Crime News : फिरौती नहीं दी तो गला दबाकर कर दी हत्या

Crime News : उत्तर प्रदेश में बढ़ रही आपराधिक घटनाएं बता रही हैं कि अपराधी अब बेलगाम हो चुके हैं. कानपुर, गोंडा और गोरखपुर में अपहरण के बाद हुई हत्याओं ने साबित कर दिया कि अब अपराधियों के दिल में पुलिस नाम का कोई डर नहीं है.  लगातार बढ़ रही घटनाओं से पुलिस भी शक के घेरे में आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में 14 वर्षीय बलराम गुप्ता की अपहरण के बाद हुई हत्या से प्रदेश के लोगों में डर बैठ गया है. लोगों का सोचना है कि जब मुख्यमंत्री के जिले के लोग ही सुरक्षित नहीं हैं तो और लोग कैसे सुरक्षित रह सकते हैं.

गोरखपुर जिले के थाना पिपराइच के गांव जंगल छत्रधारी टोला मिश्रौलिया के रहने वाले बच्चे बलराम गुप्ता का जिस तरह अपहरण करने के बाद उस की हत्या कर दी गई, उस से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई. 5वीं कक्षा में पढ़ने वाला बलराम गुप्ता 26 जुलाई, 2020 को दोपहर 12 बजे खाना खा कर रोजाना की तरह घर से बाहर खेलने निकला. अपने दोस्तों के साथ खेलने के बाद वह अकसर डेढ़दो घंटे में घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह घर नहीं लौटा. उस की मां और बहन ने उसे आसपास ढूंढा, लेकिन बलराम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. बलराम के पिता महाजन गुप्ता घर के पास में ही पान की दुकान चलाते थे. इस के अलावा वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करते थे.

जब उन्हें पता लगा कि बलराम दोपहर के बाद से गायब है तो वह भी परेशान हो गए. करीब 3 बजे महाजन गुप्ता के मोबाइल फोन पर एक ऐसी काल आई जिस से घर के सभी लोग असमंजस में पड़ गए. फोन करने वाले ने कहा कि तुम्हारा बेटा बलराम हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा चाहते हो तो एक करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो, अन्यथा बहुत पछताना पड़ेगा. यह खबर सुनते ही महाजन गुप्ता घबरा गए. उन्होंने अपहर्त्ता से कहा कि वह उन के बेटे का कुछ न करें. जैसा वे कहेंगे वैसा ही करने को तैयार हैं. बलराम अपनी 5 बहनों के बीच इकलौता भाई था, इसलिए वह घर में सभी का लाडला था. बलराम के अपहरण की जानकारी उस की मां और बहनों को हुई तो सभी परेशान हो गईं.

महाजन गुप्ता की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि वह एक करोड़ रुपए की व्यवस्था कर सकें, इसलिए वह यह सोचसोच कर परेशान हो रहे थे कि इतने पैसों का इंतजाम कहां से करें. उसी दौरान अपहर्त्ताओं ने उन्हें दोबारा फोन किया, ‘‘एक बात याद रखना पुलिस को सूचना देने की भूल मत करना…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा. लेकिन आप जितने पैसे मांग रहे हैं, मेरे पास नहीं हैं. अगर कुछ कम कर लेंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’ महाजन गुप्ता ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘इस बारे में हम 5 बजे के करीब फिर बात करेंगे. तब तक तुम पैसों का इंतजाम करो.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

महाजन को लगा कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा मांगी गई फिरौती का इंतजाम नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को दे दी. बच्चे के अपहरण की सूचना मिलते ही थाना पपराइच पुलिस उसी समय महाजन के घर पहुंच गई. घर वालों से बातचीत करने के बाद पुलिस ने उन बच्चों से भी पूछताछ की, जिन के साथ बलराम अकसर खेला करता था. थाना पुलिस अभी यह जांच कर ही रही थी कि पुलिस को सूचना मिली कि गांव से 3-4 किलोमीटर दूर नहर में एक बच्चे की लाश पड़ी है. सूचना मिलने पर पुलिस महाजन गुप्ता को ले कर नहर पर पहुंच गई. नहर में मिली लाश बलराम की ही निकली, जिस की शिनाख्त महाजन ने कर ली.

बेटे की लाश देखते ही महाजन गुप्ता गश खा कर वहीं गिर गए. गांव में यह खबर फैली तो सभी सन्न रह गए. महाजन के घर में तो हाहाकार मच गया. गांव वाले समझ नहीं पा रहे थे कि प्रदेश में यह क्या हो रहा है. अपराधी बेलगाम हो कर वारदात पर वारदात कर रहे हैं और पुलिस कान में तेल डाले सो रही है. लिहाजा बलराम की हत्या के बाद ग्रामीणों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा, जिस के बाद खबर मिलने पर जिला स्तर के पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. चूंकि मामला प्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह जनपद का था, इसलिए मुख्यमंत्री को भी इस घटना की जानकारी मिल गई. उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए शीघ्र ही केस का खुलासा करने के आदेश दिए.

मुख्यमंत्री के आदेश पर थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच और एसटीएफ भी केस को खोलने में जुट गई. पुलिस टीमों ने सब से पहले महाजन गुप्ता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. महाजन ने जब दुश्मनी होने से इनकार कर दिया तो जांच टीमों ने उस फोन नंबर की जांच शुरू कर दी,जिस से महाजन के पास फिरौती की काल आई थी. उस फोन नंबर की जांच के सहारे पुलिस रिंकू नाम के उस शख्स के पास पहुंच गई, जिस ने वह सिम कार्ड फरजी आईडी पर दिया था. रिंकू ने बताया कि वह सिम उस ने दयानंद राजभर नाम के व्यक्ति को दिया था. रिंकू को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने  उस की निशानदेही पर दयानंद राजभर को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बलराम की हत्या में अजय चौहान और नितिन चौहान भी शामिल थे. उन्होंने फिरौती के चक्कर में उस की हत्या की थी.

बलराम की हत्या का केस लगभग खुल चुका था. अब केवल अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी बाकी थी. पुलिस टीमों ने अन्य अभियुक्तों की तलाश में संभावित स्थानों पर दबिश डालनी शुरू की. अगले दिन 27 जुलाई को पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी अजय चौहान और नितिन उर्फ मुन्ना चौहान को हैदरगंज के गुलरिहा गांव में रहने वाले उन के एक रिश्तेदार ने कमरे में बंद कर लिया है. सूचना मिलने पर भारी तादाद में पुलिस गुलरिहा पहुंच गई और दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अब तक पुलिस के हत्थे 5 आरोपी चढ़ चुके थे, जिन में 3 लोग बलराम के अपहरण और हत्या में शामिल थे और 2 पर फरजी कागजात के जरिए सिम कार्ड बेचने की बात सामने आई.

पूछताछ में अभियुक्तों ने बताया कि उन्हें खबर मिली थी कि महाजन गुप्ता प्रौपर्टी डीलिंग में अच्छी कमाई करते हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी कोई जमीन अच्छे पैसों में बेची थी. मोटी फिरौती के लालच में उन्होंने उन के इकलौते बेटे बलराम का अपहरण किया था. बलराम का अपहरण करने के बाद वे उसे एक दुकान में ले गए थे और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. फिर उस की लाश नहर में डाल आए थे. लाश ठिकाने लगाने के बाद आरोपी नितिन उर्फ मुन्ना चौहान और अजय चौहान गुलरिहा स्थित अपनी मौसी के घर छिपने के लिए पहुंचे. उन्होंने मौसी को सच्चाई बता दी. मौसी को इस बात का डर था कि कहीं उन के चक्कर में पुलिस एनकाउंटर कर के उस के बच्चों की जान न ले ले, इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण करने की सलाह दी.

दोनों आरोपियों को डर था कि आत्मसमर्पण के बाद भी पुलिस उन का एनकाउंटर कर सकती है. तब रिश्तेदारों ने पूरे गांव वालों के सामने उन का आत्मसमर्पण करने की योजना बनाई. अजय और नितिन को एक कमरे में बंद कर उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया और जब पुलिस उन दोनों को गिरफ्तार कर ले जा रही थी तो उस समय पूरा गांव जमा हो गया था. 14 वर्षीय बलराम के अपहरण और हत्या के आरोप में पुलिस ने 5 अभियुक्तों को गिरफ्तारकर लिया. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने लापरवाही बरतने के आरोप में एक दरोगा और 2 सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया. उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बलराम गुप्ता की हत्या पर संवेदना व्यक्त की और उस के परिजनों को 5 लाख रुपए की सहायता राशि जिलाधिकारी के माध्यम से भिजवाई.

बलराम एक साल पहले एक रिश्तेदार के घर से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था, जिसे 4-5 दिन बाद पुलिस ने कुसमही के जंगल से बरामद किया था. लेकिन इस बार गायब होने पर उस की लाश मिली.

Extramarital Affair : कोल्‍ड ड्रिंक में नशीली गोलियां मिला कर पहले पति को पिलाया, फिर किया कत्‍ल

Extramarital Affair : महत्त्वाकांक्षी होना कोई गलत बात नहीं है. लेकिन उस के चक्कर में देहरी लांघ जाना ठीक नहीं. 2 बच्चों की मां गजाला इस बात को समझ जाती तो उस का पति शाहिद तो जीवित होता ही, साथ ही गजाला को भी जेल न जाना पड़ता…

10 जुलाई, 2020 की सुबह आगरा के महात्मा दूधाधारी इंटर कालेज के पास नगला कमाल के रास्ते पर एक युवक की लाश पड़ी थी. सूचना मिलते ही मौके पर गांव वाले पहुंच गए, भाजपा नेता उदय प्रताप भी वहां पहुंचे. उन्होंने इस की सूचना थाना खेरागढ़ पुलिस को दे दी. लाश पड़ी होने की सूचना पा कर थानाप्रभारी अवधेश अवस्थी पुलिस टीम के मौके पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने फौरेंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 28 से 30 वर्ष के बीच रही होगी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे.

कपड़ों की तलाशी ली गई तो उस की पैंट की जेब में आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड मृतक का ही था. उस में उस का नाम शाहिद खान लिखा था. पता कटघर ईदगाह, आगरा लिखा था. इस के अलावा कोई साक्ष्य नहीं था. आधार कार्ड को जाब्ते में लेने के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. फिर थाने वापस लौट आए. पुलिस ने इस की सूचना मृतक के घरवालों को दे दी. शाहिद की हत्या की खबर मिलते ही घर में हाहाकार मच गया. घर वाले थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी अवस्थी ने उन से पूछताछ की तो पता चला मृतक शाहिद खान खुद का टैंपो चलाता था.

4 साल से वह पत्नी गजाला और 2 बच्चों के साथ रैना नगर, धनौली में किराए पर रह रहा था. उन से पूछताछ के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी अवधेश अवस्थी मृतक के घर गए तो घर पर शाहिद की पत्नी गजाला मिली. पूछने पर उस ने बताया कि एक दिन पहले यानी 9 जुलाई की शाम शाहिद टैंपो ले कर निकला था, तब से वापस नहीं आया. थाने लौटने के बाद थानाप्रभारी अवस्थी ने मामले पर विचार किया कि कहीं शाहिद की हत्या की वजह लूटपाट तो नहीं है, क्योंकि उस का टैंपो भी नहीं मिला था. लेकिन अगले ही पल दिमाग में आया कि हत्या लूट के लिए की गई होती तो लुटेरे लाश को इतना दूर क्यों फेंकते.

इंसपेक्टर अवस्थी ने दिमाग पर जोर दिया तो उन्हें शाहिद की पत्नी गजाला की हरकतें कुछ अटपटी लगीं. जब वह शाहिद के घर गए थे तो गजाला घबराई हुई थी. वह रो तो रही थी लेकिन उस की आंखें बराबर इधरउधर चल रही थीं. वह बराबर पुलिस की गतिविधि पर नजर रख रही थी. थानाप्रभारी को गजाला पर शक हुआ तो उन्होंने उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर था, जिस पर वह रोजाना बातें करती थी. वह नंबर रैना नगर के ही रहने वाले राहुल हुसैन का था. इस के बाद सर्विलांस टीम की मदद ली गई. सर्विलांस टीम ने जांच की तो पता चला घटना वाले दिन 9 जुलाई की शाम को राहुल हुसैन शाहिद खान के साथ था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने 12 जुलाई को राहुल हुसैन को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के दोस्त इमरान को भी उठा लिया. दोनों से पूछताछ के बाद गजाला को उस के घर से गिरफ्तार किया गया. तीनों से जब पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. 30 वर्षीय शाहिद खान आगरा के खेरागढ़ के कटघर ईदगाह (रकाबगंज) मोहल्ले में रहने वाले हबीब खान का बेटा था. 2 भाइयों में सब से बड़ा शाहिद अपना खुद का टैंपो चलाता था. 8 साल पहले शाहिद का निकाह रैना नगर, धनौली (मलपुरा) में रहने वाली गजाला के साथ हुआ था. शाहिद गजाला जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर बहुत खुश था. जबकि सांवले रंग के साधारण शौहर शाहिद से गजाला खुश नहीं थी.

दरअसल गजाला ने अपने मन में जिस तरह शौहर की कल्पना की थी, शाहिद वैसा नहीं था. गजाला ने सपना संजो रखा था कि उस का शौहर हैंडसम और सुंदर होगा. जबकि शाहिद उस की अपेक्षाओं के बिलकुल विपरीत था. गजाला अपने हिसाब से उसे मौडर्न बनाने की कोशिश भी करती, शाहिद फैशनेबल कपड़े पहनता भी तो उस पर वे जंचते नहीं थे, वह रंगरूप से मात खा जाता था. गजाला मन मसोस कर रह जाती. इसी चक्कर में वह कुंठित और चिड़चिड़ी हो गई. वह बातबात में शाहिद से झगड़ने लगती थी. उस की यह आदत सी बन गई थी. पतिपत्नी के रोजरोज के झगड़ों से शाहिद के घरवाले परेशान रहने लगे. इस सब के चलते गजाला एक बेटा और एक बेटी की मां बन गई. 4 साल पहले शाहिद रैना नगर, धनौली में ससुराल के पास किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.

शाहिद सुबह टैंपो ले कर निकल जाता तो देर रात घर लौटता था. उस के चले जाने के बाद चंचल हसीन और खूबसूरत गजाला को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. उस का मन नहीं लगता तो वह बनसंवर कर घर से निकल कर ताकझांक करने लगती. चूंकि पास में ही उस का मायका था, इसलिए वह कुछ देर के लिए मायके चली जाती थी. गजाला भले ही 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन उस की महत्त्वाकांक्षा उसे चंचल बना रही थी, मर्यादा हनन करने को उकसा रही थी. रैना नगर में ही राहुल हुसैन रहता था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. देखने में स्मार्ट और अविवाहित. गजाला जब उस के मोहल्ले में पति के साथ रहने आई, तभी उस की नजर गजाला पर पड़ चुकी थी. उसे गजाला का रूपसौंदर्य पहली नजर में ही भा गया था.

गजाला राहुल से परिचित थी. शाहिद के घर न होने पर राहुल उसके पास पहुंचने लगा. गजाला को उस से बात करना अच्छा लगता था. चंद मुलाकातों में दोनों के बीच काफी नजदीकियां हो गईं. राहुल और गजाला में हंसीमजाक भी होने लगी. गजाला राहुल के मजाक का बिलकुल बुरा नहीं मानती थी.  राहुल बातूनी था, इसलिए वह भी उस से खूब बतियाती थी. दरअसल गजाला के दिल में राहुल के प्रति चाहत पैदा हो गई थी.  राहुल जब भी उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करता तो गजाला के शरीर में तरंगें उठने लगती थीं. 2 बच्चों की मां बनने के बाद गजाला का गदराया यौवन और रसीला हो गया था. आंखों में मादकता छलकती थी.

एक दिन राहुल ने उस के हुस्न और जिस्म की तारीफ  की तो वह गदगद हो गई. फिर वह बुझे मन से बोली, ‘‘ऐसी खूबसूरती किस काम की, जिस पर शौहर ध्यान ही न दे.’’

राहुल को गजाला की ऐसी ही किसी कमजोर नस की ही तलाश थी. जैसे ही उस ने पति की बेरुखी का बखान किया, राहुल ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘तुम क्यों चिंता करती हो, हीरे की परख जौहरी ही करता है. आज से तुम्हारे सारे दुख मेरे हैं और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी.’’

राहुल की लच्छेदार बातों ने गजाला का मन मोह लिया. वह उस की बातों और व्यक्तित्व की पूरी तरह कायल हो गई. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. मन बेकाबू होने लगा तो गजाला ने थरथराते होठों से कहा, ‘‘अब तुम जाओ. उन के आने का समय हो गया है. कल दोपहर में आना, मैं इंतजार करूंगी.’’

राहुल ने वह रात करवटें बदलते काटी. सारी रात वह गजाला के खयालों में डूबा रहा. सुबह वह देर से जागा. दोपहर तक सजसंवर कर वह गजाला के घर पहुंचा. गजाला उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने उस दिन खुद को विशेष ढंग से सजायासंवारा था. राहुल ने पहुंचते ही गजाला को अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘आज तो तुम हूर लग रही हो.’’

‘‘थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.’’ गजाला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘कम से कम दरवाजा तो बंद कर लो, वरना किसी आनेजाने वाले की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.’’

राहुल ने फौरन कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बांहें फैलाईं तो गजाला उन में समा गई. राहुल के तपते होंठ गजाला के नर्म और सुर्ख अधरों पर जम गए. इस के बाद एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा सब कुछ जल कर स्वाहा हो गया. अवैध संबंधों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर रुकने का नाम नहीं लिया. ऐसी बातें समाज की नजरों से कब तक छिपी रह सकती हैं. शाहिद की गैरमौजूदगी में राहुल का उस के कमरे पर बने रहना पड़ोसियों के मन में शक पैदा कर गया. किसी पड़ोसी ने यह बात शाहिद के कान में डाल दी. यह सुन कर उस पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा.

बीवी के बारे में ऐसी बात सुन कर शाहिद परेशान हो गया. उस का काम से मन उचट गया. बड़ी मुश्किल से शाम हुई तो वह घर लौट आया. गजाला को पता नहीं था कि उस के शौहर को उस की आशनाई के बारे में पता चल गया है. वह खनकती आवाज में बोली, ‘‘क्या बात है, आज बड़ी जल्दी घर लौट आए.’’

‘‘सच जानना चाहती हो तो सुनो. तुम जो राहुल के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो, मुझे सब पता चल गया है.’’ शाहिद ने बड़ी गंभीरता से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना कुछ छिपाए सब कुछ सचसच उगल दो. उस के बाद मैं तुम्हें बताऊंगा कि तुम्हारा क्या करना है.’’

गजाला शौहर की बात सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक न एक दिन शाहिद को सब पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा उतर गया. वह घबराए स्वर में कहने लगी, ‘‘जिस ने भी तुम से मेरे बारे में यह सब कहा है, वह झूठा है. लोग हम से जलते हैं, इसलिए किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं.’’

गजाला ने जान लिया था कि अब त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, ‘‘मैं कल भी तुम्हारी थी और आज  भी तुम्हारी हूं. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर मेरी ओर देखने की हिम्मत भी नहीं कर सकता.

‘‘तुम मुझ पर यकीन करो. तुम ने जो कुछ सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं, वह मुझे हासिल नहीं कर सके तो हमारे बीच आग लगा कर हमारा जीना हराम करना चाहते हैं.’’

आखिरकार गजाला की बातों से शाहिद को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने गजाला पर यकीन कर लिया. घर में कुछ दिन और शांति बनी रही. फिर एकदो लोगों ने टोका, ‘‘शाहिद, तुम दिन भर बाहर रहते हो, देर रात को लौटते हो. इस बीच गजाला किस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है, तुम्हें क्या मालूम, अब भी समय है, चेत जाओ वरना ऐसा न हो कि किसी दिन तुम्हें पछताना पड़े.’’

शाहिद को उन की बात समझ में आ गई. वह जान गया कि धुंआ तभी उठता है, जब कहीं आग लगती है. उस ने गजाला को चेतावनी दी कि अब कभी उस ने कोई गलत काम किया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. अच्छा हुआ भी नहीं. कोई न कोई गजाला की खबर उस तक पहुंचा देता था, इस से आजिज आ कर शाहिद गजाला के साथ झगड़ा और मारपीट करने लगा. घटना से 6 दिन पहले गजाला की बहन तनु की शादी थी. शाहिद ने शादी के बाद भी गजाला को पीटा. गजाला पति से परेशान हो चुकी थी. उस ने फोन पर रोतेरोते यह बात राहुल को बताई. वैसे भी गजाला राहुल से निकाह कर के उस के साथ रहने का मन बना चुकी थी.

राहुल भी यही चाहता था. ऐसे में राहुल ने शाहिद को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. गजाला को उस ने बताया तो उस ने भी अपनी सहमति दे दी. शाहिद की हत्या करने के लिए राहुल ने अपने दोस्त इमरान को भी शामिल कर लिया. वह उसी मोहल्ले में रहता था.  9 जुलाई, 2020 की देर शाम को राहुल ने शाहिद का टैंपो भाड़े पर बुक किया और उसे सब्जी मंडी बुलाया. वहां राहुल इमरान के साथ पहले से मौजूद था. शाहिद के वहां पहुंचने पर राहुल ने उसे कोल्ड ड्रिंक पिलाई, जिस में उस ने नशीली गोलियों का पाउडर मिला दिया था. कोल्ड ड्रिंक पी कर शाहिद बेहोश हो गया. दोनों ने उसे टैंपो की पिछली सीट पर लिटा दिया. इमरान टैंपो चलाने लगा.

दोनों बेहोश हुए शाहिद को दूधाधारी इंटर कालेज के पास ले गए. वहां दोनों ने तेज धारदार चाकू से शाहिद का गला रेत कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश वहीं फेंक कर फरार हो गए. लेकिन आखिरकार कानून की गिरफ्त में आ ही गए. राहुल और इमरान की निशानदेही पर पुलिस ने आलाकत्ल चाकू और शाहिद का टैंपो भी बरामद कर लिया. इस के बाद कानूनी लिखापढ़ी कर के गजाला, राहुल और इमरान को न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया़

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Social Crime : ऑडिशन के नाम पर धोखा, लड़कियों से जबरन बनाई जा रही थी पोर्न वीडियो

Social Crime : कितने ही युवक युवतियां मौडलिंग, फिल्मों, सीरियल्स और ओटीटी प्लेटफौर्म में जाने के लिए उतावले रहते हैं. ग्लैमर के नशे में वह अपना अच्छा बुरा भी भूल जाते हैं. कई कथित निर्माता, निर्देशक उन के इस नशे का भरपूर लाभ उठाते हैं. ब्रजेंद्र और मिलिंद ऐसे ही लोगों में थे. इन लोगों ने…

जुलाई के आखिरी सप्ताह में इंदौर की एक मौडल साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह से मिली. मौडल ने खुद का नाम ऐश्वर्या बताते हुए कहा कि वह धामनोद की रहने वाली है और पिछले कई साल से इंदौर में रह कर मौडलिंग करती है. परेशान दिख रही ऐश्वर्या ने एसपी को बताया कि पिछले साल दिसंबर में उस के पास ब्रजेंद्र सिंह नाम के शख्स का फोन आया था. उस ने खुद को मुंबई का डायरेक्टर और प्रोड्यूसर बताया. वह एक बड़े बैनर पर ओटीटी प्लेटफौर्म के लिए फिल्म बनाना चाहता था. उस ने इस फिल्म में ऐश्वर्या को लौंच करने की बात कही. बाद में ब्रजेंद्र ने उसे इंदौर में एरोड्रम रोड पर एक फार्महाउस में बुलाया.

तय समय पर वह उस फार्महाउस पर पहुंची. वहां ब्रजेंद्र सिंह के अलावा मिलिंद भी मिला. कई और लोग भी थे. कैमरों लाइटों सहित फिल्म की शूटिंग का पूरा साजोसामान भी था. ऐश्वर्या मिलिंद को पहले से जानती थी. मिलिंद टी सीरीज और अल्ट बालाजी के लिए वेब सीरीज तथा सीरियलों के लिए कास्टिंग का काम करता था. ऐश्वर्या ने एसपी को बताया कि ब्रजेंद्र और मिलिंद ने उसे बालाजी की एक बोल्ड वेब सीरीज में काम दिलाने की बात कही, लेकिन इस के लिए कुछ बोल्ड सीन शूट करने की शर्त थी. मिलिंद ने ऐश्वर्या को विश्वास दिलाने के लिए मोबाइल पर एकता कपूर की कथित पीए युवती से उस की बात भी कराई.

एकता कपूर की उस कथित पीए ने उसे बालाजी की वेब सीरीज के बारे में बताया. पीए से बातें करने के बाद वह आश्वस्त हो गई कि उसे वेब सीरीज में काम मिल जाएगा. ओटीटी प्लेटफौर्म पर जाने का यह अच्छा मौका था. कथित पीए युवती ने मिलिंद से कहा कि वेब सीरीज के लिए प्रोमो बना कर कंपनी को भेजो. इस के बाद ब्रजेंद्र सिंह और मिलिंद ने उसे बोल्ड सीन देने के लिए 25 हजार रुपए देने का वादा किया. बाद में प्रोमो के नाम पर अश्लील फिल्म शूट कर ली गई. इस फिल्म में मेल एक्टर मिलिंद और गजेंद्र सिंह थे. ब्रजेंद्र सिंह और उस के साथियों ने फिल्म शूट की. इन लोगों ने कहा कि एडिटिंग के दौरान इस में से अश्लील कंटेंट हटा कर प्रोमो कंपनी को भेजा जाएगा.

इतनी बातें बताते बताते ऐश्वर्या की आंखों में आंसू आ गए. एसपी जितेंद्र सिंह ने उसे दिलासा देते हुए पूरी बात बताने को कहा ताकि अपराधियों तक पहुंचा जा सके. टेबल पर रखे गिलास से पानी के कुछ घूंट पीने के बाद ऐश्वर्या ने एसपी से कहा कि इन लोगों ने बाद में फिल्म को एडिट किए बिना ही पोर्न वेबसाइट को बेच दिया. ऐश्वर्या ने रोते हुए बताया कि वह फिल्म पोर्न वेबसाइट पर अपलोड होने के कुछ ही दिन में 4 लाख लोगों ने देख ली. कुछ दिन बाद एक परिचित से उसे इस की जानकारी मिली, तो वह घबरा गई. उस ने मिलिंद और ब्रजेंद्र सिंह से संपर्क किया, तो उन्होंने पल्ला झाड़ लिया.

एसपी जितेंद्र सिंह ने ऐश्वर्या से लिखित शिकायत ली और उसे काररवाई करने का भरोसा दे क र भेज दिया. जातेजाते ऐश्वर्या ने एसपी को यह भी बताया कि ऐसा अकेले उस के साथ नहीं हुआ है. कई दूसरी मौडल युवतियों के साथ भी इन्होंने यही किया है. ये लोग पोर्न सीन शूट करने के नाम पर जो पैसा तय करते, शूटिंग के बाद उतना पैसा भी नहीं देते थे. ये लोग फिल्म पोर्न वेबसाइटों को बेचने के साथसाथ कई तरीकों से मौडल्स का दैहिक शोषण भी करते थे. मामला बेहद गंभीर था. ज्यादातर लोग जानते हैं कि ऐसी फिल्में बनती हैं और पोर्न साइटों पर खूब देखी जाती हैं. माना यह जाता है कि इस तरह की अधिकांश फिल्में मुंबई में बनती हैं. लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसी घिनौनी फिल्में बनना बेहद चिंता की बात थी.

मोबाइल इंटरनेट से बढ़ी पोर्न फिल्मों की मार्केट  दरअसल, जब से बच्चों से ले कर बूढ़ों तक के हाथ में इंटरनेट के साथ मोबाइल आ गया है, तब से पोर्न फिल्म अधिकांश मोबाइलधारकों तक पहुंच गई हैं. इस से सामाजिक पतन होने के साथ अपराध भी बढ़ रहे हैं और घरेलू रिश्ते भी टूट रहे हैं. पोर्न फिल्में देखना जितना बड़ा अपराध है, उस से बड़ा अपराध बिना सहमति के ऐसी फिल्में बनाना है. इस सब से न केवल युवा पीढ़ी भटक रही है बल्कि उस की मानसिकता भी घृणित होती जा रही है.

एसपी जितेंद्र सिंह ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम गठित की. इस टीम ने जरूरी जांचपड़ताल के बाद 30 जुलाई को 2 लोगों मिलिंद डावर और अंकित सिंह चावड़ा को गिरफ्तार कर लिया. इंदौर की रेसकोर्स रोड निवासी मिलिंद फैशन शो और विज्ञापन के लिए बैकग्राउंड कलाकार व कास्टिंग का काम करता था. वह एमडीएफएम नाम की मौडलिंग एजेंसी चलाने के साथसाथ टी सीरीज और अल्ट बालाजी के लिए वेब सीरीज व सीरियलों के लिए भी कास्टिंग का काम करता था. इंदौर की गुरु गोविंदसिंह कालोनी का रहने वाला अंकित चावड़ा एनएमएच फिल्म प्रोडक्शन हाउस में कैमरामैन था. पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि ये लोग मौडल युवतियों को टीवी सीरियल और ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज में मौका दिलाने का झांसा दे कर जाल में फंसाते थे. इस का अश्लील फिल्में बनाने का काला कारोबार इंदौर के अलावा कई अन्य बड़े शहरों में चल रहा था.

इस काले धंधे में डायरेक्टर ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर, राजेश गुर्जर, गजेंद्र सिंह, सुनील जैन, अनिल द्विवेदी, अशोक सिंह व विजयानंद पांडेय आदि शामिल थे. मिलिंद डावर इस गिरोह के लिए मध्य प्रदेश की मौडल युवतियों को तरहतरह के झांसे दे कर फिल्म, वेब सीरीज या सीरियल आदि में रोल दिलाने के नाम पर जाल में फंसाता था. वह चूंकि मौडलिंग एजेंसी, फैशन शो और विज्ञापनों के लिए बैकग्राउंड कलाकारों की कास्टिंग का काम करता था, इसलिए उस के तमाम मौडलों के अलावा मुंबई के कई नामी रंगमंच कलाकारों से भी अच्छे संबंध थे.

इन्हीं संबंधों की आड़ में जब वह मौडल युवतियों को बौलीवुड में अच्छे रोल दिलाने की बात कहता, तो मौडल उस की बातों पर सहज ही भरोसा कर लेती थी. मिलिंद मौडल युवतियों को जाल में फंसाने के बाद ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर (ठाकुर) से मिलवाता था. ब्रजेंद्र खुद को मुंबई का डायरेक्टर, प्रोड्यूसर बता कर कहता था कि बोल्ड सीन आज की जरूरत हैं. प्रत्येक सीन के लिए वह 25 हजार रुपए देने की बात कहता था. जब लड़की तैयार हो जाती तो वह अपने सहयोगियों के साथ बोल्ड सीन के नाम पर अश्लील फिल्में शूट कर लेता था. शूटिंग के दौरान ये लोग मौडल युवतियों को भरोसा दिलाते थे कि इस फिल्म की एडिटिंग के दौरान अश्लील दृश्य हटा दिए जाएंगे. लेकिन बाद में इन फिल्मों को ये लोग बिना एडिट किए ही मुंबई में रहने वाले अशोक सिंह व विजयानंद पांडेय के माध्यम से लाखों रुपए में पोर्न साइटों को बेच देते थे.

पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी कि मध्य प्रदेश के रीवा और इंदौर की रहने वाली 2 मौडलों ने 31 जुलाई को साइबर सेल को ऐसी ही शिकायतें दीं. पुलिस ने दोनों के बयान दर्ज किए. इन युवतियों ने बताया कि इस गिरोह में कई बड़े लोग भी शामिल हैं. गिरोह के कुछ सदस्यों ने कुछ समय पहले स्टार फिल्म्स के नाम पर उन से मूवी बनाने का करार किया था. बाद में बोल्ड वेब सीरीज बनाने की बात कह कर अश्लील वीडियो तैयार कर ली गईं. इस पोर्न फिल्म को मुंबई में लाखों रुपए में बेचा गया. यह वीडियो क्लिप ‘देसी आयटम’ के नाम से पोर्न साइट पर डाल दी गई. इतना ही नहीं, मूवी के लिए किए गए करार के मुताबिक पैसे भी नहीं दिए गए, बल्कि ब्लैकमेल कर शारीरिक शोषण किया गया.

दूसरी ओर, पुलिस ने दोनों गिरफ्तार आरोपियों मिलिंद और अंकित को रिमांड पर ले कर एरोड्रम इलाके में गांधीनगर से लगे शिमला फार्महाउस पर छानबीन की, जहां फिल्म की शूटिंग की गई थी. पता चला इस फार्महाउस का मालिक अजय गोयल था. अजय की तलाश की गई, लेकिन वह नहीं मिला. इस बीच, एक उद्योगपति ने पुलिस से संपर्क कर बताया कि फार्महाउस का मालिक वह है न कि अजय गोयल. फार्म हाउस किसी का, खेल खेला किसी और ने  मालिक ने अजय को अपना फार्महाउस कुछ दिनों के लिए किराए पर दिया था. पुलिस को इस दौरान स्कीम 78 और 114 के 2 आलीशान बंगलों में भी फिल्म की शूटिंग करने का पता चला. इसी के साथ गिरोह में प्रमोद, युवराज आदि के शामिल होने की जानकारी भी मिली.

पुलिस ने शूटिंग वाले बंगलों के मालिकों, गिरोह के सरगना ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर और गजेंद्र सिंह सहित अन्य आरोपियों की तलाश के लिए टीम गठित की. इस के साथ ही मिलिंद व अंकित के मोबाइल व लैपटौप की भी जांच शुरू कर दी. जिन साइटों पर फिल्में अपलोड की गईं, उन के संचालकों को पुलिस ने नोटिस भेज कर जवाब मांगा. जांच के दौरान यह बात भी सामने आई कि वेब सीरीज के नाम पर उभरती मौडल्स के हौट वीडियो शूट करने के अलावा कई नामी ब्रांड्स के ऐड शूट करने के नाम पर भी महिला पुरुष मौडल्स से धोखाधड़ी की गई थी.

पुलिस को शिकायतें मिली कि कपड़ों, कौस्मेटिक, ज्वैलरी, गारमेंट्स, जूते व इलेक्ट्रौनिक्स प्रौडक्ट के विज्ञापनों के नाम पर हौट फोटो शूट कराए गए, लेकिन मौडल्स को न तो पैसा दिया गया और न ही कोई सर्टिफिकेट या ब्रैंड कंपनी का लेटर. पीडि़त युवतियों ने पुलिस को यह भी बताया कि जिन फार्महाउसों या बंगलों में शूटिंग की जाती थी, गिरोह के लोग उन पर उन के मालिकों से शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव बनाते थे. पुलिस की जांच में यह भी पता चला कि गिरोह में हाई प्रोफाइल एस्कार्ट सर्विस से जुड़ी युवतियां भी शामिल थीं. ये एस्कौर्ट हौट फिल्म शूट के नाम पर नई मौडल्स को शूट के लिए उकसाती थीं. फिर कैमरा बंद करने का बहाना कर उन के न्यूड सीन शूट करा देती थीं. बातों में लगा कर कई सीन बंगलों के कमरों में लगे गुप्त कैमरों से भी शूट किए जाते थे.

ऐसे सीन कैमरे में कैद हो जाने के बाद उन्हें ब्लैकमेल किया जाता था. उन से अश्लील दृश्यों की शूटिंग कराई जाती थी और फाइनेंसर या फार्महाउस के मालिक से शारीरिक संबंध बनाने के लिए धमकाया जाता था. एक अन्य युवती ने पुलिस से संपर्क कर बताया कि उस के साथ भी ऐसा ही किया गया था. फिल्म शूटिंग के नाम पर उसे 10 दिन तक बंगले में बंधक बना कर रखा गया. उसे किसी से मिलने भी नहीं दिया गया. यहां तक कि उस का मोबाइल भी छीन लिया गया था. किसी को बताने पर बदनाम करने की धमकी दी गई. ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर खुद को टीवी व फिल्म प्रोडक्शन कंपनी का मालिक बताता था. सोशल मीडिया अकाउंट में कई बौलीवुड ऐक्टर उस की फ्रैंड लिस्ट में शामिल थे.

पुलिस में सब से पहली शिकायत दर्ज कराने वाली मौडल ऐश्वर्या को इसी साल फरवरी में ब्रजेंद्र सिंह और उस के साथी खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में भी ले गए थे. वहां इन लोगों ने मौडल को कई लोगों से मिलाया और झांसा दिया कि ये लोग टीवी सीरियल और वेब सीरीज में आसानी से रोल दिलवा देंगे. पुलिस लगातार पोर्न फिल्म बनाने वाले आरोपियों की तलाश में उन के ठिकानों पर दबिश दे रही थी. इस दौरान पता चला कि बिचौली मर्दाना, रितुराज मेंशन, संपत हिल्स में रहने वाला गजेंद्र सिंह हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट मामले में 5 जुलाई से जेल में बंद है. उसे कुछ दिन पहले इंदौर की सराफा पुलिस ने एक होटल में दबिश दे कर पकड़ा था. उस होटल में वह सैक्स रैकेट से जुड़ी उजबेकिस्तान की एक मौडल युवती को सप्लाई करने गया था.

पुलिस की दबिश के दौरान गजेंद्र उर्फ गोवर्धन उर्फ गज्जू चंद्रावत के घर पर एक कार मिली. इस कार पर एक न्यूज चैनल और प्रैस का स्टीकर लगा हुआ था. वह खुद को पत्रकार बता कर घूमता था. गजेंद्र ने इंदौर की मौडल की शूट की गई पोर्न फिल्म में हीरो का रोल किया था. 5 अगस्त को एक और मौडल ने साइबर सेल में शिकायत की. उस ने बताया कि वह फिल्मों में काम करती है. 2014 में एक फोटो शूट के दौरान वह ब्रजेंद्र और शुभेंद्र से मिली थी. ब्रजेंद्र ने उसे अपनी निर्माणाधीन फिल्म में रोल और 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. बाद में उस ने शूटिंग में अश्लील फिल्म बना ली और 2 लाख रुपए भी नहीं दिए. मौडल ने पैसों के लिए दबाव बनाया तो उस ने वीडियो वायरल करने की धमकी दी.

पिछले साल ब्रजेंद्र ने एक युवती की मुलाकात मुंबई के एक डायरेक्टर राज से करवाई. उसे फिल्म शूटिंग के मेहनताने के रूप में रोजाना 10 हजार रुपए देने की बात तय हुई. फिल्म के नाम पर अश्लील सीन शूट कर लिए गए और उन्हें पोर्न साइट पर डाल दिया गया. साइबर सेल पुलिस ने जेल में बंद गजेंद्र का अदालत से प्रोडक्शन वारंट हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की, ताकि उस से पोर्न फिल्मों के मामले में पूछताछ की जा सके. लगातार भागदौड़ के बीच, साइबर सेल पुलिस ने 10 अगस्त को गिरोह के सरगना ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया. वह इस मामले में अग्रिम जमानत के प्रयास में इंदौर आया था, तभी पुलिस को सूचना मिल गई और उसे पकड़ लिया गया. दूसरी ओर, गजेंद्र उर्फ गज्जू उर्फ गोवर्धन चंद्रावत को जेल से प्रोडक्शन वारंट के तहत रिमांड पर लिया गया.

ब्रजेंद्र सिंह गुर्जर से पूछताछ में पता चला कि वह मूलरूप से दमोह का रहने वाला है. बीबीए और एमबीए तक शिक्षित ब्रजेंद्र 2011 में इंदौर आया था. पहले वह इंदौर में बौंबे हौस्पिटल के पीछे एक गेस्टहाउस में रहता था. बाद में टाउनशिप व पौश कालोनियों में किराए पर रहा. इस दौरान ब्रजेंद्र की मुलाकात भोपाल के राजीव सक्सेना से हुई. राजीव एक सीरियल बना रहा था. उस ने ब्रजेंद्र को अपनी प्रोडक्शन कंपनी में मैनेजर रख लिया. यहां से उस ने फिल्म व सीरियल बनाने का अनुभव प्राप्त किया. राजीव ने कुछ महीने तक काम कराने के बाद ब्रजेंद्र को उस के मेहनताने का एक रुपया भी नहीं दिया और भोपाल चला गया.

2014 में उस ने बिपाशा बसु के साथ एक फिल्म में साइड रोल किया था. इस के अलावा एक हौलीवुड फिल्म में भी उसे छोटा सा रोल मिला था. एक वीडियो एलबम अजब इश्क में शान ने एक गाना गाया था, उस का पिक्चराइजेशन ब्रजेंद्र ने किया था. फिल्मों के सिलसिले में वह मुंबई आताजाता रहता था. इस दौरान उस के कई डायरेक्टर, प्रोड्यूसरों से अच्छे संपर्क बन गए थे, लेकिन फिल्मों में उसे अच्छा मुकाम नहीं मिल पाया था. खुद डायरेक्टर बनने की ठानी आखिर ब्रजेंद्र ने खुद ही फिल्म डायरेक्टर बनने की बात सोची. उस ने खुद का प्रोडक्शन हाउस बना लिया. 2015 में ब्रजेंद्र ने मुंबई के अंधेरी स्थित रजिस्ट्रेशन औफिस में स्टार फिल्म्स के नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाई थी. उस ने परिवर्तन नाम से एक सीरियल भी बनाया. कुछ वीडियो सौंग्स भी शूट किए.

उस ने ‘द डेट’ नाम की एक फिल्म भी बनाई, लेकिन उस की क्वालिटी अच्छी नहीं होने से कोई खरीदार नहीं मिला. अच्छी क्वालिटी की फिल्म बनाने के लिए करोड़ों रुपए की जरूरत होती है. इतना पैसा ब्रजेंद्र के पास नहीं था. ब्रजेंद्र के इंदौर में कई ऐसे लोगों से संपर्क हो गए थे, जो मौडलिंग, फैशन शो और विज्ञापन के लिए कलाकार व कास्टिंग का काम करते थे. इन के माध्यम से वह उभरती मौडल्स को अपने जाल में फांसता. खुद को मुंबई का डायरेक्टर, प्रौड्यूसर बता कर मौडल्स को वेब सीरीज व सीरियल में काम दिलाने के नाम पर इंदौर बुलाता. फिर आलीशान बंगलों व फार्महाउसों में बोल्ड सीन के नाम पर अश्लील फिल्म शूट कर ली जाती. शूटिंग के दौरान हालांकि वह मौडल को इस बात का विश्वास दिलाता था कि शूट किए गए अश्लील सीन एडिटिंग में हटा दिए जाएंगे, लेकिन वह ऐसा करता नहीं था.

फिल्मों के फाइनेंसर और बंगलों व फार्महाउस के मालिक को खुश करने के लिए भी वह मौडल्स को धमका कर या दबाव बना कर शारीरिक शोषण के लिए तैयार करता था. पोर्न फिल्म तैयार होने पर वह मुंबई के लोगों के मार्फत 10 लाख रुपए तक में फिल्म बेच देता था. वह हर बार नए चेहरे और नए कंटेंट पर ज्यादा ध्यान देता था ताकि पोर्न मार्केट में फिल्म की अच्छी कीमत मिल सके.  सन 2018 में आष्टा के ओम ठाकुर ने ‘उल्लू’ ऐप का एग्रीमेंट दिखा कर इंदौर में 4 एडल्ट एपिसोड बनाने के लिए ब्रजेंद्र से संपर्क किया था, लेकिन ओम ठाकुर का एग्रीमेंट फर्जी निकला. उस ने ब्रजेंद्र को कोई पैसा नहीं दिया.

ब्रजेंद्र ने मिलिंद डावर के जरिए इंदौर की 5 मौडल्स को कास्ट कर के ये एपिसोड बनाए थे. उस ने सैक्स रैकेट से जुड़े गजेंद्र उर्फ गज्जू को लीड हीरो के रूप में साइन किया था. इन एपिसोड की शूटिंग इंदौर में स्कीम नंबर 78 में योगेंद्र जाट का आधुनिक सुखसुविधाओं वाला फार्महाउस किराए पर ले कर की गई थी. ब्रजेंद्र ने शुभेंद्र गुर्जर के साथ मिल कर भी एक मूवी बनाई थी. शुभेंद्र भी उभरती मौडल्स के हौट वीडियो एलबम और फिल्में बनाता था. गिरोह के सरगना ब्रजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस ने इंदौर में मौडल ऐश्वर्या के साथ जो पोर्न फिल्म शूट की थी, वह मुंबई के विजयानंद को एडिटिंग के लिए दे दी थी. विजयानंद पर भी इस तरह की पोर्न फिल्में बनाने के आरोप हैं. इस बीच, कोरोना के चलते लौकडाउन की वजह से वह फिल्म विजयानंद के पास ही रह गई.

उस ने वह फिल्म हाई डेफिनिशन कंपनी के अशोक सिंह को दे दी. अशोक ने वह फिल्म फेनियो मूवी के संजय परिहार को बेच दी. संजय ने उसे पोर्न साइट पर अपलोड कर दिया था. इस के बाद ही मौडल ऐश्वर्या को इस बात की जानकारी हुई थी. पुलिस की जांच में सामने आया कि गजेंद्र उर्फ गजानंद मूलरूप से गरोठ का रहने वाला है. उस ने 2012 में इंदौर आ कर ड्राइवर की नौकरी की. 2014 में देवास में उस की मुलाकात पवन सोनगरा से हुई. पवन ने उस से देह व्यापार एजेंट के रूप में काम कराया. 2018 में पवन के निधन के बाद उस ने खुद का काम शुरू कर दिया. उस के कई विदेशी युवतियों से भी संपर्क थे. वह वाट्सऐप पर युवतियों के फोटो भेज कर ग्राहक ढूंढता था.

इंदौर में एरोड्रम इलाके में जिस शिमला फार्महाउस में ब्रजेंद्र व मिलिंद आदि ने मौडल ऐश्वर्या के साथ पोर्न फिल्म शूट की थी, उस फार्महाउस का मालिक पहले अजय गोयल होने की बात सामने आई थी. बाद में फर्नीचर व्यवसायी ओमप्रकाश बड़के ने पुलिस को बताया कि फार्महाउस उस का है. उन्हें फार्महाउस का मेंटिनेंस कराना था. साढ़ू अशोक गोयल ने फार्महाउस की चाबी ले कर वहां का मेंटिनेंस कराने की बात कही. थी. इसी दौरान पोर्न फिल्म की शूटिंग की गई थी.

पुलिस इस मामले में बाकी आरोपियों की तलाश कर रही है. हालांकि देरसबेर आरोपी पकड़े जा सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि अश्लीलता के महासागर में इन छोटी मछलियों के पकड़ में आने से क्या पोर्न फिल्मों की गंदगी रुक जाएगी? यह इसलिए भी मुश्किल लगता है, क्योंकि आज मोबाइल हर इंसान की पहुंच में है. मोबाइल के जरिए ही यह गंदगी बच्चों से ले कर बूढ़ों तक सहजता से पहुंच रही है.

—कहानी पुलिस सूत्रों पर आधारित, मौडल ऐश्वर्या का नाम बदला हुआ है

 

Crime News : 50 करोड़ की रकम हासिल करने के लिए जला दी बिल्डिंग

Crime News : पुलिस अफसर मोहित ने 50 करोड़ की रकम हासिल करने के लिए योजना तो अच्छी बनाई थी. योजना को अंजाम भी दे दिया गया, लेकिन मोहित का खेल एक झटके में खत्म हो गया और वह चाह कर भी…

उस कमरे में 3 लोग थे, मनमोहन, श्याम और विक्रम. मनमोहन मोटा जरूर था, लेकिन उस का दिमाग बहुत तेज था. वैसे उस का मोटापा एक तरह से उस की पर्सनैलिटी पर भी सूट करता था और पेशे पर भी. वह आपराधिक कामों की पेशगी ले कर काम कराता था, लेकिन छोटेमोटे नहीं, बड़ेबड़े. हालांकि खूंखार दिखने वाला मनमोहन खुद कोई अपराध नहीं करता था. श्याम उस का सहयोगी भी था और ड्राइवर भी. हाल ही में मनमोहन ने छोटे शहर मडप के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित से 2 करोड़ की डील की थी. काम था बंद पड़ी एक पुरानी इमारत को इस तरह आग लगाने का कि सब कुछ जल कर खाक हो जाए.

इस काम के लिए उस ने विक्रम को चुना था. वह ऐसे कामों का मास्टर था. दोनों के बीच इस काम का सौदा 50 लाख रुपए में तय हुआ था. 10 लाख उसे दे भी दिए गए थे. लेकिन किन्हीं कारणों से विक्रम यह काम नहीं कर पाया था, उस का पहला प्रयास ही विफल रहा था. फिलहाल विक्रम मनमोहन के सामने बैठा था. हाथ में रिवौल्वर थामे मनमोहन उसे गालियां देते हुए लानतमलामत कर रहा था, जबकि विक्रम सफाई देते हुए कह रहा था कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह किसी काम में हाथ डाले और वह न हो. वह कभी फेल नहीं होता. जबकि मनमोहन बता रहा था कि पुलिस अफसर मोहित का फोन आया था. उस ने बताया कि बिल्डिंग जस की तस खड़ी है.

काफी जद्दोजहद के बाद तय हुआ कि मौके पर जा कर बिल्डिंग को देखा जाए. मनमोहन, श्याम और विक्रम कार से मडप के लिए रवाना हो गए. कार श्याम चला रहा था. चलने से पहले मनमोहन ने मोहित को फोन कर के रास्ते में मिलने को कह दिया था. कार सड़क पर दौड़ रही थी. अपने काम का मंथन करते हुए विक्रम खिड़की से बाहर अंधेरे में देख रहा था. थोड़ीथोड़ी दूरी पर सड़क के दोनों ओर फैक्ट्रियों की रोशनी दिख रही थी. मनमोहन अब भी गुस्से में था और विक्रम को गालियां बक रहा था. 20 मिनट की दूरी तय करने के बाद कार शिवगंगा वाटर पार्क की ओर मुड़

गई. थोड़ा आगे जा कर घने पेड़ों वाला जंगल था. वहां पहुंच कर श्याम ने कार को हलका सा झटका दिया तो पेड़ों के झुरमुट में से एक मानवीय साया निकला और कार के पास आ गया. उस ने बेतकल्लुफी से कार का दरवाजा खोला और अंदर आ कर बैठ गया. यह मोहित था जो सादे कपड़ों में था. कार आगे बढ़ गई.

‘‘मेरा खयाल है, तुम इसी तरह काम करते हो?’’ मोहित ने विक्रम की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं पुलिस स्टेशन में बैठा सूखता रहा और तुम लोगों का दूरदूर तक कोई पता नहीं था. क्या हुआ, कहां मर गए थे तुम लोग?’’

‘‘गुस्से की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा.’’ मनमोहन बोला.

‘‘सब कुछ प्लानिंग के अनुसार हुआ था,’’ मोहित मनमोहन की तरफ देख कर हाथ पर हाथ मारते हुए बोला, ‘‘पौने 11 बजे शहर के उत्तरी इलाके में आग लगने की सूचना मिलते ही तमाम फायर इंजन उस तरफ चले गए थे. वहां झाडि़यों में आग लगी थी. यह सब फायर इंजनों को व्यस्त रखने के लिए किया गया था ताकि दूसरी तरफ हम इस अवसर का लाभ उठा सकें, लेकिन 2 घंटे बाद भी ललिता हाउस में आग लगने की सूचना नहीं मिली. मैं ने इस काम के लिए तुम्हें 2 करोड़ रुपए देने की पेशकश की थी, एडवांस भी दिए, लेकिन तुम लोग बिलकुल नाकारा साबित हुए. आखिर चाहते क्या हो तुम लोग?’’

‘‘इसे देख रहे हो?’’ मनमोहन ने विक्रम की ओर इशारा किया, ‘‘यह हमारा फायर एक्सपर्ट है, जिस की वजह से आज हमें नाकामी का मुंह देखना पड़ा.’’

‘‘मैं ने हर काम बड़ी ऐहतियात से किया था. लेकिन कहीं कोई न कोई गड़बड़ हो गई होगी. इस में मेरा कोई कुसूर नहीं है.’’ विक्रम ने एक बार फिर अपनी सफाई दी.

‘‘सुनो विक्रम, मैं इस कस्बे का औफिसर इंचार्ज हूं. मैं किसी किस्म की गड़बड़ी या गलती को सहन नहीं कर सकता.’’

‘‘मैं तुम्हारा यह काम करूंगा.’’ विक्रम ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘यकीन रखो, इस बार कोई गड़बड़ नहीं होगी.’’

‘‘श्याम, गाड़ी ललिता हाउस की ओर मोड़ दो.’’

‘‘उसी तरफ जा रहा हूं,’’ कहते हुए श्याम ने गाड़ी एक दूसरी सड़क पर

मोड़ दी. कुछ देर बाद गाड़ी ललिता हाउस के सामने रुक गई. विक्रम दरवाजा खोल कर नीचे उतर गया.

‘‘हम 10 मिनट में वापस आएंगे,’’ मनमोहन ने दरवाजा बंद करते हुए कहा, ‘‘इस दौरान पता लगाओ,क्या गड़बड़ हुई थी.’’

गाड़ी आगे बढ़ गई. विक्रम कंधे उचका कर रह गया. फिर वह ललिता हाउस की ओर देखने लगा. उस के हिसाब से इस पुरानी पर आलीशान इमारत को अब तक राख के ढेर में बदल जाना चाहिए था. लेकिन इमारत जस की तस खड़ी थी. उसे हैरत थी कि बिल्डिंग में आग क्यों नहीं लगी. विक्रम अंधेरे लौन को पार करते हुए 50 लाख रुपए के बारे में सोच रहा था, जो बिल्डिंग के जलने की स्थिति में उसे मिलने थे. विक्रम खिड़की पर चढ़ कर बहुत खामोशी से ललिता हाउस के अंदर कूद गया. यह खिड़की वह उस वक्त खुली छोड़ गया था, जब पहली बार यहां आया था. लाइब्रेरी रूम से निकल कर वह गैलरी में आ गया और टौर्च की रोशनी में आगे बढ़ने लगा.

गैलरी में बिछे पुराने कालीन से अब भी नेफ्थलीन की हलकी सी बू उठ रही थी. वह टौर्च की रोशनी में उस फ्यूज का निरीक्षण करने लगा जो खिड़की के रास्ते बाहर कूदने से पहले उस ने लगाया था. फ्यूज जल चुका था और वहां राख की छोटी सी ढेरी नजर आ रही थी. राख की इस ढेरी के नीचे उस ने कालीन को छू कर देखा. वह बिलकुल शुष्क था. विक्रम अपना सिर पीटते हुए खिड़की की ओर चल दिया. कुछ देर बाद वह ललिता हाउस से निकल कर सड़क के दूसरी ओर पेड़ों के अंधेरे में छिप गया और मनमोहन वगैरह की वापसी का इंतजार करने लगा.

अंधेरे की चादर में लिपटी उस इमारत की ओर देखते हुए वह सोच रहा था कि यह बिल्डिंग उस का भाग्य बदल सकती है. कार के इंजन की आवाज उसे ख्वाबों की दुनिया से बाहर ले आई. कार सड़क पर रुकते ही विक्रम पेड़ों की ओट से निकल कर सामने आ गया.

‘‘क्या रहा विक्रम?’’ मनमोहन ने खिड़की पर झुकते हुए पूछा.

‘‘मेरा अंदाजा सही निकला, वाकई गड़बड़ी हो गई थी.’’ विक्रम ने बहुत धीमे लहजे में कहा.

‘‘कोई कहानी सुनाने वाले हो क्या?’’ मनमोहन ने उसे गुस्से से घूरा. मोहित के कहने पर विक्रम कार में बैठ गया ताकि आराम से बात हो सके.

‘‘अपनी बकवास बंद रखो मनमोहन, जो कुछ कहनासुनना है जल्दी से कहो और यहां से निकल चलो.’’ कहते हुए मोहित ने सड़क पर इधरउधर देखा, ‘‘मेरे अंदाजे के मुताबिक ड्यूटी कांस्टेबल गश्त करते हुए इस ओर आने वाला होगा.’’

‘‘यह इस इलाके का पुलिस इंचार्ज है, जो एक मामूली कांस्टेबल से डरता है.’’  मनमोहन ने उस का मजाक उड़ाया.

‘‘मुझ से बड़ी गलती हो गई जो इस काम के लिए तुम लोगों से बात कर बैठा.’’ मोहित नागवारी से बोला, ‘‘बहरहाल, क्या गड़बड़ी हुई थी?’’

‘‘मैं ने 2 घंटे का फ्यूज लगाया था, जबकि वक्त ज्यादा होने की वजह से इस दौरान नेफ्थलीन हवा में उड़ गया.’’ विक्रम ने जवाब दिया.

‘‘क्या हवा में उड़ गया?’’ श्याम ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा.

‘‘हमारा यह फायर एक्सपर्ट साइंस का स्टूडेंट है, बातचीत में बड़े कठिन शब्दों का प्रयोग करता है, जो दूसरों के सिर से गुजर जाते हैं. तुम्हें तो किसी होटल में बरतन धोने का काम करना चाहिए था विक्रम.’’ मनमोहन ने आखिरी शब्द विक्रम को संबोधित करते हुए कहे.

‘‘सवाल यह है कि अब क्या किया जाए?’’ मोहित ने दखल देते हुए कहा.

‘‘सुनो विक्रम, तुम इमारत में वापस जाओगे और आग लगाने के बाद उस वक्त तक बाहर नहीं निकलोगे जब तक शोले तुम्हारे कद से ऊपर न उठने लगें.’’ मनमोहन ने विक्रम को आदेश सा दिया.

‘‘हां, सुन लिया,’’ विक्रम की आवाज गुस्से से कांप रही थी, ‘‘सुन लिया है मैं ने.’’

‘‘अब तुम न कोई फ्यूज इस्तेमाल करोगे और न कोई ऐसी चीज जो हवा में उड़ जाए. आग अपने हाथ से लगाओगे, समझे.’’ मनमोहन बोला.

विक्रम को उतार कर कार झटके से आगे बढ़ गई और मोहित पीछे मुड़ कर विक्रम को देखने लगा जो अब भी सड़क पर खड़ा था. मोहित मडप का पुलिस इंचार्ज था. ललिता हाउस उस की ही मिल्कियत थी, जो कई साल पहले उस की पत्नी की मृत्यु के बाद उसे विरासत में मिली थी. उस की पत्नी ने मरने से कुछ साल पहले 50 करोड़ में ललिता हाउस का बीमा करवाया था, जिस का प्रीमियम अब मोहित भर रहा था. लेकिन आमदनी सीमित होने की वजह से उस के लिए प्रीमियम की अदायगी जारी रखना मुश्किल हो रहा था. वैसे भी 60 साल पुराना ललिता हाउस उस की जरूरत से कहीं ज्यादा बड़ा था. लंबे समय से देखभाल न होने की वजह से इमारत की हालत भी खराब हो गई थी.

चंद महीने पहले उस ने ललिता हाउस को बेचने की कोशिश की तो पता चला कोई भी इस इमारत के 20 करोड़ से ज्यादा देने को तैयार नहीं था. फिर 6 सप्ताह पहले जब उस ने अखबार में यह खबर पढ़ी कि बीमा कंपनी बीमाशुदा पुरानी इमारतों की मौजूदा हालत का पुनर्निरीक्षण कर के उन की बीमा की रकम का दोबारा निर्धारण करेगी तो मोहित चौंका. उसे विश्वास था कि उस के मकान की हालत देखने के बाद बीमा कंपनी उस की पौलिसी खत्म कर देगी और इस तरह उसे बड़ी रकम से वंचित होना पड़ेगा. यह सब सोच कर उस ने ललिता हाउस को आग लगाने का फैसला कर लिया और इस के लिए 2 करोड़ की रकम के बदले मनमोहन की सेवाएं ले लीं.

मनमोहन या उस के साथियों का मडप से कोई संबंध नहीं था. इस तरह उन पर किसी किस्म का शक भी नहीं किया जा सकता था. मोहित को विश्वास था कि इमारत जलने के बाद ज्यादा से ज्यादा 2 सप्ताह में बीमा कंपनी अपनी जांच पूरी कर के उसे 50 करोड़ की अदायगी कर देगी. फिर वह पुलिस की नौकरी छोड़ कर गोवा या कहीं और चला जाएगा. मकान को आग लगाने के लिए मोहित ने बड़ी उम्दा प्लानिंग की थी लेकिन पहली ही स्टेज पर गड़बड़ हो गई थी. अब वह बारबार पीछे मुड़ कर देखते हुए विक्रम की कामयाबी की दुआएं मांग रहा था.

कार निगाहों से ओझल हो चुकी थी. विक्रम ने हाथ से चेहरा पोंछते हुए मनमोहन को 2-4 गालियां दीं और सड़क पार कर के ललिता हाउस के लौन में दाखिल हो गया. रात के 3 बजने वाले थे, हर तरफ गहरा सन्नाटा और अंधेरा था. अचानक झाडि़यों में से किसी पक्षी के फड़फड़ाने की आवाज से वह बुरी तरह उछल पड़ा. उस के मुंह से चीख निकलतेनिकलते रह गई. वह अपने दिल की धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए एक बार फिर मनमोहन की शान में कसीदे पढ़ने लगा. ललिता हाउस में दाखिल होते ही वह होशियार हो गया. बिना नीचे रुके वह ऊपर वाली मंजिल पर चला गया, जहां पिछली बार उस ने ज्वलनशील पदार्थ नेफ्थलीन के 2 डिब्बे रखे थे.

दोनों डिब्बे उठा कर वह नीचे ले आया, फिर सारी खिड़कियों, दरवाजों के परदे उतार कर उन्हें चौड़ी गैलरी के आखिरी सिरे पर स्थित लाउंज में ढेर कर दिया. वहां का फर्नीचर बाबा आदम के जमाने का था. उस ने फर्नीचर पर चढ़े कपड़े के सारे कवर उतार कर उन के ऊपर डाल दिए. उस ने मेजें और कुर्सियां भी कपड़ों के ढेर के पास जमा कर दीं. फटे पुराने कालीन भी उस जगह पहुंचा दिए. फिर नेफ्थलीन का एक डिब्बा खोल कर कपड़ों के उस ढेर और फर्नीचर पर ज्वलनशील पदार्थ छिड़कने लगा. खिड़कियों और दरवाजों पर भी उस ने ज्वलनशील पदार्थ छिड़क दिया. इस भागदौड़ में उस का जिस्म पसीने से भीग गया था. नेफ्थलीन की गंध दिमाग में चढ़ी जा रही थी. अपने अब तक के काम का निरीक्षण कर के उस ने निश्चिंत होने वाले अंदाज में सिर हिलाया.

इधरउधर निगाह दौड़ाने पर उसे लगभग 4 फीट लंबा बांस का एक टुकड़ा मिल गया. उस ने ढेर पर से एक परदा उठा कर फाड़ा और कपड़े का एक टुकड़ा बांस के सिरे पर लपेटने लगा. फिर उसे नेफ्थलीन में कुछ इस तरह गीला किया कि तरल पदार्थ नीचे टपकने लगा. जेब से माचिस निकालते हुए वह गहरी नजरों से गैलरी का निरीक्षण करने लगा. गैलरी लगभग 35 फीट लंबी थी. वह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था कि इस ढेर को आग लगाने के बाद कितनी देर में गैलरी के सिरे वाली खिड़की तक पहुंच पाएगा. चांस कम है, यह सोचते हुए उस ने लाउंज की एक खिड़की खोल दी और माचिस जला कर बांस के सिरे पर लिपटे ज्वलनशील पदार्थ में डूबे कपड़े को दिखा दी.

मशाल भड़क उठी. वह कुछ क्षण तक अपने और खिड़की के बीच की दूरी का अंदाजा लगाता रहा. फिर मशाल को पूरी ताकत के साथ कपड़ों के ढेर की ओर उछाल दिया. मशाल ठीक कपड़ों के ढेर के ऊपर गिरी. एक क्षण को कुछ भी नहीं हुआ. विक्रम जलती हुई मशाल को देखते हुए खिड़की से छलांग लगाने को तैयार खड़ा था. उसे हैरत थी कि फर्नीचर और कपड़ों के ढेर पर फैले ज्वलनशील पदार्थ ने आग क्यों नहीं पकड़ी. लेकिन फिर अचानक भक की आवाज हुई और कपड़ों का ढेर आतिशबाजी की तरह उड़ गया. शोलों में लिपटे हुए भारी परदे चारों ओर उड़ते हुए नजर आ रहे थे. एक जलता हुआ परदा उस के सिर के ऊपर से होता हुआ खिड़की के बाहर चला गया. एक परदे ने विक्रम को अपनी लपेट में लेने की कोशिश की.

विक्रम अपने आप को बचाने के लिए फर्श पर गिर गया. बचाव के बावजूद परदे का एक कोना उस के सिर पर लिपट गया था. उस ने हाथ मार कर परदा एक तरफ झटक दिया. उस के बाल जल गए थे, उस ने उठना चाहा लेकिन उस का पैर रपट गया और वह धड़ाम से नीचे गिर गया. उस का सिर जोरों से फर्श से टकराया तो उसे अपनी आंखों के सामने नीलीपीली चिंगारियां सी निकलती दिखाई दीं. और फिर उस का दिमाग अंधेरे में डूबता चला गया. होश में आते ही वह बुरी तरह बदहवास हो गया, उस के सिर के नीचे कालीन सुलग रहा था. सिर के आधे से ज्यादा बाल जल चुके थे और 1-2 जगह से खाल भी जल गई थी. वह बुरी तरह सिर पटकने लगा. फिर खांसता हुआ उठ खड़ा हुआ, लेकिन दूसरे ही क्षण उसे फिर गिरना पड़ा. अगर उसे एक पल की भी देर हो जाती तो कुरसी से टूटी हवा में जलती हुई लकड़ी उस के सिर पर लगती.

हाल में धुंआ भर चुका था. हर तरफ आग ही आग नजर आ रही थी. वह कालीन पर रेंगता हुआ पास के दरवाजे की ओर बढ़ने लगा. उस के हाथों की खाल भी बुरी तरह जल चुकी थी. चेहरे पर भी 1-2 जगह जख्म आए थे. उसे लग रहा था, जैसे वह यहां से नहीं निकल पाएगा. दरवाजे के पास पहुंच कर उस ने जोर से टक्कर मारी, दरवाजा खुल गया और वह कलाबाजी खाता हुआ बाहर लौन में आ गिरा. ठीक उसी क्षण एक जोरदार धमाका हुआ और ललिता हाउस की छत का एक सिरा नीचे गिर गया. विक्रम ने बदहवासी में अपनी जगह से छलांग लगा दी और दूर फूलों की क्यारी में जा कर गिरा.

विक्रम फूलों की क्यारी में पड़ा गहरीगहरी सांस ले रहा था. पीठ पर जलन महसूस हो रही थी. उस ने गरदन घुमा कर पीछे देखा और दूसरे ही क्षण उछल पड़ा. उस के कोट में आग लगी हुई थी, जिस से उस की त्वचा भी जल गई थी. उस ने जल्दी से कोट उतार दिया और पीठ को उस जगह सहलाने लगा, जहां तेज जलन महसूस हो रही थी. कुछ देर तक वह फूलों की क्यारी में बैठा रहा. फिर उठ कर लड़खड़ाते कदमों से लौन से निकलने लगा. उस के दिमाग पर धुंध छाई हुई थी और वह बारबार सिर झटक रहा था. थोड़ी देर के लिए वह एक पेड़ के तने से टेक लगा कर बैठ गया.

वह घंटी की आवाज थी, जो बहुत दूर से आती महसूस हो रही थी. वह आंखें खोल कर आवाज की दिशा में देखने लगा. वह फायर ब्रिगेड की गाड़ी की घंटी की आवाज थी जो मोड़ घूम कर उसी सड़क पर आ चुकी थी. विक्रम सिर झटकता हुआ संभल कर बैठ गया. कुछ देर वह फायर ब्रिगेड की आवाज सुनता रहा, फिर रेंगता हुआ झाडि़यों की ओर बढ़ने लगा. मकान के पीछे की ओर कांटों वाली झाडि़यों की बाड़ पार करते हुए उस के हाथ जख्मी हो गए. उस ने होंठ दांतों तले दबा लिया. ठीक उसी समय फायर इंजन ललिता हाउस के सामने आ कर रुका, विक्रम उठ कर लड़खड़ाते कदमों से दूर हटने लगा.

मडप हालांकि उस के लिए अजनबी था. लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां उसे शरण मिल सकती थी. वह लड़खड़ाते हुए चलता रहा, उस का रुख शहर के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित के घर की ओर था. अंधेरी गलियों में छिपतेछिपाते मोहित के घर तक पहुंचने में उसे 45 मिनट लगे. उस ने दरवाजे पर घंटी का बटन दबा दिया और दीवार से टेक लगा कर खड़ा हो गया. मोहित उस समय बिस्तर पर कुछ कागजात फैलाए बैठा था. उन में उस की स्वर्गवासी पत्नी का वसीयतनामा, बैंक की स्लिपें और ललिता हाउस के बीमा के कागजात थे.

वह हिसाब लगा रहा था कि मकान के बीमा के सिलसिले में उस ने अब तक कितना प्रीमियम अदा किया था. उसे बीमा कंपनी से 50 करोड़ की धनराशि में से उस के अदा किए गए प्रीमियम और बाकी खर्चे काट कर उसे क्या बचेगा. घंटी की आवाज सुन कर मोहित चौंका. उस ने घड़ी देखी 4 बजकर 10 मिनट हुए थे. वह कागजात और पेन बिस्तर पर छोड़ कर उठा और जैसे ही बाहरी दरवाजा खोला, विक्रम को देख बुरी तरह उछल पड़ा.

‘‘माई गौड, तुम…’’ कहने के साथ मोहित ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की, लेकिन इस बीच विक्रम दरवाजे में पैर फंसा चुका था.

‘‘दरवाजा खोलो, मुझे अंदर आने दो मोहित.’’ विक्रम ने थके हुए स्वर में कहा.

‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’ मोहित उस के पैर को ठोकर मारते हुए बोला, ‘‘मेरा तुम से कोई संबंध नहीं और न ही मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं. चले जाओ यहां से. अपने साथ तुम मुझे भी फंसाओगे.’’

विक्रम ने अचानक पिस्तौल निकाल लिया और उस की पसलियों पर गड़ाते हुए गुर्राया, ‘‘मुझे अंदर आने दो.’’

पिस्तौल देख कर मोहित की आंखों में डर उभरा और उस ने दरवाजा खोल दिया. डर से उस के हाथ और टांगें कांपने लगी थीं.

‘‘इजी विक्रम,’’ वह थरथराते लहजे में बोला, ‘‘मेरी बात सुनो, भावावेश में आने की आवश्यकता नहीं है. परिस्थिति को समझने की कोशिश करो.’’

विक्रम उसे देखता हुआ अंदर दाखिल हो गया. मोहित ने दरवाजा बंद कर दिया, मगर उस का हाथ अभी तक दरवाजे के हैंडिल पर था. डर के मारे उस के हाथ कांप रहे थे.

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो विक्रम?’’ उस की बातों में भय झलक रहा था, ‘‘मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘मुझे सिर के लिए एक रुमाल और एक चादर चाहिए,’’ विक्रम बोला.

‘‘क्यों नहीं, तुम्हें जिस चीज की जरूरत हो, मैं देने को तैयार हूं.’’

‘‘इस के अलावा तुम मुझे अपनी गाड़ी में थाणे छोड़ कर आओगे,’’ विक्रम ने कहा.

मोहित को सीने में सांस रुकती हुई महसूस हुई, ‘‘देखो विक्रम…’’ वह शुष्क होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘परिस्थिति को समझने की कोशिश करो. मेरे लिए तुम्हें थाणे ले जाना संभव नहीं है. मैं यहां का इंचार्ज हूं. किसी प्रकार का रिस्क नहीं ले सकता.अगर किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो न सिर्फ सारे किएधरे पर पानी फिर जाएगा बल्कि तुम्हारे साथ मैं भी जेल…..’’

‘‘बंद करो बकवास,’’ विक्रम ने उसे पिस्तौल की नाल से टोहका दिया, ‘‘मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. अगर तुम ने मना किया तो…’’

‘‘ठीक है विक्रम, ठीक है,’’ मोहित हाथ उठाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हारी मदद करने को तैयार हूं, लेकिन इस तरह चीखने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘तकलीफ मेरी बरदाश्त से बाहर हो रही है,’’ विक्रम ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘मुझे डाक्टरी मदद की जरुरत है. इस से पहले कि मेरा दम निकल जाए, मुझे थाणे ले चलो, जल्दी करो, गाड़ी निकालो.’’

‘‘एक मिनट मैं कपड़े तो बदल लूं,’’ मोहित बोला.

‘‘नहीं, उस की जरूरत नहीं है, मेरे लिए एकएक पल कीमती है गाड़ी निकालो.’’ विक्रम चीखा. मोहित को उस का हुक्म मानना पड़ा. विक्रम उसे दोबारा कमरे में जाने का मौका नहीं देना चाहता था.

रात के सन्नाटे में मोहित की कार थाणे की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी. विक्रम पैसेंजर सीट पर बैठा हुआ था. उस ने मोहित का ओवरकोट और पुराना हैट पहन रखा था. जो उस के सिर की जली हुई त्वचा पर काफी तकलीफ दे रहा था. कार को लगने वाले झटकों से विक्रम दाएंबाएं झूल रहा था. स्टीयरिंग पर मोहित की पकड़ काफी मजबूत थी, उस की गर्दन पर पसीने की धार बह रही थी. वह बारबार कनखियों से विक्रम की ओर देख रहा था.

‘‘बारबार मेरी तरफ क्या देख रहे हो?’’ विक्रम ने एक बार उसे अपनी तरफ देखते पा कर कहा, ‘‘मैं अभी जिंदा हूं, मरा नहीं हूं. सामने देख कर गाड़ी चलाओ, कहीं गाड़ी को टकरा मत देना, इंचार्ज साहब.’’

मोहित ने कोई जवाब नहीं दिया, वह सामने सड़क पर देखने लगा. भटान सुरंग से एक किलोमीटर पहले उस ने गाड़ी रोक ली.

‘‘विक्रम प्लीज, मुझे थाणे जाने पर मजबूर मत करो. मैं किसी किस्म का खतरा मोल नहीं ले सकता.’’

‘‘मुझे जल्द से जल्द किसी अच्छे डाक्टर के पास पहुंचना है.’’ विक्रम जख्मी होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘और तुम मुझे यहां इस वीराने में छोड़ने के बजाए थाणे ले चलोगे, क्योंकि मेरी इस हालत के जिम्मेदार भी तुम हो. गाड़ी स्टार्ट करो.’’ विक्रम दर्द पर काबू पाने के लिए सीट पर आगेपीछे झूलने लगा.

‘‘गाड़ी स्टार्ट करो’’ वह गला फाड़ कर चिल्लाया.

मोहित ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी. उस की टांगें और हाथ बुरी तरह कांप रहे थे, जिस से उस के लिए गाड़ी पर कंट्रोल रखना काफी मुश्किल हो रहा था, लेकिन वह जैसेतैसे गाड़ी चला रहा था. लोनावाला पहुंच कर उस ने गाड़ी सिटरस होटल के अंदर मोड़ दी. मनमोहन इसी होटल में ठहरा हुआ था. वह चंद पल स्टीयरिंग व्हील के सामने बैठा रहा, फिर विक्रम की ओर मुड़ कर बोला, ‘‘देखो विक्रम, हम यहां पहुंच गए हैं. तुम कोई ऐसी हरकत नहीं करोगे, जिस से मुझे या तुम्हें पछताना पड़े.

‘‘मैं एक जिम्मेदार आदमी हूं. मेरे 3 बेटे हैं जो हौस्टल में रहते हैं. मैं समझता हूं तुम एक अच्छा आदमी होने का सबूत दोगे और मुझे किसी किस्म का नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करोगे. वैसे भी तुम मुझे नुकसान पहुंचाओगे ही क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम कमीने आदमी हो.’’ विक्रम ने होंठ चबाते हुए कहा, ‘‘मेरी यह हालत देख कर भी तुम ने घर का दरवाजा बंद करने की कोशिश की थी. तुम इतने बेगैरत हो कि मरते हुए आदमी के हलक में पानी की बूंद भी नहीं डाल सकते. अगर मेरे पास पिस्तौल न होता तो तुम कभी मेरी मदद नहीं करते.’’

‘‘मेरे सब से छोटे बेटे की उम्र 5 साल है’’ मोहित घिघियाया, ‘‘क्या तुम 5 साल के बच्चे के सिर से उस के बाप का साया छीन सकते हो? विक्रम तुम जो कहोगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

‘‘तुम झूठ बोलते हो,’’ विक्रम दहाड़ा, ‘‘मैं जानता हूं तुम्हारी कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी बीवी कई साल पहले मर गई थी. तुम ने ललिता हाउस के बीमा की रकम हासिल करने के लिए इमारत को आग लगवाई है, क्योंकि तुम जानते हो कि चंद माह बाद तुम्हें इस मकान का कुछ भी नहीं मिलेगा.

‘‘मुझे शक है कि तुम्हारी बीवी भी अपनी मौत नहीं मरी होगी. उस की दौलत पर कब्जा करने के लिए तुम ने उस की हत्या ही की होगी. बहरहाल, मैं इस समय तुम से किसी किस्म की बहस करने के मूड में नहीं हूं, मनमोहन को बुला कर लाओ, मैं कार में बैठा हूं.’’

मोहित छलांग लगा कर कार से उतर गया और तेजतेज कदमों से होटल में दाखिल हो गया. उस की वापसी में चंद मिनट से अधिक का समय नहीं लगा. उस के साथ मनमोहन और श्याम भी थे. मनमोहन ने कार का दरवाजा खोल कर जब अंदर झांका तो विक्रम के जख्मी होंठों पर मंद मुसकान आ गई.

‘‘खूब… बहुत खूब!’’ मनमोहन सीटी बजाते हुए बोला.

‘‘ओहो!’’ श्याम ने कहा, ‘‘लगता है यह सीधे मोर्चे से आ रहा है.’’

‘‘अगर तुम उस मकान को जा कर देखोगे तो मुझे भूल जाओगे,’’ विक्रम ने कहा.

‘‘तुम बेहोश होने की तैयारी तो नहीं कर रहे हो विक्रम?’’ श्याम आगे झुकते हुए बोला.

विक्रम आगेपीछे झूल रहा था. उस की आंखें बंद थीं, फिर एकाएक उस का सिर डैशबोर्ड से टकराया और वह दाईं ओर झूल गया.

दोबारा होश आने पर उस ने खुद को ऐसे कमरे में पाया, जिस की दीवारों पर मकड़ी के जाले लटके हुए थे. छत पर मद्धिम रोशनी का बल्ब झूल रहा था. उसी पल मनमोहन की आवाज उस के कानों से टकराई जो डाक्टर को संबोधित करते हुए कह रहा था, ‘‘सुनो डाक्टर, यह मरना नहीं चाहिए. इसे हर हालत में जिंदा रखना है क्योंकि लाश को ठिकाने लगाना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसलिए इस की दोनों टांगें और दोनोंं हाथ भी काटने पड़ें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘मैं इसे बचाने की कोशिश करूंगा,’’ डाक्टर की आवाज सुनाई दी, ‘‘नौजवान है, इसे खुद भी जिंदा रहने की ख्वाहिश होगी.’’

‘‘अब तुम जाओ मोहित, इसे हम संभाल लेंगे.’’ मनमोहन ने कहा.

‘‘मुझ से बहुत बड़ी बेवकूफी हो गई,’’ मोहित ने जवाब दिया, ‘‘तुम लोगों पर भरोसा कर के मैं ने अपना मानसम्मान, अपनी जिंदगी सब दांव पर लगा रखी है. अगर यह मर गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. बहरहाल, मैं जा रहा हूं.’’

विक्रम की आंखें बंद थीं. उस ने मोहित के जाते कदमों की आवाज सुनी और एकाएक गहरीगहरी सांस लेने लगा. मोहित जब वहां से निकला तो दिन की रोशनी छा चुकी थी. सुबह की ताजा हवा में उस ने लंबीलंबी सांस ली और कार में बैठ गया. कार तेज गति से हाइवे पर दौड़ रही थी. मोहित के चेहरे पर सुकून था. अब उसे विक्रम की ओर से कोई चिंता नहीं थी. मरे तो मर जाए. उसे यकीन था कि मनमोहन और श्याम उसे संभाल लेंगे. वह मन ही मन ललिता हाउस और उस के बीमा की रकम के बारे में सोचने लगा, 50 करोड़ बड़ी रकम थी. वह बाकी की जिंदगी आराम से गुजार सकता था.

मोहित को यकीन था कि बीमा कंपनी का स्थानीय एजेंट भी सूचना पा कर मकान के मलबे के पास पहुंच गया होगा. स्थानीय एजेंट से उस का अच्छा परिचय था. वह अपने संबंधों के आधार पर उसे मजबूर कर सकता था कि दुर्घटना की जांच रिपोर्ट जल्द से जल्द पूरी कर के कंपनी को भेज दे ताकि क्लेम की अदायगी में देर न लगे. जब उस ने कार हाइवे से ललिता हाउस की तरफ मोड़ी तो धूप फैल चुकी थी. फैक्ट्री एरिया से आगे निकलते ही उस ने कार का रुख अपने घर की ओर मोड़ दिया. उस ने सोचा था कि कपड़े बदल कर ललिता हाउस की तरफ जाएगा.

मोहित भविष्य की योजनाएं बनाता हुआ घर पहुंच गया. कार रोक कर वह नीचे उतरा और आगे बढ़ कर जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा तो चौंका. दरवाजा हलके से दबाव से खुल गया. अचानक उसे याद आया कि विक्रम के साथ जाते हुए उस ने दरवाजा लौक नहीं किया था. वह होंठ सिकोड़े धीमे सुर में सीटी बजाता हुआ अपने बैडरूम में दाखिल हुआ लेकिन पहला कदम रखते ही वह इस तरह रुक गया जैसे जमीन ने उस के पैर पकड़ लिए हों. उस का दिल उछल कर हलक में आ गया और सीने में सांस रुकता हुआ महसूस होने लगा.

कमरे में उस का एक मातहत इंसपेक्टर, एक सबइंसपेक्टर और 2 कांस्टेबल के अलावा बीमा कंपनी का एजेंट भी मौजूद था, जिस के हाथ में वे तमाम कागजात नजर आ रहे थे, जिन्हें वह रखा छोड़ गया था.

‘‘हैलो बौस,’’ इंसपेक्टर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रात आप के मकान को आग लगने के बाद हम ने कई बार फोन कर के संपर्क करना चाहा मगर कामयाब न हो सके. मैं ने सोचा संभव है आप घर पर मौजूद न हों, लगभग एक घंटे पहले मिस्टर ठाकुर…’’ उस ने बीमा कंपनी के एजेंट की ओर इशारा किया, ‘‘मिस्टर ठाकुर भी आग लगने की सूचना पा कर ललिता हाउस पहुंच गए थे. यह फौरी तौर पर आप से मिलना चाहते थे.

इस बार भी फोन पर संपर्क नहीं हो पाया तो हम स्वयं यहां चले आए और यहां आप के बिस्तर पर बिखरे हुए ये कागजात…’’ उस ने ठाकुर के हाथ में पकड़े कागजात की तरफ इशारा करते हुए वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

‘‘यह तुम्हारी ही हैंड राइटिंग है न मिस्टर मोहित?’’ ठाकुर ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा.

‘‘हां.’’ आवाज मोहित के हलक से फंसीफंसी सी निकली.

‘‘इस सिलसिले में हम आप से कुछ पूछना चाहेंगे बौस.’’ इंसपेक्टर बोला.

उस के होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान थी, ‘‘और मेरा खयाल है, यह बातचीत पुलिस स्टेशन पहुंच कर ही होना चाहिए, वहां एसपी साहब भी इंतजार कर रहे हैं, चलिए बौस.’’

औफिसर इंचार्ज मोहित सिर झुकाए अपने मातहतों के आगेआगे चल दिया. वह जान गया था कि उस का खेल खत्म हो चुका है.

 

Family Dispute : पत्नी मायके गई तो पति ने कर ली आत्महत्या

Family Dispute : कुसुमा ने अपने दामाद एडवोकेट विपिन कुमार निगम से वादा किया था कि अगर बड़ी बेटी उन के बच्चे की मां नहीं बनी तो वह उस के साथ अपनी छोटी बेटी काजल का विवाह कर देगी. लेकिन 4 साल बाद कुसुमा अपने वादे से मुकर गई. इस के बाद परिवार में कलह इतनी बढ़ गई कि… सिकंदरपुर कस्बे के सुभाष नगर मोहल्ले में सुबह सवेरे यह खबर फैल गई कि विचित्र लाल के वकील बेटे विपिन कुमार निगम ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है, जिस ने भी यह खबर सुनी, स्तब्ध रह गया. कुछ ही देर में विचित्र लाल के घर के बाहर लोगों का मजमा लग गया. लोग आपस में कानाफूसी करने लगे. इसी बीच मृतक के छोटे भाई नितिन ने फोन पर भाई के आत्महत्या कर लेने की सूचना थाना छिबरामऊ पुलिस को दे दी. यह बात 22 मई, 2020 की सुबह की है. मामला एक वकील की आत्महत्या का था. थानाप्रभारी शैलेंद्र कुमार मिश्र ने वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी और चौकी इंचार्ज अजब सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सुभाष नगर स्थित विचित्र लाल निगम के घर पहुंच गए.

थानाप्रभारी उस कमरे में पहुंचे, जिस में विपिन कुमार निगम की लाश कमरे की छत के कुंडे से लटकी हुई थी. उन्होंने सहयोगी पुलिसकर्मियों की मदद से शव को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. मृतक की जामातलाशी ली गई तो पैंट की दाहिनी जेब से एक पर्स तथा शर्ट की ऊपरी जेब से एक मोबाइल फोन मिला. पर्स तथा मोबाइल फोन पुलिस ने अपने पास रख लिया. थानाप्रभारी शैलेंद्र कुमार मिश्र अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह और एएसपी विनोद कुमार भी घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. टीम ने उस प्लास्टिक स्टूल की भी जांच की जिस पर चढ़ कर मृतक ने गले में रस्सी का फंदा डाला था और स्टूल को पैर से गिरा दिया था. मृतक विपिन कुमार निगम शादीशुदा था, पर घटनास्थल पर न तो उस की पत्नी प्रियंका थी और न ही प्रियंका के मातापिता और भाई में से कोई आया था. यद्यपि उन्हें सूचना सब से पहले दी गई थी. मौका ए वारदात पर मृतक का पूरा परिवार मौजूद था. मृतक के कई अधिवक्ता मित्र भी वहां आ गए थे जो परिवार वालों को धैर्य बंधा रहे थे. मित्र के खोने का उन्हें भी गहरा दुख था.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर मौजूद मृतक के छोटे भाई नितिन कुमार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि भैया सुबह जल्दी उठ जाते थे और केसों से संबंधित उन फाइलों का निरीक्षण करने लगते थे, जिन की उसी दिन सुनवाई होती थी. आज सुबह 8 बजे जब मैं उन के कमरे पर पहुंचा तो कमरा बंद था और कूलर चल रहा था. यह देख कर मुझे आश्चर्य हुआ. मैं ने दरवाजा थपथपाया और आवाज दी. पर न तो दरवाजा खुला और न ही अंदर से कोई प्रतिक्रिया हुई. मन में कुछ संदेह हुआ तो मैं ने मातापिता और अन्य भाइयों को बुला लिया. उन सब ने भी आवाज दी, दरवाजा थपथपाया पर कुछ नहीं हुआ.

इस के बाद हम भाइयों ने मिल कर जोर का धक्का दिया तो दरवाजे की सिटकनी खिसक गई और दरवाजा खुल गया. कमरे के अंदर का दृश्य देख कर हम लोगों की रूह कांप उठी. भैया फांसी के फंदे पर झूल रहे थे. इस के बाद तो घर में कोहराम मच गया. खबर फैली तो मोहल्ले के लोग आने लगे. इसी बीच हम ने घटना की जानकारी भाभी प्रियंका, रिश्तेदारों, भैया के दोस्तों और पुलिस को दी.

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारे भाई ने आत्महत्या क्यों की?’’ एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने नितिन से पूछा.

‘‘सर, भैया ने पारिवारिक कलह के चलते आत्महत्या की है. दरअसल प्रियंका भाभी और उन के मायकों वालों से नहीं पटती थी. 2 दिन पहले ही भाभी ने कलह मचाई तो भैया उन्हें मायके छोड़ आए थे. उसी के बाद से वह तनाव में थे. शायद इसी तनाव में उन्होंने आत्महत्या कर ली.’’ निखिल ने बताया.

इसी बीच एएसपी विनोद कुमार ने मृतक के अंदर वाले कमरे की तलाशी कराई तो उन्हें एक सुसाइड नोट फ्रिज कवर के नीचे से तथा दूसरा सुसाइड नोट टीवी कवर के नीचे से बरामद हुआ. एक अन्य सुसाइड नोट उन के पर्स से भी मिला. यह पर्स जामातलाशी के दौरान मिला था. पर्स में पेन कार्ड, आधार कार्ड और कुछ रुपए थे. विपिन के सुसाइड नोट फ्रिज कवर के नीचे से जो पत्र बरामद हुआ था, उस में विपिन कुमार ने अपनी सास कुसुमा देवी को संबोधित करते हुए लिखा था, ‘सासूजी, आप ने वादा किया था कि प्रियंका 3 साल तक बच्चे को जन्म नहीं दे पाई तो आप दूसरी बेटी काजल की शादी मेरे साथ कर देंगी. पर 3 साल बाद आप मुकर गईं. इस से मुझे गहरी ठेस लगी.

प्रियंका के कटु शब्दों ने मेरे दिल को छलनी कर दिया है. उस के मायके जाने के बाद मैं 2 दिन बेहद परेशान रहा. रातरात भर नहीं सोया. आखिर परेशान हो कर मैं ने अपने आप को मिटाने का निर्णय ले लिया.’ विपिन निगम. दूसरा पत्र जो टीवी कवर के नीचे से बरामद हुआ था. वह पत्र विपिन ने अपनी पत्नी प्रियंका को संबोधित करते हुए लिखा था, ‘प्रियंका, तुम मेरे जीवन में बवंडर बन कर आई, जिस ने आते ही सब कुछ तहसनहस कर दिया. शादी के कुछ महीने बाद ही तुम रूठ कर मायके चली गईं. मांबाप के कान भर कर, झूठे आरोप लगा कर तुम ने मेरे तथा मेरे मातापिता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

‘किसी तरह मामला रफादफा कर मैं तुम्हें मना कर घर ले आया. डिलीवरी के दौरान मैं ने अपना खून दे कर तुम्हारी जान बचाई. यह बात दीगर है कि बच्चे को नहीं बचा सका. इतना सब करने के बावजूद तुम मेरी वफादार न बन सकी. ‘तुम ने कहा था कि 3 साल तक बच्चा न दे पाऊं तो मेरी छोटी बहन काजल से शादी कर लेना. पर तुम मुकर गई. लड़झगड़ कर घर चली गई. तुम सब ने मिल कर मेरी जिंदगी तबाह कर दी. अब मैं ऐसी जिंदगी से ऊब गया हूं जिस में गम ही गम हैं. —विपिन निगम.

तीसरा पत्र जो पर्स से मिला था, विपिन ने अपनी साली काजल को संबोधित करते हुए लिखा था, ‘आई लव यू काजल, तुम मेरी मौत पर आंसू न बहाना. तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है. तुम तो मेरी आंखों का काजल बन चुकी थीं. मुझे यह भी पता है कि तुम मुझ से शादी करने को राजी थीं. पर तुम्हारी मां मंथरा बन गई.

‘उस ने नफरत भरने के लिए दोनों बहनों के कान भरे और फिर शादी के वादे से मुकर गई. मैं तुम दोनों बहनों को खुश रखना चाहता था, लेकिन ऐसा हो न सका. मैं निराश हूं. तन्हा जीवन से मौत भली. काजल, आई लव यू. मेरी मौत पर आंसू न बहाना. तुम्हारा विपिन.’

विपिन की शर्ट की जेब से उस का मोबाइल भी बरामद हुआ था. एएसपी विनोद कुमार ने जब फोन को खंगाला तो पता चला कि विपिन ने अपनी जीवनलीला खत्म करने से पहले अपने फेसबुक एकाउंट पर शायराना अंदाज में एक पोस्ट लिखी थी. सुसाइड नोट्स से समझ आया माजरा विपिन के सुसाइड नोट पढ़ने के बाद पुलिस अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि युवा अधिवक्ता विपिन कुमार निगम ने पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्या की है. वह अपनी पत्नी प्रियंका और सास कुसुमा देवी से पीडि़त था. साक्ष्य सुरक्षित करने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के जिला अस्पताल भिजवा दिया. पुलिस जांच और मृतक के परिवार वालों द्वारा दी गई जानकारी से आत्महत्या प्रकरण की जो कहानी सामने आई उस का विवरण इस प्रकार से है—

ग्रांट ट्रंक रोड (जीटीरोड) पर बसा कन्नौज शहर कई मायने में चर्चित है. कन्नौज सुगंध की नगरी के नाम से जाना जाता है. यहां का बना इत्र फुलेल पूरी दुनिया में मशहूर है. दूसरे यह ऐतिहासिक धरोहर भी है. चंदेल वंश के राजा जयचंद की राजधानी कन्नौज ही थी. उन का किला खंडहर के रूप में आज भी दर्शनीय है. गंगा के तट पर बसा कन्नौज तंबाकू और आलू के व्यापार के लिए भी मशहूर है. पहले कन्नौज, फर्रुखाबाद जिले का एक कस्बा था, जिसे बाद में जिला बनाया गया. इसी कन्नौज जिले का एक कस्बा सिकंदरपुर है, जो छिबरामऊ थाने के अंतर्गत आता है. इसी कस्बे के सुभाष नगर मोहल्ले में विचित्र लाल निगम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सरिता निगम के अलावा 4 बेटे थे.

जिस में विपिन कुमार निगम सब से बड़ा तथा नितिन कुमार सब से छोटा था. विचित्र लाल व्यापारी थे, आर्थिक स्थिति मजबूत थी. कायस्थ बिरादरी में उन की अच्छी पैठ थी. विपिन कुमार निगम अपने अन्य भाइयों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार था. वह वकील बनना चाहता था. उस ने छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से एलएलबी की पढ़ाई की. इस के बाद वह छिबरामऊ तहसील में वकालत करने लगा. विपिन कुमार निगम दीवानी और फौजदारी दोनों तरह के मुकदमे लड़ता था. कुछ दिनों बाद उस के पास अच्छेखासे केस आने लगे थे. उस ने तहसील में अपना चैंबर बनवा लिया और 2 सहयोगी कर्मियों को भी रख लिया.

विपिन कुमार निगम अच्छा कमाने लगा तो उस के पिता विचित्र लाल ने 6 जनवरी, 2014 को औरैया जिले के उजैता गांव के रहने वाले राजू निगम की बेटी प्रियंका से शादी कर दी. राजू निगम किसान थे. उन के 2 बेटियां और एक बेटा था, जिन में प्रियंका सब से बड़ी थी. खूबसूरत प्रियंका, विपिन की दुलहन बन कर ससुराल आई तो सभी खुश थे, पर प्रियंका खुश नहीं थी. उसे शोरगुल पसंद नहीं था. यद्यपि उसे पति से कोई शिकवा शिकायत न थी. प्रियंका ससुराल में 10 दिन रही. उस के बाद उस का भाई आकाश आया और उसे विदा करा ले गया.

प्रियंका ने दिखाए ससुराल में तेवर लगभग 2 महीने बाद प्रियंका दोबारा ससुराल आई तो उस ने अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया. वह सासससुर से कटु भाषा बोलने लगी, देवरों को झिड़कने लगी. सास सरिता बेस्वाद खाना बनाने को ले कर टोकती तो जवाब देती कि स्वादिष्ट खाना बनाने को नौकरानी रख लो. घर के काम के लिए कहती तो जवाब मिलता कि वह नौकरानी नहीं, घर की बहू है. यही नहीं उस ने दहेज में मिला सामान पलंग, टीवी, फ्रिज, अलमारी पहली मंजिल पर बने 2 बड़े कमरों में सजा लिया और एक तरह से परिवार से अलग रहने लगी. इसी बीच उस के पैर भारी हो गए. ससुराल वालों के लिए यह खबर खुशी की थी लेकिन उस के दुर्व्यवहार के कारण किसी ने खुशी जाहिर नहीं की.

विपिन परिवार के प्रति पत्नी के दुर्व्यवहार से दुखी था. उस ने प्रियंका पर सख्ती कर लगाम कसने की कोशिश की तो वह त्रिया चरित्र दिखाने लगी. अपनी मां कुसुमा को रोरो कर बताती कि ससुराल वाले उसे प्रताडि़त करते हैं. मां ने भी बेटी की बातों पर सहज ही विश्वास कर लिया और उसे मायके बुला लिया. इस के बाद मांबेटी ने सोचीसमझी रणनीति के तहत ससुराल वालों पर झूठे आरोप लगा कर थाना फफूंद में दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. जब विपिन को पत्नी द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराने की जानकारी हुई तो वह सतर्क हो गया. वह ससुराल पहुंचा और किसी तरह पत्नी व सास का गुस्सा शांत किया, जिस से फिर मुकदमे में समझौता हो गया.

इस के बाद कई शर्तों के साथ कुसुमा देवी ने प्रियंका को ससुराल भेज दिया. ससुराल आ कर प्रियंका स्वच्छंद हो कर रहने लगी. उस ने पति को भी अपनी मुट्ठी में कर लिया था. फिर जब प्रसव का समय आया तो प्रियंका मायके आ गई. कुसुमा ने उसे प्रसव के लिए इटावा के एक निजी नर्सिंग होम में भरती कराया. डाक्टरों ने उस का चेकअप किया तो खून की कमी बताई. और यह भी साफ कर दिया कि बच्चा औपरेशन से होगा. कुसुमा चालाक औरत थी. वह जानती थी कि नर्सिंग होम का खर्चा ज्यादा आएगा. अत: उस ने दामाद विपिन को पहले ही नर्सिंग होम बुलवा लिया था. 9 जनवरी, 2015 को विपिन ने अपना खून दे कर प्रियंका की जान तो बचा ली, लेकिन बच्चा नहीं बच सका.

लगभग एक हफ्ते तक अस्पताल में भरती रहने के बाद प्रियंका मां के घर आ गई. डिस्चार्ज के दौरान डाक्टर ने एक और चौंकाने वाली जानकारी दी कि प्रियंका दोबारा मां नहीं बन पाएगी. यह जानकारी जब विपिन व प्रियंका को हुई तो दोनों दुखी हुए. इस पर सास कुसुमा ने बेटी दामाद को समझाया और कहा, ‘‘कुदरत का खेल निराला होता है, फिर भी यदि 3 साल तक प्रियंका बच्चे को जन्म न दे पाई तो मैं वादा करती हूं कि अपनी छोटी बेटी काजल का विवाह तुम्हारे साथ कर दूंगी.’’

सासू मां की बात सुन कर विपिन मन ही मन खुश हुआ. प्रियंका व काजल ने भी अपनी सहमति जता दी. इस के बाद प्रियंका पति के साथ ससुराल में आ कर रहने लगी. विपिन कुमार भी अपने वकालत के काम में व्यस्त हो गया. प्रियंका कुछ माह ससुराल में रहती तो एकदो माह के लिए मायके चली जाती. इसी तरह समय बीतने लगा. प्रियंका के रहते विपिन के मन में पहले कभी भी साली के प्रति आकर्षण नहीं रहा, किंतु जब से सासू मां ने शादी करने की बात कही तब से उस के मन में काजल का खयाल आने लगा था. 17वां बसंत पार कर चुकी काजल की काया कंचन सी खिल चुकी थी. उस की आंखें शरारत करने लगी थीं. काजल का खिला रूप विपिन की आंखों में बस गया.

अब वह उस से खुल कर हंसीमजाक करने लगा था. काजल की सोच भी बदल गई थी. वह जीजा के हंसीमजाक का बुरा नहीं मानती थी. दरअसल वह मान बैठी थी कि दीदी यदि बच्चे को जन्म न दे पाई तो विपिन उस का जीजा नहीं भावी पति होगा. पत्नी और ससुरालियों के बयान से टूट गया विपिन धीरेधीरे 3 साल बीत गए पर प्रियंका बच्चे को जन्म नहीं दे पाई. तब विपिन ने सासू मां से कहना शुरू किया कि वह वादे के अनुसार काजल की शादी उस से कर दे लेकिन कुसुमा देवी उसे किसी न किसी बहाने टाल देती. इस तरह एक साल और बीत गया.

विपिन को अब दाल में कुछ काला नजर आने लगा. अत: एक रोज वह ससुराल पहुंचा और सासू मां पर शादी का दबाव डाला, इस पर वह बिफर पड़ी, ‘‘कान खोल कर सुन लो दामादजी, मैं अपनी फूल सी बेटी का ब्याह तुम से नहीं कर सकती.’’

‘‘पर आप ने तो वादा किया था. इस में आप की दोनों बेटियां रजामंद थीं.’’ विपिन गिड़गिड़ाया.

‘‘रजामंदी तब थी, पर अब नहीं. प्रियंका भी नहीं चाहती कि काजल की शादी तुम से हो.’’ कुसुमा ने दोटूक जवाब दिया. इस के बाद विपिन वापस घर आ गया. उस ने इस बाबत प्रियंका से बात की तो उस ने मां की बात का समर्थन किया. इस के बाद काजल से शादी को ले कर विपिन का झगड़ा प्रियंका से होने लगा. 18 मई, 2020 को भी प्रियंका और विपिन में झगड़ा हुआ. उस के बाद वह प्रियंका को उस के मायके छोड़ आया.

पत्नी मायके चली गई तो विपिन कुमार तन्हा हो गया. उसे सारा जहान सूनासूना सा लगने लगा. उस की रातों की नींद हराम हो गई. वह बात करने के लिए पत्नी को फोन मिलाता, पर वह बात नहीं करती. विपिन जब बेहद परेशान हो उठा, तब उस ने आखिरी फैसला मौत का चुना. उस ने 3 पत्र कुसुमा देवी, प्रियंका तथा काजल के नाम लिखे. काजल को लिखा पत्र उस ने अपने पर्स में रख लिया और सास को लिखा पत्र फ्रिज कवर के नीचे व पत्नी को लिखा पत्र टीवी कवर के नीचे रख दिया. 21 मई, 2020 की आधी रात के बाद अधिवक्ता विपिन कुमार निगम ने अपनी जीवन लीला खत्म करने से पहले अपने फेसबुक एकाउंट में एक पोस्ट डाली. फिर कमरे की छत के कुंडे में रस्सी बांध कर फंदा बनाया और फिर स्टूल पर चढ़ कर फांसी का फंदा गले में डाल कर झूल गया.

इधर सुबह घटना की जानकारी तब हुई जब विपिन का छोटा भाई नितिन कमरे पर पहुंचा. मृतक विपिन कुमार निगम ने अपने सुसाइड नोट मे अपनी मौत का जिम्मेदार अपनी सास कुसुम देवी और पत्नी प्रियंका को ठहराया था, लेकिन मृतक के घर वालों ने कोई तहरीर थाने में नहीं दी जिस से पुलिस ने मुकदमा ही दर्ज नहीं किया और इस प्रकरण को खत्म कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : पिता के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखी पत्नी तो गुस्साए बेटे ने कर दिया कत्ल

UP Crime : ससुर के लिए बहू बेटी जैसी होनी चाहिए. लेकिन वंशलाल की नजरों में बहू विनीता कुछ और ही थी, तभी तो उस ने उस की इज्जत लूट ली. इस का खामियाजा वंशलाल को ऐसा भुगतना पड़ा कि…

सुबह के करीब 10 बज रहे थे. फतेहपुर जिले के बिंदकी थानाप्रभारी नंदलाल सिंह थाने में मौजूद थे. वह एक शातिर बदमाश को गिरफ्तार कर के लाए थे और उस से उस के अन्य साथियों के बारे में जानकारी हासिल कर रहे थे. तभी एक युवक ने उन के कक्ष में प्रवेश किया. वह बेहद घबराया हुआ था. थानाप्रभारी ने उस पर एक नजर डाली फिर पूछा, ‘‘क्या बात है तुम कुछ परेशान लग रहे हो?’’

‘‘सर, मेरा नाम अनिल कुमार है. मैं कमरापुर गांव में रहता हूं और आप के थाने में तैनात होमगार्ड वंशलाल का बेटा हूं. बीती रात किसी ने मेरे पिता की हत्या कर दी. उन की लाश घर में ही पड़ी है.’’

अनिल की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले, ‘‘क्या कहा, वंशलाल की हत्या हो गई. कल शाम को ड्यूटी पूरी कर घर गया था. फिर किस ने उस की हत्या कर दी. खैर, मैं देखता हूं.’’

चूंकि थाने में तैनात होमगार्ड की हत्या का मामला था, अत: थानाप्रभारी ने होमगार्ड इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी. फिर एसआई शहंशाह हुसैन, कांस्टेबल शैलेंद्र कुमार, अखिलेश मौर्या तथा महिला सिपाही अंजना वर्मा को साथ लिया और जीप से घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह 17 मार्च, 2020 की बात है. कमरापुर गांव थाने से 8 किलोमीटर दूर बिंदकी अमौली रोड पर था. पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी निरीक्षण में जुट गए. वंशलाल की लाश घर के बाहर बरामदे में तख्त पर पड़ी थी. वह कच्छा बनियान पहने था. उस की होमगार्ड की वर्दी खूंटी पर टंगी थी. उस की हत्या शायद गला दबा कर की गई थी. उस की उम्र 55 साल के आसपास थी.

निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी नंदलाल सिंह की नजर मृतक के कच्छे पर पड़ी जो खून से तरबतर था. लग रहा था जैसे गुप्तांग से खून निकला था. शरीर पर अन्य किसी चोट का निशान नहीं था. पुलिस ने जांच की तो उस का गुप्तांग कुचला हुआ मिला. थानाप्रभारी को शक हुआ कि कही वंशलाल की हत्या नाजायज संबंधों के चलते तो नहीं हुई, किंतु उन्होंने अपना शक जाहिर नहीं किया. थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसपी प्रशांत कुमार वर्मा, एएसपी चक्रेश मिश्रा तथा सीओ अभिषेक तिवारी भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर सबूत जुटाए.

डौग स्क्वायड टीम ने मौके पर डौग को छोड़ा. उस ने शव को सूंघ तख्त के 2 चक्कर लगाए, फिर भौंकते हुए गली की ओर बढ़ गया. 2 मकान छोड़ कर वह तीसरे मकान पर जा कर रुक गया और जोरजोर से भौंकने लगा. पर उस मकान में ताला लटक रहा था. पुलिस अधिकारियों ने उस मकान के बारे में पूछा तो मृतक के बड़े बेटे अनिल कुमार ने बताया कि इस मकान में उस का छोटा भाई मनीष कुमार अपनी पत्नी विनीता के साथ रहता है. बीती शाम मनीष घर पर ही था, पर रात में कहां चला गया, उसे पता नहीं है. अनिल की बात सुन कर पुलिस अधिकारियों को शक हुआ कि कहीं मनीष और विनीता ने मिल कर तो वंशलाल की हत्या नहीं कर दी. उन का फरार होना भी इसी ओर इशारा कर रहा था. पुलिस ने मनीष व विनीता की तलाश शुरू कर दी.

निरीक्षण के बाद घटनास्थल की काररवाई के बाद वंशलाल का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. इस के बाद पुलिस ने बरामदे में खूंटी पर टंगी मृतक की वर्दी की जामातलाशी कराई तो पैंट की जेब से एक छोटी डायरी तथा पर्स बरामद मिला. कमीज की जेब से एक मोबाइल फोन भी मिला. मोबाइल फोन खंगाला गया तो पता चला कि रात 9:24 बजे वंशलाल की एक नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी. जांच में वह नंबर मनीष की पत्नी विनीता का निकला. जांच के हर बिंदु पर जब मनीष और विनीता शक के दायरे में आए तो एसपी प्रशांत कुमार वर्मा ने उन्हें पकड़ने के लिए सीओ अभिषेक तिवारी के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थानाप्रभारी नंदलाल सिंह, एसआई शहंशाह हुसैन, कांस्टेबल अखिलेश मौर्या, शैलेंद्र कुमार तथा महिला सिपाही अंजना वर्मा को शामिल किया गया.

तलाश बहू और बेटे की टीम ने सब से पहले मृतक वंशलाल के बड़े बेटे अनिल कुमार, तथा उस की पत्नी रमा देवी के बयान दर्ज किए. अनिल कुमार ने अपने बयान में बताया कि पिताजी रंगीनमिजाज और शराब के आदी थे. मनीष की पत्नी विनीता ने अम्मा से उन की रंगीनमिजाजी की शिकायत भी की थी. इसी आदत की वजह से मनीष और विनीता अलग रहने लगे थे. संभव है कि उन की हत्या में उन दोनों का हाथ हो. पुलिस टीम ने मृतक वंशलाल के पड़ोस में रहने वाले कुछ खास लोगों से बात की तो पता चला कि वंशलाल दबंग किस्म का व्यक्ति था. वह होमगार्ड जरूर था, पर गांव के लोग उसे छोटा दरोगा कहते थे. गांव का कोई भी मामला थाने पहुंचता तो उस का निपटारा वंशलाल द्वारा ही होता था. मनीष जब घर से अलग हुआ था, तब ऐसी चर्चा फैली थी कि वंशलाल अपनी बहू पर गलत नजर रखता था, जिस से वह अलग रहने लगी थी.

पुलिस टीम ने मनीष और विनीता की तलाश तेज कर दी और विनीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर भी लगा दिया गया. इस के अलावा पुलिस ने अपने खास मुखबिरों को भी उन की टोह में लगा दिया. विनीता का मायका नगरा गांव में था. उस की लोकेशन भी वहीं की मिल रही थी. अत: पुलिस टीम ने आधी रात को विनीता के पिता विजय पाल के घर छापा मारा, लेकिन मनीष और विनीता पुलिस के हाथ नहीं लगे. 20 मार्च, 2020 को पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर फरीदपुर मोड़ से मनीष और उस की पत्नी विनीता को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उन दोनों से वंशलाल पाल की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे दोनों टूट गए और वंशलाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस टीम ने वंशलाल पाल उर्फ बैजनाथ पाल की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो सीओ अभिषेक तिवारी कोतवाली बिंदकी आ गए. उन्होंने कातिल मनीष कुमार तथा उस की पत्नी विनीता से विस्तृत पूछताछ की. अभियुक्तों के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली तो सीओ अभिषेक तिवारी भी कोतवाली बिंदकी पहुंच गए और अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ की. फिर आननफानन प्रैसवार्ता की. उन्होंने आरोपियों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा किया. चूंकि हत्यारोपी मनीष कुमार तथा विनीता ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने मृतक के बड़े बेटे को वादी बना कर धारा 302 आईपीसी के तहत मनीष और विनीता के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हेें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस जांच में एक ऐसी बहू की कहानी सामने आई, जिस ने पति के साथ मिल कर कामी ससुर को ठिकाने लगाने की गहरी साजिश रची. उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिंदकी थाना क्षेत्र में एक गांव है नगरा. इसी गांव में विजय पाल अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी पूनम के अलावा 2 बेटे राजन, अजय तथा 2 बेटियां अनीता व विनीता थीं. विजय पाल के पास मात्र 2 बीघा उपजाऊ भूमि थी. इस की उपज से उस के परिवार का भरणपोषण मुश्किल था. अत: वह दूध का व्यवसाय भी करने लगा. इस काम में उस के दोनों बेटे भी सहयोग करते थे. छोटी बेटी विनीता 4 भाईबहनों में तीसरे नंबर की थी. हाईस्कूल पास करने के बाद वह अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन मातापिता दूरदराज कस्बे में पढ़ाने को राजी न थे, इसलिए उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

जब विनीता सयानी हो गई तो उस की शादी कमरापुर गांव के मनीष से कर दी गई. मनीष का पिता वंशलाल उर्फ बैजनाथ पाल बिंदकी थाने में होमगार्ड था. उस के परिवार में पत्नी माया देवी के अलावा 2 बेटे अनिल कुमार, मनीष कुमार तथा एक बेटी रूपाली थी. वंशलाल पाल की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. गांव में उस के 2 मकान तथा 2 एकड़ खेती की जमीन थी. 2015 में वंशलाल ने छोटे बेटे मनीष की शादी नगरा गांव की विनीता से कर दी. कुछ ही दिनों में विनीता ने अपने काम और व्यवहार से अपने पति, सासससुर को प्रभावित किया. विनीता का पति व जेठ सबेरा होते ही खेत पर चले जाते थे, जबकि ससुर वंशलाल ड्यूटी करने थाना बिंदकी जाता था. वह शाम को 7 बजे के बाद ही लौटता था. कभी वह शराब पी कर घर आता तो कभी घर पर बैठ कर पीता था.

विनीता को शराब से नफरत थी, पर वह मना भी नहीं कर सकती थी. वैसे भी पूरे घर पर ससुर का ही राज था. उस की इजाजत के बिना कोई कुछ काम नहीं कर सकता था. कृषि उपज का हिसाबकिताब तथा अन्य खर्चों का लेखाजोखा भी वही रखता था. अगर विनीता को जेब खर्च के लिए पैसे की जरूरत होती थी, तो वह भी ससुर से ही मांगती थी. बात उन दिनों की है, जब विनीता की जेठानी रमा मायके गई हुई थी. घर की साफसफाई से ले कर खाना पकाने तक की जिम्मेदारी विनीता पर थी. इधर कुछ दिनों से विनीता घूंघट के भीतर से ही अनुभव कर रही थी कि ससुर वंशलाल जब खाना खाने बैठता है, तो उस की नजर उस के चेहरे पर ही जमी रहती है.

वह उस के खाना पकाने की तारीफ करता, साथ ही ललचाई नजरों से उसे देखता भी था. विनीता समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ससुरजी के मन में चल क्या रहा है. उन्हीं दिनों एक शाम विनीता रसोई में खाना पका रही थी कि ससुर वंशलाल आ पहुंचा. वह नशे में था. ससुर को देख कर विनीता ने सिर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया और पूर्ववत अपने काम में लगी रही. औपचारिकता के नाते उस ने पूछा, ‘‘बाबूजी, आप को किसी चीज की जरूरत है क्या?’’

‘‘विनीता, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है.’’ पीछे से वंशलाल ने विनीता के कंधे पर हाथ रखा और उसे धीमेधीमे दबाते हुए बोला, ‘‘खुशबू से भूख जाग गई है.’’

ससुर के इस व्यवहार से विनीता सकपका गई. पिता समान कोई ससुर ऐसे मस्ताने अंदाज में बहू का कंधा नहीं दबाता. विनीता के मन में यह खयाल भी सिर पटकने लगा कि ससुर का इशारा किस खुशबू की तरफ है, भोजन की खुशबू या उस के बदन की खुशबू. उस को कौन सी भूख जागी है, पेट की या कामनाओं की. विनीता असहज हो चली थी वह अपने कंधे से उस का हाथ हटाना ही चाह रही थी कि वंशलाल ने खुद ही हाथ हटा लिया और एकदम से उस के सामने आ कर बोला, ‘‘बहू, जिन हाथों से तुम लजीज और खुशबूदार खाना बनाती हो, जी चाहता है उन हाथों को चूम लूं.’’

इसी के साथ वंशलाल ने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे होंठोें से लगा कर दनादन चूमने लगा. विनीता हतप्रभ रह गई कि ससुर यह क्या कर रहा है. कहीं उस के मन में सचमुच पाप तो नहीं. विनीता के मस्तिष्क में विचारों की उथलपुथल चल ही रही थी कि वंशलाल ने खुद ही उस का हाथ छोड़ दिया. उस के बाद वह हंस कर बोला, ‘‘किसी दिन मैं फिर तुम्हारे हाथ के साथ होंठ भी चूमूंगा.’’

विनीता ने सोच लिया कि सब लोग इत्मीनान से खाना खा लेंगे तो वह सास माया को ससुर की करतूत बताएगी. लेकिन उस की यह इच्छा तब अधूरी रह गई, जब सास खाना खा कर चारपाई पर लेटी और थोड़ी ही देर में गहरी नींद के आगोश में समा गई. सास की नसीहत अगले दिन जब पति, जेठ व ससुर अपनेअपने काम पर चले गए, तब विनीता सास के पास जा बैठी, ‘‘अम्मा मुझे आप से एक जरूरी बात करनी है.’’

माया देवी हंसी, ‘‘एक नहीं चार बात करो बहू. मैं तो यही चाहती हूं कि तुम खूब बात करो. तुम्हारा मन बहल जाएगा और मेरा भी समय कट जाएगा.’’

‘‘अम्मा, मन बहलाने व समय काटने वाला मुद्दा नहीं है,’’ विनीता आहिस्ता से बोली, ‘‘मुझे जो कहना है, वह बात बहुत गंभीर है.’’

माया देवी भी संजीदा हो गई, ‘‘बोलो बहू, क्या बात है?’’

विनीता ने सिर झुका कर मर्यादित शब्दों में ससुर की करतूत कह डाली.

माया देवी ने पैनी निगाहों से बहू को देखा फिर बोली, ‘‘मनीष के बाबू ने नशे में कंधे पर हाथ धर दिया होगा और हाथ चूम लिया होगा. बस इतनी सी बात पर तुम शिकायत ले कर आ गई.’’

‘‘अम्मा…’’ विनीता के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई, ‘‘मेरा खयाल था कि इस शिकायत से आप बाबूजी को मर्यादा का पाठ पढ़ाओगी, लेकिन आप तो उन्हें शह दे रही हो.’’

‘‘चुपऽऽ’’ माया देवी ने विनीता को डांट दिया, ‘‘एक तो जिस के पैसे का खातीपहनती है, जिस के घर में रहती है, सुबहसुबह उस की बुराई करने बैठ गई और दूसरे अम्माअम्मा किए जा रही है. उठ यहां से और अपना काम कर.’’ माया देवी ने विनीता को हड़काया. आंखों में आंसू लिए विनीता, सास के पास से उठ गई. उस की आंखें ही नहीं बरस रही थीं, दिल भी रो रहा था. सास की उदासीनता ने विनीता की घबराहट और बढ़ा दी थी. वह सोचने लगी अपनी अस्मत की हिफाजत के लिए उसे खुद ही कुछ करना होगा. लगभग एक सप्ताह तक ससुर ने कोई हरकत नहीं की तो विनीता थोड़ा निश्चिंत हो गई. सोचा कि शायद उसे कोई गलतफहमी हो गई हो. ससुर के मन में पाप नहीं है. पाप होता तो चुप हो कर नहीं बैठता.

किंतु दूसरे सप्ताह के शुरू में ही विनीता की गलतफहमी दूर हो गई. हुआ यह कि रोज की तरह विनीता शाम को खाना पका चुकी तो वह अपने कमरे में आ कर बैड पर लेट गई. वह आंखें बंद किए हुए लेटी थी, तभी उसे किसी के आने की आहट हुई. विनीता ने झट से आंखें खोल दीं, देखा सामने ससुर वंशलाल खड़ा मुसकरा रहा था. ससुर को देख कर विनीता घबरा गई और बैड से उठ कर खड़ी हो गई. उस ने सिर पर साड़ी का पल्लू डालते हुए पूछा,  ‘‘बाबूजी खाना लगा दूं क्या?’’

‘‘नहीं, मुझे पेट की नहीं शरीर की भूख सता रही है. आज मैं इस भूख को शांत करूंगा.’’ कहते हुए वंशलाल ने विनीता को अपनी बांहों में भर लिया. इज्जत पर आए संकट को देख विनीता ने जोर लगा कर खुद को छुड़ाया और बोली, ‘‘बाबूजी, आप नशे में हैं, इसलिए समझ नहीं पा रहे हैं कि आप को मुझ से ऐसी शर्मनाक बात नहीं करनी चाहिए.’’

वंशलाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई, ‘‘विनीता, नशे में ही आदमी सच बोलता है.’’

विनीता जानती थी कि ससुर वंशलाल अपनी बेशर्मी से बाज नहीं आने वाला, लिहाजा उस ने उस के सामने से हट जाने में ही अपनी भलाई समझी. कन्नी काट कर वह दूसरे कमरे में जा पहुंची. वहां वह सोचने लगी कि अब इस पूरे मामले को पति की जानकारी में लाना जरूरी हो गया है. वरना ससुर का हौसला इसी तरह बढ़ता रहा, तो वह उस की काया ही नहीं, आत्मा तक को मैली कर देगा. पति को बता दी पूरी कहानी  रात को कमरा बंद कर के विनीता पति के साथ बिस्तर पर लेटी तो वह उदास थी. मनीष ने उदासी का कारण पूछा तो विनीता की आंखों से गंगाजमुना बह निकली. हिचकियां लेते हुए उस ने पूरी दास्तान सुना दी फिर मनीष के कंधे पर सिर टिका कर बोली, ‘‘बाबूजी के मन में पाप समाया है. मेरी इज्जत खतरे में है. यहां रही तो मेरे तन पर अमिट दाग लग जाएगा. तुम दूसरा मकान ले लो. अब हम अलग रहेंगे.’’

मनीष ने कंधे से विनीता का सिर हटा कर उस के आंसू पोंछे, ‘‘अब मेरी समझ में आया कि नशे की झोंक में बाबूजी तुम्हारी इतनी तारीफ क्यों किया करते थे, उन का मन डोला हुआ था तुम पर.’’

‘‘इसीलिए तो मैं तुम से कह रही हूं,’’ विनीता उत्साहित हो कर बोली, ‘‘बाबूजी मेरी इज्जत पर हाथ डालें, उस से पहले ही तुम अपनी घरगृहस्थी अलग कर लो.’’ वह बोली.

मनीष कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘बात तो तुम सही कह रही हो, पर तुम्हें ले कर मैं अलग हुआ नहीं कि बाबूजी मुझे परिवार से अलग कर देंगे. तब हम खाएंगे क्या.’’

‘‘लालच छोड़ो और मेरी इज्जत के बारे में सोचो. हम मेहनतमजदूरी कर गुजारा कर लेंगे. भूखा भी रहना पड़ा तो रह लेंगे. पर इज्जत बचाने को घरगृहस्थी अलग कर लो.’’

पत्नी की बात मान कर मनीष ने अपनी गृहस्थी अलग करने की बात कही तो वंशलाल भड़क उठा, ‘‘बेशक तुम अलग रहो. पर मैं अपनी जमीन का एक इंच भी जोतनेबोने को नहीं दूंगा. तुम्हें खुद कमानाखाना पड़ेगा.’’

मनीष को पहले से यही उम्मीद थी. अत: उस ने पिता की धमकी की परवाह नहीं की और पिता के खाली पड़े मकान में अलग रहने लगा. उसे दहेज में जो सामान मिला था, उस से उस ने अपना घर सजा लिया और पत्नी के साथ रहने लगा. जेठानी रमा को देवरानी का अलग होना खलने लगा. क्योंकि अब उसे ही घर के कामों के अलावा सास की सेवा करनी पड़ती थी. सास मायादेवी बीमार रहने लगी थी, जिस से उन की दवा आदि का विशेष खयाल रखना पड़ता था. विनीता को भी जब समय मिलता था, तो सास की सेवा में पहुंच जाती थी . इस बहाने देवरानीजेठानी बतिया लेती थी. रामादेवी उसे चोरीछिपे घरगृहस्थी का सामान भी दे देती थी.

वंशलाल बना हैवान विनीता की मुश्किल तब बढ़ी जब मनीष जनवरी, 2019 में बीमार पड़ गया और उस का काम भी छूट गया. उस ने कुछ सप्ताह तो जैसेतैसे काटे और पति का इलाज भी कराया लेकिन जब आर्थिक परेशानी ज्यादा बढ़ी तो एक रोज उस ने ससुर वंशलाल को घर बुलाया और आर्थिक मदद की गुहार लगाई. विनीता पर वंशलाल की गिद्ध दृष्टि पहले से ही थी. अत: लालच में उस ने विनीता की आर्थिक मदद कर दी. इलाज होने पर मनीष स्वस्थ हो गया और फिर से काम करने लगा.

वंशलाल हर हाल में बहू के जिस्म को हासिल करना चाहता था. अत: मदद के बहाने वह विनीता के घर आनेजाने लगा. ससुर होने के नाते विनीता कभी चाय को पूछ लेती तो कभी खाने को. विनीता घूंघट की ओट से ही ससुर से बातें करती थी और चायपानी देती थी. इस बीच वंशलाल किसी प्रकार की अश्लील हरकत नहीं करता था, जिस से विनीता को लगने लगा था कि शायद वह सुधर गया है, पर यह उस की भूल थी. एक शाम वंशलाल डयूटी से घर आया तो उसे पता चला कि उस का बेटा अपनी ससुराल नगरा गया है. यह पता चलते ही उस के जिस्म की भूख जाग उठी. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि आज वह अपनी भूख मिटा कर ही रहेगा.

रात 10 बजे जब गली में सन्नाटा पसर गया तो वह विनीता के घर पहुंचा और कुंडी खटखटाई. विनीता ने सोचा कि कहीं मनीष तो नहीं लौट आया. उस ने अलसाई आंखों से दरवाजा खोल दिया. सामने ससुर वंशलाल खड़ा था. इस से पहले कि विनीता कुछ पूछती, ससुर ने अंदर आ कर दरवाजा बंद किया और बहू विनीता को दबोच लिया. फिर वह उसे बिस्तर पर ले गया और मनमानी करने लगा. विनीता ने ससुर की बांहों से छूटने का भरसक प्रयास किया, गिड़गिड़ाई, इज्जत की दुहाई दी, पर वंशलाल पर तो हवस का शैतान सवार था. हाथपांव चलाने के बावजूद उस ने विनीता को नहीं छोड़ा. शारीरिक भूख मिटाने के बाद ही वह विनीता के जिस्म से अलग हुआ. इस के बाद वह वापस चला गया.

विनीता चाहती तो चीखचिल्ला कर पूरे मोहल्ले को इकट्ठा कर लेती. पर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया. इस की वजह यह थी कि लोग उसे ही दोषी ठहराते. पुलिस में जाती तो उस की कोई नहीं सुनता. क्योंकि वह बिंदकी थाने में ही ड्यूटी करता था. बाहर भी उस की सुनवाई नहीं होती. इसलिए इज्जत लुटाने के बावजूद वह चुप रही. दूसरे रोज पति आया तो उस ने उसे भी कुछ नहीं बताया. क्योंकि बताने से बापबेटे में द्वंद होता फिर पूरे गांव में इज्जत नीलाम होती. इसलिए सारा जहर विनीता स्वयं ही पी गई. इधर जब घर में कोई शोरशराबा या शिकवाशिकायत नहीं हुई तो वंशलाल का हौसला बढ़ गया. उसे लगा कि विनीता ने दिखावे के तौर पर विरोध किया, पर अंतर्मन से उस की भी रजामंदी है.

हौसला बढ़ते ही एक शाम वंशलाल, विनीता के घर आ पहुंचा. उस ने मदद के नाम पर विनीता की हथेली पर हजार रुपए रखे, फिर उसे बिस्तर पर ले गया और हवस मिटा कर चला गया. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. वंशलाल को जब भी मौका मिलता, बहू के साथ खेल लेता. परंतु गलत काम ज्यादा दिन छिपा नहीं रहता. वंशलाल के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस शाम वंशलाल बहू से मुंह काला कर के घर से निकल रहा था, तभी मनीष आ गया. मनीष ने बाप को घर से निकलते देखा तो उस का माथा ठनका. वह अंदर पहुंचा तो विनीता अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर बैठी सुबक रही थी.

विनीता को उस अवस्था में देख कर मनीष समझ गया कि चंद मिनट पहले ही ससुरबहू ने वासना का खेल खेला है. अत: उस ने गुस्से में विनीता की पिटाई की फिर उस का गला दबाते हुए बोला, ‘‘बता यह सब कब से चल रहा है?’’

विनीता ने किसी तरह अपना बचाव किया फिर बोली, ‘‘मेरा गला क्यों दबा रहे हो. दबाना ही है तो अपने बाप का दबाओ, जो मुझे जबरदस्ती हवस का शिकार बनाता है. मैं गिड़गिड़ाती रहती, पर हवस के उस दरिंदे को जरा भी दया नहीं आती.’’

मनीष ने रची बाप की हत्या की साजिश मनीष ने पत्नी की बात पर सहज भरोसा कर लिया. फिर गुस्से से बोला, ‘‘अगर ऐसी बात है तो बाप को सबक सिखाना ही पड़ेगा. पर इस के लिए मुझे तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘मैं साथ देने को तैयार हूं,’’  विनीता ने वादा किया.

इस के बाद मनीष और विनीता ने वंशलाल की हत्या की योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे. 16 मार्च, 2020 की शाम 7 बजे होमगार्ड वंशलाल थाना बिंदकी से ड्यूटी पूरी कर घर लौटा. फिर शराब पीने बैठ गया. रात 9 बजे उस ने खाना खाया और घर के बाहर बरामदे में आ कर वर्दी उतार कर खूंटी पर टांग दी और तख्त पर लेट गया. उसे लेटे हुए अभी चंद मिनट ही बीते थे कि उस के मोबाइल पर काल आई. उस ने मोबाइल नंबर देखा तो विनीता का था. वंशलाल ने काल रिसीव की तो विनीता बोली, ‘‘बाबूजी, मनीष घर पर नहीं है. मैं घर पर अकेली हूं. डर लग रहा है. आप आ जाइए.’’

वंशलाल बहू की चाल को समझ नहीं पाया और बोला, ‘‘तुम डरो मत, मै तुरंत आ रहा हूं.’’

इस के बाद वह कच्छाबनियान पहने ही विनीता के घर पहुंच गया. घर पर मनीष घात लगाए बैठा ही था. वंशलाल के पहुंचते ही उस ने उसे दबोच लिया. पहले दोनों ने वंशलाल कोे लातघूंसों से पीटा, फिर अंगौछे से गला कस कर मार डाला. इस बीच नफरत से भरी विनीता ने फुंकनी से ससुर के गुप्तांग पर चोट पहुंचाई और बुरी तरह कुचल डाला, जिस से खून बहने लगा. हत्या करने के बाद दोनों मिल कर शव को तख्त पर डाल गए फिर घर में ताला लगा कर फरार हो गए. सुबह अनिल जब दिशामैदान को घर से निकला तो उस ने पिता का शव तख्त पर पड़ा देखा. अनिल ने शोर मचाया तो पड़ोसी आ गए. फिर अनिल थाना बिंदकी पहुंचा और बाप की हत्या की सूचना दी.

मनीष और उस की पत्नी विनीता से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 21 मार्च, 2020 को दोनों को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट बी.के. सहगल की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

Love Stories : चादर में लपेटा लिवइन रिलेशन

Love Stories : 10 महीने से बंद कमरे का ताला तोड़ कर बलवीर सिंह राजपूत ने कमरे की सफाई की तो उन्हें फ्रिज के अंदर चादर में लिपटी एक युवती की लाश मिली. कौन थी वह युवती और किस ने की उस की हत्या? पढ़ें, रहस्य से भरी यह कहानी.

10 जनवरी, 2025 की सुबह की बात है. कड़ाके की सर्दी थी और कोहरे की चादर भी फैली हुई hथी, लेकिन हौलेहौले अस्तित्व में आती सूरज की किरणों ने कोहरे से लडऩा शुरू किया तो मौसम का मिजाज तेजी से बदलने लगा. सर्दी कम होती चली गई, साथ ही कोहरे की चादर भी हटती चली गई. इसी बीच देवास में भोपाल रोड स्थित पौश कालोनी वृंदावनधाम में किराए पर रहने वाले बलवीर राजपूत ने बीएनपी (बैंक नोट प्रैस) थाने को फोन कर सूचना दी कि कालोनी के मकान नंबर 128 से दुर्गंध आ रही है. जिस कमरे से दुर्गंध आ रही है, उस के दरवाजे पर पिछले 10 महीने से ताला लगा हुआ था.

दुर्गंध आने की सूचना मिलते ही टीआई अमित सोलंकी समझ गए कि वहां कुछ न कुछ गड़बड़झाला अवश्य है. क्योंकि इस तरह की जो भी सूचनाएं मिलती हैं, उन में से ज्यादातर मामले हत्या के ही निकलते हैं. बहरहाल, एसएचओ पुलिस टीम के साथ वृंदावनधाम कालोनी की तरफ निकल गए. निकलने से पहले उन्होंने इस की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. जिस मकान से दुर्गंध आने की बात कही गई थी, वह 2 मंजिला था. टीआई और अन्य पुलिसकर्मियों ने भी कमरे से आती दुर्गंध को महसूस किया था. उस कमरे के ठीक बगल वाले 4 कमरों में बलवीर राजपूत अपने परिवार के साथ रह रहा था.

बलवीर ने पुलिस को बताया कि वह जुलाई 2024 से धीरेंद्र श्रीवास्तव के इस मकान के एक भाग को किराए पर ले कर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रह रहा है. उसे अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए और कमरों की जरूरत महसूस हुई तो उस ने मकान मालिक धीरेंद्र श्रीवास्तव से मोबाइल पर बात कर तकरीबन 10 महीनों से बंद पड़े 2 कमरे भी उसे किराए पर देने के लिए अनुरोध किया. मकान मालिक धीरेंद्र श्रीवास्तव ने बलवीर को बताया कि उन कमरों में पूर्व में रहने वाले किराएदार संजय पाटीदार (41) का कुछ घरेलू सामान रखा हुआ है और अभी कमरे पर संजय पाटीदार का ही ताला लगा हुआ है. उस से मैं कई बार अपना सामान उठा कर ले जाने के लिए कह चुका हूं, लेकिन वह पिछले 6 महीने से बहानेबाजी कर रहा है.

कभी कहता है कि मेरी सास को हार्ट अटैक आ गया है तो कभी कहता है कि मेरे चाचा के बेटे का निधन हो गया है, इसलिए आने में असमर्थ हूं. आप मुझे कुछ समय की मोहलत और दे दीजिए और मेरे सामान को कमरे में रखा रहने दें, मैं जल्द ही आप का पूरा किराया दे कर अपना सामान उठा कर ले जाऊंगा.

किस की थी फ्रिज में रखी लाश

वह न तो मुझे समय पर किराया दे रहा है न ही कमरे का ताला खोल रहा है, जबकि इस से पहले  वह हर महीने मुझे औनलाइन किराया भेज देता था. इसलिए तुम ऐसा करो कि ताला तोड़ कर कमरे में रखा संजय पाटीदार का सामान कमरे के बाहर रख दो और कमरे की साफसफाई कर के उसे अपने उपयोग में लेना शुरू कर दो. इस पर बलवीर ने कमरे में लगे ताले को 8 जनवरी की रात को तोड़ दिया था. इस के बाद जैसे ही वह कमरे में घुसा तो उसे गृहस्थी के सामान के साथ कपड़े में लपेट कर रखा हुआ फ्रिज दिखाई दिया, जोकि बिना उपयोग में आए चल रहा था.

बलवीर ने बिजली की खपत कम करने के मकसद से फ्रिज का स्विच औफ कर दिया और कमरे की कुंडी लगा कर अपने कमरे में सोने चला गया. 9 जनवरी को सुबह होने पर बलवीर ने उस बंद पड़े कमरे की साफसफाई की, लेकिन कमरे में रखे संजय पाटीदार के सामान के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की, उसे यथावत कमरे में ही रखा रहने दिया. 10 जनवरी, 2025 को दोपहर के वक्त जब संजय पाटीदार के कमरे से तेज दुर्गंध आने लगी तो बलवीर सिंह राजपूत ने कमरे की कुंडी खोल कर देखा तो बंद फ्रिज में से खून रिसने के साथ ही तेज दुर्गंध आ रही थी. बलवीर ने समय न गंवाते हुए तुरंत बीएनपी (बैंक नोट प्रेस) थाने को इस की सूचना दी.

सूचना पर पहुंची पुलिस टीम ने लोगों की मौजूदगी में जैसे ही फ्रिज का दरवाजा खोला, तभी चादर में लिपटी फ्रिज में करीने से रखी कोई चीज फ्रिज में से बाहर गिर गई. पुलिस ने जब उस चीज की चादर हटाई तो उस में एक महिला की लाश थी. लाश को चादर से बाहर निकालते ही घर में बदबू फैल गई. मृतका की उम्र 30-35 साल से ज्यादा नहीं लगती थी. पता चला कि वह संजय पाटीदार के साथ रहने वाली प्रतिभा उर्फ पिंकी थी. उस के गले में दुपट्टा कसा हुआ था, साथ ही उस के हाथ भी बंधे हुए थे.

पुलिस ने उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में मकान को छान मारा, लेकिन वहां पर कुछ भी आपत्तिजनक सामान नहीं मिला. सिर्फ मृतका के संजय पाटीदार के साथ फोटो और दस्तावेज के. उसी दौरान एसपी पुनीत गहलोद, एएसपी जयवीर भदौरिया, प्रैस फोटोग्राफर तथा फिंगरप्रिंट ब्यूरो के सदस्य भी वहां पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद टीआई को दिशानिर्देश देने के बाद एसपी पुनीत गहलोत लौट गए.

पहले पति को क्यों छोड़ा पिंकी ने

देखते ही देखते यह खबर समूची वृंदावन धाम कालोनी में फैल गई कि किसी ने प्रतिभा उर्फ पिंकी की हत्या कर दी है. थोड़ी देर में कालोनी के लोग काफी बड़ी संख्या में मौकाएवारदात पर जमा हो गए. पुलिस ने पड़ोसियों से पिंकी की हत्या के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उस की हत्या के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. वैसे मार्च 2024 के बाद किसी ने भी पिंकी को वृंदावनधाम कालोनी में नहीं देखा था. जब भी किसी पड़ोसी ने संजय पाटीदार से पिंकी के बारे में पूछा तो उस ने उन्हें यही बताया कि उस की मम्मी को हार्ट अटैक आ गया है, इसलिए वह अपनी मम्मी की देखभाल के लिए गई है.

पुलिस को लगा कि जरूर दाल में कुछ काला है. इस के बाद पुलिस के शक की सुई संजय पाटीदार पर ही टिक गई. मामला गंभीर था, इसलिए मौके पर मौजूद टीआई ने इनवैस्टीगेशन के लिए उज्जैन से फोरैंसिक टीम को भी वहां बुला लिया. फोरैंसिक टीम की 2 महिला अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल और मृत महिला की लाश का निरीक्षण करने के बाद मौके से जरूरी सबूत सावधानीपूर्वक एकत्रित कर लिए. इस बीच पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए देवास के जिला अस्पताल में भिजवा दिया.

हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए एसपी पुनीत गहलोत ने एएसपी जयवीर भदौरिया, टीआई अमित सोलंकी के अलावा क्राइम ब्रांच और साइबर सेल टीम को भी लगा दिया. टीम ने अपने स्तर पर गहनता के साथ इस जघन्य हत्याकांड की छानबीन शुरू कर दी. इस का परिणाम यह निकला कि पुलिस टीम को मृतका पिंकी और संजय पाटीदार के बारे में तमाम सारी चौंकाने वाली जानकारियां मिल गर्ईं. इन जानकारियों से तमाम सारे राज परतदरपरत खुलते चले गए. पता चला कि पिंकी संजय की पत्नी नहीं थी, वह तो संजय पाटीदार के साथ पिछले 5 सालों से लिवइन रिलेशनशिप में रह रही थी. संजय से पहले उस ने 2016 में राजस्थान के सुभाष माहेश्वरी से लव मैरिज की थी, लेकिन यह शादी ज्यादा समय तक नहीं चली, क्योंकि पिंकी ने शादी के बाद बेहतरीन जिंदगी जीने के सपने संजो रखे थे.

पिंकी के ख्वाब चकनाचूर हुए तो उस की अपने पति सुभाष से अनबन रहने लगी. पति ने उसे बहुत समझाया, लेकिन छोटीछोटी बातों पर झगड़ा होना आए दिन की बात हो गई तो रिश्तों में कड़वाहट बढऩे लगी. शिकवेशिकायतों के बीच दोनों 2017 में एकदूसरे से अलग हो गए तो पिंकी राजस्थान से अपने पैतृक शहर उज्जैन लौट आई. पिंकी की जिंदगी किस दिशा में जाने वाली थी, यह वह खुद भी नहीं जानती थी, लेकिन यह भी सच था कि वह आजादी की जिंदगी जीना चाहती थी. पति से अलगाव के बाद वह मायके आ गई. उस का यह कदम फेमिली वालों को खासकर उस के पापा और भाई को कतई रास नहीं आया. लेकिन पिंकी अपने सामने किसी दूसरे की चलने नहीं देती थी. उस के अडिय़ल रुख के कारण उस से आजिज आ कर फेमिली वालों ने भी उस से पूरी तरह से किनारा कर लिया.

ऐसी स्थिति में वह उज्जैन में ही अपने घर के ही करीब किराए पर कमरा ले कर रहने लगी. कुछ दिन बाद पिंकी की मुलाकात संजय पाटीदार से हुई. चंद मुलाकातों में दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. उन के बीच प्यार हो गया. पिंकी को संजय के सहारे की जरूरत थी. उधर संजय भी पिंकी की अदाओं और खूबसूरती का दीवाना बन चुका था. सरल स्वभाव की पिंकी ने अपने परिचितों और पड़ोसियों से संजय का परिचय अपने पति के रूप में कराया था. यह बात अलग थी कि दोनों का रिश्ता लिवइन रिलेशन का था.

10 महीने तक ठिकाने क्यों नहीं लगाई लाश

10 जनवरी, 2025 की दोपहर को हत्या के इस मामले में मृतका कि लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद अब पुलिस के लिए जांच को आगे बढ़ाने के लिए सब से जरूरी था, मृतका के साथ रहने वाले संजय पाटीदार को खोज निकालना. संजय पाटीदार को धर दबोचने के लिए एसपी ने एएसपी जयवीर भदौरिया को लगा दिया. उन्होंने पिंकी की लाश मिलने के चंद घंटों बाद ही संजय पाटीदार के ठौरठिकानों का पता लगाना शुरू कर दिया. उन्होंने अपनी सूझबूझ से संजय पाटीदार को उज्जैन के मौलाना गांव से गिरफ्तार कर लिया और उसे ले कर देवास आ गए.

इस हत्या का राज खुल जाने के बाद पहली गिरफ्तारी संजय पाटीदार की हुई थी, अत: देवास के (बैंक नोट प्रेस) बीएनपी थाने में संजय पाटीदार से पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह पुलिस को बहकाता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस पर मनोवैज्ञानिक ढंग से दबाव बनाया तो उस ने प्रतिभा उर्फ पिंकी की हत्या 2 मार्च, 2024 को ही अपने मित्र विनोद दवे के साथ मिल कर करने और लाश घर में रखे फ्रिज में छिपाने की बात कुबूल कर ली. संजय पाटीदार ने अपनी गिरफ्तारी के बाद पिंकी की हत्या करने के पीछे की जो वजह बताई, वह लिवइन रिलेशनशिप में दरकते रिश्तों की चौंकाने वाली कहानी निकल कर आई.

संजय पाटीदार मूलरूप से मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के मौलाना गांव का रहने वाला था. जैसे ही संजय जवान हुआ, उस के पेरेंट्स ने उस की शादी कर दी. उस की पत्नी उस के साथ उज्जैन में रहती थी और वह उज्जैन की अनाज मंडी में काम करता था. उस का काम काफी अच्छा चल रहा था. वह जो पैसे कमाता, उस में से कुछ पैसे अपने पापा के पास भेज देता था. इस बीच उस की पत्नी 2 बच्चों की मां बन गई थी. बताया जाता है कि इस बीच संजय ने मंडी के काम को छोड़ दिया और उज्जैन में रह कर स्वयं का फ्रीगंज इलाके में एक मल्टीलेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनी का औफिस खोल लिया. इसी कंपनी में प्रतिभा उर्फ पिंकी भी काम करती थी. इसी दौरान दोनों के बीच दोस्ती हो गई. बाद में उन के बीच प्रेम संबंध बन गए तो दोनों लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे.

उज्जैन में संजय ने शहर की विवेकानंद कालोनी, अन्नपूर्णा नगर, तिरुपति धाम में किराए पर कमरा ले कर पिंकी को अपने साथ रखा. जब एमएलएम का काम अच्छा नहीं चला तो कुछ समय बाद संजय ने इस काम को बंद कर दिया और 2023 में प्रतिभा को उज्जैन से देवास ले आया और वृंदावनधाम कालोनी में धीरेंद्र श्रीवास्तव का मकान किराए पर ले कर रहने लगा. धीरेंद्र इंदौर में रहते थे. वृंदावनधाम कालोनी में आने के बाद अपनी गृहस्थी चलाने के लिए देवास मंडी में काम करना शुरू कर दिया, वहीं पिंकी ने घर में ही रह कर कालोनी की महिलाओं के कपड़े सिलने का काम शुरू कर दिया. यहां पर भी पड़ोसियों के द्वारा पति के बारे में पूछने पर पिंकी ने संजय को अपना पति बताया था. पिंकी ने कुछ पड़ोसियों को यह भी बताया था कि देवास आने के पहले उस का 2 साल का बेटा भी था, जिस की निमोनिया से उपचार के दौरान मौत हो चुकी है.

कालोनी में रहने वाले लोगों से जब पुलिस ने पड़ताल के दौरान बात की तो सभी ने इस बात पर ज्यादा हैरानी जताई कि (पिंकी और संजय) दोनों शादीशुदा नहीं थे. पता चला कि पिंकी अपनी आजीविका चलाने के लिए देवताओं की मूर्तियों की सुंदरसुंदर पोशाकें सिलती थी. पुलिस को यह भी पता चला कि संजय उज्जैन के मौलाना गांव का रहने वाला है और वह पहले से शादीशुदा है और उस के पत्नी और बच्चे भी हैं. उस की बड़ी बेटी की तो शादी तक तय हो चुकी है. उन दोनों के बीच होने वाले झगड़े की असल वजह यह थी कि पिंकी संजय पाटीदार पर शादी करने के लिए दवाब बना रही थी.

पुलिस ने बताया कि प्रतिभा उर्फ पिंकी का अपने घर वालों से बीते 7 सालों से किसी तरह का कोई संपर्क नहीं था. शनिवार 11 जनवरी, 2025 को पुलिस के बुलावे पर वह देवास पहुंचे. उन्होंने उस की लाश की शिनाख्त प्रतिभा उर्फ पिंकी प्रजापति के रूप में कर दी.

आखिर छिप न सका जुर्म

पिंकी के फेमिली वालों का कहना था कि 2016 में उस ने राजस्थान के सुभाष माहेश्वरी से हम लोगों की इच्छा के खिलाफ लव मैरिज कर ली थी. उस के बाद से हमारा प्रतिभा उर्फ पिंकी से कोई संपर्क नहीं था. पुलिस को पड़ोसियों से पता चला कि बलवीर सिंह चौहान से पहले इस मकान में जुलाई 2023 से जून 2024 तक संजय पाटीदार और प्रतिभा उर्फ पिंकी रहा करती थी, लेकिन किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि संजय इतना बेरहम इंसान हो सकता है. उधर संजय पाटीदार ने पुलिस पूछताछ में जब अपना गुनाह कुबूल कर लिया, तब पुलिस ने 11 जनवरी, 2025 को उसे कड़ी सुरक्षा के बीच कोर्ट में पेश किया और विस्तार से पूछताछ करने और सबूत जुटाने के लिए एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि में टीआई अमित सोलंकी लोगों के गुस्से और हमले की आशंका के मद्देनजर भारी सुरक्षा के बीच उसे अपने साथ वृंदावन धाम कालोनी के मकान नंबर 128 ले कर पहुंचे. वहां उन्होंने उस से घटना का सीन रीक्रिएट कराया. उस ने पुलिस को यह भी बताया कि पिंकी उस के मित्र विनोद को जानती थी. इसलिए वह भी हम दोनों की तकरार के दौरान कमरे के भीतर पहुंच गया. इस दौरान हम दोनों में बातचीत होती रही. इस बातचीत के दौरान पिंकी शादी की हठ करने लगी. संजय ने अपने शादीशुदा होने का हवाला देते हुए उसे समझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी सुनने को राजी नहीं थी.

दोस्त विनोद ने भी उसे समझाने का प्रयास किया तो वह उसे भी भद्दी गालियां देने लगी. जब संजय ने पिंकी से शादी करने से साफ इनकार कर दिया तो वह बुरी तरह तिलमिला गई और संजय को भी भद्दीभद्दी गालियां देने लगी. पिंकी की बदजुबानी से संजय की सहनशक्ति जवाब दे गई और इसी दौरान गुस्से में उस ने पिंकी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. हालांकि उस ने चिल्लाने का प्रयास किया तो विनोद ने उस का मुंह दबा दिया.

वह कुछ मिनट छटपटाने के बाद शांत हो गई. इस के बावजूद भी पूरी तरह आश्वस्त होने के लिए संजय ने पिंकी की छाती पर हाथ रख कर दिल की धड़कनों के बंद होने की जांच भी की थी. फिर विनोद की मदद से संजय ने पिंकी के दोनों हाथ बांधे और फ्रिज की सभी ट्रे बाहर निकालीं और अपने मित्र की मदद से उस के शव को चादर में बांध कर फ्रिज में ठूंस दिया. फिर फ्रिज को हाई पर सेट कर दिया. संजय पाटीदार के रिमांड अवधि और सभी तरह की तहकीकात पूरी होते ही पुलिस ने फिर से कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. भोलाभाला दिखाई देने वाला संजय पाटीदार अब सलाखों के पीछे है.

देवास के बैंक नोट प्रेस थाना पुलिस उज्जैन के इंगोरिया इलाके में रहने वाले संजय पाटीदार के मित्र और इस हत्या में संजय के सहयोगी रहे विनोद दवे को देवास लाने के लिए कोर्ट से प्रोटेक्शन वारंट ले कर राजस्थान की टोंक जेल जाने की तैयारी कर रही थी, साथ ही उसे भी हत्या के इस मामले में सहअभियुक्त बनाने के लिए विधिवत काररवाई की जा रही थी.

 

 

Extramarital Affair : दोस्‍त की बीवी को फंसाया और दोस्‍त को मौत के घाट उतारा

Extramarital Affair : राजवीर ने अपने फुफेरे भाई बबलू को गांव से अपने पास बहादुरगढ़ इसलिए बुला लिया था कि यहां वह उसे किसी फैक्ट्री में नौकरी पर लगवा देगा. बहादुरगढ़ आने के बाद राजवीर ने बबलू की नौकरी लगवा भी दी, लेकिन बबलू ने इस का यह सिला दिया कि उस ने राजवीर की पत्नी अंजलि से अवैध संबंध बना लिए. इस के बाद जो हुआ…

‘‘सा हब, मैं सहतेपुर गांव से अजय पाल बोल रहा हूं. मेरी भाभी अंजलि ने मेरे भाई राजवीर का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया है. अंजलि भाभी को मैं ने पकड़ रखा है. आप जल्दी से हमारे गांव सहतेपुर आ जाइए.’’ अजय ने निगोही थाने में फोन करते हुए कहा. यह थाना उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के अंतर्गत आता है. निगोही थाने के इंचार्ज इंद्रजीत भदौरिया का ट्रांसफर अल्हागंज थाने में हो गया था. उस समय थाने का प्रभार एसएसआई मानबहादुर सिंह के पास था. एसएसआई के लिए यह हैरानी की बात थी कि एक औरत ने अपने पति को निर्दयता से मार डाला था.

एसएसआई ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी, फिर आवश्यक पुलिस बल के साथ सहतेपुर गांव के लिए रवाना हो गए. कुछ ही देर में वह घटनास्थल पर पहुंच गए. मकान के एक कमरे में राजवीर की लाश पड़ी थी. उस की उम्र 28 साल के करीब थी. उस की गरदन व चेहरे पर चोट के निशान थे. पास में एक डंडा, एक लौकेट और टूटी चूडि़यां पड़ी थीं. डंडे से यह जाहिर हो रहा था कि शायद उसी डंडे से राजवीर की हत्या की गई है. पूछने पर पता चला कि टूटा पड़ा लौकेट मृतक राजवीर का ही है. यानी राजवीर ने अपने बचाव में हत्यारे से संघर्ष भी किया था, जिस वजह से लौकेट टूट कर जमीन पर गिर गया. टूटी चूडि़यों से यह भी पता चला कि घटना के समय कोई महिला भी वहां मौजूद थी.

लाश के पास ही एक युवती गुमसुम बैठी थी. उस के पास ही एक युवक खड़ा था. वह युवक एसएसआई से बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम अजयपाल है. मैं ने ही आप को फोन किया था. यही मेरी भाभी अंजलि है. इस ने ही बबलू की मदद से मेरे भाई राजवीर की हत्या की है. बबलू तो भाग गया लेकिन इसे मैं ने भागने नहीं दिया. आप इसे गिरफ्तार कर लीजिए.’’

एसएसआई मान सिंह ने अंजलि को महिला कांस्टेबलों की सपुर्दगी में दे कर थाना निगोही भिजवा दिया. एसएसआई सिंह घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर सीओ (सदर) कुलदीप सिंह गुनावत भी आ गए. सीओ कुलदीप सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर मृतक के भाई से पूछताछ की. इस के बाद एसएसआई सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर सीओ चले गए. एसएसआई सिंह ने घटनास्थल पर पड़ा डंडा, लौकेट व टूटी चूडि़यां साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कीं और लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. इस के बाद एसएसआई मान सिंह थाने वापस लौट आए. यह 31 मई, 2020 की बात है.

थाने में एसएसआई मान सिंह ने अंजलि से पूछताछ की तो वह फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर बाद आंसुओं का सैलाब थमा तो वह बोली, ‘‘हां साहब, मैं ने ही बबलू की मदद से अपने पति की हत्या की है. मैं अपना जुर्म कबूल करती हूं.’’

‘‘यह बबलू कौन है?’’ सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, रिश्ते में बबलू मेरे पति का फुफेरा भाई है. वह निवाड़ी गांव का रहने वाला है.’’

चूंकि अंजलि ने अपने पति राजवीर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था. अत: पुलिस ने अजय की तरफ से अंजलि व बबलू के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. उस के बाद सिंह ने अंजलि से विस्तृत पूछताछ की. उन्होंने अंजलि से पूछा, ‘‘तुम कैसी औरत हो कि अपना ही सिंदूर अपने हाथों से मिटा दिया. क्यों किया तुम ने ऐसा जघन्य अपराध?’’

अंजलि कुछ देर चुप रही, फिर वह बोली, ‘‘साहब, एक औरत रोज मरे, जलील हो तो वह क्या करेगी. मेरा पति मुझे रोज मारता था. मेरी आत्मा हर रात उस के बिस्तर पर मरती थी. बताइए, मैं कब तक सहती. जो मुझे जानवर समझता था, जिस ने मेरे साथ कभी इंसानों जैसा व्यवहार नहीं किया, जिस ने मेरी भावनाओं को कभी नहीं समझा. उस के हाथों हर रोज मरने के बदले मैं ने ही उसे मार डाला.’’

अंजलि के मन में बिलकुल ही पश्चाताप नहीं था. एक औरत, जिस की जिंदगी के मायने पति से शुरू हो कर उसी पर खत्म होते हैं, क्यों अपना सिंदूर मिटा देती है, यह जानने के लिए सिंह को अंजलि की पूरी कहानी जानना जरूरी था. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के निगोही थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक गांव सहतेपुर है. इसी गांव में राजेंद्र पाल सपरिवार रहते थे. परिवार में उन की पत्नी लक्ष्मी देवी और 2 बेटे राजवीर और अजयपाल और 2 बेटियां क्रमश: ज्योति व रेनू थीं. राजेंद्र और लक्ष्मी का आकस्मिक देहांत हो गया तो घर की जिम्मेदारी सब से बड़े बेटे राजवीर पर आ गई. वह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार का खर्च उठाने लगा. उस ने अपनी मेहनत की कमाई से अपनी बड़ी बहन ज्योति का विवाह कर दिया.

इस के बाद राजवीर के विवाह के लिए भी रिश्ते आने लगे. तब उस ने करीब 4 साल पहले शाहजहांपुर की चौक कोतवाली के मोहल्ला अब्दुल्लागंज में रहने वाली युवती अंजलि से विवाह कर लिया. अंजलि को पा कर राजवीर काफी खुश था. समय आगे बढ़ा तो राजवीर ने काम के सिलसिले में बाहर निकलने की सोची. उस के गांव के कई युवक बहादुरगढ़ (हरियाणा) में नौकरी कर रहे थे. राजवीर ने उन से बात की तो उन्होंने उसे भी बहादुरगढ़ बुला लिया. जल्द ही वह बहादुरगढ़ की एक जूता फैक्ट्री में काम पर लग गया. काम पर लगते ही वह अंजलि को भी बहादुरगढ़ ले गया. समय बढ़ता जा रहा था लेकिन अंजलि मां नहीं बन पाई.

राजवीर फैक्ट्री से लौट कर कमरे पर आता तो वह इतना थका होता कि  चारपाई पर लेटते ही नींद के आगोश में समा जाता. अंजलि चारपाई पर करवटें ही बदलती रहती. राजवीर का एक फुफेरा भाई था बबलू. वह राजवीर के गांव से कुछ ही दूरी पर निवाड़ी गांव में रहता था. राजवीर ने बबलू को भी अपने पास बहादुरगढ़ बुला लिया और उसे भी फैक्ट्री में काम पर लगवा दिया. दोनों के काम की शिफ्टें अलगअलग थीं. बबलू राजवीर के साथ उसी के कमरे पर रहता था. बबलू की राजवीर की पत्नी अंजलि से खूब पटती थी. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता होने के कारण उन के बीच हंसीमजाक होती रहती थी. अंजलि पति की उपेक्षा का शिकार थी. पति न उस की कभी तारीफ करता था, न ही उसे देह सुख देता था, जिस से वह अभी तक मां नहीं बन पाई थी.

इस कारण वह अकसर उदास रहती थी. बबलू जब भी उस से बातें करता तो मनभावन मीठीमीठी बातें ही करता था. उस के रूप की प्रशंसा भी खूब करता था. इसी कारण अंजलि धीरेधीरे बबलू की ओर आकर्षित होने लगी. एक दिन जब राजवीर फैक्ट्री में था तो बबलू कमरे पर अंजलि के साथ कमरे पर था. अंजलि का चेहरा बुझाबुझा सा क्यों रहता है, इस का कारण बबलू  एक साथ रहने के कारण जान चुका था. अपनी अंजलि भाभी की आंखों में वह प्यास भी पढ़ चुका था. बबलू ने अंजलि का मन जानने के लिए सवाल किया, ‘‘भाभी, एक बात मुझे परेशान करती रहती है. यह बताओ कि थकेहारे राजवीर भैया ड्यूटी से लौटने के बाद खाना खाते ही सो जाते हैं. वह आप का खयाल नहीं रख पाते. आप की खुिशयों का खयाल कब करते हैं.’’

‘‘कैसी खुशियां…कैसा खयाल…’’ अंजलि के मुंह से सच निकल गया, ‘‘उन पर तो हर वक्त थकान ही हावी रहती है. घर आए और घोड़े बेच कर सो गए. उन की बला से कोई जिए या कोई मरे.’’ अंजलि ने दिल की बात कह डाली. मौके को देखते हुए बबलू ने एकदम अंजलि का हाथ थाम लिया, ‘‘भाभी, यह तो बहुत अन्याय है तुम्हारे साथ. इतनी सुंदर भाभी को कोई तड़पाए, यह मुझे मंजूर नहीं है.’’

‘‘तुम इस मामले में क्या कर सकते हो देवरजी. जिस की बीवी है, उसी को फिक्र नहीं.’’

‘‘कर तो बहुत कुछ सकता हूं भाभी,’’ कहते हुए बबलू ने अंजलि की कमर में बांहें डाल दीं, ‘‘अगर तुम कहो तो…’’

‘‘चलो, मैं ने हां कह दी,’’ अंजलि ने मुसकरा कर तिरछी चितवन का तीर चलाया, ‘‘फिर क्या करोगे तुम?’’

‘‘तुम्हारी सारी तड़प मिटा दूंगा.’’ बबलू ने उसे बांहों में भींचते हुए कहा. फिर उस ने अंजलि को चूमना शुरू किया. देवर की गर्म सांसों का अहसास हुआ तो अंजलि भी बबलू से लिपट गई. उस के बाद बबलू ने अंजलि को अपनी बांहों में वह सुख दिया, जो अंजलि ने अपने पति की बांहों में कभी नहीं पाया था. उस दिन से बबलू अंजलि के तन के साथ मन का साथी हो गया. दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे देह संगम कर लेते. कुछ दिन तो उन का यह संबंध निर्बाध चलता रहा, फिर एक दिन पाप का भांडा फूट गया. एक दिन राजवीर ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. यह देख कर उस का खून खौल उठा. उस ने अंजलि और बबलू की पिटाई की. दोनों ने राजवीर से अपने किए की माफी मांग ली. राजवीर ने फिर यह गलती न दोहराने की दोनों को सख्त हिदायत देते हुए माफ कर दिया.

अंजलि तन की शांति के लिए पतित हुई थी. राजवीर को चाहिए था कि वह बीवी की इच्छा पूरी करता, लेकिन राजवीर उन मर्दों में से था जो यह मानते हैं कि बिगड़ी हुई बीवी लातों की बात सुनती है. लिहाजा वह आए दिन अंजलि की पिटाई करने लगा. पति की मार खातेखाते अंजलि विद्रोही बन गई. बबलू से मिला सुख वह भुला नहीं पा रही थी. इसलिए अधिक दिनों तक वे दोनों अलग नहीं रह पाए. अंजलि और बबलू दोनों फिर देह के खेल में लग गए. एक बार फिर दोनों रंगेहाथों पकड़ लिए गए. एक बार फिर अपनी बेवफा पत्नी को राजवीर ने पीटा और बबलू को वापस उस के गांव भेज दिया. बबलू को भेज देने से राजवीर निश्चिंत हो गया. लेकिन अंजलि और बबलू की फोन पर बातें होती थीं.

इस बार दोनों के संबंधों की बात राजवीर के भाई और बहनों के साथसाथ बबलू के घर वालों को भी पता चल गई. बबलू के पिता सुरेंद्र ने उस की शादी के प्रयास करने शुरू कर दिए. इस बीच कोरोना वायरस के कारण देश में लौकडाउन हुआ तो राजवीर को बहादुरगढ़ से अंजलि के साथ अपने गांव सहतेपुर लौटना पड़ा. दूसरी ओर बबलू की शादी तय हो गई. 28 मई, 2020 को उस का तिलक था. अब चूंकि बबलू शादी कर रहा था तो राजवीर को यह लगा कि अब उस के अंजलि से संबंध यहीं खत्म हो जाएंगे.

राजवीर अंजलि, भाई अजय और दोनों बहनों ज्योति और रेनू के साथ बबलू के तिलक में शामिल होने के लिए गया. तिलक  के बाद बबलू ने राजवीर से बात कर के सारे गिलेशिकवे दूर कर दिए. 30 मई को राजवीर और अंजलि अपने घर आ गए, उन्हें छोड़ने के लिए साथ में बबलू भी आया. अजय, ज्योति व रेनू बबलू के घर पर ही रुक गए थे. शाम 5 बजे तक तीनों सहतेपुर गांव पहुंचे. बबलू राजवीर के घर पर ही रुक गया. देर रात राजवीर के सो जाने पर बबलू और अंजलि एकदूसरे के पास आ गए. दोनों साथ रंगरलियां मना ही रहे थे कि राजवीर की आंखें खुल गईं. उस ने देखा तो वह दोनों से झगड़ने लगा, उन में हाथापाई होने लगी.

इस पर अंजलि को गुस्सा आया, वह पति पर पिल पड़ी और बबलू से बोली, ‘‘आओ, आज इस का काम तमाम कर ही दो. फिर हमेशा के लिए हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

यह सुन कर बबलू भी राजवीर पर टूट पड़ा. इसी हाथापाई में राजवीर का लौकेट टूट कर जमीन पर गिर गया. अंजलि की भी चूडि़यां टूट गईं. दोनों ने राजवीर को जमीन पर गिरा लिया और उस के गले पर डंडा रख कर दबा दिया, जिस से दम घुटने से राजवीर की मौत हो गई. इस के बाद बबलू वहां से चला गया. सुबह 4 बजे अंजलि ने चीखना- चिल्लाना शुरू कर दिया. पड़ोस में रहने वाले राजवीर के चचेरे भाई संदीप ने अंजलि के चीखने की आवाजें सुनीं तो वह राजवीर के घर आ गया. उस ने देखा कि राजवीर जमीन पर बेसुध पड़ा था. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे. बबलू घर में नहीं था. गांव के लोग भी वहां इकट््ठे हो गए थे. राजवीर की मौत हो चुकी है, यह जान कर संदीप ने राजवीर के भाई अजय पाल को फोन कर के सब बता दिया.

बड़े भाई राजवीर की मौत की बात सुन कर अजय पाल दोनों बहनों के साथ बबलू के घर वापस लौट आया, जिस के बाद कोहराम मच गया. अजय ने निगोही थाने फोन कर के घटना के बारे में बताया. पुलिस पहुंची और अंजलि को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया. 31 मई, 2020 की रात में ही पुलिस ने बबलू को भी गिरफ्तार कर लिया गया. आवश्यक पूछताछ व जरूरी लिखापढ़ी के बाद दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Dispute : पत्‍नी के सामने एक के बाद एक 5 सल्‍फास की गोलियां खाकर दी जान

Family Dispute : आजकल मांबाप 12-13 साल का होते ही बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा देते हैं, जिस में लगे इंटरनेट पर अच्छीबुरी  हर चीज मौजूद है. अगर यह कहा जाए कुछ किशोर सैक्स के बारे में मांबाप से ज्यादा जानते हैं तो गलत नहीं होगा. सौरभ भी ऐसा ही दिशाहीन युवक था. जिस ने…

एक साल के प्यार, 2 साल की रिलेशनशिप और 8 साल के प्रेम विवाह में रचना कभी इतना नहीं घबराई थी. इस दौरान वह हर तरह से, हर कदम पर बृजेश के साथ खड़ी रही थी. बृजेश कम ही कहां था, कोर्टमैरिज करते समय न उस के मायके वालों से घबराया, न अपने घर वालों से, जो उसे घर से निकालने की धमकी दे रहे थे. उन की धमकी से डरने के बजाय उस ने खुद ही उन की देहरी पर कदम न रखने की बात कह दी थी. कहा तो निभाया भी. बृजेश जिला मुरादाबाद के संभल का रहने वाला था और रचना अमरोहा के मोहल्ला कुरैशियान की. अमरोहा में बृजेश के बड़े भाई राजेश की ससुराल थी.

रचना रिश्ते में उस की साली लगती थी. राजेश कभीकभी भाई की ससुराल जाता था, वहीं उस की रचना से मुलाकात हुई और दोनों में प्यार हो गया. बाद में जब दिशू और परी आईं तो घर वालों का प्रेम जागा और वे लोग रचना बृजेश व दोनों बच्चियों को खुद घर ले गए. तब तक रचना के मायके वाले भी दामाद और बेटी के प्रेमिल रिश्ते को समझ गए थे. 10 साल लंबे साथ में रचना को कभी लगा ही नहीं कि बृजेश उसे प्यार नहीं करता या उसे उस पर विश्वास नहीं है. इतनी लंबी अवधि में रचना को न तो कभी ऐसी टेंशन हुई थी और न ही वह कभी इतनी घबराई थी. वजह यह कि तब हर कदम पर बृजेश उस के साथ खड़ा था, उस का हौसला बन कर.

वह इतना प्यार और विश्वास करने वाला पति था कि कभीकभी रचना को अपनी किस्मत पर नाज होने लगता था. फिर बृजेश को अचानक ऐसा क्या हो गया कि अपनी प्रेम संगिनी पर विश्वास ही नहीं रहा, उस के लिए वह दूषित हो गई, पराई सी लगने लगी.

कभीकभी वह बृजेश के पक्ष में सोचती तो उसे लगता, न बृजेश गलत है न उस की सोच. कोई और भी होता तो ऐसे ही सोचता. लेकिन वह खुद ही गलत कहां थी. गलत तो वह था जो अनायास उन दोनों के बीच घुस आया था. रचना की परेशानी यह थी कि बृजेश को उस की हकीकत बता भी नहीं सकती थी. बता देती तो कीचड़ के छींटे उस के दामन पर भी आते. एक स्नेहिल शुरुआत संभल के मोहल्ला डेरा सहाय का रहने वाला बृजेश करीब 8 महीने पहले मुरादाबाद आया था. उस ने थाना नागफनी क्षेत्र के बंगला गांव स्थित रामवती के मकान में किराए के 2 कमरे ले लिए, फिर पत्नी रचना, दोनों बेटियों दिशू और परी को मुरादाबाद ले आया.

मकसद था बड़ी हो रही बेटियों को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाना. बृजेश ने खुद पीतल के एक बड़े कारखाने में नौकरी ढूंढ ली, जहां बनी चीजें एक्सपोर्ट होती थीं. बड़े शहर में आ कर रचना भी खुश थी और दोनों बेटियां भी. उन्हें खुश देख बृजेश उन से भी ज्यादा खुश रहता था. बृजेश सुबह को काम पर जाता तो अंधेरा घिरने तक ही लौटता. रचना दिन भर बच्चियों को पढ़ाने, संभालने और घर के कामों में लगी रहती. देखतेदेखते हंसीखुशी 2-3 महीने गुजर गए. इस बीच रचना और दोनों बच्चियां रामवती से भी घुलमिल गई थीं. सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन रामवती का पोता सौरभ दादी से मिलने आया. सौरभ नाबालिग था, लेकिन वाचाल. सौरभ ने रचना को देखा तो उस की खूबसूरती उस के दिल में उतर गई.

दादी ने पोते का परिचय रचना से करा दिया. वह रचना से मीठीमीठी बातें कर के नजदीकी बढ़ाने की कोशिश करने लगा. रचना उसे बच्चा समझ कर उस से वैसी ही बातें करती. नजदीकी बढ़ाने के लिए सौरभ रचना की दोनों बेटियों से भी घुलमिल गया. रचना को वह भाभी कहता था. सौरभ नाबालिग था, बच्चों की तरह. उस के दिमाग में क्या है, रचना न तो जानती थी न जान सकती थी. जो भी हो, इस के बाद सौरभ हर हफ्ते दादी से मिलने आने लगा. आता तो रचना और उस की बेटियों से मिलता भी, बातें भी करता. कभी रामवती के सामने तो कभी पीछे. सौरभ मकान मालिक का पोता है, यह सोच कर रचना हंसती भी, उस से बातें भी करती.

एक दिन सौरभ ने कहा, ‘‘भाभी, आप मुझे बहुत सुंदर लगती हो. मैं आप का एक फोटो ले सकता हूं.’’

रचना ने न हां कहा न ना. तब तक सौरभ ने मोबाइल निकाल कर 3-4 फोटो खींच लिए. यह सामान्य सी बात थी. रचना ने सामान्य ढंग से ही लिया. सौरभ हफ्ते में एकदो बार आता और दादी से कम और रचना व उस की बेटियों से ज्यादा बात करता. बच्चियां उस के साथ खुश रहती थीं, इसलिए इस सब को उस ने किसी दूसरे पहलू से देखासोचा ही नहीं. एक बार सौरभ आया तो दादी के सामने ही रचना से बोला, ‘‘भाभी, आप की सेल्फी ले लूं?’’

रचना मना करती तो मकान मालकिन को बुरा लग सकता था, इसलिए उस ने न ना कहा न हां. इसी बीच सौरभ ने रचना के कंधे के पास सिर ले जा कर सेल्फी ले ली. एक और, एक और कर के उस ने 3 सेल्फी लीं, जिन में एक ऐसी भी थी, जिस में पीछे की ओर से सौरभ का चेहरा रचना के कंधे पर रखा दिख रहा था और दोनों के गाल मिले हुए थे. बाद में उस ने वह सेल्फी रचना को दिखाई तो वह उसे डिलीट करने को कहने लगी. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. वह अपने घर चला गया.

नाबालिग हो गया जवान सेल्फी ऐसी नहीं थी कि उसे ले कर परेशान हुआ जाए. रचना परेशान भी नहीं हुई. लेकिन घर जा कर सौरभ ने जब सेल्फी को बारबार देखा तो उसे लगा कि वह जवान हो गया है. पलभर में उस का किशोरवय वाला दिमाग जवानी के पाले में जा खड़ा हुआ. दिमाग में उसी तरह की खुराफातें भी आने लगीं. उसे लगा रचना वाली सेल्फी उस के पास ऐसा हथियार है, जिस के बूते पर वह उसे मनचाहे ढंग से झुका सकता है. वह पूरी कोशिश करेगी कि सेल्फी उस के पति के सामने न जा पाए.

सौरभ ने जो सोचा किया भी. उस ने रचना को फोन करना शुरू कर दिया. पहले सामान्य सा हंसीमजाक, फिर प्रेमप्यार की बातें और फिर उन बातों में अश्लीलता घुल गई. रचना को बुरा लगा तो उस ने सौरभ को डांट दिया. फिर से फोन न करने को कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया. सौरभ एक दिन शांत रहा, लेकिन अगले दिन फिर फोन कर दिया. रचना ने उसे समझाया, ‘‘तुम अभी बच्चे हो, ऐसी बेवकूफी मत करो. नहीं तो मुझे तुम्हारी दादी से शिकायत करनी पड़ेगी.’’

‘‘भाभी, ये हम दोनों के बीच की बात है. दादी इस में क्या करेगी? बात दादी तक गई तो वह तुम लोगों को मकान से निकाल देगी, क्योंकि मैं सच थोड़े ही बोलूंगा. तुम पर उलटा इलजाम लगा दूंगा कि तुम मुझे फंसा रही थीं. मैं नहीं माना तो…’’

सौरभ की बात सुन कर रचना डर गई. सोचने लगी यह औरत होने की सजा है या विश्वास करने की. एक किशोर से स्नेहपूर्वक बात करना क्या इतना घातक है. दादी का वार खाली गया तो रचना ने पति के नाम का हथियार इस्तेमाल करते हुए उस की जुबान पर ताला डालने की कोशिश की, ‘‘ठीक है, मैं आज ही तुम्हारे भैया से कहूंगी, वही तुम्हारा दिमाग ठीक करेंगे.’’

रचना की बात सुन कर सौरभ हंस पड़ा. पलभर हंसने के बाद उस ने आखिरी तीर चलाया, ‘‘मेरी तुम्हारी एक सेल्फी है, तुम तो उसे भूल गई होगी. कोई बात नहीं, मैं भेज देता हूं. पहले देख लो फिर धमकी देना. देखो और सोचो, मैं ने यह सेल्फी बृजेश भैया को भेज दी तो क्या होगा.’’

सौरभ ने सेल्फी रचना को भेज दी. रचना सेल्फी वाले वाकए को भूल चुकी थी. लेकिन उस ने सौरभ की भेजी सेल्फी देखी तो थर्रा कर रह गई. बृजेश उसे देख लेता तो उस पर ही इलजाम लगाता. वह सोच भी नहीं सकती थी कि 17 साल का किशोर इतना शातिर भी हो सकता है. उस की परेशानी यह थी कि सौरभ मकान मालकिन का पोता था. बात बढ़ती तो वह उसी का पक्ष लेती. उन्हें मकान खाली करने को भी कह सकती थी. अनायास जो स्थिति बनी थी या सौरभ ने बना दी थी, उस से वह टेंशन में रहने लगी.

इस स्थिति में उसे सौरभ को बहलाएफुसलाए भी रखना था और उसे बृजेश को सेल्फी भेजने से रोकना भी था. रचना इन्हीं स्थितियों में जीती रही, क्योंकि उसे कोई राह नहीं सूझ रही थी. सौरभ फोन करता तो सीधे कहता, ‘‘कब बुला रही हो?’’

अब उस ने रचना को भाभी कहना भी बंद कर दिया था. यह सब चल ही रहा था कि 23 मार्च को लौकडाउन की घोषणा हो गई. बृजेश का काम पर जाना बंद हो गया. वह घर में रहने लगा. रचना हर समय डरीडरी सी रहने लगी. डर स्वाभाविक था. उसे जिस का डर था, वही हुआ. सौरभ ने फोन कर दिया. रचना को अलग जा कर फोन सुनना पड़ा. उस ने सौरभ से बृजेश के घर में होने की बात कहनी पड़ी. इस पर वह खुश होते हुए बोला, ‘‘यह तो और भी अच्छा है. उस की बगल में बैठ कर बात करो मुझ से, वह सुनेगा तो और मजा आएगा.’’

रचना उस के सामने रोईगिड़गिड़ाई, मिन्नतें कीं, लेकिन सौरभ पर कोई असर नहीं हुआ. वह कमीनों की तरह हंसते हुए बोला, ‘‘छोटी सी बात है, मान जाओ. इतना परेशान होने की क्या जरूरत है. तुम भी खुश रहो, मैं भी खुश.’’

वह बात कर के कमरे में आई तो बृजेश ने पूछा, ‘‘किस से बात कर रही थीं?’’

जल्दी में कुछ नहीं सूझा तो रचना ने कह दिया, ‘‘मायके से फोन था.’’

‘‘उन से तो मेरे सामने भी बात कर सकती थी.’’ रचना ने सौरी कह कर बात तो खत्म कर दी लेकिन बृजेश उस के उतरे चेहरे को देख कर समझ गया कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है. उस ने मन ही मन उस गड़बड़ का पता लगाने की ठान ली. फिर एक दिन सौरभ अचानक आ गया. बृजेश घर में था. रचना की रुह कांप गई. उसे लगा कि आज सौरभ मुंह जरूर खोलेगा. गनीमत यह रही कि सौरभ ने ऐसा कुछ नहीं किया और वापस चला गया.

पता तो नहीं लगा पाया, लेकिन जब रोजरोज सौरभ के फोन आने लगे तो उसे पूरा यकीन हो गया कि रचना का किसी के साथ चक्कर जरूर है. पिछले 12 सालों में वह इतनी टेंशन में कभी नहीं रही थी. पति को वह सफाई देती, कसमें खाती, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं था. अगर वह सब कुछ सच बताती तो सेल्फी वाला फोटो उस का दुश्मन बन जाता. नतीजा यह हुआ कि बृजेश का शक बढ़ता गया. वह रोजाना शराब पीता और मन में भरा सारा गुबार रचना पर निकाल देता. वह गालियां खाती, पिटाई झेलती. बृजेश उस की सफाई सुनने को तैयार नहीं था. 17 साल के सौरभ ने रचना की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी थी. आग लगाई ही नहीं, रोज उसे हवा भी देता रहा. महीना भर से ज्यादा समय तक यही चलता रहा.

कुछ नहीं किया पुलिस ने जब रचना पूरी तरह टूट गई, बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो एक दिन उस ने बृजेश को सच्चाई बता दी. बृजेश ने उस की बात पर यकीन किया या नहीं, यह अलग बात है. पर उस ने रचना से कहा, ‘‘तैयार हो जा, थाने चलते हैं.’’

रचना और बृजेश थाना नागफनी गए और लिखित तहरीर दे दी. तहरीर ले कर थानेदार ने कह दिया, बाद में देखेंगे. पतिपत्नी मुंह लटकाए लौट आए. बात जहां थी वहीं रह गई. वही शक वही संदेह और वही लड़ाईझगड़ा, मारपीट. रचना बृजेश को जितनी सफाई देती, समझाती, वह उसे उतना ही गलत समझता. 20 जून, 2020 को शनिवार था. उस दिन बृजेश रचना से खूब लड़ा, इतना ज्यादा कि रचना को अपनी जिंदगी बेकार लगने लगी. कोई रास्ता नहीं सूझा तो उस ने अपनी कलाई की नस काट ली. किसी पड़ोसी ने इस की सूचना बंगला गांव पुलिस चौकी को दी.

चौकी इंचार्ज रामप्रताप सिंह मौके पर आए और उन्होंने रचना को जिला अस्पताल में भरती करा दिया. इस से रचना की जान बच गई. रामप्रताप सिंह को लगा कि पतिपत्नी के झगड़े का मामला है, इसलिए उन्होंने दोनों को समझाया, उन्हें उन की बच्चियों का वास्ता दिया. साथ ही दोनों को सीधे घर जाने को भी कहा. 21 जून, 2020 को सुबह 8 बजे बृजेश दोनों बेटियों दिशू और परी को वहां से थोड़ी दूर पर रहने वाले अपने मौसेरे भाई प्रमोद के घर छोड़ आया.

वापसी में वह सल्फास की गोलियों का पैकेट लाया था. आते ही उस ने रचना से कहा, ‘‘मैं अब जीना नहीं चाहता. तूने मेरे साथ जो विश्वासघात किया है, मैं बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं. मेरे पीछे खूब मौजमजे करना.’’

बृजेश ने जेब से पैकेट निकाला तो रचना ने उस के हाथ से छीन लिया. वह बोली, ‘‘गुनहगार मैं हूं तो मुझे मरना चाहिए, तुम्हें नहीं. बच्चियां अभी छोटी हैं, उन्हें कौन संभालेगा.’’

बृजेश रचना से पैकेट लेने की कोशिश करता, इस से पहले ही उस ने पानी की बोतल उठा कर 4-5 गोलियां गटक लीं. पैकेट फर्श पर पड़ा देख बृजेश ने उठाया और वह भी पानी से 3-4 गोली निगल गया.

दोनों फंस गए मौत के चंगुल में इस बीच बैड पर गिरी रचना के मुंह से झाग निकलने लगे थे. बृजेश भी फर्श पर फैल गया था. बृजेश और रचना के बीच महीनों से विवाद चल रहा था. उन के लड़ने की आवाजें अड़ोसीपड़ोसी भी सुनते थे. उस दिन भी दोनों में विवाद हुआ था. जब अचानक दोनों की आवाजें आनी बंद हो गईं तो आसपड़ोस के लोगों को अनहोनी का डर लगा. उन्होंने जा कर कुंडी खड़काई. गिरतेपड़ते बृजेश ने अंदर से कुंडी खोली. अंदर का हाल देख कर लोग समझ गए कि दोनों ने जहर खाया है.

लोगों ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस उन्हें अस्पताल ले गई. डाक्टरों ने अपनी ओर से पूरी कोशिश की लेकिन रात आतेआते रचना ने दम तोड़ दिया. इस दौरान संभल से बृजेश के बड़े भाई और घर वाले आ गए. लेकिन प्रेमकथा में फंसा एक पेंच कैसे पीछे रह पाता. अगले दिन दोपहर में बृजेश ने भी दम तोड़ दिया. उसी शाम पोस्टमार्टम के बाद रचना और बृजेश के शव उन के घर वालों को सौंप दिए, जिन का उन्होंने उसी शाम लालबाग श्मशान घाट में अंतिम संस्कार  कर दिया. शवों को मुखाग्नि बृजेश के भतीजे ने दी.

इस बीच पुलिस ने फोरैंसिक टीम को मौके पर बुलवा कर जांच कराई. जांच का सारा काम सीओ राजेश कुमार की देखरेख में हुआ. पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की, लेकिन अंदर की कहानी कोई नहीं जानता था. उसी रात बृजेश के बड़े भाई राजेश ने थाना नागफनी जा कर तहरीर दी, जिस में सौरभ को बृजेश और रचना को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दोषी बताया गया था. इस शिकायत पर थाना नागफनी के प्रभारी सुनील कुमार ने सौरभ के खिलाफ भादंवि की धारा 306 के तहत केस दर्ज कर लिया. अगले दिन सौरभ को गिरफ्तार कर लिया गया. जांच के लिए उस का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया गया.

रचना का मोबाइल पहले ही पुलिस के पास था, जो घटनास्थल से मिला था. पूछताछ के बाद सौरभ को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया. दूसरी ओर 8 साल की दिशू और 4 साल की परी मां और पिता के लिए बराबर रोए जा रही थीं. उन के ताऊ राजेश और बुआ रीमा उन्हें समझा रहे थे कि मां बीमार है, अस्पताल में है और पापा मम्मी के लिए दवाई लेने गए हैं. लेकिन ऐसी बातों से बच्चियों को कब तक बहलाया जा सकता था. उन्हें यह भी तो पता ही नहीं था कि उन के मम्मीपापा इस दुनिया में नहीं रहे.

सच तो यह है कि बच्चियां यह तक नहीं जानतीं कि इंसान मरता कैसे है और क्यों. फिलहाल बृजेश के बड़े भाई राजेश दिशू और परी को अपने साथ ले गए हैं.

Extramarital Affair : पत्नी ने पति की बीयर में नींद की गोलियां मिलाई फिर प्रेमी से कराई हत्या

Extramarital Affair : समीर बिस्वास अपनी पत्नी श्यामली को इतना प्यार करता थ कि उस ने उस की खातिर अपने मांबाप और भाइयों को घर से निकाल दिया था. पूरी तरह स्वतंत्र हो जाने पर श्यामली के कदम बहक गए. फिर एक दिन उस ने पति को उस के विश्वास का ऐसा सिला दिया कि…

रात के कोई 2 बजे का वक्त रहा होगा. उस समय तक अधिकांश लोग गहरी नींद में खर्राटे भरते नजर आते हैं. लेकिन उस समय भी अगर किसी के घर से अचानक ही गोली चलने की आवाज आए तो नींद में खलल तो पड़ ही जाती है और उन लोगों की नींद उड़ ही जाती है, गोली की आवाज सुन कर अच्छेअच्छों के हौसले पस्त हो जाते हैं. उस समय जिस घर में गोली चली थी, वह समीर बिस्वास का घर था. जिला ऊधमसिंह नगर के रुद्रपुर ट्रांजिट कैंप मुखर्जी नगर में 25 वर्षीय समीर बिस्वास अपनी पत्नी श्यामली और अपने 3 वर्षीय बेटे देव के साथ रहता था. जबकि उस के पिता निताई बिस्वास ट्रांजिट कैंप के नजदीक ही अरविंद नगर में अपनी बीवी अनीता बिस्वास और 2 बेटों सुकीर्ति और विष्णु के साथ रहते थे.

उस समय समीर बिस्वास अपने मकान के एक कमरे में अकेला ही सोया था. उस की बीवी अपने बेटे देव को साथ ले कर अपनी सहेली के साथ ही अपने बैडरूम में सोई थी. घर में अचानक गोली चली तो सब से पहले श्यामली ही चीखी थी. उस की चीख सुन कर लोगों को लगा कि समीर के घर में बदमाश घुस आए हैं और बदमाशों ने किसी को गोली मार दी. घर में कोहराम मचा तो समीर बिस्वास की छत पर सो रहे उस के 2 दोस्त सूरज और छोटू भी छत से नीचे जाने वाली सीढि़यों की ओर दौड़े. लेकिन उन सीढि़यों पर नीचे से कुंडी लगी होने के कारण उन के सामने मजबूरी आ खड़ी हुई. फिर दोनों पड़ोसी के घर में प्रवेश कर उस की दीवार फांद कर समीर के कमरे  में जा पहुंचे.

सूरज और छोटू ने देखा कि समीर अपने बैड पर खून से लथपथ पड़ा हुआ था. जबकि उस की पत्नी श्यामली उसी के पास खड़ी बुरी तरह से दहाड़ मार कर रो रही थी. समीर के घर में रात में चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले भी इकट्ठे हो गए थे. लेकिन कोई भी यह नहीं समझ पा रहा था कि बदमाशों ने समीर की हत्या क्यों कर दी. अभी लोग इस मामले को पूरी तरह से समझ भी नहीं पाए थे कि उसी समय श्यामली रोतीबिलखती दूसरे कमरे में बंद हो गई. उस को कमरे में इस तरह से बंद होते देख सभी लोग हैरत में पड़ गए. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि  उसे अचानक क्या हो गया.

तभी किसी ने खिड़की से झांक कर देखा तो श्यामली अपनी चुनरी को पंखे से बांध रही थी. जिस से लोगों को समझने में देर नहीं लगी कि वह पंखे से लटक कर आत्महत्या करने की कोशिश कर रही है. श्यामली की हरकतों को देख कर मौके पर मौजूद लोगों ने जैसेतैसे कर दरवाजा तोड़ कर उसे बाहर निकाला. उस के बाद उसे समझाने की कोशिश की. मृतक समीर बिस्वास के चाचा अर्जुन बिस्वास कांग्रेस पार्टी के नेता थे. अपने भतीजे की हत्या होने की बात सुनते ही अर्जुन बिस्वास भी तुरंत समीर के घर पर पहुंचे और थाना ट्रांजिट कैंप में इस सब की जानकारी दी. हत्या की सूचना पाते ही थानाप्रभारी विद्यादत्त जोशी कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस को यह सूचना सुबह लगभग 4 बजे मिली थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी सूचना पाते ही एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एसपी (सिटी) देवेंद्र पिंचा, एसपी (क्राइम) प्रमोद कुमार और सीओ अमित कुमार भी घटना स्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने काररवाई करते हुए समीर के कमरे की बारीकी से जांचपड़ताल की. समीर के माथे पर गोली लगी थी. समीर के शव को देख कर साफ जाहिर हो रहा था कि हत्यारों ने समीर के गहरी नींद में सोने के दौरान ही गोली मारी थी. खून उस के चेहरे से होते हुए सारे बिस्तर पर फैल चुका था. पुलिस ने उस कमरे की पड़ताल की जिस में श्यामली ने पंखे में चुनरी बांध कर खुदकुशी करने का ढोंग ही किया था. पुलिस ने उस के परिवार वालों से समीर और उस की बीवी के बारे में जानकारी जुटाई तो इस केस ने अलग ही मौड़ ले लिया.

समीर के परिवार वालों ने पुलिस को जानकारी देते हुऐ बताया कि समीर और श्यामली ने अब से लगभग 7 वर्ष पूर्व प्रेमविवाह किया था. शादी के बाद इन दोनों के बीच कुछ समय तक तो सब कुछ सही रहा, लेकिन बाद में उन दोनों के बीच खटपट रहने लगी थी. उसी के चलते समीर की बीवी ने उसे परिवार से भी अलगथलग कर दिया था. उस के बाद वह न तो उसे किसी परिवार वाले से मिलनेजुलने देती थी और न ही किसी को अपने घर आने देती थी. परिवार वालों ने बताया कि श्यामली का चरित्र ठीक नहीं था. समीर की गैरमौजूदगी में उस के घर पर कुछ संदिग्ध लोगों का आनाजाना था. उस के किसी अन्य युवक के साथ अवैध संबंध थे. जिस का समीर विरोध करता था. जिस के कारण ही समीर की हत्या हुई.

यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. समीर की लाश को पोस्टमार्टम भेजने के बाद ही पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए छानबीन शुरू की. उसी दौरान पुलिस ने श्यामली के साथ रात गुजारने वाली उस की सहेली प्रियंका से भी पूछताछ की. लेकिन प्रियंका ने बताया कि वह स्वयं ही अपनी सहेली के घर मिलने के लिए आई थी. जिस के बाद वह रात का खाना खा कर सो गई थी. उस के सोने के बाद समीर के साथ क्या घटना घटी उसे कुछ नहीं मालूम. इस मामले की बाबत पुलिस ने श्यामली से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस रात समीर और उस के दोस्तों सूरज और छोटू ने खाना खाया और उस के बाद सूरज और छोटू मकान की छत पर जा कर सो गए.

वह अपने बेटे देव को अपने साथ ले कर सहेली प्रियंका के साथ अलग कमरे में सो गई थी. जबकि समीर अपने कमरे में अकेला ही सोया था. रात के समय उस ने अपने घर में  गोली चलने की आवाज सुनी तो वह बुरी तरह से घबरा गई. उस के बाद वह अपनी सहेली प्रियंका के साथ कमरे से बाहर निकली तो उस ने घर से बाहर कुछ लोगों को भागते हुए देखा था. समीर को मरा देख कर वह खुद पर भी कंट्रोल नहीं कर पाई थी, जिस के बाद उस ने भी आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन वहां पर मौजूद लोगों ने उसे बचा लिया. उसी दौरान पुलिस ने श्यामली का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया. उस की काल डिटेल्स देखी तो आखिरी बार रात के 2 बजे के समय एक नंबर पर उस की बातचीत हुई थी, वह नंबर किसी विश्वजीत राय के नाम से फीड था.

पुलिस ने श्यामली से विश्वजीत राय से रात में बात करने का कारण पूछा तो वह कोई संतोषजनक जबाव नहीं दे पाई. विश्वजीत का नाम सुनते ही उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. उस के बाद पुलिस श्यामली को पूछताछ के लिए थाने ले आई. थाने में पहुंचते ही श्यामली डर गई और सब कुछ बताने को राजी हो गई. श्यामली ने बताया कि उस के विश्वजीत से नाजायज संबंध थे. उन्हीं संबंधों के चलते उस ने प्रेमी के सहयोग से पति की हत्या करा दी. हत्या के इस केस की जो सच्चाई उभर कर सामने आई वह दोस्ती, प्यार, शादी और उस के बाद बेवफाई से जुड़ी एक हैरतअंगेज कहानी थी—

अब से कई साल पहले श्यामली के पिता प्रवास बिस्वास का परिवार बंगाल से आ कर रुद्रपुर और गदरपुर के बीच बसे दिनेशपुर में आ कर रहने लगा था. दिनेशपुर आने के बाद उस की बीवी अपर्णा बिस्वास 2 बच्चों, बेटी श्यामली और बेटे संजीत की मां बन गई. दिनेशपुर में बाहुल्य आबादी बंगालियों की ही है. बंगाल से आने के बाद इन लोगों ने यहां पर स्थानीय लोगों के यहां पर मेहनतमजदूरी करनी शुरू की. इन लोगों में ही कुछ लोग इतने समर्थ थे कि उन्होंने यहां पर कुछ जमीनें खरीदीं और कुछ ने सरकारी जमीनों पर कब्जा कर खेतीबाड़ी का काम शुरू किया. जिस के साथ ही इन लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुधरती गई.

इन के आने से पहले यहां के किसान अपनी जमीन से 2 ही फसलें लेते थे. रवि और खरीफ  की. इन लोगों ने यहां पर तीसरी फसल को जन्म दिया. वह थी बेमौसमी धान की फसल. गेहूं की फसल कटते ही धान को लगाया जाता था. जिस के कारण किसानों को एक और फसल से आमदनी बढ़ गई थी. उसी धान की पौध लगाई के दौरान समीर बिस्वास की मुलाकत श्यामली से हुई थी. समीर के पिता निताई बिस्वास का परिवार भी बंगाल से आ कर रुद्रपुर में बस गया था. निताई बिस्वास के 5 बच्चो में से समीर तीसरे नंबर पर था. अब से तकरीबन 7 साल पहले ही श्यामली और समीर के बीच दोस्ती हुई थी. बाद में यह दोस्ती प्यार में बदल कर शादी तक आ पहुंची. लेकिन समीर की मम्मी अनीता बिस्वास को श्यामली पसंद नहीं थी.

समीर का श्यामली के बिना एक पल भी रहना नामुमकिन था. अनीता बिस्वास ने अपने बेटे के भविष्य को देखते हुए उसे श्यामली से दूरी बनाने को कहा तो मां भी उसे दुश्मन लगने लगी थी. यही बात श्यामली के साथ भी आड़े आ रही थी. श्यामली अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. वह भी समीर के बजाय श्यामली की शादी ऐसे घर में करना चाहते थे ताकि उस की गृहस्थी में किसी प्रकार की अड़चन न आए. हालांकि समीर बिस्वास और श्यामली दोनों ही एक ही बिरादरी के थे, लेकिन श्यामली के घर वालों को भी समीर पसंद नहीं था. समीर जिद्दी किस्म का युवक था. यही कारण था कि उस ने अपने मांबाप की एक न मानी और श्यामली से शादी करने पर अड़ गया. हालांकि दोनों के परिवार वाले इस के लिए राजी नहीं थे, लेकिन उन की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा. और सन 2013 में दोनों की शादी करा दी गई.

श्यामली निताई बिस्वास परिवार की बहू बन कर आई तो घर में खुशियां छा गईं. शादी हो जाने के बाद श्यामली ने समीर के साथसाथ अपने सासससुर और अन्य परिवार वालों का पूरी तरह से ध्यान रखा. शादी के 3 साल बाद वर्ष 2016 में श्यामली ने एक बेटे को जन्म दिया. उस का नाम उन्होंने देव रखा. दोनों के बीच सब कुछ ठीक ही चल रहा था. समीर के  परिवार वालों ने दिन रात कड़ी मेहनत कर के काफी पैसा कमाया था. जिस के बाद उन्होंने थाना ट्रांजिट कैंप अंतर्गत अरविंद नगर में शानदार मकान भी बना लिया था. उसी दौरान समीर कच्ची शराब बेचने के धंधे से जुड़ गया. समीर को शराब बेचने से मोटी आमदनी होने लगी, आमदनी में इजाफा होने पर श्यामली के भी पर लग गए.

उस के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. समीर को दिनभर में जो भी कमाई होती थी, वह उसे श्यामली के हाथ पर ला कर रख देता था. जिस के कारण श्यामली के व्यवहार में काफी अंतर आने लगा था. वह खुले हाथ से पैसा खर्च करने लगी थी. हालांकि इस बात से समीर को कोई फर्क नहीं पड़ता था. लेकिन यह सब उस के मातापिता की बरदाश्त से बाहर की बात हो गई थी. उन्होंने कई बार इस बात की शिकायत समीर से की. लेकिन समीर हमेशा ही अपने परिवार वालों की बातों को हल्के में लेता रहा. तब उन्होंने श्यामली को समझाने की कोशिश की. श्यामली तो पति की सारी कमाई पर अपना ही अधिकार समझती थी. इसलिए सासससुर के समझाने की बात उसे बुरी लगती थी. लिहाजा उस का सासससुर से मनमुटाव रहने लगा था.

वह बातबात पर अपनी सास को खरीखोटी भी सुनाने लगी थी. उस समय समीर को केवल कमाई ही दिखाई दे रही थी. उस के काम का दायरा बढ़ा तो उस ने अपनी सहायता के लिए 2 लड़कों सूरज और छोटू को भी अपने पास रख लिया. उसी दौरान विश्वजीत राय भी समीर के संपर्क में आया. विश्वजीत इलेक्ट्रीशियन था. विश्वजीत गुलरभोज (गदरपुर) का रहने वाला था. लेकिन कुछ समय बाद उस ने भी रुद्रपुर की नारायण नगर कालोनी में अपना मकान बना लिया था. समीर के घर की लाइट की फिटिंग भी उसी ने की थी. विश्वजीत समीर के संपर्क में आया तो उस की आमदनी भी बढ़ गई थी. शराब बेचने से हुई मोटी आमदनी से विश्वजीत ने बिजली फिटिंग का काम छोड़ दिया.

उस के बाद वह हर समय समीर के साथ ही उस के शराब के धंधे में लगा रहने लगा था. काम खत्म हो जाने के बाद विश्वजीत राय, सूरज और छोटू अकसर खानापीना समीर के घर पर ही किया करते थे. श्यामली तीनों को खाना बना कर खिलाती थी. लेकिन श्यामली को पति के परिवार वाले दुश्मन नजर आने लगे थे. समीर और विश्वजीत में गहरी दोस्ती भी हो गई थी. उसी दौरान श्यामली उस को अपना दिल दे बैठी. उन दोनों के बीच फोन पर खूब बातें होती थीं. समीर की गैरमौजूदगी में श्यामली विश्वजीत को अपने घर में ही बुलाने लगी थी. यह बात उस के ससुराल वालों को नागवार गुजरी. जिस के कारण समीर के घर की शांति भंग हो गई. श्यामली ने अपनी सास की शिकायत पति से करते हुए कहा कि वह उसे चरित्रहीन कहती है. समीर अपनी बीवी के प्रति एक भी बुराई सुनने को तैयार न था. नतीजन समीर अपने मातापिता को बुराभला कहने पर उतर आया था.

विश्वजीत के कारण समीर के घर में इतना विवाद बढ़ा कि अपनी बीवी के कहने पर उस ने अपनी मम्मीपापा और 2 छोटे भाइयों विष्णु और सुकीर्ति को भी घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया. जिस के बाद 6 कमरों का मकान छोड़ कर उस के परिवार को ट्रांजिट कैंप दुर्गा मंदिर के पास किराए के मकान में रहने पर मजबूर होना पड़ा. जिस औलाद की जिद के आगे हार मान कर उन्होंने उस की शादी उस की मरजी से कराई, आज उसी कपूत ने उन्हें धक्का मार कर घर से निकाल दिया था. श्यामली की जिंदगी में विश्वजीत के आगमन के दौरान ही समीर की गृहस्थी में भी ग्रहण लगना शुरू को गया था. अपनी ससुराल वालों को घर से निकालने के बाद श्यामली समीर की गैरमौजूदगी का लाभ उठाते हुए विश्वजीत के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

जब कभी भी वह घर में अकेली होती तो वह फोन कर के विश्वजीत को बुला लेती और उस के साथ अय्याशी करती. विश्वजीत के संपर्क में आने के बाद श्यामली ने बीयर पीनी भी सीख ली थी. जब कभी भी समीर किसी काम से घर से बाहर जाता तो वह विश्वजीत को अपने घर बुला लेती और फिर सारी रात शराब और शबाव का दौर चलता. समीर की आंखों पर अभी भी श्यामली के प्यार की काली पट्टी बंधी हुई थी. श्यामली समीर की शराफत का लाभ उठाते हुए उस की कमाई का ज्यादातर हिस्सा विश्वजीत पर उड़ाने लगी थी. लेकिन समीर ने कभी भी पत्नी से घर के खर्च का हिसाबकिताब नहीं मांगा था. समीर अपनी बीवी के प्यार में इतना पागल था कि श्यामली ने उस से बीयर लाने की मांग की तो वह डिमांड भी उस ने पूरी की.

उस के बाद दोनों ही मियांबीवी रात में बीयर साथसाथ पीने लगे थे. बीयर पीने से समीर को तो कुछ नहीं हो पाता था, लेकिन श्यामली बीयर के नशे में टल्ली हो कर अपने दिल का पन्ना खुला ही छोड़ कर सो जाती थी. उसी खुले पन्ने के कारण एक दिन श्यामली की हकीकत भी समीर के सामने आ गई. एक रात श्यामली ने समीर के साथ ही बीयर पी और फिर उस ने समीर को सोया जान कर विश्वजीत को फोन मिला दिया. उस रात समीर को उस की हकीकत जान कर बहुत ही गहरा झटका लगा. समीर को उस रात अपनी बीवी की हकीकत पता चली तो वह खून के आंसू रोया. उस के बाद भी उसे विश्वजीत पर ही गुस्सा आया. लेकिन रात अधिक हो जाने के कारण वह कुछ भी नहीं कर सकता था.

अगले दिन सुबह होते ही वह सब कुछ काम छोड़छाड़ कर विश्वजीत से मिला. उस ने उसे समझाते हुए उस की बीवी से फोन पर बात न करने को कहा. उसी दौरान उस की विश्वजीत से कहासुनी भी हुई. उस के बाद समीर अपने घर आया और अपनी बीवी श्यामली को रात की हकीकत बता कर विश्वजीत से बात न करने की चेतावनी दी. पति के समझाने पर श्यामली तो ऐसी अंजान सी बन गई थी कि जैसे वह कुछ जानती ही नहीं. उस के बाद से समीर के आंखकान चौकन्ना हो गए थे. लेकिन समीर 24 घंटों में अपनी बीवी की कितने घंटे चौकसी कर सकता था.

समीर के समझाने के बाद भी वह प्रेमी से मोबाइल पर घंटों बात करती थी. बात करने के तुरंत बाद ही विश्वजीत की काल हिस्ट्री को डिलीट भी कर देती थी. उसी दौरान एक दिन श्यामली से वही गलती हुई जो मियांबीवी में विवाद का कारण बनी. जिस के कारण दोनों की बसीबसाई गृहस्थी में पूरी तरह से आग लग गई. श्यामली के प्रति समीर का विश्वास टूटा तो दोनों की जिंदगी में प्रलय आ गई. लिहाजा अगली सुबह समीर उसे उस के मायके छोड़ आया. श्यामली को मायके छोड़ने के कुछ समय बाद तक उस ने उसे कोई बात भी नहीं की. उस के कई महीनों बाद उस के ससुराल वालों ने उसे बुला कर ले जाने को कहा तो समीर ने उसे लाने से साफ मना कर दिया.

उस के बाद उस की ससुराल वालों ने समीर के परिवार वालों को बुला कर गांव में ही पंचायत की. श्यामली ने भरी पंचायत में अपनी गलती की माफी मांगते हुए भविष्य में ऐसी गलती न करने की बात कही. उस के बाद श्यामली फिर से समीर के साथ रहने लगी थी. मायके से आने के कुछ दिनों तक तो श्यामली ठीकठाक रही. लेकिन एक बार 2 दिलों में आ चुकी दरार पूरी तरह से भर नहीं पाई. और समीर भी उसे पहला प्यार नहीं दे पा रहा था. जिस के कारण उस के मन में समीर के प्रति बसी छवि धूमिल होती चली गई. वहीं दूसरी ओर विश्वजीत उस की जिंदगी में बहार बन कर उस के सपनों का राजकुमार बन गया. यही कारण रहा है कि कुछ समय बाद ही फिर से वह चोरीछिपे विश्वजीत राय से  मिलनेजुलने लगी थी.

उसी मिलनेजुलने के दौरान श्यामली ने विश्वजीत के सामने प्यार के आंसू बहाते हुए किसी भी तरह से समीर को अपनी जिंदगी से निकालने वाली बात कही. विश्वजीत भी श्यामली को हद से ज्यादा प्रेम करने लगा था. वह किसी भी कीमत पर उसे अपनी बीवी के रूप में देखना चाहता था. लिहाजा वह समीर रूपी कांटे को हटाने के लिए तैयार हो गया. इस हत्याकांड को अंजाम देने से एक सप्ताह पूर्व ही श्यामली ने अपने प्रेमी विश्वजीत के साथ मिल कर समीर की हत्या का तानाबाना बुना. इस अंजाम को अमलीजामा पहनाने के लिए श्यामली ने घर में रखे 50 हजार रुपए खर्च वास्ते विश्वजीत को दिए.

विश्वजीत ने उन्हीं 50 हजार रुपए में से दिनेशपुर से 315 बोर का एक तमंचा और कारतूस खरीदे. हालांकि श्यामली ने विश्वजीत के साथ मिल कर समीर की हत्या का तानाबाना बुन तो लिया था. लेकिन अंजाम को सोच कर वह बारबार परेशान हो रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि इतनी बड़ी बारदात को अंजाम देने के बाद अपने में कैसे हिम्मत जुटाएगी. उसी समय 18 जून, 2020 को उस की मुलाकात उस की एक पुरानी सहेली प्रियंका से हुई. प्रियंका कई दिन से उसी के नजदीक रहने वाली राधिका नाम की सहेली के साथ रह रही थी. वह प्रियंका से मिली तो उस ने श्यामली के सामने अपनी दिल की पीड़ा सुनाते हुए उसे अपने साथ रखने वाली बात कही. श्यामली उस की परेशानी सुन कर उसे अपने घर ले आई.

प्रियंका के आ जाने से श्यामली का मनोबल भी बढ़ गया था. एक सप्ताह पहले समीर की हत्या की साजिश रचने के बाद श्यामली पूरी तरह से सतर्क हो गई थी. 19 जून 2020 की शाम को श्यामली ने समीर के मोबाइल पर फोन कर कहा कि उस की सहेली प्रियंका भी बीयर पीती है. आज रात वह हमारे ही साथ रहेगी. इसीलिए वह बीयर की 3 केन ले कर आए. श्यामली के कहने पर समीर उस शाम वियर की 3 केन ले कर आया. उस दिन समीर के साथ काम करने वाले युवक सूरज और छोटू भी घर पर ही रुक थे. उस दिन श्यामली ने शाम को जल्दी ही खाना बनाया और समीर के आते ही उस ने सूरज और छोटू को खाना खिला कर ऊपर छत पर सोने के लिए भेज दिया था. उस के बाद समीर, श्यामली और प्रियंका तीनों ने एक साथ बैठ कर खाना खाया. खाना खाने के बाद तीनों ने एक जगह बैठ कर बीयर पी.

बीयर पीने के कुछ समय बाद ही समीर नींद में झूमने लगा. श्यामली ने समीर की बीयर में नींद की गोलियां मिला दी थीं. समीर के गहरी नींद में सोने के बाद ही उस ने विश्वजीत को फोन कर के उस की लोकेशन का पता किया. उस के बाद भी वह बारबार छत पर जा कर सूरज और छोटू के सोने का जायजा लेती रही. उस समय सूरज और छोटू भी शराब पी कर सोए थे. नशे में होने के कारण वह दोनों भी शीघ्र ही सो गए थे. उन दोनों के सोते ही जब श्यामली को पूरा विश्वास हो गया कि वह दोनों भी गहरी नींद में सो चुके हैं तो उस ने जीने का दरबाजा अंदर से बंद कर दिया. उस के बाद उस ने अपने प्रेमी विश्वजीत राय को फोन कर शीघ्र आने को कहा.

श्यामली का फोन आने के तुरंत बाद ही विश्वजीत अपने 2 साथियों शिबू अधिकारी और महेश सरकार के साथ रात के कोई 2 बजे के आसपास उस के घर के पास पहुंचा. उस के घर के पास पहुंचते ही मछली बाजार के नजदीक विश्वजीत ने अपनी बाइक रोकी और फिर से श्यामली से फोन पर बात कर स्थिति का सही आंकलन किया. उस के बाद विश्वजीत अपने साथियों शिबू अधिकारी और महेश सरकार के साथ समीर के घर पहुंचा. श्यामली ने पहले से ही घर की दूसरी ओर खुलने वाला दरवाजा खुला छोड़ दिया था. उसी रास्ते से तीनों अंदर आ गए. अंदर जाते ही विश्वजीत ने गहरी नींद में सोए समीर के माथे पर तमंचा सटा कर गोली चला दी. माथे पर गोली लगते ही समीर की तुरंत ही मौत हो गई.

समीर की हत्या करने के बाद विश्वजीत अपने साथियों के साथ पीछे वाले दरवाजे से ही निकल गया. समीर की हत्या हो जाने के बाद श्यामली की हिम्मत जवाब दे गई. जब उस ने समीर को रक्तरंजित हालत में देखा तो वह बुरी तरह से घबरा गई थी. उस के बाद प्रियंका ने उसे हिम्मत बंधाई और धैर्य रखने वाली बात कही. उस समय तक घर में गोली चलने की आवाज सुन कर छत पर सो रहे सूरज और छोटू भी पड़ोसी की छत से कूद कर नीचे आ गए थे. सूरज और छोटू के पूछने पर श्यामली ने बताया कि अभी थोड़ी देर पहले ही कुछ बदमाश घर में घुस आए थे, जिन्होंने आते ही समीर को गोली मार उस की हत्या कर दी और फिर फरार हो गए.

कुछ समय बाद ही पड़ोसी और समीर के मातापिता भी घर पहुंच गए थे. जब श्यामली कोई निर्णय नहीं ले पाई तो उस ने दूसरे कमरे में जा कर पंखे से चुन्नी बांधी और आए लोगों को उलझाने के लिए उस ने अपने को भारी सदमे में दिखा कर खुदकुशी करने का ड्रामा किया. लेकिन पुलिस की जांचपड़ताल के दौरान पंखे से लटकने वाली बात केवल उस का दिखावा ही था. श्यामली द्वारा अपना जुर्म कबूलते ही पुलिस ने इस केस में तीव्रता दिखाते हुए मात्र 9 घंटे में ही उस के प्रेमी विश्वजीत राय, उस के साथी शिबू अधिकारी और महेश सरकार को गिरफ्तार कर लिया था. साथ ही पुलिस ने हत्यारोपियों की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल तमंचा, एक खोखा, बीयर में डाली गई नशे की बाकी बची 3 गोलियां और घटना में इस्तेमाल बाइक भी बरामद कर ली थी.

केस का खुलासा होते ही पुलिस ने इस मामले में हत्याकांड के मुख्य आरोपी श्यामली के प्रेमी विश्वजीत राय पुत्र शिबू अधिकारी, महेश सरकार, मृतक की बीवी श्यामली बिस्वास के खिलाफ आईपीएस की धारा 302/3/25 आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें 20 जून को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस मामले के खुलासे के बाद एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने इस केस की जांचपड़ताल में लगी पुलिस टीम में शामिल सीओ अमित कुमार, थानाप्रभारी विद्यादत्त जोशी, एसआई विजय सिंह, प्रदीप शर्मा, कौशल भाकुनी, अर्जुन गिरि, मनोज कुमार, धीरज वर्मा, नीरज शुक्ला, नरेश जोशी, नीरज भोज, दिनेश चंद्र, राकेश उप्रेती, जितेंद्र चौहान, मुकेश मेहरा, गोकुल टम्टा आदि को ढाई हजार रुपए का ईनाम दे कर सम्मानित किया. इस केस की तफ्तीश स्वयं थानाप्रभारी विद्यादत्त जोशी कर रहे थे.