, जान कर हैरान रह जाएंगे।

यों माना जाता है कि जिया खान ने आत्महत्या की थी, लेकिन ऐसा अभिनेत्री की मां का ऐसा मानना नहीं था. उन का मानना था कि जिया की हत्या कराई गई है और यह हत्या उस के बौयफ्रैंड सूरज पंचोली के इशारे पर की गई थी. हालांकि इस के बाद पुलिस ने सूरज पंचोली को अरेस्ट कर लिया मगर पुख्ता सुबूत नहीं मिलने पर बाद में उसे रिहा कर दिया गया. मामला कोर्ट में भी चला मगर 10 साल बाद सूरज पंचोली को रिहा कर दिया गया.

प्यार और धोखा

बात 3 जून, 2013 की है जब जिया खान मुंबई के जुहू स्थित घर में मृत मिली थी. जिया जब मृत पाई गई थी तब उस के घर पर 6 पन्नों की एक चिट्ठी मिली थी। यह चिट्ठी जिया खान ने अपने बौयफ्रैंड सूरज पंचोली के लिए लिखी थी. इस के बाद पुलिस ने सूरज को अरैस्ट कर लिया और जिया की मां राबिया ने अदालत में आरोप लगाया कि उस की बेटी को आत्महत्या के लिए सूरज ने उकसाया था और उस की बेटी ने आत्महत्या नहीं की, उस की हत्या की गई है.

हत्या या आत्महत्या

लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया था कि जिया की मौत फांसी के फंदे पर लटकने से हुई है. इस के बाद जुलाई 2013 को सूरज को जमानत दे दी गई और बाद में सूरज पंचोली को बरी भी कर दिया गया.

फिर भी राबिया ने (Jiah Khan) जिया खान की मौत की जांच कराने के लिए अदालत में सीबीआई जांच की गुहार लगाई.

इस के बाद 2014 में राबिया के द्वारा लगाई गई याचिका को अदालत के द्वारा स्वीकार कर लिया गया. बाद में उसी महीने सूरज पंचोली के पिता आदित्य पंचोली ने जिया पर ₹100 करोड़ की मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया, जो पहले की मर चुकी थी.

सीबीआई जांच

सीबीआई जांच के दौरान सूरज पंचोली के घर पर न सिर्फ छापा मारा गया, बल्कि 1 महीने बाद पूछताछ के लिए भी बुला लिया गया. इस के बाद दिसंबर के महीने में सूरज पंचोली के खिलाफ एक पूरक आरोपपत्र दायर किया गया. हालांकि फरवरी, 2017 में विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाने वाली राबिया की इस मांग को खारिज कर दिया गया.

इसी बीच सूरज पंचोली ने कहा था कि उस पर जो भी आरोप लगाए जा रहे हैं उन की जांच कराने के लिए भी वह तैयार है. सूरज ने बताया,”मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि सुनवाई निष्पक्ष हो. चाहे वह मेरे खिलाफ जाए या मेरे पक्ष में.

अनसुलझी कहानी

साल 2023 में एक अंतिम फैसला सामने आया. सुसाइड नोट में जो भी मामले सामने आए थे उस में सूरज पंचोली को बरी कर दिया गया था और उसे आत्महत्या के लिए उसकाने वाले मामले से भी बरी कर दिया गया.

विशेष न्यायाधीश एएस सैय्यद ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सुबूतों की कमी के कारण सूरज पंचोली को रिहा किया जाता है.

जिया खान (Jiah Khan)  की मौत की वजह अभी भी अनसुलझी ही है।

Top 5 love Murder story : टॉप 5 लव मर्डर स्टोरी

Top 5 love Murder story  : इन लव क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि कैसे समाज में प्रेम ने कईओं के घर बर्बाद किये है और किसी ने प्यार के लिए अपनों को ही शिकार बना लिया. और अपने ही प्यार को धोखा देकर उसे मार देना. अपने और अपने परिवार को ऐसे हो रहे क्राइम से सावधान करने के लिए पढ़िए Top 5 love Murder story in Hindi मनोहर कहानियां जो आपको गलत फैसले लेने से बचा सकती है.

1. प्रेमिका के बाप ने कहा मर के दिखाओ, बच गए तो होगी शादी

बीती 4 जुलाई को प्रीति जब मीडिया से रूबरू हुई, तब उस का चेहरा हालांकि उतरा और निचुड़ा हुआ था, लेकिन इस के बावजूद वह यह जताने की कोशिश करती नजर आई कि अतुल लोखंडे उर्फ अत्तू की आत्महत्या में उस का या उस के पिता का कोई हाथ नहीं हैमतलब उसे खुदकुशी के लिए उकसाया नहीं गया था. यह खुद अतुल का फैसला था, लेकिन जबरन उस के पिता का नाम बीच में घसीटा जा रहा है

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2. पापा को मरवाने की सुपारी दे डाली प्रेम में पागल बेटी ने

कुलदीप की पत्नी गीता पुलिस को दिए अपने बयान में खुद ही बुरी तरह फंस गई थीउस ने पुलिस को बताया कि जब वह सुबह उठी तो सीढि़यों के दरवाजे की कुंडी उस ने ही खोली थी. नीचे आई तो घर के मेन गेट के लौक में अंदर से चाबी लगी थी और वह खुला हुआ था. पुलिस को संदेह हुआ तो. अपनी नौकरी के चलते गीता को घर का काम निपटा कर जल्दी सोना होता था और सुबह जल्दी ही उठना पड़ता था.

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3. शादीशुदा महिला ने दो प्रेमियों के साथ मिलकर किया तीसरे का कत्ल

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना औरास के अंतर्गत आने वाले गांव गागन बछौली का रहने वाला उमेश कनौजिया बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का था. इसी वजह से उस का सामाजिक और राजनीतिक दायरा काफी बड़ा था. उन्नाव ही नहीं, इस से जुड़े लखनऊ और बाराबंकी जिलों तक उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. वह अपने सभी परिचितों के ही सुखदुख में नहीं बल्कि पता चलने पर हर किसी के सुखदुख में पहुंचने की कोशिश करता था

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4. दोस्त से कराई प्रेमिका की हत्या

सूचना गंभीर थी, इसलिए घटना की सूचना अपने सीनियर पुलिस इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को दे कर वह तुरंत कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. सबइंसपेक्टर माली के पहुंचने तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. आग बुझाने वाली गाडि़यां भी चुकी थीं और उन्होंने आग पर काबू भी पा लिया था. सबइंसपेक्टर माली साथियों के साथ फ्लैट के अंदर पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर स्तब्ध रह गए

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5. बाइक रोक कर प्रेमिका के मुंह में कट्टा घुसेड़ मारी गोली

पहनावे से मृतका मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. उस की उम्र यही कोई 25 साल के आसपास थी. उस के मुंह और सीने में एकदम करीब से गोलियां मारी गई थीं. मुंह में गोली मारी जाने की वजह से चेहरा खून से सना था. घावों से निकल कर बहा खून सूख चुका था. मृतका की कदकाठी ठीकठाक थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे कम से कम 2 तो रहे ही होंगे. पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर के 2 खोखे बरामद किए थे.

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Emotional Story : पहले भागकर असफल रहा प्रेम पर दूसरी बार भागकर हुआ सफल

Emotional Story : पूनम से प्यार कर के मोहित ने कोई गुनाह नहीं किया था, लेकिन उस के घर वालों ने पुलिस से मिल कर सचमुच इसे गुनाह बना दिया, जिस की सजा मोहित और पूनम दोनों को भोगनी थी. 14साल की पूनम ने हाईस्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली थी और आगे की पढ़ाई के लिए उसी स्कूल में 11वीं का फार्म भर दिया था. बोर्ड की परीक्षा पास करने के बाद दूसरे स्कूलों के स्टूडेंट भी पूनम के स्कूल में एडमिशन के लिए आए थे. पूनम की कक्षा में कई नए छात्र थे.

हमारी जिंदगी में रोजाना कई चेहरे आते हैं और बिना कोई असर छोड़े चले जाते हैं. लेकिन जिंदगी के किसी मोड़ पर कोई ऐसा भी आता है, जिस की एक झलक ही दिल की हसरत बढ़ा देती है. कुछ ऐसा ही पूनम के साथ भी हुआ था. उस की क्लास में मोहित ने भी एडमिशन लिया था. पूनम की उस से दोस्ती हुई तो कुछ ही दिनों में वह उसे दिल दे बैठी थी. फतेहपुर की पूनम और नूरपुर के मोहित दो अलगअलग गांवों में पलेबढ़े थे. लेकिन उन का स्कूल एक ही था और यहीं दोनों ने एकदूसरे से कुछ वादे किए.

पहले तो दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती थी, सिर्फ नजरें मिलने पर मुसकरा कर खुश हो जाया करते थे, लेकिन जल्द ही मोहब्बत के अल्फाजों ने इशारों की जगह ले ली जो एक नया एहसास दिलाने लगे. पहली नजर में किसी को प्यार होता है या सिर्फ चंद दिनों की चाहत होती है, इस का नतीजा निकालना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन कुछ नजरें ऐसी भी होती हैं जो दिलों में हमेशा के लिए मुकाम बना लेती हैं. पूनम ने अपने प्यार का पहले इजहार नहीं किया था, क्योंकि वह प्यारमोहब्बत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन कभीकभी ऐसा होता है कि जो न चाहो वही होता है. पूनम भी इसी चाहत का शिकार हो गई और मोहित से दिल के बदले दिल का सौदा कर बैठी.

पूनम और मोहित का प्यार भले ही 2 नाबालिगों का प्यार था, लेकिन उन के प्यार में पूरा भरोसा और यकीन था. उसी प्यार की गहराई में डूब कर पूनम सब कुछ छोड़ कर मोहित का हाथ थामे प्यार में गोते लगाती चली गई. 2 प्यार करने वाले भले ही ऊंचनीच, दौलत शोहरत न देखें, लेकिन घर और समाज के लोग यह सब जरूर देखते हैं. इसी ऊंचनीच के फेर में दोनों बुरी तरह फंस कर उलझ गए. पूनम सवर्ण थी तो मोहित दलित परिवार से ताल्लुक रखता था.

पूनम का भरापूरा परिवार जरूर था, जिस में मांबाप और बड़े भाई साथ रहते थे. लेकिन उसे कभी घर वालों का प्यार नहीं मिला. आए दिन छोटीछोटी गलतियों की वजह से उसे मारपीट और गालीगलौज के दौर से गुजरना होता था. ये सब कुछ वह चुपचाप बरदाश्त करती थी. लेकिन उसे इस बात की खुशी थी कि स्कूल में उसे मोहित का प्यार मिल रहा था. मोहित को देखते ही उस का सारा दुखदर्द छूमंतर हो जाता था. एक दिन उस ने मोहित से अपने साथ की जाने वाली मारपीट (Emotional Story) की पूरी बात बताई. उस की कहानी सुन कर मोहित द्रवित हो गया. बाद में एक दिन पूनम और मोहित घर से भाग गए.

जिस समय मोहित और पूनम घर से भागे, उस वक्त दोनों नाबालिग थे. पहले तो दोनों के घर वालों ने भागने की बात को छिपा लिया, लेकिन उसे कब तक छिपाए रखते. कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं. देखते ही देखते यह बात पूनम के गांव से होते हुए मोहित के गांव तक जा पहुंची. अब हर ओर उन्हीं दोनों की चर्चा हो रही थी. कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे थे, जबकि कुछ का यह कहना भी था कि मोहित ने ठीक किया. इस से पूनम के घर वाले अब समाज में सिर उठा कर नहीं बोल सकेंगे. बड़ी दबंगई दिखाते थे. बेटी ने नाक कटवा कर सारी दबंगई निकाल दी.

अफवाहों के भले ही पर नहीं होते, लेकिन परिंदों से भी ज्यादा तेजी से उड़ती हैं. आसपास के गांवों में पूनम और मोहित के भागने की खबर फैल गई. आखिर पूनम के घर वालों ने पुलिस थाने में जा कर मोहित के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. इस के बाद पुलिस उन दोनों को तलाश करने लगी. लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. पुलिस वालों ने दूसरे जिलों के थानों में भी खबर कर दी थी. काफी दिन बाद पूनम और मोहित दिल्ली पुलिस को मिल गए. दिल्ली पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की सूचना संबंधित थाने को दे दी तो उस थाने की पुलिस दोनों को अपने साथ ले गई. क्योंकि पूनम के पिता मोहित के खिलाफ पहले ही पूनम को भगाने और रेप की एफआईआर दर्ज करवा चुके थे.

पुलिस के हत्थे चढ़ने पर पूनम मोहित को ले कर बहुत परेशान थी क्योंकि उसे मालूम था कि उस के घर वाले पुलिस से मिल कर मोहित के साथ क्या करवाएंगे. इस के अलावा उस की जिंदगी भी घर में नरक बन जाएगी. यही सोचसोच कर पूनम रो रही थी क्योंकि उस के बाद जो होना था, उस का उसे अंदाजा था. मोहित को पुलिस ने हवालात में डाल दिया और पूनम को उस के घर वालों के सुपुर्द कर दिया. जबकि वह उन के साथ नहीं जाना चाहती थी. वह मोहित के साथ ही रहना चाहती थी. लेकिन मजबूर थी. क्योंकि उन लोगों ने मोहित के खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया था.

घर पहुंच कर पिता और भाई ने पूनम को जम कर पीटा और उसे धमकाया कि अगर उस ने कोर्ट में मोहित के खिलाफ बयान नहीं दिया तो उसे और मोहित को जान से मार डालेंगे. पूनम घर वालों की धमकियों से बहुत डर गई. लेकिन अपने लिए नहीं, बल्कि मोहित के लिए वह घर वालों के कहे अनुसार बयान देने को राजी हो गई. घर वालों ने पूनम को दबाव में ला कर कोर्ट में जबरदस्ती बयान दिलवाया कि मोहित उसे जबरदस्ती भगा कर ले गया था और उस ने उस के साथ रेप भी किया था. पूनम के लिए यह बहुत बुरा दौर था. उसे उसी के पति के खिलाफ झूठी गवाही के लिए मजबूर किया जा रहा था. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा क्यों दी जा रही है. एक तरफ पूनम अपने घर में ही रह कर बेगानी थी तो वहीं दूसरी तरफ मोहित पर पुलिस का सितम टूट रहा था.

जब पूनम और मोहित घर से भागे थे, तभी उन्होंने शादी कर ली थी. पुलिस ने जब दोनों को दिल्ली से पकड़ा तब मोहित बालिग हो चुका था, जबकि घर से भागे थे तब दोनों नाबालिग थे. पुलिस ने मोहित को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. पूनम के घर वालों ने पुलिस से सांठगांठ कर के मोहित पर अत्याचार करवा कर अपनी बेइज्जती का बदला तो लिया ही साथ ही अपना प्रभाव भी दिखाया. पूनम के घर वालों में से कोई भी उस के साथ हमदर्दी तक नहीं दिखा रहा था. इस दुनिया में मां ही ऐसी होती है, जिसे अपने बच्चों से सब से ज्यादा प्यार होता है. लेकिन उस की मां सरिता एकदम पत्थरदिल हो गई थी. उसे अपनी बेटी की जरा भी परवाह नहीं थी.

अगर परवाह थी तो अपने परिवार की इज्जत की, जो पूनम ने सरेबाजार नीलाम कर दी थी. बल्कि सरिता तो उसे ताने देते हुए यही कह रही थी कि अगर उसे प्यार ही करना था तो क्या दलित ही मिला था. क्या बिरादरी में सब लड़के मर गए थे. यही बात सोचसोच कर उस की आंखों में शोले भड़कने लगते थे. करीब 5 महीने बाद मोहित के केस की सेशन कोर्ट में काररवाई शुरू हुई तो हर सुनवाई से पहले पूनम को उस के घर वाले समझाते कि उसे कोर्ट में क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना. बाप और भाई के रूप में राक्षसों के जुल्मोसितम के आगे पूनम ने घुटने टेक दिए थे. उस से जो कहा जाता वही वह अदालत में कहती. ये पूनम की गवाही का ही नतीजा था कि मोहित को हाईकोर्ट से जमानत मिलने में 22 महीने लगे.

मोहित जब जमानत पर जेल से बाहर आया तो किसी तरह पूनम को भी उस की खबर लग गई. वह मोहित को एक नजर देखने के लिए बेकरार हो गई. लेकिन उस के लिए मिलना तो नामुमकिन सा था. पूनम को मोहित के घर वालों का नंबर अच्छी तरह से याद था. एक दिन अकेले कमरे में किसी तरह से मोबाइल ले कर उस ने नंबर डायल कर दिया. दूसरी ओर फोन की घंटी बज रही थी, लेकिन उस से तेज पूनम के दिल की धड़कनें बढ़ चुकी थीं. वह यही चाह रही थी कि मोहित ही फोन रिसीव करे तो अच्छा रहेगा. आखिर उस की आरजू पूरी हुई और मोहित ने ‘हैलो’ बोला, जिसे सुन कर पूनम सुधबुध खो बैठी. कई बार उधर से हैलो की आवाज से उसे होश आया और रुंधे गले से सिर्फ लरजती आवाज में बोल पाई मोहित. मोहित उस की आवाज को पहचान गया और ‘पूनम पूनम’ कह कर चीख पड़ा.

खैर, उस दिन दोनों के बीच थोड़ी बातचीत हुई. इस के बाद एक बार फिर से पहले की तरह सब कुछ चलने लगा. फोन पर बातें होती रहीं और दोनों ने एक बार फिर पहले की तरह साथ रहने का फैसला कर लिया. तय वक्त पर पूनम और मोहित दोबारा घर से भाग गए और गांव से दूर आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, जिस का उन्हें प्रमाणपत्र भी मिला. पहले जब उन्होंने शादी की थी, उस समय वे नाबालिग थे. उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन पूनम के घर वालों ने उसे हमेशा के लिए छोड़ दिया. क्योंकि उस ने दोबारा से उन्हें समाज में मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था. काफी अरसे तक पूनम ने अपने घर वालों से कोई बातचीत नहीं की, जबकि मोहित के घर वालों ने उन दोनों को अपना लिया था.

पूनम मोहित के घर पर ही रह रही थी. मोहित के पिता की मौत पहले ही हो चुकी थी. अब घर में सास और एक ननद थी. उन के बीच ही वह हंसीखुशी से रह रही थी. पूनम को अब एक खुशी मिलने वाली थी, क्योंकि वह मां बनने वाली थी. उस ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, जिस से पूरा घर खुश था. अब सब सामान्य था लेकिन उस का एक जख्म भरता नहीं था कि दूसरा बन जाता था. अभी उस की मासूम बच्ची ने सही तरह से आंखें भी नहीं खोली थीं कि उस के ऊपर (Emotional Story) मुसीबतों का एक और पहाड़ टूट पड़ा. हुआ यूं कि मोहित पर पहले का जो केस चल रहा था, उस का फैसला आ गया, जिस में सेशन कोर्ट ने मोहित को 7 साल की सजा और 5 हजार रुपए जुरमाने का आदेश दिया.

इस फैसले से पूनम के पैरों तले से जैसे जमीन ही खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जब मोहित से उस ने शादी कर ली और वह बालिग भी है, तब क्यों ऐसा फैसला आया. इस से तो हमारा पूरा परिवार ही बिखर जाएगा. उस ने कोर्ट में इंसानियत के नाते मोहित को छोड़ने की गुजारिश की, पर कोई लाभ नहीं मिला. पूनम को अपनी बेटी पर बड़ा तरस आ रहा था, जिसे बिना किसी कसूर के इतनी बड़ी सजा मिल रही है, जो उसे 7 सालों तक बाप के प्यार से दूर रहना पड़ेगा. इस दुधमुंही की क्या गलती थी, जो इसे हमारे किए की सजा मिलेगी.

Sad Story : आत्महत्या का निर्णय ले चुकी दिशा को एक रिंगटोन ने कैसे रोका

Sad Story :  कहते हैं, हताशनिराश या दुखी हो कर इंसान जब आत्महत्या की सोचता है तो सिर्फ एक पल ऐसा होता है, जो उसे आत्महत्या करने को उकसाता है. अगर किसी तरह वह एक पल निकल जाए, तो इंसान आत्महत्या का इरादा छोड़ देता है दिशा की तरह. आत्महत्या को ले कर बुनी गई एक रोचक कहानी…

दिशा को उस के प्रेमी ने तो धोखा दिया ही था, साथ ही उस की वजह से दिशा की अच्छीभली नौकरी भी चली गई थी. भेद खुला तो घर वाले बहुत नाराज हुए. साथ ही सगेसंबंधियों और जानपहचान वालों में उस की खासी बदनामी हुई. शरम के मारे दिशा ने बाहर आनाजाना तक बंद कर दिया था. वह घर में ही पड़ीपड़ी घुटती रहती थी. जिस की वजह से वह इतनी हताश और निराश हो गई कि उसे अपना जीवन व्यर्थ सा लगने लगा था.

एक दिन शाम को घर के सभी लोग किसी रिश्तेदार के यहां शादी में गए हुए थे. वह दिशा को अपने साथ इसलिए नहीं ले गए थे कि लोग पता नहीं कैसेकैसे सवाल पूछें. पहले ही हताशनिराश दिशा घर वालों के इस व्यवहार से और ज्यादा निराश हुई. उसे लगा कि इस तरह जीने से तो मर जाना ही बेहतर है. उस समय वह घर में अकेली थी. उस के लिए यह अच्छा मौका था, इसलिए उस ने आत्महत्या करने का फैसला ले लिया.

नींद न आने की वजह से उस ने नींद की गोलियां पहले ही खरीद रखी थीं. उस ने झटपट सुसाइड नोट लिखा और नींद की गोलियों की पूरी शीशी और एक गिलास पानी अपने पास रख लिया. इस के बाद वह सोचने लगी कि उस के जीवन की यह अंतिम शाम होगी, क्योंकि ऐसे जीवन का कोई मतलब नहीं है, जिस में कोई अपना हो ही नहीं. अब न तो कोई उस की चिंता करने वाला है और न कोई उस के बारे में सोचने वाला. अगर वह जिंदा रहती है तो पूरी जिंदगी उसे इसी तरह घर वालों के ताने सुनते रहना पड़ेगा. अब उस की सहन करने की सारी हदें पार हो गई हैं. जब घर वाले ही उस के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं तो जीने से क्या फायदा.

हाथ में नींद की गोलियों की शीशी लिए दिशा की सोच (Sad Story) आगे बढ़ पाती, इस से पहले ही बैड पर पड़े मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. दिशा ने नफरत से मोबाइल की ओर देखा. उस ने सोच लिया कि फोन किसी का भी हो, वह नहीं उठाएगी. जब उस ने मरने का फैसला कर ही लिया है तो फोन उठाने की जरूरत ही क्या है. उस ने यह भी नहीं देखा कि फोन किस का है.

दूसरी ओर फोन करने वाले ने भी जैसे ठान लिया था कि जब तक फोन उठेगा नहीं, वह घंटी बजाता रहेगा. निश्चित समय तक घंटी बजने के बाद कुछ सैकेंड के लिए बंद होती और फिर बजनी शुरू हो जाती. यही क्रम लगातार चलता रहा. लगातार घंटी बजती रही तो उकता कर दिशा ने यह सोच कर फोन उठा लिया कि देखें कौन है, जो उस से बातें करने के लिए मरा जा रहा है. फोन रिसीव कर जैसे ही दिशा ने हैलो कहा तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘क्या मैं यश से बात कर सकता हूं?’’

‘‘कौन यश?’’ जवाब देने के बजाय दिशा ने सवाल किया.

‘‘यश…यश ठाकुर.’’ वह बोला.

‘‘सौरी रौंग नंबर, यहां कोई यश नहीं रहता.’’ दिशा ने कहा.

‘‘तो कौन रहता है?’’

‘‘क्या मतलब?’’ दिशा थोड़ी नाराज हो कर बोली.

‘‘मेरे पूछने का मतलब यह कि आप कौन बोल रही हैं?’’

‘‘मैं यश तो नहीं हूं न, आप के लिए इतना पर्याप्त नहीं है क्या?’’

‘‘यह तो मैं भी जान रहा हूं कि आप यश नहीं हैं, क्योंकि यह आवाज यश की नहीं है. लेकिन आप बुरा मत मानिएगा, आप की आवाज बहुत मधुर है. एकदम शहद जैसी. आप की आवाज अच्छी लगी, इसीलिए पूछ लिया. आई एम वेरीवेरी सौरी, अगर बुरा लगा हो तो…’’

मस्का लगाने पर दिशा की नाराजगी थोड़ी कम हुई. क्षण भर चुप्पी साधे रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘मैं दिशा बोल रही हूं. आई मीन मेरा नाम दिशा है.’’

‘‘ओह ग्रेट, जीवन में सब को गाइड करने वाली यानी दिशा दिखाने वाली…सचमुच बड़ा सुंदर नाम है.’’

‘‘सौरी, मैं न किसी को गाइड करती हूं और न ही दिशा दिखाती हूं.’’

‘‘अगेन सौरी…मैं तो मजाक कर रहा था.’’

‘‘अनजान लोगों से आप की मजाक करने की आदत है क्या?’’

‘‘नहीं, आप अनजान नहीं लगीं, इसीलिए…’’

‘‘बातें करने में आप बहुत स्मार्ट लगते हैं.’’

‘‘सिर्फ बातें करने में ही नहीं, मैं तो पूरा का पूरा स्मार्ट हूं.’’

‘‘आप अपने बारे में ऊंची मान्यता रखने वाले लगते हैं.’’

‘‘अपने बारे में अच्छा सोचना, सम्मान रखना कोई बुरी बात तो नहीं. आप ही बताओ, अपनी उपेक्षा क्यों की जाए?’’

‘‘लेखक हो क्या?’’

‘‘हूं तो नहीं पर बनने के सपने देख रहा हूं.’’

‘‘सपना…केवल सपना ही देखते हो या मेहनत भी करते हो?’’ अब दिशा धीरेधीरे उस अनजान की बातों में उलझती जा रही थी.

‘‘इस समय मैं कर क्या रहा हूं, मेहनत ही तो कर रहा हूं. दिशा नाम की लड़की को पटाने की मेहनत…’’

‘‘व्हाट?’’ दिशा नाराज हो कर बोली.

‘‘सौरी…सौरी, मिठास के साथ आप में कड़वाहट भी है. मैं ने यही जानने के लिए पटाने वाली बात कही थी. क्योंकि केवल मिठास होना ही अच्छी बात नहीं है. आप में तो मिठास के साथसाथ कड़वाहट भी है.’’

‘‘बातें बनाना और मस्का लगाना आप को बहुत अच्छा आता है.’’

‘‘थैंक्स फौर कांप्लीमेंट्स. हमारे ऊपर हमेशा आप जैसी सुंदर लड़कियों की शुभकामनाओं की मेहरबानी रही है.’’

‘‘मैं सुंदर हूं, यह आप से किस ने कहा?’’

‘‘मैं लड़कियों को सुंदर ही मानता हूं. कहा जाता है कि सुंदरता नजरों में होती है और मेरी नजर सुंदर है. मैं तो उन्हीं कवियों को पसंद करता हूं जो प्रेम (Sad Story) की कविताएं लिखते हैं.’’ इतना कह कर वह जोर से हंसा. उस के इस तरह हंसने से दिशा खीझ कर बोली, ‘‘खुद को स्मार्ट साबित करने का तुम्हारा यह आइडिया बहुत सुंदर है. लगता है, तुम ने ‘रौंग नंबर’ कहानी पढ़ ली है.’’

‘‘आप बेकार ही इस कहानी को बीच में ला रही हैं. वैसे भी इस कहानी से हमें काफी सुविधा मिली है. फोन पर कैसे बात की जाए, यह तो पता चल ही जाता है.’’

‘‘कहीं वह कहानी आप ने ही तो नहीं लिखी है. इस तरह बातचीत कर के एक और कहानी लिखना चाहते हों. आप ने पहले ही बताया है कि आप लेखक बनने का सपना देख रहे हैं. इसी तरह कहानी लिख कर लेखक बन जाएं. वैसे आप का सेंस औफ ह्यूमर बहुत अच्छा है.’’

न चाहते हुए भी दिशा के चेहरे पर मुसकान की हलकी लहर दौड़ गई. आत्महत्या के अंतिम पलों में हंसी भला कहां आती है. अगर जीवन में हंसने के ही मौके होते तो मन में आत्महत्या का विचार ही क्यों आता.

‘‘मेरे सेंस औफ ह्यूमर के लिए तो मेरे दोस्त भी दाद देते हैं.’’ वह बोला.

‘‘लेकिन मैं आप की दोस्त थोड़े ही हूं.’’

‘‘मुझे तो यही लगता है कि अब तक आप मेरी दोस्त बन गई हैं. वरना कोई रौंग नंबर पर इतनी देर बातें करता है क्या?’’

दिशा ने तुरंत फोन काट दिया. वह बुदबुदाने लगी, ‘अपने आप को समझता क्या है?’

5-7 मिनट तक शांति छाई रही. उस के बाद फिर फोन बजा. इस बार न जाने क्यों दिशा ने तुरंत फोन उठा लिया. जबकि उसे उम्मीद थी कि फोन उसी अनजान आदमी का होगा. दिशा को लगा, यह आदमी आसानी से पीछा छोड़ने वाला नहीं है. इसे थोड़ा हड़काना ही पड़ेगा. इसलिए दिशा ने गुस्से में तेज आवाज में कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो.’’ फिर वही आवाज आई. शायद उस की समझ में आ गया कि दिशा उस के फोन करने से नाराज है, इसलिए उस ने सहानुभूति पाने के लिए बात बदल दी. उस ने कहा, ‘‘सौरी दिशाजी, मेरा इरादा आप को हर्ट करने का नहीं था. मुझे लगा कि जीवन के अंतिम पलों में किसी अच्छे व्यक्ति से बात कर के इस दुनिया को अलविदा (Sad Story) कहूं. लेकिन…’’

दिशा चौंकी. इस का मतलब यह भी उसी की तरह दुखी है. बीमार तो है नहीं, शायद प्रेम में धोखा खाया होगा. इसलिए न चाहते हुए भी उस के मुंह से निकल गया, ‘‘यानी आप भी मेरी तरह..?’’

पलभर मौन के बाद दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘तो क्या आप भी मेरी तरह..?’’

‘‘हां, मेरी भी इस अंतिम शाम की यह अंतिम बातचीत है. अपनी मुलाकात आप को कुछ अनोखी नहीं लगती.’’

‘‘हां, अनोखी ही है, अंतिम पलों के साथी बन गए हैं हम.’’

‘‘पर आप तो पुरुष हैं. आप को आत्महत्या करने की क्या जरूरत है?’’

थोड़ी देर शांति के बाद दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘क्यों, ऐसा कोई नियम है क्या कि पुरुष को कोई परेशानी नहीं हो सकती?’’

‘‘नहीं…नहीं, नियम तो नहीं है लेकिन सामान्य रूप से हमारा समाज पुरुष प्रधान है. इसलिए जब सहन करने की बात आती है तो वह स्त्रियों के हिस्से में आता है.’’

‘‘यह आप का भ्रम है लेकिन अब अंतिम समय में आप का यह भ्रम तोड़ने से कोई फायदा नहीं है, वरना जरूर पूरी बात कहता. पर जाने से पहले दिल हलका करने के लिए एक बात…पर जाने दो. अंतिम समय में दिल हलका हो या न हो, क्या फर्क पड़ता है.’’

‘‘हमेशा ऐसा नहीं होता. अगर कोई सहृदय बात सुने तो जरूर अच्छा लगता है. और वैसे भी हंसतेहंसते दुनिया को अलविदा कहना हर आदमी के भाग्य में नहीं होता.’’

‘‘आप तो दार्शनिक की तरह बातें करने लगीं.’’

‘‘अंतिम पलों में शायद हर आदमी अपने आप दार्शनिक हो जाता है.’’ दिशा अनायास ही बातों के प्रवाह में बहती चली गई. उस ने आगे कहा, ‘‘पर अपनी बातें सुनने का समय अब किस के पास है.’’

‘‘आप की बात सच है. पर मुझे इस समय मौत जैसा कोई दूसरा सुख दिखाई नहीं दे रहा.’’ दूसरी ओर से निराशा भरी आवाज आई.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है. आप तो पुरुष हैं, पुरुष हो कर भी हिम्मत हार गए. इस तरह निराशावादी होना आप के लिए शोभा नहीं देता.’’

‘‘मुझे कुछ भी ठीक नहीं लग रहा. दिशाजी, आप ही सोचो कि अगर सब अच्छा होता तो मरने के बारे में सोचता ही क्यों.’’

‘‘अच्छे में तो सभी जी लेते हैं, बात तो मुश्किलों से सामना करने की है. मरना तो आसान है. आप ने मुश्किलों से मुकाबला कर के जीने की कोशिश नहीं की?’’ अब तक दिशा जानेअनजाने में काउंसलर की भूमिका में आ गई थी.

‘‘हो सकता है. लेकिन एक बार जो निर्णय कर लिया, अब उसे बदलने की मेरी इच्छा नहीं हो रही है.’’

‘‘जीवन में हम कितनी बार अपना फैसला बदलते हैं. आप अपना नजरिया तो बदलिए और थोड़ा पौजिटिव बनिए. हो सकता है, दुनिया कुछ अलग ही दिखाई दे.’’

‘‘शायद आप की बात सच हो…’’

‘‘सौ प्रतिशत सच है.’’ दिशा जैसे जुनून में आ गई थी.

‘‘होगी, पर अब मैं इस तरह कुछ नहीं सोचना चाहता. जीने के लिए कितने समझौते करने होते हैं. कभीकभी हमें भी…’’ दूसरी ओर से इतना कह कर बात अधूरी छोड़ दी गई.

‘‘परेशानियों से डर कर मैदान छोड़ देना कायरता कही जाएगी.’’ दिशा की काउंसलर की भूमिका आगे बढ़ी, ‘‘कभीकभी हम छोटी से छोटी बात को ले कर आवेश में आ जाते हैं और बिना सोचेसमझे उलटासीधा कदम उठा लेते हैं.’’

‘‘आप तो काफी पढ़ेलिखे लगते हैं. फिर भी…’’

‘‘थैंक फौर कांप्लीमेंट्स. पर कभीकभी ज्यादा पढ़लिख लेना भी काम नहीं आता. उस का ढंग से उपयोग नहीं किया जा सकता. किताबों में जो पढ़ाया जाता है, वह जीवन में किस काम आता है. मुझे तो यह सब बेकार की चीजें लगती हैं. दूसरों को कहना आसान है. जब खुद पर जरा भी परेशानी आती है तो सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता है.’’

‘‘ऐसा हमेशा थोड़े ही होता है.’’

‘‘वैसे आप की बात निश्चित रूप से विचार करने लायक है. सच कहूं, मन में यह विचार तो आता ही है कि मैं तो आत्महत्या कर के इस समाज और दुनिया से छुटकारा पा जाऊंगा, पर क्या यह स्वार्थ नहीं होगा? क्या मैं स्वार्थी नहीं कहलाऊंगा? मेरे चले जाने के बाद दुनिया पर तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन कोई तो होगा, जिसे मेरे जाने का दुख होगा. यही मैं इतनी देर से सोच रहा हूं.’’

‘‘इतना सोचनेविचारने के बाद भी आखिर में आप ने नेगेटिव ही सोचा.’’

‘‘क्या करूं दिशाजी, आदत से मजबूर हूं.’’

‘‘आप जो कह रहे हैं, यह कह कर छुटकारा पाने का हमारा हक नहीं है. हमारी अब तक की जिंदगी में कितने लोगों का सहयोग है. मातापिता, सगेसंबंधी, मित्र…कोई तो होगा जो हमारे लिए…’’ कहतेकहते दिशा अचानक रुक गई. दिशा बातों के प्रवाह में इस कदर बह गई थी कि उसे इस बात का भी भान नहीं रहा कि वह एक अपरिचित व्यक्ति से बात कर रही है. जबकि वह खुद भी आत्महत्या करने का निर्णय किए बैठी थी. ऐसे में इस तरह की दलीलें करना शोभा देता है क्या? पर नहीं, अपनी दलीलों से अगर किसी का जीवन बच जाता है तो…जातेजाते एक नेक काम तो करती जाए.

‘‘आप अचानक चुप क्यों हो गईं? अपनी बात आती है तो सभी इसी तरह चुप हो जाते हैं. देखिए, दूसरों को उपदेश देना या बड़ीबड़ी बातें करना बड़ा आसान होता है लेकिन उन्हें अमल में लाना आसान नहीं है.

‘‘मुझे पता था कि आप यही सब प्रवचन देंगी कि जीवन अनमोल है, समाज में हम से भी ज्यादा दुखी तमाम लोग हैं,जो मजे से जी रहे हैं. उन की तरफ देखो, तब पता चलेगा कि हमारे पास कितना कुछ है. यही सब कहना चाहती हैं न आप. अरे मोहतरमा, यह सब मैं खूब सुन चुका हूं. पर अब इन सब बातों का मेरे ऊपर कोई असर नहीं होने वाला.’’

दिशा को उस की इन बातों पर गुस्सा आया. जब उसे सब पता ही है तो इसे क्या समझाना. ऐसे आदमी को समझाया भी नहीं जा सकता. लेकिन जानते हुए किसी को मरने के लिए कैसे छोड़ा जा सकता है?

इसलिए उस ने एक बार और कोशिश की, ‘‘देखिए मिस्टर, आप कोई भी हैं. फिर भी लेट मी टेल वनथिंग… आप ने भले ही निर्णय कर लिया है, लेकिन एक काम कीजिए. आप ज्यादा दिनों के लिए नहीं, बस एक दिन के लिए इस विचार को मुल्तवी कर दीजिए. आप को आत्महत्या ही करनी है तो आज के बजाय कल कर लीजिएगा.’’

‘‘एक दिन में क्या फर्क पड़ने वाला है. अरे जो काम कल करना है, उसे आज ही कर के छुट्टी पा लो.’’

‘‘यह तो मुझे नहीं पता कि एक दिन में क्या फर्क पड़ेगा, पर शायद आप ने यह निर्णय किसी क्षणिक आवेश में लिया हो तो हो सकता कल का सूरज आप के लिए कोई शुभ संदेश ले कर उदय हो. आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, यह तो मुझे नहीं पता, पर हो सकता है कि कल आप को जिंदगी जीने लायक लगे. जैसा आप ने कहा है, शायद उसी तरह अगला बसंत आप की प्रतीक्षा में…’’

‘‘वैसे आप की सारी बातें सच हैं. किसी को भी आप बहुत अच्छी तरह से समझा लेती हैं. आप एक काम कीजिए, काउंसलिंग सर्विस खोल लीजिए, बहुत अच्छी चलेगी.’’

‘‘जब आप पर मेरी काउंसलिंग का कोई असर नहीं हो रहा है तो आप यह कैसे कह सकते हैं कि मेरी काउंसलिंग सर्विस अच्छी चलेगी.’’

‘‘यह किस ने कहा कि आप की काउंसलिंग का मेरे ऊपर असर नहीं हो रहा.’’

‘‘यानी आप ने मेरी बात मान ली है?’’ दिशा इस तरह उत्साह में कैसे आ गई, यह उस की समझ में नहीं आया.

‘‘इस समय तो यही लग रहा है कि आप जो एक दिन के लिए मुल्तवी करने को कह रही हैं, वह ठीक ही है. आप की इस बात पर विचार तो किया ही जा सकता है.’’

‘‘केवल विचार ही नहीं किया जा सकता, इस पर अमल करना जरूरी है.’’ दिशा ने यह बात एकदम गंभीर हो कर कही.

‘‘ओके मैडम, आप जीतीं, मैं हारा. आप की बात मान कर मैं आज के दिन…केवल आज के दिन मरने यानी आत्महत्या करने का कार्यक्रम टाल रहा हूं. हो सकता है, आप मेरे लिए सही अर्थ में मार्गदर्शक बन कर आई हों. मैं ने तो आप की बात मान ली, अब आप को भी मेरी बात माननी होगी. आप भी आज आत्महत्या नहीं करेंगी.’’

‘‘ठीक है, लेकिन मेरी एक शर्त है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘आप कल मुझे फोन करेंगे.’’

‘‘मुझे आप की यह शर्त मंजूर है.’’ कह कर रौंग नंबर ने फोन काट दिया.

इस के बाद दिशा रौंग नंबर के नाम से नंबर सेव कर रही थी तो रौंग नंबर दिशा के नाम से. नंबर सेव करते हुए दिशा के कानों में अपने ही शब्द गूंज रहे थे. 5-7 मिनट तक वह नींद की गोलियों की शीशी को देखती रही. उस के दिलोदिमाग में अपनी ही बातें गूंज रही थीं. वह जल्दी से उठी, शीशी का ढक्कन खोल कर सारी गोलियां नाली में फेंक दी. दूसरी ओर रौंग नंबर इस बात से खुश था कि उस ने अपनी साइकोलौजी से एक जान बचा ली.

Murder Story : होटल में मिली ब्यूटीशियन की लाश, ट्रैक पर प्रेमी का शव

Murder Story : दिल्ली के पश्चिम विहार में स्थित एक होटल में ब्यूटीशियन का शव और अगले दिन रेलवे ट्रैक पर उस के प्रेमी का शव मिलने से सनसनी फैल गई है. इन दोनों घटनाओं ने लोगों के जहन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

होटल में मिली लाश की पहचान 28 वर्षीय काजल के रूप में हुई. वह मंगोलपुरी के आर ब्लौक में रहती थी और पेशे से ब्यूटीशियन थी. पुलिस को जांच में पता चला कि काजल का विवाह जोधपुर निवासी रवि नाम के युवक के साथ हुआ था, लेकिन उस की पति से नहीं बनी. जब उन दोनों के बीच ज्यादा तकरार रहने लगी तो काजल ने पति रवि से साल 2022 में तलाक ले लिया था.

फिर एक सहेली के माध्यम से काजल की जानपहचान जोधपुर के सुरेंद्र नाम के युवक से हुई. यह जानपहचान बाद में प्यार में बदल गई. इस के बाद काजल सुरेंद्र के साथ ही रहने लगी. कुछ दिनों तो दोनों मौजमजे में रहे, लेकिन किसी बात पर काजल की सुरेंद्र के साथ भी कलह रहने लगी. लगभग एक महीने पहले इन दोनों के बीच झगड़ा हुआ तो काजल दिल्ली के मंगोलपुरी में स्थित अपने मायके आ गई. काजल के 3 भाई और 2 बहनें हैं.

14 दिसंबर, 2024 को साक्षी नाम की एक सहेली ने काजल को अपने बच्चे के जन्मदिन पार्टी में बुलाया. काजल जब देर रात घर नहीं पहुंची तो उस के घर वालों ने उसे फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. घर वालों ने साक्षी से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि काजल उस से मिलने के बाद चली गई थी. तब घर वालों ने थाना राज पार्क में 16 दिसंबर को उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.
उधर काजल के प्रेमी सुरेंद्र (23 साल) ने दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में स्थित एक होटल में 14 दिसंबर को एक कमरा बुक करा रखा था.

14-15 दिसंबर की रात करीब डेढ़ बजे काजल उस होटल में पहुंची. फिर 15 दिसंबर को सुरेंद्र अकेला ही होटल से चला गया. 17 दिसंबर को होटलकर्मियों ने कमरे का दरवाजा न खुलने पर पुलिस को सूचना दी. पुलिस मौके पर पहुंची तो कमरे में काजल की लाश (Murder Story) मिली. मृतका के गले और चेहरे पर निशान मिले हैं.
शुरुआती जांच में पुलिस समझ नहीं पाई कि यह हत्या का मामला है या आत्महत्या का. पुलिस ने मृतका का विसरा सुरक्षित कर जांच के लिए भेज दिया.

इस घटना के अगले दिन गुरुग्राम पुलिस को पटौदी रेलवे ट्रैक पर काजल के प्रेमी सुरेंद्र का शव मिला. उस के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. पुलिस को फिलहाल दोनों की मौत की असली वजह पता नहीं लग सकी है. फोरैंसिक जांच रिपोर्ट के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी. बहरहाल, प्रेमीप्रेमिका की अलगअलग जगहों पर हुई मौत क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है.

Love story : लिव इन पार्टनर की हत्या कर सूटकेस में डाली लाश

Love story : किसी तरह से जब सूटकेस खुला, तब पुलिस टीम देख कर चौंक गई. क्योंकि उस में थोड़े से  कपड़ेलत्तों के बीच एक युवती का शव था. शव को किसी तरह से ठूंस कर सूटकेस को बंद किया गया था. उस के बाल और दुपट्टे का एक कोना सूटकेस की चेन में फंसा हुआ था.

सूटकेस में मिली लाश की खबर मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच को दे दी गई. शव की हालत देख कर यह निश्चित था कि युवती की हत्या कर उसे ठिकाने लगाने की कोशिश की गई है.

कोरोना काल 2020 का समय चरम पर था. पूरे देश में लौकडाउन लग चुका था. सभी तरह के यातायात ठप थे. दुकानें, औफिस, छोटेबड़े कलकारखाने सब बंद कर दिए गए थे. सुनसान सड़कों पर केवल वही गाडिय़ां दौड़ रही थीं, जिन में खानेपीने और रोजमर्रा के जरूरी सामान, हरी सब्जियां, दूध, दवाइयां आदि होते थे या फिर सुरक्षा में जुटे पुलिसकर्मी और मरीजों को अस्पतालों तक पहुंचाने वाली एंबुलेंस आदि थी.

दूरदराज से रोजीरोटी के लिए आए शहरों और महानगरों में लाखों लोग हर हाल में जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहते थे. उन्हीं दिनों मजदूरों के लिए मुंबई से अलगअलग राज्यों के मुख्य शहरों तक जाने वाली कुछ स्पैशल ट्रेनें चलाई गई थीं. मुंबई से ओडिशा तक जाने वाली खचाखच भरी एक स्पैशल ट्रेन में मनोज किसी तरह से सवार हो गया था.

उस ने बड़ी मुश्किल से बैठने के लिए सीट पर जगह बना ली थी. पसीने से लथपथ था. बोगी में काफी शोरगुल था. छोटे तौलिए से अपना मुंह पोंछने के बाद सीट के नीचे घुसाए अपने बैग से पानी की बोतल निकालने के लिए झुका ही था कि इसी बीच एक लड़की उसे डपटती हुई बोली, ”अरे! तुम मेरी सीट पर कैसे बैठ गए? यहां तो मैं बैठी थी.’’

”तुम कैसे बैठी थी. यहां पहले से 5 लोग थे. मैं किसी तरह से बैठ पाया हूं. तुम्हारा सामान कहां है?’’ मनोज बोला.

”मैं एक बैग सीट पर रख कर दूसरा बड़ा सामान लाने गई थी. तुम ने मेरे बैग को सीट के नीचे डाल दिया और मजे में बैठ गए. गलत बात है.’’ लड़की नाराजगी से बोली.

बैठने को ले कर बहस होते देख सामने बैठी एक महिला बोली, ”कोई बात नहीं, सभी को जाना है, तुम भी इसी में किसी तरह जगह बना लो. दिल में जगह होनी चाहिए, बस!’’

”कहां जगह है?’’ लड़की बोली.

तभी मनोज के बगल में बैठा आदमी बोल पड़ा, ”यहां बैठ जाना, मैं ट्रेन चलने पर ऊपर चला जाऊंगा.’’

”चलो, हो गया इंतजाम. लाओ दूसरा सामान, इसे सीट के नीचे डाल देता हूं.’’ मनोज बोला.

थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी. लड़की को भी बैठने की जगह मिल गई थी. बगल में बैठे मनोज ने पूछा, ”तुम्हें कहां जाना है?’’

”आखिरी स्टेशन तक, ओडिशा!’’ लड़की बोली.

”वहां से?’’ मनोज दोबारा पूछा.

”वहां से अपने गांव…पता नहीं वहां जाने के लिए कोई सवारी मिलेगी या नहीं?’’ लड़की गांव का नाम बताती हुई वहां तक पहुंचने को ले कर चिंतित भी हो गई.

”चिंता की कोई बात नहीं है, कोई न कोई गाड़ी तो मिल ही जाएगी?’’ मनोज बोला.

इसी के साथ मनोज ने बताया कि वह ओडिशा के एक गांव का रहने वाला है, लेकिन बेंगलुरु में काम करने गया था. वहां मन लायक काम नहीं मिला, तब कुछ समय पहले ही काम की तलाश में मुंबई आया था, लेकिन वहां आ कर वह फंस गया था.

बातों बातों में दोनों अपनीअपनी समस्याएं बताने लगे. बोलचाल की भाषा और लहजे से मालूम हुआ कि दोनों एक ही प्रदेश के हैं, लेकिन उन के गांव अलगअलग हैं. उन के बीच दोस्ती हो गई. लड़की ने मनोज को अपना नाम प्रतिमा पवल किस्पट्टा बताया. उस ने कहा कि मुंबई में काफी समय से हाउसकीपिंग का काम कर रही है.

ट्रेन के सफर में हुई जानपहचान के दौरान ही उन्हें मालूम हुआ कि वे दोनों क्रिश्चियन समुदाय से हैं. उन्होंने अपनेअपने फोन में एकदूसरे का नंबर सेव कर लिया. साथ ही मनोज ने मुंबई में उस के लिए कोई काम तलाशने का आग्रह किया.

स्पैशल ट्रेन काफी देरी से ओडिशा की राजधानी पहुंच गई थी. वहां से दोनों अपनेअपने गांव चले गए. उन के बीच फोन पर बातें होती रहीं. उन्होंने फोन पर ही अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर दिया था. कोरोना का दौर खत्म होने में काफी वक्त लग गया था. पूरी तरह से लौकडाउन खत्म होने के बाद ही प्रतिमा मुंबई काम के लिए साल 2022 के शुरुआती माह में लौट पाई थी. वहां उस की बहन अपने परिवार समेत पहले से रहती थी. उस की मदद से उसे हाउसकीपिंग का काम मिल गया था.

इस बीच उस की फोन पर मनोज से भी बात होती रहती थी. वह मनोज से प्यार करने लगी थी, लेकिन उसे ओडिशा में कोई ढंग का काम नहीं मिल पाया था. काम की तलाश में बेंगलरु चला गया था, लेकिन उसे वहां भी पहले जैसा काम नहीं मिल पाया था.

कारण बिल्डिंग कंस्ट्रशन का काम पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया था. इस बारे में उस ने प्रेमिका को फोन पर ही अपनी समस्याएं गिनाई थीं. एक दिन प्रतिमा ने उस से कहा, ”मनोज, अगर वहां रेगुलर काम नहीं मिल रहा है तो क्यों नहीं मुंबई आ जाते हो.’’

”कोरोना से पहले मुंबई गया था, लेकिन वहां भी काम नहीं मिला था. कंस्ट्रक्शन वाले उन कंपनियों के बंदों को लेते हैं, जिन का मुंबई में काम चल रहा हो.’’ मनोज ने अपनी समस्या बताई.  ”कोई बात नहीं, यहां की किसी कंपनी में तुम्हारा रजिस्ट्रैशन मैं करवाने का इंतजाम करती हूं.’’ प्रतिमा बोली.

”अगर ऐसा हो जाए, तब मुझे वहां काम मिल सकता है.’’ मनोज खुशी से बोला.

”तुम आज ही मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ लो. यहां आते ही कोई न कोई काम मिल जाएगा. तुम्हें नहीं पता मुंबई एक मायावी नगरी है, यहां कोई भी भूखा नहीं सोता. मेहनत और ईमानदारी से काम करने पर दो पैसे जरूर मिलते हैं.’’ प्रतिमा समझाने लगी.

बीच में ही मनोज बोल पड़ा, ”ठीक है, ठीक है मैं कल की किसी ट्रेन से मुंबई के लिए निकल पड़ूंगा. अपना एड्रेस और लोकेशन भेज देना.’’ मनोज ने कहा.

कुछ ही देर में मनोज को प्रतिमा ने मुंबई का एड्रैस भेज दिया. उस ने तुरंत मुंबई जाने की तैयारी की और अगले रोज मुंबई जाने वाली ट्रेन की लोकल बोगी में सवार हो गया.

सूटकेस खुलते ही क्यों चौंकी पुलिस

बात बीते साल 2023 में नवंबर माह के 19 तारीख की है. मुंबई के कुर्ला इलाके में मेट्रो कंस्ट्रक्शन साइट पर गश्त करती पुलिस को एक लावारिस सूटकेस मिला. संदिग्ध सूटकेस में विस्फोटक होने की आशंका के साथ इस की सूचना निकट के थाने को दे दी गई.

सूचना पाते ही बम स्क्वायड पहुंच गया. सूटकेस के नंबर वाला लौक बड़ी मुश्किल से खुल पाया. उस की चेन भी भीतर पड़े कपड़े और महीन धागे से फंस गई थी. सूटकेस खुला तो उस के अंदर एक युवती की लाश निकली. क्राइम ब्रांच के सामने सब से पहला सवाल था कि लाश किस की है?

इस की तहकीकात के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी राज तिलक रौशन ने अलगअलग टीमें बनाईं. लावारिस लाश भरा सूटकेस उस वक्त मिला था, जब पूरे देश की निगाहें क्रिकेट वल्र्ड कप के फाइनल मुकाबले पर टिकी थीं.

आरोपी तक कैसे पहुंची पुलिस

पुलिस की एक जांच टीम मौके पर लगे सीसीटीवी कैमरे और इंटेलीजेंस की मदद से तहकीकात में जुट गई, जबकि दूसरी टीम लाश की पहचान के लिए उस की शिनाख्त करने लगी.

मामला कुर्ला पुलिस स्टेशन में दर्ज कर लिया गया था. शव को राजावाड़ी अस्पताल ले जाया गया. वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उस के बाद महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिला की गला दबा कर हत्या की बात सामने आई. उस आधार पर कुर्ला पुलिस धारा 302, 201 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. इस दौरान मृत महिला के गले में क्रास और शरीर पर कपड़ों से पुलिस ने उस के ईसाई समाज के मध्यमवर्गीय परिवार से होने का अंदाजा लगाया.

पुलिस की टीम ने मौके पर लगे हुए सीसीटीवी कैमरों और इंटेलीजेंस की मदद से आरोपी के बारे में पता लगाना शुरू किया. सूचना के आधार पर पुलिस ने आरोपी की तलाश शुरू की.

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अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त लखमी गौतम, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शशि कुमार मीना के आदेशानुसार एवं पुलिस उपायुक्त राज तिलक रौशन के मार्गदर्शन में गठित कुल 8 टीमें लावारिस लाश की गुत्थी सुलझाने में जुट गई थीं. सभी सीसीटीवी फुटेज की जांच करने लगीं. गुप्त खबरची के माध्यम से मृतका के पहचान की भी कोशिश होने लगी. उस की तसवीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी गईं. जल्द ही इस के नतीजे भी सामने आ गए. मृतका की बहन ने लाश की पहचान कर ली. मृतका की पहचान प्रतिमा पवल किस्पट्टा के रूप में हुई. उस की उम्र 25 साल के करीब थी.

उन से मिली जानकारी के अनुसार मृतका धारावी में किराए की एक खोली (कमरा) में रह रही थी. उस के साथ पति भी रहता था. पति मूलत: ओडिशा के एक गांव का रहने वाला था. उस के बारे में आसपास के लोगों से पूछताछ के बाद सिर्फ यही मालूम हो पाया कि वह गांव गया हुआ है. उस ने पड़ोसियों को बताया था कि उस की बहन बीमार है. लोगों ने पति का नाम मनोज बताया.

पड़ोसियों से मालूम हुआ कि पहले प्रतिमा अकेली ही थी, लेकिन वह बीते एक माह से मनोज उस के साथ रह रहा था. उस के बारे में पुलिस को यह भी मालूम हुआ कि वह 18 नवंबर, 2023 के बाद नहीं देखा गया था.

इस तहकीकात के साथसाथ सीसीटीवी खंगालने वाली दूसरी टीम को मनोज के कुछ सुराग हाथ लग गए थे. 18 नवंबर की रात को वह एक आटो धारावी से ले कर आसपास के कुछ इलाके में घूमता नजर आया था. आटो किसी रेलवे स्टेशन के रास्ते पर जाने के बजाए कुर्ला में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक गया था. उस के बाद उस का पता नहीं चल पाया था.

जांच की एक अन्य टीम मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर भी जा पहुंची थी, उन में मुंबई का लोकमान्य तिलक टर्मिनस खास था. वहां पुलिस टीम को एक घबराया हुआ युवक दिख गया, जिस का हुलिया दूसरी जांच टीम से मिली जानकारी से मेल खाने वाला था. उस के पास पुलिस तुरंत जा पहुंची. पास आई पुलिस को देख कर युवक भागने लगा, जिसे पुलिस ने दौड़ कर पकड़ लिया.

पकड़ा गया युवक मनोज बारला था. उसे ठाणे पुलिस ला कर पूछताछ की गई. जब सूटकेस वाली लावारिस महिला की लाश के बारे में उस से पूछा गया, तब वह खुद को रोक नहीं पाया. रोने लगा. एक पुलिसकर्मी ने उसे पीने के लिए पानी दिया. कुछ सेकेंड बाद पानी पी कर जब वह सामान्य हुआ, तब उस से दोबारा पूछताछ की जाने लगी. फिर उस ने लाश के साथ अपने संबंध के बारे में जो कुछ बताया, वह काफी दिल दहला देने वाला था.

दरअसल, यह अभावग्रस्त जिंदगी से तंग आ चुके प्रेमियों की कहानी थी, जो बीते एक माह से बिना शादी किए रह रहे थे. इसे पुलिस रिकौर्ड में लिवइन रिलेशन दर्ज कर लिया गया. उन का प्रेम खत्म हो चुका था और प्रेमी सलाखों के पीछे जाने के काफी करीब था. उस ने जो आगे की कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

मनोज ने पुलिस को बताया कि मुझे दुख है कि मैं ने अपने हाथों से अपनी ( Love story ) प्रेमिका प्रतिमा पवल किस्पट्टा का गला घोंट दिया. उसी प्रेमिका को मार डाला, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मुझे नौकरी दिलाने के लिए ओडिशा से यहां बुलाया था.

उस ने बताया कि प्रतिमा के कहने पर ही वह मुंबई में आया था. मुंबई में स्थित वड़ापाव की एक मशहूर दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था. वह एमजी नगर रोड, धारावी में प्रेमिका प्रतिमा के साथ ही रहने लगा था. उन्होंने शादी नहीं की थी, लेकिन प्रतिमा उसे अपना पति बना चुकी थी. इस तरह से उन के लिवइन रिलेशनशिप की शुरुआत हो गई थी.

उन्होंने साथ रहते हुए भविष्य के सुनहरे सपने देखे थे. किंतु वे आर्थिक तंगी से भी गुजर रहे थे. पैसे की कमी को ले कर उन के बीच कभीकभार बहस भी हो जाती थी.

मनोज शिकायती लहजे में बताने लगा, ”सर, प्रतिमा मेरी प्रेमिका जरूर थी, पैसा भी कमाती थी. मैं जब भी अपने खर्चे के लिए मांगता था, तब किचकिच करने लगती थी. इसी बात पर मेरी उस से लड़ाई हो जाती थी. वह बारबार कहती थी कि अपना खर्च कम करो, अपनी कमाई के पैसे लाओ, फिर मुझ से मांगना.’’

इसी के साथ मनोज ने प्रतिमा के चरित्र पर भी शंका के लहजे में बोला, ”सर, प्रतिमा का कोई यार भी था. उस से बहुत देर तक वह फोन पर बातें करती थी. मैं सब समझता हूं सर! एक समय में कभी वह मुझ से भी फोन पर देरदेर तक बातें करती थी…’’

हत्या की बताई चौंकाने वाली वजह

इस शिकायती और संदेह वाली बातों पर पुलिस ने पूछा, ”तुम ने इस बारे में कभी पता लगाने की कोशिश की कि उस के पास पैसे हैं या नहीं? हो सकता है उस के पास उस वक्त पैसे नहीं हों, जब तुम मांगते होगे.’’

”नहीं सर, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन नहीं देती थी.’’ मनोज बोला.

”चलो मान लिया, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन उसी ने तुम्हें काम पर भी रखवाया था. वहां से पैसे मिले होंगे…उस का तुम ने क्या किया?’’ पुलिस ने पूछा.

”एक माह के ही मिले थे, सारे पैसे मैं ने अपने घर भेज दिए थे.’’ मनोज बोला.

”प्रतिमा को कुछ भी नहीं दिया?’’

”उसे क्यों देता, उसे भी तो पैसे मिले थे?’’ मनोज बोला.

”तुम्हें उस ने साथ रखा था, पति की तरह रहते थे. तुम्हारी भी तो घर चलाने की जिम्मेदारी थी.’’ पुलिस ने समझाया.

”लेकिन सर, वह अपने पैसे दूसरों पर खर्च करती थी, मुझे मालूम था वह कोई रिश्तेदार नहीं था. उस का एक प्रेमी था.’’ मनोज फिर प्रेमिका के चरित्र पर शंका के लहजे में बोला.

”इस का तुम ने कुछ पता किया या फिर यूं ही संदेह करते रहे?’’

”मैं क्या उस के बारे में पूछता. एक बार कुछ बोलने वाला ही था कि वह चीखने लगी… ताने मारने लगी… मुझे ही भलाबुरा कहने लगी थी.’’

”मुझे तो मालूम हुआ है कि प्रतिमा की कुछ माह से नौकरी छूट गई थी.’’

”हां, इस की जिम्मेदार भी वही थी. झगड़ालू स्वाभाव था. अपने मालिक से बातबात पर झगड़ पड़ती थी. उसे नौकरी से निकाल दिया था.’’ मनोज ने बताया.

”हो सकता है, दूसरे काम की तलाश में लोगों से फोन पर बात करती हो और तुम उसी को ले कर शक करने लगे हो.’’

”मैं इतना बुद्धू नहीं हूं सर, जो किसी लड़की के फोन पर हंस हंस कर बात करने का मतलब नहीं समझ पाऊं.’’ मनोज बोला.

”खैर, छोड़ो इन बातों को, सचसच बताओ 18 नवंबर, 2023 को क्या हुआ था?’’ पुलिस अब असली मुद्दे पर आ गई थी.

”असल में 18 तारीख को उस ने मुझ से कमरे का किराया देने के लिए पैसे मांगे. मेरे पास पैसे नहीं थे. इस पर उस ने मुझे दुकान से एडवांस मांगने को कहा, जो मुझ से नहीं हो सकता था. कारण, वहां से पहले ही एडवांस ले चुका था.’’

”फिर तुम ने क्या किया?’’

”मैं क्या करता, पैसे मेरे पास नहीं थे. इस बात को ले कर काफी बहस होने लगी. मैं परेशान हो गया. उस ने मुझे गालियां देनी शुरू कर दीं. दोपहर से हमें झगड़ते हुए शाम घिर आई. मैंं गुस्से से घर से बाहर निकल पड़ा. कुछ समय में ही वापस लौट आया. आते ही वह बरस पड़ी, ”आ गए, आटा लाए?’’

इस पर मैं ने जैसे ही कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है तो वह एक बार फिर बरस पड़ी. गालियां देती हुई बोली, ”नहीं है तो भूखे रहो… मरो यहीं, मैं चली.’’

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इत्मीनान से रखी सूटकेस में लाश

मनोज ने आगे बताया, ”तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. प्रतिमा ने अपना बैग उठाया और पैर पटकती हुई घर से जाने लगी. मैं ने तुरंत उस का हाथ खींच लिया, जिस से उस का संतुलन बिगड़ गया और गिरने को हो आई. उस के बाद प्रतिमा और भी गुस्से में आ गई. आंखें लाल करती हुई गालियां देने लगी. मेरे खानदान तक को कोसने लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”असल में उस का हाथ खींचने से चुन्नी उस के गले में फंस गई थी. इस कारण उस ने समझा कि मैं ने उस का गला जानबूझ कर कसने की कोशिश की है. गालियां देती हुई  मुझ पर आरोप लगा दिया कि मैं उसे गला कस कर मारना चाहता हूं.

”यह बात मेरे दिमाग में बैठ गई और उस की हत्या की बात कीड़े की तरह पलक झपकते ही दिमाग में कुलबुलाने लगी. फिर क्या था, ऐसा हुआ कि मानो मैं ने अपना होश खो दिया हो…

”मेरा गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था. मैं ने 2-3 जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. थप्पड़ खा कर वह जमीन पर गिर गई. तिलमलाती हुई वह उठने लगी, लेकिन जब तक वह उठ पाती, मैं ने दोनों हाथों से उस का गला दबा दिया. अपनी भाषा में गाली दी और हाथों की पकड़ मजबूत कर दी.

”कुछ सेकेंड बाद ही दुबलीपतली प्रतिमा बेजान हो चुकी थी. उस की चीख भी बंद हो चुकी थी. गुस्से में आ कर उस की हत्या तो हो गई, लेकिन उस के बाद मैं घबरा गया.’’

”और इस तरह तुम ने अपनी प्रेमिका (  Love story ) की हत्या कर डाली. उस के बाद तूने क्या किया?’’ जांच अधिकारी ने पूछा.

”रात के 10 बजने को हो आए थे. मैं अपने हाथों से प्रतिमा (Love story) की हत्या से घबरा गया था. थोड़ी देर तक उस के पास बैठा सोचता रहा, उस की मौत का मातम मनाता रहा, लेकिन पकड़े जाने, कड़ी सजा होने…जैसे खयाल मन में आने लगे. इसी बीच मेरी नजर घर में रखे उसी के एक बड़े सूटकेस पर गई. मैं ने झट उसे खाली किया और कपड़ों की तह के बीच जैसेतैसे कर के उस की लाश को ठूंस दिया.

”उस सूटकेस को ले कर कमरे पर से निकल गया. उस वक्त रात के करीब पौने 12 हो चुके थे. सायन से आटोरिक्शा लिया और कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस जा पहुंचा. मैं सूटकेस को रेलवे स्टेशन के किसी इलाके में छोडऩा चाहता था, लेकिन लोगों की भीड़ देख कर ऐसा नहीं कर पाया. वापस लौट आया…’’ मनोज बोलतेबोलते रुक गया.

”आगे बताओ,’’ जांच अधिकारी ने कहा.

”उस के बाद मैं और भी घबरा गया क्योंकि आटोरिक्शा वाला बारबार मुझ से कह रहा था कि साहब जल्दी उतरो स्टेशन आ गया है. मैं पशोपेश में था कि क्या करना है और क्या नहीं! आखिरकार मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया.

”वापस कमरे पर जाने के बारे में सोचते हुए दूसरा आटोरिक्शा लिया और सीएसटी पुल के नीचे सार्वजनिक शौचालय के सामने चेंबूर सांताक्रुज चैनल कुर्ला पश्चिम में एक जगह पर आया. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. रात का समय था. एकदम सुनसान. वह जगह मुझे उचित लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया. उस के जाने के बाद इधरउधर देखा. कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. आम लोगों को जाने से रोकने के लिए कई बैरिकेड्स लगे थे. मैं ने तुरंत एक बैरिकेड को थोड़ा खिसका कर सूटकेस को अंदर सरका दिया. कुछ देर वहां रुकने के बाद मैं आगे बढ़ गया और आटो ले कर सायन धारावी लौट आया.’’

आगे की जानकारी देता हुआ मनोज बारला बोला, ”मैं कमरे पर जा कर फिर गहरी नींद में सो गया. अगले रोज 19 नवंबर को देर से नींद खुली. फटाफट तैयार हुआ और सुबह 11 बजे के करीब ओडिशा जाने के लिए रेलवे स्टेशन चला आया, किंतु ट्रेन पकडऩे से पहले ही क्राइम ब्रांच द्वारा पकड़ लिया गया.’’

पुलिस ने मनोज बारला के इस बयान को दर्ज कर लिया गया. आगे की काररवाई के बाद उसे गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के सामने हाजिर कर दिया गया. वहां से जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Top 5 Love Crime Story : टॉप 5 लव क्राइम स्टोरी

Top 5 love Crime Story Of 2022 : इन लव क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि कैसे समाज   में प्रेम ने कईओं के घर बर्बाद किये है और किसी ने प्यार के लिए अपनों को ही शिकार बना लिया. और अपने ही प्यार को धोखा देकर उसे मार देना. अपने और अपने परिवार को ऐसे हो रहे क्राइम से सावधान करने के लिए पढ़िए Top 5 love Crime story in Hindi मनोहर कहानियां जो आपको गलत फैसले लेने से बचा सकती है.

1. प्रेमिका बनी भाभी तो किया भाई का कत्ल

नौशहरा गांव में एक कत्ल की वारदात हो गई है. मकतूल का बाप और 2 आदमी बाहर बैठे आप का इंतजार कर रहे हैं.’ मैं उन लोगों के साथ फौरन मौकाएवारदात पर जाने के लिए रवाना हो गया. मकतूल का नाम आफताब था, वह फय्याज अली का बड़ा बेटा था. उस से छोटा नौशाद उस की उम्र 20 साल थी. आफताब उस से 2 साल बड़ा था. उस की शादी एक महीने पहले ही हुई थी. मकतूल का बाप फय्याज अली छोटा जमींदार था. उस के पास 10 एकड़ जमीन थी, जिस पर बापबेटे काश्तकारी करते थे. मैं खेत में पहुंचा, जहां पर 2 छोटे कमरे बने हुए थे. बरामदे में कटे हुए गेहूं का ढेर लगा था. फय्याज के साथ मैं कमरे के अंदर पहुंच गया. मकतूल की लाश कमरे में पड़ी चारपाई के पायंते पर पड़ी थी.

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2. भाई ने बहन को दोस्त के साथ रंगे हाथ पकड़ा तो दबा दिया तमंचे का ट्रिगर

निश्चित जगह पर पहुंच कर अखिलेश उर्फ चंचल को प्रियंका दिखाई नहीं दी तो वह बेचैन हो उठा. उस बेचैनी में वह इधरउधर टहलने लगा. काफी देर हो गई और प्रियंका नहीं आई तो वह निराश होने लगा. वह घर जाने के बारे में सोच रहा था कि प्रियंका उसे आती दिखाई दे गई. उसे देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. प्रियंका के पास आते ही वह नाराजगी से बोला, ‘‘इतनी देर क्यों कर दी प्रियंका. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अच्छा हुआ तुम आ गईं, वरना मैं तो निराश हो कर घर जाने वाला था.

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3. महिला को गैस नली लगाकर जला डाला जिंदा

अवैध संबंधों की राह बड़ी ढलवां होती है. दीपा ने इस राह पर एक बार कदम रखा तो वह संभल नहीं सकी. फिर इस का जो नतीजा निकला, वह बड़ा ही भयावह था. टना 18 मई, 2018 की है. माधव नगर थाने के थानाप्रभारी गगन बादल अपने औफिस में बैठे विभागीय कार्य निपटा रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के वल्लभ नगर में मां बादेश्वरी मंदिर के सामने रहने वाली दीपा वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में धुआं निकल रहा है.

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4. ट्रॉली बैग में 72 घंटे तक रखा प्रेमिका की लाश को

नोएडा के खोड़ा कालोनी के वंदना एनक्लेव स्थित 4 मंजिला मकान में कुल 33 कमरे थे. सभी कमरों में नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली में काम करने वाले किराएदार रह रहे थे. इन में से कुछ लोग अपने परिवार के साथ रहते थे. लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे थे जो अकेले ही रहते थे. चूंकि सभी लोग नौकरीपेशा थे, इसलिए वे सुबह ही अपनी ड्यूटी पर चले जाते और देर शाम या रात को वापस अपने कमरों पर लौटते थे.

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5. विवाहिता के प्यार में 4 हत्याएं

चंदन वर्मा ने 12 सितंबर, 2024 को अपने वाट्सऐप पर लिखा, ‘5 लोग मरने वाले हैं. मैं जल्दी कर के दिखाऊंगा (5 people are going to die. I will show you soon.)उस का इशारा अपनी प्रेमिका पूनम व उस के परिवार, स्वयं और पूनम के भाई सोनू की तरफ था. चंदन वर्मा ने इस के लिए अवैध पिस्टल का इंतजाम तो कर लिया था, लेकिन गोलियों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. इस के लिए उस ने जानपहचान के अपराधियों से संपर्क किया और 10 राउंड गोलियों वाली मैगजीन मुंहमांगी कीमत पर खरीद कर रख ली,

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