फेसबुकिया प्यार: ऑनलाइन मोहब्बत बनी जी का जंजाल

19 जनवरी, 2020 की सुबह लगभग 10 बजे की बात है. जयपुर के तालुका जयसिंह पुरा की रहनेवाली 22 वर्षीय नैना उर्फ रेशमा मंगलानी अपनी स्कूटी ले कर पति के साथ घर से बाहर निकली तो वह वापस घर नहीं लौटी.

घरवालों ने उस का फोन नंबर मिलाया तो फोन बंद आ रहा था. काफी रात बीत जाने के बाद भी जब वह नहीं आई तो उस के मातापिता और परिवार वालों को चिंता होने लगी. घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह अपने 2 महीने के दुधमुंहे बच्चे को छोड़ कर कहां चली गई.

घरवालों ने रेशमा मंगलानी के पति अयाज अंसारी से बात की तो उस ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया. बेटी के इस तरह गायब होने से मांबाप का तो दिल बैठने लगा. वे अपने स्तर पर उस की तलाश में जुट गए. उन्होंने बेटी के दोस्तों और सहेलियों से उस के बारे में पूछताछ की.

फोन कर के सगेसंबंधियों से भी पूछताछ करते रहे. लेकिन कहीं से भी राहत देने वाली कोई जानकारी नहीं मिली. 20 घंटे गुजर जाने के बाद भी जब नैना उर्फ रेशमा मंगलानी की कोई खबर नहीं मिली तो किसी अज्ञात अनहोनी को ले कर परिवार वालों का मन अशांत हो गया.

सगेसंबंधियों और पड़ोसियों की सलाह पर रेशमा के पिता थाना आमेर पहुंचे और थानाप्रभारी को सारी बातें बता कर बेटी की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. थानाप्रभारी ने जब उन से किसी पर शक होने के बारे में पूछा तो उन्होंने रेशमा के पति अयाज अंसारी पर संदेह जाहिर किया. क्योंकि वह उस के साथ ही निकली थी.

मामला पौश कालोनी के एक प्रतिष्ठित परिवार से जुड़ा हुआ था. इसलिए थानाप्रभारी ने इसे गंभीरता से लेते हुए यह जानकारी उच्च अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रौल रूम को भी दे दी.

चूंकि नैना के पिता और परिवार वालों ने उस के पति अयाज अंसारी पर अपना संदेह जाहिर किया था. इसलिए पुलिस ने अयाज अंसारी को थाने बुला कर पूछताछ की. अयाज अंसारी ने बताया कि रेशमा सुबह 11 बजे से ले कर रात 9 बजे तक उस के साथ उस के घर पर रही. इस के बाद वह चली गई थी. वह कहां गई इस बात को ले कर वह खुद परेशान है और उसे खोज रहा है.

अयाज से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे घर भेज दिया और पुलिस अपने स्तर से रेशमा की खोज करने लगी. पुलिस के सामने यह बात आई कि नैना उर्फ रेशमा बहुत खूबसूरत थी. वह सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय रहती थी. यूट्यूब, फेसबुक और वाट्सएप पर वह अपने दोस्तों और सहेलियों के साथ चैटिंग में व्यस्त रहती थी. फेसबुक और वाट्सऐप पर वह नएनए पोज में अपने फोटो खींच कर शेयर करती, जिन्हें काफी लोग पसंद भी करते थे.

थोड़े ही दिनों में नैना उर्फ रेशमा मंगलानी फेसबुक और यूट्यूब पर फेमस हो गई. फेसबुक पर उस के 2 हजार, 300 से अधिक फ्रेंड और 6 हजार, 400 से ज्यादा फोलोअर्स हो गए थे. वह अकसर फोन पर बिजी रहती थी. नैना के पास घूमने के लिए एक स्कूटी थी. जिसे ले कर वह अकसर अपने दोस्तों और सहेलियों से मिलने के लिए आतीजाती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को संदेह हुआ कि नैना उर्फ रेशमा मंगलानी की गुमशुदगी के पीछे कोई गहरा रहस्य है. आगे की जांच के लिए पुलिस ने रेशमा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पहले कि पुलिस उस की काल डिटेल्स का अध्ययन करती, पुलिस को एक सनसनीखेज सूचना मिली.

रेशमा की मिली लाश

21 जनवरी, 2020 की सुबह के समय किसी राहगीर ने थाना आमेर में फोन कर के सूचना दी कि जयपुरदिल्ली राजमार्ग स्थित नए माता मंदिर के सामने झाडि़यों में किसी युवती का शव पड़ा है. सूचना मिलते ही पुलिस टीम मौके पर पहुंच गई. मृतका का चेहरा इतना विकृत था कि उस की शिनाख्त करना मुश्किल था. हत्यारे ने लाश की पहचान मिटाने की पूरी कोशिश की थी.

लाश से कुछ दूर एक स्कूटी खड़ी थी. एक दिन पहले ही नैना के पिता ने थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. रेशमा भी स्कूटी ले कर घर से निकली थी. इसलिए थानाप्रभारी ने रेशमा के घरवालों को फोन कर के मौके पर बुलवा लिया. घरवालों ने लाश की शिनाख्त नैना उर्फ रेशमा के रूप में कर दी. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

नैना मंगलानी की हत्या की खबर पाते ही उस के घर में मातम छा गया. परिवार के लोग रोतेपीटते थाने पहुंचे. उन्होंने पुलिस को बताया कि नैना की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि उस के पति अयाज अंसारी ने ही की है. उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जानी चाहिए. उन्होंने अयाज के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखा दी. जब यह खबर मीडिया द्वारा लोगों को पता चली तो जयपुर और आसपास के शहरों में रहने वाले नैना (रेशमा) के फालोअर्स भी सकते में आ गए.

उन्होंने सोशल मीडिया में अपनी प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दीं. मामला तूल पकड़ने लगा तो डीसीपी (क्राइम) अशोक कुमार गुप्ता ने इस केस को अपने हाथों में ले कर जांच के लिए पुलिस टीम बना दी.

चूंकि नैना के घर वालों ने नामजद रिपोर्ट लिखाई थी इसलिए पुलिस ने अयाज अंसारी को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. थाने आ कर उस ने वही राग अलापना शुरू किया जो पहले अलापा था. लेकिन इस बार उस का कोई पैंतरा नहीं चला. क्योंकि पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और काल डिटेल्स से उस के खिलाफ सारे सबूत इकट्ठे कर लिए थे. अयाज अंसारी से विस्तार से पूछताछ के लिए पुलिस ने उसे 2 दिन के रिमांड पर लिया.

रिमांड के दौरान वह पुलिस के सवालों के चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि उस के सामने अपना गुनाह स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा.

उस ने अपनी पत्नी नैना उर्फ रेशमा मंगलानी की बिंदास जिंदगी और बेरहम हत्या की जो कहानी बताई उस की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह थी.

26 वर्षीय अयाज अंसारी एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह अपने परिवार के साथ जयपुर के धारगेट सराय मोहल्ला में रहता था. उस के पिता का नाम रियाज मोहम्मद अंसारी था. छोटा सा कारोबार था. ग्रैजुएशन करने के बाद वह अजमेर स्थित एक फाइनैंस कंपनी में सर्विस करने लगा.

मनमौजी और रंगीन स्वभाव का होने के नाते नैना मंगलानी की तरह वह भी सोशल मीडिया पर सक्रिय था. उस ने भी यूट्यूब और फेसबुक पर अपना अकाउंट खोल रखा था. काम से समय मिलने पर वह अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर चैटिंग में व्यस्त हो जाता था.

एक दिन जब फेसबुक पर उस ने नैना नाम की लड़की का फोटो देखा तो वह उस की तरफ आकर्षित हो गया. उस ने नैना के फोटो को लाइक किया और नैना को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी. नैना ने भी अयाज अंसारी की दोस्ती स्वीकार कर ली. नैना के सैकड़ों दोस्तों के साथ एक नाम और जुड़ गया. इस के बाद दोनों के बीच चैटिंग शुरू हो गई थी. करीब 4 महीने तक चली चैटिंग के बाद जब दोनों एकदूसरे के आमनेसामने आए तो उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई.

अयाज से हुई दोस्ती

जुलाई, 2017 तक सब कुछ ठीकठाक था. नैना मंगलानी और अयाज अंसारी की बातचीत सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित थी, लेकिन इस के बाद सब कुछ बदल गया था. जुलाई के ही महीने में एक दिन नैना मंगलानी अपना क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए एक कंपनी में गई. अयाज उसी कंपनी में सर्विस करता था. फेसबुक फ्रेंड होने के नाते दोनों एकदूसरे को तुरंत पहचान गए और बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

अपने बिंदास और मौडर्न स्वभाव की वजह से नैना मंगलानी को अयाज अंसारी से घुलनेमिलने में समय नहीं लगा. इस एक मुलाकात से नैना मंगलानी की जिंदगी के मायने ही बदल गए. नैना मंगलानी अयाज अंसारी के स्वभाव और बातचीत से काफी प्रभावित थी. इतना ही नहीं वह उसे अपना दिल दे बैठी थी. अयाज अंसारी तो पहले से नैना मंगलानी का दीवाना था. उस के दिल में भी नैना के लिए एक खास जगह बन गई थी.

जिस दिन से दोनों की मुलाकात और जानपहचान हुई थी. उस दिन से दोनों की आंखों की नींद उड़ गई थी. उन की सुबह की चैटिंग गुड मौर्निंग से शुरू होती थी और पूरे दिन चलती थी.

दोस्ती प्यार में बदल गई थी, चैटिंग के बाद दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं. दोनों साथसाथ सैरसपाटा करते. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि उन्होंने अपनी सीमाएं भी तोड़ डालीं.

एक बार जब मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर टूटती ही चली गई. अब वह जब तक एकदूसरे को मिल या देख नहीं लेते थे, मन बेचैन रहता था. अपनी इस बेचैनी को खत्म करने के लिए दोनों ने साथसाथ रहने का मन बनाया. उन्होंने शादीनिकाह करने का फैसला कर लिया था.

वैसे तो दोनों के परिवार वाले खुले और आजाद विचारों के थे. लेकिन मजहब अलगअलग होने के कारण मन में थोड़ा डर भी था, कि उन के रास्ते में कोई समस्या न खड़ी हो जाए. यह सोच कर वह अक्तूबर, 2017 में अपना घर छोड़ कर जयपुर से भाग कर गाजियाबाद आ गए.

गाजियाबाद में दोनों ने पहले एक मंदिर में जा कर हिंदू रीतिरिवाज से शादी की. उस के बाद उन्होंने एक मसजिद में निकाह कर लिया. निकाह के बाद वह नैना से रेशमा अंसारी बन गई.

नैना मंगलानी और अयाज अंसारी के परिवारों में थोड़ी सी नाराजगी जरूर हुई थी. लेकिन बेटी और बेटे की खुशी के लिए दोनों परिवारों ने समझौता कर लिया था. शादी और निकाह के बाद इन लोगों ने जयपुर के कालवाड़ रोड स्थित एक हाउसिंग कालोनी में एक फ्लैट फाइनेंस करा लिया और उसी में रहने लगे. शादी के कुछ दिनों बाद रेशमा गर्भवती हो गई.

एक कहावत है कि दूर के ढोल सुहावने लगते हैं. लेकिन जैसेजैसे उन के नजदीक पहुंचते हैं तो उन की आवाज शोर लगने लगती है. यही हाल नैना और अयाज अंसारी के बीच हुआ. 2 सालों तक चली दोनों की लव स्टोरी में धीरेधीरे दरार आने लगी. जिस मीडिया ने उन्हें मिलाया था वही मीडिया अब उन के विवाद का कारण बन गया.

अपनी प्रशंसा की भूखी नैना का सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने का भूत उतरा नहीं था. वह शादी के बाद भी लगातार एक्टिव रहती थी. उस ने फेसबुक पर अपनी आईडी बना रखी थी. एक नैना के नाम से तो दूसरी रेशमा के नाम से. उस का हेडफोन हमेशा उस के कानों में लगा रहता था, जिस पर वह अकसर बातें किया करती, वह पति अयाज अंसारी की उपेक्षा करने लगी थी, जो उसे पसंद नहीं थी.

इस से अयाज अंसारी के दिल में कहीं न कहीं संदेह पैदा हो रहा था. उसे ऐसा लग रहा था कि जिस तरह से वह सोशल मीडिया के जरिए उस की जिंदगी में आई, उसी प्रकार कहीं वह किसी और की जिंदगी में तो नहीं दाखिल हो रही है. इस संदेह को ले कर पहले तो अयाज अंसारी ने उसे समझाया और सोशल मीडिया से बैकआउट करने का भी दबाव बनाया. लेकिन नैना को उस का यह दबाव पसंद नहीं आया, उस का कहना था कि वह आजाद और आधुनिक विचारों वाली है. उसे किसी तरह के बंधन में बंधना स्वीकार नहीं है.

शादी हो गई पर आदत नहीं बदली नैना की

नैना की इस बात से अयाज अंसारी सहमत नहीं था. नतीजा यह हुआ कि दोनों की तकरार बढ़ गई. इस बीच अयाज ने गुस्से में कई बार उस का फोन छीन कर तोड़ डाला था, लेकिन नैना हर बार नया फोन खरीद लेती थी, फिर रेशमा की डिलीवरी के बाद माहौल ऐसा बना कि वह अपने एक माह के बच्चे को ले कर अपने मायके आ गई और उसे तलाक का नोटिस दे दिया.

नोटिस पा कर अयाज अंसारी बौखला गया. इस के बाद विश्वास हो गया कि उस की पत्नी का किसी न किसी फ्रेंड से चक्कर चल रहा है. कहा जाता है कि संदेह और ईर्ष्या में इंसान खुद ही खोखला हो जाता है. यही हाल अयाज का भी था.

अयाज ने पहले तो पत्नी से कहा कि वह मायके से लौट आए लेकिन जब वह आने के लिए तैयार नहीं हुई तो उस ने एक खतरनाक फैसला कर लिया.

योजना के अनुसार वह पत्नी को मनाने के लिए उस के मायके पहुंच गया और उस ने अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगते हुए उस के सामने सुलह का प्रस्ताव रखा. जिसे रेशमा ने स्वीकार कर लिया. यही समझौता रेशमा को महंगा पड़ा.

19 जनवरी, 2020 की सुबह जब नैना अपने बच्चे को मां के पास छोड़ स्कूटी से अयाज अंसारी के साथ घर से बाहर निकली तो वापस घर नहीं आई. अयाज अंसारी पहले नैना पत्नी को अपने घर कालवाड़ ले कर गया. वहां दोनों ने जम कर बीयर पी और मौजमस्ती कर रात 9 बजे के करीब दिल्लीजयपुर राजमार्ग पर स्थित आमेर आ गए. वहां दोनों ने चाय की दुकान पर जा का चाय पी. थोड़ी देर बाद अयाज अंसारी उसे माता मंदिर के पास ले कर गया.

पहले तो नैना उस सुनसान जगह तक जाने के लिए तैयार नहीं थी. लेकिन अयाज अंसारी ने रिक्वेस्ट की तो उस पर विश्वास कर के वह उस के साथ चली गई. उस समय भी नैना के कान से हेडफोन लगा था. वह किसी फ्रेंड से चैटिंग कर रही थी. जिसे सुनसुन कर अयाज गुस्से में जलभुन रहा था. तभी अयाज ने उस का फोन छीन कर माता मंदिर के पीछे फेंक दिया.

उस समय मंदिर के पास अंधेरा था और जगह सुनसान थी. मोबाइल को ले कर रेशमा पति से उलझ गई तो अयाज ने अपने दोनों हाथों से उस का गला पकड़ कर घोट दिया. कुछ ही देर में नैना की मृत्यु हो गई और वह जमीन पर गिर गई. इस के बाद अयाज घबरा गया.

लाश पहचानी न जा सके, इस के लिए अयाज पास ही पड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठा लाया, जिस से उस ने नैना का सिर कुचल दिया. उस की स्कूटी ले जा कर उस ने मंदिर के पीछे की घनी झाडि़यों में छिपा दी. फिर कैब पकड़ कर घर आ गया.

पुलिस टीम ने 12 घंटे के अंदर केस का परदाफाश कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. उस से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे जयपुर की सेंट्रल जेल भेज दिया था.

‘उधारी’ का उधार का प्यार

उस रोज बेचू अपने निर्धारित समय से पहले ही घर के लिए निकल पड़ा था. अभी वह अपनी गली के नुक्कड़ पर ही पहुंचा था कि उस ने अपने घर की तरफ से संजीव यादव उर्फ उधारी को आते हुए देखा. संजीव को देख कर बेचू का माथा ठनका. उस के दिलोदिमाग पर शक काबिज हो चुका था. वह तेज कदमों से घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस की पत्नी ममता उसे देखते हुए थोड़ी हड़बड़ाई फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ, आज कैसे जल्दी आ गए?’’

‘‘क्यों, जल्दी आने पर कोई पाबंदी है क्या?’’ बेचू ने पत्नी के अस्तव्यस्त कपड़ों को गौर से देखते हुए तंज किया.

‘‘लगता है आज तुम फिर लड़ाई के मूड में हो. मैं ने पूछ कर कोई गुनाह कर दिया क्या?’’ पत्नी बोली.

‘‘पहले यह बता कि संजीव यहां क्यों आया था?’’ बेचू ने पत्नी ममता से सीधे सवाल किया.

‘‘कौन संजीव?’’ ममता के चेहरे पर हैरानी उभरी.

‘‘वही संजीव, जो अभीअभी यहां से बाहर निकला है. ढोंग क्यों करती है, साफसाफ बता.’’ बेचू लगभग चीखने वाले अंदाज में बोला.

शौहर के तेवर देख कर एक पल के लिए ममता सकपका गई, लेकिन जल्द ही संभल कर बोली, ‘‘तुम्हारे दिमाग में तो लगता है शक बैठ गया है. हर वक्त उल्टा ही सोचते रहते हो. मैं कह रही हूं न कि घर में कोई नहीं आया था.’’

बेचू को लगा कि उस की पत्नी सफेद झूठ बोल रही है. जबकि उस ने संजीव को खुद अपनी आंखों से अपने घर की तरफ से आते देखा था. उस ने आव देखा न ताव, एक झन्नाटेदार चांटा ममता के गाल पर जड़ दिया, ‘‘कमीनी, कुछ तो शरम कर, कम से कम अपने बच्चों की शरम कर. मेरी तो किस्मत ही फूट गई जो तुझ जैसी बेहया औरत से पाला पड़ गया.’’

आक्रोश और आवेग के मारे बेचू रोने लगा तो ममता अपना गाल सहलाती हुई धीमे बोली, ‘‘देखो जी, बिना पूरी बात जाने तुम गुस्से में मत आया करो. बेकार ही तुम मुझ पर लांछन लगा रहे हो. वह आया जरूर था, पर मैं ने उसे दरवाजे से ही भगा दिया. तुम बेकार में ही मुझ पर तोहमत लगा रहे हो. क्या मुझे तुम्हारी इज्जत का खयाल नहीं है?’’

बेचू ने ममता की आंखों में देखा तो वहां आंसू झिलमिला रहे थे. उस ने सोचा कि कहीं उस से गलती तो नहीं हो गई. शायद ममता सच बोल रही हो.

बेचू उत्तर प्रदेश के जनपद बलिया के ब्रहमाइन गांव के रहने वाले सरल यादव का बेटा था. वह छोटा ही था जब उस के मांबाप की मृत्यु हो गई थी. उस की बड़ी बहन रागिनी ने ही उसे पाला था.

15 साल पहले बेचू का विवाह बलिया के थाना रेवती के गांव वशिष्ठ नगर निवासी ममता से हो गया. ममता काफी खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती में बेचू खो सा गया. वह अपने आप को खुशकिस्मत समझता था कि ममता जैसी सुंदर पत्नी उसे मिली है. इसलिए वह उस पर जम कर प्यार लुटाता था. इस प्यार का परिणाम भी कुछ समय पर सामने आने लगा. ममता ने एक बेटी प्रियांशी (10 वर्ष) और 3 बेटों पीयूष (8 वर्ष), प्रिंस (6 वर्ष), विशाल (4 वर्ष) को जन्म दे दिया.

परिवार बढ़ गया तो परिवार के भरणपोषण में दिक्कतें आने लगीं. उसे मेहनतमजदूरी कर के इतना पैसा नहीं मिल पाता था कि वह आसानी से अपने परिवार कर खर्चा उठा ले. जबकि बेचू सुबह 8 बजे घर से निकलता तो रात को कभी 9 बजे तो कभी 11 बजे ही घर में घुस पाता था.

जो इंसान सुबह से देर रात तक मेहनत करेगा तो जाहिर है उस का बदन थक कर चूरचूर हो ही जाएगा. बेचू भी जब घर पहुंचता तो वह काफी थकाहारा होता था. ऐसे में वह किसी तरह खाना खा कर चारपाई पर लेटते ही खर्राटे भरने लगता.

उधर 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी ममता की जवानी उफान पर थी. जबकि बेचू की थकान उस की हसरतों का गला घोंट देती थी. बलिया के हलदी थाना क्षेत्र के हरिहरपुर गांव में भोला यादव रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी सीमा और 2 बेटे संजय और संजीव उर्फ उधारी थे. संजीव सब से छोटा था. वह अविवाहित था. संजीव बनारस के एक होटल में खाना बनाने का काम करता था. वह चाइनीज फूड काफी अच्छा बनाता था.

मंदिर पर हुई मुलाकात

हरिहरपुर से ब्रहमाइन गांव के बीच की दूरी महज 7 किलोमीटर थी. ब्रहमाइन गांव में ब्रहमाणी देवी का मंदिर था. संजीव अकसर मंदिर में माता रानी के दर्शन के लिए आता था. मंदिर के पास में ही बेचू का घर था. बेचू तो सुबह ही काम पर निकल जाता था और देर रात लौटता था. उस की पत्नी ममता मंदिर पर ही अधिकतर बनी रहती थी. वहीं पर ममता की जानपहचान संजीव से हुई थी. दोनों में परिचय हुआ तो बातें हुईं. एकदूसरे से मिल कर उन्हें काफी खुशी हुई.

उस दिन के बाद उन की मुलाकातें अकसर मंदिर पर होने लगीं. ममता को अपने से कम उम्र का संजीव पहली ही नजर में भा गया था. ममता की खूबसूरती और उस के बारे में जान कर संजीव भी उस में रुचि लेने लगा. दोनों में जब काफी मेलमिलाप होने लगा तो ममता उसे अपने घर भी ले जाने लगी.

दोनों का साथ रंग दिखाने लगा था. वह एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए थे. जब भी उन का आमनासामना होता तो दोनों के होंठ स्वत: ही मुसकरा उठते थे.

संजीव जल्द से जल्द ममता से नजदीकी संबंध बनाना चाहता था. ममता को देख कर संजीव की कामनाएं अंगडाइयां लेने लगती थीं. एक दिन जब वह ममता के घर आया तो सजीधजी ममता को देख कर उस का मन डोल गया. संजीव उसे अपनी कल्पनाओं की दुलहन बना कर न जाने क्याक्या सोचने लगा. तभी ममता चाय बना कर ले आई. दोनों की नजरें मिलीं तो एक मूकसंदेश का आदानप्रदान हो गया. संजीव ने ममता की आंखों में प्यास देख ली थी तो ममता ने भी उस की आंखों में कामना का पानी.

उस रोज के बाद संजीव का बेचू के घर आनाजाना शुरू हो गया. बेचू ममता को भाभी कह कर बुलाता था, इस नाते ममता से हंसीमजाक भी कर लिया करता था.

एक दिन संजीव ममता के घर गया तो उस समय वह अकेली थी. अंदर आते ही उस ने पूछा, ‘‘भाभी, बच्चे घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘यह तो तुम भी जानते हो कि इस वक्त बच्चे घर पर नहीं होते.’’ ममता ने उस की आंखोें में आंखें डाल कर कहा तो वह एकदम ऐसे सकपका गया, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. सच भी यही था. वह जानबूझ कर ऐसे समय आया था.

‘‘तुम तो बहुत पारखी हो भाभी.’’

‘‘औरत की नजरें मर्द के मन को अच्छी तरह पहचानती हैं संजीव.’’ ममता ने इठलाते हुए कहा, ‘‘बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

संजीव पलंग पर बैठ गया, ‘‘तुम ने तो मेरी चोरी पकड़ ली, लेकिन यह नहीं बताया कि मेरा इस तरह आना तुम्हें बुरा तो नहीं लगता?’’

‘‘बुरा लगता तो इस तरह चाय के लिए क्यों पूछती?’’ ममता ने आंखें नचाईं.

‘‘एक बात कहूं, भाभी?’’ संजीव ने सूखे गले से थूक निगलते हुए कहा.

‘‘कहो.’’ ममता की आंखों में उम्मीद की एक नई चमक आ गई.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो. जब से तुम्हें देखा है, मन बारबार तुम्हें देखने को मचलता रहता है.’’ संजीव ने कहा.

‘‘ये सब कहने की बातें हैं, संजीव. पहले ये भी ऐसा कहते थे. सब मर्द एक जैसे होते हैं. बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और.’’ ममता ने ताना मारा.

‘‘बेचू तो तुम्हारी कद्र करना ही नहीं जानता. इंसान की आंखें भी तो दिल का हाल बयां कर देती हैं. मैं ने तुम्हारी आंखों में तुम्हारे दिल का दर्द देखा है.’’ संजीव को जैसे बात कहने का मौका मिल गया.

संजीव की बातों में ममता को भी मजा आ रहा था. यही वजह थी कि वह चाय बनाना ही भूल गई. अचानक खयाल आया तो वह बोली, ‘‘मैं तो चाय बनाना ही भूल गई.’’

‘‘रहने दो भाभी, बस तुम्हें देख लिया, आत्मा तृप्त हो गई, अब मैं चलता हूं.’’ यह कह कर संजीव उर्फ उधारी चला तो गया लेकिन ममता की हसरतों को हवा दे गया था.

ममता भी होने लगी आकर्षित

ममता अब संजीव की फूटती जवानी का ख्वाब देखने लगी थी. अब संजीव और ममता के बीच होने वाला हंसीमजाक छेड़छाड़ तक पहुंच गया था. संजीव जबतब ममता के घर आता तो उस के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले आता.

एक दिन ममता ने उसे दबे स्वर में टोका, ‘‘तुम्हें बच्चों की खुशी का तो बहुत खयाल रहता है, लेकिन भाभी की खुशी का खयाल नहीं रहता.’’

अपनी बात कह कर वह मुसकराई तो संजीव उस का इशारा फौरन समझ गया. बात यहां तक पहुंची तो संजीव एक कदम आगे बढ़ा, ‘‘भाभी, तुम्हारी आंखों की चाहत मुझे यहां खींच लाती है.’’ कह कर उस ने ममता का हाथ पकड़ लिया.

तभी ममता बोली, ‘‘छोड़ो, मैं तुम्हें चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘इस तनहाई में मैं चाय पीने नहीं, तुम्हारी आंखों के जाम पीने आया हूं.’’ संजीव ममता के एकदम करीब खिसक आया, ‘‘बोलो पिलाओगी?’’

‘‘मैं ने कब मना किया, ममता भी उस के सीने से लग गई. पर पहले दरवाजा तो बंद कर लो.’’

ममता का खुला आमंत्रण पा कर संजीव की बांछें खिल गईं. उस के बाद जो हुआ वह किसी भी लिहाज से सही नहीं कहा जा सकता.

उस दिन के बाद तो यह सिलसिला चल निकला. जब भी उन्हें मौका मिलता, वह एकदूसरे की बांहों में समा जाते. लेकिन कहते हैं कि बुराई ज्यादा दिनों तक छिप नहीं सकती.

पड़ोसियों को हुआ शक

आसपड़ोस के लोगों को संजीव का बारबार बेचू की गैरमौजूदगी में उस के घर आना अखरने लगा था. वे समझ गए थे कि संजीव और ममता के बीच जरूर कोई खिचड़ी पक रही है. अब उन दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी. उड़तेउड़ते यह बात बेचू के कानों तक भी पहुंची तो उसे पहले यकीन नहीं आया.

जब लोगों ने उस पर ताने कसने शुरू कर दिए तो एक दिन उस ने ममता को समझाया, ‘‘मैं ने सुना है कि मेरी गैरमौजूदगी में संजीव घर आता है.’’

‘‘हां, कभीकभी आ जाता है, बच्चों से मिलने के लिए.’’ ममता ने झूठ बोल दिया.

‘‘तुम्हें पता है कि मोहल्ले वाले तुम्हें ले कर तरहतरह की बातें करने लगे हैं?’’

‘‘पड़ोसियों का क्या है, वे किसी को खुश कहां देख सकते हैं, इसलिए मनगढ़ंत कहानी रच रहे हैं. क्या तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा गलत काम करूंगी?’’ ममता ने यह सवाल किया तो बेचू उल्टा शर्मिंदा हो गया. उसे लगा कि उस ने पत्नी पर शक कर के ठीक नहीं किया. इस बीच उस ने शक होने पर एकदो बार ममता की पिटाई भी की लेकिन ममता हमेशा यह सिद्ध करने में सफल रही कि पति का शक झूठा है.

लेकिन बेचू के मन में शक का कीड़ा जन्म ले चुका था, जो कि कुलबुलाता रहता था. एक शाम बेचू जल्दी काम से वापस आ गया. उसे अपने बच्चे रास्ते में खेलते मिले तो उस ने सोचा कि ममता बाजार गई होगी. उस ने बच्चों से पूछा, ‘‘मम्मी कहीं गई है क्या?’’

‘‘नहीं, घर में हैं.’’ उस की बेटी ने जवाब दिया.

बेचू घर पहुंचा. उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि ममता ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर रखा था. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो कुछ देर बाद दरवाजा संजीव ने खोला. अपने सामने यूं अचानक बेचू को खड़ा पा कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. बेचू सीधा कमरे में पहुंचा. वहां का दृश्य देख कर वह हक्काबक्का रह गया.

ममता बिस्तर पर चादर लपेटे पड़ी थी. बेचू ने आगे बढ़ कर उस की चादर खींच दी. ममता के जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था. यह देख कर बेचू का खून खौल उठा. वह उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘बदजात औरत, मुझे धोखा दे कर यह गुल खिला रही है तू?’’

ममता और संजीव का चेहरा सफेद पड़ गया. दोनों रंगे हाथ जो पकड़े गए थे. ममता ने फटाफट कपड़े पहने और अपने किए पर पति से माफी मांगने लगी, जबकि संजीव मौका देख कर वहां से खिसक गया. बेचू ने ममता को माफ नहीं किया, बल्कि उस की जम कर पिटाई कर दी.

रंग चुकी थी प्रेमी के रंग में

इस के बाद ममता और संजीव कुछ दिन तो शांत रहे लेकिन जब दूरियां बरदाश्त नहीं हुईं तो फिर से पुरानी हरकतों पर उतर आए. इस से पतिपत्नी में आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे.

ममता तो पूरी तरह संजीव के रंग में रंग गई थी. उसी के साथ अपनी जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी थी. वह तो अपने नाजायज रिश्ते में डूब कर इतनी अंधी हो गई कि उसे उस के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.

26 जनवरी, 2020 को सुबह 5 बजे के करीब गांव के शिवजी यादव बेचू के घर दूध लेने गया तो मेन गेट से घुस कर जैसे ही वह अंदर गया तो जमीन पर बेचू मृत अवस्था में पड़ा मिला. उस ने तुरंत शोर मचा कर गांव के लोगों को एकत्र कर बात बताई. गांव में ही बेचू के चाचा का परिवार भी रहता था. बेचू के मकान से उन के मकान की दूरी करीब 700 मीटर थी.

खबर सुन कर बेचू का चचेरा भाई रविशंकर यादव उस के घर पहुंचा. बेचू की लाश देखने के बाद उस ने सवा 6 बजे सुखपुरा थाने में फोन कर के सूचना दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर वीरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का मुआयना किया तो बेचू की गरदन पर गहरे घाव थे. वह घाव किसी तेजधार हथियार के थे.

उस समय बेचू की पत्नी ममता बच्चों के साथ अपनी बहन के बेटे के मुंडन संस्कार में शामिल होने टिकुलिया दियर गई थी. उसे सूचना मिली तो वह भी घर वापस आ गई और पति की मौत पर रोने लगी.

इंसपेक्टर वीरेंद्र यादव ने ममता और ग्रामीणों से आवश्यक पूछताछ की. इस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. पुलिस ने मृतक के ताऊ के बेटे रविशंकर यादव की तरफ से अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

काल डिटेल्स से मिला सुराग

प्रारंभिक जांच में इंसपेक्टर यादव को ममता के प्रेमप्रसंग की जानकारी हुई. उस के प्रेमप्रसंग के बारे में पूरा गांव जानता था. उन्होंने ममता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक नंबर पर उस की सब से अधिक बातें होने की जानकारी मिली. यहां तक कि घटना से पहले और बाद में भी ममता की उस नंबर से बात हुई थी. वह नंबर संजीव यादव का था जो कि ममता का प्रेमी था.

घर में बेचू और ममता के अलावा कोई रहता था तो वो थे उन के बच्चे. इंसपेक्टर यादव ने बच्चों से बात की तो उन्होंने बताया कि 24 जनवरी को संजीव अंकल घर आए थे, साथ में साड़ी और गिफ्ट भी लाए थे. तभी पापा आ गए तो संजीव अंकल चले गए. फिर मम्मीपापा में झगड़ा हुआ.

इंसपेक्टर यादव ने संजीव के घर दबिश दी तो वह घर से फरार मिला. इस के बाद उन्होंने 30 जनवरी, 2020 को सुबह 7 बजे हनुमानगंज बसंतपुर मार्ग पर आंवला नाला पर स्थित पुलिया से संजीव यादव को एक मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि बेचू की हत्या में ममता भी शामिल थी. इस के बाद ममता को भी घर से गिरफ्तार कर लिया गया.

दोनों से पूछताछ के बाद पता चला कि ममता और संजीव साथ जिंदगी जीने का फैसला कर चुके थे. इसलिए 24 मई, 2019 को ममता और संजीव ने शहर के भृगुजी के मंदिर में विवाह कर लिया. संजीव से विवाह के बाद भी ममता बेचू के साथ ही रहने लगी. संजीव से उस के संबंध पहले की तरह चलते रहे.

ममता का पति बेचू से विवाद होता रहता था. 24 जनवरी को संजीव ममता के लिए साड़ी और गिफ्ट ले कर घर आया. तब ममता खुशी से फूली नहीं समाई. लेकिन उस की खुशी ने तब दम तोड़ दिया, जब उस का ब्याहता बेचू भी उसी समय घर आ गया.

बेचू के आते ही संजीव उर्फ उधारी वहां से चला गया. इस के बाद संजीव को ले कर ममता और बेचू के बीच जम कर झगड़ा हुआ. इस झगड़े के बाद ममता ने साड़ी और गिफ्ट रख लिए और बच्चों के साथ अपनी बहन के यहां उस के बेटे के मुंडन संस्कार में शामिल होने चली गई.

वहां जा कर उस ने एकांत में संजीव से मोबाइल पर बात की और पति बेचू की हत्या कर देने को कहा. संजीव उस के लिए तैयार हो गया. मौका भी अच्छा था. बेचू उस समय घर में अकेला था.

26 जनवरी को तड़के 3 बजे संजीव उर्फ उधारी बेचू के घर में घुसा और बिस्तर पर सो रहे बेचू की गरदन पर साथ लाए दांव से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए. बेचू चीख तक न सका और मौत की नींद सो गया. बेचू को मारने के बाद संजीव वहां से फरार हो गया लेकिन घर न जा कर वह इधरउधर छिपता रहा. घटना को अंजाम देने के बाद उस ने जानकारी ममता को दे दी थी.

लेकिन दोनों का गुनाह पुलिस की नजरों से छिप न सका. मुकदमे में पुलिस ने भादंवि की धारा 120बी और बढ़ा दी. संजीव की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त दांव भी बरामद कर लिया. फिर आवश्यक लिखापढ़ी करने के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, मार्च 2020

सास की हत्यारी बहू: प्रेमिल रिश्तों से टपकता खून

समाज में सास और बहू के संबंधों पर कई टीवी धारावाहिक बने हैं. सास बहू का रिश्ता हर परिवार में देखने को मिलता है. ज्यादातर सास की अपनी बहुओं से कोई न कोई शिकायत रहती ही है. बहू भले ही कितनी भी सुघड़ और समझदार हो. भले ही वह सास को अपनी जन्मदात्री मां के बराबर दर्जा दे कर उन के इशारों पर दिनरात काम करती रहे. मगर सास नामक प्राणी को बहू से इस के बाद भी शिकायत ही रहती है.

कुछ ही सास होती हैं जो बहू को बेटी समझ कर लाड़प्यार से रखती हैं वरना तो अधिकांश सास अपनी बहू के काम में कोई न कोई मीनमेख निकालती ही रहती हैं. कहने का मतलब है कि ऐसी सास कभी भी अपनी आदत से बाज नहीं आती.

लेकिन अब जमाना काफी बदल गया है. आज की बहुओं को सास द्वारा उन के काम में मीनमेख निकालना पसंद नहीं है. वह अपनी लाइफ में पति के अलावा किसी और का हस्तक्षेप पसंद नहीं करतीं. इतने पर भी सास यदि तानाशाही दिखाती रहे तो परिणाम भयानक सामने आते हैं.

राजस्थान के जोधपुर जिले के थाना मतोड़ा के अंतर्गत एक गांव आता है हरलाया रामदेव नगर. इस में दमाराम मेघवाल अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी कमलादेवी के अलावा 5 बेटे हैं. उस ने अपने पांचों बेटों की शादियां कर दी थी. सभी बेटे अपने परिवार के साथ अलगअलग मकान बनवा कर रह रहे थे. दमाराम की बीवी कमलादेवी भी कड़क स्वभाव की सास थी. वह अपनी बहुओं को दबाव में रखना चाहती थी. उस ने ऐसा ही किया. बड़े और मंझले बेटे की शादी हुई तो इन दोनों बहुओं को उस ने अपने नियंत्रण में रखा.

उन से सास कुछ भी कहती तो बहुओं की हिम्मत नहीं होती थी कि वे सास को पलट कर जवाब दें. सास द्वारा काम में टोकाटाकी व हायतौबा मचाने पर भी वे चुप रहती थीं.

जब छोटे 3 बेटों पुखराज, मिश्रीलाल व मदनराम के विवाह हो गए तब दोनों बड़े बेटे अलग हो गए. पुखराज व मिश्रीलाल की बीवियां प्रेमा एवं पिंटू सगी बहनें थीं. वहीं मदनराम की पत्नी ओमा इन की चचेरी बहन थी. तीनों बहनें एक सगे भाइयों में ब्याही थीं.

पुखराज, मिश्रीलाल एवं मदनराम राजमिस्त्री का काम करते थे. ज्यादातर वे अपने गांव या आसपास के गांवों में काम करते थे. वे सुबह नाश्ता कर के अपने काम पर चले जाते और दोपहर में घर आ कर खाना खा कर थोड़ा सा आराम कर के पुन: काम पर चले जाते थे.

दैनिक मजदूरी 7-8 सौ रुपए थी. इस से परिवार का भरणपोषण आराम से हो रहा था. इन तीनों भाइयों के घर आसपास ही थे जबकि बड़े भाइयों के घर थोड़े दूर थे.

तीनों बहनें प्रेमा, पिंटू व ओमा मिलजुल कर रहती थीं. ससुराल में अगर सगी बहन या चचेरी बहन ब्याही होती है तो उन में कुछ ज्यादा ही बनती है. इन तीनों के पति काम पर चले जाते, तो तीनों बहनें घर का काम निबटा कर एक जगह पर इकट्ठा हो कर बतियाती रहती थीं. जिस से इन का टाइम पास हो जाता था. मगर इन के टाइम पास में सास अकसर खलल डाल देती थी.

सास कमला देवी उन को ताने देती कि घर के काम में मन नहीं लगता. जब देखो तब बैठ कर गप्पे मारती रहती हो. जब बहुएं कहतीं कि घर का सारा काम कर लिया है, तो सास उन पर चढ़ दौड़ती. वह उन्हें 10 काम और बता देती कि यह नहीं किया, वो नहीं किया.

तीनों बहनों को सास गालीगलौज देने लगती तो रुकती ही नहीं. वह पूरा घर सिर पर उठा लेती थी. तीनों बहनें परेशान हो जातीं. मगर कमला देवी को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

उस के सामने प्रेमा पड़ती तो उसे गाली एवं काम में मीनमेख व टोकाटाकी. पिंटू पड़ती तो वही मीनमेख और हायतौबा. ओमा पड़ती तो उसे भी सास की बेवजह हायहाय सुननी पड़ती थी. अगर ये बहुएं अपनी सास से कुछ कहतीं तो वह उन पर बिफर जाती और अपने बेटों के घर आने पर बहुओं की शिकायत करती कि यह तीनों बैठ कर दिन भर गप्पें मारती रहती हैं. कामधाम कुछ नहीं करतीं. अगर मैं कुछ कहती हूं तो यह मुझे आंखें दिखाती हैं और जुबान लड़ाती हैं. मुझ से इस तरह बात करती हैं जैसे मैं इन की बहू हूं.

बेटे मां की बात सुन कर अपनी बीवियों को समझाते कि मां जो कुछ कहती है, उन के भले के लिए कहती है. वह बूढ़ी हो गई हैं अब कितने दिन की मेहमान हैं. उन का सम्मान किया करो. जुबान बंद रखा करो.

बेटे अपनी बीवियों को समझा कर जाते और मां से भी कहते कि वह भी क्यों बेवजह परेशान होती हैं. अगर बहुएं काम नहीं करें तो मत करने दो. उन का बिगड़ेगा, तुम्हारे ऊपर क्या फर्क पड़ेगा. तुम रामनाम की माला जपो. मगर बेटों के समझाने का भी कमला देवी पर कोई असर नहीं पड़ता. लिहाजा उस के और तीनों बहुओं के बीच हर रोज कलह और विवाद होता था. कलह के कारण सब परेशान थे. मगर कलह करने वाले अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे थे.

कमलादेवी 62 साल की थी फिर भी वह अपनी बकरियां ले कर जंगल में चराने के लिए हर रोज जाती थी. दोपहर तक बकरियां चरा कर वह घर आ जाती थी. घर आ कर बकरियों को बाड़े में बांध कर फिर वह आराम करती थी. बेटे जब दोपहर में खाने घर आते थे तो मां घर पर आराम करते मिलती थी.

लेकिन 28 अगस्त, 2020 को दयाराम के तीनों बेटे पुखराज, मदन एवं मिश्रीलाल मेघवाल दोपहर को खाना खाने घर आए तो बकरियां घर के बाहर खुले में खड़ी थीं.

यह देख कर वे चौंके कि बकरियां आज खुली कैसे हैं. क्योंकि मां पहले बकरियां बाड़े में बांधती थी. मदन व पुखराज ने मां को आवाज लगाई. मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर में देखा मां वहां भी नहीं थी. मां कहां चली गई. यह उन्होंने अपनी बीवियों से पूछा. बीवियों ने कहा कि हमें पता नहीं, वे कहां गईं. तब मदन, पुखराज मां को देखने घर के बाहर बने कमरे में गए. कमरे में देखते ही उन की चीख निकल गई. मां गले में फंदा डाल कर छत पर पंखे से लटकी हुई थी. यह नजारा देख कर बेटों के हाथपैर कांपने लगे. वे रोने लगे.

दोपहर में रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग भी वहां आ गए. गांव वाले समझ नहीं पा रहे थे कि कमला देवी ने इस उम्र में आत्महत्या क्यों की? बहुएं तो बुक्का फाड़ कर रो रही थीं. किसी ने मृतका के पीहर (मायके) हरिओमनगर भीकमकोर में सूचना दे दी. भीकमकोर से मृतका के भाईभतीजे शाम होतेहोते हरलाया रामदेव नगर आ गए. पीहर वालों ने जब कमला देवी को पंखे से लटके देखा तो उन्हें लगा कि कमला देवी की हत्या कर के शव फंदे पर लटकाया गया है. मृतका के बेटे और बहुएं यह मानने को तैयार नहीं थे.

मृतका के पीहर वालों के संदेह करने का कारण था फंदा पंखे के हुक से न बांध कर पंखे के पाइप से बांधना. प्लास्टिक का पाइप वजन से पंखे सहित सुसाइड करने की स्थिति में झटका लगने से टूट सकता था. मगर वह टूटा नहीं था. इस पर पीहर वालों ने शक जताया. उन्होंने मृतका की बहुओं प्रेमा, पिंटू, ओमा से पूछा तो वे कहती रहीं कि सास ने आत्महत्या की है. जबकि मृतका कमला देवी के भतीजे प्रभुराम ने बताया कि वह 25 अगस्त, 20 को जब बुआ कमला से मिलने आया था. तब बुआ ने रोते हुए उसे बताया था कि पुखराज की पत्नी प्रेमा उर्फ प्रेमी उस की हत्या कर सकती है. वह मारने की धमकियां दे रही है. तब भतीजे प्रभुराम ने बुआ को दिलासा दिया था कि वह वापस आ कर उस के बेटों से बात करेगा.

इसी बीच 28 अगस्त, 2020 की शाम को प्रभुराम के करनाणियों ढाणी के रिश्तेदार उस के पास हरिओमनगर भीकमकोर आए. उन्होंने बताया कि तुम्हारी बुआ कमला देवी का शायद काम तमाम कर दिया है. प्रभुराम ने अपनी बुआ के बेटों पर आरोप लगाया कि उन्होंने उन्हें घटना की जानकारी तक नहीं दी. रिश्तेदारों से सुन कर प्रभुराम अपने भाईभतीजों के साथ हरलाया रामदेवनगर आए.

प्रभुराम ने बुआ कमला देवी की हत्या कर के शव पंखे पर लटकाने का आरोप लगाया. रात भर इस हत्याकांड पर घर में चर्चा होती रही. मृतका की बहुओं से भी पूछताछ की गई और झांसा दिया गया कि वे सच बता दें. तब प्रेमा, पिंटू और ओमा ने सभी के सामने स्वीकार कर लिया कि उन तीनों ने ही अपनी सास की गला दबा कर हत्या करने के बाद शव पंखे से लटकाया था.

अब सच सामने आ चुका था. 3 बहुओं ने मिल कर सास की सांस रोक दी थी. लिहाजा 29 अगस्त, 2020 को प्रभुराम मेघवाल ने थाना मतोड़ा जा कर थानाप्रभारी नेमाराम इनाणिया को अपनी बुआ कमला देवी की हत्या की सूचना दे कर मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी प्रभुराम को ले कर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. कमला देवी का शव जिस स्थिति में था. देख कर संदेह होना स्वाभाविक था कि मारने के बाद शव फांसी पर लटकाया गया है.

उन्होंने सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एसपी (जोधपुर ग्रामीण) राहुल बारहठ से निर्देश प्राप्त कर थानाप्रभारी नेमाराम ने काररवाई शुरू कर मृतका का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

मैडिकल बोर्ड बना कर मृतका का पोस्टमार्टम कराया गया. जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिलती तब तक पुलिस जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. पुलिस पूछताछ में मृतका के बेटे और बहुएं आदि कह रहे थे कि मां ने आत्महत्या की है. जबकि मृतका के पीहर वाले सीधे तौर पर हत्या का आरोप लगा रहे थे.

पोस्टमार्टम के बाद कमला देवी का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. उसी रोज मृतका का दाह संस्कार कर दिया गया. पुलिस को मृतका कमला देवी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला दबा कर हत्या की बात सामने आई.

मामला अब एकदम साफ हो चुका था. पुलिस का मकसद अब हत्यारे तक पहुंचना था. इस के बाद थानाप्रभारी ने मृतका कमला देवी के घर जा कर कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में प्रेमा उर्फ प्रेमी पत्नी पुखराज, पिंटू पत्नी मिश्रीलाल, ओमा पत्नी मदनराम मेघवाल ने सास का गला दबा कर हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. तब पुलिस ने पहली सितंबर, 2020 को प्रेमा, पिंटू और ओमा को गिरफ्तार कर लिया. इन्हें थाने मतोड़ा ला कर पूछताछ की गई. पूछताछ में उन्होंने बताया कि सास उन के हर काम में टांग अड़ाती थी, हर काम में किचकिच करने और बेवजह लड़ाईझगड़ा करने के कारण वे बहुत परेशान हो गई थीं.

इस के बाद उन्होंने सास की हत्या की योजना बना ली. फिर 28 अगस्त 2020 को दोपहर में सास जब बकरियां चरा कर घर लौटी तो आते ही उस ने तीनों बहुओं से झगड़ना शुरू कर दिया. तब तीनों ने पकड़ कर सास को गिरा दिया और गला दबा कर मार डाला.

इस के बाद उन्होंने उस के गले में रस्सी का फंदा डाल कर उस का शव कमरे में लगे छत के पंखे पर लटका दिया. ताकि मामला आत्महत्या का लगे. लेकिन किसी के देख लेने के डर से जल्दबाजी में शव पंखे के ऊपर लगे हुक से बांधने के बजाय प्लास्टिक पाइप से बांध दी. शव जमीन को भी छू रहा था. उन्होंने बहुत कोशिश की मगर खून करने के बाद तीनों डर के मारे कुछ कर नहीं पा रही थीं.

इस कारण जब मृतका के पीहर वालों एवं पुलिस ने शव लटका देखा तो संदेह हो गया था. मगर बगैर किसी सबूत के किसी पर आरोप लगाना भी ठीक नहीं था. ऐसे में पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एवं पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने तक गुप्त रूप से इस घटना की तहकीकात की. इस जांच में सामने आया कि बहुओं ने सास की हर रोज की किचकिच से परेशान हो कर साजिश रच कर हत्या की थी.

वृद्ध सास अगर अपनी बहुओं को बेटियां मान कर हर काम में मीनमेख नहीं निकालती और बहुओं के साथ प्यार का बर्ताव करती तो शायद बहुएं उस का काल नहीं बनतीं. तीनों बहुओं प्रेमा उर्फ पेमी, पिंटू और ओमा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें पहली सितंबर 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन तीनों बहुओं को अजमेर जेल भेजने के कोर्ट ने आदेश दिए.

अजमेर जेल भेजने से पहले इन तीनों हत्यारोपी बहुओं की कोरोना जांच करवाई गई. अगर कमला देवी अपनी आदत सुधार लेती या फिर उन की तीनों बहुएं सास की आदत है कह कर

या सुन कर आवेश में न आतीं तो उन्हें आज यह दिन नहीं देखना पड़ता.

सास की हत्या करने की आरोपी बहुएं सैकड़ों किलोमीटर दूर अजमेर जेल में बंद हैं.

इन तीनों के पति और बच्चे अपने हाल पर हैं. समाज में घरपरिवार की इज्जत गई सो अलग. कलह के कारण पूरा परिवार बिखर चुका है. गलत राह पकड़ने से पहले एक बार सोच लें तो कभी परिवार नहीं बिखरेगा. वरना गृहकलेश में ऐसा ही होता है.

सौजन्य: सत्यकथा, अक्टूबर 2020

जिन्न की हत्या : वहम ने बनाया हत्यारा

उस दिन अगस्त 2020 की 20 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. हरिद्वार जिले के थाना भगवानपुर केथानाप्रभारी संजीव थपलियाल थाना स्थित अपने आवास में थे और औफिस के लिए तैयार हो रहे थे. तभी थाने के संतरी ने आ कर सूचना दी कि गांव खुब्वनपुर की लाव्वा रोड पर एक आदमी का कत्ल हो गया है. उस की लाश सब्जी के एक खेत में पड़ी है.

सुबह-सुबह कत्ल की सूचना पा कर थपलियाल का मन कसैला हो गया. वह तुरंत थाने आए और पुलिस टीम को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने कत्ल की सूचना सीओ अभय प्रताप सिंह, एसपी (देहात) एस.के. सिंह और एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को दे दी. इस के बाद थपलियाल खुब्वनपुर क्षेत्र के इंचार्ज थानेदार मनोज ममगई सहित मौके पर पहुंच गए.

थपलियाल मौके पर पहुंचे तो वहां ग्रामीणों की भीड़ जमा थी. पुलिस को देख कर भीड़ तितरबितर हो गई. थपलियाल ने शव पर नजर डाली. वह 47-48 साल का अधेड़ व्यक्ति था, जिस का गला 2 जगह से कटा हुआ था. उस के कपड़े खून से सने थे. वहां मौजूद लोगों में से एक ग्रामीण ने मृतक की शिनाख्त कर दी थी.

उस ने बताया कि मृतक ग्राम खुब्वनपुर के पूर्व प्रधान ब्रह्मपाल का भाई बालेश है. पुलिस ने तुरंत ब्रह्मपाल के घर सूचना भिजवा दी.

इस के बाद थपलियाल ने वहां खड़े लोगों से बालेश के बारे में जानकारी लेनी शुरू कर दी. जब वे जानकारी ले रहे थे, तभी वहां सीओ (मंगलौर) अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) एस.के. सिंह भी पहुंच गए. दोनों अधिकारियों ने भी थपलियाल व ग्रामीणों से बालेश की हत्या की बाबत जानकारी ली और थपलियाल को आवश्यक निर्देश दे कर चले गए.

थपलियाल ने थानेदार मनोज ममगई को बालेश के शव का पंचनामा भरने को कहा और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की एक टीम बालेश के घर भेजी दी.प्राथमिक काररवाई कर के पुलिस ने बालेश का शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भिजवा दिया.

इस के बाद पुलिस खुब्वनपुर स्थित बालेश के घर पहुंची और उस की पत्नी बबली व उस के बेटे अरुण से पूछताछ की. बबली ने बताया कि बालेश बीती रात खाना खा कर बीड़ी पीने के लिए पड़ोस में गया था, इस के बाद वह वापस नहीं लौटा. वह रात भर उस का इंतजार करती रही. बबली ने बताया कि पिछले 2 सालों में बालेश पर 2 बार हमला हो चुका था.

पुलिस ने उस समय जब इन हमलों की जांच की थी, तो मामला पारिवारिक निकला था.पूछताछ के दौरान थपलियाल ने पाया कि बबली व अरुण के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. लगता था, वे पुलिस से कुछ छिपा रहे हैं. इस के बाद पुलिस ने बालेश की हत्या का मामला धारा 302 के तहज दर्ज कर के जांच शुरू की दी.

सब से पहले थपलियाल ने बालेश के परिवार की सुरागरसी व पतारसी करने के लिए खुब्वनपुर में सादे कपड़ों में 2 पुलिसकर्मी तैनात कर दिए. अगले दिन उन दोनों ने थपलियाल को जो जानकारी दी, उसे सुन कर वह चौंके. जानकारी यह थी कि 25 साल पहले बालेश की शादी पास के ही गांव भक्तोवाली निवासी बबली से हुई थी, जिस से उस की 6 संतान हुईं. बालेश और बबली का बड़ा बेटा अरुण है. बालेश के पास मात्र 7 बीघा खेती की जमीन थी. घर का खर्च चलाने के लिए बबली को घर से निकलना पड़ा.

3 साल पहले बबली को घर से 3 किलोमीटर दूर सिकंदरपुर स्थित मां दुर्गा इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई थी. दूसरी ओर बालेश अकसर नशा कर के बबली व बेटे अरुण से मारपीट करता रहता था. इसी बीच बबली की दोस्ती फैक्ट्री के एक सहकर्मी लाल सिंह से हो गई थी.

बबली अपने पति बालेश से खासी परेशान थी. कुछ समय बाद लाल सिंह और बबली के बीच अवैध संबंध बन गए थे. लालसिंह अकसर बालेश के घर आने जाने लगा था. जब लालसिंह का आनाजाना ज्यादा बढ़ गया, तो इस की चर्चा गांव में आम हो गई.

पड़ोसियों को इस बात की जानकारी तो थी कि बालेश अकसर रात में अपनी बीबी बबली व बेटे अरुण के साथ मारपीट करता है, मगर जब पड़ोसियों को इस बात की जानकारी हुई कि बबली के साथ फैक्ट्री में काम करने वाले लाल सिंह के उस से अवैध संबंध है तो गांव में कानाफूसी होने लगी. कुछ समय बाद दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी बालेश को भी हो गई थी.

एक दिन बालेश ने अपने घर पर आए लाल सिंह को घर आने से मना कर दिया और बबली को भी फटकारा. इस के बाद लाल सिंह के घर न आने से बबली खोईखोई सी रहने लगी थी एक दिन लाल सिंह व बबली फैक्ट्री के बाहर मिले और उन्होंने अपने रास्ते के रोड़े बालेश को हटाने की योजना बनानी शुरू कर दी. योजना के तहत बबली ने गांव में यह कहना शुरू कर दिया कि उस के पति बालेश पर जिन्न का साया है और जिन्न रात को आता है.

जिन्न के सवार होने पर बालेश उसे व बेटे अरुण को मारतापीटता है. इस के बाद अरुण को भी अपने बाप बालेश पर संदेह होने लगा था कि सचमुच उस के बाप पर जिन्न का साया है. अरुण पास ही एक दूसरी फैक्ट्री में कर्मचारी था. वह भी मां के कहने पर विश्वास करने लगा था और उसे बाप से नफरत हो गई थी.

गांव खुब्वनपुर के गांव वालों को संदेह था कि बालेश की हत्या के तार कहीं न कहीं बबली व लाल सिंह से जुडे़ हुए हैं इस बारे में थानाप्रभारी संजीव थपलियाल को सटीक सूचना मिली थी, अत: उन्होंने बालेश की हत्या के मामले में उस की पत्नी बबली को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

पूछताछ के दौरान बबली पुलिस को इतना ही बता पाई कि बालेश घटना वाले दिन खाना खा कर बीड़ी पीने के लिए पड़ोस में गया था और रात भर वापस नहीं लौटा था. उसे सुबह पुलिस द्वारा उस की हत्या की सूचना मिली थी.

बालेश की हत्या के बारे में बबली से कोई सूत्र न मिलने पर सीओ अभय प्रताप सिंह ने थपलियाल को लाल सिंह व बबली के मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाने को कहा. जब दोनों के मोबाइलों की लोकेशन व कालडिटेल्स मिली, तो पुलिस को यकीन हो गया कि बालेश की हत्या में दोनों शामिल हैं.

इस के बाद थपलियाल ने लाल सिंह निवासी ग्राम बढेड़ी थाना भगवानपुर को बालेश की हत्या के बारे में पूछताछ के लिए बुलवाया और उस से पूछताछ करने लगे. पहले तो लाल सिंह पुलिस को गच्चा देने का प्रयास करता रहा, मगर जब थपलियाल ने उस से बालेश की हत्या वाले दिन उस की मौजूदगी के सवाल पूछे, तो वह टूट गया. उस ने पुलिस के सामने बालेश की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

लाल सिंह द्वारा बालेश की हत्या की बात कबूलने की सूचना पा कर बालेश का पूर्व प्रधान भाई ब्रह्मपाल, सीओ अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) एस.के. सिंह भी थाना भगवानपुर पहुंच गए थे.

पूछताछ के दौरान लाल सिंह ने पुलिस को बताया कि कई सालों से वह और बबली फैक्ट्री में साथसाथ काम करते थे. दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. बबली अकसर मुझ से कहती रहती थी कि मेरा पति बालेश मुझ से तथा मेरे बच्चों से मारपीट करता है. मुझ पर शक करते हुए घर का खर्च भी नहीं देता.

इस के बाद मैं और बबली बालेश की हत्या की योजना बनाने लगे. 19 अगस्त, 2020 को मैं ने एक स्थानीय मैडिकल स्टोर से नींद की 20 गोलियों की स्ट्रिप खरीदी और बबली को दे दी.

उसी रात बबली ने मुझे मोबाइल पर बताया कि उस ने बालेश को नींद की 10 गोलियां खाने में डाल कर खिला दी हैं और वह घर में बेहोश पड़ा है. यह सुन कर मैं तुरंत बाइक से बबली के घर पहुंच गया.

वहां पहुंच कर मैं ने और बबली ने कमरे में बेहोश पड़े बालेश का गला घोंट कर मार डाला. बालेश की हत्या करने के बाद बबली व उस के बेटे अरुण के सहयोग से मैं ने बालेश की लाश को एक बोरे में डाल दिया.

वह और अरुण लाश वाले बोरे को लाव्वा रोड पर सब्जी के एक खेत में फेंक कर अपनेअपने घर चले गए.पुलिस ने लालसिंह के बयान दर्ज कर लिए. तभी पुलिस बबली व उस के बेटे अरुण को भी थाने ले आई. बबली व अरुण ने जब हवालात में बंद लालसिंह को देखा, तो सारा माजरा समझ गए. उन दोनों ने अपने बयानों में लालसिंह के ही बयानों का समर्थन करते हुए बालेश की हत्या का सच पुलिस को बता दिया.

बबली ने पुलिस को जानकारी दी कि वह रोजरोज की मारपीट से परेशान थी. उस के मन में बालेश के प्रति नफरत पैदा हो गई थी .जब लाल सिंह व अरुण बालेश के शव को सब्जी के खेत में फेंक कर वापस आ गए. तब भी मुझे चैन नहीं मिला. इस के बाद मैं खुद अपने बेटे अरुण के साथ दरांती ले कर उस जगह पर गई, जहां बालेश की लाश पड़ी थी. वहां पहुंच कर मैं ने दरांती से बालेश का गला रेत दिया था.

बबली ने बेटे अरुण को बता रखा था कि बालेश पर जिन्न का साया है, जिस की वजह से वह हम लोगों से मारपीट करता है. इसी की आड़ में मैं ने अपनी इस योजना में अरुण को भी शामिल कर लिया था. बबली के बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी संजीव थपलियाल ने लाल सिंह, बबली व अरुण को बालेश की हत्या के आरोप में भादंवि की धाराओं 302, 201 व 34 के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया.

अगले दिन एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. ने कोतवाली सिविललाइन रुड़की में प्रैसवार्ता के दौरान बालेश हत्याकांड का परदाफाश किया और तीनों आरोपियों कोे मीडिया के सामने पेश किया. प्रैसवार्ता में एसएसपी द्वारा 24 घंटे में बालेश हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.

पुलिस ने हत्याकांड के आरोपियों लाल सिंह, बबली व अरुण का मैडिकल कराने के बाद उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. तीनों आरोपी अपने बुने जाल में फंस गए. इन तीनों की प्लानिंग थी कि बालेश को नींद की गोलियां खिला कर उस का गला दबा कर हत्या कर देंगे. बालेश की हत्या के बाद समाज के लोगों से कह देंगे कि वह बुखार से पीडि़त था, हो सकता है कोरोना वायरस से पीडि़त रहा हो. कुछ समय बाद लोग बालेश की मौत को भूल जाएंगे.

पुलिस ने बालेश की हत्या में इस्तेमाल बाइक, नींद की गोलियों का रैपर तथा बालेश के शव को ले जाने वाला बोरा बरामद कर लिया. बालेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण गला घोंटा जाना तथा धारदार हथियार से गला कटने से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

चक्रव्यूह में पत्रकार

उस दिन अगस्त, 2020 की 24 तारीख थी. रात के करीब 8 बज रहे थे. हिंदी न्यूज चैनल ‘सहारा समय’ के पत्रकार रतन सिंह कुछ देर पहले ही बलिया मुख्यालय से अपने घर फेफना आए थे.

वह अपने पिता बदन सिंह से किसी घरेलू मामले पर बातचीत कर रहे थे, तभी गांव की प्रधान सीमा सिंह के पति सुशील सिंह का भाई सोनू ंिसंह आ गया. उस ने रतन सिंह को घर के बाहर बुला कर कुछ मिनट बात की. फिर रतन सिंह उस के साथ चले गए. बदन सिंह भी अन्य कामों में व्यस्त हो गए.

रतन सिंह को गए अभी आधा घंटा ही बीता था कि किसी ने जोरजोर से उन का दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. बदन सिंह ने दरवाजा खोला तो सामने उन का भतीजा अभिषेक खड़ा था. वह बेहद घबराया हुआ था. उस की हालत देख बदन सिंह ने पूछा, ‘‘क्या बात है अभिषेक, इतने घबराए हुए क्यों हो?’’

‘‘चाचा…चाचा, जल्दी चलो प्रधान के घर. रतन भैया को गोलियों से छलनी कर दिया है. 8-10 लोगों ने भैया को पीटा, फिर मौत के घाट उतार दिया.’’

अभिषेक की बात सुन कर बदन सिंह सन्न रह गए. वह भाईभतीजों व पड़ोस के लोगों के साथ ग्रामप्रधान सीमा सिंह के आवास पर पहुंचे. प्रधान का घर थाना फेफना से मात्र 50 कदम दूर था. घर के बाहर ही खून से लथपथ रतन सिंह का शव पड़ा था और हमलावर फरार थे. बेटे का शव देख कर बदन सिंह फूटफूट कर रो पड़े. इस के बाद तो उन के घर पर कोहराम मच गया.

घटनास्थल के पास ही थाना था, इस के बावजूद पुलिस वहां नहीं आई थी. बदन सिंह को पता चला कि झगड़े के समय प्रभारी निरीक्षक शशिमौली पांडेय आए थे, पर वह बिना किसी हस्तक्षेप के वापस चले गए थे. बदन सिंह समझ गए कि बेटे की हत्या में इंपेक्टर की मिलीभगत है. फिर भी उन्होंने पहले थाना फेफना फिर डायल 112 पर बेटे की हत्या की सूचना दी.

चूंकि रतन सिंह एक टीवी चैनल के पत्रकार थे. इसलिए उन की हत्या से फेफना कस्बे से ले कर बलिया तक सनसनी फैल गई और लोग घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े. देखते ही देखते घटनास्थल पर भीड़ जुट गई. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया के लोग भी वहां आ गए.

चूंकि अपराधियों ने युवा पत्रकार की हत्या कर कानूनव्यवस्था को खुली चुनौती दी थी, इसलिए बलिया पुलिस में हड़कंप मच गया था. हत्या की सूचना पा कर एसपी देवेंद्र नाथ दुबे, एएसपी संजीव कुमार यादव तथा सीओ चंद्रकेश सिंह भी घटनास्थल आ गए थे.

फेफना थानाप्रभारी इंसपेक्टर शशिमौली पांडेय वहां पहले से मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. हत्या को ले कर जनता में रोष था. इसलिए सुरक्षा के नजरिए से अतिरिक्त फोर्स को भी बुलवा लिया गया. एसपी देवेंद्र नाथ दुबे ने सहयोगियों के साथ घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. रतन सिंह के सिर, सीने व पेट में गोलियां लगी थीं, जिस से उन की मौके पर ही मौत हो गई थी.

शरीर के अन्य हिस्सों पर भी चोटों के निशान थे, जिस से स्पष्ट था कि हत्या से पहले उन के साथ मारपीट की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर मौके से साक्ष्य जुटाए.

बदन सिंह ने पुलिस को बताया कि रात 8 बजे प्रधान सीमा सिंह के पति सुशील सिंह का भाई सोनू सिंह घर आया था. वह रतन को किसी बहाने सुशील सिंह के घर ले गया. वहां 8-10 लोग मौजूद थे. उन लोगों ने पहले रतन सिंह को लाठीडंडों से पीटा, फिर गोलियां दाग कर मौत की नींद सुला दिया.

7 महीने पहले भी इन लोगों ने रतन सिंह से झगड़ा किया था. रतन ने उन के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी. तब इन लोगों ने मामले को रफादफा करने का दबाव डाला था. समझौता न करने पर जान से मारने की घमकी दी थी. हत्या में शामिल पट्टीदार अरविंद सिंह से जमीनी विवाद भी चल रहा था.

बदन सिंह ने आरोप लगाया कि थानाप्रभारी शशिमौली पांडेय भी अपराधियों से मिले हैं. इसलिए उन के विरुद्ध भी काररवाई की जाए.

इधर पुलिस अधिकारियों ने तमाम लोगों से पूछताछ की, जिस से पता चला कि पत्रकार रतन सिंह की हत्या जमीनी विवाद में हुई है.

घटनास्थल का निरीक्षण करने और पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मृतक रतन सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए बलिया जिला अस्पताल भिजवा दिया. फिर उन्होंने फेफना थानाप्रभारी शशिमौली पांडेय को आदेश दिया कि वह थाने में मृतक के घरवालों की तहरीर पर यथाशीघ्र मुकदमा दर्ज करें.

आदेश पाते ही थानाप्रभारी शशिमौली पांडेय ने मृतक के पिता बदन सिंह की तहरीर पर आईपीसी की धारा 147/148/149/302 के तहत सोनू सिंह, अरविंद सिंह, दिनेश सिंह, तेज बहादुर सिंह, वीर बहादुर सिंह, प्रशांत सिंह उर्फ हीरा, विनय सिंह उर्फ मोती, सुशील सिंह उर्फ झाबर, अनिल सिंह, उदय सिंह सहित 10 लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

रिपोर्टकर्ता बदन सिंह ने फेफना थानाप्रभारी शशिमौली पांडेय पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. एसपी देवेंद्र नाथ दुबे ने शशिमौली को सस्पेंड कर के थाने का चार्ज इंसपेक्टर राजीव कुमार मिश्र को सौंप दिया. कार्यभार संभालते ही वह सक्रिय हो गए. उन्होंने अभियुक्तों की टोह में अपने खास खबरियों को लगा दिया.

पुलिस अधिकारियों ने पत्रकार रतन सिंह हत्याकांड को चुनौती के रूप में लिया और खुलासे के लिए एएसपी संजीव कुमार यादव की निगरानी में एक पुलिस टीम का गठन किया.

इस टीम में थानाप्रभारी राजीव कुमार मिश्र, सीओ चंद्रकेश सिंह, एसओजी प्रभारी राजकुमार सिंह, एसआई ओम प्रकाश चौबे, हेडकांस्टेबल श्याम सुंदर यादव, विवेक यादव, सूरज सिंह तथा बलराम तिवारी को शामिल किया गया.

इस गठित पुलिस टीम ने 24 अगस्त की रात में ही ताबड़तोड़ छापेमारी कर 6 नामजद अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया. पकड़े गए अभियुक्तों में सोनू सिंह, अरविंद सिंह, दिनेश सिंह, वीर बहादुर सिंह, सुशील सिंह तथा विनय सिंह थे.

पूछताछ में इन सभी ने हत्या में शामिल होने का जुर्म कुबूल कर लिया. साथ ही यह भी बताया कि विवाद के दौरान रतन सिंह पर फायर प्रशांत सिंह उर्फ हीरा ने किया था. पुलिस ने पूछताछ के बाद सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया और बलिया कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

25 अगस्त, 2020 को जब प्रमुख समाचार पत्रों में रतन सिंह हत्याकांड का मामला सुर्खियों में छपा तो बलिया से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.एक ओर पत्रकार संगठन सक्रिय हुए तो दूसरी ओर राजनीतिक पार्टियां हमलावर हुईं. फेफना कस्बा तथा उस के आसपास के गांव वाले भी रोष में आ कर धरनाप्रदर्शन में जुट गए.

उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में यह मामला आया तो उन्होंने फेफना विधायक तथा खेल राज्यमंत्री उपेंद्र तिवारी से सारी जानकारी हासिल की फिर ट्वीट कर रतन सिंह की हत्या पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की. साथ ही पीडि़त परिवार को 10 लाख रुपए की आर्थिक मदद की घोषणा की.

इस के बाद खेल राज्यमंत्री उपेंद्र तिवारी मृतक पत्रकार के परिवार से मिलने फेफना पहुंचे. वहां मृतक की पत्नी प्रियंका के आंसुओं के सैलाब को देख कर वह भावुक हो गए. उन्होंने प्रियंका सिंह को धैर्य बंधाया और 10 लाख रुपए मुख्यमंत्री की तरफ से तथा 5 लाख रुपए किसान दुर्घटना बीमा का दिलाने का आश्वासन दिया. साथ ही एक लाख रुपए स्वयं अपनी तरफ से दिए.

लेकिन प्रियंका और उस के परिवार ने इस रकम को नाकाफी बताया और मंत्री महोदय से सरकार से 50 लाख रुपए तथा सरकारी नौकरी दिलाने की बात कही.इस पर उपेंद्र तिवारी ने प्रियंका सिंह को मुख्यमंत्री से मिलाने को कहा. इधर पुलिस ने फरार चल रहे 4 अभियुक्तों पर 25-25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. पुलिस को अदालत से गैरजमानती वारंट मिल गया था. पुलिस टीम अभियुक्तों की तलाश में छापे तो मार रही थी, पर वह पकड़ में नहीं आ रहे थे.

27 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे प्रभारी निरीक्षक राजीव कुमार मिश्रा गश्त पर थे, तभी उन्हें मुखबिर से सूचना मिली कि मुख्य अभियुक्त प्रशांत सिंह उर्फ हीरा एकौनी तिराहे पर है. इस सूचना पर उन्होंने पुलिस टीम को बुला लिया और एकौनी तिराहे पर पहुंच गए.

पुलिस को देख कर वह रसड़ा की ओर भागा. पुलिस ने पीछा किया तो उस ने फायर कर दिया, पर पुलिस ने उसे दबोच लिया. पूछताछ में उस ने अपना नाम प्रशांत सिंह उर्फ हीरा निवासी फेफना बताया.

प्रशांत सिंह ने बताया कि वह रतन सिंह की हत्या में शामिल था. उस ने ही रतन पर फायर किया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए वह बनारस भागने की फिराक में था, लेकिन पकड़ा गया. पुलिस ने उस के पास से एक अवैध पिस्टल .32 बोर तथा एक जिंदा व एक मिस कारतूस बरामद किया.

29 अगस्त की सुबह 5 बजे पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर शेष बचे 3 अन्य अभियुक्तों को वंधैता गेट से गिरफ्तार कर लिया.  गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों ने अपना नाम तेजबहादुर सिंह, अनिल सिंह व उदय सिंह बताया. उन के पास से पुलिस ने 2 कुल्हाड़ी व एक लाठी बरामद की.

पूछताछ में तीनों ने रतन सिंह की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस ने कुल्हाड़ी व लाठी को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. इस तरह पुलिस ने सभी 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.पुलिस जांच में पत्रकार रतन सिंह की हत्या के पीछे की जो कहानी प्रकाश में आई, उस का विवरण इस प्रकार है.

बलिया जिले का एक कस्बा है फेफना. बदन सिंह अपने परिवार के साथ इसी कस्बे में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी आशा सिंह के अलावा 2 बेटे पवन सिंह, रतन सिंह तथा बेटी सरला सिंह थी. बदन सिंह बड़े काश्तकार थे, अत: उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का एक पुश्तैनी मकान था, दूसरा मकान उन्होंने फेफना-रसड़ा मार्ग पर बनवाया था. वह नए मकान मेें रहते थे.

बदन सिंह के बड़े बेटे की मौत हो चुकी थी. छोटा बेटा रतन सिंह पढ़ालिखा स्मार्ट युवक था. रतन सिंह की पत्नी का नाम प्रियंका सिंह था. वह 2 बच्चों की मां थी, बेटा युवराज (10 वर्ष) तथा बेटी परी (4 वर्ष). प्रियंका सिंह खुशमिजाज घरेलू महिला थी.

रतन सिंह बलिया मुख्यालय पर हिंदी टीवी चैनल सहारा समय में कार्यरत थे. वह सुबह 9 बजे घर से निकलते थे और रात 8 बजे तक घर वापस आ पाते थे.

रतन सिंह के पुश्तैनी मकान के पास कुछ जमीन थी. इस जमीन पर उन का पट्टीदार अरविंद सिंह कब्जा करना चाहता था. वह उस जमीन पर घासफूस, भूसा आदि रख देता था. ग्रामप्रधान सीमा सिंह का पति सुशील सिंह तथा देवर सोनू सिंह अरविंद सिंह का साथ देते थे.

सोनू सिंह की दोस्ती प्रशांत सिंह उर्फ हीरा से थी, जो दिनेश सिंह का बेटा था. हीरा अपराधी प्रवृत्ति का था और अवैध शराब का कारोबार करता था. रतन सिंह शराब माफिया के संबंध में खबरें प्रसारित करते रहते थे सो हीरा, रतन सिंह से खुन्नस रखता था और अरविंद सिंह को उन के खिलाफ उकसाता रहता था.

इसी विवादित जमीन को ले कर 26 दिसंबर, 2019 को अरविंद सिंह और बदन सिंह में झगड़ा, मारपीट और फायरिंग हुई. तब रतन सिंह ने अरविंद सिंह, प्रशांत सिंह उर्फ हीरा तथा दिनेश सिंह सहित 5 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147/148/149/504/506/307 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस घटना के बाद दोनों पक्षों में खुन्नस और बढ़ गई. चूंकि दबंग प्रशांत सिंह उर्फ हीरा को इस मामले में जेल जाना पड़ा था, सो वह मन ही मन रतन सिंह को मिटा कर उस के बाप बदन सिंह का घमंड चूर कर देना चाहता था. वह धीरेधीरे अरविंद सिंह व अन्य लोगों को रतन सिंह के खिलाफ भड़काने लगा था.

आखिर सब ने मिल कर रतन सिंह के खिलाफ एक योजना बना ली.24 अगस्त, 2020 की रात 8 बजे प्रशांत सिंह उर्फ हीरा ने अपने पिता दिनेश सिंह, चाचा अरविंद सिंह, प्रधान के पति सुशील सिंह, उस के छोटे भाई सोनू सिंह तथा अन्य साथी उदय सिंह, अनिल सिंह, तेजबहादुर सिंह, वीर बहादुर सिंह तथा विनय सिंह को प्रधान के घर बुलाया.

इस के बाद सब ने एक बार फिर मंत्रणा की. फिर पुराने मामले में समझौते के बहाने रतन सिंह को सोनू सिंह की मार्फत बुलवा लिया.  रतन सिंह के आने पर समझौते को ले कर बातचीत शुरू हो गई.

पर बात बनने के बजाय बढ़ गई. इस पर सब मिल कर रतन सिंह को पीटने लगे. किसी ने लाठी से तो किसी ने कुल्हाड़ी से प्रहार किया.रतन सिंह चीखने लगे और थाना फेफना को फोन करने लगे. इस पर हीरा ने उन का फोन छीन लिया और बोला, ‘‘पत्रकार, आज तू चक्रव्यूह में फंस गया है. अब निकल नहीं पाएगा.’’

यह कहते हुए हीरा ने रतन सिंह पर 3 फायर झोंक दिए. रतन सिंह जमीन पर गिर गए और वहीं दम तोड़ दिया. हत्या करने के बाद सभी आरोपी फरार हो गए. फायरिंग की आवाज सुन कर कुछ लोग प्रधान के घर के बाहर पहुंचे. वहां रतन सिंह का शव देख कर सभी चकित रह गए. उन लोगों में अभिषेक भी था, जो बदन सिंह का भतीजा था. उस ने भाग कर यह खबर चाचा को दी.

29 अगस्त, 2020 को थाना फेफना पुलिस ने अभियुक्त प्रशांत सिंह उर्फ हीरा, उदय सिंह, अनिल सिंह तथा तेजबहादुर सिंह को बलिया की जिला अदालत में पेश किया, जहां से चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

सौजन्य: सत्यकथा, अक्टूबर 2020

बेवफाई की सजा: चाहत के पंख नहीं होते

प्रियंका कानपुर जिले के गांव मझावन निवासी राजकुमार विश्वकर्मा की सब से छोटी  बेटी थी. सन 2015 में उस की शादी अशोक विश्वकर्मा से हो गई. अशोक कानपुर शहर की इंदिरा बस्ती में  किराए के मकान में रहता था और लोडर चलाता था.खूबसूरत पत्नी पा कर अशोक अपने को खुशकिस्मत समझ रहा था, जबकि प्रियंका दुबलेपतले सांवले अशोक को पा कर मन ही मन अपनी बदकिस्मती पर रोती थी. पत्नी खूबसूरत हो, तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन जाता है. अशोक भी प्रियंका का शैदाई बन गया.

प्रियंका ने अशोक की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी अंगुलियों पर नचाना शुरू कर दिया. वह सुबह 8 बजे घर से निकलता और फिर रात 8 बजे ही घर लौटता था. वह पूरी पगार प्रियंका के हाथ पर रख देता था.अशोक मूलरूप से सरसौल का रहने वाला था. उस के 2 भाई सर्वेश व कमलेश थे. मातापिता की मृत्यु के बाद तीनोें भाइयों में घर, खेत का बंटवारा हो गया था. कमलेश खेती करता था, जबकि सर्वेश प्राइवेट नौकरी कर रहा था. अशोक की अपने भाई कमलेश से नहीं पटती थी, इसलिए अशोक ने अपने हिस्से की जमीन बंटाई पर दे रखी थी.

घर में प्रियंका को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. पहली बात तो यह थी कि पति कम कमाता था, ऊपर से वह स्मार्ट भी नहीं था. अत: वह पत्नी के दबाव में रहता था.

अशोक विश्वकर्मा का एक दोस्त था राकेश. हृष्टपुष्ट, हंसमुख व स्मार्ट. वह बिजली मेकैनिक था. किदवई नगर में वह रामा इलैक्ट्रिकल्स की दुकान पर काम करता था. जिस दिन अशोक काम पर नहीं जाता था, उस दिन वह दुकान पर पहुंच जाता. दोनों खातेपीते और खूब बतियाते. खानेपीने का इंतजाम राकेश ही करता था.

एक सुबह अशोक ड्यूटी पर जाने को निकला, तो राकेश को कह गया कि उस के घर की बिजली बारबार चली जाती है, जा कर फाल्ट देख आए.

दोपहर को समय निकाल कर राकेश, अशोक के घर पहुंचा, तो उस समय भी बिजली नहीं आ रही थी. गरमी के दिन थे और उमस भी खूब हो रही थी. पसीने से बेहाल प्रियंका अपनी साड़ी के आंचल को ही पंखा बना कर हवा कर रही थी. उस का खुला वक्षस्थल राकेश की आंखों के आगे कामना की रोशनी बिखेरने लगा.

राकेश को आया देख कर प्रियंका ने आंचल संभाला और चहकती हुई बोली, ‘‘वाह देवर जी, शादी के दिन दिखे, उस के बाद कभी घर नहीं आए.’’‘‘अब आ तो गया हूं, भाभी.’’ राकेश मुसकराया.‘‘वह तो बिजली ठीक करने आए हो, तुम्हारे पास हम जैसे गरीबों से मिलने का वक्त कहां है.’’‘‘ऐसी बात नहीं है भाभी, काम में इतना व्यस्त रहता हूं कि समय नहीं मिलता. फिर भैया से कभीकभी मुलाकात हो ही जाती है.’’
राकेश ने अपने औजारों का थैला टेबल पर रखा और बिजली की लाइन पर नजर डाली, ‘‘भाभी एक स्टूल तो दो.’’

प्रियंका फटाफट स्टूल ले आई. स्टूल रखने को वह झुकी, तो आंचल गिर गया. एक बार फिर से राकेश की आंखों में हुस्न की चांदनी कौंधी. प्रियंका ने आंचल संभाला फिर हंसती हुई बोली, ‘‘मैं तो तंग आ गई हूं इस बिजली से. कभीकभी रात को 2-2 घंटे अंधेरे में रहना पड़ता है.’’

राकेश ने टकटकी लगा कर प्रियंका की आंखों में देखा, ‘‘शादी वाले दिन तो आप को ठीक से देखा नहीं था. खूबसूरत तो तब भी थी आप, पर अब तो आप के हुस्न में गजब का निखार आ गया है. आप तो खुद ही रोशनी का खजाना हैं, आप के आगे बिजली की क्या हैसियत?’’राकेश ने प्रशंसा का पुल बना कर प्रियंका के दिल में घुसपैठ करनी चाही.

‘‘हटो, बहुत मजाक करते हो तुम.’’ प्रियंका हया से लजाई, ‘‘फटाफट लाइन जोड़ दो. देखो मैं पसीने से भीगी जा रही हूं.’’राकेश ने लाइन जोड़ कर स्विच औन किया तो पंखा चल पड़ा और कमरा रोशनी से भर गया. प्रियंका ने प्रशंसा भरी निगाहों से उसे देखा और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे लिए शरबत बनाती हूं.’’
प्रियंका ने प्यार से राकेश को शरबत पिलाया. दोनों के बीच कुछ देर बातें हुईं फिर राकेश सामान थैले में रख कर जाने लगा तो प्रियंका ने पूछा, ‘‘अच्छा ये तो बताओ, कितने पैसे हुए?’’

‘‘किस बात के?’’
‘‘अरे तुम ने बिजली ठीक की है.’’
‘‘अच्छा भाभी, अपनों से भी कोई पैसे लेता है. एक मिनट में बेगाना बना दिया. देना ही है तो कोई ईनाम दो.’’ राकेश के होंठों पर अर्थपूर्ण मुसकान तैरने लगी.
‘‘मांगो क्या चाहिए?’’‘‘तुम्हारा प्यार चाहिए भाभी. पहली ही नजर में तुम मेरी आंखों में रचबस गई हो.’’
‘‘धत पहली ही बार में सब कुछ पा लेना चाहते हो.’’ कह कर प्रियंका ने नजरें झुका लीं.
‘‘ठीक है, दूसरी बार में पा लूंगा. जब मुझे ईनाम देने का मन हो फोन कर के बुला लेना.’’ राकेश ने एक पर्चे पर अपना मोबाइल नंबर लिख कर प्रियंका को दे दिया. उस के बाद अपना थैला उठाया और फिर चला गया.

जब राकेश अपने प्यार का ट्रेलर दिखा गया, तो प्रियंका के कदम क्यों नहीं बहकते. पूरी रात वह राकेश के बारे में सोचती रही.अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रियंका ने राकेश का नंबर मिला दिया. उस ने फोन उठाया तो प्रियंका ने खनकती आवाज में झूठ बोला, ‘‘बिजली फिर चली गई है, ठीक कर जाओ.’’
राकेश इसी इंतजार में बैठा था. उस ने भी सांकेतिक शब्दों में कहा, ‘‘ठीक है भाभी, अपने हुस्न की रोशनी बिखेर कर रखो. मै अभी आ रहा हूं.’’

राकेश दोस्त के घर पहुंचा तो बिजली आ रही थी. उस ने चाहत भरी नजरों से प्रियंका को देखा, जो मंदमंद मुसकरा रही थी.राकेश ने पूछा, ‘‘भाभी, झूठ क्यों बोला?’’‘‘झूठ कहां बोला,’’ प्रियंका ने मदभरी नजरों से उसे देखा, ‘‘बत्ती आ रही है पर मेरे मन में अंधेरा है. पंखा चल रहा है, पर मैं अंदर से पसीने से तर हूं.’’
खुला आमंत्रण पा कर राकेश 2 कदम आगे बढ़ा और प्रियंका को अपनी बांहों में भर लिया. फिर तो कमरे में अनीति का अंधेरा गहराता चला गया. प्रियंका की चूडि़यां राकेश की पीठ पर बजने लगीं और दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

अविवाहित राकेश ने पहली बार यह सुख पाया था. इसलिए वह तो निहाल हो ही गया. प्रियंका भी राकेश की कायल हो गई. थकी सांसों वाले अशोक से वह पहले ही ऊब गई थी, राकेश का साथ मिला तो प्रियंका अपनी सारी मर्यादा भूल गई.अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. जिस रात अशोक लोडर पर माल लाद कर दूसरे शहर जाता, उस रात प्रियंका फोन कर राकेश को घर बुला लेती फिर रात भर दोनों रंगरलियां मनाते.

अशोक को इस बात की भनक भी नहीं थी कि उस का दोस्त उस की बीवी का बिस्तर सजा रहा है. राकेश का बारबार अशोक के घर आना पासपड़ोस के लोगों को खलने लगा. उन के बीच कानाफूसी होने लगी कि राकेश और अशोक की बीवी प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है. एक कान से दूसरे कान होते हुए जब यह बात अशोक के कानों तक पहुंची तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत प्रियंका से जवाब तलब किया तो वह साफ मुकर गई. यही नहीं वह त्रियाचरित्र दिखा कर अशोक पर ही हावी हो गई.

अशोक उस समय तो चुप हो गया परंतु उस के मन में शक जरूर पैदा हो गया. अब वह घर पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम भी जल्द ही उस के सामने आ गया. उस रोज अशोक दोपहर को घर आया तो राकेश उस के घर की तरफ से आता दिखा. उस ने आवाज दे कर राकेश को रोकने का प्रयास भी किया. पर वह उस की आवाज अनसुनी कर स्कूटर से भाग गया.

घर पहुंच कर अशोक ने पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, क्या राकेश घर आया था?’’‘‘नहीं तो. यह तुम राकेश…राकेश क्या रटते रहते हो. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं. क्या मैं बदचलन हूं, वेश्या हूं? हे भगवान! मुझे मौत दे दो.’’औरत के आंसू मर्द की कमजोरी बन जाते है. जब प्रियंका आंसू बहाने लगी तो अशोक को झुकना पड़ा. उस ने वादा किया कि अब वह उस पर शक नहीं करेगा. आंसुओं से प्रियंका ने अशोक का शक तो दूर कर दिया, किंतु मन ही मन वह डर भी गई थी. उस ने राकेश को भी बता दिया कि अशोक उन दोनों पर शक करने लगा है, हमें अब सतर्कता बरतनी होगी.

इंदिरा बस्ती में अशोक का एक रिश्तेदार शिव रहता था. एक रोज उस ने बताया कि राकेश उस के घर अकसर आता है. प्रियंका का उस से लगाव है. उस के आते ही प्रियंका दरवाजा बंद कर लेती है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता होगा, यह तो तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूं. इसलिए प्रियंका को समझाओ कि वह घर की इज्जत नीलाम न करे.

शिव की बात अशोक को तीर की तरह चुभी. वह शराब के ठेके पर गया और जम कर शराब पी. नशे में धुत हो कर वह घर पहुंचा और पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, सचसच बता, तेरा राकेश के साथ टांका कब से भिड़ा है?’’‘‘नशे में तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो. मैं तुम्हें सुबह जवाब दूंगी.’’ प्रियंका बोली.
‘‘नहीं, मुझे अभी और इसी वक्त जवाब चाहिए.’’ अशोक ने जिद की.
‘‘राकेश से मेरा कोई गलत संबंध नहीं हैं.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘साली, बेवकूफ बनाती है. पूरी बस्ती जानती है कि तू राकेश के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. आज मैं भी जान गया, इसलिए तुझे ऐसी सजा दूंगा कि तू बरसों तक नहीं भूलेगी.’’ कहते हुए अशोक ने प्रियंका को जम कर पीटा.कहते हैं शक की विषबेल बहुत जल्दी पनपती है. अशोक के साथ भी यही हुआ. दिन पर दिन उस का शक बढ़ता गया. आए दिन दोनों के बीच कलह व मारपीट होने लगी.

कभी प्रियंका भारी पड़ती तो कभी अशोक प्रियंका की देह सुजा देता. इस कलह के कारण राकेश ने प्रियंका से मिलना तथा उस के घर आना बंद कर दिया था. अशोक राकेश को भी खूब खरीखोटी सुनाता था. कई बार उस ने दुकान पर जा कर भी उसे सब के सामने जलील किया था.9 जुलाई, 2020 की शाम अशोक को पता चला कि दोपहर में राकेश उस के घर के आसपास मंडरा रहा था. इस पर उसे शक हुआ कि वह जरूर प्रियंका से मिलने आया होगा. अत: राकेश को ले कर अशोक और प्रियंका में पहले तूतूमैंमैं हुई फिर अशोक ने प्रियंका की पिटाई कर दी. गुस्से में प्रियंका थाना किदवई नगर जा कर पति प्रताड़ना की शिकायत कर दी.

शिकायत मिलते ही थानाप्रभारी धनेश कुमार ने 2 सिपाहियों को भेज कर अशोक को थाने बुलवा लिया. थाने पर उस ने सच्चाई बताई, परंतु पुलिस ने उस की एक न सुनी और हवालात में बंद कर दिया.
अशोक रात भर हवालात में रहा. सुबह माफी मांगने तथा फिर झगड़ा न करने पर उसे थाने से घर जाने दिया गया.

पत्नी द्वारा थाने में बंद करवाना अशोक को नागवार लगा था. वह मन ही मन जलभुन उठा था. 10 जुलाई की सुबह जब वह घर पहुंचा तो प्रियंका पड़ोस की महिलाओं से पति को पिटवाने और बंद करवाने की शेखी बघार रही थी. पति को सामने देख कर उसे सांप सूंघ गया. वह घर के अंदर चली गई.दोपहर लगभग 12 बजे दोनों में फिर राकेश को ले कर बहस होने लगी. इसी बीच प्रियंका ने दोबारा लौकअप में बंद कराने की धमकी दी तो अशोक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने कमरे में रखी लोहे की रौड उठाई और प्रियंका पर प्रहार करने लगा.

रौड के प्रहार से प्रियंका का सिर फट गया. वह चीखतेचिल्लाते घर के बाहर निकली और गली में गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद अशोक फरार हो गया.

मकान मालिक कमल कुमार व अन्य लोग बाहर निकले तो खून से सना प्रियंका का शव गली में पड़ा था. इस के बाद तो इंदिरा बस्ती में सनसनी फैल गई. सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ आई. इसी बीच मकान मालिक कमल कुमार ने थानाप्रभारी धनेश कुमार को इस की सूचना दे दी. थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को इस घटना से अवगत करा दिया. कुछ ही देर में एसपी (साउथ) दीपक भूकर, तथा एसएसपी प्रीतिंदर सिंह घटनास्थल आ गए.

उन्होंने शव का निरीक्षण किया फिर मकान मालिक कमल कुमार तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.चूंकि पूछताछ से यह बात साफ हो गई थी कि अशोक ने ही अपनी पत्नी प्रियंका की हत्या की है. इसलिए थानाप्रभारी धनेश कुमार ने मकान मालिक कमल कुमार की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अशोक विश्वकर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उस की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए.

रात 10 बजे धनेश कुमार को पता चला कि अशोक सोंटा वाले मंदिर के पास मौजूद है. इस सूचना पर वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और हत्यारोपी अशोक को हिरासत में
ले लिया. उसे थाना किदवई नगर लाया गया.थाने में जब उस से प्रियंका की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड भी बरामद करा दी, जो उस ने घर के अंदर छिपा दी थी.

पूछताछ में अशोक ने बताया कि प्रियंका बदचलन थी, अपनी गलती मानने के बजाय वह उस पर हावी हो जाती थी. इसलिए उस ने गुस्से में उस की हत्या कर दी. उसे इस गुनाह की सजा का खौफ नहीं है.
11 जुलाई, 2020 को थानाप्रभारी ने अभियुक्त अशोक विश्वकर्मा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

सौजन्य: सत्यकथा, अक्टूबर 2020

रिश्तों का अर्मयादित घालमेल

शिवराज कुशवाहा जनपद हरदोई के गांव देहीचोर अंटवा में अपने परिवार के साथ रहते थे .काम था खेतीकिसानी का. परिवार में पत्नी कैलाशा देवी और 3 बेटे थे— अर्जुन, अमर सिंह और कैलाश. अर्जुन लखनऊ में एक ट्रैक्टर एजेंसी में काम करता था. अमर सिंह नोएडा की किसी फैक्टरी में कार्यरत था और कैलाश गांव में खेती करता था. शिवराज ने तीनों का विवाह कर के जमीन का बंटवारा कर दिया था. तीनों भाई परिवार के साथ अपनेअपने हिस्से में रहते थे. करीब 6 साल पहले अमर सिंह का विवाह विनीता से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. कैलाश की शादी 4 साल पहले कंचनलता से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे.

घर से दूर नोएडा में रहने की वजह से अमर सिंह की पत्नी विनीता का गांव में मन नहीं लगता था. पति 2-3 महीने में घर का चक्कर लगाता था, फलस्वरूप विनीता पति से मिलने वाले सुख के लिए बेचैन रहती थी. काफी समय तक पति सुख से वंचित रहने के कारण उस का तन विद्रोह करने लगा था.

विनीता का देवर कैलाश घर पर ही रहता था. जब वह उस से हंसीमजाक करता तो कभीकभी अपनी सीमाएं लांघ जाता था. विनीता समझ गई कि कैलाश भले ही शादीशुदा है, लेकिन उसे शायद घर की दाल में मजा नहीं आ रहा, इसलिए वह बाहर की बिरयानी खाने की जुगत में है. इसी वजह से वह उस पर डोरे डालने की कोशिश कर रहा है.

कैलाश भी जानता था कि उस का बड़ा भाई अमर सिंह बाहर रहता है, इसलिए उस की भाभी प्यासी मछली की तरह तड़पती होंगी. वह अपनी भाभी को अपने आगोश में लेने के लिए सारे जतन कर रहा था.

विनीता भी उस की मंशा भांप कर खुश थी. क्योंकि उस प्यासी के लिए तो कुआं घर में ही मौजूद था, बाहर तलाशने की जरूरत नहीं थी. दोनों ही एकदूसरे में समाने को आतुर हुए तो विनीता ने मिलन का रास्ता भी बना लिया.

एक दिन दोपहर के समय विनीता चारपाई पर लेटी थी तभी कैलाश वहां आ गया. उसे देख कर विनीता पैरों में दर्द का बहाना कर के  कराहने लगी. उस ने साड़ी को घुटने तक खींच लिया. कैलाश ने उस की हालत देखी तो बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी, ऐसे कराह क्यों रही हो?’’‘‘क्या बताऊं…पैरों में बड़ी जोर से दर्द हो रहा है.’’ विनीता अपने हाथ से दायां पैर दबाने की कोशिश करती हुई बोली. ‘‘अरे आप क्यों परेशान हो रही हैं, मैं दबा देता हूं पैर.’’ कह कर कैलाश उस के नग्न पैरों को अपने हाथों स दबाने लगा.

इस पर विनीता उस को तेल की शीशी देते हुए बोली, ‘‘इस तेल से मालिश कर दो, कुछ आराम मिल जाएगा.’ कैलाश ने उस के हाथों से तेल की शीशी ले कर थोड़ा तेल निकाला और भाभी के पैरों की मालिश करने लगा. पराए मर्द के हाथों के स्पर्श से विनीता के तन में चिंगारियां फूटने लगीं. तनबदन मचल उठा.

जैसेजैसे कैलाश मालिश कर रहा था, विनीता साड़ी को थोड़ाथोड़ा ऊपर खींचते हुए मालिश करने को कहती गई, ‘‘थोड़ा और ऊपर मालिश कर दो. जैसेजैसे मालिश कर रहे हो, दर्द नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है.’’ मस्ती से सराबोर हो कर विनीता ने कहा. इस के बाद उस ने साड़ी को कूल्हों तक खींच लिया.

कैलाश कोई नादान नहीं था. वह भाभी की मंशा समझ गया और मालिश करतेकरते अपना नियंत्रण खोने लगा. उस के हाथ आगे बढ़ते गए. अंतत: विनीता ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. उस के बाद उन के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. इस के बाद दोनों के बीच संबंधों का यह सिलसिला चलने लगा.

लेकिन ऐसे संबंध एक न एक दिन उजागर हो ही जाते हैं. अमर सिंह को अपनी पत्नी व भाई के बीच के नाजायज संबंधों का पता चल गया तो वह गांव आ गया. उस ने गुस्से में विनीता को तो जम कर पीटा ही, कैलाश के साथ भी मारपीट की. विनीता और बच्चों को वह अपने साथ नोएडा ले गया.

विनीता के चले जाने के बाद कैलाश भी काम के सिलसिले में हैदराबाद चला गया. कैलाश की पत्नी कंचनलता 2 बच्चों के साथ घर पर रह रही थी. कंचनलता को घर में अकेले देख कर कैलाश का चचेरा भाई रमाकांत उस के पास आने लगा. रमाकांत पड़ोस में ही रहता था और अविवाहित था. उस की चाय समोसे की दुकान थी.

कंचनलता की कंचन काया छरहरी थी. रमाकांत उस पर आसक्त हो गया. 2 बच्चों की मां कंचनलता अपने हुस्न से तमाम लड़कियों को मात दे सकती थी.

खूबसूरत हुस्न की मालकिन कंचन पति कैलाश के बिना मुरझाईमुरझाई सी रहने लगी. वह हंसती तो लगता जैसे दिखावटी हंसी हंस रही हो. रमाकांत उस के मुरझाने का कारण बखूबी समझता था. इसलिए रमाकांत उस के पास जाता तो उसे हंसाने की कोशिश करता. कंचनलता को भी उस की बातें अच्छी लगती थीं. वह उस से घुलनेमिलने लगी.

एक दिन बातोंबातों में रमाकांत कंचनलता के दर्द को अपनी जुबां पर ले आया, ‘‘भाभी, मैं देख रहा हूं कि जब से कैलाश भैया गए हैं, तब से आप उदास सी रहने लगी हो.’’ ‘‘तो क्या करूं, उन के जाने पर नाचूं या हंसू?’’ कंचनलता ने बड़ी कड़वाहट से जवाब दिया  ‘‘आप को भी उन के साथ चले जाना चाहिए था, आखिर आप की भी अपनी कुछ जरूरतें और इच्छाएं हैं.’’  ‘‘उन को मेरी चिंता ही कहां है.’’ वह बुझे मन से बोली.

‘‘जब उन्हें आप की चिंता नहीं है तो आप भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिओ. आप को भी पूरी आजादी है, मैं आप का हर तरह से साथ देने को तैयार हूं.’’ रमाकांत बोला.  यह सुन कर कंचनलता मुसकराई और अपनी नजरें झुका लीं.

रमाकांत ने अपने दाएं हाथ से कंचनलता की ठोढ़ी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया और उस की आंखों में देखा. इस पर कंचनलता कुछ देर यूं ही उस की आंखों में देखती रही. फिर उस के अंदाज की कायल हो कर उस से लिपट गई.रमाकांत ने भी कंचनलता को अपनी बांहों में भर लिया. फिर उन के बीच की सारी मर्यादाएं टूट गईं, दोनों के जिस्म एक हो गए. उन के बीच यह खेल निरंतर खेला जाने लगा.

देश में लौकडाउन हुआ तो अमर सिंह को सपरिवार नोएडा से गांव आना पड़ा. कैलाश भी हैदराबाद से गांव वापस लौट आया. सभी के घर आ जाने के बाद कैलाश और विनीता ने मौका मिलने पर फिर से संबंध बनाने शुरू कर दिए.

कैलाश रोज रात में 11 बजे गर्रा नदी किनारे अपने मक्का के खेत की रखवाली के लिए चला जाता था और सुबह 4 बजे घर लौटता था. लेकिन 22 अगस्त, 2020 की सुबह कैलाश काफी देर तक घर नहीं लौटा तो कंचनलता उसे बुलाने खेतों पर गई. वहां खेत में उसे पति की लाश पड़ी मिली. उस ने रोतेपीटते घर वालों को घटना की सूचना दी. कुछ ही देर में घर वाले और गांव के लोग वहां एकत्र हो गए. कैलाश के दोनों भाई भी वहां पहुंच गए थे. वह समझ नहीं पा रहे थे कि कैलाश की हत्या किस ने कर दी. भाई अमर सिंह ने सांडी थाना पुलिस को घटना की सूचना दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर अखिलेश यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थाने से रवाना होते समय उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना की सूचना दे दी थी.

घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर यादव ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के सिर व हाथों पर किसी तेज धारदार हथियार के घाव थे. आसपास का निरीक्षण करने पर उन्हें कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. उन्होंने कंचनलता, अमर सिंह व अन्य घरवालों से आवश्यक पूछताछ की.

इसी बीच एएसपी (पूर्वी) अनिल सिंह यादव और सीओ बिलग्राम एस.आर. कुशवाहा भी मौके पर पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, उस के बाद उन्होंने मृतक के घर वालों से पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर अखिलेश यादव को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर यादव ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल स्थित मोर्चरी भेज दी और अमर सिंह को साथ ले कर थाने लौट गए.

थाने पहुंच कर उन्होंने अमर सिंह की तरफ से अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर यादव ने केस की जांच शुरू की. घर वालों ने मामला जमीनी रंजिश का बताया था, लेकिन वैसा लग नहीं रहा था. गांव वालों व पड़ोसियों से पूछताछ के बाद घटना की वजह कुछ और ही नजर आ रही थी इंसपेक्टर यादव ने कैलाश के घर आनेजाने वालों व घर के बराबर में रहने वाले कैलाश के भाईबंधुओं के बारे में पता किया, तब उन्हें पता चला कि लाश मिलने के एक दिन पहले रात में अमर सिंह और उस के चचेरे भाई रमाकांत को एक साथ गांव के बाहर जाते देखा गया था.

यह भी पता चला कि रमाकांत कैलाश की गैरमौजूदगी में उस के घर में ही घुसा रहता था. कैलाश के संबंध अमर सिंह की पत्नी से थे, जिस की वजह से अमर सिंह पत्नी को नोएडा ले गया था.

यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर यादव ने अमर सिंह और रमाकांत को 30/31 अगस्त की रात करीब ढाई बजे गांव बरोलिया के मंदिर के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

लौकडाउन में घर वापस आने के बाद कैलाश और विनीता में फिर से संबंध बनने लगे तो यह बात छिप न सकी. अमर सिंह को भी यह जानकारी मिल चुकी थी. अमर सिंह गुस्से से आगबबूला हो उठा.

उस ने अपने छोटे भाई कैलाश को काफी समझाया, पर उन दोनों पर उस के समझाने का कोई असर नहीं पड़ा. कैलाश बड़े भाई की बात मानने को तैयार नहीं था. ऐसे में अमर सिंह नेउसे मौत की नींद सुलाने का फैसला कर लिया.

एक बार अमर सिंह ने चचेरे भाई रमाकांत को कैलाश की पत्नी कंचनलता से संबंध बनाते देख लिया था. तब रमाकांत ने अमर सिंह से माफी मांग ली थी और अमर सिंह भी चुप हो गया. अमर सिंह को कैलाश की हत्या में साथ देने के लिए एक साथी की जरूरत थी. वह साथी उसे रमाकांत के रूप में मिल गया.

अमर सिंह ने भाई कैलाश की हत्या में रमाकांत से मदद मांगी तो वह मना करने लगा. इस पर अमर सिंह ने कहा कि उन दोनों के रास्ते का कांटा एक ही है. वह उसे इसलिए मारना चाहता है क्योंकि वह उस की पत्नी से संबंध बना कर उस का घर खराब कर रहा है. कैलाश के रास्ते से हटने पर उस का रास्ता साफ हो जाएगा, फिर वह बेरोकटोक कंचनलता से मिल सकेगा.

अमर सिंह की बात रमाकांत के भेजे में घुस गई और रमाकांत अमर सिंह का साथ देने को तैयार हो गया.  21 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे कैलाश अपने मक्के की फसल की रखवाली के लिए घर से निकल गया. योजनानुसार रात साढे़ 12 बजे के करीब अमर सिंह और रमाकांत घर से निकले. दोनों अपने साथ एक कुल्हाड़ी भी लाए थे.

दोनों खेत पर पहुंचे तो कैलाश को गहरी नींद में सोते पाया. यह देख अमर सिंह ने कुल्हाड़ी से उस के सिर पर वार किया. इस के बाद उस ने कई वार किए. रमाकांत ने भी उस से कुल्हाड़ी ले कर उस पर कई वार किए.

लहूलुहान कैलाश चारपाई से नीचे गिर गया. लेकिन कुल्हाड़ी के अनगिनत वारों के कारण कैलाश की सांसें ज्यादा देर तक चल न सकीं और उस की मौत हो गई. उसे मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने अपने खून सने कपड़े उतारे और दूसरे कपड़े पहन कर रक्तरंजित कपड़ों और कुल्हाड़ी को एक जगह छिपा दिया और घर वापस लौट आए.

लेकिन गुनाह छिप न सका और वे पकड़े गए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने कुल्हाड़ी और खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनोें को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें जेल दिया गया.

सौजन्य: सत्यकथा, अक्टूबर 2020

संगीता की जिंदगी का खतरनाक मोड़

एक छात्रा की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई है और उस के घर वाले आननफानन में उस का दाह संस्कार करने की तैयारी कर रहे हैं.

फोन करने वाले ने यह भी बताया कि छात्रा का किसी से प्रेम प्रसंग चल रहा था. हरथला पुलिस चौकी महानगर मुरादाबाद के थाना सिविललाइंस के अंतर्गत आती है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए यह खबर थानाप्रभारी नवल मारवाह को देने के बाद चौकी इंचार्ज वीरेंद्र सिंह राणा सोनकपुर कालोनी पहुंच गए.

वहां जाने पर पता चला कि जबर सिंह की बेटी संगीता की मौत हुई है. एसआई वीरेंद्र सिंह जबर सिंह के घर पहुंच गए. वहां घर के बाहर कालोनी के काफी लोग जमा थे और अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी.

पुलिस को आया देख कर लोग आश्चर्यचकित हो कर देखने लगे. एसआई वीरेंद्र सिंह ने सब से पहले जबर सिंह से पूछताछ की. उस ने बताया कि उस की बेटी संगीता कई दिनों से  बीमार थी, जिस से बीती रात उस की मृत्यु हो गई.

लेकिन जब उन्होंने संगीत की लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर दबाव जैसे निशान दिखाई दिए. इस से उन्हें यह मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने पुलिस अधिकारियों के आने तक अंतिम संस्कार की काररवाई रुकवा दी. यह जानकारी उन्होंने थानाप्रभारी मारवाह को भी दे दी.

थानाप्रभारी ने इस घटना से उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया. चूंकि मामला मुरादाबाद शहर का था, इसलिए थानाप्रभारी नवल मारवाह के अलावा एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद, सीओ (सिविल लाइंस) दीपक भूकर भी मौके पर पहुंच गए.

मृतका संगीता की लाश का मुआयना करने के बाद एसपी अमित कुमार आनंद ने जबर सिंह से बात की तो उस ने उन्हें भी बेटी के मरने की वजह बीमारी बताई. लेकिन जब एसपी साहब ने उस से पूछा कि संगीता को इलाज के लिए किस डाक्टर के पास ले गए थे तो जबर सिंह चुप रह गया.

इस से पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि दाल में जरूर काला है. लिहाजा उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिए कि लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी करें. पोस्टमार्टम के बाद ही मौत की वजह पता चलेगी.

एसपी (सिटी) अमित कुमार के आदेश पर थानाप्रभारी ने संगीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. साथ ही उन्होंने मृतका के घर वालों के बयान भी दर्ज किए.

संगीता के घर वालों ने पुलिस को बताया कि कल रात घर के सभी लोग छत पर सोने चले गए थे. संगीता नीचे के कमरे में सो रही थी. सुबह जब सब छत से नीचे आए तो संगीता अपने बिस्तर पर मृत पड़ी मिली. रात में उस की मृत्यु कैसे हो गई, किसी को पता नहीं चला. बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी थाने लौट गए.

17 जून की शाम को जब पुलिस को संगीता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो हकीकत सामने आ गई. रिपोर्ट में बताया गया था कि गला घोंट कर उस की हत्या की गई थी. इस से स्पष्ट हो गया कि संगीता के घर वाले पुलिस से झूठ बोल रहे थे. मृतका के शरीर पर चोटों के निशान भी पाए गए. यानी उस के साथ मारपीट भी की गई थी.

थानाप्रभारी ने इस बारे में एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद को अवगत कराया. उन के आदेश पर हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा की तरफ से थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

पुलिस को हत्या का शक संगीता के घर वालों पर ही था, लिहाजा पुलिस ने संगीता के पिता जबर सिंह को थाने बुला कर उस से सख्ती से पूछताछ की. उस ने बताया कि संगीता ने मोहल्ले में उस का जीना मुश्किल कर दिया था.

इसलिए उसे मारने के अलावा उस के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. जबर सिंह से पूछताछ के बाद संगीता की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद के सिविल लाइंस थानाक्षेत्र में एक कालोनी है सोनकपुर. इसी कालोनी में जबर सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी जगवती के अलावा एक बेटी व 2 बेटे थे. जबर सिंह राजमिस्त्री था. इसी काम से होने वाली आमदनी से उस ने अपने सभी बच्चों को पढ़ाया. संगीता बीए की पढ़ाई कर रही थी और पढ़ाई में काफी होशियार थी.

संगीता का एक दूर का रिश्तेदार था राजकुमार, जो उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में संविदा पर ड्राइवर था. वह भी उसी कालोनी में रहता था. उसका जबर सिंह के यहां खूब आनाजाना था. रिश्ते में वह संगीता का भाई लगता था. संगीता और राजकुमार हमउम्र थे, इसलिए उन दोनों की आपस में खूब पटती थी.

राजकुमार जब भी आता, संगीता से ही ज्यादा बतियाता था. इसी बातचीत के दौरान दोनों के बीच प्यार हो गया. दोनों यह भी भूल गए कि उन के बीच भाईबहन का रिश्ता है. पिछले 5 सालों से उन के बीच यह सिलसिला चल रहा था. इस दौरान उन्होंने अपनी हसरतें भी पूरी कर ली थीं. संगीता के घर वालों को इस की भनक तक नहीं लगी.

यह बात उन्हें तब पता चली जब संगीता के पिता जबर सिंह उस की शादी के लिए लड़का ढूंढने लगे. तब संगीता ने हिम्मत जुटा कर अपने घर वालों को बताया कि वह राजकुमार से प्यार करती है और उसी से शादी करेगी.

बेटी की यह बात सुन कर जबर सिंह के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि जिस के साथ वह शादी करने की बात कह रही थी, वह उन का रिश्तेदार था. रिश्तेदार के साथ उस की शादी कैसे हो सकती थी. वैसे भी वे दोनों आपस में भाईबहन थे. संगीता के मातापिता ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

घर वाले संगीता को लाख समझा रहे थे लेकिन वह अपनी जिद नहीं छोड़ रही थी. तब जबर सिंह ने राजकुमार के घर वालों से बात की और कहा कि वह राजकुमार को समझाएं कि वह संगीता का पीछा छोड़ दे. घर वालों ने जब राजकुमार को समझाया तो इतना हुआ कि उस ने संगीता के घर जाना बंद कर दिया. लेकिन कुछ दिनों बाद संगीता और राजकुमार ने घर के बाहर मिलना शुरू कर दिया.

किसी तरह जबर सिंह को यह बात पता चली तो उस ने अपने रिश्तेदारों और कालोनी के खास लोगों को बुला कर पंचायत बैठाई. पंचायत में संगीता और राजकुमार को भी बुलवाया गया. पंचायत के सामने दोनों ने वादा किया कि वे भविष्य में नहीं मिलेंगे. इस के बाद दोनों का मिलनाजुलना बंद हो गया. संगीता भी सामान्य हो कर घर के कामों में हाथ बंटाने लगी.

जब घर का माहौल सामान्य हो गया तो जबर सिंह संगीता के लिए फिर से वर की तलाश में जुट गया. इस की जानकारी संगीता को हुई तो उस ने फिर से अपना राग अलापना शुरू कर दिया. उस ने जिद पकड़ ली कि वह राजकुमार के अलावा हरगिज किसी और से शादी नहीं करेगी. यानी उस ने अपने घर वालों की चिंता फिर से बढ़ा दी. इतना ही नहीं, उस ने घटना से 8 दिन पहले खानापीना तक छोड़ दिया.

ऐसे में रिश्तेदारों और कालोनी की महिलाओं ने संगीता को समझाया, ‘‘तू जिस राजकुमार के साथ शादी करने की जिद कर रही है वह तो रोडवेज में केवल ड्राइवर है, वह भी ठेके पर. तू तो अच्छीखासी पढ़ीलिखी है तेरे लिए तो कोई ढंग की नौकरी वाला लड़का भी मिल जाएगा. इसलिए तू राजकुमार के चक्कर में मत पड़, बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे.’’

इतना समझाने के बाद भी वह टस से मस नहीं हुई. वह बोली, ‘‘मैं ने राजकुमार को अपना सब कुछ सौंप दिया है. या तो मर जाऊंगी या फिर शादी उसी से करूंगी.’’

लाख समझाने पर भी न तो उस ने खाना खाया और न ही राजकुमार से शादी करने की जिद छोड़ी. इसी दौरान मौका मिलने पर वह अपने घर से भाग कर प्रेमी राजकुमार के घर चली गई.

घर वालों के लिए यह बहुत बड़ा धक्का था. पिता जबर सिंह ने गुस्से में कह दिया कि वह चली गई तो आज से हमारा उस से कोई संबंध नहीं है. आसपड़ोस के लोगों और कुछ रिश्तेदारों ने जबर सिंह को समझाया कि जा कर अपनी बेटी को घर ले आओ, अभी कुछ नहीं बिगड़ा है.

कुछ ने सलाह दी कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दो. कुछ लोगों ने कहा कि रिपोर्ट लिखवाने से कोई फायदा नहीं है. दोनों बालिग हैं. अगर संगीता ने तुम्हारे खिलाफ बयान दे दिया तो तुम लोग उलटे फंस सकते हो.

ऐसे में जबर सिंह परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. उस ने अपनी पत्नी और बेटों से इस बारे में बात की. सभी ने यह निर्णय लिया कि राजकुमार के घर जा कर संगीता को घर लाया जाए, क्योंकि उस के वहां जाने के बाद बहुत बदनामी हो रही थी.

16 जून, 2020 को संगीता के घर वाले राजकुमार के घर पहुंचे. उन्होंने संगीता को समझाया कि वह अभी घर चले. पूरे रीतिरिवाज के साथ वह उस की शादी राजकुमार से कर देंगे. घर वालों पर विश्वास कर के संगीता उन के साथ घर आ गई.

घर आने पर घर वालों ने उसे समझाना चाहा कि वह राजकुमार से शादी करने की जिद छोड़ दे. इस बात पर घर वालों से उस का झगड़ा व मारपीट हुई.

संगीता के घर वाले उस से बहुत परेशान हो चुके थे, लिहाजा उन्होंने इस मामले को हमेशा के लिए खत्म करने की योजना बनाई. योजना के अनुसार, 17 जून की रात में जबर सिंह और उस के बेटे सचिन ने संगीता की गला घोंट कर हत्या कर दी.

हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश बैड पर डाल दी और सोने के लिए छत पर चले गए.

सुबह होते ही वे लोग छत से नीचे आए और घर में रोनाधोना शुरू हो गया. रोने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले जबर सिंह के घर पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि बीमारी की वजह से संगीता की मौत हो गई है. फिर आननफानन में संगीता के दाह संस्कार की तैयारी शुरू हो गई.

जब संगीता की मौत का पता उस के प्रेमी राजकुमार को लगा तो उस ने इस मामले की सूचना पुलिस चौकी हरथला में दी. उस के बाद पुलिस मौके पर पहुंची.

जबर सिंह से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के बेटे सचिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों को 19 जून को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

घटना के बाद मुरादाबाद के नए एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने चार्ज संभाला तो उन्होंने नए पुराने केसों की फाइलें देखनी शुरू कीं.

जब उन्होंने संगीता मर्डर केस की फाइल का अवलोकन किया तो इस औनर किलिंग के मामले में उन्हें संगीता की मां जगवती की भी संलिप्तता नजर आई. एसएसपी के आदेश पर 29 जून को मृतका की मां जगवती को भी हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर उसी दिन जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

रास न आया ब्याज

गांव पनवारी में रहने वाले सोहनवीर सिंह से हुआ था. सोहनवीर प्राइवेट नौकरी करता था. उस की इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च आसानी से चल पाता. चंचल इस से खुश नहीं थी लेकिन अपना भाग्य मान कर वह पति सोहनवीर के साथ निर्वाह कर रही थी.

सोहनवीर पत्नी भक्त था, वह चंचल से बेइंतहा प्यार करता था. पति के इस बर्ताव ने आहिस्ताआहिस्ता चंचल के स्वभाव को बदल दिया.

एक शाम जब सोहनवीर लौटा तो चंचल ने उसे हाथपैर धोने के लिए गरम पानी दिया. हाथमुंह धो कर सोहनवीर रसोई में चंचल के पास ही बैठ गया, जहां चंचल उस के लिए गरम रोटियां सेंक रही थी. खाना खा कर सोहनवीर उठा और बैड पर जा कर लेट गया. सारा काम खत्म करने के बाद चंचल भी उस के पास आ कर बैड पर लेट गई.

चंचल को पति के मुंह से शराब की गंध महसूस हुई तो बोली, ‘‘तुम ने शराब पी है?’’

‘‘हां आज ज्यादा ठंड लग रही थी इसीलिए, लेकिन कल से नहीं पीऊंगा, वादा करता हूं.’’ सोहनवीर गलती मान कर बोला.

‘‘आज माफ किए देती हूं, आइंदा शराब पी कर घर में आए तो घर में घुसने नहीं दूंगी. फिर ठंड में सारी रात बाहर ही ठिठुरते रहना, समझे.’’ चंचल ने आंखें दिखा कर कहा.

उस रात सोहनवीर ने चंचल से वादा तो किया कि दोबारा शराब को हाथ नहीं लगाएगा, लेकिन वो वादा रात के साथ ही कहीं खो गया. अगले दिन सोहनवीर शराब के नशे में घर लौटा तो पतिपत्नी के बीच कहासुनी हो गई. इस के बाद चंचल फिर से पति सोहनवीर से चिढ़ने लगी. अब सोहनवीर चंचल को जरा भी नहीं सुहाता था. वह उस से हमेशा कटीकटी रहने लगी.

सोहनवीर चूंकि चंचल का पति था, इसलिए वह चाहे जैसा भी था, उसे उस के साथ रहना ही था. दिन गुजरते गए, समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाख कोशिशों के बाद भी चंचल सोहनवीर की शराब छुड़वा पाने में असफल रही. समय के साथ चंचल एक बेटे और एक बेटी की मां भी बन गई.

इस बीच सोहनवीर शराब का आदी हो गया था. शराब के चक्कर में उस ने कई लोगों से पैसे भी उधार लिए थे. वह पहले उधार लिए गए पैसे चुका नहीं पाता था, फिर से उधार मांगने लगता था. इसी के चलते लोगों ने उसे उधार देना बंद कर दिया था.

लोग तगादा करते तो सोहनवीर उन के सामने आने से बचने लगा. इस पर लोग उस के घर के बाहर आ कर तगादा करने लगे. सोहनवीर घर नहीं होता तो लोग चंचल को ही बुराभला बोल कर चले जाते थे.

चंचल चुपचाप सब के ताने सुनती, फिर दरवाजा बंद कर के रोती रहती. पति से कुछ कहती तो उस के सितम उस के जिस्म पर उभर कर दिखाई देने लगते.

एक दिन दोपहर में सोहनवीर कमरे में खाना खा रहा था. तभी किसी ने जोरजोर से दरवाजे की कुंडी बजाई. सोहनवीर समझ गया कि कोई लेनदार दरवाजे पर आया है. उस ने चंचल से कहा, ‘‘तुम जा कर देखो और मुझे पूछे तो दरवाजे से ही चलता कर देना.’’

‘‘हां, यही काम तो है मुझे कि हर किसी से झूठ बोलती रहूं.’’ कह कर चंचल झल्ला कर उठी.

सोहनवीर उसे लाल आंखों से घूर रहा था. चंचल ने दरवाजा खोला तो सामने एक व्यक्ति खड़ा था. उसे देख कर चंचल ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं शिशुपाल सिंह हूं. कहां है सोहनवीर, जब से पैसा लिया है, दिखाई ही नहीं दे रहा.’’ शिशुपाल रूखे स्वर में बोला.

‘‘वो तो घर पर नहीं हैं, आप बाद में आ जाना.’’

‘‘मेरा यही काम है क्या. लोगों को पैसा दे कर भलाई करूं और जब पैसे लेने का वक्त आए तो देनदार घर से गायब मिले. कहे देता हूं, इस तरह नहीं चलेगा. अपने आदमी को कहना मेरा पैसा वापस कर दे, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ शिशुपाल कड़क कर बोला.

‘‘आप नाराज क्यों होते हैं, वो आएंगे तो मैं बोल दूंगी. मैं ने तो आप को पहली बार देखा है.’’ चंचल बोली.

और भी हिदायतें दे कर शिशुपाल सिंह वहां से चला गया. चंचल ने दरवाजा बंद किया और फिर से आ कर रोटियां सेंकने लगी.

‘‘सारी उम्र लोगों की गालियां सुनवाते रहना लेकिन ये दारू मत छोड़ना.’’ चंचल गुस्से में पति से बोली.

‘‘ऐ तू मुझे आंखें दिखाती है, साली मैं तेरा मर्द हूं. जानती है पति परमेश्वर होता है. तू है कि मुझे ही आंखें दिखा रही है.’’ सोहनवीर चिल्ला कर बोला.

‘‘पति के अंदर परमेश्वर वाले गुण हों तभी तो. तुम में पति जैसा है कुछ.’’ चंचल बोली तो सोहनवीर उस के बाल पकड़ कर रसोई से बाहर ले आया और लातघूंसों से बुरी तरह पिटाई करने लगा.

चंचल रोतीबिलखती खुद को पति के हाथों से छुड़ाती रही लेकिन सोहनवीर उसे तब तक पीटता रहा, जब तक खुद थक नहीं गया. चंचल रात भर दर्द से तड़पती रही और सोहनवीर शराब पी कर एक ओर लुढ़क गया.

3-4 दिन बाद शिशुपाल एक बार फिर से पैसों की वसूली के लिए सोहनवीर के घर आया तो इत्तेफाक से दरवाजा खुला था. शिशुपाल भीतर घुसता चला आया. चंचल आइने में देख कर बाल संवार रही थी. शिशुपाल पर नजर पड़ी तो उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘अरे शिशुपालजी आप! अरे आप खड़े क्यों हैं, बैठिए न.’’

शिशुपाल चुप था और एकटक चंचल की ओर देख रहा था. चंचल उस के करीब आई और कुरसी उठा कर उस की ओर सरकाते हुए बोली, ‘‘आप बैठिए, मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं, मुझे चाय नहीं पीनी. मैं तो सोहनवीर से मिलने आया था. कहां है वो मेरे पैसे कब देगा?’’ शिशुपाल ने पूछा.

‘‘आप के पैसे मिल जाएंगे, चिंता मत कीजिए.’’ चंचल अब भी मुसकरा रही थी. वह रसोई में चली गई और 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट, नमकीन ले आई. उस ने शिशुपाल की ओर चाय का कप बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कितने रुपए हैं आप के?’’

‘‘आप को नहीं मालूम.’’ शिशुपाल ने कप हाथ में ले कर पूछा.

‘‘जब पति पत्नी को सारी बातें बताए, तभी उसे हर बात की जानकारी रहती है. जो आदमी पत्नी को सिवाय पैर की जूती के कुछ नहीं समझता वो…खैर जाने दीजिए मैं भी कहां आप से अपना रोना ले कर बैठ गई.’’ चंचल बोल रही थी, शिशुपाल खामोशी से उस की बातें सुन रहा था.

काफी देर तक इंतजार के बाद भी सोहनवीर घर नहीं आया तो शिशुपाल जाने लगा. चंचल ने उसे थोड़ी देर और रुकने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं रुका. चंचल ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया और बोली, ‘‘वो आएंगे तो मैं आप को फोन कर के बता दूंगी.’’

शिशुपाल वहां से चला गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सोहनवीर की पत्नी चंचल उस पर इतनी मेहरबान क्यों हो गई. फिर उस ने सिर को झटका और सोचने लगा कि उसे तो अपने पैसे चाहिए चाहे पत्नी दे या पति. सोचता हुआ वह अपने घर पहुंच गया.

शिशुपाल सिंह संपन्न किसान था. करीब 18 साल पहले उस का विवाह सीता से हुआ था. सीता से उसे 2 बेटे और एक बेटी हुई. करीब डेढ़ साल पहले आपसी विवाद के कारण सीता हमेशा के लिए घर छोड़ कर चली गई. शिशुपाल अकेला पड़ गया. गांव के लोगों को वह ब्याज पर पैसा देता था.

एक दिन सोहनवीर ने उस से किसी जरूरी काम के लिए पैसे उधार मांगे तो शिशुपाल ने दे दिए. पैसे उधार मिलने के बाद सोहनवीर ने शिशुपाल की तरफ जाना ही छोड़ दिया. काफी समय बीतने के बाद सोहनवीर शिशुपाल से नहीं मिला तो शिशुपाल सोहनवीर के घर तक पहुंच गया.

सोहनवीर घर पर नहीं मिला तो चंचल ने शिशुपाल की आवभगत की. शिशुपाल उस दिन ये कह कर चला गया कि 4 दिन बाद फिर आएगा.

4 दिन गुजर गए. चंचल को आज शिशुपाल का इंतजार था. पति और बच्चे तो सुबह ही चले गए थे. उन के जाने के बाद चंचल ने घर का सारा काम खत्म किया और खुद सजसंवर कर बैठ गई. अपने बताए समय पर शिशुपाल सोहनवीर के घर पहुंच गया. दरवाजे की कुंडी खड़की तो चंचल ने घड़ी की ओर देखा, ठीक 11 बज रहे थे.

चेहरे पर मुसकान बिखेर कर एक बार वह आइने के सामने आ कर मुसकराई, फिर मन ही मन लजाई, उस ने साड़ी के पल्लू से खुद को लपेटा और सामने के बालों को गोल कर गालों पर गिरा लिए. चंचल का निखरा गोरा बदन दूध की तरह दमक रहा था.

उस ने दरवाजा खोला तो सामने शिशुपाल खड़ा था. उसे देखते ही चंचल ने मुसकान बिखेरी और निगाहें नीची कर लीं. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘अंदर आइए न.’’

‘‘जी, सोहनवीर नहीं है क्या?’’ शिशुपाल ने हिचकिचा कर पूछा.

‘‘मैं तो हूं, आप की ही राह देख रही थी.’’ चंचल बोल पड़ी.

‘‘जी आप मेरी राह!’’ शिशुपाल चौंका तो चंचल ने बिना किसी हिचक के उसे हाथ बढ़ा कर अंदर आने का इशारा किया. शिशुपाल अंदर आ गया तो चंचल ने अंदर से कुंडी लगा दी और पलट कर शिशुपाल से बोली, ‘‘आप अभी तक खड़े हैं.’’

चंचल ने कुरसी निकाल कर देनी चाही तो शिशुपाल बोला, ‘‘आज मैं अपने पैसे ले कर ही जाऊंगा, बुलाओ सोहनवीर को जो मुंह छिपा कर बैठा है.’’

‘‘आप के तो दिमाग में दिन रात पैसा ही पैसा सवार रहता है. ये देखो कितना पैसा है मेरे पास.’’ चंचल ने स्वयं ही साड़ी का पल्लू हटा कर उस से कहा. यह देख शिशुपाल ठगा सा देखता रह गया. उस की निगाहें चंचल के तराशे हुए जिस्म पर थीं. वह अपलक देखे जा रहा था.

‘‘सचमुच सांचे में तराशा हुआ बदन है तुम्हारा.’’ शिशुपाल बोला.

चंचल ने झट से पल्लू से खुद को लपेट लिया. शिशुपाल चंचल के दिल की मंशा जान चुका था. उस ने चंचल को लपक कर अपनी ओर खींचा और बाजुओं में जकड़ लिया.

चंचल के सारे बदन में एक अजीब सा रोमांच उठने लगा. उस ने दोनों बांहें शिशुपाल के कंधों पर जमा लीं. शिशुपाल ने चंचल को बांहों में उठा कर पलंग पर लिटा दिया. वह सुहागन हो कर भी शादीशुदा औरत की सारी मर्यादाएं भूल कर वासना के अंधे कुंए में कूद पड़ी थी, जिस में कूदने के बाद चंचल ने असीम आनंद का अनुभव किया.

वह शिशुपाल की दीवानी हो गई. उस ने कहा, ‘‘अब बताओ इस दौलत में सुख है या फिर तुम्हारी तिजोरी वाली दौलत में?’’

‘‘सच कहूं तो मैं ने जब पहली बार तुम्हें देखा था तो तिजोरी की दौलत को भूल गया था और तुम्हारी इस दौलत का दीवाना हो गया था.’’

शिशुपाल की बांहों की गरमी पा कर चंचल को लगने लगा था कि अब उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गईं. चंचल अब शिशुपाल के वश में हो चुकी थी. जब जी करता दोनों एकदूसरे में समा जाते थे.

21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल खेत से चारा लाने की बात कह कर घर से निकला लेकिन दोपहर तक नहीं लौटा. घरवालों ने उसे सभी जगह तलाशा, लेकिन कोई पता नहीं चला. कई दिन बाद भी जब शिशुपाल का पता नहीं लगा तो उस के भाई नवल सिंह ने 30 जुलाई को सिकंदरा थाने में शिशुपाल के गुम होने की सूचना दी. जिस पर इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने गुमशुदगी दर्ज कर जांच एसआई अमित कुमार को सौंप दी.

पुलिस ने हर जगह शिशुपाल का पता किया लेकिन कुछ पता नहीं लगा. इस पर पुलिस ने जानकारी जुटा कर पता किया कि शिशुपाल से कौनकौन मिलने आता है और शिशुपाल कहांकहां जाता था. इसी जांच में सोहनवीर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पता चला कि शिशुपाल हर रोज सब से ज्यादा समय सोहनवीर के घर बिताता था.

शिशुपाल और सोहनवीर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स की जांच की गई तो जानकारी मिली कि घटना वाले दिन सुबह साढ़े 10 बजे दोनों के बीच बात हुई थी. फोन सोहनवीर ने किया था. उसी के बाद से शिशुपाल लापता हो गया था.

12 अगस्त, 2020 को इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने पुलिस टीम के साथ जा कर सोहनवीर सिंह को उस के घर से हिरासत में ले लिया. थाने  ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने शिशुपाल की हत्या कर देने की बात स्वीकार कर ली.

इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने उस की निशानदेही पर अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत के पास सीवर नाले से शिशुपाल की लाश बरामद कर ली. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद वह थाने लौट आए.

पुलिस ने सोहनवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करने के बाद उस से विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि शिशुपाल और चंचल के नाजायज रिश्ते की इमारत जैसेजैसे बनती गई, वह लोगों की नजरों में आने लगी थी. लोगों की नजरों में बात आई तो सोहनवीर तक पहुंचते देर नहीं लगी. तब सोहनवीर ने अपने घर की इज्जत पर हाथ डालने वाले शिशुपाल को जान से मार देने का फैसला कर लिया.

उस ने घटना से 1-2 दिन पहले मोबाइल पर शिशुपाल से बात की और कहा कि कुछ परेशानी थी, इस वजह से वह उस का पैसा नहीं दे पाया लेकिन अब जल्द ही दे देगा. शिशुपाल तो वैसे भी अपनी दी गई रकम का ब्याज उस की पत्नी के बदन से वसूल रहा था. इसलिए उस ने कह दिया कि ठीक है जब पैसा हो जाए दे देना.

21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल चारा लाने के लिए घर से खेत की तरफ जाने के लिए निकला. वह खेत पर था तब करीब साढ़े 10 बजे सोहनवीर ने फोन कर के उसे मिलने के लिए बुलाया. शिशुपाल उस के पास पहुंचा तो सोहनवीर उसे अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत में ले गया. वहीं पर उस ने कोल्ड ड्रिंक में कीटनाशक मिला कर शिशुपाल को पिला दी, जिसे पीने के कुछ ही देर में शिशुपाल की मौत हो गई. सोहनवीर ने शिशुपाल की लाश इमारत के पास वाले सीवर नाले में डाल दी और घर चला गया.

कागजी खानापूर्ति करने के बाद इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने सोहनवीर को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में चंचल परिवर्तित नाम है)

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

प्रियंका का सत्यशील: क्या सच में पति की कातिल थी वो

सिक्सलेन बाईपास पर सांती पुल के पास सर्विस रोड पर एक युवक का शव पड़ा है. इस सूचना पर थानाप्रभारी मक्खनपुर विनय कुमार मिश्र पुलिस टीम ले कर रात में ही घटनास्थल पर पंहुच गए.

प्रभारी निरीक्षक ने शव व घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 28-29 साल के आसपास थी. शव देखने से ऐसा लग रहा था जैसे मृतक को किसी वाहन ने रौंदा हो.

उस की मौत हो चुकी थी. मृतक के सीधे हाथ की कलाई पर प्रमोद यादव गुदा (लिखा) हुआ था.

इस से यह तो पता चल गया कि मृतक का नाम प्रमोद यादव है लेकिन नाम से यह पता नहीं चल सकता था कि वह कहां का रहने वाला था.

इस बीच सुबह हो गई थी. सर्विस रोड पर पुलिस को देख आसपास के लोग एकत्र हो गए. पुलिस ने उन से शव की शिनाख्त कराने का प्रयास किया लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने  मृतक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी.

पुलिस ने मृतक की शिनाख्त के लिए उस का फोटो और दाहिनी बांह जिस पर उस का नाम था, का फोटो सोशल मीडिया पर डाल कर शिनाख्त कराने का प्रयास किया. 17 जुलाई की सुबह मृतक की शिनाख्त फिरोजाबाद जिला के गांव जेबड़ा निवासी 30 वर्षीय सत्यशील उर्फ प्रमोद यादव के रूप में हो गई.

मृतक के घर वालों ने उस की शिनाख्त मोर्चरी जा कर की. जब गांव वालों को सत्यशील की मौत की बात पता चली, तो गांव में मातम छा गया. सत्यशील सीधासादा युवक था, वह रात में सांती पुल पर क्या करने गया था, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट देख कर पुलिस के होश उड़ गए. पुलिस जिसे अब तक दुघर्टना मान रही थी, वह हत्या थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में युवक की मौत का कारण विषैले  पदार्थ का सेवन और गला घोंटना बताया गया था.

मृतक की शिनाख्त होने के बाद 19 जुलाई को मृतक  के चाचा लालता प्रसाद ने थाना मक्खनपुर में प्रमोद की पत्नी प्रियंका और सत्यशील के ममेरे भाई मोहन सिंह के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. मोहन सिंह गांव बनकट का रहने वला था.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक सत्यशील के ममेरे भाई मोहन से मृतक की पत्नी प्रियंका के अवैध संबंध थे. इस की जानकारी सत्यशील को हो गई थी. इसे ले कर सत्यशील और प्रियंका में आए दिन झगड़ा होता था. रास्ते का कांटा निकालने के लिए दोनों ने षडयंत्र रच कर सत्यशील की हत्या करा दी है.

उधर पति की दुर्घटना में आकस्मिक मौत पर प्रियंका का रोरो कर बुरा हाल था. जबकि ससुराल वालों द्वारा पति की हत्या में उस का हाथ होने की बात से वह बुरी तरह आहत थी.

पुलिस ने चाचा की तहरीर पर भादंवि की धारा 302,201,120बी, 328, 34 के तहत हत्या का मुकदमा  दर्ज करने के बाद गहनता से जांच शुरू कर दी. इस संबंध में पुलिस ने सब से पहले मृतक की पत्नी प्रियंका से पूछताछ की. उस ने बताया, 15 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे सत्यशील किसी कारखाने में काम करने की बात करने के लिए घर से निकले थे.

जब वह देर रात तक लौट कर नहीं आए तो उसे चिंता हुई और उस ने रात में ही अपने मायके वालों को फोन कर इस संबंध में बताया था. उस ने मोहन से अवैध संबंधों की बात सिरे से नकार दी. उस ने पुलिस को बताया कि मोहन उस का ममेरा देवर है और सत्यशील से मिलने घर आता था. पुलिस ने प्रियंका के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर प्रियंका सब से ज्यादा बातें करती थी.

पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो नंबर मोहन का निकला. पता चला कि 15/16 जुलाई की घटना वाली रात प्रियंका और मोहन की कई बार बातें हुई थीं.

प्रियंका को संदेह के दायरे में लाने के लिए इतना ही काफी था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. प्रियंका  बारबार अपने बयान बदलती रही. इस से वह पूरी तरह संदेह के घेरे में आ गई. महिला सिपाही ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो प्रियंका टूट गई. वह थाने में ही फूटफूट कर रोने लगी.

उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए पुलिस को बताया कि मोहन ने उसे 15 जुलाई को फोन किया था कि सत्यशील को शाम 7 बजे कारखाने में नौकरी की बात करने के बहाने मेरे पास पायनियर तिराहे पर भेज देना.

मोहन के कहे अनुसार उस ने पति को पायनियर तिराहे पर भेज दिया था. पति की हत्या कैसे और कहां करनी है, ये काम मोहन को करना था. पुलिस समझ गई कि सत्यशील की हत्या प्रियंका और उस के प्रेमी मोहन ने षडयंत्र रच कर योजनाबद्ध तरीके से की थी.

एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इस केस के मुख्य आरोपी मोहन की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने क्षेत्राधिकारी शिकोहाबाद इंदुप्रभा सिंह और थाना मक्खनपुर के प्रभारी विनय कुमार मिश्र की मदद के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम के सहयोग के लिए सर्विलांस टीम को भी लगा दिया गया.

पुलिस टीम मुख्य आरोपी मोहन की गिरफ्तारी के लिए पूरी तैयारी के साथ जुट गई. क्योंकि उस की गिरफ्तारी के बाद ही हत्या के इस रहस्य से परदा उठ सकता था.

21 जुलाई को थानाप्रभारी विनय कुमार  मिश्र पुलिस टीम के साथ क्षेत्र में गश्त पर थे. तभी मुखबिर ने सूचना दी कि सत्यशील की हत्या में शामिल नामजद मोहन हाईवे स्थित उसायनी मंदिर पर खड़ा है.

इस सूचना पर पुलिस उसायनी मंदिर के पास पहुंच गई. वहां आरोपी मोहन कार के पास खड़ा था. पुलिस को देख कर वह भागने लगा साथ ही कार में बैठे उस के 2 अन्य साथी भी भागे. पुलिस ने घेराबंदी कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया. मोहन सिंह के साथ पकड़े गए उस के दोस्त थे. इन में नीरज मिश्रा नगला सदा का रहने वाला था और जयवीर, गांव कुतकपुर जारखी में रहता था.

हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में थानाप्रभारी विनय कुमार मिश्र, सब इंस्पेक्टर धीरेंद्र सिंह, कास्टेबल सुमनेश कुमार, राहुल चौधरी, पवन कुमार, महिला कास्टेबल रेनू सिंह शामिल थे.

पुलिस ने सत्यशील की हत्या में शामिल पत्नी प्रियंका उस के प्रेमी मोहन, दोस्त नीरज व जयवीर को गिरफ्तार कर के सभी से पूछताछ की. आरोपियों ने सत्यशील की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन, दबरई में प्रैसवार्ता में हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. कहानी यह निकल कर सामने आई कि अपने पति सत्यशील के सीधेपन से प्रियंका शादी के 2 साल बाद ही ऊब गई थी. मोहन का प्रियंका के घर काफी दिनों से आनाजाना था.

23 साल का मोहन उम्र में प्रियंका से 2 साल छोटा था. वह रिश्ते में उस का ममेरा देवर था, प्रियंका उस की रोमाटिंक बातों में खूब रस लेती थी.

भाभी के प्रेम में दीवाना मोहन प्यार की राह में आ रहे कांटे को हटाने के लिए तैयार था. प्रियंका और मोहन ने मिल कर सत्यशील की हत्या का षडयंत्र रचा. मोहन ने इस में अपने 2 दोस्तों को भी शामिल कर लिया. हत्यारोपियों ने इस खौफनाक हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

उत्तर प्रदेश के शहर फिरोजाबाद का एक थाना है मक्खनपुर. जेबड़ा गांव इसी थाना क्षेत्र में आता है. सत्यशील उर्फ प्रमोद यादव अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी प्रियंका के अलावा 3 बेटियां और वृद्ध मां थीं.

सत्यशील मांबाप का इकलौता बेटा था. शादी से पहले वह अकसर गांव बनकट स्थित अपने मामा पप्पू के घर चला जाता था. वहां वह कईकई दिन ठहरता था. उस के मामा के दूसरे नंबर के 23 वर्षीय बेटे मोहन सिंह से उस की खूब पटती थी. सत्यशील के हाईस्कूल कर लेने के बाद घर वालों ने उस की शादी गांव भढ़ाईपुरा निवासी एक युवती से कर दी.

शादी के बाद सत्यशील के 2 बेटियां हुईर्ं. उस की बड़ी बेटी मानसी इस समय 7 साल की व मानवी 6 साल की हैं. तीसरी डिलीवरी के दौरान सत्यशील की पत्नी की मृत्यु हो गई. दोनों बेटियां छोटी थीं. उन की परवरिश करने वाला घर में कोई नहीं था. सत्यशील के पिता महेश चंद्र की मौत हो चुकी थी जबकि मां दिमाग से कमजोर होने के कारण घरगृहस्थी का काम नहीं कर पाती थी.

इस के चलते सत्यशील के ससुराल वालों ने 2 साल पहले उस की शादी गांव उतरारा की अपनी जानकार 25 वर्षीय प्रियंका से करा दी. प्रियंका की एक साल की एक बेटी है किट्टू.

 

सत्यशील के पास ढाई बीघा जमीन थी. वह अपनी खेती के साथ बटाई पर जमीन ले कर खेतीकिसानी करता था. इसी से उस के परिवार की गुजरबसर होती थी. सत्यशील ने बच्चों के लिए घर में गाय भी पाल ली थी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था.

सत्यशील फसल की सिंचाई व देखभाल के लिए रात में अकसर खेतों पर चला जाता था. आराम करने के लिए खेतों पर झोपड़ी बनी थी. कभीकभी वह उस झोपड़ी में ही सो जाता था. सुबह होने पर वह घर आ जाता था.

ममेरे भाई मोहन के पास निजी टीयूवी कार थी, जिसे वह टैक्सी के रूप में चलाता था. वह अकसर सत्यशील के गांव जेबड़ा आताजाता रहता था. दोनों भाइयों में खूब पटती थी. प्रियंका मोहन की भाभी थी, सो दोनों अकसर एकदूसरे से दिल्लगी करते रहते थे.

बातों ही बातों में एक बार मोहन बोला, ‘‘भाभी, रात में भैया तो खेतों पर सोने चले जाते हैं, तुम्हें नींद कैसे आती है?’’

इंटरमीडिएट तक पढ़ी प्रियंका देवर की शरारत समझ कर भी अनजान बनी रही. बोली, ‘‘जैसे तुम्हें नींद आ जाती है वैसे ही मुझे आ जाती है.’’ प्रियंका ने कहा, ‘‘वैसे मोहन, अब तुम शादी कर लो.’’

एक दिन मोहन रात में गाड़ी चलाने के बाद सत्यशील के घर आ गया. सत्यशील खाना खा कर खेत की सिंचाई के लिए जाने वाला था. मोहन के आने पर उस ने प्रियंका से कहा, ‘‘कल्लू को खाना खिला देना.’’ फिर उस ने कल्लू से कहा, ‘‘मुझे खेत पर जाने के लिए देर हो रही है. इसलिए जाता हूं.’’

सत्यशील खेतों पर चला गया.  प्रियंका ने मोहन के लिए खाना बनाया. फिर देवर को बड़े प्यार से खिलाया. खाना खाते और बातचीत करते कब समय निकल गया दोनों को पता ही नहीं चला. प्रियंका ने मोहन से कहा, ‘‘रात ज्यादा हो गई है, सुबह चले जाना.’’

इस पर मोहन ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अपनी गाड़ी में सो जाऊंगा.’’

इस पर प्रियंका ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें घर में सोने के लिए कौन मना कर रहा है. इतना बड़ा घर है और सोओगे गाड़ी में.’’

प्रियंका की बातों से मोहन को मन की मुराद पूरी होती लगी. उस रात प्रियंका और मोहन दोनों अपनेअपने बिस्तर पर करवटें बदलबदल कर सोने का प्रयास करने लगे. मगर 2 जवान दिलों की बढ़ती धड़कनों ने उन्हें सोने नहीं दिया.

प्रियंका के पैरों की पायल की रूनझुन ने मोहन की आंखों से नींद उड़ा दी थी. आखिर जब मोहन से नहीं रहा गया तो वह अपने बिस्तर से उठ कर बोला, ‘‘भाभी, नींद नहीं आ रही क्या?’’

प्रियंका मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम्हें आ रही है?’’

मोहन बोला, ‘‘तुम्हारे बिना कैसे आएगी?’’

फिर प्यासी नदी के 2 किनारों को मिलने में देर नहीं लगी. इस के बाद जब भी मौका मिलता दोनों मिल लेते थे. उन्हें रोकने टोकने वाला घर में कोई नहीं था.

लौकडाउन में तो मोहन रोज ही सत्यशील के घर जाता था. इस बीच सत्यशील कहीं भी आजा नहीं रहा था. यहां तक कि पुलिस के डर से रात में अपने खेतों पर सोने भी नहीं जाता था. इस के चलते प्रेमी युगल को क्वालिटी टाइम स्पेंड करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. दोनों के दिलों में सुलग रही आग बाहर आने लगी थी.

बाद में दोनों ने राह के कांटे को हमेशा के लिए निकालने की खौफनाक साजिश रची. दोनों ने इस षडयंत्र को 15/16 जुलाई को अंजाम भी दे दिया.

मक्खनपुर क्षेत्र में कांच के कई कारखाने हैं. साजिश के तहत प्रियंका ने अपने पति सत्यशील से कहा, ‘‘तुम किसी कारखाने में काम कर लो. मोहन तुम्हारा काम लगवा देगा. इस से घर का खर्च भी अच्छी तरह चल जाएगा.’’

सीधासादा सत्यशील पत्नी की शतरंजी चाल को समझ नहीं पाया. प्रियंका ने 15 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे सत्यशील को काम के बहाने मोहन के पास भेज दिया.

पायनियर तिराहे पर मोहन पहले से ही अपनी कार में अपने 2 साथियों के साथ सत्यशील का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. जैसे ही वह वहां पहुंचा मोहन ने उसे कार में बैठा लिया. आगे चल कर मोहन ने एक होटल से कोल्ड ड्रिंक की 4 बोतलें खरीदीं. पीछे बैठे उस के दोनों साथियों ने पहले से साथ लाई नशे की गोलियां एक बोतल में मिला दीं.

आगे की सीट पर मोहन की बगल में बैठे सत्यशील को इस का पता नहीं चला. कोल्ड ड्रिंक पीने के कुछ देर बाद सत्यशील पर बेहोशी छाने लगी. मोहन का इशारा मिलते ही जयवीर व नीरज ने मिल कर सत्यशील के गले में पड़े सफेद रंग के अंगोछे से उस का गला दबा कर गाड़ी में ही हत्या करने की कोशिश की. लेकिन उस के मुंह से खून आने लगा.

इस पर मोहन गाड़ी को सांती पुल के नीचे ले गया और सत्यशील को सर्विस रोड पर फेंक दिया. उस की मौत की पुष्टि के लिए इन लोगों ने कार 2 बार उस के ऊपर चढ़ाई. जब उन्हें पूरी तसल्ली हो गई कि सत्यशील मर चुका है, तब मोहन ने प्रियंका को रात में ही फोन कर के बता दिया कि काम हो गया है. इस पर प्रियंका ने कहा, कार चढ़ाने के बाद तुम ने देख भी लिया है कि उस की मौत हुई या नहीं. मोहन ने उसे तसल्ली दी कि तुम किसी बात की चिंता मत करो. मोहन ने हत्या को दुर्घटना दिखाने के लिए सत्यशील के ऊपर 2 बार कार चढ़ाई थी.

मुख्य आरोपी मोहन ने हत्या की योजना में शामिल करने के लिए दोनों साथियों को 15 हजार रुपए देने का प्रलोभन दिया था. साथ ही नीरज मिश्रा को एक मोबाइल भी खरीद कर दिया था.

पुलिस ने उस मोबाइल के साथ ही मृतक का सैमसंग मोबाइल, प्रियंका का मोबाइल, मृतक की चप्पलें, हत्यारोपियों के कब्जे से खून से सना सत्यशील का गमछा, कोल्ड ड्रिंक की 4 बोतलें, हत्या में इस्तेमाल टीयूवी कार आदि चीजें बरामद कर लीं. पुलिस ने सत्यशील की हत्या करने के आरोप में प्रियंका, मोहन, नीरज व जयवीर को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

प्रियंका की बेटी किट्टू व गाय को प्रियंका की मां अपने साथ ले गई. जबकि पहली पत्नी के मायके वाले दोनों बेटियों को अपने साथ ले गए.

प्रियंका ने आशनाई के चक्कर में अपने सुहाग व सुखी गृहस्थी को अपने ही हाथों उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित