झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 2

जब मल्लिका की बातों ने उसे प्यार में पागल कर दिया तो कामधाम छोड़ कर प्रवीण 24 परगना जा पहुंचा. मल्लिका को उस ने अपने आने की सूचना दे दी थी, इसलिए घर पहुंचते ही उस ने मल्लिका से मिलने का स्थान और समय तय कर लिया.

मल्लिका ने उसे अगले दिन 24 परगना के बसस्टाप पर दोपहर को बुलाया था. प्रवीण तय जगह पर खड़ा इधरउधर देख रहा था. थोड़ी देर में उसे एक खूबसूरत औरत आती दिखाई दी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर यही मल्लिका होती तो कितना अच्छा होता.

प्रवीण उस औरत को एकटक ताकते हुए मल्लिका के बारे में सोच रहा था कि तभी वह औरत फोन निकाल कर किसी को फोन करने लगी. प्रवीण के फोन की घंटी बजी तो उस का दिल धड़क उठा. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘तुम्हारे सामने ही तो खड़ा हूं.’’ प्रवीण के मुंह से यह वाक्य अपने आप निकल गया.

कान से फोन लगाए हुए ही उस औरत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तो तुम हो प्रवीण?’’

‘‘हां, मैं ही प्रवीण हूं, जिसे तुम इतने दिनों से तड़पा रही हो.’’

‘‘अब तड़पने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं.’’

मल्लिका को देख कर प्रवीण फूला नहीं समाया, क्योंकि उस ने अपने ख्वाबों में मल्लिका की जो तसवीर बनाई थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत थी. वह लग भी ठीकठाक परिवार की रही थी.

‘‘यहीं खड़े रहोगे या चल कर कहीं एकांत में बैठोगे.’’ मल्लिका ने कहा तो प्रवीण को होश आया.

प्रवीण उसे एक रेस्टोरैंट में ले गया. चायनाश्ते के साथ बातचीत शुरू हुई तो मल्लिका ने गंभीरता से कहा, ‘‘प्रवीण, तुम सचसच बताना, मुझे कितना प्यार करते हो और मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’

‘‘अगर प्यार करने की कोई नापतौल होती तो नापतौल कर बता देता. बस इतना समझ लो कि मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. अब इस से ज्यादा क्या कह सकता हूं.’’ प्रवीण ने मल्लिका के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा.

‘‘जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो मुझे भी अब तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहिए, क्योंकि मैं ने अभी तक तुम्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताया है. प्रवीण मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरा 10 साल का एक बेटा भी है. मेरा पति कुवैत में रहता है, जिस की वजह से हमारी मुलाकातें 2 साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए हो पाती हैं. मैं यहां सासससुर के साथ रहती हूं. पति के उतनी दूर रहने की वजह से प्यार के लिए तड़पती रहती हूं.’’

मल्लिका की सच्चाई जानसुन कर प्रवीण सन्न रह गया. जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. जिसे वह जान से ज्यादा प्यार करता था, वह किसी और की अमानत थी, यह जान कर उस के मुंह से शब्द नहीं निकले. उस की हालत देख कर मल्लिका ने कहा, ‘‘तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं प्रवीण. मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम. मैं तुम्हारे लिए पति और बेटा तो क्या, यह दुनिया तक छोड़ सकती हूं.’’

प्रवीण ने होश में आ कर कहा, ‘‘सच, तुम मेरे लिए सब को छोड़ सकती हो?’’

‘‘हां, तुम्हारे लिए मैं सब को छोड़ ही नहीं सकती, जान तक दे सकती हूं, लेकिन तुम मुझे मंझधार में मत छोड़ना. तुम डाक्टर हो, इसलिए मेरे दिल का दर्द अच्छी तरह समझ सकते हो. बोलो, धोखा तो नहीं दोगे?’’ मल्लिका गिड़गिड़ाई.

मल्लिका की इस बात से प्रवीण ने थोड़ी राहत महसूस की. इस के बाद कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अच्छा, यह बताओ. अब तुम सिर्फ मेरी बन कर रहोगी न?’’

‘‘हां, अब मैं सिर्फ तुम्हारी ही हो कर रहना चाहती हूं, सिर्फ तुम्हारी,’’ मल्लिका ने कहा, ‘‘चलो, अब यहां से कहीं और चलते हैं.’’

प्रवीण मल्लिका को पूरी तरह अपनी बनाना चाहता था, इसलिए उस ने एक मध्यमवर्गीय होटल में कमरा बुक कराया और मल्लिका को उसी में ले गया. एकांत में होने वाली बातचीत में प्रवीण जान गया कि मल्लिका के मायके और ससुराल वाले काफी संपन्न लोग हैं. उस का पति कुवैत में नौकरी करता था. उस समय भी वह लगभग 4-5 तोले सोने के गहने पहने थी.

होटल के उस कमरे में एकांत का लाभ उठा कर प्रवीण ने मल्लिका को अपनी बना लिया. उस ने मल्लिका के बारे में तो सब कुछ जान लिया, लेकिन अपने बारे में उस ने सिर्फ इतना ही बताया था कि वह डाक्टर है और अभी उस की शादी नहीं हुई है.

प्रवीण के डाक्टर होने का मतलब मल्लिका ने यह लगाया था कि वह पढ़ालिखा होगा, इसलिए अन्य डाक्टरों की तरह यह भी खूब पैसे कमा रहा होगा. यही सोच कर वह उस के साथ रहने के बारे में सोच रही थी.

जबकि स्थिति इस के विपरीत थी. प्रवीण झोला छाप डाक्टर था. उस ने क्लिनिक जरूर खोल ली थी, लेकिन उस की कमाई से किसी तरह उस का खर्च पूरा होता था. मल्लिका के बारे में जान कर अब वह उस की बदौलत अपना भाग्य बदलने के बारे में सोच रहा था.

मल्लिका की शादी 24 परगना के थाना गोपालपुर के कस्बा चलमंडल के रहने वाले कृष्णा से हुई थी. 24 परगना शहर में उस की विशाल कोठी थी. ससुराल में मल्लिका को किसी चीज की कमी नहीं थी. कमी सिर्फ यही थी कि पति कुवैत में रहता था और वह यहां सासससुर के साथ रहती थी. वह पति के साथ रहना चाहती थी, जबकि कृष्णा उसे कुवैत ले जाने को तैयार नहीं था. उस का कहना था कि अगर दोनों कुवैत चले गए तो मांबाप यहां अकेले पड़ जाएंगे.

मल्लिका बेटे अपूर्ण में मन लगाने की कोशिश करती थी, लेकिन बेटा बड़ा हो गया तो उसे पति की कमी खलने लगी थी. उस की जवान उमंगे तनहाई में दम तोड़ने लगी थीं. उस के जिस्म की भूख उसे बेचैन करने लगी थी. ऐसे में ही उस का फोन गलती से प्रवीण के मोबाइल पर लग गया तो दोनों की दोस्ती ही नहीं हुई, अब मेलमिलाप भी हो गया था. उस के बाद उस की जैसे दुनिया ही बदल गई थी.

मुलाकात के बाद जिस्म की भूख भी बढ़ गई और प्यार भी. कुछ दिन गांव में रह कर प्रवीण वापस आ गया. अब दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होने लगीं. मल्लिका उस के सहारे आगे की जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि उसे पता था कि कृष्णा में कोई बदलाव आने वाला नहीं है, इसलिए उस की परवाह किए बगैर एक दिन उस ने प्रवीण से कहा, ‘‘भई, इस तरह कब तक चलेगा. आखिर हमें कोई न कोई फैसला तो लेना ही होगा.’’

‘‘इस विषय पर फोन पर बात नहीं हो सकती. दुर्गा पूजा पर मैं घर आऊंगा तो बैठ कर बातें करेंगे.’’ प्रवीण ने कहा और घर जाने की तैयारी करने लगा.

दुर्गा पूजा के दौरान दोनों की मुलाकात हुई तो तय हुआ कि इस बार प्रवीण आगरा जाएगा तो मल्लिका भी उस के साथ चलेगी. वहां दोनों शादी कर के आराम से रहेंगे. उस समय मल्लिका ने यह भी नहीं सोचा कि कृष्णा घरपरिवार से उतनी दूर उस के और बच्चे के सुख के लिए ही पड़ा है. अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए उस ने अपने 10 साल के बेटे की चिंता भी नहीं की.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 1

पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के थाना गोपालनगर के गांव पावन के रहने वाले प्रभात विश्वास गांव में रह कर खेती करते थे. पत्नी, 2 बेटों  और एक बेटी के उन के परिवार का गुजरबसर इसी खेती की कमाई से होता था. उसी की कमाई से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी रहे थे और सयानी होने पर बेटी की शादी भी कर दी थी.

प्रभात ने बेटी प्रीति की शादी अपने ही जिले के गांव चलमंडल के रहने वाले श्रवण विश्वास के साथ की थी. श्रवण विश्वास झोला छाप डाक्टर था, जो चांदसी दवाखाना के नाम से उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना वाह के कस्बा जरार में अपनी क्लिनिक चलाता था.

श्रवण की क्लिनिक बढि़या चल रही थी, इसलिए उस से प्रेरणा ले कर प्रभात विश्वास का बड़ा बेटा प्रवीण भी बहनोई की तरह झोला छाप डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई के साथसाथ किसी डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा था. ग्रेजुएशन करतेकरते वह डाक्टरी के काफी गुण सीख गया तो बहनोई की तरह अपनी क्लिनिक खोलने के बारे में सोचने लगा.

क्लिनिक खोलने की पूरी तैयारी कर के प्रवीण आगरा के कस्बा जरार में क्लिनिक चला रहे अपने बहनोई श्रवण के पास आ गया. कुछ दिनों तक बहनोई के साथ काम करने के बाद जब उसे लगा कि अब वह खुद क्लिनिक चला सकता है तो वह अपनी क्लिनिक खोलने के लिए स्थान खोजने लगा.

प्रवीण के एक परिचित पी.के. राय आगरा के ही कस्बा रुनकता में क्लिनिक चलाते थे. उन्हीं की मदद से उस ने रुनकता में एक दुकान ले कर बंगाली दवाखाना के नाम से क्लिनिक खोल ली. रहने के लिए हाजी मुस्तकीम के मकान में 8 सौ रुपए महीने किराए पर एक कमरा ले लिया. मुस्तकीम का अपना परिवार सामने वाले मकान में रहता था. उस मकान में केवल किराएदार ही रहते थे. डा. प्रवीण का कमरा अन्य किराएदारों से एकदम अलग था.

प्रवीण विश्वास दिन भर अपनी क्लिनिक पर रहता था और रात को कमरे पर आ जाता. अकेला होने की वजह से उसे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे. वह जिस हिसाब से मेहनत कर रहा था, उस हिसाब से उस की कमाई नहीं हो रही थी. इसलिए अपने हालात से वह खुश नहीं था. लेकिन उस का व्यवहार ऐसा था कि उस से हर कोई खुश रहता था.

इस के बावजूद प्रवीण की किसी से दोस्ती नहीं हो पाई थी. इस की वजह शायद यह भी थी कि वह एक ऐसे प्रांत का रहने वाला था, जहां का खानपान, रहनसहन और बात व्यवहार सब कुछ वहां के रहने वालों से अलग था.

इस स्थिति में प्रवीण थोड़ा परेशान सा रहता था. एक दिन वह किसी सोच में डूबा था कि उस के फोन की घंटी बजी. उस का फोन डुअल सिम वाला था. एक सिम उस ने आगरा के नंबर का डाल रखा तो दूसरा सिम 24 परगना के नंबर का था. वैसे यहां 24 परगना वाले नंबर की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन उस ने अपना पुराना नंबर इसलिए बंद नहीं किया था कि घर जाने पर शायद इस की जरूरत पड़े.

घंटी बजी तो प्रवीण की नजर मोबाइल के स्क्रीन पर गई. फोन 24 परगना वाले सिम के नंबर पर आया था. स्क्रीन पर जो नंबर उभरा था, वह भी 24 परगना का ही लग रहा था. प्रवीण ने जल्दी से फोन रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो, कौन…?’’

उस के हैलो कहते ही दूसरी ओर से किसी लड़की ने मधुर आवाज में कहा, ‘‘सौरी, गलती से आप का नंबर लग गया.’’

प्रवीण कुछ कहता, उस के पहले ही फोन कट गया. लड़की की आवाज ऐसी थी, जैसे किसी ने कान में शहद घोल दिया है. प्रवीण का मन एक बार फिर उस की आवाज सुनने के लिए होने लगा. आवाज पलट कर फोन कर के ही सुनी जा सकती थी. लेकिन यह ठीक नहीं था. इसलिए वह सोचने लगा कि फोन करने पर लड़की बुरा मान सकती है. लेकिन मन नहीं माना तो डरतेडरते उस ने पलट कर फोन कर ही दिया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव कर के लड़की ने कहा, ‘‘अपनी गलती के लिए मैं ने सौरी तो कह दिया. अब कितनी बार माफी मांगूं?’’

‘‘आप गलत सोच रही हैं. मैं ने आप को फोन इसलिए नहीं किया कि आप दोबारा माफी मांगें. आप की आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी, उसे सुनने के लिए मैं ने फोन किया है. मैं आप की आवाज सुनना चाहता हूं. इसलिए आप कुछ अपनी कहें और कुछ मेरी सुनें.’’

प्रवीण का इतना कहना था कि उस के कानों में खिलखिला कर हंसने की आवाज पड़ी. प्रवीण खुश हो गया कि लड़की ने उस की इस हरकत का बुरा नहीं माना. हंसी रोक कर उस ने कहा, ‘‘तो यह क्यों नहीं कहते कि आप मुझ से दोस्ती करना चाहते हैं.’’

‘‘यही समझ लीजिए,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर है?’’

‘‘क्यों नहीं, बातचीत से तो आप अच्छेखासे पढे़लिखे लगते हैं?’’

‘‘जी, मैं डाक्टर हूं.’’

‘‘कहां नौकरी करते हैं?’’ लड़की ने पूछा.

‘‘नौकरी नहीं करता, मेरी अपनी क्लिनिक है.’’

‘‘तब तो मैं आप को अपना दोस्त बनाने को तैयार हूं.’’

इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई तो बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. प्रवीण 24 परगना का रहने वाला था तो वह लड़की भी वहीं की रहने वाली थी. लड़की ने अपना नाम मल्लिका बताया था. लेकिन सब उसे मोनिका कह कर बुलाते थे. प्रवीण ने भी उसे अपना नाम बता दिया था.

दोनों की ही भाषा बंगाली थी, इसलिए दोनों अपनी भाषा में बात करते थे. प्रवीण ने मल्लिका को यह भी बता दिया था कि वह रहने वाला तो 24 परगना का है, लेकिन उस की क्लिनिक उत्तर प्रदेश के आगरा के एक कस्बे में है.

धीरेधीरे दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं. इसी तरह 6 महीने बीत गए. प्रवीण ने मल्लिका को अपने बारे में काफी कुछ बता दिया था, लेकिन मल्लिका ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया था. वह प्रवीण के लिए रहस्य बनी रही.

प्रवीण ने जब उस पर दबाव डाला तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘यही क्या कम है कि मैं तुम से प्यार करती हूं. बस तुम मुझे अपनी प्रेमिका के रूप में जानो.’’

मल्लिका ने जब कहा कि वह उस से प्यार करती है तो प्रवीण ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी तुम से मिलना चाहती हूं. तुम्हारी जब इच्छा हो, आ जाओ. समझ लो मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ मल्लिका ने कहा.

मल्लिका का इस तरह आमंत्रण पा कर प्रवीण फूला नहीं समाया. वह इस बात पर विचार करने लगा कि मल्लिका को अपनी जिंदगी में आने के लिए तैयार कैसे करे. अब वह सपनों में जीने लगा था. इस तरह के सपनों की दुनिया बहुत ही रंगीन और हसीन होती है. उस ने अपने प्यार को कल्पनाओं का रंग दे कर एक खूबसूरत चेहरे का अक्स बना लिया था. हर वक्त वह उसी में खोया रहता था. वह 24 परगना जा कर मल्लिका से मिलना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था.

ऐसी भी एक सीता

बेवफा पत्नी और प्रेमी की हत्या

एक अधूरी प्रेम कहानी

सुंदरियों के हसीन सपने

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 3

एक दिन आरती को कृष्ण कुमार की याद आई. वह कभीकभी उस से फोन पर बातें किया करती थी. उस ने मुकीम को भी उस के बारे में बता कर कहा, ‘‘कृष्ण कुमार बड़े आदमी हैं. अगर इन अंकल से एक बार मोटी रकम मिल जाए तो फिर हमें छोटीछोटी वारदातें करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

‘‘लेकिन इन्हें फांसा कैसे जाएगा?’’ मुकीम ने पूछा.

‘‘देखो, उन्हें मैं बुला तो सकती हूं. लेकिन आगे का सारा काम तुम लोग ही करना.’’ आरती ने कहा.

इस तरह बातोंबातों में इस गिरोह का निशाना कृष्ण कुमार पर सध गया. 29 दिसंबर, 2013 को आरती ने मुकीम के मोबाइल से कृष्ण कुमार के मोबाइल पर फोन किया, ‘‘अंकल मुझे अच्छा सा परफ्यूम और एक बढि़या सी घड़ी चाहिए. क्या आप ये चीजें कैंटीन से ला सकते हैं?’’

‘‘हां बेटा, ला दूंगा. मगर तू मुझे मिलेगी कहां?’’ कृष्ण कुमार ने पूछा.

‘‘मैं आज ही ले आऊंगा और तेरे कमरे पर सामान देता हुआ घर निकल जाऊंगा.’’

उस के बाद आरती ने उन्हें पूरे दिन में करीब 6-7 बार फोन किया.

‘‘अंकल मैं ने उस दिन आप को जो लोनी वाला पता दिया था, वहीं पर रह रही हूं.’’

कैंटीन से सामान लेने के बाद कृष्ण कुमार उस दिन ड्यूटी पूरी होने से एक घंटे पहले ही निकल गए. वह सीधे आरती के बताए पते पर पहुंचे, जहां आरती उन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

उस को देख कर आरती चहकते हुए बोली, ‘‘मैं आप का कब से इंतजार कर रही थी. आप ने आने में इतनी देर क्यों लगा दी?’’

‘‘क्या करूं बेटा, काम ही इतना ज्यादा था कि निकलतेनिकलते देर हो गई. फिर भी तुम्हारी खातिर एक घंटे पहले निकल आया था. यह लो तुम्हारा परफ्यूम और तुम्हारे लिए बढि़या सी घड़ी.’’

कृष्ण कुमार ने दोनों चीजें आरती की तरफ बढ़ाईं तो वह बोली, ‘‘आप ही मुझ पर सेंट छिड़क दो न अंकल.’’

जब वह आरती पर सेंट छिड़क रहे थे, तभी मुकीम, नीरज और दीपक वहां पर आ गए. मुकीम भड़कते हुए बोला, ‘‘ऐ बुड्ढे तू कौन है और मेरी पत्नी के साथ मेरे घर में क्या कर रहा है?’’

‘‘तमीज से बात करो, आरती ने खुद मुझ से सेंट और घड़ी ले कर आने के लिए कहा था. चाहो तो इस से पूछ लो. क्यों आरती मैं ठीक कह रहा हूं न बेटा?’’ कृष्ण कुमार बोले.

‘‘बेटा, कौन बेटा. आप से मैं कुछ क्यों मंगाऊंगी. मैं तो जानती तक नहीं कि यह कौन हैं?’’ आरती ने कहा तो कृष्ण कुमार उस का मुंह देखते रह गए.

‘‘अब बहुत हो गया तेरा ड्रामा. चुपचाप वो कर, जो हम कहते हैं,’’ मुकीम ने अंटी से तमंचा निकाल कर कृष्ण कुमार की ओर तानते हुए कहा. यह देख कर कृष्ण कुमार डर गए. उन्हें जरा भी आभास नहीं था कि आरती ऐसा कर सकती है. तभी मुकीम और नीरज ने 52 वर्षीय कृष्ण कुमार की पिटाई करनी शुरू कर दी. आरती चुपचाप देखती रही. उन लोगों ने उन की जेब से उन का पर्स निकाल लिया. सोने की अंगूठी और गले की चेन भी उतार कर रख ली.

पर्स में केवल 500 सौ रुपए पड़े थे. पर्स में उन का एटीएम कार्ड भी था. कार्ड अपने कब्जे में ले कर मुकीम ने उन से पासवर्ड पूछा. काफी पूछने पर उन्होंने पासवर्ड बता दिया.

नंबर जान लेने के बाद वे तीनों पंजाब नेशनल बैंक के एटीएम बूथ पर पैसे निकालने के लिए पहुंचे. लेकिन कृष्ण कुमार ने जो पासवर्ड दिया था, वह डालने के बाद भी पैसे नहीं निकले. ऐसा उन्होंने कई बार किया. जब पैसे नहीं निकले तो वह समझ गए कि पासवर्ड गलत बताया होगा.

वे लोग गुस्से में कमरे पर पहुंचे और कृष्ण कुमार की बुरी तरह से पिटाई कर दी. इस के बाद मुकीम ने उन से 2 लाख रुपए की मांग की. तब कृष्ण कुमार ने कहा, ‘‘मेरे पास तो इतने पैसे हैं नहीं. तुम मेरे घर पर बात करवाओ. घर से कोई न कोई पैसे ले कर आ जाएगा.’’

‘‘हमें बेवकूफ समझता है क्या? तेरे घर फोन कर के तो हम फंस जाएंगे. तू हमें पासवर्ड नंबर बता दे नहीं तो हम तुझे गोली मार देंगे,’’ मुकीम ने कृष्ण कुमार की पिटाई करते हुए कहा. लेकिन उन्होंने एटीएम कार्ड का पिन नंबर नहीं बताया. मुकीम और नीरज ने उन्हें कमरे में बंद कर दिया और उन्हें पानी तक नहीं दिया.

उन लोगों ने कृष्ण कुमार को फांसा तो इसलिए था कि उन से मोटी रकम हासिल की जा सकती है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अब वे यह सोच कर परेशान थे कि अगर वह उन्हें छोड़ देते हैं तो बात पुलिस तक पहुंचेगी, क्योंकि वह आरती को पहचानते थे. मुकीम ने एक बार फिर उन से एटीएम का पिन नंबर पूछा, लेकिन उन्होंने उसे एटीएम का पिन नंबर नहीं बताया. इस पर मुकीम ने नीरज से उन्हें पकड़ने को कहा. नीरज और दीपक ने कृष्ण कुमार को कस कर पकड़ लिया और मुकीम ने उन के सीने पर तमंचे से गोली मार दी.

गोली लगते ही कृष्ण कुमार की छाती से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह वहीं गिर पड़े. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई. यह देख कर आरती बोली, ‘‘यह तुम लोगों ने क्या कर दिया? इन को मारने के लिए किस ने कहा था?’’

‘‘तो क्या करते? जाने देते इसे? इस ने हमें पहचान लिया था. यह यहां से सीधा पुलिस के पास जाता और हम सब जेल की कोठरी में.’’ मुकीम और नीरज ने कहा.

29 दिसंबर, 2013 की पूरी रात कृष्ण कुमार की लाश उसी कमरे में पड़ी रही. लाश को उन्होंने चादर में बांध दिया था. लाश अगले दिन 30 दिसंबर को रात गहराने पर ठिकाने लगाई जानी थी.

30 दिसंबर की रात को ठंडक होने की वजह से करीब 9 बजे ही मोहल्ले में सन्नाटा छा गया. इस का फायदा उठा कर नीरज, दीपक और मुकीम ने कृष्ण कुमार की लाश को लोनी के किशन बिहार, फेस-2, सहबाजपुर गांव में एक सुनसान जगह पर झाडि़यों के पास फेंक दिया, जिसे अगले दिन थाना लोनी पुलिस ने बरामद कर लिया था.

सभी आरोपी पुलिस से बचने के लिए इधरउधर छिपते रहे. लेकिन कविनगर थाना पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरती, मुकीम और नीरज को दबोच लिया. लोनी पुलिस ने मुकीम से कृष्ण कुमार का एटीएम कार्ड भी बरामद कर लिया. दीपक की तलाश में पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन वह कहीं नहीं मिल सका. गिरफ्तार अभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

वेश्या बाजार से मुक्त हुई रोमा बनी मिसाल

उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के मोहल्ला मुंशीपुरा की रहने वाली रोमा बच्ची थी, तभी उस के पिता की मौत हो गई थी. बाप की मौत के बाद मां अकेली ही उसे पालपोस  रही थी. दूसरों के घर मेहनतमजदूरी कर के मां किसी तरह घरखर्च चला रही थी. रोमा भी कभीकभार मां के साथ मदद के लिए चली जाती थी. ज्यादातर वह मोहल्ले की लड़कियों के साथ घूमती रहती थी. उस की सब से ज्यादा निशा से पटती थी. निशा उम्र में उस से थोड़ी बड़ी जरूर थी, लेकिन रहती थी सहेली की तरह.

निशा अकसर अपने रिश्तेदारों, अजय और प्रकाश के साथ वाराणसी घूमने जाती रहती थी. वहां से लौट कर वह अपनी सहेली रोमा को देखी गई फिल्म की कहानी के साथसाथ शहर का आंखों देखा हाल सुनाती. मऊ जैसे छोटे से शहर में रहने वाली रोमा के लिए वाराणसी मुंबईदिल्ली से कम नहीं लगता था. उस का भी मन वाराणसी जा कर घूमनेफिरने और फिल्म देखने का होता, लेकिन उसे मौका ही नहीं मिलता था.

उन दिनों रोमा उम्र के जिस दौर में थी, उस उम्र की लड़कियों को फुसलाना आसान होता है. निशा के रिश्तेदारों अजय और प्रकाश ने रोमा को देखा तो उस पर उन की नीयत खराब हो गई. उन्होंने निशा से उसे वाराणसी ले चलने को कहा.

रोमा तो पहले से ही वाराणसी जाने को लालायित थी. निशा ने जैसे ही उस से वाराणसी चलने को कहा, वह तैयार हो गई. लेकिन वाराणसी कोई गांव की बाजार तो थी नहीं कि अभी गए और घूम कर लौट आए. वहां तो सुबह का गया, रात को ही लौट सकता था. ऐसे में मां किसी गैर के साथ घूमने के लिए जवान हो रही बेटी को कैसे जाने देती. तब अजय, प्रकाश और निशा ने उसे सलाह दी कि वह मां को बताए बगैर ही वाराणसी चले. शाम तक तो वे लौट ही आएंगे. मां को पता ही नहीं चलेगा कि वह कहां गई थी.

रोमा को सहेली पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस के कहने पर उन के साथ घूमनेफिरने और फिल्म देखने वाराणसी चली गई. शाम को लौटने का समय हुआ तो सभी उसे एक कमरे पर ले गए. रोमा को लगा कि यहां उस के साथ कुछ गलत हो सकता है, इसलिए वह उन लोगों से चलने को कहने लगी. लेकिन वे वहां उसे चलने के लिए थोड़े ही ले गए थे.

अजय और प्रकाश ने निशा को दूसरे कमरे में भेज दिया और रोमा के साथ जबरदस्ती करने लगे. अजय रोमा के साथ दुष्कर्म कर रहा था तो प्रकाश मोबाइल फोन से उस की वीडियो क्लिप बना रहा था. जब प्रकाश उस के साथ दुष्कर्म करने लगा तो अजय ने वीडियो क्लिप बनाई. यही क्रम पूरी रात चलता रहा.

रोमा के लिए वह रात किसी नरक से कम नहीं थी. वह दोनों से रहम की भीख मांगती रही, लेकिन उन्होंने उस पर रहम नहीं किया. यह सिलसिला लगभग पूरे सप्ताह चलता रहा. रोमा पहले तो रोतीगिड़गिड़ाती रही, लेकिन बाद में विरोध पर उतर आई. उस ने धमकी दी कि छूटते ही वह सारी बात मां को बताएगी.

रोमा की इस धमकी से अजय और प्रकाश डर गए. उन्हें लगा कि रोमा ने घर जा कर सारी बात मां को बता दी तो मामला निश्चित रूप से पुलिस तक पहुंचेगा. क्योंकि अब तक रोमा की मां उमा कोतवाली में रोमा की गुमशुदगी दर्ज करा चुकी थी. ऐसे में रोमा के घर पहुंचते ही पुलिस उस से पूछताछ करने पहुंच जाएगी और रोमा जैसे ही उन का नाम लेगी, उस के बाद उन की पूरी जिंदगी जेल में ही बीतेगी. क्योंकि रोमा अभी नबालिग थी. यही वजह थी कि उन्होंने सोचा कि अब रोमा को छोड़ना ठीक नहीं है.

एक सप्ताह तक रोमा के साथ जबरदस्ती करने के बाद अजय और प्रकाश ने उसे छोड़ना उचित नहीं समझा. लेकिन वे उसे बांध कर भी नहीं रख सकते थे. इसलिए किसी तरह उस से छुटकारा पाना भी जरूरी था. दोनों को इस बात का डर सता रहा था कि आजाद होते हुए रोमा सब को सच्चाई बता देगी. उस के बाद उन का क्या होगा, यह उन्हें पता ही था.

काफी सोचविचार कर आखिर प्रकाश ने रोमा से छुटकारा पाने का रास्ता निकाल ही लिया. उस की जानपहचान वाराणसी की शिवदासपुर वेश्या बाजार की रहने वाली अफजल बेगम से थी. अफजल बेगम देहधंधे के लिए लड़कियों की खरीदफरोख्त करती रहती थी. प्रकाश ने उस के यहां जा कर जब उस से बताया कि वह उस के लिए एक लड़की लाया है तो अफजल बेगम ने बिना किसी लागलपेट के पहला सवाल किया, ‘‘लड़की की उम्र क्या है?’’

‘‘13-14 साल.’’ प्रकाश ने सोचा था कि कमउम्र सुन कर बेगम खुश होगी.

‘‘अरे अभी तो वह नाबालिग है. तुम्हें पता नहीं, नाबालिग लड़कियों को खरीदना बहुत खतरनाक हो गया है. ऐसी लड़कियों के लिए पुलिस बहुत ज्यादा पैसे मांगती है और परेशान भी करती है. पकड़े जाने पर जल्दी जमानत भी नहीं होती.’’ अफजल बेगम ने कहा.

‘‘आप भी क्या बात करती हैं अफजल बेगम. 2-4 दिन आप के यहां रहेगी, अपने आप बालिग दिखने लगेगी. वैसे काफी हद तक हम ने उसे बालिग बना दिया है. बाकी आप के आदमी बना देंगे.’’ प्रकाश ने एक आंख दबा कर बेगम को समझाया.

‘‘साल छह महीने की बात होती, तब तो चल जाता. अभी लड़की को बालिग होने में 3-4 साल लगेंगे.’’ अफजल बेगम ने कहा.

दरअसल बेगम पुरानी खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को कैसे बेवकूफ बनाया जाता है, यह उसे अच्छी तरह पता था .वह यह भी जानती थी कि ये नए लोग हैं. इन्हें क्या पता कि यहां क्या और कैसे होता है. इसलिए उन्हें बेवकूफ बनाते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम तो पैसे ले कर चलते बनोगे. उस के बाद संभालना मुझे पड़ेगा. ऐसी लड़कियों को संभालना आसान नहीं होता. क्योंकि ये भागने की बहुत कोशिश करती है.’’

‘‘बेगम, तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. यह भागने की कोशिश बिलकुल नहीं करेगी, क्योंकि हम ने इस की वीडियो क्लिप बना ली है.’’ प्रकाश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कहो तो दिखाएं?’’

‘‘भई, तुम तो बड़े छिपे रुस्तम निकले. चलो, अब तुम इतना कह रहे हो तो हम इसे रख ही लेते हैं. लेकिन अगर कोई परेशानी हुई तो झेलना तुम्हें ही होगा. हम तुम्हारा नामपता ले लेंगे. इस के लिए मैं तुम्हें 30 हजार रुपए दूंगी.’’ अफजल बेगम ने कहा.

‘‘कहा न, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम इसे निश्चिंत हो कर रखो. प्रकाश ने कहा. क्योंकि वह भी सोच रहा था कि किसी तरह इस बला से पिंड छूटे. इस से जो पैसे मिल रहे हैं, वे पुलिस से बचने में मदद करेंगे.

प्रकाश और अजय ने अफजल बेगम से पैसे ले कर रोमा को उस के हवाले कर दिया. इस के बाद रोमा के साथ शुरू हुई दरिंदगी. पहले तो उसे लाइन पर लाने के लिए अफजल बेगम के आदमियों ने उस के साथ दुष्कर्म किया. मजबूर हो कर रोमा ने धंधे के लिए हां कर दी. इस के बाद मासूम के नाम पर उस से मोटी कमाई की जाने लगी.

अफजल बेगम लड़कियों से केवल देहधंधा ही नहीं कराती थी, बल्कि अश्लील फिल्में बनवा कर बाजार में सप्लाई करती थी. इस तरह वह दोहरा लाभ कमा रही थी. जिन लड़कियों की अश्लील फिल्में बाजार में पहुंच जाती थीं, वे भागने का साहस नहीं कर पाती थीं.

कमउम्र की लड़कियों को जल्दी जवान करने के लिए हारमोंस के इंजेक्शन दिए जाते थे. अजय और प्रकाश ने मोबाइल फोन से रोमा की वीडियो क्लिप बनाई थी, जबकि अफजल बेगम के यहां वीडियो कैमरे का उपयोग होता था. अफजल बेगम अपने यहां आने वाले ग्राहकों को भी ब्लू फिल्में दिखाती थी, जिस के लिए वह अलग से पैसे लेती थी.

रोमा नरक से भी बदतर जिंदगी जी रही थी. हर रात कईकई लोग उसे रौंदते थे. अगर कभी वह धंधे से मना कर देती तो उस की बुरी तरह पिटाई होती. तरहतरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी जातीं. यह सब सिर्फ रोमा के साथ ही नहीं हो रहा था, बल्कि उस जैसी 3 लड़कियां और भी थीं. शायद उन्हें भी रोमा की ही तरह खरीदा गया था.

वहां रहने वाली लड़कियों की बातों से रोमा को पता चल गया था कि यहां से निकलना आसान नहीं है. रोमा को पता चला कि यहां बनने वाली अश्लील फिल्मों की सीडियां बाहर भेजी जाती हैं. कई बार तो ग्राहक अश्लील फिल्मों की सीडी साथ ले कर आते थे और उन में जिस तरह लड़कियां काम करती थीं, उसी तरह से उसे भी करने को कहते थे. कमउम्र होने की वजह से रोमा की मांग सब से अधिक थी, क्योंकि ग्राहक उसे डराधमका कर जैसा चाहते थे, वैसा करा सकते थे.

रोमा को अफजल बेगम के यहां आए धीरेधीरे 2 साल हो गए. इस तरह वह समय से पहले ही जवान हो गई. यहां वह सब से कम उम्र की थी. कई बार अफजल बेगम ग्राहकों से कह भी देती थी कि यह पहली बार ऐसा करने जा रही है. तकलीफ से रोमा रोने लगती तो ग्राहक को बेगम की बात सही लगती. ग्राहक नशे में होता था, इसलिए उसे सच्चाई का पता नहीं चलता था.

रोमा के लिए उस समय मुसीबत खड़ी हो गई, जब पता चला कि वह गर्भवती है. इस बात की जानकारी अफजल बेगम को हुई तो उस ने रोमा को गर्भ गिराने की दवा दी. लेकिन रोमा का गर्भ नहीं गिरा. तब अफजल को लगा कि अस्पताल ले जा कर ही इस का बच्चा गिरवाना पड़ेगा, क्योंकि वह इतने दिन इंतजार नहीं कर सकती थी.

लेकिन रोमा को बाहर ले जाना खतरे से खाली नहीं था. इसलिए अफजल बेगम ने रोमा को समझाते हुए कहा, ‘‘रोमा, तुम किसी भी तरह बच्चा गिरवा दो, क्योंकि अगर यह बच्चा पैदा हुआ तो न तुम्हारे लिए ठीक रहेगा, न बच्चे के लिए. लड़का हुआ तो दलाल बनेगा और लड़की हुई तो तुम्हारी तरह लोगों का बिस्तर गरम करेगी.’’

रोमा के गर्भवती होने से अफजल बेगम का नुकसान हो रहा था, क्योंकि ग्राहक अब उस के पास जाना नहीं चाहते थे. इसलिए अब वह अफजल बेगम को बोझ लगने लगी थी. दूसरी ओर कहीं से रोमा की मां को पता चल गया था कि रोमा वाराणसी की वेश्याबाजार में है. यह जानकारी मिलते ही वह वाराणसी आ गई और थाने जा कर बेटी की मुक्ति की गुहार लगाई. लेकिन पुलिस उस की क्यों सुनती, क्योंकि उसे भी वेश्या बाजार से पैसा मिलता था, इसलिए पुलिस ने उसे समझाबुझा कर वापस भेज दिया.

रोमा की मां ने देखा कि पुलिस कुछ नहीं कर रही है तो वह स्वयंसेवी संगठन गुडि़या संस्था जा पहुंची. गुडि़या संस्था वाराणसी में वेश्या उन्मूलन और उन की जिंदगी को बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है. वाराणसी के मड़ुवाडीह में वेश्याओं के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल भी चलाता है.

यह संस्था अजीत सिंह चलाते हैं, जिन्होंने कई बार इलाहाबाद, मेरठ और वाराणसी में छापा मरवा कर तमाम नाबालिग बच्चियों को देहधंधे से मुक्त कराया है. इस नेक काम के लिए उन्हें देशविदेश में कई सम्मान भी मिल चुके हैं. रोमा की मां गुडि़या संस्था के संचालक अजीत सिंह से मिली और अपनी परेशानी बताई.

दूसरी ओर रोमा की मां के वाराणसी आने की खबर अफजल बेगम को मिल चुकी थी. उसे लगा कि अगर रोमा उस के अड्डे से पकड़ी गई तो वह मुश्किल में फंस जाएगी. इसलिए वह चाहती थी कि रोमा भाग जाए. उस ने अपने अड्डे की पुष्पा को सिखापढ़ा कर रोमा को बाजार ले जाने को कहा. उस ने उस से कह दिया था कि वह उसे भाग जाने का मौका दे देगी. आखिर रोमा भाग निकली.

रोमा सीधे वाराणसी रेलवे स्टेशन पहुंची और पैसेंजर टे्रन पकड़ कर मऊ आ गई. स्टेशन से वह घर आई और मां के सामने फूटफूट कर रोने लगी. रोमा ने पूरी बात मां को बताई तो वह बेटी को ले कर मऊ कोतवाली जा पहुंची. रोमा ने पूरी कहानी पुलिस को बताई तो कोतवाली पुलिस ने उसे वाराणसी जाने को कहा, क्योंकि कोतवाली पुलिस मुकदमा दर्ज कर के सिरदर्द नहीं लेना चाहती थी.

रोमा की मां बेटी को ले कर गुडि़या संस्था के संचालक अजीत सिंह से मिली. वह मांबेटी को ले कर थाने गए और रोमा के मामले की रिपोर्ट लिखानी चाही, लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया.

जब थाना पुलिस में सुनवाई नहीं हुई तो गुडि़या संस्था ने मामले की जानकारी पुलिस अधिकारियों, मानवाधिकार आयोग तथा अन्य संस्थाओं को दी. जब दबाव बनाया गया, तब पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और धारा 164 के तहत रोमा का बयान दर्ज कराया.

इस के बाद आरोपी रोमा की मां को डराधमका कर मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव बनाने लगे. मारनेपीटने की धमकी दी जाने लगी. मांबेटी ने पुलिस से इस की शिकायत की, लेकिन पुलिस ने कोई मदद नहीं की. इस बीच रोमा की मां ने गर्भपात करा कर अपने दूर के रिश्तेदार की मदद से देवरिया में रोमा की शादी तय कर दी.

रोमा की शादी सुरेश प्रसाद से हो गई. ससुराल में पति के अलावा सास मालती देवी थी. पति मुंबई में रहता था. इसलिए ससुराल में सिर्फ सासबहू ही रहती थीं. रोमा ने पति को अपनी पूरी कहानी बता दी थी. सुरेश ने उसे दिल से अपनाया था. यह बात अलग थी कि रोमा की सास उस से खुश नहीं थी. शादी के कुछ दिनों बाद सुरेश मुंबई चला गया तो एक दिन अफजल बेगम अपने कुछ साथियों को ले कर रोमा की ससुराल जा पहुंची. उस समय रोमा और उस की सास घर पर ही थीं.

अफजल बेगम ने रोमा के साथ मारपीट कर के धमकी दी कि अगर उस ने अदालत में उस के खिलाफ बयान दिया तो उस की मां को जान से मार दिया जाएगा. इस के बाद अफजल बेगम मालती देवी को 30 हजार दे कर रोमा को अपने साथ वाराणसी ले आई. इस बात की जानकारी गुडिया संस्था और शिवदासपुर पुलिस को हुई तो 9 जुलाई को गुडिया संस्था ने पुलिस के साथ अफजल बेगम के अड्डे पर छापा मार कर रोमा को एक बार फिर मुक्त कराया.

अफजल बेगम भागने में सफल रही. थाना शिवदासपुर पुलिस ने अफजल बेगम को गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सतर्क कर दिया. परिणामस्वरूप 23 नवंबर को अफजल बेगम पुलिस के हाथ लग गई. उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया. जिला अदालत से ही नहीं, गुडि़या संस्था के प्रयास से अफजल बेगम की जमानत हाईकोर्ट से भी 2 बार खारिज हो चुकी है.

अफजल बेगम के आदमी रोमा पर अपना मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव डाल रहे थे. उसे और उस की मां को जान से मारने की धमकियां दी जा रही थीं. रोमा ने मुकदमा वापस लेने से मना किया तो एक बार फिर उस का अपहरण कर लिया गया. उसे डराने के लिए उस के साथ एक बार फिर सामूहिक दुष्कर्म किया गया. गुडि़या संस्था की कोशिश से पुलिस ने रोमा को अफजल बेगम के आदमियों के चंगुल से मुक्त कराया.

इतनी कोशिश के बाद भी पुलिस विवेचना आगे नहीं बढ़ी तो रोमा की मां ने अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थना पत्र दिया, जिस के बाद मुकदमा कायम हुआ. रोमा का बयान भी अदालत में दर्ज हुआ है. अब रोमा ने इस लड़ाई को लड़ने के लिए कमर कस ली है. वह अफजल बेगम, अजय और प्रकाश तथा अन्य लोगों को सजा दिलाना चाहती है.

अदालत में मुकदमे की स्थिति मजबूत होने की वजह से अब विरोधियों का दबाव कम हो गया है. रोमा अब अपनी ससुराल में रह रही है. गुडि़या संस्थान ने उसे सिलाई मशीन दिलाई है, जिस से कपड़ों की सिलाई कर के वह अपनी आजीविका चला रही है. रोमा अब ज्यादातर अपनी मां के पास मऊ में रहती है.

अपनी बीती जिंदगी के बारे में उस का कहना है, ‘‘उस समय तो लग ही नहीं रहा था कि मैं दोबारा अपनी जिंदगी शुरू कर पाऊंगी, लेकिन ससुराल वाले ऐसे मिले, जिन्होनें सब कुछ जान कर भी मुझे अपना लिया. अब मैं अपनी लड़ाई खुद लड़ रही हूं. मैं अफजल बेगम को सजा दिलवा कर रहूंगी. लड़कियों का मानना है कि वेश्या बाजार से बाहर आने के बाद कोई उन्हें अपनाएगा नहीं, इसलिए वे वहीं रह जाती हैं. मैं उन के लिए प्रेरणा बनना चाहती हूं कि वेश्या बाजार से आ कर देखो मैं ने घर बसा लिया है.’’

स्वयंसेवी संस्था ‘गुडि़या’ के संचालक अजीत सिंह का कहना है, ‘‘पिछले 20 सालों से अभियान चला कर हम ने तमाम नाबालिग लड़कियों को उस गंदी जगह से मुक्त कराया है. लेकिन बहुत कम परिवार हैं, जिन्होंने अपनी लड़कियों को अपनाया है. ऐसी लड़कियों को हम अपनी ओर से सहारा दे कर अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए प्रेरित करते हैं.

हम उन लड़कियों के मुकदमे भी लड़ रहे हैं, जो अपनी लड़ाई ठीक से नहीं लड़ पातीं. क्योंकि ऐसे में ही आरोपी छूट जाते हैं और उन्हें कानून का भय नहीं रहता है. पुलिस भी ऐसे मामलों में मदद नहीं करती, क्योंकि उसे ऐसे लोगों से पैसा मिलता है. नाबालिग लड़कियों को फुसला कर वेश्याबाजार में बेचने का एक संगठित उद्योग बन चुका है. ये गरीब और दलित लड़कियों को अपना निशाना बनाते हैं. इन की कोई सुनने वाला भी नहीं होता, जिस से इन की लड़कियां सदासदा के लिए वेश्याबाजार की हो कर रह जाती हैं.’’

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 2

शादी के एक साल बाद आरती ने एक बेटे को जन्म दिया. गौरव सुबह ही टैंपो ले कर निकल जाता था. आरती जब कोई सामान आदि खरीदने बाजार जाती तो आतेजाते कुछ लड़के उसे छेड़ा करते थे. उस ने यह बात पति को कई बार बताई, लेकिन उस ने यह कह कर आरती को चुप करा दिया कि वे लड़के आवारा किस्म के हैं. उन से झगड़ा कर के दुश्मनी मोल लेना ठीक नहीं है. तुम उन की बातों पर ध्यान ही मत दो. एक न एक दिन वे अपने आप शांत हो जाएंगे.

पति की बातें सुन कर आरती चुप तो रह गई, लेकिन उसे गौरव पर गुस्सा भी आया. वह सोचती कि पता नहीं कैसे डरपोक के पल्ले बंध गई, जो उन लोगों से कुछ कहने के बजाय उलटा उसे ही चुप रहने को कहता है. ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुआ. आरती के पड़ोस में राजू नाम का युवक रहता था. पास में रहने की वजह से दोनों एकदूसरे से बातें करते रहते थे. राजू के घर उस के दोस्त नीरज और मुकीम भी आते रहते थे. 25 साल का मुकीम अपने शरीर का बहुत ध्यान रखता था. वह जिम भी जाता था. इलाके में उसे लोग ‘बौडीगार्ड’ के नाम से जानते थे.

आरती ने राजू के मुंह से कई बार मुकीम का नाम सुना था. यह भी कि वह बहादुर है. एक दिन उस ने राजू से कह कर मुकीम को अपने घर बुलवाया और उसे आवारा लड़कों द्वारा छेड़ने वाली बात बताई.

आरती सुंदर तो थी ही, उसे देखते ही मुकीम का मन भी डोल गया. उस ने आरती की तरफ चाहत भरी नजरों से देखा तो आरती ने भी उस की नजरों में अपनी नजरें उतार दीं. उस ने नजरों के जरिए उसे अपने दिल में बसा लिया. वह मन ही मन सोचने लगी, ‘काश ऐसा ही कोई बांका जवान मेरा जीवनसाथी होता तो कितना अच्छा होता.’

‘‘भाभीजी, क्या सोच रही हैं. आप मुझे उन लड़कों को बस एक बार दिखा दीजिए जो आप को छेड़ते हैं. फिर मैं उन से खुद निपट लूंगा.’’ मुकीम ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम अभी मेरे साथ चलो. वे वहीं बैठे होंगे.’’

आरती ने मुकीम और राजू को उन लड़को दिखा दिया. अगले दिन मुकीम, आरती और अपने कई दोस्तों के साथ उन लड़कों के पास पहुंच गया. उस ने उन्हें चेतावनी दी कि आइंदा उन में से किसी ने भी आरती से कुछ कहा तो अंजाम बहुत बुरा होगा.

मुकीम की इस धमकी का इतना असर हुआ कि उन लड़कों ने आरती के साथ छेड़छाड़ बंद कर दी. मुकीम की इस बहादुरी से आरती बहुत प्रभावित हुई. वह उसे अपना दिल दे बैठी. दूसरी तरफ मुकीम भी उस का दीवाना बन गया. मुकीम का उस के यहां आनाजाना भी बढ़ गया. वह उस के यहां उस वक्त आता, जब उस का पति घर पर नहीं होता. दोनों का प्यार बढ़ने लगा तो फिर जल्दी ही शारीरिक संबंधों के मुकाम तक जा पहुंचा.

आरती का मुकीम की तरफ इतना ज्यादा झुकाव हो गया कि वह पति से दूरियां बनाने लगी. वह चाहती थी कि मुकीम ही उस का जीवनसाथी बन जाए. एक दिन उस ने मुकीम से कह दिया, ‘‘तुम मुझे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चलो, जहां सिर्फ मैं और तुम हों.’’ अविवाहित मुकीम इस के लिए तैयार हो गया. तब मौका पा कर एक दिन आरती पति और बच्चे को छोड़ कर मुकीम के साथ चली गई.

मुकीम ने नंदनगरी के पास मंडोली में किराए पर कमरा ले लिया. जहां दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. जब आरती की मां पुष्पा को पता चला कि उस की बेटी पति को छोड़ कर दूसरे धर्म के लड़के के साथ रह रही है तो समझाने के बजाय उस ने आरती को संरक्षण देने के लिए उसे और मुकीम को अपने पास रहने के लिए गाजीपुर बुला लिया.

अनुभवी पुष्पा को अंदेशा था कि कुछ दिनों बाद मुकीम आरती को छोड़ कर जा सकता है. इसलिए उस ने उन दोनों को समझाया, ‘‘तुम दोनों जल्द से जल्द शादी कर लो, ताकि दुनिया वाले तुम्हारे रिश्ते को शक की नजरों से न देखें.’’

‘‘मैं खुद चाहता हूं कि आरती मेरे साथ ब्याह कर ले, लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है,’’ मुकीम बोला.

‘‘नहीं मां, मैं मुकीम के साथ शादी नहीं करना चाहती. हम ऐसे ही ठीक हैं.’’ आरती ने कहा.

इस पर मुकीम और आरती का झगड़ा बढ़ गया तो मुकीम ने आरती को 2-4 थप्पड़ जड़ दिए. आरती जिद्दी और गुस्सेबाज थी. उस ने उसी समय पुलिस को फोन कर दिया. उस की शिकायत पर गाजीपुर थाना पुलिस मुकीम को थाने ले गई, लेकिन बाद में पुष्पा थाने में बात कर के मुकीम को घर ले आई. उस के बाद पुष्पा ने मुकीम और आरती की शादी का कभी जिक्र नहीं किया.

एक दिन मुकीम और आरती लेटेलेटे आपस में बातें कर रहे थे तो मुकीम ने कहा, ‘‘मैं सोचता हूं कि आखिर हम कब तक इसी तरह गरीबी का जीवन जीते रहेंगे?’’

‘‘तो तुम ही बताओ, हम दौलत कहां से लाएं?’’ आरती ने पूछा तो मुकीम बोला, ‘‘ऊपर वाले ने तुम्हें रूप के साथ कोयल जैसी मीठी आवाज दी है, क्यों न हम इन्हें ही कमाई का जरिया बनाएं.’’ यह सुन कर आरती उस की तरफ आश्चर्य से देखने लगी.

उसे इस तरह देखते देख मुकीम बोला, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं सच कह रहा हूं.’’

‘‘वह कैसे?’’

इस पर मुकीम ने आरती को अपनी सारी योजना समझा दी. आरती सहमत तो हो गई, लेकिन उस ने कहा, ‘‘यह काम कोई बच्चों का खेल नहीं है. बहुत ही जोखिम भरा काम है. अगर जरा सा भी चूके तो समझो जेल ही आखिरी पड़ाव होगा,’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं ने सब सोच लिया है. मेरा जिगरी दोस्त नीरज कब काम आएगा.’’ कह कर मुकीम ने मोबाइल निकाला और नीरज को फोन कर के मिलने के लिए कहा.

नीरज मिला तो मुकीम ने उसे अपनी सारी योजना समझा दी. नीरज बेरोजगार था, इसलिए वह मुकीम और आरती का साथ देने के लिए राजी हो गया. नीरज के बाद राजू और दीपक को भी उन्होंने योजना में शामिल कर लिया. इस के लिए मुकीम ने लोनी में एक कमरा भी किराए पर ले लिया था.

पूरी योजना तैयार करने के बाद जब इन लोगों ने पहली बार अपने काम को अंजाम दिया तो उस में उन्हें सफलता हाथ लगी. उस में जो भी सामान हाथ लगा, उसे सभी ने आपस में मिल कर बांट लिया. पहली सफलता के बाद उन के हौसले बढ़ गए और एक के बाद एक वारदात को अंजाम देने लगे.

दरअसल आरती मोबाइल फोन से कोई भी 10 डिजिट का नंबर मिलाती. नंबर मिलने पर अगर दूसरी तरफ की आवाज किसी महिला की होती तो वह सौरी कह कर फोन काट देती. अगर कोई पुरुष काल रिसीव करता तो उसे वह अपनी मीठीमीठी बातों में फंसा कर उस के सामने कुछ इस तरह प्रेमप्रस्ताव रखती कि वह इनकार नहीं कर पाता था. 2-4 बार की बातों के बाद वह व्यक्ति खुद ही आरती से मिलने के लिए कहता तो वह उसे कभी किसी पार्क में तो कभी किसी रेस्टोरेंट में बुला लेती थी.

रेस्टोरेंट में वह मजे से उस के साथ खातीपीती, फिर अकेले में बातें करने की गुजारिश कर के उसे किसी पार्क या अपने लोनी वाले कमरे में ले जाती. पार्क या कमरे में पहुंचने से पहले आरती मुकीम को फोन कर के बता देती थी. उस के साथ हमबिस्तर होने का नाटक करते हुए पहले वह उस शख्स के कपड़े उतार देती थी.

इस से पहले कि उस के अपने कपड़े उतारने की नौबत आती, इस से पहले ही मुकीम और नीरज आ जाते थे. आरती के साथ मौजूद आदमी के साथ वे लोग मारपिटाई कर के उस से उस का सारा सामान, पैसे आदि छीन कर उसे भगा देते थे. लोगों को डरानेधमकाने के लिए मुकीम ने एक देशी तमंचा भी खरीद लिया था.

आरती के चक्कर में फंस कर लुटने वाला शख्स लोकलाज के डर से पुलिस में शिकायत करने भी नहीं जाता था. इस तरह इन लोगों ने कई लोगों को अपना शिकार बनाया था.

इस योजना में शामिल राजू आरती को मन ही मन चाहने लगा था, लेकिन उसे अपने दिल की बात आरती से कहने का मौका नहीं मिल पा रहा था. एक दिन जब कमरे में आरती अकेली थी तब राजू उस के पास पहुंच गया. हिम्मत कर के उस ने आरती के सामने अपना प्रेमप्रस्ताव रख दिया. आरती ने उस के प्रेम आमंत्रण को स्वीकार करते हुए उस के गले में अपनी दोनों बांहें डाल दीं. यह देख कर राजू गदगद हो उठा. वह मारे खुशी से फूले नहीं समा रहा था.

इस से पहले कि वे दोनों और आगे बढ़ते कि अचानक मुकीम और नीरज वहां आ गए. उन्हें देख कर आरती और राजू घबरा गए. अकसर ऐसे मौके पर महिला तुरंत गिरगिट की तरह रंग बदल लेती है. खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए मुकीम के सामने आरती नाटक करने लगी. उस ने राजू पर गंभीर आरोप मढ़ दिए. यह सुन कर मुकीम और नीरज को राजू पर गुस्सा आ गया और दोनों ने राजू की बुरी तरह से पिटाई कर दी.

राजू के पास जितने पैसे और सामान था, वह सब उन्होंने छीन लिया. राजू जान बचा कर वहां से भाग गया. राजू के जाने के बाद मुकीम के गैंग में सिर्फ 4 लोग ही रह गए थे, मुकीम, नीरज, आरती और दीपक.

जवानी बनी जान की दुश्मन