निशानेबाज का अपनो पर ही निशाना

पीयूष गोयल के सूचना अफसर के रूप में तैनात थे. जबकि उन का परिवार लखनऊ में रह रहा था. परिवार में उन की पत्नी मालिनी, बेटा सर्वदत्त और बेटी दीपा थी. उन की सरकारी कोठी प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास से करीब 30 मीटर दूर थी.

29 अगस्त, 2020 की बात है. 15 वर्षीय दीपा ने घबराई सी आवाज में अपनी नानी को फोन किया, ‘‘नानी जल्दी से एंबुलैंस ले कर आ जाओ, मां और भाई को चोट लगी है.’’ नानी का घर दीपा के घर से केवल 5 किलोमीटर दूर लखनऊ के गोमतीनगर में था.

दीपा की घबराई आवाज में यह सूचना पाते ही नानी चिंतित हो गईं. वह उसी समय पति विजय मिश्रा के साथ चल पड़ीं. करीब 10 मिनट में वह विवेकानंद मार्ग स्थित कोठी नंबर 9 पर पहुंच गईं.

वहां की हालत देख कर दोनों अवाक रह गए. कमरे में उन की 45 साल की बेटी मालिनी और 17 साल का नाती सर्वदत्त बैड पर खून में लथपथ पडे़ थे. दोनों की गोली मार कर हत्या की गई थी. सर्वदत्त को सिर पर गोली लगी थी, मालिनी को भी सिर के पास गोली लगी थी. वह करवट लेटी थीं. दीपा घबराई हुई थी और कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

नाना विजय मिश्रा ने तुरंत 112 नंबर पर डायल कर के इस की सूचना लखनऊ पुलिस को दी. इस के अलावा उन्होंने यह जानकारी दिल्ली में रह रहे अपने दामाद आरडी बाजपेई को भी दे दी. मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण पुलिस आननफानन में कोठी नंबर 9 की तरफ रवाना हुई.

कोठी नंबर 9 अंगरेजों के जमाने की सरकारी कोठी है. यह रेलवे विभाग के अधिकारियोंं को ही रहने के लिए मिलती है. लालसफेद रंग में रंगी यह आलीशान कोठी दूर से ही नजर आती है. कोठी के सामने वीवीआईपी गेस्टहाउस है. बगल में लैरोटो स्कूल है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इतने सुरिक्षत इलाके में इस घटना से सभी के होश उड़ गए. वैसे भी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की हत्या एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. ऐसे में रेलवे में काम करने वाले ब्राह्मण जाति के एक बड़े अधिकारी के आवास में दिनदहाडे़ 2-2 हत्याएं होने से राजनीति गर्म हो गई.

आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने योगी सरकार में ब्राह्मण उत्पीड़न का मुद्दा उठा दिया. कांग्रेस नेता पिं्रयका गांधी ने महिलाओं के असुरक्षित होने का मुद्दा उठाया, जिस से योगी सरकार सकते में आ गई थी.

आर.डी. बाजपेई दिल्ली में रेल मंत्री पीयूष गोयल के सूचना अफसर के पद पर तैनात हैं. अपने अफसर के परिवार में हुए हादसे को संज्ञान में लेते हुए खुद पीयूष गोयल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फोन कर पूरे मामले की जानकारी ली.

कुछ ही देर में लखनऊ से ले कर दिल्ली तक हड़कंप मच गया. लखनऊ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू है. पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने पूरे मामले की कमान स्वयं अपने हाथों में ले ली. लखनऊ पुलिस के सब से काबिल असफरों की टीम को इस मामले के खुलासे में लगाया दिया गया.

उत्तर प्रदेश के डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. डीसीपी (उत्तरी) शालिनी ने मामले में पूछताछ शुरू की. शनिवार-रविवार को उत्तर प्रदेश में 2 दिन का लौकडाउन होने के कारण दिल्ली से लखनऊ के बीच कोई हवाई सेवा नहीं थी. इस कारण आर.डी. बाजपेई को कार से सड़क मार्ग द्वारा लखनऊ के लिए निकलना पड़ा.

पुलिस के लिए सब से अजीब बात यह थी कि कोठी के अंदर जाने के 4 रास्ते थे. वहां आने और भागने का कोई सबूत पुलिस को नहीं दिख रहा था. घटना के समय घर में मां मालिनी, बेटा सर्वदत्त और बेटी दीपा ही मौजूद थी. उस समय दीपा बदहवास हालत में थी. घर के अंदर छानबीन से पुलिस को दीपा के बाथरूम में शीशे पर गोली चलने के निशान मिले. एक अलमारी खुली मिली. पर उस से कुछ गायब नहीं था.

बाथरूम के अंदर शीशे पर खाने वाले जैम से ‘डिसक्वालीफाइड ह्यूमन’ लिखा था. उसी जगह पर गोली मारी गई थी, जिस से शीशा टूट गया था. वहां पास ही मेज पर .22 बोर की एक पिस्टल रखी मिली. इसे ले कर पुलिस का शक दीपा पर ही गहराने लगा.

पुलिस ने जब भी दीपा से बात करनी चाही, वह दीवार की तरफ देख कर ‘भूत…भूत…’ चिल्लाने लगती थी. दीपा ने अपने दोनों हाथ अपनी पैंट की जेब में डाल रखे थे. लग रहा था जैसे वह कुछ छिपाने का प्रयास कर रही हो. वह अंगरेजी में पुलिस को जो बता रही थी, उस का अर्थ यह था कि रेशू एक भूत है. वह कई दिनों से उस के सपने में आता है. उस ने ही कहा था कि ऐसा करो. इस के बाद उस ने पिस्टल निकाली और शीशे पर ‘डिसक्वालीफाइड ह्यूमन’ लिख कर गोली मार दी.

पुलिस ने जब दीपा से हाथ खोलने को कहा तो वह मना करने लगी. ऐसे में उस के नाना विजय मिश्रा की मदद से हाथ खोला गया तो हाथ में कटने के निशान मिले, जिसे पट्टी से बांधा गया था. उस के हाथ पर 50 से अधिक घाव के निशान थे. इन में से कुछ निशान ताजा थे. दीपा ने बताया, ‘‘यह काम उस ने किया है, यह काम कोई बड़ा नहीं है. दुनिया भर में लाखों लोग ऐसा करते हैं.’’

दीपा की बातों और उस के हावभाव से उस की हालत अच्छी नहीं लग रही थी. पुलिस को यह भी पता चला कि दीपा को डिप्रेशन की बीमारी है, जिस का इलाज भी चला था. ऐसे में पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ करने लगी. पुलिस ने उस से पूछना शुरू किया कि उस ने हाथ कैसे और किस चीज से काटे?

इस पर दीपा ने पुलिस को माचिस की डिब्बी में रखा ब्लेड दिखाया. इस के बाद पुलिस को दीपा पर ही अपने भाई और मां को गोली मारने का शक गहराया.

सारे सबूत दीपा की तरफ इशारा कर रहे थे. घटना के महज 4 घंटे के अंदर ही शाम के 7 बजे पुलिस ने पूरे मामले का खुलासा करते हुए दीपा को हत्या का आरोपी माना और उसे अपनी हिरासत में ले लिया.

दीपा के नाबालिग होने के कारण उसे आगे की पूछताछ के लिए थाने के बजाय उस के घर में ही रखा गया. पुलिस ने दीपा को मानसिक रूप से बीमार मान कर बहुत ही संवेदनशीलता के साथ पूछताछ शुरू की. मानसिक रोग के डाक्टर और काउंसलर से भी मदद ली गई.

शाम करीब 8 बजे दीपा के पिता आर.डी. बाजपेई जब दिल्ली से लखनऊ पहुंचे तो दीपा उन से लिपट कर रोने लगी. पिता के लिए यह बेहद मुश्किल समय था. वह पत्नी और बेटे के कत्ल के आरोप में अपनी ही बेटी को देख कर कुछ भी समझ पाने की हालत में नहीं थे. दीपा के लिए उन्होंने कितने सपने संजोए थे.

वह उसे शूटिंग की दुनिया में नाम कमाते देखना चाहते थे. शूटिंग की शौकीन दीपा पदक जीतने की जगह अपने ही लोगों को निशाना बना देगी, किसी ने नहीं सोचा था.

दीपा बहुत ही काबिल निशानेबाज थी. घरपरिवार ही नहीं, शूटिंग रेंज में उसे ट्रैनिंग देने वालों को भी यकीन था कि वह निशानेबाजी में बड़ा नाम कमाएगी. निशानेबाजी मंहगा खेल है, जिस में घरपरिवार का सहयोग ही नहीं आर्थिक रूप से सक्षम होना भी जरूरी होता है. दीपा के मामले में यह अच्छी बात थी. उस के पिता रेलवे के बड़े अधिकारी थे.

बेटी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने के लिए वह हर तरह की सुविधा जुटाने में सक्षम थे. आर.डी. बाजपेई का लखनऊ से दिल्ली ट्रांसफर हो गया था. वह जल्दी ही बेटी और परिवार को ले कर दिल्ली जाने वाले थे, जहां दीपा को शूटिंग की अच्छी ट्रेनिंग की सुविधा मिल जाती.

लखनऊ में बेटी की अच्छी ट्रेनिंग हो सके, इस के लिए आर.डी. बाजपेई ने विवेकानंद मार्ग स्थित अपनी कोठी के पीछे 10 मीटर एयर पिस्टल की शूटिंग रेंज बनवा दी थी. दीपा केवल शूटिंग में ही अव्वल नहीं थी, उसे पेंटिंग, डांस और म्यूजिक का भी शौक था. 7वीं कक्षा में पढ़ने के दौरान उस ने पेंटिग में बुक मार्क बनाने की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में पुरस्कार हासिल किया था.

दीपा ने कुछ दिन शूटिंग की ट्रेनिंग दिल्ली के कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में की थी. वह अपनी मां मालिनी के ही साथ कार से दिल्ली आतीजाती थी. कभीकभी उस के पिता उसे छोड़ने आते थे.

दीपा ने 10 साल की उम्र से शूटिंग करना शुरू किया था. 2 से 3 माह में ही वह राज्य स्तर की निशानेबाज बन गई थी. इस के बाद उस ने महाराष्ट्र और कोलकाता में भी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था. कई पदक जीते. दीपा शूटिंग में पश्चिम बंगाल की तरफ से खेलती थी. वह आसनसोल राइफल क्लब की मेंबर भी थी.

बंगाल की राज्य निशानेबाजी प्रतियोगिता में उस ने कई पुरस्कार जीते थे. दीपा .22 की 25 मीटर स्पर्धा, 10 मीटर और 25 मीटर एयर राइफल में भी हिस्सा लेती थी. .22 की 25 मीटर स्पर्धा में जब दीपा ने राज्य स्तर पर चैंपियनशिप जीती और जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीता तो उसे अपना हथियार खरीदने का लाइसैंस मिल गया था. तभी पिता ने उस के लिए पिस्टल खरीद दी थी.

दीपा को अंगरेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था. कई बार वह खुद में गुमसुम सी दिखती थी. पिता के दिल्ली ट्रांसफर के समय स्कूल चल रहे थे. दीपा और उस का भाई सर्वदत्त बाजपेई स्कूल में पढ़ते थे.

दीपा कक्षा 9 में थी और भाई कक्षा 12 में. बीच सत्र में दिल्ली में बच्चों के एडमिशन में दिक्कत आ रही थी, इस कारण आर.डी. बाजपेई ने सोचा था कि जुलाई से जब सत्र शुरू होगा, पत्नी और बच्चों को अपने पास दिल्ली बुला लेंगे.

इसी बीच कोविड 19 का संकट पूरे विश्व में छा गया. लौकडाउन हो जाने पर स्कूलकालेज बंद हो गए. दीपा भी अकेली पड़ गई थी. वैसे भी दीपा दोस्त कम बनाती थी. वह अपने आप में ही मस्त रहती थी. जैसेजैसे लौकडाउन खुल रहा था, घर में इस बात की खुशी थी कि जल्द ही सभी दिल्ली चले जाएंगे.

घर में दिल्ली शिफ्ट होने की तैयारियां चल रही थीं. यह सोच रहा था. पर समय का चक्र किसी दूसरी दिशा में ही घूम रहा था, जिस का अंदाजा किसी को नहीं था. समय का तूफान अपनी गति से चल रहा था.

घर में सभी लोग अपनेअपने सामान की पैकिंग करने लगे थे. दीपा ने भी अपने दोस्तों से अपने सामान की पैकिंग में मदद करने के लिए कहा था. 29 अगस्त, 2020 शनिवार को दीपा के पिता आर.डी. बाजपेई का जन्मदिन था. रात को ही परिवार ने फोन से बात कर के उन्हें बधाई दी थी.

पत्नी मालिनी और दोनों बच्चों ने भी जन्मदिन की बधाई दी. आपस में तय हुआ कि आर.डी. बाजपेई शाम को दिल्ली में अपने जन्मदिन का केक काटेंगे और लखनऊ से घरपरिवार के लोग ‘हैप्पी बर्थडे’ का गीत गाएंगे. वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए बर्थडे पार्टी का पूरी थीम तैयार हो चुकी थी.

29 अगस्त की सुबह 9 बजे मालिनी ने अपनी बेटी दीपा और बेटे सर्वदत्त के साथ नाश्ता किया. इस के बाद दीपा अपने कमरे में चली गई. मालिनी और सर्वदत्त भी एक कमरे में ही बिस्तर पर सो गए. उस दिन शाम को बर्थडे पार्टी मनानी थी, लेकिन पार्टी मनाने की जगह दोनों के शव पोस्टमार्टम के लिए भेजे जा रहे थे.

हत्या का आरोप बेटी पर ही लगा, कोठी नंबर 9 में खुशियों की जगह मातम पसर गया. आर.डी. बाजपेई के लिए यह मुश्किल हो गया कि वह पत्नी और बेटे को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करें या बेटी को बचाने के लिए.

आर.डी. बाजपेई व्यवहारकुशल और खुशदिल अफसरों में माने जाते हैं. वह उत्तर मध्य रेलवे जोन में सीपीआरओ के पद पर भी रह चुके हैं. बाजपेई 1998 बैच के आईआरटीएस अफसर हैं. आगरा, मालदा, आसनसोल जगहों पर उन्होंने उच्च पदों पर काम किया. वह उत्तर रेलवे लखनऊ में सीनियर डीसीएम भी रहे. लखनऊ में ट्रै्रनिंग सेंटर के बाद वह रेलवे बोर्ड दिल्ली में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (इनफारमेशन) के पद पर काम कर रहे थे. उन की लोकप्रियता पूरे विभाग में थी.

आर.डी. बाजपेई ने अपनी छवि के अनुकूल नाजुक हालत में भी बेहद समझदारी भरा फैसला लेते हुए बेटी का साथ देना स्वीकार किया. बेटी को दोष देने की जगह वह उस के डिप्रेशन को ही गुनहगार मान रहे थे. 30 अगस्त को जब पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने मालिनी और बेटे सर्वदत्त का शव अंतिम क्रिया के लिए उन्हें सौंपा तो कलेजे पर पत्थर रख कर उन्होंने उन का दाहसंस्कार किया.

इस के बाद भी वह बेटी को हत्यारा मानने को तैयार नहीं थे. लखनऊ पुलिस में आर.डी. बाजेपई ने अपनी पत्नी और बेटे की हत्या के लिए अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई.

उधर पुलिस ने दीपा को हत्या का आरोपी मान कर उसे इलाज के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज में भरती कराया. यहां से डाक्टरों की राय पर उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया.

पुलिस का दावा है कि दीपा मानसिक रूप से बीमार थी. उस का पहले इलाज भी चला था. लौकडाउन के समय उस ने भूतप्रेतों और अंधविश्वास के उपन्यास पढ़े, जिस से उस के मन में भूत की कहानियों ने घर बना लिया था, उसे लगता था कि उस के सपने में भूत आता है. वह जैसा कहता है, वह वैसा ही करती थी.

भूतप्रेत की कहानियां बच्चों के मन पर किस तरह से असर डालती हैं, लखनऊ का डबल मर्डर इस की मिसाल है. दीपा को लगता था कि रेशू नाम का भूत उस के सपने में आ कर उसे गाइड करता है. अपनी मां और भाई की हत्या के बाद भी दीपा कह रही थी कि ‘रेशू केम….एंड गाइड मी’.

रेशू तो नहीं आया पर दीपा अपना सुनहरा भविष्य और अपनी मांभाई को हमेशा के लिए खो बैठी है. इस घटना से पता चलता है कि भूतप्रेत की बात करना और उन की उपस्थिति को मानना एक तरह से मानसिक बीमारी है.

जब दीपा ने खुद अपने हाथ की नस काटनी शुरू की थी मानसिक बीमारी की वह खतरनाक अवस्था थी. उस समय अगर दीपा का उचित इलाज कराया गया होता तो अंत इतना खतरनाक नहीं होता.

—कहानी में नाबालिग दीपा की पहचान छिपाने के कारण उस का नाम बदला हुआ है.

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

शक की इंतिहा

बेवजह शक का कीड़ा मन में बैठा लिया जाए तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है. ये कहानी भी ऐसे ही एक शक्की पति सुदर्शन वाल्मीकि की है, जिस ने अपनी पत्नी पर किए गए शक की वजह से अपनी गृहस्थी खुद उजाड़ दी.

मध्य प्रदेश के जबलपुर के तिलवारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत मदनमहल की पहाडि़यों के पास के एक इलाके का नाम भैरों नगर है,  इस जगह पर गिट्टी क्रेशर लगे होने के कारण इसे क्रेशर बस्ती के नाम से भी जाना जाता है. इसी बस्ती में दशरथ वाल्मीकि का परिवार रहता है. दशरथ के परिवार में उस की पत्नी के अलावा उस का 39 साल का बेटा सुदर्शन उर्फ मोनू वाल्मीकि, उस की पत्नी प्रीति और 22 माह की बेटी देविका भी रहती थी.

दशरथ के परिवार के सभी वयस्क सदस्य जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मैडिकल कालेज में साफसफाई का काम करते थे. सुदर्शन मैडिकल कालेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था. परिवार के सदस्यों के कामधंधा करने से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है और परिवार हंसीखुशी से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.

17 जनवरी, 2020 की सुबह सभी लोग अभी बिस्तर से सो कर उठे भी नहीं थे कि सुदर्शन और उस की पत्नी ने घर में यह कह कर कोहराम मचा दिया कि उन की बेटी देविका बिस्तर पर नहीं है. उन्होंने अपने मातापिता को बताया कि शायद किसी ने देविका का अपहरण कर लिया है. देविका के दादादादी का तो यह खबर सुन कर बुरा हाल हो गया था. देविका को वे बहुत लाड़प्यार करते थे.

जैसे ही बस्ती में देविका के कमरे के भीतर से गायब होने की खबर फैली तो आसपास के लोगों की भीड़ सुदर्शन के घर पर जमा हो गई. लोगों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी छोटी सी बच्ची का अपहरण कर सकता है.

चूंकि कुछ दिनों पहले ही जबलपुर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने सुदर्शन के मकान का पिछला हिस्सा तोड़ दिया था, जिस की वजह से पीछे की ओर ईंटें जमा कर उस हिस्से को बंद कर दिया था.

लोगों ने अनुमान लगाया कि इसी दीवार की ईंटों को हटा कर अपहर्त्ता शायद अंदर घुसे होंगे. देविका की मां प्रीति लोगों को रोरो कर बता रही थी कि 16 जनवरी की रात वे अपनी बेटी देविका को बीच में लिटा कर ही सोए थे, पर अपहर्त्ताओं ने देविका के अपहरण को इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि उन्हें इस की आहट तक नहीं हुई.

लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन ऐसा दुस्साहस कर सकता है कि अपने मां बाप के बीच सो रही बच्ची का अपहरण कर के ले जाए. मासूम बच्ची देविका की खोजबीन आसपास के इलाकों में लोगों द्वारा करने के बाद भी उस का कोई अतापता नहीं चला तो उस के गायब होने की रिपोर्ट जबलपुर के तिलवारा पुलिस थाने में दर्ज करा दी.

पुलिस थाने में सुदर्शन ने उस के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया कि रात को 11 बजे वह खाना खा कर पत्नी और बच्ची के साथ सो गया था, रात लगभग 2 बजे देविका ने उठने की कोशिश की तो उसे दोबारा सुला दिया गया. सुबह 8 बजे वह सो कर उठे तो विस्तर से देविका गायब थी.

तिलवारा थाने की टीआई रीना पांडेय ने आईपीसी की धारा 363 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी तुरंत ही पुलिस के आला अधिकारियों को दे दी और वह घटनास्थल की ओर निकल पड़ीं. जैसे ही रीना पांडेय भैरों नगर पहुंचीं, वहां तब तक भारी भीड़ जमा हो चुकी थी.

उन्होंने एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी वहां बुला कर मौका मुआयना करवाया. खोजी कुत्ता

सुदर्शन के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहा.

घटना की गंभीरता को देखते हुए जबलपुर के एसपी अमित सिंह ने एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल एवं एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान के मार्गदर्शन में थानाप्रभारी तिलवारा रीना पांडेय के नेतृत्व में एक टीम गठित की. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसआई राजेश शुक्ला, विनोद द्विवेदी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने भैरों नगर के तमाम लोगों से जानकारी ले कर कुछ संदिग्ध लोगों को पुलिस थाने में बुला कर पूछताछ भी की, मगर किसी से भी देविका का कोई सुराग हासिल नहीं हो सका. इस घटनाक्रम से भैरों नगर में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों की पुलिस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी. उन्होंने प्रशासन के खिलाफ धरना देना शुरू कर दिया था. वे पुलिस प्रशासन से मांग कर रहे थे कि जल्द ही मासूम बच्ची देविका को खोज निकाला जाए.

इधर पुलिस प्रशासन की नींद हराम हो चुकी थी. देविका को गायब हुए एक माह से अधिक का समय बीत चुका था, पर पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि देविका का अपहरण आखिर किसलिए किया गया है. यदि फिरोती के लिए अपहरण हुआ है तो अभी तक किसी ने फिरोती की रकम के लिए सुदर्शन के परिवार से संपर्क क्यों नहीं किया. पुलिस टीम को जांच करते एक माह से अधिक समय हो गया था,

लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी.

26 फरवरी 2020 को भैरों नगर की नई बस्ती इलाके में बने एक कुएं के इर्दगिर्द बच्चे खेल रहे थे. खेल के दौरान कुएं में अंदर झांकने पर उन्हें कोई चीज तैरती दिखाई दी, तो बच्चों ने चिल्ला कर आसपास के लोगों को इकट्ठा कर लिया. बस्ती के लोगों ने कुएं में उतराते शव को देखा तो इस की सूचना तिलवारा पुलिस को दे दी. सूचना पा कर पुलिस दल मौके पर पहुंचा और शव को कुएं से बाहर निकलवाया गया. शव की हालत इतनी खराब हो चुकी थी, कि उसे पहचान पाना मुश्किल था.

शव के सिर की ओर से रस्सी से लगभग 15 किलोग्राम वजन का पत्थर बंधा हुआ था. पुलिस की मौजूदगी में आसपास के लोगों ने मोटरपंप लगा

कर कुएं का पानी खाली किया तो कुएं की निचली सतह पर कपड़े मिले, जिस के आधार पर सुदर्शन के परिजनों द्वारा उस की पहचान देविका के रूप में की गई.

पुलिस ने काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर द्वारा देविका की मृत्यु पानी में डूबने के कारण होनी बताई. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर पुलिस ने प्रकरण में धारा 364, 302 और इजाफा कर दी.

अब पुलिस के सामने बड़ी चुनौती यही थी कि देविका के हत्यारे तक कैसे पहुंचा जाए. 40 दिनों तक चली तफ्तीश में टीआई रीना पांडेय को बस्ती के लोगों ने बताया था कि सुदर्शन और उस की पत्नी में अकसर विवाद होता रहता था. सुदर्शन अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था. जब सुदर्शन के शक का कीड़ा कुलबुलाता तो उन के बीच विवाद हो जाता.

इसी आधार पर पुलिस टीम को यह संदेह भी हो रहा था कि कहीं इसी वजह से सुदर्शन ने ही तो देविका की हत्या नहीं की? जांच टीम ने जब देविका की मां प्रीति और पिता सुदर्शन से अलगअलग पूछताछ की तो दोनों के बयानों में विरोधाभास नजर आया.

पूछताछ के दौरान प्रीति ने जब यह बताया कि कुछ माह पहले सुदर्शन देविका को जान से मारने का प्रयास कर चुका है, तो पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि देविका का कातिल उस का पिता ही है. जब पुलिस ने सुदर्शन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही अपना गुनाह कबूल कर लिया.

अपनी फूल सी नाजुक बेटी की हत्या करने का गुनाह करने वाले सुदर्शन उर्फ मोनू ने पुलिस को जो कहानी बताई उस ने तो बस यही साबित कर दिया कि अपने दिमाग में शक का कीड़ा पालने वाला मोनू देविका को अपनी बेटी ही नहीं मानता था.

सुदर्शन की शादी अब से 3 साल पहले बड़े धूमधाम से रांझी, जबलपुर निवासी प्रीति से हुई थी.

शादी के पहले से सुदर्शन रंगीनमिजाज नौजवान था और उस की आशिकमिजाजी शादी के बाद भी जारी रही. इसी के चलते भेड़ाघाट में एक लड़की के बलात्कार के मामले में शादी के 2 माह बाद ही उसे जेल की हवा खानी पड़ी थी.

जैसेतैसे वह कुछ माह बाद जमानत पर आया तो उसे मालूम हुआ कि उस की पत्नी गर्भ से है. बस उसी समय से सुदर्शन के दिमाग के अंदर शक का कीड़ा बैठ गया. वह बारबार यही बात सोचता कि मेरे जेल के अंदर रहने पर प्रीति गर्भवती कैसे हो गई.

देविका के जन्म के बाद तो अकसर पतिपत्नी में इसी बात को ले कर विवाद होता रहता. सुदर्शन प्रीति को हर समय यही ताने देता कि यह लड़की न जाने किस की औलाद  है. इसी तरह लड़तेझगड़ते जिंदगी गुजारते प्रीति फिर से गर्भवती हो गई.

पत्नी के चरित्र पर हरदम शक करने वाले सुदर्शन को लगता था कि देविका उस की बेटी नहीं है. उस का मन करता कि देविका का काम तमाम कर दे.

एक बार तो उस ने देविका को मारने की कोशिश भी की थी, मगर वह कामयाब न हो सका. पतिपत्नी के विवाद की वजह से देविका की देखभाल भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही थी, जिस की वजह से वह अकसर बीमार रहती थी.

16 जनवरी, 2020 की रात 10 बजे सुदर्शन मैडिकल कालेज के बाहर बैठा अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था. तभी उस की पत्नी प्रीति का फोन आया कि जल्दी से घर आ जाओ, देविका की तबीयत ठीक नहीं है. सुदर्शन को तो देविका की कोई फिक्र ही नहीं थी. वह तो चाहता था कि उस की मौत हो जाए.

इधर प्रीति देविका की तबीयत को ले कर परेशान थी. वह बारबार पति को फोन लगाती और वह जल्दी आने की कह कर शराब पीने में मस्त था.

प्रीति के बारबार फोन आने पर वह तकरीबन 11 बजे अपने घर पहुंचा तब तक उस के मातापिता दूसरे कमरे में सो चुके थे. देविका की तबीयत के हालचाल लेने की बजाय वह बारबार फोन लगाने की बात पर पत्नी से विवाद करने लगा, जिसे देख कर मासूम देविका रोने लगी.

सुदर्शन ने गुस्से में देविका का गला दबा दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. देविका की हालत देख कर प्रीति जोरजोर से रोने लगी तो सुदर्शन ने उसे डराधमका कर चुप करा दिया. सुदर्शन ने प्रीति को धमकाया कि यदि इस के बारे में किसी को कुछ बताया तो वह उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ उसे भी खत्म कर देगा. बेचारी प्रीति अपने होने वाले बच्चे की खातिर इस दर्द को चुपचाप सह कर रह गई.

सुदर्शन ने प्रीति को पाठ पढ़ाया कि सुबह लोगों को देविका के अपहरण की कहानी बता कर मामले को शांत कर देंगे.

इस के लिए उस ने घर के पिछले हिस्से में रखी कुछ ईंटों को हटा दिया, जिस से लोग यह अनुमान लगा सकें कि यहीं से घुस कर देविका का अपहरण किया गया है. रात के लगभग 2 बजे सुदर्शन एक रस्सी ले कर देविका के शव को कंधे पर रख कर घर के बाहर कुछ दूरी पर बने एक कुएं के पास ले गया.

वहां पर उस ने रस्सी के सहारे शव को एक पत्थर से बांध कर कुएं में फेंक दिया और वापस आ कर चुपचाप सो गया. सुबह उठते ही उस ने अपनी बेटी देविका के गायब होने की खबर फैला दी.

6 मार्च 2010 को जबलपुर के पुलिस कप्तान अमित सिंह, एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान, एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल, टीआई तिलवारा रीना पांडेय की मौजूदगी में प्रैस कौन्फ्रैंस कर हत्याकांड के राज से परदा उठाते हुए आरोपी को प्रेस के समक्ष पेश किया.

सुदर्शन को देविका की हत्या के अपराध में धारा 363, 364, 302, 201 आईपीसी के तहत गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जबलपुर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त 2020

अमन की पूजा : शराबी पति को दी मौत

वह 10 जुलाई, 2020 का दिन था. दोपहर के 3 बज रहे थे. उत्तराखंड की योगनगरी ऋषिकेश के कोतवाल रीतेश शाह कोतवाली में ही थे. तभी एक महिला उन के पास पहुंची. महिला ने बताया, ‘‘सर, मैं गली नंबर 2, चंद्रशेखर नगर में रहती हूं और मेरा नाम कुसुम है. मेरा बेटा नरेंद्र राठी टैक्सी चलाता है. वह शादीशुदा है और उस के 2 बेटे हैं. वह पहली जुलाई को घर से निकला था, उस के बाद वह अभी तक नहीं लौटा है.’’

‘‘आप के बेटे की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी?’ शाह ने पूछा

‘‘नहीं सर, उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी, बल्कि वह तो अपने काम से काम रखता था.’’ कुसुम ने बताया.

‘‘तुम ने उसे कहांकहां तलाश किया है?’’ शाह ने पूछा.

‘‘सर पिछले 10 दिनों में मैं और मेरे रिश्तेदार नरेंद्र के दोस्तों और अपने सभी रिश्तेदारों के घर पर उसे तलाश कर चुके हैं, मगर हमें अभी तक उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है. सर, मेरी आप से विनती है कि आप मेरे बेटे को तलाश करने में मेरी मदद करें.’’ कुसुम बोली.

इंसपेक्टर रीतेश शाह ने नरेंद्र राठी की गुमशुदगी दर्ज कर ली और जांच एसआई चिंतामणि को सौंप दी. एसआई चिंतामणि ने सब से पहले नरेंद्र राठी की पत्नी पूजा से पूछताछ की. इस के बाद उन्होंने नरेंद्र के पड़ोसियों से भी उस के बारे में जानकारी जुटाई.

उन्हें पता चला कि नरेंद्र के अपनी पत्नी पूजा के साथ अच्छे संबंध नहीं थे. वह अकसर शराब पी कर उस से मारपीट करता था. इस के अलावा यह भी जानकारी मिली कि नरेंद्र की गैरमौजूदगी में उस के घर पर अमन नामक एक प्लंबर ठेकेदार अकसर आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने नरेंद्र के फोन को सर्विलांस पर लगा दिया. इस से पुलिस को जानकारी मिली कि नरेंद्र का मोबाइल 27 जून, 2020 से स्विच्ड औफ चल रहा था. इस बाबत पूजा ने बताया कि नरेंद्र का मोबाइल खराब हो गया है. उन्होंने सिम अपने पास रख कर मोबाइल को ठीक करने के लिए एक दुकानदार को दे रखा है.

पुलिस के पास नरेंद्र तक पहुंचने का कोई जरिया नहीं था. पुलिस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के साथ कोई अप्रिय घटना हो गई हो और हत्यारे ने लाश गंगा नदी में बहा दी हो. इस आशंका को दूर करने के लिए एसएसआई ओमकांत भूषण ने जल पुलिस के साथ ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट से बैराज तक गंगा किनारे तलाश करवाई, मगर कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

अचानक 20 जुलाई, 2020 को नरेंद्र राठी की पत्नी पूजा राठी कोतवाली ऋषिकेश पहुंची. उस ने पुलिस को बताया कि 4 दिन पहले मेरे पति नरेंद्र राठी ने मुझे फोन कर के जान से मारने की धमकी दी थी. उस की धमकी के बाद मुझे बहुत डर लग रहा है. आप तुरंत उस के खिलाफ काररवाई करें.

यह सुन कर पुलिस चौंकी. आखिर ऐसी कौन सी वजह है जो पति अपनी पत्नी को जान से मारने की धमकी दे रहा है. इस शिकायत से तो यही लग रहा था कि नरेंद्र जहां कहीं भी है, ठीकठाक है.

इंसपेक्टर रीतेश शाह ने यह जानकारी एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोवाल को दी. एसपी डोवाल ने एसएसआई को नरेंद्र राठी के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने के निर्देश दिए ताकि उसकी लोकेशन पता चल सके.

एसएसआई ओमकांत भूषण ने तुरंत नरेंद्र राठी के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि नरेंद्र राठी के नंबर से 2 काल्स पूजा राठी को तथा 3 काल्स कुसुम राठी को की गई थीं. जिस वक्त ये काल्स की गई थी, उस समय उस के फोन की लोकेशन हरिद्वार की थी. इस के बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया था.

जिस फोन से ये काल्स की गई थीं, पुलिस ने उस का आईएमईआई नंबर हासिल कर लिया था. जांच अधिकारी ने नरेंद्र की पत्नी पूजा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पुलिस को चौंकाने वाली जानकारी मिली.

पता चला कि जिस फोन का प्रयोग पूजा को धमकी देने के लिए किया गया था, उसी फोन में कोई दूसरा सिमकार्ड डाल कर पूजा से पहले काफीकाफी देर तक बातें हुई थीं. पुलिस ने इस की जांच की तो वह मोबाइल नंबर उसी ठेकेदार का निकला, जिस का पूजा के घर आनाजाना था. अब पूजा और अमन पुलिस के शक के दायरे में आ गए.

पुलिस को संदेह हो गया कि नरेंद्र राठी की गुमशुदगी में कहीं न कहीं पूजा व अमन का हाथ है. इस के बाद पुलिस ने अमन व पूजा को पूछताछ के लिए कोतवाली बुलवाया. जानकारी मिलने पर सीओ भूपेंद्र सिंह धोनी व एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोवाल भी वहां पहुंच गए थे. पुलिस ने पूजा व अमन से नरेंद्र के गायब होने के मामले में गहन पूछताछ शुरू की.

पहले तो दोनों पुलिस को इधरउधर की बातें कर के गच्चा देते रहे,  मगर जब दोनों से अलगअलग ले जा कर पूछताछ की गई, तो दोनों के बयान भिन्नभिन्न निकले. इसी के मद्देनजर जब पुलिस ने उन से सख्ती की तो वे टूट गए और दोनों ने पुलिस के सामने नरेंद्र की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उन्होंने उस की हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

पूजा उत्तराखंड के शहर ऋषिकेश के मोहल्ला चंद्रशेखर नगर, शीशम झाड़ी के रहने वाले संतोष की बेटी थी. रुढि़वादी विचारों वाले संतोष ने वर्ष 2002 में नरेंद्र राठी से पूजा का विवाह तब कर दिया था, जब वह मात्र 13 साल की थी. नरेंद्र ड्राइवर था. वह जब ससुराल पहुंची तो पता चला उस का पति शराबी है और कुसुम उस की सौतेली मां है. पूजा ने जब पति को समझाने की कोशिश की तो उस पर समझाने का कोई असर नहीं हुआ. पूजा जब भी शराब पीने का विरोध करती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पूजा ने यह बात जब अपनी सौतेली सास कुसुम को बताई, तो उस ने भी इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया.

इसी तरह कलह के साथ समय गुजरता गया और पूजा 2 बेटों की मां बन गई. शराब पी कर नरेंद्र अकसर पूजा की पिटाई करता था. करीब एक साल पहले पूजा राठी का सिटी गेट, ऋषिकेश में एक ट्रक से एक्सीडेंट हो गया था.

एक्सीडेंट के समय उधर से बापू ग्राम निवासी प्लंबर अमन जा रहा था. उस ने पूजा को तत्काल ऋषिकेश के एक अस्पताल में भरती कराया. खबर मिलने पर पूजा के घर वाले भी अस्पताल पहुंच गए. उन सभी ने अमन की बहुत तारीफ की.

जब तक पूजा अस्पताल में रही, अमन ने ही उस की सब से ज्यादा देखभाल की. दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं और बाद में दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. उसी दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

जब अमन का नरेंद्र के घर में ज्यादा आनाजाना हुआ तो नरेंद्र को पत्नी पर संदेह हो गया. इस के बाद वह पूजा से ज्यादा मारपीट करने लगा था. रोजरोज की पिटाई से पूजा आजिज आ चुकी थी. इस बारे में उसने प्रेमी अमन से बात की. दोनों ने मिल कर नरेंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

वह पहली जुलाई, 2020 का दिन था. उस दिन शाम को ही पूजा ने अमन को अपने मकान में बुला कर छिपा दिया था. इस के बाद रात को उस ने दोनों बच्चों का छत पर सुला दिया और ठंडी हवा के लिए कूलर चला दिया था. कूलर तेज आवाज करता था. रात को जब नरेंद्र शराब के नशे में घर आया तो उस ने पहले पत्नी से आमलेट बनवा कर खाया और फिर सो गया.

इस के बाद अमन ने दुपट्टे का फंदा बना कर गहरी नींद में सोए नरेंद्र का गला घोंट दिया.

इस दौरान पूजा उस के पैर पकड़े रही थी. जब दोनों को यकीन हो गया कि नरेंद्र मर चुका है, तो उन्होंने उस की लाश प्लास्टिक के एक सफेद बोरे में छिपा कर घर में रख दी.

अगले दिन अमन 2 मजदूरों को घर में ले कर आया. इस के बाद अमन ने मजदूरों की मदद से टौयलेट की शीट उखड़वाई और शौचालय के गड्ढे में लाश सहित बोरे को डाल दिया. फिर अमन ने वहां पर नई टौयलेट शीट व नई टाइल्स लगवा कर शौचालय सही कर दिया था.

उधर हफ्ता भर तक जब कुसुम को नरेंद्र नहीं दिखा तो उस ने कुसुम से नरेंद्र के बारे में पूछा. पूजा ने अपनी सास को बताया कि वह पहली जुलाई को गाड़ी ले कर गए थे, लेकिन अभी तक नहीं लौटे हैं.

नरेंद्र इतने दिनों तक जब कभी घर के बाहर रहता तो कुसुम को फोन जरूर कर दिया करता था. लेकिन इस बार उस ने कोई फोन नहीं किया, जिस से कुसुम को उस की चिंता हुई और उस ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. नरेंद्र के बारे में खोजबीन करते हुए 8 दिन बीत गए लेकिन पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिल रही थी.

नरेंद्र की हत्या करने के बाद उस के मोबाइल का सिम पूजा ने अपने पास रख लिया था. खुद को इस अपराध से बचाने व पुलिस का ध्यान भटकाने के लिए उन दोनों ने एक ऐसी योजना बनाई जिस से पुलिस को उन पर शक न हो तथा नरेंद्र की सौतेली मां को यह भ्रम रहे कि नरेंद्र अभी जिंदा है.

योजना के अनुसार 18 जुलाई को अमन ने अपने मोबाइल में नरेंद्र का सिम डाला और हरिद्वार जा कर उसी मोबाइल से 2 बार पूजा को फोन किया तथा 3 मिस काल कुसुम के मोबाइल नंबर पर की थीं.

पुलिस ने पूजा राठी और अमन से पूछताछ के बाद इस केस में भादंवि की धाराएं 302, 201 तथा 34 और बढ़ा दीं. इस के बाद पुलिस उन्हें ले कर पूजा के घर पहुंची और उन की निशानदेही पर शौचालय के गड्ढे की खुदाई कराई. खुदाई में गड्ढे में नरेंद्र का सड़ागला शव पुलिस ने बरामद कर लिया, जिसे उन्होंने पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया.

काररवाई पूरी करने के बाद एसएसआई ओमकांत भूषण ने अमन के कब्जे से वह मोबाइल भी बरामद कर लिया, जिस में उस ने नरेंद्र का सिमकार्ड डाल कर हरिद्वार से पूजा और कुसुम को काल की थीं. उस मोबाइल में नरेंद्र का ही सिम था.

अमन के पास से पुलिस ने 2 कागज भी बरामद किए थे, जिन में क्रमश: नरेंद्र व कुसुम के फोन नंबर लिखे थे.

पूजा राठी और अमन से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.

पुलिस ने नरेंद्र राठी के शव का विसरा और डीएनए टेस्ट के सैंपल जांच के लिए एफएसएल देहरादून भिजवा दिए. कथा लिखे जाने तक एसएसआई ओमकांत भूषण द्वारा इस केस की विवेचना की जा रही थी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

मौत का आशीर्वाद : ससुर बना दामाद का हत्यारा

प्रेम सिंह खेतीकिसानी के अलावा एक बैंक के एटीएम पर गार्ड की नौकरी भी करते थे. परिवार में पत्नी रमा एक बेटी रिंकी और 2 बेटे अंकित व अमित थे.

भाइयों की एकलौती बहन थी रिंकी. चंचल स्वभाव की रिंकी पढ़ाई में तेज थी. वह पढ़लिख कर पुलिस में जाना चाहती थी. पढ़ाई के बाद जब भी समय मिलता तो वह टीवी से चिपक जाती. रिंकी को फिल्म देखने का शौक था. वह टीवी पर आने वाली सभी फिल्में देखती थी. फिल्मों और फिल्मों के गानों का रिंकी पर इतना प्रभाव पड़ा कि वह अपने आप को किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

चूंकि फिल्मों में प्यारमोहब्बत को हमेशा महिमामंडित किया जाता है, इसलिए रिंकी को भी किसी ऐसे युवक की तलाश थी जो फिल्मी हीरो की तरह उस के सामने प्यारमोहब्बत का प्रस्ताव रखे. उसे चाहे, उसे सराहे. उस के हुस्न की तारीफ करे और उस की याद में तड़पे.

रिंकी के घर से 200 मीटर की दूरी पर मनीष का घर था. मनीष के पिता विश्वनाथ सिंह लोधी खेतीकिसानी करते थे. मनीष का एक छोटा भाई था मंदीप जो बीए की पढ़ाई कर रहा था.

मनीष भी पढ़ाई में तेज था. वह भी पुलिस विभाग में जाना चाहता था. इसी उद्देश्य से वह अपनी पढ़ाई में जी जान से जुटा रहता था. रिंकी की तरह मनीष को भी फिल्मों का जबरदस्त शौक था. पढ़ाई के दौरान वह मनोरंजन के लिए कुछ समय निकाल लेता था.

मनीष पहनावे से संभ्रांत युवक नजर आता था. शरीर पर भी वह विशेष ध्यान देता था. हमेशा फैशनेबल कपड़े पहनता था. मनीष को भी पागलपन की हद तक फिल्में देखने का शौक था. उस के मोबाइल का मेमोरी कार्ड फिल्मों से भरा रहता था. बड़ी स्क्रीन के मोबाइल पर वह जब चाहे अपनी मनपसंद फिल्म देख लेता था. उस पर फिल्मों का असर  इस हद तक था कि उस का बात करने और चलने का स्टाइल भी फिल्मी हो गया था.

मनीष उम्र के उस मोड़ पर था, जहां स्वभाव में आशिकी अपने आप शामिल हो जाती है. मनीष भी इस का अपवाद नहीं था. लव स्टोरी वाली फिल्में देखदेख कर उस का मिजाज भी आशिकाना हो गया था.

मनीष का रिंकी के घर आनाजाना था. दोनों परिवार सजातीय थे. दोनों के घरवाले एकदूसरे के घर आतेजाते थे. रिंकी और मनीष अलगअलग कालेज में पढ़ते थे, फिर भी पढ़ाई को ले कर उन के बीच खूब बातचीत होती रहती थी.

दोनों की आदतें, शौक और विचार मेल खाते थे. पढ़ाई के साथसाथ दोनों के बीच फिल्मों को ले कर भी बातचीत होती थी. दोनों एक ही शौक के शिकार थे. दोनों घंटों बैठ कर बातें करते रहते, जिन में आधी बातें फिल्मों की होती थीं. एक जैसी रूचि के चलते दोनों काफी समय साथसाथ बिताते थे.

इंटरमीडिएट कर के दोनों प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लग गए. पुलिस विभाग में भरती होती तो दोनों ही फार्म भरते और साथसाथ पेपर देने जाते. साथ समय बिताने और बाहर जा कर घूमते. इसी सब के चलते दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे. वैसे भी हर मामले में दोनों के बीच समानताएं थीं. ऐसे में दोनों के दिल कब तक करीब आने से बच पाते.

समय के साथ दोनों को एकदूसरे का संग खूब भाने लगा था. दोनों साथसाथ रोमांटिक मूवी भी देखते. फिर फिल्म के कलाकारों की नकल करते, उन के डायलौग बोलते और उसी अंदाज में एकदूसरे को बांहों में भर कर आंखों में आंखें डाल कर उसी तरह बोलते जैसे फिल्म में कलाकार करते हैं. इस से दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे.

दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनों की आवाज और सांसों की सरगम को बखूबी महसूस करते थे. दोनों को नजदीकियां अच्छी लगने लगी थीं. जब वे नजदीक होते तो अलग होने की बात को दिमाग में आने ही नहीं देते थे. लेकिन मजबूर हो कर उन्हें एकदूसरे से अलग होना ही पड़ता. फिल्मी कलाकारों के लव सीन की ऐक्टिंग करतेकरते दोनों एकदूसरे से प्यार कर बैठे. अब प्यार का इजहार बाकी था.

एक दिन लव सीन की ऐक्टिंग करतेकरते मनीष ने रिंकी को अपनी बांहों में लिया तो फिल्म के डायलौग न बोल कर उस ने अपने दिल की बात कहनी शुरू कर दी, ‘‘रिंकी, देखता तो मैं तुम्हें बचपन से आया हूं. लेकिन जब से हम ऐक्टिंग के जरिए एकदूसरे के नजदीक आए हैं, तब से मैं ने तुम्हें बेहद करीब से देखा. अब ये नजरें तुम्हारे सिवा कुछ और देखना ही नहीं चाहतीं.

‘‘तुम्हारी झील सी आंखों की गहराइयों में डूब कर तुम्हारे दिल का हाल जाना तो लगा कि तुम्हारा दिल भी मेरे पास आना चाहता है. इस बात की गवाही तुम्हारे दिल की धड़कनें देती हैं.

‘‘मैं तो तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं. मुझे अपने प्यार पर भी पूरा भरोसा है कि वह मुझे बेइंतहा चाहता है, बस देर है तो उसे तुम्हारी जुबां से कुबूल करने की.’’

रिंकी तो जैसे उस के प्रेम से सराबोर हो गई और उस की आंखों में देखती हुई फिल्मी स्टाइल में बेसाख्ता बोली, ‘‘कुबूल है…कुबूल है…कुबूल है मेरे महबूब.’’

यह सुन कर मनीष की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने रिंकी को अपने सीने से लगा लिया और बोला, ‘‘आई लव यू…आई लव यू रिंकी.’’

उस के प्यार भरे शब्द रिंकी के कानों में रस घोल रहे थे. उसे मीठा सुखद एहसास हुआ तो उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मनीष के कंधे पर सिर रख दिया. काफी देर तक दोनों उसी स्थिति में बैठे रहे. बाद जब दोनों अलग हुए तो उन के चेहरे खिले हुए थे.

इस के बाद तो रिंकी और मनीष की तूफानी मोहब्बत तेजी के साथ बुलंदियों की तरफ बढ़ने लगी.

सन 2018 में रिंकी का चयन पुलिस विभाग में कांस्टेबल के पद पर हो गया. इटावा में टे्रनिंग के बाद उस की पोस्टिंग उरई (जालौन) के थाना रमपुरा में हुई. उरई में वह शहर कोतवाली क्षेत्र के मोहल्ला शिवपुरी में किराए का कमरा ले कर रहने लगी.

दूसरी ओर मनीष बीसीए करने के बाद एलएलबी कर रहा था. उस ने पुलिस विभाग में भरती का फार्म भरा था, जिस का पेपर देने वह कानपुर गया. पेपर देने के बाद वह वहां से घर जाने के बजाय रिंकी के पास उरई चला गया. दोनों में फोन पर बात कर के तय कर लिया था कि मनीष पेपर दे कर कानपुर से सीधे उरई आ जाएगा. मनीष रिंकी के साथ उसी के कमरे पर रहने लगा.

रिंकी को पता था कि उस के पिता प्रेम सिंह गुस्सैल स्वभाव के है. वह उस की मरजी के बजाय उस की शादी अपनी मरजी से कराएंगे. इसलिए उन्हें बिना बताए रिंकी ने मनीष से शादी करने का फैसला कर लिया. 8 फरवरी, 2019 को 2 रिश्तेदारों की मौजूदगी में दोनों ने उरई के राधाकृष्ण मंदिर में विवाह कर लिया.

रिंकी के विवाह कर लेने की बात पिता प्रेम सिंह को लगी तो वह आगबबूला हो उठा.

उस ने मनीष के घर जा कर उस के पिता विश्वनाथ सिंह को खूब खरीखोटी सुनाई और मरनेमारने पर उतारू हो गया. उस ने मनीष के पिता विश्वनाथ से कहा कि जिस तरह उस के बेटे ने उस की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया है. उसी तरह भविष्य में एक दिन वह भी उस के परिवार की लड़की की ऐसे ही बिना मरजी के शादी करवा कर मानेगा. गांव वालों ने जैसेतैसे दोनों का बीचबचाव किया.

प्रेम सिंह को लगता था कि रिंकी ने अपनी मरजी से शादी कर के गांव में उस की नाक कटवा दी है.

इस में वह मनीष को दोषी मान रहा था कि उस ने ही रिंकी को बरगलाया होगा. जब बेटी कमाने लायक हुई तो अपनी मरजी से शादी कर के घर से दूर हो गई.

हालांकि रिंकी घर नहीं जाती थी लेकिन अपने वेतन में से कुछ रकम घर भेज दिया करती थी. जब रिंकी 7 माह की गर्भवती हुई तो उस ने मातृत्व अवकाश ले लिया, जिस से बच्चे की डिलीवरी और उस की देखभाल अच्छी तरह से हो सके.

घर में नए मेहमान के आने की खुशी में दोनों खुश थे. रिंकी ने जो चाहा था, वह उसे सब मिल रहा था. पहले पुलिस में नौकरी, जिसे चाहा उस का जीवन भर का साथ और अब उस के प्यार की निशानी जिंदगी में आने वाली थी. रिंकी मनीष को अपनी जान से भी ज्यादा चाहती थी. उस के आने से ही उस की जिंदगी में खुशी के रंग बिखरे थे.

इसी साल अपै्रल में रिंकी ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दोनों ने शिवाय रखा. समय कुछ आगे बढ़ा तो दोनों शिवाय के मुंडन संस्कार की तैयारी करने लगे. इस वजह से रिंकी ने घर पैसा भेजना बंद कर दिया.

दूसरी ओर प्रेम सिंह पहले से ही जलाभुना बैठा था. वह समय की ताक में था. माथे पर लगा बदनामी का दाग प्रेम सिंह को दिनरात चैन नहीं लेने देता था. प्रेम सिंह ने अपने साले देशराज सिंह को घर बुला कर इस मुद्दे पर बात की, उस समय प्रेम सिंह का बेटा अंकित भी मौजूद था.

देशराज फतेहपुर के थाना हुसैनगंज क्षेत्र के गांव सुखपुर का निवासी था. करीब 6 साल पहले उस ने गौसपुर में ही मकान बनवा लिया था. वह अपनी मां के साथ रहता था. उस की पत्नी और बच्चे उस के साथ नहीं रहते थे. देशराज अपराधी किस्म का था, वह कई बार जेल भी जा चुका था.

प्रेम सिंह ने अपने बेटे अंकित और साले देशराज के साथ मिल कर मनीष और रिंकी की हत्या की योजना बनाई. प्रेम सिंह के मन में दोनों के लिए इतनी नफरत थी कि वह दोनों को जिंदा नहीं देखना चाहता था.

योजनानुसार 22 अगस्त को अंकित अपनी बहन रिंकी के घर गया. भाई अंकित को घर आया देख रिंकी बहुत खुश हुई कि वह  उस से मिलने और अपने भांजे को देखने आया है.

जबकि अंकित वहां रेकी करने आया था. सारी स्थिति का मुआयना करने के बाद चलते समय उस ने रिंकी से मोबाइल खरीदने के लिए 10 हजार रुपए मांगे. रिंकी ने उसे 4 हजार रुपए दिए और कहा कि इस समय उस के पास इस से ज्यादा पैसे नहीं है.

अंकित उन रुपयों को ले कर वहां से चला आया. आ कर उस ने अपने पिता और मामा देशराज को सारी स्थिति से अवगत करा दिया.

27 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे प्रेम सिंह, देशराज और अंकित रिंकी के शिवपुरी वाले किराए के कमरे पर पहुंचे. पिता, मामा और भाई को एक साथ घर आया देख रिंकी खुशी से फूली नहीं समाई.

वह उन के लिए खाना बनाने के लिए किचन में चली गई. उस समय मनीष बेटे शिवाय को बैड पर लिटा कर दूध पिला रहा था. रिंकी के किचन में जाते ही प्रेम सिंह ने देशराज को इशारा किया तो देशराज ने किचन में जा कर रिंकी को दबोच लिया.

इधर प्रेम सिंह ने अंकित के साथ मिल कर मनीष को दबोच लिया. साथ में लाए 2 चाकुओं से दोनों ने मनीष के पेट पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. बेदर्दी से वार करते हुए प्रेम सिंह का चाकू तक टूट गया. मनीष की चीखों से कमरा और आसपास के लोग दहल उठे.

रिंकी यह सब देख कर बदहवास हालत में चीखनेचिल्लाने लगी. शोर सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. तब तक मनीष की हत्या की जा चुकी थी. अपने आप को लोगों से  घिरा देख कर तीनों ने भागने की कोशिश नहीं की. तीनों कमरे में ही बैठ गए. उन्हें रिंकी को मारने का मौका नहीं मिला.

इसी बीच किसी पड़ोसी ने घटना की सूचना शहर कोतवाली को दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर जे.पी. पाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. तीनों हत्यारों को हिरासत में लेने के बाद उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

मनीष के पेट पर लगभग 15-16 घाव थे. पास में ही 2 रक्तरंजित चाकू पड़े थे, जिन्हें इंसपेक्टर पाल ने अपने कब्जे में ले लिया. प्रेम सिंह और अंकित के चेहरे व हाथ पर खून के निशान मौजूद थे, जो उन की करनी की गवाही दे रहे थे.

आवश्यक पूछताछ के बाद इंसपेक्टर जे.पी. पाल ने बदहवास रिंकी को उस के बच्चे के साथ उरई में ही एक रिश्तेदार के यहां भेज दिया. इस के बाद उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया और कमरे को सील कर के तीनों हत्याभियुक्तों को साथ ले कर कोतवाली आ गए.

कोतवाली आ कर उन्होंने रिंकी को वादी बना कर प्रेम सिंह लोधी, देशराज सिंह लोधी और अंकित सिंह लोधी के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अगले दिन 28 अगस्त को तीनों हत्याभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक केस से संबंधित सभी साक्ष्य पुलिस द्वारा संकलित किए जा चुके थे. जल्द ही आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल कर देने की बात पुलिस द्वारा कही जा रही थी.

एक ससुर द्वारा दामाद को दिया जाने वाला ‘मौत का आशीर्वाद’ की चर्चा चारों ओर फैल चुकी थी. लोग उस के कुकृत्य पर उसे कोस रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

एक सिपाही की प्रेम लीला

विकास पालीवाल 

सिपाही यतेंद्र कुमार यादव ने 26 अप्रैल, 2020 को रात 9 बजे अपने चचेरे साले सुरजीत

के मोबाइल पर फोन किया. फोन सुरजीत के छोटे भाई योगेंद्र ने उठाया. यतेंद्र ने कहा, ‘‘सुनो, जैसे ही गेट में घुसोगे, घुसते ही नेमप्लेट लगी है. उस के ऊपर ग्रिल है, चाबी वहीं रखी है और अंदर पिंकी (पत्नी) आंगन में है. आप उन लोगों (ससुरालीजनों) को बता देना. मतलब हम ने पिंकी को गोली मार दी है. साफसीधी बात है.’’

योगेंद्र ने पूछा, ‘‘कब?’’

यतेंद्र ने बताया, ‘‘आज रात में.’’

‘‘बच्चियां कहां हैं?’’

इस पर यतेंद्र ने कहा, ‘‘बच्चियां भी गायब हैं. आप उन को (ससुरालीजनों को) बता देना, बहुत सोचसमझ कर ही कोई कदम उठाएं. हमें जो करना था कर दिया. आप समझदार हो, जो भी गलती हुई माफ करना. अभी चाहो अभी काल कर लो. रात की बात है. जो भी काररवाई करवानी है करवाओ.’’

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जनपद के शिकोहाबाद थानांतर्गत हाइवे स्थित आवास विकास कालोनी 3/39 के सेक्टर-3 में 32 वर्षीय सरोज देवी उर्फ पिंकी अपनी 3 बेटियों 10 साल की आकांक्षा, 8 साल की आरती व सब से छोटी 4 साल की अन्या के साथ अपने निजी मकान में रहती थीं. सरोज का पति यतेंद्र कुमार यादव आगरा के थाना सैंया में डायल 112 पर सिपाही पद पर तैनात था.

बीचबीच में यतेंद्र घर पर अपनी पत्नी व बेटियों के पास आताजाता रहता था. कहते हैं कभीकभी खून सिर चढ़ कर बोलता है. यही बात यतेंद्र के साथ भी हुई.

उस ने अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद अपने चचेरे साले को फोन कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी और अपने ससुरालीजनों को सूचना देने व आगे की काररवाई करने को कहा. इस के साथ ही उस ने उन्हें धमकी भी दी कि वे जो भी काररवाई करें, खूब सोचसमझ कर करें.

योगेंद्र ने पूरी बात रिकौर्ड कर ली थी. उसे जैसे ही बहनोई यतेंद्र से अपनी चचेरी बहन पिंकी की हत्या की जानकारी मिली उस के हाथपैर फूल गए. उस समय लौकडाउन चल रहा था. उसे इस बात की जानकारी थी कि पिंकी और यतेंद्र के बीच विवाद चल रहा है. लेकिन हालात हत्या तक पहुंच जाएगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

योगेंद्र ने रात में ही पिंकी के मायके में फोन कर अपने चचेरे भाई हरिओम को घटना की जानकारी दी. हरिओम ने जैसे ही बहन पिंकी की हत्या की खबर बताई, घर में कोहराम मच गया. रोनापीटना शुरू हो गया.

इस से पहले 26 अप्रैल की सुबह 9 बजे हरिओम के पास आवास विकास कालोनी में रहने वाले एक परिचित का फोन आया था. उस ने बताया कि वह उस की बहन सरोज उर्फ पिंकी के घर गया था. मकान का गेट अंदर से बंद था. कई आवाजें देने पर भी गेट नहीं खुला.

इस पर हरिओम ने अपने बहनोई यतेंद्र व बहन सरोज उर्फ पिंकी के मोबाइलों पर फोन किया, लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया. हरिओम ने अनुमान लगाया कि वे लोग कहीं गए होंगे, मोबाइल घर पर भूल गए होंगे.

रात को हरिओम के पास योगेंद्र का फोन आने पर बहनोई यतेंद्र द्वारा बहन सरोज उर्फ पिंकी की हत्या किए जाने की जानकारी हुई. हरिओम ने थाना शिकोहाबाद पुलिस को घटना की जानकारी दे दी.

इस पर थाना पुलिस रात में ही आवास विकास कालोनी स्थित उस मकान पर पहुंची, लेकिन मकान का दरवाजा बंद देख कर लौट गई. पुलिस ने हरिओम से थाने आने को कहा.

इन सब बातों के चलते काफी रात हो गई. इस के साथ ही लौकडाउन के चलते और गांव में एक गमी होने के कारण हरिओम व उस के घरवाले शिकोहाबाद नहीं आ पाए थे.

दूसरे दिन 27 अप्रैल को सुबह होते ही हरिओम यादव अपने पिता रामप्रकाश व अन्य रिश्तेदारों के साथ शिकोहाबाद की आवास विकास कालोनी पहुंच गए और पुलिस को सूचना दी. घर वालों के आने की सूचना पर थानाप्रभारी अनिल कुमार पुलिस टीम के साथ आवास विकास कालोनी पहुंच गए.

हरिओम ने पुलिस को बताया कि बहनोई यतेंद्र ने फोन पर ताऊ के लड़के योगेंद्र को मकान की चाबी ग्रिल के ऊपर रखी होने की जानकारी दी थी. इस पर चाबी को तलाशा गया. बताई गई जगह पर चाबी मिल गई. मकान का ताला खोल कर पुलिस अंदर गई.

आंगन में सरोज की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी. तीनों बच्चियां भी गायब थीं. थानाप्रभारी अनिल कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

सूचना पर सीओ इंदुप्रभा सिंह व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार फोरैंसिक टीम को ले कर मौकाएवारदात पर पहुंच गए. हत्या की जानकारी होते ही कालोनी के लोग भी एकत्र हो गए. सिपाही द्वारा पत्नी की हत्या किए जाने की खबर से सनसनी फैल गई.

पुलिस अधिकारियों ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका के शरीर पर चोटों के साथ ही गोलियों के 4 निशान भी मिले. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर पूरे घर से साक्ष्य जुटाए. लाश के पास की दीवारों पर खून के छींटे मिलने के साथ ही टूटी हुई चूडियां भी मिलीं. इस से अनुमान लगाया कि मृतका ने अंतिम सांस तक पति के साथ संघर्ष किया था.

हरिओम ने हत्यारोपी सिपाही यतेंद्र द्वारा किए गए फोन की रिकौर्डिंग भी पुलिस अधिकारियों को सुनवाई.

मकान से पुलिस को 2 मोबाइल फोन मिले. यह मृतका के बताए जा रहे थे. पुलिस ने फोनों के लौक खुलवा कर जांच कराने की बात कही. तीनों बेटियों के स्कूल आईडी कार्ड घर के बाहर पड़े मिले.

4 साल पहले यतेंद्र ने अपने परिचित के जरिए शिकोहाबाद की आवास विकास कालोनी में प्लौट खरीदा और रजिस्ट्री पत्नी सरोज के नाम कराई थी. इस के बाद मकान बनवाया था.

आवास विकास कालोनी का इलाका आबादी से दूर होने से सिपाही यतेंद्र ने सुरक्षा की दृष्टि से 5 सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे थे. शातिर सिपाही ने पत्नी की हत्या के बाद सारे सुबूत मिटाने की कोशिश की थी. वह घर के अंदर और बाहर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग डिलीट करने के बाद तीनों बेटियों को ले कर इस तरह घर निकला कि किसी को कानोंकान भनक तक नहीं लगी.

पूछताछ में मृतका के भाई हरिओम यादव व पिता रामप्रकाश ने बताया कि यतेंद्र के मथुरा की एक युवती से अवैध संबंध थे. इस के चलते पतिपत्नी में विवाद होता रहता था. यतेंद्र मकान बेचने का दबाव बनाने के साथ ही दहेज की मांग को ले कर बहन पिंकी का उत्पीड़न करता था. सरोज की शिकायत पर घर वालों ने यतेंद्र को कई बार समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा. यतेंद्र आए दिन पिंकी के साथ मारपीट करता था और इसी के चलते यतेंद्र ने उस की हत्या कर दी.

घटना के बाद से तीनों बच्चियां भी गायब थीं. घर वालों को आशंका थी कि आरोपी ने बच्चियों के साथ कोई अनहोनी न कर दी हो. पड़ोसियों ने बताया कि रात में उन्हें गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं दी.

मृतका के भाई हरिओम यादव की तहरीर पर पुलिस ने सिपाही यतेंद्र कुमार यादव, उस के पिता रामदत्त व यतेंद्र के बहनोई हरेंद्र के खिलाफ सरोज की गोली मार कर हत्या करने का केस दर्ज कर लिया.

पुलिस का अनुमान था कि कालोनी हाइवे के किनारे स्थित है, मकान दूरी पर बने हैं. रात का समय होने पर संभव है कि पड़ोसियों को गोली की आवाज सुनाई न दी हो. एक पड़ोसी ने इतना जरूर बताया कि शनिवार की शाम सरोज को घर के दरवाजे पर बैठा देखा था.

एसपी (ग्रामीण) ने बताया कि या तो कैमरे बंद किए गए थे या फिर रिकौर्डिंग डिलीट कर दी गई थी. आगरा से जानकारी करने पर पता चला कि यतेंद्र 26 अप्रैल को दोपहर 2 बजे से अनुपस्थित चल रहा था, उस के खिलाफ आगरा में रपट लिखी गई है.

पुलिस का मानना था कि हो सकता है कि तीनों बेटियों को आरोपी यतेंद्र अपने साथ ले गया हो. बेटियों को ले कर वह कहां गया, इस का कोई पता नहीं चल रहा था.

पुलिस व फोरैंसिक टीम ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भिजवा दिया.

हत्यारोपी सिपाही की गिरफ्तारी के लिए लौकडाउन में पुलिस ने 3 टीमें गठित कीं. इन टीमों ने मैनपुरी और इटावा स्थित सिपाही के घर व रिश्तेदारियों के अलावा आगरा व मथुरा में भी दबिशें दीं.

मथुरा के थाना हाइवे क्षेत्र निवासी उस की प्रेमिका से भी पूछताछ की गई लेकिन हत्यारोपी सिपाही का कोई सुराग नहीं मिला. प्रेमिका ने पुलिस को बताया कि यतेंद्र से एक साल से बात नहीं हुई है.

आरोपी का एक मामा भी कांस्टेबल था. मामा के मोबाइल की भी काल डिटेल्स खंगाली गई. जांच में पता चला कि मामा के मोबाइल पर एक भी फोन आरोपी का नहीं आया था. आरोपी की तलाश में पुलिस द्वारा लगातार दबिशें दिए जाने पर भी पुलिस के हाथ खाली थे. सरोज उर्फ पिंकी इटावा जनपद के थाना भरथना अंतर्गत गांव नगला नया कुर्रा निवासी रामप्रकाश यादव की बड़ी बेटी थी. स्वभाव से मिलनसार. पिंकी की शादी 2008 में मैनपुरी जनपद के कुर्रा थानांतर्गत गांव अंबरपुर सौंख निवासी रामदत्त यादव के बेटे यतेंद्र कुमार यादव के साथ हुई थी. यतेंद्र 2005 बैच का सिपाही है.

ससुरालीजनों ने बताया कि डेढ़ साल पहले यतेंद्र की तैनाती मथुरा जनपद के थाना हाइवे में हुई थी. ड्यूटी के दौरान यतेंद्र की मुलाकात उसी क्षेत्र की रहने वाली एक युवती से हुई. दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा तो वह यह भी भूल गया कि पहले से शादीशुदा है.

सिपाही यतेंद्र अपनी प्रेमिका को ले कर फरार हो गया. जब ये बात प्रेमिका के घरवालों को पता चली तो उन्होंने थाना हाइवे में मुकदमा दर्ज करा दिया. इस संबंध में यतेंद्र कुमार सस्पेंड भी रहा था. 2 माह बाद युवती वापस आ गई और उस ने सिपाही यतेंद्र के पक्ष में बयान दिया था. बाद में यह मामला रफादफा हो गया था.

पति की इस करतूत से पिंकी को गहरी ठेस लगी. दोनों के बीच इस बात को ले कर तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. इस के चलते जीवन भर साथ निभाने वाली पत्ली पिंकी पति की नजरों में खटकने लगी थी.

घटना के 3 दिन बाद मृतका पिंकी की तीनों बेटियां नाना के गांव नगला नया कुर्रा से 3-4 किलोमीटर दूर रौरा गांव की रोड पर मिलीं. उन्हें दिन के समय यतेंद्र छोड़ गया था. बच्चियों को देख कर गांववालों ने उन से पूछताछ की. इस पर सब से बड़ी लड़की आकांक्षा ने अपने नाना रामप्रकाश यादव के साथ ही गांव का नाम भी बता दिया.

पास का गांव होने के कारण गांव वाले उन के परिवार को जानते थे. गांव वालों ने तीनों बच्चियों को उन के गांव पहुंचा दिया. बच्चियों ने बताया कि पापा उन्हें कार से छोड़ कर चले गए थे.

बच्चियों के मिलने की सूचना पुलिस को भी दे दी गई. आकांक्षा ने बताया कि उस ने पापा को मम्मी को गोली मारते देखा था. हम लोग डर गए थे.

घटना के बाद आरोपी सिपाही की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने काफी प्रयास किए, लेकिन सफलता न मिलने पर एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इसे गंभीरता से लिया और आरोपी पर 15 हजार का इनाम घोषित कर दिया. उन्होंने थानाप्रभारी अनिल कुमार को उस की गिरफतारी के भी निर्देश दिए.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. लौकडाउन में फरार चल रहे हत्यारोपी सिपाही यतेंद्र को पुलिस ने शिकोहाबाद के सुभाष तिराहे से लगभग एक माह बाद 24 मई की सुबह पौने 6 बजे तब गिरफ्तार कर लिया, जब वह कहीं जाने के लिए वाहन का इंतजार कर रहा था. सिपाही के कब्जे से 32 बोर की देशी पिस्टल भी बरामद हुई. इसी पिस्टल से उस ने अपनी पत्नी पिंकी की हत्या की थी.

पुलिस ने सिपाही यतेंद्र के खिलाफ हत्या के साथ ही 25 आर्म्स एक्ट के अंतर्गत भी मुकदमा दर्ज किया. थाने में एसपी ग्रामीण राजेश कुमार ने प्रैसवार्ता में हत्यारोपी यतेंद्र कुमार यादव उर्फ सिंटू की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

घटना के बाद वह बच्चियों को नाना के गांव के पास छोड़ गया था. पुलिस ने उस के घर से गिरफ्तारी से 15 दिन पूर्व कार बरामद कर ली थी. विवेचना में यह बात सामने आई कि सिपाही के एक युवती से प्रेम संबंधों को ले कर पिछले डेढ़ साल से पतिपत्नी के बीच कलह शुरू हो गई थी.

यतेंद्र पत्नी पर मकान को बेचने का दबाव डालता था. 26 अप्रैल को यतेंद्र आगरा से शिकोहाबाद स्थित अपने घर आया हुआ था. पुरानी बातों को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद हो गया. मामला इतना बढ़ा कि यतेंद्र ने पत्नी सरोज उर्फ पिंकी के साथ मारपीट की. इस से भी जब उस का मन नहीं भरा तो उस ने साथ लाई देशी 32 बोर की पिस्टल से 4 गोलियां उस के सीने में उतार दीं.

घटना को अंजाम देने से पहले उस ने अपनी तीनों बेटियों को मकान के बाहर खड़ी कार में बैठा दिया था. बड़ी बेटी आकांक्षा अपने पिता की करतूत को पूरी तरह समझ गई थी, लेकिन पिता द्वारा धमकी देने से वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकी थी.

घटना को अंजाम देने के बाद सिपाही यतेंद्र तीनों बेटियों को ले कर फरार हो गया. गिरफ्तारी के बाद आरोपी सिपाही ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

सुंदर, सुशील पत्नी के होते हुए भी युवती से प्रेम संबंधों के चलते सिपाही यतेंद्र ने अपनी खुशहाल जिंदगी को ग्रहण लगा लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

घर-गृहस्थी से जेल अच्छी

कोतवाल हेमेंद्र सिंह नेगी देहात क्षेत्र के गांवों में गस्त कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेगी ने मोबाइल स्क्रीन देखी, कोई अज्ञात नंबर था. इतनी रात में कोई यूं ही फोन नहीं करता. नेगी ने मोबाइल काल रिसिव की.

दूसरी ओर कोई अपरीचित था, जिस की आवाज डरीसहमी सी लग रही थी. हेमेंद्र सिंह के परिचय देने पर उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अभिषेक है और मैं आप के थाना क्षेत्र के गांव झीबरहेडी से बोल रहा हूं. मुझे आप को यह सूचना देनी थी कि आधा घंटे पहले बदमाशों ने मेरे चचेरे भाई प्रदीप की हत्या कर दी है.’’

‘‘हत्या, कैसे? पूरी बात बताओ’’

‘‘सर मुझे हत्यारों की तो कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उस वक्त मैं गहरी नींद में था. करीब आधा घंटे पहले मेरे मकान की दीवार से किसी के कूदने की आवाज आई थी. मुझे लगा कि गांव में बदमाश आ गए हैं. मैं तुरंत नीचे आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.

‘‘थोड़ी देर बाद चचेरे भाई प्रदीप के कराहने की आवाज आई तो मैं बाहर आया. मैं ने देखा कि प्रदीप लहूलुहान पड़ा था, उस के पेट, छाती व सिर पर धारदार हथियारों से प्रहार किए गए थे.’’ अभिषेक बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘सर, फिर मैं ने अपने घरवालों को जगाया और प्रदीप को  तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन हम प्रदीप को अस्पताल ले जाते, उस ने दम तोड़ दिया.’’ अभिषेक बोला.

‘प्रदीप किसान था?’ नेगी ने पूछा

‘नहीं सर प्रदीप स्थानीय श्री सीमेंट कंपनी में ट्रक चलाता था और गत रात ही वह देहरादून से लौटा था. रात को वह अकेला ही अपने घर की छत पर सो रहा था.’ अभिषेक बोला.

‘‘प्रदीप की गांव में किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’ नेगी ने पूछा.

‘‘नहीं सर वह तो हंसमुख स्वभाव का था और गांव के सभी बिरादरी के लोग उस की इज्जत करते थे. प्रदीप ज्यादातर अपने काम से काम रखने वाला आदमी था.’’ अभिषेक बोला.

‘‘ठीक है अभिषेक, पुलिस 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंच जाएगी.’’

कोतवाल हेमेंद्र नेगी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया. नेगी ने सब से पहले लक्सर कोतवाली की चेतक पुलिस को गांव झीबरहेड़ी में प्रदीप के घर पहुंचने का आदेश दिया. फिर इस हत्या के बारे में सीओ राजन सिंह, एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को सूचना दी.

नेगी गांव झीबरहेड़ी की ओर चल दिए. 20 मिनट बाद नेगी प्रदीप के घर पर पहुंच गए. उस समय सुबह के 4 बज गए थे और अंधेरा छंटने लगा था.

प्रदीप के घर में उस का शव आंगन में चादर से ढका रखा था, आसपास गांव वालों की भीड़ जमा थी. नेगी व चेतक पुलिस के सिपाहियों ने सब से पहले ग्रामीणों को वहां से हटाया. इस के बाद शव का निरीक्षण किया. हत्यारों ने प्रदीप की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी.

बदमाशों ने प्रदीप का पूरा शरीर धारदार हथियारों से गोद डाला था. जब नेगी ने प्रदीप के बीबी बच्चों की बाबत, पूछा तो घर वालों ने बताया कि कई सालों से प्रदीप की बीबी ममता बच्चों के साथ अपने मायके बादशाहपुर में रहती है. घरवालों से नंबर ले कर नेगी ने ममता को प्रदीप की हत्या की जानकारी दी.

इस के बाद नेगी ने गांव वालों से प्रदीप की दिनचर्या के बारे में जानकारी ली और पूछा कि उस की गांव में किसी से दुश्मनी तो नहीं थी. नेगी का अनुमान था कि प्रदीप की हत्या का कारण रंजिश भी हो सकता है, क्योंकि यह मामला लूट का नहीं लग रहा था.

नेगी ग्रामीणों से प्रदीप के बारे में जानकारी जुटा ही रहे थे, कि सीओ राजन सिंह, एसपी देहात एसके सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस भी पहुंच गए. तीनों अधिकारियों ने वहां मौजूद ग्रामीणों से प्रदीप की हत्या के बारे में पूछताछ की.

इस के बाद अधिकारियों ने कोतवाल नेगी को प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेएन सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल रुड़की भेजने के निर्देश दिए और चले गए. शव को अस्पताल भेज कर नेगी थाने लौट आए. उन्होंने प्रदीप के भाई सोमपाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और मामले की जांच शुरू कर दी. प्रदीप की हत्या का मामला थोड़ा पेचीदा था, क्योंकि न तो प्रदीप का कोई दुश्मन था और न लूट हुई थी.

अगले दिन 27 जून को एसपी देहात एसके सिंह ने इस केस का खुलासा करने के लिए लक्सर कोतवाली में मीटिंग की, जिस में सीओ राजन सिंह, कोतवाल हेमेंद्र नेगी, थानेदार मनोज नोटियाल, लोकपाल परमार, आशीष शर्मा, यशवीर नेगी सहित सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी, एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर आदि शामिल हुए.

एसके सिंह ने सीओ राजन सिंह के निर्देशन में इन सभी को जल्द से जल्द प्रदीप हत्याकांड का खुलासा करने के निर्देश दिए.

निर्देशानुसार सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी ने झीबरहेड़ी में घटी घटना का साइट सैल डाटा उठाया. साथ ही रात में हत्या के समय आसपास चले मोबाइलों की काल डिटेल्स खंगाली. इस के बाद पुलिस द्वारा उन मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई.

साथ ही बचकोटी ने सीआईयू के एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर को प्रदीप हत्याकांड की सुरागरसी करने के लिए सादे कपड़ों में झीबरहेड़ी भेजा.

सिपाहियों कपिलदेव व महीपाल को उन्होंने प्रदीप की पत्नी ममता के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उस के मायके बादशाहपुर भेजा था.

इस का परिणाम यह निकला कि 28 जून, 2020 की शाम को पुलिस और सीआईयू के हाथ प्रदीप हत्याकांड के पुख्ता सबूत लग गए. पुलिस को जो जानकारी मिली, वह यह थी कि मृतक प्रदीप के साथ अमन भी ट्रक चलाता था. वह गांव हरीपुर, जिला सहारनपुर का रहने वाला था. इसी के चलते वह प्रदीप के घर आताजाता था. प्रदीप की पत्नी ममता का चालचलन ठीक नहीं था, इस वजह से पति पत्नी में अकसर मनमुटाव रहता था. घर में आनेजाने से अमन की आंखे ममता से लड़ गई थीं और वे दोनों प्रदीप की गैरमौजूदगी में रंगरलियां मनाने लगे थे.

गत वर्ष जब प्रदीप को ममता व अमन के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने दोनों को धमकाया भी, मगर 42 वर्षीया ममता अपने 23 वर्षीय प्रेमी अमन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. इस विवाद के चलते वह अपने बच्चों के साथ मायके बादशाहपुर जा कर रहने लगी थी.

उस के जाने के बाद प्रदीप अपने झीबरहेडी स्थित मकान पर अकेला रहने लगा. 29 जून, 2020 को पुलिस को प्रदीप की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में उस की मौत का कारण शरीर पर धारदार हथियारों के प्रहारों से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को अमन पर शक हो गया. दूसरी ओर सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी को जिस मोबाइल नंबर पर शक था, वह अमन का ही नंबर था.

सीआईयू ने अमन की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछा दिया था. अमन को शाम को ही पुलिस ने लक्सर क्षेत्र से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह ममता से मिलने जा रहा था.

अमन को पकड़ने के बाद पुलिस उसे कोतवाली ले आई. इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह व सीओ राजन सिंह ने उस से प्रदीप की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की. अमन ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

अमन ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि वह प्रदीप के साथ गत 3 वर्षो से ट्रक चलाता था. उस का प्रदीप के घर आना जाना होता रहता था. प्रदीप की बीवी ममता पति के रूखे व्यवहार से परेशान रहती थी. जब उस ने ममता से प्यार भरी बातें करनी शुरू कर दीं, तो वह भी उसी टोन में बतियाने लगी. तनीजा यह हुआ कि उस के ममता से अवैध संबंध बन गए.

यह जानकारी मिलने पर प्रदीप ने मुझे धमकी दी, जिस से मैं बुरी तरह डर गया. इस के बाद उस ने प्रदीप द्वारा दी गई धमकी की जानकारी ममता को दी. तब उस ने ममता की सहमति से प्रदीप की हत्या की योजना बनाई. 26 जून को उस ने प्रदीप के बेटे शकुन को फोन किया और उस से प्रदीप के बारे में पूछा.

शकुन के मुताबिक प्रदीप उस शाम घर पर ही था. रात 12 बजे मैं छुरी ले कर झीबरहेडी की ओर निकल गया. प्रदीप के मकान के पीछे खेत थे रात करीब 2 बजे वह खेतों की ओर से मकान पर चढ़ गया. उस समय प्रदीप मकान की छत पर अकेला बेसुध सोया पड़ा था. उसे देख कर उस का खून खौल गया.

इस के बाद उस ने पूरी ताकत लगा कर प्रदीप के गले पर वार करने शुरू कर दिए. उस ने प्रदीप के गले, सिर व पेट पर कई वार किए. इस के बाद वह मकान की छत से कूद कर, वापस लक्सर आ गया.

लक्सर से बादशाहपुर ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए लक्सर पुलिस ममता को भी कोतवाली ले आई. जब ममता ने अमन को पुलिस हिरासत में देखा, तो वह सारा माजरा समझ गई और पुलिस के सामने अपने पति की हत्या का षडयंत्र रचने में अपनी संलिप्तता मान कर ली.

इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह ने प्रदीप हत्याकांड का खुलासा होने और 2 आरोपियों के गिरफ्तार होने की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार सेंथिल अबुदई कृष्णाराज को दी.

30 जून, 2020 को एसपी देहात एसके सिंह ने लक्सर कोतवाली में प्रैसवार्ता के दौरान मीडियाकर्मियों को प्रदीप हत्याकांड के खुलासे की जानकारी दी. इस के बाद पुलिस ने अमन व ममता को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.

3 बच्चों की मां होने के बाद भी ममता अमन के प्रेम में इस कदर डूबी कि उस ने पति की हत्या अपने प्रेमी से कराने में कोई संकोच नहीं किया, बल्कि इस हत्याकांड को छिपाए रखा. प्रदीप से ममता की शादी वर्ष 2001 में हुई थी. प्रदीप का 18 वर्षीय बेटा सन्नी हैदराबाद में कोचिंग कर रहा है और 17 साल की बेटी आंचल और 12 साल का बेटा शकुन मां ममता के साथ बादशाहपुर में रहते थे.

(पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

जहरीली निकली इश्क की दवा

22अप्रैल, 2020 को लाठगांव पिपरिया में सहकारी समिति के माध्यम से गेहूं की खरीदी चल रही थी. गांव के हीरालाल विश्वकर्मा को भी अपना गेहूं बेचने जाना था. वह अपने बड़े बेटे मोहन का इंतजार कर रहे थे. मोहन खेतों पर था. उस का दोस्त कुंजी भी उस के साथ था.

दरअसल, गांव के ही देवेंद्र पटेल से बंटाई पर लिए गए खेत पर गेहूं की फसल की मड़ाई हो रही थी. मोहन और कुंजी बीती रात 9 बजे खाना खा कर खेत पर गए थे. सुबह 11 बजे के बाद भी मोहन घर नहीं आया तो हीरालाल ने उसे फोन किया. लेकिन रिंग जाने पर भी फोन रिसीव नहीं हुआ. हीरालाल को लगा कि थ्रेशर की आवाज में फोन की रिंग सुनाई नहीं दी होगी. हीरालाल अपने छोटे बेटे को साथ ले कर गेहूं बेचने सहकारी समिति चला गया.

हीरालाल गेहूं बेच कर दोपहर के 2 बजे घर आया तो उस की पत्नी ने बताया कि मोहन अभी तक खेत से नहीं लौटा है. इस से उसे लगा कि थ्रेशर में कोई खराबी आने की वजह से फसल की मड़ाई पूरी नहीं हो पाई होगी, इसलिए मोहन घर नहीं आया होगा.

जल्दी से खाना खा कर हीरालाल खुद ही खेत पर चला गया. दूर से ही खेत में रखे गेहूं और भूसे के ढेर को देख कर हीरालाल खुश हुआ कि रात में फसल की मड़ाई हो गई है. लेकिन जब पास जा कर देखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई. बिस्तर पर उस के बेटे मोहन विश्वकर्मा और उस के दोस्त कुंजी यादव की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं.

जैसेतैसे खुद को संभाल कर हीरालाल ने गांव के को

टवार (चौकीदार) द्वारा इस वारदात की सूचना पुलिस चौकी झोतेश्वर को दिलवा दी. सूचना मिलने पर थाना गोटेगांव के टीआई प्रभात शुक्ला और झोतेश्वर पुलिस चौकी की एसआई अंजलि अग्निहोत्री पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लौकडाउन में हुए दोहरे हत्याकांड से पूरे जिले में सनसनी फैल गई थी. घटना को ले कर गांव में आक्रोश न फैले, इसलिए कलेक्टर दीपक सक्सेना और एसपी डा. गुरुकरण सिंह ने शाम के समय घटनास्थल का दौरा किया और पुलिस को जरूरी निर्देश दिए. उन्होंने गांव वालों को आश्वस्त किया कि हत्यारों को जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

पुलिस टीम ने जरूरी लिखापढ़ी के बाद दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए गोटेगांव के सरकारी अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शवों को उन के घर वालों के सुपुर्द कर दिया गया. पुलिस की उपस्थिति में लाठगांव में दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

पुलिस टीम ने जब मृतकों के घर वालों के साथ गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की तो मामला नाजायज प्रेम संबंधों से जुड़ा हुआ निकला. कुंजी यादव की दादी ने तो पुलिस के सामने दोनों की हत्या का शक गांव के शिवराज उर्फ गुड्डा ठाकुर पर व्यक्त किया.

इस से पुलिस की राह आसान हो गई. जब पुलिस टीम गुड्डा ठाकुर के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर के पास ही रहने वाले उस के भाई ने बताया कि गुड्डा उस के घर दोपहर को खाना खाने आया था. भाई ने बताया कि वह ज्यादा समय जामुनपानी गांव के खेत में बनी टपरिया (झोपड़ी) में रहता है.

पुलिस टीम ने 22 अप्रैल, 2020 की रात खेत में बनी गुड्डा ठाकुर की झोपड़ी में दबिश दी तो वह वहां नहीं मिला. 23 अप्रैल के तड़के पुलिस ने फिर झोपड़ी में दबिश दी. मगर पुलिस को देख कर उस की झोपड़ी में मौजूद कुत्ता दूर से ही भौंकने लगा. जिस पर गुड्डा ठाकुर बिस्तर से उठा और चड्ढीबनियान में ही जंगल की ओर भाग गया.

जब पुलिस झोपड़ी में पहुंची तो चूल्हे की आग गरम थी. बिस्तर बिछा हुआ था. उस के कपड़े और जूते रखे थे. झोपड़ी में पुलिस को गुड्डा ठाकुर की बैंक पासबुक और फोटो मिली.

23 अप्रैल, 2020 की शाम 5 बजे पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि गुड््डा झोतेश्वर के मंदिर के पास घूम रहा है. एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने पुलिस टीम के साथ जा कर झोतेश्वर मंदिर के आसपास के पूरे क्षेत्र की घेरेबंदी कर दी. लेकिन गुड्डा पुलिस से बच कर संकरे रास्तों से भाग गया. अंतत: उसे झोतेश्वर में हनुमान टेकरी मंदिर के पास से पकड़ लिया गया.

थाना गोटेगांव ले जा कर उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पिपरिया लाठगांव निवासी मोहन और कुंजी यादव की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी. गुड्डा के पुलिस को दिए गए बयान के अनुसार हत्या का कारण दोस्ती में विश्वासघात था. मोहन ने उस की पत्नी रति से नाजायज संबंध बना रखे थे.

पिपरिया लाठगांव नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर है. हीरालाल का परिवार इसी गांव में किसानी करता है. हीरालाल के 2 बेटों में 30 साल के बड़े बेटे मोहन की शादी हो चुकी थी. उस के 2 बच्चे भी हैं.

मोहन और कुंजी गुड्डा ठाकुर के अच्छे दोस्त थे. दोस्ती के चलते दोनों गुड्डा के घर आतेजाते थे. मोहन की नजर गुड्डा की खूबसूरत बीवी रति (परिवर्तित नाम) पर टिकी थी. तीखे नैननक्श और गठीले बदन की रति से मोहन हंसीमजाक कर लिया करता था.

जब भी गुड्डा ठाकुर घर से बाहर रहता, मोहन उस के घर पहुंच जाता. हंसीमजाक का सिलसिला बढ़ते देख एक दिन मोहन ने रति से कहा, ‘‘रति भाभी, तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो, जी चाहता है कि तुम पर मैं अपना सब कुछ लुटा दूं.’’

रति भी मोहन को मन ही मन चाहने लगी थी. उस ने भी कह दिया, ‘‘तुम्हें रोका किस ने है.’’

रति की इस सहमति पर मोहन का दिल मचल गया. वह रति से बोला, ‘‘तो हुस्न के इस खजाने को लूटने का मजा कब मिलेगा?’’

रति मानो प्यासी बैठी थी. उस ने कह दिया, ‘‘रात में तुम्हारा दोस्त गन्ने के खेत में पानी देने जाता है, तभी घर आ जाना.’’

तमाम लोग क्षणिक दैहिक सुख के लिए अंधे हो जाते हैं. उन्हें न समाज में बदनामी का डर रहता है और न ही अपने बीवीबच्चों की फिक्र. मोहन भी रति से शारीरिक संबंध बनाने के लिए कोई भी हद पार करने तैयार था. रति की सहमति मिलते ही मोहन के मन की मुराद पूरी हो गई.

रात में जब गुड्डा खेत पर गया था, मौका पा कर मोहन रति के पास पहुंच गया. निगरानी के लिए उस ने गुड्डा के घर के बाहर कुंजी को खड़ा कर दिया था. रति भी जैसे उसी के इंतजार में मूड बनाए बैठी थी.

मोहन के आते ही उस ने घर का दरवाजा बंद किया और मोहन के सीने में सिमट गई. मोहन रति को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘आज तो मेरी प्यास बुझा दो रानी.’’

फिर दोनों पास पड़े बिस्तर पर लेट गए. दोनों के अंदर मचल रहा वासना का तूफान तभी शांत हुआ, जब उन के जिस्मों की प्यास बुझ गई.

मोहन और रति के नाजायज संबंधों का यह खेल परवान चढ़ने लगा. धीरेधीरे इस की चर्चा गांव के गलीमोहल्लों से हो कर रति के पति गुड्डा के कानों तक भी पहुंच गई थी.

नाजायज संबंधों की जानकारी होने पर गुड्डा ने मोहन को समझाने का प्रयास किया. मगर मोहन ने अपनी गलती मानने के बजाए उलटे गुड्डा की मर्दानगी का मजाक बनाना शुरू कर दिया. रति के मोहन से बने इन नाजायज संबंधों से पतिपत्नी के बीच आए दिन झगड़े और मारपीट होने लगी. इस के चलते करीब 2 महीने पहले रति अपने मायके गांव घरगवां चली गई.

गुड्डा अपनी घरगृहस्थी उजड़ने से परेशान रहने लगा. समाज में भी उस की बदनामी हो गई थी. गुड्डा का मन अब किसी काम में नहीं लगता था. उस के दिल में मोहन के प्रति इतनी नफरत भर गई थी कि उसे देखते ही उस का खून खौलने लगा था.

उस के दिमाग में बारबार यही खयाल आता था कि मोहन की वजह से उस की पत्नी उसे छोड़ कर चली गई. वह मोहन को अपने रास्ते से हटाने के बारे में सोचता रहता था.

एक दिन गुड्डा ने अपनी यह योजना कुंजी यादव के घर जा कर बता दी. उस ने कुंजी के घर वालों से साफ शब्दों में कहा, ‘‘मोहन उस की बीवी पर बुरी नजर रखता था, इसलिए वह मोहन को जान से मारना चाहता है.’’ फिर उस ने कुंजी के पिता को समझाया, ‘‘तुम्हारे बेटे कुंजी ने अगर मोहन के साथ रहना नहीं छोड़ा तो उस की भी खैर नहीं.’’

इस बात को ले कर कुंजी के घर वालों ने कुंजी को मोहन के साथ न रहने की हिदायत भी दी लेकिन कुंजी ने उन का कहना नहीं माना.

प्रतिशोध की आग में जल रहे गुड्डा ने निश्चय कर लिया था कि वह मोहन को मौत के घाट उतार कर ही दम लेगा. गुड्डा को यह तो पता था ही कि मोहन और कुंजी रोज खेतों पर जाते हैं. 21 अप्रैल की रात वह अपने खेत की टपरिया से मोहन और कुंजी पर नजर रख रहा था. फसल की मड़ाई पूरी होने के बाद जब दोनों खेत पर सो गए तो रात करीब 2 बजे वह कुल्हाड़ी ले कर उन के पास पहुंच गया.

गहरी नींद सो रहे मोहन और कुंजी के सिर पर लगातार कई वार कर के गुड्डा ने उन्हें हमेशा के लिए गहरी नींद सुला दिया. कुंजी ने चेतावनी के बाद भी उस का कहा नहीं माना था. मोहन की हत्या का कोई सबूत और गवाह न मिल सके, इसलिए गुड्डा ने कुंजी की भी हत्या कर दी थी.

गुड्डा के बयानों के आधार पर मोहन विश्वकर्मा और कुंजी यादव की हत्या के आरोप में आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर गुड्डा ठाकुर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

नाजायज संबंधों का अकसर इसी तरह दुखद अंत होता है. इस मामले में भी शादीशुदा होने के बावजूद विश्वासघात कर के दोस्त की पत्नी से नाजायज संबंध रखने वाले मोहन और इन संबंधों में सहयोग करने वाले कुंजी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. पत्नी की बेवफाई से हुई बदनामी ने गुड्डा ठाकुर को दोहरी हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

घातक प्रेमी : शक ने किया प्रेमिका का कत्ल

सुबह होते ही गांव में शोर मचने लगा कि छत्रपाल अपनी प्रेमिका ननकी की हत्या कर फरार हो गया है, उस की लाश कमरे में पड़ी है. हल्ला होते ही गांव वाले ननकी के मकान की ओर दौड़ पड़े. गांव का प्रधान भी उन में शामिल था. गांव के पूर्वी छोर पर ननकी का मकान था. वहां पहुंच कर लोगों ने देखा, सचमुच ननकी की लाश कमरे में जमीन पर पड़ी थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि छत्रपाल ने ननकी की हत्या क्यों कर दी.

इसी बीच ग्राम प्रधान रामसिंह यादव ने थाना बिंदकी में फोन कर के इस हत्या की खबर दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने महिला की हत्या किए जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी फिर निरीक्षण में जुट गए. वह उस कमरे में पहुंचे जहां ननकी की लाश पड़ी थी. लाश के पास कुछ महिलाएं रोपीट रही थीं. पूछने पर पता चला कि मृतका अपने प्रेमी छत्रपाल के साथ रहती थी. उस का पति अंबिका प्रसाद करीब 5 साल पहले घर से चला गया था और वापस नहीं लौटा. मृतका के 2 बच्चे भी हैं, जो अपनी ननिहाल में रहते हैं.

मृतका ननकी की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में गमछा लिपटा था. लग रहा था जैसे उसी गमछे से गला कस कर उस की हत्या की गई हो. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. साथ ही टूटी चूडि़यां भी बिखरी पड़ी थीं. इस से लग रहा था कि हत्या से पहले मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत कुमार वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ योगेंद्र कुमार मलिक घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मौके पर मौजूद मृतका के घरवालों तथा पासपड़ोस के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

मौके पर शारदा नाम की लड़की मिली. मृतका ननकी उस की मौसी थी. शारदा ने पुलिस को बताया कि वह कल शाम छत्रपाल के साथ मौसी के घर आई थी. खाना खाने के बाद वह कमरे में जा कर लेट गई. रात में किसी बात को ले कर मौसी और छत्रपाल में झगड़ा हो रहा था.

सुबह 5 बजे छत्रपाल बदहवास हालत में निकला और घर के बाहर चला गया. कुछ देर बाद मैं ननकी मौसी के कमरे में गई तो कमरे में जमीन पर मौसी मृत पड़ी थी. मैं बाहर आई और शोर मचाया. मैं ने फोन द्वारा अपने मातापिता और नानानानी को खबर दी तो वह सब भी आ गए.

मृतका की मां चंदा और बड़ी बहन बड़की ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि छत्रपाल ननकी के चरित्र पर शक करता था. मायके का कोई भी युवक घर पहुंच जाता तो वह उसे शक की नजर से देखता था और फिर झगड़ा तथा मारपीट करता था. इसी शक में छत्रपाल ने ननकी को मार डाला है. उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

पूछताछ के बाद एएसपी ने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद हत्यारोपी छत्रपाल को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें. इस के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने मौके से सबूत अपने कब्जे में लिए और ननकी का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया. फिर थाने आ कर शारदा की तरफ से छत्रपाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने हत्यारोपी छत्रपाल की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने उस की तलाश में नातेरिश्तेदारों के घर सरसौल, बिंदकी, खागा और अमौली में छापे मारे, लेकिन छत्रपाल वहां नहीं मिला. तब उस की टोह में मुखबिर लगा दिए.

29 मई, 2020 की शाम 5 बजे खास मुखबिर के जरीए थानाप्रभारी नंदलाल सिंह को पता चला कि हत्यारोपी छत्रपाल इस समय बिंदकी बस स्टैंड पर मौजूद है. शायद वह कहीं भागने की फिराक में किसी साधन का इंतजार कर रहा है. यह खबर मिलते ही थानाप्रभारी आवश्यक पुलिस बल के साथ बस स्टैंड पहुंच गए.

पुलिस जीप रुकते ही बेंच पर बैठा एक युवक उठा और तेजी से सड़क की ओर भागा. शक होने पर पुलिस ने उस का पीछा किया और रामजानकी मंदिर के पास उसे दबोच लिया. उस ने अपना नाम छत्रपाल बताया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने जब उस से ननकी की हत्या के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती बरती तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस से की गई पूछताछ में ननकी की हत्या के पीछे की कहानी अवैध रिश्तों की बुनियाद पर गढ़ी हुई मिली—

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का एक व्यापारिक कस्बा है अमौली. इसी कस्बे में चंद्रभान अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटियां बड़की व ननकी और एक बेटा मोहन था. चंद्रभान कपड़े का व्यापार करता था.

इसी व्यापार से होने वाली कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. चंद्रभान की बड़ी बेटी बड़की जवान हुई तो उस ने उस का विवाह खागा कस्बा निवासी हरदीप के साथ कर दिया. बड़की से 4 साल छोटी ननकी थी. बाद में जब वह भी सयानी हुई तो वह उस के लिए भी सही घरबार ढूंढने लगा. आखिर उन की तलाश अंबिका प्रसाद पर जा कर खत्म हो गई.

अंबिका प्रसाद के पिता जगतराम फतेहपुर जनपद के गांव शाहपुर के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे शिव प्रसाद व अंबिका प्रसाद थे. शिव प्रसाद की शादी हो चुकी थी. वह इलाहाबाद में नौकरी करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था.

उन का छोटा बेटा अंबिका प्रसाद उन के साथ खेतों पर काम करता था. चंद्रभान ने अंबिका को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी ननकी के लिए पसंद कर लिया. बात तय हो जाने के बाद 10 जनवरी, 2004 को ननकी का विवाह अंबिका प्रसाद के साथ हो गया.

अंबिका प्रसाद तो सुंदर बीवी पा कर खुश था, लेकिन ननकी के सपने ढह गए थे. क्योंकि पहली रात को ही वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. वह समझ गई कि उस के पति में इतनी शक्ति नहीं है कि वह उसे शारीरिक सुख प्रदान कर सके.

समय बीतता गया और ननकी पूजा और राजू नाम के 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद परिवार का खर्च बढ़ गया. पिता जगतराम की भी सारी जिम्मेदारी अंबिका प्रसाद के कंधों पर थी, अत: वह अधिक से अधिक कमाने की कोशिश में जुट गया. अंबिका ने आय तो बढ़ा ली, लेकिन जब वह घर आता, तो थकान से चूर होता.

ननकी पति का प्यार चाहती थी. लेकिन अंबिका पत्नी की भावनाओं को नहीं समझता. कुछ साल इसी अशांति एवं अतृप्ति में बीत गए. इस के बाद ननकी अकसर पति को ताने देने लगी कि जब तुम अपनी बीवी को एक भी सुख नहीं दे सकते तो ब्याह ही क्यों किया.

बीवी के ताने सुन कर अंबिका कभी हंस कर टाल देता तो कभी बीवी पर बरस भी पड़ता. इन सब बातों से त्रस्त हो कर ननकी ने आखिर देहरी लांघ दी. उस की नजरें छत्रपाल से लड़ गईं.

छत्रपाल ननकी के घर से 4 घर दूर रहता था. उस के मातापिता का निधन हो चुका था. वह अपने बड़े भाई के साथ रहता था और मेहनतमजदूरी कर अपना पेट पालता था. ननकी के पति अंबिका प्रसाद के साथ वह मजदूरी करता था, इसलिए दोनों में दोस्ती थी.

दोस्ती के कारण छत्रपाल का अंबिका के घर आनाजाना था. वह ननकी को भाभी कहता था. हंसमुख व चंचल स्वभाव की ननकी छत्रपाल से काफी हिलमिल गई थी. देवरभाभी होने से उस का मजाक का रिश्ता था.

ननकी का खुला मजाक और उस की आंखों में झलकता वासना का आमंत्रण छत्रपाल के दिल में उथलपुथल मचाने लगा. वह यह तो समझ चुका था कि भाभी उस से कुछ चाहती है, लेकिन अपनी तरफ से पहल करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. दोनों खुल कर एकदूसरे से छेड़छाड़ व हंसीमजाक करने लगे. इसी छेड़छाड़ में एक दोपहर दोनों अपने आप पर काबू न रख सके और मर्यादा की सीमाएं लांघ गए.

उस रोज छत्रपाल पहली बार नशीला सुख पा कर फूला नहीं समा रहा था. ननकी भी कम उम्र का अविवाहित साथी पा कर खुश थी. बस उस रोज से दोनों के बीच यह खेल अकसर खेला जाने लगा. कुछ समय बाद छत्रपाल रात को भी चुपके से ननकी के पास आने लगा. ननकी के लिए अब पति का कोई महत्त्व नहीं रह गया था. उस की रातों का राजकुमार छत्रपाल बन गया था. छत्रपाल जो कमाता था, वह सब ननकी पर खर्च करने लगा था.

साल सवासाल तक ननकी व छत्रपाल के अवैध संबंध बेरोकटोक चलते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी. अपनी मौज में वह भूल गए कि इस तरह के खेल ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. इन के मामले में भी यही हुआ. हुआ यह कि एक रात पड़ोसन रामकली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे छत्रपाल और ननकी को देख लिया. फिर तो उन दोनों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

अंबिका प्रसाद पत्नी पर अटूट विश्वास करता था. जब उसे ननकी और छत्रपाल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो वह सन्न रह गया. इस बाबत उस ने ननकी से जवाब तलब किया. ननकी भी जान चुकी थी कि बात फैल गई है, इसलिए झूठ बोलना या कुछ भी छिपाना फिजूल है. लिहाजा उस ने सच बोल दिया. ‘‘जो तुम बाहर से सुन कर आए हो, वह सब सच है. मैं बेवफा नहीं हुई बस छत्रपाल पर मन मचल गया.’’

‘‘ननकी, शायद तुम्हें अंदाजा नहीं कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं.’’ अंबिका प्रसाद बोला,  ‘‘मैं तुम्हारी गली माफ कर दूंगा बस, तुम छत्रपाल से रिश्ता तोड़ लो.’’

‘‘बदनाम न हुई होती तो जरूर रिश्ता तोड़ लेती. अब मैं गुनहगार बन चुकी हूं, इसलिए अब उसे नहीं छोड़ सकती.’’

अंबिका प्रसाद ने पत्नी को सही राह पर लाने की बहुत कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हुआ. एक रात तो अंबिका ने ननकी और छत्रपाल को अपने घर में ही आपत्तिजनक हालत में देख लिया. अंबिका ने इस का विरोध किया तो शर्मसार होने के बजाय ननकी और छत्रपाल उसी पर हावी हो गए. ‘‘जो आज देखा है, वह हर रात देखोगे. देख सको तो घर में रहो, न देख सको तो घर छोड़ कर कहीं चले जाओ.’’

ननकी की सीनाजोरी पर अंबिका प्रसाद दंग रह गया. वह घर के बाहर आ गया और माथा पकड़ कर चारपाई पर बैठ गया. इस वाकये के बाद अंबिका को पत्नी से नफरत हो गई. अंबिका आंखों के सामने पत्नी की बदचलनी के ताने भला कब तक बरदाश्त करता. अत: जनवरी 2015 में ऐसे ही एक झगड़े के बाद उस ने घर छोड़ दिया और गुमनाम जिंदगी बिताने लगा.

अंबिका प्रसाद के घर छोड़ने के बाद छत्रपाल उस के घर पर कुंडली मार कर बैठ गया. उस ने उस की जर, जोरू और जमीन पर भी कब्जा कर लिया. ननकी अभी तक उस की प्रेमिका थी किंतु अब उस ने ननकी को पत्नी का दरजा दे दिया. यद्यपि छत्रपाल ने ननकी से न तो कोर्ट मैरिज की थी और न ही प्रेम विवाह किया था.

ननकी की बेटी अब तक 10 साल की उम्र पार कर चुकी थी, जबकि बेटा 5 साल का हो गया था. दोनों बच्चे छत्रपाल की अय्याशी में बाधक बनने लगे थे. अत: वह दोनों को पीटता था. ननकी को बुरा तो लगता था, पर वह मना नहीं कर पाती थी. बच्चों पर बुरा असर न पड़े, इसलिए ननकी ने दोनों बच्चों को अपनी मां के पास भेज दिया.

बच्चे चले गए तो ननकी और छत्रपाल के मिलन की बाधा दूर हो गई. अब वे स्वतंत्र रूप से रहने लगे. ननकी और छत्रपाल को साथसाथ रहते 4 साल बीत चुके थे.

इस बीच न तो ननकी का पति अंबिका प्रसाद वापस घर लौटा और न ही ननकी ने उस की कोई सुध ली. वह कहां है, किस परिस्थिति में है. इस की जानकारी न तो ननकी को थी और न ही किसी सगेसंबंधी को.

ननकी बच्चों से मिलने मायके अमौली जाती थी. फिर वहां कई दिन तक रुकती थी. इस से छत्रपाल को शक होने लगा था कि ननकी का मन उस से भर गया है और अब उस ने मायके में कोई नया यार बना लिया है. इस कारण वह मायके में डेरा जमाए रहती है.

इसे ले कर अब ननकी और छत्रपाल में झगड़ा होने लगा था. मायके का कोई भी व्यक्ति घर आता तो छत्रपाल उसे शक की नजर से देखता और उस के जाने के बाद ननकी के चरित्र पर लांछन लगाते हुए झगड़ा करता.

ननकी की बड़ी बहन बड़की खागा कस्बे में ब्याही थी. उस की बेटी का नाम शारदा था. शारदा अपनी मौसी से ज्यादा हिलीमिली थी सो उस ने ननकी से उस के घर आने की बात कही. ननकी ने शारदा की बात मान ली और उसे जल्द ही बुलाने की बात कही.

25 मई, 2020 की सुबह ननकी ने छत्रपाल को पैसे दे कर शारदा को बुलाने खागा भेज दिया. छत्रपाल खागा के लिए निकला तो ननकी के मायके से उस का पड़ोसी गोपाल आ गया. ननकी ने उसे घर के अंदर कर दरवाजा बंद कर लिया. ननकी का दरवाजा बंद हुआ तो पड़ोसी आपस में कानाफूसी करने लगे.

शाम 5 बजे छत्रपाल शारदा को साथ ले कर वापस आ गया. कुछ देर बाद छत्रपाल घर से निकला तो चुगलखोरों ने चुगली कर दी, ‘‘छत्रपाल तुम घर से निकले तभी कोई सजीला युवक आया. ननकी ने उसे घर के अंदर बुला कर दरवाजा बंद कर लिया था. बंद दरवाजे के पीछे क्या गुल खिला होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं.’’

छत्रपाल पहले से ही ननकी पर शक करता था, पड़ोसियों की चुगली ने आग में घी डालने जैसा काम किया. गुस्से में छत्रपाल शराब ठेका गया और शराब पी कर घर लौटा. रात में कमरे में जब उस का सामना ननकी से हुआ तो उस ने ननकी के चरित्र पर अंगुली उठाई और उसे बदचलन, बदजात और वेश्या कहा.

इस पर दोनों में जम कर झगड़ा हुआ. झगड़े के दौरान ननकी के ब्लाउज से 5-5 सौ के 2 नोट नीचे गिर गए जो छत्रपाल ने उठा लिए थे. अब उसे पक्का विश्वास हो गया कि यह नोट अय्याशी के दौरान घर पर आए उस युवक ने दिए होंगे. शक का कीड़ा दिमाग में कुलबुलाया तो छत्रपाल का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. उस ने ननकी को जमीन पर पटक दिया और फिर गमछे से गला कसने लगा. ननकी कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. हत्या करने के बाद छत्रपाल कमरे से निकला और फरार हो गया.

छत्रपाल से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने 30 मई, 2020 को छत्रपाल को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट पी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मृतका के बच्चे अपने नानानानी के पास रह रहे थे.       (कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

प्यार के माथे पर सिंदूर का टीका

बहादुरगढ़ आने के बाद राजवीर ने बबलू की नौकरी लगवा भी दी, लेकिन बबलू ने इस का यह सिला दिया कि उस ने राजवीर की पत्नी अंजलि से अवैध संबंध बना लिए. इस के बाद जो हुआ…

‘‘साहब, मैं सहतेपुर गांव से अजय पाल बोल रहा हूं. मेरी भाभी अंजलि ने मेरे

भाई राजवीर का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया है. अंजलि भाभी को मैं ने पकड़ रखा है. आप जल्दी से हमारे गांव सहतेपुर आ जाइए.’’ अजय ने निगोही थाने में फोन करते हुए कहा. यह थाना उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के अंतर्गत आता है.

निगोही थाने के इंचार्ज इंद्रजीत भदौरिया का ट्रांसफर अल्हागंज थाने में हो गया था. उस समय थाने का प्रभार एसएसआई मानबहादुर सिंह के पास था. एसएसआई के लिए यह हैरानी की बात थी कि एक औरत ने अपने पति को निर्दयता से मार डाला था.

एसएसआई ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी, फिर आवश्यक पुलिस बल के साथ सहतेपुर गांव के लिए रवाना हो गए. कुछ ही देर में वह घटनास्थल पर पहुंच गए.

मकान के एक कमरे में राजवीर की लाश पड़ी थी. उस की उम्र 28 साल के करीब थी. उस की गरदन व चेहरे पर चोट के निशान थे. पास में एक डंडा, एक लौकेट और टूटी चूडि़यां पड़ी थीं.

डंडे से यह जाहिर हो रहा था कि शायद उसी डंडे से राजवीर की हत्या की गई है. पूछने पर पता चला कि टूटा पड़ा लौकेट मृतक राजवीर का ही है. यानी राजवीर ने अपने बचाव में हत्यारे से संघर्ष भी किया था, जिस वजह से लौकेट टूट कर जमीन पर गिर गया. टूटी चूडि़यों से यह भी पता चला कि घटना के समय कोई महिला भी वहां मौजूद थी.

लाश के पास ही एक युवती गुमसुम बैठी थी. उस के पास ही एक युवक खड़ा था. वह युवक एसएसआई से बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम अजयपाल है. मैं ने ही आप को फोन किया था. यही मेरी भाभी अंजलि है. इस ने ही बबलू की मदद से मेरे भाई राजवीर की हत्या की है. बबलू तो भाग गया लेकिन इसे मैं ने भागने नहीं दिया. आप इसे गिरफ्तार कर लीजिए.’’

एसएसआई मान सिंह ने अंजलि को महिला कांस्टेबलों की सपुर्दगी में दे कर थाना निगोही भिजवा दिया. एसएसआई सिंह घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर सीओ (सदर) कुलदीप सिंह गुनावत भी आ गए. सीओ कुलदीप सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर मृतक के भाई से पूछताछ की. इस के बाद एसएसआई सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर सीओ चले गए.

एसएसआई सिंह ने घटनास्थल पर पड़ा डंडा, लौकेट व टूटी चूडि़यां साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कीं और लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. इस के बाद एसएसआई मान सिंह थाने वापस लौट आए. यह 31 मई, 2020 की बात है.

थाने में एसएसआई मान सिंह ने अंजलि से पूछताछ की तो वह फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर बाद आंसुओं का सैलाब थमा तो वह बोली, ‘‘हां साहब, मैं ने ही बबलू की मदद से अपने पति की हत्या की है. मैं अपना जुर्म कबूल करती हूं.’’

‘‘यह बबलू कौन है?’’ सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, रिश्ते में बबलू मेरे पति का फुफेरा भाई है. वह निवाड़ी गांव का रहने वाला है.’’

चूंकि अंजलि ने अपने पति राजवीर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था. अत: पुलिस ने अजय की तरफ से अंजलि व बबलू के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

उस के बाद सिंह ने अंजलि से विस्तृत पूछताछ की. उन्होंने अंजलि से पूछा, ‘‘तुम कैसी औरत हो कि अपना ही सिंदूर अपने हाथों से मिटा दिया. क्यों किया तुम ने ऐसा जघन्य अपराध?’’

अंजलि कुछ देर चुप रही, फिर वह बोली, ‘‘साहब, एक औरत रोज मरे, जलील हो तो वह क्या करेगी. मेरा पति मुझे रोज मारता था. मेरी आत्मा हर रात उस के बिस्तर पर मरती थी. बताइए, मैं कब तक सहती. जो मुझे जानवर समझता था, जिस ने मेरे साथ कभी इंसानों जैसा व्यवहार नहीं किया, जिस ने मेरी भावनाओं को कभी नहीं समझा. उस के हाथों हर रोज मरने के बदले मैं ने ही उसे मार डाला.’’

अंजलि के मन में बिलकुल ही पश्चाताप नहीं था. एक औरत, जिस की जिंदगी के मायने पति से शुरू हो कर उसी पर खत्म होते हैं, क्यों अपना सिंदूर मिटा देती है, यह जानने के लिए सिंह को अंजलि की पूरी कहानी जानना जरूरी था.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के निगोही थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक गांव सहतेपुर है. इसी गांव में राजेंद्र पाल सपरिवार रहते थे. परिवार में उन की पत्नी लक्ष्मी देवी और 2 बेटे राजवीर और अजयपाल और 2 बेटियां क्रमश: ज्योति व रेनू थीं.

राजेंद्र और लक्ष्मी का आकस्मिक देहांत हो गया तो घर की जिम्मेदारी सब से बड़े बेटे राजवीर पर आ गई. वह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार का खर्च उठाने लगा. उस ने अपनी मेहनत की कमाई से अपनी बड़ी बहन ज्योति का विवाह कर दिया.

इस के बाद राजवीर के विवाह के लिए भी रिश्ते आने लगे. तब उस ने करीब 4 साल पहले शाहजहांपुर की चौक कोतवाली के मोहल्ला अब्दुल्लागंज में रहने वाली युवती अंजलि से विवाह कर लिया.

अंजलि को पा कर राजवीर काफी खुश था. समय आगे बढ़ा तो राजवीर ने काम के सिलसिले में बाहर निकलने की सोची. उस के गांव के कई युवक बहादुरगढ़ (हरियाणा) में नौकरी कर रहे थे. राजवीर ने उन से बात की तो उन्होंने उसे भी बहादुरगढ़ बुला लिया.

जल्द ही वह बहादुरगढ़ की एक जूता फैक्ट्री में काम पर लग गया. काम पर लगते ही वह अंजलि को भी बहादुरगढ़ ले गया. समय बढ़ता जा रहा था लेकिन अंजलि मां नहीं बन पाई.

राजवीर फैक्ट्री से लौट कर कमरे पर आता तो वह इतना थका होता कि  चारपाई पर लेटते ही नींद के आगोश में समा जाता. अंजलि चारपाई पर करवटें ही बदलती रहती.

राजवीर का एक फुफेरा भाई था बबलू. वह राजवीर के गांव से कुछ ही दूरी पर निवाड़ी गांव में रहता था. राजवीर ने बबलू को भी अपने पास बहादुरगढ़ बुला लिया और उसे भी फैक्ट्री में काम पर लगवा दिया. दोनों के काम की शिफ्टें अलगअलग थीं.

बबलू राजवीर के साथ उसी के कमरे पर रहता था. बबलू की राजवीर की पत्नी अंजलि से खूब पटती थी. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता होने के कारण उन के बीच हंसीमजाक होती रहती थी.

अंजलि पति की उपेक्षा का शिकार थी. पति न उस की कभी तारीफ करता था, न ही उसे देह सुख देता था, जिस से वह अभी तक मां नहीं बन पाई थी.

इस कारण वह अकसर उदास रहती थी. बबलू जब भी उस से बातें करता तो मनभावन मीठीमीठी बातें ही करता था. उस के रूप की प्रशंसा भी खूब करता था. इसी कारण अंजलि धीरेधीरे बबलू की ओर आकर्षित होने लगी.

एक दिन जब राजवीर फैक्ट्री में था तो बबलू कमरे पर अंजलि के साथ कमरे पर था. अंजलि का चेहरा बुझाबुझा सा क्यों रहता है, इस का कारण बबलू  एक साथ रहने के कारण जान चुका था. अपनी अंजलि भाभी की आंखों में वह प्यास भी पढ़ चुका था.

बबलू ने अंजलि का मन जानने के लिए सवाल किया, ‘‘भाभी, एक बात मुझे परेशान करती रहती है. यह बताओ कि थकेहारे राजवीर भैया ड्यूटी से लौटने के बाद खाना खाते ही सो जाते हैं. वह आप का खयाल नहीं रख पाते. आप की खुिशयों का खयाल कब करते हैं.’’

‘‘कैसी खुशियां…कैसा खयाल…’’ अंजलि के मुंह से सच निकल गया, ‘‘उन पर तो हर वक्त थकान ही हावी रहती है. घर आए और घोड़े बेच कर सो गए. उन की बला से कोई जिए या कोई मरे.’’ अंजलि ने दिल की बात कह डाली.

मौके को देखते हुए बबलू ने एकदम अंजलि का हाथ थाम लिया, ‘‘भाभी, यह तो बहुत अन्याय है तुम्हारे साथ. इतनी सुंदर भाभी को कोई तड़पाए, यह मुझे मंजूर नहीं है.’’

‘‘तुम इस मामले में क्या कर सकते हो देवरजी. जिस की बीवी है, उसी को फिक्र नहीं.’’

‘‘कर तो बहुत कुछ सकता हूं भाभी,’’ कहते हुए बबलू ने अंजलि की कमर में बांहें डाल दीं, ‘‘अगर तुम कहो तो…’’

‘‘चलो, मैं ने हां कह दी,’’ अंजलि ने मुसकरा कर तिरछी चितवन का तीर चलाया, ‘‘फिर क्या करोगे तुम?’’

‘‘तुम्हारी सारी तड़प मिटा दूंगा.’’ बबलू ने उसे बांहों में भींचते हुए कहा.

फिर उस ने अंजलि को चूमना शुरू किया. देवर की गर्म सांसों का अहसास हुआ तो अंजलि भी बबलू से लिपट गई.

उस के बाद बबलू ने अंजलि को अपनी बांहों में वह सुख दिया, जो अंजलि ने अपने पति की बांहों में कभी नहीं पाया था. उस दिन से बबलू अंजलि के तन के साथ मन का साथी हो गया.

दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे देह संगम कर लेते. कुछ दिन तो उन का यह संबंध निर्बाध चलता रहा, फिर एक दिन पाप का भांडा फूट गया.

एक दिन राजवीर ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. यह देख कर उस का खून खौल उठा. उस ने अंजलि और बबलू की पिटाई की. दोनों ने राजवीर से अपने किए की माफी मांग ली. राजवीर ने फिर यह गलती न दोहराने की दोनों को सख्त हिदायत देते हुए माफ कर दिया.

अंजलि तन की शांति के लिए पतित हुई थी. राजवीर को चाहिए था कि वह बीवी की इच्छा पूरी करता, लेकिन राजवीर उन मर्दों में से था जो यह मानते हैं कि बिगड़ी हुई बीवी लातों की बात सुनती है. लिहाजा वह आए दिन अंजलि की पिटाई करने लगा.

पति की मार खातेखाते अंजलि विद्रोही बन गई. बबलू से मिला सुख वह भुला नहीं पा रही थी. इसलिए अधिक दिनों तक वे दोनों अलग नहीं रह पाए. अंजलि और बबलू दोनों फिर देह के खेल में लग गए.

एक बार फिर दोनों रंगेहाथों पकड़ लिए गए. एक बार फिर अपनी बेवफा पत्नी को राजवीर ने पीटा और बबलू को वापस उस के गांव भेज दिया. बबलू को भेज देने से राजवीर निश्चिंत हो गया. लेकिन अंजलि और बबलू की फोन पर बातें होती थीं.

इस बार दोनों के संबंधों की बात राजवीर के भाई और बहनों के साथसाथ बबलू के घर वालों को भी पता चल गई. बबलू के पिता सुरेंद्र ने उस की शादी के प्रयास करने शुरू कर दिए.

इस बीच कोरोना वायरस के कारण देश में लौकडाउन हुआ तो राजवीर को बहादुरगढ़ से अंजलि के साथ अपने गांव सहतेपुर लौटना पड़ा.

दूसरी ओर बबलू की शादी तय हो गई. 28 मई, 2020 को उस का तिलक था. अब चूंकि बबलू शादी कर रहा था तो राजवीर को यह लगा कि अब उस के अंजलि से संबंध यहीं खत्म हो जाएंगे.

राजवीर अंजलि, भाई अजय और दोनों बहनों ज्योति और रेनू के साथ बबलू के तिलक में शामिल होने के लिए गया. तिलक  के बाद बबलू ने राजवीर से बात कर के सारे गिलेशिकवे दूर कर दिए.

30 मई को राजवीर और अंजलि अपने घर आ गए, उन्हें छोड़ने के लिए साथ में बबलू भी आया. अजय, ज्योति व रेनू बबलू के घर पर ही रुक गए थे. शाम 5 बजे तक तीनों सहतेपुर गांव पहुंचे. बबलू राजवीर के घर पर ही रुक गया.

देर रात राजवीर के सो जाने पर बबलू और अंजलि एकदूसरे के पास आ गए. दोनों साथ रंगरलियां मना ही रहे थे कि राजवीर की आंखें खुल गईं. उस ने देखा तो वह दोनों से झगड़ने लगा, उन में हाथापाई होने लगी.

इस पर अंजलि को गुस्सा आया, वह पति पर पिल पड़ी और बबलू से बोली, ‘‘आओ, आज इस का काम तमाम कर ही दो. फिर हमेशा के लिए हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

यह सुन कर बबलू भी राजवीर पर टूट पड़ा. इसी हाथापाई में राजवीर का लौकेट टूट कर जमीन पर गिर गया. अंजलि की भी चूडि़यां टूट गईं.

दोनों ने राजवीर को जमीन पर गिरा लिया और उस के गले पर डंडा रख कर दबा दिया, जिस से दम घुटने से राजवीर की मौत हो गई.

इस के बाद बबलू वहां से चला गया. सुबह 4 बजे अंजलि ने चीखना- चिल्लाना शुरू कर दिया. पड़ोस में रहने वाले राजवीर के चचेरे भाई संदीप ने अंजलि के चीखने की आवाजें सुनीं तो वह राजवीर के घर आ गया. उस ने देखा कि राजवीर जमीन पर बेसुध पड़ा था. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे.

बबलू घर में नहीं था. गांव के लोग भी वहां इकट््ठे हो गए थे. राजवीर की मौत हो चुकी है, यह जान कर संदीप ने राजवीर के भाई अजय पाल को फोन कर के सब बता दिया.

बड़े भाई राजवीर की मौत की बात सुन कर अजय पाल दोनों बहनों के साथ बबलू के घर वापस लौट आया, जिस के बाद कोहराम मच गया. अजय ने निगोही थाने फोन कर के घटना के बारे में बताया. पुलिस पहुंची और अंजलि को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया.

31 मई, 2020 की रात में ही पुलिस ने बबलू को भी गिरफ्तार कर लिया गया. आवश्यक पूछताछ व जरूरी लिखापढ़ी के बाद दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

तलाश लापता बेटे की : प्यार ने ली जान

हिंदू धर्म की एक दिक्कत यह है कि परिवार का कोई व्यक्ति लापता हो जाए, तो न तो उसका कर्मकांड किया जा सकता है और न ही उस की कोई रस्म निभाई जा सकती है, जबकि यह जरूरी होता है. क्योंकि किसी को मृत तभी माना जाता है जब उस का अंतिम संस्कार हो जाए.

जिला फिरोजाबाद के गांव गढ़ी तिवारी के रहने वाले मुन्नालाल के सामने यही समस्या थी. उस का बेटा संजय पिछले एक साल से लापता था.

उसे मुन्नालाल ने खुद ढूंढा, रिश्तेदार परिचितों ने ढूंढा, पुलिस ने ढूंढा, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला. मुन्नालाल एक साल से थाने के चक्कर लगालगा कर थक गया था. पुलिस एक ही जवाब देती थी, ‘तुम्हारे बेटे को हम ने हर जगह ढूंढा. जिले भर के थानों को उस का हुलिया भेज कर मालूमात की, तुम ने जिस का नाम लिया उसी से पूछताछ की. अब बताओ क्या करें?’

‘‘आप अपनी जगह ठीक हैं. साहब जी, पर क्या करूं मेरे सीने में बाप का दिल है, जो बस इतना जानना चाहता है कि संजय जिंदा है या मर गया. अगर मर गया तो कम से कम उस के जरूरी संस्कार तो कर दूं. मेरा दिल तड़पता है उस के लिए.’’

मुन्नालाल ने कहा तो पास खड़ा एक उद्दंड सा सिपाही बोला, ‘‘ताऊ, तेरा बेटा पिछले साल 11 अप्रैल को गायब हुआ था. जिंदा होता तो लौट आता, तेरा इंतजार करना बेकार है.’’

‘‘साब जी, कह देना आसान है. कलेजे का टुकड़ा होता है, बेटा. मेरी तो मरते दम तक आंखें खुली रहेंगी उसे देखने के लिए.’’ मुन्नालाल ने कहा तो थानेदार ने सिपाही की ओर देख कर आंखे तरेरी. वह वहां से हट गया.

उस वक्त मुन्नालाल फिरोजाबाद के थाना बसई मोहम्मदपुर में बैठा था. वह कई महीने बाद यह सोच कर आया था कि संभव है, पुलिस ने उस का कोई पता लगाया हो. लेकिन उसे निराशा  ही मिली.

मुन्नालाल इसी थाना क्षेत्र के गांव गढ़ी तिवारी का रहने वाला था. उस का बेटा संजय 11 अप्रैल, 2018 की रात 8 बजे घर से फोन ले कर निकला था. जब वह घंटों तक वापस नहीं लौटा तो उस का फोन मिलाया गया, लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. घर वालों ने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर रात में ही संजय को ढूंढा. ढूंढने में रात गुजर गई पर संजय नहीं मिला.

लोगों की राय पर मुन्नालाल ने अगले दिन यानि 12 अप्रैल, 2018 को थाना बसई मोहम्मदपुर में अपने 22 वर्षीय बेटे संजय की संभावित हत्या की रिपोर्ट लिखा दी.

मुन्नालाल ने बेटे की हत्या का आरोप पड़ोसी गांव अंतै की मढ़ैया के रहने वाले हाकिम सिंह, उस के बेटे राहुल और बेटी सरिता पर लगाया. साथ ही थाना लाइन पार के गांव दत्तौंजी में रहने वाले जगदीश और अमृता उर्फ मुरारी पर भी संजय की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया. मुन्नालाल ने इन में सरिता को संजय की प्रेमिका॒ बताया था.

मुन्नालाल ने अपनी तहरीर में कहा था कि संजय और सरिता का प्रेमप्रसंग चल रहा था, जो उस के घर वालों को बुरा लगता था. जब सरिता ने उन की बात नहीं मानी तो उन लोगों ने सरिता से फोन करवा कर संजय को बुलाया और उस की हत्या कर लाश कहीं छिपा दी.

मुन्नालाल की इस तहरीर पर सरिता और उस के 4 घर वालों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया गया.

केस दर्ज होने पर पुलिस ने छानबीन शुरू की. नामजद लोगों से अलगअलग पूछताछ की गई. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाली रात करीब साढ़े 7 बजे सरिता ने संजय को फोन किया था. पुलिस ने सरिता से पूछताछ की तो उस ने बिना किसी झिझक के बता दिया कि उस ने संजय को फोन किया था. वह उस से मिलने आया भी. लेकिन मिलने के बाद वह अपने घर लौट गया था. उस ने यह भी कहा कि इस बात का उस के घर वालों को पता नहीं था.

संजय की काल डिटेल्स से भी यही पता चला था कि फोन बंद होने से पहले उस के फोन पर आखिरी काल सरिता की आई थी. सरिता ने यह बात खुद ही मान ली थी.

पुलिस ने अपने थाना क्षेत्र में तो खोजबीन की ही साथ ही जिले भर के थानों को संजय का फोटो और हुलिया भेज कर पड़ताल की, लेकिन संजय का कहीं कोई पता नहीं चला. जब दिन बीतते गए तो पुलिस भी हाथ समेट कर बैठ गई. मुन्नालाल बेटे का पता लगाने के लिए थाने के चक्कर लगाता रहा.

हर बार पुलिस उसे टरका कर घर भेज देती थी.

पुलिस की सोच थी कि सरिता से शादी न होने की वजह से संजय या तो घर छोड़ कर चला गया होगा या उस ने कहीं जा कर आत्महत्या कर ली होगी. सर्विलांस टीम भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकीं. पुलिस अपनी इस सोच को कागजों पर तो उतार नहीं सकती थी. मामला संभावित हत्या का था और थाने में केस दर्ज था, इसलिए पुलिस का जोर मुन्नालाल पर ही चलता था. कुछ पुलिस वालों को तो वह बेचैन आत्मा और अछूत सा लगता था.

मुन्नालाल मन ही मन मान चुका था कि उस का बेटा संजय दुनिया में नहीं है, लेकिन उस की परेशानी यह थी कि वह उसे मरा भी नहीं मान सकता था. वह इस उम्मीद में थाने के चक्कर लगाता रहता था कि क्या पता जिंदा या मरे बेटे की कोई खबर मिल जाए.

लेकिन दिन पर दिन गुजरते गए संजय का कोई पता नहीं चला. ऐसे में मुन्नालाल और उस की पत्नी रोने के अलावा क्या कर सकते थे. पुलिस से उम्मीद थी, लेकिन वह भी हाथ समेट कर बैठ गई थी. अलमारी में पड़ी संजय मर्डर केस की फाइल धूल चाटने लगी. देखतेदेखते 2 साल होने को आए.

मुन्नालाल बेटे के लिए परेशान होतेहोते बुरी तरह टूट गया था. वह घर में रहता तब भी और बाहर रहता तब भी उसे बस बेटे की याद सताती रहती. उसे यह सोच कर सब से ज्यादा बुरा लगता कि वह बाप हो कर लापता बेटे के बारे पता नहीं लगा पाया.

इस बीच थाने और जिला स्तर पर कई अफसर और वरिष्ठ अधिकारी बदल गए थे. जो भी नया आता मुन्नालाल उसी को अपना दुखड़ा सुनाने पहुंच जाता. अब उसे इस बात की चिंता नहीं होती थी कि सामने वाला उस की सुन भी रहा है या नहीं.

इसी बीच किसी ने उसे राय दी कि वह फिरोजाबाद के एसएसपी सचिंद्र पटेल से मिले. मुन्नालाल ने एसएसपी साहब से मिल कर अपना रोना रोया. सचिंद्र पटेल को आश्चर्य हुआ कि एक पिता पौने 2 साल से पुलिस के पांव पखारता घूम रहा है और पुलिस ने उस के लिए कुछ नहीं किया. जबकि केस सीधासादा था.

सचिंद्र पटेल ने इस केस को सुलझाने की जिम्मेदारी एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने क्षेत्राधिकारी (सदर) हीरालाल कनौजिया और थाना बसई मोहम्मदपुर के प्रभारी निरीक्षक सर्वेश सिंह की मदद के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम के सहयोग के लिए सर्विलांस टीम को भी सहयोग करने का आदेश दिया गया.

इस पुलिस टीम ने नए सिरे से जांच शुरू की. इस के लिए टीम ने सब से पहले संजय के पिता मुन्नालाल और अन्य घर वालों से जरूरी जानकारियां जुटाईर्ं. फिर कुछ खास साक्ष्यों की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं.

कुछ कडि़यां जुड़ती सी लगीं तो पुलिस टीम ने नामजद आरोपियों के मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स चैक की. इस से पता चला कि घटना वाली रात 3 नामजद आरोपियों के फोनों की लोकेशन एक जगह पर थी.

यह इत्तेफाक नहीं हो सकता था. पुलिस ने उन तीनों को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. उन तीनों ने यह स्वीकार कर लिया कि उन्होंने षड़यंत्र रच कर 11 अप्रैल, 2018 की रात संजय का मर्डर किया था. अंतत: उन तीनों की स्वीकारोक्ति के बाद शेष 2 आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. इन लोगों ने संजय के कत्ल की जो कहानी बताई वह कुछ इस तरह थी.—

संजय पड़ोसी गांव गढ़ी तिवारी का रहने वाला था. वह अंतै की मढ़ैया में अपने परिचित से मिलने आता था. संजय के उस परिचित का घर सरिता के घर के पास में था. सरिता वहां आतीजाती थी. वहीं पर संजय और सरिता का परिचय हुआ.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. बातें भी होने लगीं, फिर जल्दी ही दोनों प्रेमलहर में बह गए. लहरें जब तटबंध तोड़ने लगीं तो दोनों अपनेअपने गांव के सीमाने पर खेतों में मिलने लगे. दोनों ने तय किया कि उन की शादी में अगर घर वालों ने व्यवधान डाला तो घर छोड़ कर भाग जाएंगे और कहीं दूर जा कर शादी कर लेंगे.

गांवों में प्रेम प्यार या अवैध संबंधों की बातें छिपती नहीं हैं. जब किसी की आंखों देखी बात होंठों से उतरती है तो इन शब्दों के साथ कि किसी को बताना नहीं, लेकिन वही ना बताने वाली बात दिन भर में गांव के हर कान तक पहुंच जाती है.

सरिता और संजय के मामले में भी यही हुआ. इस के बाद सरिता को भला बुरा भी कहा गया और संजय से न मिलने की धमकी भी दी गई. लेकिन प्रेम का रंग हलका हो या गाढ़ा अपना रंग आसानी से नहीं छोड़ता.

चेतावनी के बाद भी संजय और सरिता मिलते रहे, भविष्य की भूमिका बनाते रहे. हां, दोनों ने अब सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी.

इस के बावजूद बात फैल ही गई. इस से सरिता के परिवार की बदनामी हो रही थी. वे अगर संजय को कुछ कहते तो बदनामी उन्हीं की होती, इसलिए उन्होंने सरिता को डांटा, समझाया और पीटा भी. यह बात संजय के घर वालों को भी पता लग गई थी.

जब न सरिता मानी और न संजय तो सरिता के पिता हाकिम सिंह व भाई राहुल ने दत्तौंजी गांव के अमृता उर्फ मुरारी और जगदीश के साथ मिल कर संजय को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. इस के लिए तारीख तय की गई 11 अप्रैल, 2018 की रात.

इन लोगों ने उस दिन अंधेरा घिरने के बाद सरिता पर दबाव डाल कर संजय को फोन कराया. सरिता ने फोन पर संजय से कहा, ‘‘संजय, मैं बड़ी मुश्किल में हूं. घर वाले मुझे जान से मारने की धमकी दे रहे थे. मैं चोरीछिपे वहां से भाग कर गांव दत्तौंजी के बीहड़ में आ गई हूं.

‘‘जैसे भी हो तुम यहां आ जाओ, हम दोनें कहीं भाग चलेंगे और शादी कर लेंगे और हां, फोन साथ लाना, क्योंकि फोन होंगे तो एकदूसरे को ज्यादा ढूंढना नहीं पड़ेगा.’’

सरिता को मुसीबत में देख संजय बिना आगापीछा सोचे घर से भाग लिया. घर में किसी को कुछ बताया तक नहीं. उस के पास केवल फोन था. फोन संजय के पास भी था और सरिता के पास भी. दोनों दत्तौंजी गांव के बीहड़ में मिल गए. सरिता को देखते ही संजय ने गले से लगा किया. बोला, ‘‘मैं आ गया हूं, चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

लेकिन सरिता कुछ नहीं बोली, उसे चुप देख संजय ने पूछा, ‘‘तुम चुप क्यों हो? मैं आ तो गया हूं, यहां से हम कहीं दूर चले जाएंगे.’’

‘‘ये क्या बोलेगी, बोलेंगे तो हम.’’ कहते हुए अगलबगल से 4 लोग निकल आए. संजय कुछ समझता इस से पहले ही उन्होंने मिल कर उसे दबोच लिया. उसे नीचे गिरा कर सरिता के सामने ही गोली मार दी. वह जिंदा न बच जाए, सोच कर उन्होंने साथ लाई कुल्हाड़ी से उस पर कई वार किए. इस के बाद यमुना किनारे के एक टीले पर गहरा गड्ढा खोदा और संजय की लाश और हत्या में इस्तेमाल असलहे वहीं दबा दिए.

संजय की हत्या का खुलासा होने पर पुलिस 4 आरोपियों को घटनास्थल पर ले गई. वहां जेसीबी मशीन से खुदाई कराने पर संजय का कंकाल, कुल्हाड़ी और तमंचा मिला. मृतक संजय के कपड़ों से उसे पहचाना गया. पुलिस ने कंकाल को फौरेसिंक जांच के लिए भेज दिया. डीएनए जांच के लिए मुन्नालाल का ब्लड लिया गया.

इस बीच सरिता की शादी हो चुकी थी और वह एक बेटी की मां बन गई थी. कोर्र्ट में पेश कर के जब चारों आरोपियों को जेल भेजा गया तो पांचवें आरोपी के रूप में सरिता को भी अपनी बेटी के साथ जेल जाना पड़ा.

मुन्नालाल जानता था कि उस का बेटा मार डाला गया है, लेकिन उस का मन नहीं मानता था. अब उस ने सब्र कर लिया है.

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020