खूनी नशा : एक गलती ने खोला दोहरे हत्याकांड का राज

गुरुवार 31 जनवरी को थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी, इसलिए ठंड बढ़ गई थी. रात 8 बजते बजते ठंड से ठिठुरता भीमगंज मंडी कुहासे की चादर में लिपट गया था. इस के बावजूद बाजारों की चहलपहल में कोई कमी नहीं आई थी. इलाके में जैन मंदिर, राम मंदिर और गुरुद्वारा होने की वजह से आम दिनों की तरह उस दिन भी लोगों की अच्छीखासी आवाजाही थी.

सर्राफा कारोबारी राजेंद्र विजयवर्गीय का दोमंजिला मकान जैन मंदिर के सामने ही था. उन के परिवार में पिता चांदमल के अलावा 45 वर्षीय पत्नी गायत्री और 18 वर्षीय बेटी पलक थी. स्टेशन रोड पर उन की विजय ज्वैलर्स के नाम से सर्राफे की दुकान थी. राजेंद्र विजयवर्गीय के पिता चांदमल का रोजाना का नियम था कि शाम 7 बजे जब जैन मंदिर में आरती होती थी. वे घर से राम मंदिर जाने के लिए निकल जाते थे. मंदिर से वह स्कूटर से दुकान पर पहुंचते और दुकान बंद करने के बाद घर लौट आते थे, तब तक साढ़े 8 बज जाते थे.

पितापुत्र दोनों अकसर साथ ही घर लौटते थे. उस दिन राजेंद्र कुछ जरूरी काम निपटाने की वजह से दुकान पर ही रुक गए थे. जबकि चांदमल लगभग साढ़े 8 बजे नौकर के साथ घर लौट आए थे. नौकर को बाहर से ही रुखसत कर चादंमल ऊपरी मंजिल स्थित अपने निवास पर पहुंचे. उन्होंने गेट पर लगी कालबेल बजाई.

लेकिन रोजाना फौरन खुल जाने वाले दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई. जबकि कालबेल की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक देने की कोशिश की तो यह देख कर हैरान रह गए कि दरवाजा अंदर से लौक्ड नहीं था. वह एक ही धक्के में खुल गया. ऐसा पहली बार ही हुआ था.

चांदमल ने बहू गायत्री के कमरे की तरफ बढ़ते हुए आवाज लगाई तो वहीं खड़े रह गए. गायत्री के कमरे के बाहर खून बिखरा पड़ा था. बहू की खामोशी और फर्श पर बिखरे खून ने उन्हें इस कदर डरा दिया कि वे बुरी तरह चीख पड़े.

चांदमल के चिल्लाने की आवाज ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली किराएदार रश्मि ने सुनी तो चौंकी. वह तभी मंडी से सब्जी ले कर लौटी थी. वह हड़बड़ाई सी सीढि़यों की तरफ दौड़ी. बदहवास से खड़े चांदमल ने कमरे में बिखरे खून की तरफ इशारा किया तो रश्मि ने पहले चांदमल को संभाला. फिर गायत्री की तलाश में कमरे की तरफ बढ़ी.

वहां का दृश्य देख कर चांदमल और रश्मि दोनों की आंखें फटी रह गईं. ड्राइंगरूम के फर्श पर गायत्री की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. चांदमल को संभालने की कोशिश में रश्मि को थोड़ा आगे पलक पड़ी दिखाई दी. उस के आसपास खून का दरिया सा बना हुआ था. साफ लगता था कि दोनों मर चुकी हैं.

चांदमल ने इस वीभत्स दृश्य को देखा तो उन के रहे सहे होश भी उड़ गए. सन्नाटे में खड़े चांदमल समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ये सब कैसे हो गया. अंतत: उन्होंने जैसेतैसे रश्मि की मदद से खुद को संभाला और मोबाइल से बेटे राजेंद्र को इत्तला दी. इस के बाद उन्होंने रश्मि को फोन दे कर पुलिस को सूचना देने को कहा.

पुलिस को खबर देने के बाद रश्मि ने मोहल्ले के लोगों को आवाज दी. जरा सी देर में पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. जैन मंदिर से भीमगंज मंडी पुलिस स्टेशन का फासला बमुश्किल एक किलोमीटर का है. थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह ने फोन कर के उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया.

पुलिस अधिकारी पहुंचे घटनास्थल पर

इस के बाद श्रीचंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ 15-20 मिनट में राजेंद्र विजयवर्गीय के मकान पर पहुंच गए. दोहरे हत्याकांड ने कोटा के पुलिस महकमे को हिला दिया था. आईजी विपिन कुमार पांडे, एसपी दीपक भार्गव, एडीएम पंकज ओझा सहित आधा दरजन थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. विजयवर्गीय परिवार के घर के बाहर भारी भीड़ जुट गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने देखा कि खून तो बैडरूम में फैला था, लेकिन गायत्री और पलक दोनों के शव ड्राइंगरूम में पड़े थे. पुलिस को लगा कि हत्यारों ने मांबेटी दोनों को उन के कमरों में मारा होगा और फिर शवों को घसीटते हुए ड्राइंगरूम में ला कर पटक दिया होगा.

दोनों के कमरों से ड्राइंगरूम तक खिंची खून की लकीर भी इसी ओर इशारा कर रही थी. जिस दरिंदगी से मांबेटी की हत्या की गई थी, उस से लगता था कि दोनों की हत्याएं किसी रंजिश की वजह से गई थीं.

इस बारे में राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि हम लोग तो सीधी सच्ची जिंदगी जी रहे थे. दुश्मनी या रंजिश का तो कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन एसपी दीपक भार्गव राजेंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. क्योंकि घटनास्थल का वीभत्स दृश्य साफ साफ रंजिश की ओर इशारा कर रहा था. हत्यारों ने किसी वजनी हथियार से दोनों के सिर, गरदन और हाथों पर इतने घातक वार किए थे कि उन का भेजा तक बाहर आ गया था.

मौका मुआयना करने के दौरान पुलिस को बैड पर 2 सरिए पड़े नजर आए. खून सना चाकू बैड के नीचे पड़ा था. चाकू पर लगा खून बता रहा था कि मांबेटी के गले उस चाकू से ही रेते गए होंगे. बैडरूम में रखी अलमारियों के टूटे हुए ताले बता रहे थे कि वारदात को चोरी डकैती के लिए अंजाम दिया गया था.

लेकिन राजेंद्र विजयवर्गीय सदमे की वजह से कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थे. पुलिस ने भी उन पर दबाव नहीं बनाया. एसपी भार्गव का मानना था कि हत्यारे 2 या 2 से ज्यादा रहे होंगे. प्रारंभिक जांच और मौकामुआयना के बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमबीएस अस्पताल भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दोनों की मौत हैड इंजरी से होनी बताई गई. गायत्री के सिर पर 5 चोटें थीं, साथ ही सिर में मल्टीपल फ्रैक्चर भी थे. सिर की कई हड्डियां टूट गई थीं. जबकि पलक के सिर में 2 चोटें थीं. इन में एक चोट इतनी घातक थी कि भेजा ही बाहर आ गया था.

हथियार सरियों के रूप में सामने आ चुके थे. गायत्री और पलक दोनों के हाथों पर भी गहरी खरोंचें और चोटें थीं.

मौके पर टूटी हुई चूडि़यों के टुकड़े भी पाए गए थे. इस का मतलब उन्होंने अपने बचाव के लिए बदमाशों से काफी संघर्ष किया था. मांबेटी के नाखूनों में त्वचा और मांस के अंश थे, जो हत्यारों के हो सकते थे. इस का पता लगाने के लिए नेल स्क्रैपिंग का सैंपल भी लिया गया. पुलिस की फोरैंरिक टीम ने भी मौके से फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट उठाए.

विजयवर्गीय के घर से एक सड़क सीधी स्टेशन की तरफ जाती थी और दूसरी हटवाड़े से होते हुए शहर की ओर. यही सड़क शहर के अलावा सैन्य क्षेत्र की तरफ भी जाती थी. यही वजह रही होगी कि हत्यारे बिना किसी की नजर में आए वारदात कर के आसानी से फरार हो गए थे.

नहीं मिल रहा था कोई क्लू

पुलिस यह सोच कर भी चल रही थी कि वारदात को अंजाम देने के लिए हत्यारों ने कम से कम 5-7 दिन तक रैकी की होगी. खोजी कुत्ते भी इसीलिए भटक कर रह गए थे. वारदात को जिस तरह अंजाम दिया गया था, उस से लगता था कि आरोपी विजयवर्गीय परिवार के अच्छे खासे परिचित रहे होंगे.

जिस घर में वारदात हुई, उस का मुख्यद्वार लोहे का था. लेकिन कुंडी ऐसी थी जो अंदर बाहर दोनों तरफ से आसानी से खोली जा सकती थी. ऐसे में घर में किसी के घुसने की खबर लगने का कोई मतलब ही नहीं था. राजेंद्र विजयवर्गीय की पत्नी गायत्री और ससुर चांदमल सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे. इसलिए उन के यहां लोग अकसर आतेजाते रहते थे.

राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि घर में 5 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. जब कोई घर में ऊपर आता था तो गायत्री या पलक कैमरे में देख कर ही दरवाजा खोलती थीं. जाहिर है, इस का मतलब था आने वाले परिचित ही रहे होंगे.

दरअसल पुलिस को सभी कैमरे टूटे हुए मिले थे. उन की हार्डडिस्क भी गायब थी. इस का मतलब हत्यारे घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ थे. घर की दोनों तिजोरियों के ताले तोड़े गए थे. मतलब बदमाशों को पता रहा होगा कि घर की दौलत उन्हीं तिजोरियों में है.

पोस्टमार्टम के बाद जब मांबेटी का अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए. व्यापारी संघ के लोगों में इस वारदात को ले कर अच्छाभला रोष था. उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरनेप्रदर्शन की चेतावनी भी दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी को एसपी दीपक भार्गव ने राजेंद्र से घर से चोरी गए सामान की बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि तिजोरियों में करीब एक करोड़ रुपए की नकदी और जेवर गायब हैं. इस का मतलब वारदात को धन के लालच में अंजाम दिया गया था. इस बात को राजेंद्र ने भी स्वीकार किया. इस से पुलिस को तफ्तीश की एक दिशा मिल गई. निस्संदेह इस वारदात में विजयवर्गीय परिवार का कोई करीबी ही शामिल रहा होगा.

10 टीमें जुटीं जांच में

दोहरे हत्याकांड का खुलासा करने के लिए डीजीपी विपिन पांडे के निर्देशन में एसपी दीपक भार्गव ने 10 टीमों का गठन किया. हत्या और लूट के मामले से जुड़े संदिग्ध और आदतन अपराधियों से पूछताछ का काम डीएसपी भंवर सिंह हाड़ा को सौंपा गया. उन की मदद के लिए हर थाने से 10 जवानों की टीम बनाई गई.

सीसीटीवी कैमरों को खंगालने की जिम्मेदारी उद्योगनगर पुलिस इंसपेक्टर विजय शंकर शर्मा और उन की टीम ने संभाली. इस के अलावा मामले से जुड़ी हर सूचना के एकत्रीकरण और पुलिस प्रशासनिक बंदोबस्त का प्रभारी थाना भीमगंज मंडी के इंसपेक्टर श्री चंद्र सिंह को बनाया गया.

पुलिस ने इलाके में वारदात के उस एक घंटे में किए गए सभी मोबाइल काल्स को राडार पर ले लिया. सौ से डेढ़ सौ कैमरों से सीसीटीवी फुटेज भी ली गई.

कैमरे खंगालने के लिए एडीशनल एसपी राजेश मील और प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन पूरी मुस्तैदी से लगे रहे. पुलिस की अलगअगल टीमों ने अपराधियों की तलाश में होटलों और धर्मशालाओं को भी खंगाला. एसपी दीपक भार्गव ने तो भीमगंज मंडी थाने में ही पड़ाव डाल दिया. वह पुलिस टीमों से पलपल की जानकारी लेते रहे. इस बीच पुलिस ने पूरी रेंज में हाई अलर्ट जारी कर दिया था. शहर की सीमाओं पर पूरी तरह नाकेबंदी कर दी गई थी ताकि अपराधी शहर छोड़ कर भागना चाहे तो धर लिया जाए.

अंगौछा बना सूत्र

इस दोहरे हत्याकांड की जांच में एक मोड़ शनिवार 2 फरवरी को उस समय आया जब पुलिस को घटनास्थल से सफेद रंग का एक अंगौछा मिला. संभवत: हत्यारे अफरातफरी में अंगौछा छोड़ गए थे.

पुलिस ने अंगौछे की पहचान को ले कर जब राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा, तो वे कुछ नहीं बता सके. अलबत्ता मुखबिरों में से एक ने संदेह जताया कि यह अंगौछा राजेंद्र की दुकान पर मुनीमी करने वाले मस्तराम का हो सकता है.

पुलिस जांच में मस्तराम जैसे सैकड़ों लोग राडार पर थे. रविवार 3 फरवरी की शाम पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि राजेंद्र विजयवर्गीय परिवार का एक पुराना कर्मचारी आजकल जम कर पैसे उड़ा रहा है. उस ने 70 हजार का मोबाइल और महंगे कपड़े खरीदे हैं.

कहावत है कि अपराधी वारदात करने के बाद किसी न किसी बहाने मौकाएवारदात पर जरूर आता है. कई बार यही चूक उस के पकड़े जाने का सबब बनती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. 3 फरवरी को गायत्री और  पलक की शोकसभा थी. शोकसभा में मातमपुर्सी के लिए आया एक व्यक्ति फूटफूट कर रोने लगा. वह बारबार कह रहा था, ‘‘यह सब कैसे हो गया?’’

राजेंद्र को दिलासा देने के लिए जब वह उन के पास गया तो उस के मुंह से निकलती शराब की बदबू विजय की नाक तक पहुंच गई. उन्होंने उसे वहां से जबरन हटाने का प्रयास किया लेकिन वह और ज्यादा जोरों से रोने लगा.

शोकसभा में सादे कपड़ों में भीमगंज मंडी थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह भी मौजूद थे. उन्हें यह सब कुछ अटपटा लगा तो उन्होंने राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा कि वह कौन है. राजेंद्र ने बताया कि उस का नाम मस्तराम मीणा है और वह बूंदी के बड़ा तीरथ गांव का रहने वाला है. उन्होंने यह भी बताया कि मस्तराम उन का बहुत विश्वस्त नौकर था. 3 साल पहले वह उन की दुकान पर मुनीम था.

नतीजतन मस्तराम पुलिस की नजर में चढ़ गया. पुलिस उसे उठा कर थाने ले आई. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी पता चल गई. पता चला कि इस वारदात को मस्तराम ने अपने एक साथी लोकेश मीणा, जो उसी के गांव का रहने वाला था, के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

मस्तराम मीणा और लोकेश मीणा एक ही गांव के रहने वाले थे और दोनों दोस्त थे. बूंदी जिले की केशोराय पाटन तहसील के बड़ा तीरथ गांव के रहने वाले 3 भाइयों के परिवार में 28 साल का मस्तराम अविवाहित था. उस के पिता किसान प्रभुलाल मीणा की 3 साल पहले मौत हो गई थी.

इस के बाद तीनों भाइयों ने पुश्तैनी जमीन 18 लाख में बेच दी थी और रकम का बंटवारा कर लिया था. मस्तराम को बंटवारे में 6 लाख रुपए मिले. उस ने यह रकम अय्याशी में उड़ा दी. मस्तराम ने केशवराय पाटन इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिशियन ट्रेड में आईटीआई की परीक्षा पास की थी. शराब के नशे में हुड़दंग करने पर वह गांव वालों से कई बार पिट चुका था.

इस वारदात में मस्तराम का सहयोगी रहा लोकेश मीणा 10वीं में फेल होने के बाद से ही आवारागर्दी करने लगा था. उस ने आरसीसी पाइप्स की ठेकेदारी भी की थी. लेकिन झगड़ा फसाद करने के कारण धंधा नहीं चल पाया. केशोराय पाटन थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे.

कुछ समय पहले वह अपनी भाभी को भी ले कर भाग गया था. तभी से उस के घर वालों ने उस से किनारा कर लिया था. मस्तराम और लोकेश मीणा दोनों सोचते थे कि किसी बड़ी लूट को अंजाम दें और ऐशोआराम की जिंदगी जिएं.

मक्कारी में 2 कत्ल कर डाले

मस्तराम मीणा सर्राफ राजेंद्र विजयवर्गीय की दुकान पर नौकरी कर चुका था. उसे पता था कि घर का कौन सदस्य कब आताजाता है, नकदी जेवर कहां रखे हैं. उस ने लोकेश को अपनी योजना बताई कि एकदो को मारना तो पड़ेगा लेकिन मोटा माल मिलेगा. लोकेश इस के लिए तैयार हो गया.

कह सकते हैं कि इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड मस्तराम ही था. पूछताछ में उस ने बताया कि दोनों ने वारदात से पहले दुकान और घर दोनों जगहों की रेकी की. रेकी के बाद वारदात का वक्त शाम के 7 बजे का रखा गया. उस समय राजेंद्र विजयवर्गीय दुकान पर होते थे और उन के पिता चांदमल को राम मंदिर में दर्शन करते हुए दुकान पर पहुंचना होता था.

रात साढ़े 8-9 बजे से पहले दोनों में से कोई नहीं लौटता था. ग्राउंड फ्लोर की किराएदार रश्मि अकेली रहती थी और उस वक्त सब्जी मंडी चली जाती थी. लूट के लिए हत्या करना पहले ही तय था, इसलिए दोनों सरिए और चाकू साथ ले कर आए थे. मांबेटी गायत्री और पलक दोनों उन्हें जानती थीं, इसलिए कालबेल बजाने पर दरवाजा खुलवाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

दरवाजा खोलते ही गायत्री सामने नजर आई. दोनों को बैठने को कह कर जैसे ही वह अपने कमरे की तरफ बढ़ी, दोनों ने मौका दिए बगैर सरिए से उन के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर दिए. फिर भीतर जा कर पलक का भी यही हाल किया. दोनों में जान न रह जाए, यह सोच कर मस्तराम और केशव ने चाकू से दोनों का गला रेत कर उन की मौत की तसल्ली कर ली.

बाद में दोनों ने मांबेटी की लाशों को घसीट कर ड्राइंगरूम में डाल दिया. मस्तराम को पता था कि जेवर और नकदी गायत्री के कमरे की तिजोरी में रखे होते हैं. मस्तराम और लोकेश अपने साथ बैग ले कर आए थे. तिजोरी तोड़ कर जितनी भी रकम और जेवर मिले, उन्होंने बैग में भरे और वहां से फुरती से निकल गए. बस पकड़ कर दोनों सीधे गांव पहुंचे और गहने व रकम का बड़ा हिस्सा घर में छिपा दिया.

फिर दोनों ने रात में ही बूंदी से रोडवेज की बस पकड़ी और जयपुर चले गए. जयपुर में दोनों बसस्टैंड के पास ही एक होटल में रुके. अगले दिन दोनों ने जम कर खरीदारी की और शराब पी. दोनों ने अपने लिए 70-70 हजार के महंगे मोबाइल फोन, कपड़े और अन्य सामान खरीदा. शनिवार 2 फरवरी को दोनों वापस कोटा आ गए.

मस्तराम को अपने पकड़े जाने का डर नहीं था. फिर भी अपनी इस तसल्ली के लिए कि किसी को उस पर शक न हो, वह शोक जताने का दिखावा करने चला गया. बस उस की यही सोच उसे ले डूबी. राजेंद्र विजयवर्गीय ने पुलिस को बताया कि हत्यारों ने करीब एक करोड़ की लूट की थी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों के कब्जे से लूटे गए 37 लाख में से 21.70 लाख रुपए और 2 किलो 26 ग्राम सोना, साढ़े 13 किलो चांदी के जेवर बरामद कर लिए. मस्तराम ने बताया कि गायत्री और पलक जो गहने पहने थी, उन्होंने वे भी उतार लिए थे. सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि आरोपियों के कब्जे से सोने की चेन और कंगन भी बरामद कर लिए गए.

लोकेश ने वारदात करने के बाद 8 लाख रुपए, कंगन और चेन अपने गांव जा कर खेत में गाड़ दिए. लूट की रकम का बंटवारा करने के बाद मस्तराम पाटन के एक गांव में अपने रिश्तेदारों के पास गया था. उस ने उन्हें 8 लाख रुपए यह कह कर रखने को दिए कि रकम जमीन बेच कर मिली है, थोड़े दिन रख लो फिर आ कर ले जाऊंगा.

वारदात खुलने के बाद मस्तराम के रिश्तेदारों ने यह रकम पुलिस को यह कहते हुए सौंप दी कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

इस मामले में भीमगंज मंडी के थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही. शोकसभा में मस्तराम मीणा के हावभाव उन्हें खटके तो उन्होंने पूरा ध्यान उसी पर लगा दिया. इस कोशिश में उन्हें उस की कलाइयों पर खरोंचों के निशान नजर आए, जिस से उन का शक पुख्ता हो गया. उन्होंने कांस्टेबल शिवराज को उसे फौरन उठाने को कहा.

सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि जयपुर में अच्छीखासी खरीदारी के बाद दोनों हत्यारे वापस होटल नहीं पहुंचे थे. अगले दिन होटल मालिक ने कमरे की सफाई करवाई तो प्लास्टिक की थैली में कपड़े मिले, जिन्हें स्टोर में रखवा दिया गया था. श्रीचंद्र सिंह ने वह थैली भी बरामद कर ली.

इस मामले को केस औफिसर स्कीम में लिया गया है और 15 दिन में कोर्ट में चालान पेश किया जाएगा. इस केस को सुलझाने में एएसपी राकेश मील, उमेश ओझा, प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन, डीएसपी भंवर सिंह, राजेश मेश्राम, सीआई महावीर सिंह, मुनींद्र सिंह, मदनलाल और विजय शंकर शर्मा सहित 200 पुलिसकर्मी शामिल रहे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश – भाग 3

गोपाल को गोद लेने का राज आया सामने

गोपाल को गोद लेने के दस्तावेज तैयार किए जाने के ठीक एक महीने बाद ही 26 अगस्त, 2015 को आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के साथ बीमा के लिए आवेदन किया गया था. इस कंपनी का मुख्यालय मुंबई में है.

गोपाल के लिए ली गई जीवन बीमा पौलिसी का नाम ‘वेल्थ बिल्डर’ था. इस के जरिए ‘प्रस्तावित’ या ‘नामांकित’ को वार्षिक प्रीमियम के मूल्य का 10 गुना भुगतान किया जाता है. इस की प्रस्तावक आरती धीर थी. इस का अर्थ यह था कि गोपाल की मौत पर बीमा का लाभ आरती को ही मिलता.

जूनागढ़ के एसपी सौरव सिंह के अनुसार इस के लिए सिर्फ वार्षिक प्रीमियम 15 हजार पौंड (15 लाख 75 हजार रुपए) की 2 किस्तें ही दी गई थीं. उन की बीमा राशि बहुत बड़ी थी. वे यह अच्छी तरह से जानते थे कि गोपाल की मृत्यु की स्थिति में उसे बीमा राशि का 10 गुना भुगतान मिल जाएगा. इस अनुसार आरती धीर को गोपाल की मृत्यु के बाद करीब एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए (डेढ़ लाख पाउंड) मिलते.

गुजरात पुलिस के सामने लंदन में बैठे मुख्य आरोपियों के प्रत्यर्पण के जरिए भारत ला कर पूछताछ करने की मुख्य समस्या थी ताकि उन्हें यहां मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया जा सके.

कारण, दंपति ने लंदन पुलिस को बीमा भुगतान के लिए गोपाल को मारने की योजना बनाने से साफतौर पर इनकार कर दिया था. साथ ही ब्रिटेन ने मानवाधिकार के आधार पर भारत में मुकदमे का सामना करने के लिए जोड़े को प्रत्यर्पित करने के अनुरोध को खारिज कर दिया था. जबकि इसे ले कर गुजरात पुलिस ने भारत सरकार से अनुमति मांगी थी और भारत सरकार ने अपील करने की अनुमति दे दी थी.

भारत सरकार के अनुरोध के बाद जून 2017 में यूके में दोनों गिरफ्तार तो कर लिए किए गए, लेकिन 2 जुलाई, 2017 को वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रैट कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मानवाधिकार के आधार पर उन के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया.

अपने फैसले में वरिष्ठ जिला न्यायाधीश एम्मा अर्बुथनौट ने पाया कि उन के प्रत्यर्पण को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत थे. परिस्थितियों के मुताबिक पहले दृष्टिकोण में मामला आरती धीर और उस के पति कंवलजीत सिंह रायजादा द्वारा मिल कर काम करने तथा अन्य लोगों के साथ मिल कर अपराध करने के कई साक्ष्य उजागर हो चुके थे.

इस वजह से नहीं हो पाया आरोपियों का यूके से प्रत्यर्पण

इस के विपरीत गुजरात में दोहरे हत्याकांड की सजा पैरोल के बिना आजीवन कारावास है. इसे देखते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्यर्पण ब्रिटेन के कानून के तहत जोड़े के मानवाधिकारों के विपरीत होगा. इस कारण यदि प्रत्यर्पित किया जाता है तो जोड़े को ‘एक अपरिवर्तनीय सजा’ दी जा सकती है, जो ‘अमानवीय और अपमानजनक’ होगी.

इस तरह से गोपाल और उस के बहनोई की हत्या का मामला 2 देशों के बीच प्रत्यर्पण कानून और मानवाधिकारों में उलझने के कारण ठंडे बस्ते में चला गया. दंपति लंदन में आजाद घूमते रहे और दूसरे धंधे में लग गए.

हालांकि भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को 2019 में अस्वीकार किए जाने के बाद 2020 में लंदन के हाईकोर्ट में एक अपील की गई, लेकिन वह भी असफल हो गई.

आरती और कंवलजीत के काले धंधे के कारनामों में नशीली दवाओं की तस्करी, मनी लौंड्रिंग मुख्य थे. वे गुजरात में हत्या के मामले में भले ही बच गए, लेकिन आस्ट्रेलिया में नशीली दवाओं की तस्करी के मामले में पकड़े जाने के बाद वे अंतरराष्ट्रीय कानून के शिकंजे में आ चुके थे. उन पर आस्ट्रेलिया में आधा टन से अधिक कोकीन निर्यात करने का आरोप लग चुका था.

दरअसल, मई 2021 में सिडनी पहुंचने पर आस्ट्रेलियाई सीमा बल द्वारा कोकीन पकड़े जाने के बाद राष्ट्रीय अपराध एजेंसी (एनसीए) ने आरती और कंवलजीत की पहचान की थी. नशीली दवाओं को यूके से एक वाणिज्यिक उड़ान के माध्यम से भेजा गया था और 6 धातु के टूलबौक्स के भीतर छिपाया गया था.

इस मामले की सुनवाई लंदन की कोर्ट में होने के बाद कई आपराधिक मामलों का खुलासा होने लगा था. उन में ही बीमा की राशि हासिल करने के लिए दत्तक पुत्र की हत्या का मामला भी था.

लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट ने सुनवाई के सिलसिले में पाया कि उन्हें भारत में दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या के लिए भी तलाश है. वे निर्यात के 12 और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में दोषी हैं.

इस सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने दंपति के कई आपराधों में लिप्त होने और उन की काम करने में आपराधिक गतिविधियों की तुलना लोकप्रिय अपराध नाटक ‘ओजार्क’ और ‘ब्रेकिंग बैड’ से की.

इस बाबत तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार अभियोजक ह्यू फ्रेंच ने उन्हें एक वैसे ‘क्रूर और लालची’ जोड़े के रूप का विवरण दिया, जो अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में सक्रिय बना हुआ था. उन्हें अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में काम करने वाला पाया गया.

एनसीए के जांचकर्ताओं ने दोनों पर यूके से नशीली दवाएं सिडनी एक कामर्शियल उड़ान के जरिए भेजने का आरोप लगाया था. 6 टूलबौक्स में 514 किलोग्राम कोकीन पाई गई थी.

दंपति ने ड्रग्स की तस्करी के लिए ही जून 2015 में विफ्लाई फ्रेट सर्विसेज नामक एक कंपनी बनाई थी. पतिपत्नी ही इस के डायरेक्टर थे. जांच में कंवलजीत की अंगुलियों के निशान धातु के टूलबौक्स की रैपिंग पर पाए गए थे और टूलबौक्स के आर्डर की रसीदें दंपति के घर से बरामद हुई थीं.

काली कमाई से जुटाए करोड़ों रुपए

इस संबंध में एनसीए ने खुलासा किया कि जून 2019 से आस्ट्रेलिया को 37 खेप भेजी गईं, जिन में से 22 नकली थीं और 15 में कोकीन थी. उन्होंने हवाई अड्डे से माल ढुलाई प्रक्रियाओं की बारीक जानकारी हीथ्रो में एक उड़ान सेवा कंपनी में नौकरी करते हुए सीखी थी. एनसीए के वरिष्ठ जांच अधिकारी पियर्स फिलिप्स के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने यूके से आस्ट्रेलिया तक लाखों पाउंड मूल्य की कोकीन की तस्करी के लिए हवाई माल ढुलाई उद्योग के अपने अंदरूनी जानकारी का इस्तेमाल किया था, जहां वे जानते थे कि कैसे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

उन्होंने अपने काले धंधे की कमाई के पैसे और धन को छिपाने के भी सफल प्रयास किए. अवैध मुनाफे की कमाई को नकदी के रूप घर और अनाज आदि रखने के कंटेनरों में रखा. साथ ही सोना और चांदी भी खरीदी. जैसेजैसे उन की काली कमाई बढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उन का लालच और अधिक बढ़ता जा रहा था.

दोनों को जांच टीम ने 21 जून, 2021 को हैनवेल में उन के घर से गिरफ्तार कर लिया था. उन के फ्लैट की तलाशी में 5,000 पाउंड मूल्य की सोने की परत चढ़ी चांदी की छड़ें, घर के अंदर 13,000 पाउंड और बौक्स में 60,000 पाउंड नकद मिले.

इस बारे में पूछताछ में पाया गया कि उन्होंने ईलिंग में 8,00,000 पाउंड में एक फ्लैट और 62,000 पाउंड में एक लैंड रोवर कार भी खरीदी थी.

उन्होंने 2019 से 22 अलगअलग बैंक खातों में लगभग 7,40,000 पाउंड (लगभग 7 करोड़ 77 लाख रुपए) नकद जमा किए थे और उन पर मनी लौंड्रिंग का आरोप लगाया गया था.

इस पूरे मामले पर काम करने वाले 3 एनसीए अधिकारियों ने दंपति के खिलाफ कोर्ट में सारे सबूत जुटा दिए थे. हालांकि दोनों ने आस्ट्रेलिया को कोकीन निर्यात करने और मनी लौंड्रिंग से इनकार किया. बावजूद इस के लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट में एक मुकदमे के बाद जूरी द्वारा उन्हें निर्यात के 12 मामलों और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में 7 साल तक चले मुकदमे के बाद 31 जनवरी, 2024 दोषी ठहराया गया.

अगले रोज 31 जनवरी, 2024 को आरती धीर और उस के पति कंवलजीत रायजादा को 33-33 साल जेल की सजा सुना दी गई.

गुजरात में गोपाल की बहन अल्पा को एक स्थानीय पत्रकार ने फोन कर इस की जानकारी दी. यह सुनते ही अल्पा ने तुरंत अपना टीवी चालू किया और उस के भाई और पति के हत्यारे को जेल की सजा सुनाए जाने पर राहत की सांस ली. दोनों को 33-33 साल जेल की सजा सुनाई गई थी.

कहानी लिखे जाने तक दंपति जेल में थे, लेकिन गुजरात में अल्पा को यह समझ में नहीं आ रहा था कि उस के भाई और पति की हत्या के मामले को नशीली दवाओं की तस्करी के मामले से कम क्यों आंका गया?

2 भगोड़े एनआरआई को 33 साल की सजा दिए जाने की घटना ने ब्रिटिश के दोहरे मानदंडों को ले कर सवाल खड़े कर दिए कि आखिर हत्या की साजिश से अधिक महत्त्वपूर्ण ड्रग तस्करी क्यों हो गई? गोपाल के परिवार वालों के सामने यह सवाल बना हुआ है कि क्या 2 जनों की कीमत उस से कम थी?

हनी ट्रैप से बुझी बदले की आग

लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश – भाग 2

इस मामले को केशोद के थाने में दर्ज किया गया. वहां से पुलिस इंसपेक्टर अशोक तिलवा ने इस की जांचपड़ताल की. घटना की तहकीकात के बाद नीतीश नाम के व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. उस से पूछताछ होने पर इस वारदात में भाड़े पर शामिल किए गए दोनों हमलावरों के नाम भी सामने आए. वे हमलावर उन के द्वारा ही 55 लाख रुपए दे कर बुलाए गए थे.

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. नीतीश ने बताया कि उस ने ब्रिटेन में रहने वाले दंपति कंवलजीत सिंह रायजादा और आरती धीर के इशारे पर इस वारदात को करवाया. पूछताछ में नीतीश मुंड ने यह भी बताया कि गोपाल की हत्या की 2 असफल कोशिशें पहले भी हो चुकी थीं.

हत्या से 4 हफ्ते पहले उस ने नीतीश को एक फरजी आईडी पर लिया गया सिम कार्ड खरीदने के लिए 25,000 रुपए भी भेजे थे, ताकि साजिश में शामिल दूसरे लोगों के साथ किसी का फोन काल नहीं जुडऩे पाए.

आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा का नाम सुन कर हरसुखभाई की पत्नी अल्पा भी चौंक पड़ी. कारण, यह वही जोड़ा था, जिस ने उस के भाई गोपाल को गोद लिया था. यह बात उस ने पुलिस को भी पूछताछ के दरम्यान बताई.

वह इस बात से आश्चर्यचकित थी कि आखिर उस ने उसे क्यों मरवाया? उन्हें उस के पति से क्या शिकायत थी, जो पति को भी मरवा दिया?

अल्पा ने पुलिस को बताया कि नीतीश मुंड की गिरफ्तारी के बाद कंवलजीत के पिता उस से मिलने आए थे, जो स्थानीय बैंक में मैनेजर हैं. उन्होंने उसे पुलिस को यह बताने के लिए पैसे की पेशकश की थी कि मुंड निर्दोष है. हत्या की साजिश के सिलसिले में पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया था. बाद में उन की जमानत हो गई थी.

लंदन से रची गई थी हत्या की साजिश

पुलिस यह भी पता लगा रही थी कि इस घटना के तार और किनकिन लोगों के साथ जुड़े हो सकते हैं? इस में किन की क्या भूमिका हो सकती है? गोद लेने वाले दंपति की मंशा क्या थी? मासूम गोपाल का अपहरण क्यों किया जा रहा था?

बहुत जल्द ही इस का राज पकड़े गए नीतीश मुंड के बयानों से खुल गया. पुलिस जांच के अनुसार नीतीश मुंड इस मामले का एक बिचौलिया था, जो पहले हनवेल में आरती धीर और कंवलजीत के फ्लैट पर रहता था. गुजरात में पुलिस के सामने उस का एक कुबूलनामा कलमबद्ध किया गया था, जिस में दंपति को हत्या की साजिश में शामिल बताया गया था.

गोपाल की मौत का कारण वही एनआरआई दंपति था, जिस ने उसे 2 साल पहले गोद लिया था. पुलिस ने अल्पा की तरफ से दर्ज रिपोर्ट में उन पर ही 11 वर्षीय दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या करने का आरोप लगाया गया. यह दंपति गोपाल की आकस्मिक मौत दिखा कर उस के नाम की गई बीमा के मुआवजे की एक बड़ी धनराशि हड़पना चाहते थे. लंदन में रहने वाले दंपति ने गोपाल को गोद ले कर उस का डेढ़ लाख पाउंड अर्थात एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए का जीवन बीमा करा लिया था.

उस की हत्या करवाने के लिए दंपति ने नीतीश मुंड नामक व्यक्ति से मिल कर साजिश रची थी, जो वीजा समाप्त होने और भारत लौटने तक लंदन में रहता था.

पुलिस की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह ने नीतीश मुंड के साथ मिल कर गोपाल को गोद लेने, उस का बीमा करवाने और फिर उसे मार डालने की साजिश रची थी. नीतीश लंदन में रहता था और अकसर गुजरात आताजाता था.

पुलिस जांच में गोपाल की गतिविधियों की भी जानकारी मिली. उस की बड़ी बहन अल्पा ने बताया कि वह बड़ा हो कर पुलिस औफिसर बनना चाहता था. वह बौलीवुड फिल्म ‘सिंघम’ से बहुत प्रभावित था. फिल्म में बाजीराव सिंघम की नकल करता हुआ चोर पुलिस का खेल खेला करता था. वह अपने दोस्तों पर चिल्लाता था, ‘बचना असंभव है!’

वह पढ़ाई में अव्वल था. उसे कार्टून बनाना बहुत पसंद था. उस ने महात्मा गांधी के चित्र के लिए स्कूल में पुरस्कार भी जीता था. उस के दोस्त, शिक्षक, गांव के सभी लोग उस के साथ हुई आकस्मिक घटना को ले कर हैरान थे.

उस के हमलावरों को पकडऩे में पुलिस ने तत्परता दिखाई. उस पर हमला करने वालों की यह सोच गलत साबित हुई कि एक गरीब छोटे लड़के का जीवन कोई मायने नहीं रखता है और भारत के पश्चिमी तट पर पुलिस उन्हें नहीं पकड़ पाएगी. लेकिन पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए एक एक कर 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. उन पर हत्या और अपहरण की धाराएं लगाई गईं और मुकदमा चलाया गया.

लेकिन गोपाल की मौत की गूंज गुजरात के पुलिस महकमे तक ही नहीं गूंजी, बल्कि 4 हजार मील से अधिक दूर ब्रिटेन के पश्चिम लंदन में हैनवेल में भी सुनाई दी. यह वह जगह है, जहां हीथ्रो की पूर्व कर्मचारी आरती धीर और उन के पति कंवलजीत सिंह रायजादा कतार से बनी विक्टोरियन घरों की एक पंक्ति के अंत में रहते थे.

लंदन में गूंजी गुजरात में कराई गई हत्याओं की गूंज

उन का घर एक आधुनिक ब्लौक की पहली मंजिल पर था. वे इस चौंकाने वाली घटना से इलाके में रह रहे अन्य लोगों की निगाह मेें तब आ गए, जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

उन्हें आसपास की दुकान वाले अच्छी तरह जानते पहचानते थे और आसपास के डाकघर में अपने बिलों का भुगतान करने के लिए जाते रहते थे. उन्हें सभी लोग एक अच्छे दंपति के तौर पर जानते थे. उन का व्यवहार लोगों के साथ अच्छा था और वे मिलनसार हो कर भी अपने काम से ही अधिक मतलब रखते थे.

हां, उन के बीच उम्र के अंतर और कदकाठी को देख कर कुछ समय पहले लोगों को उन के मांबेटा होने का संदेह हो जाता था, लेकिन धीरेधीरे सभी उन के पतिपत्नी होने का सच जान चुके थे. उन के बारे में कहने के लिए किसी के पास कोई बुरा शब्द नहीं था.

उन के बारे में लोगों के प्रति अच्छी धारणा थी. वह स्तन कैंसर चैरिटी के लिए धन जुटाने का काम करते थे. यही उन की इलाके में पहचान थी. उन के बारे में गुजरात पुलिस को सिर्फ यही पता था कि वे  एक साधारण गली के एक साधारण फ्लैट में एक साधारण जीवन जी रही हैं.

गुजरात पुलिस के अनुसार उन्होंने गोपाल पर ली गई जीवन बीमा पौलिसी से डेढ़ लाख पाउंड का दावा करने की योजना बनाई थी. यह योजना आरती धीर ने अपने पति कंवलजीत की मदद से बनाई थी. वे चाहते थे कि गोपाल की हत्या के बाद उस की लाश नाले में पड़ी बरामद हो ताकि बीमे की रकम के लिए दावेदारी की जा सके. इस योजना के तहत आरती धीर ने उसे मारने के लिए एक गिरोह की मदद ली थी.

गुजरात पुलिस को हैरानी इस बात की भी थी कि गोपाल की हत्या की साजिश लंदन के एक हाउसिंग एसोसिएशन के फ्लैट से रची गई थी. उन के फ्लैट की खिड़कियों में भारतीय शैली में परदे लटके हुए थे, साथ ही दरवाजे की चौखट पर नींबू और सूखी मिर्च झूल रहे थे. वहां भारतीय संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती थी. जबकि उस पर भारत में हत्या और अपहरण की साजिश सहित 6 आरोप थे.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा वल्र्डवाइड फ्लाइट सर्विसेज (डब्ल्यूएफएस) के लिए हवाई माल ढुलाई का काम करते थे. हालांकि कंपनी से पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि उन को 2016 में ‘अनुबंध के उल्लंघन’ के चलते बरखास्त कर दिया गया था.

आरती वहां भी काफी लोकप्रिय थी. उस के साथ काम करने वाली एक सहकर्मी ने लंदन पुलिस को पूछताछ में बताया कि उस के साथ काम करना और साथ रहना मजेदार था.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा के खिलाफ पहली नजर में ही आपराधिक साजिश का मामला सामने आया. उसे गोद लेने से ले कर बीमा संबंधी दस्तावेजों के सबूत के तौर पर जुटाया गया. इस आधार पर ही मामला मुख्य मजिस्ट्रैट और उच्च न्यायालय तक ले जाया गया.

लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश – भाग 1

बाइक सवारों ने कार को टक्कर मारी. कार के रुकने के बाद बाइक सवारों ने 11 वर्षीय गोपाल को कार से बाहर खींच लिया. हरसुखभाई करदानी ने गोपाल को बचाने की कोशिश की. वह भी तुंरत कार से बाहर निकल आया. उस के विरोध करने पर हमलावरों ने दोनों पर ही चाकू से हमला कर दिया. दोनों बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. उन्हें उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर हमलावर फरार हो गए थे.

गोपाल का जख्म काफी गहरा था. कुछ समय में वहां से गुजरते रिक्शा चालक ने दोनों घायलों को सड़क किनारे घायल अवस्था में पाया तो वह उन्हें अस्पताल ले जाया गया. वहां उन का उपचार शुरू किया गया. इलाज के 5 दिन बाद 11 वर्षीय गोपाल की मौत हो गई. उस के हफ्ते भर बाद हरसुखभाई की भी अस्पताल में मौत हो गई थी.

गुजरात के छोटे से पिछड़े इलाके में रहने वाले गरीब हरसुखभाई करदानी ने उस समय राहत की सांस ली थी, जब उस की पत्नी अल्पा के 8 वर्षीय छोटे भाई गोपाल को एक अमीर विदेशी जोड़े ने गोद ले लिया था. जिन्होंने उसे गोद लिया था, वे वैसे तो भारत के ही रहने वाले निस्संतान दंपति थे, लेकिन ब्रिटेन में रहते थे. पति कंवलजीत सिंह रायजादा हीथ्रो का एक कर्मचारी था. जबकि उस की पत्नी आरती धीर चैरिटी का काम करती थी. हालांकि उन की उम्र में काफी अंतर था. वे दिखने में मांबेटे की तरह लगते थे.

सच तो यह था कि करदानी दंपति गोपाल के गोद लिए जाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद बेहद खुश था. क्योंकि वे अपने ऊपर से उस के लालनपालन की बड़ी जिम्मेदारी का बोझ उतरा हुआ महसूस कर रहे थे. आर्थिक तंगी का सामना करते हुए बच्चे की जैसेतैसे परवरिश हो रही थी.

गोपाल उन के साथ 2 साल की उम्र से ही रह रहा था. मां ने उसे छोड़ दिया था और पिता बीमार रहते थे. उस हालत में वह इधरउधर गली और पड़ोसियों के घरों में अनाथों की तरह घूमता रहता था. इस हाल में देख मोहल्ले के लोगों ने कुछ दिनों तक उस की देखभाल की, फिर उन्होंने केशोद में पति के साथ रह रही उस की बड़ी विवाहित बहन अल्पा को सौंप दिया.

उसे ब्रिटेन में पश्चिमी लंदन स्थित हनवेल के रहने वाले अप्रवासी भारतीय दंपति आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया था. उन्होंने गोपाल के गोद लेने की सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी कर ली थी और कानून का पालन करते हुए उन्होंने सारे दस्तावेज भी बना लिए थे.

तब आरती धीर 50 साल की थी और उस का पति आधी उम्र का था. दोनों ने साल 2013 में शादी कर ली थी. शादी का छोटा सा समारोह ईलिंग टाउन हाल के लंचटाइम रजिस्टर औफिस में हुआ था. दरअसल, उन्होंने अपना वीजा बढ़वाने के लिए यह शादी की थी.

उस के बाद उन्होंने बच्चा गोद लेने की योजना बनाई थी. उस के लिए वे साल 2015 में गुजरात आए थे. उन्होंने एक बच्चा गोद लेने के लिए स्थानीय अखबारों में विज्ञापन दिया था. इस बारे में केशोद के रहने वाले हरसुखभाई को भी किसी ने बताया था.

विज्ञापन में लिखा था कि भारतीय मूल का ब्रिटिश जोड़ा किसी अनाथ बच्चे को लंदन में रहने के लिए गोद लेना चाहता है. हरसुखभाई का विज्ञापन के अनुसार विदेशी जोड़े से संपर्क किया.

वैसे कंवलजीत सिंह रायजादा गुजरात के मालिया हटिना का रहने वाला था. गोपाल का जन्म भी वहीं हुआ था. रायजादा के पिता सहकारी बैंक की मालिया हटिना शाखा में मैनेजर थे. मालिया हटिना में रायजादों का एक पड़ोसी था, उसे जब पता चला कि कंवलजीत की पत्नी आरती धीर किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है, तब उस के दिमाग में अचानक गोपाल का चेहरा कौंध गया. उसे पता था कि वह बच्चा अनाथ है और उन दिनों अपने बहनोई हरसुखभाई करदानी के साथ केशोद में रह रहा है.

जब धीर और रायजादा आधिकारिक तौर पर शादी के तुरंत बाद 2014 में मालिया हटिना में उन से मिले तो उस की बहन और बहनोई गोद देने के लिए सहमत हो गए.

तब उन्हें रायजादा की पत्नी धीर ने कहा कि वह गोपाल की अपने बेटे की तरह परवरिश करेगी. उस के साथ अच्छा व्यवहार बर्ताव रखेगी और उसे एक अच्छा ब्रिटिश नागरिक बनाएगी और उस का जीवन खुशियों से भर देगी.

गरीबी की वजह से एनआरआई को दिया बच्चा गोद

इस आश्वासन को सुन कर वे काफी खुश हो गए. साथ ही उन्होंने यह भी पाया कि जिन्हें वह बच्चा गोद दे रहे हैं, वह उन के इलाके से ही रायजादा समाज के स्थानीय परिवार हैं.

हरसुखभाई अपने साले गोपाल का अभिभावक था. वह विदेशी जोड़े पर विश्वास कर गोपाल को गोद देने के लिए राजी हो गया. गोद लेने की कागजी काररवाई पूरी कर ब्रिटिश जोड़ा ब्रिटेन लौट गया. वे हरसुख को भरपूर आश्वासन दे गए कि गोपाल को अपने साथ रखने के लिए विदेशी कानूनी प्रक्रिया पूरी होते ही वे जल्द आ कर गोपाल को अपने साथ ले जाएंगे.

हरसुखभाई ने जो सोचा था, वैसा नहीं हुआ. उन के इंतजार में 2 साल गुजर गए, लेकिन वे गुजरात नहीं आए. हां, बीच बीच में उन दोनों ने गोपाल की खोजखबर जरूर ली और उस के खर्च आदि के लिए छोटीमोटी रकम भेजते रहे.

आखिरकार इंतजार की घडिय़ां खत्म होने को आ गईं. साल 2017 के फरवरी माह में हरसुखभाई को गोपाल के ब्रिटेन ले जाने की सूचना मिली. हरसुखभाई खुश हो गया कि गोपाल अब अपने गोद लिए हुए मांबाप के पास कुछ दिनों के भीतर ही चला जाएगा.

उन्होंने उसे गोपाल को वीजा लगवाने के लिए जूनागढ़ जाने को कहा. केशोद उसी जिले में आता है. वहां आनेजाने पर होने वाले खर्च आदि के लिए कुछ पैसे भी भेजे.

गोपाल को तो मानो खुशी का ठिकाना नहीं था. ब्रिटेन जाने को ले कर वह इतना उत्साहित था कि उस ने अपने जीजा से कह कर एक अंगरेजी गुजराती पौकेट डिक्शनरी मंगवा ली थी. वह गर्व से भरा हुआ था. उस ने स्कूल में सभी सहपाठियों को यह बता दिया था. अपने शिक्षकों से भी कहा था कि उसे अब नई स्कूल ड्रेस की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह जल्द ही इंग्लैंड जा रहा है.

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वह गोपाल के वीजा कागजात तैयार करने के लिए लगभग 100 मील दूर राजकोट शहर गए थे. वहां से काम पूरा कर गोपाल अपने बहनोई हरसुखभाई के साथ 8 फरवरी, 2017 को अपने शहर केशोद लौट रहे थे. रात के करीब 9 बज चुके थे. वे एक कार में सवार थे. वे अभी अपने घर पहुंचने वाले ही थे कि रास्ते में बाइक पर सवार 2 लोगों ने कार रुकवा कर उन के ऊपर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया था.

वे गोपाल का अपहरण करना चाहते थे. हमलावरों ने बाइक से टक्कर मार कर रोक दी. फिर हमलावरों ने गोपाल को चाकू से गोद दिया. गोपाल को बचाने की जब हरसुखभाई ने कोशिश की तो हमलावरों ने उस पर भी चाकू से वार किए. इलाज के दौरान दोनों की ही अस्पताल में मृत्यु हो गई.

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 3

प्रदेश भर में गूंजा रीता हत्याकांड

इस के बाद तो मामले की गूंज प्रदेश भर में गूंजने लगी थी. कंकाल की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी. 3 साल से इटावा के अस्पताल की मोर्चरी के डीप फ्रीजर में कैद एक युवती की लाश (कंकाल) जिस का 2-2 बार डीएनए टेस्ट कराने के बाद भी मामला अधर में लटका हुआ था.

इटावा के जिला चिकित्सालय की मोर्चरी में पिछले 3 साल से डीप फ्रीजर में बंद कंकाल के लावारिस हालत में पड़े होने की जानकारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया.

26 अक्तूबर, 2023 को हाईकोर्ट ने समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेते हुए अपना निर्णय देते हुए मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर, न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ ने सरकार और पुलिस अधिकारियों से पूछा कि आमतौर पर शव गृहों में रखे गए शवों के अंतिम संस्कार की क्या प्रथा है? इटावा के इस मामले में इतना विलंब होने की क्या वजह है? क्या ऐसा कोई नियम है, जिस के तहत सरकार को निश्चित समय में शवों का अंतिम संस्कार करना होता है?

कोर्ट ने प्रकरण में विवेचना की स्थिति और शव संरक्षित करने की स्थिति, शव संरक्षित करने की पूरी टाइम लाइन बताने का निर्देश दिया. इस के साथ ही केस डायरी और डीएनए जांच के लिए भेजे गए सैंपल और उस की रिपोर्ट के बारे में भी जानकारी मांगी.

मृतका की मम्मी भगवान देवी व घर वालों की भावनाओं को देखते हुए न्यायालय ने पुलिस को हैदराबाद की लैब में डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश दिया. इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 31 अक्तूबर, 2023 निश्चित कर दी.

उच्च न्यायालय ने बार एसोसिएशन के महासचिव नितिन शर्मा को इस प्रकरण में न्याय मित्र नियुक्त करते हुए उन से न्यायालय का सहयोग करने के लिए कहा.

मामले का स्वत:संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और इटावा के पुलिस अधिकारियों से विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराने के लिए कहा है. कोर्ट ने कहा कि कानूनव्यवस्था का मूल्यांकन न केवल जीवित लोगों के साथ उस के व्यवहार के तरीके से किया जाना चाहिए, बल्कि मृतकों को देने वाले सम्मान से भी किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि मृतकों की प्रतिष्ठा और जीवितों की प्रतिष्ठा जैसा कोई भी विभाजन प्रतिष्ठा को उस के अर्थ से वंचित कर देगा. मृत्यु जीवन की तुच्छता को दर्शाती है. प्रतिष्ठा जीवन की सार्थकता की गवाही देती है. यदि मृतकों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है.

यदि मृतकों की प्रतिष्ठा को महत्त्व नहीं दिया जाता है तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा को भी महत्त्व नहीं दिया जाता है. संविधान मृतकों का संरक्षक है, कानून उन का सलाहकार है और अदालतें उन के अधिकारों की प्रहरी हैं.

बारबार क्यों कराया गया डीएनए टेस्ट

कोर्ट के आदेश के बाद इटावा पुलिस ने कंकाल के साथ ही रीता के मम्मीपापा के सैंपल ले कर दिसंबर, 2023 में सेंट्रल फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी, हैदराबाद को भेजा गया.

इस लैब से जनवरी, 2024 को जो रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हुई, वह पौजीटिव थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल की जांच से स्पष्ट हो गया कि कंकाल के मम्मीपापा भगवान देवी व कुंवर सिंह ही हैं.

कंकाल बेटी रीता का ही है, इस बात की जानकारी मिलते ही घर वालों ने राहत की सांस ली. डीप फ्रीजर में कैद रीता का कंकाल, जो पिछले 40 महीने से अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहा था, को घर वालों द्वारा लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कैद से मुक्त करा लिया गया.

31 जनवरी, 2024 को पुलिस ने रीता की मम्मी भगवान देवी को तहसील बुलाया. वह घर के अन्य सदस्यों के साथ तहसील पहुंची तो उन सब से तहसील अधिकारियों ने कहा कि बेटी का कंकाल ले जाओ और खामोशी से इसे दफना दो. इस के बाद कंकाल उन को सौंप दिया गया.

डीएम इटावा के निर्देश पर 4 सदस्यीय टीम जिस में एसडीएम दीपशिखा, तहसीलदार भूपेंद्र सिंह, एसएचओ कपिल दुबे, क्राइम इंसपेक्टर रमेश सिंह शामिल थे, रीता के परिवार के चक सलेमपुर स्थित खेत पर पहुंचे, जहां उन की देखरेख में भाई राजीव व उस के चचेरे भाई ने गड्ढा खोदने के बाद खामोशी से कंकाल को दफना दिया.

पुलिस शुरू से ही क्यों रही लापरवाह

मृतका के बड़े भाई राजीव व छोटे भाई सौरभ उर्फ बंटी ने बताया कि पुलिस शुरू से ही मामले में ढील डाले रही. शुरू में गुमशुदगी दर्ज कराई थी, उस में किसी को नामजद नहीं किया गया था, लेकिन लाश (कंकाल) मिलने के बाद पुलिस पूछताछ में आरोपियों के नाम बताए थे.

लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारियों  के ढुलमुल रवैए के चलते किसी भी आरोपी को हिरासत में नहीं लिया गया. नामजद किए गए आरोपी भनक लगते ही घटना के 11वें दिन अपने घर ताला लगा कर रात में ही फरार हो गए.

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                                                                        आरोपी रामकुमार

यदि पुलिस मुख्य आरोपी रामकुमार को हिरासत में ले कर पूछताछ करती तो हत्या का राज उसी समय खुल जाता, लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ करना भी जरूरी नहीं समझा और आरोपियों को हत्या के सबूत नष्ट करने का समय दे दिया.

यहां तक कि आरोपी रामकुमार ने साल 2021 में अपना जसवंतनगर का प्लौट व सिरसा में खेती की जमीन भी बेच दी. यह सब उन लोगों ने षडयंत्र के तहत ही किया है.

45 वर्षीय रामकुमार मूलरूप से इटावा जिले के सिरसा का रहने वाला है. लगभग 20-22 साल पहले वह गांव चक सलेमपुर में आ कर मकान बना कर पत्नी के साथ रहने लगा था. वह शटरिंग का काम करता था.

एसएसपी संजय कुमार शर्मा ने बताया कि इस मामले की जांच नए सिरे से शुरू की गई है. जांच के लिए सर्विलांस सहित 3 टीमों को लगाया गया है. जल्द ही हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी कर मामले का परदाफाश किया जाएगा. रिपोर्ट में जो लोग नामजद हैं, उन के बारे में भी गहराई से छानबीन की जाएगी. गुनहगारों को उन की सही जगह पहुंचाया जाएगा.

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                                                     आरोपी मिथिलेश कुमारी

इसी बीच मृतका रीता के कंकाल का डीएनए उस के मम्मीपापा से मैच हो जाने की जानकारी मिलते ही हत्या के आरोपी रामकुमार व उस की पत्नी मिथलेश ने 2 फरवरी, 2024 को इटावा की अदालत में आत्मसमर्पण के लिए प्रार्थनापत्र दिया, लेकिन इसी दौरान मिथिलेश को चोट लग गई, जिस के चलते केवल रामकुमार ही आत्मसमर्पण कर सका.

न्यायालय ने उसे न्यायायिक हिरासत में लेने के बाद जेल भेज दिया. जबकि 28 फरवरी, 2024 को आरोपी रामकुमार के बेटे मोहित गौतम ने भी आत्मसमर्पण के साथ जमानत के लिए प्रार्थनापत्र दिया. न्यायालय ने जमानत प्रार्थनापत्र पर 4 मार्च, 2024 को सुनवाई करते हुए जमानती प्रार्थनापत्र अस्वीकार करते हुए मोहित को जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर रमेश सिंह ने बताया कि इस सोशल क्राइम के 2 आरोपियों रामकुमार और मोहित ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया है. दोनों इस समय जेल में हैं. तीसरी आरोपी रामुकमार की पत्नी मिथिलेश कुमारी फरार चल रही है. पुलिस सरगर्मी से उसे तलाश रही है. मुखबिर भी लगा दिए गए हैं, उसे शीघ्र गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों और मृतका के घर वालों से हुई बातचीत पर आधारित

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 2

कोर्ट के आदेश पर जागी पुलिस

सभी तरफ से निराश होने के बाद भी भगवान देवी चुप नहीं बैठी. अपनी बेटी के लापता होने के बाद उस की हत्या होने के कारण वह दुखी थी. लगभग 2 साल तक थाने व पुलिस के उच्चाधिकारियों के चक्कर काटने के बाद भगवान देवी की हिम्मत जबाव दे गई.

जब अपनी बेटी के शव (कंकाल) को प्राप्त करने के लिए घर वाले परेशान हो गए, तब मां भगवान देवी ने न्याय के लिए साल 2022 में हाईकोर्ट, इलाहाबाद का दरवाजा खटखटाया.

रीता की मां भगवान देवी ने अपनी रिट याचिका में पुलिस पर आरोप लगाया कि पुलिस को कई बार प्रार्थनापत्र देने के बाद भी अब तक आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है, साथ ही डीएनए रिपोर्ट भी नहीं दी गई है. भगवान देवी ने न्यायालय से इस संबंध में एसएसपी, इटावा को निर्देश जारी करने की अपील की.

इस पर न्यायालय ने भगवान देवी की रिट पर सुनवाई करते हुए 11 जुलाई, 2022 के अपने आदेश  में एसएसपी इटावा को भगवान देवी द्वारा 22 सितंबर, 2020 को गुमशुदगी की जो सूचना थाना जसवंतनगर में दर्ज कराई थी. पुलिस पूछताछ में आरोपियों के नाम भी बताए थे.

इस के बाद 26 सितंबर को जब बाजरा के खेत में कंकाल मिला, तब कपड़ों व अन्य चीजों से कंकाल की पहचान बेटी रीता के रूप में की थी. इसी गुमशुदगी को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में आरोपियों के खिलाफ परिवर्तित करने तथा दोबारा डीएनए टेस्ट कराने और 2 माह में डीएनए रिपोर्ट और जांच प्रगति रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करने के आदेश दिए.

कोर्ट के आदेश के बाद सोई हुई पुलिस सक्रिय हुई और घटना के लगभग 2 साल बाद 22 जुलाई, 2022 को गांव चक सलेमपुर निवासी शटङ्क्षरग का काम करने वाले रामकुमार, उस की पत्नी मिथिलेश कुमारी, बेटा मोहित व थाना बलरई के गांव ज्वालापुर निवासी सत्येंद्र कुमार के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी, 506, 3(2)बी एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

क्षतविक्षत कंकाल और एक परिवार के दावों के बीच फंसी पुलिस ने कोर्ट के आदेश के बाद कंकाल का दोबारा डीएनए कराने का फैसला किया. भगवान देवी व उस के पति कुंवर सिंह का ब्लड सैंपल फोरैंसिक टीम द्वारा लेने के बाद लखनऊ लैब 18 अगस्त, 2022 को डीएनए जांच के लिए भेजा गया.

पुलिस द्वारा कई रिमाइंडर देने पर 11 महीने बाद 10 जुलाई, 2023 को दूसरी बार मिले डीएनए रिपोर्ट इस आधार पर बेनतीजा रही कि शव का नमूना मैच नहीं हो रहा. लैब की इस रिपोर्ट ने पुलिस को चकित और भगवान देवी को परेशान कर दिया. क्योंकि लाश (कंकाल) भगवान देवी के परिवार से जुड़ी नहीं थी.

सामान रीता का, कंकाल किसी और का                            

पुलिस का कहना था कि 11 महीने बाद जो दूसरी रिपोर्ट प्राप्त हुई है, वह मृतका के मम्मीपापा के डीएनए से मैच नहीं हो रही है. पुलिस ने मृतका का मातापिता न मानते हुए कंकाल देने से इंकार कर दिया. 2-2 बार डीएनए की रिपोर्ट सही न आने के बाद मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया.

जांचकर्ताओं ने यह संदेह करते हुए कि कंकाल के पास से मिले सामान जरूरी नहीं हैं कि मृतक रीता के ही हों. हो सकता है कि हत्यारों ने पुलिस को चकमा देने के लिए रीता के कपड़ों व पहने गहनों के साथ किसी दूसरे का शव वहां ला कर डाल दिया हो. इस बात की भी आशंका व्यक्त की गई कि कहीं रीता का अपहरण तो नहीं कर लिया गया?

जांचकर्ताओं ने शव (कंकाल) को डीएनए मैच न होने पर इन्हीं आशंकाओं के चलते सौंपने से इंकार कर दिया. चंूकि हत्या के संभावित मामले में क्षतविक्षत मानव अवशेष ही एकमात्र सुराग थे, इसलिए पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव सावधानी बरती कि सबूत प्रभावित न हों और अच्छी तरह से सुरक्षित हों.      

भगवान देवी ने आरोप में कहा कि रामकुमार की रीता के साथ दोस्ती थी. वह अकसर उस के मोबाइल पर फोन कर के उस से बात करता था. दोनों चोरीछिपे मिलते भी थे. हम लोगों को इस बात की जानकारी रीता का कंकाल मिलने के बाद उस समय हुई, जब पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि उस की आखिरी बार रामकुमार से ही बात हुई थी.

जब रामकुमार की पत्नी मिथलेश को इन संबंधों की जानकारी हुई तो सभी आरोपियों ने षडयंत्र के तहत रीता को फोन कर के 19 सितंबर, 2020 को अपने घर बुलाया और मिल कर उस की हत्या कर दी. रात के समय वे उसे बाजरा के खेत में डाल आए. शव को कैमिकल डाल कर जलाया गया था, ताकि उस की पहचान न हो सके.

पुलिस ने आरोपियों को क्यों नहीं किया गिरफ्तार

रीता के मोबाइल की काल डिटेल्स से भी स्पष्ट हो गया कि आखिरी बार रीता के पास रामकुमार के बेटे का ही फोन आया था. उस के पास अधिकतर रामकुमार के ही फोन आते थे.

रीता के बड़े भाई राजीव का कहना था कि यदि कंकाल उस की बहन रीता का नहीं है, तो रीता का क्या हुआ? वह कहां है? पुलिस अब तक उस का पता क्यों नहीं लगा सकी?

दूसरी ओर अपने दावे में दम दिखाने के लिए भगवान देवी ने भी इटावा के एसएसपी को एक प्रार्थना पत्र दे कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की.

इस पर तत्कालीन जांच अधिकारी संजय कुमार सिंह ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि कंकाल तुम्हारी बेटी रीता का है, तब तक कैसे किसी को आरोपी मान लिया जाए?

भगवान देवी ने तत्कालीन पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया कि गिरफ्तारी न होने का फायदा उठा कर बेटी के हत्यारे खुलेआम गांव में घूमते रहे, बाद में मौका पा कर वे फरार हो गए.

इसी बीच गांव में भी इस बात की चर्चा चलने लगी कि रीता और रामकुमार के बीच प्रेम संबंध थे. वे चोरीछिपे मुलाकात करने लगे. धीरेधीरे मुलाकात दोस्ती में बदल गई. कहने को दोनों की उम्र में दोगुने का फर्क था. रामकुमार 45 साल का और रीता 22 साल की थी, लेकिन रामकुमार की मीठीमीठी बातों में आ कर रीता बहक गई थी.

दोनों के बीच प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी. दोनों अकसर एकदूसरे से फोन पर बात कर लेते थे. जब दोनों के प्रेम संबंधों की जानकारी रामकुमार की पत्नी मिथिलेश को हुई तो उस ने सुनियोजित ढंग से अंजाम दे कर रीता की हत्या करवा दी. इस के लिए घटना वाले दिन उस ने बेटे मोहित के मोबाइल से रीता को फोन कर के बुला लिया.

इस बात को भगवान देवी ने भी बातचीत के दौरान स्वयं स्वीकार किया है. उस ने बताया कि कंकाल मिलने के बाद रामकुमार ही हमदर्द बन कर खड़ा रहा, यहां तक कि कंकाल मिलने से पहले रीता की तलाश में भी वह उन के साथ रहा. लेकिन बाद में रामकुमार की भूमिका को ले कर जब सवाल खड़े होने लगे, तब रामकुमार पर शक जाहिर करते उस के खिलाफ प्रार्थनापत्र दिए और कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज की.

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पुलिस गोपनीय तरीके से क्यों कर रही थी अंतिम संस्कार

कोर्ट के आदेश पर दूसरी बार कराए गए डीएनए टेस्ट का मैच न होने के बाद पुलिस ने अदालत को रिपोर्ट भेज दी और गुपचुप तरीके से कंकाल की अंत्येष्टि की योजना बनाई. श्मशान में पुलिस ने 5 फीट गहरा तथा 6 फीट लंबा गड्ढा खुदवा कर तैयार कर लिया.

इस की भनक जैसे ही भगवान देवी को हुई तो उस ने पुलिस के सामने हंगामा कर दिया. उस ने पुलिस को चेतावनी दी कि यदि उस की बेटी के संबंध में पूरी काररवाई से पहले कंकाल का अंतिम संस्कार लावारिस की तरह किया गया तो वह इसी गड्ढे में आत्महत्या कर लेगी. भगवान देवी के उग्र तेवर देख कर पुलिस को अपने कदम पीछे करने पड़े.

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इटावा के मुख्य चिकित्साधिकारी डा. गीताराम ने बताया कि डीएनए जांच के लिए सैंपल भेजा गया था. लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट न आने पर पूरा कंकाल मंगाया गया. इस के बाद भी 2 बार सैंपल भेजे. अभी तक डीएनए रिपोर्ट नहीं आई है. फिर से डीएनए सैंपल न लेना पड़े, इसलिए कंकाल को पुलिस ने डीप फ्रीजर में सुरक्षित रखा है.

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 1

बाजरे के खेत में शव मिलने की खबर पूरे गांव में फैल गई. शव को कैमिकल डाल कर इस कदर जला दिया गया था कि लाश कंकाल में बदल गई थी. मृतक की पहचान होनी नामुमकिन थी. लाश के नाम पर शरीर के कुछ भाग की हड्डियां मात्र थीं. कंकाल के पास चप्पलें, कपड़े व अन्य सामान पड़े थे. सामान से लग रहा था कि यह कंकाल किसी महिला का है.

भगवान देवी ने कंकाल के पास मिली चप्पलें, पीले रंग का हेयर क्लिप, हाथ में बंधा कलावा, चांदी की 2 अंगूठियां, लाल रंग का कंगन, सलवार कुरता व अन्य सामान को देख कर कंकाल की पहचान अपनी बेटी रीता उर्फ मोनी के रूप में की.

भगवान देवी और उन के पति कुंवर सिंह थाने से ले कर पुलिस के उच्चाधिकारियों, यहां तक कि अदालत तक की दौड़ लगा रहे थे. लेकिन उन्हें बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की हत्या के बाद उस का कंकाल (लाश) अंतिम संस्कार के लिए पिछले 40 महीनों से पुलिस नहीं दे रही थी.

वे चाहते थे कि बेटी की लाश जो कंकाल के रूप में बरामद हुई थी, मिल जाए तो वे उस का विधिविधान से अंतिम संस्कार कर दें. वह कंकाल उन की बेटी की है, इस के उन्होंने पुलिस को सबूत भी जुटा दिए थे. फिर भी पुलिस कंकाल उन की बेटी का नहीं मान रही थी.

उत्तर प्रदेश का एक जिला है (Eetawah) इटावा.  यहीं स्थित डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय की मोर्चरी में रखे एक डीप फ्रीजर में बेटी की लाश कंकाल (Imprisoned Skeleton) के रूप में पिछले 40 महीने से कैद थी. ऐसा पुलिस के लापरवाह रवैए की वजह से हो रहा था.

पोस्टमार्टम और 2 बार डीएनए टेस्ट के बाद भी पुलिस जांच अधूरी रह गई थी. क्योंकि डीएनए के लिए जो नमूने 2 बार भेजे गए थे, वह सही तरीके से नहीं लिए गए थे. इस के बाद भगवान देवी ने एसएचओ के साथ ही एसएसपी (इटावा) को  22 अक्तूबर, 2020 तथा 22 फरवरी, 2021 व 26 अगस्त, 2021 को प्रार्थनापत्र दिए. इन में आरोपियों के नाम का खुलासा भी किया गया था.

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डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय 

लेकिन बारबार प्रार्थनापत्र देने के बावजूद न तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और न डीएनए रिपोर्ट ही दी गई. भगवान देवी लगातार बेटी का कंकाल देने की गुहार लगाती रही, लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी रही. उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

मोर्चरी के डीप फ्रीजर में 40 माह से कैद रीता उर्फ मोनी के कंकाल के साथ एक ऐसी घटना हुई, जिस से सभी चौंक गए. उस का कंकाल एक ही झटके में डीप फ्रीजर की कैद से मुक्त हो गया और घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

2 बार डीएनए टेस्ट से पहचान न होने के बाद अचानक ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि मरने वालीे लड़की के कंकाल की पहचान होने के बाद उसे उस के वास्तविक मम्मीपापा को सौंप दिया गया.

आइए, पूरी घटना आप को सिलसिलेेवार बताते हैं. यह खौफनाक घटना आज से लगभग 40 महीने पहले शुरू हुई थी.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के जसवंतनगर थाना क्षेत्र का एक गांव है चक सलेमपुर. इसी गांव का निवासी है कुंवर सिंह. उस के परिवार में पत्नी भगवान देवी के अलावा 5 बच्चे थे. इन में 3 बेटियां व 2 बेटों में सब से बड़ी बेटी अंजलि, राजीव, ज्योति की शादी हो चुकी है. चौथे नंबर की रीता कुमारी उर्फ मोनी थी. सब से छोटा सौरभ उर्फ बंटी है, जो बीएससी कर चुका है. पिता के पास जमीन थी, जिस पर वह अपने बेटों राजीव व सौरभ की मदद से खेती करते थे.

कुंवर सिंह की 22 वर्षीय बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की एक सप्ताह बाद सगाई होनी थी. घर में खुशी का माहौल था. घर वाले शादी की तैयारी में व्यस्त थे. 19 सितंबर, 2020 को मोनी की तबियत ढीली थी. वह दोपहर 12 बजे अपनी दवा लेने घर से जसवंतनगर की कह कर गई थी. उसे गए हुए 3 घंटे बीत चुके थे, मगर वह वापस घर नहीं आई थी. इस पर घर वालों को चिंता होने लगी. उन्होंने उसे तलाशना शुरू कर दिया.

गांव में उस के साथ पढऩे वाली सहेलियों के घर के अलावा गांव में जिस स्थान पर वह सिलाई सीखती थी, वहां भी पता लगाया. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला और रात हो गई, वह लौट कर घर नहीं आई. रीता अपना मोबाइल, जिस में 2 सिम कार्ड थे, ले कर घर से गई थी. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था.

रीता जसवंतनगर के एक कालेज में 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस के लापता होने पर उसे तलाशने में उस के घर वालों से ले कर गांव के लोगों ने अपनी पूरी कोशिश की. शुरुआती कोशिश में उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. इस तरह कई दिन गुजर गए.

रीता उर्फ मोनी के गायब होने के बाद गांव में तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गईं. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कह रहा था कि रीता अपने प्रेमी के साथ भाग गई है. कोई कह रहा था कि वह इस रिश्ते से खुश नहीं थी, इसलिए कहीं और चली गई है.

थकहार कर रीता उर्फ मोनी की मम्मी भगवान देवी ने थाना जसवंतनगर में बेटी की गुमशुदगी की सूचना 22 सितंबर, 2020 को लिखा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के साथ ही इस की जांच तत्कालीन एसआई संजय कुमार सिंह को सौंपी गई.

खेत में मिला बेटी का कंकाल

रीता के लापता होने के सातवें दिन 26 सितंबर को अचानक रीता का सुराग मिला. रीता के घर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर बाजरे के एक खेत में मानव कंकाल मिला. घास लेने गए कुछ लोगों ने खेत में पड़े कंकाल को देख कर शोर मचाया, इस पर गांव वाले एकत्र हो गए.

गांव वालों से खेत में कंकाल मिलने की जानकारी होते ही रीता के घर वाले दौड़ेदौड़े खेत में पहुंचे. उन्होंने वहां मिले कपड़ों और अन्य सामान से उस की शिनाख्त रीता के रूप में कर ली.

रीता की मम्मी भगवान देवी ने बताया कि घर से जाते समय रीता यही सब पहने हुए थी. बेटी की लाश को इस अवस्था में देखते ही भगवान देवी बेहाल हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उस ने रोते हुए पुलिस को बताया कि उस की बेटी की हत्या कैमिकल डाल कर हत्यारों ने की है.

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     मृतका रीता के ग़मगीन परिजन

उस ने बताया कि उस की गांव में किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है फिर बेटी का यह हाल किस ने और क्यों किया? बेटी की हत्या से परिवार में कोहराम मच गया. रीता के सामान तो मिले थे, लेकिन उस का मोबाइल फोन नहीं मिला.

खेत में कंकाल मिलने की सूचना पर घटनास्थल पर पुलिस, फोरैंसिक टीम के साथ पहले ही पहुंच गई थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. कंकाल की हालत देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि कंकाल के कुछ हिस्से को कुत्ते या जंगली जानवर खींच कर ले गए होंगे. लाश को किसी कैमिकल से जलाया गया था. इस से उस की पहचान होनी भी मुश्किल हो गई थी.

कंकाल के पास मिले सामान इस बात की गवाही दे रहे थे कि एक सप्ताह पहले लापता हुई गांव की युवती रीता का ही कंकाल है. गांव के जितेंद्र कुमार, बेबी, राजीव आदि ने भी इन चीजों को देख कर रीता के रूप में कंकाल की शिनाख्त की.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. पुलिस ने पंचनामा भरने के बाद कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया.

कंकाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या का कारण न आने तथा पहचान न होने पर पुलिस ने कंकाल का डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया. पुलिस कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर रीता के बड़े भाई राजीव के साथ 29 सितंबर, 2020 को विधि विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ गई थी.

लखनऊ लैब के अधिकारियों ने उन्हें यह कह कर लौटा दिया कि पूरे कंकाल की जरूरत नहीं है. केवल कंकाल से सैंपल ले कर व कंकाल के रंगीन फोटो विधिवत भिजवाएं. 2 दिन बाद वापस ला कर कंकाल को वहीं रख दिया गया. राजीव ने बताया कि गाड़ी किराए पर ले जाने में उस के 8 हजार रुपए खर्च हो गए थे.

इस के 4-5 दिनों बाद पुलिस ने डीएनए टेस्ट के लिए कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल ले कर लखनऊ लैब भिजवाए, जिस की रिपोर्ट 26 मार्च, 2022 को कई रिमाइंडर भेजने के बाद मिली, जो सैंपल सही तरीके से न भेजने के कारण स्पष्ट (क्लीयर) नहीं थी.

मां भगवान देवी इस बात की जिद पर अड़ी थी कि कंकाल उस की बेटी का ही है. सैंपल सही से नहीं लिए जाने से लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट नहीं आई है.

इस पर पुलिस से आगरा की लैब में टेस्ट कराने की बात हुई. छोटा भाई सौरभ आगरा की लैब कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर 4 अगस्त, 2022 को पुलिस के साथ गया. आगरा फोरैंसिक लैब वालों ने यह कह कर सैंपल लौटा दिया कि यह हमारे क्षेत्र का मामला नहीं है. जिस क्षेत्र से संबंधित हो, वहां की लैब में जांच कराओ.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 3

बिरजू का इश्क कहां तक था कि इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने प्यार के लिए रायल एयरलाइंस कंपनी खोलने को तैयार हो गए. उन्होंने यह भी सोच लिया था कि उन की इस एयरलाइंस का सारा कामकाज उन की गर्लफ्रेंड ही देखेगी, लेकिन उस का हेडक्वार्टर मुंबई होगा. क्योंकि सल्ला यही चाहते थे कि वह मुंबई आए.

बिरजू ने इशारे इशारे में यह बात अपनी गर्लफ्रेंड को बता भी दी, लेकिन वह इस के लिए भी तैयार नहीं हुई. उस का कहना था कि यह एक तरह का मजाक है, इसलिए वह जहां नौकरी कर रही है, उसे करने दें.

जब बिरजू को लगा कि अब गर्लफ्रेंड किसी भी तरह मुंबई नहीं जाने वाली तो उन्होंने एक साजिश रची. उन्होंने सोचा कि वह ऐसा क्या करें कि जेट एयरवेज ही बंद हो जाए या फिर उस का दिल्ली का औफिस बंद हो जाए. इस के लिए उन्होंने उसे बदनाम करने की योजना बनाई.

इसी के बाद उन्होंने प्लेन हाइजैकिंग की यह साजिश रची और उन्होंने जो लेटर लिखा, उस में लिखा कि अगर यह प्लेन दिल्ली लैंड करेगा तो ब्लास्ट हो जाएगा. उन का सोचना था कि दिल्ली आने के बाद पैसेंजर शोर मचाएंगे तो यह मीडिया में आएगा, जिस से जेट एयरवेज की बदनामी होगी.

हो सकता है इस के बाद जेट एयरवेज अपना दिल्ली का औफिस बंद कर दे. इस के बाद तो उन की गर्लफ्रेंड मजबूरन मुंबई आ जाएगी, क्योंकि जब दिल्ली में नौकरी ही नहीं रहेगी तो वह मुंबई आ ही जाएगी. यही सोच कर उन्होंने यह साजिश रची थी.

यहां तक तो ठीक था, लेकिन बिरजू सल्ला की बदनसीबी यह थी कि इस घटना के 9-10 महीने पहले 2016 में संसद ने एक कानून बनाया था ‘एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट 2016’. इस ऐक्ट में यह था कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्लेन को हाइजैक करता है और उस हाइजैकिंग के दौरान किसी मुसाफिर या क्रू मेंबर की मौत हो जाती है तो एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत उस पर मुकदमा चलेगा और इस की सजा मौत होगी.

ऐक्ट में यह भी लिखा था कि अगर कोई व्यक्ति प्लेन को हाइजैक करने की कोशिश करता है या किसी तरह की अफवाह फैलाता है यानी बम या हाइजैक करने की खबर देता है तो उस व्यक्ति पर भी एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत मुकदमा चलेगा और उस व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

2016 में यह कानून बन गया था. बिरजू को इस कानून के बारे में जानकारी नहीं थी. उन का सोचना था कि अगर वह पकड़े भी गए तो छोटा मोटा मामला है, 2-4 महीने में बाहर आ जाएंगे. लेकिन उन की बदनसीबी ही थी कि 2016 में यह कानून बना और 2017 में 30 अक्तूबर को उन्होंने यह कांड कर दिया.

पूरी जांच के बाद यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया. क्योंकि यह आतंकवाद से जुड़ी घटना थी. इसलिए यह पता करना था कि कहीं इस में किसी आतंकवादी संगठन का हाथ तो नहीं है. एनआईए ने पूरे मामले की जांच की और फिर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी.

चार्जशीट दाखिल होने के बाद बिरजू सल्ला पर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में मुकदमा चला. 11 जून, 2019 लोअर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. यह फैसला बिरजू सल्ला की सोच से बिलकुल अलग था. एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट बनने के बाद यह पहला मुकदमा था, जो बिरजू के खिलाफ चला था.

चूंकि कानून बन चुका था कि हाइजैकिंग के दौरान किसी की मौत हो जाती है तो मौत की सजा और हाइजैकिंग की कोशिश की जाती है, वह भले ही ड्रामा ही क्यों न हो, हाइजैकर को उम्रकैद की सजा होगी.

यह दूसरी चीज बिरजू के खिलाफ थी, क्योंकि उन्होंने झूठ में कहा था कि प्लेन में हाइजैकर हैं और कार्गो में बम रखा है. अगर प्लेन पीओके नहीं ले जाया गया तो सभी मारे जाएंगे. इस तरह 30-35 मिनट सभी पैसेंजरों ने जो कष्ट भोगा यानी ऐसी स्थिति में मौत सामने नजर आती है, इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया गया और 2016 के उस एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट की धारा 3(1), 3(2)(ए), 4बी के तहत दोषी ठहराते हुए एनआईए की स्पैशल कोर्ट ने बिरजू सल्ला को बाकी जीवन के लिए आजीवन कारावास की सजा सुना दी थी.

हाईकोर्ट के फैसले से मिली राहत

इश्क में पागल बिरजू सल्ला कहां अपनी गर्लफ्रेंड को मुंबई लाना चाहते थे और कहां अब उन की पूरी उम्र जेल में गुजरने वाली थी. 11 जून, 2019 को यह सजा सुनाई गई थी. पर इतना ही नहीं, उन की तमाम प्रौपर्टी भी जब्त करने का आदेश दिया गया था. उन पर 5 करोड़ रुपए का जुरमाना भी लगाया गया था.

5 करोड़ की इस राशि के बारे में कहा गया था बिरजू से मिलने वाली इस राशि को चालक दल और यात्रियों में बांट दिया जाए. इस में से एकएक लाख रुपए पायलटों को, 75-75 हजार रुपए एयरहोस्टेस को तो 25-25 हजार रुपए सवारियों को बांटने का आदेश दिया गया था.

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सजा सुनाए जाने के बाद बिरजू सल्ला को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया. घर वालों ने एनआईए के इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील की. जिस की सुनवाई साल 2023 में शुरू हुई और 8 अगस्त, 2023 को हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की पीठ ने अपने फैसले में बिरजू सल्ला को बरी करते हुए कहा कि एनआईए यह साबित नहीं कर पाई कि विमान के वाशरूम में पाया गया नोट बिरजू सल्ला ने ही रखा था.

न्यायमूर्ति श्री सुपेहिया ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह भी साबित नहीं कर सका कि आरोपी ने अकेले अपने औफिस में बैठ कर वह धमकी भरा नोट तैयार किया था.

उच्च न्यायालय ने कहा कि जैसा कि शुरुआती जांच में कहा गया है कि सल्ला ने बताया है कि जेट एयरवेज की कर्मचारी अपनी प्रेमिका के लिए एयरलाइन को बदनाम करने के लिए उन्होंने यह अपराध किया था, लेकिन आगे चल कर जांच के दौरान उस के इस मकसद ने अपना महत्त्व खो दिया. इसलिए जो भी सबूत पेश किए गए हैं, उन के अध्ययन से पता चलता है कि वे संदेहात्मक हैं, जो आरोपी को अपराधी नहीं घोषित करते.

जो भी सबूत हैं, वे स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता को अपहरण जैसे गंभीर आरोप में दोषी सिद्ध नहीं करते. इसलिए संदेह से भरे सबूतों के आधार पर अपहरण के अपराध में अपीलकर्ता दोषी ठहराने और सजा देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं और अपीलकर्ता को बरी करने का आदेश दिया जाता है.

बिरजू सल्ला को अपहरण के आरोप से बरी करते हुए उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि बिरजू सल्ला पर लगाए गए 5 करोड़ रुपए के जुरमाने को भी रद्द किया जाता है.

एयरलाइन के पायलट और चालक दल को ट्रायल कोर्ट ने जिन्हें रुपए देने का आदेश दिया था, अगर उन्होंने रुपए लिए हैं तो वे पैसे वापस करें. जुरमाने की राशि उच्च न्यायालय ने बिरजू को वापस करने का आदेश दिया. इसी के साथ यह भी आदेश दिया कि अगर राज्य सरकार यह रुपया वापस नहीं ले पाती तो खुद यह पैसा अपने पास से सल्ला को वापस करे.

इस तरह बिरजू को हाईकोर्ट से राहत तो मिल गई, लेकिन वह गर्लफ्रेंड के चक्कर में 6 साल की जेल काट कर बाहर आए.