Social Crime Story : आश्रम में बुलाकर करता था बलात्कार

हिंदू समाज के अधिकांश लोग धर्मभीरू हैं. ऐसे लोगों की वजह से कई लोग आसिफ से आशु महाराज बन जाते हैं और तंत्रमंत्र की आड़ में वह सब करते हैं, जो सामाजिक रूप से निषेध है…

मीनाक्षी अपनी बेटी निकिता को ले कर बहुत परेशान रहती थी. इस की वजह यह कि उस की बेटी निकिता पोलियोग्रस्त थी. सन 2002 में निकिता का जब जन्म हुआ था तो उस समय वह देखने में स्वस्थ थी. जैसेजैसे वह बड़ी हुई, तब पता चला कि उसे पोलियो है. मीनाक्षी ने कई डाक्टरों से उस का इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी. निकिता 6 साल की हो चुकी थी. पोलियो का प्रभाव अब उस के शरीर पर साफ दिखाई दे रहा था. बेटी के भविष्य को ले कर मीनाक्षी चिंतित रहती थी. उसे इस बात की भी चिंता थी कि यदि निकिता ठीक नहीं हुई तो उस की शादी कैसे होगी.

क्योंकि आजकल अच्छीभली और स्वस्थ लड़की को भी उपयुक्त लड़का आसानी से नहीं मिलता, इसलिए मीनाक्षी इसी कोशिश में लगी रहती थी कि किसी भी तरह से निकिता ठीक हो जाए. गाजियाबाद के इंदिरापुरम की रहने वाली मीनाक्षी को कोई जानपहचान वाला किसी हकीम या तांत्रिक के बारे में बताता तो वह बेटी को ले कर उस के पास पहुंच जाती. बेटी के चक्कर में वह कई पंडितों, तांत्रिकों और मुल्लामौलवियों के पास गई, लेकिन निकिता ठीक न हो सकी. एक दिन मीनाक्षी ने टीवी पर आशु महाराज का कार्यक्रम देखा. आशुजी महाराज ज्योतिष विद्या के बारे में बताते थे. उन की पहचान हस्तरेखा विशेषज्ञ के रूप में थी. वह खुद को ज्योतिषाचार्य बताते थे. साथ ही अपने कार्यक्रम में लोगों की तमाम तरह की परेशानियां दूर करने के उपाय भी बताते थे. मीनाक्षी को आशुजी महाराज की बातें बहुत अच्छी लगती थीं. वह उन की बातों से बहुत प्रभावित थी.

मीनाक्षी निकिता के सही होने के चक्कर में जाने कहांकहां भागी थी. आशु महाराज की बातों से उसे उम्मीद की किरण दिखाई दी. उस ने सोचा कि क्यों न वह एक बार आशु महाराज से मिल कर बेटी के बारे में बताए. हो सकता है महाराज के आशीर्वाद से वह ठीक हो जाए. टीवी स्क्रीन से मीनाक्षी ने आशु महाराज से संपर्क करने का फोन नंबर लिख लिया. एक दिन मीनाक्षी ने उस नंबर पर फोन किया. फोन उन के आश्रम के किसी कार्यकर्ता ने उठाया. मीनाक्षी ने आशु महाराज से बात करने की इच्छा जाहिर की. कार्यकर्ता ने मीनाक्षी को अगले दिन महाराज से मिलने का टाइम बता दिया. इतना ही नहीं, उस ने उन के सेक्टर-7 रोहिणी, दिल्ली स्थित आश्रम का पता भी बता दिया. यह बात सन 2008 की है.

आशु महाराज से मुलाकात का समय निश्चित हो जाने पर मीनाक्षी बहुत खुश हुई. जिन के कार्यक्रम वह टीवी पर देखा करती थी, उन से साक्षात मिलना मीनाक्षी के लिए सौभाग्य की बात थी. अगले दिन निर्धारित समय से पहले मीनाक्षी अपनी 6 वर्षीय बेटी निकिता को ले कर आशु महाराज के रोहिणी स्थित आश्रम में पहुंच गई. काफी देर इंतजार करने के बाद उसे आशु महाराज से मिलने के लिए उन के कमरे में भेजा गया.  मीनाक्षी बेटी को ले कर आशु महाराज के कमरे में पहुंच गई. वह सुसज्जित कमरा था. अंदर गुलाब की खुशबू महक रही थी. कमरे में घुसते ही मीनाक्षी का मन खुश हो गया. आशु महाराज ने जब मीनाक्षी से उस की समस्या पूछी तो उस ने पास बैठी निकिता की परेशानी उन्हें बता दी.

आशु महाराज ने निकिता को गौर से देखने के बाद उस से कमरे में कुछ कदम चलने को कहा. दरअसल वह उसे चलवा कर यह देखना चाहते थे कि निकिता को कितनी बड़ी प्रौब्लम है, जिस से उसी के अनुसार उस का ट्रीटमेंट कर सकें. बेटी की वजह से खुद भी बनी शिकार 6 साल की निकिता भले ही पोलियोग्रस्त थी लेकिन वह थी बहुत खूबसूरत. मीनाक्षी ने बताया कि आशु महाराज ने उस से कहा था, ‘‘यह लड़की बहुत भाग्यवान है. इस का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है. मैं भविष्यवाणी कर रहा हूं कि एक दिन इसी की वजह से लोग तुम्हें जानेंगे. रही बात इस की बीमारी की, तो मैं मंत्रोच्चारित एक तेल दूंगा. उस तेल से तुम इस की रोजाना मालिश करना.

‘‘बीचबीच में तुम इसे आश्रम ले कर आती रहना. आश्रम में इस बच्ची के पूरे शरीर की मालिश हम अपने हाथों से ही किया करेंगे. जब हम इस की मालिश करेंगे तो इस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं होना चाहिए.’’

निर्वस्त्र कर मालिश करने की बात मीनाक्षी को थोड़ी अजीब सी लगी. फिर सोचा कि यह इतने पहुंचे हुए महाराज हैं. इन्होंने यह बात कुछ अच्छा समझ कर ही कही होगी. इसलिए मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोेड़ते हुए बोली, ‘‘महाराजजी, आप जो करेंगे हमारे भले के लिए ही करेंगे. मैं तो यह चाहती हूं कि हमारी बच्ची ठीक हो जाए. आप जैसा कहेंगे, हम करने को तैयार हैं.’’

मीनाक्षी का आरोप है कि आशु महाराज उस की बेटी को निर्वस्त्र कर उस के शरीर की मालिश करता था. सन 2013 तक यह सिलसिला चलता रहा. सन 2013 में ही दीवाली के मौके पर मीनाक्षी आशु के आश्रम में गई तो आश्रम के मैनेजर ने उसे चाय पीने को दी. चाय पीने के कुछ देर बाद मीनाक्षी को नींद सी आने लगी. उसी दौरान मैनेजर उसे आशु महाराज के कमरे में ले गया. मीनाक्षी ने बताया कि वहां आशु व उस के साथियों ने उस के साथ सामूहिक बलात्कार किया.

उस के साथ क्या हो रहा है, यह तो उसे पता था लेकिन उसे दी गई दवा के असर से वह अर्द्धमूर्छित थी. उस समय वह विरोध करने की स्थिति में भी नहीं थी. जब काफी देर बाद मीनाक्षी को होश आया तो उस के अंग दुख रहे थे. पहले वह वहां जी भर कर रोई और उस ने पुलिस से शिकायत करने की धमकी दी. इस पर बाबा ने उसे मुंह बंद रखने को कहा. साथ ही चेतावनी दी कि यदि यह बात बाहर किसी से कही तो पूरे परिवार को जान से हाथ धोना पड़ सकता है. यह भी कहा कि जिस तरह वह आश्रम में आती है, उसी तरह आती रहे. आश्रम आना बंद नहीं होना चाहिए. मीनाक्षी बाबा के रुतबे को जान चुकी थी इसलिए उस ने मुंह बंद रखने में ही भलाई समझी और वह आश्रम आतीजाती रही.

मीनाक्षी को महसूस होने लगा था कि वह आशु महाराज के शिकंजे में फंस चुकी है, जहां से निकलना आसान नहीं होगा. मीनाक्षी का आरोप है कि सन 2016 में बाबा के बेटे समर और उस के दोस्त सौरभ ने उस के साथ यौनाचार किया. पिता की तरह समर भी अय्याश था. वह यह सब सहती रही लेकिन उस ने बेटी को आश्रम लाना बंद कर दिया था. हद तो तब हो गई जब सन 2017 में समर ने उस से निकिता को आश्रम लाने को कहा. मीनाक्षी ऐसा हरगिज नहीं चाहती थी. लिहाजा इस बात को ले कर वह आशु महाराज से मिली और उस ने समर की शिकायत की.

मीनाक्षी ने बताया कि इस पर आशु महाराज ने उसे धमकाया और अपने बेटे का ही पक्ष लिया. उन्होंने मीनाक्षी से यह भी कहा कि तू मेरी गुलाम है और अब तेरी बेटी भी मेरी गुलामी करेगी. 2017 में ही होली के दिन जब मीनाक्षी रोहिणी के आश्रम में अकेली पहुंची तो उस के साथ मारपीट की गई. मीनाक्षी ने बताया कि कुल मिला कर वह आशु महाराज की कठपुतली बन कर रह गई थी. वह उस से इतना खौफजदा थी कि उस के खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकती थी. छलबल का खिलाड़ी था आशु उर्फ आसिफ मीनाक्षी के अनुसार, सन 2017 में आशु महाराज ने उसे और उस की बेटी निकिता को दक्षिणी दिल्ली के हौजखास के एक्स ब्लौक स्थित आश्रम में बुलाया. वहां आशु महाराज ने उसी के सामने निकिता के साथ अश्लील हरकत की.

निकिता अब कोई बच्ची नहीं रही थी, वह 15 साल की हो चुकी थी. बाबा की ये हरकतें मीनाक्षी की बरदाश्त से बाहर हो चुकी थीं. लिहाजा उस ने बाबा का विरोध किया तो बाबा ने मीनाक्षी की पिटाई करा कर उसे आश्रम से बाहर निकलवा दिया. मीनाक्षी ने इस की शिकायत हौजखास थाने में की. मीनाक्षी ने बताया कि पुलिस आशु महाराज से इतनी प्रभावित थी कि उस की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की. बल्कि पुलिस मामले को रफादफा करने का दबाव बनाने लगी, पर मीनाक्षी नहीं मानी. काफी भागादौड़ी और मशक्कत के बाद पुलिस ने आशु महाराज, उस के बेटे व दोस्त के खिलाफ भादंवि की धारा 376डी, 354, 506 के अलावा पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की. इस की जांच थाना पुलिस के बजाय क्राइम ब्रांच को सौंपी गई.

क्राइम ब्रांच ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी, लेकिन आरोपी न तो हौजखास वाले आश्रम में मिले और न ही रोहिणी के आश्रम में. वे सभी अंडरग्राउंड हो चुके थे. इसी बीच शाहदरा जिले के एएटीएस की टीम को आशु महाराज के बारे में गुप्त सूत्रों द्वारा सूचना मिली कि आशु महाराज उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में एक ठिकाने पर छिपा बैठा है. इस महत्त्वपूर्ण सूचना के बाद एएटीएस की टीम ने सूचना में बताई गई जगह पर दबिश दे कर आशु महाराज को गिरफ्तार कर लिया. उच्चाधिकारियों के फैसले के बाद एएटीएस ने उसे क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दिया. आसिफ उर्फ आशु महाराज ने पुलिस को बताया कि दिल्ली और देश भर में लगातार कई बाबाओं की गिरफ्तारी होने के बाद उसे इस बात का डर हो गया था कि कहीं पब्लिक उसे पकड़ कर मार न दे.

इसी दहशत की वजह से वह दिल्ली से भाग कर गाजियाबाद के अजनारा अपार्टमेंट के एक फ्लैट में जा कर छिप गया था. क्राइम ब्रांच ने उस के मोबाइल फोन, लैपटाप और अन्य इलेक्ट्रौनिक गैजेट बरामद कर जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिए हैं. पुलिस ने 14 सितंबर को उसे कोर्ट में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस के अलावा आसिफ के बेटे समर को भी पूछताछ के लिए बुलाया. कई घंटे की गहन पूछताछ के बाद उसे भेज दिया गया. पुलिस समर के दोस्त सौरभ से भी पूछताछ करेगी.

क्राइम ब्रांच इस बात की भी जांच कर रही है कि कहीं आसिफ ने नाम बदल कर लोगों की भावनाओं से तो खिलवाड़ नहीं किया. यदि इस के सबूत मिले तो उस के खिलाफ काररवाई की जाएगी, क्योंकि उस ने भक्तों से असल पहचान छिपाई थी.

कथा लिखने तक क्राइम ब्रांच आशु महाराज से पूछताछ कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, मीनाक्षी और निकिता परिवर्तित नाम है.

Facebook मैसेज “ए सीक्रेट नाइट इन होटल” का रहस्य

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में नोएडा की रहने वाली रश्मि (बदला नाम) जब भी अपना फेसबुक एकाउंट खोलती, उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट में एक अंजान शख्स की रिक्वैस्ट जरूर दिखाई दे जाती. वह जानती थी कि आवारा, शरारती और दिलफेंक किस्म के मनचले युवक लड़कियों की कवर फोटो और प्रोफाइल देख कर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजा करते हैं. अगर इन की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली जाए तो जल्द ही ये रोमांस और सैक्स की बातें करते हुए नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं.

आमतौर पर ऐसी फैंरड रिक्वैस्ट पर समझदारी दिखाते हुए रश्मि ध्यान नहीं देती थी. इसलिए इस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वह बैठेबिठाए आफत मोल नहीं लेना चाहती थी. लेकिन 20 अप्रैल को उस ने इस अंजान फ्रैंड रिक्वैस्ट के साथ एक टैगलाइन लगी देखी तो वह बेसाख्ता चौंक उठी. वह लाइन थी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’ इस टैगलाइन ने उसे भीतर तक न केवल हिला कर रख दिया, बल्कि गुदगुदा भी दिया. उसे पढ़ कर अनायास ही वह 20 दिन पहले की दुनिया में ठीक वैसे ही पहुंच गई, जैसे फिल्मों के फ्लैशबैक में नायिकाएं पहुंचने से खुद को रोक नहीं पातीं.

की बोर्ड पर चलती उस की अंगुलियां थम गईं और दिलोदिमाग पर ग्वालियर छा गया. वह वाकई सीक्रेट और हसीन रात थी, जब उस ने पूरा वक्त पहले अभिसार में अपने मंगेतर विवेक (बदला नाम) के साथ गुजारा था. जिंदगी के पहले सहवास को शायद ही कोई युवती कभी भुला पाती है. वह वाकई अद्भुत होता है, जिसे याद कर अरसे तक जिस्म में कंपकंपी और झुरझुरी छूटा करती है.

रश्मि को याद आ गया, जब वह और विवेक दिल्ली से ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में सवार हुए थे तो उन्हें कतई गर्मी का अहसास नहीं हो रहा था. उस के कहने पर ही विवेक ने रिजर्वेशन एसी कोच के बजाय स्लीपर क्लास में करवाया था. दिल्ली से ग्वालियर लगभग 5 घंटे का रास्ता था. कैसे बातोंबातों में कट गया, इस का अंदाजा भी रश्मि को नहीं हो पाया. आगरा निकलतेनिकलते रश्मि के चेहरे पर पसीना चुहचुहाने लगा तो विवेक प्यार से यह कहते हुए झल्ला भी उठा, ‘‘तुम से कहा था कि एसी कोच में रिजर्वेशन करवा लें, पर तुम्हें तो बचत करने की पड़ी थी. अब पोंछती रहो बारबार रूमाल से पसीना.’’

विवेक और रश्मि की शादी उन के घर वालों ने तय कर दी थी, जिस का मुहूर्त जून के महीने का निकला था. चूंकि सगाई हो चुकी थी, इसलिए दोनों के साथ ग्वालियर जाने पर घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था. यह आजकल का चलन हो गया है कि एगेंजमेंट के बाद लड़कालड़की साथ घूमेफिरें तो उन के घर वाले पुराने जमाने की तरह ऊंचनीच की बातें करते टांग नहीं अड़ाते.

रश्मि को अपनी रिश्तेदारी के एक समारोह में जाना था, जिस के बाबत घर वालों ने ही कहा था कि विवेक को भी ले जाओ तो उस की रिश्तेदारों से जानपहचान हो जाएगी. बारबार पसीना पोंछती रश्मि की हालत देख कर विवेक खीझ रहा था कि इस से तो अच्छा था कि एसी में चलते. उसे परेशानी तो न होती. प्यार की बात का जवाब भी प्यार से देते रश्मि उसे समझा रही थी कि उस का साथ है तो क्या गर्मी और क्या सर्दी, वह सब कुछ बरदाश्त कर लेगी. बातों ही बातों में रश्मि ने अपना सिर विवेक के कंधे पर टिका दिया तो सहयात्री प्रेमीयुगल के इस अंदाज पर मुसकरा उठे. लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. टे्रनों में ऐसे दृश्य अब बेहद आम हो चले हैं.

आगरा निकलते ही विवेक ने उस से वह बात कह डाली, जिसे वह दिल्ली से बैठने के बाद से दिलोदिमाग में जब्त किए बैठा था कि क्यों न हम रिश्तेदार के यहां कल सुबह चलें. वैसे भी फंक्शन कल ही है, आज की रात किसी होटल में गुजार लें. यह बात शायद रश्मि भी अपने मंगेतर के मुंह से सुनना चाहती थी.

क्योंकि स्वाभाविक तौर पर शरम के चलते वह एदकम से कह नहीं पा रही थी. दिखाने के लिए पहले तो उस ने बहाना बनाया कि घर वालों को पता चल गया तो वे क्या सोचेंगे? इस पर विवेक का रेडीमेड जवाब था, ‘‘उन्हीं के कहने पर तो हम साथ जा रहे हैं और फिर बस 2 महीने बाद ही तो हमारी शादी होने वाली है. उस के बाद तो हमें हर रात साथ ही बितानी है.’’

इस पर रश्मि बोली, ‘‘…तो फिर उस रात का इंतजार करो, अभी से क्यों उतावले हुए जा रहे हो?’’

रश्मि का मूड बनते देख विवेक ऊंचनीच के अंदाज में बोला, ‘‘अरे यार, क्या तुम्हें भरोसा नहीं मुझ पर?’’

यह एक ऐसा शाश्वत डायलौग है, जिस का कोई जवाब किसी प्रेमिका या मंगेतर के पास नहीं होता. और जो होता है, वह सहमति में हिलता सिर वह जवाब होता है.

‘‘तुम पर भरोसा है, तभी तो सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है.’’ रश्मि ने कहा.

यही जवाब विवेक सुनना चाहता था. जब यह तय हो गया कि दोनों रात एक साथ किसी होटल के कमरे में गुजारेंगे तो बहने वाली पसीने की तादाद तो बढ़ गई, पर बरसती गर्मी का अहसास कम हो गया. दोनों आने वाले पलों की सोचसोच कर रोमांचित हुए जा रहे थे. अलबत्ता रश्मि के दिल में जरूर शंका थी कि धोखे से अगर किसी जानपहचान वाले ने देख लिया तो वह क्या सोचेगा?

अपनी शंका का समाधान करते हुए वह विवेक की आवाज में खुद को समझाती रही कि सोचने दो जिसे जो सोचना है, आखिर हम जल्द ही पतिपत्नी होने जा रहे हैं. आजकल तो सब कुछ चलता है. और कौन हम होटल के कमरे में वही सब करेंगे, जो सब सोचते हैं. हमें तो रोमांस और प्यार भरी बातें करने के लिए एकांत चाहिए, जो मिल रहा है तो मौका क्यों हाथ से जाने दें?

ट्रेन के ग्वालियर स्टेशन पहुंचतेपहुंचते अंधेरा छा गया था, पर इस प्रेमीयुगल के दिलोदिमाग में एक अछूते अंजाने अहसास को जी लेने का सुरूर छाता जा रहा था. स्टेशन पर उतर कर विवेक ने औटोरिक्शा किया. नई सवारियों को देख कर ही औटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते हैं कि ये किसी लौज में जाएंगे. कुछ देर औटोरिक्शा इधरउधर घूमता रहा. दोनों ने कई होटल देखे, फिर रुकना तय किया होटल उत्तम पैलेस में. ग्वालियर रेलवे स्टेशन के प्लेटफौर्म नंबर एक के बाहर की सड़क पर रुकने के लिए होटलों की भरमार है. चूंकि आमतौर पर रेलवे स्टेशनों के बाहर की होटलें जोड़ों को रुकने के लिए मुफीद नहीं लगतीं, इसलिए विवेक और रश्मि को उत्तम होटल पसंद आया. जो रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर रेसकोर्स रोड पर सैनिक पैट्रोल पंप के पास स्थित है. दोनों को यह होटल सुरक्षित लगा.

औटो वाले को पैसे दे कर दोनों काउंटर पर पहुंचे तो वहां एक बुजुर्ग मैनेजर बैठा था, जिस की अनुभवी निगाहें समझ गईं कि यह नया जोड़ा है. मैनेजर पूरे कारोबारी शिष्टाचार से पेश आया और एंट्री रजिस्टर उन के आगे कर दिया. आजकल होटलों में रुकने के लिए फोटो आईडी अनिवार्य है, जो मांगने पर विवेक और रश्मि ने दिए तो मैनेजर ने तुरंत उन की फोटोकौफी कर के अपने पास रख ली.

खानापूर्ति कर दोनों अपने कमरे में आ गए. 6 घंटों से दिलोदिमाग में उमड़घुमड़ रहा प्यार का जज्बा अब आकार लेने लगा. दरवाजा बंद करते ही विवेक ने रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया और ताबड़तोड़ उस पर चुंबनों की बौछार कर दी. एक पुरानी कहावत है, आग और घी को पास रखा जाए तो घी पिघलेगा, जिस से आग और भड़केगी. यही इस कमरे में हो रहा था. मंगेतर की बांहों में समाते ही रश्मि का संयम जवाब दे गया. जल्द ही दोनों बिस्तर पर आ कर एकदूसरे के आगोश में खो गए. तकरीबन एक घंटे कमरे में गर्म सांसों का तूफान उफनता रहा. तृप्त हो जाने के बाद दोनों फ्रेश हुए तो शरीर की भूख मिटने के बाद अब पेट की भूख सिर उठाने लगी.

रश्मि का मन बाहर जा कर खाना खाने का नहीं था, इसलिए विवेक ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया. खाना खा कर टीवी देखते हुए दोनों दुनियाजहान की बातें करते आने वाले कल का तानाबाना बुनते रहे कि शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे और क्याक्या करेंगे? एक बार के संसर्ग से दोनों का मन नहीं भरा था, इसलिए फिर सैक्स की मांग सिर उठाने लगी, जिस में उस एकांत का पूरा योगदान था, जिस की जरूरत एक अच्छे मूड के लिए होती है. इस बार दोनों ने वे सारे प्रयोग कर डाले, जो वात्स्यायन के कामसूत्र सोशल मीडिया और इधरउधर से उन्होंने सीखे थे.

2-3 घंटे बाद दोनों थक कर चूर हो गए तो कब एकदूसरे की बांहों में सो गए, दोनों को पता ही नहीं चला. और जब चला तब तक सुबह हो चुकी थी. रश्मि और विवेक, दोनों के लिए ही यह एक नया अनुभव था, जिसे उन्होंने जी भर जिया था. दोनों के बीच कोई परदा नहीं रह गया था, पर इस बात की कोई ग्लानि उन्हें नहीं थी, क्योंकि दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे. सुबह अपना सामान समेट कर दोनों काउंटर पर पहुंचे और होटल का बिल अदा कर रिश्तेदार के यहां पहुंच गए. रश्मि ने चहकते हुए सभी रिश्तेदारों से विवेक का परिचय कराया, लेकिन दोनों यह बात छिपा गए कि वे रात को ही ग्वालियर आ गए थे और रात उन्होंने एक होटल में गुजारी थी. जाहिर है, यह बात बताने की थी भी नहीं.

उसी दिन शाम को दोनों वापस नोएडा के लिए रवाना हो गए. साथ में था एक रोमांटिक रात का दस्तावेज, जिसे याद कर दोनों सिहर उठते थे और एकदूसरे की तरफ देख हौले से मुसकरा देते थे. बात आई गई हो गई, पर दोनों के बीच व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैटिंग में वह रात और उस की बातें और यादें ताजा होती रहीं. अब न केवल दोनों, बल्कि उन के घर वाले भी शादी की तैयारियां और खरीदारी में लग गए थे.

इन यादों से उबरते रश्मि की नजर फिर से टैग की हुई इस लाइन पर पड़ी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल’ तो वह चौंक उठी कि अजीब इत्तफाक है. फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजने वाले ने जैसे उस की यादों को जिंदा कर दिया था. रश्मि की जिज्ञासा अब शबाब पर थी कि आखिर इस लाइन का मतलब क्या है? लिहाजा उस ने कुछ सोच कर उस अंजान व्यक्ति की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. जैसे ही उस ने इस नए फेसबुक फ्रैंड का एकाउंट खोला, वह भौचक रह गई. भेजने वाले ने एक पैराग्राफ का यह मैसेज लिख रखा था.

‘रश्मिजी, आप का कमसिन फिगर लाखों में एक है. जब से मैं ने आप को देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. वीडियो में आप एक लड़के को प्यार कर रही हैं. सच कहूं तो मुझे उस लड़के की किस्मत से जलन हो रही है. काश! उस युवक की जगह मैं होता तो आप मुझे उसी तरह टूट कर प्यार करतीं. आप को यकीन नहीं हो रहा हो तो अब वीडियो देखिए.’

अव्वल तो मैसेज पढ़ कर ही रश्मि के दिमाग के फ्यूज उड़ गए थे. रहीसही कसर वह वीडियो देखने पर पूरी हो गई, जिस में उत्तम होटल के कमरे में उस के और विवेक के बीच बने सैक्स संबंधों की तमाम रिकौर्डिंग कंप्यूटर स्क्रीन पर दिख रही थी. वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.

पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.

दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए. लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया. पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.

सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था. भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.

वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था. भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.

भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता. ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया. इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.

जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त  होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

Cyber Crime Story : बैंक अधिकारी बनकर लूटे लाखों

मार्च, 2017 के तीसरे या चौथे सप्ताह की बात है. छुट्टी का दिन होने की वजह से भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी जे.सी. मोहंती दोपहर को अपने सरकारी बंगले में बने औफिस में बैठे फाइलें देख रहे थे. उन की टेबल पर फाइलों का ढेर लगा था. वह राजस्थान में जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी के भूजल विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं. वह पानी के महकमे से जुड़े हैं और इस समय गर्मी का मौसम चल रहा है, इसलिए फाइलों की संख्या काफी हो गई थी.

वह फाइल पर मातहत अधिकारियों द्वारा लिखी गई टिप्पणियों को ध्यान से पढ़ रहे थे कि अचानक उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने मोबाइल के स्क्रीन पर आने वाले नंबर को सरसरी तौर पर देखा और फिर स्विच औन कर के कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘सर, मैं स्टेट बैंक औफ इंडिया से बोल रहा हूं.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘हां, बताइए.’’ श्री मोहंती ने फाइल पर नजरें गड़ाए हुए ही कहा.

‘‘सर, आप को पता ही होगा कि एक अप्रैल से स्टेट बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर  सहित देश के 5 बैंकों का एसबीआई में विलय हो रहा है. आप का खाता एसबीबीजे में है. आप के एसबीबीजे के एटीएम कार्ड का वेरिफिकेशन करना है, ताकि उसे एसबीआई से जोड़ा जा सके.’’ दूसरी ओर से फोन करने वाले ने नपेतुले शब्दों में कहा.

बात करने वाले का लहजा सभ्य और अधिकारी जैसा था. इसलिए जे.सी. मोहंती ने पूछा, ‘‘वह तो ठीक है, लेकिन इस में मुझे क्या करना है?’’

‘‘सर, आप अपने एटीएम कार्ड के नंबर बता दीजिए.’’ फोन करने वाले ने कहा.

एसबीबीजे के एसबीआई में विलय की बात श्री मोहंती को पता थी, क्योंकि रोज ही मीडिया में इस की खबरें आ रही थीं. इसलिए उन्होंने टेबल पर ही रखे अपने पर्स से स्टेट बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर का एटीएम कार्ड निकाल कर उस पर सामने की ओर लिखे बारह अंकों का नंबर फोन करने वाले को बता दिया. दूसरी ओर से फोन करने वाले ने एटीएम कार्ड नंबर नोट करते हुए दोबरा बोल कर कन्फर्म करते हुए कहा, ‘‘थैंक्यू सर, आप का एक मिनट और लूंगा, आप को एटीएम कार्ड के पीछे लिखा सीवीवी नंबर भी बताना होगा.’’

जे.सी. मोहंती ने सीवीवी नंबर भी बता दिया. इस के बाद फोन कट गया तो वह फिर से अपने काम में व्यस्त हो गए. कुछ देर बाद उन के मोबाइल पर एक मैसेज आया. उन्होंने मैसेज देखा तो उस में ओटीपी नंबर था. उसे उन्होंने अपनी डायरी में नोट कर लिया.

मैसेज आने के करीब 10 मिनट बाद उन के मोबाइल पर एक बार फिर उस व्यक्ति का फोन आया. उस ने कहा, ‘‘सर, आप को एक बार और कष्ट दे रहा हूं. आप के मोबाइल पर ओटीपी नंबर का मैसेज आया होगा. इसी ओटीपी नंबर से आप के एटीएम कार्ड और बैंक खाते का वेरिफिकेशन किया जाएगा. कृपया आप वह ओटीपी नंबर बता दीजिए, ताकि आप के खाते और एटीएम कार्ड को वेरिफाई कर के स्टेट बैंक औफ इंडिया से जोड़ कर अपडेट किया जा सके.’’

कुछ देर पहले ही अपनी पर्सनल डायरी में लिखा ओटीपी नंबर जे.सी. मोहंती ने सहज भाव से फोन करने वाले को बता दिया और अपने काम में व्यस्त हो गए. शासन सचिवालय में आसीन आईएएस अधिकारियों का जीवन बहुत व्यस्त होता है. दिनभर मीटिंगों और फाइलों में सिर खपाना पड़ता है. कभी संबंधित मंत्री बुला लेते हैं तो कभी मुख्य सचिव. मुख्यमंत्री औफिस से भी दिन में 2-4 बार किसी न किसी फाइल के बारे में पूछताछ की जाती है. वैसे भी उन दिनों राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था, इसलिए भूजल विभाग के सवालों के जवाब के लिए उन का विधानसभा में उपस्थित रहना जरूरी था.

इन्हीं व्यस्तताओं के बीच जे.सी. मोहंती के मोबाइल पर पचासों मैसेज ऐसे आए, जिन्हें वह खोल कर देख या पढ नहीं सके. 3 अप्रैल, को वह सचिवालय के अपने औफिस में बैठे थे. जिस समय वह थोड़ा फुरसत में थे, तभी उन के मोबाइल पर एक मैसेज आया. उन्होंने वह मैसेज पढ़ा तो हैरान रह गए. मैसेज के अनुसार उन के बैंक खाते से 30 हजार रुपए निकाले गए थे.

जबकि बैंक से या एटीएम से उन्होंने कोई पैसे नहीं निकाले थे, इसलिए वह परेशान हो उठे. वह तुरंत शासन सचिवालय में ही स्थित स्टेट बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर की शाखा पर पहुंचे और बैंक मैनेजर को पूरी बात बताई. बैंक मैनेजर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तुरंत जे.सी. मोहंती के बैंक खाते की डिटेल निकलवाई, जिसे देख कर श्री मोहंती को झटका सा लगा. उन के बैंक खाते से 22 मार्च से 3 अप्रैल के बीच अलगअलग समय में 2 लाख 73 हजार रुपए निकाले गए थे.

उन के मोबाइल पर बैंक की ओर से इस निकासी के मैसेज भी भेजे गए थे, पर व्यस्तता की वजह से वह उन मैसेजों को देख नहीं सके थे. खाते से करीब पौने 3 लाख रुपए निकलने की डिटेल देख कर जे.सी. मोहंती को करीब 15 दिनों पहले मोबाइल पर आए उस फोन की याद आ गई, जिस में खुद को बैंक अधिकारी बता कर किसी आदमी ने उन से एटीएम कार्ड का नंबर, सीवीसी नंबर और ओटीपी नंबर मांगा था. जे.सी. मोहंती को समझते देर नहीं लगी कि वह साइबर ठगों द्वारा ठगी का शिकार हो गए हैं. उन के साथ औनलाइन ठगी की गई है. उन्हें दुख इस बात का था कि सितंबर, 2016 में एक बार और उन के साथ साइबर ठगी हो चुकी थी. उस समय उन के क्रेडिट कार्ड से विदेश में 86 हजार रुपए की शौपिंग की गई थी. जयपुर के थाना अशोकनगर में इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी. लेकिन ठगों का पता नहीं चल सका था.

इस औनलाइन ठगी से जे.सी. मोहंती परेशान हो उठे थे. उन्होंने बैंक मैनेजर से पैसों की निकासी रोकने को कहा ही नहीं, बल्कि बैंक की जरूरी कागजी खानापूर्ति भी की, ताकि औनलाइन ठगी करने वाले भविष्य में उन के खाते से पैसे न निकाल सकें. इस के बाद अपने औफिस पहुंच कर उन्होंने पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को फोन कर के अपने साथ हुई साइबर ठगी की जानकारी दी. जे.सी. मोहंती के साथ हुई ठगी की बात सुन कर संजय अग्रवाल हैरान रह गए. हैरानी की बात यह थी कि राजस्थान पुलिस और विभिन्न बैंकों की ओर से अकसर समाचार पत्रों, इलैक्ट्रौनिक और डिजिटल मीडिया द्वारा रोजाना लोगों को औनलाइन ठगी के बारे में जागरूक करने के लिए बताया जा रहा है कि किसी भी व्यक्ति को फोन पर अपने एटीएम कार्ड या बैंक खाते की डिटेल कतई न दें.

पुलिस और बैंकों की इतनी कवायद के बावजूद भी आम आदमी रोजाना इन ठगों का शिकार हो रहे हैं, लेकिन अगर कोई सीनियर आईएएस अफसर इस तरह की ठगी का शिकार हो जाए तो ताज्जुब होगा ही. संजय अग्रवाल ने जे.सी. मोहंती को रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह देते हुए साइबर ठगों को जल्दी ही पकड़ने का आश्वासन दिया. मूलरूप से ओडि़सा के रहने वाले राजस्थान कैडर के सन 1985 बैच के आईएएस अधिकारी जे.सी. मोहंती ने उसी दिन जयपुर में शासन सचिवालय के पास स्थित थाना अशोकनगर में अपने साथ हुई इस ठगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. औनलाइन ठगी का यह मात्र एक उदाहरण है. ऐसी ठगी राजस्थान सहित देश के लगभग हर राज्य में रोजाना सौ-पचास लोगों के साथ हो रही है. राजस्थान में सन 2016 में साइबर क्राइम के 907 मुकदमे दर्ज हुए थे, जिन में 530 मुकदमे सिर्फ जयपुर शहर में दर्ज हुए थे.

मुकदमों के दर्ज होने के बाद जांच में सामने आया कि साइबर ठग खुद को बैंक मैनेजर बता कर लोगों के मोबाइल पर फोन कर के कहते हैं कि ‘आप का एटीएम कार्ड बंद हो रहा है या आप के एटीएम कार्ड की क्रय करने की सीमा बढ़ाई जा रही है अथवा आप के एटीएम कार्ड को आधार कार्ड से लिंक किया जा रहा है.’ किसी भी व्यक्ति से ये ठग मोबाइल फोन पर कहते हैं कि ‘आप का एटीएम कार्ड पुराना हो गया है. उस के बदले नया कार्ड जारी किया जा रहा है, इसलिए आप को एटीएम कार्ड का नया पासवर्ड दिया जा रहा है. आप ने पिछली बार एटीएम से कब रकम निकाली थी? क्या आप ने नए केवाईसी या आधार कार्ड को लिंक नहीं किया है?’

बैंक वालों की तरह तकनीकी बातें कह कर ये ठग मोबाइल फोन पर ही लोगों से एटीएम कार्ड का नंबर, सीवीसी नंबर और ओटीपी नंबर पूछ लेते हैं. इस के बाद ये साइबर ठग स्मार्ट फोन या कंप्यूटर के माध्यम से मनी ट्रांसफर सौफ्टवेयर द्वारा उस व्यक्ति के खाते की रकम निकाल लेते हैं. राजस्थान में इस तरह की लगातार हो रही ठगी की वारदातों का पता करने के लिए जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन तथा पुलिस उपायुक्त (क्राइम) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच की तकनीकी शाखा एवं संगठित अपराध शाखा के अधिकारियों की एक टीम बनाई.

इस टीम ने जांच शुरू की तो पता चला कि इस तरह की वारदातें करने वाले महाराष्ट्र के पुणे जिले के तलेगांव इलाके में रह रहे हैं. टीम ने उन अपराधियों को चिन्हित कर उन की निगरानी शुरू की तो पता चला कि ये ठग कौल सैंटर की तर्ज पर बैंक अधिकारी बन कर रोजाना सैकड़ों लोगों को फोन करते हैं और उन से एटीएम कार्ड का नंबर आदि पूछ कर औनलाइन ठगी करते हैं. कई दिनों की निगरानी के बाद क्राइम ब्रांच ने महाराष्ट्र के पुणे के एसपी (ग्रामीण) सुवेज हक तथा क्राइम ब्रांच के अधिकारियों की मदद से 27 मार्च को 5 लोगों को महाराष्ट्र के तलेगांव दाभाड़े से गिरफ्तार किया. इन में झारखंड के जिला जामताड़ा के करमाटांड निवासी 3 सगे भाई यूसुफ, मुख्तार एवं अख्तर शामिल थे. यूनुस के इन तीनों बेटों में यूसुफ सब से बड़ा और अख्तर सब से छोटा था.

इन के अलावा महाराष्ट्र के पुणे के तलेगांव दाभाड़े निवासी संजय सिंधे और शैलेश को भी गिरफ्तार किया गया था. इन के पास से पुलिस ने 10 छोटे और 4 बड़े मोबाइल फोन, 15 सिम, 7 एटीएम कार्ड और 9 लाख 86 हजार  500 रुपए बरामद किए थे. इन लोगों ने पिछले साल जयपुर के रहने वाले गोपाल बैरवा को फोन कर के उन से 29 हजार 600 रुपए ठगे थे. इस का मुकदमा जयपुर पूर्व के थाना बस्सी में दर्ज था. गिरफ्तार अभियुक्तों को पुलिस जयपुर ले आई. इन से की गई पूछताछ में पता चला कि झारखंड के जामताड़ा जिले के करमाटांड के रहने वाले तीनों ठग भाइयों ने अपने गांव के ही दूसरे लोगों से बैंक अधिकारी बन कर औनलाइन ठगी करना सीखा और फर्जी आईडी से दर्जनों सिम हासिल कर के आसान तरीके से मोटा पैसा कमाने लगे.

ये लोग ठगी के लिए फर्जी आईडी से लिए गए सिम और दर्जनों मोबाइल का उपयोग करते थे, ताकि पुलिस इन तक पहुंच न सके. इन लोगों ने फर्जी मोबाइल सिमों पर ई-वौलेट भी रजिस्टर्ड करा रखे थे, जिन में शिकार हुए आदमी के बैंक खाते से औनलाइन पैसे ट्रांसफर करते थे. इस के बाद ये औनलाइन शौपिंग करते या ई-वौलेट के माध्यम से उस पैसे को अपने बैंक खाते में भेज देते. ये ठगी गई रकम से ई-वौलेट के जरिए मोबाइल भी रिचार्ज करते थे. इस के लिए ये मोबाइल की दुकान चलाने वालों से मिलीभगत कर उन्हें 30 से 40 प्रतिशत तक कमीशन का लालच देते थे. इस तरह मोबाइल रिचार्ज कर दुकानदारों से मिलने वाली रकम को ये लोग अपने घर वालों के बैंक खाते में जमा कराते थे.

देश भर में हो रही औनलाइन ठगी की वारदातों को देखते हुए झारखंड सहित विभिन्न राज्यों की पुलिस ने झारखंड के जामताड़ा इलाके में रहने वाले साइबर ठगों पर शिकंजा कसा तो करमाटांड के रहने वाले तीनों ठग भाई अपने साथियों संजय सिंधे और शैलेश की मदद से इसी साल फरवरी से पुणे के तलेगांव इलाके में किराए के एक मकान में रहने लगे. उसी मकान से ये पांचों ठगी की वारदात करते थे.

पूछताछ में पता चला कि इन पांचों अभियुक्तों ने पिछले एक साल में राजस्थान सहित देश के 23 राज्यों में 85 हजार से अधिक फोन किए थे. लेकिन ये मुख्य रूप से राजस्थान के लोगों को अपना निशाना बनाते थे. इस का पता इस से चलता है कि 85 हजार फोन में से लगभग 50 हजार फोन राजस्थान के सभी 33 जिलों में किए गए थे. राजस्थान का ऐसा कोई जिला नहीं बचा था, जहां इन लोगों ने ठगी न की हो. अकेले जयपुर शहर में ही इन लोगों ने करीब 5 हजार फोन किए थे. पुलिस ने इन से जो करीब 10 लाख रुपए बरामद किए थे, ये रुपए एक महीने का कलेक्शन बताया गया था.

तीनों ठग भाइयों ने धोखाधड़ी से करोड़ों रुपए कमाए हैं. ठगी की रकम को इन्होंने करीब 25 बैंक खातों और 50 से अधिक ई-वौलेट में जमा कराई थी. इन के 10 बैंक खातों की डिटेल खंगाली जा रही है. इन में 4 खाते प्राइवेट बैंकों और 6 सरकारी बैंकों में हैं. इन में 4 बैंक खाते केरल में हैं. इन सभी खातों में 58 लाख 18 हजार रुपए जमा हुए थे, लेकिन इन में एक जनवरी, 2017 से 23 मार्च तक 8 लाख 49 हजार रुपए ही बचे थे. जयपुर पुलिस ने इस से पहले औनलाइन ठगी के एक अन्य मामले में 23 मार्च को एक अभियुक्त दिनेश मंडल को मुंबई से वहां की पुलिस की मदद से गिरफ्तार किया था. मूलरूप से झारखंड के जामताड़ा का रहने वाला दिनेश मंडल मुंबई में वर्ली स्थित जनता कालोनी के कोलीकम में रह कर औनलाइन ठगी कर रहा था.

उस ने पिछले साल जयपुर के विनोद कुमार पाल को फोन कर के खुद को बैंक अधिकारी बता कर एटीएम कार्ड और ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से 7 हजार रुपए औनलाइन निकाल लिए थे. इस का मुकदमा जयपुर पश्चिम के थाना सदर में दर्ज हुआ था. पुलिस ने दिनेश मंडल से 4 मोबाइल फोन और 7 सिम बरामद किए थे. उस से की गई पूछताछ में पता चला कि उस ने ठगी के लिए मोबाइल फोन से लगभग 29 सौ लोगों को फोन किए थे. जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने लगातार हो रही औनलाइन ठगी की वारदातों को देखते हुए काफी समय पहले अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन एवं पुलिस उपायुक्त (क्राइम) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच की विशेष टीम गठित कर इस टीम को ऐसे अपराधियों का पता लगाने का जिम्मा सौंपा था.

इस टीम ने ठगी के एकएक मामले का अध्ययन कर अपराधियों की कार्यप्रणाली समझी. उस के बाद तकनीकी माध्यम से उन मोबाइल नंबरों का पता लगाया, जिन से लोगों को ठगी का शिकार बनाया गया था. व्यापक जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने झारखंड से 3 ठगों को गिरफ्तार किया था. इस से पहले इसी साल 24 फरवरी को सब से पहले सत्यम राय को पकड़ा गया. वह झारखंड के देवघर के खाजुरिया बसस्टैंड के पास स्थित विकासनगर का रहने वाला था. फिलहाल वह पश्चिम बंगाल के कोलकाता के टालीगंज में के.एम. लक्षकार रोड पर रह रहा था. उस ने पिछले साल जयपुर के राजेंद्र गहलोत को अपना शिकार बनाया था.

20 साल के सत्यम राय ने फोन पर खुद को बैंक अधिकारी बता कर राजेंद्र गहलोत से एटीएम कार्ड और ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से 43 हजार 391 रुपए औनलाइन निकाल लिए थे. इस ठगी का मुकदमा जयपुर दक्षिण के थाना ज्योतिनगर में दर्ज है. पूछताछ में सत्यम राय ने बताया था कि राजेंद्र गहलोत से ठगी कर के उस ने 21 हजार 891 रुपए का सैमसंग गैलेक्सी ए 5 एड्रौयड मोबाइल फोन औनलाइन खरीदा था. बाकी रकम उस ने अलगअलग गेटवे के माध्यम से बैंक खाते तथा वौलेटों में डाली थी. मोबाइल फोन आ गया तो उसे ओएलएक्स पर आईफोन एस-5 से एक्सचैंज कर लिया था.

कोलकाता से बीबीए की पढ़ाई करने के बाद सत्यम राय ने हिंदी, अंग्रेजी, भोजपुरी और बंगला सहित अन्य भाषाएं सीखीं, ताकि पूरे देश में विभिन्न बोलीभाषाओं में बात कर लोगों को झांसे में ले सके. पूछताछ में उस ने बताया था कि वह ठगी के जरिए मिली रकम के एक हिस्से से औनलाइन शौपिंग करता था, जिसे वह बेच कर पैसे खड़े कर लेता था. पुलिस ने सत्यम राय से सैमसंग गैलेक्सी ए-7, आईफोन एस-5 और सैमसंग गैलेक्सी ए-5 फोन बरामद किए थे. उस से पूछताछ और उस के मोबाइल फोन की जांच से पता चला कि उस ने देश के अनेक राज्यों में ठगी के लिए कुल 2860 लोगों को फोन किए थे.

जयपुर के सूरज प्रजापति से 55 हजार रुपए की इसी तरह की गई ठगी में पुलिस ने सागरदास और उस के साले विक्कीदास को 26 फरवरी, 2017 को गिरफ्तार किया था. ये दोनों ठग झारखंड में जामताड़ा जिले के अंबेडकर चौक पंडेडीह के रहने वाले थे. पुलिस ने इन से 5 मोबाइल फोन बरामद किए थे. इन मोबाइल फोनों में फर्जी आईडी पर जारी किए गए सिम मिले थे. जीजासाले ने अलगअलग राज्यों में ठगी के लिए करीब 779 लोगों को फोन किए थे. जयपुर निवासी राजेश कुमार वर्मा से बैंक अधिकारी बन कर 21 हजार 566 रुपए की  औनलाइन ठगी करने के मामले में जयपुर पुलिस ने झारखंड के जामताड़ा जिले के करमाटांड थाना के धरवाड़ी गांव के रहने वाले जयकांत मंडल को मार्च, 2017 के पहले सप्ताह में गिरफ्तार किया था.

पुलिस ने उस से 3 मोबाइल फोन, 4 सिम और 4 एटीएम कार्ड बरामद किए थे. वह झारखंड के धनबाद के देवली गोविंदपुर में रह कर आईटीआई कर रहा था. उस ने कई भाषाएं सीख रखी थीं. जांच में पता चला कि जयकांत ने ठगी के लिए विभिन्न मोबाइल नंबरों से अलगअलग राज्यों में ठगी के लिए करीब 9068 लोगों को फोन किए थे. जांच में पता चला है कि झारखंड के जिला जामताड़ा के करमाटांड सहित कुछ इलाके साइबर अपराधियों के गढ़ हैं. कहा जाता है कि करमाटांड के झिलुआ गांव के रहने वाले सीताराम मंडल ने सन 2008-09 में बैंक अधिकारी बन कर लोगों से औनलाइन ठगी के साइबर अपराध को जन्म दिया था. इस का जाल अब पूरे जामताड़ा जिले में फैल चुका है. आजकल वहां 150 से अधिक गिरोह काम कर रहे हैं, जिन में 20 से 30 साल के युवा शामिल हैं.

इन में कुछ गिरोह ऐसे भी हैं, जिन्होंने वेतन और कमीशन के आधार पर दूसरे युवकों को नौकरी दे रखी है. कुछ पुराने ठग नई पीढ़ी के युवाओं को औनलाइन ठगी की ट्रेनिंग देते हैं और इस के बदले में मोटा मेहनताना वसूलते हैं. इन गिरोहों ने बैंक अधिकारी बन कर पूरे देश में अब तक कई अरब रुपए की ठगी की है. मजे की बात यह है कि इन में ज्यादातर ठग ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं हैं. लेकिन देश के अलगअलग राज्यों की भाषाएं सीख कर ये लोगों को ठग रहे हैं. देश में ऐसा कोई वर्ग नहीं है, जो इन की ठगी का शिकार न हुआ हो.

केंद्रीय मंत्री से ले कर, विभिन्न राज्यों के मंत्रियों, आईएएस एवं आईपीएस अधिकारियों, जज, डाक्टर, प्रोफेसर, आयकर अधिकारी, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटैंट, बिजनेसमैन सभी इन की ठगी का शिकार हो चुके हैं, जबकि इन लोगों को कहा जाता है कि ये अपनी बुद्धि और वाकचातुर्य के बल पर देश को चला रहे हैं. आम आदमी को तो ये ठग कुछ ही मिनट में बातों में उलझा कर उस का एटीएम कार्ड और ओटीपी नंबर आदि हासिल कर लेते हैं. इन ठगों ने केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री, बांका के जिला जज, एयरपोर्ट अथौरिटी के एजीएम सहित तमाम बडे़बडे़ अधिकारियों को ठगा है.

साइबर ठगी में लगे तमाम लड़के उच्च शिक्षा भी हासिल कर सूचना प्रौद्योगिकी में दक्ष हो रहे हैं, ताकि लोगों को उन के हिसाब से हैंडल किया जा सके. जामताड़ा में साइबर क्राइम की शुरुआत एसएमएस से मोबाइल फोन का बैलेंस उड़ा कर दूसरों को सस्ती दरों पर मोबाइल फोन का बैलेंस बेचने से हुई थी. इस के बाद 8-9 सालों में यह जिला पूरे देश में चर्चित हो चुका है. जामताड़ा इलाके से जब मोबाइल फोन से बहुत ज्यादा फोन किए जाने लगे तो मोबाइल कंपनियों को मोटी कमाई होने लगी. नेटवर्क की समस्या दूर करने के लिए मोबाइल कंपनियों ने वहां नए टौवर लगवा दिए, जिस से वहां नेटवर्क अच्छा हो गया. इस से ठगों का काम और ज्यादा आसान हो गया.

ठगी की रकम से ठग ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं. उन के पास आलीशान मकान और लग्जरी गाडि़यां हैं. सड़कें खराब होने से गाडि़यां चलाने में परेशानी हुई तो इन ठगों ने सड़कें भी खुद ही बनवा लीं. अब ये अपराधी खुद को भारतीय रिजर्व बैंक का अधिकारी बता कर ठगी करने लगे हैं. एटीएम रिन्यू करने, उस की वैलिडिटी बढ़ाने एवं आधार कार्ड से जोड़ने के बहाने तो कई सालों से चल रहे हैं. जामताड़ा इलाके में रोजाना किसी न किसी राज्य की पुलिस साइबर ठगों की तलाश में पहुंचती रहती है. इसलिए अब यहां के ठग थोड़ेथोड़े समय के लिए दूसरे राज्यों में जा कर अपना  ठगी का धंधा करते हैं.

जामताड़ा से पिछले 2 सालों में 268 साइबर अपराधी गिरफ्तार किए गए हैं. इन से 16 सौ से ज्यादा मोबाइल फोन, 176 लग्जरी कारें और करोड़ों रुपए बरामद किए गए हैं.  जयपुर पुलिस की ओर से देवघर से गिरफ्तार मिथलेश ने पुलिस को बताया कि वह अपना एसबीआई का बैंक एकाउंट साइबर ठगों को किराए पर देता था. इस के बदले वह खाते में जमा होने वाली रकम से 20 प्रतिशत हिस्सा लेता था.

भले ही अपराधी पकड़े जा रहे हैं, लेकिन साइबर ठगी बंद होने का नाम नहीं ले रही है. पढ़लिख कर आदमी बुद्धिमान हो जाता है, लेकिन जामताड़ा के अनपढ़ या मामूली शिक्षित अपराधी उन लोगों की आंखों से भी काजल चुरा लेते हैं, जो खुद को सब से ज्यादा समझदार समझते हैं.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आग बनी शोला : जब पति और बेटे बने जान के दुश्मन

उस दिन जून 2019 की 10 तारीख थी. रात के 10 बज रहे थे. कानपुर के थाना अनवरगंज के थानाप्रभारी रमाकांत  पचौरी क्षेत्र में गश्त पर थे. गश्त करते हुए जब वह डिप्टी पड़ाव चौराहा पहुंचे, तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई.

उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सर, मैं गुरुवतउल्ला पार्क के पास से पप्पू बोल रहा हूं. हमारे घर के सामने पूर्व सभासद नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन किराए के मकान में रहती है. उस के घर के बाहर तो ताला बंद है, लेकिन घर के अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही हैं. लगता है, उस घर के अंदर किसी की जान खतरे में है. आप जल्दी आ जाइए.’’

डिप्टी पड़ाव से गुरुवतउल्ला पार्क की दूरी ज्यादा नहीं थी. अत: थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी चंद मिनटों बाद ही बताई गई जगह पहुंच गए. वहां एक मकान के सामने भीड़ जुटी थी.

भीड़ में से एक व्यक्ति निकल कर बाहर आया और बोला, ‘‘सर, मेरा नाम पप्पू है और मैं ने ही आप को फोन किया था. अब घर के अंदर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी बंद हो चुकी हैं.’’

रमाकांत पचौरी ने सहयोगी पुलिसकर्मियों की मदद से उस मकान का ताला तोड़ा फिर घर के अंदर गए. कमरे में पहुंचते ही पचौरी सहम गए. क्योंकि कमरे के फर्श पर एक महिला की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. पड़ोसियों ने बताया कि यह तो शहला परवीन है. इस की हत्या किस ने कर दी.

शव के पास ही खून सनी ईंट तथा एक मोबाइल फोन पड़ा था. लग रहा था कि उसी ईंट से सिर व मुंह पर प्रहार कर बड़ी बेरहमी से उस की हत्या की गई थी. शहला की उम्र यही कोई 35 साल के आसपास थी. पुलिस ने लाश के पास पड़ा फोन सबूत के तौर पर सुरक्षित कर लिया.

घनी आबादी वाले मुसलिम इलाके में पूर्व पार्षद नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन की हत्या की सूचना थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (क्राइम) राजेश कुमार, एसपी (पूर्वी) राजकुमार, सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह तथा सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एसएसपी अनंतदेव ने फारैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. बढ़ती भीड़ तथा उपद्रव की आशंका को देखते हुए एसएसपी ने रायपुरवा, चमनगंज तथा बेकनगंज थाने की फोर्स भी बुलवा ली. पूरे क्षेत्र को उन्होंने छावनी में तब्दील कर दिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए. शहला परवीन की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर पर लगी चोटों के निशानों से स्पष्ट था कि हत्या से पहले शहला ने हत्यारों से अपने बचाव के लिए संघर्ष किया था.

कमरे के अंदर रखी अलमारी और बक्सा खुला पड़ा था, साथ ही सामान भी बिखरा हुआ था. देखने से ऐसा लग रहा था कि हत्या के बाद हत्यारों ने लूटपाट भी की थी. शहला का शव जिस कमरे में पड़ा था, उस का एक दरवाजा पीछे की ओर गली में भी खुलता था.

पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि वारदात को अंजाम देने के बाद हत्यारे पीछे वाले दरवाजे से ही फरार हुए होंगे और इसी रास्ते से अंदर आए होंगे. पुलिस अधिकारियों के मुआयने के बाद फोरैंसिक टीम ने भी जांच की और साक्ष्य जुटाए. टीम ने अलमारी, बक्सा, ईंट आदि से फिंगरप्रिंट भी उठाए.

भाई ने बताए हत्यारों के नाम

अब तक सूचना पा कर मृतका का भाई तारिक शादाब भी वहां आ गया था. बहन की लाश देख कर वह फफकफफक कर रोने लगा. थानाप्रभारी ने उसे धैर्य बंधाया फिर पूछताछ की. तारिक शादाब ने बताया कि उस की बहन की हत्या उस के पति मोहम्मद शाकिर और बेटों शाकिब व अर्सलान उर्फ कल्लू ने की है. उस ने कहा कि हत्या में शाकिर का बहनोई गुड्डू भी शामिल है, जो कुख्यात अपराधी है.

पुलिस अधिकारियों ने पड़ोसी पप्पू से पूछताछ की. उस ने भी बताया कि शहला के पति व बेटों को उस ने शहला के घर के आसपास देखा था. उस ने उन्हें टोका भी था. तब उन्होंने उसे धमकी दी थी कि टोकाटाकी करोगे तो परिणाम भुगतोगे.

उन की धमकी से वह डर गया था. पप्पू ने भी शहला के पति व बेटों पर शक जाहिर किया. कुछ अन्य लोगों ने बताया कि शहला का पति उस के चरित्र पर शक करता था. शायद अवैध संबंधों में ही उस के पति ने उसे हलाल कर दिया है.

अब तक हत्या को ले कर वहां मौजूद भीड़ उत्तेजित होने लगी थी. अत: पुलिस अधिकारियों ने आनन फानन में शहला परवीन के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. बवाल व तोड़फोड़ की आशंका को देखते हुए घटनास्थल के आसपास पुलिस तैनात कर दी.

चूंकि मृतका शहला परवीन के भाई तारिक शादाब ने अपने बहनोई व भांजे पर हत्या का शक जाहिर किया था, अत: थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी ने तारिक शादाब की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत मोहम्मद शाकिर, उस के दोनों बेटे शाकिब, अर्सलान तथा शाकिर के बहनोई गुड्डू हलवाई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए एसएसपी अनंतदेव ने एसपी (क्राइम) राजेश कुमार की अगुवाई में एक पुलिस टीम गठित कर दी. टीम में थानाप्रभारी रमाकांत, सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन, एसआई राम सिंह, देवप्रकाश, कांस्टेबल अतुल कुमार, दयाशंकर सिंह, राममूर्ति यादव, मोहम्मद असलम तथा अब्दुल रहमान को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतका के भाई तारिक शादाब से विस्तृत जानकारी हासिल कर उस का बयान दर्ज किया. पुलिस ने मृतका के पड़ोसी पप्पू से भी कुछ अहम जानकारियां हासिल कीं. इस के बाद पुलिस टीम मृतका शहला परवीन की मां नफीसा बाजी (पूर्व पार्षद) के घर दलेलपुरवा पहुंची. नफीसा बाजी बीमार थीं. बेटी की हत्या की खबर सुन कर उन की तबीयत और बिगड़ गई. पुलिस ने जैसे तैसे कर के उन का बयान दर्ज किया.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस ने आरोपियों की तलाश के लिए उन के घर दबिश दी तो वह सब घर से फरार मिले. पुलिस टीम ने उन्हें तलाशने के लिए उन के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश दी. लेकिन आरोपी पकड़ में नहीं आए. तब इंसपेक्टर रमाकांत पचौरी ने अपने कुछ खास मुखबिरों को आरोपियों की टोह में लगा दिया और खुद भी उन्हें तलाशने में लगे रहे.

12 जून, 2019 की दोपहर को मुखबिर ने थानाप्रभारी को आरोपियों के बारे में खास सूचना दी. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ तुरंत हमराज कौंप्लैक्स पहुंच गए.

जैसे ही उन की जीप रुकी तो वहां से 3 लोग चाचा नेहरू अस्पताल की ओर भागे, लेकिन पुलिस टीम ने उन को कुछ ही दूरी पर धर दबोचा. उन से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम मोहम्मद शाकिर, शाकिब तथा अर्सलान उर्फ कल्लू बताए. इन में शाकिब तथा अर्सलान शाकिर के बेटे थे. पुलिस उन तीनों को थाने ले आई. उन की गिरफ्तारी की खबर सुन कर एसपी (क्राइम) राजेश कुमार और सीओ सैफुद्दीन भी थाने पहुंच गए.

थाने में एसपी (क्राइम) राजेश कुमार तथा सीओ सैफुद्दीन ने उन तीनों से शहला परवीन की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वे टूट गए और उन्होंने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मोहम्मद शाकिर ने बताया कि उस की पत्नी शहला परवीन चरित्रहीन थी. उस की बदलचलनी की वजह से समाज में उस की इज्जत खाक में मिल गई थी. हम ने उसे बहुत समझाया, नहीं मानी तो अंत में उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. हम तो उस के आशिक रेहान को भी मार डालते, लेकिन वह बच कर भाग गया.

चूंकि मोहम्मद शाकिर तथा उस के बेटों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: पुलिस ने उन तीनों को हत्या के जुर्म में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच तथा अभियुक्तों के बयानों के आधार पर एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने बदचलन हो कर न सिर्फ अपने शौहर से बेवफाई की बल्कि बेटों को भी समाज में शर्मसार किया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के अनवरगंज थानांतर्गत एक मोहल्ला है दलेलपुरवा. इसी मोहल्ले में हरी मसजिद के पास मोहम्मद याकूब अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी नफीसा बाजी के अलावा 2 बेटे तारिक शादाब, असलम और एक बेटी शहला परवीन थी. मोहम्मद याकूब का कपड़े का व्यापार था. व्यापार से होने वाली आमदनी से वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. व्यापार में उन के दोनों बेटे भी उन का सहयोग करते थे.

मोहम्मद याकूब जहां व्यापारी थे, वहीं उन की पत्नी नफीसा बाजी की राजनीति में दिलचस्पी थी. वह समाजवादी पार्टी की सक्रिय सदस्य थीं. दलेलपुरवा क्षेत्र से उन्होंने 2 बार पार्षद का चुनाव लड़ा, पर हार गई थीं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह पार्टी के साथसाथ समाजसेवा में जुटी रहीं. तीसरी बार जब उन्हें पार्टी से टिकट मिला तो वह पार्षद का चुनाव लड़ीं. इस बार वह जीत कर दलेलपुरवा क्षेत्र की पार्षद बन गईं.

नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन भी उन्हीं की तरह तेजतर्रार थी. वैसे तो शहला बचपन से ही खूबसूरत थी, लेकिन जब वह जवान हुई तो वह पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. जब वह बनसंवर कर घर से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते. शहला पढ़ने में भी तेज थी. उस ने फातिमा स्कूल से हाईस्कूल तथा जुबली गर्ल्स इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी.

शहला शादी लायक हो चुकी थी, मोहम्मद याकूब उस का निकाह कर उसे मानमर्यादा के साथ ससुराल भेजना चाहते थे. एक दिन मोहम्मद याकूब ने अपने पड़ोसी जावेद खां से बेटी के रिश्ते के बारे में बात की तो वह उत्साह में भर कर बोला, ‘‘याकूब भाई, मेरी जानपहचान में एक अच्छा लड़का है मोहम्मद शाकिर. वह चमनगंज में रहता है और कपड़े का व्यवसाय करता है. जिस दिन फुरसत में हो, मेरे साथ चमनगंज चल कर उसे देख लेना. सब कुछ ठीक लगे तो बात आगे बढ़ाएंगे.’’

शाकिर से हो गया निकाह

एक सप्ताह बाद मोहम्मद याकूब जावेद के साथ चमनगंज गए. मोहम्मद शाकिर साधारण शक्ल वाला हंसमुख युवक था. उस में आकर्षण जैसी कोई बात नहीं थी. परंतु वह कमाऊ था, उस का परिवार भी संपन्न था. इस के विपरीत शहला परवीन चंचल व खूबसूरत थी.

कहीं बेटी गलत रास्ते पर न चल पड़े, सोचते हुए मोहम्मद याकूब ने शाकिर को अपनी बेटी शहला परवीन के लिए पसंद कर लिया. इस बारे में उन्होंने बेटी की राय लेनी भी जरूरी नहीं समझी. इस के बाद आगे की बातचीत शुरू हो गई. बातचीत के बाद दोनों पक्षों की सहमति से रिश्ता पक्का हो गया.

तय तारीख को मोहम्मद शाकिर की बारात आई, निकाह हुआ और शहला परवीन शाकिर के साथ विदा कर दी गई. यह सन 1998 की बात है.

सुहागरात को शहला परवीन ने अपने शौहर शाकिर को देखा तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया. पति मोहमद शाकिर किसी भी तरह से उसे पसंद नहीं था. उस रात वह दिखावे के तौर पर खुश थी, पर मन ही मन कुढ़ रही थी.

सप्ताह भर बाद शहला का भाई तारिक उसे लेने आ पहुंचा. तभी मौका देख कर शाकिर ने शहला से कहा, ‘‘दुलहन का मायके जाना रिवाज है. रिवाज के मुताबिक तुम्हें मायके भेजना ही पड़ेगा. खैर तुम जाओ. तुम्हारे बिना किसी तरह हफ्ता 10 दिन रह लूंगा.’’

शहला परवीन ने शौहर को घूर कर देखा और कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अपनी यह मनहूस सूरत ले कर मेरे मायके मत आना. नहीं तो तुम्हें देख कर मेरी सहेलियां हंसेंगी. कहेंगी देखो शहला जैसी हूर का लंगूर शौहर आया है.’’

यह सुन कर शाकिर को लगा, जैसे किसी ने उस के कानों में गरम शीशा उड़ेल दिया हो. वह पत्नी को देखता रहा और वह भाई के साथ मायके चली गई. 8-10 दिन बाद जब शहला को विदा कर लाने की तैयारी शुरू हुई तो शाकिर ने घर वालों के साथ ससुराल जाने से इनकार कर दिया. तब घर वाले ही शहला को विदा करा लाए.

शाकिर को विश्वास था कि ससुराल आ कर शहला शिकायत करेगी कि सब आए पर तुम नहीं आए. लेकिन ऐसा कुछ कहने के बजाए शहला ने उलटा शौहर की छाती में शब्दों का भाला घोंप दिया, ‘‘अच्छा हुआ तुम नहीं आए, वरना तमाशा बन जाते और शर्मिंदा मुझे होना पड़ता.’’

छाती में शब्दों के शूल चुभने के बावजूद शाकिर चुप रहा. उस का विचार था कि वह अपने प्रेम से शहला का दिल जीत लेगा और खुदबखुद सब ठीक हो जाएगा. शहला को उस की जो शक्ल बुरी लगती है, वह अच्छी लगने लगेगी.

शाकिर ने की दिल जीतने की कोशिश

शाकिर पत्नी को प्यार से जीतने की कोशिश करता रहा और शहला उसे दुत्कारती रही. इस तरह प्यार और नफरत के बीच उन की गृहस्थी की गाड़ी ऐसे ही चलती रही.

समय बीतता गया और शहला 2 बेटों शाकिब व अर्सलान की मां बन गई. शाकिर को विश्वास था कि बच्चों के जन्म के बाद शहला के व्यवहार में कुछ बदलाव जरूर आएगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस का बर्ताव पहले जैसा ही रहा.

वह बच्चों की परवरिश पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देती थी और अपनी ही दुनिया में खोई रहती थी. उसे घर में कैद रहना पसंद न था, इसलिए वह अकसर या तो मायके या फिर बाजार घूमने निकल जाती थी. शाकिर रोकटोक करता तो वह उस से उलझ जाती और अपने भाग्य को कोसती.

शहला परवीन की अपने शौहर से नहीं पटती थी. इसलिए दोनों के बीच दूरियां बनी रहती थीं. शहला का मन पुरुष सुख प्राप्त करने के लिए भटकता रहता था, लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

उन्हीं दिनों शहला के जीवन में मुबीन ने प्रवेश किया. मुबीन अपराधी प्रवृत्ति का था. अनवरगंज क्षेत्र में उस की तूती बोलती थी. व्यापारी वर्ग तो उस के साए से भी डरता था.

वह व्यापारियों से हफ्ता वसूली करता था. शाकिर का कपड़े का व्यवसाय था. मुबीन शाकिर से भी रुपए वसूलता था. शहला परवीन मुबीन को अच्छी तरह जानती थी लेकिन शौहर के रहते वह उस के सामने नहीं आती थी.

एक रोज शहला घर में अकेली थी, तभी मुबीन उस के घर में बेधड़क दाखिल हुआ और दबे पांव जा कर शहला के पीछे खड़ा हो गया. शहला किसी काम में ऐसी व्यस्त थी कि उसे भनक तक नहीं लगी कि कोई उस के पीछे आ खड़ा हुआ है. शहला तब चौंकी जब मुबीन ने कहा, ‘‘शहला भाभी नमस्ते.’’

शहला फौरन पलटी. मुबीन को देख कर उस का चेहरा फूल की तरह खिल गया. वह अपने चेहरे पर मुसकान बिखरते हुए बोली, ‘‘नमस्ते मुबीन भाई, तुम कब आए, मुझे पता ही नहीं चला. बताओ, कैसे आना हुआ? तुम्हारे भैया तो घर पर हैं नहीं.’’

‘‘भैया नहीं हैं तो क्या हुआ. क्या भाभी से मिलने नहीं आ सकता?’’ मुबीन भी हंसते हुए बोला.

‘‘क्यों नहीं?’’ कहते हुए शहला उस के पास बैठ कर बतियाने लगी. बातों ही बातों में मुबीन बोला, ‘‘भाभी, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘एक नहीं चार कहो, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी.’’ शहला ने कहा.

‘‘भाभी, कसम से तुम इतनी खूबसूरत हो कि कितना भी देखूं, जी नहीं भरता.’’ वह॒ बोला.

‘‘धत…’’ कहते हुए शहला के गालों पर लाली उतर आई. कुछ देर बतियाने के बाद मुबीन वहां से चला गया.

इस के बाद मुबीन का शहला के घर आनेजाने लगा. दोनों एकदूसरे की बातों में रमने लगे. शहला और मुबीन हमउम्र थे, जबकि शहला का पति शाकिर उम्र में उस से 6-7 साल बड़ा था. मुबीन शरीर से हृष्टपुष्ट तथा स्मार्ट था. क्षेत्र में उस की हनक भी थी, सो शहला उस से प्यार करने लगी. वह सोचने लगी कि काश उसे मुबीन जैसा छबीला पति मिलता.

मुबीन भी शहला को चाहने लगा था. आते जाते मुबीन ने शहला से हंसीमजाक के माध्यम से अपना मन खोलना शुरू किया तो शहला भी खुलने लगी. आखिर एक दिन दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए. इस के बाद जब भी मौका मिलता, दोनों शारीरिक भूख मिटा लेते. शहला को अब पति की कमी नहीं खलती थी.

शहला और मुबीन के नाजायज रिश्ते ने रफ्तार पकड़ी तो पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. एक आदमी ने शाकिर को टोका, ‘‘शाकिर भाई, तुम दिनरात कमाई में लगे रहते हो. घर की तरफ भी ध्यान दिया करो.’’

‘‘क्यों, मेरे घर को क्या हुआ? साफ साफ बताओ न.’’ शाकिर ने पूछा.

‘‘साफ साफ सुनना चाहते हो तो सुनो. तुम्हारे घर पर बदमाश मुबीन का आना जाना है. तुम्हारी लुगाई से उस का चक्कर चल रहा है.’’ उस ने सब बता दिया.

उस की बात सुन कर शाकिर का माथा ठनका. जरूर कोई चक्कर है. अफवाहें यूं ही नहीं उड़तीं. उन में कुछ न कुछ सच्चाई जरूर होती है.

शाम को शाकिर जब घर लौटा तो उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘शहला, मैं ने सुना है मुबीन तुम से मिलने घर आता है. वह भी मेरी गैरमौजूदगी में.’’

शहला न डरी न घबराई बल्कि बेधड़क बोली, ‘‘मुबीन आता है पर मुझ से नहीं तुम से मिलने आता है. तुम नहीं मिलते तो चला जाता है.’’

‘‘तुम उसे मना कर दो कि वह घर न आया करे. उस के आने से मोहल्ले में हमारी बदनामी होती है.’’

‘‘मुझ से क्यों कहते हो, तुम खुद ही उसे क्यों नहीं मना कर देते.’’

‘‘ठीक है, मना कर दूंगा.’’

इस के बाद शाकिर मुबीन से मिला और उस ने उस से कह दिया कि वह उस की गैरमौजूदगी में उस के घर न जाया करे.

शाकिर की बात सुनते ही मुबीन उखड़ गया. उस ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. शाकिर डर गया और अपनी जुबान बंद कर ली. मुबीन बिना रोकटोक उस के घर आता रहा और शहला के साथ मौजमस्ती करता रहा.

मुबीन ने जब शाकिर का सुखचैन छीन लिया तब उस ने अपने रिश्तेदारों को घर बुलाया और इस समस्या से निजात पाने के लिए विचार विमर्श किया. आखिर में तय हुआ कि इज्जत तभी बच सकती है, जब मुबीन को ठिकाने लगा दिया जाए.

इस के बाद शाकिर के भाई, शहला के भाई और मामा ने मिल कर दिनदहाड़े खलवा में मुबीन की हत्या कर दी. हत्या के आरोप में सभी को जेल जाना पड़ा. यह बात सन 2012 की है.

इस घटना के बाद करीब 4 साल तक घर में शांति रही. शहला का शौहर के प्रति व्यवहार भी सामान्य रहा. अब तक शहला के दोनों बेटे शाकिब और अर्सलान भी जवान हो गए थे. बापबेटे रोजाना सुबह 10 बजे घर से निकलते तो फिर देर शाम ही घर लौटते थे. कपड़ों की बिक्री का हिसाब किताब लगा कर, खाना खा कर वे सो जाते थे.

शहला परवीन न शौहर के प्रति वफादार थी और न ही उसे बेटों से कोई लगाव था. वह तो खुद में ही मस्त रहती थी. बनसंवर कर रहना और घूमना फिरना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस का बनाव शृंगार देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह 2 जवान बच्चों की मां है.

शहला को घर में सभी सुख सुविधाएं हासिल थीं पर शौहर की बांहों का सुख प्राप्त नहीं हो पाता था. शाकिर अपने धंधे में लगा रहता था. काम की वजह से बीवी से भी दूरियां बनी रहती थीं. दूसरी ओर शहला उसे पसंद भी नहीं करती थी. वह तो किसी नए प्रेमी की तलाश में थी. हालांकि इस खेल में उसे शौहर तथा जवान बच्चों का डर लग रहा था.

उसी दौरान उस की नजर रेहान पर पड़ी. रेहान गम्मू खां के अहाते में रहता था और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. वह उस का दूर का रिश्तेदार भी था. उस का जब तब शहला के यहां आनाजाना लगा रहा था. वह हैंडसम था.

शहला परवीन का दिल रेहान पर आया तो वह उसे खुला आमंत्रण देने लगी, आंखों के तीरों से उसे घायल करने लगी. खुला आमंत्रण पा कर रेहान भी उस की ओर आकर्षित होने लगा. जब भी उसे मौका मिलता, शहला के साथ हंसीमजाक और छेड़छाड़ कर लेता. शहला उस की हंसीमजाक का जरा भी बुरा नहीं मानती थी. दोनों के पास एकदूसरे का मोबाइल नंबर था. जल्दी ही दोनों की मोबाइल पर प्यारभरी बातें होने लगीं.

आदमी हो या औरत, मोहब्बत होते ही उस का मन कल्पना की ऊंची उड़ान भरने लगता है. रेहान और शहला का भी यही हाल था. दोनों मोहब्बत की ऊंची उड़ान भरने लगे थे. आखिर एक रोज रेहान ने चाहत का इजहार किया तो शहला ने इकरार करने में जरा भी देर नहीं लगाई. इतना ही नहीं, शहला ने उसी समय अपनी बांहों का हार रेहान के गले में डाल दिया.

इस के बाद दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता बनते देर नहीं लगी. एक बार अवैध रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता गया. शहला अब पति की कमी प्रेमी से पूरी करने लगी. उसे जब भी मौका दिखता, फोन कर रेहान को अपने यहां बुला लेती और दोनों रंगरलियां मनाते.

कभी कभी रेहान शहला को होटल में भी ले जाता था, जहां वे मौजमस्ती करते. शहला परवीन रेहान के साथ घूमने फिरने भी जाने लगी. रेहान उसे कभी बाहर पार्क में ले जाता तो कभी तुलसी उपवन. वहां दोनों खूब बतियाते.

पर एक दिन शाकिर ने शहला और रेहान को अपने ही घर में आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. वे दोनों एकदूसरे की बांहों में इस कदर मस्त थे कि उन्हें खबर ही नहीं हुई कि दरवाजे पर खड़ा शाकिर उन की कामलीला देख रहा है.

घर में अनाचार होते देख शाकिर का खून खौल उठा. उस ने दोनों को ललकारा तो रेहान सिर पर पैर रख कर भाग गया लेकिन शहला कहां जाती. शाकिर ने सारा गुस्सा उसी पर उतारा. उस ने पीट पीट कर पत्नी को अधमरा कर दिया.

शाकिर ने शहला को रंगे हाथों पकड़ने की जानकारी अपने दोनों बेटों को दी तो बेटों ने भी मां को खूब लताड़ा. शौहर और बेटों ने शहला को जलील किया. इस के बावजूद उस ने रेहान का साथ नहीं छोड़ा.

कुछ दिनों बाद ही वह घर से बाहर रेहान से मिलने लगी. चोरी छिपे मिलने की जानकारी शाकिर को हुई तो उस ने फिर से शहला की पिटाई की. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा.

जब भी शाकिर को दोनों के मिलने की जानकारी होती, उस दिन शहला की शामत आ जाती. लेकिन पिटाई के बावजूद जब शहला ने रेहान का साथ नहीं छोड़ा तो आजिज आ कर शाकिर ने शहला को तलाक दे दिया. तलाक के मामले में बेटों ने बाप का ही साथ दिया. यह बात जनवरी, 2018 की है.

शौहर से तलाक मिलने के बाद शहला कुछ महीने मायके दलेलपुरवा में रही. उस के बाद उस ने अनवरगंज थाना क्षेत्र के डिप्टी पड़ाव में गुरुवतउल्ला पार्क के पास किराए पर मकान ले लिया और उसी में रहने लगी. इस मकान में उस का प्रेमी रेहान भी आने लगा. शहला को अब कोई रोकने टोकने वाला नहीं था, सो वह प्रेमी के साथ खुल कर मौज लेने लगी.

रेहान के पास पैसों की कमी नहीं थी, सो वह शहला पर दिल खोल कर खर्च करता था. पे्रमी के आनेजाने की जानकारी पड़ोसियों को न हो, इस के लिए वह मकान के आगे वाले गेट पर ताला लगाए रखती थी और पीछे के दरवाजे से आती जाती थी. इसी पीछे वाले दरवाजे से उस का प्रेमी रेहान भी आता था.

शहला और रेहान के अवैध संबंधों की जानकारी शाकिर के घर वालों व नाते रिश्तेदारों को भी थी. इस से पूरी बिरादरी में उस की बदनामी हो रही थी. उस के दोनों बेटे शादी योग्य थे. पर मां शहला की चरित्रहीनता के कारण बेटों का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. आखिर आजिज आ कर शाकिर ने शहला और रेहान को सबक सिखाने की योजना बनाई. अपनी इस योजना में शाकिर ने अपने बहनोई गुड्डू हलवाई तथा दोनों बेटों को भी शामिल कर लिया.

बन गई हत्या की योजना

10 जून, 2019 की रात 8 बजे शाकिर को एक रिश्तेदार के माध्यम से पता चला कि शहला के घर में रेहान मौजूद है और वह आज रात को वहीं रुकेगा. यह खबर मिलने के बाद शाकिर ने अपने बहनोई गुड्डू हलवाई को बुला लिया. फिर बहनोई व बेटों के साथ शाकिर शहला के घर जा पहुंचा. घर के बाहर गेट पर ताला लगा था. वे लोग पीछे के दरवाजे से घर के अंदर दाखिल हुए.

घर के अंदर कमरे में रेहान और शहला आपत्तिजनक अवस्था में थे. शाकिर ने उन दोनों को ललकारा और सब मिल कर रेहान को पीटने लगे. प्रेमी को पिटता देख शहला बीच में आ गई. वह प्रेमी को बचाने के लिए पति और बेटों से भिड़ गई. दोनों बेटे मां को पीटने लगे. इसी बीच मौका पा कर रेहान वहां से भाग निकला.

रेहान को भगाने में शहला ने मदद की थी, सो वे सब मिल कर शहला को लात घूंसो से पीटने लगे. इसी समय शाकिर की निगाह वहीं पड़ी ईंट पर चली गई. उस ने लपक कर ईंट उठा ली और उस से शहला के सिर व मुंह पर ताबड़तोड़ प्रहार किए. जिस से शहला का सिर फट गया और खून बहने लगा.

कुछ देर तड़पने के बाद शहला ने दम तोड़ दिया. हत्या के बाद उन सब ने मिल कर अलमारी व बक्से के ताले खोले और उस में रखी नकदी तथा जेवर निकाल लिए तथा सामान बिखेर दिया. फिर पीछे के रास्ते से ही फरार हो गए.

इधर पड़ोसी पप्पू ने शहला के घर चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी तो उस ने थाना अनवरगंज पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही इंसपेक्टर रमाकांत पचौरी घटनास्थल पर आए और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

13 जून, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त मोहम्मद शाकिर, उस के बेटों शाकिब और अर्सलान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. एक अन्य अभियुक्त गुड्डू हलवाई फरार था. पुलिस उसे पकड़ने का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एकतरफा प्यार में मासूम की हत्या

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर से कोई 40-45 किलोमीटर दूर बसा है बीरबल अकबरपुर गांव. इसी गांव में शिवबालक निषाद अपनी पत्नी ममता और 2 बेटियों व एक बेटे के साथ रहता था.

बात 25 जनवरी, 2019 की है. शिवबालक शाम को घर लौटा तो उस का 10 वर्षीय बेटा विवेक घर में नहीं दिखा. पूछने पर बड़ी बेटी ने बताया कि विवेक दोपहर 12 बजे स्कूल से लौट कर खाना खाने के बाद घर से यह कह कर निकला था कि खेलने जा रहा है, तब से वह घर नहीं लौटा.

बेटी की बात सुन कर शिवबालक का माथा ठनका. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बेटा कहां चला गया जो अभी तक नहीं आया. पत्नी घर में नहीं थी, वह अपने मायके फफुआपुर गई हुई थी, इसलिए वह बेटे को ढूंढने के लिए निकल पड़ा. उस ने पड़ोस के बच्चों से पूछा तो उन्होंने बताया कि दोपहर के समय तो विवेक उन के साथ खेल रहा था. उस के बाद कहां गया, उन्हें पता नहीं.

शिवबालक के पड़ोस में हरिकिशन का घर था. शिवबालक ने उस के मंझले बेटे अनिल को विवेक के गायब होने की बात बताई तो वह भी परेशान हो उठा. वह गांव के युवकों को ले कर शिवबालक के साथ विवेक को ढूंढने में जुट गया. इन लोगों ने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विवेक का कहीं पता नहीं चला. घुरऊपुर, गुरडूनपुरवा टैंपो स्टैंड, सजेती बसस्टाप, बाजार आदि जगहों पर भी उस की खोज की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

शिवबालक ने बेटे के गायब होने की जानकारी पत्नी को दे दी थी. ममता को यह खबर मिली तो वह तुरंत गांव लौट आई. उस ने भी अपने हिसाब से विवेक को खोजा. आधी रात तक खोजबीन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला.

किसी अनहोनी की आशंका में शिवबालक और ममता ने जैसेतैसे रात बिताई. रात भर उन के मन में तरहतरह के खयाल आते रहे. सवेरा होते ही पड़ोसी हरिकिशन का बेटा अनिल शिवबालक के पास आया. वह बोला, ‘‘चाचा, विवेक को हम लोगों ने बहुत खोज लिया. अब हमें पुलिस का सहारा लेना चाहिए. चलो थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं.’’

उस की बात शिवबालक को भी ठीक लगी. तब दोनों थाना सजेती जा पहुंचे. सुबह का समय था, इसलिए एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह थाने में ही मौजूद थे. शिवबालक ने उन्हें अपने बेटे के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने विवेक की गुमशुदगी दर्ज करा कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

अमरेंद्र बहादुर भी कई सिपाहियों के साथ गांव के नजदीक के खेतों में बच्चे को ढूंढने लगे. पुलिस के साथ गांव वाले भी थे. वह भी पुलिस की मदद कर रहे थे. इस बीच पुलिस ने गौर किया कि विवेक की खोज में अनिल निषाद कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखा रहा है.

सर्च अभियान के दौरान ही अनिल ने एसओ से कहा, ‘‘दरोगाजी, चलिए उधर सरसों के खेत में देख लेते हैं.’’

अनिल की यह बात एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह की समझ में नहीं आई कि यह सरसों के खेत की ओर चलने को क्यों कह रहा है. फिर भी वह बिना कुछ कहे अनिल के पीछेपीछे सरसों के खेत की ओर चल पडे़.

खेत के अंदर जा कर उस ने सरसों के कुछ पौधों को हाथ से इधरउधर किया, फिर चीख कर बोला, ‘‘सर, विवेक की लाश यहां पड़ी है.’’

उस की बात सुनते ही एसओ तुरंत उस के पास पहुंच गए. सचमुच सरसों की फसल के बीच विवेक की लाश पड़ी थी. लाश को घासफूस से ढका गया था. लेकिन हवा के झोंकों से घासफूस बिखर गया था. जिस से लाश साफ दिखाई दे रही थी.

बेटे की लाश देख कर शिवबालक दहाड़ें मार कर रोने लगा. इस के बाद तो गांव में जिस ने भी सुना, वही लाश देखने भाग खड़ा हुआ. सूचना मिलने पर मृतक विवेक की मां ममता भी रोतीबिलखती वहां पहुंच गई और शव से लिपट कर रोने लगी.

इधर थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर ने बच्चे की लाश बरामद करने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. नतीजतन कुछ देर बाद एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह और सीओ (घाटमपुर) शैलेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

उन्हें उस के शरीर पर कोई घाव दिखाई नहीं दिया. गले के निशान से ही अंदाजा लग गया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. उस के मुंह और नाक में मिट्टी भी भरी हुई थी. हत्या के समय हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि मृतक की आवाज न निकल सके.

सीओ शैलेंद्र सिंह ने विवेक के पिता शिवबालक से पूछा कि उन्हें बेटे की हत्या का किसी पर शक तो नहीं है.

‘‘साहब, बीते साल जून महीने में गांव के इंद्रपाल निषाद के बेटे सर्वेश ने मेरी बेटी नीलम (परिवर्तित नाम) को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी. इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई तो पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भेज दिया था. 2 महीने पहले ही वह जेल से छूट कर आया है. हो सकता है मेरे बेटे की हत्या में उस का हाथ हो.’’ शिवबालक ने बताया.

उसी समय थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर सिंह की निगाह अनिल निषाद पर पड़ी. वह कुछ दूरी पर एक बच्चे से बात कर रहा था और उसे अंगुली दिखा कर धमका रहा था.

थानाप्रभारी की निगाह में अनिल पहले ही शक के घेरे में था. अब उन का शक और गहरा गया. जिस बच्चे को वह धमका रहा था, उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है, किस गांव में रहते हो?’’

‘‘मेरा नाम सुमित है. मैं इसी गांव में रहता हूं.’’ बच्चे ने बताया.

‘‘तुम विवेक को जानते थे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां साहब, वह मेरा पक्का दोस्त था. वह कक्षा 3 में और मैं कक्षा 4 में पढ़ता हूं.’’

‘‘विवेक को कल किसी के साथ जाते देखा था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां साहब, अनिल उसे खेतों की ओर ले गया था. अनिल ने मुझे 20 रुपए दे कर विवेक को बुलवाया था. तब मैं विवेक को बुला लाया था. इस के बाद अनिल उसे खेतों की तरफ ले कर चला गया था. अनिल अभी मुझे इसी बात की धमकी दे रहा था कि यह बात किसी को न बताना.’’ सुमित ने बताया.

सुमित ने जो बातें पुलिस को बताईं, उस से अनिल पूरी तरह से शक के घेरे में आ गया. उधर शिवबालक के बयानों से सर्वेश पर भी शक था. गांव वालों से भी पुलिस को पता चला कि सर्वेश और अनिल गहरे दोस्त हैं. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह को दे दी तो उन्होंने उन दोनों लड़कों से पूछताछ करने के निर्देश दिए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के विवेक का शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय, कानपुर भिजवा दिया. फिर उन्होंने सर्वेश निषाद और अनिल को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आए.

पुलिस ने सब से पहले सर्वेश निषाद को अनिल से अलग ले जा कर विवेक की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विवेक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सर्वेश ने बताया कि उस ने अपने दोस्त अनिल की मदद से विवेक की हत्या की थी.

सर्वेश निषाद ने हत्या का जुर्म कबूला तो अनिल को भी टूटते देर नहीं लगी. दोनों से पूछताछ के बाद विवेक की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर से 47 किलोमीटर दूर एक बड़ी आबादी वाला गांव बीरबल अकबरपुर बसा हुआ है. यह एक ऐतिहासिक गांव है. मुगल बादशाह अकबर का यहां किला है, जो समय के थपेड़ों के साथ अब खंडहर में तब्दील हो गया है.

यमुना किनारे बसे इस गांव की आबादी लगभग 10 हजार है. बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर जब आगरा से अकबरपुर आते थे, तो इसी किले में दरबार लगाते थे.

इसी किले में अकबर की मुलाकात बीरबल से हुई थी. बीरबल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया. अपनी बुद्धिमत्ता के चलते बीरबल दरबार में चर्चित हुए तो इस अकबरपुर गांव का नाम बीरबल अकबरपुर पड़ गया. समय बीतते सरकारी रिकौर्ड में भी गांव का नाम बीरबल अकबरपुर दर्ज हो गया.

हाजिरजवाबी और बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाने वाले बीरबल का जन्म अकबरपुर गांव से एक किलोमीटर दूर तिलौची में हुआ था. बीरबल के बाल्यावस्था के समय ही उन के पिता की मृत्यु हो गई थी. निर्धन परिवार में जन्मे बीरबल का पालनपोषण उन की मां ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में किया था. खेतों पर मजदूरी करने के दौरान मां बीरबल को बांस की टोकरी में लिटा कर लाती थीं और खेत के एक कोने में टोकरी को रख देती थीं.

कहा जाता है कि एक रोज एक साधु खेत से हो कर गुजर रहा था, तभी उस की नजर बीरबल पर पड़ी. उस साधु ने बीरबल की हस्तरेखा तथा मस्तक की लकीरों को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘माई, तुम्हारा यह लाल बड़ा बुद्धिमान होगा. यह अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा बड़ेबड़ों से मनवाएगा और पूरे देश में चर्चित होगा. यह राजदरबारी होगा.’’

उस साधु की बात सुन कर बीरबल की मां उस के चरणों में झुक गईं और बोलीं, ‘‘बाबा, मैं मजदूरी करती हूं. बेहद गरीब हूं. तुम्हें दक्षिणा भी नहीं दे सकती और न ही भोजन करा सकती हूं. मुझे क्षमा करना.’’ कहते हुए वह रोने लगीं.

साधु बोला, ‘‘रो मत माई, मैं तुम से कुछ मांगने नहीं आया हूं. मैं तो इधर से जा रहा था तो मेरी नजर पड़ गई.’’

इस के बाद वह साधु बीरबल को आशीर्वाद दे कर चला गया. समय बीतते इस साधु की भविष्यवाणी सच निकली. बीरबल, अकबर के राजदरबारी बने और अपनी हाजिरजवाबी के लिए चर्चित हुए.

इसी बीरबल अकबरपुर गांव में शिवबालक निषाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा विवेक था.

शिवबालक ड्राइवर था. वह लोडर चलाता था. इस के अलावा उस के पास 3 बीघा खेती की जमीन भी थी. लेकिन वह जमीन ऊसरबंजर थी. उस में ज्वारबाजरा के अलावा कोई दूसरी फसल नहीं होती थी. अतिरिक्त आमदनी के लिए शिवबालक ने दूध का व्यवसाय शुरू कर दिया था. वह सुबह उठ कर गांव से दूध इकट्ठा करता फिर दूध को घाटमपुर कस्बा ले जा कर बेचता था.

वक्त यों ही गुजरता गया. वक्त के साथ शिवबालक के बच्चे भी सालदरसाल बड़े होते गए. बड़ी बेटी नीलम 14 साल की उम्र पार कर चुकी थी. तीनों बच्चे गांव के एसएस शिक्षा सदन स्कूल में पढ़ते थे. नीलम नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शारदा के घर से कुछ दूरी पर सर्वेश निषाद रहता था. वह एक अच्छे परिवार का था. सर्वेश अपने पिता की 3 संतानों में मंझला था. वह थोक में सब्जी बेचने का काम करता था. गांव के किसानों से सस्ते दाम पर सब्जियां खरीद कर उन्हें कानपुर की नौबस्ता थोक सब्जी मंडी में अच्छे दामों पर बेचा करता था.

चूंकि सर्वेश अच्छा कमाता था, सो खूब ठाटबाट से रहता था. गले में सोने की चेन, अंगुलियों में अंगूठियां और कलाई में महंगी घड़ी उस की पहचान थी. उस के पास महंगा मोबाइल रहता था. सर्वेश जिस तरह से अच्छी कमाई करता था, उसी तरह शराब और अय्याशी में वह अपनी कमाई लुटाता था.

उस के पिता इंद्रपाल उस की इस फिजूलखर्ची से परेशान थे. उन्होंने उसे बहुत समझाया और डांटा फटकारा भी लेकिन सर्वेश का रवैया नहीं बदला.

एक रोज नीलम स्कूल जा रही थी, तभी सर्वेश की नजर उस पर पड़ी. खूबसूरत नीलम को देख कर सर्वेश का मन मचल उठा. वह उसे फांसने का तानाबाना बुनने लगा. मौका मिलने पर वह उस से बात करने का प्रयास करता. लेकिन नीलम उसे झिड़क देती थी. तब सर्वेश खिसिया जाता.

आखिर जब उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने एक रोज मौका मिलने पर नीलम का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारी खूबसूरती ने मेरा चैन छीन लिया है. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.’’

नीलम अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली, ‘‘सर्वेश, तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो, मैं तुम्हारी जातिबिरादरी की हूं और इस नाते तुम मेरे भाई लगते हो. भाई को बहन से इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए.’’

‘‘प्यार अंधा होता है नीलम. प्यार जातिबिरादरी नहीं देखता.’’ वह बोला.

‘‘होगा, लेकिन मैं अंधी नहीं हूं. मैं ऐसा नहीं कर सकती. नफरत करती हूं. और हां, आइंदा कभी मेरा रास्ता रोकने या हाथ पकड़ने की कोशिश मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा, समझे.’’ नीलम ने धमकाया.

सर्वेश समझ गया कि नीलम अब ऐसे नहीं मानेगी. उसे अपनी खूबसूरती और जवानी का इतना घमंड है तो वह उस के घमंड को हर हाल में तोड़ कर रहेगा.

सर्वेश का एक दोस्त था अनिल निषाद. दोनों ही हमउम्र थे सो उन में खूब पटती थी. एक रोज दोनों शराब पी रहे थे, उसी दौरान सर्वेश बोला, ‘‘यार अनिल, मैं नीलम से प्यार करता हूं, लेकिन वह हाथ नहीं रखने दे रही.’’

‘‘देख सर्वेश, मैं एक बात बताता हूं कि नीलम ऐसीवैसी लड़की नहीं है. उस का पीछा छोड़ दे. कहीं ऐसा न हो कि उस का पंगा तुझे भारी पड़ जाए.’’ अनिल ने सर्वेश को समझाया.

‘‘अरे छोड़ इन बातों को, मैं भी जिद्दी हूं. मैं आज चैलेंज करता हूं कि नीलम अगर राजी से नहीं मानी तो मुझे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा.’’ सर्वेश ने कहा.

सर्वेश ने नीलम के ऊपर लाख डोरे डालने की कोशिश की लेकिन हर बार उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा. बात 13 जून, 2018 की है. उस रोज शाम 5 बजे नीलम दिशा मैदान जाने को घर से निकली, तभी सर्वेश ने उस का पीछा किया. नीलम जैसे ही झाडि़यों की तरफ पहुंची, तभी सर्वेश ने उसे दबोच लिया और उसे जमीन पर पटक कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगा.

नीलम उस की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी लेकिन सर्वेश पर जुनून सवार था. तब नीलम ने हिम्मत जुटाई और सर्वेश के हाथ पर दांत से काट लिया. सर्वेश की पकड़ ढीली हुई तो वह चिल्लाती हुई सिर पर पैर रख कर गांव की ओर भागी. अपने घर पहुंचते ही नीलम मूर्छित हो कर देहरी पर गिर पड़ी.

ममता ने नीलम को अस्तव्यस्त कपड़ों में देखा तो समझ गई कि उस के साथ क्या हुआ है. मां ने नीलम के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो कुछ देर बाद उस ने आंखें खोल दीं. उस के बाद उस ने मां को सर्वेश की करतूत बताई. यह सुन कर ममता गुस्से से भर उठी.

वह शिकायत ले कर सर्वेश के पिता इंद्रपाल के पास पहुंची तो उस ने बेटे को डांटनेसमझाने के बजाय उस का पक्ष लिया और उलटे उस की बेटी नीलम के चरित्र पर ही अंगुली उठाने लगा.

ममता ने यह बात अपने पति को बताई. इस के बाद दोनों पतिपत्नी थाना सजेती पहुंच गए. उन्होंने सर्वेश के खिलाफ दुष्कर्म की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हुई और आननफानन में सर्वेश को गिरफ्तार कर कानपुर जेल भेज दिया.

सर्वेश 4 महीने जेल में रहा. 20 अक्तूबर, 2018 को उस की जमानत हुई. जेल से बाहर आने के बाद सर्वेश के दिल में ममता और उस की बेटी नीलम के प्रति बदले की आग भभक रही थी. क्योंकि उन की वजह से वह जेल जो गया था.

बदला कैसे लिया जाए, इस विषय पर उस ने अपने दोस्त अनिल से विचारविमर्श किया तो तय हुआ कि ममता के कलेजे के टुकड़े विवेक को मार दिया जाए. विवेक शिवबालक का एकलौता बेटा था. इस के बाद दोनों ने योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे.

25 जनवरी, 2019 को अपराह्न 2 बजे शिवबालक का 10 वर्षीय बेटा विवेक अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा था, तभी सर्वेश की नजर उस पर पडी़. अनिल भी उस के साथ था. सर्वेश ने अनिल के कान में कुछ कानाफूसी की फिर गांव के बाहर चला गया.

इधर अनिल ने विवेक के साथ खेल रहे सुमित को अपने पास बुलाया और उसे 20 रुपए का नोट दे कर कहा, ‘‘सुमित, तुम विवेक को ले कर गांव के बाहर ले आओ. वहां तुम दोनों को बिस्कुट, टौफी खिलाएंगे.’’

सुमित लालच में आ गया. वह विवेक को ले कर गांव के बाहर पहुंच गया. अनिल वहां विवेक के आने का ही इंतजार कर रहा था.

अनिल ने सुमित को वहीं से वापस कर दिया. वह विवेक को बहला कर सरसों के खेत पर ले गया. वहां सर्वेश पहले से मौजूद था. नफरत से भरे सर्वेश ने विवेक का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए खेत के अंदर ले गया. और विवेक को जमीन पर पटक कर बोला, ‘‘तेरी बहन ने मुझे जेल भिजवाया था. उस का बदला आज तुझे जान से मार कर लूंगा.’’

अनिल जो अब तक खेत के बाहर रखवाली कर रहा था, वह भी खेत के अंदर पहुंच गया. इस के बाद दोनों मिल कर विवेक का गला दबाने लगे. विवेक चीखने लगा तो दोनों ने गला दबाकर विवेक को मार डाला और फिर लाश को घासफूस से ढक कर वापस घर आ गए.

इधर शाम 5 बजे शिवबालक घर आया तो उसे विवेक दिखाई नहीं दिया, विवेक के बारे में उस ने शारदा से पूछा तो उस ने गली में खेलने की बात बताई. लेकिन शिवबालक का माथा ठनका.

वह उस की खोज में जुट गया. लेकिन विवेक नहीं मिला. दूसरे दिन उस की लाश सरसों के खेत में पुलिस की मौजूदगी में मिली. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो बदला लेने के लिए मासूम की हत्या का परदाफाश हुआ.

27 जनवरी, 2019 को थाना सजेती पुलिस ने अभियुक्त सर्वेश निषाद व अनिल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य

डीपफेक : टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल

जब से प्रो. वरिंदर कालेज के मास कम्युनिकेशन विभाग में आए थे, तब से इस विभाग में स्टूडेंट्स काफी बढ़ गए थे. हर स्टूडेंट प्रो. वरिंदर के पढ़ाने के तरीके से प्रभावित था. यह हिमाचल के रहने वाले थे और कालेज के हौस्टल में ही रहते थे. सभी स्टूडेंट्स उन के दीवाने थे, क्योंकि वह काफी हैंडसम थे.

किसी को भी अंदाजा नहीं था कि प्रो. वरिंदर का अश्लील वीडियो वायरल हो जाएगा. सभी तरफ इस वीडियो की ही चर्चा हो रही थी. प्रो. वरिंदर खुद हैरान थे कि यह कैसे हो सकता है.

कालेज, शहर, देशविदेश में यह वीडियो जंगल की आग की तरह फैल गया था. प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने प्रो. वरिंदर को अपनी केबिन में बुलाया और उस वायरल वीडियो के बारे में पूछा.

”सर, यह वीडियो मेरा नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने प्रिंसिपल साहब को सफाई दी.

”लेकिन वीडियो में तो आप ही हैं. वरिंदरजी, आप खुद देखो न, आप खुद हो, साथ में लड़की नैना है, जो बार बार आप से कई टौपिक पर पूछती रहती थी. यह कमरा, बैडरूम, दीवार अपने ही हैं. दीवार पर अलगअलग स्टिकर लगे हुए हैं. यह कमरा तो अपने ही हौस्टल का ही है. सौरी वरिंदरजी, हम कालेज की बदनामी नहीं करा सकते. जब तक यह वीडियो वाली बात साफ नहीं हो जाती, सच्चाई पता नहीं चल जाती, प्लीज आप कालेज मत आना. मुझे इस की जानकारी पुलिस को देनी पड़ेगी.’’

”पर सर, मैं नहीं हूं. जो लड़की है वह मेरी स्टूडेंट है, फिर मैं यह कैसे कर सकता हूं.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने कहा.

प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने खुद ही इंसपेक्टर को फोन मिलाया और कहा, ”मलकीतजी, कालेज जल्दी आना.’’

इंसपेक्टर मलकीत सिंह पिं्रसिपल का दोस्त था.

”कोई खास वजह?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”मेरे कालेज के प्रो. वरिंदर हैं, उन का एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है.’’

”अच्छा…. वो वाला वीडियो… यह तो काफी वायरल है. मैं आता हूं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

प्रो. वरिंदर काफी उदास थे. उन का एक स्टूडेंट रमन उन्हें काफी हौसला दे रहा था. रमन मास कम्युनिकेशन का स्टूडेंट था. उसे तकनीकी जानकारी बहुत थी. अच्छे वीडियो बनाता था. उसे फोटोग्राफी का भी शौक था. मौडलिंग भी करता था. कालेज के स्टूडेंट्स को ले कर वह शार्ट मूवीज भी बनाता रहता था.

उस ने प्रो. वङ्क्षरदर से कहा, ”सर,  आप चिंता न करें. हम इस का हल ढूंढ निकालेंगे.’’

प्रो. वरिंदर को रमन की बातें सुन कर हौसला मिलता था कि मेरा यह कितना खयाल रख रहा है.

इंसपेक्टर मलकीत सिंह पुलिस टीम के साथ कालेज पहुंच गए. कालेज में छुट्टी होने के कारण स्टूडेंट्स नहीं थे. पुलिस ने प्रिंसिपल गुरदयाल के साथ काफी लंबी बातचीत की. प्रो. वरिंदर को भी बुलाया.

”प्रो. साहब, यह वीडियो आप की है?’’ इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने पूछा.

”नहीं सर, मेरी नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने बताया.

”पर लग तो आप ही रहे हैं.’’

”नहीं सर, यह मेरी वीडियो नहीं है.’’

”यह लड़की कौन है?’’

”सर, यह लड़की नैना है. पर सर, मैं तो इस लड़की से मिला ही नहीं. बस यह किसी टौपिक के बारे में मुझ से पूछती और चली जाती थी. वह हमेशा अपनी सहेलियों के साथ ही आती थी.

“पर प्रोफेसर साहब, यह वीडियो तो आप की ही लगती है.’’

”नहीं इंसपेक्टर साहब, यह मैं नहीं हूं. आप मेरा रिकौर्ड चैक करवा सकते हैं.’’

”रिकौर्ड तो सामने ही है,’’ इंसपेक्टर मलकीत ने हंसते हुए कहा.

”नहीं सर, सच मानो मैं नहीं हूं.’’

वीडियो देख कर प्रिंसिपल को क्यों आया पसीना

इस मौके पर लड़की नैना को भी बुलाया गया, जो काफी रो रही थी. वह भी बोली, ”सर, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेली सर को मिली ही नहीं. जब भी मिली हूं तो मेरी सहेलियां नमिता, नीतिका साथ में ही होती थीं.’’

”बेटा हम समझते हैं, पर आप हमारा साथ दोगे तो अच्छा रहेगा.’’ इंसपेक्टर ने समझाया.

”सर, मैं सच कहती हूं, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेले कभी सर से मिली ही नहीं.’’

वे बात ही कर रहे थे कि प्रिंसिपल गुरदयाल के चेहरे पर पसीना छलक आया था. वह कोई वीडियो मोबाइल पर देख रहे थे, जिस में 2 निर्वस्त्र लड़कियां थीं…

इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने कहा, ”गुरदयाल सिंहजी क्या हुआ..?’’

प्रिंसिपल ने साइड में इंसपेक्टर मलकीत को ले जा कर वीडियो दिखाते हुए कहा, ”यह भी कालेज की लड़कियों का है जो बिलकुल नंगी हैं और एकदूसरे के साथ चिपक रही हैं.’’

नीचे एक मैसेज भी लिखा था ‘आप देखते जाओ, मेरे पास आप के कालेज के काफी वीडियो हैं. जो एक के बाद एक बाहर आऐंगे. हां प्रिंसिपल साहब, आप के वीडियो भी हैं मेरे पास… जितने मरजी एक्सपर्ट बुला लें, आप को नहीं पता चलेगा कि वीडियो कहां से लोड हो रही है.’

इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर और नैना को जाने को कहा.

”गुरदयालजी, यह मामला सिर्फ प्रो. वरिंदर और नैना का नहीं है. यह तो आप के कालेज का मामला लगता है. ये दोनों लड़कियां कौन हैं?’’

”ये हमारे कालेज की ही रानी और मोना हैं. ये इतनी घटिया हरकत कर सकती हैं, मैं ने सोचा नहीं था.’’

इंसपेक्टर ने प्रिंसिपल गुरदयाल, प्रो. वरिंदर, नैना, रानी, मोना सभी के मोबाइल नंबर लिए और कालेज से चले गए. उन को थाने से फोन आया था कि गांव के सरपंच ने अपनी बुजुर्ग मां को घर से बाहर निकाल दिया है, सारा गांव ही थाने आया है.

प्रिंसिपल की हालत बहुत खराब थी. प्रो. वरिंदर का मामला सुलझा नहीं था कि एक और वीडियो सामने आ गया. प्रिंसिपल सोच में डूबे थे कि स्टूडेंट रमन उन के पास आया, ”सर, मेरे कई दोस्त एक्सपर्ट हैं, जो पता लगा सकते हैं कि वीडियो कहां से अपलोड हो रहे हैं. ये साइबर एक्सपर्ट हैं.’’

रमन की बात प्रिंसिपल गुरदयाल को अच्छी लगी. रमन ने प्रिंसिपल के कहने पर अपने एक्सपर्ट दोस्तों को कालेज के बाहर ही रूम ले कर दे दिया. वे खोज खबर में लग गए. रमन अपने दोस्तों के साथ रात को जाम भी छलकाने लगा.

प्रिंसिपल गुरदयाल को उम्मीद थी कि बहुत जल्दी ही दोषी पकड़ा जाएगा.

शाम 5 बजे कालेज से सभी स्टूडैंट्स चले जाते थे. इंसपेक्टर मलकीत अपनी टीम के साथ आए और काफी बातें कीं.

”आप की पत्नी डा. नीता कहां है?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने प्रिंसिपल से पूछा.

पत्नी का नाम सुन कर प्रिंसिपल हैरान हो गए.

प्रिंसिपल का चेहरा पढ़ते हुए वह बोले, ”जी हां, आप की पत्नी डा. नीता जी…’’

”मेरी पत्नी से कई साल से बोलचाल बंद है. हमारे संबंध ठीक नहीं हैं. क्या यह मेरी पत्नी ने..?

”नहीं, नहीं… मैं ने ऐसा नहीं कहा. दरअसल, हम ने कालेज के कई पुराने लोगों से बात की तो पता चला कि आप की पत्नी के साथ आप के संबंध ठीक नहीं हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

डा. नीता क्यों हुई पति के खिलाफ

इंसपेक्टर मलकीत ने उन से डा. नीता का मोबाइल नंबर लिया. उन्होंने डा. नीता को थाने बुलाया. पूछताछ करने पर डा. नीता ने कहा, ”इस प्रिंसिपल ने तो मेरी जिंदगी ही बरबाद कर दी. मैं पछता रही हूं इन से शादी कर के.’’

”डा. नीताजी, आप यह बताएं कि आप के पति प्रिंसिपल गुरदयाल कैसे आदमी हैं?

”बहुत ही घटिया हैं,’’ डा. नीता ने बिंदास कहा, ”मैं तो शादी कर के पछता रही हूं. मुझे पता है कि मैं ने अपनी बेटी को कैसे पाला. फिर विदेश भेजा, इन को तो पूरी जिंदगी कालेज से ही फुरसत नहीं मिली. मैं तो डाक्टर थी, काम अच्छा था तो मैं ठीक रही, नहीं तो मैं भी इन के साथ किताबों में गुम हो जाती.’’

”डा. नीता, कालेज के एक प्रोफेसर का वीडियो काफी वायरल हुआ है. इसी के लिए मैं ने आप को बुलाया है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”आप का मतलब यह मैं ने किया…’’

”नहीं, हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप ने किया, हमें तो सिर्फ यह जानना था कि आप के पास भी कारण है कि प्रिंसिपल साहब को बदनाम करने का…’’

”क्या फालतू सवाल है? मुझे इन को बदनाम करना होता तो 12 साल पहले ही कर देती, जब मैं इन से अलग हुई थी. नहीं, यह सब झूठ है. आप मेरा मोबाइल चैक कर सकते हैं… मेरा नंबर तो आप के पास है ही, मेरी बेटी का यह नंबर है.

आप के पास तो अडवांस टैक्निक है, आप पता कर सकते हैं. हमारे रिश्ते बेशक ठीक नहीं हैं, मैं एक डाक्टर के नाते ऐसा नहीं कर सकती. मेरी भी सोशल इमेज है. मेरे अस्पताल जा कर भी आप मेरे बारे में पूछ सकते हैं.’’ डा. नीता ने सफाई दी.

”वह हम पता लगा लेंगे, लेकिन जब तक यह केस हल नहीं हो जाता, आप शहर के बाहर हमें बता कर जाना.’’

रमन और उस की टीम कोई न कोई खबर बना कर प्रिंसिपल गुरदयाल से काफी पैसे ले चुकी थी. रमन और दोस्तों का शाम का दारू और लेट नाइट बार डांस अच्छा चल रहा था.

इंसपेक्टर ने प्रो. वरिंदर को फिर थाने बुलाया. उन्होंने पूछा, ”आप के प्रिंसिपल सर कैसे हैं?’’

”सर अच्छे हैं.’’

”उन के पत्नी के साथ रिलेशन कैसे हैं?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”इतना ही पता है कि पत्नी अलग रहती है और बेटी विदेश में है.’’

रमन प्रिंसिपल से जब भी मिलता तो कुछ न कुछ पैसे ले लेता.

”सर, ये वीडियो विदेश की आईडी से लोड किए गए हैं.’’ सीआईए स्टाफ के रणजीत सिंह की टीम ने जांच कर इंसपेक्टर मलकीत से कहा.

इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर को फिर बुलाया और उन से पूछा, ”आप की यहां पर कोई दुश्मनी, कालेज स्टडी समय हिमाचल में कोई दुश्मनी आदि तो नहीं थी?’’

”दुश्मनी तो मेरी किसी से नहीं… लेकिन एक बार रमन के साथ झगड़ा हुआ था, जब इस ने एक लड़की की कुछ अश्लील तसवीरें खींची थीं. मैं ने रमन को मना किया था तो उस ने सौरी भी बोला था कि आगे से ऐसा नहीं करेगा… यह बात जब प्रिंसिपल सर को पता चली तो उन्होंने रमन को थप्पड़ मारा था. यह मामला तो 2 साल पहले का है. पर रमन तो अब काफी बदल चुका है.’’ प्रो. वरिंदर ने बताया.

पुलिस ने कई ऐंगल से इस को ध्यान से देखा. अपने खबरी भी अलर्ट किए. हर छोटी से छोटी जानकारी हासिल की.

छात्रों ने प्रिंसिपल से किस बात का लिया बदला

संडे का दिन था, प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह नाश्ता कर रहे थे. तभी इंसपेक्टर मलकीत पुलिस टीम के साथ कालेज के हौस्टल में पहुंच गए. गुरदयाल ने उन से नाश्ता करने को कहा.

तभी इंसपेक्टर ने कहा, ”नहीं सर, पहले काम बाकी बातें और नाश्ता बाद में. प्रिंसिपल साहब, आप यह बताएं कि पिछले कुछ दिनों से आप एक नंबर पर पैसे ट्रांसफर कर रहे हैं. वह बैंक खाता यूपी का है, लेकिन पैसे कालेज के एटीएम से निकाले जा रहे हैं.’’

”पैसे… कौन से पैसे…’’ प्रिंसिपल ने अनजान बनते हुए कहा.

”प्रिंसिपल साहब, झूठ न बोलो, असल मुद्दे पर आओ.’’

प्रिंसिपल को पता चल गया था कि अब झूठ बोल कर कोई फायदा नहीं, इसलिए उन्होंने हकीकत बयां कर दी.

उन्होंने कहा, ”दरअसल, हमारे कालेज के स्टूडेंट रमन ने मुझ से कहा था कि उस के कई दोस्त साइबर एक्सपर्ट हैं. वह पता कर लेंगे कि वीडियो कहां से अपलोड हुई है.’’

”फिर पता चला?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”नहीं…’’

”प्रिंसिपल साहब, यह सब फ्रौड है. यह तो यूपी बिहार के टौप के क्रिमिनल हैं, जो आप को लाखों का चूना लगा रहे हैं.’’

प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी. कालेज के नजदीक नया बाजार में रमन को, जो घर किराए पर ले कर दिया था, पुलिस ने वहां रेड की तो सभी फरार हो चुके थे.

रमन के कई मोबाइल नंबर थे. पुलिस ने अलगअलग स्थानों पर रेड कर के रमन को रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया, लेकिन उस के साथी फरार हो गए.

थाने पहुंचते ही रमन ने सारे राज उगल दिए. उस ने कहा, ”मैं ने प्रिंसिपल साहब से बदला लेने के लिए यह सब किया. प्रिंसिपल साहब ने सब स्टूडैंट्स के सामने मुझे थप्पड़ मारे थे, वह भी प्रो. वरिंदर की वजह से. फिर मैं ने डीपफेक तकनीक से चेहरे बदल कर यह सब किया.’’

रमन ने आगे बताया, ”सर, इस वीडियो में वरिंदर सर नहीं हैं, न ही वह लड़की… यह सब मैं ने तैयार करवाए. जो 2 लड़कियों का वीडियो था, वह किसी विदेश की साइट से लिया वीडियो था. मेरे पास मौडलिंग की काफी फोटो थीं, उन्हीं से मैं ने आसानी से वीडियो तैयार कर लिया. वीडियो के पीछे जो बैकग्राऊंड है, वह हमारे कालेज की है.

रमन की स्टोरी सुन कर पुलिस हैरान थी.

पुलिस ने रमन के महंगे मोबाइल को जब देखा तो उस में और भी वीडियो मिले, जिन्हें देख कर इंसपेक्टर मलकीत हैरान रह गए. लड़कियों के नहाने के कई असल वीडियो भी थे. पुलिस ने रमन के कमरे की तलाशी ली तो वहां से ढेर सारी अश्लील मैगजीन, कई लड़कियों के नग्न फोटो, विदेशी अश्लील फिल्में, क्राइम पर लिखी गई कई किताबें मिलीं.

पुलिस यह भी देख कर दंग रह गई कि प्रिंसिपल गुरदयाल का वीडियो तैयार किया जा रहा था. वहां से पुलिस ने कंप्यूटर, सीडी, हार्डडिस्क, टूटा लैपटाप अपने कब्जे में ले लिया.

हकीकत सामने आने के बाद प्रिंसिपल साहब को विश्वास हो गया कि प्रो. वरिंदर बेकुसूर हैं, इसलिए उन्होंने प्रो. वरिंदर को फिर कालेज में रख लिया. इस के बाद उन्होंने कालेज में मोबाइल लाने पर सख्त पाबंदी लगा दी. डीपफेक का राज उजागर कर पुलिस ने रमन के साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.

हनीमून पर दी हत्या की सुपारी

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 4

मौके का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने होटल मैनेजर ने पूछताछ की तो उस ने बताया, ”यह युवती, जिस का नाम जोया है, अपने शौहर अजरुद्दीन के साथ परसों रात को होटल में आई थी. कल रात को इस का शौहर अजरुद्दीन खाना लाने की बात कह कर होटल से बाहर गया था. फिर मैं ने नहीं देखा कि वह लौटा या नहीं. दानिश के आने के बाद कमरा खोला तो लाश मिली.’’

एसएचओ अंकित चौहान ने दानिश को पास बुलाया. वह अभी भी रो रहा था. उस के कंधे को सहानुभूति से दबा कर इंचार्ज अंकित चौहान ने प्रश्न किया, ”मिस्टर, आप कैसे जानते थे कि कमरा नंबर 204 में आप की बहन की लाश पड़ी है.’’

”मुझे सुबह खुद अजरुद्दीन ने फोन कर के यह बात बताई थी.’’

”अजरुद्दीन आप के जीजा लगते हैं तो…’’

”अजरू मेरा जीजा नहीं है, उस का मेरी बहन जोया से प्रेम संबंध था, लेकिन अजरू इन दिनों बाइक चोरी करने के आरोप में जेल में चला गया था. हमें यह बात अच्छी नहीं लगी. अब्बू एक चोर के साथ जोया का निकाह कभी नहीं करते.

”उन्होंने दिल्ली में जोया के लिए एक लड़का पसंद कर के उस के साथ जोया का रिश्ता पक्का कर दिया. 14 नवंबर को उस के साथ जोया की शादी होनी थी.’’

”अजरुद्दीन कहां रहता है?’’ एसीपी सलोनी अग्रवाल ने पूछा.

”वह कल्लूगढ़ी गांव (गाजियाबाद) में ही रहता है.’’ दानिश ने बताया.

एसीपी सलोनी अग्रवाल ने पहले जोया की लाश की जांच करने के लिए फोरैंसिक टीम को बुलवाया. कमरे से फोरैंसिक टीम ने सबूत एकत्र किए. इस के बाद जोया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

एसीपी सलोनी अग्रवाल ने अजरुद्दीन की गिरफ्तारी के लिए एसएचओ अंकित चौहान को नियुक्त कर दिया.

अजरू ने क्यों किया प्रेमिका का कत्ल

अंकित चौहान ने अपनी पुलिस टीम के साथ कल्लूगढ़ी में अजरुद्दीन को पकडऩे के लिए रेड डाली, लेकिन यह वहां से फरार हो गया था. अंकित चौहान ने अपने खास मुखबिर उस की टोह में लगा दिए.

20 अक्तूबर, 2023 को अजरुद्दीन को उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया. जब पुलिस सड़क पर वाहनों की चैकिंग कर रही थी और अजरुद्दीन उसी रास्ते धोलाना की तरफ जा रहा था.

पुलिस को देख कर अजरुद्दीन अपने वाहन से कूद कर भागा तो पुलिस ने उस का पीछा किया. उसे पकडऩे के लिए पुलिस को मजबूरन उस के पांव में गोली मारनी पड़ी. वह गिरा तो पुलिस ने उसे दबोच लिया.

उसे वेव सिटी थाने लाया गया. थाने में उस ने पूछताछ के दौरान लव क्राइम के पीछे की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

अजरुद्दीन जोया उर्फ शहजादी को अपनी जान से ज्यादा प्यार करता था. उस की खातिर उस ने अपनी नेक और बहुत चाहने वाली बीवी जीनत और 5 बच्चों तक को छोड़ दिया. जोया की फरमाइशें पूरी करने के लिए उस ने अपने बापदादा की जमीनें बेच भी दीं, अपना पैतृक मकान भी बेच डाला. वह जोया को हर तरह से खुश रखता था.

जोया की खातिर सब कुछ बेच देने के बाद वह किराए का घर ले कर रहने लगा और जोया की डिमांड पूरी करने के लिए बाइक चोरी करने लगा. उस पर नोएडा और गाजियाबाद थानों में चोरी के कई केस दर्ज हुए और जेल तक जाना पड़ा.

जोया वहां उस से मिलने आती थी. जोया के घर वालों ने उसे जेल में बंद देख कर झटपट जोया का रिश्ता दिल्ली में तय कर दिया. उसे यह बात पता चली तो वह तड़प उठा. उस ने किसी तरह अपनी जमानत करवा ली और जेल से बाहर आ गया.

उस ने जोया को फोन कर के आखिरी मुलाकात के लिए गाजियाबाद बुलाया. बहुत मिन्नतें करने पर वह शौपिंग के बहाने से गाजियाबाद आ गई. वह 20 अक्तूबर की शाम थी. अजरुद्दीन ने यहां होटल अनंत में एक कमरा पतिपत्नी के रूप में बुक करा लिया था.

कमरे में आ कर उस ने जोया को वह रिश्ता तोड़ देने की मिन्नतें कीं, लेकिन उस ने इंकार कर के कहा कि वह एक चोर के साथ निकाह हरगिज नहीं कर सकती, इसलिए वह उसे भूल जाए.

जिस के पीछे अजरुद्दीन पूरी तरह बरबाद हो गया, वह अब उसे चोर कह रही थी. वह दूसरे दिन भी जोया को मनाता रहा, वह नहीं मानी तो उस ने उस की कोल्ड ड्रिंक में जहर मिला दिया. जब वह फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गई थी. वह कोल्ड ड्रिंक पी कर बेसुध हो कर पलंग पर पसर गई. उस के सोते ही अजरुद्दीन ने तकिया उस के मुंह पर रख कर तब तक दबाया, जब तक उस के प्राण नहीं निकल गए.

प्रेमिका की हत्या करने के बाद उस ने रात को अपने दोस्त जलाल को बाइक ले कर होटल के पीछे बुलाया था. खाना लाने के बहाने अजरुद्दीन होटल से निकला तो जलाल होटल के पीछे खड़ा मिल गया. वह उस की बाइक पर बैठ कर होटल से दूर निकल गया. इस के बाद सुबह उस ने जोया के भाई दानिश को जोया की लाश होटल के कमरा नंबर 204 में होने की जानकारी फोन से दे दी थी.

अजरुद्दीन द्वारा जोया की हत्या का जुर्म कुबूल करने के बाद उसे न्यायिक मजिस्ट्रैट की कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

अजरुद्दीन के इस बयान के बाद जलाल को भी पुलिस ने दबोच लिया और जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित