घातक निकली बीवी नंबर 2 – भाग 3

पुलिस टीम ने जितेंद्र की निशानदेही पर विधूना से निजाम अली तथा पसहा गांव से राघवेंद्र उर्फ मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को थाना सजेती की हवालात में डाल दिया गया. इस के बाद पुलिस टीम सूर्यविहार, नवाबगंज पहुंची और यह कह कर किरन को साथ ले आई कि दरोगा पच्चालाल के हत्यारे पकड़े गए हैं.

किरन थाना सजेती पहुंची तो उस ने अपने प्रेमी जितेंद्र तथा उस के साथियों को हवालात में बंद देखा. उन्हें देखते ही वह सब कुछ समझ गई. अब उस के लिए पुलिस को गुमराह करना मुमकिन नहीं था. उस ने पति की हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल कर लिया. जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल का लूटा गया पर्स, घड़ी व मोबाइल भी बरामद करा दिए, जिन्हें उस ने घर में छिपा कर रखा था.

चूंकि दरोगा पच्चालाल के हत्यारों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मुंशी अजयपाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 394 तथा 120बी के तहत जितेंद्र उर्फ महेंद्र, निजाम अली, राघवेंद्र उर्फ मुन्ना तथा किरन के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

7 जुलाई को एसएसपी अखिलेश कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस की, जिस में उन्होंने हत्या का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपए देने की घोषणा की. उन्होंने गिरफ्तार किए गए दरोगा के हत्यारों को पत्रकारों के सामने भी पेश किया, जहां हत्यारों ने अवैध रिश्तों में हुई हत्या का खुलासा किया.

पच्चालाल गौतम सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के गांव रामकुंड के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी कुंती देवी के अलावा 4 बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र व कमल थे. पच्चालाल पुलिस विभाग में दरोगा के पद पर तो तैनात थे ही, उन के पास खेती की जमीन भी थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी.

पच्चालाल की पत्नी कुंती देवी घरेलू महिला थीं. वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थीं, लेकिन स्वभाव से मिलनसार थीं. कुंती पति के साथसाथ बच्चों का भी ठीक से खयाल रखती थीं. पच्चालाल भी कुंती को बेहद चाहते थे, उन की हर जरूरत को पूरा करते थे. लेकिन बीतते समय में इस खुशहाल परिवार पर ऐसी गाज गिरी कि सब कुछ बिखर गया.

सन 2001 में कुंती देवी बीमार पड़ गईं. पच्चालाल ने पत्नी का इलाज पहले सीतापुर, लखनऊ व कानपुर में अच्छे डाक्टरों से कराया. पत्नी के इलाज में दरोगा ने पानी की तरह पैसा बहाया, लेकिन काल के क्रूर हाथों से वह पत्नी को नहीं बचा सके. पत्नी की मौत से पच्चालाल खुद भी टूट गए और बीमार रहने लगे.

जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे पत्नी की मौत का गम कम होता गया. पच्चालाल ड्यूटी और बच्चों के पालनपोषण पर पूरा ध्यान देने लगे. पच्चालाल का दिन तो सरकारी कामकाज में कट जाता था, लेकिन रात में पत्नी की कमी खलने लगती थी. पत्नी के बिना वह तनहा जिंदगी जी रहे थे. अब उन्हें अहसास हो गया था कि पत्नी के बिना आदमी का जीवन कितना अधूरा होता है.

सन 2002 में दरोगा पच्चालाल को हरदोई जिले के थाना बेनीगंज की कल्याणमल चौकी में तैनाती मिली. इस चौकी का चार्ज संभाले अभी 2 महीने ही बीते थे कि पच्चालाल की मुलाकात एक खूबसूरत युवती किरन से हुई. किरन अपने पति नरेश की प्रताड़ना की शिकायत ले कर चौकी आई थी.

किरन के गोरे गालों पर बह रहे आंसू, दरोगा पच्चालाल के दिल में हलचल मचाने लगे. उन्होंने सांत्वना दे कर किरन को चुप कराया तो उस ने बताया कि उस का पति नरेश, शराबी व जुआरी है. नशे में वह उसे जानवरों की तरह पीटता है. वह पति की प्रताड़ना से निजात चाहती है.

खूबसूरत किरन पहली ही नजर में दरोगा पच्चालाल के दिलोदिमाग पर छा गई. उन्होंने किरन के पति नरेश को चौकी बुलवा लिया और किरन के सामने ही उस की पिटाई कर के हिदायत दी कि अब वह किरन को प्रताडि़त नहीं करेगा. दरोगा की पिटाई और जेल भेजने की धमकी से नरेश डर गया और किरन से माफी मांग ली.

इस के बाद दरोगा पच्चालाल हालचाल जानने के बहाने अकसर किरन के घर आनेजाने लगे. वह किरन से मीठीमीठी बातें करते थे. किरन भी उन की रसीली बातों में आनंद का अनुभव करने लगी थी. किरन का पति नरेश घर आने पर ऐतराज न करे, यह सोच कर पच्चालाल ने उस से दोस्ती गांठ ली. दोनों की नरेश के घर पर ही शराब की महफिल जमने लगी. पच्चालाल उस की आर्थिक मदद भी करने लगे.

फिसलन भरे रास्तों की नायिका – भाग 3

कांस्टेबल ने उस युवक को डराधमका कर कुछ रुपए ऐंठे और आगे कोई हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया. युवक से पैसे ऐंठने के बाद वह शशि से मिला और उस ने उन पैसों में से कुछ पैसे शशि को दे दिए.

शशि ने पुलिस में बना ली जानपहचान

पुलिस वाले से जानपहचान हो जाने से शशि बहुत खुश हुई. वह सिपाही भी उस की कुशलक्षेम पूछने के बहाने उस के घर के चक्कर लगाने लगा. इस के बाद शशि घर वालों के साथसाथ पड़ोसियों पर भी रौब जमाने लगी. उस के घर वाले उस के त्रियाचरित्र से तंग आ चुके थे.

उन्होंने उस की इस हरकत की शिकायत पप्पू से की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. शशि के सामने पप्पू की एक नहीं चलती थी. शशि ने उसी पुलिस वाले के सहारे घर वालों से भी कई बार पंगा ले लिया था, जिस के बाद घर वालों ने उस से संबंध ही खत्म कर दिए थे. एक पुलिस वाले के सहारे वह कई पुलिस वालों के दिलों पर राज करने लगी थी.

पुलिस वालों से दोस्ती हो जाने के बाद शशि अपनी मनमानी करने लगी. जब उसे पैसों की जरूरत होती तो वह किसी न किसी मर्द को अपने मोहपाश में फंसा लेती और फिर उसे धौंस दिखा कर मनचाहे पैसे ऐंठती. पुलिस वालों के बल पर उस का धंधा फलनेफूलने लगा था.

पति के घर से निकलते ही शशि बच्चों को तैयार कर स्कूल भेज देती और फिर सजसंवर कर अपने धंधे के लिए निकल जाती. जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो घर वालों की शिकायत पर पप्पू ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह उलटे उसी पर राशन पानी ले कर चढ़ने लगी.

इस के बाद दोनों मियांबीवी में मनमुटाव रहने लगा. अब वह पति से पूरी तरह से खार खाने लगी थी. अपनी बीवी की बेवफाई से तंग आ कर पप्पू ने फार्म से काम छोड़ दिया और दारू के नशे में धुत रहने लगा.
उसी दौरान उस की मुलाकात जसपुर थाना कोतवाली के गांव टांडा निवासी भूपेंद्र सिंह से हुई. भूपेंद्र के पास अपने 2 ट्रैक्टर थे. वह गांव वालों से सस्ते में गन्ना खरीद कर सीधे शुगर फैक्ट्री में बेचता था, जिस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. भूपेंद्र को अपना दूसरा ट्रैक्टर चलाने के लिए एक ड्राइवर की जरूरत थी.

उस ने पप्पू से बात की तो वह उस का ट्रैक्टर चलाने को राजी हो गया. पप्पू ने फिर से शराब का सेवन बंद कर दिया और वह भूपेंद्र का ट्रैक्टर चलाने लगा, जिस के सहारे उस का पप्पू के घर आनाजाना शुरू हो गया.

भूपेंद्र की शशि से मुलाकात उस वक्त हुई जब वह किसी काम से काशीपुर गया हुआ था. उस दिन शशि के दोनों बच्चे भी स्कूल गए थे. उस दिन भूपेंद्र पप्पू को बुलाने उस के घर आया था. शशि जानती थी उस का पति उसी का ट्रैक्टर चलाता है. शशि ने भूपेंद्र की खूब खातिरदारी की. भूपेंद्र उस की सुंदरता पर मर मिटा. एक तरह से वह उस का दीवाना बन बैठा. भूपेंद्र ने शशि का मोबाइल नंबर ले लिया. बाद में उस की शशि से फोन पर बातें होने लगीं.

भूपेंद्र बन गया शशि का आशिक

फलस्वरूप कुछ ही दिन बाद दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. भूपेंद्र को अच्छी कमाई थी. वह शशि पर भी पैसा खर्च करने लगा. इस से शशि पूरी तरह से उस की प्रेम दीवानी हो गई. भूपेंद्र अकसर पप्पू को ट्रैक्टर ले कर बाहर भेज देता और फिर सीधा उस के घर पर आ जाता.

कई बार तो भूपेंद्र पप्पू की गैरमौजूदगी में सारीसारी रात उसी के घर पर पड़ा रहता. उस वक्त शशि अपने बच्चों को जल्दी खाना खिला कर सुला देती और फिर सारी रात भूपेंद्र के साथ मौजमसती में डूब जाती.

भूपेंद्र जब भी आता, शशि और उस के बच्चों के लिए फल और मिठाई ले कर आता था, इस के चलते शशि के बच्चे भी भूपेंद्र से हिलमिल गए थे. जिस दिन वह घर आता, इस की सूचना किसी तरह पप्पू तक पहुंच ही जाती थी.

पप्पू की बेटी उस के घर आने पर ताने मारते हुए कहती, ‘‘आप से बढि़या तो भूपेंद्र अंकल हैं, वह जब भी आते हैं, अपने साथ बहुत सारी चीजें लाते हैं. बच्चों की बात सुनते ही पप्पू का पारा हाई हो जाता था. पप्पू को विश्वास हो गया था कि उस की गैरमौजूदगी में भूपेंद्र उस के घर आता है. इसी बात को ले कर उस की पत्नी से लड़ाई होती. लेकिन वह उलटे उस के ऊपर ही राशनपानी ले कर चढ़ जाती थी.’’

इसी दौरान एक दिन शशि ने भूपेंद्र के सामने बोझिल मन से कहा कि इस तरह कब तक चलेगा. पप्पू जब भी आता है तो उस का मुंह फूला होता है. वह तुम्हारे चक्कर में मुझ से ठीक से बात भी नहीं करता. जिस से मेरा सारा दिन खराब हो जाता है. अगर तुम मुझे इतना ही प्यार करते हो तो कुछ ऐसा करो कि उस की टेंशन ही खत्म हो जाए. भूपेंद्र शशि का इशारा समझ गया था.

इसी दौरान उस के दिमाग में एक आइडिया आया. उसी आइडिया के तहत उस ने एक दिन मौका पाते ही अपने गांव के एक किसान की हैरो चुरा ली. भूपेंद्र ने वह हैरो ला कर अपने खेत के एक कोने में डाल दी. जब उस किसान को पता चला कि उस की हैरो चोरी हो गई है तो उस ने पहले तो आसपास ही इधरउधर तलाशने की कोशिश की.

तभी उसे पता चला कि उस की हैरो भूपेंद्र के खेत में कोने में पड़ी हुई है. इस की जानकारी मिलते ही वह सीधे भूपेंद्र के पास गया और अपनी चोरी हुई हैरो की बात बताते हुए पूछा कि उस के खेत में वह हैरो कैसे पहुंची. भूपेंद्र ने उस से साफ शब्दों में कहा कि मेरा ट्रैक्टर पप्पू ही चलाता है. यह बात उसे ही पता होगी. मेरे पास तो पहले से ही मेरी अपनी हैरो है, फिर मैं तुम्हारी हैरो किसलिए चोरी करूंगा. तुम्हें जो भी पूछना है पप्पू से पूछो.

अपने ही घर में पप्पू हो गया बेगाना

यही बात उस किसान ने पप्पू से पूछी तो उस ने भी साफ शब्दों में कहा कि मुझे आप की हैरो से कोई लेनादेना नहीं. मैं भूपेंद्र के यहां केवल नौकरी करता हूं. मेरे पास तो अपना ट्रैक्टर तक नहीं है, मैं आप की हैरो चुरा कर क्या करूंगा.

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया तो किसान ने पुलिस चौकी जा कर दोनों के नाम हैरो चोरी की एफआईआर दर्ज करा दी. पुलिस चौकी में पहले से ही शशि की अच्छी बात थी. उस ने वहां जा कर भूपेंद्र को बचाते हुए अपने पति पप्पू को ही हैरो चोरी के इलजाम में जेल भिजवा दिया.

पप्पू के जेल चले जाने के बाद भूपेंद्र और उस के बीच मिलने का रास्ता बिलकुल साफ हो गया. इस के बाद शशि पूरी तरह से निडर हो कर उस के साथ जिंदगी के मजे लेने लगी. उस ने पप्पू को जमानत पर छुड़वाने के लिए पैरवी भी नहीं की.

यह सब देख कर पप्पू के बड़े भाई राजपाल को बहुत दुख हुआ. उस ने पप्पू को छुड़ाने के लिए काफी हाथपांव मारे तो शशि ने उस के परिवार को भी जेल भिजवाने की धमकी दे डाली. इस के बाद भी राजपाल ने जैसेतैसे पप्पू के केस की पैरवी की. पप्पू पर कोई ज्यादा बड़ा केस तो था नहीं. एक महीना जेल में रह कर वह घर आ गया.

शरीरों के खेल में मासूम कार्तिक बना निशाना – भाग 3

इस के पहले विशाल कभी किसी महिला के इतने नजदीक नहीं आया था, जितना पिछले कुछ दिनों के दौरान कविता के करीब आ गया था. आखिर एक दिन उस ने कविता के सामने अपना प्यार जता ही दिया. उम्मीद के मुताबिक कविता गुस्सा नहीं हुई तो नए जमाने और माहौल में बड़े हुए विशाल को समझ आ गया कि दांव खाली नहीं गया है.

कविता सब कुछ समझते हुए भी मुंहबोले देवर के साथ नाजायज संबंधों की ढलान पर फिसली तो इस की वजह एक नया अहसास था, जो उस के तन और मन दोनों को झिंझोड़ रहा था.

परसराम रोज सैकड़ों ग्राहकों को डील करता था, लिहाजा पत्नी के नए हावभाव उस से छिपे नहीं रहे. पहले तो उस ने खुद को समझाने की कोशिश की कि यह उस की गलतफहमी और फिजूल का शक है, पर कुछ था जो उस के शक को बारबार कुरेद रहा था.

विशाल कुछ और सोचता था, कविता कुछ और

इधर विशाल की हालत खस्ता थी, जिसे वाकई कविता से प्यार हो गया था. वह चाहता था कि कविता पति को छोड़ कर उस से शादी कर ले. इस बचकानी पेशकश से कविता वाकिफ हुई तो सकते में रह गई. विशाल संबंधों को इतनी गंभीरता से लेगा, इस का अंदाजा या अहसास उसे नहीं था.

उस ने अपने इस नासमझ आशिक को समझाने की कोशिश की, पर यह खुल कर नहीं कह पाई कि तुम्हारे मेरे संबंध सिर्फ मौजमस्ती के हैं. एक 2 बच्चों की मां और किसी की जिम्मेदार पत्नी सुख और संतुष्टि के लिए शारीरिक संबंध तो बना सकती है, पर उम्र में 11 साल छोटे प्रेमी से शादी नहीं कर सकती.

विशाल कविता पर पति की तरह हक जमाने लगा था. उसे दुनियादारी से ताल्लुक रखने वाली बातों से कोई मतलब नहीं था. उस ने कविता को एक तरह से चेतावनी दे दी थी कि या तो वह उस से शादी कर ले, नहीं तो ठीक नहीं होगा. जबकि कविता अपने आप को चक्रव्यूह से घिरा पा रही थी, जिस से बाहर निकलने का एकलौता रास्ता उसे अपने उस पति में दिखा, जिस के साथ वह बेवफाई कर चुकी थी.

परसराम को शक हुआ या खुद कविता ने उस से अपनी तरफ से विशाल के बारे में कुछ शिकायत की, यह तो अब राज ही रहेगा, लेकिन परसराम ने सख्ती से विशाल के अपने घर आने पर पाबंदी लगा दी. इस से विशाल तिलमिला उठा. परसराम उसे अब रिश्ते का पड़ोस वाला बड़ा भाई नहीं, बल्कि दुश्मन नजर आने लगा था.

कविता ने अपनी चाल तो चल दी, लेकिन विशाल की मजबूत गिरफ्त वह भूल नहीं पा रही थी. लिहाजा अब वह दूसरी गलती चोरीछिपे विशाल से मिलने और फोन पर लंबीलंबी बातें करने तथा उस से फिर से संबंध बनाने की कोशिश कर रही थी.

काश! कविता अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगा लेती

एक पुरानी कहावत है कि चोरी के आम छांट कर नहीं खाए जाते, कविता की मंशा यह रहती थी कि विशाल उसे रौंदने के बाद चला जाए और विशाल था कि उस के साथ रोमांटिक बातें करता रहता था. मजबूरी में कविता को उस की रूमानी बातों की हां में हां मिलानी पड़ती थी.

इस से विशाल को लगा कि कविता उसे वाकई चाहती है, लिहाजा उस ने फिर अपनी शादी की पुरानी पेशकश दोहरा दी. दोनों कुछ तय कर पाते, इस के पहले ही परसराम ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया.

6 जनवरी को भी विशाल और कविता घर के पीछे के खेत में मिल रहे थे. तभी परसराम और उस का भाई दिलीप वहां आ गए और विशाल की पिटाई कर दी. दोनों उसे थाने भी ले गए, जहां विशाल की बेइज्जती हुई.

उस वक्त कविता का रोल और बयान अहम थे, जिस ने विशाल पर परेशान करने का आरोप लगा डाला तो प्यार की परिभाषा और भाषा न समझने वाला यह नौजवान आशिक तिलमिला उठा. उसे अब समझ आया कि कविता दरअसल उसे मोहरा बनाए हुए थी. वह उस का प्रेमी नहीं, बल्कि हवस पूरी करने वाली एक मशीन भर था.

अब उसे याद आ रहा था कि जबजब भी उस ने शादी की बात कही थी, तबतब कविता पतिबच्चों और गृहस्थी की दुहाई दे कर मुकर जाती थी. लेकिन आज तो उस ने अपनी असलियत ही दिखा दी थी.

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थाने में खुद को बेइंतहा बेइज्जत महसूस कर के ही विशाल ने ठान लिया था कि कविता को सबक सिखा कर रहेगा. इधर विशाल की मां ने परसराम को सालों के पारिवारिक संबंधों का वास्ता दिया तो उस ने उस के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखाई और माफ कर दिया.

पर विशाल ने कविता को माफ नहीं किया था. वह बुरी तरह खीझा हुआ था और बदले की आग में जल रहा था. 8 जनवरी को दोपहर में वह कार्तिक के स्कूल गया और उसे साथ ले आया. कार्तिक के मना करने की कोई वजह नहीं थी, क्योंकि उस मासूम को तो मालूम ही नहीं था कि क्याक्या हो चुका है.

विशाल का निशाना बना मासूम कार्तिक

कार्तिक को स्कूल से वह 200 मीटर की दूरी पर कृष्णा कौंप्लेक्स में ले आया. उस वक्त दुकान के मालिक सचिन श्रीवास्तव किसी जरूरी काम से गए हुए थे. विशाल के सिर पर इस तरह वहशीपन सवार था कि उसे बच्चे की मासूमियत पर कोई तरस नहीं आया. उस के दिलोदिमाग में तो कविता की बेवफाई और 2 दिन पहले थाने में किया गया उस का दोगलापन घूम रहे थे. इसी जुनून में उस ने अपने जूते का फीता खोला और उस से ही कार्तिक का गला घोंट दिया.

नन्ही सी जान फड़फड़ा कर शांत हो गई. अब समस्या उस की लाश को को ठिकाने लगाने की थी. सचिन के आने के पहले जरूरी था कि यह काम कर दिया जाए. लिहाजा उस ने कार्तिक की लाश को औफिस में पड़ी पार्सल की पुरानी बोरी में ठूंसा और उसे घसीटता हुआ औफिस से बाहर ले आया. लाश भरी बोरी को उस ने सामान की तरह मोटरसाइकिल पर बांधा और मुबारकपुर टोल नाके से कुछ दूर फेंक आया. यह सारा नजारा कौंप्लेक्स में लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद हो गया था.

पकडे़ जाने के बाद विशाल ने कुछ छिपाया नहीं. जब थाने में उस का सामना कविता से हुआ तो वह बड़े खूंखार और सर्द लहजे में बोला, ‘‘तूने मुझे अपने इश्क में फंसा कर बरबाद कर दिया.’’

इस पर कविता ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि सिर झुकाए रोती रही. शायद अपनी हरकत और जान से प्यारे बेटे की हत्या पर, जिस की जिम्मेदार वह भी थी.

शुरुआत में गुनाह से अंजान बनते रहे विशाल ने पुलिस को यह भी बताया कि कविता कई बार उस के साथ सीहोर घूमने गई थी और कई दफा खुद फोन कर उसे प्यार करने यानी शारीरिक संबंध बनाने के लिए बुलाती थी.

विशाल अब जेल में है और उसे सख्त सजा मिलना तय है, पर जुर्म की इस वारदात में कविता की भूमिका भी अहम है. ऐसे नाजायज संबंधों पर बारीकी से सोचने की जरूरत है कि औरत को भी अभियुक्त क्यों न माना और बनाया जाए. यह ठीक है कि उस का प्रत्यक्ष संबंध अपराध से नहीं, पर कहीं न कहीं अपराधी को उकसाने की वजह तो वह थी ही.

खतरनाक औरत : गांव की गलियों से निकली माया के सपने – भाग 2

बदनाम है खड़कपुर

माया की एक बहन की शादी काशीपुर के गांव खड़कपुर निवासी सत्यभान से हुई थी. माया जब भी बहन से मिलने आती तो उस के बच्चे साथ आते थे और मौसी के घर रहने की जिद करते थे. राकेश ने कई बार अपने बच्चों को समझाने की कोशिश की, लेकिन बच्चे जिद करते कि उन्हें भी मौसी की तरह शहर में ही रहना है.

आखिर बच्चों की जिद के आगे राकेश को झुकना पड़ा. करीब 6 साल पहले राकेश ने अपनी जुतासे की जमीन बेच दी. उस पैसे से उस ने खड़कपुर में 25 गज का प्लौट ले कर मकान बनवा लिया. इस के बाद राकेश अपने बीवीबच्चों के साथ खड़कपुर आ कर रहने लगा.

काशीपुर से लगे गांव खड़कपुर में शुरू से ही मजदूर और छोटामोटा काम करने वाले लोग रहते हैं. इसी वजह से यह इलाका हर मामले में चर्चित है. चाहे कच्ची शराब की बिक्री हो, जुआ हो या फिर देह व्यापार, खड़कपुर में सब मिलता है.

खड़कपुर आने के बाद माया की संगत कुछ ऐसी औरतों के साथ हो गई, जो देह व्यापार से जुड़ी थीं. नतीजतन उस के रहनसहन में काफी बदलाव आ गया. वह बनठन कर घर से निकलती थी. गलत औरतों के साथ माया की संगत देख कर राकेश का दिमाग घूमने लगा. उस ने माया को कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने पति की एक नहीं मानी. फलस्वरूप घर में कलह और विवाद रहने लगा, जिस के चलते पतिपत्नी के बीच दूरियां बढ़ने लगीं.

उधर माया ने खड़कपुर निवासी रेखा, जानकी और कई ऐसी ही औरतों की टोली बना ली, जो देह व्यापार से जुड़ी हुई थीं. उन का सहयोग मिलते ही माया पूरी तरह देह व्यापार में उतर गई.
यह बात राकेश की बरदाश्त के बाहर थी. उस ने इस की शिकायत माया के मायके वालों से की, लेकिन उन लोगों ने माया का साथ देते हुए कहा कि वह बिना वजह उन की बेटी को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है. माया ऐसी कतई नहीं है.

मायके वालों का साथ मिलने से माया के हौसले और बुलंद हो गए. राकेश के काम पर निकलते ही वह बच्चों को स्कूल भेज देती और फिर वह अपने धंधे में लग जाती. इस मामले में रेखा और जानकी उस का साथ दे रही थीं.

उन के सहयोग से उस का धंधा जोरों से चल निकला था. आसपास के लोग खड़कपुर में कच्ची शराब पीने आते तो वह अपने दलालों के माध्यम से उन्हें फंसाती और पैसा ले कर उन के साथ मौजमस्ती करती.

करीब 6 महीने पहले गांव तख्तपुर, कुंदरकी, जिला मुरादाबाद का रहने वाला राकेश का मौसेरा भाई इंद्रपाल भी काम की तलाश में खड़कपुर आया और राकेश के घर में रह कर एक फैक्ट्री में काम करने लगा.

राकेश के घर पर रह कर इंद्रपाल कुछ ही दिनों में अपनी भाभी के कर्मों से पूरी तरह से वाकिफ हो गया. जब इंद्रपाल को पता चला कि माया राकेश की गैरमौजूदगी में देह व्यापार करती है तो उस ने माया की दुखती रग पकड़ कर उस के साथ अवैध संबंध बना लिए.

हकीकत जान कर राकेश हुआ खफा

माया के साथ शारीरिक संबंध बनते ही इंद्रपाल ने नौकरी छोड़ दी और माया के लिए ग्राहक लाने लगा. इस के बदले माया उसे कमीशन देती थी, जो उस की मेहनत की कमाई से ज्यादा होता था. देवरभाभी के बीच यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा, लेकिन जब राकेश को इस की जानकारी मिली तो उस ने इंद्रपाल को खरीखोटी सुना कर घर से भगाने की कोशिश की.

लेकिन इस मामले में माया इंद्रपाल का पक्ष ले कर उस के सामने खड़ी हो गई. जब राकेश को लगा कि देवरभाभी के सामने उस की नहीं चलने वाली तो उस ने बीवी से किनारा कर लिया. साथ ही माया से साफसाफ कह दिया कि आज के बाद वह अपना घर का खर्च भी खुद ही चलाए.

उस दिन के बाद माया राकेश से नफरत करने लगी. वह देह व्यापार की आदी हो चुकी थी, जिसे वह किसी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं थी. जिस दिन माया और राकेश के बीच तकरार हुई थी, उसी दिन माया ने सोच लिया था कि वह उसे अपने रास्ते से हटा कर रहेगी.

माया ने इंद्रपाल को भी राकेश के विरुद्ध भड़काना शुरू कर दिया था. उस ने इंद्रपाल से साफ कहा कि हमारे घर में जो भी फसाद हो रहा है, वह सब तुम्हारी वजह से है. राकेश को हम दोनों पर शक हो गया है. इसीलिए वह आए दिन मुझे मारतापीटता है. अगर तुम ने समय रहते उस का कोई इलाज नहीं किया तो तुम्हें यह घर छोड़ कर जाना पड़ेगा. माया की बात सुनते ही इंद्रपाल का पौरुष जाग उठा.

माया ने अपने धंधे में आड़े आ रहे पति को मौत की नींद सुलाने के लिए षडयंत्र रचना शुरू कर दिया था. वह राकेश की गैरमौजूदगी में अपनी पूरी मंडली को अपने घर बुला कर शराब पिलाती थी. जब सब शराब के नशे में हो जाते तो माया उन्हें अय्याशी की राह पर ले जाती. इस का नतीजा यह निकला कि माया का घर उस इलाके में चर्चित हो गया, जहां पर लोग शराब और शवाब दोनों का आनंद लेने के लिए आने लगे.
धीरेधीरे माया की करतूत राकेश के सामने आई तो उस ने फिर से माया को मारापीटा. इस के बाद माया ने राकेश से साफ कह दिया कि अगर उसे घर में मुंह बंद कर के रहना है तो रहे वरना रहने के लिए कहीं दूसरी जगह कमरा ले ले. माया ने यह भी कहा कि वह चाहे तो उसे तलाक दे सकता है.
माया ने बदल दिया पति

जब राकेश को लगने लगा कि माया किसी भी तरह सुधरने वाली नहीं है तो उस ने अपने बच्चों की खातिर अपने घर की तरफ से पूरी तरह से आंखें बंद कर लीं. इस के बाद भी माया के दिल को तसल्ली नहीं हुई. उस के बाद वह इंद्रपाल के साथ उस की बीवी बन कर रहने लगी. इंद्रपाल उस का घर खर्च चलाने के साथसाथ उस की दिली तमन्ना भी पूरी करने लगा था.

रिश्तों का कत्ल : बेटा बना हत्यारा

आजकल के बच्चे यह नहीं समझते कि पिता केवल बच्चों का जन्मदाता ही नहीं होता, बल्कि उन का पालनहार होता है. ऐसे में अगर बेटा पिता का बेरहमी से कत्ल करने के साथ ही साथ उस के गुप्तांगों को भी कुचल दे तो बेरहमी की सीमा का पता लगता है.

यह एक बाप का नहीं, बापबेटे के रिश्ते और भरोेसे का भी कत्ल होता है. ऐसी घटनाएं आजकल तेजी से बढ़ने लगी हैं. लखनऊ जिले के निगोहां थाना क्षेत्र के रंजीत खेड़ा गांव में ऐसी ही घटना ने दिल को झकझोर कर रख दिया है.

‘‘यह खेती और जमीन मेरी है. इस का मैं मालिक हूं. मैं जिसे चाहूंगा, उसे दूंगा. तुम्हारे कहने से मैं इस को तुम्हें हरगिज नहीं दूंगा.’’ 70 साल के महादेव ने अपने बेटे जगदेव के साथ रोजरोज की लड़ाई से तंग आ कर यह इसलिए कहा कि ऐसी धमकी से बेटे जगदेव के मन में डर बैठेगा. वह पिता की बात मानेगा.

‘‘हमें पता है, तुम ने जमीन बेचने का बयाना ले लिया है. लेकिन इतना सुन लो कि उस में से मेरा हिस्सा मुझे भी चाहिए.’’ महादेव के बडे़ बेटे जगदेव ने पिता को अपना फैसला सुनाते हुए कहा.

बयाना वह पैसा होता है, जो जमीन बेचने के लिए अग्रिम धनराशि होती है. इस के बाद जब जमीन खरीदने वाला पूरा पैसा चुका देता है तो जमीन की लिखतपढ़त की जाती है.

जगदेव को यह लग रहा था कि जब बयाने में ही उस का हिस्सा नहीं मिलेगा तो जमीन बिकने पर मिलने वाली रकम में भी उसे हिस्सा नहीं मिलेगा. ऐसे में वह बयाने की रकम से ही हिस्सा लेने की जिद करने लगा. जबकि महादेव जगदेव को हिस्सा नहीं देना चाहता था.

जगदेव का अपने पिता के साथ मतभेद रहता था. उसे बारबार यह लगता था कि उस के पिता उस के बजाए छोटे भाईबहनों को अधिक चाहते हैं.

इस के अलावा उसे इस बात की नाराजगी रहती थी कि उस के पिता के संबंध उन्नाव में रहने वाली गायत्री नाम की महिला के साथ थे. जबकि गायत्री और महादेव के ऐेसे कोई संबंध नहीं थे. हमउम्र होेने के कारण दोनों एकदूसरे के साथ खुल कर बातें कर लेते थे. एकदूसरे का सुखदुख बांट लेते थे.

बेटा जगदेव यह नहीं समझ पा रहा था कि 70 साल की उम्र में उस के पिता से क्या संबंध हो सकते हैं. उसे इस उम्र में भी पिता का किसी औरत से बात करना खराब ही लगता था. उसे सब चरित्रहीन ही दिखते थे.

महादेव सारे पैसे अपने पास रखना चाहते थे. कारण यह था कि उन्हें लगता था कि अगर उन के पास पैसे नहीं होंगे तो कोई भी बुढ़ापे में सहारा नहीं देगा.

वैसे महादेव ने अपनी जमीन का ज्यादातर हिस्सा अपने बेटों को दे दिया था. कुछ जमीन ही उस ने अपने पास रखी थी. इस के अलावा थोड़ी सी जमीन वह बेचने की सोच रहा था.

इसी जमीन के टुकड़े के बिकने पर मिले पैसों के कारण विवाद बढ़ गया था. गांव में रहने वाले बूढे़ लोगों के पास जमीन का ही सहारा होता है.

आमतौर पर बूढ़े होते मांबाप की जमीन पर बेटों का कब्जा हो जाता है और बूढे़ बिना किसी आश्रय के जीवन गुजारने को मजबूर हो जाते हैं. जब तक मातापिता जीवित रहते हैं तब तक तो थोड़ाबहुत काम चल भी जाता है, पर दोनों में से कोई एक बचता है तो उस का जीवन कठिन हो जाता है.

घर में बेटे के साथ रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर महादेव ने सोचा कि अब वह अपने ही बनाए घर में नहीं रहेगा. महादेव ने अपने खेत में एक कमरा बना रखा था, जहां ट्यूबवैल था.

बेटे से रोज के झगडे़ को खत्म करने के लिए वह खेत में बने कमरे में रहने लगा. यह गांव से बाहर सुनसान जगह पर था. उसे यहां मच्छर और जंगली जानवरों का डर रहता था. पर घर में बेटे की गाली और मार खाने से यहां जंगल में अकेले रहने में उसे सुकून महसूस होता था.

महादेव का दूसरा बेटा गया प्रसाद गांव में कम ही रहता था. वह मजदूरी करने शहर ही जाता था. ऐसे में उस का घर के मामलों में दखल कम रहता था.

महादेव की दोनों बेटियां श्वेता और बिटाना अपने मांबाप के करीब रहती थीं. उन की भी भाइयों से कम ही बनती थी. ऐसे में परिवार में आपस में कोई सामंजस्य नहीं था.

महादेव लखनऊ जिले के निगोहां थानाक्षेत्र के रंजीत खेड़ा गांव में रहता था. उस की उम्र 70 साल के करीब थी.

महादेव के 2 बेटे जगदेव  प्रसाद और गया प्रसाद और 2 बेटियां श्वेता और बिटाना थीं. सभी बच्चों की शादी हो चुकी थी.

महादेव का उन्नाव आनाजाना था. वहां रहने वाली गायत्री (बदला हुआ नाम) से उस के नजदीकी रिश्ते थे. यह बात बेटे जगदेव को नागवार लगती थी. वह इस बात को ले कर अकसर अपने पिता को ताना मारता रहता था.

इस बात से नाखुश पिता महादेव घर की जगह खेत पर बने कमरे में पत्नी शांति देवी के साथ रहता था. 26 अगस्त, 2021 की रात शांति देवी और महादेव अगलबगल सो रहे थे. शांति देवी को ठीक से नींद नहीं आती थी तो डाक्टर की सलाह पर वह नींद की गोली खा कर सोती थी. ऐसे में उसे अपने आसपास का पता नहीं होता था.

27 अगस्त की सुबह जब वह उठी तो देखा कि उस के बगल में सो रहे महादेव की किसी ने हत्या कर दी है.

खून से लथपथ पति का शव देख कर शांति देवी चीख पड़ी. उस के चिल्लाने की आवाज सुन कर गांव के लोग वहां पहुंच गए.

घटना की सूचना गांव के लोगों ने निगोहां थाने की पुलिस को दी. पुलिस ने महादेव के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस के बाद महादेव के बेटे जगदेव की लिखित तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

मामले की सूचना मिलने के बाद एसपी (ग्रामीण) हृदेश कुमार और सीओ निगोहां नईमुल हसन ने हत्या की गुत्थी को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी जितेंद्र प्रताप सिंह व एसआई राम समुझ यादव के साथ एक पुलिस टीम का गठन किया.

थानाप्रभारी जितेंद्र प्रताप सिंह हत्या के कुछ दिन पहले ही निगोहां थाने में नई पोस्टिंग पर आए थे. ऐसे में आते ही हत्या की गुत्थी सुलझाने का दायित्व संभालना पड़ा. महादेव की दोनों बेटियों श्वेता और बिटाना का शक भाई के साथ रहने वाली महिला पर था. क्योंकि पिता को बिना शादी के उस का साथ रहना पसंद नहीं था.

पुलिस की टीम ने जब गांव के लोगों और महादेव के घर वालों से अलगअलग बातचीत की तो मामले का हैरतअंगेज खुलासा हुआ. घरपरिवार की शंका से अलग आरोपी सामने आया. पुलिस ने जब गहरी छानबीन की तो पता चला कि महादेव की हत्या उस के बेटे जगदेव ने की है.

पुलिस की पूछताछ में जगदेव ने बताया कि जब पिता ने उसे जमीन में हिस्सा देने से मना किया और जमीन बेचने के लिए जो बयाना लिया था, उस में भी हिस्सा नहीं दिया था.

उसे लगता था कि ऐसा वह किसी के बहकावे में आ कर कर रहे थे. जिस से वह तनाव में रहने लगा. 32 साल के जगदेव ने सोचा कि क्यों न वह अपने पिता का कत्ल कर दे, जिस से रोजरोज का झंझट ही खत्म हो जाए.

जगदेव यह जानता था कि उस की मां नींद की दवा खा कर सो जाती है. उसे अपने आसपास का कुछ पता नहीं रहता था.

26 अगस्त, 2021 की रात करीब ढाई बजे जगदेव अपने पिता के कमरे तक पहुंच गया. वहां मां सो रही थी. पास में ही अलग चारपाई पर पिता महादेव भी सो रहे थे. जगदेव ने सब से पहले पिता के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, जिस से वह आवाज न कर सकें. इस के बाद पत्थर से प्रहार कर के सिर को फोड़ दिया.

पिता जीवित न रह जाएं, इस कारण उस ने पिता के निजी अंगों पर भी प्रहार कर के उन की हत्या कर दी. इस के बाद वह चुपचाप वहां से भाग गया.

सुबह जब उस की मां ने शोर मचाया और गांव के लोग जमा हो गए तो जगदेव भी वहां पंहुचा और उस ने पुलिस को अपने पिता की हत्या की तहरीर दी. उस समय किसी को भी यह शंका नहीं थी कि उस ने ही पिता के साथ ऐसा किया होगा.

जगदेव को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.

परिवार के 5 जनों को डसने वाला आस्तीन का सांप

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मुरादनगर से सटा गांव है बसंतपुर सैंथली. यहां भी तेजी से शहरीकरण के चलते जमीनों के दाम आसमान छूने लगे हैं. बिल्डर आते हैं, किसानों को लुभाते हैं और उस भाव में खेतीकिसानी की जमीनों के सौदे करते हैं, जिस की उम्मीद किसानों ने कभी सपने में भी नहीं की होती.

एक बीघा के 50 लाख से ले कर एक करोड़ रुपए सुन कर किसानों का मुंह खुला का खुला रह जाता है कि इतना तो वे सौ साल खेती कर के भी नहीं कमा पाएंगे. और वैसे भी आजकल खेतीकिसानी खासतौर से छोटी जोत के किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित होने लगी है.

लिहाजा वे एकमुश्त मिलने वाले मुंहमांगे दाम का लालच छोड़ नहीं पाते और जमीन बेच कर पास के किसी कसबे में बस जाते हैं.

इसी गांव का एक ऐसा ही किसान है 48 वर्षीय लीलू त्यागी, जिस के हिस्से में पुश्तैनी 15 बीघा जमीन में से 5 बीघा जमीन आई थी. बाकी 10 बीघा 2 बड़े भाइयों सुधीर त्यागी और ब्रजेश त्यागी के हिस्से में चली गई थी.

जमीन बंटबारे के बाद तीनों भाई अपनीअपनी घरगृहस्थी देखने लगे और जैसे भी हो खींचतान कर अपने घर चलाते बच्चों की परवरिश करने लगे. बंटवारे के समय लीलू की शादी नहीं हुई थी, लिहाजा उस पर घरगृहस्थी के खर्चों का भार कम था.

गांव के संयुक्त परिवारों में जैसा कि आमतौर पर होता है, दुनियादारी और रिश्तेदारी निभाने की जिम्मेदारी बड़ों पर होती है, इसलिए भी लीलू बेफिक्र रहता था और मनमरजी से जिंदगी जीता था.

साल 2001 का वह दिन त्यागी परिवार पर कहर बन कर टूटा, जब सुधीर अचानक लापता हो गए. उन्हें बहुत ढूंढा गया पर पता नहीं चला कि उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया.

कुछ दिनों की खोजबीन के बाद त्यागी परिवार ने तय किया कि सुधीर की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी जाए. लेकिन इस पर लीलू बड़ेबूढ़ों के से अंदाज में बोला, ‘‘इस से क्या होगा. उलटे हम एक नई झंझट में और फंस जाएंगे. पुलिस तरहतरह के सवाल कर हमें परेशान करेगी. हजार तरह की बातें समाज और रिश्तेदारी में होंगी. उस से तो अच्छा है कि उन का इंतजार किया जाए. हालांकि वह किसी बात को ले कर गुस्से में थे और मुझ से यह कह कर गए थे कि अब कभी नहीं आऊंगा.’’

परिवार वालों को लीलू की सलाह में दम लगा. वैसे भी अगर सुधीर के साथ कोई अनहोनी या हादसा हुआ होता तो उन की लाश या खबर मिल जानी चाहिए थी और वाकई पुलिस क्या  कर लेती.

वह कोई दूध पीते बच्चे तो थे नहीं, जो घर का रास्ता भूल जाएं.  यह सोच कर सभी ने मामला भगवान भरोसे छोड़ दिया.  उन्हें चिंता थी तो बस उन की पत्नी अनीता और 2 नन्हीं बेटियों पायल और पारुल की, जिन के सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी थी.

यह परेशानी भी वक्त रहते दूर हो गई, जब गांव में यह चर्चा शुरू हुई कि अब सुधीर के आने की तो कोई उम्मीद रही नहीं, अनीता कब तक उस की राह ताकती रहेगी. इसलिए अगर लीलू उस से शादी कर ले तो उन्हें सहारा और बेटियों को पिता मिल जाएगा. घर की खेती भी घर में रहेगी.

गांव और रिश्ते के बड़ेबूढ़ों का सोचना ऐसे मामले में बहुत व्यावहारिक यह रहता है कि जवान औरत कब तक बिना मर्द के रहेगी. आज नहीं तो कल उस का बहकना तय है, इसलिए बेहतर है कि अगर देवरभाभी दोनों राजी हों तो उन की शादी कर दी जाए.

बात निकली तो जल्द उस पर अमल भी हो गया. एक सादे समारोह में लीलू और अनीता की शादी हो गई जो कोई नई बात भी नहीं थी. क्योंकि गांवों में ऐसी शादियां होना आम बात है, जहां देवर ने विधवा भाभी से शादी की हो. इतिहास भी ऐसी शादियों से भरा पड़ा है.

देखते ही देखते अपने देवर की पत्नी बन अनीता विधवा से फिर सुहागन हो गई और वाकई में पारुल और पायल को चाचा के रूप में पिता मिल गया.

इस के बाद तो बड़े भाई सुधीर की जमीन भी लीलू की हो गई. जल्द ही लीलू और अनीता के यहां बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम विभोर रखा गया. घर में सब उसे प्यार से शैंकी कहते थे.

कभीकभार जरूर गांव के कुछ लोगों में यह चर्चा हो जाती थी कि चलो जो हुआ सो अच्छा हुआ, लेकिन कभी सुधीर अगर वापस आ गया तो क्या होगा.

मुमकिन है जी उचट जाने से वह साधुसंन्यासियों की टोली में शामिल हो गया हो और वहां से भी जी उचटने के कारण कभी घर आ जाए. फिर अनीता किस की पत्नी कहलाएगी?

सवाल दिलचस्प था, जिस का मुकम्मल जबाब किसी के पास नहीं था. पर एक शख्स था जो बेहतर जानता था कि सुधीर अब कभी वापस नहीं आएगा. वह शख्स था लीलू.

इसी तरह 5 साल गुजर गए. अब सब कुछ सामान्य हो गया था, लेकिन कुछ दिनों बाद ही साल 2006 में पारुल की मृत्यु हो गई. घर और गांव वाले कुछ सोचसमझ पाते, इस के पहले ही लीलू ने कहा कि उसे किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया था और आननफानन में उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

गांवों में ऐसे यानी सांप वगैरह के काटे जाने के हादसे भी आम होते हैं, इसलिए कोई यह नहीं सोच पाया कि यह कोई सामान्य मौत नहीं, बल्कि सोचसमझ कर की गई हत्या है. और आगे भी त्यागी परिवार में ऐसी हत्याएं होती रहेंगी, जो सामान्य या हादसे में हुई मौत लगेंगी और हैरानी की बात यह भी रहेगी किसी भी मामले में न तो लाश मिलेगी और न ही किसी थाने में रिपोर्ट दर्ज होगी.

इस के 3 साल बाद ही पायल भी रहस्यमय ढंग से गायब हो गई तो मानने वाले इसे होनी मानते रहे. लेकिन अनीता अपनी दोनों बेटियों की मौत का सदमा झेल नहीं पाई और बीमार रहने लगी, जिस का इलाज भी लीलू ने कराया.

अब सुधीर की जमीन का कोई वारिस नहीं बचा था, सिवाय अनीता के, जो अब हर तरह से लीलू और बड़े होते शैंकी की मोहताज रहने लगी थी.

लीलू की तो जान ही अपने बेटे में बसती थी और वह उसे चाहता भी बहुत था. लेकिन यह नहीं देख पा रहा था कि उस के लाड़प्यार के चलते शैंकी गलत राह पर निकल पड़ा है.

और देख भी कैसे पाता क्योंकि वह खुद ही एक ऐसे रास्ते पर चल रहा था, जिसे कलयुग का महाभारत कहा जा सकता है और वह उस का धृतराष्ट्र है, जो पुत्र मोह में अंधा हो गया था.

इसी अंधेपन का नतीजा था कि बीती 9 जुलाई को लीलू गाजियाबाद के सिहानी गेट थाने में पुलिस वालों के सामने खड़ा गिड़गिड़ा रहा था कि शैंकी मेरा इकलौता बेटा है, आप जितने चाहो पैसे ले लो लेकिन उसे छोड़ दो.

बेटा छूट जाए, इस के लिए वह 10 लाख रुपए देने को तैयार था. लेकिन जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके बिगड़ैल शैंकी ने जुर्म भी मामूली नहीं किया था, लिहाजा उस का यूं छूटना तो नामुमकिन बात थी.

दरअसल, शैंकी ने केन्या की एक लड़की, जिस का नाम रोजमेरी वाजनीरू है, से 7 जुलाई को 12 हजार रुपए नकद और एक मोबाइल फोन लूटा था. रोजमेरी से उस का संपर्क सोशल मीडिया के जरिए हुआ था. जब वह दिल्ली आई तो शैंकी बहाने से उसे अपनी कार में बैठा कर गाजियाबाद ले गया और हथियार दिखा कर लूट की इस वारदात को अंजाम दिया.

दूसरे दिन सुबह रोजमेरी ने सिहानी गेट थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई तो शैंकी पकड़ा गया. वारदात में उस का साथ देने वाला शुभम भी गिरफ्तार किया गया था. वह भी मुरादनगर का रहने वाला है.

दोनों से वारदात में इस्तेमाल किए गए हथियार, 11 हजार रुपए नकद और वह कार भी बरामद की गई थी, जिस में बैठा कर रोजमेरी से लूट की गई थी. कुछ दिनों बाद दोनों को अदालत से जमानत मिल गई थी.

लेकिन अब खुद जेल में बंद लीलू को जमानत मिल पाएगी, इस में शक है. क्योंकि उस के गुनाहों के आगे तो बेटे का गुनाह कुछ भी नहीं.

बीती 24 सितंबर को लीलू को गाजियाबाद पुलिस ने अपने भतीजे रेशू की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया तो सख्ती से पूछताछ में उस ने खुलासा किया कि उस ने कोई एकदो नहीं बल्कि 20 साल में एकएक कर 5 हत्याएं की हैं. और ये पांचों ही उस के अपने सगे हैं.

यह सुन कर पुलिस वालों के मुंह तो खुले के खुले रह गए, साथ ही जिस ने भी सुना उस के भी होश उड़ गए कि कैसा कलयुग आ गया है, जिस में जमीन के लालच में एक सगे भाई ने दूसरे सगे बड़े भाई और 2 भतीजियों जो अनीता से शादी के बाद उस की बेटियां हो गई थीं, सहित 2 सगे भतीजों को भी इतनी साजिशाना और शातिराना तरीके से मारा कि किसी को उस पर शक भी नहीं हुआ.

रेशू की हत्या के आरोप में वह कैसे पकड़ा गया, इस से पहले यह जान लेना जरूरी है कि इस के पहले की 4 हत्याएं उस ने कैसे की थीं. इन में से 2 का जिक्र ऊपर किया जा चुका है.

अपने बड़े भाई सुधीर की हत्या लीलू ने एक लाख की सुपारी दे कर मेरठ में करवाई थी और लाश को नदी में बहा दिया था. इसलिए अनीता से शादी करने के बाद वह बेफिक्र था कि सुधीर आएगा कहां से, उसे तो मौत की नींद में वह सुला चुका है.

यह कातिल कितना खुराफाती है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह 20 साल पहले ही अपने गुनाहों की स्क्रिप्ट लिख चुका था और हरेक कत्ल के बाद किसी को शक न होने पर उस के हौसले बढ़ते जा रहे थे.

जब शैंकी पैदा हुआ तो उसे लगा कि सुधीर की जमीन उस की बेटियों के नाम हो जाएगी, लिहाजा पहले उस ने पारुल को खाने में जहर दे कर मारा और फिर पायल की भी हत्या कर उस की लाश को नदी में बहा दिया.

इस दौरान जमीनजायदाद का धंधा करने के लिए उस ने अपने हिस्से की जमीन बेच दी और मुरादनगर थाने के सामने एक आलीशान मकान भी बनवा लिया.

जब इस निकम्मे और लालची से दलाली का धंधा नहीं चला तो उस की नजर दूसरे भाई ब्रजेश की जमीन पर जा टिकी. उसे लगा कि अगर ब्रजेश और उस के बेटों व पत्नी को भी इसी तरह ठिकाने लगा दिया जाए तो उस की ढाई करोड़ की जमीन भी उस की हो जाएगी.

नेकी तो नहीं बल्कि बदी और पूछपूछ की तर्ज पर उस ने साल 2013 में  ब्रजेश के छोटे बेटे 16 वर्षीय नीशू की भी हत्या कर लाश नदी में बहा दी और अपनी गोलमोल बातों से पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से ब्रजेश को रोक लिया था. यह उस के द्वारा की गई चौथी हत्या थी.

अब तक उसे समझ आ गया था कि और साल, 2 साल या 4 साल लगेंगे, लेकिन जमीन तो उस की हो ही जाएगी. असल में वह चाहता था कि पूरे कुटुंब की जमीन उस के बेटे शैंकी को मिल जाए, जिस से उसे जिंदगी में मेहनत ही न करनी पड़े जैसे कि उसे नहीं करनी पड़ी थी. जाहिर है रेशू की हत्या के बाद वह ब्रजेश और उन की पत्नी को भी ऊपर पहुंचा देने का मन बना चुका था.

ब्रजेश का बेटा 24 वर्षीय रेशू बीती 8 अगस्त को गायब हो गया था. यह उन के लिए एक और सदमे वाली बात थी. क्योंकि नीशू को गुजरे 8 साल बीत गए थे, अब रेशू ही उन का आखिरी सहारा बचा था जिस की सलामती के लिए वे दिनरात दुआएं मांगा करते थे.

लेकिन यह अंदाजा दूसरों की तरह उन्हें भी नहीं था कि परिवार को डसने वाला सांप आस्तीन में ही है. लीलू ने इस बाबत और लोगों को भी अपनी साजिश में शामिल कर लिया था.

उस ने योजना के मुताबिक रेशू को फोन कर गांव के बाहर मिलने बुलाया और घूमने चलने के बहाने कार में बैठा लिया. इस आई ट्वेंटी कार में इन

दोनों के अलावा विक्रांत, सुरेंद्र त्यागी, राहुल और लीलू का भांजा मुकेश भी मौजूद था.

चलती कार में ही इन लोगों ने रेशू की हत्या रस्सी और लोहे की जंजीर से गला घोंट कर दी और उसे सीट पर जिंदा लोगों की तरह बिठा कर बुलंदशहर की तरफ चल पड़े.

कहीं किसी को शक न हो जाए, इसलिए कुछ दूर जंगल में कार रोक कर इन्होंने रेशू की लाश को कार की डिक्की में डाल दिया. असल काम हो चुका था, बस लाश और ठिकाने लगानी बाकी थी. इस के लिए मूड बनाने के लिए इन लोगों ने बुलंदशहर में विक्रांत के ट्यूबवैल पर जोरदार पार्टी की.

जब रात गहराने लगी तो इन वहशियों ने रेशू की लाश को एक बोरे में ठूंसा और बोरा पहासू इलाके में ले जा कर गंगनहर में बहा दिया. इस के बाद सभी अपनेअपने रास्ते हो लिए.

आरोपियों में से सुरेंद्र त्यागी हापुड़ का रहने वाला है और पुलिस में दरोगा पद से रिटायर हुआ है जबकि राहुल उस का नौकर था. लीलू ने सुरेंद्र को रेशू की हत्या की सुपारी दी थी, जिस ने बुलंदशहर के आदतन अपराधी विक्रांत को भी इस वारदात में शामिल कर लिया था.

इन दोनों का याराना विक्रांत के एक जुर्म में जेल में बंद रहने के दौरान हुआ था. लीलू ने हत्या के एवज में 4 लाख रुपए नकद दिए थे और बाकी बाद में एक बीघा जमीन बेचने के बाद देने का वादा किया था.

रेशू के लापता होने के बाद ब्रजेश ने बेटे को काफी खोजा और फिर थकहार कर 15 अगस्त को मुरादनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. हालांकि लीलू ने इस बार भी उन्हें यह कह कर रोकने की कोशिश की थी कि पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से क्या फायदा होगा.

लेकिन फायदा हुआ. 24 सितंबर को वह पकड़ा गया और अपने साथियों सहित जेल में है. लीलू इत्तफाकन पकड़ा गया, नहीं तो पुलिस भी हार मान चुकी थी कि अब रेशू नहीं मिलने वाला.

पुलिस के पास रेशू को ढूंढने का कोई सूत्र नहीं था, सिवाय इस के कि उस के और लीलू के फोन की लोकेशन एक ही जगह की मिल रही थी, जो उसे हत्यारा मानने के लिए पर्याप्त नहीं था. लेकिन इनवैस्टीगेशन के दौरान एक औडियो रिकौर्डिंग पुलिस के हत्थे लग गई, जिस में लीलू रेशू की हत्या का प्लान बाकी चारों में से किसी को बता और समझा रहा था.

फिर लीलू ने 5 हत्याओं की बात कुबूली. हत्याओं में 2-3 साल का गैप वह इसीलिए रखता था कि हल्ला न मचे और लोग पिछली हत्या का दुख भूल जाएं.

पुलिस हिरासत में लीलू कभी यह कहता रहा कि उसे उन हत्याओं का कोई मलाल नहीं. तो कभी यह कहता रहा कि सजा भुगतने के बाद वह भाईभाभी की सेवा कर किए गए जुर्म का प्रायश्चित करना चाहता है.

हैरानी की बात सिर्फ यह है कि 5 हत्याओं का यह गुनहगार लीलू जेल से छूट जाने की उम्मीद पाले बैठा है. वह शायद इसलिए कि 5 में से एक भी लाश बरामद नहीं हो सकी.

लेकिन अब लोगों की मांग है कि ऐसे आस्तीन के सांप का जिंदा रहना ठीक नहीं है, लिहाजा उसे फांसी की सजा मिलनी चहिए. यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह जरूर एक बड़ी कानूनी खामी साबित होगी.

अधेड़ उम्र का इश्क : पति की कातिल दुलारी

बांदा जिले के बुधेड़ा गांव के रहने वाले शिवनारायण निषाद 18 जून, 2021 की रात को गांव में रामसेवक के घर एक शादी के कार्यक्रम में शामिल होने गए थे. जब वह देर रात तक वापस नहीं लौटे तो घर पर मौजूद पत्नी दुलारी की चिंता बढ़ने लगी. उस समय दुलारी घर पर अकेली थी. उस का 20 वर्षीय बेटा और 17 वर्षीय बेटी राधा गांव अलमोर में स्थित एक रिश्तेदारी में गए हुए थे. दुलारी ने पति की चिंता में जैसेतैसे कर के रात काटी.

सुबह होने पर दुलारी ने अपने बेटे को फोन कर के रोते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे पिताजी गांव में ही रामसेवक चाचा के घर मंडप पूजन के कार्यक्रम में शामिल होने गए थे, लेकिन अभी तक वह घर वापस नहीं लौटे हैं.’’

बेटे दीपक ने जब अपने पिता के गायब होने ही बात सुनी तो वह भी घबरा गया. फिर वह मां को समझाते हुए बोला, ‘‘घबराओ मत मां, मैं घर आ रहा हूं. हो सकता है पिताजी रात होने पर वहीं रुक गए हों. फिर भी आप उन के घर जा कर पूछ आओ.’’

‘‘ठीक है बेटा, मैं रामसेवक चाचा के घर पता करने जा रही हूं.’’ दुलारी ने दीपक से कहा.

दुलारी जब रामसेवक के घर पहुंची तो रामसेवक ने बताया कि शिवनारायण गांव के ही 2 लोगों सूबेदार और चौथैया के साथ रात 10 बजे ही वहां से लौट गए थे.

यह बात दुलारी ने दीपक को फोन कर के बताई तो दीपक के मन में तमाम तरह की आशंकाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया. उसी दिन दीपक अपनी बहन के साथ गांव अलमोर से घर वापस  लौट आया. दुलारी और घर के लोग सोचने लगे कि जब रामसेवक चाचा के यहां से वह लौट आए तो कहां चले गए. अभी तक वह घर क्यों नहीं आए? उस दिन दीपक अपने ताऊ पिता रामआसरे, मां दुलारी और परिजनों के साथ पिता को आसपास खोजने में लगा रहा.

इस के बाद परिजनों ने सूबेदार और चौथैया से शिवनारायण के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि हम लोग रात में 10 बजे साथ ही लौटे थे और गांव के शिवलाखन की पान परचून की दुकान पर गए, लेकिन उस समय उस की दुकान बंद थी. तब हम लोग अलगअलग हो कर अपनेअपने घरों को वापस लौट गए थे. इस के बाद शिवनारायण कहां गया, हमें नहीं पता.

शिवनारायण की 2 बेटियां, जो अपनी ससुराल में थीं, वह भी पिता के लापता होने की सूचना मिलने पर मायके आ चुकी थीं.

अब शिवनारायण के घर वालों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगी थीं. बेटे दीपक और बेटियों का रोरो कर बुरा हाल था. इस दौरान बेटे ने अपने सभी रिश्तेदारियों में फोन कर उन के बारे में जानना चाहा. लेकिन सभी जगह निराशा ही हाथ लग रही थी.

शिवनारायण को गायब हुए 2 दिन होने वाले थे, फिर भी घर वाले पुलिस के पास न जा कर इधरउधर खोजने में ही लगे हुए थे. इसी दौरान 20 जून, 2021 की सुबह गांव के सूबेदार और अन्य लोग जब यमुना नदी किनारे से जा रहे थे. तो उन्होंने हाथपैर बंधे घुटनों के बीच डंडा फंसे एक लाश पड़ी देखी. यह बात उन्होंने गांव के अन्य लोगों को बताई. इस के बाद वह लाश देखने के लिए यमुना किनारे गए. वहां ग्रामीणों की भीड़ इकट्ठा होने लगी थी.

गांव वालों ने वह लाश पहचान ली. मृतक और कोई नहीं 2 दिन से गायब हुआ शिवनारायण ही था.

इधर ग्रामीणों ने नदी के किनारे लाश मिलने की सूचना स्थानीय थाने जसपुरा के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह को भी दे दी. थानाप्रभारी सुनील इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को देने के बाद अपने मातहतों के साथ घटनास्थल पर रवाना हो गए.

नदी के किनारे लाश मिलने की सूचना पा कर शिवनारायण निषाद के परिजन भी रोतेबिलखते वहां पहुंच चुके थे. पति की लाश देख कर दुलारी दहाड़ें मार कर रोने लगी.

सूचना पा कर बांदा के एसपी अभिनंदन के अलावा एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह चौहान, सीओ (सदर) सत्यप्रकाश शर्मा के साथ मौके पर पहुंच गए.

पुलिस नें अपनी जांच में पाया कि लाश पानी में फूल कर उतरा कर नदी के किनारे आई है. ऐसे में अनुमान लगाया कि शिवनारायण की हत्या 18 जून की रात में कर दी गई थी. क्योंकि पानी में पड़ा शव करीब 24 घंटे बाद ही उतरा कर ऊपर आता है.

थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने वहां से कुछ सबूत भी जुटाए.

पुलिस ने लाश को देख कर यह कयास लगाया कि हत्या में एक से ज्यादा लोग शामिल रहे होंगे. क्योंकि पुलिस को घटनास्थल पर ऐसा कोई निशान और न ही दोपहिया व चार पहिया वाहनों के टायरों के निशान मिले, जिस से यह कहा जा सके कि हत्या इसी जगह पर की गई थी.

इसी को आधार बना कर पुलिस यह मान रही थी कि हत्या कहीं और की गई है. लाश को नदी में ठिकाने लगाने के उद्देश्य से यहां ला कर फेंका गया था.

जिस समय बुधेड़ा गांव में पुलिस अधिकारी व थाने की पुलिस घटनास्थल का मौकामुआयना कर रही थी, पुलिस को वहां जमीन पर खून पड़ा भी दिखा. साथ ही कुछ दूरी पर चूडि़यों के टुकड़े भी बरामद हुए थे. जिन्हें फोरैंसिक टीम ने अपने कब्जे में ले लिया.

मौके पर मौजूद गांव वालों ने बताया कि टूटी चूडि़यां मृतक की पत्नी दुलारी की हैं. उन का कहना था कि मामले की जानकारी होने पर दुलारी वहां बैठ कर रो रही थी. हो सकता है उस दौरान चूडि़यां टूट कर बिखर गई हों.

लेकिन पुलिस किसी भी साक्ष्य को हलके में नहीं ले रही थी, इसलिए वहां मौजूद हर संदिग्ध वस्तु को अपने कब्जे में ले रही थी.

इस दौरान हत्या से जुड़े साक्ष्यों को इकट्ठा करने के लिए पुलिस ने शव मिलने वाले स्थान से पैदल ही नदी किनारे करीब डेढ़ किलोमीटर तक छानबीन की, लेकिन वहां से पुलिस को कोई अन्य और खास सबूत नहीं मिला.

पुलिस ने जरूरी साक्ष्यों को इकट्ठा करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस दौरान पुलिस ने परिजनों से शिवनारायण के घर वालों से किसी से रंजिश होने की बात पूछी तो उन्होंने बताया कि उन की किसी से कोई रंजिश नहीं थी.

दोपहर तक पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला घोंट कर हत्या करने और फेफड़ों में पानी न होने की पुष्टि हुई. इस के बाद पुलिस ने शिवनारायण के बेटे दीपक की तहरीर पर हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302 व 201 के तहत दर्ज कर लिया.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने एसपी के निर्देश पर जांच के लिए एक टीम गठित की, जिस में कांस्टेबल शुभम सिंह, सौरभ यादव, अमित त्रिपाठी, महिला कांस्टेबल अमरावती व संगीता वर्मा को शामिल कर जांच शुरू की.

थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह को शुरुआती पूछताछ में मृतक शिवनारायण के बड़े भाई रामआसरे और बेटे दीपक ने बताया कि 6 महीने पहले गांव के ही एक दुकानदार ने शिवनारायण से विवाद किया था और धमकी दी थी.

इस के बाद पुलिस दुकानदार और रात में दावत में साथ रहे व लाश मिलने की सूचना देने वाले सूबेदार सहित 4 लोगों को पूछताछ के लिए थाने ले गई. लेकिन पुलिस को उन लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात नहीं मिली, जिस से उन पर हत्या का शक किया जा सके.

जसपुरा थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह शिवनारायण निषाद के हत्या की हर एंगल से जांच कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने मृतक के घर के हर सदस्य का बयान दर्ज किया था.

उन्हें जांच में पता चला कि शिवनारायण रात के 9 बजे ही दावत से अपने घर के लिए वापस लौट लिए थे. चूंकि उस समय हलकी बारिश हो रही थी, ऐसे में 45 साल की उम्र में उन के कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता था. ऐसे में पुलिस यह मान कर चल रही थी कि शिवनारायण घर लौटे थे और उन के साथ घर पर ही कोई घटना हुई थी.

उस दिन घर पर मृतक शिवनारायण की पत्नी ही मौजूद थी. क्योंकि उस के बच्चे रिश्तेदारी में पैलानी थानांतर्गत अमलोर गांव गए हुए थे. मौके पर मिली चूडि़यों के टुकड़ों के आधार पर पुलिस का शक पत्नी दुलारी पर और भी पुख्ता होता जा रहा था.

उधर पुलिस को मृतक के हाथपांव के बांधने और घुटनों के बीच डंडा बांधने की बात समझ आ चुकी थी. यह हत्या के बाद लाश को उठा कर ले जाने में उपयोग किया गया होगा.

इसी दौरान पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि उसी गांव के रहने वाले जगभान सिंह उर्फ पुतुवा का अकसर शिवनारायण निषाद के घर आनाजाना था. चूंकि शिवनारायण जगभान के खेतों में बंटाई पर खेती करता था. इसी दौरान जगभान का  शिवनारायण की पत्नी दुलारी से अवैध संबंध हो गए थे. जिस की जानकारी होने पर शिवनारायण और जगभान के बीच खटास पैदा हो गई थी.

अब पुलिस शिवनारायण की पत्नी दुलारी और जगभान पर अपनी जांच केंद्रित कर आगे बढ़ रही थी. इसी सिलसिले में थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने जगभान के घर जा कर पता करना चाहा तो वह घर पर नहीं मिला.

लेकिन उस की पत्नी दुलारी ने पुलिस को बताया कि वह शाम को 6 बजे पास के एक गांव में शादी में गए थे. वहां से वह साढ़े 11 बजे रात में लौट कर आए थे.

दुलारी ने यह भी बताया कि उन के साथ ही गांव के भोला निषाद की 4 बेटियां भी शादी में गई थीं. जहां भोला की 3 लड़कियां वहीं रुक गई थीं, जबकि एक उन के साथ वापस आई थी.

इस के बाद थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने जहां शादी थी, वहां पता किया तो लोगों ने बताया कि जगभान वहां से साढ़े 8 बजे ही निकल  गया था. फिर पुलिस ने भोला निषाद के घर जा कर पूछताछ की तो  लड़कियों ने बताया कि जगभान उन के घर 9 बजे आए थे, उस के बाद तुरंत वह वापस चले गए.

अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि जगभान जब भोला के घर से साढ़े 8 बजे चला आया तो वह अपने घर साढ़े 11 बजे रात में पहुंचा था. तो इन ढाई घंटों के दौरान वह कहां रहा.

इस आशंका के आधार पर पुलिस ने जगभान सिंह से ढाई घंटे गायब रहने का कारण पूछा तो वह उस का सही जबाब नहीं दे पाया. पुलिस ने जब कड़ाई से मृतक की पत्नी दुलारी और जगभान सिंह से पूछताछ की गई तो उन दोनों ने शिवनारायण की हत्या किए जाने की बात स्वीकारते हुए हत्या का राज

उगल दिया. उन दोनों ने शिवनारायण की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी. उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के जसपुरा थाना क्षेत्र के बुधेड़ा गांव के निवासी शिवनारायण गांव में रह कर खेती करता था. वह दूसरों के खेत बंटाई पर ले कर भी खेती करता था.

शिवनारायण ने गांव के ही जगभान सिंह का खेत भी बंटाई पर ले रखा था. खेत बंटाई में लेने के कारण खेत मालिक जगभान शिवनारायण के घर आनेजाने लगा था. इस बीच जगभान और शिवनारायण की पत्नी दुलारी के बीच नजदीकियां बढ़ाने लगी थीं.

दोनों की ये नजदीकियां कब शारीरिक संबंधों में बदल गईं, उन्हें पता ही नहीं चला. लेकिन एक दिन शिवनारायण ने जगभान और दुलारी को साथ में देख लिया तो वह आगबबूला हो गया और जगभान सिंह को घर न आने कि कड़ी हिदायत दे डाली. इस के बावजूद भी जगभान सिंह शिवनारायण के घर आता रहा.

लेकिन बारबार शिवनारायण द्वारा जगभान को घर आने से मना करने की वजह से बीते साल जगभान ने शिवनाराण को अपना खेत बंटाई पर नहीं दिया, तभी से दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

इसी बात से जगभान और दुलारी शिवनारायण से खार खाए बैठे थे. वह इसी उधेड़बुन में थे कि किसी तरह शिवनारायण को ठिकाने लगाया जाए.

हत्यारोपी दुलारी ने बताया कि घटना वाले दिन उन के अविवाहित बेटाबेटी गांव अलमोर में अपने एक दिश्तेदार के घर गए हुए थे. उस दिन घर में कोई नहीं था. उसी दिन दोनों ने शिवनरायण को ठिकाने लगाने के लिए तानाबाना बुन लिया था.

जगभान दावत से लौटने के बाद  रात के 9 बजे दुलारी के घर पहुंच गया. इधर मंडप कार्यक्रम से घर लौटे शिवनरायण ने दुलारी को जगभान के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखा तो गुस्से में उस का खून खौल गया और वह पत्नी को मारनेपीटने लगा और जगभान से गालीगलौज करने लगा.

तभी दुलारी ने प्रेमी जगभान के साथ मिल कर अपने पति को चारपाई पर पटक दिया और गला दबा कर उस की हत्या कर दी. उसी दौरान उन लोगों नें लाश को ठिकाने लगाने का प्रयास किया, लेकिन गांव के लोग उस समय जाग रहे थे. ऐसे में उन्होंने शिवनारायण की लाश चारपाई के नीचे छिपा दी. इस के बाद जगभान रात के 11 बजे अपने घर चला आया.

जगभान ने बताया कि रात करीब 2 बजे जब मोहल्ले के लोग गहरी नींद में सो रहे थे, तब वह रात के सन्नाटे में फिर से शिवनारायण के घर पहुंचा. जहां उस ने और दुलारी ने शिवनारायण की लाश के हाथपांव बांध कर दोनों पैरों के बीच डंडा डाल कर लाश को यमुना नदी में फेंक आए. इतना सब करने के बाद दुलारी और जगभान अपनेअपने घर चले गए.

घर आने के बाद दुलारी ने पति के गायब होने की खबर पूरे गांव में फैला दी और जानबूझ कर पति को खोजने का नाटक करती रही. लेकिन पुलिसिया जांच में उन का जुर्म छिप नहीं सका.

पुलिस ने शिवनारायण की पत्नी दुलारी और उस के आशिक जगभान से पूछताछ करने के बाद दोनों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. वहीं एसपी अभिनंदन ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को ईनाम देने की घोषणा की है. द्य

 

मामी की बेवफाई : लता बनी परिवार की बर्बादी का कारण

छाया : सोहेब मलिक

19वर्षीया काजल बेचैन हो कर अपने घर में टहल रही थी. वह बारबार रो रहे अपने छोटे भाई शिवम को चुप कराती थी, मगर शिवम मां को याद कर के बारबार रोने लगता था.

हरिद्वार जिले के गांव हेतमपुर की रहने वाली काजल व शिवम की मां लता चौहान (38) गत शाम को पास के ही कस्बे बहादराबाद में सब्जी खरीदने के लिए घर से निकली थी, मगर आज तक वह वापस घर नहीं लौटी थी.

उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ आ रहा था. मां के वापस न लौटने व मोबाइल के स्विच्ड औफ होने से काजल व शिवम का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. दोनों भाईबहन पिछली शाम से ही अपने सभी रिश्तेदारों को फोन कर कर के अपनी मां के बारे में जानकारी कर रहे थे, मगर उन की मां के बारे में सभी रिश्तेदारों ने मोबाइल पर अनभिज्ञता जताई.

इस के बाद सूचना पा कर कुछ रिश्तेदारों व कुछ पड़ोसियों का भी उन के घर पर आना शुरू हो गया था. सभी भाईबहन को दिलासा दे कर चले जाते.

इसी प्रकार 3 दिन बीत गए थे, लेकिन काजल व शिवम को अपनी मां के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिली. इस के बाद अब उन के रिश्तेदार काजल पर लता की गुमशुदगी थाने में दर्ज कराने पर जोर देने लगे. लेकिन थाने जाने के नाम से काजल को एक अंजाना सा डर लग रहा था.

वह 14 जून, 2021 का दिन था. आखिर उस दिन काजल हरिद्वार के थाना सिडकुल पहुंच ही गई. वह थानाप्रभारी लखपत सिंह बुटोला से मिली और उन्हें अपनी मां लता चौहान के गत 4 दिनों से लापता होने की जानकारी दी.

जब थानाप्रभारी बुटोला ने काजल से उस के पिता के बारे में पूछा तो काजल ने बताया, ‘‘सर पिछले 2-3 सालों से मेरे पिता चंदन सिंह नेगी व मां लता चौहान के बीच अनबन चल रही है. मेरे पिता फरीदाबाद (हरियाणा) में रह कर ड्राइवरी करते हैं. यहां पर 2 साल पहले मेरे फुफेरे भाई अंकित चौहान ने हमें एक मकान खरीद कर दिया था. इस मकान में हम तीनों रहते हैं. घर से चलते समय मेरी मां हरे रंग का सूट सलवार व पैरों में सैंडिल पहने थी.’’

इस के बाद काजल ने मां का मोबाइल नंबर भी थानाप्रभारी बुटोला को नोट करा दिया. फिर थानाप्रभारी के कहने पर काजल वापस घर आ गई.

काजल की तहरीर पर थानाप्रभारी बुटोला ने लता की गुमशुदगी दर्ज कर ली और इस केस की जांच एसआई अमित भट्ट को सौंप दी. लता की गुमशुदगी का केस हाथ में आते ही अमित भट्ट सक्रिय हो गए.

उन्होंने सब से पहले लता के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाने के लिए साइबर थाने से संपर्क किया था और थाने के 2 सिपाहियों को लता चौहान की डिटेल्स का पता करने के लिए सादे कपड़ों में गांव हेतमपुर में तैनात कर दिया.

उसी दिन शाम को थानाप्रभारी लखपत सिंह बुटोला ने लता की गुमशुदगी की सूचना एएसपी डा. विशाखा अशोक भडाने व एसपी (सिटी) कमलेश उपाध्याय को दी.

2 दिनों में पुलिस को लता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स मिल गई थी. काल डिटेल्स के अनुसार 10 जून, 2021 की शाम को लता चौहान व उस के भांजे अंकित चौहान की लोकेशन हेतमपुर से सलेमपुर की गंगनहर तक एक साथ थी.

इस से पहले दोनों में बातें भी हुई थीं. इस के अलावा लता के मोबाइल पर अंतिम काल अंकित चौहान के ही मोबाइल से आई थी.

इस के कुछ समय बाद लता चौहान व अंकित चौहान की लोकेशन भी अलगअलग हो गई थी. काल डिटेल्स की यह जानकारी तुरंत ही थानाप्रभारी ने एसपी (सिटी) कमलेश उपाध्याय को दी.

एसपी उपाध्याय ने थानाप्रभारी बुटोला व एसआई अमित भट्ट को अंकित चौहान से पूछताछ करने के निर्देश दिए. बुटोला व भट्ट ने जब अंकित चौहान से संपर्क करने का प्रयास किया, तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

पुलिस ने जब अंकित चौहान के बारे में जानकारी की तो पता चला कि वह लता का सगा भांजा था. अंकित मूलरूप से बिजनौर जिले के गांव मानपुर शिवपुरी का रहने वाला था. अंकित एमएससी करने के बाद किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था.  3 साल पहले जब लता के अपने पति से संबंध बिगड़ गए थे, तब से अंकित की लता से नजदीकियां बढ़ गई थीं. इस दौरान अंकित लता व उस के दोनों बच्चों का पूरापूरा खयाल रखता था. लता के रहनेखाने से ले कर वह उन्हें हर चीज मुहैया कराता था.

यह जानकारी प्राप्त होने पर बुटोला व अमित भट्ट ने अंकित की तलाश में धामपुर व हेतमपुर में कुछ मुखबिर सतर्क कर दिए थे. विवेचक अमित भट्ट ने भी अंकित की तलाश में उस के धामपुर स्थित गांव मानपुर शिवपुरी में कई बार दबिश दी, मगर अंकित उन्हें न मिल पाया.

इसी प्रकार 9 दिन बीत गए तथा पुलिस को अंकित चौहान के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. वह 27 जून, 2021 का दिन था. शाम के 7 बज रहे थे. तभी श्री बुटोला के मोबाइल पर उन के खास मुखबिर का फोन आया.

मुखबिर ने उन्हें बताया कि सर, जिस अंकित को तलाश कर रहे हो, वह इस समय यहां हरिद्वार के रोशनाबाद चौक पर खड़ा है. यह सुनते ही बुटोला की बांछें खिल गईं.

बुटोला ने इस मामले में विलंब करना उचित नहीं समझा. उन्होंने तुरंत अपने साथ विवेचक अमित भट्ट व फोर्स को साथ लिया और 5 मिनट में ही रोशनाबाद चौक पर पहुंच गए. मुखबिर के इशारे पर उन्होंने वहां से अंकित को हिरासत में ले लिया. वह उसे थाने ले आए.

यहां पर जब बुटोला व भट्ट ने उस से लता के लापता होने के बारे में पूछताछ की, तो पहले तो वह पुलिस को गच्चा देने की कोशिश करता रहा. वह पुलिस को बताता रहा कि लता उस की मामी अवश्य थी, मगर अब वह कहां है, उस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया और बोला, ‘‘साहब, अब लता इस दुनिया में नहीं है. 10 जून, 2021 की रात को मैं ने अपने दोस्त अमन निवासी कस्बा शेरकोट जिला बिजनौर, उत्तर प्रदेश के साथ मिल कर उस की

गला घोंट कर हत्या कर दी थी तथा उस की लाश हम ने गांव सलेमपुर स्थित गंगनहर में फेंक दी थी. लता को मैं घुमाने की बात कह कर सलेमपुर गंगनहर तक लाया था.’’

अंकित के मुंह से लता की हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी बुटोला तथा वहां मौजूद अन्य पुलिस वाले सन्न रह गए. पूछताछ में उस ने लता की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

अंकित गांव मानपुर में अपने पिता हरगोविंद, मां सरोज तथा छोटे भाई अनुज के साथ रहता था. उस ने बताया कि 3 साल पहले जब लता का अपने पति के साथ विवाद हुआ था तो उस दौरान उस ने ही लता की काफी मदद की थी. उसी दौरान लता उस की ओर आकर्षित हो गई थी.

लता और अंकित के बीच अवैध संबंध बन गए थे. फिर अंकित ने लता को हेतमपुर में एक मकान खरीद कर दे दिया था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि करीब 2 महीने पहले अंकित ने लता को उस के पड़ोसी के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ लिया था.

यह देख कर अंकित को गुस्सा आ गया था. गुस्से में उस ने लता को उसे खरीद कर दिया हुआ मकान अपने नाम वापस करने का कहा तो वह टालने लगी और 2 लाख रुपए की मांग करने लगी.

लता की इस हरकत से अंकित परेशान हो गया था और अंत में वह उस की हत्या की योजना बनाने लगा. यह बात उस ने अपने दोस्त अमन को बताई तो वह भी अंकित का साथ देने को राजी हो गया. दोनों ने इस की योजना बनाई.

योजना के अनुसार 10 जून, 2021 को अंकित अमन के साथ रात 8 बजे लता के घर पहुंचा था. इस के बाद उसे घुमाने की बात कह कर वह लता को ले कर गंगनहर किनारे गांव सलेमपुर पहुंचा था. उस समय वहां रात का अंधेरा छाया था.

मौका मिलने पर अमन ने तुरंत ही लता को पकड़ कर उस का गला घोंट दिया था. लता के मरने के बाद दोनों ने उस की लाश गंगनहर में फेंक दी थी. उस समय रात के 11 बज चुके थे. इस के बाद अमन वापस अपने घर चला गया था. लता का मोबाइल उस समय अंकित के पास ही था.

जब उस ने 12 जून, 2021 को मोबाइल औन किया तो उस में फोन आने शुरू हो गए थे.

तब अंकित ने उस में से सिमकार्ड निकाल कर मोबाइल व सिम को सिंचाई विभाग की गंगनहर में फेंक दिया था.

इस के बाद पुलिस ने अंकित के बयान दर्ज कर लिए और लता की गुमशुदगी के मुकदमे को हत्या में तरमीम कर दिया.

पुलिस ने इस केस में आईपीसी की धाराएं 302 व 120बी और बढ़ा दी थीं. 2 जुलाई, 2021 को पुलिस ने अंकित को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरोपी अंकित जेल में ही बंद था. थानाप्रभारी लखपत सिंह बुटोला द्वारा गंगनहर में लता के शव को तलाश किया जा रहा था. दूसरी ओर पुलिस दूसरे आरोपी अमन की तलाश में जुटी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

18 टुकड़ों में मिली लाश का रहस्य

टुकड़ों में बरामद लाश की पहचान करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर होती है. ऐसा ही एक मामला राजधानी दिल्ली में आया. हत्यारे ने लाश के 1-2, नहीं बल्कि 18 टुकड़े कर दिए थे. जानिए हत्यारे की क्रूरता की कहानी…

पश्चिमी दिल्ली में मोहन गार्डन थाने के प्रभारी राजेश मौर्या को 72 साल की वृद्धा के लापता होने की शिकायत मिली थी. शिकायतकर्ता मोहन गार्डन में ही रामा गार्डन के रहने वाले ग्रोवर दंपति थे. वे किराए के मकान में रहते थे. लापता कविता ग्रोवर मनीष ग्रोवर की मां और मेघा की सास थीं.

थानाप्रभारी ने मामले को आए दिन की सामान्य घटना मानते हुए मनीष को समझाया कि उन की मां यहीं कहीं आसपास गई होंगी, आ जाएंगी. साथ ही सुझाव भी दिया कि वह अपनी रिश्तेदारी या जानपहचान में पता कर लें. शायद वहीं मिल जाएं! फिर भी उन्होंने मनीष की तसल्ली के लिए पूछ लिया कि उन की या घर में किसी दूसरे सदस्य की मां के साथ हालफिलहाल में कोई कहासुनी तो नहीं हुई?

मनीष ने ऐसी किसी भी बात से इनकार कर दिया. लेकिन मौर्या की निगाह जब खामोश बैठी मेघा पर गई तो उन्हें थोड़ा अजीब लगा. उन्होंने मेघा की ओर सवालिया नजरों से देखा.

मेघा झट से बोल पड़ी, ‘‘सर, जब से मैं ब्याह कर आई हूं, तब से कभी भी मैं ने सास से ऊंची आवाज तक में बात नहीं की. सासूमां भी मुझे बेटी की तरह मानती थीं. वह बिना बताए ऐसे कहीं नहीं जाती थीं.’’

‘‘आप लोगों को ऐसा क्यों लग रहा है कि कविता ग्रोवर गायब हो गई हैं? मुझे थोड़ा और विस्तार से बताइए.’’ मौर्या ने कहा.

‘‘सर, हम लोग रिश्तेदारी में एक मौत की खबर पा कर 30 जून को सिरसा चले गए थे. वहां से जब 3 जुलाई को लौटे तब घर में ताला लगा मिला. हम ने दूसरी चाबी से ताला खोला. पहले तो हम ने सोचा मां इधरउधर कहीं पड़ोस में गई होंगी. थोड़ी देर में आ जाएंगी. लेकिन…’’

मेघा बोल ही रही थी कि बीच में मनीष बोलने लगे, ‘‘सर, एक पड़ोसी ने बताया कि घर में 2 दिनों से ताला लगा हुआ था. उस के बाद से ही हमें चिंता हो गई. हम ने उन की आसपास तलाश भी की.’’

‘‘ठीक है, आप लोग गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दीजिए.’’ राजेश मौर्य ने कहा.

मनीष ने सूचना लिखवाने के बाद साथ लाई मां की एक फोटो भी उन्हें दे दी और वापस अपने घर आ गए. पुलिस ने काररवाई शुरू करते हुए गुमशुदा कविता ग्रोवर की तसवीर सभी थानों में भिजवा दी.

वृद्धा की तलाश तेजी से जारी थी. 4 दिन गुजर गए थे, फिर भी कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. मौर्या परेशान थे. पांचवें दिन 8 जुलाई, 2021 को उन्हें मेघा का फोन आया.

उन्हें लगा मेघा उन से फिर से अपनी सासूमां की तलाश नहीं हो पाने की शिकायत करेंगी. लेकिन मेघा ने उन्हें फ्लैट में ही कविता ग्रोवर के बारे में कुछ सुराग मिलने की जानकारी दी.

यह सुन कर थानाप्रभारी भागेभागे मनीष के घर आ गए. अपने साथ एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल रतनलाल को भी ले गए थे. मनीष बिल्डिंग में थर्ड फ्लोर पर रहते थे. वे मेघा के साथ कविता के रहने के कमरे में गए. वहां एक पलंग, एक अलमारी और बैठने के लिए 2 आरामदायक कुरसियां थीं.

‘‘कमरे के सामान को हम ने जरा भी छेड़ा नहीं है. आज जब मैं ने कमरे के बिस्तर को ध्यान से देखा. तब मुझे बिस्तर की चादर काफी सिमटी दिखी. उसे देख कर मैं कह सकती हूं कि सासूमां रात भर करवटें बदलती रही होंगी.’’ मेघा बोली.

इस पर इंसपेक्टर ने ध्यान से बिस्तर का निरीक्षण किया. उन्होंने भी अनुमान लगाया कि सामान्य तरह से सोने पर बिस्तर की सिलवटें बहुत अधिक नहीं बनती हैं. तभी उन्होंने सवाल किया, ‘‘मेघाजी, आप सास का एक बैग गायब होने की बात बता रही थीं.’’

‘‘जी हां सर, सासूमां का एक बैग गायब है, जिस में उन की ज्वैलरी और बैंक के कागजात थे. और हां, मेरी सासूमां का मोबाइल भी नहीं मिल रहा है.’’ मेघा बोली.

इस पर थानाप्रभारी मौर्या ने गंभीरता दिखाते हुए कमरे का कोनाकोना छान मारा. इस सिलसिले में बाथरूम की दीवारें संदिग्ध लगीं. कारण दीवारों को रगड़रगड़ कर धोने के निशान साफ दिख रहे थे.

ध्यान से देखने पर एकदो छोटे काले निशान अभी भी दिख रहे थे. उस की जांच के लिए फोरैंसिक टीम बुलाई गई.

जांच के लिए तमाम तरह के नमूने एकत्रित किए गए. घर के बाहर सीसीटीवी कैमरे से 30 जून और एक जुलाई की रात के फुटेज निकलवाए गए.

सीसीटीवी फुटेज में 2 बड़े बैग के साथ घर से रात को निकलते हुए 2 लोग दिखे. उन की तसवीर प्रिंट करवा कर मेघा से पहचान करवाई गई. मेघा ने देखते ही कहा कि ये दोनों उन के पड़ोसी अनिल आर्या और कामिनी आर्या हैं. उन की गैरमौजूदगी में यही सासूमां का खयाल रखते थे.

पुलिस ने बताया कि ये दोनों 30 जून की रात को 11 बजे आप के घर आए थे और सुबह साढ़े 6 बजे आप के घर से निकले थे. तब उन के पास 2 बड़े बैग थे.

अब मेघा समझ चुकी थी कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उस ने बताया कि उन की सास के पास इतना बड़ा बैग नहीं था. फिर खुद ही सवाल किया, ‘‘बैग में क्या हो सकता है, घर का सारा सामान तो यूं ही पड़ा है.’’

तहकीकात से मालूम हुआ कि आर्या दंपति गुरुद्वारा रोड पर किराए के मकान में रहते थे. पहली जुलाई के बाद से वे नहीं दिखे.

उधर फोरैंसिक जांच की रिपोर्ट से पता चला कि बाथरूम की दीवार पर वह काले निशान खून के धब्बे थे. इस का मतलब स्पष्ट था कि कविता ग्रोवर की किसी ने हत्या कर दी.

आगे की जांच के लिए जांच टीम बनाई गई और हत्यारे की तलाश की जाने लगी. इस मामले में शक की सुई पूरी तरह से अनिल आर्या और उस की पत्नी कामिनी आर्या की तरफ घूम चुकी थी. सवाल यह था कि दोनों बैग ले कर कहां लापता हो गए?

काफी पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि दोनों उत्तराखंड में रानीखेत के मूल निवासी हैं. उन की तलाश के लिए पुलिस टीम रानीखेत पहुंची, लेकिन वे हाथ नहीं आए. केवल इतना पता चल सका कि 3 जुलाई, 2021 को टैक्सी स्टैंड पर दिखे थे.

इसी बीच दोनों के बारे में दिल्ली के एक आटो वाले से कुछ जानकारी मिली. उस ने बताया कि दोनों उस के परमानेंट ग्राहक थे. हमेशा उस के आटो से ही कहीं भी आतेजाते थे.

आटो ड्राइवर ने बताया कि 30 जून की आधी रात को मुझे फोन कर अगले रोज सुबह आने के लिए कहा था. मैं उन के पास ठीक सवा 6 बजे पहुंच गया था. अनिल आर्या और उस की पत्नी 2 बैग घसीटते हुए ले कर आए थे. उन्होंने कहा था कि दोस्त के यहां पार्टी है, उन के लिए चिकन का बैग पहुंचाना है. और वे आटो पर सवार हो गए.

थोड़ी दूर पर ही वे नजफगढ़ के पास उतर गए. उस के बाद वे कहां गए, मालूम नहीं. पूछने पर सिर्फ इतना बताया कि उन का दोस्त यहीं गाड़ी ले कर आएगा.

पुलिस ने आटो वाले से अनिल आर्या का मोबाइल नंबर ले लिया. मोबाइल से बात नहीं बनी, लेकिन आटो और दूसरे दरजनों टैक्सी वालों से पूछताछ के बाद आर्या दंपति को उत्तर प्रदेश के बरेली से 12 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें दिल्ली लाया गया. उन से गहन पूछताछ की गई.

जल्द ही दोनों ने कविता ग्रोवर की हत्या की बात स्वीकार ली. उन्होंने जो बताया, वह किसी हैवानियत से जरा भी कम नहीं था. मानवता को शर्मसार करने वाली घटना को बड़ी क्रूरता से अंजाम दिया गया.

उन्होंने स्वीकार कर लिया कि 30 जून की रात को क्याक्या हुआ था. उन्होंने कविता ग्रोवर की हत्या करने का कारण भी बताया.

इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाले अनिल आर्या के अनुसार उस के लालच और स्वार्थ से भरे इस हत्याकांड की नींव 2 साल पहले ही पड़ गई थी. उस ने कविता ग्रोवर से जानपहचान बढ़ा कर उन से डेढ़ लाख रुपए उधार लिए थे, जिस की मांग वह लगातार करती थीं.

अनिल ने बताया कि 30 जून, 2021 को मनीष और मेघा सिरसा चले गए थे. उसी रात वह पत्नी के साथ पूरी तैयारी के साथ कविता के पास जा पहुंचा था. कविता ग्रोवर उन दोनों को अपना हितैषी समझती थीं, इसलिए देर रात को आने पर कोई सवालजवाब नहीं किया.

उन के बीच देर रात तक इधरउधर की बातें होती रहीं. इसी बीच कविता अपनी उधारी मांग बैठीं. बात बढ़ गई. कविता ने नाराजगी दिखाते हुए कह दिया कि पैसे वापस नहीं लौटाए तो वह इस बारे में अपने बहूबेटे को बता देगी.

फिर क्या था. तब तक अनिल को भी काफी गुस्सा आ गया था. उस ने तुरंत कविता के मुंह पर जबरदस्त मुक्का जड़ दिया. वह बिछावन पर वहीं गिर पड़ीं. अनिल ने उन के सीने पर सवार हो कर साथ लाई नायलौन की रस्सी से गला घोंट डाला.

कविता की मौत हो जाने के बाद अनिल लाश को बाथरूम में ले गया और साथ लाए बड़े चाकू से लाश के 18 टुकड़े कर डाले. सारे टुकड़े उस ने 2 बड़ेबड़े बैगों में भरे. इस काम में उन दोनों को करीब 4 घंटे का समय लगा.

उस की पत्नी कामिनी ने इस में पूरा साथ दिया और उस ने बाथरूम की दीवारें साफ कीं. फिर टुकड़े ठिकाने लगाने के लिए अपने जानपहचान के आटो वाले को फोन कर बुला लिया.

आटो से वह दोनों नजफगढ़ तक आए. आटो के जाने के बाद वहीं नाले में बैग फेंक दिए. उस के बाद वह उसी रोज कविता के घर से लाए जेवरों को मुथुट फाइनैंस में गिरवी रख आए. उस से मिले 70 हजार रुपए ले कर उन्होंने अपने कुछ जेवर छुड़वाए और रानीखेत चले गए.

पकड़े जाने के डर से वह वहां 2 घंटे ही रुके. यहां तक कि अपने घर भी नहीं गए. रास्ते में ही अपने मोबाइल का सिम और हत्या में इस्तेमाल चाकू आदि सामान को फेंक दिया. फिर बरेली जा कर एक कमरा किराए पर लिया और रहने लगे.

पुलिस ने उस के बताए अनुसार न केवल थैले से लाश के टुकड़े बरामद कर लिए, बल्कि हत्या में इस्तेमाल सामान भी हासिल कर लिया.

लाश के कुल 18 टुकड़े किए गए थे, जो सड़गल चुके थे. पुलिस ने मुथुट फाइनैंस से गिरवी रखे जेवर भी हासिल कर लिए. उन की शिनाख्त मेघा ग्रोवर ने कर दी.

इस तरह अनिल और कामिनी द्वारा हत्या का जुर्म स्वीकार करने के बाद अपहरण के केस को हत्या कर लाश ठिकाने लगाने की धारा 302, 201 आईपीसी में तरमीम कर दिया गया. फिर दोनों को अदालत में पेश कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

शरीरों के खेल में मासूम कार्तिक बना निशाना – भाग 2

लाश बन कर मिला मासूम बेटा कार्तिक

बैरागढ़ थाने के टीआई सुधीर अरजरिया गुमशुदगी की रिपोर्ट पर कोई काररवाई कर पाते, उस के पहले ही उन के पास एक फोन आया. थाने से करीब 17 किलोमीटर दूर मुबारकपुर इलाके के टोल नाके के कर्मचारियों ने उन्हें फोन कर के बताया कि वहां संदिग्ध हालत में एक बोरी पड़ी है. बोरी के बारे में जो बताया गया था, उस से लग रहा था कि उस में किसी बच्चे की लाश है. मुबारकपुर, परवलिया थाना इलाके में आता है.

चूंकि परसराम ने कार्तिक के स्कूल से लापता होने की रिपोर्ट लिखाई थी, इसलिए पुलिस वालों को शक हुआ कि कहीं कार्तिक के साथ कोई हादसा न हो गया हो. पुलिस ने परसराम को फोन कर के तुरंत थाने बुलाया और जीप में बैठा कर मुबारकपुर की तरफ रवाना हो गए.

13 किलोमीटर का यह सफर परसराम के लिए 13 साल जैसा गुजरा. मन में आशंकाएं आजा रही थीं कि कार्तिक के साथ कहीं कोई अनहोनी न हुई हो.

मुबारकपुर पहुंच कर जब उन के सामने बोरी खोली गई तो परसराम की सांसें रुक सी गईं. बोरे में उन के मासूम बेटे कार्तिक की ही लाश थी. लाश स्कूल यूनिफार्म में ही थी और गले में आईकार्ड भी लटक रहा था. आईकार्ड में दर्ज पता देख कर ही परवलिया पुलिस ने बैरागढ़ थाने को इत्तला दी थी.

कार्तिक का कत्ल हुआ है, यह जान कर पूरे बैरागढ़ में हाहाकार मच गया. धीरेधीरे लोग बैरागढ़ थाने पहुंचने लगे. हर किसी की जुबान पर स्कूल प्रबंधन की लापरवाही की बात थी. थाने में कविता और परसराम का रोरो कर बुरा हाल था. ऐसे में उन से ज्यादा सवाल पूछा जाना मुनासिब नहीं था, लेकिन बढ़ती भीड़ और उस के गुस्से को देख कर जरूरी हो चला था कि मासूम के कत्ल की गुत्थी जल्द से जल्द सुलझे.

जब पतिपत्नी थोडे़ सामान्य हुए तो पुलिस ने उन से पूछा कि क्या उन्हें किसी पर शक है? इस पर कविता एकदम फट पड़ी और सीधे अपने पड़ोस में रहने वाले विशाल रूपानी उर्फ बिट्टू पर शक जता दिया.

कविता के बताए अनुसार, विशाल उस के दोनों बच्चों को घर पर ट्यूशन पढ़ाने के लिए आता था. धीरेधीरे कविता पर उस की नीयत खराब हो गई और वह उस के साथ गलत हरकतें करने लगा. यह बात जब परसराम को पता चली तो उस ने विशाल का घर आना बंद कर दिया. हादसे के 2 दिन पहले ही परसराम और उस का भाई दिलीप विशाल को ले कर थाने आए थे, जहां सुलह हो जाने पर मामला रफादफा हो गया था.

वजह कुछ और ही थी कार्तिक की हत्या की

पुलिस के सामने अब सारी कहानी आइने की तरह साफ थी, लेकिन हालात ऐसे नहीं थे कि कविता से विस्तार से पूछताछ की जाती. दूसरे दिन सुबह को गुस्साए लोगों ने स्कूल का घेराव किया. लेकिन भीड़ को किसी तरह समझाबुझा कर शांत कर दिया गया. पुलिस वालों ने बेहतर यही समझा कि पहले कार्तिक का अंतिम संस्कार हो जाए, उस के बाद छानबीन की जाए. एक तरह से यह साबित हो गया था कि हत्यारा विशाल ही है. पुलिस ने उसे हादसे की रात ही गिरफ्तार कर लिया था.

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इधर सुबह व्हाट्सऐप पर एक मैसेज वायरल हुआ तो हकीकत से अंजान भीड़ का गुस्सा स्कूल पर उतरने लगा. 9 जनवरी की सुबह भीड़ ने क्राइस्ट मेमोरियल स्कूल को घेर कर प्रदर्शन किया. स्कूल के सामने प्रदर्शन कर रहे लोग इस बात का जवाब चाहते थे कि कार्तिक के मामले में लापरवाही क्यों बरती गई. इसी दौरान परसराम की कहासुनी प्रिंसिपल डाक्टर मैनिज मैथ्यूज से भी हुई.

परसराम का आरोप था कि स्कूल प्रबंधन की लापरवाही के चलते ही कार्तिक का अपहरण हुआ. आरोप गलत नहीं था, लेकिन तब तक सच का कुछ हिस्सा भी वायरल होने लगा था. कार्तिक के पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने पूरी छानबीन के बाद जो बताया वह इस लिहाज से चौंका देने वाला था कि कविता और विशाल के नाजायज संबंध थे.

दरअसल, विशाल बच्चों को पढ़ातेपढ़ाते खुद कविता से किसी और विषय की ट्यूशन लेने लगा था. यह विषय था एक नवयुवक और गृहिणी के बीच का दैहिक आकर्षण जो अकसर ऐसे हादसों की वजह बनता है.

विशाल और परसराम के परिवारों के बीच काफी घनिष्ठ संबंध थे. साल 1997 के आसपास विशाल की मां अपने पति को छोड़ कर पिता के पास आ कर रहने लगी थी. तब विशाल पेट में था. परसराम का घर पड़ोस में था और दोनों परिवारों के बीच संबंध घर जैसे थे. विशाल की मां का अपने पति से इतना गहरा विवाद था कि वह दोबारा कभी पति के पास नहीं गई. वह पिता के पास ही रही और गुजारे के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगी थी. तब परसराम खुद एक स्कूली छात्र हुआ करता था.

गहरे और पुराने रिश्ते थे परसराम और विशाल के परिवार के

विशाल बड़ा हुआ और स्कूल होते हुए बैरागढ़ के ही साधु वासवानी कालेज में पढ़ने लगा. नौकरी के नाम पर वह बैरागढ़ के ही कृष्णा कौंप्लेक्स की एक दुकान में नौकरी करने लगा था. इधर कनक और कार्तिक को पढ़ाने के लिए परसराम ने उसे बतौर ट्यूटर रख लिया, क्योंकि एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा था.

पहले तो परसराम के घर उस का कभीकभार ही आनाजाना होता था, लेकिन जब वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने आने लगा तो रोजरोज उस का सामना कविता से होने लगा. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी कविता का यौवन ढला नहीं था. विशाल रोजाना अपनी पड़ोसन भाभी को देखता तो उस के मन में कुछकुछ होने लगा.

यह प्यार था या शारीरिक आकर्षण, यह तय कर पाना मुश्किल है. 19 साल की उम्र आजकल के लिहाज से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं होती. विशाल की चाहत कविता के प्रति बढ़ने लगी. जब भी वह कनक और कार्तिक को पढ़ाने के दौरान भाभी को देखता था तो उस के नाजुक अंग देख कर रोमांचित और उत्तेजित हो जाता था.