Murder Story : 5 लाख की सुपारी देकर कराया पति का कत्ल

Murder Story : संगीता ने अपने घर वालों से विद्रोह कर के पप्पू से प्रेम विवाह किया था. वह उस के 2 बच्चों की मां भी बनी. पप्पू ने उसे गांव का उपमुखिया भी बनवाया और उस के लिए 2-2 जगह मकान भी बनवाए. लेकिन जब उस की जिंदगी में लल्लन आया तो…

बिहार का जिला पूर्णिया. दिन रविवार, तारीखऊ 26 मई, 2019. समय शाम के 7 बजे. पप्पू यादव पूर्णिया की प्रभात कालोनी स्थित घर से अपने गांव चनका जाने के लिए निकला. दरअसल, पप्पू के 2 मकान थे, एक पूर्णिया की प्रभात कालोनी में और दूसरा गांव चनका में. प्रभात कालोनी में वह पत्नी संगीता और दोनों बच्चों के साथ रहता था. उस की पत्नी संगीता गांव की उपमुखिया थी और अपने बच्चों के साथ ज्यादातर पूर्णिया में रहती थी. घर से निकल कर पप्पू जब जगैल चौक स्थित राइस मिल के पास पहुंचा, तभी पीछे से तेज गति से आई एक बाइक आई और उस के सामने आ कर रुकी.

अचानक यह होने पर पप्पू की बाइक उस बाइक से टकराने से बालबाल बची. जैसे ही पप्पू ने अपनी बाइक के ब्रेक लगाए, वह जमीन पर फिसल गई. बाइक के गिरते ही पप्पू भी नीचे जा गिरा. पप्पू के सामने जो बाइक आ कर रुकी थी, उस पर 2 युवक सवार थे. फुरती के साथ दोनों युवक बाइक से नीचे उतरे और पप्पू के सामने जा खड़े हुए. उन दोनों को देख कर पप्पू समझ गया कि इन के इरादे ठीक नहीं हैं. खतरा भांप कर पप्पू बाइक को वहीं छोड़ कर विपरीत दिशा में भागा, वे दोनों युवक भी उस के पीछे दौड़े. दौड़तेदौड़ते एक युवक ने कमर से पिस्तौल निकाल कर उस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं.

उस ने 7 गोलियां चलाईं. जो पप्पू के सिर से ले कर कमर तक लगीं. गोलियां लगते ही पप्पू जमीन पर गिर गया. खून से तरबतर पप्पू कुछ तड़पता रहा फिर उस की मौत हो गई. उस के मरने के बाद बदमाश जिस ओर से आए थे, अपनी बाइक से उसी ओर भाग गए. दिनदहाड़े बाजार के नजदीक गोलियां चलने से बाजार में भगदड़ मच गई. लोग धड़ाधड़ अपनी दुकानों के शटर गिराने लगे. इसी बीच किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी थी. वह इलाका श्रीनगर थाना क्षेत्र में आता था. पुलिस कंट्रोल रूम ने घटना की सूचना श्रीनगर थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. उपमुखिया का पति था मृतक मौके पर पहुंच कर पुलिस ने लहूलुहान पड़े शख्स का मुआयना किया. उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी, वह मर चुका था. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही तो भीड़ में से एक युवक ने लाश की पहचान कर ली. उस ने बताया कि मृतक का नाम पप्पू यादव है. वह चनका पंचायत क्षेत्र की उपमुखिया संगीता का पति है. लाश की शिनाख्त होते ही पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली और उपमुखिया संगीता से फोन पर संपर्क कर उन्हें दुखद सूचना दे कर मौके पर बुलाया.

संगीता पति की हत्या की सूचना पाते ही दहाड़ें मार कर रोने लगी. घर पर वह जिस अवस्था में थी, उसी में बच्चों को साथ ले कर घटना स्थल पर पहुंच गई. बदमाशों ने पप्पू को गोलियों से छलनी कर दिया था. सूचना पा कर थोड़ी देर में एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ (सदर) आनंद पांडेय भी मौके पर आ गए थे. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया. मृतक के शरीर पर गोलियों के कई घाव थे. घटनास्थल से कुछ दूर उस की बाइक जमीन पर गिरी पड़ी थी. यह देख पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि पप्पू की हत्या बदमाशों ने लूट के लिए नहीं की है. अगर बदमाश लूट के लिए करते तो बाइक अपने साथ ले जाते.

चूंकि हत्या उपमुखिया के पति की हुई थी. इसलिए स्थिति विस्फोटक बन सकती थी, इस से पहले कोई व्यक्ति कानून अपने हाथ में लेता, एसएसपी ने जरूरी लिखापढ़ी पूरी करवा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल, पूर्णिया भिजवा दी. अगली सुबह यानी 27 मई को उपमुखिया संगीता के पति पप्पू यादव हत्याकांड को ले कर उपमुखिया के समर्थकों ने शहर में जगहजगह तोड़फोड़ की. वे हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. एसपी विशाल शर्मा मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लोगों को आश्वासन दिया कि पप्पू यादव के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

विशाल शर्मा के आश्वासन के बाद आंदोलनकारी शांत हुए. इस के तुरंत बाद थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह ने केस की जांच शुरू कर दी. प्रभात कालोनी पहुंच कर उन्होंने संगीता से मुलाकात की और उन से पूछा कि किसी पर कोई शक वगैरह हो तो बताएं. संगीता ने पति की हत्या में पट्टीदारों की भूमिका पर शक जाहिर किया. वर्षों से दोनों परिवारों के बीच जमीन को ले कर विवाद चल रहा था. संगीता के बयान के आधार पर पुलिस ने पट्टीदारों को हिरासत में ले लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई, लेकिन पप्पू यादव की हत्या में उन की कोई भूमिका नजर नहीं आई तो पुलिस ने कुछ खास हिदायतें दे कर उन्हें छोड़ दिया. इस के अलावा पुलिस ने और भी कई संदिग्धों से पूछताछ की, लेकिन हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिल सका.

देखतेदेखते इस घटना को घटे 15 दिन बीत गए. पुलिस जांच जहां से चली थी, वहीं आ कर रुक गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि पप्पू की हत्या किस वजह से हुई और हत्यारा कौन है? इस के बाद थानाप्रभारी ने मृतक पप्पू और उस की पत्नी उपमुखिया संगीता के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा सुरागरसी के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया. दोनों की काल डिटेल्स का पुलिस ने बारीकी से अध्ययन किया. पुलिस को मिला सुराग संगीता की फोन की काल डिटेल्स देख कर पुलिस चौंकी. घटना से कुछ देर पहले और घटना से कुछ देर बाद संगीता की एक ही नंबर पर लंबी बातचीत हुई थी. खास बात यह थी कि उस नंबर पर संगीता की कई दिनों से लंबीलंबी बात हो रही थी. यह बातचीत अधिकतर रात के समय ही होती थी. यह बात पुलिस को हजम नहीं हो रही थी.

पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो वह मोबाइल नंबर लल्लन कुमार यादव, निवासी भोकराहा, पूर्णिया का निकला. इस जानकारी के बाद पुलिस लल्लन पर नजर रखने लगी. उस के बारे में गोपनीय तरीके से सारी जानकारी एकत्र की जाने लगीं. जांच में पता चला कि लल्लन यादव उपमुखिया संगीता का दूर के रिश्ते का देवर है. वह संगीता के प्रभातनगर कालोनी स्थित मकान पर अकसर आताजाता था. इसी दरम्यान दोनों के बीच प्रेम हो गया था. पुलिस को तब और हैरानी हुई, जब पता चला कि लल्लन यादव ने घटना से 2 दिन पहले संगीता के आईडीबीआई बैंक खाते से एक लाख रुपए निकाले थे. यह रुपए संगीता ने लल्लन को नई बाइक खरीदने के लिए दिए थे. इस से पुलिस को यकीन हो गया कि पप्पू की हत्या में मृतक की पत्नी संगीता और उस के प्रेमी लल्लन यादव का हाथ है.

पुलिस ने दोनों के घर दबिश दी तो दोनों ही फरार मिले. पप्पू यादव हत्याकांड को धीरेधीरे 3 महीने बीत चुके थे. इस दौरान मुखबिर ने पुलिस को इत्तला दी थी कि पप्पू की हत्या मुंगेर जिले के बरियापुर के रहने वाले शार्प शूटर संतोष चौधरी और उस के साथी निशांत यादव ने की थी. शार्प शूटर संतोष चौधरी का नाम सामने आते ही पुलिस चौंकी, क्योंकि संतोष कौन्ट्रैक्ट किलर था. पैसे ले कर हत्या करना उस का पेशा था. मुंगेर सहित बिहार के कई जिलों में उस के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास के कई मुकदमे दर्ज थे. वह पुलिस को चकमा देने में माहिर था. जिले के विभिन्न इलाकों में बड़ी घटनाओं को अंजाम देने के बावजूद वह केवल 1-2 बार जेल गया था.

शार्प शूटर संतोष की हुई तलाश पुलिस संतोष को पकड़ने की योजना बना ही रही थी कि 31 अगस्त, 2019 की शाम मुखबिर ने थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह को एक ऐसी सूचना दी, जिसे सुनते ही उन की बांछे खिल उठीं. सूचना यह थी कि पप्पू यादव हत्याकांड को अंजाम देने वाला शार्प शूटर संतोष चौधरी अपने दोस्त निशांत यादव के साथ किसी टारगेट को पूरा करने के लिए अगली सुबह यानी पहली सितंबर, 2019 को आ रहा है. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह ने उसी रात संतोष और निशांत को गिरफ्तार करने की रणनीति बनाई. उन्होंने इस मिशन को इतना गुप्त रखा कि टीम के 7 सदस्यों के अलावा 8वें को खबर तक नहीं लगने दी.

पहली सितंबर, 2019 की सुबह थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह अपनी टीम के साथ खुट्टी धुनौल चौकी के पास सादा कपड़ों में दुपहिया वाहनों की चैकिंग में जुट गए. मुखबिर ने बदमाशों को यहीं आना बताया था. सुबह 8 बजे के करीब 2 युवक अपाचे मोटरसाइकिल पर चौकी की ओर आते दिखाई दिए. बाइक पर वही नंबर अंकित था जो मुखबिर ने बताया था. जैसे ही वे नजदीक आए पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया. तलाशी के दौरान बदमाशों के पास से एकएक लोडेड पिस्तौल, संतोष के पास से 5 जिंदा कारतूस और 2 मोबाइल फोन और निशांत के पास से एक मोबाइल फोन बरामद हुए. नाम पूछने पर दोनों ने अपने नाम संतोष चौधरी और निशांत यादव बताए.

3 महीनों से पुलिस को इन्हीं दोनों बदमाशों की तलाश थी. पुलिस दोनों को गिरफ्तार कर के थाने ले आई और उन से सख्ती से पूछताछ शुरू की तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. शूटर संतोष चौधरी ने पुलिस को बताया कि पप्पू की हत्या के लिए उस की पत्नी संगीता देवी ने लल्लन यादव के मार्फत 5 लाख की सुपारी दी थी. पेशगी के तौर पर लल्लन यादव ने उसे सवा लाख रुपए दिए थे. बाकी रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा किया था. जो अब तक नहीं मिला. उसी दिन मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने लल्लन यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने लल्लन यादव का सामना जब संतोष चौधरी से कराया तो उस के होश उड़ गए.

अंतत: उस ने भी अपना जुर्म कबूलते हुए पुलिस को सब कुछ बता दिया. उस ने प्रेमिका के इशारे पर पप्पू की हत्या का तानाबाना बुना था. पप्पू की हत्या का खुलासा हो चुका था. तीनों आरोपियों लल्लन यादव, संतोष चौधरी और निशांत यादव से पूछताछ के बाद पप्पू यादव की हत्या की जो कहानी सामने आई इस प्रकार थी. 35 वर्षीय पप्पू यादव मूलरूप से पूर्णिया जिले के श्रीनगर थाना क्षेत्र के चनका गांव का रहने वाला था. 3 भाई बहनों में पप्पू सब से बड़ा था. धनदौलत और खेतीबाड़ी से मजबूत पप्पू मिलनसार और मेहनती था. उस ने अपनी मेहनत के बलबूते पर पैसा भी कमाया था और रुतबा भी.

बात सन 2007 की है. जातेआते पड़ोस के गांव की संगीता से पप्पू की आंखें लड़ गईं. दोनों का प्यार बढ़ा तो 31 जनवरी, 2008 को उन्होंने भाग कर पहले मंदिर में और फिर कोर्ट में शादी कर ली. शादी के बाद दोनों परिवारों के बीच खूब हंगामा हुआ था. इस के बाद संगीता के घर वालों ने उस से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था. पप्पू के घर वालों ने संगीता को बहू के रूप में स्वीकार लिया था. पप्पू और संगीता ने किया था प्रेम विवाह संगीता को जीवन साथी के रूप में पा कर पप्पू खुश था. वह उस से इतना प्यार करता था कि उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था. दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. समय के साथ संगीता 2 बच्चों की मां बन गई, जिस से परिवार की खुशियां और बढ़ गईं.

इसी दौरान गांव में हुए मुखिया के चुनाव में संगीता उपमुखिया चुन ली गई. उपमुखिया बन जाने के बाद पढ़ीलिखी संगीता के भाग्य ने करवट ली. गांव वालों के काम से संगीता और पप्पू का पूर्णिया शहर के अधिकारियों के पास आनाजाना शुरू हो गया. इसी के मद्देनजर पप्पू ने पूर्णिया की प्रभात कालोनी में भी मकान बनवा लिया था. शहर में मकान हो जाने के बाद संगीता का मन गांव में नहीं लगता था. बच्चों और पति के साथ वह शहर वाले मकान में आ गई थी. संगीता और पप्पू कभी गांव में रहते थे तो कभी पूर्णिया में. सन 2016 में पप्पू के दूर के रिश्ते का भाई लल्लन बीए की पढ़ाई के लिए पूर्णिया आया और किराए का कमरा ले कर अकेला रहने लगा. लल्लन जानता था उस के भाईभाभी भी पड़ोस में रहते हैं. कभीकभी वह उन से मिलने प्रभात कालोनी आ जाता और घंटों साथ बिता कर अपने कमरे पर लौट जाता था.

लल्लन की रिश्ते की भाभी संगीता चुलबुली और मजाकिया स्वभाव की थी, तो लल्लन भी कुछ कम नहीं था. 20-21 साल का लल्लन भी मजाकिया था. वह दिल खोल कर भाभी से मजाक करता था. लल्लन से बातें कर के संगीता को अच्छा लगता था. देवरभाभी के बीच का मजाक कभीकभी तो निम्न स्तर तक पहुंच जाता था. भद्दी मजाक सुन कर संगीता बुरा मानने के बजाय मजे लेती थी. मजाकमजाक में ही देवर और भाभी के बीच आंखें चार हुईं. यह सन 2016 की बात है जब लल्लन संगीता के संपर्क में आया था. लल्लन और संगीता का प्यार परवान चढ़ा तो दोनों अपनेअपने हिसाब से भविष्य के सपने देखने लगे. 2 बच्चों की मां संगीता यह भूल गई थी वह किसी और की पत्नी है. पप्पू के प्यार के लिए उन से घर वालों से बगावत कर के हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ा था. लल्लन के प्यार में वह सब कुछ भुला बैठी थी. उस की आंखों में सिर्फ लल्लन का प्यार झलकने लगा था.

दोनों के बीच प्यार का सिलसिला आगे बढ़ा तो लल्लन ने संगीता से बातचीत के लिए फरजी नाम और पते पर 2 मोबाइल सिम ले लिए. जिस में से एक सिम का उपयोग लल्लन खुद करता था और दूसरे मोबाइल फोन और सिम का इस्तेमाल संगीता करती थी. किसी को शक न हो, इसलिए दोनों बीचबीच में यह सोच कर सिम की अदलाबदली कर लेते थे, ताकि मामला अगर कभी पकड़ में आए तो पुलिस के हाथ उन तक नहीं पहुंच पाएं. पतिपत्नी के बीच लल्लन बना खलनायक पूर्णिया में रहते हुए लल्लन कुछ अपराधियों के संपर्क में आ गया था. पैसों की जरूरत के लिए वह अपराध की दलदल में भी उतर गया था. वह जिन बदमाशों के संपर्क में था, वे अवैध असलहों और कारतूसों के बड़े सप्लायर थे. इसी चक्कर में लल्लन 3 घटनाओं में अरोपी बन गया था.

अवैध असलहों की तस्करी के मामले में पुलिस ने उसे अगस्त 2018 में गिरफ्तार कर जेल भेजा था. पूर्णिया जेल में ही लल्लन की मुलाकात मुंगेर जिले के बरियारपुर के रहने वाले शूटर संतोष चौधरी से हुई. वह पैसे ले कर हत्याएं करता था. पप्पू को अपनी पत्नी संगीता और लल्लन के अवैध संबंधों की जानकारी हो गई थी. लल्लन को ले कर दोनों के बीच अकसर विवाद भी होता था. यह विवाद इतना बढ़ जाता था कि उन के बीच हाथापाई तक की नौबत आ जाती थी. संगीता किसी भी हालत में लल्लन से अलग होने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने पति से साफ कह दिया था कि वह लल्लन के बिना नहीं जी सकती. भले ही जिस्म पर तुम्हारा (पप्पू) अधिकार हो लेकिन इस दिल पर लल्लन का अधिकार है, मुझे उस से कोई अलग नहीं कर सकता, तुम भी नहीं.

पत्नी का दोटूक जवाब सुनने के बाद पप्पू का पुरुषत्व ललकार उठा. वह क्या कोई भी पति सहन नहीं कर सकता कि उस की पत्नी उस के जीते जी किसी गैरमर्द की बाहों में झूले. संगीता और पप्पू अपनीअपनी जिद पर अड़े थे, जिस की वजह से दोनों की जिंदगी विवादों के ऐसे तूफान में घिर गई जिस से उन के जीवन का तिनकातिनका बिखेर दिया. घर से जैसे सुकून और शांति दोनों ही रूठ गईं. घर में आए दिन किचकिच होती रहती थी. संगीता पति को समझने लगी नासूर संगीता लल्लन के प्यार में पागल थी. जो पप्पू कभी उस के सपनों का राजकुमार था, वही उस के लिए खलनायक बन गया था. संगीता पप्पू नाम के खलनायक को अपनी जिंदगी से हमेशा के लिए उखाड़ फेंकना चाहती थी. इस के लिए वह लल्लन के जेल से आने का इंतजार कर रही थी. आखिर वह अपने प्रेमी की जमानत के लिए खुद आगे आई और वकील से बात कर उस की जमानत करा दी.

फरवरी 2019 में जब लल्लन जेल से बाहर आया तो उस ने पप्पू को अपने रास्ते से हटाने की योजना बनाई. दरअसल संगीता ने लल्लन से कह दिया था कि अगर मुझे पाना चाहते हो तो पप्पू नाम के कांटे को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दो. अगर ऐसा नहीं कर सकते तो मुझे भूल जाओ, फिर कभी मेरे दरवाजे पर मत आना. प्रेमिका के गुस्से को देख कर लल्लन डर गया और उस ने उस की बात मानने के लिए हामी भर दी. उस दिन के बाद उस ने संतोष चौधरी की तलाश शुरू कर दी. संतोष भी जमानत पर जेल से बाहर आ चुका था. संतोष चौधरी से फोन पर बात कर लल्लन यादव ने पप्पू यादव की हत्या की बात की. 5 लाख रुपए में सौदा हो गया. संतोष ने पेशगी के रूप में 2 लाख रुपए मांगे. बाकी की रकम काम हो जाने के बाद देने की बात हुई.

हत्या के नाम पर लल्लन ने खरीदी बाइक लल्लन ने यह बात संगीता को बता दी. संगीता ने अपने आईडीबीआई बैंक एकाउंट से 2 लाख रुपए निकाल कर लल्लन को दे दिए. लल्लन ने चालाकी करते हुए उस पैसे में से शूटर को एक लाख 25 हजार रुपए दिए और बाकी रकम अपने पास रख ली. घटना से 2 दिन पहले लल्लन ने अपने लिए नई बाइक खरीदने के लिए संगीता से एक लाख रुपए की और डिमांड की. संगीता ने उसे एक लाख रुपए और दे दिए. सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था. संगीता और पप्पू के बीच मनभेद और मतभेद दोनों ही चल रहे थे. 26 मई, 2019 की शाम साढ़े 7 बजे जब शहर वाले घर से अपनी बाइक से गांव चनका के लिए निकला तो संगीता ने फोन कर के लल्लन को बता दिया. लल्लन ने यह बात शूटर संतोष चौधरी को बता दी.

लल्लन की काल आने के बाद संतोष चौधरी अपने साथ निशांत यादव को साथ ले कर जगैल चौक राइस मिल के पास घात लगा कर खड़ा हो गया. संतोष 2 दिन से पप्पू पर नजर रखे हुए था. वह उस की रेकी कर रहा था कि वह कब, कहां और कैसे जा रहा है. जब वह निश्चिंत हो गया था कि पप्पू के आनेजाने का एकमात्र रास्ता यही है तो वहीं घात लगा कर खड़ा हो गया. जैसे ही पप्पू अपनी बाइक से जगैल चौक राइस मिल के पास पहुंचा, पहले से मौजूद संतोष ने उस के पीछेपीछे अपनी बाइक लगा दी और ओवरटेक कर के उस की बाइक रोक ली. बाइक संभालते समय पप्पू फिसल कर जमीन पर जा गिरा. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, संतोष ने पिस्तौल निकाल कर उस पर तान दी. पप्पू जान बचा कर वहां से भागा तो संतोष और निशांत यादव ने उसे दौड़ा कर गोलियों से भून डाला.

पप्पू की हत्या करने के बाद संतोष चौधरी ने लल्लन को फोन कर के बता दिया था कि उस ने टारगेट पूरा कर दिया है. बाकी की रकम उसे जल्द से जल्द मिल जानी चाहिए. लल्लन ने फोन कर के यह बात संगीता को बता दी. पति की हत्या की खबर सुन कर संगीता खुश हुई. बाद में पुलिस द्वारा फोन करने पर वह घडि़याली आंसू बहाते हुए घटनास्थल पर पहुंची, लेकिन उस की चालाकी धरी की धरी रह गई. अंतत: वह वहां पहुंच गई, जहां उसे अपने कर्मों की सजा भोगनी है.

कथा लिखे जाने तक उपमुखिया संगीता गिरफ्तार की जा चुकी थी. तीनों आरोपियों लल्लन यादव, संतोष चौधरी और निशांत यादव के साथ वह भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गई. पुलिस ने केस की तफ्तीश कर चारों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Mirzapur Crime : पत्नी ने 21 साल बाद लिया अपहरण का बदला

Mirzapur Crime : कोई महिला 21 साल तक किसी की पत्नी बन कर रहे, उस के 2 बच्चों की मां बने और फिर इसलिए पति की हत्या करवा दे, क्योंकि 21 साल पहले उस के पति ने न केवल उस का अपहरण किया था, बल्कि उस के भाई की हत्या भी कर दी थी. सुनने में यह असंभव सी बात लगती है, लेकिन कंचन और प्रमोद के मामले में ऐसा ही हुआ. कैसे…

4 फरवरी, 2020 की सुबह मीरजापुर के थाना विंध्याचल की पुलिस को सूचना मिली कि गोसाईंपुरवा स्थित कालीन के कारखाने में रहने वाले प्रमोद की रात में किसी ने हत्या कर दी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने भादंवि की धारा 302, 452 के तहत प्रमोद की हत्या का मुकदमा  दर्ज कराया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो प्रमोद की लाश चारपाई पर पड़ी थी. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास रही होगी, उस का सिर किसी भारी चीज से कुचला गया था. मृतक के शरीर से जो खून बहा था, वह सूख कर काला पड़ चुका था. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या आधी रात के पहले यानी 9-10 बजे के आसपास की गई थी. ठंड का मौसम था, इसलिए खून पूरी तरह नहीं सूखा था.

थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने साथियों की मदद से घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. उन्होंने आसपास उस भारी चीज की भी तलाश की, जिस से हत्या की गई थी. पर काफी कोशिश के बाद भी पुलिस को कुछ नहीं मिला. थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम बुला ली. टीम ने वहां से जरूरी साक्ष्य जुटाए. सारी काररवाई पूरी कर उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. सारी काररवाई निपटा कर वेदप्रकाश राय ने हत्यारे का पता लगाने के लिए कारखाने में काम करने वाले प्रमोद के साथियों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में पता चला कि प्रमोद कहीं बाहर का रहने वाला था. वह काफी दिनों से यहीं रह रहा था. वह कहां का रहने वाला था, यह बात कोई नहीं बता सका.

बस इतना ही पता चला कि उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चे थे. पत्नी जिला कौशांबी में होमगार्ड में थी. बेटी अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही थी, जबकि बेटा दिल्ली में रह कर कोई प्राइवेट नौकरी करता था, साथ ही उस ने राजस्थान इंटर कालेज से प्राइवेट फार्म भी भर रखा था. प्रमोद मीरजापुर में कालीन बुनाई का काम करता था, जबकि पत्नी कंचनलता कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर थी. इस का मतलब दोनों अलगअलग रहते थे. पूछताछ में प्रमोद के साथियों ने यह भी बताया था कि पतिपत्नी में पटती नहीं थी. प्रमोद पत्नी से अकसर मारपीट करता था. उस की इस मारपीट से आजिज कंचनलता मीरजापुर कम ही आती थी.

थानाप्रभारी राय को जब पतिपत्नी के बीच तनाव की बात पता चली तो उन्हें लगा कि कहीं प्रमोद की हत्या इसी तनाव के कारण तो नहीं हुई. पूछताछ में उन्हें यह भी पता चला कि उस कारखाने में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. इस से उन्हें उम्मीद जगी कि सीसीटीवी फुटेज से हत्यारे का अवश्य पता चल जाएगा. उन्होंने उस रात की सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उन की उम्मीद पूरी तरह से खरी उतरी. सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि प्रमोद की हत्या एक पुरुष और एक महिला ने मिल कर की थी. थानाप्रभारी को लगा कि वह औरत कोई और नहीं, मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही होगी.

राय ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज प्रमोद के साथ काम करने वाले कर्मचारियों को दिखाई तो उस महिला की ही नहीं, बल्कि उस के साथ हत्या में शामिल पुरुष की भी पहचान कर दी. वह औरत मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही थी. उस के साथ जो पुरुष था, वह उस का भाई अंबरीश था. प्रमोद की हत्या बहनभाई ने मिल कर की थी. प्रमोद के हत्यारों को पता चल गया था, अब उन्हें गिरफ्तार करना था. लेकिन उन्हें गिरफ्तार करना इतना आसान नहीं था. क्योंकि थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय जानते थे कि अब तक कंचनलता फरार हो चुकी होगी. हत्या के बाद उन्होंने उसे बुला कर पूछताछ भी की थी, तब उस ने स्वयं को निर्दोष बताया था.

फिर भी एक पुलिस टीम कौशांबी गई. जैसी पुलिस को आशंका थी, वैसा ही हुआ. कंचनलता वहां नहीं मिली. उस का मोबाइल नंबर उन के पास था ही. पुलिस ने यह बात एसपी डा. धर्मवीर सिंह को बताई तो उन्होंने कंचनलता का नंबर सर्विलांस टीम को दे कर उस के बारे में पता करने का आदेश दिया. यही नहीं, उन्होंने सर्विलांस टीम के अलावा एसआईटी और स्वाट को भी कंचनलता व उस के भाई अंबरीश को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. इसी के साथ उन्होंने दोनों भाईबहन को गिरफ्तार करने वाली टीम को 25 हजार रुपए बतौर ईनाम देने की घोषणा भी की.

अब थाना पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, एसआईटी और स्वाट भी कंचनलता और अंबरीश के पीछे लग गईं. थाना पुलिस ने अपने मुखबिरों को दोनों के बारे में पता करने के लिए लगा दिया था. इन कोशिशों से फायदा यह निकला कि 22 फरवरी यानी हत्या के 19 दिनों बाद मुखबिर ने सटीक जानकारी दी. मुखबिर ने काले रंग की उस प्लेटिना मोटरसाइकिल यूपी53सी जेड1559 के बारे में भी बताया, जिस पर सवार हो कर भाईबहन गोसाईंपुरवा से अमरावती चौराहे की ओर जा रहे थे. मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीमों ने रात लगभग सवा 10 बजे कालीखोह मेनरोड गेट के पास से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों उसी मोटरसाइकिल पर सवार थे, जिस के बारे में मुखबिर ने सूचना दी थी. दोनों को गिरफ्तार करने के बाद थाने लाया गया.

कंचन और अंबरीश की गिरफ्तारी की सूचना अधिकारियों को भी दे दी गई थी. खबर पा कर एसपी भी थाना विंध्याचल आ गए. उन की उपस्थिति में कंचन और अंबरीश से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का अपराध स्वीकार करने के साथ प्रमोद की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी—

इस कहानी की शुरुआत सन 1999 में तब हुई, जब अंबरीश नाबालिग था. वह उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना सहजनवां के गांव बेलवाडांडी के रहने वाले सोहरत सिंह (गौड़) का सब से छोटा बेटा था. उस से बड़ा एक भाई धर्मवीर और 2 बहनें शशिकिरन तथा कंचनलता थीं. शशिकिरन शादी लायक हुई तो सोहरत सिंह ने उस की शादी जिला संत कबीर नगर के रहने वाले दशरथ सिंह से कर दी. इस के बाद उन्हें दूसरी बेटी कंचनलता की शादी करनी थी. क्योंकि वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. सोहरत सिंह उस के लिए घरवर की तलाश में लगे थे. लेकिन वह उस की शादी कर पाते, उस के पहले ही उस के साथ एक दुर्घटना घट गई.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी कंचनलता काफी सुंदर थी. सुंदर होने की वजह से गांव के लड़कों की नजरें उस पर जम गई थीं. ज्यादातर लड़के तो उसे सिर्फ देख कर ही संतोष कर लेते थे, पर उन्हीं में एक प्रमोद था, जो उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया था. कंचन को एक नजर देखने के लिए वह दिन भर उस के घर के आसपास घूमता रहता था. उस की हरकतों से कंचन को उस के इरादों का पता चल गया. कंचन उस तरह की लड़की नहीं थी, उसे खुद की और मातापिता की इज्जत का खयाल था, वह जानती थी कि अगर एक बार बदनामी का दाग लग गया तो जीवन भर नहीं छूटेगा.

यही सब सोच कर एक दिन उस ने प्रमोद को डांट दिया. प्रमोद दब्बू किस्म का लड़का नहीं था. वह कंचन से प्यार करता था, इसलिए डांट का भी जवाब प्यार से ही दिया. उस ने कहा, ‘‘कंचन, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम मेरे दिल में बसी हो, मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा.’’

कंचन तो वैसे ही गुस्से में थी. उस ने प्रमोद को दुत्कारने वाले अंदाज में कहा, ‘‘शक्ल देखी है अपनी, जो मुझे रानी बनाने चला है. तेरे जैसे 36 लड़के मेरे पीछे पड़े हैं. पर मैं ने किसी को राह में नहीं आने दिया तो तू किस खेत की मूली है.’’

‘‘मैं उन 36 में से नहीं हूं, मैं ने तुम्हें चाहा है तो अपनी बना कर ही रहूंगा.’’ प्रमोद ने कहा.

‘‘अरे जाओ यहां से. फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़वा दूंगी.’’ कंचन ने धमकी दी.

उस समय कंचन अपने घर पर थी, इसलिए शोर मचा कर बखेड़ा कर सकती थी. प्रमोद उस के घर के सामने कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह वहां पिट सकता था. इसलिए उस ने वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन जातेजाते उस ने इतना जरूर कहा, ‘‘तू कुछ भी कर ले कंचन, तुझे बनना मेरी ही है.’’

कंचन के लिए यह एक चुनौती थी. वह भी जिद्दी किस्म की लड़की थी. उस के घर वाले भी दबंग थे, गांव में किसी से न डरने वाले. लड़ाईझगड़ा और मारपीट से भी नहीं घबराते थे. यही वजह थी कि कंचन किसी से नहीं डरती थी. उस ने प्रमोद की शिकायत अपने घर वालों से कर दी. इस के बाद तो दोनों परिवारों में जम कर लड़ाईझगड़ा हुआ. प्रमोद के घर वाले भी कम नहीं थे. पर गांवों में लड़की की इज्जत, घरपरिवार की इज्जत से ही नहीं गांव की इज्जत से जोड़ दी जाती है. इसलिए गांव के बाकी लोग सोहरत सिंह की तरफ आ खड़े हुए. इस से प्रमोद के घर वाले कमजोर पड़ गए, जिस से उस के घर वालों को झुकना पड़ा.

इस घटना से प्रमोद की तो बदनामी हुई ही, उस के घर वालों की भी खासी फजीहत हुई. यह सब कंचन की वजह से हुआ था, इसलिए प्रमोद उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. वह मौके की तलाश में लग गया. आखिर उसे एक दिन मौका मिल ही गया. गर्मियों के दिन थे. फसलों की कटाई चल रही थी. लोग देर रात खेतों पर फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. उस समय आज की तरह ट्रैक्टर से मड़ाई और कटाई नहीं होती थी. तब कटाई हाथों से होती थी और मड़ाई थ्रेशर या बैलों से, इसलिए फसल की कटाई और मड़ाई में काफी समय लगता था. गरमी के बाद बरसात आती है, इसलिए लोग जल्दी से जल्दी फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. इस के लिए लोग देर रात तक खेतों में काम करते थे.

कंचन के घर वालों की फसल की कटाई और मड़ाई लगभग खत्म हो चुकी थी. जो बची थी, उसे जल्दी से जल्दी निपटाने के चक्कर में देर रात तक खेतों में काम करते थे. वैसे भी जून का अंतिम सप्ताह चल रहा था, बरसात कभी भी हो सकती थी. 27 जून, 1997 की रात खेतों पर काम कर के सभी घर आ गए, पर कंचन नहीं आई थी. रात का समय था, इसलिए ज्यादा इंतजार भी नहीं किया जा सकता था. फिर कंचन रात को कहीं रुकने वाली भी नहीं थी. जिस दिन प्रमोद के घर वालों से झगड़ा हुआ था, उसी दिन प्रमोद ने धमकी दी थी कि वह अपनी बेइज्जती का बदला जरूर लेगा.

कंचन के घर न पहुंचने पर उस के घर वालों को प्रमोद की वह धमकी याद आ गई. कंचन के घर वाले तुरंत प्रमोद के घर पहुंचे तो पता चला कि वह भी घर से गायब है. पूछने पर घर वालों ने साफ कहा कि उन्हें न प्रमोद के बारे में पता है, न कंचन के बारे में. गांव वालों ने भी दबाव डाला, पर न कंचन का कुछ पता चला न प्रमोद का. घर वाले पूरी रात गांव वालों के साथ मिल कर कंचन को तलाश करते रहे, पर उस का कुछ पता नहीं चला. सोहरत सिंह की गांव में तो बेइज्जती हुई ही थी, धीरेधीरे नातेरिश्तेदारों को भी कंचन के घर से गायब होने का पता चल गया था. अब तक साफ हो गया था कि कंचन को प्रमोद ही अगवा कर के ले गया था.

घर वाले खुद ही कंचन को ढूंढ लेना चाहते थे, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी जब वे कंचन और प्रमोद का पता नहीं लगा सके तो करीब 3 महीने बाद 14 सितंबर, 1997 को गोरखपुर के महिला थाने में कंचन के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. पुलिस ने इस मामले को अपराध संख्या 01/1997 पर भादंवि की धारा 363, 366 के तहत दर्ज कर लिया. उस समय कंचन का भाई अंबरीश नाबालिग था. उस का बड़ा भाई धर्मवीर समझदार था. उसे परिवार की बेइज्जती का बड़ा मलाल था, इसलिए वह खुद बहन की तलाश में लगा था. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस इस मामले में कुछ खास नहीं करेगी. उस समय आज की तरह न मोबाइल फोन थे, न सर्विलांस की व्यवस्था थी.

कंचन का भाई धर्मवीर कंचन और उस का अपहरण कर के ले जाने के दिन से प्रमोद की तलाश में दिनरात एक किए हुए था. प्रमोद ने समाज में उस की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंचाई थी. धर्मवीर दोनों की तलाश में ट्रेन से कानपुर जा रहा था. लेकिन वह कानपुर नहीं पहुंच सका. उस की लाश ट्रेन की पटरी के पास मिली. पुलिस ने इसे दुर्घटना माना और इस मामले की फाइल बंद कर दी. पुलिस ने धर्मवीर की मौत को भले ही दुर्घटना माना, लेकिन घर वालों ने धर्मवीर की मौत को हत्या माना. उन्हें लग रहा था कि धर्मवीर की हत्या प्रमोद के घर वालों ने की है. क्योंकि वह प्रमोद के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. अपने परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद को मान कर अंबरीश, उस के पिता सोहरत सिंह, चाचा जगरनाथ सिंह ने मिल कर प्रमोद के छोटे भाई नीलकमल की हत्या कर दी. यह सन 2001 की बात है.

इस मामले का मुकदमा थाना सहजनवां (वर्तमान में थाना गीडा) गोरखपुर में भादंवि की धारा 302, 506 के तहत दर्ज हुआ. नीलकमल की हत्या के आरोप में सोहरत सिंह और जगरनाथ सिंह को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. इस समय दोनों हाईकोर्ट से मिली जमानत पर बाहर हैं. घटना के समय अंबरीश नाबालिग था. उस का मुकदमा अभी विचाराधीन है. वह भी जमानत पर है. नीलकमल की हत्या में अंबरीश की चाची उर्मिला को भी अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन वह दोषमुक्त साबित हुई. इस परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद था, इसलिए अंबरीश प्रतिशोध की आग में जल रहा था. वह किसी भी तरह प्रमोद को ठिकाने लगाना चाहता था, पर उस का कुछ पता ही नहीं चल रहा था.

दूसरी ओर कंचनलता को अगवा करने के बाद प्रमोद ने उस से जबरदस्ती शादी कर ली और किसी अज्ञात जगह पर छिप कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद वह उसे ले कर मीरजापुर आ गया और किराए का मकान ले कर रहने लगा. गुजरबसर के लिए वह मजदूरी करता रहा. इस बीच दोनों 2 बच्चों, एक बेटी आकृति और एक बेटे स्वयं सिंह के मातापिता बन गए. आकृति इस समय अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही है तो स्वयं सिंह प्राइवेट पढ़ाई करते हुए दिल्ली में नौकरी कर रहा है. धीरेधीरे गृहस्थी जम गई. लेकिन कंचन ने न कभी प्रमोद को दिल से पति माना और न ही प्रमोद ने उसे पत्नी. बस दोनों रिश्ता निभाते रहे. यही वजह थी कि दोनों में कभी पटरी नहीं बैठी. कंचन को प्रमोद पर भरोसा नहीं था, इसलिए वह पढ़लिख कर कुछ करना चाहती थी.

इस की एक वजह यह थी कि प्रमोद अकसर उस के साथ मारपीट करता था. शायद इसलिए कि कंचन की वजह से उस का घरपरिवार छूटा था. अगर वह चुनौती न देती तो वह भी इस तरह भटकने के बजाए अपने परिवार के साथ सुख से रह रहा होता. कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती. कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.

इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था. मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.

अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी. करीब 21 साल बाद उस ने अपने परिचित सुरेश दूबे को संत कबीर नगर में रहने वाली अपनी बहन के यहां भेज कर अपने बारे में सूचना दी. इस के बाद बहन को उस का मोबाइल नंबर मिल गया. दोनों बहनों की बातचीत होने लगी. बहन ने ही उसे मायके का भी नंबर दे दिया था. कंचन की मायके वालों से बातें होने ही लगीं, तो वह मायके भी गई.

अंबरीश गाजियाबाद की एक मोटर पार्ट्स की दुकान में नौकरी करता था. वह मोटर पार्ट्स लाने ले जाने का काम करता था, इसलिए उस का हर जगह आनाजाना लगा रहाता था. उसे भी बहन कंचन का नंबर मिल गया था, इसलिए वह भी बहन से बातें करने लगा था. अंबरीश बहन से अकसर प्रमोद का मीरजापुर वाला घर दिखाने को कहता था, क्योंकि वह प्रमोद की हत्या कर अपने परिवार की बदनामी और बरबादी का बदला लेना चाहता था. अपनी इसी योजना के तहत वह 1 फरवरी, 2020 को दिल्ली से चल कर 2 फरवरी को मंझनपुर में रह रही बहन कंचन के यहां पहुंचा. अगले दिन यानी 3 फरवरी की सुबह उस ने कंचन को विश्वास में ले कर उस का मोबाइल फोन बंद कर के कमरे पर रखवा दिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन से अपराधियों तक पहुंच जाती है.

उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर दिया. दिन के 10 बजे वह कंचन को मोटरसाइकिल से ले कर मीरजापुर के लिए चल पड़ा. दोनों 4 बजे के आसपास मीरजापुर पहुंचे. पहले उन्होंने विंध्याचल जा कर मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए. इस के बाद दोनों इधरउधर घूमते हुए रात होने का इंतजार करने लगे. रात 11 बजे जब दोनों को लगा कि अब तक कारखाने में काम करने वाले मजदूर चले गए होंगे और प्रमोद सो गया होगा तो कंचन उसे ले कर कारखाने पर पहुंच गई. कंचन अंबरीश को कारखाना दिखा कर बाहर ही रुक गई. अंबरीश अकेला कारखाने के अंदर गया तो प्रमोद को सोते देख खुश हुआ. क्योंकि अब उस का मकसद आसानी से पूरा हो सकता था.

उस ने देर किए बगैर वहां रखी ईंटों में से एक ईंट उठाई और प्रमोद के सिर पर दे मारी. ईंट के प्रहार से प्रमोद उठ कर बैठ गया पर वह अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही अंबरीश ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कसना शुरू कर दिया. अपने बचाव में प्रमोद ने संघर्ष किया, जिस से अंबरीश को भी चोटें आईं. पर एक तो प्रमोद पहले ही ईंट के प्रहार घायल हो चुका था, दूसरे अंगौछा से गला कसा हुआ था, इसलिए काफी प्रयास के बाद भी वह स्वयं को नहीं बचा सका.

गला कसा होने की वजह से वह बेहोश हो गया तो अंबरीश ने उसी ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. खुद को बचाने के लिए प्रमोद संघर्ष करने के साथसाथ ‘बचाओ…बचाओ’ चिल्ला भी रहा था.  उस की ‘बचाओ…बचाओ’ की आवाज सुन कर कंचन जब अंदर आई, तब तक अंबरीश उस की हत्या कर चुका था. अंबरीश का काम हो चुका था, इसलिए वह बहन को ले कर रात में ही मोटरसाइकिल से मंझनपुर चला गया. अगले दिन पुलिस ने जब कंचनलता को प्रमोद की हत्या की सूचना दे कर थाना विंध्याचल बुलाया तो कंचन ने अंबरीश को खलीलाबाद भेज दिया. इस की वजह यह थी कि प्रमोद जब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब उसे चोटें आ गई थीं.

उस के शरीर पर चोट के निशान देख कर पुलिस को शक हो जाता और वे पकड़े जाते. अंबरीश को खलीलाबाद भेज कर कंचनलता सुरेश दुबे के साथ थाना विंध्याचल आई. इस के बाद वह भी फरार हो गई. दोनों ने बड़ी होशियारी से प्रमोद की हत्या की, पर कारखाने में लगे सीसीटीवी ने उन की पोल खोल दी. और वे पकड़े गए. अंबरीश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से प्रमोद की हत्या की गई थी. इस तरह प्रमोद की नादानी से दो परिवार बरबाद हो गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास प्रमोद के घर का पता नहीं था, इसलिए पुलिस ने थाना विंध्याचल को उस की हत्या की सूचना दे कर थाना सहजनवां पुलिस को खबर भिजवाई.

 

UP Crime : बॉयफ्रेंड के संग साजिश रचकर पत्नी ने कुल्हाड़ी से पति को मारवाया

UP Crime : पति, बच्चे और अच्छी गृहस्थी होने के बावजूद अगर कोई औरत सामाजिक मर्यादाओं को लांघ जाए तो बरबादी निश्चित होती है. प्रतीक्षा ने यही गलती की और…

यशवंत की जगह कोई दूसरा होता तो सुहागरात को ही प्रतिक्षा की कामेच्छाओं के वेग को समझ जाता, लेकिन यशवंत को इस बात का अहसास तक नहीं हुआ. पत्नी की खूबसूरती ने उसे कुछ भी सोचनेसमझने का मौका नहीं दिया, दिमाग कुंद हो गया था उस का. सुहागरात को यशवंत कमरे में पहुंचा तो प्रतीक्षा पलंग पर लेटी थी. उस की आहट पाते ही उस ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. पति को आया देख वह उठ कर बैठ गई और साड़ी के पल्लू को घूंघट बना कर मुंह ढक लिया.

मिलन की उमंगों से भरा यशवंत अपनी दुलहन प्रतीक्षा के पास जा बैठा. उसे उन शादीशुदा दोस्तों की बातें याद आ रही थी, जिन्होंने उसे सुहागरात को बीवी का तनमन जीतने का हुनर सिखाया था. उसे दोस्तों की पहली टिप्स याद आई. जब तुम दुलहन का घूंघट उठाओगे, तब उस के गाल शर्म से गुलाबी हो जाएंगे. उस के होठों पर मुसकान तो रहेगी, मगर लाज से नजरें झुक जाएंगी. हालांकि सुहागरात का यह दूसरा अनुभव था यशवंत का, फिर भी वह प्रतीक्षा के सामने पहली बार बने दूल्हे की तरह व्यवहार कर रहा था. यशवंत ने उंगलियों से साड़ी का किनारा पकड़ा और अपनी दुलहन का घूंघट उलट दिया.

चेहरे की दमक तो सामने आ गई, लेकिन न तो लाज से दुलहन की नजरें झुकीं और न होठों पर सौम्य मुसकान आई. कुछ देर तक वह यशवंत की आंखों में देखती रही, फिर खिलखिला कर हंसने लगी. हतप्रभ यशवंत प्रतीक्षा का मुंह ताकता रह गया. पति के भावों को समझने की कोशिश करते हुए प्रतीक्षा शोखी से बोली, ‘‘ऐ ऐसे क्यों देख रहे हो, मैं पागल नहीं हूं.’’

‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ कुछ नहीं सूझा तो हैरानपरेशान यशवंत ने सवाल किया, ‘‘दूल्हा घूंघट उठाए तो इस तरह नहीं हंसना चाहिए.’’

‘‘यह क्या बात हुई’’ प्रतीक्षा की हंसी घट कर मुसकान में तबदील हो गई. ‘‘सुहागरात को दुलहन पति के लिए निर्वस्त्र हो सकती है, मगर हंस नहीं सकती. मैं हंस दी तो कौन सा पाप हो गया?’’

‘‘पाप तो नहीं हुआ,’ यशवंत ने धीमे से मुंह खोला, ‘‘लेकिन दुलहनें इस तरह नहीं हंसा करतीं.’’

‘‘मैं पुराने जमाने की नहीं, इक्कीसवी सदी की दुलहन हूं’’ प्रतीक्षा का लहजा बेबाक था, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मेरे पास क्यों आए हो. मैं जानती हूं कि तुम मेरे साथ क्याक्या करने वाले हो. मेरे मातापिता जानते हैं कि आज की रात दूल्हादुलहन कैसे खेलेंगे. तुम्हारे घर वालों ने तुम्हें मेरे पास खेलने के लिए ही भेजा है. सब जानते हैं कि आज क्या होगा, फिर मैं क्यों लाज का आडंबर करूं.’’

यशवंत हैरत से प्रतीक्षा का मुंह देखता रह गया. प्रतीक्षा अपनी रौ में बोली, ‘‘मैं जिंदगी के हर पल को शिद्दत से जीना चाहती हूं. आज रात हमारी देहों का मिलन होना है. लाज संकोच के बजाय अगर सबकुछ हंसीखुशी हो तो उस का आनंद ही निराला होगा.’’ वह यशवंत की आंखों में देखते हुए मुसकराई. ‘‘होगा न?’’

यशवंत प्रतीक्षा के तर्कों से प्रभावित हुआ. सोचा, नए जमाने की लड़कियां शर्म की गुडि़यां थोड़े ही बनेंगी. पुराने जमाने की बात अलग थी, जब लड़कियां स्त्रीपुरूष के अंतरंग संबंध से अंजान होती थीं. शादी के पहले भावी दुलहनों को रिश्ते की भाभियां समझाती थीं कि सुहागरात को दूल्हादुल्हन के बीच क्या होता है. अब तो फिल्मों, केबल और इंटरनेट सब कुछ सिखा देते हैं. लड़केलड़कियों को होश संभालते ही इस सब की समझ आने लगती है. यही सब सोच कर यशवंत के होठों पर मुसकान आ गई. ‘‘तुम सही कहती हो प्रतीक्षा, एक घंटे बाद हमें बेशर्म होना है तो क्यों न पहले ही शर्म का लबादा उतार कर खूंटी पर टांग दें. मिलन का आनंद दूना हो जाएगा.’’

‘‘तो फिर दूर क्यों हो, करीब आओ.’’ प्रतीक्षा ने मुसकरा कर बांहे फैला दी. यशवंत सारी बातें भूल कर प्रतीक्षा की बांहों में समा गया. 40 वर्षीय प्रतीक्षा फतेहपुर जनपद के दुर्गा कालोनी, हरिहरगंज की रहने वाली थी. उस की मां का नाम कमला और पिता का नाम चंद्रभान था. चंद्रभान विकास भवन में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. प्रतीक्षा के अलावा उन की कोई संतान नहीं थी.

प्रतीक्षा मांबाप की एकलौती संतान थी. इसलिए न तो उस के कहीं घूमने पर पाबंदी थी, और न ही उसे किसी चीज के लिए तरसना पड़ता था. फरमाइश करते ही मनचाही चीज हाजिर हो जाती थी. संभवत: परिवार में मिली आजादी का ही नतीजा था कि प्रतीक्षा जीवन के हर पल को खुल कर और मस्ती से जीने की आदी हो गई थी. मांबाप भी प्रतीक्षा के खुल कर मस्ती से जीने के अंदाज को जानते थे. इसलिए जब वह जवान हुई तब उन्हें डर सताने लगा कि कहीं प्रतीक्षा जवानी को भी खुल कर एंजौय न करने लगे. यह अलग बात थी कि प्रतीक्षा ने न किसी से प्रेमिल संबंध बनाया, न किसी को अपने यौवन का अनमोल तोहफा दिया. उस ने अपना कौमार्य पति की अमानत समझ कर सहेजे रखा.

हां, उस की यह तमन्ना जरूर थी कि शादी के बाद का जीवन वह खुल कर मस्ती से जीएगी और इस की शुरुआत वह सुहागरात से ही कर देगी. क्रांतिकारी विचारधारा की पुत्री को मातापिता अधिक दिनों तक घर में बैठाए रखने के पक्ष में नहीं थे. जवानी का क्या भरोसा, कब बहक जाए. लेकिन सोचने भर से सब काम नहीं हो जाते. प्रतीक्षा के लिए कई रिश्ते देखे गए लेकिन बात नहीं बनी. शायद समय और किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा की उम्र बढ़ती जा रही थी, लेकिन कहीं भी उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. ऐसे में उस के मांबाप को चिंता सताने लगी. जवान बेटी को अधिक दिनों तक घर में नहीं बैठाया जा सकता, लोग तरहतरह की बातें बनाने लगते हैं.

फतेहपुर के थाना हुसैनगंज क्षेत्र के गांव चांदपुर में भवानी शंकर सिंह रहते थे. वह एक स्कूल में अध्यापक थे. इस के साथ ही खेतीबाड़ी का काम भी करते थे. परिवार में पत्नी शिवरानी देवी और 3 बेटे थे. कालिका, रवींद्र और यशवंत. बेटे जवान हो गए तो उन्होंने अपनी जमीनजायदाद का बराबरबराबर बंटवारा कर दिया. बड़े बेटे कालिका का विवाह करने के बाद 1994 में भवानी शंकर दुनिया से चल बसे. रवींद्र शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गया. सन 2000 में विवाह के बाद वह फतेहपुर शहर में शिफ्ट हो गया था.

सब से छोटा यशवंत सरल स्वभाव का था. बीएससी करने के बाद वह गांव में ही खेती करने लगा. 2003 में उस का विवाह फतेहपुर के मलौली थाना क्षेत्र की कुर्रा कनक गांव निवासी गुड्डन से हुआ. गुड्डन ने 2 बेटों को जन्म दिया लेकिन दूसरे बच्चे की डिलीवरी के समय उस की मृत्यु हो गई. गुड्डन की मौत के बाद दोनों बच्चों को उन की नानी अपने साथ ले गई. 2013 में चंद्रभान अपनी बेटी प्रतीक्षा का रिश्ता ले कर आए तो यशवंत के घर वाले मना नहीं कर पाए क्योंकि यशवंत के सामने लंबी जिंदगी पड़ी थी. बिना हमसफर के जिंदगी काटना मुश्किल था. शादी तय हो जाने के बाद दोनों का विवाह हो गया. प्रतीक्षा सुर्ख जोड़े में मायके से ससुराल आ गई.

ससुराल में दूल्हादुलहन के मिलन की पहली रात थी, अरमानों की रात सुहागरात. सुहागशैया पर यशवंत के घूंघट उठाते ही जिस तरह प्रतीक्षा खुलेपन से पेश आई, उस से यशवंत स्तब्ध रह गया. यह अलग बात है कि प्रतीक्षा ने उसे गलत सोचने नहीं दिया. उस ने यशवंत को विश्वास दिला दिया कि वह इक्कीसवीं सदी की औरत है, बिंदास जिंदगी के हर पल का आनंद ले कर शिद्दत से जीने वाली. नई और पुरानी का फर्क यशवंत को भी अलग अनुभव हुआ. पहली पत्नी गुड्डन पुराने ढर्रे पर चलने वाली ठेठ परिवारिक युवती थी. उस के साथ यशवंत ने वहीं अनुभव किया था जो वह सोच रहा था. लेकिन प्रतीक्षा के साथ उसे एक अलग ही अनुभव मिला.

जो युवती पहली रात को खुल कर खेल सकती थी, वह आगामी रातों में क्या गजब करेगी कहना मुश्किल था. यही सोच कर सशवंत के मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगा. वह सोचने लगा कि प्रतीक्षा शायद ऐसा अनुभव मायके से ले कर आई है. यशवंत ने उसे कटघरे में खड़ा भी किया, मगर उस का जवाब था कि वह जीवन के हर पल को आनंद से जीने की आदी है. खुलापन उस के जीने का अंदाज है, चरित्रहीनता का प्रमाण नहीं. यशवंत उस समय तो चुप रहा, पर प्रतीक्षा की तरफ से उस का मन साफ नहीं हुआ. यशवंत ने किसी तरह प्रतीक्षा के मायके से जानकारी जुटाई तो उस पर उंगली उठाने लायक कोई बात पता नहीं चली. इस से यशवंत ने मान लिया कि प्रतीक्षा तबियत से शौकीन जरूर है, पर उस का चरित्र बेदाग है.

यह प्रतीक्षा का शौक ही था कि वह एक रात भी न तो यशवंत से अलग रहती थी और न उसे अलग सोने देती थी. फलस्वरूप प्रतीक्षा ने 5 वर्ष पूर्व एक पुत्र को जन्म दिया, जिस का नाम यतेंद्र रखा गया. उस के कुछ बड़ा होने पर दोनों ने उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उस के नाना के घर भेज दिया. यशवंत की यह दूसरी शादी थी, उस की उम्र भी 40 के पार हो गई थी. अब उस में इतना दमखम नहीं रह गया था कि हर रोज प्रतीक्षा के बिस्तर का साथी बन कर रास रचाए. दूसरी ओर प्रतीक्षा को काफी देर से पुरूष सुख मिलना शुरू हुआ था, बढ़ती उम्र के साथ उस की कामेच्छाएं भी बढ़ गई थीं.

रात को यशवंत जब उस के पास नहीं आता तो वह झुंझला जाती. इस बात को ले कर दोनों में काफी बहस भी होती. प्रतीक्षा जिस तरह सुहागरात में यशवंत पर हावी हुई थी, उसी तरह समय के साथसाथ उस की जिंदगी पर भी हावी होती चली गई. उस के गलत व्यवहार के कारण ही यशवंत के भाई और परिवार उन दोनों से दूर हो गए थे. वे लोग उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखते थे. यशवंत कभीकभी चोरीछिपे अपने भाइयों से बात कर लेता था. दूसरी ओर प्रतीक्षा ने शादी से पहले तक अपने यौवन को किसी के हवाले नहीं किया था, अब वह पति की बेरुखी के चलते अपने यौवन के खजाने को दूसरों पर लुटाने को अमादा थी. यशवंत के ठंडेपन के चलते वह अपनी मर्यादा की सीमा को भी लांघने को तैयार थी. लेकिन इस के लिए उसे उपयुक्त साथी की जरूरत थी.

नवंबर 2018 में यशवंत के बड़े भाई कालिका की मुत्यु हो गई. उस की तेरहवीं में खाना बनाने के लिए एक व्यक्ति से बात की गई. पेसा वगैरह तय हो जाने के बाद उसे खाना बनाने का काम दे दिया गया. खाना बनाने के लिए आए कारीगरों में 30 वर्षीय संग्राम सिंह भी था. संग्राम सिंह फतेहपुर के थाना मलवां के गांव नसीरपुर बेलवारा निवासी कुंवर बहादुर सिंह का बेटा था. जो अविवाहित था. खाना बनाने के दौरान संग्राम प्रतीक्षा के संपर्क में आया. प्रतीक्षा ने कुंवारे खूबसूरत जवान संग्राम को देखा तो वह उसे मन भा गया. कभी कोई सामान देने तो कभी खाना कैसे बनाना है, को ले कर प्रतीक्षा उसे अपने पास बुलाती और रिझाने की कोशिश करती.

प्रतीक्षा की चालढाल और उस की हरकतों से संग्राम को भी समझते देर नहीं लगी कि वह उस पर डोरे डाल रही है. संग्राम खुद से 10 साल बड़ी प्रतीक्षा की खूबसूरती पर फिदा हो गया. जब शिकार खुद शिकार होने को तैयार था तो शिकारी क्यों चिंता करता. दोनों में हंसीमजाक, चुहलबाजियां हुई लेकिन लोगों की नजरों से बच कर. संग्राम जब अपना काम निपटा कर जाने लगा तो प्रतीक्षा की नजरों में बेचैनी झलकने लगी, जिसे संग्राम ने अच्छी तरह समझ लिया था. वह प्रतीक्षा से बोला, ‘‘अब हमारी इतनी जानपहचान तो हो ही गई है कि आगे भी मिलते रहें.’’

संग्राम खेलने के लिए कूदा प्रतीक्षा की पिच पर प्रतीक्षा ने मुसकरा कर संग्राम को हरी झंडी दे दी. यशवंत के गांव चांदपुर से संग्राम के गांव की दूरी महज 8 किलोमीटर थी. उस दिन के बाद से संग्राम अपनी बाइक से प्रतीक्षा से मिलने आने लगा. जब वह आता तो यशवंत खेतों पर होता. घर में प्रतीक्षा अकेली रहती थी. बारबार मिलते रहने से उन के बीच की झिझक खत्म होती गई. झिझक खत्म होते ही दोनों एकदूसरे से बेशर्मी से पेश आने लगे. उन के बीच अश्लील मजाक भी होने लगे. एक दिन ऐसे ही अश्लील मजाक के दौरान संग्राम ने प्रतीक्षा को दबोच लिया. घबराने का नाटक करते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो संग्राम?’’

जबकि मन ही मन वह संग्राम की इस हरकत से खुश थी. संग्राम ने उस के नाटक को भांप लिया था, क्योंकि वह यह सब दिखावे के लिए कर रही थी. संग्राम ने प्रतीक्षा को और ज्यादा कसके दबोचते हुए कहा, ‘‘मैं तो वही कर रहा हूं, जो तुम चाहती हो.’’

‘‘मैं ऐसा चाहती हूं, यह मैं ने तुम से कहा?’’

‘‘हर बात जुबां से ही नहीं कही जाती, आंखों भी बहुत कुछ बता देती हैं. मुझे तुम्हारी खूबसूरत आंखों ने बता दिया कि तुम्हें मेरे प्यार की बेहद जरूरत है.’’

‘‘अच्छा जी, मेरी आंखों ने तुम्हें सब कुछ बता दिया. जब बता ही दिया तो मेरी देह की किताब के पन्ने भी खोल कर पढ़ लो.’’

प्रतीक्षा बेचैन हो कर संग्राम के बदन से लिपट गई. इस के बाद संग्राम ने उस की देह की किताब का एकएक पन्ना खोल कर ऐसा पढ़ा कि प्रतीक्षा उस की दीवानी हो गई. उस दिन के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. 29 जनवरी, 2020 की सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा घर से निकल कर चीखनेचिल्लाने लगी. उस की चीखपुकार सुन कर गांव के लोग घर के सामने इकट्ठा हो गए. प्रतीक्षा ने बताया कि कुछ बदमाशों ने घर में घुस कर उस के पति यशवंत की हत्या कर दी है. लगभग 10 बजे प्रतीक्षा ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को घटना की सूचना दी. चूंकि घटनास्थल थाना हुसैनगंज क्षेत्र में आता था, सो कंट्रोल रूप से इस घटना की सूचना हुसैनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर इंसपेक्टर निशिकांत राय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक यशवंत के शरीर, सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे. प्रतीक्षा से पूछताछ की गई तो उस ने कुछ लोगों द्वारा घर में घुस कर यशवंत को मारने की बात बताई. प्रतीक्षा की बातें इंसपेक्टर राय के गले से नहीं उतर रही थीं. एक तो सुबह कोई घर में नहीं घुस सकता था. ऐसा होता तो हत्यारों के आते जाते या शोर मचने पर पड़ोसियों को पता चल जाता. दूसरे बदमाशों ने यशवंत की तो हत्या कर दी थी, लेकिन प्रतीक्षा को छोड़ दिया, उसे एक खरोंच तक नहीं आई थी. इस से इंसपेक्टर निशिकांत राय का शक प्रतीक्षा पर ही गया. फिलहाल उन्होंने यशवंत की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

मौके पर आए यशवंत के भाई रविंद्र और पड़ोसियों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर राय का शक प्रतीक्षा पर और गहरा हो गया. रविंद्र ने अपनी लिखित तहरीर में प्रतीक्षा और उस के प्रेमी संग्राम सिंह पर हत्या का शक जताया था. रविंद्र की तहरीर मिलने के बाद इंसपेक्टर निशिकांत राय ने थाने में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के विरूद्ध भादवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. गिरफ्तार हुई प्रतीक्षा 31 जनवरी को इंसपेक्टर राय ने प्रतीक्षा को घर से गिरफ्तार कर लिया. महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने यशवंत की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने दिया था.

प्रतीक्षा ने बताया कि जब उस के संग्राम से नाजायज संबंध बने, तो फिर बेरोकटोक जारी रहे. लेकिन ऐसा कब तक चलता. लोगों की नजरों में उन के नाजायज संबंध छिपे नहीं रह सके. गांव में तरहतरह की बातें होने लगीं. यशवंत के कानों तक भी प्रतीक्षा की बेवफाई के किस्से पहुंच गए. इस के बाद उस के और प्रतीक्षा के बीच काफी तीखी बहस होने लगी. लेकिन उस बहस का कोई नतीजा नहीं निकला, क्योंकि प्रतीक्षा पर उस का कोई असर नहीं हुआ था. यशवंत को उस के अवैध रिश्ते के बारे में पता चलने के बाद प्रतीक्षा संग्राम से खुल कर मिलने लगी. वह यशवंत की उपस्थित में भी आने लगा. वह पूरेपूरे दिन यशवंत के घर में पड़ा रहता.

यशवंत खून का घूंट पी कर रह जाता. जब उस से बर्दाश्त नहीं होता तो वह उन दोनों से भिड़ जाता था. लेकिन दोनों के सामने उस की एक नहीं चलती थी.  मिलन में यशवंत के बारबार व्यवधान डालने से प्रतीक्षा और संग्राम परेशान हो गए. इसलिए दोनों ने यशवंत नाम के कांटे को हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया. 28/29 जनवरी, 2020 की रात यशवंत के खाने में प्रतीक्षा ने कोई नशीला पदार्थ मिला दिया. खाना खाने के बाद यशवंत बेसुध हो कर बिस्तर पर लेट गया. संग्राम देर रात प्रतीक्षा के पास पहुंचा और बेसुध पड़े यशवंत पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए. यशवंत चीखचिल्ला भी न सका, उस ने दम तोड़ दिया.

इस के बाद संग्राम वहां से चला गया. सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा ने चीखचिल्ला कर बदमाशों द्वारा यशवंत को मार देने की झूठी कहानी लोगों को सुनाई, लेकिन वह अपने को बचाने में सफल नहीं हो सकी. पुलिस ने प्रतीक्षा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस के दबाव के चलते संग्राम सिंह ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Uttar Pradesh Crime : प्रेमिका के भाई को मारा फिर बोरी में बंद कर रेत में दफना डाला

Uttar Pradesh Crime : आजकल के ज्यादातर युवा तो प्यार को जानते हैं और जानना चाहते हैं. उन के लिए शारीरिक आकर्षण ही प्यार होता है. इसी आकर्षण को प्यार समझ कर वे ऐसीऐसी कंदराओं में खो जाते हैं, जो अपने अंदर का अंधेरा उन के जीवन में भर देती हैं. ऐसा ही विकास के साथ भी हुआ. आखिर…  

रोजाना की तरह पूनम उस दिन भी स्कूल जाने के लिए अपनी साइकिल से निकली तो रास्ते में पहले से उस का इंतजार कर रहे विकास ने उस के पीछे अपनी साइकिल लगा दी. पूनम ने विकास को पीछे आते देखा तो अपनी साइकिल की गति और तेज कर दी. विकास अपनी साइकिल की रफ्तार और तेज कर के पूनम के आगे जा कर इस तरह खड़ा हो गया कि अगर वह अपनी साइकिल के ब्रेक लगाती तो जमीन पर गिर जाती. साइकिल संभालते हुए पूनम साइकिल से उतर कर खड़ी हुई और बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, मैं स्कूल जा रही हूं. आज वैसे भी देर हो गई है. अगर हमें किसी ने देख लिया तो बिना मतलब बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी.’’

‘‘जिसे जो बातें बनानी हैं, बनाता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ विकास ने बड़े प्यार से अपनी बात कह डाली.

पूनम स्कूल जाने के लिए मन ही मन बेचैन थी. उस ने विकास की तरफ देखा और उस से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे देर हो रही है. अभी मुझे स्कूल जाने दो. मैं तुम से बाद में मिल लूंगी. तुम्हें जो बात करनी हो, कर लेना.’’

विकास पूनम की बात सुन कर नरम पड़ गया. वह अपनी साइकिल को साइड में कर के पूनम के चेहरे को देखते हुए बोला, ‘‘पूनम, तुम मेरी आंखों में झांक कर देखो, इस में तुम्हें बेपनाह मोहब्बत नजर आएगी. तुम्हें पता है, तुम्हारी चाहत में मैं सब कुछ भूल गया हूं. मुझे दिनरात बस तुम ही तुम नजर आती हो.’’

‘‘वह सब तो ठीक है विकास, पर तुम्हें यह तो पता है कि हम एक ही जगह के हैं और हमारे तुम्हारे घर के बीच बहुत ज्यादा फासला नहीं है. अगर हम दोनों इस तरह प्यारमोहब्बत की पेंग बढ़ाएंगे तो मोहल्ले वालों से हमारा प्रेम कब तक छिपा रहेगा

‘‘तुम मेरे पिता को तो जानते हो, बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. अगर उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लगी तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. फिर मेरे पिता मेरी क्या गत बनाएंगे, यह तो ऊपर वाला ही जाने.’’ वह बोली.

‘‘पूनम, मैं सपने में भी तुम्हें बदनाम करने की नहीं सोच सकता. तुम तो मेरी मोहब्बत हो और मोहब्बत के लिए लोग जाने क्याक्या कर जाते हैं. तुम सिर्फ जरा सी बदनामी से डरती हो. पता है, मैं तुम से मिलने और बातें करने के लिए क्याक्या तिकड़म भिड़ाता हूं

‘‘तब कहीं जा कर तुम से तनहाई में मुलाकात होती है. देखो पूनम, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने ही दूंगा. और हां, मैं ने निर्णय ले लिया है कि शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से. मेरी दुलहन तुम्हारे अलावा कोई दूसरी नहीं होगी, फिर बदनामी कैसी.’’

पूनम कुछ देर शांत मन से विकास की बातें सुनती रही. फिर लंबी सांस ले कर बोली, ‘‘अच्छा, अब बस करो, मैं स्कूल जा रही हूं. मुझे काफी देर हो चुकी है.’’

पूनम ने इतना कह कर अपनी साइकिल आगे बढ़ाई ही थी कि विकास मुसकराता हुआ बोला, ‘‘हां जाओ, लेकिन मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

पूनम बिना कुछ बोले अपने स्कूल की ओर बढ़ गई. पूनम के स्कूल जाने वाले रास्ते के उस मोड़ के पास विकास अकसर उस का रास्ता रोक कर कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से में अपने प्रेम का इजहार करने लगता था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर, थाना स्वार की चौकी मसवासी के अंतर्गत एक मोहल्ला है भूबरा. वीर सिंह अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस की पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. वीर सिंह और उस की पत्नी प्रेमवती दोनों दिव्यांग थे. वीर सिंह हाईस्कूल पास था. वह मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. बड़ा बेटा गिरीश नौकरी करता था. बापबेटे मिल कर परिवार का बोझ उठाते थे.

वीर सिंह की बेटी पूनम खूबसूरत भी थी और चंचल भी. वीर सिंह और प्रेमवती उसे बहुत चाहते थे. पूनम एक स्थानीय स्कूल में दसवीं में पढ़ती थी. 15 वर्षीय पूनम उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां शरीर में काफी बदलाव जाते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. पूनम पहले से ही सुंदर थी, लेकिन जब कुदरत ने उस के बदन को खूबसूरती के सांचे में ढाल कर आकर्षक आकार दिया तो उस की सुंदरता कयामत ढाने लगी, जिस का पूनम को भी अहसास हो गया था. अपनी सुंदरता पूनम को लुभाती तो थी, लेकिन लोगों की चुभती नजरों से बचने के लिए उसे तरहतरह के जतन करने पड़ते थे. वह लोगों की गिद्ध दृष्टि को अच्छी तरह पहचानती थी. लेकिन विकास उन सब से अलग था. उस की आंखों में पूनम को अपने लिए अलग तरह की चाहत दिखती थी. विकास स्मार्ट भी था और खूबसूरत भी.

विकास मौर्य भी भूबरा मोहल्ले में ही रहता था. पूनम के घर से उस के घर की दूरी महज ढाई सौ मीटर थी. विकास के पिता नरपाल मौर्य खेतीकिसानी का काम करते थे. घर में पिता के अलावा उस की मां जगदेवी, एक बड़ा भाई और 3 बहनें थीं. वीर सिंह और नरपाल मौर्य के परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. इसी आनेजाने में जब विकास की नजर जवान होती पूनम पर पड़ी तो वह बरबस उस की ओर आकर्षित होगया और उसे मन ही मन चाहने लगालेकिन पूनम के घर वालों की वजह से उसे अकेले में पूनम से बात करने का मौका नहीं मिल पाता था. विकास हमेशा इस फिराक में रहता था कि मौका मिले तो पूनम से बात करे.

संयोग से एक साल पहले विकास को मौका मिल गया. पूनम के घर वाले किसी शादी समारोह में गए हुए थे. पूनम घर पर अकेली थी. यह पता चलते ही विकास बहाने से वीर सिंह के घर पहुंच गया और दरवाजे पर दस्तक दी. पूनम उस समय पढ़ रही थी. दस्तक सुन कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने विकास खड़ा था. विकास को देख वह बोली, ‘‘सब लोग शादी में गए हैं. घर में कोई नहीं है.’’

विकास ने पूनम की बात खत्म होते ही कहा, ‘‘देखो पूनम, आज मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो कभी भी मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर जाओ और बताओ मुझ से क्यों मिलना है.’’ पूनम के कहने पर विकास अंदर गया

विकास के अंदर आते ही पूनम फिर से बोली, ‘‘हां विकास, बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

विकास एकटक पूनम की ओर देखते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से एकांत में मिलना चाह रहा था. मैं तुम्हें दिल से चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

विकास आगे कुछ और बोलता, इस से पहले ही पूनम के होंठों पर हंसी गई. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उस से ही मुझे आभास हो गया था कि जरूर तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई चाहत है.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पसंद करती हो. तुम्हारी इन बातों से विश्वास हो गया कि हम दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति प्यार है.’’ विकास कुछ और बोल पाता, तभी पूनम बोल पड़ी, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो गया है. इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे मौका मिला तो मैं फिर बात कर लूंगी.’’

पूनम के इतना कहने के बाद भी विकास वहीं खड़ा रहा और पूनम की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता रहा. पूनम से रहा नहीं गया तो वह जबरदस्ती विकास का हाथ पकड़ कर उसे मेनगेट तक ले आई और उसे बाहर कर के मेनगेट बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते विकास पूनम को यह याद कराना नहीं भूला कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है. पूनम अपने वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में विकास दिखा तो उस ने इशारे से बता दिया कि स्कूल से वापस लौटते समय उस से मिलेगीविकास समय से पहले ही पूनम के वापस लौटने वाले रास्ते पर उस का इंतजार करने लगा. पूनम स्कूल से लौटी तो विकास से उस की मुलाकात हुई. उस ने विकास के प्यार को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार को स्वीकार कर रही हूं और चाहती हूं कि हम बदनाम हों. इसलिए तुम्हें भी सावधान रहना होगा ताकि किसी को हमारे प्यार की भनक लगे.’’

विकास पूनम के हाथों को अपने हाथों में लेता हुआ बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो? क्या कभी कोई प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की समाज में रुसवाई हो? तुम मुझ पर भरोसा रखो.’’

समय बीतता रहा. दोनों लोगों की नजरों से बच कर चोरीछिपे मिलते रहे. दोनों का प्यार इतना बढ़ गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे. यहां तक कि एकदूजे के लिए जान भी दे सकते थे. पर एकदूसरे से अलग होना उन्हें किसी भी हाल में मंजूर नहीं था. बीते 9 दिसंबर को पूनम का सब से छोटा 7 वर्षीय भाई अंश दोपहर 2 बजे के करीब घर के बाहर खेल रहा था, लेकिन अचानक वह लापता हो गया. बडे़ भाई गिरीश ने अपने भाईबहनों के साथ उसे काफी खोजा लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. एक दिन पहले ही किसी अनजान युवक ने अंश को 10 रुपए दिए थे. यह बात अंश ने घर कर बताई थी. लेकिन घर के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था, इस के अगले दिन यह घटना घट गई

जब किसी तरह से अंश का पता नहीं चला तो 10 दिसंबर, 2019 को गिरीश ने स्वार थाने जा कर इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार सिंह को पूरी बात बताई. सतेंद्र सिंह ने गिरीश की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने गिरीश और उस के पिता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए, ताकि अपहर्त्ता फिरौती के लिए फोन करें तो ट्रेस किया जा सके. 11 दिसंबर, 2019 को अपहर्त्ता ने वीर सिंह के नंबर पर काल कर के अंश को रिहा करने के एवज में 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. सर्विलांस टीम और अंश के घर वालों द्वारा सूचना देने पर मसवासी चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी अंश के घर गए और उस के घर वालों से पूछताछ की.

जिस नंबर से काल की गई थी, वह फरजी आईडी पर खरीदा गया था. जिस मोबाइल में वह सिम डाला गया था, उस मोबाइल में उस से पहले जो सिम डाले गए थे, उन की जांचपड़ताल करने के बाद पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंच गई. वह कोई और नहीं, अंश की बड़ी बहन पूनम का प्रेमी विकास मौर्य था. 12 दिसंबर को इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने मानपुर तिराहे से विकास मौर्य को उस के साथी अनुराग शर्मा के साथ गिरफ्तार कर लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपने 3 अन्य साथियों विकास सैनी, रवि सैनी और रोहित के नाम बताए. इन सब ने साथ मिल कर अंश का अपहरण कर हत्या कर देने की बात कबूल कर ली. साथ ही हत्या के पीछे की कहानी भी बयान कर दी

विकास मौर्य और पूनम का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ रहा था, वह भी सब की नजरों से बच कर. लेकिन एक दिन पूनम के छोटे भाई अंश ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में एक साथ देख लिया. पूनम ने जैसेतैसे अंश को समझा दिया और उसे अपने साथ घर ले गई, लेकिन विकास इस बात से डर गया कि कहीं वह घर वालों को उन दोनों के बारे में बता दे. इसी वजह से उस ने अंश का अपहरण कर उसे मार देने का फैसला किया. इस बारे में उस ने पूनम को भनक तक नहीं लगने दी. उस ने अपने दोस्तों सीतारामपुर गांव निवासी अनुराग शर्मा, विकास सैनी, रवि सैनी और भूबरा मोहल्ला निवासी रोहित से बात की. दोस्ती की खातिर ये सब विकास का साथ देने को तैयार हो गए.

8 दिसंबर, 2019 को अंश घर के बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था. तभी विकास के साथ अनुराग वहां गया. विकास ने अनुराग को अंश की तरफ इशारा कर के उस की पहचान कराई. अनुराग अंश के पास पहुंचा और उस से प्यार से बात की, साथ ही उसे 10 रुपए दिए. मासूम अंश ने उस से 10 रुपए ले लिए. अनुराग उस से दोस्ती कर के चला गया. अंश ने घर जा कर इस अनजान दोस्त से मिले पैसों के बारे में बताया तो किसी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन 9 दिसंबर को योजनानुसार दोपहर 2 बजे विकास अनुराग के साथ बाइक से अंश के घर के पास पहुंचा. रोज की तरह उस समय अंश बच्चों के साथ खेल रहा था. विकास ने उस से कहा कि उस के बड़े भैया गिरीश उसे बुला रहे हैं. वह आगे खड़े हैं. मासूम अंश उन के साथ बाइक पर बैठ गया.

आगे कुछ दूरी पर विकास सैनी, रवि और रोहित खड़े थे. अंश को उन के साथ देख कर वे भी उन के साथ हो लिए. अंश को वे बेलवाड़ा गांव के जंगल में ले गए. वहां रुमाल से बनाया फंदा अंश के गले में डाल कर कस दिया, जिस से अंश की दम घुटने से मौत हो गई. इस के बाद अंश की लाश को एक प्लास्टिक की बोरी में डाल कर रेत में दबा दिया. इस के बाद 11 दिसंबर को विकास ने केस की दिशा मोड़ने के लिए फरजी सिम से अंश के पिता को काल कर के 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. इस से केस की दिशा तो नहीं बदली, लेकिन उस के पकड़े जाने का रास्ता जरूर खुल गया. विकास की यह गलती उसे और उस के साथियों को भारी पड़ी.

12 दिसंबर को ही विकास मौर्य और अनुराग शर्मा की निशानदेही पर इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने एसडीएम राकेश कुमार गुप्ता की मौजूदगी में रेत में दबी अंश की लाश बरामद कर ली. इस के बाद मुकदमे में दर्ज धारा 363 को भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34 तरमीम कर दिया गया. पुलिस ने 14 दिसंबर, 2019 को मुंशीगंज तिराहे से विकास सैनी और रवि सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित फरार था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पूनम परिवर्तित नाम है.

          

 

 

  

Agra Crime : पहले पति को मारा, फिर लाश पर चढ़ा दी कार

Agra Crime : ‘नार नहीं नौरंगी है, ढक ले तो सारे कुल को ढक ले वरना नंगी की नंगी है’ इस कहावत का आशय स्त्री के चाल, चरित्र और चेहरे को दर्शाने से है, जो सही है. भावना की जिंदगी में सब कुछ था, अफसर पति, कोठी, कार और 2 बच्चे, लेकिन उस ने…

मानव मन को समझना आसान नहीं है. इंसान कब किस को प्यार करने लगे और कब प्यार नफरत में बदल जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. ऐसा ही कुछ भावना के साथ भी हुआ. एक अच्छे और संभ्रांत परिवार की बेटी और बहू भावना कुछ ऐसा कर बैठेगी, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. कहते हैं, विनाश काल में इंसान की सकारात्मक सोच बंद हो जाती है. फिर समय की इस आंधी में सब कुछ तहसनहस हो जाता है. बिना सोचेसमझे भावना ने जो कदम उठाया, उस से कई जिंदगियां तबाह हो गईं और खुशियां मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसल गईं. ताजनगरी आगरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है, जहां देशविदेश से पर्यटक आते हैं और शाहजहां मुमताज की यादगार मोहब्बत को नमन करते हैं. वहीं मोहब्बत की इस नगरी में खून से लथपथ आशिकी की अनगिनत कहानियां दफन हैं.

आगरा के अशोक विहार में नाथूराम अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिता रहे थे. उन के 3 बेटे थे सुशील, वीरेंद्र और नरेंद्र. नाथूराम सेना में सीनियर औडिटर थे. उन का बड़ा बेटा सुशील भी सेना में ही था. छोटा नरेंद्र पढ़ रहा था और मंझले बेटे वीरेंद्र की नौकरी पंजाब में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) में लग गई थी. कुल मिला कर नाथूराम का अच्छा खुशहाल और आर्थिक रूप से संपन्न परिवार था. लेकिन समय के चक्र के साथ जीवन में बदलाव आते रहते हैं. 14 साल पहले नाथूराम के मंझले बेटे वीरेंद्र की शादी गढ़ी भदौरिया निवासी ओमप्रकाश की बेटी भावना के साथ हुई थी. भावना की 2 बहनें शादीशुदा थीं और खुशहाल जीवन बिता रही थीं. इन का एक भाई था.

वीरेंद्र गंभीर प्रवृत्ति का व्यक्ति था. उस की जिंदगी की गाड़ी ठीक चल रही थी. भावना ने कालांतर में आयुष और शुभि को जन्म दिया. सब कुछ ठीक था, भावना अपने पति और बच्चों के साथ खुश थी. वीरेंद्र भी अपनी सरकारी नौकरी की जिम्मेदारियां निभा रहा था. लेकिन अचानक कालचक्र अपनी धुरी पर उल्टा घूमने लगा. वीरेंद्र ने आगरा की पंचशील कालोनी में अपनी कोठी बनवाई. वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों को खुशहाल जीवन देना चाहता था. करीब 3 साल पहले वीरेंद्र का तबादला आगरा हो गया वह अपने परिवार के साथ पंचशील कालोनी स्थित अपनी कोठी नंबर 12 में रहने लगा. वीरेंद्र बीएसएनएल में जूनियर इंजीनियर के पद पर था. उस की तैनाती आगरा के बिजली घर स्थित बीएसएनएल औफिस में थी. अपने पद के अलावा उस के पास एसडीओ का चार्ज भी था.

वीरेंद्र के पिता फौज की नौकरी से रिटायर हो चुके थे. अपने औफिस जाने से पहले वीरेंद्र पिता के लिए खाना देने उन के अशोक विहार स्थित घर पर जाता था. कालांतर में सुशील भी लांस नायक पद से रिटायर हो गए. जबकि नरेंद्र बीटेक के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. यानी सभी अपनेअपने काम में व्यस्त थे. जिंदगी के रंगों को अचानक छुआ भावना की साड़ी ने

एक दिन वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों के साथ किसी शादी समारोह में गया. वहां भावना अचानक उस समय एक युवक से टकरा गई, जब दोनों प्लेट में खाना ले कर निकल रहे थे. युवक ने सौरी कहा. जवाब में भावना ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, भीड़भाड़ में ऐसा हो जाता है.’’

‘‘लेकिन आप की साड़ी में दाग लग गया है,’’ युवक ने विनम्रता से कहा.

‘‘दाग साड़ी पर ही तो लगा है, धुल जाएगा. बस जीवन पर नहीं लगना चाहिए.’’ भावना बोली.

युवक ने भावना को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘अच्छी फिलौसफी है आप की मैडम, आप के लिए कुछ लाऊं?’’

भावना को युवक की विनम्रता पसंद आई. वह बोली, ‘‘हां, कुछ मीठा ले आइए.’’

युवक आइसक्रीम ले आया. आइसक्रीम देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां रहती हैं?’’

‘‘मैं पंचशील कालोनी में रहती हूं,’’ भावना ने इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं जाती हूं, बच्चों ने कुछ खाया है या नहीं?’’ कह कर भावना वहां से चली गई.

वह युवक दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था. नाम था कपिल.

29 साल का कपिल एक रिटायर्ड अफसर का बेटा था. उस के पिता सूरजभान एफसीआई से रिटायर थे.  वह दिल्ली के अशोक विहार में रहते थे. उन का बड़ा बेटा देवेंद्र भी दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था, अत: कपिल ने देवेंद्र के पास रह कर ही पढ़ाई की थी. कपिल शनिवार और रविवार की छुट्टियों में घर पर ही रहता था. नौकरी मिलने के बाद उस ने दिल्ली में किराए पर अलग कमरा ले लिया था. कपिल का दोस्त मनीष कपिल के साथ उस के कमरे में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. वह बीटेक पास कर चुका था और आगरा की पंचशील कालोनी स्थित अपने घर आनाजाना रहता था.

उस दिन शादी समारोह में कपिल और भावना की वह छोटी सी मुलाकात कुछ ऐसा गुल खिलाएगी, जिस में सब कुछ तबाह हो जाएगा, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. दिल्ली आने के बाद कपिल ने मनीष को बताया कि आगरा में शादी समारोह में उसे पंचशील कालोनी की एक महिला मिली थी, जिस से उस की बातचीत भी हुई थी. तुम तो पंचशील कालोनी में ही रहते हो, जरा पता लगाना कि कौन है. मनीष ने ठहाका लगाया, ‘‘तूने मुझे क्या जासूस समझ रखा है? पंचशील में क्या वही एक औरत ही रहती है? अरे भाई, न नाम, न पता, इतनी बड़ी कालोनी में कैसे ढूंढेंगे उसे. वैसे उस औरत में ऐसा क्या है जो उसे तलाश कर उसे तुझ से मिलाना चाहिए.’’

‘‘कुछ नहीं यार, बस जरा यूं ही. उस से एक बार फिर बात करने की इच्छा हो रही है.’’

‘‘ठीक है इस बार आगरा चलेंगे तो कालोनी के चक्कर लगाएंगे, शायद वह कहीं मिल जाए.’’ कह कर मनीष ने बात खत्म की.

भावना का पति वीरेंद्र व्यस्त अधिकारी था. उसे सुबह 10 बजे औफिस पहुंचना होता था और शाम 6 बजे घर लौटता था. सुबहशाम वह पिता को अशोक विहार स्थित घर जा कर खाना भी पहुंचाता था. कुल मिला कर भावना को लगता कि उस का पति आम पतियों की तरह उस की भावनाओं पर ध्यान नहीं देता. फिर अचानक उस के जेहन में शादी समारोह में मिला वह युवक घूमने लगता था. एक दिन अचानक फेसबुक पर भावना को एक फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. फोटो देख कर वह चौंकी. अरे यह तो वही युवक है. उस के दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. उस ने खुद को आईने में निहारा और सोचा उस के चेहरे पर अभी भी कुछ ऐसा है, जो किसी युवक को आकर्षित कर सकता है.

साड़ी का रंग सोच में उतरने लगा भावना जानती थी कि वह 39 साल की है और 2 बच्चों की मां भी. जबकि युवक काफी कमउम्र का था. समय काटने के लिए दोस्त बना लेने में कोई हर्ज नहीं है. सोच कर उस ने कपिल नाम के उस युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. कपिल बहुत खुश था, उसे मनचाही मुराद मिल गई थी. फेसबुक पर बात का सिलसिला शुरू हो गया, जो निकट भविष्य में कुछ और ही रंग लाने वाला था. चैटिंग के दौरान एक दिन कपिल ने भावना की एक फोटो पर लिख कर भेजा, ‘‘आप बहुत सुंदर हैं.’’

अपनी तारीफ सुन कर भावना का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने थैंक्स के साथ लिखा कि आज तक मेरी किसी ने तारीफ नहीं की. उस दिन भावना देर तक सोचती रही कि उस ने वीरेंद्र के साथ शादी कर के गलती कर दी थी. पैसा ही सब कुछ नहीं होता. वह उसे कोमल भावनाओं से भरी पत्नी नहीं बल्कि मशीन की तरह इस्तेमाल करता है. वीरेंद्र के प्रति वितृष्णा के भाव मन में आ चुके थे. उस रात काम खत्म कर के जब वह पलंग पर आई तो वीरेंद्र एक फाइल देख रहा था. भावना ने कहा, ‘‘कभी अपनी बीवी के दिल की फाइल भी पढ़ लिया करो.’’

वीरेंद्र हंसते हुए बोला, ‘‘बताओ, क्या है तुम्हारे दिल में?’’

‘‘यह तो तुम भी जानते हो कि पत्नी क्या चाहती है?’’ वह बोली.

‘‘सब कुछ तो है तुम्हारे पास. खर्चे के लिए मैं पैसा भी बराबर देता हूं, जो जरूरत हो ले लो.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘मुझे जो चाहिए, उसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता. क्या तुम अपनी पत्नी की तारीफ में दो मीठे बोल भी नहीं कह सकते. बताओ क्या मैं सुंदर नहीं हूं?’’

‘‘ओह तो यह बात है.’’ वीरेंद्र बोला, ‘‘कभी आईने में खुद को गौर से देखा है. 2 बच्चों की मां हो, उन का भी कुछ खयाल किया करो. तुम जैसी हो वैसी ही रहोगी, तारीफ करने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है. अच्छा, अब बहुत रात हो गई है. चलो सो जाओ.’’

पति की बातें भावना को चुभ गईं. उस ने सोचा कि इस से अच्छा तो वह कपिल है जो उस की तारीफ करता है. धीरेधीरे कपिल उस के दिलोदिमाग पर छाने लगा. दोनों में चैटिंग तो होती ही थी दोनों ने फोन नंबर और अपना पता एकदूसरे को बता दिया. इस के बाद कभीकभी कपिल छुट्टी ले कर आगरा आने लगा. मौका देख कर वह भावना से भी मिलने लगा. कपिल को यह बात अच्छी तरह पता चल चुकी थी कि पति और बच्चों के होते हुए भी भावना बिलकुल तनहा है. वह वीरेंद्र के साथ खुश नहीं है. कभीकभी भावना कहती, ‘‘कपिल, यह जिंदगी एक जेल की तरह है और मैं खुद को आजीवन कारावास की सजा पाए हुए कैदी की तरह महसूस करती हूं.’’

‘‘तो फिर निकल जाओ न इस कैद से.’’ नादान कपिल ने सलाह दी.

‘‘मैं एमएससी पास हूं. कुछ कर के अपनी जिंदगी संवार सकती थी, पर पिता ने मुझे बोझ की तरह उतार फेंका. पढ़ाई के बाद कुछ भी मन का नहीं करने दिया और इस जंजाल में फंस गई. बच्चे पैदा कर के उन की आया बन जाओ और दिनरात घर के लोगों के लिए खाना पकाओ. बस, यही जिंदगी है मेरी.’’

भावना की खीझ और कुंठा उस के व्यक्तित्व को घेर रही थी और उस का नादान प्रेमी उन शोलों को हवा दे रहा था. दोनों इस बात से अनजान थे कि यदि ये शोले भड़क गए तो सब जल कर राख हो जाएगा. भावना और कपिल के बीच नाजायज संबंध बन चुके थे. भावना खुद को कपिल की बांहों में सुरक्षित महसूस कर रही थी. वह यह भूल गई थी कि वह उम्र में कपिल से बड़ी है और विवाह जैसे बंधन को अपवित्र कर एक बड़ा गुनाह कर रही है. लेकिन कपिल के प्रति उस की दीवानगी ने उस की सोच पर परदा डाल दिया था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था और दीवानगी भरी मोहब्बत के बंधन और मजबूत हो रहे थे. भावना पति और बच्चों की परवाह किए बिना कुछ पाने की चाह में खतरनाक राह पर चली जा रही थी.

काश! वीरेंद्र ने स्थिति को संभाला होता वीरेंद्र अभी तक इस खेल से अनजान था. बच्चों को भी कोई जानकारी नहीं थी, पर कोई भी गुनाह ज्यादा दिन तक नहीं छिप पाता. यह गुनाह भी नहीं छिप पाया. एक दिन वीरेंद्र औफिस से कुछ जल्दी ही वापस आ गया. उस ने देखा कि कोई युवक अभीअभी उस के घर से बाहर निकला था. इस से पहले कि वह अपनी गाड़ी लौक कर के उसे पहचान पाता, वह चला गया. वीरेंद्र ने डोरबैल बजाई तो भावना ने दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अरे तुम फिर वापस आ गए.’’

लेकिन सामने वीरेंद्र खड़ा था. पति को देखते ही भावना का चेहरा पीला पड़ गया. वीरेंद्र ने उस से पूछा, ‘‘कौन था वह?’’

‘‘कौन..? किस की बात कर रहे हो तुम?’’ वह बोली.

‘‘वही जो अभीअभी घर से निकल कर गया है.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, यहां से तो कोई नहीं निकला. तुम ने जरूर कहीं और  किसी को देखा होगा. चलो आओ, चाय बनाती हूं.’’ भावना ने बात संभालते हुए कहा.

लेकिन वीरेंद्र के दिल में शक का बीज पड़ चुका था. पिछले कुछ समय से उसे पत्नी का व्यवहार परेशान कर रहा था. अंदर आ कर उस ने देखा कि मेज पर बादाम, काजू की प्लेटें रखी थीं. भावना ने वीरेंद्र की नजरों को भांप लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सोचा कि बच्चों के लिए कुछ बनाऊंगी, अभीअभी निकाले हैं. तुम खाओ, मैं चाय लाती हूं.’’ कह कर भावना किचन में चली गई. वीरेंद्र को समस्या और उस के हल को खोजना था. पत्नी किस के साथ दोस्ती पाले हुए है, यह जानना बहुत जरूरी था. इस से पहले कि वीरेंद्र भावना का फोन चैक करता, भावना ने कपिल की दी हुई सिम फोन में से निकाल दी.

भावना और कपिल के संबंधों की जानकारी वीरेंद्र को करीब डेढ़ साल बाद मिली, तब तक नाजायज संबंधों की बेल काफी बढ़ चुकी थी. इतना ही नहीं, बल्कि दोनों का संबंध खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका था. इधर कपिल के पिता सूरजभान ने उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर दी, लेकिन कपिल तय कर चुका था कि भावना ही उस की हमसफर बनेगी. एक दिन उस ने मन की बात भावना को बताई तो वह चौंकी.

‘‘ये क्या कह रहे हो तुम? मैं तुम से उम्र में बड़ी हूं और 2 बच्चों की मां भी. ऐसे में मेरे बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘बच्चे काफी बड़े हैं. उन्हें उन का बाप देखेगा. और रही उम्र की बात तो तुम्हारी उम्र से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम तलाक ले लो वीरेंद्र से.’’ कपिल ने साफ कहा.

‘‘ठीक है, मैं सोचूंगी.’’ भावना ने कहा.

इधर वीरेंद्र काफी डर गया था. क्योंकि भावना का रवैया पिछले कुछ दिनों से अच्छा नहीं था. वीरेंद्र जानता था कि वासना से पीडि़त बुद्धिहीन औरत कुछ भी कर सकती है. सुरक्षा के लिहाज से उस ने दरवाजों पर लोहे के जालीदार दरवाजे भी लगवा दिए पर वह यह भी जानता था कि खतरा कहीं बाहर नहीं बल्कि वह तो उस के घर में ही मौजूद है. वीरेंद्र ने अपने कुछ खास परिचितों को बताया भी था कि वह इन दिनों खुद को खतरे में महसूस कर रहा है, पर खतरा कैसा है यह वह किसी को बता नहीं पाया. आखिर एक दिन वीरेंद्र को यह बात पता चल ही गई कि दिल्ली नगर निगम में काम करने वाले कपिल का उस की पत्नी के पास आनाजाना है. यह जान कर वह सन्न रह गया. समस्या को जान लेने के बाद उस का उपचार कैसे किया जाए, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

इधर कपिल इस बात पर जोर दे रहा था कि भावना जल्द से तलाक ले ले. लेकिन भावना जानती थी कि अगर उस ने वीरेंद्र से तलाक ले लिया तो संपत्ति से हाथ धो बैठेगी. उस ने साफ कह दिया कि तलाक तो नहीं ले सकती, कुछ और सोचो. इधर वीरेंद्र ने भी तय किया कि वह पत्नी पर नजर रखेगा. इसलिए वह जबतब अचानक घर आ जाता. पति की इस हरकत से भावना का गुस्सा बढ़ गया. आए दिन दोनों में झगड़ा होता. दोनों बच्चे सहमे हुए रहने लगे. एक दिन वीरेंद्र ने कहा कि भावना इस बार तुम अपना बर्थडे सेलिब्रेट करना, मैं तुम्हें एक अच्छा गिफ्ट दूंगा. वीरेंद्र ने ऐसा ही किया भी. उस ने पत्नी को एक महंगा मोबाइल फोन गिफ्ट किया.

इतना ही नहीं वीरेंद्र ने भावना के लिए कार भी खरीदी. उस ने सोचा कि शायद उस के व्यवहार से प्रभावित हो कर भावना सही रास्ते पर आ जाए और दोनों का वैवाहिक जीवन बिगड़ने से बच जाए. पर भावना पर आशिकी का नशा इतना चढ़ चुका था कि उतरने के लिए किसी बड़ी साजिश का इंतजार कर रहा था. संदेह था वीरेंद्र की हत्या हुई  5 जनवरी, 2020 की रात 3 बजे आगरा के एस.एन. अस्पताल में 2 लोग एक व्यक्ति को जख्मी हालत में लाए. उन्होंने बताया कि वे लोग घायल को पहले साकेत कालोनी के प्रशांत अस्पताल ले गए थे. लेकिन उन्होंने भरती करने से इनकार कर दिया. तब वे उसे दिल्ली गेट स्थित पुष्पांजलि अस्पताल ले गए. लेकिन हालत गंभीर होने के कारण उसे एस.एन. मैडिकल कालेज रैफर कर दिया गया है.

पूछताछ में पता चला कि वह जख्मी व्यक्ति बीएसएनएल का जेटीओ है. जख्मी का डाक्टरों ने परीक्षण किया तो वह मृत पाया गया. प्रथमदृष्टया यह मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने तुरंत पुलिस को सूचना दे दी. थाना शाहगंज के इंसपेक्टर अरविंद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने यह बात उच्चाधिकारियों को भी बता दी. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मृतक को इमरजेंसी में लाने वाले मृतक के बड़े भाई सुशील वर्मा और उन का बेटा प्रशांत थे. पोस्टमार्टम के बाद जो रिपोर्ट आई, उस से पता चला कि वीरेंद्र की मौत चेहरे और छाती पर लगे जख्मों और पसलियों के टूटने से हुई थी. पसलियां किसी भारी चीज से तोड़ी गई मालूम होती हैं. संभवत: हत्या को एक्सीडेंट केस बनाने की कोशिश की गई थी. रिपोर्ट में गला दबाना भी बताया गया था.

पूछताछ में सुशील ने पुलिस को बताया कि रात को उस की भाभी भावना का फोन आया कि वीरेंद्र किसी का फोन सुन कर घर से 7 हजार रुपए ले कर पैदल ही चले गए. जब वह नहीं लौटे तो उस ने उन्हें फोन किया. लेकिन काल रिसीव नहीं की गई. फिर फोन स्विच्ड औफ हो गया. भावना ने आगे बताया था कि किसी परिचित ने 10 हजार रुपए मांगे थे, लेकिन घर में 7 हजार रुपए ही थे. सुशील ने बताया कि भावना की बात सुनते ही वह अपने बेटे के साथ भाई को खोजने निकल गया. रात लगभग 3 बजे वीरेंद्र जख्मी हालत में घर से करीब 400 मीटर की दूरी पर दीप इंटर कालेज के पास खाली प्लौट के सामने मिले, जिन्हें वह गाड़ी में डाल कर ले आया.

पुलिस ने सुशील की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. सुशील ने पुलिस को बताया कि वीरेंद्र किसी को पैसे देने के लिए रात को एक बजे अकेले ही घर से निकले थे. लेकिन मौकाएवारदात पर पुलिस को कोई पैसा या मोबाइल नहीं मिला था. मृतक की हत्या जिस तरीके से की गई थी, उसे देख कर लूट का मामला तो बिलकुल भी नहीं लग रहा था. यह बात सुशील के गले भी नहीं उतर रही थी, क्योंकि वीरेंद्र शाम के बाद कभी अकेले घर से नहीं निकलते थे. पुलिस ने फूटफूट कर रो रही भावना से पूछताछ की तो उस ने कहा कि उस ने पति को अकेले रात में बाहर निकलने से मना किया था, पर वह नहीं माने और चले गए. भावना के हावभावों से पुलिस को शंका हो रही थी.

मामले की जांच का कार्य एसएसपी बबलू कुमार ने सीओ नम्रता श्रीवास्तव को सौंप दिया. शाहगंज थाने की टीम और सर्विलांस टीम को भी इस केस की जांच में लगाया गया. इसी के साथ हत्याकांड के खुलासे में एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन, प्रमोद और उन की टीम भी लग गई. एसपी (सिटी) खुद इंजीनियर हैं, सर्विलांस टीम में भी कई इंजीनियर थे. पुलिस ने सब से पहले मृतक के एक नजदीकी रिश्तेदार से पूछताछ की. उस ने बताया कि भावना की कपिल नाम के एक युवक के साथ दोस्ती थी और कपिल का गहरा दोस्त था मनीष. 2 साल पहले कपिल की नौकरी दिल्ली नगर निगम में लग गई थी. वह अपने दोस्त मनीष के साथ किराए के कमरे में रहता है और मनीष का पूरा खर्च उठाता है.

अब पुलिस का फोकस नाजायज संबंधों पर ठहर गया. पुलिस ने कपिल और मनीष के बारे में जांच कर पता लगा लिया कि आगरा की पंचशील कालोनी में रहने वाला मनीष राम सिंह का बेटा है, जो एक फैक्ट्री में काम कर के परिवार पालता है. मनीष का एक छोटा भाई भी है. पुलिस मनीष को दिल्ली से ले आई और उस से पूछताछ शुरू कर दी. उधर पुलिस की एक टीम पंचशील कालोनी और घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच कर रही थी. लेकिन कोहरे के कारण किसी सीसीटीवी कैमरे में कोई फोटो नहीं आ पाई थी, पर कालोनी के लोगों ने बताया कि 5 जनवरी, 2020 की रात में वीरेंद्र के घर पास एक कार देखी गई थी.

वीरेंद्र के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस के फोन की आखिरी लोकेशन कालोनी में ही मिली. पुलिस को गुमराह करने के लिए हत्यारे ने फरजी नामपते पर एक सिम ली थी. साजिश को अंजाम देने के लिए उसी सिम से वीरेंद्र को काल की गई थी. शक होने पर पुलिस ने भावना को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने मनीष और भावना से सख्ती से पूछताछ की तो उन के टूटने में ज्यादा देर नहीं लगी. इस के बाद कपिल को भी पुलिस दिल्ली से गिरफ्तार कर ले आई. पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पता चला कि नाजायज रिश्ते बरकरार रखने और अपनीअपनी खुशियां पाने के लिए उन्होंने हत्या की साजिश एक महीने पहले रची थी और उसे 4 जनवरी को अंजाम दिया था. अपनी खुशी और सुख पाने के लिए भावना इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने यह तक नहीं सोचा कि उस के इस कदम के बाद बच्चों का क्या होगा.

योजना के मुताबिक, 5 जनवरी, 2020 को कपिल अपने दोस्त दीपक की कार ले कर मनीष के साथ रात में आगरा पहुंचा. उस समय रात के करीब 12 बज चुके थे. भावना ने अपने घर का बाहरी दरवाजा खुला छोड़ दिया. दोनों अंदर आ गए. उस समय वीरेंद्र सो रहा था. कपिल ने तकिए से उस का मुंह और मनीष ने गला दबाया. भावना ने पति के पैर पकड़ लिए ताकि वह विरोध न कर सके.  जब वीरेंद्र ने छटपटाना बंद कर दिया तो तीनों ने मिल कर उसे कार में डाला और दीप इंटर कालेज के पास एक खाली प्लौट के सामने चार फुटा रोड पर डाल दिया. इस के बाद कई बार उस की लाश पर कार चढ़ाई, जिस से उस की पसलियां टूट गईं.

कोशिश की, लेकिन पुलिस को नहीं लगा एक्सीडेंट बेशक कातिलों ने हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की, पर पुलिस की सूझबूझ से राज खुल ही गया. इश्क की मारी भावना का कोई ड्रामा काम नहीं आया. हत्या के बाद कपिल और मनीष दिल्ली आए थे लेकिन उन दोनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई गई तो मनीष के फोन की लोकेशन घटनास्थल पर और फिर दिल्ली की पाई गई. भावना ने फोन की काल डिटेल्स निकाली गई तो हत्या से पहले उस की कपिल से बात होने की पुष्टि हुई. पुलिस ने 48 घंटे में इस हत्याकांड से परदा उठा दिया और तीनों आरोपियों भावना, कपिल और मनीष को गिरफ्तार कर 8 जनवरी, 2020 को पुलिस जब कोर्ट ले गई तो उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जमा हो गई. तीनों को सुरक्षा घेरे में ले कर अदालत में पेश किया गया. जैसे ही अदालत ने उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए तो तीनों आरोपी रोने लगे.

अपने सुख के लिए पति नाम के कांटे को रास्ते से हटाने के लिए भावना ने गहरी चाल चली थी. भावना ने सोचा था कि विधवा हो जाने पर उसे सहानुभूति और प्रौपर्टी दोनों ही मिलेंगी, पर इस अपराध के लिए उसे मिली जेल. कुछ रिश्तेदारों और अपनों ने भावना से मुंह फेर लिया. अब उस के पास काली अंधी दुनिया के सिवाय कुछ नहीं है. भावना का बेटा 7वीं कक्षा में और बेटी 6ठी कक्षा में पढ़ती है. उन्हें नहीं मालूम कि मां ने उन्हें अनाथ क्यों किया. एक कातिल मां की इस कारगुजारी का बच्चों पर क्या असर होगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा. पर मां ने फिलहाल तो उन से उन के हिस्से की खुशियां छीन ही लीं.

 

 

Extramarital Affair : बहू के अवैध संबंध के चक्कर में मारा गया ससुर

Extramarital Affair : बालेश्वर जो कर रहा था, वह गलत था. लेकिन हकीकत जानने के बाद सोमेश उर्फ सोनू ने जो कदम उठाया, वह भी सही नहीं था. लेकिन सवाल यह है कि वह करता भी तो क्या… 

बा 9 अक्तूबर, 2018 की है. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के थाना बेला के एसओ विष्णु गौतम अपने औफिस में बैठे थे. तभी सुबह करीब 10 बजे एक युवक उन से मिलने आया. वह बेहद घबराया हुआ था. गौतम ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. बैठ जाने के बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम कुछ परेशान लग रहे हो? जो भी बात है, बताओ.’’

एसओ की बात सुन कर युवक बोला, ‘‘सर, मेरा नाम सोमेश है. मैं धरमंगदपुर गांव में रहता हूं. रात को किसी ने मेरे पिता और मेरी 4 साल की भांजी की हत्या कर दी है. आप जल्दी मेरे साथ चलें.’’

मामला 2-2 हत्याओं का था, इसलिए एसओ विष्णु गौतम तुरंत पुलिस फोर्स के साथ चल दिए. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. धरमंगदपुर गांव थाने से कोई 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगाउस समय घटनास्थल पर गांव वालों की भीड़ जुटी थी. घर में महिलाओं के रोने से कोहराम मचा था. एसओ मकान की दूसरी मंजिल पर स्थित कमरे में पहुंचे. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर 2 लाशें पड़ी थीं. एक लाश घर के मुखिया बालेश्वर पांडेय की थी और दूसरी मासूम पलक कीदेख कर लग रहा था कि बालेश्वर के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. जिस से उन का सिर फट गया था और  ज्यादा खून बहने से उन की मौत हो गई थी.

जबकि पलक के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. शायद उस का गला घोंटा गया था. कमरे के अंदर खून फैला था और खून से सनी एक फुंकनी पड़ी थी. बालेश्वर की उम्र 60 साल के आसपास थी जबकि पलक 4 साल की थी. एसओ विष्णु गौतम मौके का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी त्रिवेणी सिंह, एएसपी नेपाल सिंह तथा सीओ भास्कर वर्मा भी वहां गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. फोरैंसिक टीम ने वहां से सबूत इकट्ठे किए. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद बालेश्वर पांडेय के बेटे सोमेश से बात की. एसपी के निर्देश पर एसओ ने मौके की काररवाई निपटा कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं.

इस के बाद एसओ विष्णु गौतम ने मृतक की पत्नी मंजू पांडेय से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘बीती रात 8 बजे हम सब ने मिल कर खाना खाया. इस के बाद पति बालेश्वर तथा नातिन पलक दूसरी मंजिल पर बने कमरे में सोने चले गए. बड़ा बेटा सोमेश उर्फ सोनू भी छत पर जा कर सो गया. वह, मैं और बेटी पूनम नीचे पर बने कमरे में जा कर सो गए. सुबह होने पर पति नहीं जागे तो मैं पूनम के साथ उन्हें जगाने पहुंची. जैसे ही मैं उन के कमरे में दाखिल हुई, चीख निकल गई. दोनों की वहां लाशें पड़ी थीं.’’

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि तुम्हारे पति और नातिन की हत्या किस ने की है. तुम्हें किसी पर शक है?’’ एसओ ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर शक नहीं है. उन की तो किसी से दुश्मनी थी और ही किसी से लेनदेन का झगड़ा था.’’ मंजू ने जवाब दिया.

पूनम ने बताया, ‘‘साहब, मैं कई महीने से मायके में अपनी बेटी पलक के साथ रह रही हूं. पलक वैसे तो मेरे पास सोती थी, लेकिन कल रात वह नाना के साथ सोने की जिद करने लगी थी. जिद पकड़ने पर पिताजी उसे अपने साथ ले गए थे.’’

‘‘तुम्हारे पिता बेटी का कातिल कौन हो सकता है? तुम्हें किसी पर संदेह है?’’ एसओ ने पूनम से पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर कोई शक नहीं है. मैं नहीं जानती कि इन दोनों को किस ने और क्यों मारा है?’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

एसओ ने इस के बाद सोमेश से पूछताछ की तो उस ने भी वही बताया जो उस की मां और बहन ने बताया था. इस के बाद विष्णु गौतम ने पड़ोसियों से बात की तो पता चला कि बालेश्वर पांडेय रिटायर्ड फौजी था. वह शराब का आदी था. उस का अपनी बहू यानी सोमेश की पत्नी से कोई चक्कर चल रहा था. इस बात को ले कर सोमेश का अपने पिता से अकसर झगड़ा होता रहता था. बीती रात भी उस का अपने बाप से झगड़ा हुआ था. एसओ विष्णु गौतम के लिए यह जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी. सोमेश उर्फ सोनू शक के घेरे में आया तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया और थाने ले जा कर उस से इस दोहरे मर्डर के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह उन के सवालों के जाल में उलझ गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि दोनों हत्याएं उस ने ही की थीं. हालात ऐसे बन गए कि उसे ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह पारिवारिक रिश्तों को तारतार कर देने वाली निकली

औरैया जिले की विधूना तहसील के अंतर्गत एक गांव है धरमंगदपुर. यह गांव बेला विधून मार्ग पर बेला से 4 किलोमीटर दूर बसा हुआ है. पहले यह गांव उजाड़ था लेकिन जब से बिजली, सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया हुईं, तब से गांव संपन्नता की ओर बढ़ने लगा. इस गांव के ज्यादातर लोग किसान हैं. कुछ लोग गल्ले का व्यापार करते हैं तो कुछ दूध के व्यवसाय से भी जुडे़ हैं. इसी धरमंगदपुर गांव में बालेश्वर पांडेय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मंजू के अलावा 3 बेटे सोमेश उर्फ सोनू, उमेश उर्फ मोनू, नीरज उर्फ छोटू तथा 2 बेटियां नीलम पूनम थीं. बालेश्वर पांडेय मूलरूप से इटावा जिले के सहसों थाना क्षेत्र के गांव बल्लो गाढि़या का रहने वाला था. वह सेना में नौकरी करता था.

फौज से रिटायर होने के बाद उस ने अपने गांव में एक आलीशान मकान बनवाया था. इस के अलावा कुछ खेती की जमीन भी खरीद ली थी. कुल मिला कर वह साधनसंपन्न था. गांव में उस की तूती बोलती थी. बालेश्वर पांडेय अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुका था. बेटों में सोमेश उर्फ सोनू बड़ा था. वह बचपन से ही गांव छोड़ कर चला गया था. कई सालों तक वह एक शहर से दूसरे शहर की खाक छानता रहा. उस के बाद गांव कर रहने लगाउस ने गांव के आवारा नशेबाज लड़कों से दोस्ती कर ली थी. फौजी बालेश्वर इन आवारों लड़कों से नफरत करता था. वह सोनू के साथसाथ उन्हें भी फटकारता रहता था. जिस से सोमेश की अपने पिता से अकसर तकरार होती रहती थी. उस का छोटा बेटा नीरज उर्फ छोटू इटारसी में रह कर पढ़ाई कर रहा था.

उमेश उर्फ मोनू भाइयों में मंझला था. उस का मन तो पढ़ाई में लगता था और ही किसानी में. बालेश्वर ने सोचा कहीं मोनू गलत रास्ते पर चला जाए, इसलिए उन्होंने उस का ब्याह सीमा से करा दिया था. सीमा और मोनू ने बडे़ प्यार से जिंदगी का सफर शुरू किया. धीरेधीरे 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. पर 5 वर्ष बीतने के बावजूद सीमा मां नहीं बन सकी. इस का मलाल सीमा को भी था और उस की सास मंजू को भी. सीमा को ससुराल में किसी प्रकार की कमी नहीं थी. पर उसे अब 2 चिंताएं सताने लगी थीं. एक तो उस की गोद सूनी थी, दूसरी उस का पति निठल्ला था. वह कोई कामकाज नहीं करता था. सीमा अपने खर्च के लिए सासससुर पर ही निर्भर थी. सीमा ने पहले प्यार से फिर सख्त लहजे में पति को समझाया कि वह शहर जा कर कोई नौकरी करे.

पत्नी के सख्त रुख से मोनू परेशान रहने लगा. अब दोनों के बीच दूरियां बनने लगी थीं. धीरेधीरे उमेश की हालत पागलों जैसी हो गई. वह कभी घर आता तो कभी मंदिर के चबूतरे पर ही रात बिता देता था. बालेश्वर और उस की पत्नी मंजू बेटे की इस हालत पर गंभीर थे. वह उस का इलाज भी करा रहे थे और झाडफूंक भी. उन्हें शक था कि उमेश को कोई शैतानी ताकत परेशान कर रही है. इसी के चलते एक रोज उमेश गुम हो गया. बालेश्वर ने उस की हर संभावित जगह पर तलाश की, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उमेश उर्फ मोनू को गुम हुए कई साल बीत गए. घर वाले भी उसे भूलने लगे. सीमा को भी पति के जाने का कोई खास दुख था, क्योंकि उस के रहते भी उसे कोई सुख नहीं था. पहले भी वह सासससुर पर निर्भर थी, वही हाल अब भी था. अत: वह पूरी तरह सासससुर की सेवा में जुट गई.

मंजू अकसर बीमार रहती थी. घर की सारी जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर गई थी. सीमा ने अब ससुर के सामने लंबा घूंघट करना भी छोड़ दिया था. अब वह सिर्फ हलका परदा करती थी. बेटे के घर से गायब हो जाने के बाद बालेश्वर की नजर बहू सीमा पर पड़ने लगी थी. बालेश्वर पांडेय फौजी था. वह शराब का भी शौकीन था. एक शाम बालेश्वर मल्हौसी बाजार गया, वहां उस ने शराब के ठेके पर जम कर शराब पी. फिर मस्ती के आलम में झूमता हुआ देर रात घर पहुंचा. मंजू बीमार होने के कारण जल्दी सो गई थी. बालेश्वर ने घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया तो सीमा ने ही दरवाजा खोला. फिर कच्ची नींद से उठी सीमा अपने कमरे में सोने चली गई. इधर बालेश्वर कमरे के बाहर पड़ी चारपाई पर जा कर बैठ गया.

लालटेन की रोशनी में वहां से सीमा के कमरे के अंदर का नजारा साफ दिख रहा था. बालेश्वर की नीयत में खोट गया. वह धीरे से उठा, पत्नी मंजू के कमरे में झांक कर देखा तो वह चादर ताने गहरी नींद में थी. वहां से मुड़ कर बालेश्वर सीमा के पलंग के पास खड़ा हुआ. कुछ देर तक वह सीमा का चेहरा ताकता रहा. फिर उस का गाल सहलाने लगा. किसी के स्पर्श का अहसास हुआ तो सीमा जाग गई. बालेश्वर ने तुरंत अपना हाथ खींच लिया और फुसफुसा कर बोला, ‘‘बहू, जरा उठ कर मेरे लिए खाना तो परोस दे.’’

सीमा की आंखें नींद से बोझिल थीं, इसलिए वह ससुर की हरकत की गंभीरता समझ नहीं पाई. वह उठी और रसोई में चली गई. बालेश्वर भी पीछेपीछे वहां जा पहुंचा. एकाएक वह सीमा का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हें जगाना नहीं चाहता था लेकिन क्या करूं, जगाना ही पड़ा. जब तक खाने पर तेरा हाथ नहीं लगता, स्वाद नहीं आता.’’ बालेश्वर बेहयाई से हंसा.

सीमा ससुर की इस हरकत पर दूर जा कर खड़ी हो गई. उस ने चुपचाप ससुर को खाना परोसा और उस से बचती हुई रसोई के बाहर निकलने लगी. तभी बालेश्वर ने फिर से अश्लील हरकत कर दी और बोला, ‘‘एक लोटा पानी भी तो देती जा बहू.’’

ससुर की बदनीयती देख कर सीमा को गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुपचाप गुस्सा पी गई और पानी का लोटा रख कर अपने कमरे में कर पलंग पर लेट गई. काफी देर तक पड़ीपड़ी वह सोचती रही कि आज ससुर को अचानक क्या हो गया, जो इस तरह की हरकत कर रहे हैं. बालेश्वर ने उस के साथ उस रात दोबारा छेड़छाड़ नहीं की तो सीमा ने सोचा कि शायद नशे में होने की वजह से वह ऐसी हरकत कर बैठे होंगे. पर ऐसा सोचना उस की भूल थी. अब बालेश्वर जब भी उसे अकेली पाता, कहीं कहीं उस के बदन पर हाथ फेर देता था. एक शाम बालेश्वर फिर शराब पी कर आया. रात गहराने लगी तो उस ने एक नजर बीवी पर डाली. वह खर्राटे भर रही थी. यह देख उस की बांछें खिल उठीं. उस ने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए और सिर्फ कच्छा बनियान पहने सीमा के पलंग पर जा पहुंचा.

सीमा उस के इरादों से अनजान नींद में बेसुध पड़ी थी. बालेश्वर उस की बगल में लेट गया और उस के कामुक अंगों को सहलाने लगा. सीमा नींद से जागी और उठ कर बैठने को हुई तो बालेश्वर ने उसे दबोच लिया और कुटिल हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘ताकत दिखाने से कोई फायदा नहीं मेरी रानी. अच्छा यही होगा कि चुपचाप ऐसे ही पड़ी रहो. तुम मुझे खुश कर दोगी तो मैं भी जिंदगी भर तुम्हें खुश रखूंगा. रानी बन कर रहना है तो मेरी बात मान लो.’’

सीमा ससुर की बांहों से छूटने का प्रयास करते हुए बोली, ‘‘मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं पिताजी, मुझे छोड़ दो.’’

सीमा गिड़गिड़ाती रही. इज्जत की दुहाई देती रही, पर बालेश्वर पर तो हवस का शैतान सवार था. उस ने अपनी कोशिश जारी रखी. उस की हरकतों से सीमा की सीमाएं भी पिघलने लगीं. वह भी कई सालों से पुरुष सुख से वंचित थी. अंतत: उस ने विरोध करना बंद कर दिया. इस के बाद ससुरबहू के बीच एक नापाक रिश्ता बन गया. उस रात अनीति का पहला अध्याय लिखा गया, तो यह सिलसिला ही बन गया. बालेश्वर बीवी को नींद की गोलियां खिला देता. जब मंजू गहरी नींद में सो जाती तो वह बहू की सेज सजाने पहुंच जाता. सीमा भी उस का भरपूर सहयोग करती थी.

ऐसे काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. ससुरबहू की गतिविधियों से पड़ोसियों को शक हुआ तो धीरेधीरे उन की यह बात फैलने लगी. मंजू के कानों में बात पड़ी तो उसे यकीन नहीं हुआ. फिर भी उस ने बहू सीमा से इस बाबत सवालजवाब किया तो सीमा बोली, ‘‘अम्मा, तुम सठिया गई हो जो सुनीसुनाई बातों पर यकीन करती हो. पड़ोसी तुम्हारे कान इसलिए भर रहे हैं ताकि घर में कलह हो.’’

बालेश्वर का बड़ा बेटा सोमेश उर्फ सोनू कई साल बाद घर लौट आया. घर में रह कर वह खेती के काम देखने लगा. जब सोमेश को पता चला कि उस के छोटे भाई की पत्नी सीमा के अपने ससुर से नाजायज संबंध हैं तो उस का माथा ठनका. लेकिन वह सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहता था. वह पिता छोटे भाई की पत्नी सीमा पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम यह हुआ कि एक रात सोमेश ने सीमा को आधी रात के बाद पिता के कमरे से बाहर निकलते देख लिया. अब उस का शक यकीन में बदल गया. सोमेश ने जब इन नाजायज रिश्तों के बारे में सीमा से जवाब तलब किया तो उस ने सीधे शब्दों में कह दिया, ‘‘जो पूछना है अपने बाप से पूछो. घर उस का है, मुझे तो उस ने घर की दासी समझ रखा है.’’

सोमेश ने बाप से जब मर्यादा में रहने को कहा तो बालेश्वर भड़क गया, ‘‘तू मुझे नसीहत दे रहा है? यह मेरा घर है, जायदाद मेरी है. ज्यादा बोला तो घर से बेदखल कर दूंगा. एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. अपनी औकात में रह.’’

सोमेश उस समय खामोश हो गया. लेकिन नफरत की आग उस के सीने में दहकने लगी. सोमेश की छोटी बहन पूनम अपने पति नीरज दीक्षित से लड़झगड़ कर अपनी बेटी पलक के साथ मायके गई थी. पूनम के जाने से ससुरबहू के संबंधों में खलल पड़ने लगा था. नाजायज रिश्तों को ले कर बापबेटे में ठन गई थी. जब घर में कलह बढ़ी तो सीमा तुनक कर अपने मायके चली गई. बालेश्वर सीमा को समझाबुझा कर वापस लाना चाहता था, लेकिन सोमेश इस का विरोध कर रहा था. सीमा को ले कर सोमेश बालेश्वर में अकसर झगड़ा होने लगा था. गुस्से में बालेश्वर बेटे सोमेश को पीट भी देता था.

8 अक्तूबर, 2018 की देर शाम भी बालेश्वर सोनू में सीमा को ले कर तूतू मैंमैं हुई. फिर बात इतनी बढ़ी कि बालेश्वर ने सोमेश की पिटाई कर दी. इस पिटाई ने आग में घी का काम किया. सोमेश ने सोचा आज यह पापी बहू को हवस का शिकार बना रहा है, कल को बेटी को भी हवस का शिकार बना सकता है. अत: उस का जिंदा रहना उचित नहीं है. ज्योंज्यों रात गहराती जा रही थी, त्योंत्यों सोमेश का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. वह छत पर लेटा था लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. आधी रात के बाद वह उठा. पहले वह रसोई में गया. वहां से लोहे की फुंकनी ले कर बाप के कमरे में जा पहुंचा

बालेश्वर गहरी नींद में सो रहा था. उसी के बगल में बहन पूनम की मासूम बेटी पलक सो रही थी. कमरे में पहुंचते ही सोमेश ने बाप के सिर पर फुंकनी से कई प्रहार किए. बालेश्वर चीखा और सदा के लिए शांत हो गया. नाना की चीख से पलक की नींद खुल गई. उस ने मामा का रौद्र रूप देखा तो चीखने लगी. सोमेश ने सोचा कि पलक ने उसे हत्या करते देख लिया है, वह बता देगी तो वह पकड़ा जाएगा. विवेक खो बैठे सोमेश के हाथ पलक की गरदन पर पहुंच गए और उस ने गला घोंट कर उसे भी मार डाला. डबल मर्डर करने के बाद सोमेश खून सनी फुंकनी कमरे में ही छोड़ कर घर से बाहर गया. घर से कुछ दूरी पर तालाब था. वहां जा कर उस ने खून सने हाथपैर धोए, फिर वापस कर छत पर सो गया. सुबह होने पर मंजू पूनम कमरे में पहुंचीं तो उन्हें डबल मर्डर की जानकारी हुई.

फिर सोमेश भी कुछ देर रोनेधोने का नाटक करता रहा और बाद में उस ने थाना बेला जा कर पुलिस को सूचना दे दी. सोमेश उर्फ सोनू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे 10 अक्तूबर, 2018 को औरैया की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Crime : मौसी बनी बच्चों की कातिल

Family Crime : राधा ने बहन के पति संजय से आशिकी ही नहीं की बल्कि उस से शादी भी कर ली. लेकिन उस की इस विषैली आशिकी ने उसी की जिंदगी में जहर घोल दिया. उस के साथ जो हुआ वह…

राधा हसीन सपने देखने वाली युवती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. उसे मांबाप और भाइयों के प्यार की कभी कमी नहीं रही. लेकिन राधा की जिंदगी ही नहीं, बल्कि मौत भी एक कहानी बन कर रह गई, एक दुखद कहानी. राधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की आशिकी इतनी दुखद साबित होगी कि ससुराल और मायके दोनों जगह नफरत के ऐसे बीज बो जाएगी, जिस के पौधों को काटना तो दूर वह उस की गंध से ही तड़प उठेगी. इस कहानी की भूमिका बनी जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश के गांव सैलई से. विजय पाल सिंह अपने 3 बेटों मुकेश, सुखदेव और संजय के साथ इसी गांव में खुशहाल जीवन बिता रहा था. विजय पाल के पास खेती की जमीन थी. साथ ही गांव के अलावा कासगंज में पक्का मकान भी था.

मुकेश और सुखदेव की शादियां हो गई थीं. मुकेश गांव में ही परचून की दुकान चलाता था, जबकि सुखदेव कोचिंग सेंटर में बतौर अध्यापक नौकरी करता था. विजय का तीसरे नंबर का छोटा बेटा संजय ट्रक ड्राइवर था. विजय पाल का पड़ोसी केसरी लाल अपने 2 बेटों प्रेम सिंह, भरत सिंह और जवान बेटी तुलसी के साथ सैलई में ही रहता था. पड़ोसी होने के नाते विजय पाल और केसरी लाल के पारिवारिक संबंध थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसरी लाल की जवान बेटी तुलसी पड़ोस में रहने वाले संजय को इतना चाहने लगेगी कि अपनी अलग दुनिया बसाने के लिए परिवार तक से बगावत कर बैठेगी.

जब केसरी लाल को पता चला कि बेटी बेलगाम होने लगी है तो उस ने तुलसी पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया. लेकिन तुलसी को तो ट्रक ड्राइवर भा गया था, इसलिए वह बागी हो गई. संजय और तुलसी के मिलनेजुलने की चर्चा ने जब गांव में तूल पकड़ा तो केसरी लाल ने विजय पाल से संजय की इस गुस्ताखी के बारे में बताया. विजय पाल ने केसरी लाल से कहा कि वह निश्चिंत रहे, संजय ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि उस की बदनामी हो. लेकिन इस से पहले कि विजय पाल कुछ करता, संजय तुलसी को ले कर गांव से भाग गया. घर वालों को ऐसी उम्मीद नहीं थी, पर संजय और तुलसी ने कोर्ट में शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली. केसरी लाल को बागी बेटी की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने तय कर लिया कि परिवार पर बदनामी का दाग लगाने वाली बेटी से कोई संबंध नहीं रखेगा. कई साल तक तुलसी का अपने मायके से कोई संबंध नहीं रहा.

कालांतर में तुलसी ने शिवम को जन्म दिया तो मांबाप का दिल भी पिघलने लगा. तुलसी संजय के साथ खुश थी, इसलिए मांबाप उसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकते थे.  इसी के चलते उन्होंने बेटीदामाद को माफ कर के घर बुला लिया. सब कुछ ठीक हो गया था, तुलसी खुश थी. 4 साल बाद वह 2 बच्चों की मां भी बन गई थी. उस ने सासससुर और परिवार वालों के दिलों में अपने लिए जगह बना ली. सैलई में तुलसी के चाचा अयोध्या प्रसाद भी रहते थे, जिन्हें लोग अयुद्धी भी कहते थे. अयुद्धी के 2 बेटे थे दीप और विपिन. साथ ही एक बेटी भी थी राधा. राधा और तुलसी दोनों की उम्र में थोड़ा सा अंतर था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एकदूसरे के काफी करीब थीं.

जब तुलसी संजय के साथ भाग गई थी तो राधा खुद को अकेला महसूस करने लगी थी. तुलसी संजय के साथ कासगंज में रहती थी. राधा को उन दोनों के गांव आने का इंतजार रहता था. बहन और जीजा जब भी गांव आते थे, राधा ताऊ के घर पहुंच जाती थी. जीजासाली के हंसीमजाक को बुरा नहीं माना जाता, इसलिए संजय और राधा के बीच हंसीमजाक चलता रहता था. मजाक से हुई शुरुआत धीरेधीरे रंग लाने लगी. संजय स्वभाव से चंचल तो था ही, धीरेधीरे तुलसी से आशिकी का बुखार भी हलका पड़ने लगा था. एक दिन मौका पा कर संजय ने राधा का हाथ पकड़ लिया.

राधा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘जीजा, तुम ने इसी तरह तुलसी दीदी का हाथ पकड़ा था न?’’

‘‘हां, ठीक ऐसे ही.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या इस हाथ को हमेशा पकड़े रहोगे?’’ राधा ने पूछा.

संजय ने हड़बड़ा कर राधा का हाथ छोड़ दिया. राधा ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘बड़े डरपोक हो जीजा. अगर लुकछिप कर तुम कुछ पाना चाहते हो तो मिलने वाला नहीं है. हां, बात अगर गंभीर हो तो सोचा जा सकता है. ’’

राधा संजय के दिलोदिमाग में बस चुकी थी. जबकि तुलसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उस की चचेरी बहन ने किस तरह संबंधों में सेंध लगा दी है. राधा उस के जीवन में अचानक घुस आएगी, ऐसा तुलसी ने सोचा तक नहीं था. संजय पर विश्वास कर उस ने अपने मांबाप से बगावत की थी, लेकिन उसे लग रहा था कि संजय के दिल में कुछ है, जो वह समझ नहीं पा रही. दूसरी तरफ राधा सोच रही थी कि क्या सचमुच संजय उस के प्रति गंभीर है या फिर सिर्फ मस्ती कर रहा है. संजय का स्पर्श उस की रगों में बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. उस ने सोचा कि यह सब गलत है. अब वह अकेले मेें संजय के करीब नहीं जाएगी. उस ने खुद को संभालने की भरपूर कोशिश की लेकिन संजय हर घड़ी, हर पल उस के दिलोदिमाग में मंडराता रहता था.

अगले कुछ दिन तक संजय गांव नहीं आया तो एक दिन राधा ने संजय को फोन कर के पूछा, ‘‘क्या बात है जीजा, दीदी गांव क्यों नहीं आती?’’

‘‘ओह राधा तुम हो, जीजी से बात कर लो, मुझ से क्या पूछती हो? अगर ज्यादा दिल कर रहा है तो हमारे घर आ जाओ. कल ही लंबे टूर से वापस आया हूं.’’

राधा का दिल धड़कने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी बहन के पति की ओर खिंची चली जा रही है. हालांकि वह जानती थी कि यह गलत है. अगर उस ने संजय से संबंध बनाए तो पता नहीं संबंधों में कितनी मजबूती होगी. संजय मजबूत भी हुआ तो समाज और परिवार के लोग कितनी लानतमलामत करेंगे. ये संबंध कितने सही होंगे, वह नहीं जानती थी. पर आशिकी हिलोरें ले रही थी. लग रहा था जैसे कोई तूफान आने वाला हो. फिर एक दिन राधा अपनी बहन के घर कासगंज आ गई. शाम को जब संजय ने राधा को अपने घर देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘राधा, तुम यहां?’’

‘‘हां, और अब शाम हो रही है. मैं जाऊंगी भी नहीं.’’ राधा ने संजय को गहरी नजर से देखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, तुम्हें देखते ही इस ने रंग बदल लिया. मैं इसे रुकने को कह रही थी तो मान ही नहीं रही थी.’’ तुलसी ने कहा. वह राधा और संजय के मनोभावों से बिलकुल बेखबर थी.

संजय ने चाचा के घर फोन कर के कह दिया कि उन लोगों ने राधा को रोक लिया है, सुबह वह खुद छोड़ आएगा. उस दिन राधा वहीं रुक गई, लेकिन तुलसी के दांपत्य के लिए वह रात कयामत की रात थी. इंटर पास राधा से तुलसी को ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं थी. लेकिन राधा के दिलोदिमाग पर तो जीजा छाया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद तुलसी ने राधा का बिस्तर अलग कमरे में लगा दिया और निश्चिंत हो कर सो गई. लेकिन राधा और संजय की आंखों में नींद नहीं थी. देर रात संजय राधा के कमरे में पहुंचा तो राधा जाग रही थी. जानते हुए भी संजय ने पूछा, ‘‘तुम सोई नहीं?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. मुझे यह बताओ जीजा, तुम ने मुझे क्यों रोका है?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘सोच लो जीजा, साली से प्यार करना महंगा भी पड़ सकता है.’’ राधा ने कहा.

‘‘वह सब छोड़ो, बस यह जान लो कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ कह कर संजय ने राधा को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. जो संबंध संजय के लिए शायद मजाक थे, उन्हें ले कर राधा गंभीर थी. इसीलिए दोनों के बीच 2 साल तक लुकाछिपी चलती रही. फिर एक दिन राधा ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है? लगता है, मां को शक हो गया है. जल्दी ही मेरे लिए रिश्ता तलाशा जाएगा. मुझे यह बताओ कि तुम दीदी को तलाक दोगे या नहीं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मैं तुलसी को कैसे तलाक दे सकता हूं? बड़ी मुश्किल से तुलसी को घर वालों ने स्वीकार किया है.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या तुम साली को मौजमस्ती के लिए इस्तेमाल कर रहे हो, यह सब महंगा भी पड़ सकता है जीजा, मुझे बताओ कि अब क्या करना है?’’

‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं. हम दोनों कासगंज छोड़ कर कहीं और रहेंगे और कोर्ट में शादी कर लेंगे. मजबूर हो कर तुलसी तुम्हें स्वीकार कर ही लेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था कि तुम तुलसी को छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल मत बनो, वह मेरे 2 बेटों की मां है. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हें वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो पत्नी को मिलते हैं.’’ संजय ने राधा को समझाने की कोशिश की. आखिर राधा जीजा की बात मान गई और एक दिन संजय के साथ भाग गई. दोनों ने बदायूं कोर्ट में शादी कर ली. अगले दिन राधा के घर में तूफान आ गया. उस की मां को तो पहले से ही शक था. पिता अयुद्धी इतने गुस्से में था कि उस ने उसी वक्त फैसला सुना दिया, ‘‘समझ लो, राधा हम सब के लिए मर गई. आज के बाद इस घर में कोई भी उस का नाम नहीं लेगा.’’

उधर संजय परेशान था कि अब राधा को ले कर कहां जाए. उस ने तुलसी को फोन कर के बता दिया कि उस ने राधा से कोर्टमैरिज कर ली है. अब तुम बताओ, मैं राधा को घर लाऊं या नहीं. तुलसी हैरान रह गई. पति की बेवफाई से क्षुब्ध तुलसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने सासससुर को सारी बात बता दी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. इसी बीच इश्क का मारा घर का छोटा बेटा अपनी नई बीवी को ले कर घर आ गया. तुलसी क्या करती, उसे तो न मायके वालों का सहयोग मिलता और न ससुराल वालों का. अगर वह अपने पति के खिलाफ जाती तो 2-2 बच्चों की मां क्या करती. आखिर तुलसी ने हथियार डाल दिए और सौतन बहन को कबूल कर लिया.

राधा ससुराल आ तो गई, पर उसे ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था. साल भर के बाद भी राधा को कोई संतान नहीं हुई तो उस के दिल में एक भय सा बैठ गया कि अगर उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो वह क्या करेगी. इसी के मद्देनजर वह तुलसी और उस के बच्चों के दिल में जगह बनाने की भरसक कोशिश कर रही थी. इसी बीच संजय ने कुछ सोच कर एटा के अवंतीबाई नगर में रिटायर्ड फौजी नेकपाल के मकान में 2 कमरे किराए पर ले लिए और परिवार के साथ वहीं रहने लगा. तुलसी जबतब कासगंज आतीजाती रहती थी.

संजय ने दोनों बच्चों नितिन और शिवम को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था. राधा से बच्चे काफी हिलमिल गए थे. तुलसी ने सौतन को अपनी किस्मत समझ लिया था, लेकिन अभी जीवन में बहुत कुछ होना बाकी था. कोई नहीं जानता था कि कब कौन सा तूफान आ जाए. सतही तौर पर सब ठीक था, पर अंदर ही अंदर लावा उबल रहा था. राधा को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका था. ससुराल वालों से भी अपनेपन की कोई उम्मीद नहीं थी. उसे यह अपराधबोध भी परेशान कर रहा था कि उस ने अपनी ही बहन के दांपत्य में सेंध लगा दी है.

परिवार की बड़ी बहू तो तुलसी ही थी. राधा को जबतब तुलसी के ताने भी सहने पड़ते थे. जिंदगी में सुखचैन नहीं था. आगे देखती तो भी अंधेरा ही नजर आता था. एक संजय का प्यार ही था, जिस के सहारे वह सौतन की भूमिका निभा रही थी. 23 मई, 2016 को संजय को उस के किसी दुश्मन ने गोली मार दी. जख्मी हालत में उसे अलीगढ़ मैडिकल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर थी. राधा डर गई कि अगर संजय मर गया तो वह कहां जाएगी. संजय की देखरेख कभी तुलसी करती तो कभी राधा. तभी तुलसी ने राधा से कहा, ‘‘संजय की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है, तुम जा कर बच्चों को देखो, मैं यहां संभालती हूं.’’

जुलाई महीने में संजय की हालत कुछ सुधरी तो घर वाले उसे कासगंज वाले घर में ले आए. तुलसी अपने पति के साथ थी, जबकि राधा बच्चों के साथ पति से दूर थी. अस्पताल में संजय ने एक बार राधा से कहा, ‘‘मेरी हालत ठीक नहीं है. अगर तुम किसी और से शादी करना चाहो तो कर लो.’’

सुन कर राधा सन्न रह गई, ‘‘यह क्या कह रहे हो संजय, मैं सिर्फ तुम्हारी हूं. तुम्हारे लिए कितना कुछ सह रही हूं. मेरे जैसी औरत से कौन शादी करेगा और कौन मुझे मानसम्मान देगा.’’

उस दिन के बाद से राधा डिप्रेशन में रहने लगी. पति और बच्चा दोनों ही उस की ख्वाहिश थीं. अगर पूरी नहीं होती तो वह कुछ भी नहीं थी. नितिन और शिवम इस बात से अनभिज्ञ थे कि मौसी क्यों परेशान है और उस की परेशानी कौन सा तूफान लाने वाली थी. 19 अगस्त, 2016 को बच्चे स्कूल से आए तो राधा ने उन्हें खाना दिया. फिर दोनों पढ़ने बैठ गए. राधा ने रात के खाने की तैयारी शुरू कर दी. रात का खाना खा कर सब टीवी देखने बैठ गए. किसी को पता ही नहीं चला कि मौत ने कब दस्तक दे दी थी. कुछ देर बाद  राधा ने कहा, ‘‘तुम लोग सो जाओ,सुबह उठ कर स्कूल भी जाना है.’’

कुछ देर बाद बच्चे सो गए. राधा ने संजय को फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही. फोन नहीं उठा. यह सोच कर राधा का गुस्सा बढ़ने लगा कि क्या मैं सिर्फ सौतन के बच्चों की नौकरानी हूं. मेरे बच्चे नहीं होंगे तो क्या मुझे घर की बहू का सम्मान नहीं मिलेगा. संजय ने तो परिवार में सम्मान दिलाने का वादा किया था, पर वह मर गया तो?

ऐसे ही विचार उसे आहत कर रहे थे, गुस्सा दिला रहे थे. उस ने देखा शिवम निश्चिंत हो कर सो रहा था. यंत्रचालित से उस के हाथ शिवम की गरदन तक पहुंच गए और जरा सी देर में 4 वर्ष का के शिवम का सिर एक ओर लुढ़क गया. बच्चे की मौत से राधा घबरा गई. उस ने सोचा सुबह होते ही शिवम की मौत की खबर नितिन के जरिए सब को मिल जाएगी. इस के बाद तो पुलिस, थाना, कचहरी और जेल. संजय भी उसे माफ नहीं करेगा, ऐसे में क्या करे? उसे लगा, शिवम के भाई नितिन को भी मार देने में ही भलाई है. उस ने नितिन के गले पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. नितिन कुछ देर छटपटाया, फिर बेहोश हो गया. राधा ने जल्दी से एक बैग में कपड़े, कुछ गहने, पैसे और सर्टिफिकेट भरे और कमरे में ताला लगा कर बस अड्डे पहुंच गई, जहां मथुरा वाली बस खड़ी थी. वह बस में बैठ गई. मथुरा पहुंच कर वह स्टेशन पर गई, वहां जो भी ट्रेन खड़ी मिली, वह उसी में सवार हो गई.

इधर सुबह जब नितिन को होश आया तो उस ने खिड़की में से शोर मचाया. जरा सी देर में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने देखा कमरे के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. ताला तोड़ कर जब लोग अंदर पहुंचे तो शिवम मरा पड़ा था. नितिन ने बताया, ‘‘इसे राधा मौसी ने मारा है और मुझे भी जान से मारने की कोशिश की, लेकिन मैं बेहोश हो गया था.’’

लोगों ने कोतवाली में फोन किया, कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर कुमार पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. पुलिस जांच में जुट गई. शिवम को अस्पताल भेजा गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. नितिन ठीक था, उस का मैडिकल परीक्षण नहीं किया गया. बच्चे के पोस्टमार्टम में मौत का कारण दम घुटना बताया गया. इस मामले की सूचना कासगंज में विजय पाल को दे दी गई थी. विजय पाल ने 28 जुलाई, 2016 को थाना एटा में राधा के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. राधा के इस कृत्य से सभी हैरान थे. राधा कहां गई, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को राधा की लोकेशन मथुरा में मिली थी लेकिन आगे की कोई जानकारी नहीं थी.

23 अगस्त, 2016 को लुधियाना के एक गुरुद्वारे के ग्रंथी ने फोन कर के एटा पुलिस को बताया कि लुधियाना में एक लावारिस महिला मिली है जो खुद को कासगंज की बता रही है. यह खबर मिलते ही पुलिस राधा की गिरफ्तारी के लिए रवाना हो गई. लुधियाना पहुंच कर एटा पुलिस ने राधा को हिरासत में ले लिया और एटा लौट आई. एटा में उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में राधा से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह सौतन के तानों से परेशान थी, जिस के चलते उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. अकेले हो जाने के तनाव में उस से यह गलती हो गई. राधा ने यह बात पुलिस के सामने दिए गए बयान में तो कही. लेकिन बाद में अदालत में अपना गुनाह स्वीकार नहीं किया.

केस संख्या 572/2016 के अंतर्गत दायर इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट द्वारा 5 दिसंबर, 2016 को भादंवि की धारा 307, 302 का चार्ज लगा कर केस सत्र न्यायालय के सुपुर्द कर दिया गया. घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, राधा ने अपने बचाव में कहा कि उस के खिलाफ रंजिशन मुकदमा चलाया जा रहा है, वह निर्दोष है. उस ने किसी को नहीं मारा. तुलसी ने गवाही में कहा कि उस का राधा के साथ कोई विवाद नहीं है. उसे नहीं मालूम कि शिवम को किस ने मारा. घटना के गवाह मुकेश ने कहा कि उसे जानकारी नहीं है कि राधा ने किस वजह से शिवम की हत्या कर दी और नितिन को भी मार डालने की कोशिश की. मुकेश विजय पाल का मंझला बेटा था.

संजय ने अपनी गवाही में दूसरी पत्नी राधा को बचाने का भरसक प्रयास करते हुए कहा कि उस ने अपनी पहली पत्नी तुलसी की सहमति से राधा से शादी की थी. राधा बच्चों से प्यार करती थी. जब दुश्मनी के चलते किसी ने उसे गोली मार दी तो वह अस्पताल में था. तुलसी भी उस के साथ अलीगढ़ के अस्पताल में थी. घटना वाले दिन राधा घर पर नहीं थी, जिस से सब को लगा कि राधा ही शिवम की हत्या कर के कहीं भाग गई होगी. इसी आधार पर मेरे पिता ने उस के खिलाफ कोतवाली एटा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, पर सच्चाई यह है कि घटना वाले दिन रात में 2 बदमाश घर में घुस आए, जिन्होंने शिवम को मार डाला और नितिन को भी मरा समझ राधा को अपने साथ ले गए. बाद में उन्होंने राधा को कुछ न बताने की धमकी दे कर छोड़ दिया था.

राधा कोतवाली एटा पहुंची और पुलिस  को घटना के बारे में बताना चाहा, लेकिन पुलिस ने उस की बात नहीं सुनी. राधा के अनुसार बदमाशों से डर कर शिवम रोने लगा और उन्होंने शिवम की हत्या कर दी और जेवर लूट लिए. लेकिन अदालत ने कहा कि राधा ने अदालत को यह बात कभी नहीं बताई. पुलिस के अनुसार राधा ने कभी भी अपने साथ लूट और बदमाशों द्वारा शिवम की हत्या की कभी कोई रिपोर्ट नहीं लिखाई, न ही अपने 164 के बयानों में इस बात का जिक्र किया. 8 वर्षीय नितिन ने अपनी गवाही में कहा, ‘‘मां ने बताया कि मुझे अपनी गवाही में कहना है कि राधा ने मेरा गला दबाया था. लेकिन उस ने राधा द्वारा शिवम की हत्या किए जाने के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि वह राधा के साथ ही सो रहा था.’’

सत्र न्यायाधीश रेणु अग्रवाल ने 21 जनवरी, 2019 के अपने फैसले में लिखा कि नितिन की हत्या की कोशिश के कोई साक्ष्य नहीं मिले और न ही नितिन का कोई चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. अत: आईपीसी की धारा 307 से उसे बरी किया जाता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य राधा द्वारा शिवम की हत्या करना बताते हैं. अत: अभियुक्ता राधा जो जेल में है, को आईपीसी की धारा 302 का दोषी माना जाता है. अभियुक्त राधा को भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में अभियुक्ता को 2 माह की साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.

अर्थदंड की वसूली होने पर 10 हजार रुपए मृतक शिवम की मां तुलसी देवी को देय होंगे. अभियुक्ता की सजा का वारंट बना कर जिला कारागार एटा में अविलंब भेजा जाए. दोषी को फैसले की प्रति नि:शुल्क दी जाए. आजीवन कारावास यानी बाकी का जीवन जेल में गुजरेगा, फैसला सुनते ही राधा का चेहरा पीला पड़ गया. संजय की मोहब्बत और उस के साथ जीने, उस के बच्चों की मां बनने की उम्मीद राधा के लिए सिर्फ एक मृगतृष्णा बन गई थी. जीनेमरने की स्थिति में राधा ने इधरउधर देखा, वहां आसपास कोई नहीं था. संजय उस से कहता था कि वह बेदाग छूट कर बाहर आएगी और वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देगा.

बेजान सी राधा ने जेल में अपनी बैरक में पहुंचने के बाद इधरउधर देखा. चलचित्र की तरह सारी घटनाएं उस की आंखों के सामने गुजर गईं. कुछ ही देर में अचानक महिला बैरक में हंगामा मच गया. किसी ने जेलर को बताया कि राधा उल्टियां कर रही है, उस की तबीयत बिगड़ गई है. जेल के अधिकारी महिला बैरक में पहुंच गए. उन के हाथपैर फूल गए. राधा की हालत बता रही थी कि उस ने जहर खाया है, पर उसे जहर किस ने दिया, कहां से आया, यह बड़ा सवाल था. राधा को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. राधा का मामला काफी संदिग्ध था. उस का विसरा सुरक्षित कर लिया गया और जांच के लिए अनुसंधान शाखा में भेज दिया गया.

राधा के ससुराल और मायके में उस की मौत की खबर दी गई, लेकिन दोनों परिवारों ने शव लेने से इनकार कर दिया. राधा की विषैली आशिकी ने उस के जीवन में ही विष घोल दिया. राधा के शव का सरकारी खर्च पर अंतिम संस्कार कर दिया गया.

 

Extramarital Affair : गहरी खाई में डाल कर पति को जलाया

Extramarital Affair : रिजोश कुरियन और उस की पत्नी लिजी कुरियन की जिंदगी मौज मजे से कट रही थी. लिजी के नौकरी करने के बाद बेटी के भविष्य की चिंता भी खत्म हो गई थी. लेकिन जब लिजी की जिंदगी में वसीम अब्दुल कादिर आया तो पतिपत्नी के संबंधों में ऐसी सेंध लगी कि…

9 नवंबर, 2019 की बात है. दोपहर के यही कोई ढाई बजे थे. नवी मुंबई के उपनगर पनवेल के सीटी पुलिस थाने के थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे को एक अहम खबर मिली. खबर यह थी कि पनवेल के होटल समीर लाजिंग एंड बोर्डिंग के कमरा नंबर 101 में कोई बड़ा हादसा हो गया है. कमरे के अंदर ठहरे एक दंपति और उन की 2 वर्षीय बच्ची की स्थिति कुछ ठीक नहीं है. यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे अपने सहायक इंसपेक्टर शत्रुघ्न माली, महिला एएसआई सरिता मुसले और कांस्टेबल योगेश मेढ़ को अपने साथ ले कर होटल लाजिंग एंड बोर्डिंग की तरफ रवाना हो गए.

यह होटल नवी मुंबई पनवेल का एक जानामाना होटल था. उस होटल में इस प्रकार की यह पहली घटना थी. इसलिए होटल का पूरा स्टाफ परेशान था. जब यह खबर लोगों के बीच फैली तो होटल में ठहरे लोगों में हलचल मच गई. वे लोग होटल के कमरा नंबर 101 के सामने आ कर जमा हो गए. कमरा नंबर 101 होटल की पहली मंजिल पर था. पुलिस जब उस कमरे में गई तो डबल बेड पर एक महिला और एक पुरुष के अलावा एक बच्ची चित अवस्था में पड़े थे. निरीक्षण में पता चला कि महिला और पुरुष की सांसें तो धीमी गति से चल रही थीं, लेकिन बच्ची की सांस थम चुकी थी. उस के मुंह से झाग निकल रहे थे और पूरा बदन नीला पड़ गया था.

कमरे से उठती कीटनाशक दवा की गंध से पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि आखिर मामला क्या था. थानाप्रभारी ने बिना देरी किए एंबुलेंस बुला कर तीनों को स्थानीय अस्पताल भेज दिया. अस्पताल के डाक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया, जबकि बेहोश महिला और पुरुष का प्राथमिक उपचार करने के बाद उन्हें मुंबई के जेजे अस्पताल रेफर कर दिया. उन की हालत काफी चिंताजनक थी. मामला गंभीर था. थानाप्रभारी किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और घटना स्थल के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने होटल मैनेजर और वहां के कर्मचारियों से पूछा तो मालूम पड़ा कि वे लोग उस होटल में 2 दिन पहले आ कर ठहरे थे.

होटल के रजिस्टर में उन्होंने अपने आप को दंपति के रूप में दर्ज करवाया था. वे लोग कौन थे, कहां से आए थे. यह जानकारी पुलिस को उस होटल के रजिस्टर और उन के कमरे की तलाशी के दौरान मिल गई. ये लोग मूल रूप से केरला के रहने वाले थे. थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे अभी घटना स्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी वहां आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी. फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. इस के बाद थानाप्रभारी ने होटल का कमरा सील कर मृतक बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेजे अस्पताल भेज दिया. फिर होटल मैनेजर की शिकायत पर केस दर्ज कर जांचपड़ताल शुरू कर दी. जब उन्होंने होटल के कमरे में मिले डोक्यूमेंट्स के आधार पर उन के परिवार वालों से संपर्क किया तो उन के सामने चौंका देने वाला सच सामने आया.

पता चला कि आत्महत्या की कोशिश करने वाले लोग पतिपत्नी न हो कर प्रेमी और प्रेमिका थे. उन का नाम लिजी कुरियन और वसीम अब्दुल कादिर था और मृतक बच्ची जोहना थी. ये लोग हत्या के आरोपी थे. उन के ऊपर रिजोश कुरियन की हत्या का आरोप था. यह पता चलते ही पुलिस ने लिजी कुरियन और वसीम अब्दुल कादिर को हिरसात में ले लिया. ये लोग केरल के जिला इडुक्की के थाना संथनपारा के रहने वाले थे, इसलिए पनवेल पुलिस ने यह जानकारी संथनपारा पुलिस को दे दी. आपराधिक जानकारी पाते ही केरल के थाना संथनपारा के एसआई विनोद कुमार अपनी टीम के साथ पनवेल पहुंच गए. उन के साथ मुंबई पुलिस की कस्टडी में अभियुक्तों के परिवार वाले भी थे, पनवेल नवी मुंबई की पुलिस और केरल पुलिस टीम ने जब संयुक्त रूप से मामले की तफ्तीश की तो कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

36 वर्षीय रिजोश कुरियन केरल के जनपद इडुक्की के थाना संथनपारा के एक छोटे से गांव में रहता था. वह उसी इलाके के एक बड़े रिजोर्ट में काम करता था. परिवार में उस की पत्नी लिजी कुरियन के अलावा एक बेटी थी जोहना. लिजी काम के दौरान ही रिजोश की जिंदगी में आई थी. पहले दोनों में दोस्ती हुई. 4 साल पहले परिवार वालों की सहमति से दोनों ने लव मैरिज कर ली थी. शादी के बाद लिजी और रिजोश कुरियन का दांपत्य जीवन सुचारू रूप से चलने लगा. रिजोश जिस रिसोर्ट में काम करता था, वहां उस का वेतन बहुत ज्यादा नहीं था, लेकिन इतना जरूर था कि किसी तरह घर का खर्च चल जाता था. घर में कभी आर्थिक परेशानी होती तब भी लिजी किसी तरह एडजस्ट कर लेती थी. लेकिन जब लिजी ने एक बेटी को जन्म दिया तो घर के खर्चे कुछ बढ़ गए.

मैनेजर ने लगाई संबंधों में सेंध लिजी कुरियन यह नहीं चाहती थी कि जिन अभावों में वह अपनी जिंदगी गुजार रही थी, उस अभाव का असर उस की बेटी जोहना पर पड़े. यही सोच कर उस ने खुद भी नौकरी करने का मन बनाया. इस के लिए उस ने पति रिजोश से बात की तो उसे पत्नी का यह प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा. तब लिजी ने तर्क दिया कि जब हम दोनों कमाएंगे तो हमारी बेटी की पढ़ाई के साथ परवरिश भी अच्छी होगी. रिजोश को पत्नी की बात ठीक तो लगी लेकिन समस्या यह थी कि लिजी के नौकरी पर जाने के बाद जोहना की देखभाल कौन करेगा.

लिजी ने पति को यह कह कर राजी कर लिया कि यहां ऐसे कई पालन घर हैं जो बच्चों को न सिर्फ संभालते हैं बल्कि उन की अच्छी तरह से देखभाल भी करते हैं. आखिरकार न चाहते हुए भी रिजोश को पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा. तब रिजोश ने अपने ही रिसोर्ट के मशरूम फार्म में लिजी को नौकरी दिलवा दी. लिजी को नौकरी मिल जाने के बाद दोनों साथसाथ घर से निकलते थे. पहले वह अपनी बेटी जोहना को पालन घर छोड़ते, फिर रिसोर्ट जाते. ड्यूटी से लौटते समय ये लोग पालन घर से अपनी बेटी को घर ले आते थे. एक साथ काम करने से पतिपत्नी काफी खुश थे. दोनों के वेतन से धीरेधीरे घर की स्थिति भी सुधर गई. बेटी जोहना के भविष्य के लिए भी वह पैसों की बचत कर रहे थे.

सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन उन की खुशी को रिसोर्ट के मैनेजर वसीम अब्दुब्ल कादिर की नजर लग गई. मैनेजर वसीम अब्दुल ने जिस दिन से लिजा को देखा था, उस के दिल में उतर गई थी. वह लिजा को चाहने लगा था. 27 वर्षीय वसीम अब्दुल कादिर भी उसी इलाके में रहता था, जहां रिजोश कुरियन रहता था. वह अविवाहित था. रिसोर्ट में वसीम अब्दुल कादिर की छवि कर्तव्यनिष्ठ और कड़क स्वभाव वाले व्यक्ति की थी लेकिन वह रिजोश और लिजी के प्रति नरम दिल और उदार बन गया. लिजी से नजदीकियां बढ़ाने के लिए वसीम उस के आगेपीछे घूमने लगा. वह लिजी को प्रभावित करने के लिए बनठन कर रिसोर्ट आता और उस के करीब रहने की कोशिश करता था.

जब इस सब का लिजी पर कोई असर नहीं पड़ा तो उस ने एक दूसरा रास्ता अपनाया. उस ने लिजी के पति रिजोश से दोस्ती कर ली. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा. कभीकभी पार्टी देने के बहाने वह रिजोश को होटलों में ले जाता, जहां वह उसे जम कर शराब पिलाता. जब रिजोश शराब के नशे में धुत हो जाता था, तो वसीम उसे छोड़ने के बहाने उस के घर आ जाता. घर पहुंच कर वह लिजी से सहानुभुति बटोरने के लिए कहता कि रिजोश नशे में धुत सड़क पर पड़ा था, मैं ने देखा तो उठा कर ले आया. रिजोश को उस के कमरे तक पहुंचाने के लिए वह लिजी की मदद लेता और उसी दौरान लिजी के बदन को स्पर्श कर लेता था. लिजी चाह कर भी उस का विरोध नहीं कर पाती थी.

लिजी जब नशे में चूर रिजोश को आड़े हाथों लेती, तो वह बीचबचाव करने लगता. जब कई बार ऐसा हुआ तो मौका देख कर एक दिन वसीम ने हिम्मत कर के लिजी का हाथ पकड़ लिया. लिजी ने जब हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो वसीम ने उस का हाथ नहीं छोड़ा और कहा, ‘‘लिजी मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता.’’

इस पर लिजी ने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘‘आप को पता है कि मैं एक बेटी की मां हूं. इसलिए अच्छा यही होगा कि मुझे भूल जाओ.’’

लेकिन वसीम ने हार नहीं मानी. वह लिजी के दिल में अपनी छवि बनाने की कोशिश करता रहा. उस की हमदर्दी और सहानुभूति के चलते लिजी के मन में भी उस के प्रति प्यार का अंकुर फूटने लगा. धीरेधीरे उस का झुकाव भी वसीम अब्दुल कादिर की तरफ हो गया. इस के 2 कारण थे, एक यह कि रिजोश अब पूरी तरह शराब का आदी हो गया था और दूसरा यह कि वह लिजी के तनमन की प्यास बुझाने में नाकाम साबित हो रहा था.

पति की नाक के नीचे पत्नी की अय्याशी यही कारण था कि लिजी ने वसीम के लिए अपने दिल का दरवाजा खोल दिया. इस के बाद तो वसीम बागबाग हो गया. दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और फिर एक दिन उन्होंने मौका पा कर अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. एक बार जब मर्यादा की जंजीर टूटी तो फिर जुड़ी ही नहीं. जब भी उन्हें मौका मिलता, तनमन की प्यास बुझा लेते थे. 2 सालों तक रिजोश की नाक के नीचे उन दोनों के अवैध संबंधों का वृक्ष फलताफूलता रहा, लेकिन उसे भनक तक नहीं लगी. रिजोश को इस का पता नहीं चलता यदि रिसोर्ट के कर्मचारियों के बीच उन के संबंधों की बात न फैलती.

रिजोश को जब पत्नी के बहके कदमों की जानकारी मिली तब तक काफी देर हो चुकी थी. रिजोश विरोध कर नहीं सकता था. इसलिए उस ने पत्नी की ही नौकरी छुड़वा कर उसे घर में बैठने को कहा. लिजी को पति की बात माननी पड़ी. इतना ही नहीं रिजोश ने लिजी को यह भी हिदायत दी कि वह अपने प्रेमी वसीम से न मिले. मुलाकात बंद होने पर वसीम और लिजी परेशान हो गए. किसी तरह एक दिन मौका मिलने पर लिजी ने वसीम से मुलाकात की, उसे बताया कि पति के होते हुए हम लोगों की मुलाकात संभव नहीं हो पाएगी. इसलिए रास्ते का पत्थर बने रिजोश को रास्ते से हटा दो. वसीम भी यही चाहता था. इसलिए दोनों ने रिजोश को ठिकाने लगाने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली.

31 अक्तूबर, 2019 को योजना के अनुसार वसीम अब्दुल कादिर ने लिजी के पति रिजोश को कुछ काम के लिए रिसोर्ट पर बुलाया और वहां उस के साथ दारू पी. उस ने रिजोश को काफी मात्रा में शराब पिलाई. जब रिजोश को ज्यादा नशा हो गया तो वसीम ने उस का गला दबा कर हत्या कर दी. फिर उस के शव को रिसोर्ट के अंदर ही एक गहरी खाई में डाल कर जला दिया. यह जानकारी उस ने लिजी को भी दे दी. जब 3 दिनों तक रिजोश घर नहीं आया तो घर वालों को उस की चिंता हुई. रिजोश के भाई उस की तलाश में जुट गए. काफी तलाश करने के बाद भी जब उस का कहीं पता नहीं चला तो 4 नवंबर, 2019 को रिजोश के भाई और साले थाना संथनपरा पहुंचे. वहां पर उन्होंने रिजोश की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

मामला गंभीर था. केरल के पुलिस आयुक्त महेश कुमार ने मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी प्रदीप कुमार को सौंप दी. थानाप्रभारी प्रदीप कुमार ने एसआई विनोद कुमार के साथ अपनी जांच शुरू की. पुलिस तफ्तीश की पहली सीढ़ी भी नहीं चढ़ पाई थी कि 5 नवंबर, 2019 की सुबह लिजी कुरियन भी अपनी बेटी जोहना के साथ रहस्यमय तरीके से गायब हो गई. मौत ने भी स्वीकारा नहीं पुलिस ने तफ्तीश शुरू की तो पता चला कि लिजी के साथसाथ रिसोर्ट का मैनेजर वसीम अब्दुल कादिर भी गायब है. अब पुलिस के लिए मामला संदिग्ध हो गया था. पुलिस ने जब लिजी और वसीम अब्दुल कादिर का बैकग्राउंड खंगाला तो सब सच सामने आ गया.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि रिजोश कुरियन किसी रहस्यमय साजिश का शिकार हो गया है, जिस की तह में जाना जरूरी था. इस के लिए उन्होंने जब रिसोर्ट कर्मचारियों के साथ कई एकड़ में फैले रिसोर्ट का बारीकी से निरीक्षण किया. फलस्वरूप एक मजदूर की मदद से रिसोर्ट की एक गहरी खाई से रिजोश का अधजला शव बरामद हो गया. 7 नवंबर, 2019 को बरामद हुए रिजोश के शव की शिनाख्त कर उसे पोस्टमार्टम के लिए केरल के मैडिकल कालेज भेज दिया गया. अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गई थी कि रिजोश की हत्या में वसीम का सीधा हाथ था. पुलिस ने इस मामले में वसीम अब्दुल कादिर के परिवार वालों पर अपना शिकंजा कस दिया और वसीम अब्दुल कादिर के भाई को हिरासत में ले कर मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश में लग गई.

8 नवंबर, 2019 को जब यह खबर पत्रकारों को मिली तो अखबारों और टीवी न्यूज चैनलों में सुर्खियों में छा गई. लिजी और वसीम ने यह खबर देखी तो उन के चेहरों का रंग उड़ गया. भाई की कस्टडी और मीडिया की सुर्खियों से वसीम को एहसास हो गया था कि अब उन का बच पाना संभव नहीं है. इस के पहले कि पुलिस उन दोनों तक पहुंचती उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ. फलस्वरूप दोनों ने अपना जीवन खत्म करने का फैसला कर लिया. रात को घूमने के बहाने दोनों होटल समीर लाजिंग एंड बोर्डिंग से बाहर आए. बाजार से उन्होंने कीटनाशक दवा खरीदी. इस मामले को ले कर रातभर दोनों परेशान रहे. सुबह 10 बजे उन्होंने उस दवा का स्वयं सेवन किया और उस मासूम बच्ची को भी करा दिया.

बच्ची उस दवा के असर से बच नहीं पाई और उस की मृत्यु हो गई. जबकि वे दोनों बेहोश हो गए. उन्हें उपचार के लिए अस्पताल भेज दिया गया, बाद में वे ठीक हो गए. उधर केरल के संथनपारा थाना पुलिस के थानाप्रभारी वसीम अब्दुल कादिर के भाई का मुंह खुलवाने में कामयाब हो पाते, इस के पहले ही मुंबई पुलिस ने संथनपारा पुलिस से संपर्क कर इस मामले की जानकारी दे दी. नवी मुंबई पुलिस और केरल पुलिस ने संयुक्त रूप से मामले की तफ्तीश कर लिजी कुरियन और वसीम कादिर को मीडिया के समक्ष पेश कर केस का खुलासा कर दिया. रिजोश कुरियन की हत्या के मामले में केरल पुलिस विस्तार से पूछताछ के लिए दोनों को ट्रांजिट रिमांड पर अपने साथ ले गई.

 

Hyderabad Crime : प्रेमी के साथ मिलकर मां का चुन्नी से घोंटा गला

Hyderabad Crime : बेटियां मांबाप का मानसम्मान होती हैं, लेकिन वही बेटियां अगर गलत राह पर उतर जाएं तो न केवल परिवार की इज्जत के लिए खतरा बन जाती हैं, बल्कि कई बार तो…

श्री निवास रेड्डी अपनी पत्नी और एकलौती बेटी कीर्ति रेड्डी के साथ हैदराबाद (Hyderabad Crime) के ब्लौक हयातनगर स्थित मुनागानुरु गांव में रहते थे. वह एक ट्रक चालक थे. एक बार जब वह अपना ट्रक ले कर कामधंधे के लिए बाहर निकलते थे, तो हफ्तों तक घर नहीं लौट पाते थे. उन की ख्वाहिश थी कि वह अपनी बेटी को उच्चशिक्षा दिलाएं ताकि पढ़लिख कर वह किसी अच्छी सरकारी नौकरी में चली जाए. इसलिए वह अपने काम पर ज्यादा ध्यान देते थे. बेटी कीर्ति रेड्डी से वह बेटे की तरह व्यवहार करते थे. उन्होंने बेटी को पूरी आजादी दे रखी थी. लेकिन उस की यही आजादी एक दिन उन के परिवार को बिखेर देगी, ऐसा उन्होंने कभी नहीं सोचा था.

19 अक्तूबर, 2019 की दोपहर के करीब 2 बजे कीर्ति रेड्डी अपने एक मित्र कोथा शशिकुमार के साथ थाना हयातनगर पहुंची. उस ने थाने में अपनी मां पल्लेरला रंजीता की गुमशुदगी दर्ज करवाई. शिकायत में कीर्ति रेड्डी ने अपनी मां की गुमशुदगी का जिम्मेदार अपने पिता श्रीनिवास रेड्डी को ठहराया. कीर्ति ने ड्यूटी पर तैनात अधिकारी को बताया कि मां के प्रति उस के पिता का व्यवहार ठीक नहीं था. वह शराब पी कर जब घर लौटते थे तो मां के साथ लड़ाईझगड़ा और मारपीट करते थे. पिता के इसी व्यवहार से मां परेशान रहती थीं, जिस की वजह से 2 दिन पहले वह घर छोड़ कर चली गई. उस ने मां को काफी खोजा, लेकिन कहीं पता नहीं लग सका.

पुलिस ने कीर्ति की शिकायत पर गुमशुदगी दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी. इस घटना के 4-5 दिन बाद जब श्रीनिवास रेड्डी अपना ट्रक ले कर घर लौटे तो घर के दरवाजे पर ताला लटका मिला. ताला बंद देख वह समझ गए कि घर पर कोई नहीं है. पहले तो उन्होंने सोचा कि पत्नी और बेटी कहीं आसपास गई होंगी. वह वहीं पर उन के लौटने का इंतजार करने लगे. लेकिन जब वे काफी देर बाद भी नहीं लौटीं तो उन्हें चिंता हुई. उन्होंने आसपड़ोस के लोगों से अपने परिवार के बारे में पूछा तो पता चला कि उन के घर पर कई दिनों से ताला लटक रहा है. यह जान कर उन्हें झटका लगा. ऐसा कभी नहीं हुआ था कि उन की पत्नी और बेटी उन्हें बिना बताए कहीं गई हों. क्योंकि उन्हें यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि वह कभी भी घर आ सकते थे. अगर वे कहीं जाती भी थीं तो उन्हें फोन कर जानकारी अवश्य देती थीं.

इस बीच उन की बेटी और पत्नी में से किसी का भी फोन उन के पास नहीं आया था. जब उन्होंने पत्नी का फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ था. कई बार कोशिश करने के बाद जब बेटी कीर्ति रेड्डी से उन का संपर्क हुआ तो उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर उन के होश उड़ गए. कीर्ति ने बताया कि मां कई दिन पहले पता नहीं कहां चली गईं और वह कुछ काम से विशाखापट्टनम आई हुई है. 2 दिन बाद वह घर आएगी. कीर्ति ने यह भी बताया कि उस ने मां को तमाम संभावित जगहों पर तलाश किया, जब वह नहीं मिली तो थाने में गुमशुदगी दर्ज करा दी. बेटी की यह बात सुन कर श्रीनिवास रेड्डी के होश उड़ गए. वह समझ नहीं पा रहे थे कि पत्नी बिना बताए कहां और क्यों चली गई.

लिहाजा वह भी पत्नी को इधरउधर खोजने लगे. श्रीनिवास रेड्डी की समझ में यह भी नहीं आ रहा था कि जब मां लापता थी तो बेटी को उस की तलाश करनी चाहिए थी. आखिर ऐसा कौन सा जरूरी काम आ गया, जो वह विशाखापट्टनम चली गई. उस के विशाखापट्टनम जाने की बात उन के गले नहीं उतर रही थी. बहरहाल, 2 दिनों बाद कीर्ति रेड्डी जब घर वापस आई तो वह अपनी मां की गुमशुदगी को ले कर पिता से ही उलझ पड़ी. उस का कहना था कि उन के व्यवहार की वजह से मां घर छोड़ गई है. बेटी के इस आरोप से भी श्रीनिवास रेड्डी स्तब्ध रह गए. वह पत्नी की तलाश के लिए थाने के चक्कर लगाते रहे. पत्नी को गायब हुए 8 दिन बीत चुके थे, लेकिन उस का पता नहीं लग पा रहा था. इस से श्रीनिवास रेड्डी की चिंता बढ़ती जा रही थी. वह थाने के चक्कर लगालगा कर परेशान हो चुके थे. थाना पुलिस से आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल पा रहा था.

हार कर श्रीनिवास रेड्डी ने पुलिस कमिश्नर महेश भागवत से मुलाकात की. पुलिस कमिश्नर ने इस मामले को गंभीरता से लिया. उन के निर्देश पर एसीपी शंकर व हयाननगर क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सतीश इस केस की जांच में जुट गए.  इंसपेक्टर सतीश ने श्रीनिवास रेड्डी के पड़ोसियों और जानपहचान वालों से पूछताछ करते हुए जब उन के परिवार को खंगाला तो कीर्ति रेड्डी शक के दायरे में आ गई. वह बारबार अपने बयान बदल रही थी. इसी दौरान जांच में यह बात भी पता चली कि वह अपनी मां के गायब होने के बाद विशाखापट्टनम गई ही नहीं थी. वह अपने प्रेमी और मंगेतर चिमूला बाल रेड्डी के घर में थी. यह बात श्रीनिवास रेड्डी को तब पता चली, जब चिमूला बाल रेड्डी के पिता कृष्णा रेड्डी श्रीनिवास रेड्डी को सहानुभूति देने उन के पास आए.

रहीसही कमी पल्लेरला रंजीता के मोबाइल फोन की लोकेशन ने पूरी कर दी. 23 अक्तूबर, 2019 तक कीर्ति रेड्डी और उस की मां रंजीता रेड्डी के फोन नंबरों की काल डिटेल्स खंगाली गई तो 19 अक्तूबर को दोनों के फोन की लोकेशन साथसाथ पाई गई. फिर 4 दिन बाद मां पल्लेरला रंजीता का मोबाइल फोन बंद हो गया था. अब सवाल यह था कि रंजीता के गायब होने के 4 दिनों बाद उन का मोबाइल कैसे चालू हुआ और वह किस ने चालू किया. इस शक के आधार पर क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सतीश ने कीर्ति रेड्डी को पूछताछ के लिए अपने औफिस बुलाया. कीर्ति जब वहां पहुंची तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं. फिर भी वह पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही. खुद को वह मां की गुमशुदगी से अनभिज्ञ और निर्दोष

बताती रही. लेकिन इंसपेक्टर सतीश ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह प्रश्नों के जाल में उलझ गई और उसे सच बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस ने अपनी मां की गुमशुदगी के ऊपर पड़ा रहस्यमयी परदा उठा दिया. कीर्ति रेड्डी के बयान और पुलिस जांच के अनुसार मल्लेरला रंजीता की गुमशुदगी की जो कहानी सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी. 19 वर्षीय कीर्ति शोख और चंचल स्वभाव की थी. वह आधुनिक विचारों वाली फैशनपरस्त युवती थी. वह माइक्रोबायलौजी से बीएससी कर रही थी. कालेज में पढ़ाई के दौरान कई लड़के उसे चाहते थे. लेकिन वह जिस की तरफ आकर्षित थी, वह था उस का बचपन का साथी चिमूला बाल रेड्डी.

बाल रेड्डी उसी इलाके का रहने वाला था, जहां कीर्ति रहती थी. बाल रेड्डी के पिता कृष्णा रेड्डी सरकारी नौकरी में थे. उन का भरापूरा परिवार था. बाल रेड्डी बी.टेक. कर चुका था. बाल रेड्डी के पिता कृष्णा और कीर्ति के पिता श्रीनिवास दोनों दूर के रिश्तेदार भी थे. एक ही इलाके में रहने के कारण एकदूसरे के घरों में अकसर आनाजाना होता रहता था. कीर्ति से सीनियर होने के कारण बाल रेड्डी कभीकभी कीर्ति की पढ़ाई में उस की मदद कर दिया करता था. यही कारण था कि जब भी वह कीर्ति के घर आता था, कीर्ति उस के साथ हिलमिल जाती थी. इसी में कब बचपना गया और जवानी ने अपना रंगरूप बदला, यह दोनों को मालूम नहीं पड़ा. उन का दोस्ती जैसा रिश्ता खत्म हो गया, उस की जगह प्यार ने ले ली.

बाल रेड्डी खातेपीते परिवार का लड़का था. उस के पास मोटरसाइकिल थी, जिस पर वह अकसर कीर्ति रेड्डी को कालेज छोड़ देता था. यही कारण था कि कीर्ति उस के प्यार में कुछ इस तरह डूब गई कि वह अपनी सीमा और मर्यादा को भी भूल गई. किशोरावस्था में ही वह गर्भवती हो गई थी. यह भूल दोनों ने एक शादी समारोह के दौरान की थी. वे अपने एक रिश्तेदार की शादी में गए थे. उन्होंने जब शादी के पंडाल में दूल्हादुलहन को देखा तो उन के मन में एक हूक सी उठी. वे भी अपने आप को दूल्हा और दुलहन समझने लगे और सुहागरात की कल्पना कर दोनों एकांत में चले गए. उस रात एक तरफ दूल्हादुलहन जहां शादी के फेरों की रस्में पूरी कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ कीर्ति और बाल रेड्डी एक अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे. वे जिंदगी के खुमार और उन्माद में डूबे हुए थे.

इस उन्माद का नतीजा जब सामने आया तो उन के होश उड़ गए, जो उन के परिवार और समाज के लिए ठीक नहीं था. कीर्ति को गर्भ ठहर गया था. जब यह बात कीर्ति ने बाल रेड्डी को बताई तो वह भी घबराया. उन के सामने अब एक ही रास्ता था कि किसी भी तरह गर्भपात कराया जाए. बाल रेड्डी का एक दोस्त था काथा शशिकुमार. बाल रेड्डी ने कीर्ति का गर्भपात कराने के संबंध में उस से बात की. शशिकुमार ने अपनी पहचान वाले डाक्टर से कीर्ति का गर्भपात करा दिया. गर्भपात हो जाने के बाद कीर्ति रेड्डी ने अपनी इस मुसीबत से तो छुट्टी पा ली लेकिन अब वह एक दूसरी मुसीबत में फंस गई. काथा शशिकुमार उसी कालोनी में रहता था, जिस में कीर्ति रहती थी. कीर्ति के घर और शशिकुमार के घर के बीच की दूरी यही कोई 100 फुट थी. शशिकुमार एक खातेपीते परिवार का था. उस के पिता हैदराबाद के एक पौलिटेक्निक इंस्टीट्यूट में नौकरी करते थे.

बाल रेड्डी और शशिकुमार दोनों बचपन के मित्र थे. दोनों ने एक ही कालेज से ग्रैजुएशन की थी. बाल रेड्डी ने बी.टेक तो शशिकुमार ने एमबीए किया था. अच्छे दोस्त होने के नाते बाल रेड्डी ने कीर्ति के मामले में शशिकुमार की मदद ली थी. पड़ोसी होने के कारण शशिकुमार भी उतना ही कीर्ति के परिवार के करीब था, जितना बाल रेड्डी था. उस के दिल के एक कोने में भी कीर्ति की तसवीर थी. वह भी कीर्ति के करीब आना चाहता था. लेकिन कीर्ति ने उसे अपने पास आने का मौका नहीं दिया था, जिस की कसक उस के दिल में बनी हुई थी. गर्भपात कराने के दौरान उसे कीर्ति के पास आने का मौका मिल गया था. कीर्ति भी उस के अहसानों के नीचे दब गई थी. शशिकुमार ने कीर्ति से कहा कि वह उस के लिए भी अपने दिल के दरवाजे खोल दे अन्यथा वह गर्भपात वाली बात जगजाहिर कर देगा.

कीर्ति ने बदनामी के डर से शशिकुमार को भी अपने दिल में जगह दे दी. अब वह शशिकुमार के साथ भी मौजमस्ती करने लगी. समय अपनी गति से चल रहा था. कीर्ति अब कई परवानों की शमां बन चुकी थी. इन के बीच 3 साल का समय कैसे निकल गया, उन्हें इस का पता ही नहीं चला. कीर्ति रेड्डी अब उन्नीसवां बसंत पार कर चुकी थी. कीर्ति को ले कर उस की मां पल्लेरला रंजीता और पिता श्रीनिवास रेड्डी को उस की शादी की चिंता थी, वे उस के लिए एक वर की तलाश में जुटे थे. इस से पहले कि उन्हें कोई वर मिलता, उन्हें चिमूला बाल रेड्डी और कीर्ति के प्यार की बात पता चल गई. तब कीर्ति रेड्डी के पिता श्रीनिवास ने बाल रेड्डी के घर वालों से मिल कर उन की शादी तय कर दी.

शादी तय होने के बाद जब कीर्ति की मां को यह बात मालूम पड़ी कि कीर्ति के नाजायज संबंध बाल रेड्डी के अलावा कालेज और इलाके के कई और युवकों से भी हैं तो उन्हें बड़ा दुख हुआ. कीर्ति का सब से गहरा रिश्ता उन के पड़ोस में रहने वाले शशिकुमार से था. शशिकुमार अकसर उन के घर आताजाता था. वह घंटों कीर्ति के साथ रहता था. उसे महंगे गिफ्ट दिया करता था. यह जान कर कीर्ति की मां के पैरों तले से जमीन खिसक गई, उन्होंने इस के लिए कीर्ति को आड़े हाथों लिया और काफी खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उन्होंने इस के लिए कीर्ति की पिटाई भी कर दी थी. यह बात कीर्ति और उस के प्रेमी शशिकुमार दोनों को चुभ गई. शशिकुमार की सहानुभूति पा कर कीर्ति ने अपनी आजादी और मां के बंधनों से मुक्त होने के लिए शशिकुमार के साथ मिल कर एक खतरनाक योजना बना ली.

इतना ही नहीं, पिता के बाहर जाने के बाद कीर्ति और शशिकुमार ने इस योजना को साकार भी कर दिया. घटना की रात जब शशिकुमार कीर्ति रेड्डी के घर आया तो उसे देख कीर्ति की मां पल्लेरला रंजीता ने काफी डांटाफटकारा और अपने घर से धक्का मार कर बाहर निकाल दिया. उन्होंने शशिकुमार को चेतावनी भी दी कि अगर उस ने उन के घर आने और कीर्ति से मिलने की कोशिश की तो उस से बुरा कोई नहीं होगा.  घर का माहौल गरम देख कर उस समय तो वह वहां से चला गया था, लेकिन जातेजाते शशिकुमार कीर्ति को इशारोंइशारों में समझा गया. आधी रात के बाद वह लौटा तो कीर्ति की मां पल्लेरला रंजीता अपने कमरे में जा कर सोने की कोशिश कर रही थी.

आहट सुन कर रंजीता ने करवट बदली तो शशिकुमार को देख चौंक गईं. इस के पहले कि वह अपने बिस्तर से उठ पातीं, उन की बेटी कीर्ति अपने हाथों में मिर्च का पाउडर ले आई और मां की आंखों में झोंक कर उन की छाती पर सवार हो गई. इस के बाद उस ने अपनी चुन्नी मां के गले में डाल दी. तभी शशिकुमार भी वहां आ गया. दोनों ने मिल कर उन का गला घोंट दिया. मां की हत्या करते समय कीर्ति मुसकराती रही. पल्लेरला रंजीता की हत्या के बाद दोनों ने चैन की सांस ली, क्योंकि अब उन्हें रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. उन्होंने लाश चादर में लपेट कर घर के एक कोने में छिपा दी. दोनों ने पहले जम कर तनमन की प्यास बुझाई और फिर पुलिस थाने में जा कर शिकायत दर्ज करवा दी.

3 दिनों तक लाश घर में ही रही. जब उस से सड़ने की गंध फैलने लगी, तब उन्हें शव को ठिकाने लगाने की चिंता सताने लगी. सब से पहले उन्होंने आत्महत्या का रूप देने के लिए लाश के गले में रस्सी बांध कर उसे पंखे से लटकाने की कोशिश की, लेकिन तब तक लाश काफी डैमेज हो चुकी थी. इसलिए वह ऐसा नहीं कर सके. इस के बाद उन्होंने उसे बाहर ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. 22 अक्तूबर, 2019 को शशिकुमार ने रात 12 बजे के करीब अपनी कार में पल्लेरला रंजीता की लाश रखी और कीर्ति के साथ उसे रमन्नापेट के नजदीक टुम्मालागूडेम के रेलवे ट्रैक पर ले गया. वहां दोनों ने कार से उतार कर लाश ट्रैक पर डाल दी ताकि ट्रेन हादसा लगे. जिस चादर में लाश लपेटी गई थी, वह चादर और रस्सी रास्ते में फेंक दी मां का मोबाइल फोन कीर्ति ने स्विच्ड औफ कर के अपने पास रख लिया था.

हत्या जैसे जघन्य अपराध के सारे सबूत मिटाने के बाद कीर्ति ने 23 अक्तूबर, 2019 को अपनी मां रंजीता रेड्डी के मोबाइल से अपनी होने वाली ससुराल में बाला के पिता कृष्णा से बात कर कहा, ‘‘समधीजी, मैं अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए नालकोंडा अस्पताल जा रही हूं, तब तक हमारी बेटी कीर्ति आप के यहां रहे तो आप को कोई परेशानी तो नहीं होगी.’’

कृष्णा रेड्डी ने समझा कि फोन नंबर उन की समधिन पल्लेरला रंजीता का है, इसलिए उन्होंने कह दिया कि बिटिया को आप बिना किसी चिंता के यहां भेज दो. इस के बाद 24-25 अक्तूबर को कीर्ति बाला रेड्डी के यहां रही. वहां जाने से पहले उस ने अपने पड़ोसियों व नातेरिश्तेदारों में यह अफवाह फैला दी थी कि उसे विशाखापट्टनम में कुछ काम के लिए जाना पड़ रहा है. कीर्ति और उस के दोस्त शशिकुमार ने पल्लेरला रंजीता की हत्या का जो फूलप्रूफ प्लान तैयार किया था, वह पुलिस जांचपड़ताल में खुल कर सामने आ गया. उधर रमन्नापेट रेलवे स्टेशन के नजदीक शशिकुमार ने पल्लेरला रंजीता की जो लाश फेंकी थी, वह जीआरपी ने बरामद की थी. लेकिन शिनाख्त न होने के कारण लाश का पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया था.

कीर्ति रेड्डी से विस्तृत पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सतीश ने 28 अक्तूबर, 2019 की सुबह कोथा शशिकुमार को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने नाबालिग उम्र में कीर्ति को गर्भवती करने वाले चिमूला बाल रेड्डी को रेप करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. तीनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376 (2), 312 और 383एन के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया गया था. साथ ही पोक्सो एक्ट के अंतर्गत भी मामला दर्ज किया गया. तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

 

Murder story : कविता ने लिखी खूनी कविता

Murder story : एक दिन कविता पटेल मोबाइल के कौंटैक्ट नंबर देख रही थी, तभी उसे शादी से पहले के प्रेमी बृजेश का नंबर दिखा. नंबर देखते ही उसे पुराने दिन याद आने लगे. वह बृजेश से बात करने की कोशिश तो करती, लेकिन कुछ सोच कर रुक जाती थी.

आखिरकार एक दिन उस ने बृजेश से बात करने की गरज से फोन किया तो बृजेश बर्मन ने काल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो कौन?’’

“बृजेश, पहचाना नहीं मुझे. तुम तो बहुत जल्दी बदल गए, अब तो मेरी आवाज भी भूल गए.’’ कविता ने शिकायती लहजे में कहा.

“जानेमन तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. इस अननोन नंबर से काल आई तो पहचान नहीं सका.’’ बृजेश सफाई देते हुए बोला.

“तुम ने तो मेरी शादी के बाद कभी काल भी नहीं की,’’ कविता बोली.

“कविता, मैं तुम्हें दिल से चाहता था, इसलिए मैं तुम्हारा बसा हुआ घर नहीं उजाड़ना चाहता था. मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारी खुशियों की खातिर समझौता कर लिया था,’’ बृजेश बोला.

“सचमुच इतना प्यार करते हो तो मुझ से मिलने दमोह आ जाओ, मुझ से तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’ कविता ने फिर से उस के प्रति चाहत दिखाते हुए कहा.

इतना सुनते ही बृजेश का दिल बागबाग हो गया. फिर एक दिन वह कविता से मिलने उस की ससुराल पहुंच गया. कई महीने बाद बृजेश और कविता ने अपने दिल की बातें कीं तो उन का पुराना प्यार जाग गया. उस के बाद दोनों की मेलमुलाकात का सिलसिला चल निकला. बृजेश से जब कविता का दोबारा संपर्क हुआ तो उस समय वह टेंट हाउस में काम करने लगा था. कविता से उस की मुलाकात अकसर कालेज जाते समय होती थी.

प्रेमी को बताती थी मुंहबोला भाई

जब बृजेश कविता की ससुराल भी आने लगा तो कविता ने अपने ससुर और पति से उस का परिचय मुंहबोले भाई के तौर पर कराया. वैसे तो कविता को दीपचंद जैसा नेक पति मिल गया था, परंतु पति के शादी के बाद नौकरी के लिए चले जाने से कविता का पुराना प्यार जाग गया था. दीपचंद को जब कविता और बृजेश के प्रेम संबंधों का पता चला तो हंसते खेलते परिवार में कलह होते देर न लगी. लाख समझाने के बाद भी जब कविता नहीं मानी तो दीपचंद ने कविता पर सख्त पहरा लगा दिया. इस का अंजाम यह हुआ कि कविता के कहने पर बृजेश ने कविता की मांग का सिंदूर मिटा दिया.

22 जुलाई, 2023 दोपहर के करीब 2 बज रहे थे. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के दमोह जिले के गैसाबाद थाने में टीआई विकास सिंह चौहान अपने कक्ष में बैठे कुछ जरूरी फाइल देख रहे थे. तभी अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति ने उन के कक्ष के बाहर से आवाज लगाई, “साब, क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

टीआई चौहान ने एक नजर सामने खड़े उस व्यक्ति पर डालते हुए कहा, “हां, आ जाइए. बैठिए.’’

जब वह व्यक्ति कुरसी पर बैठ गया तो उन्होंने पूछा, “बताइए, क्या काम है?’’

“साहब, मेरा नाम हाकम पटेल है और मैं खैरा गांव का रहने वाला हूं. मेरा बेटा पिछले 3 दिनों से लापता है.’’

टीआई विकास सिंह चौहान ने एक कर्मचारी को पानी लाने का इशारा करते हुए हाकम पटेल से कहा, “आप इत्मीनान से मुझे पूरी बात विस्तार से बताइए.’’

“जी साहब, 19 जुलाई, 2023 की शाम 7 बजे मेरा 26 साल का इकलौता बेटा दीपचंद पटेल घर से निकला था. तब से उस का कुछ पता नहीं चल रहा है. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा है.’’ यह कहते हुए हाकम ने कर्मचारी के हाथ से पानी का गिलास ले लिया.

“शादी हो गई बेटे की?’’ टीआई चौहान ने पूछा.

“हां साहब, 2021 में उस की शादी हो गई. बेटेबहू में किसी तरह का कोई मनमुटाव भी नहीं था.’’ गटागट पानी पीने के बाद हाकम ने बताया.

“किसी पर शक है तुम्हें, किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’

“नहीं साहब, हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी, इसलिए किसी पर शक भी नहीं है.’’

दीपचंद की गुमशुदगी दर्ज कराते हुए टीआई चौहान ने हाकम को भरोसा दिलाया कि पुलिस जल्द ही उस के बेटे दीपचंद को खोज निकालेगी. दीपचंद के लापता होने की खबर उस के ससुराल दमोह से सटे हुए पन्ना तक पहुंची तो दीपचंद के ससुर और साले के साथ कुछ नातेरिश्तेदार भी दमोह पहुंच गए. वे हाकम के साथ मिल कर दामाद की तलाश में जुट गए. जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, टीआई विकास सिंह चौहान को दीपचंद के बिना वजह लापता होने की बात खटक रही थी. दमोह जिले के एसपी सुनील तिवारी के निर्देश पर एसडीओपी (हटा) नितिन पटेल ने दीपचंद की खोजबीन के लिए एक पुलिस टीम गठित कर टीआई चौहान को पतासाजी करने के निर्देश दिए.

हाकम पटेल अपनी करीब 8-10 एकड़ जमीन पर खेतीबाड़ी करते हैं. हाकम ने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी से कोई बच्चा नहीं हुआ और कुछ समय बाद बीमारी के चलते उस की मौत हो गई तो हाकम ने दूसरी शादी कर ली तो दूसरी पत्नी से दीपचंद पैदा हुआ. दीपचंद जब छोटा ही था कि उस की मां घर छोड़ कर किसी दूसरे मर्द के साथ चली गई. पिता हाकम ने दीपचंद को लाड़प्यार से पालापोसा. दीपचंद केवल 12वीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाया था. जवान होते ही दीपचंद की शादी पन्ना जिले के सुनवानी गांव की कविता से कर दी गई.

कविता के कदम दीपचंद के घर में पड़ते ही बाप बेटे काफी खुश थे, क्योंकि लंबे अरसे बाद घर में कोई महिला आई थी. दोनों चूल्हा फूंकफूंक कर थक चुके थे, ऐसे में कविता ने जब इस घर की दहलीज पर कदम रखा तो जल्द ही वह दोनों की आंखों का तारा हो गई. ससुर हाकम उसे बेटी की तरह दुलारते तो दीपचंद भी उस की हर ख्वाहिश पूरी करता. पुलिस के लिए दीपचंद की गुमशुदगी एक पहेली बनी हुई थी. दीपचंद की न तो किसी से रंजिश थी और न ही कोई दुश्मनी. गांव में पूछताछ के दौरान भी कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा, जिस से दीपचंद का पता चल सके. पुलिस की आखिरी उम्मीद दीपचंद की काल डिटेल्स रिपोर्ट पर टिकी हुई थी.

पुलिस ने जब दीपचंद के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि दीपचंद की 19 जुलाई की शाम आखिरी बार पन्ना के लोहरा गांव में रहने वाले बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू से बात हुई थी. इस के बाद पुलिस ने बृजेश बर्मन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि बृजेश की सब से ज्यादा बात चिकला निवासी गणेश विश्वकर्मा से हुई थी. दीपचंद समेत तीनों के फोन नंबर भी टावर लोकेशन में एक साथ खैरा गांव में मिले. इस से साफ हो गया था कि घर से दीपचंद इन दोनों के साथ ही निकला था.

दीपचंद का मोबाइल बंद होने से पहले की आखिरी टावर लोकेशन गांव वर्धा की थी. इसी टावर लोकेशन में गणेश विश्वकर्मा व बृजेश बर्मन के मोबाइल फोन भी बंद हो गए थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम को पूरा भरोसा हो गया कि दीपचंद के लापता होने के बारे में इन दोनों को जरूर कुछ पता होगा. पुलिस टीम के लिए एक चौंकाने वाली बात यह पता चली कि बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू की काल डिटेल्स में दीपचंद की पत्नी कविता का नंबर भी मिला. 19 जुलाई, 2023 को भी बृजेश और कविता के बीच बातचीत हुई थी. इस के पहले भी दोनों के बीच लगातार बात होने की पुष्टि हुई.

पुलिस ने बृजेश बर्मन और फिर गणेश विश्वकर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. पहले तो बृजेश ने यह कह कर पुलिस को बरगलाने की कोशिश की कि वह कविता को बहुत पहले से जानता है वह उस के मायके में किराए पर रह चुका है. इसी जानपहचान के चलते कविता से बात करता रहता था. पुलिस को उस की बात पर भरोसा नहीं हुआ. पुलिस के संदेह की सुई बृजेश के इर्दगिर्द घूम रही थी. पुलिस ने तुक्का मारते हुए बृजेश से कहा, “कविता ने सब कुछ बता दिया है, अब तुम्हारी बारी है. सच बताओगे तो ठीक नहीं तो दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

आखिरकार, तीर निशाने पर लगा और पुलिस की सख्ती के आगे बृजेश बर्मन टूट गया. बृजेश ने दीपचंद की हत्या की पूरी साजिश और हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पुराने प्रेम संबंधों की कहानी निकली, जिस में अपने प्रेमी के लिए कविता ने अपनी मांग का सिंदूर ही मिटा दिया. बहू की यह करतूत जान कर दीपचंद के पिता हाकम पटेल के पैरों से तो जैसे जमीन ही खिसक गई.

शादी के पहले के प्रेमी से जोड़े संबंध

शादी के बाद दीपचंद जैसा पति और हाकम जैसा नेकदिल ससुर पा कर कविता भी काफी खुश थी, उस ने ससुराल को ही अपना घर मान लिया था. कविता के मम्मीपापा राजस्थान के जोधपुर में एक सीमेंट फैक्टी में काम करते थे. दीपचंद का मन खेतीबाड़ी में नहीं लगता था. इस वजह से वह उन दिनों काम की तलाश कर रहा था. जब कविता के पिता ने उसे जोधपुर में काम दिलाने की बात की तो वह शादी के कुछ महीनों बाद ही राजस्थान पहुंच गया. दीपचंद तब राजस्थान की एक सीमेंट फैक्ट्री में नौकरी पर चला गया.

घर में अकेली कविता को तन्हाई ने डस लिया. उस के मन के एक कोने में अब भी अपने बचपन के प्यार बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू की यादें थीं. जब अकेलापन भारी पड़ने लगा तो उस ने बृजेश से फिर तार जोड़ लिए. कविता का मायका सुनवानी पन्ना में था, वह पहले शराब कंपनी में काम करता था. तब कविता के पापा के घर में ही किराए पर रहता था. कविता ने बीएससी तक की पढ़ाई की थी और वह शुरू से ही सपनों की दुनिया में सैर करने वाली लड़की थी. बृजेश तब शराब कंपनी में काम कर के अच्छे पैसे कमा रहा था. उसे कविता पहली ही नजर में पसंद आ गई थी. वह आतेजाते कविता से बात करने के बहाने ढूंढता. उस समय कविता की उम्र महज 19 साल थी.

एक दिन बृजेश शाम को जल्दी अपने रूम पर आ गया. उस समय कविता की मां मंदिर गई थीं और पिता किसी काम से बाहर गए हुए थे. बृजेश ने मौका देखते ही अपने प्यार का इजहार करते हुए कहा, “कविता, तुम बहुत खूबसूरत हो. आई लव यू कविता.’’

कविता भी मन ही मन बृजेश को चाहने लगी थी, मगर डर के मारे यह बात दिल में दबाए बैठी थी. जब बृजेश ने प्यार का इजहार किया तो उस ने भी कह दिया, “आई लव यू टू बृजेश.’’

कविता की स्वीकृति मिलते ही बृजेश ने उस का हाथ पकड़ा और गालों पर चुंबन लेते हुए कहा, “कविता, मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’

कविता का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया, उस ने जल्दी से अपना हाथ छुड़ाया और अपने कमरे की तरफ भाग गई. धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती और फिर प्यार परवान चढ़ने लगा. बृजेश अकसर कविता के लिए महंगे गिफ्ट भी ला कर देने लगा. कविता पटेल और बृजेश बर्मन अलगअलग जाति के थे. दोनों शादी के लिए राजी थे, मगर सामाजिक रीतिरिवाजों में इस की इजाजत नहीं थी. बृजेश उसे घर से भगा कर शादी करना चाहता था, लेकिन कविता घर से भाग कर शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. आखिर में मई, 2021 में कविता की शादी उस के घर वालों ने दमोह जिले के खैरा गांव निवासी दीपचंद से कर दी.

किराएदार से हुआ था प्यार

23 साल की कविता की शादी दीपचंद पटेल से हुई थी. उस समय कविता हायर सेकेंडरी तक पढ़ी थी. जब उस ने अपने ससुर से आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो उन्होंने उस का एडमिशन पन्ना के अमानगंज कालेज में करवा दिया. शादी से पहले कविता का उस के मकान में रहने वाले किराएदार बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू से अफेयर जरूर था, मगर दोनों की जाति अलग होने की वजह से उन की शादी नहीं हो पाई. शादी के बाद सब ठीकठाक चल रहा था. कविता के ससुर उसे बेटी की तरह प्रेम करते थे. शादी के बाद कविता अपने प्रेमी बृजेश को भी भुला चुकी थी. कविता के पति की नौकरी राजस्थान की सीमेंट फैक्ट्री में थी. शादी के कुछ दिन बाद दीपचंद वापस नौकरी पर लौट गया तो कविता को खाली घर काटने लगा.

एक दिन वह मोबाइल के कौंटैक्ट नंबर देख रही थी, तभी उसे बृजेश का नंबर दिखा. उसे पुराने दिन याद आने लगे. वह बृजेश से बात करने की कोशिश तो करती, लेकिन कुछ सोच कर रुक जाती थी. आखिरकार एक दिन उस ने बृजेश से बात करने की गरज से फोन किया तो बृजेश ने काल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो कौन?’’

“बृजेश, पहचाना नहीं मुझे. तुम तो बहुत बदल गए, अब तो मेरी आवाज भी भूल गए.’’ कविता ने शिकायत की.

“जानेमन तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. इस अननोन नंबर से काल आई तो पहचान नहीं सका.’’ बृजेश सफाई देते हुए बोला.

“तुम ने तो मेरी शादी के बाद कभी काल भी नहीं की,’’ कविता बोली.

“कविता, मैं तुम्हें दिल से चाहता था, इसलिए मैं तुम्हारा बसा हुआ घर नहीं उजाड़ना चाहता था. मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारी खुशियों की खातिर समझौता कर लिया था,’’ बृजेश बोला.

“सच में इतना प्यार करते हो तो मुझ से मिलने दमोह आ जाओ, तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’ कविता ने फिर से उस के प्रति चाहत दिखाते हुए कहा.

कई महीने बाद बृजेश और कविता ने अपने दिल की बातें कीं तो उन का पुराना प्यार जाग गया. उस के बाद दोनों की मेल मुलाकात का सिलसिला चल निकला. बृजेश से जब कविता का दोबारा संपर्क हुआ तो उस समय वह टेंट हाउस में काम करने लगा था. कविता से उस की मुलाकात अकसर कालेज जाते समय होती थी. जब बृजेश कविता की ससुराल भी आने लगा तो कविता ने अपने ससुर और पति से उस का परिचय मुंहबोले भाई के तौर पर कराया.

बृजेश ने दीपचंद से भी दोस्ती कर ली थी. दीपचंद खाने पीने का शौकीन था, इसलिए अकसर ही दीपचंद की बैठक बृजेश के साथ होने लगी. दीपचंद और उस के पिता हाकम को यह शक तक नहीं हुआ कि वह यहां कविता के लिए आता है. दीपचंद को उस की गैरमौजूदगी में जब बृजेश के कुछ अधिक ही घर आने की खबर मिलने लगी तो उसे संदेह हुआ. फिर दीपचंद राजस्थान से नौकरी छोड़ कर लौट आया. वह पन्ना की सीमेंट फैक्ट्री में काम पर लग गया. वह अपने गांव खैरा के घर से ही ड्यूटी आनेजाने लगा. दीपचंद के लौटने के बाद दोनों का मिलना मुश्किल हो गया था.

धीरेधीरे दीपचंद को पत्नी कविता और बृजेश के संबंधों की भनक लग चुकी थी. हालांकि दोनों ने अपने संबंधों को दीपचंद के सामने स्वीकार नहीं किया. कविता हमेशा बृजेश को मुंहबोला भाई ही बताती रही. शादी के 2 साल बाद भी उन के संतान नहीं हुई थी. कविता अकसर दीपचंद को अपने से दूर रखती थी. इस से दीपचंद का संदेह और पुख्ता हो गया था. वह कविता पर दबाव बनाने लगा कि वह बृजेश से मेलजोल बंद कर दे और न ही उस से फोन पर बात करे. बृजेश को ले कर उस का कविता से विवाद भी होने लगा था. इस कहासुनी में वह कभीकभी कविता की पिटाई भी कर देता था. यहां तक कि दीपचंद ने पत्नी कविता को खर्च के लिए पैसे देने भी बंद कर दिए तो कविता को समझ आ गया था कि अब पति के जिंदा रहते वह बृजेश से अपने संबंधों को जारी नहीं रख पाएगी.

बृजेश भी कविता के प्यार में इतना पागल हो चुका था कि उसे कविता से मिले बगैर चैन नहीं मिलता. कविता के मन में हरदम यही विचार आता था कि वह पति को रास्ते से हटा दे और उस के बाद बृजेश के साथ इसी तरह नाजायज संबंध बनाए रखेगी. इस से उस के ससुर की जमीनजायदाद में भी उस का हिस्सा बना रहेगा और प्रेमी की बाहों का झूला भी उसे मिलता रहेगा. यहीं से कविता ने बृजेश के साथ मिल कर पति को रास्ते से हटाने की साजिश रची.

प्रेमी के लिए मिटाया सिंदूर

जब कविता पति की हत्या के लिए तैयार हो गई तो बृजेश ने अपने साथ टेंटहाउस में साथ काम करने वाले दोस्त गणेश विश्वकर्मा को साजिश में शामिल कर लिया. उस ने गणेश को दोस्ती का वास्ता दे कर रुपए देने का लालच दिया. योजना के मुताबिक कविता इस बीच मायके चली गई, जिस से दीपचंद के अचानक लापता होने पर संदेह न हो. हत्या के लिए 19 जुलाई, 2023 की तारीख तय की गई. उस दिन दीपचंद ने काम से छुट्टी ले रखी थी, यह बात कविता ने दीपचंद को फोन कर के तसल्ली भी कर ली थी कि वह घर पर ही है. इस के बाद उस ने बृजेश को फोन कर दीपचंद की लोकेशन बता दी.

बृजेश ने पन्ना जिले के अमानगंज निवासी बिट्टू दुबे की चार पहिया गाड़ी एमपी20 सीई 6749 किराए पर ले ली. इस के बाद वह सुनवानी से गणेश विश्वकर्मा को साथ ले कर खैरा गांव पहुंचा. वहां दीपचंद को फोन कर घर के बाहर मिलने बुलाया. फिर पार्टी के बहाने दीपचंद को साथ ले कर वर्धा होते हुए खजरूट स्थित पेट्रोल पंप के पास पहुंचे. वहां एक गुमटी से सिगरेट, पानी और नमकीन के पैकेट लिए. बृजेश ने शराब पहले ही खरीद ली थी. रास्ते में एक जगह रुक कर तीनों ने शराब पी.

बृजेश और गणेश ने दीपचंद को ज्यादा शराब पिलाई. दीपचंद जल्दी ही शराब के नशे में धुत हो गया. इस के बाद बृजेश ने गाड़ी पंडवन पुल के पास बने मंदिर की ओर मोड़ दी. कल्लू ने मंदिर के पास गाड़ी रोक कर दीपचंद को गाड़ी से उतारा. इस के बाद गणेश और बृजेश ने दीपचंद को जमीन पर पटक दिया और उस का गला दबा दिया. इस से दीपचंद बेहोश हो गया. दीपचंद के बेहोश होने के बाद बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू ने गाड़ी में रखी लाठी उठाई और सिर पर तब तक वार किए, जब तक वह मर नहीं गया. इस के बाद उस के लोअर से मोबाइल और पर्स निकाल लिए. पर्स में करीब 700 रुपए थे, जो बृजेश ने रख लिए और पर्स और चप्पलें झाड़ी में फेंक दीं.

पुलिस ने बरामद किए अहम सबूत

इस के बाद बृजेश बर्मन और गणेश विश्वकर्मा ने दीपचंद की लाश को गाड़ी नंबर एमपी20 सीई6749 में डाल कर पंडवन की केन नदी में ले जा कर बहा दिया. दीपचंद का मोबाइल और घटना में प्रयुक्त खून से सना डंडा भी नदी में फेंक दिया. तब तक रात के साढ़े 10 बज चुके थे. दोनों ने गाड़ी में लगे खून को साफ किया और रात में ही गाड़ी उस के मालिक बिट्टू दुबे को सौंप कर अपने अपने घर आ गए. 3 दिन बाद जब दीपचंद के लापता होने की खबर फैली तो बृजेश भी दिलासा देने उस के घर गया, जिस से किसी को उस पर शक न हो.

आरोपियों ने खजरूट की जिस दुकान से शराब व सिगरेट खरीदी थी, पुलिस ने उस दुकान मालिक वीरभान सिंह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस दिन बृजेश बर्मन व गणेश विश्वकर्मा गाड़ी से आए थे और शराब व सिगरेट खरीदी थी. वीरभान ने यह भी बताया कि ड्राइवर वाली सीट पर बृजेश बर्मन बैठा था, बगल वाली सीट पर दीपचंद बैठा था. बृजेश बर्मन और गणेश विश्वकर्मा पन्ना के सुनवानी के जिस टेंटहाउस में काम करते थे, उस के मालिक कमलेश विश्वकर्मा से भी पुलिस टीम ने पूछताछ की तो कमलेश ने बताया कि 21 अगस्त को जब गैसाबाद की पुलिस जांच करने सुनवानी आई थी, उस रात गणेश ने शराब के नशे में बृजेश बर्मन के साथ मिल कर दीपचंद की हत्या की बात बताई थी.

टीआई विकास सिंह चौहान ने बृजेश और गणेश की निशानदेही पर झाड़ियों में छिपाई चप्पलें और खाली पर्स जब्त कर लिया. इस के अलावा घटना में प्रयुक्त बिट्टू दुबे की गाड़ी भी जब्त कर ली. जहां दीपचंद का शव फेंका गया, वह जगह पन्ना जिले में आती है. केन नदी पन्ना जिले की सब से बड़ी नदी है और इस में बड़ी संख्या में मगरमच्छ भी रहते हैं. इस से यह आशंका भी व्यक्त की जा रही थी कि नदी में बहाए गए शव को मगरमच्छों ने अपना ग्रास न बना लिया हो. स्थानीय पुलिस और एसडीआरएफ के सहयोग से केन नदी में दीपचंद की लाश की सर्चिंग करवाई, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी.

25 अगस्त, 2023 को गैसाबाद पुलिस ने हत्या, साक्ष्य छिपाने और साजिश रचने का मामला दर्ज कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें दमोह जेल भेज दिया गया. दीपचंद की हत्या को एक माह से अधिक समय हो गया था, मगर दीपचंद का शव बरामद नहीं हुआ था. इसे ले कर दीपचंद के परिवार और रिश्तेदारों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था. एसडीआरएफ की टीमें केन नदी में लगातार शव तलाश रही थीं, परंतु सफलता नहीं मिल रही थी. एक माह के दौरान नदी में बाढ़ भी आ चुकी थी, इस से यह अनुमान लगाया जा रहा था कि शव कहीं दूर निकल गया हो. दमोह जिले के एसपी और एसडीओपी नितिन पटेल लगातार पुलिस टीमों को खोजबीन के लिए भेज रहे थे.

30 अगस्त, 2023 को गैसाबाद पुलिस को सूचना मिली कि अमानगंज थाने के जिज गांव के नाले के पास एक क्षतविक्षत शव के अवशेष पड़े हुए हैं. सूचना पर पहुंची पुलिस टीम को केन नदी और एक नाले के बीच बने टापू पर देर रात शव के अवशेष बरामद हुए. शिनाख्त के लिए एसडीओपी (हटा) नीतेश पटेल के निर्देश पर गैसाबाद थाना पुलिस टीम मौके पर दीपचंद के पिता हाकम को ले कर पहुंची. हाकम ने हाथ में बंधे रक्षासूत्र और उस के पहने हुए कपड़ों से उस की शिनाख्त अपने बेटे दीपचंद पटेल के रूप में की.

पुलिस ने शव को बरामद कर पंचनामा और पोस्टमार्टम की काररवाई कर शव के अवशेष डीएनए टेस्ट के लिए सुरक्षित करने के बाद वह परिजनों के सुपुर्द कर दिया.

एसपी सुनील तिवारी ने शव की खोजबीन में लगे पुलिसकर्मियों और एसडीआरएफ टीम के प्रयासों की सराहना की. कविता पटेल ने एक गलती से अपनी मांग का सिंदूर पोंछ कर अपनी बसी बसाई घरगृहस्थी उजाड़ ली और जेल की हवा खानी पड़ी.