कातिल प्रेम पुजारी – भाग 2

प्रीति को मंहगा पड़ा पुजारी से प्रेम

भोपाल की छोला मंदिर पुलिस की पूछताछ में प्रीति की सनसनीखेज हत्या करने के पीछे की जो कहानी सामने आई ,वह एक शादीशुदा युवक के दूसरी शादीशुदा महिला से प्रेम संबंधों की कहानी थी.

भोपाल के भानपुर इलाके में छोला मंदिर की लीलाधर कालोनी निवासी 38 साल के मनोज शर्मा की शादी प्रीति से सन 2014 में हुई थी. 28 साल की प्रीति कटनी जिले की रहने वाली थी. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था. दरअसल, प्रीति की कमर की हड्डी बाहर निकली (उभरी) हुई थी, इस वजह से उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था.

जब भी कोई रिश्ते की बात चलती तो प्रीति के परिवार से जलने वाले लोग उस के खिलाफ लडक़े वालों को भडक़ा देते. लोग अकसर यही कहते कि उस की कमर की हड्डी निकली हुई है, वह कभी मां नहीं बन पाएगी. कभी कहते कि वह पति को सुख नहीं दे पाएगी.

इस बीच प्रीति के लिए भोपाल के मनोज का रिश्ता आया. प्रीति में शारीरिक रुप से कमजोरी थी और मनोज की पहली पत्नी उसे छोड़ चुकी थी. दोनों ने अपनी कमियों के चलते इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया और 2014 में उन की शादी हो गई.

मनोज भोपाल में अपने बड़े भाई फूलचंद्र के साथ ही रहता था. जब शादी हुई तो प्रीति भी इस परिवार का हिस्सा बन गई. सब कुछ ठीक चल रहा था. इस बीच मनोज और प्रीति के 2 बच्चे भी हो गए. मनोज के घर उस की बुआ के बेटे के साले रामनिवास मिश्र का आनाजाना शुरू हुआ. रामनिवास दुर्गा मंदिर में पुजारी था. दोनों लगभग हमउम्र थे तो दोनों की ठीकठाक पटती थी.

देवरभाभी का रिश्ता होने की वजह से उन के बीच हंसीमजाक चलती रहती थी. मनोज ने कभी इस नजदीकी को प्रेम प्रसंग की दृष्टि से नहीं देखा, अलबत्ता यही सोचा कि रिश्तेदारी में हंसीठिठोली चलती रहती है. इसी बात का फायदा रामनिवास ने उठाया. मनोज की माली हालत भी इतनी अच्छी नहीं थी कि वह प्रीति को खुश रख पाता. प्रीति का मन भी अपने से उम्र में 10 साल बड़े मनोज से हट चुका था.

शादीशुदा रामनिवास मंदिर में पुजारी था, उस के मंदिर में रोज अच्छी खासी रकम चढ़ावे के रूप में आती थी, जिसे वह प्रीति पर लुटाने लगा था.

एक दिन दोपहर के वक्त मंदिर के पूजापाठ से लौट कर रामनिवास ने प्रीति के दरवाजे पर दस्तक दी तो प्रीति उस समय बाथरूम से नहा कर निकली थी. उस ने अंदर से आवाज देते हुए कहा, “कौन है? आ रही हूं.”

बाहर से कोई आवाज न मिली तो प्रीति समझ गई कि रामनिवास होगा. प्रीति ने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने प्रीति के रूप सैंदर्य को देख कर रामनिवास अपना आपा खो बैठा. प्रीति झीने गाउन में थी, जिस में से उस के उभार दिखाई दे रहे थे. उस के खुले हुए बाल और पहनावे ने प्रीति की खूबसूरती में चारचांद लगा दिए थे.

मनोज उस समय अपने काम पर निकल गया था और प्रीति के बच्चे स्कूल गए हुए थे. मौके की नजाकत देखते ही रामनिवास दिल की बात जुबां पर लाते हुए प्रीति से बोला, “भाभी, तुम तो गजब ढा रही हो, तुम्हें देख कर तो अच्छेअच्छों का ईमान डोल जाए.”

अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनते हुए प्रीति बोली, “इतनी खूबसूरत होती तो तुम्हारे भैया पलकों पर बिठाते मुझ को.”

“क्या कह रही हो भाभी, मुझे तो यकीन ही नहीं होता है कि मनोज भैया तुम्हारी खूबसूरती पर नहीं मरते. मेरा बस चले तो मैं इस जवानी पर अपना सब कुछ लुटा दूं.” रामनिवास प्रीति का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोला.

“बस एक तुम्हीं तो हो जो मेरी भावनाओं को समझते हो,” प्रीति प्यार से बोली.

रामनिवास ने प्रीति का रुख भांपते ही उसे बाहों में भर लिया और प्रीति के होठों पर अपने होंठ धर दिए. प्रीति के शरीर की तपिश से रामनिवास अपने आप पर काबू नहीं कर सका. उस ने प्रीति को गोद में उठाया और कमरे में पड़े पलंग पर लिटा दिया. वह एकएक कर के प्रीति के जिस्म के कपड़ों को हटाता गया. दोनों वासना के तूफान में गहरे तक बह गए. शारीरिक भूख जब शांत हुई तो अपनेअपने कपड़े ठीक करते हुए वो कमरे से बाहर निकले. इस के बाद जो दोनों के प्रेमालाप का यह सिलसिला शुरू हुआ तो वह लगातार चलता रहा.

पति ने नाता तोड़ा

मगर कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. दोनों के प्रेम संबंधों की भनक आखिरकार मनोज के कानों तक पहुंच ही गई. मनोज को आसपास रहने वाले किराएदारों और कुछ हितैषी पड़ोसियों ने बताया कि तुम्हारे घर से निकलते ही रामनिवास यहां अकसर आता रहता है. मनोज के एक मित्र ने मनोज को आगाह करते हुए कहा, “दोस्त, भाभी और रामनिवास को ले कर कालोनी में तरहतरह की चर्चाएं हो रही हैं, तुम्हें बहुत सावधान रहने की जरूरत है.”

अपनी पत्नी के प्रेम संबंधों की जानकारी लगते ही मनोज के मन में शंका पैदा हो गई. मनोज ने प्रीति को प्यार से समझाते हुए कहा, “प्रीति, तुम्हें पता है कि कालोनी में तुम्हारे और रामनिवास के बारे में किस तरह की बातें की जा रही हैं? रामनिवास का रोजरोज घर पर आना ठीक नहीं है.”

इतना सुनते ही प्रीति आवेश में आ गई और पति को उलाहना देते हुए बोली, “तुम मुझ पर बेवजह शक कर रहे हो. रामनिवास तुम्हारी बुआ का लडक़ा है, आखिर उसे घर आने से तुम क्यों नहीं रोकते.”

मनोज ने रामनिवास को भी समझाने की कोशिश की तो उस ने मनोज को यही भरोसा दिलाया कि पड़ोसियों ने प्रीति को नीचा दिखाने के लिए झूठ में ही यह कहानी गढ़ ली, उन के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है.

रामनिवास और प्रीति के अंतरंग संबंधों ने अब मनोज और उस की पत्नी के बीच के विश्वास की डोर को तोड़ दिया था. इस बात को ले कर अकसर दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. जब प्रीति दूसरी बार प्रेग्नेंट हुई तो प्रीति ने चहकते हुए मनोज को बताया, “मैं फिर से मां बनने वाली हूं.”

मगर मनोज के चेहरे पर कोई खुशी नहीं झलकी. मनोज ने प्रीति पर लांछन लगाते हुए कहा, “तुम्हारे पेट में जो बच्चा पल रहा है, वह मेरा खून नहीं है. यह बच्चा रामनिवास के पाप की निशानी है.”

प्रीति ने भी मनोज को खरीखोटी सुनाते हुए साफ कह दिया, “तुम्हें यकीन न हो तो डीएनए टेस्ट करवा लो, अगर ये बच्चा तुम्हारा नहीं हुआ तो मुझे जो चाहे सजा देना.”

पतिपत्नी के बीच के संबंध इस कदर दरक चुके थे कि जब प्रीति का सातवां महीना चल रहा था, तभी एक दिन मनोज और प्रीति के बीच झगड़ा हो गया और मनोज ने प्रीति को घर से निकाल दिया. प्रीति मायके पहुंच गई. प्रीति के घरवालों ने मनोज को समझाने का बहुत प्रयास किया, मगर मनोज प्रीति को अपनाने को कतई तैयार नहीं हुआ.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 2

11 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा, ‘‘अनुष्का, मेरे साथ एक वाकया हो गया है. कल रात बदमाशों से हुई मुठभेड़ के दौरान मेरे पैर में गोली लग गई है. इस के अलावा मेरे कूल्हे की हड्डी में भी फ्रैक्चर हो गया है. इस समय मैं मिजोरम के एक प्राइवेट अस्पताल में हूं.’’

यह खबर सुनते ही अनुष्का घबरा गई. वह फोन पर ही इस घटना पर दुख जताने लगी. तभी राजीव बोला, ‘‘अनुष्का, तुम मेरी चिंता मत करो. जल्दी ही ठीक हो जाऊंगा. लेकिन तुम्हें तो मालूम ही है कि कल मेरा एटीएम कार्ड कहीं गिर गया था. यहां अस्पताल में कुछ पैसों की जरूरत है.

यदि संभव हो सके तो कुछ पैसे औनलाइन ट्रांसफर कर दो. ठीक होने के बाद मुझे विभाग से सारा पैसा मिल जाएगा, तब मैं तुम्हारे पैसे लौटा दूंगा. मैं अपने बौडीगार्ड का एकाउंट नंबर मैसेज कर रहा हूं. उसी में डाल देना. बौडीगार्ड बैंक से पैसे ला कर अस्पताल में जमा करा देगा.’’

कुछ ही देर बाद अनुष्का के फोन पर राजीव द्वारा भेजा गया मैसेज मिला. उस ने मैसेज में बैंक का खाता नंबर भेजा था. अनुष्का ने 12 दिसंबर 2013 को राजीव के भेजे गए कार्पोरेशन बैंक के खाता नंबर 124800101003359 में 75 हजार रुपए औनलाइन ट्रांसफर कर दिए.

अनुष्का कामना करने लगी कि राजीव जल्द ठीक हो जाए. चूंकि राजीव उस का होने वाला पति था इसलिए उस का ध्यान उस की तरफ ही लगा हुआ था. वह दिन में कईकई बार फोन कर के उस का हालचाल मालूम करती रहती थी.

19 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा कि उस की हालत ठीक न होने की वजह से उसे चेन्नई के अपोलो अस्पताल ले जाया जा रहा है. वहां उस के औपरेशन वगैरह पर मोटा पैसा खर्च होने की उम्मीद है. उस ने उस से और पैसे भेजने को कहा.

अनुष्का नहीं चाहती थी कि राजीव को कुछ हो जाए, इसलिए उस ने उसी दिन उस के द्वारा भेजे गए खाता नंबर में सवा 4 लाख रुपए जमा करा दिए. 13 दिसंबर जो शादी की तारीख मुकर्रर की गई थी, वह अचानक आई विपदा की वजह से निकल गई. धीरेधीरे 2013 बीत कर नया साल 2014 भी आ गया. अनुष्का का मन कर रहा था कि अस्पताल जा कर वह राजीव को देख आए लेकिन बिजनैस और अन्य वजहों से वह चेन्नई नहीं जा सकी. वह फोन पर जरूर उस के संपर्क में रही.

अनुष्का ने राजीव से कह दिया था कि वह इलाज की चिंता न करे. जितना भी संभव हो सकेगा वह उस की मदद करेगी. एक दिन राजीव ने उस से कहा, ‘‘डाक्टरों ने बताया है कि इलाज लंबा चलेगा, जिस में पैसों की भी जरूरत पड़ेगी. मेरे ठीक होने तक तुम जरूरत के मुताबिक पैसे देती रहना. ठीक होने पर मैं तुम्हारे सारे पैसे वापस कर दूंगा.’’

‘‘आप पैसों की चिंता न करें, बस अपना खयाल रखें.’’ अनुष्का बोली.

‘‘अनुष्का मेरे एक दोस्त हैं अजय सिंह यादव जो यहीं पर डीआईजी हैं. मैं उन का आईसीआईसीआई बैंक का खाता नंबर एसएमएस कर रहा हूं. तुम उस में भी पैसे भेज सकती हो. पैसे भेजने के बाद तुम मुझे फोन जरूर कर देना.’’ राजीव ने बताया.

इस तरह 12 दिसंबर, 2013 से 7 फरवरी, 2014 तक अनुष्का अलगअलग बैंक खातों में राजीव यादव के साढ़े 24 लाख रुपए भेज चुकी थी. इसी बीच राजीव ने उसे बताया कि उस का ब्लड प्रेशर लगातार बढ़ रहा है और कूल्हे का औपरेशन करने के लिए उसे चेन्नई से हैदराबाद के अपोलो अस्पताल भेजा जा रहा है.

राजीव की हालत दिनप्रतिदिन बिगड़ने की बात सुन कर अनुष्का को और ज्यादा चिंता होने लगी. उस ने राजीव को अस्पताल जा कर देखने का प्रोग्राम बना लिया. 21 फरवरी, 2014 को वह हैदराबाद के अपोलो अस्पताल पहुंच गई. अस्पताल पहुंचने पर उसे जो सूचना मिली, उसे सुन कर उस के होश ही उड़ गए.

अस्पताल से उसे जानकारी मिली कि राजीव यादव नाम का कोई पुलिस अधिकारी अस्पताल में भरती ही नहीं है. जबकि राजीव ने उसे उसी अस्पताल में भरती होने की बात कही थी.

जब वह इस अस्पताल में नहीं है तो कहां गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे किसी और अस्पताल भेज दिया हो? यह सोच कर उस ने उसी समय राजीव को फोन मिलाया. उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. कई बार फोन मिलाने के बाद भी फोन स्विच्ड औफ मिलता रहा तो निराश हो कर वह कानपुर लौट आई.

घर लौटने के बाद उस ने राजीव को फिर से फोन मिलाया. इस बार फोन मिलने पर बात हुई तो राजीव ने अपनी सफाई में कहा कि सुरक्षा कारणों से वह अस्पताल में दूसरे नाम पर भरती हुआ है.

राजीव ने उस से पैसों की और डिमांड की तो अनुष्का ने उसे अब पैसे न होने का बहाना बना दिया. अनुष्का ने जब उस से पूछा कि वह अस्पताल में किस नाम से भरती है तो उस ने वह नाम नहीं बताया बल्कि उस ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया.

इस से अनुष्का को राजीव की बातों पर शक होने लगा था. उस ने राजीव को आईसीआईसीआई, ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स और कार्पोरेशन बैंक के जिन खातों में पैसे भेजे थे. वह अपने स्तर से यह पता लगाने में जुट गई कि यह खाते किन नामों पर हैं.

उसे पता चला कि आईसीआईसीआई बैंक और ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स के खाते अजय सिंह यादव के थे, जो ग्रेटर कैलाश पार्ट-2, नई दिल्ली का रहने वाला था जबकि कार्पोरेशन बैंक का खाता अमित चौहान का निकला जो नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला था. जिस वोडाफोन मोबाइल नंबर से राजीव यादव बात करता था वह भी अमित चौहान के नाम पर लिया गया था.

इसी बीच 26 फरवरी, 2014 को अनुष्का को राजीव यादव ने फोन कर के बताया कि वह अस्पताल से डिस्चार्ज हो रहा है. डिस्चार्ज होने के कुछ दिनों बाद उसे आईएएस एकेडमी मसूरी भेजा जाएगा. वह वहां कुछ दिनों इंस्ट्रक्टर के रूप में काम करेगा.

राजीव ने अस्पताल का बिल चुकाने के लिए अनुष्का से कुछ पैसे और भेजने को कहा. चूंकि अनुष्का को राजीव पर शक हो गया था इसलिए उस ने उस की बात को फोन में रिकौर्ड करना शुरू कर दिया था. अपनी मजबूरी बताते हुए उस ने उसे और पैसे देने में असमर्थता जता दी.

और पैसे न मिलने की बात सुन कर राजीव यादव ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया. इस के बाद वह फोन औन नहीं हुआ. शादी के जाल में फंस कर अनुष्का राजीव को साढ़े 24 लाख रुपए दे चुकी थी. और पैसे न मिलने की बात पर जिस तरह राजीव यादव ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था, उस से अनुष्का को लगा कि उस के साथ कोई बड़ा फ्रौड हुआ है.

अपने स्तर से जानकारी पाने के लिए वह दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 में उस पते पर गई जहां वह रहता था, जिस के खातों में उस ने मोटी रकम ट्रांसफर की थी. राजीव ने अजय यादव को मिजोरम का डीआईजी बताया. लेकिन पड़ोसियों से बात करने पर पता चला कि वहां कोई पुलिस अधिकारी नहीं रहता.

सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या – भाग 1

26 जुलाई, 2023 को कोई 3 बजे का वक्त रहा होगा. मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में नाईट कल्चर लागू होने से हर रोज की भांति अधिकांश दुकानें खुली हुई थीं. रात का अंतिम पहर होने के बावजूद भी सड़क पर युवकयुवतियां एकदूसरे के हाथ थामे सड़क पर चहल कदमी कर रहे थे. वहीं सड़क पर दोपहिया व चार पहिया वाहन भी इधरउधर आजा रहे थे.

उसी दौरान इंदौर के लोटस चौराहे से एक कार नंबर एमपी09 सीएस 7613 तेजी से गुजरी. उसी चौराहे के पास ही वहां पर पहले से ही एक स्कूटी खड़ी हुई थी. उस स्कूटी पर एकदो नहीं नही बल्कि पूरे 4 लोग बैठे हुए थे. जिन में 3 युवक और एक युवती थी. युवती सब से पीछे बैठी हुई थी. उस समय उस के हाथ में सिगरेट थी. जिस को वह बारबार होंठो पर लगा कर उस से धुएं का छल्ला बना रही थी.

उस युवैती को इस हालत में देख कर अचानक कार उस एक्टिवा के पास रुकी. फिर कार में बैठे युवक ने युवती को कुछ कहा और फिर पल भर में ही उस कार ने आगे की ओर स्पीड पकड़ ली थी. उस कार को वहां से गुजरते ही युवती ने अगली सीट पर बैठे युवक को स्कूटी चलाने का इशार किया. फिर वह स्कूटी उस कार के पीछे लग गई.

देखते ही देखते स्कूटी ने तेज रफ्तार पकड़ ली. काफी देर पीछा करने के बाद मैरियट होटल के पास पहुंचने से पहले ही स्कूटी चालक ने इशारा कर कार को रुकवा लिया था. कार रुकते ही जैसे उस कार का शीश डाउन हुआ, तभी स्कूटी पर सवार युवती उतरी और कार की ओर बढ़ गई. तभी कार में बैठे एक युवक ने युवती की तरफ हाथ बढ़ाया. युवती ने भी बड़ी ही गर्म जोशी से उस युवक से हाथ मिलाया.

तभी युवती के साथ आया एक युवक बहुत ही फुरती से कार के पास आया. कार के पास आते ही उसने कार चालक रचित पर चाकू से हमला बोल दिया. उस के हमले से कार ड्राइवर रचित तो जैसेतैसे बच गया, लेकिन पिछली सीट पर बैठा मोनू इस से पहले कुछ समझ पाता युवक का चाकू उस के सीने में जा धंसा.

चाकू का वार होते ही मोनू की जोरदार चीख निकली. उस की चीख सुनते ही चारों लोग स्कूटी से फरार हो गए. इस घटना के घटते ही वहां पर मौजूद लोग नजर बचा कर इधरउधर हो गए थे. चाकू मोनू के दिल के पास जा कर लगा था. उस की हालत को देखते हुए. उसके साथियों ने उसे फौरन ही अस्पताल में भरती कराया. जहां पर इलाज के दौरान ही उस की मौत हो गई.

मोनू मर्डर केस की जानकारी पुलिस को दी गई. इस तरह से खुलेआम सड़क पर हत्या होने की बात सुनते ही पुलिस प्रशासन में तहलका मच गया. घटना की सूचना पाते ही विजय नगर थाने के टीआई रविंद्र सिंह गुर्जर पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे और मौके का जायजा लिया. उसके बाद टीआई रविंद्र सिंह ने इस की सूचना इंदौर डीसीपी अभिषेक आनन्द व इंदौर पुलिस कमिश्नर मकरंद देवास्कर को दी. पुलिस ने इस घटना के चश्मदीद गबाह टीटू,रचित और हर्ष से पूछताछ की.

पुलिस पूछताछ में मृतक मोनू के दोस्त विशाल ने पुलिस को जानकारी दी कि मंगलवार की रात में मोनू, रचित उर्फ टीटू और हर्ष रचित की कार से उज्जैन के लिए निकले थे. लोटस चैराहे पर पहुंचते ही एक स्कूटी ने उन का पीछा करना आरंभ किया. साया जी होटल के पास पहुंचतेपहुंचते उस स्कूटी सवार ने उन की कार के आगे स्कूटी लगा कर कार रोकने पर मजबूर कर दिया.

कार रुकते ही जैसे ही कार के शीशे डाउन हुए, स्कूटी पर उसे तान्या बैठी दिखाई दी. मैं तान्या को पहले से ही जानता था. उस के बाद तान्या ने उस से हाथ भी मिलाया. तभी तान्या के साथ आए अन्य लोगों ने कार में बैठे रचित पर चाकू से हमला बोल दिया. उस हमले में रचित तो बच गया ,लेकिन वह चाकू मोनू के सीने में जा कर लगा.

उस के बाद सभी आरोपी स्कूटी द्वारा वहां से फरार हो गए. पुलिस पूछताछ में विशाल ने बताया कि इस केस की मुख्य आरोपी तान्या है. तान्या ही अपने साथ अपने दोस्तों शोभित ठाकुर, छोटू उर्फ तन्मय तथा ऋतिक के साथ घटना को अंजाम देने के लिए पहुंची थी.

जेल से रिमांड पर लिया तान्या को

यह सब जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने मृतक मोनू की लाश का पंचनामा भरने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजवा दी. इस केस के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने 2 टीमें गठित कीं. पुलिस टीमों ने आरोपियों की धड़पकड़ का अभियान शुरू किया. चारों आरोपी बिना नंबर की स्कूटी पर सवार हो कर घटना को अंजाम देने के लिए आए थे.

पुलिस ने सब से पहले घटना स्थल के आसपास लगे. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, उन से चारों आरोपियों की पहचान हो गई थी. उसी पहचान के आधार पर पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़  शुरू की. पुलिस ने आरोपियों के मोबाइल नंबरों को सर्विलौंस पर लगा कर उन की लोकेशन के आधार पर उन के पास पहुंचने की कोशिश की.

इस हत्याकांड की मुख्य आरोपी तान्या जिला धार के बागटांडा के गांव बरोड़ की रहने वाली थी. पुलिस ने कई बार उसके मोबाइल पर संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन हर बार ही उसका मोबाइल बंद मिला. उस के बाद एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए बरोड़ के लिए निकल गई. पुलिस टीम उसके घर पहुंच भी नहीं पाई थी कि तभी जानकारी मिली कि तान्या ने कोर्ट के माध्यम से खुद को सरेंडर कर दिया था.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम आधे रास्ते से ही वापिस आ गई. कोर्ट में सरेंडर करने के बाद तान्या ने अपने अन्य साथियों को भी फोन कर सरेंडर करने को कहा था. इस के बावजूद भी तीनों आरोपी फरार हो गए.

तान्या के सरेंडर करने की सूचना पाते ही पुलिस टीम कोर्ट पहुंची. पुलिस ने वहां से उसे रिमांड पर लिया और फिर उसे साथ ले कर थाने लौट आई. पुलिस ने उस से इस हत्याकांड के मामले में विस्तार से जानकारी ली.

तान्या ने पुलिस को बताया कि वह रचित को बहुत पहले से जानती है. उस के साथ काफी समय तक लव भी चला, लेकिन रचित बीच में उसे धोखा दे कर उस से अलग हो गया. जिस के कारण वह उस से नफरत करने लगी थी. वह अपने साथियों के साथ मिल कर उसे सबक सिखाना चाहती थी, लेकिन गलती से चाकू  मोनू को लग गया. जिस के कारण ही उस की मौत हो गई.

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 1

उस दिन अक्टूबर की 9 तारीख थी. धरती पर सुरमई शाम उतर आई थी. सूरज दूर पहाड़ों की ओट में छिपने लगा था. राजस्थान में चंबल नदी के  किनारे बसे और पूरे देश में एजुकेशन हब के नाम से मशहूर शहर कोटा की पौश कालोनी तलवंडी निवासी पुनीत हांडा बैंक से अभीअभी घर लौटे थे.

दिनभर के थकेमांदे पुनीत ने घर आते ही पत्नी श्रद्धा से बेटे रुद्राक्ष के बारे में पूछा. रसोई में पुनीत के लिए चाय बनाने में व्यस्त श्रद्धा ने वहीं से हंसते हुए कहा, ‘‘आप को पता तो है, रुद्राक्ष पड़ोस के हनुमान मंदिर पार्क में खेलने जाता है, फिर भी आप रोजाना घर आते ही उस के बारे में पूछते हैं.’’

पत्नी के जवाब से संतुष्ट हो कर पुनीत फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गए. कुछ देर में वह हाथमुंह धो कर बाथरूम से निकल आए. इतनी देर में श्रद्धा चाय और एक प्लेट में बिस्किट ले कर ड्राइंगरूम में आ गई. दोनों चाय की चुस्कियां लेते हुए इधरउधर की बातें करने लगे.

इसी बीच पुनीत की नजर दीवार पर टंगी घड़ी पर पड़ी. शाम के 7 बज चुके थे, रुद्राक्ष अभी तक घर नहीं लौटा था. पुनीत ने श्रद्धा की ओर देखते हुए कहा कि रुद्राक्ष रोजाना तो ज्यादा से ज्यादा साढे़ 6 बजे तक घर लौट आता था. आज क्यों नहीं आया?

श्रद्धा साड़ी के पल्लू से चेहरे को पोंछते हुए बोलीं, ‘‘हो सकता है, वह अपने दोस्तों के साथ अभी तक खेलने में लगा हो. फिर भी पापा से कहती हूं कि अपने लाडले पोते को पार्क से ले आएं.’’

श्रद्धा ने ससुर एम.एम. हांडा को रुद्राक्ष के अब तक घर नहीं आने की बात बताई तो वह उसे पार्क से लाने के लिए जाने लगे, तभी घर के लैंडलाइन पर फोन की घंटी बजने लगी. पुनीत ने फोन उठाया. फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘तू पुनीत बोल रहा है?’’

फोन सुन कर पुनीत को झटका सा लगा. भद्दी आवाज में कोई उन्हें तू कह कर बोल रहा था. फिर भी उन्होंने यह सोच कर कि हो न हो कोई दोस्त हो, आवाज पहचानने की कोशिश की, लेकिन कुछ याद नहीं आया.

पुनीत कुछ पूछते, इस से पहले ही फोन पर दूसरी ओर से रौबीली आवाज सुनाई दी, ‘‘तू बैंक मैनेजर है ना… तेरी बीवी का नाम श्रद्धा है और वह टीचर है. रुद्राक्ष तेरा ही बेटा है ना…?’’

पुनीत इस तरह के सवालों से झल्ला गए. फिर भी उन्होंने शांत स्वर में कहा, ‘‘हां.’’

पुनीत के हां कहते ही फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सुन, तेरे बेटे रुद्राक्ष का अपहरण हो गया है. हम उसे कश्मीर भेज रहे हैं. कल सुबह तक 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लेना.’’

पुनीत कुछ पूछते, इस से पहले ही फोन करने वाले ने कहा, ‘‘याद रखना, पुलिस को सूचना दी तो बच्चा जिंदा नहीं बचेगा. जितनी तेजी से फोन करने वाले ने बात की थी. उतनी ही तेजी से दूसरी तरफ से फोन कट गया.’’

फोन सुन कर पुनीत सन्न रह गए. एकाएक यह बात उन की समझ में नहीं आई कि क्या करें? उन्होंने श्रद्धा को आवाज दे कर बुलाया और उन्हें फोन पर हुई सारी बातें बताईं.

रुद्राक्ष के अपहरण और 2 करोड़ की फिरौती मांगने की बातें सुन कर श्रद्धा बेसुध हो गईं. उन की आंखों से आंसू टपकने लगे. श्रद्धा ने पुनीत से कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे बच्चे का अपहरण भला कोई क्यों करेगा? हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है.’’

पुनीत ने श्रद्धा को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘हिम्मत रखो, सब ठीक हो जाएगा. पुनीत कहीं नहीं गया होगा, चलो पार्क में ढूंढ़ते हैं.’’

बात वाकई चिंता की थी. फोन पर इस तरह का मजाक भी संभव नहीं था. रुद्राक्ष और श्रद्धा अपने घर के पड़ोस वाले पार्क में पहुंचे, लेकिन वहां कोई नहीं था. चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था. रुद्राक्ष के दोस्तों से पूछताछ के लिए वे आसपास रहने वाले बच्चों के घर गए. बच्चों से पता चला कि 3-4 दिन से रोजाना एक व्यक्ति पार्क में आता था.

निशान माइक्रा कार से आने वाला वह व्यक्ति पार्क में बच्चों से बड़े प्यार से बातें करता था, उन से स्पेलिंग वगैरह के अलावा उन के मातापिता के कामकाज के बारे में भी पूछा करता था. साथ ही बच्चों को चौकलेट भी देता था. 3-4 दिन में ही वह पार्क में आने वाले बच्चों से काफी घुलमिल गया था. रुद्राक्ष के साथ खेलने वाले बच्चों ने बताया कि वही व्यकित रुद्राक्ष को अपने साथ ले गया था.

पार्क में खेलने वाले बच्चों ने जो कुछ बताया, उस से यह बात साफ हो गई कि फोन झूठा नहीं था और न ही उन से कोई मजाक किया गया था. मतलब साफ था कि 7 साल के मासूम रुद्राक्ष का वाकई अपहरण हो गया था.

अपहरण की बात सामने आने के बाद पुनीत व श्रद्धा की रुलाई फूट पड़ी. रुद्राक्ष उन के जिगर का टुकड़ा था, लेकिन रोने से कुछ नहीं होने वाला था. पुनीत ने सोचविचार कर अपने परिचितों को फोन कर के तुरंत घर पर बुलाया.

कुछ ही देर में पुनीत के यारदोस्त व करीबी रिश्तेदार आ गए तो पुनीत ने उन्हें रुद्राक्ष के अपहरण होने और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगने की बात बताई. रुद्राक्ष के अपहरण की बात सुन कर सभी को झटका लगा. सभी ने पुनीत और श्रद्धा को हिम्मत से काम लेने और पुलिस को सूचना देने की सलाह दी. पुनीत ने अपने कुछ परिचितों के साथ थाना जवाहरनगर पहुंच कर रुद्राक्ष के अपहरण और फोन पर 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगे जाने की सूचना दे दी. पुलिस ने तत्काल अपहरण का केस दर्ज कर लिया.

पुनीत हांडा कोटा के संभ्रांत नागरिक हैं. वे बूंदी सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक की तालेड़ा शाखा के मैनेजर हैं. उन की पत्नी श्रद्धा हांडा स्कूल में टीचर हैं. रुद्राक्ष के अपहरण और फिरौती मांगे जाने की बात पूरे शहर में रात को ही आग की तरह फैल गई. लोकल चैनलों पर खबरें आने लगीं.

कोटा के सांसद ओम बिड़ला को इस मामले की जानकारी मिली तो वह विधायक संदीप शर्मा के साथ पुनीत हांडा के घर पहुंचे और उन्हें भरोसा दिलाया कि चिंता न करें, रुद्राक्ष को सहीसलामत घर ले कर आएंगे. ओम बिड़ला दबंग सांसद हैं. उन्होंने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से फोन पर बात की और रुद्राक्ष के अपहरण के मामले की जानकारी दे कर बच्चे का तुरंत सुराग लगवाने का आग्रह किया.

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उस दिन जयपुर में ही थीं और एक दिन बाद सिंगापुर के दौरे पर जाने की तैयारियों में लगी थीं. उन्होंने मामले की संवेदनशीलता को महसूस कर के तुरंत प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज को तलब कर अपहृत बच्चे का पता लगाने के  निर्देश दिए. डीजीपी ने कोटा के पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि जैसे भी संभव हो, रुद्राक्ष का पता लगाएं. इस के लिए विशेष पुलिस टीमें तैनात की जाएं.

डीजीपी के निर्देश पर कोटा के आईजी डा. रविप्रकाश, एसपी ग्रामीण डा. विकास पाठक, कार्यवाहक एसपी मनीष अग्रवाल, एएसपी सिटी राजन दुष्यंत और डीएसपी हिमांशु सहित तमाम पुलिस अधिकारी रुद्राक्ष की तलाश में जुट गए. इस के साथ ही कोटा और आसपास के इलाके में कड़ी नाकेबंदी कर दी गई.

सब से पहले अपहरणकर्ताओं का पता लगाना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने पार्क में रुद्राक्ष के साथ खेलने वाले बच्चों, पार्क में आने वाले लोगों, पार्क में बने हनुमान मंदिर के पुजारी और अन्य लोगों से पूछताछ की. पार्क के आसपास के मकानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने के बाद निशान माइक्रा कार को चिह्नित कर लिया गया. परेशानी यह थी कि कैमरों की फुटेज में न तो कार का नंबर दिखाई दे रहा था, न ही कार चलाने वाले का चेहरा नजर आ रहा था. कार के शीशों पर काली फिल्म चढ़ी थी. फिर भी पुलिस उस निशान माइक्रा कार की तलाश में जुट गई.

पूरी रात पुलिस रुद्राक्ष के अपहरण की गुत्थी सुलझाने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर पुनीत के घर आधी रात तक लोगों का आनाजाना लगा रहा. लोग उन्हें दिलासा देते रहे. बेटे रुद्राक्ष का फोटो देखदेख कर श्रद्धा बारबार रो रही थीं. एक बार तो वह गश खा कर अचेत भी हो गईं. पुनीत व श्रद्धा समेत पूरे परिवार के लोगों ने पूरी रात जाग कर गुजारी. उन्हें उम्मीद थी कि पता नहीं कब पुलिस का फोन आ जाए कि रुद्राक्ष का पता लग गया है या अपहर्ताओं का ही दोबारा फोन आ जाए.

न्यूज एंकर सलमा सुलताना मर्डर मिस्ट्री

चाहत का कहर : माशूका की खातिर – भाग 1

मैनपुरी के मोहल्ला हिंदपुरम की रहने वाली कुसुमा पूरे मोहल्ले की भाभी थी. ज्यादातर लड़के उस  की गदराई जवानी के दीवाने थे. वे उस के घर के चक्कर लगाते रहते थे. कुसुमा घर पर 2 बच्चों के साथ रहती थी, जबकि उस का पति मुकेश दिल्ली में रहता था. वह 2-3 महीने में 1-2 दिनों के लिए ही घर आता था. पति से दूर रहना कुसुमा को अच्छा नहीं लगता था. वह पति के साथ दिल्ली में रहना चाहती थी.

लेकिन मुकेश की इतनी तनख्वाह नहीं थी कि वह बीवीबच्चों को साथ रख सकता. वह 2-3 महीने में 1-2 दिनों के लिए पत्नी और बच्चों से मिलने घर आ जाता था. कुसुमा जवान थी. उस की भी कुछ हसरतें थीं. लेकिन मुकेश उस तरफ ध्यान नहीं देता था. नतीजतन कुसुमा का झुकाव मोहल्ले के लड़कों की ओर होने लगा.

उन्हीं लड़कों में एक रामू था, जो कुसुमा के घर से तीसरे नंबर के मकान में रहता था. रामू के पिता फूल सिंह की मौत हो चुकी थी. उस के 4 भाई और 2 बहनें थीं. पिता की मौत के बाद मां शांति ने जैसेतैसे घरपरिवार संभाला था. 19 साल का रामू कुसुमा का ऐसा दीवाना हुआ था कि जब देखो, तब उस के घर के चक्कर लगाता रहता था.

शांति को जब इस बात का पता चला तो उस ने रामू को समझाया, ‘‘बेटा, कुसुमा अच्छी औरत नहीं है, इसलिए उस के यहां ज्यादा आनाजाना ठीक नहीं है.’’

मगर रामू कुसुमा के आकर्षण में इस कदर बंधा था कि उसे उस के अलावा कुछ अच्छा ही नहीं लगता था. इसीलिए उस ने मां की बात एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी.

कुसुमा चालू किस्म की औरत थी. रामू उम्र के उस पड़ाव पर था, जहां से फिसलने में देर नहीं लगती. कुसुमा और रामू की जरूरत एक ही थी, इसलिए उन के बीच नजदीकियां और अपनापन बढ़ने लगा. एक शाम कुसुमा के दरवाजे पर दस्तक हुई तो उस ने दरवाजा खोला. सामने रामू खड़ा था.

उसे देखते ही वह चौंक कर बोली, ‘‘रामू…तुम. आओ, अंदर आ जाओ.’’

रामू अंदर आ गया. उस के हाथ में एक पैकेट था. कुसुमा रसोई में जा कर चाय बना लाई. रामू चाय पीने लगा तो कुसुमा ने कहा, ‘‘पैकेट में क्या है?’’

‘‘खुद ही देख लो.’’ रामू ने शरमाते हुए कहा.

कुसुमा ने पैकेट खोला तो उस में साड़ी दिखी. वह बोली, ‘‘रामू, साड़ी बहुत अच्छी है. अपनी मां के लिए लाए हो क्या?’’

‘‘तुम भी भाभी, कैसी बातें करती हो? क्या मैं तुम्हारे लिए एक साड़ी भी नहीं ला सकता? मुझे दुकान पर पसंद आ गई तो मैं ने तुहारे लिए खरीद ली. तुम पहनोगी न?’’

‘‘हां…हां, क्यों नहीं. जब तुम इतने प्यार से लाए हो तो जरूर पहनूंगी. लो अभी पहन कर दिखाती हूं.’’ कह कर कुसुमा साड़ी ले कर अंदर चली गई. रामू इस बात से खुश हो रहा था कि कुसुमा ने उस के द्वारा दी गई पहली चीज स्वीकार कर ली. कुछ ही देर में कुसुमा वह साड़ी पहन कर आई तो रामू उसे देखते हुए बोला, ‘‘भाभी इस साड़ी में तुम बहुत ही खूबसूरत लग रही हो. इसे तुम मेरे प्यार का पहला तोहफा समझो.’’

‘‘प्यार का तोहफा? यह तुम क्या कह रहे हो?’’ कुसुमा बोली.

‘‘हां भाभी, सचमुच रातदिन तुम मेरे जेहन में बसी रहती हो. जब मैं काम पर होता हूं, तब भी तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं.’’

चाहती उसे कुसुमा भी थी, लेकिन वह इजहार के लिए रामू की तरह बेचैन नहीं थी. इसलिए रामू की बातें सुन कर कुछ पल के लिए वह चुपचाप उसे देखती रही. रामू का मन कर रहा था कि वह कुसुमा को बांहों में भर कर अपनी मोहब्बत का इजहार कर दे, लेकिन ऐसा करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. तभी कुसुमा ने रामू के पास आ कर रामू की बातों को टटोलते हुए कहा, ‘‘क्या तुम सचमुच मुझ से प्यार करते हो?’’

‘‘हां, करता हूं. चाहो तो मेरे दिल की आवाज खुद सुन लो.’’ रामू चहक कर बोला.

‘‘मुझे छोड़ कर भाग तो नहीं जाओगे?’’

‘‘कभी नहीं. अपनी जान दे सकता हूं, लेकिन तुम्हें छोड़ नहीं सकता. यह मेरा वादा है.’’

‘‘तो ठीक है, आज रात को आ जाना. फुरसत में बातें करेंगे. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’ कुसुमा ने कहा.

कुसुमा के इस प्रस्ताव से रामू का दिल खुशी से उछल पड़ा. वह रात को आने का वादा कर के चला गया. कुसुमा के घर से जाने के बाद रामू का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. वह बस यही सोच रहा था कि जल्द से जल्द दिन ढल कर अंधेरा हो जाए, जिस से वह कुसुमा के साथ मौजमस्ती करे.

कहते हैं, इंतजार के पल लंबे हो जाते हैं. यही हाल राजू का भी हो रहा था. वह अंधेरा होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था. खैर, रोजाना की तरह उस दिन भी शाम हुई, लेकिन वह दिन रामू के लिए बहुत बड़ा हो गया था.

शाम का खाना खाने के बाद रामू कुछ देर तक इधरउधर घूमता रहा. उस के बाद मौका देख कर कुसुमा के घर में घुस गया. कुसुमा ने खाना खिला कर बच्चों को पहले ही सुला दिया था. जैसे ही रामू ने उस के दरवाजे पर दस्तक दी, कुसुमा ने दरवाजा खोल दिया. रामू को देख कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘टाइम के बड़े पाबंद हो. अंदर आ जाओ.’’

‘‘भाभी हम वादा कर के मुकरने वालों में में नहीं हैं.’’ रामू ने अंदर आते हुए कहा.

कुसुमा ने कुंडी बंद कर दी. रामू उस के बेड पर जा कर बैठ गया. कुसुमा उस के पास बैठ गई और उस का हाथ दोनों हाथों में ले कर बोली, ‘‘रामू, अब तुम मुझे भाभी नहीं कहोगे. आज से तुम मेरा नाम ले पुकारोगे.’’

किसी महिला ने रामू का हाथ पहली बार थामा था. इसलिए उस का शरीर सिहर उठा. दोनों के बीच अब किसी तरह की रोकटोक नहीं थी, इसलिए रामू ने कुसुमा के गालों पर होंठ रखते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज से तुम्हें जो अच्छा लगेगा, वही कहूंगा.’’

इस के बाद दोनों एकदूसरे के बदन से खेलने लगे. रामू ने पहली बार इस सुख का अनुभव किया था, इसलिए उसे बहुत अच्छा लगा. लेकिन घर पहुंच कर रामू को लगा कि कुसुमा के साथ संबंध बना कर उस ने अच्छा नहीं किया. अपराधबोध की वजह से उस ने कुसुमा के घर की ओर जाना ही बंद कर दिया. शायद रामू यह नहीं जानता था कि जिस दलदल में उस ने कदम रख दिया है, वहां से निकलना आसान नहीं है.

3-4 दिनों बाद कुसुमा ने ही रामू को फोन किया, ‘‘रामू, कई दिन हो गए तुम दिखाई नहीं दिए, क्या कहीं बाहर चले गए हो क्या?’’

‘‘नहीं, मैं तो घर में ही हूं.’’

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘हां.’’

‘‘बातें तो तुम बड़ी लंबीचौड़ी कर रहे थे. कहां गई तुम्हारी वह मर्दानगी? तुम इसी समय आ जाओ, तुम से एक जरूरी बात करनी है.

न चाहते हुए भी रामू कुसुमा के घर पहुंच गया. और फिर वही सब हुआ, जो कुसुमा चाहती थी. इस के बाद कुसुमा का जब भी मन होता, रामू को फोन कर के बुला लेती और अपने मन की करती. इस तरह रामू उस के हाथ की कठपुतली बन कर रह गया. रामू दिन में तो घर से गायब रहता ही था, कुसुमा के पास आनेजाने की वजह से रात में भी गायब रहने लगा. शांति ने जब बेटे के घर से गायब रहने की वजह का पता किया तो उन्हें पता चलते देर नहीं लगी कि उस का बेटा कुसुमा के जाल में फंस गया है.

कातिल प्रेम पुजारी – भाग 1

5 अगस्त, 2023 के दोपहर के करीब साढ़े 12 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के छोला मंदिर इलाके की लीलाधर कालोनी में रहने वाले लोग अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे, तभी किसी महिला की चीखपुकार की आवाज सुनते ही आसपास रहने वाले लोगों का ध्यान उस तरफ गया. अफरातफरी के बीच में कुछ लोग एक मकान की तरफ बढ़े.

इसी बीच महिला की चीखों की आवाज सुन कर आसपास के दूसरे मकानों में रहने वाले किराएदार भी आ गए. महिला के चीखनेचिल्लाने की आवाज एक मकान की ऊपरी मंजिल से आ  रही थी. लिहाजा लोग बाहर की सीढिय़ों के सहारे छत पर पहुंच गए और उस घर के दरवाजे को बाहर से पीटने लगे.

कुछ ही देर बाद जैसे ही दरवाजा खुला तो 2 नकाबपोश महिलाओं ने चाकू दिखाते हुए रौबदार आवाज में कहा, “खबरदार कोई आगे आया तो जान से मार देंगे.”

एक महिला के हाथ में खून से सना चाकू देखते ही वहां मौजूद लोग दहशत में आ गए और उन्हें रास्ता देते हुए दरवाजे से हट गए. मौका देखते ही दोनों नकाबपोश महिलाएं चाकू लहरा कर फरार हो गईं. कुछ लोग उन दोनों महिलाओं के पीछेपीछे दौड़े, मगर तब तक वे नजरों से ओझल हो गईं. कुछ लोगों ने घर के अंदर जा कर देखा तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं.

घर के अंदर करीब 28-30 साल की महिला लहूलुहान पड़ी हुई थी, उस का नाम प्रीति शर्मा था. उस के पास ही एक साल का बच्चा जोरजोर से रो रहा था. कमरे में पहुंची एक बुजुर्ग महिला बच्चे को अपनी गोद में ले कर चुप कराने का प्रयास करने लगी.

प्रीति शर्मा के पूरे शरीर पर जगहजगह गहरे घाव के निशान थे. पूरा कमरा खून से लाल हो गया था. घटना के बाद पूरे इलाके में दहशत फैल गई. आसपास रहने वाले लोगों ने मनोज और उस के बड़े भाई फूलचंद को घटना की सूचना दी तो दोनों ही घर पहुंच गए. घर का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए.

मनोज के बड़े भाई फूलचंद ने छोला मंदिर थाने में फोन कर के सूचना दी तो थाना इंचार्ज उदयभान सिंह भदौरिया तत्काल ही दलबल के साथ लीलाधर कालोनी के उस मकान में पहुंच गए, जहां महिला की बेरहमी से हत्या की गई थी.

प्रीति गंभीर अवस्था में बिस्तर पर पड़ी हुई थी. उस के पूरे शरीर पर चाकू से गोदने के निशान थे. खून के छींटों से पूरे कमरे की दीवारें रंगी थीं. गद्ïदा खून से पूरा भीग चुका था. जमीन पर एक टूटा चाकू पड़ा हुआ था. प्रीति को तत्काल पीपुल्स अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

छोला मंदिर थाना पुलिस ने आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि प्रीति अपने पति मनोज शर्मा और अपने 3 बच्चों के साथ रहती थी. प्रीति का पति मनोज चौक बाजार में एक ज्वैलर्स की दुकान पर काम करता है.

2 बच्चे सुबह स्कूल चले गए थे और पति चौक बाजार अपनी दुकान पर काम के लिए चला गया था. प्रीति दोपहर में अपने घर के काम निपटा रही थी, उसी समय सलवारसूट पहन कर आई 2 महिलाओं ने घर के अंदर घुस कर दरवाजा बंद कर लिया और प्रीति कुछ समझ पाती कि दोनों ने प्रीति पर चाकुओं से हमला कर दिया.

घटनास्थल पर प्रीति के मकान में किराए पर रहने वाले लोगों ने बताया कि 2 महिलाएं सलवारसूट पहने मकान में आती दिखाई दी थीं. उन्होंने काला चश्मा, नकाब, हाथों में ग्लव्स और नीले जूते पहने थे. जब वो गेट के पास आईं तो लोगों को लगा कि कोई परिचित होंगी, लेकिन पलभर में वो बाउंड्री के अंदर आ गईं और सीढिय़ों पर चढ़ते हुए ऊपर छत पर पहुंच गईं. अंदर घुसते ही उन्होंने गेट अंदर से बंद कर लिया, तभी अचानक ऊपर से जोरजोर से चीखने की आवाज आने लगी.

घटना के करीब एक साल पहले तक मनोज शिवनगर में अपने बड़े भाई के मकान के एक हिस्से में रहता था. बाद में भाई की मदद से लीलाधर कालोनी में उस का मकान बन गया, जिस में नीचे 6 किराएदार रहते थे और ऊपर की मंजिल पर मनोज अपनी पत्नी प्रीति और तीनों बच्चों के साथ रहता था. मनोज के 8 साल और 3 साल के 2 बेटे घटना के समय स्कूल गए हुए थे.

हत्यारे की दाढ़ी और सिर पर लंबी चोटी से हुई पहचान

प्रीति पर चाकू से हमला करने के बाद जब रेनकोट पहने हुए दोनों महिलाएं भाग रही थीं, तभी एक किराएदार दीपेश ने सलवार सूट पहने हमलावार के पीछे भागने की कोशिश की, तभी उस ने देखा था कि उन में से एक हमलावर का हलका सा नकाब हटा तो देखा कि वो महिला नहीं पुरुष है और उस के चेहरे पर घनी दाढ़ी, सिर के पीछे लंबी सी चोटी है. दीपेश इतना देख ही पाया था कि चाकू दिखाते हुए भाग गया. पुलिस की पड़ताल ने यहीं से नया मोड़ ले लिया.

पुलिस की पूछताछ में लोगों ने हत्यारे की जो पहचान बताई, वो सुनने के बाद प्रीति के पति मनोज शर्मा का माथा ठनका और उस ने टीआई भदौरिया से कहा, “सर, हत्यारा रामनिवास मिश्रा हो सकता है.”

“यह रामनिवास कौन है?” टीआई उदयभान सिंह भदौरिया ने मनोज से पूछा.

“सर, रामनिवास हमारा रिश्तेदार है, वो मेरी बुआ के लडक़े का साला है. यहीं शीतला माता मंदिर के पास रहता है और दुर्गा माता मंदिर का पुजारी है. वही दाढ़ीमूंछ रखता है और उस के सिर पर लंबी चोटी भी है और उस के बाल भी बड़े हैं.”

“लेकिन वो क्यों प्रीति की हत्या करेगा, साफसाफ बताओ. उस के साथ प्रीति का कोई चक्कर तो नहीं था,” टीआई बोले.

“सर, जब मैं घर पर नहीं होता था, तभी अकसर वह मेरे घर आया करता था. ऐसा मुझे मेरे किराएदार बताया करते थे. मैं तो सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ कर काम पर चला जाता था. हमारे जाने के बाद घर में केवल एक साल का बेटा और प्रीति ही रहते थे.” मनोज ने खुलासा करते हुए कहा.

आटो वाले से मिला सुराग

पुलिस ने इलाके के सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो घटना के समय एक आटो में 2 नकाबपोश रेनकोट पहने नजर आए. सीसीटीवी में आटो घर के बगल वाली गली में आता हुआ दिखाई दिया. इस के बाद नकाब पहने ये दोनों हमलावर प्रीति के घर की तरफ जाते और फिर भाग कर आते दिखाई दिए. पुलिस ने आटो का नंबर ट्रेस किया और उसे खोज निकाला. पता चला कि आटोवाला चंदन नाम का युवक था.

चंदन ने पूछताछ में पुलिस को बताया, “सर, मैं एक स्टूडेंट हूं, खर्च चलाने के लिए आटो भी चलाता हूं. पुजारी रामनिवास से मेरी पहचान मंदिर में हुई थी. उन को कहीं भी जाना होता था तो मुझे ही बुलाते थे. 5 अगस्त की सुबह करीब 10-11 बजे रामनिवास ने मुझे फोन कर कहा कि लीलाधर कालोनी तक चलना है. आटो ले कर आ जाओ.

“जब मैं आटोरिक्शा ले कर उन के घर गया तो दोनों पतिपत्नी बाहर निकले. दोनों ने रेनकोट पहन रखा था. मैं ने ध्यान नहीं दिया. मैं दोनों को लीलाधर कालोनी ले कर आया. उन्होंने लीलाधर कालोनी के एक घर से थोड़ी दूरी पर पीछे की साइड आटो रुकवा दिया और कहा कि हम 5 मिनट में आते हैं. इस के बाद करीब 10-15 मिनट बाद वो आए तो मैं ने देखा कि उन के हाथों और कपड़ों पर खून लगा था. मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि कुछ लड़ाई झगड़ा हो गया है. इस के बाद मैं ने उन्हें उन के घर छोड़ दिया था.”

चंदन के इतना बताते ही पुलिस समझ गई कि ये हत्या रामनिवास और उस की पत्नी ने ही की है. इस आधार पर पुलिस ने रामनिवास मिश्रा की तलाश शुरू कर दी. 7 अगस्त को रामनिवास का फोन नंबर निकाल कर उस की लोकेशन ट्रेस की तो रामनिवास न्यू मार्केट के आसपास था. कई घंटे उस की तलाश की. इस दौरान रामनिवास ने दाढ़ी और मूंछ मुंडा ली थी. यही कारण था कि पुलिस और उस के मुखबिर भी उसे पहचान नहीं पा रहे थे.

आखिरकार शाम होतेहोते पुलिस ने उसे पकड़ लिया. उस के चेहरे पर नाखून के निशान थे. पुलिस ने उस से पूछा तो उस ने अपना नामपता गलत बताया. पुलिस उसे ले कर आई और पूछताछ करने लगी तो काफी देर तक वो पुलिस को छकाता रहा.

इस के बाद पुलिस ने रामनिवास का मोबाइल खंगाला तो पता चला कि किसी चंदन नाम के शख्स के उस के पास हत्या की वारदात से पहले और बाद में फोन आए थे. वो हत्या करने से साफ मना करता रहा. जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो उस ने पत्नी के साथ मिल कर प्रीति शर्मा की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया. इस के बाद पुलिस ने रामनिवास की पत्नी शालिनी को भी गिरफ्तार कर लिया.

प्यार की वो आखिरी रात – भाग 1

कानपुर शहर का नवाबगंज मोहल्ला कई मायनों में अपनी पहचान बनाए हुए है. एक तो यह पुराना कानपुर के नाम से जाना जाता है. दूसरे गंगा नदी पर बना गंगा बैराज अपनी अद्भुत छटा बिखेरता है. अटल घाट पर बैठ कर लोग कलकल बहती गंगा की लहरों का लुत्फ उठाते हैं. नौका विहार का आनंद भी लेते हैं.

सैकड़ों की संख्या में यहां लोग रोजाना आते हैं. नवाबगंज का जागेश्वर मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है. यहां हर साल सावन के अंितम सोमवार को दंगल का आयोजन किया जाता है, जिस में पुरुष और महिला पहलवान भाग लेते हैं. दंगल को देखने भारी भीड़ उमड़ती है.

इसी जागेश्वर मंदिर के ठीक सामने ओम प्रकाश सैनी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सरला के अलावा 3 बेटियां थीं. ओमप्रकाश सैनी फूलों का व्यवसाय करते थे. उन की पत्नी सरला जागेश्वर मंदिर परिसर में फूल बेचने का काम करती थी. पतिपत्नी मिल कर इतना कमा लेते थे, जिस से परिवार का खर्च मजे से चलता था. बड़ी बेटी कुसुम जवान हुई तो उन्होंने उस का विवाह संतोष के साथ कर चुके थे.

मंझली बेटी बरखा थी. वह अपनी अन्य बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की खूबसूरती में और निखार आ गया था. हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वह आगे भी पढऩा चाहती थी, लेकिन सरला ने उस की पढ़ाई बंद करा दी और घरेलू काम में लगा दिया. बरखा बनसंवर कर मंदिर परिसर स्थित फूलों की दुकान पर अपनी मां के साथ बैठती तो अनेक युवकों की निगाहें उसे घूरतीं. चंचलचपल बरखा किसी को अपने पास नहीं फटकने देती थी.

बरखा के जवान होने पर वह उस के लिए उचित लडक़े की तलाश में जुट गए. उन्होंने परिचय के साथ बरखा का नाम सैनी समाज के सामूहिक विवाह रजिस्टर में भी दर्ज करा दिया. लंबी भागदौड़ के बाद उन की तलाश कृष्णकांत पर जा कर खत्म हुई.

बरखा ने सुहागरात को ही फेल कर दिया था पति

कृष्णकांत के पिता रामकुमार सैनी कानपुर शहर के यशोदा नगर मोहल्ले में रहते थे. सैनिक चौराहे पर उन का निजी मकान था. वैसे वह मूल निवासी सकरापुर (बिधनू) के थे. वहां उन का पुश्तैनी मकान और कुछ खेती की जमीन है. रामकुमार के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा एक बेटी शिखा तथा बेटा कृष्णकांत था. शिखा की वह शादी कर चुके थे, जबकि कृष्णकांत अभी कुंवारा था. कृष्णकांत इलैक्ट्रिशियन था. वह क्षेत्र की एक दुकान पर काम करता था.

ओमप्रकाश सैनी ने जब कृष्णकांत को देखा तो वह उस के आचारविचार से प्रभावित हुए. अच्छा घरवर देख कर ओमप्रकाश ने अपनी बेटी बरखा का रिश्ता उस के साथ तय कर दिया. फिर 22 दिसंबर, 2009 को बरखा का विवाह कृष्णकांत सैनी के साथ धूमधाम से कर दिया.

शादी के बाद बरखा कृष्णकांत की दुलहन बन कर ससुराल आई तो उस ने अपने बात व्यवहार से पति और सासससुर का दिल जीत लिया. सुंदर व सुशील बहू पा कर जहां सासससुर खुश थे. सब खुश थे, लेकिन बरखा खुश नहीं थी. उस ने जिस सजीले पति को सपने में संजोया था, कृष्णकांत वैसा नहीं था. वह साधारण रंगरूप वाला, दुबलापतला तथा कम बोलने वाला इंसान था. बरखा ने सुहागरात में ही जान लिया था कि उस का पति पौरुषहीन है. उसे सदैव शारीरिक सुख के लिए तड़पना पड़ेगा.

दिन बीतते रहे. लगभग डेढ़ साल बाद बरखा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस के जन्म से घर की खुशियां और बढ़ गईं. मयंक के जन्म से रामकुमार व उन की पत्नी भी गदगद थी. उन्होंने इस खुशी को साझा करने के लिए सैनी समाज के लोगों को भोज कराया.

बरखा को घर में वैसे तो सब सुख था, लेकिन पति सुख से वंचित रहती थी. कृष्णकांत सुबह 9 बजे घर से निकलता, फिर रात 9 बजे ही घर आता. वह कभी शराब के नशे में धुत हो कर घर लौटता तो कभी बेहद थकाहारा. कभी खाना खाता तो कभी बिना खाए ही चारपाई पर पसर जाता. बरखा रात भर करवटें बदलती रहती और गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती. वह हर रात अरमानों को खाक करती और भाग्य को कोसती. इसी तरह समय बीतता रहा.

पति के दोस्त पर जम गई निगाह

कृष्णकांत का एक दोस्त था दीपक गुप्ता. उस के घर से 4 घर छोड़ कर वह रहता था. दीपक के पिता विमल गुप्ता की घर के बाहर पान की दुकान थी. कृष्णकांत भी उस की दुकान पर पान मसाला खाने जाता था. दुकान पर ही कृष्णकांत की उस की दोस्ती दीपक गुप्ता से हुई थी. समय के साथ उन की दोस्ती गहरी हुई तो दीपक का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया. दीपक गुप्ता ई रिक्शा चलाता था. उस की कमाई अच्छी थी. वह बनसंवर कर रहता था.

चूंकि दीपक कृष्णकांत का दोस्त था, इसलिए घर के कामों के लिए वह ज्यादातर उसे ही भेजता था. घर के कामों के साथसाथ दीपक बरखा के छोटेमोटे निजी काम भी कर दिया करता था. दीपक बरखा की हमउम्र था. इसी आनेजाने में ही दीपक की नजरें बरखा के गदराए यौवन पर जम गईं.

फिर तो जब भी उसे मौका मिलता, वह बरखा से ऐसा मजाक करता कि वह शर्म से लाल हो उठती. औरतों को मर्दों की नजरें पहचानने में देर नहीं लगती. बरखा ने भी दीपक की नजरों से उस का इरादा भांप लिया था. बरखा प्यासी औरत थी. इसलिए उस ने दीपक की मजाक का कोई विरोध नहीं किया.

बरखा हसीन तितली थी. होंठों पर हमेशा लुभावनी मुसकान सजाए रखना उस का शगल था. उस का मस्त यौवन और उस की कटीली अदाएं दीपक के दिल पर छुरियां चलाती थीं. चूंकि दोस्ती व मोहल्ले के नाते बरखा दीपक की भाभी थी, अत: उन के बीच कुछ ज्यादा ही हंसीमजाक हो जाता था.

बरखा ने जब से घर की जिम्मेदारी संभाली थी, तब से राजकुमार व उन की पत्नी बहू से बेफिक्र हो गए थे. वह घर का भार बहू को सौंप कर अपने पैतृक गांव सकरापुर रहने लगे. वे कभीकभार ही बेटेबहू के पास आते थे, और कुछ दिन रुक कर फिर वापस चले जाते थे. सासससुर के न रहने से बरखा एकदम आजाद हो गई थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था.

प्रेमिका को गोली मार की खुदकुशी – भाग 1

दोपहर के 2 बजे का समय हो रहा था. आजमगढ़ उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के जमसर गांव में स्थित रौयल स्टार ढावा एंड फैमिली रेस्टोरेंट पर एक युवक अपनी गर्लफ्रैंड को ले कर बाइक से पहुंचा. पिछले दिनों होली का त्यौहार होने के कारण रेस्टोरेंट में स्टाफ भी कम था, इसलिए होटल संचालक मनीष ने युवक को साफसाफ बता दिया था कि स्टाफ कम होने की वजह से आज खाना नहीं मिल सकेगा. इस पर युवक ने 2 चाय व साथ में कुछ खाने का आर्डर दिया. तब तक रेस्टोरेंट के भीतर स्थित केबिन में बैठे वे दोनों बातें करने लगे.

इधर मनीष चाय बनाने के लिए किचन में चला गया. जैसे ही उस ने चाय का पानी और दूध गैस पर चढ़ाया, तभी उसे गोली चलने की एक तेज आवाज सुनाई दी. गोली की आवाज उसी केबिन से आई थी जहां पर युवक और और युवती बैठ कर आपस में बातचीत कर रहे थे. मनीष और रेस्टोरेंट में मौजूद कर्मचारी जब वहां पर पहुंचे युवक और युवती के बीच तेज लड़ाई की आवाजें और छीनाझपटी, आपस में गुत्थमगुत्था हो रही थी. जबकि युवती के सिर से काफी खून भी बह रहा था.

बाथरूम में मारी गोली

युवक ने जब होटल के कर्मचारियों को अपनी ओर आते देखा तो वह दौड़ कर केबिन के शौचालय के अंदर घुस गया और उस ने बाथरूम में घुसते ही शौचालय का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया, तभी एक फायर की आवाज बाथरूम के अंदर से आई.

होटल संचालक मनीष समझ गया कि मामला गंभीर है, इसलिए उस ने इस वारदात की सूचना कोतवाली जीयनपुर के कोतवाल यादवेंद्र पांडेय को फोन द्वारा दे दी. कोतवाल यादवेंद्र पांडेय ने जैसे ही घटना के बारे में सुना तो वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ तुरंत घटनास्थल की ओर चल पड़े. इसी बीच कोतवाल यादवेंद्र पांडेय ने इस वारदात की खबर अपने उच्चाधिकारियों और एफएससल टीम को भी दे दी थी.

कोतवाली जीयनपुर से घटनास्थल की दूरी महज 2 किलोमीटर थी, इसलिए कोतवाल अपनी टीम के साथ वहां थोड़ी देर में ही पहुंच गए थे. कोतवाल यादवेंद्र पांडेय ने घटनास्थल का निरीक्षण कर शौचालय का दरवाजा तुड़वाया. शौचालय के अंदर युवक मृत अवस्था में पड़ा था.

युवक के शव के पास ही वह तमंचा भी पड़ा हुआ था, जिस के द्वारा युवक ने वारदात को अंजाम दिया था. जबकि दूसरी ओर युवती केबिन में अचेत अवस्था में थी. उस के सिर से खून बह रहा था. उसे तुरंत जिला अस्पताल भेज दिया. युवक और युवती के पास मिले मोबाइल फोन में सेव नंबरों में से उन के घर वालों के नंबर खोज कर दोनों के घर वालों पुलिस द्वारा सूचना दी गई.

उसी बीच घटनास्थल पर एसपी (ग्रामीण) राहुल रूसिया भी पहुंच चुके थे. सूचना पा कर दोनों के घर वाले घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. मृतक युवक की शिनाख्त 24 वर्षीय विशाल पुत्र शिववचन निवासी जम्मनपुर, आजमगढ़ के रूप में हुई थी. जबकि युवती की पहचान 23 वर्षीय नित्या निवासी चिलबिली दान, चिलबिली, रौनापार आजमगढ़ के रूप में हुई.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर विशाल के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल, आजमगढ़ भेज दिया और रायल स्टार ढाबा ऐंड फैमिली रेस्टोरेंट को सील कर दिया था. पुलिस की प्रारंभिक जांच में पता चला कि युवक और युवती आपस में अच्छे दोस्त थे और दोनों के बीच पिछले करीब डेढ़ साल से प्रेम संबंध थे.

उसी दिन शाम साढ़े 4 बजे घायल युवती नित्या के पिता ने थाना जीयनपुर में एक लिखित तहरीर दे कर विशाल के खिलाफ उन की बेटी को जान से मारने की नीयत से गोली चलाने की रिपोर्ट दर्ज कराई. यह बात 10 मार्च 2023 की है. जिस का मजमून इस प्रकार था-

उन की तहरीर के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. एसपी अनुराग आर्य ने कोतवाल को आदेश दिए कि वह इस प्रकरण की यथाशीघ्र जांच करें.

11 मार्च, 2023 शनिवार को मृतक विशाल के भाई अनिल ने ग्रामीणों के साथ जीयनपुर कोतवाली पहुंच कर रायल ढाबा ऐंड फैमिली रेस्टोरेंट के संचालक पर साजिश का आरोप लगाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की और कहा कि यह रेस्टोरेंट अवैध रूप से चलाया जा रहा था.

पुलिस तहकीकात के बाद इस मामले की जो कहानी निकल कर सामने आई, जो इस प्रकार थी—

खूबसूरती की मिसाल थी नित्या

मृतक विशाल उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के गांव जम्मनपुर, निवासी शिववचन का पुत्र था. उस के परिवार मां के अलावा 2 बड़े भाई थे. विशाल अपने घर में सब से छोटा था. शिववचन कोलकाता में एक रोलिंग मिल में काम करते थे. बड़ा बेटा अनिल एक कालेज में लेक्चरर था, छोटा सुनील ठेकेदारी और खेती का काम करता था.

सब से छोटे विशाल की उम्र 25 वर्ष की हो चुकी थी. वह अपने गांव से 3 किलोमीटर दूरी पर भदौली में स्थित मैना देवी कालेज में बीए की पढ़ाई कर रहा था. इसी कालेज में गांव चिलबिली दानू निवासी नित्या भी बीटीसी की पढ़ाई कर रही थी. नित्या के पिता डिसपेंसरी चलाते थे. नित्या से छोटा एक भाई था, जो स्कूल में पढ़ाई कर रहा था.

नित्या अपने घर की बड़ी लाडली थी, नित्या खूबसूरत व शांत स्वभाव की थी. पतली कमर, सुडौल बदन, लंबी छरहरी, मृगनयनी, एवं गोरे रंग की नित्या बड़ी शांत रहती थी. उस की आवाज में लोच और मधुरता थी. होंठों पर मुस्कान और चेहरे पर सौम्यता थी. समझदार इतनी कि जिस कला या खेल को सीखती, शीघ्र ही निपुण हो जाती थी. पढ़ने में भी वह काफी अच्छी थी. टीचर बनने का एक दिली जुनून था, इसलिए उस ने बीटीसी में प्रवेश लिया था.

विशाल को गाना गाने और एथलेटिक्स का शौक था. कालेज के समारोह में विशाल लगभग हर प्रोग्राम में गीत जरूर गाता था, उस की आवाज में इतनी कशिश थी कि हर कोई उस का बस मुरीद बन कर रह जाता था. लेकिन विशाल में एक बात यह थी कि वह थोड़ा धीर और गंभीर किस्म का इंसान था.

वह न तो किसी से फालतू बात करता था न ही कभी कोई दिखावा करता था. वह जिस बात पर अड़ जाता था, उस बात पर वह किसी भी हद तक जा सकता था. उस का भी अपना एक मकसद था कि जीवन में कभी भी समझौता नहीं करना है, जो चीज अच्छी लगे वह अच्छी जो बात बुरी लगे, उस में वह किसी भी तरह का कंप्रोमाइज करना बिलकुल भी पसंद नहीं करता था.

विशाल के इसी गंभीर स्वभाव के कारण हर कोई उसे अपना दोस्त बनाने के लिए सदा आतुर सा रहता था. चाहे वह युवक हो या युवती, दूसरा विशाल काफा स्मार्ट भी था. दोनों भाई और मातापिता उस की हर जरूरत का विशेष ध्यान भी रखते थे.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 1

मैट्रीमोनियल वेबसाइटों पर दिए  फरजी विज्ञापनों के जाल में फंस कर कई लोग ठगी का शिकार भी हो जाते हैं. जब तक उन्हें हकीकत पता चलती है तब तक उन का बहुत कुछ लुट चुका होता है. जल्दबाजी में उठाए गए ऐसे कदमों की वजह से उन्हें जिंदगी भर पछताना भी पड़ जाता है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के गीतानगर की रहने वाली अनुष्का एक उच्चशिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती थी. उस के यहां किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस का पालनपोषण बड़े ही नाजों में हुआ था. उस की पढ़ाईलिखाई भी अच्छे स्कूल, कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा पूरी करतेकरते अनुष्का जवान हो चुकी थी. तब पिता ने उस की शादी अपनी ही हैसियत वाले परिवार में कर दी. शादी के बाद अनुष्का पति के घर चली गई.

कहते हैं कि शादी के बाद लड़की के नए जीवन की शुरुआत अपने पति के संग होती है. वहां उसे ससुराल के मुताबिक ही खुद को ढालना होता है. अनुष्का ने भी ऐसा ही किया. अपने गृहस्थ जीवन से वह खुश थी. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. बेटी के जन्म के बाद उस की खुशी और बढ़ गई. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

पति से उस के मतभेद हो गए. हालत यह हो गए कि उस का ससुराल में रहना दूभर हो गया तो वह मायके आ गई. हर मांबाप चाहते हैं कि उन की बेटी ससुराल में हंसीखुशी के साथ रहे. अनुष्का गुस्से में जब मायके आई तो मांबाप ने उसे व दामाद को समझाया. समझाबुझा कर उन्होंने बेटी को ससुराल भेज दिया.

उन्होंने अनुष्का को ससुराल भेजा तो इसलिए था कि गिलेशिकवे दूर होने के बाद उस की गृहस्थी की गाड़ी सही ढंग से चलेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों बाद ही पति के साथ उस का तलाक हो गया. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पति से तलाक होने के बाद अनुष्का बेटी के साथ मायके में ही रहने लगी. अनुष्का पढ़ीलिखी थी इसलिए अब अपने पैरों पर खड़े होने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह आत्मनिर्भर बन कर बेटी को ऊंची तालीम दिलाएगी. इधरउधर से पैसों की व्यवस्था कर के उस ने रेडीमेड गारमेंट का बिजनैस शुरू कर दिया. कुछ सालों की मेहनत के बाद उस का बिजनैस जम गया और उसे अच्छी कमाई होने लगी.

अनुष्का अपनी बेटी की पढ़ाई की तरफ पूरा ध्यान दे रही थी. वह चाहती थी कि बेटी को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाए कि उस का भविष्य उज्ज्वल बन सके. उस की बेटी इस समय मुंबई के एक नामी इंस्टीट्यूट से एमबीए कर रही है. अनुष्का भी अब 47 साल की हो चुकी थी. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए उसे कभीकभी जीवनसाथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. इस के लिए उस ने वैवाहिक विज्ञापनों की वेबसाइट जीवनसाथी डौटकौम पर नवंबर, 2013 में अपना रजिस्ट्रेशन भी करा दिया था.

वैवाहिक विज्ञापनों की इसी साइट पर राजीव यादव नाम के एक आदमी ने भी रजिस्ट्रेशन करा रखा था. 58 वर्षीय राजीव यादव ने अपनी पर्सनल डिटेल में खुद को आईपीएस बताया था. वह भी अपने लिए जीवनसंगिनी तलाश कर रहा था. राजीव रोजाना जीवनसाथी डौटकौम साइट पर अपनी पसंद की महिला की तलाश करने लगा. साइट सर्च के दौरान उस की नजर अनुष्का की प्रोफाइल पर ठहर गई.

उस ने जल्दी ही अनुष्का को ईमेल भेज कर बात करने की इच्छा जाहिर की. अनुष्का ने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. तब राजीव यादव ने उस से खुद को आईपीएस अफसर बताते हुए कहा कि उस की पोस्टिंग भारत के नार्थईस्ट इलाके मिजोरम में डीआईजी के पद पर है और वह वहां अकेला रहता है.

राजीव ने जब अपने बारे में बताया तो अनुष्का को लगा कि उस की बाकी जिंदगी राजीव के साथ ठीक से कट जाएगी. कुल मिला कर राजीव उसे अच्छा लगा. सोचविचार कर अनुष्का ने भी राजीव को अपना परिचय दे दिया और कहा कि पहले पति से उस की एक बेटी है, जो मुंबई में एमबीए की पढ़ाई कर रही है. राजीव ने उस की बेटी को भी अपनाने की हामी भर ली.

इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इसी दौरान राजीव ने बताया कि जब वह छोटा था कि उस के मांबाप की मौत हो गई थी. एक छोटा भाई था जो भारतीय सेना में ब्रिगेडियर था. उस की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में थी. लेकिन वहां हुए एक बम विस्फोट में उस की मौत हो चुकी है.

कुछ दिनों की बातचीत के बाद राजीव और अनुष्का ने शादी की बात फाइनल कर ली. उन्होंने तय कर लिया कि वे 13 दिसंबर, 2013 को शादी कर लेंगे. राजीव यादव ने कहा कि वह मिजोरम से 13 दिसंबर को कानपुर पहुंच जाएगा और परिवार के नजदीकी लोगों के बीच एक सादे समारोह में उसी दिन शादी कर के वापस लौट आएगा.

अनुष्का की यह दूसरी शादी थी इसलिए वह भी शादी के समय कोई बड़ा दिखावा और तामझाम नहीं चाहती थी. इसलिए उसे राजीव का प्रस्ताव पसंद आ गया. शादी करने से 3 दिन पहले 10 दिसंबर को राजीव ने अनुष्का से फोन पर बात की. बातचीत के दौरान उस ने बताया कि उस का पर्स कहीं गिर गया है. उस में एटीएम कार्ड व अन्य कार्ड थे.

अनुष्का ने राजीव की इस बात को सीरियसली नहीं लिया क्योंकि आए दिन तमाम लोगों के एटीएम कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि महत्त्वूपर्ण सामान चोरी होते रहते हैं या कहीं खो जाते हैं. इसलिए उस ने राजीव से यह कहा कि जो एटीएम कार्ड पर्स में थे, उन्हें लौक जरूर करा दें ताकि कोई उन का दुरुपयोग न कर सके. अनुष्का ने अपने होने वाले पति को यह सुझाव दे तो दिया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि राजीव यह छोटी सी सूचना दे कर उसे ऐसे जाल में फांसने जा रहा है, जहां से निकलना उस के लिए आसान नहीं होगा.

दोनों की फोन पर रोजाना ही बातचीत होती थी. अनुष्का उस की बातों से इतनी प्रभावित हो गई थी कि उस पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थी. 13 दिसंबर की दोनों की शादी होने वाली थी इसलिए अब केवल 2 दिन ही बचे थे. 2 दिनों बाद वे एकदूसरे से पहली बार मिलने जा रहे थे. अनुष्का की खुशी बढ़ती जा रही थी. ये 2 दिन उसे 2 साल से भी ज्यादा लंबे लग रहे थे. एकएक पल का वह बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

इस से पहले कि अनुष्का राजीव यादव के साथ शादी के बंधन में बंध पाती, उसे ऐसी खबर मिली कि उस के पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई.