डाक्टर कामदेव : भोपाल का नर्स यौन शोषण केस

बात 26 अक्तूबर, 2018 की है. भोपाल (Bhopal) के शाहपुरा (Shahpura) के टीआई जितेंद्र वर्मा अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी 29- 30 साल की एक महिला उन के पास आई. उस महिला ने अपना नाम अल्पना बताया. उस ने बताया कि वह मूलरूप से केरल की रहने वाली है और पिछले 4 महीनों से शाहपुरा के लाहोटी हौस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर ( Lahoti Hospital And Research Center) में नर्स के रूप में काम कर रही है. इतना कह कर वह चुप हो गई और इधरउधर देखने लगी.

टीआई वर्मा समझ गए कि अल्पना को परेशानी क्या है, इसलिए उन्होंने महिला आरक्षक सुनीता को बुलाया. उन्होंने सुनीता से कह दिया कि वह अल्पना की पूरी समस्या सुने. सुनीता अल्पना को अपने साथ दूसरे कमरे में ले गईं.

इस के बाद अल्पना ने आरक्षक सुनीता को बताया कि डा. कपिल लाहोटी (Dr. Kapil Lahoti) उस का यौन शोषण कर रहे थे. उस के इस कृत्य से वह गर्भवती हो गई तो डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा लाहोटी ने साजिश कर के उस का गर्भपात करवा दिया.

अल्पना ने बताया कि संबंध बनाने से ले कर गर्भ गिराने तक डा. कपिल ने उसे बड़े बड़े सपने दिखाए थे. यहां तक कि गर्भ गिराने के लिए उन्होंने दिखावे के लिए क्षेत्र के आर्यसमाज मंदिर में उस के साथ शादी भी रचा ली थी. उस की बातों में आ कर जैसे ही उस ने गर्भपात कराया तो डा. कपिल और उस की पत्नी सीमा के तेवर बदल गए.

डा. सीमा लाहोटी, जो कल तक उसे अपनी छोटी बहन कहती थी, अब उसे डायन, वेश्या आदि कहने लगी है. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे जल्द से जल्द भोपाल छोड़ने की धमकी भी दी है.

आरक्षक सुनीता ने अल्पना की पूरी बात सुनने के बाद सारी जानकारी टीआई जितेंद्र वर्मा को दे दी, जिस पर उन्होंने अल्पना का मैडिकल करवाने के बाद एसपी (पश्चिम) राहुल कुमार लोढ़ा और सीएसपी दिशेष अग्रवाल को भी मामले की जानकारी दे दी. इस के बाद लाहोटी अस्पताल के संचालक डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा लाहोटी के खिलाफ बलात्कार सहित अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज कर जांच एसआई जयपाल सिंह बिल्लोरे को सौंप दी.

डा. कपिल का कृत्य आया सामने

दौलत का नशा भी किसी दूसरे नशे से कम नहीं होता, इसलिए चेहरों पर बेफिक्री लिए थाने आए डा. कपिल और डा. सीमा पहले तो खुद को मेहमान के तौर पर पेश करते रहे. लेकिन खुद को निर्दोष बताने वाले दंपति से जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो परत दर परत दोनों के कारनामे सामने आते गए. दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने भी पतिपत्नी को उसी दिन शाम को गिरफ्तार कर लिया. दूसरे दिन सुबह डा. कपिल और उस की पत्नी की गिरफ्तारी की खबर लोगों में फैली तो लाहोटी क्लीनिक में काम कर चुकी कई पूर्व नर्सों ने राहत की सांस ली. क्योंकि अल्पना से पहले वह कई नर्सों के साथ संबंध बना चुका था. इस काम में उस की पत्नी डा. सीमा भी पति की मदद करती थी.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने डा. लाहोटी के अस्पताल में छापेमारी कर उस के केबिन से कई आपत्तिजनक चीजें बरामद कीं. डाक्टर दंपति से पूछताछ के बाद नर्स अल्पना का यौनशोषण, फरजी शादी करने आदि की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

अल्पना मूलरूप से केरल की रहने वाली थी. इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद वह करीब 5 साल पहले भोपाल आई थी. चूंकि केरल की अनेक युवतियां भोपाल स्थित तमाम नर्सिंग होम्स व अस्पतालों में नौकरी कर रही हैं, इसलिए भोपाल में उसे कोई परेशानी नहीं हुई.

दक्षिण भारतीय होने के कारण उस का रंग जरूर सांवला था, लेकिन उस के काले घने बाल और मोटी मोटी झील सी आंखों के अलावा उस का शरीर संतुलित और आकर्षक था. इस के अलावा वह दयावान भी थी. भोपाल में नर्स का कोर्स पूरा करने के बाद करीब 5 महीने पहले अपनी नौकरी के सिलसिले में वह लाहोटी अस्पताल के संचालक डा. कपिल लाहोटी के पास पहुंची थी.

डा. कपिल ने अल्पना को जब पहली बार देखा तो उस की आकर्षक नैननक्श और कदकाठी को देखता ही रह गया. जिस तरह वह उसे नजरें गड़ाए देख रहा था तो उस की तीर जैसी नजरें अल्पना को अपने सीने में उतरती सी महसूस हुईं. डा. कपिल का इशारा पा कर उस ने सीट पर बैठने से पहले अपना दुपट्टा संभाला और नजरें झुका कर बैठ गई.

‘‘केरल से हो?’’ डा. कपिल लाहोटी ने उस से पहला प्रश्न किया.

‘‘यस.’’ अल्पना बोली.

‘‘बताओ, मैं ने कैसे जाना?’’ डा. कपिल ने बात को लंबी खींचने के मकसद से पूछा.

‘‘आई डोंट नो सर, मैं कैसे कह सकती हूं.’’ वह बोली.

‘‘अरे भाई, तुम्हारे घने काले बाल, बड़ीबड़ी आंखें और ये भरा हुआ बदन देख कर कोई भी कह सकता है कि तुम केरल में पैदा हुई होगी.’’ ऐसा कहते हुए डा. कपिल की नजरें लगातार अल्पना के चेहरे पर ही टिकी हुई थीं. इस से अल्पना अपने अंदर एक अजीब सी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. यह बात डा. लाहोटी भांप कर बोले, ‘‘काफी शरमीली हो. लेकिन तुम जानती हो कि हमारे इस प्रोफेशन में शर्म वाला काम नहीं होता.’’

‘‘यस सर, जानती हूं.’’

‘‘गुड. कल से काम पर आ जाओ. शुरू में तुम्हारी ड्यूटी मौर्निंग में होगी. पर बाद में हम दोनों अपने हिसाब से तुम्हारी शिफ्ट फिक्स कर लेंगे.’’ कहते हुए डा. लाहोटी ने उसे नौकरी मिलने की बधाई देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो अल्पना ने भी औपचारिकतावश उस से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया, जिसे लाहोटी काफी देर तक थामे रहा.

फंस गई मछली जाल में

दूसरे दिन से अल्पना लाहोटी अस्पताल में मन लगा कर अपना काम करने लगी. इस दौरान उसे पता चला कि डा. कपिल लाहोटी मूलरूप से पास के शहर विदिशा का निवासी है. उस ने मुंबई से एमबीबीएस की पढ़ाई की थी, उस की पत्नी डा. सीमा भी महाराष्ट्र की रहने वाली है. लोगों से अल्पना को यह भी पता चला कि डा. सीमा कपिल की क्लासमेट थी और दोनों ने लवमैरिज की थी.

इन सब बातों से अल्पना को कोई मतलब नहीं था. वह अपने काम से काम रखती थी. डा. सीमा का व्यवहार उस के प्रति सामान्य था लेकिन कपिल उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान दिखाई देता था. हर काम में उस की तारीफ करता था और जल्द ही अस्पताल में उसे बड़ी जिम्मेदारी देने की बात कहता था. लेकिन अल्पना को डा. कपिल के सामने जाने में डर लगता था क्योंकि वह जब भी उस के सामने खड़ी होती, कपिल उस के सीने पर अपनी नजरें जमाए रहता था.

यह सब देख कर अल्पना दूसरे अस्पताल में नौकरी खोजने की सोचने लगी थी, लेकिन कपिल ने उसे इतना मौका नहीं दिया. अल्पना को नौकरी करते हुए एक महीना ही हुआ था.  इस दौरान एक रोज त्यौहार होने के कारण अस्पताल में मरीजों की भीड़ काफी कम थी. इस के अलावा अस्पताल का ज्यादातर स्टाफ भी छुट्टी पर था.

उस रोज अस्पताल आने के बाद डा. कपिल ने उसे अपने केबिन में बुलाया और काम के बहाने परदे के पीछे वहां ले गया, जहां वह मरीजों की जांच करता था. वहां पर डा. कपिल ने उसे दबोच लिया और पागलों की तरह उसे प्यार करने लगा. अल्पना ने बचने की काफी कोशिश की लेकिन उस ने अल्पना को मरीज की जांच करने वाली टेबल पर गिरा कर उस के साथ बलात्कार कर दिया.

अल्पना के अनुसार इस घटना के बाद उस ने उसे धमकी दी कि तुम भोपाल में अकेली रहती हो. इस बात की जानकारी किसी को दी तो तुम्हें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है. साथ ही उस ने यह भी कहा कि राजनीति में उस के ऊपर तक संबंध हैं, पुलिस भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकती.

इस घटना के कुछ समय बाद ही सीमा अस्पताल आई और उस रोज उस ने जिस तरह से अल्पना की तरफ मुसकरा कर देखा, उस से वह समझ गई कि सीमा को पहले ही इस बात की जानकारी थी कि आज उस के साथ क्या होने वाला है.

इस घटना से अल्पना बुरी तरह डर गई थी. वह नौकरी छोड़ना चाहती थी, लेकिन कपिल उसे धमकी देने लगा कि वह अपने अस्पताल के अलावा भोपाल में कहीं और काम नहीं करने देगा. इस दौरान वह उस का लगातार बलात्कार करता रहा. उसे जब भी मौका मिलता, वह उसे अपने केबिन में बुला लेता, जिस के चलते 2 महीने बाद वह गर्भवती हो गई.

डा. कपिल ने चली नई चाल

अल्पना ने यह बात कपिल को बताई तो वह कुछ देर तक चुप रहा फिर बोला, ‘‘गुड, मैं खुद यही चाहता था. क्योंकि सीमा को मैं तलाक दे चुका हूं, वह केवल दिखावे के लिए मेरे साथ रहती है. अब तुम मेरी पत्नी और इस अस्पताल की मालकिन बनोगी.’’

अल्पना को उस की बातों पर भरोसा नहीं था. लेकिन उस वक्त भरोसा करना पड़ा, जब 13 सितंबर, 2018 को डा. कपिल ने आर्यसमाज मंदिर में उस के साथ शादी कर ली. अल्पना को भरोसा था कि शादी के बाद कपिल उसे अपने घर ले जाएगा. लेकिन उस ने कुछ दिन तक अलग रहने की बात कह कर उसे दानिश कुंज स्थित उस के कमरे पर ही छोड़ दिया और रात में आ कर सुहागरात मनाने की बात कही.

अल्पना ने पुलिस को बताया कि कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा. लेकिन इस के बाद सीमा का उस के प्रति बदला व्यवहार देख कर वह समझ गई कि उस से शादी करना सीमा और कपिल की चाल थी. यह बात उस समय साफ हो गई जब कुछ दिन बाद ही कपिल उस का गर्भ गिराने के लिए कहने लगा. लेकिन जब उस ने मना किया तो 1-2 बार सीमा ने उस से इशारे में कपिल की बात मान लेने को कहा. इस से वह समझ गई कि उस के साथ शादी भी एक धोखा थी, जिस में सीमा बराबर की शरीक रही.

पत्नी भी बनी पाप की भागीदार

इस दौरान अल्पना को इस बात की जानकारी भी लग चुकी थी कि उस से पहले भी कपिल अपने अस्पताल में काम करने वाली कुछ महिला कर्मचारियों का शोषण इसी तरह कर चुका था. इसलिए अल्पना कपिल के चंगुल से निकलने के लिए छटपटाने लगी.

यह बात कपिल और सीमा समझ गए, जिस के चलते 9 अक्तूबर को कपिल और सीमा लाहोटी उस के कमरे पर आए और डराधमका कर उसे गर्भपात की दवा खिला दी, जिस से उस का गर्भपात हो गया. कुछ देर बाद अल्पना की हालत बिगड़ी तो वे लोग पहले उस का इलाज अपने अस्पताल में करते रहे. जब उस की हालत में सुधार नहीं हुआ तो वे उसे अपने जानने वाले किसी दूसरे अस्पताल में ले गए.

वहां भरती रह कर उस का इलाज चला. स्वस्थ हो कर जब अल्पना वापस अपने कमरे पर आई तो कपिल और सीमा दोनों उस पर दबाव डालने लगे कि वह हमेशा के लिए भोपाल छोड़ कर चली जाए. दोनों ने ऐसा न करने पर उसे अगवा कर हत्या करवाने के बाद जंगल में शव फेंक देने की धमकी भी दी.

जांच अधिकारी एसआई जयपाल सिंह बिल्लोरे के अनुसार, इस मामले में डा. कपिल के अपराध में उस की पत्नी डा. सीमा बराबर की शरीक थी.

दोनों को उम्मीद थी कि उन की धमकी से डर कर अल्पना भोपाल छोड़ कर हमेशा के लिए कहीं और चली जाएगी. लेकिन अल्पना ने अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ कानून का दरवाजा खटखटाया, जिस के चलते आरोपियों के खिलाफ काररवाई की गई. पुलिस ने डा. कपिल और उस की पत्नी डा. सीमा से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अल्पना परिवर्तित नाम है

खुद का पाला सांप : मौसी के प्यार में भाई की हत्या

थाना गोला का मंदिर के थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा क्षेत्र में गश्त कर के अभीअभी लौटे थे. तभी उन के थाना क्षेत्र की गोवर्धन कालोनी में रहने वाली 29-30 वर्षीय रश्मि नाम की महिला कन्हैया, तेजकरण व कुछ अन्य लोगों के साथ थाने पहुंची.

प्रवीण शर्मा ने रश्मि से आने का कारण पूछा. इस पर उस ने बताया कि वह अपने 14-15 साल के 2 बेटों के साथ गोवर्धन कालोनी में रहती है. सुबह उस का बेटा सत्यम रोज की तरह आदर्श नगर में कोचिंग के लिए गया था, पर वह वापस नहीं लौटा. रश्मि के साथ 25-26 साल का एक युवक विवेक उर्फ राहुल राजावत भी था. रश्मि ने उसे अपनी बहन का बेटा बताया.

थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा पूछताछ कर ही रहे थे कि राहुल ने उन्हें बताया कि करीब 2-ढाई महीने पहले सत्यम का इलाके के कुछ लड़कों से झगड़ा हुआ था. उन लड़कों ने सत्यम को बंधक बना कर मारपीट भी की थी. उसे शक है कि सत्यम के गायब होने के पीछे उन्हीं लड़कों का हाथ है.

मामला गंभीर था, इसलिए प्रवीण शर्मा ने सत्यम की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर के इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर नवनीत भसीन व सीएसपी मुनीष राजौरिया को दे दी. इस के साथ ही उन्होंने अपनी टीम को सत्यम की खोज में लगा दिया.

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पूरी रात गुजर गई, लेकिन न तो पुलिस को सत्यम के बारे में कुछ खबर मिली और न ही सत्यम घर लौटा. अगले दिन सुबहसुबह राहुल रश्मि को ले कर थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा से उन 3 लड़कों के खिलाफ काररवाई करने को कहा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

बच्चों के झगड़े होते रहते हैं, जो खुद ही सुलझ भी जाते हैं. टीआई शर्मा को बच्चों के झगड़े को इतना तूल देने की बात गले नहीं उतर रही थी. सत्यम को लापता हुए 24 घंटे हो चुके थे लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

इस घटना की जानकारी ग्वालियर रेंज के डीआईजी मनोहर वर्मा को मिली तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ तत्काल सख्त काररवाई का निर्देश दिया. थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा ने विवेक उर्फ राहुल के शक के आधार पर उन तीनों लड़कों को थाने बुला लिया, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

प्रवीण शर्मा ने तीनों लड़कों से पूछताछ की. उन से पूछताछ कर के टीआई शर्मा समझ गए कि सत्यम के गायब होने में उन तीनों की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए पूछताछ के बाद उन तीनों को छोड़ दिया गया.

इस बात पर राहुल उखड़ गया और पुलिस पर मिलीभगत का आरोप लगाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने शहर के एकदो राजनीति से जुड़े रसूखदार लोगों से भी टीआई प्रवीण शर्मा को फोन करवा कर दबाव बनाने की कोशिश की. उस का कहना था कि पुलिस उन 3 लड़कों के खिलाफ सत्यम के अपहरण का केस दर्ज नहीं कर रही है.

लापता हो जाने के बाद से ही राहुल राजावत अपनी रिश्ते की मौसी के साथ सत्यम की खोज में लगा था. लेकिन इस दौरान थानाप्रभारी ने यह बात नोट कर ली थी कि राहुल की रुचि सत्यम से अधिक उन 3 लड़कों को आरोपी बनवाने में है, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

यह बात खुद राहुल को संदेह के दायरे में ला रही थी. इसी के मद्देनजर टीआई प्रवीण शर्मा ने अपने कुछ लोगों को राहुल की हरकतों पर नजर रखने के लिए तैनात कर दिया.

इतना ही नहीं, वह इस बात की जानकारी जुटा चुके थे कि जिस रोज सत्यम गायब हुआ था, उस रोज राहुल खुद ही उसे अपनी कार से कोचिंग सेंटर छोड़ने आदित्यपुरम गया था. इस बारे में उस का कहना था कि उस ने सत्यम को कोचिंग सैंटर के पास पैट्रोल पंप पर छोड़ दिया था.

इस पर पुलिस ने राहुल को बिना कुछ बताए कोचिंग सेंटर के आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज खंगाले, जिन में न तो राहुल वहां दिखाई दिया और न ही उस की कार दिखी.

सब से बड़ी बात यह थी कि उस रोज सत्यम कोचिंग सेंटर पहुंचा ही नहीं था. इस से राहुल पुलिस के राडार पर आ गया. टीआई शर्मा ने इस बात पर भी गौर किया कि राहुल सत्यम के बारे में पूछताछ करने उस की मां के साथ तो थाने आता था, लेकिन सत्यम के पिता के साथ वह कभी नहीं आया.

इसलिए पुलिस ने राहुल की घटना वाले दिन की गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाई, जिस से यह बात सामने आई कि उस रोज राहुल के साथ जौरा में रहने वाली उस की बुआ का बेटा सुमित सिंह भी देखा गया था. लेकिन राहुल को घेरने के लिए पुलिस को अभी और मजबूत आधार की जरूरत थी.

यह आधार पुलिस को घटना से 4 दिन बाद 10 जनवरी को मिला. हुआ यह कि उस दिन सुबह सुबह जौरा थाने के बुरावली गांव के पास से हो कर गुजरने वाली नहर में एक किशोर का शव तैरता मिला. चूंकि सत्यम की गुमशुदगी की सूचना आसपास के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस ने शव के मिलने की खबर गोला का मंदिर थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा को दे दी.

नहर में मिलने वाले किशोर के शव का हुलिया सत्यम से मिलताजुलता था, इसलिए पुलिस सत्यम के परिजनों को ले कर मौके पर जा पहुंची. घर वालों ने शव की पहचान सत्यम के रूप में कर दी.

शव जौरा के पास के गांव बुरावली के निकट नहर में तैरता मिला था. जिस दिन सत्यम गायब हुआ था, उस दिन इस मामले का संदिग्ध राहुल जौरा में रहने वाली अपनी बुआ के बेटे के साथ देखा गया था. राहुल द्वारा सत्यम को कोचिंग सेंटर के पास छोड़े जाने की बात पहले ही गलत साबित हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने बिना देर किए राहुल उर्फ विवेक राजावत और उस की बुआ के बेटे सुमित को हिरासत में ले लिया.

नतीजतन अब तक पुलिस के सामने शेर बन रहा राहुल हिरासत में लिए जाते ही भीगी बिल्ली बन गया. इस के बावजूद उस ने अपना अपराध छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन पुलिस की थोड़ी सी सख्ती से वह टूट गया.

उस ने सुमित के साथ मिल कर राहुल को नहर में डुबा कर मारने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने राहुल की वह कार भी जब्त कर ली, जिस में सत्यम को बैठा कर वह सबलगढ़ ले गया था. इस के बाद रिश्तों में आग लगा देने वाली यह कहानी इस प्रकार सामने आई—

सत्यम के पिता मूलरूप से विजयपुर मेवारा के रहने वाले हैं. वह इंदौर के एक होटल में नौकरी करते हैं, जबकि बच्चों की पढ़ाई के लिए मां रश्मि दोनों बेटों के साथ ग्वालियर में रहती थी. रश्मि का परिवार पहले आदित्यपुरम में रहता था.

लेकिन कुछ महीने पहले रश्मि ने आदित्यपुरम का मकान छोड़ कर गोला का मंदिर थाना इलाके की गोवर्धन कालोनी में किराए का दूसरा मकान ले लिया था. ग्वालियर के पास ही रश्मि के एक दूर के रिश्ते की बहन भी रहती थी.

विवेक उर्फ राहुल राजावत उसी का बेटा था. चूंकि रश्मि रिश्ते में राहुल की मौसी लगती थी, इसलिए उस का रश्मि के घर काफी आनाजाना हो गया था. वह जब भी ग्वालियर आता, रश्मि से मिलने उस के घर जरूर जाता था.

35 साल की रश्मि 2 बच्चों की मां होने के बाद भी जवान युवती की तरह दिखती थी. अनजान आदमी उसे देख कर उस की उम्र 25-27 साल समझने का धोखा खा जाता था. धीरेधीरे राहुल की रश्मि से काफी पटने लगी थी. पहले दोनों के बीच रिश्ते का लिहाज था, लेकिन वक्त के साथ उन के बीच दुनिया जहान की बातें होने लगीं. इस से दोनों के रिश्ते में दोस्ती की झलक दिखाई देने लगी.

इसी बीच राहुल पढ़ाई करने गांव से ग्वालियर आया तो रश्मि ने अपने पति से कह कर राहुल को अपने ही घर में रख लिया. चूंकि रश्मि के पति इंदौर में नौकरी करते थे सो उन्हें भी लगा कि राहुल के साथ रहने से रश्मि और बच्चों को सुविधा हो जाएगी. इसलिए उन्होंने भी राहुल को साथ रखने की अनुमति दे दी, जिस से राहुल ग्वालियर में रश्मि के साथ रहने लगा.

इस से दोनों के बीच पहले ही कायम हो चुके दोस्ताना रिश्ते में और भी खुलापन आने लगा. दूसरी तरफ काम की मजबूरी के चलते रश्मि के पति 4-6 महीने में हफ्ते 10 दिन के लिए ही घर आ पाते थे. इस में भी पिता के आने पर बच्चे उन से चिपके रहते, इसलिए वह चाह कर भी रश्मि को अकेले में अधिक समय नहीं दे पाते थे.

फलस्वरूप पति के आने पर भी रश्मि की शारीरिक जरूरतें अधूरी रह जाती थीं. ऐसे में एक बार रश्मि के पति ग्वालियर आए तो लेकिन मामला कुछ ऐसा उलझा कि वह एक बार भी उसे एकांत में समय नहीं दे सके. इस से रश्मि का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा.

राहुल यह बात समझ रहा था, इसलिए उस ने रश्मि को गुस्से में देखा तो मजाक में कह दिया, ‘‘क्या बात है मौसी, मौसाजी चले गए इसलिए गुस्से में हो?’’

‘‘राहुल, तुम कभी अपनी पत्नी से दूर मत जाना.’’

राहुल की बात का जवाब देने के बजाए रश्मि ने अलग ही बात कही. सुन कर राहुल चौंक गया. उस ने सहज भाव से पूछ लिया, ‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया जो आज आप इतने गुस्से में हो?’’

राहुल की बात सुन कर रश्मि को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने बात बदल दी. लेकिन राहुल समझ गया था कि असली बात क्या है. बस यहीं से उस के मन में यह बात आ गई कि अगर कोशिश की जाए तो मौसी की नजदीकी हासिल हो सकती है.

इसलिए उस ने धीरेधीरे रश्मि की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. कभी वह रश्मि की तारीफ करता तो कभी उस की सुंदरता की. धीरेधीरे रश्मि को भी राहुल की बातों में रस आने लगा और वह उस की तरफ झुकने लगी. इस का फायदा उठा कर एक दिन राहुल ने डरते डरते रश्मि को गलत इरादे से छू लिया.

रश्मि शादीशुदा थी, राहुल के स्पर्श के तरीके से सब समझ गई. उस ने तुरंत तुरुप का पत्ता खेलते हुए कहा, ‘‘यूं डर कर छूने से आग और भड़कती है राहुल. इसलिए या तो पूरी हिम्मत दिखाओ या मुझ से दूर रहो.’’

राहुल के लिए इतना इशारा काफी था. उस ने आगे बढ़ कर रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया, जिस के बाद रश्मि उसे मोहब्बत की आखिरी सीमा तक ले गई. बस इस के बाद दोनों में रोज पाप का खेल खेला जाने लगा. दोनों के बीच रिश्ता ऐसा था कि कोई शक भी नहीं कर सकता था.

वैसे भी राहुल घर में ही रहता था, इसलिए दोनों बेटों के स्कूल जाते ही राहुल और रश्मि दरवाजा बंद कर पाप की दुनिया में डूब जाते थे. रश्मि अनुभवी थी, जबकि राहुल अभी कुंवारा था. रश्मि को जहां अपना अनाड़ी प्रेमी मन भा गया था, वहीं राहुल अनुभवी मौसी पर जान छिड़कने लगा था.

समय के साथ दोनों के बीच नजदीकी कुछ ऐसी बढ़ी कि रात में दोनों बच्चों के सो जाने के बाद रश्मि अपने बिस्तर से उठ कर राहुल के बिस्तर में जा कर सोने लगी. अब जब कभी रश्मि का पति इंदौर से ग्वालियर आता तो रश्मि और राहुल दोनों ही उस के वापस जाने का इंतजार करने लगते.

राहुल लंबे समय से रश्मि के घर में रह रहा था. मोहल्ले में कभी उस के खिलाफ बातें नहीं हुई थीं. लेकिन जब बच्चों के स्कूल जाने के बाद रश्मि और राहुल दरवाजा बंद कर घंटों अंदर रहने लगे तो पासपड़ोस के लोगों ने पहले तो उन के रिश्ते का लिहाज किया, लेकिन बाद में उन के बीच पक रही खिचड़ी चर्चा में आ गई.

बाद में यह बात इंदौर में बैठे सत्यम के पिता तक भी पहुंच गई. इसलिए कुछ महीने पहले उन्होंने ग्वालियर आ कर न केवल आदित्यपुरम इलाके का मकान खाली कर दिया, बल्कि राहुल को भी अलग मकान ले कर रहने को बोल दिया.

इतना ही नहीं, उन्होंने राहुल को आगे से घर में कदम रखने से भी मना कर दिया. इंदौर वापस जाने से पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सत्यम को हिदायत दी कि अगर राहुल घर आए तो वह इस की जानकारी उन्हें दे दे.

अब राहुल और रश्मि का मिल पाना मुश्किल हो गया. क्योंकि एक तो रश्मि आदित्यपुरम छोड़ कर गोवर्धन कालोनी में रहने आ गई थी. दूसरे चौकीदार के रूप में सत्यम का डर था कि वह राहुल के घर आने की खबर पिता को दे देगा. लेकिन दोनों एकदूसरे से दूर भी नहीं रह सकते थे, इसलिए एक दिन मौका देख कर राहुल रश्मि से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

राहुल को देखते ही रश्मि पागलों की तरह उस के गले लग गई. उसे ले कर वह सीधे बिस्तर पर लुढ़क गई. राहुल भी सब कुछ भूल कर रश्मि के साथ वासना में डूब गया. लेकिन इस से पहले कि दोनों अपनी मंजिल पर पहुंचते, अचानक घर लौटे सत्यम ने मां और मौसेरे भाई का पाप अपनी आंखों से देख लिया. सत्यम को आया देख कर राहुल और रश्मि दोनों घबरा गए.

फंसने से बचने के लिए राहुल सत्यम को चाट खिलाने ले गया, जहां बातोंबातों में उस ने सत्यम से कहा, ‘‘यार मेरे घर आने की बात पापा को मत बताना.’’

‘‘ठीक है, नहीं बताऊंगा. लेकिन इस से मुझे क्या फायदा होगा?’’ सत्यम ने शातिर अंदाज से कहा तो राहुल बोला, ‘‘जो तू कहेगा, कर दूंगा. बस तू पापा को मत बोलना.’’

राहुल को लगा कि सत्यम राजी हो जाएगा. लेकिन सत्यम तेज था, वह बोला, ‘‘ठीक है, मुझे 2 हजार रुपए दो, दोस्तों को पार्टी देनी है.’’

राहुल के पास पैसों की कमी नहीं थी. उस ने सत्यम को 2 हजार रुपए दे कर उसे बाजार घूमने के लिए भेज दिया और खुद वापस रश्मि के पास लौट आया.

सत्यम बिक गया, यह जान कर रश्मि भी खुश हुई. इस से दोनों के बीच पाप की कहानी फिर शुरू हो गई. आदित्यपुरम में रश्मि और राहुल के रिश्ते की भले ही चर्चा हुई हो, लेकिन नए मोहल्ले में पहले जैसी परेशानी नहीं थी और सत्यम भी चुप रहने के लिए राजी हो गया था.

इस बात का फायदा उठा कर जहां राहुल और रश्मि अपने पाप की दुनिया में जी रहे थे, वहीं सत्यम भी इस का पूरा फायदा उठा रहा था. वह राहुल से चुप रहने के लिए पैसे लेने लगा. लेकिन धीरेधीरे सत्यम की मांगें बढ़ने लगीं.

कुछ दिन पहले उस ने राहुल को ब्लैकमेल करते हुए उस से 20 हजार रुपए का मोबाइल खरीदवा लिया. राहुल रश्मि के नजदीक रहने के लिए सत्यम की हर मांग पूरी करता रहा. कुछ दिन पहले अचानक सत्यम ने उस से नई मोटरसाइकिल खरीद कर देने को कहा.

राहुल के पास इतना पैसा नहीं था. और था भी तो वह एक लाख रुपए रिश्वत में खर्च नहीं करना चाहता था. लेकिन सत्यम अड़ गया. उस ने कहा कि अगर वह मोटरसाइकिल नहीं दिलाएगा तो वह पापा से उस के घर आने की बात कह देगा.

इस से राहुल परेशान हो गया. इसी दौरान करीब 2-3 महीने पहले सत्यम का 3 लड़कों से झगड़ा हो गया, जिस में उन्होंने सत्यम के साथ काफी मारपीट की. यह झगड़ा भी राहुल ने ही शांत करवाया था. लेकिन इस सब से उस के दिमाग में आइडिया आ गया कि इस झगड़े की ओट में सत्यम को हमेशा के लिए अपने और रश्मि के बीच से हटाया जा सकता है.

इस के लिए उस ने अपनी बुआ के बेटे सुमित से बात की तो वह इस शर्त पर साथ देने को राजी हो गया कि काम हो जाने के बाद वह उसे रश्मि के संग एकांत में मिलने का मौका ही नहीं देगा, बल्कि रश्मि को इस के लिए राजी भी करेगा.

राहुल ने उस की शर्त मान ली तो सुमित ने उसे किसी दिन सत्यम को जौरा लाने को कहा. घटना वाले दिन राहुल रश्मि से मिलने उस के घर पहुंचा तो सत्यम वहां मौजूद था.

राहुल को इस से कोई दिक्कत नहीं थी. क्योंकि राहुल जब भी रश्मि से मिलने आता था, तब सत्यम किसी न किसी बहाने से कुछ देर के लिए वहां से हट जाता था. लेकिन उस रोज वह वहीं पर अड़ कर बैठ गया.

राहुल ने उस से बाहर जाने को कहा तो सत्यम बोला, ‘‘पहले मोटरसाइकिल दिलाओ.’’

इस पर राहुल ने उसे समझाया कि तुम बाहर चलो, मैं आधे घंटे में आता हूं. फिर तुम्हारी बाइक का इंतजाम कर दूंगा. इस पर सत्यम राहुल को अपनी मां से अकेले में मिलने का मौका देने की खातिर घर से बाहर चला गया. रश्मि के साथ कुछ समय बिताने के बाद राहुल बाहर जा कर सत्यम से मिला. उस ने सत्यम से जौरा चलने को कहा.

राहुल ने उसे बताया कि जौरा में उसे एक आदमी से उधारी का काफी पैसा लेना है. वहां से पैसा मिल जाएगा तो वह उसे बाइक दिलवा देगा.

बाइक के लालच में सत्यम राहुल के साथ जौरा चला गया, जहां बुआ के घर जा कर राहुल ने सुमित को साथ लिया और तीनों वहां से आ कर सबलगढ़ के बदेहरा गांव की पुलिया पर खड़े हो गए. राहुल ने सत्यम को बताया कि जिस से पैसा लेना है, वह यहीं आने वाला है. इस दौरान सत्यम ने मुरैना ब्रांच कैनाल में झांक कर देखा तो राहुल और सुमित ने उसे पानी में धक्का दे दिया.

सत्यम को तैरना नहीं आता था, फलस्वरूप वह गहरे पानी में डूब गया. इस के बाद सुमित और राहुल ग्वालियर आ गए. इधर सत्यम के कोचिंग से वापस न आने पर रश्मि परेशान हो गई. उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी तो राहुल सत्यम के अपहरण में उन युवकों को फंसाने की कोशिश करने लगा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

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उस का मानना था कि तीनों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज हो जाएगा तो लाश मिलने पर उन्हें हत्यारा बनाना पुलिस की मजबूरी बन जाएगी, जिस से वह साफ बच जाएगा. लेकिन ग्वालियर पुलिस ने लाश बरामद होते ही राहुल की कहानी खत्म कर दी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

लड़की से लड़का क्यों बनी स्वाति?

यह कहानी स्वाति से शिवाय बने (Swati to Shivaay) 35 साल के एक सौफ्टवेयर इंजीनियर की है, जिन्होंने 3 साल की लंबी मशक्कत के बाद अपना जेंडर फीमेल (Gender Change) से बदल कर मेल करवा लिया.

स्वाति का फ्रस्ट्रेशन तब और बढ़ गया, जब आठवीं क्लास में आते ही उसे पीरियड शुरू हो गए. वह अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने लगी. उसे अपने शरीर से ही नफरत होने लगी थी. हायर सेकेंडरी पास होते ही, घर वालों ने उस की शादी के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया.

एकदो रिश्ते आए भी, मगर उस की हेयर स्टाइल और कपड़े देख कर वे हैरान रह जाते.  एक दिन उस की मम्मी उर्मिला ने उसे पास बिठाया और उस के सिर पर हाथ रखते हुएकहा, ”देख स्वाति, अब तो तू बड़ी हो रही है. अपने बाल बढ़ा ले और लड़के वाले कपड़े पहनना छोड़ दे.’’

मगर स्वाति इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. उस ने मम्मी से दोटूक कह दिया, ”देखो मम्मी, मुझे बारबार टोका मत करो, मैं तो लड़के के रूप में ही अच्छी हूं.’’

घर में सब से लाडली होने के कारण कोई भी उस से कुछ भी कहने के बजाय खामोश हो जाता. मगर आसपास रहने वाले लोग स्वाति के घर वालों को ताना देने लगे थे, इस से स्वाति का मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था.

बचपन से ही स्वाति शरीर से भले ही लड़की थी, मगर उसे अपना वह शरीर कतई पसंद नहीं था. उस के बाल, कपड़े इस तरह के थे कि कोई अनजान व्यक्ति उसे लड़का ही समझता था. लड़कियों के स्कूल में पढऩे जाने पर जब उसे यूनिफार्म में सलवार कमीज पहनने को मजबूर किया जाता तो वह स्कूल से बंक मारने लगी.

स्वाति ने बताया कि उस की आत्मा यही कहती थी कि ‘मैं वह नहीं हूं, जो दिखाई देती हूं. मेरा दिमाग और शरीर एकदूसरे से मेल नहीं खाते थे. कभीकभी मुझे अपने ही शरीर से चिढ़ सी होने लगी थी.’

आखिरकार एक दिन खुद को मजबूत करते हुए स्वाति ने घर वालों से बात की. उस ने मम्मीपापा से साफ कह दिया, ”तुम मुझे भले ही लड़की समझते हो, मगर मुझे फीलिंग लड़कों वाली आती है. मैं तो अपना जेंडर चेंज करा कर लड़का बनना चाहता हूं.’’

इतना सुन कर घर वालों की स्थिति और खराब हो गई. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस लड़की के साथ क्या किया जाए. स्वाति के रंगढंग देख उस के पापा पवन ने पत्नी उर्मिला से कहा, ”देखो, ये लड़की समाज में हमारी बदनामी करने पर तुली हुई है.’’

उर्मिला यह कह कर अपने पति को समझा देती कि ‘स्वाति अभी नादान है. उम्र के साथ सब कुछ समझ जाएगी.’

ताप्ती नदी के किनारे बसे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बैतूल (Baitul) में संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी और पत्नी उर्मिला सूर्यवंशी की 4 बेटियों और एक बेटे में स्वाति सब से छोटी थी.

बैतूल (Baitul) के सिविल लाइंस इलाके की संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी मसाले और सब्जी का बिजनैस करते थे. एक सड़क हादसे में अपना एक पैर खोने के बाद घर की जिम्मेदारी पत्नी उर्मिला पर आ गई. उर्मिला ने अपने बेटे बेटियों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. आज उन की 2 बड़ी बेटियां श्रद्धा और संगीता हौस्पिटल में एकाउंटेंट हैं, जबकि छोटी बेटी बबीता एक नर्स है. बड़ा बेटा कृष्णा सरकारी स्कूल में टीचर है.

स्वाति स्कूल में भी पहनती थी लड़कों के कपड़े

स्वाति का जन्म 6 मार्च, 1988 को हुआ था. उस की स्कूली शिक्षा बैतूल के गवर्नमेंट स्कूल में हुई थी. पहले तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ती गई, स्वाति को अपने शरीर को ले कर अजीब सी फीलिंग आने लगी. 8वीं पास होतेहोते एक दिन लगा कि उसे शरीर लड़की का जरूर दे दिया है, लेकिन वह लड़की नहीं है. क्योंकि उसे भगवान ने मुझे गलत बौडी दे दी. हर काम लड़कों वाले करना पसंद थे.

मसलन लड़कों जैसे रहना, कपड़े पहनना अच्छा लगता था. गेम भी लड़कों वाले ही खेलती थी. यहां तक कि यदि उसे कोई लड़कियों की तरह संबोधन से बुलाता तो उसे बहुत बुरा लगता था. पवन सूर्यवंशी का पूरा परिवार धार्मिक विचारों वाला था. इस वजह से घर के सभी लोगों ने उसे शिवाय कहना शुरू कर दिया. उस के बाद तो सभी उसे शिवाय के नाम से ही पुकारने लगे.

घर वालों ने जब स्वाति का एडमिशन 9वीं क्लास में गल्र्स स्कूल में करा दिया तो वहां ड्रेस के रूप में सलवारकमीज चलती थी. उसे यह पहनना पसंद नहीं था. यही वजह थी कि वह स्कूल जाना पसंद नहीं करती थी. जिस दिन ड्रेस चेंज होती थी, सिर्फ उसी दिन स्कूल जाती थी. इसी जद्दोजहद में दिन बीतते गए और स्वाति 12वीं में पहुंच गई.

रहनसहन, कपड़े और लड़कों के साथ खेलने की वजह से घर वालों का दबाव बढऩे लगा था जोकि स्वाति को कतई पसंद नहीं था. अब स्वाति में लड़कियों के शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तन भी होने लगे थे.

पीरियड की शुरुआत और अपनी छाती पर आए उभार देख कर उसे अच्छा नहीं लगता था. इस कारण उस का फ्रस्ट्रेशन और बढऩे लगा था. उसे अपने शरीर से चिढ़ होने लगी थी. स्वाति को यह सब रास नहीं आ रहा था और वह इस से डिप्रेशन में जाने लगी थी.

स्वाति का रुझान बचपन से ही बास्केट बाल खेल के प्रति रहा था. ऐसे में स्कूल में पढ़ते समय जब स्वाति लड़कियों के साथ बास्केट बाल खेलती तो उसे अजीब सा लगता था. तब उन के कोच रविंद्र गोटे स्वाति को लड़कों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करते थे.

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बास्केट बाल गेम लड़कियों के ज्यादा खेलने की वजह से स्वाति उर्फ शिवाय बाद में फुटबाल खेलने लगी. बड़ी होने पर स्वाति को पुलिस में रहे कोच संजय ठाकुर ने काफी प्रोत्साहित किया. संजय ठाकुर उसे लड़कों जैसी फिटनैस रखने और सभी खेलों में भाग लेने के लिए कहते थे.

कोच संजय ठाकुर उस के खेल से प्रभावित हो कर अकसर यही कहते थे, ”स्वाति, तुझे तो लड़का होना चाहिए था, कुदरत ने तुझे लड़की क्यों बना दिया.’’  बस यही बात उस समय स्वाति को कचोटने लगी थी.

2006 में गवर्नमेंट गल्र्स स्कूल बैतूल से हायर सेकेंडरी परीक्षा पास करने के बाद स्वाति ने भोपाल के कालेज से 2010 में बीसीए पास कर लिया. बीसीए की पढ़ाई के दौरान उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. उस समय स्वाति से यह सब सहन नहीं हो रहा था, इसलिए उस ने फैसला किया कि वह अपना जेंडर जरूर चेंज कराएगी.

उस ने इस के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का सहारा लिया. इंटरनेट पर उस ने  खूब सर्च किया और बहुत सारी जानकारी हासिल की. वह जेंडर चेंज के लिए 2010 से 2015 तक लगातार कई तरह की जानकारियां जुटाती रही.

बौडी बिल्डर आर्यन पाशा से हुई प्रभावित

स्वाति ने यूट्यूब पर आर्यन पाशा का एक वीडियो देखा था, जिसे देख कर उसे मालूम हुआ कि आर्यन पाशा का जन्म 1991 में नायला नाम की एक लड़की के रूप में हुआ था. आर्यन पाशा की मां को सब से पहले पता चला कि वह एक महिला शरीर में फंसा हुआ लड़का था.

जब वह 16 वर्ष का था तो पाशा की मां ने उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी(Gender Change Surgery) के बारे में बताया. 2011 में जब पाशा सिर्फ 19 साल का था, तब उस ने दिल्ली एनसीआर के एक अस्पताल में सर्जरी के द्वारा अपना जेंडर चेंज कराया.

इस बदलाव के बाद उस ने 12वीं कक्षा में अपने स्कूल में टौप किया, फिर उस ने अपने सभी दस्तावेजों में खुद को ‘पुरुष’ के रूप में पहचाना और यहां तक कि अपने लिए एक नया नाम आर्यन भी लिया.

स्नातक पाठ्यक्रम के लिए दिल्ली के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में प्रवेश से इनकार करने के बाद अंतत: उस ने मुंबई विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और कानून की पढ़ाई की. आर्यन बाद में बौडी बिल्डर बना और पुरुष वर्ग में बौडी बिल्डिंग इवेंट मसल मेनिया में प्रतिस्पर्धा करने वाला पहला भारतीय ट्रांसमैन बन गया. वह पोडियम पर दूसरे स्थान पर रहा.

इस के बाद स्वाति एक्सपर्ट डाक्टर से भी मिली और डाक्टर से बात कर यह जाना कि इस की सर्जरी की क्या प्रक्रिया है. जब सारी बातें साफ हो गईं तो उस ने उन लोगों से भी मुलाकात की, जिन्होंने अपना जेंडर चेंज करवाया था.

स्वाति ने इस के लिए आर्यन पाशा और राजवीर सिंह जैसे जेंडर चेंज करने वाले लोगों से मुलाकात की. इस के बाद अपने इरादे मजबूत कर लिए तो एक दिन सारी बातें घर वालों के सामने रख दीं और उन्हें जेंडर चेंज करवाने के लिए मनाना शुरू किया.

पहले तो घर वालों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. उस के पीछे आर्थिक स्थिति का कमजोर होना तो था ही, समाज में नकारात्मक सोच का डर भी घर वालों को था. यही वजह रही कि घर वालों ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी. उस वक्त स्वाति के लिए शादी के लिए रिश्ते भी आने शुरू हो गए थे.

3 साल का वक्त लगा जेंडर बदलने में

यह बात उस के तनाव को और बढ़ा रही थी. उस ने घर वालों को काफी मनाया समझाया और कुछ ऐसे लोगों से घर वालों की मुलाकात कराई, जो जेंडर चेंज कराने के बाद अपना पारिवारिक जीवन बेहतर ढंग से जी रहे थे.

राजवीर सिंह से मुलाकात और काफी कोशिशों के बाद मम्मीपापा के सोचने का नजरिया बदला. इस काम में स्वाति की 3 बहनों ने भी काफी सपोर्ट किया. आखिरकार लंबी मशक्कत के बाद घर वाले  जेंडर चेंज करवाने के लिए राजी हुए.

शिवाय को बाइक चलाने का भी शौक है. अब जेंडर चेंज सर्जरी करा कर स्वाति से शिवाय सूर्यवंशी बन गया है. जेंडर चेंज के बारे में जब हम ने शिवाय से बातचीत की तो खुशी और आत्मविश्वास से लबरेज नजर आया.

लंबी बातचीत में शिवाय (स्वाति) ने बताया कि एक बार यूट्यूब पर आर्यन पाशा को देखा था, आर्यन लड़की से लड़का बना और फिर बौडी बिल्डर बन गया. यह वीडियो मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहा और इस के बाद मैं ने भी लड़का बनने की ठान ली.

जेंडर चेंज सर्जरी की शुरुआत 2020 में हुई थी. दिल्ली के एक निजी हौस्पिटल में उस ने 3 स्टेप में सर्जरी कराई है. जानेमाने सर्जन डा. नरेंद्र कौशिक ने उस की सर्जरी की थी.

पहली सर्जरी 2020 में जब शुरू हुई तो साइकोलौजिस्ट डा. राजीव ने मानसिक टेस्ट किया और डा. अरविंद कुमार ने हारमोंस थैरेपी की थी, जिस में हारमोंस चेंज होते हैं. इस थैरेपी के कुछ दिनों बाद ही वाइस चेंज होने लगी थी और चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आने लगी थीं.

वहीं दूसरी टौप सर्जरी में शिवाय के दोनों ब्रेस्ट को बौडी से रिमूव किया गया था. थर्ड सर्जरी में बौटम पार्ट की सर्जरी की गई थी. इस सर्जरी के दौरान यूट्रस निकाला गया और सब से लास्ट में पेनिस डेवलप किया गया था. हर सर्जरी के बाद 3 माह का आराम करना होता था. शिवाय ने हर सर्जरी के बाद 5 से 6 महीने का गैप लिया.

अभी कुछ महीने पहले ही शिवाय की चौथी सर्जरी हुई थी, जिस में स्किन टाइट करवाई गई है. इस के बाद आराम किया और अब नवंबर 2023 से इंदौर में रह कर फिर से अपना जौब शुरू कर दिया है. पूरी सर्जरी में लगभग 10 लाख रुपए खर्च हुए थे.

शिवाय ने बताया कि वह पहले ही सर्जरी कराना चाहता था, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से सर्जरी नहीं करा पाया.

शिवाय सूर्यवंशी ने बताया, ”सर्जरी करवा कर मैं बहुत खुश हूं. अब लगता है कि मुझे जो शरीर चाहिए था, वह मिल गया है.’’

दस्तावेजों में लिंग बदलवाना नहीं था आसान

शिवाय के परिवार में भी लोग खुश हैं.  शिवाय के बड़े भाई कृष्णा सूर्यवंशी ने बताया, ”पहले जरूर हम ने इस का विरोध किया था, लेकिन बाद में पूरे परिवार ने सहयोग किया.  अब उन्हें एक भाई और मिल गया है, जिस से उन्हें काफी मदद मिल रही है. हम पहले 5 भाईबहन थे. स्वाति सब से छोटी बहन थी. अब स्वाति के शिवाय बनने से 3 बहन और 2 भाई हो गए हैं.’’

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जेंडर चेंज करवाने के बाद सब से चुनौतीपूर्ण काम पहचान दस्तावेजों में नाम व जेंडर बदलने का था. इस के लिए स्वाति से शिवाय बन कर सब से पहले बैतूल कलेक्टर के समक्ष उपस्थित हो कर आवेदन किया.

कलेक्टर औफिस से जारी किए गए पत्र के साथ शिवाय सूर्यवंशी ने बोर्ड औफ सेकेंडरी एजुकेशन, भोपाल के साथ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल जहां से बीसीए किया और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर जहां से एमबीए किया था, वहां आवेदन किया. आवेदन के साथ उस ने जेंडर चेंज सर्जरी के समस्त डाक्यूमेंट्स भी पेश किए.

इस आधार पर हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल परीक्षा की मार्कशीट जो स्वाति नाम से बनी है, वहीं अब स्वाति का नाम परिवर्तित हो कर शिवाय हो गया है. जेंडर फीमेल से मेल हो गया है. इसी तरह बीसीए, एमबीए की मार्कशीट के साथ आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक पासबुक और वोटर आईडी कार्ड में भी उस का नाम बदल कर अब शिवाय सूर्यवंशी हो गया है.

शिवाय के सभी दस्तावेज पहले स्वाति सूर्यवंशी नाम से थे, लेकिन सर्जरी के बाद उस के सभी दस्तावेजों में भी नाम बदल चुका है. शिवाय ने अब ऐसे लोगों को, जो जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराना चाहते हैं, उन्हें जागरूक करना शुरू कर दिया है. शिवाय एमपी वाला चैनल बनाया है. बहुत सारे लोग इस संबंध में पूछताछ करते हैं शिवाय ने बताया कि अधिकांश लोग लड़का से लड़की बनना पसंद करते हैं.

जेंडर चेंज करने वाले माहिर डाक्टर बताते हैं कि जिन लोगों को जेंडर डायसफोरिया होता है, वो इस प्रकार का औपरेशन कराते हैं. इस बीमारी में लड़का, लड़की की तरह और लड़की, लड़के की तरह जीना चाहती है. एक का लड़के से लड़की बनना और दूसरे का लड़की से लड़का बनना जिसे मैडिकल टर्म में ‘जेंडर डिस्फोरिया’ या बौडी वर्सेस सोल कहते हैं. यानी शरीर और आत्मा की लड़ाई.

आसान नहीं होता जेंडर चेंज कराना

कई लड़के और लड़कियों में 12 से 16 साल के बीच जेंडर डायसफोरिया के लक्षण शुरू हो जाते हैं, लेकिन समाज के डर की वजह से ये अपने मातापिता को इन बदलावों के बारे में बताने से डरते हैं.

आज भी समाज में कई ऐसे लड़केलड़कियां हैं, जो इस समस्या के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं, लेकिन इस बात को किसी से बताने से डरते हैं. लेकिन जो हिम्मत जुटा कर कदम उठाते हैं. वे जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराने का फैसला लेते हैं.

हालांकि जेंडर चेंज कराने वालों को समाज में एक अलग ही नजरिए से देखा जाता है और उन से लोग कई तरह के सवालजवाब भी करते हैं.

सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी या फिर जेंडर चेंज सर्जरी कराना एक चुनौतीपूर्ण काम होता है. इस का खर्च भी लाखों रुपए में है और इस सर्जरी को कराने से पहले मानसिक तौर पर भी तैयार रहना पड़ता है. यह सर्जरी हर जगह उपलब्ध भी नहीं है. कुछ मैट्रो सिटी के अस्पतालों में ही ऐसे सर्जन मौजद हैं, जो सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी को कर सकते हैं.

सैक्स चेंज कराने के इस औपरेशन के कई लेवल होते हैं. यह प्रक्रिया काफी लंबे समय तक चलती है. फीमेल से मेल बनने के लिए करीब 32 तरह की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. मेल से फीमेल बनने में 18 चरण होते हैं.

सर्जरी को करने से पहले डाक्टर यह भी देखते हैं कि लड़का और लड़की इस के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं या नहीं. इस के लिए मनोरोग विशेषज्ञ की सहायता ली जाती है. इस के साथ ही यह भी देखा जाता है कि शरीर में कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है.

जेंडर चेंज कराने की प्रक्रिया में सब से पहले डाक्टर एक मानसिक टेस्ट करते हैं. मानसिक टेस्ट में फिट होने के बाद इलाज के लिए हारमोंस थेरेपी शुरू की जाती है. यानी जिस लड़के को लड़की वाले हारमोंस की जरूरत है, वो इंजेक्शन और दवाओं के जरिए उस के शरीर में पहुंचाए जाते हैं.

इस इंजेक्शन के करीब 3 से 4 डोज देने के बाद बौडी में हार्मोनल बदलाव होने लगते हैं. फिर इस का प्रोसीजर शुरू किया जाता है.

दूसरे चरण में पुरुष या महिला के प्राइवेट पार्ट और चेहरे की शेप को बदला जाता है. महिला से पुरुष बनने वाले में पहले ब्रेस्ट को हटाया जाता है और पुरुष का प्राइवेट पार्ट डेवलप किया जाता है.

पुरुष से महिला बनने वाले व्यक्ति में उस के शरीर से लिए गए मांस से ही महिला के अंग बना दिए जाते हैं. इस में ब्रेस्ट और प्राइवेट पार्ट शामिल होता है. ब्रेस्ट के लिए अलग से 3 से 4 घंटे की सर्जरी करनी पड़ती है. यह सर्जरी 4 से 5 महीने के गैप के बाद ही की जाती है.

जेंडर चेंड सर्जरी की पूरी प्रक्रिया में कई डाक्टर शामिल होते हैं. इस में मनोरोग विशेषज्ञ, सर्जन, गायनेकोलौजिस्ट और एक न्यूरो सर्जन भी मौजूद रहता है. डाक्टर बताते हैं कि यह सर्जरी 21 साल से अधिक उम्र के लोगों पर ही की जाती है. इस से कम उम्र में मातापिता की ओर से लिखित में सहमति लेने के बाद ही औपरेशन किया जाता है.

डाक्टर से होने वाली है शिवाय की शादी

जिस स्वाति के लिए घर वाले शादी के लिए लड़का देख रहे थे, जेंडर बदलने के बाद सौफ्टवेयर इंजीनियर शिवाय सूर्यवंशी अब एक डाक्टर से शादी करने जा रहा है. जेंडर चेंज करवाने के दौरान ही शिवाय की मुलाकात इंदौर की रहने वाली एक लड़की से हौस्पिटल में हुई थी, जो बीएएमएस का कोर्स कंपलीट कर चुकी है और उस का खुद का क्लीनिक भी है.

सर्जरी के दौरान शिवाय को अपनी मंगेतर से काफी सपोर्ट मिला था. दोनों के परिवार वाले भी इस रिश्ते से काफी खुश हैं. शिवाय की यह अरेंज कम लव मैरिज होगी. कुछ ही दिनों बाद शिवाय मंगेतर के साथ परिणय सूत्र में बंधने जा रहा है. शिवाय ने बाद में महर्षि महेश योगी यूनिवर्सिटी से एमएससी (आईटी) पास करने के साथ सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का कोर्स किया  है. फिलहाल वह विदेशी कंपनियों के कुछ प्रोजैक्ट को फ्रीलांस के तौर पर कर रहा है. इस के अलावा शिवाय आलमाइटी सोल्यूशन सौफ्टवेयर कंपनी को भी अपनी सेवाएं दे रहा है.

शिवाय के पास हर दिन उन लोगों के फोन आते हैं, जो जेंडर चेंज तकनीक की जानकारी हासिल करना चाहते हैं. शिवाय ऐसे लोगों से खुशमिजाज हो कर बात करता है और लोगों की जेंडर सर्जरी संबधी जिज्ञासाओं का समाधान भी करता है.

यूट्यूब चैनल से दिया जा रहा है संदेश

एक छोटे से नगर में रह कर जेंडर चेंज कराने वाले शिवाय ने बताया कि उस के पास रोज ही ऐसे नौजवानों के फोन काल आते हैं, जो इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. शिवाय ऐसे युवाओं को फोन पर ही मार्गदर्शन करता है.

अपने चैनल के माध्यम से शिवाय जेंडर चेंज सर्जरी के साथ ही दस्तावेजों में नामपता बदलने की जानकारी भी विस्तार से देता है. उस के चैनल को बड़ी संख्या में युवा फालो भी कर रहे हैं.

शिवाय ने बताया कि इस तरह की समस्याओं से परेशान युवक युवतियां घुटघुट कर जीते हैं. घर वाले उन की फीलिंग्स को नहीं समझते और निराश हो कर युवक युवतियां आत्महत्या जैसा कदम तक उठा लेते हैं.

शिवाय का कहना है कि इस तरह की समस्या का सामना करने वाले नौजवान युवकयुवतियां डरने के बजाय अपना आत्मविश्वास जगाएं और बिना संकोच किए अपने घर वालों से बातचीत कर अपना जेंडर चेंज करा सकते हैं. आजकल तो सरकार की आयुष्मान योजना का लाभ उठा कर भी जेंडर चेंज सर्जरी कराई जा सकती है.

—कथा शिवाय सूर्यवंशी से की गई लंबी बातचीत पर आधारित

बालिका सेवा के नाम पर बच्चियों के साथ हैवानियत

31 जनवरी, 2019 की शाम जावरा क्षेत्र में पिपलोदा रोड स्थित कुटीर बालिका गृह के बाहर अफरातफरी का माहौल था. बालिका गृह के गेट पर औद्योगिक क्षेत्र के टीआई बी.एल. सोलंकी, एसआई मधु राठौर और पुलिस बल के साथ खड़े थे.

भारी पुलिस बल को देख कर लोगों की भीड़ जुटने लगी थी. उसी समय पूर्व संचालिका रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश भारतीय के साथ बालिका गृह से बाहर निकल आई.

रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश के साथ आश्रम के प्रांगण में स्थित घर में रहती थी. रचना ने टीआई सोलंकी से आने की वजह जाननी चाही तो टीआई ने बताया कि वह जिला कलेक्टर के आदेश पर आश्रम में रहने वाली बच्चियों को वहां से हटा कर रतलाम के वन स्टाफ सेंटर में ले जाने के लिए आए हैं.

रचना और उस के पति ओमप्रकाश ने इस बात का विरोध करना चाहा लेकिन पुलिस के सामने उन की एक नहीं चली. पुलिस ने आश्रम में रह रही करीब 300 बालिकाओं को बसों में बैठाया. इतना ही नहीं टीआई बी.एल. सोलंकी ने रचना भारतीय व ओमप्रकाश को भी हिरासत में ले लिया. इस के बाद वह उन्हें ले कर थाने लौट आए. उन्होंने सभी बालिकाओं को रतलाम के वन स्टाफ सेंटर भेज दिया.

रचना और ओमप्रकाश भारतीय को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की बात जल्द ही पूरे जावरा शहर में फैल गई. पर पुलिस की काररवाई चलती रही. टीआई सोलंकी ने अगले दिन क्षेत्र के 2 और चर्चित व्यक्तियों कुंदन वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सुदेश जैन और सचिव दिलीप बरैया को भी गिरफ्तार कर लिया.

दरअसल इन की गिरफ्तारी की वजह यह थी कि कुटीर आश्रम से 24 जनवरी, 2019 को 5 बालिकाएं बालिका गृह का रोशनदान तोड़ कर फरार हो गई थीं.

आश्रम से बालिकाओं के भागने की सूचना मिलते ही पुलिस और बाल कल्याण समिति सक्रिय हो गई. जिस के चलते ये सभी बालिकाएं शाम को मंदसौर में मिल गईं. बालिकाओं से पूछताछ की गई तो पता चला कि रचना और उस का पति अन्य लोगों के साथ मिल कर इन लड़कियों का शारीरिक शोषण करते थे.

कलेक्टर ने दिए थे जांच के आदेश

यह जानकारी जब रतलाम की कलेक्टर रुचिका चौहान को मिली तो उन्होंने जावरा क्षेत्र के एसडीएम एम.एल. आर्य को संस्था में रह रही दूसरी लड़कियों से पूछताछ  करने के निर्देश दिए. एसडीएम ने आश्रम जा कर वहां रह रही करीब 300 लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने आपबीती एसडीएम साहब को बता दी.

एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट कलेक्टर रुचिका चौधरी को सौंप दी. इस के बाद ही कलेक्टर रुचिका चौहान ने आदेश दिया कि कुटीर बालिका गृह में रह रही सभी बच्चियों को वहां से वन स्टाफ सेंटर रतलाम शिफ्ट कर दिया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

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जिला कलेक्टर के आदेश पर ही पुलिस ने बालिका गृह की पूर्व संचालिका रचना भारतीय तथा उस के पति ओमप्रकाश भारतीय, संस्था के वर्तमान अध्यक्ष और सचिव सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया के खिलाफ भादंवि की धारा 354, 376, 324 एवं बालकों की देखरेख संरक्षण अधिनियम की धारा 75, पोक्सो 5डी, 4, 7/8 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

जांच में पुलिस को पता चला कि रचना भारतीय पूर्व में इस बालिका गृह की संचालिका के पद पर थी. वह अपने पति ओमप्रकाश के साथ बालिका गृह के एक हिस्से में रहती थी. बाद में अपनी राजनैतिक पकड़ के चलते उसे बाल कल्याण समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था.

चूंकि वह एक साथ 2 पदों पर नहीं रह सकती थी, लिहाजा उस ने बालिका गृह की संचालिका का पद छोड़ना जरूरी समझा. यह पद छोड़ने के बाद रचना ने अपने विश्वसनीय सुदेश जैन और दिलीप बरैया को संस्था का अध्यक्ष और सचिव बनवा दिया था. पद छोड़ने के बाद भी रचना अपने पति के साथ इसी आश्रम में रहती थी.

सुदेश जैन और दिलीप बरैया नाम के ही पदाधिकारी थे. बालिका गृह से जुड़े सारे फैसले रचना और उस का पति ही लेते थे.

बहरहाल पुलिस ने दूसरे दिन सभी आरोपियों को न्यायालय में पेश किया जहां से रचना भारतीय को रतलाम एवं ओमप्रकाश भारतीय, सुदेश जैन तथा दिलीप बरैया को जावरा जेल भेज दिया गया.

अदालत में पेश करने से पहले सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया की मौजूदगी में टीआई बी.एल. सोलंकी तथा हुसैन टेकरीजहां के तहसीलदार के सामने आश्रम की सील तोड़ कर दस्तावेजों की जांच की गई. साथ ही लापरवाही बरतने के आरोप में महिला सशक्तिकरण अधिकारी रहे एवं वर्तमान में महिला बाल विकास विभाग के सहायक संचालक रविंद्र मिश्रा को निलंबित कर दिया गया.

इस के अलावा रचना को बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया. बालिका गृह में लड़कियों के साथ किए जाने वाले शोषण की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

कई साल पहले जावरा नगर पालिका के अध्यक्ष हुआ करते थे कुंदनमल भारतीय. ओमप्रकाश भारतीय कुंदनमल का ही बेटा था. जबकि रचना ओमप्रकाश भारतीय की पत्नी थी. कुंदनमल की मृत्यु के बाद सन 2015 में रचना ने कुंदन बेलफेयर सोसाइटी का गठन कर उस के अंतर्गत पिपलौदा रोड पर कुंदन कुटीर नाम से बालिका गृह का संचालन किया.

राजनैतिक पहुंच का उठाया लाभ

रचना और उस के पति की राजनीति में अच्छी पकड़ थी जिस के चलते जल्द ही इस बालिका गृह को शासन से मोटा अनुदान मिलने लगा. जानकारी के अनुसार पिछले 3 साल में ही शासन की तरफ इस बालिका गृह को करीब 38 लाख रुपए की अनुदान राशि मिली थी. सूत्रों की मानें तो इस अनुदान राशि के अलावा रचना प्रदेश भर से काफी बड़ी रकम दान के रूप में बेटोर रही थी.

जो 5 लड़कियां बालिका गृह से भागी थीं, उन्होंने बताया कि हम सभी रचना को मम्मा कहते थे और उस के पति को पापा. लेकिन उन की नीयत लड़कियों के प्रति अच्छी नहीं थी. पापा रोज शराब पीते थे और रचना मम्मा इस दौरान हम में से किसी एक लड़की को शराब के पैग तैयार करने का काम सौंप देती थी. मम्मा खुद भी शराब पीती थी और दूसरे लोग भी रोज आश्रम में आ कर उन दोनों के साथ शराब पीते थे.

रात के समय आश्रम में आने वाली एक महिला भी शराब पीए होती थी. मम्मा एक गुप्त रास्ते से लड़कियों के कमरों में आती थी. रात के खाने में हमें कुछ मिला कर खिलाया जाता था, जिस के बाद हम उठ ही नहीं पाते थे.

यह भी पता चला कि सन 2018 में लड़कियों की शिकायत पर बाल संरक्षण अधिकारी पवन कुमार सिसौदिया ने जांच कर के अपनी रिपोर्ट रतलाम में संबंधित विभाग के 2 अधिकारियों को सौंपी थी. लेकिन उन की जांच रिपोर्ट पर कोई काररवाई नहीं की गई.

शिकायत में बच्चियों ने आरोप लगाए कि रचना मम्मा का व्यवहार काफी खराब है. वह बातबात पर हम लोगों से मारपीट करती हैं. समय पर खाना भी नहीं दिया जाता. लड़कियों ने बताया कि रचना के पति हम लोगों के शरीर पर गलत नीयत से हाथ फेरते थे. मना या विरोध करने पर हमारे साथ मारपीट की जाती थी. वह कभीकभी किचन में आ कर लड़कियों के पैर में हाकी डाल कर उन्हें अपनी तरफ खींच लेते.

बहरहाल अब शासन ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है बल्कि रचना के आश्रम में रहने वाली सभी बच्चियों को रतलाम और उज्जैन के आश्रमों में शिफ्ट कर दिया है, दूसरी तरफ रतलाम कलेक्टर के निर्देश पर पुलिस उन तमाम बच्चियों से संपर्क कर उन के बयान लेने की कोशिश कर रही हैं, जो कभी न कभी रचना के आश्रम में रही थीं.

कुंदन कुटीर बालिका गृह मामले में एक युवती से वीडियो बनवाने के संबंध में करीब 2 महीने से फरार चल रहे नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस से निष्कासित यूसुफ कड़पा को पुलिस ने गिरफ्तार कर भी लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आरोपी को आननफानन में कोर्ट में पेश किया, जहां से कोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया.

इस मामले में पुलिस ने कोर्ट में आरोपी के पुलिस रिमांड की मांग भी नहीं की. पुलिस ने कोर्ट से उसे जेल भेजने का आग्रह किया, लेकिन कोर्ट ने आरोपी के आवेदन पर उसे कोर्ट से ही जमानत पर रिहा कर दिया.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या

सोने की चेन ने बनाया कातिल

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 3

बलवंत के अलग होते ही मिली उर्फ एंजल राय पूरी तरह से आजाद हो गई. वह इंदौर के बड़े बड़े मौल में जाती और वहां बड़े घरों के लड़कों को फांस कर उन्हें खुश करती. बदले में उन से मोटी रकम ऐंठती. इस तरह वह हाईप्रोफाइल कालगर्ल बन गई. धीरेधीरे तमाम लड़के उस के परमानेंट ग्राहक बन गए, जिस से अब उसे मौल के भी चक्कर नहीं लगाने पड़ते थे.

लेकिन छोटी ग्वालटोली में जहां वह रहती थी, वहां उस के ग्राहकों को आनेजाने में असुविधा होती थी, इसलिए उस ने सुखलिया के वीड़ानगर, प्राइम सिटी में एक बढि़या फ्लैट किराए पर ले लिया. अब वह अपने ग्राहकों को अय्याशी के लिए इसी फ्लैट पर बुलाने लगी.

अकेली औरत पर लोग वैसे भी तरहतरह की शंकाएं करते हैं. अगर उस के यहां आनेजाने वालों का तांता लगा हो तो आसपास वालों को अंगुली उठाते देर नहीं लगती. यह बात मिली को पता थी, इसलिए उसे एक ऐसे साथी की जरूरत थी, जो उस के साथ रह सके. उस ने तलाश की तो जल्दी ही उसे एक ऐसा साथी मिल गया. नीमच से नौकरी की तलाश में इंदौर आए नंदकिशोर से उस की मुलाकात हुई तो उस ने उसे अपने साथ रख लिया. इस तरह उसे एक साथी मिल गया.

इस के बाद मिली ने इंदौर के अरबिट मौल में चलने वाले पब में डांसर की नौकरी कर ली. वहां से उसे वेतन तो मिलता ही था, ग्राहक भी आसानी से मिल जाते थे. सतीश ततवादी से भी उस की मुलाकात इसी पब में हुई थी. सतीश इस पब में अक्सर शराब पीने आता था.

मिली के अनुसार सतीश शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था, इसलिए उस की नजरें मिली पर जम गई थीं. मिली को ऐसे लोगों की जरूरत ही रहती थी, इसलिए उस ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. इस के बाद सतीश अकसर मिली के फ्लैट पर जाने लगा, जहां वह मोटी रकम खर्च कर के शराब और शबाब का आनंद लेने लगा.

मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले सतीश ततवादी एमबीए कर के नौकरी की तलाश में इंदौर आया तो वहां उसे सैटिसफैक्शन फर्नीचर कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई थी. सूझबूझ और मेहनत से काम करने की बदौलत सतीश को जल्दी ही ठीकठाक वेतन तो मिलने ही लगा था, कंपनी ने तमाम सुविधाएं भी दे दी थीं.

सतीश को ठीकइाक वेतन मिलने लगा तो सतीश ने इंदौर की सिंगापुर सुपरसिटी जैसी पौश कालोनी में घर खरीद लिया और पूरे परिवार के साथ उसी में रहने लगा. मधुभाषी और मिलनसार होने की वजह से सतीश जल्दी ही मालिकों का ही नहीं, साथ काम करने वाले कर्मचारियों का भी चहेता बन गया था.

सतीश मिली के रूपजाल और अदाओं में कुछ इस तरह उलझा कि अक्सर शाम को उस के फ्लैट पर जाने लगा. यह बात मिली के साथ रहने वाले नंदकिशोर को अच्छी नहीं लगती थी, क्योंकि मिली अब उसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी नजर आ रही थी. वह उस से शादी करना चाहता था. यही वजह थी कि सतीश अब उसे फूटी आंख नहीं सुहाता था. इसलिए वह उस से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगा.

दूसरी ओर मिली को भी नंदकिशोर की सच्चाई का पता चल गया था. इसलिए वह उस से छुटकारा पाना चाहती थी. मिली को कहीं से पता चल गया था कि नंदकिशोर शादीशुदा ही नहीं है, बल्कि 3 बच्चों का बाप भी है. भला ऐसे आदमी से वह कैसे शादी करती. लेकिन उस से पीछा छुड़ाना मिली के लिए इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि वह उस की सारी पोलपट्टी जानता था.

नंदकिशोर को सतीश से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने उस की हत्या का इरादा बना लिया. लेकिन यह काम मिली की मदद के बिना नहीं हो सकता था. इसलिए उस ने अपने मन की बात मिली से कही. इस अपराध  में नंदकिशोर का साथ देने के लिए मिली तैयार हो गई, क्योंकि वह नंदकिशोर से छुटकारा पाना चाहती थी.

उस का सोचना था कि सतीश की हत्या के आरोप में नंदकिशोर जेल चला जाएगा तो उसे अपने आप नंदकिशोर से छुटकारा मिल जाएगा. यही सोच कर उस ने नंदकिशोर के साथ मिल कर सतीश की हत्या की योजना बना डाली.

योजना के अनुसार, 20 अगस्त, 2014 को मिली ने सतीश को फोन कर के अपने घर बुला लिया. सतीश को ऐसे मौके की हमेशा तलाश रहती थी, इसलिए मिली की ओर से दावत मिलते ही वह शराब की बोतल और खानेपीने का सामान ले कर घर में मीटिंग की बात बता कर मिली के घर अय्याशी करने पहुंच गया.

नंदकिशोर को वह पहचानता ही था. मिली ने सतीश को उसे अपना भाई बता रखा था. सतीश के पहुंचते ही शराब की बोतल खुल गई और पीनापिलाना शुरू हो गया. सतीश को नशा चढ़ा तो उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस शैतान को शांत करने के लिए वह मिली से छेड़छाड़ करने लगा.

नंदकिशोर सतीश से वैसे ही नफरत करता था. उस दिन वह उसे खत्म करने की योजना बनाए बैठा था. इसलिए उस ने सतीश को दबोच लिया. योजना के अनुसार उस ने सतीश को ज्यादा शराब पिला कर नशे में धुत कर दिया था, इसलिए वह विरोध करने की स्थिति में भी नहीं था. उस ने पायजामे का नाड़ा सतीश के गले में लपेट कर कसना शुरू कर दिया.

नंदकिशोर सतीश का गला घोंट रहा था तो शातिर मिली अपनी योजना के अनुसार मोबाइल से उस की वीडियो रिकौर्डिंग कर रही थी. सतीश की मौत हो गई तो लाश को ठिकाने लगाने के लिए नंदकिशोर ने उसे कंबल में लेपट कर रस्सी से बांध दिया. इस के बाद लाश को उठा कर नीचे लाने के बजाय उस ने उसे सीढि़यों के पास रख कर पैर से लुढ़का दिया.

मिली ने नंदकिशोर की इस हरकत की भी वीडियो रिकौर्डिंग कर ली थी. मिली ने यह वीडियो रिकौर्डिंग इसलिए की थी कि वह इसे पुलिस को दिखा कर नंदकिशोर को जेल भिजवा देगी.

इस के बाद उन्होंने सतीश की लाश को उसी की वैगनआर कार में रखा और धर्मपुरी (सांवरे क्षेत्र) उज्जैन होते हुए आगे बढ़ गए. लाश उन्होंने नागदा जंक्शन के थाना बिरमाग्राम के गांव डाबरी में एक पुलिया के पास फेंक दी थी. एक टोल नाके पर टैक्स देने की वजह से उन की कार का नंबर नोट हो गया था. इस के बाद उन्होंने कार की दोनों नंबर प्लेटें तोड़ कर फेंक दी थीं.

बिना नंबर की कार से वे सड़क से नहीं जा सकते थे. इसलिए वे जंगल के रास्ते से नीमच पहुंचे. सतीश का पर्स उन्होंने पहले ही निकाल लिया था. पैसे नंदकिशोर ने अपनी जेब में रख लिए. एटीएम तथा पेनकार्ड इंद्रानगर स्थित अपने घर में रख दिए. बाकी के कागज, खाली पर्स, घड़ी और मोबाइल फोन रास्ते में एक नदी में फेंक दिए.

रिमांड के दौरान पुलिस ने नीमच स्थित नंदकिशोर के घर से सतीश का एटीएम और पेनकार्ड बरामद कर लिया था. मिली ने सतीश की हत्या का जो वीडियो रिकौर्डिंग की थी, सुबूत के लिए पुलिस ने उस की सीडी बनवा ली थी. दूसरे को फंसाने के लिए अपराध में साथ देने वाली मिली को शायद यह पता नहीं था कि अपराध में साथ देने वाला भी अपराधी माना जाता है.

पुलिससिया काररवाई पर नजर रखने के लिए नंदकिशोर और मिली रोज अखबार पढ़ते थे. धीरेधीरे उन के पैसे खत्म हो गए तो वे इंदौर पैसे लेने जा रहे थे, तभी पकड़े गए. रिमांड अवधि खत्म होने पर दोनों को दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सतीश के घर वाले उस की मौत से दुखी तो हैं ही, जिस तरह से वह मारा गया, उस से शर्मिंदा भी हैं. सभी अंदर ही अंदर घुट रहे हैं कि आसपड़ोस वालों को कैसे मुंह दिखाएं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 2

नागदा पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि इंदौर से धर्मपुरी, उज्जैन और नीमच हो कर नागदा जंक्शन तक कई टोल नाके पड़ते थे. इन नाकों पर सतीश की वैगनआर का नंबर तो दर्ज था, पर फुटेज साफ नहीं थी. इस इलाके में काफी अफीम पैदा होती है, इसलिए यहां स्मग्लर सक्रिय रहते हैं. ये लोग टोल नाके से बचने के लिए जंगल के रास्तों से निकल जाते हैं. अगर सतीश की कार ऐसे किसी रास्ते से गई होती तो टोल नाके पर उस का नंबर दर्ज नहीं होता.

पुलिस की सब से बड़ी परेशानी यह थी कि उसे सतीश की वैगनआर नहीं मिल रही थी. जबकि इस बात की पूरी संभावना थी कि हत्या के बाद हत्यारों ने उसे कहीं न कहीं जरूर छोड़ा होगा. दूसरे सतीश की हत्या का कारण भी पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था.

29 अगस्त को गणेश चतुर्थी थी. त्योहार की वजह से उस दिन इंदौर के बाजारों में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. त्योहार की ही वजह से पुलिस ने जगहजगह चैकिंग नाके लगा रखे थे. एक नाके से एक वैगनआर गुजरी तो पुलिस ने उसे चैकिंग के लिए रोक लिया. कार में 30 साल के आसपास का एक युवक और 24-25 साल की एक युवती बैठी थी. पुलिस देख कर दोनों सकपका गए. जांच में पता चला कि चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है. ऊपर से कार की आगे और पीछे की दोनों नबर प्लेटें भी गायब थीं.

पूछताछ में जब दोनों ठीक से जवाब नहीं दे सके तो उन्हें थाने ले आया गया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो युवक ने अपना नाम नंदकिशोर और युवती ने अपना नाम मिली उर्फ एंजल राय बताया. वैगनआर कार के गायब होने की जानकारी सभी थानों की पुलिस को थी, इसलिए बिना नंबर की वैगनआर पर सवार नंदकिशोर और मिली से थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने जब उस कार के बारे में पूछा तो उन्होंने बिना किसी हीलाहवाली के बता दिया कि यह कार सतीश ततवादी की है, जिस की हत्या हो चुकी है.

इस के बाद कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने सतीश ततवादी की वैगनआर मिलने की सूचना थाना नागदा पुलिस को दी तो थाना नागदा की एक पुलिस टीम थाना लसूडि़या पहुंची और नंदकिशोर तथा मिली उर्फ एंजल राय को हिरासत में ले कर थाना नागदा ले गई.

थाना नागदा में पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में नंदकिशोर और मिली से सतीश ततवादी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई तो नंदकिशोर ने तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन मिली ने मुसकराते हुए अपना अपराध स्वीकार कर के सतीश की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. मिली द्वारा सुनाई गई सतीश ततवादी की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार थी.

मध्य प्रदेश के बैतूल की रहने वाली मिली के 11 साल की होते होते उस के मातापिता एकएक कर के गुजर गए थे. मातापिता की मौत के बाद उस का ऐसा कोई रिश्तेदार भी नहीं था, जो उसे सहारा देता. इसलिए उसे किसी ने अनाथाश्रम पहुंचा दिया, वहां से वह भोपाल के चाइल्ड केयर सेंटर आ गई.

वहीं से मिली ने पढ़ाई की और डांस सीखा. डांस में उस ने अच्छी तरह महारत हासिल कर ली तो उस ने इसे ही रोजीरोटी का जरिया बनाना चाहा. वह टीवी देखती ही रहती थी. उन दिनों सोनी चैनल पर डांस का रियलटी शो बूगीवूगी आता था. डांस सीखने वालों के बीच यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय था. इस के अलावा अन्य लोग भी इस कार्यक्रम में काफी रुचि लेते थे. खास कर बच्चे इसे बहुत पसंद करते थे. मिली भी डांस सीख रही थी. इसलिए वह भी इस कार्यक्रम को देखती थी.

मिली खूबसूरत और आकर्षक तो थी ही, चंचल और तेजतर्रार भी थी. उस की भी इच्छा बूगीवूगी में भाग लेने की होती थी. यही वजह थी कि उस ने अपने नृत्य के कुछ चित्रों के साथ फार्म भर कर बूगीवूगी में भेज दिया. वह सुंदर भी थी और डांस में पारंगत भी, बूगीबूगी में उस का चयन हो गया. अब तक मिली 18 साल की हो चुकी थी.

वह मुंबई पहुंच गई. बूगीवूगी में उस ने अपना ऐसा जौहर दिखाया कि उस साल की वह ‘विनर’ घोषित की गई.

मिली मुंबई में ही रह कर काम तलाश करने लगी. लेकिन उसे कहीं चांस नहीं मिला. धीरेधीरे पैसे खत्म हो गए और कहीं काम नहीं मिला तो वह इंदौर वापस आ गई. बूगीबूगी का विनर होने पर उसे जो पैसे इनाम में मिले थे, वह मुंबई में ही काम की तलाश में खर्च हो गए थे. अब वह बच्ची भी नहीं रही थी कि चाइल्ड केयर सेंटर में रह लेती. इसलिए इंदौर आ कर सब से पहले उस ने ग्वालटोली मोहल्ले में किराए पर मकान ले कर रहने की व्यवस्था की. इस के बाद गुजरबसर के लिए वह बच्चों तथा लड़कियों को डांस सिखाने लगी. इस काम से उस की ठीकठाक कमाई होने लगी, जिस से वह ठाठ से रहने लगी.

मिली अब तक जवान हो चुकी थी. लेकिन उस का कोई ऐसा अपना नहीं था, जिस से वह अपना सुखदुख बांट सकती. अकेली होने की वजह से कभीकभी उसे घुटन सी होने लगती थी. अब उसे एक ऐसे साथी की जरूरत महसूस हो रही थी, जो उस की भावनाओं को समझे और उस की हर तरह से मदद भी करे. उस की यह तलाश जल्दी ही पूरी हुई. उसे साथी के रूप में बलवंत सिंह तोमर मिल गया. बलवंत अच्छा आदमी था. इसलिए मिली ने उस से प्यार ही नहीं किया, बल्कि उसे जीवनसाथी भी बना लिया.

लेकिन ज्यादा दिनों तक बलवंत सिंह तोमर की मिली से निभ नहीं पाई. इस की वजह यह थी कि मिली की महत्वाकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. डांस कार्यक्रम में भाग लेने की वजह से उस की सोच तो बदल ही गई थी, रहनसहन भी बदल गया था. इसलिए उस के खर्च भी अनापशनाप हो गए थे, जो अब डांस सिखाने से पूरे नहीं हो रहे थे. ऐसे में पैसे कमाने के उस ने अन्य रास्ते खोज लिए. निश्चित था, वे रास्ते ठीक नहीं रहे होंगे, इसलिए बलवंत ने उस से किनारा कर लिया.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 1

इंदौर के निपानिया स्थित ‘सैटिसफैक्शन फर्नीचर’ बहुत बड़ा फर्नीचर शोरूम है. इंदौर के ही लोटस विला, सुपर सिटी निवासी सतीश ततवादी इसी फर्नीचर शोरूम में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर तैनात थे, मृदुभाषी और मिलनसार स्वभाव का होने की वजह से उन के साथ के कर्मचारी उन की बड़ी इज्जत करते थे. उन के परिवार में मातापिता और 2 भाइयों के अलावा पत्नी श्रेया और 14 साल की बेटी ईशा को मिलाकर 7 सदस्य थे. उन का पूरा परिवार एक साथ रहता था.

20 अगस्त को सतीश ततवादी घर पर लंच कर के अपनी कार से शोरूम पर जाने के लिए निकले. जातेजाते उन्होंने पत्नी श्रेया से कहा, ‘‘आज फैक्ट्री में एक मीटिंग है, लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. हो सकता है 10, साढ़े 10 बज जाएं.’’

रात को साढ़े 10 बजे तक सतीश घर नहीं लौटे तो श्रेया ने फोन किया, लेकिन फोन पति के बजाय किसी और ने रिसीव किया. श्रेया की आवाज सुन कर उस ने कहा, ‘‘मैं साहब का पीए मुकाती बोल रहा हूं. साहब अभी बिजी हैं. हम लोग इस वक्त उज्जैन में हैं, बाद में बात करना.’’

श्रेया की बात सुने बिना ही दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. यह बात श्रेया को इसलिए अजीब लगी, क्योंकि सतीश का कोई पीए नहीं था. उन्होंने दोबारा फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद घर वालों ने दर्जनों बार सतीश का नंबर मिलाया, पर वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.

इस से परिवार के सभी लोगों के मन में तरहतरह की शंकाए सिर उठाने लगीं. वजह यह कि न तो सतीश ने उज्जैन जाने के बारे में कुछ बताया था और न कभी वह अपना मोबाइल बंद रखते थे.

रात भर फोन मिलाते रहने के बावजूद सतीश से किसी की बात नहीं हुई. ततवादी परिवार की वह रात आंखोंआंखों में कटी. जैसेतैसे रात गुजरी. सुबह होते ही सतीश के पिता रामकृष्ण ततवादी अपने दोनों बेटों संतोष और संजय को साथ ले कर अपने क्षेत्र के थाना लसूडि़या जा पहुंचे. वहां उन्होंने थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार को सारी बात बता कर सतीश की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया था कि सतीश फैक्ट्री में होने वाली किसी मीटिंग में शामिल होने की बात कह कर घर से निकले थे.

थानाप्रभारी श्री गहरवार ने उन लोगों को यह आश्वासन दे कर घर लौटा दिया कि वह इस मामले की जांच पूरी तत्परता से करेंगे. श्री गहरवार छानबीन के लिए अपनी टीम के साथ फर्नीचर की उस फैक्ट्री में गए. वहां के कर्मचारियों से उन्हें पता चला कि वहां ऐसी कोई मीटिंग थी ही नहीं, साथ ही यह भी कि उस दिन सतीश वहां आए ही नहीं थे. इस का मतलब सतीश झूठ बोल कर घर से निकले थे और उन के साथ कोई घटना घट गई थी.

थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने थाने लौट कर सतीश ततवादी के हुलिए सहित यह सूचना जिले के सभी थानों को भेज दी.

21 अगस्त, 2014 की सुबह थाना बिरलाग्राम के गांव डाबरी का एक आदमी जंगल की ओर गया तो उस ने पुलिया के पास एक लाश पड़ी देखी. लाश कंबल में लिपटी हुई थी. वह व्यक्ति दौड़ादौड़ा थाना बिरलाग्राम गया और यह बात थानाप्रभारी नरेंद्र यादव को बताई.

नरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ जिस समय घटनास्थल पर पहुंचे, उस समय साढ़े 11 बजे थे. सूचना सही थी. मृतक 40-41 साल का हट्टाकट्टा व्यक्ति था. पुलिस ने लाश के आसपास का सारा इलाका छान मारा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. पुलिस ने लाश का पंचनामा बना कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मृतक के शव से पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो पाती. अलबत्ता पहचान के लिए पुलिस ने लाश के फोटो जरूर करा लिए थे. इस के बाद थानाप्रभारी नरेंद्र यादव ने अन्य थानों में पहचान के लिए लाश के फोटो वाट्सएप पर भिजवा दिए.

थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने वाट्सएप पर आया लाश का फोटो देखा तो सतीश के भाई संजय और संतोष को थाने बुला लिया. दोनों भाइयों ने थानाप्रभारी के मोबाइल पर आया लाश का फोटो देखा तो चीखचीख कर रोने लगे. वह उन के भाई सतीश की लाश का फोटो था. थानाप्रभारी ने उन्हें बताया कि वह फोटो जिला नागदा जंक्शन के थाना बिरलाग्राम से आया है. अत: लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें वहीं जाना होगा.

सतीश के पिता रामकृष्ण अपने दोनों बेटों संजय और संतोष को साथ ले कर किराए की कार से थाना बिरलाग्राम जा पहुंचे. वहां से वह पुलिस के साथ नागदा जंक्शन गए. तब तक लाश का पोस्टमार्टम हो चुका था. बापबेटों ने शव को पहचान लिया. लाश सतीश की ही थी. लिखापढ़ी के बाद लाश रामकृष्ण ततवादी को सौंप दी गई. इस के बाद सतीश की हत्या का केस थाना बिरलाग्राम में दर्ज हो गया था.

सतीश के शव को इंदौर लाया गया तो उस के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. पूरे सेक्टर में सन्नाटा छाया था. सतीश की पत्नी श्रेया और बेटी ईशा अर्द्धबेहोशी के आलम में थीं. बहरहाल, उसी दिन सतीश का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सतीश की हत्या की खबर मिलने के बाद थाना बिरलाग्राम और थाना लसूडि़या की पुलिस मिल कर जांचपड़ताल में लग गई. इस के लिए पुलिस ने सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. सतीश ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस की लोकेशन इंदौर जिले के गांव छोटा धर्मपुरी, उज्जैन, नीमच और नागदा की आ रही थी. यानी घटना के दिन वह नंबर कई जगहों पर रहा था.

चूंकि सतीश अपनी वैगनआर कार से गए थे, इसलिए पुलिस ने टोल नाकों से फुटेज निकलवा कर चेक की. लेकिन रात के अंधेरे की वजह से फुटेज में कुछ भी साफ नजर नहीं आया.

सतीश की काल डिटेल्स में 2 आखिरी नंबर संदिग्ध थे. नागदा पुलिस ने साइबर क्राइम सेल उज्जैन से उन नंबरों की जांच कराई तो उन में एक नंबर छोटी ग्वालटोली इंदौर में रहने वाली मिली उर्फ एंजल राय का निकला. थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने मिली उर्फ एंजल राय के पते पर छानबीन की तो वह लापता मिली. मतलब उस ने अपना ठिकाना बदल लिया था. नरेंद्र सिंह ने यह सूचना नागदा पुलिस को दे दी.