शाहिद का दांव

रमेश गौतम का परिवार इसी कालोनी में रहता था. उस की पत्नी रेखा (45 वर्ष) आलमबाग स्थित एक निजी क्लिनिक में वार्ड आया की नौकरी करती थी, जबकि उस का पति रमेश आटो मैकेनिक था. रेखा रोजाना सुबह के समय अपनी ड्यूटी के लिए निकलती थी और ड्यूटी पूरी कर के नियत समय पर घर लौट आती थी.

16 अक्तूबर, 2019 की शाम को रमेश घर लौटा तो पत्नी रेखा को घर न पा कर उस ने बेटी रीतू गौतम से पूछा, ‘‘अभी तक तुम्हारी मम्मी घर नहीं आई है?’’

‘‘नहीं पापा, मम्मी अभी नहीं आई है. पता नहीं आज कैसे इतनी देर हो गई?’’ रीतू ने बताया.

‘‘हो सकता है आज क्लिनिक में कोई जरूरी काम आ गया हो.’’ रमेश ने सोचा और पत्नी का इंतजार करने लगा.

काफी रात तक इंतजार करने के बाद भी रेखा नहीं आई तो रमेश पत्नी को देखने उस के क्लिनिक पहुंच गया. वहां उसे पता चला कि रेखा अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद शाम को घर चली गई थी. क्लिनिक के कर्मियों से पूछने पर रमेश को पता चला कि रेखा कृष्णानगर में टीपू नामक व्यक्ति से पैसे लेने की बात कह रही थी.

जब देर रात तक रेखा घर वापस नहीं लौटी तो रमेश गौतम ने अगले दिन दोपहर तक उसे परिचितों के यहां तलाशा. इस के बाद भी जब उस का कोई सुराग न लगा तो उस ने थाना पारा पहुंच कर पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

अगले दिन 17 अक्तूबर, 2019 को थाना पारा के एसएसआई संतोष कुमार को एक दुखद सूचना मिली. पता चला कि वहां से 25 किलोमीटर दूर थाना सरोजनी नगर के अंतर्गत आने वाले कालिया खेड़ा गांव के पास वन विभाग के जंगल में एक महिला का शव मिला है. पता चला कि वह शव पोस्टमार्टम हाउस की मोर्चरी में रखा हुआ है.

चूंकि थाना पारा में रमेश गौतम ने पत्नी की गुमशुदगी दर्ज कराई थी, इसलिए एसएसआई संतोष कुमार ने अज्ञात लाश मिलने की सूचना रमेश गौतम को दे दी. रमेश गौतम मोर्चरी पहुंच गया. जब उसे सरोजनी नगर थाना पुलिस द्वारा बरामद की गई महिला की लाश दिखाई गई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी पत्नी रेखा के रूप में कर दी. फिर पोस्टमार्टम के बाद रेखा का शव रमेश को सौंप दिया गया.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी प्रमेंद्र सिंह ने रमेश गौतम की बेटी रीतू गौतम की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत टीपू निवासी कृष्णानगर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

टीपू को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी प्रमेंद्र सिंह ने अतिरिक्त थानाप्रभारी अरविंद कुमार पांडेय, एसआई संजय कुमार सिंह, दिनेश बहादुर आदि के साथ उस के घर दबिश दी. वह घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में टीपू से पूछताछ की गई तो उस ने रेखा की हत्या में अपना हाथ होने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन उस ने पुलिस को कुछ ऐसे सुराग दे दिए, जिस से पुलिस रेखा के सही कातिल तक पहुंच गई.

टीपू द्वारा पुलिस को ज्ञात हुआ कि रेखा का पड़ोस में रहने वाले शाहिद अली से आपसी मनमुटाव लगभग 10 महीने पहले हो गया था. शाहिद अली रेखा से रंजिश रखता था.

मांगने पर रमेश गौतम ने पुलिस को रेखा गौतम और शाहिद अली के मोबाइल नंबर उपलब्ध करा दिए. पुलिस ने दोनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन का अध्ययन किया तो पता चला कि शाहिद अली ने 16 अक्तूबर, 2019 को रेखा को फोन किया था.

यह जानकारी मिलने पर पुलिस शाहिद अली की तलाश में लग गई. इसी दौरान मुखबिर से पता चला कि शाहिद अली सरोजनी नगर इलाके में शहीद पथ तिराहे के पास मौजूद है. यह सूचना मिलने के बाद पुलिस टीम शहीद पथ तिराहे पर पहुंच गई.

वहां शाहिद अली मिल गया. पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने रेखा गौतम की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

शाहिद अली मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की तहसील कर्नलगंज के गांव बाबूदास भयापुरवा का रहने वाला था. शाहिद जब जवान हुआ तो उसे रोजगार की चिंता होने लगी. गांव में रोजगार का कोई साधन न होने की वजह से शाहिद कामधंधे की तलाश में लखनऊ आ गया. यह बात सन 2016 की है.

शाहिद अली ने लखनऊ में कामधंधा तलाश किया. उस ने लखनऊ की डूडा कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया. वहां रह कर उस ने टैंपो चलाना शुरू किया. जब उस की आमदनी बढ़ी तो उस ने डूडा कालोनी में अपने नाम एक फ्लैट आवंटित करा लिया और अपनी पत्नी व बच्चों को लखनऊ बुला लिया.

उस के फ्लैट के पास रमेश गौतम का फ्लैट था. रमेश गौतम के परिवार में पत्नी रेखा गौतम के अलावा 2 बच्चे थे. रेखा गौतम आलमबाग में स्थित एक क्लिनिक में आया थी.

आसपास रहने के कारण शाहिद अली की रमेश गौतम से अच्छी जानपहचान हो गई थी. दोनों के परिवार भी आपस में घुलमिल गए थे, जिस की वजह से दोनों परिवार एकदूसरे के घर आतेजाते थे. शाहिद अली सीधा व सरल स्वभाव का था, इसी वजह से रेखा उसे पसंद करती थी.

रेखा गौतम बेहद चालाक व शातिर किस्म की महिला थी. उस ने शाहिद अली को अपने झांसे में ले लिया. शाहिद ने अपने परिवार के गुजरबसर के लिए रमेश गौतम से एक विक्रम टैंपो किराए पर दिलाने या खरीद कर देने की पेशकश की. उस ने रमेश को भरोसा दिलाया कि वह हर महीने टैंपो की किस्त का भुगतान करता रहेगा.

रमेश गौतम ने शाहिद की यह बात रेखा को बताई तो वह कुछ देर तक सोचती रही. फिर उस ने हां में सिर हिला दिया और सहानुभूति दिखाते हुए शाहिद को एक पुराना टैंपो दिलवा दिया. रेखा ने वह टैंपो कुछ दिनों पहले ही किसी और से खरीदा था. यह सन 2017 की बात है.

शाहिद अली अवध अस्पताल इको गार्डन से ले कर पारा कालोनी होता हुआ बुद्धेश्वर चौराहे तक टैंपो चलाने लगा. धीरेधीरे पुलिस की मिलीभगत से यह टैंपो डग्गामारी में कई महीने तक चलता रहा.

अचानक एक बार नहरिया अस्पताल के निकट शाहिद का टैंपो पुलिस ने चैकिंग के दौरान पकड़ा गया. पुलिस ने उस के कागज मांग कर छानबीन की तो टैंपो चोरी का निकला. रेखा ने शाहिद को उस टैंपो के फरजी कागज बना कर दिए थे. दरअसल, रेखा ने किसी को थोड़ीबहुत कीमत दे कर वह टैंपो खरीद लिया था, जो बाद में उस ने 60 हजार रुपए में शाहिद अली को बेच दिया.

लेकिन शाहिद अली इस बात से बिलकुल अंजान था कि रेखा ने उस के साथ धोखा किया है. सन 2017 में शाहिद अली इसी टैंपो की चोरी के आरोप में जेल चला गया, जहां वह 3 महीने से अधिक जेल में रहा.

शाहिद के जेल जाने के बाद उस की पत्नी मेहरुन्निसा (परिवर्तित नाम) बेसहारा हो गई और उस की गुजरबसर की समस्या सामने आ खड़ी हुई. रेखा ने शाहिद की पत्नी को सहानुभूतिवश आर्थिक सहायता की.

शाहिद जब जेल से छूट कर बाहर आया तो उसे पता चला कि उस की पत्नी मेहरुन्निसा रेखा से काफी घुलमिल गई है. इतना ही नहीं, उस ने मेहरुन्निसा के कानों में शाहिद के खिलाफ उलटी सीधी बातें भी भर दीं. इस का नतीजा यह निकला कि शाहिद के जेल से आने के बाद मेहरुन्निसा उस से तलाक देने की बातें करने लगी थी.

शाहिद रेखा से बहुत खफा था लेकिन वक्तबेवक्त उस के द्वारा मदद करने के कारण वह उस के अहसानों से दबा हुआ था. इसलिए उस की करतूतों और अपनी पत्नी का विरोध खुल कर नहीं कर पाता था, बल्कि वह पत्नी को सचेत करता रहता था कि कहां तुम रेखा के चक्कर में पड़ी रहती हो. वह बहुत शातिर किस्म की औरत है.

लेकिन मेहरुन्निसा पति की एक भी बात नहीं सुनती थी. कहनेसुनने का पत्नी पर कोई फर्क न पड़ते देख शाहिद अली परेशान हो गया. उस की बेटी पर रेखा का कोई गलत प्रभाव न पड़े, इसलिए वह मजबूरीवश अपनी पत्नी और बेटी को अपने पैतृक गांव बाबूदास भयापुरवा, जिला गोंडा में छोड़ आया.

इस के अलावा उस ने अपनी दूसरी बेटी फातिमा (18 वर्ष) को अपने बहनोई मुजीबुल्ला के घर छोड़ दिया. बहनोई का घर उस के डूडा कालोनी स्थित घर से कुछ दूर दरोगाखेड़ा में था.

कुछ समय के बाद शाहिद को पता चला कि रेखा फातिमा से मिलने दरोगाखेड़ा जाती है और उसे लालच दे कर अपने साथ बाहर घुमाने भी ले जाती है. शाहिद ने बेटी को समझाया और रेखा से दूर रहने को कहा लेकिन फातिमा ने रेखा का साथ नहीं छोड़ा.

शाहिद दिन भर किराए का टैंपो चला कर मजदूरी कर के अपना पेट पालता था. वह अपना टैंपो ले कर सुबह निकल जाता और देर रात लौटता था. वह फातिमा के दिन भर के क्रियाकलापों से अंजान था.

शाहिद अली जून, 2018 में अपने पैतृक निवास बाबूदास भयापुरवा आया हुआ था. इसी दौरान 30 जून, 2018 को उस की बेटी फातिमा दरोगाखेड़ा से कहीं गायब हो गई. शाहिद अली को शक हुआ कि रेखा ही उस की बेटी को बरगलाती रहती थी. उस ने ही फातिमा को कहीं गायब किया होगा. इसलिए उस ने लखनऊ आ कर रेखा से फातिमा के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में अनभिज्ञता जता दी.

शाहिद पुलिस को सूचना दिए बगैर खुद ही बेटी को ढूंढता रहा, पर उस का पता नहीं चला. शाहिद रेखा की करतूतों से काफी तंग आ चुका था. उस की ही वजह से वह टैंपो चोरी के आरोप में जेल गया था और अब उस ने उस की बेटी को कहीं गायब करा दिया था. इस के अलावा वह उस की पत्नी मेहरुन्निसा को भी सिखापढ़ा कर घर को बरबाद करने पर तुली हुई थी. इन्हीं सब बातों को देखते हुए उस ने रेखा को सबक सिखाने का निर्णय ले लिया.

अपने मकसद में कामयाब होने के लिए उस ने रेखा से दोस्ती गांठ कर अपने संबंध प्रगाढ़ एवं विश्वसनीय बना लिए. अब रेखा उस पर विश्वास करने लगी. शाहिद कभी रेखा को उस के क्लिनिक से टैंपो में बिठा कर उस के घर छोड़ आता था और कभी घर से उसे बाजार भी ले जाता था.

धीरेधीरे रेखा को शाहिद पर इतना विश्वास हो गया कि शाहिद उसे फोन कर के कहीं बुलाता तो वह वहीं चली जाती थी. रेखा भी क्लिनिक से घर वापस आने के लिए शाहिद को फोन करती तो शाहिद टैंपो ले कर पहुंच जाता था.

16 अक्तूबर, 2019 को शाम शाहिद अली ने रेखा को फोन कर के नादरगंज टैंपो स्टैंड पर बुलाया तो रेखा क्लिनिक से सीधे शाहिद अली की बताई गई जगह पर पहुंच गई. शाहिद ने अपना टैंपो नादरगंज में आटो मैकेनिक की दुकान पर खड़ा कर दिया था और उस ने कुछ देर के लिए मैकेनिक की बाइक मांग ली.

वह रेखा को बाइक पर बैठा कर नादरगंज तिराहे से टीएस अस्पताल के निकट कलियाखेड़ा गांव की ओर जाने वाले सुनसान रोड पर ले गया. वहां एक जगह उस ने बाथरूम के बहाने बाइक रोकी. तभी उस ने बाइक की डिक्की से बांका निकाल कर रेखा के सिर और चेहरे पर हमला कर दिया.

रेखा घायल हो कर नीचे गिर पड़ी तो गुस्से से भरे शाहिद ने उसी के दुपट्टे से गला कस कर उस की हत्या कर दी. बाद में उस के शव को खींच कर वन विभाग के जंगल में डाल दिया, जबकि बांका और रेखा का दुपट्टा वहीं कुछ दूरी पर छिपा कर फरार हो गया.

पुलिस ने शाहिद की निशानदेही पर 22 अक्तूबर, 2019 को हत्या में प्रयुक्त बांका, मृतका का दुपट्टा, प्रयोग में लाई गई बाइक बरामद कर ली. 23 अक्तूबर को सीजेएम न्यायालय में पेश करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.

पुलिस को इस जांच के दौरान ही पता चला कि शाहिद की बेटी फातिमा का पड़ोस में रहने वाले आलम नाम के युवक से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह 30 जून, 2018 को उस के साथ ही घर से भाग गई थी.

उस ने उस के साथ निकाह कर लिया था. बहरहाल, जिस बेटी के गायब कराने के शक में शाहिद ने रेखा की हत्या की थी, वह बेटी प्रेमी से पति बने आलम के साथ मौजमजे से रह रही है.

 

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

प्यार की दावत : प्रेमी को मिला सबक

25 नवंबर, 2019 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा का रहने वाला रमेश गुप्ता घर में बिस्तर पर लेटा आराम कर रहा था. तभी अचानक उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठा कर काल रिसीव की, बात होने के बाद उस ने कपडे़ बदले और छोटे भाई सुरेश से यह कह कर चला गया कि मनोज के घर जा रहा है. अगर जरूरत हुई तो वह उन के घर पर रुक जाएगा. दरअसल, मनोज गुप्ता के ससुर बीमार थे, सुरेश उन की देखभाल के लिए उन के घर जाता रहता था. दोनों परिवारों के घ्निष्ठ संबंध थे.

रमेश को गए काफी देर हो गई. जब वह नहीं लौटा तो सुरेश ने समझा कि वह मनोज के घर रुक गए होंगे. रमेश जब 26 नवंबर की सुबह तक भी नहीं लौटा तो सुरेश ने मनोज गुप्ता को फोन किया तो उन्होंने बताया कि रमेश कल रात को उन के यहां आया ही नहीं था.

यह जान कर सुरेश को चिंता हुई. रमेश जहांजहां जा सकता था, सुरेश ने उन सभी जगहों पर उस की खोज की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

30 वर्षीय रमेश गुप्ता अपने परिवार के साथ जिला गोंडा के थाना कोतवाली क्षेत्र में स्थित विष्णुपुरी कालोनी में रहता था. जब सुरेश रिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों से पूछपूछ कर परेशान हो गया तो उस ने 29 नवंबर को थाना कोतवाली जा कर भाई रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

कोतवाल आलोक राव ने सुरेश की तहरीर पर रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने उस की तलाश के लिए आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

गोंडा शहर के ही सिविल लाइंस क्षेत्र में अफीम कोठी मोहल्ले में एक खाली मैदान है, जिस में तमाम झाडि़यां थीं. इस खाली मैदान में 2 दिसंबर को कुछ लोग गए तो वहां बदबू के तेज भभके उठ रहे थे.

लोगों ने खोजबीन शुरू की तो वहां एक सूखे कुएं में क्षतविक्षत अवस्था में लाश पड़ी देखी. वह कुआं मिट्टी से आधा पट चुका था, इसलिए चित अवस्था में पड़ी उस लाश का चेहरा स्पष्ट दिख रहा था. उन लोगों ने वह लाश पहचान ली. वह लाश विष्णुपुरी कालोनी के रहने वाले रमेश गुप्ता की थी.

रमेश के मकान से उस जगह की दूरी महज 200 मीटर थी. उन में से ही एक आदमी ने जा कर रमेश के भाई सुरेश गुप्ता को रमेश की लाश मिलने की सूचना दे दी.

सुरेश तुरंत मौके पर पहुंचा तो उस ने कुएं में पड़ी भाई की लाश पहचान ली. सुरेश ने कोतवाल आलोक राव को भाई की लश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर आलोक राव, एसएसआई राजेश मिश्रा आदि के साथ मौके पर पहुंच गए. मौके पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. इंसपेक्टर राव ने लाश कुएं से निकलवाई. लाश काफी सड़गल चुकी थी, इसलिए लाश का निरीक्षण करने पर मौत की वजह पता नहीं चल रही थी.

इसी बीच एसपी राजकरन नैयर और एएसपी महेंद्र कुमार भी मौके पर पहुंच गए. लाश का मुआयना करने के बाद उन्होंने रमेश के भाई सुरेश से पूछताछ की. सुरेश ने भाई की हत्या में उस की प्रेमिका मानसी का हाथ होने का शक जताया. वैसे भी अफीम कोठी मोहल्ले में ही 100 मीटर की दूरी पर मानसी चौरसिया का मकान था.

सुरेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फिर सुरेश की तहरीर पर मानसी चौरसिया के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया.

इंसपेक्टर राव ने मृतक रमेश गुप्ता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि 25 नवंबर की रात को उस के मोबाइल पर जो काल आई थी, वह मानसी चौरसिया के फोन नंबर से ही की गई थी.

अब मानसी से पूछताछ करनी जरूरी थी. लिहाजा 3 दिसंबर को इंसपेक्टर आलोक राव ओर एसएसआई राजेश मिश्रा ने महिला कांस्टेबल की मदद से मानसी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कोतवाली ला कर जब मानसी से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया कि रमेश की हत्या करने में उस के दूसरे प्रेमी अंकित सिंह, पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू चौरसिया ने साथ दिया था. पूछताछ के बाद मानसी ने रमेश की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की नगर कोतवाली अंतर्गत रामचंद्र गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते थे. रामचंद्र के परिवार में उन की पत्नी राजकुमारी और 2 बेटियों के अलावा 3 बेटे दिनेश, रमेश और सुरेश थे.

रामचंद्र प्राइवेट नौकरी करते थे. उन्होंने दिनेश का विवाह कर दिया था. दिनेश को विवाह के कुछ समय बाद ही चालचलन ठीक न होने पर रामचंद्र ने उसे घर से निकाल दिया. यह लगभग 8 साल पहले की बात है. इस समय दिनेश परिवार के साथ बस्ती जिले में रहता है. रामचंद्र ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया था. रमेश और सुरेश अभी अविवाहित थे. रमेश ने बीए तक पढ़ाई की थी.

रामचंद्र के कूल्हे में रौड पड़ी थी. उस रौड की वजह से उन्हें इंफेक्शन हो गया था, जो कि किडनी और उस के आसपास फैल गया था. वह काफी समय से बीमार थे.

इस की वजह से उन की देखभाल बड़ा बेटा रमेश किया करता था. देखभाल करने के कारण रमेश कोई काम नहीं करता था. घर पर ही रहता था. जबकि सुरेश एक बैंक में मैनेजर के रहमोकरम पर काम करने लगा था.

विष्णुपुरी कालोनी से सटा अफीम कोठी मोहल्ला था. इसी मोहल्ले में रोहित चौरसिया परिवार के साथ रहता था. रोहित रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की पत्नी जगदेवी का देहांत हो चुका था. रोहित के 2 बेटे दीपू चौरसिया और सूरज चौरसिया और एकलौती बेटी मानसी थी.

दीपक का रीमा नाम की युवती से विवाह हो चुका था. सूरज अविवाहित था और मुंबई में रहता था. मानसी ने इंटरमीडिएट तक शिक्षा ग्रहण की थी, इस के बाद उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह घर के रोजमर्रा के काम करने लगी.

रमेश और मानसी के मकान के बीच महज 200 मीटर की दूरी थी. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. मानसी काफी महत्त्वाकांक्षी थी. छरहरी काया वाली मानसी को लड़कों से दोस्ती करना बहुत अच्छा लगता था. उस की वजह थी कि उस के नाजनखरे उठाने में लड़कों की लाइन लगी रहती थी. उन के साथ घूमने, मौजमस्ती के उसे खूब मौके मिलते थे.

रमेश मोहल्ले में ही घूमता रहता था, इसलिए वह मानसी के चालचलन से बखूबी वाकिफ था. उस ने भी मानसी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो मानसी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों की दोस्ती धीरेधीरे रंग दिखाने लगी. वैसे भी दोस्ती प्यार की पहली सीढ़ी होती है. रमेश और मानसी दोनों यह सीढ़ी चढ़ चुके थे.

दोनों साथ में काफी समय बिताने लगे. उन के बीच मोबाइल पर भी बातें होती रहती थीं. जैसेजैसे समय गुजरने लगा, दोनों को अहसास होने लगा कि दोनों दोस्ती की सीमाओं को पार कर उस से भी आगे निकल चुके हैं. उन के दिलों में प्यार की उमंगें हिलारें मार रही थीं. दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. यह भी तय कर लिया कि जीवन भर दोनों पतिपत्नी के रूप में साथसाथ रहेंगे.

दोनों ने विवाह करने की बात अपने घरों में की तो रमेश के घर वालों को तो शादी से कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन मानसी के पिता रोहित और भाई दीपू ने मना कर दिया. उन्होंने मानसी से कहा कि रमेश एक तो उन की जातिबिरादरी का नहीं और दूसरे वह निठल्ला है. कुछ कामधाम नहीं करता. ऐसे में शादी के बाद वह उसे कैसे रख पाएगा.

बाप की नसीहत बेटी के दिमाग में घर कर गई. मानसी ने अभी तक इस बारे में सोचा ही नहीं था. वह तो प्यार में इतनी डूब गई थी कि और कुछ सोचसमझ ही नहीं पा रही थी. बाप की नसीहत ने जैसे उस की आंखें खोल दी थीं.

अब उस ने रमेश से दूरी बनानी शुरू कर दी. लेकिन रमेश था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं था. इसी बीच मानसी की मुलाकात कुछ दूर जानकीनगर मोहल्ला निवासी अंकित से हो गई. अंकित अच्छा कमाता था. रमेश के मुकाबले हर लिहाज से अंकित मानसी को अच्छा लगा था. दोनों की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ने लगीं. दोनों के बीच की दूरियां कम होती गईं. मानसी अंकित के साथ बहुत खुश थी.

रमेश ने मानसी चौरसिया को अपने से दूरी बनाते देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा. वह ऐसा क्यों कर रही है, यह जानने की उस ने कोशिश की तो उस के सामने हकीकत आते देर नहीं लगी.

रमेश को लगा कि दूसरा प्रेमी मिलते ही मानसी ने उस से किनारा कर लिया है. यह बात रमेश के दिमाग में बारबार कौंध रही थी. वह इसे बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. वह मानसी को हर हाल में पाना चाहता था. एक दिन रमेश ने मानसी से मिल कर उसे समझाया लेकिन मानसी नहीं मानी.

मानसी ने उसे बताया कि परिवार वाले उस से विवाह करने को तैयार नहीं हैं और वह अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. इस पर रमेश ने सीधे कहा कि ऐसे में तुम्हें अपने घर वालों को मनाना चाहिए. लेकिन तुम ने तो दूसरा प्रेमी ही ढूंढ लिया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

मानसी को न मानते देख रमेश ने उसे धमकाया कि अगर उस ने उसे छोड़ कर किसी दूसरे को चुना तो उस के जो अश्लील फोटो उस के पास हैं, वह उन्हें वायरल कर देगा. रमेश के इतना कहने पर मानसी डर गई लेकिन उस ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह अब उस की नहीं हो सकती.

इस के बाद मानसी के दिमाग में यही चलता रहता था कि कहीं रमेश उस के अश्लील फोटो को वायरल न कर दे. वह इसी डर में जी रही थी. ऐसे में उस ने रमेश को सबक सिखाने का फैसला कर लिया.

उस ने अपने दूसरी प्रेमी अंकित से कहा कि कुछ दिनों पहले रमेश ने धोखे से उस के कुछ अश्लील फोटो खींच लिए थे, उन के बल पर वह उसे ब्लैकमेल कर फोटो वायरल करने की धमकी दे रहा है.

मानसी ने अंकित से कहा कि उसे रोकने का एक ही तरीका है कि उसे मार दिया जाए. अंकित इस काम में उस का साथ देने को तैयार हो गया. उसे कहां और कैसे मारना है, इस पर दोनों ने विचार कर लिया.

इस के बाद दोनों को लगा कि वे दोनों इस काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पाएंगे. इस पर मानसी ने रमेश को ठिकाने लगाने के लिए अपने पिता और भाई को राजी करने का उपाय सोचा.

योजनानुसार मानसी ने रोते हुए अपने पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू को बताया कि रमेश के पास उस के कुछ अश्लील फोटो हैं. उन को वायरल कर के वह उस की जिंदगी बरबाद करना चाहता है.

यह सुन कर दोनों को मानसी और रमेश पर गुस्सा आया. पर पहले तो उन्हें रमेश को देखना था, क्योंकि उन के लिए मानसी की इज्जत यानी परिवार की इज्जत पहले थी. इज्जत बचाने की खातिर उस के पिता व भाई रमेश को सबक सिखाने को तैयार हो गए.

तब मानसी ने दोनों को बता दिया था कि इस सब में उस का एक दोस्त अंकित भी मदद करने को तैयार है. इस के बाद एक दिन मानसी ने अंकित को घर बुला लिया. फिर सब ने मिल कर रमेश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

25 नवंबर को मानसी के भाई दीपू की पत्नी रीमा अपने मायके गई हुई थी. योजनानुसार रात साढ़े 10 बजे मानसी ने फोन कर के रमेश को अपने घर बुलाया.

रमेश अपने भाई सुरेश से घर के सामने रहने वाले मनोज गुप्ता के यहां जाने की बात कह कर निकला और सीधे मानसी के घर पहुंच गया.  वहां मानसी, उस के पिता रोहित, भाई दीपू के अलावा अंकित भी मौजूद था.

रमेश के पहुंचने पर सब ने पहले उसे शराब पिलाई. शराब में पहले से ही जहरीला पदार्थ मिला दिया गया था. शराब में मिले जहर ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो रमेश की हालत बिगड़ने लगी. वह उठ कर जाने की कोशिश करने लगा तो सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और गला दबा कर उसे मार डाला.

रमेश को मौत की नींद सुलाने के बाद रात एक बजे उस की लाश अपने घर के पीछे झाडि़यों से पटे खाली मैदान में बने सूखे कुएं में डाल दी. इस के बाद अंकित अपने घर चला गया.

लेकिन उन का गुनाह छिप न सका. मानसी चौरसिया ने सभी के नाम खोले तो इंसपेक्टर आलोक राव ने अंकित, रोहित चौरसिया और दीपू चौरसिया की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी. मानसी के हिरासत में लिए जाने के बाद ही तीनों अपने घरों से फरार हो गए थे.

पुलिस के बढ़ते दबाव के चलते अंकित ने 6 दिसंबर, 2019 को न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. 8 दिसंबर को इंसपेक्टर राव ने दीपू चौरसिया को गिरफ्तार कर लिया. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित चौरसिया फरार चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मनोज गुप्ता परिवर्तित नाम है.

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

मौज मजे में पति की आहूति

हरिओम तोमर मेहनतकश इंसान था. उस की शादी थाना सैंया के शाहपुरा निवासी निहाल सिंह की बेटी बबली से हुई थी. हरिओम के परिवार में उस की पत्नी बबली के अलावा 4 बच्चे थे. हरिओम अपनी पत्नी बबली और बच्चों से बेपनाह मोहब्बत करता था.

बेटी ज्योति और बेटा नमन बाबा राजवीर के पास एत्मादपुर थानांतर्गत गांव अगवार में रहते थे, जबकि 2 बेटियां राशि और गुड्डो हरिओम के पास थीं. राजवीर के 2 बेटों में बड़ा बेटा राजू बीमारी की वजह से काम नहीं कर पाता था. बस हरिओम ही घर का सहारा था, वह चांदी का कारीगर था.

हरिओम और बबली की शादी को 15 साल हो चुके थे. हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया.

3 नवंबर, 2019 की रात में हरिओम अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ घर से लापता हो गया. पिछले 12 साल से वह आगरा में रह रहा था. 36 वर्षीय हरिओम आगरा स्थित चांदी के एक कारखाने में चेन का कारीगर था.

पहले वह बोदला में किराए पर रहता था. लापता होने से 20 दिन पहले ही वह पत्नी बबली व दोनों बच्चियों राशि व गुड्डो के साथ आगरा के थानांतर्गत सिकंदरा के राधानगर इलाके में किराए के मकान में रहने लगा था.

आगरा में ही रहने वाली हरिओम की साली चित्रा सिंह 5 नवंबर को अपनी बहन बबली से मिलने उस के घर गई. वहां ताला लगा देख उस ने फोन से संपर्क किया, लेकिन दोनों के फोन स्विच्ड औफ थे.

चित्रा ने पता करने के लिए जीजा हरिओम के पिता राजबीर को फोन कर पूछा, ‘‘दीदी और जीजाजी गांव में हैं क्या?’’

इस पर हरिओम के पिता ने कहा कि कई दिन से हरिओम का फोन नहीं मिल रहा है. उस की कोई खबर भी नहीं मिल पा रही. चित्रा ने बताया कि मकान पर ताला लगा है. आसपास के लोगों को भी नहीं पता कि वे लोग कहां गए हैं.

किसी अनहोनी की आशंका की सोच कर राजबीर गांव से राधानगर आ गए. उन्होंने बेटे और बहू की तलाश की, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर पिता राजबीर ने 6 नवंबर, 2019 को थाना सिकंदरा में हरिओम, उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

जांच के दौरान हरिओम के पिता राजबीर ने थाना सिकंदरा के इंसपेक्टर अरविंद कुमार को बताया कि उस की बहू बबली का चालचलन ठीक नहीं था. उस के संबंध कमल नाम के एक व्यक्ति के साथ थे, जिस के चलते हरिओम और बबली के बीच आए दिन विवाद होता था. पुलिस ने कमल की तलाश की तो पता चला कि वह भी उसी दिन से लापता है, जब से हरिओम का परिवार लापता है.

पुलिस सरगरमी से तीनों की तलाश में लग गई. इस कवायद में पुलिस को पता चला कि बबली सिकंदरा थानांतर्गत दहतोरा निवासी कमल के साथ दिल्ली गई है. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई.

शनिवार 16 नवंबर, 2019 को बबली और उस के प्रेमी कमल को पुलिस ने दिल्ली में पकड़ लिया. दोनों बच्चियां भी उन के साथ थीं, पुलिस सब को ले कर आगरा आ गई. आगरा ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो मामला खुलता चला गया.

पता चला कि 3 नवंबर की रात हरिओम रहस्यमय ढंग से लापता हो गया था. पत्नी और दोनों बच्चे भी गायब थे. कमल उर्फ करन के साथ बबली के अवैध संबंध थे. वह प्रेमी कमल के साथ रहना चाहती थी. इस की जानकारी हरिओम को भी थी. वह उन दोनों के प्रेम संबंधों का विरोध करता था. इसी के चलते दोनों ने हरिओम का गला दबा कर हत्या कर दी थी.

बबली की बेहयाई यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने कमल के साथ मिल कर पति की गला दबा कर हत्या दी थी. बाद में दोनों ने शव एक संदूक में बंद कर यमुना नदी में फेंक दिया था.

पूछताछ और जांच के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

फरवरी, 2019 में बबली के संबंध दहतोरा निवासी कमल उर्फ करन से हो गए थे. कमल बोदला के एक साड़ी शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. बबली वहां साड़ी खरीदने जाया करती थी. सेल्समैन कमल बबली को बड़े प्यार से तरहतरह के डिजाइन और रंगों की साडि़यां दिखाता था. वह उस की सुंदरता की तारीफ किया करता था.

उसे बताता था कि उस पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कमल बबली की चंचलता पर रीझ गया. बबली भी उस से इतनी प्रभावित हुई कि उस की कोई बात नहीं टालती थी. इसी के चलते दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे.

अब जब भी बबली उस दुकान पर जाती, तो कमल अन्य ग्राहकों को छोड़ कर बबली के पास आ जाता. वह मुसकराते हुए उस का स्वागत करता फिर इधरउधर की बातें करते हुए उसे साड़ी दिखाता. कमल आशिकमिजाज था, उस ने पहली मुलाकात में ही बबली को अपने दिल में बसा लिया था. नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस ने बबली से फोन पर बात करनी शुरू कर दी.

जब दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां बढ़ती गईं. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. फिर उन की चाहत एकदूसरे से गले मिलने लगी. बातोंबातों में बबली ने कमल को बताया कि वह बोदला में ही रहती है.

इस के बाद कमल बबली के घर आनेजाने लगा. जब एक बार दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर यह सिलसिला सा बन गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

हरिओम की अनुपस्थिति में बबली और कमल के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं, एक दिन हरिओम को भी भनक लग गई. उस ने बबली को कमल से दूर रहने और फोन पर बात न करने की चेतावनी दे दी.

दूसरी ओर बबली कमल के साथ रहना चाहती थी. उस के न मानने पर वह घटना से 20 दिन पहले बोदला वाला घर छोड़ कर सपरिवार सिकंदरा के राधानगर में रहने लगा. 3 नवंबर, 2019 को हरिओम शराब पी कर घर आया. उस समय बबली मोबाइल पर कमल से बातें कर रही थी. यह देख कर हरिओम के तनबदन में आग लग गई. इसी को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ तो हरिओम ने बबली की पिटाई कर दी.

बबली ने इस की जानकारी कमल को दे दी. कमल ने यह बात 100 नंबर पर पुलिस को बता दी. पुलिस आई और रात में ही पतिपत्नी को समझाबुझा कर चली गई. पुलिस के जाने के बाद भी दोनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, दोनों झगड़ा करते रहे.

रात साढे़ 11 बजे बबली ने कमल को दोबारा फोन कर के घर आने को कहा. जब वह उस के घर पहुंचा तो हरिओम उस से भिड़ गया. इसी दौरान कमल ने गुस्से में हरिओम का सिर दीवार पर दे मारा. नशे के चलते वह कमल का विरोध नहीं कर सका.

उस के गिरते ही बबली उस के पैरों पर बैठ गई और कमल ने उस का गला दबा दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद हरिओम की मौत हो गई. उस समय दोनों बच्चियां सो रही थीं. कमल और बबली ने शव को ठिकाने लगाने के लिए योजना तैयार कर ली. दोनों ने शव को एक संदूक में बंद कर उसे फेंकने का फैसला कर लिया, ताकि हत्या के सारे सबूत नष्ट हो जाएं.

योजना के तहत दोनों ने हरिओम की लाश एक संदूक में बंद कर दी. रात ढाई बजे कमल टूंडला स्टेशन जाने की बात कह कर आटो ले आया.

आटो से दोनों यमुना के जवाहर पुल पर पहुंचे. लाश वाला संदूक उन के साथ था. इन लोगों ने आटो को वहीं छोड़ दिया. सड़क पर सन्नाटा था, कमल और बबली यू टर्न ले कर कानपुर से आगरा की तरफ आने वाले पुल पर पहुंचे और संदूक उठा कर यमुना में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन 4 नवंबर को सुबह कमल बबली और उस की दोनों बच्चियों को साथ ले कर दिल्ली भाग गया.

बबली की बेवफाई ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया था. उस ने पति के रहते गैरमर्द के साथ रिश्ते बनाए. यह नाजायज रिश्ता उस के लिए इतना अजीज हो गया कि उस ने अपने पति की मौत की साजिश रच डाली.

पुलिस 16 नवंबर को ही कमल व बबली को ले कर यमुना किनारे पहुंची. उन की निशानदेही पर पीएसी के गोताखोरों को बुला कर कई घंटे तक यमुना में लाश की तलाश कराई गई, लेकिन लाश नहीं मिली. अंधेरा होने के कारण लाश ढूंढने का कार्य रोकना पड़ा.

रविवार की सुबह पुलिस ने गोताखोरों और स्टीमर की मदद से लाश को तलाशने की कोशिश की. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

बहरहाल, पुलिस हरिओम का शव बरामद नहीं कर सकी. शायद बह कर आगे निकल गया होगा. पुलिस ने बबली और उस के प्रेमी कमल को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

खाकी वरदी वाला डकैत: पुलिस के भेष में डाकू

तारीख: 9 मार्च, 2019.  समय: सुबह के 7 बजे.स्थान: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ.

ट्रेडिंग व्यापारी अंकित अग्रहरि लखनऊ की ओमेक्स रेजीडेंसी स्थित अपने फ्लैट नंबर 104 में बैठे चाय पी रहे थे. उन के साथ उन के सहयोगी सचिन कटारे, अश्वनी पांडेय, कुलदीप यादव, अभिषेक वर्मा, जितेंद्र तोमर, अभिषेक सिंह व शुभम गुप्ता भी थे. चाय के साथसाथ इन लोगों के बीच अपने बिजनैस के संबंध में बातचीत हो रही थी.

दरवाजे पर दस्तक हुई तो अंकित ने पूछा कौन?  इस पर अपार्टमेंट  के चौकीदार योगेश ने कहा, ‘‘साहब मैं चौकीदार हूं.’’

अंकित ने यह सोच कर दरवाजा खोल दिया कि चौकीदार किसी काम से आया होगा. दरवाजा खुलते ही 7 लोग चौकीदार को पीछे धकेलते हुए धड़ाधड़ फ्लैट में घुस आए. इन में से 2 लोग पुलिस की वरदी में थे. फ्लैट के अंदर आते ही उन लोगों ने अंकित व उन के साथियों पर पिस्तौल तान कर गोली मारने की धमकी देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे यहां ब्लैकमनी रखी है.’’

अंकित अग्रहरि ने इनकार किया तो वे लोग धमकाते हुए मारपीट पर उतारू हो गए. फिर उन लोगों ने खुद ही कमरे के डबलबैड और दीवान से बिस्तर हटा कर नीचे डाल दिए और बैड बौक्स व दीवान में रखे रुपए निकाल कर साथ लाए थैले और बैग में भरने लगे. अंकित और उस के साथियों ने रोकने की कोशिश की तो उन्होंने सभी की लातघूसों से जम कर पिटाई कर दी. इस से घबरा कर सारे लोग डर कर चुपचाप खड़े हो गए.

अंकित और उस के साथी समझ गए थे कि पुलिस वरदी में आए लोग बदमाश हैं और लूटपाट के इरादे से चौकीदार को मोहरा बना कर फ्लैट में घुसे हैं. इस काररवाई के दौरान उन्होंने किसी को भी मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करने दिया.

वरदी वालों के साथ आया एक व्यक्ति, जिसे वे लोग मधुकर के नाम से बुला रहे थे, रुपए से भरा थैला व बैग ले कर फ्लैट से निकल गया. इस के बाद खुद को दरोगा बताने वाले आशीष ने अहिमामऊ चौकीप्रभारी प्रेमशंकर पांडेय को फ्लैट में पिस्टल व 4 कारतूस मिलने की जानकारी दे कर वहां आने को कहा. लेकिन चौकीप्रभारी ने आरोपियों को थाने ले जाने को कहा.

यह सुन कर अंकित और उन के साथियों की जान में जान आई. वे लोग समझ गए कि उन के यहां रेड के नाम पर पुलिस ने डकैती डाली है. दरोगा पवन और आशीष सभी को बाकी रकम, पिस्टल व 4 कारतूसों के साथ थाने ले आए.

बिजनैसमैन अंकित व उस के सहयोगियों को पुलिस द्वारा पकड़ कर ले जाने की जानकारी मिलते ही ओमेक्स अपार्टमेंट में हड़कंप सा मच गया. जितने मुंह उतनी बातें. लोग कह रहे थे, ‘‘अंकित छुपा रूस्तम निकला. वह व्यापार की आड़ में हथियारों की तस्करी करता था. उस के फ्लैट पर कुछ लोग हथियार लेने आए थे. सूचना मिलने पर पुलिस ने रेड डाल कर ब्लैकमनी, हथियार और हथियार खरीदने आए लोगों को पकड़ लिया.’’

बाद में पता चला कि छापा मारने वाली पुलिस टीम में लखनऊ के थाना गोसाईगंज के सबइंस्पेक्टर पवन मिश्रा, सबइंस्पेक्टर आशीष तिवारी, मुखबिर मधुकर मिश्रा, सिपाही प्रदीप भदौरिया, ड्राइवर आनंद यादव  के अलावा 2 अन्य लोग शामिल थे. ये लोग 2 गाडिय़ां ले कर आए थे.

बिजनैसमैन अंकित अग्रहरि मूलरूप से धनपतगंज, सुल्तानपुर का रहने वाला है. उस का कोयला और मौरंग का बिजनैस है. लखनऊ में वह अपने सहयोगी के पास रह कर कारोबार करता है. लखनऊ की ओमेक्स रेजीडेंसी में उस ने किराए का फ्लैट ले रखा था. घटना के समय उस के फ्लैट में 3.38 करोड़ रुपए रखे थे. अंकित को यह रकम बांदा में अपनी खदान पर पहुंचानी थी.

पुलिसकर्मियों ने इस मामले में डकैती के साथसाथ गुडवर्क दिखाने की भी साजिश की. उन्होंने मुखबिर मधुकर मिश्रा को लूटे गए एक करोड़ 85 लाख रुपयों सहित पहले ही भगा दिया था. जबकि लूट के बाद बाकी बची रकम एक करोड़ 53 लाख के साथ कारोबारी अंकित व उस के साथियों को पुलिस वाले थाना गोसाईगंज ले गए. वहां पकड़े गए लोगों और कालेधन पर काररवाई को ले कर विचारविमर्श होता रहा.

लुटेरे पुलिसकर्मियों ने सोशल मीडिया पर फ्लैट से 1.53 करोड़ रुपए का काला धन मिलने और पिस्टल सहित कारोबारियों के पकड़े जाने का मैसेज वायरल कर वाहवाही लूटने की कोशिश की. दोनों दरोगा पवन व आशीष अपनी करतूत में सफल हो चुके थे, लेकिन उन का झूठ ज्यादा देर नहीं टिक सका. मैसेज वायरल होने से खाकी वरदी अपने ही जाल में फंस गई.

सूचना पा कर सीओ मोहनलालगंज राजकुमार शुक्ला भी थाना गोसाईगंज पहुंच गए. उन की व थानाप्रभारी गोसाईगंज अजय प्रकाश त्रिपाठी की मौजूदगी में रकम गिनी गई. पूरी रकम 500 और 2000 के नोटों की शक्ल में थी. बड़ी रकम देख कर उन्होंने आयकर विभाग के अफसरों को सूचना दे दी.

आयकर अधिकारी थाने पहुंचे तो अंकित ने बताया कि उन के फ्लैट में 3.38 करोड़ रुपए रखे थे, यह रकम उन्हें बांदा में अपनी खदान पर पहुंचानी थी. अंकित ने बताया, ‘‘पुलिस ने रेड के दौरान एक करोड़ 85 लाख रुपए निकाल लिए थे, जिन्हें ले कर उन के साथी पहले ही वहां से चले गए.’’

फ्लैट में मौजूद अंकित के सहयोगियों में से एक व्यक्ति कैबिनेट मंत्री का करीबी था. उस व्यक्ति को थाने लाने व रुपए बरामद होने की जानकारी मिलते ही मंत्री ने पुलिस अधिकारियों को फोन किया. करीब 2 घंटे से थाने में पूछताछ कर रही पुलिस मंत्री का फोन आते ही सकते में आ गई.

दूसरी ओर आयकर अफसरों ने तत्काल बरामद रकम कब्जे में ले ली और कारोबारियों से पूछताछ में जुट गए. कालेधन का कोई साक्ष्य न मिलने से पुलिस का खेल बिगड़ गया. कारोबारी अंकित द्वारा सच्चाई बताने से पुलिस वालों द्वारा अंकित के फ्लैट में घुस कर 1.85 करोड़ रुपए लूटने के मामले में पुलिस की गरदन फंस गई.

मंत्री ने एसएसपी कलानिधि नैथानी को फोन पर नाराजगी जताई. एसएसपी को पूरी घटना का पता चला तो उन्होंने एसपी (ग्रामीण) विक्रांतवीर और सीओ (मोहनलालगंज) राजकुमार शुक्ला को जांच के लिए मौके पर भेजा. जांच में आरोप सही पाए जाने के बाद पुलिसकर्मियों की साजिश की पोल खुल गई.

एसएसपी कलानिधि नैथानी के अनुसार, फ्लैट में करोड़ों रुपए बरामद होने की सूचना पर जब उन्हें घटना के समय एसआई पवन मिश्रा के वहां होने की बात पता चली तो वह चाैंके. पवन मिश्रा लंबे समय से गोसाईगंज थाने से गैरहाजिर चल रहा था. उस ने अपनी आमद पुलिस लाइन में कराई थी. उस का वहां होना चौंकाने वाली बात थी. उन्हें तभी लग गया था कि कुछ गड़बड़ी है.

एसपी (ग्रामीण) विक्रांतवीर ने जांच के दौरान 9 मार्च की सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. सीसीटीवी की फुटेज ने सारे राज खोल दिए. आरोपियों ने 10 मिनट में ही 2 बैगों में 1.85 करोड़ रुपए भर लिए थे. मुखबिर मधुकर अपार्टमेंट के नीचे गाड़ी लिए खड़ा था. फुटेज में दरोगा पवन मिश्रा उस की गाड़ी में रुपए रखवाते दिखाई दे रहा था. रुपए ले कर मधुकर वहां से चला गया था.

इस बारे में जब दरोगा पवन मिश्रा से पूछा गया कि बैग बाहर भेजने के बाद सूचना क्यों दी, पहले क्यों नहीं? तो वह कोई जवाब नहीं दे सका. उस के चेहरे का रंग उड़ गया और वह बगलें झांकने लगा.

आरोपी सिपाही प्रदीप फ्लैट में सरकारी एके47 राइफल ले कर दाखिल हुआ था, जिस से वह अंदर मौजूद लोगों पर दबाव बना सके. पुलिस ने उस से ले कर सरकारी असलहा जब्त कर लिया.  एसपी (देहात) विक्रांतवीर के अनुसार, सीसीटीवी फुटेज के आधार पर 2 अन्य आरोपियों की पहचान राधाकृष्ण उपाध्याय और यशराज तिवारी के रूप में हुई.

बंदूक के दम पर हुई यह वारदात वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी. अंकित अग्रहरि की तहरीर पर गोसाईगंज थाने में इसी थाने में तैनात एसआई पवन मिश्रा, एसआई आशीष तिवारी, मुखबिर मधुकर मिश्रा व 4 अन्य के खिलाफ बंधक बना कर डकैती व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया.

एसएसपी ने दोनों दरोगाओं को निलंबित कर पूछताछ की. इस के साथ ही पुलिस फ्लैट से रुपयों का बैग ले कर निकले मुखबिर मधुकर और उस के अज्ञात सहयोगियों की सरगर्मी से तलाश में जुट गई.

फ्लैट से मिले कुल 1.53 करोड़ रुपए बक्से में रखवा कर सील करने के बाद आयकर विभाग को सौंप दिए गए. सीओ के मुताबिक नोटों की गड्डियां बैड व दीवान में छिपा कर रखी गई थीं. इतनी बड़ी मात्रा में नकदी कहां से आई, इस की जांच रेवेन्यू व इनकम टैक्स अधिकारी कर रहे हैं.

लूटपाट की पुष्टि होने के बाद एसएसपी के आदेश पर गोसाईगंज पुलिस ने एसआई पवन मिश्रा, आशीष तिवारी, सिपाही प्रदीप भदौरिया व ड्राइवर आनंद यादव को गिरफ्तार कर लिया.

एसपी (ग्रामीण) के निर्देश पर पवन व आशीष के घर पर पुलिस टीम भेजी गई. दोनों के यहां से करीब 36 लाख रुपए बरामद हुए. हालांकि इस बारे में पुलिस कुछ बोलने को तैयार नहीं थी.

अलबत्ता एसएसपी ने प्रैसवार्ता में बताया, ‘‘आनंद के पास से 40 हजार व प्रदीप के घर से 2 लाख रुपए के साथ पुलिस ने घटना में इस्तेमाल इनोवा और एक अन्य कार बरामद कर ली. आनंद प्रदीप का निजी चालक है. पुलिस द्वारा लूटे गए शेष रुपए कहां गए, पता अभी तक नहीं लग सका है.’’

पुलिस की जांचपड़ताल के दौरान यह बात सामने आई कि मुखबिर मधुकर मिश्रा ने दोनों दरोगाओं पवन व आशीष को बताया था कि अंकित अग्रहरि के फ्लैट में करोड़ों रुपए की ब्लैकमनी और असलहों की खेप रखी है. इसी को आधार बना कर दोनों दरोगा, सिपाही, मुखबिर और अन्य साथियों के साथ अंकित के फ्लैट पर पहुंचे थे.

मुखबिर मधुकर गोसाईगंज थाने गया था, जहां उस ने दोनों दरोगाओं के साथ मिल कर योजना बनाई थी. थाने में ही उन्होंने यह तय किया था कि कितना रुपया दिखाया जाएगा और कितना हड़पना है. थाने में बनी योजना के बावजूद थानाप्रभारी अजय त्रिपाठी सहित अन्य पुलिस वालों को इस योजना की भनक तक नहीं लगी थी.

बिजनैसमैन अंकित के फ्लैट से .32 बोर की पिस्टल व 4 कारतूस बरामद हुए थे. ये पिस्टल किस की है, इस की जांच की जा रही है. कहीं ये पिस्टल लूटने आए दरोगा की तो नहीं है, इस संबंध में भी पुलिस जांचपड़ताल कर रही है. पिस्टल व कारतूस सील कर के मालखाने में जमा करा दिए गए.

दरोगा पवन मिश्रा और आशीष तिवारी घूसखोरी के लिए थे बदनाम दरोगा पवन मिश्रा व आशीष तिवारी के खिलाफ घूसखोरी की पहले भी कई शिकायतें थीं. कुछ महीने पहले सीओ मोहनलालगंज के कार्यालय से दोनों की बाकायदा लिखित शिकायत उच्चाधिकारियों से की गई थी. शिकायत में कहा गया था कि पवन जमीन संबंधी मामलों में सांठगांठ कर के घूसखोरी कर रहा है.

अपने साथ दरोगा आशीष व अन्य पुलिसकर्मियों को भी साथ मिला रखा है. अगर इस शिकायत पर संबंधित अधिकारियों ने संज्ञान ले लिया होता तो आरोपित दरोगा डकैती के बारे में सोचते भी नहीं. पूरे प्रकरण में अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है.

कोयला कारोबारी के घर डकैती की घटना से चर्चा में आए मधुकर शुक्ला के खिलाफ वजीरगंज के अलावा ट्रांस गोमती, गाजीपुर आदि के थानों में पहले से ही एफआईआर दर्ज हैं. वहीं एएसपी (क्राइम) का गनर रह चुका लालपुरवा, खैरीघाट, बहराइच निवासी सिपाही प्रदीप झांसी परिक्षेत्र में मारपीट के एक मामले में जेल भी जा चुका है.

प्रदीप ट्रक चलवाता है. निलंबित दरोगा पवन और आशीष दोनों ही प्रेमनगर,  झांसी के रहने वाले हैं.

वहीं पकड़ा गया चालक आनंद यादव महिपाल खेड़ा, अर्जुनगंज का रहने वाला है. गिरफ्तार दरोगा पवन, आशीष और सिपाही प्रदीप व उस के चालक आनंद को पुलिस ने 10 मार्च को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. न्यायालय ने चारों आरोपियों को न्यायायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

राजधानी के चर्चित गोसाईगंज डकैती कांड में आरोपी मधुकर मिश्रा ने 11 मार्च को कोर्ट में सरेंडर कर दिया. पुलिस को सूचना मिली थी कि मधुकर 11 मार्च को कोर्ट में सरेंडर कर सकता है. पुलिस को सादे कपड़ों में लगाया गया था. इस के बावजूद आरोपी ने स्पैशल सीजेएम-6 के न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पुलिस ने डकैती की वारदात को अंजाम दे कर खाकी वरदी को दागदार कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मन भाया मंगेतर

प्रमोद अनंत पाटनकर भारतीय जीवन बीमा निगम में अधिकारी थे. वह अपने परिवार के साथ ठाणे के उपनगर मीरा भायंदर स्थित शिवदर्शन सोसायटी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी दीप्ति पाटनकर के अलावा लगभग 4 साल की एक बेटी थी. इस छोटे से परिवार में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

बात 15 जुलाई, 2019 की है. उस समय रात के करीब 11 बजे थे. दीप्ति की बेटी ननिहाल में थी. दीप्ति बेटी से मिल कर अपने फ्लैट पर लौटी तो दरवाजा बंद था. कई बार डोरबैल बजाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उस ने पर्स में रखी दूसरी चाबी से दरवाजा खोला. उस ने अंदर जा कर देखा तो वहां का नजारा देख मुंह से चीख निकल गई. उस के पति प्रमोद अनंत पाटनकर की लाश फर्श पर पड़ी थी. उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग आ गए. उन सभी के मन में यह जिज्ञासा थी कि पता नहीं प्रमोदजी के फ्लैट में क्या हो गया. लोग फ्लैट के अंदर पहुंचे तो बैडरूम के फर्श पर प्रमोद पाटनकर की लाश देख कर स्तब्ध रह गए. फ्लैट का सारा सामान बिखरा पड़ा था. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब कैसे हो गया.

दीप्ति ने उस समय अपने आप को किसी तरह संभाला और मामले की जानकारी करीब ही रहने वाले अपने पिता भानुदास भावेकर को दी. बेटी के फ्लैट में घटी घटना के बारे में सुन कर वह अवाक रह गए. उन्होंने रोतीबिलखती बेटी दीप्ति को धीरज बंधाया, फिर मामले की जानकारी स्थानीय नवघर थाने में दे दी साथ ही अपने परिवार के साथ दीप्ति के फ्लैट पर पहुंच गए.

हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रामभाल सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. उन्होंने यह सूचना बड़े अधिकारियों के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम व फोरैंसिक टीम को भी दे दी थी.

घटनास्थल थाने से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था, इसलिए पुलिस टीम 10 मिनट में वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी जब घटनास्थल पर पहुंचे तब तक वहां सोसायटी के काफी लोग जमा हो चुके थे.

वह फ्लैट के अंदर गए, तो उन्हें कमरे में बैड के पास फर्श पर एक आदमी की लाश पड़ी मिली. लाश के पास बैठी एक महिला जोरजोर से रो रही थी. पता चला कि रोने वाली महिला का नाम दीप्ति है और लाश उस के पति प्रमोद अनंत पाटनकर की है.

थानाप्रभारी रामभाल सिंह ने लाश का निरीक्षण किया तो मृतक के गले पर निशान मिला, जिसे देख कर लग रहा था कि मृतक की हत्या गला घोंट कर की गई है. खुली अलमारी और पूरे फ्लैट में फैले सामान से स्पष्ट था कि वारदात शायद लूटपाट के इरादे से की गई होगी.

पुलिस ने जब प्रमोद पाटनकर की पत्नी दीप्ति से पूछताछ की तो उस ने बताया कि पति के आने के पहले वह अपनी बेटी से मिलने मायके चली गई थी. रात 11 बजे जब वह घर लौटी तो कई बार डोरबैल बजाने और आवाज देने के बाद भी फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला, तब उस ने अपने पास मौजूद डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला. वह फ्लैट में गई तो उस की चीख निकल गई.

थानाप्रभारी रामभाल सिंह मौके की जांच कर ही रहे थे कि सूचना पा कर के थाणे के एसपी (ग्रामीण) शिवाजी राठौड़, डीएसपी शांताराम वलवी भी वहां पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

पहले फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. फिर पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. काररवाई निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भेज दी. इस के साथ ही थाना नवघर में कत्ल की वारदात दर्ज कर ली गई.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में रखी टेबल पर चाय के 2 खाली कप रखे मिले. जिन में से एक पर लिपस्टिक का निशान था. इस के अलावा बैड की चादर सिकुड़ी हुई थी और तकिए के नीचे कंडोम का पैकेट रखा था.

यह सब देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि वहां आई महिला प्रमोद की जानपहचान की रही होगी. उसी ने मौका देख कर इस घटना को अंजाम दिया होगा. वह कौन थी, यह जांच का विषय था.

थानाप्रभारी ने थाने लौट कर इस घटना पर गंभीरता से विचारविमर्श करने के बाद जांच की जिम्मेदारी असिस्टेंट इंसपेक्टर साहेब पोटे को सौंप दी. दीप्ति का बयान दर्ज करने के बाद जांच अधिकारी पोटे केस की जांच में जुट गए. सब से पहले वह यह जानना चाहते थे कि फ्लैट में आने वाली वह महिला कौन थी, जिस के होंठों की लिपस्टिक चाय के कप पर लगी थी. वह महिला मृतक की जेब से नकदी व मोबाइल फोन भी ले गई थी.

इसी बीच पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, रिपोर्ट में बताया गया कि प्रमोद पाटनकर की चाय में काफी मात्रा में नींद की गोलियां मिलाई गई थीं, इस के बाद उन की गला घोंट कर हत्या कर दी गई. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को इस मामले में किसी गहरे षडयंत्र की बू आने लगी.

जांच अधिकारी ने एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद दीप्ति पाटनकर से विस्तृत पूछताछ की तो उन्हें दीप्ति के बयानों पर शक हो गया.

लेकिन मामला एक प्रतिष्ठित परिवार से संबंधित होने की वजह से उन्होंने बिना सबूत के हाथ डालना ठीक नहीं समझा. वह दीप्ति की कुंडली खंगालने में जुट गए. इस मामले में उन्हें कामयाबी मिल गई.

43 वर्षीय प्रमोद पाटनकर महाराष्ट्र के जिला रायगढ़ के रहने वाले थे. अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद वह रोजीरोटी की तलाश में मुंबई आ गए थे. मुंबई में छोटामोटा काम करते हुए वह सरकारी नौकरी पाने की तैयारी करते रहे. कुछ दिनों बाद उन्हें भारतीय जीवन बीमा निगम में एक अधिकारी के पद पर नौकरी मिल गई.

नौकरी लगने के बाद प्रमोद के घर वालों ने उन का रिश्ता मीरा रोड के रहने वाले भानुदास भावेकर की बेटी दीप्ति भावेकर से तय कर दिया.

दीप्ति के घर वालों ने इस के पहले उस के लिए अपने संबंधी के लड़के समाधान पाषाणकर को देख रखा था. दीप्ति को भी समाधान बहुत पसंद था. दोनों साथ में मिलतेजुलते भी थे. लेकिन दीप्ति के परिवार वालों को समाधान पाषाणकर की तुलना में प्रमोद पाटनकर सही लगा. इसलिए उन्होंने  दीप्ति की शादी प्रमोद के साथ कर दी.

परिवार और समाज के दबाव में दीप्ति को भी समाधान को भूलने के लिए मजबूर होना पड़ा. दीप्ति भावेकर मुंबई कालेज से एमबीए करने के बाद गोरेगांव के एक सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी करती थी, जहां उसे 25 हजार रुपए सैलरी मिलती थी.

शादी के बाद प्रमोद मीरा भायंदर स्थित शिवदर्शन सोसायटी के फ्लैट में पत्नी के साथ रहने लगे. प्रमोद और दीप्ति की अच्छीखासी सैलरी थी. उन्हें किसी भी तरह का आर्थिक अभाव नहीं था.

पतिपत्नी दोनों सुबह काम पर तो एक साथ निकलते, लेकिन लौटते अलगअलग समय पर थे. दीप्ति दोपहर के बाद घर आ जाया करती थी, जबकि प्रमोद शाम को. जिस प्यार और हंसीखुशी से उन दोनों का दांपत्य जीवन चल रहा था, वह आगे बढ़ते समय को मंजूर नहीं था.

सन 2014 में समाधान पाषाणकर मुंबई की एक कंपनी के काम से मुंबई आया तो ठहरने के मकसद से दीप्ति के फ्लैट पर पहुंच गया. दीप्ति ने उस का दिल खोल कर स्वागत किया. समाधान दीप्ति की बुआ का बेटा था. दीप्ति उस के साथ बीते दिनों की जिन यादों को भुला चुकी थी, वह फिर ताजा हो गई थीं.

35 वर्षीय समाधान पाषाणकर पुणे में रहता था और वहां की एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी करता था. उस की शादी हो चुकी थी. उस की पत्नी बैंक में नौकरी करती थी. उस के 2 बच्चे भी थे.

जब तक समाधान प्रमोद पाटनकर और दीप्ति के यहां रहा, तब तक दोनों ने मिल कर समाधान का बहुत ध्यान रखा, जिस में दीप्ति की भूमिका कुछ अधिक थी.

4-5 दिन रहने के बाद जब वह वापस पुणे जाने लगा तो उस ने प्रमोद पाटनकर और दीप्ति का आभार प्रकट किया. प्रमोद पाटनकर और दीप्ति ने औपचारिकता के नाते उस के आभार का उत्तर देते हुए कहा कि घर उस का ही है, कभी भी आ जा सकता है.

अंधे को और क्या चाहिए, सिर्फ 2 आंखें. प्रमोद पाटनकर और दीप्ति का मन टटोलने के बाद समाधान को मानो उस की मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. 4-5 दिनों तक दीप्ति के परिवार के साथ रह कर समाधान के दिल में दीप्ति का तनमन पाने के लिए एक अजीब सी चाह बन गई थी.

वह उस का सामीप्य पाने के लिए अकसर किसी न किसी बहाने मुंबई आता और प्रमोद पाटनकर के घर को अपना आशियाना बना कर दीप्ति के ज्यादा से ज्यादा पास रहने की कोशिश करता.

दीप्ति भी कोई बच्ची नहीं थी, वह समाधान के हावभाव की भाषा अच्छी तरह समझती थी. वैसे भी प्रमोद से पहले दीप्ति की शादी उसी से होने वाली थी. समाधान अकसर हंसीमजाक करते हुए ठंडी आहें भर कर कहता, ‘‘दीप्ति, तुम्हारा घर मुझे अपने घर जैसा लगता है. मेरे आने पर तुम अपने काम से छुट्टी ले कर मेरा कितना ख्याल रखती हो.’’

‘‘यह भी तो तुम्हारा ही घर है.’’ दीप्ति ने उस के प्रश्न का उत्तर उसी के शब्दों में दिया.

‘‘यह घर मेरा कहां है, यह तो तुम्हारे पति का है. लेकिन तुम मुझे अपनी जैसी लगती हो, इसलिए मैं यहां आ जाता हूं.’’ समाधान ने कहा तो दीप्ति के गालों पर लाली उतर आई. लेकिन वह बोली कुछ नहीं.

उस की इस खामोशी को समाधान ने ही तोड़ा, ‘‘दीप्ति, बताओ तुम मुझे क्या समझती हो. वक्त साथ देता तो आज तुम मेरी पत्नी होतीं, लेकिन तुम मेरे नसीब में नहीं थीं.’’

‘‘अब बोलने से क्या फायदा,जो होना था हो गया. पत्नी तो अच्छी है न?’’ दीप्ति ने कहा.

‘‘हां, लेकिन तुम्हारी जैसी नहीं है,’’ ठंडी आह भरते हुए समाधान बोला, ‘‘दीप्ति एक बात कहूं, अगर तुम मानो तो. अभी भी वक्त है. हम दोनों एक हो सकते हैं.’’

समाधान ने दीप्ति को अपनी बातों से कुछ इस तरह प्रभावित किया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और 10-12 साल के अपने सुखी दांपत्य को दांव पर लगा दिया. वह पति के प्रति वफादारी भूल कर समाधान की बाहों में आ गिरी. एक बार जब मर्यादा की कडि़यां टूटीं तो फिर टूटती ही चली गईं.

समय अपनी गति से भाग रहा था. दीप्ति और समाधान के बीच बने अवैध संबंध 4 साल बीत जाने के बाद भी प्रमोद पाटनकर की नजरों से छिपे रहे. इस बीच दीप्ति एक बेटी की मां बन गई, जिस का नामकरण प्रमोद पाटनकर ने बड़ी धूमधाम से किया था.

अंतत: एक दिन दीप्ति और समाधान के रिश्ते की सच्चाई प्रमोद के सामने आ गई. दरअसल, एक दिन प्रमोद जब दीप्ति से मिलने उस के स्कूल गया तो दीप्ति स्कूल में नहीं मिली. पता चला कि उस दिन वह स्कूल आई ही नहीं थी.

शाम को प्रमोद जब घर पहुंचा तो उस ने दीप्ति से स्कूल से अनुपस्थित होने के बारे में पूछा. दीप्ति तबीयत खराब होने का बहाना बना कर बात को टाल गई. इस के बाद वह सावधान हो गई और उस ने समाधान को भी सतर्क कर दिया.

समाधान के पास पैसों की कमी नहीं थी. अब वह जब भी दीप्ति से मिलने मुंबई आता तो उस के घर न जा कर किसी होटल में ठहरता था. मौका देख दीप्ति किसी पार्टी में जाने या फिर सहेलियों से मिलने के बहाने समाधान के पास पहुंच जाती थी. लेकिन यह खेल भी ज्यादा दिनों तक नहीं चला.

घटना से लगभग एक माह पहले दीप्ति का मोबाइल प्रमोद के हाथ लग गया. प्रमोद ने उस के फोन का वाट्सऐप चैक किया तो उस में उसे समाधान के साथ हुई चैटिंग मिल गई. उस दिन भी समाधान ने दीप्ति को चर्चगेट, मुंबई के एक होटल में बुलाया था.

बनसंवर कर दीप्ति जब घर से बाहर गई और शाम तक नहीं लौटी तो प्रमोद ने उसे आड़े हाथों लिया. प्रमोद ने उस के मैसेज और उस का पीछा करने की बातें उस से कहीं तो दीप्ति के होश उड़ गए. अब वह झूठ नहीं बोल सकती थी. स्थिति को संभालने के लिए दीप्ति ने पति से माफी मांगी और दोबारा समाधान से न मिलने की कसम खाई

प्रमोद ने उसे माफ भी कर दिया. लेकिन घनिष्ठ संबंधों में ऐसे कसमेवादों का कोई महत्त्व नहीं होता. दीप्ति को भी प्रमोद की  अपेक्षा समाधान ज्यादा पसंद था. इसलिए वह पति को अपने प्यार के रास्ते का कांटा समझने लगी. इस कांटे को वह हमेशा के लिए खत्म करना चाहती थी. इस बारे में उस ने समाधान से बात की तो वह भी तैयार हो गया. अपनी योजना के अनुसार, घटना के एक सप्ताह पहले समाधान ने दीप्ति को 2 बार नींद की गोलियां ला कर दीं.

दीप्ति ने प्रमोद पाटनकर को 2 बार 10-10 गोलियां चाय में मिला कर दीं. लेकिन प्रमोद पर उन का असर नहीं हुआ. तीसरी बार घटना के एक दिन पहले समाधान ने नींद की 20 गोलियां दीप्ति को ला कर दीं और सभी गोलियां एक साथ देने के लिए कह दिया.

शाम साढ़े 7 बजे औफिस से लौटने के बाद दीप्ति ने पति प्रमोद पाटनकर के साथ वैसा ही किया, जैसा कि समाधान ने उसे कहा था. उस ने नींद की 20 गोलियां चाय में घोल कर पति को दे दीं.

आधापौना घंटा बाद जब प्रमोद पाटनकर पर नींद की गोलियों का पूरा असर हो गया तो दीप्ति ने समाधान पाषाणकर को फोन कर अपने घर बुला लिया.

समाधान आधे घंटे में दीप्ति के फ्लैट पर पहुंच गया. फिर दोनों ने मिल कर बैड पर गहरी नींद में पडे़ प्रमोद पाटनकर को मौत के घाट उतार दिया. दीप्ति ने कस कर पति के पैर पकड़े और समाधान ने उस के गले में रस्सी डाल कर कस दी.

प्रमोद की हत्या के बाद दोनों ने शव को बैड से उठा कर फर्श पर डाला और उसी बैड पर तनमन की प्यास बुझाई. इस के बाद दीप्ति अपने मायके चली गई थी, जबकि समाधान पुलिस की जांच को गुमराह करने के प्रयास में जुट गया था. उस ने अपने होंठों पर लिपस्टिक लगा कर मेज पर रखे चाय के एक खाली कप पर होंठ से लिपस्टिक का निशान बना दिया था.

फिर अलमारी का सामान निकाल कर उस ने पूरे फ्लैट में फैला कर प्रमोद पाटनकर के बिस्तर के नीचे कंडोम का पैकेट रख दिया. इस के बाद वह उस का मोबाइल फोन व जेब में रखे 3 हजार रुपए निकाल कर ले गया.

समाधान पाषाणकर के जाने के कुछ समय बाद दीप्ति पाटनकर अपने फ्लैट पर लौट आई और चीखनेचिल्लाने लगी.

दीप्ति से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने समाधान पाषाणकर को भी गोरेगांव के एक लौज से गिरफ्तार कर लिया.

समाधान पाषाणकर और दीप्ति पाटनकर से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने थाना नवघर में दोनों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201, 328 और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के दोनों को थाणे की तलौजा जेल भेज दिया. मामले की आगे की जांच असिस्टेंट इंसपेक्टर साहेब पोटे कर रहे थे.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

दो पाटों के बीच : जितेंद्र ने दी प्यार की कुर्बानी

जितेंद्र सरिसाम और राधा कहार पैसों से भले ही गरीब थे, लेकिन सैक्स के मामले में किसी रईस से कम नहीं थे. भोपाल के पौश इलाके बागमुगालिया की रिहायशी कालोनी डिवाइन सिटी के एक 2 मंजिला बंगले में रहने वाले 26 वर्षीय जितेंद्र को अकसर अमीरों जैसी फीलिंग आती थी. भले ही वह जानतासमझता था कि इस महंगे डुप्लेक्स मकान में वह कुछ दिनों का मेहमान है, इस के बाद तो फिर किसी झोपड़े में आशियाना बनाना है.

दरअसल, जितेंद्र पेशे से मजदूर था. चूंकि रहने का कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए ठेकेदार ने उसे इस शानदार मकान में रहने की इजाजत दे दी थी, जो अभी बिका नहीं था. यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि जहांजहां भी कालोनियां बनती हैं, वहांवहां ठेकेदार या कंस्ट्रक्शन कंपनी मजदूरों को बने अधबने मकानों में रहने को कह देती हैं. इस से मकान और सामान की देखभाल भी होती रहती है और मजदूरों के वक्तबेवक्त भागने का डर भी नहीं रहता.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले छिंदवाड़ा की तहसील जुन्नारदेव के गांव गुरोकला का रहने वाला जितेंद्र देखने में हैंडसम लगता था और उन लाखों कम पढ़ेलिखे नौजवानों में से एक था, जो काम और रोजगार की तलाश में शहर चले आते हैं.

इन नौजवानों के बाजुओं में दम, दिलों में जोश और आंखों में सपने रहते हैं कि खूब मेहनत कर वे ढेर सा पैसा कमा कर रईसों सी जिंदगी जिएंगे. यह अलग बात है कि अपनी ही हरकतों और व्यसनों की वजह से वे कभी रईस नहीं बन पाते.

जितेंद्र भोपाल आया तो उस के सामने भी पहली समस्या काम और ठिकाने की थी. जानपहचान के दम पर भागदौड़ की तो न केवल मजदूरी का काम मिल गया बल्कि ठेकेदार ने रहने के लिए एक अधबना मकान भी दे दिया.

यह कमरा जितेंद्र के लिए जन्नत से कम साबित नहीं हुआ. आने के 4 दिन बाद ही उसे पता चला कि बगल वाले कमरे में एक अकेली औरत रहती है, जिस का नाम राधा है. बातचीत हुई और पहचान बढ़ी तो उसे यह जान कर खुशी हुई कि राधा भी उस की तरह न केवल अकेली है, बल्कि उस के ही जिले यानी छिंदवाड़ा की रहने वाली है.

35 वर्षीय राधा को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 13 साल के एक बेटे की मां भी है. गठीले कसे बदन की सांवली छरहरी राधा जैसी पड़ोसन पा कर जितेंद्र खुद को धन्य समझने लगा. जल्द ही दोनों में दोस्ती हो गई.

इस इलाके के लोग जब बाहर निकलते हैं तो उन की बातें अपने इलाके के इदगिर्द घूमती रहती हैं. जितेंद्र को राधा ने बता दिया कि उस की शादी कोई 15 साल पहले मदन कहार से हुई थी, जिस ने उसे छोड़ दिया है.

बेटा उस के पिता यानी अपने नाना के घर रहता है और जिंदगी गुजारने की गरज से वह भी उस की तरह मजदूरी कर रही है. कुल मिला कर वह इस दुनिया में अकेली है.

ऐसी ही बातों के दौरान एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘अकेली कहां हो, मैं जो हूं तुम्हारा.’’

इतना सुनने के बाद राधा बहुत खुश हुई और उसी रात दोनों एकदूसरे के हो भी गए. आग और घी पास रखे जाएं तो नतीजा क्या होता है, यह जितेंद्र और राधा की हालत देख कर समझा जा सकता था. जितेंद्र ने पहली बार और राधा ने मुद्दत बाद देहसुख का आनंद लिया तो दोनों एकदूसरे की उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे.

दोनों दिन भर मजदूरी करते थे और शाम के बाद रात को एकदूसरे में समा जाते थे. धीरेधीरे दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे चूल्हाचौका एक हो गया, गृहस्थी के लिए आने वाला राशनपानी एक हो गया, खर्चे एक हो गए. फिर देखते ही देखते बिस्तर भी एक हो गया. यानी दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. दूसरे नए मजदूर साथी इन्हें मियांबीवी ही समझते थे, लेकिन पुराने जानते थे कि हकीकत क्या है.

प्यार और शरीर सुख में डूबतेउतराते जितेंद्र और राधा को दुनिया जमाने की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कहतासोचता है. वे तो अपनी दुनिया में मस्त थे, जहां तनहाई थी, सुकून था और प्यार के अलावा रोज तरहतरह से किया जाने वाला सैक्स था,जो मजे को दो गुना, चार गुना कर देता था.

देखा जाए तो दोनों वाकई स्वर्ग की सी जिंदगी जी रहे थे, जिस में कोई बाहरी दखल नहीं था. न तो कोई कुछ पूछने वाला था और न ही कोई रोकनेटोकने वाला. इन्हें और इन की जिंदगी देख कर कोई भी रश्क कर सकता था कि जिंदगी हो तो ऐसी, प्यार और शरीर सुख में डूबी हुई जिस में गरीबी या अभाव आड़े नहीं आते.

राधा को एक गबरू जवान का सहारा मिल गया था तो जितेंद्र को ऐसी पड़ोसन मिल गई थी, जो रोज उसे तरहतरह से कुछ इस तरह प्यार देती थी कि वह निहाल हो उठता था. और कभी थकता या ऊबता नहीं था. एक मर्द और औरत को भरपेट खाने के बाद इस से ज्यादा कुछ और ख्वाहिश भी नहीं रह जाती.

राधा पर भले ही कोई बंदिश नहीं थी, लेकिन जितेंद्र पर थी. इस साल की शुरुआत से ही उस के घर वाले उस पर शादी कर लेने का दबाव बना रहे थे, जिसे शुरू में तो वह तरहतरह के बहाने बना कर टरकाता रहा, लेकिन घर वालों खासतौर से गांव में रह रहे पिता भारत सिंह को उस की दलीलों और बहानों से कोई लेनादेना नहीं था.

उन की नजर में बेटा ठीकठाक कमाने लगा था, इसलिए अब उसे शादी के बंधन में बांधना जरूरी हो चला था, जिस से वह घरगृहस्थी बसाए और बहके नहीं.

लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि बेटा 4 साल पहले भोपाल आने के तुरंत बाद ही बहक चुका था. घर वालों का दबाव जितेंद्र पर बढ़ा तो उस ने शादी के बाबत हां कर दी.

लेकिन उस ने जब यह बात राधा को बताई तो वह बिफर उठी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह उसे किसी दूसरी औरत, चाहे वह उस की ब्याहता ही क्यों न हो, से बंटते नहीं देख सकती.

राधा की बात सुन कर जितेंद्र सकपका उठा. घर वालों को वह शादी के लिए न कहता तो वे भोपाल आ टपकते और राधा उस की मजबूरी को समझने के लिए तैयार नहीं थी.

अब एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई थी. धर्मसंकट में पड़े जितेंद्र ने राधा को तरहतरह से समझाया. घर वालों की दुहाई दी और यह वादा भी कर डाला कि वह होने वाली पत्नी रिनिता को भोपाल नहीं लाएगा, बल्कि बहाने बना कर उसे गांव में ही रहने देगा. अपने आशिक की इस मजबूरी से समझौता करते हुए राधा को आखिर तैयार होना ही पड़ा.

मई के महीने में जितेंद्र अपने गांव गुरीकला गया और सलैया गांव की रिनिता से उस की शादी हो गई. रिनिता काफी खूबसूरत भी थी और मासूम और भोली भी, जो शादी तय होने के बाद से ही सपने देख रही थी कि शादी के बाद वह पति के साथ भोपाल जा कर रहेगी. जब वह काम से लौटेगा तो उस के लिए अच्छाअच्छा खाना बना कर खिलाएगी और दोनों भोपाल घूमेंगेफिरेंगे.

इधर राधा चिलचिलाती गरमी के अलावा ईर्ष्या की आग में भी जल रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि नईनवेली पत्नी के चक्कर में फंस कर जितेंद्र उसे भूल जाए और 4 साल सुख भोगने के बाद वह फिर अकेली रह जाए.

रहरह कर उसे दिख रहा था कि जितेंद्र रिनिता की मांग में सिंदूर भर रहा है, उसे मंगलसूत्र पहना रहा है और उस के साथ सात फेरे लेने के बाद सुहागरात मना रहा है.

वह जलभुन कर खाक हुई जा रही थी. राधा के पास सांत्वना देने वाली एकलौती बात यह और थी कि जितेंद्र पत्नी को साथ ले क र नहीं आएगा और फिर दोनों पहले की तरह मौजमस्ती में डूब जाएंगे.

ऐसा हुआ भी, जितेंद्र शादी के कुछ दिनों बाद जब भोपाल आया तो उस समय वह अकेला था. यह देख राधा खुशी से फूली न समाई और उस की बांहों में झूल गई.

दोनों फिर अपनी दुनिया में मशगूल हो गए. शादी के बाद रिनिता के साथ सैक्स में जितेंद्र को वह मजा कतई नहीं आया था, जो भोपाल में राधा के साथ आता था. रिनिता शर्मीली थी और सैक्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी, जबकि जितेंद्र पक्का खिलाड़ी था, जिसे नाजनखरे, मनाना और देरी बिलकुल पसंद नहीं आती थी.

बहाने बना कर वह रिनिता को घर छोड़ आया. जब उस ने रिनिता की कोई खोजखबर नहीं ली तो पिता भारत को चिंता हुई. लिहाजा 3 महीने इंतजार करने के बाद उन्होंने रिनिता को भोपाल भेज दिया.

अपने पिता से डरने वाला और उन का लिहाज करने वाला जितेंद्र रिनिता को भोपाल आया देख सकते में आ गया. जबकि राधा के तो मानो तनबदन में आग लग गई. लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था, इसलिए वह कसमसा कर रह गई.

कुछ दिन तो दोनों सब्र का दामन थामे एकदूसरे से बेमन से दूर रहे, लेकिन अगस्त के महीने की बारिश राधा के तनमन को कुछ इस तरह सुलगा रही थी कि उस से जितेंद्र की दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी.

इधर रिनिता खुश थी. भीड़भाड़ वाले शहर की रौनक, मौसम और अपना घर इस नईनवेली को उत्साह और रोमांस से भर रहे थे लेकिन पति की बेरुखी की वजह से वह समझ नहीं पा रही थी. राधा को उस ने दूर से देखा भर था, जिस ने पड़ोसन होने का शिष्टाचार भी नहीं निभाया था. इसे वह शहर का दस्तूर मान कर चुप रही और रोज सजसंवर कर पति का दिल जीतने की कोशिश करती रही.

 

2 सितंबर को वह उस वक्त सन्न रह गई, जब उस ने दिनदहाड़े पति को राधा के साथ एकदम निर्वस्त्र हालत में रंगरलियां मनाते देख लिया. रिनिता पर बिजली सी गिरी. पति और पड़ोसन की बेशरमी और बेहयाई के दृश्य देख उस का सब कुछ लुट चुका था. पति की हकीकत उस के सामने थी कि क्यों वह पहले ही उस से खिंचाखिंचा रहता था.

जितेंद्र राधा के साथ रासलीला मना कर वापस आया तो भरी बैठी रिनिता ने उस से सवालजवाब करने के साथसाथ उस के नाजायज संबंधों पर पर भी सख्त ऐतराज जताया. पहले तो जितेंद्र ने सफाई दे कर उसे तरहतरह के बहाने और दलीलें दे कर बहलाने फुसलाने की कोशिश की, लेकिन कुछ देर पहले ही रिनिता ने जो देखा था, उस से कोई भी पत्नी समझौता नहीं कर सकती.

लिहाजा वह पति पर भड़क गई. बात बढ़ते देख रिनिता ने उसे धमकी दे दी कि सुबह होते ही वह ससुर को उस की सारी करतूत बता देगी.

इस पर जितेंद्र की रूह कांप उठी. उसे मालूम था कि सख्त और उसूलों के धनी उस के पिता को यह सब पता चलेगा तो वह उसे यहीं से छिंदवाड़ा तक घसीटते हुए ले जाएंगे और उस का जो हाल करेंगे, वह नाकाबिले बरदाश्त होगा.

पतिपत्नी में तूतू मैंमैं चल ही रही थी कि उसी समय राधा भी वहां आ पहुंची और जितेंद्र के पक्ष में बोलने लगी. राधा और रिनिता दोनों खूंखार बिल्लियों की तरह लड़ते हुए एकदूसरे को दोषी ठहराने लगीं.

इसी दौरान जितेंद्र ने फैसला ले लिया कि रिनिता उसे वह सुख नहीं दे सकती जोकि राधा देती है. लिहाजा उस ने उसी समय दोनों में से राधा को चुनने का फैसला ले लिया.

इस के बाद जितेंद्र ने पत्नी रिनिता की गरदन दबोच ली. राधा भी उस का साथ देने आ गई और दोनों ने उस का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटा कर रिनिता वहीं लुढ़क गई.

हत्या तो कर दी, लेकिन इस के बाद जितेंद्र और राधा दोनों घबरा उठे कि अब लाश का क्या करें, लेकिन कुछ तो करना ही था. उन्होंने उस की लाश बोरे में भर कर एक नाले में फेंक दी.

फिर 5 सितंबर को खुद को हैरानपरेशान दिखाता हुआ जितेंद्र बागमुगालिया थाने पहुंचा और अपनी पत्नी रिनिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई.

टीआई शैलेंद्र शर्मा को उस ने बताया कि उस की 22 वर्षीय पत्नी रिनिता 3 दिनों से गायब है, जिस की वह हर मुमकिन जगह तलाश कर चुका है लेकिन वह नहीं मिली. अनुभवी शैलेंद्र शर्मा ने जब सारी जानकारी ली तो उन्हें लगा कि आमतौर पर नवविवाहितों के नैतिकअनैतिक संबंध हादसे की वजह होते हैं.

उन्होंने जब और गहराई से जितेंद्र से सवालजवाब किए तो यह जान कर हैरान रह गए कि रिनिता तो भोपाल में एकदम नई थी. इसी पूछताछ में राधा का और जिक्र आया तो उन्हें कहानी कुछकुछ समझ आने लगी.

रिपोर्ट दर्ज कर टीआई ने जितेंद्र को जाने दिया, लेकन उस के पीछे अपने मुलाजिम लगा दिए, जो जल्द ही काम की यह जानकारी खोद कर ले आए कि जितेंद्र और राधा के कई सालों से नाजायज संबंध हैं और दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं.

मामला जब भोपाल (साउथ) एसपी संपत उपाध्याय के पास पहुंचा तो उन्होंने एएसपी संजय साहू और एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी को इस मामले की छानबीन के लिए लगा दिया.

पुलिस वालों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. 6 दिसंबर को इसी इलाके की एक और कालोनी रुचि लाइफस्केप के चौकीदार गोवर्धन साहू ने पुलिस को इत्तला दी कि कालोनी के पास बहने वाले नाले में एक बोरे में लाश तैर रही है.

लाश बरामद करने के लिए पुलिस टीम नाले के पास पहुंची तो लाश के बोरे के बाहर झांकते पैर साफ बता रहे थे कि वह किसी युवती की है. पुलिस बोरा खोल पाती, इस के पहले ही जितेंद्र वहां पहुंच गया और बिना लाश देखे ही कहने लगा कि यह उस की पत्नी रिनिता की लाश है.

बात अजीब थी लेकिन एक तरह से खुद जितेंद्र ने जल्दबाजी में अपने गुनाह की पोल खोल दी थी. फिर कहनेकरने को कुछ नहीं बचा था. अनिल त्रिपाठी ने जितेंद्र को बैठा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो उस ने सब कुछ उगल दिया, जिस की बिनाह पर राधा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

दरअसल, सितंबर के पहले सप्ताह में भोपाल में जोरदार बारिश हो रही थी. हत्या के बाद जितेंद्र और राधा ने रिनिता की लाश को बोरे में बंद कर यह सोचते हुए घर से कुछ ही दूरी पर नाले में फेंक दी थी कि वह पानी में बह जाएगी और कुछ दिनों में सड़गल जाएगी. फिर किसी को हवा भी नहीं लगेगी कि रिनिता कहां गई. बाद में जितेंद्र घर वालों के सामने उस के गायब होने का कोई भी बहाना बना देगा. इस के बाद दोनों पहले जैसी ही जिंदगी जिएंगे.

 

पर लाश नहीं बही तो दोनों को चिंता हुई. जितेंद्र जिस ने 3 दिन बाद पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई थी, वह दरअसल बोरे की निगरानी कर रहा था कि बोरा वहां से बहे तो पिंड छूटे. 6 दिसंबर को जब चौकीदार ने पुलिस को नाले में लाश पड़ी होने की खबर दी तो वह पुलिस टीम के पीछेपीछे ही पहुंच गया और बोरा खुलने से पहले लाश की पहचान भी कर ली.

अब राधा और जितेंद्र जेल में बैठे अपने मौजमस्ती के दिन याद करते कलप रहे हैं. दोनों को सजा होनी तय है, लेकिन बड़ी गलती जितेंद्र की है, जिस ने अधेड़ प्रेमिका की हवस के लिए बेगुनाह बीवी को ठिकाने लगाना ज्यादा बेहतर समझा.

नाजायज संबंधों का ऐसा अंजाम नई बात नहीं है, लेकिन अगर जितेंद्र घर वालों से बगावत कर के और उन की परवाह न करते हुए राधा से ही शादी कर लेता तो दोनों शायद हत्या के गुनाह से भी बच जाते.

लगता नहीं कि दोनों यह सब सोच रहे होंगे, बल्कि वे सोच रहे होंगे कि रिनिता की लाश बह कर सड़गल जाती तो रास्ते का कांटा निकल जाता.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

दूल्हे के हत्यारे : प्रेम के चढ़े नशे ने की हत्या

वह 12-13 मई, 2019 की रात थी. समय रात के डेढ़ बजे. गांवों में यह समय ऐसा होता है, जब लोग गहरी नींद सोए होते हैं. लेकिन उस रात गांव तिंदौली में काफी लोग जाग रहे थे. वजह थी, तिंदौली गांव के निवासी सीताराम कोरी की बेटी पिंकी और गांव महुलहरा के रहने वाले रामदुलार के बेटे सुरेंद्र की शादी. बीती शाम को ही सुरेंद्र की बारात तिंदौली आई थी, जिस का धूमधाम से स्वागत हुआ था.

शादी की रात दूल्हे दुलहन की आखों से नींद उड़ जाती है. दिलों में मिलन की चाह होती है, भविष्य के सपने बुने जाते हैं. लेकिन पिंकी और सुरेंद्र के पास उस वक्त सोचने, कल्पना करने या रोमांटिक होने का समय नहीं था. दोनों शादी की रस्मों में व्यस्त थे.

ज्यादातर रस्में हो चुकी थीं. उस वक्त लावा मांगने की रस्म की तैयारी चल रही थी. तभी मंडप के पास बैठे दूल्हे सुरेंद्र को लघुशंका आई तो उस ने पास बैठे एक दोस्त के कान में कुछ कहा और उस के साथ पास के खेत में चला गया. वह खेत गांव के भोला सिंह का था. उस का साथी खेत के बाहर खड़ा रहा.

सुरेंद्र ने खेत में 3 लोगों को बैठे देखा. लेकिन वह यह सोच कर आगे बढ़ गया कि घराती होंगे. उसी समय उन तीनों ने सुरेंद्र को दबोच लिया और एक युवक उस के पेट पर कैंची से वार करने लगा. दूल्हे सुरेंद्र के साथ आए उस के दोस्त ने उसे बचाने की कोशिश की तो शेष 2 युवकों ने उसे पकड़ लिया. उन्होंने उस का मुंह दबा लिया ताकि वह चीख न सके. सुरेंद्र को मरणासन्न स्थिति में पहुंचा कर तीनों लोग भाग गए. उन के जाने पर सुरेंद्र के दोस्त ने शोर मचाया.

शोर सुन कर लोग खेतों की ओर दौड़े. उन्होंने सुरेंद्र की हालत देखी तो सन्न रह गए. आननफानन में रक्तरंजित सुरेंद्र को खंडासा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे देख कर मृत घोषित कर दिया. सुरेंद्र के पिता रामदुलार कोरी बेटे की लाश से लिपट कर रोने लगे.

वह बेटे को ब्याह कर बहू ले जाने के लिए आए थे, लेकिन अब उन्हें बेटे की रक्तरंजित लाश घर ले जानी थी. उस समय तक यह बात उन के गांव तिंदौली पहुंच गई थी और वहां गांव भर में मातम का माहौल छा गया था. बहू आने की आस लगाए बैठीं औरतों के चीत्कार से गांव के कणकण में उदासी छा गई थी.

उधर तिंदौली के ग्रामप्रधान कल्लू सिंह ने घटना की सूचना थाना कुमारगंज को दे दी थी. सूचना मिलते ही कुमारगंज के थानाध्यक्ष मनोज कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तिंदौली पहुंच गए. सूचना मिलने पर सीओ मिल्कीपुर रुचि गुप्ता, सीओ सदर वीरेंद्र विक्रम पुलिस टीमों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दरअसल, कत्ल दूल्हे का हुआ था वह भी ससुराल में. ऐसे में स्थिति बिगड़ने की आशंका थी.

गांवों में अच्छी हो या बुरी, बातें ढकीछिपी नहीं रहतीं. इस मामले में भी सुरेंद्र का कत्ल करने वाले तीनों युवकों के नाम उजागर हो गए. इन में एक कामाख्या उर्फ लड्डू था, दूसरा पिंटू पासी था और तीसरा संदीप पासी. तीनों तिंदौली के ही रहने वाले थे. पुलिस ने मृतक के पिता रामदुलार की तहरीर पर तीनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया. पुलिस की टीमें उन तीनों की तलाश में लग गईं.

पुलिस की ताबड़तोड़ दबिश शुरू हुई तो कामाख्या उर्फ लड्डू कोरी और पिंटू पासी को तिंदौली गांव से ही गिरफ्तार कर लिया गया. घटना के बाद दोनों गांव में ही छिप गए थे. इन का इरादा था कि माहौल ठंडा होने पर दोनों कहीं भाग जाएंगे.

जब इन दोनों को पुलिस ने पकड़ा तब दोनों के कपड़े खून से लथपथ थे. कामाख्या की निशानदेही पर बांस के एक कोठ से हत्या में इस्तेमाल कैंची बरामद कर ली गई.

पुलिस ने जब कामाख्या उर्फ लड्डू कोरी से हत्या का कारण जानना चाहा तो उस ने पिंकी से प्रेम करने की बात स्वीकारते हुए बताया कि वह उस से प्रेम करता था, जिस के लिए वह अपनी जान दे भी सकता था और किसी की जान ले भी सकता था.

जब उस से पूछा गया कि क्या पिंकी भी उस से प्यार करती थी तो वह कोई जवाब देने के बजाए सिर झुका कर खड़ा हो गया. सुरेंद्र की हत्या की वजह उस ने यह बताई कि वह अपने प्यार को किसी और के हाथों में जाते नहीं देख सकता था. जबकि इस संदर्भ में सीओ मिल्कीपुर रुचि गुप्ता का कहना था कि कामाख्या युवती से प्रेम करता था, जिस की शादी को ले कर वह नाराज था.

पूछताछ में पिंकी ने कामाख्या से प्रेमसंबंध न होने की बात कही. पिंकी के अनुसार, कामाख्या आतेजाते समय उसे घूर कर देखा करता था. कई बार उस ने उस का रास्ता भी रोकने की कोशिश की थी, लेकिन किसी को आते देख वह रास्ते से हट जाता था.

लोकलाज से पिंकी ने यह बात किसी को नहीं बताई थी. उस ने खुद भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे डर था कि इसे ले कर गांव में शोर मचा तो उस की और परिवार की बेवजह परेशानी बढ़ जाएगी और बदनामी भी होगी. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि जिस बात को वह हलके में ले रही है, वही आगे जा कर उस के लिए इतनी घातक साबित होगी.

दूल्हे सुरेंद्र की हत्या के मामले में फरार चल रहे नामजद तीसरे अभियुक्त संदीप पासी उर्फ बिट्टू को पुलिस ने 16 मई को इलाके के संगम ढाबा हलियापुर से गिरफ्तार कर लिया. वह कहीं भागने की फिराक में था.

पकड़े गए अभियुक्तों ने पुलिस को बताया कि उन की सुरेंद्र से कोई रंजिश नहीं थी. उन्होंने जो भी किया, वह कामाख्या के कहने पर किया. उन्हें इस बात का आभास भी नहीं था कि कामाख्या सुरेंद्र की कैंची से गोद कर हत्या करने की तैयार से आया है. पूछताछ के बाद तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में अयोध्या जेल भेज दिया गया.

बहरहाल हत्या के पीछे जो भी सच्चाई रही हो, अभियुक्तों की जो भी स्वीकारोक्ति रही हो, लेकिन हकीकत पर गौर करें तो इस एकतरफा प्यार में एक सीधेसादे युवक की मौत ने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

हैवानियत में 2 मासूमों की बलि

आरिफ से हिना को 2 बच्चे महक व अर्श हुए. आरिफ दकियानूसी विचारों वाला था. जबकि हिना खुले विचारों की थी. फलस्वरूप दोनों में अकसर मनमुटाव होने लगा. इसी के चलते सन 2015 में उन का तलाक हो गया था. तलाक के बाद हिना अपने बच्चों के साथ हरिद्वार के कस्बा मंगलौर के मोहल्ला पठानपुरा में मुशर्रत के मकान में किराए पर रहने लगी थी.

पति से अलग होने के बाद हिना के सामने अपना और बच्चों का खर्च चलाने की समस्या खड़ी हो गई. इस के लिए वह शादीविवाह में डांस करने लगी. डांस के लिए उसे बच्चों को अकेला छोड़ कर जाना होता था, इसलिए उस ने अपनी छोटी बहन आरजू को अपने पास बुला लिया, ताकि वह बच्चों का ध्यान रख सके.

पहली जनवरी, 2019 को हिना मुजफ्फरनगर गई थी. घर पर उस के दोनों बच्चों के अलावा छोटी बहन आरजू थी. उसी रात हिना जब वहां से घर लौटी तो दोनों बच्चे घर पर नहीं थे. उस ने आरजू से बच्चों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि शाम के समय अर्श और महक पास की दुकान से चौकलेट लेने गए थे, तब से वापस नहीं लौटे.

यह सुन कर हिना के होश उड़ गए. वह बोली, ‘‘वहां से कहां गए? तूने उन्हें ढूंढा नहीं?’’

‘‘मैं ने उन्हें बहुत ढूंढा, लेकिन उन का पता नहीं चला.’’ आरजू बोली.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इतनी रात को वह बच्चों को कहां ढूंढे, यह हिना की समझ में नहीं आ रहा था. जिस दुकान पर वे गए थे वह भी बंद हो चुकी थी. 4 साल के बेटे अर्श और 6 साल की बेटी महक की चिंता में हिना रात भर लिहाफ ओढ़े बैठी रही. बच्चों की चिंता में भूखप्यास तो दूर, उसे नींद तक नहीं आई. उस ने सारी रात जागते हुए गुजारी.

सुबह होते ही वह बच्चों की खोज में जुट गई. परचून की दुकान खुलने पर वह दुकान वाले के पास गई. दुकानदार ने बताया कि दोनों बच्चे उस की दुकान पर आए तो थे, लेकिन जब वह चौकलेट ले कर अपने घर लौट रहे थे तो उसी वक्त वहां 2 युवक आए थे. उन दोनों ने बच्चों को गोद में उठा लिया था. इस के बाद वे उन्हें एक सफेद रंग की कार में बैठा कर उन्हें ले गए. बच्चे उन के साथ इस तरह चले गए थे, मानो वे दोनों युवक उन के परिचित हों.

यह सुन कर हिना घबरा गई. उस ने सोचा कि ऐसा कौन परिचित हो सकता है, जो बच्चों को कार में बैठा कर ले गया. हिना को अपने तलाकशुदा पति आरिफ पर शक हुआ. फिर भी उस ने अपनी सभी रिश्तेदारियों में बच्चों को ढूंढा. पूरे दिन बच्चों को यहांवहां तलाशने के बाद भी जब उन का कहीं पता न चला तो हिना 2 जनवरी को ही शाम के समय हरिद्वार की कोतवाली मंगलौर पहुंच गई.

वहां मौजूद इंसपेक्टर गिरीश चंद्र शर्मा को उस ने बच्चों के गायब होने की बात बता दी.

‘‘कल शाम बच्चों का अपरहण हुआ था, वारदात को 24 घंटे होने वाले हैं. तुम ने और तुम्हारी बहन ने घटना की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी?’’ इंसपेक्टर शर्मा ने नाराजगी भी जाहिर की.

‘‘सर, हम पहले तो बच्चों को आसपास ढूंढते रहे, इस के बाद सुबह से हम बच्चों को अपने रिश्तेदारों के घर जा कर ढूंढते रहे. जब वे वहां भी नहीं मिले तब हम यहां आए हैं.’’ हिना बोली.

‘‘ठीक है, तुम बच्चों के फोटो दे दो ताकि उन्हें तलाश करने में आसानी हो.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने कहा तो हिना ने अपने पर्स से दोनों बच्चों के फोटो निकाल कर दे दिए. हिना की तहरीर पर इंसपेक्टर गिरीश चंद्र शर्मा ने 4 वर्षीय अर्श उर्फ चांद और 6 वर्षीय महक के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस की जानकारी उन्होंने सीओ (मंगलौर) मनोज कत्याल, एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा व एसएसपी जन्मेजय खंडूरी को भी दे दी.

एक ही परिवार के 2 बच्चों के अपहरण की सूचना पा कर सीओ मनोज कत्याल और एसपी देहात मणिकांत मिश्रा कुछ देर में ही मंगलौर कोतवाली पहुंच गए. एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने इंसपेक्टर शर्मा को बच्चों के अपहरण के मामले में तेजी से काररवाई करने के निर्देश दिए.

इस के बाद कोतवाल शर्मा ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालनी शुरू कर दीं. उस वक्त शाम के 6 बज चुके थे. उसी समय हिना 2 युवकों के साथ कोतवाली पहुंची. हिना ने अपने साथ आए एक युवक का परिचय कराते हुए बताया कि इन का नाम ताबीज है. यह पास के ही गांव बुक्कनपुर में रहते हैं और मेरे पारिवारिक मित्र हैं.

दूसरे युवक का नाम हिना ने आजम बताया. वह भी गांव बुक्कनपुर में रहता था. हिना ने बताया कि वे दोनों अकसर उस के घर पर आते रहते हैं. यदाकदा उस की मदद भी करते हैं. इस के बाद इंसपेक्टर शर्मा हिना, ताबीज व आजम को ले कर एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा व सीओ मनोज कत्याल के पास पहुंचे.

उन के हावभाव से एसपी (देहात) को उन पर शक हुआ तो उन्होंने दोनों युवकों से बच्चों के अपहरण की बाबत पूछताछ की. दोनों ने बताया कि जब बच्चे गायब हुए थे तो वे अपने घरों पर थे. उन्हें बच्चों के गायब होने की जानकारी हिना से मिली थी.

काफी पूछताछ के बाद भी उन से बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर मणिकांत मिश्रा ने तत्काल उस दुकानदार को थाने बुलवाया, जिस के सामने 2 युवकों द्वारा दोनों बच्चों को गोद में उठा कर कार में ले जाया गया था.

जब दुकानदार वहां आया तो उस ने थाने में आए ताबीज व आजम को देख कर कहा कि ये दोनों ही अर्श व महक को अपने साथ ले गए थे. दुकानदार के यह बताते ही ताबीज व आजम की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. ताबीज ने पुलिस को बताया कि वे दोनों बच्चों को अपने साथ ले तो गए थे, लेकिन बच्चों को चौकलेट दिलवा कर उन्हें उन के घर के पास छोड़ दिया था.

हिना ने भी दोनों अधिकारियों को बताया कि वे दोनों उस के परिवार के हितैषी हैं. ये उस के बच्चों का अपहरण नहीं कर सकते. इस के बाद जब एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने हिना की बहन आरजू से फोन पर बात की तो उस ने बताया कि बच्चे चौकलेट ले कर एक बार घर आए थे. उस के बाद ही वे लापता हुए थे.

इस से पुलिस को आरजू की बातों पर भी शक होने लगा, क्योंकि उस ने पहले बताया था कि बच्चे दुकान से चौकलेट ले कर घर लौटे ही नहीं थे. इस तरह ताबीज और आजम के साथ आरजू भी संदेह के दायरे में आ गई. अधिकारियों ने उस समय उन से और पूछताछ नहीं की, बल्कि उन सभी को घर भेज दिया. इस मामले की जांच एसआई चंद्रमोहन सिंह को सौंप दी गई.

एसआई चंद्रमोहन सिंह ने एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा को बताया कि जहां से हिना के बच्चों का अपहरण होना बताया जा रहा है, वह स्थान सीसीटीवी कैमरे की रेंज में नहीं है. चूंकि ताबीज व आजम शक के घेरे में थे, इसलिए उन्होंने एसआई चंद्रमोहन सिंह को निर्देश दिए कि उन दोनों से अलगअलग वीडियो रिकौर्डिंग के साथ पूछताछ करें.

3 जनवरी, 2019 को पुलिस ताबीज व आजम को थाने ले आई. दोनों ने पुलिस को बताया कि वे पहली जनवरी को अपनी कार से हिना के घर आए थे. हिना उस वक्त घर पर नहीं थी. घर पर हिना की बहन आरजू थी. अर्श व महक को चौकलेट दिलाने के बाद वे वापस अपने घर चले गए थे.

जिस तरह से दोनों युवकों ने बताया उस से पुलिस को ऐसा लगा वे दोनों रटीरटाई बात बोल रहे हों. इसलिए कोतवाल शर्मा ने एसआई चंद्रमोहन को निर्देश दिए कि वह ताबीज को अलग कमरे में ले जा कर पूछताछ करें. खुद कोतवाल आजम से पूछताछ करने लगे.

दूसरे कमरे में जाते ही ताबीज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने आजम के साथ हिना के दोनों बच्चों का अपहरण कर उन्हें गंगनहर में फेंक दिया था. आजम ने भी यह अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद बच्चों के अपरहण की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

मंगलौर में रहते हुए घर का खर्च चलाने के लिए हिना शादियों में डांस करने लगी थी. एक दिन हिना पिरान कलियर में एक निकाह में डांस कर रही थी. इस निकाह में गांव बुक्कनपुर निवासी ताबीज भी शामिल था. हिना को डांस करते देख ताबीज उस की अदाओं पर फिदा हो गया.

डांस समाप्त होने के बाद ताबीज ने हिना के डांस की तारीफ की. इस के बाद उस ने हिना से उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया. इस के बाद वह जबतब हिना से बात करने लगा. कुछ दिनों बाद ताबीज ने हिना के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. वह जब भी जाता, हिना व उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता था.

हिना से दोस्ती के बाद ताबीज ने उस के साथ निकाह करने के सपने भी देखने शुरू कर दिए. ताबीज के परिजन भी उस से हिना का निकाह कराने को तैयार थे लेकिन वह हिना के पहले शौहर के बच्चों को नहीं अपनाना चाहते थे.

ताबीज अच्छी तरह जानता था कि अगर उसे हिना से निकाह करना है तो हिना के बच्चों को रास्ते से हटाना होगा. इस बारे में उस ने हिना की छोटी बहन आरजू से बात की. आरजू भी दूसरी बार बहन का घर बसाने के लालच में ताबीज की इस दरिंदगी में शामिल हो गई.

घटना वाले दिन ताबीज अपनी वैगनआर कार से अपने दोस्त आजम के साथ हिना के घर के बाहर पहुंचा. वहां पर आरजू ने अर्श व महक को चौकलेट लेने के बहाने बाहर भेज दिया. बच्चे चूंकि ताबीज को पहचानते थे, इसलिए वे खुश हो कर उस के साथ कार में बैठ गए. उन मासूमों को क्या पता था कि वे दोनों उन्हें कार में बैठा कर घुमाने नहीं बल्कि मौत के घाट उतारने ले जा रहे हैं.

थोड़ी देर बाद आजम ने अर्श व महक को नशीली गोलियां मिली हुई चौकलेट खाने के लिए दीं. उस वक्त उन की कार मुजफ्फरनगर की ओर जा रही थी. कुछ ही देर में दोनों बच्चे नशे में बेसुध हो गए. जैसे ही कार गांव कुम्हेड़ा के पास गंगनहर पुल पर पहुंची तो ताबीज ने कार से दोनों बेसुध बच्चों को गंगनहर में फेंक दिया.

पुलिस ने आरजू को भी गिरफ्तार कर लिया और बच्चों के शवों की तलाश के लिए गोताखोरों की मदद ली. कई दिनों तक की खोजबीन के बाद भी दोनों बच्चों में से किसी का शव गोताखोरों को नहीं मिला. पुलिस ने ताबीज की निशानदेही पर उस के घर से अपहरण में इस्तेमाल की गई वैगनआर कार भी बरामद कर ली.

10 जनवरी, 2019 को मुजफ्फरनगर के थाना जानसठ के अंतर्गत पड़ने वाली गंगनहर की चित्तौड़ झाल पर तैनात कर्मचारी ने एक बच्ची का शव झाल में फंसा हुआ देखा, जिस की उम्र 5-6 साल थी.

उसे अखबारों की खबरों से यह पहले ही पता था कि हरिद्वार के मंगलौर थाने से 2 बच्चों का अपहरण कर उन्हें गंगनहर में फेंक दिया गया था, जिन की लाशें गोताखोर भी नहीं ढूंढ पाए थे. इसलिए उस ने फोन कर के बच्ची की लाश मिलने की सूचना फोन द्वारा मंगलौर कोतवाली को दे दी.

यह खबर मिलते ही एसआई चंद्रमोहन चित्तौड़ झाल पर पहुंचे. शव को उन्होंने पहचान लिया. वह शव महक का ही था. जरूरी काररवाई कर के उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया. बाद में पुलिस को महक की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, उस में उस की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया.

पुलिस ने ताबीज, आजम और आरजू से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक ताबीज, आजम व आरजू जेल में बंद थे. पुलिस को अर्श का शव नहीं मिला था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथामार्च 201

हत्यारा आशिक: पहले जान, फिर जान का दुश्मन

सोमनाथ से जबलपुर तक आने वाली सोमनाथ एक्सप्रैस ट्रेन 17 दिसंबर, 2018 को शाम करीब 5 बजे जब जबलपुर स्टेशन पहुंची तो सैकड़ों यात्रियों के साथ एक कोच में सवार मनीष वाजपेयी भी प्लेटफार्म नंबर 3 पर उतरे. मनीष वाजपेयी नर्मदा विकास प्राधिकरण में इंसपेक्टर के पद पर नौकरी करते थे.

मनीष का परिवार जबलपुर के गढ़ा थाना इलाके में इंदिरा गांधी वार्ड की अजनी सोसाइटी में रहता था. मनीष की पोस्टिंग जबलपुर के नजदीक जिले नरसिंहपुर में थी इसलिए वह रोज सुबह ट्रेन से जाने के बाद शाम को सोमनाथ एक्सप्रैस से ही वापस घर आ जाते थे.

मनीष के 2 बेटे हैं, जिन में से बड़ा बेटा इंदौर में इंजीनियर है और छोटा बेटा नरसिंहपुर के पास मुगली गांव में अपने नानानानी के पास रह कर खेती का काम संभालता है. इस तरह उन की पत्नी विनीता दिन भर में अकेली रह जाती थी. इसलिए शाम को स्टेशन से उतर कर घर जाने से पहले मनीष पत्नी को फोन जरूर करते थे ताकि घर की जरूरत का सामान रास्ते से खरीदते हुए घर पहुंचे.

उस रोज भी मनीष ने जबलपुर स्टेशन से बाहर निकल कर पत्नी विनीता से बात की और फिर सीधे घर पहुंच गए. घर पहुंचने तो उन्हें दरवाजे के चैनल गेट पर अंदर से ताला  पड़ा मिला. घर में अकेले रहने पर विनीता चैनल पर ताला लगा देती थी. मनीष ने घंटी बजाई और कुछ देर तक पत्नी द्वारा दरवाजा खोलने का इंतजार किया. लेकिन काफी देर बाद भी विनीता दरवाजा खोलने नहीं आई तो मनीष ने कई बार दरवाजा पीटा व घंटी बजाई. उन्होंने पत्नी के मोबाइल पर भी रिंग की परंतु कोई परिणाम नहीं निकला.

इसी बीच पड़ोस में रहने वाले अशोक वर्मा बाहर आए तो मनीष को दरवाजे पर खड़ा देख कर वह एक मिनट उन के पास रुक कर बात करने लगे. तब मनीष ने विनीता द्वारा दरवाजा न खोलने की बात उन्हें बताई तो अशोक शर्मा ने कहा कि हो सकता है कि विनीता वाशरूम में हो. अशोक मनीष को तब तक अपने घर चाय पीने के लिए ले गए.

मनीष अशोक वर्मा के घर चाय पीतेपीते भी कई बार पत्नी का मोबाइल नंबर मिलाते रहे. लेकिन पत्नी के मोबाइल की घंटी लगातार बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रही थी. मनीष परेशान थे कि आखिर वह कहां है जो फोन भी नहीं उठा रही.

चाय पीने के बाद दोनों फिर बाहर आ गए. मनीष ने फिर से अपने घर की घंटी बजाई पर कोई नतीजा नहीं निकला. फिर मनीष के कहने पर अशोक वर्मा अपने घर के आंगन से बाउंड्री वाल फांद कर मनीष की छत पर पहुंचे. उन्होंने घर में उतर कर कमरे का नजारा देखा तो वहां उन्हें सब कुछ ठीक नहीं लगा.

अशोक को घबराया देख खुद मनीष भी बाउंड्री वाल फांद कर अपने घर में दाखिल हो गए. जब वह ऊपर की मंजिल पर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए.

उन की पत्नी विनीता खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. विनीता के गले में पतली रस्सी भी बंधी थी. और पास ही खून से सना बेसबौल का डंडा पड़ा था. यह सब देख कर मनीष अपना होश खो बैठे. उन्होंने तत्काल गैलरी के गेट का ताला तोड़ कर पुलिस व ऐंबुलेंस को फोन किया.

घटना की जानकारी मिलते ही गढ़ा थानाप्रभारी शफीक खान पुलिस फोर्स ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. पहली ही नजर में साफ था कि विनीता की मौत हो चुकी थी. गले में रस्सी बंधी थी और चेहरा पूरी तरह से खराब हो चुका था. मामला हत्या का देख कर थानाप्रभारी ने एसपी अमित सिंह, एएसपी संजीव उइक सीएसपी दीपक मिश्रा को भी घटना की जानकारी दे दी. जिस से एएसपी उइक और सीएसपी दीपक मिश्रा के अलावा एफएसएल और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम भी मौके पर पहुंच गई.

इंसपेक्टर खान ने पूरे मकान का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि हत्यारे ने मकान में फ्रेंडली एंट्री की थी. इस का मतलब यह निकला कि हत्यारा विनीता का परिचित ही था. घटनास्थल की जांच और जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने विनीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस ने मनीष से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन की शाम करीब 5 बजे विनीता से फोन पर उस समय बात हुई थी जब वह ट्रेन से जबलपुर स्टेशन पर उतरे थे. स्टेशन से घर आने में उन्हें 25 मिनट लगे थे. उसी दौरान विनीता के साथ वारदात हुई थी.

चूंकि घर का सभी सामान सुरक्षित था इसलिए हत्या का मकसद लूट नहीं था. 25 मिनट में इतनी सफाई से हत्या कर हत्यारा भाग ही नहीं सकता था. इस से साफ था कि हत्यारा विनीता के साथ घर में पहले से मौजूद रहा होगा. हत्यारा विनीता का मोबाइल अपने साथ ले गया. मतलब साफ था कि मोबाइल के माध्यम से हत्यारे की पहचान संभव थी.

पुलिस ने मृतका विनीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के अलावा उस के बैकग्राउंड की भी जांच शुरू कर दी. इस के अलावा मनीष वाजपेयी के यहां आनेजाने वालों की सूची बना कर उन सब से भी पूछताछ की.

इस दौरान पता चला कि इन सब में से एक परिचित शहर से लापता मिला और उस का मोबाइल फोन भी बंद आ रहा था. इसलिए पुलिस ने शक की सुई उसी आदमी की तरफ घुमा दी.

इसी बीच पुलिस का ध्यान एक ऐसे फोन नंबर की तरफ भी गया जिस से विनीता के पास अकसर फोन आता था. इस नंबर पर दोनों के बीच वाट्सऐप पर हुई चैटिंग की पुलिस ने जांच की तो पता चला कि उक्त नंबर वाला युवक विनीता पर अनैतिक संबंध बनाने का दबाव बना रहा था.

पुलिस ने इसी बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ाई तो पता चला कि घटना वाले समय उक्त फोन नंबर जबलपुर में ही था. इतना ही नहीं दोपहर 12 बजे से साढ़े 5 बजे के बीच उस की लोकेशन भी विनीता के घर के पास के टौवर के टच में थी. यह फोन घटना से 3 दिन पहले से जबलपुर में था और घटना वाले दिन सुबह के समय उस फोन से विनीता से बात भी की थी.

इसलिए पुलिस ने पूरा ध्यान इस फोन नंबर पर ही लगा दिया. उस फोन का सिमकार्ड शिवकांत उर्फ रिंकू पुत्र धर्मनारायण पांडे, निवासी बड़ा शिवाला मझनपुर, जिला कौशांबी, उत्तर प्रदेश के नाम से खरीदा गया था.

पुलिस ने इस संदिग्ध फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. साइबर सेल की मदद से जांच टीम को जानकारी मिली कि उस फोन की लोकेशन कस्बे में कक्षपुर ब्रिज के पास है. टीम तुरंत वहां पहुंच गई और एक युवक को कक्षपुर ब्रिज के पास से गिरफ्तार कर लिया.

उस ने अपना नाम शिवकांत उर्फ रिंकू बताया. उस के कपड़ों पर खून के कुछ दाग लगे मिले जिस से पुलिस को पूरा भरोसा हो गया कि विनीता का कातिल कोई और नहीं रिंकू ही है. पूछताछ में रिंकू विनीता को जानने से भी इनकार करता रहा लेकिन जब पुलिस ने उस का मिलान विनीता के घर के पास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज से किया तो रिंकू दोपहर लगभग 12 बजे विनीता के घर आता हुआ और शाम साढ़े 5 बजे वहां से वापस जाता दिखा.

अब रिंकू सीसीटीवी फुटेज को गलत साबित नहीं कर सकता था. लिहाजा चारों तरफ से घिर जाने पर रिंकू ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने विनीता की हत्या की जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली निकली—

कोई 25 साल पहले नरसिंहपुर के मुगली गांव की रहने वाली विनीता की शादी नर्मदा विकास प्राधिकरण में कार्यरत मनीष वाजपेयी के साथ हुई थी. दोनों के 2 बेटे हैं.

मनीष संपन्न परिवार के अकेले बेटे थे तो वहीं विनीता भी उच्च परिवार की एकलौती बेटी थी. सरकारी नौकरी में मनीष अच्छे पद पर थे. इसलिए घर में रुपएपैसों की कोई कमी नहीं थी.

पूरा परिवार काफी सभ्य और सुलझे विचारों वाला था. विनीता धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह शहर में होने वाले धार्मिक आयोजनों में अकसर शामिल होती रहती थी. विनीता जितनी सुंदर देखने में थी, उतनी ही वह मन की भी साफ थी.

कुछ समय पहले वह एक धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने वृंदावन गई थी. उस कार्यक्रम में कौशांबी से शिवकांत मिश्रा उर्फ रिंकू फोटोग्राफी करने वहां आया हुआ था. उस कार्यक्रम में शामिल कई लोग रिंकू से अपने फोटो खिंचवा रहे थे. विनीता को ऐसे मौके पर फोटो खिंचाने का शौक नहीं था. इसलिए वह चुपचाप भीड़ से अलग खड़ी थीं.

इस दौरान रिंकू की नजर विनीता पर पड़ी तो वह उस की सुंदरता पर मोहित हो गया. वह विनीता के पास आ गया और विनीता से अपनी फोटो खिंचवाने का आग्रह करने लगा.

पहले तो विनीता ने उसे मना कर दिया लेकिन जब रिंकू ने जिद की तो विनीता ने अपने कुछ फोटो उस से खिंचवाए. जिस के बाद औनलाइन फोटो भेजने के लिए रिंकू ने उन का वाट्सऐप नंबर भी ले लिया.

इस के 2 दिन बाद रिंकू ने विनीता के सारे फोटो वाट्सऐप से भेज दिए. साथ ही फोटो खिंचवाने के लिए उस ने विनीता का आभार भी व्यक्त किया.

विनीता जैसी खुद सरल स्वभाव की थी, वैसा ही वह फोटोग्राफर रिंकू को समझ रही थी. लेकिन रिंकू ऐसा था नहीं. कुछ दिन बाद फोटो मिलने की बात पूछने के बहाने रिंकू ने विनीता को फोन किया और दोस्ती बढ़ाने के लिए वह उस से मीठीमीठी बातें करने लगा. धीरेधीरे जब उस ने विनीता के घर का पता सहित उस के बारे में सब कुछ जान लिया तो वह अपनी औकात पर आ गया.

वाट्सऐप मैसेज भेज कर वह विनीता से उस की खूबसूरती की तारीफ करने लगा और बातोंबातों में उस ने उस से अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. विनीता को यह बात अजीब लगी. कोई दूसरी महिला होती तो शायद वह उस की शिकायत पुलिस से कर देती. लेकिन विनीता ने ऐसा न कर के पहले उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वह उसे जितना समझाने की कोशिश करती, रिंकू उतनी ही आशिकी भरी बातें करता.

विनीता ने एक गलती जो की थी, वह यह थी कि जिस रोज रिंकू ने पहली बार उस से इश्क का इजहार किया था, उसी रोज उसे बात पति को बता देनी चाहिए थी, पर नहीं बताई. दरअसल उस का सोचना था कि वह अपने स्तर से इस समस्या को सुलझा लेगी. लेकिन अब पानी सिर से ऊपर पहुंचने लगा था.

समस्या कितनी बड़ी है इस बात का अंदाजा उसे उस रोज लगा जब रिंकू कई दूसरे कार्यक्रम में फोटोग्राफी करने जबलपुर तक आने लगा. विनीता के घर का पता उस ने पहले ही ले लिया था.

उसे यह भी मालूम था कि विनीता अकसर घर पर अकेली रहती है. इसलिए वह रोज अचानक ही वह उस के घर आ धमका.

उस के घर आ कर भी वह उस से अपने प्यार का इजहार करने लगा. इस पर विनीता ने उसे समझाया, ‘‘देखो रिंकू, मैं शादीशुदा हूं, इसलिए मुझ से इस तरह की उम्मीद करना गलत है.’’

‘‘मैं शादी करने की बात कहां कर रहा हूं. मैं तो केवल साथ में एक रात बिताने की मांग कर रहा हूं.’’ रिंकू ने बेशर्मी से कहा.

उस की बात पर विनीता को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन कोई तमाशा खड़ा न हो इसलिए उसे समझाबुझा कर वापस भेज दिया. लेकिन इस घटना के बाद वह विनीता को वाट्सऐप पर काफी अश्लील मैसेज भेजने लगा. जिस से तंग आ कर विनीता ने उसे सख्त शब्दों में आगे से कोई मैसेज या फोन न करने की चेतावनी दे दी.

रिंकू ने पुलिस को बताया कि वह विनीता की खूबसूरती का इतना दीवाना हो चुका था कि वह हर हाल में उसे पाना चाहता था. घटना वाले दिन जब वह जबलपुर आया तो उस ने पहले ही निर्णय कर लिया था कि इस बार विनीता के घर से खाली वापस नहीं आएगा. इसलिए उस रोज मनीष के नरसिंहपुर के लिए रवाना होते ही वह उस के घर पहुंच गया.

घर पहुंच कर वह विनीता पर अपनी बात मनवाने का दबाव बनाने लगा. लेकिन विनीता ने साफतौर पर उस की बात मारने से इनकार कर दिया. इतना ही नहीं उस ने रिंकू से वहां से चले जाने को कह दिया.

लेकिन रिंकू उस के घर पर जम कर बैठ गया. इस पर विनीता ने उस से कहा कि अगर अब भी वह सही रास्ते पर नहीं आया तो वह उस की सारी वाट्सऐप चैटिंग पति को दिखा कर उस की शिकायत पुलिस से भी कर देगी. पर विनीता की बात का रिंकू पर कोई असर नहीं पड़ा.

इसी बीच शाम 5 बजे मनीष ने जबलपुर स्टेशन आ कर विनीता को फोन किया तो उस समय रिंकू वहीं बैठा था. उसे लगा कि आज विनीता अपने पति को सब कुछ बता देगी. इसलिए विनीता के साथ वह जबरदस्ती करने लगा. उस का सोचना था कि अगर वह किसी तरह से संबंध बनाने में कामयाब हो गया तो शायद वह उस की शिकायत पति से नहीं कर पाएगी.

लेकिन विनीता ने रिंकू को धक्का दे कर खुद से दूर कर दिया और बचने के लिए वह ऊपर के कमरे में भागी, जहां पीछे से रिंकू भी पहुंच गया. उसी समय रिंकू ने साथ लाई पतली रस्सी उस के गले पर कस दी जिस से उस की सांस रुक गई. फिर पास रखे बेसबौल के डंडे से उस के चेहरे पर बेहताशा वार किए. उसे लगा कि यह मर चुकी है, तो वह वहां से विनीता का फोन ले कर भाग गया.

उस ने विनीता का फोन कक्षपुरा ब्रिज के पास छिपा दिया था, जो पुलिस ने बरामद कर लिया. रिंकू का सोचना था कि विनीता ने उस की पहचान के बारे में किसी तीसरे को जानकारी नहीं दी है इसलिए उस का नाम कभी भी इस मामले में सामने न आने पर वह कभी नहीं पकड़ा जाएगा.

पर उस की सोच गलत साबित हुई. पुलिस ने रिंकू से पूछताछ करने के बाद उसे न्यायालय में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया.

सौजन्य- सत्यकथामार्च 2018

प्यार पहुंचा 2 गज जमीन के नीचे

लड़की जब शादी योग्य हो जाती है तो वह अपने भावी जीवन को ले कर सपने बुनने लगती हैं, कुछ भावी पति के बारे में, कुछ घरपरिवार के बारे में और कुछ अपने लिए. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर मांबाप बचपन से ही बेटी के मन में यह बात बैठाना शुरू कर देते हैं कि शादी के बाद वह पराई हो जाएगी. कौन लड़की कैसे सपने बुनती है, यह उस की व्यक्तिगत और पारिवारिक स्थिति पर निर्भर करता है.

मुंबई के मानखुर्द की रहने वाली रोहिणी गुलाब मोहिते ने भी अपने जीवनसाथी को ले कर तरहतरह के सपने संजोए थे. पिता ने जब उस का विवाह मुंबई के ही अभिजीत घोरपड़े के साथ कर दिया तो अपने दिल में वह तमाम उमंगें लिए ससुराल चली गई.

रोहिणी को मनमुताबिक पति मिला, जिस से वह हर तरह खुश थी. अभिजीत उसे बहुत प्यार करता था. उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. इसी दौरान रोहिणी एक बच्चे की मां भी बन गई. परिवार में बच्चे के आने से उन की खुशी और बढ़ गई.

लेकिन उन की इस खुशी की उम्र बहुत कम निकली. बच्चा अभी अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पाया था कि अभिजीत की मृत्यु हो गई. पति की मौत के बाद रोहिणी की जिंदगी में अंधेरा छा गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे. कुछ नहीं सूझा तो वह अपने बच्चे को ले कर मायके आ गई.

पति की मौत के गम में वह दिन भर सोचती रहती. उसे न खाने की चिंता रहती न पीने की. वह हर समय गुमसुम रहती थी. घर वालों और अन्य लोगों के समझाने पर रोहिणी ने घर से बाहर निकलना शुरू किया. बाहर निकलने से रोहिणी धीरेधीरे सामान्य होती गई. किसी के सहयोग से उसे वाशी नवी मुंबई के एक अस्पताल में कौन्ट्रैक्ट पर नौकरी मिल गई.

वह रोजाना मानखुर्द से वाशी तक लोकल ट्रेन से अपडाउन करती थी. उसी दौरान रोहिणी के गांव के रहने वाले रामचंद्र तुकाराम जाधव के माध्यम से उस की मुलाकात सुनील शिर्के से हुई. सुनील भी उसी अस्पताल में नौकरी करता था, जिस में रोहिणी काम करती थी.

रोहिणी और सुनील अकसर साथसाथ ट्रेन से आतेजाते थे. रोजाना साथ आनेजाने से उन की अच्छी दोस्ती हो गई. सुनील से दोस्ती के बाद रोहिणी खुश रहने लगी थी, क्योंकि वह उस से अपने मन की बात कह लेती थी. उसे सुनील का व्यवहार बहुत अच्छा लगता था. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई.

रोहिणी ने सुनील को अपने अतीत के बारे में सब कुछ बता दिया था. तब सुनील ने उसे भरोसा दिया कि वह उस से शादी कर के जीवन भर उस का साथ निभाएगा. कई सालों तक उन का प्यार उसी तरह चलता रहा.

इस बीच रोहिणी ने उस से कई बार शादी करने को कहा लेकिन वह बातें बना कर उसे टाल देता था. वक्त के साथ 5-6 साल बीत गए लेकिन सुनील ने उस से शादी नहीं की. रोहिणी समझ गई कि वह उस के साथ सिर्फ मौजमस्ती कर रहा है, लिहाजा वह सुनील पर शादी के लिए दबाव डालने लगी.

दूसरी ओर सुनील रोहिणी से इसलिए शादी नहीं कर रहा था, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस के 2 बच्चे भी थे. उस की पत्नी को इस बात की भनक तक नहीं थी कि सुनील के किसी दूसरी महिला से अवैध संबंध हैं.

शादी की बात को ले कर सुनील और रोहिणी के बीच झगड़े होने लगे थे. किसी तरह सुनील की पत्नी को पति के अवैध संबंधों की जानकारी मिल गई तो वह घर में क्लेश करने लगी. इस से सुनील दोनों तरफ से घिर गया था. एक ओर पत्नी थी तो दूसरी ओर रोहिणी. दो नावों की सवारी उस के लिए आसान नहीं थी.

सुनील रोहिणी से शादी करना चाहता था लेकिन पत्नी के रहते रोहिणी को घर लाना संभव नहीं था.

दूसरी ओर रोहिणी भी आसानी से मानने वाली नहीं थी. शादी के नाम पर सुनील पिछले 5-6 सालों से उस का शोषण करता आ रहा था. अंतत: उस ने रोहिणी से छुटकारा पाने का फैसला किया. इस संबंध में उस ने अपने दोस्तों रामचंद्र तुकाराव जाधव और विजय सिंह से बात की.

तीनों ने जब इस मुद्दे पर विचारविमर्श किया तो रोहिणी से छुटकारा पाने का एक ही उपाय नजर आया कि उस की हत्या कर दी जाए. लिहाजा तीनों ने उस की हत्या का फैसला कर लिया. इतना ही नहीं, हत्या कर लाश कहां ठिकाने लगानी है, इस की भी उन्होंने योजना तैयार कर ली.

योजना के अनुसार, 13 नवंबर 2018 को सुनील मुंबई से 129 किलोमीटर दूर रायगढ़ स्थित अपने मूल गांव सिरसाल गया. वहां उस ने अपने घर के करीब एक गहरा गड्ढा खोदा और मुंबई लौट आया.

अब उसे किसी बहाने से रोहिणी को वहां ले जाना था. इसलिए उस ने रोहिणी से कहा, ‘‘रोहिणी, लड़तेझगड़ते बहुत दिन हो गए. अब मैं ने तुम से शादी करने का फैसला कर लिया है. एक वकील मेरे जानकार हैं. हमें उन के पास चलना होगा. वह सारी कानूनी काररवाई कर देंगे. इस के बाद हम दोनों के साथ रहने में कोई समस्या नहीं होगी.’’

सुनील की बात सुन कर रोहिणी खुश हो गई. उस ने सुनील के साथ जाने के लिए हामी भर दी. 14 नवंबर, 2018 को रोहिणी सहेली की शादी में जाने का बहाना कर के अपने घर से निकल गई. सुनील उसे निर्धारित जगह पर मिल गया. उस के साथ रामचंद्र जाधव और विजय सिंह भी थे, जो एमएच23बी के4101 नंबर की कार ले कर आए थे. रोहिणी खुशीखुशी उस कार में बैठ गई.

इस कार से सब लोग 129 किलोमीटर दूर रायगढ़ पहुंचे. गांव पहुंच कर सुनील ने रोहिणी से शादी के बारे में बात की तो वह शादी करने की जिद पर अड़ी रही. सुनील ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी. मानती भी क्यों, सुनील उसे शादी का झांसा दे कर ही तो लाया था.

इस मुद्दे पर बात बढ़ी तो रोहिणी ने यह तक कह दिया कि अब वह चुप नहीं बैठेगी और पुलिस से शिकायत कर देगी. उसे जिद पर अड़ी देख रामचंद्र जाधव ने रोहिणी के सिर पर फावड़े के डंडे से जोरदार प्रहार किया.

प्रहार तेज था, जिस से रोहिणी जमीन पर गिर गई. विजय सिंह मोरे ने उस के दोनों हाथ पकड़ लिए और सुनील व रामचंद्र ने रोहिणी की साड़ी से ही उस का गला घोंट दिया.

रोहिणी की मौत हो जाने के बाद तीनों ने उस की लाश पहले से खोदे गए गड्ढे में दबा दी. लाश ठिकाने लगा कर वे लोग अपने घर लौट आए.

14 नवंबर को रोहिणी सहेली की शादी में जाने की बात कह कर घर से निकली थी. जब वह घर नहीं पहुंची तो उस के घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने अपने सभी परिचितों से रोहिणी के बारे में पूछा. जब कोई पता नहीं चला तो अगले दिन उस के भाई राजेंद्र गुलाब ने उस अस्पताल में जा कर पूछताछ की, जहां रोहिणी काम करती थी.

वहां से पता चला कि पिछले दिन रोहिणी अपनी ड्यूटी पर आई ही नहीं थी. यह जान कर राजेंद्र और ज्यादा परेशान हो गया. अंतत: 16 नवंबर, 2018 को राजेंद्र थाना मानखुर्द पहुंचा और बहन के लापता होने की बात पुलिस को बता दी.

राजेंद्र गुलाब घोरपड़े की शिकायत पर मानखुर्द पुलिस थाने के सीनियर पीआई नितिन बोबड़े ने 28 वर्षीय रोहिणी की गुमशुदगी दर्ज कर के जरूरी काररवाई करनी शुरू कर दी. उन्होंने रोहिणी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, लेकिन उस से कोई खास जानकारी नहीं मिली. जिस अस्पताल में रोहिणी काम करती थी, पुलिस ने वहां जा कर भी जांच की. वहां पता चला कि रोहिणी के उसी अस्पताल में नौकरी करने वाले सुनील शिर्के नाम के युवक से संबंध थे.

पुलिस ने वक्त न गंवा कर सुनील को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. उस से पूछताछ करने पर भी रोहिणी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

इस के बाद पुलिस ने रोहिणी के रिश्तेदारों आदि से भी पूछताछ की, लेकिन पुलिस को कहीं से भी रोहिणी के बारे में कोई क्लू नहीं मिल रहा था. पुलिस ने रोहिणी के बैंक खातों की जांच की तो पता चला कि रोहिणी के एसबीआई के खाते से एटीएम द्वारा 15 और 16 नवंबर, 2018 को 65 हजार रुपए निकाले गए थे.

ये पैसे किस ने निकाले, जानने के लिए पुलिस ने एटीएम के सीसीटीवी कैमरे को खंगाला तो फोटो पहचानने में नहीं आया. रोहिणी 14 नवंबर को घर से निकली थी, जबकि पैसे 16 नवंबर को निकाले गए थे.

इस से पुलिस को यही लगा कि या तो वह पैसे निकाल कर किसी के साथ भाग गई होगी या फिर उस के साथ कुछ गलत हुआ होगा. पुलिस फिर से एटीएम के सीसीटीवी की उसी धुंधली तसवीर की जांच करने लगी.

पुलिस ने वह तसवीर उस अस्पताल के कर्मचारियों को दिखाई, जहां रोहिणी नौकरी करती थी. इस जांच में पुलिस को नई जानकारी मिली. लोगों ने सीसीटीवी के उस फोटो की पहचान सुनील के दोस्त रामचंद्र तुकाराव जाधव के रूप में की.

पुलिस ने रामचंद्र के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह महाराष्ट्र के सतारा जिले से करीब 60 किलोमीटर दूर वानरवाडी गांव का रहने वाला है और मुंबई में आचरेकर नामक केबल औपरेटर के यहां नौकरी करता है.

पुलिस टीम केबल औपरेटर आचरेकर के औफिस पहुंच गई. आचरेकर से रामचंद्र के बारे में पूछताछ की गई, तो उस ने बताया कि रामचंद्र काफी दिनों पहले अपने गांव जाने की बात कह कर गया था और अभी तक नहीं लौटा है. पुलिस उस के गांव पहुंच गई. रामचंद्र गांव में मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाना मानखुर्द लौट आई. इस के साथ ही पुलिस ने सुनील को भी हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने रोहिणी की हत्या की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने यह भी बता दिया कि उन लोगों ने अपने तीसरे साथी विजय सिंह मोरे के साथ मिल कर रोहिणी की हत्या की थी और उस की लाश रायगढ़ जिले के सिरसाल गांव में दफना दी थी.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर नितिन बोबड़े अपने सहयोगी इंसपेक्टर चंद्रकांत लोडगे, एसआई तुकाराम घाडगे, प्रताप देसाई, कृष्णात माने आदि के साथ तीनों आरोपियों को उस जगह ले गए, जहां उन्होंने रोहिणी का शव दफनाया था. माणगांव के तहसीलदार की मौजूदगी में रोहिणी की लाश गड्ढे से निकलवाई गई.

राजेंद्र ने लाश की पहचान अपनी बहन रोहिणी के रूप में की. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भायखला के सर जे.जे. अस्पताल भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने हत्यारोपी सुनील शिर्के, रामचंद्र तुकाराव जाधव और विजय सिंह मोरे से विस्तार से पूछताछ कर के उन्हें 6 फरवरी, 2019 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

सौजन्य- सत्यकथाअप्रैल 2018