प्रेमिका की कब्र पर आम का पेड़ – भाग 2

पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर कुछ निशान पाए गए. इस से अनुमान लगाया कि दीपा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के पोस्टमार्टम हाऊस भेज दिया और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के दिल्ली ले आई.

थाना पुल प्रहलादपुर में समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और इन के मामा नरेंद्र से जब पूछताछ की गई तो दीपा और समरजीत के प्रेमप्रसंग से ले कर मौत का तानाबाना बुनने तक की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली.

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में आता है एक गांव धनजई, इसी गांव में सूर्यभान सिंह परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, अरविंद और समरजीत थे. अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे. दोनों भाई दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे. समरजीत गांव में ही खेतीकिसानी करता था. वह खेती किसानी करता जरूर था, लेकिन उसे अच्छे कपड़े पहनने का शौक था.

वह जवान तो था ही. इसलिए उस का मन ऐसा साथी पाने के लिए बेचैन था, जिस से अपने मन की बात कह सके. इसी दौरान उस की नजरें दीपा से दोचार हुईं. दीपा रामसनेही की 20 वर्षीया बेटी थी. दीपा तीखे नयननक्श और गोल चेहरे वाली युवती थी. दीपा उस की बिरादरी की नहीं थी, फिर भी उस का झुकाव उस की तरफ हो गया. फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि वे दोनों एकदूसरे के करीब आते गए.

दोनों ही चढ़ती जवानी पर थे, इसलिए जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. एकदूसरे को शरीर सौंपने के बाद उन की सोच में इस कदर बदलाव आया कि उन्हें अपने प्यार के अलावा सब कुछ फीका लगने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उन की मंजिल यहीं तक हो.

मौका मिलने पर दोनों खेतों में एकदूसरे से मिलते रहे. उन के प्यार को देख कर ऐसा लगता था, जैसे भले ही उन के शरीर अलगअलग हों, लेकिन जान एक हो. उन्होंने शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाने तक की प्लानिंग कर ली. घर वाले उन की शादी करने के लिए तैयार हो सकेंगे, इस का विश्वास दोनों को नहीं था. इस की वजह साफ थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी और दूसरे दोनों एक ही गांव के थे.

घर वाले तैयार हों या न हों, उन्हें इस बात की फिक्र न थी. वे जानते थे कि प्यार के रास्ते में तमाम तरह की बाधाएं आती हैं. सच्चे प्रेमी उन बाधाओं की कभी फिक्र नहीं करते. वे परिवार और समाज के व्यंग्यबाणों और उन के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर अपने मुकाम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं.

समरजीत और दीपा भले ही सोच रहे थे कि उन का प्यार जमाने से छिपा हुआ है, लेकिन यह केवल उन का भ्रम था. हकीकत यह थी कि इस तरह के काम कोई चाहे कितना भी चोरीछिपे क्यों न करे, लोगों को पता चल ही जाता है. समरजीत और दीपा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मोहल्ले के कुछ लोगों को उन के प्यार की खबर लग गई.

फिर क्या था. मोहल्ले के लोगों से बात उड़तेउड़ते इन दोनों के घरवालों के कानों में भी पहुंच गई. समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने बेटे को डांटा तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के पिता रामसनेही ने भी दीपा पर पाबंदियां लगा दीं. उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उस की शादी करने में परेशानी होगी.

कहते हैं कि प्यार पर जितनी बंदिशें लगाई जाती हैं, वह और ज्यादा बढ़ता है यानी बंदिशों से प्यार की डोर टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हो जाती है. बेटी पर बंदिशें लगाने के पीछे रामसनेही की मंशा यही थी कि वह समरजीत को भूल जाएगी. लेकिन उस ने इस बात की तरफ गौर नहीं किया कि घर वालों के सो जाने के बाद दीपा अभी भी समरजीत से फोन पर बात करती है. यानी भले ही उस की अपने प्रेमी से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, वह फोन पर दिल की बात उस से कर लेती थी.

एक बार रामसनेही ने उसे रात को फोन पर बात करते देखा तो उस ने उस से पूछा कि किस से बात कर रही है. तब दीपा ने साफ बता दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है. इतना सुनते ही रामसनेही को गुस्सा आ गया और उस ने उस की पिटाई कर दी. रामसनेही ने सोचा कि पिटाई से दीपा के मन में खौफ बैठ जाएगा. लेकिन इस का असर उलटा हुआ. सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई.

समरजीत प्रेमिका को ले कर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया. तब रामसनेही ने थाना कूंडे़भार में बेटी के गायब हेने की सूचना दर्ज करा दी.

चूंकि गांव से समरजीत भी गायब था. इसलिए लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि दीपा समरजीत के संग ही भागी है. तब रामसनेही ने गांव में पंचायत बुला कर पंचों की मार्फत समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का दबाव बनाया.

आज भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में पंचों की बातों का पालन किया जाता है. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मामलों में पंचायतों के फैसले सही भी होते हैं. अपनी मानमर्यादा और सामाजिक दबाव को देखते हुए लोग पंचों की बात का पालन भी करते हैं. पंचायती फैसले के बाद सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को तलाशना शुरू किया. बाद में उसे पता लगा कि समरजीत और दीपा हरिद्वार में हैं तो वह उन दोनों को हरिद्वार से गांव ले आया.

दोनों के घर वालों ने उन्हें फिर से समझाया. समरजीत और दीपा कुछ दिनों तक तो ठीक रहे, इस के बाद उन्होंने फिर से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों अंबाला भाग गए. वहां पर समरजीत की बड़ी बहन रहती थी. समरजीत दीपा को ले कर बहन के यहां ही गया था. उस ने भी उन दोनों को समझाया. उस ने पिता को इस की सूचना दे दी. सूर्यभान सिंह इस बार भी उन दोनों को गांव ले आए.

बेटी के बारबार भागने पर रामसनेही और उस के परिवार की खासी बदनामी हो रही थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि उस की शादी कर दी जाए. लिहाजा उस ने उस की फटाफट शादी करने का प्लान बनाया. वह उस के लिए लड़का देखने लगा.

दीपा को जब पता चला कि घर वाले उस की जल्द से जल्द शादी करने की फिराक में हैं तो उस ने आखिर अपनी मां से कह ही दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी. उस की इस जिद पर मां ने उस की पिटाई कर दी.

इस के बाद 27 फरवरी, 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए. इस बार समरजीत उसे दिल्ली ले गया. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे. वह उन्हीं के पास चला गया. बाद में समरजीत और दीपा ने मंदिर में शादी कर ली. फिर उसी इलाके में कमरा ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

पुल प्रहलादपुर में रामसनेही के कुछ परिचित भी रहते थे. उन्हीं के द्वारा उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है. खबर मिलने के बावजूद भी रामसनेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा. वह जानता था कि दीपा घर से 2 बार भागी और दोनों बार उसे घर लाया गया था. जब वह घर रुकना ही नहीं चाहती तो उसे फिर से घर लाने से क्या फायदा.

समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे. जबकि समरजीत को फिलहाल कोई काम नहीं मिल रहा था. उस की गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थे. समरजीत भाइयों पर ज्यादा दिनों तक बोझ नहीं बनना चाहता था, इसलिए कुछ दिनों बाद ही एक जानकार की मार्फत ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर ली. उस की चिंता थोड़ी कम हो गई.

दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. चूंकि समरजीत सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था, इसलिए कभी उस की ड्यूटी नाइट की लगती थी तो कभी दिन की. वह मन लगा कर नौकरी कर रहा था. जिस वजह से वह पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि पास में ही रहने वाले एक युवक से दीपा के नाजायज संबंध बन गए.

प्रेमिका ने पिलाया मौत का जूस

”अजी सुनते हो? मेरा जी सुबह से ही न जाने क्यों घबरा रहा है. कई बार देवांश को फोन लगा चुकी हूं, लेकिन उस का फोन लग ही नहीं रहा. कभी स्विच्ड औफ तो कभी नौट रीचेबल बता रहा है.’’ सीमा परेशान होते हुए बोली.

पत्नी के मुंह से इतना सुनना था कि रामकिशोर यादव तपाक से बोल पड़े, ”तुम भी न बेवजह परेशान होने के साथ दूसरों को भी परेशान कर के रख देती हो.

”अरे बेटा है, अभी 2 दिन ही तो हुए हैं उसे वाराणसी गए कि तुम बेवजह परेशान होने लगी. लड़की तो है नहीं, जो उस की इतनी फिक्र किए जा रही हो. अरे भाई, अपने पुराने यार दोस्तों से मिलने चला गया होगा. मोबाइल बंद है या हो सकता है कि चार्ज न हो. इस में परेशान होने की वाली भला कौन सी बात है?’’

इतना कह कर रामकिशोर अखबार और चश्मा टेबल पर रख कर पत्नी की तरफ घूम गए. फिर भी सीमा का मन नहीं माना तो पति के पास आ कर बोली, ”एक बार आप भी देखें तो उस का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ ही आ रहा है. आज उसे बनारस गए 3 दिन हो गए हैं.’’

पत्नी की बात सुन कर रामकिशोर ने बेवजह पत्नी से बहस करने के बजाए जेब से मोबाइल निकाल कर बेटे देवांश का नंबर मिलाया तो वह स्विच औफ बता रहा था.  कई बार नंबर मिलाने पर भी जब काल नहीं लगी तो उन्होंने सोचा कि हो न हो मोबाइल डिस्चार्ज ही हो गया होगा, इस वजह से वह बंद है. फिर वह पत्नी की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ”लग रहा है देवांश का मोबाइल चार्ज नहीं है इस वजह से स्विच्ड औफ बता रहा है, चार्ज होते ही बात हो जाएगी.’’

पत्नी को दिलासा दे कर रामकिशोर हाथ में जूट का झोला ले कर रोजमर्रा का सामान लेने के लिए मार्केट की ओर निकल गए थे.

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के मऊ दरवाजा थाना क्षेत्र के कुइयावूट बाईपास निवासी रामकिशोर यादव पेशे से शिक्षक हैं. परिवार में पत्नी, इकलौते बेटे सहित उन का भरापूरा परिवार था.

उन का 22 वर्षीय इकलौता बेटा देवांश यादव बीएससी थर्ड ईयर की पढ़ाई दिल्ली में रह कर कर रहा था. रामकिशोर और उन की पत्नी इकलौते बेटे पर जान छिड़कते थे. 27 मई, 2023 से ही देवांश का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ जा रहा था. 25 मई, 2023 को वाराणसी जाने की बात कह कर वह घर (फर्रुखाबाद) से निकला था.

मार्केट से सामान ले कर घर लौटने के बाद रामकिशोर ने पत्नी के कुछ बोलने से पहले ही बेटे देवांश का नंबर डायल किया तो उस समय भी वह स्विच्ड औफ आ रहा था. तभी उन के दिमाग में बेटे के दोस्त श्रीवत्स का खयाल आ गया. फिर उन्होंने श्रीवत्स से संपर्क किया तो पता चला कि श्रीवत्स की देवांश से 26 मई, 2023 की शाम बात हुई तो उस ने (देवांश) बताया था कि वह वाराणसी के अस्सी क्षेत्र स्थित पैराडाइज होटल में कमरा ले कर ठहरा है.

27 मई को श्रीवत्स ने फिर फोन किया तो देवांश का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. श्रीवत्स ने होटल के रिसैप्शन पर फोन किया तो पता लगा कि देवांश अपने कमरे में नहीं है. उस का लैपटाप और बैग उस के कमरे में ही हैं. इस के बाद श्रीवत्स ने देवांश की परिचित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) की छात्रा अनुष्का को फोन किया तो अनुष्का ने बताया कि देवांश से उस की लड़ाई हुई थी, इसलिए वह उस के बारे में नहीं जानती.

बेटे को तलाशने गए वाराणसी

श्रीवत्स से बेटे के बारे में इतनी जानकारी पाने के बाद रामकिशोर और उन की पत्नी सीमा को उस की ज्यादा चिंता होने लगी. इकलौते बेटे को ले कर तरहतरह की आशंकाएं मनमस्तिक में कौंधने लगी थीं.

बहरहाल, इस के बाद भी देवांश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह और उन की पत्नी 29 मई, 2023 को बिना देर किए वाराणसी आ गए. वाराणसी आने के बाद वह पैराडाइज होटल जहां देवांश ठहरा था तथा उस के दोस्त आदि से बेटे के बारे में कोई जानकारी न मिलने पर भेलूपुर थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंच गए.

पुलिस ने कोई काररवाई करने के बजाए उन की तहरीर ले कर रख ली. रामकिशोर और उन की पत्नी बेटे को खोजने के लिए वाराणसी के गलीमोहल्लों से ले कर होटलों की खाक इस उम्मीद के साथ छानते रहे कि कहीं कोई बेटे की खबर मिल जाए.

देवांश के दोस्त और वाराणसी की गलियों को भी खंगालने पर जब कोई जानकारी नहीं हासिल हुई तो रामकिशोर पत्नी को ले कर कानपुर के लिए रवाना हो गए, जहां देवांश की परिचित छात्रा अनुष्का तिवारी का घर था. कानपुर में उन्हें कोई जानकारी तो नहीं मिली, बल्कि अनुष्का के घर वालों से रामकिशोर और उन की पत्नी को फटकार जरूर मिल गई.

आहत रामकिशोर ने फिर से वाराणसी आ कर भेलूपुर थाने के एसएचओ से मिले. उन्होंने आरोप लगाया कि अनुष्का के घर वालों ने ही देवांश को मारपीट कर हत्या कर उस का शव गायब कर दिया है.

रामकिशोर की तहरीर के आधार पर पुलिस ने कानपुर आउटर की रहने वाली और बीएचयू, वाराणसी की परास्नातक की छात्रा अनुष्का तिवारी, उस के पिता सौरभ तिवारी और चाचा सौजन्य तिवारी के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 504, 506 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मुकदमा दर्ज होने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रख कर बैठी रही. उधर देवांश का कोई पता न चलने पर रामकिशोर और उन की पत्नी की हालत बिलकुल बिगड़ने लगी थी. इसी बीच उन की मुलाकात युवा फाउंडेशन से जुड़ी सामाजिक कार्यकत्री सीमा चौधरी से हो गई.

सीमा चौधरी से मिलने के बाद रामकिशोर को आशा की उम्मीद नजर आने लगी. उन्हें लगा कि अब उन की इस लड़ाई में जरूर कुछ न कुछ बात आगे बढ़ेगी.

सीमा चौधरी के साथ रामकिशोर पत्नी को ले कर सीधे वाराणसी से लखनऊ आ गए. सीमा चौधरी के साथ लखनऊ में वह अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह से मिले. रामकिशोर ने अपर पुलिस आयुक्त को देवांश के गायब होने की बात विस्तार से बता दी.

लखनऊ में अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह को आपबीती सुनाने का असर यह हुआ कि वाराणसी पुलिस जो अभी तक हाथ पर हाथ धरे बैठी थी, अचानक से सक्रिय हो गई.

इस केस को सुलझाने के लिए डीसीपी (काशी) आर.एस. गौतम ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में एसआई चौकी इंचार्ज (अस्सी) राजकुमार वर्मा, वरुण कुमार शाही, ज्ञानमती तिवारी, दुर्गेश कुमार सरोज, कमांड सेंटर सिगरा, सर्विलांस टीम के इंसपेक्टर अंजनी पांडेय आदि शामिल थे.

मुकदमा दर्ज होने के बाद भी देवांश की कोई खोजखबर न मिलने से रामकिशोर और उन की पत्नी सीमा पुलिस से खिन्न थे तो वहीं दूसरी ओर मामले की विवेचना में लगे चौकी इंचार्ज (अस्सी) राजकुमार वर्मा देवांश का पता लगाने के लिए उस होटल में पहुंच गए, जहां देवांश ठहरा हुआ था. उन्होंने वहां जा कर पता लगाने से ले कर उस के दोस्त से भी पूछताछ की, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली.

देवांश आखिरकार गया तो गया कहां?

यह गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती जा रही थी. जांच अधिकारी को देवांश के साथ पढ़ी अनुष्का पर ही शक हो रहा था. इस आशंका से उन्होंने उच्च अधिकारियों को अवगत कराया तो उन्होंने इस केस को हर हाल में सुलझाने और जल्द से जल्द देवांश, चाहे जिस भी हाल में हो, को ढूंढने के निर्देश दिए.

उच्चाधिकारियों की हिदायत का असर यह हुआ कि देवांश प्रकरण में तेजी आ गई. संभावित स्थानों पर मुखबिरों को भी लगा दिया गया था. इसी बीच पुलिस टीम द्वारा जुटाए गए साक्ष्यों से देवांश की परिचित छात्रा अनुष्का घेरे में आ रही थी.

इस के बाद पुलिस ने बिना कोई देर किए कानपुर के आवास विकास निवासी 21 वर्षीया अनुष्का तिवारी को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने जौनपुर के गोला बाजार निवासी 21 वर्षीय राहुल सेठ और 25 वर्षीय शादाब आलम को भी गिरफ्तार कर लिया.

तीनों से पूछताछ की गई तो पता चला कि देवांश इस समय जीवित नहीं है, उस की हत्या कर दी गई है.

देवांश की हत्या की जो वजह सामने आई, वह प्रेम त्रिकोण की एक कहानी निकली—

नए प्रेमी के साथ बनाई खूनी योजना

देवांश यादव और अनुष्का तिवारी ने कानपुर नगर के सरस्वती ज्ञान मंदिर इंटर कालेज में कक्षा 6 से 9 तक साथसाथ पढ़ाई की थी, जिस से दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. खुशमिजाज किस्म का देवांश अनुष्का पर जान छिड़कता था. वह पढ़लिख कर कुछ बनने की तमन्ना पाले आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गया तो अनुष्का ने वाराणसी की राह थाम ली थी.

दोनों ने ही अलगअलग शहरों की राह पकड़ ली थी, लेकिन वे एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. फुरसत मिलने पर दोनों काफीकाफी देर तक वीडियो काल कर एकदूसरे का दीदार करने के साथ भविष्य की कल्पनाओं में भी खो जाया करते थे. देवांश यादव जहां अपने प्यार के प्रति गंभीर और पूरे विश्वास में जी रहा था, वहीं अनुष्का वाराणसी आने के बाद से बदलने लगी थी. इस बदलाव का कारण भी कोई और नहीं बल्कि राहुल सेठ का साथ था, जिस से दोस्ती बढ़ने के बाद अनुष्का देवांश को नजर अंदाज करने लगी थी. राहुल सिंह भी वाराणसी में पढ़ाई कर रहा था.

अब अकसर देवांश जब भी अनुष्का से बात करना चाहता था तो वह या तो कोई बहाना बना कर टाल देती या उस की काल ही रिसीव नहीं करती थी. अनुष्का के अंदर अचानक से आए इस बदलाव को देख कर देवांश मन ही मन परेशान होने लगा था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार अनुष्का के अंदर यह परिवर्तन अचानक से कैसे आ गया है? समय बीतने के साथ अनुष्का के अंदर पहले से काफी कुछ बदलाव आ गया था.

अपने प्यार के अंदर अचानक से आए बदलाव को देख कर वह उदास रहने लगा था. मई महीने में कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह दिल्ली से अपने घर फर्रुखाबाद गया था. कुछ दिन घर रुकने के बाद वह 25 मई, 2023 को वाराणसी घूमने की बात कह कर वाराणसी आ गया था. वाराणसी आने के बाद उस ने अस्सी क्षेत्र के पैराडाइज होटल में एक कमरा बुक करा लिया था.

राहुल और शादाब ने पूछताछ में बताया कि देवांश यादव अनुष्का तिवारी से जबरदस्ती मिलना चाहता था और उसे परेशान करता था, जिस के कारण अनुष्का काफी परेशान चल रही थी. देवांश यादव की हरकतों से परेशान हो कर तीनों ने देवांश यादव की हत्या की योजना बनाई.

तय योजना के मुताबिक अनुष्का ने पहले देवांश को वाट्सऐप काल कर के वाराणसी बुलाया. 25 मई को जब देवांश वाराणसी आया तो उस ने पैराडाइज होटल में कमरा ले लिया. इसी दौरान उस की अनुष्का से मुलाकात भी हुई. अनुष्का ने योजना के तहत देवांश का भरोसा जीत लिया था.

अनुष्का से मिलते हुए देवांश ने कहा, ”तुम्हें पता है कि तुम्हारे बगैर मैं नहीं जी सकता.’’

देवांश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनुष्का बीच में ही उस की बात काटते हुए उत्साह से उस का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में लेते हुए बोली, ”मैं भी कैसे जीती हूं तुम्हें क्या पता? पढ़ाई की वजह से मैं बात नहीं कर पा रही थी तो तुम कुछ और ही सोचने लगे थे.’’

”अरे… अरे ऐसी बात नहीं है अनुष्का, तुम जिस दिन बात नहीं करती हो उस दिन मेरा मन किसी काम, पढ़ाईलिखाई में भी नहीं लगता.’’

कुछ देर अनुष्का के साथ बिताने के बाद देवांश होटल के अपने कमरे में चला गया था. अनुष्का के प्रति देवांश जहां पूरी तरह से आश्वस्त हो चला था तो वहीं अनुष्का के मन में चल रही साजिश से वह पूरी तरह से अनजान था.

27 मई, 2023 को अनुष्का ने साजिश के तहत देवांश को अस्सी नाला पुलिया के पास बुलाया, जहां पहले से ही वह इटिओस कार के साथ खड़ी थी. देवांश के करीब पहुंचे ही अनुष्का ने कार का दरवाजा खोल कर पीछे की सीट पर अपने बगल में देवांश को भी बैठा लिया.

गाड़ी शादाब चला रहा था, जबकि राहुल सेठ स्कूटी से कार के पीछेपीछे चल रहा था. कार में बैठने के बाद अनुष्का ने मैंगो जूस देवांश को पीने के लिए दिया, जिसे पीते ही देवांश झपकी लेने लगा था.

दरअसल, देवांश के जूस में अनुष्का ने नींद की गोलियों का पाउडर डाल दिया था, जिसे पीते ही कुछ देर बाद देवांश लुढ़क गया था. देवांश के बेहोश होने पर कार को तेजी से चंदौली की ओर दौड़ा दिया गया था कि इसी बीच देवांश के शरीर में हलचल होती देख अनुष्का घबरा गई. एक सुनसान जगह देख कर शादाब ने गाड़ी रोकी और अनुष्का के साथ मिल कर सड़क के किनारे पड़ी गिट्टियों पर देवांश को पटक दिया. तभी राहुल सेठ ने पेचकस से देवांश के गले और सीने में अनगिनत वार कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को फेंक कर चलते बने.

जहां पर देवांश की लाश को फेंका गया था, वहां सड़क कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. देवांश को मौत की नींद सुलाने के बाद उन्होंने उस के मोबाइल को बिहार की ओर जा रहे एक ट्रक पर फेंक दिया और वापस वाराणसी लौट आए थे. देवांश की हत्या करने के बाद उस की लाश को जिस स्थान पर फेंका गया था, वह चंदौली जिले के सिंघीताली पुलिया के पास का था.

उधर एक युवक की लाश मिलने की जानकारी होने पर चंदौली पुलिस शव को कब्जे में ले कर छानबीन में जुटी हुई थी, लेकिन कोई जानकारी नहीं हो पाई थी. युवक की हत्या क्यों हुई, किस ने और क्यों की, यह रहस्य बना हुआ था, लेकिन वाराणसी जिले के भेलूपुर थाना पुलिस ने इस त्रिकोणीय प्रेम प्रसंग हत्याकांड का खुलासा करते हुए प्रेमिका सहित 3 को गिरफ्तार कर परतदरपरत देवांश हत्याकांड मामले का खुलासा खुदबखुद होता चला गया. हत्यारे प्रेमीप्रेमिका और एक अन्य युवक को भेलूपुर पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर डीसीपी (काशी) आर.एस. गौतम व एडीसीपी चंद्रकांत मीणा के सामने पेश किया तो उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस कर केस का खुलासा कर दिया.

अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने आलाकत्ल पेचकस व घटना में प्रयुक्त स्कूटी के साथ ही मृतक देवांश की चप्पलें, फटी हुई टीशर्ट का टुकड़ा, लोअर, कड़ा व कलावा भी बरामद कर लिया.

पुलिस ने हत्या के आरोपी राहुल सेठ, शादाब आलम और अनुष्का तिवारी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

महिला सिपाही बनेंगी मर्द?

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और गोंडा में तैनात 2 महिला कांस्टेबलों द्वारा लिंग परिवर्तन के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगना विभाग में चर्चा का विषय बन चुका था.  इतना ही नहीं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला सिपाहियों ने अपने आवेदन को संवैधानिक अधिकार बताया. इस तरह की मांग करने वाली गोरखपुर और गोंडा के अलावा सीतापुर और अयोध्या की भी 2 सिपाही हैं.

चारों ने पहले डीजी औफिस में अरजी दे कर जेंडर बदलवाने के लिए अनुमति भी मांग चुकी हैं. महिलाओं की अरजी जब उच्चाधिकारियों के पास पहुंची, तब वे भी हैरान हो गए.

अयोध्या की ऐसी महिला सिपाही ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि उस का उत्तर प्रदेश पुलिस में साल 2019 में सेलेक्शन हुआ था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर थी. लिंग परिवर्तन के लिए वह फरवरी से दौड़ रही है. उस ने बताया कि गोरखपुर में वह एसएसपी, एडीजी फिर डीजी मुख्यालय तक जा चुकी है. उन्हीं में एक नीलम भी है. उस ने अपने भीतर मर्दानापन के एहसास के चलते हुए कई चौंकाने वाली बातें भी बताईं.

कहानी उत्तर प्रदेश पुलिस की महिला सिपाही नीलम की है. उस की पहली तैनाती उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर में हुई थी. उस ने पुलिस में भरती की सभी परीक्षाएं पास की थीं. लिखित परीक्षा से ले कर फिजिकल तक. शारीरिक जांच परीक्षा में उस ने दूसरे प्रतियोगियों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था. चाहे ग्राउंड के 4 चक्कर लगाने की परीक्षा हो या फिर लौंग जंप और हाई जंप, सभी में एक सधे हुए एथलीट की तरह उस ने फिजिकल परीक्षा लेने वाले पुलिस अधिकारी को हैरान कर दिया था.

तब उन के मुंह से अनायास निकल पड़ा था, ”वाह! तुम्हें तो ओलंपिक में जाना चाहिए था.’‘

जवाब में वह सिर्फ यही बोल पाई थी, ”छोटे गांव शहर वाले को पूछता कौन है साहबजी. सिपाही की यही नौकरी मिल जाए, बहुत है मेरे लिए.

यह 2019 बात की है. अयोध्या की रहने वाली नीलम का उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर सेलेक्शन हो गया था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर में हुई थी. ड्यूटी पर नीलम के मिजाज और हावभाव दूसरी महिला सिपाहियों से कुछ अलग थे. बोलचाल, चालढाल, उठनेबैठने का स्टाइल उसे सामान्य लड़की से अलग करता था.

वह एकदम अलग दिखती थी. चाहे ड्यूटी पर पुलिस की पुरुष वाली वरदी में हो या फिर घरपरिवार में. सामान्य जीवन में उसे मर्दों वाले कपड़े ही पसंद आते थे. जींसपैंट, शर्ट टीशर्ट उस की खास पोशाक थी. मेकअप सुंदर दिखने के लिए नहीं, बल्कि चेहरे की साफसफाई के लिए करती थी.

उस की आवाज भले ही महीन हो, लेकिन बोलने का लहजा औरत की आवाज से एकदम अलग था. खास तरह की खनक. एकदम स्पष्ट और तने हुए शब्दों में सटीक बातें करने की शैली. अपने अधिकारियों को अदब के साथ सरनेम से बुलाना. पुरुष सिपाहियों और अधिकारियों को मिस्टर सिंहजी और मिस्टर पांडे साहब या मिस्टर यादवजी  कहना आदि बातें उसे औरों से अलग करने के लिए काफी थीं. कानूनी धाराएं तो उस की जुबान पर रहती थीं.

बहुत जल्द ही वह अपने थाने के स्टाफ के बीच लोकप्रिय हो गई थी. साथ काम करने वाले सिपाही से ले कर अधिकारी तक उस की तारीफ करते थे और वह उन के लिए एक मिसाल थी. अधिकारियों द्वारा उस की अनुपस्थिति में गाहेबगाहे उन की खूबियों की चर्चा होती थी.

इस के बावजूद नीलम खुद को असहज महसूस करती थी. खासकर जब से उस ने पुलिस की वरदी पहनी और ड्यूटी जौइन की, तब से उस में अलग तरह के बदलाव आ गए थे. घरपरिवार और दूसरे लोग भी कहने लगे थे. खासकर उस की सहेलियां और रिश्तेदारी में लड़कियां बोलती थीं, ”तू तो बहुत बदल गई पुलिस बन कर!’‘

बुलेट पर बैठी नीलम यह सुन कर हेलमेट पहनती हुई सिर्फ मुसकरा दी थी. उन्हें एक तीखी नजर से देखती हुई, तुरंत बाइक का गियर बदल कर एक्सेलेटर घुमा दिया था. बाइक की तेजी से घुरघुराती हुई घर्रघर्र और फटफट की भारी आवाज सुन दूर खड़े लड़के भी देखने लगे थे. चंद सेकेंड बाद वे बुलट पर जाती नीलम को देख रहे थे…आहें भर रहे थे.

सैक्स चेंज कराने की जिद पर अड़ गई नीलम

साल 2023 की जनवरी का महीना था. नीलम यूपी पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) रैंक के एक अधिकारी के सामने दोनों हाथ जोड़े खड़ी थी. विनम्रता के साथ बोली, ”साहबजी, मैं ने एक एप्लीकेशन दी थी, उस का क्या हुआ?’‘

”क्या नाम है तुम्हारा?’‘ अधिकारी ने फाइलें पलटते हुए पूछा.

”जी, साहबजी क…क..नीलम!’‘ अटकती हुई बोली.

”पूरा नाम बोलो, पूरा.’‘

”जी, नीलम सिंह साहबजी!’‘

”अच्छा तो तू वही लड़की है, जेंडर डिस्फोरिया वाली कांस्टेबल!’‘ पुलिस अधिकारी बोले.

”जी साहबजी, सही पहचाना आप ने. क्या हुआ मेरी एप्लीकेशन का, कोई जवाब आया क्या?’‘

”जवाब? कैसा जवाब चाहिए तुम्हें? मनमरजी है क्या? नौकरी पाओ फीमेल बन कर और जब मिल जाए तब मर्द बनने की गुहार लगाओ, फिर प्रमोशन…!’‘ पुलिस अधिकारी ने कहा.

”लेकिन साहबजी, आप मेरी समस्या को समझिए. मैं कितनी उलझन में हूं. कितनी तकलीफ में हूं इसे भी तो समझिए,’‘ नीलम बोली.

”क्या समझूं मैं? जब तुम्हें पता था कि तुम्हारे शरीर में मर्दानापन है, मेल के लक्षण हैं, तब सैक्स चेंज पहले करवा लेती. फिर नौकरी का आवेदन करती.’‘

”तब तक इतना नहीं पता था सर, नौकरी लगे 3 साल हो गए. कोरोना आ गया. 2 साल तो उसी में निकल गए. तब कहां मालूम था कि आगे चल कर जीना मुश्किल जो जाएगा.’‘

”तुम्हारा जीना मुश्किल? अरे तुम ने तो एप्लीकेशन दे कर यूपी पुलिस को मुश्किल में डाल दिया है,’‘ एडीजी बोले.

”मैं ने क्या किया है सर, हम ने तो अपनी समस्या बताई और कहा कि इस हाल में ड्यूटी निभाने में परेशानी है. अगर मेरे आपरेशन करवा देने से बात बन जाती है तो हर्ज क्या है?’‘ नीलम बोली.

तब तक एडीजी साहब अपने सामने कुछ और डाक्यूमेंट निकाल चुके थे. उन में एक तो नीलम की एप्लीकेशन थी, जिस पर विभाग के कई पुलिस अधिकारियों के दस्तखत थे. उस के साथ कुछ अनुशंसा पत्र थे. नीलम के अलावा कई और सिपाही भी थीं, जो अपना जेंडर चेंज कराना चाहती थीं.

2 पन्ने के दूसरे डाक्यूमेंट को उठा कर पढ़ने के बाद बोले, ”यह रही तुम्हारी एप्लीकेशन की काररवाई की रिपोर्ट. तुम्हारी एप्लीकेशन के आधार को किंग जार्ज मैडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ को विभाग ने लिखा था. उस का जवाब आया है.’‘

”क्या कहा है मैडिकल वालों ने? मेरी जांच के लिए कब बुलाया है?’‘ नीलम उत्सुकता से बोली.

”जांच के लिए बुलावा! सपना देख रही हो!… इस में लिखा है कि अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले, चिकित्सा से पहले कानूनी राय लेनी होगी. महिलाओं और लैंगिक मुद्दे का मामला है.’‘ पुलिस अधिकारी ने कहा.

”इस का मतलब अभी कुछ नहीं हुआ है मेरी रिक्वेस्ट का?’‘ नीलम बोली.

”कैसे कुछ नहीं हुआ है? विभाग के अपने नियम हैं. अस्पताल के अपने. दोनों के बीच तालमेल बिठाने पर ही तो कुछ होगा.’‘

”वह कब तक होगा?’‘ नीलम ने उत्सुकता दिखाई.

”देखो, तुम जितना आसान समझती हो, उतना है नहीं. तुम्हारी नौकरी महिला कांस्टेबल के पद पर लग चुकी है. ऐसे में कई नियमों को लांघना पड़ेगा.’‘ एडीजी ने समझाने की कोशिश की.

”विभाग से कोई मदद नहीं मिलेगी?’‘

”विभाग इस में जो कर सकता है कर रहा है. पत्राचार किया जा रहा है. इस समस्या की तुम अकेली कांस्टेबल नहीं हो. एक और गोंडा थाने की कांस्टेबल का मामला भी है. तुम दोनों कांस्टेबलों ने लिंग परिवर्तन की अनुमति के लिए आवेदन किया है. तुम लोगों ने विभिन्न कारणों का उल्लेख किया है. किंतु…’‘

एडीजी के बोलने के क्रम में नीलम बीच में ही बोल पड़ी, ”किंतु परंतु क्यों करते हैं साहबजी, आप के हाथों में ही तो सब कुछ है.’‘

”पहले तुम विभागीय बात को समझने की कोशिश करो. लिंग परिवर्तन की अनुमति देने में मुख्य समस्या यह है कि यदि सर्जरी के बाद उन्हें पुरुष कांस्टेबल माना जाता है तो उस के लिए पुरुष कांस्टेबलों के लिए आवश्यक अन्य शारीरिक मानदंड कैसे मेल खाएंगे? पुरुष और महिला वर्ग के लिए ऊंचाई, दौड़ने की क्षमता और कंधे की ताकत जैसे अलगअलग शारीरिक मानदंड हैं,’‘ एडीजी बोले.

”क्या आप को नहीं मालूम कि महाराष्ट्र में एक कांस्टेबल ललिता का सैक्स चेंज ड्यूटी पर रहते हुए किया जा चुका है. तो फिर मेरा क्यों नहीं?’‘ नीलम ने उदाहरण और तर्क दिया.

”हर राज्य के कुछ अपने नियम भी होते हैं. यूपी पुलिस में पुरुषों और महिलाओं के लिए भरती मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाता है और महिला मानदंड के तहत नौकरी पाने के बाद लिंग बदलना मानदंडों की अवहेलना होगी.’‘ एडीजी बोले.

इस पर नीलम उदास हो गई. निराश मन से वापस गोरखपुर लौट आई, किंतु शांत नहीं बैठी.

नीलम ने एक वकील से संपर्क किया और इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी समस्या को ले कर याचिका दायर कर दी. वकील ने याचिका में महिला सैक्स चेंज को ले कर कुछ उदाहरणों के डाक्यूमेंट भी लगा दिए. नीलम ने याचिका मे सैक्स चेंज करवाने की अनुमति मांगी.

यूपी की राज्य पुलिस के सामने इस तरह का पहला मामला आया था. सुनवाई के क्रम मे कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए यूपी पुलिस से सवालजवाब किए. यूपी पुलिस अपना तर्क रखते हुए बोली कि महिला पुलिस के रूप में भरती होने के बाद कांस्टेबलों को अपना लिंग बदलने की अनुमति कैसे दे सकते हैं.

इस के जवाब में अदालत ने मुख्यालय से महिला कांस्टेबल के अनुरोध पर योग्यता के आधार पर पुनर्विचार करने और भविष्य में दोबारा सामने आने वाले ऐसे ही मामलों के लिए कुछ मानदंड तैयार करने को कहा.

आखिर कब पूरी होगी इन की इच्छा

इस कहानी के लिखे जाने तक उत्तर प्रदेश पुलिस के शीर्ष अधिकारी दुविधा में फंसे हुए थे. गोरखपुर और गोंडा में तैनात 2 महिला सिपाहियों द्वारा लिंग परिवर्तन के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगना विभाग में चर्चा का विषय बन चुका था.

इतना ही नहीं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला सिपाही ने अपने आवेदन को संवैधानिक अधिकार बताया. इस तरह की मांग करने वाली गोरखपुर और गोंडा के अलावा सीतापुर और अयोध्या की भी 2 सिपाही हैं.

चारों पहले डीजी औफिस में अरजी दे कर जेंडर बदलवाने के लिए अनुमति भी मांग चुकी हैं. महिलाओं की अरजी जब उच्चाधिकारियों के पास पहुंची, तब वे भी हैरान हो गए. महिला सिपाहियों की अरजी को देखते हुए चारों जिलों में पुलिस अधीक्षकों को डीजी औफिस की ओर से पत्र लिख कर उन की काउंसलिंग कराने के लिए कहा गया.

अयोध्या की ऐसी महिला सिपाही ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि उस का उत्तर प्रदेश पुलिस में साल 2019 में सेलेक्शन हुआ था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर थी. लिंग परिवर्तन के लिए वह फरवरी से दौड़ रही हैं. उस ने बताया कि गोरखपुर में वह एसएसपी, एडीजी फिर डीजी मुख्यालय तक जा चुकी है.

उन्हीं में एक नीलम भी है. उस ने अपने भीतर मर्दानापन के एहसास के चलते हुए कई चौंकाने वाली बातें भी बताईं. पुलिस विभाग में पुरुष बनने के सवाल पर अधिकारियों को उस ने बताया कि पढ़ाई के दौरान ही उस के हारमोंस चेंज होने लगे थे. इस के बाद से ही उन का जेंडर बदलवाने की इच्छा होने लगी.

सब से पहले उस ने दिल्ली में एक बड़े डाक्टर से कई चरणों में काउंसलिंग करवाई थी. डाक्टर ने जांचपड़ताल के बाद उस का जेंडर डिस्फोरिया बताया. डाक्टर की रिपोर्ट के आधार पर ही उस ने लिंग बदलवाने की अनुमति मांगी है.

नीलम ने यह भी बताया कि उस का स्टाइल पुरुष जैसा है. वह पुरुष जैसा दिखना ही नहीं, उसी तरह की जिंदगी जीना चाहती है. फिलहाल वह बाल और पहनावे पुरुषों की तरह रखती है. बाइक से चलना पसंद है. पैंटशर्ट पहनना सहज लगता है.

उस ने बताया कि जब वह स्कूल जाती थी, तभी से उसे लड़कियों की तरह काम करना अटपटा लगता था. स्कूल में उस की चालढाल की वजह से कई लोग उसे लड़का कहते थे, जो उसे बहुत अच्छा लगता था. बहरहाल, अब देखना यह है कि इन पुलिसकर्मियों की सैक्स चेंज कराने की इच्छा कब पूरी होगी?

महिला सिपाही ललिता से बनी ललित 

महाराष्ट्र पुलिस की कांस्टेबल ललिता साल्वे राज्य की पहली महिला सिपाही थी, जिसे सैक्स चेंज करवाने की लंबी कानूनी प्रक्रिया और जटिल इलाज के दौर से गुजरना पड़ा था. उस ने अपने औपरेशन के लगभग 4 साल पहले शरीर में परिवर्तन देखे थे और डाक्टरी परीक्षण कराया था.

उस के बाद बाद महाराष्ट्र पुलिस ने लिंग परिवर्तन सर्जरी की सलाह दी थी. उस का आपरेशन 2017 में किया गया था और उसी साल 25 मई को ललिता से ललित बनने का सफर खत्म हो गया था.

महाराष्ट्र पुलिस का यह अनोखा मामला 29 साल की महिला कांस्टेबल ललिता साल्वे का था. उस की 2009 में महाराष्ट्र पुलिस में नियुक्ति हुई थी. उस की पोस्टिंग बीड थाने में हुई थी. उस ने नौकरी करते कुछ समय बाद ही महसूस किया कि वह लड़के के रूप में ज्यादा बेहतर काम कर सकती है.

इस बारे में उस ने डाक्टरी जांच करवाई, तब मालूम हुआ कि जेंडर आइडेंटिटी डिसऔर्डर से प्रभावित है. उसे सही और अच्छी जिंदगी गुजारनी है तो उस के लिए सेक्स चेंज कराना अच्छा रहेगा.

इस सलाह को ललिता ने अपने घर वालों को बताया और उन से सहयोग मांगा. इस में परिवार ने पूरा सपोर्ट किया. उस के बाद ही ललिता ने अपने विभाग के अधिकारियों और डीजीपी स्टेट डेप्यूटी जनरल सतीश माथुर से सैक्स चेंज सर्जरी की अनुमति मांगी थी. साल्वे ने यह भी कहा था कि वह सर्विस में बनी रहना चाहती है.

तब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेंद्र सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला मामला है. फिर भी उसे अनुमति नहीं मिली थी.

इसी सिलसिले में साल्वे को ड्यूटी में शामिल होने के बाद एक पुरुष कांस्टेबल को दिए जाने वाले लाभ का भी मसला सामने आया था. साल्वे ने पहले लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने के लिए छुट्टी देने के लिए राज्य पुलिस विभाग से संपर्क किया था.

विभाग ने मांग खारिज कर दी थी, क्योंकि पुरुष और महिला कांस्टेबलों के लिए पात्रता मानदंड अलगअलग थे, जिस में ऊंचाई और वजन की आवश्यकताएं भी शामिल थीं. विभागीय अनुमति नहीं मिलने पर ही ललिता ने नवंबर 2017 में मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मांग की थी कि राज्य पुलिस को उन्हें छुट्टी देने के लिए निर्देश जारी किए जाएं.

1988 में जन्मी साल्वे ने एक याचिका में बौंबे हाईकोर्ट को बताया था कि उस ने लगभग 4 साल पहले अपने शरीर में परिवर्तन देखा था और डाक्टरी जांच कराई थी, जिस में उस के शरीर में वाई क्रोमोसोम की उपस्थिति की पुष्टि हुई थी.

जहां पुरुषों में एक्स और वाई सैक्स क्रोमोसोम होते हैं, वहीं महिलाओं में 2 एक्स क्रोमोसोम होते हैं. डाक्टरों ने कहा था कि उसे लिंग डिस्फोरिया है और उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने की सलाह दी थी.

इस पर कोर्ट ने पुलिस को पत्र लिखा था. सभी कानूनी आधार को देखते हुए बीड के एसपी जी. श्रीधर ने भी इस की पुष्टि करते हुए लिखा कि उन्हें महिला कांस्टेबल की याचिका के संबंध में जवाब दिए और सैक्स चेंज की अनुमति मिली. सर्जरी के लिए अपनी चिकित्सीय फिटनेस स्थापित करने के लिए साल्वे को एक्सरे स्कैन, इलैक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ईसीजी) जांच और रक्त परीक्षण जैसी कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा था.

प्रेमिका की कब्र पर आम का पेड़ – भाग 1

समरजीत करीब एक साल बाद दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ गांव धनजई लौटा तो मोहल्ले वालों ने उस  में कई बदलाव देखे. उस के पहनावे और बातचीत में काफी अंतर आ चुका था. उस का बातचीत का तरीका गांव वालों से एकदम अलग था. इस से गांव वाले समझ गए कि दिल्ली में उस का काम ठीकठाक चल रहा है. धनजई गांव उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में पड़ता है.

देखने से ही लग रहा था कि समरजीत की हालत अब पहले से अच्छी हो गई है, लेकिन गांव वाले एक बात नहीं समझ पा रहे थे कि जब वह गांव से गया था तो गांव के ही रहने वाले रामसनेही की बेटी दीपा को भगा कर ले गया था. लेकिन उस के साथ दीपा दिखाई नहीं दे रही थी.

दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच काफी दिनों से प्रेमसंबंध चल रहा था. जिस के चलते वह और दीपा करीब एक साल पहले गांव से भाग गए थे. बाद में रामसनेही को पता लगा कि समरजीत दीपा के साथ दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहा है.

गांव के ही लड़के के साथ बेटी के भाग जाने की बदनामी रामसनेही झेल रहा था. उसे जब पता लगा कि समरजीत के साथ दीपा नहीं आई है तो यह बात उसे कुछ अजीब सी लगी. बेटी को भगा कर ले जाने वाला समरजीत उस के लिए एक दुश्मन था. इस के बावजूद भी बेटी की ममता उस के दिल में जाग उठी. उस ने समरजीत से बेटी के बारे में पूछ ही लिया.

तब समरजीत ने बताया, ‘‘वह तो करीब एक महीने पहले नाराज हो कर दिल्ली से गांव चली आई थी. अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है?’’

यह सुन कर रामसनेही चौंका. उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? वो यहां आई ही नहीं है.’’

‘‘अब मुझे क्या पता वह कहां गई? आप अपनी रिश्तेदारियों वगैरह में देख लीजिए. क्या पता वहीं चली गई हो.’’

समरजीत की बात रामसनेही के गले नहीं उतरी. वह समझ नहीं पा रहा था कि समरजीत जो दीपा को कहीं देखने की बात कह रहा है, वह कहीं दूसरी जगह क्यों जाएगी? फिर भी उस का मन नहीं माना. उस ने अपने रिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपा के बारे में पता किया, लेकिन पता चला कि वह कहीं नहीं है. बात एक महीना पुरानी थी. ऐसे में वह बेटी को कहां ढूंढ़े. बेटी के बारे में सोचसोच कर उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात दिसंबर, 2013 के आखिरी हफ्ते की थी.

समरजीत के साथ उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव आए थे. रामसनेही ने दोनों भाइयों से भी बेटी के बारे में पूछा. लेकिन उन से भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला. 10-11 दिन गांव में रहने के बाद समरजीत दिल्ली लौट गया.

बेटी की कोई खैरखबर न मिलने से रामसनेही और उस की पत्नी बहुत परेशान थे. वह जानते थे कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर में रहता है. वहीं पर उन के गांव का एक आदमी और रहता था. उस आदमी के साथ जनवरी, 2014 के पहले हफ्ते में रामसनेही भी पुल प्रहलादपुर आ गया.

थोड़ी कोशिश के बाद उसे समरजीत का कमरा मिल गया. उस ने वहां आसपास रहने वालों से बेटी दीपा का फोटो दिखाते हुए पूछा. लोगों ने बताया कि जिस दीपा नाम की लड़की की बात कर रहा है, वह 22 दिसंबर, 2013 तक तो समरजीत के साथ देखी गई थी, इस के बाद वह दिखाई नहीं दी है.

समरजीत ने रामसनेही को बताया था दीपा एक महीने पहले यानी नवंबर, 2013 में नाराज हो कर दिल्ली से चली गई थी, जबकि पुल प्रहलादपुर गांव के लोगों से पता चला था कि वह 22 दिसंबर, 2013 तक समरजीत के साथ थी. इस से रामसनेही को शक हुआ कि समरजीत ने उस से जरूर झूठ बोला है. वह दीपा के बारे में जानता है कि वह इस समय कहां है?

रामसनेही के मन में बेटी को ले कर कई तरह के खयाल पैदा होने लगे. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं इन लोगों ने बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं कर दी. यही सब सोचते हुए वह 6 जनवरी, 2014 को दोपहर के समय थाना पुल प्रहलादपुर पहुंचा और वहां मौजूद थानाप्रभारी धर्मदेव को बेटी के गायब होने की बात बताई.

रामसनेही ने थानाप्रभारी को बेटी का हुलिया बताते हुए आरोप लगाया कि समरजीत और उस के भाइयों, अरविंद व धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ बेटी को अगवा कर उस के साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया है. थानाप्रभारी धर्मदेव ने उसी समय रामसनेही की तहरीर पर भादंवि की धारा 365, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराकर सूचना एसीपी जसवीर सिंह मलिक को दे दी.

मामला जवान लड़की के अपहरण का था, इसलिए एसीपी जसवीर सिंह मलिक ने थानाप्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर आर.एस. नरुका, सबइंसपेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेडकांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, राकेश, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, धर्म सिंह आदि को शामिल किया गया.

उधर दिल्ली में रह रहे समरजीत और उस के भाइयों को जब पता चला कि दीपा का बाप रामसनेही पुल प्रहलादपुर आया हुआ है तो तीनों भाई दिल्ली से फरार हो गए. पुलिस टीम जब उन के कमरे पर गई तो वहां उन तीनों में से कोई नहीं मिला.

चूंकि तीनों आरोपी रामसनेही के गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए पुलिस टीम रामसनेही को ले कर यूपी स्थित उस के गांव धनजई पहुंची. लेकिन घर पर समरजीत और उस के घर वालों में से कोई नहीं मिला.

अब पुलिस को अंदेशा हो गया कि जरूर कोई न कोई गड़बड़ है, जिस की वजह से ये लोग फरार हैं. गांव के लोगों से बात कर के पुलिस ने यह पता लगाया कि इन के रिश्तेदार वगैरह कहांकहां रहते हैं, ताकि वहां जा कर आरोपियों को तलाशा जा सके.  इस से पुलिस को पता चला कि सुलतानपुर और फैजाबाद के कई गांवों में समरजीत के रिश्तेदार रहते हैं. उन रिश्तेदारों के यहां जा कर दिल्ली पुलिस ने दबिशें दीं, लेकिन वे सब वहां भी नहीं मिले.

दिल्ली पुलिस ने समरजीत के सभी रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि आरोपियों को जल्द से जल्द पुलिस के हवाले करें. उधर बेटी की चिंता में रामसनेही का बुरा हाल था. वह पुलिस से बारबार बेटी को जल्द तलाशने की मांग कर रहा था. समरजीत या उस के भाइयों से पूछताछ करने के बाद ही दीपा के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी. इसलिए दिल्ली पुलिस की टीम अपने स्तर से ही आरोपियों को तलाशती रही.

9 जनवरी, 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत सुलतानपुर के ही गांव नगईपुर, सामरी बाजार में रहने वाले अपने मामा के यहां आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस नगईपुर गांव पहुंच गई. सूचना एकदम सही निकली. वहां पर समरजीत, उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र के अलावा उस का मामा नरेंद्र भी मिल गया.

चूंकि दीपा समरजीत के साथ ही रह रही थी, इसलिए पुलिस ने सब से पहले उसी से दीपा के बारे में पूछा. इस पर समरजीत ने बताया, ‘‘सर, नवंबर, 2013 में दीपा उस से लड़ झगड़ कर दिल्ली से अपने गांव जाने को कह कर चली आई थी. इस के बाद वह कहां गई, इस की उसे जानकारी नहीं है.’’

‘‘लेकिन पुल प्रहलादपुर में जहां तुम लोग रहते थे, वहां जा कर हम ने जांच की तो जानकारी मिली कि दीपा 23 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में ही तुम्हारे साथ थी.’’ थानाप्रभारी धर्मदेव ने कहा तो समरजीत के चेहरे का रंग उड़ गया.

थानाप्रभारी उस का हावभाव देख कर समझ गए कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने रौबदार आवाज में उस से कहा, ‘‘देखो, तुम हम से झूठ बोलने की कोशिश मत करो. दीपा के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी किया है, हमें सब पता चल चुका है. वैसे एक बात बताऊं, सच्चाई उगलवाने के हमारे पास कई तरीके हैं, जिन के बारे में तुम जानते भी होगे. अब गनीमत इसी में है कि तुम सारी बात हमें खुद बता दो, वरना…’’

इतना सुनते ही वह डर गया. वह समझ गया कि अगर सच नहीं बताया कि पुलिस बेरहमी से उस की पिटाई करेगी. इसलिए वह सहम कर बोला, ‘‘सर, हम ने दीपा को मार दिया है.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, उस की लाश बाग में दफन कर दी है.’’ समरजीत ने कहा तो पुलिस चारों आरोपियों के साथ उस बाग में पहुंची, जहां उन्होंने दीपा की लाश दफन करने की बात कही थी. समरजीत के मामा नरेंद्र ने पुलिस को आम के बाग में वह जगह बता दी. लेकिन उस जगह तो आम का पेड़ लगा हुआ था. नरेंद्र ने कहा कि लाश इसी पेड़ के नीचे है.

उन लोगों की निशानदेही पर पुलिस ने वहां खुदाई कराई तो वास्तव में एक शाल में गठरी के रूप में बंधी एक महिला की लाश निकली. उस समय रामसनेही भी पुलिस के साथ था. लाश देखते ही वह रोते हुए बोला, ‘‘साहब यही मेरी दीपा है. देखो न इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया. मुझे पहले ही इन लोगों पर शक हो रहा था. इन के खिलाफ आप सख्त से सख्त काररवाई कीजिए, ताकि ये बच न सकें.’’

वहां खड़े गांव वालों ने तसल्ली दे कर किसी तरह रामसनेही को चुप कराया. गांव वाले इस बात से हैरान थे कि समरजीत दीपा को बहुत प्यार करता था, जिस के कारण दोनों गांव से भाग गए थे. फिर समरजीत ने उस के साथ ऐसा क्यों किया?

प्रेमलीला ने लील ली जान

ओमप्रकाश जितना सीधासादा था, उतना ही मेहनती भी था. गांव में इधरउधर बैठने के बजाय वह अपने खेती के काम में लगा रहता  था. उस के खेतों में अच्छी पैदावार होती थी. इसी वजह से गांव के लोग उस की पीठ पीछे भी तारीफ करते थे. ओमप्रकाश के घर के पास ही संतोष रावत रहता था. शादीशुदा होते हुए भी दूसरी महिलाओं से नजदीकी बढ़ाना उस की आदत में शुमार था.

एक दिन वह ओमप्रकाश के घर गया. वहां उस की पत्नी सुनीता मिली. वह उस से ओमप्रकाश की तारीफ  करते हुए बोला, ‘‘भाभी, तुम भैया को ऐसा क्या खिलाती हो कि दिनरात खेतों में जुटे रहते हैं, फिर भी नहीं थकते. मेरे घर वाले कहते हैं कि मेहनत करने का सबक ओमप्रकाश से सीखो.’’

पति की प्रशंसा सुन कर सुनीता मुसकराई, लेकिन बोली कुछ नहीं. संतोष ने समझा कि वह पति की तारीफ सुन कर मन ही मन गदगद हो रही है. इसलिए उस ने ओमप्रकाश की तारीफ के पुल बांधना जारी रखा.

‘‘सुबह से देर शाम तक खेत में ही तो जुटे रहते हैं. जबकि आदमी को घर की तरफ ध्यान देना भी जरूरी होता है. घर में जो काम करना चाहिए, वह तो करते नहीं.’’ सुनीता ने कहा.

संतोष के दिमाग में बिजली सी कौंधी. वह सोचने लगा कि ऐसा कौन सा काम है, जो भैया घर पर नहीं करते. जिज्ञासा शांत करने के लिए वह बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी बात समझा नहीं. ऐसा कौन सा काम है जो भैया नहीं करते?’’

मन की भड़ास निकालने के लिए सुनीता ने जैसे ही मुंह खोला, तभी उस की जेठानी कमला आ गई. वे दोनों आपस में बतियाने लगीं तो संतोष वहां से चला गया.

ओमप्रकाश उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के गांव सलोनीपुर मजरा खिजना का रहने वाला था. उस का विवाह करीब 6 साल पहले सीतापुर के महमूदाबाद थाना के जसमंडा गांव की रहने वाली सुनीता से हुआ था. सुनीता खूबसूरत थी, इसलिए उस से शादी कर के ओमप्रकाश बहुत खुश था. बाद में सुनीता 2 बेटों और 1 बेटी की मां बनी.

संतोष ओमप्रकाश को बड़ा भाई मानता था. ओमप्रकाश भी छोटा भाई मान कर उस का पूरा खयाल रखता था. इसी वजह से संतोष उस के घर आताजाता रहता था. सुनीता और संतोष में खूब पटती थी. उन के बीच हंसीमजाक भी चलता रहता था.

सुनीता द्वारा कही गई बात संतोष के जेहन में घूम रही थी. वह समझ गया था कि सुनीता ओमप्रकाश से संतुष्ट नहीं है. अगर वह संतुष्ट होती तो पति की तारीफ सुन कर खुश हो जाती और कुछ न कुछ जरूर कहती. वह किस वजह से असंतुष्ट थी, यह तो वही जानती होगी. लेकिन संतोष का मन कह रहा था कि वह दैहिक रूप में असंतुष्ट होगी. लेकिन ऐसा होता तो उस के आंगन में 3 बच्चे नहीं खेल रहे होते.

संतोष ने काफी सोचा, लेकिन वह सुनीता की असंतुष्टि का कारण नहीं जान पाया. हकीकत जानने के लिए अगले दिन दोपहर में वह सुनीता के घर जा पहुंचा.

उस समय सुनीता घर में अकेली थी. संतोष उस के पास जा कर बैठ गया. दोनों ने मुसकान बिखेर कर एकदूसरे के प्रति मन की खुशी जाहिर की. बातचीत का सिलसिला जुड़ा तो संतोष के मन की बात होंठों पर आ गई, ‘‘भाभी, कल तुम जो बात कह रही थीं, कमला भाभी के आ जाने की वजह से अधूरी रह गई थी. आखिर वह क्या बात है?’’

सुनीता ने गहरी नजरों से संतोष को देखा. फिर वह मुसकरा कर बोली, ‘‘लगता है कि कल से तुम इसी उधेड़बुन में लगे हो.’’

‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है, लेकिन कोई बात अधूरी रह जाए तो मन को मथती रहती है.’’ संतोष बोला.

‘‘उसी बात को जानने के लिए बेचैन हो?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘हां भाभी,’’ संतोष बोला.

‘‘मान लो, मैं बता भी दूंगी तो उस से क्या फायदा होगा? जो काम वह नहीं करते, उसे तुम कर दोगे?’’ सुनीता ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

सुनीता की आंखों में छाए नशे और बातों से संतोष अच्छी तरह समझ गया कि वह क्या चाहती है. इसलिए वह भी उसी अंदाज में बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी हर तरह की सेवा करने को मैं तैयार हूं. कुछकुछ तुम्हारी भावनाओं को समझ भी रहा हूं.’’

‘‘संतोष सोच लो, तुम शादीशुदा हो. बीवी के होते हुए तुम मेरे लिए टाइम निकाल पाओगे?’’

‘‘उस की चिंता मत करो. उसे भनक तक नहीं लगेगी. सच तो यह है कि भाभी, मैं तुम्हें बहुत दिनों से प्यार करता हूं, लेकिन तुम से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.’’ संतोष ने सुनीता के नजदीक आते हुए कहा.

उस समय कमरे में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था. इसलिए दोनों खुद पर काबू न रख सके और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अवैध संबंधों की राह बहुत ढलवां होती है. कोई भी आदमी इस पर एक बार कदम रख देता है तो वह फिसलता ही जाता है. संतोष और सुनीता ने शादीशुदा होते हुए भी ऐसे रास्ते पर कदम रखा था, जिस का खामियाजा हमेशा गलत ही होता है. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी को धोखा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते रहे. उन्होंने वासना की आग में सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

पाप की गठरी अधिक दिनों तक बंधी नहीं रहती. एक न एक दिन उस की गांठ खुल ही जाती है. धीरेधीरे दोनों के नाजायज संबंधों की भनक गांव के लोगों को भी लग गई. गांव में अपनी बदनामी होते देख सुनीता संतोष से दूरी बनाने लगी. लेकिन संतोष उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था. वह जबतब उस के यहां आता रहा.

इसी साल मार्च में ओमप्रकाश का भांजा विकास घर आया. 18 साल का विकास उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव इब्राहीमपुर में रहता था. विकास शारीरिक रूप से मजबूत था.

उसे देख कर पथभ्रष्ट हो चुकी सुनीता के मन में लालच के बीज अंकुरित होने लगे. इस से पहले भी उस ने विकास को कई बार देखा था, लेकिन इस बार उस की सोच बदल गई थी. सुनीता ने विकास की खूब आवभगत की. वह कई दिनों तक मामा के घर रुका रहा. इस दौरान सुनीता विकास के इर्दगिर्द मंडराती रही. मौका देख वह उस से हंसीमजाक भी करती थी.

कुछ दिन रुकने के बाद जब विकास वापस जाने लगा तो सुनीता विकास का हाथ थाम कर बोली, ‘‘विकास, अब कब आओगे?’’

मामी के इस तरह हाथ पकड़ने से विकास के शरीर में सनसनाहट सी दौड़ गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह वहां से अभी न जाए, लेकिन पापा का फोन आ गया था, जिस से उसे वहां से उसी समय जाना पड़ रहा था. उस ने सुनीता को मन की बात बताते हुए कहा, ‘‘मामी, वैसे तो मेरा यहां से जाने का मन नहीं कर रहा है. लेकिन मैं जल्दी ही लौट आऊंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

विकास ने मामी के खूबसूरत चेहरे पर नजरें जमाईं तो उस की आंखों में प्यार का मूक आमंत्रण था.

विकास अपने घर तो वापस आ गया, लेकिन उस के मनमस्तिष्क में मामी का खूबसूरत बदन और उस के द्वारा कहे शब्द ही घूम रहे थे. उस का घर पर भी मन नहीं लग रहा था. कुछ दिनों बाद ही वह अपने मन में मामी की नजदीकी हासिल करने के सपने संजोए उस के घर आ गया.

विकास को आया देख सुनीता की खुशी का ठिकाना न रहा. वह अब जल्द ही अपनी हसरतें पूरी करना चाहती थी. एक दिन उस ने विकास से पूछा, ‘‘विकास क्या तुम ने किसी लड़की से प्यार किया है?’’

‘‘क्यों.’’ विकास ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘बताओ तो सही.’’ कह कर सुनीता विकास के करीब आ गई.

‘‘एक है, लेकिन पता नहीं वह भी मुझ से प्यार करती है या नहीं.’’

‘‘तुम्हें उस के सामने प्यार का इजहार करना चाहिए.’’ सुनीता ने कहा.

‘‘सोचा कहीं बुरा न मान जाए. अच्छा मामी यह बताओ, अगर उस की जगह तुम होती तो क्या करतीं?’’

‘‘मेरे ऐसे भाग्य कहां.’’ कह कर सुनीता उदास हो गई.

‘‘फिर भी बताओ तो सही. तुम्हारा क्या जवाब होता?’’

‘‘तो मैं तुम्हारे गले में बांहों का हार पहना देती. मगर विकास तुम यह मुझ से क्यों पूछ रहे हो?’’ सुनीता ने मासूमियत से पूछा.

‘‘क्योंकि वह और कोई नहीं, तुम ही हो. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें बांहों में भर कर खूब प्यार लुटाना चाहता हूं.’’ विकास की आंखों में वासना के लाल डोरे उभर आए थे.

‘‘बिलकुल बुद्धू हो, औरत की आंखों की भाषा पढ़ना भी नहीं जानते.’’

सुनीता की बात सुन कर विकास ने उसे अपनी बांहों में भर कर उस के चेहरे को चूम लिया. सुनीता ने भी उसे अपने अनुभव के जलवे दिखाने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में उन के बीच ऐसे संबंधों ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध कहता है.

विकास का वहां ज्यादा दिनों तक रहना रिश्तों में शक पैदा कर सकता था, इसलिए कुछ दिनों बाद वह वहां से चला गया और थोड़ेथोड़े दिनों बाद मामी से मिलने आने लगा. इस तरह उन का यह खेल लंबे समय तक चलता रहा. ओमप्रकाश को इस की भनक तक न लगी. 24 अगस्त, 2013 को सीतापुर जिले की महमूदाबाद थाना पुलिस को गांव याकूबनगर के पास एक आदमी की लाश पड़ी होने की सूचना मिली.

लाश की खबर मिलते ही थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश याकूबनगर से पैतेपुर गांव जाने वाली सड़क पर पड़ी थी. उन्होंने देखा कि उस की गरदन पर गहरे घाव थे, जबकि बाकी शरीर पर भी कई जगह चोटों के निशान थे. घाव किसी धारदार हथियार के लग रहे थे. वहां पर तमाम लोग इकट्ठा थे. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय, सीतापुर भेज दिया.

अगले दिन समाचारपत्रों में लाश मिलने का समाचार फोटो सहित छपा, इस के बावजूद लाश की शिनाख्त के लिए कोई थाने नहीं आया. लाश की शिनाख्त होने के बाद ही केस की काररवाई संभव थी. इसलिए पुलिस यह पता लगाने में जुट गई कि कहीं आसपास के जिलों के किसी थाने से इस हुलिया का आदमी तो लापता नहीं है. पुलिस की इस काररवाई का भी कोई नतीजा नहीं निकला.

13 सितंबर  को देशराज रावत नाम का एक आदमी थाना महमूदाबाद पहुंचा. उस ने बताया कि वह बाराबंकी के बड्डूपुर थानाक्षेत्र में सलोनीपुर गांव का रहने वाला है. उस का बेटा संतोष 23 अगस्त से गायब है.

थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने याकूबनगर के पास से जो अज्ञात लाश बरामद की थी, उस के कपड़े और फोटो देशराज को दिखाए. कपड़े और फोटो देखते ही देशराज रोने लगा. उस ने कहा कि यह सब सामान उस के बेटे का ही है. लाश की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने देशराज रावत से मालूमात की तो उस ने बताया कि संतोष 23 अगस्त को घर से गायब हुआ था. गांव में ही रहने वाले ओमप्रकाश की पत्नी सुनीता के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस ने शक जताया कि उस के बेटे की हत्या सुनीता या उस के घर वालों ने की होगी.

देशराज रावत से अहम जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर सुभाषचंद्र तिवारी ने अपनी तहकीकात शुरू की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि संतोष और सुनीता के बीच अवैध संबंध थे. उन्हें यह भी पता चला कि संतोष के गायब होने के एक दिन पहले ही वह अपने मायके आ गई थी. उस का मायका महमूदाबाद थानाक्षेत्र के जसमंडा गांव में था. संतोष की लाश उस के गांव से कुछ दूर मिलने से जाहिर होता था कि उस की हत्या में सुनीता का हाथ हो सकता है.

पुलिस सुनीता की तलाश में जुट गई और मुखबिर की सूचना पर उसे 19 सितंबर को मोतीपुर गांव से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने संतोष की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि संतोष की हत्या में उस के साथ उस का भांजा व प्रेमी विकास और उस का जेठ सियाराम भी शामिल था.

पूछताछ में सुनीता ने बताया कि संतोष उस के गले की हड्डी बनता जा रहा था. उस की वजह से वह पूरे गांव में बदनाम हो गई थी, लेकिन वह था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं तैयार था. उस से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने उसे मौत के घाट उतारने की योजना बनाई.

यह सब अकेली सुनीता के बस की बात नहीं थी. इस के लिए उस ने विकास को तैयार करने का मन बनाया. उस ने रोते हुए विकास से कहा, ‘‘विकास, संतोष ने मेरा जीना हराम कर दिया है. जहां भी जाती हूं, उस की वजह से मुझे बदनामी झेलनी पड़ती है. वह मेरा किसी हाल में पीछा नहीं छोड़ रहा है.’’

सुनीता को रोते देख कर विकास का दिल भर आया. उस ने कहा, ‘‘रोओ मत मामी, मैं हूं न. अगर वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ रहा तो उसे यह दुनिया ही छोड़नी पड़ेगी.’’ कहते हुए विकास के चेहरे पर कठोरता आ गई.

यह देख कर सुनीता मन ही मन खुश हुई, लेकिन फिर संभल कर बोली, ‘‘तुम सही कह रहे हो, यही एक तरीका है. लेकिन इस के लिए मेरे जेठ यानी तुम्हारे बड़े मामा सियाराम को भी तैयार करना होगा. तीन लोगों के साथ होने से संतोष बच के नहीं निकल पाएगा.’’

विकास ने सहमति दे दी. इस के बाद उस ने बड़े मामा सियाराम से बात की और घर की इज्जत को बचाने का वास्ता दे कर उसे साथ देने के लिए राजी कर लिया. फिर तीनों ने बैठ कर संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

योजनानुसार 22 अगस्त, को सुनीता अपने बच्चों के साथ विकास और सियाराम को ले कर अपने मायके आ गई. 23 अगस्त को सुनीता ने संतोष को फोन कर के मिलने के लिए गांव जसमंडा बुलाया. सुनीता के बुलाने पर संतोष तुरंत बाराबंकी से बस द्वारा लखनऊ होते हुए पहले सीतापुर के कस्बा महमूदाबाद पहुंचा और वहां से सुनीता द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गया.

विकास और सियाराम उस जगह पर पहले ही छिप कर बैठ गए थे. उस समय रात के करीब 9 बज रहे थे. वादे के अनुसार सुनीता संतोष को निश्चित जगह पर मिल गई और उस से बातें करती हुई चलने लगी. वह याकूबपुर गांव के पास पहुंचे ही थे कि अंधेरे का फायदा उठा कर पीछेपीछे आ रहे विकास और सियाराम ने संतोष को दबोच कर जमीन पर गिरा लिया. इस के बाद उन्होंने बांके से उस पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में संतोष की मौत हो गई. बांके को वहीं पास की झाडि़यों में छिपा कर तीनों वहां से फरार हो गए.

अगले दिन 20 सितंबर को विकास और सियाराम को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर उन से पूछताछ की. उन्होनें भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने सुनीता, विकास और सियाराम के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर के उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हुस्न की मछली का कांटा

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 3

शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया.

शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं. पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे.

तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी.

66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपने अपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था.

इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया.

इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है.

यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई.

इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली.

अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला.

अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवार सहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया.

इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 2

चूंकि दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमना सामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी.

जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी.

पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी.

काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया.

मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था.

राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी.

नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया.

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 1

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे  बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए.

सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए.

पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने के बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया.

वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा.

पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था.

उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ.

बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था.

चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया.

रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 3

जिस दिन मल्लिका को प्रवीण के साथ जाना था, वह सास से बाजार जाने की बात कह कर घर से निकली थी. सुबह की निकली मल्लिका जब रात तक घर नहीं लौटी तो सास ने उस की तलाश शुरू की. घर में कोई था नहीं, इसलिए फोन कर के खासखास रिश्तेदारों को बुला लिया. जब मल्लिका का कुछ पता नहीं चला तो कृष्णा को फोन किया गया.

पत्नी के लापता होने की सूचना मिलते ही कृष्णा आ गया. उस ने पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी तो पुलिस भी मल्लिका की तलाश करने लगी.

प्रवीण मल्लिका को ले कर पहले जरार में रह रही अपनी बहन के यहां गया. बहन प्रीति ने जब मल्लिका के बारे में पूछा तो प्रवीण ने बताया कि यह उस की पत्नी है. उस ने उस से शादी कर ली है. खूबसूरत मल्लिका को देख कर प्रीति बहुत खुश हुई. उस ने भाई और कथित भाभी मल्लिका की खूब आवभगत की.

बहन के घर रहते हुए प्रवीण ने मल्लिका के साथ नागपुर जाने की योजना बनाई. 18 अक्टूबर, 2014 को छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से उस ने रिजर्वेशन भी करवा लिया. लेकिन न जाने क्यों उस ने रिजर्वेशन कैंसिल करा दिया और मल्लिका को ले कर रुनकता स्थित अपने कमरे पर आ गया.

मल्लिका ने रुनकता स्थित प्रवीण का कमरा और क्लिनिक देखा तो सन्न रह गई. वह जो सोच कर प्रवीण के साथ आई थी, यहां उस का एकदम उलटा था. प्रवीण की असलियत जान कर वह बेचैन हो उठी. उस ने गाड़ीबंगला, नौकरचाकर का जो सपना देखा था, उस सब पर पानी फिर गया था.

मल्लिका समझ गई कि उस के साथ धोखा हुआ है. लेकिन अब वह फंस चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. सिर्फ शारीरिक सुख से तो जिंदगी बीत नहीं सकती थी, इसलिए वह इस बात पर विचार करने लगी कि आगे क्या किया जाए.

प्रवीण अगले दिन मल्लिका को ताजमहल दिखाने ले गया. वहां उस ने उस के साथ फोटो भी खिंचवाए. प्रवीण शायद मल्लिका के मन की बात भांप गया था, इसलिए वह उसे समझाने लगा कि जल्दी ही वह दूसरा मकान ले लेगा. बाजार में कोई अच्छी सी दुकान ले कर बढि़या क्लिनिक खोल लेगा. अभी तक वह अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी बात की चिंता नहीं थी, लेकिन उस के आ जाने से उसे चिंता होने लगी है.

दीवाली पर प्रवीण मल्लिका के साथ अपनी बहन के यहां जरार गया, लेकिन अगले ही दिन वापस आ गया. प्रवीण की लाख कोशिश के बावजूद मल्लिका का मन बदल चुका था. वह समझ गई थी कि यहां जल्दी कुछ बदलने वाला नहीं है. उसे बेटे की भी याद आने लगी थी. उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था, इसलिए उस ने जरार से रुनकता आते समय रास्तें में ही प्रवीण से कह दिया था कि इस स्थिति में वह उस के साथ नहीं रह सकती.

घर पहुंच कर मल्लिका वापस जाने की तैयारी करने लगी. प्रवीण उसे समझाने लगा कि अब वह उस के बिना अकेला नहीं रह पाएगा. प्रवीण को इस बात की भी चिंता सता रही थी कि मल्लिका अपने साथ जो लाखों के गहने और नकद ले आई है, उसे भी अपने साथ ले जाएगी. फिर तो इतनी मेहनत कर के भी वह कंगाल का कंगाल रह जाएगा.

25 अक्टूबर को भैया दूज थी, इसलिए क्लिनिक बंद थी. पूरा दिन प्रवीण मल्लिका को समझाता रहा, लेकिन किसी भी तरह मल्लिका रुकने को तैयार नहीं थी. प्रवीण को मल्लिका के जाने की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी चिंता उस के गहनों और रुपयों को साथ ले जाने की थी. इसलिए उस ने सोच लिया कि भले ही उसे मल्लिका की हत्या करनी पड़े, लेकिन वह साथ लाया माल मल्लिका को ले नहीं जाने देगा.

यही सोच कर वह रात 8 बजे के आसपास मुस्तकीम की दुकान से कोल्ड ड्रिंक की 2 बोतलें खरीद लाया. मल्लिका की नजर बचा कर उस ने एक बोतल में नशे की दवा मिला दी. इस के बाद उस बोतल को मल्लिका को दे कर दूसरी बोतल खुद पीने लगा. कोल्ड ड्रिंक पीते हुए भी उस ने मल्लिका से कहा कि वह जिद छोड़ दे.

लेकिन मल्लिका ने साफसाफ कह दिया कि अब वह यहां रुक कर जिंदगी बरबाद करने वाली नहीं है. इस के बाद प्रवीण चुप हो गया. कोल्ड ड्रिंक पी कर मल्लिका बेहोश हो गई तो खिड़की दरवाजा बंद कर के प्रवीण ने बांका से मल्लिका का गला रेत दिया. बेहोश होने की वजह से मल्लिका चीख भी नहीं सकी.

गुस्से में प्रवीण ने मल्लिका की हत्या तो कर दी, लेकिन लाश देख कर परेशान हो उठा कि अब क्या करे. उसे पुलिस और कानून का डर सताने लगा.

पुलिस से बचने के लिए उस ने कहीं और भाग जाने का विचार किया. लाश को कंबल से ढक कर वह कमरे से बाहर निकल कर दरवाजे पर ताला लगा कर सड़क पर चलने लगा. मल्लिका के कुछ गहने और 15 सौ रुपए नकद उस के पास थे. वह उन्हीं से कहीं दूर जा कर अपनी गृहस्थी बसाना चाहता था. लेकिन उसे लग रहा था कि वह कहीं भी चला जाए, पुलिस और कानून से बच नहीं पाएगा.

सुबह किसी ने कस्बे से थोड़ी दूर पर रेल की पटरी के किनारे एक क्षतविक्षत लाश देखी. पुलिस को सूचना दी गई तो थाना सिंकदरा के थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए. मृतक के पास एक बैग था, जिस की तलाशी में कुछ कपड़े और गहने के साथ 15 सौ रुपए मिले. इस के बाद मृतक की तलाशी में उस की जेब से आधार कार्ड मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. वह लाश किसी और की नहीं, रुनकता कस्बे में क्लिनिक चलाने वाले डा. प्रवीण विश्वास की थी.

पुलिस को जब बताया गया कि इस के घर में इस की नवविवाति पत्नी भी है तो थानाप्रभारी ने उसे सूचना देने के लिए एक सिपाही को भेजा. कमरे में बाहर से ताला बंद था. अब सवाल यह था कि उस की पत्नी कहां गई. किसी ने खिड़की की झिरी से झांक कर देखा तो अंदर एक महिला की लाश दिखाई दी. पुलिस ने ताला तोड़वाया तो पता चला कि अंदर पड़ी लाश उस की नवविवाहिता पत्नी की थी.

पुलिस ने काररवाई कर के दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. प्रवीण के कमरे में मिली डायरी से उस के बहनोई श्रवण विश्वास का फोन नंबर मिल गया तो पुलिस ने उसे फोन कर के डा. प्रवीण की आत्महत्या और उस की पत्नी की हत्या की सूचना दे दी. श्रवण पत्नी प्रीति के साथ रुनकता पहुंचा. इस के बाद पुलिस ने उसी की ओर से प्रवीण के खिलाफ मल्लिका की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद आत्महत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस को डा. प्रवीण विश्वास के पास से एक मंगलसूत्र, एक जोड़ी कान के टौप्स, 2 जोड़ी बच्चों के चांदी के कड़े और 15 सौ रुपए नकद मिले थे. मल्लिका कान में टौप्स, गले में चेन, अंगूठियां और नाक में जो कील पहने थी, वे उस के शरीर पर मौजूद थे.

पुलिस ने मल्लिका के पास से मिले मोबाइल फोन से एक नंबर मिलाया, संयोग से वह उस के पति कृष्णा का था. बातचीत के बाद पुलिस ने जब उसे मल्लिका की हत्या की सूचना दी तो उस ने जल्दी से जल्दी आगरा पहुंचने की बात कही.

कृष्णा ने कहा ही नहीं, बल्कि अगले दिन अपने चाचा विश्वजीत के साथ आगरा आ पहुंचा. उस ने आगरा में ही मल्लिका का अंतिम संस्कार कर दिया. उस का कहना था कि मल्लिका अपने साथ लाखों के गहने और नकदी ले कर आई थी. डा. प्रवीण के घर वालों ने भी उस का आगरा में ही अंतिम संस्कार कर दिया था. इस तरह स्वार्थ में अंधे प्रवीण ने प्यार की हत्या तो की ही, आत्महत्या कर के अपने साथ एक और घर बरबाद कर दिया.