ये कैसा बदला : सुनीता ने क्यों की एक मासूम की हत्या?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था. विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला. उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

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वरुण 

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरह तरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

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अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोना कोना देख लिया जाए.

इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

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                           रोती बिलखती वरुण मीणा की मां तृप्ति 

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाश पाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहने सुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरह तरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.

कोचांग गैंगरेप केस : वो 6 घंटे हैवानियत के

15 मई, 2019 की दोपहर को झारखंड के जनपद खूंटी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) राजेश कुमार की अदालत के बाहर भारी भीड़ थी. अदालत परिसर में खाकी वरदी ही वरदी नजर आ रही थीं. परिसर के अंदर और बाहर सशस्त्र पुलिस किसी भी स्थिति से निबटने के लिए तैयार थी. हालात देख कर लग रहा था कि अदालत किसी बड़े केस का फैसला सुनाने वाली है.

सचमुच उस दिन एक बड़े और संगीन जुर्म का फैसला सुनाया जाने वाला था. दरअसल, खूंटी जिले के अड़की थाना क्षेत्र में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी.

इस घटना में दरिंदों ने सोची समझी साजिश के तहत 3 युवकों और 5 युवतियों का अपहरण कर के पहले उन के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और फिर उन के गुप्तांगों को सिगरेट से दाग दिया. इस कांड से न केवल झारखंड की बुनियाद हिल गई थी. बल्कि इस दरिंदगी की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी थी. इसी केस में 6 आरोपियों को सजा सुनाई जानी थी.

दोपहर के करीब 2 बजे न्यायाधीश राजेश कुमार ने अदालत में आ कर न्याय का आसन संभाला. अदालत में सरकारी अधिवक्ता सुशील जायसवाल और बचाव पक्ष के दोनों अधिवक्ता के.बी. सांगा और सुभाशीष सोरेन सावधान मुद्रा में खड़े थे.

न्यायाधीश के सामने दाईं ओर बने कटघरे में 7 आरोपियों स्कौटमैन मेमोरियल मिडिल स्कूल के प्रधानाचार्य फादर अल्फोंस आइंद, छुटभैया नेता जौन जोनास तिडु, बलराम समद, जुनास मुंडा,बांदी समद उर्फ टकला, आशीष लुंगा एवं अजूब सांडी पूर्ती खड़े थे.

दोनों पक्षों के वकीलों ने घटना से संबंधित बहस 8 मई, 2019 को पूरी कर ली थी. बहस के दौरान बचाव पक्ष के वकीलों के.बी. सांगा और सुभाशीष सोरेन अपने मुवक्किलों को बचाने में असफल रहे थे. सरकारी वकील सुशील जायसवाल ने अदालत के सामने कई ठोस सबूत और केस से संबंधित 19 अहम गवाहों को पेश कर के बचाव पक्ष को धूल चटा दी थी.

8 मई को दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद न्यायाधीश राजेश कुमार ने फैसला सुनाने के लिए 15 मई, 2019 की तारीख मुकर्रर की थी. न्यायाधीश ने सातों आरोपियों के विरुद्ध फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘तमाम गवाहों और सबूतों के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि इस गैंगरेप में जौन जोनास तिडु, बलराम समद, जूनास मुंडा, बांदी समद उर्फ टकला, आशीष लुंगा, और अजूब सांडी पूर्ती दोषी पाए गए हैं. एक अभियुक्त को नाबालिग पाया गया है. उस के खिलाफ अनुसंधान जारी है.’’

अपने फैसले को जारी रखते हुए न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘‘फादर अल्फोंस आइंद, जो पहले से जमानत पर थे, उन की जमानत रद्द की जाती है, क्योंकि वह इस केस में मुख्य षडयंत्रकारी साबित हुए हैं. साथ ही 4 अभियुक्तों जौन जोनास तिडु, बलराम समद, आशीष लुंगा और बांदी समद उर्फ टकला का जुर्म साबित हुआ है.

फादर अल्फोंस आइंद था साजिशकर्ता

जौन जोनास तिडु, बांदी समद उर्फ टकला, आशीष लुंगा और बलराम समद जो पत्थरगढ़ी के समर्थक थे, की इस मामले में संलिप्तता पाई गई है.

‘‘इस मामले में 19 लोगों की अहम गवाही दर्ज हुई. स्थितियों के अनुरूप यह मामला रेयरेस्ट औफ रेयर की श्रेणी में आता है. इसलिए अदालत सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाती है. सभी अभियुक्तों को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया जाए.’’

न्यायाधीश राजेश कुमार फैसला सुनाने के बाद न्याय के आसन से उठ कर अपने कक्ष में चले गए. अदालत के आदेश के बाद पुलिस ने सभी दोषियों को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

दिल दहला देने वाली इस लोमहर्षक घटना की बुनियाद फैसला सुनाए जाने के 11 महीने पहले 19 जून, 2018 को पड़ी थी. इसलिए घटनाक्रम जानने के लिए हमें 11 महीने पहले जाना होगा.

झारखंड की राजधानी रांची से 80-90 किलोमीटर दूर ऊंची पहाडि़यों और जंगलों के बीच है जिला खूंटी. इस जिले के कुछ हिस्सों में आदिवासियों के बसेरे हैं. ये आदिवासी अशिक्षा, गरीबी, अज्ञानता के शिकार हैं और आज भी गुलामों जैसी जिंदगी जीते हैं.

खूंटी के एक सामाजिक संगठन आशा किरण की संस्थापिका सिस्टर जेम्मा ओएसयू ने आदिवासियों को अज्ञानता से आजादी दिलाने और मानव तस्करी जैसे घृणित कार्यों के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रखा था. अपने नाम आशा किरण के अनुरूप यह संगठन अच्छा काम कर रहा था.

आशा किरण के युवक और युवतियां जगहजगह नुक्कड़ नाटक कर के जागरूकता का संदेश देते थे. संगठन के जोशीले कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे नुक्कड़ नाटकों से समाज पर गहरा असर हो रहा था. परिणामस्वरूप आदिवासी समाज में काफी बदलाव आने लगा था.

जो मांबाप अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते थे, वे पुरानी दकियानूसी परंपराओं को दरकिनार कर बच्चों को स्कूल भेजने लगे थे. स्कूली बच्चे घने जंगलों के बीच से हो कर कोसों दूर विद्यालय में पढ़ने जाते थे.

बात 19 जून, 2018 की है. जिले के अड़की थानाक्षेत्र के कोचांग स्थित स्टौकमैन मेमोरियल मिडिल स्कूल में सामाजिक संगठन आशा किरण की ओर से सरकारी योजनाओं के प्रचारप्रसार और मानव तस्करी के खिलाफ नुक्कड़ नाटक का आयोजन होना था.

यह आयोजन स्कूल के फादर अल्फोंस आइंद, स्कूल के 2 शिक्षकों मोटाई मुंडू, रौबर्ट हस्सा पूर्ती और 2 महिला शिक्षकों रंजीता किंडो और अनीता नाग की देखरेख में शुरू हुआ. नाटक में आशा किरण की ओर से 3 युवक रोशन, विकास, राजन और 5 युवतियां सीमा, रीना, गीता, बिपाशा और वंदना शामिल थे.

ये कलाकार अपनी कला के माध्यम से सरकारी योजनाओं के बारे में बता रहे थे. इस कार्यक्रम को शुरू हुए करीब एक घंटा बीत चुका था. नाटक के दौरान एक शख्स स्कूल की सिस्टर रंजीता किंडो से मिला. उस ने कहा कि वह कोचांग के बुरुडीहा गांव का मुखिया है. उसे उन का कार्यक्रम पसंद है और वह चाहता है कि बुरुडीह में भी ऐसा कार्यक्रम कराया जाए.

सिस्टर रंजीता किंडो ने पहले तो मना कर दिया, फिर कुछ सोच कर कहा कि इस की इजाजत फादर अल्फोंस आइंद से लेनी पड़ेगी. अगर वह कलाकारों को ले जाने की परमिशन दे देते हैं तो ये लोग वहां जा सकते हैं.

उस शख्स ने सिस्टर रंजीता से कहा कि वह उसे फादर अल्फोंस आइंद से मिला दे. रंजीता उसे ले कर फादर के दफ्तर पहुंची, जो स्कूल के पीछे था. उस शख्स के साथ 3 और भी युवक थे. जिन की उम्र 25 से 35 साल के बीच रही होगी. ये चारों युवक मोटरसाइकिल से आए थे.

नुक्कड़ नाटक बना मुसीबत

रंजीता किंडो वहां से मंच की ओर लौट आई. नाटक खत्म हो चुका था और कलाकार वापस लौटने की तैयारी करने लगे थे. तभी फादर अल्फोंस ने सिस्टर अनीता नाग को भेज कर आठों कलाकारों को अपने औफिस में बुला लिया.

फादर अल्फोंस ने एक व्यक्ति की ओर इशारा कर के कलाकारों से कहा कि ये कोचांग के मुखिया हैं और बुरुडीह गांव में नुक्कड़ नाटक कराना चाहते हैं. 2 घंटे की बात है. आप सब वहां जा कर नाटक कर दें. नाटक खत्म होते ही मुखियाजी अपने आदमियों के साथ आप सभी को सम्मान के साथ यहां पहुंचा देंगे.

फादर अल्फोंस आइंद की बात सुन कर सभी कलाकारों ने उन युवकों के साथ जाने से मना कर दिया. उन युवकों ने सिस्टर रंजीता किंडो और सिस्टर अनीता नाग को भी साथ चलने के लिए कहा था. लेकिन फादर ने यह कह कर दोनों सिस्टर्स को उन के साथ भेजने से मना कर दिया कि वे नन हैं, इसलिए वहां नहीं जा सकतीं.

कलाकारों के मना करने पर मोटर साइकिलों पर आए चारों व्यक्ति जोरजबरदस्ती पर उतर आए. उन्होंने बंदूक की नोंक पर आठों कलाकारों को आशा किरण के वाहन में बैठा लिया और बुरुडीह की ओर चलने को कहा. वाहन के पीछेपीछे चारों युवक 3 मोटरसाइकिलों पर चल रहे थे.

आशा किरण के आठों कलाकार रोशन, विकास, राजन और 5 युवतियां सीमा, रीना, गीता, बिपाशा और वंदना को बुरुडीह गए करीब 6 घंटे बीत गए थे, शाम ढलने वाली थी. लेकिन वे स्कूल लौट कर नहीं आए थे.

फादर अल्फोंस को उन की चिंता हो रही थी. थोड़ी देर बाद यानी शाम साढ़े 6 बजे आशा किरण के वाहन ने स्कूल में प्रवेश किया तो उसे देख कर फादर की जान में जान आई. क्योंकि सारे कलाकार उन्हीं की जिम्मेदारी पर बुरुडीह गए थे.

वाहन स्कूल परिसर के बीच खड़ा कर के चालक तेजी से मुख्यद्वार से बाहर की ओर भाग गया. यह देख कर फादर आइंद को कुछ शक हुआ. उन्होंने वाहन के पास जा कर उस के भीतर झांका. वाहन में आठों कलाकार मरणासन्न स्थिति में पड़े थे. उनके कपडे़ फटे हुए थे. शरीर पर जगहजगह चोट के निशान थे.

फादर अल्फोंस ने खेला खेल

लड़कों और लड़कियों की हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन के साथ कुछ बहुत बुरा हुआ था. वे इस स्थिति में नहीं थे कि कुछ बोल पाते. फादर के बहुत कुरेदने पर लड़कों ने जो आपबीती बताई, उसे सुन कर फादर के रोंगटे खड़े हो गए.

फादर अल्फोंस आइंद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. इलाके में फादर का बहुत दबदबा था. राजनीति के गलियारों में ऊंची पहुंच थी. इसी का फायदा उठाते हुए फादर आइंद ने आठों कलाकारों को धमकाया कि जो होना था, सो हो गया. यह बात तुम सब के अलावा किसी को पता नहीं चलनी चाहिए. अन्यथा इस का बहुत बुरा परिणाम होगा.

फादर ने कहा तुम्हारे मुंह खोलने पर तुम्हारे मांबाप की हत्या भी हो सकती है. फादर के धमकाने से आठों कलाकार बुरी तरह डर गए. वे लोग इतना डर गए कि अपने साथ हुई घटना के बारे में अपने मांबाप तक को नहीं बताया.

आठों कलाकारों के साथ घटना घटे 24 घंटे बीत गए थे. खूंटी की रहने वाली सीमा को भीतर ही भीतर बुरी तरह घुटन महसूस हो रही थी. उन लोगों द्वारा दी गई यातना उस से बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने अपने मांबाप से आपबीती सुना दी और फफक फफक कर रोने लगी.

बेटी के साथ हुई घटना को मांबाप ने सुना तो सन्न रह गए. बात कोई छोटीमोटी नहीं थी. बेटी की मानमर्यादा को तारतार कर के उस के गुप्तांगों को सिगरेट से जलाया गया था. उन दरिंदों ने यातना की सारी सीमाएं लांघ दी थीं. सीमा और उस के बाकी साथियों के साथ क्या क्या हुआ था, उस ने मांबाप को पूरी बात विस्तार से बता दी.

दरअसल, बीते 19 जून को खुद को बुरुडीह का मुखिया बता कर जो युवक गांव में नुक्कड़ नाटक कराने की बात कह कर आठों कलाकारों को अपने साथ ले गया था, वह उन्हें गांव न ले जा कर एक घने जंगल में ले गया था. वाहन चला रहे आशा किरण संगठन के चालक संजय शर्मा को मारपीट कर बीच रास्ते में उतार दिया गया था.

गाड़ी के पीछे चल रहे मोटरसाइकिल सवारों में से एक नीचे उतरा और संजय की जगह ड्राइविंग सीट पर सवार हो कर वाहन चलाने लगा. वे लोग जिस जंगल के बीच वाहन को ले गए, वहां पहले से ही कई लोग मौजूद थे. उन के पास खतरनाक हथियार थे.

मुखिया ने सभी युवक और युवतियों को वाहन से निकलने का आदेश दिया. फरमान जारी होते ही सभी एकएक कर के वाहन से नीचे उतर आए और एक कतार में खडे़ हो गए. उन के कतार में खड़े होते ही हथियारबंद युवकों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया.

उन लोगों के हाथों में हथियार देख कर आठों कलाकार कांपने लगे. मुखिया आगे बढ़ा और पांचों युवतियों में से सीमा के नजदीक पहुंचा. पहले तो उस ने सीमा को खा जाने वाली नजरों से घूरा, फिर एकाएक उस के बालों को अपनी मुट्ठी में भर कर खींचा. सीमा दर्द के मारे बिलबिला उठी. वह चिल्लाया, ‘‘हरामजादी कुतिया, और चिल्ला.’’

मुखिया की आंखों से क्रोध के अंगारे बरसने लगे, ‘‘तुम्हारा चीखना चिल्लाना सुन कर मेरे दिल को सुकून मिला.’’

‘‘पर आप हो कौन?’’ सीमा ने साहस जुटा कर सवाल किया, ‘‘और इस तरह हमारे साथ जंगली जानवरों जैसा व्यवहार क्यों कर रहे हो? आखिर हम ने किया क्या है?’’

‘‘बहुत नाटक करती है हरामजादी और मुझ से पूछती है कि तेरा दोष क्या है?’’ मुखिया दांत भींचते हुए बोला.

‘‘लेकिन हमारे नाटक से आप का क्या संबंध है?’’

‘‘है. तुम्हारे नाटक करने से हमारा बहुत गहरा संबंध है. तुम जो नाटक कर के समाज के लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हो, वही तुम्हारा सब से बड़ा दोष है. तुम्हें और तुम्हारे साथियों को इस दोष की ऐसी सजा दी जाएगी, जो जीवन भर नासूर बन कर तुम्हारे जमीर को चुभेगी.’’

‘‘प्लीज हमें छोड़ दीजिए, हमें हमारे घर जाने दीजिए.’’ सीमा दोनों हाथ जोड़ कर उस के सामने गिड़गिड़ाई, ‘‘अगर हमारे नाटक करने से आप को परेशानी है तो आज के बाद हम नाटक नहीं करेंगे. प्लीज, हमें छोड़ दीजिए.’’

‘‘हम तुम्हें और तुम्हारे बाकी साथियों को छोड़ भी देंगे, घर भी जाने देंगे लेकिन सजा देने के बाद, समझी?’’ इतना कह कर मुखिया ने उस के बाल छोड़ दिए. फौरी तौर पर सीमा को थोड़ी राहत मिली.

दरिंदगी की इंतहा

सीमा को यातना देते देख बाकी साथियों की सांस गले में अटक गई थी. उन के मुंह से एक बोल तक नहीं फूटा. इस के बाद मुखिया ने अपने साथियों को इशारा किया.

उस का इशारा पाते ही 5 युवक, जिस में मुखिया भी शामिल था, पांचों लड़कियों को खींच कर वहां से थोड़ी दूर जंगल के भीतर ले गए और एकएक कर के उन के साथ अपना मुंह काला किया. उन के साथ एक युवक और भी था, जो अपने और लड़कियों के मोबाइल से दुष्कर्म के समय की वीडियो बना रहा था.

इन दरिंदों का जब इतने पर भी दिल नहीं भरा तो उन्होंने उन के गुप्तांगों को सिगरेट से दाग दिया. सिगरेट की जलन से वे बुरी तरह बिलबिला उठीं. वे दरिंदों के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांग रही थीं कि वीडियो न बनाएं लेकिन उन हैवानों पर उन की याचनाओं का कोई असर नहीं हुआ.

दरिंदे सिगरेट से गुप्तांग के जलाए जाने का भी नजदीक से वीडियो बना रहे थे. हैवानों ने उन के साथ कई बार अपना मुंह काला किया. इतना ही नहीं, उन्होंने लड़कों को भी नहीं छोड़ा. लड़कों के साथ भी अप्राकृतिक दुष्कर्म किया गया. इतना ही उन्हें अपना पेशाब  पिलाया और इस कृत्य की भी वीडियो बनाई.

उन नरपिशाचों ने 6 घंटों तक आठों युवकयुवतियों के साथ यातनाओं का घिनौना खेल खेला. जब शाम ढलने लगी तो सभी युवकयुवतियों को उन्हीं के वाहन में डाल कर स्कूल पहुंचा दिया गया. स्कूल पहुंच कर उन्होंने फादर अल्फोंस आइंद से आपबीती सुनाई. लेकिन फादर आइंद ने मदद करने की बजाए उन्हें डराधमका कर चुप करा दिया.

बहरहाल, सीमा की दिलेरी से दिल दहला देने वाली घटना सामने आई तो उस के मांबाप ने आशा किरण की संस्थापिका जेम्मा ओएसयू को पूरी बात बताई, जिन की जिम्मेदारी पर बच्चियां नुक्कड़ नाटक करने गई थीं. बच्चियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी संगठन की थी, लेकिन उन की सुरक्षा नहीं की गई थी.

सिस्टर जेम्मा ने दिल दहला देने वाली घटना सुनी तो भौचक रह गईं. उन्हें ताज्जुब तो इस बात पर हो रहा था कि 24 घंटे बीत जाने के बाद भी मामला पुलिस तक नहीं पहुंचा, बल्कि उसे दबा दिया गया था. लेकिन वे खुद चुप बैठने वालों में से नहीं थीं.

21 जून, 2018 की दोपहर को सिस्टर जेम्मा अड़की थाने पहुंचीं और पुलिस को घटना की लिखित तहरीर दी. तहरीर पढ़ कर एसओ विपिन सिंह के होश उड़ गए. इतनी बड़ी और शर्मनाक घटना की पुलिस को सूचना तक नहीं मिली थी.

सिस्टर जेम्मा की तहरीर पर आननफानन में अड़की पुलिस ने अज्ञात बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. एसओ विपिन सिंह जानते थे, जेम्मा कोई ऐसीवैसी महिला नहीं हैं, उन की पहुंच ऊपर तक है. सो उन्होंने त्वरित काररवाई की.

अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंवि की धारा 341, 342, 323, 363, 365, 328, 506, 201, 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होते ही इस घटना की जानकारी पूरे जिले में फैल गई. यह बात जब शहर के एसपी अश्विनी कुमार सिन्हा तक पहुंची तो आननफानन में वे अड़की थाना पहुंचे और मामले की पूरी जानकारी ली.

घटना छोटीमोटी नहीं थी. साथ ही मानवाधिकार से भी जुड़ी हुई थी. एसपी अश्विनी ने अपनी गरदन बचाते हुए यह सूचना आईजी नवीन कुमार और डीआईजी अमोल वी. होमकर को दे दी. हकीकत सुन कर पुलिस अधिकारी सकते में आ गए. उसी दिन शाम होतेहोते यह मामला पुलिस महानिदेशक डी.के. पांडेय, एडीजी आर.के. मल्लिक से होते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास तक जा पहुंचा.

22 जून को मुख्यमंत्री रघुबर दास ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख डी.के. पांडेय को अपने औफिस बुला कर उन के साथ आपात बैठक की. बैठक में उन्होंने मामले की गहन जांच के आदेश दिए और साजिश का परदाफाश करने को कहा. यही नहीं, उन्होंने दोषियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी सुनिश्चित करने के भी आदेश दिए.

मुख्यमंत्री के आदेश के बाद डीजीपी डी.के. पांडेय ने आईजी नवीन कुमार को निर्देश दिया कि अविलंब सभी पीडि़तों की सुरक्षा बढ़ा दी जाए और उन से आरोपियों के बारे में पूछताछ की जाए. उन से जानकारी जुटा कर आरोपियों के स्कैच बनवाए जाएं.

आईजी नवीन कुमार का फरमान जारी होते ही एसपी अश्विनी कुमार ने आठों पीडि़तों को पूछताछ के लिए सुरक्षा घेरे में ले लिया. उन के रहने की व्यवस्था थाना अड़की में की गई. सुरक्षा की दृष्टि से उन से किसी की भी बात कराने पर पाबंदी लगा दी गई थी, ऐसा इसलिए किया गया था कि इस मामले की जानकारी बाहर न जा सके.

थाने में हुई पीडि़तों से पूछताछ के आधार पर 3 आरोपियों के स्कैच बनवा कर शहर में जगहजगह चस्पा करा दिए गए. उन पर ईनाम भी घोषित किया गया. उस के बाद सभी पीडि़तों का चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. मैडिकल रिपोर्ट में उन सभी के साथ दुष्कर्म की पुष्टि हुई.

खैर, 5 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस को कोई खास सफलता नहीं मिली. लेकिन छठे दिन अचानक ही पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिल गई. शहर में लगाए गए पोस्टरों में से स्कैच वाले 2 युवकों की पहचान हो गई. दोनों आरोपियों के नाम अजूब सांडी पूर्ती और आशीष लुंगा थे. वे खूंटी जिले के पश्चिम सिंहभूम गांव के रहने वाले थे.

पुलिस को किस का डर था

पुलिस ने दोनों आरोपियों को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए अड़की थाने ले आई.

थाने ला कर पुलिस ने जब अजूब सांडी और आशीष लुंगा से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उन्होंने अपने साथियों के नाम भी बता दिए.

घटना में इन के अलावा पत्थलगढ़ी समुदाय का मुखिया जौन जोनास तिडु, बलराम समद, बांदी समद उर्फ टकला और जुनास मुंडा के अलावा पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट औफ इंडिया (उग्रवादी संगठन) के लोग शामिल थे.

अजूब सांडी और आशीष लुंगा की निशानदेही पर उसी रात चारों साथियों को पश्चिम सिंहभूम से गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन उन्होंने अपने जुर्म कबूलने से इनकार कर दिया.

इस पर पुलिस ने इन चारों और पहले गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों की अलग कमरे में बैठे पीडि़तों के सामने परेड कराई तो पीडि़तों ने आरोपियों को पहचान लिया. ये वही दरिंदे थे, जिन्होंने 19 जून को उन्हें 6 घंटे तक मौत से बदतर यातनाएं दी थीं.

पीडि़तों द्वारा शिनाख्त किए जाने के बाद पुलिस ने चारों आरोपियों जौन जोनास तिडु, बलराम समद, बांदी समद उर्फ टकला और जुनास मुंडा से अलगअलग कड़ाई से पूछताछ की तो चारों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. ये लोग ही लड़के लड़कियों को स्कूल से जबरन अगवा कर के ले गए थे

इन लोगों ने उन के साथ बदले की भावना से बलात्कार किया था ताकि भविष्य में फिर कोई उन के और उन के उसूलों के खिलाफ न जा सके. यानि गुलामों सी जिंदगी जी रहे आदिवासियों को उन के अधिकारों का पाठ पढ़ाने की कोशिश न करे.

सामूहिक दुष्कर्म के सभी आरोपियों की गिरफ्तारी की सूचना मिलने पर एडीजी आर.के. मल्लिक, आईजी नवीन कुमार, डीआईजी अमोल वी. होमकर को मिली, तो वे भी थाने आ गए.

एडीजी आर.के. मल्लिक शहर में रह कर घटना की पलपल की मौनिटरिंग कर रहे थे और पूरी जानकारी पुलिस प्रमुख डी.के. पांडेय और मुख्यमंत्री रघुबर दास को दे रहे थे. पुलिसिया जांचपड़ताल में पूरी घटना के पीछे स्कौटमैन मेमोरियल मिडिल स्कूल के फादर अल्फोंस आइंद द्वारा रची गई साजिश का परदाफाश हुआ.

आरोपियों से की गई पूछताछ, पीडि़तों के मजिस्ट्रैट के समक्ष दिए गए बयानों और मौके से जुटाए गए साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने घटना के मुख्य साजिशकर्ता फादर अल्फोंस आइंद को 27 जून को स्कूल परिसर से गिरफ्तार कर लिया.

फादर अल्फोंस आइंद के गिरफ्तार होते ही क्रिश्चियन मिशनरी में खलबली मच गई. ईसाई समुदाय के लोग पुलिस का विरोध करने लगे तो विवश हो कर अगले दिन एडीजी आर.के. मल्लिक को प्रैस कौन्फ्रैंस करनी पड़ी.

एडीजी आर.के. मल्लिक ने प्रैसवार्ता के दौरान पत्रकारों को बताया कि खूंटी में घटी घटना में पत्थलगढ़ी के नेता जौन जोनास तिडु और अन्य अपराधी शामिल थे.

उन्होंने दावा किया कि अपराधी 5 युवतियों और उन के 3 पुरुष साथियों को उन्हीं की गाड़ी में जबरदस्ती बैठा कर 7-8 किलोमीटर दूर छोटाली के जंगल में ले गए थे. वहां पहले से ही पीएलएफआई समूह के नक्सली मौजूद थे. इन लोगों ने नुक्कड़ नाटक करने वाले समूह को सबक सिखाने के लिए उन के साथ सुनियोजित तरीके से बलात्कार किया.

मल्लिक ने आगे बताया कि पुलिस ने पश्चिम सिंहभूम के रहने वाले अजूब सांडी पूर्ती और आशीष लुंगा को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार दोनों अपराधियों ने अपना अपराध कबूल लिया और पीडि़त युवतियों के समक्ष उन की परेड करा कर उन की पहचान भी करा ली गई.

जांच के दौरान पाया गया कि खूंटी में हुई सामूहिक बलात्कार की इस घटना में कम से कम 7 लोगों ने 5 युवतियों का अपहरण कर उन के साथ बलात्कार किया था. साथ ही उन के 3 पुरुष सहकर्मियों के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म भी किया था. आरोपियों ने इस पूरे कृत्य की वीडियो बना कर उसे सोशल मीडिया पर भी डाल दिया था.

प्रैस कौन्फ्रैंस के बाद पुलिस ने फादर अल्फोंस आइंद को अदालत के सामने पेश किया, जहां से अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

बहरहाल, आशा किरण संगठन समाज को जागरूक करने के लिए समय समय पर सरकारी योजनाओं के बारे में बताने के लिए नुक्कड़ नाटक कराती रहती थी. आशा किरण द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले ये नाटक पत्थलगड़ी के कोचांग इलाके के छुटभैये नेता जौन जोनास तिडु को पसंद नहीं आ रहे थे. उसे लगता था कि उन के द्वारा किए जाने वाले नुक्कड़ नाटक पत्थलगढ़ी समाज के खिलाफ हैं.

उन नाटकों में काम करने वाले लड़के और लड़कियां उन्हीं के समुदाय के थे. जोनास ने लड़कियों से मना किया था कि तुम सब ऐसे नाटकों में भाग मत लिया करो, जिस से हमारे समाज को नुकसान पहुंचे. लेकिन लड़कियों ने जोनास की बात मानने से साफ इनकार कर दिया था.

पूरे कृत्य का मास्टरमाइंड था जोनास तिडु

जोनास तिडु ने लड़कियों से बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा. छुटभैया नेता जोनास तिडु का जो चेहरा सब के सामने था, उस के पीछे एक और चेहरा छिपा था. उस का संबंध झारखंड के प्रतिबंधित कट्टर उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट औफ इंडिया से था. उग्रवादी संगठन के साथ मिल कर वह समाज विरोधी गतिविधियों में संलिप्त था.

खैर, जिस मौके की तलाश में जोनास तिडु जुटा था, आखिरकार वह मौका उसे मिल ही गया. जोनास तिडु को पता चला था कि फादर अल्फोंस आइंद के स्कूल में 19 जून को आशा किरण की लड़कियां नुक्कड़ नाटक करने वाली हैं.

उस से 2 दिन पहले जोनास तिडु अपने ग्रुप के साथियों बलराम समद, अजूब सांडी पूर्ती, बांदी समद उर्फ टकला, जुनास मुंडा और आशीष लुंगा के साथ स्कूल जा कर फादर आइंद से मिला. फादर आइंद जानता था कि जोनास अपराधी प्रवृत्ति का इंसान है, अगर उस की बात नहीं मानी तो वह कुछ भी कर सकता है.

योजना के अनुसार, जौन जोनास तिडु ने अपने साथ उग्रवादी संगठन पीएलएफआई के कई साथियों को भी मिला लिया था. लड़कियों के साथ क्या करना है, इस की भी रूपरेखा तैयार कर ली गई.

19 जून को आशा किरण के लड़के और लड़कियां जब फादर आइंद के स्कूल में नाटक करने पहुंचे तो फादर ने इस की सूचना जौन जोनास को दे दी. सूचना मिलते ही दिन के करीब 12 बजे जौन जोनास तिडु अपने 3 साथियों बलराम समद, अजूब सांडी पूर्ति और आशीष लुंगा के साथ 3 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर स्कूल पहुंच गया. उस समय नाटक समाप्त होने वाला था.

जौन जोनास नाटक मंच के पास मौजूद सिस्टर रंजीता किंडो से मिला और अपने इलाके बुरुडीह में नाटक कराने की इच्छा जाहिर की. रंजीता ने उसे फादर से मिला दिया. सिस्टर रंजीता और सिस्टर अनीता नाग को देख कर उस का दिल दोनों ननों पर आ गया था.

जब वह फादर के पास पहुंचा, तो फादर समझ गए कि कोई बड़ा अनर्थ होने वाला है. जोनास ने जब नाटक मंडली को अपने इलाके में ले जाने की बात कही तो वह फौरन तैयार हो गए.

नाटक मंडली के 3 लड़के और 5 लड़कियों के अलावा जब उस ने दोनों ननों सिस्टर रंजीता किंडो और अनीता नाग को भेजने के लिए कहा तो फादर ने यह कह कर मना कर दिया कि वे नन हैं और हमारे विद्यालय की हैं.

जोनास फादर की बात मान गया. इस पर नाटक मंडली के सभी कलाकारों ने विरोध किया तो जोनास और उस के साथी आठों को जबरन अपहरण कर के उन्हीं के वाहन में बिठा कर ले गए. ये लोग स्कूल से 7-8 किलोमीटर दूर जंगल में पहुंचे, जहां पहले से पीएलएफआई के नक्सलियों के साथ उन के अन्य साथी मौजूद थे. आगे क्या हुआ, ऊपर कहानी में बताया जा चुका है.

खूंटी में हुए गैंगरेप की घटना के करीब ढाई महीने बाद मानवाधिकारों के हनन के मामले की जांच के लिए 17-18 अगस्त, 2018 को डब्ल्यूएसएस और सीडीआरओ की 10 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम फैक्ट फाइंडिंग के लिए स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ खूंटी गई.

टीम ने अपनी जांच के बाद बताया कि पुलिस को गैंगरेप की घटना की जानकारी तो मिली, लेकिन एफआईआर से यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें घटना की जानकारी कहां से मिली.

फैक्ट फाइंडिंग टीम को पुलिस अधिकारियों से पूछताछ करने पर पता चला कि महिला थाने को भी घटना की जानकारी एसपी औफिस से मिली थी. एसपी से इस के बारे में पूछने पर उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. 20 जून की रात से ही पुलिस ने पीडि़तों से संपर्क साधने की कोशिश की पर वे पीडि़तों तक 21 जून को पहुंच पाई.

जांच टीम ने आगे बताया कि गैंगरेप की 5 पीडि़ताओं को पुलिस द्वारा उन की सुरक्षा करने के नाम पर गैरकानूनी रूप से 3 हफ्ते तक हिरासत में रखा गया. पुलिस की हिरासत में 3 हफ्ते तक उन्हें किसी से मिलने तक नहीं दिया जा रहा था. केवल एनसीडब्ल्यू की टीम उन से मिल पाई थी.

एक पीडि़ता के परिजनों ने बताया कि उन्हें भी पीडि़ता से घटना के 2-3 दिन बाद थाने में पुलिस वालों की मौजूदगी में केवल 5-10 मिनट के लिए मिलने दिया गया था. प्रशासन की इस काररवाई को एसपी अश्विनी कुमार सिन्हा ने दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए सही बताया.

मुख्यमंत्री रघुबर दास के आदेश पर दिल दहला देने वाले खूंटी गैंगरेप कांड की रोजाना सुनवाई शुरू हुई. घटना में लिप्त सातों आरोपी जेल में बंद थे. घटना के करीब 6 महीने बाद पटना हाईकोर्ट से फादर अल्फोंस आइंद को जमानत मिल गई थी. लेकिन अदालत ने उसे शहर छोड़ कर कहीं भी जाने पर पाबंदी लगा कर उस का पासपोर्ट जब्त कर लिया था.

7 मई, 2019 को खूंटी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) राजेश कुमार की अदालत ने 4 आरोपियों के खिलाफ चार्ज फ्रेम किया. कोर्ट ने फादर अल्फोंस को षडयंत्रकारी मानते हुए उस की जमानत रद्द कर दी. उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. बाद में इसी कोर्ट ने 15 मई, 2019 को सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

—कथा में रोशन, विकास, राजन, सीमा, रीना, गीता, बिपाशा और वंदना परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कलम और खाकी वरदी की साजिश

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कैंट क्षेत्र में एक ऐतिहासिक और पौश कालोनी है, जिसे राम प्रसाद बिस्मिल पार्क के नाम से जाना जाता है. अमर शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल का इस कालोनी से गहरा संबंध था. उन्होंने यहीं छिप कर अंग्रेजों से लोहा लिया था.

इस वीआईपी कालोनी में विभिन्न रोगों के कई विख्यात चिकित्सकों के अपने निजी नर्सिंगहोम हैं. इसी पौश कालोनी में मनोरोगियों के पूर्वांचल के जानेमाने चिकित्सक 65 वर्षीय रामशरण दास उर्फ रामशरण श्रीवास्तव रहते हैं. उन का आवास और नर्सिंगहोम दोनों ही बिस्मिल पार्क रोड पर स्थित हैं.

रोज की तरह 16 मई, 2019 की सुबह निर्धारित समय पर डा. रामशरण दास अपने क्लीनिक पर जा कर बैठे और मरीजों को देखने लगे. 4 घंटे मरीजों को देखने के बाद दोपहर करीब 2 बजे वह लंच करने घर जाने के लिए  उठे ही थे कि उन के मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने मोबाइल के स्क्रीन पर डिस्पले हो रहे नंबर को ध्यान को देखा.

नंबर किसी अपरिचित का था. उन्होंने काल रिसीव नहीं की. फोन कमीज की जेब में रख कर वह घर की ओर बढ़ गए. उन्होंने सोचा कोई परिचित होगा तो दोबारा काल करेगा. क्लीनिक से निकल कर जैसे ही वह घर की तरफ बढे़ तभी दोबारा फोन की घंटी बजने लगी.

डा. रामशरण दास ने कमीज की जेब से फोन निकाल कर देखा तो उस पर डिस्पले हो रहा नंबर पहले वाला ही था. उन्होंने काल रिसीव कर हैलो कहा तो दूसरी ओर से रोबीली सी आवाज आई, ‘‘क्या मैं डा. रामशरण श्रीवास्तव से बात कर रहा हूं?’’

‘‘हां, मैं डा. रामशरण श्रीवास्तव ही बोल रहा हूं.’’ अपना नाम सुन कर वे चौंके. दरअसल, लोग डाक्टर को रामशरण दास के नाम से जानते थे. लेकिन फोन करने वाले ने उन्हें रामशरण श्रीवास्तव कह कर संबोधित किया तो वह चौंके, क्योंकि ये नाम उन के करीबी ही जानते थे. उन्होंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस चौकी से चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह बोल रहा हूं.’’ फोन करने वाले ने अपना परिचय दिया.

‘‘जी, बताइए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं.’’ परिचय जानने के बाद डा. रामशरण ने सम्मानपूर्वक सवाल किया.

‘‘डाक्टर साहब, आप शाम को ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस चौकी पर आ कर मुझ से मिल लीजिए. ज्योति सिंह नाम की एक महिला ने आप के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है.’’ यह सुन कर डाक्टर दास हतप्रभ रह गए. उन्होंने बुझे मन से पूछा, ‘‘महिला ने मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन मैं तो ऐसी किसी महिला को नहीं जानता जिसे मुझ से कोई शिकायत हो.’’

‘‘शाम को जब आप चौकी पर आएंगे तो पता चल जाएगा.’’ इतना कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

एक पल के लिए डा. रामशरण दास को ये बात मजाक लगी. उन्होंने सोचा कि किसी परिचित को उन का मोबाइल नंबर मिल गया  होगा और वह मजाक कर रहा होगा. लेकिन मन ही मन वे परेशान भी थे.

आखिर कौन ऐसी महिला है जिस ने उन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंचे और जल्दी ही लंच कर के क्लीनिक लौट आए. उन का घर नर्सिंगहोम परिसर में द्वितीय तल पर था.

उन के मन में बारबार फोन करने वाले व्यक्ति की बातें गूंज रही थीं. क्लीनिक आने के बाद वे कुछ देर वहां बैठे और फिर सच्चाई जानने के लिए शाम 6 बजे के करीब ड्राइवर को ले कर कार से ट्रांसपोर्टनगर चौकी जा पहुंचे.

चौकी पहुंच कर उन्होंने पहरे पर तैनात संतरी से चौकी प्रभारी शिवप्रकाश सिंह से मिलने की बात कही. संतरी ने उन्हें चौकी प्रभारी शिवप्रकाश सिंह से मिलवा दिया. खाकी वरदी पहने शिवप्रकाश सिंह रिवाल्विंग चेयर पर बैठे थे. डा. रामशरण दास ने उन्हें अपना परिचय दिया तो उन्होंने डाक्टर दास का गर्मजोशी से स्वागत किया. डाक्टर सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठ गए.

चौकी इंचार्ज का यह एटिट्यूड देख कर डा. रामशरण दास को थोड़ा अजीब महसूस हुआ. फिर भी उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया था. उन से थोड़ी देर इधरउधर की बात करने के बाद शिव प्रकाश उन्हें ले कर विजिटर रूम में चले गए. कमरे में 2 अलगअलग कुरसियां पड़ी थीं. एक कुरसी पर चौकी इंचार्ज खुद बैठ गए और दूसरी पर डाक्टर दास.

शिवप्रकाश ने एक फाइल से शिकायती पत्र निकाला और डाक्टर की ओर बढ़ा दिया. शिकायती पत्र किसी ज्योति सिंह नाम की युवती ने दिया था. उस में लिखा था कि 6 मार्च, 2019 की शाम को वह डाक्टर दास के क्लीनिक पर गई थी. वह अंतिम मरीज थी और क्लीनिक में सन्नाटा था.

रात हो गई थी. डाक्टर दास ने कहा कि रात में अकेली कैसे जाओगी, मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगा. उन्होंने उसे कार में बैठाया और ट्रांसपोर्टनगर स्थित अमरुतानी (अमरुद का बगीचा) ले गए. जहां उन्होंने उस के साथ रेप किया. चीखने पर उन्होंने जान से मारने की धमकी दी. बाद में उसे कुछ रुपए दे कर भगा दिया.

पत्र दिखा कर चौकी इंचार्ज सिंह ने डाक्टर दास से कहा कि यह पत्र स्पीडपोस्ट के जरिए 12 मार्च, 2019 को मिला था, लेकिन चुनावी  व्यस्तता की वजह से वह इस शिकायत की जांच नहीं कर सके.

शिकायती पत्र में महिला द्वारा रेप की बात का जिक्र देख कर डाक्टर दास के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. पत्र पढ़ कर उन की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले. उन के चेहरे पर खुद ब खुद परेशानी और डर के मिलेजुले भाव उभर आए.

शिकायती पत्र फाइल में रखते हुए चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह ने डाक्टर दास से कहा, ‘‘रेप के मामलों में बड़ेबड़े बर्बाद हो जाते हैं. इसी शहर के डाक्टर डी.पी. सिंह, विधायक कुलदीप सेंगर या फिर मंत्री गायत्री प्रसाद को देखें, आज तक जेल में सड़ रहे हैं. सोच लो, मैं मदद करने की कोशिश करूंगा.’’

रेप के हश्र की जो तसवीर चौकी इंचार्ज ने डाक्टर दास के सामने पेश की थी, उसे सुन कर वह एक बार फिर पसीना पसीना हो गए. लेकिन उन्हें चौकी इंचार्ज की मदद करने वाली बात खटकी. उस समय डाक्टर दास वापस क्लीनिक लौट आए.

वह अपने क्लीनिक पर लौट तो जरूर आए लेकिन उन का हाल बेहाल था. वे इस सोच में डूबे थे कि उन की किसी ज्योति सिंह से कभी मुलाकात हुई थी या नहीं. आखिर वह उन पर ऐसा घिनौना आरोप क्यों लगा रही है. फिर उन्होंने दूसरे नजरिए से सोचना शुरू कर दिया. यानी कहीं उन्हें फंसाने के लिए उन के विरुद्ध कोई बड़ी साजिश तो नहीं रची जा रही.

उन्होंने जब से शिकायती पत्र पढ़ा था, परेशान होते हुए भी इस बात को किसी से बता नहीं पा रहे थे. वजह यही कि लोग सुन कर उन के बारे में क्या सोचेंगे. बात मीडिया तक पहुंच गई तो उन की इज्जत की धज्जियां उड़ जाएंगी.

काफी सोचविचार के बाद डाक्टर दास को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने इस बारे में अपनी पत्नी को सब कुछ बता दिया. बात सुन कर पत्नी भी परेशान हो गईं. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि सोचने से कुछ नहीं होगा. इस मुसीबत से निकलने के लिए उन्हें कोई कारगर रास्ता तलाश करना होगा.

उसी रात 10 बजे के करीब उन के मोबाइल पर एक फोन और आया. डिसप्ले नंबर देख कर उन का चेहरा खुशी से खिल उठा. वह नंबर एक परिचित का था, जो शहर के न्यूज चैनल सिटी वन का पत्रकार था. उस का नाम प्रणव त्रिपाठी था. उसे डाक्टर दास बेटे की तरह मानते थे और स्नेह भी करते थे.

डा. रामशरण दास ने काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘कैसे हो बेटा?’’

‘‘फर्स्टक्लास डाक्टर अंकल,’’ उत्तर दे कर प्रणव ने उन से पूछा, ‘‘और आप कैसे हैं अंकल?’’

‘‘क्या बताऊं बेटा, ठीक भी हूं और नहीं भी.’’ डाक्टर दास ने नर्वस हो कर कहा.

‘‘बात क्या है, अंकल. ऐसी बात तो आप ने कभी नहीं की. मेरे लायक सेवा हो बताइए, मैं आप की पूरी मदद करूंगा.’’

‘‘नहीं बेटा, तुम ने मेरे लिए इतना सोचा, यही मेरे लिए काफी है. आज के जमाने में कोई कहां दूसरे के लिए सोचता है. एक बात है, जिस में तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’ सकुचाते हुए डाक्टर दास बोेले.

‘‘हां…हां… अंकल बताइए. मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘तुम तो न्यूज चैनल के रिपोर्टर हो और पुलिस विभाग में तुम्हारी अच्छी पकड़ भी है.’’

‘‘हां, अंकल है, पुलिस अधिकारियों से मेरे अच्छे संबंध हैं. पर बात क्या है?’’

इस के बाद डा. रामशरण दास ने प्रणव त्रिपाठी को पूरी बात बता दी. उन की बात सुन कर उस ने मदद करने की हामी भी भर दी. प्रणव से बात करने के बाद डाक्टर दास को थोड़ी शांति मिली. मन का बोझ कुछ कम हो गया. उस रात उन्होंने आराम की भरपूर नींद ली.

अगली सुबह वह उठे तो खुद को तरोताजा महसूस कर रहे थे. दिन भर वे अपने क्लीनिक में व्यस्त रहे. फिर रात को वे खा पी कर सो गए. रात एक बजे ट्रांसपोर्ट नगर के चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह अकेले ही डा. दास के रामप्रसाद बिस्मिल पार्क स्थित आवास पर पहुंच गए. उस समय डा. दास गहरी नींद में थे.

डाक्टर दास के आवास पर पहुंच कर शिवप्रकाश ने डोरबेल बजाई तो उन की नींद खुल गई. उन्होंने दरवाजा खोला तो चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह को देख कर अवाक रह गए. उन्होंने उसे ड्राइंगरूम में ले जा कर बैठा दिया और खुद कपड़े चेंज कर के उस के पास जा बैठे.

करीब 2 घंटे तक शिवप्रकाश सिंह वहीं बैठा रहा और रेप के शिकायत वाले लेटर को मुद्दा बना कर उन से पूछताछ करता रहा. बाद में उस ने कहा, ‘‘देखो डाक्टर, शिकायत करने वाली लड़की ज्योति और मुझे 5-5 लाख रुपए दे दो, वरना जेल भेज दूंगा. उस के बाद क्या होगा तुम समझना.’’

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की बात और आवाज में बदतमीजी और रुआब आ गया था. उस की धमकी सुन कर डाक्टर दास बुरी तरह परेशान हो गए. कोई रास्ता न देख उन्होंने शिवप्रकाश से अगले दिन दोपहर तक का समय मांग लिया.

चौकी इंचार्ज के वहां से जाने के बाद डाक्टर दास ने थोड़ी राहत की सांस ली. वह समझ गए कि ये पूरी साजिश पैसों के लिए रची गई है. इस खेल में उन का कोई परिचित भी है, जो उन से संबंधित पूरी जानकारी चौकी इंचार्ज को दे रहा है. ऐसा कौन है यह बात उन की समझ में नहीं आ रही थी. यह बीती 17 मई की बात है.

खैर, अगले दिन 18 मई, 2019 की दोपहर चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह डाक्टर रामशरण दास के क्लीनिक पर पहुंच गए. उस समय डाक्टर दास मरीजों की जांच करने में व्यस्त थे. क्लीनिक पहुंचते ही शिवप्रकाश सिंह ने कंपाउंडर से अपने आने की सूचना उन्हें भेजवा दी.

चौकी इंचार्ज के आने की सूचना मिलते ही डाक्टर साहब परेशान हो गए. वे समझ गए कि बिना पैसे लिए उस से पीछा छूटने वाला नहीं है. उन्होंने सफेद रंग के बैग में 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों के बंडल बना कर 8 लाख रुपए जमा कर लिए थे. उन्होंने कंपाउंडर से कह कर चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह को अपने चैंबर मे बुलवा लिया.

कंपाउंडर की सूचना मिलते ही शिवप्रकाश डा. दास के चैंबर में जा पहुंचा. चैंबर में डा. दास अकेले थे. शिवप्रकाश को देखते ही उन का खून खौल उठा, लेकिन वे अपने गुस्से को पी गए. वे उसे एक पल के लिए भी बरदास्त नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने रुपए से भरा बैग उसे दे दिया.

रुपए मिलते ही चौकी इंचार्ज के चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गई. जैसे ही रुपए से भरा बैग ले कर चौकी इंचार्ज क्लीनिक से जाने लगा, वैसे ही डा. दास ने चौकी इंचार्ज के सामने उस महिला से मिलने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी, जिस ने उन पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था. रामशरण दास की बात सुन कर चौकी इंचार्ज शिवप्रसाद नहीं कुछ बोला और वहां से रुपयों से भरा बैग ले कर चला गया.

शिवप्रकाश सिंह के क्लीनिक से जाने के बाद रामशरण दास पत्नी को साथ ले कर सीधे इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. एस.पी. गुप्ता के घर जा पहुंचे और अपने साथ हुई शरमनाक घटना के बारे में उन्हें विस्तार से बता कर उन से मदद की मांग की.

बात काफी गंभीर थी. आईएमए के अध्यक्ष डा. एस.पी. गुप्ता ने सचिव राजेश गुप्ता को तुरंत अपने आवास पर बुलाया. साथ ही संगठन के सभी पदाधिकारियों को भी बुलवा लिया. आईएमए के पदाधिकारी डाक्टर दास को ले कर एसएसपी के औफिस गए. चूंकि उस दिन चुनाव था, इसलिए डाक्टर सुनील गुप्ता की एसएसपी से मुलाकात नहीं हो पाई.

डा. दास को ले कर सभी पदाधिकारी शिकायत करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पीआरओ द्वारिका तिवारी से मिलने गोरखनाथ मंदिर जा पहुंचे. इन लोगों ने पीआरओ द्वारिका प्रसाद से मुलाकात कर के उन्हें लिखित शिकायत दे दी.

पीआरओ तिवारी ने उसी समय यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बता दी. डा. दास के साथ हुई ठगी से मुख्यमंत्री बुरी तरह आहत हुए. उन्होंने उसी समय हौट लाइन पर गोरखपुर (जोन) के पुलिस महानिरीक्षक जयनारायण सिंह से बात की और इस घटना की पूरी जानकारी दी. साथ ही घटना की जांच कर के 2 दिनों के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया.

मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ की फटकार से आईजी आहत हुए. चूंकि एक तो मामला उन के ही विभाग से जुड़ा हुआ था, दूसरे ठगी का आरोप विभाग के एक एसआई पर लगाया जा रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की जांच एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे को सौंप दी. उन्होंने बोत्रे को 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. यह बात 19 मई, 2019 की है.

एएसपी रोहन बोत्रे ने जांच शुरू की तो मामला सच पाया गया. डा. रामशरण दास के यहां लगे सीसीटीवी कैमरे के रिकौर्ड में एसआई शिवप्रकाश सिंह के वहां आने और जाने के फुटेज मौजूद थी. उन्होंने ज्योति सिंह द्वारा दिए गए आवेदन की जांच की तो काफी बड़ा झोल सामने आया, जिसे जान कर एएसपी बोत्रे के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

जिस ज्योति सिंह नाम की युवती द्वारा डा. रामशरण दास पर अमरुतानी (अमरूद का बगीचा) में ले जा कर जबरन दुष्कर्म करने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया था, दरअसल, वह एसआई शिवप्रकाश सिंह के दिमाग की महज एक कोरी कल्पना थी. हकीकत में ज्योति सिंह नाम की कोई युवती थी ही नहीं.

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                       आरोपी पत्रकार प्रणव और एसआई शिवप्रकाश सिंह 

ठगी कर के पैसा कमाने के लिए शिवप्रसाद सिंह ने इस चरित्र को जोड़ कर एक झूठी कहानी बनाई थी. वह इस खेल में अकेला नहीं था. उस के साथ एक और बड़ा खिलाड़ी शामिल था, जो फिल्म ‘मोहरा’ में नसीरुद्दीन शाह के पात्र की तरह परदे के पीछे छिप कर खेल खेल रहा था, ताकि उस का चेहरा बेनकाब न हो सके.

वह कोई और नहीं बल्कि डा. रामशरण दास का बेहद करीबी और न्यूज चैनल सिटी वन का तथाकथित रिपोर्टर प्रणव त्रिपाठी था. डा. दास को जब इस हकीकत का पता लगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

इस मामले की पटकथा प्रणव त्रिपाठी के शैतानी दिमाग की उपज और एसआई शिवप्रकाश सिंह की खाकी वरदी के मेलजोल से लिखी गई थी. एएसपी बोत्रे की जांच में पूरी हकीकत सामने आ गई.

एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे ने डाक्टर रामशरण दास के साथ हुई ठगी का परदाफाश 24 घंटे में कर दिया. जांच में डाक्टर दास के दिए गए 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों में से प्रणव त्रिपाठी और शिवप्रकाश ने महज 2000 रुपए ही खर्च किए थे. बाकी के 7 लाख 98 हजार रुपए बरामद कर लिए गए.

राजघाट पुलिस ने एसआई शिव प्रकाश सिंह और तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी के खिलाफ भादंवि की धारा 388, 689, 120बी, 506, 419, 420, 468, 471 के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया. अदालत ने कागजी काररवाई कर के दोनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दिया.

खाकी वर्दी के गुरूर में चूर और मीडिया के ग्लैमर की शान में डूबे दोनों आरोपियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब वे खुद कहानी बन कर रह जाएंगे. एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे की पूछताछ में दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूलते हुए जो कहानी बताई. वह कुछ इस तरह थी.

30 वर्षीय शिवप्रकाश सिंह मूलरूप से वाराणसी के सारनाथ का रहने वाला था. उस के पिता वाराणसी में पुलिस विभाग में तैनात थे. वे ईमानदार इंसान थे. कुछ साल पहले उन का आकस्मिक निधन हो गया था.

शिवप्रकाश सिंह उन का बड़ा बेटा था. आश्रित कोटे में पिता की जगह पर शिवप्रकाश सिंह की नियुक्ति हो गई. नियुक्ति के पश्चात सन 2011 में उस की ट्रेनिंग हुई और फिर गोरखपुर में तैनाती मिल गई.

शिवप्रकाश सिंह अपने पिता के आचरण के विपरीत आचरण वाला युवक था. उस की नजर में पुलिस विभाग महज रुपए उगाने की फैक्ट्री मात्र था. वाराणसी से टे्रेनिंग से ले कर जब अपने गोरखपुर जौइन किया तो उस की पहली तैनाती राजघाट थाने की ट्रांसपोर्टनगर चौकी पर हुई.

यह चौकी ठीक राष्ट्रीय राजमार्ग और पौश कालोनी के बीचोबीच थी. इस चौकी पर तैनाती के लिए एसआई रैंक के अफसर मोटी रकम घूस देने के लिए तैयार रहते थे. जब से शिवप्रकाश की तैनाती हुई थी, तभी से उस ने ट्रक चालकों और व्यापारियों से वसूली करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह इस छोटीमोटी ऊपरी कमाई से खुश नहीं था. उसे किसी ऐसे आसामी की तलाश थी, जिसे एक बार हलाल कर के मोटी रकम मिल सके.

शिवप्रकाश सिंह की करतूतों की शिकायतें बड़े अधिकारियों तक भी गईं. लेकिन वह अपनी चिकनीचुपड़ी बातों और व्यवहार से अधिकारियों को ऐसे झांसे में लेता था कि उस का बाल तक बांका नहीं हो पाता था. इस से उस की हिम्मत बढ़ गई थी.

चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह की दोस्ती न्यूज चैनल सिटी वन के तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी से थी. दोनों में अच्छी पटती थी. प्रणव कैंट इलाके के अलहलादपुर मोहल्ले का रहने वाला था. मध्यमवर्गीय परिवार का प्रणव बेहद चालाक और शातिर दिमाग था.

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह प्रणव त्रिपाठी की इस अदा का कायल था. दोस्ती होने की वजह से दोनों का साथसाथ उठनाबैठना था. बात इसी साल के फरवरी महीने की है. एक दिन दोनों ट्रांसपोर्टनगर चौकी में बैठे थे. शाम का वक्त था.

शिवप्रकाश और प्रणव दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे. तभी बातोंबातों में चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश ने प्रणव से कहा, ‘‘यार, किसी मोटे आसामी का इंतजाम क्यों नहीं करते, जिस से एक ही झटके में लाखों का वारान्यारा हो जाए.’’

प्रणव ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘है एक मोटा आसामी मेरी नजर में.’’

‘‘कौन है?’’ शिवप्रकाश ने पूछा, ‘‘बताओ मेरी हथेलियों में खुजली हो रही है.’’

‘‘इसी शहर का जानामाना मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. रामशरण श्रीवास्तव.’’

‘‘वाकई आदमी तो सही चुना है, एक ही बार में मोटी रकम मिल सकती है.’’

इस के बाद चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह डा. रामशरण श्रीवास्तव को अपने चंगुल में फांसने के लिए ऐसी युक्ति सोचने लगा जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचने के बाद उस ने एक जबरदस्त योजना बनाई. योजना बनाने के बाद शिवप्रकाश ने दोस्त और तथाकथित पत्रकार प्रणव को चौकी पर बुलाया और उसे योजना के बारे में बता दिया. योजना सुन वह भी चकित हुए बिना नहीं रह सका.

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की योजना सुन कर प्रणव त्रिपाठी ने कहा कि वह इस के सफल होने तक बीच में कभी सामने नहीं आएगा. वह परदे के पीछे रह कर डाक्टर की सारी गोपनीय सूचनाएं देता रहेगा.

इस पर शिव प्रकाश राजी हो गया. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को एक काल्पनिक किरदार ज्योति सिंह द्वारा डा. रामशरण श्रीवास्तव के विरुद्ध दुष्कर्म का शिकायती पत्र लिखा गया.

डा. रामशरण श्रीवास्तव उर्फ रामशरण दास को प्रणव त्रिपाठी कैसे जानता था, जरा इस पहलू भी पर गौर करें. तकरीबन 4 साल पहले डा. रामशरण दास का एक परिचित प्रणव को नौकरी दिलाने के लिए उन के क्लीनिक पर लाया था.

उस के आग्रह पर डाक्टर दास ने प्रणव को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. उस ने थोड़े ही दिनों में अपने अच्छे व्यवहार से डाक्टर दास का दिल और भरोसा जीत लिया. डाक्टर दास उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगे.

प्रणव त्रिपाठी क्लीनिक के साथसाथ डाक्टर दास का कोर्टकचहरी का काम भी देखता था. लिखनेपढ़ने का शौकीन प्रणव उसी दौरान मझोले किस्म के दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों में खबरें लिखने लगा.

दिमाग से तेजतर्रार प्रणव ने उन्हीं खबरों को आधार बना कर पुलिस विभाग में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी. उस की इस कला को देख कर डाक्टर दास उस से खुश रहते थे. धीरेधीरे वे उसे अपने मुंह बोले बेटे की तरह मानने लगे थे.

इसी बीच प्रणव को ड्रग लेने का चस्का लग गया. जब उसे ड्रग नहीं मिलता था तो वह बीमार पड़ जाता था. तकरीबन एक महीने तक डाक्टर दास ने उस का इलाज किया.

इस के बाद डाक्टर दास ने उसे नौकरी से हटा दिया. फिर वह जुगाड़ लगा कर न्यूज चैनल सिटी वन से जुड़ गया था और खबर देने लगा था. इस चैनल की आड़ में वह अपना उल्लू भी सीधा करता था.

व्यापारियों से उसे जेब खर्च की मोटी रकम मिल जाती थी. डाक्टर दास के यहां से नौकरी से निकाले जाने के बाद भी उस ने उन से संबंध नहीं तोड़ा था. वह बराबर उन के संपर्क में बना रहता था.

बहरहाल, योजना बनाने के बाद इसे अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन शिवप्रकाश यहीं पर एक बड़ी गलती कर बैठा. तथाकथित ज्योति का जो शिकायती पत्र थाने भेजा जाना चाहिए था, वह उस ने स्पीड पोस्ट से पुलिस चौकी के पते पर पोस्ट कर दिया था. यह गलती उसे भारी पड़ गई.

इस चक्रव्यूह में फंसे डाक्टर दास ने 3 लाख एक करीबी मित्र से ले कर शिवप्रकाश को 8 लाख रुपए दिए थे. इतने से भी शिवप्रकाश और प्रणव का लालच कम नहीं हुआ और डा. दास से 2 लाख रुपए और मांगने लगे. ये लोग डा. दास से 2 लाख रुपए की उगाही कर पाते, इस से पहले ही साजिश का भंडाफोड़ हो गया.

संतान प्राप्ति के लिए नरबलि, दोषियों को उम्रकैद

उस दिन कानपुर देहात की माती अदालत में आम दिनों से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. सर्दी होने के बावजूद लोग 10 बजे से पहले ही कचहरी पहुंच गए थे. अपर जिला जज-13 पोक्सो वाकर शमीम रिजवी की अदालत के बाहर सब से ज्यादा भीड़ मौजूद थी. भीड़ में आम लोगों के अलावा वकील भी शामिल थे.

अदालत में भीड़ जुटने का कारण यह था कि उस दिन कानपुर देहात के बहुचर्चित मासूम मानसी अपहरण हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. इसलिए मानसी के मातापिता के अलावा उन के कई परिचित भी अदालत में आए हुए थे.

भीड़ में इस बात को ले कर खुसरफुसर हो रही थी कि अदालत क्या फैसला सुनाएगी. कोई कह रहा था कि आरोपियों को फांसी होगी तो कोई उम्रकैद होने का अनुमान लगा रहा था. दरअसल, इस मामले से कानपुर देहात की जनता का भावनात्मक जुड़ाव रहा था. इसलिए कानपुर देहात की जनता की नजरें फैसले पर टिकी हुई थीं.

अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी नियत समय पर कोर्टरूम आ कर अपनी कुरसी पर बैठ गए. उन के कुरसी पर बैठते ही अदालत में सन्नाटा छा गया. आरोपी परशुराम, सुनैना, अंकुल व वीरन अदालत के कटघरे में मौजूद थे. जज ने बारीबारी से उन पर नजर डाली. मृतका मानसी के घर वाले, शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय तथा विपक्ष के वकील ताराचंद्र व रवि तिवारी भी अदालत में मौजूद थे.

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अदालत में शांति बनाए रखने का आदेश देने के बाद अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने दंड के रूप में दी जाने वाली सजा पर दोनों पक्षों को ध्यान से सुना. अभियुक्तों के वकीलों का तर्क था कि इस से पहले अभियुक्तों ने कोई भी अपराध नहीं किया है. उन के खिलाफ अपराध भी पहली बार सिद्ध हुआ है, जो जघन्य से जघन्यतम नहीं है. इसलिए उन के करिअर, उम्र व भविष्य को देखते हुए उन्हें दिए जाने वाले दंड में नरमी बरती जानी चाहिए.

जबकि अभियोजन पक्ष की तरफ से जिला शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने उन की बात का विरोध करते हुए कहा कि 6 वर्षीय बच्ची की हत्या कर उस का कलेजा निकाल कर खाना बेहद क्रूरतम अपराध है.

उस की हत्या के पीछे तंत्रमंत्र बड़ा कारण था. इसलिए पैरों पर महावर लगाई गई थी. यह रेयरेस्ट औफ रेयर मामला है. इसलिए आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए, इन्हें कम से कम फांसी की सजा दी जानी चाहिए.

वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज साहब ने शाम 4 बजे दोषियों को सजा सुनाने की बात कही. इस के बाद वह अपने चैंबर में चले गए. यह बात 16 दिसंबर, 2023 की है.

मासूम मानसी कौन थी? उस का अपहरण व हत्या क्यों की गई? यह सब जानने के लिए हमें करीब 3 साल पीछे जाना होगा.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है-घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. कमल कुरील इसी दलित बाहुल्य गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी जयश्री के अलावा 2 बेटियां थीं, जिन में मानसी बड़ी थी. कमल कुरील किसान था. खेतीबाड़ी से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. मानसी 6 वर्ष की थी, जबकि छोटी बेटी 4 वर्ष की.

किस ने दी बच्ची की बलि

14 नवंबर, 2020 को दीपावली का त्योहार था. शाम को नए कपड़े पहनकर मानसी व दया घर के बाहर अपनी सहेली के साथ खेल रही थीं. कुछ देर बाद दया तो घर वापस आ गई, लेकिन मानसी घर वापस नहीं आई. कमल व उस की पत्नी जयश्री तब मानसी की खोज में जुट गए.

अड़ोसपड़ोस के लोगों को मासूम मानसी के गायब होने की जानकारी हुई तो वे भी उस के मातापिता के साथ उस की खोज में जुट गए. उन्होंने गांव की हर गली, कोना छान मारा. खेतखलिहान, बागबगीचा भी खंगाला, तालाब, कुआं भी देखा, लेकिन मानसी का कुछ भी पता न चला.

सुबह 5 बजे कुछ लोग गांव के बाहर स्थित भद्रकाली मंदिर की तरफ गए तो उन्होंने मासूम मानसी की लाश भद्रकाली मंदिर के पास पड़ी देखी. हालात देख कर लग रहा था कि वहां उस की बलि दी गई थी. कमल व उस की पत्नी जयश्री को खबर लगी तो दोनों नंगे पांव ही भागे.

इसी बीच गाँव के किसी व्यक्ति ने दीपावली की रात गांव के कमल कुरील की 6 वर्षीय बेटी मानसी की बलि देने की सूचना थाना घाटमपुर के इंसपेक्टर राजीव सिंह को दे दी.

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खबर पाते ही एसएचओ पुलिस टीम के साथ भदरस गांव पहुंच गए. भद्रकाली मंदिर गांव के बाहर था. वहां भारी भीड़ जुटी थी. दरअसल, मासूम बच्ची की बलि चढ़ाए जाने की बात भदरस ही नहीं, बल्कि अड़ोस पड़ोस के गांवों तक फैल गई थी. अत: सैकड़ों लोगों की भीड़ वहां जमा थी.

भीड़ देख कर राजीव सिंह के हाथपांव फूल गए. क्योंकि वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी था. लोगों ने साफ कह दिया था कि जब तक एसएसपी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह बच्ची के शव को नहीं उठने देंगे. इंसपेक्टर राजीव सिंह ने यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी, फिर जांच में जुट गए.

मानसी की नग्न लाश भद्रकाली मदिर के पास नीम के पेड़ के नीचे गन्नू तिवारी के खेत में पड़ी थी. शव के पास मृत बच्ची का पिता कमल कुरील बदहवास खड़ा था और उस की पत्नी जयश्री कुरील दहाड़ मार कर रो रही थी. घर की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं.

मासूम का पेट किसी नुकीले व धारदार औजार से चीरा गया था और पेट के अंदर के अंग दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें तथा किडनी गायब थीं. बच्ची के गुप्तांग पर चोट के निशान थे. माथे पर तिलक लगा था और पैरों पर महावर लगी थी. देखने से ऐसा लग रहा था कि नरपिशाचों ने बलि देने से पहले मासूम के साथ दुराचार भी किया था. शव के पास ही मृतका की चप्पलें, जींस तथा अन्य कपड़े पड़े थे. नमकीन का एक खाली पैकेट भी वहां पड़ा मिला.

इंसपेक्टर सिंह ने वहां पड़ी चीजों को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. उसी दौरान एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (ग्रामीण) ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव तथा सीओ (घाटमपुर) रवि कुमार सिंह भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा कई थानों की फोर्स बुलवा ली. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित भीड़ को आश्वासन दिया कि जिन्होंने भी दिल को झकझोर देने वाली इस घटना को अंजाम दिया है, वे जल्द ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी.

अधिकारियों के इस आश्वासन पर लोग नरम पड़ गए, उस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. बालिका का शव देख कर पुलिस अधिकारी भी सिहर उठे.

एसएसपी के बुलावे पर डौग स्क्वायड भी घटनास्थल पर पहुंची. डौग स्क्वायड प्रभारी अवधेश सिंह ने जांच शुरू की. उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे पड़ी बालिका के खून के अंश व उस की चप्पलें खोजी कुतिया यामिनी को सुंघाई. उसे सूंघने के बाद यामिनी खेत की पगडंडी से होते हुए गांव की ओर दौड़ पड़ी.

कई जगह रुकने के बाद वह सीधे मृतक बच्ची के घर पहुंची. यहां से बगल के घर से होते हुए गली के सामने बने एक घर पर पहुंची. 4 घरों में जाने के बाद गली के कोने में स्थित एक मंदिर पर जा कर वह रुक गई.

टीम ने पड़ताल की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. इस के बाद यामिनी गांव का चक्कर लगा कर घटनास्थल पर वापस आ गई. यामिनी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी.

मुख्यमंत्री योगी के आदेश पर एक पैर पर दौड़ी पुलिस

निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका मानसी के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. मोर्चरी के बाहर भी भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया था.

उधर नरबलि की खबर न्यूज चैनलों तथा इंटरनेट मीडिया पर वायरल होते ही कानपुर से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद इस दुस्साहसिक वारदात को संज्ञान में लिया. मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त, डीएम व एसएसपी से वार्ता की और तुरंत आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई करने का आदेश दिया.

GHARWALO KO CHEK DETE VIDHAYAK UPENDRA PASWAN

उन्होंने दुखी परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और 5 लाख रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ”सरकार इस प्रकरण की फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई करा कर अपराधियों को जल्द सजा दिलाएगी.’’

मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तो प्रशासन एक पैर पर दौडऩे लगा. आननफानन में 3 डाक्टरों का पैनल गठित किया गया और शव का पोस्टमार्टम कराया गया. मासूम के शव का परीक्षण करते समय पोस्टमार्टम करने वाली टीम के हाथ भी कांप उठे थे.

मासूम के पेट के अंदर कोई अंग था ही नहीं. दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें, किडनी, स्प्लीन और इन अंगों को आपस में जोड़े रखने वाली मेंब्रेंन तक गायब थी. मासूम के निजी अंगों में चोट के निशान थे, जिस से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी.

बच्ची के पेट में कुछ था या नहीं, आंतें गायब होने से इस की पुष्टि नहीं हो सकी. पोस्टमार्टम के बाद मानसी का शव उस के पिता कमल कुरील को सौंप दिया गया.

इधर रात 10 बजे एसडीएम (नर्वल) रिजवाना शाहिद के साथ तत्कालीन विधायक (घाटमपुर क्षेत्र) उपेंद्र पासवान भदरस गांव पहुंचे और मृतका मानसी के पिता कमल कुरील को 5 लाख रुपए का चैक सौंपा. उन्हें 2 बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिलाने का भी भरोसा दिया गया.

चैक लेते समय कमल व उन की पत्नी जयश्री की आंखों में आंसू थे. उन्होंने नरपिशाचों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को वर्कआउट करने में देरी पर नाराजगी जताई थी, इसलिए एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी (ग्रामीण) ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव ने थाना घाटमपुर में डेरा डाल दिया और डीएसपी रवि कुमार सिंह के निर्देशन में खुलासे के लिए पुलिस टीम गठित कर दी.

इस टीम ने भदरस गांव पहुंच कर अनेक लोगों से गहन पूछताछ की. गांव के एक झोलाछाप डाक्टर ने गांव के गोंगा के मझले बेटे अंकुल कुरील पर शक जताया. पड़ोसी परिवार की एक बच्ची ने भी बताया कि शाम को उस ने मानसी को अंकुल के साथ जाते हुए देखा था.

अंकुल कुरील पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस टीम ने उसे घर से उठा लिया. उस समय वह ज्यादा नशे में था. उसे थाना घाटमपुर लाया गया. उस से कई घंटे तक पूछताछ की, लेकिन अंकुल नहीं टूटा.

आधी रात के बाद जब नशा कम हुआ, तब उस से सख्ती के साथ दूसरे राउंड की पूछताछ की गई. इस बार वह पुलिस की सख्ती से टूट गया और मासूम मानसी की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

अंकुल ने जो बताया, उस से पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े हो गए और मामला ही पलट गया. अंकुल ने बताया कि उस के चाचा परशुराम व चाची सुनयना ने 1,500 रुपए में मासूम बच्ची का कलेजा लाने की सुपारी दी थी.

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                           आरोपी अंकुल कुरील और बीरन

उस के बाद उस ने अपने दोस्त वीरन के साथ मिल कर कमल की बेटी मानसी को पटाखा देने के बहाने फुसलाया. उसे वे गांव से एक किलोमीटर दूर भद्रकाली मंदिर के पास ले गए. वहां दोनों ने पहले उस बच्ची के साथ दुराचार किया फिर अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

उस के बाद चाकू से उस का पेट चीर कर अंगों को निकाल लिया गया. उस ने कलेजा पौलीथिन में रख कर चाची सुनयना को ले जा कर दे दिया. सुनयना और परशुराम ने कलेजे के 2 टुकड़े किए और कच्चा ही खा गए, ऐसा उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए किया था. इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए. फिर हम लोग घर चले गए.

16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन, फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था.

उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही मानसी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया.

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पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निस्संतानों के भी बच्चे हो जाते हैं. वह भी निस्संतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था.

चूंकि सभी ने जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. इसलिए इंसपेक्टर राजीव सिंह ने मृतका के पिता कमल कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो ऐक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया.

पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने दिल कंपा देने वाली घटना का खुलासा किया.

बच्चा पैदा होने की लालसा में दी थी बलि

परशुराम कुरील भदरस गांव में ही कमल कुरील के घर के पास ही रहता था. परशुराम की शादी सुनयना के साथ लगभग 15 साल पहले हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था. वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था.

भदरस और उस के आसपास के गांवों में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है, जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकडज़ाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है.

बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुरगे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं. इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई करने से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.

परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकडज़ाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या 2 बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था.

दरअसल, सुनयना की शादी को 15 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया, लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों और मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी.

तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए, लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी ही रही.

सामाजिक तिरस्कार से टूट गई थी सुनयना

सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक कार्य में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी, क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था.

परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के मुंडन, जन्मदिन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे पीड़ा होती थी. सामाजिक तिरस्कार से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी.

10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बे के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई. तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह एक उपाय कर सके.

” कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.

”यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी दोनों को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’

”ठीक है बाबा, मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा.

उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक किताब हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था.

परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ”विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’

अब परशुराम और सुनयना के मन में यह अंधविश्वास घर कर गया कि मासूम बच्ची का कच्चा कलेजा खाने से उन को संतान हो सकती है. इस पर उन्होंने गंभीरता से सोचना शुरू किया तो उन्हें लगा अंकुल उन की मदद कर सकता है. अंकुल परशुराम के बड़े भाई गोंगा कुरील का बेटा था. 3 भाइयों में वह मंझला था. वह नशेबाज और निर्दयी था, गंजेड़ी भी. अपने भाईबहनों के साथ मारपीट और हंगामा भी करता रहता था.

अपने स्वार्थ के लिए परशुराम ने भतीजे अंकुल को मोहरा बनाया. अब वह उसे घर बुलाने लगा और मुफ्त में शराब पिलाने लगा. गांजा फूंकने को पैसे भी देता. अंकुल जब हां में हां मिलाने लगा, तब एक रोज सुनयना ने उस से कहा, ”अंकुल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास बच्चा नहीं है. लेकिन तुम चाहो तो मैं मां बन सकती हूं.’’

”वह कैसे चाची?’’

”इस के लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. आने वाली दीपावली की रात तुम्हें किसी बच्ची का कलेजा ला कर देना होगा. देखो ‘न’ मत करना. यदि तुम मेरा काम कर दोगेे तो हमारे घर में भी खुशी आ सकती है.’’

”ठीक है चाची, मैं तुम्हारे लिए यह काम कर दूंगा.’’

अंकुल राजी हो गया तो उन लोगों ने मासूम बच्ची पर मंथन किया. मंथन करते करते उन के सामने मानसी का चेहरा आ गया. मानसी कमल कुरील की बेटी थी. उस की उम्र 7 साल थी. कमल परशुराम के घर के पास रहता था.

वीरन कुरील अंकुल का दोस्त था. पारिवारिक रिश्ते में वह उस का भाई था. वीरन भी नशेड़ी था, सो उस की अंकुल से खूब पटती थी. अंकुल ने वीरन को सारी बात बताई और उसे भी अपने साथ मिला लिया था. अब अंकुल के साथ वीरन भी परशुराम के घर जाने लगा और नशेबाजी करने लगा.

14 नवंबर, 2020 को दीपावली थी. अंकुल और वीरन शाम 5 बजे परशुराम के घर पहुंच गए. परशुराम ने दोनों को खूब शराब पिलाई. सुनयना ने दोनों को कलेजा लाने की एवज में 1500 रुपए देने का भरोसा दिया.

इस के बाद उस ने अंकुल व वीरन को गोश्त काटने वाले 2 चाकू दिए. इन चाकुओं को पत्थर पर घिस कर दोनों ने धार बनाई. सुनयना ने महावर की एक शीशी अंकुल को दी और कुछ आवश्यक निर्देेश दिए.

शाम 6 बजे अंकुल और वीरन परशुराम के घर से निकले, तब तक अंधेरा घिर चुका था. वे दोनों जब कमल के घर के सामने आए तो उन की निगाह मासूम मानसी पर पड़ी. वह नए कपड़े पहने पेड़ के नीचे एक बच्ची के साथ खेल रही थी. अंकुल ने मानसी को बुलाया और पटाखों का लालच दिया.

मानसी पर मौत का साया मंडरा रहा था. वह मान गई और अंकुल के साथ चल दी. दोनों मानसी को ले कर गांव के बाहर आए और फिर भद्रकाली मंदिर की ओर चल पड़े. मानसी को आशंका हुई तो उस ने पूछा, ”भैया, कहां ले जा रहे हो?’’

यह सुनते ही अंकुल ने उस का मुंह दबा दिया और वीरन ने चाकू चुभो कर उसे डराया, जिस से उस की घिग्घी बंध गई. फिर वे दोनों मानसी को भद्रकाली मंदिर के पास ले गए और नीम के पेड़ के नीचे पटक दिया.

उन दोनों ने मानसी के शरीर से कपड़े अलग किए तो उन के अंदर का शैतान जाग उठा. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ दुराचार किया. इस बीच मासूम चीखी तो उन्होंने अंगौछे से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद सुनयना के निर्देशानुसार अंकुल ने मानसी के पैरों में लाल रंग लगाया तथा माथे पर टीका किया. फिर चाकू से उस का पेट चीर डाला. अंदर से अंग काट कर निकाल लिए और कलेजा पौलीथिन में रख कर वहां से निकल लिए. रास्ते में पानी भरे एक गड्ढे में बाकी अंग फेंक दिए और कलेजा ला कर परशुराम को दे दिया.

शराब से धो कर दोनों ने खाया कलेजा

परशुराम ने कलेजे को शराब से धोया फिर चाकू से उस के 2 टुकड़े किए. उस ने एक टुकड़ा स्वयं खा लिया तथा दूसरा टुकड़ा पत्नी सुनयना को खिला दिया. सुनयना ने खुश हो कर 500 रुपए अंकुल को और 1,000 रुपए वीरन को दिए. उस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर दीया जलाते समय कमल को मानसी नहीं दिखी तो उस ने खोज शुरू की. कमल व उस की पत्नी जयश्री रात भर बेटी की खोज करते रहे. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे बेटी की हत्या की जानकारी दी. तब वह वहां पहुंचा. इसी बीच किसी ने घटना की जानकारी थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी.

17 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

जेल जाने के बाद आरोपियों ने अपने वकीलों के माध्यम से जमानत पाने का प्रयास किया, लेकिन उन के खिलाफ ठोस सबूत मिल जाने से उन को जमानत नहीं मिली. इस चर्चित कांड में मुकदमे के विवेचना अधिकारी इंसपेक्टर राजीव सिंह ने विवेचना कर के सबूतों सहित सभी साक्ष्य जुटा कर आरोपियों के खिलाफ गैंगरेप, हत्या, शव गायब करने तथा पोक्सो एक्ट सहित अन्य धाराओं में 37 दिन में अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया.

अदालत में करीब 3 साल तक इस बहुचर्चित मामले की काररवाई चलती रही, जिस में 10 गवाहों के बयान भी दर्ज किए गए. इन गवाहों में अदालत ने गांव के झोलाछाप डाक्टर रवि तथा मृतका के साथ खेल रही पड़ोस की लड़की का बयान अहम माना. इन दोनों ने ही आरोपी अंकुल का नाम पुलिस को बताया था.

पोस्टमार्टम करने वाले 2 डाक्टरों की गवाही को भी अदालत ने अहम माना. शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने भी केस की जम कर पैरवी की. न्यायालय में पेश हुए साक्ष्यों के आधार पर ही अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने आरोपियों को दोषी ठहराया.

सजा सुनाने के लिए अपर जिला जज साहब शाम 4 बजे कोर्ट में पहुंच गए. उस समय आरोपियों के अलावा मामले से जुड़े सभी वकील व मानसी के मातापिता तथा अन्य लोग भी कोर्टरूम में मौजूद थे.

अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने बिना कोई भूमिका बनाए सीधे फैसला सुनाते हुए कहा, ”अभियुक्त अंकुल व वीरन ने अमानवीय तथा हृदयविदारक जघन्य अपराध किया था. अपराध प्रवृत्ति को देखते हुए दोनों समाज के लिए खतरा हैं. ऐसे हालात में उन के साथ नरमी का रुख अपनाए जाने का कोई औचित्य नहीं हो सकता.

”6 साल की मासूम बच्ची का अपहरण कर गैंगरेप करना फिर हत्या कर कलेजा निकालना जघन्य अपराध माना जाना न्यायोचित प्रतीत होता है. इसलिए अभियुक्त अंकुल व वीरन को उम्रकैद की सजा दी जाती है. सजा के साथ दोनों को 45-45 हजार रुपए के अर्थदंड से भी दंडित किया जाता है. अर्थदंड न देने पर 6 माह की सजा और भुगतनी होगी.’’

कुछ क्षण रुकने के बाद जज साहब ने कहा, ”आरोपी दंपति परशुराम व सुनयना ने नियोजित तरीके से षडयंत्रपूर्वक अपराध किया था. उन दोनों ने संतान पाने के लिए 7 साल की बच्ची का कलेजा सहयोगियों के मार्फत मंगवाया और फिर खाया. उन का यह अपराध अतिगंभीर व हृदयविदारक है.

उन के खिलाफ नरमी का रुख अपनाया जाना न्यायोचित नहीं होगा. अत: उन्हें उम्रकैद की सजा दी जाती है. सजा के साथ दोनों को 20-20 हजार रुपए के अर्थदंड से भी दंडित किया जाता है. अर्थदंड न देने पर 6 माह की सजा और भुगतनी होगी.’’

अदालत का फैसला आते ही कमल व उस की पत्नी जयश्री की आंखें छलक पड़ीं. शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय के साथ मौजूद कमल ने रुंधे गले से कहा कि हमें सजा से संतोष तो है, लेकिन दोषियों को फांसी होती तो हमारे कलेजे को और ठंडक मिल जाती.

शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने कहा कि उन्होंने कोर्ट से केस के रेयरेस्ट औफ द रेयर होने की बात कह कर फांसी की सजा की मांग की थी, लेकिन कोर्ट का फैसला उम्रकैद आया. हम अध्ययन करेंगे और यदि कुछ बिंदु निकलते हैं तो फांसी के लिए हाईकोर्ट में अपील भी करेंगे.

सजा सुनाए जाने के बाद चारों दोषियों परशुराम, सुनयना, अंकुल व वीरन को कानपुर देहात की माती जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक चारों दोषी माती जेल में बंद थे.

—कथा अदालत के फैसले पर आधारित. कथा में मानसी, कमल और जयश्री परिवर्तित नाम हैं.

गलत राह के राही : पूरे इंदौर को हिला कर रख दिया था इस पुलिस वाली ने

जितेंद्र एक दिन अपनी पत्नी लीना के साथ एक दोस्त के परिवार में आयोजित शादी समारोह में शामिल होने आया था. समारोह में वह पत्नी के साथ औपचारिकता भर निभा रहा था, क्योंकि उस की पत्नी से बनती नहीं थी. उसी दौरान जितेंद्र की नजर समारोह में मौजूद एक युवती पर पड़ी तो वह उसे देखता रह गया, मानो किसी दूसरी दुनिया में खो गया हो.

जितेंद्र उस की खूबसूरती पर ऐसा फिदा हुआ कि कुलांचें भरता मन बस उसी के इर्दगिर्द घूम रहा था. जितेंद्र ने उसे पहले कभी नहीं देखा था. वह उस युवती से बात करने के लिए उतावला हुए जा रहा था.

पत्नी लीना को सहेलियों के बीच छोड़, वह आत्ममुग्ध हो कर उस युवती की ओर बढ़ चला. जब तक वह उस के पास पहुंचा, तब तक युवती उस के दोस्त राजेश के साथ खड़ी बातें करने लगी. जितेंद्र इस मौके को खोना नहीं चाहता था. वह राजेश के पास पहुंच गया.

बातें करतेकरते उस ने युवती की तरफ इशारा करते हुए राजेश से पूछा, ‘‘यह कौन है भाई?’’

‘‘अरे यार यह मेरी मुंह बोली बहन संगीता है.’’ कहते हुए राजेश ने जितेंद्र का परिचय संगीता से करवाया. जितेंद्र यही चाहता भी था. जितेंद्र ने संगीता से बातचीत करनी शुरू कर दी. संगीता ने उस से पूछा, ‘‘आप क्या करते हैं?’’

यह सुन कर जितेंद्र मुसकराया और कंधे उचकाते हुए बोला, ‘‘मैं पुलिस का दामाद हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर संगीता हंस पड़ी.

राजेश ने बताया, ‘‘जितेंद्र की पत्नी लीना मध्य प्रदेश पुलिस में है. जब बीवी पुलिस में है तो इस का तो कहना ही क्या, इस की तो मौज ही मौज है, हरफरनमौला आदमी है यह.’’

संगीता कुछ समझी, कुछ नहीं समझी. मगर जितेंद्र के व्यक्तित्व और पुलिसिया दामाद होने की बातें सुन कर वह उस से प्रभावित हो गई. दोनों बातें करने लगे.

इसी बीच राजेश वहां से हटा तो जितेंद्र ने संगीता को इंप्रेस करने की हर कोशिश करनी शुरू कर दी. लच्छेदार बातें कर उसे वह मानो एक ही पल में अपने आगोश में लेने को आतुर हो उठा. वह बोला, ‘‘संगीताजी, मैं आप से एक बात कहूं.’’

‘‘जरूर कहिए, आप बड़े दिलचस्प व्यक्ति हैं, ऐसा लगता है कि आप से आज अभी की नहीं, वर्षों पहले की मुलाकात हो.’’ संगीता ने कहा.

जितेंद्र के सामने सुनहरा मौका था, उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, संगीता के लिए उसे सारे संसार से लड़ना भी पड़ा तो लड़ेगा. उस ने थोड़ा झिझकने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘आप से एक बात कहनी है, बुरा तो नहीं मानेंगी?’’

संगीता उस की बातों और नजरों से कुछकुछ भांप चुकी थी कि वह क्या कहना चाहता है. उस ने सहजता से कहा, ‘‘आप कहिए, मैं बुरा नही मानूंगी.’’

जितेंद्र को हिम्मत मिली तो उस ने पहली मुलाकात में ही इश्क का इजहार कर दिया. उस की बात सुन कर संगीता की आंखें फटी रह गईं. मगर वह नाराज नहीं हुई. तभी जितेंद्र ने कहा, ‘‘संगीता जी, मैं आप की खातिर सारे संसार को छोड़ने को तैयार हूं.’’

संगीता आ गई जितेंद्र की बातों में

संगीता को यह पता चल चुका था कि जितेंद्र शादीशुदा है. वह खुद भी किसी की अमानत थी. उस वक्त उस की मांग में सिंदूर, और गले में मंगलसूत्र था. संगीता ने जितेंद्र की बातें सुन आत्मीय स्वर में कहा, ‘‘आप तो शादीशुदा हैं न?’’

‘‘हां, मगर मैं ने आप को देखते ही अलग तरह का आकर्षण महसूस किया. रही बात मेरी पत्नी लीना की, तो उस के साथ मैं कैदी जैसी जिंदगी जी रहा हूं.’’ जितेंद्र बोला. उस की आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे थे.

संगीता भी कम नहीं थी. उस से बिना मौका छोड़े तत्काल कहा, ‘‘अभी तो खुद को सरकारी दामाद बता कर खुश भी थे और गर्व भी महसूस कर रहे थे. इतनी सी देर में क्या हो गया?’’

‘‘दिल का दर्द हर किसी के सामने नहीं छलकता. पता नहीं दिल ने आप में ऐसा क्या देखा कि…’’

जितेंद्र की बात सुन और उस की आंखों में आंसू देख संगीता को महसूस हआ कि वह मन का सच्चा आदमी है. संगीता भी अपने पति राकेश से कहां खुश थी. उस ने सुन रखा था कि दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो वैवाहिक जीवन में खुश नहीं होते. शायद जितेंद्र भी उन्हीं में हो.

राकेश का गुस्सैल चेहरा संगीता की आंखों के आगे घूमने लगा. बातबात में प्रताड़ना, मारपीट, गालीगलौज उस के लिए आम बात थी. वह राकेश से भीतर ही भीतर नफरत करती थी, फिर भी पत्नी धर्म का निर्वहन कर रही थी.

उस ने जितेंद्र की ओर आत्मीय दृष्टि डालते हुए कहा, ‘‘आप जल्दबाजी मत कीजिए. अभी मेरी तरफ से हां भी है और ना भी, मुझे सोचने का कुछ वक्त दीजिए.’’

जितेंद्र संगीता की बातें सुन मन ही मन खुश हुआ, उस ने कहा, ‘‘बिलकुल, लेकिन हम जल्दी ही मिलेंगे न?’’

सुन कर संगीता मुसकराई. दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. जितेंद्र राय और संगीता सुसनेर की यह पहली मुलाकात लगभग 5 साल पहले सन 2014 में हुई थी.

दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. दोनों को अपने जीवनसाथियों से परेशानियां थीं, इसलिए अपना  अपना दुखड़ा सुनाते सुनाते एकदूसरे के करीब आ गए.

जल्दी ही दोनों का इंदौर के मोती गार्डन में मिलना तय हुआ. जितेंद्र समय से पहले पहुंच गया. समय बीत रहा था और संगीता का कहीं अतापता नहीं था. वह बेचैन हो उठा. तभी संगीता सामने आ कर खड़ी हो गई. दोनों एकदूसरे को देख कर खुश थे. एक बेंच पर बैठ कर दोनों ने बातचीत शुरू की.

जितेंद्र ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘संगीता, मैं तो घबरा गया था. अगर तुम नहीं आती तो…’’

संगीता ने मुसकरा कर उस पर तिरछी नजर डाली फिर कहा, ‘‘ओह, फिर तो मुझ से बड़ी भूल हो गई.’’

चाहत का कर दिया इजहार

इस के बाद दोनों खिलखिला कर हंस पडे़. कुछ देर तक इधरउधर की बातें होती रहीं. दोनों के बीच मुलाकात का सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों एकदूसरे से मिलने लगे.

एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘मैं ने आज एक निर्णय लिया है, मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘हांहां, कहो.’’ संगीता ने कहा.

‘‘मैं लीना को छोड़ रहा हूं, मैं आज ही उस से संबंध खत्म कर दूंगा.’’

‘‘क्यों?’’ संगीता ने मासूमियत से पूछा.

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं. आखिर हम कब तक अलग रहेंगे. तुम्हारे लिए मैं दुनिया से भी टकरा जाऊंगा.’’ जितेंद्र ने संगीता की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

यह सुन कर संगीता मन ही मन खुश थी कि कोई तो है संसार में जो उसे इतना चाहता है. उस ने बचपन से ही दुख झेले थे. पति के घर आई तो वहां भी लड़ाईझगड़ा और अवसाद भरी जिंदगी. उस ने जितेंद्र के हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ हूं जितेंद्र. मैं भी तुम्हें चाहने लगी हूं. तुम्हारी खातिर सब कुछ छोड़ दूंगी.’’

संगीता का समर्थन मिला तो जितेंद्र की बांछें खिल गईं, वह बोला, ‘‘लेकिन तुम्हें एक काम करना होगा, मेरे पास हमारे सुनहरे दिनों की प्लानिंग है.’’

‘‘वह क्या?’’ संगीता ने सहजता से पूछा.

‘‘आज शाम को मैं एक चीज ले कर आऊंगा, उसे तुम्हें पहननना होगा.’’ जितेंद्र ने रहस्यमय स्वर में कहा.

‘‘क्या, मंगलसूत्र?’’ संगीता ने भोलेपन से पूछा.

जितेंद्र हंस पड़ा, ‘‘नहीं, वह तो मैं पहनाऊंगा ही, लेकिन एक चीज और है.’’

‘‘क्या, बताओ भी न.’’ संगीता इठलाई.

‘‘तुम्हें लीना की वरदी पहननी है?’’ जितेंद्र ने दिल की बात बता दी.

‘‘क्यों, इस से क्या होगा?’’ संगीता ने आश्चर्य पूछा.

‘‘मैं तुम्हें ऐसी दुनिया दिखाऊंगा कि तुम सोच में पड़ जाओगी. जानती हो, एक पुलिसवाली जब डंडा ले कर निकलती है तो तमाम लोग उसे सलाम ठोकते हैं.’’

‘‘तुम यह सब मेरे लिए क्यों कर रहे हो और फिर मैं लीना की वरदी कैसे पहन सकती हूं?’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा, तुम वरदी पहनना, मैं फोटो ले लूंगा, तुम्हारा आईडी कार्ड भी बन जाएगा.’’ जितेंद्र ने कहा.

‘‘अच्छा ठीक है, अगर तुम कह रहे हो तो… पर मुझे कुछ अटपटा लग रहा है.’’

जितेंद्र ने संगीता पर फेंका जाल

उस शाम जब जितेंद्र राय संगीता से मिलने आया तो उस के बैग में लीना की पुलिस की वरदी थी. उस ने वरदी निकाल कर संगीता के सामने रख दी और आत्मविश्वास से लबरेज स्वर में बोला, ‘‘संगीता इसे पहन कर दिखाओ, देखूं तो कैसी दिखती हो.’’

संगीता ने उस के सामने ही लीना राय की लाई पुलिस वरदी पहन ली. जितेंद्र ने प्रसन्न भाव से कहा, ‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो, मानो इस वरदी के लिए ही बनी हो.’’

संगीता वरदी पहन कर इठला रही थी. जितेंद्र ने उस के कुछ फोटो लिए और बताया, ‘‘जल्द ही तुम्हारा आईडी कार्ड बन जाएगा, फिर हमारी तकदीर खुल जाएगी.’’

संगीता विस्मय से जितेंद्र की ओर देखने लगी, उसे अच्छा भी लग रहा था और बुरा भी.

जितेंद्र के प्यार में पड़ कर संगीता ने किसी और की पुलिस वरदी पहन तो ली लेकिन आगे चल कर वह एक ऐसे भंवर जाल में फंसती चली गई जो उस की जिंदगी को तबाह करने के लिए काफी था.

जितेंद्र राय और लीना राय का विवाह हुए 8 साल हो चुके थे. जितेंद्र एक ट्रैवल कंपनी में ट्रैवल एजेंट था उस की पत्नी लीना राय मध्य प्रदेश पुलिस में प्रधान आरक्षक थी. फिलहाल उस की ड्यूटी पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में थी. लेकिन दोनों के विचार नहीं मिलते थे, जिस की वजह से उन के बीच खटास बनी रहती थी.

जितेंद्र के बड़ेबड़े ख्वाब थे जिन्हें वह साकार करना चाहता था. आनन फानन में लखपति बनने के बारे में वह पत्नी को बताता रहता था. वह लीना को पुलिस वरदी की महत्ता बताता और कहता, इस वरदी में बड़ी ताकत है. अगर इस वरदी का सही इस्तेमाल किया जाए तो उन की मुफलिसी दूर हो जाएगी.

मगर लीना राय वरदी की मर्यादा समझती थी. इसलिए वह नहीं चाहती थी कि पैसों के लिए वह किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल हो. इसलिए वह प्यार से पति को समझाती कि वह ऐसी बातें न तो सोचे, और न ही उसे करने के लिए कहे.

जितेंद्र तरहतरह के तर्क देता कुछ पुलिस वालों के उदाहरण भी बताता, लेकिन लीना ने उस की बात नहीं मानी. जितेंद्र का मन लीना से उचट गया तो वह संगीता के प्यार की नैय्या में बैठ कर आगे की योजना बनाने लगा.

जितेंद्र ने अपना घर छोड़ा और संगीता ने अपने पति का घर छोड़ा. दोनों इंदौर महानगर के मूसाखेड़ी कस्बे में किराए के एक मकान में रहने लगे. जितेंद्र ने टै्रवल एजेंट का काम छोड़ दिया और अपनी वर्षों की कल्पना को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए. उस ने निश्चय कर लिया कि संगीता को फरजी पुलिसवाली बना कर आगे की जिंदगी खुशहाली से व्यतीत करेगा.

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जितेंद्र ने पत्नी लीना के आईडी कार्ड पर संगीता का फोटो लगा कर फरजी आईडी कार्ड भी बनवा दिया.  जितेंद्र ने लीना को नजदीक से देखा था, उस के हर गुणधर्म को वह जज्ब कर चुका था. उस ने संगीता को एकएक बात प्रेम से समझानी शुरू की. उसे बताया कि लीना कैसे चलती है कैसे बातें करती है. जितेंद्र ने संगीता को कुछ फिल्में भी दिखाईं ताकि पुलिस का रौब पैदा करना आ जाए. पुलिस वाली बन कर वह लोगों को डराधमका कर उन से मोटी रकम ऐंठ सके.

जितेंद्र जब पत्नी लीना को छोड़ कर संगीता के साथ रहने लगा तो लीना मन मसोस कर रह गई. उस ने एक दिन जितेंद्र से बात की और कहा, ‘‘तुम जो कर रहे हो, क्या यह ठीक है. जानते हो, लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा और मेरा क्या होगा?’’

ठगी के लिए छोड़ा पत्नी को

लीना की बातें सुन जितेंद्र कुछ क्षण मौन रहा फिर कहा, ‘‘लीना, कितना अच्छा होता तुम मेरी जिंदगी में नहीं आती. अब मुझे भूल जाओ.’’

लीना तड़प कर बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो, क्या शादी विवाह गुड्डे गुडि़यों का खेल है, जो भूलने की बात कह रहे हो.’’

‘‘जब हमारे आचार विचार नहीं मिलते तो हम एक साथ क्यों रहें. तुम्हारे साथ रहने पर मुझे घुटन होती है.’’ जितेंद्र ने कहा.

जितेंद्र को लीना ने समझाने का पूरा प्रयास किया, घर परिवार की दुहाई दी मगर उस ने उस की एक नहीं सुनी. वह संगीता के साथ मूसाखेड़ी में रहने लगा. लीना एकाकी जीवन यापन करने लगी. जबकि जितेंद्र संगीता के साथ खुश था क्योंकि संगीता लीना से ज्यादा सुंदर थी. इतना ही नहीं वह उस की एकएक बात मानती थी. साथ ही उस की अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों में उस की सहभागी भी बन गई थी.

दोनों ने महानगर इंदौर के लोगों को ठगना शुरू कर दिया. संगीता पुलिस की वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ कहीं भी पहुंच जाती और धौंस दे कर लोगों से रुपए वसूल करती. इस तरह दोनों मोटी कमाई कर के ऐश की जिंदगी जीने लगे.

दोनों ने थोड़े समय में ही पुलिस की वरदी की आड़ में लाखों रुपए की कमाई कर ली. जितेंद्र अवैध काम करने वालों पर पैनी निगाह रखता, उस ने कुछ ऐसे लोग से मित्रता कर रखी थी जो उसे अवैध काम करने वालों के ठिकाने बताते थे. इस के बदले में वह उन्हें अवैध वसूली में से कमीशन देता था.

नकली घी बनाने वाले एक व्यापारी से संगीता ने पुलिसिया रौब झाड़ कर 2 लाख रुपए की रकम वसूल की थी. कई जगह से अवैध वसूली के बाद संगीता की हिम्मत बढ़ गई थी. अब वह और भी निर्भीक हो कर अवैध काम करने वालों को धमकाती थी.

जितेंद्र को एक दिन पता चला कि शहर के एक इलाके में नामी कंपनी के नाम का नकली कोल्ड ड्रिंक बनाने की फैक्ट्री चल रही है. संगीता वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ उस जगह पहुंच गई. फैक्ट्री संचालक को हड़का कर दोनों ने उस से 2 लाख रुपए ऐंठ लिए.

जितेंद्र और संगीता की गतिविधियां बढ़ती जा रही थीं. यह सब करतेकरते संगीता यह तक भूल गई कि वह फरजी पुलिस वाली है. लेकिन वरदी और आईडी कार्ड होने की वजह से वह खुद को असली पुलिसकर्मी ही समझती थी.

वह समझती थी कि इंदौर इतना बड़ा महानगर है कि वह जितेंद्र के साथ इसी तरह लोगों को ब्लैकमेल कर के आनंदपूर्वक जीवन यापन करती रहेगी.

एक दिन लीना राय अपने औफिस में थी कि एक शख्स उसे बारबार देखता और चला जाता, 2-3 बार जब उस ने ऐसा ही किया तो लीना ने उसे पास बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम बारबार मुझे इतने गौर से क्यों देख रहे हो?’’

उस ने डरते हुए पूछा, ‘‘मैडम क्या आप ही लीना राय हैं?’’

लीना ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘हां, कहो क्या बात है?’’

‘‘मैडम, मैं ने एकांत नगर में लीना राय नाम की जो महिला देखी थी, वह तो कोई दूसरी थी.’’ उस ने बताया.

‘‘क्या मतलब?’’ लीना ने पूछा.

उस व्यक्ति ने बताया कि उस का नाम रमन गुप्ता है और वह गल्ले किराने का थोक व्यापारी है. रमन गुप्ता ने लीना को जो कुछ बताया, उसे सुन कर लीना राय चौंकी. उस ने बताया कि पिछले महीने  लीना राय नाम की एक महिला पुलिस वरदी में उस के पास आई थी और उस से एक लाख रुपए ले गई थी. उस पुलिस वाली ने उसे बताया था कि वह पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में बैठती है. कोई भी काम हो तो वहां आ जाना. इसलिए उन्हें ढूंढता हुआ यहां चला आया.

खबर पहुंच गई लीना तक

रमन गुप्ता की बात सुन कर लीना समझ गई कि जरूर यह काम उस के पति जितेंद्र के साथ रहने वाली संगीता का होगा, क्योंकि उसे और भी कई लोगों ने बताया था कि संगीता पुलिस वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ घूमती है.

रमन गुप्ता के जाने के बाद लीना ने तय कर लिया कि कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. नहीं तो जितेंद्र की गतिविधियां उस के गले की फांस बन सकती है.

लीना उसी शाम जितेंद्र को ढूंढती हुई मूसाखेड़ी पहुंच गई. मगर घर में ताला लगा था. उस ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की तो भी बातचीत नहीं हो सकी. उस दिन वह घर लौट आई. लेकिन एक दिन फिर से उस के यहां गई तो जितेंद्र घर पर मिल गया.

जितेंद्र ने अपनी ब्याहता लीना को देखा तो चौंका, ‘‘अरे लीना तुम.’’

लीना मुसकराई, ‘‘जितेंद्र तुम मुझे भूल सकते हो मगर मैं तुम्हें कैसे भूल सकती हूं.’’ लीना ने प्रेम भरे अल्फाजों में कहा तो जितेंद्र की सांस में सांस आई.

कुछ बातचीत करने के बाद लीना ने घर में इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो संगीता नहीं दिखी. उस ने जितेंद्र से पूछा, ‘‘वह कहां है?’’

‘‘कौन, संगीता!’’ जितेंद्र ने कहा, ‘‘संगीता बाजार गई है सब्जी लाने.’’

‘‘यह तो बड़ा अच्छा हुआ. हम आराम से बैठ कर बातें कर सकते हैं.’’ लीना ने प्यार जताते हुए जितेंद्र से कहा, ‘‘क्या तुम मुझे चाय नहीं पिलाओगे.’’ लीना जानती थी कि जितेंद्र रसोई के काम भलीभांति कर लेता है और वह उसे अकसर चाय बना कर पिलाया करता था.

जितेंद्र मुसकरा कर उठा और चाय बनाने चला गया. जितेंद्र का मोबाइल वहीं रखा था. लीना ने झट से मोबाइल उठा लिया और फोन की गैलरी देखने लगी. गैलरी में संगीता के कुछ फोटो मिले, जिस में वह पुलिस की वरदी पहने हुई थी.

लीना ने उन फोटो को तुरंत अपने वाट्सएप में सेंड कर लिया. इस तरह उसे एक बड़ा सबूत मिल गया. वह समझ गई संगीता पुलिस वाली बन कर क्या कर रही है. इस का मतलब रमन गुप्ता सही कह रहा था. जितेंद्र के कमरे में रखे सामान देख कर वह समझ गई कि फरजी पुलिस वाली बन कर संगीता मोटा पैसा कमा रही है.

जितेंद्र चाय ले कर आया तो लीना वहां से जा चुकी थी. लीना सीधे एएसपी अमरेंद्र सिंह के पास पहुंची और उस ने संगीता द्वारा फरजी पुलिस बन कर लोगों से पैसे ऐंठने वाली बात उन्हें बता दी.

एएसपी अमरेंद्र सिंह ने आजाद नगर के टीआई संजय शर्मा को मामले की जांच कर सख्त काररवाई करने के आदेश दिए. टीआई संजय शर्मा ने 13 जुलाई, 2019 को जितेंद्र राय और संगीता के घर दबिश डाल कर दोनों को ही गिरफ्तार कर लिया.

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                        आरोपी संगीता सुसनेर और जितेंद्र राय 

थाने ला कर दोनों से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने तमाम लोगों से मोटी रकम ऐंठने की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने संगीता सुसनेर और जितेंद्र राय के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 469, 471, 380, 120बी के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने पुलिस की वरदी, कैप, आईडी कार्ड बरामद कर लिया. 14 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

22 साल से लापता बेटा जब संन्यासी बन कर लौटा

किसी चमत्कार के इंतजार में सालों से दिन गुजार रहे रतिपाल और घर वालों को 22 साल बाद साधु वेश में अपना खोया बेटा पिंकू मिला तो सब की आंखें छलक उठीं थीं. बेटा मिलने की खुशी में रतिपाल ने दिल्ली से अपनी पत्नी माया देवी को भी बुला लिया. खोए बेटे पिंकू को साधु वेश में देखते ही मां भावुक हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

दरअसल, संन्यासी की पारंपरिक पोशाक में आए एक युवक ने सारंगी बजा कर भिक्षा देने की गुहार लगा कर जैसे ही एक रुदन गीत गाना शुरू किया तो उसे सुन कर बड़ी संख्या में गांववाले एकत्र हो गए. जोगी ने अपने आप को गांव के ही रहने वाले रतिपाल सिंह का गायब हुआ बेटा बताया. रुदन गीत सुन कर गांव की महिलाओं और पुरुषों के साथ ही रतिपाल के घर वालों की आंखों से आंसू झरने लगे.

दरअसल, 22 साल से लापता अरुण उर्फ पिंकू के लौटने की खुशी में पूरा गांव रो पड़ा. घर वालों के आंसू तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. यह दृश्य उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के थाना जायज के गांव खरौली का था. तारीख थी 28 जनवरी, 2024.

Jogi or Sathi ke Ane Par Ekatra Ganv Wale

बताते चलें कि साधु के वेश में अपने एक साथी के साथ आया वह युवक गांव के ही रतिपाल सिंह का बेटा अरुण उर्फ पिंकू था, जो 22 साल से अधिक समय तक लापता रहने के बाद अब संन्यासी के वेश में उन के सामने था. जब पिंकू लापता हुआ, उस समय वह 11 साल का था. अब पिंकू जोगी बन कर अपने गांव में मां से भिक्षा लेने पहुंचा था. इतने लंबे समय बाद अपने खोए बेटे को संन्यासी के रूप में सामने देख पिता व अन्य परिजन भावुक हो गए.

मां माया देवी, पिता रतिपाल के अलावा पिंकू की बुआओं उर्मिला व नीलम ने भी साधु वेश में आए पिंकू से गृहस्थ जीवन में लौटने की मिन्नतें कीं. लेकिन युवक की जुबान पर एक ही रट थी, ‘आप से भिक्षा लिए बिना मेरी दीक्षा पूरी नहीं होगी. गुरु का आदेश है कि मां के हाथ से भिक्षा पाने के बाद ही योग सफल होगा.’ उस ने कहा, ‘मां, यदि आप भिक्षा नहीं दोगी तो मैं दरवाजे की मिट्टी को ही भिक्षा के रूप में स्वीकार कर चला जाऊंगा.’

अब बेटा नहीं संन्यासी हूं मैं

साधु ने कहा, ”माई, मैं अब आप का बेटा पिंकू नहीं, बल्कि संन्यासी हूं. मैं भिक्षा ले कर वापस झारखंड स्थित पारसनाथ मठ में दीक्षा पूरी करने के लिए चला जाऊंगा.’’

साधु की बातें सुन कर रतिपाल और उन की पत्नी का कलेजा बैठ गया. उन्होंने उसे मनाने के साथ ही कहीं भी जाने से मना किया.

साधु खरौली गांव में 22 जनवरी, 2024 से ही आनेजाने लगा था. वह साथी के साथ आधे गांव में चक्कर लगा कर सारंगी व ढपली पर भजन गाता था. इस के बाद शाम होते ही वापस चला जाता.

रतिपाल मूलरूप से गांव खरौली के रहने वाले हैं. गांव में उन का छोटा भाई जसकरन सिंह, भतीजे व अन्य लोग रहते हैं. गांव में उन की खेती की जमीन भी है. 11वीं पास करने के बाद उन की शादी हो गई थी. साल 1986 में वह दिल्ली आ गए. यहां उन के एक बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने अरुण रखा. घर में सभी प्यार से उसे पिंकू के नाम से पुकारते थे.

Arun Pankoo Birthday Par Kek Khata Huaa

                                      पिंकू के बचपन की तस्वीर

जब पिंकू 5-6 साल का था, उस की मां भानुमति बीमार हो गई. 3 साल तक उन का दिल्ली में इलाज चलता रहा, लेकिन उन की मृत्यु हो गई. रतिपाल ने बच्चे की परवरिश व अपनी आगे की जिंदगी के लिए वर्ष 1998 में माया देवी से दूसरी शादी कर ली. सब कुछ ठीक चल रहा था.

डांटने से गुस्से में घर से चला गया था पिंकू

कंचे खेलने पर मां की डांट से गुस्से में आ कर साल 2002 में 11 साल की उम्र में पिंकू अपने घर से कहीं चला गया. उस समय वह दिल्ली के शहादतपुर स्थित स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ता था. घर वालों ने पिंकू को काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिलने पर पिता रतिपाल ने दिल्ली के थाना खजूरी खास में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

समय गुजरता गया लेकिन लापता बेटा नहीं मिला. रतिपाल हफ्ते दस दिन में थाने जा कर पुलिस से अपने खोए बेटे के बारे में जानकारी लेते, लेकिन उन्हें हर बार एक ही जबाव मिलता कि तलाशने पर भी आप का बच्चा नहीं मिल रहा है.

रतिपाल ने अपने स्तर से भी बच्चे को तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. अपने इकलौते बेटे के इस तरह घर से चले जाने पर मातापिता ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब्र कर लिया.

27 जनवरी, 2024 को खरौली में रह रहे भतीजे दीपक ने दिल्ली रतिपाल के पास फोन किया, ”चाचा, साधु भेष में एक युवक 22 जनवरी से गांव में आया हुआ है, जो अपने को आप का खोया हुआ बेटा अरुण उर्फ पिंकू बता रहा है. जब उस से पिंकू की कोई पहचान बताने को कहा तो उस ने कहा कि पिता जब खुद देख कर बताएंगे, तभी पहचान सभी गांव वालों को दिखाऊंगा. चाचा, आप गांव आ कर देख लो. साधु कल आने की बात कह कर रायबरेली से लगभग 30 किलोमीटर दूर बछगांव स्टेशन जाने की बात कह कर चला गया है.’’

बेटे से मिलने की चाहत और मन में ढेरों सवाल लिए रतिपाल अपनी बहन नीलम के साथ दिल्ली से गांव खरौली 28 जनवरी को ही पहुंच गए. दूसरे दिन वह साधु अपने एक साथी के साथ सुबह 11 बजे गांव आया. आधे गांव का चक्कर लगाता और सारंगी पर भजन गाते हुए साधु रतिपाल के घर पर पहुंचा.

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पिंकू निकला नफीस

साधु ने देखते ही पापा व बुआओं को पहचान लिया. साधु ने उन्हें बताया कि वह वास्तव में उन का बेटा पिंकू है. वह संन्यासी हो गया है, भिक्षा मांगने आया हुआ है. रतिपाल ने उस के पेट पर बचपन की चोट के निशान को देखने के बाद अपने खोए बेटे अरुण उर्फ पिंकू के रूप में उस की पहचान की.

बेटे की खातिर रतिपाल सब कुछ न्यौछावर करने को हो गया तैयार

बचपन में खोए बेटे को 22 साल बाद दरवाजे पर देख पिता व परिजनों की उम्मीद लौट आई थी. आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी. स्नेह ऐसा जागा कि भींच कर उसे सीने से लगा लिया. बेटे को घर लाने के लिए पिता सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार था.

खोए बेटे के मिलने पर रतिपाल ने घर पर साधु व उस के साथी के साथ भोजन भी किया. अब साधु रतिपाल को पापा तथा रतिपाल उसे पिंकू कह कर पुकारने लगे थे. रतिपाल ने खोए बेटे के मिलने की खुशखबरी अपनी रिश्तेदारी में भी दे दी थी. इस पर कई रिश्तेदार गांव आ गए थे.

एक सप्ताह तक वह जोगी अपने साथी के साथ रोजाना गांव आता और शाम होते ही वापस चला जाता. इस दौरान उस की रतिपाल और परिजनों से बातें भी होतीं. भोजन भी पापा के साथ करता. अपने पापामम्मी व अन्य घर वालों के प्यार को देख कर पिंकू का झुकाव भी उन की ओर होने लगा.

वहीं रतिपाल की बूढ़ी आंखों ने अपने खोए बेटे को 22 साल बाद देखा तो प्यार फफक पड़ा. खोए बेटे को किसी भी तरह वापस पाने के लिए परिवार तड़प उठा. सभी के प्रयास विफल होने पर रतिपाल ने जोगी से किसी भी तरह घर लौटने की गुजारिश की.

इस पर उस ने कहा, ”पापा, आप मेरे गुरु महाराज से बात कर मुझे आश्रम से छुड़ा लो.’’

”पापा, आश्रम से गुरुजी ने मुझे दीक्षा के दौरान लंगोटी, कमंडल व अंगवस्त्र दिए हैं. मठ की प्रक्रिया पूरी करनी होगी. मठ का सामान वापस करना होगा.’’

तब रतिपाल ने कहा, ”बेटा, तुम गुरुजी से बात कर प्रक्रिया के बारे में बताना. मैं तुम्हें घर लाने के लिए प्रक्रिया पूरी कर दूंगा.’’

अनाज व नकदी दे कर किया विदा

दिल पर पत्थर रख कर घर वालों व गांव वालों ने भिक्षा के रूप में उसे 13 क्ंिवटल अनाज और रतिपाल ने जोगी बने बेटे पिंकू को संपर्क में बने रहने के लिए एक नया मोबाइल फोन व नकदी दे कर पहली फरवरी को विदा किया. रतिपाल की बाराबंकी में रहने वाली बहन निर्मला ने पिंकू द्वारा बताए खाते में 11 हजार रुपए की रकम ट्रांसफर कर दी.

पिंकू ने कहा कि वह यहां से सभी सामान ले कर अयोध्या जाएगा, जहांं साधुओं को भंडारा कराएगा. सामान पहुंचाने के लिए रतिपाल ने एक वाहन का इंतजाम कर दिया. पहली फरवरी, 2024 को जोगी अपने साथी के साथ सामान ले कर चला गया. रतिराम, पत्नी माया देवी परिजनों के साथ ही गांव वालों ने भारी मन से जोगी को विदा किया.

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घर से भिक्षा ले कर जाने के बाद संन्यासी बेटे पिंकू का मन पसीज गया. दूसरे दिन उस ने फोन कर पिता से घर लौटने की इच्छा जताई. बेटे के गृहस्थ जीवन में लौटने की बात सुन कर रतिराम की खुशी का पारावार नहीं रहा. उस ने बताया कि गुरु महाराज का कहना है कि गृहस्थ आश्रम में लौटने के लिए दीक्षा के रूप में 10.80 लाख रुपए चुकाने पड़ेंगे.

रतिपाल ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई. इतना ही नहीं, पिंकू ने पिता की मठ के गुरु महाराज से फोन पर बात भी कराई. लेकिन इतनी बड़ी रकम देने की उन की हैसियत नहीं थी. तब 4.80 लाख देने की बात कही गई.

गुरुओं की दीक्षा चुकाने की शर्त पर पिता ने आखिरकार बेटे को पाने के लिए 3 लाख 60 हजार रुपए में हां कर दी.

मठ का खाता न बताने पर हुआ शक

बेटे को वापस पाने के लिए मजबूर पिता ने 14 बिस्वा जमीन का सौदा गांव के ही अनिल कुमार वर्मा से 11 लाख 20 हजार रुपए में तय कर लिया. 3-4 दिन रतिपाल को पैसों का इंतजाम करने में लग गए.

इस के बाद साधु पिंकू की ओर से बताए गए आईसीआईसीआई बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करने भाई जसकरन व भतीजे धर्मेश के साथ पहुंचे. रतिपाल ने बताया, बैंक मैनेजर ने उन से कहा कि एक दिन में 25 हजार से ज्यादा रुपए ट्रांसफर नहीं हो सकते. पिंकू ने यूपीआई से भुगतान करने को कहा.

रतिपाल ने पिंकू से कहा कि अपने मठ के ट्रस्ट का बैंक खाते का नंबर दे दो, उस पर भुगतान कर देंगे. इस के बाद वहां आ कर तुम्हें अपने साथ घर ले आएंगे तो साधु ने मना कर दिया. यहीं से रतिपाल को कुछ शक होने लगा. तब प्रशासन से उन्होंने मदद मांगी.

रतिपाल सिंह समझ गए कि बेटे पिंकू के रूप में आया जोगी कोई ठग है. उस ने उन की भावनाओं का सौदा किया है. रतिपाल ने 10 फरवरी, 2024 को थाना जायस में 2 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 419 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कराई.

एसएचओ देवेंद्र सिंह ने रिपोर्ट दर्ज करने के बाद इस केस की जांच बहादुरपुर चौकी प्रभारी राजकुमार सिंह को सौंपी. आरोपी का मोबाइल बंद आने पर उसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

इस के बाद रतिपाल को जब शंका हुई तो उन्होंने अपने स्तर से जांचपड़ताल करनी शुरू कर दी. उन के हाथ उसी साधु बने युवक के कई फोटो और वीडियो लग गए हैं. रतिपाल ने बताया कि उन्होंने झारखंड के एसपी से फोन पर बात की. पूरा प्रकरण बताया. एसपी को जोगी का मोबाइल नंबर भी दिया.

उन्होंने अपने स्तर से जांच कराई फिर फोन कर बताया कि यह नंबर झारखंड में नहीं, बल्कि गोंडा में चल रहा है. इस के साथ ही झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. उन्होंने कहा कि उसे पकड़ा जाए और यदि वह गलत है तो सजा मिले.

जोगी की सच्चाई पता करने के लिए रतिपाल ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. जिस गुरु का नाम बताया, वह भी गलत निकला. दीक्षा में मिले 13 क्विंटल अनाज व अन्य सामान को पिकअप में ले कर साधु अयोध्या जाने की कह कर गया था. पिकअप चालक  के साथ रतिपाल अयोध्या पहुंचे तो वहां कोई नहीं मिला. पिकअप चालक ने बताया कि अरुण अयोध्या न जा कर उसे गोंडा ले गया था, वहीं सारा सामान उतरवाया था.

गोंडा की जिस आईसीआईसीआई बैंक के खाते का नंबर साधु ने रतिपाल को दिया था वह खाता आशीष कुमार गुप्ता, आशीष जनरल स्टोर मुंबई का निकला. बाराबंकी में रहने वाली रतिपाल की बहन निर्मला ने उसी खाते में 11 हजार रुपए की धनराशि ट्रांसफर की थी.

रतिपाल ने बताया कि उन्होंने पुलिस को बैंक स्टेटमेंट सौंप दिया है. उन्होंने बताया कि उन्हें मीडिया के माध्यम से पता चला है कि साधु के भेष में आया युवक जो अपने को उन का खोया बेटा पिंकू बताता था, उस युवक का नाम नफीस है.

ठगी के लिए साधु का वेश धारण किया

सीओ (तिलोई) अजय सिंह ने बताया कि मामला ठगी से जुड़ा हुआ है. पूरे मामले पर मुकदमा पंजीकृत कर मामले की छानबीन की जा रही है. जल्द से जल्द इस पूरे मामले में कड़ी से कड़ी काररवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि 10 फरवरी को जायस थाना क्षेत्र के खरौली गांव निवासी रतिपाल सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

गोंडा के एसपी विनीत जायसवाल ने बताया, ”टिकरिया गांव में रहने वाले कई लोगों द्वारा जोगी बन कर जालसाजी करने की शिकायत मिली है. 2 आरोपियों द्वारा अमेठी जिले में भी साधु वेश बना किसी को झांसा देने का मामला प्रकाश में आया है. पुलिस को तलाश के निर्देश दिए गए हैं.’’

रिपोर्ट दर्ज होने और उच्चाधिकारियों के निर्देश के बाद जायस थाने की पुलिस सक्रिय हो गई. रतिपाल ने बताया कि 16 फरवरी, 2024 को एक प्राइवेट वाहन से जायस पुलिस के साथ गोंडा कोतवाली देहात की सालपुर पुलिस चौकी पहुंचे. वहां के चौकी इंचार्ज पवन कुमार सिंह से मिले, उन्होंने जांच में पूरा सहयोग करने की बात कही. इस चौकी से कुछ दूरी पर ही टिकरिया गांव है.

उन्होंने कहा कि गोंडा की सालपुर चौकी पर उन्हें 5 घंटे तक बैठाया गया. कहा कि आप यहीं बैठो, पुलिस दबिश देने जा रही है. नफीस के घर पहुंची पुलिस टीम सब से पहले नफीस के परिवार से मिली. उस समय घर पर बुजुर्ग महिलाएं ही थीं. उन्होंने बताया कि 25 वर्षीय नफीस करीब एक महीने से घर से बाहर है.

पुलिस को आया देख कर आरोपी गन्ने के खेत में भाग गया था. पुलिस ने उसे पकडऩे का प्रयास किया, लेकिन वह हाथ नहीं आया. पुलिस ने बताया, पिंकू बन कर घर पहुंचा ठग टिकरिया निवासी सिजाम का बेटा नफीस है, जो ठगी के मामले में पहले भी जेल जा चुका है.

जबकि उस का भाई राशिद 29 जुलाई, 2021 को जोगी बन कर मिर्जापुर के गांव सहसपुरा परसोधा निवासी बुधिराम विश्वकर्मा के यहां उन का 14 साल पहले लापता हुआ बेटा रवि उर्फ अन्नू बन कर पहुंचा था. मां से भिक्षा मांगी ताकि उस का जोग सफल हो जाए. परिजनों ने बेटा मान कर उसे घर में रख लिया. कुछ दिन बाद वह लाखों रुपए ले कर फरार हो गया था. बाद में पकड़ा गया और जेल गया.

पुलिस की दस्तक के चलते नफीस, उस के दोनों भाई दिलावर और राशिद समेत अधिकांश तथाकथित साधु अंडरग्राउंड हो गए. उस का एक रिश्तेदार असलम भी ऐसे मामले में वांछित चल रहा है. नफीस का मोबाइल बंद है.

पड़ताल में सामने आया कि नफीस के ससुर का भाई असलम उर्फ लंबू घोड़ा भी वाराणसी में जेल जा चुुका है. तब पुलिस ने शिकायत के आधार पर एक परिवार को इसी तरह जोगी का झांसा दे कर ठगने के बाद उसे दबोच लिया था.

पेट के टांकों को देख कर की पहचान

रतिपाल ने बताया कि 22 साल पहले उस का 11 वर्षीय बेटा अरुण उर्फ पिंकू घर से कहीं चला गया था. एक बार वह सीढ़ी से गिर गया था, जिस से उस के पेट में अंदरूनी चोट आई थी. इस बात का 6 माह तक पता नहीं चला. पिंकू की आंत सड़ गई थी, जिस के चलते उस का औपरेशन दिल्ली के कृष्णा नगर स्थित होली चाइल्ड अस्पताल में हुआ था. उस के 14 टांके आए थे.

साधु के भेष में आए व्यक्ति ने उन्हें टांकों के निशान दिखाए थे. लेकिन वे असली थे या बनाए हुए थे, ये नहीं पता. रतिपाल सिंह पहले अपनी बहन नीलम के साथ खरौली गांव पहुंचे थे. खबर दिए जाने पर बहन उर्मिला भी आ गई थी. उन्होंने अपनी पत्नी माया देवी को घर पर ही बच्चों की देखभाल के लिए छोड़ दिया था. खोए पिंकू की पहचान हो जाने के बाद उन्होंने पत्नी को भी गांव बुला लिया था.

रतिपाल की दूसरी शादी के बाद 4 बच्चे हुए. 2 बेटी व 2 बेटे हैं. बड़ी बेटी 24 वर्ष की है. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है. एक बेटा 12वीं तथा सब से छोटा 9वीं में पढ़़ रहा है. वे घर पर ही बर्थडे में बच्चों के लगाए जाने वाली कैप बनाने का कार्य पत्नी के सहयोग से कर गुजरबसर करते हैं.

पूरा परिवार जिस युवक को अपना खोया बेटा पिंकू मान कर प्यार लुटा रहा था. असल में वह जालसाज गोंडा जिले के टिकरिया गांव  का नफीस निकला. टिकरिया के 20-25 लोगों का गैंग कई राज्यों में सक्रिय है. वह खोए बच्चों के बारे में जानकारी करने के बाद परिजनों की भावनाओं से खिलवाड़ कर ठगी करने का काम करते हैं.

साइबर सेल प्रभारी बृजेश सिंह का कहना है कि किसी गांव में बच्चों के खोने या लापता होने पर परिजन खुद उस का प्रचार प्रसार करते हैं. इस प्रचार से उन्हें आस होती है कि शायद कोई व्यक्ति उन की खोई संतान को वापस मिला देगा. पैंफ्लेट व अखबारों से भी पहचान के लिए चोट के निशानों का उल्लेख किया जाता है. ठगों का यह गैंग स्थानीय स्तर पर जानकारी एकत्र कर इसी का फायदा उठा कर ठगी करता है.

मातापिता की भावनाओं से खेल कर संपत्ति व धन हड़पने का नफीस का षडयंत्र विफल हो गया. 22 साल पहले लापता बेटा पिंकू बन कर गांव जायसी पहुंचा साधु वेशधारी पुलिस जांच में गोंडा के गांव टिकरिया निवासी नफीस और उस का साथी पट्टर  निकला. गांव वालों ने वायरल वीडियो में भी दोनों की तस्दीक की. पुलिस की सक्रियता से ठगी की मंशा का खुलासा हुआ तो ठग और उस का साथी दोनों फरार हो गए.

गोंडा में पड़ताल करने पर पता चला कि टिकरिया गांव के कुछ परिवार इस तरह की ठगी करते हैं. उन का एक गैंग ठगी का काम करता है. ठगी जेल तक जा चुकी है. उन्हीं में से एक नफीस का भी परिवार है.

नफीस मुकेश (मुसलिम) का दामाद है. उस की पत्नी का नाम पूनम है. उस का एक बेटा अयान है. ठग साधु कहता था कि उस ने झारखंड के पारसनाथ मठ में दीक्षा ली है. मठ के गुरु का आदेश था कि अयोध्या में दर्शन के बाद गांव जा कर अपनी मां से भिक्षा मांगना, तभी दीक्षा पूरी होगी. सच यह है कि झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. बेटा बन कर अब तक नफीस कई लोगों को चूना लगा चुका है.

रतिपाल का कहना है कि दोनों ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी है. दोनों ठग अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. जिस बैंक खाते में 11 हजार रुपए बहन निर्मला ने जमा कराए थे, उस खाते वाले को पकड़ा जाए, जिस से स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और इन ठगों का गैंग पकडऩे में मदद मिलेगी.

पुलिस फरार चल रहे दोनों साधु वेशधारी ठगों की सरगरमी से तलाश में जुटी है. पुलिस का कहना है कि समय रहते इन ठगों का भेद खुल जाने से रतिपाल व उन का परिवार बहुत बड़ी ठगी व मुसीबत से बच गए.

पिता रतिपाल को पुत्र वियोग और मिलन के बाद उसे दोबारा पाने की चाह है, लेकिन किसी षडयंत्र की आशंका भी है. उन का कहना है कि खोया हुआ बेटा इस समय 33 वर्ष का होता.

—कथा पुलिस व परिजनों से की गई बातचीत पर आधारित

जादूगर का आखिरी जादू

बीते 16 जून की बात है. उस दिन पश्चिम बंगाल के हावड़ा शहर में हुगली नदी के किनारे सुबह से ही लोगों का हुजूम जुटने लगा था. इन लोगों को इंतजार था जादूगर चंचल लाहिड़ी के आने का. कोलकाता के मशहूर जादूगर चंचल ने उस दिन हैरतअंगेज कारनामा दिखाने की घोषणा की थी. चंचल पश्चिम बंगाल में जादूगर ‘मैंडे्रक’ के नाम से मशहूर थे.

जादूगर चंचल जो नायाब कारनामा दिखाने जा रहे थे, वह जादुई करतब दुनिया के महान अमेरिकी जादूगर हैरी हुडिनी से मशहूर हुआ था. करीब सौ साल पहले जादूगर हुडिनी ने खुद को एक पिंजरे में बंद कर ताले लगवा दिए थे. यह पिंजरा गहरे पानी में डुबो दिया गया. इस के बाद हुडिनी अपने जादू की कला से पिंजरे के ताले खोल कर कुछ ही देर में पानी की सतह पर आ गए. यह खेल दिखा कर जादूगर हुडिनी ने अपना नाम पूरी दुनिया में अमर कर लिया था.

कोलकाता के मशहूर जादूगर चंचल ने जादूगर हुडिनी के इसी करतब को दिखाने की तैयारी की थी. चंचल यह कारनामा तीसरी बार दिखाने जा रहे थे. सब से पहले मैंड्रेक यानी चंचल ने यह कारनामा 1998 में दिखाया था. इस के बाद दूसरी बार 2013 में भी उन्होंने यह करतब दिखा कर पूरे देश में अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी. अपनी लोकप्रियता के चलते जादूगर चंचल विभिन्न राज्यों में अपने जादू का प्रदर्शन करने लगे थे.

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जादूगर चंचल ने पानी की सतह पर चलने का करतब दिखाने की भी घोषणा कर रखी थी. जब वे प्रचार के लिए निकलते थे, तो गाड़ी के साथ करीब 10 फुट ऊंचाई पर हवा में चलते थे. भीड़ भरी सड़कों पर जादूगर का इस तरह का लाइव कारनामा देख कर दर्शक रोमांचित हो जाते थे.

इस से पहले 2013 में यही करतब दिखाते समय जादूगर चंचल की बचने की कला को दर्शकों ने पकड़ लिया था. उस समय चंचल को शीशे के पारदर्शी बौक्स में तालों से बंद कर हुगली नदी में फेंका गया था. तब वे 29 सेकंड में पानी से बाहर आ गए थे. दरसअल  जादूगर चंचल ने पानी में बौक्स फेंके जाने के बाद उसे अपने तरीके से खोला और बाहर आ गए थे.

यह बौक्स इस तरह से बना हुआ था कि आम दर्शक को इस बात का पता नहीं चल सकता था कि ताले लगाने के बाद बौक्स का एक गेट खुल जाता है. जादूगर ने पानी के अंदर इसी गेट से खुद को बाहर निकाल कर दर्शकों को जादू का अहसास कराया था.

पता नहीं कहां गलती हुई कि दर्शकों को इस बौक्स के गेट से जादूगर के निकलने का पता चल गया और बाहर निकलने पर उन्होंने चंचल को घेर लिया. दर्शकों की भीड़ ने चंचल की सुनहरी विग भी खींच ली थी. उस समय बड़ी मुश्किल से दर्शकों को समझा कर शांत किया गया था.

अब तीसरी बार यही कारनामा दिखाने के लिए जादूगर चंचल के सहयोगियों ने पूरी तैयारी कर ली थी. सारे आवश्यक साजोसामान भी जुटा लिए गए थे. इस के लिए पुलिस और प्रशासन को आवश्यक पत्र भी दिया गया था.

निर्धारित दिन 16 जून को जादूगर के सहयोगियों का दल हावड़ा ब्रिज के पास पहुंच गया. सुबह करीब 10 बजे के आसपास जादूगर चंचल भी वहां आ गए. तब तक जादूगर का अनूठा कारनामा देखने के लिए वहां हजारों लोगों की भीड़ एकत्र हो चुकी थी.

चंचल ने हाथ हिला कर दर्शकों की भीड़ का अभिवादन किया. जादूगर चंचल ने इस दौरान दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर मैं यह खतरनाक करतब दिखाते हुए नदी से सफलतापूर्वक बाहर आ गया, तो यह जादू होगा और अगर नहीं आ सका तो दुखांत होगा.

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हावड़ा ब्रिज के नीचे पहले से ही 2 जलयान तैयार खड़े थे. जादूगर चंचल इन में से एक जलयान पर चढ़ गए. दूसरे पर उन के सहयोगियों की दूसरी टीम सवार थी, जो पूरे दृश्य को कैमरे में कैद कर रही थी.

हजारों लोगों की मौजूदगी में एक जलयान पर सवार सहयोगियों ने चंचल के हाथपैर मोटी रस्सी और जंजीरों से बांध दिए. जंजीर को 2 तालों से जड़ दिया गया ताकि जादूगर आसानी से न तो अपने हाथपैर हिला सके और न ही ताले खोल सकें. इस के बाद जादूगर की आंखों पर पट्टी बांध दी गई.

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पूरी तैयारी के बाद दोपहर करीब 12.30 बजे रस्सी और जंजीरों से बंधे जादूगर को क्रेन में लंबी रस्सी लटका कर हुबली व गंगा नदी के बीच पानी की तेज धारा में फेंक दिया गया. नदी में फेंके जाने से पहले जादूगर चंचल ने हाथपैर बंधे होने और आंखों पर पट्टी होने के बावजूद एक बार फिर दर्शकों का अभिवादन करने का प्रयास किया. इस पर दर्शकों ने तालियां बजा कर, जयकारे लगा कर जादूगर की हौसला अफजाई की.

जादूगर को नदी के गहरे पानी में फेंके जाने के बाद वहां खड़ी हजारों की भीड़ बिना पलक झपकाए नदी के पानी की सतह पर जादूगर के दिखने का इंतजार करने लगी, दर्शकों को कुछ सेकंड के लिए एक बार जादूगर नदी की सतह पर नजर जरूर आए लेकिन फिर अचानक गायब हो गए और फिर दिखाई नहीं दिए.

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जादूगर को 5-7 मिनट के दरम्यान अपनी कला के बल पर रस्सी, जंजीरों और तालों से मुक्त हो कर नदी की सतह पर आ जाना था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

लोग टकटकी लगाए जादूगर चंचल के फिर से दिखाई देने का इंतजार कर रहे थे. दर्शकों को एकएक पल मुश्किल लग रहा था. 5 मिनट क्या, जादूगर चंचल को नदी में डाले 15 मिनट से ज्यादा का समय हो चुका था. लेकिन वे नजर नहीं आए.

इस से हजारों दर्शकों के साथ उन के सहयोगियों की बेचैनी भी बढ़ गई. काफी देर इंतजार के बाद अधिकांश दर्शक निराश हो कर लौट गए. सैकड़ों दर्शक वहां रुक कर अगले समाचार का इंतजार करते रहे.

इसी बीच, जादूगर के सहयोगियों ने चंचल की तलाशी के लिए अपने कुछ साथियों को नदी में उतार दिया था. लेकिन जादूगर का कुछ पता नहीं चला. इस के बाद पुलिस को सूचना दे दी गई. सूचना मिलने पर रिवर ट्रैफिक पुलिस जादूगर की तलाश में जुट गई.

बाद में आपदा प्रबंधन टीम और गोताखोर भी आ गए. जिस पिंजड़े में जादूगर को नदी की धारा में फेंका गया था, वह तो मिल गया लेकिन चंचल का कोई पता नहीं चला. इस का मतलब चंचल हाथपैर खोल कर पिंजरे से बाहर तो निकल गए थे, लेकिन किन्हीं कारणों से पानी के सतह से ऊपर नहीं आ सके थे.

इस का मतलब था कि जादूगर के साथ कोई दुर्घटना हो गई थी. फिर भी शाम तक नदी में जादूगर की तलाश होती रही, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. रात को अंधेरा हो जाने के कारण बचाव अभियान रोक दिया गया.

इस बीच, जादूगर के सहयोगियों को कुछ लोगों से पता चला कि घटनास्थल से दूर उन्होंने नदी की तेज धारा में पीले कपड़े पहने हुए एक आदमी को हाथ मारते और बचाव की कोशिश करते देखा था. इन परिस्थितियों में बचाव दल और चंचल के सहयोगियों को जादूगर के जीवित होने की उम्मीद कम ही रह गई थी.

दूसरे दिन 17 जून को रिवर ट्रैफिक पुलिस और आपदा प्रबंधन की टीम के साथ गोताखोर हुगली नदी में जादूगर चंचल की तलाश में फिर से जुट गए. दिनभर तलाशी का काम चलता रहा. इस दौरान वहां हजारों लोग आतेजाते रहे. अधिकारी भी आए गए.

जादूगर के सहयोगियों का दल तो 16 जून की सुबह से ही बिना कुछ खाए पिए वहीं डटा हुआ था. उन की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी. वे समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्या हुआ, जो जादूगर वापस नहीं आ सके. यह तय था कि जादूगर की कला में कोई कमी रह गई थी.

लगभग 30 घंटे तक चले खोज अभियान के बाद 17 जून की शाम को जादूगर मैंड्रेक का शव हावड़ा के रामकृष्णपुर घाट के पास बरामद हुआ. उन का शव नाव से कदमतल्ला घाट पर लाया गया.

चंचल की पहचान उन के पहने कपड़ों से की गई. करतब दिखाने के लिए वे पीले रंग की शर्ट, लाल पैंट और पीले रंग के नकली बाल पहन कर नदी में कूदे थे. उन का शव देख कर उन के सहयोगी फूटफूट कर रोने लगे. वहां मौजूद चंचल के शुभचिंतकों की आंखों से भी आंसू आ गए.

पुलिस ने आवश्यक काररवाई के बाद इस मामले को धारा 304 के तहत नौर्थ पोर्ट थाने में दर्ज कर लिया. पुलिस का कहना था कि जादूगर ने करतब दिखाने और उस से होने वाले जोखिम की आवश्यक अनुमति नहीं ली थी. जिस जलयान से जादूगर नदी में उतरे थे, उस में जीवनरक्षक व्यवस्था नहीं थी.

जिस क्रेन के सहारे जादूगर को हाथपैर बंधी हालत में नदी में फेंका गया, उस क्रेन के लिए पोर्ट ट्रस्ट से अनुमति नहीं ली गई थी. पुलिस ने 18 जून को जादूगर के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उन के घर वालों को सौंप दिया.

इस बीच, जादूगर चंचल के सहायक और भतीजे रुद्रप्रसाद लाहिड़ी ने दावा किया कि जादूगर चंचल यानी मैंड्रेक अपनी जादू की कला से सारे बंधन खोल कर नदी की सतह पर आ गए थे और उन्होंने हाथ भी हिलाया था. लेकिन फिर अचानक गायब हो गए. पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जादूगर ने करतब दिखाने की अनुमति लेते समय नियमों की कमी का फायदा उठाया हो और अपनी जान से हाथ धो बैठे हों.

कहा जा रहा है कि जादूगर ने पुलिस को अनुमति देने के लिए दिए पत्र में यह नहीं लिखा था कि वे पानी में छलांग लगाएंगे. डीसी पोर्ट सैयद वकार रजा का कहना था कि चंचल लाहिड़ी ने पत्र में लिखा था कि पूरा करतब किसी नाव पर दिखाया जाएगा. इसी आधार पर उन को अनुमति दी गई थी.

अधिकारियों का कहना है कि नदी में फेंके जाने के बाद जादूगर रस्सी और लोहे की जंजीर से बंधे हाथपैर कैसे खोलेगा, इस की जानकारी चंचल के सहयोगी नहीं दे सके. हो सकता है जादूगर ने अपने बंधन खोलने का राज सहयोगियों को बताया ही नहीं हो.

विशेषज्ञों का मानना है कि जादूगर चंचल के शरीर पर भारी भरकम कपड़े और दूसरी चीजें थीं, संभवत: इसी कारण वे नदी के तेज बहाव में तैर नहीं पाए होंगे और मौत के मुंह में समा गए. माना जा रहा है कि जादूगर के टाइम मैनेजमेंट में कुछ कमियों और गलतियों की कीमत उन्हें अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

इस के अलावा जादूगर को नदी में फेंके जाते समय मौके पर सुरक्षा के इंतजाम नहीं थे. अगर सुरक्षा के इंतजाम होते, तो तुरंत खोजने का अभियान शुरू कर दिया जाता और संभवत: उन की जान बच जाती.

41 साल के जादूगर चंचल लाहिड़ी पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के सोनारपुर स्थित सुभाष ग्राम के रहने वाले थे. परिवार में उन की मां उमा लाहिड़ी, पत्नी और 10वीं में पढ़ रहा एक बेटा है.

मां उमा लाहिड़ी अपने बेटे को याद करती हुई कहती है कि उसे बचपन से ही जादूगरी के करतब सीखने और दिखाने का शौक था. वह छोटी सी उम्र में ही जादूगरी के बल पर मशहूर हो गया था.

यह दुखद रहा कि जादूगर चंचल उर्फ मैंड्रेक का आखिरी कारनामा उन के जीवन का अंत साबित हुआ. लाहिड़ी की असमय मौत से जादूगर समुदाय में शोक छा गया. देश के मशहूर जादूगर पी.सी. सरकार का कहना है कि शायद लाहिड़ी को ऐसे करतब के लिए और ज्यादा प्रैक्टिस की जरूरत थी.

भारत में करतब दिखाते समय जादूगर की मौत का यह पहला मामला बताया जा रहा है. इस से पहले किसी नामी या चर्चित जादूगर के इस तरह दुखद अंत की कोई बात सामने नहीं आई.

जादू कला भारत में सैकड़ों साल से प्रचलित है. जादूगरों के मामले में बंगाल का नाम मुख्य रहा है. राजा महाराजाओं के काल में जादू कला खूब फली फूली थी. जादू मुख्य रूप से आधुनिक तकनीक, समय प्रबंधन, विज्ञान के सहारे हाथ की सफाई और सम्मोहन पर निर्भर होता है.

कुछ लोग तंत्र विद्या को भी जादू से जोड़ते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं. आजकल जादूगरी मनोरंजन के साथ लोगों को साधु-बाबाओं के अंधविश्वास से बचने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

हमारे देश में कई मशहूर जादूगर हुए हैं. इन जादूगरों ने भारत के साथ विदेशों में भी अपने करतबों से काफी नाम कमाया है. इन में पीसी सरकार, ओपी शर्मा, अशोक भंडारी, जादूगर आनंद, के. लाल, प्रह्लाद आचार्य, गोपीनाथ मुथुकाड, नकुल शेनौय, यमुनाथ पालिनाथ, गणपति चक्रवर्ती आदि के नाम प्रमुख हैं.

इस से पहले जादूगरी में गोगिया पाशा का पूरी दुनिया में नाम रहा था. भारतीय जादूगरों ने आजकल पुराने और परंपरागत जादू के कारनामों के स्थान पर विज्ञान और तकनीक के सहारे नई नई प्रस्तुतियां शुरू की हैं.

आंखों पर पट्टी पर बांध कर भीड़ भरी सड़कों पर मोटरसाइकिल चलाना, वाटर औफ इंडिया, हैट में से कबूतर निकालना, हथकड़ी लगाना और खोल देना, मंच से गायब हो जाना, आरा मशीन से लड़की के 2 टुकड़े करना, इंद्रजाल आदि कारनामे लोगों को जादू कला देखने के लिए आकर्षित करते हैं.

कुछ जादूगर स्टेज शो के अलावा खुले आसमान तले भी अपनी कला दिखाते हैं. इन में हाथी, बस या ट्रेन गायब करने के करतब भी शामिल हैं. कुछ जादूगर ताजमहल को गायब कर दिखाने का दावा भी करते हैं.

करतब दिखाते समय हुआ यह हादसा कोई पहला नहीं है. इस से पहले भी दुनिया के कई नामी जादूगर अपना करतब दिखाते समय मौत की नींद सो गए. वे करतब उन के लिए आखिरी स्टंट साबित हुए. इस में अमेजिंग जौय के नाम से जाने जाते रहे जौय बुरस एक ताबूत में अपना करतब दिखाते समय मौत के मुंह में समा गए थे. इस करतब में जादूगर को ताबूत में बंद कर सीमेंट से चिन दिया गया था, बाद में जादूगर को अपनी कला से जीवित बाहर निकल आना था. लेकिन अमेजिंग जौय के साथ ऐसा नहीं हुआ.

जादूगरनी प्रिंसेज टेनको अपनी पोशाकों के बल पर जादू दिखाती थीं. एक कारनामा दिखाते हुए उन के पहने कपड़ों पर 10 तलवारें घोंपी गईं. यह कारनामा उन की जिंदगी का आखिरी सफर बन गया. चार्लिस रोवन की कार स्टंट के दौरान मौत हो गई थी. उन्हें यह कारनामा दिखाते हुए कार से भी तेज गति से भागना था.

जादूगर जेनेस्टा को पानी से भरे टैंक में कारनामा दिखाना था. लेकिन वे सफल नहीं हो सके और उन की मौत हो गई. बालाब्रेगा की मौत आग का स्टंट दिखाने के दौरान हुई थी. सन 1934 में नामी जादूगर बेजामिन खुद को जमीन में गाड़ने के बाद भी जीवित बाहर निकल आए थे. लेकिन इस के तुरंत बाद उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

स्टेज पर जादू के कारनामे दिखाते जादूगरों की लोकप्रियता सोशल मीडिया के इस युग में लगातार कम हो रही है, इसलिए जादूगर भी खुद को समय के साथ अपडेट कर रहे हैं. लोगों में जादू के प्रति आकर्षण बनाए रखने के लिए जादूगर नईनई ट्रिक सीख कर उन का प्रदर्शन कर रहे हैं.

कहा जाता है कि बीसवीं सदी में ‘रोप ट्रिक’ नाम के जादू का कारनामा सब से हैरतअंगेज हुआ करता था. इस कारनामे के सफल प्रदर्शन में एकदो जादूगर ही कामयाब हो सके थे. इस कला में जादूगर एक रस्सी को जादू के सहारे आसमान में सीधी खड़ी कर उस पर सीढ़ी की तरह चढ़ कर गायब हो जाता है. इस के बाद उस जादूगर के एकएक अंग नीचे जमीन पर गिरते थे. बाद में वह जादूगर प्रकट हो जाता था. आज भी जादूगरों की नई पीढ़ी इस हैरतअंगेज कारनामे को सीखने को लालायित हैं.

कुत्ते वाली मैडम के काले कारनामे

कानपुर के साकेत नगर के डब्ल्यू ब्लौक के रहने वाले लोग कुत्ते वाली मैडम से  बहुत परेशान थे. सीमा तिवारी नाम की वह महिला संदीप अग्रवाल के मकान में किराए पर रहती थी. उस ने विदेशी नस्ल का कुत्ता पाल रखा था. वह कुत्ता था तो छोटा सा, लेकिन अकसर भौंकता रहता था. जिस से मोहल्ले वाले डिस्टर्ब होते थे.

इस के अलावा सीमा तिवारी के घर शाम ढलते ही लड़के और लड़कियों की आवाजाही शुरू हो जाती थी. कालोनी के लागों को शक था कि सीमा के घर जरूर कोई गैरकानूनी काम होता है. कुछ लोगों को लगता था कि सीमा चकला घर चलाती है. इस मामले में पुलिस ने काररवाई कराने के लिए कुछ लोग एसपी (साउथ) रवीना त्यागी से मिले.

रवीना त्यागी ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और आश्वासन दिया कि यदि जांच में यह सूचना सही पाई गई तो सीमा तिवारी व अन्य दोषियों के खिलाफ जरूरी काररवाई की जाएगी.

उन के जाने के बाद रवीना त्यागी ने तत्काल किदवई नगर के थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को अपने कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने मिश्रा से कहा कि तुम्हारे थाना क्षेत्र के डब्ल्यू ब्लौक, साकेत नगर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है. जांच कर इस मामले में जरूरी काररवाई करो.

कप्तान साहिबा को मिलने के बाद थानाप्रभारी सीधे साकेत नगर पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह से इस बारे में बात की और इस शिकायत की गोपनीय जांच करने को कहा.

चूंकि मामला कप्तान साहिबा ने सौंपा था इसलिए थानाप्रभारी और चौकी प्रभारी ने अपने मुखबिरों को लगा दिया. इस के 2 दिन बाद ही एक खास मुखबिर ने आ कर बताया कि डब्ल्यू ब्लौक साकेत नगर में टेलीफोन एक्सचेंज के पास वाले मकान में जिस्मफरोशी का धंधा होता है. इस रैकेट की संचालिका सीमा तिवारी है, जो कुत्ते वाली मैडम के नाम से जानी जाती है. सीमा का पति भी इस धंधे में दलाली करता है.

थानाप्रभारी ने इस जानकारी से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत करा दिया. चूंकि दबिश के दौरान सीओ स्तर के पुलिस अधिकारी की मौजूदगी जरूरी होती है, इसलिए एसपी ने सीओ मनोज कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा, चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह के साथसाथ कुछ हैडकांस्टेबल और सिपाहियों को शामिल किया गया.

11 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे पुलिस टीम ने सीमा तिवारी के अड्डे पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर पुलिस चौंकी. कमरे में 2 अर्धनग्न महिलाएं बिस्तर पर चित पड़ी थीं. उन के साथ 2 युवक कामक्रीड़ा में लीन थे.

पुलिस पर निगाह पड़ते ही दोनों युवकों ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया पर दरवाजे पर खडे़ पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया. दूसरे कमरे में एक युवती सजी संवरी बैठी थी. शायद उसे ग्राहक के आने का इंतजार था.

महिला सिपाही ने उसे भी हिरासत में ले लिया. कमरे में तलाशी के दौरान सैक्सवर्धक दवाएं तथा कई आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई. पुलिस ने ऐसी सभी चीजें अपने कब्जे में ले लीं. छापे में सरगना के अलावा 3 युवतियां, 2 ग्राहक तथा एक दलाल पकड़ा गया. इन सभी को गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई.

जिस मकान में सैक्स रैकेट चल रहा था, वह संदीप अग्रवाल का था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. संदीप अग्रवाल के पकड़े जाने से हड़कंप मच गया. कई रसूखदार लोगों ने थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को फोन किया और संदीप अग्रवाल को निर्दोष बताते हुए उसे छोड़ने के लिए दबाव डाला.

लेकिन मिश्राजी ने जांच में दोषी न पाए जाने के बाद ही रिहा करने की बात कही. पूछताछ में संदीप अग्रवाल ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि वह व्यापारी है. हर साल हजारों रुपया टैक्स देता है. उस ने तो मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी. हर पहलू से जांच के बाद जब संदीप अग्रवाल बेकसूर लगा तो पुलिस ने 2 दिन बाद उसे क्लीन चिट दे दी.

सीओ मनोज कुमार ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवक, युवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपने नाम सीमा तिवारी, खुशी, विविता तथा मंतसा बताए. इन में सीमा तिवारी सैक्स रैकेट की संचालिका थी. युवकों ने अपने नाम महेश, शैलेंद्र तथा चंद्रेश तिवारी बताए. इन में चंद्रेश तिवारी सीमा का पति था और वह दलाल भी था.

चूंकि सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए सीओ मनोज कुमार ने वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ में देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनीअपनी अलगअलग मजबूरी बताई.

सैक्स रैकेट की संचालिका सीमा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के कुमऊपुर गांव की रहने वाली थी. उस के पिता बाबूराम तिवारी किसान थे. उन के 3 बच्चों में सीमा सब से छोटी थी.

बाबूराम के पास मात्र 2 बीघा खेती की जमीन थी. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. वह एक बेटे तथा एक बेटी की शादी कर चुके थे. सीमा भी शादी योग्य थी, इसलिए वह उस की शादी के लिए प्रयासरत थे.

सीमा तिवारी साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी लेकिन वह थी खूबसूरत. सीमा ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूप में निखार आ गया. कालेज में कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई थी. उन के साथ वह घूमती और मौजमस्ती करती थी. घर वाले देर से घर आने को टोकाटाकी करते तो सीमा कोई न कोई बहाना बना देती थी.

जवान बेटी कहीं बहक न जाए इसलिए उन्होंने उस के लिए लड़का देखने के प्रयास तेज कर दिए. थोड़ी दौड़धूप करने के बाद घाटपुरम का चंद्रेश तिवारी उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने सीमा का विवाह चंद्रेश तिवारी के साथ कर दिया.

सीमा ससुराल में कुछ समय तक ठीक रही, फिर धीरेधीरे वह खुलने लगी. दरअसल सीमा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना देखा था, चंद्रेश वैसा नहीं था. चंद्रेश एक पैट्रोल पंप पर काम करता था. उस की आमदनी भी सीमित थी. सीमा न तो पति से संतुष्ट थी और न ही उस की आमदनी से. उस की जरूरतें पूरी नहीं होती थीं. इसे ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी.

चंद्रेश चाहता था कि सीमा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे. लेकिन सीमा को बंधन मंजूर नहीं था. वह चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका, सासससुर और पति का कठोर बंधन पसंद नहीं था. बस इन्हीं सब बातों को ले कर चंद्रेश व सीमा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. आजिज आ कर सीमा पति का साथ छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी.

सीमा को मनाने चंद्रेश कई बार ससुराल आया लेकिन सीमा उसे हर बार दुत्कार कर भगा देती थी. यद्यपि सीमा के मातापिता चाहते थे कि वह  उन की छाती पर मूंग न दले और पति के साथ चली जाए. मांबाप ने सीमा को बहुत समझाया लेकिन जिद्दी सीमा ने उन की बात नहीं मानी. सीमा मायके में पड़ीपड़ी जब बोर होने लगी तो उस ने कानपुर शहर में नौकरी करने की सोची.

कानपुर शहर के जवाहर नगर मोहल्ले में सीमा की मौसी रहती थी. एक रोज वह सीमा से मिलने गई. सीमा पढ़ीलिखी भी थी और खूबसूरत भी. उसे विश्वास था कि जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवनयापन मजे से होने लगेगा. सीमा ने नौकरी के बाबत मौसी से राय मांगी तो मौसी ने भी उसे नौकरी की इजाजत दे दी.

सीमा नौकरी की तलाश में जुट गई. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती, लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. सीमा को लगा कि उस का नौकरी का सपना पूरा नहीं होगा.

लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. आखिर उस का सपना पूरा हुआ. उसे कपड़े की एक फर्म में नौकरी मिल गई. सीमा का काम था सजसंवर कर काउंटर पर बैठना और बिक्री का लेनदेन करना. सीमा अब नोटों की चकाचौंध में रहने लगी थी.

मौसी को जब पता चला कि सीमा और उस के पति चंद्रेश के बीच विवाद है तो विवाद को सुलझाने के लिए मौसी ने पहले सीमा से बात की. फिर उस के पति चंद्रेश को अपने घर बुलवाया. इस के बाद दोनों को आमनेसामने बैठा कर विवाद को सुलझा दिया. फलस्वरूप दोनों साथसाथ रहने को राजी हो गए.

विवाद सुलझाने के बाद सीमा तिवारी पति चंद्रेश के साथ बर्रा 2 में रहने लगी. दोनों की जिंदगी एक बार फिर ठीक से व्यतीत होने लगी. इधर सीमा को फर्म में नौकरी करते  3 महीने ही बीते थे कि उस पर फर्म के मालिक की नीयत खराब हो गई. वह उसे ललचाई नजरों से देखने लगा और एकांत में बुला कर छेड़छाड़ भी करने लगा.

सीमा ने उस की हरकतों का विरोध करना बंद कर दिया तो फर्म मालिक का हौसला बढ़ गया. आखिर एक रोज उस ने सीमा को अपनी हवस का शिकार बना लिया. सीमा रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उस हवस के दरिंदे को जरा भी दया नहीं आई.

सीमा का मुंह बंद करने के लिए उस ने 2 हजार रुपए उस के हाथ में थमा दिए. इस के बाद तो यह सिलसिला सा बन गया. जब भी उसे मौका मिलता सीमा से भूख मिटा लेता. आखिर सीमा ने सोचा कि जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी करने की क्या जरूरत है.

इन्हीं दिनों सीमा की मुलाकात अंजलि से हुई. अंजलि बर्रा 2 में रहती थी और सैक्स रैकेट चलाती थी. वह खूबसूरत मजबूर लड़कियों को अपने जाल में फंसाती थी और उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में उतार देती थी. सीमा ने अपनी व्यथा अंजलि को बताई तो उस ने सीमा को जिस्मफरोशी का धंधा अपनाने की सलाह दी.

सीमा ने अंजलि की बात मान ली और उस के धंधे से जुड़ गई. सीमा खूबसूरत और जवान थी. ऐसी लड़कियों या औरतों को ग्राहकों की कोई कमी नहीं रहती थी. शुरूशुरू में सीमा को इस धंधे से झिझक हुई. लेकिन कुछ समय बाद वह खुल गई.

सीमा जब जिस्मफरोशी करने लगी और खूब पैसा कमाने लगी तो उसके पति चंद्रश्े को उस पर शक हुआ. क्योंकि वह देर रात घर आती तो कभी पूरी रात नहीं आती थी. चंद्रेश पूछता तो अंजलि सहेली के घर रुकने का बहाना बना देती. लेकिन एक रोज जब चंद्रेश ने सख्ती से पूछा तो उस ने सब सचसच बता दिया. उस ने चंद्रेश से भी अनुरोध किया कि वह भी उस के धंधे में सहयोग करे.

सीमा की बात सुन कर चंद्रेश हक्काबक्का रह गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि सीमा इतना गिर सकती है. उसे लगा कि अब सीमा को समझाना व्यर्थ है. क्योंकि उसे नोटों और परपुरुष की लत लग चुकी है. चंद्रेश की पैट्रोल पंप वाली नौकरी छूट गई थी. वह बेरोजगार हो गया था.

पत्नी की कमाई से उसे खाना और पीने को शराब मिल रही थी. सो सीमा के अनैतिक काम का विरोध करने के बजाए वह उस के धंधे का सहयोगी बन गया. अब चंद्रेश भी ग्राहक ढूंढ कर लाने लगा. कह सकते हैं कि वह बीवी का दलाल बन गया.

सीमा तिवारी ने सैक्स रैकेट संचालिका अंजलि के साथ जुड़ कर जिस्मफरोशी के सारे गुर सीख लिए थे. अब वह खुद ही रैकेट चलाने लगी. उस ने अपने जाल में कई और लड़कियां फंसा लीं और जिस्म का सौदा करने लगी.

इस ध्ांधे में उसे अच्छी आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह मकान किराए पर लेती और खूबसूरत व जमान युवतियों को सब्ज बाग दिखा कर अपने जाल में फांसती फिर उन्हें देह व्यापार में उतार देती. वह ज्यादातर साधारण परिवार की उन युवतियों को फंसाती जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं.

सीमा तिवारी खूबसूरत के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी भाषाशैली से वह सामने वाले को जल्दी ही प्रभावित कर लेती थी. यही कारण था कि ग्राहक एक बार उस के अड्डे पर आता तो वह बारबार आने लगता था.

सीमा वाट्सऐप के जरिए युवतियों की फोटो अपने ग्राहकों को भेजती. फिर पसंद आने पर उन के जिस्म की कीमत तय करती. उस के यहां 500 से 5 हजार रुपए तक की कीमत तय होती. वह टूर बुकिंग भी करती थी, लेकिन उस की कीमत ज्यादा होती थी. उस का पुराना ग्राहक ही नए ग्राहक लाता था.

अलग सैक्स रैकेट चलाने के बावजूद सीमा, अंजलि के संपर्क में रहती थी. वह सीमा के अड्डे पर लड़कियां व ग्राहक भेजती रहती थी. इस के बदले में वह उस से कमीशन लेती थी. सीमा का पति चंद्रेश भी दलाल बन गया था, वह भी ग्राहक लाता था.

सीमा अब बेहद चालाक हो चुकी थी. वह एक क्षेत्र में कुछ माह ही अपना धंधा चलाती थी. जैसे ही क्षेत्र के लोगों को उस के धंधे की सुगबुगाहट होने लगती, वह जगह बदल देती थी. अंजलि अकसर ऐसा मकान या फ्लैट किराए पर लेती थी, जिस में कोई दूसरा किराएदार न रहता हो.

पहले वह बर्रा क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने क्षेत्र बदल दिया और पनकी क्षेत्र में देहव्यापार चलाने लगी. वहां उस का टकराव एक स्थानीय गुंडे से हो गया था. दरअसल वह गुंडा सीमा से टैक्स वसूलना चाहता था. इस के अलावा वह अय्याशी भी करना चाहता था. सीमा इस गुंडे से परेशान थी और अड्डा बदलना चाहती थी.

मार्च 2019 में सीमा ने किदवई नगर थाना क्षेत्र के डब्लू ब्लौक साकेत नगर में 15 हजार रुपए महीना किराए पर एक मकान ले लिया. यह मकान व्यापारी संदीप अग्रवाल का था, जो किदवई नगर स्थित अपने दूसरे मकान में रहते थे. इस मकान में रह कर सीमा अपने पति चंद्रेश की मदद से सैक्स रैकेट चलाने लगी. उस के अड्डे पर नए पुराने ग्राहक तथा युवतियों आने जाने लगीं. बर्रा की अंजलि भी उस के अड्डे पर युवतियां और ग्राहक भेजने लगी.

सीमा के पास एक विदेशी नस्ल का कुत्ता था. छोटे कद का वह कुत्ता बहुत तेज था. इस कुत्ते को उस ने प्रशिक्षित कर रखा था. वह पूरे मकान में रेकी करता था.

जैसे ही कोई मकान के गेट पर आता, वह तेज आवाज में भौंकने लगता था. कुत्ते की आवाज सुन कर सीमा सतर्क हो जाती और छिप कर देखती थी कि गेट पर कौन आया है. कुछ ही समय में सीमा तिवारी उस ब्लौक में कुत्ते वाली मैडम के नाम से मशहूर हो गई.

सीमा के घर युवक युवतियों का देर रात आनाजाना शुरू हुआ तो पासपड़ोस के लोगों का माथा ठनका. वह आपस में चर्चा करने लगे कि कुत्ते वाली मैडम के यहां युवक युवतियां क्यों आते हैं. उन्होंने निगरानी रखनी शुरू कर दी तो उन्हें शक हो गया कि मैडम सैक्स रैकेट चलाती है. इन्हीं संभ्रांत लोगों ने एसपी (साउथ) रवीना त्यागी के कार्यालय में शिकायत की थी.

देहव्यापार अड्डे से पकड़ी गई 22-23 साल की खुशी बर्रा 4 की कच्ची बस्ती में रहती थी. गरीब परिवार में पली खुशी बेहद खूबसूरत थी. उस की सहेलियां महंगे कपड़े पहनती थीं और ठाठबाट से रहती थीं. उन के पास एक नहीं 2-2 मोबाइल होते थे. वह मोबाइल पर बात करतीं और खूब हंसतीबतियातीं. खुशी जब उन्हें देखती तो सोचती काश ऐसे ठाटबाट उस के नसीब में भी होते.

एक रोज बर्रा सब्जी मंडी से लौटते समय खुशी की मुलाकात अंजलि से हुई. दोनों की बातचीत हुई तो अंजलि समझ गई कि खुशी महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में आसानी से फंस सकती है.

इस के बाद अंजलि उसे अपने घर बुलाने लगी और उस की आर्थिक मदद भी करने लगी. धीरेधीरे अंजलि ने खुशी को अपने जाल में फंसा लिया और उसे देह व्यापार के धंधे में उतार दिया. छापे वाली रात अंजलि ने ही सौदा कर खुशी को सीमा के घर भेजा था. जहां वह पकड़ी गई. उस समय वह कमरे में ग्राहक के इंतजार में बैठी थी.

पुलिस छापे के दौरान पकड़ी गई विविता भी बर्रा 4 में रहती थी. उस का शौहर साजिद अली शराबी था. वह विविता को मारतापीटता था. विविता पति से परेशान थी और कहीं नौकरी कर अपना गुजरबसर करना चाहती थी. एक रोज सीटीआई टैंपो स्टैंड पर विविता की बातचीत अंजलि से हुई तो उस ने उसे नौकरी दिलाने का भरोसा दिलाया.

एक सप्ताह बाद अंजलि उसे नौकरी दिलाने के बहाने लखनऊ ले गई. वहां उसने एक जानेमाने सफेदपोश नेता के साथ विविता का सौदा कर दिया. विविता को जिस्म के बदले नोट मिले तो वह इसी धंधे में रम गई. पुलिस छापे वाली रात अंजलि ने ही विविता के जिस्म का सौदा तय कर ग्राहक महेश के साथ सीमा के मकान पर भेजा था, जहां दोनों रंगे हाथों पकड़े गए थे.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ी गई मंतसा जवाहर नगर निवासी अली अहमद की पत्नी थी. उस के शौहर ने उसे तलाक दे कर दूसरा निकाह कर लिया था. मंतसा ने कुछ रुपए जोड़ कर सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया, लेकिन उसे यह काम रास नहीं आया. उस ने एक रिश्तेदार से कर्ज लिया तो वह रिश्तेदार उस के पीछे पड़ गया. कर्ज के बदले उस ने मंतसा को अपनी हवस का शिकार बनाया.

वह रिश्तेदार बड़ा चलाक निकला. उस ने खुद तो हवस पूरी कर ली, अब वह उस का सौदा दोस्तों से भी करने लगा. मंतसा जवान और खूबसूरत थी. उसे ग्राहकों की कमी नहीं थी, पर उस के पास जगह नहीं थी. इसी बीच उसे पता चला कि साकेत नगर में रहने वाली सीमा तिवारी सैक्स रैकेट चलाती है.

मंतसा ने सीमा से मुलाकात की और अपनी मजबूरी बताई. मजबूरी का फायदा उठा कर सीमा तिवारी ने मंतसा को अपने रैकेट में शामिल कर लिया. छापे वाली रात सीमा ने मंतसा के जिस्म का सौदा व्यापारी शैलेंद्र के साथ किया था. पुलिस रेड में वे दोनों रंगेहाथों पकड़े गए थे.

पुलिस छापे में पकड़ा गया महेश व्यापारी है. उस का प्लास्टिक का व्यवसाय है. वह अपनी कमाई का आधे से ज्यादा भाग अय्याशी और शराब में खर्च कर देता था. शादीशुदा होते हुए भी वह दूसरी औरतों की बाहों में सुख खोजता था. उस की अय्याशी से उस की पत्नी बेहद परेशान थी. उस ने पति को बहुत समझाया, लेकिन पति सुधरने के बजाय उलटे उस की पिटाई कर देता था.

एक रोज महेश को पता चला कि बर्रा-2 में रहने वाली अंजलि लड़कियां भी उपलब्ध कराती है और जगह भी. यह पता चलते ही महेश ने अंजलि से मुलाकात की और अच्छी लड़की के बदले मुंहमांगी रकम देने को कहा. अंजलि ने उसे जगह और युवती उपलब्ध करा दी.

इस के बाद वह अंजलि का ग्राहक बन गया. छापे वाली रात अंजलि ने ही महेश से रकम तय करने के लिए विविता को उस के साथ सीमा तिवारी के अड्डे पर भेजा था. जहां महेश, विविता के साथ रंगेहाथ पकड़ा गया था.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ा गया शैलेंद्र भी बर्रा में ही रहता था और महेश का दोस्त था. दोनों का व्यापार भी एक था. दोनों साथसाथ शराब पीते थे और अय्याशी करते थे. छापे वाली रात महेश ही शैलेंद्र को सीमा के अड्डे पर ले गया था. सीमा ने मंतसा को दिखा कर उस का सौदा शैलेंद्र से किया था. चंद्रेश तिवारी को पुलिस ने निगरानी करते पकड़ा था.

सीमा की सहयोगी अंजलि को पकड़ने के लिए पुलिस ने बर्रा स्थित उस के किराए वाले मकान पर छापा मारा लेकिन वह पकड़ी नहीं जा सकी. पुलिस का कहना है कि जब वह पकड़ी जाएगी, तब उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई की जाएगी.

12 अप्रैल, 2019 को थाना किदवई नगर पुलिस ने देह व्यापार में पकड़ी गई सीमा तिवारी, विविता, मंतसा, खुशी तथा ग्राहक महेश, शैलेंद्र व दलाल चंद्रेश तिवारी को गिरफ्तार कर कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रेनू जिंदा है तो वो कौन थी?

23 नवंबर, 2018 को कार्तिक पूर्णिमा थी. उस रोज उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के करमैनी घाट पर मेला लगा हुआ था. यहां पर यह मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगता है. इस दिन दूरदूर से लोग नदी में नहाने आते हैं. मेले में भारी भीड़ जुटती है. इसी जिले के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली 18 वर्षीया रेनू साहनी भी अपने दोनों भांजों के साथ मेला देखने आई थी.

रेनू अपनी बड़ी बहन लीलावती के साथ उस की ससुराल मूसाबार (पीपीगंज) में रहती थी. जबकि उस की मां चंद्रावती और पिता ब्रह्मदेव रामूघाट गांव में ही रहते थे. उस का एक भाई था जो कानपुर में रह कर वहीं नौकरी करता था.

बहरहाल, रेनू कई दिन पहले से मेला देखने की तैयारी कर रही थी. चूंकि मूसाबार से करमैनी घाट की दूरी ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह अपनी बहन लीलावती के दोनों बेटों को साथ ले घर से खुशी खुशी पैदल ही मेला देखने चली गई थी.

रेनू को घर से निकले करीब 6 घंटे बीत चुके थे, लेकिन वह वापस नहीं लौटी थी. लीलावती को बेटों को ले कर फिक्र हो रही थी. जब दोपहर के 2 बज गए और रेनू घर नहीं लौटी तो लीलावती ने पति इंद्रजीत से पता लगाने को कहा. उस दिन इंद्रजीत घर पर ही था. वैसे इंद्रजीत ने रेनू से कहा भी था कि अकेले जाने के बजाए वह उस के साथ मेला देखने चले. लेकिन रेनू ने बहन और बहनोई से कहा कि वह मेला देख कर थोड़ी देर में घर लौट आएगी. इसलिए वह दोनों भांजों को अपने साथ ले कर चली गई थी.

रेनू की बात मान कर लीलावती और इंद्रजीत ने उसे मना नहीं किया और बच्चों के साथ जाने की अनुमति दे दी. जब काफी देर बाद भी वह घर नहीं आई तो इंद्रजीत बाइक ले कर साली रेनू और बच्चों को ढूंढने करमैनी घाट जा पहुंचा. इंद्रजीत ने अपनी बाइक खड़ी कर के बच्चों और साली को ढूंढने के लिए पूरा मेला छान मारा लेकिन न बच्चे मिले और न रेनू.

रहस्यमय ढंग से गायब हुई रेनू

इंद्रजीत परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. कुछ नहीं सूझा तो वह घाट से थोड़ी दूर स्थित करमैनी पुलिस चौकी जा पहुंचा. वहां पहुंचते ही वह चौंक गया. क्योंकि वहां उस के दोनों बच्चे कुरसी पर बैठे रो रहे थे. पुलिस वाले उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. बच्चों ने जब अपने पिता को देखा तो भावावेश में और जोर जोर से रोने लगे.

इंद्रजीत ने झट से दोनों बच्चों को सीने से लगा लिया. जब वे चुप हुए तो उन से उन की रेनू मौसी के बारे में पूछा. बच्चों ने बताया कि रेनू मौसी मेले में कहीं गायब हो गईं. नहीं मिलीं तो हम रोने लगे. पुलिस वालों ने इंद्रजीत से पूछा कि बात क्या है? मेले में बच्चे रोते हुए दिखे तो हम यहां ले आए. इस के बाद इंद्रजीत ने पुलिस वालों को पूरी बात बता दी और उन से रेनू को ढूंढने में मदद मांगी.

चूंकि मामला एक अविवाहित लड़की से जुड़ा हुआ था इसलिए पुलिस वालों ने उसे समझाया कि पहले घर जा कर देख लें. हो सकता है कि वह घर पहुंच गई हो. अगर वह घर पर नहीं मिले तो गुमशुदगी की सूचना कैंपियरगंज थाने में लिखवा दे. बच्चों के मिल जाने से इंद्रजीत को थोड़ी तसल्ली तो हुई लेकिन साली के न मिलने पर वह परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि घर जा कर वह पत्नी और फिर सासससुर को क्या जवाब देगा.

इंद्रजीत बच्चों को बाइक पर बैठा कर घर पहुंचा. घर पहुंच कर उस ने सब से पहले पत्नी से रेनू के बारे में पूछा. लीलावती ने मना कर दिया तो वह और परेशान हो गया. उस ने पत्नी से बता दिया कि रेनू मेले से गायब हो गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा.

छोटी बहन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी मिलते ही लीलावती रोने लगी. वह बारबार एक ही बात दोहरा रही थी कि मां जब रेनू के बारे में पूछेगी तो उन्हें क्या जवाब देगी.

इंद्रजीत पत्नी के साथ उसी शाम अपनी ससुराल रामूघाट पहुंचा और उस ने सासससुर को रेनू के गायब होने की पूरी बात बता दी. बेटी के गायब होने की जानकारी मिलते ही वे दोनों परेशान हो गए. उन्होंने अपनी रिश्तेदारियों में कई जगह फोन कर के रेनू के बारे में पूछा पर वह किसी भी रिश्तेदारी में नहीं पहुंची थी.

धीरेधीरे शाम ढल गई और रात पांव पसारने लगी. फिर धीरेधीरे रात पूरी बीत गई. न रेनू घर लौटी और न ही उस की कोई खबर मिली. जवान बेटी के घर से गायब होने की पीड़ा क्या होती है, चंद्रावती महसूस कर रही थी. उस ने बेटी की चिंता में पूरी रात आंखोंआंखों में काट दी थी.

दूसरा दिन भी रेनू की तलाश में बीत गया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. 25 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की गुमशुदगी की सूचना दे दी. रेनू की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस हरकत में आई. 3 दिन बाद 28 नवंबर, 2018 को कैंपियरगंज थाने के माधोपुर बांध के पास झाड़ी से एक युवती की लाश बरामद हुई.

उस के गले में रस्सी कसी हुई थी. स्थानीय समाचारपत्रों ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया. अखबार में प्रकाशित खबर इंद्रजीत साहनी ने भी पढ़ी. युवती की लाश उसी इलाके से बरामद हुई थी, जहां से रेनू गायब हुई थी. उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे.

30 नवंबर को इंद्रजीत सास चंद्रावती को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने जा कर विक्रम सिंह से मिला. उस ने मेले से रेनू के गायब होने की बात उन्हें बताई. थानेदार साहब ने मालखाने से युवती के कपड़े और फोटो मंगवाए.

फोटो देखते ही चंद्रावती और इंद्रजीत फफक फफक कर रोने लगे. उन्होंने युवती की लाश की शिनाख्त रेनू के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली और मोर्चरी में रखी लाश पोस्टमार्टम के बाद घर वालों के सुपुर्द कर दी. इस के बाद घर वालों ने रेनू का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी के दाह संस्कार के 2 दिनों बाद चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की हत्या की नामजद तहरीर थानेदार को सौंप दी. तहरीर में उस ने बताया कि उस की बेटी रेनू की हत्या उस के पट्टीदार रेलकर्मी रामसजन साहनी और उस के फौजी बेटे ज्ञानेंद्र साहनी ने मिल कर की है. पुलिस ने तहरीर के आधार पर रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र साहनी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए रामूघाट स्थित उन के घर पहुंची तो दोनों ही घर पर नहीं मिले. घर वालों से पता चला कि दोनों अपनी ड्यूटी पर गए हैं. रामसजन रोज सुबह नौकरी पर निकल जाते हैं और बेटा सीमा पर तैनात है. यह बात पुलिस को बड़ी अजीब सी लगी कि फौज में सीमा पर तैनात ज्ञानेंद्र ने यहां आ कर हत्या कैसे कर दी?

थानेदार ने यह जानकारी एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ (कैंपियरगंज) रोहन प्रमोद बोत्रे को दी. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय को आरोपियों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

इस के बाद एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पहले घटनास्थल का दौरा किया, जहां से रेनू गायब हुई थी और उस स्थान का भी मुआयना किया, जहां उस की लाश पाई गई थी.

जांच के दौरान अधिकारियों के गले से एक बात नहीं उतर रही थी कि जब मेले में रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर गई थी, तो भीड़भाड़ वाली जगह से रेनू का अपहरण करने वालों ने बच्चों का अपहरण क्यों नहीं किया?

उधर थानेदार को एक चौंकाने वाली बात पता चली. घटना वाले दिन रामसजन और उस का बेटा ज्ञानेंद्र सचमुच गांव में नहीं थे. दोनों अपनी अपनी ड्यूटी पर थे. इस से पुलिस को लगा कि उन दोनों को रंजिश के तहत फंसाया जा रहा है. इधर चंद्रावती आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाए हुई थी.

एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने अपने औफिस में एक जरूरी बैठक बुलाई. बैठक में एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानेदार विक्रम सिंह शामिल थे. मीटिंग में जांच के उन सभी पहलुओं पर चर्चा हुई जो विवेचना के दौरान प्रकाश में आए थे. इन बिंदुओं में बच्चों का अपहरण न होना प्रमुख था.

पुलिस को लग रहा था जैसे चंद्रावती और उस का दामाद इंद्रजीत कुछ छिपा रहे हों. जिस घर में एक जवान बेटी की मौत हुई हो, उस घर में पुलिस को मातम जैसी कोई बात नहीं दिख रही थी. बेटी की मौत का गम न तो मां चंद्रावती के चेहरे पर था और न ही लीलावती या इंद्रजीत के चेहरे पर.

यह बात पुलिस को बुरी तरह उलझा रही थी, इसीलिए  एसएसपी गुप्ता ने अपने मातहतों से चंद्रावती और उस के परिवार पर नजर रखने के लिए कह दिया था. धीरेधीरे 6 महीने का समय बीत गया.

बात अप्रैल, 2019 की है. मुखबिर ने पुलिस को एक बेहद चौंका देने वाली सूचना दी. उस ने पुलिस को बताया कि चंद्रावती और उस का परिवार एक अनजान व्यक्ति से बराबर बातें करते हैं. रात के अंधेरे में एक औरत और मर्द आते हैं और फिर रात में ही वे लौट जाते हैं.

मुखबिर की यह बात पुलिस को हैरान कर देने वाली लगी. थानेदार ने यह बात सीओ बोत्रे से बताई तो उन्होंने एसपी साहब से बात कर के चंद्रावती का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. सर्विलांस के जरिए पुलिस को एक ऐसे नंबर का पता चला, जिस की लोकेशन 23 नवंबर को करमैनी घाट की मिली. इस का मतलब यह हुआ कि उस दिन रेनू मेले से जब गायब हुई थी तो वह व्यक्ति भी मेले में मौजूद था.

जांच करने पर वह नंबर जिला अयोध्या के थाना इनायतनगर के गांव पलिया रोहानी निवासी आनंद यादव का निकला. फिलहाल उस की लोकेशन कानपुर के काकादेव इलाके में आ रही थी.

रेनू निकली जीवित

जांचपड़ताल में एक बेहद चौंकाने वाली सूचना मिली. जिस रेनू की हत्या किए जाने की बात कही जा रही थी दरअसल वह जिंदा थी. रेनू के जिंदा होने वाली बात जैसे ही पुलिस अधिकारियों को पता चली तो वे आश्चर्यचकित रह गए. पुलिस ने यह बात अपने तक गुप्त रखी क्योंकि वह रेनू को किसी भी हालत में जिंदा ही पकड़ना चाहती थी.

पुलिस की एक टीम आनंद यादव को पकड़ने के लिए कानपुर रवाना कर दी गई. पता नहीं कैसे आनंद को पुलिस के आने की भनक मिल गई. वह काकादेव इलाका छोड़ कर कहीं और जा कर छिप गया.

पुलिस कई दिनों तक आनंद की तलाश में कानपुर की गलियों की खाक छानती रही. लेकिन वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा, लिहाजा पुलिस खाली हाथ गोरखपुर लौट आई.

बहरहाल 14 मई, 2019 की रात करीब 9 बजे मुखबिर ने थानेदार विक्रम सिंह को रेनू के बारे में एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी. सूचना मिलते ही थानेदार पुलिस टीम के साथ कैंपियरगंज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-1 पर पहुंच गए.

वहां एक कोने में समीज सलवार पहने रेनू एक युवक के साथ बैठी मिली. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ करने पर रेनू ने बताया कि जिस युवक के साथ है, वह उस का पति आनंद यादव है. पुलिस दोनों को थाने ले आई.

थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने जो जानकारी पुलिस को दी, वह वाकई हैरान कर देने वाली थी.

कैंपियरगंज पुलिस के हाथ बड़ी कामयाबी लगी थी. जिस रेनू की परिवार वालों ने हत्या किए जाने का दावा किया था, वह जिंदा मिल गई थी. रेनू हत्याकांड की गुत्थी सुलझा कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. बाद में थानेदार ने अधिकारियों को सूचना दे दी.

अगले दिन 15 मई, 2019 को एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पत्रकारवार्ता आयोजित की. इस पत्रकारवार्ता में रेनू के घर वालों को भी बुलाया गया था. वे वहां उपस्थित थे.

पत्रकारों के सामने पुलिस ने रेनू और आनंद को पेश किया तो गोरखपुर के 2 पुराने मामलों शिखा दूबे और वैशाली श्रीवास्तव उर्फ ब्यूटी कांड की यादें ताजा हो गई थीं. उस के बाद रेनू ने खुद पूरी घटना पत्रकारों के सामने बयान कर दी, जिसे सुन कर मीडियाकर्मी भी चौंक गए. रेनू के घर वालों ने जब वहां रेनू को देखा तो उन के चेहरे का रंग उड़ गया.

पत्रकारवार्ता के बाद पुलिस ने दोनों प्रेमी युगल रेनू साहनी उर्फ कनक मिश्रा और आनंद यादव उर्फ आनंद मिश्रा को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

रेनू के साथसाथ उस की मां चंद्रावती, बड़ी बहन लीलावती और जीजा इंद्रजीत साहनी को भी गिरफ्तार कर लिया गया. तीनों ने मिल कर एक बड़ी साजिश रची थी. अपनी कुटिलता से वे पुलिस को नाहक परेशान करते रहे. आखिर उन्होंने इतनी बड़ी साजिश क्यों रची, पूछने पर एक रोमांचक कहानी सामने आई—

18 वर्षीय रेनू साहनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम ब्रह्मदेव साहनी था. ब्रह्मदेव के 3 बच्चों में रेनू सब से छोटी थी. रेनू से बड़ा एक भाई और बहन लीलावती थी. ब्रह्मदेव दोनों बच्चों की शादी कर चुके थे. अब केवल रेनू की शादी करनी बाकी थी.

ब्रह्मदेव कानपुर में नौकरी करते थे और परिवार के साथ रहते थे. वह जिस मोहल्ले में किराए पर रहते थे, वहीं पर पड़ोस में आनंद यादव अकेला रहता था. वह अयोध्या जिले के इनायतनगर के पलिया रोहानी का रहने वाला था. आनंद के परिवार वाले अयोध्या में रहते थे. जबकि वह कानपुर में रह कर प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों के मकान ठीक आमने सामने थे.

स्मार्ट और कसरती बदन वाले आनंद की नजरें घर से निकलते हुए कभीकभार बालकनी में खड़ी खूबसूरत रेनू से टकरा जाती थीं. नजर पड़ते ही वह हौले से मुसकराते हुए आगे बढ़ जाता था. बदले में रेनू भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दे दिया करती थी. बात आई गई हो गई, न तो आनंद ने इसे दिल से लिया था और न ही रेनू ने.

लेकिन पड़ोसी होने के नाते आनंद कभीकभार रेनू के घर चला जाया करता था. दरअसल रेनू का एक भाई आनंद की उम्र का था. उस से आनंद की अच्छी निभती थी. रेनू के भाई की वजह से ही आनंद का उस के घर में आनाजाना शुरू हुआ था. यह बात सन 2016 की है.

घर आनेजाने से आनंद की नजर रेनू पर पड़ जाती थी. नजदीक से जब उस ने रेनू को देखा तो उस के दिल में चाहत पैदा हो गई. गजब की खूबसूरत रेनू उस के दिल में उतरती चली गई. उसे रेनू से प्यार हो गया था. ऐसा नहीं था कि यह प्यार एकतरफा था. रेनू भी आनंद में आनंद लेने लगी थी. वह भी उस से प्यार करने लगी थी.

मौका देख कर दोनों ने एकदूसरे से प्यार का इजहार कर लिया था. इस के बाद आनंद का रेनू के घर आनेजाने का सिलसिला बढ़ गया था. अचानक आनंद का घर में ज्यादा आनाजाना शुरू हुआ तो ब्रह्मदेव को कुछ अजीब लगा. अनुभवी ब्रह्मदेव ने पत्नी से कह दिया कि आनंद घर में जब भी आए, तो उस पर नजर रखना. मामला कुछ गड़बड़ लगता है. मुझे उस के लक्षण कुछ अच्छे नहीं दिख रहे.

पति की बातों को चंद्रावती ने भी गंभीरता से लिया. जल्द ही सब कुछ सामने आ गया था. पति का शक नाहक नहीं था. रेनू और आनंद के बीच में कुछ खिचड़ी जरूर पक रही थी. बेटी की हरकतें देख कर चंद्रावती का पारा सातवें आसमान को छू गया. फिर उस ने सोचा कि गुस्से से नहीं, ठंडे दिमाग से काम लेना चाहिए. क्योंकि बेटी सयानी है, कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो समाजबिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे.

मां ने समझाया रेनू को

एक दिन चंद्रावती ने बेटी को समझाने के लिए अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटी, मैं एक बात पूछती हूं. सच बताएगी क्या?’’

‘‘पूछो मां, क्या बात है?’’ रेनू बोली.

‘‘रेनू, मैं देख रही हूं कि आजकल तुम्हारे पांव कुछ ज्यादा ही बहक रहे हैं.’’ चंद्रावती बोली.

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो मां, मैं कुछ समझी नहीं.’’ रेनू ने उत्तर दिया.

‘‘नहीं समझ रही तो मैं समझाए देती हूं. मैं यह कह रही हूं कि तुम्हारे पापा को तुम्हारी करतूतों के बारे में सब पता चल चुका है. आनंद से मेलजोल बढ़ाने की जरूरत नहीं है. अभी भी वक्त है, अपने बहके हुए कदमों को रोक लो वरना कयामत आ जाएगी.’’ मां की बातें सुनते ही रेनू सन्न रह गई और सोचने लगी कि मां को उस के प्यार के बारे में कैसे पता चल गया.

‘‘क…कौन आनंद?’’ हकलाती हुई रेनू मां के पास से उठ खड़ी हुई और आगे बोली, ‘‘मेरा आनंद से कोई लेनादेना नहीं है मां. फिर तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा आनंद के साथ कोई चक्कर है. क्या तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा ही तो टूटता हुआ दिखाई दे रहा है बेटी, तभी तो तुम्हें आगाह कर रही हूं कि अभी भी वक्त है. तुम खुद को संभाल लो, नहीं तो आगे तुम खुद ही भुगतोगी.’’ मां ने एक तरह से चेतावनी भी दी.

मां की बात अनसुनी करते हुए रेनू कमरे में चली गई. वह ये सोच कर हैरान थी कि मां को उस के रिश्तों के बारे में आखिर कैसे पता चला. रेनू ने यह बात आनंद से बता कर उसे सावधान कर दिया कि उन के प्यार के बारे में उस के घर वालों को पता चल चुका है, इसलिए सतर्क हो जाए नहीं तो हमारा मिलना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

रेनू के समझाने पर आनंद मान गया था. इस के बाद उस ने उस के घर आनाजाना कम कर दिया. वह कभी जाता भी था तो केवल रेनू के भाई से बातचीत कर के थोड़ी देर में अपने कमरे पर वापस लौट आता था. इसी बीच आनंद ने सब से नजरें बचाते हुए एक एंड्रायड मोबाइल फोन खरीद कर रेनू को गिफ्ट कर दिया था ताकि घर वालों के पाबंदी लगाए जाने पर उस से उस की लगातार बातें होती रहें.

रेनू पर लगा दी गई पाबंदी

रेनू के मांबाप ने उस पर सख्त पाबंदी लगा दी थी. इस के बावजूद भी उन्हें महसूस हो गया था कि लाख मना करने के बावजूद रेनू ने आनंद से मिलनाजुलना बंद नहीं किया है. अब तो पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा था. क्योंकि वह खुलेआम आनंद से मिलती और बातें करती थी.

रेनू की ये हरकतें उन से सहन नहीं हो रही थीं. वे अपनी मानमर्यादा को बचाने में लगे हुए थे. उन्हें इस बात का डर था कि बेटी के साथ कहीं ऊंचनीच हो गई तो वे समाज में क्या मुंह दिखाएंगे.

आखिर बेटी की हरकतों से परेशान हो कर ब्रह्मदेव ने कानपुर छोड़ गोरखपुर लौटने का फैसला कर लिया. सन 2018 के अक्तूबर के पहले हफ्ते में नौकरी छोड़ कर ब्रह्मदेव बच्चों के साथ गोरखपुर वापस आ गया.

गोरखपुर आने के बाद चंद्रावती ने रेनू को अपनी बड़ी बेटी लीलावती के पास उस की ससुराल मूसावार, कैंपियरगंज भेज दिया. सोचा कि वह बड़ी बहन के पास रहेगी तो उस का मन भी लगा रहेगा और निगरानी भी करती रहेगी.

जैसेतैसे एक सप्ताह बीता. रेनू अपने प्रेमी आनंद से मिलने के लिए बेताब हो रही थी. वह जानती थी कि ऐसा कदापि संभव नहीं है लेकिन वह उस की यादों में तिलतिल कर तड़प रही थी. वह फोन से बातें कर के अपने मन को समझाबुझा लेती थी. रेनू जानती थी कार्तिक पूर्णिमा के दिन कैंपियरगंज के करमैनी घाट पर बड़ा मेला लगता है. घर से भागने के लिए उसे वही उचित समय लगा. सोचा कि मेला देखने के बहाने वह घर से निकल जाएगी.

महीनों इंतजार के बाद आखिरकार वह दिन भी आ गया. 23 नवंबर, 2018 को करमैनी घाट पर कार्तिक पूर्णिमा का मेला लगा हुआ था. मेला के एक दिन पहले 22 नवंबर, 2018 को रेनू ने प्रेमी आनंद को फोन कर के साथ भागने के लिए गोरखपुर करमैनी घाट में पहुंचने के लिए कह दिया था.

प्रेमिका का फोन आते ही आनंद उसी रात ट्रेन द्वारा कानपुर से गोरखपुर पहुंच गया. फिर वहां से बस द्वारा कैंपियरगंज चला गया. वहां से सवारी कर के करमैनी घाट मेला पहुंचा और निर्धारित जगह पर रेनू का इंतजार करने लगा. बहाने से रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर मेला देखने के बहाने करमैनी घाट पहुंच गई.

भांजों को थोड़ी देर मेला घुमाने के बाद उन्हें खाने के सामान दिलवा दिए और थोड़ी देर में लौट आने को कह कर वह बच्चों को मेले में एक जगह छोड़ कर प्रेमी आनंद से मिलने चली गई, जो करमैनी पुलिस चौकी से कुछ दूर खड़ा उसी का इंतजार कर रहा था.

रेनू जैसे ही प्रेमी आनंद के पास पहुंची तो वह खुश हो गया. फिर वे दोनों वहां से टैंपो में सवार हुए और सीधे कैंपियरगंज बस स्टाप पहुंचे. वहां से बस में सवार हो कर गोरखपुर आए. गोरखपुर से ट्रेन से अगले दिन कानपुर पहुंच गए.

इधर रेनू को घर से निकले करीब 5-6 घंटे बीत चुके थे. जब रेनू घर नहीं लौटी तो घर वाले परेशान हो गए थे. बाद में उन्होंने गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखवा दी.

रेनू के गायब होने के चौथे दिन 27 नवंबर, 2018 को चंद्रावती के पास एक अनजान नंबर से फोन आया. फोन आनंद यादव ने किया था. उस ने रेनू की मां को बता दिया कि उस की बेटी रेनू उस के पास सुरक्षित है. उस ने यह भी कहा कि हम दोनों ने कानपुर के बारादेई मंदिर में आर्यसमाज विधि से विवाह कर लिया है.

यह सुन कर चंद्रावती के होश उड़ गए. उस ने कोई जवाब नहीं दिया. आनंद खुद को आनंद मिश्रा और रेनू को कनक मिश्रा के रूप में लोगों को परिचय देता था. अगले दिन 28 नवंबर को कैंपियरगंज के करमैनी घाट के माधोपुर बांध की झाड़ी से एक 18 वर्षीया युवती की लाश पाई गई.

इस खबर के बाद चंद्रावती के दिमाग में एक कपोलकल्पित कहानी उपज गई. उस ने सोचा कि रेनू घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर भागी है, तो क्यों न उसे सदा के लिए मरा मान लिया जाए. दामाद इंद्रजीत से पूरी बात बता कर उस से ऐसा ही करने को कहा तो इंद्रजीत सास की बात टाल न सका. उस ने वही किया जो उसे सास ने करने के लिए कहा था.

फिर 30 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने पहुंची. 2 दिन पहले माधोपुर बांध से पाई गई लाश को अपनी बेटी की लाश बता उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी का अपहरण और अपहरण के बाद हत्या का आरोप चंद्रावती ने अपने पट्टीदार रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र पर लगाया. दरअसल चंद्रावती और रामसजन के बीच जमीन को ले कर काफी दिनों से विवाद चल रहा था. इसी विवाद का लाभ चंद्रावती उठाना चाहती थी.

रामसजन पर झूठा मुकदमा दर्ज करा कर वह उस से पैसे ऐंठने की फिराक में भी थी. लेकिन उस की दाल नहीं गली. फिर अंत में 7 महीने बाद 14 मई, 2019 को रेनू की हत्या की झूठी कहानी से राजफाश हो गया. पुलिस ने चंद्रावती सहित पांचों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

अब सवाल यह उठ रहा था कि जिस युवती को रेनू की लाश समझा जा रहा था, वह तो जिंदा निकली तो फिर वह कौन थी जिस की लाश का चंद्रावती ने अंतिम संस्कार किया था. पुलिस इस रहस्यमय गुत्थी को सुलझाने में लगी हुई है. देखना यह है कि क्या पुलिस उस युवती की हत्या के मामले को सुलझाने में कामयाब हो सकेगी या यूं ही यह मामला रहस्य की चादर में लिपटा रह जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जीजा का अजीज साला : पैसों के लिए किया डबल मर्डर

8 मार्च, 2019 को सुबह के यही कोई 9 बजे थे. गोरखपुर के थाना सहजनवा के एसओ वी.के. सिंह को गणेश नाम के एक युवक ने फोन पर सूचना दी कि भकसा गांव के बाहर एक खेत में एक पुरुष और एक महिला की लाशें पड़ी हैं, किसी ने उन की गला रेत कर हत्या की है. उस समय एसओ साहब अपने सरकारी क्वार्टर में थे, जो थाना परिसर में ही था.

एसओ साहब तुरंत थाने पहुंचे और पुलिस टीम के साथ उसी समय भकसा गांव के लिए निकल गए. यह गांव थाने से लगभग 10 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में था. इसलिए वहां पहुंचने में पुलिस को 15 से 20 मिनट लगे.

जहां लाशें पड़ी थीं, वहां भारी संख्या में तमाशबीन जमा थे. पुलिस के पहुंचते ही वे सब इधरउधर हो गए. वहां पर 2 लाशें पड़ी थीं, एक आदमी की दूसरी औरत की. दोनों लाशों के बीच 200 मीटर का अंतर था. दोनों की ही हत्या किसी धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.

घटनास्थल का मुआयना कर के एसओ वी.के. सिंह ने उच्चाधिकारियों को फोन कर के सूचना दे दी. कुछ ही देर में एसपी (साउथ) विपुल कुमार श्रीवास्तव और एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां पर एक सर्जिकल ब्लेड और एक जोड़ी ग्लव्स मिले. इस आधार पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे शायद मैडिकल पेशे से जुड़े रहे होंगे या फिर उन में से कोई ऐसा होगा जिसे मैडिकल के सामान की बखूबी जानकारी हो. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाशों के बारे में शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी उन्हें नहीं पहचान सका.

स्थानीय लोगों से पता चला कि रात में एक एंबुलेंस गांव के बाहर खड़ी देखी गई थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना में कम से कम 5-6 लोग शामिल रहे होंगे, क्योंकि मृतकों की कद काठी के हिसाब से वे दोनों 4-5 लोगों के कब्जे में आने वाले नहीं थे. परिस्थितियों को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा था कि मृतक शायद पतिपत्नी  होंगे.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेजवा दीं. फिर भकसा के चौकीदार रामसमुझ की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पुलिस के सामने पहली समस्या मृतकों की शिनाख्त की थी. शिनाख्त हो जाने के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था.

उधर घटनास्थल पर जुटे अनेक लोगों ने अपने अपने मोबाइल फोन में घटनास्थल पर पड़ी लाशों के फोटो खींच लिए थे. उन्होंने वह फोटो वाट्सऐप पर वायरल करने शुरू कर दिए. अगले दिन 9 मार्च को वह फोटो वायरल होतेहोते खोरबार थाने के महुलीसुधरपुर के रहने वाले वीरेंद्र निषाद के मोबाइल पर भी पहुंचे.

फोटो देख कर वीरेंद्र बुरी तरह चौंका. क्योंकि वह फोटो उस के भाई रविंद्र निषाद और भाभी संगम देवी के थे. भाई 7 मार्च को रोजाना की तरह घर से अपने काम पर निकला था और भाभी उसी दिन शाम को घर से दवा लेने के लिए डाक्टर के पास गई थी. फोटो देख कर वीरेंद्र की आंखों से आंसू बहने लगे.

9 मार्च के अखबारों में फोटो सहित 2 अज्ञात लाशें मिलने की खबर छपी. वह खबर किसी ने वीरेंद्र को दिखाई. इस से उसे यह जानकारी मिल गई कि भाई और भाभी की लाशें जिस जगह मिली हैं वह इलाका थाना सहजनवा के अंतर्गत आता है. जो उस के गांव से काफी दूर था. इसलिए गांव के कुछ लोगों के साथ वह थाना सहजनवा की तरफ चल दिया. वह सभी मोटरसाइकिलों पर सवार थे.

वीरेंद्र थाने पहुंच कर एसओ वी.के. सिंह से मिला और अखबार में छपी खबर और वाट्सएप के फोटो दिखाते हुए कहा कि मृतक उस के भाई रविंद्र निषाद और भाभी संगम देवी है. यह कहते कहते वीरेंद्र रोने लगा. लाशों की शिनाख्त होने के बाद एसओ ने राहत की सांस ली.

वीरेंद्र ने एसओ वी.के. सिंह को बताया कि रविंद्र ठेकेदार था. वह ठेके पर प्लंबिंग का बड़ा काम करता था. फिलवक्त उस का काम सहजनवा के गांव सरैया में चल रहा था. घर से वह बुलेट मोटरसाइकिल ले कर निकला था. वह अपने पास 2 मोबाइल रखता था लेकिन पुलिस को घटनास्थल से न तो बुलेट मिली थी और न कोई मोबाइल. इस का मतलब यह था कि हत्यारे साक्ष्य मिटाने के लिए उस का मोबाइल और मोटरसाइकिल अपने साथ ले गए थे.

पुलिस ने वीरेंद्र से दोनों की हत्या की वजह पूछी तो उस ने आशंका जताई कि कूड़ाघाट की रहने वाली सरिता से रविंद्र की जमीन के सौदे के ले कर काफी समय से विवाद चल रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि रुपए हड़पने के लिए सरिता ने भाई और भाभी की हत्या करवा दी हो. पुलिस ने वीरेंद्र के बयान को आधार बना कर जांच की दिशा इसी ओर मोड़ दी.

पुलिस इस दोहरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में जुटी हुई थी, तभी 9 मार्च को दोपहर के वक्त एसओ वी.के. सिंह के मोबाइल पर एक मुखबिर की काल आई. मुखबिर ने बताया कि पीपीगंज थानाक्षेत्र के जरहद गांव के बाहर 2 दिनों से एक लावारिस बुलेट मोटरसाइकिल खड़ी है.

मुखबिर की सूचना पर सहजनवा पुलिस जरहद गांव पहुंच गई और उस बुलेट को थाना सहजनवा ले आई. बुलेट वीरेंद्र को दिखाई तो उस ने बाइक पहचान ली. बुलेट उस के भाई रविंद्र की ही थी.

इस दोहरे हत्याकांड की गुत्थी काफी उलझी हुई थी. पहली बात तो यह कि मृतक गोरखपुर के थाना खोराबार के महुली सुधरपुर के रहने वाले थे. जबकि उन की हत्या सहजहनवा थाने के भकसा गांव में हुई थी. तीसरे मृतक की बुलेट मोटरसाइकिल मिली पीपीगंज थाने के जरहद गांव में. इस तरह यह घटना 3 थानों से जुड़ गई थी.

घटना के फैले हुए तथ्यों से लग रहा था कि हत्यारा बहुत चालाक और शातिर किस्म का है. क्योंकि उस ने पुलिस को इस तरह उलझा दिया था कि हत्या की कोई कड़ी नजर नहीं आ रही थी. एक बात यह भी थी कि हत्यारे या हत्यारों को वहां के भौगोलिक परिवेश की अच्छी जानकारी थी.

दोहरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने 3 टीमें बनाईं. तीनों टीमों के साथ मीटिंग कर के उन्होंने कुछ दिशानिर्देश भी दिए. तीनों टीमें अपनेअपने काम में जुट गईं. इसी क्रम में पुलिस ने  कई संदिग्ध लोगों के ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश दीं. कुछ लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की गई. लेकिन हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिला.

वीरेंद्र ने जिस महिला सरिता पर शक जताया था पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. सरिता दोहरे मर्डर में कहीं से दोषी नजर नहीं आई तो पुलिस ने उसे भी पूछताछ के बाद कुछ हिदायत दे कर छोड़ दिया.

हफ्ता भर बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां से चली थी, वहीं खड़ी नजर आ रही थी. पुलिस ने एक बार फिर से मौके पर जा कर क्राइम सीन को समझने की कोशिश की. साथ ही आसपास के लोगों से पूछताछ की. पूछताछ से पुलिस को कुछ सफलता हाथ लगी.

पता चला कि घटना वाली रात 10-साढ़े 10 बजे गांव के बाहर जो फोरव्हीलर खड़ा हुआ था वह एंबुलेंस नहीं, बल्कि लाल रंग की एक मारुति कार थी. उस कार में 4-5 लोग देखे गए थे. कार आधे घंटे के बाद वापस चली गई थी. उस के बाद क्या हुआ, किसी को कुछ पता नहीं था.

इस बीच पुलिस ने मृतक रविंद्र निषाद और उस की पत्नी संगम देवी के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन किया. पता चला कि घटना वाले दिन सुबह 11 बजे के आसपास रविंद्र के मोबाइल पर एक काल आई थी. उसी नंबर से शाम करीब 4 बजे फिर काल की गई थी. फिर साढ़े 7 बजे रविंद्र और संगम देवी का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो गए थे.

संगम देवी के फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि शाम करीब साढ़े 4 बजे उस के फोन पर रविंद्र निषाद की काल आई थी. दोनों के बीच करीब 5 मिनट बातचीत भी हुई थी.

फिर 7 बजे दोनों की लोकेशन पीपीगंज इलाके में मिली. काल डिटेल्स के अध्ययन से यह बात साफ हो गई थी कि 7 बजे के करीब रविंद्र और संगम दोनों एक साथ पीपीगंज के किसी एक स्थान पर मौजूद थे. उस के बाद दोनों के मोबाइल फोन एक साथ स्विच्ड औफ हो गए.

मतलब साफ था, दोनों के साथ जो कुछ भी हुआ वह 7 साढ़े 7 बजे के बीच में ही हुआ था. हत्यारों की सुरागरसी के लिए पुलिस ने चारों ओर मुखबिरों का जाल फैला दिया था. जिस मोबाइल नंबर से रविंद्र निषाद के फोन पर आखिरी बार काल आई थी, पुलिस ने उस नंबर का पता लगा लिया था. वह नंबर  अजीज के नाम से लिया गया था. अजीज गोरखपुर के चिलुआताल थाना क्षेत्र के काजीपुर डोहरिया का रहने वाला था. इतने सुराग का मिल जाना पुलिस के लिए काफी था.

15 मार्च, 2019 को सुराग मिलते ही पुलिस काजीपुर डोहरिया में अजीज के घर पहुंच गई. संयोग से अजीज घर पर ही मिल गया. पुलिस को देख कर अजीज का पसीना छूटने लगा. उस से पूछताछ करने पर पता चला कि वह एक तांत्रिक है और घर पर ही झाड़फूंक का काम करता है.

अजीत को हिरासत में ले कर पुलिस लौट आई. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो 2 मिनट में ही उस ने घुटने टेक दिए. अपना जुर्म कबूल करते हुए उस ने बताया कि उस ने उन दोनों की हत्या अपने छोटे भाई नफीस और दोस्त गुलाम सरवर के साथ मिल कर की थी.

घटना के बाद से नफीस फरार है, जबकि गुलाम सरवर सहजनवा के कालेसर गांव में छिपा है. अजीज की निशान देही पर पुलिस ने गुलाम सरवर को गिरफ्तार कर लिया. जैसे ही उस की नजर पुलिस की जीप में बैठे अजीज पर पड़ी तो वह समझ गया कि पुलिस को सब कुछ पता चल गया है.

थाने में पुलिस ने गुलाम सरवर से भी सख्ती से पूछताछ की. सरवर ने अपना जुर्म कबूल करते हुए पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. पुलिसिया पूछताछ में दोहरे हत्याकांड के पीछे विश्वासघात और रुपए हड़पने की कहानी सामने आई. कभी जीजा कहने वाले तांत्रिक अजीज ने अपनी ही मुंहबोली बहन को विधवा बना दिया.

बहुचर्चित रविंद्र निषाद और संगम देवी हत्याकांड की गुत्थी पुलिस ने सुलझा ली थी. 16 मार्च, 2019 को एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने पत्रकार वार्ता का आयोजन कर के पत्रकारों के सामने दोहरे हत्याकांड का सिलसिलेवार तरीके से खुलासा किया. इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

35 वर्षीय रविंद्र निषाद उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के महुलीसुधरपुर का रहने वाला था. रविंद्र अपने बड़े भाई वीरेंद्र के साथ एक ही मकान में संयुक्त रूप से रहता था. दोनों भाइयों में गजब का आपसी मेलजोल था. दोनों एकदूसरे के सुखदुख में बराबर खड़े रहते थे.

रविंद्र ठेकेदार था. वह दूरदूर तक प्लंबिंग का ठेका लेता था. ठेकेदारी के काम से उस ने खूब पैसा कमाया. उस ने अपना आलीशान मकान बनवाया. बच्चों के सुखसुविधा की सारी भौतिक वस्तुओं का प्रबंध किया. अपने दोनों बेटों आदित्य और अभय को अच्छे स्कूल में दाखिल कराया. उन की शिक्षा पर वह खूब पैसा खर्च कर रहा था.

इस बीच रविंद्र ने कूड़ाघाट की रहने वाली सरिता से इसी इलाके में एक बड़ा प्लौट खरीदा. उस ने जो प्लौट खरीदा था, बाद में पता चला कि वह विवादित है. सरिता ने वही प्लौट एक और व्यक्ति को भी बेच दिया था. रविंद्र को जब इस सच्चाई का पता चला तो उसे अपने साथ हुए धोखे का अहसास हुआ.

रविंद्र समझदार इंसान था. उस ने बड़ी ही सूझबूझ से काम लिया और सरिता से अपना पैसा लौटाने का आग्रह किया. लेकिन सरिता की नीयत बिगड़ चुकी थी. उस ने पैसे देने से इनकार कर दिया. बात लाखों रुपए की थी. रविंद्र यूं ही अपना पैसा आसानी से नहीं जाने देना चाहता था. जब उस ने देखा कि बात आसानी से नहीं बनेगी तो उस ने अदालत का सहारा लिया.

रविंद्र की पत्नी संगम का मायका कुशीनगर में था. जिस गांव में उस का मायका था, उसी गांव में तांत्रिक अजीज का भी पुश्तैनी मकान था. वह संगम को अच्छी तरह जानता पहचानता था. अजीज संगम को बहन कहता था. अजीज का गोरखपुर के चिलुआताल के काजीपुर डोहरिया में भी मकान था. अजीज अपने परिवार के साथ अधिकतर काजीपुर डोहरिया में ही रहता था.

पुलिस के अनुसार, काफी पहले आरोपी अजीज की जिंदगी बड़ी तंगहाली से गुजरी थी. तब वह तंत्रमंत्र नहीं जानता था, बल्कि मेहनतकश इंसान था. बात करीब 8 साल पहले की है. अजीज हैदराबाद में पेंट पौलिश का काम करता था. पेंट पौलिश के काम से इतनी कमाई नहीं होती थी, जितनी उस की ख्वाहिश थी. इसलिए उस ने वह काम छोड़ दिया.

जहां अजीज किराए के कमरे में रहता था, उसी के पड़ोस में एक झाड़फूंक करने वाला आदमी रहता था. अजीज देखता था कि वह बिना मेहनत किए झाड़फूंक से रोज हजारों रुपए कमा लेता है. अजीज के दिमाग में यह बात घर कर गई कि वह भी तंत्र विद्या सीखेगा. फिर क्या था, उस ने चतुराई से उस व्यक्ति को अपना गुरु बना लिया और उस से लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए तथाकथित तंत्र विद्या सीख ली.

तंत्रमंत्र का पाखंड सीखने के बाद वह हैदराबाद से गोरखपुर आ कर यही काम करने लगा. सन 2014 से वह झाड़फूंक कर के लोगों को ठग रहा था. उस की ढंग की दुकान चल निकली. उस के पास दूरदराज से भी बड़ी संख्या में लोग आते थे.

रविंद्र की ससुराल से अजीज का पुराना संपर्क था. रविंद्र के शरीर पर सफेद दाग हो गए थे. ससुराल के लोगों के कहने पर इलाज के लिए वह अजीज से डोहरिया जा कर मिला.

अजीज के झाड़फूंक करने पर रविंद्र के सफेद दागों में थोड़ा फायदा होने लगा. यह देख कर रविंद्र खुश हो गया और अजीज का मुरीद बन गया. इस के बाद से रविंद्र और उस के परिवार के लोगों का उस के पास आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया. अजीज रविंद्र को संगम की वजह से जीजा कहता था.

घर आनेजाने से तांत्रिक अजीज रविंद्र के घर के कोनेकोने से वाकिफ था. वह यह भी जानता था कि रविंद्र मालदार पार्टी है. रविंद्र उस का मुरीद है, यह बात तांत्रिक अजीज भलीभांति जानता था. उस ने सोचा क्यों न इस संबंध का लाभ उठाया जाए. संयोग की बात यह थी कि रविंद्र के पास 5 लाख रुपए घर में रखे थे. यह रकम उस ने जमीन खरीदने के लिए रखी थी.

अजीज को इस की जानकारी हो गई थी. उस ने मकान बनवाने की बात कहते हुए उस से 5 लाख रुपए उधार मांगे. अजीज ने उस से वायदा किया कि जब उसे कहीं जमीन मिल जाएगी तब वह लौटा देगा. रविंद्र इनकार नहीं कर सका और 5 लाख रुपए उसे दे दिए. यह जून 2018 की बात है.

इसी बीच अजीज के छोटे भाई नफीस की शादी पक्की हो गई थी. शादी 17 फरवरी, 2019 को होनी तय हुई. अजीज की मंशा थी कि शादी से पहले घर बनवाया जाए ताकि नई दुलहन आराम से रह सके. रविंद्र से लिए 5 लाख रुपए थे ही. अजीज को 5 लाख रुपए दिए हुए धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. रुपए लेने के बाद अजीज ने डकार तक नहीं ली. वह चुप्पी साध कर बैठ गया.

फिर क्या था? रविंद्र ने रुपए वापस करने के लिए अजीज से तगादा करना शुरू कर दिया. रुपए को ले कर दोनों के संबंधों में दरार आ गई. इसी बीच नफीस की शादी भी कैंसिल हो गई. भाई की शादी टूट जाने और रविंद्र के बारबार तगादा करने से अजीज रविंद्र से चिढ़ गया. वैसे भी लौटाने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे. वह सब मकान बनवाने में खर्च हो गए थे. अब वह रुपए लौटाता तो कहां से. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

अजीज की नीयत में खोट आ गई थी. वह रविंद्र के रुपए हड़पना चाहता था. उधर, रविंद्र और उस की पत्नी संगम के बारबार के तगादे से अजीज परेशान हो गया था. उस ने उसे कई बार समय दिया लेकिन रुपए नहीं लौटा सका.  परेशानी की इस हालत में अजीज के दिमाग में एक खतरनाक विचार आया. उस ने सोचा कि क्यों न रविंद्र को ही रास्ते से हटा दिया जाए. न वह जिंदा रहेगा और न रुपए के लिए बारबार तगादा करेगा.

गुलाम सरवर तांत्रिक अजीज का परम भक्त था, जो कुशीनगर जिले के पड़रौना के गायत्रीनगर में रहता था. वह बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एक आयुर्वेदिक मैडिकल कालेज से बीएमएस की पढ़ाई कर रहा था. तीसरे सेमेस्टर में 2 बार फेल होने के कारण वह पढ़ाई छोड़ कर महाराजगंज में जनसेवा नामक हास्पिटल चलाने लगा था. रोजीरोटी के लिए गुलाम सरवर बेल्डिंग का काम करता था.

परेशान अजीज ने गुलाम सरवर के सामने अपना दुखड़ा रोया और रविंद्र को रास्ते से हटाने में उस से मदद मांगी तो वह बिना सोचेसमझे अजीज का साथ देने के लिए तैयार हो गया. सरवर के साथ आ जाने के बाद उस ने छोटे भाई नफीस को भी साथ मिला लिया.

तीनों ने मिल कर योजना बनाई कि रुपए लौटाने के बहाने रविंद्र को घर बुलाएंगे और उस का काम तमाम कर के लाश को कहीं ठिकाने लगा देंगे. इस बीच नफीस और गुलाम सरवर स्थान की भी रेकी कर आए. गुलाम सरवर पडरौना से सर्जिकल ब्लेड और ग्लव्स खरीद लाया.

सब कुछ तय योजना के मुताबिक चल रहा था. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को अजीज ने रविंद्र को फोन कर कहा कि तुम 7 मार्च, 2019 को घर आ कर रकम ले जाओ. गुलाम सरवर और नफीस 7 मार्च की सुबह ही अजीज के घर आ गए थे. पिछली रात नफीस पडरौना स्थित गुलाम सरवर के घर रुक गया था. दोपहर में सरवर व नफीस कार से 8 किलोमीटर दूर सहजनवा के भकसा गांव गए. उन्हें वारदात को अंजाम देना था.

रेकी करने के बाद दोनों वापस आए. शाम 4 बजे अजीज ने रविंद्र को फोन कर के पूछा कि कब तक आ रहे हो. रविंद्र ने कुछ समय बाद पहुंचने को कहा. फिर रविंद्र ने उसी समय पत्नी संगम को फोन किया कि तुम तैयार हो जाओ, पैसे लेने अजीज के यहां पहुंचना है.

संगम को डाक्टर के पास चेकअप के लिए भी जाना था सो वह तैयार हो गई. संगम तैयार हो कर कैंट इलाके के रुस्तमपुर पहुंची तब तक रविंद्र भी बुलेट मोटरसाइकिल से सहजनवा की सरैया साइट से वहां पहुंच गया.  पत्नी संगम को साथ ले कर रविंद्र शाम 5 बजे अजीज के घर डोहरिया पहुंच गया.

रविंद्र के साथ उस की पत्नी संगम को देख कर तीनों चौंक गए. अजीज ने मन ही मन सोचा कि शिकार तो एक होना था, यहां तो दोनों ही शिकार होने चले आए. फिर क्या था, अजीज दोनों से कुछ देर इधरउधर की बातें करता रहा. तब तक नफीस दोनों की खातिरदारी के लिए प्लेट में नाश्ता और पीने के लिए पानी ले आया. अजीज ने पानी में पहले ही नशीली गोली डाल दी थी. वही पानी नफीस ने दोनों को पिला दिया.

पानी पीने के कुछ देर बाद दोनों अचेत हो गए. दोनों के बेहोश होने के बाद नफीस और गुलाम सरवर लाल रंग की मारुति कार में डाल कर उन्हें सहजनवा के भकसा गांव ले गए. कार से काजीपुर डोहरिया से भकसा पहुंचने में उन्हें करीब डेढ़ घंटा लगा. कार खुद गुलाम सरवर चला रहा था. उस समय रात के 10 बज रहे थे.

कार उन्होंने गांव के बाहर खड़ी कर दी. नफीस और सरवर ने कार से रविंद्र और संगम को बारीबारी से बाहर निकाला और खेत में ले जा कर लेटा दिया. सरवर ने हाथों में ग्लव्स पहने और सर्जिकल ब्लेड से रविंद्र की गला रेत कर हत्या कर दी.

इत्तफाक से उसी समय संगम को होश आ गया और उस ने पति की हत्या होते देख ली. वह लड़खड़ाती हुई वहां से भागी. लेकिन उन के हाथों से नहीं बच सकी. करीब 200 मीटर दूर दौड़ा कर उस की भी उसी ब्लेड से हत्या कर दी गई.

पुलिस को गुमराह करने के लिए सर्जिकल ब्लेड और ग्लव्स उन्होंने घटनास्थल पर ही छोड़ दिए. रविंद्र की मोटरसाइकिल और दोनों मोबाइल फोन ले कर वे वहां से चले गए. रास्ते में राप्ती नदी थी, अजीज ने दोनों मोबाइल फोन नदी में फेंक दिए और घर जा कर आराम से सो गया. अगले दिन नफीस और सरवर पडरौना चले गए. नफीस पडरौना से फरार हो गया. कथा लिखे जाने तक वह गिरफ्तार नहीं हुआ था.

आरोपी अजीज और गुलाम सरवर जेल में बंद हैं. पुलिस ने रविंद्र की बुलेट मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी. नदी में फेंके जाने से मोबाइल बरामद नहीं हो सके. तांत्रिक का नाम था तो अजीज लेकिन वह किसी का भी अजीज नहीं हुआ.

—कथा में सरिता परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित