राइस पुलर के नाम पर करोड़ों की ठगी

जैसे जैसे तकनीकी का विकास होता जा रहा है, लोग भी जागरूक होते जा रहे हैं. अब ठगों ने भी आधुनिक तकनीकी का लाभ उठाते हुए पढे लिखे लोगों को एक नए तरीके से ठगना शुरू कर दिया है. अब कुछ ठगों ने लोगों को रेडियो धर्मी नामक दुर्लभ धातु ‘राइस पुलर’ के नाम पर लाखोंकरोड़ों रुपए की ठगी करनी शुरू कर दी है.

ऐसा ही एक मामला दिल्ली पुलिस ने व्यापारी संजय गुप्ता की शिकायत पर उजागर किया है. पुलिस ने जिन ठगों को गिरफ्तार किया है, उन्होंने  स्वीकार किया है कि वह लगभग 100 लोगों से 10 करोड़ रुपए की ठगी कर चुके हैं.

उत्तर पश्चिमी दिल्ली के आदर्श नगर के रहने वाले व्यापारी संजय गुप्ता की एक दिन मुन्नालाल नाम के व्यक्ति से मुलाकात हुई. बाद में उन दोनों के संबंध बहुत गहरे हो गए. तो मुन्नालाल ने संजय गुप्ता को राइस पुलर के बारे में बताया.

व्यापारी संजय गुप्ता राइस पुलर के बारे में कुछ नहीं जानते थे. मुन्नालाल ने बताया है कि राइस पुलर एक बेशकीमती धातु होती है. जिस का प्रयोग नासा, डीआरडीओ, इसरो स्पेस में भेजे जाने वाले अपने उपग्रह में करते हैं.

उस की बात सुनकर संजय गुप्ता के मन में भी एक जिज्ञासा पैदा हुई. उन्होंने उसी समय अपने मोबाइल फोन में गूगल पर राइस पुलर के बारे में सर्च करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में राइस पुलर के बारे में तमाम जानकारी उन के सामने आ गई.

गूगल पर राइस पुलर के बारे में ढेर सारी जानकारी मिलते ही संजय गुप्ता समझ गए कि राइस पुलर वास्तव में एक महंगी धातु है. वहां से उन्हें यह भी पता चल गया कि असली राइस पुलर की पहचान क्या होती है.

इस के बाद मुन्नालाल ने उन से कहा कि मेरे पास एक ऐसी पार्टी है, जो राइस पुलर की तांबे की प्लेट को बांग्लादेश से स्मगलिंग कर के लाई है. आप चाहें तो खुद उस प्लेट को देख लें. लेकिन यह बात तय है कि जितने पैसे में आप उसे खरीदेंगे, उस से कई गुना दामों में नासा वाले उसे खरीद लेंगे.

संजय गुप्ता व्यापारी थे, उन्हें इस धंधे में फायदा होता दिखा तो उन की दिलचस्पी भी बढ़ गई. उन्होंने उस से पूछा कि यह कितने पैसों में मिल सकती है.

‘सर, सौदे की बात तो बाद में हो जाएगी. सब से पहले आप यह देख लें कि हम जिस चीज का सौदा करने वाले हैं, वह असली भी है या नहीं. वैसे मेरे पास उस की एक वीडियो है. आप पहले इस वीडियो को देख लीजिए.’ मुन्नालाल ने कहा.

तब मुन्नालाल ने अपने फोन में एक वीडियो संजय गुप्ता को दिखाई. संजय गुप्ता उस वीडियो को बड़ी गौर से

देखने लगे.

इस वीडियो में एक तांबे की प्लेट रखी हुई थी उस प्लेट से कुछ दूर पर कुछ चावल बिखरे हुए थे. उन्होंने देखा कि धीरेधीरे वह चावल उस तांबे की प्लेट की तरफ खिंचे आ रहे थे. ठीक उसी तरह जैसे कोई चुंबक लोहे को अपनी ओर खींचता है.

मुन्नालाल से उन्होंने उस प्लेट की कीमत मालूम की. उस ने बताया है कि वैसे तो इस प्लेट की कीमत एक करोड़ रुपए से ज्यादा है, लेकिन वह उन्हें

80 लाख रुपए में इस का सौदा करा सकता है.

‘‘इस बात की क्या गारंटी है कि यदि मैं आप लोगों से इस प्लेट को खरीद लूं तो नासा या इसरो वाले उस से इस प्लेट को खरीद ही लेंगे.’’ संजय गुप्ता ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा.

‘‘आप ने बिलकुल सही सवाल पूछा है. किसी के भी मन में ऐसा सवाल उठना स्वाभाविक बात है. इस के बारे में मैं बताना चाहता हूं कि हम जिस प्लेट का सौदा आप से करेंगे उस प्लेट को नासा और डीआरडीओ वाले खुद जांच करेंगे कि यह प्लेट असली भी है या नहीं. जब वह संतुष्ट हो जाएंगे. तब वह उसी समय एक जांच सर्टिफिकेट देंगे. उस सर्टिफिकेट में लिखा हुआ होगा कि यह प्लेट वास्तव में रेडियोधर्मी पदार्थ यानी राइस पुलर है.

‘‘यह बात आप भी जानते हैं कि नासा, डीआरडीओ या इसरो कोई छोटीमोटी एजेंसी तो हैं नहीं. यह देश की जानीमानी संस्थाएं हैं. उसी सर्टिफिकेट के आधार पर आप यह प्लेट नासा को अपनी मुंह मांगी कीमत पर बेच सकते हैं.’’ मुन्नालाल ने कहा.

मुन्नालाल से 4-5 बार हुई मीटिंग के आधार पर संजय गुप्ता को विश्वास हो गया कि वह जो सौदा करने जा रहा है वह घाटे का नहीं है. इस दौरान मुन्नालाल ने हरेंद्र कुमार और ठाकुरदास मंडल नाम के 2 व्यक्तियों से उन की फोन पर कई बार बात कराई.

इन दोनों ने खुद को नासा का वैज्ञानिक बताया था. इतना ही नहीं इन दोनों ने यह भी कहा कि वास्तव में जब वह कोई उपग्रह अंतरिक्ष में भेजते हैं तो उस में राइस पुलर पदार्थ का उपयोग किया जाता है. जरूरत के उस समय वह पदार्थ उन्हें मोटे दामों पर खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

तब उन दोनों वैज्ञानिकों ने संजय गुप्ता को आरबीआई द्वारा जारी किया गया एक सर्टिफिकेट, यूनाइटेड नेशन एंटी टेररिस्ट विभाग की ओर से जारी किया गया सर्टिफिकेट और नासा का एक सर्टिफिकेट दिखाया.

 

दोनों वैज्ञानिकों से मिल कर संजय गुप्ता पूरी तरह संतुष्ट हो गए. तब मुन्नालाल ने उन से  कहा कि ये दोनों वैज्ञानिक ही प्लेट की जांच करने के बाद एक सर्टिफिकेट जारी करेंगे. लेकिन उस परीक्षण में कुछ खर्चा होगा जो आप को ही वहन करना पड़ेगा.

‘‘किस तरह का और कितना खर्चा होगा आप मुझे बताइए मैं देखता हूं.’’ संजय गुप्ता ने कहा.

तब हरेंद्र कुमार ने संजय गुप्ता को समझाया, ‘‘देखिए यह राइस पुलर उच्च रेडियोधर्मी पदार्थ होते हैं. इन के परीक्षण  के समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है. इन की रेडियोधर्मी किरणों से बचने के लिए हमें वही जैकेट आदि पहननी होती है, जो मंगलयान पर जाते समय पहनी जाती है. और  इस के अलावा कुछ केमिकल भी लाने होते हैं. इन सब में करीब 15 लाख खर्च होंगे.’’ संजय गुप्ता ने उन्हें 11 लाख रुपए दे दिए.

पैसे लेने के बाद इन लोगों ने कहा कि वह इस की टेस्टिंग घनी आबादी से दूर करेंगे. इस के लिए मुन्नालाल ने संजय गुप्ता से कोई सुनसान जगह तलाशने को कहा. कारोबारी संजय गुप्ता ने कह दिया कि दिल्ली से बाहर एक गांव में उन के एक दोस्त का खेत में एक मकान बना हुआ है, वहीं पर इस की टेस्टिंग हो जाएगी. इस पर वह लोग तैयार हो गए और उन्होंने टेस्टिंग का दिन निर्धारित कर दिया.

लेकिन निर्धारित तिथि पर उन तीनों में से कोई भी उस प्लेट को ले कर टेस्टिंग के लिए नहीं पहुंचा. काफी देर इंतजार करने के बाद संजय गुप्ता ने मुन्नालाल को फोन लगाया लेकिन उस का फोन उस समय स्विच्ड औफ आ रहा था.

कुछ देर बाद फिर से मुन्नालाल का फोन लगाया. इस बार भी मुन्नालाल का फोन बंद मिला. जब कई बार ऐसा हुआ तो संजय परेशान हो गए. कई घंटे इंतजार करने के बाद वह अपने घर दिल्ली लौट आए.

घर आने के बाद भी वह लगातार मुन्नालाल को फोन लगाने का प्रयास करते रहे लेकिन हर बार उस का फोन स्विच्ड औफ ही आ रहा था. अब संजय गुप्ता के मन में कई आशंकाओं ने जन्म ले लिया है. सोचने लगे कहीं ऐसा तो नहीं उन लोगों ने उन से 11 लाख रुपए ठग लिए हों.

कई दिन बाद भी जब मुन्नालाल का फोन नहीं मिला तो संजय गुप्ता अपने दोस्त के साथ दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी भीष्म सिंह से मिले. उन्होंने डीसीपी साहब को अपने साथ  की गई ठगी की सारी बात बता दी. तब डीसीपी भीष्म सिंह ने एडिशनल डीसीपी शिवेश सिंह के नेतृत्व में एक टीम बनाई जिस में  साइबर सेल के एसीपी अरविंद कुमार और राजीव कुमार को शामिल किया गया. पुलिस टीम ने अपने स्तर से उन लोगों को खोजना शुरू कर दिया और कुछ ही दिन में पुलिस को सफलता हासिल हो गई.

पुलिस ने कोलकाता से 36 वर्षीय हरेंद्र कुमार और 53 वर्षीय ठाकुरदास मंडल को गिरफ्तार कर लिया. मुन्नालाल भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

तीनों आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, 6 सिम कार्ड, 14 डेबिट कार्ड, एक पेन ड्राइव, 22 हजार करोड़ जमा करने का आरबीआई द्वारा जारी किया गया फरजी सर्टिफिकेट, यूनाइटेड नेशन एंटी टेररिस्ट विभाग की ओर से जारी किया गया फरजी सर्टिफिकेट, नासा का एक फरजी सर्टिफिकेट बरामद हुआ. पुलिस ने उन का बैंक खाता भी सीज करा दिया जिस में 6 लाख से ज्यादा रुपए जमा थे.

जांच में पता चला है कि यह करीब 100 लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी कर चुके हैं. इन सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

सुपरकॉप स्पेशल : जांबाज आशुतोष पांडेय

आशुतोष पांडेय साल 2012 में जब लखनऊ के डीआईजी, एसएसपी बने थे तब उन्होंने पुलिसकर्मियों को मुखबिर तंत्र इस्तेमाल करने का सब से अच्छा तरीका सिखाया था. मोबाइल नंबर पर शिकायत दर्ज कराने का हाइटेक सिस्टम भी उन्होंने ही लौंच किया था.

आशुतोष सादी वर्दी में घूमते थे और शहर में खोखा लगा कर पानबीड़ी बेचने वाले पनवाड़ी से ले कर रेहड़ी पटरी लगाने वालों, फल व चाय वालों से मिल कर इस निर्देश के साथ उन्हें अपना मोबाइल नंबर लिखा विजिटिंग कार्ड थमा देते थे कि कहीं कोई गड़बड़ दिखे तो उन्हें सीधे फोन करें.

बस कुछ ही दिनों में आशुतोष पांडेय के ऐसे हजारों मुखबिरों का नेटवर्क तैयार हो गया. परिणाम यह हुआ कि थानेदार की लोकेशन पता करने के लिए वह संबंधित थाना क्षेत्र के किसी भी पानवाले को फोन कर लेते थे. इस से कई सचझूठ सामने आ जाते थे.

2016 में जब आशुतोष पांडेय कानपुर जोन के आईजी थे तो उन्होंने कानपुर पुलिस की छवि सुधारने के लिए भी सोशल मीडिया को माध्यम बना कर जनता के लिए एक फोन नंबर जारी किया, जिसे एक नंबर भरोसे का नाम दिया गया. यह नंबर खूब चर्चित हुआ और लोग आईजी आशुतोष पांडेय से सीधे जुड़ने लगे.

कानपुर आईजी के पद पर रहते हुए पांडेय ने हर वारदात को हर पहलू से समझने के लिए कानपुर के एक थाने में तैनात एसओ सहित वहां के सभी दरोगाओं की कार्यशैली देखने के लिए उन की बैठक ली. वहां पीडि़तों को भी बुलाया गया था. थानेदारों और पीडि़तों से आमनेसामने बात की गई तो पता चला कई थानेदारों ने जांच के नाम पर लीपापोती की थी. कई ने तो पीडि़तों को भटकाने की कोशिश की थी. कई ऐसे भी थे जिन की जांच सही दिशा में जा रही थी.

यह सब देख कर उन्होंने एफआईआर दर्ज करने से ले कर विवेचना तक में दरोगा और थानेदारों के खेल पर शिकंजा कसने के आदेश दिए. दरअसल पुलिस विभाग में किसी अधिकारी की संवेदनशीलता उस की कार्यशैली को दर्शाती है. फिलहाल आशुतोष पांडेय उत्तर प्रदेश पुलिस के अपर महानिदेशक अभियोजन महानिदेशालय हैं.

हर कार्य दिवस की सुबह ठीक 10 बजे से अपने कक्ष में लगे कंप्यूटर के एक खास आइसीजेएस पोर्टल पर विभाग के प्रौसीक्यूटर्स की निगरानी में जुट जाते हैं. इस से गुमनामी में रहने वाला यूपी पुलिस का अभियोजन विभाग यूपी को देश में ई प्रौसीक्यूशन पोर्टल का उपयोग करने के लिए पहले नंबर पर आ खड़ा हुआ है.

बिहार के भोजपुर जिले में आरा के रहने वाले शिवानंद पांडेय के बड़े बेटे आशुतोष को बतौर सुपर कौप के रूप में पहचान दिलाई मुजफ्फरनगर जिले ने, जहां वे ढाई साल तक एसएसपी के पद पर तैनात रहे.

1998 में आशुतोष पांडेय की मुजफ्फरनगर जिले में एसएसपी के रूप में पहली नियुक्ति हुई. इस से पहले यहां केवल एसपी का पद था. दरअसल, प्रदेश सरकार ने आशुतोष पांडेय की मेहनत, लगन, ईमानदारी और कुछ नया करने की ललक को देखते हुए उन्हें एक खास मकसद से मुजफ्फरनगर में एसएसपी का पद सृजित कर भेजा था. साथ ही अपराधग्रस्त मुजफ्फरनगर से अपराध खत्म करने के लिए कुछ विशेष अधिकार भी दिए थे.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला मुजफ्फरनगर किसान बहुल और जाट बहुल है. यहां की शहरी और ग्रामीण जितनी आबादी जाटों की है, कमोबेश उतनी ही आबादी मुसलिमों की भी है.

1990 से 2000 के दशक की बात करें तो मुजफ्फरनगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में अपराध में अव्वल था. अपहरण, फिरौती और हत्याओं में सब से आगे. ज्यादातर पुलिस वाले बड़े अपराधियों और रसूखदार लोगों की जीहुजूरी करते थे. कोई भी पुलिस कप्तान जिले में 6 महीने से ज्यादा नहीं टिक पाता था.

12 दिसंबर, 1998 को जब आशुतोष ने बतौर एसएसपी मुजफ्फरनगर में जौइंन किया उसी दिन बदमाशों ने पैट्रोल पंप की एक बड़ी लूट, एक राहजनी और एक व्यक्ति का अपहरण किया.

अभी 2-3 दिन ही बीते थे कि मुजफ्फरनगर के थाना गंगोह के रहने वाले कुख्यात बदमाश बलकार सिंह ने सहारनपुर के एक बड़े उद्योगपति के 8 वर्षीय बेटे का अपहरण कर लिया और उस की धरपकड़ और बच्चे की बरामदगी की जिम्मेदारी आशुतोष पांडेय पर आई.

आशुतोष खुद अपराधी बलकार सिंह के गांव पहुंचे. उन्होंने उस के करीबी लोगों को पकड़ कर पूछताछ की, लेकिन किसी ने मुंह नहीं खोला.

इसी दौरान अपहृत बच्चे के परिजनों ने बिचौलियों के माध्यम से अपहर्त्ताओं से बातचीत की और फिरौती की रकम ले कर एक व्यक्ति को बच्चे को छुड़ाने के लिए बलकार गिरोह के पास भेज दिया.

बलकार गिरोह ने फिरौती की रकम भी ले ली और बच्चे को भी नहीं छोड़ा. साथ ही फिरौती ले कर गए बच्चे के रिश्तेदार को भी बंधक बना लिया. अब उन्होंने बच्चे के साथ रिश्तेदार को छोड़ने के लिए भी फिरौती की रकम मांगनी शुरू कर दी.

इस वारदात के बाद मुजफ्फरनगर और सहारनपुर की पुलिस ने गन्ने के खेतों, जंगलों, गांवों की खूब कौंबिंग की, लेकिन सब बेनतीजा. अपहृत के परिजनों ने इस बार ठोस माध्यम तलाश कर बच्चे और अपने रिश्तेदार को फिरौती की रकम दे कर छुड़ा लिया. इस से पूरे प्रदेश में दोनों जिलों की पुलिस की बहुत किरकिरी हुई.

काफी माथापच्ची के बाद आशुतोष पांडेय की समझ में आया कि गन्ना इस इलाके में सिर्फ किसानों की ही नहीं, अपराध और अपराधियों के लिए भी रीढ़ का काम करता है.

मुजफ्फरनगर में 90 फीसदी से ज्यादा जमीन पर गन्ने की खेती होती है. इसी खेती से यहां का किसान, आढ़ती और व्यापारी सब समृद्ध हैं. हर गांव में 100-50 ट्रैक्टर और ट्यूबवैल हैं.

समृद्धि हमेशा अपराध को जन्म देती है. मुजफ्फरनगर इलाके में अपराधी पैदा होते हैं मूछों की लड़ाई और इलाके में अपनी हनक पैदा करने के कारण. लेकिन बाद में अपराध के जरिए पैसा कमा कर खुद को जिंदा रखना उन की मजबूरी बन जाता है.

इसी के चलते मुजफ्फरनगर में हर अपराधी और उस के गैंग ने बड़े किसानों, आढ़तियों और उद्योगपतियों को निशाना बना कर उन का अपहरण करने और बदले में फिरौती वसूलने का धंधा शुरू किया.

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अपहर्त्ता कईकई दिन तक अपने शिकार को गन्ने के खेतों में छिपा कर रखते और इन खेतों व ट्यूबवैलों के मालिक किसान परिवार उन्हें खाने से ले कर दूसरी तरह का प्रश्रय देते.

उन दिनों मोबाइल फोन न के बराबर प्रचलन में थे. दूसरे इलेक्ट्रौनिक माध्यम भी नहीं थे, जिन के जरिए अपराधी अपहृत के परिजनों से संपर्क करते.

अपराधियों का एकमात्र माध्यम या तो लैंडलाइन फोन थे या फिर हाथ से लिखे पत्र, जिन्हें अपने शिकार के परिजनों तक पहुंचा कर वह फिरौती की मांग करते थे.

मुजफ्फरनगर के सामाजिक तानेबाने का अध्ययन करने के बाद आशुतोष पांडेय की समझ में यह बात भी आ गई कि इस इलाके में पंचायत व्यवस्था काफी मजबूत है. पंचायतों का असर इतना गहरा है कि जो मामले अदालतों तक जाने चाहिए, उन्हें पंचायत की मोहर लगा कर सुलझा दिया जाता था.

आशुतोष पांडेय ने ठान लिया कि वे मुजफ्फरनगर से असफल कप्तान का ठप्पा लगवा कर नहीं जाएंगे, बल्कि पंचायत और प्रभावशाली लोगों में पैठ बना कर बैठे अपराधियों का नेटवर्क तोड़ कर जाएंगे.

अपराध और अपराधियों की मनोवृत्ति तथा सामाजिक तानेबाने का विश्लेषण कर के आशुतोष पांडेय ने नए सिरे से जिला पुलिस के पुनर्गठन की शुरुआत की.

उन्होंने ऐसे पुलिसकर्मियों का पता लगाया, जिन का आचरण संदिग्ध था, मूलरूप से इसी इलाके के रहने वाले थे और जिन की अपराधी प्रवृत्ति के लोगों से घनिष्ठता थी. जो गोपनीय सूचनाओं को लीक करते थे.

उन्होंने सब से पहले सिपाही से ले कर दरोगा स्तर के ऐसे ही पुलिस वालों की सूची तैयार की. इस के बाद उन्होंने ऐसे पुलिस वालों को या तो जिले से बाहर ट्रांसफर कर दिया या फिर उन की नियुक्ति गैरजरूरी पदों पर कर दी.

फिर आशुतोष पांडेय ने ऐसे पुलिसकर्मियों को चिह्नित करना शुरू किया जो न सिर्फ ड्यूटी के प्रति समर्पित थे बल्कि उन में बहादुरी का जज्बा और कुछ कर गुजरने की ललक थी.

सभी थाना स्तरों पर ऐसे पुलिसकर्मियों का एक स्पैशल स्क्वायड तैयार कराया. सभी थाना प्रभारियों से कहा गया कि वे इस स्क्वायड के पुलिसकर्मियों से नियमित काम न करवा कर उन्हें अपराधियों की सुरागरसी और स्पैशल टास्क पर लगाएं.  आशुतोष पांडेय ने राज्य सरकार से संपर्क कर उन्हें जिला पुलिस की जरूरतों से अवगत कराया.

राज्य सरकार ने जिला पुलिस को 26 मोटरसाइकिल, मोटोरोला के शक्तिशाली वायरलैस सैट और कुछ मोबाइल फोन उपलब्ध करा दिए. संसाधन मिलने के बाद आशुतोष ने अलगअलग कई और दस्तों का गठन किया. इन दस्तों को लेपर्ड दस्तों का नाम दिया गया.

अपराध के खिलाफ अपनी व्यूह रचना को अंजाम देने से पहले आशुतोष पांडेय मुजफ्फरनगर की जनता, कारोबारियों और उस तबके को विश्वास में लेना चाहते थे, जिन का मकसद शहर में अमनचैन कायम रखना था. उन्होंने समाज के इन सभी तबकों के जिम्मेदार लोगों से मिलनाजुलना शुरू किया.

उन्होंने इन सब लोगों को भरोसा दिलाया कि वह मुजफ्फरनगर में कानूनव्यवस्था कायम करने आए हैं. लेकिन यह काम उन के सहयोग के बिना नहीं हो सकता. उन्होंने तमाम लोगों को अपना मोबाइल फोन नंबर दे कर कहा कि कोई आपराधिक सूचना हो या कोई भी निजी परेशानी हो तो वे 24 घंटे में कभी भी निस्संकोच उन्हें फोन कर सकते हैं. वह सूचना मिलते ही काररवाई करेंगे.

अचानक पुलिस कप्तान के इस वादे पर भरोसा करना लोगों के लिए मुश्किल तो था. लेकिन आशुतोष पांडेय ने हार नहीं मानी, वह लगातार प्रयास करते रहे. आखिरकार उन के प्रयास रंग लाने लगे.

समाज और कानून व्यवस्था से सरोकार रखने वाले लोग आशुतोष पांडेय को फोन करने लगे. अपराधियों के बारे में सूचना देने लगे. यह जो नया सूचना तंत्र विकसित हो रहा था, उस में शहर के अमन पसंद लोग जिम्मेदारी उठा रहे थे.

आशुतोष पांडेय ने अपने सिटिजन सूचना तंत्र से मिली जानकारी लेपर्ड दस्तों को दे कर उन्हें दौड़ानाभगाना शुरू किया तो जल्द ही नतीजे भी सामने आने लगे. रंगदारी, अपहरण, लूट और डकैती करने वाले गिरोह पुलिस के चंगुल में फंसने शुरू हो गए.

मुजफ्फरनगर में जनवरी, 1999 से शुरू हुए पुलिस के औपरेशन क्लीन की सब से बड़ी खूबी यह थी कि आशुतोष पांडेय के हर मिशन की व्यूह रचना भी उन्हीं की होती थी और संचार तंत्र भी उन्हीं का होता था. पांडेय ने जो लेपर्ड दस्ते तैयार किए थे, बस उस सूचना के आधार पर उन का काम अपराधियों को दबोचने भर का होता था.

शक्तिशाली वायरलैस सैट और मोबाइल फोन से लैस 26 मोटरसाइकिलों पर सवार इन हथियारबंद लेपर्ड दस्तों ने मुजफ्फरनगर के चप्पेचप्पे तक अपनी पहुंच बना ली थी.

इन दस्तों में ज्यादातर लोग सादी वर्दी में होते थे, जो खामोशी के साथ किसी नुक्कड़ पर व्यस्त बाजार में, बस अड्डे पर, स्टेशन पर या चाय पान की दुकान पर साधारण वेशभूषा में आम आदमी की तरह मौजूद रहते थे.

साल 1999 की शुरुआत होतेहोते आशुतोष पांडेय का सूचना तंत्र इतना विकसित हो गया कि अचानक कोई वारदात होती, तत्काल उस की सूचना कप्तान आशुतोष के पास आ जाती. वह इलाके के लेपर्ड दस्ते और स्थानीय पुलिस को सूचना दे कर औपरेशन क्लीन के लिए भेजते. इस के बाद या तो मुठभेड़ होती, जिस में बदमाश मारे जाते या फिर बदमाश पुलिस की गिरफ्त में आ जाते.

पांडेय ने जिस मिशन की शुरुआत की थी, उस की सफलताओं का आगाज हो चुका था. एक के बाद एक गैंगस्टर और गैंग पकड़े जाने लगे. लगातार मुठभेड़ होने लगीं, जिन में कुख्यात अपराधी मारे जाने लगे.

अपराध और अपराधियों से त्रस्त आ चुकी मुजफ्फरनगर की जनता का पुलिस पर भरोसा कायम होने लगा सूचना का जो तंत्र विकसित हुआ था, वह और तेजी से काम करने लगा.नतीजा यह निकला कि 16 फरवरी, 1999 को जब आशुतोष पांडेय का मुजफ्फरनगर प्रभार संभाले हुए 66वां दिन था तो अचानक उन्हें भौंरा कला के एक किसान ने फोन पर सूचना दी कि कुख्यात अंतरराजीय अपराधी रविंदर उर्फ चीता भौंरा कलां में अमरपाल किसान के ट्यूबवैल में छिपा है.

आशुतोष पांडेय ने पीएसी और स्थानीय पुलिस के साथ मिल कर खुद उस इलाके की घेराबंदी की. दोनों तरफ से मुठभेड़ शुरू हो गई. मुठभेड़ करीब 5 घंटे तक चली. आसपास के हजारों लोगों ने दिनदहाड़े हुई वह मुठभेड़ देखी और आखिरकार जिले का टौप 10 बदमाश रविंदर मारा गया.

बैंक डकैती से ले कर अपहरण की वारदातों में वांछित इस बदमाश के मारे जाते ही इलाके में आशुतोष पांडेय जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे.

आशुतोष पांडेय ऐसे नहीं थे, जिन पर अपनी जयकार का नशा चढ़ता. मुजफ्फरनगर जिले को अपराधमुक्त करना चाहते थे. रविंदर उर्फ चीता को ठिकाने लगाते ही वह इलाके से निकल लिए, क्योंकि एक और खबर उन का इंतजार कर रही थी.

पांडेय को उन के सिटिजन सूचना तंत्र से जानकारी मिली थी कि बाबू नाम का एक बदमाश जिस पर करीब 1 लाख  का ईनाम है, सिविल लाइन में किसी व्यापारी से रंगदारी वसूलने के लिए आने वाला है.

आशुतोष पांडेय सीधे सिविल लाइन पहुंचे, यहां नई टीम को बुलाया गया. फिर पुलिस टीम को एकत्र कर के बताया कि सूचना क्या है और उस पर क्या ऐक्शन लेना है.

सूचना सही थी. बताए गए समय और जगह पर कुख्यात अपराधी बाबू पहुंचा. पुलिस ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और आत्मसमर्पण की चेतावनी दी. लिहाजा क्रौस फायरिंग शुरू हो गई. करीब 1 घंटे तक गोलीबारी हुई. घेरा तोड़ कर भागे बाबू को भी आखिरकार पुलिस ने धराशाई कर दिया.

मुजफ्फरनगर के इतिहास में शायद यह पहला दिन था जब एक ही दिन में पुलिस ने एक साथ 2 बड़े अपराधियों का एनकाउंटर कर उन्हें धराशाई कर दिया था.

इस एनकाउंटर के बाद मुजफ्फरनगर की जनता का पुलिस पर भरोसा वापस लौट आया. लोगों को लगने लगा कि आशुतोष पांडेय के रहते या तो बदमाश दिखाई नहीं देंगे. अगर दिखे तो उन के सिर्फ दो अंजाम होंगे या तो वे श्मशान में होंगे या सलाखों के पीछे.

आशुतोष पांडेय पर जिम्मेदारियां बहुत बड़ी थीं. क्योंकि यह सिर्फ शुरुआत थी इसे अंजाम तक पहुंचाना बेहद मुश्किल काम था. पांडेय सुबह 10 बजे तक अपने दफ्तर पहुंच जाते थे, जहां जनता से मुलाकात करते, शिकायतें सुनते.

उस के बाद कोई सूचना मिलने पर उन का काफिला अनजान मंजिल की तरफ निकल पड़ता. वे किसी गांव में किसानों के बीच बैठक लगाते या व्यापारियों के बीच भरोसा पैदा करने के लिए बैठक करते.

आशुतोष पांडेय कईकई दिन तक अपनी पत्नी और दोनों बच्चों से नहीं मिल पाते थे. घर जाने की फुरसत नहीं होती थी इसलिए गाड़ी में ही हर वक्त 1-2 जोड़ी कपड़े रखते थे.

गाड़ी में हमेशा पानी की बोतलें, भुने हुए चने और गुड़ मौजूद रहता था. जरूरत पड़ने पर गुड़ और चने खा कर ऊपर से पानी पी लेते थे. थकान हो जाती थी तो गाड़ी में बैठ कर ही कुछ देर झपकी मार लेते थे.

आशुतोष पांडेय अकेले ऐसा नहीं करते थे. जिले के हर पुलिस कर्मचारी के लिए उन्होंने शहर के अपराधमुक्त होने तक ऐसी ही दिनचर्या अपनाने का वादा ले रखा था.

रविंदर उर्फ चीता और बाबू के एनकाउंटर के बाद आशुतोष पांडेय ही नहीं, पूरे जिले की पुलिस के हौसले बुलंदी पर थे. आईजी जोन से ले कर लखनऊ में उच्चस्तरीय अधिकारियों में भी आशुतोष पांडेय के काम की सराहना हो रही थी.

लेकिन आशुतोष इतने भर से संतुष्ट नहीं थे. इस के बाद उन्होंने अगस्त, 1999 में मंसूरपुर इलाके में ईनामी बदमाश नरेंद्र औफ गंजा को मुठभेड़ में मार गिराया. चंद रोज बाद ही बड़ी रकम के इनामी बदमाश इतवारी को सिविल लाइन इलाके में ढेर कर दिया गया. 8 नवंबर, 1999 को उन्होंने खतौली के कुख्यात अपराधी सुरेंद्र को मुठभेड़ में धराशाई कर दिया.

मुजफ्फरनगर में जिस तरह से एक के बाद एक ताबड़तोड़ एनकाउंटर हो रहे थे, सक्रिय अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा जा रहा था. उस ने अपराधियों के बीच आशुतोष पांडेय के नाम का खौफ भर दिया था. उन्हें बड़ी कामयाबी तब मिली जब 27 अगस्त, 2000 को एक सूचना के आधार पर उन्होंने शामली के जंगलों में खड़े एक ट्रक को अपने कब्जे में लिया.

इस ट्रक में सवार 2 लोगों ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की तरफ से भी फायरिंग शुरू हो गई. फलस्वरूप दोनों बदमाश मारे गए. बाद में जिन की पहचान पंजाब के सुखबीर शेरी ओर दिल्ली के नरेंद्र नांगल के रूप में हुई.

पता चला कि ये दोनों आतंकवादी थे और दिल्ली में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान विस्फोट करना चाहते थे. ये दोनों 5 लोगों की हत्या में वांछित थे. जिस ट्रक में दोनों बैठे थे उसे उन्होंने सहारनपुर से लूटा था और ट्रक में 50 लाख  रुपए की सिगरेट भरी थी. पुलिस को उन के कब्जे से हथियार व गोलाबारूद भी मिला.

आशुतोष पांडेय द्वारा छेड़े गए मिशन के तहत बदमाश पकड़े भी जा रहे थे और मारे भी जा रहे थे. लेकिन पांडेय जानते थे कि मुजफ्फरनगर इलाके में अपराध की मूल जड़ गन्ना है. क्योंकि गन्ना बढ़ने के साथ उस की बिक्री से किसानों व क्रेशर मालिकों के पास पैसा आने लगता है.

बदमाश उसी पैसे को लूटने या फिरौती में लेने के लिए अपहरण की वारदातों को अंजाम देते हैं. कुल मिला कर इलाके के अपराधियों के लिए गन्ने की फसल मुनाफे का धंधा बन गई थी. आशुतोष पांडेय चाहते थे कि किसी भी तरह मुनाफे के इस धंधे को घाटे में बदल दिया जाए.

आशुतोष ने अब अपना सारा ध्यान अपहरण करने वाले गिरोह और बदमाशों पर केंद्रित कर दिया. उन्होंने पिछले 2-3 सालों में हुए अपहरणों की पुरानी वारदातों की 1-1 पुरानी फाइल को देखना शुरू किया.

अपहरण के इन मामलों में जो भी लोग संदिग्ध थे, जिन लोगों ने अपहर्त्ताओं को पनाह दी थी अथवा बिचौलिए का काम किया था, उन्होंने ऐसे तमाम लोगों की धरपकड़ शुरू करवा दी. रोज ऐसे 30-40 लोग पकड़े जाने लगे.

इस से अपराधियों के शरणदाता अचानक बदमाशों से कन्नी काटने लगे. जिस का नतीजा यह निकला कि मुजफ्फरनगर में अचानक साल 2000 में फिरौती के लिए अपहरण की वारदातों में भारी कमी आ गई.

लेकिन इस के बावजूद कुछ मुसलिम गैंग अभी तक अपहरण की वारदात छोड़ने को तैयार नहीं थे.

दिसंबर 2000 में चरथावल कस्बे के दुधाली गांव में बदमाशों ने भट्ठा मालिक जितेंद्र सिंह का अपहरण कर लिया और परिवार से मोटी फिरौती मांगी. शिकायत कप्तान आशुतोष पांडेय तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत मुखबिरों के नेटवर्क को सक्रिय किया. पता चला कि जितेंद्र सिंह का अपहरण शकील, अकरम और दिलशाद नाम के अपराधियों ने किया है. यह भी पता चल गया कि बदमाशों ने जितेंद्र सिंह को दुधाहेड़ी के जंगलों में रखा हुआ है.

उन्होंने खुद इस मामले की कमान संभाली और पूरे जंगल की घेराबंदी कर दी. दिनभर पुलिस और बदमाशों की मुठभेड़ चलती रही, जिस के फलस्वरूप शाम होतेहोते तीनों बदमाश मुठभेड़ में धराशाई हो गए और जितेंद्र सिंह को सकुशल मुक्त करा लिया गया.

1999 से ले कर साल 2000 तक मुजफ्फरनगर जिले में कई ऐसे अपहरण हुए, जिस में आशुतोष पांडेय की अगुवाई में पुलिस ने न सिर्फ अपहृत व्यक्ति को सकुशल मुक्त कराया. बल्कि अपहर्त्ताओं को या तो गिरफ्तार किया या फिर मुठभेड़ में धराशाई कर दिया. पांडेय ने ऐसे सभी मामलों में अपहर्त्ताओं को अपने खेतों, ट्यूबवैल और घरों में शरण देने वाले किसानों और उन के परिवार की महिलाओं तक को आरोपी बना कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

परिणाम यह निकला कि लोग अपराधियों को शरण देने से बचने लगे. कल तक अपहरण को मुनाफे का धंधा मानने वाले अपराधियों को अब वही धंधा घाटे का लगने लगा. यही वजह रही कि साल 2001 में मुजफ्फरनगर जिले में फिरौती के लिए अपहरण की एक भी वारदात नहीं हुई.

इस बीच जिले के सभी 28 थानों पर पांडेय की इतनी मजबूत पकड़ कायम हो चुकी थी कि अगर वहां कोई मामूली सी भी गड़बड़ या घटना होती तो इस की सूचना उन तक पहुंच जाती थी.

लोगों से मिली सूचनाओं के बूते पर उन्होंने जिले के करीब 525 ऐसे लोगों की सूची बनाई थी, जो या तो सफेदपोश थे या फिर किसी पंचायत अथवा राजनीतिक दल से जुड़े थे. इन सभी लोगों पर आशुतोष पांडेय ने अपनी टीम के लोगों को नजर रखने के लिए छोड़ा हुआ था.

ऐसे लोगों की अपराध में जरा सी भी भूमिका सामने आने पर आशुतोष पांडेय मीडिया के माध्यम से जनता के बीच उन के चरित्र का खुलासा करके उन्हें जेल भेजते थे. इसलिए तमाम सफेदपोश लोग भी आशुतोष पांडेय के खौफ से डरने लगे थे.

सफेदपोश अपराधियों के खिलाफ की गई काररवाई में सब से चर्चित और उल्लेखनीय मामला समाजवादी पार्टी से विधान परिषद सदस्य कादिर राणा के भतीजे शाहनवाज राणा की गिरफ्तारी का था.

शाहनवाज राणा की शहर में तूती बोलती थी. किसी के साथ भी मारपीट कर देना किसी की गाड़ी को अपनी गाड़ी से टक्कर मार देना शाहनवाज राणा का शगल था. पुलिस और स्थानीय प्रशासन पर प्रभाव रखने और धमक दिखाने के लिए शाहनवाज राणा ने एक अखबार भी निकाल रखा था. शाहनवाज राणा पर कोई हाथ नहीं डाल पाता था. शाहनवाज राणा पहले हत्या के एक मामले में गिरफ्तार हो चुका था लेकिन सबूत न होने की वजह से बाद में अदालत से रिहा हो गया था. इस से मुजफ्फरनगर में शाहनवाज की गुंडागर्दी और भी बढ़ गई थी. लेकिन आशुतोष पांडेय ने शाहनवाज को भी नहीं छोड़ा.

दरअसल, मुजफ्फरनगर के रमन स्टील के मालिक रमन कुमार ने आशुतोष पांडेय को फोन कर के बताया कि शाहनवाज राणा और उस के साथी उस की फैक्ट्री से लोहे के कबाड़ का ट्रक लूट रहे हैं.

सूचना मिलते ही आशुतोष पांडेय अपने स्पैशल दस्ते के साथ मौके पर पहुंचे और शाहनवाज राणा व उस के साथियों को पकड़ कर थाने ले आए.

शाहनवाज राजनीतिक पकड़ वाला व्यक्ति था. चाचा कादिर राणा प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी का एमएलसी था. थाने पर एक खास समुदाय के समर्थकों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई.

आशुतोष पांडेय पर शाहनवाज को छोड़ने के लिए उच्चाधिकारियों से ले कर विपक्षी पार्टी के नेताओं का दबाव बढ़ने लगा.

लेकिन आशुतोष पांडेय उसूलों के पक्के थे. उन्होंने शाहनवाज को खुद मौके पर जा कर पकड़ा था. लिहाजा छोड़ने का सवाल ही नहीं था.

अगर दबाव में आ कर वह शाहनवाज को छोड़ देते तो न सिर्फ ढाई साल में की गई उन की मेहनत पर पानी फिर जाता बल्कि शाहनवाज राणा के हौसले और ज्यादा बुलंद हो जाते.

आशुतोष पांडेय ने तबादले और दंड की परवाह किए बिना शाहनवाज राणा के खिलाफ मामला दर्ज करवाया और उसे साथियों के साथ जेल भिजवा दिया.

मुजफ्फरनगर जिले में यह मामला एक आईपीएस अफसर के ईमानदार फैसले की नजीर बन गया और लोगों ने आशुतोष पांडेय की हिम्मत का लोहा मान लिया.

यही कारण रहा कि मुजफ्फरनगर में अपनी तैनाती के दौरान इकहरे शरीर के मालिक आशुतोष पांडेय हमेशा लौह पुलिस अफसर बन कर खड़े रहे.

मुजफ्फरनगर में ढाई साल के लंबे कार्यकाल के बाद आशुतोष पांडेय की नियुक्ति अलगअलग जगहों पर रही. हर जगह उन्होंने जो काम किए, वह सब से हट कर थे. पांडेय 2005 में वाराणसी और साल 2012 में लखनऊ के एसएसपी डीआईजी रहे.

सभी जगह आशुतोष पांडेय का नाम सुनते ही गैरकानूनी काम करने वाले लोग डरते थे. 2008 में आशुतोष पांडेय को प्रोन्नत कर उन्हें डीआईजी का पद सौंपा गया. इस के बाद उन्हें 18 मई, 2012 में प्रमोशन देते हुए आईजी बना दिया गया.

कानुपर के अलावा उन की नियुक्ति आगरा जोन में भी रही और 1 जनवरी, 2017 को वह यूपी के एडीजी बना दिए गए. अपहरण मामलों को सुलझाने के विशेषज्ञ, मुजफ्फरनगर में 100 से ज्यादा अपराधियों के एनकाउंटर में 30 एनकांउटर में खुद मोर्चा संभालने और कानपुर में बहुचर्चित ज्योति हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में अहम रोल निभाने वाले आशुतोष पांडेय को राष्ट्रपति मैडल मिल चुका है.

मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 3

टी.वी. पेरियापांडियन दीवार फांदने के बजाय जब लोहे के गेट पर चढ़ कर कूदने का प्रयास कर रहे थे, तब गेट के बाहर खड़े इंसपेक्टर मुनिशेखर अपनी पिस्टल को अनलौक कर रहे थे कि अचानक एक्सीडेंटल गोली चल गई, जो टी.वी. पेरियापांडियन को लगी. वह गेट से गिर गए और उन की मौत हो गई. इसी बीच मौका पा कर नाथूराम फरार हो गया था.

दरअसल, चेन्नै पुलिस को अनुमान नहीं था कि वहां 9-10 लोग होंगे. उस का मानना था कि नाथूराम 1-2 लोगों के साथ छिपा होगा. चेन्नै के थाना मदुरहोल थाने के इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन दबंग और बहादुर पुलिस अफसर थे.  यह दुर्भाग्य ही था कि उन की मौत अपने ही साथी की गोली से हो गई.

पाली के एसपी दीपक भार्गव के अनुसार, चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर मुनिशेखर को चार्जशीट में भादंवि की धारा 304ए का आरोपी बनाया जाएगा. तथ्यात्मक जांच रिपोर्ट चेन्नै पुलिस को भेजी जाएगी. चेन्नै पुलिस इंसपेक्टर मुनिशेखर पर विभागीय काररवाई करेगी.

17 दिसंबर को पुलिस ने चेन्नै में हुई ज्वैलरी लूट की वारदात के मुख्य आरोपी नाथूराम जाट की पत्नी मंजू देवी को गिरफ्तार कर लिया था. वह जोधपुर के पीपाड़ शहर के पास मालावास गांव में अपने धर्मभाई के घर छिपी हुई थी. मंजू को चेन्नै से आई पुलिस टीम पर हमले के आरोप में पकड़ा गया था.

कथा लिखे जाने तक नाथूराम और अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस लगातार छापे मार रही थी. नाथूराम के खिलाफ पाली के थाना जैतारण में मारपीट के 4 और जोधपुर के थाना बिलाड़ा में एक मुकदमा पहले से दर्ज है. वह कई सालों से अपने गांव में नहीं रहा था. वह चेन्नै बेंगलुरु आदि शहरों में रहता था.

नाथूराम और दीपाराम के पकड़े जाने के बाद चेन्नै में महालक्ष्मी ज्वैलर्स के शोरूम में हुई सवा करोड़ रुपए के गहनों की लूट का मामला भले ही सुलझ जाए, लेकिन चेन्नै पुलिस के लिए माल की बरामदगी चुनौती रहेगी. जोधपुर में गिरफ्तार चोरी के आरोपी दिनेश जाट को चेन्नै पुलिस प्रोडक्शन वारंट पर चेन्नै ले गई.

इसी तरह 29 अगस्त, 2017 को विशाखापट्टनम में एक ज्वैलर से 3 किलोग्राम सोना लूट लिया गया था. लूट की इस वारदात में ज्वैलर के पास काम करने वाला राकेश प्रजापत शामिल था.

वह राजस्थान के जिला पाली के रोहिट के पास धींगाणा का रहने वाला था. लूट के बाद वह पाली आ गया था. यहां बाड़मेर रोड पर होटल चलाने वाले हनुमान प्रजापत से उस की पुरानी जानपहचान थी. हनुमान के मार्फत राकेश ने लूट का सारा सोना श्रवण सोनी को बेच दिया.

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मामले की जांच करते हुए आंध्र प्रदेश पुलिस जोधपुर पहुंची और 3 नवंबर को झालामंड मीरानगर निवासी रामनिवास जाट को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद जोधपुर जिले के थाना बोरानाड़ा के गांव खारडा भांडू के रहने वाले ज्वैलर श्रवण सोनी को पकड़ा गया.

श्रवण सोनी को ले जाने पर उस के घर वालों ने थाना बोरानाड़ा में उस के अपरहण का मामला दर्ज करा दिया था. बोरानाड़ा पुलिस ने जांचपड़ताल की तो श्रवण सोनी के आंध्र प्रदेश पुलिस की कस्टडी में होने की बात पता चली.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने रामनिवास, श्रवण सोनी, हनुमान प्रजापत और राकेश प्रजापत को हिरासत में ले कर सोना बरामद कर लिया था. लेकिन कागजों में न तो उन्हें गिरफ्तार दिखाया गया था और न ही सोने की बरामदगी दिखाई गई थी, जबकि राकेश प्रजापत को बाकायदा हथकड़ी लगा कर रखा गया था. लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं दिखाया गया था.

आंध्र प्रदेश की पुलिस टीम द्वारा रामनिवास को लूट के मामले में आरोपी न बनाने और उस की कार जब्त न करने के लिए डेढ़ लाख रुपए मांगे गए थे, साथ ही मौजमस्ती के लिए लड़कियों का इंतजाम करने को भी कहा गया था. पुलिस टीम का कहना था कि उस ने यह कार विशाखापट्टनम से लूटे गए 3 किलोग्राम सोने को बेच कर खरीदी थी.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने 5 नवंबर को रामनिवास और श्रवण सोनी को कुछ शर्तों पर छोड़ दिया था और श्रवण सोनी से 6 नवंबर को 2 लाख रुपए लाने को कहा था. इस से पहले आंध्र प्रदेश पुलिस ने रामनिवास के एटीएम से 20 हजार रुपए निकलवा कर रख लिए थे.

छूटते ही रामनिवास सीधे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के कार्यालय पहुंचा और आंध्र प्रदेश पुलिस द्वारा रिश्वत मांगने की शिकायत कर दी. एसीबी ने 80 हजार रुपए दे कर रामनिवास को आंध्र प्रदेश पुलिस के पास भेज कर शिकायत की पुष्टि की. इस के बाद 6 नवंबर को विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश से आई 4 लोगों की पुलिस टीम को 80 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया गया.

इन में विशाखापट्टनम जिले की क्राइम ब्रांच के सबडिवीजन नौर्थ के इसंपेक्टर आर.वी.आर.के. चौधरी, विशाखापट्टनम के थाना परवाड़ा के एसआई एस.के. शरीफ, थाना एम.आर. पेटा के एसआई गोपाल राव और थाना वनटाउन के कांस्टेबल एस. हरिप्रसाद शामिल थे. ये चारों जोधपुर में बाड़मेर रोड पर बोरानाड़ा स्थित एक होटल में रुके हुए थे.

गिरफ्तारी के अगले दिन 7 नवंबर को चारों लोगों को अदालत में पेश किया गया, जहां से अदालत के आदेश पर सभी को जेल भेज दिया गया. पूरी टीम के गिरफ्तार होने की सूचना मिलने पर 3 किलोग्राम सोने की लूट के मामले की जांच के लिए विशाखापट्टनम से दूसरी टीम भेजी गई. यह टीम 7 नवंबर को जोधपुर पहुंची. इस टीम ने सोने की लूट के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 3

एक विधायक की हत्या के बाद भी अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहा. इस हत्या के बाद बसपा के समर्थकों ने इलाहाबाद शहर में जम कर हंगामा किया और खूब तोड़फोड़ की.

2005 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर फिर उपचुनाव हुआ, जिस में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को बसपा की ओर से टिकट दिया गया. इस बार भी पूजा के सामने अतीक का भाई अशरफ ही था. उस समय तक पूजा के हाथ की मेहंदी भी नहीं उतरी थी.

कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान पूजा मंच से अपने हाथ दिखा कर रोने लगती थी. लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला और वह चुनाव हार गई.

अतीक का टूटा किला

इस बार अतीक का भाई अशरफ चुनाव जीत गया. ऐसा शायद अतीक के खौफ के कारण हुआ था. इस तरह एक बार फिर अतीक की धाक जम गई. वह खुद सांसद था ही, भाई भी विधायक हो गया था. उसी समय उस पर सब से ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए.

अतीक अहमद पर 83 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके थे. परंतु हैरानी की बात यह थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस अतीक अहमद को गिरफ्तार करने के बारे में सोच भी नहीं रही थी.

2007 के विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर बसपा ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में उतारा. इस बार भी सामने अतीक का भाई अशरफ ही उम्मीदवार था. इस बार पहली दफा इलाहाबाद पश्चिमी  का अतीक अहमद का किला टूटा. पूजा पाल चुनाव जीत गई.

उत्तर प्रदेश में मायावती की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो मायावती ने अतीक अहमद को पहला टारगेट बनाया. मायावती के जहन में गेस्टहाउस कांड के जख्म हरे थे. इस मामले में बसपा सरकार के रहते मुलायम सिंह के इशारे पर अतीक ने गेस्टहाउस में ठहरी मायावती को बेइज्जत किया था.

एक के बाद एक कर सारे मामले खुलने लगे और मायावती सरकार ने एक ही दिन में अतीक अहमद पर सौ से अधिक मामले दर्ज करा कर औपरेशन अतीक शुरू कर दिया. अतीक भूमिगत हो गया तो उसे मोस्टवांटेड घोषित कर दिया गया और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया.

देश के इतिहास में एक सांसद मोस्टवांटेड घोषित हो गया हो और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया हो, यह शायद देश का पहला मामला था. इस से पार्टी की बदनामी होने लगी तो मुलायम सिंह ने उसे पार्टी से बाहर कर दिया.

गिरफ्तारी के डर से अतीक फरार था. उस के घर, औफिस सहित 5 संपत्ति को कोर्ट के आदेश पर कुर्क कर लिया गया.

जिस इलाहाबाद में अतीक की तूती बोलती थी, पूजा पाल ने चुनाव जीतते ही बसपा सरकार में उस की नाक में ऐसा दम किया कि जिस सीट से वह 5 बार विधायक बना था, उस सीट को ही नहीं, उसे इलाहाबाद जिले को ही छोड़ कर भागना पड़ा.

अतीक अहमद समझ गया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना खतरे से खाली नहीं होगा, इसलिए उस ने दिल्ली पुलिस के सामने योजना के तहत आत्मसमर्पण कर दिया. अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली से इलाहाबाद ले आई. अतीक के बुरे दिन शुरू हो चुके थे. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक की ड्रीम निर्माण परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित कर ध्वस्त कर दिया.

औपरेशन अतीक के ही तहत 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया.

इस के बाद 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए. 2 महीने में ही अतीक के खिलाफ इलाहाबाद, कौशांबी और चित्रकूट में कई मुकदमे दर्ज हो गए. पर सपा की सरकार बनते ही उस के दिन बहुरने लगे.

2012 का साल था. अतीक अहमद जेल में था और विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी. उस ने जेल में रहते हुए ही अपना दल की ओर से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की. चुनाव का पर्चा दाखिल करने के बाद अतीक अहमद ने जमानत पर छूटने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. उसे जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया.

बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर पूजा पाल को अतीक के सामने खड़ा किया. संयोग से इस बार भी अतीक चुनाव हार गया. वह चुनाव भले ही हार गया, पर उस का अपराध का कारखाना बंद नहीं हुआ.

मुलायम सिंह ने एक बार फिर उसे अपनी पार्टी में सहारा दिया. इस बार उसे श्रावस्ती जिले से टिकट दिया गया. इस चुनाव में भी अतीक अहमद हार गया.

2016 में फिर एक बार मुलायम सिंह ने कानपुर कैंट से उसे उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव का फार्म भरने के लिए अतीक 5 सौ गाडि़यों का काफिला ले कर कानपुर पहुंचा. जबकि वह खुद 8 करोड़ की विदेशी कार हमर में सवार था.

पूरे कानपुर में अतीक के इस काफिले ने चक्का जाम कर दिया था. मीडिया में उस के खिलाफ खूब लिखा गया. तब तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव बन गए थे. उन्होंने अतीक अहमद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

एक बार फिर हुआ गिरफ्तार

फरवरी, 2017 में पुलिस ने उसे इलाहाबाद कालेज में तोड़फोड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया. उस के बाद से वह जेल में ही है. अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में उस पर 100 मुकदमे दर्ज हुए थे. बाद में जिन्हें हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने से अतीक बरी हो गया था.

अतीक भले ही आतंक का पर्याय है, वह नेकदिल भी है. उस के पास जो भी मदद के लिए जाता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता.

उस पर 35 मुकदमे अभी भी चल रहे हैं. इन में कुछ अदालत में पैंडिंग हैं तो कुछ की अभी जांच ही पूरी नहीं हुई है. मजे की बात यह है कि अभी तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है. यह सब देख कर यही लगता है कि अतीक की जिंदगी कभी इस जेल में तो कभी उस जेल में कटती रहेगी. लेकिन विकास दुबे कांड के बाद योगी सरकार अतीक के आर्थिक साग्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगी है.

2017 में उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है, तब से अतीक अहमद पर शिकंजा कसता गया. गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के तमाम डौनों पर काररवाई करने की छूट दे देने से अब सरकार और पुलिस अतीक अहमद के गुंडों और उस की संपत्ति के पीछे पड़ गई है. रोज उस की कोई न कोई संपत्ति तोड़ी जा रही है.

मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 2

पुलिस घबरा गई और हमलावरों का मुकाबला करने के बजाय वहां से भागने लगी. इसी बीच लोहे के गेट पर चढ़ रहे इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन को गोली लग गई, जिस से वह वहीं गिर गए. जबकि उन के साथी भाग गए थे. मौका पा कर हमला करने वाले सभी लोग वहां से भाग निकले. इस हमले में टीम के कुछ अन्य लोग भी घायल हो गए थे.

थोड़ी दूर जा कर जब पुलिस टीम को पता चला कि टी.वी. पेरियापांडियन साथ नहीं हैं तो सभी वापस लौटे. भट्ठे पर जा कर देखा तो टी.वी. पेरियापांडियन घायल पड़े थे.

उन्हें जैतारण के अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. अभी तक स्थानीय पुलिस को इस घटना की कोई जानकारी नहीं थी. स्थानीय पुलिस को जैतारण अस्पताल प्रशासन से इस घटना की जानकारी मिली. इस घटना की जानकारी एसपी दीपक भार्गव को भी मिल गई.

सूचना पा कर सारे पुलिस अधिकारी अस्पताल पहुंचे और चेन्नै पुलिस से घटना के बारे में पूछताछ की. पता चला कि छापा मारने के दौरान नाथूराम ने अपने 8-10 साथियों के साथ उन पर हमला किया था. इस हमले में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन उन के बीच फंस गए थे. इन्होंने उन की सरकारी पिस्टल छीन ली और उसी से उन्हें गोली मार दी, जिस से उन की मौत हो गई.

पाली के पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो चेन्नै से आई पुलिस ने उन्हें जो कुछ बताया, वह उन के गले नहीं उतरा. फिर भी थाना जैतारण में चेन्नै पुलिस की ओर से नाथूराम जाट, दीपाराम जाट और दिनेश चौधरी व अन्य लोगों के खिलाफ हत्या, जानलेवा हमला करने और सरकारी काम में बाधा डालने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पाली पुलिस को घटनास्थल पर गोली का एक खोखा मिला था, जो पुलिस की पिस्टल का था. एफएसएल टीम ने भी घटनास्थल पर जा कर जरूरी साक्ष्य जुटाए. पुलिस के लिए जांच का विषय यह था कि गोली किस ने और कितनी दूरी से चलाई. वह गोली एक्सीडेंटल चली थी या डिफेंस में चलाई गई थी. जैतारण पुलिस ने हमलावरों में से कुछ को पकड़ लिया, लेकिन नाथूराम नहीं पकड़ा जा सका था. पुलिस उस की तलाश में सरगर्मी से जुटी थी.

जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की लाश का पोस्टमार्टम मैडिकल बोर्ड द्वारा कराया गया. इस के बाद 14 दिसंबर को हवाई जहाज द्वारा उन के शव को चेन्नै भेज दिया गया. चेन्नै में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी, उपमुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम, डीजीपी टी.के. राजेंद्रन, पुलिस कमिश्नर ए.के. विश्वनाथन और विपक्ष के नेता एम.के. स्टालिन सहित तमाम राजनेताओं और पुलिस अफसरों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.

इस मौके पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी ने दिवंगत इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन के घर वालों को 1 करोड़ रुपए की राशि बतौर मुआवजा और घायल पुलिसकर्मियों को एकएक लाख रुपए देने की घोषणा की. इस के बाद टी.वी. पेरियापांडियन के शव को उन के पैतृक गांव जिला तिरुनलवेली के मुवेराथली ले जाया गया, जहां राजकीय सम्मान के साथ उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

14 दिसंबर को चेन्नै पुलिस के जौइंट पुलिस कमिश्नर संतोष कुमार जैतारण पहुंचे और डीएसपी वीरेंद्र सिंह तथा चेन्नै के पुलिस इंसपेक्टर मुनिशेखर से घटना के बारे में जानकारी ली. घटनास्थल का भी निरीक्षण किया गया. इस के बाद एसपी दीपक भार्गव ने भी पाली जा कर घटना के बारे में तथ्यात्मक जानकारी ली और आरोपियों की गिरफ्तारी और लूटी गई ज्वैलरी की बरामदगी के बारे में चर्चा की.

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इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की मौत की जांच के लिए पाली पुलिस के बुलाने पर जयपुर से पहुंचे बैलेस्टिक एक्सपर्ट ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने चेन्नै पुलिस के दोनों इंसपेक्टरों की पिस्टल, घटनास्थल तथा लाश के फोटोग्राफ और वीडियो फुटेज आदि राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला जयपुर पर मंगवाए.

गोली की बरामदगी के लिए पाली पुलिस ने मेटल डिटेक्टर से घटनास्थल के आसपास जांच कराई, लेकिन गोली नहीं मिली. जबकि मृतक इंसपेक्टर की लाश में भी गोली नहीं मिली थी.

इस बीच 14 दिसंबर, 2017 को जोधपुर के थाना रातानाड़ा की पुलिस ने चेन्नै के महालक्ष्मी ज्वैलर्स के शोरूम में हुई सवा करोड़ रुपए के गहनों की लूट के मुख्य आरोपी नाथूराम के साथी जोधपुर के बिलाड़ा निवासी दिनेश जाट को गिरफ्तार कर लिया था. दिनेश जाट बिलाड़ा थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए स्टैंडिंग वारंट भी जारी कर रखा था.

15 दिसंबर को जोधपुर रेंज के आईजी हवा सिंह घुमारिया भी जैतारण पहुंचे और घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस बीच पाली पुलिस ने घटनास्थल पर जा कर मृतक इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की मौत का क्राइम सीन दोहराया.

चेन्नै एवं राजस्थान के पुलिस अधिकारियों और एफएसएल विशेषज्ञों की उपस्थिति में दोहराए गए क्राइम सीन में सामने आया कि जब टी.वी. पेरियापांडियन ने लोहे के गेट पर चढ़ कर भागने की कोशिश की थी, तब पहले गेट से बाहर निकल चुके चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर मुनिशेखर की पिस्टल से एक्सीडेंटल गोली चल गई थी. इसी गोली से पेरियापांडियन की मौत हुई थी.

चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर की मौत का सच सामने आने के बाद थाना जैतारण पुलिस ने 15 दिसंबर को हमलावर तेजाराम जाट, उस की पत्नी विद्या देवी और बेटी सुगना को गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन उन्हें हत्या का आरोपी न बना कर भादंवि की धारा 307, 331 व 353 के तहत गिरफ्तार किया गया था. चूना भट्ठे के उस कमरे में तेजाराम का परिवार रहता था.

हमलावर तेजाराम और चेन्नै पुलिस टीम से की गई पूछताछ में पता चला कि 12 दिसंबर की रात चेन्नै पुलिस ने जब चूना भट्ठे पर छापा मारा था, तब दोनों इंसपेक्टरों ने अपनी पिस्टल लोड कर रखी थीं.

पुलिस टीम जैसे ही अंदर हाल के पास पहुंची, पदचाप सुन कर तेजाराम जाग गया. पुलिस वालों को चोर समझ कर वह चिल्लाया तो हाल में सो रही उस की पत्नी, बेटियां व अन्य लोग जाग गए और उन्होंने लाठियों से पुलिस पर हमला कर दिया.

उस समय नाथूराम भी वहां मौजूद था. वह समझ गया कि ये चोर नहीं, चेन्नै पुलिस है, इसलिए वह भागने की युक्ति सोचने लगा. अचानक हुए हमले से घबराई चेन्नै पुलिस भागने लगी. इंसपेक्टर मुनिशेखर और अन्य पुलिस वाले तो दीवार फांद कर बाहर निकल गए.

फरीदाबाद में भी मस्ती की पार्टी

कोरोना वायरस का असर कम होते ही देह कारोबार के अड्डे आबाद होने लगे. लोगों का आवागमन शुरू हुआ नहीं कि सेक्स वर्कर लड़कियां, उन के दलाल और मानव तसकरी जैसे धंधे में लगे लोगों की सक्रियता बढ़ गई. दिल्ली से सटे फरीदाबाद में ऐसे मामलों की सूचना मिलते ही पुलिस बल ने भी मुस्तैदी दिखाते हुए देह के धंधेबाजों को धर दबोचा. मौके से महीने भर में दर्जनों लड़कियां भी पकड़ी गईं.

फरीदाबाद में नीलम बाटा रोड से करीब 8 किलोमीटर दूर बल्लभगढ़ के रहने वाले 48 वर्षीय आलोक को उन के जन्मदिन के बारे मे खास दोस्त प्रदीप ने याद दिलाया. वे तो भूल ही गए थे कि 4 दिनों बाद उन का जन्मदिन आने वाला है. वह फरीदाबाद के बाटा की मार्किट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट (प्रधान) हैं.

अपना रोज का काम निपटा कर 25 जुलाई, 2021 की रात को अपनी गाड़ी में घर की ओर निकले थे. कान में इयरबड्स लगाए म्यूजिक का आनंद ले रहे थे और गाड़ी भी ड्राइव कर रहे थे. तभी उन के कान में किसी के फोन की रिंग सुनाई दी. उन्होंने सामने रखे मोबाइल पर नजर डाली. काल उन के खास दोस्त प्रदीप की थी.

‘‘हैलो भाई, कैसा है तू? 2 हफ्ते हो गए, कोई खबर नहीं मिल रही है. कहां बिजी है आजकल?’’ आलोक शिकायती लहजे में बोले.

‘‘मैं ठीक हूं. बता तू कैसा है? और सुन लौकडाउन खत्म होने के बाद लगता है बिजी मैं नहीं तू हो गया है’’ प्रदीप भी उसी अंदाज में बोले.

‘‘बस कर यार! कुछ दिनों से मार्केट में काम थोड़ा बढ़ गया था, इसीलिए फोन करने का मौका नहीं मिला. तू बता घरपरिवार में बाकि सब कैसे हैं?’’ आलोक ने पूछा.

प्रदीप जवाब देते हुए बोले, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. घर पर भी सब ठीक है. तू ये बता कि 29 को क्या कर रहा है?’’

‘‘क्यों 29 को क्या है?’’ प्रदीप ने सस्पेंस के साथ कहा, ‘‘भाई, 29 को तेरा जन्मदिन है. भूल गया है क्या?’’

प्रदीप की बात सुन कर आलोक के दिमाग में अचानक बत्ती जल उठी. उसे अपने जन्मदिन की न केवल तारीख याद आ गई, बल्कि इस मौके पर दोस्तों के साथ मौजमस्ती की पुरानी यादें ताजा हो गईं.

बोला, ‘‘अरे हां! भाई सच कहूं तो अगर तू याद नहीं दिलाता तो मुझे याद ही नहीं था. पिछले साल भी कोरोना के चलते इस मौके पर कुछ ज्यादा नहीं कर पाया, लेकिन इस बार सारी कसर निकाल दूंगा. बड़ी पार्टी दूंगा, पार्टी.’’

प्रदीप और आलोक दोनों स्कूल के दिनों के दोस्त थे. वे काफी गहरे दोस्त थे. लेकिन शादी के बाद दोनों अपनीअपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गए थे. हालांकि उन के बीच फोन पर बातें होती रहती थीं.

फिर भी जब कभी वे किसी विशेष मौके पर मिलते थे, तब एकदूसरे की खैरखबर लेने के साथसाथ खूब जम कर मस्ती करते थे. उस रोज भी दोनों ने फोन पर ही जन्मदिन सेलिब्रेशन के मौके को यादगार बनाने की योजना बना ली थी.

बाटा टूल मार्केट में आलोक की तूती बोलती थी. हर दुकानदार के लिए वह बहुत ही खास और प्रिय थे. सभी उन की काफी इज्जत करते थे. मार्केट में यदि किसी को कोई भी औजार क्यों न खरीदना हो, प्रधान आलोक के रहते ही संभव हो पाता था.

इलाके के नेताओं से भी आलोक की अच्छी जानपहचान थी. एसोसिएशन का प्रधान होने की वजह से उन का अच्छा खासा पौलिटिकल कनेक्शन भी था.

अगले रोज 26 जुलाई को सुबह करीब 10 बाजे आलोक एसोसिएशन के औफिस पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले प्रदीप को फोन कर आने का समय पूछा. उस के बाद वे छोटेमोटे काम निपटाने लगे.

आधे घंटे में ही प्रदीप आ गया. आलोक ने उस की खातिरदारी चायनमकीन से की. उस के द्वारा जन्मदिन की बात छेड़ने पर कुछ अलग करने की भी योजना बताई.

‘‘रात भर में तूने कुछ और प्लानिंग कर ली क्या?’’ प्रदीप ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां यार, सोच रहा हूं इस बार की बर्थडे पार्टी यादगार हो, पहले के मुकाबले सब से अलग रहे.’’ आलोक बोले.

यह सुन कर प्रदीप चौंक गया. पूछा, ‘‘क्या मतलब? कैसी अलग होगी पार्टी, जरा मुझे भी तो बताओ’’

आलोक इत्मीनान से दबी आवाज में बोले, ‘‘यार सोच रहा हूं इस बार पार्टी में नाचगाने वाली कुछ लड़कियों को भी बुलाया जाए. उन से ही शराब की पैग सर्व करवाई जाए.’’

‘‘लड़कियां! क्या कह रहा है तू?’’ प्रदीप चौंकता हुआ बोला.

‘‘लड़कियों को बुलाने से पार्टी की रौनक और मजा ही कुछ और होगा. मैं ने प्लानिंग कर ली है. कोरोना के चलते जिंदगी के सारे मजे खत्म से हो गए थे.

इसलिए मैं ने सोचा है कि अपने सारे दोस्तों और जिन के साथ बिजनैस करता हूं सभी को इस पार्टी में इनवाइट करूं. इसी बहाने सब से मुलाकात भी हो जाएगी और इसी के साथ बिजनैस में हुए घाटे की भरपाई करने के लिए कुछ टाइम भी मिल जाएगा.’’

यह सुन कर प्रदीप के मन में मानो खुशी के बुलबुले फूटने लगे. वह आलोक से बोला, ‘‘अरे यार, मैं ने तो यह सोचा ही नहीं था. लेकिन पार्टी के लिए आएंगी कहां से? कोई जुगाड़ है?’’

प्रदीप के इस सवाल का जवाब आलोक ने बड़ी बेफिक्री के साथ दिया. भरे अंदाज में दिया और कहा, ‘‘अरे मैं ने सारी प्लानिंग अपने दिमाग में कर के रखी है. दिल्ली वाली निशा के बारे में याद नहीं है क्या तुझे? वही जिस के पास हम शादी के बाद अकसर जाते थे? अब वो लड़कियां सप्लाई करती है. दलाल बन गई है. अच्छी जानपहचान है उस से मेरी. मैं आज ही लड़कियों के लिए फोन कर के कह दूंगा.’’

आलोक और प्रदीप ने औफिस में घंटों बैठ कर 29 जुलाई के लिए प्लानिंग कर ली. नीलम बाटा रोड पर ऐसा कोई भी दुकानदार नहीं था, जो आलोक को नहीं जानता हो. इसी का फायदा उठाते हुए आलोक ने उसी रोड पर मौजूद ‘द अर्बन होटल’ के मालिक को फोन कर 28 और 29 जुलाई के लिए होटल बुक कर लिया.

होटल के मालिक की आलोक से अच्छी जानपहचान थी. होटल में कमरे समेत पार्टी के लिए बने खास किस्म के हौल की भी बुकिंग हो गई.

अब बारी थी खास दोस्तों के लिस्ट बनाने की, जिन्हें आलोक बुलाना चाहता था. लिस्ट बनाने में प्रदीप ने मदद की. सभी दोस्तों को फोन से 28 जुलाई के लिए मैसेज भी कर दिया. आलोक ने अपने जरुरी बिजनैस क्लाइंट्स को भी इस पार्टी में शामिल होने का न्यौता दे दिया. उस ने निशा को फोन कर के 15 लड़कियों को पार्टी में भेजने के लिए कहा. इस तैयारी के साथसाथ होटल मैनेजमेंट को ही कैटरिंग के इंतजाम की जिम्मेदारी दे दी.

प्रदीप के मन में अभी भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने उस के कान के पास मुंह सटा कर कहा,‘‘इस का मोटा खर्चा तू अकेले कैसे उठाएगा?’

आलोक मुसकराया, सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘तू आगेआगे देखता जा मैं क्या करता हूं. इसी पार्टी से तुम्हारी झोली भी भर दूंगा.’’

‘‘वो कैसे?’’ प्रदीप बोला.

‘‘मैं ने कमरे यूं ही नहीं बुक करवाए हैं? तुम सिर्फ मेरे इशारे पर नजर रखना.’’ आलोक ने बताया.

इस तरह से 28 जुलाई की शाम भी आ गई. जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मेहमानों के लिए विशेष आयोजन किया गया था. पार्टी का इंतजाम था, जो आधी रात तक चलना था.

रात के 12 बजे के बाद आलोक ने जन्मदिन का केक काटने का इंतजाम किया था. आमंत्रित मेहमान धीरेधीरे कर हौल के किनारे लगे सोफों पर आ गए. सभी पूरी तैयारी के साथ आए थे, उन के चेहरे पर मास्क जरूर लगे थे, लेकिन वे पहचाने जा रहे थे.

आलोक और प्रदीप दोस्तों से मिलने में व्यस्त हो गए. वे अच्छे सजावटी कपड़े में एकदम अलग दिख रहे थे. वे कभी रिसैप्शन पर जाते तो कभी हौल में आमंत्रित दोस्तों से बातें करने लगते. दूसरी तरफ प्रदीप उन के बताए इशारे पर अपना काम करने में लगा हुआ था.

हौल में जगहजगह गोल टेबल और कुरसियां लगी थीं. दीवारों को तरहतरह के सजावटी फूलों, सामानों से सजाया गया था. मध्यम रोशनी माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए काफी था. देखते ही देखते रात के 8 बज गए.

तभी एक काल को देख कर आलोक हौल के एक कोने में चले गए. काल निशा की थी. उस ने बताया कि उस की भेजी सभी लड़कियां 2 गाडि़यों में 5 मिनट के भीतर पहुंचने वाली हैं.

आलोक ने निशा को कहा कि वे लड़कियों को पीछे के दरवाजे से आने के लिए बोले. तुरंत वे रिसैप्शन पर गए. होटल के मैनेजर से इशारे में बात की और उन के साथ प्रदीप को लगा दिया. थोडी देर में प्रदीप ने आलोक को आ कर बताया कि उस ने सभी लड़कियों को उन के कमरे में ठहरा दिया है.

उस ने वहां के इंतजाम के बारे में जानकारी देने के साथसाथ आलोक को बैग दिखाया. ‘थम्स अप’ करता हुआ जाने लगा. आलोक ने टोका, ‘‘उधर नहीं, गाड़ी के पार्क में जा. बैग वहीं गाड़ी में छोड़ कर आना.’’

निशा ने अपने साथ ले कर आई सभी लड़कियों को कुछ खास हिदायतें दीं. उन्हें उन के कमरे में भेज कर मेकअप आदि कर तैयार होने को कह दिया.

कब किसे हौल में आना है और किसे किस कमरे में ठहरना है. इस बारे में निशा ने लड़कियों को अलगअलग समझाया. उन्हें लोगों के साथ शालीनता के साथ पेश आने को भी कहा.

साढ़े 9 बजे के आसपास हौल का माहौल और भी रंगीन हो चुका था. कुछ लड़कियां हौल में आ चुकी थीं. अतिथियों में कोई भी महिला नहीं थीं.

लड़कियों को देखते ही बड़ेबड़े स्पीकर पर तेज और पार्टी वाले गाने बजने के साथ सीटियों की आवाजें भी सुनाई देने लगीं. हर टेबल पर शराब परोसने की शुरुआत हुई. कुछ लोग नशे में डांसिंग प्लेटफार्म की ओर बढ़ गए.

जल्द ही लड़कियों को जिस काम के लिए बुलाया गया था, वे काम में लग गईं. नशे में चूर अतिथियों ने जिस किसी लड़की को अपनी ओर खींचना चाहा उस ने जरा भी विरोध नहीं किया.

पसंद की लड़की का हाथ पकड़ा. जेब से 2000 वाले गुलाबी नोट निकाले और उस के लोकट कपड़े में डाल दिए.

लड़की झट से नोट निकालती, अंगुलियों में दबाती और सीढि़यों की ओर बढ़ जाती. पीछे से अतिथि महोदय झूमतेमटकते रह जाते. लड़की सीढि़यों पर बैठी निशा को अंगुलियों में फंसे नोट थमाती और अतिथि के साथ होटल के कमरे की ओर बढ़ जाती.

इस दृश्य से इतना तो साफ हो गया था कि जन्मदिन के बहाने से बुलाए गए अतिथियों का स्वागत लड़कियों के साथ यौन संतुष्टि से किया जा रहा था. इस मौके के इंतजार में न केवल ग्राहक बने अतिथि थे, बल्कि वे लड़कियां भी थीं, जिन का धंधा पिछले कुछ समय से मंदा पड़ गया था.

इस पूरी पार्टी में आलोक और प्रदीप दोनों कहां गायब हो गए थे किसी को भी कोई खबर नहीं थी.  संभवत: दोनों ने अपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअगल कमरे में खुद को बंद कर लिया हो. यानी देह व्यापार का धंधा पूरे शबाब पर था.

इस की भनक फरीदाबाद में पुलिस को भी लग गई. अनलौक के नियमों के उल्लंघन करने वालों पर नजर रखने के लिए कोतवाली पुलिस स्टेशन द्वारा फैलाए गए मुखबिरों ने इस की सूचना अधिकारियों तक पहुंचा दी थी. रात के करीब एक बजे अश्लील पार्टी के बारे में जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने एसीपी रमेशचंद्र को सूचना दे कर बिना किसी देरी के जल्द से जल्द होटल में रेड मारने की तैयारी कर दी. सभी आरोपियों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए थाने में एक टीम का गठन किया.

जल्द से जल्द प्लान के मुताबिक टीम बिना सादा कपड़ों में होटल के बाहर पहुंची. होटल के बाहर से ही तेज गानों की आवाज आ रही थी.

प्लानिंग के मुताबिक थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने हैडकांस्टेबल मनोज के साथ एक और कांस्टेबल को सादे कपड़ों में होटल के अंदर जाने को कहा. उन के अंदर जाने से पहले राठी ने अपनी जेब से 2000 का नोट निकाला और नोट के एक किनारे पर छोटे अक्षरों में अपने हस्ताक्षर कर के उन्हें दिया.

यह सारा काम प्लान के अनुसार ही था. वे दोनों पुलिस कर्मचारी बिना किसी झिझक के होटल के अंदर पहुंचे. होटल के रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति को उन पर किसी तरह का शक नहीं हुआ.  वे दोनों सीधे होटल के हौल में जा पहुंचे.

सीढि़यों से उतरते हुए उन्होंने एक युवती को सीढि़यों के पास बैठे देखा. बाद में पता चला कि वह निशा थी. वह भी उस की बगल से एक खाली टेबल और कुरसियों पर जा कर बैठ गए. उस समय हौल में बहुत कम लोग थे.

हर टेबल पर शराब के ग्लास थे. प्लेटों में स्नैक्स बिखरे पडे़ थे. हौल के एक किनारे पर 2-4 लड़कियां आपस में बातें कर रही थीं, कुछ लोग डीजे पर बजते हुए गाने पर डांस कर रहे थे.

थोड़ी देर बाद हैडकांस्टेबल मनोज ने प्लान के अनुसार साइन किया हुआ 2000 का नोट हवा में लहराया तो लड़कियों के झुंड में से एक लड़की पैसे लेने के लिए उन के टेबल पर पहुंच गई.

मनोज ने इशारे से लड़की को कमरे में ले जाने का इशारा किया. लड़की ने भी इशारे से उन्हें रुकने को कहा और निशा के पास चली गई. साइन किया हुआ नोट उस ने निशा के हाथों में थमा दिया, फिर लड़की ने मनोज को वहीं से आने का इशारा किया.

हेड कांस्टेबल ने कान में लगे ब्लूटूथ संचालित बड्स और बटन में छिपे मोबाइल माइक को औन कर दिया. उस के औन होते ही बाहर खड़ी पुलिस फोर्स को सूचना मिल गई. देखते ही देखते हेड कांस्टेबल के लड़की के साथ कमरे तक पहुंचने से पहले ही पुलिस की छापेमारी शुरू हो गई.

थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने होटल में रेड के दौरान सब से पहले हौल में बजने वाले तेज गानों को बंद करवाया और वहां मौजूद सभी लोगों को हिरासत में ले लिया. उसी दौरान होटल के कमरों से कई लड़कियां और अतिथि अर्धनग्नावस्था में दबोच लिए गए.

रात के 12 बजे तक चली छापेमारी की इस काररवाई में करीब 4 दरजन लोगों को हिरासत में लिया गया. उन्हें 7 जिप्सियों में भर कर थाने लाया गया. उन से पूछताछ में ही खुलासा हुआ कि यह सैक्स रैकेट एक पार्टी में शमिल होने के नाम पर चलाया गया था. इस में होटल के मालिक की भी मिलीभगत थी. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की रेड की बात जब तक आलोक तक पहुंची तब तक काफी देर हो चुकी थी. उसे भी एक कमरे से एक लड़की के साथ पकड़ लिया गया. उसे कमरे का दरवाजा तोड़ कर बाहर निकाला गया था. प्रदीप भी उस के बगल वाले कमरे से पकड़ा गया.

पुलिस सभी आरोपियों को थाने ले गई. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह होटल में कमेटी के ड्रा का आयोजन कर रहे थे. सभी से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस के अलावा कोतवाली पुलिस ने 2 अगस्त को क्षेत्र के ही श्री बालाजी होटल में दबिश दे कर 13 लड़कियों सहित 37 लोगों को गिरफ्तार किया. यहां की गेट टुगेदर पार्टी के बहाने एंजौय का कार्यक्रम था.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 2

उस के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. लेकिन ऐसे ही नहीं. अतीक भेष बदल कर अपने एक साथी के साथ बुलेट से कचहरी पहुंचा. उस ने एक पुराने मामले की जमानत तुड़वा कर आत्मसमर्पण कर दिया और जेल चला गया. उस के जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी. उस पर एनएसए लगा दिया. इस से लोगों को लगा कि अतीक बरबाद हो गया है.

एक साल बाद वह जेल से बाहर आ गया. उसे कांग्रेसी सांसद का साथ मिल ही रहा था, जिस की वजह से वह जिंदा बचा था. इस बात से अतीक को पता चल गया था कि उसे अब राजनीति ही बचा सकती है. फिर उस ने किया भी यही.

1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना था. अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भर दिया. सामने उम्मीदवार के रूप में था चांदबाबा. चांदबाबा और अतीक में अब तक कई बार गैंगवार हो चुकी थी.

अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांदबाबा को खल रही थी. चांदबाबा के आतंक से छुटकारा पाने के लिए आम लोगोें ने ही नहीं, पुलिस और राजनीतिक पार्टियों ने भी अतीक अहमद का समर्थन किया. परिणामस्वरूप चांदबाबा चुनाव हार गया. इस तरह अतीक अहमद पहली बार विधायक बन गया.

विधायक चुने जाने के कुछ ही महीनों बाद अतीक अहमद ने चांदबाबा की भरे बाजार हत्या करा दी. इस के बाद चांदबाबा के पूरे गैंग का सफाया हो गया. कुछ मारे गए तो कुछ भाग गए. जो बचे वे अतीक के साथ मिल गए.

अब इलाहाबाद पर एकलौते डौन अतीक अहमद का राज हो गया. अतीक अहमद ने अपना एक पूरा गैंग बना लिया. उसे राजनीतिक सपोर्ट भी मिल रहा था. विधायक बनने के बाद तो व्यापारियों का अपहरण, रंगदारी की वसूली, सरकारी ठेके लेना अतीक अहमद का धंधा बन गया.

अतीक अहमद का इलाहाबाद में ऐसा आतंक छा गया था कि इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लोग चुनाव में विधायकी का टिकट लेने से खुद ही मना कर देते थे.

राजनीति में आने के बाद ज्यादातर अपराधी धीरेधीरे अपराध करना छोड़ देते हैं, पर अतीक के मामले में इस का उल्टा था. अतीक भले ही नेता बन गया था, लेकिन उस ने अपनी माफिया वाली छवि नहीं बदली.

सफेदपोश बनने के बाद उस के द्वारा किए जाने वाले अपराध और बढ़ गए थे. राजनीति की आड़ में वह अपना आपराधिक साम्राज्य और मजबूत करता रहा. यही वजह है कि उस पर दर्ज होने वाले ज्यादातर आपराधिक मुकदमे विधायक, सांसद रहते हुए ही दर्ज हुए.

वह अपने विरोधियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ता था. कोई एक अपराध नहीं था उस का. 1999 में चांदबाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या उस के खाते में दर्ज हुईं.

जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाता था, वह मारा जाता था. इलाहाबाद के कसारी मसारी, बेली गांव, चकिया, मरियाडीह और धूमनगंज इलाके में उस की अक्सर गैंगवार होती रहती थी.

विधायक बनने के बाद अतीक ने अपराध करना और बढ़ा दिया था. 1991 और 1993 के विधानसभा के चुनाव में भी अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुना गया.

1996 के विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह ने अतीक अहमद को अपनी समाजवादी पार्टी से टिकट दिया. इस तरह चौथी बार अतीक अहमद समाजवादी पार्टी से फिर विधायक चुना गया.

बाद में किसी वजह से अतीक अहमद के समाजवादी पार्टी से संबंध बिगड़ गए तो 1999 में अतीक अहमद अपना दल में शामिल हो गया. सोनेलाल पटेल द्वारा बनाई गई पार्टी अपना दल में अतीक अहमद 1999 से 2003 तक इलाहाबाद का पार्टी का जिला अध्यक्ष रहा. 1999 में उस ने अपना दल से चुनाव लड़ा, परंतु हार गया. उस के बाद 2003 में फिर एक बार अपना दल के टिकट से अतीक अहमद पांचवीं बार विधायक बना.

विदेशी गाडि़यों और हथियारों का शौक

जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वह इलाहाबाद के बड़े कारोबारी थे. कहते हैं कि उस समय शहर में सिर्फ उन्हीं के पास निसान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाडि़यां थीं. लेकिन जल्दी ही अतीक को भी इस का चस्का लग गया. विधायक बनने के कुछ ही दिनों बाद उस ने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली. जल्दी ही उस का नाम सांसद से भी बड़ा हो गया.

सांसद को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने विदेशी गाडि़यां रखनी ही छोड़ दीं. गाडि़यों के बाद नंबर था हथियारों का. इस तरह के आदमी को तो वैसे भी हथियारों की जरूरत होती है. उस ने विदेशी हथियार खरीदने शुरू किए. उस ने विदेशी गाडि़यों का तो पूरा काफिला ही खड़ा कर दिया था.  अतीक चकिया तक ही सीमित नहीं रहना चाहता था. इसलिए वह विरोधियों को खत्म कर देता था.

अतीक अहमद का एक रहस्य और भी दिलचस्प है. वह चुनाव के दौरान चंदा किसी को फोन कर के या डराधमका कर नहीं मांगता था. वह शहर के पौश इलाके में बैनर लगवा देता था कि आप का प्रतिनिधि आप से सहयोग की अपेक्षा रखता है. इस के बाद लोग खुद ही अतीक के औफिस में चंदा पहुंचा देते थे.

अगर अतीक को अपने गुर्गों को कोई संदेश देना होता तो वह बाकायदा अखबारों में विज्ञापन निकलवा देता कि क्या करना है और क्या नहीं करना.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. 2004 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई. मुलायम सिंह को बाहुबली नेताओं की जरूरत थी. मुलायम सिंह के कहने पर अतीक अहमद फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया तो इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सपा ने अतीक अहमद को उम्मीदवार बनाया. अतीक अहमद चुनाव जीत गया और सांसद बन गया.

अतीक अहमद के सांसद बन जाने पर इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा की सीट खाली हो गई. इस पर अतीक अहमद ने अपने भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया. अशरफ के सामने एक समय अतीक अहमद का ही दाहिना हाथ रहे राजू पाल को बहुजन समाज पार्टी ने उम्मीदवार बनाया. उस समय राजू पाल पर 25 मुकदमे दर्ज थे. इस चुनाव में अतीक का भाई अशरफ 4 हजार वोटों से चुनाव हार गया और राजू पाल चुनाव जीत गया.

राजू पाल की यह जीत अतीक अहमद से हजम नहीं हुई और परिणाम आने के महीने भर बाद यानी नवंबर, 2004 में राजू पाल के औफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई. दिसंबर में उस की गाड़ी पर फायरिंग हुई. पर इन दोनों हमलों मे वह बच गया.

25 जनवरी, 2005 को राजू पाल की कार पर एक बार फिर हमला हुआ. इस में राजू पाल को कई गोलियां लगीं. हमलावर फरार हो गए. गोलीबारी में घायल राजू पाल के साथी उसे टैंपो से अस्पताल ले जा रहे थे तो हमलावरों को लगा कि राजू पाल अभी जिंदा है तो उस पर दोबारा हमला किया गया. इस बार उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं. जब तक राजू जीवनज्योति अस्पताल पहुंचता, उस की मौत हो चुकी थी. उसे 19 गोलियां लगी थीं.

इस हत्या का एक कारुणिक पहलू यह था कि हत्या के 9 दिन पहले ही राजू पाल की शादी हुई थी. उस की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, उस के भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद हत्या का मुकदमा दर्ज कराया.