प्रेमियों के लिए मचलने वाली विवाहिता – भाग 3

जल्द ही रीना और सुरेंद्र ग्वालियर के शील नगर में लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे. सुरेंद्र ने अपने मकान मालिक से रीना का परिचय पत्नी के रूप में करवाया. हालांकि इस फैसले को ले कर रीना को उस की एक सहेली ने काफी समझाया था कि वह गलत कर रही है. सुरेंद्र उस से 13 साल छोटा भी था. किंतु तब तक रीना पर सुरेंद्र के इश्क का भूत ठीक उसी तरह सवार हो चुका था, जिस तरह एक समय में वह कुणाल के इश्क की दीवानी बनी हुई थी.

रीना ने अपने नाबालिग बेटे दीपेश को भी ननिहाल से बुलवा लिया था. उसे सुरेंद्र पास की एक बेकरी में काम पर लगवा दिया था. वह दोपहर बेकरी पर जाता था और रात के 9 बजे सुरेंद्र उसे अपने साथ वापस कमरे पर ले आता था.

कुछ दिनों तक सुरेंद्र ने रीना को अच्छी तरह से रखा. बाद में वह एकएक पैसे के लिए मोहताज रहने लगी. अब उसे कुणाल को छोड़ कर सुरेंद्र की बातों में आने का पछतावा होने लगा था. कुछ दिनों से रीना फिर से कुणाल के संपर्क में आ गई. उन के पुराने रिश्ते फिर से रंग भरने लगे. एकदूसरे के साथ जीवन भर निर्वाह करने के कसमेवादे करने लगे. रीना चाहत थी कि वह कुणाल के पास फिर से रहने लगे.

प्रेमी क्यों बना कातिल?

18 फरवरी, 2023 की दोपहर एक बजे के करीब सुरेंद्र शिवमंदिर में पूजा अर्चना कर के लौटा तो बेडरूम में रीना को कुणाल के साथ हंस हंस कर बातें करते सुन लिया. यह देखते ही उस का खून खौल उठा. रीना की बेवफाई और बेरुखी ने सुरेंद्र के गुस्से को हवा दे दी.

वह रीना को गालियां देते हुए उस के साथ मारपीट करने लगा. इस पर रीना को भी गुस्सा आ गया. वह बोली, ”मैं तुझे छोड़ कर हमेशा के लिए अपने कुणाल के पास जा रही हूं.’’

रीना के मुंह से इतना सुनते ही सुरेंद्र भी गुस्से में बोल पड़ा, ”देखता हूं हरामजादी तू वहां कैसे जाती है.’’

रीना भी कहां चुप रहने वाली थी. वह सुरेंद्र के साथ बदतमीजी से पेश आने लगी. उसे गालियां देने लगी और  बोली, ”तो क्या तू मुझे जबरदस्ती जाने से रोकेगा, कान खोल कर सुन ले कि जहां मेरी मरजी होगी, मैं वहां जाऊंगी. जिस से मेरा मन मिलेगा, वहीं रहूंगी.’’

रीना का इतना कहना था कि सुरेंद्र ने उसे धमकी दी और बोला, ”रीना, जिद मत कर यही तेरे लिए बेहतर रहेगा. वरना मैं भी अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा हूं.’’

”कमीने शिवरात्रि के व्रत के दिन तूने मेरे साथ मारपीट की है. मैं अब किसी भी सूरत में तेरे पास एक भी पल के लिए नहीं रुकने वाली.’’

रीना भदौरिया की यह बात सुरेंद्र को बहुत ही बुरी लगी. उस ने उसे धक्का दे दिया. वह जमीन पर गिर पड़ी. इस बीच सुरेंद्र ने उस की साड़ी को उस के बदन से खींच कर गले में फंदा डाल दिया. वह तब तक साड़ी के फंदे को खींचता रहा,जब तक रीना बेसुध नहीं हो गई. उस के बाद सुरेंद्र मेला घूमने चला गया और रात के करीब 9 बजे उस के बेटे को ले कर कमरे पर आया.

वहां रीना को मृत अवस्था में देख कर परेशान होने का नाटक किया. फिर उस ने अपने एक दोस्त कालू के माध्यम से एंबुलेंस बुलाई. उस पर रीना की लाश रखवा कर उस के गांव इंगुरी भेज दी. साथ में उस के बेटे दीपेश को भी बिठा दिया. सुरेंद्र ने इस की जानकारी रीना के पति दशरथ भदौरिया को फोन पर दे दी

लाश को गांव पहुंचने से पहले ही कुछ दूरी पर एंबुलेंस से उतरवा दी. दीपेश वहां से भागता हुआ अपने पिता दशरथ के पास गया और मम्मी की मृत्यु की सूचना दी.

दशरथ घबराया हुआ लाश के पास पहुंच गया. उस ने जैसे ही रीना के कान से खून और गले पर किसी चीज से कसे जाने के निशान देखे तो उसे हत्या का शक हुआ. उस ने तुरंत पवई पुलिस को इस की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और जांच की तो मामला संदिग्ध नजर आया.

घटनास्थल ग्वालियर होने की वजह से पवई पुलिस ने रीना के शव को मृतका के परिजनों के साथ वापस ग्वालियर भेज दिया. मृतका के परिजन शव को ले कर ग्वालियर थाने पहुंचे तो पुलिस ने मामला दर्ज कर रीना का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

19 फरवरी, 2023 की सुबह ग्वालियर थाने के एसएचओ राजेंद्र परिहार की टीम ने सुरेंद्र धाकड़ को जलालपुर फिल्टर प्लांट से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. इस टीम में एसआई रमाकांत उपाध्याय, हेमेंद्र राजपूत, योगेंद्र मावई, एएसआई हरिराम नागर शामिल थे. पुलिस के सामने उस ने अपने जुर्म स्वीकार कर लिया.

पूछताछ के बाद सुरेंद्र धाकड़ को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 1

अहमदाबाद में इंजीनियरिंग पढ़ने आई साल्वी ने कई पीजी देखे, पर उसे एक भी पसंद नहीं आया. किसी में सुबह का नाश्ता नहीं मिलता था तो कहीं किराया उस के अनुरूप नहीं था. जो पीजी उसे पसंद आता, वह उस के कालेज से कई किलोमीटर दूर पड़ता था. देखते भालते आखिरकार उसे एक पीजी मिल ही गया जो उस के कालेज से नजदीक भी था और उस के अनुरूप भी.

‘‘यहां तुम्हें साढ़े 8 हजार में 2 शेयरिंग वाला रूम मिलेगा. इन्हीं पैसों में तुम्हें सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात के खाने के अलावा लौंड्री की भी सुविधा मिलेगी.’’ पीजी की मालकिन मनोरमा ने कहा.

‘‘जी मैडम,’’ साल्वी बोली.

‘‘यह मैडम मैडम नहीं चलेगा, दीदी बोलो मुझे, जैसे यहां की सारी लड़कियां बोलती हैं.’’ मनोरमा ने कहा, ‘‘और हां, एक महीने का भाड़ा एडवांस डिपौजिट करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक दीदी, मैं कल ही सारे पैसे दे दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हूं…और एक बात, रात के 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है. बहुत हुआ तो साढ़े 9 बजे तक, उस से ज्यादा नहीं, समझी? वैसे कोई बौयफ्रैंड का चक्कर तो नहीं है न?’’ मनोरमा ने पूछा तो साल्वी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘वैरी गुड, वैसे कहां से हो तुम? हां, तुम्हारा कोई लोकल गार्जियन है?’’

‘‘जी, मैं पटना से हूं और मेरा कोई लोकल गार्जियन नहीं है दीदी,’’ अपने आप को खुद में समेटते हुए साल्वी ने कहा.

‘‘ठीक है तो फिर…’’ कह कर मनोरमा मुसकरा दी.

वैसे तो मनोरमा 44-45 साल की थी, पर उस ने अपने आप को इतना मेंटेन कर रखा था कि 30-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी. देखने में भी वह किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. ठाठ तो ऐसे कि पूछो मत. इतना बड़ा घर, 2-2 गाडि़यां, नौकरचाकर सब कुछ था उस के पास.

होता भी क्यों न, मनोरमा के पति का अमेरिका में अपना बिजनैस था. एक बेटा भी था जो मैंगलूर रह कर पढ़ाई कर रहा था. जब भी मौका मिलता, बाप बेटा मनोरमा से मिलने आ जाते थे. मनोरमा का भी जब मन होता, उन से मिलने चली जाती थी.

मनोरमा से बात कर के साल्वी अपने कमरे में पहुंची तो वहां उस की रूममेट निधि मिली. निधि ने मुसकरा कर साल्वी का स्वागत किया. आपसी परिचय के बाद निधि ने पूछा, ‘‘साल्वी, तुम कहां से हो?’’

‘‘जी, मैं पटना से.’’ साल्वी ने जवाब दिया.

‘‘ओह, और मैं इंदौर से.’’ कह कर निधि मुसकराई तो साल्वी भी मुसकरा दी.

‘‘यहां पढ़ने आई हो या नौकरी करने?’’ निधि ने सवाल किया.

‘‘जी, यहां के एक कालेज से मैं इंजीनियरिंग करने आई हूं और आप?’’ साल्वी बोली.

‘‘मैं नौकरी करती हूं,’’ निधि ने कहा.

साल्वी के साथ सोहम नाम का एक लड़का भी बीटेक कर रहा था. उस के साथ साल्वी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. अच्छी दोस्ती होने का एक कारण यह भी था कि दोनों बिहार से थे. साल्वी ने जब यह बात अपने मम्मी पापा को बताई तो जान कर उन्हें बहुत अच्छा लगा कि चलो इतने बड़े अनजान शहर में कोई तो है अपने राज्य का.

सोहम ने ही साल्वी को बताया था कि उस से बड़ी उस की 2 बहनें हैं, जिन की अभी शादी होनी बाकी है. उस के पापा रेलवे में फोरमैन हैं और किसी तरह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहे हैं. पिता को सोहम से उम्मीद है कि एक न एक दिन वह अपने घर की गरीबी जरूर दूर करेगा और उन का सहारा बनेगा.

‘‘लेकिन तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे? वह सब कैसे हो पाता है?’’ साल्वी ने पूछा.

‘‘वैसे तो मेरा इस कालेज में मेरिट पर एडमिशन हुआ है, लेकिन फिर भी एडमिशन के वक्त पापा को जमीन का एक टुकड़ा बेचना पड़ा था, जो उन्होंने दीदी की शादी के लिए रखा था. फिर भी रहनेखाने के लिए भी तो पैसे चाहिए थे न, इसलिए मैं ने पार्टटाइम नौकरी कर ली. उस से मेरे पढ़ने और रहने खाने के खर्चे निकल जाते हैं.’’ सोहम ने चेहरे पर स्माइल लाते हुए बताया.

सोहम के बारे में जानने के बाद साल्वी उस से बहुत प्रभावित हुई, क्योंकि आज से पहले वह उस के बारे में इतना ही जान पाई थी कि वह बहुत बड़बोला और मस्तीखोर लड़का है. लेकिन आज उसे पता चला कि कालेज के बाद वह अपने दोस्तों के साथ टाइम पास नहीं करता, बल्कि कहीं पार्टटाइम नौकरी पर जाता है.

‘‘हैलो,’’ साल्वी के आगे चुटकी बजाते हुए सोहम ने पूछा, ‘‘कहां खो गईं मैडम?’’

‘‘मैडम!’’ अपने मोबाइल पर नजर डालते हुए साल्वी चौंक कर उठ खड़ी हुई.

‘‘मैडम से याद आया कि साढ़े 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है और देखो 10 बजने जा रहे हैं. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे 10 बज गए तो क्या हो गया? कौन सा आसमान फट गया? चलो, मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ आता हूं और तुम्हारी उस मैडम से भी मिल लूंगा. वैसे भी तुम्हारा पीजी यहां पास में ही तो है.’’ कह कर सोहम उस के साथ चल दिया.

पीजी के नजदीक पहुंचते ही साल्वी ने उस से कहा, ‘‘सोहम, अब तुम यहां से लौट जाओ क्योंकि मनोरमा मैडम ने मुझे सख्त हिदायत दी है कि कोई लड़का पीजी के आसपास भी दिखाई नहीं देना चाहिए.’’ कह कर जैसे ही वह मुड़ी, मनोरमा मैडम बालकनी से उसे ही घूर रही थीं.

मैडम को देखते ही साल्वी घबरा गई. घबराहट के मारे उस की जुबान तालू से चिपक गई तो सोहम नीचे से बोला, ‘‘नमस्ते मैडम, हम एक ही कालेज में पढ़ते हैं इसलिए हमारी दोस्ती हो गई. वैसे भी मैं यहीं पास में ही रहता…’’ बोलते बोलते सोहम की भी घिग्घी बंध गई, जब मनोरमा की घूरती हुई नजर उस पर आ टिकी.

‘‘तुम ने तो कहा था कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड नहीं, फिर?’’ मनोरमा साल्वी को घूरते हुए बोली.

‘‘नहीं दीदी, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. हम लोग बस दोस्त हैं.’’ किसी तरह साल्वी बोल पाई.

‘‘देखो, बौयफ्रैंड रखना गलत बात नहीं है पर झूठ मुझे पसंद नहीं और वक्त तो देखो. वैसे लड़का अच्छा है.’’ कह कर मनोरमा मुसकराई तो दोनों की जान में जान आई.

‘‘कोई बात नहीं, तुम भी अंदर आ जाओ.’’ हुक्म मिलते ही सोहम भी साल्वी के पीछे लग गया.

‘‘साल्वी, तुम तो कहती थीं कि तुम्हारी मैडम बड़ी सख्त है, पर ये तो बड़ी रहमदिल है.’’ सोहम ने फुसफुसाते हुए कहा तो साल्वी ने उसे कोहनी मार कर चुप करने को कहा. यह करते हुए मनोरमा ने उसे देख लिया.

वह बोली, ‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं दीदी, यह कह रहा था कि अब मैं चलता हूं और कुछ नहीं.’’ साल्वी ने सोहम को इशारे से जाने के लिए कहा.

‘‘अरे इस में क्या है, आया है तो बैठने दो थोड़ी देर.’’ मनोरमा बोली.

सोहम यहां कब से है, कहां रहता है, किस चीज की पढ़ाई कर रहा है और उस के घर में कौनकौन हैं. यह सब जानने के बाद मनोरमा उस से काफी इंप्रैस हुई. फिर वह अपने बारे में भी बताने लगी, ‘‘तुम्हारी ही उम्र का मेरा भी एक बेटा है, जो मैंगलूर में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.’’

धीरेधीरे सोहम की भी मनोरमा मैडम से अच्छी बनने लगी. अब वह जब भी वक्त मिलता बेधड़क मनोरमा मैडम के घर चला आता.  मनोरमा को भी उस का आना अच्छा लगता था. कुछ न कुछ छोटे मोटे काम, जो भी मनोरमा कहती, वह इसलिए कर दिया करता, क्योंकि कहीं न कहीं उस में उसे अपनी मां की छवि दिखाई देती थी.

फिर मनोरमा भी तो उसे अपने बेटे की तरह ही समझती थी. मनोरमा ने उस से यह भी कहा था कि वह उस के लिए एक अच्छी नौकरी देखेगी, जहां उसे ज्यादा सैलरी मिले और उस की पढ़ाई में भी हर्ज न हो. शायद इस लोभ से भी वह मनोरमा का कोई भी काम, जो वह कहती, हंसतेहंसते कर देता था.

जब सोहम का मनोरमा के यहां आनाजाना बढ़ गया तो एक दिन साल्वी बोली, ‘‘सोहम, क्या बात है, आजकल मनोरमा मैडम से बड़ी पट रही है तुम्हारी. कहीं कोई लोचा तो नहीं. देखो, उस औरत को कम मत समझना. मुझे तो वो बड़ी शातिर दिखती है और वैसे भी बिना अपने फायदे के वह किसी की भी मदद नहीं करती.’’

‘‘तुम लड़कियां भी न, कितनी बेकार की कहानियां बनाती हो. कितना अच्छा तो व्यवहार है उस का और तुम कहती हो कि बड़ी सख्त है.’’ कह कर सोहम ठहाका लगा कर हंसने लगा.

‘‘अच्छा छोड़ो ये सब बातें. चलो, आज हम कहीं बाहर खाना खाते हैं.’’

‘‘हांहां चलो, वैसे भी पीजी का खाना खा खा कर बोर हो गई हूं. मगर पैसे मैं दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हां, ठीक है.’’

इस के बाद दोनों ने एक अच्छे होटल में जा कर खाना खाया. कुछ देर बातें कीं. फिर अपनेअपने रास्ते चल दिए. दोनों ऐसा अकसर छुट्टी के दिन करते थे. दोनों की छुट्टी बड़े मजे से गुजर जाती थी. इन की दोस्ती और पढ़ाई का भी हंसते खेलते एक साल चुटकियों में निकल गया. अब दूसरे साल का एग्जाम भी नजदीक था, सो सोहम और साल्वी अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गए.

प्रेमिका की कब्र पर आम का पेड़

प्रेमियों के लिए मचलने वाली विवाहिता – भाग 2

दशरथ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर रीना कहां गई होगी? वह कुणाल के साथ जब भी कहीं जाती थी, तब उसे इस बारे में बता जरूर बता देती थी.

आखिरकार दशरथ पत्नी एक फोटो ले कर पावई थाने गया. उस ने एसएचओ राजेंद्र सिंह परिहार को पूरी बात बताई और पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एसएचओ ने उसी वक्त से रीना की तलाश शुरू कर दी. मामला शादीशुदा महिला की गुमशुदगी का था, इसे देखते हुए पहले भदौरिया परिवार के सभी सदस्यों समेत रीना का मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स का अध्ययन करने के बाद पता चला कि रीना की बीते दिनों एक अनजान फोन नंबर पर अधिक समय तक बातचीत हुई. वह नंबर कुणाल पांडे का था. इस के बाद दशरथ समझ गया कि जरूर वह कुणाल के पास ही गई होगी.

यह जानकारी मिलते ही दशरथ आटो स्टैंड पर पहुंचा और वहां मौजूद आटो चालकों को जब रीना का फोटो दिखाया तो वहां मौजूद हरिओम नाम के ड्राइवर ने रीना को पहचान लिया. उस ने बताया कि वह महिला उस के आटो में बैठ कर बसस्टैंड तक गई थी, लेकिन वहां से वह कहां के लिए गई होगी, इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

इस जानकारी के बाद दशरथ ने बस कंडक्टरों को रीना की फोटो दिखा कर पूछताछ की. उन्हीं में से ग्वालियर से बनमौर रूट पर चलने वाली एक बस के कंडक्टर ने बताया कि वह महिला बनमौर तक उस की बस में सवार हो कर गई थी.

दशरथ ने थाने जा कर एसएचओ को सारी बात बताई. पवई पुलिस ने बनमौर बसस्टैंड से संबंधित थाने को इस की सूचना और रीना का फोटो भेज कर वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज की जानकारी मांगी. जल्द ही एक फुटेज में रीना एक बाइक पर सवार दिख गई, जिसे एक नवयुवक ले जाता दिखाई दिया.

बाइक का नंबर और युवक का चेहरा भी दिख गया था. दशरथ ने उस की पहचान कुणाल के रूप में की. बाइक के नंबर की मदद से पुलिस दशरथ को ले कर कुणाल के पास पहुंच गई.

वहां कुणाल और रीना मिल गए. दशरथ ने रीना को साथ चलने के लिए कहा, लेकिन उस ने उस के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहां उन से की गई पूछताछ में रीना ने बताया कि वह अपनी मरजी से कुणाल के साथ आई है और आगे भी उसी के साथ रहना चाहती है.

पति दशरथ भदौरिया के हाथ क्यों रह गए खाली

दशरथ ने उसे बच्चों का हवाला देते हुए साथ चलने की विनती की, लेकिन रीना अपनी जिद पर अड़ी रही. पुलिस ने कागजी काररवाई कर रीना और उस के प्रेमी को छोड़ दिया. दशरथ को इस मामले में अदालती काररवाई की सलाह दी. मायूस दशरथ अपने घर लौट आया.

दशरथ का दिल टूट गया और भारी मन से रीना को उस के प्रेमी के भरोसे छोड़ दिया. तीनों बच्चों को कुछ दिनों के लिए उन के ननिहाल भेज दिया.

रीना भदौरिया और कुणाल के लिए अच्छी बात यह हुई कि दशरथ के रूप में उन के प्यार की बाधा खत्म हो गई थी. कुणाल बनमौर में नौकरी करता था. उस ने अपनी आमदनी से रीना को खुशहाल जिंदगी देने का वादा किया, लेकिन उस ने विवाह की औपचारिकता पूरी नहीं की. न तो उस के साथ मंदिर में जा कर उस के गले में वरमाला डाली और न ही कोर्टमैरिज के लिए कोई पहल की. दोनों का दांपत्य जीवन लिवइन रिलेशन की बुनियाद पर टिक गया.

सब कुछ रीना की महत्त्वाकांक्षा के अनुरूप चलने लगा. रीना ने महसूस किया कि जैसे उसे खुशियों और आजादी के पंख लग गए हों. वह अपनी मनमरजी का जीवन गुजारने लगी थी. लेकिन कहते हैं न कि सुख की समय सीमा बहुत जल्द कम होने लगती है. ऐसा ही रीना के साथ भी हुआ.

कुणाल जब रोजीरोटी के लिए नौकरी और ड्यूटी को प्राथमिकता देने लगा, तब रीना ने कुछ अच्छा महसूस नहीं किया. उसे लगा कि जैसे उस की खुशियां कम हो रही हैं.

कुणाल के साथ रहते हुए उसे कई बार बोरियत भी महसूस होने लगी. कारण कुणाल सुबह 10 बजे खाना खा कर अपनी ड्यूटी पर चला जाता था और रात 8 बजे कमरे पर लौटता था. रीना का घर पर अकेले मन नहीं लगता था. वह खुले विचारों वाली थी. घूमनाफिरना, होटल में खाना खाना, पार्क, मौल आदि में जाने की आदत लगी हुई थी. उस में कमी आने से वह उदास रहने लगी थी.

कुणाल अब छोटीछोटी बातों और घरेलू खर्च को ले कर रीना को जिम्मेदार ठहराने लगा था. रोजाना किसी न किसी बात को ले कर उन के बीच कहासुनी होने लगी थी.

घरेलू क्लेश से रीना दिन भर कमरे में अकेली पड़ी परेशान होती रहती थी. वह विचलित हो जाती थी कि आखिर अपनी पीड़ा किसे सुनाए. वहां कोई भी उस का हमदर्द नहीं था, जिसे अपने गम की बात सुनाए. दिल का दुखड़ा बताए. ऐसे में रीना को अपने लिए गए फैसले पर पछतावा होने लगा. अपने बच्चों और पति की याद भी उसे सताने लगी, लेकिन अब इतना सब हो जाने के बाद पति के पास वापस लौटना संभव नहीं था.

अपनी बदली हुई जिंदगी से निराश रीना की मुलाकात मार्केट में एक दिन सुरेंद्र धाकड़ नाम के युवक से हो गई. वह टैंपो चलाता था. उस की लच्छेदार और मीठी बातों ने रीना का मन मोह लिया था. अंत में रीना ने अपनी आदत के मुताबिक अपना नाम बताया और मोबाइल नंबर भी दे दिया. खुशमिजाज टैंपो वाले ने रीना का कुछ समय की यात्रा में ही दिल जीत लिया था.

कौन बना रीना का अगला प्रेमी

सुरेंद्र ठंडी हवा के झोंके की तरह रीना भदौरिया को छू कर चला गया था. उसे कई दिनों तक उस की बातें याद आती रहीं. एक रोज उस ने उसे फोन कर दिया. रीना उसे बसस्टैंड के मार्केट में आने के लिए बोली. सुरेंद्र तुरंत सौरी बोलता हुआ बोला, ”मैडम, मैं अभी ग्वालियर अपने कमरे पर हूं. आज में अपनी सेवा नहीं दे सकता. माफी चाहता हूं.’’

एक टैंपो चालक द्वारा इस तरह तमीज से बातें करना रीना के दिल को छू गया. 2 दिनों बाद सुरेंद्र एक बार फिर रीना को मार्केट में टकरा गया. कुछ घरेलू सामान के साथ रीना बाजार में सड़क के किनारे बैठी थी. वह खोई खोई थी. तभी सुरेंद्र ने अचानक उस के सामने टैंपो रोक दिया था. एक बार फिर उस रोज के लिए सौरी बोला और हालचाल पूछ बैठा.

रीना अचानक सुरेंद्र को देख कर चौंक पड़ी. कुछ बोलने से पहले ही सुरेंद्र बोला, ”देवी मंदिर चलना है मैडम! आज वहां मेला लगता है. चलिए वहां घुमा लाता हूं. ज्यादा किराया नहीं लूंगा. वैसे भी खाली जा रहा हूं.’’

रीना से जिस मंदिर के बारे में पूछा, संयोग से वह उस के घर के रास्ते में ही आगे कुछ दूरी पर था. तुरंत ही वह सुरेंद्र के साथ जाने के लिए तैयार हो गई.

उस दिन रीना ने महसूस किया कि उस के दिल की बात सुरेंद्र सुन सकता है. उस रोज नहीं चाहते हुए भी रीना मंदिर में कुछ समय सुरेंद्र के साथ रही. उस के साथ पूजा में हिस्सा लिया और पास के एक ढाबे में चायनाश्ता भी किया. यह सब सुरेंद्र को भी अच्छा लगा था.

रीना उस के साथ फोन पर भी बातें करने लगी. अपनी समस्याएं बताने लगी थी, जिस का सुरेंद्र दार्शनिक अंदाज में जवाब देने लगा था. एक दिन सुरेंद्र उसे ग्वालियर अपने कमरे पर ले गया. रीना के कदम पहले से ही बहके हुए थे.

उसे हमेशा महसूस होता था कि वह प्यार की भूखी है. थोड़ी सी हमदर्दी मिलते ही उस ओर मुड़ जाती थी. प्यार पाने की यही लालसा उसे कुणाल तक खींच लाई थी. जब कुणाल से जी ऊबने लगा, तब वह सुरेंद्र में अपना प्यार तलाशने लगी. एक मर्द से दूसरे मर्द की बाहों में जाने के बाद मिलने वाली उपेक्षा और असफलता का उसे कोई मलाल नहीं होता था.

इश्क के दरिया में पति को बहाया – भाग 3

पत्नी क्यों बनी पति की जान की दुश्मन

पुलिस ने स्कूल से बंटी का एड्रेस ले कर उस के गांव अडिंग में जा कर उसे तलाश किया गया तो मालूम हुआ कि बंटी कई दिनों से गांव में नहीं आया है. गांव में उस का पिता शोभाराम, बंटी की पत्नी और बच्चे रह रहे थे.

बंटी के बारे में शोभाराम ने बताया कि बंटी अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा घर में पत्नी को भेजता है, बाकी अपने खानेपीने के लिए रख लेता है. उसे अब अपनी बीवी और बच्चों से कोई मोह नहीं रह गया है. वह फरीदाबाद में ही किराए का कमरा ले कर रहता है. वहां पर कहां रहता है, यह उस ने कभी नहीं बताया.

इन बातों का अर्थ यह निकाला गया कि बंटी ने अपना घरपरिवार बबीता के साथ आशनाई में छोड़ दिया है. वह बबीता को प्यार करता है. दीपक कुमार ने बंटी के फरीदाबाद वाले किराए के घर को तलाश कर लिया, लेकिन बंटी उस घर में भी नहीं था. वह 2-3 दिन से उस घर में नहीं आया था.

बंटी अब पूरी तरह पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. उस को पकडऩे के लिए एसीपी अमन यादव ने मुखबिर लगा दिए.

इस का नतीजा भी सार्थक निकला. 17 अगस्त, 2023 की सुबह उसे मथुरा के गांव बुढ़ैना स्थित चंदीला चौक से गिरफ्तार कर लिया गया. उसी दिन उसे कोर्ट में पेश कर के 25 अगस्त तक के लिए रिमांड पर ले लिया गया.

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क्राइम ब्रांच डीएलएफ के रिमांड रूम में बंटी को लाया गया तो एसीपी अमन यादव के तेवर देख कर वह कांपने लगा. एसीपी भांप गए कि यह बगैर सख्ती के अपना मुंह खोल देगा.

उसे अपने सामने बिठा कर उन्होंने उस के चेहरे पर नजरें जमा दीं, ”बंटी, तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा कि जो कुछ हम पूछें, तुम सहीसही उत्तर दोगे. यदि झूठ बोलने या बरगलाने की कोशिश करोगे तो तुम्हें उलटा लटका दिया जाएगा और फिर…’’

”म… मैं कुछ भी नहीं छिपाऊंगा साहब,’’ बंटी जल्दी से बोला, ”आप पूछिए, क्या पूछना है?’’

”राकेश तुम्हारे साथ ही स्कूल में नौकरी करता था, अब वह 15 दिन से लापता है. बताओ, वह कहां है..’’ अमन यादव ने पूछा.

”मैं ने उसे मार दिया है साहब.’’ बंटी ने रुआंसे स्वर में कहा.

”मार दिया क्यों?’’ पास बैठे प्रभारी दीपक कुमार ने चौंक कर पूछा, ”उस ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?’’

”कुछ भी नहीं साहब, वह तो सीधासादा आदमी था. गलती मेरी थी, मैं उस की पत्नी बबीता के साथ फंस गया. उस के रूपजाल ने मुझे ऐसा मोहित किया कि मैं अपने बीवी बच्चों तक को भूल गया. बबीता के कहने पर मैं ने राकेश की हत्या कर डाली. मुझ से बहुत बड़ा गुनाह हो गया साहब. मुझे माफ कर दो.’’ कहते कहते बंटी रोने लगा.

”तुम से अपने पति का खून करने के लिए बबीता ने कहा था?’’ प्रभारी दीपक कुमार ने पूछा.

”जी हां,’’ बंटी अपने आंसू पोंछते हुए बोला, ”साहब, परेशान हाल में काम की तलाश करने आई बबीता के यौवन पर फिदा हो कर मैं ने उसे स्कूल में चपरासी की पोस्ट पर लगवा दिया. बबीता दिलफेंक थी. वह जल्दी ही मेरी तरफ आकर्षित हो गई. मैं ने बहुत जल्दी बबीता को अपनी सेज पर सजा लिया.

”मेरे प्यार और जोश पर बबीता इस कदर फिदा हो गई कि उसे अपना पति बेकार लगने लगा. जबकि पहले उसी के कहने पर मैं ने स्कूल में राकेश को भी बस की कंडक्टरी का काम दिलवा दिया था. वह स्कूल में रोज आता था, लेकिन सुबह दोपहर में वह स्कूल बस के साथ बच्चों को लाने छोडऩे के लिए बाहर रहता था. इस बीच बबीता और मैं अपने दिल की मुरादें पूरी कर लेते थे.

”धीरेधीरे राकेश को हम पर शक होने लगा तो उस ने बबीता को मुझ से दूर करने की कोशिश की, लेकिन बबीता ने उस की परवाह नहीं की. वह मेरे नजदीक बनी रही. राकेश घर जा कर बबीता को उल्टीसीधी सुनाता. दोनों में क्लेश होता, लेकिन बबीता ने मेरा साथ नहीं छोड़ा.

”एक दिन बबीता ने मुझ से कहा कि मैं राकेश को रास्ते से हटा दूं, वह उस से रोज क्लेश करता है, गालियां देता है, अब हाथ भी उठाने लगा है. मैं ने बबीता की बात मान ली. राकेश का कांटा निकल जाने से बबीता मुझ से खुल कर अय्याशी करती, मैं उसे फरीदाबाद में पत्नी बना कर रखता.

”मैं ने एक योजना बनाई. 2 अगस्त, 2023 को मैं ने राकेश को शराब पीने की पार्टी दी, वह इस के लिए मान गया. मैं उसे शाम को ठेके पर ले गया.

”उसे दूर कर के मैं ने शराब की बोतल खरीदी और राकेश को ले कर आगरा कैनाल नहर के पास आ गया. वहां दूर तक सन्नाटा था. मैं ने शराब की बोतल खोली और राकेश को पैग बना कर दिया. मैं ने भी पैग बनाया.

”मैं धीरेधीरे अपना गिलास खाली करता, जबकि राकेश पानी की तरह शराब गटक रहा था. मैं ने उसे ज्यादा पिलाई. वह थोड़ी देर में नशे में झूमने लगा तो मौका देख कर मैं ने वहां पड़ी ईंट उठा कर उस के सिर पर वार कर दिया, वह चीख कर गिरा तो मैं ने उसे घसीट कर नहर में धकेल दिया.

”यह खबर मैं ने फोन द्वारा उसी रात बबीता को दे दी तो वह बहुत खुश हुई. फिर 3 अगस्त, 2023 को योजना के तहत उस ने थाना बीपीटीपी में अपने पति राकेश की गुमशुदगी की सूचना लिखवा दी.’’

कैसे बरामद हुई राकेश की लाश

बंटी के द्वारा राकेश की हत्या का जुर्म कुबूल कर लेने के बाद इस जुर्म में शामिल राकेश की पत्नी बबीता को क्राइम ब्रांच टीम ने खेड़ी कलां में उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

क्राइम ब्रांच के औफिस में अपने प्रेमी बंटी को सिर झुका कर बैठा देखते ही वह समझ गई कि पति की हत्या का भेद खुल गया है. इसलिए उस ने भी चुपचाप अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

बीपीटीपी थाने में दर्ज अपराध संख्या 200/ 23 पर भादंवि की धारा 302 लगा कर दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. फिर दोनों आरोपियों की निशानदेही पर राकेश की डैड बौडी की तलाश शुरू की गई.

19 अगस्त, 2023 को पलवल के गांव छज्जूपुर के पास आगरा कैनाल से एसडीआरएफ की टीम ने राकेश की लाश बरामद कर पाने में सफलता पा ली. पुख्ता सबूत हासिल करने के बाद क्राइम ब्रांच की टीम ने हत्यारोपी बंटी और उस की प्रेमिका बबीता को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

बंटी और बबीता को अपने किए की सजा दिलवाने के लिए एसएचओ तैयारी में लग गए. राकेश की लाश उस के परिजनों को सौंप दी गई थी, जिन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल

प्रेमियों के लिए मचलने वाली विवाहिता – भाग 1

थोड़ी देर में रीना बस से बनमौर के लिए निकल चुकी थी. उधर उस का प्रेमी कुणाल वहां उस के इंतजार में था. रीना के बनमौर पहुंचने पर उसे बस स्टैंड पर ही कुणाल बाइक लिए खड़ा मिल गया. उसे देख कर रीना के चेहरे पर चमक आ गई. कुणाल ने सहजता से पूछा, ”कोई परेशानी तो नहीं हुई? किसी ने देखा तो नहीं?’’

रीना ने कुछ बोले बगैर कुणाल को अपना बैग पकड़ा दिया. कुणाल ने उसे अपनी गोद में रख कर दोनों हाथों से बाइक का हैंडल पकड़ कर बोला, ”बैठो, दुपट्टा संभाल लेना.’’

इसी के साथ रीना तुरंत बाइक पर बैठ गई. दोनों ने घर पहुंचने से पहले रास्ते में एक ढाबे पर खाना खाया और फिर कुणाल ने उस रात अपनी हसरतें पूरी कीं. रीना भी कुणाल का साथ पा कर निहाल हो गई. दोनों ने बिनब्याह के सुहागरात मनाई.

रीना मध्य प्रदेश के भिंड जिले के इंगुरी गांव के रहने वाले साधारण किसान दशरथ भदौरिया की पत्नी थी. कजरारी आंखों वाली सुंदर पत्नी को पा कर दशरथ बेहद खुश था. रीना की इस खूबसूरती का दीवाना उस के पति दशरथ के अलावा एक और युवक कुणाल पांडे भी था.

वह इंगुरी का नहीं था, लेकिन रीना और दशरथ के पड़ोस में रहने वाले शुक्ला परिवार में उस का अकसर आनाजाना लगा रहता था. एक दिन उस की भी नजर रीना पर पड़ गई. तभी से वह उस का दीवाना हो गया था.

शादीशुदा होने के बावजूद क्यों बहकी रीना

पहली बार में ही दोनों के दिलोदिमाग में खलबली मच गई थी. उन्होंने एकदूसरे के प्रति खिंचाव महसूस किया था. कुणाल कुंवारा था, उस ने कुंवारेपन की कसक के साथ रीना की सुंदरता और कमसिन अदाओं को महसूस किया था.

कुणाल के बांकपन और बलिष्ठ देह को देख कर रीना के दिमाग के तार भी झनझना उठे थे. दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं. गुदगुदी होने लगी थी. उस से मिलने को बेचैन हो गई थी, जबकि वह 7 साल की ब्याहता थी, 3 बच्चे थे. उस की कुछ हसरतें थीं, जो पूरी नहीं हो रही थीं. वह खुद को खूंटे से बंधी गाय ही समझती थी.

ऐसा लगता था जैसे उस के सारे मंसूबे धरे के धरे रह जाएंगे. जवानी यूं ही सरकती चली जाएगी. मनचाही खुशियां नहीं मिल पाएंगी. एक दिन कुणाल से मिलने के बाद तो उस का मन और भी बेचैन हो गया था. रीना और कुणाल के बीच पनपे प्यार के बढऩे का यह शुरुआती दौर था, किंतु जल्द ही दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. यहां तक कि कुणाल उसे अपनी बाइक से जबतब पास के शहर ले कर जाने लगा. इस में उस के पति दशरथ की सहमति थी.

वह कुणाल को सिर्फ पड़ोसी शुक्लाजी का रिश्तेदार और अपना हमदर्द समझता था. इस वजह से वह कुणाल पर भरोसा करता था. जब भी रीना कुछ खरीदारी करने के लिए शहर जाने की बात कहती थी, तब वह उसे कुणाल के साथ जाने की अनुमति दे देता था. किंतु उसे इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि रीना क्या गुल खिला रही है.

कुणाल और रीना एकदूसरे को बेहद चाहने लगे थे. रीना अपना दिल पूरी तरह से कुणाल को सौंप चुकी थी. दूसरी तरफ दशरथ के साथ उस की जिंदगी उबाऊ बनती जा रही थी. घर में छोटीछोटी बातों को ले कर चिकचिक होने लगी थी.

रीना जब कभी कुणाल के साथ किसी रेस्टोरेंट में एक साथ कोई पसंदीदा डिश खा रही होती, तब चम्मच से निवाले के साथसाथ अपनी सारी समस्याएं भी उस से साझा कर लेती थी. कुणाल उस के इसी प्रेम का दीवाना बन चुका था और उस के साथ अपनी हसरतें पूरी करने का हसीन सपना देखने लगा था. उस पर पैसा खर्च करने में जरा भी कंजूसी नहीं करता था.

कुणाल मध्य प्रदेश के औद्योगिक इलाके बनमौर में रहता था. वह वहीं एक कंपनी में काम करता था. रीना का गांव बनमौर से करीब 400 किलोमीटर दूर था. इस कारण उन का मिलनाजुलना महीने 2 महीने में ही हो पाता था, लेकिन वे फोन से अपने दिल की बातें करते रहते थे.

कुणाल एक बार करीब 3 महीने बाद रीना से मिला था. तब बातोंबातों में रीना ने लंबे समय बाद मिलने के शिकायती लहजे में साथ रहने की बात रखी. कुणाल भी चुप रहने वाला नहीं था, झट से बोल पड़ा था, ”मैं तो हमेशा तैयार हूं. मेरे पास बनमौर आने का फैसला तुम्हें लेना है.’’

”पति को क्या कहूं?’’ रीना मासूमियत के साथ बोली.

”दशरथ को साफसाफ हमारे तुम्हारे प्रेम के बारे में बता दो.’’ कुणाल ने समझाया.

”लेकिन मैं कैसे कहूं उस से. कहने पर बच्चों का हवाला दे कर रोक देगा.’’ रीना बोली.

”तो फिर एक ही उपाय है,’’ कुणाल ने कहा.

”वह क्या?’’ रीना ने सवाल किया.

”उसे बिना बताए मेरे पास चली आओ… जब वह हम लोगों से मिलेगा, तब उसे हाथ जोड़ कर समझा देंगे.’’ कुणाल ने समझाया. उस के बाद वह बनमौर लौट गया.

रीना कई दिनों तक उलझी रही. कभी बच्चे का विचार सामने आ जाता था तो कभी पति के साथ गुजर रही रूखी जिंदगी. वह काफी उलझन में थी. उसे डर लगने लगा था कि घर छोड़ कर कुणाल के पास जाना कहीं भविष्य में उस के लिए कोई खतरा न बन जाए.

काफी सोचविचार करने के बाद रीना ने एक रोज कुणाल को फोन कर कहा, ”आज दोपहर मैं ने घर की देहरी लांघने का फैसला कर लिया है.’’

रीना भदौरिया के इस फैसले पर कुणाल ने उसी वक्त आगे की योजना समझा दी. अगले रोज दोपहर के समय रीना तेजी से घरेलू काम निपटाने में लगी हुई थी. घर में कोई नहीं था. पति खेत पर गया हुआ था और बच्चे स्कूल जा चुके थे. वह बरतनों को साफ करने और करीने से रखने के बाद फटाफट अपने बैग में कपड़े ठूंसने लगी. पति की नजरों से बचा कर रखे गए कुछ पैसे भी बैग में संभाल कर रख लिए. फिर वह बस पकड़ कर प्रेमी कुणाल के पास पहुंच गई.

उधर दशरथ अपने बच्चे के साथ बेचैन था. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रीना अचानक बिना कुछ बताए कहां चली गई. दशरथ रीना को बारबार फोन मिला रहा था, वह स्विच्ड औफ आ रहा था. दशरथ ने इटावा में रीना के मायके से संपर्क किया. वहां रीना के नहीं पहुंचने की जानकारी से वह बेचैन हो गया कि अखिर वह कहां चली गई? उस का फोन क्यों बंद आ रहा है?

दशरथ आसपास के लोगों से भी पत्नी के बारे में पूछताछ कर चुका था. ससुराल में कई बार फोन करने पर हर बार निराशा ही हाथ लगी थी. यहां तक कि शुक्लाजी के यहां जा कर कुणाल के आने के बारे में भी पूछा था. उन से मालूम हुआ था कि वह महीनों से उन के पास नहीं आया है.

इश्क के दरिया में पति को बहाया – भाग 2

एसएचओ से आश्वासन पा कर बबीता वापस घर लौट आई. एसएचओ ने राकेश कुमार की गुमशुदगी का मामला संजीदगी से लिया. वह टीम के साथ राकेश की खोज में खेड़ी कलां के बाजार में गए. राकेश का फोटो दिखा कर वहां के दुकानदारों, चायपान के ठेलों पर उस के विषय में पूछा गया, लेकिन कहीं से भी उन्हें राकेश के यहां बाजार में आने की सूचना नहीं मिली.

थाने लौट कर उन्होंने एसपी को सूचना से अवगत कराया तो उन्होंने यह केस क्राइम ब्रांच शाखा डीएलएफ को ट्रांसपर कर दिया. क्राइम ब्रांच के डीसीपी मुकेश मल्होत्रा ने एसीपी अमन यादव के सुपरविजन में टीम को यह जिम्मेदारी सौंप दी कि वह जल्द से जल्द राकेश के लापता होने की गंभीरता से जांच करें.

उन्होंने राकेश के फोटो भी आसपास के थानों में भिजवा कर सोशल मीडिया पर भी शेयर करा दिए. क्राइम ब्रांच के प्रभारी दीपक और एसीपी अमन यादव ने जांच शुरू करने के लिए एक मीटिंग की.

”क्या कहते हैं आप, राकेश शाम को पत्नी को बता कर बाजार गया और लौट कर वापस नहीं आया.’’ एसीपी अमन यादव ने अपनी बात कह कर दीपक कुमार की ओर देखा.

”सर, इस के पीछे 2 बातें हो सकती हैं, राकेश का किसी ने अपहरण कर लिया है या फिर उस ने खुद अपना घर छोड़ दिया है. अगर उस का अपहरण किया गया होता तो अभी तक उस की फिरौती मांगने के लिए उस के उस के घर वालों के पास फोन आ जाता. रही बात दूसरी तो यदि राकेश अपनी मरजी से कहीं चला गया हो तो इस की संभावना न के बराबर है.’’

”वह कैसे?’’

”जनाब, पति घर तभी छोड़ेगा जब वह घर से परेशान हो जाएगा. परेशानी घरेलू कलह से शुरू होती है. अधिकतर घरों में पतिपत्नी के बीच अनबन रहती है. परेशान हालत में ही अनेक हादसे होते देखे गए हैं. यहां राकेश की पत्नी बबीता अपने पति के लिए चिंतित है, उसे पति की फिक्र है तो इसी से समझा जा सकता है कि दोनों पतिपत्नी में गहरा जुड़ाव रहा है.’’

”एक संभावना और है.’’

”वह क्या है सर?’’

”राकेश को गायब करवाया जा सकता है.’’

”हां.’’ प्रभारी दीपक कुमार ने सिर हिलाया, ”और यह काम एक ही सूरत में होगा, यदि पत्नी का चरित्र ठीक नहीं है. वह पति के अलावा किसी और को प्यार करती है. ऐसी पत्नी खुद अपने पति को गुम करवा सकती है या जान से मरवा सकती है. हमें गुप्त रूप से बबीता के चरित्र की जांचपड़ताल करनी पड़ेगी.’’

”बेशक. यदि बबीता को भनक लगी तो वह सावधान हो जाएगी.’’ प्रभारी अपनी कुरसी छोड़ते हुए बोले. एसीपी अमन यादव भी कुरसी से उठ गए.

कुछ ही देर में उन की जीप खेड़ी कलां में रहने वाले राकेश के घर की तरफ दौड़ रही थी. रास्ते में एसीपी अमन यादव ने साथ चल रही क्राइम ब्रांच की टीम को समझा दिया कि उन्हें किस तरह बबीता के पड़ोसियों से उस के चरित्र की टोह लेनी है.

राकेश के घर का पता पूछते हुए क्राइम ब्रांच की जीप राकेश के घर से पहले ही रुक गई. क्राइम ब्रांच की टीम के लोग जीप से उतर गए. वे सब सादे कपड़ों में थे. वह राकेश के घर के आसपास बबीता के चरित्र की जांच करने के लिए सक्रिय हो गए.

ड्राइवर से क्या खास जानकारी मिली पुलिस को

एसीपी अमन यादव और प्रभारी दीपक कुमार राकेश के दरवाजे पर पहुंच गए. बबीता उन्हें वहां बाहर ही मिल गई. दोनों अधिकारियों को सामने देख कर उस ने तुरंत सिर पर पल्ला ले लिया और आंखों में आंसू भर कर भर्राए स्वर में पूछा, ”कुछ मालूम हुआ साहब, मेरे पति की कोई खबर मिली?’’

”नहीं, अभी तो नहीं. लेकिन हमें विश्वास है कि हम जल्दी राकेश को तलाश कर लेंगे.’’ प्रभारी दीपक कुमार ने बबीता के चेहरे पर नजरें जमा कर गंभीर स्वर में कहा.

”हम यह मालूम करने आए हैं…’’ इस बार एसीपी अमन यादव बोले, ”क्या राकेश की किसी से कोई दुश्मनी थी या उस का गांव में किसी के साथ कभी झगड़ा हुआ था?’’

”नहीं साहब, मेरे पति झगड़ालू नहीं हैं. वह बहुत सीधे और अपने काम से काम रखने वाले हैं.’’ बबीता ने बताया.

”वह बाजार अकेला गया था या कोई और उस के साथ में था?’’

”अकेले ही गए थे साहब.’’

एसीपी अमन यादव और प्रभारी दीपक कुमार ने कुछ और जरूरी सवाल बबीता से किए. राकेश और वह फरीदाबाद में किस स्कूल में नौकरी करते हैं, यह जानकारी ली और जीप में आ कर जीप उन्होंने आगे बढ़ा कर रोक दी. उन के साथ आई क्राइम ब्रांच की टीम के चारों सदस्य भी कुछ ही देर में जीप में आ गए.

”कुछ मालूम हुआ बबीता के बारे में?’’ प्रभारी दीपक ने उन से पूछा.

”बबीता का किसी से अफेयर चल रहा हो, ऐसी तो जानकारी नहीं मिली सर, लेकिन यह जरूर मालूम हुआ है कि राकेश और बबीता के बीच अकसर किसी बात पर झगड़ा होता रहता था. वे किस बात पर झगड़ते थे, यह कोई नहीं जानता.’’ एक सदस्य ने बताया.

”यही मालूम करना होगा, तभी हमें आगे की राह मिलेगी.’’ प्रभारी दीपक कुमार ने गंभीर स्वर में कहा.

”कल स्कूल में चलते हैं, वहां से कुछ जानकारी मिल सकती है.’’ एसीपी अमन यादव ने कहा और सीट के साथ सट कर आंखें बंद कर लीं.

चौबीस घंटे से ऊपर हो गए थे, लेकिन राकेश कुमार का कोई सुराग नहीं लगा था. वह घर वापस नहीं लौटा था. उस का अपहरण किया गया हो, यह बात भी गलत साबित हुई, क्योंकि अपहरण करने वाले की ओर से कोई फिरौती का फोन नहीं आया था.

तीसरे दिन प्रभारी दीपक कुमार और एसीपी अमन यादव ने उस स्कूल में जा कर जानकारी जुटाई, जहां राकेश और बबीता काम करते थे. वहां से एक चौंकाने वाली बात का पता चला. एक स्कूल कर्मचारी ने बताया कि स्कूल में बबीता और बंटी में नजदीकियां थीं. दोनों स्कूल में साथसाथ ही रहते थे, खाना भी वे दोनों एक साथ खाते थे.

चूंकि राकेश स्कूल बस में कंडक्टरी करता था, इसलिए एसीपी अमन यादव ने स्कूल बस के ड्राइवर से बात कर के राकेश के बारे में बहुत कुछ मालूम कर लिया. स्कूल बस का ड्राइवर और राकेश अधिकांश समय साथसाथ ही रहते थे, इसलिए ड्राइवर से राकेश अपने दिल की गोपनीय बातें भी शेयर कर लेता था.

ड्राइवर ने पुलिस को बताया कि राकेश अपनी पत्नी बबीता से इस बात से खफा था कि वह बंटी के साथ हंसहंस कर बातें करती है और उस के आगेपीछे मंडराती रहती है. राकेश बबीता को बंटी के साथ मेलजोल न रखने को कहता था, लेकिन बबीता उस की बात नहीं मानती थी.

ड्राइवर ने बताया कि राकेश बंटी से बहुत खफा था. उस ने एक बार कहा था कि बंटी यदि नहीं माना तो वह उस का खून कर देगा. यह बहुत गहरी बात थी, ऐसा कोई आदमी तभी कह सकता था, जब उसे अपनी पत्नी के बदचलन होने का संदेह हो. पत्नी उस के सामने किसी और के साथ हंसतीबोलती हो.

बंटी को टटोलना अब बहुत जरूरी हो गया था. स्कूल में उस के बारे में पूछा गया तो मालूम हुआ, वह 2-3 दिन से ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. यह क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के संदेह को पुख्ता करने वाली बात थी.

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 3

आखिर जयदेव ततमा और अशोक को जिस बात का डर था, वही सब हुआ. विचारों के टकराव और अहं ने पति और पत्नी के बीच इतनी दूरियां बना दीं कि वे एकदूसरे की शक्ल देखने को तैयार नहीं थे. एक छत के नीचे रहते हुए वे एकदूसरे से पराए जैसा व्यवहार करने लगे. रोज ही घर में पतिपत्नी के बीच झगड़े होने लगे थे.

रोजरोज के झगड़े और कलह से घर की सुखशांति एकदम छिन गई थी. पतियों ने कलावती और मलावती को अपने जीवन से हमेशा के लिए आजाद कर दिया. बाद में दोनों का तलाक हो गया. पते की बात यह थी कि कलावती और मलावती दोनों की जिंदगी की कहानी समान घटनाओं से जुड़ी हुई थी. दुखसुख की जो भी घटनाएं घटती थीं, दोनों के जीवन में समान घटती थीं.

यह बात सच है कि दुनिया अपनों से ही हारी हुई होती है. अशोक भी बहनों की कर्मकथा से हार गया था. पर वह कर भी क्या सकता था. वह उन्हें घर से निकाल भी नहीं सकता था. सामाजिक लिहाज के मारे उस ने बहनों को अपना लिया और सिर छिपाने के लिए जगह दे दी. वे भाई के अहसानों तले दबी हुई थीं, लेकिन दोनों उस पर बोझ बन कर जीना नहीं चाहती थीं.

ऐसा नहीं था कि वे दोनों दुखी नहीं थीं. वे बहुत दुखी थीं. अपना दुख किस के साथ बांटें, समझ नहीं पा रही थीं. वे जी तो जरूर रही थीं, लेकिन एक जिंदा लाश बन कर, जिस का कोई वजूद नहीं होता. पति के त्यागे जाने से ज्यादा दुख उन्हें पिता की मौत का था.

कलावती और मलावती ने भाई से साफतौर पर कह दिया था कि वे उस पर बोझ बन कर नहीं जिएंगी. जीने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी. दोनों बहनें फिर से समाजसेवा की डगर पर चल निकलीं. अब उन पर न तो कोई अंकुश लगाने वाला था और न ही टीकाटिप्पणी करने वाला.

वे दोनों घर से सुबह निकलतीं तो देर रात ही घर वापस लौटती थीं. सोशल एक्टिविटीज में दिन भर यहांवहां भटकती फिरती थीं. अशोक बहनों के स्वभाव को जान चुका था. वह भी उन पर निगरानी नहीं रखता था. उसे अपनी बहनों और उन के चरित्र पर पूरा भरोसा था कि वे कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगी, जिस से समाज और बिरादरी में उसे शर्मिंदा होना पड़े.

लेकिन गांव के उस के पड़ोसियों खासकर वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा को कलावती और मलावती के चरित्र पर बिलकुल भरोसा नहीं था.

दोनों बहनों के चरित्र पर लांछन लगाते हुए वे उन्हें पूरे गांव में बदनाम करते थे. वे कहते थे कि ततमा की दोनों बेटियां पेट की आग बुझाने के लिए बाजार में जा कर धंधा करती हैं. धंधे की काली कमाई से दोनों के घरों में चूल्हे जलते हैं. धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल चुकी थी. उड़ते उड़ते कुछ दिनों बाद यह बात कलावती और मलावती तक आ पहुंची.

सुन कर दोनों बहनों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. सहसा उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो सुना है, वह सच है. जबकि उन का चरित्र एकदम पाकसाफ था. अपने चरित्र को ले कर दोनों बहनों ने जब गांव वालों की बातें सुनीं, तो वे एकदम से परेशान हो गईं.

वैसे भी किसी चरित्रवान के दामन पर ये दाग किसी गहरे जख्म से कम नहीं थे. दोनों ने फैसला किया कि उन्हें नाहक बदनाम करने वालों को इस की सजा दिलवा कर दम लेंगी, चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो. उन्होंने पता लगा लिया कि उन्हें बदनाम करने वाले उन के पड़ोसी वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र थे.

जिद की आग में पकी कलावती और मलावती ने वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा की कुंडली तैयार की. गांव के चारों बाशिंदे ग्रामप्रधान के भरोसेमंद प्यादे थे. प्रधान के रसूख की बदौलत वे कूदते थे.

चारों ही प्रधान की ताकत के बल पर असामाजिक कार्यों को अंजाम देते थे. ये बातें दोनों बहनों को पता चल गई थीं. दोनों ने आरटीआई के माध्यम से ग्राम प्रधान और उन के चारों प्यादों के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर के वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के खिलाफ जलालगढ़ थाने में मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

वीरेंद्र और लक्ष्मीदास को जेल भिजवाने के बाद दोनों बहनें शांत नहीं बैठीं. इस के बाद उन्होंने बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को जेल भिजवा दिया. कुछ दिनों बाद वीरेंद्र और लक्ष्मीदास जमानत पर जेल से रिहा हुए तो दोनों बहनों ने फिर से उन के खिलाफ एक नया मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन लोगों को फिर से जेल जाना पड़ा. इंतकाम की आग में जलती कलावती और मलावती ने चारों के खिलाफ ऐसी जमीन तैयार की कि उन के दिन जेल की सलाखों के पीछे बीत रहे थे.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा बारबार जेल जाने से परेशान थे. समझ में नहीं आ रहा था कि कलावती और मलावती नाम की दोनों बहनों से कैसे छुटकारा पाया जाए. वे लोग खतरनाक योजना बनाने लगे. दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा,सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा उन का साथ देने को तैयार हो गए.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास और उस के सहयोगियों ने फैसला कर लिया कि जब तक दोनों बहनें जिंदा रहेंगी, तब तक उन्हें चैन की सांस नहीं लेने देंगी. उन दोनों को मौत के घाट उतारने में ही सब की भलाई थी. घटना से करीब 5 दिन पहले सब ने योजना बना ली.

वीरेंद्र सिंह और उस के साथियों ने कलावती और मलावती के खिलाफ खतरनाक षडयंत्र रच लिया था. उन्होंने उन की रेकी करनी शुरू कर दी.

रेकी करने के बाद उन लोगों ने दोनों बहनों की हत्या करने की रूपरेखा तैयार कर ली. योजना में तय हुआ कि दोनों बहनों की हत्या के बाद उन के सिर धड़ से अलग कर के अलगअलग जगहों पर फेंक दिया जाएगा ताकि पुलिस आसानी से लाशों की शिनाख्त न कर सके.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. बात 23 जून, 2018 के अपराह्न 2 बजे की थी. वीरेंद्र ने अपने सहयोगियों को दोनों बहनों पर नजर रखने के लिए लगा दिया था. दोपहर 2 बजे के करीब कलावती और मलावती घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकलीं.

दोनों ने अपने भतीजे मनोज से बता दिया था कि वे जलालगढ़ बाजार जा रही हैं. वहां से कुछ देर बाद लौट आएंगी. दोनों के घर से निकलते ही इस की सूचना किसी तरह वीरेंद्र सिंह तक पहुंच गई.

वीरेंद्र सिंह ने सहयोगियों को सतर्क कर दिया कि दोनों जलालगढ़ बाजार के लिए घर से निकल चुकी हैं. चक हाट से जलालगढ़ जाने वाले रास्ते में कुछ हिस्सा सुनसान और जंगल से घिरा हुआ था. कलावती और मलावती जब सुनसान रास्ते से जलालगढ़ बाजार की ओर जा रही थीं कि बीच रास्ते में वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा सहित 12 और सहयोगियों ने उन का रास्ता घेर लिया.

वे सभी दोनों बहनों को जबरन उठा कर बिलरिया घाट ले गए. वीरेंद्र और उस के साथियों ने मिल कर दोनों बहनों को तेज धार वाले चाकू से गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद दोनों के सिर धड़ से काट कर अलग कर दिए गए. फिर दोनों के कटे सिर घाट के किनारे जमीन खोद कर दबा दिए. उस के बाद बाकी शरीर को वहां से करीब 500 मीटर दूर ले जा कर झाडि़यों में फेंक कर अपनेअपने घरों को चले गए.

वीरेंद्र और उस के साथियों ने बड़ी चालाकी के साथ घटना को अंजाम दिया, लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा दिनों तक नहीं बच सकता.

एक न एक दिन कानून के लंबे हाथ अपराधी के गिरेहबान तक पहुंच ही जाता है. इसी तरह वे सब भी कानून के हत्थे चढ़ गए. 4 आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने फरार 12 आरोपियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक गिरफ्तार 16 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था. गिरफ्तार आरोपियों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. वीरेंद्र और उस के साथियों ने अगर सूझबूझ के साथ काम लिया होता तो उन्हें ऐसे दिन देखने को नहीं मिलते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दोस्त की खातिर : प्रेमिका को उतारा मौत के घाट – भाग 3

पता चला कि घटनास्थल से अपूर्वा के गले की सोने की चेन और 2 मोबाइल गायब थे. कमरे में काफी सामान बिखरा हुआ था, जिस से आभास होता था कि मामला लूटपाट में हुई हत्या का हो सकता है. लेकिन टेबल पर रखा पानी का गिलास और चाय का प्याला इस थ्यौरी को झुठला रहे थे. इस का मतलब कोई ऐसा व्यक्ति आया था, जिसे अपूर्वा जानती थी. वह कौन रहा होगा, यह तफ्तीश का विषय था.

घटनास्थल की पूरी छानबीन के बाद इंसपेक्टर अशोक माली और क्राइम ब्रांच की टीम अपनेअपने औफिस लौट आए. इंसपेक्टर माली अपूर्वा के पिता अनंत राव को साथ ले आए थे. उन की ओर से पुलिस ने अज्ञात के विरुद्ध हत्या और लूटपाट का केस दर्ज कर लिया. केस दर्ज होने के बाद स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अपनेअपने ढंग से जांच शुरू कर दी.

मामला चूंकि लातूर के पौश एरिया में हुई हत्या और संभ्रांत समाज से जुड़ा था, इसलिए अधिकारी चाहते थे कि हत्यारा जल्दी से जल्द गिरफ्त में आ जाए. क्योंकि ऐसा न होने पर धरने और विरोध प्रदर्शनों की आशंका थी. इस मामले पर एसपी राजेंद्र माने स्वयं नजर रखे हुए थे. उन्होंने इस केस की तफ्तीश के लिए स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच की 2 टीमें बना कर उन्हें अलगअलग काम सौंपे.

इंसपेक्टर अशोक माली ने अपूर्वा के पिता अनंतराव के संदेह जताने पर अपूर्वा, उस के फ्रैंड मौली घोपल और सार्थक के पिता बालासाहेब को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू की.

दूसरी ओर क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सुनील नागर गोजे अपने सहायक इंसपेक्टर सुनील रेजीतवाड़, नामदेव पाटिल और बालाजी जाघव के साथ अपूर्वा के नए पुराने दोस्तों और उन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर छानबीन कर रहे थे. इस कवायद में उन्हें सफलता भी मिली.

अमर शिंदे आया राडार पर

काल डिटेल्स से अपूर्वा का पुराना दोस्त अमर शिंदे पुलिस के राडार पर आ गया, उस से हत्या के एक घंटा पहले अपूर्वा से फोन पर बात की थी. इंसपेक्टर अशोक माली ने अमर शिंदे को गिरफ्तार कर लिया. इस के साथ ही मौली घोपल और सार्थक के पिता बाला साहेब को क्लीन चिट दे दी गई.

अमर शिंदे से जब क्राइम ब्रांच ने पूछताछ शुरू की तो अपूर्वा मर्डर केस परत दर परत खुलता गया. अमर ने अपूर्वा की हत्या की बात स्वीकार कर ली और यह भी बता दिया कि उसे अपूर्वा की मौत का कोई अफसोस नहीं है. अमर ने बताया कि उस ने अपूर्वा को अपने दोस्त सार्थक की आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए मौत के घाट उतारा था.

अमर श्ंिदे को अपूर्वा के लातूर आने का पता था. वह चूंकि पड़ोस में रहता था और अपूर्वा और उस के घर पर नजर रखे हुए था, इसलिए उसे पता था कि उस के पिता अनंतराव यादव जामखंडी स्थित उस के मैडिकल कालेज गए हैं. वह यह भी जानता था कि अपूर्वा की मां नियत समय पर रोज मंदिर जाती हैं. इसलिए उस ने वही समय चुना.

इस के लिए उस ने एक घंटे पहले अपूर्वा को फोन कर के कहा कि वह उस से मिलना चाहता है. अपूर्वा ने यह सोच कर अमर शिंदे को 12 बजे घर बुलाया कि तब तक मां आ जाएगी. लेकिन अमर शिंदे का इरादा कुछ और ही था, इसलिए वह 11 बजे ही आ गया. वह घर के आसपास खड़ा हो कर अपूर्वा की मां के जाने का इंतजार करने लगा.

साढ़े 11 बजे जब मोहिनी पूजा की थाली ले कर घर से बाहर चली गईं तो अमर ने अपूर्वा के घर की घंटी बजा दी. अमर को वक्त से पहले आया देख अपूर्वा की हालत कुछ ऐसी हो गई कि वह इनकार करने की स्थिति में नहीं रही. वैसे भी अमर उस का बचपन का साथी और पुराना दोस्त था. इसलिए उस ने अंदर बुला लिया.

अपूर्वा नहीं समझ पाई अमर के इरादे को

अपूर्वा ने अमर को सोफे पर बैठाया और पानी का गिलास ले कर आई. थोड़ी देर अपूर्वा और अमर सार्थक की आत्महत्या के मामले पर बात करते रहे. अपूर्वा ने उस की मौत पर अफसोस जताया.

इस बातचीत के बाद अपूर्वा चाय बनाने किचन में चली गई. इसी बीच अमर ने टेबल पर रखा टीवी का रिमोट उठा लिया और टीवी चालू कर दिया. तभी उस ने अपना बैग खोल कर उस में से चाकू निकाला और वहीं अपने पास रख लिया.

जब अपूर्वा चाय ले कर आई तब अमर चैनल बदलबदल कर देख रहा था. अपूर्वा ने टेबल पर चाय रखी तो अमर ने टीवी की आवाज तेज कर दी. साथ ही अपूर्वा के कुछ समझने से पहले ही उसे पकड़ कर चाकू से उस का गला रेत दिया.

अपूर्वा चीख कर फर्श पर गिर गई तो उस ने टीवी की आवाज और तेज कर दी और अपूर्वा के शरीर पर दनादन चाकू के कई वार किए. अपूर्वा चीखी चिल्लाई लेकिन उस की आवाज कमरे में चल रहे टीवी की तेज आवाज में दब कर रह गई.

अपूर्वा की हत्या के बाद अमर ने टीवी की आवाज कम की और उस के गले की चेन और उस के 2 स्मार्ट फोन अपने बैग में डाल लिए. अलमारी का सामान उस ने बाहर निकाल कर डाल दिया ताकि मामला लूटपाट का लगे.

अपना काम कर के अमर शिंदे बाहर वाले दरवाजे की कुंडी लगा कर वहां से निकल गया. जाते वक्त उस ने नफरत से कहा, ‘‘तू सिर्फ सार्थक की हो सकती थी. तू तो नहीं मानी, पर मैं ने तुझे उस के पास भेज दिया. हिम्मत हो तो ऊपर जा कर मिलाना उस से नजरें.’’

अमर शिंदे से विस्तृत पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच ने उसे एमआईडीसी थाने की पुलिस को सौंप दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने इस केस में भादंवि की धारा 201 और 34 और जोड़ दी. उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया गया. यह मामला अपने आप में अनूठा इसलिए था, क्योंकि दोस्त ने दोस्त द्वारा प्रेमिका के लिए आत्महत्या करने से कुपित हो कर उस की एकतरफा प्रेम वाली प्रेमिका को मौत के घाट उतारा था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित