ठगी का नया मामला : 11 हजार जमा करो और हर महीने 4 हजार पाओ

इंसान की एक सब से बड़ी कमजोरी होती है लालच. कुछ लोग इंसान की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर उस की गाढ़ी कमाई इस तरह लूट लेते हैं कि उसे अपने लुटने का पता तब चलता है, जब वह स्वयं अपने हाथों से उसे अपना सब कुछ सौंप चुका होता है. दिल्ली के पीतमपुरा के रहने वाले रामवीर शर्मा की आटोपार्ट्स बनाने की फैक्ट्री थी. विभिन्न आटो कंपनियों के और्डर पर वह आटोपार्ट्स बना कर सप्लाई करते थे. काम अच्छा चल रहा था, इसलिए उन्हें किसी तरह की कोई चिंता नहीं थी. सन 1988 से उन की यह फैक्ट्री मध्य दिल्ली के झंडेवालान में चल रही थी.

काम बढ़ने लगा तो उन्होंने और मशीनें लगाने की सोची. लेकिन फैक्ट्री की जो जगह थी, उस में और मशीनें नहीं लग सकती थीं. वह फैक्ट्री लगाने के लिए जगह की तलाश करने लगे. उन्हें हरियाणा के राई में एक बढि़या प्लौट मिल गया तो उसे खरीद कर उन्होंने झंडेवालान वाली फैक्ट्री को वहीं शिफ्ट कर दिया. अब फैक्ट्री में पहले से ज्यादा मशीनें लग गई थीं, इसलिए पहले से ज्यादा काम भी हो गया और आमदनी भी बढ़ गई. चूंकि वह और्डर का माल समय से पहले तैयार करा कर पहुंचा देते थे, इसलिए इस क्षेत्र में उन की अच्छीखासी साख बनी थी. इसी का नतीजा था कि उन्हें जरमन की एक आटो कंपनी का और्डर मिल गया. विदेशी कौन्ट्रैक्ट मिलने के बाद वह फूले नहीं समा रहे थे, क्योंकि पार्ट्स तैयार करने के लिए उन्हें अच्छे पैसे मिल रहे थे.

वह विदेशी आटो कंपनी के पार्ट्स तैयार कराने लगे. उस विदेशी कंपनी के साथ कुछ दिनों तो उन का तालमेल ठीक चला, लेकिन सन 2006-07 के दौरान उन्हें गर्दिश ने ऐसा घेरा कि वह उबर न सके. दरअसल वह जिस जरमन कंपनी के लिए आटोपार्ट्स तैयार करा रहे थे, किसी वजह से उस कंपनी ने तैयार माल लेने से मना कर दिया. उस माल को तैयार कराने में वह मोटी रकम खर्च कर चुके थे. जिस की वजह से उन्हें मोटा घाटा उठाना पड़ा. इंडिया की जिस आटो कंपनी के पार्ट्स वह तैयार करते थे, वह काम जरमन कंपनी से कौन्ट्रैक्ट होने के बाद उन्होंने बंद कर दिया था. काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें इंडिया की भी किसी कंपनी से कोई और्डर नहीं मिल रहा था.

उन की आमदनी बंद हो चुकी थी, जबकि फैक्ट्री के कर्मचारियों के वेतन से ले कर अन्य मदों पर होने वाले खर्च जारी थे. इस के अलावा रामवीर शर्मा के अपने और घर के खर्च भी थे. वह सोचसोच कर परेशान हो रहे थे कि फैक्ट्री फिर से कैसे चले. एक समय ऐसा आया कि रामवीर शर्मा को फैक्ट्री बंद करनी पड़ गई. फैक्ट्री बंद होने के बाद वह कोई दूसरा काम करने की कोशिश करने लगे. उसी बीच उन की मुलाकात अनिल खत्री से हुई, जो पीतमपुरा के ही डी ब्लौक में रहता था. अनिल खत्री ने उन्हें स्पीक एशिया नाम की कंपनी के बारे में बताया. उस ने बताया कि स्पीक एशिया एक कंपनी है, जिस में 11 हजार रुपए जमा करने 4 हजार रुपए हर महीने एक साल तक मिलते रहेंगे.

11 हजार लगा कर एक साल तक 4 हजार रुपए महीने यानी साल भर में करीब 50 हजार रुपए कमाने की बात सुन कर रामवीर के कान खड़े हो गए. उन्हें स्कीम के बारे में जानने की उत्सुकता हुई. उन्होंने अनिल खत्री से इस स्कीम के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘स्पीक एशिया एक औनलाइन कंपनी है. इस में 11 हजार रुपए जमा करने पर कंपनी एक लौग इन आईडी और पासवर्ड देती है. उस आईडी पर कंपनी हर सप्ताह एक सर्वे भेजती है. वह सर्वे औनलाइन ही 5 मिनट में भर जाता है. सर्वे पूरा होने पर कंपनी एक हजार रुपए आप के एकाउंट में भेज देगी. इस तरह कंपनी एक साल में 52 सर्वे भेजेगी, जिन्हें भरने पर 52 हजार रुपए मिलेंगे.’’

इस इनकम के बारे में सुन कर रामवीर शर्मा को लालच आ गया. इतनी इनकम तो उन्हें अपनी आटोपार्ट्स की फैक्ट्री से भी नहीं होती थी. उन्हें स्कीम तो अच्छी लगी, लेकिन उन के मन में एक दुविधा थी कि पता नहीं जो इनकम अनिल बता रहे हैं, वह आती भी है या नहीं? उन्होंने अपनी संशय अनिल खत्री से बताई तो उस ने अपनी बैंक की पासबुक और स्टेटमेंट दिखाते हुए कहा, ‘‘शर्माजी, यहां कुछ भी गलत नहीं है. सब कुछ औनलाइन है. आप खुद ही देख लीजिए कि मैं अब तक इस कंपनी से कितना कमा चुका हूं.’’

वास्तव में अनिल खत्री के एकाउंट में सिंगापुर की एक बैंक से लाखों रुपए भेजने का रिकौर्ड था. बैंक पासबुक देखने के बाद रामवीर शर्मा को विश्वास हो गया कि कंपनी सर्वे के पैसे भेजती है. रामवीर शर्मा की बौडी लैंग्वेज देख कर अनिल खत्री ने कहा, ‘‘शर्माजी सोचनाविचारना बंद करो और जल्द ही काम चालू कर दो. आप अपनी क्षमता के मुताबिक जितनी आईडी चाहो, ले सकते हो. जितनी आईडी लोगे, उतना ज्यादा कमाओगे. सर्वे की एक दूसरी इनकम भी है, वह है जौइनिंग की. अपनी आईडी के नीचे तुम जितने नए लोगों को जोड़ोगे, हजार रुपए प्रति जौइनिंग मिलेगा.’’

रामवीर शर्मा अनिल खत्री को पहले से जानते ही थे, इसलिए उन्हें उस की बातों पर भरोसा हो गया. उन्होंने अनिल के माध्यम से 33 हजार रुपए जमा करा दिए. पैसे जमा करने के बाद रामवीर शर्मा को 3 लौग इन आईडी और पासवर्ड मिल गए. फिर उन की आईडी पर भी सर्वे आने शुरू हो गए. वह जल्दी से सर्वे भर कर खुश होते कि 11 हफ्ते में उन के द्वारा जमा कराए गए पैसे वापस आ जाएंगे. उस के बाद उन की कमाई ही कमाई है. रामवीर शर्मा के एकाउंट में सर्वे के पैसे आने लगे तो उन्हें तसल्ली हो गई. अनिल खत्री के कहने पर उन्होंने कई और आईडी ले लीं. अनिल खत्री उन्हें कंपनी की ओर से आयोजित किए जाने वाले सेमिनारों में भी ले जाने लगा. वहां पर वह उन की बड़ेबड़े लीडरों से मुलाकात भी कराता.

सन 2011 में कंपनी ने गोवा में एक सेमिनार का आयोजन किया. उस सेमिनार में हिंदुस्तान की तमाम बड़ी प्रोडक्ट बेस कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. उस सेमिनार के बाद कंपनी से जुड़े पेनलिस्टों में उत्साह भर गया. इस के बाद कंपनी की ओर से दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया गया. उस सेमिनार में कंपनी के शीर्ष लीडर मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल, रामसुमिरन पाल आदि आए. उन्होंने सेमिनार में आए लोगों को कंपनी की उन्नति और खुशहाली के बारे में बताया. चूंकि अनिल खत्री की गिनती दिल्ली में कंपनी के सीनियर लीडर के रूप में होती थी, इसलिए सेमिनार में आए अधिकांश लीडर उसे व्यक्तिगत रूप से जानते थे. वह सेमिनार इतना बड़ा था कि वहां पेनलिस्टों के बैठने के लिए सीटें भी कम पड़ गई थीं. इस सेमिनार से पेनलिस्टों में और जोश भर गया था.

अनिल खत्री रामवीर शर्मा की हैसियत के बारे में अच्छी तरह से जानता था, इसलिए सेमिनार खत्म होने के बाद उस ने रामवीर शर्मा की मुलाकात मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल से कराई. इन सभी लीडरों ने उन्हें और ज्यादा पैसे लगा कर और ज्यादा कमाने को कहा. पहले से ली गई आईडी पर रामवीर शर्मा के पैसे आ ही रहे थे, इसलिए उन की बातों में फंस कर उन्हें भी लालच आ गया और सोचा कि अगर वह मोटी रकम लगा देते हैं तो आमदनी और ज्यादा हो सकती है. रामवीर शर्मा ने अपनी सारी जमापूंजी, पत्नी के गहने बेच कर और अपने जानकारों से पैसे उधार ले कर करीब 25 लाख रुपए इकट्ठा कर के स्पीक एशिया कंपनी में लगा दिए. इतनी बड़ी रकम लगाने के बाद उन की आमदनी भी मोटी होने लगी.

तभी अचानक उन्हें मीडिया द्वारा जानकारी मिली कि स्पीक एशिया कंपनी लोगों का पैसा ले कर भाग गई है. यह सुनते ही वह सन्न रह गए. उन के अलावा जिन लोगों ने इस कंपनी में मोटी रकम लगाई थी, यह खबर सुन कर वे भी परेशान हो गए. सभी अपनेअपने सीनियर्स को फोन कर के मामले की सच्चाई जानने लगे. रामवीर शर्मा ने भी इस बारे में अनिल खत्री से बात की तो उस ने कहा कि ये सब विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही अफवाहें हैं. इन पर ध्यान मत दो और अपना काम करते रहो. रामवीर शर्मा को अनिल खत्री ने समझा तो दिया, लेकिन उन के मन में संशय बना रहा. उन्हें अनिल की बात पर विश्वास नहीं हुआ. वह सर्वे भरते रहे, लेकिन वह तब हैरान रह गए, जब 18 मई, 2011 से सर्वे के पैसे उन के खाते में आने बंद हो गए.

उन्होंने अनिल खत्री से फिर संपर्क किया. उस ने एक बार फिर उन्हें समझाया कि कंपनी की वेबसाइट पर कुछ काम चल रहा है, जिस की वजह से यह प्रौब्लम आ रही है. उस ने कहा कि इतनी बड़ी कंपनी है और उस से लाखों लोग जुड़े हैं, इस तरह कंपनी एकदम से थोड़े ही बंद हो जाएगी. अब तक मीडिया से स्पीक एशिया द्वारा लोगों को ठगे जाने की खबरें लगातार आने लगी थीं. जून, 2011 में मुंबई की आर्थिक अपराध शाखा और पाईघुनी थाने में कंपनी के संचालकों, अधिकारियों, लीडरों आदि के खिलाफ भांदंवि की धारा 406/34/120 बी के अलावा प्राइज चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम (बैनिंग) एक्ट-1978 के सैक्शन 3, 4, 5, 6 के तहत मामला दर्ज हुआ तो कंपनी से जुड़े पेनलिस्टों में खलबली मच गई.

सब से ज्यादा वे पेनलिस्ट परेशान होने लगे, जिन्होंने कंपनी ने मोटी रकम लगा रखी थी और उन की वह रकम लौटी नहीं थी. रामवीर शर्मा अनिल खत्री के यहां पहुंचे तो उस ने बातें बना कर उन्हें टाल दिया. इस के बाद तो कंपनी के खिलाफ मुंबई, हैदराबाद, छत्तीसगढ़, रायगढ़, लखनऊ, गाजियाबाद, जैसे तमाम शहरों के अनेक थानों में कंपनी के संचालकों, अधिकारियों, लीडरों आदि के खिलाफ मामले दर्ज होने लगे. इस के बाद तो पुलिस स्पीक एशिया से जुड़े बड़े अधिकारियों, एजेंटों आदि की सरगर्मी से तलाश करने लगी. मुंबई में इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा कर रही थी तो छत्तीसगढ़ में स्पेशल इनवैस्टीगैशन सेल अभियुक्तों की तलाश में थी.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई और स्पीक एशिया के बड़े लीडर रवि जनकराज खन्ना, शेख रईस लतीफ, राजीव मनमोहन मल्होत्रा, राहुल पन्नालाल शाह गिरफ्तार कर लिए गए. इन सभी से पूछताछ के बाद पुलिस ने स्पीक एशिया के सीईओ (इंडिया) तारक विमलेंदु वाजपेई को गिरफ्तार किया. इस के बाद तो मुंबई में स्पीक एशिया के फ्रेंचाइजी दीपांकर दुलालचंद सरकार, मेलविन रोनाल्ड क्रेस्टो, सौरभ सिंह, सुरेश बी. पधि, तबरेज लतीफ अंसारी, सईद अहमद माजगोंकर भी पुलिस गिरफ्त में आ गए. स्पीक एशिया के चार्टर्ड एकाउंटेंट और वित्त सलाहकार संजीव एस. डनडोना, कंपनी के वेब डिजाइनर और कौन्टेंट राइटर नयन कांतिलाल खंदोर, गुजरात और महाराष्ट्र के रीजनल मैनेजर आशीष विजय डंडेकर एवं अभिषेक एस. कुलश्रेष्ठ भी पुलिस से बच न सके.

पुलिस ने कंपनी के 200 से अधिक बैंक खाते सीज करा दिए थे, जिन में करीब 142 करोड़ रुपए जमा थे. इस के अलावा यूएई के भी कई बैंकों में कंपनी के खाते होने की जानकारी मिली. पुलिस को यह भी पता चला कि स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े वांछित लोग विदेश भागने की फिराक में हैं, इसलिए उन के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करा दी. पुलिस को जांच में पता चला चुका था कि स्पीक एशिया कंपनी ने 24 लाख लोगों को झांसा दे कर 2276 करोड़ रुपए कमाए हैं. इस कंपनी की ग्लोबल सीईओ हरेंदर कौर सिंगापुर में बैठ कर काम को अंजाम दे रही थी. भारत में कंपनी के मुख्य कर्ताधर्ता मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल थे. ये सभी फरार चल रहे थे.

मुंबई पुलिस इन्हें भी सरगर्मी से तलाशने लगी. पुलिस मुंबई स्थित इन के ठिकानों पर गई तो ये फरार मिले. वहां पर रामनिवास की मर्सिडीज कार मिली, जिसे पुलिस ने बरामद कर लिया. 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को गंभीरता लेते हुए कहा कि स्पीक एशिया कंपनी ने जिन लोगों के पैसे लिए हैं, वह उन्हें वापस करे. मुंबई आर्थिक अपराध शाखा को कहीं से सूचना मिली की रामनिवास पाल और उस के साथी दिल्ली या एनसीआर इलाके में हैं. मुंबई पुलिस कमिश्नर ने यह जानकारी दिल्ली पुलिस कमिश्नर से शेयर की और उन की गिरफ्तारी में सहयोग करने की मांग की. चर्चित और खास तरह के मामलों में अलगअलग शहरों की पुलिस संबंधित शहरों की पुलिस से जानकारी शेयर कर के अभियुक्तों की गिरफ्तारी में सहयोग करने की अपील करती है. इसी तरह के सहयोग की मांग मुंबई पुलिस ने दिल्ली पुलिस से की थी.

दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने मामला क्राइम ब्रांच को सौंपते हुए काररवाई करने के आदेश दिए. क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने क्राइम ब्रांच के उपायुक्त कुमार ज्ञानेश की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड के एसीपी सुरेश कौशिक, इंसपेक्टर अशोक कुमार, संजीव कुमार, सबइंस्पेक्टर अशोक कुमार वेद, वीरेंद्र सिंह, चंदर प्रकाश, विवेक मंडोला, देवेंद्र सिंह, एएसआई जसवंत राठी, हेडकांस्टेबल देवेंद्र कुमार, संजीव कुमार हरविंदर, संजय, रविंदर पाल, कांस्टेबल सुरेंद, जमील, साजिद आदि को शामिल किया गया.

मुंबई पुलिस द्वारा दिए गए इनपुट के आधार पर दिल्ली क्राइम ब्रांच इन की तलाश करने लगी. पुलिस टीम को एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी मिली कि रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल सगे भाई हैं. स्पीक एशिया से अरबों रुपए कमाने के बाद इन लोगों ने रीयल एस्टेट में पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. इसी सिलसिले में वे अकसर दिल्ली आते रहते हैं. मुंबई पुलिस द्वारा इन की फोटो मिलने के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. इसी बीच पुलिस को मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि रामसुमिरन पाल अपने एक साथी के साथ 25 नवंबर, 2013 की शाम को कनाट प्लेस स्थित रीगल पहुंचेगा. पुलिस टीम रीगल सिनेमा के आसपास बिना वर्दी के खड़ी हो गई.

शाम साढ़े 6 बजे के करीब रीगल सिनेमा के पास स्थित एक दुकान पर 2 शख्स टाई खरीदते हुए दिखे. एसीपी सुरेश कौशिक ने मुंबई पुलिस द्वारा दिए गए फोटो से उन के चेहरों का मिलान किया तो उन में से एक युवक का चेहरा फोटो से मिल रहा था. फिर क्या था, उन्होंने अपनी टीम को इशारा कर दिया. पुलिस टीम ने घेर कर दोनों युवकों को दबोच लिया. दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस औफिस आ गई. दोनों युवकों से पुलिस ने पूछताछ की तो वह पहले तो अपना नाम व पता फरजी बताते रहे, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उन्हें सच उगलना ही पड़ा. उन में से एक युवक ने अपना नाम रामसुमिरन पाल और दूसरे ने सतीशसोहन पाल बताया. उन्होंने बताया कि वे स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े थे. रामसुमिरन पाल उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का रहने वाला था तो सतीशसोहन पाल दिल्ली के नजफगढ़ का.

रामसुमिरन पाल की गिरफ्तारी पर दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम फूली नहीं समा रही थी. क्योंकि वह स्पीक एशिया का भारत में मुख्य कर्ताधर्ता था. काफी कोशिशों के बाद भी मुंबई क्राइम ब्रांच उसे और उस के भाई रामनिवास पाल को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. सतीशसोहन पाल स्पीक एशिया का दिल्ली में मुख्य फें्रचाइजी था. उस ने भी स्पीक एशिया के नाम पर दिल्ली के हजारों लोगों से करोड़ों रुपए ठगे थे. पुलिस ने उन से जरूरी पूछताछ की. चूंकि इन के खिलाफ दिल्ली में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं थी. मुंबई के कई थानों में इन के खिलाफ मामले दर्ज थे, इसलिए इन की गिरफ्तारी की सूचना मुंबई क्राइम ब्रांच को दे दी गई.

इस के बाद दोनों ठगों को सीआरपीसी की धारा 41.1 बी (किसी दूसरे थाने के वांटेड आरोपी को गिरफ्तार करना) के तहत गिरफ्तार कर 26 नवंबर को पटियाला हाउस न्यायालय में ड्यूटी मजिस्ट्रेट पुनीथ पावा के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. रामसुमिरन पाल की गिरफ्तारी की खबर पा कर 27 नवंबर को मुंबई क्राइम ब्रांच की टीम दिल्ली पहुंची और कोर्ट से दोनों ठगों को मुंबई ले गई. स्पीक एशिया के ठग रामसुमिरन पाल और सतीशसोहन पाल के गिरफ्तार होने की खबर जैसे ही फोटो सहित मीडिया में आई तो रामवीर शर्मा रामसुमिरन पाल को पहचान गए. उन के मन में भी स्पीक एशिया में लगाए गए पैसे पाने की उम्मीद जागी और वह दिल्ली क्राइम ब्रांच के डीसीपी कुमार ज्ञानेश के पास पहुंच गए.

उन्होंने डीसीपी को अनिल खत्री, मनोज कुमार शर्मा, रामसुमिरन पाल और रामनिवास पाल के उकसावे में आ कर स्पीक एशिया कंपनी में 25 लाख रुपए लगाए जाने की पूरी बात बताई. उन्होंने उक्त चारों ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग भी की. रामवीर शर्मा की शिकायत पर क्राइम ब्रांच थाने में उक्त चारों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर संख्या 198 पर भादंवि की धारा 420, 406, 120-बी को तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े तमाम लोगों के खिलाफ भले ही देश के विभिन्न थानों में तमाम रिपोर्ट दर्ज थीं, लेकिन दिल्ली में कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था. पहली रिपोर्ट रामवीर शर्मा ने दर्ज कराई. मामला दर्ज होने के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने खुद भी इस मामले की जांच करनी शुरू कर दी.

रामसुमिरन पाल और सतीशसोहन पाल से पूछताछ में दिल्ली क्राइम ब्रांच को रामनिवास पाल के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली थीं. रामनिवास पाल वह शख्स था, जो स्पीक एशिया को भारत में लाया था. इतना ही नहीं, स्पीक एशिया के प्लान आदि सब उस के ही तैयार कराए थे. एक तरह से वह कंपनी का मास्टर माइंड था. इस मास्टर माइंड की तलाश के लिए क्राइम ब्रांच की एक टीम बंगलुरू रवाना हो गई. पुलिस को सूचना मिली थी कि वह वहां एक आईटी कंपनी में सलाहकार है. जिस कंपनी में वह काम कर रहा था, पुलिस को उस का पता मिल चुका था.

30 नवंबर, 2013 को दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम बंगलुरू पहुंच गई और व्हाइट फील्ड रोड इलाके से एक शख्स को हिरासत में ले लिया. लेकिन उस ने अपना नाम अभय सिंह चंदेल बताया. बातचीत के दौरान पुलिस को लगा कि अभय सिंह चंदेल नाम का यह शख्स झूठ बोल रहा है, इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह रामनिवास पाल है और स्पीक एशिया कंपनी से जुड़ा था. बंगलुरू की स्थानीय अदालत में पेश कर के पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर उसे दिल्ली ले आई. चूंकि स्पीक एशिया के इस मास्टर माइंड से पुलिस को विस्तार से पूछताछ करनी थी, इसलिए 2 दिसंबर, 2013 को उसे रोहिणी न्यायालय में ड्यूटी एमएम के समक्ष पेश कर के 9 दिसंबर तक का पुलिस रिमांड ले लिया गया.

पुलिस ने रामनिवास पाल से जब पूछताछ की तो स्पीक एशिया से उस के जुड़ने से ले कर ठगी तक की जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. रामनिवास पाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के गांव नागरपाल का रहने वाला था. उस के पिता वेदराम एक किसान थे. रामनिवास पाल के अलावा वेदराम के 2 और बेटे थे, रामसुमिरन पाल और रजनीश पाल. रामनिवास पाल बीएससी कर रहा था, तभी उस का सेलेक्शन भारतीय वायु सेवा में एयरमैन (टेक्निकल) के पद पर हो गया था. यह सन 1991 की बात है. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उस की पोस्टिंग जोधपुर (राजस्थान) की हेलिकौप्टर यूनिट में हुई. बाद में उस का तबादला हैदराबाद हो गया. रामनिवास पाल महत्त्वाकांक्षी था. एयरफोर्स में 10 साल नौकरी के बाद वह कोई ऐसा काम करने की सोचने लगा, जिस में उसे मोटी कमाई हो.

इसलिए सन 2001 में अधिकारियों को बिना कोई सूचना दिए घर चला आया. एयरफोर्स ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया. बाद में वह एयरफोर्स अधिकारियों के संपर्क में आया तो उसे कोर्टमार्शल के बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. एयरफोर्स की नौकरी छोड़ने के बाद वह 2002 में मुंबई चला गया और बहुराष्ट्रीय बैंकों को सलाह देने के लिए स्मार्ट कनेक्ट नाम की कंपनी बनाई. इस के बाद वह टीवी कलाकार अमर उपाध्याय की कंपनी मिहिर विरानी मल्टी ट्रेड प्रा.लि. में निदेशक के रूप में काम करने लगा. यह कंपनी आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री करती थी. कंपनी के प्रबंधन से विवाद हो जाने के बाद रामनिवास पाल ने नौकरी छोड़ दी. वहीं उस का संपर्क मनोज कुमार शर्मा से हुआ.

मनोज कुमार शर्मा डाइरेक्ट मार्केटिंग एसोसिएशन का अध्यक्ष था. रामनिवास बातचीत में दूसरों को प्रभावित करने में माहिर था, इसलिए मनोज से उस के अच्छे संबंध बन गए. वह मनोज की सारी कंपनियों का काम देखने लगा. इसी दौरान वह कुछ विदेशी कंपनियों के संपर्क में आया. रामनिवास पाल का छोटा भाई रामसुमिरन पाल मुंबई में ही एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता था. उस ने मुंबई से मार्केटिंग में एमबीए किया था. रामनिवास पाल ने रामसुमिरन पाल को भी अपने काम में लगा लिया.

रामनिवास पाल ने मनोज कुमार शर्मा और रामसुमिरन पाल के साथ हालैंड की मैंगो यूनिवर्स, ऐड मैट्रिक्स, इटली की सेविन रिंग्स आदि मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों को भारत में लांच किया. इन कंपनियों में रामनिवास पाल कभी संरक्षक, कभी सलाहकार तो कभी कंपनी की योजनाएं बनाने व विकसित करने वाले की भूमिका में होता था. ये भारत के मध्यमवर्गीय लोगों की मानसिकता को जानते थे, इसलिए इन्होंने सन 2008 में सिंगापुर में रजिस्टर्ड एमएलएम कंपनी स्पीक एशिया को भारत में लांच किया. कंपनी का रजिस्ट्रेशन उन्होंने सिंगापुर, ब्राजील व इटली में भी कराया, लेकिन वहां बिजनेस स्टार्ट नहीं किया. कंपनी के प्लान, पेआउट, सर्वे आदि की रूपरेखा रामनिवास पाल ने ही तैयार की.

उसी ने ही स्पीक एशिया कंपनी के मल्टी लेवल मार्केटिंग स्कीम का डिजाइन तैयार किया. बड़ेबड़े महानगरों में उस ने कंपनी की फ्रैंचाइजी दे दी. 11 हजार रुपए जमा कर के 4 हजार रुपए हर महीने एक साल तक पाने के लालच में बड़ी तेजी से लोग इस से जुड़ने लगे. ज्यादा कमाने के लालच में कुछ लोगों ने कंपनी में लाखों रुपए लगा दिए. कंपनी अपने साथ जुड़ने वाले लोगों को पेनलिस्ट कहती थी. विश्वास जमाने के लिए कंपनी ने पेनलिस्टों के बैंक एकाउंटों में पैसे भी भेजने शुरू कर दिए. फिर क्या था, लोगों का कंपनी के प्रति इतना विश्वास बढ़ा कि कुछ ही दिनों में हिंदुस्तान भर में स्पीक एशिया के लाखों पेनलिस्ट बन गए. कंपनी को पेनलिस्टों से सैकड़ों करोड़ की आमदनी होने लगी.

वे फाइव स्टार होटलों में पेनलिस्टों के साथ मीटिंग करते और अलगअलग शहरों में बड़ेबड़े सेमिनारों में प्रभावशाली स्पीच देते. उन की लाइफस्टाइल और स्पीच से पेनलिस्ट बहुत प्रभावित होते. 2011 के मध्य हिंदुस्तान भर से करीब 24 लाख लोग स्पीक एशिया से जुड़ गए. मास्टर माइंड रामनिवास पाल जानता था कि यदि स्पीक एशिया के कार्यक्रम में फिल्मी कलाकारों को शामिल कर लिया जाए तो लोगों का कंपनी पर विश्वास और बढ़ेगा, जिस से उन की कमाई भी बढ़ेगी. तब उस ने 2011 में गोवा में एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया. इस के लिए दिल्ली से गोवा तक एक विशेष टे्रन भी चलवाई. तब उस ने गोवा के ज्यादातर बड़े होटल भी बुक करा लिए थे. कई फिल्मी कलाकारों को भी वहां बुलाया था. बताया जाता है कि कंपनी ने इस सेमिनार के आयोजन पर करीब 200 करोड़ रुपए खर्च किए थे.

गोवा में हुए सेमिनार के बाद स्पीक एशिया कंपनी पर अंगुलियां उठने लगी थीं. अपना विश्वास बनाए रखने और लोगों को आकर्षित करने के लिए कंपनी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में भी एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया था. इस के बाद जून, 2011 में कंपनी से जुड़े लोग अंडरग्राउंड हो गए. यानी स्पीक एशिया कंपनी लोगों के 2276 करोड़ रुपए ले कर छूमंतर हो गई. जिन लोगों ने कंपनी में फरवरी, 2011 के बाद पैसे लगाए थे, वे घाटे में रहे. लोगों ने स्पीक एशिया के संचालकों के खिलाफ विभिन्न थानों में रिपोर्ट लिखानी शुरू कर दी.

मुंबई में इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंपी गई. मुंबई पुलिस संचालकों को खोजने लगी. चूंकि रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल ने इटली की सेवन रिंग्स इंटरनेशनल और हालैंड की ऐड मैट्रिक्स प्रा.लि. कंपनी भी खरीद ली थी, इसलिए इन्होंने स्पीक एशिया द्वारा 900 करोड़ रुपए मनी लांड्रिंग के जरिए सिंगापुर पहुंचा दिए. वहां से वे उस रकम को दुबई, इटली, यूके के जरिए दोबारा कंपनी के खाते में भारत ले आए.

पाल बंधुओं ने स्पीक एशिया की दिल्ली की फ्रेंचाइजी सतीशसोहन पाल को दी थी. सतीशसोहन पाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट किया था. इस के बाद उस ने विभिन्न इंस्टीट्यूटों में काम करते हुए सन 2007 में मुंबई शिफ्ट हो गया था. वहीं पर वह रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल के संपर्क में आया और उन के साथ मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों में काम करने लगा. जब इन्होंने भारत में स्पीक एशिया कंपनी की शुरुआत की तो सतीशसोहन पाल ने दिल्ली की फ्रेंचाइजी ले ली और लोगों से करोड़ों रुपए इकट्ठे किए. यह पाल बंधुओं का बिजनैस एडवाइजर भी था.

स्पीक एशिया कंपनी के बंद होते ही सतीशसोहन पाल मलेशिया भाग गया था. वहां उस ने वेब एक्सल सौल्युशन कंपनी खरीद कर एमएलएम का बिजनेस शुरू किया. 2012 में अपने परिवार को भी मलेशिया ले गया और क्वालालामपुर में रहने लगा. वहां बैठे हुए भी वह भारत में मौजूद अपने शुभचिंतकों द्वारा पुलिस द्वारा स्पीक एशिया के खिलाफ की जा रही काररवाई के बारे में जानकारी लेता रहा. सन 2012 में पुलिस से बचते हुए रामसुमिरन पाल मलेशिया में सतीश के पास रुका था. सन 2013 में सतीश के परिवार के साथ वह दिल्ली लौट आया. चूंकि मुंबई पुलिस उस के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी कर चुकी थी. इसलिए वह काठमांडू तक प्लेन से आया और वहां से सड़क मार्ग से दिल्ली आया.

रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल ने स्पीक एशिया द्वारा कमाए गए पैसों से मुंबई, शाहजहांपुर, देहरादून आदि शहरों में प्रौपर्टी खरीदी थी. इन्होंने नेपाल और मलेशिया में भी अपने ठिकाने बना रखे थे. रामसुमिरन पाल पुलिस से बचने के लिए अपना हुलिया बदलता रहता था. वह कभी मूंछे रखता था तो कभी सिर मुंडवा लेता था. दाढ़ी बढ़ाने के साथ अचानक ही वह फ्रेंच कट में भी आ जाता था. रामसुमिरन पाल फिलहाल देहरादून में ससुराल पक्ष के लोगों के यहां रह रहा था. दूसरों की गाढ़ी कमाई ठग कर उस ने देहरादून में रीयल एस्टेट कारोबार में लगा दी थी. वहां पर उस के विला और डुप्लेक्स फ्लैट के प्रोजेक्ट चल रहे थे.

रीयल एस्टेट कारोबार के सिलसिले में ही वह दिल्ली आता रहता था. दिल्ली में वह एक फाइवस्टार होटल बनवाने के लिए जगह तलाश रहा था. 25 नवंबर, 2013 को भी वह सतीशसोहन पाल के साथ कनाट प्लेस दिल्ली आया था. उन्हें क्या पता था कि दिल्ली पुलिस भी उस के पीछे लगी है. इसी वजह से वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. रामनिवास पाल पुलिस से बचता हुआ बंगलुरू भाग गया. उस ने अपने परिजनों से फोन पर बात तक करनी बंद कर दी थी. वह व्हाइट फील्ड रोड इलाके में हुलिया और नाम बदल कर रह रहा था. वहां की एक आईटी कंपनी में वह सलाहकार के रूप पर काम कर रहा था. इस के अलावा वह मलेशिया की एक आईटी कंपनी के जरिए विभिन्न वेबसाइटों पर औनलाइन विज्ञापनों की लोकप्रियता प्रमाणपत्र वितरण संबंधी अपना बिजनेस प्लान तैयार कर रहा था.

इस कंपनी के जरिए वह देश भर में दोबारा से ठगी का मायाजाल फैलाना चाह रहा था. इस से पहले कि वह अपने मंसूबे पूरे करता, पुलिस की गिरफ्त में आ गया. रामनिवास पाल से पूछताछ के बाद पुलिस ने मुंबई की एक्सिस बैंक में खुले उस के 3 एकाउंट सीज कर दिए. 9 दिसंबर को उसे पुन: न्यायालय में पेश कर 14 दिसंबर तक का पुलिस रिमांड लिया. दिल्ली क्राइम ब्रांच ने मुंबई पुलिस की कस्टडी में रामसुमिरन पाल, सतीशसोहन पाल को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर फिर से पूछताछ की. स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े लोगों के खिलाफ देश भर में अब तक 800 से भी ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं. पुलिस अब तक 17 ठगों को गिरफ्तार कर के 210 बैंक खाते सीज कर चुकी है. 150 के करीब संदिग्ध खातों की जांच की जा रही है. दिल्ली में रामवीर शर्मा द्वारा दर्ज कराए गए मामले के बाद क्राइम ब्रांच में स्पीक एशिया द्वारा ठगे गए लोगों के आने की संख्या बढ़ने लगी है. जिस से दिल्ली में गिरफ्तार होने वालों की संख्या बढ़ सकती है.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

 

 

क्यों एक नौकरानी खाने में पेशाब मिला दिया करती थी

सनसनीखेज घटना का पूरा सच जानिए…

एक शर्मसार कर देने वाली घटना ने सभ्य समाज की चूलें हिला दीं, जब एक नौकरानी ने खुन्नस में रोज खाने में अपना यूरिन यानि पेशाब मिला रही थी। यह सिरफिरी नौकरानी पिछले 8 साल से एक घर में खाना बना रही थी और उस में खुद का यूरिन मिला दिया करती थी. यों मालिक अकसर अपने घर पर खाना बनाने वाली मेड को इसलिए रखता है कि वह मेड उस घर के सभी लोगों को अच्छा खाना खिलाएगी लेकिन एक मेड ने उस मालिक और समाज का भरोसा तोड़ दिया। ऐसा इसलिए हुआ कि वह मेड घर के सभी लोगों को खुद का यूरिन डाल कर खाना बना रही थी और उस घर के लोगों को खिला रही थी.

हैरान कर देने वाली घटना

यह हैरान कर देने वाली घटना उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की है, जिस में एक महिला घर के लोगों को अपने यूरिन मिला कर खाना खिलाया करती थी. यह महिला पिछले 8 सालों से उस घर में मेड का काम कर रही थी और यह परिवार उस पर पूरी तरह से भरोसा करता था.

भरोसे के बदले मिली गद्दारी

घर के सभी लोग उसे अच्छा खाना बनाने वाली मानते थे, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि वह अपने पेशाब को भोजन में मिला कर खिला रही थी.

इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब घर के सभी लोग धीरेधीरे बीमार पड़ने लगे. वे सभी लोग कई बार डाक्टर के पास जाते, लेकिन उन की बीमारी ठीक नहीं हो रही थी. डाक्टर ने उन सभी लोगों से पूछा,”खाना तो अच्छा खा रहे हो न?”

तब ही घर के सभी लोगों ने कहा,”हां, क्योंकि हमारे घर में जो खाना बनाने वाली मेड आती है वही खाना बनाती है…”

लेकिन घर वालों को अंदाजा नहीं था कि वह महिला उन को अपना यूरिन डाल कर खाना खिला रही थी. इस के बाद घर के सभी लोगों की हालत धीरेधीरे ज्यादा खराब होने लग गई। उन्हें लिवर की प्रौब्लम होने लगी और वे अन्य बीमारियों से जूझने लगे.

जब बढ़ने लगी समस्या

जब समस्या ज्यादा बढ़ी तो घर के लोगों को खाना बनाने वाली मेड पर शक हुआ कि कहीं वह तो कुछ गङबङ नहीं कर रही। इस शक के कारण घर के मालिक ने रसोईघर में एक सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया ताकि उस की सभी हरकतों पर नजर रखी जा सके.

भयानक और शर्मनाक

जब मेड घर में खाना बनाने आई तो कैमरे में उस की घिनौनी हरकतें रिकौर्ड हो गईं। वह भयानक और शर्मसार करने वाली घटना थी. सीसीटीवी फुटेज में साफतौर पर दिख रहा था कि वह मेड आटे में यूरिन मिला कर उसे गूंथ रही थी और फिर वही खाना घर के लोगों को खिला रही थी.

जैसे ही घर के मालिक ने यह फुटेज देखा, उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचित कर दिया. पुलिस ने जब इस सीसीटीवी को देखा तो वह भी इस हैरान रह गई। तुरंत उस महिला को गिरफ्तार पुलिस ने सख्ती से पूछताछ शुरू की, तो पहले उस मेड ने अपनी गलती मानने से इनकार कर दिया लेकिन जब पुलिस ने उस मेड को सीसीटीवी फुटेज दिखाया, तो वह घबरा गई और अपना जुर्म कुबूल कर लिया।

पुलिस कर रही तफ्तीश

यह घटना न केवल उस परिवार के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए शर्मसार करने वाली है. पुलिस इस मामले की गहराई से जांच कर रही है और यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आखिर नौकरानी ने ऐसा क्यों किया.

भाई ने रंगे हाथ पकड़ा पुलिस ने करा दी बहन की शादी

ज्योति और मनीष एकदूसरे को सच्चा प्यार करते थे. उन के घर वाले नहीं माने तो राज्य महिला आयोग ने आगे कर उन की शादी की जिम्मेदारी पूरी की. यह एक अच्छी पहल है…    

14 मई, 2018 की बात है. दोपहर का समय था. तेज धूप पड़ रही थी. जयपुर में बनीपार्क स्थित ग्रामीण महिला सलाह सुरक्षा केंद्र की प्रभारी निशा सिद्धू अपने चैंबर में एक केस के सिलसिले में सहकर्मियों से चर्चा कर रही थीं. तभी एक युवती इस केंद्र पर पहुंची. उस ने केंद्र में बाहर के कमरे में बैठी एक महिला से कहा, ‘‘मैडम, मुझे इंचार्ज मैडम से मिलना है.’’  उस महिला ने युवती पर एक नजर दौड़ाई. करीब 19-20 साल की वह युवती घबराई हुई और परेशान लग रही थी. उस ने चुनरी से अपना चेहरा ढका हुआ था. वह कुरता और सलवार पहने हुए थी. भीषण गरमी में आने से उस के बदन से पसीना टपक रहा था.

महिला ने उस युवती को एक कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह कुरसी पर बैठ गई. अपना कुछ काम निपटाने के बाद वह महिला अपनी सीट से उठी और उस युवती से बोली, ‘‘आओ मेरे साथ, मैं तुम्हें इंचार्ज मैडम से मिलवा देती हूं.’’ वह युवती जल्दी से उठ खड़ी हुई और उस महिला के साथ चल दी. वे दोनों दूसरे कमरे में पहुंची. वहां एक बड़ी सी टेबल के सामने एक रौबदार महिला बैठी थी. टेबल के दूसरी तरफ 3-4 अन्य महिलाएं भी कुरसियों पर बैठी थीं.

साथ आई महिला ने इशारा कर के युवती को बताया कि वही इस केंद्र की इंचार्ज हैं. इन का नाम निशा सिद्धू हैं. युवती ने इंचार्ज को अभिवादन किया. युवती का अभिवादन स्वीकार करते हुए इंचार्ज ने युवती को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. फिर पूछा, ‘‘तुम कौन हो और कहां से आई हो?’’

‘‘मैडम, मेरा नाम ज्योति धानका है. मैं जयपुर में ही झोटवाड़ा की धानका बस्ती की रहने वाली हूं.’’ युवती ने अपना परिचय दिया.

‘‘ज्योति, बताओ तुम यहां क्यों आई हो, क्या कोई परेशानी है?’’ इंचार्ज ने उस से पूछा.

‘‘मैडम, मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह लड़का भी मुझे बहुत चाहता है, लेकिन मेरे परिवार वाले हमारे प्यार के खिलाफ हैं. वे हमारे प्यार के दुश्मन बने हुए हैं.’’ युवती ने रुंआसे स्वर में कहा.

‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है और तुम्हारे परिवार में कौनकौन हैं.’’ इंचार्ज ने पूछा.

‘‘मैडम, मेरी उम्र 19 साल है. परिवार में पिता सुरेश कुमार, 2 भाई और मां हैं.’’ युवती ने बताया.

‘‘और वह लड़का कौन है, जिस से तुम प्यार करती हो.’’ इंचार्ज ने पूछा.

‘‘वह मनीष महावर है. उस की उम्र भी 22 साल है. वह जयपुर में ही गेटोर रोड ब्रह्मपुरी का रहने वाला है.’’ युवती ने कुछ शरमाते हुए बताया, ‘‘मनीष और मैं एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. लेकिन मेरे परिवार वाले हमारी शादी करना तो दूर उस से बात तक भी नहीं करने देते.’’

एकदो पल रुक कर ज्योति रोने लगी, फिर सुबकते हुए बोली, ‘‘आज सुबह की बात है. मैं अपने भाई के मोबाइल से मनीष से बात कर रही थी. इस बात की भनक पापाजी और भैया को लग गई तो उन्होंने मुझे बेल्ट से खूब मारा.’’ ज्योति ने सुबकते हुए अपने चेहरे और सिर पर ढकी चुनरी को हटाते हुए कहा, ‘‘देखिए मैडम, मेरे परिवार वालों ने मेरे सिर के बाल तक काट दिए, इतना ही नहीं बिजली का करंट भी लगाया. इस से मैं बेहोश हो गई तो मुझे कमरे में बंद कर दिया.’’

इंचार्ज निशा सिद्धू ने उस के सिर के कटे बाल और बेल्ट की पिटाई से लगी चोटें देखीं. फिर उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘ज्योति तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम बालिग हो, अपना अच्छाबुरा खुद सोच सकती हो. अगर तुम मनीष से वाकई प्यार करती हो तो तुम्हें उस से मिलने से कोई नहीं रोक सकता. अच्छा यह बताओ कि तुम्हारे प्यार की शुरुआत कैसे हुई.’’ ज्योति ने सुबकते हुए अपनी कहानी सुनाई. ज्योति की प्रेमकहानी का लब्बोलुआब इस प्रकार है

करीब 4 साल पहले झोटवाड़ा की धानका बस्ती में ज्योति के घर के पास ही जागरण का कार्यक्रम था. इस जागरण में इवेंट मैनेजमेंट का काम मनीष महावर संभाल रहा था. उसी जागरण के दौरान ज्योति और मनीष की मुलाकात हुई. मनीष ब्रह्मपुरी में मेटोर रोड पर रहता था. झोटवाड़ा और ब्रह्मपुरी दोनों बस्तियां आसपास ही हैं. जब दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई, तब मनीष की उम्र यही कोई 18-19 साल थी और ज्योति 15-16 साल की थी. उम्र की उस दहलीज पर दोनों ही प्यार का मतलब नहीं समझते थे, फिर भी उन के बीच प्यार के अंकुर फूट निकले.

धीरेधीरे उन का प्यार जवां होने लगा. मुलाकातों का सिलसिला भी शुरू हो गया. मनीष से मिलने के लिए ज्योति घर से किसी बहाने से निकल जाती. मनीष उसे उस के घर से कुछ दूर अपने साथ ले लेता, फिर वे जयपुर की सड़कों पर घूमते या किसी रेस्त्रां में बैठ कर कौफी पीते और प्यार की पींगें बढ़ाते. भले ही दोनों एकदूसरे से सच्चे दिल से प्यार करते थे, लेकिन मनीष जानता था कि ज्योति बालिग नहीं है. कभीकभी वह ज्योति से कहता भी था कि हमारे प्यार की बातें यदि तुम्हारे मातापिता को पता चल गईं तो परेशानी हो जाएगी. ज्योति हर बार उसे यह कह कर आश्वस्त कर देती थी कि मैं बालिग हो जाऊंगी तो पापा और मम्मी से शादी की बात कर लूंगी.

मनीष जानता था कि यह काम इतना आसान नहीं है. बहरहाल दोनों प्यार की उड़ान भरते रहे. पुरानी कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. ज्योति और मनीष के मामले में भी यही हुआ. ज्योति का छिपछिप कर मोबाइल पर बातें करना, 15-20 दिन में किसी ना किसी बहाने घर से जाना और 2-4 घंटे बाद वापस लौटना. ये ऐसी बातें थीं, जिन से ज्योति के परिवार वालों को उस पर शक होने लगा. घर में जवान बेटी या बहन हो तो मातापिता और भाई वैसे ही चिंता में रहते हैं. भाइयों ने पता किया तो जल्दी ही उन्हें जानकारी मिल गई कि ज्योति मनीष नाम के एक लड़के से प्यार करती है. भाइयों ने मनीष के बारे में सब कुछ पता लगा लिया. घर वालों ने ज्योति से इस बारे में पूछा तो ज्योति ने अपने प्यार के बारे में सारी बातें सचसच बता दीं. साथ ही यह भी बता दिया कि वह मनीष से शादी करना चाहती है.

ज्योति ने भले ही सच्चाई बता दी थी लेकिन उस की यह हिमाकत पिता सुरेश कुमार और दोनों भाइयों को नागवार गुजरी. उन्होंने उसे समझाया और जातपात का हवाला दे कर मनीष को भूल जाने को कहा. ज्योति भला मनीष को कैसे भूल सकती थी. उस ने तो उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थींजीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. इस के बाद अब ज्योति के सामने 2 रास्ते थे. या तो वह अपने परिवार वालों की बात मान लेती और मनीष को पूरी तरह भुला देती या फिर मनीष के लिए अपने परिवार वालों से विद्रोह करती. लेकिन परेशानी यह थी कि ज्योति अभी बालिग नहीं हुई थी. ऐसे में उस ने सब्र से काम लेने का फैसला किया.

जैसेजैसे ज्योति और मनीष की उम्र बढ़ती गई, उन का प्यार कम होने के बजाए बढ़ता गया. जवानी के साथ शारीरिक बदलाव होने के कारण ज्योति के चेहरे पर भी निखार आने लगा था. मनीष भी कदकाठी से खूबसूरत नौजवान हो गया था. इस बीच, दोनों के बीच मिलनेजुलने का सिलसिला चलता रहा. पिछले साल फरवरी के महीने में ज्योति के पिता और भाइयों को पता चला कि ज्योति ने मनीष से मिलना नहीं छोड़ा है, बल्कि वह दोनों अभी भी चोरीछिपे मिलनेजुलते हैं और मोबाइल पर बातें करते हैं. ज्योति के पिता और भाइयों ने मनीष के घर वालों को समझाया. उन्होंने मनीष को भी ज्योति से दूर रहने की धमकी दी. लेकिन हुआ वही, जो ऐसे मामलों में अकसर होता है

दोनों ने एकदूसरे से मिलना बंद नहीं किया. इस पर ज्योति के घर वालों ने ज्योति पर कई तरह की बंदिशें लगा दीं. उन्होंने उस का घर से निकलना बंद कर दिया. उसे प्रताडि़त करने लगे. घर वालों की प्रताड़ना ने उलटे ज्योति के मन में विद्रोह के बीज बो दिए. इस का नतीजा यह हुआ कि ज्योति पिछले साल अप्रैल महीने में घर से भाग कर सीकर जिले में खाटूश्याम जी चली गई. ज्योति के परिवार वालों ने मनीष के खिलाफ उसे भगाने का मुकदमा थाना झोटवाड़ा में दर्ज करा दिया. पुलिस ने ज्योति को बरामद करने के लिए मनीष के घर पर दबिश दी. लेकिन वह नहीं मिला तो पुलिस ने उस के परिवार पर दबाव बनाया. बाद में पुलिस ने ज्योति को खाटूश्याम जी से बरामद कर लिया. पुलिस ने उसे परिवार वालों को सौंप दिया.

इस के बाद ज्योति के घर वालों ने ज्योति को और ज्यादा डरायाधमकाया और सख्त हिदायत दी कि वह मनीष से दूर रहे, लेकिन ज्योति किसी भी कीमत पर अपने प्रेम को नहीं भूलना चाहती थी. परिवार की तमाम बंदिशों के बावजूद वह मौका मिल ने पर मनीष से मोबाइल पर बात कर लेती थी. इसी 14 मई की सुबह ज्योति मोबाइल पर चोरीछिपे मनीष से बात कर रही थी तो पिता और भाइयों को पता चल गयागुस्साए पिता और दोनों भाइयों ने उसे बेल्ट से बहुत पीटा. इस पर भी उन का मन नहीं भरा तो उन्होंने उस के सिर के बाल काट दिए. उस के नाखून भी काट दिए गए. बाद में उन्होंने उसे एक कमरे में बंद कर दिया

गुस्साए घर वालों ने उसे डराने के लिए उस के हाथपैर बांध कर उसे बिजली का करंट भी लगाया. वह चीखतीपुकारती रही, लेकिन अपनी कोख से जन्म देने वाली ज्योति की मां का दिल भी नहीं पसीजा. कुछ देर बेहोश रहने के बाद ज्योति को जब होश आया तो वह किसी तरह युक्ति लगा कर कमरे से बाहर निकली और घर वालों को भरोसे में ले कर कचरा फेंकने के बहाने घर से निकल गई. घर से निकल कर वह सीधी बनीपार्क स्थित महिला अपराजिता सेंटर पहुंची. इस अपराजिता सेंटर को जयपुर ग्रामीण महिला सलाह सुरक्षा केंद्र भी कहते हैं. केंद्र की इंचार्ज निशा सिद्धू और अन्य पदाधिकारियों को अपने प्यार की दुखभरी कहानी सुना कर ज्योति रो पड़ी. केंद्र पर मौजूद महिला कर्मचारियों ने उसे ढांढस बंधा कर पूरी सहायता करने का भरोसा दिया.

ज्योति की दास्तां सुन कर इंचार्ज निशा सिद्धू ने केंद्र की अन्य पदाधिकारियों से विचारविमर्श किया. ज्योति बालिग थी. केंद्र की पदाधिकारियों ने उसे परिवार और समाज के अलावा ऊंचनीच की सारी स्थितियां बताईं. फिर उस से पूछा कि उस की इच्छा क्या है? ज्योति के कहने पर उसे उस के घर भेजा जा सकता था. अगर वह घर नहीं जाना चाहती तो उसे महिला गृह भेजने की बात भी उन्होंने बताई. उन्होंने कहा कि उस की शिकायत पर घर वालों के खिलाफ थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया जा सकता है. मामला बड़ा संवेदनशील था. ज्योति ना तो अपने घर वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना चाहती थी और ना ही वह वापस अपने घर जाना चाहती थी. वह तो बस यह चाहती थी कि किसी तरह उस की मनीष से शादी हो जाए

इंचार्ज निशा सिद्धू काफी सोचनेविचारने के बाद ज्योति को राज्य महिला आयोग के कार्यालय ले गईं. वहां ज्योति का हाल देख कर और उस की आपबीती सुन कर राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा का दिल भी पसीज गया. सुमन शर्मा ने स्वप्रेरित संज्ञान ले कर ज्योति और मनीष के परिजनों को तलब किया. उन्होंने दोनों के घर वालों से बातचीत की, उन्हें समझाया. 2 दिनों तक चली जिदबहस के बाद आखिरकार दोनों के घर वालों ने उन की शादी करने की सहमति दे दी. दोनों पक्षों ने जब रिश्ता स्वीकार करने की हामी भर दी तो राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा ने दोनों की शादी कराने की पहल की. सुमन शर्मा चाहती थीं कि ज्योति की शादी उस के घर से हो, लेकिन ज्योति को अपने घर वालों पर भरोसा नहीं था. वह उस समय अपने घर हरगिज नहीं जाना चाहती थी. इसलिए फैसला किया गया कि आयोग के कार्यालय में और आयोग की देखरेख में ही ज्योति और मनीष की शादी कराई जाए.

शादी की तारीख भी 17 मई तय कर दी गई. 17 मई को राज्य महिला आयोग के लालकोठी स्थित कार्यालय पर सुबह से ही सजावट होने लगी थी. सुबह 10 बजे तक वहां अच्छीखासी चहलपहल होने लगी, शहनाई बजने लगी. आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा सहित सभी सदस्य, कर्मचारी और अधिकारी भी वहां पहुंच गए. सभी जोरशोर से शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे. कुछ ही देर में ज्योति और मनीष के घर वाले तथा रिश्तेदार भी आने शुरू हो गए. मनीष के पिता अपनी होने वाली बहू के लिए शादी का जोड़ा ले कर आए. कई सामाजिक संस्थाओं के लोग भी वहां पहुंचे.

महिला आयोग की सदस्यों ने ब्यूटी पार्लर से ज्योति का ब्राइडल मेकअप करवाया. ज्योति जब पार्लर से लाल जोड़े में सजसंवर कर आयोग के कार्यालय पहुंची, तब तक मनीष भी चुका था. सिर पर सेहरा बांधे मनीष ने कनखियों से ज्योति को निहारा तो ज्योति ने भी मुसकुरा कर अपने प्यार का इजहार किया. मुहूर्त के अनुसार, दोपहर 12 बजे से विवाह की रस्में शुरू हो गईं. राजापार्क के पंडित चक्रवर्ती सामवेदी ने हिंदू रीतिरिवाज से विवाह की सारी रस्में धूमधाम से पूरी कराईं. आयोग की अध्यक्ष और सदस्यों के अलावा सदस्य सचिव, राज्य बाल आयोग के सदस्य, पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश, रजिस्ट्रार इस बिना दहेज की शादी के गवाह बने. अनेक लोगों ने नवदंपत्ति को आशीर्वाद दिया.

बाद में आयोग कार्यालय से ही दूल्हादुलहन की धूमधाम से विदाई हुई. दुलहन के अभिभावक बने राज्य महिला आयोग ने ज्योति मनीष की शादी को नगर निगम और कोर्ट में रजिस्टर्ड भी करवा दिया. राज्य महिला आयोग के 19 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ. अध्यक्ष सुमन शर्मा का कहना है कि खाप पंचायतों के फरमान और औनर किलिंग रोकने के लिए महिला आयोग ने एक नई पहल की है. ज्योति ने कहा कि उस की ऐसी अनोखी शादी होगी, इस बारे में कभी सोचा भी नहीं था. उस ने घर वालों को माफ कर दिया है, लेकिन वे भविष्य में ससुराल पक्ष को परेशान करें, इस के लिए उन्हें आयोग से पाबंद करवाया है

मनीष ने बताया कि तमाम मुश्किलों के बाद प्रेमिका से ही उस की शादी हुई. उस के लिए यह बहुत बड़ी बात है. वह ज्योति को जीवन भर सुखी रखेगा. यदि वह आगे पढ़ना चाहती है तो उस की यह इच्छा भी पूरी करेगा. यह सुखद रहा कि राज्य महिला आयोग की पहल से ज्योति और मनीष के प्यार की जीत हुई. वरना, देश में हर साल सैकड़ों युवकयुवतियां जातपात और ऊंचनीच के भेदभाव में औनर किलिंग के शिकार हो रहे हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2015 में औनर किलिंग के 251 और 2016 में 71 मामले सामने आए थे. राजस्थान महिला आयोग की यह पहल सराहनीय है.

पुलिस अफसर ने क्यों किए 2 मर्डर

वह सर्दी का महीना था तथा उस समय आसपास काफी कोहरा छाया हुआ था. कोहरा इतना घना था कि 50 मीटर की दूरी के बाद कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था. उस समय सुबह के 8 बज रहे थे. थाना झबरेड़ा (हरिद्वार) के एसएचओ अंकुर शर्मा उस वक्त नहा रहे थे. तभी उन्हें अपने बाथरूम के दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुनते ही जल्दीजल्दी नहा कर वह बोले, ”कौन है?’’

तभी बाहर से उन के थाने के सिपाही मुकेश ने बताया, ”सर, गांव भिश्तीपुर के प्रधान जोगेंद्र का अभी फोन आया था, वह बता रहा था कि गांव भिश्तीपुर अकबरपुर झोझा की सड़क के नाले में एक लड़के की लाश पड़ी है. लाश के गले में खून के निशान उभरे हुए हैं.’’

”ठीक है मुकेश, मैं जल्दी तैयार हो कर आता हूं.’ शर्मा बोले.

इस के बाद अंकुर शर्मा जल्दीजल्दी तैयार होने लगे थे. सुबह होने के कारण उस वक्त थानेदार भी थाने में नहीं आए थे. मामला चूंकि हत्या का था, इसलिए एसएचओ ने देर करना उचित नहीं समझा.

इस के बाद उन्होंने इस हत्या की सूचना फोन द्वारा हरिद्वार के एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल, एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह व सीओ (मंगलौर) विवेक कुमार को दी थी. फिर वह अपने साथ सिपाही मुकेश व रणवीर को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. घटनास्थल थाने से महज 7 किलोमीटर दूर था, इसलिए उन्हें वहां पहुंचने में 15 मिनट लगे.

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      मृतक बच्चा राजा

घटनास्थल पर काफी भीड़ इकट्ठी थी. वहां पर नाले में एक लड़के का शव पड़ा हुआ था. मृतक की उम्र 15 साल के आसपास थी. पुलिस को देख कर वहां खड़ी भीड़ तितरबितर होने लगी थी. वहां खड़े लोगों से एसएचओ ने शव के बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी थी. यह घटना 9 फरवरी, 2024 को उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के थाना झबरेड़ा क्षेत्र में घटी थी.

वहां मौजूद लोगों ने उन्हें बताया था कि यह शव आज सुबह ही लोगों ने देखा था. ऐसा लग रहा है कि हत्यारों ने इस की हत्या कहीं और की होगी तथा हत्या करने के बाद शव को यहां फेंक दिया होगा. इस के बाद एसएचओ अंकुर शर्मा ने मौजूद लोगों से बच्चे की शिनाख्त करने को कहा था, मगर बच्चे की पहचान नहीं हो सकी थी.

इस के बाद पुलिसकर्मियों ने शव की जामातलाशी ली तो लड़के की शर्ट की जेब में पुलिस को एक टेलर का विजिटिंग कार्ड मिला था. उस टेलर की दुकान हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में थी. पुलिस ने उस टेलर के पास जा कर संपर्क किया. लड़की की लाश के फोटो देखने के बाद टेलर ने भी इस बालक के शव को पहचानने में अपनी अनभिज्ञता जताई.

उधर मौके पर एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल, एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह व पुलिस के पीआरओ विपिन चंद पाठक भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए थे.

कैसे हुई मृतक की शिनाख्त

लोगों से जानकारी मिलने के बाद एसएसपी इस नतीजे पर पहुंचे थे कि मृतक का कोई न कोई लिंक सिडकुल क्षेत्र से जरूर है. इस के बाद उन्होंने एसएचओ जरूरी काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह की अध्यक्षता और सीओ विवेक कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसएचओ अंकुर शर्मा व एसओजी के इंसपेक्टर को शामिल किया. उन्होंने टीम को सिडकुल क्षेत्र में जा कर बच्चे की जानकारी करने के निर्देश दिए.

श्री डोबाल का निर्देश पा कर पुलिस टीम सिडकुल पहुंच गई थी. यहां पर पुलिस टीम ने बच्चे के फोटो कुछ दुकानदारों को दिखाए. पुलिस की कई घंटों की मशक्कत के बाद एक दुकानदार ने पुलिस को बताया कि यह फोटो 15 वर्षीय नरेंद्र उर्फ राजा की है, जो यहां अपनी दृष्टिहीन मां ममता के साथ रहता था. इस के बाद पुलिस टीम जब ममता के मकान पर पहुंची तो वहां परचून की दुकान चलाने वाला हेमराज मिला.

जब पुलिस ने हेमराज से ममता व उस के बेटे राजा के बारे में पूछताछ की तो हेमराज ने पुलिस को बताया, ”सर, यह मकान मैं ने ममता से पिछले महीने 20 लाख 70 हजार रुपए में खरीदा था. 3 दिन पहले ही ममता ने मकान खाली कर के मुझे कब्जा दिया है. कब्जा देते समय पुलिस लाइंस में तैनात एएसआई छुन्ना यादव व शहजाद नामक युवक भी ममता के साथ थे. मुझे कब्जा दे कर ममता व राजा छुन्ना यादव की न्यू आल्टो कार में बैठ कर गए थे.’’

पुलिस को जब यह जानकारी हुई तो सीओ विवेक कुमार व एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह तुरंत ही पुलिस लाइंस पहुंचे और वहां से वे पूछताछ करने के लिए छुन्ना सिंह यादव को अपने साथ ले कर थाना झबरेड़ा आ गए.

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थाने में एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह व सीओ विवेक कुमार ने जब एएसआई छुन्ना सिंह से ममता व राजा के बारे में पूछताछ की तो वह पुलिस अधिकारियों को काफी देर तक वह इधरउधर की बातें बताता रहा. छुन्ना यादव कहता रहा कि ममता मेरी परिचित तो थी, मगर मुझे नहीं मालूम कि वह अब कहां है?

इस के बाद जब एसपी (देहात) स्वप्न किशोर ने सख्ती से छुन्ना सिंह से उस की नई आल्टो कार के बारे में पूछा तो वह कोई संतोषजनक उत्तर न दे सका.

तभी एसपी स्वप्न किशोर ने छुन्ना सिंह से कहा, ”देखो छुन्ना, तुम्हें पता है कि पुलिस के सामने मुरदे भी बोलने लग जाते हैं. इसलिए या तो तुम हमें सीधी तरह से राजा की मौत की सच्चाई बता दो, नहीं तो हम तुम्हारे साथ वह सब करेंगे, जो पुलिस अपराधियों के साथ करती है.’’

एएसआई ने ऐसे कुबूला जुर्म

एसपी साहब की इन बातों का छुन्ना यादव के ऊपर जादू की तरह असर हुआ और वह पुलिस को राजा की हत्या की सच्चाई बताने को तैयार हो गया था. फिर छुन्ना यादव ने पुलिस को राजा की हत्या की जो कहानी बताई, उसे सुन कर वहां मौजूद सभी पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए.

एएसआई छुन्ना यादव ने बताया था कि वह 9 फरवरी, 2024 को अपनी नई आल्टो कार में राजा व उस की नेत्रहीन मां ममता को बैठा कर मंगलौर हाईवे की ओर लाया था.

इसी बीच मैं और मेरे दोस्त शहजाद व विनोद ममता का सिडकुल वाला मकान हेमराज को 20 लाख 70 हजार रुपए में बिकवा चुके थे. ममता की रकम को हड़पने के लिए हम तीनों ने मांबेटे की हत्या की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक हम तीनों जब मांबेटे को कार में बैठा कर ले जा रहे थे तो चलती कार में हम तीनों ने शहजाद के गमछे से पहले ममता का गला घोंट कर उसे मार डाला था, फिर इस के बाद हम ने नरेंद्र उर्फ राजा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी थी. गला घोंटते वक्त मांबेटा चलती कार में चीखतेचिल्लाते रहे.

दोनों की हत्या करने के बाद हम ने पहले थाना मंगलौर के अंतर्गत लिब्बरहेड़ी नहर पटरी की झाडिय़ों में ममता के शव को फेंक दिया था. इस के बाद 15 वर्षीय राजा की लाश गांव भिश्तीपुर रोड के नाले में फेंक दी थी. दोनों मांबेटे के शवों को ठिकाने लगा कर तीनों लोग आराम से वापस अपनेअपने घर चले गए थे.

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एएसआई छुन्ना यादव के इस अपराध से जहां एक ओर पुलिस की छवि धूमिल हुई थी तो दूसरी ओर छुन्ना जैसे वरदीधारियों से आम जनता में पुलिस पर विश्वास डगमगाने जैसे हालात हो गए थे. इस के बाद एसपी (देहात) स्वप्न किशोर ने छुन्ना की इस करतूत की जानकारी एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल को दे दी.

एक नहीं की थीं 2-2 हत्याएं

श्री डोबाल ने वरदी को दागदार करने वाले छुन्ना सिंह यादव के खिलाफ तुरंत कानूनी काररवाई करने तथा छुन्ना की निशानदेही पर मंगलौर की लिब्बरहेड़ी नहर पटरी की झाडिय़ों से ममता का शव बरामद करने के निर्देश एसएचओ अंकुर शर्मा व एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह को दिए. दोनों अधिकारी छुन्ना यादव को ले कर लिब्बरहेड़ी नहर पटरी पर पहुंच गए.

छुन्ना यादव ने वह जगह पुलिस को दिखाई, जहां उस ने अपनी आल्टो कार से ममता के शव को फेंका था. छुन्ना की निशानदेही पर पुलिस ने ममता के शव को झाडिय़ों से बरामद कर लिया. शव बरामद होने के बाद अंकुर शर्मा ने ममता के शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय जे.एन. सिन्हा स्मारक अस्पताल भेज दिया.

ममता का शव बरामद होने के बाद एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह अपने साथियों अशोक, रविंद्र खत्री, राहुल, नितिन व महीपाल के साथ इस दोहरे हत्याकांड के शेष बचे 2 आरोपियों शहजाद व विनोद की गिरफ्तारी हेतु निकल पड़े थे. हालांकि छुन्ना यादव की गिरफ्तारी की जानकारी शहजाद व विनोद को मिल चुकी थी. तब वह किसी सुरक्षित स्थान पर छिपने की योजना बना रहे थे.

इस से पहले कि वे दोनों फरार होते, एसओजी टीम ने उन्हें हिरासत में ले लिया था. इस के बाद एसओजी टीम ने शहजाद निवासी गांव अकबरपुर झोझा तथा विनोद निवासी मोहल्ला सराय ज्वालापुर को हिरासत में ले लिया था. पुलिस टीम उन्हें ले कर थाना झबरेड़ा आ गई थी.

वहां पुलिस ने इन तीनों आरोपियों का आमनासामना कराया था. फिर तीनों आरोपियों ने पुलिस के सामने ममता व राजा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. आरोपियों से पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो  कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

छुन्ना यादव उत्तर प्रदेश के शहर औरैया के गांव राठा के रहने वाले भोलानाथ यादव का बेटा है. इस समय वह हरिद्वार पुलिस लाइन में एएसआई के पद पर तैनात है. साल 1995 में वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर भरती हुआ था. सन 2000 में जब उत्तर प्रदेश से काट कर उत्तराखंड का पुनर्गठन हुआ तो छुन्ना यादव उत्तराखंड पुलिस में चला गया. बाद में उस का प्रमोशन होता गया तो वह एएसआई बन गया. वर्ष 2011 से 2014 तक मैं यातायात पुलिस हरिद्वार में तैनात रहा था. शहजाद से पिछले 4 सालों से उस की दोस्ती थी.

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मृतका ममता

पिछले साल शहजाद ने छुन्ना यादव को ममता नामक महिला से मिलवाया था, जो अपने 15 वर्षीय बेटे राजा के साथ मोहल्ला सूर्यनगर सिडकुल (हरिद्वार) में रहती थी. ममता मूलरूप से कस्बा कांठ, जिला मुरादाबाद की रहने वाली थी. वह दृष्टिहीन थी. पिछले साल ममता मुरादाबाद से अपनी पुश्तैनी प्रौपर्टी बेच कर सिडकुल में मकान खरीद कर रहने लगी थी.

मुन्ना और शहजाद का अकसर ममता के घर पर आनाजाना लगा रहता था. इसी दौरान दोनों को यह पता चल गया कि किसी दूर के रिश्तेदार तक का ममता के पास आनाजाना नहीं है. इस से इन के मन में लालच आ गया था.

पुलिस वाले के मन में ऐसे जन्मा अपराध

इस के बाद छुन्ना यादव ने शहजाद के साथ मिल कर ममता का मकान बिकवा कर वह रकम हड़पने की योजना बनाई. छुन्ना ने ममता को उस का मकान बिकवा कर उसे रुड़की में मकान खरीदवाने का झांसा दिया.

चूंकि ममता उस की बातों पर विश्वास करती थी, इसलिए उस की बात वह मान गई थी. फिर उस ने व शहजाद ने ममता के पड़ोसी किनारा दुकानदार हेमराज को 20 लाख 70 हजार रुपए में मकान बिकवा दिया था और अधिकांश रकम दोनों शातिरों ने कब्जे में कर ली थी.

ममता के मकान बेचने से मिली रकम में से छुन्ना ने नई आल्टो कार खरीद ली थी. 9 फरवरी, 2024 को ममता को मकान खाली कर हेमराज को कब्जा देना था.

योजना के मुताबिक 9 फरवरी की सुबह को छुन्ना और शहजाद आल्टो कार से उसी समय ममता के घर पहुंचे. उसी समय शहजाद का बेटा भी वहां मिनी ट्रक ले कर आ गया था. उन्होंने ममता के घर का सामान उस मिनी ट्रक में रख कर मकान खाली कर दिया था.

शहजाद का बेटा वहां से मिनी ट्रक ले कर चला गया. छुन्ना ने ममता को आल्टो कार में अगली सीट पर बैठा लिया था. पिछली सीट पर शहजाद व नरेंद्र उर्फ राजा बैठ गए थे. कार ले कर वह रोशनाबाद की ओर चले थे तो रास्ते में उन्हें विनोद भी मिल गया था. छुन्ना ने कार रोक कर उसे भी पीछे बैठा लिया था. इस के बाद वे लोग हर की पौड़ी पहुंचे थे. यहां पर ममता व राजा नहाने लगे थे. उसी दौरान उन तीनों ने कार में बैठ कर शराब पी थी.

शाम को जब कुछ अंधेरा छाने लगा तो हम लोग कार ले कर रुड़की की ओर चल पड़े थे. जब कार रुड़की से पुरकाजी की ओर जा रही थी तो अचानक शहजाद ने अपने गमछे का फंदा बना लिया था और कार में आगे बैठी ममता के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया था.

राजा ने शोर मचाते हुए विरोध किया तो शहजाद और विनोद ने उसे दबोच लिया. ममता के दम तोडऩे के बाद शहजाद व विनोद ने उसी गमछे से नरेंद्र उर्फ राजा का भी गला घोंट कर उसे मार डाला था. फिर उन्होंने ममता के शव को लिब्बरहेड़ी गंगनहर पटरी की झाडिय़ों में फेंक कर भिश्तीपुर की ओर चले गए थे.

रकम बांट कर रह रहे थे बेखौफ

इस के बाद उन्होंने राजा के शव को भिश्तीपुर के एक नाले में फेंक दिया था. ममता व राजा के शवों को ठिकाने लगाने के बाद उन्होंने ममता के मकान को बेचने में मिली रकम को आपस में बांट लिया था और अपने अपने घरों को लौट गए थे.

तीनों आरोपियों छुन्ना यादव, शहजाद व विनोद से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 302, 201, 34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया था.

वैसे तो ममता के बुरे दिनों की शुरुआत तब से शुरू हो गई थी, जब से वह शहजाद व छुन्ना यादव के संपर्क में आई थी. उस वक्त शहजाद सिडकुल के मोहल्ला सूर्यनगर में ममता के घर के पास ही किराए के कमरे में रहता था.

इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड छुन्ना यादव ने पुलिस को बताया था कि ममता अपनी रकम हड़पने की शिकायत पुलिस से भी कर सकती थी, इसलिए उस ने ममता व उस के बेटे की हत्या की साजिश रची थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ममता व राजा उर्फ नरेंद्र की मौत का कारण गला घोंटने से हुई मौत बताया गया है. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने ममता पत्नी मुनेश व राजा के शवों को सिडकुल निवासी उन के दूर के रिश्तेदार को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हरियाणा का जज नियुक्ति घोटाला

पंचकूला के ऐतिहासिक नगर पिंजौर की वकील सुमन कुमारी प्रैक्टिस करने के साथसाथ जज बनने की तैयारी भी कर रही थीं. इस के लिए वह चंडीगढ़ के सेक्टर-24 स्थित ज्यूरिस्ट एकेडमी से कोचिंग ले रही थीं. यह एकेडमी उन्होंने मई, 2017 में जौइन की थी. यहीं पर सुनीता और सुशीला नाम की युवतियां भी कोचिंग लेने आती थीं. सुशीला पंचकूला के सेक्टर-5 की रहने वाली थी, जबकि सुनीता चंडीगढ़ में ही रहती थी.

सुशीला और सुनीता पिछले कई सालों से सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रही थीं, लेकिन इन में से कोई भी नौकरी से संबंधित परीक्षा पास नहीं कर पा रही थी.

वैसे भी दोनों एवरेज स्टूडेंट की श्रेणी में आती थीं, कोचिंग सेंटर द्वारा लिए जाने वाले वीकली टेस्टों में दोनों के बहुत कम नंबर आते थे. इस के बावजूद इन का हौसला कभी पस्त नहीं हुआ था. दोनों अपने प्रयासों में निरंतर लगी हुई थीं. इन का सपना कोई बड़ी सरकारी नौकरी हासिल करना था.

रोजाना एक ही जगह आनेजाने की वजह से सुमन की इन लड़कियों से जानपहचान हो गई थी. तीनों ने अपने मोबाइल नंबर भी आपस में एक्सचेंज कर लिए थे. सुशीला वकील सुमन से ज्यादा मिक्सअप हो गई थी.

एकेडमी में कोचिंग कर रहे अन्य युवकयुवतियों की तरह ये तीनों भी अपनेअपने ढंग से तैयारी करते हुए सुनहरे भविष्य के सपने बुन रही थीं. वकील सुमन के साथ अब सुनीता और सुशीला का भी सपना जज की कुरसी पर बैठने का बन गया था.

हरियाणा की अदालतों में 109 जजों की नियुक्ति होनी थी. इस के लिए 20 मार्च, 2017 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा विभिन्न समाचारपत्रों में एक विज्ञापन छपवाया गया, जिस के हिसाब से 16 जुलाई, 2017 को प्रारंभिक परीक्षा होनी थी. वांछित औपचारिकताएं पूरी कर के हजारों आवेदकों के साथसाथ इन तीनों युवतियों ने भी इस परीक्षा के लिए आवेदन किया.

सब के रोल नंबर समय पर आ गए, जिन के साथ परीक्षा सेंटरों की सूची भी संलग्न थी. ये सेंटर चंडीगढ़ के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में थे.

वक्त के साथ जून का अंतिम सप्ताह आ गया. न्यायालय में जज नियुक्ति के प्रतिष्ठित एग्जाम एचसीएस (जुडिशियल) के परीक्षार्थी अपनी तैयारी में जीजान से जुटे थे. एकेडमी वाले भी इन की तैयारी करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. कानून के विद्वान जानकारों द्वारा तैयार करवाए गए रिकौर्डेड लेक्चर तक उपलब्ध करवाए जा रहे थे.

27 जून को सुमन किसी कारण से एकेडमी नहीं आ पाई थीं. अगले रोज उन्होंने सुशीला को फोन कर के कहा, ‘‘कल के लेक्चर की रिकौर्डिंग भिजवा दे यार.’’

‘‘नो प्रौब्लम, अभी भिजवाए देती हूं.’’ सुशीला ने बेपरवाह लहजे में कहा.

इस के बाद सुमन के वाट्सऐप पर एक औडियो क्लिप आ गई. खोलने पर मालूम हुआ कि वह कोई लेक्चर न हो कर एक ऐसा वार्तालाप था, जो 2 महिलाओं के बीच हो रहा था. इन में एक आवाज सुशीला की ही लग रही थी.

सुमन को लालच में फंसाने की कोशिश की गई

इस बातचीत को सुमन ने ध्यान से सुना तो यह बात सामने आई कि कोई महिला सुशीला को जज बनने का आसान और पक्का रास्ता बता रही थी. वह महिला कह रही थी कि उस ने पक्का इंतजाम कर रखा है. डेढ़ करोड़ रुपया खर्च करने पर उस के पास संबंधित प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले ही पहुंच जाएगा. उस में दिए गए प्रश्नों की तैयारी कर के वह प्रारंभिक परीक्षा में अच्छी पोजीशन के साथ पास हो जाएगी. इस तरह वह मेन एग्जाम के लिए क्वालीफाइ कर लेगी.

बाद में समयसमय पर उसे शेष 5 परीक्षाओं के प्रश्नपत्र भी मुहैया करवा दिए जाएंगे, जिन की तैयारी करने के बाद वह मुख्य परीक्षा में भी अच्छे मार्क्स हासिल कर लेगी. इस के बाद इंटरव्यू में कैसे भी अंक मिलें, उसे नियुक्ति पत्र देने से कोई नहीं रोक सकेगा. इस तरह महज डेढ़ करोड़ रुपए खर्च कर के वह जज का प्रतिष्ठित पद हासिल कर लेगी. इस के बाद तो ऐश ही ऐश हैं.

बातचीत में इस महिला ने यह भी कहा कि महंगी कोचिंग ले कर दिनरात मेहनत करने का कोई फायदा नहीं, जजों के सभी पद पहले ही बिके होते हैं.

मैं तो यही सब करने जा रही हूं, तुम चाहो तो किसी भी तरह पैसों का इंतजाम कर के अपनी नौकरी पक्की कर सकती हो. बाद में जिंदगी भर कमाना. समाज में जो प्रतिष्ठा बनेगी सो अलग. इतना जान लो कि मिडल क्लास से अपर क्लास में शिफ्ट होने में देर नहीं लगेगी.

यह सब सुन कर सुमन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अगर यह बात सच थी तो वह कभी जज नहीं बन सकती थीं. इतनी बड़ी रकम जुटा पाने की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थीं. न तो प्रैक्टिस से उन्हें इतनी कमाई हो रही थी और न ही वह किसी अमीर घराने से संबंध रखती थीं. वह केवल अपनी कड़ी मेहनत के बूते पर जज बनने का सपना संजोए थीं.

सुमन ने इस बारे में सुशीला को फोन किया. उन की बात सुनते ही सुशीला बोली, ‘‘ओह सौरी, यह औडियो गलती से चला गया. तुम इसे अभी के अभी डिलीट कर दो. मैं भी डिलीट कर रही हूं.’’

‘‘ठीक है, कर देती हूं, लेकिन तुम मुझे लेक्चर वाली औडियो भेज दो.’’

‘‘अभी भेजती हूं, चिंता मत करो.’’ कहने के तुरंत बाद सुशीला ने पिछले दिन के लेक्चर की औडियो भेज दी.

वांछित औडियो का क्लिप तो सुमन को मिल गया लेकिन सुशीला ने गलती से भेजी गई औडियो को अपने फोन से डिलीट नहीं किया. यह औडियो उन के फोन की गैलरी में सुरक्षित थी. बाद में उन्होंने उसे कई बार सुना. जितनी बार सुना, उतनी बार वह परेशान होती रहीं. उन के भीतर यह डर गहराता जा रहा था कि ऐसे तो वह कभी जज नहीं बन पाएंगी.

2 दिन बाद सुमन की मुलाकात सुशीला से हुई तो उन्होंने उस औडियो की चर्चा छेड़ दी. इस पर सुशीला ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘यह बात तो गलत है मैडम, जब मैं ने आप से कहा था कि गलती से चली गई औडियो को डिलीट कर दो तो आप को उसे डिलीट कर देना चाहिए था.’’

‘‘अरे नहीं नहीं,’’ बात संभालने का प्रयास करते हुए सुमन ने स्पष्टीकरण दिया, ‘‘तुम्हारे कहने के बाद मैं ने उसी समय वह औडियो डिलीट कर दी थी. लेकिन उसे डिलीट करने से पहले लेक्चर के मुगालते में मैं ने उस बातचीत को सुन ही लिया था.’’

‘‘सुन लिया तो कोई बात नहीं, लेकिन इस बारे में किसी को कुछ बताया तो नहीं न?’’

‘‘मैं ने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया. लेकिन सुशीला, मैं तुम से एक बात की जानकारी चाहती हूं.’’

‘‘किस बात की?’’

‘‘यही कि क्या यह काम डेढ़ करोड़ दे कर ही हो सकता है, कुछ कम पैसे दे कर नहीं?’’

सुमन के इस सवाल का जवाब देने के बजाय सुशीला ने इधरउधर देखते हुए उल्टा उन्हीं से प्रश्न किया, ‘‘तुम इंटरेस्टेड हो क्या?’’

सुमन को अपनी मेहनत बेकार जाती लग रही थी

‘‘देखो सुशीला, सीधी सी बात है. इतनी बड़ी पोस्ट हासिल करने का सपना हजारों लोग देख रहे हैं. मैं भी उन्हीं में से एक हूं. लेकिन अगर उस औडियो में आई बातें सही हैं तो सच बता दूं कि मैं इतने पैसों का इंतजाम नहीं कर सकती. डेढ़ करोड़ रुपया बहुत होता है यार.’’

‘‘अब जब बात खुल ही गई है तो सीधेसीधे बता देती हूं कि यहां यही सब चल रहा है. फिर यह कोचिंग क्या मुफ्त में मिल रही है? मोटी फीस अदा करनी पड़ती है हर महीने. किताबों पर कितना खर्च हो रहा है. एकेडमी तक आनाजाना क्या फ्री में हो जाता है? सौ बातों की एक बात यह है कि सारी मेहनत और किया गया तमाम खर्च गड्ढे में चले जाना है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यही कि जज की ऊंची कुरसी पर बैठना है तो यह इनवैस्टमेंट करना ही पड़ेगा. इस के बाद जिंदगी भर इस पोस्ट से कमाना ही है, बड़ा रुतबा मिलेगा, सो अलग. इतने बड़े काम के लिए डेढ़ करोड़ रुपया भला कौन सी बड़ी रकम है.’’

‘‘हमारे जैसे लोगों के लिए है न.’’ सुमन ने मायूस होते हुए कहा.

इस पर सुशीला चुप रह कर सोचने की मुद्रा में आ गई. कुछ देर सोचने के बाद उस ने सुमन का हाथ अपने हाथों में ले कर सधे हुए शब्दों में कहना शुरू किया, ‘‘देखो सुमन, तुम बहुत नाइस और मेहनती हो. मैं दिल से चाहती हूं कि अपने मकसद में कामयाब होते हुए जज की कुरसी तक पहुंचो. लेकिन तुम्हारी मजबूरी मुझे साफ दिख रही है. चलो, मैं कुछ करती हूं, तुम्हें रिलीफ दिलवाने के लिए.’’

इस के बाद इस बारे में दोनों के बीच होने वाली बात यहीं खत्म हो गई.

सुशीला के पति हरियाणा में सबइंसपेक्टर हैं. सुशीला पति को साथ ले कर 12 जुलाई को पिंजौर गई. मार्केट में एक जगह रुक कर उस ने सुमन को फोन कर के वहां बुलाया.

वह आ गईं तो सुशीला ने उन से सीधेसीधे कहा, ‘‘प्रश्नपत्र की कौपी सुनीता के पास है. उस ने यह कौपी डेढ़ करोड़ में खरीदी है. जो औडियो मैं ने गलती से तुम्हें भेज दिया था, उस में मेरी उसी से बात हो रही थी. सुनीता से मिल कर मैं ने तुम्हारे बारे में बात की है.’’

‘‘तो क्या कहा उस ने?’’ सुमन ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘देखो, मेरी बात का बुरा मत मानना, यह काम मुफ्त में तो होगा नहीं. आप 10-10 लाख कर के पैसे देती रहो. हर बार के 10 लाख पर तुम्हें प्रश्नपत्र में से 5-6 सवाल नोट करवा दिए जाएंगे. काम एकदम गारंटी वाला है, लेकिन बिना पैसों के होने वाला नहीं है. इतना जान लो कि इस तरह की सुविधा भी केवल तुम्हें दी जा रही है, वरना एकमुश्त डेढ़ करोड़ रुपया देने वालों की लाइन लगी है. पक्के तौर पर जज की पोस्ट उन्हीं लोगों से भरी जानी है.’’ सुशीला ने बताया.

‘‘ठीक है सुशीला, मैं सोचती हूं इस बारे में.’’ सुमन ने मायूस होते हुए कहा.

‘‘सोच लो, बस इस बात का ध्यान रखना कि टाइम बहुत कम है. एक बार मौका हाथ से निकल गया तो सिवाय पछताने के कुछ हासिल नहीं होगा.’’

एक तरह से चेतावनी देने के बाद सुशीला अपने पति के साथ वापस चली गई. कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था सुमन को, पैसा उन के पास था नहीं

सुमन इस सब से काफी अपसेट सी हो गई थी. जितने जोशोखरोश से वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी, अब उस तरह पढ़ाई कर पाना उस के लिए मुश्किल हो गया था. उस का मन यह सोचसोच कर अवसाद से भरता जा रहा था कि जब जजों की नियुक्ति पैसा दिए जाने के बाद ही होनी है तो फिर इस तरह जीतोड़ मेहनत करने का क्या फायदा. इस तरह 2 दिन का वक्त और निकल गया. 15 जुलाई को सुशीला ने सुमन को फोन कर के दोपहर 2, ढाई बजे चंडीगढ़ के सेक्टर-17 स्थित सिंधी रेस्टोरेंट पहुंचने को कहा.

निर्धारित समय पर सुमन वहां पहुंच गईं. वहां सुशीला के साथ सुनीता भी थी. इन लोगों ने रेस्टोरेंट के फर्स्ट फ्लोर पर बैठ कर बातचीत शुरू की. सुनीता ने कहा कि वह सुमन का काम डेढ़ करोड़ की बजाय केवल 1 करोड़ में कर देगी, सीधे 50 लाख का फायदा.

सुमन के लिए यह कतई संभव नहीं था. फिर भी उन्होंने जैसेतैसे 10 लाख रुपयों का इंतजाम कर के सुनीता से संपर्क किया, लेकिन उस ने एक भी प्रश्न दिखाने से मना कर दिया. सुमन ने सुशीला से मिल कर उसे बताया कि पता नहीं क्यों सुनीता उस पर शक करते हुए अजीब ढंग से बात कर रही थी.

अब टाइम नहीं बचा था. अगले रोज पेपर था. सुशीला व सुनीता के साथ सुमन ने भी परीक्षा दी.

सुमन पढ़ाई में होशियार थीं, वह पेशे से वकील भी थीं. फिर भी रिजल्ट घोषित होने पर जहां सुमन को निराशा मिली, वहीं सुशीला और सुनीता इस टफ एग्जाम को क्लीयर कर गईं. यह बात भी सामने आई कि सुनीता सामान्य वर्ग में और सुशीला रिजर्व कैटेगरी में न केवल प्रथम आई थीं, बल्कि दोनों इतने ज्यादा अंक हासिल किए थे, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

सुमन को इस परीक्षा के उत्तीर्ण न होने का इतना दुख नहीं था, जितना अफसोस इस बात का था कि जैसा सुशीला ने कहा था, वैसा ही हुआ था. यह एक बड़ी ज्यादती थी, जिस के बल पर जिंदगी में ऊंचा उठने के काबिल लोगों के भविष्य से सरेआम खिलवाड़ किया जा रहा था.

सुमन ने इस मुद्दे पर काफी गहराई से सोचा. उन के पास न केवल सुशीला द्वारा गलती से भेजी गई औडियो क्लिप थी, बल्कि बाद में भी उस के साथ हुई बात की कई टेलीफोनिक काल्स थीं, जो उन्होंने रेकौर्ड की थीं. आखिर उन से रहा नहीं गया और जुटाए गए सबूतों के साथ उन्होंने इस संबंध में अपनी एक याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दायर कर दी. यह याचिका हाईकोर्ट के वकील मंजीत सिंह के माध्यम से दाखिल की गई थी.

आखिर सुमन ने उठा ही लिया कानूनी कदम

हाईकोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए इस की गोपनीय तरीके से गहन जांच करवाई तो यह बात सामने आई कि इस घोटाले में मुख्यरूप से हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार डा. बलविंदर कुमार शर्मा शामिल थे. उन्हीं के पास परीक्षापत्र थे, जिन में से एक की कौपी करवा कर उन्होंने सुनीता को मुहैया करवा दी थी.

सुनीता सुशीला से मिल कर परीक्षार्थियों से संपर्क कर के डेढ़ करोड़ रुपयों में इस डील को अंतिम रूप देने लगी थी. रजिस्ट्रार का पद जज के पद के समानांतर होता है.

अपनी गहन छानबीन के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में डा. बलविंदर कुमार शर्मा, सुनीता और सुशीला के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर के इन्हें गिरफ्तार करने की संस्तुति दे दी.

इस तरह 19 सितंबर, 2017 को चंडीगढ़ के सेक्टर-3 स्थित थाना नौर्थ में भादंवि की धाराओं 409, 420 एवं 120बी के अलावा भ्रष्टाचार अधिनियम की धाराओं 8, 9, 13(1) व 13(2) के तहत तीनों आरोपियों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज हो गई.

हाईकोर्ट के आदेश पर ही इस केस की जांच के लिए चंडीगढ़ पुलिस के नेतृत्व में स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम का गठन कर दिया गया. इस एसआईटी में डीएसपी कृष्ण कुमार के अलावा थाना नौर्थ की महिला एसएचओ इंसपेक्टर पूनम दिलावरी को भी शामिल किया गया था. एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद डा. बलविंदर कुमार को उन के पद से हटा दिया गया. 28 दिसंबर, 2017 को उन के अलावा सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

डा. बलविंदर जहां जज के पद का रुतबा हासिल किए हुए थे, वहीं सुनीता भी वकालत करती थी. लिहाजा पुलिस द्वारा इन से सख्त तरीके से पूछताछ करना संभव नहीं था. मनोवैज्ञानिक आधारों पर ही पूछताछ कर के इन्हें न्यायिक हिरासत में भिजवा दिया गया. सुशीला अभी तक पकड़ में नहीं आई थी.

14 जनवरी, 2018 को उसे भी उस के पंचकूला स्थित आवास से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड में लिया गया. पुलिस ने उस से गहनता से पूछताछ की.

आज जहां हर केस की एफआईआर पुलिस की वेबसाइट पर उपलब्ध हो जाती है, इस मामले को सेंसेटिव केस की संज्ञा देते हुए इस की एफआईआर जगजाहिर नहीं की गई थी. पुलिस पत्रकारों से बचते हुए इस केस की छानबीन का काम निहायत होशियारी से करती रही. इस मामले में किस ने कितना पैसा लिया, किस ने दिया और किस से कितना रिकवर किया गया, आदि मुद्दों की जानकारी पुलिस ने सामने नहीं आने दी.

हाईकोर्ट के आदेश पर जज के पद की यह प्रारंभिक परीक्षा पहले ही रद्द कर दी गई थी. थाना पुलिस ने तीनों अभियुक्तों के खिलाफ अपनी 2140 पेज की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी है. अन्य केसों के आरोपियों की तरह इस केस के आरोपी भी अपने को बेकसूर कह रहे हैं. किस का क्या कसूर रहा, इस घोटाले में किस की क्या भूमिका रही, इस का उत्तर तो केस का फैसला आने पर ही मिल पाएगा.

बहरहाल, जज जैसे अतिप्रतिष्ठित पद के साथ भ्रष्टाचार का ऐसा खिलवाड़ किसी त्रासदी से कम नहीं.

न्यूड फोटो से ब्लैकमेलिंग

सेजल ने अपनी छोटी बहन को वाट्सऐप से एक स्क्रीन शौट भेज कर मैसेज किया, जिस में उस की न्यूड फोटो को वायरल करने की धमकी दे कर पैसे मांगने की बातचीत थी. यही नहीं, उस ने स्टेटस भी लगाया था कि उस के साथ फ्रौड हुआ है. बहन के मोबाइल पर स्टेटस और उस के द्वारा भेजा गया मैसेज देख कर छोटी बहन ने तुरंत सेजल से बात की थी.

तब सेजल ने बताया था कि कुछ दिनों पहले उस ने बैंक लोन की जानकारी के लिए अपने मोबाइल में कैशमाय ऐप डाउनलोड किया था, उसी समय उस ने ऐप की सारी कंडीशन एक्सेप्ट कर ली थीं. इस के बाद उस के फोन ने एक्सेस दे दिया था.

कहने का मतलब यह है कि इस तरह उस का फोन हैक हो गया था. इस के कुछ दिनों बाद उस के वाट्सऐप पर उस की न्यूड फोटो भेज कर धमकी दी गई थी कि अगर उस ने जितने पैसे मांगे जा रहे हैं, उतने पैसे नहीं दिए तो उस का यह फोटो उस के सभी रिश्तेदारों और मित्रों को तो भेज ही दिया जाएगा, सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया जाएगा.

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              सेजल

अपने न्यूड फोटो देख कर सेजल घबरा गई थी. उस ने कई बार औनलाइन ट्रांजैक्शन के जरिए पैसे मांगने वालों को करीब 45 हजार 5 सौ रुपए भेज चुकी थी, पर वे तो अभी भी पैसे की मांग कर रहे थे.

गुजरात का सूरत शहर साडिय़ों के लिए जाना जाता है. यहां साडिय़ां तैयार करने के लिए छोटीछोटी तमाम फैक्ट्रियां हैं, इसलिए पूरे देश से लोग यहां रोजीरोटी की तलाश में आते हैं.

अपनी नौकरी की वजह से ही मूलरूप से गुजरात के कोसंबा के रहने वाले दौलतभाई परमार का 25 साल पहले सूरत तबादला हुआ तो फिर वह यहीं के हो कर रह गए थे. वह इनकम टैक्स विभाग में नौकरी करते थे. सूरत के ही जहांगीरपुरा में उन्होंने अपना मकान बना लिया था, जहां वह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी जागृतिबेन के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था.

दौलतभाई के बच्चों में सेजल सब से बड़ी थी. बड़ी होने की वजह से मम्मीपापा की लाडली थी. फिर वह पढऩे में भी बहुत अच्छी थी, इसलिए मम्मीपापा उसे जान से ज्यादा प्यार करते थे.

सेजल ने वनिता विश्राम स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई की थी. 12वीं में उस की स्कूल में तीसरी रैंक आई थी. इस के बाद उस ने नवयुग कालेज से बीएससी किया. सेजल इतनी ब्राइट स्टूडेंट थी कि कालेज में उस की पहली रैंक आई थी.

इस के बाद उस ने वीर नर्मद दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी से कैमिस्ट्री में एमएससी किया, जहां उस की सेकेंड रैंक आई थी. अच्छी रैंक आने के कारण उसे इसी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिल गई थी. अपनी नौकरी करते हुए वह पीएचडी भी कर रही थी. पीएचडी का उस का एक साल पूरा हो गया था. 14 मार्च को उस का पीएचडी का रिजल्ट आया, जिस में वह पास हो गई थी. वह बहुत खुश थी.

लेकिन अगले दिन ही उस की खुशी उडऩछू हो गई, क्योंकि ब्लैकमेलर ने उस के न्यूड फोटो वायरल करने की धमकी दे कर मोटी धनराशि की मांग की.

सेजल बहुत परेशान हो गई. उस ने यह बात अपनी बहन को बताई तो छोटी बहन के कहने पर सेजल ने थाना रांदेर जा कर अपने ब्लैकमेलिंग की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. उस ने थाना रांदेर पुलिस को वे नंबर भी दिए थे, जिन से उसे मैसेज आ रहे थे. पता चला कि वे सभी नंबर पाकिस्तान की आईडी के थे.

रेलवे लाइनों में मिली प्रोफेसर की लाश

उसी दिन यानी 15 मार्च को पिता दौलतभाई की नौकरी के 30 साल पूरे हुए थे, जिस के उपलक्ष्य में उन्होंने औफिस में तो मिठाई बांटी ही थी, सेजल के कहने पर वह घर भी मिठाई ले कर आए थे. घर में खुशी का माहौल था.

सब ने साथ बैठ कर मिठाई खाई थी. तब ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा था कि सेजल परेशान है. उस ने पिता से तो क्या, घर में छोटी बहन के अलावा किसी अन्य से भी अपने ब्लैकमेल होने के बारे में कोई बात नहीं की थी.

खूबसूरत सेजल की बढिय़ा नौकरी थी. वेतन भी अच्छाखासा था. वह घर से ही यूनिवर्सिटी जाती थी. 16 मार्च, 2023 को भी सेजल सफेद सलवार और सफेद कुरता पहन कर यूनिवर्सिटी जाने के लिए उसी तरह घर से निकली थी, जिस तरह रोजाना निकलती थी. पर उस दिन वह घर लौट कर नहीं आई.

दोपहर के बाद उस के भाई हर्ष परमार के पास रेलवे पुलिस का फोन आया कि वीर नर्मद दक्षिण यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर सेजल परमार ने उत्राण और कोसाद रेलवे स्टेशन के बीच सौराष्ट्र एक्सप्रैस के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली है.

यह खबर हर्ष ने जब घर वालों को बताया तो घर वालों पर तो आफत ही टूट पड़ी. पूरा परिवार बिलखबिलख कर रोने लगा. रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी दौड़े आए. वजह जान कर सभी को दुख हुआ. क्योंकि सेजल ऐसी लड़की थी, जो सब की चहेती थी.

खास रिश्तेदारों को भी सूचना दी गई. दौलतभाई औफिस में थे. सूचना पाते ही अपने कुछ सहयोगियों के साथ वह घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

इधर हर्ष अपनी मां, छोटी बहन, कुछ पड़ोसियों और नजदीकी रिश्तेदारों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गया. सब ने पहुंच कर लाश की शिनाख्त की. रेलवे पुलिस ने घटनास्थल की अपनी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सूरत के सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

सेजल की आत्महत्या का मुकदमा रेलवे पुलिस ने दर्ज कर जांच शुरू की. सेजल के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था. रेलवे थाना पुलिस को पूछताछ में पता चला कि 2 दिन पहले सेजल ने सूरत के थाना रांदेर में एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में उस ने लिखाया था कि कोई उसे न्यूड फोटो वायरल करने की धमकी दे कर पैसे वसूल रहा है.

रेलवे पुलिस को जब पता चला कि यह ब्लैकमेलिंग का मामला है और इस की रिपोर्ट पहले से ही थाना रांदेर मे दर्ज है तो उन्होंने सेजल की आत्महत्या का जो मुकदमा दर्ज किया था, उसे थाना रांदेर को ट्रांसफर कर दिया.

प्रोफेसर को ससुराल वाले क्यों करते थे टौर्चर

थाना रांदेर के एसएचओ इंसपेक्टर अतुल सोनारा इस मामले की जांच में लगे ही थे. उन्हें तो पहले से ही पता था कि यह ब्लैकमेलिंग का मामला है. उन्होंने घर वालों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में पता चला कि सेजल का विवाह 3 साल पहले 9 दिसंबर, 2021 को सूरत के ही एक परिवार में हुआ था. पर उस का पति विवाह के 3 महीने बाद ही उस पर बदचलनी का आरोप लगा कर अस्पताल ले जाने के बहाने मायके छोड़ गया था.

ससुराल वाले उस पर डिवोर्स के लिए दबाव डाल रहे थे. सास ने महिला थाने में सेजल पर चीटिंग का मुकदमा भी दर्ज कराया था, जिस के लिए सेजल को थाने जा कर बयान भी दर्ज कराना पड़ा था. इस तरह ससुराल वाले सेजल को प्रताडि़त करने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे थे.

पर मायके वालों ने सेजल को तनाव में नहीं आने दिया. सभी लोग हर तरह से उस का सहयोग कर रहे थे. वीर नर्मद दक्षिण यूनिवर्सिटी में उसे असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिल ही चुकी थी. वह 12 बजे तक एमएससी के बच्चों को केमिस्ट्री पढ़ाती थी. उस के बाद अपनी पीएचडी की पढ़ाई करती थी. यूनिवर्सिटी वह अकेली ही आतीजाती थी.

वह अपने काम पर पूरा ध्यान दे रही थी. इसलिए ससुराल वालों के परेशान करने के बावजूद उस ने कभी थाने में शिकायत नहीं दर्ज कराई थी. डिवोर्स का भी मुकदमा इसलिए नहीं किया था कि उसे बारबार थाने या कचहरी के चक्कर लगाने पड़ेंगे, जिस से उस की पढ़ाई का नुकसान होगा. वह पढ़ाई पूरी करने के बाद डिवोर्स लेना चाहती थी.

सेजल के घर वालों ने आरोप लगाया था कि यह सब सेजल के पति ने कराया होगा. क्योंकि वह सेजल को परेशान करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.

वैसे भी सेजल को बदनाम करने के लिए सभी से कहता था कि सेजल भाग गई है. उसी ने सेजल को न्यूड फोटो वायरल करने धमकी दिलाई होगी. क्योंकि सेजल ने आत्महत्या करने से पहले उसे 3 फोन किए थे, पर उस ने फोन नहीं उठाया था. अगर उस ने फोन उठा लिया होता तो शायद सेजल जिंदा होती.

पुलिस ने जब इस मामले की गहराई से जांच की तो पता चला कि सेजल की ससुराल वाले सेजल के साथ कैसा भी व्यवहार करते रहे हों, पर इस मामले में उन का कोई हाथ नहीं है.

सेजल के साथ यह जो ब्लैकमेलिंग हो रही थी, इस की उन्हें जानकारी थी, क्योंकि ब्लैकमेलर्स ने सेजल का मोर्फ किया हुआ फोटो उस के पति को भी भेजा था.

उस ने वह फोटो अपने घर वालों को दिखाया भी था, पर इस की जानकारी न तो सेजल को दी थी, न ही उस के घर वालों को. उस ने सेजल की आत्महत्या के बाद भी किसी को नहीं बताया था कि उस के पास सेजल का मोर्फ किया हुआ फोटो आया था.

पाकिस्तानी नंबरों की क्या थी हकीकत

जब सेजल के ससुराल वाले बेगुनाह दिखे तो पुलिस ने उन नंबरों के माध्यम से जांच आगे बढ़ाने का फैसला किया, जिन से सेजल को मैसेज भेजे जा रहे थे. पता चला कि तीनों नंबर पाकिस्तान के थे.

पुलिस को इन नंबरों पर शक हुआ. क्योंकि सेजल ने जिस आईडी पर पैसे भेजे थे, वे इंडिया की थीं. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि जिन पाकिस्तानी नंबरों से फोन किया जा रहा था, वे वर्चुअली बनाए गए हैं. वे सेजल की मौत के बाद भी मैसेज कर के पैसे भेजने के लिए कह रहे थे. इतना ही नहीं, वे पुलिस को भी इस तरह गालियां दे रहे थे, जैसे उन्हें पुलिस का जरा भी डर न हो.

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यह पूरा मामला सोशल मीडिया से जुड़ा था, इसलिए सूरत के पुलिस कमिश्नर अजय तोमर ने इस मामले में थाना पुलिस की मदद के लिए पुलिस की साइबर टीम को भी लगा दिया. इस मामले को डीसीपी हर्षद मेहता खुद हैंडिल कर रहे थे.

साइबर विभाग ने जब आईपी एड्रेस की जांच की तो सारे नंबरों की लोकेशन बिहार की मिली. इस के बाद गुजरात पुलिस की एक टीम बिहार के जिला जमुई गई. बिहार का यह नक्सली इलाका है. तब भेष बदल कर स्थानीय पुलिस की मदद से सूरत की पुलिस ने 5 मई, 2023 को जमुई के केवली गांव से 3 लोगों अभिषेक कुमार, रोशन कुमार और सौरभ राज को गिरफ्तार किया.

पूछताछ में अभियुक्तों ने बताया कि वे मात्र 10वीं पास हैं. उन्होंने औनलाइन सर्च द्वारा फोन हैक करना सीखा और घर से दूर खेतों में या जंगलों में बैठ कर लोगों को मोर्फ की गई न्यूड फोटो भेज कर वायरल करने की धमकी दे कर पैसे वसूल करते हैं.

वे किसी के फोन में एप्लिकेशन भेज कर औफर देते हैं. तमाम कंडीशन एक्सेप्ट करने के बाद मोबाइल एक्सेस दे देता है. इस के बाद उस की फोटो को मोर्फ कर के न्यूड फोटो भेज कर धमकी दे कर पैसे वसूलते हैं.

ऐसा ही उन्होंने सेजल के साथ भी किया था. सेजल ने कुछ पैसे भेजे भी थे. लेकिन वे तो लाखों रुपए मांग रहे थे. जब सेजल ने उतने पैसे देने से मना किया तो उस पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने मोर्फ किया गया उस का न्यूड फोटो उस के पति को ही नहीं, उस के दोस्तों को भी भेज दिया था.

पति के पास उस का न्यूड फोटो पहुंच गया है, इस बात की जानकारी सेजल को हो गई थी. ससुराल वाले उसे ऐसे ही बदनाम कर रहे थे. अब उन्हें बदनाम करने के लिए सेजल की न्यूड फोटो भी मिल गई थी. अगर उन्होंने उस की फोटो वायरल कर दी तो वह और उस के घर वाले समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे.

सेजल ने पति को यही बताने के लिए कई बार फोन किया था, पर उस ने फोन उठाया ही नहीं था. तब इज्जत बचाने के लिए सेजल ने ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली थी.

पुलिस ने गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों के पास से लैपटाप, प्रिंटर, कीबोर्ड, फिंगर प्रिंट मशीन और करीब 15 हजार आधार कार्ड की फोटोस्टेट कौपियां जब्त की थीं.

ये लोगों को लोन की किस्त भरने के नाम पर फंसाते थे और उन का फोन हैक कर के न्यूड फोटो भेज कर धमका कर पैसा वसूल करते थे. गिरफ्तार अभियुक्तों को स्थानीय अदालत में पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर सूरत लाया गया.

अभिषेक, रोशन कुमार और सौरभ से पूछताछ में पता चला कि इस मामले में यही 3 लोग शामिल नहीं हैं. रिमांड के दौरान पूछताछ में इन के पाकिस्तान कनेक्शन का पता चला. इन के साथ रेशम कुमार, लकबीर ट्रेडर्स, जूही शेख और शांतनु जोंघले भी यही काम कर रहे थे. इन सभी के नंबर बिहार से गिरफ्तार अभियुक्तों से मिल गए थे.

गैंग में शामिल थीं 2 महिलाएं

पुलिस को अन्य लोगों की लोकेशन तो नहीं मिली, पर जूही शेख की लोकेशन मिल गई थी. वह आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा स्ट्रीट के पांजा सेंटर में रहती थी. उसे गिरफ्तार करने के लिए सूरत पुलिस की एक टीम भेजी गई. इस टीम में 6 सदस्य शामिल थे, जिस में 2 महिलाएं थीं और 4 पुरुष. इस टीम का नेतृत्व खुद एसीपी बी.एम. चौधरी कर रहे थे.

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                               आरोपी जूही शेख

विजयवाड़ा पहुंच कर पुलिस टीम ने लोकेशन तो ट्रेस कर ली, पर यह पता नहीं चल पा रहा था कि जूही रहती किस घर में है. दूसरी सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह मुसलिम बहुल इलाका था.

तब सूरत से गए पुलिसकर्मियों ने स्थानीय पुलिस की मदद से अपने नाम बदल कर मुसलिमों जैसे कपड़े पहने और किराए का मकान ढ़ूंढऩे के बहाने जूही की तलाश शुरू की. वे कभी पतिपत्नी बन कर लोगों से मकान के बारे में पूछते थे तो कभी भाईबहन बन कर. पुलिस 3 दिनों तक जूही का पता लगाने के लिए भटकती रही.

तीसरे दिन जैसे ही जूही की सही लोकेशन मिली, पुलिस ने उसे धर दबोचा. पुलिस जिस समय उसे गिरफ्तार करने पहुंची, वह बाथरूम में घुस कर मोबाइल का डाटा डिलीट कर रही थी. तलाशी में उस के पास 3 मोबाइल फोन, 2 बैंकों की पासबुकें और 72 यूपीआई एड्रेस मिले थे. पता चला कि उस के कुल 7 बैंक एकाउंट थे. उसे भी स्थानीय अदालत में पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर सूरत लाया गया.

जूही को सूरत ला कर अदालत में पेश किया गया, जहां से पूछताछ के लिए उसे रिमांड पर लिया गया. फोन तथा ईमेल आईडी की जांच से पता चला कि वह आसानी से कर्ज चुकाने के नाम पर लोगों को ठगती थी और वह यहां से जो पैसे वसूलती थी, उस का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में बैठे अपने आका जुल्फिकार को डिजिटल करेंसी बिटकौइन के माध्यम से भेजती थी.

डीसीपी हर्षद मेहता ने बताया कि जूही शेख एप्लीकेशन के माध्यम से सैक्सटौर्शन की बदौलत रोजाना 50 से 60 हजार रुपए की ठगी कर रही थी. यह काम वह पिछले 5-6 सालों से कर रही थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

कौन समझेगा इनके दर्द को?

भोपाल के करोंद इलाके में रहने वाली 20 वर्षीय रानी (बदला हुआ नाम) के पिता की मौत एक साल पहले हुई थी. पिता के साथसाथ आमदनी का जरिया भी खत्म हो गया तो घर में फांकों की नौबत आ गई. खुद रानी ही नहीं बल्कि उस के 8 भाईबहन भी एक वक्त भूखे सोने को मजबूर हो गए. बड़े भाई ने प्राइवेट नौकरी कर ली पर उसे इतनी पगार नहीं मिलती थी कि घर के सभी सदस्य भर पेट खाना खा सकें.

ऐसे में रानी को लगा कि उसे भी कुछ काम करना चाहिए. सोचविचार कर वह नौकरी की तलाश में घर से बाहर निकली. रानी खूबसूरत भी थी और जवान भी, लेकिन नामसमझ नहीं थी. नौकरी के नाम पर हर किसी ने उस से जो चाहा, वह थी उस की जवानी. जहां भी वह काम मांगने जाती, मर्दों की निगाह उस के गठीले जिस्म पर रेंगने लगती थी. कम पढ़ीलिखी रानी को पहली बार समझ आया कि किसी भी अकेली जरूरतमंद लड़की के लिए सफेदपोश लोगों से अपनी आबरू सलामत रख पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.

काम की तलाश में दरबदर घूमने के बाद जब वह शाम को थकीहारी घर लौटती तो भाईबहनों के लटके, भूखे और मुरझाए चेहरे उस की चाल देख कर ही नाउम्मीद हो उठते थे. वे समझ जाते थे कि आज भी खाली पेट पानी पी कर सोना पड़ेगा. भाई की पगार से मुश्किल से 10-12 दिन का ही राशन आ पाता था. घर के दीगर खर्चे भी खींचतान कर चलते थे.

नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों ने तो पिता की मौत के साथ ही नाता तोड़ लिया था. रानी अब उन लोगों की ज्यादा गलती नहीं मानती, क्योंकि उसे समझ आ गया था कि पैसा ही सब कुछ है. जबकि पैसा उतनी आसानी से नहीं मिलता, जितना आसान सोच कर लगता है. यह दुनिया बड़ी हिसाब किताब वाली है, जो पैसे देता है वह बदले में कुछ न कुछ चाहता भी है.

एक असहाय बेसहारा लड़की के पास देने के लिए जो कुछ होता है, वह रानी ने अपनी कीमत पर देना शुरू किया तो उस पर पैसा बरसने लगा.

भूख से बिलबिलाते जिन भाईबहनों को देख रानी का कलेजा मुंह को आ जाता था, उन के पेट उस की कमाई से भरने लगे तो रानी को सुकून देने वाला अहसास हुआ. घर में अब खानेपीने की कमी नहीं थी.

न तो बड़े भाई ने पूछा, न ही किसी और ने. फिर भी समझ हर किसी ने लिया कि रानी कैसे और कहां से इतना पैसा लाती है कि उस के पास महंगे कपड़े और मेकअप का सामान आने लगा है.

काम की तलाश के दौरान रानी को कई तरह के तजुरबे हुए थे. तमाम नए लोगों से उस की जानपहचान भी हो गई थी. उन में से एक था कपिल नाम का शख्स, जिस ने बहुत अपनेपन से उसे यह समझाने में कामयाबी पा ली थी कि यूं अकेली काम की तलाश में दरदर भटकोगी तो लोग नोच खाएंगे. इस से तो बेहतर है कि लोग जो चाहते हैं, उसे बेचना शुरू कर दो. इस से जल्द ही मालामाल हो जाओगी.

कपिल उसे भरोसे का और समझदार आदमी लगा तो उस ने मरती क्या न करती की तर्ज पर देह व्यापार के लिए हामी भर दी. कपिल अपने वादे पर खरा उतरा और देखते ही देखते वह हजारों में खेलने लगी.

बीती 29 दिसंबर को कपिल ने उसे बताया कि टीकमगढ़ से उस के कुछ दोस्त आने वाले हैं और एक दिन रात के एवज में उसे इतनी रकम देंगे, जितनी वह महीने भर में कमा पाती है.

सौदा 14 हजार रुपए में तय हुआ. हालांकि कपिल और उस के दोस्तों की बेताबी देख रानी ज्यादा पैसे मांग रही थी. लेकिन कपिल इस से ज्यादा देने को तैयार नहीं हुआ तो वह इतने में ही मान गई. उस के लिए यह सौदा घाटे का नहीं था.

साल की दूसरी आखिरी शाम यानी 30 दिसंबर को जब पूरी दुनिया नए साल के जश्न की तैयारियों में लगी थी, तब रानी कपिल के बताए मिसरोद इलाके के शीतलधाम अपार्टमेंट के फ्लैट पर पहुंच गई, जहां कपिल सहित 3 और मर्द बेचैनी से उस का इंतजार कर रहे थे. रानी तो यही सोचसोच कर खुश थी कि एक झटके में 14 हजार रुपए मिल जाएं तो वह 2-4 दिन घर पर आराम करेगी और भाईबहनों के साथ वक्त बिताएगी.

रात भर चारों ने जैसेजैसे चाहा, वैसेवैसे उस ने उन्हें खुश किया, पर साल की आखिरी सुबह रानी पर भारी पड़ी. सुबहसुबह ही मिसरोद पुलिस ने दबिश दे कर देह व्यापार के इलजाम में उन पांचों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

ऐसे पुलिस छापों के बारे में रानी ने काफी कुछ सुन रखा था पर वास्ता पहली बार पड़ा था. थाने में जैसे ही उसे मीडिया वालों से बात करने का मौका मिला तो उस ने अपनी गरीबी और बदहाली की दास्तां बयां कर दी, जिस से किसी ने हमदर्दी नहीं जताई.

रानी कोई पहली या आखिरी लड़की नहीं थी जो अपनी मजबूरियों के चलते अपना और अपने घर वालों का पेट पालने के लिए देह व्यापार की दलदल में उतरी थी. ऐसी लड़कियों की तादाद अकेले भोपाल में 25 हजार से ऊपर आंकी जाती है, जो पार्टटाइम या फुलटाइम यह धंधा करती हैं.

पिछले साल अक्तूबर में भोपाल के ही एक मसाजपार्लर में पड़े छापे में 2 और लड़कियों की आपबीती रानी से ज्यादा जुदा नहीं है. 24 वर्षीय मधु (बदला नाम) इस मसाजपार्लर में ग्राहकों की मालिश करती थी. सच यह भी है कि ग्राहक खुद पहल करता था तो वाजिब दाम पर वह जिस्म बेचने को भी तैयार हो जाती थी.

मधु छापे वाले दिन थाने में खड़ी थरथर कांप रही थी. उसे चिंता अपनी कम अपने अपाहिज पिता की ज्यादा थी, जिन्हें रोजाना शाम को दवा और खाना वही देती थी. रानी की तरह ही झोपड़ेनुमा मकान में रहने वाली मधु अपने अपाहिज पिता के इलाज और पेट भरने के लिए इस धंधे में आई थी, जिसे अपने धंधे की बाबत किसी से न कोई गिलाशिकवा था और न ही वह इसे गलत मानती थी.

इसी छापे में पकड़ी गई 26 वर्षीय सुचित्रा (बदला नाम) को उस के शौहर ने छोड़ दिया था. मायके वालों ने कुछ दिन तो उसे रखा पर शौहर से सुलह की गुंजाइश खत्म होते देख उसे आए दिन ताने दिए जाने लगे.

खुद सुचित्रा को भी लग रहा था कि उसे किसी दूसरे पर बोझ नहीं बनना चाहिए. लिहाजा वह भी रानी और मधु की तरह जोशजोश में काम की तलाश में निकल पड़ी. 4 हजार रुपए महीने की पगार पर एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी मिली, पर जल्द ही उसे समझ आ गया कि नौकरी तो कहने भर की है. अगर वक्त पर पैसा चाहिए तो जैसा ब्यूटीपार्लर चलाने वाली कह रही है, वैसा करना पड़ेगा. इस के बाद उस ने नौकरी छोड़ दी.

इस पर घर वालों ने फिर ऐतराज जताया तो उस ने भी मसाजपार्लर में नौकरी कर ली, जहां उसे 15 हजार रुपए देने की बात कही गई थी. 15 हजार रुपए के एवज में क्याक्या करना है, यह बात सुचित्रा से छिपी नहीं थी. लिहाजा वह मालिश के साथसाथ बाकी सब भी करने लगी, जिस से उसे 10-12 हजार रुपए मिलने लगे थे. अब घर वालों की शिकायतें दूर हो गई थीं, पर जब छापे में वह पकड़ी गई तो उन्होंने उस से कन्नी काट ली.

मधु और सुचित्रा को थाने में पुलिस अफसर लताड़ती रहीं कि ऐसी ही लड़कियों ने औरतों को बदनाम कर रखा है, जो दूसरे कामधंधों के बजाय देहव्यापार करने लगती हैं.

उस वक्त तो दोनों चुप रहीं पर बाद में बताया कि ये लोग हमारा दर्द नहीं समझेंगी. हम ने पहले ईमानदारी से ही कोशिश की थी. इज्जत से नौकरी करना चाहा था, लेकिन हर जगह हम पर सैक्स के लिए या तो दबाव बनाया गया था या फिर लालच दिया गया.

सुचित्रा बताती है कि कोई लड़की नहीं चाहती कि वह इस पेशे में आए लेकिन समाज मर्दों का है और वे एक ही चीज चाहते हैं. हर कोई हमारी मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है और हम उन की मंशा पूरी न करें तो नौकरी से निकाल दिया जाता है. कोई हमें बहनबेटियों की तरह इज्जत नहीं देता, जिस की हम उम्मीद भी नहीं करतीं.

मधु और सुचित्रा को मसाजपार्लर महफूज लगा, जहां देहव्यापार करना मजबूरी या दबाव की बात नहीं थी बल्कि मरजी की बात थी. यहां मालिश कराने काफी बड़ी हस्तियां आती हैं और थोड़ी देर की मौजमस्ती के एवज में 2-4 हजार रुपए ऐसे दे जाती हैं, जैसे पैसा वाकई हाथ का मैल हो.

ये तीनों फिर पुराने धंधे में आ गई हैं. पैसा इन की जरूरत भी है और मजबूरी भी. दूसरी तरफ ये मर्दों की जरूरत हैं जो इन पर पैसा न्यौछावर करने को तैयार बैठे रहते हैं.

देहव्यापार को बुरी नजर से क्यों देखा जाता है और इसे सिर्फ बुरी नजर से क्यों नहीं देखा जाना चाहिए, इस पर आए दिन बहस होती रहती हैं और आगे भी होती रहेंगी, लेकिन मधु, रानी और सुचित्रा का दर्द हर कोई नहीं समझ सकता. अगर वे इस पेशे में नहीं आतीं तो मुफ्त में लुटतीं और इस के बाद भी खाली पेट रहतीं.

रानी अपने भाईबहनों को भूख से तिलमिलाते नहीं देख पा रही थी तो इस में उस का कोई कसूर नहीं. मधु अपने पिता के लिए मसाजपार्लर में काम कर रही थी और सुचित्रा के निकम्मे और नशेड़ी पति को कोई दोषी नहीं ठहरा रहा था, जिस ने धक्के दे कर बीवी को घर से बाहर कर के दरदर की ठोकरें खाने को छोड़ दिया था. ऐसे में तय कर पाना मुश्किल है कि ये लड़कियां फिर और क्या करतीं?

बेटी बनी मां बाप की शादी की गवाह

25 अक्तूबर, 2017 को धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में एक शादी हो रही थी. इस शादी में हैरान करने वाली बात यह थी कि वहां न लड़की के घर वाले मौजूद थे और न ही लड़के के घर वाले. इस से भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि जिस लड़के और लड़की की शादी हो रही थी, उन की ढाई साल की एक बेटी जरूर इस शादी में मौजूद थी.

इस शादी में लड़की के घर वालों की भूमिका बाल कल्याण समिति धौलपुर के अध्यक्ष अदा कर रहे थे तो इसी संस्था के अन्य सदस्य लड़के के घर वालों तथा बाराती की भूमिका अदा कर रहे थे. इस के अलावा कुछ अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे.

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दरअसल, इस के पीछे जो वजह थी, वह बड़ी दिलचस्प है. राजस्थान के भरतपुर का रहने वाला 19 साल का सचिन धौलपुर के कोलारी के रहने वाले अपने एक परिचित के यहां आताजाता था. उसी के पड़ोस में अनु अपने मांबाप के साथ रहती थी. लगातार आनेजाने में सचिन और अनु के बीच बातचीत होने लगी.

ऐसे परवान चढ़ा दोनों का प्यार

15 साल की अनु को सचिन से बातें करने में मजा आता था. चूंकि दोनों हमउम्र थे, इसलिए फोन पर भी उन की बातचीत हो जाती थी. इस का नतीजा यह निकला कि उन में प्यार हो गया. मौका निकाल कर दोनों एकांत में भी मिलने लगे.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी अनु सचिन पर फिदा थी. उस ने तय कर लिया था कि वह सचिन से ही शादी करेगी. ऐसा ही कुछ सचिन भी सोच रहा था. जबकि ऐसा होना आसान नहीं था. इस के बावजूद उन्होंने हिम्मत कर के अपने अपने घर वालों से शादी की बात चलाई.

सचिन ने जब अपने घर वालों से कहा कि वह धौलपुर की रहने वाली अनु से शादी करना चाहता है तो उस के पिता ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘कमाता धमाता कौड़ी नहीं है और चला है शादी करने. अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो शादी के लिए जल्दी मचाए है. पहले पढ़लिख कर कमाने की सोच, उस के बाद शादी करना.’’

सचिन अभी इतना बड़ा नहीं हुआ था कि पिता से बहस करता, इसलिए चुप रह गया.

दूसरी ओर अनु ने अपने घर वालों से सचिन के बारे में बता कर उस से शादी करने की बात कही तो घर के सभी लोग दंग रह गए. क्योंकि अभी उस की उम्र भी शादी लायक नहीं थी. उन्हें चिंता भी हुई कि कहीं नादान लड़की ने कोई ऐसा वैसा कदम उठा लिया तो उन की बड़ी बदनामी होगी. उन्होंने अनु को डांटाफटकारा भी और समझाया भी. यही नहीं, उस पर घर से बाहर जाने पर पाबंदी भी लगा दी गई.

घर वालों की यह पाबंदी परेशान करने वाली थी, इसलिए अनु ने सारी बात प्रेमी सचिन को बता दी. उस ने कहा कि उस के घर वाले किसी भी कीमत पर उस की शादी उस से नहीं करेंगे. जबकि अनु तय कर चुकी थी कि उस की राह में चाहे जितनी भी अड़चनें आएं, वह उन से डरे बिना सचिन से ही शादी करेगी.

घर वालों के मना करने के बाद कोई और उपाय न देख सचिन और अनु ने घर से भागने का फैसला कर लिया. लेकिन इस के लिए पैसों की जरूरत थी. सचिन ने इधरउधर से कुछ पैसों का इंतजाम किया और घर से भागने का मौका ढूंढने लगा.

दूसरी ओर अनु के घर वालों को लगा कि उन की बेटी बहक गई है, वह कोई गलत कदम उठा सकती है. हालांकि उस समय उस की उम्र महज 15 साल थी, इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया. इस से पहले कि वह कोई ऐसा कदम उठाए, जिस से उन की बदनामी हो, उन्होंने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया.

यह बात अनु ने सचिन को बताई. सचिन अपनी मोहब्बत को किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था, इसलिए योजना बना कर एक दिन अनु के साथ भाग गया. अनु को घर से गायब देख कर घर वाले समझ गए कि उसे सचिन भगा ले गया है. अनु के पिता अपने शुभचिंतकों के साथ थाने पहुंचे और सचिन के खिलाफ अपहरण और पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला नाबालिग लड़की के अपहरण का था, इसलिए पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. धौलपुर के कोलारी का रहने वाला सचिन का जो परिचित था, उस से पूछताछ की गई. उसे साथ ले कर पुलिस भरतपुर स्थित सचिन के घर गई, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

पुलिस ने उस के घर वालों से भी पूछताछ की, पर उन्हें सचिन और अनु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सचिन की जहांजहां रिश्तेदारी थी, पुलिस ने वहांवहां जा कर जानकारी हासिल की. सभी ने यही बताया कि सचिन उन के यहां नहीं आया है.

सचिन का फोन नंबर भी स्विच्ड औफ था. पुलिस के पास अब ऐसा कोई जरिया नहीं था, जिस से उस के पास तक पहुंच पाती. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिली तो वह धौलपुर लौट आई.

पुलिस को महीनों बाद भी न मिला दोनों का सुराग

अनु के गायब होने से उस के मातापिता बहुत परेशान थे. उन्हें चिंता सता रही थी कि उन की बेटी पता नहीं कहां और किस हाल में है. पुलिस में रिपोर्ट वे करा ही चुके थे. जब पुलिस उसे नहीं ढूंढ सकी तो उन के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वे उसे तलाश पाते. महीना भर बीत जाने के बाद भी जब अनु के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो वे शांत हो कर बैठ गए.

पुलिस को भी लगने लगा कि सचिन और अनु किसी दूसरे शहर में जा कर रह रहे हैं. पुलिस ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सभी थानों में दोनों का हुलिया भेज कर यह जानना चाहा कि कहीं उस हुलिए से मिलतीजुलती डैडबौडी तो नहीं मिली है.

सचिन उत्तर प्रदेश के इटावा का मूल निवासी था और उस के ज्यादातर रिश्तेदार उत्तर प्रदेश में ही रहते थे. इसलिए वहां के थानों को भी सूचना भेजी गई थी. इस से भी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली.

समय बीतता रहा और पुलिस की जांच अपनी गति से चलती रही. थानाप्रभारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह अपने स्रोतों से दोनों प्रेमियों के बारे में पता करते रहे. एक दिन उन्हें मुखबिर से जानकारी मिली कि सचिन अनु के साथ इटावा में रह रहा है.

यह उन के लिए अच्छी खबर थी. अपने अधिकारियों को सूचित करने के बाद वह पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए गए इटावा वाले पते पर पहुंच गए. मुखबिर की खबर सही निकली. सचिन और अनु वहां मिल गए. लेकिन उस समय अनु 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया और उन्हें धौलपुर ले आई.

पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां अनु ने अपने प्रेमी सचिन के पक्ष में बयान दिया. अनु के मातापिता को बेटी के मिलने पर खुशी हुई थी. वे उसे लेने के लिए कोर्ट पहुंचे. बेटी के गर्भवती होने की बात जान कर भी उन्होंने अनु से घर चलने को कहा. पर अनु ने कहा कि वह मांबाप के घर नहीं जाएगी. वह सचिन के साथ ही रहेगी.

चूंकि सचिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए न्यायालय ने उसे जेल भेजने के आदेश दे दिए थे. घर वालों के काफी समझाने के बाद भी जब अनु नहीं मानी तो कोर्ट ने उसे बालिका गृह भेज दिया. अनु 7 महीने की गर्भवती थी, इसलिए बालिका गृह में उस का ठीक से ध्यान रखा गया. समयसमय पर उस की डाक्टरी जांच भी कराई जाती रही. वहीं पर उस ने बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद भी अनु की सोच नहीं बदली, वह प्रेमी के साथ रहने की रट लगाए रही.

सचिन जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया था. उसे जब पता चला कि अनु ने बेटी को जन्म दिया है और वह अभी भी बालिका गृह में है तो उसे बड़ी खुशी हुई. वह उसे अपने साथ रखना चाहता था. इस बारे में उस ने वकील से सलाह ली तो उस ने कहा कि जब तक उस की उम्र 18 साल नहीं हो जाएगी, तब तक शादी कानूनन मान्य नहीं होगी. अनु ने तय कर लिया था कि जब तक वह बालिग नहीं हो जाएगी, वह बालिका गृह में ही रहेगी.

अनु अपनी बेटी के साथ वहीं पर दिन बिताती रही. उस के घर वालों ने उस से मिल कर उसे लाख समझाने की कोशिश की, पर वह अपनी जिद से टस से मस नहीं हुई. उस ने साफ कह दिया कि वह सचिन को हरगिज नहीं छोड़ सकती.

बाल कल्याण समिति, धौलपुर के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार को जब अनु और सचिन के प्रेम की जानकारी हुई तो वह इन दोनों से मिले. इन से बात करने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह इन की शादी कराएंगे, ताकि इन की बेटी को भी मांबाप दोनों का प्यार मिल सके. वह भी अनु के बालिग होने का इंतजार करने लगे.

16 अक्तूबर, 2017 को अनु की उम्र जब 18 साल हो गई तो उसे आशा बंधी कि लंबे समय से प्रेमी से जुदा रहने के बाद अब वह उस के साथ रह सकेगी. अब तक उस की बेटी करीब ढाई साल की हो चुकी थी. उसे भी पिता का प्यार मिलेगा.

सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने कराया दोनों का विवाह

अनु के बालिग होने पर धौलपुर की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार ने उन के विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं. इस बारे में उन्होंने भरतपुर की बाल कल्याण समिति और सामाजिक संस्था प्रयत्न के पदाधिकारियों से बात की. वे भी इस काम में सहयोग करने को तैयार हो गए.

अनु धौलपुर की थी और बिजेंद्र सिंह परमार भी वहीं के थे, इसलिए उन्होंने तय किया कि वह इस शादी में लड़की वालों का किरदार निभाएंगे. जबकि सचिन भरतपुर का था, इसलिए बाल कल्याण समिति, भरतपुर के पदाधिकारियों ने वरपक्ष की जिम्मेदारियां निभाने का वादा किया.

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हैरान करने वाली इस शादी का आयोजन धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में किया गया. इस मौके पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के अलावा पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. तमाम लोगों की मौजूदगी में सचिन और अनु की शादी संपन्न हुई. शादी में उन की ढाई साल की बेटी भी मौजूद थी.

सामाजिक संस्था प्रयत्न के एडवोकेसी औफिसर राकेश तिवाड़ी ने बताया कि उन का मकसद था कि ढाई साल के बच्चे को उस के मातापिता का प्यार मिले और अनु को भी समाज में अधिकार मिल सके.

सचिन और अनु दोनों वयस्क हैं. वे अपनी मरजी से जीवन बिताने का अधिकार रखते हैं. यह शादी सामाजिक दृष्टि से भी उचित है. अब वे अपना जीवन खुशी से बिता सकते हैं. खास बात यह रही कि इस शादी में वर और कन्या के घर का कोई भी मौजूद नहीं था.

वहां मौजूद सभी लोगों ने वरवधू को आशीर्वाद दिया. शादी के बाद सचिन अनु को अपने घर ले गया. सचिन के घर वालों ने अनु को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. अनु भी अपनी ससुराल पहुंच कर खुश है.

रेलवे में नौकरी के नाम पर ठगी

चाय की दुकान हो या नाई की या फिर पान की दुकान हो, ये सब ऐसे अड्डे होते हैं, जहां आदमी को तरह तरह की जानकारी ही नहीं मिलती, बल्कि उन पर विस्तार से चर्चा भी होती है. इंटरनेट क्रांति से पहले इन्हीं अड्डों पर इलाके में घटने वाली घटनाओं की जानकारी आसानी से मिल जाती थी.

अब भले ही दुनिया बहुत आगे निकल गई है, लेकिन आज भी ये दुकानें सूचनाओं की वाहक बनी हुई हैं. बाल काटते या हजामत करतेकरते नाई, चाय की दुकान पर बैठे लोग और पान खाने वाले किसी न किसी विषय पर बातें करते रहते हैं.

उत्तर पश्चिम दिल्ली के सराय पीपलथला के रहने वाले सरफराज की भी सराय पीपलथला में बाल काटने की दुकान थी. यह जगह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी से सटी हुई है, इस मंडी में हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इस वजह से उस की दुकान अच्छी चलती थी. उस की दुकान पर हर तरह के लोग आते थे. उन्हीं में से उस का एक स्थाई ग्राहक था ओमपाल सिंह.

ओमपाल सिंह रोहिणी के जय अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहता था. उस ने आजादपुर मंडी में कुछ लोगों को हाथ ठेले किराए पर दे रखे थे. उन से किराया वसूलने के लिए वह रोजाना शाम को मंडी आता था. किराया वसूल कर वह सरफराज की दुकान पर कुछ देर बैठ कर उस से बातें करता था.

बातों ही बातों में सरफराज को पता चल गया था कि ओमपाल पहले दिल्ली में ही मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) औफिस में नौकरी करता था, पर अपना काम ठीक से चल जाने के बाद उस ने रेलवे की नौकरी छोड़ दी थी.

एक दिन ओमपाल ने सरफराज को बताया कि डीआरएम औफिस में भले ही वह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था, पर अधिकारियों से उस की अच्छी जानपहचान थी, जिस का फायदा उठा कर उस ने कई लोगों को रेलवे में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी दिलवाई थी. यह जान कर सरफराज को लगा कि ओमपाल तो काफी काम का आदमी है, क्योंकि न इस से फायदा उठाया जाए.

दरअसल, सरफराज का एक छोटा भाई था राशिद, जो 12वीं तक पढ़ा था. पढ़ाई के बाद उस ने सरकारी नौकरी के लिए काफी कोशिश की. जब नौकरी नहीं मिली तो भाई की दुकान पर काम करने लगा था. सरफराज ने सोचा कि अगर ओमपाल सिंह की मदद से भाई की नौकरी रेलवे में लग जाए तो अच्छा रहेगा.

इस बारे में सरफराज ने ओमपाल से बात की तो उस ने बताया कि वह राशिद की नौकरी तो लगवा देगा, पर इस में कुछ खर्चा लगेगा.

सरफराज ने पूछा, ‘‘कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं, बस 60 हजार रुपए. डीआरएम औफिस में जिन साहब के जरिए यह काम होगा, उन्हें पैसे देने पड़ेंगे. और रही बात मेरे मेहनताने की तो जब राशिद की नौकरी लग जाएगी तो अपनी खुशी से मुझे जो दोगे, रख लूंगा.’’ ओमपाल ने कहा.

आज के जमाने में चतुर्थ श्रेणी नौकरी के लिए 60 हजार रुपए सरफराज की नजरों में ज्यादा नहीं थे. वह जानता था कि अब सरकारी नौकरी इतनी आसानी से मिलती कहां है.

सरकारी विभाग में क्लर्क की जगह निकलने पर लाखों की संख्या में लोग आवेदन करते हैं. लोग मोटी रिश्वत देने को भी तैयार रहते हैं सो अलग. इन सब बातों को देखते हुए सरफराज ने ओमपाल से अपने भाई की रेलवे में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी लगवाने के लिए 60 हजार रुपए देने की हामी भर ली.

‘‘सरफराज भाई, राशिद की नौकरी तो लग ही जाएगी. इस के अलावा तुम्हारे किसी रिश्तेदार या दोस्त का कोई ऐसा बच्चा तो नहीं है, जो रेलवे में नौकरी करना चाहता हो, यदि कोई हो तो बात कर लो. राशिद के साथसाथ उस का भी काम हो जाएगा.’’ ओमपाल ने कहा.

‘‘हां, बच्चे तो हैं. इस के बारे में मैं 1-2 दिन में आप को बता दूंगा.’’ सरफराज ने कहा.

सरफराज के बराबर में गंगाराम की भी दुकान थी. वह दिल्ली के ही स्वरूपनगर में रहते थे. वह सरफराज को अपने बेरोजगार बेटे नीरज के बारे में बताते रहते थे. उस की नौकरी को ले कर वह चिंतित थे. सरफराज ने गंगाराम से उन के बेटे की रेलवे में नौकरी लगवाने के लिए बात की.

सरफराज की बात पर गंगाराम को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि सरकारी नौकरी इतनी आसानी से भला कहां मिलती है. सरफराज ने जब उन्हें पूरी बात बताई तो गंगाराम को यकीन हो गया. तब उन्होंने कहा कि वह उन के बेटे नीरज के लिए भी बात कर ले.

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इसी तरह सरफराज ने अपने एक और दोस्त अशोक कुमार से बात की, जो शालीमार बाग के  बी ब्लौक में रहते थे. उन की एक बेटी थी, जो नर्सिंग का कोर्स करने के बाद घर पर बैठी थी. बेटी की रेलवे में स्थाई नौकरी लगवाने के लिए अशोक कुमार ने भी 60 हजार रुपए देने के लिए हामी भर दी.

सरफराज ने ओमपाल सिंह की गंगाराम और अशोक कुमार से मुलाकात भी करा दी. ओमपाल से बात करने के बाद अशोक कुमार व गंगाराम को भी ओमपाल की बातों पर विश्वास हो गया. ओमपाल ने तीनों से पैसों का इंतजाम करने के लिए कह दिया.

तीनों दोस्त इस बात को ले कर खुश थे कि उन के बच्चों की नौकरी लग रही है. इस के बाद 13 जून, 2017 को उन्होंने ओमपाल सिंह को 1 लाख 80 हजार रुपए दे दिए. रुपए लेने के बाद ओमपाल ने उन्हें विश्वास दिलाया कि एकडेढ़ महीने के अंदर उन के बच्चों की नौकरी लग जाएगी.

अशोक, गंगाराम व सरफराज एकएक कर दिन गिनने लगे. विश्वास जमाने के लिए ओमपाल ने फार्म वगैरह भी भरवा लिए थे. जब 2 महीने बाद भी बच्चों की नौकरी नहीं लगी तो ओमपाल सभी को कोई न कोई बहाना बना कर टालने लगा. कुछ दिनों तक वे उस की बातों पर विश्वास करते रहे. बाद में ओमपाल ने सरफराज की दुकान पर आना बंद कर दिया तो सभी को चिंता हुई.

फोन नंबर बंद होने पर सरफराज, गंगाराम और अशोक की चिंता बढ़ गई. इस के बाद एक दिन सरफराज, अशोक और गंगाराम ओमपाल के जय अपार्टमेंट स्थित फ्लैट नंबर 131 पर जा पहुंचे, जहां पता चला कि ओमपाल इस फ्लैट को खाली कर के जा चुका है. यह जान कर तीनों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे समझ गए कि बड़े शातिराना ढंग से ओमपाल ने उन के साथ ठगी की है.

उन के पास ऐसा कोई उपाय नहीं था, जिस से वे ओमपाल को तलाश करते. मजबूरन वे उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी मिलिंद एम. डुंब्रे से मिले और अपने साथ घटी घटना की जानकारी विस्तार से दी. डीसीपी ने इस मामले की जांच औपरेशन सेल के एसीपी रमेश कुमार को करने के निर्देश दिए.

एसीपी रमेश कुमार ने इस मामले को सुलझाने के लिए स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर कुलदीप सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में तेजतर्रार एसआई अखिलेश वाजपेयी, हैडकांस्टेबल राहुल कुमार, दिलबाग सिंह, विकास कुमार, कांस्टेबल उम्मेद सिंह आदि को शामिल किया. टीम ने सब से पहले ओमपाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

पिछले 6 महीने की काल डिटेल्स का अध्ययन करने के बाद एसआई अखिलेश वाजपेयी ने उन फोन नंबरों को चिह्नित किया, जिन पर ओमपाल की बातें हुई थीं. उन में से कुछ फोन नंबर ओमपाल के रिश्तेदारों के थे.

उन पर दबाव बना कर एसआई अखिलेश वाजपेयी को ओमप्रकाश का वह ठिकाना मिल गया, जहां वह रह रहा था. जानकारी मिली कि वह सोनीपत स्थित टीडीआई कोंडली के सी-3 टौवर में रह रहा था.

ठिकाना मिलने के बाद पुलिस टीम ने 14 नवंबर, 2017 को टीडीआई कोंडली स्थित ओमपाल के फ्लैट पर दबिश दी तो वह वहां मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस दिल्ली लौट आई. स्पैशल स्टाफ औफिस में जब उस से सरफराज, गंगाराम और अशोक कुमार से ठगी किए जाने के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया कि उस ने रेलवे में नौकरी लगवाने का झांसा दे कर तीनों से 1 लाख 80 हजार रुपए लिए थे.

सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने यह भी स्वीकार कर लिया कि अब तक वह 20 से ज्यादा लोगों से इसी तरह पैसे ले चुका है. इस से पहले भी ठगी के मामले में वह दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार किया जा चुका है. विस्तार से पूछताछ के बाद इस रेलवे कर्मचारी के ठग बनने की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार है—

उत्तरपूर्वी दिल्ली के मंडोली में रहने वाला ओमपाल सिंह दिल्ली के डीआरएम औफिस में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की यह नौकरी सन 1992 में लगी थी. इस नौकरी से वह अपना घरपरिवार चलाता रहा. जैसेजैसे उस का परिवार बढ़ता जा रहा था, वैसेवैसे खर्च भी बढ़ रहा था, पर आमदनी सीमित थी, जिस से घर चलाने में परेशानी हो रही थी.

ओमपाल सोचता रहता था कि वह ऐसा क्या काम करे, जिस से उस के पास पैसों की कोई कमी न रहे. ओमपाल की साथ काम करने वाले संदीप कुमार से अच्छी दोस्ती थी. वह उस से अपनी परेशानी बताता रहता था. वह भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की भी यही समस्या थी, पर वह अपनी यह परेशानी किसी को नहीं बताता था. दोनों ही शौर्टकट तरीके से मोटी कमाई करने के तरीके पर विचार करने लगे.

दोनों ने रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी लगवाने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठने शुरू कर दिए. तमाम लोगों से उन्होंने लाखों रुपए इकट्ठे कर लिए, पर किसी की नौकरी नहीं लगी. जिन लोगों ने इन्हें पैसे दिए थे, उन्होंने इन से अपने पैसे मांगने शुरू कर दिए. तब दोनों कुछ दिनों के लिए भूमिगत हो गए. लोगों ने दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच थाने में भादंवि की धारा 420, 406 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह बात सन 2011 की है.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद क्राइम ब्रांच ने ओमपाल और उस के दोस्त को भरती घोटाले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस के बाद रेलवे ने दोनों आरोपियों को बर्खास्त कर दिया. जेल से जमानत पर छूटने के बाद ओमपाल ने रोहिणी में जय अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट ले लिया और आजादपुर मंडी में किराए पर हाथ ठेले देने का धंधा शुरू कर दिया.

इस काम से उसे अच्छी कमाई होने लगी. पर उसे तो चस्का मोटी कमाई का लग चुका था. लिहाजा उस ने फिर से लोगों को रेलवे में नौकरी दिलवाने का झांसा दे कर ठगना शुरू कर दिया. सराय पीपलथला के सरफराज, स्वरूपनगर निवासी गंगाराम और शालीमार बाग के अशोक कुमार ने भी उस के झांसे में आ कर उसे 1 लाख 80 हजार रुपए दे दिए.

पूछताछ में ओमपाल ने बताया कि वह करीब 20 लोगों से रेलवे में नौकरी दिलवाने के नाम पर लाखों रुपए ठग चुका है. उस की निशानदेही पर पुलिस ने रेलवे के आवेदन पत्र, सीनियर डीसीएम, उत्तर रेलवे की मुहर और उन के हस्ताक्षरयुक्त पेपर, रेलवे के वाटरमार्क्ड पेपर आदि बरामद किए.

पूछताछ के बाद ओमपाल को 15 नवंबर, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी के समक्ष पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस के बाद उसे पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा संकलन तक अभियुक्त जेल में बंद था. मामले की विवेचना एसआई अखिलेश वाजपेयी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

फोन बना दोधारी तलवार

पूनम का मूड सुबह से ही ठीक नहीं था. बच्चों को स्कूल भेजने का भी उस का मन नहीं हो रहा था. पर बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी था, इसलिए किसी तरह उस ने बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया. पूनम के चेहरे पर एक अजीब सा खौफ था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी परेशानी किस से कहे. वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई.

पूनम का मूड खराब देख कर उस के पति विनय ने हंसते हुए पूछा, ‘‘डार्लिंग, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो. आखिर बात क्या है?’’

पूनम ने पलकें उठा कर पति को देखा. फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. वह फूट फूट कर इस तरह रोने लगी, जैसे गहरे सदमे में हो.

विनय ने करीब आ कर उसे सीने से लगा लिया और उस के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ पूनम, तुम मुझ से नाराज हो क्या? क्या तुम्हें मेरी कोई बात बुरी लग गई?’’

‘‘नहीं,’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

‘‘तो फिर क्या बात है, जो तुम इस तरह रो रही हो?’’ विनय ने हमदर्दी दिखाई.

पति का प्यार मिलते ही पूनम ने मोबाइल की ओर इशारा कर के सुबकते हुए बोली, ‘‘मेरी परेशानी का कारण यह मोबाइल है.’’

विनय ने हैरत से एक नजर मेज पर रखे मोबाइल फोन पर डाली, उस के बाद पत्नी से मुखातिब हुआ, ‘‘मैं समझा नहीं, इस मोबाइल से तुम्हारी परेशानी का क्या संबंध है? साफसाफ बताओ, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

पूनम मेज से मोबाइल उठा कर पति के हाथ में देते हुए बोली, ‘‘आप खुद ही देख लो. इस के मैसेज बौक्स में क्या लिखा है?’’

विनय की उत्सुकता बढ़ गई. उस ने फटाफट फोन के मैसेज का इनबौक्स खोल कर देखा. जैसे ही उस ने मैसेज पढ़ा, उस के चेहरे पर एक साथ कई रंग आए गए.

मैसेज में लिखा था, ‘मेरी जान, तुम ने मुझे अपने रूप का दीवाना बना दिया है. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, चैन से जी नहीं पा रहा हूं. मैं तुम्हें जब भी विनय के साथ देखता हूं, मेरा खून खौल जाता है. आखिर तुम उस के साथ जिंदगी कैसे गुजार रही हो. मैं ने जिस दिन से तुम्हें देखा है, मेरी आंखों से नींद उड़ चुकी है.’

मैसेज पढ़ कर विनय को गुस्सा आ गया. फोन को मेज पर रख कर उस ने पत्नी से कहा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती.’’ पूनम दबी जुबान से बोली.

विनय कुछ देर सोचता रहा, फिर उस ने पत्नी की आंखें में झांका. उसे लगा कि पत्नी सच बोल रही है, क्योंकि अगर वह उस के साथ गेम खेल रही होती तो इस तरह परेशानी और रुआंसी नहीं होती. उसे लगा कि वाकई कोई उस की पत्नी को परेशान कर रहा है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कल्याणपुर थाने का एक मोहल्ला है शारदानगर. इसी मोहल्ले के इंद्रपुरी में विनय झा अपने परिवार के साथ रहता था. उस का अपना आलीशान मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उस का हौजरी का व्यवसाय था. इस से उसे अच्छीखासी आमदनी होती थी, जिस से उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी.

विनय झा इस से पहले अपने भाइयों के साथ दर्शनपुरवा में रहता था. वहां उस का अपना छोटा सा कारखाना था. उस का परिवार काफी दबंग किस्म का था. दबंगई से ही इन लोगों ने पैसा कमाया और फिर उसी पैसे से हौजरी का काम शुरू किया. व्यवसाय अच्छा चलने लगा तो विनय ने इंद्रपुरी में मकान बनवा लिया.

पूनम से विनय की शादी कुछ साल पहले हुई थी. पूनम बेहद खूबसूरत थी. पहली ही नजर में विनय उस का दीवाना हो गया था. उस की दीवानगी पूनम को भी भा गई. दोनों की पसंद के बाद उन की शादी हो गई. दोनों ही अपने गृहस्थ जीवन में खुश थे. 8 साल के अंतराल में पूनम 2 बच्चों की मां बन गई.

ससुराल में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. पति भी चाहने वाला मिला था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक पूनम को अश्लील मैसेज तथा प्रेमप्रदर्शन वाले फोन आने लगे. पूनम पति का गुस्सा जानती थी, अत: पहले तो उस ने पति को कुछ नहीं बताया, पर जब अति हो गई तो मजबूरी में बताना पड़ा.

विनय झा ने जब पत्नी के फोन में आए हुए मैसेज पढ़े तो उस की आंखों में खून उतर आया. जिस फोन नंबर से मैसेज आए थे, विनय ने उस नंबर पर काल की तो फोन रिसीव नहीं किया गया. इस पर विनय गुस्से में बड़बड़ाया, ‘‘कमीने…तू एक बार सामने आ जा. अगर तुझे जिंदा दफन न कर दिया तो मेरा नाम विनय नहीं.’’

गुस्से में कांपते विनय ने पूनम से पूछा, ‘‘क्या वह तुम्हें फोन भी करता है?’’

‘‘हां,’’ पूनम ने सिर हिलाया.

‘‘क्या कहता है?’’

‘‘नाजायज संबंध बनाने को कहता है. अब कैसे बताऊं आप को, इस ने तो मेरी जान ही सुखा दी है. लो, आप दूसरे मैसेज भी पढ़ लो. इन से पता चल जाएगा कि उस की मानसिकता क्या है.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि वह तुम्हें फोन कब करता है या मैसेज कब भेजता है?’’ विनय ने पूछा.

‘‘जब आप घर पर नहीं होते, तभी उस के फोन आते हैं. जब आप घर पर होते हो तो न फोन आता है न मैसेज.’’ वह बोली.

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि वह मुझ पर निगाह रखता है. उसे मेरे घर जानेआने का वक्त भी मालूम है.’’ कहते हुए विनय ने मैसेज बौक्स खोल कर दूसरे मैसेज भी पढ़े. एक मैसेज तो बहुत जुनूनी था, ‘‘तुम मुझ से क्यों नहीं मिलतीं? रात को सपने में तो खूब आती हो. अपने गोरे बदन को मेरे बदन से सटा कर प्यार करती हो. आह जान, तुम कितनी प्यारी हो. एक बार मुझ से साक्षात मिल कर मेरी जन्मों की… नहीं तो समझ लेना मैं तुम्हारी चौखट पर आ कर जान दे दूंगा. अभी तो मैं इसलिए चुप हूं कि तुम्हें रुसवा नहीं करना चाहता.’’

मैसेज पढ़ कर विनय की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘‘कमीने, तेरी प्यास तो मैं बुझाऊंगा. तू जान क्या देगा, मैं ही तेरी जान ले लूंगा.’’

पति का रूप देख कर पूनम का कलेजा कांप उठा. उसे लगा कि उस ने पति को बता कर कहीं गलती तो नहीं कर दी. विनय ने डरीसहमी पत्नी को मोबाइल देते हुए समझाया, ‘‘अब जब उस का फोन आए तो उस से बात करना. मीठीमीठी बातें कर के उस का नाम व पता हासिल कर लेना. इस के बाद मैं उस के सिर से प्यार का भूत उतार दूंगा.’’

पति की बात पर सहमति जताते हुए पूनम ने हामी भर दी.

एक दिन विनय जैसे ही घर से निकला, पूनम के मोबाइल पर उस का फोन आ गया. पूनम के हैलो कहते ही वह बोला, ‘‘पूनम, तुम मुझे भूल गई, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूला और न भूलूंगा. याद है, हम दोनों की पहली मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’

पूनम अपने दिमाग पर जोर डाल कर कुछ याद करने की कोशिश करने लगी. तभी उस ने कहा, ‘‘2 साल पहले, जब मैं तुम्हारे घर फर्नीचर बनाने आया था. याद है, उस समय मैं तुम्हारे इर्दगिर्द रहा करता था. तुम्हारी खूबसूरती को निहारता रहता था. तुम इतराती इठलाती होंठों पर मुसकान बिखेरती इधर से उधर निकल जाती थी और मैं तड़पता रह जाता था.’’

‘‘अच्छा, तब से तुम मेरे दीवाने हो. पागल, तब प्यार का इजहार क्यों नहीं किया? अच्छा, तुम्हारा नाम मुझे याद नहीं आ रहा, अपने बारे में थोड़ा बताओ न.’’ पूनम खिलखिला कर हंसी.

‘‘हाय मेरी जान, तुम हंसती हो तो मेरे दिल में घंटियां सी बज उठती हैं. सो स्वीट यू आर.’’ उधर से रोमांटिक स्वर में कहा गया, ‘‘मैं तुम्हारा दीवाना विजय यादव बोल रहा हूं.’’

विजय यादव का नाम सुनते ही पूनम चौंकी. अब उसे उस की शक्लसूरत भी याद आ गई. इस के बाद पूनम ने उसे समझाया, ‘‘देखो विजय, अब बहुत हो गया. मैं किसी की पत्नी हूं, तुम्हें ऐसे मैसेज भेजते हुए शर्म आनी चाहिए. मैं कह देती हूं कि आइंदा मुझे न फोन करना और न मैसेज करना, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’

पूनम ने फोन काटा ही था कि उस का पति विनय आ गया. उस ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘उसी का जो फोन करता है और अश्लील मैसेज भेजता है. आज मैं ने जान लिया कि वह कौन है.’’ पूनम ने विनय को बताया, ‘‘विजय यादव जो अपने यहां फर्नीचर बनाने आया था, वही यह सब कर रहा है. वैसे मैं ने उसे ठीक से समझा दिया है, शायद अब वह ऐसी हरकत न करे.’’

विजय यादव उर्फ   के पिता रामकरन यादव रावतपुर क्षेत्र के केशवनगर में रहते थे. रामकरन फील्डगन फैक्ट्री में काम करते थे. उन के 3 बेटों में इंद्रबहादुर मंझला था. वह बजरंग दल का नेता था और प्रौपर्टी तथा फर्नीचर का व्यवसाय करता था. ब्रह्मदेव चौराहा पर उस की फर्नीचर की दुकान थी. दुकान पर करीब आधा दर्जन से ज्यादा कारीगर काम करते थे.

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इंद्रबहादुर आर्थिक रूप से संपन्न होने के साथ दबंग भी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह बजरंग दल का जिला संयोजक था. उस की एक बड़ी खराब आदत थी उस का अय्याश होना. घर में खूबसूरत बीवी होने के बावजूद वह इधर धर मुंह मारता रहता था.

करीब 2 साल पहले इंद्रबहादुर इंद्रपुरी में  विनय झा के घर फर्नीचर बनाने आया था. उस समय जब उस ने खूबसूरत पूनम को देखा तो वह उस पर मर मिटा. उस ने उसी समय उसे अपने दिल में बसा लिया. उस के बाद वह किसी न किसी बहाने उस के आगे पीछे मंडराने लगा. किसी बहाने से उस ने पूनम का फोन नंबर ले लिया. फिर वह उसे फोन करने लगा और अश्लील मैसेज भेजने लगा.

पूनम के समझाने के बाद वाकई कुछ दिनों तक इंद्रबहादुर ने उसे न तो फोन किया और न ही मैसेज भेजे. इस से पूनम को तसल्ली हुई. पर 15-20 दिनों बाद उस की यह खुशी परेशानी में बदल गई. वह फिर से उसे फोन करने लगा.

एक रोज तो विजय ने हद कर दी. उस ने फोन पर पूनम से कहा कि अब उस से रहा नहीं जाता. उस की तड़प बढ़ती जा रही है. वह उस से मिल कर अपने अरमान पूरे करना चाहता है. गुरुदेव चौराहा आ कर मिलो. उस ने यह भी कहा कि अगर वह नहीं आई तो वह खुद उस के घर आ जाएगा.

इंद्रबहादुर की धमकी से पूनम डर गई. वह नहीं चाहती थी कि वह उस के घर आए. क्योंकि वह पति व परिवार के अन्य सदस्यों की निगाहों में गिरना नहीं चाहती थी. इसलिए वह उस से मिलने गुरुदेव चौराहे पर पहुंच गई. वहां वह उस का इंतजार कर रहा था. पूनम ने उस से घरपरिवार की इज्जत की भीख मांगी, लेकिन वह नहीं पसीजा. वह एकांत में मिलने का दबाव बनाता रहा.

इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. इंद्रबहादुर जब बुलाता, पूनम डर के मारे उस से मिलने पहुंच जाती. इस मुलाकात की पति व परिवार के किसी अन्य सदस्य को भनक तक न लगती. एक दिन तो इंद्रबहादुर ने पूनम को जहरीला पदार्थ देते हुए कहा, ‘‘मेरी जान, तुम इसे अपने पति को खाने की किसी चीज में मिला कर खिला देना. कांटा निकल जाने पर हम दोनों मौज से रहेंगे.’’

पूनम जहरीला पदार्थ ले कर घर आ गई. उस ने उस जहर को पति को तो नहीं दिया, लेकिन खुद उस का कुछ अंश दूध में मिला कर पी गई. जहर ने असर दिखाना शुरू किया तो वह तड़पने लगी. विनय उसे तुरंत अस्पताल ले गया, जिस से पूनम की जान बच गई. विनय ने पूनम से जहर खाने की बाबत पूछा तो उस ने सारी सच्चाई बता दी.

इस के बाद पूनम को ले कर इंद्रबहादुर और विनय में झगड़ा होने लगा. दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे. इसी झगड़े में एक दिन आमनासामना होने पर इंद्रबहादुर ने छपेड़ा पुलिया पर विनय के पैर में गोली मार दी. विनय जख्मी हो कर गिर पड़ा. उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां किसी तरह विनय की जान बच गई.

विनय ने थाना कल्याणपुर में इंद्रबहादुर के खिलाफ भादंवि की धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. विनय ने घटना के पीछे की असली बात को छिपा लिया. उस ने लेनदेन तथा महिला कर्मचारी को छेड़ने का मामला बताया. पुलिस ने भी अपनी विवेचना में पूनम का जिक्र नहीं किया. पुलिस ने इंद्रबहादुर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

लगभग 10 महीने तक इंद्रबहादुर जेल में रहा. इस के बाद 9 अक्तूबर, 2017 को वह कानपुर जेल से जमानत पर रिहा हुआ. जेल से बाहर आने के बाद वह फिर पूनम से मिलने की कोशिश करने लगा. लेकिन इस बार पूनम की ससुराल वाले सतर्क थे. उन्होंने पूनम का मोबाइल फोन बंद करा दिया था और घर पर कड़ी निगरानी रख रहे थे.

काफी मशक्कत के बाद भी जब वह पूनम तक नहीं पहुंच पाया, तब उस ने एक षडयंत्र रचा. षडयंत्र के तहत उस ने एक लड़की को सेल्सगर्ल बना कर विनय के घर भेजा और उस के जरिए पूनम को अपने नाम से लिया गया सिमकार्ड और मोबाइल फोन भिजवा दिया. पूनम के पास फोन पहुंचा तो विजय एक बार फिर पूनम के संपर्क में आ गया.

अब वह दिन में कईकई बार पूनम को फोन करने लगा. दोनों के बीच घंटों बातचीत होने लगी. बातचीत में विजय पूनम से एकांत में मिलने की बात कहता था. पूनम ने उसे उस की शादीशुदा जिंदगी और परिवार की इज्जत का हवाला दिया तो वह पूनम को बरगलाने की कोशिश करने लगा.

उस ने पूनम को समझाया कि वह अपने पति विनय की कार में चरस, स्मैक और तमंचा रख दे. यह सब चीजें वह उसे मुहैया करा देगा. इस के बाद वह पुलिस को फोन कर के विनय को पकड़वा देगा. विनय के जेल जाने के बाद दोनों आराम से साथ रहेंगे.

पूनम ने इंद्रबहादुर द्वारा फोन देने तथा बातचीत करने की जानकारी पति विनय को नहीं दी थी. दरअसल पूनम डर रही थी कि पति को बताने से वह भड़क जाएगा और उस से झगड़ा करेगा. इस झगड़े और मारपीट में कहीं उस के पति की जान न चली जाए. क्योंकि इंद्रबहादुर गोली मार कर विनय को पहले भी ट्रेलर दिखा चुका है.

इधर पति का साथ छोड़ने और अवैध संबंध बनाने की बात जब पूनम ने नहीं मानी तो इंद्रबहादुर ने एक और षडयंत्र रचा. उस ने पूनम को बदनाम करने के लिए रिचा झा और राधे झा नाम की फरजी आईडी से फेसबुक एकाउंट बना लिया. इस के बाद इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव ने पूनम के साथ अपनी अश्लील फोटो फेसबुक पर अपलोड कर इस की जानकारी उस के पति विनय, परिवार के अन्य लोगों तथा रिश्तेदारों को दे दी, ताकि वह बदनाम हो जाए.

विनय झा ने जब पूनम के साथ इंद्रबहादुर की अश्लील फोटो फेसबुक पर देखी तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पूनम से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी सच्चाई विनय को बता दी.

सच्चाई जानने के बाद विनय ने इस गंभीर समस्या पर अपने बड़े भाई विनोद झा और भतीजे सत्यम उर्फ विक्की से बात की. विनोद व सत्यम भी फेसबुक पर पूनम अश्लील फोटो देख चुके थे. वे दोनों भी इस समस्या का निदान चाहते थे. गहन मंथन के बाद पूनम, विनय, विनोद तथा सत्यम उर्फ विक्की ने इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव की हत्या की योजना बनाई. हत्या की योजना में विनय ने अपने मामा के साले के लड़के अनुपम को भी शामिल कर लिया.

अनुपम गाजियाबाद का रहने वाला था. उस का आपराधिक रिकौर्ड था. वह पूर्वांचल के एक बड़े माफिया के संपर्क में भी रहा था. इस के बाद अनुपम ने पूनम, विनय, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की के साथ विजय की हत्या की अंतिम रूपरेखा तैयार की और हत्या के लिए एक चापड़ खरीद कर रख लिया. इस के बाद अनुपम वापस गाजियाबाद चला गया.

24 सितंबर, 2017 को अनुपम अपने एक अन्य साथी के साथ कानपुर आया और विनय झा के घर पर रुका. उस ने इंद्रबहादुर की हत्या के संबंध में एक बार फिर पूनम, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की से विचारविमर्श किया. इस के बाद वह उन के साथ वह जगह देखने गया, जहां इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव को षडयंत्र के तहत बुलाना था.

शाम पौने 6 बजे पूनम झा ने योजना के तहत इंद्रबहादुर को फोन किया. उस ने उसी मोबाइल से बात की, जो उस ने पूनम को भिजवाया था. फोन पर पूनम ने उस से कहा कि वह पति विनय को फंसा कर जेल भिजवा कर उस के साथ रहने को तैयार है, लेकिन इस से पहले वह उस की सारी योजना समझना चाहती है, इसलिए वह उस से मिलने अरमापुर थाने के पीछे मजार के पास आ जाए. चरस, स्मैक व असलहा भी साथ ले आए, ताकि मौका देख कर वह उस सामान को पति की गाड़ी में रख सके.

पूनम की बातों में फंस कर इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव अपनी बोलेरो गाड़ी से अरमापुर थाने के पीछे पहुंच गया. यह सुनसान इलाका है. वहां पूनम व उस का पति तथा अन्य साथी पहले से मौजूद थे. इंद्रबहादुर पूनम से बात करने लगा. उसी समय अनुपम ने रेंच से विजय के सिर पर पीछे से वार कर दिया. विजय लड़खड़ा कर जमीन पर गिरा तो पूनम के पति विनय झा, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा अनुपम ने उसे दबोच लिया.

उसी समय पूनम विजय की छाती पर सवार हो गई और बोली, ‘‘कमीने, तूने मेरी और मेरे परिवार की इज्जत नीलाम कर बदनाम किया है. आज तुझे तेरे पापों की सजा दे कर रहूंगी.’’ कहते हुए पूनम ने चापड़ से विजय की गरदन पर वार कर दिया. गरदन पर गहरा घाव बना और खून बहने लगा. इस के बाद विनय ने चापड़ से कई वार किए. इस के बाद वे सब उसे मरा समझ कर वहां से भाग निकले. चापड़ उन्होंने पास की झाड़ी में छिपा दिया.

इंद्रबहादुर गंभीर घायलावस्था में पड़ा कराह रहा था. कुछ समय बाद उधर से एक राहगीर निकला तो इंद्रबहादुर ने आवाज दे कर उसे रोक लिया. उस ने राहगीर को अपने बड़े भाई वीरबहादुर यादव का नंबर दे कर कहा कि वह फोन कर के उसे उस के घायल होने की सूचना दे दे. उस राहगीर ने वीरबहादुर को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही वीरबहादुर अपने साथियों के साथ वहां पहुंच गया. गंभीर रूप से घायल इंद्रबहादुर ने अपने बड़े भाई को बता दिया कि उस की यह हालत पूनम झा, उस के पति विनोद, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा रिश्तेदार अनुपम व उस के साथी ने की है. यह बता कर विजय बेहोश हो गया. वीरबहादुर ने भाई विजय यादव के बयान की मोबाइल पर वीडियो बना ली थी.

वीरबहादुर अपने घायल भाई इंद्रबहादुर को साथियों के साथ हैलट अस्पताल ले गया. पर उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए उसे वहां से रीजेंसी अस्पताल भेज दिया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बजरंग दल के नेता इंद्रबहादुर की हत्या की खबर फैली तो हड़कंप मच गया.

उस के सैकड़ों समर्थक अस्पताल पहुंच गए. एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को खबर लगी तो वह भी रीजेंसी अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने मृतक के परिजनों व समर्थकों को आश्वासन दिया कि हत्यारों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.

मीणा ने अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाएं तथा रिपोर्ट दर्ज कर अभियुक्तों के खिलाफ सख्त काररवाई करें. मीणा ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया और पोस्टमार्टम हाउस व अस्पताल के बाहर भारी पुलिस फोर्स भी तैनात कर दिया.

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा का आदेश पाते ही अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता ने मृतक विजय यादव के भाई वीरबहादुर यादव से घटना के संबंध में बात की. उस ने भाई के मरने से पहले रिकौर्ड किया वीडियो उन्हें सौंप दिया.

वीरबहादुर की तहरीर पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302 के तहत पूनम झा, उस के पति विनय, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की, रिश्तेदार अनुपम तथा उस के साथी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

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चूंकि हत्या का यह मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी ने एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता, क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर मनोज मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी विनोद मिश्रा, सर्विलांस सेल प्रभारी देवी सिंह, कांस्टेबल चंदन कुमार गौड़, देवेंद्र कुमार, भूपेंद्र कुमार, धर्मेंद्र, ललित, राहुल कुमार तथा महिला कांस्टेबल पूजा को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापे मार कर 25 नवंबर की दोपहर पूनम झा, उस के पति विनय झा, जेठ विनोद झा तथा भतीजे सत्यम उर्फ विक्की को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई.

प्रारंभिक पूछताछ में आरोपी खुद को बेकसूर बताते रहे, लेकिन जब पुलिस ने पूनम झा के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में इंद्रबहादुर से घंटों बातचीत होने और घटना से पहले भी इंद्रबहादुर से बातचीत होने का रिकौर्ड सामने आ गया.

इस के बाद सख्ती करने पर सभी आरोपी टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर झाडि़यों में छिपाया गया चापड़ तथा पूनम ने अपनी साड़ी बरामद करा दी, जो उस ने हत्या के समय पहनी थी.

पुलिस टीम ने सभी आरोपियों को एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा के सामने पेश किया. मीणा ने आननफानन प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर पत्रकारों के समक्ष घटना का खुलासा कर दिया. आरोपी विनय ने पत्रकारों को बताया कि इंद्रबहादुर जबरन उस की पत्नी के साथ संबंध बनाना चाहता था. इस के लिए वह पूनम पर दबाव बना रहा था. वह पूनम की मार्फत उसे तथा उस के परिवार को गलत धंधे में भी फंसाना चाहता था.

पूनम जब तैयार नहीं हुई तो उस ने फरजी फेसबुक आईडी बना कर पूनम को बदनाम किया. इसी के बाद उस ने विजय की हत्या की योजना बनाई और उसे मौत की नींद सुला दिया.

पुलिस ने 26 नवंबर, 2017 को सभी अभियुक्तों को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अभियुक्त अनुपम व उस का साथी फरार था. पुलिस उन की गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित