hindi crime story : रोहतक के अखाड़े में खूनी खेल

hindi crime story : मेहर सिंह अखाड़े में तैनात सुखविंदर न केवल अच्छा पहलवान था बल्कि बेहतरीन कोच भी था. उस की नजर अखाड़े की 17 वर्षीया पहलवान पूजा पर थी. पूजा ने जब उस की हरकतों की शिकायत मुख्य कोच मनोज मलिक से की तो कोच कमेटी ने उसे अखाड़े से हटा दिया. इस पर…

एक पुरानी कहावत है कि हर जुर्म की पृष्ठभूमि में जर, जोरू और जमीन मूल कारण होता है. हरियाणा के रोहतक स्थित जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में उस रात जो कुछ हुआ, उस की जड़ में कोई एक नहीं, बल्कि ये तीनों ही कारण छिपे थे. 12 फरवरी, 2021 की रात के करीब 9 बजे जाट कालेज का पूरा प्रांगण सैकड़ों लोगों की भीड़ से खचाखच भरा था. चारों तरफ चीखपुकार मची थी. महिलाओं की मर्मांतक चीखों से पूरा माहौल गमगीन था. कालेज के बाहर पुलिस और प्रशासन की गाडि़यों का हुजूम जमा था. सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यों और एंबुलैंस से पूरा इलाका किसी बड़े हादसे की ओर इशारा कर रहा था.

करीब 2 घंटे पहले मेहर सिंह अखाड़े में जो खूनी खेला गया था, उस के बाद वहां सिर्फ तबाही और मौत के निशान बचे थे. जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में जो हादसा हुआ था, उस की शुरुआत शाम करीब साढ़े 6 बजे हुई थी. मनोज कुमार मलिक, जो जाट कालेज रोहतक में डीपीई थे, अपनी पत्नी साक्षी मलिक व अपने 3 साल के बेटे सरताज के साथ अखाड़े में मौजूद थे. साक्षी मलिक एथलीट कोटे से रेलवे में कार्यरत थी. मनोज जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में हर शाम कुश्ती के खिलाडि़यों को प्रशिक्षण देने आते थे. उस शाम मनोज करीब 6 बजे खिलाडि़यों को अभ्यास कराने के लिए अपनी पत्नी साक्षी व बेटे सरताज को साथ ले कर जाट कालेज के अखाड़े आए थे.

साक्षी मैदान में जा कर अपने गेम की प्रैक्टिस कर रही थीं, बेटा सरताज भी उन के साथ था. अखाड़े वाले मैदान में ऊंची आवाज में स्टीरियो पर वार्मअप म्यूजिक बज रहा था. मनोज मलिक जिस वक्त अखाडे़ में पहुंचे वहां कोच प्रदीप मलिक, सतीश दलाल पहले से ही खिलाडि़यों को प्रशिक्षण दे रहे थे, महिला खिलाड़ी पूजा अखाडे़ में दावपेंच आजमा रही थी. साक्षी मैदान में अपनी एथलीट की प्रैक्टिस करने लगीं. बेटा सरताज उन के पास ही था. कोच सतीश दलाल खिलाड़ी पूजा से कुश्ती के दावपेंच को ले कर बात कर रहे थे. मनोज व प्रदीप मलिक आपस में बात करने लगे. इस के बाद प्रदीप जिम्नेजियम के ऊपर बने रेस्टहाउस में चले गए, जहां एक कमरे में पहले से ही कोच सुखविंदर मौजूद था.

प्रदीप मलिक ने सुखविंदर के कमरे में जा कर उस से बातचीत शुरू कर दी. जिम्नेजियम में भी ऊंची आवाज में म्यूजिक बज रहा था, जहां कई युवा पहलवान वार्मअप कर रहे थे. सुखविंदर से बातचीत के दौरान अचानक प्रदीप मलिक का फोन आ गया. फोन ले कर वह जैसे ही उठे, तभी अचानक सुखविंदर ने उन के सिर में गोली मार दी. गोली लगते ही प्रदीप लहरा कर जमीन पर गिर पड़े. सुखविंदर ने प्रदीप के शव को दरवाजे के सामने से हटा कर एक तरफ डाल दिया. गोली जरूर चली थी, लेकिन मैदान में चल रहे स्टीरियो साउंड के कारण किसी को पता नहीं चला कि गोली कहां चली और किस ने चलाई.

सुखविंदर ने जिम्नेजियम की छत से आवाज दे कर मुख्य कोच मनोज मलिक को, जो नीचे मैदान में थे, को भी उसी कमरे में बुलाया, जिस में उस ने प्रदीप को गोली मारी थी. जैसे ही मनोज मलिक कमरे में घुसे, सुखविंदर ने बिना कोई बात किए सीधे उन के सिर में गोली मार दी. उन की भी मौके पर ही मौत हो गई. सुखविंदर ने उन के शव को भी कमरे में एक तरफ डाल दिया. 2 लोगों को गोली मारने के बाद सुखविंदर ने जिम्नेजियम की बालकनी में जा कर कोच सतीश दलाल को बात करने के लिए आवाज दे कर उसी कमरे में बुला लिया. सतीश दलाल के कमरे में एंट्री करते ही उस ने उन्हें भी गोली मार दी. कुछ ही मिनटों में तीनों की हत्या के बाद भी सुखविंदर का जुनून कम नहीं हुआ.

उस कमरे में शवों को छिपाने के लिए और जगह नहीं बची थी, इसलिए उस ने उस कमरे में ताला लगा दिया. अगला निशाना थी पूजा सुखविंदर का अगला निशाना थी अखाड़े में पहलवानी कर रही महिला पहलवान पूजा. सुखविंदर ने पूजा को फोन किया कि मनोज मलिक और दूसरे कोच कुछ बात करने के लिए उसे जिम्नेजियम में बने कमरे में आने के लिए कह रहे हैं. जिस कमरे में उस ने पूजा को बुलाया, वह दूसरा कमरा था. पूजा जैसे ही उस कमरे में पहुंची सुखविंदर ने उसे भी गोली मार दी. गोली लगते ही उस की भी मौके पर ही मौत हो गई.

मनोज मलिक व पूजा की हत्या के बाद सुखविंदर के टारगेट पर थीं साक्षी मलिक, जो उस वक्त नीचे मैदान में प्रैक्टिस कर रही थी. सुखविंदर ने बालकनी से उन्हें भी आवाज दे कर बुलाया कि मनोज बुला रहे हैं. ऊपर आ जाओ आप से कुछ सलाह लेनी है. उस ने साक्षी को भी उसी कमरे में बुलाया, जिस में पूजा की हत्या कर उस की लाश रखी थी. साक्षी के कमरे में एंट्री करते ही बिना कोई सवालजवाब किए सुखविंदर ने सीधे सिर में गोली मार कर उन की भी हत्या कर दी. सुखविंदर के सिर पर मनोज मलिक के लिए नफरत का जुनून इस कदर हावी था कि वह मनोज के पूरे वंश को मिटाना चाहता था. दरअसल, सुखविंदर ने एक बार अखबार में खबर पढ़ी थी कि बेटे ने अपने पिता की हत्या के 20 साल बाद जवान हो कर हत्यारे को मौत के घाट उतार कर बदला लिया था.

इसलिए सुखविंदर मनोज के बेटे को जिंदा छोड़ना नहीं चाहता था, जिस से बाद में वह अपने पिता की मौत का बदला ले सके. साक्षी की हत्या के बाद वह नीचे गया और मैदान में खेल रहे सरताज को यह कहते हुए उठा लिया कि उस की मम्मी ऊपर बुला रही है. ऊपर लाने के बाद सुखविंदर ने सरताज को भी गोली मार दी. सरताज को मृत समझ कर सुखविंदर ने उस कमरे में भी ताला लगा दिया. दोनों कमरों का ताला लगाने के बाद वह मेनगेट पर तीसरा ताला लगा कर अखाड़े के मैदान में आ गया. अखाड़े में मौजूद सभी लोगों की हत्या के बाद सुखविंदर नीचे आ कर अपनी गाड़ी में बैठ गया. उस समय नीचे कोई नहीं था. वहां से वह सीधे जाट कालेज के सामने पहुंचा, जहां पर मेहर सिंह अखाड़े का एक दूसरा कोच अमरजीत भी पहुंच चुका था.

अमरजीत को उस ने अखाड़े के संबंध में बात करने के लिए बुलाया था. अमरजीत के कार से बाहर निकलते ही सुखविंदर ने सीधे उस के सिर में गोली मारनी चाही, लेकिन गोली चेहरे पर जा लगी. गोली लगते ही अमरजीत लहूलुहान हालत में मैडिकल मोड़ की तरफ भागा. सुखविंदर को लगा कि अब अगर वह वहां रुका तो पकड़ा जाएगा, इसलिए अमरजीत का पीछा करने के बजाय उस ने अपनी गाड़ी का रुख दिल्ली की ओर कर दिया. नफरत व जुनून के बाद अब उस के चेहरे पर सुकून साफ नजर आ रहा था. पहलवानों को हुआ शक जिस समय ये वारदात हुई थी, अखाड़े तथा जिम्नेजियम हाल में कई पहलवान

प्रैक्टिस कर रहे थे. अखाड़े के मुख्य कोच मनोज के चाचा का लड़का टोनी, मामा का लड़का विशाल, उस की 5 साल की बेटी फ्रांसी भी उस वक्त वहां प्रैक्टिस कर रहे थे. उन के साथ अन्य पहलवानों ने देखा कि प्रदीप मलिक के अलावा मनोज, सतीश, साक्षी, पूजा और सरताज ऊपर सुखविंदर के कमरे में गए थे, लेकिन काफी देर बाद भी नीचे नहीं आए. यही सोच कर कुछ लोग जब ऊपर गए तो उन्हें एक कमरे से कोच मनोज के बेटे सरताज के रोने की आवाज सुनाई दी. कुछ पहलवानों को बुला कर जब सब ने कमरे का ताला तोड़ा तो अखाड़े में हुए इस भीषण नरसंहार कर पता चला.

रेस्टरूम के दोनों तालाबंद कमरों के दरवाजे तोड़ने के बाद वहां एक के बाद एक कई लोग लहुलूहान मिले. सुखविंदर का कहीं नामोनिशान नहीं था. माजरा समझ में आते ही कुछ लोगों ने पुलिस को खबर कर दी. चंद मिनटों में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस के आने से पहले ही साक्षी, पूजा, प्रदीप की मौत हो चुकी थी. मनोज, अमरजीत, सरताज और सतीश दलाल की सांसें चल रही थीं. उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया, जहां कुछ देर बाद मनोज और सतीश को भी डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. हरियाणा के रोहतक स्थित इस प्रसिद्ध अखाड़े में हुई गोलीबारी की वारदात की खबर तब तक जंगल की आग की तरह फैल गई थी.

इस गोलीबारी में 7 लोगों को गोली लगी थी, जिस में 5 लोगों की मौत हो गई, जबकि अमरजीत व मासूम सरताज गंभीर रूप से घायल थे. पुलिस काररवाई घटना की जानकारी मिलते ही पीजीआईएमएस थाने के एसएचओ राजू सिंधू  पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. वारदात इतनी संगीन थी कि एसपी (रोहतक) राहुल शर्मा भी खबर मिलते ही फोरैंसिक टीम व दूसरे अधिकारियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. मनोज मलिक के बडे़ भाई प्रमोज कुमार व दूसरे परिजन भी अपने परिचितों के साथ खूनी अखाड़े के बाहर जमा हो गए थे. रात के 9 बजतेबजते सभी मरने वालों के परिजन घटनास्थल पर भारी हुजूम के साथ मौजूद थे.

उसी रात पीजीआईएमएस थाने में मनोज मलिक के भाई प्रमोज की शिकायत पर सुखविंदर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. अमरजीत ने पुलिस को अपना बयान दिया कि उस पर सुखविंदर ने गोली चलाई है. पुलिस की टीमों ने पूरे शहर की घेराबंदी कर दी. लेकिन सुखविंदर पुलिस के हाथ नहीं लगा.  एसपी राहुल शर्मा ने उसी रात जाट कालेज स्थित जिम्नेजियम हाल में चल रहे अखाड़े में हुए गोलीकांड में आरोपी सुखविंदर को पकड़ने के लिए डीएसपी नरेंद्र कादयान व डीएसपी विनोद कुमार के नेतृत्व में विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया, जिस में पीजीआईएमएस थाना, सीआईए यूनिट, एवीटी स्टाफ और साइबर सेल को शामिल किया गया.

हरियाणा के डीजीपी मनोज यादव और एडीशनल डीजीपी व रोहतक रेंज के आईजी संदीप खिरवार ने केस की मौनिटरिंग का काम अपने हाथ में ले लिया. इतना ही नहीं सुखविंदर की गिरफ्तारी पर डीजीपी ने उसी रात एक लाख रुपए के ईनाम की घोषणा भी कर दी. साइबर सेल को सुखविंदर के मोबाइल फोन की सर्विलांस से पता चला कि वह भाग कर दिल्ली पहुंच गया है. उस की तलाश में टीमों को दिल्ली रवाना कर दिया गया. अगली सुबह सभी पांचों मृतकों का पोस्टमार्टम हो गया. मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि सभी को करीब 20-25 फीट की दूरी से गोली मारी गई थी. गोली सभी के सिरों में लगी जरूर थीं, लेकिन पार नहीं हुई थीं.

पोस्टमार्टम में साक्षी के सिर से 2 और बाकी चारों के सिर से एकएक गोली मिली. घायल अमरजीत और सरताज को एकएक गोली लगी थी, जो आरपार हो गई थी. फोरैंसिकटीम ने बताया कि सुखविंदर ने वारदात को .32 बोर की रिवौल्वर से अंजाम दिया था. मृतकों के शरीर में 9 एमएम की गोलियां मिली थीं. चूंकि मासूम सरताज की हालत बेहद  गंभीर थी, इसलिए उसे रोहतक पीजीआई से पंडित भगवत दयाल शर्मा स्नातकोत्तर स्वास्थ्य संस्थान में रेफर कर वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया. उस की आंखों के बीच में गोली लगी थी जो सिर के पार निकल गई थी. उस का इलाज करने में डाक्टरों की एक विशेष टीम जुट गई थी.

शुरुआती जांच में एक बात साफ हो गई कि अखाडे़ में कई लोगों की मौजूदगी के बावजूद किसी को भी सुखविंदर के कमरे में चलने वाली गोलियों की आवाज इसलिए सुनाई नहीं दी, क्योंकि प्रैक्टिस के समय तेज आवाज में म्यूजिक चल रहा था. हालांकि हल्के धमाके का अंदाजा तो सब को हुआ था, लेकिन उन्हें यही लगा कि किसी शादी में पटाखे बज रहे होंगे. किसी को इस का रत्ती भर भी अंदाजा नहीं था कि सुखविंदर ने ऊपर कमरे में 5 लोगों की हत्या कर दी है. अखाड़े में मौजूद चश्मदीदों से पूछताछ व शुरुआती जांच में यह भी पता कि सुखविंदर का अखाड़े के दूसरे कोचों के साथ कोई विवाद था, जिस के कारण उस ने पूरी वारदात को अंजाम दिया.

जिद्दी और गुस्सैल था सुखविंदर सुखविंदर के बारे में पुलिस ने ज्यादा जानकारियां जुटाईं तो पता चला कि वह मूलरूप से सोनीपत के बरौदा गांव का रहने वाला है. पुलिस की एक टीम तत्काल उस के घर पहुंची. वहां उस के परिजनों से पूछताछ हुई तो पता चला कि उस के पिता मेहर सिंह सेना से रिटायर्ड हैं. सुखविंदर शादीशुदा है. 6 साल पहले उस की शादी उत्तर प्रदेश की तनु के साथ हुई थी और उस का 4 साल का एक बेटा है. सुखविंदर जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था, इसलिए बेटा होने के बाद पत्नी से उस का झगड़ा होने लगा और 4 साल पहले वह पत्नी को उस के मायके छोड़ आया. तभी से वह मायके में है. जबकि उस का बेटा अपने दादादादी के पास है.

सुखविंदर की मां सरोजनी देवी ने बताया कि पिता मेहर सिंह ने उस की हरकतों के कारण उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया था. जिस के बाद से वह कभीकभार ही बेटे से मिलने के लिए घर आता था. पुलिस ने सुखविंदर को गिरफ्तार करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन संयोग से वारदात के अगले ही दिन 13 फरवरी को दिल्ली पुलिस ने समयपुर बादली इलाके में संदिग्ध अवस्था में कार में घूमते हुए एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था. उस के कब्जे से एक अवैध पिस्तौल तथा 5 कारतूस भी बरामद हुए थे.

उस से पूछताछ करने पर समयपुर बादली पुलिस को पता चला कि सुखविंदर नाम के उस शख्स ने एक दिन पहले रोहतक के मेहर सिंह अखाडे़ में 5 पहलवानों की नृशंस हत्या को अंजाम दिया है तो पुलिस ने उस के खिलाफ शस्त्र अधिनियम का मामला दर्ज कर तत्काल इस की सूचना रोहतक पुलिस को दी. सूचना मिलते ही रोहतक पुलिस दिल्ली पहुंच गई. पीजीआईएमएस थाना पुलिस ने दिल्ली  की अदालत में अरजी दे कर सुखविंदर का ट्रांजिट रिमांड हासिल किया और उसे रोहतक ला कर अदालत में पेश किया. पुलिस ने अदालत से उस का 4 दिन का रिमांड ले लिया.

इस दौरान एसआईटी ने उसे साथ ले जा कर पूरे घटनाक्रम का सीन रिक्रिएट किया. पुलिस ने सुखविंदर के खिलाफ सभी साक्ष्य एकत्र किए और यह पता लगाया कि आखिर उस ने इस जघन्य हत्याकांड को क्यों अंजाम दिया था. उस से पूछताछ के बाद पता चला कि उस ने जर, जोरू और जमीन के लिए एक नहीं, बल्कि 6 हत्याओं को अंजाम दिया था. क्योंकि तब तक मनोज व साक्षी के 3 वर्षीय बेटे सरताज की भी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी. सुखविंदर की पिछले कुछ दिनों से मनोज मलिक से एक खास वजह से रंजिश चल रही थी. मनोज मलिक व उन की पत्नी साक्षी नामचीन खिलाड़ी थे. मनोज अपने जमाने के जानेमाने राष्ट्रीय स्तर के पहलवान रहे थे.

उन्होंने कई प्रतियोगिताएं जीती थीं. बाद में रोहतक के जाट कालेज में उन्हें सहायक शिक्षक यानी डीपीई की नौकरी मिल गई. जाट कालेज के पास ही उन्हें रोहतक के सब से प्रतिष्ठित मेहर सिंह अखाडे़ में कोच की नौकरी भी मिल गई. इस अखाडे़ में मनोज मलिक के अलावा कई अन्य कोच थे. उन्हीं में सुखविंदर भी एक था. वे सभी अखाडे़ में कुश्ती के लिए नए पहलवान तैयार करते थे. मनोज मलिक (39) मूलरूप से गांव सरगथल जिला सोनीपत के रहने वाले थे. मनोज मलिक और साक्षी 14 फरवरी, 2013 को शादी के बंधन में बंधे थे. शादी की 8वीं सालगिरह से 2 दिन पहले ही दोनों ने एक साथ इस दुनिया को छोड़ दिया था.

राष्ट्रीय स्तर की एथलीट थी साक्षी साक्षी एथलीट की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी थी. बाद में उन्हें भी रेलवे में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी मिल गई थी. मनोज मलिक पिछले कई सालों से अपनी पत्नी साक्षी मलिक व 3 साल के बेटे सरताज के साथ रोहतक में जाट कालेज व अखाड़े के पास देव कालोनी में रहते थे. मनोज मलिक और उन की पत्नी साक्षी चूंकि दोनों ही अच्छे खिलाड़ी थे. इसलिए वे अपने मासूम बेटे सरताज को भी कुश्ती का खिलाड़ी बनाना चाहते थे. ट्रैक और कुश्ती मैट पर अठखेलियां करता सरताज मांबाप के साथ अखाडे़ में जाता था. वह नए पहलवानों की आंखों का तारा बन गया था. कुल मिला कर उन दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय था.

मनोज को कभी सपने में भी गुमान नहीं था कि जिस सुखविंदर को उन्होंने ही 2 साल पहले 15 हजार रुपए महीने पर अखाड़े में कोच की नौकरी पर रखा था, वह अपनी नीच हरकतों के कारण एक दिन न सिर्फ उन की हत्या कर देगा, बल्कि उन के परिवार के खात्मे का सबब बन जाएगा. बाद में खिलाडि़यों की शिकायत पर मनोज ने उसे हटा दिया था. बस इसी बात से गुस्साए सुखविंदर ने इस घटना को अंजाम दिया था. सामूहिक गोली कांड में मारे गए अखाड़े के एक अन्य कोच सतीश दलाल (28) मूलरूप से गांव माडोठी, जिला झज्जर हाल निवासी सांपला के रहने वाले थे. जानेमाने कुश्ती  खिलाड़ी सतीश दलाल इन दिनों मनोज मलिक के अखाड़े में कुश्ती के कोच का काम संभाल रहे थे.

इस हादसे में मारे गए महम चौबीसी के गांव मोखरा निवासी प्रदीप मलिक (28) भी थे. रामकुमार मलिक के 3 बेटों में प्रदीप सब से छोटे थे. प्रदीप का बड़ा भाई विक्रम सीआरपीएफ में तथा बीच वाला भाई संदीप बीएसएफ में नौकरी करता है. प्रदीप खेल कोटे से रेलवे में सीटीआई थे. उन की ड्यूटी रतलाम, मध्य प्रदेश में थी. विवाहित प्रदीप का एक बेटा है अग्निपथ, जो केवल 15 महीने का है. प्रदीप की पत्नी अंजलि गांव मोखरा में ही रहती है. परिवार का मुख्य काम खेतीबाड़ी है. प्रदीप मलिक गजब के पहलवान थे. वह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के चैंपियन रहे थे. 77 किलोग्राम भार वर्ग में प्रदीप ने आल इंडिया रेलवे चैंपियनशिप भी जीती थी.

प्रदीप ने जाट कालेज रोहतक से बीए पास किया था. उन्हें जालंधर में प्रस्तावित राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप में भाग लेना था, इसी चैंपियनशिप के लिए वह दिल्ली में ट्रेनिंग कैंप में आए हुए थे. वहीं से छुट्टी ले कर रोहतक आए थे ताकि यहां कुश्ती के दावपेंच और अधिक गहरे से सीख सकें. प्रदीप का सुखविंदर के साथ कोई सीधा झगड़ा नहीं था. बस अखाड़े में उस की हरकतों को ले कर एक बार अखाड़े में जा कर उसे समझाया था तथा 2-4 बार वाट्सऐप पर बात हुई थी और उन्होंने सुखविंदर को अपना व्यवहार ठीक करने की सलाह दी थी. इसी से सुखविंदर प्रदीप से भी रंजिश रखने लगा था.

पूजा तोमर पर डालता था डोरे सामूहिक हत्याकांड में मारी गई प्रतिभाशाली युवा महिला पहलवान पूजा तोमर (17) यूपी चैंपियन रह चुकी थीं. पूजा का परिवार मूलरूप से मथुरा के गांव सिहोरा का रहने वाला है, लेकिन फिलहाल वे मथुरा के लक्ष्मीनगर में रहते हैं. पूजा के पिता रामगोपाल और भाई विष्णु कपड़े की दुकान चलाते हैं. पूजा दमदार खिलाड़ी थी और परिवार वालों ने उन्हें करीब डेढ़ साल पहले रोहतक में जाट कालेज के पीछे बने अखाड़े में कोचिंग लेने के लिए भेजा था. पूजा 2014 से 2020 तक 57 किलो भार वर्ग की प्रतियोगिताओं में यूपी चैंपियन रह चुकी थीं. 2019 और 2020 में पूजा नैशनल चैंपियन भी रहीं.

दरअसल, इस हादसे की असल वजह थी सुखविंदर का महिला पहलवानों से अश्लील व्यवहार तथा उन से संबंध बनाने का दबाव. मेहर सिंह अखाडे़ में कुश्ती सीखने वाली पूजा तोमर ने कुछ दिन पहले अपने परिवार व अखाडे़ के मुख्य कोच मनोज मलिक से सुखविंदर की शिकायत की थी. पूजा ने अखाडे़ के कोच व अपने परिवार से सुखविंदर की जो शिकायत की थी, उस में बताया था कि सुखविंदर उसे परेशान कर रहा है और उस पर शादी का दबाव बना रहा है. दरअसल, अपनी पत्नी से दूर हो कर तनहा जीवन जी रहे सुखविंदर में अपोजिट सैक्स के प्रति एक कुंठा भर गई थी. वह किसी भी तरह अखाडे़ पर अपने आधिपत्य के साथ किसी महिला से संबंध बनाना चाहता था.

अखाड़े की महिला पहलवान से संबंध बनाने या शादी करने के उसे 2 फायदे नजर आ रहे थे. एक तो अखाड़े की पहलवान कुश्ती से नाम और पैसा कमा कर कमाई में उस का हाथ बंटाती. दूसरे उस की जिस्मानी जरूरत पूरी करने के लिए एक हृष्टपुष्ट औरत मिल जाती. पूजा चूंकि कम उम्र की आकर्षक युवती थी, इसलिए सुखविंदर को उस पर डोरे डालना आसान लगा. इस के लिए वह काफी दिनों से पूजा पर दबाव बना रहा था. जब पानी सिर से ऊपर पहुंच गया तो पूजा ने अपने परिवार से इस बात की शिकायत कर दी. परिवार वालों ने अखाडे़ के मुख्य कोच मनोज मलिक को इस की सूचना दे कर अपनी बेटी को अखाडे़ से हटाने की बात कही तो मनोज मलिक को लगा कि ऐसा हुआ तो अखाड़े की शान और उन के नाम को बड़ा नुकसान और बदनामी होगी.

मनोज ने यह बात साथी कोचों से बताई तो सब ने एक राय से सुखविंदर को अखाडे़ से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उन सभी ने सुखविंदर को बुला कर पहले सामूहिक रूप से जम कर खरीखोटी सुनाई और फिर उस से साफ कह दिया कि वह 14 फरवरी तक अखाड़ा छोड़ दे. साथ ही उसी दिन से सुखविंदर को अखाड़े में आने से मना कर दिया. अपने हाथ से लड़की और अखाड़े की नौकरी निकलती देख सुखविंदर अपमान की आग में जलने लगा. और तभी उस ने फैसला कर लिया कि जो लोग उस की बरबादी का कारण बने हैं, उन सब की जिंदगी छीन लेगा.

वारदात को अंजाम देने के लिए 4 दिन पहले ही उस ने साजिश रच ली थी. उस ने सोचा कि उस का खुद का घर तो उजड़ चुका है, अब वह उन का भी घर उजाड़ देगा, जिन के प्रति उस के मन में रंजिश थी. सुखविंदर से पूछताछ में खुलासा हुआ कि पूजा ही नहीं, उस ने एक अन्य महिला पहलवान से भी ऐसी ही हरकत की थी. इन्हीं कारणों से मुख्य कोच मनोज मलिक, सतीश दलाल, प्रदीप मलिक ने सुखविंदर पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस बात को ले कर सुखविंदर की अमरजीत से भी कहासुनी हुई थी. उसे बता दिया गया था कि अब अखाड़े से उस का कोई मतलब नहीं है और न ही उसे यहां से कोई पैसा मिलेगा.

बस यही बात सुखविंदर को नागवार गुजरी. उस का मानना था कि उस ने अखाड़े के लिए काफी मेहनत की थी, लेकिन अब उसे ही बाहर निकाला जा रहा है. इसी वजह से उस ने करीब 4 दिन पहले हत्याकांड की साजिश रच ली थी. हत्याकांड से साफ था कि आरोपित किसी भी सूरत में मनोज के परिवार को जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. पहले से रची गई उस की साजिश का पता इस बात से भी चलता है कि सुखविंदर पिछले कई दिनों से प्रैक्टिस के दौरान बारबार कहता था कि कुछ बड़ा करूंगा. कुछ ऐसा करूंगा कि सब मुझे याद करेंगे. पीजीआईएमएस पुलिस ने आवश्यक पूछताछ के बाद आरोपी सुखविंदर को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

लेकिन एक मामूली सी बात पर 6 लोगों की जिंदगी छीन लेने वाले सुखविंदर के कारण उस अखाड़े के दामन पर लगे खून के छींटों को शायद ही मिटाया जा सके, जहां से देश को नामचीन पहलवान मिले थे. hindi crime story

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़तों के बयान व अभियुक्त के बयान पर आधारित

 

सीवर का ढक्कन : क्या हुआ उन मासूमों के साथ

Kahaniyan Crime Story in Hindi : आज तीसरे दिन कर्फ्यू में 4 घंटे की छूट दी गई थी. इंस्पैक्टर राकेश अपनी पुलिस टीम के साथ हालात पर काबू पाने के लिए गश्त पर निकले हुए थे. रास्ते में आम लोगों से ज्यादा रैपिड ऐक्शन फोर्स के जवान नजर आ रहे थे. सड़कों के किनारे लगे अधजले, अधफटे बैनरपोस्टर दंगों की निशानदेही कर रहे थे.

अपनी गाड़ी से आगे बढ़ते हुए इंस्पैक्टर राकेश ने देखा कि एक सीवर का ढक्कन ऊपरनीचे हो रहा था. उन्होंने फौरन गाड़ी रुकवाई. सीवर के करीब पहुंचने पर मालूम हुआ कि अंदर से कोई सीवर के ढक्कन को खोलने की कोशिश कर रहा था. इंस्पैक्टर राकेश ने जवानों से ढक्कन हटाने को कहा.

सीवर का ढक्कन खुलने के बाद जब पुलिस का एक सिपाही अंदर झांका तो दंग रह गया. वहां 2 नौजवान गंदे पानी में उकड़ू बैठे हुए थे. उन के कपड़े कीचड़ में सने हुए थे. उन के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आ रहा था.

ढक्कन खुलते ही वे दोनों नौजवान हाथ जोड़ कर रोने लगे. उन के गले से ठीक ढंग से आवाज भी नही निकल पा रही थी. उन में से एक ने किसी तरह हिम्मत कर के कहा, “सर… हमें बाहर निकालें…”

बहरहाल, कीचड़ से लथपथ और बदबू में सने हुए उन दोनों लड़कों को बाहर निकाला गया. इस बीच एंबुलैंस भी वहां आ चुकी थी.

बाहर निकलने के बाद वे दोनों लड़के गहरी गहरी सांसें लेने लगे. दोनों के पैरों को कीड़े मकोड़ों ने काट खाया था, जिन से अभी भी खून बह रहा था. उन के शरीर के कई हिस्सों पर जोंक चिपकी हुई खून पी रही थीं और तिलचट्टे व कीड़े रेंग रहे थे. उन्हें झाड़ने या हटाने की भी ताकत उन में नहीं बची थी.

उन दोनों को जल्दीजल्दी एंबुलैंस में लिटाया गया. एंबुलैंस चलने के पहले ही एक नौजवान बोल पड़ा, “अंदर 2 जने और हैं सर…”

पुलिस टीम को यह समझते देर नहीं लगी कि सीवर में 2 और लोग फंसे हुए हैं. पुलिस का एक जवान सीवर में झांकते हुए बोला, “सर, अंदर 2 डैड बौडी नजर आ रही हैं.”

इंस्पैक्टर राकेश के मुंह से अचानक निकला, “उफ…”

बड़ी मशक्कत से उन दोनों लाशों को बाहर निकाला गया, जो पानी में फूल कर सड़ने लगी थीं. बदबू के मारे नाक में दम हो गया था.

अगले दिन जिंदा बचे उन दोनों लड़कों के बयान से मालूम हुआ कि उन में से एक का नाम महेश और दूसरे का नाम मकबूल है. मरने वाले माजिद और मनोहर थे.

उन में से एक ने बताया, “हम लोग नेताजी का भाषण सुनने आए थे. अभी भाषण शुरू भी नहीं हुआ था कि सभा स्थल के बाहर कहीं से धमाके की आवाज सुनाई पड़ी. पलक झपकते ही अफवाहों का बाजार गरम हो गया और लोगों में भगदड़ मच गई. ‘आतंकवादी हमला’ का शोर सुन कर हम लोग भी भागने लगे.

“लोग अपनी जान बचाने के लिए जिधर सुझाई दे रहा था, उधर भागे जा रहे थे. उसी भगदड़ में कुछ लोग मौके का फायदा उठा कर लूटपाट करने में मसरूफ हो गए. हालात की गंभीरता को देखते हुए घंटेभर में कर्फ्यू का ऐलान होने लगा. पुलिस की गाड़ियों के सायरन चीखने लगे. साथ छूटने के डर से हम चारों ने एकदूसरे का हाथ पकड़ रखा था.

घरों और दुकानों के दरवाजे बंद हो चुके थे. कहां जाएं, किस के घर में घुसें… कौन इस आफत में हमें पनाह देगा, यह समझ में नही आ रहा था. यह सोचते हुए हम चारों दोस्त भागे जा रहे थे कि तभी पीछे गली से गुजर रही पुलिस की गाड़ी से फायरिंग की आवाज आई. ऐसा लगा जैसे वह फायरिंग हम लोगों पर की गई थी.

“हम लोग हांफ भी रहे थे और कांप भी रहे थे. दौड़ने के चक्कर में हम में से किसी एक का पैर सीवर के अधखुले ढक्कन से टकराया. वह लड़खड़ा कर गिरने लगा. हाथ पकड़े होने के चलते हम चारों ही एकसाथ गिर पड़े.

“हम लोगों को तत्काल छिपने के लिए सीवर ही महफूज जगह लगा. इस तरह एक के बाद एक हम चारों लोग सीवर में उतरते चले गए और उस का ढक्कन किसी तरह से बंद कर लिया… और फिर…” इतना कह कर वह लड़का रोने लगा. देखते ही देखते वही सीवर 2 नौजवानों की कब्रगाह जो बन गया था.

Social Crime : झाड़फूंक के बहाने काले कपड़े वाला बाबा करता था महिलाओं से छेड़छाड़

Social Crime : देश में शिक्षा का प्रचारप्रसार चाहे कितना भी बढ़ गया हो लेकिन लोगों के मन से अंधविश्वास अभी भी नहीं गया है. एक मजार के बाबा अंसार हुसैन ने तो महिलाओं की समस्याएं दूर करने का ऐसा तरीका बना रखा था कि…

हर इंसान दुनिया में किसी न किसी परेशानी या समस्या से घिरा रहता है. लेकिन ऐसी कोई समस्या नहीं, जिस का हल न हो. कुछ समझदार लोग बड़ी से बड़ी समस्या का हल अपनी सूझबूझ से निकाल लेते हैं, लेकिन कुछ मूढ़मति भटक कर रह जाते हैं. निस्संदेह भटकने वाले लोगों का फायदा गलत किस्म के इंसान उठाते हैं. ढोंगी बाबाओं, तांत्रिकों और झाड़फूंक करने वाले कथित पीर बाबाओं मौलानाओं की दुकानदारियां ऐसे ही लोगों से चलती हैं. जिन के चक्कर में पड़ कर अपनी जिंदगी तो खराब करते ही हैं, आर्थिक नुकसान भी उठाते हैं.

गंभीर रोगों पर किसी प्रकार की शारीरिक समस्या अथवा निस्संतान होने पर महिलाएं अच्छे डाक्टर के बजाय इन बाबाओं के चक्कर में पड़ जाती हैं. मातृत्व की प्राप्ति के बिना नारीत्व सार्थक नहीं होता. निस्संतान महिला ससुराल में उपेक्षा की पात्र बन कर रह जाती है. दूसरे लोग भी उस पर टीकाटिप्पणी करने से बाज नहीं आते. ऐसे में कोई उसे बांझ कह दे तो महिला के दिल को गहरी चोट लगती है. ऐसी उपेक्षित महिला के लिए बांझ कोई शब्द नहीं, बल्कि गाली होती है. ऐसी गाली सुन कर उस पर क्या बीतती है, केवल वही समझ सकती है, जो इस दर्द से गुजरी हो.

ऐसी ही एक निस्संतान महिला थी सलमा (परिवर्तित नाम) जोकि लखनऊ के सआदतगंज इलाके में रहती थी. उस के निकाह को 10 साल हो चुके थे, मगर उस की गोद सूनी थी. संतानोत्पत्ति के लिए सलमा जो कर सकती थी, सब किया लेकिन उस की मुराद पूरी नहीं हुई. सलमा ने भी मान लिया था कि उस की किस्मत में संतान नहीं है. संतान न होने का गम उठा कर भी सलमा घुटघुट कर जी लेती, लेकिन अचानक उस के शौहर ने उस का जीना हराम कर दिया. वही शौहर जो कभी उस पर जान छिड़कता था. अचानक उसे दुश्मन की नजर से देखने लगा. दोष सलमा का था जो पति को उस का वारिस नहीं दे सकी थी, इसलिए वह चुप रह कर उस की गालियां भी सुन लेती और पिट भी लेती. सलमा की खामोशी ने उस के शौहर के जुल्म बढ़ा दिए थे.

सलमा ने शौहर में अचानक आए बदलाव का कारण पता किया तो उस के जैसे होश उड़ गए. पता चला कि उस का दूसरे मोहल्ले में रहने वाली एक युवती से इश्क चल रहा था. शौहर अपनी प्रेमिका को अपनी बेगम बना कर घर लाना चाहता था. सलमा अपनी छाती पर भला सौतन को कैसे बरदाश्त कर सकती थी. इसलिए उस ने इस का विरोध किया तो शौहर ने उस की पिटाई कर दी. उधर शौहर की माशूका उस से निकाह करने को राजी थी. लेकिन उस ने साफ कह दिया था कि पहले वह अपनी बेगम सलमा को घर से दफा करे, उस के बाद वह उस से निकाह करेगी.

यही कारण था कि शौहर सलमा पर जुल्मों के पहाड़ ढा रहा था. उस की मंशा थी कि सलमा हमेशा के लिए अपने मायके चली जाए और प्रेमिका से उस का निकाह करने का रास्ता साफ हो जाए. एक या कुछ दिन की बात होती तो सलमा सह लेती. यहां तो हर सुबह उसे गालियों का नाश्ता मिलता और पिटाई का डिनर करती फिर पूरी रात चुपकेचुपके रोती रहती. एक दिन तो गजब हो गया. सलमा के शौहर को बेड टी लेने की आदत थी. वह चाय की चुस्कियां लेने के बाद ही बिस्तर से उठता था. उस सुबह सलमा चाय ले कर शौहर को जगाने गई, ‘‘उठिए, चाय पी लीजिए.’’

शौहर पहले से जाग रहा था. सुबहसुबह सलमा को पीटने का मन भी बनाए हुए था. बस, उसे एक बहाना चाहिए था. सलमा ने जैसे ही उसे आवाज दी तो वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘साली बांझ, मेरी आंखों के सामने आ कर क्यों खड़ी हो गई. तूने मेरा पूरा दिन बरबाद कर दिया.’’

उस के बाद उस ने सलमा के सीने पर लात मारी. सलमा दीवार से टकराई, उस पर गरम चाय गिर गई. एक तो चोट, दूसरे चाय से जलन की पीड़ा. सलमा बिलबिला कर रो पड़ी. मगर उस के शौहर को कहां तरस आने वाला था. सलमा को चोट पहुंचाने के लिए ही तो उस ने उस के सीने पर लात मारी थी. सलमा बिलबिला कर रोने लगी तो शौहर का पारा हाई हो गया. वह बैड से उतरा और जमीन पर गिरी सलमा को लातों से कुचलने लगा, ‘‘बांझ औरत, मैं तेरा मनहूस चेहरा नहीं देखना चाहता. जीना चाहती है तो शराफत से मायके चली जा और लौट कर यहां कभी मत आना. और नहीं गई तो मैं पीटपीट कर तेरी जान ले लूंगा.’’

रोनेसिसकने के अलावा सलमा कर भी क्या सकती थी. सलमा को अधमरा करने के बाद शौहर फ्रैश हुआ और कपडे़ बदल कर घर से चला गया. चोटें सहलाते हुए सलमा अपनी फूटी किस्मत पर आंसू बहाती रही.  दिमाग बहुत कुछ सोच रहा था. अब सलमा को अपना जीवन निरर्थक लग रहा था. सोच यही थी कि जलालत और दुखों से भरी ऐसी जिंदगी जीने से क्या लाभ. इन हालातों से कभी छुटकारा नहीं मिलने वाला. ऐसे जीवन से तो मौत भली. इस के बाद सलमा के जेहन में मौत को गले लगाने का विचार हावी होता चला गया. वह उठी और मुंह पर पानी के छींटें मार कर चेहरा दुरुस्त किया, फिर दरवाजे पर ताला लगा कर चाबी पड़ोसन को दे दी और कहा कि उस का शौहर आए तो चाभी दे देना. इस के बाद सलमा के जिस ओर कदम उठे, वह चल पड़ी.

मन में विचार आ रहा था कि कैसे मरे. इसी बीच सड़क पर उस की एक खास परिचित महिला मिली. उस ने सलमा को परेशान देखा तो उसे रोक कर पूछा कि कहां जा रही है. सलमा ने उसे दुखी मन से बोल दिया कि वह मरने जा रही है. यह सुन कर वह महिला चौंकी. वह सलमा को लेकर एक जगह बैठ गई. उस की परेशानी पूछी तो सलमा ने रोते हुए उसे पूरी आपबीती सुना दी. महिला को उस की स्थिति पर तरस आया. उस ने उसे उस की समस्या को दूर करने का रास्ता बताने का वादा किया. शर्त यह रखी कि वह मरने का इरादा छोड़ दे तो वह बताएगी. सलमा ने वादा किया कि उस की शर्त मानने को तैयार है. उस की समस्या दूर हो जाएगी तो उसे मरने की जरूरत ही नहीं पडे़गी.

महिला ने उसे वह रास्ता बताया तो जैसे सलमा को ऐसे लगा जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया. आस जगी तो वह घर वापस लौट गई. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ठाकुरगंज थानाक्षेत्र के हुसैनाबाद में रईस मंजिल के पास सैयद अहमद शाह उर्फ पिन्नी वाले बाबा की मजार थी. मजार पर रोज काफी लोग मत्था टेकने आते थे और अपने लिए दुआएं मांगते थे. आने वालों में महिलाएं अधिक होती थीं.  मजार पर 65 वर्षीय मौलाना अंसार हुसैन उर्फ काला बाबा झाड़फूंक का काम करता था. अंसार हुसैन हमेशा काले कपड़े पहनता और काली टोपी लगाता था. इसीलिए लोग उसे काला बाबा कहने लगे थे. मजार के पास ही एक कमरा बना था. काला बाबा झाड़फूंक का काम उसी कमरे में करता था.

वह निस्संतानता, सफेद दाग और कई प्रकार के रोगों और परेशानियों को दूर करने का दावा करता था. उस का एक सहयोगी असलम था, जो कि बाबा का राजदार था और उस के हर काम में सहयोग करता था. परिचित महिला ने सलमा को इसी काला बाबा के बारे में बताया था. सलमा अपना दुख ले कर काला बाबा के पास पहुंची और अपना दुख उस के सामने जाहिर किया. काला बाबा ने उस पर ऊपरी साया होने की बात बताई जो कि उस की कोख हरी नहीं होने दे रहा. वह साया उस की कोख में अपनी जगह बनाए हुए था. इसलिए पूरे जतन करने के बाद भी वह मां नहीं बन पा रही थी. काला बाबा की बात सुन कर सलमा सहम गई. उस ने काला बाबा से उस का उपाय करने को कहा. बाबा ने उसे हर बुधवार को मजार पर पास आने को कहा. बाबा ने उस से कहा कि वह उस दिन नहा कर साफ कपड़े पहन कर आए. बाबा का मानना था कि बुधवार को ही कोई काम शुद्ध होता है.

उस दिन भी बुधवार था. काला बाबा उसे कमरे में ले गया और मोर पंखों की झाड़ू उस के सिर पर मार कर उस के ऊपरी साए को भगाने का जतन करने लगा. साथ ही कुछ बुदबुदाते हुए उस के ऊपर फूंक भी रहा था. कुछ देर तक ऐसा करने के बाद काला बाबा ने सलमा से कहा कि ऊपरी साए को दूर करने के लिए उसे अपने शरीर पर भभूत लगवानी होगी. सलमा कुछ झिझकी तो बाबा ने कहा कि जो तुम्हारी समस्या को दूर कर रहा हो, उस के सामने शरमाना और हिचकना नहीं चाहिए. सलमा वैसे ही परेशान थी और हर हाल में अपना दुख दूर करना चाहती थी. इसलिए वह काला बाबा की बात मानने को तैयार हो गई.

कमरे के आधे हिस्से को एक चादर से कवर किया गया था. वहां जमीन पर एक चादर भी बिछी थी. काला बाबा ने सलमा को वहां भेज दिया. सलमा ने अपने सारे कपडे़ उतार दिए और जमीन पर बिछी चादर पर लेट गई. काला बाबा उस के पास पहुंचा और उस के बदन पर साथ लाई भभूत को मलने लगा, साथ ही वह कुछ बुदबुदा भी रहा था. वह काफी देर तक भभूत लगाता रहा. सलमा मजबूरी में लेटी थी लेकिन बाबा का स्पर्श करना उसे भी अच्छा लग रहा था. उस दिन के बाद सलमा हर बुधवार बाबा के पास जाने लगी. बाबा के पास आने वाली महिलाओं में सलमा ही नहीं थी, उस जैसी कई महिलाएं थीं, काला बाबा जिन का इसी तरह इलाज करता था. किसी को भभूत लगाता तो किसी को लेप लगाता था.

इलाज के बहाने वह महिलाओं के शरीर से छेड़छाड़ करता, उन की अस्मत से खेलता था. कभी उस की तबियत खराब होती या चेले असलम का मन होता तो काला बाबा उसे महिलाओं से खेलने का मौका दे देता था. असलम अपने गुरु से भी चार हाथ आगे निकल गया. वह महिलाओं की इज्जत से तो खेलता ही था, साथ ही वह उन की वीडियो भी बना लेता था. वीडियो के सहारे बाद में वह उन महिलाओं को ब्लैकमेल करता था. बाबा और उस के चेले का यह गोरखधंधा कई सालों से चल रहा था. मजार पर महिलाएं जरूरत से ज्यादा आने लगीं तो आसपास के लोगों का माथा ठनका. उन्होंने काला बाबा और उस के चेले पर नजर रखनी शुरू कर दी.

वह काला बाबा से कुछ पूछते या टोकते तो बाबा और उस के घर वाले लोगों से लड़ने को तैयार हो जाते थे. परिवार वाले बाबा का ही साथ देते थे. सआदतगंज क्षेत्र की एक महिला अपने शरीर पर पड़े सफेद दागों को दूर कराने के लिए एक साल से काला बाबा के पास आ रही थी. काला बाबा उस के सफेद दाग दूर करने के बहाने उस के नग्न बदन पर लेप लगाता था. 21 अक्तूबर, 2020 की शाम को भी वह महिला काला बाबा के पास लेप लगवाने आई. बाबा की तबियत ठीक नहीं थी. इसलिए उस ने अपने चेले असलम को लेप लगाने के लिए बोल दिया. असलम उस महिला को कमरे में ले जा कर लेप लगाने लगा. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था. काला बाबा दरवाजे के बाहर ही तैनात था.

तभी मोहल्ले वाले कमरे के अंदर किसी महिला के होने की जानकारी मिलते ही वहां पहुंच गए. वे लोग कमरे के अंदर क्या हो रहा है, काला बाबा से इस की जानकारी मांगने लगे. बाबा उन पर नाराज हो गया तो लोग उस से हाथापाई करने लगे. कुछ लोग इस सब का मोबाइल से वीडियो बना रहे थे, तभी शोर सुन कर कमरे के अंदर मौजूद असलम ने दरवाजा खोल कर बाहर देखना चाहा तो मोहल्ले के लोग कमरे के अंदर घुस गए. वहां परदे के पीछे एक नग्न महिला लेटी हुई थी. लोग वहां पहुंच गए और उस से सवालजवाब करने लगे. महिला कपड़े पहनते हुए सफाई देने लगी कि वह तो मजार पर मत्था टेकने आई थी. वह एक साल से मजार पर आ रही थी. लोगों ने वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिए.

बाबा की घिनौनी करतूत को जिस ने देखा उस ने बाबा को कोसा. मोहल्ले के लोगों ने ठाकुरगंज थाने में सूचना दे दी. सूचना पर इंसपेक्टर राजकुमार अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मोहल्ले के लोगों ने काला बाबा की करतूतों के बारे में उन्हें बताया. पूरे मामले की बनाई गई वीडियो भी उन को दे दी. इस बीच काला बाबा का चेला असलम भाग गया था. इंसपेक्टर राजकुमार काला बाबा और उस महिला को साथ ले कर थाने आ गए. महिला ने बाबा के विरुद्ध थाने में शिकायत दर्ज कराने से मना कर दिया. तब पुलिस ने महिला को पूछताछ के बाद थाने से घर भेज दिया.

इस के बाद थाने के दरोगा ओमप्रकाश यादव की ओर से काला बाबा और उस के चेले असलम के खिलाफ अश्लील हरकत करने और धोखाधड़ी समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद काला बाबा को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस असलम की तलाश में लगी हुई थी.

कांग्रेस युवा नेत्री हिमानी मर्डर केस : हत्या के पीछे चौंकाने वाले खुलासे

Haryana Crime : कांग्रेस की युवा नेत्री हिमानी नरवाल की हत्या ने हरियाणा ही नहीं, बल्कि देशभर के लोगों को झकझोर कर रख दिया है. घटना हरियाणा के रोहतक की है, जहां 22 साल की हिमानी नरवाल की हत्या की गई फिर उस के शव को सूटकेस में भर कर फेंक दिया गया. अब शव को ले कर जांच में जुटी पुलिस ने एक आरोपी सचिन को अरैस्ट कर लिया गया है, जो हिमानी का दोस्त बताया जा रहा है और बहादुरगढ़ का रहने वाला है.

सूत्रों का कहना है कि हिमानी की हत्या उस के घर में ही की गई थी. जिस सूटकेस में हिमानी के शव को बरामद किया गया है, भी हिमानी का ही था.

आरोपी आया पुलिस गिरफ्त में

जब आरोपी को पकड़ा गया तो उस के पास से हिमानी का आईफोन मिला, इस में आरोपी ने अपना सिमकार्ड डाल रखा था. जिस के जरिए उसे दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर हरियाणा पुलिस को सौंपा था. हरियाणा के रोहतक शहर में पहली मार्च, 2025 शनिवार को पूर्वांह करीब 11 बजे सांपला बस स्टैंड पर काफी भीड़भाड़ जमा थी. उसी भीड़ में से एक शख्स की नजर सड़क के किनारे पड़े एक नीले रंग के बड़े से सूटकेस पर पड़ी. इस के बाद वहां के लोगों ने पुलिस को इस सूटकेस के बारे में सूचित किया.

इस के बाद सांपला थाने के एसएचओ बिजेंद्र सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए. जब पुलिस ने सूटकेस को खोला तो सभी के होश उड़ गए, क्योंकि उस में एक जवान लड़की की लाश थी. युवती के हाथों में मेहंदी और गले मे काले रंग की चुन्नी थी.

ऐसे हुई मृतका की शिनाख्त

युवती के शरीर पर लाल रंग का टौप और उस ने लाल रंग की पेंट पहनी थी. एसएचओ को देखने से लग रहा था कि युवती की हत्या गला घोंट कर की गई है.

बिजेंद्र सिंह ने इस कि सूचना जिले के सीनियर आधिकारियों को दे दी और जल्द से जल्द फौरेंसिंग टीम को भी बुला लिया गया. युवती की लाश की पहचान दोपहर तक नहीं हो पाई थी. युवती की पहचान न होने से पुलिस ने शव को रोहतक के जिला अस्पताल की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया. सूटकेस में मिली युवती की लाश की सनसनी पूरे इलाके में फैल चुकी थी.

रोहतक विधायक ने की शव की पहचान

कुछ ही देर में शव की तसवीरें बड़ी तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं, जिस के कारण विधायक भारत भूषण बन्ना ने युवती की पहचान कर ली. विधायक ने बताया कि इस युवती का नाम हिमानी नरवाल है और यह कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता थी. युवती पार्टी के हर कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी और कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल भी हुई थी. हिमानी की कई तसवीरें सोशल मीडिया पर भी वायरल हैं.

अब विधायक बी.बी. बत्रा ने मांग कि है कि हिमानी नरवाल की हत्याकांड की जांच एसआईटी के द्वारा की जाए. विधायक ने यह भी कहा कि हरियाणा की कानून व्यवस्था खराब हो गई है. अपराधियों में अब पुलिस का डर नहीं रहा है और ऐसे ही हरियाणा में कई वारदात हो रहे हैं.

मृतका की मम्मी ने लगाया पुलिस पर आरोप

इसी बीच हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी इस घटना को ले कर हैरानी जताई और कहा कि इस हत्याकांड की उच्चस्तरीय और निष्पक्ष तरीके से जांच की जाए और पीड़िता के घर वालों को न्याय दिलाया जाएगा. बताया गया है कि हिमानी नरवाल के पिता ने कुछ साल पहले आत्महत्या की थी. उस के एक भाई की भी हत्या कर दी गई थी.

पुलिस ने हिमानी नरवाल की हत्या के आरोप में गिफ्तार किए सचिन से पूछताछ की तो उसने बताया कि ब्लैकमेलिंग से तंग आकर उसे हिमानी की हत्या करने को मजबूर होना पड़ा. उधर हिमानी की मम्मी सविता नरवाल सचिन के ब्लैकमेलिंग के आरोप को झूठा बताया है. उन्होंने पुलिस की जांच पर उंगली उठाते हुए कहा कि उन की बेटी की हत्या में एक से अधिक लोग शामिल हो सकते हैं.

बहरहाल, पुलिस ने आरोपी सचिन को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

Superstition : लाखों रुपए से करोड़ों रुपए बनाने वाला तांत्रिक का हुआ पर्दाफाश

Superstition : कुछ लोग लालच में आ कर न सिर्फ अपना आर्थिक नुकसान करते हैं, बल्कि अपनी जान भी गंवा बैठते हैं. काश! ठेकेदार सुभाषचंद तांत्रिक अरशद के झांसे में न आता तो…

3 दिसंबर, 2019 का दिन था. उस वक्त सुबह के 8 बज रहे थे. उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के थाना फतेहपुर के थानाप्रभारी अमित शर्मा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि सहारनपुर-देहरादून हाइवे पर गांव नानका के पास सड़क किनारे एक एक्सयूवी 500 कार के अंदर किसी आदमी की लाश पड़ी है. सुबहसुबह लाश मिलने की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए. उसी समय वह एसएसआई अजय प्रताप गौड़, एसआई रघुनाथ सिंह, दीपचंद, बिजेंद्र, हैडकांस्टेबल संजय, सचिन और महिला सिपाहियों ऊषा व अल्पना के साथ घटनास्थल की तरफ चल दिए.

घटनास्थल वहां से 3-4 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 10 मिनट में ही वहां पहुंच गए. मौके पर काफी लोग जमा थे. वहां खड़ी एक्सयूवी500 कार नंबर यूके17सी 6808 की ड्राइविंग सीट पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. कार के पायदान पर भी खून पड़ा था. मृतक की उम्र करीब 40 साल थी. उस का गला कटा हुआ था. मृतक शायद आसपास के क्षेत्र का रहने वाला नहीं था, इसलिए कोई भी उसे पहचान नहीं सका. चेहरेमोहरे से मृतक किसी संपन्न परिवार का लग रहा था. लोगों ने बताया कि उन्होंने यह कार आज सुबह तब देखी थी, जब वे अपने खेतों की ओर जा रहे थे. लोगों ने यह भी बताया कि यह कार सुबह लगभग 4-5 बजे से यहां खड़ी है. उस वक्त अंधेरा था.

कार की ड्राइविंग सीट की ओर की खिड़की खुली हुई थी व कार का इंजन स्टार्ट था. पहले तो उधर से गुजरने वाले लोग कार को नजरअंदाज करते रहे, मगर जब 7 बजे सूरज की रोशनी बढ़ी तब ग्रामीणों ने कार के अंदर पड़े लहूलुहान शव को देखा था. थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय, एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा तथा एसएसपी दिनेश कुमार पी. को दी. थानाप्रभारी अमित शर्मा ने जरूरी काररवाई करने के बाद कुछ ग्रामीणों की सहायता से शव को कार से बाहर निकाला और उस का निरीक्षण किया. कुछ ही देर में एसएसपी दिनेश कुमार पी., एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्र और सीओ रजनीश कुमार भी वहां फोरैंसिक टीम के साथ आ गए.

तीनों अधिकारियों ने भी लाश का मुआयना कर इस हत्याकांड के बारे में वहां खड़े लोगों से बात की. इस के बाद एसएसपी ने थानाप्रभारी शर्मा को आरटीओ से कार मालिक का पता लगाने व केस को खोलने के निर्देश दिए. पुलिस ने जब मृतक की तलाशी ली तो जेब से कुछ कागजात, मोबाइल फोन तथा पर्स में रखी नकदी मिली. पर्स में मिली नकदी और मोबाइल फोन से इस बात की तो पुष्टि हो ही गई कि उस की हत्या लूट के इरादे से नहीं की गई थी. पुलिस ने प्रारंभिक जांच का काम निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सहारनपुर के जिला अस्पताल भेज दी. इस के बाद पुलिस ने कार मालिक की जानकारी करने के लिए परिवहन विभाग से संपर्क किया. परिवहन विभाग से पता चला कि उक्त नंबर की कार सुभाषचंद पुत्र ओमपाल, निवासी गांव महेश्वरी, थाना भगवानपुर, जिला हरिद्वार के नाम पर रजिस्टर्ड है.

कार मालिक के नाम की जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी ने थाना भगवानपुर के एसओ से संपर्क कर इस मामले की जानकारी दी. भगवानपुर थाने की पुलिस ने जब गांव महेश्वरी में सुभाषचंद के घर पहुंच कर जब एक्सयूवी500 कार में शव मिलने की जानकारी दी तो सुभाष के भाई विश्वास ने बताया कि वह कल ही अपनी कार ले कर घर से निकले थे. इसलिए कार में शव मिलने की बात सुन कर विश्वास घबरा गया. वह अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ जिला अस्पताल सहारनपुर पहुंच गया. विश्वास और उस के रिश्तेदारों को जब मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो विश्वास वहीं बिलख पड़ा. उस ने स्वीकार किया कि यह लाश उस के भाई सुभाषचंद की ही है. इस के बाद तो सुभाषचंद के घर में भी कोहराम मच गया.

पूछताछ करने पर विश्वास ने पुलिस को बताया कि सुभाषचंद काफी समय से लोक निर्माण विभाग, रुड़की में ठेकेदारी कर रहे थे. पिछले दिन वह सुबह 9 बजे किसी काम से देहरादून जाने के लिए अपनी कार ले कर घर से निकले थे. शाम 4 बजे तक वह परिजनों से मोबाइल पर बात करते रहे. इस के बाद उन का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया. रात भर घर वाले बहुत परेशान रहे. सुभाषचंद के लापता होने पर घर वालों ने उन्हें आसपास रहने वाले रिश्तेदारों व उन के मित्रों के यहां तलाश किया. विश्वास से पूछताछ के बाद पुलिस ने सुभाषचंद के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और सुभाषचंद के बेटे दीपक चौधरी की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस हत्याकांड की विवेचना स्वयं थानाप्रभारी ने ही संभाली.

थानाप्रभारी अमित शर्मा ने परिजनों से पूछा कि सुभाषचंद की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी. इस सवाल के जवाब में परिजनों का कहना था कि वह काफी मिलनसार थे तथा वह सहकारिता की राजनीति में सक्रिय थे. वह इकबालपुर गन्ना समिति में निदेशक भी रह चुके थे. पुलिस को सुभाषचंद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी, जिस में उन की मौत का कारण गला कटना व गला कटने से ज्यादा खून निकलना बताया गया. काल डिटेल्स मिलने पर पुलिस ने जब सुभाषचंद के मोबाइल पर आए नंबरों की जांच की तो पुलिस को एक मोबाइल नंबर पर संदेह हुआ. वह नंबर सहारनपुर के थाना सदर अंतर्गत मोहल्ला गणेश विहार निवासी अरशद का था.

जब पुलिस ने अरशद के विषय में जानकारी जुटाई तो पुलिस को संदेह हो गया कि सुभाषचंद की हत्या में इस का हाथ हो सकता है. पुलिस के एक मुखबिर ने जानकारी दी कि 2 दिसंबर, 2019 को सुभाषचंद्र की एक्सयूवी-500 कार अरशद के घर के बाहर देखी गई थी. इस के अलावा मुखबिर ने पुलिस को यह भी जानकारी दी कि अरशद तंत्रमंत्र का काम करता है. यह जानकारी मिलने पर एसएसपी ने थानाप्रभारी अमित शर्मा को अरशद से पूछताछ के निर्देश दिए. अगले दिन 5 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी ने अरशद के गणेश विहार स्थित मकान पर पहुंच कर दरवाजे पर दस्तक दी. तभी एक युवक ने दरवाजा खोला. वह युवक पुलिस देख कर सकपका गया और घबरा कर अंदर की ओर भागा.

उसे भागता देख कर पुलिस वालों ने उसे पकड़ लिया और उस से पूछा कि तू कौन है तथा अरशद कहां है. युवक ने घबराते हुए बताया कि मेरा नाम वकील उर्फ सोनू है तथा अरशद यहीं दूसरे कमरे में बैठा हुआ है. जब पुलिस टीम के साथ वकील नाम का वह युवक अरशद के कमरे में पहुंचा तो वहां बैठे अरशद को माजरा समझते देर न लगी. अरशद पुलिस को देख कर थरथर कांपने लगा था. उन्होंने अरशद को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी शर्मा ने उसी समय अरशद से पूछा, ‘‘2 दिसंबर को सुभाषचंद की कार तुम्हारे घर के पास देखी गई थी, उसी रात तुम सुभाष के साथ गांव नानका के पास गए थे और वहां उसी की कार में तुम ने उस की हत्या कर दी.’’

थानाप्रभारी के इस सवाल का अरशद कोई उत्तर नहीं दे सका और चुप हो गया. थोड़ी देर चुप होने के बाद अरशद बोला, ‘‘सर, आप को जब इस बारे में पता चल ही गया है तो आप से कुछ छिपाने से कोई फायदा नहीं है. मैं आप को इस बारे में सब कुछ बताता हूं.’’

इस के बाद अरशद ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी—

सुभाषचंद लोक निर्माण विभाग, रुड़की में ठेकेदार थे. वह अपने परिवार के साथ हरिद्वार के महेश्वरी गांव में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा दीपक और एक बेटी थी. करीब 2 साल पहले सुभाष के ही एक दोस्त अतीत कटारिया, निवासी गांव झबीरन, हरिद्वार ने उन की मुलाकात सहारनपुर के ही मोहल्ला गणेश विहार निवासी अरशद से कराई थी. अरशद तंत्रमंत्र का काम करता था. अतीत कटारिया ने उन्हें बताया कि यह पहुंचे हुए तांत्रिक हैं. उस ने बताया कि यह तंत्रमंत्र द्वारा रकम को कई गुना बना सकते हैं. लालची स्वभाव के सुभाषचंद को इस बात पर विश्वास हो गया तो उन्होंने अरशद को साढ़े 3 लाख रुपए दिए थे और इस रकम को एक करोड़ रुपयों में बदलने को कहा था.

2 महीनों तक सुभाषचंद की रकम नहीं बढ़ी तो उन्होंने तांत्रिक अरशद से अपने पैसे मांगे. अरशद पैसे दैने में आनाकानी करने लगा तो ठेकेदार ने उस पर दबाव बनाया. इतना ही नहीं, उस ने उस तांत्रिक को पैसे देने के लिए धमका भी दिया. इस से तांत्रिक अरशद बहुत चिंतित रहने लगा. इसलिए तांत्रिक अरशद ने अपने दोस्तों टीलू और वकील उर्फ सोनू के साथ मिल कर सुभाष ठेकेदार को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. योजना के अनुसार, अरशद ने पहली दिसंबर, 2019 को सुभाषचंद को एक करोड़ रुपए ले जाने के लिए 2 बड़े थैले ले कर अपने घर बुलाया. 2 दिसंबर को सुभाषचंद खुश होते हुए अरशद के यहां पहुंचा. उसे उम्मीद थी कि आज अरशद उसे एक करोड़ रुपए दे देगा.

योजना के मुताबिक अरशद ने अपने घर पहुंचे सुभाष को अपनी बीवी फिरदौस से चाय बनवाई. अरशद की बेटियों आजमा व नगमा ने उस चाय में नशे की गोलियां मिला दीं. वह चाय सुभाषचंद को पीने को दी. चाय पीने के थोड़ी देर बाद सुभाष को बेहोशी सी छाने लगी तो उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया. रात होने पर अरशद के दोस्त वकील तथा टीलू भी वहां पहुंच गए. फिर सभी ने सुभाष को उठा कर उन की कार में डाला. अरशद और वकील कार ले कर सहारनपुर-देहरादून हाइवे पर गांव नानका के पास पहुंचे थे. टीलू भी बाइक से उन के पीछेपीछे पहुंच गया. सड़क किनारे कार खड़ी कर के उन्होंने सुभाषचंद को ड्राइविंग सीट पर बैठा दिया.

फिर टीलू ने गाड़ी के अंदर जा कर सुभाषचंद के हाथ पकड़ लिए और वकील ने सिर पकड़ कर पीछे की तरफ कर दिया. तभी अरशद ने ड्राइवर साइड की खिड़की खोल कर सुभाष का गला रेत दिया और चाकू से 3-4 प्रहार गरदन पर किए. सुभाषचंद को ठिकाने लगाने के बाद वे बाइक से घर लौट आए. अरशद से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने वकील से भी पूछताछ की तो उस ने भी अरशद के बयान की पुष्टि कर दी. अरशद व वकील की निशानदेही पर पुलिस ने सुभाषचंद की हत्या में प्रयुक्त चाकू, सुभाष के चाय में दी गई नशे की गोलियों का रैपर तथा अरशद के रक्तरंजित कपड़े अरशद के घर से ही बरामद कर लिए.

पुलिस ने इस केस में धारा 120बी व आर्म्स एक्ट की धारा 251/4 और बढ़ा दी. इस के बाद एसएसपी दिनेश कुमार पी. व एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा ने उसी दिन पुलिस लाइंस सभागार में प्रैसवार्ता आयोजित कर ठेकेदार सुभाषचंद की हत्या का खुलासा किया और दोनों आरोपियों को मीडिया के सामने प्रस्तुत किया था. दूसरे दिन ही पुलिस ने इस हत्याकांड में आरोपी अरशद की पत्नी फिरदौस के अलावा उस की बेटियों अजमा व नगमा को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. छठा आरोपी टीलू, निवासी नवादा फरार हो चुका था. पुलिस उसे सरगरमी से तलाश रही थी.  कथा लिखे जाने तक थानाप्रभारी अमित शर्मा केस की विवेचना पूरी करने के बाद सभी आरोपियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट भेजने की तैयारी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Social Crime : बुजुर्ग से की शादी, माल समेटा और हो गई फरार

Social Crime : सोमेश्वर, राजकुमार शर्मा और सोनी तीनों वृद्ध थे, पैसे और प्रोपर्टी वाले, लेकिन विधुर. तीनों को सहारे के लिए जीवनसाथी की जरूरत थी, सो तीनों ने अखबार में अलगअलग विज्ञापन दे कर शादी की. लेकिन एक महिला और पुरुष ने तीनों को ऐसा चूना लगाया कि…

भोपाल के कोलार इलाके में रहने वाले 72 वर्षीय सोमेश्वर के पास सब कुछ था. दौलत, इज्जत, अपना बड़ा सा घर और वह सब कुछ जिस की जरूरत सुकून, सहूलियत और शान से जीने के लिए होती है. पेशे से इंजीनियर रहे सोमेश्वर की पत्नी की करीब एक साल पहले मृत्यु हो गई थी, तब से वह खुद को काफी तन्हा महसूस करने लगे थे, जो कुदरती बात भी थी. रोमांटिक और शौकीनमिजाज सोमेश्वर ने एक दिन अखबार में इश्तहार दिया कि उन की देखरेख के लिए एक स्वस्थ और जवान औरत की जरूरत है, जिस से वह शादी भी करेंगे.

जल्द ही उन की यह जरूरत पूरी करने वाला एक फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम शंकर दूबे बताते हुए कहा कि वह पन्ना जिले के भीतरवार गांव से बोल रहा है. उस की जानपहचान की एक जवान औरत काफी गरीब है, जिस के पेट में गाय ने सींग मार दिया था, इसलिए उस ने शादी नहीं की क्योंकि वह मां नहीं बन सकती थी. सोमेश्वर के लिए यह सोने पे सुहागा वाली बात थी, क्योंकि इस उम्र में वे न तो औलाद पैदा कर सकते थे और न ही बालबच्चों वाली बीवी चाहते थे, जो उन के लिए झंझट वाली बातें थीं. बात आगे बढ़ी तो उन्होंने शंकर को उस औरत के साथ भोपाल आने का न्यौता दे दिया.

चट मंगनी पट ब्याह शंकर जब रानी को ले कर उन के घर आया तो सोमेश्वर उसे देख सुधबुध खो बैठे. इस में उन की कोई गलती थी भी नहीं, भरेपूरे बदन की 35 वर्षीय रानी को देख कर कोई भी उस की मासूमियत और भोलेपन पर पहली नजर में मर मिटता. देखने में भी वह कुंवारी सी ही लग रही थी, लिहाजा सोमेश्वर के मन में रानी को देखते ही लड्डू फूटने लगे और उन्होंने तुरंत शादी के लिए हां कर दी. इस उम्र और हालत में कोई बूढ़ा भला बैंडबाजा बारात के साथ धूमधाम से तो शादी करता नहीं, इसलिए बीती 20 फरवरी को उन्होंने रानी से घर में ही सादगी से शादी कर ली और घर के पास के मंदिर में जा कर उस की मांग में सिंदूर भर कर अपनी पत्नी मान लिया.

‘जिस का मुझे था इंतजार, वो घड़ी आ गई…’ की तर्ज पर सुहागरात के वक्त सोमेश्वर ने अपनी पहली पत्नी के कोई 15 तोले के जेवरात जिन की कीमत करीब 6 लाख रुपए थी, रानी को उस की मांग पर दे दिए और सुहागरात मनाई. उन की तन्हा जिंदगी में जो वसंत इस साल आया था, उस से वह खुद को बांका जवान महसूस कर रहे थे. रानी को पत्नी का दरजा और दिल वह दे ही चुके थे, इसलिए ये सोना, चांदी, हीरे, मोती उन के किस काम के थे. ये सब तो रानी पर ही फब रहे थे. लेकिन रानी ने दिल के बदले में उन्हें दिल नहीं दिया था, यह बात जब उन की समझ आई तब तक चिडि़या खेत चुग कर फुर्र हो चुकी थी. साथ में उस का शंकर नाम का चिड़वा भी था.

जगहंसाई से बचने के लिए सोमेश्वर ने अपनी इस शादी की खबर किसी को नहीं दी थी. यहां तक कि कोलकाता में नौकरी कर रहे एकलौते बेटे को भी इस बात की हवा नहीं लगने दी थी कि पापा उस के लिए उस की बराबरी की उम्र वाली मम्मी ले आए हैं. यूं खत्म हुआ खेल सोमेश्वर की सुहागरात की खुमारी अभी पूरी तरह उतरी भी नहीं थी कि दूसरे ही दिन शंकर ने घर आ कर यह मनहूस खबर सुनाई की रानी की मां की मौत हो गई है, इसलिए उसे तुरंत गांव जाना पड़ेगा. रोकने की कोई वजह नहीं थी, इसलिए सोमेश्वर ने उसे जाने दिया और मांगने पर रानी को 10 हजार रुपए भी दे दिए जो उन के लिए मामूली रकम थी. पर गैरमामूली बात यह रही कि जल्दबाजी में रानी रात को पहने हुए गहने उतारना भूल गई. उन्होंने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया.

2 दिन बाद शंकर फिर उन के घर आया और उन्हें बताया कि रानी अब मां की तेरहवीं के बाद ही आ पाएगी और उस के लिए 40 हजार रुपए और चाहिए. सोमेश्वर ने अभी पैसे दे कर उसे चलता ही किया था कि उन के पास राजस्थान के कोटा से एक फोन आया. यह फोन राजकुमार शर्मा नाम के शख्स का था, जिस की बातें सुन उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. 63 वर्षीय राजकुमार ने उन्हें बताया कि कुछ दिन पहले ही उन की शादी रानी से हुई थी, जोकि उस के रिश्तेदार शंकर ने करवाई थी. लेकिन दूसरे ही दिन रानी की मां की मौत हो गई थी, इसलिए वे दोनों गांव चले गए थे. इस के बाद से उन दोनों का कहीं अतापता नहीं है.

रानी और शंकर भारी नगदी ले गए हैं और लाखों के जेवरात भी. राजकुमार को सोमेश्वर का नंबर रानी की काल डिटेल्स खंगालने पर मिला था. दोनों ने खुल कर बात की और वाट्सऐप पर रानी के फोटो साझा किए तो इस बात की तसल्ली हो गई कि दोनों को कुछ दिनों के अंतराल में एक ही तरीके से बेवकूफ बना कर ठगा गया था. कल तक अपनी शादी की बात दुनिया से छिपाने वाले सोमेश्वर ने झिझकते हुए अपने बेटे को कोलकाता फोन कर आपबीती सुनाई तो उस पर क्या गुजरी होगी, यह तो वही जाने लेकिन समझदारी दिखाते हुए उस ने भोपाल पुलिस को सारी हकीकत बता दी.

जांच हुई तो चौंका देने वाली बात यह उजागर हुई कि इन दोनों ने सोमेश्वर और राजकुमार को ही नहीं, बल्कि जबलपुर के सोनी नाम के एक और अधेड़ व्यक्ति को भी इसी तर्ज पर चूना लगाया था, जो सरकारी मुलाजिम थे. भोपाल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने फुरती दिखाते हुए दोनों को दबोच लिया तो रानी का असली नाम सुनीता शुक्ला निवासी सतना और शंकर का असली नाम रामफल शुक्ला निकला. हिरासत में इन्होंने तीनों बूढ़ों को ठगना कबूल किया. पुलिस ने दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया. बन गए बंटी और बबली दरअसल, सुनीता रामफल की दूसरी पत्नी थी. सतना का रहने वाला रामफल सेना में नौकरी करता था, लेकिन तबीयत खराब रहने के चलते उसे नौकरी छोड़नी पड़ी थी. पहली पत्नी के रहते ही उस ने सुनीता से शादी कर ली थी.

दोनों बीवियों में पटरी नहीं बैठी और वे आए दिन बिल्लियों की तरह लड़ने लगीं. इस पर रामफल ने सुनीता को छोड़ दिया. कुछ दिन अलग रहने के बाद सुनीता को समझ आ गया कि बिना मर्द के सहारे और पैसों के इज्जत तो क्या बेइज्जती से भी गुजर करना आसान नहीं है. यही सोच कर वह रामफल के पास वापस आ गई और अखबारों के वैवाहिक विज्ञापनों के बूढ़ों के बारे में उसे अपनी स्कीम बताई तो रामफल को भी लगा कि धंधा चोखा है. एक के बाद एक इन्होंने 3 बूढ़ों को चूना लगाया. हालांकि पुलिस को शक है कि इन्होंने कई और लोगों को भी ठगा होगा. अभी तो इस हसीन रानी के 3 राजा ही सामने आए हैं, मुमकिन है कि कई दूसरों ने शरमोहया के चलते रिपोर्ट ही दर्ज न कराई हो.

लुटेरी दुलहनों द्वारा यूं ठगा जाना कोई नई बात नहीं है, बल्कि अब तो यह सब आम बात होती जा रही है. सोमेश्वर, राजकुमार और सोनी जैसे बूढ़े जिस्मानी जरूरत और सहारे के लिए शादी करें, यह कतई हर्ज की बात नहीं. हर्ज की बात है इन की हड़बड़ाहट और बेसब्री, जो इन के ठगे जाने की बड़ी वजह बनते हैं.

—कथा में सोमेश्वर परिवर्तित नाम है

 

Family Crime : बीवी को मारने के बदले में किया कार देने का वादा

Family Crime :  नाविया अपने शौहर जमील को बहुत प्यार करती थी. लेकिन जब 3 साल बाद उस की महबूबा समीरा दुबई से लौट आई तो उस का पुराना प्यार जाग उठा. समीरा को बीवी बनाने के लिए उस ने नाविया को रास्ते से हटाने का कुचक्र रचा, लेकिन नाविया नहले पर दहला साबित हुई. आइए, जानें कैसे…

शाम के 6 बज रहे थे. अक्तूबर का महीना था. नाविया ने अपना सूटकेस बंद करते हुए सोचा कि कहीं कोई जरूरी चीज छूट तो नहीं गई. अपने भाई की शादी में वह ट्रेन से मायके के लिए रवाना हो रही थी. उस के शौहर जमील ने उस का टिकट बुक करा दिया था. जमील और नाविया की शादी को एक साल हो गया था. अभी तक उन की कोई औलाद नहीं थी. नाविया जमील का बहुत खयाल रखती थी. इस से पहले जमील और समीरा 3 साल तक अच्छे दोस्त रहे थे. दोस्ती मोहब्बत में बदल गई. दोनों ने शादी का फैसला भी कर लिया था. तभी अचानक तीसरे साल समीरा अपने बाप के साथ दुबई चली गई. कुछ अरसे तक दोनों का ताल्लुक फोन के जरिए बहाल रहा, फिर उस के बाद यह सिलसिला भी खत्म हो गया.

इसी दौरान जमील के वालिदैन ने उस की शादी नाविया से तय कर दी. जमील कुछ नहीं बोल सका. फिर जमील को यह मालूम भी नहीं था कि समीरा दुबई से आएगी भी या नहीं. समीरा का भाई भी बहुत सख्त था. वह चाहता था कि समीरा की शादी उस के दोस्त के साथ हो जाए. उस ने समीरा पर कड़ा पहरा लगा दिया था. उस के बाद जमील की जिंदगी में नाविया आ गई. नाविया अमीर मांबाप की एकलौती बेटी थी. जमील के इनकार न करने की एक वजह यह भी थी कि नाविया के वालिद जमील को अपनी बेटी के लिए एक खूबसूरत बंगला दे रहे थे. जमील को सलामी में एक महंगी कार मिलने वाली थी. इसी लालच में जमील ने नाविया से शादी कर ली और उन का एक साल खुशीखुशी गुजर गया. तभी अचानक समीरा दुबई से वापस आ गई थी. आते ही वह सब से पहले जमील से मिली. जब उसे मालूम हुआ कि जमील ने शादी कर ली है तो वह फूटफूट कर रोई.

समीरा को देख कर जमील के दिल में भी पुरानी मोहब्बत जाग उठी, पर वह समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी हालत में वह क्या करे. एक दिन जमील अपने औफिस में बैठा काम कर रहा था कि अचानक समीरा वहां आ गई. अचानक उसे आया देख जमील चौंका. बात करने के लिए वह उसे औफिस से बाहर ले आया. समीरा ने कहा, ‘‘जमील, मेरे भाई ने मुझ से मोबाइल छीन लिया था, इसलिए मैं तुम से ताल्लुक न रख सकी. खैर, जो भी हुआ भूल जाओ. अब मैं ने फैसला कर लिया है कि हम दोनों शादी करेंगे.’’

जमील समीरा को खोना नहीं चाहता था. पुरानी मोहब्बत जोर पकड़ रही थी. उस ने कहा, ‘‘मुझे मंजूर है. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. मैं तुम से शादी करूंगा, यह मेरा वादा है.’’

‘‘हां, ठीक है. हम शादी को गुप्त रखेंगे. फिर बाद में तुम अपनी बीवी को बता देना. मैं भी अपने पैरेंट्स को बता दूंगी. मेरा भाई इस समय दुबई में ही है, इसलिए डरने की कोई जरूरत नहीं है.’’ समीरा बोली.

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं. 17 तारीख को 7 बजे मेरी बीवी अपने भाई की शादी में मायके जा रही है. मेरा भी उस के साथ जाने का प्रोग्राम था. लेकिन कोई बहाना बना कर मैं उसे अकेले ही रवाना कर दूंगा. उसी दिन हम निकाह कर लेंगे.’’

‘‘जमील, तुम अपनी बात से मुकर तो नहीं जाओगे? 17 तारीख को निकाह पक्का है.’’ समीरा ने पूछा.

‘‘हां, उसी रात हम निकाह कर लेंगे.’’ जमील ने विश्वास दिलाया.

फिर दोनों ने बैठ कर 17 तारीख को निकाह का प्रोग्राम तय कर लिया. जमील ने पत्नी को ट्रेन का टिकट देते हुए बहाना बनाया, ‘‘नाविया, औफिस में जरूरी मीटिंग है. मैं कल तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा. और अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे साथ अभी चला चलता हूं. लेकिन इस से नुकसान बहुत हो जाएगा.’’

नाविया नहीं चाहती थी कि पति का कोई नुकसान हो, इसलिए वह बोली, ‘‘नहींनहीं, आप मीटिंग अटेंड कर के आइएगा. पर टाइम से आ जाना. मैं आप का इंतजार करूंगी.’’

इस के बाद दोनों घर से स्टेशन के लिए रवाना हो गए. जमील के दिल में लड्डू फूट रहे थे. स्टेशन पहुंच कर नाविया वहां खड़ी ट्रेन में अपनी सीट पर जा कर बैठ गई. ट्रेन चलने में 20 मिनट बाकी थे. जमील उस के सामने बैठा. प्यारमोहब्बत की बातें कर रहा था. अचानक उस के फोन की घंटी बजी. उस ने देखा, समीरा का फोन था. फोन को कान से लगा कर वह ट्रेन से उतर गया. डिब्बे से जरा हटा कर वह दूसरी तरफ मुंह कर के समीरा से बातें करने लगा.

‘‘तुम्हारी बीवी चली गई?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘ट्रेन में बैठी है. अभी ट्रेन चलने में कुछ टाइम है.’’ जमील ने कहा.

‘‘मेरे भाई दुबई तो चले गए हैं लेकिन भाभी को मेरे पीछे लगा कर गए हैं. भाभी की निगाहें पूरे वक्त मुझ पर ही जमी रहती हैं. तुम बताओ, तुम्हारी बीवी को कोई शकवक तो नहीं हुआ?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘नहीं, बेकार का वहम कर रही हो तुम. वह आराम से ट्रेन में बैठी है.’’

तभी अचानक ट्रेन ने सीटी बजाई. जमील ट्रेन की तरफ घूमा. लेकिन अपनी सीट पर नाविया मौजूद नहीं थी. जमील परेशान हो गया. उसी वक्त नाविया आ कर सीट पर बैठ गई. जमील डिब्बे में सवार हुआ और उस के पास जा कर पूछा, ‘‘तुम कहां चली गई थी?’’

‘‘मैं टायलेट तक गई थी.’’

ट्रेन ने दूसरी सीटी दी तो जमील ट्रेन से उतरते हुए बोला, ‘‘नाविया, अपना खयाल रखना और घर पहुंचते ही फोन कर देना.’’

ट्रेन ने रेंगना शुरू किया. जमील स्टेशन से बाहर की तरफ लपका. कार की ड्राइविंग सीट संभालते ही उस ने समीरा को फोन कर कहा, ‘‘वह चली गई है. अब मैं तुम्हारी तरफ आ रहा हूं.’’

‘‘हां, तुम आ जाओ. घर के पास वाले पार्क में मेरा इंतजार करना. भाभी की नजर बचा कर मैं भी जल्द पहुंच जाऊंगी.’’ समीरा ने कहा. जमील पार्क में पहुंच गया. वहीं से उस ने समीरा को खबर दे दी. इस पर समीरा बोली, ‘‘अभी भाभी मेरे पास ही बैठी हैं. मुझे आने में कुछ देर लगेगी. मैं तुम्हें फोन करने बालकनी में आई हूं. थोड़ा इंतजार करो.’’

10 मिनट बाद फिर समीरा का मैसेज आया, ‘‘भाभी अभी भी बैठी हैं. ऐसा करो, तुम गाड़ी में बैठो मैं भी निकलती हूं.’’

जमील मैसेज पढ़ रहा था तभी अचानक उस की पीठ पर किसी ने हाथ रखा. अंधेरे में जमील पहचान नहीं सका कि कौन है. वह घबरा गया. उस ने सोचा, शायद कोई लुटेरा है. इसलिए जमील ने जोर से एक हाथ उस पर जमा दिया, जिस से वह शख्स दीवार से टकरा कर झाडि़यों में गिर गया. जमील बिना पीछे मुड़े तेजी से भागा और कार अंधेरे से निकाल कर रोशनी में खड़ी कर दी. जमील के हाथ में कीमती मोबाइल फोन था. उस ने शुक्र अदा किया कि वह लुटने से बच गया. वह कार में बैठा था. दूसरी तरफ कोई नहीं आया, इस का मतलब था कि वह जो कोई भी था, उस जगह से उठ कर भाग खड़ा हुआ था. पर उस जगह खड़े रहना जमील की मजबूरी थी क्योंकि वह समीरा का इंतजार कर रहा था. उस की आंखें बेचैनी से चारों तरफ घूम रही थीं.

जमील को बैठेबैठे करीब एक घंटा गुजर गया. इस बीच समीरा के फोन आते रहे कि वह आ रही है. जमील की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. अचानक फोन बज उठा. नाविया के भाई जफर का फोन था. वह परेशानी में बोला, ‘‘जमील भाई, ट्रेन आ गई है लेकिन नाविया ट्रेन से नहीं उतरी. मैं ने पूरी ट्रेन छान मारी. अभी तक स्टेशन पर उसे ही तलाश रहा हूं.’’

‘‘मैं ने खुद उसे ट्रेन में चढ़ाया था. कहां चली गई? यह तो परेशानी की बात है.’’ जमील ने कहा.

‘‘पर नाविया तो यहां नहीं पहुंची. हम सब बहुत परेशान हैं.’’ वह बोला.

‘‘आप ने उसे फोन किया?’’ जमील ने पूछा.

‘‘हां, कई बार किया. उस का फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘आप उसे देखें. मैं भी रेलवे स्टेशन जा रहा हूं.’’

जमील परेशान भी था और उसे गुस्सा भी आ रहा था कि निकाह लेट हो जाएगा. जमील अभी सोच ही रहा था कि अचानक उस की कार का दरवाजा खुला और समीरा उस के बराबर में बैठ गई. जमील ने उस की तरफ चौंक कर देखा तो वह बोली, ‘‘जल्दी निकलो जमील. बड़ी मुश्किल से भाभी से नजर बचा कर आई हूं.’’

‘‘यहां एक मसला हो गया है समीरा. नाविया अपने भाई के पास अभी तक नहीं पहुंची.’’ जमील ने कहा.

उस की बात सुन कर समीरा ने जमील की तरफ देखा और गुस्से से बोली, ‘‘वह कोई बच्ची नहीं है कि गुम जाएगी. जल्दी निकलो यहां से, मुझे घबराहट हो रही है.’’

‘‘इस परेशानी में यहां से निकल कर क्या करूंगा. उस का भाई रेलवे स्टेशन पर खड़ा बारबार मुझे फोन कर रहा है. मैं पहले स्टेशन जा कर उसे देखूंगा. हो सकता है कि किसी वजह से वह नीचे उतरी हो और ट्रेन चल पड़ी हो.’’

‘‘तुम रेलवे स्टेशन गए थे. उसे बैठा कर आए. ट्रेन चल भी पड़ी थी, फिर ऐसे कैसे हो सकता है.’’ समीरा ने कहा, ‘‘दोबारा फोन आए तो कह देना कि मैं उसे तलाश कर रहा हूं. इस दौरान हम निकाह कर लेंगे. बाद की बाद में देखी जाएगी. पहले यहां से फटाफट निकलो. मुझे इस बात का डर है कि मेरी भाभी न चली आए.’’

अभी वे लोग कुछ ही दूर गए थे कि नाविया के भाई का फोन आ गया. अबकी बार फोन पर नाविया का बाप था, ‘‘जमील बेटा, नाविया का कुछ पता चला क्या? हम सब बहुत परेशान हैं. आखिर वह कहां रह गई?’’

जमील जल्दी से बोला, ‘‘जी अब्बू, मैं स्टेशन पर उसे ही तलाश कर रहा हूं.’’

जमील ने समीरा से कहा, ‘‘इस परेशानी में मुझे कुछ नहीं सूझ रहा है.’’

एकाएक उस ने कार रोक दी. समीरा ने गुस्से से उसे देखा. जमील ने कहा, ‘‘तुम को मैं अभी अपने दोस्त के यहां छोड़ कर एक बार स्टेशन जा कर आता हूं.’’

‘‘ठीक है, जो तुम्हें करना है, करो पर जल्दी लौट आना. निकाह टाइम से होना चाहिए.’’ समीरा ने उकता कर कहा. जमील ने समीरा को अपने दोस्त के घर छोड़ा. वहीं उन का निकाह होना था. फिर वह रेलवे स्टेशन चला गया. उस वक्त वहां कोई ट्रेन नहीं थी. प्लेटफार्म खाली पड़ा था. उस ने दूरदूर तक देखा. नाविया कहीं नहीं दिखी. उसे निकाह की पड़ी थी, यहां मसला ही हल नहीं हो रहा था. वह दरवाजा खोल कर कार में बैठा था कि दूसरा दरवाजा खोल कर कोई उस के बगल में बैठ गया. जमील ने चौंक कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं कोई भी हूं, क्या तुम्हें तुम्हारी बीवी के बारे में कोई जानकारी चाहिए?’’ वह शख्स बोला.

‘‘हां, कहां है वह? जल्दी बताओ.’’

‘‘आराम से भाई, पहले एक कप चाय पिलाओ फिर बताता हूं. पुलिस को खबर करने की मत सोचना. मैं साफ मुकर जाऊंगा.’’ वह बोला.

‘‘तुम ने मेरी बीवी को किडनैप किया है?’’

‘‘नहीं, किडनैप नहीं किया है, बल्कि मैं ने तुम्हारी बीवी की मदद की है वरना आप ने तो उसे मार ही दिया था. मुझे चाय पी लेने दो फिर सब बताता हूं.’’

चाय पी कर वह बोला, ‘‘मेरा नाम शानी है. मेरी बात गौर से सुनो. जिस वक्त तुम अपनी महबूबा से पार्क में बातें कर रहे थे, किसी ने अचानक तुम्हारे कंधे पर जो हाथ रखा था, जानते हो वह कौन था?’’

जमील ने जल्दी से पूछा, ‘‘कौन था?’’

‘‘वह तुम्हारी बीवी नाविया थी.’’ वह आगे बोला, ‘‘जब तुम्हारी बीवी रेल के डिब्बे में बैठी थी और तुम दूसरी तरफ मुंह कर के अपनी महबूबा से निकाह का प्रोग्राम तय कर रहे थे, इसी दौरान नाविया किसी काम से तुम्हारे पास आई थी. उस ने तुम्हारे पीछे खडे़ हो कर तुम्हारी बातें सुन लीं.

‘‘जब तुम ने चेहरा घुमाया वह अपनी सीट पर आ कर बैठी. उस ने टौयलेट जाने का बहाना कर दिया था. जब ट्रेन चलने लगी, तुम बाहर निकले तभी वह भी रेंगती हुई ट्रेन से उतर गई थी और तुम्हारे पीछे चल दी. वह टैक्सी में बैठ कर तुम्हारा पीछा कर रही थी.

‘‘जब तुम पार्क में अपनी महबूबा से बातें कर रहे थे, उस ने ही तुम्हारे कंधे पर हाथ रखा. तुम ने उसे जोर से हाथ मारा और बाहर दौड़ पड़े. वह दीवार से टकरा कर जख्मी हो गई. मैं और मेरा दोस्त अंधेरे में किसी शिकार के लिए घात लगाए बैठे थे कि हमें नाविया मिल गई. मेरा दोस्त उसे उठा कर अस्पताल ले गया और मैं साए की तरह तुम्हारे पीछे लग गया.’’

जमील ने जल्दी से पूछा, ‘‘तो क्या नाविया तुम्हारे पास है?’’

‘‘हां, वह मेरे पास है. उसे होश आ गया है. उस ने सारी बातें बता दी हैं, जो मेरे दोस्त मोबाइल में रिकौर्ड कर लीं. तुम्हारी बीवी बहुत सीधी है. वह चाहती है कि तुम्हारी बेवफाई की बातें वह अपने घर वालों को बताए और तुम से छुटकारा पा ले. उस की एक ही रट है कि उसे घर पहुंचा दिया जाए. उस के सिर पर गहरी चोट लगी है. वह एक बार फिर बेहोश हो चुकी है.’’

सब कुछ सुन कर जमील के पसीने छूट गए. शानी ने जो भी बताया था वह सच था. क्योंकि सब ऐसे ही घटा था. अगर नाविया सब कुछ अपने घर वालों को बता देगी तो उस का सब कुछ छिन जाएगा. क्योंकि उस का घर, कारोबार और गाड़ी सब कुछ उस के ससुराल का दिया हुआ था. उसी वक्त फिर नाविया के भाई का फोन आ गया. वह बोला, ‘‘नाविया का कुछ पता चला भाई?’’

जमील ने घबरा कर कहा, ‘‘नहीं, अभी कुछ पता नहीं चला.’’

‘‘आप पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दें.’’ भाई ने कहा.

‘‘अभी मैं उसे तलाश रहा हूं. नहीं मिली तो थोड़ी देर में दर्ज करा दूंगा.’’ जमील से मारे घबराहट के कुछ नहीं बोला जा रहा था.

शानी ने कहा, ‘‘तुम्हारी बीवी का फोन मेरे पास है. आगे तुम्हें कोई बात करनी हो तो कर सकते हो.’’

जमील झल्ला कर बोला, ‘‘आखिर तुम चाहते क्या हो?’’

‘‘मैं सौदा करना चाहता हूं. तुम्हारी बीवी के इलाज पर जो खर्च हुआ, वह रकम और बाकी बाद में बताऊंगा.’’

जमील जल्दी से बोला, ‘‘कितना खर्च हुआ बताओ? मैं दे दूंगा. मेरी बीवी कहां है, यह बता दो.’’

‘‘मिस्टर जमील, सौदा मेरी शर्तों पर होगा. ऐसे कैसे बता दूं.’’ शानी ने कार का दरवाजा खोला और उतरते हुए बोला, ‘‘जरा सोच लो. बीवी अगर जिंदा मिली तो सब कुछ अपने घर वालों को बता देगी. फिर तो न तुम घर के रहोगे न घाट के. यह कारोबार, बंगला सब कुछ छिन जाएगा.

‘‘तुम अपनी महबूबा के साथ बैठ कर तबला बजाना. मैं तो यह कह रहा हूं कि अभी भी वक्त है, सोच लो कि तुम्हें क्या करना है. क्यों न हम यह सौदा करें कि तुम्हारी बीवी को खामोशी से निपटा दें तो सारा झंझट ही खत्म.’’

उसे सोचता हुआ छोड़ कर वह नीचे उतर गया. जमील ने सोचा कि कह तो वह ठीक रहा है. अगर उस की बीवी जिंदा रही तो सब कुछ घर पर बता देगी और वह ससुराल की दी हुई हर चीज से हाथ धो बैठेगा. अगर वह नाविया को मरवा दे तो इस का राज राज रहेगा और सब कुछ उस के पास रहेगा. फिर उस ने समीरा को फोन किया और सारी बात बता दी. समीरा ने उलझ कर कहा, ‘‘अब तुम क्या करना चाहते हो?’’

‘‘सोच रहा हूं कि इस राज को इसी जगह दबा दूं और नाविया की मौत का सौदा कर लूं.’’ जमील ने बेदर्दी से कहा. उस का फैसला सुन कर समीरा खुश हो कर बोली, ‘‘अगर फैसला कर ही लिया है तो फिर देर किस बात की है. फौरन इस का काम तमाम करवाओ.’’

‘‘इस काम के पैसे भी तो लेगा. न जाने कितनी रकम मांग ले.’’ जमील ने कहा.

‘‘जो भी मांगेगा, दे देंगे. वरना हम एक नहीं हो सकेंगे. कुछ भी करने के पहले यह तसल्ली कर लेना कि नाविया इसी के पास है. कहीं वह ड्रामा तो नहीं कर रहा है.’’ समीरा ने मशविरा दिया.

फिर जमील ने शानी को फोन किया. शानी ने छूटते ही पूछा, ‘‘क्या फैसला किया आप ने?’’

‘‘पहले मैं यह तसल्ली करना चाहता हूं कि नाविया तुम्हारे पास है भी या नहीं.’’ जमील बोला.

‘‘मैं ने जितनी बातें तुम्हें बताईं, सच हैं. मेरा यकीन करो नाविया मेरे पास ही है. तभी तो मैं यह सौदा कर रहा हूं.’’ शानी ने कहा.

जमील सोचते हुए बोला, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘जिस जगह तुम्हारी कार खड़ी है, मैं उसी के पास हूं. अभी पहुंचता हूं.’’ शानी ने पहुंचते ही कहा, ‘‘बताओ, क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं अपने राज को दफन करना चाहता हूं. कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता.’’ जमील ने सोचते हुए कहा.

‘‘तुम्हारा राज तुम्हारी बीवी के साथ ही दफन हो जाएगा. इस की मौत को ऐसी शक्ल दूंगा कि हादसा लगे. उसे रेलवे लाइन पर डाल दूंगा, लगेगा जैसे ट्रेन से गिर कर मर गई हो.’’ शानी ने समझा कर कहा.

‘‘इस काम का क्या लोगे?’’ जमील ने पूछा.

‘‘यह मैं तुम्हें थोड़ी देर बात बताऊंगा.’’ शानी ने कहा.

‘‘पर याद रहे यह काम रात के रात ही हो जाना चाहिए.’’

‘‘यह काम रात को ही होगा. अभी बहुत रात पड़ी है. पैसों के बारे में मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा. अपना फोन खुला रखना.’’ कह कर वह नीचे उतर गया. जमील ने अपनी बीवी को खत्म करने को कह तो दिया पर वह बुरी तरह से कांप रहा था. इस के साथ ही वह समीरा को भी नहीं छोड़ना चाहता था. जमील ने कांपते हाथों से गाड़ी आगे बढ़ाई. एक बार फिर जफर की काल आ गई. वह बेहद परेशान था. जमील ने उसे बताया कि वह नाविया की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने जा रहा है. वैसे उस का इरादा नहीं था, फिर उस ने सोचा कि रिपोर्ट दर्ज कराने से कोई उस पर शक नहीं करेगा.

जमील पुलिस स्टेशन पहुंच गया. वहां उस ने ट्रेन का वाकया बताते हुए पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. वह थाने से बाहर निकला तो शानी का फोन आ गया, ‘‘तुम्हारा काम हो जाएगा. एक घंटे के बाद मेरी बताई हुई जगह पर अपनी बीवी की लाश तलाश कर लेना.’’

‘‘काम ठीक से हो जाएगा न. मैं किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता. तुम ने अपने पैसे नहीं बताए.’’

‘‘इस के बदले में तुम्हें यह गाड़ी मुझे देनी होगी, जिस में तुम बैठे हो.’’

‘‘तुम इस गाड़ी के बजाए कैश पेमेंट ले लो.’’

‘‘कैश तुम्हारे एकाउंट में नहीं होता, सब नाविया के एकाउंट में है. इसलिए तुम से वही चीज मांगी, जो तुम्हारे पास है. यह बात तुम्हारी बीवी ने बताई थी कि कारोबार और पैसे उस के खाते में रहते हैं. तुम्हारे नाम पर बस यही कार है. वही मैं तुम से मांग रहा हूं.’’

‘‘ठीक है, कार और उस के कागजात मैं तुम्हें दे दूंगा.’’ जमील ने कहा.

‘‘वैसे एक बात पूछूं, सारा कैश तो तुम्हारी बीवी के नाम है, उस के मरने के बाद तुम क्या करोगे?’’

‘‘मैं उस के एकाउंट से पैसे निकलवा लूंगा. कई तरीके हैं. तुम फिक्र न करो. बस तुम अपना काम पक्का करो.’’

‘‘तुम मुझे गाड़ी के कागजात दो और एक घंटे के बाद उस की लाश ले लो.’’ शानी ने कहा.

‘‘एक घंटे के बाद कहां मिलोगे?’’

‘‘तुम मुझे गाड़ी के कागजात आधे घंटे में दोगे. आधे घंटे के बाद मैं खुद तुम्हें फोन करूंगा.’’ यह कह कर उस ने फोन बंद कर दिया.

फौरन ही जमील ने डैशबोर्ड खोल कर कार के कागजात निकाले, अच्छे से चैक कर के दोबारा वहीं रख दिए. उस ने सोचा गाड़ी के कागजात देने के बाद बीवी दूसरी दुनिया में पहुंच जाएगी. किस्सा खत्म. जमील जालिम और खुदगर्ज हो गया था. वह नई शादी के बारे में सोच कर खुश था. जमील ने गाड़ी घर की तरफ मोड़ी. बैडरूम की अलमारी खोल कर नाविया की चैकबुक तलाशने लगा. उसे एक भी चैकबुक नहीं मिली. उस ने सारे दराज खंगाल डाले, कहीं कुछ नहीं था. पता नहीं कहां रखी थीं. उसी वक्त शानी का फोन आ गया. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारा काम करने के लिए मैं तुम्हारी बीवी को ले कर जा रहा हूं. तुम ऐसा करो कि डाकखाने के गेट के पास गाड़ी खड़ी कर के बाहर के बौक्स में कागज डाल दो. मैं निकाल लूंगा. फिर तुम उस जगह पहुंच जाना, जहां तुम्हारी बीवी की लाश पड़ी होगी.’’

‘‘ओके.’’

जमील ने कांपती आवाज में कहा और डाकखाने रवाना हो गया. वहां पहुंच कर कार खड़ी की और सोचा जो कुछ वह कर रहा है, वह ठीक है. उस ने खुद को तसल्ली दी. इस के अलावा कोई रास्ता नहीं था. जमील कार से बाहर निकला. काम कर के वह उस दोस्त के घर चला गया, जहां उस ने समीरा को छोड़ा था. वह कुछ दूर ही गया था कि उसे कार स्टार्ट होने की आवाज आई. उस ने देखा कोई उस की कार स्टार्ट कर के ले जा रहा था. जमील चल पड़ा. उस के दोस्त के घर समीरा मौजूद थी. वह उस के सामने बैठ गया, जैसे बहुत बड़ा जुआ खेल कर आया हो.

‘‘क्या हुआ?’’ समीरा ने बेचैनी से पूछा.

‘‘कार के बदले मैं अपनी बीवी का सौदा कर आया. कुछ देर में वो उस का काम तमाम कर देंगे और मुझे फोन पर खबर मिल जाएगी कि रेल की पटरी पर उस की लाश पड़ी है. लाश देख कर आने के बाद हम निकाह कर लेंगे ताकि तुम्हारे भाईभाभी की बोलती बंद हो जाए.’’ जमील ने बताया.

‘‘फिर उस के बाद क्या होगा?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘तुम अभी तो अपने घर चली जाना. मैं किसी और नाम से पुलिस को लाश की खबर दे दूंगा. मैं ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाते वक्त उस की फोटो भी वहां दे दी थी. पुलिस मुझे बुला कर पूछताछ करेगी. मैं अपनी कहानी पर डटा रहूंगा. कुछ दिनों में मामला ठीक हो जाएगा, फिर हम एक साथ रहना शुरू कर देंगे.’’ जमील ने बताया. समीरा गहरी सोच में डूब गई. वह अपनी जगह से उठी, पर्स उठाया और सख्ती से बोली, ‘‘मैं जा रही हूं.’’

जमील हैरान हुआ, ‘‘तुम कहां जा रही हो?’’

‘‘मैं तुम से निकाह नहीं करूंगी, चाहे कुछ हो जाए.’’ समीरा ने दो टूक कहा. जमील भौचक्का रह गया, ‘‘तुम यह क्या कह रही हो. तुम मुझ से निकाह क्यों नहीं करोगी? तुम्हें एकाएक क्या हो गया?’’

समीरा उस की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘तुम जालिम इंसान हो. कल को क्या पता, तुम मेरा भी ऐसा ही सौदा कर दो.’’ कहती हुई समीरा तेजी से बाहर निकल गई.

जमील घबरा कर उस के पीछे भागा, ‘‘मेरी बात तो सुनो समीरा.’’

‘‘मैं कोई बात नहीं सुनना चाहती. मैं तुम से मोहब्बत करती हूं, यह सच है. पर अब मुझे तुम से डर लग रहा है.’’ समीरा तेजी से बाहर निकल गई. बिना पीछे देखे आगे बढ़ गई. जमील ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि समीरा उसे इस तरह छोड़ कर चली जाएगी. फिर अचानक जमील को खयाल आया कि वह कम से कम अपनी पत्नी नाविया की जान बचा ले. ताकि उस से माफी मांग कर सब कुछ पहले जैसा कर ले, जिस के लिए उस ने नाविया की जान की भी परवाह नहीं की. उसे अहसास हुआ कि उसे पत्नी को जान से मरवाने वाली बात समीरा को नहीं बतानी चाहिए थी. यदि वह ऐसा करता तो शायद समीरा उसे छोड़ कर नहीं जाती.

खैर, अब तीर कमान से निकल चुका था. उस की समझ में बेहतर हल यही आ रहा था कि नाविया की जान बचा कर उस से माफी मांग ली जाए. वह बहुत सीधी है, जरूर माफ कर देगी. उस ने जेब से मोबाइल निकाला और शानी को फोन लगाने लगा. लेकिन इस से पहले ही शानी का फोन आ गया.

‘‘मैं ने आप का काम कर दिया है. रेलवे प्लेटफार्म से कुछ ही आगे पटरी पर आप की बीवी की लाश पड़ी मिल जाएगी. देख लीजिए, मुझे अब काल मत करना. मैं यह फोन बंद कर के इसे फेंकने जा रहा हूं.’’ कह कर शानी ने फोन बंद कर दिया. जमील को जैसे बड़ा झटका लगा. फिर जब उसे जरा होश आया तो वह टैक्सी कर के सीधे रेलवे स्टेशन पहुंच गया. वह एक तरफ चला, प्लेटफार्म पर 2-4 पैसेंजर ही थे. वह पटरी देखते हुए आगे बढ़ने लगा. पटरी पर कुछ भी दिखाई नहीं दिया. वह एक तरफ खड़ा हो कर दूर तक देखने लगा. अचानक उस के पीछे आहट हुई और साथ ही नाविया की आवाज उस के कानों से टकराई.

‘‘जमील, तुम मेरी लाश ढूंढ रहे हो?’’

जमील ने चौंक कर उस की तरफ देखा. वह नाविया ही थी. जमील की आंखों में देख रही थी. उस के माथे पर चोट का निशान था.

‘‘तुम जिंदा हो?’’ जमील के मुंह से निकला.

‘‘मुझे जिंदा देख कर तुम्हें हैरत और परेशानी हो रही है. तुम ने मुझे जान से मार देने का सौदा किया था. यह भी नहीं सोचा कि अपनी उस बीवी को जान से मरवाना चाहते हो जो तुम्हें बेहद प्यार करती है. शानी भाई ने जो कुछ तुम्हें बताया, वह बिलकुल सच था.

‘‘मैं ने तुम्हारी बातें सुन ली थीं. तुम्हारे पलटते ही मैं ट्रेन से उतर गई थी. मैं ने फौरन भाई को फोन किया और उन्होंने इस जगह फोन कर के अपने दोस्त शानी को भिजवा दिया, जहां तुम अपनी महबूबा के इंतजार में खड़े थे और उस से बातें कर रहे थे.

‘‘तुम ने चोरउचक्का समझ कर मेरे मुंह पर जोर का घूंसा मारा, जिस से दीवार से टकरा कर मुझे यह चोट लग गई. इस के बाद शानी भाई ने खुद ही सारा मामला अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने फैसला कर लिया था कि मैं एक जालिम बेवफा आदमी के साथ किसी कीमत पर जिंदगी नहीं गुजार सकती.’’ नाविया ने कहा.

‘‘मैं मानता हूं, मुझ से बड़ी गलती हुई. मैं तुम से माफी मांगता हूं.’’ जमील ने गिड़गिड़ा कर कहा.

‘‘जब महबूबा चली गई तो तुम्हें माफी मांगने का खयाल आया. वरना तुम तो मेरी लाश चाहते थे. अपने जिस दोस्त के घर तुम अपनी महबूबा को छोड़ आए थे, उसी ने मुझे फोन कर के बताया कि तुम निकाह कर रहे हो. यह अलग बात है कि उस का जमीर जरा देर से जागा.’’ नाविया बोली.

‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. अब ऐसा नहीं होगा.’’ वह बेबसी से बोला.

‘‘अब भरोसा टूट गया है. अब कोई माफी नहीं. घर और कारोबार सब मेरा था. शानी भाई ने इस जगह अपने आदमी बैठा दिए हैं. बस एक गाड़ी तुम्हारे नाम थी, वह भी मैं ने तुम से अपनी मौत का सौदा कर के वापस ले ली. तुम्हें तलाक के लिए जल्दी ही अदालत से नोटिस मिल जाएगा.’’ नाविया ने बेदर्दी से कहा और जमील को शौक्ड छोड़ कर आगे बढ़ गई.

 

Kannauj Crime : मफलर से पत्नी का घोंट डाला गला

Kannauj Crime :  प्यार की डींगे हांकना भी आसान है और जताना भी आसान, लेकिन प्यार निभाना आसान नहीं होता. आजकल के तमाम लड़के लड़कियां अपने प्यार के लिए मर जाने का दम भरते हैं. लेकिन शादी के बाद उन का प्यार जब हकीकत के कठोर धरातल से टकराता है तो उन्हें एकदूसरे की जान का दुश्मन बनते देर नहीं लगती. नीलम और विजय प्रताप…

12 दिसंबर, 2019 की सुबह तिर्वा-कन्नौज मार्ग पर आवागमन शुरू हुआ तो कुछ लोगों ने ईशन नदी पुल के नीचे एक महिला का शव पड़ा देखा. कुछ ही देर में पुल पर काफी भीड़ जमा हो गई. पुल पर लोग रुकते और झांक कर लाश देखने की कोशिश करते और चले जाते. कुछ लोग ऐसे भी थे जो पुल के नीचे जाते और नजदीक से शव की शिनाख्त करने की कोशिश करते. यह खबर क्षेत्र में फैली तो भुडि़या और आसपास के गांवों के लोग भी आ गए. भीषण ठंड के बावजूद सुबह 10 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. इसी बीच भुडि़यां गांव के प्रधान जगदीश ने मोबाइल फोन से यह सूचना थाना तिर्वा को दे दी.

सूचना मिलते ही तिर्वा थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने लाश मिलने की सूचना जिले के पुलिस अधिकारियों को दी, और लाश का निरीक्षण करने लगे. महिला का शव पुल के नीचे नदी किनारे झाडि़यों में पड़ा था. उस की उम्र 25-26 साल के आसपास थी. वह हल्के हरे रंग का सलवारकुरता और क्रीम कलर का स्वेटर पहने थी, हाथों में मेहंदी, पैरों में महावर, चूडि़यां, बिछिया पहने थी और मांग में सिंदूर. लगता जैसे कोई दुलहन हो. मृतका का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था, और झुलसा हुआ था. उस के गले में सफेद रंग का अंगौछा पड़ा था. देख कर लग रहा था, जैसे महिला की हत्या उसी अंगौछे से गला कस कर की गई हो. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा कुचल कर तेजाब से जला दिया गया था.

महिला की हत्या पुल के ऊपर की गई थी और शव को घसीट कर पुल के नीचे झाडि़यों तक लाया गया था. घसीट कर लाने के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. महिला के साथ बलात्कार के बाद विरोध करने पर हत्या किए जाने की भी आशंका थी. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम प्रभारी राकेश कुमार को बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम प्रभारी ने वहां से सबूत एकत्र किए.

अब तक कई घंटे बीत चुके थे, घटनास्थल पर भीड़ जमा थी. लेकिन कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाया. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने महिला के शव के बारे में भुडि़या गांव के ग्राम प्रधान जगदीश से बातचीत की तो उन्होंने कहा, ‘‘सर, यह महिला हमारे क्षेत्र की नहीं, कहीं और की है. अगर हमारे क्षेत्र की होती तो अब तक शिनाख्त हो गई होती.’’

एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को भी ग्राम प्रधान की बात सही लगी. उन्होंने थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द महिला की हत्या का खुलासा करें. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने आवश्यक काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दी. किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी दर्ज तो नहीं है, यह जानने के लिए उन्होंने वायरलैस से सभी थानों में अज्ञात महिला की लाश मिलने की सूचना प्रसारित करा दी. इस के साथ ही उन्होंने क्षेत्र के सभी समाचार पत्रों में महिला की लाश के फोटो छपवा कर लोगों से उस की पहचान करने की अपील की. इस का परिणाम यह निकला कि 13 दिसंबर को अज्ञात महिला के शव की पहचान करने के लिए कई लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. लेकिन उन में से कोई भी शव को नहीं पहचान पाया. शाम 4 बजे 3 डाक्टरों के एक पैनल ने अज्ञात महिला के शव का पोस्टमार्टम शुरू किया.

मिला छोटा सा सुराग पोस्टमार्टम के पहले जब महिला के शरीर से कपड़े अलग किए गए तो उस की सलवार के नाड़े के स्थान से कागज की एक परची निकली, जिस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम करने के बाद रिपोर्ट के साथ वह मोबाइल नंबर लिखी परची भी थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को दे दी. दूसरे दिन थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अवलोकन किया. रिपोर्ट के मुताबिक महिला की हत्या गला दबा कर की गई थी. चेहरे को भारी वस्तु से कुचला गया था और उसे तेजाब डाल कर जलाया गया था. बलात्कार की पुष्टि के लिए 2 स्लाइड बनाई गई थीं. थानाप्रभारी ने परची पर लिखे मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया तो फोन बंद था. उन्होंने कई बार वह नंबर मिला कर बात करने की कोशिश की लेकिन वह हर बार वह नंबर स्विच्ड औफ ही मिला.

टी.पी. वर्मा को लगा कि यह रहस्यमय नंबर महिला के कातिल तक पहुंचा सकता है, इसलिए उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि घटना वाली रात वह नंबर पूरी रात सक्रिय रहा था. इतना ही नहीं, रात 1 से 2 बजे के बीच इस नंबर की लोकेशन भुडि़या गांव के पास की मिली. इस नंबर से उस रात एक और नंबर पर कई बार बात की गई थी. उस नंबर की लोकेशन भी भुडि़या गांव की ही मिल रही थी. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने दोनों नंबरों की जानकारी निकलवाई तो पता चला कि वे दोनों नंबर विजय प्रताप और अजय प्रताप पुत्र हरिनारायण, ग्राम पैथाना, थाना ठठिया, जिला कन्नौज के नाम से लिए गए थे. इस से पता चला कि विजय प्रताप और अजय प्रताप दोनों सगे भाई हैं.

15 दिसंबर, 2019 की रात 10 बजे थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पुलिस टीम के साथ थाना ठठिया के गांव पैथाना में हरिनारायण के घर छापा मारा. छापा पड़ते ही घर में भगदड़ मच गई. एक युवक को तो पुलिस ने दबोच लिया, किंतु दूसरा मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. इत्तफाक से गांव की नाली से टकरा कर उस की मोटरसाइकिल पलट गई. तभी पीछा कर रही पुलिस ने उसे दबोच लिया. मोटरसाइकिल सहित दोनों युवकों को थाना तिर्वा लाया गया. थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम विजयप्रताप उर्फ शोभित निवासी ग्राम पैथाना थाना ठठिया जिला कन्नौज बताया. जबकि दूसरा युवक विजय प्रताप का भाई अजय प्रताप था.

अजय-विजय को जब मृतका के फोटो दिखाए गए तो दोनों उसे पहचानने से इनकार कर दिया. दोनों के झूठ पर थानाप्रभारी वर्मा को गुस्सा आ गया. उन्होंने उन से सख्ती से पूछताछ की तो विजय प्रताप ने बताया कि मृत महिला उस की पत्नी नीलम थी. हम दोनों ने ही मिल कर नीलम की हत्या की थी और शव को ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दिया था. अजय और विजय ने हत्या का जुर्म तो कबूल कर लिया. किंतु अभी तक उन से आला ए कत्ल बरामद नहीं हुआ था. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने इस संबंध में पूछताछ की तो उन दोनों ने बताया कि हत्या में प्रयुक्त मफलर तथा खून से सनी ईंटें उन्होंने ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दी थीं.

थानाप्रभारी उन दोनों को ईशन नदी पुल के नीचे ले गए. वहां दोनों ने झाडि़यों में छिपाई गई ईंट तथा मफलर बरामद करा दिया. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. विजय प्रताप के पास मृतका नीलम के मामा श्यामबाबू का मोबाइल नंबर था. उस नंबर पर टी.पी. वर्मा ने श्यामबाबू से बात की और नीलम के संबंध में कुछ जानकारी हासिल करने के लिए थाना तिर्वा बुलाया. हालांकि उन्होंने श्यामबाबू को यह जानकारी नहीं दी कि उस की भांजी नीलम की हत्या हो गई है. श्यामबाबू नीलम को ले कर पिछले 2 सप्ताह से परेशान था. वजह यह कि उस की न तो नीलम से बात हो पा रही थी और न ही उस के पति विजय से. थाना तिर्वा से फोन मिला तो वह तुरंत रवाना हो गया.

मामा ने बताई असल कहानी कानपुर से तिर्वा कस्बे की दूरी लगभग सवा सौ किलोमीटर है, इसलिए 4 घंटे बाद श्यामबाबू थाना तिर्वा पहुंच गया. थाने पर उस समय थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा मौजूद थे. वर्मा ने उसे एक महिला का फोटो दिखते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम इस महिला हो पहचानते हो?’’

श्यामबाबू ने फोटो गौर से देखा फिर बोला, ‘‘सर, यह फोटो मेरी भांजी नीलम की है. इस की यह हालत किस ने की?’’

‘‘नीलम को उस के पति विजय प्रताप ने अपने भाई अजय की मदद से मार डाला है. इस समय दोनों भाई हवालात में हैं. 2 दिन पहले नीलम की लाश ईशन नदी पुल के नीचे मिली थी.’’ थानाप्रभारी ने बताया. नीलम की हत्या की बात सुनते ही श्यामबाबू फफक पड़ा. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने पहले ही नीलम को मना किया था कि विजय ऊंची जाति का है. वह उसे जरूर धोखा देगा. लेकिन प्रेम दीवानी नीलम नहीं मानी और 4 महीने पहले घर से भाग कर उस से शादी कर ली. आखिर उस ने नीलम को मार ही डाला.’’

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने बिलख रहे श्यामबाबू को धीरज बंधाया और उसे वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत विजय प्रताप व अजयप्रताप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने कातिलों के पकड़े जाने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल को दे दी. जानकारी पाते ही एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने प्रैसवार्ता कर के कातिलों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. रमेश कुमार अपने परिवार के साथ  लखनऊ के चारबाग में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा एकलौती बेटी थी नीलम. रमेश रोडवेज में सफाईकर्मी था और रोडवेज कालोनी में रहता था. रमेश और उस की पत्नी सीता नीलम को जान से बढ़ कर चाहते थे.

रमेश शराब बहुत पीता था. शराब ने उस के शरीर को खोखला कर दिया था. ज्यादा शराब पीने के कारण वह बीमार पड़ गया और उस की मौत हो गई. पति की मौत के बाद पत्नी सीता टूट गई, जिस से वह भी बीमार रहने लगी. इलाज के बावजूद उसे भी बचाया नहीं जा सका. उस समय नीलम महज 8 साल की थी. नीलम के मामा श्यामबाबू कानपुर शहर के फीलखाना थाना क्षेत्र के रोटी गोदाम मोहल्ले में रहते थे. बहनबहनोई की मौत के बाद श्यामबाबू अपनी भांजी को कानपुर ले आए और उस का पालनपोषण करने लगे. चूंकि नीलम के सिर से मांबाप का साया छिन गया था, इसलिए श्यामबाबू व उस की पत्नी मीना, नीलम का भरपूर खयाल रखते थे, उस की हर जिद पूरी करते थे. नीलम धीरेधीरे मांबाप की यादें बिसराती गई.

वक्त बीतता रहा. वक्त के साथ नीलम की उम्र भी बढ़ती गई. नीलम अब जवान हो गई थी. 19 वर्षीय नीलम गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श, इकहरे बदन और लंबे कद की खूबसूरत लड़की थी. वह साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी, लेकिन उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था. नीलम को अपनी सुंदरता का अंदाजा था, लेकिन वह अपनी सुंदरता पर इतराने के बजाए सभी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से सभी उस से बातें करना पसंद करते थे. नीलम के घर के पास एक प्लास्टिक फैक्ट्री थी. इस फैक्ट्री में विजय प्रताप नाम का युवक काम करता था. वह मूलरूप से कन्नौज जिले के ठठिया थाना क्षेत्र के गांव पैथाना का रहने वाला था. उस के पिता हरिनारायण यादव किसान थे.

3 भाईबहनों में विजय प्रताप उर्फ शोभित सब से बड़ा था. उस का छोटा भाई अजय प्रताप उर्फ सुमित पढ़ाई के साथसाथ खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. विजय प्रताप कानपुर के रावतपुर में किराए के मकान में रहता था और रोटी गोदाम स्थित फैक्ट्री में काम करता था. फैक्ट्री आतेजाते एक रोज विजय प्रताप की निगाहें खूबसूरत नीलम पर पड़ीं तो वह उसे अपलक देखता रह गया. पहली ही नजर में नीलम उस के दिलोदिमाग में छा गई. इस के बाद तो जब भी विजय प्रताप फैक्ट्री आता, उस की निगाहें नीलम को ही ढूंढतीं. नीलम दिख जाती तो उस के दिल को सकून मिलता, न दिखती तो मन उदास हो जाता था. नीलम के आकर्षण ने विजय प्रताप के दिन का चैन छीन लिया था, रातों की नींद हराम कर दी थी.

तथाकथित प्यार में छली गई नीलम ऐसा नहीं था कि नीलम विजय की प्यार भरी नजरों से वाकिफ नहीं थी. जब वह उसे अपलक निहारता तो नीलम भी सिहर उठती थी. उसे उस का इस तरह निहारना मन में गुदगुदी पैदा करता था. विजय प्रताप भी आकर्षक युवक था. वह ठाठबाट से रहता था. धीरेधीरे नीलम भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. लेकिन अपनी बात कहने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं जुटा पा रहा था. जब से विजय प्रताप ने नीलम को देखा था, उस का मन बहुत बेचैन रहने लगा था. उस के दिलोदिमाग पर नीलम ही छाई रहती थी. धीरेधीरे नीलम के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. वह नीलम से बात कर के यह जानना चाहता था कि नीलम भी उस से प्यार करती है या नहीं. क्योंकि नीलम की ओर से अभी तक उसे कोई प्रतिभाव नहीं मिला था.

एक दिन लंच के दौरान विजय प्रताप फैक्ट्री के बाहर निकला तो उसे नीलम सब्जीमंडी बाजार की ओर जाते दिख गई. वह तेज कदमों से उस के सामने पहुंचा और साहस जुटा कर उस से पूछ लिया, ‘‘मैडम, आप अकसर फैक्ट्री के आसपास नजर आती हैं. पड़ोस में ही रहती हैं क्या?’’

‘‘हां, मैं पड़ोस में ही अपने मामा श्यामबाबू के साथ रहती हूं.’’ नीलम ने विजय प्रताप की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘‘अब शायद आप मेरा नाम पूछोगे, इसलिए खुद ही बता देती हूं कि नीलम नाम है मेरा.’’

‘‘मेरा नाम विजय प्रताप है. आप के घर के पास जो फैक्ट्री है, उसी में काम करता हूं. रावतपुर में किराए के मकान में रहता हूं. वैसे मैं मूलरूप से कन्नौज के पैथाना का हूं. मेरे पिता किसान हैं. छोटा भाई अजय प्रताप पढ़ रहा है. मुझे खेती के कामों में रुचि नहीं थी, सो कानपुर आ कर नौकरी करने लगा.’’

इस तरह हलकीफुलकी बातों के बीच विजय और नीलम के बीच परिचय हुआ जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में विजय प्रताप नीलम के मोबाइल पर उस से बातें करने लगा. नीलम को भी विजय का स्वभाव अच्छा लगता था, इसलिए वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. इस का परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. प्यार का नशा कुछ ऐसा होता है जो किसी पर एक बार चढ़ जाए तो आसानी से नहीं उतरता. नीलम और विजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. अब वे दोनों साथ घूमने निकलने लगे. रेस्टोरेंट में बैठ कर साथसाथ चाय पीते और पार्कों में बैठ कर बतियाते. उन का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा.

एक दिन मोतीझील की मखमली घास पर बैठे दोनों बतिया रहे थे, तभी अचानक विजय नीलम का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं. मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा. मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’

नीलम ने उस पर चाहत भरी नजर डाली और बोली, ‘‘विजय, प्यार तो मैं भी तुम्हें करती हूं और तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहती हूं, लेकिन मुझे डर लगता है.’’

‘‘कैसा डर?’’ विजय ने अचकचा कर पूछा.

‘‘यही कि हमारी और तुम्हारी जाति अलग हैं. तुम्हारे घर वाले क्या हम दोनों के रिश्ते को स्वीकार करेंगे?’’

विजय प्रताप नीलम के इस सवाल पर कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘नीलम, आसानी से तो घरपरिवार के लोग हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन जब हम उन पर दबाव डालेंगे तो मान जाएंगे. फिर भी न माने तो बगावत पर उतर जाऊंगा. मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें मानसम्मान दिला कर ही रहूंगा.’’

लेकिन इस के पहले कि वे दोनों अपने मकसद में सफल हो पाते, नीलम के मामा श्यामबाबू को पता चल गया कि उस की भांजी पड़ोस की फैक्ट्री में काम करने वाले किसी युवक के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. श्यामबाबू नहीं चाहता था कि उस की भांजी किसी के साथ घूमेफिरे, जिस से उस की बदनामी हो. मामा का समझाया नहीं समझी नीलम उस ने नीलम को डांटा और सख्त हिदायत दी कि विजय के साथ घूमनाफिरना बंद कर दे. नीलम ने डर की वजह से मामा से वादा तो कर दिया कि अब वह ऐसा नहीं करेगी. लेकिन वह विजय को दिल दे बैठी थी. फिर उस के बिना कैसे रह सकती थी. सोचविचार कर उस ने तय किया कि अब वह विजय से मिलने में सावधानी बरतेगी.

नीलम ने विजय प्रताप को फोन पर अपने मामा द्वारा दी गई चेतावनी बता दी. लिहाजा विजय भी सतर्क हो गया. मिलना भले ही बंद हो गया लेकिन दोनों ने फोन पर होने वाली बात जारी रखी. जिस दिन नीलम का मामा घर पर नहीं होता, उस दिन वह विजय से मिल भी लेती थी. इस तरह उन का मिलने का क्रम जारी रहा. नीलम की जातिबिरादरी का एक लड़का था सुबोध. वह नीलम के घर के पास ही रहता था. वह नीलम को मन ही मन प्यार करता था. नीलम भी उस से हंसबोल लेती थी. उस के पास नीलम का मोबाइल नंबर भी था. इसलिए जबतब वह नीलम से फोन पर बतिया लेता था.

सुबोध नीलम से प्यार जरूर करता था, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. नीलम जब विजय प्रताप से प्यार करने लगी तो सुबोध के मन में प्यार की फांस चुभने लगी. वह दोनों की निगरानी करने लगा. एक दिन सुबोध ने नीलम को विजय प्रताप के साथ घूमते देखा तो उस ने यह बात नीलम के मामा श्यामबाबू को बता दी. श्यामबाबू ने नीलम की पिटाई की और उस का घर के बाहर जाना बंद करा दिया. नीलम पर प्रतिबंध लगा तो वह घबरा उठी. उस ने इस बाबत मोबाइल फोन पर विजय से बात की और घर से भाग कर शादी रचाने की इच्छा जाहिर की. विजय प्रताप भी यही चाहता ही था, सो उस ने रजामंदी दे दी. इस के बाद दोनों कानपुर छोड़ने की तैयारी में जुट गए.

विजय प्रताप का एक रिश्तेदार दिल्ली में यमुनापार लक्ष्मीनगर, मदर डेयरी के पास रहता था और रेडीमेड कपड़े की सिलाई का काम करता था. उस रिश्तेदार के माध्यम से विजय प्रताप ने दिल्ली में रहने की व्यवस्था बनाई और नीलम को दिल्ली ले जा कर उस से शादी करने का फैसला कर लिया. उस ने फोन पर अपनी योजना नीलम को भी बता दी.  4 अगस्त, 2019 को जब श्यामबाबू काम पर चला गया तो नीलम अपना सामान बैग में भर कर घर से निकली और कानपुर सेंट्रल स्टेशन जा पहुंची. स्टेशन पर विजय प्रताप उस का पहले से इंतजार कर रहा था. उस समय दिल्ली जाने वाली कालका मेल तैयार खड़ी थी. दोनों उसी ट्रेन पर सवार हो कर दिल्ली रवाना हो गए.

उधर देर रात को श्यामबाबू घर आया तो घर से नीलम गायब थी. उस ने फोन पर नीलम से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उस का फोन बंद था. श्यामबाबू को समझते देर नहीं लगी कि नीलम अपने प्रेमी विजय प्रताप के साथ भाग गई है. इस के बाद उस ने न तो थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और न ही उसे खोजने का प्रयास किया. उधर दिल्ली पहुंच कर विजय प्रताप अपने रिश्तेदार के माध्यम से लक्ष्मीनगर में एक साधारण सा कमरा किराए पर ले कर रहने लगा. एक हफ्ते बाद उस ने नीलम से प्रेम विवाह कर लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. नीलम ने विजय से विवाह रचाने की जानकारी अपने मामा श्यामबाबू को भी दे दी. साथ ही यह भी बता दिया कि वह दिल्ली में रह रही है.

इधर विजय प्रताप के परिवार वालों को जब पता चला कि विजय ने नीलम नाम की एक दलित लड़की से शादी की है तो उन्होंने विजय को जम कर फटकारा और नीलम को बहू के रूप में स्वीकार करने से साफ मना कर दिया.  यही नहीं, परिवार वालों ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह नीलम से रिश्ता तोड़ ले. पारिवारिक दबाव से विजय प्रताप परेशान हो उठा. उस का छोटा भाई अजय प्रताप भी रिश्ता खत्म करने का दबाव डाल रहा था. हो गई कलह शुरू नीलम अपने पति विजय के साथ 2 महीने तक खूब खुश रही. उसे लगा कि उसे सारा जहां मिल गया है. लेकिन उस के बाद उस की खुशियों में जैसे ग्रहण लग गया. वह तनावग्रस्त रहने लगी. नीलम और विजय के बीच कलह भी शुरू हो गई. कलह का पहला कारण यह था कि नीलम सीलन भरे कमरे में रहते ऊब गई थी.

वह विजय पर दबाव डालने लगी थी कि उसे अपने घर ले चले. वह वहीं रहना चाहती है. लेकिन विजय प्रताप जानता था कि उस के घर वाले नीलम को स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए वह उसे गांव ले जाने को मना कर देता था. कलह का दूसरा कारण था नीलम का फोन पर किसी से हंसहंस कर बतियाना. जिस से विजय को शक होने लगा कि नीलम का कोई प्रेमी भी है. हालांकि नीलम जिस से बात करती थी, वह उस के मायके के पड़ोस में रहने वाला सुबोध था. उस से वह अपने मामा तथा घर की गतिविधियों की जानकारी लेती रहती थी. कभीकभी वह मामा से भी बात कर लेती थी. एक तरफ परिवार का दबाव तो दूसरी तरफ शक. इन बातों से विजय प्रताप परेशान हो गया. मन ही मन वह नीलम से नफरत करने लगा. एक दिन देर शाम नीलम सुबोध से हंसहंस कर बातें कर रही थी, तभी विजय प्रताप कमरे में आ गया.

उस ने गुस्से में नीलम का मोबाइल तोड़ दिया और उसे 2 थप्पड़ भी जड़ दिए. इस के बाद दोनों में झगड़ा हुआ. नीलम ने साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली में नहीं रहेगी. वह उसे ससुराल ले चले. अगर नहीं ले गया तो वह खुद चली जाएगी. नीलम की इस धमकी से विजय प्रताप संकट में फंस गया. उस ने फोन पर इस बारे में अपने छोटे भाई अजय से बात की. अंतत: दोनों भाइयों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए नीलम की हत्या की योजना बना ली. योजना बनने के बाद विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि वह जल्दी ही उसे गांव ले जाएगा. वह अपनी तैयारी कर ले.

11 दिसंबर, 2019 की सुबह विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि उसे आज ही गांव चलना है. नीलम चूंकि पहली बार ससुराल जा रही थी, इसलिए उस ने साजशृंगार किया, पैरों में महावर लगाई, फिर पति के साथ ससुराल जाने के लिए निकल गई. विजय प्रताप नीलम को साथ ले कर बस से दिल्ली से निकला और रात 11 बजे कन्नौज पहुंच गया. विजय की अपने छोटे भाई अजय से बात हो चुकी थी. अजय प्रताप मोटरसाइकिल ले कर कन्नौज बसस्टैंड पर आ गया. नीलम ने दोनों भाइयों को एकांत में खुसरफुसर करते देखा तो उसे किसी साजिश का शक हुआ. इसी के मद्देनजर उस ने कागज की परची पर पति का मोबाइल नंबर लिखा और सलवार के नाड़े के स्थान पर छिपा लिया.

रात 12 बजे विजय प्रताप, नीलम और अजय प्रताप मोटरसाइकिल से पैथाना गांव की ओर रवाना हुए. जब वे ईशन नदी पुल पर पहुंचे तो अजय प्रताप ने मोटरसाइकिल रोक दी. उसी समय विजय प्रताप ने नीलम के गले में मफलर लपेटा और उस का गला कसने लगा. नीलम छटपटा कर हाथपैर चलाने लगी तो अजय प्रताप ने उसे दबोच लिया और पास पड़ी ईंट से उस का चेहरा कुचल दिया. हत्या करने के बाद दोनों नीलम के गले में अंगौछा डाल बांध कर शव को घसीट कर पुल के नीचे नदी किनारे ले गए और झाडि़यों में फेंक दिया. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा तेजाब डाल कर जला दिया. तेजाब की बोतल अजय प्रताप ले कर आया था. शव को ठिकाने लगाने के बाद दोनों भाई मोटरसाइकिल से अपने गांव पैथाना चले गए.

17 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने अभियुक्त विजय प्रताप तथा अजय प्रताप को कन्नौज कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Stories : मंहगा फोन खरीदने के लिए युवक ने ली महिला की जान

Murder Stories : युवा गांव के हों या शहर के, सभी के लिए कीमती और ज्यादा से ज्यादा फीचर्स वाले मोबाइल फोन जरूरत नहीं बल्कि शौक बनते जा रहे हैं. कई युवा तो ऐसे फोनों को प्रस्टेज इशू बनाने लगे हैं. गौरव भी ऐसे ही युवाओं में था उस की इस चाहत ने एक ऐसी युवती की जान ले ली जो…

18 अक्तूबर, 2019 को दिन के 12 बजे का वक्त रहा होगा. एक मोबाइल फोन शोरूम के मालिक मनीष चावला ने काशीपुर कोतवाली में जो सूचना दी, उसे सुन कर पुलिस के जैसे होश ही उड़ गए. मनीष चावला ने पुलिस को बताया कि उन के शोरूम पर काम करने वाली युवती पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. शहर में दिनदहाड़े एक युवती की हत्या वाली बात सुनते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह हैरान रह गए. उन्होंने इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और खुद घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मनीष चावला का मोबाइल शोरूम कोतवाली से कुछ ही दूर गिरीताल रोड पर था, वह थोड़ी देर में ही वहां पहुंच गए.

तब तक वहां काफी भीड़भाड़ जमा हो गई थी. शव शोरूम से सटे स्टोर में पड़ा था. वहां पहुंचते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने पिंकी के शव का जायजा लिया. वहां पर खून ही खून फैला था. उस के शरीर पर धारदार हथियार के कई घाव थे. देखने से लग रहा था जैसे शोरूम में लूटपाट भी हुई हो. कोतवाल का ध्यान सब से पहले शोरूम के सीसीटीवी कैमरों की ओर गया. पूछताछ में मनीष चावला ने बताया कि कुछ दिन पहले ही उस के सीसीटीवी कैमरे खराब हो गए थे, जिन्हें वह अभी तक सही नहीं करा पाए. सूचना मिलने पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज कुमार ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार भी वहां पहुंच गए. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि हत्यारे ने पिंकी के पेट पर चाकू से 8 वार किए थे, जिन के निशान साफ दिख रहे थे.

फर्श व शोरूम के काउंटर पर खून के निशान देख कर लग रहा था कि मरने से पहले पिंकी ने हत्यारों का डट कर मुकाबला किया था. एसएसपी के निर्देश पर डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम भी घटना स्थल पर पहुंच गईं. लेकिन इस मामले में डौग स्क्वायड कोई मदद नहीं कर सका. फोरैंसिक टीम ने शोरूम के अंदर कई जगहों से फिंगर प्रिंट उठाए. प्राथमिक जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने शोरूम के मालिक मनीष चावला से पूछताछ की. चावला ने बताया कि करीब पौने 12 बजे पिंकी ने उन्हें फोन पर बताया था कि दुकान पर कोई ग्राहक आया है और पावर बैंक का रेट पूछ रहा है. पावर बैंक का रेट बताने के बाद उन्होंने पिंकी से कह दिया था कि वह कुछ देर में शोरूम पहुंचने वाले हैं.

उस के लगभग 20 मिनट बाद जब वह शोरूम पहुंचे तो वहां के हालात देख कर उन के होश उड़ गए. उन्होंने बताया कि बदमाश पिंकी की हत्या कर के शोरूम से लगभग डेढ़ लाख रुपए के मोबाइल भी लूट कर ले गए थे. पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि पिंकी को किस ने मारा एसएसपी ने पुलिस अफसरों को इस मामले का जल्दी से जल्दी खुलासा करने के निर्देश दिए. साथ ही साथ उन्होंने जांच के लिए तुरंत पुलिस टीम गठित करने को कहा. पुलिस ने उसी वक्त शोरूम के आसपास सीसीटीवी कैमरों की तलाश की, लेकिन वहां कहीं भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा था. घटना स्थल से सारे तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जैसेजैसे शहर में पिंकी हत्याकांड की खबर फैलती गई लोग घटना स्थल पर जमा होते गए. हत्या के बाद पर्वतीय समाज में जबरदस्त आक्रोश पैदा हो गया.

बेटी पिंकी की हत्या के सदमे में उस के पिता मनोज बिष्ट तो सुधबुध ही खो बैठे. पिंकी के परिजनों का दुकानदार मनीष चावला के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. उसी दिन देर शाम को काफी लोग एकत्र हो कर एएसपी डा. जगदीश चंद्र के पास पहुंचे और इस मामले का जल्दी खुलासा करने की मांग की. मृतका पिंकी के पिता ने इस घटना के लिए शोरूम मालिक मनीष चावला को जिम्मेदार ठहराते हुए उस के खिलाफ काररवाई करने की मांग की. एएसपी को सौंपी गई तहरीर में उन्होंने कहा कि शोरूम मालिक मनीष चावला ने अपने शोरूम में सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम नहीं किए थे. शोरूम में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगाए गए थे.

पिंकी वहां काम करने पर स्वयं भी असुरक्षित महसूस कर रही थी. उस ने कई बार इस बात का जिक्र अपने घरवालों से किया था. पिंकी ने उन्हें बताया था कि उस के मालिक ने शोरूम में लगे सभी कैमरे हटवा दिए थे. जिस के कारण उसे वहां पर अकेले काम करते हुए डर लगता है. वह वहां से नौकरी छोड़ देना चाहती थी, लेकिन मनीष चावला उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. उन्हें शक है कि मनीष चावला ने ही उन की बेटी की हत्या कराई है. पुलिस प्रशासन पर बढ़ते दवाब के कारण एएसपी ने उन की तहरीर के आधार पर केस दर्ज करने का आदेश दिया. उसी वक्त युवा पर्वतीय महासभा के पूर्व अध्यक्ष पुष्कर सिंह बिष्ट ने घोषणा की कि अगले दिन शनिवार साढ़े 5 बजे मृतका पिंकी की आत्मा की शांति तथा इस केस के शीघ्र खुलासे के लिए नगर निगम से सुभाष चौक तक कैंडल मार्च निकाला जाएगा.

अगले दिन सुबह ही पूर्व योजनानुसार कई सामाजिक संगठन सड़क पर उतर गए. सड़कों पर जन शैलाब उमड़ा तो पुलिस प्रशासन के पसीने छूटने लगे. क्योंकि इस से अगले दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का काशीपुर आने का प्रोग्राम था. रावत के आगमन से एक दिन पहले ही नगर में हुए जाम और प्रदर्शन को ले कर पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस जाम को हटवाने के लिए रुद्रपुर से एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार, दीपशिखा अग्रवाल, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह, कुंडा थाना प्रभारी राजेश यादव और आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह अधिकारी आदि जनसैलाब को समझाने में जुट गए.

पिंकी हत्याकांड के विरोध में सैकड़ों नागरिकों और डिगरी कालेज के छात्रों ने महाराणा प्रताप चौक तक कैंडल मार्च निकाला और शोक सभा आयोजित कर मृतका को श्रद्धांजलि दी. साथ ही हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग भी की. पर्वतीय महासभा के पदाधिकारियों ने पीडि़त परिवार को 40 लाख रुपए का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिलाने की मांग की. उसी दौरान मृतका का पोस्टमार्टम होने के दौरान जनाक्रोश भड़क उठा. सैकड़ों लोग पोस्टमार्टम हाउस पर एकत्र हो गए और केस का खुलासा होने पीडि़त परिवार को मुआवजा मिलने तक शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार करने लगे.

लोगों ने पुलिस पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी शुरू कर दी. लोग नारेबाजी करते हुए चीमा चौराहे पर जा पहुंचे. वहां पहुंच कर भी भीड़ ने काफी उत्पात मचाया. पुलिस अधिकारियों के काफी समझाने के बाद भी लोग टस से मस न हुए. यह देख एसडीएम ने लोगों को आश्वासन दिया कि 48 घंटे में इस केस का खुलासा कर दिया जाएगा. एसडीएम के आश्वासन के बाद वहां लगा जाम खुल सका. लेकिन इस के बावजूद भी पुलिस प्रशासन ने सतर्कता में ढील नहीं दी. मृतका का अंतिम संस्कार होने तक पुलिस प्रशासन चौकन्ना बना रहा. जाम हटाने के बाद प्रदर्शनकारी पोस्टमार्टम हाउस के लिए रवाना हुए तो पुलिस भी उन के पीछेपीछे रही. पोस्टमार्टम के बाद मृतका के परिजन उस के शव को सीधे श्मशान ले गए, जहां पर उस का दाह संस्कार कर दिया गया. दाहसंस्कार के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली.

मृतका के पिता मनोज बिष्ट मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के गांव धुमाकोट के रहने वाले थे. परिवार में मियांबीवी और बच्चों को मिला कर कुल 5 सदस्य थे. बच्चों में 2 बेटियां और उन से छोटा एक बेटा प्रवीण कुमार था. घरपरिवार के लिए नौकरी करती थी पिंकी खेती में गुजरबजर न होने के कारण करीब 2 साल पहले पिंकी अपने भाई प्रवीण को साथ ले कर रोजगार की तलाश में काशीपुर आ गई थी. काशीपुर की सैनिक कालोनी में उस की बुआ आशा रावत रहती थी. जिस के सहारे दोनों भाईबहन यहां आए थे. बुआ ने उन्हें मानपुर रोड स्थित आर.के.पुरम निवासी चंदन सिंह बिष्ट के यहां पर किराए का कमरा दिला दिया था. वहीं रहते हुए पिंकी को गिरीताल रोड स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम में नौकरी मिल गई थी. पिंकी उस मोबाइल शोरूम पर अकेली ही रहती थी.

इस घटना से एक दिन पहले ही उस के पिता मनोज बिष्ट काशीपुर से दवा लेने आए थे. उस दिन वह अपनी बहन आशा रावत के घर पर ही रुके हुए थे. लेकिन उन्हें दिन के 3 बजे तक अपनी बेटी की हत्या वाली बात पता नहीं चली थी. 18 अक्तूबर, 2019 को ही दोपहर लगभग साढ़े 3 बजे फरीदाबाद से पिंकी की दूसरी बुआ मीना ने अपने भाई की खबर लेने के लिए पिंकी के मोबाइल पर फोन किया तो वह काल कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने रिसीव की. उन्होंने पिंकी की बुआ को बताया कि पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. उस के बाद मीना ने काशीपुर में अपनी बहन आशा को फोन पर उस की हत्या वाली बात बताई. बेटी की हत्या की बात सुनते ही इलाज के लिए काशीपुर आए मनोज रावत अपनी सुधबुध खो बैठे.

शनिवार की देर शाम पूर्व सीएम हरीश रावत भी मृतका के परिजनों को सांत्वना देने उन के घर पहुंचे. उन्होंने पीडि़त परिवार को सांत्वना दी. रावत ने जल्दी ही अपराधियों को पकड़ने के साथसाथ परिवार को आर्थिक सहायता दिलाने और भाई को सरकारी नौकरी दिलाने का प्रयास करने का आश्वासन दिया. रावत ने उसी वक्त डीजी (कानून व्यवस्था) अशोक कुमार से फोन पर बात कर घटना की जानकारी दी और पीडि़त परिवार की स्थिति से अवगत कराया. इन सब स्थितियों से निपटने के बाद पुलिस प्रशासन पूरी तरह से पिंकी के हत्यारों की तलाश में जुट गया. घटना स्थल से पुलिस ने मृतका का मोबाइल फोन कब्जे में लिया था. पुलिस अपनी हर काररवाई को इस हत्याकांड से जोड़ कर देख रही थी.

पिंकी की उम्र ऐसी थी जहां बच्चों के कदम बहकना कोई नई बात नहीं होती. पुलिस को शंका थी कि हत्या का कारण किसी युवक के साथ पिंकी के संबंध होना तो नहीं है. यह जानने के लिए पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाकर जांच की. लेकिन मोबाइल से कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली जिस से उस की हत्या की गुत्थी सुलझ पाती. इस बहुचर्चित हत्याकांड के खुलासे के लिए आईजी अशोक कुमार के निर्देश पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने एएसपी डा. जगदीश चंद्र के निर्देशन में 6 पुलिस टीमें गठित कीं. इन टीमों में एक सीओ 2 ट्रेनी सीओ, 2 इंसपेक्टर, एक एसओ के अलावा 9 एसआई और 50 कांस्टेबलों के साथसाथ एसटीएफ और एसओजी की टीमों को भी लगाया गया था.

इस केस को खोलने के लिए पुलिस प्रशासन ने दिनरात एक करते हुए 5 दिनों तक नगर के अलगअलग इलाकों में लगे मोबाइल टावरों से डंप डाटा प्राप्त किए. पुलिस अधिकारी सादा कपड़ों में बाइकों से दिनभर संदिग्धों की टोह लेते नजर आए. एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह आदि सभी अधिकारी सादा कपड़ों में संदिग्धों की तलाश में बाजपुर रोड, मुरादाबाद, रामनगर रोड पर कई जगह वीडियो फुटेज चेक करने में जुटे रहे. इस दौरान लगभग 5 हजार संदिग्ध मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई. साथ ही शहर के अलगअलग वार्डों में लगे लगभग 300 सीसीटीवी कैमरों से फुटेज ली गईं. उन्हीं सीसीटीवी फुटेज के दौरान पुलिस टीम को एक संदिग्ध बाइक नजर आई. पुलिस ने उस बाइक की पहचान करने के लिए उस के मालिक के बारे में जानकारी जुटाना चाही तो उस में भी एक अड़चन सामने आ खड़ी हुई.

उस बाइक का नंबर अधूरा था. जिस का पता लगाने के लिए पुलिस को काफी माथापच्ची करनी पड़ी. इस के लिए पुलिस ने बाइक के नंबर की 3 सीरिज में पड़ताल की और तीनों बाइक मालिकों के बारे में जानकारी जुटाई. तफ्तीश रंग लाने लगी सीसीटीवी फुटेज से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुलिस बाइक नंबर यूके18जे0431 ट्रेस करने के बाद बाइक मालिक के पास पहुंची. पुलिस ने इस बाइक के मालिक कचनालगाजी निवासी मनोज उर्फ मोंटी से पूछताछ की. अपने घर पुलिस को आई देख मनोज उर्फ मोंटी के हाथपांव फूल गए. पुलिस पूछताछ में मोंटी ने बताया कि उस की बाइक मुरादाबाद के थाना भगतपुर क्षेत्र के गांव मानपुरदत्ता निवासी गौरव ले गया था. उस ने आगे बताया कि गौरव उस का रिश्तेदार है.

18 अक्तूबर को गौरव एक युवक के साथ उस के यहां आया था. उसी दिन वह उस की बाइक मांग कर ले गया था. लेकिन जब वे दोनों एक घंटे बाद घर लौटे तो दोनों के कपड़ों पर खून लगा था. उन की हालत देख डर की वजह से उस का भाई विनोद उर्फ डंपी दोनों को उन के गांव मानपुरदत्ता छोड़ आया था. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने मनोज और उस के भाई विनोद को अपनी हिरासत में ले लिया. उस के बाद पुलिस उन दोनों को ले कर गांव मानपुरदत्ता पहुंची. जहां से पुलिस ने गौरव और उस के दोस्त रोहित को हिरासत में ले लिया. मनोज और विनोद को पुलिस जिप्सी में बैठे देख गौरव और रोहित समझ गए कि अब पुलिस के सामने अपनी सफाई पेश करने से कोई लाभ नहीं. क्योंकि मनोज और विनोद पुलिस को सबकुछ उगल कर ही यहां आए होंगे. सभी को ले कर पुलिस टीम सीधे काशीपुर कोतवाली आ गई.

पुलिस ने चारों आरोपियों से एक साथ कड़ी पूछताछ की. पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल करने के बाद उन में से कोई भी नहीं मुकर सका. चारों आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही मोबाइल लूट के लिए पिंकी की जान ली थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पिंकी की हत्या में इस्तेमाल किए गए चाकू, शोरूम से लूटे गए 10 महंगे मोबाइल फोन, खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस पूछताछ में पता चला कि इस हत्याकांड को अंजाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका गौरव की थी. थाना भगतपर, मुरादाबाद निवासी गौरव कुमार बीकौम द्वितीय वर्ष का छात्र था. वह पढ़ाई के प्रति गंभीर था. लेकिन पढ़ाई के साथसाथ उसे महंगे मोबाइल रखने का भी शौक था. जिस के लिए वह पढ़ाई के साथसाथ कोई भी काम करने में शर्म नहीं करता था.

इस वारदात को अंजाम देने से 6 माह पूर्व उस ने दिनरात पेंटिंग का काम किया. उसी कमाई से उस ने एक महंगा मोबाइल खरीदा. लेकिन एक महीने बाद ही उस का मोबाइल कहीं पर गिर गया. वह मोबाइल उस ने कड़ी मेहनत कर के खरीदा था. मोबाइल खो जाने का उसे जबरदस्त झटका लगा. उस के पास इतने पैसे इकट्ठा नहीं हो पा रहे थे कि वह उन पैसों से एक दूसरा नया एंड्रोयड मोबाइल फोन खरीद सके. गौरव काशीपुर से ही सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग कर रहा था. उस का काशीपुर आनाजाना लगा रहता था. आतेजाते कई बार उस की नजर गिरीताल रोड पर स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम पर पड़ी थी, जहां पर उस ने कई बार एक अकेली युवती को बैठे देखा था. उस युवती से उस ने मोबाइलों के रेट भी मालूम करने की कोशिश की थी. उसी दौरान उसे पता चला कि इस शोरूम में महंगे से महंगे मोबाइल मौजूद हैं.

हत्यारा बन गया मोबाइल की चाह में उस के बाद गौरव ने उसी शोरूम से मोबाइल लूटने की साजिश रची. उस ने इस बात का जिक्र अपने साथ कोचिंग कर हरे 2 साथियों से किया. यह जानकारी मिलते ही उस के दोनों साथियों ने 17 अक्तूबर को गिरीताल रोड पर जा कर मोबाइल शोरूम की रेकी की. लेकिन उस के साथ आए दोनों साथी इस काम में उस का साथ देने से पीछे हट गए. उस के बाद उस ने अपने ही गांव के रहने वाले किशोर कुमार को इस काम के लिए राजी कर लिया. 18 अक्तूबर को किशोर अपने घर से स्कूल बैग ले कर निकला. लेकिन स्कूल न जा कर वह गौरव के बहकावे में आ कर उस के साथ सीधा काशीपुर आ गया. किशोर कक्षा 10 में पढ़ रहा था. किशोर हेकड़ था. इसीलिए वह उस दिन घर से ही पूरी तरह तैयार हो चाकू ले कर निकला था.

इसी दौरान रास्ते में उन दोनों की मुलाकात रोहित से हुई. रोहित जागरण मंडली में काम करता था. वह भी महंगा मोबाइल खरीदना चाहता था. लेकिन वह पैसे की तंगी की वजह से खरीद न पाया था. गौरव ने उसे भी महंगा मोबाइल दिलाने का झांसा दिया तो वह भी उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. पूर्व नियोजित योजनानुसार गौरव जिस वक्त अपने साथियों के साथ मोबाइल शोरूम पर पहुंचा, उस वक्त पिंकी शोरूम में अकेली थी. वहां पहुंचते ही गौरव ने पिंकी से पावर बैंक और महंगा मोबाइल दिखाने की बात कही. तभी गौरव ने पिंकी से पीने के लिए पानी मांगा. जैसे ही पिंकी वाटर कूलर से पानी निकालने के लिए झुकी, उसी दौरान गौरव ने साथ लाया बेहोश करने वाला स्प्रे छिड़क कर उसे बेहोश करने की कोशिश की.

स्प्रे करते ही गौरव ने पिंकी को अपने कब्जे में ले लिया. उस के बाद पिंकी ने चिल्लाने की कोशिश की तो सामने खड़े किशोर ने हाथ से उस का मुंह बंद कर दिया. पिंकी पूरी तरह से बेहोश नहीं हुई थी, इसलिए वह बुरी तरह चिल्लाने लगी तो रोहित ने चाकू से उस पर वार करने शुरू कर दिए, जिस से वह फर्श पर गिर गई. रोहित पिंकी पर तब तक चाकू से वार करता रह

Social Crime : मजेमजे में सेक्स करने गया और हो गया एड्स

Social Crime : मजेमजे में कई लोग देह व्यापार करने वाली औरतों के पास चले जाते हैं, जबकि ऐसी औरतों से संबंध बनाना बड़े खतरे को दावत देने जैसा है. इस की वजह है सैक्स शिक्षा का अभाव…

देह के धंधे का अहम पहलू ग्राहक होता है. ज्यादातर मामलों में यह साबित हुआ है है कि देह का धंधा केवल इस धंधे में शामिल लड़कियों या औरतों के लिए ही घातक होता है. जबकि हकीकत यह है कि देह का यह धंधा, इस धंधे में शामिल लड़कियों से अधिक ग्राहकों के लिए नुकसानदायक होता है. कुछ पल के मानसिक सुख के बदले ग्राहक को केवल अपना आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. इस के साथसाथ वह अपनी सेहत के साथ भी खिलवाड़ करता है. जिस शारीरिक सुख की कल्पना में वह कालगर्ल या वेश्या के पास जाता है, उस में भी वह ठगा ही महसूस करता है. इस शौक में फंसे लोग बताते हैं कि जब तक वह उन के पास रहते हैं तब तक एक अनजाना सा डर लगा रहता है. पुलिस जब भी ऐसे धंधा करने वालों को पकड़ती है तो सब से खराब हालत ग्राहक की ही होती है.

एक तो ग्राहक पहले ही देहधंधा करने वालों की लूट का शिकार बनता है. उस के बाद अगर पुलिस ने उसे पकड़ लिया तो वह भी कुछ वसूले बिना नहीं छोड़ती. आजकल होटलों में ऐसे धंधे खूब होने लगे हैं. जिस में होटल में कमरा पहले से बुक होता है. लड़की वहां पहले से होती है. ग्राहक वहां जाता है और 2 से 4 घंटे बिता कर चला आता है. देहधंधा कराने वाले 24 घंटे के लिए बुक कमरे में शिफ्ट के अनुसार 3 ग्राहकों तक का इंतजाम कर लेते हैं. ऐसे ही एक होटल में जाने वाले ग्राहक ने बताया, ‘‘जब मैं कमरे से निकल कर होटल से बाहर जाने लगा तो होटल के वेटर और मैनेजर ने रोक कर कहा कि असली सेवक तो वही हैं. उन का भी कुछ हक बनता है. उन्होंने मुझ से 500 रुपए टिप के नाम पर ले लिए.’’

यही लोग ऐसे लोगों के बारे में पुलिस को भी बता देते हैं, तब पुलिस भी कुछ न कुछ नजराना ले लेती है. इस तरह ग्राहक कई जगह ठगा जाता है. पुलिस जब ऐसे किसी रैकेट को पकड़ती है तो समाचारपत्रों में जो फोटो छपती है, उस में लड़कियों के मुंह तो छिपा दिए जाते हैं लेकिन लड़कों के फोटो के साथ ऐसा नहीं किया जाता. इसी तरह खबर में भी लड़कों के वास्तविक नाम छापे जाते हैं, जबकि लड़कियों के नाम बदल दिए जाते हैं. पुरुषों के नाम और फोटो छप जाने से समाज में जो बदनामी होती है, उसे कम कर के नहीं देखा जाना चाहिए. यानी देहधंधे में पकड़े जाने पर लड़कियों से ज्यादा नुकसान लड़कों का होता है. अगर गहराई से देखा जाए तो नुकसान और भी हैं.

लगभग 3 महीने पहले लखनऊ पुलिस ने इसी तरह जिस्मफरोशी के धंधे का रैकेट पकड़ा था. गिरफ्तार की गई लड़कियों को तो थाने से ही जमानत दे दी गई थी, लेकिन लड़कों को अदालत तक जाना पड़ा था. गिरफ्तार किए गए रमेश नाम के एक युवक ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि मेरी शादी होने वाली थी.  एक दोस्त ने कहा शादी के पहले कुछ जानकारी बढ़ा लेनी चाहिए. चलो, आज तुम्हें एक ऐसी ही लड़की से मिलवाता हूं जो इस बारे में सारी जानकारी दे देगी. मैं दोस्त के साथ चला गया. वह उस अड्डे पर पहले से ही आताजाता था. उस ने मुझे एक लड़की के हवाले कर दिया.

मैं शरमातेशरमाते उस लड़की से बात कर रहा था. इसी बीच वहां पर पुलिस का छापा पड़ गया. पुलिस ने मुझे भी पकड़ लिया. मैं कहता ही रह गया कि पहली बार आया हूं, पर पुलिस ने मेरी एक बात नहीं मानी. अगले दिन अखबारों में मेरी फोटो छपी. खबर और फोटो से मेरी समाज में बदनामी तो हुई ही साथ ही शादी भी टूट गई. यह अकेली परेशानी नहीं है. धंधा करने वाली लड़कियों के साथ पकड़े गए एक और युवक दीपक ने अपने बारे में बताया कि मेरी नौकरी में मुझे टूर पर रहना पड़ता था. एक बार मैं इलाहाबाद के एक होटल में रुका हुआ था. होटल में ही काम करने वाले एक वेटर ने मुझे एक लड़की के बारे में बताया कि यह लड़की बहुत जरूरतमंद है.

इस की मां बीमार रहती है. उस के इलाज के लिए यह कभीकभी किसी ग्राहक के पास जाती है. आज इसे 2 हजार रुपए की जरूरत है. अगर आप मदद कर देंगे तो अच्छा रहेगा. बदले में यह एक रात आप की सेवा में रहेगी. लड़की की मदद की बात सुन कर मेरा दिल भर आया और मैं ने उसे बुला लिया. मैं रात भर उस लड़की और उस की मां के बारे में पूछताछ की. लड़की अपनी दर्दभरी कहानी सुनाती रही. सुबह होने के पहले ही वह पैसा ले कर चली गई. मैं ने उस का पता लगाया तो जानकारी मिली कि वह एक बदनाम गली की रहने वाली थी. इस के बाद भी पता नहीं क्यों मैं उस लड़की को प्यार करने लगा था. उस से मिलने मैं उस के घर भी जाने लगा. वहां कई लड़कियां मिल कर धंधा करती थीं.

कुछ होटलों के साथ उन का तालमेल था, जहां से मेरे जैसे लोगों को फंसाया जाता था पर मैं इस दलदल से बाहर निकलना ही चाहता था कि पुलिस ने पकड़ लिया. लड़कियों को तो थाने से ही छोड़ दिया गया पर मुझे अदालत से जमानत करानी पड़ी. इस बदनामी के कारण मेरी नौकरी चली गई. घरखानदान की इज्जत गई सो अलग. कुछ लोग तो इन धंधेवालियों के चक्कर में पड़ कर जीवन भर के लिए रोग ले बैठते हैं. ऐसे ही एक आदमी से हमारी मुलाकात हुई. साधूप्रसाद नाम का वह आदमी नौकरी करने मुंबई गया था. बीवीबच्चों से दूर रहने के कारण उस का मन दूसरी औरत से लग गया. राधा नामक एक औरत उस के करीब आई. दोनों के बीच जल्द ही नजदीकी संबंध बन गए.

राधा दूसरी धंधा करने वाली औरतों से अलग थी. जहां दूसरी औरतें कंडोम लगा कर संबंध बनाने के लिए कहती थीं, वहीं राधा बिना कंडोम के ही संबंध बनाती थी. एक दिन बातबात में मैं ने राधा से इस बारे में पूछा तो वह कुछ बताने के बजाए हंसीमजाक कर के बात को टालने लगी. अभी कुछ समय ही बीता था कि वह बीमार रहने लगी उसे तेज बुखार आने लगा था. मैं ने उस से अस्पताल चलने के लिए कहा तो वह बोली कि कोई फायदा नहीं है. यह बीमारी अब मेरी जान ले कर जाएगी.

मैं ने उस से पूछा कि ऐसी क्या बीमारी है जिस का कोई इलाज नहीं है, तो वह बिना किसी संकोच के बोली, ‘‘एड्स, मुझे एड्स हो गया है.’’

मैं अब भी कुछ नहीं समझ पाया और बोला, ‘‘इस के बाद भी तुम बिना कंडोम के यह धंधा करती हो?’’

वह गहरी सांस ले कर कहने लगी, ‘‘मुझे यह बीमारी एक आदमी ने जबरदस्ती दी थी. मैं उस से बारबार कंडोम लगाने के लिए कहती थी लेकिन वह नहीं माना. जब मुझे यह रोग लगा ही गया, तब से मैं ने भी कंडोम लगाना छोड़ दिया.’’

यह सुन कर मैं चक्कर खा गया और अपने गांव लौट आया. बीवीबच्चों को मारपीट कर मैं ने अपने से दूर कर दिया. फिर गांव के बाहर कुटिया बना कर रहने लगा. किसी को नहीं बताया कि मुझे क्या रोग लगा है. मैं नहीं चाहता था कि मेरी बीवी इस रोग की शिकार बने. इसलिए अपनी करनी खुद ही भुगत रहा हूं. अगर एक धंधे वाली के झांसे में नहीं आया होता तो यह दिन नहीं देखना पड़ता. समाज लड़कियों के प्रति सहानुभूति का रुख रखता है लेकिन लड़कों को वह अपराधी मान लेता है. उसे लगता है कि देह के इस धंधे के लिए पुरुष ही दोषी होता है. इसलिए लड़कों की परेशानियों पर कोई ध्यान नहीं देता. बदनामी तो हर किसी को मिलती है. चूंकि इस धंधे में काम करने वाली लड़की पहले से ही बदनाम होती है, इसलिए उस की बदनामी के बारे में कोई विचार नहीं किया जाता.

इन के साथ पकड़ा गया लड़का सभ्य समाज का हिस्सा होता है, इसलिए उस की बदनामी ज्यादा मायने रखती है. सामाजिक पहलू के अलावा अगर हम रोगों की बात करें तो पता चलेगा कि पुरुषों को होने वाले ज्यादातर यौन रोग इस तरह के शारीरिक संबंधों के कारण ही होते हैं. थोड़ी सी असावधानी जिंदगी भर के लिए नासूर बन जाती है. देह का यह धंधा सेहत, जेब और सामाजिक हैसियत तीनों को नुकसान पहुंचाता है. इस के बाद भी लोग अनजान औरत पर पैसा क्यों खर्च करते हैं? इस बारे में अलगअलग बातें सामने आईं. साधूप्रसाद ने कहा कि वह अपनी पत्नी से दूर रहता था. इसलिए शरीर की इच्छा को दबा नहीं पाया और एक औरत के पास चला गया. उसे यह नहीं पता था कि यह काम इतना खतरनाक साबित होगा.

इस के विपरीत दीपक ने कहा कि वह लड़की की मदद करने के चक्कर में फंस गया था और लड़की से देह संबंध का लालच ही उस का दुश्मन बन गया. जबकि रमेश ने कहा कि वह गलत स्वभाव के दोस्त के चलते देहधंधा करने वाली लड़की के पास जा पहुंचा. अगर उस की सोहबत गलत लोगों की नहीं होती तो शायद यह नहीं होता. इन सब की बड़ी वजह यौन शिक्षा का अभाव है. अगर सब को यह मालूम हो कि इस तरह के सैक्स संबंधों से कितना नुकसान होगा तो शायद वे इन बातों का खयाल रखेंगे.