अनूठा बदला : पति से लिया बदला – भाग 2

‘‘मैं उन 36 में से नहीं हूं, मैं ने तुम्हें चाहा है तो अपनी बना कर ही रहूंगा.’’ प्रमोद ने कहा.‘‘अरे जाओ यहां से. फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़वा दूंगी.’’ कंचन ने धमकी दी.उस समय कंचन अपने घर पर थी, इसलिए शोर मचा कर बखेड़ा कर सकती थी. प्रमोद उस के घर के सामने कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह वहां पिट सकता था.

इसलिए उस ने वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन जातेजाते उस ने इतना जरूर कहा, ‘‘तू कुछ भी कर ले कंचन, तुझे बनना मेरी ही है.’’ कंचन के लिए यह एक चुनौती थी. वह भी जिद्दी किस्म की लड़की थी. उस के घर वाले भी दबंग थे, गांव में किसी से न डरने वाले. लड़ाईझगड़ा और मारपीट से भी नहीं घबराते थे. यही वजह थी कि कंचन किसी से नहीं डरती थी.

उस ने प्रमोद की शिकायत अपने घर वालों से कर दी. इस के बाद तो दोनों परिवारों में जम कर लड़ाईझगड़ा हुआ. प्रमोद के घर वाले भी कम नहीं थे. पर गांवों में लड़की की इज्जत, घरपरिवार की इज्जत से ही नहीं गांव की इज्जत से जोड़ दी जाती है. इसलिए गांव के बाकी लोग सोहरत सिंह की तरफ आ खड़े हुए.

इस से प्रमोद के घर वाले कमजोर पड़ गए, जिस से उस के घर वालों को झुकना पड़ा. इस घटना से प्रमोद की तो बदनामी हुई ही, उस के घर वालों की भी खासी फजीहत हुई. यह सब कंचन की वजह से हुआ था, इसलिए प्रमोद उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. वह मौके की तलाश में लग गया. आखिर उसे एक दिन मौका मिल ही गया.

गर्मियों के दिन थे. फसलों की कटाई चल रही थी. लोग देर रात खेतों पर फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. उस समय आज की तरह ट्रैक्टर से मड़ाई और कटाई नहीं होती थी. तब कटाई हाथों से होती थी और मड़ाई थ्रेशर या बैलों से, इसलिए फसल की कटाई और मड़ाई में काफी समय लगता था. गरमी के बाद बरसात आती है, इसलिए लोग जल्दी से जल्दी फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. इस के लिए लोग देर रात तक खेतों में काम करते थे.

कंचन के घर वालों की फसल की कटाई और मड़ाई लगभग खत्म हो चुकी थी. जो बची थी, उसे जल्दी से जल्दी निपटाने के चक्कर में देर रात तक खेतों में काम करते थे. वैसे भी जून का अंतिम सप्ताह चल रहा था, बरसात कभी भी हो सकती थी.27 जून, 1997 की रात खेतों पर काम कर के सभी घर आ गए, पर कंचन नहीं आई थी. रात का समय था, इसलिए ज्यादा इंतजार भी नहीं किया जा सकता था. फिर कंचन रात को कहीं रुकने वाली भी नहीं थी. जिस दिन प्रमोद के घर वालों से झगड़ा हुआ था, उसी दिन प्रमोद ने धमकी दी थी कि वह अपनी बेइज्जती का बदला जरूर लेगा.

कंचन के घर न पहुंचने पर उस के घर वालों को प्रमोद की वह धमकी याद आ गई.  कंचन के घर वाले तुरंत प्रमोद के घर पहुंचे तो पता चला कि वह भी घर से गायब है. पूछने पर घर वालों ने साफ कहा कि उन्हें न प्रमोद के बारे में पता है, न कंचन के बारे में.गांव वालों ने भी दबाव डाला, पर न कंचन का कुछ पता चला न प्रमोद का.

घर वाले पूरी रात गांव वालों के साथ मिल कर कंचन को तलाश करते रहे, पर उस का कुछ पता नहीं चला.सोहरत सिंह की गांव में तो बेइज्जती हुई ही थी, धीरेधीरे नातेरिश्तेदारों को भी कंचन के घर से गायब होने का पता चल गया था. अब तक साफ हो गया था कि कंचन को प्रमोद ही अगवा कर के ले गया था.

घर वाले खुद ही कंचन को ढूंढ लेना चाहते थे, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी जब वे कंचन और प्रमोद का पता नहीं लगा सके तो करीब 3 महीने बाद 14 सितंबर, 1997 को गोरखपुर के महिला थाने में कंचन के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. पुलिस ने इस मामले को अपराध संख्या 01/1997 पर भादंवि की धारा 363, 366 के तहत दर्ज कर लिया.उस समय कंचन का भाई अंबरीश नाबालिग था.

उस का बड़ा भाई धर्मवीर समझदार था. उसे परिवार की बेइज्जती का बड़ा मलाल था, इसलिए वह खुद बहन की तलाश में लगा था. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस इस मामले में कुछ खास नहीं करेगी. उस समय आज की तरह न मोबाइल फोन थे, न सर्विलांस की व्यवस्था थी.

कंचन का भाई धर्मवीर कंचन और उस का अपहरण कर के ले जाने के दिन से प्रमोद की तलाश में दिनरात एक किए हुए था. प्रमोद ने समाज में उस की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंचाई थी. धर्मवीर दोनों की तलाश में ट्रेन से कानपुर जा रहा था. लेकिन वह कानपुर नहीं पहुंच सका. उस की लाश ट्रेन की पटरी के पास मिली. पुलिस ने इसे दुर्घटना माना और इस मामले की फाइल बंद कर दी.

पुलिस ने धर्मवीर की मौत को भले ही दुर्घटना माना, लेकिन घर वालों ने धर्मवीर की मौत को हत्या माना. उन्हें लग रहा था कि धर्मवीर की हत्या प्रमोद के घर वालों ने की है. क्योंकि वह प्रमोद के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. अपने परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद को मान कर अंबरीश, उस के पिता सोहरत सिंह, चाचा जगरनाथ सिंह ने मिल कर प्रमोद के छोटे भाई नीलकमल की हत्या कर दी. यह सन 2001 की बात है.

इस मामले का मुकदमा थाना सहजनवां (वर्तमान में थाना गीडा) गोरखपुर में भादंवि की धारा 302, 506 के तहत दर्ज हुआ. नीलकमल की हत्या के आरोप में सोहरत सिंह और जगरनाथ सिंह को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. इस समय दोनों हाईकोर्ट से मिली जमानत पर बाहर हैं. घटना के समय अंबरीश नाबालिग था. उस का मुकदमा अभी विचाराधीन है. वह भी जमानत पर है.

नीलकमल की हत्या में अंबरीश की चाची उर्मिला को भी अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन वह दोषमुक्त साबित हुई. इस परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद था, इसलिए अंबरीश प्रतिशोध की आग में जल रहा था. वह किसी भी तरह प्रमोद को ठिकाने लगाना चाहता था, पर उस का कुछ पता ही नहीं चल रहा था.
दूसरी ओर कंचनलता को अगवा करने के बाद प्रमोद ने उस से जबरदस्ती शादी कर ली और किसी अज्ञात जगह पर छिप कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद वह उसे ले कर मीरजापुर आ गया और किराए का मकान ले कर रहने लगा.

गुजरबसर के लिए वह मजदूरी करता रहा. इस बीच दोनों 2 बच्चों, एक बेटी आकृति और एक बेटे स्वयं सिंह के मातापिता बन गए. आकृति इस समय अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही है तो स्वयं सिंह प्राइवेट पढ़ाई करते हुए दिल्ली में नौकरी कर रहा है.धीरेधीरे गृहस्थी जम गई. लेकिन कंचन ने न कभी प्रमोद को दिल से पति माना और न ही प्रमोद ने उसे पत्नी. बस दोनों रिश्ता निभाते रहे.

यही वजह थी कि दोनों में कभी पटरी नहीं बैठी. कंचन को प्रमोद पर भरोसा नहीं था, इसलिए वह पढ़लिख कर कुछ करना चाहती थी. इस की एक वजह यह थी कि प्रमोद अकसर उस के साथ मारपीट करता था. शायद इसलिए कि कंचन की वजह से उस का घरपरिवार छूटा था. अगर वह चुनौती न देती तो वह भी इस तरह भटकने के बजाए अपने परिवार के साथ सुख से रह रहा होता.

अपमान और नफरत की साजिश

पहली मई, 2019 की बात है. दिन के करीब 12 बजे का समय था, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर से करीब 90 किलोमीटर दूर थाना पारनेर क्षेत्र के गांव निधोज में उस समय अफरातफरी मच गई, जब गांव के एक घर में अचानक आग के धुएं, लपटों और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हुईं. चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. लेकिन घर के मुख्यद्वार पर ताला लटका देख खुद को असहाय महसूस करने लगे.

दरवाजा टूटते ही घर के अंदर से 3 बच्चे, एक युवक और युवती निकल कर बाहर आए. बच्चों की हालत तो ठीक थी, लेकिन युवती और युवक की स्थिति काफी नाजुक थी. गांव वालों ने आननफानन में एंबुलेंस बुला कर उन्हें स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उन का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पुणे के सेसूनडाक अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. साथ ही इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम से मिली जानकारी पर थाना पारनेर के इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने चार्जरूम में मौजूद ड्यूटी अफसर को बुला कर तुरंत इस मामले की डायरी बनवाई और बिना विलंब के एएसआई विजय कुमार बोत्रो, सिपाही भालचंद्र दिवटे, शिवाजी कावड़े और अन्ना वोरगे के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने अपने मोबाइल फोन से मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में पहुंची, वहां काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. इन में अधिकतर उस युवक और युवती के सगेसंबंधी थे. पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम रुक्मिणी है और युवक का नाम मंगेश रणसिंग लोहार. रुक्मिणी लगभग 70 प्रतिशत और मंगेश 30 प्रतिशत जल चुका था. अधिक जल जाने के कारण रुक्मिणी बयान देने की स्थिति में नहीं थी. मंगेश रणसिंग भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं था.

इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने मंगेश रणसिंग और अस्पताल के डाक्टरों से बात की. इस के बाद वह अस्पताल में पुलिस को छोड़ कर खुद घटनास्थल पर आ गए.

घटना रसोईघर के अंदर घटी थी, जहां उन्हें पैट्रोल की एक खाली बोतल मिली. रसोईघर में बिखरे खाना बनाने के सामान देख कर लग रहा था, जैसे घटना से पहले वहां पर हाथापाई हुई हो.

जांचपड़ताल के बाद उन्होंने आग से बच गए बच्चों से पूछताछ की. बच्चे सहमे हुए थे. उन से कोई खास बात पता नहीं चली. वह गांव वालों से पूछताछ कर थाने आ गए. मंगेश रणसिंग के भाई महेश रणसिंग को वह साथ ले आए थे. उसी के बयान के आधार पर रुक्मिणी के परिवार वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.

इस मामले में रुक्मिणी का बयान महत्त्वपूर्ण था. लेकिन वह कोई बयान दर्ज करवा पाती, इस के पहले ही 5 मई, 2019 को उस की मृत्यु हो गई. मंगेश रणसिंग और उस के भाई महेश रणसिंग के बयानों के आधार पर यह मामला औनर किलिंग का निकला.

रुक्मिणी की मौत के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसे ले कर सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग सड़क पर उतर आए और संबंधित लोगों की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. इस से जांच टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव बढ़ गया. उसी दबाव में पुलिस टीम ने रुक्मिणी के चाचा घनश्याम सरोज और मामा सुरेंद्र भारतीय को गिरफ्तार कर लिया. रुक्मिणी के पिता मौका देख कर फरार हो गए थे.

पुलिस रुक्मिणी के मातापिता को गिरफ्तार कर पाती, इस से पहले ही इस केस ने एक नया मोड़ ले लिया. रुक्मिणी और मंगेश रणसिंग के साथ आग में फंसे बच्चों ने जब अपना मुंह खोला तो मामला एकदम अलग निकला. बच्चों के बयान के अनुसार पुलिस ने जब गहन जांच की तो मंगेश रणसिंग स्वयं ही उन के राडार पर आ गया.

मामला औनर किलिंग का न हो कर एक गहरी साजिश का था. इस साजिश के तहत मंगेश रणसिंग ने अपनी पत्नी की हत्या करने की योजना बनाई थी. पुलिस ने जब मंगेश से विस्तृत पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए रुक्मिणी हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह रुक्मिणी के परिवार वालों और रुक्मिणी के प्रति नफरत से भरी हुई थी.

23 वर्षीय मंगेश रणसिंग गांव निधोज का रहने वाला था. उस के पिता चंद्रकांत रणसिंग जाति से लोहार थे. वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर राजगीर का काम करते थे. घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी गांव में उन की काफी इज्जत थी. सीधेसादे सरल स्वभाव के चंद्रकांत रणसिंग के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी प्रिया और 3 बेटे महेश रणसिंग और ओंकार रणसिंग थे.

मंगेश रणसिंग परिवार में सब से छोटा था. वह अपने दोस्तों के साथ सारा दिन आवारागर्दी करता था. गांव के स्कूल से वह किसी तरह 8वीं पास कर पाया था. बाद में वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा. धीरेधीरे उस में पिता के सारे गुण आ गए. राजगीर के काम में माहिर हो जाने के बाद उसे पुणे की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई.

वैसे तो मंगेश को पुणे से गांव आनाजाना बहुत कम हो पाता था, लेकिन जब भी वह अपने गांव आता था तो गांव में अपने आवारा दोस्तों के साथ दिन भर इधरउधर घूमता और सार्वजनिक जगहों पर बैठ कर गप्पें मारता. इसी के चलते जब उस ने रुक्मिणी को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया.

20 वर्षीय रुक्मिणी और मंगेश का एक ही गांव था. उस का परिवार भी उसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता था, जिस पर मंगेश अपने पिता के साथ काम करता था. इस से मंगेश रणसिंग का रुक्मिणी के करीब आना आसान हो गया था. रुक्मिणी का परिवार उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता रामा रामफल भारतीय जाति से पासी थे. सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में गांव से अहमदनगर आ गए थे. बाद में वह अहमदनगर के गांव निधोज में बस गए थे. यहीं पर उन्हें एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया था.

बाद में उन्होंने अपनी पत्नी सरोज और साले सुरेंद्र को भी वहीं बुला लिया था. परिवार में रामा रामफल भारतीय के अलावा पत्नी, 2 बेटियां रुक्मिणी व 5 वर्षीय करिश्मा थीं.

अक्खड़ स्वभाव की रुक्मिणी जितनी सुंदर थी, उतनी ही शोख और चंचल भी थी. मंगेश रणसिंग को वह अच्छी लगी तो वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा.

मंगेश रणसिंग पहली ही नजर में रुक्मिणी का दीवाना हो गया था. वह रुक्मिणी को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. उस की यह मुराद पूरी भी हुई.

कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक्मिणी के परिवार वालों का काम करने की वजह से मंगेश रणसिंग की राह काफी आसान हो गई थी. वह पहले तो 1-2 बार रुक्मिणी के परिवार वालों के बहाने उस के घर गया. इस के बाद वह मौका देख कर अकेले ही रुक्मिणी के घर आनेजाने लगा.

मंगेश रुक्मिणी से मीठीमीठी बातें कर उसे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता. साथ ही उसे पैसे भी देता और उस के लिए बाजार से उस की जरूरत का सामान भी लाता. जब भी वह रुक्मिणी से मिलने उस के घर जाता, उस के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता. साथ ही उस के भाई और बहन के लिए भी खानेपीने की चीजें ले जाता था.

मांबाप की जानपहचान और उस का व्यवहार देख कर रुक्मिणी भी मंगेश की इज्जत करती थी. रुक्मिणी उस के लिए चायनाश्ता करा कर ही भेजती थी. मंगेश रणसिंह तो रुक्मिणी का दीवाना था ही, रुक्मिणी भी इतनी नादान नहीं थी. 20 वर्षीय रुक्मिणी सब कुछ समझती थी.

वह भी धीरेधीरे मंगेश रणसिंग की ओर खिंचने लगी थी. फिर एक समय ऐसा भी आया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह मंगेश की बांहों में आ गिरी.

अब दोनों की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एकदूसरे के लिए बेचैन रहने लगे. उन के प्यार की ज्वाला जब तेज हुई तो उस की लपट उन के घर वालों तक ही नहीं बल्कि अन्य लोगों तक भी जा पहुंची.

मामला नाजुक था, दोनों परिवारों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों शादी करने के अपने फैसले पर अड़े रहे.

आखिरकार मंगेश रणसिंग के परिवार वालों ने उस की जिद की वजह से अपनी सहमति दे दी. लेकिन रुक्मिणी के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. फिर भी वह पत्नी के समझाने पर राजी हो गए. अलगअलग जाति के होने के कारण दोनों की शादी में उन का कोई नातेरिश्तेदार शामिल नहीं हुआ.

एक सादे समारोह में दोनों की शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में दरार आने लगी. दोनों के प्यार का बुखार उतरने लगा था. दोनों छोटीछोटी बातों को ले कर आपस में उलझ जाते थे. अंतत: नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

30 अप्रैल, 2019 को मंगेश रणसिंग ने किसी बात को ले कर रुक्मिणी को बुरी तरह पीट दिया था. रुक्मिणी ने इस की शिकायत मां निर्मला से कर दी, जिस की वजह से रुक्मिणी की मां ने उसे अपने घर बुला लिया. उस समय रुक्मिणी 2 महीने के पेट से थी. इस के बाद जब मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को लाने के लिए उस के घर गया तो रुक्मिणी के परिवार वालों ने उसे आड़ेहाथों लिया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया.

रुक्मिणी के परिवार वालों के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग नाराज हो गया. उस ने इस अपमान के लिए रुक्मिणी के घर वालों को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली.

बदमाश प्रवृत्ति के मंगेश रणसिंग की इस धमकी से रुक्मिणी के परिवार वाले डर गए, जिस की वजह से वे रुक्मिणी को न तो घर में अकेला छोड़ते थे और न ही बाहर आनेजाने देते थे.  रुक्मिणी का परिवार सुबह काम पर जाता तो रुक्मिणी को उस के छोटे भाइयों और छोटी बहन के साथ घर के अंदर कर बाहर से दरवाजे पर ताला डाल देते थे, जिस से मंगेश उन की गैरमौजूदगी में वहां आ कर रुक्मिणी को परेशान न कर सके.

इस सब से मंगेश को रुक्मिणी और उस के परिवार वालों से और ज्यादा नफरत हो गई. उस की यही नफरत एक क्रूर फैसले में बदल गई. उस ने रुक्मिणी की हत्या कर पूरे परिवार को फंसाने की साजिश रच डाली.

घटना के दिन जब रुक्मिणी के परिवार वाले अपनेअपने काम पर निकल गए तो अपनी योजना के अनुसार मंगेश पहले पैट्रोल पंप पर जा कर इस बहाने से एक बोतल पैट्रोल खरीद लाया कि रास्ते में उस के दोस्त की मोटरसाइकिल बंद हो गई है. यही बात उस ने रास्ते में मिले अपने दोस्त सलमान से भी कही.

फिर वह रुक्मिणी के घर पहुंच गया. उस समय रुक्मिणी रसोईघर में अपने भाई और बहन के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. घर के दरवाजे पर पहुंच कर मंगेश रणसिंग जोरजोर दरवाजा पीटते हुए रुक्मिणी का नाम ले कर चिल्लाने लगा. वह ताले की चाबी मांग रहा था.

दरवाजे पर आए मंगेश से न तो रुक्मिणी ने कोई बात की और न दरवाजे की चाबी दी. वह उस की तरफ कोई ध्यान न देते हुए खाना बनाने में लगी रही.

रुक्मिणी के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग का पारा और चढ़ गया. वह किसी तरह घर की दीवार फांद कर रुक्मिणी के पास पहुंच गया और उस से मारपीट करने लगा. बाद में उस ने अपने साथ लाई बोतल का सारा पैट्रोल  रुक्मिणी के ऊपर डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया.

मंगेश की इस हरकत से रुक्मिणी के भाईबहन बुरी तरह डर गए थे. वे भाग कर रसोई के एक कोने में छिप गए. जब आग की लपटें भड़कीं तो रुक्मिणी दौड़ कर मंगेश से कुछ इस तरह लिपट गई कि मंगेश को उस के चंगुल से छूटना मुश्किल हो गया. इसीलिए वह भी रुक्मिणी के साथ 30 प्रतिशत जल गया.

इस के बावजूद भी मंगेश का शातिरपन कम नहीं हुआ. अस्पताल में उस ने रुक्मिणी के परिवार वालों के विरुद्ध बयान दे दिया. उस का कहना था कि उस की इस हालत के लिए उस के ससुराल वाले जिम्मेदार हैं.

उस की शादी लवमैरिज और अंतरजातीय हुई थी. यह बात रुक्मिणी के घर वालों को पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे घर बुला कर पहले उसे मारापीटा और जब रुक्मिणी उसे बचाने के लिए आई तो उन्होंने दोनों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

अपमान और नफरत की आग में जलते मंगेश रणसिंग की योजना रुक्मिणी के परिवार वालों के प्रति काफी हद तक कामयाब हो गई थी. लेकिन रुक्मिणी के भाई और उस के दोस्त सलमान के बयान से मामला उलटा पड़ गया.

अब यह केस औनर किलिंग का न हो कर पति और पत्नी के कलह का था, जिस की जांच पुलिस ने गहराई से कर मंगेश रणसिंग को अपनी हिरासत में ले लिया.

उस से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 307, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद रुक्मिणी के परिवार वालों को रिहा कर दिया गया.

प्यार की राह का रोड़ा : पति को बनाया पराया

घटना उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना टूंडला के गांव नगला राधेलाल की है. 30 अक्तूबर की सुबह जब हरभेजी सो कर उठी तो बराबर के कमरे में उन्हें कोई हलचल नहीं दिखी. उस कमरे में उन का बेटा गब्बर बहू विवेक कुमारी उर्फ लालपरी तथा पोते अनुज के साथ सोया था. गब्बर के 2 बच्चे हरभेजी के साथ ही सोए थे. हरभेजी जब गब्बर के कमरे में गईं तो अंदर का दृश्य देखते ही उन के मुंह से चीख निकल गई.

उन का 40 वर्षीय बेटा गब्बर पंखे से बंधे फंदे पर लटका हुआ था, उस के पैर कमरे के फर्श को छू रहे थे. गब्बर के चेहरे से खून टपक रहा था. मां हरभेजी ने बहू लालपरी को आवाज लगाई, लेकिन वह कमरे में नहीं मिली. न ही वहां उस का बेटा अनुज था. बहू की तलाश की गई पर उस का कोई पता नहीं चला. इस घटना से परिवार में कोहराम मच गया.

मां के रोने की आवाज सुन कर उन के और बेटे भी वहां आ गए. कुछ ही देर में मोहल्ले के लोग वहां जमा हो गए. उसी दौरान किसी ने आत्महत्या करने की सूचना पुलिस को फोन द्वारा दे दी.

सूचना पर थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय फोर्स सहित घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने शव के साथ मकान का भी निरीक्षण किया. सूचना मिलने पर सीओ डा. अरुण कुमार सिंह भी वहां आ गए. निरीक्षण के उपरांत पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि गब्बर ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उस की पीटपीट कर हत्या करने के बाद शव को फंदे पर लटकाया गया है.

गब्बर के साथ कमरे में उस की पत्नी ही सोई थी, जो वहां से फरार थी, इसलिए पूरा शक पत्नी पर ही था. अब सवाल यह था कि शव को अकेले पत्नी पंखे पर नहीं लटका सकती. इस काम में किसी ने उस की मदद जरूर की होगी.

पुलिस ने कमरे की तलाशी ली तो वहां एक ऐसी मैक्सी मिली, जिस पर खून लगा हुआ था. पता चला कि वह मैक्सी मृतक की पत्नी लालपरी की थी. लालपरी के कुछ कपड़े और अन्य सामान कमरे से गायब थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि वह पति की हत्या के बाद अपना सामान व अपने साथ सोए बच्चे को ले कर फरार हो गई है.

पुलिस ने घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि रात को पतिपत्नी में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ था. झगड़े के समय लालपरी का प्रेमी स्वामी उर्फ सुम्मा भी वहां मौजूद था. स्वामी टूंडला थाने के गांव बन्ना का रहने वाला था. उस समय परिवार के लोगों ने दोनों को समझाबुझा कर झगड़ा शांत करा दिया था. इस के बाद वे अपने कमरे में सोने के लिए चले गए थे.

मृतक के भाई योगेश ने पुलिस को बताया कि शादी के पहले से ही लालपरी के स्वामी से अवैध संबंध थे.

मौके की जांच करने के बाद पुलिस ने गब्बर की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी. पुलिस ने मृतक के भाई योगेश की ओर से विवेक कुमारी उर्फ लालपरी व उस के प्रेमी स्वामी उर्फ सुम्मा के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस नामजद आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने कई संभावित स्थानों पर दबिश भी दी, लेकिन उन का कोई पता नहीं लगा. तब पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया.

लालपरी की शादी गब्बर से हो जरूर गई थी लेकिन वह उसे शुरू से ही पसंद नहीं था. वह अपने घर वालों की मरजी का विरोध भी नहीं कर सकी थी.

यानी घर वालों की वजह से उस ने गब्बर से शादी कर जरूर ली थी लेकिन उस के दिल में तो उस का प्रेमी बसा था. यही वजह थी कि वह प्रेमी को शादी के बाद भी भुला न सकी.

प्रेमी स्वामी उस के पति की गैरमौजूदगी में उस के घर आनेजाने लगा. जब पति काम पर चला जाता तो मौका देख कर लालपरी प्रेमी को फोन कर बुला लेती थी. इस के बाद दोनों ऐश करते थे लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी तो नहीं रहतीं.

लालपरी व स्वामी के संबंधों की जानकारी मोहल्ले के साथ ससुराल के लोगों को भी हो गई. इस की भनक जब गब्बर को लगी तो उस ने कई बार पत्नी को समझाया, लेकिन लालपरी की समझ में कुछ नहीं आया. इस बात को ले कर दोनों में कई बार झगड़ा भी हुआ, पर उस ने प्रेमी से मिलनाजुलना जारी रखा.

घटना के 3 सप्ताह बाद भी लालपरी और उस के प्रेमी स्वामी के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली थी. 21 नवंबर, 2018 को पुलिस को एक जरूरी सूचना मिली कि लालपरी और उस का प्रेमी इस समय टूंडला से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित एफएच मैडिकल कालेज में मौजूद हैं. थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने एसआई नेत्रपाल शर्मा के नेतृत्व में तुरंत एक पुलिस टीम वहां भेज दी.

पुलिस को अस्पताल में स्वामी घायलावस्था में उपचार कराते मिला, जबकि उस की प्रेमिका लालपरी अस्पताल में उस की देखभाल कर रही थी. पता चला कि स्वामी एक सप्ताह पहले सड़क हादसे में घायल हो गया था. उस के सिर में गहरी चोट लगी थी. उस की प्रेमिका उसे गंभीर हालत में उपचार के लिए एफ.एच. मैडिकल कालेज ले कर आई थी.

लेकिन उपचार के दौरान दोनों के बीच अस्पताल में ही किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. झगड़े में वे दोनों गब्बर की हत्या को ले कर एकदूसरे पर आरोप लगा रहे थे.

करीब 3 सप्ताह पहले हुई गब्बर की हत्या की जानकारी मीडिया द्वारा अस्पताल के स्टाफ को मिल चुकी थी. उन की बातों से वहां के स्टाफ को यह शक हो गया कि गब्बर हत्याकांड में ये लोग शामिल हैं. इसलिए उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी थी. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को हिरासत में ले लिया.

स्वामी और उस की प्रेमिका लालपरी को थाने ले जा कर उन से पूछताछ की गई. हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की खबर पा कर सीओ डा. अरुण कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए. उन के सामने थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने लालपरी और स्वामी से पूछताछ की तो उन्होंने गब्बर की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन्होंने गब्बर की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी-

रोजाबाद जिले के गांव नगला राधेलाल के रहने वाले गब्बर की शादी करीब 9 साल पहले विवेक कुमारी उर्फ लालपरी से हुई थी. बाद में वह 3 बच्चों का बाप बन गया. गब्बर के पास खेती की थोड़ी जमीन थी, उस से बमुश्किल परिवार का गुजारा होता था. तब खाली समय में गब्बर राजमिस्त्री का काम कर लेता था.

शादी से पहले ही लालपरी के पैर बहक गए थे. बन्ना गांव के रहने वाले स्वामी उर्फ सुम्मा से उस का चक्कर चल रहा था. करीब एक साल पहले की बात है. लालपरी का अपने प्रेमी स्वामी के साथ रंगरेलियां मनाते हुए अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. इस से गब्बर और उस के परिवार की बड़ी बदनामी हुई थी.

इस के बाद गब्बर को मोहल्ले के लोगों के ताने सुनने पड़े थे. गब्बर ने पत्नी से कहा कि वह स्वामी से संबंध खत्म कर ले, लेकिन वह इतनी बेशर्म हो चुकी थी कि उलटे पति से ही झगड़ने लगती थी. एक बार वह पति से झगड़ कर बन्ना स्थित कांशीराम कालोनी में जा कर रहने लगी थी. कुछ समय बाद जब लालपरी का गुस्सा शांत हो गया तो वह पति के घर लौट आई.

वहां वह कुछ दिनों तक तो ठीक से रही लेकिन बाद में उस ने प्रेमी से मिलनाजुलना फिर शुरू कर दिया. पति जब उसे टोकता तो उसे उस की बात बुरी लगती थी. एक तरह से उसे पति रास्ते का कांटा नजर आने लगा. उस कांटे से वह हमेशा के लिए निजात पाना चाहती थी, ताकि प्रेमी के साथ चैन से रह सके.

एक दिन उस ने इस सिलसिले में प्रेमी से बात करने के बाद पति को ठिकाने लगाने की तरकीब खोजी.

लालपरी ने एक बार पति को मारने के लिए उस के खाने में जहर मिला दिया. जहर का असर होते ही गब्बर सिंह की हालत बिगड़ गई. घर वाले उसे इलाज के लिए तुरंत आगरा ले गए और उसे एक अस्पताल में भरती करा दिया.

परिवार वालों को लालपरी पर शक तो था, लेकिन वे यह भी सोच रहे थे कि कहीं खाने में छिपकली तो नहीं गिर गई. बहरहाल, उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को नहीं दी.

उन्होंने लालपरी से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने कहा कि हो सकता है उस की लापरवाही से खाने में कोई छिपकली वगैरह गिर गई हो. इस के लिए लालपरी ने घर वालों से माफी मांग ली.

अस्पताल से पति के घर वापस आने के बाद लालपरी ने रोरो कर गब्बर से भी माफी मांग ली. यह सब लालपरी का ड्रामा था. सीधेसादे गब्बर ने पत्नी को इस घटना के बाद भी माफ कर दिया और खुद पत्नी की तरफ से बेफिक्र हो गया.

लालपरी भले ही अपने मतलब के लिए पति से माफी मांग लेती थी, लेकिन हकीकत यह थी कि वह दबंग थी. सीधेसादे गब्बर पर वह अकसर हावी रहती थी. स्वामी से उस के संबंधों को ले कर पति जब उस पर नाराज होता तो वह उलटे उस की शिकायत थाने में कर आती थी.

कई बार वह पति व ससुरालियों के खिलाफ मारपीट की थाने में शिकायत दर्ज करा चुकी थी. इस के चलते पति व ससुराल वाले उस का कोई विरोध नहीं कर पाते थे.

समाज को दिखाने के लिए उस ने करवाचौथ का व्रत भी रखा था. लेकिन वह अब पति से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहती थी. इस बारे में उस ने अपने प्रेमी स्वामी के साथ एक अंतिम योजना तैयार कर ली थी.

29 अक्तूबर, 2018 को स्वामी लालपरी के घर आया. गब्बर ने स्वामी से तो कुछ नहीं कहा, लेकिन पत्नी से झगड़ने लगा. स्वामी और घर वालों ने दोनों को समझा कर शांत कराया. उसी समय लालपरी ने स्वामी से कह दिया था कि इस कांटे को आज रात ही निकाल देना है. प्रेमिका की बात सुन कर स्वामी वहां से चला गया.

उस रात लालपरी अपने 6 साल के बेटे अनुज के साथ पति के कमरे में ही सोई थी. उस ने कमरे के दरवाजे की कुंडी नहीं लगाई. जब गब्बर गहरी नींद में सो गया तो लालपरी ने फोन कर के प्रेमी को बुला लिया. दोनों ने मिल कर सोते हुए गब्बर को दबोच लिया और मारपीट की, फिर गला दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद इसे आत्महत्या का रूप देने के लिए दोनों ने उस की लाश पंखे पर लटका दी. उस ने अपने प्रेम संबंधों की राह में रोड़ा बने पति को हटा दिया.

पुलिस ने स्वामी उर्फ सुम्मा और लालपरी से पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.

लालपरी ने प्यार की खातिर अपने घर को ही नहीं, अपनी मांग के सिंदूर को भी उजाड़ लिया. बच्चों के सिर पर भी मांबाप का साया नहीं रहा. बिलखते हुए बच्चों को देख कर लोग लालपरी को कोस रहे थे कि प्रेमी के साथ जाना था तो ऐसे ही चली जाती, पति को क्यों मार डाला.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

2 भाइयों की करतूत : परिवार से ही लिया बदला – भाग 3

उस ने नीलम को डांटा और सख्त हिदायत दी कि विजय के साथ घूमनाफिरना बंद कर दे. नीलम ने डर की वजह से मामा से वादा तो कर दिया कि अब वह ऐसा नहीं करेगी. लेकिन वह विजय को दिल दे बैठी थी. फिर उस के बिना कैसे रह सकती थी. सोचविचार कर उस ने तय किया कि अब वह विजय से मिलने में सावधानी बरतेगी.

नीलम ने विजय प्रताप को फोन पर अपने मामा द्वारा दी गई चेतावनी बता दी. लिहाजा विजय भी सतर्क हो गया. मिलना भले ही बंद हो गया लेकिन दोनों ने फोन पर होने वाली बात जारी रखी. जिस दिन नीलम का मामा घर पर नहीं होता, उस दिन वह विजय से मिल भी लेती थी. इस तरह उन का मिलने का क्रम जारी रहा.

नीलम की जातिबिरादरी का एक लड़का था सुबोध. वह नीलम के घर के पास ही रहता था. वह नीलम को मन ही मन प्यार करता था. नीलम भी उस से हंसबोल लेती थी. उस के पास नीलम का मोबाइल नंबर भी था. इसलिए जबतब वह नीलम से फोन पर बतिया लेता था.

सुबोध नीलम से प्यार जरूर करता था, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. नीलम जब विजय प्रताप से प्यार करने लगी तो सुबोध के मन में प्यार की फांस चुभने लगी. वह दोनों की निगरानी करने लगा.

एक दिन सुबोध ने नीलम को विजय प्रताप के साथ घूमते देखा तो उस ने यह बात नीलम के मामा श्यामबाबू को बता दी. श्यामबाबू ने नीलम की पिटाई की और उस का घर के बाहर जाना बंद करा दिया. नीलम पर प्रतिबंध लगा तो वह घबरा उठी.

उस ने इस बाबत मोबाइल फोन पर विजय से बात की और घर से भाग कर शादी रचाने की इच्छा जाहिर की. विजय प्रताप भी यही चाहता ही था, सो उस ने रजामंदी दे दी. इस के बाद दोनों कानपुर छोड़ने की तैयारी में जुट गए.

विजय प्रताप का एक रिश्तेदार दिल्ली में यमुनापार लक्ष्मीनगर, मदर डेयरी के पास रहता था और रेडीमेड कपड़े की सिलाई का काम करता था. उस रिश्तेदार के माध्यम से विजय प्रताप ने दिल्ली में रहने की व्यवस्था बनाई और नीलम को दिल्ली ले जा कर उस से शादी करने का फैसला कर लिया. उस ने फोन पर अपनी योजना नीलम को भी बता दी.

4 अगस्त, 2019 को जब श्यामबाबू काम पर चला गया तो नीलम अपना सामान बैग में भर कर घर से निकली और कानपुर सेंट्रल स्टेशन जा पहुंची. स्टेशन पर विजय प्रताप उस का पहले से इंतजार कर रहा था. उस समय दिल्ली जाने वाली कालका मेल तैयार खड़ी थी. दोनों उसी ट्रेन पर सवार हो कर दिल्ली रवाना हो गए.

उधर देर रात को श्यामबाबू घर आया तो घर से नीलम गायब थी. उस ने फोन पर नीलम से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उस का फोन बंद था. श्यामबाबू को समझते देर नहीं लगी कि नीलम अपने प्रेमी विजय प्रताप के साथ भाग गई है. इस के बाद उस ने न तो थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और न ही उसे खोजने का प्रयास किया.

उधर दिल्ली पहुंच कर विजय प्रताप अपने रिश्तेदार के माध्यम से लक्ष्मीनगर में एक साधारण सा कमरा किराए पर ले कर रहने लगा. एक हफ्ते बाद उस ने नीलम से प्रेम विवाह कर लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. नीलम ने विजय से विवाह रचाने की जानकारी अपने मामा श्यामबाबू को भी दे दी. साथ ही यह भी बता दिया कि वह दिल्ली में रह रही है.

इधर विजय प्रताप के परिवार वालों को जब पता चला कि विजय ने नीलम नाम की एक दलित लड़की से शादी की है तो उन्होंने विजय को जम कर फटकारा और नीलम को बहू के रूप में स्वीकार करने से साफ मना कर दिया.

यही नहीं, परिवार वालों ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह नीलम से रिश्ता तोड़ ले. पारिवारिक दबाव से विजय प्रताप परेशान हो उठा. उस का छोटा भाई अजय प्रताप भी रिश्ता खत्म करने का दबाव डाल रहा था.

हो गई कलह शुरू

नीलम अपने पति विजय के साथ 2 महीने तक खूब खुश रही. उसे लगा कि उसे सारा जहां मिल गया है. लेकिन उस के बाद उस की खुशियों में जैसे ग्रहण लग गया. वह तनावग्रस्त रहने लगी. नीलम और विजय के बीच कलह भी शुरू हो गई. कलह का पहला कारण यह था कि नीलम सीलन भरे कमरे में रहते ऊब गई थी.

वह विजय पर दबाव डालने लगी थी कि उसे अपने घर ले चले. वह वहीं रहना चाहती है. लेकिन विजय प्रताप जानता था कि उस के घर वाले नीलम को स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए वह उसे गांव ले जाने को मना कर देता था.

कलह का दूसरा कारण था नीलम का फोन पर किसी से हंसहंस कर बतियाना. जिस से विजय को शक होने लगा कि नीलम का कोई प्रेमी भी है. हालांकि नीलम जिस से बात करती थी, वह उस के मायके के पड़ोस में रहने वाला सुबोध था. उस से वह अपने मामा तथा घर की गतिविधियों की जानकारी लेती रहती थी. कभीकभी वह मामा से भी बात कर लेती थी.

एक तरफ परिवार का दबाव तो दूसरी तरफ शक. इन बातों से विजय प्रताप परेशान हो गया. मन ही मन वह नीलम से नफरत करने लगा. एक दिन देर शाम नीलम सुबोध से हंसहंस कर बातें कर रही थी, तभी विजय प्रताप कमरे में आ गया.

उस ने गुस्से में नीलम का मोबाइल तोड़ दिया और उसे 2 थप्पड़ भी जड़ दिए. इस के बाद दोनों में झगड़ा हुआ. नीलम ने साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली में नहीं रहेगी. वह उसे ससुराल ले चले. अगर नहीं ले गया तो वह खुद चली जाएगी.

नीलम की इस धमकी से विजय प्रताप संकट में फंस गया. उस ने फोन पर इस बारे में अपने छोटे भाई अजय से बात की. अंतत: दोनों भाइयों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए नीलम की हत्या की योजना बना ली. योजना बनने के बाद विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि वह जल्दी ही उसे गांव ले जाएगा. वह अपनी तैयारी कर ले.

11 दिसंबर, 2019 की सुबह विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि उसे आज ही गांव चलना है. नीलम चूंकि पहली बार ससुराल जा रही थी, इसलिए उस ने साजशृंगार किया, पैरों में महावर लगाई, फिर पति के साथ ससुराल जाने के लिए निकल गई.

विजय प्रताप नीलम को साथ ले कर बस से दिल्ली से निकला और रात 11 बजे कन्नौज पहुंच गया. विजय की अपने छोटे भाई अजय से बात हो चुकी थी. अजय प्रताप मोटरसाइकिल ले कर कन्नौज बसस्टैंड पर आ गया.

नीलम ने दोनों भाइयों को एकांत में खुसरफुसर करते देखा तो उसे किसी साजिश का शक हुआ. इसी के मद्देनजर उस ने कागज की परची पर पति का मोबाइल नंबर लिखा और सलवार के नाड़े के स्थान पर छिपा लिया.

रात 12 बजे विजय प्रताप, नीलम और अजय प्रताप मोटरसाइकिल से पैथाना गांव की ओर रवाना हुए. जब वे ईशन नदी पुल पर पहुंचे तो अजय प्रताप ने मोटरसाइकिल रोक दी. उसी समय विजय प्रताप ने नीलम के गले में मफलर लपेटा और उस का गला कसने लगा. नीलम छटपटा कर हाथपैर चलाने लगी तो अजय प्रताप ने उसे दबोच लिया और पास पड़ी ईंट से उस का चेहरा कुचल दिया.

हत्या करने के बाद दोनों नीलम के गले में अंगौछा डाल बांध कर शव को घसीट कर पुल के नीचे नदी किनारे ले गए और झाडि़यों में फेंक दिया. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा तेजाब डाल कर जला दिया. तेजाब की बोतल अजय प्रताप ले कर आया था. शव को ठिकाने लगाने के बाद दोनों भाई मोटरसाइकिल से अपने गांव पैथाना चले गए.

17 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने अभियुक्त विजय प्रताप तथा अजय प्रताप को कन्नौज कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अक्षम्य अपराध : कृष्णा को बनाया शिकार – भाग 1

16 सितंबर, 2019 की बात है. फिरोजाबाद जिले के गांव लालपुर की रहने वाली शशि यादव घर के कामों में व्यस्त थी. शाम 5 बजे जब उसे अपने बच्चों की याद आई तो वह उन्हें खोजने लगी. उस का 4 साल का बड़ा बेटा कान्हा तो घर में ही खेल रहा था, लेकिन 2 साल का छोटा बेटा लौकिक उर्फ कृष्णा कहीं नजर नहीं आ रहा था.

शशि ने पहले घर में ही कृष्णा की खोज की, फिर पासपड़ोस के घरों में जा कर देखा. लेकिन वह वहां भी नहीं था. शशि की जेठानी नीतू पड़ोस में ही दूसरे घर में रहती थी. शशि ने सोचा कि कृष्णा कहीं अपनी ताई के घर खेलने

न चला गया हो. अत: वह जेठानी के घर जा पहुंची. नीतू उसे घर के बाहर ही मिल गई. शशि ने उस से पूछा, ‘‘दीदी, कृष्णा क्या आप के यहां खेल रहा है?’’

‘‘नहीं तो,’’ नीतू हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कृष्णा, हमारे घर नहीं आया.’’

‘‘फिर भी दीदी, एक बार देख लो. शायद कहीं छिप कर बैठा हो.’’ शशि ने आग्रह किया.

‘‘तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं तो खुद आ कर देख लो.’’ नीतू तुनक कर बोली.

‘‘दीदी, मेरा तो कलेजा फटा जा रहा है और आप भरोसे की बात कर रही हैं.’’ कहते हुए शशि ने जेठानी के साथ उस के मकान के भूतल का कोनाकोना छान मारा, लेकिन कृष्णा का कुछ भी पता नहीं चला.

कृष्णा को ढूंढतेढूंढते एक घंटे से ज्यादा बीत गया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पाया, जिस से शशि के मन में घबराहट होने लगी. बेटे के लापता होने की खबर उस ने अपने पति सत्येंद्र यादव को दे दी.

सत्येंद्र उस समय अपने भाई महेश के शराब के ठेके पर बैठा था. वहां वह सेल्समैन था. उस का छोटा भाई कुलदीप भी यही काम करता था. सत्येंद्र ने अपने दोनों भाइयों को कृष्णा के लापता होने की सूचना दी तो वे तीनों ठेका बंद कर घर आ गए.

इस के बाद सत्येंद्र अपने भाइयों कुलदीप तथा महेश के साथ कृष्णा को खोजने लगा. तीनों भाइयों ने गांव का एकएक घर छान मारा, लेकिन कृष्णा के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. फिर उन के दिमाग में विचार आया कि कहीं कोई बाबा या तांत्रिक कृष्णा का अपहरण कर के तो नहीं ले गया.

उन्होंने परिवार के कुछ अन्य लोगों को साथ लिया और रेलवे स्टेशन, बसअड्डा तथा टैंपो स्टैंड पर जा कर खोजबीन की. उन्होंने संदिग्ध दिखने वाले बाबाओं को रोक कर भी पूछताछ की तथा उन की झोली की तलाशी ली. तंत्रमंत्र करने वालों के यहां जा कर भी तलाशी ली. लेकिन कृष्णा का कुछ भी पता नहीं चला.

कृष्णा के लापता होने की खबर पूरे गांव में फैल चुकी थी. इसलिए गांव के तमाम पुरुष और महिलाएं सत्येंद्र के घर पर जुटने लगे. सब की जुबान पर एक ही बात थी, आखिर 2 साल का बच्चा कृष्णा कहां चला गया. ऐसे में सत्येंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने बच्चे को कहां ढूंढे.

अगले दिन 17 सितंबर की सुबह 10 बजे सत्येंद्र अपने भाइयों के साथ थाना रसूलपुर जा पहुंचा. थाने में उस समय थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय मौजूद थे. सत्येंद्र ने थानाप्रभारी को अपना परिचय देते हुए अपने 2 साल के बेटे लौकिक उर्फ कृष्णा के लापता होने की जानकारी दी.

2 साल के बच्चे के गायब होने की बात सुन कर पांडेय भी दंग रह गए, क्योंकि इतना छोटा बच्चा अकेला कहीं दूर नहीं जा सकता था. उन्होंने सत्येंद्र से पूछा, ‘‘तुम्हें किसी पर कोई शक है या किसी से कोई रंजिश वगैरह है तो बताओ.’’

सत्येंद्र कुछ बोलता, उस से पहले ही उस के साथ आए भाई कुलदीप व महेश बोल पड़े, ‘‘नहीं सर, हम लोगों का किसी से कोई झगड़ा नहीं है. जरूर किसी ने बच्चे का अपहरण किया है.’’

थानाप्रभारी ने सत्येंद्र यादव की तरफ से अज्ञात के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कर लिया तथा सत्येंद्र व उस के भाइयों को आश्वासन दिया कि वह बच्चे की खोज में कोई कसर न छोड़ेंगे. आश्वासन पा कर सत्येंद्र अपने भाइयों के साथ वापस घर चला गया.

उन लोगों के जाने के बाद थानाप्रभारी के मन में एक सवाल बारबार कौंध रहा था कि आखिर 2 साल के बच्चे का अपहरण कोई क्यों करेगा. इस की 2 ही वजह दिखाई दे रही थीं, पहली दुश्मनी और दूसरी फिरौती. इधर बड़ा लालपुर गांव और आसपास के गांवों में तरहतरह की चर्चाएं होने लगी थीं.

कोई बच्चों के गायब करने वाले गिरोह की गांव में सक्रियता बढ़ने का अंदेशा जता रहा था, तो कोई तांत्रिकों आदि पर शक जता रहा था. कुछ लोगों को यह शक हो रहा था कि कहीं कोई ऐसी महिला तो बच्चे का अपहरण कर के नहीं ले गई, जिस की गोद सूनी हो.

बहरहाल, जितने मुंह उतनी बातें होने लगी थीं. थानाप्रभारी ने इस मामले से उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया था.

थानाप्रभारी भी बच्चे की खोज में जुटे थे. उन्होंने परिवार के लोगों से हर छोटीबड़ी जानकारी एकत्र की, लेकिन उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल पाई, जिस के आधार पर कोई क्लू मिल सके.

उन्होंने अपने खास मुखबिरों को भी लगा रखा था. लेकिन उन से भी कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी. जैसेजेसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे गांव के लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. गांव के लोग एसएसपी औफिस के बाहर धरनाप्रदर्शन की तैयारी में जुट गए थे.

पुलिस को आशंका थी कि हो न हो कृष्णा का किसी ने फिरौती के लिए अपहरण कर लिया हो. लेकिन पुलिस की यह आशंका भी बेकार साबित हुई, क्योंकि 48 घंटे बीतने के बाद भी कृष्णा के घर वालों के पास फिरौती का फोन नहीं आया था. पुलिस ने क्षेत्र के आधा दरजन से अधिक आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ तो की, लेकिन पुलिस के हाथ खाली के खाली ही रहे.

19 सितंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे बड़ा लालपुर गांव का अंशु अपने साथियों के साथ फुटबाल खेलने जा रहा था. दुर्गामाता मंदिर के पास पहुंचने पर उसे बदबू महसूस हुई. वह बदबू आने वाली दिशा की ओर बढ़ा तो कुछ दूरी पर उसे लगा कि मिट्टी में कुछ दबा हुआ है. बनियान मिट्टी से बाहर दिख रही थी. दुर्गंध वहीं से आ रही थी.

अंशु ने शोर मचाया तो भीड़ जुट गई. सत्येंद्र तथा उस की पत्नी शशि यादव भी आ गए. सत्येंद्र के भाई महेश, कुलदीप तथा अन्य परिजन भी वहां आ गए. सभी दबी जुबान से चर्चा करने लगे कि मिट्टी में कहीं कृष्णा तो दफन नहीं है. गांव के कुछ लोगों का मानना था कि पुलिस के आने के बाद ही यहां की मिट्टी हटाई जाए, लेकिन सत्येंद्र और उस के घर वालों को भला तसल्ली कहां थी.

पत्नी की विदाई : पति ही बना कातिल – भाग 1

पिछले 2-3 दिनों से 20 वर्षीय नैंसी मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत परेशान थी. इस की वजह यह थी कि उस का 21 वर्षीय पति साहिल चोपड़ा उसे प्रताडि़त कर रहा था. इस दौरान उस ने नैंसी की कई बार पिटाई भी कर दी थी.

नैंसी ने यह बात अपने घर वालों तक को नहीं बताई. इस की वजह यह थी कि उस ने घर वालों के विरोध के बावजूद साहिल से लव मैरिज की थी.

साहिल और उस की शादी को अभी 8 महीने ही हुए थे. पति के प्यार की जगह वह उस के जुल्मोसितम सह रही थी. नैंसी ने भले ही यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी, लेकिन अपनी सहेली प्रांजलि और सरानिया को 10 नवंबर, 2019 को वाट्सऐप पर मैसेज भेज दी थी. इस मैसेज में उस ने पति द्वारा ज्यादा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. इतना ही नहीं, उस ने सहेलियों को यह भी कह दिया था कि यदि 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना, साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

दिल्ली की ही रहने वाली प्रांजलि और सरानिया नैंसी की पक्की सहेलियां थीं. दोनों समझ नहीं पा रही थीं कि नैंसी को बहुत प्यार करने वाला साहिल नैंसी पर हाथ क्यों उठाने लगा. इस की वजह क्या है, यह तो नैंसी से मुलाकात के बाद ही पता चल सकती थी. बहरहाल, वे रोजाना नैंसी से बातें करने लगीं.

लेकिन 2 दिन बाद ही नैंसी का फोन स्विच्ड औफ हो गया. प्रांजलि और सरानिया परेशान हो गईं कि नैंसी का फोन क्यों बंद है. नैंसी पति साहिल चोपड़ा के साथ पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी स्थित बी-1 ब्लौक में रह रही थी. सरानिया और प्रांजलि ने नैंसी की ससुराल देखी थी, इसलिए 13 नवंबर, 2019 को दोनों नैंसी से मिलने उस की ससुराल पहुंच गईं.

ससुराल में जब नैंसी दिखाई नहीं दी तो उन्होंने उस के बारे में उस की सास रोसी से पूछा. रोसी ने बताया कि नैंसी और साहिल घूमने के लिए हरिद्वार गए हैं. दूसरे कमरे में साहिल के दादा बैठे हुए थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि पतिपत्नी फ्रांस घूमने गए हैं.

दादा की बात सुन कर दोनों चौंकीं क्योंकि नैंसी के पास पासपोर्ट नहीं था. फिर वह विदेश कैसे जा सकती है. प्रांजलि और सरानिया जब नैंसी के ससुर अश्विनी चोपड़ा से बात की तो उन्होंने दोनों के जयपुर घूमने जाने की बात बताई.

घर के 3 लोगों द्वारा अलगअलग तरह की बातें दोनों सहेलियों को हजम नहीं हुईं. इस के बाद वे अपने घर चली गईं. उन्होंने इधरउधर फोन कर के नैंसी के बारे में पता लगाने की कोशिश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली.

नैंसी की ये दोनों फ्रैंड्स अपनी दुनिया में व्यस्त हो गईं. 28 नवंबर को प्रांजलि व सरानिया ने फिर से नैंसी का नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. तब उन्होंने उसी दिन यह जानकारी नैंसी के पिता संजय शर्मा को दे दी.

बेटी के लापता होने की जानकारी पा कर संजय शर्मा के होश उड़ गए. वह पश्चिमी दिल्ली के ही हरिनगर में रहते थे. बेटी नैंसी के बारे में पता करने के लिए वह उसी दिन उस की ससुराल जनकपुरी पहुंच गए. वहां साहिल की मां ने उन्हें बताया कि साहिल और नैंसी घर से 20 लाख से ज्यादा के जेवर ले कर कहीं भाग गए हैं.

संजय शर्मा को उन की बात पर विश्वास नहीं हुआ. काफी पूछताछ करने के बाद भी जब उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो अगले दिन 23 नवंबर को वह थाना जनकपुरी पहुंचे.

संजय शर्मा ने थानाप्रभारी जयप्रकाश से मुलाकात कर बेटी नैंसी के शादी करने से ले कर उस के गायब होने तक की बात विस्तार से बता दी. साथ ही उन्होंने नैंसी के पति साहिल, ससुर अश्विनी चोपड़ा और साहिल की बुआ के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के कई दिन बाद भी पुलिस ने नैंसी का पता लगाने की कोशिश नहीं की. तब संजय शर्मा ने डीसीपी और एसीपी से संपर्क किया. जब मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में आया तो थानाप्रभारी को काररवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

थानाप्रभारी जयप्रकाश साहिल के घर पहुंचे तो वह घर पर नहीं मिला. उस के मातापिता यही कहते रहे कि साहिल नैंसी को ले कर कहीं घूमने गया है. लेकिन तब से दोनों के फोन बंद आ रहे हैं. घर वालों को कुछ चेतावनी दे कर थानाप्रभारी लौट आए.

बीबी का दलाल : क्या थी शबनम की मजबूरी – भाग 1

नाम से ही जाहिर है कि उस के नाम के आगे बंगाली विशेषण महज इसलिए लग गया था कि वह मूलरूप से बंगाल का रहने वाला है. पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के गांव चंडीपुरा से अपनी जिंदगी का सफर और दौड़ शुरू करने वाले महज 27 वर्षीय साजिद बंगाली को ढेर सा पैसा कमाने के लिए अपनी मंजिल भोपाल आ कर मिली थी.

भोपाल की गिनती बेहद शांत और खूबसूरत शहरों मेें बेवजह नहीं होती. दुनिया भर की सर्वे रिपोर्ट्स मानती हैं कि बसने के लिहाज से भोपाल एक बेहतरीन शहर है. लेकिन इन दिनों भोपाल एक और जिस खूबी के चलते बदनाम हो रहा है वह धड़ल्ले से पसरता देहव्यापार है. अब तो इस में विदेशी लड़कियों ने भी पैठ बना ली है.

साजिद भोपाल आया तो था कामकाज की तलाश में, लेकिन काफी मेहनत और मशक्कत के बाद भी मनमाफिक काम और दाम नहीं मिले तो उस का माथा भन्ना गया. 2 साल पहले तक वह मुंबई में कपड़े काटने का काम करता था. मुंबई खर्चीला और महंगा शहर है, लिहाजा अच्छी आमदनी वाले भी बस पेट भर खापी पाते हैं, मौजमस्ती और ऐशोआराम की जिंदगी तो हाड़तोड़ मेहनत करने वालों को भी नसीब नहीं होती.

2 साल पहले अपने एक दोस्त की सलाह पर साजिद भोपाल आया तो उस के साथ उस की पत्नी शबनम (बदला नाम) भी थी. साजिद को उम्मीद थी कि अगर भोपाल में भी मुंबई के बराबर आमदनी हो तो उस की माली हालत सुधर जाएगी, भोपाल में रहने और खाने पीने पर खर्च भी कम होगा. कुछ दिन उस का दोस्त उस के साथ भोपाल में रहा लेकिन मुनासिब काम न मिलने पर नाउम्मीद हो कर वापस मुंबई चला गया.

साजिद भी शायद वापस चला जाता लेकिन पुराने भोपाल में रहते उस ने पैसा कमाने का एक जो शार्टकट देखा तो उस की आंखें चमक उठीं. उसे यह तो समझ आ ही गया था कि मुंबई हो या भोपाल, कपड़े काटने के काम में उसे हर जगह उतने ही पैसे मिलेंगे, जिन से गुजारा महीने में एक हफ्ता रोजे रख कर ही होगा.

कम उम्र में ही अभावों के थपेड़े खा चुके साजिद ने जब पड़ोस में रहने वाली एक अधेड़ महिला को देखा तो उसे लगा कि यह धंधा क्या बुरा है, जिस में पैसा बूंदबूंद कर नहीं आता बल्कि तेज बारिश सा बरसता है और मजे की बात यह कि इस में मेहनत भी कुछ खास नहीं करनी पड़ती.

वह महिला जिसे साजिद और उस की पत्नी शबनम आंटी कहने लगे थे, अपनी 2 जवान बेटियों के साथ रहती थी. बहुत जल्द साजिद को समझ आ गया था कि आंटी अपनी दोनों बेटियों से देहव्यापार करवाती है. वह दौर बीत चुका है जब जिस्मफरोशी सिर्फ रात का धंधा हुआ करता था. आंटी के यहां तो सूरज सिर पर चढ़ते ही ग्राहकों की भीड़ लगने लगती थी, लेकिन रात की बात वाकई और होती थी.

तकरीबन बेरोजगारी काट रहे साजिद को यह देख हैरानी भी होती थी और कोफ्त भी कि आंटी के यहां ऐशोआराम की तमाम चीजें हैं. उन का पूरा घर खूब शौपिंग करता है, ठाठ से रहता है और पैसों की कमी क्या होती है, यह शायद ही वे तीनों जानती हों.

गरीबी और अभाव आदमी को क्या कुछ करने को मजबूर नहीं कर देते, यह साजिद की इस वक्त की मानसिकता को देख सहज समझा जा सकता था. एक दिन उस ने ऐसा फैसला ले लिया जो कहने को तो नैतिकता के खिलाफ था, लेकिन इस पर बहस की तमाम गुंजाइशें मौजूद हैं कि आखिर जिस्मफरोशी के धंधे में बुराई क्या है, सिवाय इस के कि यह कानूनन जुर्म है. सभ्य समाज की देह पर यह एक ऐसा कोढ़ है जिस के बगैर समाज भी पूरी तरह सभ्य नहीं कहा जा सकता.

साजिद का यह फैसला अपनी जवान बीवी शबनम सेदेहव्यापार करवाने का था. एक दिन कुछ झिझकते हुए उस ने शबनम से यह पेशकश की तो शबनम बिना किसी नानुकुर के तैयार हो गई. तय है शबनम साजिद से कहीं ज्यादा अपनी मजबूरियां समझ रही थी. वह सोचती थी कि यह भी कोई जिंदगी है कि शाम को चूल्हा जलेगा या नहीं, इस बात की गारंटी भी हर सुबह नहीं रहती. दूसरे पति की बेबसी भी उसे समझ आ रही थी, जो 24 परगना से शुरू होते  वाया मुंबई भोपाल आने तक ज्यों की त्यों थी.

शबनम के हां कहने पर साजिद कितना खुश हुआ होगा और उसे उस के जमीर ने कितना कचोटा होगा, इस का सटीक विश्लेषण तो शायद मशहूर कहानीकार प्रेमचंदजी भी होते तो न कर पाते. लेकिन इतना जरूर तय है कि इस दंपति के फैसले को एक झटके में अनैतिक करार दे देना उन के साथ ज्यादती ही होगी.

नैतिकताअनैतिकता, गलतसही और कानूनीगैरकानूनी की दार्शनिक बहस और पचड़े से परे साजिद दूसरे दिन सीधा आंटी के पास जा पहुंचा. पड़ोस में रहते उस ने यह बात शिद्दत से महसूस की थी कि उन की पत्नी शबनम आंटी की बेटियों से कहीं ज्यादा खूबसूरत, गदराई और जवान है, इसलिए ग्राहक उसे ज्यादा पसंद करेंगे और जल्द ही वे दोनों अपने आलीशान मकान में होंगे जहां कार, एसी, फ्रिज, नौकरचाकर जैसी तमाम सहूलियतें उन के पास होंगी. जैसी कि उम्मीद थी साजिद की पेशकश को आंटी ने एक झटके में कबूल कर लिया.

इस की वजह यह थी कि उस के पास ग्राहकों की खासी तादाद थी जो खूबसूरत जवान लड़कियों पर पैसा लुटाने को बेताब रहते थे. ऐसे में शबनम उन्हें हीरे की खदान लगी, क्योंकि कई ऐसे नियमित ग्राहक भी थे जो उन की बेटियों से ऊबने लगे थे और नए माल की फरमाइश करते रहते थे.

आंखों में खटका बेटी का प्यार – भाग 1

राहुल प्रीति को प्यार करता था, प्रीति भी प्यार के बंधन में बंधी थी. लेकिन प्रीति के घरवाले इस प्रेम के दुश्मन बन गए. उन्होंने प्रीति की हत्या कर उस की लाश न केवल जला दी, बल्कि उस से जुड़े सारे सबूत भी नदी में बहा दिए. राहुल इस से पूरी तरह अनभिज्ञ था. प्रीति की हत्या का राज 7 महीने बाद तब खुला जब…   राहुल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. उसे सुबहसुबह बनसंवर कर जाते देख मां ऊषा देवी ने टोकते हुए कहा,‘‘राहुल, इतना बनसंवर कर कहां चल दिया?’’

‘‘मां, कितनी बार कहा है कि जाते समय पीछे से न टोका करो. मैं एक बहुत जरूरी काम से जा रहा हूं.’’  ‘‘लेकिन बेटा, तू तो आज मेरे साथ बाजार जाने वाला था.’’

‘‘मां, बाजार शाम को चलेंगे. मैं लौट कर नहीं आऊंगा क्या, जाता हूं मुझे देर हो रही है.’’ इतना कह कर राहुल घर से निकल गया.

थोड़ी देर में वह पूर्व निश्चित जगह पर पहुंच गया और इंतजार करने लगा. लगभग 20 मिनट बाद उस की नजर अपनी तरफ आती एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस के पास आते ही राहुल बोला,‘‘इतनी देर क्यों लगा दी प्रीति, मैं कब से यहां बाजार में खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘जब प्यार किया है तो इंतजार तो करना ही पड़ेगा. वैसे अब तक तुम्हें इस की आदत पड़ जानी चाहिए थी.’’ प्रीति ने तिरछी नजरों से उसे देखते हुए शरारती लहजे में कहा.

‘‘क्या करूं प्रीति, यह कमबख्त दिल नहीं मानता. जब तक तुम्हारा दीदार नहीं हो जाता, मुझे चैन नहीं आता. मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

राहुल का प्यार देख प्रीति भावविभोर हो कर बोली,‘‘मुझे मालूम है राहुल, तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितना प्यार है. तुम्हारे इस प्यार के लिए तो मैं किसी से भी लड़ जाऊंगी. मेरी इन आंखों को भी तुम्हारा दीदार करने के बाद ही सुकून मिलता है.’’

‘‘प्रीति, आज कालेज की छुट्टी करो. खूब घूमेंगे, खाएंगे पीएंगे. आज मौसम भी काफी रोमांटिक है, खासतौर पर हम जैसे प्यार करने वालों के लिए.’’

प्रीति तैयार हो गई तो ही राहुल उसे बाजार घुमाने लगा. राहुल ने उस की पसंद की चीजें भी दिलाईं. फिर कुल्फी खरीदी और कुल्फी खातेखाते वह दूर एक सुनसान जगह पर पहुंच गए. वहां दोनों एक एकांत जगह देख बैठ गए. दोनों ही बहुत खुश थे.

जिस दिन एक साथ घूमने का मौका मिल जाता था, दोनों दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में डूब जाते थे. उन की शरारतें भी एकाएक बढ़ जाती थीं.

प्रीति को तल्लीनता से कुल्फी खाते देख राहुल को शरारत सूझी. उस ने अचानक प्रीति का हाथ अपनी तरफ खींच कर उस की थोड़ी कुल्फी खा ली और आंख बंद कर के उस के स्वाद का आनंद लेते हुए बोला, ‘‘वाह प्रीति, तुम्हारी कुल्फी का तो जबाब नहीं. तुम्हारी कुल्फी मेरी कुल्फी से ज्यादा मीठी है.’’

‘‘राहुल, हम दोनों की कुल्फी एक जैसी है. फिर केवल मेरी कुल्फी कैसे ज्यादा मीठी हो सकती है.’’ प्रीति ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कुल्फी तुम्हारे गुलाबी होंठों से लग कर मीठी हुई है.’’ राहुल ने प्रीति के गुलाबी होंठों को अंगुली से छूते हुए कहा.

इस पर प्रीति प्यार से राहुल के गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बहुत शरारती होते जा रहे हो. एक बार शादी हो जाने दो, फिर तुम्हारी सारी शरारतें छुड़वा दूंगी.’’

‘‘अभी शादी हुई नहीं और ये तेवर. अब तो मैं तुम से शादी ही नहीं करूंगा.’’

‘‘बच्चू, मुझ से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है, शादी तो मैं तुम से ही करूंगी.’’ प्रीति ने इस अंदाज में कहा कि राहुल हंस पड़ा. उसे हंसते देख कर प्रीति भी हंस पड़ी.

दोनों में काफी देर तक प्रेमिल नोंकझोंक होती रही. जब काफी समय हो गया तो दोनों एकदूसरे से विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए.

प्रीति जनपद प्रतापगढ़ के अंतू थाना क्षेत्र के गांव नंदलाल का पुरवा की रहने वाली थी, उस के दादा रामप्यारे वर्मा थे, जो खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे थे राजू, राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश. वे सभी भाई शादीशुदा थे. सभी बेटों के पास अपनेअपने हिस्से की जमीन थी. रामप्यारे के सभी बच्चे अपने परिवारों के साथ सुखी थे.

रामप्यारे का सब से बड़ा बेटा था राजू. वह सूरत में रह कर प्राइवेट नौकरी कर रहा था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटियां प्रीति और पूजा थीं. प्रीति निहायत खूबसरत थी. उस पर उस की कातिल मुसकान उस के चेहरे को और भी खूबसूरत बना देती थी. वह बीए तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

राहुल प्रतापगढ़ के सांगीपुर थानाक्षेत्र के गांव सिंघनी निवासी नन्हे वर्मा का बेटा था. नन्हे खेतीबाड़ी करते थे. नन्हे और ऊषा के 3 बेटों में राहुल बड़ा था. वह बीए तक पढ़ा था. राहुल काफी स्मार्ट था. राहुल के मामा फूलचंद्र वर्मा नंदलाल का पुरवा गांव के रहने वाले थे. फूलचंद्र राजू वर्मा का पड़ोसी था.

राहुल बाइक से अकसर अपने मामा के यहां जाता रहता था. इस आनेजाने में उस की नजर प्रीति पर पड़ी तो उस के दिल की घंटी बजने लगी. अब जब भी उस का मन होता माया के गांव जा कर प्रीति को देख ले.

जब कभी प्रीति बाजार या सहेलियों के यहां जाती तो राहुल उस के पीछे लग जाता. प्रीति से उस की गतिविधियां छिपी नहीं थीं. उसे भी राहुल अन्य युवकों की अपेछा कुछ अलग सा लगा था.

वासना की कब्र पर : पत्नी ने क्यों की बेवफाई – भाग 1

कानपुर नगर के थाना नर्वल के थाना प्रभारी रामऔतार को कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि नरौरा गांव के राजेश कुरील ने अपनी पत्नी तथा उस के आशिक की हत्या कर दी है. दोनों की लाशें उसी के घर में पड़ी हैं. सुबहसुबह डबल मर्डर की सूचना पा कर थाना प्रभारी विचलित हो उठे.

हालांकि कंट्रोल रूप से यह सूचना जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी मिल गई थी, फिर भी थाना प्रभारी ने घटना स्थल पर रवाना होने से पहले यह जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. यह बात 11 अक्तूबर, 2019 की है.

थाना नर्वल से नरौरा गांव 7 किलोमीटर दूर था पुलिस आधे घंटे में घटनास्थल पर पहुंच गई. थानाप्रभारी जब राजेश के घर पहुंचे तो वहां सन्नाटा पसरा था. लग ही नहीं रहा था कि गांव में डबल मर्डर हुआ है. पासपड़ोस के लोग पुलिस देख कर सकते में थे और अपने घरों से बाहर झांक रहे थे. हेडकांस्टेबल रामसिंह ने राजेश के घर का दरवाजा थपथपाया तो उस ने ही दरवाजा खोला. वह पुलिस को देख बोला, ‘‘साहब, मैं ने ही आप को फोन किया था.’’

थानाप्रभारी जब पुलिस टीम के साथ घर के अंदर गए तो घर के आंगन में खून से लथपथ 2 लाशें पड़ी थीं. एक लाश युवक की थी जबकि दूसरी युवती की थी. दोनों को चाकू से गोदा गया था और गरदन रेती गई थी. कमरे से ले कर आंगन तक खून ही खून फैला था. देखने से ऐसा लग रहा था कि युवक को कमरे से घसीट कर आंगन तक लाया गया था.

युवक की उम्र 24-25 साल थी जबकि युवती की उम्र लगभग 35 वर्ष थी. दोनें की लाशें अर्धनग्नावस्था में थीं. युवक कच्छा बनियान पहने था, जबकि युवती पेटीकोट ब्लाउज में थी. ब्लाउज के हुक खुले थे. दोनों लाशों के बीच खून से सना चाकू भी पड़ा था. पुलिस ने चाकू अपने कब्जे में ले लिया.

थाना प्रभारी रामऔतार ने इस बारे में राजेश से पूछा तो उस ने बताया कि मृतका उस की पत्नी सुनीता है और मृतक मनीष है, जो औंग थाने के गलाथा गांव का रहने वाला है. रिश्ते में वह उस का फुफेरा भाई है. राजेश अपना जुर्म स्वीकार कर रहा था. थाना प्रभारी ने राजेश को हिरसत में ले लिया और मनीष के घर वालों को उस की मौत की सूचना भेज दी. सुनीता के मायके वालों को राजेश ने ही अपने मोबाइल से खबर दे दी थी.

राजेश का पिता मौजीलाल कुरील पास के ही मकान में रहता था. उसे इस मामले की जानकारी पुलिस के आने के बाद ही मिली थी. बेटे के इस कृत्य से वह बदहवास था. वह कभी राजेश को तो कभी उस के बच्चों को निहार रहा था.

राजेश के 2 बेटे मुकेश, सनी तथा एक बेटी कंचन थी. जब मातापिता ने बच्चों का खयाल रखना छोड़ दिया था तब बच्चों की देखभाल मौजीलाल करने लगा था. घटना के वक्त बच्चे उसी के घर में थे. तीनों बच्चे मां की मौत पर फूटफूट कर रो रहे थे.

अब तक दोहरे हत्याकांड की खबर नरौरा गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी फैल गई थी. अत: थोड़ी देर में घटना स्थल पर देखने वालों की भीड़ जुट गई. मनीष के घरवाले भी आ गए थे और वह उस की लाश के पास फूटफूट कर रो रहे थे. लेकिन सुनीता के मायके से कोई नहीं आया था. उस के भाई अरविंद ने आने से साफ मना कर दिया था.

उसी दौरान एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा प्रद्युम्न सिंह आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उन्होंने मृतक मनीष के पिता कल्लू से पूछताछ की. कल्लू ने बताया कि मनीष के चचेरे भाई राजे का तिलक था. मनीष वैन से अपने मामा मौजीलाल व गोरे लाल को लेने नरौरा आया था. राजेश ने मनीष की हत्या क्यों की, इस का उसे कुछ पता नहीं.

पुलिस अधिकारियों ने कमरे का निरीक्षण किया तो जमीन पर बिछे बिस्तर पर खून के दाग थे. कमरे से ले कर आंगन तक खून फैला था. कमरे की खूंटी पर पैंटकमीज टंगी थी. पूछने पर कल्लू ने बताया कि वह पैंटकमीज मनीष की है.

पुलिस ने पैंटकमीज की जेबें खंगाली तो कमीज की जेब से ड्राइविंग लाइसेंस तथा पैंट की जेब से मृतक का पर्स तथा वैन की चाबी मिली. यह सामान पुलिस अधिकारियों ने कल्लू को सौंप दिया. कमरे से 2 मोबाइल फोन भी मिले जिस में एक सुनीता का था और दूसरा मनीष का. दोनों मोबाइल फोन पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए.

फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिए.

आरोपी राजेश कुरील को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट गई. एसएसपी अनंतदेव तिवारी की मौजूदगी में थानाप्रभारी रामऔतार ने डबल मर्डर के संबंध में राजेश से पूछताछ की तो वह फफक पड़ा, ‘‘साहब, मेरी पत्नी सुनिता और मनीष के अवैध संबंधों की चर्चा घरपरिवार में ही नहीं बल्कि पूरे गांव में आम हो चुकी थी. मैं कई दिनों से घुटघुट कर जी रहा था. पत्नी से विरोध करता तो वह मारपीट और झगड़े पर उतारू हो जाती थी.

‘‘कई बार मन में आत्महत्या का विचार भी आया, लेकिन बच्चों की वजह से ऐसा नहीं किया. मना करने के बावजूद मनीष घर आया और रात में रुक गया. देर रात दोनों को रंगरलियां मनाते देख मेरे सिर पर खून सवार हो गया. विरोध करने पर दोनों मेरे ऊपर ही टूट पड़े. इस के बाद मैं ने झल्लाहट में और खुद को बचाने के लिए दोनों को चाकू मार दिए, फिर दोनों की गरदन रेत कर हत्या कर दी.’’

‘‘वे 2 थे और तुम अकेले. फिर दोनों की हत्या कैसे की, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा साथ किसी और ने दिया हो?’’ एसएसपी साहब ने सवाल किया.

‘‘नहीं साहब, मेरे साथ दूसरा कोई नहीं था. दरअसल मनीष ज्यादा नशे में था. इसलिए जब मैं ने उसे कमर पर लात जमाई तो वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा. उस के बाद मैं ने उस पर चाकू से वार किया और उसे कमरे से घसीट कर आंगन में लाया. फिर उस की गरदन रेत दी. सुनीता उसे बचाने आई तो मैं ने उस पर भी वार कर दिया और चाकू से गरदन रेत दी.’’ राजेश ने पूरी बात एसएसपी को बता दी.