इश्क के दरिया में पति को बहाया – भाग 1

स्कूल में लंच का टाइम हुआ तो बबीता अपना खाने का टिफिन ले कर स्टोर रूम में आ गई. वहां बंटी एक कुरसी पर मुंह लटकाए बैठा था. उस के चेहरे पर उदासी थी.

बबीता ने उसे हैरानी से देखा, फिर एक कुरसी पर बैठ कर उस ने अपना टिफिन बौक्स खोलते हुए बंटी को टोका, ”आज खाना नहीं खाना है क्या?’’

”मैं खाना नहीं लाया,’’ बंटी गहरी सांस भर कर बोला, ”तुम खाना खा लो बबीता.’’

”क्या आज फिर बीवी से झगड़ा हुआ है तुम्हारा?’’ बबीता ने टिफिन का ढक्कन खोलते हुए पूछा.

”हां.’’ बंटी ने सिर हिलाया, ”आज केवल इस बात पर झगड़ बैठी कि मैं ने चाय में चीनी ज्यादा होने की शिकायत कर दी थी. बात बहुत छोटी थी बबीता, लेकिन लगता है वह मुझ से जलीभुनी बैठी रहती है. उसे कोई पौइंट मिला और लगी झगडऩे. मेरी जिंदगी तो नरक बना कर रख दी है उस ने. मैं आज गुस्से में भूखा ही चला आया हूं.’’

बबीता अपनी जगह से उठी और बंटी की कुरसी के पास आ गई. उस ने बंटी के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ”छोड़ो घर की बात, आओ मेरे साथ खाना खा लो.’’

”नहीं बबीता, अगर मैं ने तुम्हारे टिफिन से खाया तो तुम्हारा पति राकेश भूखा रह जाएगा. तुम राकेश को बुला लाओ और खाना खा लो. मैं अपने लिए कैंटीन से कुछ ले आता हूं.’’ बंटी कुरसी से उठने लगा.

बबीता ने उस की कलाई पकड़ ली, ”राकेश आज ड्यूटी पर नहीं आया है. उसे बुखार था, वैसे भी यदि वह आता तो मैं उसे अपने टिफिन में मुंह नहीं मारने देती.’’

बंटी ने कनखियों से बबीता की ओर देखा, ”ऐसा क्यों बोल रही हो बबीता, वो तुम्हारा पति है. उस का तुम पर और इस खाने पर पूरापूरा हक है.’’

”वह मेरा नाम का पति है बंटी, मुझे अब उस से नफरत होने लगी है.’’

”ऐसा क्यों, क्या मुझे ले कर वह अब भी तुम पर शक करता है?’’

”हां. उस का कहना है कि मैं उसे छोड़ कर तुम्हें चाहने लगी हूं. तुम्हारे साथ मेरा उठना बैठना उसे पसंद नहीं है.’’ बबीता ने कहतेकहते मुंह बिगाड़ा, ”छोड़ो ये बातें. तुम हाथ धो कर आओ. मैं ने आज तुम्हारी पसंद की आलूमटर की सब्जी बनाई है.’’

बंटी के मुंह में पानी आ गया. वह तुरंत बाहर गया और हाथ धो कर आ गया. बबीता के सामने वह बैठ गया तो बबीता ने टिफिन उस के सामने कर दिया. दोनों एक ही टिफिन में खाना खाने लगे.

बंटी 7-8 साल से फरीदाबाद के स्कूल में साफसफाई का काम कर रहा था. 4 साल पहले परेशान हालत में बबीता वहां काम की तलाश में आई तो बंटी ने उसे चपरासी की नौकरी पर रखवा दिया था. पहली ही नजर में बबीता उसे भा गई थी.

बंटी और बबीता में कैसे बनी नजदीकियां

27 साल की गदराए बदन की बबीता का रूपसौंदर्य किसी भी पुरुष को मोहित कर सकता था. शादीशुदा बंटी 2 बेटियों का बाप था, फिर भी बबीता को देख कर उस का मन उसे अपना बनाने के लिए डोल गया था. बबीता को स्कूल में नौकरी दिलवाने के पीछे उस का यही मकसद था कि बबीता उस का अहसान मान कर उस के करीब आ जाए. हुआ भी यही था. बबीता उस के आसपास ही मंडराने लगी थी. वह लंच बंटी के साथ ही बैठ कर करती थी.

यह सिलसिला लंबे समय तक चला, क्योंकि बबीता की परेशानी को भांप कर बंटी ने उस के पति राकेश को भी स्कूल में नौकरी पर लगवा दिया था. राकेश स्कूल बस में कंडक्टरी करने लगा था, इसलिए लंच में अब वह अपनी पत्नी बबीता के साथ लंच करने आ जाता था. बंटी को यह देख कर कुढऩ होती थी, लेकिन वह कर ही क्या सकता था. हां, उस ने यह जरूर महसूस किया था कि बबीता लंच टाइम में अपने पति राकेश की मौजूदगी पसंद नहीं करती थी.

जब कभी राकेश स्कूल के काम से लंच टाइम में बाहर रहता था तो बबीता बंटी को पास बिठा कर अपने ही टिफिन में खाना खिलाती थी. तब वह बहुत खुश नजर आती थी. उस दिन भी राकेश स्कूल में नहीं था. उसे बुखार था, इसलिए वह स्कूल में आया ही नहीं था. बबीता टिफिन में खाना बंटी के लिए बना कर लाई थी, जिस में बंटी के पसंद की आलूमटर की सब्जी थी.

”वाह बबीता! क्या सब्जी बनाई है तुम ने, जी चाहता है तुम रोज मेरे लिए खाना बना कर लाओ और प्यार से मुझे खिलाओ तो मेरी नीरस हो रही जिंदगी में बहार आ जाए.’’ बंटी ने तारीफ करते हुए कहा.

बबीता मुसकरा पड़ी, ”मैं तो तुम्हारी नीरस जिंदगी में सात रंग बिखरने को तैयार हूं बंटी, लेकिन उधर तुम्हारी पत्नी और इधर मेरा पति राकेश. दोनों के रहते हुए यह ख्वाब कभी पूरे नहीं हो सकेंगे.’’

”ख्वाब जरूर पूरे होंगे बबीता,’’ बंटी दूर शून्य में देखता हुआ बोला, ”यदि तुम मेरे साथ हो तो मैं यह ख्वाब भी पूरा कर के दिखाऊंगा.’’

बबीता उसे हैरानी से देख कर मन ही मन अंदाजा लगा रही थी कि अब बंटी उसे सचमुच दिल की गहराई से प्यार करने लगा है. उसे राकेश की दिल के अंदर जगह देने में कोई नुकसान नहीं होगा.

3 अगस्त, 2023 को बबीता फरीदाबाद (हरियाणा) के थाना बीपीटीपी में पहुंची तो उस के चेहरे पर परेशानी के अनेक भाव थे. एसएचओ उस वक्त चायनाश्ता कर के अखबार पढ़ रहे थे.

उन्होंने बबीता की उड़ी हुई रंगत देखी तो अखबार मेज पर रख कर पूछा, ”क्या बात है, तुम बहुत घबराई हुई और परेशान दिखाई दे रही हो.’’

”साहब मेरे पति…’’ कहतेकहते बबीता रोने लगी.

”क्या हुआ तुम्हारे पति को?’’

”वह कल शाम को बाजार गए थे, तब से अब तक घर नहीं आए हैं. मैं ने उन की हर जगह खोजखबर की, वह कहीं भी नहीं मिले हैं.’’ रोते हुए बबीता ने बताया.

”तुम्हारे पति यहां पर कहां रहते हैं?’’

”हम खेड़ीकलां गांव के हैं साहब.’’

”तुम्हारे पति कहीं नौकरी करते होंगे, वहां जा कर पता लगाया तुम ने?’’

”साहब, मैं और मेरे पति राकेश फरीदाबाद के एक स्कूल में नौकरी करते हैं. हम गांव से ही फरीदाबाद अपने काम पर आतेजाते हैं. कल शाम को मैं खाना बना रही थी, तब पति मुझ से बोले कि एक जरूरी काम से बाजार जाना पड़ रहा है. खाना बनाओगी, तब तक लौट आऊंगा. मैं ने खाना बनाया, बच्चों को खिलाया और पति की राह देखने घर के आंगन में बैठ गई. रात गहराने लगी तो मैं ने उन्हें फोन लगाया, लेकिन उन का फोन स्विच औफ आ रहा था.

”10 बजे मेरे सब्र का बांध टूट गया. मैं अपने पासपड़ोस वालों को साथ ले कर बाजार गई. उन्हें हर संभावित जगहों पर तलाश किया, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. मैं घर लौट आई. रात भर सो नहीं पाई. सोचा रात में वह कहीं रुक गए होंगे, सुबह आ जाएंगे, लेकिन अब दिन के 9 बजने को आए हैं, वह अभी तक घर नहीं लौटे हैं.’’

”तुम अपने पति की गुमशुदगी लिखवा दो. पति का फोटो भी दे दो. हम तुम्हारे पति की तलाश करने की हरसंभव कोशिश करेंगे.’’ एसएचओ ने कहा.

एसएचओ ने बबीता को एक सिपाही के साथ गुमशुदगी दर्ज करवाने के लिए भेज दिया. पुलिस ने 35 वर्षीय राकेश कुमार की गुमशुदगी दर्ज कर ली गई. बबीता पति का फोटो साथ लाई थी. उसे जमा कर लिया गया.

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 2

काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने पूछताछ के लिए वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आई. इसी बीच मुखबिर ने एसडीपीओ कृष्णकुमार राय को एक ऐसी चौंकाने वाली बात बताई, जिसे सुन कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

मुखबिर ने बताया कि कलावती और मलावती की हत्या गांव के ही कई लोगों ने मिल कर की थी. उन में वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के अलावा बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा भी शामिल थे. इस से पुलिस को पुख्ता जानकारी मिलगई कि दोहरे हत्याकांड में कई लोग शामिल थे. हिरासत में लिए गए वीरेंद्र और लक्ष्मीदास से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही दोनों बहनों को मौत के घाट उतारा था.

‘‘लेकिन क्यों? ऐसा क्या किया था दोनों बहनों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो इतनी बेरहमी से कत्ल कर दिया?’’ एसडीपीओ कृष्णकुमार राय ने सवाल किया.

‘‘साहब, मैं अकेला नहीं मेरे साथ लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र भी थे. क्या करते साहब, दोनों बहनों ने हमारा जीना मुश्किल कर दिया था.’’

इस के बाद वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास ने पूरी घटना विस्तार से बताई. दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने गांव चक हाट से बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. चारों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने श्मशान घाट के तालाब के पास से जमीन में दबाए हुए दोनों महिलाओं के सिर भी बरामद कर लिए.

उसी दिन शाम को आननफानन में पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में प्रैस कौन्फ्रैंस किया गया. 7 दिनों से रहस्य बनी सोशल एक्टिविस्ट कलावती और मलावती हत्याकांड की गुत्थी सुलझा चुकी पुलिस जोश से लबरेज थी.

प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी विशाल शर्मा ने बताया कि कलावती और मलावती की हत्या उसी गांव के रहने वाले वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मी दास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा ने मिल कर की थी. इस मामले में गांव के 12 लोग और शामिल थे, जिन्होंने घटना को अंजाम देने में आरोपियों की मदद की थी. जिन में 4 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए.

इस के बाद पुलिस ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. आरोपियों के बयान के आधार पर पुलिस ने 16 लोगों वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा, सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा के नाम पहली जुलाई के रोजनामचे पर दर्ज कर लिए. अभियुक्तों के बयान और पुलिस की जांच के बाद कहानी कुछ यूं सामने आई.

बिहार के पूर्णिया जिले के जलालगढ़ थानाक्षेत्र में एक गांव है— चक हाट. जयदेव ततमा इसी गांव के मूल निवासी थे. उन के 3 बच्चे थे, जिन में एक बेटे अशोक ततमा के अलावा 2 बेटियां कलावती ततमा और मलावती ततमा थीं. अशोक ततमा दोनों बेटियों से बड़ा था.

जयदेव ततमा का नाम चक हाट पंचायत में काफी मशहूर था. वह इलाके में बड़े किसान के रूप में जाने जाते थे. उन्होंने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाई. उन की दिली इच्छा थी कि बच्चे पढ़लिख कर योग्य बन जाएं.

कलावती और मलावती बड़े भाई अशोक से बुद्धि और कलाकौशल में काफी तेज थीं. दोनों बहनें पढ़ाई के अलावा सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थीं. उन का सपना था कि बड़े हो कर समाज की सेवा करें.

पिता की मदद से कलावती और मलावती ने समाजसेवा की जमीन पर अपने पांव पसारने शुरू कर दिए. गरीबों और मजलूमों की सेवा कर के उन्हें बहुत सुकून मिलता था. बेटियों की सेवा भाव से पिता जयदेव ततमा खुश थे. धीरेधीरे वे गांव इलाके में मशहूर हो गईं.

बचपन को पीछे छोड़ कर दोनों बहनें जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थीं. पिता को बेटियों की शादी की चिंता थी. थोड़े प्रयास और भागदौड़ से जयदेव ततमा को दोनों बेटियों के लिए अच्छे वर और घर मिल गए.

समय से दोनों बेटियों के हाथ पीले कर के वे अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए. इस के बाद ब्याहने के लिए एक बेटा अशोक ततमा शेष रह गया था. बाद में उन्होंने उस की भी शादी कर दी. अशोक और उस की पत्नी जयदेव की सेवा पूरी जिम्मेदारी से कर रहे थे.

जयदेव ततमा के जीवन की गाड़ी बड़े मजे से चल रही थी. न जाने उन की खुशहाल जिंदगी में किस की नजर लगी कि एक ही पल में सब कुछ मटियामेट हो गया. कलावती और मलावती के पतियों ने उन्हें हमेशा के लिए त्याग दिया. वे वापस आ कर मायके में रहने लगीं. यह बात जयदेव से सहन नहीं हुई और वे असमय काल के गाल में समा गए.

अचानक हुई पिता की मौत से घर का सारा खेल बिगड़ गया. दोनों बहनों की जिम्मेदारी भाई अशोक के कंधों पर आ गई थी. लेकिन दोनों स्वाभिमानी बहनें भाई पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं. वे खुद ही कुछ कर के अपना जीवनयापन करना चाहती थीं.

एक बात सोचसोच कर अशोक काफी परेशान रहता था कि उस की बहनों ने ससुराल में आखिर ऐसा क्या किया कि उन के पतियों ने उन्हें त्याग दिया. जबकि वह बहनों के स्वभाव से भलीभांति परिचित था. फिर उन के बीच ऐसी क्या बात हुई, यही जानने के लिए अशोक ने दोनों बहनों से बात की.

बहनों ने ईमानदारी से भाई को सब कुछ सचसच बता दिया. दोनों बहनों के सोशल एक्टिविस्ट होने वाली बात भाई अशोक को पहले से पता थी. अपनीअपनी ससुराल में रहते हुए कलावती और मलावती गृहस्थी संभालने के बावजूद दिल से समाजसेवा का भाव नहीं निकाल सकी थीं.

ससुराल में कुछ दिनों तक तो दोनों बहनें घूंघट में रहीं. लेकिन जल्दी ही घूंघट के पीछे उन का दम घुटने लगा. ये बहनें स्वच्छंद और स्वतंत्र विचारों वाली, न्याय के लिए संघर्ष करने वाली जुझारू महिलाएं थीं. वे जिस पेशे से जुड़ी हुई थीं, उस के लिए उन का घर की दहलीज से बाहर निकलना बहुत जरूरी था.

जब कलावती और मलावती घर से बाहर होती थीं तो उन्हें घर वापस लौटने में काफी देर हो जाया करती थी. दोनों के पतियों को उन का देर तक घर से बाहर रहना कतई पसंद नहीं था, उन का कामकाज भी. पति उन्हें समझाते थे कि वे समाजसेवा का अपना काम छोड़ दें और घर में रह कर अपनी गृहस्थी संभालें. समाजसेवा करने के लिए दुनिया में बहुत लोग हैं.

पतियों के साथ ही सासससुर भी उन के काम से खुश नहीं थे. वे उन के काम की तारीफ करने या उन की मदद करने के बजाय उन का विरोध करते थे. धीरेधीरे ससुराल वाले उन के कार्यों का विरोध करने लगे. उन की सोच में टकराव पैदा होता गया. कलावती और मलावती समाजसेवा के काम से पीछे हटने को तैयार नहीं थीं.

पतियों ने इस बात को ले कर ससुर जयदेव ततमा और साले अशोक से भी कई बार शिकायतें कीं. इस पर अशोक और उस के पिता ने कलावती और मलावती को काफी समझाया, पर अपनी जिद के आगे दोनों बहनों ने उन की बात भी नहीं मानी.

प्रेमी के लिए कातिल बनी रक्षा – भाग 3

रक्षा और सत्येंद्र यादव के प्यार की चर्चा रामप्रसाद के कानों में पड़ी तो वह हैरान रह गए. कालेज से लौटने पर उन्होंने बेटी से सत्येंद्र के बारे में पूछा तो उस ने बिना किसी झिझक के सत्येंद्र से चल रहे अपने प्यार की बात स्वीकार कर ली. साथ ही उस ने यह भी कहा कि वे दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते हैं और जल्दी ही शादी कर लेंगे

रक्षा की बात सुन कर रामप्रसाद हक्केबक्के रह गए. उन्होंने उसी दिन अपने छोटे भाई राजकुमार के घर जा कर रक्षा और सत्येंद्र के बारे में बता कर कहा कि रक्षा कह रही है कि वह सत्येंद्र से शादी करेगी. अगर उस ने ऐसा किया तो घरपरिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.

तब राजकुमार और सुनीता ने गैरजाति के लड़के से शादी का विरोध करते हुए कहा, ‘‘अब घरपरिवार की इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है कि जल्द से जल्द रक्षा की शादी कर दी जाए.’’

‘‘लेकिन मेरे पास अभी इतने पैसे नहीं हैं कि मैं इतनी जल्दी उस की शादी कर सकूं.’’ रामप्रसाद ने अपनी आर्थिक तंगी बता कर हाथ खड़े किए तो सुनीता ने लखनऊ के एक लड़के का पता दे कर कहा, ‘‘आप वहां जा कर शादी तय कीजिए. शादी तो करनी ही है. हम लोग हर तरह से इस शादी में आप की मदद करेंगे.’’

रामप्रसाद लखनऊ पहुंचे और सुनीता द्वारा बताए लड़के को देखा. लड़का भी ठीक था और घरपरिवार भी. इसलिए शादी तय कर दी. चौथे दिन तिलक चढ़ा कर विवाह की तारीख भी तय कर दी गई. जब इस बात की जानकारी रक्षा को हुई तो वह बौखला उठी. उस ने रामप्रसाद से एक बार फिर सत्येंद्र से शादी की जिद की. लेकिन रामप्रसाद ने गैरजाति के लड़के से उस का विवाह करने से साफ मना कर दिया.

रक्षा सत्येंद्र के वियोग में छटपटा रही थी. उस ने उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, इसलिए किसी भी सूरत में वह उस से शादी करना चाहती थी. जब कोई राह नजर नहीं आई तो उस ने सत्येंद्र के साथ भाग कर शादी करने की योजना बनाई. लेकिन भाग कर किसी अनजान शहर में रहनेखाने के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. इतने रुपए न सत्येंद्र के पास थे, न रक्षा के पास. रुपए कहां से आएं, दोनों इस बात पर विचार करने लगे.

अचानक रक्षा के दिमाग में आया कि उस के चाचा राजकुमार गुप्ता के पास बहुत पैसा है. वह हमेशा घर पर 20-25 लाख रुपए रखे रहते हैं. अगर किसी तरह वे रुपए उस के हाथ लग जाएं तो वह आराम से सत्येंद्र के साथ भाग कर अपनी अलग दुनिया बसा सकती है. रक्षा ने जब इस बात पर सत्येंद्र से सुझाव मांगा तो उस ने भी हामी भर दी. इस के बाद दोनों किसी भी तरह राजकुमार के घर से रुपए उड़ाने की कोशिश करने लगे.

जैसेजैसे विवाह की तारीख (24 फरवरी, 2014) नजदीक आती जा रही थी, रक्षा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह किसी भी हाल में सत्येंद्र से जुदा नहीं होना चाहती थी. यही वजह थी कि सत्येंद्र को पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार थी.

उस ने चाचा के घर से लाखों रुपए उड़ाने की जो योजना बना रखी थी, उस के लिए मौका नहीं मिल रहा था. वह चाहती थी कि किसी तरह का खूनखराबा भी न हो और चाचा के घर रखे रुपए भी मिल जाएं. इस के लिए वह लगातार चाचा के घर पर नजर रख रही थी.

राजकुमार अपने एकलौते बेटे हिमांशु की शादी में लगे थे. शादी में शामिल होने के लिए उन की बेटी शिवांगी अपने डेढ़ वर्षीय बेटे शुभम के साथ मायके आई तो मौका देख कर रक्षा ने उस के बेटे का सत्येंद्र द्वारा अपहरण करा दिया और 15 लाख रुपए की फिरौती भी मांगी. लेकिन जब राजकुमार पुलिस के पास पहुंच गए तो डर कर रक्षा ने सत्येंद्र को फोन कर के बच्चे को वापस छोड़ने को कहा. अपहरण के लगभग डेढ़ घंटे बाद सत्येंद्र मोटरसाइकिल से शुभम को गली में छोड़ गया.

इस तरह रक्षा और सत्येंद्र की यह योजना असफल हो गई. इस के बाद रक्षा के इशारे पर सत्येंद्र ने राजकुमार को फोन कर के हिमांशु की हत्या करने की धमकी दे कर 15 लाख रुपए मांगे. लेकिन इस में भी सफलता नहीं मिली. हिमांशु की शादी हो जाने के बाद राजकुमार रक्षा की शादी की तैयारी करने लगे. रक्षा की फोन पर सत्येंद्र से बात होती ही रहती थी. वह उस से जल्दी कुछ करने को कहती रहती थी, क्योंकि वह उस से किसी भी हाल में जुदा नहीं होना चाहती थी.

जैसेजैसे दिन गुजर रहे थे, दोनों की पीड़ा और तनाव बढ़ता जा रहा था. इस स्थिति में जब रक्षा और सत्येंद्र को लगा कि वे राजकुमार के घर रखी नकदी नहीं उड़ा सकते तो उन्होंने लूट की योजना बना डाली.

उसी योजना के मुताबिक रक्षा उस दिन अपना लैपटौप ले कर दोपहर एक बजे अपने चाचा राजकुमार के घर जा पहुंची. उस ने अंदर वाले कमरे में हिमांशु की पत्नी रश्मि को उस के विवाह की वीडियो दिखाने के बहाने उलझा लिया तो सत्येंद्र ने मैसेज भेज कर उसे बता दिया कि वह घर के बाहर आ गया है.

मैसेज देख कर रक्षा ने लैपटौप की आवाज तेज कर दी. जब काम हो जाने का सत्येंद्र का मैसेज आया तो रक्षा 5 बजे के आसपास अपने घर जाने के लिए चाची वाले कमरे से निकली. वहां उन की लाश देख कर वह चीख पड़ी. उस पर किसी को शक न हो, इसलिए उस ने दौड़दौड़ कर यह बात सभी को बताई. रक्षा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी सत्येंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में सत्येंद्र ने बताया कि उस ने यह लूट और हत्या अपने दोस्त विवेक और मनोज के साथ मिल कर की थी. पुलिस ने तुरंत विवेक और मनोज के घर छापा मारा. विवेक तो पुलिस के हाथ लग गया, लेकिन मनोज फरार होने में कामयाब हो गया था.

पूछताछ में रक्षा के प्रेमी सत्येंद्र यादव ने पुलिस को बताया कि वह कोयलानगर के शिवपुरम के रहने वाले अमर सिंह यादव का बेटा है. उस के पिता पीएसी में सिपाही हैं, जो इस समय इलाहाबाद में तैनात हैं. उस का बड़ा भाई जितेंद्र आर्डिनेंस फैक्ट्री में नौकरी करता है. जबकि वह बीएससी कर के नौकरी की तलाश में था. उस ने पुलिस भरती की परीक्षा भी दे रखी थी. उसे उसी परीक्षा के परिणाम का इंतजार था. लेकिन उस के पहले ही उस ने अपनी प्रेमिका रक्षा के लिए अपना भविष्य ही नहीं, जिंदगी भी दांव पर लगा दी.

सत्येंद्र ने पुलिस को बताया था कि वह सिर्फ लूट के लिए आया था. इस के लिए उस ने पहले विवेक और मनोज को भेजा था. दोनों ने अंदर जाते ही धक्का मार कर सुनीता को गिरा दिया और उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, जिस से वह चिल्ला न सकें. उन के हाथों को बांध कर उन्होंने उन्हें वैसे ही छोड़ दिया. लेकिन उन्होंने उसे देख लिया तो अपने बचाव के लिए उसे सुनीता की हत्या करनी पड़ी. क्योंकि वह उसे पहचानती थीं, उस ने उन के मुंह पर तकिया रख कर उन्हें मार दिया था.

इंटरमीडिएट में पढ़ रहा विवेक भी कोयलानगर का रहने वाला था. वह सत्येंद्र का गहरा दोस्त था. सत्येंद्र के कहने पर वह पैसों के लालच में उस के साथ लूट की इस योजना में शामिल हो गया था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सत्येंद्र और विवेक की निशानदेही पर 10 हजार नकद, करीब 10 लाख के गहने और सुनीता का मोबाइल फोन बरामद कर लिया. माल बरामद होने के बाद पुलिस ने 7 जनवरी को दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक मनोज पकड़ा नहीं जा सका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दोस्त की खातिर : प्रेमिका को उतारा मौत के घाट – भाग 2

सार्थक के सपनों में लगी सेंध

सार्थक ने अपूर्वा को ले कर न जाने क्या सपने देख रखे थे. अपूर्वा की बातें सुन कर उस का दिल टूट गया. वह अच्छी तरह समझ गया था कि वह अपूर्वा के लिए नहीं बना है.

उस ने लौट कर ये बातें अमर शिंदे को बताईं तो शिंदे ने उसे समझाया, ‘‘तू भूल क्यों नहीं जाता अपूर्वा को. ढूंढने निकलेगा तो सैकड़ों लड़कियां मिलेंगी.’’ लेकिन सार्थक ने दो शब्दों में उस की बात पर पानी फेर दिया, ‘‘उन में अपूर्वा तो नहीं होगी न?’’

सार्थक भावुक लड़का था. अपूर्वा की बात उस ने दिल से लगा ली. उस ने अपनी फेसबुक वाल पर अमर को संबोधित कर के लिखा, ‘‘यार, अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी मौत पर कोई रोने वाला भी नहीं होगा.’’

इस के जवाब में अमर शिंदे ने लिखा, ‘‘अगर तुझे कुछ हुआ तो मैं सारी दुनिया को रुलाऊंगा.’’

उस वक्त अमर को इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि उस का दोस्त सार्थक दिल की लगी को दिमाग पर हावी कर लेगा. अपूर्वा ने भी नहीं सोचा था कि सार्थक उस की बातों को इतनी गंभीरता से लेगा. आखिर हुआ वही जो किसी ने नहीं सोचा था. 23 जुलाई, 2018 को सार्थक ने आत्महत्या कर ली.

मामला थाना ढोकी क्षेत्र का था. सार्थक के पिता बालासाहेब ने थाना ढोकी में अपने बेटे सार्थक को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए अपूर्वा और मौली घोपल के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. पुलिस ने भादंवि की धारा 306 के अंतर्गत केस दर्ज कर के अपूर्वा और मौली घोपल को 24 जुलाई, 2018 को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन जल्दी ही दोनों को जमानत मिल गई.

सार्थक के आत्महत्या करने से उस के परिवार को तो गहरा धक्का लगा ही, अमर शिंदे को भी बहुत दुख हुआ. सार्थक उस का जिगरी दोस्त था. अपूर्वा ने उस के दोस्त की भावनाओं से खिलवाड़ किया था, इसलिए अमर को अपूर्वा की शक्ल से नफरत हो गई.

सार्थक की मौत और अपूर्वा के जेल जाने के बाद इस बात को खत्म हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

अक्तूबर, 2018 के दूसरे हफ्ते की बात है. फर्स्ट ईयर के पहले एग्जाम के बाद छुट्टी मिली तो अपूर्वा अपने घर लातूर आई. वह चूंकि अनंतराव यादव और मोहिनी यादव की एकलौती संतान थी, इसलिए उस के आने पर घर में बहार सी आई जाती थी.

अपूर्वा की जिंदगी का आखिरी अध्याय

19 अक्तूबर, 2018 को दशहरा था. उस से पहले नवरात्रि के व्रत चल रहे थे. अपूर्वा की मां मोहिनी भी नवरात्रि के व्रत रख रही थीं. 16 अक्तूबर को मोहिनी को मंदिर जाता था. वह साढ़े 11 बजे मंदिर चली गईं. उस समय अपूर्वा घर में ही थी. लौटने में आधा घंटा लग गया. मोहिनी 12 बजे जब विशालनगर के संदीप अपार्टमेंट स्थित अपने घर पहुंची तो घर के बाहर कुंडी लगी देख चौंकी. वजह अपूर्वा घर में थी, अगर उसे कहीं बाहर जाना होता तो वह इस तरह बाहर से कुंडी लगा कर कभी नहीं जाती.

बात परेशानी की थी. मोहिनी कुंडी खोल कर जल्दी से अंदर गईं. लेकिन वहां का हाल देख उन का रोमरोम कांप उठा. अपूर्वा हौल में लहूलुहान पड़ी थी. बेटी की हालत देख मोहिनी के हाथों से पूजा की थाली छूट कर गिर गई. वह रोतेचिल्लाते हुए बाहर की ओर भागीं. पासपड़ोस के लोगों ने उन की आवाज सुनी तो बाहर निकल आए.

कुछ लोगों ने अंदर जा कर देखा तो उन के भी होश उड़ गए. अपूर्वा के पिता अनंत राव उस दिन अपूर्वा की फीस भरने उस के जामखंडी, कर्नाटक स्थित मैडिकल कालेज गए थे. किसी ने फोन कर के उन्हें भी सूचना दे दी और पुलिस को भी.

अपूर्वा के साथ जो भी हुआ था, उसे हुए ज्यादा देर नहीं हुई थी. कुछ लोगों ने अपूर्वा की मां मोहिनी को संभाला और कुछ लोग खून से लथपथ अपूर्वा को उठा कर पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल ले गए. लेकिन मामला चूंकि गंभीर अपराध से जुड़ा था, इसलिए अस्पताल ने अपूर्वा को सरकारी अस्पताल भेज दिया. सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने देखने के बाद अपूर्वा को मृत घोषित कर दिया.

अस्पताल से इस मामले की सूचना थाना  एमआईडीसी को दी गई. सूचना मिलते ही सीनियर इंसपेक्टर अशोक माली अपनी पुलिस टीम के साथ अस्पताल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों और फोरैंसिक टीम को भी सूचित कर दिया था.

अस्पताल जा कर इंसपेक्टर अशोक माली ने डाक्टरों ने बयान लिए और अपूर्वा की डैडबौडी का परीक्षण किया. अपूर्वा के गले पेट और शरीर के अन्य कई हिस्सों पर गहरे घाव थे. निस्संदेह उस पर किसी तेज धार वाले हथियार से वार किए गए थे. ऐसा लगता था जैसे उस पर वार करने वाले को उस से गहरी नफरत रही हो.

जो लोग पूर्वा को अस्पताल ले कर आए थे, पुलिस ने उन से भी पूछताछ की. इस के बाद उस के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. इस के बाद इंसपेक्टर माली अपनी टीम के साथ अपूर्वा के संदीप अपार्टमेंट स्थित घर (घटनास्थल) पर पहुंचे. तब तक अपूर्वा के पिता अनंत राव यादव भी कर्नाटक जामखंडी से लौट आए थे.

पुलिस के लिए आसान नहीं था, हकीकत को समझना

पुलिस टीम घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि एसपी राजेंद्र माने और क्राइम ब्रांच के डीसीपी काका साहेब डोले भी आ गए. महाराष्ट्र में चूंकि किसी भी बडे़ अपराध में क्राइम ब्रांच समानांतर जांच करती है, इसलिए क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सुनील नागर गोजे भी अपनी टीम के साथ मौकाएवारदात पर आ गए. फोरैंसिक टीम भी आ गई थी.

सभी ने अपनेअपने हिसाब घटनास्थल का मुआयना किया. साथ ही पासपड़ोस के लोगों से भी पूछताछ की. अपूर्वा की मां मोहिनी और पिता अनंतराव यादव से भी पूछताछ की गई.

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 1

27 जून, 2018 की उमस और गरमी भरी सुबह थी. इंसान तो इंसान, जानवरों तक की  जान हलकान थी. बिहार के पूर्णिया जिले के थाना जलालगढ़ क्षेत्र के रामा और विनय नाम के दोस्तों ने तय किया कि वे बिलरिया ताल जा कर डुबकी लगाएंगे. वैसे भी वे दोनों रोजाना अपने मवेशियों को बिलरिया ताल के नजदीक चराने ले जाते थे.

रामा और विनय जलालगढ़ पंचायत के गांव चकहाट के रहने वाले थे. उन के गांव से बिलरिया ताल 2 किलोमीटर दूर था. ताल के आसपास घास का काफी बड़ा मैदान था. चरने के बाद मवेशी गरमी से राहत पाने के लिए ताल में घुस जाते थे. फिर वह 2-3 घंटे बाद ही ताल से बाहर निकलते थे. उस दिन जब उन के मवेशी ताल में घुसे तो दोनों दोस्त यह सोच कर घर की ओर लौटने लगे थे कि 2-3 घंटे बाद आ कर मवेशियों को ले जाएंगे.

रामा और विनय ताल से घर की ओर आगे बढ़े ही थे कि तभी रामा की नजर ताल के किनारे के झुरमुट की ओर चली गई. झुरमुट के पास 2 लाशें पड़ी थीं. उत्सुकतावश वे लाशों के पास पहुंचे तो दोनों के हाथपांव फूल गए. दोनों लाशों के सिर कटे हुए थे और वे लाशें महिलाओं की थीं. यह देख कर दोनों चिल्लाते हुए गांव की तरफ भागे. गांव में पहुंच कर उन्होंने लोगों को बिलरिया ताल के पास 2 लाशें पड़ी की बात बताई.

उन की बातें सुन कर गांव वाले लाशों को देखने के लिए बिलरिया ताल के पास पहुंचे. जरा सी देर में वहां गांव वालों का भारी मजमा जुट गया. यह खबर गांव के रहने वाले अशोक ततमा के बेटे मनोज कुमार ततमा को हुई तो वह भी दौड़ादौड़ा बिलरिया ताल जा पहुंचा.

दरअसल, 4 दिनों से उस की 2 सगी बुआ कलावती और मलावती रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थीं. वे 23 जून की दोपहर में घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकली थीं. 4 दिन बीत जाने के बाद भी वे दोनों घर नहीं लौटीं तो घर वालों को उन्हें ले कर चिंता हुई. उन का कहीं पता नहीं चला तो 24 जून को मनोज ने जलालगढ़ थाने में दोनों की गुमशुदगी की सूचना दे दी थी.

बहरहाल, यही सोच कर मनोज मौके पर जा पहुंचा. वह भीड़ को चीरता हुआ झाडि़यों के पास पहुंचा तो कपड़ों से ही पहचान गया कि वे लाशें उस की दोनों बुआ की हैं. लाशों को देख कर मनोज दहाड़ मार कर रोने लगा था.

इसी बीच गांव का चौकीदार देव ततमा भी वहां पहुंच गया था. उस ने जलालगढ़ थाने के एसओ मोहम्मद गुलाम शहबाज आलम को फोन से घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसओ आलम मयफोर्स आननफानन में बिलरिया ताल रवाना हो गए. एसएसआई वैद्यनाथ शर्मा, एसआई अनिल शर्मा, कांस्टेबल अवधेश यादव, अशोक कुमार मेहता, जयराम पासवान और उपेंद्र सिंह उन के साथ थे.

एसओ मोहम्मद आलम ने बारीकी से लाशों का मुआयना किया. दोनों लाशें क्षतविक्षत हालत में थीं. लग रहा था जैसे लाशों को जंगली जानवरों ने खाया हो. लाशों के आसपास किसी तरह का कोई सबूत नहीं मिला. पुलिस आसपास की झाडि़यों में लाशों के सिर तलाशने लगी. लेकिन सिर कहीं नहीं मिले.

इस का मतलब था कि हत्यारों ने दोनों की हत्या कहीं और कर के लाशें वहां छिपा दी थीं. कातिल जो भी थे, बड़े चालाक और शातिर किस्म के थे. मौके पर उन्होंने कोई सबूत नहीं छोड़ा था. पुलिस के लिए थोड़ी राहत की बात यह थी कि लाशों की शिनाख्त हो गई थी.

इस के बाद एसओ मोहम्मद आलम ने एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ कृष्णकुमार राय को घटना की सूचना दे दी थी. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना किया तो जिस स्थान से लाशें बरामद की गई थीं, वह इलाका उन के थाना क्षेत्र से बाहर का निकला. वह जगह थाना कसबा की थी. लिहाजा उन्होंने इस की सूचना कसबा थाने के एसओ अरविंद कुमार को दे दी.

एसओ कसबा अरविंद कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे. लेकिन उन्होंने भी उस जगह को अपना इलाका होने से साफ मना कर दिया. इलाके को ले कर दोनों थानेदारों के बीच काफी देर तक बहस होती रही.

तब तक एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ कृष्णकुमार राय भी मौके पर जा पहुंचे. दोनों अधिकारियों के हस्तक्षेप और मौके पर बुलाए गए लेखपाल की पैमाइश के बाद घटनास्थल कसबा थाने का पाया गया. एसपी शर्मा के आदेश पर थानेदार अरविंद कुमार ने मौके की काररवाई निपटा कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दीं.

चूंकि कलावती और मलावती की गुमशुदगी जलालगढ़ थाने में दर्ज थी, इसलिए जलालगढ़ एसओ मोहम्मद आलम ने यह मामला कसबा थाने को स्थानांतरित कर दिया. एसओ अरविंद कुमार ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर आगे की छानबीन शुरू कर दी.

चूंकि बात 2 सामाजिक कार्यकत्रियों की हत्या से जुड़ी थी, इसलिए यह मामला मीडिया में भी खूब गरमाया. पुलिस पर जनता का भारी दबाव बना हुआ था. पुलिस की काफी छीछालेदर हो रही थी. एसपी विशाल शर्मा ने एसडीपीओ कृष्ण कुमार राय के नेतृत्व में एक टीम गठित की.

इस टीम में जलालगढ़ के एसओ मोहम्मद गुलाम शहबाज आलम, थाना कसबा के थानेदार अरविंद कुमार, मुफस्सिल थाने के एसओ प्रशांत भारद्वाज, तकनीकी शाखा प्रभारी एसएसआई जलालगढ़ वैद्यनाथ शर्मा, एसआई अनिल शर्मा, कांस्टेबल अवधेश यादव, अशोक कुमार मेहता, जयराम पासवान और उपेंद्र सिंह को शामिल किया गया.

एसडीपीओ कृष्णकुमार राय ने घटना की छानबीन की शुरुआत मृतकों के घर से की. मनोज से पूछताछ पर जांच अधिकारियों को पता चला कि कलावती और मलावती दोनों पतियों द्वारा त्यागी जा चुकी थीं. पतियों से अलग हो कर दोनों मायके में ही रह रही थीं.

मायके में रह कर दोनों सोशल एक्टिविस्ट का काम कर रही थीं. कलावती और मलावती की नजरों पर गांव के कई ऐसे असामाजिक तत्व चढ़े थे, जिन के क्रियाकलाप से लोग परेशान थे. उन में 4 नाम वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा शामिल थे. दोनों बहनों ने इन चारों पर कई बार मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भी भिजवाया था.

जांच अधिकारियों को यह समझते देर नहीं लगी कि कलावती और मलावती की हत्या के पीछे इन्हीं चारों का हाथ है. फिलहाल पुलिस के पास उन के खिलाफ कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं था, जिसे आधार बना कर उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता. उन पर नजर रखने के लिए जांच अधिकारी ने मुखबिरों को लगा दिया कि वे कहां जाते हैं, किस से मिलते हैं, क्याक्या करते हैं?

इधर एसओ कसबा अरविंद कुमार ने दोनों बहनों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और केस को समझने में जुट गए थे. काल डिटेल्स में कुछ ऐसे नंबर मिले, जो संदिग्ध थे. उन नंबरों से कलावती और मलावती देवी को कई दिनों से लगातार फोन किए जा रहे थे. पुलिस ने उन संदिग्ध नंबरों की पड़ताल की तो वे नंबर मृतका के गांव चकहाट के रहने वाले वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा और लक्ष्मीदास उर्फ रामजी के निकले.

प्रेमी के लिए कातिल बनी रक्षा – भाग 2

6 दिसंबर को हिमांशु का विवाह ठीकठाक संपन्न हो गया और बहू घर आ गई. खुशी के माहौल में राजकुमार गुप्ता पूर्व की घटनाओं को भूल कर अपने कामकाज में लग गए.

रोज की तरह 4 जनवरी को भी राजकुमार गुप्ता अपनी दुकान पर चले गए. घर में पत्नी सुनीता और बहू रश्मि रह गईं. मकान के पीछे वाले एक कमरे में राजकुमार की विधवा भाभी जगतदुलारी अपने बेटे सत्यम के साथ रहती थीं. एक बजे के करीब भाई रामप्रसाद की बेटी रक्षा आ गई. आगे वाले कमरे में सुनीता आराम कर रही थीं, इसलिए उन से दुआसलाम कर के वह हिमांशु की पत्नी रश्मि के पास चली गई. वहां वह लैपटौप पर उस की शादी की वीडियो देखने लगी.

5 बजे के आसपास रक्षा अपने घर जाने के लिए जब बाहर वाले कमरे से हो कर गुजर रही थी तो अपनी चाची सुनीता को बेड पर घायल पड़ी देख चीख पड़ी. उसी की चीख से इस घटना के बारे में पता चला.

पुलिस को पक्का यकीन था कि इस वारदात में घर के किसी आदमी का हाथ है. ऐसे में पुलिस की निगाह बारबार रक्षा गुप्ता पर जा कर टिक रही थी. लेकिन बिना सुबूत के उस पर हाथ नहीं डाला जा सकता था. इसलिए पुलिस सुबूत जुटाने लगी.

मामला गंभीर था, इसलिए एसएसपी यशस्वी यादव ने इस मामले के खुलासे के लिए एसपी (ग्रामीण) डा. अनिल मिश्रा, सीओ रोहित मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी संजय मिश्रा और थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी आलोक कुमार के नेतृत्व में 4 टीमें बनाईं.

मोबाइल फोन अपराधियों तक पहुंचने में काफी मददगार साबित होता है, इसलिए पुलिस की इन टीमों ने मोबाइल फोन के जरिए हत्यारों तक पहुंचने की योजना बनाई. पुलिस ने मृतका सुनीता, रश्मि और रक्षा के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इन का अध्ययन करने के बाद पुलिस ने उन मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया, जिन पर उसे संदेह हुआ.

रक्षा के नंबर की काल डिटेल्स में पुलिस को एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर घटना के बाद तक उस का संपर्क बना रहा था. लेकिन उस के बाद वह मोबाइल नंबर बंद हो गया था. इस बात से पुलिस को रक्षा गुप्ता पर शक और बढ़ गया.

पुलिस ने इसी शक के आधार  पर घटना के समय से 2 घंटे पहले और 2 घंटे बाद का पशुपतिनगर क्षेत्र के सभी मोबाइल टावरों का पूरा विवरण निकलवाया. इस का फिल्टरेशन किया गया तो रक्षा की उस नंबर से घटना के पहले और बाद में बातचीत होने की पुष्टि तो हुई ही, उस नंबर की उपस्थिति भी पशुपतिनगर की पाई गई.

जांच में यह भी पता चला कि दोनों ने एकदूसरे को एसएमएस भी किए थे. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह नंबर सत्येंद्र यादव का था, जो रक्षा के ही मोहल्ले का रहने वाला था.

पुलिस को जब पता चला कि घटना के पहले और बाद में रक्षा और सत्येंद्र ने एकदूसरे को मैसेज किए थे तो पुलिस ने रक्षा के मोबाइल का इनबौक्स देखा. लेकिन उस में कोई मैसेज नहीं था. इस का मतलब उस ने मैसेज डिलीट कर दिए थे.

पुलिस ने बहाने से सत्येंद्र का मोबाइल फोन ले कर उसे भी चेक किया. उस ने भी सारे मैसेज डिलीट कर दिए थे. शायद उन्हें यह पता नहीं था कि पुलिस चाहे तो उन मैसेजों को रिकवर करा सकती है. पुलिस को लगा कि अगर मैसेज रिकवर हो जाएं तो इस लूट और हत्या का खुलासा हो सकता है.

और सचमुच ऐसा ही हुआ. मैसेज रिकवर होते ही राजकुमार के घर हुई लूट और हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि रक्षा ने ही मैसेज द्वारा चाचा के घर की जानकारी दे कर अपने प्रेमी सत्येंद्र यादव से यह लूटपाट कराई थी. पुलिस ने जो मैसेज रिकवर कराए, वे इस प्रकार थे :

घटना से थोड़ी देर पहले रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज किया था, ‘चाची घर पर हैं, अभी मत आना.’

जवाब में सत्येंद्र ने मैसेज किया था, ‘चाची हैं तो क्या हुआ, मैं आ रहा हूं.’

इस के बाद सत्येंद्र ने अगला मैसेज भेज कर रक्षा से पूछा, ‘मैं तुम्हारी चाची के घर के पास पहुंच गया हूं.    गेट खुला है या नहीं?’

रक्षा ने जवाब दिया था, ‘गेट बंद है, लेकिन अंदर से लौक नहीं है.’

‘मैं घर के अंदर आ गया हूं. तुम अपनी भाभी को संभालना.’ सत्येंद्र ने मैसेज भेजा.

‘ठीक है, गुडलक. ओके.’ रक्षा ने जवाब दिया.

इस के बाद सत्येंद्र ने 5 बजे के करीब रक्षा को मैसेज भेजा, ‘काम हो गया है, मैं जा रहा हूं.’

रक्षा ने जवाब दिया, ‘ओके.’

पुलिस जांच शुरू हुई तो रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज भेजा, ‘कहीं हम फंस न जाएं?’

‘सोने वाला जाग कर गवाही नहीं देगा, परेशान मत हो.’ सत्येंद्र ने उसे तसल्ली दी थी.

रक्षा का आखिरी मैसेज था, ‘नौबस्ता पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच की टीम भी आई थी. एक मोटा दरोगा मुझे घूर रहा था. लगता है, उसे कुछ शक हो गया है.’

सुरक्षा की दृष्टि से सत्येंद्र और रक्षा ने फोन से बातचीत बंद कर दी थी. दोनों एकदूसरे को केवल एसएमएस कर रहे थे. सत्येंद्र ने रक्षा के आखिरी मैसेज के जवाब में कहा था, ‘तुम मोबाइल के इनबौक्स से सारे मैसेज डिलीट कर दो. उस के बाद कुछ नहीं होगा. मैं भी पुलिस के बारे में पता करता रहूंगा.’

इस के बाद पुलिस के लिए संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. उसे अकाट्य सुबूत मिल गए थे. पुलिस 6 जनवरी, 2014 को रक्षा को उस के घर से हिरासत में ले कर थाना नौबस्ता ले आई. पुलिस ने उस से पूछताछ शुरू की तो काफी देर तक वह इस मामले में अपना और सत्येंद्र का हाथ होने से इनकार करती रही. लेकिन जब पुलिस ने उस के द्वारा डिलीट किए गए मैसेजों को लैपटौप की स्क्रीन पर दिखाना शुरू किया तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं.

अब रक्षा के पास सच उगलवाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. उस ने अपनी चाची सुनीता की हत्या और लूट में सहयोग का अपना जुर्म स्वीकार करते हुए पुलिस को सत्येंद्र से प्यार होने से ले कर इस अपराध में शामिल होने तक की पूरी कहानी सुना दी.

रक्षा के पिता रामप्रसाद की छोटी सी परचून की दुकान थी. उस दुकान से सिर्फ गुजरबसर हो पाती थी. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इस के बावजूद उस के पिताजी उसे पढ़ाना चाहते थे. वह महिला महाविद्यालय किदवईनगर से बीए कर रही थी. वह पढ़ने में ठीक थी. 2 साल पहले कोयलानगर की रहने वाली एक सहेली के यहां उस की मुलाकात सत्येंद्र यादव से हुई तो वह उस के प्रेम में पड़ गई.

सत्येंद्र यादव भी कोयलानगर के ही रहने वाले अमर सिंह का बेटा था. वह रक्षा की सहेली के यहां अकसर आताजाता रहता था. इसी वजह से रक्षा से उस की मुलाकात होने लगी थी. इन्हीं मुलाकातों में दोनों में आंखमिचौली शुरू हुई तो रक्षा बहकने लगी.

आगे चल कर रक्षा और सत्येंद्र के बीच ऐसा आकर्षण बढ़ा कि बिना मिले उन का मन ही नहीं लगता था. दोनों मोबाइल पर भी लंबीलंबी बातें करते थे. इस तरह जब दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा तो इस के चर्चे मोहल्ले में होने लगे.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब

दोस्त की खातिर : प्रेमिका को उतारा मौत के घाट – भाग 1

अपूर्वा, अमर और सार्थक की दोस्ती 2012 में तब हुई जब तीनों साथसाथ 8वीं में पढ़ रहे थे. अपूर्वा और अमर विशाल नगर में आसपास ही रहते थे. दोस्ती बढ़ी तो दोनों एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. ऐसे में निकटता बढ़ना स्वाभाविक ही था. लेकिन यह निकटता घनिष्ठ मित्रता में समाहित थी, जिसे किशोर मन का आकर्षण भी कह सकते हैं और दोस्ती की जरूरत भी.

अपूर्वा, अमर और सार्थक की दोस्ती ऐसी गहराई कि तीनों पढ़ाई लिखाई की बातें भी शेयर करने लगे और टिफिन बौक्स भी. तीनों को हंसते खेलते देख कोई भी उन की दोस्ती की गहराई का अंदाजा लगा सकता था.

जब तक इन तीनों ने किशोरवय को पार किया तब तक दोस्ती यूं ही चलती रही. बिना किसी भेदभाव के. लेकिन यौवन की पहली सीढ़ी पर पहुंचते ही बहुत कुछ बदलने लगा. रंग, रूप और भावनाएं ही नहीं, और भी बहुत कुछ. कुलांचे भरती उम्र ने लड़की और लड़कों के बीच एक अचिन्ही सी रेखा खींच दी. चाहो या न चाहो ऐसा होता ही है. यही समाज का नियम है.

सार्थक पड़ा प्यार के चक्कर में

12 वीं तक पहुंचते पहुंचते जब तनमन और शरीर पर यौवन में रंग जमाना शुरू किया तो सार्थक ने महसूस किया कि वह अपूर्वा को प्यार करने लगा है. दोस्ती के बावजूद उस में अपूर्वा से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं थी, इसलिए सार्थक ने दोस्त के कंधों का सहारा लिया. अमर शिंदे और अपूर्वा करीबी दोस्त थे, एकदूसरे को समझने वाले.

वैसे भी अमर अपूर्वा के व्यक्तित्व और सोच को जानता समझता था. उस ने सार्थक से कहा, ‘‘दोस्ती, नजदीकियां अलग बात है, पर हकीकत में अपूर्वा ऐसी लड़की नहीं है. मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं. इस का जवाब भी मुझे मालूम है. इसलिए दोस्ती को दोस्ती ही रहने दे.’’

लेकिन अमर की बात प्रेम रंग में डूबे सार्थक के पल्ले नहीं पड़ी. उसे बात न मानते देख अमर ने कहा, ‘‘भाई, प्यार का इजहार स्वयं किया जाता है. जो तू सोच रहा है, वह गुजरे जमाने में होता था, जब प्रेमी प्रेमिका किसी अन्य के माध्यम से संदेशे भिजवाते थे.’’

‘‘अमर, मैं पहले अपूर्वा के मन को टटोलना चाहता हूं.’’ जानना चाहता हूं कि उस के मन में मेरे लिए कुछ है भी या नहीं. यह काम बिना तेरी मदद के नहीं हो सकता.’’ सार्थक ने अमर की चिरौरी करते हुए कहा.

दोस्ती की खातिर अमर यह काम करने को तैयार हो गया. वह तैयार ही नहीं हुआ बल्कि मौका देख कर अपूर्वा से बातोंबातों में उस ने सार्थक के मन की बात भी बता दी. लेकिन अपूर्वा ने कोई संतोषजनक उत्तर न देर कर इतना ही कहा कि सार्थक स्मार्ट भी है और दिल का साफ भी.

अमर ने जब यह बात सार्थक को बताई तो वह यह जान कर खुश हुआ कि कम से कम अपूर्वा के मन में उस के प्रति गुड फीलिंग तो है. प्यार का इजहार अब न सही, फिर कभी हो जाएगा. लेकिन इस से पहले कि सार्थक अपने प्यार का इजहार कर पाता 12वीं के बाद तीनों की राहें अलगअलग हो गईं.

सार्थक इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए औरंगाबाद चला गया, जबकि अमर ने लातूर के पौलीटेक्निक कालेज में एडमिशन ले लिया. अपूर्वा डाक्टर बनना चाहती थी, उस ने बीएएमएस की पढ़ाई के लिए जामखंडी, कर्नाटक के मैडिकल कालेज में दाखिला ले लिया. वह वहीं कालेज के हौस्टल में रहने लगी थी.

कैरियर के हिसाब से बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए थी. लेकिन नहीं हुई. वैसे भी दिल की लगी इतनी आसानी से कहां खत्म होती है.

  अलगअलग हो गए दोस्त

तीनों दोस्त एकदूसरे से दूर हो गए थे. जगह बदल गई थी. माहौल बदल गया था. नई जगह, नए दोस्त. इस के बावजूद अपूर्वा के प्रति सार्थक की चाहत नहीं बदली थी. वह अपूर्वा से मिलने उस के कालेज आताजाता रहता था. अपूर्वा को उस का आना अच्छा लगता था. वह उस से पहले की तरह ही बातें करती थी, हंसतीबोलती थी, उस का हालचाल पूछती थी.

जब सार्थक के रेगुलर आनेजाने से उस की पढ़ाई में व्यवधान आने लगा तो वह सार्थक से पहले की तरह बात करने से कतराने लगी. जैसेजैसे समय बीतता गया, सार्थक और अपूर्वा के बीच दूरियां बढ़ती गईं.

दूसरी ओर वक्त और जरूरत की मांग के हिसाब से मैडिकल कालेज में अपूर्वा के दोस्त बनते गए. उस के दोस्तों में मौली घोपल नाम का एक लड़का भी था जो अपूर्वा के काफी करीब था. वह भी उस का वैसा ही करीबी दोस्त था, जैसे सार्थक और अमर थे. हां, केवल स्थितियां जरूर बदल गई थीं.

अमर के माध्यम से जब यह बात सार्थक को पता चली तो वह आपा खो बैठा. क्रोधावेश में वह जामखंडी मैडिकल कालेज जा कर अपूर्वा से मिला. निस्संदेह अपूर्वा ने पहले जैसी रिश्तों की गरमाहट नहीं दिखाई. इस पर सार्थक ने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है अपूर्वा, तुम काफी बदल गई हो. मुझ से मिलने में तुम्हारी कोई दिलचस्पी नहीं है?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है सार्थक,’’ अपूर्वा ने शांत भाव से कहा, ‘‘यहां पढ़ाई का बोझ काफी बढ़ गया है, इसलिए समय निकालना मुश्किल होता है.’’

‘‘पढ़ाई का बोझ बढ़ गया है या घोपल की दोस्ती से फुरसत नहीं है.’’ सार्थक के मन की कड़वाहट शब्दों में उतर आई. उस के शब्द अपूर्वा को भी चुभे. वह थोड़े गुस्से में बोली, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘यही कि कालेज बदलते ही पुराने दोस्तों को भूल गईं, नई जगह नए नए दोस्त बन गए.’’ सार्थक ने भी कड़वाहट के साथ कहा, ‘‘लेकिन एक बात याद रखना, सब हमारे जैसे नहीं, मेरी राय मानो तो उन से दूर रहो, खास कर मौली घोपल से.’’

‘‘जरा मुझे बताओगे,  इस में बुराई क्या है?’’ अपूर्वा ने जवाब की जगह प्रश्न के साथसाथ कहा, ‘‘मौली घोपल मेरी क्लास में पढ़ता है. जैसी दोस्ती तुम्हारे और अमर के साथ थी, वैसी ही उस के साथ है.’’

इस से सार्थक का दिमाग घूम गया. वह सख्त शब्दों में बोला, ‘‘जो मैं कहता हूं, वही करो. उस से दोस्ती तोड़ दो.’’

सार्थक की बात सुन कर अपूर्वा को झटका लगा. उस ने भी वैसे ही शब्दों में जवाब दिया, ‘‘मैं जिस से चाहूं दोस्ती करूं, तुम कौन होते हो मुझे रोकने या आदेश देने वाले?’’

क्रोधावेश में सार्थक के मुंह से सच्चाई निकल ही गई, ‘‘अपूर्वा, मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसी नाते तुम पर हक भी जता रहा हूं.’’

अपूर्वा सुंदर ही नहीं समझदार भी थी. उस ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए सार्थक को समझाया, ‘‘देखो सार्थक, अभी हमें अपनेअपने कैरियर के बारे में सोचना चाहिए. रहा सवाल प्यार का तो मैं ने अभी इस बारे में सोचा ही नहीं है. मैं तुम्हें अपना दोस्त मानती हूं और मानती रहूंगी. इस से ज्यादा मुझ से कोई अपेक्षा मत करना. क्योंकि मैं उस समाज का अंग हूं, जहां मेरे मातापिता की प्रतिष्ठा है. मेरा ऐसा कोई भी निर्णय मेरे पिता करेंगे.’’

प्रेमी के लिए कातिल बनी रक्षा – भाग 1

शाम के यही कोई 5 बजे अचानक रक्षा जोर से चिल्लाई तो उस की चीख सुन कर चचेरी भाभी रश्मि ही नहीं, आसपड़ोस वाले भी उस के पास आ गए थे. उस के पास आने वालों  को उस से यह नहीं पूछना पड़ा था कि वह चिल्लाई क्यों थी? क्योंकि वह जिस कमरे में खड़ी थी, सामने ही पलंग पर 55 वर्षीया सुनीता की लाश पड़ी थी. उन के दोनों हाथ बंधे थे और मुंह में कपड़ा ठुंसा था. कमरे की अलमारी का सामान बिखरा हुआ था.

स्थिति देख कर ही लोग समझ गए कि यह लूट के लिए हत्या का मामला है. सभी हैरान थे कि दिनदहाड़े घर में अन्य लोगों के होते हुए यह सब कैसे हो गया और किसी को पता तक नहीं चला. किसी ने मृतका सुनीता के पति राजकुमार गुप्ता को फोन कर के इस घटना के बारे में बता दिया था.

आते ही राजकुमार गुप्ता पड़ोसियों की मदद से पत्नी सुनीता को इस उम्मीद से मोहल्ले के ही शांति मिशन हौस्पिटल ले गए कि शायद उन में अभी जान शेष हो. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

घटना की सूचना पुलिस को भी दे दी गई थी. लेकिन घंटा भर गुजर जाने के बाद भी पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुंची. मजबूरन राजकुमार गुप्ता को थाना नौबस्ता जा कर हत्या और लूट की जानकारी देनी पड़ी. इस के बाद थानाप्रभारी आलोक यादव अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही एसएसपी यशस्वी यादव तथा अन्य अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मामला पेचीदा और रहस्यमय लग रहा था, इसलिए सुबूत जुटाने के लिए फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया गया था. फोरेंसिक टीम ने अपना काम कर लिया तो अधिकारियों ने कमरे में जा कर लाश का निरीक्षण शुरू किया.

कमरे में रखी लोहे की अलमारी खुली पड़ी थी. उस में रखे गहनों के डिब्बे और सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. गहने और अलमारी में रखी रकम गायब थी. घटनास्थल और शव का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने पंचनामा तैयार कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद पूछताछ शुरू हुई.

पुलिस को जब पता चला कि घटना के समय मकान के पीछे वाले कमरे में मृतका की बहू रश्मि और भतीजी रक्षा लैपटौप पर शादी की वीडियो देख रही थीं तो यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी क्योंकि आगे वाले कमरे में लूट और हत्या हो गई और पीछे के कमरे में मौजूद इन दोनों महिलाओं को इस की भनक तक नहीं लगी थी.

पुलिस ने दोनों से काफी पूछताछ की. इस की एक वजह यह भी थी कि बहू अभी नवविवाहिता थी. पुलिस को शक था कि कहीं उसी ने अपने किसी प्रेमी से ऐसा न कराया हो? काफी पूछताछ के बाद भी जब पुलिस का शक दूर नहीं हुआ तो पुलिस ने सच्चाई का पता लगाने के लिए एक युक्ति अपनाई.

शक की गुंजाइश न रहे, इस के लिए पुलिस अधिकारियों ने फोरेंसिक टीम की मदद से लूट और हत्या का नाटक करने का विचार किया. नाटक कर के पुलिस ने यह जानने की कोशिश की कि घटना के समय मृतका सुनीता बाहर वाले कमरे में चिल्लाई होगी तो उन की चीख या आवाज पीछे के कमरे में बैठी रश्मि और रक्षा को सुनाई दी होगी या नहीं.

कई बार पुलिस ने लूट और हत्या का नाटक कर के देखा, सचमुच आगे वाले कमरे की आवाजें पीछे वाले कमरे में नहीं पहुंच रही थीं. इस से पुलिस को लगा कि इस मामले में मृतका की नवविवाहिता बहू रश्मि का कोई दोष नहीं है. लेकिन भतीजी रक्षा जिस तरह घबराई हुई थी और नजरें चुरा रही थी, उस से वह पुलिस की नजरों में चढ़ गई. पुलिस का ध्यान उस पर जम गया. शक के आधार पर पुलिस ने उस का लैपटौप और मोबाइल कब्जे में ले लिया.

पुलिस ने थाने आ कर राजकुमार गुप्ता द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर उन के घर हुई लूट और पत्नी सुनीता की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. विवेचना में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा राजकुमार गुप्ता के बारे में जान लेते हैं.

राजकुमार गुप्ता 2 भाई हैं. बड़े भाई रामप्रसाद कानपुर के ही थाना विधनू के मोहल्ला न्यू आजादनगर में रहते हैं. उन की परचून की दुकान है. उन के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी रक्षा और बेटा मनीष है. जबकि राजकुमार अपने परिवार के साथ कानपुर के थाना नौबस्ता के मोहल्ला पशुपतिनगर में रहते हैं.

उन के परिवार में पत्नी सुनीता और एक बेटा तथा एक बेटी थी. बेटी की शादी उन्होंने पहले ही कर दी थी.  अब वह एक बेटे की मां है. राजकुमार का तंबाकू का बिजनैस है.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन 2-3 महीने से न जाने कौन राजकुमार को परेशान कर रहा था. बारबार फोन कर के वह उन से मोटी रकम की मांग कर रहा था. 5 दिसंबर को उन के एकलौते बेटे हिमांशु की शादी थी. हिमांशु राजकुमार का एकलौता बेटा था. उन के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए वह बेटे की शादी खूब धूमधाम से करना चाहते थे.

शादी की तारीख नजदीक आते ही राजकुमार के नजदीकी रिश्तेदार आने लगे थे. उन की बेटी शिवांगी भी अपने डेढ़ वर्षीय बेटे शुभम के साथ भाई की शादी में शामिल होने के लिए आ गई थी. 3 दिसंबर की शाम 6 बजे अचानक शिवांगी का बेटा शुभम घर के बाहर से गायब हो गया. बच्चे के इस तरह गायब होने से घर में हड़कंप मच गया. क्या किया जाए, लोग इस बात पर विचार कर ही रहे थे कि राजकुमार के मोबाइल फोन पर किसी ने शुभम के अपहरण की बात कह कर 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. शुभम के अपहरण की बात सुन कर घर में रोनापीटना मच गया.

अपहर्त्ता ने राजकुमार गुप्ता को पुलिस में न जाने की हिदायत दी थी. लेकिन कुछ लोगों के कहने पर वह अपने रिश्तेदारों के साथ थाना नौबस्ता जा पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी को वह मोबाइल नंबर, जिस से फिरौती के लिए फोन आया था, दे कर बच्चे को अपहर्त्ताओं से मुक्त कराने की गुजारिश करने लगे.

वे लोग पुलिस से बच्चे को मुक्त कराने की गुजारिश कर ही रहे थे कि तभी उन्हें घर से फोन कर के बताया गया कि एक आदमी बच्चे को मोटरसाइकिल से घर के सामने छोड़ गया है. बच्चा सकुशल मिल गया तो थाना नौबस्ता पुलिस ने इस मामले में कोई काररवाई नहीं की. जबकि उसे उस मोबाइल नंबर के बारे में पता करना चाहिए था. बहरहाल, भले ही बच्चा वापस आ गया था, लेकिन राजकुमार और उस के घर वाले इस घटना से परेशान थे.

5 दिसंबर को राजकुमार के बेटे हिमांशु की शादी थी. शादी से एक दिन पहले किसी ने राजकुमार गुप्ता को फोन कर के कहा कि वह 15 लाख रुपए की व्यवस्था कर के बताए गए स्थान पर पहुंचा दें वरना शादी से पहले उन के बेटे हिमांशु की हत्या कर दी जाएगी.

एकलौते बेटे के साथ कहीं कुछ अनहोनी न घट जाए, इस के मद्देनजर राजकुमार गुप्ता ने एक बार फिर थाना नौबस्ता जा कर पुलिस को 15 लाख की अवैध वसूली वाले फोन के बारे में बताया और अपने बेटे की सुरक्षा का आग्रह किया. लेकिन थाना नौबस्ता पुलिस ने राजकुमार की न तो रिपोर्ट दर्ज की और न उन के द्वारा बताए फोन नंबरों के बारे में कोई जांच की.

प्रेमिका की कब्र पर आम का पेड़ – भाग 3

समरजीत दीपा को जीजान से चाहता था, इसलिए उसे पत्नी पर विश्वास था. लेकिन उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के विश्वास को धता बता कर वह क्या गुल खिला रही है. कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता. एक न एक दिन किसी तरीके से वह लोगों के सामने आ ही जाता है.

दीपा की आशिकमिजाजी भी एक दिन समरजीत के सामने आ गई. हुआ यह था कि एक बार समरजीत की रात की ड्यूटी लगी थी. वह शाम 7 बजे ही घर से चला गया था. दीपा को पता था कि पति की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की है. जब भी पति की रात की ड्यूटी होती थी, दीपा प्रेमी को रात 10 बजे के करीब अपने कमरे पर बुला लेती थी. मौजमस्ती करने के बाद वह रात में ही चला जाता था. उस दिन भी उस ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया.

रात 11 बजे के करीब समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई. ड्यूटी पर रहते वह आराम नहीं कर सकता था. वह चाहता था कि घर जा कर आराम करे. लेकिन उस समय घर जाने के लिए उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी. इसलिए उस ने अपने एक दोस्त से घर छोड़ने को कहा. तब दोस्त अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के कमरे के बाहर छोड़ आया.

समरजीत ने जब अपने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही दीपा दरवाजे की दस्तक सुन कर घबरा गई. उस के मन में विचार आया कि पता नहीं इतनी रात को कौन आ गया. प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कह कर उस ने अपने कपड़े संभाले और बेमन से दरवाजे की तरफ बढ़ी.

जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर वह चौंक कर बोली, ‘‘तुमऽऽ, आज इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ड्यूटी बीच में ही छोड़ कर आ गया.’’ समरजीत कमरे में घुसते हुए बोला.

कमरे में बेड के नीचे दीपा का प्रेमी छिपा हुआ था. दीपा इस बात से डर रही थी कि कहीं आज उस की पोल न खुल जाए. समरजीत की तो तबीयत खराब थी. वह जैसे ही बेड पर लेटा, उसी समय बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी निकल कर भाग खड़ा हुआ. अपने कमरे से किसी आदमी को निकलते देख समरजीत चौंका. वह उस की सूरत नहीं देख पाया था. समरजीत उस भागने वाले आदमी को भले ही नहीं जानता था, लेकिन उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस की गैरमौजूदगी में यह आदमी कमरे में क्या कर रहा होगा.

वह गुस्से में भर गया. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह कौन था और यहां क्यों आया था?’’

‘‘पता नहीं कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चोर हो. कोई सामान चुरा कर तो नहीं ले गया.’’ दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा और संदूक का ताला खोल कर अपना कीमती सामान तलाशने लगी.

तभी समरजीत ने कहा, ‘‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो क्या? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था. उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुम ने उसे खुद ही सौंप दी. अब बेहतर यह है कि जो हुआ उसे भूल जाओ. आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए. और न ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिलनी चाहिए.’’

पति की नसीहत से दीपा ने राहत की सांस ली. समरजीत तबीयत खराब होने पर घर आराम करने आया था, लेकिन आराम करना भूल कर वह रात भर इसी बात को सोचता रहा कि जिस दीपा के लिए उस ने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने उस के साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों किया. वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जब कोई भी महिला एक बार देहरी लांघ जाती है तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है.

अगले दिन जब वह ड्यूटी पर गया तो वहां भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. घर लौटने के बाद उस ने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा के बारे में बात की. यह बात उस ने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई.

उन सभी ने फैसला किया कि ऐसी कुलच्छनी महिला की चौकीदारी कोई हर समय तो कर नहीं सकता. इसलिए उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है. दीपा को खत्म करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अपना यह काम उसे कहां और कब करना है, इस की उन्होंने योजना बनाई.

काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने तय किया कि दीपा को दिल्ली में मारना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी वह दिल्ली पुलिस से बच नहीं पाएंगे. अपने जिला क्षेत्र में ले जा कर ठिकाने लगाना उन्हें उचित लगा.

समरजीत को पता था कि दीपा सुलतानपुर जाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी. उसे झांसे में लेने के लिए उस ने एक दिन कहा, ‘‘दीपा, सुलतानपुर के ही नगईपुर में मेरे मामा रहते हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है और उन के पास जमीनजायदाद भी काफी है. उन्होंने हम दोनों को अपने यहां रहने के लिए बुलाया है. तुम्हें तो पता ही है कि दिल्ली में हम लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ दिन मामा के घर पर रहें.’’

पति की बात सुन कर दीपा ने भी सोचा कि जब उन की कोई औलाद नहीं है तो उन के बाद सारी जायदाद पति की ही हो जाएगी. इसलिए उस ने मामा के यहां रहने की हामी भर दी.

23 दिसंबर, 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुलतानपुर ले गया. उस के साथ दोनों भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी थे. जब वे सुलतानपुर स्टेशन पहुंचे, अंधेरा घिर चुका था. नगईपुर सुलतानपुर स्टेशन से दूर था. नगईपुर गांव से पहले ही समरजीत के मामा नरेंद्र का आम का बाग था. प्लान के मुताबिक नरेंद्र उन का उसी बाग में पहले से ही इंतजार कर रहा था. बाग के किनारे पहुंच कर तीनों भाइयों ने दीपा की गला घोंट कर हत्या कर दी और बाग में ही गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया.

जिस गड्ढे में उन्होंने लाश दफन की थी, जल्दबाजी में वह ज्यादा गहरा नहीं खोदा गया था. नरेंद्र को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि जंगली जानवर मिट्टी खोद कर लाश न खाने लगें. ऐसा होने पर भेद खुलना लाजिमी था इसलिए इस के 2 दिनों बाद नरेंद्र रात में ही अकेला उस बाग में गया और वहां से 20-25 कदम दूर दूसरा गहरा गड्ढा खोदा. फिर पहले गड्ढे से दीपा की लाश निकालने के बाद उस ने उसे उसी की शाल में गठरी की तरह बांध दिया.

उस गठरी को उस ने दूसरे गहरे गड्ढे में दफना कर उस के ऊपर आम का एक पेड़ लगा दिया ताकि किसी को कोई शक न हो. दीपा को ठिकाने लगाने के बाद वे इस बात से निश्चिंत थे कि उन के अपराध की किसी को भनक न लगेगी. यह जघन्य अपराध करने के बाद अरविंद और धर्मेंद्र पहले की ही तरह बनठन कर घूम रहे थे. उन को देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में कोई बड़ा अपराध किया है.

गांव के ज्यादातर लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही है. जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेला देखा तो उन्होंने उस से दीपा के बारे में पूछा.

जब दीपा के पिता रामसनेही को भी जानकारी मिली कि समरजीत के साथ दीपा गांव नहीं आई है तो उस ने उस से बेटी के बारे में पूछा. तब समरजीत ने उसे झूठी बात बताई कि दीपा एक महीने पहले उस से झगड़ा कर के दिल्ली से गांव जाने की बात कह कर आ गई थी.

समरजीत की यह बात सुन कर रामसनेही घबरा गया था. फिर वह बेटी की छानबीन करने दिल्ली पहुंचा और बाद में दिल्ली के पुल प्रहलादपुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस के बाद ही पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची. पुलिस ने समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को अपहरण कर हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर 9 जनवरी, 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित