प्रेमी का सिर काट कर क्यों ले गई मेहनाज

20 वर्षीय मेहनाज ने गन्ने के खेत में ले जा कर अपने 22 वर्षीय प्रेमी सोनू के पैर रस्सी से बांध दिए. इस के बाद मेहनाज के भाई सद्दाम अंसारी ने छुरी से सोनू की गरदन काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर दोनों भाईबहन उस का सिर थैले में रख कर ले गए. आखिर मेहनाज क्यों बनी प्रेमी की कातिल?

सद्दाम ने अपनी बहन मेहनाज को भरोसे में ले लिया था और वह भी उस के हर फैसले को मानने के लिए तैयार हो गई थी. अब सद्दाम के सामने बड़ा सवाल था कि सोनू और उस की बहन मेहनाज के बीच जो प्रेम संबंध हैं, उन्हें कैसे तोड़ा जाए. ऐसा वह क्या करे कि मेहनाज और सोनू हमेशा के लिए अलग हो जाएं?

इस बारे में सद्दाम ने मेहनाज से बात की तो उस ने वादा कर लिया कि वह भविष्य में सोनू से कोई वासता नहीं रखेगी. लेकिन सोनू ने अपने रिश्तेदारों आदि को मेहनाज का फोटो दिखाते हुए यह बात फैला दी थी कि वह मेहनाज से शादी करने वाला है. यह बात सद्दाम को काफी परेशान कर रही थी. मेहनाज पूरी तरह से भाई का साथ देने को तैयार हो गई थी. इस उधेड़बुन में दोनों भाईबहन काफी ऊहापोह की स्थिति में आ गए थे. उन्हें सब से आसान तरीका यह समझ में आया कि क्यों न सोनू को परिवार और गांवसमाज का हवाला देते हुए यह समझाया जाए कि ननिहाल की लड़की से शादी करना किसी के लिए भी ठीक नहीं होगा. इस का भविष्य में उस के परिवार पर बुरा असर पड़ेगा और गांव के लोगों से संबंध हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.

भाईबहन के बीच इस के लिए सोनू से बातचीत करने पर सहमति बन गई. उसे किसी एकांत जगह में बुलाने का कार्यक्रम तय कर लिया गया. सद्दाम ने मेहनाज को सोनू से बातचीत कर समझाने की सलाह दी. 3 दिनों के बाद मौका देख कर 9 सितंबर, 2024 को मेहनाज ने सोनू को फोन किया. वह खुश हो गया था, क्योंकि कई दिनों से उस की मेहनाज से बात नहीं हुई थी. सोनू ने खुशी से पूछा, ”तो तुम साथ घूमने चलने के लिए तैयार हो?’’

बेरुआ पुल पर मिलोगे तब सब कुछ बताऊंगी. कुछ देर वहां बैठ कर शांति से दिल की बातें तो कर लें हम लोग.’’ मेहनाज प्यार से बोली.

ठीक है, मैं शाम को 7 बजे से पहले वहां पहुंच जाऊंगा…हमारे गांव सैफनी से ज्यादा दूर नहीं है.’’ सोनू खुश हो कर बोला.

मेहनाज पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार शाम को बरुआ पुल पर पहुंच गई. मेहनाज की तरह सद्दाम भी अपने पड़ोस के एक दोस्त रिजवान को ले कर वहां पहुंच गया था. इस की जानकारी मेहनाज को पहले से थी. हालांकि सोनू समय से 15 मिनट बाद पुल पर पहुंचा था, जहां मेहनाज अकेली उस का इंतजार करती दिखी. उस के आते ही मेहनाज ने देर करने की शिकायत कर दी. सोनू ने उसे गले लगाना चाहा, लेकिन मेहनाज ने सामने से मछुआरों को आता देख इशारे से मना कर दिया और एक ओर जा कर बैठ गई.

सद्दाम अपने दोस्त रिजवान के साथ पास में ही थोड़ी आड़ लिए छिपा हुआ था. पुल के आसपास नदी से मछली पकडऩे वाले लोग अपनेअपने घरों को जा रहे थे. हलकी रोशनी थी. पुल के आसपास का इलाका जंगली है. रात के अंधेरे ने अभी जंगल को अपनी आगोश में नहीं लिया था. मेहनाज सोनू के साथ पुल के पास से कच्चे रास्ते से होते हुए थोड़ा आगे चल कर नीचे उतर कर गन्ने के खेत में चली गई. पीछेपीछे सद्दाम और रिजवान भी उन की नजरों से बचते हुए गन्ने के खेत में पहुंच गए. तुरंत दोनों ने मिल कर सोनू को पीछे से दबोच लिया. वह वहीं जमीन पर गन्ने के खेत में गिर गया.

प्रेमिका ने बांधे प्रेमी के पैर, भाई ने काटा सिर

उस के गिरते ही साथ चल रही मेहनाज ने तुरंत सोनू के दोनों पैर कस कर पकड़ लिए. तब तक सद्दाम ने साथ लाई रस्सी मेहनाज को दे दी, जिस से उस के पैर बांध दिए. सोनू गिड़गिड़ाने लगा, ”मेहनाज, यह क्या कर रही हो? मुझे छोड़ दो… जो तुम कहोगी, मैं वही करूंगा.’’ सोनू की बातों को अनसुना कर मेहनाज ने उस के दोनों पैर रस्सी से बांध दिए. गिड़गिड़ाता सोनू बोलता रहा, ”मेहनाज, मैं तुम्हारी फोटो डिलीट कर दूंगा…और तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा. मैं तुम्हें सदा के लिए भुला दूंगा. मुझे बचा लो, प्लीज…’’ 

मेहनाज कुछ नहीं बोली. सिर्फ अपनी नम आंखों से भाई सद्दाम की तरफ देखा. वह आक्रोश से भरा हुआ था. उस ने दूसरी रस्सी से सोनू के हाथों को भी बांध दिया था. सोनू बेबस था. वह मेहनाज को देखे जा रहा था. तभी रिजवान और मेहनाज ने मिल कर सोनू को दबोच लिया. सद्दाम ने उस की गरदन पकड़ ली और अंटी में लगी छुरी निकाल कर सोनू की गरदन पर चला दी. खून के फव्वारे फूट पड़े. रिजवान और मेहनाज के साथ सद्दाम के कपड़े भी खून से तरबतर हो गए. उसी चाकू से उस के सिर को गरदन से अलग कर दिया था.

थोड़ी देर तड़पने के बाद सोनू निढाल हो गया. उस के शरीर से जान निकल चुकी थी. मेहनाज दूर खड़ी अपने प्रेमी की मौत देख रही थी. सद्दाम के कहने पर दोस्त रिजवान ने सोनू की लाश के कपड़े उतार दिए, ताकि उस की पहचान न हो सके. उस की चप्पलें और मोबाइल ले लिया. चप्पलें वहीं फेंक दीं और उस के मोबाइल को भी तोड़ कर उस के पुर्जे रास्ते में ही फेंक दिए. सोनू की बाइक वहीं पर पुल के पास चाबी के साथ खड़ी छोड़ दी. उस के बाद सद्दाम, रिजवान और मेहनाज सोनू के कटे सिर, उस की एक चप्पल, टूटा मोबाइल, चाकू और मेहनाज का मोबाइल एक प्लास्टिक के थैले में रख कर जंगल के रास्ते पर हो लिए. सब कुछ ऐसे हो रहा था, जैसे तीनों ने इस घटना को अंजाम देने के लिए पहले से ही पूरी तरह योजना बना रखी हो.

जंगल चलते करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर डंपिंग ग्राउंड सैफनी में उन्होंने सोनू की गरदन फेंक दी. सद्दाम नगर पंचायत सैफनी में संविदा पर ट्रैक्टर चलाता है, इस कारण ही उस ने सोचा था कि सुबह जब वह नगर पंचायत सैफनी की कूड़े से भरी ट्रैक्टर ट्रौली यहां कूड़ा डालने आएगा तो सोनू की गरदन उस कूड़े के ढेर में दफन हो जाएगी. कभी किसी को गरदन का कोई सुराग नहीं लगेगा. तीनों हर सबूत को नष्ट कर देना चाहते थे. एक चप्पल और टूटे मोबाइलों की थैली भी उन्होंने डंपिंग साइट पर ही फेंक दी. तीनों ने जंगल की आड़ में अपनेअपने कपड़े बदल लिए और खून सने कपड़ों को वहीं पैट्रोल छिड़क कर जला डाला. उस के बाद वे अपने घर आ गए.

अगले रोज यानी 10 सितंबर की सुबहसुबह उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के थाना सैफनी एसएचओ महेंद्रपाल सिंह को जंगल में सिर कटी लाश पड़ी होने की सूचना मिली तो एसएचओ मय फोर्स के वहां पहुंच गए. उन्होंने तत्काल घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दी. सिरकटे शव की पहचान के लिए कोशिश के साथसाथ उस के सिर की तलाश भी की गई, लेकिन नहीं मिल सका. पुलिस के सामने समस्या थी उस की पहचान की. इस के लिए आसपास के थानों को अज्ञात शव की सूचना भेज दी गई. नग्न सिरकटी लाश मिलने की खबर आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी. उसे देखने के लिए सैकड़ों की तादाद में लोग जुटे थे.

उन में सेफनी गांव के लोग भी थे. उन्हीं में से एक व्यक्ति ने लाश की पहचान कर ली. उस ने पुलिस को बताया कि लाश के अंगूठे को वह अच्छी तरह पहचानता है, जो मोटा और दबा हुआ था. वह देखते ही बोल पड़ा, ”साहब, यह तो हमारा सोनू है. यहां कब आया? उसे किस ने मारा? वह भी गरदन काट कर!’’

तुम इसे पहचानते हो? कैसे जानते हो इसे? कौन है?’’ पुलिस के कई सवालों से वह घबरा गया, तुरंत रोने लगा. रोता हुआ बोला, ”जी… जी हुजूर! यह तो हमारा सोनू है. बिलारी में रहता है, लेकिन यहां कैसे?’’

तुम कौन हो, जो इतने दावे से कह रहे हो, सोनू है!’’ पुलिस तहकीकात के अंदाज में बोली.

मैं उस के ननिहाल का रिश्तेदार हूं. सोनू  मुरादाबाद से 25 किलोमीटर दूर कोतवाली बिलारी के गांव रुस्तमनगर सहसपुर का रहने वाला है.’’ वह बोला.

इसी बीच पुलिस को बिलारी थाने से सोनू नाम के युवक के गुमशुदा होने की सूचना मिली, जो उस के पिता साबिर ने बीती रात दर्ज करवाई थी.

साबिर ने पुलिस को बताई प्रेम प्रसंग की बात

साबिर ने गुमशुदगी की सूचना में लिखवाया था कि उन का बेटा सोनू 9 सितंबर, 2024 की शाम 7 बजे से ही लापता है. लाश की पूरी पहचान की पुष्टि के लिए साबिर को बुलाया गया. उस ने भी नग्न लाश के चपटे अंगूठे से बेटे की पहचान कर ली. उस के बाद 11 सितंबर को साबिर की तहरीर पर थाना बिलारी में बीएनएस की धारा 103(1)/238 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस सनसनीखेज मामले में बहुत कुछ खुलासा होना बाकी था. खासकर उस के सिर का मिलना पहली प्राथमिकता थी. अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जानी थी. इस के लिए एसएसपी (मुरादाबाद) सतपाल अंतिल ने एसपी (ग्रामीण) व सीओ (बिलारी) के नेतृत्व में एक टीम गठित की गई. टीम की कमान बिलारी के कोतवाल लखपत सिंह को सौंपी गई.

सोनू के पिता साबिर ने मामले को प्रेमप्रसंग का बताया. उस ने पुलिस को बताया कि सोनू रुस्तमनगर सहसपुर गांव में बड़ी मसजिद के निकट आलिम के कारखाने में जींस की सिलाई का काम करता था. वह परिवार में बड़ा बेटा था. उस के अलावा उस की अम्मी अनीशा, छोटा भाई शाने अली हैं. साबिर सहसपुर के ही एक ईंट भट्ठे पर ईंटों को पाथने का काम करता है. उस के बेटे की ननिहाल में अपने ही समाज की लड़की से प्रेम चल रहा था. साबिर ने बेटे की ननिहाल में रहने वाले एक परिवार पर ही हत्या का आरोप मढ़ दिया.

उस की शिकायत के आधार पर बिलारी पुलिस ने सद्दाम अंसारी पर मुकदमा दर्ज कर लिया. वह थाना सेफनी (रामपुर) के मोहल्ला मजरा का निवासी है. पुलिस बगैर देर किए उसे गिरफ्तार कर पूछताछ के लिए थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब उस ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पूरी घटना विस्तार से बता दी. उस की निशाहदेही पर पुलिस ने सोनू की हत्या में प्रयुक्त एक छुरी एवं मृतक की चप्पल, टूटा हुआ मोबाइल फोन समेट लाश से करीब 2 किलोमीटर दूर कटा हुआ सिर डंपिंग ग्राउंड सैफनी से बरामद कर लिया.

पूछताछ में सद्दाम ने अपनी बहन मेहनाज और रिजवान का नाम भी लिया. उस ने बताया कि हत्याकांड में उन दोनों की भी भागीदारी थी. पुलिस ने मेहनाज और रिजवान से भी अलगअलग पूछताछ की और हत्याकांड के बारे में विस्तार से बयान लिए. बिलारी कोतवाली की महिला पुलिस जब मेहनाज से पूछताछ करने लगी, तब वह रोने लगी. उसे ढांढस बंधाती हुई महिला पुलिस ने सब कुछ सचसच बताने को कहा. कलपती हुई मेहनाज बोली, ”मैडम, मैं ने भी आप की तरह ही पुलिस में भरती की परीक्षा दे रखी है. अब तो लगता है मेरा करिअर ही खराब हो गया. पुलिस की नौकरी तो दूर की बात है…’’

चलो जो हुआ, उस के बारे में बताओ… तुम सोनू को कब से जानती थी?’’

सोनू का नाम आते ही मेहनाज शून्य की ओर देखने लगी…वैसी यादों में खो गई, जो उस की आंखों के आगे घूम रही थीं. कुछ पल शांत रहने के बाद बोलने लगी…

शादी समारोह में सोनू और मेहनाज के लड़े थे नैना

एक साल पहले गांव रुस्तमनगर सहसपुर निवासी सोनू सेफनी में स्थित अपनी ननिहाल आया हुआ था. उस के घर के पास ही एक परिवार में शादी का माहौल था. मुसलिम समाज की परंपरा के अनुसार इस क्षेत्र में होने वाले विवाह समारोह में एक अंतिम रस्म सलामीका आयोजन चल रहा था. इस में दूल्हा और उस के यारदोस्त लड़की पक्ष के समारोह से एक अलग स्थान पर पहुंच गए थे. दूल्हे को कुरसी पर बैठा दिया गया था. बाकी साथ के लोग दूल्हे के इर्दगिर्द खड़े हो गए थे. वहां पर लड़की की मां और बहनों सहित सहेलियां और रिश्तेदार लड़कियां भी थीं. गजब का खुशनुमा माहौल बना हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो लड़कियों और लड़कों की 2 अलगअलग टीमें आपस में किसी मुकाबले के लिए तैयार हों. 

लड़की पक्ष के लोग दूल्हे को शगुन भेंट करने लगे थे. शगुन की राशि या उपहार मिलते ही दूल्हा उन को सलाम कर देता था. उस के बाद उन से परिचय भी होता था. इस दौरान हंसीमजाक का दौर भी चलने लगा था. लड़कों का मनचलापन और लड़कियों की ठिठोली का सिलसिला पूरे शबाब पर था.
उन्हीं में करीब 20-22 साल का युवक सोनू भी था. उस के चेहरे पर मासूमियत थी. सपनों से भरी गहरी आंखें, चेहरा गुलाब की तरह ताजगी लिए हुए था, मधुर मुसकान, चमकती आंखें, मेहनत का संकेत देती सुडौल भुजाएं, हवा में लहराते बाल. इन सब से वह अधिकांश लड़कियों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ था. वह दूल्हे के बहुत करीब खड़ा था. मौजूद लड़कियों को ऐसे देख रहा था, जैसे उस ने किसी को देखा नहीं हो.

इतने में ही मेहनाज दूल्हे को पुरस्कार देने के लिए नजदीक आई. सोनू की उस से आंखें चार हुईं. दोनों एकदूसरे को देखते रहे और उस के हाथ से शगुन की राशि का लिफाफा नीचे गिर गया, दूल्हे के हाथों तक नहीं पहुंच पाया. दोनों आंखों के जरिए एकदूसरे के दिल में उतर गए. इसे दूसरे लोगों ने भी महसूस किया. 

मेहनाज इस पर मजाकिया लहजे में बोल पड़ी, ”दिखता नहीं है!’’  खूबसूरत मेहनाज की तरह उस की आवाज में भी मधुरता थी. खूबसूरत चेहरे पर गुलाब की पंखुड़ी की तरह सुर्ख होंठ, मुसकान, उस की आंखों में सपनों का संसार छिपा था. उस के इकहरा बदन आकर्षक था. कुछ समय तक दोनों इस महफिल का केंद्रबिंदु बने रहे.

तोहफा देने कोई और आगे आया तो मेहनाज पीछे हट गई. उस का गिरा हुआ गिफ्ट पैक दूल्हे के यारदोस्तों ने उठा लिया. रस्म पूरी हुई. दूल्हे और उस के साथी मंडप में आ गए. विदाई की तैयारी होने लगी, लेकिन सोनू की निगाह में मेहनाज का चेहरा घूम रहा था.विदाई का समय आ गया. दुलहन को कार में बैठाने कुछ लड़कियां आईं, उन में मेहनाज भी थी. सोनू भी कार के पास ही खड़ा हो गया था. उस ने सब की नजरों से बचा कर एक कागज मेहनाज के हाथ में पकड़ा दिया. 

मेहनाज ने उसे मुट्ठी में ही दबोचे रखा. बाद में उसे खोल कर देखा तो उस में एक मोबाइल नंबर लिखा था. इस तरह सोनू और मेहनाज की मुलाकात का सिलसिला फोन से शुरू हुआ. उन के बीच पहले जानपहचान और फिर मिलनेजुलने की शुरुआत हो गई. सोनू को उस ने बताया कि गांव रुस्तमनगर सहसपुर के पास थांवला रोड पर स्थित आईटीआई स्कूल में वह पढ़ती है. फिर उन की मुलाकात सहसपुर बिलारी के बीच हाईवे पर ही नीलबाग के एक इंगलिश मीडियम स्कूल के पास हुई. 

करिअर और पढ़ाई को ले कर जितनी गंभीर मेहनाज थी, उतनी ही चिंता उस के भाई सद्दाम अंसारी और परिवार के दूसरे लोगों को भी थी. वह जितनी सुंदर, उतनी ही चंचल और पढ़ाई में तेज थी. उस का एडमिशन रूस्तमनगर सहसपुर में स्थित आईटीआई में हो गया था. उस की सुंदरता और मोहकता पर कोई भी पहली ही नजर में फिदा हो जाता था. उम्र के जिस मोड़ पर वह खड़ी थी, वहां से कदम बहकते देर नहीं लगती. ऐसा ही कुछ उस के साथ भी हो चुका था. वह सोनू के प्यार में पड़ चुकी थी.

इस की जानकारी जब सद्दाम को हुई तब वह बेचैन हो गया, किंतु मानसिक तनाव की घड़ी में भी एक अच्छी बात यह थी कि उस ने भावावेश में तुरंत कोई कदम नहीं उठाया, बल्कि जमाने के बदले हुए मिजाज और प्यारमोहब्बत की बातें आम होने की बात को देखते हुए उस ने समझदारी भरा कदम उठाया. पहले उस ने इस बारे में पूरी तहकीकात की और बहन के प्रेम संबंध की होने वाली चर्चा के तह में जा कर पता लगाया. बात की पुष्टि हो जाने के बाद समाधान के लिए फिर उस ने अपने खास दोस्तों से बात की.

उस ने उन से सलाहमशविरा कर राय मांगी कि इस मामले में अब क्या करना चाहिए. उस के दोस्तों के अलगअलग मशविरे थे. सब की बातें सुन कर उस ने उस पर गहन मंथन किया. सोचविचार के बाद वह अंतिम निर्णय पर पहुंचा कि उसे आगे जो कुछ करना है, उसे पहले अपनी बहन के साथ बात कर लेनी चाहिए. हो सकता है बातचीत से ही समाधान हो जाए. शाम का समय था. सद्दाम अंसारी के परिवार के सब लोग घर पर ही थे. अपने कमरे में सिर पकड़े बैठे सद्दाम ने दरवाजे के सामने बरामदे से गुजरती बहन मेहनाज को देखा. उस ने आवाज लगाई, ”मेहनाज!’’

जी भाई!’’ मेहनाज बोली.

सिर भारीभारी लग रहा है… एक कप चाय पिला दोगी…’’ थकी आवाज में सद्दाम बोला.

अभी बना देती हूं… बोलो तो अदरक और इलायची भी डाल दूं…’’

हांहां, पत्ती तेज रखना!’’

जी, भाईजान.’’

कुछ समय में ही मेहनाज एक प्याला चाय ले कर आ गई. प्याला देती हुई बोली, ”कुछ खाने को भी नमकीनबिसकुट ला दूं?’’

नहींनहीं! कुछ नहीं… यहीं बैठो, तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’ सद्दाम बोला और चाय पीने लगा. उस समय कमरे में सिर्फ सद्दाम था. मेहनाज थोड़ी दूर पड़ी एक फोल्डिंग कुरसी को खोला और चुन्नी संभालती हुई बैठ गई.

हां भाई, बोलो न, क्या जरूरी बात है?’’

तुम्हारे बारे में मोहल्ले के लड़के कई तरह की बातें करते हैं. मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता!’’ चाय के कुछ घूंट पी कर सद्दाम बोला.

अरे भाईजान, मोहल्ले के लड़कों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं.’’ मेहनाज ने कहा.

बात कुछ भी बोलने की नहीं है, उन का कहना है कि तुझे वे अकसर किसी लड़के के साथ देखते हैं… इस से बदनामी हो रही है.’’

उन को छोड़ दो, वे तो हैं ही नकारा किस्म के लड़के…लेकिन उन की बातों का असर मोहल्ले में दूसरों पर तो होता है न. हम लोग अपने मोहल्ले और परिवारसमाज में इज्जतदार लोग हैं.’’ सद्दाम समझाने के लहजे में बोला.

भाईजान, ऐसी कोई बात नहीं है, जिस से आप का और घर वालों का सिर नीचा होगा…’’

कौन है वह?’’

नानी के घर सेफनी में शादी में गई थी, वहीं सोनू से जानपहचान हो गई थी. उस के बाद यहां मिलने के लिए 2-3 बार आया था और कोई बात नहीं है. उस का ननिहाल अपने गांव में ही है.’’ मेहनाज सफाई में बोली.

फिर कभी मिले तो साफसाफ मना कर देना. देखो, तुम्हें अपनी पढ़ाई पर फोकस करना है. बड़ी मुश्किल से मैं ने घर के लोगों से लड़झगड़ कर तुम्हारा आईटीआई में नाम लिखवाया है. हमारे समाज की लड़कियों के लिए यह बड़ी बात है.’’ सद्दाम बोला. सद्दाम ने सोनू के घर वालों का भी हवाला देते हुए कहा, ”तुम्हीं देखो न, कहां कपड़ों की सिलाई कर गुजरबसर करने वाला उस का परिवार और कहां सिलाई का काम करने वाला सोनू…’’

जी भाईजान, आप की बदौलत ही मैं आईटीआई की पढ़ाई कर रही हूं. मैं उस से कभी नहीं मिलूंगी, लेकिन…’’ मेहनाज बोलतेबोलते अचानक रुक गई.

लेकिन क्या?’’ 

भाई, वह बहुत ही जिद्दी है, मैं उस से पीछा छुड़ाना चाहती हूं, उसे मना कर चुकी हूं. फिर भी वह पीछा नहीं छोड़ता.’’

भाई ने क्यों रची खौफनाक साजिश

मेहनाज अपने बड़े भाई से कुछ भी नहीं छिपाती थी. भाई को भी उस पर भरोसा था. वह पढ़ाई में अव्वल थी और भाई का हर कहा मानती थी. उस ने बातों ही बातों में यह स्वीकार लिया कि वह सोनू से प्यार करती है. उस के बगैर वह नहीं रह सकती है. किंतु जब भाई ने उस के प्रेम संबंध को ले कर घरपरिवार में होने वाली बदनामी और करिअर खराब हो जाने का हवाला दिया तब वह सहम गई. सोनू गांव रूस्तमनगर सहसपुर का रहने वाला था. उस की ननिहाल जिला रामपुर के कस्बा सैफनी के मझरा मोहल्ले में है. मेहनाज का घर भी सोनू की ननिहाल के पड़ोस में है. 

दोनों के बीच जानपहचान होने के बाद सोनू ने अपनी ननिहाल में ज्यादा आनाजाना शुरू कर दिया था. वह मेहनाज से उस के आईटीआई आतेजाते वक्त भी मिल लेता था. एक दिन उस ने मेहनाज को अपने पास बैठा कर उस के कुछ फोटो खींच लिए थे. तब मेहनाज ने उस से फोटो को सोशल साइट पर लगाने से सख्त मना कर दिया था. हालांकि मेहनाज की हिदायत का ध्यान रखते हुए सोनू ने वह फोटो सोशल मीडिया पर शेयर नहीं किए थे, लेकिन अपने ननिहाल आ कर कुछ रिश्तेदारों को उस ने वे फोटो दिखाए थे. उस ने रिश्तेदारों से कहा था कि वह मेहनाज से शादी करना चाहता है. इस के लिए उस ने उन से मदद मांगी थी. 

यह बात पूरे सैफनी में फैल गई थी, इस की जानकारी मेहनाज के भाई सद्दाम को हुई तो वह बेचैन हो गया था. उसे बदनामी का डर सताने लगा था. वह सोचता था कि सोनू से उस की बहन के संबंध ठीक नहीं हैं. इस से उस के परिवार के मानसम्मान को गहरा धक्का लगेगा. सद्दाम ने इसी चिंता में जब मेहनाज से पूछताछ की तो वह रोने लगी. इस के बाद उस ने सोनू के साथ प्रेम संबंध के बारे में पूरी आपबीती बताई. यह भी वादा किया कि वह सोनू से भविष्य में कोई संबंध नहीं रखेगी.

मेहनाज, सद्दाम अंसारी और रिजवान से पूछताछ के बाद सोनू हत्याकांड का खुलासा हो गया था. उन्होंने सोनू के कटे सिर को बरामद करने में पुलिस की मदद की. तीनों सोनू हत्याकांड में नामजद थे और अपना जुर्म कुबूल कर चुके थे, इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

प्यार में पुलिस वाला बना भिखारी, साधु और किडनैपर

पत्नी पूनम चौधरी के छोड़ कर चले जाने के बाद हैडकांस्टेबल तनुज चाहर भिखारी बन कर उसे दरदर तलाशता रहा. उस की मेहनत रंग लाई. पूनम ने उस के साथ जाने को मना कर दिया तो वह 11 महीने के बच्चे को किडनैप कर ले गया. इस दौरान उस बच्चे और किडनैपर तनुज के बीच ऐसा आत्मीय संबंध बन गया कि…

तनुज चाहर अपने बेटे को पाने के लिए हर समय परेशान रहता था. वह अपने स्तर से पत्नी पूनम और बेटे का पता लगाने में जुट गया. आगरा के अकोला गांव का रहने वाला तनुज यूपी पुलिस में हैडकांस्टेबल था. उसे किसी तरह पता चल गया कि उस की पत्नी पूनम चौधरी बच्चे के साथ जयपुर में कहीं रहती है, लेकिन उसे उस का ठिकाना पता नहीं था. अपने मकसद को पूरा करने के लिए  वह भिखारी का वेश बना कर जयपुर में काफी दिनों तक रैकी करता रहा. इस के लिए उस ने जमीन को बिछौना और आसमान को चादर बना लिया था. रातें फुटपाथ पर और दिन गलियों में भिखारी बन कर भटकते गुजारने लगा. आखिर उस की कोशिश रंग लाई और उसे उस पूनम के ठिकाने का पता चल गया, जिस के लिए इतने दिनों तक वह भिखारी बन कर भटकता रहा था.

इस के बाद एक दिन वह अपने 3 दोस्तों के साथ कार से वाटिका (जयपुर) पहुंचा. उस समय घर में पूनम और उस का 11 महीने का बच्चा दोनों मौजूद थे. बच्चा घर के आंगन में खेल रहा था. तनुज ने पूनम से साथ चलने को कहा. लेकिन पूनम ने उस के साथ जाने से साफ इंकार कर दिया. इस पर तनुज पूनम के साथ मारपीट कर जबरन उसे अपने साथ ले जाने की कोशिश करने लगा. पूनम भाग कर पड़ोस में रहने वाले अपने भाई के पास चली गई. वह भाई के साथ जब तक वापस लौटी, तब तक तनुज 11 महीने के बच्चे को उठा कर ले जा चुका था. यह बात 14 जून, 2023 की है.

पुलिस वाला क्यों बना किडनैपर

राजस्थान की राजधानी जयपुर के सांगानेर सदर थाना क्षेत्र स्थित वाटिका में रहने वाली पूनम चौधरी ने 14 जून, 2023 को ही थाने में पहुंच कर शिकायत की कि उस के 11 महीने के बेटे का अपहरण हो गया है. यह सुन कर थाने में हड़कंप मच गया. पूनम ने बताया, 4 किडनैपर्स अचानक उस के घर में घुस आए और उस के साथ मारपीट करने लगे और जबरन उसे अपने साथ ले जाने लगे, उन के चंगुल से छूट कर वह अपनी जान बचाने को पड़ोस में रहने वाले भाई के घर भाग गई.  इस बीच घर में खेल रहे उस के 11 महीने के बच्चे को वे लोग जबरन उठा कर ले गए. इन 4 किडनैपर्स में से एक तनुज चाहर उस के रिश्ते के मामा का बेटा है.

सांगानेर सदर पुलिस ने पूनम चौधरी की शिकायत पर तनुज चाहर व अन्य 3 अज्ञात किडनैपरों के खिलाफ बच्चे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के साथ ही पुलिस को छोटे बच्चे की उम्र को ध्यान में रखते हुए उस की जान के खतरे का भी अंदेशा था. इसलिए पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने के साथ ही एडीशनल डीसीपी स्पैशल इनवैस्टीगेशन यूनिट क्राइम अगेंस्ट वूमन पूनम सिंह विश्नोई को भी इत्तला दे दी. इस के बाद तो स्पैशल टीम और सर्विलांस टीम भी सक्रिय हो गईं.  

पुलिस ने मासूम की तलाश और आरोपियों का पता लगाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन तनुज चाहर के खिलाफ नामजद रिपोर्ट होने के बावजूद भी पुलिस महीनों तक उस का पता नहीं लगा सकी.जयपुर पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि आगरा के बिसरा, अकोला का रहने वाला तनुज चाहर उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल के पद पर कार्यरत है और घटना के समय उस की तैनाती अलीगढ़ पुलिस लाइन में थी. मुकदमा दर्ज होने और उस के फरार होने के बाद वह पुलिस की नौकरी से गैरहाजिर चल रहा था.

इसी बीच डीसीपी (साउथ) दिगंत आनंद ने उत्तर प्रदेश पुलिस को तनुज चाहर के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी दी. काफी समय तक गैरहाजिर रहने के चलते यूपी पुलिस ने तनुज को निलंबित कर दिया. जयपुर पुलिस ने तनुज चाहर के घर वालों और तमाम रिश्तेदारों से उस के बारे में जानकारी जुटाई. इस सब के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. अपने कलेजे के टुकड़े का अपहरण आंखों के सामने हो जाने से पूनम व्यथित रहने लगी. दिन गए रात आई, रात गई दिन आया और इस तरह 14 महीने का समय गुजर गया.

किडनैपर हैडकांस्टेबल तनुज को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी, कहने को पुलिस की टीम लगातार आरोपी की तलाश में जुटी थी. 10 से ज्यादा बार पुलिस की टीमों को आरोपी की तलाश में भेजा गया. थकहार कर तब उस के फरार होने तथा नौकरी से गैरहाजिर रहने पर जयपुर पुलिस ने उस के ऊपर 25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. वहीं न्यायालय से उस का गिरफ्तारी वारंट प्राप्त कर लिया.    

साधु वेश में क्यों रहता था किडनैपर

कुछ दिनों पहले जयपुर पुलिस को पता चला कि किडनैपर तनुज चाहर अपहृत बच्चे के साथ उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के वृंदावन परिक्रमा मार्ग के रास्ते में साधु बन कर फरारी काट रहा है. तनुज ने अपना हुलिया बदल लिया था. उस ने साधुओं की तरह अपने बाल व दाढ़ी बढ़ा ली थी और गेरुआ वस्त्र भी पहनता था. एक ही जगह पर रहने के बजाए वह अलगअलग जगहों पर डेरा डालता ताकि पुलिस की निगाह में आने से बच सके. चूंकि आरोपी तनुज स्वयं यूपी पुलिस की स्पैशल टीम और सर्विलांस टीम में तैनात रह चुका था, ऐसे में उसे पुलिस से बचने के हर तौरतरीके मालूम थे. वह पुलिस की बारीकी व पकडऩे के तरीके से वाकिफ था. इसीलिए उस ने साधु का वेश धारण कर लिया था. 

तनुज के बारे में मुखबिर से सुराग मिलने के बाद उसे पकडऩे के लिए जयपुर, अलीगढ़ और मथुरा पुलिस की संयुक्त टीम ने एक फुलप्रूफ योजना बनाई. इस में तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. किडनैपर को पकडऩे के लिए पुलिस को उसी का स्टाइल अपनाना पड़ा. पुलिसकर्मियों ने भी किडनैपर तनुज की ही तरह साधु का रूप धारण किया. पुलिसकर्मियों ने दाढ़ी बढ़ाई, भगवा धोती और लुंगी पहनी.  साधु का वेश धारण कर के भजन गाते हुए जयपुर पुलिस टीम के सदस्य 22 अगस्त, 2024 से मथुरा के वृंदावन धाम के परिक्रमा मार्ग पर निगाहें गड़ाए थे. पुलिस को जो इनपुट मिला था, उसी के अनुसार पुलिस टीम एडीसीपी (साउथ) पूनमचंद विश्नोई के निर्देशन में सरगरमी से आरोपी तनुज को तलाश कर रही थी. 

इस बीच पुलिस एक गाइड के संपर्क में आई. गाइड को विश्वास में लिया और टूरिस्ट बन कर उस के साथ विभिन्न स्थानों पर तनुज की तलाश में घूमी. उस से पुलिस को लीड मिली. वहां कई सीसीटीवी फुटेज पुलिस को मिले, जिस में किडनैपर एक दुकान पर चाय पीते दिखा. वहीं एक फुटेज में वह बाइक से कहीं जाता दिखाई दिया. पुलिस समझ गई कि तनुज यहां साधु वेश बना कर अन्य साधुओं में घुलमिल गया है.

तनुज जयपुर पुलिस की इस जांचपड़ताल से बेखबर था. जयपुर पुलिस टीम के सदस्य 27 अगस्त, 2024 को तनुज के पास जैसे ही पहुंचे, किसी ने उसे फोन कर दिया. पुलिस की भनक लगते ही आरोपी तनुज बच्चे को गोद में ले कर खेतों में भाग गया. पुलिस टीम ने उस का 8-10 किलोमीटर तक पीछा कर के अंत में उसे अपहृत बच्चे सहित मथुरा के सुरीर थाना क्षेत्र के ख्यारा जंगल से पकड़ लिया. आरोपी तनुज व उस के कब्जे से अपहृत बच्चे को सकुशल बरामद कर लिया गया. दोनों को अपने साथ पुलिस जयपुर ले गई. 

बच्चा क्यों नहीं होना चाहता था किडनैपर से दूर

जयपुर पुलिस ने 14 महीने पहले किडनैप हुए 11 महीने के बच्चे को ढंूढ निकाला. इस दौरान बच्चा 2 साल एक महीने का हो चुका था. पुलिस ने बच्चे को सुरक्षित बरामद कर न्यायालय के आदेश पर उस की मां पूनम चौधरी को सौंप दिया. इस मामले में एक अनोखा नजारा तब देखने को मिला, जब बच्चे को आखिरी बार किडनैपर से मिलवाया गया. बच्चा किडनैपर के गले से लिपट गया. वह किडनैपर से दूर जाने के लिए तैयार नहीं था. बच्चा किडनैपर को ही अपना सब कुछ समझने लगा था. किडनैपर के गले से लिपटे बच्चे को किसी तरह अलग किया गया तो वह फूटफूट कर रोने लगा. 

ऐसा मार्मिक नजारा देख पुलिस स्टाफ  की आंखें भी भर आईं. बच्चे को रोते व खुद से अलग होते देख किडनैपर तनुज भी अपने आंसू नहीं रोक सका. उस ने बच्चे को ढांढस बंधाते हुए कहा, ”बेटा, मैं अभी आ रहा हूं, यहीं रहना तुम.’’ एक पुलिसकर्मी ने बच्चे को किडनैपर की गोदी से ले कर उस की मां के हवाले कर दिया. बच्चा अपनी जन्म देने वाली मां को नहीं पहचान रहा था. वह उस की गोदी में नहीं जाना चाहता था. मां की गोद में दिए जाने के बाद भी लगातार किडनैपर के पास जाने की कोशिश कर रहा था और लगातार रोए जा रहा था. उसे मां की गोद से ज्यादा किडनैपर की गोद प्यारी थी. 

14 महीने किडनैपर के साथ रहने पर बच्चे का तनुज से अनोखा रिश्ता बन गया था. बच्चे का तनुज के प्रति प्यार देख कर हर किसी के मन में सवाल आने लगा कि बच्चे का किडनैपर के साथ इतना लगाव क्यों है? बच्चा और किडनैपर इतने भावुक क्यों हो रहे हैंपुलिस ने आरोपी से पूछताछ की. तब बच्चे के अपहरण के संबंध में जो सच्चाई सामने आई, उस ने सभी को चौंका दिया. आइए, आप को 14 महीने पहले हुए इस बच्चे के अपहरण की कहानी के पीछे का सच बताते हैं.

तनुज और पूनम ने किया था प्रेम विवाह                 

खैर (अलीगढ़), उत्तर प्रदेश निवासी तनुज चाहर की पहली पत्नी ने उसे छोड़ दिया था. तनुज का जयपुर स्थित आर.के. सिटी, सदर निवासी रिश्ते की बुआ के यहां आनाजाना रहता था. पत्नी के छोड़ देने के बाद जयपुर में अपनी बुआ की बेटी पूनम, जो उस की फुफेरी बहन लगती थी, से उस के प्रेम संबंध हो गए. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चलता रहा. अब जब भी दोनों एकदूसरे से मिलते प्यार भरी बातें करते और भविष्य के सपने संजोते. घर वालों को जब दोनों के प्यार के बारे में पता चला तो उन्होंने विरोध जताया. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन पूनम के घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं हुए. 

इस के बावजूद तनुज और पूनम ने घर वालों की मरजी के खिलाफ साल 2021 में प्रेम विवाह कर लिया और अलीगढ़ आ कर रहने लगे. विवाह से पूनम के घर वाले खुश नहीं थे. इसी बीच पूनम ने एक बेटे को जन्म दिया. कुछ समय तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा, लेकिन फिर दोनों में अकसर विवाद होने लगा. इस घरेलू विवाद की जानकारी जब पूनम के मायके वालों को हुई तो वह पूनम और बच्चे को अपने साथ ले गए.  इसी बीच खाप पंचायत के डर से पूनम के घर वालों ने कुछ समय बाद पूनम की शादी जयपुर में ही दूसरी जगह अनूप चौधरी (परिवर्तित नाम) से कर दी. जब इस की जानकारी तनुज को हुई तो उसे यह बात बहुत नागवार गुजरी.

जब तक पूनम बच्चे के साथ मायके में थी, वह निश्ंचित था. उसे उम्मीद थी कि पूनम की नाराजगी एक दिन जरूर दूर कर वह उसे और बच्चे को अपने साथ ले आएगा. लेकिन उस के अरमानों पर पूनम की दूसरी शादी से पानी फिर गया था. इस के बावजूद वह अब भी पूनम को पहले की तरह प्यार करता था. वह चाहता था कि पूनम पिछली बातें भूल कर बच्चे को साथ ले कर उस के पास रहे. उस ने कई बार पूनम से यह बात कही, लेकिन पूनम अब उस के साथ रहने को किसी कीमत पर तैयार नहीं थी. वह अब अपने नए परिवार में पूरी तरह से रचबस गई थी.  

तनुज ने पूनम को पाने के लिए क्या किया

पूनम को अपने साथ रहने के लिए राजी करने को उस ने फोन किया, लेकिन पूनम ने कहा कि वह अब अपनी नई दुनिया बसा चुकी है. वह अपने पति व बच्चे के साथ खुश है. अब वह उसे भूल जाए. लेकिन तनुज के दिल में प्रेमिका से पत्नी बनी पूनम की यादें बसेरा बना चुकीं थीं. वह उसे एक क्षण भी भुला नहीं पा रहा था. तब तनुज ने दोस्तों के साथ योजना बनाई कि वह पूनम से बच्चे को ले कर उस के साथ चलने के लिए कहेगा. यदि वह तैयार नहीं हुई तो उसे जबरन अपने साथ लाएगा. इस से पहले पूनम और उस के पति के ठिकाने का पता करने के लिए भिखारी बन कर तनुज ने सारी जानकारी हासिल कर ली थी. 

वह 14 जून, 2023 को पूनम के घर पहुंचा और उस के राजी न होने पर बच्चे को ले कर फरार हो गया. उस का मानना था कि वह बच्चे को अपने पास रखेगा तो पूनम भी बच्चे की खातिर उस की बात मान लेगी और उस के साथ रहने को तैयार हो जाएगी. तनुज चाहर की फरारी के दौरान अलीगढ़ के गौंडा निवासी एक मित्र वृंदावन दर्शन करने आया था. उस की नजर तनुज पर पड़ी. उस ने कहा, ”तुम मेरे दोस्त तनुज जैसे लगते हो.’’ इस पर तनुज अपने मित्र को पहचान गया. तनुज मित्र के साथ उस के गांव गौंडा में भी कुछ दिन रहा. एक दिन तनुज ने बच्चे की मां पूनम को फोन मिलाया. फोन पर उस ने पूनम को अपने पास आने के लिए कहा. उस ने कहा कि बच्चा उस के पास सकुशल है. 

बस यही गलती उस पर भारी पड़ी. पुलिस ने पूनम का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. अपने दोस्त के मोबाइल से तनुज ने पूनम को फोन किया था. पुलिस 14 महीने से तनुज को तलाश रही थी. वह उस की गिरफ्तारी के लिए सक्रिय हो गई. गौंडा में तनुज के होने की जानकारी पर वहां छापा मारा. पुलिस गौंडा गांव पहुंची, लेकिन तनुज बच्चे को ले कर वहां से जा चुका था. दोस्त से पूछताछ पर पुलिस को तनुज के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल गई थी. अपनी एक भूल से वह खुद पुलिस के जाल में फंस गया. इस के बाद पुलिस ने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया. फिर उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

बच्चे का अपहरण करने के बाद मथुरा, अलीगढ़, आगरा, मथुरा, वृंदावन  में भागता व छिपता रहा. बच्चे को वह कृष्ण बनाता. उसे खिलौने व कपड़े दिलाता. अपने साथ दूध की बोतल झोले में रखता. 14 महीने तक वह वेश बदल कर भागता रहा. बच्चे की खातिर वह अपनी नौकरी पर भी नहीं गया. गिरफ्तारी से पहले वह वृंदावन और सुरीर क्षेत्र में रह रहा था. वेतन न मिलने के चलते पैसे की भी कमी हो गई थी. वह अपने पास की-पैड वाला मोबाइल रखता था. उसे जब किसी से बात करनी होती थी तो फोन चालू करता और बात करने के बाद स्विच औफ कर देता था. इस बीच उस ने अपने परिवार के लोगों से भी संपर्क नहीं किया. 

किडनैपर निलंबित हैडकांस्टेबल तनुज चाहर की गिरफ्तारी व उस के पास से सकुशल बच्चे को बरामद करने वाली पुलिस टीम में  एएसआई प्रेम, लोकेश, साहब सिंह, राजेश कांस्टेबल के अलावा सर्विलांस टीम के सदस्य शामिल थे. गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम को डीसीपी ने इनाम दिए जाने की घोषणा की.

किडनैपर और बच्चे में क्या है संबंध

किडनैपर तनुज चाहर पकड़े जाने के बाद अब पुलिस रिमांड पर है. वह दावा कर रहा है कि बच्चा उस का ही है. उसे दिलवाया जाए. उस का कहना है कि पुलिस चाहे तो बच्चे और उस का डीएनए टेस्ट करवा ले. उधर बच्चे की मां पूनम आरोपी से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती है. डीसीपी (साउथ) दिगंत आनंद ने बताया, मासूम बच्चे के अपहरण की यह घटना 14 जून, 2023 की है. 4 किडनैपर्स में से एक तनुज चाहर है, जो पूनम के मामा का बेटा है. अन्य 3 आरोपी अज्ञात हैं. सांगानेर सदर थाना पुलिस उन की तलाश कर रही थी. आरोपी खुद उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात था. 

अपने ही बेटे के अपहरण में पकड़े गए हैडकांस्टेबल तनुज का पहली पत्नी से 20 साल का बेटा है. तनुज के पिता भी पुलिस से रिटायर्ड हैं. तनुज ने बच्चे के अपहरण के बाद उस के साथ आगरा, मथुरा, वृंदावन, अलीगढ़ में फरारी काटी. बच्चे को ले कर वह फुटपाथ पर ही सोता था. वह समाज का हिस्सा बन कर नहीं रहता था. कहते हैं कि बच्चे का दिल और मन शीशे की तरह साफ होता है. जहां प्यार मिलता है, बच्चे उसी के हो जाते हैं. किसी प्रकार का अपनेपराए का भेदभाव नहीं करते.

खैर निवासी पहली पत्नी ने इस घटना के बाद पति तनुज चाहर के खिलाफ भरणपोषण का मुकदमा दर्ज कराया है. पुलिस ने आरोपी तनुज चाहर को न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस द्वारा पूरी घटना की गहराई से जांच की जा रही है. वास्तव में यह घटना बच्चे के अपहरण से जुड़ी है या प्रेम प्रसंग का मामला है अथवा कोई अन्य राज है, किडनैपर ने बच्चे को 14 महीने तक अपनी कैद में रखने के बाद भी बच्चे को खरोंच तक नहीं आने दी. 

इस के साथ ही उस ने कोई फिरौती भी नहीं मांगी. बल्कि बच्चे के दूध, खानेपीने की चीजों के अलावा कपड़े व खिलौने ला कर भी दिए. ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

क्या था राइस पुलर जिससे शक्तिशाली हो जाते थे लोग

ठगी करने वाले नएनए तरीके अपनाते हैं, जिन के जाल में पढ़ेलिखे, धनाढ्य लोग तक फंस जाते हैं. नरेंद्र भी ऐसे ही लोगों में थे जो ठगों की बातों में कर लाखों गंवा बैठे. कैसे…   

रेंद्र कुमार बड़े बिजनैसमैन थे. अप्रैल 2015 में उन्हें एक शख्स ने फोन कर के बताया कि उस के पास राइस पुलर है, जिसे वह बेचना चाहता है. नरेंद्र कुमार ने राइस पुलर के बारे में सुन रखा था कि इस के अंदर अद्भुत शक्ति होती है. जिस के पास भी यह होता है, वह दुनिया का शक्तिशाली इंसान बन जाता है. फिर भी नरेंद्र कुमार ने इस जानकारी से अनभिज्ञ बनते हुए उस आदमी से पूछा, ‘‘ये राइस पुलर क्या होता है?’’

‘‘सर, आप राइस पुलर के बारे में नहीं जानते, यकीन नहीं हो रहा. दुनिया के अधिकांश बड़े बिजनैसमैन इस के बारे में अच्छी तरह जानते हैं. इतना ही नहीं, वे इसे हासिल करने की चाहत भी रखते हैं. क्योंकि यह होता ही इतना प्रभावी है.’’ उस शख्स ने कहा.

‘‘मुझे इस के बारे में नहीं मालूम. यह भी बता दीजिए कि इस का उपयोग क्या है?’’ नरेंद्र कुमार ने पूछा.

‘‘सर, इस के चमत्कार के बारे में आप गूगल पर या यूट्यूब पर सर्च कर सकते हैं. राइस पुलर कोई भी बरतन, बोल या सिक्का आदि के रूप में हो सकता है. पर मेरे पास राइस पुलर बौल है

‘‘दरअसल राइस पुलर एक खास तरह की धातु इरीडियम का बना होता है, इस पर आसमानी बिजली गिरने के बाद एक विशेष चमत्कारिक ऊर्जा पैदा होती है, जो इसे अलौकिक बनाती है

‘‘राइस पुलर की ऊर्जा का इस्तेमाल सैटेलाइट जैसी चीजें बनाने में होता है. इस के अंदर इतनी जबरदस्त चुंबकीय पावर होती है कि यह चावलों को भी अपनी तरफ खींच लेता है.’’ उस शख्स ने जानकारी दी, ‘‘सर, इस की एक और पावर के बारे में जब बताऊंगा तो आप चौंके बिना नहीं रहेंगे. यह जिस के पास भी जाता है, उस व्यक्ति की किस्मत ही चमक जाती है.’’

नरेंद्र कुमार को उस की बातों पर विश्वास हो गया कि वह जो कुछ कह रहा है, सही कह रहा है. क्योंकि उन्होंने राइस पुलर के बारे में काफी कुछ सुन रखा था. अब वह यह जानना चाहते थे कि यह है कितने का. उन्होंने उस शख्स से पूछा, ‘‘आप के पास जो राइस पुलर गेंद है, वो है कितने की?’’

‘‘सरजी, वैसे तो इंटरनैशनल मार्केट में इस की कीमत 10 करोड़ रुपए है, पर आप मुझे कम दे देना. मुझे अचानक पैसों की जरूरत पड़ गई, जिस की वजह से मुझे यह बेचनी पड़ रही है. यदि आप इसे अब ले लेंगे तो कुछ दिनों बाद मैं 10 करोड़ में इंटरनैशनल मार्केट में बिकवा दूंगा

‘‘सर, एक बात और बताता हूं कि इस का इस्तेमाल नासा वाले सैटेलाइट बनाने में करते हैं. इसलिए इस बहुमूल्य चीज को पाने के लिए तमाम देश भी लगे रहते हैं. तभी तो इस की मोटी बोली लगती है. जो मोटी बोली लगाता है, वही इसे हासिल कर लेता है, बाकी लोग तो हाथ मलते रह जाते हैं.’’

अब नरेंद्र कुमार की दिलचस्पी इस राइस पुलर को खरीदने में बढ़ने लगी. उन्होंने कहा, ‘‘भई, 10 करोड़ तो बहुत ज्यादा हैं.’’

‘‘सर, पैसे की बात तो बाद में फाइनल हो जाएगी, उस से पहले आप उस की असलियत की जांच कर लें. यदि वह असली हो तभी उस के सौदे की बात करें.’’ उस शख्स ने कहा. उस की यह बात नरेंद्र कुमार को ठीक लगी. वह इस के लिए तैयार हो गए. अब उन के सामने समस्या यह थी कि वह राइस पुलर का परीक्षण कैसे कराएं. उन्हें ऐसी किसी लैब या चैक करने वाले स्पैशलिस्ट के बारे में जानकारी नहीं थी. नरेंद्र कुमार ने उस व्यक्ति से फिर बात की जो उन्हें राइस पुलर बेचने की बात कर रहा था. उस व्यक्ति ने नरेंद्र कुमार से कहा कि वह ऐसे वैज्ञानिक को जानता है जो नासा वगैरह को राइस पुलर उपलब्ध कराते हैं. उन का दिल्ली के मोतीनगर इलाके में औफिस है. लेकिन इस की टेस्टिंग का सारा खर्च आप को ही उठाना पड़ेगा.

‘‘टेस्टिंग में कितना खर्च जाएगा?’’ नरेंद्र कुमार ने पूछा.

‘‘मैं आप की उन से मुलाकात करा दूंगा. इस बारे में आप उन से सीधे ही बात कर लेना.’’ उस शख्स ने कहा. फिर एक दिन वह शख्स नरेंद्र कुमार को पश्चिमी दिल्ली के मोतीनगर स्थित एक कंपनी रेहान मेटल यूएसए में ले गया. उस ने उस कंपनी के एमडी वीरेंद्र मोहन बरार से उन की मुलाकात कराई. वहां पर कंपनी के एमडी का बेटा नितिन मोहन बरार भी मौजूद था. दोनों बापबेटों ने खुद को वैज्ञानिक बताते हुए कहा कि वह राइस पुलर के काम से बहुत दिनों से जुड़े हुए हैं. उन की कंपनी नासा को राइस पुलर उपलब्ध कराती है. जब कीमत की बात आई तो उन्होंने यह भी बताया कि इस की कीमत निश्चित नहीं है. मांग के अनुसार इस की कीमत बढ़ भी जाती है और 37,500 करोड़ रुपए तक भी हो सकती है.

वीरेंद्र मोहन की बात से नरेंद्र इतना तो समझ ही गए कि राइस पुलर वास्तव में अद्भुत चीज है, जिस की कीमत करोड़ों में होती है. यानी उन से राइस पुलर के जो 10 करोड़ रुपए मांगे जा रहे थे, वह इस की विशेषता को देखते हुए कोई ज्यादा नहीं थे. नरेंद्र कुमार ने उन से राइस पुलर की जांच के बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि राइस पुलर बहुत ही पौवरफुल होता है. इस की जांच के लिए बाहर से कैमिकल और किट मंगानी होती है, जिसे पहन कर वैज्ञानिक इसे अपनी तरह से चैक करते हैं और यह सब बहुत ज्यादा महंगी होती हैउन्होंने कहा कि इस की कई स्तर की टेस्टिंग होगी. इस के बाद ही पता लग सकेगा कि वह राइस पुलर कितना पावरफुल है. इस में रेडिएशन इतना जबरदस्त होता है कि इसे कार्बन में रखा जाता है.

‘‘यह सब मिला कर कुल कितना खर्च आएगा?’’ नरेंद्र कुमार ने पूछा.

‘‘देखो, खर्चे के बारे में सटीक तो नहीं बता सकते, लेकिन आप 20 से 70 लाख रुपए के बीच मान कर चलें.’’ वीरेंद्र मोहन बरार ने कहा. कुछ सोचने के बाद नरेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘ठीक है, आप उस की टेस्टिंग की तैयारी कीजिए, तब तक मैं भी पैसों का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘ठीक है, आप कुछ पैसे जमा करा दीजिए.’’

तब 2 दिन बाद नरेंद्र ने वीरेंद्र मोहन बरार को 5-6 लाख रुपए दे दिए. पैसे लेने के बाद बरार ने कहा कि इस की पहली  टेस्टिंग दिल्ली से दूर हापुड़ इलाके में करेंगे. तब एक दिन वीरेंद्र मोहन बरार और नितिन मोहन बरार अपनी औडी कार से नरेंद्र कुमार के साथ हापुड़ पहुंच गए. जो शख्स नरेंद्र कुमार को राइस पुलर बौल बेच रहा था, वह भी उन के साथ गया. हापुड़ में उन्होंने एंटी रेडिएशन सूट पहन कर उस राइस पुलर बौल की जांच शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने एक जगह पर वह राइस पुलर बौल रख दी और उस बौल से कुछ दूरी पर चावल के कुछ दाने रख दिए. कोई भी चुंबक लोहे को ही अपनी तरफ खींचती है, लेकिन तांबे जैसी दिखने वाली वह गेंद उन चावलों को अपनी तरफ खींच रही थी.

खुद को वैज्ञानिक बताने वाले वीरेंद्र मोहन बरार और नितिन मोहन बरार ने नरेंद्र कुमार से कहा कि प्रारंभिक जांच में यह राइस पुलर खरा उतरा है. क्योंकि इस ने इन चावलों को अपने गुण की वजह से ही अपनी तरफ खींचा है. नरेंद्र कुमार खुश हो गए कि इस की जो 2-3 जांच होनी हैं, वह भी सही निकलें तो बहुत अच्छा होगा. पहली जांच पूरी होने के बाद वीरेंद्र मोहन बरार ने नरेंद्र कुमार से 81.6 लाख रुपए मांगे. नरेंद्र के पास उस समय इतने पैसे नहीं थे तो उन्होंने बरार को किस्तों में 19 लाख, 24.6 लाख और 38 लाख रुपए दे दिए. पैसे लेने के बाद बरार ने उन से कहा कि क्वालिटी की जांच के लिए इस राइस पुलर बौल की 2 जांच होनी और जरूरी हैं. जब आप को यह जांच करानी हों तो मुझे एक दिन पहले बता देना.

नरेंद्र कुमार 85 लाख से ज्यादा खर्च कर चुके थे. इसलिए वह दूसरी टेस्टिंग के लिए भी तैयार हो गए. उस राइस पुलर की दूसरी टेस्टिंग उन्होंने दिल्ली के ईस्ट औफ कैलाश में की. इस टेस्टिंग के बाद नरेंद्र कुमार ने वीरेंद्र मोहन बरार को किस्तों में क्रमश: 5.6 लाख, 3.5 लाख और 42 लाख रुपए दिए. इस टेस्टिंग में भी वह राइस पुलर गेंद खरी उतरी. अब उस की आखिरी टेस्टिंग होनी बाकी थी. तीसरी जांच के लिए हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला क्षेत्र निश्चित किया गया. ये सभी लोग धर्मशाला पहुंचे लेकिन उस दिन मौसम खराब होने की वजह से जांच नहीं की जा सकी, जिस से सभी लोग वापस गए

घर लौटने के बाद नरेंद्र कुमार ने अपने एक दोस्त से राइस पुलर के बारे में बात की तो उस दोस्त ने बताया कि आजकल राइस पुलर के नाम पर कुछ लोग ठगी भी कर रहे हैं. तुम ऐसे लोगों से संभल कर रहना. इतना ही नहीं, उस दोस्त ने यूट्यूब पर कुछ वीडियो भी दिखाए, जिस में लोगों ने राइस पुलर सिक्के, बरतनों आदि के नाम पर करोड़ों रुपए की ठगी की थी. दोस्त की बात सुन कर नरेंद्र कुमार का दिमाग घूम गया. उन्होंने उस शख्स से संपर्क किया जो उन्हें राइस पुलर बेच रहा था. उस से उन्होंने कहा कि वह अब इसे नहीं खरीद रहे, उन के जो पैसे खर्च हुए हैं, वह वापस दिलवा दें. उस शख्स ने कह दिया कि जो पैसे टेस्टिंग में खर्च हुए हैं, वे तो वैज्ञानिकों ने लिए हैं

वापस करने के बारे में उन्हीं से बात करो. तब नरेंद्र कुमार ने वीरेंद्र मोहन बरार से बात की. बरार ने कहा कि जांच के लिए जो कैमिकल आया था, वह बहुत महंगा था, इसलिए किसी भी हालत में पैसे वापस नहीं हो सकते. इन लोगों से बात करने के बाद नरेंद्र कुमार को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ. उन्होंने दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के डीसीपी भीष्म सिंह से मुलाकात कर इस मामले में कानूनी काररवाई करने की मांग की. डीसीपी ने इस मामले की जांच के लिए क्राइम ब्रांच के इंटर बौर्डर गैंग इंट्रोगेशन स्क्वायड के एसीपी आदित्य गौतम की देखरेख में एक टीम बनाई. इस टीम में इंसपेक्टर सुनील जैन आदि को शामिल किया गया.

टीम ने इस मामले की जांच शुरू कर दी और ठगी करने वाले वीरेंद्र मोहन बरार, उस के बेटे नितिन मोहन बरार को 8 मई, 2018 को गिरफ्तार कर लियाजांच में पता चला कि ये दोनों फरजी वैज्ञानिक बन कर लोगों को ठगते थे. इन की निशानदेही पर पुलिस ने वैज्ञानिकों द्वारा पहने जाने वाला एंटी रेडिएशन सूट, एंटी रेडिएशन स्टीकर, लैपटौप, प्रिंटर, ब्लैंक लैटरहैड, फरजी आईडी कार्ड औडी कार बरामद की.आरोपियों ने बताया कि इन्होंने तांबे की गेंद पर मैग्नेट की कोटिंग करा ली थी. चावलों को भी खास तरह से तैयार किया गया था. चावलों पर इन्होंने लोहे की कोटिंग करा रखी थी. जब खरीदार को कौपर की बौल चावलों को अपनी तरफ खींचते दिखती तो उन्हें यकीन हो जाता कि यह असली राइस पुलर है. इस से लोग आसानी से जाल में फंस जाते थे.

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के अलावा उत्तराखंड पुलिस ने भी राइस पुलर सिक्के बेचने वाले 12 लोगों को हरिद्वार के एक होटल से गिरफ्तार किया था. गैंग के सदस्यों ने मुंबई के व्यापारी परवेज को फोन कर के जादुई सिक्का बेचने की बात कही थी. गैंग के सदस्य ने उन से कहा था कि इस जादुई सिक्के में इतनी शक्ति है कि इस के प्रभाव से चलती ट्रेन, बस भी रुक जाएगी. हवाईजहाज को भी इमरजेंसी लैंडिंग को बाध्य होना पड़ेगा. इतना ही नहीं, इस सिक्के में मौसम बदलने तक की शक्ति है. यह राइस पुलर कौइन जिस किसी के पास होगा, वह विश्व का शक्तिशाली व्यक्ति बन जाएगा.

परवेज नाम के उस व्यापारी ने जब उस राइस पुलर कौइन की कीमत पूछी तो उस जालसाज ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस की कीमत 21 सौ करोड़ रुपए है. लेकिन वह उन्हें सस्ते में ही दे देगाजालसाज ने यह भी बताया कि उसे यह सिक्का हरिद्वार के एक साधु ने बेचा था. जालसाज ने व्यापारी को भरोसा दिया कि पहले वह हरिद्वार कर उस सिक्के की जादुई शक्ति को देखे, इस के बाद ही पसंद आने पर सौदा करें. व्यापारी को यह बात पसंद गई और वह अपने एक साथी के साथ मुंबई से फ्लाइट द्वारा दिल्ली पहुंच गया और दिल्ली से टैक्सी कर के हरिद्वार के उस होटल में पहुंच गया, जहां जालसाज ने बुलाया था. होटल में व्यापारियों को जालसाज ने वह तथाकथित जादुई सिक्का दिखाया और फिर एक करोड़ रुपए में उस का सौदा तय हो गया.

इसी बीच उस होटल के मैनेजर को किसी तरह यह बात पता चल गई कि होटल में किसी जादुई सिक्के की डील हो रही है. फिर क्या था, उस ने उसी समय पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने दबिश दे कर वहां से 12 लोगों को गिरफ्तार कर उन के पास से तांबे का एक सिक्का, 11 मोबाइल फोन और 2 कारें बरामद कीं. इसी तरह महाराष्ट्र के नासिक में एक रिटायर्ड आर्मी अफसर को भी चमत्कारिक बरतन (राइस पुलर) के नाम पर 70 लाख का चूना लगाया था. हैदराबाद पुलिस ने भी राइस पुलर लोटा के नाम पर मोटी रकम ठगने वाले 4 ठगों को गिरफ्तार किया था. इस के पास से 4 तांबे के लोटों के अलावा 38 लाख रुपए भी बरामद किए थे. मुंबई में ऐसे अनेक लोग हैं जो राइस पुलर (सिक्के, बरतन, बौल इत्यादि) बेचने के धंधे से जुड़े हुए हैं.

कहा जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने सन 1835 से 1845 के बीच किंग विलियम चतुर्थ के कार्यकाल में हाफ आना के सिक्के जारी किए थे. ये सिक्के बौंबे, कलकत्ता और मद्रास में बने थे. तांबे के बने इस सिक्के का वजन 12.35 ग्राम था. इन सिक्कों में कुछ चुंबकीय शक्ति बताई जाती थी. सन 1835 में बने वह हाफ आना सिक्के बाजार में 5 से 8 हजार रुपए में बेचे जा रहे हैं, लेकिन सन 1845 में मद्रास में बने सिक्के रेयर हैं. यदि किसी के पास वह सिक्का है तो बाजार में उस की कीमत 15-20 हजार रुपए है. अब बात करते हैं राइस पुलर की. कहा जाता है कि आसमान से उल्का पिंड गिरे थे. एक उल्का पिंड राजस्थान में भी गिरा था, जो इतना शक्तिशाली था कि जमीन में धंस गया. जिस जगह पर वह गिरा था, बाद में वह जगह सरकार ने अपने कब्जे में ले ली थी. जांच में पता चला कि उल्का पिंड के साथ वह इरीडियम धातु थी.

वैज्ञानिकों ने इरीडियम की जांच की तो पता चला कि वह बहुत कठोर धातु है, जिस में परमाणु संख्या 77 है और यह 2,04,500 डिग्री सेल्यिस पर पिघलती है. इस धातु में यदि तांबे को पिघला कर इरीडियम कौपर बनाया जाए तो उस में विशेष प्रकार का चुंबकीय गुण जाता है. राइस पुलर बेचने वालों का दावा है कि राइस पुलर बनाने के लिए तांबे से बनी वस्तु को किसी ऐसे ऊंचे पहाड़ की चोटी पर रखा जाता है, जहां पर बादल नीचे हों. फिर जब आसमानी बिजली उस पात्र या सिक्के पर गिरती है तो उस पात्र या सिक्के में अद्भुत शक्ति जाती है. वह राइस पुलर बन जाता है. धंधेबाज लोग ऐसे पहाड़ों पर अनेक जगह तांबे के पात्र या सिक्के रख देते हैं और वहीं आसपास रुक कर निगाह रखते हैं कि उस पहाड़ पर बिजली गिरी है या नहीं.

अब कुछ लोगों ने राइस पुलर बेचने का एक तरह का धंधा बना रखा है. ये लोग सन 1616, 1717, 1816, 1818 आदि के पुराने तांबे के सिक्के बाजार से तलाश कर उस पर मैग्नेट की कोटिंग करा लेते हैं. फिर वे इन सिक्कों को राइस पुलर का नाम दे कर करोड़ों रुपए की ठगी करते हैं. दिल्ली के वीरेंद्र मोहन बरार ने अपने बेटे नितिन मोहन बरार के साथ मिल कर यही धंधा शुरू किया था. उन्होंने नरेंद्र से करीब डेढ़ करोड़ रुपए की ठगी की थी. राइस पुलर के नाम पर मोटी ठगी का धंधा अनूठा है. लोगों को ऐसे ठगों से सतर्क रहना होगा.

 

भाई ने रंगे हाथ पकड़ा पुलिस ने करा दी बहन की शादी

ज्योति और मनीष एकदूसरे को सच्चा प्यार करते थे. उन के घर वाले नहीं माने तो राज्य महिला आयोग ने आगे कर उन की शादी की जिम्मेदारी पूरी की. यह एक अच्छी पहल है…    

14 मई, 2018 की बात है. दोपहर का समय था. तेज धूप पड़ रही थी. जयपुर में बनीपार्क स्थित ग्रामीण महिला सलाह सुरक्षा केंद्र की प्रभारी निशा सिद्धू अपने चैंबर में एक केस के सिलसिले में सहकर्मियों से चर्चा कर रही थीं. तभी एक युवती इस केंद्र पर पहुंची. उस ने केंद्र में बाहर के कमरे में बैठी एक महिला से कहा, ‘‘मैडम, मुझे इंचार्ज मैडम से मिलना है.’’  उस महिला ने युवती पर एक नजर दौड़ाई. करीब 19-20 साल की वह युवती घबराई हुई और परेशान लग रही थी. उस ने चुनरी से अपना चेहरा ढका हुआ था. वह कुरता और सलवार पहने हुए थी. भीषण गरमी में आने से उस के बदन से पसीना टपक रहा था.

महिला ने उस युवती को एक कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह कुरसी पर बैठ गई. अपना कुछ काम निपटाने के बाद वह महिला अपनी सीट से उठी और उस युवती से बोली, ‘‘आओ मेरे साथ, मैं तुम्हें इंचार्ज मैडम से मिलवा देती हूं.’’ वह युवती जल्दी से उठ खड़ी हुई और उस महिला के साथ चल दी. वे दोनों दूसरे कमरे में पहुंची. वहां एक बड़ी सी टेबल के सामने एक रौबदार महिला बैठी थी. टेबल के दूसरी तरफ 3-4 अन्य महिलाएं भी कुरसियों पर बैठी थीं.

साथ आई महिला ने इशारा कर के युवती को बताया कि वही इस केंद्र की इंचार्ज हैं. इन का नाम निशा सिद्धू हैं. युवती ने इंचार्ज को अभिवादन किया. युवती का अभिवादन स्वीकार करते हुए इंचार्ज ने युवती को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. फिर पूछा, ‘‘तुम कौन हो और कहां से आई हो?’’

‘‘मैडम, मेरा नाम ज्योति धानका है. मैं जयपुर में ही झोटवाड़ा की धानका बस्ती की रहने वाली हूं.’’ युवती ने अपना परिचय दिया.

‘‘ज्योति, बताओ तुम यहां क्यों आई हो, क्या कोई परेशानी है?’’ इंचार्ज ने उस से पूछा.

‘‘मैडम, मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह लड़का भी मुझे बहुत चाहता है, लेकिन मेरे परिवार वाले हमारे प्यार के खिलाफ हैं. वे हमारे प्यार के दुश्मन बने हुए हैं.’’ युवती ने रुंआसे स्वर में कहा.

‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है और तुम्हारे परिवार में कौनकौन हैं.’’ इंचार्ज ने पूछा.

‘‘मैडम, मेरी उम्र 19 साल है. परिवार में पिता सुरेश कुमार, 2 भाई और मां हैं.’’ युवती ने बताया.

‘‘और वह लड़का कौन है, जिस से तुम प्यार करती हो.’’ इंचार्ज ने पूछा.

‘‘वह मनीष महावर है. उस की उम्र भी 22 साल है. वह जयपुर में ही गेटोर रोड ब्रह्मपुरी का रहने वाला है.’’ युवती ने कुछ शरमाते हुए बताया, ‘‘मनीष और मैं एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. लेकिन मेरे परिवार वाले हमारी शादी करना तो दूर उस से बात तक भी नहीं करने देते.’’

एकदो पल रुक कर ज्योति रोने लगी, फिर सुबकते हुए बोली, ‘‘आज सुबह की बात है. मैं अपने भाई के मोबाइल से मनीष से बात कर रही थी. इस बात की भनक पापाजी और भैया को लग गई तो उन्होंने मुझे बेल्ट से खूब मारा.’’ ज्योति ने सुबकते हुए अपने चेहरे और सिर पर ढकी चुनरी को हटाते हुए कहा, ‘‘देखिए मैडम, मेरे परिवार वालों ने मेरे सिर के बाल तक काट दिए, इतना ही नहीं बिजली का करंट भी लगाया. इस से मैं बेहोश हो गई तो मुझे कमरे में बंद कर दिया.’’

इंचार्ज निशा सिद्धू ने उस के सिर के कटे बाल और बेल्ट की पिटाई से लगी चोटें देखीं. फिर उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘ज्योति तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम बालिग हो, अपना अच्छाबुरा खुद सोच सकती हो. अगर तुम मनीष से वाकई प्यार करती हो तो तुम्हें उस से मिलने से कोई नहीं रोक सकता. अच्छा यह बताओ कि तुम्हारे प्यार की शुरुआत कैसे हुई.’’ ज्योति ने सुबकते हुए अपनी कहानी सुनाई. ज्योति की प्रेमकहानी का लब्बोलुआब इस प्रकार है

करीब 4 साल पहले झोटवाड़ा की धानका बस्ती में ज्योति के घर के पास ही जागरण का कार्यक्रम था. इस जागरण में इवेंट मैनेजमेंट का काम मनीष महावर संभाल रहा था. उसी जागरण के दौरान ज्योति और मनीष की मुलाकात हुई. मनीष ब्रह्मपुरी में मेटोर रोड पर रहता था. झोटवाड़ा और ब्रह्मपुरी दोनों बस्तियां आसपास ही हैं. जब दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई, तब मनीष की उम्र यही कोई 18-19 साल थी और ज्योति 15-16 साल की थी. उम्र की उस दहलीज पर दोनों ही प्यार का मतलब नहीं समझते थे, फिर भी उन के बीच प्यार के अंकुर फूट निकले.

धीरेधीरे उन का प्यार जवां होने लगा. मुलाकातों का सिलसिला भी शुरू हो गया. मनीष से मिलने के लिए ज्योति घर से किसी बहाने से निकल जाती. मनीष उसे उस के घर से कुछ दूर अपने साथ ले लेता, फिर वे जयपुर की सड़कों पर घूमते या किसी रेस्त्रां में बैठ कर कौफी पीते और प्यार की पींगें बढ़ाते. भले ही दोनों एकदूसरे से सच्चे दिल से प्यार करते थे, लेकिन मनीष जानता था कि ज्योति बालिग नहीं है. कभीकभी वह ज्योति से कहता भी था कि हमारे प्यार की बातें यदि तुम्हारे मातापिता को पता चल गईं तो परेशानी हो जाएगी. ज्योति हर बार उसे यह कह कर आश्वस्त कर देती थी कि मैं बालिग हो जाऊंगी तो पापा और मम्मी से शादी की बात कर लूंगी.

मनीष जानता था कि यह काम इतना आसान नहीं है. बहरहाल दोनों प्यार की उड़ान भरते रहे. पुरानी कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. ज्योति और मनीष के मामले में भी यही हुआ. ज्योति का छिपछिप कर मोबाइल पर बातें करना, 15-20 दिन में किसी ना किसी बहाने घर से जाना और 2-4 घंटे बाद वापस लौटना. ये ऐसी बातें थीं, जिन से ज्योति के परिवार वालों को उस पर शक होने लगा. घर में जवान बेटी या बहन हो तो मातापिता और भाई वैसे ही चिंता में रहते हैं. भाइयों ने पता किया तो जल्दी ही उन्हें जानकारी मिल गई कि ज्योति मनीष नाम के एक लड़के से प्यार करती है. भाइयों ने मनीष के बारे में सब कुछ पता लगा लिया. घर वालों ने ज्योति से इस बारे में पूछा तो ज्योति ने अपने प्यार के बारे में सारी बातें सचसच बता दीं. साथ ही यह भी बता दिया कि वह मनीष से शादी करना चाहती है.

ज्योति ने भले ही सच्चाई बता दी थी लेकिन उस की यह हिमाकत पिता सुरेश कुमार और दोनों भाइयों को नागवार गुजरी. उन्होंने उसे समझाया और जातपात का हवाला दे कर मनीष को भूल जाने को कहा. ज्योति भला मनीष को कैसे भूल सकती थी. उस ने तो उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थींजीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. इस के बाद अब ज्योति के सामने 2 रास्ते थे. या तो वह अपने परिवार वालों की बात मान लेती और मनीष को पूरी तरह भुला देती या फिर मनीष के लिए अपने परिवार वालों से विद्रोह करती. लेकिन परेशानी यह थी कि ज्योति अभी बालिग नहीं हुई थी. ऐसे में उस ने सब्र से काम लेने का फैसला किया.

जैसेजैसे ज्योति और मनीष की उम्र बढ़ती गई, उन का प्यार कम होने के बजाए बढ़ता गया. जवानी के साथ शारीरिक बदलाव होने के कारण ज्योति के चेहरे पर भी निखार आने लगा था. मनीष भी कदकाठी से खूबसूरत नौजवान हो गया था. इस बीच, दोनों के बीच मिलनेजुलने का सिलसिला चलता रहा. पिछले साल फरवरी के महीने में ज्योति के पिता और भाइयों को पता चला कि ज्योति ने मनीष से मिलना नहीं छोड़ा है, बल्कि वह दोनों अभी भी चोरीछिपे मिलनेजुलते हैं और मोबाइल पर बातें करते हैं. ज्योति के पिता और भाइयों ने मनीष के घर वालों को समझाया. उन्होंने मनीष को भी ज्योति से दूर रहने की धमकी दी. लेकिन हुआ वही, जो ऐसे मामलों में अकसर होता है

दोनों ने एकदूसरे से मिलना बंद नहीं किया. इस पर ज्योति के घर वालों ने ज्योति पर कई तरह की बंदिशें लगा दीं. उन्होंने उस का घर से निकलना बंद कर दिया. उसे प्रताडि़त करने लगे. घर वालों की प्रताड़ना ने उलटे ज्योति के मन में विद्रोह के बीज बो दिए. इस का नतीजा यह हुआ कि ज्योति पिछले साल अप्रैल महीने में घर से भाग कर सीकर जिले में खाटूश्याम जी चली गई. ज्योति के परिवार वालों ने मनीष के खिलाफ उसे भगाने का मुकदमा थाना झोटवाड़ा में दर्ज करा दिया. पुलिस ने ज्योति को बरामद करने के लिए मनीष के घर पर दबिश दी. लेकिन वह नहीं मिला तो पुलिस ने उस के परिवार पर दबाव बनाया. बाद में पुलिस ने ज्योति को खाटूश्याम जी से बरामद कर लिया. पुलिस ने उसे परिवार वालों को सौंप दिया.

इस के बाद ज्योति के घर वालों ने ज्योति को और ज्यादा डरायाधमकाया और सख्त हिदायत दी कि वह मनीष से दूर रहे, लेकिन ज्योति किसी भी कीमत पर अपने प्रेम को नहीं भूलना चाहती थी. परिवार की तमाम बंदिशों के बावजूद वह मौका मिल ने पर मनीष से मोबाइल पर बात कर लेती थी. इसी 14 मई की सुबह ज्योति मोबाइल पर चोरीछिपे मनीष से बात कर रही थी तो पिता और भाइयों को पता चल गयागुस्साए पिता और दोनों भाइयों ने उसे बेल्ट से बहुत पीटा. इस पर भी उन का मन नहीं भरा तो उन्होंने उस के सिर के बाल काट दिए. उस के नाखून भी काट दिए गए. बाद में उन्होंने उसे एक कमरे में बंद कर दिया

गुस्साए घर वालों ने उसे डराने के लिए उस के हाथपैर बांध कर उसे बिजली का करंट भी लगाया. वह चीखतीपुकारती रही, लेकिन अपनी कोख से जन्म देने वाली ज्योति की मां का दिल भी नहीं पसीजा. कुछ देर बेहोश रहने के बाद ज्योति को जब होश आया तो वह किसी तरह युक्ति लगा कर कमरे से बाहर निकली और घर वालों को भरोसे में ले कर कचरा फेंकने के बहाने घर से निकल गई. घर से निकल कर वह सीधी बनीपार्क स्थित महिला अपराजिता सेंटर पहुंची. इस अपराजिता सेंटर को जयपुर ग्रामीण महिला सलाह सुरक्षा केंद्र भी कहते हैं. केंद्र की इंचार्ज निशा सिद्धू और अन्य पदाधिकारियों को अपने प्यार की दुखभरी कहानी सुना कर ज्योति रो पड़ी. केंद्र पर मौजूद महिला कर्मचारियों ने उसे ढांढस बंधा कर पूरी सहायता करने का भरोसा दिया.

ज्योति की दास्तां सुन कर इंचार्ज निशा सिद्धू ने केंद्र की अन्य पदाधिकारियों से विचारविमर्श किया. ज्योति बालिग थी. केंद्र की पदाधिकारियों ने उसे परिवार और समाज के अलावा ऊंचनीच की सारी स्थितियां बताईं. फिर उस से पूछा कि उस की इच्छा क्या है? ज्योति के कहने पर उसे उस के घर भेजा जा सकता था. अगर वह घर नहीं जाना चाहती तो उसे महिला गृह भेजने की बात भी उन्होंने बताई. उन्होंने कहा कि उस की शिकायत पर घर वालों के खिलाफ थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया जा सकता है. मामला बड़ा संवेदनशील था. ज्योति ना तो अपने घर वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना चाहती थी और ना ही वह वापस अपने घर जाना चाहती थी. वह तो बस यह चाहती थी कि किसी तरह उस की मनीष से शादी हो जाए

इंचार्ज निशा सिद्धू काफी सोचनेविचारने के बाद ज्योति को राज्य महिला आयोग के कार्यालय ले गईं. वहां ज्योति का हाल देख कर और उस की आपबीती सुन कर राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा का दिल भी पसीज गया. सुमन शर्मा ने स्वप्रेरित संज्ञान ले कर ज्योति और मनीष के परिजनों को तलब किया. उन्होंने दोनों के घर वालों से बातचीत की, उन्हें समझाया. 2 दिनों तक चली जिदबहस के बाद आखिरकार दोनों के घर वालों ने उन की शादी करने की सहमति दे दी. दोनों पक्षों ने जब रिश्ता स्वीकार करने की हामी भर दी तो राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा ने दोनों की शादी कराने की पहल की. सुमन शर्मा चाहती थीं कि ज्योति की शादी उस के घर से हो, लेकिन ज्योति को अपने घर वालों पर भरोसा नहीं था. वह उस समय अपने घर हरगिज नहीं जाना चाहती थी. इसलिए फैसला किया गया कि आयोग के कार्यालय में और आयोग की देखरेख में ही ज्योति और मनीष की शादी कराई जाए.

शादी की तारीख भी 17 मई तय कर दी गई. 17 मई को राज्य महिला आयोग के लालकोठी स्थित कार्यालय पर सुबह से ही सजावट होने लगी थी. सुबह 10 बजे तक वहां अच्छीखासी चहलपहल होने लगी, शहनाई बजने लगी. आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा सहित सभी सदस्य, कर्मचारी और अधिकारी भी वहां पहुंच गए. सभी जोरशोर से शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे. कुछ ही देर में ज्योति और मनीष के घर वाले तथा रिश्तेदार भी आने शुरू हो गए. मनीष के पिता अपनी होने वाली बहू के लिए शादी का जोड़ा ले कर आए. कई सामाजिक संस्थाओं के लोग भी वहां पहुंचे.

महिला आयोग की सदस्यों ने ब्यूटी पार्लर से ज्योति का ब्राइडल मेकअप करवाया. ज्योति जब पार्लर से लाल जोड़े में सजसंवर कर आयोग के कार्यालय पहुंची, तब तक मनीष भी चुका था. सिर पर सेहरा बांधे मनीष ने कनखियों से ज्योति को निहारा तो ज्योति ने भी मुसकुरा कर अपने प्यार का इजहार किया. मुहूर्त के अनुसार, दोपहर 12 बजे से विवाह की रस्में शुरू हो गईं. राजापार्क के पंडित चक्रवर्ती सामवेदी ने हिंदू रीतिरिवाज से विवाह की सारी रस्में धूमधाम से पूरी कराईं. आयोग की अध्यक्ष और सदस्यों के अलावा सदस्य सचिव, राज्य बाल आयोग के सदस्य, पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश, रजिस्ट्रार इस बिना दहेज की शादी के गवाह बने. अनेक लोगों ने नवदंपत्ति को आशीर्वाद दिया.

बाद में आयोग कार्यालय से ही दूल्हादुलहन की धूमधाम से विदाई हुई. दुलहन के अभिभावक बने राज्य महिला आयोग ने ज्योति मनीष की शादी को नगर निगम और कोर्ट में रजिस्टर्ड भी करवा दिया. राज्य महिला आयोग के 19 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ. अध्यक्ष सुमन शर्मा का कहना है कि खाप पंचायतों के फरमान और औनर किलिंग रोकने के लिए महिला आयोग ने एक नई पहल की है. ज्योति ने कहा कि उस की ऐसी अनोखी शादी होगी, इस बारे में कभी सोचा भी नहीं था. उस ने घर वालों को माफ कर दिया है, लेकिन वे भविष्य में ससुराल पक्ष को परेशान करें, इस के लिए उन्हें आयोग से पाबंद करवाया है

मनीष ने बताया कि तमाम मुश्किलों के बाद प्रेमिका से ही उस की शादी हुई. उस के लिए यह बहुत बड़ी बात है. वह ज्योति को जीवन भर सुखी रखेगा. यदि वह आगे पढ़ना चाहती है तो उस की यह इच्छा भी पूरी करेगा. यह सुखद रहा कि राज्य महिला आयोग की पहल से ज्योति और मनीष के प्यार की जीत हुई. वरना, देश में हर साल सैकड़ों युवकयुवतियां जातपात और ऊंचनीच के भेदभाव में औनर किलिंग के शिकार हो रहे हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2015 में औनर किलिंग के 251 और 2016 में 71 मामले सामने आए थे. राजस्थान महिला आयोग की यह पहल सराहनीय है.

गर्लफ्रेंड का मोबाइल बिजी था तो बॉयफ्रेंड ने कर डाला मर्डर

विवेक और चंदना  एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. कुछ दिनों बाद चंदना के व्यवहार को देख कर विवेक के दिल में एक शक बैठ गया. उस शक को दूर करने के बजाए विवेक ने ऐसा काम कर डाला कि उस का प्यार कफन में दफन हो गया…   

त्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना बहरियाबाद क्षेत्र में एक गांव है बघांव. पेशे से अध्यापक दीपचंद राम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुमन के साथसाथ 2 बेटे थे सुरेश और सुरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं चंदना और वंदना. चंदना सब से बड़ी, समझदार और खूबसूरत लड़की थी. वह दीपचंद और सुमन की लाडली थी. 16 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9-10 बजे चंदना मां से खेतों पर जाने को कह कर घर से बाहर निकली तो दोपहर के 1 बजे तक घर नहीं लौटी. दीपचंद और सुमन को चिंता हुई. सयानी बेटी के इस तरह से गायब हो जाने से मांबाप परेशान हो गए. उन्होंने अड़ोसपड़ोस में चंदना को ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उन की समझ में नहीं रहा था कि चंदना रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गई.

मामला जवान बेटी से जुड़ा था, इसलिए संवेदनशील दीपचंद ने यह सोच कर इस बारे में किसी को नहीं बताया कि व्यर्थ में अंगुलियां उठने लगेंगी. धीरेधीरे शाम ढलने लगी, लेकिन चंदना घर नहीं लौटी. ऐसे में दीपचंद और सुमन की घबराहट और बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक ही थी. दोनों बेटी के बारे में सोचसोच कर परेशान थे. उन की बेचैनी और चंदना को ढूंढने की वजह से कुछ लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि चंदना गायब है. फलस्वरूप धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई थी. गांव वाले चंदना को ले कर तरहतरह की बातें करने लगे थे. जब शाम तक चंदना का कहीं पता नहीं चला तो दीपचंद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बहरियाबाद थाने पहुंचा

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी थाने में ही मौजूद थे. जब दीपचंद अन्य लोगों के साथ थाने पहुंचा तब तक अंधेरा घिर आया था. थानाप्रभारी ने दीपचंद से रात में थाने आने का कारण पूछा तो दीपचंद ने उन्हें पूरी बात बता दीमामला गंभीर था. दीपचंद की बातें सुन कर थानाप्रभारी सिद्दीकी ने लिखने के लिए एक सादा पेपर दीपचंद की ओर बढ़ा दिया और तहरीर लिख कर देने के लिए कहा. दीपचंद ने तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने दीपचंद की तहरीर पर चंदना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

लहूलुहान हालत में मिली चंदना की लाश अगली सुबह यानी 17 मार्च को बघांव का रहने वाला लल्लन यादव गांव के बाहर अपने खेत में पंपिंग सेट देखने पहुंचा. उस ने अपने खेत में पंपिंग सेट लगा रखा था. पैसा ले कर वह दूसरों के खेतों की सिंचाई किया करता था. खेतों में पहुंच कर लल्लन की नजर गेहूं की फसल पर पड़ी तो उसे कुछ अजीब सा लगा. खेत के बीच में काफी दूर तक फसल रौंदी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर ने खेत में घुस कर उत्पात मचाया हो. पड़ताल करने के लिए लल्लन अंदर पहुंच गया. उस की नजर जब बरबाद हुई गेहूं की फसल पर पड़ी तो वह वहां का नजारा देख घबरा गया. वह वहां से भागा तो सीधा दीपचंद के घर ही जा कर रुका

दीपचंद जिस बेटी को 24 घंटे से तलाश कर रहा था, उस की अर्द्धनग्न लाश लल्लन यादव के खेत में पड़ी थी. किसी ने उस के गले और पेट पर चाकू से अनगिनत वार कर के मौत के घाट उतार दिया था. चंदना की लाश मिलते ही दीपचंद के घर में कोहराम मच गया. दीपचंद और गांव के तमाम लोग लल्लन के खेत पर जा पहुंचे, जहां चंदना की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. चंदना की लाश देख कर गांव वालों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी. लोगों ने घटनास्थल देख अनुमान लगाया कि हत्यारों की संख्या 2-3 से कम नहीं रही होगी, क्योंकि काफी दूरी तक गेहूं की फसल रौंदी हुई थी.

भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कंट्रोलरूम से वायरलैस सेट पर यह सूचना बहरियाबाद थाने को दे दी गई. इस घटना से गांव वाले काफी गुस्से में थे. उन लोगों ने चंदना की लाश ले कर बहरियाबादचिरैयाकोट मार्ग (गाजीपुरमऊ मार्ग) पर जाम लगा दिया. कंट्रोलरूम से दी गई सूचना के आधार पर बहरियाबाद थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की टीम में एसआई विपिन सिंह, प्रशांत कुमार चौधरी, विकास श्रीवास्तव, संजय प्रसाद, दिनेश यादव शामिल थे. पुलिस को देखते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा. वे पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे

शमीम अली सिद्दीकी ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए कप्तान सोमेन वर्मा को फोन कर के फोर्स भेजने का आग्रह किया. पुलिस कप्तान ने तत्काल सीओ (सैदपुर) मुन्नीलाल गौड़, सीओ (भुड़कुड़ा) प्रदीप कुमार, सीओ (जखनिया) आलोक प्रसाद सहित जिले के कई थानों के थानाप्रभारियों को मौके पर पहुंचने का आदेश दिया. वह खुद भी मौके पर पहुंच गए. कुछ ही देर में बहरियाबादचिरैयाकोट मार्ग पर खाकी वरदी ही वरदी नजर आने लगीं. पुलिस ने पंचनामा के लिए चंदना की लाश लेने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को लाश देने से मना कर दिया. उन की 2 मांगें थीं, पहली यह कि घटनास्थल पर डौग स्क्वायड को बुलवाया जाए और दूसरी यह कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

 गांव वालों का विरोध प्रदर्शन पुलिस कप्तान सोमेन वर्मा ने लोगों की पहली मांग पूरी करने में असमर्थता जताई, क्योंकि जिले में डौग स्क्वायड की कोई व्यवस्था नहीं थी. अलबत्ता उन्होंने प्रदर्शनकारियों की दूसरी मांग पूरी करने का भरोसा देते हुए वादा किया कि हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार कर लिया जाएगा. पुलिस की 5 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद एसपी वर्मा के आश्वासन पर गांव वाले शांत हुए. पुलिस ने जल्दीजल्दी पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. इस के साथ ही अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. घटना की तफ्तीश की जिम्मेदारी थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी को सौंपी गई.

चंदना की हत्या किस ने और क्यों की, पुलिस के लिए यह गुत्थी सुलझाना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने सब से पहले घटनास्थल का दौरा किया और फिर मृतका चंदना के घर जा कर उस के पिता दीपचंद से पूछताछ की. दीपचंद ने थानाप्रभारी को बताया कि उस की या उस की बेटी चंदना की किसी से कोई अदावत नहीं थी. वैसे भी चंदना अपने काम से मतलब रखती थी. वह किसी के घर भी ज्यादा नहीं उठतीबैठती थी. चंदना हत्याकांड की गुत्थी काफी उलझी हुई थी. जांच अधिकारी के लिए यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था. उधर चंदना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. उस की मौत का कारण अत्यधिक खून बहना बताया गया था.

थानाप्रभारी शमीम अली ने चंदना हत्याकांड का खुलासा करने के लिए कई मुखबिर लगा दिए थे. इसी बीच जांच के दौरान उन्हें पता चला कि चंदना अपने पास मोबाइल फोन रखती थी और सब से छिपछिपा कर किसी से अकसर बातें करती थी. यह बात वंदना के अलावा कोई नहीं जानता था. वंदना काफी छोटी थी. थानाप्रभारी शमीम ने सोचा अगर उस से डराधमका कर पूछताछ की गई तो वह डर जाएगी और फिर शायद ही कुछ बता पाए. इसलिए उस से बड़े प्यार और मनोवैज्ञानिक तरीके से बात करनी जरूरी थी. क्या करना है, यह फैसला कर के वह दीपचंद के घर जा पहुंचे.

पुलिस के हत्थे लगा चंदना का मोबाइल फोन उन्होंने वंदना के सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘वंदना.’’ वंदना ने डरते हुए जवाब दिया.

‘‘किस क्लास में पढ़ती हो?’’

‘‘चौथी क्लास में.’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी दीदी अपने पास एक मोबाइल रखती थी? वह मोबाइल कहां है?’’

‘‘जी सर, मुझे पता है दीदी अपने पास एक मोबाइल फोन रखती थी. यह भी पता है कि वह उसे कहां छिपा कर रखती थी.’’ वंदना ने कांपते स्वर में उत्तर दिया.

‘‘तो बताओ वह मोबाइल कहां छिपा कर रखती थी?’’ थानाप्रभारी ने बडे़ प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘मैं अभी लाती हूं.’’ वंदना ने जवाब दिया. फिर वह भागती हुई कमरे में गई और बक्से से मोबाइल फोन निकाल कर ले आई. उस ने मोबाइल थानाप्रभारी के हाथों में दे दिया. यह देख कर दीपचंद और उस की पत्नी भौचक्के रह गए. उन्हें पता ही नहीं था कि उन की बेटी उन की नाक के नीचे क्या गुल खिला रही थी. घर वालों को पता ही नहीं था कि छोटी बेटी भी उस के साथ मिली हुई थी. मांबाप माथा पकड़ कर बैठ गए.

‘‘बेटा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी बहन चंदना किस से बात करती थी?’’ जांच अधिकारी ने वंदना से अगला सवाल किया.

‘‘सर, मुझे उस का नाम तो नहीं पता लेकिन मैं इतना जानती हूं कि दीदी छिपछिप कर किसी से बात करती थी. मैं ने उसे कई बार बातें करते हुए देखा था.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम जा सकती हो. इस के आगे का पता मैं खुद लगा लूंगा.’’ उन्होंने कहा और चंदना का मोबाइल फोन ले कर चले गए. थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी के पास हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए मोबाइल ही आखिरी सहारा था. उन्होंने चंदना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाले दिन यानी 16 मार्च की सुबह चंदना के फोन पर साढ़े 9 बजे के करीब आखिरी काल आई थी. मोबाइल से पहुंची कातिल तक पुलिस उस के बाद उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था. जिस नंबर से चंदना को आखिरी काल आई थी, उस नंबर के बारे में पता लगाया गया तो पता चला कि वह नंबर मऊनाथ भंजन जिले के मुहम्मदाबाद गोहना थाना क्षेत्र के गांव उमनपुर निवासी विवेक कुमार चौहान का था.

उस नंबर पर चंदना की काफी लंबीलंबी बातें होती थीं. पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि मामला प्रेम प्रसंग का था. इसी प्रेम प्रसंग के चक्कर में उस की हत्या हुई थी. जांच अधिकारी शमीम अली ने दीपचंद को थाने बुलवा कर विवेक कुमार चौहान के बारे में पूछताछ की तो दीपचंद विवेक का नाम सुन कर चौंक गया. उस ने बताया कि विवेक उस के पड़ोस में रहने वाले रामधनी का नाती है. वह अकसर अपने नानानानी से मिलने ननिहाल आता रहता था. वह जब भी यहां आता था, मेरे घर पर भी सब से मिल कर जरूर जाता था. वह बहुत सीधासादा लड़का है.

काल डिटेल्स के आधार पर विवेक शक के दायरे में चुका था. घटना वाले दिन से उस का भी फोन बंद था. लेकिन घटना वाले दिन उस के सेलफोन की लोकेशन घटनास्थल पर ही थी. इसी वजह से विवेक शक के दायरे में गया. 19 मार्च, 2018 को थानाप्रभारी शमीम अली गाजीपुर से पुलिस फोर्स ले कर मऊनाथ भंजन पहुंचे. मुहम्मदाबाद गोहना थाने की पुलिस की मदद से उन्होंने उमनपुर स्थित विवेक के घर पर दबिश दी. संयोग से विवेक घर पर ही था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर गाजीपुर ले आई. फिर पुलिस ने उसे बहरियाबाद थाने ले जा कर उस से कड़ाई से पूछताछ की

सख्ती से घबरा कर उस ने सब कुछ बता दिया. अपना जुर्म कबूलते हुए उस ने पुलिस को बताया कि चंदना उस की प्रेमिका थी और उसी ने चाकू से गोद कर उस की हत्या की थी. उस ने यह भी बताया कि उस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू छिपा दिया था. विवेक ने सिलसिलेवार पूरी कहानी बता दी. थानाप्रभारी ने विवेक की निशानदेही पर लल्लन के खेत से चाकू बरामद कर लिया. आरोपी विवेक से पूछताछ के बाद कहानी कुछ इस तरह पता चली. चंदना विवेक से लड़ा बैठा था नैना 21 वर्षीय चंदना खूबसूरत तो थी ही, ऊपर से चंचल भी थी. चंदना के पड़ोस में रामधनी चौहान का घर था. रामधनी भले ही दीपचंद की जाति के नहीं थे, लेकिन रामधनी के घर से दीपचंद के परिवार जैसे प्रगाढ़ संबंध थे.

रामधनी के घर जब भी कोई मेहमान आता था तो दीपचंद उसे बुला कर अपने घर ले आता और जम कर स्वागत करता. दीपचंद के मेहमाननवाजी से मेहमानों का दिल खुश रहता था. रामधनी की बेटी का एक बेटा था जिस का नाम विवेक कुमार चौहान था. 21-22 वर्षीय विवेक कभीकभार नानानानी के घर बघांव आया करता था. वह मऊनाथ भंजन जिले के उमनपुर गांव में अपने मांबाप के साथ रहता था. उस के पिता का नाम था विजय बहादुर चौहान. वह सरकारी नौकरी में थे. उसी से 5 सदस्यों वाले परिवार का भरणपोषण होता था. विवेक ने स्नातक तक पढ़ाई कर के नौकरी करने का मन बना लिया था.

3 साल पहले यानी सन 2015 में बात तब की है जब विवेक इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उन्हीं दिनों उस के ननिहाल बघांव में शादी थी. परिवार के साथ विवेक भी बघांव आया था. वहां उसे मामा के घर सप्ताह भर रहना था. घर वालों के साथ चंदना भी शादी में शामिल हुई. चंदना खूबसूरत तो थी ही, जब वह सफेद रंग के कपड़े पहन लेती थी तो और भी सुंदर लगती थी. उस दिन भी चंदना ने सफेद रंग की पोशाक पहनी थी. इस पोशाक में वह सब से अलग और बहुत खूबसूरत लग रही थी. अचानक उस पर विवेक की नजर पड़ गई तो वह उसे कुछ देर अपलक निहारता रह गया. थोड़ी देर बाद चंदना उस की नजरों के सामने से ओझल हो गई तो उस की आंखें उसे इधरउधर ढूंढने लगीं. लेकिन वह कहीं नहीं दिखी

प्यार में दोनों हो गए दीवाने पहली ही नजर में चंदना विवेक के दिल में घर कर गई थी. उस दिन के बाद से विवेक चंदना के करीब जाने के लिए बेताब रहने लगा. वैसे भी उस के लिए दीपचंद के घर आनेजाने की पूरी छूट थी. जब भी मौका मिलता, वह दीपचंद के घर चला जाता और घंटों चंदना के साथ बिताता. चूंकि चंदना के पिता दीपचंद अध्यापक थे, इसलिए उन का दिन स्कूल में ही बीतता था. बच्चे स्कूल चले जाते थे. चंदना की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी इसलिए वह और उस की मां सुमन घर पर ही रहती थी. सुमन को विवेक के चंदना से मिलने पर कोई ऐतराज नहीं था. वह सोचती थी कि विवेक बहुत सीधासादा और नेकदिल युवक है. वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगा, जिस से दोनों परिवारों की बदनामी हो.

विवेक जब भी चंदना के पास बैठता था, उसे दीवानगी भरी नजरों से निहारता था. चंदना को विवेक का ऐसा देखना अच्छा लगता था. उस के मन के भीतर एक अजीब सी गुदगुदी होती थी. धीरेधीरे चंदना भी विवेक को प्यार भरी नजरों से देखने लगी थीआंखों के रास्ते दोनों ने एकदूसरे के दिलों में अपना मुकाम बना लिया था. यह भी कह सकते हैं कि दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. जब दिलों की बातें हुईं तो मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर लिया. एक हफ्ते बाद विवेक अपने परिवार के साथ घर लौट गया.

विवेक अपने घर तो लौट आया, लेकिन उस का दिल, उस का चैन, उस का करार सब कुछ चंदना के पास रह गया था. चंदना के बगैर विवेक का मन नहीं लग रहा था. वह उस से मिलने के लिए तड़प रहा था. विवेक यही सोच रहा था कि चंदना से कैसे मिले, कैसे बातें करे. उधर चंदना का भी यही हाल था. विवेक के लिए वह तड़प रही थी. चंदना के पास सेलफोन भी नहीं था जो फोन कर के विवेक से बात कर लेती. मोहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. दोनों विरह की अग्नि में जल रहे थे. विवेक से जब चंदना की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो वह मांबाप से झूठ बोल कर नानानानी से मिलने के बहाने बघांव चला आया. बघांव आते हुए रास्ते में उस ने चंदना को उपहार में देने के लिए एक मोबाइल फोन खरीदा. उस ने सोचा कि चंदना के पास सेलफोन होगा तो बात करने में आसानी रहेगी.

ननिहाल जाने के बहाने मिलता था प्रेमिका से विवेक बघांव पहुंचा तो उसे देख कर नाना रामधनी खुश हुए. उन्हें क्या पता था कि उन का नाती उन से नहीं, अपनी प्रेमिका चंदना से मिलने आया है. नानानानी से मिलना तो एक बहाना था. नानानानी से मिलने के बाद विवेक चंदना से मिलने उस के घर गया. घर में चंदना और उस की मां ही थीं. विवेक को देखते ही चंदना का चेहरा खिल उठा. वह उसे हसरत भरी नजरों से देखती रही. विवेक से वह कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, लेकिन मां के डर की वजह से कुछ नहीं बोल पाई. मुंह से भले ही सही पर इशारोंइशारों में दोनों के बीच काफी बातें हुईं. वैसे भी जब दो प्रेमी दिल की गहराई से एकदूसरे को प्यार करते हों तो उन्हें अपनी बात कहने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती

नाश्ता वगैरह करने के बाद विवेक जब घर से निकलने लगा तो चंदना उसे विदा करने कमरे से बाहर आई. तभी उस ने झटके में मोबाइल फोन उस के हाथों में थमा दिया और बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए गिफ्ट है.’’ चंदना ने झट से फोन अपनी समीज के अंदर रख लिया ताकि कोई देख सके. उस रात विवेक नाना के घर पर ही रुक गया. अगली सुबह वह अपने घर मऊनाथ भंजन लौट आया. फोन मिल जाने से दोनों के बीच की दूरियां मिट गईं. भले ही वे एकदूसरे की सूरत देख नहीं पा रहे थे, लेकिन प्यार भरी मीठीमीठी बातें कर के अपने दिल को तसल्ली दे लेते थे. एक दिन चंदना की छोटी बहन वंदना ने उसे मोबाइल पर किसी से बात करते सुन लिया

उस ने जब इस बारे में बहन से पूछा तो वह घबरा गई. उस ने वंदना को इस बारे में किसी से कुछ भी बताने को कहा तो वह मान गई. वंदना ने वाकई किसी से कुछ नहीं बताया. हां, चंदना ने उसे यह नहीं बताया था कि वह किस से और क्यों बातें करती थी. धीरेधीरे दोनों का प्रेम जवां होता रहा. वे अपने प्यार को ले कर भविष्य के सुनहरे सपने संजोने लगे. रेत के ढेर पर ख्वाबों का आशियाना बनाने लगे. इसी बीच इन प्रेमियों के साथ एक नई घटना घट गई. पता नहीं दोनों के प्यार को किस की नजर लग गई थी.

अचानक बदल गया चंदना का व्यवहार विवेक ने महसूस किया कि चंदना अब उसे पहले जैसा प्यार नहीं कर रही है. पता नहीं क्यों वह उस से कटने लगी थी. पहले वह विवेक के फोन की घंटी बजते ही काल रिसीव कर लेती थी, पर अब लगातार फोन की घंटियां बजती रहती थीं. तो चंदना काल रिसीव करती थी और ही मिस्ड काल करती थीचंदना के इस व्यवहार पर विवेक को गुस्सा आता था. हद तो तब हो गई जब विवेक चंदना को काल करता तो वह अकसर दूसरी काल पर व्यस्त मिलती थी.

विवेक का शक पुख्ता हो गया था कि चंदना का किसी और के साथ संबंध बन चुका है. इसीलिए वह उस से कटीकटी सी रहने लगी है. इस बात को ले कर चंदना और विवेक के बीच विवाद हो गया. विवेक ने उसे बहुत भलाबुरा कहा. उस के बाद चंदना ने विवेक से बात करनी बंद कर दीबाद में विवेक ने किसी तरह चंदना को मना लिया और उस से माफी मांग ली. उस ने वादा किया कि अब दोबारा उस से ऐसी गलती नहीं होगी. चंदना से माफी मांग कर विवेक ने एक पैंतरा चला था. उस ने सोच लिया था कि अगर चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी

इसीलिए उस ने चंदना से माफी मांग कर उसे विश्वास में लिया ताकि कभी बुलाने पर वह उस की बात सुन ले. प्यार में अंधी चंदना को इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि विवेक उस के पीठ पीछे क्या षडयंत्र रच रहा है. विवेक ईर्ष्या की आग में जल रहा था. वह दिनरात इसी सोच में डूबा रहता था कि चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. आखिर विवेक ने उस की हत्या की योजना बना डाली. योजना बनाने के बाद विवेक बाजार जा कर एक फलदार चाकू खरीद लाया और उसे अपने बैग में छिपा दिया. 16 मार्च की सुबह विवेक मां से नानी के घर जाने को कह कर घर से निकला और बस स्टैंड जा पहुंचा. वहां से वह गाजीपुर जाने वाली एक सरकारी बस में बैठ गया. गाजीपुर पहुंचने के बाद उस ने चंदना को फोन कर के बताया कि वह मिलने रहा है. गांव के बाहर लल्लन यादव के खेत के पास पहुंचो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं.

विवेक का फोन आने के बाद चंदना मां से खेतों पर जाने की बात कह कर विवेक के बताए स्थान पर जाने के लिए चल दी. चंदना को क्या पता था कि जो उस से मिलने रहा है, वह उस का वफादार प्रेमी नहीं बल्कि मौत हैसाढ़े 9 बजे के करीब चंदना लल्लन यादव के खेत पर पहुंच गई. वहां खेत के चारों ओर कोई नहीं था. तब तक विवेक भी वहां पहुंच गया. प्रेमिका को देख कर विवेक हौले से मुसकराया तो चंदना ने भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दिया. फिर चंदना ने उस से बुलाने की वजह पूछी तो विवेक गुस्से से लाल हो गया और उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए खुद को बरबाद कर दिया. तुम पर पानी की तरह पैसे बहाए. तुम ने बदले में मुझे क्या दिया बेवफाई.

मेरे प्यार को ठुकरा कर दूसरों की बाहों में रंगरलियां मना रही हो. ऐसा मैं हरगिज होने नहीं दूंगा. अगर तुम मेरी नहीं हुई तो तुम्हें किसी और की भी होने नहीं दूंगा.’’ विवेक ने किया चाकू से वार चंदना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही विवेक ने बैग से फलदार चाकू निकाला और उस की गरदन पर जोरदार वार कर दिया. चंदना हवा में लहराती हुई जमीन पर जा गिरी. उस के बाद विवेक तब तक उस के पेट और गरदन पर वार करता रहा, जब तक उस के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए. चंदना की निर्मम हत्या करने के बाद विवेक उस की लाश घसीटते हुए गेहूं के खेत में ले गया और लाश को ठिकाने लगा कर आराम से घर लौट आया.

विवेक ने जिस चालाकी और सफाई से काम किया था, उसे देख कर उसे लगा था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकती. लेकिन पुलिस ने उस की सोच पर पानी फेर दिया. जिस शक की आग में वह जल रहा था, उसी शक की आग ने उसे खाक में मिला दिया. प्यार का ये मतलब नहीं होता कि किसी की निर्मम तरीके से हत्या कर दे. विवेक अगर समझदारी से काम लेता तो चंदना भी इस दुनिया में सांस ले रही होती. लेकिन एक शक की चिंगारी ने सब कुछ तहसनहस कर दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी ने प्रेमिका को बाहों में भर कर घोंटा गला

शादीशुदा होने के बावजूद साथ काम करने वाली प्रभावती पर तेजभान का दिल आया तो कोशिश कर के उस ने उस से संबंध बना लिए. फिर इस संबंध का भी वैसा ही अंत हुआ, जैसा अकसर होता आया हैप्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलनेखाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनीअपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा. रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी.

प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’ ‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई. अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बातहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ. ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए

अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी. प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए. उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा. बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थींसमय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी.

मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी. जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

 ‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

 ‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

 ‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

 ‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा. प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था.

रायबरेली का मंशा देवी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है. करीब 5 साल पहले सितंबर महीने के पहले रविवार को प्रभावती मनोज के साथ वहां गई. दोनों ने मंदिर में मंशा देवी के सामने एकदूसरे को पतिपत्नी मानते हुए जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद एकदूसरे के गले में फूलों की जयमाल डाल कर दांपत्य बंधन में बंध गए

मंदिर में शादी कर के मनोज प्रभावती को अपने कमरे पर ले गया. मनोज को इसी दिन का बेताबी से इंतजार था. वह प्रभावती के यौवन का सुख पाना चाहता था. अब इस में कोई रुकावट नहीं रह गई थी, क्योंकि प्रभावती ने उसे अपना जीवनसाथी मान लिया था. इसलिए अब उस की हर चीज पर उस का पूरा अधिकार हो गया था. मनोज को प्रभावती किसी परी की तरह लग रही थी. छरहरी काया में उस की बोलती आंखें, मासूम चेहरा किसी को भी बहकने पर मजबूर कर सकता था. प्रभावती में वह सब कुछ था, जो मनोज को दीवाना बना रहा था. मनोज के लिए अब इंतजार करना मुश्किल हो रहा था.

वह प्रभावती को ले कर सुहागरात मनाने के लिए कमरे में पहुंचा. प्रभावती को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. मन तो वह पहले ही सौंप चुकी थी, उस दिन तन भी सौंप दिया. इस तरह प्रभावती की विवाहित जीवन की कल्पना साकार हो गई थी. यह बात प्रभावती ने अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने बुरा नहीं माना. कुछ दिनों तक रायबरेली में साथ रहने के बाद वह मनोज के साथ उस के घर बंगाल चली गई. मनोज बंगाल के हुगली शहर के रेल बाजार का रहने वाला था. लेकिन मनोज अपने घर जा कर कोलकाता की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा और वहीं मकान ले कर प्रभावती के साथ रहने लगा. साल भर बाद प्रभावती ने वहीं एक बेटे को जन्म दिया. मनोज नौकरी करता था तो प्रभावती घर और बेटे को संभाल रही थी. दोनों मिलजुल कर आराम से रह रहे थे.

मनोज बेटे और प्रभावती के साथ खुश था. लेकिन वह प्रभावती को अपने घर नहीं ले जा रहा था. प्रभावती कभी ले चलने को कहती तो वह कोई कोई बहाना कर के टाल जाता. कोलकाता में रहते हुए काफी समय हो गया तो प्रभावती को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन उस ने मनोज से रायबरेली चलने को कहा तो मनोज ने कहा, ‘‘यहां हमें रायबरेली से ज्यादा वेतन मिल रहा है, इसलिए अब मैं वहां नहीं जाना चाहता. अगर तुम चाहो तो जा कर अपने घर वालों से मिल आओ. वहां से आने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

मातापिता से मिलने के लिए प्रभावती रायबरेली गई. कुछ दिनों बाद वह मनोज के पास कोलकाता पहुंची तो पता चला कि मनोज तो पहले से ही शादीशुदा है. क्योंकि प्रभावती के रायबरेली जाते ही मनोज अपनी पत्नी सीमा को ले आया था. उस की पत्नी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया. उसे धमकाते हुए सीमा ने कहा, ‘‘तुम जैसी औरतें मर्दों को फंसाने में माहिर होती हैं. जवानी के लटकेझटके दिखा कर पैसों के लिए किसी भी मर्द को फांस लेती हैं. अब यहां कभी दिखाई मत देना. अगर यहां फिर आई तो ठीक नहीं होगा.’’ सीमा की बातें सुन कर प्रभावती के पास वापस आने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. उसे जलालत पसंद नहीं थी.

वह एक बार मनोज से मिल कर रिश्ते की सच्चाई के बारे में जानना चाहती थी. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी तो मनोज उस के सामने आया और उस ने फोन पर बात की. उस से मिलने के चक्कर में प्रभावती कुछ दिन वहां रुकी रही. लेकिन जब वह उस से मिलने को तैयार नहीं हुआ तो वह परेशान हो कर रायबरेली वापस चली आई. जिस मनोज को उस ने पति मान कर अपना सब कुछ सौंप दिया था, वह बेवफा निकल गया था. प्रभावती का दिल टूट चुका था. वापस आने पर उस की परेशानियां और भी बढ़ गईं. अब मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ बेटे की भी जिम्मेदारी थी. गुजरबसर के लिए प्रभावती फिर से काम करने लगी. बदनामी के डर से वह प्लाईवुड फैक्ट्री में नहीं गई. थोड़ी दौड़धूप करने पर उसे रायबरेली शहर में दूसरा काम मिल गया था.

जीवन फिर से पटरी पर आने लगा था. शादी के बाद प्रभावती की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार गया था. दूसरी जगह काम करते हुए उस की मुलाकात तेजभान से हुई. तेजभान उसी की जाति का था. प्रभावती रोजाना अपने काम पर साइकिल से रायबरेली आतीजाती थी. कभी कोई परेशानी होती या देर हो जाती तो तेजभान उसे अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंचा देता था. लगातार मिलनेजुलने से दोनों के बीच नजदीकी बढ़ने लगी. तेजभान के साथ प्रभावती को खुश देख कर उस के मांबाप भी खुश थे. तेजभान रायबरेली के ही डीह गांव का रहने वाला था.

एक दिन प्रभावती को कुछ ज्यादा देर हो गई तो तेजभान ने उस से अपने कमरे पर ही रुक जाने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद प्रभावती तेजभान के कमरे पर रुक गई. मनोज से संबंध टूटने के बाद शारीरिक सुख से वंचित प्रभावती एकांत में तेजभान का साथ पाते ही पिघलने लगी. उस की शारीरिक सुख की कामना जाग उठी थी. तेजभान तो उस से भी ज्यादा बेचैन था. उम्र में बड़ा होने के बावजूद तेजभान का जिस्म मजबूत और गठा हुआ था. उस की कदकाठी मनोज से काफी मिलतीजुलती थी. वह मनोज जैसा सुंदर तो नहीं दिखता था, लेकिन बातें उसी की तरह प्यारभरी करता था. प्रभावती की सोई कामना को उस ने अंगुलियों से जगाना शुरू किया तो वह उस के करीब गई. इस के बाद दोनों के बीच वह सब हो गया जो पतिपत्नी के बीच होता है.

तेजभान और प्रभावती के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हो गए थे. वह प्रभावती के घर तो पहले से ही आताजाता था, लेकिन अब उस के घर रात में रुकने भी लगा था. प्रभावती के मातापिता से भी वह बहुत ही प्यार और सलीके से पेश आता था. इस के चलते वे भी उस पर भरोसा करने लगे थे. तेजभान के पास जो मोटरसाइकिल थी, वह पुरानी हो चुकी थी. वह उसे बेच कर नई मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था. लेकिन इस के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. अपने मन की बात उस ने प्रभावती से कही तो उस ने उसे 10 हजार रुपए दे कर नई मोटरसाइकिल खरीदवा दी. तेजभान का प्यार और साथ पा कर वह मनोज को भूलने लगी थी. तेजभान में सब तो ठीक था, लेकिन वह थोड़ा शंकालु स्वभाव का था.

वह प्रभावती को कभी किसी हमउम्र से बातें करते देख लेता तो उसे बहुत बुरा लगता. वह नहीं चाहता था कि प्रभावती किसी दूसरे से बात करे. इसलिए वह हमेशा उसे टोकता रहता था. प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया

जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’ प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया.

वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी. प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’ प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’

एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’

‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’

‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.

प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गयाप्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.

तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया. मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया.

प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया. प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.

प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है. 11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई

घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ परआई लव यूलिखा है. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.

थाने कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी. प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया.

शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी. प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी. मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’

पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बहू ने ससुर के साथ संबंध बनाकर गला घोंटा

अय्याश प्रवृत्ति के परमानंद ने गीता पर डोरे डालते समय तो उम्र का लिहाज किया, रिश्ते का. ऐसे संबंधों का परिणाम बुरा ही होता है, इस में भी कुछ ऐसा ही हुआ. ससुर जान से गया, बहू सलाखों के पीछे है गीता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना बहेड़ी के गांव फरीदपुर के रहने वाले गंगाराम की दूसरे नंबर की बेटी थी. गंगाराम की गिनती गांव के संपन्न किसानों में होती थी. उन की 3 शादियां हुई थीं. पहली पत्नी रमा की बीमारी से मौत हो गई तो उन्होंने सुधा से शादी की. पारिवारिक कलह की वजह से उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली तो उन्होंने तीसरी शादी रेशमा से की

रेशमा से ही उन्हें 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी ललिता की उन्होंने उम्र होने पर शादी कर दी थी. उस से छोटी गीता का 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने पढ़ाई छोड़ दी. गीता जिस उम्र में थी, अगर उस उम्र ध्यान दिया जाए तो बच्चों को बहकते देर नहीं लगती. वे सहीगलत के फर्क को समझ नहीं पाते. ऐसा ही कुछ गीता के साथ भी हुआगीता गंगाराम के अन्य बच्चों से थोड़ा अलग हट कर थी. वह जिद्दी थी, इसलिए उस के मन में जो आता था, वह हर हाल में वही करती थी. उसे लड़कों की तरह रहना, उन्हीं की तरह दोस्ती करना और बिंदास घूमते हुए मस्ती करना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था. इसलिए वह लड़कों की तरह कपड़े तो पहनती ही थी, अपने बाल भी लड़कों की ही तरह कटवा रखे थे.

वह अकसर गांव के लड़कों के साथ घूमती रहती थी. उम्र के साथ उस के बदन में ही नहीं, सुंदरता में भी निखार गया था. गंगाराम के पास ट्रैक्टर भी था और मोटरसाइकिल भी. गीता दोनों ही चीजें चला लेती थी. इसलिए उस का जब मन होता, वह मोटरसाइकिल ले कर घूमने निकल जाती. उसे लड़कों से कोई परहेज नहीं था, इसलिए गांव के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे. गीता नादान तो थी नहीं कि उन लड़कों की मंशा समझती, इसलिए अपने बिंदासपन से वह उन्हें अंगुलियों पर नचाती रहती थी. लेकिन उन लड़कों को इस का फायदा भी मिलता था. वे लड़के गीता से जो चाहते थे, वह उन्हें मिला भी.

फिर तो गांव में गीता को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस सब की जानकारी गीता के पिता गंगाराम को हुई तो उस ने गीता पर बंदिशें लगाईं. लेकिन गीता अब काबू में आने वाली कहां थी. कोई कोई बहाना बना कर वह घर से निकल जाती. कोई ऊंचनीच हो जाए, इस डर से गंगाराम गीता के लिए लड़के की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस की यह तलाश खत्म हुई और उसे बरेली के ही थाना नवाबगंज के गांव लावाखेड़ा निवासी परमानंद का बेटा मनोज मिल गयापरमानंद भी किसान थे. उस के पास भी ठीकठाक खेती थी, जिस की वजह से उस के यहां भी गांवदेहात के हिसाब से किसी चीज की कमी नहीं थी. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे मनोज तथा चैतन्य स्वरूप थे. बेटियों का वह विवाह कर चुका था. अब मनोज का नंबर था

यही वजह थी कि जब गंगाराम उस के यहां अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से रिश्ता ले कर पहुंचा तो बात बन गई. इस के बाद सारे रस्मोरिवाज पूरे कर के मनोज और गीता को शादी के गठबंधन में बांध दिया गया. यह शादी फरवरी, 2009 में हुई थी. गीता सुंदर तो थी ही, साथ ही उस में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो पुरुषों को दीवाना बना देते हैं. यही वजह थी कि गीता ने अपनी अदाओं से पहली ही रात में मनोज को अपना दीवाना बना दिया था. गीता पहली ही रात में समझ गई कि उसे पति उस के मनमाफिक मिला है. वह जैसा सीधासादा, अंगुलियों पर नाचने वाला पति चाहती थी, मनोज ठीक वैसा ही निकला था.

2-4 दिनों में ही मनोज गीता के हुस्न में इस कदर खो गया कि हर पल, हर जगह उसे गीता ही गीता नजर आने लगी. उस का गीता को छोड़ कर कहीं जाने का मन ही होता. खेतों पर भी उस का मन लगता. लेकिन जिम्मेदारी ऐसी चीज है, जो पत्नी तो क्या, मांबाप से भी दूर होने को मजबूर कर देती है. यही हाल मनोज का भी हुआ. साल भर बाद वह एक बेटे का बाप बना तो खर्च बढ़ते ही उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगाइस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मनोज को कमानाधमाना जरूरी था, जिस के लिए वह ऊधमसिंहनगर चला गया. वहां उसे टाटा मैजिक के लिए पुर्जे बनाने वाली अल्ट्राटेक कंपनी में नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने शांति कालोनी रोड स्थित बधईपुरा में जागरलाल के मकान में किराए पर कमरा ले लिया.

कमाईधमाई के लिए मनोज खुद तो ऊधमसिंहनगर चला गया था, लेकिन घरवालों की देखरेख के लिए गीता को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ गया था. उस ने एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बिना गीता का मन गांव में कैसे लगेगा. शायद उसे लग रहा था कि जिस तरह वह पत्नीबच्चे और परिवार के लिए त्याग कर रहा है, उसी तरह गीता भी कर लेगी. लेकिन मनोज की यह सोच गलत साबित हुई. क्योंकि गीता को तो शारीरिक संबंधों का चस्का पहले से ही लगा हुआ था. ऐसे में वह बिना पति के कैसे रह सकती थी. उस का दिन तो घर के कामधाम और बच्चे में कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. बेचैनी से वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी. शारीरिक सुख के बिना वह बुझीबुझी सी रहती थी.

उस की इस बेचैनी और परेशानी को घर का कोई दूसरा सदस्य भले ही नहीं समझ सका, लेकिन पितातुल्य ससुर परमानंद ने जरूर समझ लिया था. इस की वजह यह थी कि परमानंद लंगोट का कच्चा था. उस के लिए रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण स्त्री का शरीर था. शायद यही वजह थी कि गीता को उस ने देखते ही पसंद कर लिया था. परमानंद अपनी बहू पर शुरू से ही फिदा था. लेकिन बेटे के रहते वह बहू के करीब नहीं जा पा रहा था. बहू के नजदीक जाने के लिए ही उस ने बेटे को जिम्मेदारी का अहसास दिला कर उसे घर से बाहर भेज दिया था

मनोज के जाने के बाद गीता की बेचैनी बढ़ी तो परमानंद गीता के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. वह उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ने लगा. गीता उस से बातें करती तो वह अकसर बातें करतेकरते अपनी सीमाएं लांघ जाता. वह उसे कोई सामान पकड़ाती तो सामान पकड़ने के बहाने वह उसे छूने की कोशिश करता. ससुर की इन हरकतों से अनुभवी गीता को समझते देर नहीं लगी कि वह उस से क्या चाहता है. गीता शक तो पहले से ही था, लेकिन जब निगाहें बदलीं और परमानंद बातबात में हंसीमजाक करने लगा तो उस का शक यकीन में बदल गया.

परमानंद देखने में ही जवान नहीं था, बल्कि शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. इस की वजह यह थी कि वह अपने शरीर और खानपान का विशेष ध्यान रखता था. बच्चे सयाने हो गए हैं, यह कह कर पत्नी उर्मिला उसे पास नहीं फटकने देती थी. जबकि परमानंद अभी खुद को जवान समझता था और स्त्रीसुख की लालसा रखता थापरमानंद को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि गीता उस की बेटी की उम्र की तो है ही, उस की बहू भी है. वह वासना में इस कदर अंधा हो गया था कि मर्यादा ही नहीं, रिश्तेनाते भी भूल गया. गीता अब उसे सिर्फ एक औरत नजर रही थी, जो उस की शारीरिक भूख शांत कर सकती थी. यहां परमानंद ही नहीं, गीता भी अपनी मर्यादा भुला चुकी थी.

यही वजह थी कि वह परमानंद की किसी अशोभनीय हरकत का विरोध नहीं कर रही थी, जिस से उस की हिम्मत और हसरतें बढ़ती जा रही थीं. फिर तो एक स्थिति यह गई कि परमानंद की रात की नींद गायब हो गई. अब वह मौके की तलाश में रहने लगा. आखिर उसे एक दिन तब मौका मिल गया, जब पत्नी मायके गई हुई थी. गरमी के दिन होने की वजह से बाकी बच्चे अंदर सो रहे थे. गीता घर के काम निपटा कर बाहर दालान में आई तो ससुर को बेचैन हालत में करवट बदलते देखा. उसे लगा ससुर की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस के पास कर पूछा, ‘‘लगता है, आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

परमानंद हसरत भरी निगाहों से गीता को ताकते हुए बोला, ‘‘तुम इतनी दूरदूर रहोगी तो तबीयत ठीक कैसे रहेगी.’’ गीता को परमानंद की बीमारी का पहले से ही पता था. बीमार तो वह खुद भी थी. इसीलिए तो मौका देख कर उस के पास आई थी. उस ने चाहतभरी नजरों से परमानंद को ताकते हुए कहा, ‘‘यह आप का भ्रम है. मैं आप से दूर कहां हूं बाबूजी. आप के आगेपीछे ही तो घूमती रहती हूं.’’

अब गीता इस से ज्यादा क्या कहती. परमानंद ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वह खुद ही उस के ऊपर गिर पड़ी. इस तरह एक बार मर्यादा की दीवार गिरी तो उस पर रोजरोज वासना की इमारत खड़ी होने लगी. गीता का तो मर्यादा से कभी कोई नाता ही नहीं रहा था, उसी में उस ने ससुर को भी शामिल कर लिया. परमानंद की संगत में कर वह शराब भी पीने लगी. अब वह शराब पी कर ससुर के साथ आनंद उठाने लगी. कुछ दिनों बाद उस ने अपने चचिया ससुर से भी संबंध बना लिए.

ये ऐसा रिश्ता है, जिसे कितना भी छिपाया जाए, छिपता नहीं है. किसी दिन उर्मिला ने गीता को परमानंद के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. जब घर का मुखिया ही पतन के रास्ते पर चल रहा हो तो घर के अन्य लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उर्मिला भी जब ससुरबहू के इस मिलन को नहीं रोक पाई तो उस ने यह बात अपने बेटे मनोज को बताई. मनोज जानता था कि उस का बाप और पत्नी बरबादी की राह पर चल रहे हैं, इसलिए वह भाग कर गांव आया. बाप से वह कुछ कह नहीं सकता था, उस ने गीता को समझाने की कोशिश की. लेकिन गीता अब कहां मानने वाली थी. हार कर मनोज उसे अपने साथ ले गया.

मनोज का विचार था कि गीता साथ रहेगी तो ठीक रहेगी. लेकिन जिस की आदत बिगड़ चुकी हो, वह कैसे सुधर सकती है. बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ऐसे मामलों में सुधरने के बारे में सोचते हैं. मनोज के नौकरी पर जाते ही गीता आजाद हो जाती. वह कमरे में ताला डाल कर घूमने निकल जाती. उस ने वहां भी अपने रंगढ़ंग दिखाने शुरू किए तो वहां भी रंगीनमिजाज लोग उस के पीछे पड़ गए. उन्हीं में रुद्रपुर की आदर्श कालोनी का रहने वाला शेखर और जगतपुरा का रहने वाला मनोज भटनागर भी थागीता के दोनों से ही प्रेमसंबंध बन गए. शेखर ने बातें करने के लिए गीता को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. यही नहीं, दोनों गीता की हर जरूरत पूरी करने को तैयार रहते थे. गीता उन के साथ घूमतीफिरती, सिनेमा देखती, होटलों और रेस्तरांओं में खाना खाती. बदले में वह उन्हें खुश करती और खुद भी खुश रहती.

मनोज जागरलाल के जिस मकान में किराए पर रहता था, उसी में उस के बगल वाले कमरे में रामचंद्र मौर्य रहता था. वह जिला बरेली के थाना मीरगंज के अंतर्गत आने वाले गांव गौनेरा का रहने वाला था. था तो वह शादीशुदा, लेकिन वहां वह अकेला ही रहता था. वह वहां एक फैक्ट्री में ठेकेदारी करता था. अगलबगल रहने की वजह से मनोज और रामचंद्र के बीच परिचय हुआ तो दोनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन में आपस में खास लगाव हो गया था. जल्दी ही रामचंद्र गीता के बारे में सब कुछ जान गया था. मनोज के काम पर जाते ही वह उस के कमरे पर पहुंच जाता और गीता से घंटों बातें करता रहता.

पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर गीता समझ गई कि रामचंद्र उस के कमरे पर क्यों आता है. वह जान गई कि पत्नी से दूर औरत सुख के लिए बेचैन रामचंद्र उसी के लिए उस के आगेपीछे घूमता है. रामचंद्र गीता से दोगुनी उम्र का था. लेकिन गीता के लिए इस का कोई मतलब नहीं था. उसे मतलब था तो सिर्फ देहसुख और पैसों से, जो चाहने वाले उस पर लुटा रहे थे. तरहतरह के मर्दों के साथ मजा लेने वाली गीता को रामचंद्र का आना अच्छा ही लगा. इसलिए गीता उस का मुसकरा कर स्वागत करने लगी

फिर तो रामचंद्र को उस के करीब आने में देर नहीं लगी. जल्दी ही दोनों के मन ही नहीं, तन भी एक हो गए. लेकिन जितनी जल्दी वे एक हुए, उतनी ही जल्दी उन की पोल भी खुल गई. एक दिन मनोज फैक्ट्री से जल्दी गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो गीता ने दरवाजा काफी देर बाद खोला. वह मनोज को देख कर चौंकी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे, इसलिए मनोज को लगा, वह सो रही थी. गीता ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे गए?’’

‘‘फैक्ट्री का जनरेटर खराब था, इसलिए काम नहीं हुआ.’’ कह कर मनोज कमरे में दाखिल हुआ तो सामने पलंग पर रामचंद्र को बैठे देख कर उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. मनोज को देख कर वह तेजी बाहर निकल गया. मनोज ने गुस्से से पूछा, ‘‘यह यहां क्या कर रहा था?’’

‘‘पानी पीने आया था.’’ गीता ने हकलाते हुए कहा.

‘‘कमरा बंद कर के पानी पिला रही थी या उस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी?’’

‘‘तुम्हें यह कहते शरम नहीं आती?’’ गीता चीखी.

‘‘शरम तो तुम्हें आनी चाहिए, जो एक के बाद एक गलत हरकतें करती रही हो. अपने मर्द के होते हुए पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. तुम्हें तो शरम से डूब मरना चाहिए.’’

‘‘तुम में है ही क्या? तुम तो पत्नी को संतुष्ट कर सकते हो, ही उस के खर्चे उठा सकते हो. अगर तुम को इस सब से परेशानी हो रही है तो मुझे छोड़ दो.’’ गीता ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तू तो चाहती ही है कि मैं तुझे छोड़ दूं तो तू घूमघूम कर गुलछर्रे उड़ाए. तुझे तो अपनी इज्जत की पड़ी नहीं है, लेकिन मुझे तो अपनी इज्जत की फिक्र है. इसलिए सामान बांध लो और अब हम गांव चलते हैं.’’

अगले दिन मनोज ने नौकरी छोड़ दी और हिसाबकिताब ले कर गांव गया. कुछ दिनों गांव में रह कर मनोज अकेला ही दिल्ली चला गया, जहां किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करने लगा. उस के जाते ही गीता फिर आजाद हो गई. अब वह वही करने लगी, जो उस के मन में आताशेखर और मनोज उस से मिलने उस की ससुराल भी आने लगे. मनोज के पास मोटरसाइकिल थी, गीता का जब मन होता, मोटरसाइकिल ले कर अकेली ही बरेली से रुद्रपुर चली जाती और अपने प्रेमियों से मिल कर वापस जाती.

रामचंद्र से गीता को विशेष लगाव था. वह उसी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताती थी. जब इस सब की जानकारी परमानंद को हुई तो उस ने गीता को रोका. लेकिन वह मानने वाली कहां थी. उस ने एक दिन गीता को रामचंद्र के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने सरेआम रामचंद्र की पिटाई कर दी. रामचंद्र को यह बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था. गीता को भी ससुर की यह हरकत पसंद नहीं आई. क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे अपनी जागीर समझे और उस की बेलगाम जिंदगी पर अंकुश लगाए. जब उस ने अपने पति मनोज की बात नहीं मानी तो परमानंद की बात कैसे मानती.

यही वजह थी कि परमानंद बारबार उस के रास्ते में रोड़ा बनने लगा तो उस ने इस रोड़े को हमेशा के लिए हटाने की तैयारी कर ली. इस के लिए उस ने रामचंद्र को भी राजी कर लिया. वह राजी भी हो गया, क्योंकि वह भी उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. गीता ने ससुर को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार 27 जुलाई को वह परमानंद को मोटरसाइकिल से रुद्रपुर रामचंद्र के कमरे पर ले गई. देर रात तक गीता, रामचंद्र और परमानंद बैठ कर शराब पीते रहे. गीता और रामचंद्र ने तो खुद कम पी, जबकि परमानंद को जम कर पिलाई. यही नहीं, उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दी थीं, जिस से कुछ ही देर में वह बेहोश हो कर लुढ़क गया. उस के बाद गीता और रामचंद्र ने उसी के अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद गीता ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की तो रामचंद परमानंद की लाश को बीच में बैठा कर पीछे स्वयं बैठ गया. गीता मोटरसाइकिल ले कर काला डूंगी रोड पर भाखड़ा नदी के किनारे पहुंची, जहां दोनों ने परमानंद की लाश को बोरी में कुछ ईंटों के साथ डाल कर नदी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद गीता रुद्रपुर में ही रामचंद्र के कमरे पर कई दिनों तक रुकी रही. 11 अगस्त को गीता मोटरसाइकिल से अपनी ससुराल लावाखेड़ा पहुंची तो परमानंद के छोटे बेटे चैतन्य स्वरूप ने पिता के बारे में पूछा. तब गीता ने किसी रिश्तेदारी में जाने की बात कह कर बात खत्म कर दी. 2 दिन ससुराल में रह कर गीता फिर चली गई. गीता के जाने के बाद कई दिनों तक परमानंद नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई

उन्हें गीता पर शक हुआ कि कहीं उस ने अपने प्रेमियों शेखर और मनोज के साथ मिल कर उस की हत्या तो नहीं करा दी. चैतन्य स्वरूप ने कोतवाली नवाबगंज जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दी. उस समय इंसपेक्टर अशोक कुमार के पास कोतवाली का भी चार्ज था. उन्हें लगा कि बहू ससुर को क्यों गायब करेगी? यही सोच कर उन्होंने चैतन्य को लौटा दिया. परमानंद का परिवार उस की तलाश में लगा रहा. उसी बीच 21 अगस्त को इंसपेक्टर अशोक कुमार का तबादला हो गया तो उन की जगह आए इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी. चैतन्य स्वरूप उन से मिला तो उन्होंने उस से तहरीर ले कर शेखर और मनोज भटनागर के खिलाफ अपराध संख्या-827/13 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर गीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया

सर्विलांस सेल के पुलिसकर्मियों की गीता से कई बार बात हुई. गीता उन से कभी गुजरात में होने की बात कहती तो कभी हरियाणा में होने की बात बताती, जबकि उस की लोकेशन बरेली के आसपास की ही थी. पुलिस समझ गई कि गीता बहुत ही शातिर है. गीता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह सब से अधिक अपनी बड़ी बहन ललिता से बात करती थी. इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी ने ललिता और उस के पति प्रमोद को थाने ला कर पूछताछ की तो उन्होंने गीता का ठिकाना बता दिया. गीता उस समय बरेली के थाना मीरगंज के सामने राजेंद्र सेठ के मकान में किराए का कमरा ले कर रह रही थी. उसी के साथ रामचंद्र मौर्य भी था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. यह 23 दिसंबर, 2013 की बात है.

पूछताछ में गीता और रामचंद्र ने परमानंद की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बता दी. पुलिस ने दोनों को रुद्रपुर ले जा कर उन की निशानदेही पर भाखड़ा नदी से परमानंद की लाश बरामद करने की कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इस के बाद पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लाश की बरामदगी के लिए एक बार फिर पुलिस दोनों को रिमांड पर लेने का प्रयास कर रही थी. लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों का रिमांड मिला नहीं था.

    — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित  

तांत्रिक ने चढ़ाई बीमार बेटे की मां की बलि

कलावती गुप्ता अपने बेटे की बीमारी ठीक कराने के लिए तांत्रिक सर्वजीत कहार के पास जाती थी. उसे क्या पता था कि तांत्रिक और उस के पास आने वाले लोग एक दिन उसी की बलि चढ़ा देंगे. ठाणे जिले के अंतर्गत आता है वसई का धानीव बाग गांव. 17 नवंबर, 2013 को यहां से सोपारा फाटा की तरफ जानेवाले रास्ते के किनारे झाडि़यों में एक अंजान महिला की लाश पड़ी मिली. इस सिरविहीन लाश के पास एक गाउन और एक गद्दी पड़ी हुई थी. धानीव गांव के लोगों को जब झाडि़यों में बिना सिर वाली लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो तमाम गांव वाले वहां पहुंच गए. गांव वालों ने यह जानकारी मुखिया अविनाश पाटिल को दी तो वह भी वहां गए.

गांव का मुखिया होने के नाते अविनाश पाटिल ने फोन कर के महिला की लाश मिलने की जानकारी थाना वालीव पुलिस को दे दी. सुबहसुबह खबर मिलते ही वालीव के वरिष्ठ पुलिस इंसपेक्टर राजेंद्र मोहिते पुलिस टीम के साथ मुखिया द्वारा बताई उस जगह पर पहुंच गए, जिस जगह पर लाश पड़ी थी. राजेंद्र मोहिते ने वहां का बारीकी से निरीक्षण किया तो वहां काफी मात्रा में खून फैला हुआ था, जो सूख कर काला पड़ चुका था. वहीं पर एक चौकी के पास पूजा का कुछ सामान भी रखा था. इस से उन्होंने अनुमान लगाया कि किसी तांत्रिक वगैरह ने सिद्धि साधना या अन्य काम के लिए महिला की बलि चढ़ाई होगी.

हिला की गरदन को उन्होंने आसपास काफी तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली. मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने अपर पुलिस अधिक्षक संग्राम सिंह निशाणदार और उपविभागीय अधिकारी प्रशांत देशपांडे को फोन द्वारा इस की जानकारी दी. उक्त दोनों अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गएचूंकि मृतका का सिर नहीं मिल पा रहा था, इसलिए घटनास्थल पर मौजूद लोगों में से कोई भी उस अधेड़ उम्र की शिनाख्त नहीं कर सका. बहरहाल, पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को जे.जे. अस्पताल की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया और उच्चाधिकारियों के निर्देश पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और अन्य धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

महिला की हत्या क्यों और किस ने की, यह पता लगाने के लिए उस की शिनाख्त होनी जरूरी थी. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में सहायक पुलिस इंसपेक्टर आव्हाड तायडे, सहायक सबइंसपेक्टर प्रकाश सावंत, हवलदार सुभाष गोइलकर, पुलिस नायक अशोक चव्हाण, कांस्टेबल अनवर, मनोज चव्हाण, शिवा पाटिल, 2 महिला कांस्टेबल फड और पाटिल को शामिल किया गया

पुलिस टीम लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश में लग गई. सब से पहले टीम ने सिरविहीन महिला की लाश के फोटो मुंबई के समस्त थानों में भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी थाने में इस कदकाठी की महिला की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. इस के अलावा उन्होंने पूरे जिले में सार्वजनिक जगहों पर महिला की शिनाख्त के संबंध में पैंफ्लेट भी चिपकवा दिए. पुलिस टीम को इस केस पर काम करते हुए करीब 3 हफ्ते बीत गए, लेकिन लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी.

8 दिसंबर, 2013 को उदय गुप्ता नाम का एक व्यक्ति भिवंडी के शांतीनगर थाने पहुंचा. उस ने बताया कि उस की मां कलावती गुप्ता पिछले महीने की 17 तारीख से लापता है. शांति नगर थाने के नोटिस बोर्ड पर वालीव थाना क्षेत्र में मिली एक अज्ञात महिला की सिरविहीन लाश की फोटो लगी हुई थी. इसलिए थानाप्रभारी ने उदय गुप्ता से कहा, ‘‘पिछले महीने वालीव थाना क्षेत्र में एक अज्ञात महिला की लाश मिली थी, जिस का फोटो नोटिस बोर्ड पर लगा हुआ है. आप उस फोटो को देख लीजिए.’’

उदय गुप्ता तुरंत नोटिस बोर्ड के पास गया और वहां लगे फोटो को देखने लगा. उन में एक फोटो पर उस की नजर पड़ी. उस फोटो को देख कर उदय गुप्ता रुआंसा हो गया. क्योंकि उस की मां फोटो में दिखाई दे रही महिला की कद काठी से मिलतीजुलती थी और वैसे ही कपड़े पहने हुए थी. उस तसवीर के नीचे वालीव थाने का फोन नंबर लिखा था. उदय गुप्ता तुरंत वालीव थाने जा कर वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते से मिला और अपनी मां के गायब होने की बात बताई. राजेंद्र मोहिते उदय गुप्ता को जे.जे. अस्पताल ले गए

मोर्चरी में रखी लाश और उस के कपड़े जब उदय गुप्ता को दिखाए गए तो वह फूटफूट कर रोने लगा. उस ने लाश की पहचान अपनी मां कलावती गुप्ता के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. उदय गुप्ता ने यह सूचना अपने पिता रामआसरे गुप्ता को दे दी थी. खबर मिलते ही वह वालीव थाने पहुंच गए थे. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते ने घर वालों से पूछा कि कलावती गुप्ता जब घर से निकली थी तो उस के साथ कौन था. उदय ने बताया, ‘‘उस दिन मां एक परिचित रामधनी यादव के साथ गई थी. उस के बाद वह वापस नहीं लौटी. हम ने रामधनी से पूछा भी था, लेकिन उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था.’’

रामधनी यादव सांताकु्रज क्षेत्र स्थित गांव देवी में रहता था. पुलिस टीम ने पूछताछ के लिए रामधनी यादव को उठा लिया. उस से कलावती गुप्ता की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि कलावती गुप्ता की बलि चढ़ाई गई थी और इस में कई और लोग शामिल थे. उस से की गई पूछताछ में कलावती गुप्ता की बलि चढ़ाए जाने की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. 55 वर्षीया कलावती गुप्ता मुंबई के सांताकु्रज (पूर्व) के वाकोला पाइप लाइन के पास गांवदेवी में रहती थी. उस के 2 बेटे थे उदय गुप्ता और राधेश्याम गुप्ता. राधेश्याम विकलांग था और अकसर बीमार रहता था. बेटे की वजह से कलावती काफी चिंतित रहती थी. एक दिन पास के ही रहने वाले रामधनी ने उसे सांताकु्रज की एअर इंडिया कालोनी क्षेत्र के कालिना में रहने वाले ओझा सर्वजीत कहार के बारे में बताया.

बेटा ठीक हो जाए, इसलिए वह रामधनी के साथ ओझा के पास गई. इस के बाद तो वह हर मंगलवार और रविवार को रामधनी के साथ उस तांत्रिक के पास जाने लगी. सिर्फ कलावती का बेटा ही नहीं, बल्कि रामधनी की बीवी भी बीमार रहती थी. रामधनी उसे भी उस तांत्रिक के पास ले जाता था. रामधनी का एक भाई था गुलाब शंकर यादव. गुलाब की बीवी बहुत तेजतर्रार थी. वह किसी किसी बात को ले कर अकसर उस से झगड़ती रहती थी. जिस से घर में क्लेश रहता था. घर का क्लेश किसी तरह खत्म हो जाए, इस के लिए गुलाब भी उस तांत्रिक के पास जाता था.

एक दिन तांत्रिक सर्वजीत कहार ने रामधनी और गुलाब को सलाह दी कि अगर वह किसी इंसान की बलि चढ़ा देंगे तो सारी मुसीबतें हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी. दोनों भाई अपने घर में सुखशांति चाहते थे, लेकिन बलि किस की चढ़ाएं, यह बात उन की समझ में नहीं रही थी. इसी बीच उन के दिमाग में विचार आया कि कलावती की ही बलि क्यों चढ़ा दी जाए. कलावती सीधीसादी औरत थी, साथ ही वह खुद भी तांत्रिक के पास जाती थी. इसलिए वह उन्हें आसान शिकार लगी. यह बात उन लोगों ने तांत्रिक से बताई. चूंकि बलि देना तांत्रिक के बस की बात नहीं थी, इसलिए उस ने अपने फुफेरे भाई सत्यनारायण, उस के बेटे पंकज नारायण और श्यामसुंदर से बात की तो वे यह काम करने के लिए तैयार हो गए.

15 नवंबर, 2013 को सांताकु्रज के वाकोला इलाके में रहने वाले गुलाब शंकर यादव के घर तांत्रिक सर्वजीत कहार, श्यामसुंदर, सत्यनारायण, पंकज और रामधनी ने एक मीटिंग कर के योजना बनाई कि कलावती की कब और कहां बलि देनी है. उन्होंने बलि चढ़ाने के लिए मुंबई से काफी दूर नालासोपारा के वसई इलाके में स्थित मातामंदिर को चुना. इसी के साथ तांत्रिक ने रामधनी को पूजा के सामान की लिस्ट भी बनवा दी.

अगले दिन 16 नवंबर, 2013 को रामधनी कलावती गुप्ता के घर पहुंच गया. उस ने उस से कहा कि अगर उसे अपने बेटे की तबीयत हमेशा के लिए ठीक करनी है तो आज नालासोपारा स्थित माता के मंदिर में होने वाली पूजा में शामिल होना पड़ेगा. यह पूजा तांत्रिक सर्वजीत ही कर रहे हैं. बेटे की खातिर कलावती तुरंत रामधनी के साथ चलने को तैयार हो गई. रामधनी कलावती को ले कर पहले अपने भाई गुलाब यादव के घर गया.

वहां योजना में शामिल अन्य लोग भी बैठे थे. कलावती को देख कर वे लोग खुश हो गए और पूजा का सामान और कलावती को ले कर सीधे नालासोपारा स्थित मंदिर पहुंच गए. वहां पहुंच कर ओझा ने एक गद्दी डाल कर उस पर पूजा का सारा सामान रख कर मां काली की पूजा करनी शुरू कर दी. उस ने कलावती के हाथ में भी एक सुलगती हुई अगरबत्ती दे दी तो वह भी पूजा करने लगीथोड़ी देर में तांत्रिक इस तरह से नाटक करने लगा, जैसे उस के अंदर देवी का आगमन हो गया हो. वहां मौजूद अन्य लोग तांत्रिक के सामने हाथ जोड़ कर अपनीअपनी तकलीफें दूर करने को कहने लगे. रामधनी ने कलावती से कहा कि वह भी सिर झुका कर देवी से अपनी परेशानी दूर करने को कहे. भोलीभाली कलावती को क्या पता था कि सिर झुकाने के बहाने उस की बलि चढ़ाई जाएगी

उस ने जैसे ही तांत्रिक के चरणों में सिर झुकाया, श्यामसुंदर गुप्ता ने पीछे से उस के बाल कस कर पकड़ते हुए चाकू से उस की गरदन पर वार कर दिया. चाकू लगते ही कलावती खून से लथपथ हो कर तड़पने लगी. वहां मौजूद अन्य लोगों ने उसे कस कर दबोच लिया और उसी चाकू से उस की गरदन काट कर धड़ से अलग कर दी. कलावती की बलि चढ़ा कर रामधनी और उस का भाई खुश हो रहे थे कि अब उन के यहां की सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी. वे कलावती की कटी गरदन को वहां से दूर डालना चाहते थे, ताकि उस की लाश की शिनाख्त हो सके. उन लोगों ने उस की गरदन को अपने साथ लाई गई काले रंग की प्लास्टिक की थैली में रख लिया. तत्पश्चात वह थैली मुंबई अहमदाबाद राजमार्ग पर स्थित वासाडया ब्रिज से नीचे पानी में फेंक दी.

रामधनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने कलावती गुप्ता की हत्या में शामिल रहे अन्य अभियुक्तों, तांत्रिक सर्वजीत कहार, श्यामसुंदर जवाहर गुप्ता, सत्यनारायण और पंकज को भी गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर कलावती का सिर, हत्या में प्रयुक्त चाकू और अन्य सुबूत बरामद कर लिए. पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. ढोंगी तांत्रिक, पाखंडी आए दिन लोगों को अपने चंगुल में फांसते रहते हैं. इन के चंगुल में फंस कर अनेक परिवार बर्बाद हो चुके हैं. ऐसे तांत्रिकों, पाखंडियों पर शिकंजा कसने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने जादूटोना प्रतिबंध विधेयक पारित किया था

यह विधेयक पिछले 18 सालों से विवादों से घिरा हुआ था. लेकिन इस बिल को पारित हुए एक दिन भी नहीं बीता था कि 55 वर्षीय कलावती गुप्ता की बलि चढ़ा दी गई. सरकार को चाहिए कि इस बिल को सख्ती के साथ अमल में लाए, ताकि तांत्रिकों, पाखंडियों पर अंकुश लग सके.

 

सुनंदा पुष्‍कर और श‍श‍ि थरूर के बीच क्‍या हुआ था उस रात

सुनंदा पुष्कर ऐसी महिला थीं, जिन्होंने जिंदगी को पूरी आजादी के साथ अपनी शर्तों पर जिया और हाईप्रोफाइल लोगों में अपनी जगह और पहचान खुद बनाई. आशिक मिजाज शशि थरूर को तीसरे पति के रूप में स्वीकार करना क्या उन की भूल थी? क्या यही वजह उन की मौत का कारण बनी?

16-17 जनवरी की रात सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर के बीच क्या हुआ था, पक्के तौर पर कोई नहीं जानता. अलबत्ता, यह जरूर है कि दोनों के बीच कुछ कुछ हुआ जरूर था. और शायद यही सुनंदा पुष्कर की मौत की वजह भी थी. लेकिन उस वजह को ढूंढ पाना इस मामले की जांच करने वाली क्राइम ब्रांच के वश में नहीं है. क्योंकि एक तो मामला हाईप्रोफाइल है, दूसरे जरूरत भर के सुबूत नहीं हैं. कुछ साइंटिफिक सुबूत हैं भी तो उन से साफसाफ कुछ पता नहीं चल सकता.

घटना वाले दिन यानी 17 जनवरी को शशि थरूर सुबह साढ़े 6 बजे ही होटल लीला पैलेस से निकल गए थे, क्योंकि उन्हें कांग्रेस कार्यकारिणी की एक जरूरी मीटिंग में शामिल होना था. सुनंदा पुष्कर दिन भर होटल में रहीं. दिन में उन्होंने क्याक्या किया, यह कोई नहीं जानता. होटल स्टाफ के लोगों और सुनंदा के नौकर नारायण को थोड़ीबहुत जो जानकारी थी, वह उन्होंने पुलिस को बता दी. लेकिन उस में ऐसा कुछ नहीं था, जिस से कोई अनुमान लगाया जा सकता. सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से भी इतना ही पता चल सका कि मैडम 3 बज कर 22 मिनट पर अपने कमरे में आई थीं और उस के बाद कोई भी उन के कमरे की ओर नहीं आया था.

सुनंदा पुष्कर की मौत का पता तब चला, जब देर शाम साढ़े 8 बजे शशि थरूर होटल लीला पैलेस स्थित अपने कमरा नंबर 345 में पहुंचे. उस समय उन की पत्नी बेड पर लिहाफ ओढ़े लेटी थीं. कमरे का दरवाजा चूंकि लौक नहीं था, इसलिए शशि थरूर को अंदर जाने में कोई परेशानी नहीं हुई. थरूर ने अंदर जा कर देखा तो सुनंदा निश्चल पड़ी थीं. उन के शरीर में किसी तरह की कोई हलचल नहीं थी. यह कर देख शशि थरूर ने होटल के स्टाफ और डाक्टर को बुलाया. साथ ही अपने पीए अभिनव को भी.

चंद मिनटों में ही यह बात साफ हो गई कि सुनंदा मर चुकी हैं. शशि थरूर सुबह साढ़े 6 बजे जब होटल से निकले थे तो सब ठीक था. फिर दिन में ऐसा क्या हुआ कि सुनंदा की मौत हो गई. खबर सुन कर अभिनव भी होटल गए और उन्होंने ही सुनंदा पुष्कर की रहस्यमय मृत्यु की खबर पुलिस को दी. चूंकि यह हाईप्रोफाइल मामला था, सो पुलिस के बडे़बडे़ अधिकारी और पूरा मीडिया होटल लीला पैलेस पहुंच गया. पुलिस ने विशेषज्ञों को बुला कर डेडबौडी की जांच कराई, लेकिन सुनंदा के चेहरे और हाथों पर छोटीछोटी 12 चोटों के अलावा कोई ऐसा लक्षण नहीं पाया गया, जिसे उन की मौत की वजह माना जा सकता. वैसे भी उन की बौडी रजाई से इस तरह ढकी हुई थी, जिसे देख कर लग रहा था जैसे सोते समय उन की मौत हुई हो.

कमरे की तलाशी में भी कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली. हां, सुनंदा पुष्कर के बैग से एल्प्रैक्स के 2 रैपर जरूर मिले, जिन से 15 टैबलेट गायब थीं. इस से त्वरित तौर पर यही अनुमान लगाया गया कि उन्होंने नींद की दवा खा कर आत्महत्या की होगी. कश्मीरी सेबों के लिए प्रसिद्ध सोपोर क्षेत्र के छोटे से गांव बोमई में 27 जून, 1962 को जन्मी सुनंदा का संबंध एक जमींदार परिवार से था. उन के पिता पुष्करनाथ दास सेना में कर्नल थे, जो 1983 में रिटायर हो गए थे. उन के 2 भाई हैं, जिन में से एक बैंक औफिसर हैं और दूसरे सैन्य अधिकारी. 1990 में आतंकवादियों द्वारा घर जलाए जाने के बाद यह कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू कर बस गया था. लेकिन सुनंदा इस से पहले ही गांवघर छोड़ चुकी थीं

1984 में जब वह श्रीनगर के मौलाना आजाद रोड, लाल चौक स्थित गवर्नमेंट कालेज औफ वीमन में इकोनौमिक्स की छात्रा थीं, तभी उन्हें डल लेक पर बने सरकारी होटल सेंटौर के लेक व्यू रेस्तरां में पार्टटाइम होस्टेस की नौकरी मिल गई थी. उन दिनों वहां के असिस्टेंट मैनेजर संजय रैना थे. तब तक सुनंदा का पूरा नाम सुनंदा दास था. सेंटौर होटल में ही सुनंदा और संजय रैना की मुलाकात हुई. पहले दोनों की आंखें लड़ीं, फिर प्यार हुआ. इसी के चलते सुनंदा ने अपने परिवार से विद्रोह कर के सन 1986 में संजय रैना से शादी कर ली थी. शादी के बाद दोनों दिल्ली चले आए थे.

दिल्ली में सुनंदा ने साउथ एक्सटेंशन के एक फैशन इंस्टीट्यूट से फैशन टैक्नोलौजी का डिप्लोमा किया. इस बीच संजय रैना नौकरी करते रहे. लेकिन तब तक दोनों के बीच कई तरह के मतभेद पैदा हो गए थे, जिस की वजह से दूरियां बढ़ती जा रही थीं. आगे चल कर ये मतभेद इतने बढ़े कि दोनों का रिश्ता टूट गयासुनंदा और संजय तलाक ले कर अलग हो गए. सुनंदा ने अपने परिवार से विद्रोह कर के विवाह किया था, वह भी टूट गया. इस से उन्हें काफी दुख पहुंचा था. इस दुख को कम करने और अपने परिवार से अपनी पहचान जोड़े रखने के लिए सुनंदा ने अपने नाम के आगे से दास हटा कर पिता का नाम पुष्कर जोड़ लिया. इस के बाद वह सुनंदा पुष्कर के नाम से जानी जाने लगीं.

संजय रैना से तलाक ले कर सुनंदा ने अपनी राहें अलग कर लीं. तलाक के कुछ समय बाद 1988 में वह दुबई चली गईं. वहां उन्हें दुबई की टेकौम इन्वेस्टमेंट कंपनी में सेल्स मैनेजर की नौकरी मिल गई. इस के 2 साल बाद 1991 में सुनंदा ने मलयाली बिजनैसमैन सुजीत मेनन से दूसरी शादी कर ली. मेनन संजय रैना के ही दोस्त थे और काफी पहले उन्हीं के माध्यम से सुनंदा के संपर्क में आए थे. सुनंदा पुष्कर ने टेकौम इन्वेस्टमेंट कंपनी में नौकरी, अनुभव प्राप्त करने और दुबई में जड़ें जमाने के लिए की थी. जब स्थितियां मनोनुकूल बन गईं तो उन्होंने दुबई में एक्सप्रेशंस नाम से अपनी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल ली. पंख फैला कर खुले आसमान में उड़ने की चाहत रखने वाली सुनंदा की यह पहली मनचाही उड़ान थी

अपनी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के माध्यम से सुनंदा फैशन शो वगैरह आयोजित करने लगीं. इस के चलते उन के संपर्क बड़ेबड़े फैशन डिजाइनर्स और मौडल्स से बन गए. दुबई में रहते हुए ही सन 1992 में सुनंदा एक बेटे की मां बनीं. सुनंदा पुष्कर और सुजीत मेनन करीब 6 साल साथ रहे. सन 1997 में सुजीत मेनन की दिल्ली के करोलबाग क्षेत्र में एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई. कहा जाता है कि वह अवसादग्रस्त रहने लगे थे. उन का एक्सीडेंट भी उसी मनोस्थिति में हुआ था. बहरहाल पति की मौत के बाद सुनंदा ने खुद को भी संभाला और बेटे को भी. पिता की मौत के बाद शिव को बोलने संबंधी कोई समस्या हो गई थी, जिस के इलाज के लिए सुनंदा को टोरंटो, कनाडा जाना पड़ा.

सुनंदा काफी दिनों तक कनाडा में रहीं और उन्होंने वहीं की नागरिकता ले ली. इस बीच उन का इंवेट मैनेजमेंट का काम चलता रहा. दुबई उन का आनाजाना लगा रहता थादुबई और कनाडा में रहते हुए सुनंदा पुष्कर कुछ ही सालों में बिलकुल बदल गईं. चालढाल, रंगरूप ही नहीं, उन का हर अंदाज बदल गया. इस बीच वह दुबई और कनाडा के संभ्रांत वर्ग में इतनी मशहूर हो गईं कि वहां की हर बड़ी पार्टी में नजर आने लगीं. चूंकि दिल्ली और मुंबई के बड़ेबड़े फैशन डिजाइनर उन के संपर्क में रहते थे, इसलिए वह मुंबई और दिल्ली के भी चक्कर लगाती रहती थीं. इवेंट मैनेजमेंट के बिजनैस में सुनंदा ने काफी पैसा कमाया. उन्होंने अपना ज्यादातर पैसा दुबई के रियल एस्टेट कारोबार में इनवैस्ट कर दिया था.

सुनंदा की तरह ही शशि थरूर की वैवाहिक जिंदगी में भी काफी उतारचढ़ाव रहे थे. यह अलग बात है कि बड़े लोगों की जिंदगी के उतारचढ़ाव भी उन की तरह ही बड़े होते हैं. केरल के इलावचेरी, पलक्कड़ में जन्मे शशि थरूर ने मुंबई के चैंपियन स्कूल और कोलकाता के सेंट जेवियर स्कूल से शिक्षा हासिल करने के बाद दिल्ली के सेंट स्टीफंस कालेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी. उन्हें फ्लेचर स्कूल औफ ला ऐंड डिप्लोमेसी से स्कौलरशिप भी मिली थी. 3 सालों के अंदर 2 विषयों में मास्टर डिग्री हासिल कर के उन्होंने महज 22 साल की उम्र में पीएचडी की थी. फ्लेचर स्कूल औफ ला ऐंड डिप्लोमेसी में उन के अलावा आज तक किसी ने इतनी कमउम्र में पीएचडी पूरी नहीं की. इस के बाद वह अमेरिका चले गए थे, जहां उन की नियुक्ति संयुक्त राष्ट्र के उपसचिव पद पर हो गई.

शशि थरूर जब कोलकाता के सेंट जेवियर्स कालेज में पढ़ रहे थे, तभी उन की मुलाकात मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू की नातिन तिलोत्तमा मुखोपाध्याय से हुई थी. वह भी शशि की तरह ही इंटेलेक्चुअल थीं. दोनों में पहले दोस्ती हुई, फिर प्रेम विवाह. तिलोत्तमा शशि के 2 जुड़वां बच्चों की मां भी बनीं, लेकिन पतिपत्नी में ज्यादा दिन नहीं निभ सकी और दोनों का तलाक हो गया. शशि थरूर जब अमेरिका में यूएनओ में कार्यरत थे, तभी उन का परिचय क्रिस्टा गाइल्स से हुआ जो वहीं संयुक्त राष्ट्र निरस्तीकरण आयोग की उपसचिव थीं. क्रिस्टा हैंडसम शशि की विद्वता, बौद्धिकता और खूबसूरती से इतनी प्रभावित हुईं कि उन से प्यार करने लगीं. शशि भी क्रिस्टा के प्यार में पागल थे.

चूंकि दोनों की चाह एक ही थी, इसलिए सन 2007 में दोनों ने शादी कर ली. हालांकि क्रिस्टा के घर वाले कतई नहीं चाहते थे कि वह एक दिलफेंक भारतीय से शादी करें. कह सकते हैं, क्रिस्टा गाइल्स ने अपने परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर शशि थरूर से शादी की थी. अगले 3 सालों तक थरूर और क्रिस्टा गाइल्स के बीच सब कुछ ठीकठाक चला. इसी बीच शशि थरूर यूएनओ की नौकरी छोड़ कर राजनीति में किस्मत आजमाने के लिए भारत गए थेक्रिस्टा भी अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर उन के साथ गईं. शशि के लिए उन्होंने अपनी नौकरी तक छोड़ दी और उन के साथसाथ उन के परिवार को भी अपना लिया.

राष्ट्र संघ में उच्च पद पर रहने के कारण शशि थरूर के नेहरूगांधी परिवार से करीबी रिश्ते बन गए थे. उन्हें इस का लाभ मिला. सन 2009 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर केरल से लोकसभा का चुनाव लड़ा. उस समय क्रिस्टा केवल उन के साथ थीं, बल्कि उन्होंने थरूर का चुनाव प्रचार भी किया. शशि थरूर चुनाव जीत गए. सोनिया गांधी से नजदीकियां होने के कारण उन्हें विदेश राज्यमंत्री बनाया गया. पहली बार चुनाव लड़ कर जीतने के बाद सांसद बनना और फिर मंत्री पद मिल जाना आसान नहीं होता. लेकिन आला कमान की नेक नजर की वजह से शशि थरूर के लिए सब कुछ आसान हो गया था.

विदेश राज्यमंत्री रहते ही सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर की पहली मुलाकात दुबई की एक पार्टी में तब हुई, जब वह एक सरकारी दौरे पर वहां गए थे. सुनंदा आकर्षक व्यक्तित्व की खूबसूरत महिला थीं. रसिया स्वभाव के थरूर सुनंदा पुष्कर की खूबसूरती और अदाओं से बहुत प्रभावित हुए. इस के कुछ समय बाद सन 2010 में शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की दूसरी मुलाकात दिवंगत नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे और कांग्रेस सांसद जितिन प्रसाद की दिल्ली में हुई शादी की रिसैप्शन पार्टी में हुई. तब तक आशिकमिजाज थरूर के दिलोदिमाग से क्रिस्टा गाइल्स के प्यार का खुमार उतरने लगा था

फलस्वरूप वह खूबसूरत सुनंदा पुष्कर की ओर आकर्षित हो कर उन से नजदीकियां बनाने लगे. सुनंदा भी उन केप्रभावशाली व्यक्तित्व और विदेश राज्यमंत्री जैसे ऊंचे ओहदे से प्रभावित हुए बिना रह सकीं. रिसैप्शन पार्टी में लंबी बातचीत के बाद दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. सुनंदा होटल मौर्या शेरेटन में ठहरी थीं. दोनों के बीच उसी शाम मोबाइल पर लंबी बात हुई और फिर अगले ही दिन दोनों की होटल मौर्या शेरेटन में अकेले में पहली मुलाकात हुई.

इस के बाद दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों अकसर होटल सम्राट, हयात रिजेंसी, अशोका जैसे 5 सितारा होटलों में लंच और कैंडल लाइट डिनर पर मिलने लगे. पति की मौत के बाद से सुनंदा अकेली थीं. उन्हें एक सशक्त व्यक्ति के सहारे की जरूरत थी. शशि थरूर विदेश राज्य मंत्री थे सुंदर और दर्शनीय व्यक्तित्व वाले. सुनंदा उन में अपना सहारा ढूंढने लगीं. रसिया स्वभाव के शशि थरूर यही चाहते थे. सो दोनों ने एक दूसरे के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सुनंदा पुष्कर की खूबसूरती के मोहपाश में बंध कर वह अपनी पत्नी क्रिस्टा गाइल्स को भूल गए

इसी बीच शिलांग में एक सरकारी समारोह हुआ तो शशि थरूर सुनंदा के साथ केवल इस समारोह में शामिल हुए, बल्कि एक 5 सितारा होटल के प्रेसीडेंशियल सुइट में साथसाथ ठहरे भी. तब तक दोनों केवल खुद को एकदूसरे को सौंप चुके थे, बल्कि दोनों ने अपने भविष्य की राह भी तय कर ली थी. इस के बाद उच्च वर्ग और राजनीतिक गलियारों में शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की नजदीकियों की चरचा आम हो गई थी.

क्रिस्टा गाइल्स ने अपने सुनहरे भविष्य को दांव पर लगा कर शशि थरूर से प्रेम विवाह किया था. जब उन्हें थरूर के इस नए इश्क और बेवफाई का पता चला तो उन्होंने शशि थरूर से अलग हो कर स्वदेश लौटने का फैसला कर लिया. अमेरिका लौटने से पहले क्रिस्टा ने शशि थरूर के नए प्रेम प्रकरण का जिक्र करते हुए उन के नाम एक भावुक पत्र लिखा, जिस में उन्होंने अपना संबंध खत्म करने की बात कही. उन्होंने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया था कि वह जब चाहे तलाक के पेपर भेज दें, वह साइन कर देगी. इस पत्र की एक कौपी उन्होंने सोनिया गांधी को भी भेजी थी. लेकिन इसे शशि थरूर का निजी मामला समझ कर किसी ने टांग नहीं अड़ाई. बस इस के बाद सुनंदा और शशि थरूर की मोहब्बत रंग लाने लगी.

दोनों को अकसर साथसाथ देखा जाने लगा. ऐसा लगता था कि दोनों ने साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था. शिलांग के एक 5 सितारा होटल के प्रेसीडेंशियल सुइट में साथसाथ रात गुजारने के बाद शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की प्रेमकहानी खुल कर सामने गई थी. थरूर ने अपने पद की मर्यादा के मद्देनजर उस वक्त इस बात को भले ही स्वीकार नहीं किया, लेकिन सुनंदा ने यह कहना जरूर शुरू कर दिया था कि क्रिस्टा गाइल्स से तलाक होते ही वह और शशि शादी कर लेंगे. इस के बाद सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर अकसर अखबारों की सुर्खियों में रहने लगे थे. लेकिन वह शादी कर पाते इस से पहले ही आईपीएल का विवाद सामने गया

आईपीएल के निलंबित कमिश्नर ललित मोदी ने ट्वीट कर के आरोप लगाया था कि शशि थरूर ने अपने प्रभाव का नाजायज इस्तेमाल कर के कोच्चि टीम खरीदने में रांदेवू स्पोर्ट्स की मदद की, जिस के बदले में इस टीम का 19 प्रतिशत हिस्सा (लगभग 75 करोड़) उन की गर्लफ्रैंड सुनंदा पुष्कर के खाते में गया. इस बात को ले कर नरेंद्र मोदी ने उस वक्त सुनंदा पुष्कर को 50 करोड़ की गर्लफ्रैंड कहा था, जिस के जवाब में शशि थरूर ने ट्वीट कर के जवाब दिया था कि सुनंदा प्राइसलेस हैं. बहरहाल अपनी ओर से सफाई दिए जाने के बाद भी इस विवाद के चलते शशि थरूर को अपना मंत्री पद गंवाना पड़ा.

इस विवाद के 4 महीने बाद शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर ने अगस्त, 2010 में केरल स्थित पलक्कड़ के इलावचेरी में शादी कर ली. यह शादी थरूर के पुश्तैनी घर पर उन के परिवार वालों के बीच पारंपरिक तरीके से हुई. इस शादी में सुनंदा पुष्कर का परिवार भले ही शामिल नहीं हुआ, लेकिन तब तक अपने परिवार से उन के रिश्ते सामान्य हो गए थे. शादी के बाद सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर ज्यादातर साथसाथ देखे जाते थे. यह अलग बात है कि बड़े लोगों की तरह दोनों की कुछ अलगअलग राहें भी थीं. मसलन शशि थरूर अपनी राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहते थे और सुनंदा पुष्कर उच्चवर्ग की महिलाओं और दिल्ली, मुंबई और दुबई में देर रात तक चलने वाली पार्टियों में.

थरूर अपनी राजनैतिक छवि को साफसुथरा बनाए रखने के लिए ऐसी पार्टियों में जाने से बचते थे. बहरहाल थरूर की जिंदगी में आने के बाद सुनंदा का रुतबा तो बढ़ ही गया था, वह खुद को मानसिक और सामाजिक स्तर पर सुरक्षित भी समझने लगी थीं. नरेंद्र मोदी ने अपनी राजनैतिक बयानबाजी में सुनंदा पुष्कर को भले ही 50 करोड़ की गर्लफ्रैंड बताया था, लेकिन हकीकत में सुनंदा स्वयं करीब 113 करोड़ रुपए की चलअचल संपत्ति की मालकिन थीं, जिस का शशि थरूर से कोई लेनादेना नहीं था. दुबई में उन के 12 अपार्टमेंट और एक स्पा तो था ही, उन्होंने कनाडा में भी एक शानदार अपार्टमेंट खरीद रखा था. जम्मू में भी उन की काफी जमीनजायदाद थी. इस के अलावा उन के पास 7 करोड़ रुपए की ज्वैलरी और डिजाइनर घडि़यों के साथसाथ करीब इतनी ही नकद रकम बैंकों में जमा थी

सुनंदा पुष्कर अपने बेटे शिव मेनन का भविष्य मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में बनाना चाहती थीं. इस के लिए उन्होंने शिव को अनुपम खेर के ऐक्टिंग स्कूल में दाखिला भी दिला दिया था. मुंबई की पेज-3 पार्टियों में शामिल होते रहने की वजह से वह बड़ेबड़े निर्मातानिर्देशकों और हीरोहीरोइनों को जानती थीं, इसलिए बेटे को फिल्मों में काम दिलाना उन के लिए मुश्किल नहीं थाशशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. दोनों की अपनीअपनी रंगीन लाइफ थी. तभी अचानक इन दोनों की जिंदगी में एक त्रिकोण गया. उन की प्रेमकहानी का तीसरा कोण बनी मेहर तरार

दरअसल, शशि थरूर शुरू से ही रसिया स्वभाव के रहे थे, ट्विटर के शौकीन भी. कहा जाता है, उन का ज्यादातर खाली समय ट्विटर पर बीतता था. इसी के चलते उन के संपर्क में आईं 45 वर्षीया पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार. पाकिस्तानी मीडिया में खूबसूरती के लिए जानी जाने वाली मेहर तरार का संबंध पाकिस्तान के एक संभ्रांत परिवार से है. उन्होंने वेस्ट वर्जीनिया यूनिवसिर्टी से जर्नलिस्ट की डिग्री लेने के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा था. उन्होंने बहरीन बेस्ड एक बड़े बिजनैसमैन से शादी की थी. फिलहाल वह पति से कुछ मतभेदों के चलते अपने 13 वर्षीय बेटे के साथ पाकिस्तान में अकेली रह रही हैं और एक बिजनैस न्यूज चैनल से जुड़ी हैं.

ट्विटर के जरिए संपर्क में आई मेहर तरार से थरूर का संपर्क बढ़ा तो वह 7 अप्रैल, 2013 को भारत आईं. मकसद था शशि थरूर का इंटरव्यू. इंटरव्यू सुनंदा पुष्कर के सामने ही हुआ. लेकिन कुछ कारणों से उन्हें शशि और मेहर का घुलमिल कर बातें करना अच्छा नहीं लगा. उसी दौरान मेहर ने शशि थरूर के सामने यह इच्छा भी जाहिर की कि वह केरल पर एक किताब लिखना चाहती हैं. इस के बाद शशि थरूर और मेहर तरार की अगली मुलाकात जून, 2013 में दुबई की एक पार्टी में हुई. सुनंदा उस समय भी साथ थीं. मेहर ने अपने कौलम में भी और वैसे भी शशि थरूर की कुछ ज्यादा ही तारीफ की थी, इसलिए सुनंदा ने उन्हें पसंद नहीं किया था और पूरी कोशिश की थी कि दोनों दूरदूर रहें. लेकिन ऐसा नहीं हो सका और शशि थरूर और मेहर तरार ट्विटर और मोबाइल फोन के जरिए एकदूसरे से बराबर संपर्क बनाए रहे.

हालांकि सुनंदा पुष्कर जुलाई, 2013 से ही इस का विरोध कर रही थीं. जब शशि थरूर और मेहर तरार ट्विटर पर जुडे़ रहे तो सुनंदा पुष्कर को गहरी ठेस पहुंची. वह तनावग्रस्त रहने लगीं. दरअसल वह अपने पति के रसिया स्वभाव को अच्छी तरह जानती थीं. इसलिए उन्हें लग रहा था कि जिस आदमी के लिए उन्होंने हर तरह के समझौते किए, सामाजिक आलोचनाएं झेलीं, वह उन से बेवफाई कर रहा है. इसी बात को ले कर शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर के बीच मतभेद रहने लगे. इसी के चलते उन्होंने ट्विटर पर शशि थरूर और मेहर तरार की पोल खोलनी शुरू कर दी. फलस्वरूप बात बढ़ती गई. इसे ले कर शशि थरूर और सुनंदा के बीच बात काफी बढ़ गई थी.

जब यह बात मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक हो गई तो शशि थरूर परेशान हुए. उन्होंने सुनंदा को कैसे मनाया, यह तो वही जानें, लेकिन उस वक्त वह मान गई थीं. चूंकि शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर दोनों ही उस वर्ग से थे, जिस की एकएक गतिविधि पर निगाह रखी जाती है. इसलिए दोनों को संयुक्त रूप से बयान देना पड़ा कि उन के दांपत्यजीवन में सब कुछ ठीक है. शशि थरूर निस्संदेह विद्वान व्यक्ति हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, ह्यूमन राइट्स पर दिए गए उन के भाषणों को खूब सराहा गया था. लेकिन पिछले 2-3 सालों में उन की सारी विद्वता ट्विटर के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई थी. उन के 20 लाख से भी अधिक फालोअर्स थे. ट्विटर प्रेम के आगे उन्हें अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर भी महत्त्वहीन लगती थीं. शायद इसीलिए सुनंदा ने एक टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि ट्विटर उन की सौतन है.

उन के पति उस वक्त भी ट्वीट करते रहते हैं, जब उन्हें उन के प्यार में डूबा होना चाहिए. सुनंदा पुष्कर ट्विटर को ज्यादा पसंद नहीं करती थीं. इस के बावजूद जब उन्हें लगा कि पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार ट्विटर और मोबाइल के माध्यम से शशि के वजूद पर हावी होने की कोशिश कर रही हैं तो उन्होंने ट्विटर का सहारा लिया. इसी दौरान उन्होंने मेहर तरार पर कई आरोप लगाए. सुनंदा द्वारा बारबार चेतावनी देने के बावजूद जब ट्विटर के माध्यम से मेहर और शशि थरूर की नजदीकियां बढ़ती गईं तो सुनंदा पुष्कर खुद को असुरक्षित महसूस करने लगीं.

सुनंदा पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थीं. बताया जाता है कि वह पेट की टीबी और लुपस नाम के औटो इम्यून डिसौर्डर से पीडि़त थीं. इस के इलाज के लिए वह 1-2 बार विदेश भी गई थीं. इन बीमारियों के सिलसिले में केरल इंस्टीट्यूट औफ मैडिकल कालेज में उन के कई टेस्ट भी हुए थे और फिलहाल तिरुवनंतपुरम के किंग्स जौर्ज हौस्पिटल में उन का इलाज चल रहा था. लेकिन बताया जाता है कि उन की ये बीमारियां ज्यादा गंभीर नहीं थीं. 15 जनवरी को शशि और सुनंदा जब हवाईजहाज से तिरुवनंतपुरम से दिल्ली लौट रहे थे तो सफर के दौरान दोनों का खूब झगड़ा हुआ था. वजह यह बताई जाती है कि शशि थरूर ने सुनंदा की चेतावनी के बावजूद अपने मोबाइल में हरीश नाम से मेहर तरार का नंबर सेव कर रखा था, जो सुनंदा ने देख लिया था.

यह उन्हें सरासर बेवफाई लगी थी और इस से वह बुरी तरह टूट गई थीं. दोनों के इस झगड़े की भयावहता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर सुनंदा वाशरूम चली गई थीं और आधे घंटे तक बाहर नहीं आई थीं. काफी देर इंतजार के बाद शशि थरूर गुस्से में अकेले ही अपने लोधी एस्टेट वाले बंगले पर चले गए थे. जबकि सुनंदा आधा घंटा बाद वाशरूम से बाहर आईं और चाणक्यपुरी स्थित होटल लीला पैलेस चली गईं, जहां शशि थरूर ने सुइट बुक करा रखा था. लीला पैलेस में सुइट बुक कराए जाने की वजह यह बताई जाती है कि थरूर के लोधी एस्टेट के बंगले में व्हाइट वाश चल रहा था और सुनंदा पुष्कर को इस से एलर्जी थी.

उसी दिन सुनंदा ने पति का ट्विटर एकाउंट हैक किया और मेहर तरार को खूब खरीखोटी सुनाई. यहां तक कि उन्होंने मेहर तरार को आईएसआई का एजेंट तक बताया. उस रोज उन दोनों के बीच अच्छाभला ट्विटर वार चला. बाद में शशि थरूर भी लीला पैलेस गए थे. उन्हें जब इस की जानकारी हुई तो उन्होंने ट्वीट कर के सफाई दी कि उन का एकाउंट हैक कर लिया गया था. इस के बाद शायद पतिपत्नी में समझौता हो गया था, क्योंकि अगले दिन यानी 16 जनवरी को दोनों ने संयुक्त बयान जारी कर के कहा कि उन के दांपत्य जीवन में सब कुछ ठीक है. 17 जनवरी को शशि थरूर सुबह साढ़े 6 बजे ही होटल से निकल गए थे. बताया जाता है कि उस रात सुनंदा और शशि के बीच खूब झगड़ा हुआ था जो रात साढ़े 4 बजे तक चला था.

इस झगड़े के बाद शशि थरूर को सोफे पर सोना पड़ा था. जबकि सुनंदा बेड पर सोई थीं. अनुमान है कि सुनंदा के हाथों और मुंह पर चोटें इसी झगड़े के दौरान हाथापाई में आई थीं. अगली सुबह यानी 17 जनवरी को शशि थरूर सुबह साढ़े 6 बजे ही होटल से निकल गए थे. उसी रात लगभग साढ़े 8 बजे सुनंदा पुष्कर होटल लीला पैलेस के अपने कमरा नंबर 345 में मृत पाई गईं. उन की मौत का पता तब चला जब सुबह साढ़े 6 बजे होटल से निकले शशि थरूर रात को लगभग साढ़े 8 बजे वापस लौटे. उस वक्त कमरे का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. दरवाजा खोल कर शशि थरूर अंदर पहुंचे तो सुनंदा बेड पर मरी पड़ी थीं. उस वक्त वह रजाई ओढ़े थीं और दोनों हाथ रजाई के अंदर थे.

कह सकते हैं, वह सामान्य स्थिति में सोई हुई लग रही थीं. उन की स्थिति देख कर थरूर को होटल के स्टाफ को बुलाना पड़ा. प्राथमिक जांच के बाद सुनंदा का शव पोस्टमार्टम के लिए एम्स भेज दिया गया. अगले दिन वीडियोग्राफी के साथ 3 डाक्टरों के पैनल ने सुनंदा के शव का पोस्टमार्टम किया. पता चला सुनंदा पुष्कर की मौत अप्राकृतिक और आकस्मिक थी, जो दवा के ओवरडोज की वजह से हुई थी. उन के शरीर पर चोटों के जो 10 निशान पाए गए, वह संभवत: घरेलू झगड़े की वजह से आए थे, जिन का उन की मौत से कोई संबंध नहीं था. इन में से एक हाथ की हथेली में दांत से काटने का गहरा निशान था, जिस की फोरेंसिक जांच के लिए उस जगह की चमड़ी सुरक्षित रख ली गई. इस के साथ ही सुनंदा के पेट का विसरा भी जांच के लिए रखा गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी दिन लोदी रोड श्मशान घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर की शादी को चूंकि अभी 7 साल पूरे नहीं हुए थे, इसलिए सीआरपीसी की धारा 176 के तहत इस मामले की जांच वसंत विहार के एसडीएम आलोक शर्मा को सौंपी गई. उन्होंने इस सिलसिले में सीनियर जर्नलिस्ट नलिनी सिंह, सुनंदा के भाई कर्नल राजेश, बेटे शिव मेनन, शशि थरूर, उन के पर्सनल सेक्रैटरी अभिनव और होटल के 2 अटेंडेंट आदि 8 लोगों के बयान लिए. उन्हें शशि थरूर के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला था. नलिनी सिंह का बयान इसलिए लिया गया, क्योंकि उन से सुनंदा की काफी लंबी बात हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट और बया%A

दूसरी पत्नी ने कहा पहली पत्नी का गला काटो, तब आऊंगी सुसराल

इंसान अपने स्वाथो के चलते कभीकभी इतना वहशी दरिंदा बन जाता है कि स्वाथो के आगउसे इंसान की जान सस्ती लगती है. इस दोहरे हत्याकांड में भी ऐसा ही कुछ हुआ. ममता और उस का बेटा तो मारे ही गए, बचा वाहिद भी…  

18 मार्च, 2018 को सुबह के यही कोई 10 बजे थे. चिमियावली गांव के निकट गेहूं के खेत में गांव वालों ने एक महिला उस के 100 मीटर दूर एक बच्चे की नग्न अवस्था में सिर कटी लाश पड़ी देखीं. यह गांव उत्तर प्रदेश के जिला संभल के थाना कोतवाली के अंतर्गत आता है. गांव वालों ने यह बात गांव के चौकीदार रामरतन को बताई. चौकीदार रामरतन तुरंत उस खेत में पहुंच गया जहां लाशें पड़ी थीं. 2-2 लाशें देख कर वह भी चौंक गया. उस ने फोन द्वारा इस की सूचना थानाप्रभारी अनिल समानिया को दे दी. 2 लाशों की खबर मिलते ही अनिल समानिया पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए

उन्होंने दोनों लाशों का निरीक्षण किया तो वहां पड़े खून से लग रहा था कि उन की हत्याएं वहीं पर ही की गई थीं. दोनों के सिर धड़ से गायब थे. साथ में उन के ऊपर कोई कपड़ा भी नहीं था. मृत महिला के एक हाथ की खाल भी कुछ जगह से गायब थी. इस से यह अनुमान लगाया कि उस महिला के हाथ पर उस का नाम या पहचान की कोई चीज गुदी हुई होगी. महिला की पहचान हो सके, इसलिए हत्यारे ने हाथ के उतने हिस्से की खाल ही काट दी थी. अपने उच्चाधिकारियों को इस लोमहर्षक मामले की जानकारी देने के बाद थानाप्रभारी आसपास के क्षेत्र में दोनों मृतकों के सिर तलाशने लगे

इस काम में गांव वाले भी उन का साथ दे रहे थे. काफी खोजबीन के बाद भी उन के सिर नहीं मिल सके. लेकिन वहां पर मृतकों के कपड़े और चप्पलें जरूर मिल गईं, 2 जोड़ी चप्पलों के अलावा वहां छोटे बच्चे की एक जोड़ी चप्पलें और मिली. जब मरने वाले 2 लोग हैं तो यह तीसरी जोड़ी चप्पल किस बच्चे की है, यह बात पुलिस नहीं समझ सकी. बिना सिर के लाशों की शिनाख्त करना आसान नहीं था. थानाप्रभारी द्वारा सिरविहीन 2 लाशों की सूचना एसपी रविशंकर छवि और एएसपी पंकज कुमार पांडे को दे दी गई. कुछ देर में दोनों पुलिस अधिकारी भी चिमियावली गांव के उस गेहूं के खेत में पहुंच गए, जहां दोनों लाशें पड़ी थीं

अधिकारियों ने मौका मुआयना करने के बाद गांवों वालों से लाशों की शिनाख्त के लिए बात की उन्हें मृतकों के कपड़े दिखाए. लेकिन कोई भी उन्हें नहीं पहचान सका. मौके पर फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया गया. घटनास्थल पर मिले सारे सबूतों को पुलिस ने जब्त कर लिया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशों को सुरक्षित रखवाने के लिए जिला चिकित्सालय भेज दिया और चौकीदार रामरतन की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सिर विहीन 2 लाशें मिलने की खबर कुछ ही देर में पूरे शहर में फैल गई. सभी लोग आपस में यही चर्चा कर रहे थे कि पता नहीं शव किस के हैं. मालूम मृतक कहां के रहने वाले थे. उधर थानाप्रभारी भी इस बात को ले कर परेशान थे कि इन लाशों की शिनाख्त कैसे कराई जाए. शिनाख्त के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था. लिहाजा शिनाख्त के लिए जिले के समस्त थानों में वायरलैस द्वारा इन अज्ञात लाशों के मिलने की सूचना प्रसारित कर यह जानकारी जाननी चाही कि कहीं किसी थाने में एक महिला और बच्चे की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. पर पुलिस की इन कोशिशों से भी कोई सफलता नहीं मिली. आखिर पुलिस ने दोनों शवों का पोस्टमार्टम करा कर  उन का अंतिम संस्कार करा दिया.

8-10 दिन बीत गए लेकिन मृतकों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. थानाप्रभारी के दिमाग में यह बात भी आई कि कहीं दोनों मृतक किसी दूसरे जिले के रहने वाले तो नहीं हैं. इस के बाद एसपी के माध्यम से सिरविहीन 2 लाशों के बरामद करने की सूचना सीमावर्ती जिलों के थानों में भी भेज दी गई. इसी बीच पहली अप्रैल, 2018 को थानाप्रभारी को चिमियावली गांव के पास बहने वाली सोन नदी के किनारे एक महिला का सिर पड़े होने की जानकारी मिली तो वह वहां पहुंच गए और सिर को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. वह सिर 18 मार्च को बरामद हुई सिरविहीन महिला की लाश का है या नहीं, इस की पुष्टि डीएनए जांच के बाद ही हो सकती थी

इस के 8 दिन बाद यानी 8 अप्रैल को पुलिस ने मोहम्मदपुर मालनी गांव के जंगल से एक बच्चे का सिर बरामद कर लिया. उस का मांस जंगली जानवर खा चुके थे. अब इस बात की आशंका प्रबल हो गई कि यह दोनों सिर पूर्व में बरामद की गई दोनों लाशों के ही होंगे. मुरादाबाद बरेली परिक्षेत्र के एडीजी प्रेमप्रकाश को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने मुरादाबाद रेंज के आईजी विनोद कुमार से बात कर इस मामले को गंभीरता से लेने को कहा. एडीजी प्रेमप्रकाश बहुत सुलझे हुए अफसर थे. जब वह मुरादाबाद के एसएसपी थे तो उन्होंने चर्चित किडनी कांड को सुलझा कर डा. अमित को सलाखों के पीछे पहुंचाया था. इस के अलावा उन्होंने बावन खेड़ी में एक ही परिवार के 7 लोगों की निर्मम तरीके से की गई हत्या के मामले को सुलझा कर शबनम और उस के प्रेमी को जेल भिजवाया था. एडीजी की इस दोहरे मर्डर पर भी निगाह बनी हुई थी.

एडीजी प्रेमप्रकाश का निर्देश मिलते ही आईजी विनोद कुमार ने संभल के एसपी रविशंकर छवि और एएसपी पंकज कुमार पांडे के साथ मीटिंग कर इस केस को जल्द से जल्द खोलने के लिए कहा. इस के बाद तो थानाप्रभारी अनिल समानिया के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम इस केस को खोलने में जुट गई. उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया. 14 अप्रैल को चिमियावली गांव के चौकीदार रामरतन ने थानाप्रभारी अनिल समानिया को सटीक सूचना देते हुए कहा कि गांव के हिस्ट्रीशीटर कलुआ के घर 3-4 साल की एक लड़की आई हुई है. वह लड़की बारबार रोरो कर कहती है कि मुझे मेरी मम्मी से मिलवाओ. यह बात मुझे गांव की औरतों ने बताई है. उन औरतों में भी इस बात की चर्चा है कि कलुआ के परिवार में यह लड़की पता नहीं कहां से गई.

इतना सुनते ही थानाप्रभारी का माथा ठनका. उन के दिमाग में एक बात घूम गई कि उन दोनों के शवों के पास भी पुलिस को 1 छोटे बच्चे की एक जोड़ी चप्पलें मिली थीं. अनिल समानिया ने बगैर देर किए गांव चिमियावली का रुख किया. वह कलुआ के घर पहुंच गए. उन्हें वहां 4 साल की बच्ची दिखी. बच्ची के बारे में उन्होंने पूछा तो कलुआ ने बताया, ‘‘यह बच्ची मेरी खाला की लड़की है.’’

‘‘यह तुम्हारे पास क्यों है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, यह मेरी लड़की अरमाना के साथ गई है. कुछ दिन यहां रह कर अपने घर चली जाएगी.’’

कलुआ पहले बदमाश था. अब वह करीब 80 साल का बुजुर्ग था. उन्होंने सोचा कि शायद यह सच बोल रहा होगा. क्योंकि जवानी में चाहे कितना भी बड़ा अपराधी रहा हो, उम्र की इस ढलान पर आदमी सीधा सच ही चलता हैथानाप्रभारी ने घटनास्थल से जो छोटे बच्चे की चप्पलें बरामद की थीं उन्हें वह अपने साथ लाए थे. वह कार में रखी थीं. एसआई वीरेंद्र सिंह से उन्होंने चप्पलें मंगा कर उस बच्ची को दिखाईं तो वह उन चप्पलों को देख कर खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘यह चप्पलें तो मेरी है.’’ बच्ची फिर बोली, ‘‘मेरी मम्मी कहां हैं.’’

‘‘मम्मी गई, बाहर है.’’ अनिल समानिया ने कहा तो वह बच्ची अपनी मां को देखने के लिए बाहर की तरफ भागी. इस के बाद अनिल समानिया का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. वह कलुआ से बोले, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि इस उम्र में भी…’’ इतना सुनते ही कलुआ ने नजरें नीची कर लींवह बोला, ‘‘साहब, मजबूरी ऐसी गई थी कि मैं बेबस हो गया था. क्या बताऊं साहब यह सब करतूत मेरे दामाद वाहिद की है. यदि उस ने मेरी बेटी को धोखा दिया होता तो मुझे इस उम्र में यह सब करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता.’’ 

उस ने इस दोहरे हत्याकांड का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया मरने वाली महिला का नाम ममता था और दूसरा उस का 10 साल का बेटा करनपाल था. ममता उस के दामाद वाहिद की पहली पत्नी थी. इस बहुचर्चित केस के खुलने पर अनिल समानिया ने राहत की सांस ली और इस की जानकारी उच्चाधिकारियों को भी दे दी. केस खुलने की सूचना मिलते ही एसपी रविशंकर छवि थाने पहुंच गए. उन के सामने कलुआ से पूछताछ की गई तो पता चला कि ममता और उस के बेटे की हत्या में कलुआ के अलावा उस की पत्नी सूफिया, बेटी अरमाना, दामाद वाहिद और दामाद का भाई गुड्डू शामिल थे

पुलिस ने दबिश दी तो गुड्डू के अलावा सारे आरोपी गिरफ्त में गए. इन सभी से पूछताछ करने के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई वह दिल दहला देने वाली थी. ममता मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर के गांव लहराबल की मूल निवासी थी. उस के पिता अखबारों के हौकर थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा ममता एकलौती बेटी थी. उन की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. लेकिन उसी दौरान वह हत्या के एक मामले में जेल चले गए. उसी दौरान उन की पत्नी का भी देहांत हो गया. ऐसे में ममता बेसहारा हो गई तब नातेरिश्तेदारों ने उस की देखभाल की.

ममता के पिता जब जमानत पर जेल से बाहर आए तो वह शाहजहांपुर से बेटी के साथ गाजियाबाद गए. यह बात करीब 12 साल पहले की है. पिता ने किराए का मकान ले कर मेहनतमजदूरी की. ममता भी जवान हो चुकी थी. इसी दौरान सुनील नाम के एक युवक से ममता की आंखें लड़ गईं. वक्त के साथ दोनों के प्यार के दरिया में बहुत आगे तक तैर चुके थे. बाद में उन्होंने शादी कर ली. सुनील टैक्सी ड्राइवर था. ममता के पिता इस शादी के खिलाफ थे. पर ममता ने उन की भावनाओं की कद्र नहीं की. सुनील के साथ गृहस्थी बसा कर वह खुश थी. वह 2 बच्चों की मां भी बन गई. जिस में बड़ा बेटा करनपाल था और छोटी बेटी मंजू.

बेटी के फैसले से पिता इतने आहत हुए कि उन का भी देहांत हो गया. ममता के पति सुनील में भी बदलाव गया. वह शराब पीने लगा. ममता उसे पीने से मना करती तो वह उस से झगड़ा करता और पिटाई भी कर देता था. अब वह ममता पर शक करने लगा कि उस का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. पति के इस व्यवहार पर ममता भी तनाव में रहने लगी. फिर एक दिन ममता पर ऐसी विपत्ति आन पड़ी, जिस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी. जिस सुनील के लिए ममता ने अपने पिता तक को त्याग दिया था, एक दिन वही सुनील ममता और उस के दोनों बच्चों को छोड़ कर कहीं चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया.

ममता बेसहारा हो गई थी. अकेली औरत का वैसे भी लोग जीना मुश्किल कर देते हैं. ममता के पास तो 2 बच्चे भी थे. वह घर का खर्चा कहां से और कैसे चलाती. इस मोड़ पर फंस कर वह कई लोगों द्वारा छली गई. ममता ने भी हालात से समझौता कर लिया था. इसी बीच वह मेरठ में रहने वाले कलुआ नाम के औटो ड्राइवर के संपर्क में आईकलुआ के बराबर वाले मकान में वाहिद नाम का युवक रहता था. वाहिद भी आटो चलाता था. वह अविवाहित था इसलिए ममता ने उस के साथ ही गृहस्थी बसाने की सोच ली. वाहिद भी ममता को प्यार करता था. वह उस के साथ निकाह करने को तैयार हो गया

वाहिद ममता और उस के दोनों बच्चों को ले कर मेरठ से नोएडा गया. वहीं पर इसलाम धर्म के रीतिरिवाज से वाहिद ने ममता से निकाह कर लिया. इस से पहले ममता का नाम बदल कर शाहीन रख दिया गया था. बड़े बेटे करनपाल का नाम बदल कर समीर लड़की मंजू का नाम जैनब रख दिया था.  लवाहिद का भाई गुड्डू ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में रहता था, जो वेल्डिंग का काम करता था. वाहिद, ममता और उस के बच्चे को ले कर वहीं पर पहुंच गया. वह सब रहने लगे. वाहिद आटो चलाने गाजियाबाद चला जाता था, जबकि ममता ग्रेटर नोएडा के फ्लैटों में साफसफाई का काम करने निकल जाती थी. दोनों की कमाई से घर ठीकठाक चल रहा था

वाहिद और ममता की शादी की बात सिर्फ गुड्डू ही जानता था. इस के अलावा वाहिद के घर के किसी भी सदस्य को पता नहीं था कि वाहिद ने 2 बच्चों की मां से शादी कर ली है. वाहिद मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की तहसील बिसौली के गांव भमौरी का रहने वाला था. वाहिद  ने उस का नाम शाहीन जरूर रख दिया था, लेकिन वह उसे ममता के नाम से ही बुलाता था. एक दिन वाहिद ने ममता उर्फ शाहीन से कहा, ‘‘ममता यहां ग्रेटर नोएडा में महंगाई ज्यादा है. ऐसा करते हैं कि हम लोग उधर ही चलते हैं. वहां गांव में मेरा अपना घर है, जमीनजायदाद भी है, मैं वहीं आटो चला लूंगा.’’

ममता उर्फ शाहीन ने पति वाहिद की बात पर कोई एतराज नहीं किया. इस पर वाहिद ममता और दोनों बच्चों को ले कर बिसौली के नजदीक चंदौसी शहर पहुंच गया. चंदौसी के मोहल्ला वारिश नगर में उस ने एक मकान किराए पर ले लिया. यह करीब 6 महीने पहले की बात है. चूंकि चंदौसी से उस का गांव भी नजदीक ही था, इसलिए वह अकेला अपने मांबाप से मिलने गांव भी जाता रहता था. उसी दौरान वाहिद के घर वालों ने संभल जिले के गांव चिमियावली के रहने वाले कलुआ की बेटी अरमाना से उस का रिश्ता तय कर दिया. उस समय वाहिद ने घर वालों को यह तक बताने की हिम्मत नहीं की थी कि उस ने शादी कर रखी है. रिश्ता तय होने के बाद वह कईकई दिन अपने गांव में रुक कर आता

ममता ने इस बात पर कभी चर्चा तक नहीं की कि वह इतने दिन गांव में क्यों रुकता है. ही उसे उस की शादी तय होने की कोई भनक लगी. वह तो उस पर अटूट विश्वास करती थी. आननफानन में वाहिद का अरमाना से निकाह भी हो गया. इस के बावजूद ममता अनभिज्ञ बनी रही. जब वाहिद हफ्ता दो हफ्ता बाद ममता के पास लौटता तो वह कह देता कि वह मुरादाबाद में रह कर आटो चला रहा है, इसलिए वहीं रुक जाता है. वह ममता को खर्च के पैसे देता रहता थाएक दिन ममता अचानक ही अपने दोनों बच्चों को ले कर वाहिद के गांव भमौरी पहुंच गई. भमौरी गांव चंदौसी के पास ही थी. वहां पर ममता को पता चला कि उस के पति ने उसे धोखे में रख कर संभल की एक लड़की से निकाह कर लिया है

यह जानकारी मिलते ही ममता आगबबूला हो गई. उस ने गांव में हंगामा करना शुरू कर दिया. उस ने पूरे गांव वालों को बताया कि मैं वाहिद की निकाह की हुई बीवी हूं. ससुराल में पहला हक मेरा बनता है. मुझ से तलाक लिए बगैर उस ने दूसरी शादी कैसे कर ली. इतना ही नहीं ममता ने पुलिस से शिकायत करने की धमकी भी दी. उस के हंगामे से पूरा गांव जमा हो गया. इस मामले में गलती वाहिद की ही थी पर ममता के थाने जाने के बाद बात बढ़ने की संभावना थी. इसलिए परिवार वालों ने गांव वालों के सहयोग से ममता को समझाना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि वाहिद की दूसरी पत्नी के साथ वह भी रह सकती है. उसे घर में रहने के लिए जगह दे दी जाएगी

गांवदेहात में जानवरों के बांधने और उन का चारा रखने की जगह को घेर कहते हैं. ममता को अपना और बच्चों का पेट भरना था, इसलिए वह घेर में रहने के लिए तैयार हो गई. वह वहीं रहने लगी पर वाहिद की दूसरी पत्नी अरमाना को ममता का वहां रहना नागवार लगता था. वह ममता को एक पल भी देखना पसंद नहीं करती थी. जिस की वजह से वाहिद और अरमाना में झगड़ा रहने लगा. रोजाना के झगड़ों से तंग कर अरमाना अपने मायके चिमियावली चली गई. वाहिद कई बार अरमाना को लाने के लिए अपनी ससुराल गया लेकिन अरमाना उस के घर वालों ने साफ मना कर दिया था कि जब तक ममता वहां रहेगी अरमाना यहां से नहीं जाएगी.

वाहिद ने कहा कि ठीक है, वह ममता को चंदौसी में किराए पर लिए कमरे पर पहुंचा देगा. वैसे भी ममता उस से कह भी रही थी कि उसे यहां तबेले में रहना अच्छा नहीं लगता. लेकिन अरमाना इस के लिए भी तैयार नहीं हुई. उस ने पति वाहिद से साफ कह दिया था कि जब तक ममता और उस के बच्चे जीवित रहेंगे वह ससुराल नहीं जाएगी. उसे उन तीनों के मरने का सबूत भी चाहिए. यानी जिस दिन वह उन के कटे हुए सिर उसे दिखा देगा वह उस के साथ चली चलेगी. पत्नी की इस जिद पर वाहिद परेशान हो गया. तब उस के ससुर कलुआ और सास सूफिया ने उसे समझाते हुए कहा कि यह कोई बहुत बड़ा काम नहीं है. थोड़े दिमाग से काम लोगे तो बड़ी आसानी से हो जाएगा. तुम किसी तरह ममता और उस के बच्चों को यहां लाओ, बाकी काम हम देख लेंगे.

उस के बाद वाहिद अपने गांव भमौरी लौट आया. वह ममता को ठिकाने लगाने का प्लान बनाने लगा. अपने प्लान में उस ने अपने भाई गुड्डू को भी शामिल कर लिया था. अपनी योजना से उस ने अपने ससुर कलुआ को भी  अवगत करा दिया. वाहिद की सास सूफिया ने इस के लिए बड़े छुरे का इंतजाम कर लियायोजना के मुताबिक 17 मार्च, 2018 की शाम वाहिद ममता और उस के बच्चों को ले कर भमौरी से बस द्वारा संभल पहुंच गया. गुड्डू भी उस के साथ था. वाहिद ने ममता को बताया था कि उस के दोस्त के यहां दावत है. संभल से वह लोग आटो में चिमियावली गांव के लिए बैठे. रास्ते में वाहिद ममता और बच्चों के साथ आटो से उतर गया और कहा कि अब शौर्टकट से पैदल चलते हैं, जल्दी पहुंच जाएंगे. ममता उस की साजिश से अनजान थी. वह गेहूं के खेत के किनारे के संकरे रास्ते से चलने लगा

पैदल चलने पर ममता के पेट में दर्द हुआ तो वाहिद ने पहले से अपने साथ लाई नशे की गोलियों में से एक गोली ममता को खिला दी. कुछ देर में जब ममता बेहोशी की हालत में गई तो वाहिद ने अपने ससुर कलुआ को आवाज दे कर बुला लिया. कलुआ खेत में छिपा बैठा था. जब ममता निढाल हो कर जमीन पर गिर गई तो गुड्डू, कलुआ और वाहिद ने मिल कर ममता का गला काट कर धड़ से सिर अलग कर दिया. उस समय उस का 10 वर्षीय बेटा करन वहीं खड़ा था. वह डर की वजह से वहां से भागा तो वाहिद ने उसे पकड़ लिया. उन लोगों ने उस बच्चे का भी गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. ममता के हाथ पर उस का नाम गुदा हुआ था. पहचान मिटाने के लिए वाहिद ने हाथ की वह खाल ही काट कर अलग कर दी जहां नाम लिखा था

उसी दौरान ममता की 4 वर्षीय बेटी मंजू वाहिद की टांगों से चिपकी खड़ी थी. वह कह रही थी कि पापा चलो भूख लग रही है. पापा मुझे टौफी दिलवाओ. वैसे भी वाहिद रोजाना मंजू के लिए टौफी ले कर आता था. वाहिद सब से ज्यादा प्यार मंजू को ही करता था. वाहिद जब मंजू को भी मारने चला तो कलुआ ने कहा, नहीं यह नासमझ है. इस को हम लोग पाल लेंगे. इस ने क्या बिगाड़ा है. वाहिद ने जेब से बड़ी पालिथिन थैली निकाल कर दोनों के सिर उस में रख लिए और अपनी ससुराल चिमियावली गया. वहां पर वाहिद ने अपनी सास सूफिया पत्नी अरमाना को कटे सिर दिखाए. सिर देखने पर उन्हें उन के मरने का यकीन हुआ. इस के बाद वह उन दोनों सिरों को गांव के नजदीक बहने वाली सोत नदी के किनारे रेत में अलगअलग दबा आया

पुलिस ने वाहिद, कलुआ, अरमाना, सूफिया को गिरफ्तार कर लिया. अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना पर एडीजी प्रेमप्रकाश भी बरेली से संभल पहुंच गए. प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर उन्होंने इस सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड का खुलासा कर पत्रकारों को जानकारी दी. बाद में पुलिस ने सभी अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक गुड्डू की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों आधारित