मौत का इंजेक्शन : डा.रेवांथ के परिवार में कैसे आई सुनामी

डा.रेवांथ कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से सटे तालुका चिकमंगलुरु के गांव कादुरू में लक्ष्मीनगर की सोसायटी के आलीशान फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में उन की पत्नी कविता रेवांत के अलावा एक 3 वर्षीय बेटा और एक 7 महीने की सुंदर गोलमटोल सी बेटी थी. बेटा अंगरेजी माध्यम स्कूल में पढ़ता था. उसे सुबह 11 बजे स्कूल बस ले कर जाती थी और शाम 6 बजे सोसायटी के सामने छोड़ती थी.

डा. रेवांथ का इसी इलाके के कादुरू में अपना खुद का डेंटल क्लिनिक था, जहां वह प्रैक्टिस करते थे. इस के  अलावा वह शहर के अन्य अस्पतालों का भी विजिट करते थे. वह घर से सुबह 10 बजे निकलते थे तो रात 10 बजे ही घर वापस आ पाते थे. घर का सारा काम उन की पत्नी कविता संभालती थी.

घटना 17 फरवरी, 2020 की है. डा. रेवांथ अपने 2-3 रिश्तेदारों के साथ जिस समय कादुरू पुलिस थाने पहुंचे थे, उस समय थाने के परिसर में शांति छाई थी. समय यही कोई 5 बजे का था. थानाप्रभारी डा. रेवांथ और उन के साथ आए लोगों के उदास और परेशान चेहरों को देख कर समझ गए थे कि मामला गंभीर है. उन्होंने डा. रेवांथ और उन के साथ आए लोगों को बैठने का इशारा किया और कहा, ‘‘कहिए, क्या बात है? कैसे आना हुआ?’’

थानाप्रभारी के इस सवाल पर डा. रेवांथ की आंखों में पानी भर आया था, जिसे साफ करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘सर, मेरी तो दुनिया ही लुट गई, मैं बरबाद हो गया. मेरे घर में चोरी और पत्नी की हत्या हो गई है.’’

‘‘कैसे…कब?’’ थानाप्रभारी ने चौंक कर पूछा.

थानाप्रभारी के पूछने पर डा. रेवांथ ने बताया, ‘‘मालूम नहीं सर, कैसे हुआ यह सब. पत्नी के बीमार होने के कारण वह लगभग 4 बजे जब अपने फ्लैट पर लौट कर जल्दी आए तो कई बार कालबैल बजाई. इस के बाद भी फ्लैट में से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उन्होंने दरवाजा थपथपाते हुए पत्नी को आवाज दी.  लेकिन अंदर न तो कोई हरकत हुई और न दरवाजा खुला. यह देख कर वह बुरी तरह घबरा गए और जोरजोर से आवाज देने के साथ दरवाजा पीटने लगे.’’

इस तरह की तेज आवाजें जब डा. रेवांथ के पड़ोसियों ने सुनीं तो वे सब उन की मदद के लिए आ गए. लेकिन उन की मदद का कोई नतीजा नहीं निकला. तब उन्होंने आपस में विचार कर ताला खोलने वाले को बुलाया. ताला खुलने के बाद वह सभी लोग फ्लैट में घुसे तो सामने का जो मंजर नजर आया, उसे देख कर उन के होश उड़ गए.

बैडरूम के बैड पर उन की पत्नी कविता शांत अवस्था में पड़ी थी. फ्लैट का सारा सामान फैला हुआ था. इस के अलावा अलमारी भी खुली हुई थी. बेटी झूले में पड़ी सो रही थी. बेटा स्कूल गया हुआ था. डाक्टर होने के नाते रेवांथ ने जब पत्नी की नब्ज टटोली तो उन की चीख निकल गई, जिस से बच्ची चौंक कर रोने लगी. वह अपना सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गए थे. पड़ोसियों ने उन्हें धीरज और सांत्वना देते हुए बच्ची को संभाला.

कादुरू थानाप्रभारी ने डा. रेवांथ की बातों को ध्यान से सुना और मामले की गंभीरता को देखते हुए अपनी पुलिस टीम ले कर तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने मोबाइल द्वारा मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम के साथ अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी.

पुलिस टीम जब तक थाने और घटनास्थल के बीच की दूरी तय करती, तब तक घटना की खबर पूरी सोसायटी के साथसाथ पूरे इलाके में फैल चुकी थी. जिस के कारण डाक्टर के फ्लैट और बिल्डिंग के नीचे अच्छीखासी भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी.

फ्लैट के सामने आई पुलिस टीम को देख लोग फ्लैट के बाहर आ गए थे. फ्लैट के अंदर जब पुलिस टीम ने देखा तो डा. रेवांथ और उन के नातेरिश्तेदारों ने पूरा वाकया बताया. पहली नजर में पुलिस टीम को भी मामला चोरी और हत्या का लगा था.

घटनास्थल का निरीक्षण कर थानाप्रभारी और उन की टीम अभी पड़ोसियों से पूछताछ कर ही रही थी कि मामले की खबर पा कर एसपी हरीश पांडेय, क्राइम टीम और फोरैंसिक ब्यूरो के अधिकारियों के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. फोरैंसिक और क्राइम टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. इस के बाद एसपी हरीश पांडेय ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

मामला चूंकि हाईप्रोफाइल सोसायटी और एक जानेमाने डाक्टर के परिवार से जुड़ा था, इसलिए एसपी ने थानाप्रभारी को आवश्यक निर्देश दिए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के कविता का शव पोस्टमार्टम के लिए बेंगलुरु सिटी अस्पताल भेज दिया थाने लौट कर डा. रेवांथ की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर ली. अब उन्हें मामले की गुत्थी सुलझानी थी.

थानाप्रभारी ने अपने सहायकों के साथ मामले की जांच की रूपरेखा तैयार कर जब उस पर गंभीरता से विचार किया तो मामला वैसा नहीं था, जैसा कि डा. रेवांथ ने बताया था.

वारदात पर हुआ शक

जिस प्रकार से चोरी और हत्या की वारदात हुई थी, वह थानाप्रभारी के गले से नीचे नहीं उतर रही थी. उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था. डा. रेवांथ ने अपनी शिकायत में 112 ग्राम सोने की लूट का जिक्र किया था, जिस की कीमत लगभग साढ़े 4 लाख रुपए थी. उन की पत्नी सोने की कुछ ज्वैलरी पहने हुए थी और कुछ अलमारी में रखी थी. कविता के शरीर पर किसी प्रकार के जख्म और खरोंच तक के निशान नहीं थे.

मामला काफी जटिल और पेचीदा था. पुलिस ने कई ऐंगल से केस की जांच शुरू की. जांच में शक की सुई डा. रेवांथ पर ही आ कर ठहर रही थी.

टीम की जांचपड़ताल में डा. रेवांथ पुलिस के राडार पर आ गए थे. लेकिन कोई ठोस सबूत न होने के कारण पुलिस ने जल्दबाजी में उन के खिलाफ कोई काररवाइ नहीं की. फिर एसपी हरीश पांडेय के साथ विचारविमर्श करने के बाद थानाप्रभारी ने डा. रेवांथ को बुलाया और सरसरी तौर पर उन से पूछताछ करने के बाद उन का मोबाइल फोन जांच पड़ताल के लिए अपने पास रख लिया.

पुलिस ने डा. रेवांथ के फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन किया तो चौंका देने वाली था, फिर भी पुलिस टीम किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी. उन्हें इंतजार था उन की पत्नी कविता के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट का. इस के पहले कि कविता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आती और वह डा. रेवांथ को अपनी हिरासत में ले कर पूछताछ करते, डा. रेवांथ की आत्महत्या की सूचना पा कर वह स्तब्ध रह गए.

36 वर्षीय डा. रेवांथ स्वस्थ सुंदर और तेजतर्रार युवक थे. वह पढ़ाईलिखाई में जितने होशियार थे, उतने ही वह महत्त्वाकांक्षी थे. परिवार संपन्न और प्रतिष्ठित था किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन की इच्छा एक डाक्टर बनने की थी लेकिन एमबीबीएस कालेज में सलैक्शन न होने के कारण उन्होंने बेंगलुरु के दंत मैडिकल कालेज में एडमिशन ले लिया था. उसी दौरान उन की मुलाकात कविता से हुई.

34 वर्षीय शोख चंचल, सौंदर्यमयी कविता उडुपी जनपद की रहने वाली थी. वह होटल व्यवसाय से जुड़े बसवराप्पा वसु की एकलौती संतान थी. वह एक संपन्न व्यक्ति थे. इसलिए उन्होंने कविता की पढ़ाई एक अच्छे स्कूल में कराई. कविता अपनी पढ़ाई पूरी कर शिक्षा के क्षेत्र में जाना चाहती थी. इस से पहले उस का यह सपना पूरा होता, उसे प्रेमरोग हो गया.

मुलाकात बदली प्यार में

करीब 8 साल पहले सन 2012 में कविता और रेवांथ तब मिले थे. जब वह दोनों अपने एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में शामिल हुए थे. पहली ही नजर में रेवांथ कविता के दीवाने हो गए थे. कविता जब तक बर्थडे पार्टी में रही वह रेवांथ की निगाहों का केंद्र बिंदु बनी रही. दोस्त के परिचय कराने के बाद वह कविता से बड़ी गर्मजोशी से मिले थे.

कविता सीधीसरल और खुले विचारों की युवती थी. थोड़ी सी औपचारिकता निभाने के बाद कविता भी उन की तरफ आकर्षित हो गई थी.

दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वह सांसारिक जीवन के सपने देखने लगे. यह बात जब दोनों के परिवार वालों को मालूम पड़ी तो उन्होंने ऐतराज नहीं किया. बल्कि दोनों परिवारों ने कविता और रेवांथ की शादी सामाजिक रस्मोरिवाज के साथ कर दी.

अब तक कविता और रेवांथ की शिक्षा पूरी हो गई थी. रेवांथ को दंत चिकित्सक की डिगरी मिल चुकी थी. वह अपना क्लिनिक खोल कर प्रेक्टिस करने लगे.

शादी के बाद दोनों हनीमून के लिए लंबे टूर पर भी गए थे. कविता खुश थी. सालों का समय कैसे निकल गया, इस का उन्हें आभास भी नहीं हुआ. इसी बीच कविता 2 बच्चों की मां बन गई थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. कविता तो अपना पति धर्म और परिवार की जिम्मेदारियां निभा रही थी. लेकिन डा. रेवांथ अपना पत्नी धर्म नहीं निभा पा रहे थे. क्योंकि शादी के 4 साल बाद ही उन के जीवन में हर्षिता नामक जो आंधी आ गई थी, वह उन का सब कुछ उजाड़ के अपने साथ ले गई थी. उन का दांपत्य जीवन ताश के पत्तों की तरह बिखर कर रह गया था.

डा. रेवांथ की लाइफ में आई हर्षिता

32 वर्षीय आधुनिक विचारों वाली फैशन डिजाइनर हर्षिता किसी से भी बेझिझक बातें करती थी. उस की शादी हो चुकी थी. वह अपने पति सुदर्शन के.एस. और 2 बच्चों के साथ राजराजेश्वरी नगर में रहती थी. हर्षिता बहुत महत्त्वाकांक्षी थी. वह चाहती थी कि उसे ऐसा जीवनसाथी मिले जो उस की तरह हैंडसम हो और उस की भावनाओं की कद्र करते हुए सभी इच्छाओं को पूरा करे.

लेकिन उस के इन सारे सपनों पर तब पानी फिर गया था, जब उस की शादी कर्नाटक राज्य परिवहन निगम के मामूली ड्राइवर से हो गई थी. जो एक बार घर से निकलता था तो हफ्तों बाद लौट कर घर आता था. ऐसे में पति का प्यार और उस की सारी ख्वाहिशें पूरी नहीं होती थी.

फैशन डिजाइनर होने के नाते वह स्वयं भी अच्छाखासा कमा लेती थी. इस के बावजूद पति का भी अच्छा वेतन आ जाता था. किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. फिर भी उस का मन अशांत रहता था. ऐसे में डा. रेवांथ को हर्षिता ने जब एक अस्पताल के विजिट में देखा तो वह अपने आप को रोक नहीं पाई थी और डा. रेवांथ की तरफ खिंची चली गई थी.

डा. रेवांथ से इलाज कराने के बहाने उन के करीब आई. इस के बाद उस ने डा. रेवांथ से व्हाट्सएप पर चैटिंग करनी शुरू कर दी थी. चेटिंग के दौरान हर्षिता जिस प्रकार मैसेज और वीडियो भेजती थी, वह काफी अश्लील और मन को उत्तेजित करने वाले होते थे. फिर इलाज के बहाने वह उन्हें घर बुलाने लगी थी.

आखिरकार डा. रेवांथ एक इंसान थे. वह भी हर्षिता की तरफ आकर्षित हो गए थे. जिस के कारण उन के बीच गहरे संबंध बन गए थे. उन संबंधों के चलते डा. रेवांथ अपने घर की उपेक्षा करने लगे थे. उन के घर आनेजाने का समय और बदले व्यवहार को देख उन की पत्नी कविता परेशान और दुखी रहने लगी थी.

वह जब इस विषय पर पति से बात करना चाहती तो वह उसे झिड़क दिया करते थे. कविता यह सोच कर खामोश हो जाती थी कि शायद उन की जिम्मेदारी बढ़ गई है. इसीलिए वह चिड़चिड़े हो गए हैं.

लेकिन कविता की यह गलतफहमी तब दूर हो गई जब अचानक ही डा. रेवांथ का मोबाइल फोन उन के हाथ आया. मोबाइल के मैसेज और वीडियो ने डा. रेवांथ और हर्षिता के सारे राज खोल दिए. कविता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का पति उस के साथा इतना बड़ा विश्वासघात करेगा.

पत्नी को लगाया जहरीला इंजेक्शन

इस पर जब आए दिन कविता आपत्ति करती तो दोनों में हाथापाई तक हो जाती थी. रेवांथ कविता पर तलाक देने का दबाव बनाते थे. हर्षिता ने तो पहले से अपने पति को तलाक  का नोटिस दे दिया था.

मगर कविता इस के लिए तैयार नहीं थी. हर्षिता और डा. रेवांथ ने कविता से छुटकारा पाने के लिए एक खतरनाक साजिश रच कर मौके का इंतजार करने लगे. 2 सालों तक चले इस नाटक का परदा तब गिरा जब अचानक कविता की तबीयत खराब हो गई और डा. रेवांथ ने मौके का फायदा उठाते हुए इलाज के बहाने पत्नी को जहरीला इंजेक्शन दे कर मौत की नींद सुला दिया.

इस के बाद रेवांथ ने पुलिस को गुमराह करने के लिए अलमारी का सारा सामान निकाल कर पूरे फ्लैट में बिखेर दिया. इस के बाद अलमारी के अंदर रखी सारी ज्वैलरी निकाली. कविता जो ज्वैलरी पहने हुए थी, वह सारी उतार ली. फिर सारी ज्वैलरी कुरियर के द्वारा हर्षिता को भेज दी. इस के बाद रेवांथ ने थाने में झूठी शिकायत दर्ज करवा दी.

लेकिन जब पुलिस की तफ्तीश तेजी से बढ़ी तो डा. रेवांथ अपनी गिरफ्तारी से घबरा गया था और पत्नी की हत्या के 5 दिनों बाद 22 फरवरी, 2020 को बंदी कोप्पलु रेलवे स्टेशन के क्रौसिंग पर जा कर यशवंत एक्सप्रैस के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली. आत्महत्या करने के पहले डा. रेवांथ ने अपनी प्रेमिका हर्षिता से लगभग 15 मिनट तक फोन पर बात की और अपनी आत्महत्या के बारे में बताया.

डा. रेवांथ की आत्महत्या के बाद हर्षिता भी बुरी तरह डर गई थी. पुलिस उस तक भी पहुंच सकती थी. इसलिए हर्षिता ने एक सुसाइड नोट लिखा और अपने बैडरूम में जा कर पंखे से लटक कर जीवनलीला समाप्त कर ली.

डा. रेवांथ की आत्महत्या की रिपोर्ट रेलवे पुलिस और हर्षिता सुदर्शन की आत्महत्या की रिपोर्ट राजाराजेश्वरी पुलिस ने दर्ज की थी.

चूंकि कविता की हत्या की जांच थाना कादुरू थाना पुलिस कर रही थी और ये दोनों आत्महत्याएं कविता की मौत के मामले से संबंधित थी. इसलिए रेलवे पुलिस और राजाराजेश्वरी पुलिस ने आत्महत्या की रिपोर्ट थाना कादुरू पुलिस के पास भेज दीं.

थाना कादुरू पुलिस ने मामले की गहराई से जांचपड़ताल कर फाइल एसपी हरीश पांडेय को सौंप दी थी. डा. रेवांथ के दोनों बच्चों को उन की नानानानी को सौंप दिया गया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, अगस्त 2020  

एक जवान रानी और बुड्ढे राजा: लुटेरी दुल्हन का किस्सा

भोपाल के कोलार इलाके में रहने वाले 72 वर्षीय सोमेश्वर के पास सब कुछ था. दौलत, इज्जत, अपना बड़ा सा घर और वह सब कुछ जिस की जरूरत सुकून, सहूलियत और शान से जीने के लिए होती है.

पेशे से इंजीनियर रहे सोमेश्वर की पत्नी की करीब एक साल पहले मृत्यु हो गई थी, तब से वह खुद को काफी तन्हा महसूस करने लगे थे, जो कुदरती बात भी थी. रोमांटिक और शौकीनमिजाज सोमेश्वर ने एक दिन अखबार में इश्तहार दिया कि उन की देखरेख के लिए एक स्वस्थ और जवान औरत की जरूरत है, जिस से वह शादी भी करेंगे.

जल्द ही उन की यह जरूरत पूरी करने वाला एक फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम शंकर दूबे बताते हुए कहा कि वह पन्ना जिले के भीतरवार गांव से बोल रहा है. उस की जानपहचान की एक जवान औरत काफी गरीब है, जिस के पेट में गाय ने सींग मार दिया था, इसलिए उस ने शादी नहीं की क्योंकि वह मां नहीं बन सकती थी.

सोमेश्वर के लिए यह सोने पे सुहागा वाली बात थी, क्योंकि इस उम्र में वे न तो औलाद पैदा कर सकते थे और न ही बालबच्चों वाली बीवी चाहते थे, जो उन के लिए झंझट वाली बातें थीं. बात आगे बढ़ी तो उन्होंने शंकर को उस औरत के साथ भोपाल आने का न्यौता दे दिया.

चट मंगनी पट ब्याह

शंकर जब रानी को ले कर उन के घर आया तो सोमेश्वर उसे देख सुधबुध खो बैठे. इस में उन की कोई गलती थी भी नहीं, भरेपूरे बदन की 35 वर्षीय रानी को देख कर कोई भी उस की मासूमियत और भोलेपन पर पहली नजर में मर मिटता. देखने में भी वह कुंवारी सी ही लग रही थी, लिहाजा सोमेश्वर के मन में रानी को देखते ही लड्डू फूटने लगे और उन्होंने तुरंत शादी के लिए हां कर दी.

इस उम्र और हालत में कोई बूढ़ा भला बैंडबाजा बारात के साथ धूमधाम से तो शादी करता नहीं, इसलिए बीती 20 फरवरी को उन्होंने रानी से घर में ही सादगी से शादी कर ली और घर के पास के मंदिर में जा कर उस की मांग में सिंदूर भर कर अपनी पत्नी मान लिया.

जिस का मुझे था इंतजार, वो घड़ी आ गई…’ की तर्ज पर सुहागरात के वक्त सोमेश्वर ने अपनी पहली पत्नी के कोई 15 तोले के जेवरात जिन की कीमत करीब 6 लाख रुपए थी, रानी को उस की मांग पर दे दिए और सुहागरात मनाई. उन की तन्हा जिंदगी में जो वसंत इस साल आया था, उस से वह खुद को बांका जवान महसूस कर रहे थे.

रानी को पत्नी का दरजा और दिल वह दे ही चुके थे, इसलिए ये सोना, चांदी, हीरे, मोती उन के किस काम के थे. ये सब तो रानी पर ही फब रहे थे. लेकिन रानी ने दिल के बदले में उन्हें दिल नहीं दिया था, यह बात जब उन की समझ आई तब तक चिडि़या खेत चुग कर फुर्र हो चुकी थी. साथ में उस का शंकर नाम का चिड़वा भी था.

जगहंसाई से बचने के लिए सोमेश्वर ने अपनी इस शादी की खबर किसी को नहीं दी थी. यहां तक कि कोलकाता में नौकरी कर रहे एकलौते बेटे को भी इस बात की हवा नहीं लगने दी थी कि पापा उस के लिए उस की बराबरी की उम्र वाली मम्मी ले आए हैं.

यूं खत्म हुआ खेल

सोमेश्वर की सुहागरात की खुमारी अभी पूरी तरह उतरी भी नहीं थी कि दूसरे ही दिन शंकर ने घर आ कर यह मनहूस खबर सुनाई की रानी की मां की मौत हो गई है, इसलिए उसे तुरंत गांव जाना पड़ेगा.

रोकने की कोई वजह नहीं थी, इसलिए सोमेश्वर ने उसे जाने दिया और मांगने पर रानी को 10 हजार रुपए भी दे दिए जो उन के लिए मामूली रकम थी. पर गैरमामूली बात यह रही कि जल्दबाजी में रानी रात को पहने हुए गहने उतारना भूल गई. उन्होंने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया.

2 दिन बाद शंकर फिर उन के घर आया और उन्हें बताया कि रानी अब मां की तेरहवीं के बाद ही आ पाएगी और उस के लिए 40 हजार रुपए और चाहिए. सोमेश्वर ने अभी पैसे दे कर उसे चलता ही किया था कि उन के पास राजस्थान के कोटा से एक फोन आया. यह फोन राजकुमार शर्मा नाम के शख्स का था, जिस की बातें सुन उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

63 वर्षीय राजकुमार ने उन्हें बताया कि कुछ दिन पहले ही उन की शादी रानी से हुई थी, जोकि उस के रिश्तेदार शंकर ने करवाई थी. लेकिन दूसरे ही दिन रानी की मां की मौत हो गई थी, इसलिए वे दोनों गांव चले गए थे. इस के बाद से उन दोनों का कहीं अतापता नहीं है.

रानी और शंकर भारी नगदी ले गए हैं और लाखों के जेवरात भी. राजकुमार को सोमेश्वर का नंबर रानी की काल डिटेल्स खंगालने पर मिला था. दोनों ने खुल कर बात की और वाट्सऐप पर रानी के फोटो साझा किए तो इस बात की तसल्ली हो गई कि दोनों को कुछ दिनों के अंतराल में एक ही तरीके से बेवकूफ बना कर ठगा गया था.

कल तक अपनी शादी की बात दुनिया से छिपाने वाले सोमेश्वर ने झिझकते हुए अपने बेटे को कोलकाता फोन कर आपबीती सुनाई तो उस पर क्या गुजरी होगी, यह तो वही जाने लेकिन समझदारी दिखाते हुए उस ने भोपाल पुलिस को सारी हकीकत बता दी.

जांच हुई तो चौंका देने वाली बात यह उजागर हुई कि इन दोनों ने सोमेश्वर और राजकुमार को ही नहीं, बल्कि जबलपुर के सोनी नाम के एक और अधेड़ व्यक्ति को भी इसी तर्ज पर चूना लगाया था, जो सरकारी मुलाजिम थे.

भोपाल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने फुरती दिखाते हुए दोनों को दबोच लिया तो रानी का असली नाम सुनीता शुक्ला निवासी सतना और शंकर का असली नाम रामफल शुक्ला निकला. हिरासत में इन्होंने तीनों बूढ़ों को ठगना कबूल किया. पुलिस ने दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया.

बन गए बंटी और बबली

दरअसल, सुनीता रामफल की दूसरी पत्नी थी. सतना का रहने वाला रामफल सेना में नौकरी करता था, लेकिन तबीयत खराब रहने के चलते उसे नौकरी छोड़नी पड़ी थी. पहली पत्नी के रहते ही उस ने सुनीता से शादी कर ली थी. दोनों बीवियों में पटरी नहीं बैठी और वे आए दिन बिल्लियों की तरह लड़ने लगीं. इस पर रामफल ने सुनीता को छोड़ दिया.

कुछ दिन अलग रहने के बाद सुनीता को समझ आ गया कि बिना मर्द के सहारे और पैसों के इज्जत तो क्या बेइज्जती से भी गुजर करना आसान नहीं है. यही सोच कर वह रामफल के पास वापस आ गई और अखबारों के वैवाहिक विज्ञापनों के बूढ़ों के बारे में उसे अपनी स्कीम बताई तो रामफल को भी लगा कि धंधा चोखा है.

एक के बाद एक इन्होंने 3 बूढ़ों को चूना लगाया. हालांकि पुलिस को शक है कि इन्होंने कई और लोगों को भी ठगा होगा. अभी तो इस हसीन रानी के 3 राजा ही सामने आए हैं, मुमकिन है कि कई दूसरों ने शरमोहया के चलते रिपोर्ट ही दर्ज न कराई हो.

लुटेरी दुलहनों द्वारा यूं ठगा जाना कोई नई बात नहीं है, बल्कि अब तो यह सब आम बात होती जा रही है. सोमेश्वर, राजकुमार और सोनी जैसे बूढ़े जिस्मानी जरूरत और सहारे के लिए शादी करें, यह कतई हर्ज की बात नहीं. हर्ज की बात है इन की हड़बड़ाहट और बेसब्री, जो इन के ठगे जाने की बड़ी वजह बनते हैं.

—कथा में सोमेश्वर परिवर्तित नाम है

सौजन्य: मनोहर कहानियां, अप्रैल 2020

मोहब्बत का फीका रंग: रास न आया प्यार

लखनऊ के वजीरगंज मोहल्ले की रहने वाली नूरी का असली नाम शनाया था. लेकिन वह देखने में इतनी सुंदर थी कि लोगों ने प्यार से उस का नाम नूरी रख दिया था. नूरी केवल चेहरे से ही नहीं, अपने स्वभाव से भी बहुत प्यारी थी. वह अपनी बातों से सभी का मन मोह लेती थी. एक बार जो उस के करीब आता था, वह हमेशा के लिए उस का हो जाता था.

नूरी के परिवार में उस के पिता मोहम्मद असलम, मां और भाईबहन थे. नूरी पढ़ीलिखी थी. वह स्कूटी चलाती थी और अपने घरपरिवार की मदद के लिए बाहर भी जाती थी. अपने काम के लिए वह किसी पर निर्भर नहीं थी. उस का यह अंदाज लोगों को पसंद आता था. मोहल्ले के कई लड़के उसे अपनी तरफ आकर्षित करना चाहते थे.

वजीरगंज लखनऊ के मुसलिम बाहुल्य इलाकों में से एक है. यहां की आबादी काफी घनी है. लेकिन लखनऊ के कैसरबाग और डौलीगंज जैसे खुले इलाकों से जुड़े होने के कारण वजीरगंज का बाहरी इलाका काफी साफसुथरा और खुलाखुला है. सिटी रेलवे स्टेशन, कैसरबाग बस अड्डा, मैडिकल कालेज के करीब होने के कारण यहां बाहरी लोगों का आनाजाना भी बना रहता है. ऐतिहासिक रूप से भी वजीरगंज लखनऊ की काफी मशहूर जगह है.

यहीं पर नूरी की मुलाकात सुलतान से हुई. जिस तरह से नूरी अपने नाम के अनुसार सुंदर थी, उसी तरह सुलतान भी अपने नाम के हिसाब से दबंग था. लड़कियों को प्रभावित कर लेना उस की खूबी थी. उस की इसी खूबी के चलते नूरी जल्दी ही उस से प्रभावित हो गई.

हालांकि नूरी और सुलतान की उम्र में अच्छाखासा फासला था. 20 साल की नूरी को सलमान खान जैसी बौडी रखने वाला सुलतान मन भा गया. घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर नूरी ने सुलतान के साथ निकाह कर लिया.

शादी के बाद दोनों के संबंध कुछ दिन तक बहुत मधुर रहे. प्रेमी से पति बने सुलतान को नूरी में अब पहले जैसा आकर्षण नजर नहीं आ रहा था. इस की वजह यह थी कि सुलतान को नईनई लड़कियों का शौक था. नूरी को भी अब सुलतान की सच्चाई का पता चल गया था. उसे समझ में आ गया था कि उस ने जल्दबाजी में गलत फैसला कर लिया था, लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी.

सैक्स रैकेट चलाता था सुलतान

नूरी को पता चला कि सुलतान लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर उन से शारीरिक संबंध बनाता था. इस के बाद वह लड़कियों के सहारे नशे के साथसाथ सैक्स रैकेट भी चलाता था. यही उस का पेशा था, जिसे वह मोहब्बत समझी थी. नूरी पूरी तरह सतर्क थी, इस कारण सुलतान उस का बेजा इस्तेमाल नहीं कर पाया.वह अपराधी प्रवृत्ति का था, जेल आनाजाना उस के लिए मामूली बात थी.

यह पता चलने पर नूरी को निराशा हुई और अपने फैसले पर बुरा भी लगा. लेकिन अब समय निकल चुका था. नूरी पूरी तरह से सुलतान के कब्जे में थी. दूसरी तरफ उस के परिवार ने भी उस से संबंध खत्म कर दिए थे. हमेशा खुश रहने वाली नूरी के चेहरे की चमक गायब हो चुकी थी. उसे अपने फैसले पर पछतावा हो रहा था.

सुलतान जब भी जेल में या घर से बाहर रहता था, उस के घर सुलतान की बहन फूलबानो और बहनोई शबाब अहमद उर्फ शब्बू का आनाजाना बना रहता था. शब्बू का स्वभाव भी सुलतान जैसा ही था.

वह हरदोई जिले के संडीला का रहने वाला था. उस के खिलाफ संडीला कोतवाली में 8, लखनऊ की महानगर कोतवाली में 2 और मलीहाबाद कोतवाली में 2 मुकदमे दर्ज थे. अब वह चौक इलाके में रहता था. जरूरत पड़ने पर वह वजीरगंज में सुलतान के घर भी आताजाता था.

सुलतान का रिश्तेदार होने के कारण किसी को कोई शक भी नहीं होता था. सुलतान अकसर जेल में रहता या फरार होता तो शब्बू उस के घर आता और नूरी की मदद करता था. नूरी की सुंदरता से वह भी प्रभावित था.

नूरी के प्रति शब्बू के लगाव को बढ़ता देख सुलतान की बहन फूलबानो को बुरा लगता था. उस ने कई बार पति को मना भी किया कि अकेली औरत के पास जाना ठीक नहीं है. मोहल्ले वाले तरहतरह की बातें बनाते हैं. पर शब्बू को इन बातों से कोई मतलब नहीं था. कई बार जब फूलबानो ज्यादा समझाने लगती तो शब्बू उस से मारपीट करता था.

कुछ समय तक तो फूलबानो ने इस बात का जिक्र अपने भाई सुलतान से नहीं किया, पर धीरेधीरे वह अपने भाई को सब कुछ बताने लगी. बहन को दुखी देख सुलतान ने अपनी पत्नी नूरी से बात कर के शब्बू से दूरी बनाने के लिए कहा. नूरी ने उसे बताया कि शब्बू खुद उस के घर आताजाता था. अपराध जगत से जुड़ा होने के कारण सुलतान को लगने लगा कि शब्बू ऐसे मानने वाला नहीं है.

दूसरी तरफ सुलतान की बहन फूलबानो इस सब के लिए अपने पति शब्बू से ज्यादा भाभी नूरी को जिम्मेदार मानती थी. फूलबानो को नूरी की खूबसूरती से भी जलन होती थी. वह अपने भाई को बारबार समझाती थी कि नूरी ही असल फसाद की जड़ है. जब तक वह रहेगी, कोई बात नहीं बनेगी.

हत्या की बनाई योजना

शब्बू सुलतान की मदद भी करता था और उस की बहन फूलबानो का पति भी था. ऐसे में वह उस से दूरी नहीं बना सकता था. फूलबानो अब नूरी के खिलाफ अपने पति को भी यह कह कर भड़काने लगी कि नूरी के दूसरे पुरुषों से भी संबंध हैं.

इसी बात को मुद्दा बना कर फूलबानो और सुलतान शब्बू पर नूरी को रास्ते से हटाने का दबाव बनाने लगे. पत्नी और साले के दबाव में शब्बू ने नूरी को रास्ते से हटाने के लिए ऐसी योजना बनाई, जिस से नूरी रास्ते से भी हट जाए और किसी पर कोई आंच भी न आए.

24 फरवरी, 2020 को सुलतान को जेल से पेशी पर कचहरी आना था. फूलबानो और शब्बू के साथ चिकवन टोला का रहने वाला जुनैद भी उन के साथ हो लिया. जब चारों लोग घर से निकले तो शब्बू और जुनैद पल्सर बाइक से और फूलबानो व नूरी स्कूटी से कचहरी जाने के लिए निकले.

दोपहर 2 बजे तक ये लोग कचहरी में सुलतान से मिले और फिर नूरी को मारने के इरादे से इधरउधर सुरक्षित जगह की तलाश करने लगे. शब्बू को मलीहाबाद इलाके की पूरी जानकारी थी. उस ने नूरी की हत्या के लिए वही जगह चुनी. इधरउधर घूमने के बाद चारों लोग देर शाम फरीदीपुर गांव पहुंचे. रात 8 बजे सन्नाटे का लाभ उठाते हुए तीनों ने चाकू से नूरी का गला रेत दिया.

नूरी की हत्या आत्महत्या लगे, इस के लिए उस के शव को पास के रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया, ताकि ट्रेन की चपेट में आने के बाद यह आत्महत्या सी लगे. नूरी की स्कूटी, मोबाइल और चाकू ले कर ये लोग संडीला भाग गए. इधर रात को ट्रेन के चालक ने जब रेलवे लाइन पर शव पड़ा देखा तो उस ने स्टेशन मास्टर मलीहाबाद को सूचना दी.

स्टेशन मास्टर ने इंसपेक्टर मलीहाबाद सियाराम वर्मा और सीओ मलीहाबाद सैय्यद नइमुल हसन को ट्रैक पर लाश पड़ी होने की जानकारी दी. पुलिस ने अब काररवाई के साथसाथ सब से पहले शव की शिनाख्त के लिए प्रयास किया तो पता चला शव वजीरगंज की रहने वाली नूरी का है.

उस के पिता मोहम्मद असलम ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया. पुलिस छानबीन में लग गई. पुलिस ने जब नूरी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर छानबीन की तो उसे संडीला के रहने वाले शब्बू के खिलाफ सबूत मिल गए.

आरोपी चढ़े हत्थे

ऐसे में पुलिस ने पहले शब्बू, बाद में उस की पत्नी फूलबानो व जुनैद को पकड़ लिया. पता चला कि नूरी की हत्या इन तीनों ने ही की थी. पुलिस को गुमराह करने के लिए तीनों लोगों ने अपने मोबाइल घर पर छोड़ दिए थे, जिस से उन की लोकेशन नूरी के साथ न मिले.

सीओ नइमुल हसन ने बताया कि घटना में शामिल जुनैद उर्फ रउफ की बाइक रिपेयरिंग की दुकान है. हत्या के बाद इन लोगों ने नूरी की स्कूटी के कई टुकड़े कर के इधरउधर कर दिए थे. शब्बू ने नूरी के मोबाइल फोन के सिम और बैटरी को निकाल कर इधरउधर फेंक दिया था. पुलिस ने इन की निशानदेही पर यह सब सामान बरामद कर लिया.

पुलिस के मुताबिक सुलतान अपनी पत्नी नूरी को रास्ते से हटाना चाहता था. इस की वजह उस के अवैध संबंध बताए जा रहे थे. सुलतान और उस की बहन फूलबानो को लगता था कि नूरी और शब्बू के संबंध थे, परेशानी की एक वजह यह भी थी. इस काम में शब्बू और उस के साथी जुनैद को भी साथ देना पड़ा.

पुलिस ने फूलबानो, शब्बू और जुनैद के खिलाफ हत्या का मुकदमा कायम कर तीनों को जेल भेज दिया. नूरी के पति को हत्या की साजिश रचने का आरोपी माना गया. इस तरह मलीहाबाद पुलिस ने ब्लाइंड मर्डर का खुलासा कर के बता दिया कि अपराधी कितनी ही होशियारी क्यों न दिखा ले, अपराध सिर चढ़ कर बोलता है. नूरी ने जिसे मोहब्बत समझा था, उस सुलतान में कई कमियां थीं, जिन के चलते नूरी को उस की मोहब्बत रास नहीं आई.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

यार की खुशबू: प्यार के लिए पति से धोखा

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी. करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था.

कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई.

12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई.

थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है. इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे.

इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी.

कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए.

फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए. उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली.

थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी. थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी.

इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था.

फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई.

जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए.

इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

दक्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र  की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई.

पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता.

एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी.

खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे.

कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा.

कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा.

कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी.

कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा.

पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, अप्रैल 2020

पति का दंश: लव मैरिज का खतरनाक अंजाम

उत्तराखंड के जिला ऊधमसिंह नगर का एक उपनगर है जसपुर. 12 फरवरी, 2020 की शाम साढ़े 6 बजे किसी व्यक्ति ने जसपुर कोतवाली में फोन कर के बताया कि महुआ डाबरा, हरिपुर स्थित कालेज की ओर जाने वाली कच्ची सड़क किनारे गन्ने के खेत में एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह पौपुलर के जंगल के पास है.  फोन करने वाले ने सूचना दे कर फोन काट दिया. फोन लैंडलाइन पर आया था, इसलिए फोन करने वाले को कालबैक कर के कोई जानकारी नहीं ली जा सकती थी.

खबर मिलते ही कोतवाली प्रभारी उमेद सिंह दानू पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जब तक पुलिस टीम मौके पर पहुंची, तब तक अंधेरा हो चुका था. इस के बावजूद पुलिस ने जीप की रोशनी और टौर्च के सहारे लाश को खोज लिया. मृतका की लाश अर्द्धनग्न स्थिति में थी.

घटनास्थल का निरीक्षण करने पर पहली बार में ही यह बात समझ में आ गई कि मृतक की हत्या कहीं और कर के लाश को उस जगह ला कर फेंका गया है. लाश के पास ही एक लेडीज हैंड पर्स भी पड़ा था, जिस में कुछ दवाइयों के अलावा मेकअप का सामान, मोबाइल फोन, कुछ कंडोम्स वगैरह थे. लाश से कुछ दूरी पर लेडीज सैंडलनुमा जूती भी पड़ी मिली.

घटनास्थल से सब चीजें और जानकारी जुटाने के बाद कोतवाल उमेद सिंह दानू ने महिला की लाश मिलने की सूचना काशीपुर के सीओ मनोज कुमार ठाकुर, एडीशनल एसपी राजेश भट्ट, एसएसपी बरिंदरजीत सिंह को दे दी. खबर पा कर उच्चाधिकारी घटनास्थल पर आ गए. घटनास्थल पर पुलिस का जमावड़ा लगते देख आसपास के गांवों के कुछ लोग भी एकत्र हो गए थे. पुलिस ने उन से मृतका की शिनाख्त कराई तो उस की पहचान हो गई. पता चला मृतका गांव सुआवाला, जिला बिजनौर की रहने वाली जसवीर कौर उर्फ सिमरनजीत थी. उस के पति का नाम हरविंदर सिंह है.

मृतका की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस अफसरों ने उस के घर वालों तक घटना की जानकारी पहुंचाने के लिए 2 सिपाहियों को भेज दिया. हरविंदर की हत्या की बात सुन कर उस के घर वाले तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

मौकाएवारदात पर पहुंचते ही मृतका के भाई राजेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि जसवीर कौर की हत्या उस के ससुराल वालों ने की है. उन्होंने ही लाश यहां ला कर डाली होगी. राजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस की बहन मामा के लड़के की शादी में आई थी, लेकिन 5 फरवरी को उस का ममेरा भाई सोनी उसे उस की ससुराल सुआवाला छोड़ आया था. उस के बाद उस की जसवीर से कोई बात नहीं हो पाई थी.

राजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस का बहनोई हैप्पी ड्रग्स का सेवन करता है, जिस की वजह से वह घर का कामकाज भी नहीं करता था. नशे की लत के चलते वह जसवीर को बिना किसी बात के मारतापीटता था. साथ ही वह दोनों बच्चों को भी उस से दूर रखता था. इसी कलह की वजह से जसवीर कौर ममेरे भाई की शादी में भी अकेली ही आई थी.

पुलिस पूछताछ में राजेंद्र ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि जसवीर और हरविंदर ने प्रेम विवाह किया था. लेकिन शादी के कुछ दिन बाद दोनों के बीच खटास पैदा हो गई थी. जिस की वजह से हरविंदर उसे बिना बात के प्रताडि़त करने लगा था.

25 सितंबर, 2019 को हरविंदर सिंह ने उस के साथ मारपीट की थी, जिस के बाद मामला थाने तक जा पहुंचा था. इस बारे में जसवीर ने थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर में मारपीट की एफआईआर दर्ज कराई थी. बाद में पुलिस ने हरविंदर सिंह को थाने बुलाया और समझाबुझा कर आपस में समझौता करा दिया था. इस के बाद वह जसवीर कौर को उस की ससुराल छोड़ आया था.

लेकिन पुलिस पूछताछ में जसविंदर कौर के ससुराल वालों का कहना था कि जब से वह अपने भाई की शादी में गई थी, घर वापस नहीं लौटी थी. उस की हत्या की सच्चाई जानने के लिए पुलिस को उस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था.

मृतका के भाई राजेंद्र ने थाना कोतवाली में जसवीर के पति हरमिंदर सिंह उर्फ हैप्पी, ससुर चरणजीत सिंह, सास रानू व देवर हरजीत सिंह उर्फ भारू निवासी ग्राम बहादरपुर सुआवाला, थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर के विरुद्ध हत्या का मामला दर्ज करा दिया. लेकिन उन के विरुद्ध कोई सबूत न मिलने के कारण पुलिस कोई काररवाई नहीं कर सकी.

इस केस के खुलासे के लिए पुलिस ने मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स भी चैक कीं, जिस में 4 ऐसे लोगों के नंबर मिले, जिन पर मृतका ने काफी देर तक बात की थी. लेकिन उन नंबर धारकों से पूछताछ करने पर भी पुलिस इस केस से संबंधित कोई खास जानकारी नहीं जुटा पाई.

सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग

छानबीन में पुलिस ने उस क्षेत्र के अलगअलग स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. साथ ही मृतका के मोबाइल को भी सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन इस सब से पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. उसी दौरान पुलिस को ठाकुरद्वारा-भूतपुरी बस अड्डे पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में 8 फरवरी, 2020 को सुबह के 11 बजे मृतका बस स्टौप पर खड़ी नजर आई.

इस से यह बात साफ हो गई कि ससुराल जाने के लिए मृतका वहां से बस में सवार हुई थी. कहा जा सकता था कि वह 8 फरवरी को अपनी ससुराल जरूर गई थी, जबकि उस के ससुराल वालों का कहना था कि अपने भाई की शादी में जाने के बाद वह घर वापस नहीं आई. ससुराल पक्ष के लोगों के बयान पुलिस के लिए छानबीन का अहम हिस्सा बनते जा रहे थे.

इस केस की जांच में जुटी पुलिस टीमें मृतका के पति हरविंदर, उस के पिता चरनजीत सिंह और एक रिश्तेदार तरनवीर सिंह निवासी सुआवाला, जिला बिजनौर को पूछताछ के लिए जसपुर कोतवाली ले आई. कोतवाली में पुलिस ने तीनों से अलगअलग पूछताछ की.

उन तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास था. इस से ससुराल पक्ष शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने मृतका के पति हरविंदर को एकांत में ले जा कर सख्ती से पूछताछ की तो वह पुलिस के सामने टूट गया.

उस ने अपना जुर्म कबूलते हुए बताया कि 8 फरवरी को जसवीर कौर घर आई तो किसी बात को ले कर उस से नोंकझोंक हो गई. दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि गुस्से के आवेग में उस ने चादर से उस का मुंह बंद कर उस की हत्या कर दी.

पुलिस ने मृतका के पर्स से मेकअप का कुछ सामान व कंडोम बरामद किए थे, जिन को ले कर पुलिस संशय में थी. घटनास्थल पर मृतका का शव अर्द्धनग्न हालत में मिला था, जिसे देख कर लग रहा था कि उस के साथ पहले रेप हुआ होगा, बाद में दरिंदों ने उस की हत्या कर दी होगी.

इसी वजह से पुलिस प्रथमदृष्टया इस केस को रेप से जोड़ कर देख रही थी, लेकिन जब केस का खुलासा हुआ तो पुलिस भी हैरत में रह गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई. दरअसल, यह करतूत जसवीर कौर के ससुराल वालों की थी. उस से छुटकारा पाने के लिए उन लोगों ने इस हत्याकांड को बड़े ही शातिराना ढंग से अंजाम दिया था.

गांव मलपुरी जसपुर से कोई 6 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है. 32 वर्षीया जसवीर कौर इसी गांव के स्व. अमरजीत सिंह की बेटी थी. 15 साल पहले जसवीर कौर की शादी हरविंदर सिंह से हुई थी. हरविंदर सिंह जसपुर से लभग 7 किलोमीटर दूर भूतपुरी रोड पर गांव सुआवाला में रहता था.

शादी के समय हरविंदर प्राइवेट बस का ड्राइवर था. उस के पास जुतासे की भी कुछ जमीन थी. तहकीकात के दौरान पुलिस के सामने यह बात भी खुल कर सामने आई कि 15 साल पहले जसवीर कौर का हरविंदर से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस के चलते दोनों ने स्वेच्छा से विवाह कर लिया था.

शादी के कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा, लेकिन फिर दोनों के बीच दूरियां बढ़ीं और गृहस्थी में खटास आनी शुरू हो गई. दोनों के बीच मनमुटाव का कारण बनी हरविंदर सिंह की मां राणो कौर. हालांकि हरविंदर सिंह ने जसविंदर के साथ अपनी मरजी से कोर्टमैरिज की थी, लेकिन उस की मां राणो कौर को जसविंदर मन नहीं भाई थी.

इसी के चलते उस ने दोनों के संबंधों में विष घोलना शुरू कर दिया था. हालांकि हरविंदर जसवीर कौर से उम्र में काफी बड़ा था, लेकिन फिर भी जसवीर कौर उसे बहुत प्यार करती थी.

समय के साथ जसवीर कौर 2 बच्चों की मां बन गई. लेकिन इस के बाद भी न तो उसे पति हरविंदर सिंह ने मानसम्मान दिया और न ही उस के परिवार के अन्य लोगों ने. 2 बच्चों की मां बन जाने के बाद भी जसवीर कौर को उस के बच्चों से अलग रखा जाता था.

हरविंदर सिंह खुद भी दोनों बच्चों के साथ अपनी मां राणो के कमरे में सोता था. इसी मनमुटाव के चलते जब दोनों के बीच विवाद ज्यादा बढ़ा तो रिश्तेदारों के सहयोग से हरविंदर सिंह को परिवार से अलग कर दिया गया.

उस के बाद उस का छोटा भाई हरजीत सिंह अपनी मां के साथ खानेपीने लगा. जबकि हरविंदर अपनी पत्नी जसवीर कौर के साथ गुजरबसर कर रहा था. लेकिन यह सब भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सका. कुछ ही दिनों बाद हरविंदर अपनी मां के गुणगान करने लगा और जसवीर कौर की ओर से लापरवाह हो गया.

नशे का गुलाम था हरविंदर

हरविंदर राशन वगैरह जरूरी सामान भी नहीं ला कर देता था. वह खुद तो अपनी मां के साथ खाना खा लेता था, लेकिन जसवीर कौर को खाने के लाले पड़ने लगे थे. उस के पास 2 बच्चे थे, जिन की गुजरबसर करना उस के लिए मुश्किल हो गया था. ऊपर से पति आए दिन उस के साथ मारपीट करता था.

हरविंदर पहले तो केवल शराब का ही नशा करता था, लेकिन बाद में अपना कामधंधा सब छोड़ कर भांग, अफीम आदि का भी सेवन करने लगा था. जसवीर कौर जब कभी उसे समझाने वाली बात करती तो वह उसे बुरी तरह मारतापीटता था. वह उसे घर पर चैन से नहीं रहने देता था.

अगर वह किसी काम से बाहर जाती तो हरविंदर उस पर चरित्रहीनता का लांछन लगाता था. इस सब से जसवीर कौर की जिंदगी नरक बन गई थी. जसवीर कौर के पास अपना मोबाइल था. जब कभी उस के फोन पर किसी की काल आती तो वह उसे शक की निगाहों से देखता. हरविंदर सिंह उसे किसी से भी फोन पर बात नहीं करने देता था. इस सब के चलते दोनों के संबंधों में कड़वाहट भरती गई.

25 सितंबर, 2019 को हरविंदर सिंह ने जसवीर कौर के साथ मारपीट की, जिस के बाद मामला थाने तक पहुंच गया. नतीजतन जसवीर कौर ने थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर में मारपीट की एफआईआर दर्ज कराई. लेकिन पुलिस ने दोनों को समझाबुझा कर घर भेज दिया था.

थाने में हुए समझौते के बाद भी हरविंदर अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. वह फिर से उसे प्रताडि़त करने लगा. 3 फरवरी, 2020 को जसवीर कौर अपने मामा के लड़के की शादी में गई थी. वहां से वह 6 फरवरी को वापस लौट आई. फिर 7 फरवरी को वह दिन में 12 बजे घर से निकल गई. उस दिन वह घर न आ कर अगले दिन लौटी. उसी रात झगड़े के बाद हरविंदर ने उस का मोबाइल छीन कर रख लिया.

इसी को ले कर दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि हरविंदर सिंह ने गुस्से के आवेग में चादर से जसवीर का मुंह दबा दिया. जिस से उस की सांस अवरुद्ध हो गई और वह बेहोश हो कर गिर गई. फिर कुछ ही पलों में उस की सांस रुक गई.

जसवीर कौर को मरा देख हरविंदर सिंह बुरी तरह घबरा गया. उस ने यह जानकारी अपने पिता चरनजीत सिंह, मां राणो कौर को दी. इस से परिवार में दहशत फैल गई.

किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि उस की लाश का क्या किया जाए. हरविंदर ने अपने दोस्त तरनवीर सिंह को फोन कर अपने घर बुला लिया. चारों ने मिल कर रायमशविरा कर के उस की लाश को कहीं दूर फेंकने की योजना बनाई.

हत्या के बाद घिनौना षडयंत्र

तरनवीर अपनी बाइक बजाज पल्सर यूपी20पी 7585 ले कर आया था. चारों ने योजना बनाई कि जसवीर की लाश को ऐसी हालत में फेंका जाए ताकि लोग उसे देख कर रेप केस समझें और उस की हत्या का शक घर वालों पर न आने पाए.

इस योजना को अमलीजामा पहनाने हेतु चारों आरोपी जसवीर की लाश को पल्सर बाइक पर रख कर महुआडाबरा की ओर चल दिए. बाइक को तरनवीर चला रहा था. पीछे हरविंदर का छोटा भाई हरजीत सिंह जसवीर कौर की लाश को पकड़ कर बैठा था, जबकि दूसरी बाइक टीवीएस स्टार सिटी यूपी20क्यू 6491 को हरविंदर चला रहा था और उस के पीछे उस के पिता चरनजीत सिंह बैठे थे.

महुआडाबरा आते ही दोनों बाइक एक कच्चे रास्ते की तरफ बढ़ गईं. वहीं एक सुनसान जगह देख कर उन्होंने लाश गन्ने के खेत में फेंक दी. इस मामले को एक नया रूप देने के लिए पूर्व नियोजित योजनानुसार जसवीर के पर्स में मेकअप के सामान के साथ कंडोम के पैकेट भी रख दिए गए.

जसवीर कौर की लाश को गन्ने के खेत में डालने के बाद इन लोगों ने उस की सलवार को घुटनों तक खिसका दिया, ताकि देखने वाले यही समझें कि किसी ने उस के साथ रेप कर उस की हत्या की है.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद चारों अपने गांव सुआवाला लौट आए. लाश की स्थिति देख कर पुलिस भी यही अंदाजा लगा रही थी कि किसी ने बलात्कार कर उस की हत्या कर डाली. लेकिन जब पुलिस ने इस केस की गहराई से छानबीन की तो जांच के दौरान मिले साक्ष्यों के आधार पर केस की कड़ी से कड़ी जुड़ती गई.

पुलिस ने इस मामले में मृतका जसवीर कौर के पति हरविंदर सिंह, उस के पिता चरनजीत सिंह, दोस्त तरनवीर सिंह व हरविंदर के छोटे भाई हरजीत सिंह को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. मृतका जसवीर कौर के बच्चों 10 वर्षीय किरन व 13 वर्षीय प्रीत को उस का मामा राजू अपने साथ ले गया था.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, अप्रैल 2020

पुखराज की खूनी लीला: जब पत्नी ही बन गई पति की खूनी

लीला और पुखराज का विवाह 2017 में हुआ था. पुखराज का परिवार जिला अजमेर के पीसांगन के नाड क्षेत्र में रहता था. पुखराज जाट को मिला कर उस के 5 भाई थे. यह परिवार कई पुश्तों से नाड के पास खेतों में बनी ढाणी में रह रहा था. सारे भाई खेतीबाड़ी व पशुपालन के साथ प्राइवेट नौकरी कर के अपने परिवार का लालनपालन करते थे.

पुखराज की पत्नी लीला का मायका अजमेर जिले के किशनगढ़ की बजरंग कालोनी में था. उस के परिवार में उस की मां रामकन्या और भाई किशन जाट थे. पुखराज और लीला का दांपत्य जीवन खुशहाली में गुजर रहा था. पतिपत्नी में प्यार भी था और अंडरस्टैंडिंग भी. जब दोनों के बीच बेटी अनुप्रिया आ गई तो खुशियां और भी बढ़ गईं.

लीला अपनी मासूम बेटी अनुप्रिया से बहुत प्यार करती थी. उस की वजह से वह पति को पहले की तरह समय नहीं दे पाती थी. इस बात को ले कर दोनों के अपनेअपने तर्क थे. लेकिन पुखराज लीला के तर्कों से संतुष्ट नहीं होता था.

लीला ज्यादातर अपने मायके बजरंग कालोनी, किशनगढ़ में रहती थी. पुखराज को यह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उस ने अपना घर छोड़ कर किशनगढ़ के वार्ड नंबर-2, गांधीनगर में किराए का मकान ले लिया और वहीं रहने लगा.

लीला कहने को तो पति पुखराज को अपना सर्वस्व मानती थी, लेकिन उस का अवैध संबंध सिमारों की ढाणी में रहने वाले रामस्वरूप जाट से था. रामस्वरूप पैसे वाला था. जब उस की नजरें लीला से टकराईं तो वह उसे पाने को बेताब हो उठा. जब तक उस ने लीला का तन नहीं भोगा, तब तक उस के पीछे पड़ा रहा.

लीला और रामस्वरूप ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले रखे थे. जब भी मौका मिलता, दोनों मोबाइल पर बात कर के मिलने की जगह तय कर लेते. रामस्वरूप अपनी प्रेमिका की हर चाहत पूरी करता था. यही वजह थी कि लीला अपने पति पुखराज के बजाय रामस्वरूप को ज्यादा तवज्जो देती थी.

वैसे भी रामस्वरूप पुखराज से स्मार्ट और गठीले बदन वाला युवक था. बातें भी रसदार करता था और तन के खेल में भी माहिर था. रामस्वरूप के आगे पुखराज कुछ नहीं था. लीला ने भी अब अपने दिल में पति की जगह प्रेमी की तसवीर बसा ली थी.

कह सकते हैं कि वह रामस्वरूप पर फिदा थी. दांपत्य में जब भी ऐसा होता है, पतिपत्नी के रिश्ते में दरार आ जाती है. पुखराज लीला के रूखेपन को समझ नहीं पा रहा था. इस सब को ले कर वह मन ही मन परेशान रहने लगा.

जो लीला पुखराज को ले कर प्यार का दंभ भरती थी, उसे वही पति अब फूटी आंख नहीं सुहाता था. बहरहाल, पतिपत्नी में मनमुटाव रहने लगा तो आपसी रिश्तों में भी खटास आ गई.

पुखराज ने लिखाई रिपोर्ट

दिसंबर, 2019 में पुखराज ने रामस्वरूप जाट और उस के दोस्त सुरेंद्र के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. उस ने रामस्वरूप जाट और सुरेंद्र जाट पर पत्नी और बेटी के अपहरण और पत्नी से बलात्कार का आरोप लगाया था.

उस की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने रामस्वरूप और सुरेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में रामस्वरूप ने बताया कि पुखराज की पत्नी लीला अपनी मरजी से उस के साथ गई थी, साथ में उस की बेटी भी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया. गिरफ्तारी के 2 महीने बाद रामस्वरूप जमानत पर छूट गया. उसे लीला से कोई शिकायत नहीं थी. सो उस से फिर से मिलने लगा. इसी बीच रामस्वरूप ने लीला, उस की मां रामकन्या और भाई किशन जाट पर दबाव डाला कि वे पुखराज से राजीनामा करवा दें.

रामस्वरूप के कहने पर लीला, उस की मां और भाई ने पुखराज पर दबाव बना कर कहा कि रामस्वरूप और सुरेंद्र को सजा दिला कर उसे क्या हासिल होगा. बेहतर यह है कि राजीनामा कर ले. लेकिन पुखराज ने समझौते से साफ मना कर दिया.

लीला ने यह बात मां, भाई और रामस्वरूप को बता दी. इस से पतिपत्नी के रिश्ते में और भी जहर घुलने लगा. रामस्वरूप की तमाम कोशिशों के बाद भी पुखराज राजीनामे को राजी नहीं हुआ. दरअसल, रामस्वरूप को डर था कि पुखराज द्वारा दर्ज कराए गए अपहरण और दुष्कर्म के केस में उसे और सुरेंद्र को सजा हो जाएगी.

सजा के डर से ही रामस्वरूप पुखराज पर राजीनामे के लिए दबाव बना रहा था. जबकि पुखराज किसी भी कीमत पर राजीनामे के लिए तैयार नहीं था.

अपना दांव खाली जाता देख रामस्वरूप ने यह कह कर लीला की मां और भाई किशन को पुखराज के खिलाफ भड़काया कि वह कैसा दामाद है जो तुम लोगों का इतना कहना भी नहीं मानता. वह तुम सब की थाने, कचहरी में इज्जत उछाल रहा है और तुम चुप हो. उस ने यह भी कहा कि लीला को उस से अलग हो जाना चाहिए. ऐसा करने पर वह अपने आप राजीनामे को तैयार हो जाएगा.

रामस्वरूप के भड़काने से लीला भी उस की बातों में आ कर पुखराज से रिश्ता तोड़ने को तैयार हो गई. पुखराज को अपने हितैषियों से पता चल गया कि लीला और रामस्वरूप के बीच अवैध संबंध हैं. यह जान कर पुखराज को गहरा आघात लगा. उस ने लीला से इस मामले में बात की तो वह उस पर चढ़ दौड़ी.

इस के बाद पतिपत्नी में रोज झगड़ा होने लगा. दिनबदिन दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. मतभेद इतने गहरे हो गए कि लीला ने मां के कहने पर वकील के मार्फत पुखराज को तलाक का नोटिस भिजवा दिया.

पतिपत्नी ने वकील के हलफनामे के आधार पर एकदूसरे से दूर रहने का निर्णय ले लिया. फिर दोनों अलग हो गए. डेढ़ वर्षीय बेटी अनुप्रिया को पुखराज ने अपने पास रख लिया. लीला ने खूब हाथपैर मारे कि बेटी उसे मिल जाए, मगर पुखराज नहीं माना. बच्ची का वह स्वयं पालनपोषण करने लगा.

पुखराज बेटी के साथ किशनगढ़ में ही वार्ड नंबर 2 गांधीनगर में किराए के मकान में रहता था. जबकि लीला बजरंग कालोनी, किशनगढ़ में मां रामकन्या और भाई किशन के साथ रहती थी. मकान के 2 हिस्से थे, एक हिस्से में लीला रहती थी, जबकि दूसरे हिस्से में उस की मां व भाई रहते थे.

पति से अलग हो कर लीला स्वच्छंद हो गई थी. अब वह और रामस्वरूप खुल कर खेलने लगे. दोनों की मौज ही मौज थी. रामस्वरूप सिमारों की ढाणी का रहने वाला था, लेकिन टिकावड़ा गांव में किराए पर रहता था. उस का दोस्त सुरेंद्र, इसी गांव का रहने वाला था.

एक गांव में रहने और एकदूसरे से विचार मिलने की वजह से दोनों जिगरी यार बन गए थे. रामस्वरूप लीला से मिलने किशनगढ़ जाता था और रंगरेलियां मना कर टिकावड़ा लौट आता था.

मोबाइल पर भी दोनों की खूब बातें होती थीं. रामस्वरूप और लीला एकदूसरे पर जान न्यौछावर करते थे. उधर पत्नी से अलग हो कर पुखराज जैसेतैसे दिन काट रहा था.

पुखराज हुआ गायब

22 फरवरी, 2020 की रात पुखराज ने अपनी मासूम बेटी अनुप्रिया को अपने मकान मालिक को देते हुए कहा कि वह एक जरूरी काम से कहीं जा रहा है, काम होते ही लौट आएगा. लेकिन पुखराज वापस नहीं लौटा.

उस के न आने से मकान मालिक परेशान हो गया. क्योंकि उस की मासूम बेटी रो रही थी. पुखराज के भाई दिलीप जाट ने उस के मोबाइल पर काल लगाई तो फोन लीला ने उठाया. दिलीप ने पूछा कि पुखराज कहां है, इस पर लीला ने कहा कि वह मोबाइल उस के पास छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया. वापस लौटेगा तो बता देगी.

इस पर दिलीप जाट ने 24 फरवरी, 2020 को थाना गांधीनगर, किशनगढ़ में अपने भाई पुखराज की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गांधीनगर थाना पुलिस ने पुखराज की काफी खोजबीन की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

पुखराज को उस के भाइयों ने भी नातेरिश्तेदारों में खूब ढूंढा. लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पूछताछ में लीला ने बताया कि पुखराज और मैं ने कागजों में भले ही तलाक ले लिया था, लेकिन पुखराज अकसर उस से मिलने आता रहता था.

पता चला कि 22 फरवरी को पुखराज लीला से मिलने बजरंग कालोनी आया था. वह अपना मोबाइल वहीं छोड़ कर कहीं चला गया था. लीला का कहना था कि उस ने सोचा वह अपना मोबाइल भूल से छोड़ गया होगा, बाद में ले जाएगा. लेकिन वह नहीं आया.

दिन पर दिन गुजरते गए, लेकिन पुखराज का कहीं कोई पता नहीं लगा. पुलिस ने उसे ढूंढने में अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखी थी. 2 हफ्ते गुजर जाने पर भी पुलिस पुखराज का सुराग नहीं लगा सकी. उस के घर वाले भी उसे सब जगह तलाश कर चुके थे. पुखराज के भाई दिलीप जाट की समझ में नहीं आ रहा था कि वह गया तो कहां गया.

अचानक दिलीप को याद आया कि 23 फरवरी की शाम जब वह पुखराज को तलाशने उस की पूर्वपत्नी लीला के घर गया था, तब उस ने उस के घर में पुखराज की चप्पल पड़ी देखी थीं. उस ने लीला से पूछा भी था कि पुखराज के चप्पल तो यहीं हैं, वह बाहर क्या पहन कर गया? इस पर लीला कुछ नहीं बता पाई थी.

दिलीप को अब जा कर कुछकुछ कहानी समझ में आ रही थी. उस ने पुखराज के गायब होने के बाद 2-4 बार लीला के पास रामस्वरूप जाट को भी देखा था. वह इतना नादान नहीं था कि कुछ समझ नहीं पाता. उसे संदेह हुआ कि लीला और रामस्वरूप ने पुखराज को कहीं गायब कर दिया है या फिर मार डाला है. यह विचार मन में आया तो दिलीप 6 मार्च, 2020 को थाना गांधीनगर, किशनगढ़ पहुंचा.

दिलीप ने थानाप्रभारी राजेश मीणा को एक प्रार्थनापत्र दिया. अपनी अरजी में उस ने पुखराज की हत्या का संदेह जताया था. उसे पुखराज की पूर्वपत्नी लीला, प्रेमी रामस्वरूप, सुरेंद्र और रामकन्या पर संदेह था.

केस दर्ज कर के गांधीनगर थाने की पुलिस लीला और रामस्वरूप को थाने ले आई और दोनों से सख्ती से पूछताछ की. पहले तो दोनों ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब पुलिस ने सख्त तेवर दिखाए तो दोनों टूट गए. लीला और रामस्वरूप ने पुखराज की हत्या करने की बात स्वीकार ली.

लीला और रामस्वरूप ने पुलिस पूछताछ में बताया कि 22 फरवरी को पुखराज लीला से मिलने बजरंग कालोनी स्थित लीला के मायके आया था. लीला ने  उसे फोन कर के बुलाया था. लीला ने पुखराज को बियर पिलाई, जिस में नींद की गोलियां मिली थीं. थोड़ी देर में वह बेसुध हो कर सो गया. तब लीला ने फोन कर के रामस्वरूप से कहा, ‘‘पुखराज को मैं ने नशीली दवा डाल कर बियर पिला दी है. अब यह बेहोश हो गया है. आओ और जो करना है, कर डालो.’’

रामस्वरूप अपनी बाइक से लीला के घर पहुंच गया. उस ने बेसुध पड़े पुखराज पर कुल्हाड़ी से घातक वार किया, जिस से पुखराज का सिर धड़ से अलग हो गया. खून का फव्वारा फूट पड़ा. फर्श, आंगन दीवारों और उन दोनों के कपड़े खून से लाल हो गए. रात में ही दोनों ने पुखराज के शव को प्लास्टिक की बोरी में भर दिया. दोनों ने रात में ही आंगन, बिस्तर, कपड़े और दीवार वगैरह धो कर खून के धब्बे मिटा दिए.

बेरहम पत्नी और उस का यार

रामस्वरूप ने सुबहसुबह पुखराज के शव को बाइक पर लादा और टिकावड़ा गांव से थोड़ी दूर जंगल में बने एक गड्ढे में डाल दिया. फिर उस ने लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. इस के बाद वह टिकावड़ा लौट आया.

अगले दिन रामस्वरूप पुखराज के शव की हालत देखने जंगल में गया. तब तक अधजले शव को चीलकौवों ने नोचनोच कर आधा कर दिया था. उस वक्त भी मांसाहारी पक्षी शव को नोच रहे थे. यह देख उसे दहशत सी हुई और वह घबरा कर लौट आया.

लीला और रामस्वरूप ने पुखराज के घर वालों और पुलिस को शुरू से आखिर तक रटेरटे जवाब दिए थे ताकि वे शांत रहें.

हत्या की स्वीकारोक्ति के बाद इंसपेक्टर राजेश मीणा ने घटना की पूरी जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. पुलिस ने लीला और रामस्वरूप को 7 मार्च, 2020 को गिरफ्तार कर लिया. जानकारी मिलने पर एएसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी, डीएसपी गीता चौधरी, किशनगढ़ थानाप्रभारी मनीष सिंह चारण गांधीनगर थाने पहुंच गए. सभी ने पुखराज के हत्यारों से पूछताछ की.

पूछताछ के बाद पुलिस आरोपियों को टिकावड़ा के जंगल में ले गई. वहां पुखराज के शव को तलाश किया गया तो खोपड़ी और इधरउधर फैली कंकाल की हड्डियां ही मिल पाईं. पुलिस ने जंगल में करीब 2 किलोमीटर की परिधि में शव के टुकड़ों की तलाश की. पुलिस अधिकारियों ने विशेषज्ञों की टीम को मौके पर बुलाया और यह जानने की कोशिश की कि कंकाल पुरुष का है या स्त्री का.

कंकाल पुरुष का होने की पुष्टि के बाद पुलिस ने सर्च कर के मृतक के शरीर के अन्य हिस्सों को ढूंढा. आसपास के क्षेत्र में मानव शरीर के कई हिस्सों की हड्डियों के टुकड़े मिले.

पुखराज की हत्या के 14 दिन बाद यह बात साफ हो गई कि उस का कत्ल हुआ था. एफएसएल की टीम ने घटनास्थल पर आ कर जांच के लिए नमूने लिए.

एडीशनल एसपी किशन सिंह भाटी, डीएसपी गीता चौधरी, किशनगढ़ थानाप्रभारी मनीष सिंह चारण और गांधीनगर एसएचओ राजेश मीणा की उपस्थिति में हत्या का सीन रीक्रिएट कराया गया.

रामस्वरूप किशनगढ़ से 30 किलोमीटर दूर टिकावड़ा में किराए का मकान ले कर रहता था, वह किशनगढ़ आताजाता रहता था. सुनसान होने की वजह से उस ने शव फेंकने के लिए इस जंगल को हत्या से पहले ही चुन लिया था. मनरेगा का काम होने की वजह से वहां गड्ढे भी खुदे थे. पुखराज का शव पहचाना न जा सके, इसलिए रामस्वरूप ने शव पर पैट्रोल डाल कर उसे जला दिया था.

पशुपक्षियों का निवाला बना पुखराज

पक्षियों और जंगली जानवरों ने हड्डियां जगहजगह बिखेर दी थीं. पुलिस ने हड्डियों को एकत्र कर एफएसएल की जांच के लिए भेज दिया. जांच में जुटी पुलिस टीम का मानना था कि पैट्रोल से जलाने के बाद भी शव पूरा नहीं जला था. बाद में उसे पक्षियों और जंगली जानवरों ने नोचा.

पुलिस ने बताया कि लीला अपने पति से अलगाव के बाद बजरंग कालोनी, किशनगढ़ स्थित मायके में अकेली रहती थी. पुखराज कभीकभार उस से मिलने आता था. 22 फरवरी की रात लीला ने फोन कर पुखराज को घर बुलाया था. लीला ने यह जानकारी रामस्वरूप को दे दी थी.

लीला ने पुखराज को नींद की गोलियां डाल कर बियर पिलाई. ज्यादा नशा होने के कारण पुखराज सो गया. आधी रात को रामस्वरूप ने कुल्हाड़ी से पुखराज के सिर पर वार किया, जिस से उस की मौत हो गई. रामस्वरूप और लीला ने रात भर घर में फैला खून साफ किया और पुखराज की लाश को प्लास्टिक की बोरी में पैक कर दिया.

23 फरवरी की सुबह रामस्वरूप लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर पीछे बांध कर ले गया और ठिकाने लगा आया. अपने साथ वह पैट्रोल भी ले गया. लाश को जंगल में मनरेगा के तहत खोदे गए गड्ढे में डाल कर उस पर कैन का पैट्रोल उड़ेल कर आग लगा दी.

8 मार्च, 2020 को पुलिस ने आरोपी लीला जाट और उस के प्रेमी रामस्वरूप जाट को अवकाशकालीन मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर दोनों को पूछताछ के लिए 2 दिन के रिमांड पर ले लिया.

इस अवधि में थाना गांधीनगर की पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर खून से सने बिस्तर, कपड़े, वारदात में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी और मोटरसाइकिल बरामद कर ली. इस के बाद दोनों को फिर से अदालत पर पेश कर जेल भेज दिया गया.

रामस्वरूप और लीला का सपना था कि पुखराज को रास्ते से हटाने के बाद मौज से रहेंगे. लेकिन पासा उलटा पड़ गया और दोनों अपने गुनाह से बच नहीं सके.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, मई 2020

मां, बाप और बेटे के कंधों पर लाश: अवैध संबंध का नतीजा

20 तारीख के यही कोई सुबह के 6 बजे की बात है. कड़ाके की ठंड के साथसाथ कोहरे की चादर भी फैली हुई थी. पौ फटते ही धीरेधीरे अस्तित्व में आती सूरज की किरणों ने कोहरे से मुकाबला करना शुरू किया तो दिन का मिजाज बदलने लगा. ठंड कम होती गई और कोहरे की चादर झीनी.

ग्वालियर के थाना हजीरा क्षेत्र के कांच मिल इलाके में बसी श्रमिकों की बस्ती में रहने वाले लोग नित्यक्रिया के लिए रेल पटरी के पास गए तो उन्हें वहां एक पुरुष की रक्तरंजित लाश पड़ी दिखाई दी.

खून चूंकि जम कर काला पड़ गया था, इस से लग रहा था कि उसे मरे हुए 1-2 दिन हो गए होंगे. खबर फैली तो पैर कटी लाश के आसपास काफी भीड़ जमा हो गई.

एकत्र भीड़ में तरहतरह की चर्चाएं हो रही थीं. लोग उसे पहचानने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसे कोई भी नहीं पहचान पाया. इस बीच किसी ने हजीरा थाने को फोन कर रेलवे लाइन पर लाश पड़ी होने की सूचना दे दी.

कुछ ही देर में  थानाप्रभारी आलोक परिहार पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पुलिस को आया देख भीड़ लाश के पास से हट गई.

थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 45 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में साफी लिपटी थी, जिस का एक भाग मुंह में ठुंसा था. इस से यह बात साफ हो गई कि उस की हत्या कहीं और की गई  थी, और बाद में लाश को यहां डाल दिया गया था.

तलाशी में पुलिस को मृतक की जेबों से एक पर्स मिला, जिस में ड्राइविंग लाइसैंस और ग्वालियर नगर निगम का परिचय पत्र था. इन दोनों चीजों से मृतक की शिनाख्त हो गई. इस से पुलिस का काम आसान हो गया. मृतक का नाम अखिलेश था, परिचय पत्र और लाइसैंस में उस का पता लिखा था. अखिलेश नगर निगम की कचरा ढोने वाली गाड़ी चलाता था. मौके से पुलिस को मृतक के नामपते के अलावा कोई भी अहम सबूत हाथ नहीं लगा.

ड्राइविंग लाइसैंस और परिचय पत्र को कब्जे में ले कर थानाप्रभारी आलोक परिहार ने 2 सिपाहियों को भेज कर मृतक के परिजनों को मौके पर बुलवा लिया. घर वाले अखिलेश की लाश देखते ही बिलखने लगे. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

थाने पहुंचते ही थानाप्रभारी ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

मामला संगीन था, इसलिए एसपी नवनीत भसीन के आदेश पर एसपी (सिटी) रवि भदौरिया ने इस ब्लाइंड मर्डर के खुलासे के लिए हजीरा थानाप्रभारी आलोक परिहार की अगुवाई में एक टीम का गठन कर दिया. इस टीम का निर्देशन एएसपी पंकज पांडे कर रहे थे.

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह गला घोटा जाना बताया गया था. मौत का समय रात 11 बजे से 2 बजे के बीच का था.

समय देख कर पुलिस को लगा कि अखिलेश की हत्या किसी नजदीकी व्यक्ति ने की होगी, इसलिए पुलिस ने उस के पड़ोसियों, रिश्तेदारों के अलावा परिचितों से भी पूछताछ कर के जानना चाहा कि उस का किनकिन लोगों के यहां ज्यादा आनाजाना था.

पूछताछ में पुलिस को पता चला कि अखिलेश पिछले 8 सालों से अवाडपुरा निवासी मुश्ताक के घर आताजाता था. घर में बैठ कर दोनों देर रात तक शराब पीते थे.

पुलिस ने अखिलेश और मुश्ताक के घर वालों के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि अखिलेश एक नंबर पर सब से ज्यादा बातें किया करता था. उस नंबर की जांच हुई तो पता चला कि वह मुश्ताक के नाम पर था. लेकिन उस नंबर पर उस की पत्नी अंजुम भी बात करती थी.

हकीकत जानने के लिए पुलिस मुश्ताक के घर गई और उस की पत्नी अंजुम से पूछताछ की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. दोनों ने यह बात स्वीकारी की अखिलेश से बात भी होती थी और वह घर भी आता था.

कुछ लोगों से की गई पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली कि पिछले कुछ दिन से मुश्ताक को अखिलेश का घर आनाजाना खटक रहा था. सौरभ और छोटे खान भी उसे टेढ़ी नजर से देखते थे. खास कर सौरभ और छोटे खान को तो अखिलेश फूटी आंख पसंद नहीं था. जबकि अंजुम को बापबेटों की बातें कांटे की तरह चुभती थीं. इसी बात को ले कर अंजुम का अपने शौहर और बेटों से विवाद होता रहता था.

जानकारी काम की थी. पुलिस का शक अंजुम के पति और बेटों के इर्दगिर्द घूमने लगा. यह भी संभव था कि पति और बेटे मां के प्रेमी के कातिल बन गए हों. लेकिन इस बाबत पुख्ता सबूत हाथ न लगने से पुलिस असमंजस की स्थिति में थी.

एक और अहम बात यह थी कि अखिलेश की हत्या की भनक पड़ोसियों तक को नहीं थी. पुलिस के पहुंचने पर ही पड़ोसियों के बीच इस बात को ले कर बहस छिड़ी कि आखिरकार मुश्ताक के घर पुलिस के आने की असल वजह क्या है.

पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर एक बार फिर अंजुम से अलग से पूछताछ की. उस ने बिना डरे बड़ी चतुराई के साथ सभी सवालों के जबाव दिए. अखिलेश से दोस्ती और परिवार में इस बात के विरोध की बात तो उस ने स्वीकार की, लेकिन अखिलेश की हत्या करने की बात नकार दी.

पुलिस ने जब अखिलेश के परिजनों से जानना चाहा कि उस की किसी से कोई ऐसी रंजिश थी, जो हत्या की वजह बनी हो. साथ ही यह भी पूछा कि अखिलेश का किसी के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था. घर वालों ने बताया कि उन की जानकारी में अखिलेश का किसी से कोई विवाद नहीं था.

पुलिस टीम ने अखिलेश की तथाकथित प्रेमिका अंजुम और उस के परिवार को शक के दायरे में रख कर जांच में परिवर्तन किया. इस मामले की कई दृष्टिकोण से जांच की गई.

महीनों चली जांच में कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं मिला जो हत्यारों को कटघरे में खड़ा कर देता. लौट कर बात मुश्ताक और अंजुम पर आ कर ठहर जाती थी. अंतत: पुलिस ने एक बार फिर सर्विलांस ब्रांच की मदद ली. काफी मशक्कत के बाद एक ठोस सबूत हाथ लगा. सबूत यह कि अंजुम, मुश्ताक और अखिलेश के मोबाइल फोन की लोकेशन अवाडपुरा में पाई गई थी.

इस सबूत के बाद पुलिस टीम ने एक बार फिर मुश्ताक के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. एक फुटेज से पता चला कि हत्या वाले दिन अखिलेश मुश्ताक के घर आया तो था, मगर किसी भी फुटेज में वह वापस जाता हुआ दिखाई नहीं दिया. मुश्ताक और अंजुम ने उस के आने की बात से इनकार नहीं किया था. इसलिए उन्हें आरोपी नहीं माना जा सकता था.

2 ठोस सबूतों के बाद पुलिस ने बिना देर किए 7 मार्च को अंजुम को हिरासत में ले लिया और उसे थाने ले आई.

थाने की देहरी चढ़ते ही अंजुम की सिट्टीपिट्टी गुम होनी शुरू हो गई. इस बार पुलिस ने उस से सबूतों के आधार पर मनोवैज्ञानिक ढंग से दबाव बना कर पूछताछ की.

अंजुम पुलिस की बात को झुठला नहीं सकी. आखिर उस ने सच बोलते हुए कहा, ‘‘साहब, अखिलेश को मैं ने और मेरे पति व बेटे ने पड़ोसी के साथ मिल कर मारा है.’’

अंजुम ने पुलिस को दिए बयान में अखिलेश की हत्या की जो कहानी बताई, वह काफी दिलचस्प निकली—

अखिलेश साहू नाका चंद्रबदनी माता वाली गली में रहता था और नगर निगम में कचरा ढोने वाली गाड़ी के चालक के पद पर कार्यरत था. उसे शराब पीने की लत थी. अखिलेश का शैलेंद्र के जरिए मुश्ताक से परिचय हुआ था. शैलेंद्र और मुश्ताक पड़ोसी थे.

पहले अखिलेश खानेपीने के लिए शैलेंद्र के घर आताजाता था. मुश्ताक भी पीने का शौकीन था, इसलिए वह भी इन के साथ बैठने लगा. फिर कुछ दिन बाद अखिलेश के खर्च पर शराब की महफिल मुश्ताक के घर जमने लगी. अखिलेश के घर वालों ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह नहीं सुधरा तो घर वालों ने उस से इस बारे में बात करना ही छोड़ दिया.

अखिलेश रोजाना शाम की ड्यूटी पूरी कर के शराब पीने के लिए अवाडपुरा में मुश्ताक के घर चला जाता था.

इसी दौरान उस की मुलाकात मुश्ताक की पत्नी अंजुम से हुई. जल्दी ही अखिलेश को अंजुम से भावनात्मक लगाव हो गया. अंजुम भी उस से लगाव रखने लगी थी.

दोनों के बीच अकसर मोबाइल पर भी बातें होती थीं. भावनात्मक बातों का यह सिलसिला शरीरों पर जा कर रुका. एक बार दोनों के बीच की दूरी मिटी तो फिर यह आए दिन की बात हो गई. जब भी अंजुम और अखिलेश को मौका मिलता, बिना आगेपीछे सोचे हदें लांघ कर अपनी हसरतें पूरी कर लेते.

अंजुम और अखिलेश के बीच अवैध संबंध बने तो उन की बातचीत और हंसीमजाक का लहजा बदल गया.

अखिलेश अंजुम का हर तरह से खयाल रखने लगा था, इसलिए आसपड़ोस वालों को संदेह हुआ तो लोग दोनों के संबंधों को ले कर चर्चा करने लगे. नतीजा यह निकला कि लोग अखिलेश को देख कर मुश्ताक के बच्चों से कहने लगे, ‘तुम्हारा दूसरा बाप आ गया.’

अंजुम को उस के बडे़ बेटे सौरभ ने अखिलेश के साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. उस ने यह बात पिता को बता दी. मामले ने बेहद संगीन और नाजुक मोड़ अख्तियार कर लिया था, लिहाजा बापबेटे ने अंजुम को ऊंचनीच बता कर भविष्य में अखिलेश से कभी मेलमुलाकात न करने की कसम दिलाई.

अंजुम मुश्ताक की पत्नी ही नहीं, उस के बच्चों की मां भी थी, इसलिए बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए मुश्ताक ने दोबारा ऐसी गलती न करने की चेतावनी दे कर उसे माफ कर दिया.

लेकिन जिस का पैर एक बार फिसल चुका हो, उस का संभलना मुश्किल होता है. यही हाल अंजुम और उस के प्रेमी अखिलेश का भी था. कुछ दिन शांत रहने के बाद अंजुम अपने वायदे पर टिकी न रह सकी. मौका पाते ही वह चोरीछिपे अखिलेश से मिलने लगी.

इस बात का पता मुश्ताक को लगा तो अपना घर बचाने के लिए उस ने बड़े बेटे के साथ बैठ कर अखिलेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस योजना में मदद के लिए मुश्ताक के बड़े बेटे ने अपने दोस्त सलमान को भी शामिल कर लिया.

हालांकि बिना अंजुम की मदद के अखिलेश को ठिकाने लगा पाना सौरभ और मुश्ताक के बूते की बात नहीं थी. उन्होंने जैसेतैसे अंजुम को भी इस योजना में शामिल कर लिया. तय योजना के अनुसार 18 दिसंबर की रात अंजुम से फोन करवा कर अखिलेश को घर पर बुलाया गया.

उस के आते ही मुश्ताक ने उसे जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो कर गिरने लगा तो बापबेटे ने अंजुम के हाथों साफी से उस का गला घोटवा कर उस की हत्या करवा दी. इस काम में सौरभ और शौहर मुश्ताक ने भी मदद की.

हत्या करने के बाद मुश्ताक और सौरभ रात में ही अखिलेश की लाश को ठिकाने लगाने की सोचते रहे, लेकिन रात ज्यादा हो जाने से उन का यह मंसूबा पूरा न हो सका. फलस्वरूप लाश को बाथरूम में छिपा दिया गया.

अगले दिन 19 दिसंबर को सौरभ घूमने जाने के बहाने अपने मामा की नैनो कार एमपी07सी सी3726 ले आया.

जब मोहल्ले में सन्नाटा हो गया, तो रात 11 बजे अखिलेश की लाश को बाथरूम से निकाल कर मुश्ताक, सौरभ, अंजुम और सलमान ने मिल कर कार में इस तरह बैठाया कि अगर किसी की नजर पड़े तो लगे कि अखिलेश ज्यादा नशे में है.

लाश को कार में डाल कर आरोपी अंधेरे में कांच मिल क्षेत्र में रेल की पटरी पर लाए और पटरी पर इस तरह रख दिया, जिस से लगे कि उस ने आत्महत्या की है.

अपराध करने के बाद कोई कितनी भी चालाकी  से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है.

अंजुम ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सकी.

पुलिस ने अंजुम के बेटे सौरभ की निशानदेही पर वह नैनो कार भी बरामद कर ली, जिस में उस ने और उस के पिता ने अखिलेश की लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंका था. काफी खोजबीन के बाद भी अखिलेश का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया.

विस्तार से पूछताछ के बाद हत्या के चारों आरोपियों सौरभ, उस के पिता मुश्ताक खान, गोरे उर्फ सलमान और अंजुम के खिलाफ धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, मई 2020

एक आंख का नूर: जब दोस्ती के बीच आई पत्नी

घर में घुसते ही वारिस ने अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘‘सलमा, 2 कप चाय बनाना.’’सलमा खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. पति ने 2 कप चाय मांगी थी, इस का मतलब उस के साथ कोई आया था. उस ने किचन से बाहर आ कर देखा तो वारिस किसी हमउम्र युवक के साथ बैठा था. सलमा उसे पहचानती नहीं थी. इस का मतलब वह पहली बार आया था.

कुछ देर में सलमा चाय और पानी ले कर आई तो युवक ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया. वह चायपानी की ट्रे रख कर खड़ी हुई तो वारिस ने उस युवक का परिचय कराया, ‘‘यह मेरा दोस्त सुलतान है, सीबीगंज के मथुरापुर गांव में रहता है. ये भी आटो ड्राइवर है.’’

चाय पी कर सुलतान जाने के लिए उठा तो सलमा ने कहा, ‘‘अभी आप इन से कह रहे थे कि आप की पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है. मतलब घर में खाना भी नहीं बना होगा. खाने का समय है, खाना खा कर जाना.’’

सुलतान संकोचवश कुछ नहीं बोला तो वारिस ने पत्नी की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘अब तुम्हारी भाभी ने कह दिया है तो खाना खाना ही होगा. यह बिना खाना खाए नहीं जाने देगी.’’

सुलतान बैठ गया. सलमा ने जल्दीजल्दी सुलतान और पति के लिए खाना लगाया. सलमा ने सुलतान को इतने प्यार से खाना खिलाया कि वह जरूरत से ज्यादा खा गया. वह पेट पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘भाभी, आप बहुत अच्छा खाना बनाती हैं.’’

30 वर्षीय सुलतान ने 2 निकाह किए थे. उस का पहला निकाह 5 साल पहले बरेली के बाकरगंज में रहने वाली रानो से हुआ था, जिस से उसे 2 बेटियां और एक बेटा था. रानो का चालचलन ठीक न होने पर सुलतान उसे उस के मायके छोड़ आया था.

इस के बाद सुलतान ने दूसरा निकाह बिहार के कटिहार जिले की शबीना से किया, जिस से 2 बेटे हुए.

सुलतान आटो चलाता था. एक ही काम में होने के वजह से दोनों में गहरी दोस्ती थी. वारिस अपने परिवार के साथ फतेहगंज (पश्चिम) के मोहल्ला कंचननगर में रहता था. परिवार में उस की पत्नी सलमा और 2 बेटे थे. जबकि सुलतान अपनी पत्नी और बेटियों के साथ महानगर बरेली के गांव मथुरानगर में रहता था.

दोस्ती की वजह से एक दिन वारिस सुलतान को अपने घर ले गया और चायनाश्ता ही नहीं, खाना भी खिलाया. उस दिन सुलतान ने कुछ नहीं कहा, लेकिन 4 दिन बाद उस की गाड़ी खराब हो गई तो वह वारिस के घर जा पहुंचा. पता चला वारिस नहा रहा है.

सुलतान ने सलमा से कहा, ‘‘भाभी, उस दिन आप ने जो खाना खिलाया था, बहुत स्वादिष्ट था. आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

‘‘मैं और काम भी बहुत अच्छे से करती हूं.’’ सलमा ने एक आंख दबा कर कहा.

सुलतान सलमा की इस हरकत से दंग रह गया. वह कुछ कहता, तभी वारिस ने बाथरूम से बाहर आ कर कहा, ‘‘सुबहसुबह कैसे आना हुआ भाई?’’

‘‘यार, मेरी गाड़ी खराब हो गई है, उसे मिस्त्री के यहां पहुंचाना है. मेरी गाड़ी अपनी गाड़ी में बांध लो तो आसानी हो जाएगी.’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए मैं काम पर नहीं जाऊंगा. तुम मेरी गाड़ी ले जाओ. उसी में अपनी गाड़ी बांध लेना. उसे मिस्त्री के यहां छोड़ कर पूरे दिन मेरी गाड़ी चलाना, शाम को गाड़ी खड़ी करने आओगे तो हिसाब दे देना.’’

सुलतान वारिस की गाड़ी ले गया. दिन भर गाड़ी चला कर वह हिसाब देने आया तो सलमा उस के लिए पानी ले कर आई. सुलतान ने गिलास थामते हुए उस की ओर देखा तो उस ने फिर आंख दबा दी. सुलतान अचकचा गया. सलमा धीरे से बोली, ‘‘मौका मिले तो आ जाना.’’

सुलतान को सलमा की हरकतें अजीब लग रही थीं. उस ने आने के लिए क्यों कहा, यह सोचते हुए सुलतान अपने घर आ गया.

एक दिन सुलतान स्टैंड पर खड़ा सवारियों का इंतजार कर रहा था, तभी उसे सलमा आती दिखाई दी. सब से आगे सुलतान का ही आटो खड़ा था. इसलिए उस ने सुलतान के पास आ कर मुसकराते हुए पूछा, ‘‘क्या मुझे मेरे घर तक छोड़ दोगे?’’

‘‘क्यों नहीं भाभी, आओ बैठो.’’ कह कर सुलतान सवारियों का इंतजार किए बिना ही सलमा को ले कर चल पड़ा.

सुलतान चुपचाप गाड़ी चला रहा था. उसे इस तरह खामोश देख कर सलमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, बहुत खामोश हो?’’

‘‘तबीयत कुछ भारीभारी सी है. आज वरिस नहीं दिखा, कहीं गया है क्या?’’

‘‘वह बाहर गए हुए हैं. आज बहुत गरमी है, घर चलो. तुम्हें नींबू का शरबत पिलाती हूं.’’ सलमा ने मीठे स्वर में कहा.

‘‘नहीं भाभी, आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है. ड्राइवरों को गरमीसर्दी सब झेलनी पड़ती है.’’

‘‘कुछ भी हो, शरबत तो पीना ही पड़ेगा.’’ सलमा ने जिद की.

सुलतान चुप रह गया. उस ने सलमा के घर के सामने गाड़ी रोकी तो सलमा ने आटो से उतर कर ताला खोला. उस ने सुलतान को अंदर बुला कर बैठा दिया और खुद शरबत बनाने लगी.

कांच के 2 गिलासों में शरबत ला कर वह सुलतान के पास बैठ गई. शरबत पी कर सुलतान उठने लगा तो सलमा ने उस का हाथ पकड़ कर बिठाते हुए कहा, ‘‘इतनी गरमी में कहां जाओगे, थोड़ी देर बैठो न. आज मैं भी अकेली हूं, दोनों बातें करते हैं.’’

सुलतान बैठ गया तो सलमा उठी और बाहर का दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी. सुलतान अचकचाया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सलमा को ऐसी कौन सी बात करनी है जो अंदर से दरवाजा बंद कर दिया.

दरवाजा बंद कर के सलमा सुलतान के पास बैठ गई और बोली, ‘‘तुम ने यह तो बता दिया था कि खाना बहुत अच्छा बना था, लेकिन यह नहीं बताया कि खाना बनाने वाली कैसी लगी?’’

यह सुन कर सुलतान की हैरानी और बढ़ गई. अकेले में दोस्त की पत्नी के साथ इस तरह बैठना उसे ठीक नहीं लग रहा था. इस के अलावा वह डर भी रहा था. उस की हालत देख कर सलमा ने कहा, ‘‘डरने की कोई बात नहीं है. इस समय यहां कोई नहीं आएगा.’’

लेकिन उस के आश्वासन के बावजूद सुलतान का डर कम नहीं हुआ. वह वहां से निकलने के बारे में सोच रहा था कि सलमा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो.’’

सुलतान घबरा कर उठ खड़ा हुआ, ‘‘भाभी, मैं शादीशुदा हूं. मुझ से ऐसी बात न करो.’’

सलमा ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं ने तुम से यह थोड़े ही कहा है कि मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. लेकिन मुझे तुम से प्यार जरूर हो गया है.’’

सलमा उस के एकदम करीब आ गई. सुलतान थोड़ा खिसकते हुए बोला, ‘‘वारिस क्या सोचेगा?’’

‘‘कोई कुछ नहीं सोचता सुलतान, सही बात तो यह है कि हर कोई अपने सुख के चक्कर में घूम रहा है. किसी के बारे में सोच कर परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं अपने बारे में सोचती हूं, मेरे पति भी अपने बारे में सोचते हैं. अब तुम भी अपने बारे में सोचो.’’

‘‘ये कैसी बातें कर रही हो आप?’’

‘‘ये अपने दिल से पूछो, अगर तुम्हारे दिल में मेरे साथ समय बिताने की इच्छा न होती तो तुम गाड़ी ले कर बाहर से ही लौट जाते, अंदर कतई नहीं आते.’’

‘‘अंदर तो आप ने बुलाया है.’’

‘‘ठीक है, बुलाया था पर तुम मना भी कर सकते थे.’’ सलमा ने कहा.

सुलतान हैरान था. यह सच था कि पिछले कई दिनों से वह सलमा के बारे में सोच रहा था. कई बार वह उस के दरवाजे तक आया भी था, लेकिन बाहर से ही लौट गया था.

सलमा उस के कंधे पर हाथ रख कर बोली, ‘‘प्यार करना गुनाह नहीं है. मैं जानती हूं कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए एक नरम कोना है. मौके का फायदा उठाने से मत चूको.’’

उलझन में फंसा सुलतान सलमा के आकर्षण में बंधा था, इसलिए चाह कर भी वहां से नहीं जा पा रहा था. सुनसान घर में अकेली औरत नाजायज संबंध बनाने के लिए मजबूर कर रही थी. आखिर सुलतान ने खुद को सलमा के हवाले कर दिया.

उस दिन वह सलमा के घर से निकला तो उस की स्थिति अजीब सी थी. वह गाड़ी ले कर सीधा घर आ गया. जल्दी वापस आने पर शबीना ने कहा, ‘‘आज जल्दी आ गए, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘सिर थोड़ा भारी लग रहा था. मैं ने सोचा थोड़ा आराम कर लूंगा तो ठीक हो जाऊंगा. मैं सोना चाहता हूं.’’ कह कर सुलतान कमरे में जा कर लेट गया. कुछ देर पहले उस के साथ जो कुछ गुजरा था, वह सब उसे याद आने लगा. उसे लगा कि वह शबीना का गुनहगार है.

वह अपराधबोध से ग्रस्त था. उस ने सोचा जो हो गया सो हो गया. भविष्य में वह ऐसी गलती नहीं करेगा. यह सोच कर उस का दिल कुछ हलका हुआ. लेकिन उस की वह रात करवट बदलते हुए गुजरी. सुबह उठा तो सिर भारी था.

सुबह को सुलतान काफी देर तक नहाता रहा, जिस से मन को कुछ शांति मिली. नाश्ते के बाद वह गाड़ी ले कर चला गया. सीधीसादी शबीना को पता ही नहीं चला कि पति ने उस के साथ बेवफाई कर डाली है.

अगले कुछ दिनों में सब सामान्य हो गया. सुलतान वारिस के घर की तरफ नहीं गया. लेकिन सलमा ने उसे फिर से तलाश कर कुछ सामान लाने को कहा. वारिस बाहर था, इसलिए सुलतान ने सामान ला कर सलमा के घर पर दे दिया. उस दिन भी सुलतान सलमा से दूर नहीं रह पाया.

वह खुद को संभालने की लाख कोशिश करता, लेकिन उस की कोशिश धरी रह जाती. जब उसे लगा कि संभलना मुश्किल है तो उस ने सलमा के साथ इसे सिलसिला ही बना लिया.

दोनों को मौके की तलाश रहने लगी. मोबाइल फोन ने उन की राह आसान कर दी थी. इसी बीच सुलतान और वारिस आटो चलाना छोड़ कर कैंटर चलाने लगे थे. सुलतान फतेहगंज पश्चिमी के ही नवाजिश अली का कैंटर चलाता था, तो वारिस इमरान रजा का.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सलमा सुलतान को अपना बलमा तो नहीं बना सकती थी, लेकिन उस के दिल का सुलतान वही था.

7 फरवरी को देर रात तक सुलतान घर नहीं लौटा तो शबीना को चिंता हुई. उस ने पौने 8 बजे सुलतान को फोन किया तो उस ने आधे घंटे में पहुंचने की बात कही. लेकिन देर रात होने पर भी वह घर नहीं लौटा. उस का मोबाइल भी बंद हो गया था.

पति के बारे में पता करने के लिए शबीना ने अपने जेठ शाने अली को फोन किया तो पता चला कि वह राजस्थान से माल ले कर फतेहगंज लौट आया था. शाने अली ने शबीना से कहा कि रात होने की वजह से वह कहीं रुक गया होगा. सुबह होने पर भी जब सुलतान घर नहीं पहुंचा तो शाने अली उस की तलाश में लग गया.

8 फरवरी की सुबह फतेहगंज (पश्चिम) थाना क्षेत्र के गांव सफरी के कुछ लोगों ने सड़क किनारे स्थित बलवीर के खेत में एक अज्ञात युवक की लाश पड़ी देखी.

वहां भीड़ एकत्र हुई तो बात गांव के प्रधान तक पहुंची. प्रधान ने मौके पर जा कर देखा और इस की सूचना फतेहगंज (पश्चिम) थाने को दे दी.

सूचना मिलने पर इंसपेक्टर चंद्रकिरन पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र 28-30 साल रही होगी. मृतक के गले पर कसे जाने के निशान मौजूद थे. साथ ही सिर पर काफी गहरे घाव भी थे.

घाव किसी वजनदार ठोस वस्तु के प्रहार के लग रहे थे. लाश के आसपास घटनास्थल का निरीक्षण करने पर कोई सुराग नहीं मिला. अलबत्ता वह मृतक के संघर्ष करने के निशान जरूर मौजूद थे. कई जगह मिट्टी उखड़ी हुई थी, कई लोगों के पैरों के निशान भी थे. मतलब हत्यारे एक से ज्यादा थे.

इस बीच लाश मिलने की सूचना आसपास के क्षेत्रों में फैल गई थी. कुछ लोगों ने लाश की फोटो सोशल मीडिया पर डाल दी थी. शाने अली के कुछ परिचितों ने फोटो देखी तो शाने अली को बताया कि सफरी गांव के पास एक लाश मिली है, कहीं वह सुलतान की तो नहीं, जा कर देख ले. शाने अली शबीना और भाई इरशाद के साथ मौके पर पहुंच गया.

लाश सुलतान की निकली. लाश की शिनाख्त हो गई तो इंसपेक्टर चंद्रकिरन ने सुलतान की पत्नी शबीना से पूछताछ की. उस ने बताया कि रात पौने 8 बजे सुलतान को फोन किया था तो उस ने आधे घंटे में घर पहुंचने की बात कही थी, लेकिन वह घर नहीं आया.

उस ने सुलतान के कैंटर मालिक नवाजिश अली और उस के बहनोई पर सुलतान की हत्या का शक जताते हुए बताया कि एक माह पहले रुपयों के लेनदेन को ले कर सुलतान का उन से झगड़ा हुआ था. दोनों ने सुलतान को जान से मारने की धमकी दी थी.

इसी बीच सीओ जगमोहन सिंह बुटोला और एसपी (ग्रामीण) संसार सिंह भी मौके पर पहुंच गए. अधिकारियों ने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद आवश्यक पूछताछ की. उस के बाद वह इंसपेक्टर चंद्रकिरन को दिशानिर्देश दे कर वापस लौट गए.

शबीना की लिखित तहरीर पर नवाजिश अली और उस के बहनोई के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

इंसपेक्टर चंद्रकिरन ने केस की जांच शुरू की तो पता चला नवाजिश कैंसर से पीडि़त है और काफी समय से अस्पताल में भरती है. ऐसे में सुलतान की हत्या में उस का हाथ नहीं हो सकता था.

इस जानकारी के बाद उन्होंने सुलतान के प्रेम प्रसंग के संबंध में जानकारी जुटाई तो उस के किसी महिला से प्रेम प्रसंग की जानकारी मिली. इस पर उन्होंने सुलतान के मोबाइल की कालडिटेल्स निकलवाई. पता चला कि एक नंबर पर उस की हर रोज काफी देर तक बातें होती थीं.

वह नंबर सुलतान के नाम ही था. इस का मतलब यह था कि सुलतान ने ही वह नंबर किसी को दिया था. उस नंबर की लोकेशन फतेहगंज (पश्चिम)  के कंचननगर मोहल्ले की थी.

और जानकारी जुटाई गई तो पता चला सुलतान की दोस्ती कंचननगर में रहने वाले वारिस उर्फ चांद से थी. इस के बाद रहस्य से परदा उठते देर नहीं लगी. पता चला कि सुलतान के नाजायज संबंध वारिस की पत्नी सलमा से थे. सुलतान की हत्या इन्हीं संबंधों की परिणति थी.

इस के बाद इंसपेक्टर चंद्रकिरन ने 28 फरवरी को वारिस को गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो मामला नाजायज संबंधों का ही निकला.

सलमा और सुलतान के नाजायज संबंधों की भनक पड़ोसियों को भी लग गई थी. जब वारिस घर पर नहीं रहता था तो सुलतान घंटों तक उस के घर में पड़ा रहता था. इस से पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि सुलतान और सलमा के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी.

एक पड़ोसी ने वारिस को इस बारे में बता दिया था. यह जान कर कि सुलतान ने उसे दोस्ती में दगा दे कर उस की पीठ में धोखे का खंजर घोंपा है, वह आगबबूला हो उठा. इस के बाद उस ने सलमा को खूब पीटा और सुलतान का दिया हुआ मोबाइल और सिम भी खोज लिया, जिसे उस ने तोड़ दिया.

इस के बाद उस ने सुलतान को उस की दगाबाजी और इज्जत से खेलने के लिए सबक सिखाने का फैसला कर लिया.

इस के लिए उस ने कंचननगर में ही रहने वाले अपने फुफेरे भाई आमिर और भांजे दानिश उर्फ टाइगर को साथ देने के लिए तैयार कर लिया. दोनों ट्रांसपोर्ट पर मजदूरी का काम करते थे.

7 फरवरी की रात को सुलतान दिल्ली से माल ले कर बरेली आया. माल उतारने के बाद उस ने कैंटर को ठिरिया खेतल के नासिर ट्रांसपोर्ट पर खड़ा कर दिया. इस के बाद वह अपने घर की ओर चल दिया.

रास्ते में वारिस, आमिर और दानिश ने उसे मथुरापुर चलने की बात कह कर अपने कैंटर के केबिन में बैठा लिया. जब वारिस ने कैंटर शंघा-अगरास रोड पर मोड़ा तो सुलतान विरोध करने लगा. इस पर तीनों ने गमछे से उस का गला दबा दिया. सुलतान बेहोश हो गया.

सफरी गांव के पास उसे कैंटर से उतारा गया तो होश आने पर सुलतान ने भागने की कोशिश की. इस पर तीनों ने लोहे की रौड से पीटपीट कर उसे मार डाला और उस की लाश खेत में डाल दी.

खून से सने कपड़ों को इन लोगों ने एक थैले में रख कर टूल बौक्स में डाल दिया और अपनेअपने घर चले गए.

लेकिन गुनाह छिप न सका. वारिस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड और खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. इस के बाद वारिस को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

2 मार्च को पुलिस ने दानिश उर्फ टाइगर को भी गिरफ्तार कर लिया. साथ ही हत्या में इस्तेमाल वारिस का कैंटर नंबर यूपी25सी टी9339 भी बरामद कर लिया. कथा लिखे जाने तक आमिर फरार था, उस की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, मई 2020

अपनी जिद में स्वाहा: क्यों पिता ने ले ली बेटी की जान

मांडू का नाम तो जरूर सुना होगा. वही मांडू जहां की रानी रूपमती थीं, बाजबहादुर थे. उन की प्रेमकहानी है. आज भी वहां की मिट्टी में सैकड़ों साल पहले की गंध है. इसी गंध के लिए फरवरी, खासकर वैलेंटाइन डे पर तमाम प्रेमी जोड़े मांडू पहुंचते हैं. संभव है, इसीलिए मांडू की धरा की मिट्टी से रसीली गंध फूटती हो. मांडू मध्य प्रदेश के जिला धार में आता है. लेकिन धार उतना प्रसिद्ध नहीं है, जितना मांडू.

बात इसी मांडू की है. 6 फरवरी, 2020 को तिर्वा के रहने वाले अजय सिंह पाटीदार ने फोन पर थाना मांडू के प्रभारी जयराज सोलंकी को फोन पर बताया कि सातघाट पुलिया के पास एक किशोरी की लाश पड़ी है, जिस का सिर कुचला हुआ है.

उस वक्त शाम के 5 बजने को थे. सूचना मिलते ही टीआई जयराज सोलंकी पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां सातघाट पुलिया के पास सूखी नदी के किनारे, पत्थरों के बीच 17-18 साल की एक किशोरी का शव पड़ा था, जिस का सिर कुचल दिया गया था. मृतका ने स्कूल ड्रैस पहन रखी थी. साथ ही वह ठंड से बचने के लिए ट्रैकसूट पहने थी.

टीआई सोलंकी ने अनुमान लगाया कि मृतका आसपास के किसी स्कूल में पढ़ती होगी. हत्या एक युवती की हुई थी, इसलिए हत्या के साथ बलात्कार की आशंका भी थी. अंधेरा घिरने में ज्यादा देर नहीं थी.

थानाप्रभारी ने आसपास के क्षेत्रों के लोगों को बुला कर लाश दिखाई. लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इस पर अजय सिंह सोलंकी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए धार के जिला अस्पताल भेज दी. साथ ही इस मामले की सूचना एसपी आदित्य प्रताप सिंह को भी दे दी.

एसपी के निर्देश पर वायरलैस से धार जिले के सभी थानों को स्कूल गर्ल का शव मिलने की सूचना दे दी गई. हाल ही में पदस्थ बीएसएफ के एक कांस्टेबल ने थाने आ कर थानाप्रभारी सोलंकी को बताया कि 6 फरवरी, 2020 की रात लगभग 7 साढ़े 7 बजे जब वह बागड़ी फांटा के पास स्थित पैट्रोल पंप पर अपनी मोटरसाइकिल में पैट्रोल डलवा रहा था, तभी वहां एक इनोवा गाड़ी आई, जिस में से युवक उतरा. उस ने पैट्रोल भरने वाले को 1000 रुपए दे कर कार में डीजल डालने को कहा.

इसी बीच कार में एक युवती की ‘बचाओ बचाओ’ की आवाज सुनाई दी. इस पर डीजल भरवाने के लिए उतरा युवक बिना डीजल डलवाए ही चला गया. उस ने पैट्रोल भरने वाले से हजार रुपए भी वापस नहीं लिए.

बीएसएफ के कांस्टेबल ने यह भी बताया कि उस ने कार के बारे में पूछा था, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली. युवती का शव मांडू नालछा मार्ग पर मिला था. अजय सिंह सोलंकी ने पैट्रोल पंप पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी, जिस में संदिग्ध कार तो दिखी पर कार के नंबर को नहीं पढ़ा जा सका.

नहीं हो पाई पहचान

दूसरे दिन जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम से पहले एफएसएल अधिकारी पिंकी मेहरडे ने शव की जांच की. पता चला कि हत्या के समय मृतका का मासिक धर्म चल रहा था, इसलिए बलात्कार की बात पोस्टमार्टम से ही साफ हो सकती थी.

एफएसएल अधिकारी ने यह शंका जरूर जाहिर की कि चूंकि शव के नाखून नीले पड़ गए हैं, इसलिए उस का सिर कुचलने से पहले उसे जहर दिए जाने की आशंका है. जबकि घटनास्थल की जांच में करीब 16 फीट की दूरी तक खून फैला मिला था. इस से अनुमान लगाया गया कि मृतका की हत्या वहीं की गई थी.

दूसरे दिन जिला अस्पताल में युवती के शव का पोस्टमार्टम किया गया, जिस से पता चला कि हत्या से पहले उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ था.

पोस्टमार्टम तो हो गया, लेकिन हत्यारों तक पहुंचने के लिए उस की पहचान होना जरूरी था. क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच की दिशा तय नहीं की जा सकती थी. चूंकि मृतका स्कूल ड्रैस में थी, इसलिए जिले के अलावा आसपास के जिलों के स्कूलों से भी किसी छात्रा के लापता होने की जानकारी जुटाई जाने लगी.

इसी दौरान खरगोन के गोगांव का रहने वाला एक दंपति शव की पहचान के लिए मांडू आया. उन की बेटी पिछले 4-5 दिनों से लापता थी. इस से पुलिस को शिनाख्त की उम्मीद बंधी, लेकिन शव देख कर उन्होंने साफ कह दिया कि शव उन की बेटी का नहीं है.

इस के 4 दिन बाद एसपी धार आदित्य प्रताप सिंह ने इस केस की जांच की जिम्मेदारी एसडीओपी (बदनावर) जयंत राठौर को सौंप दी. साथ ही उन का साथ देने के लिए एक टीम भी बना दी, जिस में एसडीओपी (धामनोद) एन.के. कसौटिया, टीआई (मांडू) जयराज सिंह सोलंकी, टीआई (कानवन) कमल सिंह, एएसआई त्रिलोक बौरासी, प्रधान आरक्षक रविंद्र चौधरी, संजय जगताप, राजेंद्र गिरि, रामेश्वर गावड़, सखाराम, आरक्षक राजपाल सिंह, प्रशांत लोकेश व वीरेंद्र को शामिल किया गया.

5 दिन बीत जाने के बाद भी शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, जो पहली जरूरत थी. इस पर एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया ने उस संदिग्ध कार को खोजने में पूरी ताकत लगा दी, जो घटना से एक रात पहले बागड़ी फांटा के पैट्रोल पंप पर देखी गई थी.

सीसीटीवी फुटेज में कार का नंबर साफ नहीं दिख रहा था. पुलिस ने चारों तरफ 2 सौ किलोमीटर के दायरे में स्थित टोलनाकों के सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू कर दीं. लेकिन संदिग्ध इनोवा कार के नंबर की पहचान इस से भी नहीं हो सकी. हां, पुलिस को इतना सुराग जरूर मिल गया कि कार के नंबर के पीछे के 2 अंक 77 हैं और उस के सामने वाले विंडस्क्रीन पर काली पट्टी बनी है.

पुलिस के पास इस के अलावा कोई सुराग  नहीं था. एसडीओपी जयंत राठौर के निर्देश पर उन की पूरी टीम जिले भर में ऐसी कारों की खोज में जुट गई, जिस के रजिस्ट्रेशन नंबर में अंतिम 2 अंक 77 हों और उस की सामने वाली विंडस्क्रीन पर काली पट्टी बनी हो.

इस कवायद में 460 इनोवा कारों की पहचान हुई. इन सभी के मालिकों से संपर्क किया गया. अंतत: इंदौर के मांगीलाल की इनोवा संदिग्ध कार के रूप में पहचानी गई, मांगीलाल ने बताया कि कुछ दिन पहले उन की कार उन के बेटे ऋषभ का दोस्त मुकेश, जो गांव पटेलियापुरा का रहने वाला है, मांग कर ले गया था.

मुकेश को कार चलाना नहीं आता था, इसलिए वह अपने एक दोस्त पृथ्वीराज सिंह को भी साथ लाया था. मांगीलाल से मुकेश और पृथ्वीराज के मोबाइल नंबर भी मिल गए. लेकिन दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ थे.

पटेलियापुरा मांडू इलाके का ही छोटा सा गांव है. इसलिए एसडीओपी जयंत राठौर समझ गए कि उन की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही है. शक को और पुख्ता करने के लिए उन्होंने साइबर सेल के आरक्षक प्रशांत की मदद से मुकेश और पृथ्वीराज सिंह के मोबाइल की लोकेशन निकलवाई. घटना वाली रात उन की लोकेशन उसी स्थान की मिली, जहां दूसरे दिन सुबह युवती की लाश मिली थी.

सही दिशा में जांच

इस से यह साफ हो गया कि अज्ञात युवती की लाश का कुछ न कुछ संबंध मुकेश और पृथ्वीराज सिंह से रहा होगा, जिस के चलते जयंत राठौर ने गांव में अपने मुखबिर लगा दिए. जल्द ही पता चल गया कि मुकेश के चचेरे भाई ईश्वर पटेल की बेटी रोशनी 7 फरवरी से लापता है. उस ने बेटी के गायब होने की सूचना भी पुलिस को नहीं दी थी. पता चला रोशनी नालछा के उत्कृष्ट विद्यालय में 12वीं में पढ़ती थी.

किशोर बेटी घर से गायब हो और पिता हाथ पर हाथ रख कर बैठा रहे, ऐसा तभी होता है जब पिता को बेटी का कोई कृत्य नश्तर की तरह चुभ रहा हो. बहरहाल, मृतका की शिनाख्त ईश्वर पटेल की बेटी रोशनी के रूप में हो गई.

एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया के निर्देश पर टीआई (मांडू) जयराज सोलंकी, टीआई (कानवन) गहलोत की टीम ने गांव से ईश्वर और उस की पत्नी को पूछताछ के लिए उठा लिया. जबकि ईश्वर का चचेरा भाई संदिग्ध मुकेश और उस का दोस्त पृथ्वीराज सिंह अपने घरों से लापता थे.

संदिग्ध के तौर पर ईश्वर पटेल को पुलिस द्वारा उठा लिए जाने से गांव के लोग आक्रोशित हो गए. उन का कहना था कि ईश्वर ऐसा काम नहीं कर सकता. गांव के लोग इस बात से भी नाराज थे कि पुलिस द्वारा पिता को हिरासत में ले लिए जाने की वजह से रोशनी का अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा है.

एसडीओपी जयंत राठौर को अभी मुकेश और पृथ्वीराज सिंह की तलाश थी, जो घटना के बाद गुजरात भाग गए थे. दोनों की तलाश में मुखबिर लगे हुए थे, जिन से 14 फरवरी को दोनों के गुजरात से वापस लौटने की खबर मिली. पुलिस ने घेरेबंदी कर दोनों को बामनपुरी चौराहे पर घेर कर पकड़ लिया.

थाने में पूछताछ के दौरान सभी आरोपी रोशनी की हत्या के बारे में कुछ भी जानने से इनकार करते रहे, लेकिन ईश्वर के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि जवान बेटी के लापता हो जाने के बाद उस ने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज करवाई. उसे खोजने के बजाय वह घर में क्यों बैठा रहा.

अंतत: थोड़ी सी नानुकुर के बाद वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि रोशनी अपने प्रेमी करण के साथ भागने की तैयारी कर रही थी. उसे इस बात की जानकारी लग चुकी थी, इसलिए अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने चचेरे भाई मुकेश से बात की. मुकेश ने अपने दोस्त के साथ मिल कर रोशनी की हत्या कर दी.

आरोपियों द्वारा पूरी कहानी बता देने के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. किशोरी रोशनी की हत्या के पीछे जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी.

गांव पटेलियापुरा में रहने वाले ईश्वर पटेल की 19 वर्षीय बेटी रोशनी की खूबसूरती तभी चर्चा का विषय बन गई थी, जब उस ने किशोरावस्था में प्रवेश किया था. चंचल स्वभाव और पढ़नेलिखने में तेज रोशनी स्वभाव से काफी तेज थी.

अगर पढ़ाईलिखाई में तेज होने के साथसाथ दिलदिमाग और चेहरामोहरा खूबसूरत हो तो ऐसी लड़की को पसंद करने वालों की कमी नहीं रहती. पिता ईश्वर पटेल बेटी की इन खूबियों से परिचित था, इसलिए उस ने नौंवी क्लास के बाद आगे पढ़ने के लिए उस का दाखिला नालछा के उत्कृष्ट विद्यालय में करा दिया था.

इंसान की हर उम्र की अपनी एक मांग होती है. रोशनी ने जब किशोरावस्था से यौवन में प्रवेश करने के लिए कदम बढ़ाए तो उसे किसी करीबी मित्र की जरूरत महसूस हुई. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब दिल किसी को ढूंढने लगे तो सब से पहले आसपास ही नजर जाती है, खासकर लड़कियों के मामले में.

रोशनी के साथ भी यही हुआ. उसे करण मन भा गया. करण रोशनी के पिता के दोस्त का बेटा था. पारिवारिक दोस्ती के कारण रोशनी के हमउम्र करण का उस के घर में आनाजाना था.

सच तो यह है कि करण रोशनी का तभी से दीवाना था, जब से उस ने अपना पहला पांव किशोरावस्था में रखा था. लेकिन रोशनी के तीखे तेवरों के कारण उस ने आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं की थी.

करण से हो गया प्यार

करण के साथ रोशनी की अच्छी पटती थी. लेकिन उस ने करण की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जब उस के दिल में प्यार की चाहत जागी तो सब से पहले करण पर ही निगाहें पड़ीं.

मन में कुछ हुआ तो वह करण का विशेष ध्यान रखने लगी. जब यह बात करण की समझ में आई तो उस ने भी हिम्मत कर के रोशनी की तरफ कदम बढ़ाने की कोशिश की. एक दिन मौका पा कर उस ने रोशनी को फोन लगा कर उस से अपने दिल की बात कह दी.

रोशनी मन ही मन करण से प्यार करने लगी थी, इसलिए उस ने करण का प्यार स्वीकारने में जरा भी देर नहीं लगाई. इस के बाद दोनों घर वालों से नजरें बचा कर मिलने लगे.

रोशनी बचपन से ही जिद्दी और तेजतर्रार थी. यही वजह थी कि जब उस के सिर पर करण की दीवानगी का भूत चढ़ा तो उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह करण से ही शादी करेगी. इसी सोच के चलते वह करण पर खुल कर प्यार लुटाने लगी.

इतना ही नहीं, छोटे से गांव में वह करण से चोरीछिपे मिलने से भी नहीं डरती थी. जब भी उस का मन होता, गांव के किसी सुनसान खेत में करण को मिलने के लिए बुला लेती. नतीजा यह हुआ कि एक रोज गांव के कुछ लोगों ने दोनों को सुनसान खेत में एकदूसरे का आलिंगन करते देख लिया. फिर क्या था, यह खबर जल्द ही रोशनी के पिता ईश्वर तक पहुंच गई.

ईश्वर को पहले तो इस बात पर भरोसा नहीं हुआ, लेकिन जब उस ने रोशनी और करण पर नजर रखना शुरू किया तो जल्द ही सच्चाई सामनेआ गई. ईश्वर पटेल यह बात जानता था कि रोशनी जिद्दी है, इसलिए उस ने उसे कुछ कहने के बजाय कुछ और ही फैसला कर लिया.

उस ने रोशनी की शादी करने की ठान ली. रोशनी को बिना बताए उस ने बेटी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी.

रोशनी के सौंदर्य और गुणों की चर्चा रिश्तेदारों और बिरादरी में थी. उस के लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते मिलने लगे. लेकिन रोशनी करण के साथ शादी करने का फैसला कर चुकी थी, इसलिए पिता द्वारा पसंद किए गए हर लड़के को वह नकारने लगी. इस से ईश्वर पटेल परेशान हो गया.

इसी बीच कत्ल से कुछ दिन पहले रोशनी के लिए एक अच्छा रिश्ता आया. इतना अच्छा कि इस से अच्छा वर वह बेटी के लिए नहीं खोज सकता था. इसलिए उस ने रोशनी पर दबाव डाला कि वह इस रिश्ते के लिए राजी हो जाए. लेकिन रोशनी टस से मस नहीं हुई.

बेटी का हठ देख कर ईश्वर समझ गया कि रोशनी उस की नाक कटवाने पर तुली है. ईश्वर ने रोशनी पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस से उस का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना मुश्किल हो गया. यह देख कर रोशनी ने विद्रोह करने की ठान ली.

उस ने वैलेंटाइन डे पर करण के साथ भाग कर शादी करने की योजना बना ली. चूंकि ईश्वर उस के ऊपर गहरी नजर रख रहा था, इसलिए उसे इस बात की जानकारी मिल गई.

कातिल ईश्वर

जब कोई दूसरा रास्ता नहीं मिला तो उस ने अपनी इज्जत बचाने के लिए रोशनी को कत्ल करने की सोच ली. इस के लिए उस ने गांव में ही रहने वाले अपने चचेरे भाई मुकेश से बात की तो वह इस काम के लिए राजी हो गया. मुकेश को कार चलानी नहीं आती थी, इसलिए उस ने अपने एक दोस्त पृथ्वीराज सिंह पटेल को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

5 फरवरी, 2020 को मुकेश अपने दोस्त ऋषभ से उस की इनोवा कार मांग कर ले आया और दोनों रोशनी के स्कूल पहुंच गए. दोनों ने मांडू घुमाने के नाम पर रोशनी और उस की एक सहेली पिंकी को कार में बैठा लिया.

मुकेश और पृथ्वी दोनों को ले कर दिन भर मांडू में घूमते रहे. इस बीच उन्होंने रोशनी को धामनोद ले जा कर नर्मदा पुल से फेंकने की योजना बनाई, लेकिन उस की फ्रैंड के साथ होने की वजह से उन्हें अपना इरादा बदलना पड़ा.

शाम होने पर उन्होंने रोशनी की फ्रेंड पिंकी को सोड़पुर में उतार दिया. उस के बाद वे रोशनी को अज्ञात जगह की ओर ले कर जाने लगे. यह देख कर रोशनी ने अपने चाचा मुकेश से घर छोड़ने को कहा तो मुकेश बोला, ‘‘क्यों करण के संग मुंह काला करना है क्या?’’

चाचा के मुंह से ऐसी बात सुन कर वह डर गई. वह समझ गई कि मुकेश अब उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा. इसलिए उस ने अपने पिता को फोन कर जान की भीख मांगी. लेकिन ईश्वर ने उस की एक नहीं सुनी.

इस बीच दोनों कार में डीजल डलवाने के लिए बागड़ी फांटे के पैट्रोल पंप पर रुके, जहां रोशनी के चिल्लाने पर एक पुलिस वाले को अपना पीछा करते देख वे वहां से डर कर भाग निकले.

इस के बाद दोनों ने एक सुनसान इलाके में कार रोकी और रोशनी को जबरन जहर पिला दिया. फिर सातघाट पुलिया के पास ले जा कर उस का गला चाकू से रेतने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस का चेहरा भी पत्थर से कुचल दिया.

आरोपियों ने सोचा था कि लाश की पहचान न हो पाने से पुलिस उन तक कभी पहुंच नहीं सकती, लेकिन एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया की टीम ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें कानून की ताकत का अहसास करवा दिया.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, मई 2020

मौत का दरवाजा

9 नवंबर, 2019 की बात है. दोपहर के यही कोई ढाई बजे थे. नवी मुंबई के उपनगर पनवेल के सीटी पुलिस थाने के थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे को एक अहम खबर मिली. खबर यह थी कि पनवेल के होटल समीर लाजिंग एंड बोर्डिंग के कमरा नंबर 101 में कोई बड़ा हादसा हो गया है. कमरे के अंदर ठहरे एक दंपति और उन की 2 वर्षीय बच्ची की स्थिति कुछ ठीक नहीं है.

यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे अपने सहायक इंसपेक्टर शत्रुघ्न माली, महिला एएसआई सरिता मुसले और कांस्टेबल योगेश मेढ़ को अपने साथ ले कर होटल लाजिंग एंड बोर्डिंग की तरफ रवाना हो गए.

यह होटल नवी मुंबई पनवेल का एक जानामाना होटल था. उस होटल में इस प्रकार की यह पहली घटना थी. इसलिए होटल का पूरा स्टाफ परेशान था. जब यह खबर लोगों के बीच फैली तो होटल में ठहरे लोगों में हलचल मच गई. वे लोग होटल के कमरा नंबर 101 के सामने आ कर जमा हो गए.

कमरा नंबर 101 होटल की पहली मंजिल पर था. पुलिस जब उस कमरे में गई तो डबल बेड पर एक महिला और एक पुरुष के अलावा एक बच्ची चित अवस्था में पड़े थे. निरीक्षण में पता चला कि महिला और पुरुष की सांसें तो धीमी गति से चल रही थीं, लेकिन बच्ची की सांस थम चुकी थी. उस के मुंह से झाग निकल रहे थे और पूरा बदन नीला पड़ गया था.

कमरे से उठती कीटनाशक दवा की गंध से पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि आखिर मामला क्या था. थानाप्रभारी ने बिना देरी किए एंबुलेंस बुला कर तीनों को स्थानीय अस्पताल भेज दिया. अस्पताल के डाक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया, जबकि बेहोश महिला और पुरुष का प्राथमिक उपचार करने के बाद उन्हें मुंबई के जेजे अस्पताल रेफर कर दिया. उन की हालत काफी चिंताजनक थी.

मामला गंभीर था. थानाप्रभारी किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और घटना स्थल के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने होटल मैनेजर और वहां के कर्मचारियों से पूछा तो मालूम पड़ा कि वे लोग उस होटल में 2 दिन पहले आ कर ठहरे थे.

होटल के रजिस्टर में उन्होंने अपने आप को दंपति के रूप में दर्ज करवाया था. वे लोग कौन थे, कहां से आए थे. यह जानकारी पुलिस को उस होटल के रजिस्टर और उन के कमरे की तलाशी के दौरान मिल गई. ये लोग मूल रूप से केरला के रहने वाले थे.

थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे अभी घटना स्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी वहां आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी. फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने होटल का कमरा सील कर मृतक बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेजे अस्पताल भेज दिया. फिर होटल मैनेजर की शिकायत पर केस दर्ज कर जांचपड़ताल शुरू कर दी. जब उन्होंने होटल के कमरे में मिले डोक्यूमेंट्स के आधार पर उन के परिवार वालों से संपर्क किया तो उन के सामने चौंका देने वाला सच सामने आया.

पता चला कि आत्महत्या की कोशिश करने वाले लोग पतिपत्नी न हो कर प्रेमी और प्रेमिका थे. उन का नाम लिजी कुरियन और वसीम अब्दुल कादिर था और मृतक बच्ची जोहना थी. ये लोग हत्या के आरोपी थे. उन के ऊपर रिजोश कुरियन की हत्या का आरोप था.

यह पता चलते ही पुलिस ने लिजी कुरियन और वसीम अब्दुल कादिर को हिरसात में ले लिया. ये लोग केरल के जिला इडुक्की के थाना संथनपारा के रहने वाले थे, इसलिए पनवेल पुलिस ने यह जानकारी संथनपारा पुलिस को दे दी.

आपराधिक जानकारी पाते ही केरल के थाना संथनपारा के एसआई विनोद कुमार अपनी टीम के साथ पनवेल पहुंच गए. उन के साथ मुंबई पुलिस की कस्टडी में अभियुक्तों के परिवार वाले भी थे, पनवेल नवी मुंबई की पुलिस और केरल पुलिस टीम ने जब संयुक्त रूप से मामले की तफ्तीश की तो कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

36 वर्षीय रिजोश कुरियन केरल के जनपद इडुक्की के थाना संथनपारा के एक छोटे से गांव में रहता था. वह उसी इलाके के एक बड़े रिजोर्ट में काम करता था. परिवार में उस की पत्नी लिजी कुरियन के अलावा एक बेटी थी जोहना. लिजी काम के दौरान ही रिजोश की जिंदगी में आई थी. पहले दोनों में दोस्ती हुई. 4 साल पहले परिवार वालों की सहमति से दोनों ने लव मैरिज कर ली थी.

शादी के बाद लिजी और रिजोश कुरियन का दांपत्य जीवन सुचारू रूप से चलने लगा. रिजोश जिस रिसोर्ट में काम करता था, वहां उस का वेतन बहुत ज्यादा नहीं था, लेकिन इतना जरूर था कि किसी तरह घर का खर्च चल जाता था. घर में कभी आर्थिक परेशानी होती तब भी लिजी किसी तरह एडजस्ट कर लेती थी. लेकिन जब लिजी ने एक बेटी को जन्म दिया तो घर के खर्चे कुछ बढ़ गए.

मैनेजर ने लगाई संबंधों में सेंध

लिजी कुरियन यह नहीं चाहती थी कि जिन अभावों में वह अपनी जिंदगी गुजार रही थी, उस अभाव का असर उस की बेटी जोहना पर पड़े. यही सोच कर उस ने खुद भी नौकरी करने का मन बनाया. इस के लिए उस ने पति रिजोश से बात की तो उसे पत्नी का यह प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा.

तब लिजी ने तर्क दिया कि जब हम दोनों कमाएंगे तो हमारी बेटी की पढ़ाई के साथ परवरिश भी अच्छी होगी. रिजोश को पत्नी की बात ठीक तो लगी लेकिन समस्या यह थी कि लिजी के नौकरी पर जाने के बाद जोहना की देखभाल कौन करेगा.

लिजी ने पति को यह कह कर राजी कर लिया कि यहां ऐसे कई पालन घर हैं जो बच्चों को न सिर्फ संभालते हैं बल्कि उन की अच्छी तरह से देखभाल भी करते हैं. आखिरकार न चाहते हुए भी रिजोश को पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा. तब रिजोश ने अपने ही रिसोर्ट के मशरूम फार्म में लिजी को नौकरी दिलवा दी. लिजी को नौकरी मिल जाने के बाद दोनों साथसाथ घर से निकलते थे. पहले वह अपनी बेटी जोहना को पालन घर छोड़ते, फिर रिसोर्ट जाते.

ड्यूटी से लौटते समय ये लोग पालन घर से अपनी बेटी को घर ले आते थे. एक साथ काम करने से पतिपत्नी काफी खुश थे. दोनों के वेतन से धीरेधीरे घर की स्थिति भी सुधर गई. बेटी जोहना के भविष्य के लिए भी वह पैसों की बचत कर रहे थे.

सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन उन की खुशी को रिसोर्ट के मैनेजर वसीम अब्दुब्ल कादिर की नजर लग गई. मैनेजर वसीम अब्दुल ने जिस दिन से लिजा को देखा था, उस के दिल में उतर गई थी. वह लिजा को चाहने लगा था. 27 वर्षीय वसीम अब्दुल कादिर भी उसी इलाके में रहता था, जहां रिजोश कुरियन रहता था. वह अविवाहित था.

रिसोर्ट में वसीम अब्दुल कादिर की छवि कर्तव्यनिष्ठ और कड़क स्वभाव वाले व्यक्ति की थी लेकिन वह रिजोश और लिजी के प्रति नरम दिल और उदार बन गया. लिजी से नजदीकियां बढ़ाने के लिए वसीम उस के आगेपीछे घूमने लगा. वह लिजी को प्रभावित करने के लिए बनठन कर रिसोर्ट आता और उस के करीब रहने की कोशिश करता था. जब इस सब का लिजी पर कोई असर नहीं पड़ा तो उस ने एक दूसरा रास्ता अपनाया.

उस ने लिजी के पति रिजोश से दोस्ती कर ली. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा. कभीकभी पार्टी देने के बहाने वह रिजोश को होटलों में ले जाता, जहां वह उसे जम कर शराब पिलाता.

जब रिजोश शराब के नशे में धुत हो जाता था, तो वसीम उसे छोड़ने के बहाने उस के घर आ जाता. घर पहुंच कर वह लिजी से सहानुभुति बटोरने के लिए कहता कि रिजोश नशे में धुत सड़क पर पड़ा था, मैं ने देखा तो उठा कर ले आया. रिजोश को उस के कमरे तक पहुंचाने के लिए वह लिजी की मदद लेता और उसी दौरान लिजी के बदन को स्पर्श कर लेता था. लिजी चाह कर भी उस का विरोध नहीं कर पाती थी.  लिजी जब नशे में चूर रिजोश को आड़े हाथों लेती, तो वह बीचबचाव करने लगता.

जब कई बार ऐसा हुआ तो मौका देख कर एक दिन वसीम ने हिम्मत कर के लिजी का हाथ पकड़ लिया. लिजी ने जब हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो वसीम ने उस का हाथ नहीं छोड़ा और कहा, ‘‘लिजी मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता.’’

इस पर लिजी ने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘‘आप को पता है कि मैं एक बेटी की मां हूं. इसलिए अच्छा यही होगा कि मुझे भूल जाओ.’’

लेकिन वसीम ने हार नहीं मानी. वह लिजी के दिल में अपनी छवि बनाने की कोशिश करता रहा. उस की हमदर्दी और सहानुभूति के चलते लिजी के मन में भी उस के प्रति प्यार का अंकुर फूटने लगा. धीरेधीरे उस का झुकाव भी वसीम अब्दुल कादिर की तरफ हो गया. इस के 2 कारण थे, एक यह कि रिजोश अब पूरी तरह शराब का आदी हो गया था और दूसरा यह कि वह लिजी के तनमन की प्यास बुझाने में नाकाम साबित हो रहा था.

पति की नाक के नीचे पत्नी की अय्याशी

यही कारण था कि लिजी ने वसीम के लिए अपने दिल का दरवाजा खोल दिया. इस के बाद तो वसीम बागबाग हो गया. दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और फिर एक दिन उन्होंने मौका पा कर अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. एक बार जब मर्यादा की जंजीर टूटी तो फिर जुड़ी ही नहीं. जब भी उन्हें मौका मिलता, तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

2 सालों तक रिजोश की नाक के नीचे उन दोनों के अवैध संबंधों का वृक्ष फलताफूलता रहा, लेकिन उसे भनक तक नहीं लगी. रिजोश को इस का पता नहीं चलता यदि रिसोर्ट के कर्मचारियों के बीच उन के संबंधों की बात न फैलती.

रिजोश को जब पत्नी के बहके कदमों की जानकारी मिली तब तक काफी देर हो चुकी थी. रिजोश विरोध कर नहीं सकता था. इसलिए उस ने पत्नी की ही नौकरी छुड़वा कर उसे घर में बैठने को कहा. लिजी को पति की बात माननी पड़ी.

इतना ही नहीं रिजोश ने लिजी को यह भी हिदायत दी कि वह अपने प्रेमी वसीम से न मिले. मुलाकात बंद होने पर वसीम और लिजी परेशान हो गए. किसी तरह एक दिन मौका मिलने पर लिजी ने वसीम से मुलाकात की, उसे बताया कि पति के होते हुए हम लोगों की मुलाकात संभव नहीं हो पाएगी. इसलिए रास्ते का पत्थर बने रिजोश को रास्ते से हटा दो. वसीम भी यही चाहता था. इसलिए दोनों ने रिजोश को ठिकाने लगाने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली.

31 अक्तूबर, 2019 को योजना के अनुसार वसीम अब्दुल कादिर ने लिजी के पति रिजोश को कुछ काम के लिए रिसोर्ट पर बुलाया और वहां उस के साथ दारू पी. उस ने रिजोश को काफी मात्रा में शराब पिलाई. जब रिजोश को ज्यादा नशा हो गया तो वसीम ने उस का गला दबा कर हत्या कर दी. फिर उस के शव को रिसोर्ट के अंदर ही एक गहरी खाई में डाल कर जला दिया. यह जानकारी उस ने लिजी को भी दे दी.

जब 3 दिनों तक रिजोश घर नहीं आया तो घर वालों को उस की चिंता हुई. रिजोश के भाई उस की तलाश में जुट गए. काफी तलाश करने के बाद भी जब उस का कहीं पता नहीं चला तो 4 नवंबर, 2019 को रिजोश के भाई और साले थाना संथनपरा पहुंचे. वहां पर उन्होंने रिजोश की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

मामला गंभीर था. केरल के पुलिस आयुक्त महेश कुमार ने मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी प्रदीप कुमार को सौंप दी. थानाप्रभारी प्रदीप कुमार ने एसआई विनोद कुमार के साथ अपनी जांच शुरू की.

पुलिस तफ्तीश की पहली सीढ़ी भी नहीं चढ़ पाई थी कि 5 नवंबर, 2019 की सुबह लिजी कुरियन भी अपनी बेटी जोहना के साथ रहस्यमय तरीके से गायब हो गई.

मौत ने भी स्वीकारा नहीं

पुलिस ने तफ्तीश शुरू की तो पता चला कि लिजी के साथसाथ रिसोर्ट का मैनेजर वसीम अब्दुल कादिर भी गायब है. अब पुलिस के लिए मामला संदिग्ध हो गया था. पुलिस ने जब लिजी और वसीम अब्दुल कादिर का बैकग्राउंड खंगाला तो सब सच सामने आ गया.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि रिजोश कुरियन किसी रहस्यमय साजिश का शिकार हो गया है, जिस की तह में जाना जरूरी था. इस के लिए उन्होंने जब रिसोर्ट कर्मचारियों के साथ कई एकड़ में फैले रिसोर्ट का बारीकी से निरीक्षण किया. फलस्वरूप एक मजदूर की मदद से रिसोर्ट की एक गहरी खाई से रिजोश का अधजला शव बरामद हो गया.

7 नवंबर, 2019 को बरामद हुए रिजोश के शव की शिनाख्त कर उसे पोस्टमार्टम के लिए केरल के मैडिकल कालेज भेज दिया गया. अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गई थी कि रिजोश की हत्या में वसीम का सीधा हाथ था. पुलिस ने इस मामले में वसीम अब्दुल कादिर के परिवार वालों पर अपना शिकंजा कस दिया और वसीम अब्दुल कादिर के भाई को हिरासत में ले कर मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश में लग गई.

8 नवंबर, 2019 को जब यह खबर पत्रकारों को मिली तो अखबारों और टीवी न्यूज चैनलों में सुर्खियों में छा गई. लिजी और वसीम ने यह खबर देखी तो उन के चेहरों का रंग उड़ गया. भाई की कस्टडी और मीडिया की सुर्खियों से वसीम को एहसास हो गया था कि अब उन का बच पाना संभव नहीं है. इस के पहले कि पुलिस उन दोनों तक पहुंचती उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ. फलस्वरूप दोनों ने अपना जीवन खत्म करने का फैसला कर लिया.

रात को घूमने के बहाने दोनों होटल समीर लाजिंग एंड बोर्डिंग से बाहर आए. बाजार से उन्होंने कीटनाशक दवा खरीदी. इस मामले को ले कर रातभर दोनों परेशान रहे. सुबह 10 बजे उन्होंने उस दवा का स्वयं सेवन किया और उस मासूम बच्ची को भी करा दिया. बच्ची उस दवा के असर से बच नहीं पाई और उस की मृत्यु हो गई. जबकि वे दोनों बेहोश हो गए. उन्हें उपचार के लिए अस्पताल भेज दिया गया, बाद में वे ठीक हो गए.

उधर केरल के संथनपारा थाना पुलिस के थानाप्रभारी वसीम अब्दुल कादिर के भाई का मुंह खुलवाने में कामयाब हो पाते, इस के पहले ही मुंबई पुलिस ने संथनपारा पुलिस से संपर्क कर इस मामले की जानकारी दे दी.

नवी मुंबई पुलिस और केरल पुलिस ने संयुक्त रूप से मामले की तफ्तीश कर लिजी कुरियन और वसीम कादिर को मीडिया के समक्ष पेश कर केस का खुलासा कर दिया. रिजोश कुरियन की हत्या के मामले में केरल पुलिस विस्तार से पूछताछ के लिए दोनों को ट्रांजिट रिमांड पर अपने साथ ले गई.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, जनवरी 2020