कातिल निगाहों ने बनाया कातिल – भाग 1

3 अगस्त, 2023 को रात के कोई 2 बजे का वक्त रहा होगा. उत्तराखंड के जिला ऊधमसिंह नगर के शहर रुद्रपुर की घनी आबादी वाले ट्रांजिट कैंप इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ था. उसी दौरान संजय यादव के 12 वर्षीय बेटे जय की चीखपुकार ने सभी लोगों की नींद उड़ा दी थी.

जय जोरजोर से चीख रहा था, ‘‘बचाओबचाओ, बदमाशों ने मेरे मम्मीपापा को मार डाला.’’

उस की चीखपुकार सुन कर लोग इकट्ठा हुए. फिर लोगों ने उस के घर के अंदर का मंजर देखा तो सभी के रोंगटे खड़े हो गए. लोगों ने घटनास्थल पर देखा, एक कमरे में उस के मम्मीपापा की लाश खून से लथपथ पड़ी हुई थी. जबकि दूसरे कमरे में उस की नानी बेहोशी की हालत में पड़ी हुई चीखपुकार मचा रही थी. जय ने लोगों को बताया कि उस ने भी शोर मचाने की कोशिश की तो आरोपी उसे धक्का मार कर एक बदमाश फरार हो गया.

इस जघन्य अपराध को देखते ही वहां पर मौजूद लोगों ने पुलिस को सूचना दी. सूचना पाते ही आननफानन में घटनास्थल पर पुलिस भी पहुंच गई थी. पुलिस ने इस मामले में मृतक संजय यादव के बेटे जय से जानकारी जुटाई तो उस ने बताया कि रात के कोई 2 बजे उस के घर में बदमाश घुस आए. घर में घुसते ही बदमाशों ने उस के पिता की धारदार हथियार से गला रेत कर हत्या कर दी.

उस के बाद पास में ही सो रही उस की मां के चेहरे पर कई वार करने के बाद उन के हाथ की नस काट दी, फिर उन की कमर पर धारदार हथियार से हमला कर हत्या कर दी. दोनों की चीख सुन दूसरे कमरे में सो रही उस की नानी गौरी मंडल मौके पर पहुंची तो बदमाशों ने उन के पेट पर भी वार कर दिया, जिस के कारण वह भी गंभीर रूप से घायल हो गईं.

दोहरे मर्डर से क्षेत्र में मची सनसनी

3 लोगों की नाजुक हालत को देखते ही पुलिस ने एंबुलेंस भी बुला ली थी. तीनों को तुरंत जिला अस्पताल पहुंचाया गया, जहां पर डाक्टरों ने संजय यादव और उन की पत्नी सोनाली को मृत घोषित कर दिया. जबकि सोनाली यादव की मां गौरी मंडल की हालत गंभीर दखते हुए उन्हें शहर के एक निजी अस्पताल में रेफर कर दिया था. रात अधिक होने के कारण पुलिस ने दोनों मृतकों की लाश को मोर्चरी में रखवा दिया था.

अगले दिन सुबह ही पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर मृतक परिवार के घर की जांचपड़ताल की. जांच के लिए डौग स्क्वायड को भी बुलाया गया था. इस दौरान भी सारे दिन देखने वालों की भीड़ लगी रही.

इस केस की अधिक जानकारी के लिए पुलिस ने कुमाऊं फोरैंसिक टीम भी बुला ली थी. घटना के बाद घर में मौजूद बिस्तर खून से लथपथ पड़ा हुआ था. फर्श पर भी कई जगह खून बिखरा मिला. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल पर पहुंचते ही टीम ने साक्ष्य जुटाए. उस के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था.

7 पुलिस टीमों के 45 पुलिसकर्मी जुटे जांच में

इस जघन्य डबल मर्डर के शीघ्र खुलासे के लिए एसएसपी मंजूनाथ टीसी द्वारा जगदीश की गिरफ्तारी हेतु पुलिस अपराध एवं यातायात, एसपी (सिटी), सीओ अनुषा बडोला व पंतनगर के सीओ व एसएचओ कोतवाली सुंदरम शर्मा के निर्देशन में 7 पुलिस टीमों का गठन किया गया.

इस केस की गहराई तक जाने के लिए सब से पहले पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. जिस के द्वारा राजवीर नाम का एक शख्स सुर्खियों में उभर कर सामने आया. पुलिस ने राजवीर की छानबीन की तो उस के कई नाम उभर कर सामने आए. जो जगदीश उर्फ राजकमल उर्फ राज नाम से ज्यादा जाना जाता था. उसी दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि वह राजवीर नाम से कई साल पहले संजय यादव के घर के सामने किराए पर रह चुका था.

जगदीश उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का मूल निवासी था. इस वक्त वह कहां रह रहा था, किसी के पास कोई ठोस जानकारी नहीं थी. फिर भी पुलिस ने उस के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन वह नंबर काफी समय से बंद आ रहा था, जिस से पता चला कि अभियुक्त पुलिस की पकड़ से बचने के लिए पलपल स्थान बदल रहा था.

उस के बाद गठित टीमों द्वारा अपनाअपना काम करते हुए 5 राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व दिल्ली में जा कर लगभग 1200 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. लेकिन वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ रहा था. उस के बाद एसएसपी मंजूनाथ टीसी ने आरोपी की पकडऩे के लिए 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित करते हुए अखबारों में भी विज्ञापन दिया. साथ ही आरोपी को शीघ्र पकडऩे के लिए पुलिस ने उस के पीछे मुखबिर भी लगा दिए.

9 अगस्त, 2023 को पुलिस को एक मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि डबल मर्डर केस का आरोपी उत्तर प्रदेश के रामपुर शहर में मौजूद है. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए मुखबिर की लोकेशन के आधार पर चारों तरफ से घेराबंदी करते हुए उसे अपनी हिरासत में ले लिया.

जगदीश को गिरफ्तार करते ही पुलिस टीम रुद्रपुर चली आई. रुद्रपुर लाते ही पुलिस ने इस हत्याकांड के बारे में उस से कड़ी पूछताछ की. जगदीश ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. जगदीश ने बताया कि वह उसे दिलोजान से चाहता था. लेकिन सोनाली उस से प्रेम करने को तैयार न थी, जिस के कारण ही उसे इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा.

संजय और सोनाली ने की थी लव मैरिज

पुलिस पूछताछ और संजय यादव के परिवार से मिली जानकारी से इस मामले में जो कथा उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

संजय यादव उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ का मूल निवासी था. 5 भाइयों में सब से छोटा संजय यादव अब से लगभग 17 साल पहले नौकरी की तलाश में रुद्रपुर आया था. उस वक्त वह अविवाहित था. रुद्रपुर आ कर उस ने एक किराए का कमरा लिया और यहीं पर नौकरी भी करने लगा था. उसी नौकरी करने के दौरान उस की मुलाकात सुभाष कालोनी निवासी सोनाली से हुई. उस वक्त सोनाली भी सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करती थी.

दो बहनों का एक प्रेमी – भाग 1

इफ्तखाराबाद के अब्दुल रशीद को कानपुर की एक टेनरी में नौकरी मिल गई थी. कुछ सालों बाद उन्होंने कानपुर के मुसलिम बाहुल्य इलाके राजीवनगर में जमीन खरीदकर अपना छोटा सा  मकान बना लिया और परिवार के साथ उसी में रहने लगे. कालांतर में उन के 7 बच्चे हुए, जिन में 3 बेटे थे और 4 बेटियां. वक्त के साथ उन के सभी बच्चे बड़े हो गए तो उन्होंने 2 बड़ी बेटियों की शादी कर दी.

कई साल पहले अब्दुल रशीद की शरीक ए हयात का इंतकाल हो गया तो वह टेनरी की नौकरी छोड़ कर छोटे बेटे अतीक अहमद के साथ बेल्ट बनाने का काम करने लगे. उन के दोनों बड़े बेटों, रईस अहमद और अनीस अहमद ने अपनी मरजी से शादियां कर ली थीं और अलग मकान ले कर रहने लगे थे. अब अब्दुल रशीद के घर में 4 ही लोग बचे थे, वह, उन की 2 बेटियां शमीम बानो और आफरीन और छोटा बेटा अतीक अहमद.

शमीम और आफरीन दोनों ही जवान थीं, लेकिन आर्थिक परेशानियों के चलते उन की शादियां नहीं हो पा रही थीं. अब्दुल रशीद और अतीक सुबह को काम पर निकल जाते थे तो फिर दिन छिपने के बाद ही घर लौट कर आते थे. शमीम और आफरीन दिन भर घर में अकेली रहती थीं. उन पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं थी.

खाली रहने की वजह से शमीम की दोस्ती रूबीना नाम की एक युवती से हो गई. रूबीना ने 5 साल पहले अपनी पसंद के एक युवक से शादी की थी. इस में उस के घर वालों की सहमति भी शामिल थी. लेकिन शादी के बाद रूबीना एक बार ससुराल जाने के बाद दोबारा नहीं गई. नतीजतन उस का तलाक हो गया. इस के कुछ दिनों बाद रूबीना ने एक ऐसे आदमी से शादी कर ली, जिस की पहले से ही 2 बीवियां थीं.

इस बात को ले कर खूब हंगामा हुआ. उस आदमी की दोनों बीवियों ने भी रूबीना को जम कर लताड़ा और गालीगलौज की. उन्होंने अपने पति को भी चेतावनी दी. फलस्वरूप रूबीना को उस आदमी का भी साथ छोड़ना पड़ा. इस तरह रूबीना एक बार फिर अकेली रह गई. अब तक उस के मातापिता की मृत्यु हो चुकी थी और वह अपने भाई शाहिद और भाभी जरीना के साथ राजीवनगर में ही रह रही थी. भैयाभाभी का उस पर कोई कंट्रोल नहीं था, वह पूरी तरह आजाद थी.

रूबीना जैसा ही हाल शमीम बानो का भी था. उस के 2 भाई अपनी पत्नियों के साथ अलग रहते थे. पिता और छोटा भाई सुबह काम पर चले जाते थे तो फिर रात में ही लौटते थे. उन के जाने के बाद शमीम पूरी तरह आजाद हो जाती थी यानी अपनी मरजी की मालिक. एक ही मोहल्ले में रहने और एक जैसी आदतों की वजह से दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों साथसाथ घूमने लगीं.

शमीम खूबसूरत थी. उस पर मोहल्ले के कई लड़कों की निगाहें जमी थीं, जिन में एक उस के चाचा वहीद का बेटा सिद्दीक भी था. करीबी रिश्तेदार होने की वजह शमीम और सिद्दीक के बीच नजदीकी संबंध बन गए. फिर जल्दी ही ऐसा समय भी आया, जब दोनों एकदूसरे को तनमन से समर्पित हो गए.

इधर बड़ी बहन शमीम चाचा के लड़के सिद्दीक से इश्क लड़ा रही थी तो उधर छोटी आफरीन भी 22 की हो चुकी थी. आफरीन शमीम से ज्यादा खूबसूरत भी थी और स्मार्ट भी. सिद्दीक यूं तो आफरीन को बचपन से देखता आया था, लेकिन शमीम से शारीरिक संबंध बनने के बाद उस का आफरीन को देखने का भी नजरिया बदल गया था. वह शमीम से ज्यादा आफरीन में दिलचस्पी लेने लगा. शमीम को हालांकि यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.

सिद्दीक से मोहभंग हुआ तो शमीम अपनी दोस्त रूबीना के और भी ज्यादा करीब आ गई. इस के बाद दोनों कानपुर के ही नहीं बल्कि दिल्ली तक के चक्कर लगाने लगीं. शमीम के पैर चूंकि पहले ही घर से बाहर निकल चुके थे, इसलिए अब्दुल रशीद चाह कर भी उस पर पाबंदी नहीं लगा सके. जब उस का मन होता रूबीना के साथ चली जाती और जब मन होता घर लौट आती. पिछले साल शमीम जब ईद के दिन दिल्ली चली गई तो अब्दुल रशीद को बहुत बुरा लगा. वह वापस लौटी तो उन्होंने उसे डांटाफटकारा भी, पर उस पर कोई असर नहीं हुआ.

शमीम के बाहर चली जाने के बाद आफरीन घर में अकेली रह जाती थी. इस का फायदा उठाया सिद्दीक ने. वह अपना ज्यादा से ज्यादा समय आफरीन के साथ गुजारने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि प्यार के नाम पर दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए. यहां तक कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

इसी बीच शमीम एक बार रूबीना के साथ दिल्ली गई तो उस ने लौट कर बताया कि रूबीना दिल्ली के एक युवक से उस की शादी की बात चला रही है. उस युवक का वह फोटो भी साथ लाई थी. घर में किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि उस का विरोध करता. वैसे भी सभी चाहते थे कि किसी तरह उस की शादी हो जाए तो अच्छा है. दिल्ली से लौटने के बाद शमीम का अधिकतर समय फोन पर बतियाने में बीतने लगा. वह आफरीन से बताती थी कि वह उसी युवक से बातें करती है, जिस से शादी करेगी.

जब से शमीम का दिल्ली वाले लड़के से चक्कर चला था, वह ज्यादातर घर में ही रहने लगी थी. इस से आफरीन को परेशानी होती थी, क्योंकि वह सिद्दीक से नहीं मिल पाती थी. यह देख कर उस ने अपने इस प्रेमी से घर के बाहर मिलना शुरू कर दिया. जब यह बात शमीम को पता चली कि उस का पूर्व प्रेमी उस की छोटी बहन के साथ इश्क लड़ा रहा है तो उसे बहुत बुरा लगा. उस ने आफरीन को समझाने की कोशिश की कि वह सिद्दीक के चक्कर में न पड़े, क्योंकि वह अच्छा लड़का नहीं है.

शमीम आफरीन से कई साल बड़ी थी, तजुर्बेकार भी थी. वह जानती थी कि सिद्दीक आफरीन का फायदा उठा कर उसे किनारे लगा देगा. इसलिए वह कोशिश करने लगी कि वे दोनों न मिल पाएं. लेकिन यह बात आफरीन को बुरी लगती थी और सिद्दीक को भी. इस की एक वजह यह थी कि शमीम अपने मामले में हमेशा से आजाद रही थी, जबकि वह उन दोनों पर पाबंदी लगाना चाहती थी.

कैसे हुईं 9 दिन में 3 बहनें गायब – भाग 1

सुबह के 7 बजे थे, शमशाद अली अपने घर के बाहर बैठे हुए थे. उन्होंने किसी काम के लिए अपनी 14 वर्षीय बेटी मनतारा को आवाज लगाई. लेकिन मनतारा ने कोई जबाव नहीं दिया. इस पर पास बैठे बेटे सलमान से उन्होंने मनतारा को बुलाने के लिए कहा.

सलमान बहन को बुलाने घर में गया, लेकिन उसे मनतारा घर में दिखाई नहीं दी. उस ने पूरे घर में बहन को तलाशा, दूसरी बहनों व मां ने भी अनभिज्ञता व्यक्त की. मनतारा नहीं मिली. तब गांव में उसे तलाश किया गया. लेकिन वह गांव में होती तो मिलती. वह कहीं नहीं मिली. दरअसल, मनतारा गायब हो चुकी थी.

उत्तर प्रदेश में मैनपुरी जिले के थाना क्षेत्र कुर्रा का एक गांव है रम्पुरा. जिला मुख्यालय से इस गांव की दूरी करीब 25 किलोमीटर है. इसी गांव का रहने वाला है शमशाद अली. शमशाद की 3 बेटियों में 22 साल की निशा, 16 साल की खुशबू और 14 साल की मनतारा जबकि एक बेटा सलमान है. शमशाद मेहनतमजदूरी कर के परिवार का पालनपोषण करता था. इस काम में बेटा उस का हाथ बंटाता था.

जब मनतारा कहीं नहीं मिली तो परेशान शमशाद थाना कुर्रा जा पहुंचा और एसएचओ जयश्याम शुक्ला से मिला. उस ने उन्हें अपनी 14 वर्षीय नाबालिग बेटी के लापता होने की जानकारी दी. शमशाद ने आरोप लगाया कि उस की बेटी को कोई किडनैप कर ले गया है. पुलिस ने इस की रिपोर्ट दर्ज कर ली और बेटी को ढूंढने की बात कही. यह भी कहा कि आप भी अपने स्तर से पता लगाइए. यह बात 21 दिसंबर, 2022 की है.

पिता द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराए 8 दिन हो गए थे. पुलिस ने नाबालिग बच्ची को ढूंढने का वायदा भी किया था, लेकिन पुलिस उस का कोई सुराग नहीं लगा पाई थी. शमशाद का आरोप था कि पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. पुलिस के ढुलमुल रवैए को देखते हुए शमशाद ने खुद अपनी बेटी की तलाश करने का निर्णय लिया.

शमशाद अली ने अपनी लापता हुई बेटी के संबंध में स्वयं छानबीन शुरू कर दी. इस बीच पड़ोसियों से उसे पता चला कि बेटी पंजाब के मुक्तसर ले जाई गई है. शमशाद के पड़ोसी राकेश के यहां कुछ दिन पहले शादी में पंजाब के मुक्तसर का रहने वाला एक लडक़ा आया था. वही उन की बेटी को बहलाफुसला कर भगा ले गया है. प्रयास करने पर उस लडक़े के पिता का मोबाइल नंबर भी शमशाद को मिल गया.

एक बेटी को ढूंढने गए, 2 और हो गईं गायब

30 दिसंबर, 2022 को शमशाद के मोबाइल पर आरोपी का फोन आया. बेटी से बात भी की. इस संबंध में शमशाद ने थाना कुर्रा जा कर पुलिस को पूरी बात से अवगत कराया. पुलिस ने तब उस मोबाइल की लोकेशन पता की. लोकेशन की जानकारी के बाद शमशाद को लोकेशन दे कर पंजाब के मुक्तसर भेजा.

उसी दिन शमशाद बेटी की तलाश के लिए मुक्तसर के लिए कार बुक करा कर अपने 3 रिश्तेदारों के साथ घर से निकला. शमशाद अभी अलीगढ़ तक ही पहुंचा था कि घर से बेटे का फोन आ गया. बेटे ने कहा, “अब्बा, 2 बहनें और किडनैप हो गई हैं.”

यह सुनते ही शमशाद के होश उड़ गए.

शमशाद ने बिना देर किए अपने मोबाइल से कुर्रा थाने के अलावा पुलिस के कई अधिकारियों को काल किया, लेकिन उसे कोई उत्तर नहीं मिला. उस समय शमशाद ने घर लौटना उचित नहीं समझा और पंजाब पहुंच गया. वहां संबंधित थाने में पहुंचा और कुर्रा थाना द्वारा दी गई आरोपी के मोबाइल की लोकेशन से मुक्तसर स्थित थाना पुलिस को अवगत कराया.

वहां के एसएचओ ने कुर्रा के एसएचओ से बात कराने को कहा. थाने व क्राइम ब्रांच को कई बार फोन किए, लेकिन नेटवर्क न मिलने के कारण बात नहीं हो सकी. शमशाद ने वहां की पुलिस को बताया कि उस के पड़ोसी राकेश के रिश्तेदारों की मदद से हम ने उस लडक़े के बारे में जानकारी जुटाई है कि वह लडक़ा मुक्तसर का रहने वाला है. हमें उस लडक़े के पिता का मोबाइल नंबर भी मिल गया था. उसी के आधार पर थाना कुर्रा से आरोपी की लोकेशन निकलवाई थी.

पंजाब पुलिस ने कहा, आप को अपने राज्य की पुलिस के साथ आना चाहिए था. इस तरह हम आप की कोई मदद नहीं कर सकतेे हैं. थकहार कर शमशाद वापस लौट आया.

पंजाब से खाली हाथ लौटने के बाद शमशाद ने थाना कुर्रा जा कर अपनी 2 और बेटियों निशा और खुशबू के किडनैप होने की जानकारी देते हुए अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई. इन में निशा बालिग जबकि खुशबू नाबालिग थी. थाना कुर्रा में अब तक शमशाद की 3 बेटियों के अपहरण की भादंवि की धारा 363 के अंतर्गत 2 मामले दर्ज किए जा चुके थे. शमशाद ने पुलिस के सामने आशंका व्यक्त की, अपहत्र्ता उस की बेटियों को मार डालेंगे. उन के अंग निकाल लेंगे.

पंजाब के युवक ने किया किडनैप

शमशाद ने बताया कि 4 नवंबर को घर के सामने रहने वाले राकेश की बेटी की शादी थी. शादी में राकेश के रिश्तेदारों के साथ उन के दोस्त भी आए थे. आरोपी युवक भारत सिंह पंजाब के मुक्तसर से आया था. वह यहां करीब 15 दिन रुका था. उस समय घर वालों ने कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन बाद में पता चला कि वह लडक़ा उन की बेटियों के पीछे पड़ा था. उसी ने तीनों बेटियों का अपहरण 9 दिन में कराया है.

शमशाद ने आशंका व्यक्त की कि वह युवक किसी बड़े गिरोह का सदस्य भी हो सकता है. वह बेटियों को बेच भी सकता है. उस ने अपनी तीनों बेटियों की जान को खतरा बताया. बेबस पिता शमशाद ने राष्ट्रपति, प्रदेश के मुख्यमंत्री और एसपी (मैनपुरी) के नाम अपनी शिकायत फैक्स द्वारा भेज दी. इस के साथ ही मैनपुरी जा कर एसपी विनोद कुमार से मिल कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी उन्हें देते हुए तीनों बेटियों को बरामद करने की गुहार लगाई.

3 बेटियों के अपहरण पर प्रशासन हुआ अलर्ट

एसपी विनोद कुमार ने शमशाद को आश्वासन देते हुए कहा, जल्द से जल्द आप की तीनों बेटियां आप के पास होंगी. बेटियों को ले जाने वाले अपराधियों को पकडऩे के लिए हम स्पैशल टीम बनाएंगे. उस के बाद एसपी द्वारा 2 टीमें गठित कर दी गईं.

9 जनवरी, 2023 को कुर्रा के एसएचओ जयश्याम शुक्ला से शमशाद मिला. जिस लडक़े पर बेटियों के अपहरण का शक था, उस के पिता को फोन मिलाया. लडक़े के पिता ने फोन उठाया तो पीछे से छोटी बेटी मनतारा की आवाज आई. इस पर बेटी से बात कराने को कहा. बेटी ने डरी आवाज में कहा, “पापा, अब मैं वापस नहीं आ पाऊंगी.”

इस के बाद फोन कट गया. शमशाद ने बताया कि बेटी को ज्यादा बात करने से रोक दिया. बेटी को धमकाने की आवाज फोन में आ रही थी.

एसपी मैनपुरी ने थाना कुर्रा पुलिस को लड़कियों को शीघ्र बरामद करने के निर्देश दिए. इस पर 10 जनवरी, 2023 को शमशाद को साथ ले कर थाना कुर्रा पुलिस पंजाब के लिए रवाना हुई. जिस मोबाइल नंबर पर बात हुई थी, पुलिस ने उस मोबाइल की लोकेशन ट्रैक की.

जब पुलिस वहां पहुंची तो घर पर ताला लटका मिला. आसपास पूछताछ की, लेकिन उन लोगों के बारे में कुछ पता नहीं चला. थकहार कर सभी लोग खाली हाथ वापस आ गए. धीरेधीरे डेढ़ महीने का समय बीत गया.

षडयंत्र : पैसों की चाह में – भाग 1

सुबह के नाश्ते पर आने की कोई बात ही नहीं थी. लेकिन दोपहर का खाना खाने से पहले ज्ञान कौर काफी देर तक अपने पति अमरजीत सिंह की राह देखती रहीं. धीरे धीरे 3 बज गया और अमरजीत सिंह घर नहीं आए तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. यह स्वभाविक भी था.

वह सोचने लगीं, सरदारजी ने रात में न आने  की बात की थी, सुबह भी नहीं आए तो कोई बात नहीं थी. अब वह खाना खाने भी नहीं आए, जबकि फिर वह खाना समय पर खाते थे. आज वह बिना बताए कहां चले गए? कहीं कोई जमीन तो देखने नहीं चले गए या फिर किसी जमीन के कागज बनवाने तो नहीं चले गए? काम में फंसे होने की वजह से बता नहीं पाए होंगे.

ज्ञान कौर ने 3-4 बार अमरजीत सिंह के मोबाइल पर फोन किया था, लेकिन संपर्क नहीं हो सका था. तरहतरह की बातें सोचते हुए ज्ञान कौर ने खाना खाया और आराम करने के लिए लेट गईं. सरदारजी के बारे में ही सोचते हुए वह सो गई तो शाम को उठीं. उस समय भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे थे. शाम को ही नहीं, रात बीत गई और सरदारजी लौट कर नहीं आए.

कई बार ज्ञान कौर के मन में आया कि सरदारजी के घर न आने की बात वह अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह को बता दें. लेकिन उन के मन में आता कि बच्चे बेवजह ही परेशान होंगे. सरदारजी कोई बच्चे तो हैं नहीं कि गायब हो जाएंगे. 70 साल के स्वस्थ और समझदार आदमी हैं. वह ऐसे हैं कि खुद ही दूसरों को गायब कर दें, उन्हें कौन गायब करेगा?

इसी उहापोह और असमंजस की स्थिति में ज्ञान कौर का वह दिन भी बीत गया. जब दूसरी रात भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे तो ज्ञान कौर ने परेशान हो कर अगली सुबह यानी 27 अगस्त, 2013 को गांव में रह रहे अपने बड़े बेटे गुरचरन सिंह के पास खबर भेजने के साथ बाघा बार्डर पर ड्यूटी कर रहे छोटे बेटे गुरदीप सिंह को भी फोन द्वारा सरदार अमरजीत सिंह के 2 दिनों से घर न आने की सूचना दे दी.

गुरदीप सिंह भारतीय सेना की 69 आर्म्स बटालियन में सिपाही था. इन दिनों वह बाघा बार्डर पर तैनात था. मां से पिता के 2 दिनों से घर न आने की जानकारी मिलते ही गुरदीप सिंह छुट्टी ले कर गांव आया और सब से पहले भाई को साथ ले कर थाना सदर जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद दोनों भाई पिता की तलाश में जुट गए.

सरदार अमरजीत सिंह लुधियाना के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव झांदे में रहते थे. काफी और उपजाऊ जमीन होने की वजह से गांव में उन की गिनती बड़े जमीनदारों में होती थी. गांव के बीचोबीच उन की महलनुमा शानदार कोठी थी, जिस में वह पत्नी ज्ञान कौर और 2 बेटों गुरचरन सिंह और गुरदीप सिंह के साथ रहते थे. दोनों बेटे पढ़ाई के साथसाथ खेती में भी बाप का हाथ बंटाते थे. बड़ा बेटा गुरचरन सिंह पढ़ाई पूरी कर के जमीनों की देखभाल करने लगा तो छोटा गुरदीप सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गया.

गुरचरन सिंह और गुरदीप सिंह कामधाम से लग गए तो सरदार अमरजीत सिंह ने उन की शादियां कर दीं. उन की भी अपनी संतानें हो गई थीं. इस तरह उन का भरापूरा खुशहाल परिवार हो गया था. वैसे भी धनदौलत की उन के पास कोई कमी नहीं थी, लेकिन जब देहातों का शहरीकरण होने लगा तो उन्होंने अपनी काफी जमीनें करोड़ो रुपए में बेच कर बरनाला में उन्होंने इस के बदले दोगुनी जमीन खरीद कर बटाई पर दे दी. बाकी पैसों से उन्होंने प्रौपर्टी डीलर का काम शुरू कर दिया.

अमरजीत की जमीनों, मंडियों और आढ़त आदि का सारा काम बड़ा बेटा गुरचरन सिंह देखता था. जबकि अमरजीत सिंह अपने प्रौपर्टी डीलर वाले काम में व्यस्त रहते थे. इस के लिए उन्होंने गांव के बाहर लगभग 5 सौ वर्गगज में एक आलीशान औफिस और कोठी बनवा रखी थी. वह अपनी पत्नी ज्ञान कौर के साथ उसी में रहते थे, जबकि परिवार के अन्य लोग गांव वाली कोठी में रहते थे.

अमरजीत सिंह का इधर ढाई, 3 सालों से बगल के गांव थरीके के रहने वाले स्वर्ण सिंह के साथ कुछ ज्यादा ही उठना बैठना था. वैसे तो स्वर्ण सिंह मोगा का रहने वाला था, लेकिन उस ने और उस के भाई गुरचरन सिंह ने मोगा की सारी जमीन बेच कर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर में काफी जमीन खरीद ली थी. जिस की देखभाल गुरचरन सिंह भाई स्वर्ण सिंह के साले कुलविंदर सिंह के साथ करता था.

जबकि स्वर्ण सिंह थरीके में रहते हुए प्रौपर्टी का काम करता था. ऐसे में जब उसे पता चला कि झांदे गांव के रहने वाले अमरजीत सिंह का प्रौपर्टी का बड़ा काम है तो वह उन के पास भी आनेजाने लगा. उस ने उन से 3-4 प्लाटों के सौदे भी करवाए, जिन से उन्हें अच्छाखासा लाभ मिला. उन्होंने स्वर्ण सिंह का पूरा कमीशन तो दिया ही, लेकिन इस के बाद से उन्हें उस पर पूरा भरोसा हो गया था. साथसाथ खानापीना होने लगा तो दोनों में मित्रता भी हो गई. इस के बाद अमरजीत सिंह का कोर्टकचहरी जा कर कागजात आदि बनवाने और प्लाट वगैरह दिखाने का ज्यादातर काम स्वर्ण सिंह ही करने लगा.

उसी बीच स्वर्ण सिंह ने अमरजीत सिंह की मुलाकात अमित कुमार से करवाई. अमित ने उन्हें बताया था कि वह गोल्ड मैडलिस्ट वकील है. लेकिन वह वकालत न कर के प्रौपर्टी का बड़ा काम करता है. वह छोटेमोटे नहीं, बड़े सौदे करता और करवाता है.

अमित कुमार ने अमरजीत सिंह से इस तरह बातें की थीं कि वह उस से काफी प्रभावित हुए थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह को 2-3 प्लाट भी खरीदवाए थे, जिन्हें बेच कर अमरजीत सिंह ने अच्छाखासा लाभ उठाया था.

स्वर्ण सिंह की ही तरह अमरजीत सिंह अमित कुमार पर भी विश्वास करने लगे थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह के साथ मिल कर करीब ढाई करोड़ रुपए का एक सौदा किया, जिस के लिए उन्होंने 50-50 लाख रुपए का 2 बार में भुगतान किया था. इस सौदे में स्वर्ण सिंह गवाह था. लेकिन इतने बड़े सौदे की अमरजीत सिंह के घर के किसी भी सदस्य को कोई जानकारी नहीं थी.

4 करोड़ बीमा क्लेम के लिए दोस्त का मर्डर

बात 19 जून, 2023 की है. पंजाब के जिला फतेहगढ़ साहिब के गांव सानीपुर का रहने वाला 28 वर्षीय सुखजीत सिंह फतेहगढ़ साहिब में ही रहने वाले अपने दोस्त गुरप्रीत सिंह के वहां गया था. लेकिन जब वह एक दिन बाद भी नहीं लौटा तो उस की पत्नी जीवनदीप कौर परेशान हो उठी. बड़ी हैरानी की बात थी कि उस का मोबाइल फोन भी बंद था.

अगले दिन जीवनदीप कौर कुछ लोगों के साथ इलाके के सरहिंद थाने में पहुंची और वहां अपने 28 वर्षीय पति सुखजीत सिंह की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस की शुरुआती जांच में सुखजीत सिंह की बाइक और चप्पलें पटियाला रोड पर नहर के किनारे मिलीं, जिन्हें देख पुलिस ने अनुमान लगाया कि हो सकता है सुखजीत ने सुसाइड कर लिया हो. लेकिन जब तक उस की लाश बरामद नहीं हो जाती, तब तक पुलिस के लिए ऐसे किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना मुमकिन नहीं था.

पुलिस जांच चल रही थी कि इसी दौरान सुखजीत का मोबाइल फोन उस की बाइक मिलने वाली जगह से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर जमीन के नीचे दबा हुआ मिला. मोबाइल फोन का जमीन के नीचे दबा मिलना किसी षडयंत्र की ओर इशारा कर रहा था.

गुरप्रीत सिंह की पत्नी ने खोला मुंह

जब जीवनदीप कौर से उस के पति की गतिविधियों के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया पिछले कुछ दिनों से गुरप्रीत सिंह उस के पति को फोन कर के शराब पीने के लिए अपने पास बुलाता था. यह जानकारी मिलने पर पुलिस अब गुरप्रीत सिंह की तलाश में उस के घर पहुंची तो पता चला कि गुरप्रीत सिंह की मौत कल सुबह एक एक्सीडेंट में हो चुकी है.

सुखजीत सिंह का पता लगाने के लिए इलाके के डीएसपी गुरबंस सिंह बैंस के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया गया, जिस में सरहिंद थाने के एसएचओ गुरदीप सिंह और इंसपेक्टर नरेंदर पाल सिंह थे. इस टीम ने गुरप्रीत की पत्नी खुशदीप कौर से घंटों गहन पूछताछ की. खुशदीप कौर ने पहले तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, मगर पुलिस के सवालों की बौछार के आगे वह ज्यादा देर टिक नहीं सकी और आखिरकार उस की जुबान ने सच उगल दिया.

खुशदीप ने बताया कि उस का पति गुरप्रीत सिंह मरा नहीं बल्कि जिंदा है. इस के बाद उस के पति गुरप्रीत सिंह और अन्य आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया. सभी आरोपियों से पूछताछ तथा पुलिस की तहकीकात के बाद इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे एक हैरतअंगेज कहानी उभर कर सामने आई, जो इस प्रकार है—

44 वर्षीय गुरप्रीत सिंह पंजाब के फतेहगढ़ साहिब शहर का एक मशहूर फूडचेन व्यवसायी था. शहर में उस के कई आउटलेट थे. वह हल्दीराम एंड कंपनी का थोक डीलर था. शहर में उस के नाम की तूती बोलती थी. लेकिन इधर कुछ समय से उस का व्यापार लगातार घाटे में जा रहा था.

इस से उबरने के लिए गुरप्रीत सिंह ने एक शाम अपनी परेशानी अपने परिचित राजेश शर्मा को बताई. राजेश शर्मा एक बीमा एजेंट था. उस की कोर्टकचहरी में अच्छीखासी पैठ थी. उस ने गुरप्रीत को अपने नाम से मोटी राशि का एक एक्सीडेंटल इंश्योरेंस करवाने और अपनी जगह किसी दूसरे आदमी की हत्या कर उसे एक्सीडेंट का रूप दे कर इंश्योरेंस की राशि हड़पने का सुझाव दिया.

4 करोड़ के लालच में रची खूनी साजिश

गुरप्रीत सिंह को राजेश की बात जंच गई. इस योजना पर काम करते हुए सब से पहले उस ने 3 अलगअलग एक्सीडेंटल बीमा पौलिसी अपने नाम पर करवाई. कुल 4 करोड़ का एक्सीडेंटल बीमा करवाया गया, जिस में एक बीमा 2 करोड़ रुपए और 2 बीमे एकएक करोड़ रुपए के थे.

इस के बाद वह एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में लग गया, जिस की कदकाठी काफी हद तक उस से मिलती हो. काफी तलाश के बाद उसे 3 आदमी मिले, जिन की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप दिया जा सकता था. पहला आदमी मोहाली का रहने वाला था. परंतु उस के शरीर का डीलडौल उस की देह से थोड़ा अलग था. दूसरा पटियाला का निवासी था. जिस के बारे में पता चला कि उस की एक बाजू पर टैटू बना था.

एक महीने पहले गुरप्रीत सिंह की मुलाकात 28 वर्षीय सुखजीत सिंह से हुई, जिस का हुलिया काफी हद तक उसी के समान था. दोनों की मूंछों का स्टाइल भी करीब एक जैसा ही था. वह फतेहगढ़ साहिब जिले के सानीपुर गांव का निवासी था. वह शराब पीने का आदी था. जिस दिन सुखजीत सिंह को शराब पीने को नहीं मिलती, उस के पूरे बदन में अजीब सी ऐंठन और बेचैनी सी होने लगती थी. बिना शराब पिए उसे रात में भी नींद नहीं आती थी.

जब से गुरप्रीत सिंह ने सुखजीत सिंह की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, सुखजीत का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया. सुखजीत को वहां मुफ्त की शराब मिल रही थी, इसलिए शाम ढलते ही वह बाइक से उस के घर पहुंच जाता था. इस के अलावा वह वापस अपने घर जाने के लिए निकलता तो गुरप्रीत उसे जेब खर्च के लिए कभी 500 रुपए तो कभी 2-3 सौ थमा देता था.

दोनों की दोस्ती को अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि 19 जून, 2023 की शाम को सुखजीत अपनी पत्नी से बोला, ‘‘गुरप्रीत का फोन आया था, इसलिए उस के घर जा रहा हूं.’’

जीवनदीप कौर को अपने पति सुखजीत और गुरप्रीत सिंह की दोस्ती फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी. क्योंकि वह जब भी गुरप्रीत सिंह के घर से देर रात गए वापस लौटता तो नशे में बुरी तरह टल्ली होता था. नशे में बाइक चलाना बेहद खतरनाक था. कभी गलती से उस का एक्सीडेंट हो जाता तो उस के पति के हाथपैर सही सलामत नहीं बचते. लेकिन हर बार जब भी वह पति को गुरजीत सिंह के घर जाने से रोकने की कोशिश करती, सुखजीत उसे बुरी तरह झिडक़ देता था.

ट्रक से कुचलवा दिया दोस्त को

गुरप्रीत के बुलावे पर उस दिन जब सुखजीत उस के घर में पहुंचा तो गुरप्रीत ने उसे पीने के लिए बिठा दिया. शराब के कुछ दौर चलने के बाद गुरप्रीत ने उस के पैग में नशे की दवा मिला दी. थोड़ी देर में सुखजीत बेसुध हो कर लुढक़ गया तो गुरप्रीत के परिचित सुखविंदर सिंह संधा और दिनेश सिंह सुखजीत को बलेनो कार में डाल कर राजपुरा ले गए, जहां योजना के अनुसार एक्सीडेंट को अंजाम देना था.

उन का जानकार जसपाल सिंह भी ट्रक ले कर राजपुरा पहुंच गया. सुनसान सडक़ देख कर पहले तो सुखविंदर सिंह संधा ने सुखजीत सिंह के कपड़े उतारे फिर उसे गुरजीत के कपड़े पहना दिए ताकि उस की लाश को गुरप्रीत की लाश बताया जा सके.

फिर जसपाल सिंह ने एक बड़ी ट्रक के टायर के आगे सुखजीत सिंह के बेहोश जिस्म को डाल दिया. इस के बाद जसपाल सिंह ने ट्रक स्टार्ट कर सुखजीत सिंह के ऊपर कई बार चढाया, जिस से उस का शरीर तथा चेहरा इतना क्षतविक्षत हो गया कि अब किसी के लिए लाश की पहचान कर पाना मुश्किल था.

इस के बाद सुखविंदर सिंह संधा और जसपाल सिंह, सुखजीत की बाइक और चप्पलों को वहां से दूर भाखड़ा नहर के किनारे रख आए, जिस से पुलिस को ऐसा लगे जैसे किसी ने नहर में कूद कर आत्महत्या कर ली हो. सुखजीत का मोबाइल फोन वहां से एक किलोमीटर दूर मिट्टी के नीचे दबा दिया.

20 जून, 2023 राजपुरा पुलिस को सडक़ पर बुरी तरह कुचली हुई लाश मिली तो पुलिस ने अनुमान लगाया कि मृतक शायद रात में किसी बड़े वाहन की चपेट में आ गया होगा. खबर मिलने पर सुबह खुशदीप कौर लाश की शिनाख्त करने के लिए राजपुरा थाने में पहुंची और और कपड़ों के आधार पर उस ने लाश की शिनाख्त अपने पति गुरप्रीत के रूप में कर छाती पीट पीट कर रोने लगी.

चूंकि इस लाश का कोई और दावेदार नहीं आया था, इसलिए पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद इसे अंतिम संस्कार के लिए खुशदीप कौर को सौंप दिया. खुशदीप कौर ने आननफानन में दुनिया के सामने सुखजीत की लाश का अंतिम संस्कार कर दिया.

4 करोड़ के लालच में पहुंचे जेल में

यहां तक खुशदीप कौर और बाकी आरोपियों ने अपना सारा काम वैसे ही निपटाया था, जैसा पहले से तय था. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि कुछ दिनों के बाद वे इंश्योरेंस के 4 करोड़ रुपए लेने में कामयाब हो जाएंगे. लेकिन यह मामला तब बुरी तरह उलझ गया, जब जीवनदीप कौर ने राजपुरा पुलिस के द्वारा खींचे गए फोटो की शिनाख्त अपने गुमशुदा पति सुखजीत सिंह के तौर पर कर दी.

डीएसपी गुरबंस सिंह बैंस की तेजतर्रार टीम ने 28 जून, 2023 को गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी खुशदीप कौर को गिरफ्तार कर लिया. बाकी आरोपियों सुखविंदर संधा, राजेश शर्मा, जसपाल सिंह तथा दिनेश कुमार के नाम सामने आने पर उन सब को भी गिरफ्तार कर लिया.

गुरप्रीत सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल ट्रक, बलेनो कार, बाइक तथा स्कूटी को बरामद कर लिया. इस तरह गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी खुशदीप कौर इंश्योरेंस के 4 करोड़ रुपए पाने की जगह जेल की हवा खा रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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प्यार का जूनून – भाग 4

रविवार 28 जुलाई, 2013 की सुबह ही राममूर्ति ने दामाद पवन को फोन किया, वह सुमन को ले कर गुरावली आ जाए. उस ने बहाना बनाया कि मुकेश को देखने वाले आ रहे हैं. पवन सुमन को ले कर 12 बजे के आसपास ससुराल जा पहुंचा. लेकिन उसे वहां कोई लड़की वाला नहीं दिखाई दिया. फिर भी वह शाम तक रुका रहा. शाम 6 बजे के आसपास वह अपने गांव के लिए निकल पड़ा.

लेकिन इस बीच राममूर्ति ने जिस काम के लिए सुमन और पवन को बुलाया था, वह हो गया था. दरअसल उसे सुमन के मोबाइल से उदयभान को संदेश भेजना था कि वह गुरावती आई है. रात 10 बजे वह उस से मिलने उस के घर आ जाए. उस समय वह छत पर रहेगी.

राममूर्ति ने सुमन का मोबाइल ले कर यह काम कब किया, उसे पता ही नहीं चला. वह खुशीखुशी पति के साथ आई और खुशीखुशी चली गई.

शाम को ही राममूर्ति अपने दोनों भाइयों, राजाराम, पप्पू, समधी मुन्नालाल और उस के भाई भावसिंह के साथ शराब की बोतल ले कर छत पर बैठ गया और खानापीना होने लगा. उस ने पत्नी को पहले ही राजाराम के घर सोने के लिए भेज दिया था.

दूसरी ओर सुमन का संदेश पा कर उदयभान उस से मिलने के लिए बेचैन था. प्रेमिका से मिलने के लिए ही वह घर में पिनाहट जाने का बहाना बना कर शाम को ही निकल गया. जैसे ही रात के 10 बजे, वह राममूर्ति के घर के सामने जा पहुंचा.

घर का दरवाजा खुला था, इसलिए वह दबे पांव अंदर घुस गया. उसे लगा कि सुमन ने ही दरवाजा खोल रखा है. उस ने छत पर आने को कहा था, इसलिए सीढि़यां चढ़ कर वह सीधे छत पर जा पहुंचा. लेकिन छत पर उस ने राममूर्ति, उस के भाइयों और रिश्तेदारों को देखा तो उसे काटो तो खून नहीं. वह पलट कर भागता, उस के पहले ही राममूर्ति ने लपक कर उसे पकड़ लिया.

राममूर्ति उसे खींच कर कमरे में ले गया, जहां उस के मुंह में कपड़ा ठूंस कर ऊपर से बांध दिया गया. इस के बाद लाठियों और लोहे के रौड से उस की जम कर पिटाई की गई. उदयभान छटपटाने के अलावा और कर ही क्या सकता था. उस ने हाथ जोड़े, पैर पकड़े, लेकिन किसी ने दया नहीं की. इसी मारपीट में उस का बायां पैर टूट गया. पिटतेपिटते उदयभान बेहोश हो गया तो उन लोगों ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

राममूर्ति के मकान की छत पर बने उस कमरे में रात को क्या हुआ, गांव वालों की छोड़ो, घर की महिलाएं तक नहीं जान सकीं. उन्होंने उदयभान का मोबाइल फोन तोड़ कर फेंक दिया था. रात 11 बजे अचानक बाहर मोटरसाइकिल आने की आवाज आई तो सभी परेशान हो उठे कि इस समय कौन आ गया. उन्होंने जल्दी से लाश छिपाई और कमरा ठीक किया. राममूर्ति ने दरवाजा खोला तो पता चला, बाहर उस की बुआ का बेटा वीर बहादुर खड़ा था. राममूर्ति उसे भीतर ले आया और सारी बातें बताईं.

उदयभान की हत्या करने के बाद सभी ने निश्चिंत हो कर आराम से शराब पी और खाना खाया. इस के बाद रात के 2 बजे के आसपास उदयभान की लाश को मोटरसाइकिल से ले जा कर गुरावली से 20 मिनट की दूरी पर गांव सड़क का पुरा के मंदिर के पास बने कुएं में फेंक आए. बाकी लोग तो घर लौट आए, जबकि मुन्नालाल और भावसिंह उतनी रात को ही अपने घर चले गए. सुबह वीर बहादुर भी अपने घर चला गया.

सुबह से ही राममूर्ति पप्पू पर नजर रखने लगा था, इसीलिए जैसे ही उसे पता चला कि उदयभान की लाश बरामद हो चुकी है और पप्पू ने शक के आधार पर उस के दोनों भाइयों और मुकेश के नाम रिपोर्ट दर्ज कराई है तो वह सभी को ले कर घर से फरार हो गया था.

राममूर्ति ने भागने से पहले फोन के जरिए अपने समधी मुन्नालाल को भी सूचना दे दी थी. उस के बाद मुन्नालाल भी अपने भाई भावसिंह के साथ वहीं जा कर छिप गया था. राममूर्ति ने अपने फुफेरे भाई वीर बहादुर को भी वहीं बुला लिया था. जबकि परिवार को उस ने राजस्थान के अपने एक रिश्तेदार के यहां भेज दिया था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने राममूर्ति के घर से वे लाठीडंडे और लोहे की रौड बरामद कर ली थी, जिन से उदयभान को मारापीटा गया था. सारे सुबूत जुटा कर पुलिस ने सभी को आगरा की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे.

— कथा पुलिस सूत्रों के अनुसार

जिस्म के आईने में देखी तिजोरी – भाग 3

तरुण बजाज के हत्यारों को गिरफ्तार करने की बात थानाप्रभारी मनीष जोशी ने देहरादून से ही एसीपी एस.के. गिरि को बता दी थी. पुलिस तीनों अभियुक्तों को दिल्ली ले आई. वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में तीनों से तरुण बजाज की हत्या की बाबत पूछताछ की गई तो हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह लव और सैक्स से सराबोर निकली.

दिल्ली के मध्य जिला के न्यू राजेंद्रनगर के एफ ब्लौक में रहने वाला तरुण बजाज केबल आपरेटर था. राजेंद्रनगर क्षेत्र में उस का इमेज केबल नेटवर्क था. उस की शादी रितु बजाज से हुई थी. तरुण बजाज एक संपन्न आदमी था. उस की आमदनी अच्छी थी, लेकिन एक कमी उसे और उस की पत्नी को हमेशा सालती रही कि रितु मां नहीं बन सकी.

तरुण ने पत्नी का काफी इलाज कराया. इस के बावजूद भी बच्चे की किलकारी उन के आंगन में नहीं गूंजी. रितु की नौकरी दिल्ली सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग में लीगल मैनेजर के पद पर लग गई थी.

बजाज दंपति के पास वैसे तो हर तरह की सुखसुविधा थी, लेकिन संतान न होने का दुख उन्हें जबतब विचलित करता रहता था. कहते हैं कि दौलत बढ़ने पर कुछ लोग गलत शौक पाल लेते हैं. तरुण बजाज को भी एक शौक लग गया था. वह था महिलाओं से दोस्ती कर उन से नजदीकी संबंध बनाना. पत्नी के ड्यूटी पर जाने के बाद वह फोन कर के अपनी महिला मित्र को बुला लेता और अपने फ्लैट में ही मौजमस्ती करता.

तरुण बजाज की ऐसी ही एक महिला पूजा से नजदीकी थी. तरुण की उस से करीब डेढ़ साल पहले मुलाकात हुई थी. पूजा कर्मपुरा के रहने वाले सूरज उर्फ साहिल की पत्नी थी. साहिल आवारा किस्म का था. पूजा की तरुण बजाज जैसे कई लोगों से नजदीकी थी, इसलिए उसी के खर्चे से घर का खर्च चलता था.

पूजा जब गर्भवती हो गई तो उस ने तरुण बजाज के पास जाना कम कर दिया. तब पूजा ने तरुण की मुलाकात मुन्नी उर्फ मोनी से कराई. मोनी सुल्तानपुरी में रहती थी. पत्नी की गैरमौजूदगी में तरुण मोनी को भी फ्लैट पर बुला लेता था.

बाद में पूजा ने एक बेटे को जन्म दिया. पूजा ने अपने पुरुष मित्रों के पास जाना बंद कर दिया था. इस से घर खर्च चलाने में परेशानी होने लगी. पैसे के लिए उस का पति साहिल भी परेशान रहने लगा. पतिपत्नी बैठ कर जल्द पैसा कमाने के उपाय खोजते रहते.

पूजा तरुण बजाज की हैसियत जानती थी. तभी उस के दिमाग में एक आइडिया आया कि यदि तरुण बजाज के यहां हाथ साफ कर दिया जाए तो वहां से मोटा माल बटोरा जा सकता है.  पूजा ने इस आइडिया के बारे में पति को बताया तो साहिल को पत्नी का यह आइडिया अच्छा लगा. इस योजना में उस ने कर्मपुरा में रहने वाले अपने दोस्त मोहित शर्मा उर्फ सन्नी को शामिल कर लिया.

चूंकि अब मोनी बजाज के यहां जाती थी, इसलिए काम को आसानी से अंजाम देने के लिए मोनी को भी बजाज के घर लूट करने की योजना में शामिल कर लिया. पूजा ने उन्हें भरोसा दिया कि लूट की रकम में से उन्हें अच्छे पैसे दे दिए जाएंगे.

फिर 21 से 23 जून तक साहिल और मोहित शर्मा ने तरुण बजाज के घर की कुरियर बौय बन कर रेकी की. 25 जून, 2014 को पूजा और साहिल ने फोन कर के मोहित शर्मा और मोनी को दोपहर साढ़े 11 बजे अपने घर बुला लिया. इस से पहले उन्होंने दिल्ली की मादीपुर मार्केट से 3 चाकू खरीद लिए थे. कर्मपुरा से पूजा और मोनी बैटरी रिक्शा से राजेंद्रा प्लेस मैट्रो स्टेशन के नजदीक पहुंचीं.

साहिल और मोहित मोटरसाइकिल से उन के पीछेपीछे आ रहे थे. पूजा और मोनी मैट्रो स्टेशन के पास बैटरी रिक्शा में बैठी रहीं. तरुण बजाज से बात करने के लिए मोनी किसी अनजान आदमी के फोन से बात करना चाहती थी, ताकि वह पुलिस की पकड़ में न आ सकें.

उसी समय उन्होंने मैट्रो स्टेशन की सीढि़यों से उतर चुके एक युवक को अपने पास बुलाया. उस युवक के हाथ में मोबाइल फोन था. मोनी ने उस युवक से फोन मांग कर तरुण बजाज को फोन किया. तब तरुण ने उसे फ्लैट पर आने को कह दिया.

उस युवक का फोन लौटाने के बाद राजेंद्राप्लेस मैट्रो स्टेशन से मोनी और पूजा तरुण बजाज के घर पहुंचीं. दोनों को देख कर 50 वर्षीय तरुण बजाज खुश हो गया. उस ने दोनों को जूस पिलाया. इस के बाद वह उन के साथ मौजमस्ती करने लगा.

उसी दौरान पूजा ने अपने फोन से साहिल को मैसेज भेज दिया. वह मैसेज उस ने पहले से ही लिख रखा था. बेडरूम फ्लैट के मेनगेट से थोड़ा हट कर था, इसलिए मौका पा कर पूजा ने बेडरूम से आ कर दरवाजा खोल दिया.

उधर मैसेज मिलते ही साहिल और मोहित शर्मा बाइक से उस के फ्लैट के नजदीक पहुंच गए. फ्लैट फर्स्ट फ्लोर पर था. जब वे वहां पहुंचे तो दरवाजा पहले से खुला होने की वजह से वे फ्लैट में दाखिल हो गए.

अनजान लोगों को फ्लैट में देख कर तरुण बजाज चौंका. वह कपड़े पहनने के लिए उठने लगा तो उन्होंने चाकू दिखा कर उसे डरा दिया. इस से पहले कि वह कुछ कहता उन लोगों ने उस पर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में तरुण का शरीर चाकुओं से गोद डाला. वह जिंदा न रह जाए, इसलिए उस की सांस की नली काट दी.

उस के पुरुषांग पर भी चाकू से वार किया और पेट चीर दिया. कुछ देर तड़पने के बाद तरुण बजाज ने दम तोड़ दिया. चूंकि खून से साहिल, मोहित की कमीज सन चुकी थी और मोनी की चुन्नी और सूट पर खून लग चुका था, इसलिए उन्होंने खून सने कपड़े एक पौलीथिन में बांध कर अपने साथ लाए बैग में रख लिए. मोनी की चुन्नी भी उसी में रख ली. मोहित और साहिल ने तरुण की कमीजें अलमारी से निकाल कर पहन लीं.

तरुण को मौत के आगोश में भेजने के बाद उन्होंने अलमारी की तलाशी ली, जिस में रखे 3 लाख रुपए और ज्वैलरी निकाल कर बैग में रख ली. उन्होंने हत्या को लूट का रूप देने के लिए घर का सामान इधरउधर बिखेर दिया. बजाज की हत्या करते समय साहिल के हाथ में भी चाकू लग गया था.

अपना काम करने के बाद साहिल और मोहित मोटरसाइकिल से कर्मपुरा लौट गए. मोनी के कपड़ों पर खून के छींटे आ गए थे. वह किसी को दिखाई न दें, इसलिए पूजा ने उसे अपनी काले रंग की चुन्नी दे दी. जिसे ओढ़ कर वह पूजा के साथ कर्मपुरा पहुंच गई.

साहिल शातिर था. उसे उम्मीद थी कि पुलिस किसी न किसी सुबूत के जरिए उस के पास तक पहुंच सकती है, इसलिए उस ने मोहित और मोनी को फिलहाल 30-30 हजार रुपए दे दिए. बाकी पैसे उस ने ज्वैलरी बेचने के बाद देने को कहा. फिर वह पत्नी पूजा को ले कर हरिद्वार निकल गया. मोहित भी उस के साथ चला गया. खून सने कपड़े उन्होंने गंगा नदी में फेंक दिए.

देहरादून में साहिल का एक रिश्तेदार रहता था. वह उसी रिश्तेदार के घर पहुंच कर सुबहसुबह पत्नी और दोस्त के साथ शराब पी रहा था. उसे पता नहीं था कि दिल्ली पुलिस उस का पीछा करती हुई आ रही है. शराब पीते हुए पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

3 अभियुक्त पुलिस गिरफ्त में आ चुके थे. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 28 जून को मुन्नी उर्फ मोनी को सुल्तानपुरी में उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. 28 जून, 2014 को चारों अभियुक्तों को तीसहजारी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी डा. जगमिंदर की कोर्ट में पेश किया, जहां से सूरज उर्फ साहिल, मोहित शर्मा उर्फ सन्नी और मुन्नी उर्फ मोनी को 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर दे कर पूजा को न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने तीनों अभियुक्तों से कई महत्त्वपूर्ण सुबूत एकत्र किए. घटना से संबंधित कई जगहों की तसदीक भी उन से कराई. विस्तार से पूछताछ के बाद 2 जुलाई को उन्हें पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. मामले की तफ्तीश अतिरिक्त थानाप्रभारी विक्रम सिंह राठी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित