Story Hindi : जिसे सबने मरा समझ लिया था, वह अचानक निकली जिन्दा

हरियाणा के जिला पानीपत के थाना नगर के मोहल्ला आजादनगर की रहने वाली 20 साल की सिमरन दुबे आर्य डिग्री कालेज में बीए के दूसरे साल में पढ़ रही थी. पढ़ाई के साथसाथ वह एनएसएस (नेशनल सर्विस स्कीम) यानी राष्ट्रीय सेवा योजना की सदस्य भी थी. यह संस्था अपने सदस्यों का कैंप लगवाती है, जिस में समाजसेवा कराई जाती है. इस में जिस लड़के या लड़की का काम अच्छा होता है, उसे कालेज की ओर से प्रमाण पत्र दिया जाता है.

एसडी कालेज का बीए फाइनल ईयर में पढ़ रहा कृष्ण देशवाल एनएसएस का अध्यक्ष था. इसी साल जनवरी महीने में एसडी कालेज का एनएसएस का कैंप आर्य डिग्री कालेज में लगा था. उसी दौरान सिमरन दुबे की मुलाकात कृष्ण देशवाल से हुई तो दोनों में अच्छी जानपहचान हो गई. थाना नगर के ही मोहल्ला बराना की रहने वाली ज्योति भी सिमरन के साथ आर्य डिग्री कालेज में पढ़ती थी. दोनों में पटती भी खूब थी. उस से भी कृष्ण की दोस्ती हो गई थी.

5 सितंबर, 2017 की शाम 4 बजे के करीब सिमरन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उस ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘हैलो सिमरन, मैं एसडी कालेज से कृष्ण देशवाल बोल रहा हूं, तुम कैसी हो?’’

‘‘नमस्ते सर,’’ चहकते हुए सिमरन ने कहा, ‘‘मैं तो अच्छी हूं सर, आप बताइए आप कैसे हैं?’’

‘‘मैं भी ठीक हूं, यह बताओ कि तुम इस समय क्या कर रही हो?’’

‘‘घर पर हूं सर, कोई काम है क्या? अगर कोई काम हो तो कहिए, मैं आ जाती हूं.’’ सिमरन ने कहा.

‘‘दरअसल, मिलिट्री के कुछ अधिकारी शहर में आ रहे हैं. उन के लिए जीटी रोड पर स्थित गौशाला मंदिर परिसर में कैंप लगाना है. अगर तुम आ जाओ तो मेरा काम काफी आसान हो जाएगा. ज्योति भी आ रही है. कालेज के कुछ अन्य लड़के भी आ रहे हैं.’’

‘‘ठीक है सर, ऐसी बात है तो मैं भी आ जाती हूं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’ कृष्ण ने कहा और फोन काट दिया.

कृष्ण देशवाल से बात होने के बाद सिमरन जल्दी से तैयार हो कर घर वालों से कालेज जाने की बात कह कर निकल पड़ी. करीब घंटे भर बाद वह कृष्ण द्वारा बताए गौशाला मंदिर पहुंच गई. ज्योति वहां पहले से ही मौजूद थी. उसे देख कर सिमरन का चेहरा खिल उठा.

दोनों सहेलियां एकदूसरे के गले मिलीं और आपस में बातें करने लगीं. दोनों बातें कर रही थीं कि तभी कृष्ण सिमरन के लिए एक गिलास में कोल्डिड्रिंक ले आया. सिमरन ने उन्हें भी पीने को कहा तो दोनों ने एक साथ कहा कि उन्होंने अभीअभी पी है. इस के बाद सिमरन आराम से कोल्डड्रिंक पीने लगी.

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मंदिर के कमरे में लाश

कृष्ण देशवाल, सिमरन दुबे और ज्योति जिस कमरे में ठहरे थे, उस के बगल वाले कमरे में कंप्यूटर सिखाया जाता था. कंप्यूटर सिखाने का यह काम पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डा. वाई.डी. त्यागी द्वारा चलाई जा रही एनजीओ के अंतर्गत होता था. कंप्यूटर सिखाने के लिए वंदना को रखा गया था.

जिस कमरे में कृष्ण, ज्योति और सिमरन ठहरे थे, वह अंदर से बंद था. इस से वंदना को थोड़ी हैरानी हो रही थी. उन से नहीं रहा गया तो उन्होंने दरवाजा खटखटाया. करीब 15 मिनट तक दरवाजा खटखटाने के बाद खुला तो उस में से एक लड़का और लड़की बैग लिए बाहर निकले.

दोनों बाहर से कमरा बंद करने लगे तो वंदना ने उन से उन के साथ की एक अन्य लड़की के बारे में पूछा. वे बिना कुछ कहे चले गए तो वंदना ने इस बात की सूचना मंदिर के पुजारी वेदप्रकाश तिवारी को दे दी. वेदप्रकाश को मामला गड़बड़ लगा तो उन्होंने अपने भतीजे अभिनव को हकीकत पता करने के लिए भेजा.

अभिनव हौल से होता हुआ उस कमरे पर पहुंचा, जिसे लड़का और लड़की बाहर से बंद कर गए थे. दरवाजा खोल कर जैसे ही वह अंदर पहुंचा, वहां की हालत देख कर वह चीखता हुआ बाहर आ गया. उस की चीख सुन कर वंदना भी घबरा गई. वह अभिनव के पास पहुंची. उस के पूछने पर अभिनव ने बताया कि कमरे में एक लड़की की लाश पड़ी है.

अब वंदना की समझ में सारा माजरा आ गया. अभिनव ने यह जानकारी पुजारी वेदप्रकाश तिवारी को दी तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर दिया. पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा यह सूचना थाना चांदनी बाग पुलिस को दे दी गई. सूचना मिलते ही थाना चांदनीबाग के थानाप्रभारी संदीप कुमार पुलिस बल के साथ गौशाला मंदिर पहुंच गए.

उन के पहुंचने से पहले पुलिस चौकी किशनपुरा के चौकीप्रभारी वीरेंद्र सिंह वहां पहुंच चुके थे. संदीप कुमार और वीरेंद्र सिंह ने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. मृतका के गले पर गला दबाने का स्पष्ट निशान था. इस का मतलब हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के चेहरे को तेजाब डाल कर झुलसा दिया गया था. शायद हत्यारे ने पहचान मिटाने के लिए ऐसा किया था.

कमरे में एक लेडीज पर्स मिला.  पुलिस ने उस पर्स की तलाशी ली तो उस में से आर्य डिग्री कालेज का एक आईडी कार्ड मिला, जिस पर ज्योति लिखा था. उस पर पिता का नाम, पता और फोन नंबर भी लिखा था. पिता का नाम रामपाल था. वह थाना नगर के मोहल्ला बराना में रहते थे. एसआई वीरेंद्र सिंह ने फोन कर के रामपाल को वहीं बुला लिया.

रामपाल ने गौशाला मंदिर आ कर कमरे में मिली लाश को देखा तो फफकफफक कर रोने लगे. लाश उन की बेटी ज्योति की थी. शिनाख्त न हो सके, इस के लिए हत्यारों ने तेजाब डाल कर बड़ी बेरहमी से उस के चेहरे को झुलसा दिया था.

घटना की सूचना पा कर एसपी राहुल शर्मा, सीआईए-3 प्रवीण कुमार और डीएसपी जगदीश दूहन भी घटनास्थल पर आ गए थे. घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान पुलिस ने देखा कि कमरे में पड़े डबल बैड का गद्दा उठा कर नीचे फर्श पर बिछाया गया था. लाश को उसी पर लिटा कर उस के चेहरे पर तेजाब डाला गया था. तेजाब से मृतका का चेहरा तो बुरी तरह झुलस ही गया था, गद्दा भी काफी दूर तक झुलस गया था.

मृतका की चुनरी और चप्पलें भी वहीं पड़ी थीं. बचाव के लिए मृतका ने हाथपांव चलाए थे, जिस से उस के चश्मे का एक शीशा टूट गया था. पुलिस ने कंप्यूटर की शिक्षा देने वाली वंदना से पूछताछ की तो उस ने बताया था कि शाम 4 बजे वह वहां आई तो कम्युनिटी हौल के दोनो दरवाजे अंदर से बंद थे. करीब 15 मिनट तक दरवाजा खटखटाने के बाद 19-20 साल की एक लड़की ने दरवाजा खोला.

लड़की के साथ एक लड़का भी था. वह हौल के कोने में बने कमरे का दरवाजा बंद कर रहा था. वंदना ने उस के साथ आई दूसरी लड़की के बारे में पूछा तो वह उसे धमका कर लड़की के साथ चला गया. लड़की सलवार सूट पहने थी, जबकि लड़का जींस और टीशर्ट पहने था.

फैल गई सनसनी

लड़के और लड़की के पास बैग थे. उन्होंने एकएक पौलीथीन भी ले रखी थी. लड़के के हाथ में ड्यू (कोल्डड्रिंक) की एक बोतल भी थी. वदंना को शक हुआ तो उस ने अपनी शंका पुजारी को बताई. इस के बाद पुजारी ने अपने भतीजे को भेजा तो कमरे में लाश होने का पता चला. इस तरह लाश बरामद होने से शहर में सनसनी फैल गई थी.

क्योंकि गौशाला मदिर अति सुरक्षित माना जाता था. हैरानी की बात यह थी कि दोनों लड़कियों और लड़के के वहां आने की जानकारी पुजारी को नहीं थी. मंदिर में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगे थे कि उसी से लड़के और लड़की के बारे में कुछ पता चलता.

पुलिस ने कमरे में मिला सारा सामान जब्त कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया था. इस के बाद रामपाल की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई थी. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने ज्योति की लाश उस के पिता रामपाल को सौंप दी तो उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

महिला आयोग भी सक्रिय

इस हत्याकांड की सूचना राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य रेखा शर्मा को मिली तो उन्होंने भी घटनास्थल की दौरा किया. वह पुलिस अधिकारियों से भी मिलीं और ज्योति के घर वालों से भी. उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि पुलिस ने 48 घंटे के अंदर हत्यारे को गिरफ्तार करने का भरोसा दिया है. इस मामले में तेजाब का उपयोग किया गया था. जबकि कोर्ट ने तेजाब की बिक्री पर रोक लगा रखी है. यह भी जांच का विषय था कि रोक के बावजूद हत्यारे को तेजाब मिला कहां से?

अगले दिन पुलिस ने मृतका ज्योति के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस के नंबर पर अंतिम फोन अटावला गांव के रहने वाले राजेंद्र देशवाल के बेटे कृष्ण का आया था. काल लिस्ट देख कर पुलिस हैरान थी. दरअसल, दोनों के बीच 14 से 15 हजार सैकेंड बात की गई थी.

पुलिस तुरंत ज्योति के घर पहुंची और रामपाल से कृष्ण् के बारे में पूछा. उस ने बताया कि कृष्ण ज्योति के कालेज में आताजाता था, दोनों एकदूसरे को जानतेपहचानते थे. उन में अच्छी दोस्ती भी थी.

पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि कृष्ण ज्योति का अच्छा दोस्त था और उस के घर भी आताजाता था. लेकिन उस की हत्या की बात सुन कर उस के घर नहीं आया था. कहीं ऐसा तो नहीं कि उसी ने ज्योति की हत्या की हो और फरार हो गया हो.

पुलिस को कृष्ण देशवाल पर शक हुआ तो उस के बारे में पता करने उस के घर पहुंच गई. घर वालों से पता चला कि वह 5 सितंबर से ही घर से 1 लाख 35 हजार रुपए ले कर गायब है. इस बात से पुलिस का शक यकीन में बदल गया. पुलिस को लगा कि ज्योति की हत्या में कृष्ण का ही हाथ है. घर वालों से पुलिस को पता चला कि कृष्ण के घर वाले भैंसों के खरीदने और बेचने का व्यवसाय करते थे. वे पैसे उसी के थे, जिन्हें कृष्ण ले कर भागा था.

इस बीच पुलिस को पता चल गया कि उस दिन कृष्ण के साथ जो लड़की थी, वह सिमरन दुबे थी. पुलिस दोनों के फोटो ले कर गौशाला मंदिर पहुंची तो फोटो देख कर वंदना ने बताया कि उस दिन यही दोनों कमरे से निकले थे.

इस से साफ हो गया कि ज्योति की हत्या कृष्ण और सिमरन ने ही की थी. इस के बाद पुलिस ने उन के फोटो अखबारों में छपवा कर उन के बारे में बताने वाले को ईनाम की भी घोषणा कर दी.

पुलिस कृष्ण और सिमरन दुबे की तलाश में जीजान से जुटी थी कि सिमरन के पिता अतुल दुबे थाना नगर पहुंचे और उन्होंने कृष्ण देशवाल के खिलाफ सिमरन के अपहरण की तहरीर दे दी. उन का कहना था कि उन की बेटी के चरित्र पर जो लांछन लगाया गया है, वह सरासर गलत है. सिमरन ऐसी घिनौनी हरकत कतई नहीं कर सकती.

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उन का यह भी कहना था कि उस दिन कमरे में जो लाश मिली थी, वह ज्योति की नहीं, बल्कि सिमरन की थी. लेकिन उन की बात कोई मानने को तैयार नहीं था. उन का कहना था कि मृतका के कान की बाली और हाथ में बंधा धागा सिमरन का नहीं था. इस पर पुलिस का कहना था कि कृष्ण और सिमरन को साथ जाते वंदना ने देखा था, इसलिए उन की बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता.

पुलिस पहुंची शिमला

पुलिस कृष्ण और सिमरन की लोकेशन पता कर रही थी. लेकिन फोन बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल रही थी. जैसे ही फोन चालू हुआ, उन की लोकेशन शिमला की मिल गई. लोकेेशन मिलते ही सीआईए-3 प्रवीण कुमार टीम के साथ शिमला रवाना हो गए. स्थानीय पुलिस की मदद से उन्होंने होटलों की तलाशी शुरू कर दी. सैकड़ों होटल की तलाशी के बाद पुलिस टीम उस होटल तक पहुंच गई, जहां दोनों ठहरे थे.

लेकिन जब होटल की रजिस्टर चैक किया गया तो कृष्ण और सिमरन के नाम से यहां कोई नहीं ठहरा था. पुलिस की निगाह श्याम और राधा नाम के उन दो ग्राहकों पर टिक गई, जिन का पता पानीपत का था.

यहीं दोनों से चूक हो गई थी. उन्होंने होटल के रजिस्टर में नाम तो श्याम और राधा लिखाए थे, लेकिन पता नहीं बदला था. बस इसी से पुलिस को शक हुआ, इस के बाद पुलिस कमरे पर पहुंची तो पुलिस को देख कर दोनों सन्न रह गए. कृष्ण नीचे फर्श पर बैठा था, जबकि ज्योति बैड पर लेटी थी.

मरने वाली ज्योति नहीं सिमरन

जिस ज्योति को लोग मरा समझ रहे थे, दरअसल वह जिंदा थी. मंदिर के कमरे से जो लाश मिली थी, वह ज्योति की नहीं, बल्कि सिमरन दुबे की थी. पुलिस दोनों को गिरफ्तार कर के पानीपत ले आई. उन्हें जब एसपी राहुल शर्मा के सामने पेश किया गया तो वह भी हैरान रह गए.

राहुल शर्मा ने ज्योति के पिता रामपाल को बुला कर ज्योति को उन के सामने खड़ा किया तो बेटी को जिंदा देख कर वह सिर थाम कर बैठ गए. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में कृष्ण और ज्योति ने सिमरन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद 8 तिसंबर को अदालत में पेश कर के विस्तारपूर्वक पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए पुलिस ने उन्हें 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में सिमरन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

20 साल की सिमरन दुबे हरियाणा के जिला पानीपत के थाना नगर के मोहल्ला आजादनगर के रहने वाले आलोक दुबे की बेटी थी. वह 4 भाईबहनों में सब से बड़ी थी. वह आर्य डिग्री कालेज में बीए के दूसरे साल में पढ़ रही थी. उसी के साथ थाना नगर के ही बराना की रहने वाली ज्योति भी पढ़ती थी. दोनों पक्की सहेलियां तो थीं ही, एनएसएस की सदस्य भी थीं.

बात इसी साल जनवरी की है. एसडी डिग्री कालेज का एनएसएस का कैंप आर्य डिग्री कालेज में लगा था. कैंप का अध्यक्ष एसडी कालेज में पढ़ने वाला कृष्ण देशवाल था, जो बीए फाइनल ईयर में पढ़ रहा था. वह गांव अटावला का रहने वाला था. उस के पिता राजेंद्र देशवाल भैंसे खरीदनेबेचने का काम करते थे.

कृष्ण 2 बहनों का एकलौता भाई था. बहनें उस से छोटी थीं. घर में बड़ा और एकलौता बेटा होने के बावजूद वह जिम्मेदारी से काम नहीं करता था. पुलिस के अनुसार, जब कृष्ण स्कूल में पढता था, तब उस ने खुद के अपहरण का ड्रामा रचा था. वह दिन भर इधरउधर घूमा करता था. आर्य कालेज में लगे कैंप के दौरान ही उस की मुलाकात सिमरन और ज्योति से हुई थी. पहली ही नजर में ज्योति उस के मासूम चेहरे पर दिल दे बैठी.

कृष्ण ने ज्योति की आंखों से उस के दिल की बात पढ़ ली.  छरहरे बदन और तीखी नयननक्श वाली ज्योति भी उसे भा गई थी. इस के बाद अकसर दोनों की मुलाकातें होने लगीं. जल्दी ही उन की ये मुलाकातें प्यार में बदल गईं.

दोनों एकदूसरे से दीवानगी की हद तक प्यार करने लगे. जल्दी ही हालात यह हो गई कि अब वे एकदूसरे को देखे बिना नहीं रह सकते थे. अब इस का आसान तरीका था, वे शादी कर लें जिस से दोनों एकदूसरे की आंखों के सामने बने रहें.

ज्योति और कृष्ण की जातियां अलगअलग थीं. इसलिए ज्योति जानती थी कि उस के घर वाले कभी भी कृष्ण से उस की शादी नहीं करेंगे.

जबकि वह कृष्ण के बिना रह नहीं सकती थी. यही हाल कृष्ण का भी था. इसलिए उस ने ज्योति से भाग चलने को कहा. लेकिन ज्योति ने उस के साथ इसलिए भागने से मना कर दिया, क्योंकि इस से उस के घर वालों की बदनामी होती.

सहेली को बनाया शिकार

इस के बाद उन्होंने एक साथ रहने के बारे में सोचाविचारा तो उन के दिमाग में आया कि क्यों न वे अपनी कदकाठी के 2 लोगों की हत्या कर के उन के चेहरे तेजाब से इस तरह झुलसा दें कि कोई उन्हें पहचान न पाए. इस के बाद वे उन्हें अपने कपड़े पहना कर अपने आईकार्ड, फोन वगैरह वहां छोड़ देंगे, ताकि लोगों को लगे कि उन की हत्या हो चुकी है.

ज्योति की सहेली सिमरन दुबे उसी की कदकाठी की थी. वे उसे जहां बुलाते, वह वहां आ भी जाती. इसलिए सिमरन की हत्या की योजना बन गई. अब कृष्ण की कदकाठी के लड़के को ढूंढना था.

कृष्ण के लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं था. 5 सितंबर को एनएसएस के कैंप के बहाने कृष्ण ने सिमरन और रमेश को फोन कर के गौशाला मंदिर के पहली मंजिल स्थित कमरे पर बुला लिया.

कृष्ण दाढ़ी नहीं रखे था, जबकि रमेश रखे था. इसलिए कृष्ण ने उस से दाढ़ी बनवा कर आने को कहा. लेकिन वह गोहाना मोड़ पर पहुंचा तो वहां कोई सैलून नहीं था, इसलिए उस ने फोन कर के कृष्ण को यह बात बताई तो उस ने उसे आने से मना कर दिया. रमेश वहीं से लौट गया. लेकिन सिमरन कृष्ण और ज्योति के जाल में फंस गई.

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सिमरन दुबे गौशाला मंदिर पहुंची तो कृष्ण और ज्योति वहां पहले से ही मौजूद थे. ज्योति को देख कर सिमरन बहुत खुश हुई. उस ने यह खुशी उस के गले मिल कर जाहिर की. गौशाला मंदिर पहुंचने से पहले ही कृष्ण ने कोल्डड्रिंक, नींद की गोलियां और तेजाब की व्यवस्था कर रखी थी. इन्हें वह अपने साथ लाए बैग में छिपा कर लाया था.

नींद की गोली मिली कोल्डड्रिंक पिलाई

कृष्ण ने सिमरन को नींद की गोलियां मिली कोल्डड्रिंक पीने को दी तो उस ने उन से भी कोल्डड्रिंक पीने को कहा. दोनों ने कहा कि उन्होंने अभीअभी पी है. कोल्डिड्रिंक पीने के कुछ देर बाद सिमरन की आंखें मुंदने लगीं. फिर वह बेहोश सी हो कर नीचे फर्श पर लेट गई. इस के बाद ज्योति ने उस के दोनों पैर पकड़ लिए तो कृष्ण ने उस का गला घोंट दिया.

इस तरह सिमरन को मौत के घाट उतार कर ज्योति ने उसे अपने कपड़े पहना दिए और उस के चेहरे पर तेजाब डाल कर झुलसा दिया. वह ज्योति है, यह साबित करने के लिए उस ने अपना आईकार्ड और मोबाइल फोन उस के पास छोड़ दिया, ताकि लोग इसे ज्योति समझें.

सिमरन की हत्या करने के बाद ज्योति और कृष्ण कमरे से बाहर आए और औटो से पानीपत रेलवे स्टेशन पहुंचे. उस समय वहां कोई टे्रन नहीं थी, इसलिए वे बसस्टैंड गए. वहां से चंडीगढ़ की बस पकड़ कर वे अगले दिन जीरकपुर पहुंच गए. अगले दिन अखबार में ज्योति की हत्या का समाचार छपा तो दोनों निश्चिंत हो गए कि हत्या का शक सिमरन पर किया जाएगा.

उन्होंने आराम से जीरकपुर के एक मौल में शौपिंग की और शिमला जा कर बसस्टैंड के नजदीक होटल रौयल में कमरा ले कर ठहर गए.

पुलिस उन के पीछे पड़ी है, इस का अंदाजा उन्हें बिलकुल नहीं था. पुलिस ने उन की तलाश में शिमला में 2 घंटे में सैकड़ों होटल छान मारे थे. जब पुलिस रौयल होटल में पहुंची तो पुलिस को देख कर सारा स्टाफ भाग गया. पुलिस को कमरा नंबर भी पता नहीं था. आखिर आधे घंटे की मशक्कत के बाद एक कमरे का दरवाजा तोड़ा गया तो अंदर कृष्ण और ज्योति मिले.

ज्योति के जिंदा बरामद होने के बाद सिमरन के घर वाले बेटी की हत्या के शोक में डूब गए थे. जबकि आलोक दुबे घटना वाले दिन से ही कह रहे थे कि मरने वाली ज्योति नहीं, उन की बेटी सिमरन है. लेकिन कोई उन की बात मानने को तैयार नहीं था.

ज्योति के जिंदा बरामद होने के बाद पुलिस आलोक दुबे और उन की पत्नी ऊषा को मधुबन ले गई, जहां डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल लिए गए. रिपोर्ट आने के बाद निश्चित हो जाएगा कि गौशाला मंदिर के कमरे में मिली लाश सिमरन की ही थी.

पुलिस की लापरवाही

सिमरन हत्याकांड के आरोपियों को पकड़ कर पुलिस भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन इस में पुलिस की लापरवाही भी नजर आ रही है. शिमला के होटल में आईडी के रूप में कृष्ण और ज्योति ने अपने आधार कार्ड जमा कराए थे, वे आधार कार्ड श्याम और राधा के नाम से थे. साफ था कि वे फर्जी थे.

पुलिस ने जब कृष्ण से उन के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि आधार कार्ड उस के दोस्त देव कपूर ने जयपुर से बनवाए था. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया है. अब पुलिस आधार कार्ड बनाने वाले को गिरफ्तार करना चाहती है.

पुलिस सिमरन का मोबाइल फोन बरामद करना चाहती है, जिस के बारे में कृष्ण और ज्योति कभी कहते हैं कि शिमला में झाडि़यों में फेंक दिया है तो कभी कहते हैं कि रास्ते में फेंक दिया था. इस के अलावा यह भी पता लगाया जा रहा है कि उन्होंने तेजाब और नींद की गोलियां कहां से खरीदी थीं.

इन के बारे में उन का कहना है कि तेजाब गुंड़मंडी से लिया था, जबकि नींद की गोलियां अपने एक रिश्तेदार के मैडिकल स्टोर से मंगवाई थीं.

रिमांड खत्म होने के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

प्रेम की अंधी गली में फंस कर ज्योति और कृष्ण ने जो कदम उठाया, आखिर उस से उन्हें क्या मिला. उन्होंने जो अपराध किया है, वे कानून की नजरों से बच नहीं पाएंगे. लेकिन अगर बच भी गए तो शायद ही समाज उन्हें सुकून से रहने दे. Story Hindi

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Short love Story in Hindi : वैलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी, 2023 का दिन था. नालासोपारा इलाके में भी इस समय अच्छीखासी चहलपहल थी. लोग रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे. शाम के समय वहां के निवासियों को सीता सदन बिल्डिंग से बदबू आती हुई महसूस हुई तो किसी अनहोनी की आशंका से उन्होंने इस की सूचना इलाके के तुलिंज थाने में फोन कर के दे दी. यह सूचना सुन कर पुलिस सीता सदन बिल्डिंग की तरफ निकलने की तैयारी करने लगी. इसी दौरान कर्नाटक से एक महिला ने इसी थाने में फोन कर के सूचना दी कि सीता सदन में रहने वाली उस की भतीजी मेघा का कत्ल हो गया है. उसे यह बात स्वयं कातिल हार्दिक ने वाट्सऐप पर मैसेज कर के बताई है.

कुछ देर पहले पुलिस को सीता सदन में ही बदबू आने की काल मिली थी, अब उसी बिल्डिंग में हत्या किए जाने की काल मिलने पर इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर समझ गए कि दोनों ही काल एक ही घटना की हो सकती हैं. इसलिए वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ निकल गए. जब वह वहां पहुंचे तो देखा कि मुख्य दरवाजे पर ताला लगा था. उन्होंने ताला तुड़वा कर कमरे में प्रवेश किया तो कमरे में एक बैड पड़ा था, जिस के अंदर से भयंकर बदबू आ रही थी. बैड का बौक्स खोला गया तो उस के अंदर सड़ीगली हालत में एक महिला की लाश मिली. लाश की खराब हालत को देख कर ऐसा लगता था जैसे उस की हत्या लगभग 2 से 3 दिन पहले की गई होगी, क्योंकि शव सड़ने लगा था और उस से तेज बदबू बाहर निकल रही थी.

घर के अन्य कमरों की तलाशी लेने पर वहां घरगृहस्थी का कोई अन्य सामान नहीं मिला. लाश की सभी एंगल से फोटोग्राफी करवाने और फिंगरप्रिंट लेने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया गया. इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने पड़ोसियों से घटना के बारे में पूछताछ कर मालूम करने की कोशिश की तो पता चला कि कोई एकाध महीने पहले एक दंपति यहां किराए पर रहने के लिए आया था. पड़ोसियों को इस मकान के अंदर से अकसर उन के लड़ने की भी आवाजें आती थीं, जिस से लगता था उन के आपसी संबंध ठीक नहीं रहे होंगे.

चूंकि पड़ोसियों को उन के व्यक्तिगत मामले से कुछ लेनादेना नहीं था, शायद इसलिए किसी ने उन के पर्सनल मामले में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं समझा था. मृतक मेघा के साथ रहने वाला युवक हार्दिक गायब था. यह देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस की हत्या उस के पति हार्दिक ने ही की होगी. क्योंकि उसी ने मेघा की चाची को वाट्सऐप पर मैसेज भेज कर मेघा का कत्ल करने की बात कही थी.

अब पुलिस को पूछताछ के लिए उस युवक की तलाश थी, लेकिन पड़ोसियों में से किसी ने भी उसे फरार होते हुए नहीं देखा था. आखिरकार, मकान मालिक और रियल स्टेट एजेंट को बुला कर इस में रहने वाले युवक के बारे में पूछताछ की गई. इस जांच में केवल इतना पता लगा कि युवक का नाम हार्दिक शाह और महिला का नाम मेघा धन सिंह थोरवी था. लेकिन पूछताछ में सब से अच्छी बात यह हुई कि पुलिस को मकान मालिक से हार्दिक का मोबाइल नंबर मिल गया.

सीता सदन को सील कर इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर की टीम वापस थाने लौट गई. उसी रात यानी 14 फरवरी, 2023 को मेघा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया.

मोबाइल फोन से मिला सुराग

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपी हार्दिक की तलाश में जीजान से लग गई. इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने अपनी टीम को घर के आसपास लगे सीसीटीवी की फुटेज खंगालने का आदेश दिया. साथ ही आरोपी हार्दिक के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा कर उस की लोकेशन को ट्रेस करना शुरू किया तो 12 फरवरी को उस के ट्रेन द्वारा मुंबई से राजस्थान के लिए रवाना होने का पता चला. इस वक्त वह ट्रेन में सवार था.

इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने मुंबई के मीरा भायंदर वसई विरार की अपराध शाखा और मध्य प्रदेश के नागदा स्थित आरपीएफ पुलिस को आरोपी के बारे में सूचित कर दिया. आरपीएफ की मदद से हार्दिक को यात्रा के दौरान ही मध्य प्रदेश के नागदा रेलवे स्टेशन से उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह ट्रेन की बोगी में यात्रा कर रहा था. अपराध शाखा की टीम ने आरोपी हार्दिक को नागदा से ला कर तुलिंज थाने के इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर को सौंप दिया.

इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने हार्दिक से पूछताछ शुरू की तो हार्दिक ने मेघा की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. अपने इकबालिया बयान में आरोपी हार्दिक ने जो कुछ बताया, वह इस प्रकार है— हार्दिक शाह एक मौडर्न खयाल का युवक था. वह मुंबई में मलाड के एक नामचीन हीरा  व्यापारी संपत भाई का बेटा था. घर में दौलत की कमी नहीं थी, इसलिए उस का सारा दिन सैरसपाटे और मौजमस्ती में गुजर जाता था. जैसा कि आमतौर पर देखा गया है कि आजकल लड़के की कोई न कोई गर्लफ्रैंड जरूर होती है. हार्दिक शाह को भी सोशल मीडिया पर चलने वाले विभिन्न ऐप पर नई लड़कियों से दोस्ती कर उन के साथ चैटिंग करने में बड़ा मजा आता था.

बात सन 2018 की है. एक डेटिंग ऐप पर हार्दिक शाह की मुलाकात मेघा धन सिंह तोरवी से हुई. 34 वर्षीया मेघा तोरवी मूलरूप से केरल की निवासी थी, लेकिन इन दिनों नालासोपारा के एक अस्पताल में नर्स की नौकरी करती थी. इन दिनों लड़के हों या लड़कियां, अपने से बड़ी उम्र के पार्टनर के साथ इश्क करने से गुरेज नहीं करते. हार्दिक और मेघा तोरवी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. हार्दिक शाह की उम्र 24 साल थी, जबकि मेघा तोरवी 34 की थी. वह हार्दिक से लगभग 10 साल बड़ी थी. लेकिन प्रेमिका के बड़ी उम्र के होने से हार्दिक को कोई परेशानी नहीं थी.

कुछ दिनों तक आपस में चैटिंग करने के बाद उन का मिलनाजुलना शुरू हो गया. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि उन्हें अब एकदुसरे से दूर रह पाना मुश्किल लगने लगा. आखिरकार उन्होंने लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला कर लिया. हार्दिक मलाड स्थित अपने पैतृक घर से दूर आ कर विजय नगर में एक मकान ले कर मेघा के साथ रहने लगा. हार्दिक जैसे मालदार प्रेमी का साथ पा कर मेघा अपने जीवन को धन्य समझने लगी. हार्दिक ने मेघा के सामने अपने पिता की दौलत को ले कर ढेर सारे कसीदे पड़े थे, जिसे सुन कर मेघा सपनों की सतरंगी दुनिया में विचरने लगी थी. उसे लगता था कि हार्दिक के साथ उस की बाकी की जिंदगी बड़े आराम से गुजरेगी.

हार्दिक को खुश रखने के लिए वह अपनी सारी कमाई उस पर लुटाने लगी. उसे खुश रखने में मेघा कभी कोई कोरकसर बाकी नहीं छोड़ती थी.

मेघा के साथ लिवइन में रहने लगा हार्दिक

हालांकि हार्दिक भी मेघा को दिलोजान से चाहता था. वह मेघा के लिए नएनए तोहफे लाया करता और उस की हर सुखसुविधा का बहुत खयाल रखता था. मेघा जब नौकरी के लिए जाती तो वह उसे छोड़ने और छुट्टी के समय उसे लेने जाता था. हार्दिक के पिता उसे जेब खर्च के लिए हरेक महीने 20 हजार रुपए देते थे. दोनों की जिंदगी मजे में गुजर रही थी. तभी 2019 के मार्च महीने में कोरोना फैलने के डर से पूरे देश में लौकडाउन लगा दिया गया. इस लौकडाउन से लोगों के कामधंधे छूट गए. हार्दिक और मेघा भी इस से बच नहीं सके और उन की भी जिंदगी परेशानी में घिर गई.

कुछ दिनों के बाद हार्दिक ने फिर भी डेटा कलेक्शन का काम कर के घर की स्थिति को संभाल लिया. 2022 में जब देश में लौकडाउन हटाने की घोषणा हुई तो मुंबई का जनजीवन सामान्य होने लगा. इस के बाद जब हालात ठीक हो गए तो मेघा ने फिर से अपनी नौकरी पर जाना शुरू कर दिया. उन के घर में खुशियां पहले की बहाल हो गईं. सब कुछ ठीक ही चल रहा था. हार्दिक बीचबीच में मलाड स्थित अपने पिता के घर भी चला जाता था. अभी तक हार्दिक ने अपने घर में मेघा के साथ रहने की बात नहीं बताई थी. उसे मालूम था कि उस के पिता मेघा को अपने घर की बहू के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेंगे.

एक बार किसी काम में हार्दिक ने पिता के 40 लाख रुपए गंवा दिए. इस से उस के पिता बहुत नाराज हुए थे. करीब 8 महीने बाद अगस्त में हार्दिक ने मेघा से शादी कर ली और विजय नगर से नालासोपारा के सीता सदन में रहने चला आया. यहां हार्दिक और मेघा ने लोगों को यही बताया कि वे पतिपत्नी हैं. अभी दोनों को यहां रहते हुए कुछ ही समय गुजरा था कि हार्दिक के पिता को बेटे के मेघा के साथ रहने की जानकारी हुई तो वह उस से इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने हार्दिक को अपनी पूरी जायदाद से हमेशा के लिए बेदखल कर दिया. इस के साथ उन्होंने हार्दिक को महीने का मिलने वाला 20 हजार रुपए देना बंद कर दिया.

मेघा की कमाई पर करने लगा ऐश

पिता द्वारा उठाए इस सख्त कदम से हार्दिक की आर्थिक हालत खस्ता हो गई. दरअसल, अभी तक वह पिता की दौलत पर ही ऐश कर रहा था. लेकिन अब जब पिता ने उस की हरकतों से तंग आ कर उसे बेदखल किया तो अपने पैर पर खड़े होने की बजाय वह मेघा की कमाई पर ऐश करने लगा. उसे लगता था कि मेघा उस के बेरोजगार पड़े रहने पर कुछ नहीं कहेगी. पहले तो मेघा ने उसे समझाबुझा कर अपने योग्य कोई ढंग का काम या कोई नौकरी तलाशने का सुझाव दिया. पर मेघा की बात पर हार्दिक ने रत्ती भर भी ध्यान नहीं दिया.

वह मेघा की कमाई पर ऐश करने लगा, जिस से मेघा को घर का खर्च पूरा करने में परेशानी होने लगी. हार्दिक के हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने से घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी मेघा के नाजुक कंधों पर आ गई. रुपएपैसे की किल्लत के कारण उन के घर में क्लेश रहने लगा. हार्दिक मामले की नजाकत को नहीं समझा और मेघा के पैसों पर ऐश करना जारी रखा. आखिर में 11 और 12 फरवरी, 2023 की रात हार्दिक के बेरोजगार रहने को ले कर बात बढ़ जाने पर हार्दिक अपना आपा खो बैठा और तौलिए से मेघा का गला घोट कर मार डाला. मेघा की लाश को छिपाने के लिए उस ने उस की लाश बिस्तर में लपेट कर बैड के बौक्स में रख दी.

पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए वह यहां से बहुत दूर चला जाना चाहता था. लेकिन उस के पास पैसे नहीं थे, इसलिए अगले दिन उस ने घर के सभी महंगे सामान कम कीमत पर बेच कर कुछ रुपए इकट्ठा किए. 12 फरवरी को फरार होने से पहले हार्दिक ने कनार्टक में रहने वाली मेघा की चाची को फोन कर बता दिया कि रोजरोज के झगड़े तंग आ कर उस ने मेघा की हत्या कर दी है और उस की लाश बैड के बौक्स में छिपा दी है. अब वह आत्महत्या करने हरिद्वार जा रहा है.

इस के बाद वह घर के दरवाजे पर ताला लगा कर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया. वहां से उस ने राजस्थान जाने के लिए ट्रेन पकड़ी मगर पुलिस ने 15 फरवरी, 2023 को बीच रास्ते से ही उसे गिरफ्तार कर लिया.

उसे मुंबई के वसई की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 21 फरवरी, 2023 तक के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है.  Short love Story in Hindi

Mumbai News : प्रेमी बना कातिल – 17 वार मंगेतर पर चाकूओं से बार कर किया कत्ल

Mumbai News: मुंबई के निकट जिला ठाणे के उपनगर मुंब्रा में एक सिनेमाघर है आलीशान. इस सिनेमाघर से थोड़ी दूरी पर एक बिल्डिंग है नूरानी. 45 वर्षीय उमर मोहम्मद शेख इसी इमारत की चौथी मंजिल के एक फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहते थे. फ्लैट किराए का था. उमर शेख का मुंब्रा में अच्छा कारोबार था, साथ ही मानसम्मान भी. लोग उन्हें आदर से उमर भाईजान कह कर बुलाते थे.

उमर शेख के परिवार में उन की पत्नी जुबेरा शेख, 3 बेटियां और एक बेटे को मिला कर 6 सदस्य थे, जो अब 5 रह गए थे. उन का बेटा भरी जवानी में एक जानलेवा बीमारी का शिकार हो कर दुनिया को अलविदा कह गया था.

वक्त ने ऐसा कहर ढाया कि एक सड़क दुर्घटना में उमर मोहम्मद की कमर में भी चोटें आईं और वह बिस्तर पर पहुंच गए. अस्पताल के भारीभरकम खर्चे की वजह से वह अपनी कमर का औपरेशन भी न करवा पाए थे. लाचार हो कर उन्हें घर में बैठना पड़ा. घर बैठ जाने से उन के घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. कारोबार बंद होने से उन की आमदनी भी बंद हो चुकी थी.

घर में जब भूखों मरने की नौबत आई तो उन की बेटी नसरीन ने घर की जिम्मेदारियां उठाने का फैसला किया. सामाजिक रस्मोरिवाज के चलते नसरीन ने अपना बुरका उतार फेंका.

20 वर्षीय सुंदर स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी नसरीन उमर मोहम्मद की दूसरे नंबर की बेटी थी. नसरीन ने मुंब्रा के एक कालेज से 12वीं पास की थी. घरपरिवार की माली हालत देख नसरीन नौकरी की तलाश में लग गई. जल्दी ही उस की यह तलाश पूरी हो गई. उसे मुंबई के अंधेरी वेस्ट के ‘चाय पर चर्चा’ नाम के एक कौफी हाउस में नौकरी मिल गई.

अपनी मेहनत और विनम्र स्वभाव से नसरीन ने एक साल के अंदर कौफी हाउस के मैनेजमेंट का दिल जीत लिया. इस से प्रभावित हो कर कौफी हाउस के मैनेजमेंट ने उस का वेतन बढ़ा दिया. साथ ही उसे प्रमोशन दे कर उसे कोलाबा फोर्ट स्थित अपनी पौश इलाके की ब्रांच में नियुक्त कर दिया.

नसरीन को ‘चाय पर चर्चा’ कौफी हाउस की मैनेजर बन कर आए हुए अभी 6 महीने भी नहीं हुए थे कि नसरीन की विनम्रता और मेहनत से कौफी हाउस की आय काफी बढ़ गई थी. उस कौफी हाउस से कोई भी कस्टमर नाराज हो कर नहीं जाता था.

कौफी हाउस की क्वालिटी में सुधार तो आया ही, लोग उस की प्रशंसा भी करने लगे. ‘चाय पर चर्चा’ कौफी हाउस की नौकरी से घर की स्थिति सुधर गई तो नसरीन ने अपने पिता की कमर का औपरेशन करवाया. अब नसरीन का इरादा अपनी बड़ी बहन का निकाह करवाने का था, लेकिन वह ऐसा कर पाती, इस से पहले ही ऐसा कुछ हो गया कि उमर मोहम्मद का परिवार अधर में लटक कर रह गया.

31 जुलाई, 2018 की रात नसरीन के परिवार वालों पर बहुत भारी पड़ी. उस दिन सुबह के साढ़े 7 बजे नसरीन ने जल्दीजल्दी लंच का डिब्बा तैयार कर के बैग उठाया और मां से यह कह कर घर से बाहर निकल गई कि 8 बजे की लोकल ट्रेन छूट जाएगी. उस ने चाय तक नहीं पी थी.

नसरीन हुई लापता

दिन में उस ने 2-3 बार घर पर फोन भी किया, सब ठीक था. लेकिन घर वालों के दिलों की धड़कनें तब बढ़ने लगीं, जब रात 10 बजे तक न तो नसरीन घर लौटी और न उस ने फोन किया. नसरीन कभी घर आने में लेट होती थी तो फोन कर के इस की जानकारी अपने घर वालों को दे देती थी. घर वालों ने उस के मोबाइल पर फोन लगाया तो वह भी बंद मिला.

जब 11 बजे तक नसरीन की कोई जानकारी नहीं मिली तो उमर शेख को नसरीन की चिंता होने लगी. उन्होंने कैफे में फोन कर के पूछा तो पता चला कि नसरीन अपने समय पर निकल गई थी.

उमर मोहम्मद ने अपने सगेसंबंधियों के साथसाथ जानपहचान वालों को भी फोन कर के नसरीन के बारे में पूछा, लेकिन कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

जैसेजैसे रात गहराती जा रही थी, उमर शेख के परिवार की चिंता बढ़ती जा रही थी. उन्होंने नसरीन के प्रेमी सलमान खान को भी फोन किया, लेकिन उस का फोन भी बंद था.

बारबार कोशिश करने के बाद आखिर सलमान खान का फोन मिल गया. उस ने बताया कि नसरीन उसे 7 बजे चर्चगेट के ओवल पार्क में मिली थी. वहां दोनों कुछ देर तक बैठे रहे और 8 बजे ओवल पार्क से बाहर आए थे.

वहां से नसरीन यह कहते हुए निकल गई थी कि वह वीटी रेलवे स्टेशन के पास वाले स्टालों से घर के लिए कुछ शौपिंग कर के घर जाएगी. इस के बाद का उसे कुछ पता नहीं है, क्योंकि वह घर लौट आया था. साथ ही उस ने यह भी पूछा कि परेशान क्यों हैं?

‘‘बेटा, नसरीन अभी तक घर नहीं पहुंची है.’’ उमर शेख ने भरे गले से बताया.

‘‘घबराओ नहीं चाचा, मैं आ रहा हूं.’’ कह कर सलमान ने फोन काट दिया.

रात के करीब 3 बजे सलमान जब नसरीन के घर पहुंचा तो घर में सभी दुखी बैठे थे. नसरीन की मां जुबेरा की हालत सब से ज्यादा खराब थी.

‘‘इतना लेट क्यों आए बेटा?’’ उमर शेख के पूछने पर सलमान ने अपनी बाइक खराब होने की बात बताई.

सलमान खान आधे घंटे तक उन के घर बैठा रहा. वह घर वालों को सांत्वना दे रहा था. इस के बाद वह उमर शेख और उन के साले को साथ ले कर नसरीन की तलाश में निकल पड़ा.

शुरू हुई नसरीन की तलाश

नसरीन की तलाश में निकले सलमान और उमर शेख पहले मुंब्रा पुलिस थाने गए. वहां उन्होंने ड्यूटी अफसर को नसरीन के बारे में सारी बातें बता कर शिकायत दर्ज करवाई. नसरीन की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद ड्यूटी अफसर ने उन्हें वीटी रेलवे पुलिस और आजाद मैदान पुलिस थाने जाने का सुझाव दिया. वजह यह कि नसरीन जिस एरिया में काम करती थी, वह आजाद मैदान पुलिस थानाक्षेत्र में आता था.

मुंब्रा पुलिस के सुझाव पर सलमान खान ने नसरीन के पिता उमर शेख और उन के साले के साथ मुंब्रा से सुबह 4 बजे वीटी स्टेशन जाने वाली लोकल ट्रेन पकड़ी. रेलवे पुलिस थाने में पता करने के बाद वे लोग आजाद मैदान पुलिस थाने के लिए निकले. लेकिन वहां न जा कर तीनों आजाद मैदान पुलिस थाने के बजाय पास ही दैनिक नवभारत टाइम्स के सामने स्थित आजाद मैदान चौकी पहुंच गए.

चौकी में तैनात सिपाहियों ने उन्हें कोलाबा पुलिस थाने जाने को कहा. कोलाबा पुलिस थाने के पुलिस अफसरों ने उन्हें वापस आजाद मैदान भेज दिया. इस भागदौड़ में उमर शेख काफी थक गए थे. लेकिन बेटी का मामला था, इसलिए वह दौड़ते रहे.

‘‘बेटा सलमान, यहां से ओवल पार्क कितनी दूर है? हम चाहते हैं कि वह जगह भी देख लें, जहां तुम दोनों मिले थे.’’

उमर शेख के सवाल से सलमान के चेहरे का रंग उड़ गया. फिर भी उस ने खुद को संभाल कर कहा, ‘‘बस यहीं पास में ही है. वहां जाने के लिए हम टैक्सी कर लेते हैं.’’

‘‘नहीं, उस की कोई जरूरत नहीं है. जब पास में है तो पैदल ही चलते हैं.’’ कह कर उमर शेख ओवल पार्क की तरफ चल दिए.

बेटी की लाश मिलेगी, उमर शेख ने सोचा न था

तब तक सुबह के साढ़े 7 बज चुके थे. इस के पहले कि ये लोग ओवल पार्क पहुंचते, आजाद मैदान पुलिस थाने की पैट्रोलिंग टीम वहां पहुंची हुई थी. पुलिस एक युवती की लाश को घेरे खड़ी थी. वहां काफी लोग एकत्र थे. तभी एक व्यक्ति ने भीड़ से बाहर आ कर बताया कि एक युवती की लाश पड़ी है. उस की बात सुन कर उमर शेख के होश उड़ गए.

भीड़ को चीरते हुए जब वह शव के पास पहुंचे तो उन के मुंह से दर्दभरी चीख निकल गई. वह छाती पीटपीट कर रोने लगे. उन्हें रोतेबिलखते देख पुलिस टीम ने पहले उन्हें संभाला फिर पूछताछ की. उन्होंने बता दिया कि मृतका उन की बेटी नसरीन है. उस की पहचान उन्होंने कफन से बाहर निकली जूती से ही कर ली थी.

नसरीन की लाश वहां पड़ी होने की जानकारी सुबह ओवल पार्क में घूमने निकले लोगों ने पुलिस कंट्रोल रूम को दी थी. पुलिस कंट्रोल रूम ने यह जानकारी मुंबई के सभी पुलिस थानों के साथसाथ उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

घटनास्थल ओवल पार्क था और यह जगह थाना आजाद मैदान के क्षेत्र में आती थी. थाना आजाद मैदान के ड्यूटी अफसर इंसपेक्टर प्रदीप झालाटे ने लाश मिलने की जानकारी थानाप्रभारी वसंत वाखारे के साथसाथ पुलिस पैट्रोलिंग टीम को भी दे दी थी.

जानकारी मिलते ही पैट्रोलिंग टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. बाद में थाना आजाद मैदान के सीनियर इंसपेक्टर वसंत वाखारे अपने सहायक इंसपेक्टर बलवंत पाटील, सहायक इंसपेक्टर रविंद्र मोहिते और सबइंसपेक्टर प्रदीप झालाटे के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने नसरीन की लाश का निरीक्षण कर के उसे वीटी स्थित जीटी अस्पताल भेज दिया. अस्पताल के डाक्टरों ने लाश देखने के बाद नसरीन को मृत घोषित कर दिया.

थानाप्रभारी वसंत वाखारे ने नसरीन की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भेज दिया और मृतका के पिता उमर शेख, उन के साले और सलमान खान को थाने ले आए. पिता की ओर से शिकायत दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृतका नसरीन के शरीर पर चाकू के 17 घाव थे. मतलब उसे बड़ी बेरहमी से मारा गया था. उस की मौत ज्यादा खून बहने से हुई थी.

पुलिस की प्रारंभिक जांच में नसरीन की हत्या के पीछे प्यार और धोखे की कहानी लग रही थी. हकीकत तक पहुंचने के लिए पहले नसरीन के व्यक्तिगत जीवन की हकीकत पता करनी जरूरी थी.

पुलिस की तफ्तीशी टीम ने सब से पहले नसरीन की कुंडली खंगालनी शुरू की. पुलिस टीम ने नसरीन की फ्रैंड्स और ‘चाय पर चर्चा’ कौफी हाउस के कर्मचारियों से गहराई से पूछताछ की. नसरीन के घर और ‘चाय पर चर्चा’ कौफी हाउस से शुरू की गई तफ्तीश ने पुलिस को जल्द ही सफलता दिला दी. पुलिस के राडार पर नसरीन का प्रेमी सलमान खान आ गया. सलमान खान वैसे भी पुलिस की नजर में संदिग्ध था.

जल्दी ही यह बात साफ हो गई कि नसरीन का हत्यारा सलमान खान ही है. सच्चाई जान कर नसरीन के घर वाले हैरत में रह गए. जिसे अपना समझा था, वही बेटी का हत्यारा निकला. वे लोग तो उस के साथ नसरीन का निकाह करने के लिए तैयार थे. पुलिस जांच और सलमान खान के बयान से नसरीन हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी-

गांव से मुंबई पहुंचे सलमान को मिली प्रेमिका

28 वर्षीय सलमान खान उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक गांव का रहने वाला था. उस के पिता का नाम मुश्ताक खान था, जो गांव के साधारण किसान थे. सलमान खान का निकाह हो चुका था. उस की पत्नी 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. घर की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से वह नौकरी की तलाश में मुंबई आ गया था.

मुंबई के भायखला क्षेत्र में उस के कई परिचित रहते थे. उन की मदद से उसे कोलाबा कोर्ट स्थित सन्नी फ्रूट ट्रांसपोर्ट में फ्रूट डिलीवरी की नौकरी मिल गई. फ्रूट ट्रांसपोर्ट का औफिस और ‘चाय पर चर्चा’ कौफी हाउस आसपास थे. नौकरी मिलने के बाद सलमान ने भायखला इलाके में किराए का एक कमरा ले लिया और अपनी बीवी और बच्चों को मुंबई ले आया.

औफिस में सलमान को कई काम करने होते थे. कभीकभी उसे अपने यहां के अफसरों के लिए कौफी का और्डर देने के लिए ‘चाय पर चर्चा’ कौफी हाउस जाना पड़ता था.

जब तक नसरीन फोर्ट स्थित कौफी हाउस में नहीं आई थी, तब तक सलमान का जीवन सामान्य रूप से चल रहा था, लेकिन नसरीन के वहां आने के बाद सलमान के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. मनचले सलमान का दिल नसरीन पर आ गया. वह पहली ही नजर में नसरीन का दीवाना हो गया. अब औफिस की सारी चाय और कौफी का और्डर देने वही जाने लगा. जब वह ‘चाय पर चर्चा’ कौफी हाउस में जाता, तो उस की निगाहें नसरीन पर ही टिकी रहती थीं. पहले तो नसरीन ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. लेकिन धीरेधीरे नसरीन को उस की निगाहों की भाषा समझ में आने लगी. नतीजतन जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों एकदूसरे के बारे में सब कुछ जानसमझ कर घुलमिल गए.

सलमान खान का अपना छोटा सा परिवार था, जबकि नसरीन कुंवारी थी और उस के ऊपर अपने परिवार की पूरी जिम्मेदारी थी. सलमान शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप है, यह जानते हुए भी नसरीन ने अपने संबंधों पर कोई विरोध या आपत्ति नहीं की. इस की जगह उस ने सलमान से निकाह करने के लिए भी हां कर दी थी.

उस की बस यह शर्त थी कि पहले वह अपने पिता उमर शेख की कमर का औपरेशन कराएगी. अब समस्या यह थी कि नसरीन के परिवार वाले क्या एक शादीशुदा से उस का निकाह करने को तैयार होंगे. लेकिन यह समस्या भी हल हो गई.

नसरीन ने अपने जानपहचान वालों से आर्थिक मदद ले कर अपने पिता को औपरेशन के लिए एक प्राइवेट अस्पताल में दाखिल करवा दिया. इस औपरेशन में सलमान ने नसरीन का दोस्त बन कर उमर शेख की काफी मदद की. इस से प्रभावित हो कर नसरीन के परिवार ने उस के और नसरीन के रिश्ते को मंजूरी दे दी थी.

नसरीन और सलमान दोनों ही राजी थे, ऐसे में किसी को क्या आपत्ति होती. परिवार की तरफ से सिगनल मिलने के बाद नसरीन और सलमान दोनों ड्यूटी के बाद खुल कर मिलने लगे. दोनों साथसाथ घूमते और मौजमस्ती करते.

लेकिन उस मासूम कली को निचोड़ लेने के बाद सलमान का असली चेहरा सामने आ गया. धीरेधीरे उसे नसरीन बोझ लगने लगी. यह जानते हुए भी कि नसरीन के कंधों पर उस की बहन के निकाह की जिम्मेदारी है, वह नसरीन पर निकाह का दबाव बनाने लगा. दरअसल, उस की सोच यह थी कि नसरीन उस की पत्नी बन गई तो उस का वेतन भी उस के घर आने लगेगा. समस्या यह थी कि नसरीन निकाह के लिए तैयार नहीं थी.

इसी को ले कर सलमान खान नसरीन पर संदेह करने लगा. इस बात पर दोनों में लड़ाईझगड़ा भी होता. वह चाहता था कि या तो नसरीन उसे छोड़ दे, फिर शादी करे. लेकिन यह नसरीन के लिए संभव नहीं था, वह सलमान को बहुत प्यार करती थी. दूसरी ओर जब सलमान को यकीन हो गया कि नसरीन उस की जिंदगी से जाने वाली नहीं है, तो उस ने नसरीन को अपनी जिंदगी से बाहर निकालने का एक क्रूर फैसला ले लिया.

प्रेमी बना हत्यारा

घटना के दिन सलमान ने नसरीन को चर्चगेट के ओवल पार्क में बुलाया. नसरीन अपनी ड्यूटी खत्म कर के जब ओवल पार्क पहुंची तो सलमान उस के लेट पहुंचने को ले कर खरीखोटी सुनाने लगा. इस पर नसरीन का चेहरा भी लाल हो गया.

उस ने कहा, ‘‘सलमान, आखिर तुम्हें मुझ से प्रौब्लम क्या है? आजकल तुम मुझ से सीधे मुंह बात नहीं करते. मुझे छोटीछोटी बातों पर टौर्चर करते हो.’’

‘‘टौर्चर मैं करता हूं या तुम…आज तुम अपने किस यार से मिल कर आ रही हो?’’ सलमान ने कुटिलता से मुसकराते हुए कहा.

‘‘सलमान, खुदा से डरो. मैं तुम्हारी होने वाली पत्नी हूं. तुम मर्यादा में रहो तो अच्छा है.’’ कह कर नसरीन घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

लेकिन सलमान खान ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया, जिस से वह गिर गई. सलमान ने पूरे मैदान का जायजा ले कर अपनी जेब से चाकू निकाला और नसरीन पर हमला कर दिया.

चाकू के 17 वार करने के बाद सलमान वहां से भाग खड़ा हुआ. वह नसरीन का मोबाइल फोन भी अपने साथ ले गया. नसरीन को मौत की नींद सुलाने के 3 घंटे बाद उस ने नसरीन के घर वालों से संपर्क किया. बाद में वह नसरीन के घर गया और उन के साथ नसरीन को ढूंढने में उन की मदद करने लगा.

पुलिस ने सलमान से विस्तृत पूछताछ के बाद उस के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया. बाद में उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे मुंबई की आर्थर रोड जेल भेज दिया गया. Mumbai News

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime News : इश्क ने तहसीलदार को बना दिया कातिल

UP Crime News : रुचि सिंह चौहान उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही थी. उस का हाल ही में बाराबंकी से लखनऊ तबादला हुआ था. 13 फरवरी, 2022 को उस की ड्यूटी थी, लेकिन वह अपने औफिस ड्यूटी पर नहीं पहुंची. इस के बाद उस की तलाश की गई, उस का कोई पता नहीं चला. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा था. रुचि के साथ काम करने वाली उस की सहेली ने सोशल मीडिया पर फोटो सहित उस के लापता होने की पोस्ट डाली तो पूरे विभाग में हड़कंप मच गया.

जब किसी तरह से रुचि का पता नहीं लगा तो विभाग के अनुभाग अधिकारी एम.पी. सिंह ने सुशांत गोल्फ सिटी थाने में रुचि की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. पुलिस ने 3-4 दिनों तक उसे अपने स्तर से ढूंढा, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

उसी दौरान 17 फरवरी को पीजीआई थाना क्षेत्र के कल्ली माती स्थित नाले में एक युवती की लाश मिली है. पीजीआई थाने के प्रभारी धर्मपाल सिंह सूचना पर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश को नाले से निकलवा कर निरीक्षण किया गया.

मृतका का चेहरा काफी बिगड़ गया था. कपड़ों से ही उस की पहचान हो सकती थी. परंतु जब मौके पर उस की शिनाख्त न हो सकी तो इंसपेक्टर सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

इसी बीच थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह सुशांत को गोल्फ सिटी में सिपाही रुचि सिंह की गुमशुदगी दर्ज होने की जानकारी मिली तो उन्होंने नाले से युवती की लाश बरामद करने की सूचना थाना गोल्फ सिटी को दे दी.

सूचना पा कर 19 फरवरी को रुचि के साथ काम करने वाली उस की सहेली थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह के साथ मोर्चरी चली गई. उस ने कपड़ों के आधार पर ही लाश की पहचान रुचि के रूप में कर ली. जिस के बाद रुचि सिंह के घर घटना की सूचना दे दी गई. रुचि मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नजीबाबाद थाने के महावतपुर बिलौच की रहने वाली थी. रुचि के घर वालों द्वारा भी लाश की पहचान कर ली गई.

इस के बाद पुलिस ने पीजीआई थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी. रुचि का मोबाइल नंबर भी सर्विलांस पर लगा दिया गया.

काल डिटेल्स में 12 फरवरी को उस के फोन की आखिरी लोकेशन पीजीआई, लखनऊ के पास मिली. उसी दिन उस की जिस नंबर से अंतिम बार बात हुई थी, वह नंबर पता किया गया. वह नंबर पद्मेश श्रीवास्तव के नाम पर था, जोकि प्रतापगढ़ के रानीगंज में नायब तहसीलदार के पद पर तैनात था.

20 फरवरी की सुबह साढे़ 5 बजे लखनऊ पुलिस प्रतापगढ़ पहुंच गई. स्थानीय पुलिस को साथ ले कर लखनऊ पुलिस रानीगंज में कंपनी बाग के पास स्थित ट्रांजिट हौस्टल पहुंची. इसी हौस्टल में पद्मेश रहता था.

पुलिस ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ पलों में ही पद्मेश ने दरवाजा खोल दिया. पुलिस ने पद्मेश को हिरासत में लेने के बाद पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पूछताछ में रुचि की हत्या में 2 और नाम सामने आए. एक नाम पद्मेश की पत्नी प्रगति श्रीवास्तव और दूसरा उन दोनों के परिचित नामवर सिंह का था.

पद्मेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने नामवर सिंह को रानीगंज से और पद्मेश की पत्नी प्रगति को प्रयागराज स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया. तीनों को ले कर लखनऊ पुलिस वापस आ गई. यहां आ कर जब उन सभी से गहनता से पूछताछ की गई तो हत्या की पूरी वजह खुल कर सामने आ गई.

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नजीबाबाद थाने के महावतपुर बिलौच में रहती थी 25 वर्षीय रुचि सिंह चौहान. उस के पिता का नाम योगेंद्र सिंह चौहान और माता का नाम रानी देवी था. पिता पेशे से किसान थे. रुचि का एक भाई था शुभम. वह अभी पढ़ रहा था.

रुचि शुरू से पढ़ाई में काफी तेज थी. उस ने नजीबाबाद के ही एक कालेज से इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. उस के बाद उस ने पुलिस की भरती के लिए तैयारियां करनी शुरू कर दीं.

उस का सेलेक्शन भी हो गया. पुलिस ट्रेनिंग के दौरान उस की मुलाकात नीरज सिंह से हुई. वह भी कांस्टेबल की ट्रेनिंग कर रहा था.

नीरज सिंह बरेली जिले का रहने वाला था. रुचि बेहद खूबसूरत और चंचल स्वभाव की थी. उस के तीखे नैननक्श उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे. जो उसे देखता, देखता ही रह जाता. नीरज भी उसे देख कर अपना दिल हार बैठा. उस की नजर ही रुचि पर से नहीं हटती थी.

नीरज ने उस की तरफ कदम बढ़ाए तो रुचि को भी इस का एहसास हो गया कि नीरज उसे चाहता है. नीरज भी गबरू जवान था. रुचि भी उस में रुचि लेने लगी. पहले दोनों में दोस्ती हुई, जब दोनों एकदूसरे को अच्छे से जानने लगे, चाहत की आग बढ़ी तो दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार कर बैठे.

जून, 2019 में रुचि ने नीरज से विवाह कर लिया. रुचि के घरवाले इस विवाह के सख्त खिलाफ थे, लेकिन रुचि नहीं मानी. इस पर रुचि के घरवालों ने उस से ज्यादा मतलब रखना बंद कर दिया.

विवाह के बाद जैसेजैसे समय आगे बढ़ता गया, दोनों के बीच और नजदीकियां आने के बजाय दूरियां आने लगीं. उन के बीच का प्यार कम होता गया. रोजरोज झगड़े होने लगे.

रुचि ने फेसबुक पर अपना एकाउंट बना रखा था. उस के जरिए वह परिचितों से तो जुड़ी ही थी, साथ ही साथ नए अंजान लोगों के संपर्क में भी आ गई थी. उन में से ही एक था पद्मेश श्रीवास्तव.

पद्मेश स्मार्ट तो था ही, उस की सब से बड़ी खूबी यह थी कि वह सरकारी नौकरी करता था. वह उस समय नायब तहसीलदार के पद पर कौशांबी में तैनात था. उस की पहली पोस्टिंग प्रतापगढ़ के कुंडा में थी. वह प्रयागराज का रहने वाला था. पद्मेश शादीशुदा था और उस की पत्नी प्रगति प्रयागराज में जौब करती थी. उन के 2 बच्चे थे.

फेसबुक के जरिए रुचि की मुलाकात पद्मेश से हुई. दोनों ने एकदूसरे को अपने बारे में बताया. उन के बीच हर रोज बातचीत होने लगी. मैसेंजर पर चैटिंग होने लगी. जिस की वजह से उन में गहरी दोस्ती हो गई. पद्मेश ने उसे यह नहीं बताया था कि वह विवाहित है.

रुचि तो उसे अविवाहित समझ कर उस के साथ जुड़ी थी. वह नीरज के बाद पद्मेश के साथ जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी.

वह समझती थी कि पद्मेश से अच्छा दूसरा उसे कोई जीवनसाथी नहीं मिलेगा. इसलिए उस ने नीरज से तलाक लेने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी. नीरज इस समय कौशांबी में जीआरपी में तैनात था.

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समय के साथ दोनों ने अपने प्रेम का इजहार भी कर दिया. दोनों की मोबाइल पर बातें शुरू हो गईं. पहली मुलाकात दोनों की एक जमीन के मामले में हुई. उस के बाद उन के बीच मुलाकातों का सिलसिला चल निकला.

पद्मेश लखनऊ आता तो रुचि के साथ ही उस के किराए के मकान पर रुकता था. वह अकेली ही वहां रहती थी. रुचि भी रानीगंज जाती और पद्मेश के साथ उस के हौस्टल के कमरे में ही रुकती थी. सब अच्छा चलता देख कर रुचि पद्मेश पर जल्दी शादी कर लेने की बात करने लगी.

पद्मेश तो सिर्फ उस से संबंध बनाए रखना चाहता था. इसलिए उसे शादी करने का झूठा दिलासा देता रहता था. वह उस से कहता कि जल्द ही वह उस से शादी कर लेगा और लखनऊ में ही मकान बनवा कर उस के साथ रहेगा. यह सुन कर रुचि खुश हो जाती थी.

28 अगस्त, 2021 को रुचि का भाई शुभम उत्तर प्रदेश पुलिस में एसआई की परीक्षा देने लखनऊ आया तो वह अपनी बहन रुचि के मकान पर ही रुका. रुचि ने उसे भी बताया कि वह नीरज से तलाक ले रही है और तहसीलदार पद्मेश से शादी करने वाली है.

फोन पर शुभम की पत्नी शालिनी यानी अपनी भाभी को भी रुचि ने पद्मेश से शादी करने की बात बताई. वह शादी को ले कर बहुत खुश थी.

समय निकलता जा रहा था, लेकिन पद्मेश शादी की बात कहता जरूर था लेकिन करता कुछ नहीं था. इस पर रुचि पद्मेश पर जल्दी शादी करने का दबाव बनाने लगी.

उस के बारबार दबाव डालने से पद्मेश को एहसास हो गया कि रुचि अब ऐसे नहीं मानने वाली. अब वह उसे किसी तरह समझा कर बहलाफुसला नहीं सकता तो उस ने रुचि से अपने शादीशुदा होने की बात बता दी.

यह सुन कर रुचि हैरत में पड़ गई. इतना बड़ा झूठ पद्मेश ने उस से बोला, वह उसे ही सच मानती रही. उस झूठ को सच मान कर अपना तनमन उस पर लुटाती रही. लेकिन रुचि अब इतना आगे बढ़ चुकी थी कि वह वहां से पीछे नहीं लौट सकती थी. इसलिए वह पद्मेश के शादीशुदा होने के बाद भी उस से शादी करने को तैयार हो गई.

दूसरी ओर पद्मेश को उम्मीद थी कि उस के शादीशुदा होने की बात जान कर रुचि उस से शादी करने का इरादा छोड़ देगी, जिद नहीं करेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

पद्मेश के लिए अब रुचि गले में फंसी हड्डी बन गई थी, न निगलते बन रहा था, न उगलते. वह उस से दूरी बनाने लगा. उस की काल आती तो वह उठाता नहीं था. अगर उठाता तो व्यस्त होने का बहाना बना कर काल काट देता.

एक दिन जब रुचि ने पद्मेश को फोन किया तो वह प्रयागराज में अपने घर पर था. मोबाइल की घंटी बजते देख कर पद्मेश की पत्नी ने काल रिसीव कर ली. इस के बाद दोनों में काफी नोकझोंक हुई.

प्रगति ने रुचि को हिदायत दी कि वह दोबारा काल न करे. अपने पति पद्मेश को भी रुचि से दूर रहने की हिदायत दी. बात न मानने पर देख लेने की धमकी दी. लेकिन रुचि कहां मानने वाली थी. वह पद्मेश से हर हाल में शादी करना चाहती थी.

रुचि की जिद से पद्मेश तो परेशान था ही, उस की पत्नी प्रगति को भी डर था कि कहीं रुचि अपने इरादों में न सफल हो जाए और उस की सौतन बन जाए. इसलिए रुचि को ठिकाने लगाने का फैसला उस ने पद्मेश के साथ बात कर के कर लिया.

नामवर सिंह लखनऊ के पीजीआई थाना क्षेत्र के कल्ली में रहता था. रानीगंज में उस की जमीन का कुछ मामला था. उसी संबंध में वह नायब तहसीलदार पद्मेश से मिलता रहता था. कई बार मुलाकात में एकदूसरे को जान गए थे.

प्रगति की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती थी. पीजीआई में उसे दिखाने के लिए पद्मेश प्रगति को कार से ड्राइवर के साथ भेज देता था. वहां पीजीआई के पास रहने के कारण नामवर सिंह वहीं मिल जाता और प्रगति को आराम से डाक्टर को दिखवा देता था.

बारबार डाक्टर को दिखाने आने से प्रगति और नामवर सिंह की कई मुलाकातें हुईं तो उन मुलाकातों में दोनों एकदूसरे के करीब आ गए.

दूसरी ओर पद्मेश ने नामवर सिंह से कहा कि वह रुचि की हत्या करने में उस का साथ देगा तो वह उस की जमीन का दाखिल खारिज कर देगा. एक तो यह लालच और दूसरा प्रगति के कहने पर वह पद्मेश का साथ देने को तैयार हो गया.

12 फरवरी, 2022 को पद्मेश कार से पीजीआई के पास पहुंचा. नामवर सिंह उस के पास पहुंच गया. फिर योजनानुसार पद्मेश ने रुचि को फोन कर के पीजीआई आने को कहा.

रुचि कैब कर के अर्जुनगंज से पीजीआई के लिए निकल गई. वहां पहुंचने पर वह पद्मेश से मिलने के लिए उस की कार में बैठ गई. पहले तो पद्मेश और नामवर का इरादा रुचि का इलाज कराने के बहाने उसे जहरीला इंजेक्शन दे कर मार देने का था. हालांकि यह योजना सफल नहीं हुई.

फिर नींद की 10 गोलियां अनार के जूस मे मिला दीं. वह जूस रुचि को पीने को दे दिया. वह जूस पी कर रुचि को नींद आने लगी. इस के बाद पद्मेश और नामवर ने उस का पहले गला दबाया, फिर सिर पर प्रहार कर के उस की हत्या कर दी.

फिर नामवर ने रुचि की लाश को अपनी गाड़ी में शिफ्ट किया और कल्ली स्थित 5 फीट गहरे नाले में फेंक आया. इस के बाद प्रगति को रुचि की हत्या कर देने की बात बता दी. इस के बाद पद्मेश वापस लौट गया.

लेकिन उन के गुनाह की इबारत पुलिस से छिपी न रह सकी और तीनों पकड़े गए. कागजी खानापूर्ति करने के बाद पुलिस ने तीनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित

MP News : इश्क में धोखा खाकर आशिक बना खूनी दरिंदा

MP News : उदयन दास की कई माशूकाएं थीं. उन में से एक थी कोलकाता की रहने वाली 26 साला आकांक्षा शर्मा. उस के पिता शिवेंद्र शर्मा पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के एक बैंक में चीफ मैनेजर थे. भोपाल, मध्य प्रदेश के तकरीबन 32 साला उदयन दास को ऐयाशी करने के लिए दौलत नहीं कमानी पड़ी थी, क्योंकि उस के मांबाप इतना कमा कर रख गए थे कि अगर वह कुछ काम नहीं करता, तो भी जिंदगी में कभी भूखा नहीं सोता.

उदयन दास की कई माशूकाएं थीं. उन में से एक थी कोलकाता की रहने वाली 26 साला आकांक्षा शर्मा, जो एमएससी पास थी. उस के पिता शिवेंद्र शर्मा पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के एक बैंक में चीफ मैनेजर थे. अब से तकरीबन 8 साल पहले आकांक्षा शर्मा की दोस्ती फेसबुक के जरीए उदयन दास से हुई थी. फेसबुक चैटिंग में उदयन दास ने खुद को आईएफएस अफसर बताया था, जो अमेरिका में रहता है और अकसर भारत आया करता है.

अपने पिता बीके दास को उस ने भेल, भोपाल का अफसर बताया था, जो रिटायरमैंट के बाद रायपुर में खुद की फैक्टरी चला रहे हैं और मां इंद्राणी दास को पुलिस महकमे से रिटायर्ड डीएसपी बताया था. उस ने मां का भी अमेरिका में रहना बताया था.

उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को यह भी बताया था कि वह आईआईटी, दिल्ली से ग्रेजुएट है.

आजकल जैसा कि आमतौर पर फेसबुक चैटिंग में होता है, वह आकांक्षा शर्मा और उदयन दास के मामले में भी हुआ. पहले जानपहचान, फिर दोस्ती और उस के बाद प्यार. जल्द ही दोनों ने मिलनाजुलना शुरू कर दिया.

उदयन दास भले ही भोपाल में रह रहा था, पर आकांक्षा शर्मा के लिए तो वह अमेरिका में था, इसलिए जल्द ही उदयन दास ने उसे बताया कि वह दिल्ली आ रहा है.

दोनों दिल्ली में मिले और कुछ दिन साथ गुजारे. उदयन दास की रईसी का आकांक्षा शर्मा पर खासा असर पड़ा. वे दोनों एकसाथ हरिद्वार, मसूरी और देहरादून भी घूमने गए और एक ही होटल में एकसाथ एक कमरे में रुके. फिर उदयन दास अमेरिका यानी भोपाल लौट गया, इस वादे के साथ कि जल्द ही वह फिर भारत आएगा और अब वे दोनों भोपाल में मिलेंगे, जहां उस के 2 मकान हैं.

उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को बताया था कि उस का भोपाल वाला मकान काफी बड़ा है और उस का नीचे वाला हिस्सा किराए पर ब्रह्मकुमारी आश्रम को दे रखा है.

इन 2-3 मुलाकातों में आकांक्षा शर्मा सोचने लगी कि उदयन दास वैसा ही लड़का है, जैसा वह चाहती थी. वह तो शादी के बाद अमेरिका में नौकरी करने के सपने देखने लगी थी. लिहाजा, उन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

शादी, कत्ल और कब्र

एक दिन उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को बताया कि उस का मन अब अमेरिका में नहीं लग रहा है और वह उस से शादी कर भोपाल में ही बस जाना चाहता है. इस से अमेरिका जा कर नौकरी करने की आकांक्षा शर्मा की ख्वाहिश मिट्टी में मिल गई, क्योंकि अब तक वह अपने घर वालों को बता चुकी थी कि वह नौकरी करने अमेरिका जा रही है.

आकांक्षा शर्मा उदयन दास को चाहने लगी थी, इसलिए राजी हो गई. आज नहीं तो कल उसे अमेरिका जाने का मौका मिल सकता है, इसलिए वह उदयन की बताई तारीख पर बीते साल जून महीने में भोपाल आ गई. मांबाप से हकीकत छिपाने के लिए उस ने यह झूठ बोला कि वह नौकरी करने न्यूयौर्क जा रही है.

आकांक्षा शर्मा ने भोपाल के ही पिपलानी के काली बाड़ी मंदिर में उदयन दास के साथ शादी भी कर ली. इस दौरान वह फोन पर घर वालों से भी बात करती रही, लेकिन खुद को अमेरिका में होने का झूठ बोलती रही. यह जून, 2016 की बात है.

कुछ दिन उदयन दास के साथ बीवी की तरह गुजारने के बाद आकांक्षा शर्मा को मालूम हुआ कि उस के शौहर ने उस से कई झूठ बोले हैं, क्योंकि न तो वह कभी अपने मांबाप से फोन पर बात करता था और न ही उन के बारे में पूछने पर कुछ बताता था.

हद तो उस वक्त हो गई, जब आकांक्षा शर्मा को यह पता चला कि उदयन दास अव्वल दर्जे का नशेड़ी है और दूसरी कई लड़कियों से उस के नाजायज ताल्लुकात हैं. जुलाई, 2016 तक तो आकांक्षा शर्मा ने अपने घर वालों से फोन पर बात की, लेकिन अब वह उन से कम ही बात करती थी. लेकिन फिर धीरेधीरे वह एसएमएस के जरीए उन से बात करने लगी थी.

14 जुलाई, 2016 का दिन आकांक्षा शर्मा पर कहर बन कर टूटा. अगर उदयन दास ने उस से कई झूठ बोले थे, तो एक झूठ उस ने भी उदयन से बोला था. दरअसल, आकांक्षा शर्मा का एक बौयफ्रैंड और था, जिस ने उस के कुछ फोटो, जो कम कपड़ों में थे, ह्वाट्सऐप पर डाल दिए थे. ये फोटो उदयन दास की निगाह में आए, तो वह भड़क उठा.

पूछने पर आकांक्षा ने कुछ सच्ची और कुछ झूठी बातें उसे बताईं, तो उदयन को लगा कि आकांक्षा ने उस से झूठ तो बोला ही है, साथ ही उस के नाजायज ताल्लुकात पुराने बौयफ्रैंड से हैं और वह उसे पैसे भी देती रहती है.

रात को लड़झगड़ कर आकांक्षा तो सो गई, पर उदयन की आंखों में नींद नहीं थी. साथ में सो रही बीवी उसे धोखेबाज लगने लगी थी. रातभर जाग कर उदयन दास आकांक्षा शर्मा के कत्ल की योजना बनाता रहा और सुबह के 5 बजतेबजते उस ने उस की हत्या भी कर डाली.

उदयन ने पहले गहरी नींद में सोती हुई आकांक्षा का चेहरा तकिए से दबाया. जब उस के मर जाने की पूरी तरह से तसल्ली हो गई, तब तकिया हटाया और उस का गला घोंट डाला, जिस से आकांक्षा के गले की हड्डी चटक गई.

अब समस्या आकांक्षा की लाश को ठिकाने लगाने की थी. सुबह नजदीक की दुकान से उदयन दास ने 14 बोरी सीमेंट खरीदा और आकांक्षा की लाश एक पुराने बक्से में डाल दी और तकरीबन 10 बोरी सीमेंट घोल कर उस में भर दिया, जिस से लाश जम जाए. बक्से से बदबू न आए, इसलिए उस के चारों तरफ उस ने सैलो टेप लगा दी.

दोपहर को उस ने अपने एक पहचान वाले मिस्त्री रवि को बुलाया और कमरे में चबूतरा बनाने की बात कही. इस बाबत उदयन ने बहाना यह बनाया कि वह मंदिर बनवाना चाहता है. रवि ने चबूतरा बनाने के लिए कमरा खोदा, पर चूंकि उस के सामने लाश वाला बक्सा नहीं रखा जा सकता था, इसलिए उदयन ने चतुराई से उसे बातों में उलझाया और तगड़ा मेहनताना दे कर चलता कर दिया.

इस के बाद उस ने बक्सा गड्ढे में डाला और उस पर चबूतरा बना दिया. खूबसूरती बढ़ाने के लिए उस पर मार्बल भी जड़ दिया.

यों पकड़ा गया

आकांक्षा शर्मा के मांबाप बांकुरा में परेशान थे, क्योंकि धीरेधीरे उन की बेटी ने एसएमएस के जरीए भी बात करना कम कर दिया था. कुछ दिनों तक तो उन्होंने सब्र रखा, लेकिन किसी अनहोनी का शक उन्हें हुआ, तो उन्होंने आकांक्षा की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी.

बांकुरा क्राइम ब्रांच ने जब आकांक्षा के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस की, तो वह साकेत नगर, भोपाल की निकली. आकांक्षा के पिता शिवेंद्र शर्मा भोपाल आए और उदयन से मिले, क्योंकि आकांक्षा उन्हें उस के बारे में पहले बता चुकी थी.

उदयन ने उन्हें गोलमोल बातें बनाते हुए चलता कर दिया कि आकांक्षा तो न्यूयौर्क में नौकरी कर रही है. शिवेंद्र शर्मा के हावभाव देख कर समझ तो गए कि दाल में कुछ काला जरूर है, पर कुछ कहने की हालत में नहीं थे.

बांकुरा जा कर उन्होंने फिर पुलिस पर दबाव बनाया, तो क्राइम ब्रांच के टीआई अमिताभ कुमार 30 जनवरी, 2017 को अपनी टीम समेत भोपाल आए और गोविंदपुरा इलाके के सीएसपी वीरेंद्र कुमार मिश्रा से मिल कर उन्हें सारी बात बताई. इस पुलिस टीम के साथ आकांक्षा का छोटा भाई आयुष सत्यम भी था, जो बहन की चिंता में घुला जा रहा था.

पुलिस वालों ने योजना बना कर उदयन की निगरानी की, तो उस की तमाम हरकतें रहस्यमय निकलीं. 31 जनवरी, 2017 और 1 फरवरी, 2017 को पुलिस उदयन की निगरानी करती रही. इस से ज्यादा कुछ और हासिल नहीं हुआ, तो उन्होंने 2 फरवरी को उदयन के घर एमआईजी 62, सैक्टर 3-ए, साकेत नगर पर दबिश डाल दी.

उस वक्त उदयन दरवाजे पर ताला लगा कर अंदर बैठा था. गोविंदपुरा थाने के एएसआई सत्येंद्र सिंह कुशवाह छत के रास्ते अंदर गए और उदयन से मेन गेट का ताला खुलवाया, फिर तमाम पुलिस वाले अंदर दाखिल हुए.

अंदर का नजारा अजीबोगरीब था. उदयन का सारा घर धूल और गंदगी से भरा पड़ा था. तीनों कमरों में तकरीबन 10 हजार सिगरेट के ठूंठ बिखरे पड़े थे और शराब की खाली बोतलें भी लुढ़की पड़ी थीं. खाने की बासी प्लेटें भी पाई गईं, जिन से बदबू आ रही थी.

पर सब से ज्यादा हैरान कर देने वाली बात दूसरे कमरे में बना एक चबूतरा था, जिस के ऊपर फांसी का फंदा लटक रहा था और कमरों की दीवारों पर जगहजगह प्यारभरी बातें लिखी हुई थीं.

चबूतरे के बाबत पुलिस वालों ने सवालजवाब शुरू किए, तो पहले तो उदयन खामोश रहा, पर थोड़ी देर बाद ही उस ने फिल्मी स्टाइल में कहा कि उस ने आकांक्षा का कत्ल कर दिया है और उस की लाश इस चबूतरे के नीचे दफन है.

इतना सुनते ही पुलिस वालों के होश फाख्ता हो गए. उन्होंने तुरंत चबूतरे की खुदाई के लिए मजदूर बुला लिए. चबूतरा इतना पक्का था कि मजदूरों से नहीं खुदा, तो पुलिस वालों ने उसे जेसीबी मशीनों से खुदवाया. थोड़ी खुदाई के बाद निकला वह बक्सा, जिस में आकांक्षा की लाश 2 महीनों से पड़ी थी.

बक्सा खोला गया, तो उस में से आकांक्षा की मुड़ीतुड़ी हड्डियां निकलीं, जिन्हें पहले पोस्टमार्टम और फिर डीएनए टैस्ट के लिए भेज दिया गया.

खुली एक और कहानी

उदयन दास के मांबाप कहां हैं, यह सवाल भी अहम हो चला था. पुलिस वालों ने जब उन के बारे में पूछा, तो पहले तो उस ने उन्हें टरकाने की कोशिश की, पर जैसे ही पुलिस ने उस पर थर्ड डिगरी का इस्तेमाल किया, तो उस ने पूरा सच उगल दिया कि उस ने अपने मांबाप की हत्या अब से तकरीबन 5 साल पहले रायपुर वाले मकान में की थी और उन्हें लान में दफना दिया था.

मामला कुछ यों था. भोपाल में जब उदयन दास 7वीं जमात में था, तब उस ने एक दोस्त का स्कूल की दीवार पर सिर मारमार कर फोड़ दिया था. रायपुर आ कर भी उस की बेजा हरकतें कम नहीं हुई थीं. पढ़ाईलिखाई में तो वह शुरू से ही फिसड्डी था, पर रायपुर आ कर नशा भी करने लगा था.

मांबाप चूंकि उसे पढ़ाईलिखाई के बाबत डांटते रहते थे, इसलिए वह उन से नफरत करने लगा था. जब कालेज की डिगरी पूरी होने का वक्त आया, तो उस ने मांबाप से झूठ बोल दिया कि वह पास हो गया है. इस पर मांबाप ने उसे नौकरी करने को कहा, तो उसे लगा कि झूठ पकड़ा जाने वाला है. लिहाजा, उस ने मांबाप को ही ठिकाने लगाने का फैसला ले डाला.

एक रात जब पिता चिकन लेने बाजार गए हुए थे और मां ऊपर की मंजिल पर कमरे में कपड़े रख रही थीं, तो उस ने गला घोंट कर उन का कत्ल कर डाला. पिता जब बाजार से आए, तो उन की चाय में उस ने नींद की गोलियां मिला दीं और उन के गहरी नींद में चले जाने पर उन का भी गला घोंट दिया.

मांबाप की लाशें ठिकाने लगाने से उस ने मजदूर बुला कर लान में 2 बड़े गड्ढे खुदवाए और देर रात लाशें घसीट कर उन में डाल दीं और सीमेंट से उन्हें चुन दिया. मांबाप की हत्या करने के बाद उदयन ने रायपुर वाला मकान 30 लाख रुपए में बेच दिया और भोपाल आ कर साकेत नगर वाले घर में ऐशोआराम की जिंदगी जीने लगा.

निकम्मा और ऐयाश उदयन चालाक भी कम नहीं था. उस ने इंदौर से पिता का और इटारसी नगरपालिका से मां की मौत का झूठा सर्टिफिकेट बनवाया और उन की बिना पर सारी जायदाद अपने नाम करा ली.

मां की पैंशन के लिए जरूरी था कि उन के जिंदा होने का सर्टिफिकेट बनवाया जाए, जो उस ने साल 2012 में दिल्ली की डिफैंस कालोनी के एक डाक्टर से बनवाया और बैंक मुलाजिमों को घूस दे कर हर महीने पैंशन निकालने लगा.

वैसे, उदयन दास के मामले से एक सबक लड़कियों को जरूर मिलता है कि फेसबुक की दोस्ती उस वक्त जानलेवा हो जाती है, जब वे उदयन दास जैसे जालसाज और फरेबियों के चंगुल में फंस कर घर वालों से झूठ बोलने लगती हैं और एक अनजान आदमी से चोरीछिपे शादी कर लेती हैं, इसलिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल उन्हें सोचसमझ कर करना चाहिए.

सैक्स और सिर्फ सैक्स

गिरफ्तारी के बाद भोपाल से रायपुर और रायपुर से बांकुरा ले जाए गए उदयन दास को जब 20 फरवरी, 2017 को भोपाल लाया गया, तब पता चला कि शादी के बाद अपनी बीवी आकांक्षा शर्मा के साथ वह खानेपीने के अलावा सिर्फ सैक्स ही करता रहा था. लगता ऐसा है कि सैक्स उस के लिए जरूरत नहीं, बल्कि एक खास किस्म की बीमारी बन गई थी. लगातार सैक्स करने में वह थकता इसलिए नहीं था कि हमेशा नशे में रहता था.

मुमकिन है कि आकांक्षा शर्मा को उस की इस आदत पर भी शक हुआ हो और उस ने एतराज जताया हो, लेकिन चूंकि वह एक तरह से उस की कैदी सी हो कर रह गई थी, इसलिए जीतेजी किसी से इस बरताव का जिक्र नहीं कर पाई और पूछने पर उदयन ने पुलिस वालों को बताया कि वह जब 8वीं जमात में था, तब जेब में कंडोम रख कर चलता था कि क्या पता कब कोई लड़की सैक्स करने के लिए राजी हो जाए. MP News

Uttar Pradesh : भागने से इंकार किया तो आशिक ने प्रेमिका को मारी गोली

Uttar Pradesh : 3 सितंबर, 2021 का दिन उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में नौगवां नरोत्तम गांव के रहने वाले 25 वर्षीय आशीष सिंह के लिए बेहद खुशी का दिन था. इस की वजह यह थी कि आशीष अपने दूसरे बच्चे का पिता जो बना था. उस की पत्नी दीपा ने बेटी को जन्म दिया था, इस खुशी में वह फूला नहीं समा रहा था.

आशीष और दीपा का एक साल का बेटा रौनक भी था. लेकिन वह इस खुशी के पलों में अपने परिवार के साथ नहीं, बल्कि घर से दूर नोएडा में था. वह नोएडा में एक एलईडी बल्ब की फैक्ट्री में काम करता था.

उस ने जब अपने मालिक से इस मौके पर घर जाने के लिए कुछ दिनों की छुट्टी मांगी तो फैक्ट्री मालिक ने साफ मना कर दिया. फैक्ट्री नियमों के अनुसार किसी को भी छुट्टी लेने के लिए कम से कम 10 दिन पहले बताना पड़ता है. तो ऐसे में आशीष के पास 10 दिनों के इंतजार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था.

10 दिनों के बाद 14 सितंबर को आशीष नोएडा से अपने परिवार और बच्चों के लिए ढेर सारे खिलौने ले कर अपने गांव लौटा. अपनी बेटी को देख कर आशीष की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. गांव लौटने के बाद आशीष ने अपने पिता बनने की खुशी में पूरे गांव में मिठाई बांटी और अपने करीबियों को दावत दी.

मिठाई बांटते हुए वह अपने घर के पास उस घर में गया, जहां उस की जवानी की यादें जुड़ी हुई थीं. यह घर किशनपाल का था. दरअसल, किशनपाल की 22 वर्षीय बेटी बंटी से आशीष का प्रेम संबंध करीब 7 साल पुराना था. आशीष और बंटी के बीच संबंध को गांव में रहने वाला हर कोई जानता था.

किशनपाल और बंटी की मां को मिठाई दे कर वहां से निकल आया और सोचते हुए अपने घर की ओर चला गया. दरअसल, आशीष पिछले साल उत्तर प्रदेश में हुए प्रधानी के चुनावों में प्रत्याशी के तौर पर खड़ा हुआ था. लेकिन उसे बेहद बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. जिस के बाद उसे गांव में अन्य प्रधान प्रत्याशियों से जान से मारने की धमकी मिली थी.

मामला शांत और ठंडा करने के लिए आशीष के घर वालों ने उसे कुछ दिनों के लिए गांव से बाहर चले जाने की नसीहत दी. उसी दौरान वह नोएडा में एलईडी बल्ब की फैक्ट्री में काम करने लगा था.

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए, लेकिन आशीष के दिलोदिमाग से बंटी हर समय छाई रही. अपनी शादी के 2 साल और 2 बच्चे हो जाने के बाद भी वह 7 साल के अपने प्यार को भुला नहीं पा रहा था. हालांकि आशीष और बंटी दोनों साथ में अपनी जिंदगी गुजारना चाहते थे. लेकिन उन के मांबाप और घर के बाकी सदस्यों को उन का ये संबंध मंजूर नहीं था.

मामला धर्म का नहीं था और न ही जाति का था. बल्कि दोनों एक ही गौत्र से थे, जिस की वजह से दोनों के घर वालों को उन का रिश्ता मंजूर नहीं था.

बंटी से मिल कर बात करने की ख्वाहिश आशीष के दिमाग में इतनी सवार हुई कि उस ने ऐसा करने के लिए सारी हदें पार करने का फैसला कर लिया.

16 सितंबर, 2021 की रात को बिस्तर पर लेटे हुए आशीष ने अपने दिमाग में बंटी से मिलने का प्लान बनाया. उस ने यह तय कर लिया कि वह अपनी बीवी दीपा और अपने बच्चों के साथ नहीं, बल्कि अपनी प्रेमिका बंटी के साथ बाकी की जिंदगी गुजारेगा.

रात के करीब एक बजे आशीष अपने बिस्तर से उठा और दबेपांव अपने घर से बिना किसी को बताए निकल गया. उस के घर से बंटी का घर मात्र 200 मीटर यानी सिर्फ 4-5 मिनट की दूरी पर था. आशीष गली से होते हुए बंटी के घर के नजदीक पहुंचा तो देखा कि उन के घर पर रोशनी फैली हुई थी.

उस ने रास्ता बदला और बंटी के घर के पीछे वाले रास्ते पर जा कर छलांग लगा कर घर के आंगन में जा घुसा. किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई कि घर में कोई घुस आया है.

छिपतेछिपाते सीढि़यों के सहारे दूसरी मंजिल में बंटी के कमरे में जा पहुंचा और दरवाजे के पीछे छिप कर बंटी का इंतजार करने लगा.

इधर बंटी नीचे अपनी मां के साथ रोटियां सेंक रही थी. उस के पिता किशनपाल जल्दी ही खाना खा कर सो गए थे. रात के करीब सवा बज रहे थे. बंटी खाने की प्लेट ले कर अपने कमरे की ओर चल पड़ी.

सीढि़यों से चढ़ते हुए बंटी दूसरी मंजिल पर अपने कमरे का दरवाजा खोल अंदर घुसी और लाइट जलाई तो अपनी आंखों पर उसे भरोसा नहीं हुआ. उस ने देखा कि बिस्तर पर आशीष बैठा हुआ था. लेकिन बंटी ने आशीष को देख कर शोर नहीं मचाया. वह चुप रही और अंदर से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया.

आशीष को अपने कमरे में देख आश्चर्यचकित हो कर बंटी धीमी आवाज में फुसफुसाई, ‘‘यहां क्या कर रहे हो तुम? जल्दी यहां से भागो. मेरी मां किसी भी समय यहां आती ही होगी. जल्दी निकलो.’’

बंटी की बात सुन आशीष अपने पंजों के सहारे उस की ओर बढ़ा और उस का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘नहीं, मैं यहां से नहीं जाऊंगा. मैं तुम्हें लेने आया हूं. मैं ने फैसला कर लिया है, मुझे तुम्हारे ही साथ अपनी आगे की पूरी जिंदगी काटनी है.’’

कहते हुए आशीष ने बंटी के हाथों को कस कर पकड़ लिया. बंटी आशीष के हाथों से अपने हाथों को झटके से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यह क्या मजाक है. तुम्हारी बीवी है. 2 बच्चे हैं. तुम इस बारे में अब सोच भी कैसे सकते हो.’’

बंटी की बात सुन कर आशीष कुछ पलों के लिए मौन हो गया. लेकिन अपनी चुप्पी तोड़ते हुए और अपने दोनों हाथों को बंटी के गाल पर लगाते हुए बोला, ‘‘तुम्हें उन के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम खुद सोचो, हम एकदूसरे से प्यार करते हैं. यह बात पूरे गांव वालों को मालूम है. लेकिन हम घर वालों की वजह से कभी एक नहीं हो पाए. सिर्फ  कमबख्त एक गौत्र की वजह से हम दोनों का कभी मिलन नहीं हो पाया. इस बार मैं ने तय कर लिया है कि मैं तुम्हें यहां से अपने साथ ले कर ही जाऊंगा.’’

सुन कर बंटी ने खुद को आशीष से दूर किया और बोली, ‘‘बहुत देर हो चुकी है अब. यह खयाल अपने मन से निकाल दो. और तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए राजी हो जाऊंगी. वो भी तब जब तुम्हारी शादी हो गई, 2 बच्चे भी हो गए. अगर मुझ से प्यार था और ये हिम्मत पहले दिखाई होती तो मैं मान भी जाती.

‘‘हम साथ मिल कर दुनिया से लड़ लेते. अब मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए दीपा और तुम्हारे बच्चों की जिंदगी खराब नहीं कर सकती. मुझे माफ कर देना. वैसे भी तुम्हारी शादी के बाद मैं ने खुद को संभाल लिया है. अब मैं भी खुद की एक नई जिंदगी शुरू करना चाहती हूं. बेहतर होगा तुम मुझे भुला दो.’’

लेकिन बंटी के साफ इनकार करने के बाद वह अपने होशोहवास खो बैठा. किसी तरह खुद को संभालते हुए आशीष ने बंटी को समझाने की एक और कोशिश की. लेकिन वह नाकामयाब रहा.

सुबह के करीब 6 बजे नौगवां नरोत्तम गांव के लोग अपने बिस्तर से उठे ही थे और अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो ही रहे थे कि अचानक गांव वालों ने गांव के सब से बड़े पीपल के पेड़ के नीचे कुछ ऐसा देखा, जिस की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.

लोग उस पेड़ के नीचे सुबहसुबह पूजा करने के लिए जब पहुंचे तो उन्होंने वहां आशीष के शव को पड़ा देखा. आशीष के करीबी लोगों में से सुरेश ने भी आशीष के शव को जब देखा तो वह भाग कर उस के पिता सुखपाल सिंह को बुलाने पहुंचा.

सुबह के सवा 6 बजे सुखपाल सिंह खेतों की तरफ से घर की ओर आ ही रहे थे तो सुरेश हांफते हुए उन से बोला, ‘‘काका, पीपल के पेड़ पर. जल्दी चलो.’’

सुखपाल भीड़ को हुए आशीष के शव के सामने जा कर खड़े हो गए. आशीष की लाश जमीन पर चित्त पड़ी थी. उस के सीने में दिल की ओर गोली लगी थी. अपने जवान बेटे का शव जमीन पर पड़ा देख सुखपाल के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई थी. वह चीखचीख कर आशीष का नाम ले कर रोनेपीटने लगे.

इतने में पेड़ के पास किशनपाल के घर से भी रोने और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. गांव वालों को समझ नहीं आया कि आखिर हुआ तो हुआ क्या.

जब गांव के लोग किशनपाल के घर पता करने पहुंचे तो पता चला कि दूसरी मंजिल पर उस की बेटी बंटी की लाश उस के कमरे में पड़ी थी. बंटी के शरीर पर भी ठीक उसी जगह पर गोली लगी थी, जहां आशीष को लगी थी. सीने पर, दिल के पास.

दोनों मौतों की यह खबर पूरे गांव में तो क्या आसपास लगभग सभी गांवों में आग की तरह फैल गई कि फलां गांव में एक ही दिन में 2 लोगों को गोली लगी, वह भी एक ही जगह पर.

सुबह के साढ़े 7 बजे गडि़यारंगीन पुलिस मौकाएवारदात पर पहुंच गई. क्योंकि मामला बेहद संगीन था और इलाके में तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी, गडि़यारंगीन थानाप्रभारी सुंदरलाल ने आसपास के इलाकों की पुलिस टीम को सूचित कर जल्द से जल्द घटनास्थल पर बुला लिया.

सूचना मिलते ही जैतीपुर, कटरा और तिलहर पुलिस थाने से फोर्स जल्द से जल्द घटनास्थल पर पहुंच गई. देखते ही देखते घटनास्थल छावनी में बदल गया.

थानाप्रभारी सुंदरलाल, सीओ परमानंद पांडेय और एएसपी (ग्रामीण) संजीव कुमार वाजपेयी ने दोनों परिवारों से अलगअलग पूछताछ की.

एक तरफ आशीष के पिता सुखपाल ने अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार किशनपाल और उस के घर वालों को बताया तो दूसरी तरफ किशनपाल ने अपनी बेटी की मौत का जिम्मेदार सुखपाल और उस के घर वालों को बताया.

एक तरफ आशीष और बंटी दोनों के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया तो वहीं फोरैंसिक टीम बारीकी से साक्ष्य जुटाने में व्यस्त हो गई.

आशीष के शव के पास से टीम ने गोली का एक खोखा और एक जीवित गोली भी बरामद की. लेकिन उन्हें कहीं भी पिस्तौल नहीं मिली.

टैक्निकल टीम ने आशीष के फोन की अंतिम लोकेशन का पता लगाया तो पुलिस को यह जान कर हैरानी हुई कि आशीष की अंतिम लोकेशन बंटी के घर की ही मिली थी. ऐसे में पुलिस के शक की सुई किशनपाल और उस के परिवार की ओर घूम गई.

जब दोनों के बारे में आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ हुई तो पता चला दोनों आशीष और बंटी एकदूसरे से प्यार करते थे और एक गौत्र से होने की वजह से उन की शादी नहीं हो पाई थी.

ऐसे में पुलिस को यह मामला औनर किलिंग का लगा. लेकिन पुलिस सभी साक्ष्य जुटाने के बाद और सभी एंगल से मामले की छानबीन कर किसी नतीजे पर पहुंचना चाहती थी. ऐसी स्थिति में पुलिस ने किशनपाल और सुखपाल दोनों ही परिवारों से सख्ती से पूछताछ की.

करीब एक हफ्ते की कमरतोड़ मेहनत के बाद पुलिस ने किशनपाल को हिरासत में लेते हुए सख्ती से पूछताछ की. उस ने पुलिस के सामने सारा सच उगल दिया.

उस ने बताया कि जिस रात आशीष उस की बेटी बंटी से मिलने के लिए उस के घर आया था, उस रात को बंटी की मां नीचे खाना खा रही थी. तभी करीब रात के 2 बजे बंटी की मां को ऊपर जोर से कुछ गिरने की आवाज आई. उसे ऐसा लगा जैसे बंटी ने ऊपर अपने कमरे में कुछ गिरा दिया हो.

अपना खाना खत्म कर के बंटी की मां दूसरी मंजिल पर बंटी के कमरे में पहुंची और दरवाजा खोला तो कमरे का नजारा देख उस के होश उड़ गए थे. कमरे में बंटी और आशीष की लाशें पड़ी थीं.

यह देख कर बंटी की मां दौड़ कर नीचे किशनपाल के पास भाग कर आई और रोतेकुलबुलाते हुए उस ने दूसरी मंजिल पर जाने के लिए कहा.

किशनपाल बिस्तर से उठ कर दूसरी मंजिल पर बंटी के कमरे में घुसा तो उस का भी वही हाल हुआ जो उस की पत्नी का हुआ था. किशनपाल अपनी बेटी का शव देख कर बुरी तरह से घबरा गया.

काफी देर तक अपने बेटी के शव के पास बैठे रह कर रोनेबिलखने के बाद उस ने अपना होश संभाला और इस मामले में वह और उस का परिवार न फंस जाए, इस डर से उस ने आशीष के शव को अपने कंधों पर उठा कर अपने घर से बाहर पीपल के पेड़ के नीचे डाल आया. और उसी दौरान किशनपाल ने आशीष के शव के पास पड़ी पिस्तौल भी उठा ली.

उस ने आशीष के शव को पेड़ के नीचे रखने के बाद अपना खून से पूरी तरह सना अपना कुरता और पिस्तौल अपने ही घर में दबा दिया ताकि कोई उसे ढूंढ न सके. वह गोली का एक खोखा और एक जीवित गोली लाश के पास ही डाल आया.

दरअसल, आशीष पूरी प्लानिंग के तहत उस रात बंटी को भगाने के उद्देश्य से उस के घर चुपके से पहुंचा था. अपने घर से निकलते समय वह अपने दोस्त से मिला और उस ने अपनी सुरक्षा के नाम पर उस की लोडेड पिस्तौल ले ली.

वह किसी और को इस काम में शामिल नहीं करना चाहता था, इसलिए वह अकेले ही बंटी के घर पर पहुंचा था. प्यार से समझानेबुझाने के बाद जब आशीष को यह यकीन हो गया कि उस की प्रेमिका उस के साथ नहीं रहना चाहती तो उस ने उसे एक और आखिरी मौका दिया.

वह बंटी से बोला, ‘‘बंटी, तुम्हें हमारे प्यार की कसम. तुम एक बार हां तो करो, फिर देखना हम पूरी दुनिया से लड़ जाएंगे. आखिरी बार सोच लो एक और बार.’’

इस पर बंटी ने उसे तुरंत जवाब दिया, ‘‘मैं ने सोच लिया है. मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाने वाली. तुम ने तो अपनी जिंदगी जी ली है. अपने बीवीबच्चों के साथ हंसीखुशी जी रहे हो. तुम्हारे साथ भाग कर मुझे किसी की बददुआ नहीं चाहिए. घर वालों से जब लड़ने का मौका था, तब तुम से कुछ हुआ नहीं. लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है. यही मेरा आखिरी फैसला है.’’

बंटी के ये सब कहने के बाद आशीष के मन को गहरा सदमा लगा. उस ने आव देखा न ताव, अपनी जेब में रखी पिस्तौल निकाली और बंटी के सीने पर गोली चला दी. इस से पहले कि बंटी को कुछ एहसास होता, गोली उस की छाती चीरते हुए उस के दिल को भेदते हुए अंदर दाखिल हो चुकी थी.

बंटी को गोली मारने के बाद आशीष को अचानक होश आया. उसे खुद पर बिलकुल यकीन ही नहीं हुआ, आखिर उस ने ये क्या कर दिया.

उस के बाद उस ने बिना कुछ सोचेसमझे ठीक जिस तरह से उस ने बंटी को मारी थी, खुद की छाती पर भी गोली चला दी.

ये हत्या तो थी ही साथ ही आत्महत्या भी थी. यदि दोनों के घर वाले उन के रिश्ते को मंजूरी दे देते तो शायद दोनों आज भी जिंदा होते और एक अच्छी जिंदगी गुजारते.

बंटी के पिता किशनपाल ने बेशक दोनों में से किसी की भी जान न ली हो लेकिन पुलिस ने किशनपाल को वास्तविकता छिपाने, मनगढ़ंत साक्ष्य पैदा करने, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने इत्यादि का आरोप लगाते हुए हिरासत में ले लिया.

किशनपाल को हिरासत में ले कर उस की निशानदेही पर पुलिस ने उसी के घर से रक्तरंजित कुरता और पिस्तौल भी बरामद कर ली. पुलिस ने किशनपाल को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. Uttar Pradesh

Apradh Ki Kahani : बेवफाई का बदला – माशूका ने आशिक का प्राइवेट पार्ट काट डाला

Apradh Ki Kahani : मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले सीधी का एक गांव है नौगवां दर्शन सिंह, जिस में ज्यादातर आदिवासी या फिर पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं. शहरों की चकाचौंध से दूर बसे इस शांत गांव में एक वारदात ऐसी भी हुई, जिस ने सुनने वालों को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि राजो (बदला नाम) ने जो किया, वैसा न पहले कभी सुना था और न ही किसी ने सोचा था. इस गांव का एक 20 साला नौजवान संजय केवट अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था.

भरेपूरे घर में पैदा हुए संजय को किसी बात की चिंता नहीं थी. पिता की भी अच्छीखासी कमाई थी और खेतीबारी से इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती थी.

बचपन की मासूमियत

संजय और राजो दोनों बचपन के दोस्त थे. अगलबगल में होने के चलते दोनों पर एकदूसरे के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी. 8-10  साल की उम्र तक दोनों साथसाफ बेफिक्र हो कर बचपन के खेल खेलते थे. चूंकि चौबीसों घंटे का साथ था, इसलिए दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं और उम्र बढ़ने लगी, तो दोनों में जवान होने के लक्षण भी दिखने लगे. संजय और राजो एकदूसरे में आ रहे इन बदलावों को हैरानी से देख रहे थे. अब उन्हें बजाय सारे दोस्तों के साथ खेलने के अकेले में खेलने में मजा आने लगा था.

जवानी केवल मन में ही नहीं, बल्कि उन के तन में भी पसर रही थी. संजय राजो को छूता था, तो वह सिहर उठती थी. वह कोई एतराज नहीं जताती थी और न ही घर में किसी से इस की बात करती थी. धीरेधीरे दोनों को इस नए खेल में एक अलग किस्म का मजा आने लगा था, जिसे खेलने के लिए वे तनहाई ढूंढ़ ही लेते थे. किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता था कि बड़े होते ये बच्चे कौन सा खेल खेल रहे हैं.

जवानी की आग

यों ही बड़े होतेहोते संजय और राजो एकदूसरे से इतना खुल गए कि इस अनूठे मजेदार खेल को खेलतेखेलते सारी हदें पार कर गए. यह खेल अब सैक्स का हो गया था, जिसे सीखने के लिए किसी लड़के या लड़की को किसी स्कूल या कोचिंग में नहीं जाना पड़ता. बात अकेले सैक्स की भी नहीं थी. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहने भी लगे थे और हर रोज एकदूसरे पर इश्क का इजहार भी करते रहते थे. चूंकि अब घर वालों की तरफ से थोड़ी टोकाटाकी शुरू हो गई थी, इसलिए ये दोनों सावधानी बरतने लगे थे.

18-20 साल की उम्र में गलत नहीं कहा जाता कि जिस्म की प्यास बुझती नहीं है, बल्कि जितना बुझाने की कोशिश करो उतनी ही ज्यादा भड़कती है. संजय और राजो को तो तमाम सहूलियतें मिली हुई थीं, इसलिए दोनों अब बेफिक्र हो कर सैक्स के नएनए प्रयोग करने लगे थे. इसी दौरान दोनों शादी करने का भी वादा कर चुके थे. एकदूसरे के प्यार में डूबे कब दोनों 20 साल की उम्र के आसपास आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. अब तक जिस्म और सैक्स इन के लिए कोई नई बात नहीं रह गई थी.

दोनों एकदूसरे के दिल के साथसाथ जिस्मों के भी जर्रेजर्रे से वाकिफ हो चुके थे. अब देर बस शादी की थी, जिस के बाबत संजय ने राजो को भरोसा दिलाया था कि वह जल्द ही मौका देख कर घर वालों से बात करेगा. उन्होंने सैक्स का एक नया ही गेम ईजाद किया था, जिस में दोनों बिना कपड़ों के आंखों पर पट्टी बांध लेते थे और एकदूसरे के जिस्म को सहलातेटटोलते हमबिस्तरी की मंजिल तक पहुंचते थे. खासतौर से संजय को तो यह खेल काफी भाता था, जिस में उसे राजो के नाजुक अंगों को मनमाने ढंग से छूने का मौका मिलता था. राजो भी इस खेल को पसंद करती थी, क्योंकि वह जो करती थी, उस दौरान संजय की आंखें पट्टी से बंधी रहती थीं.

शुरू हुई बेवफाई

जैसा कि गांवदेहातों में होता है, 16-18 साल का होते ही शादीब्याह की बात शुरू हो जाती है. राजो अभी छोटी थी, इसलिए उस की शादी की बात नहीं चली थी, पर संजय के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे. यह भनक जब राजो को लगी, तो वह चौकन्नी हो गई, क्योंकि वह तो मन ही मन संजय को अपना पति मान चुकी थी और उस के साथ आने वाली जिंदगी के ख्वाब यहां तक बुन चुकी थी कि उन के कितने बच्चे होंगे और वे बड़े हो कर क्याक्या बनेंगे.

शादी की बाबत उस ने संजय से सवाल किया, तो वह यह कहते हुए टाल गया, ‘तुम बेवजह चिंता करते हुए अपना खून जला रही हो. मैं तो तुम्हारा हूं और हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’

संजय के मुंह से यह बात सुन कर राजो को तसल्ली तो मिली, पर वह बेफिक्र न हुई.

एक दिन राजो ने संजय की मां से पड़ोसनों से बतियाते समय यह सुना कि संजय की शादी के लिए बात तय कर दी है और जल्दी ही शादी हो जाएगी. इतना सुनना था कि राजो आगबबूला हो गई और उस ने अपने लैवल पर छानबीन की तो पता चला कि वाकई संजय की शादी कहीं दूसरी जगह तय हो गई थी. होली के बाद उस की शादी कभी भी हो सकती थी.

संजय उस से मिला, तो उस ने फिर पूछा. इस पर हमेशा की तरह संजय उसे टाल गया कि ऐसा कुछ नहीं है. संजय के घर में रोजरोज हो रही शादी की तैयारियां देख कर राजो का कलेजा मुंह को आ रहा था. उसे अपनी दुनिया उजड़ती सी लग रही थी. उस की आंखों के सामने उस के बचपन का दोस्त और आशिक किसी और का होने जा रहा था. इस पर भी आग में घी डालने वाली बात उस के लिए यह थी कि संजय अपने मुंह से इस हकीकत को नहीं मान रहा था.

इस से राजो को लगा कि जल्द ही एक दिन इसी तरह संजय अपनी दुलहन ले आएगा और वह घर के दरवाजे या खिड़की से देखते हुए उस की बेवफाई पर आंसू बहाती रहेगी और बाद में संजय नाकाम या चालाक आशिकों की तरह घडि़याली आंसू बहाता घर वालों के दबाव में मजबूरी का रोना रोता रहेगा.

बेवफाई की दी सजा

राजो का अंदाजा गलत नहीं था. एक दिन इशारों में ही संजय ने मान लिया कि उस की शादी तय हो चुकी है. दूसरे दिन राजो ने तय कर लिया कि बचपन से ही उस के जिस्म और जज्बातों से खिलवाड़ कर रहे इस बेवफा आशिक को क्या सजा देनी है. वह कड़कड़ाती जाड़े की रात थी. 23 जनवरी को उस ने हमेशा की तरह आंख पर पट्टी बांध कर सैक्स का गेम खेलने के लिए संजय को बुलाया. इन दिनों तो संजय के मन में लड्डू फूट रहे थे और उसे लग रहा था कि शादी के बाद भी उस के दोनों हाथों में लड्डू होंगे.

रात को हमेशा की तरह चोरीछिपे वह दीवार फांद कर राजो के कमरे में पहुंचा, तो वह उस से बेल की तरह लिपट गई. जल्द ही दोनों ने एकदूसरे की आंखों पर पट्टी बांध दी. संजय को बिस्तर पर लिटा कर राजो उस के अंगों से छेड़छाड़ करने लगी, तो वह आपा खोने लगा. मौका ताड़ कर राजो ने इस गेम में पहली और आखिरी बार बेईमानी करते हुए अपनी आंखों पर बंधी पट्टी उतारी और बिस्तर के नीचे छिपाया चाकू निकाल कर उसे संजय के अंग पर बेरहमी से दे मारा. एक चीख और खून के छींटों के साथ उस का अंग कट कर दूर जा गिरा.

दर्द से कराहता, तड़पता संजय भाग कर अपने घर पहुंचा और घर वालों को सारी बात बताई, तो वे तुरंत उसे सीधी के जिला अस्पताल ले गए. संजय का इलाज हुआ, तो वह बच गया, पर पुलिस और डाक्टरों के सामने झूठ यह बोलता रहा कि अंग उस ने ही काटा है. पर पुलिस को शक था, इसलिए वह सख्ती से पूछताछ करने लगी. इस पर संजय के पिता ने बयान दे दिया कि संजय को पड़ोस में रहने वाली लड़की राजो ने हमबिस्तरी के लिए बुलाया था और उसी दौरान उस का अंग काट डाला, जबकि कुछ दिनों बाद उस की शादी होने वाली है.

पुलिस वाले राजो के घर पहुंचे, तो उस के कमरे की दीवारों पर खून के निशान थे, जबकि फर्श पर बिखरे खून पर उस ने पोंछा लगा दिया था. तलाशी लेने पर कमरे में कटा हुआ अंग नहीं मिला, तो पुलिस वालों ने राजो से भी सख्ती की. पुलिस द्वारा बारबार पूछने पर जल्द ही राजो ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बता दिया कि हां, उस ने बेवफा संजय का अंग काट कर उसे सजा दी है और वह अंग बाहर झाडि़यों में फेंक दिया है, ताकि उसे कुत्ते खा जाएं.

दरअसल, राजो बचपन के दोस्त और आशिक संजय पर खार खाए बैठी थी और बदले की आग ने उसे यह जुर्म करने के लिए मजबूर कर दिया था. राजो चाहती थी कि संजय किसी और लड़की से जिस्मानी ताल्लुकात बना ही न पाए. यह मुहब्बत की इंतिहा थी या नफरत थी, यह तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि बेवफाई तो संजय ने की थी, जिस की सजा भी वह भुगत रहा है.

राजो की हिम्मत धोखेबाज और बेवफा आशिकों के लिए यह सबक है कि वह दौर गया, जब माशूका के जिस्म और जज्बातों से खेल कर उसे खिलौने की तरह फेंक दिया जाता था. अगर अपनी पर आ जाए, तो अब माशूका भी इतने खौफनाक तरीके से बदला ले सकती है. Apradh Ki Kahani

Suspense Story in Hindi : अवैध संबंध का अंजाम – बोरी में लाश किसकी थी और कौन था कातिल

Suspense Story in Hindi : 22 नवंबर, 2016 की सुबह कानपुर (देहात) के थाना सजेती के गांव बसई के रहने वालों ने नहर किनारे बोरी में बंद पड़ी लाश देखी तो थाना सजेती पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी आर.के. सिंह पुलिस बल के साथ गांव बसई पहुंच गए. उन्होंने साथ आए सिपाहियों से बोरी खुलवाई तो उस में एक युवक की लाश निकली. लाश देख कर गांव वालों के बीच खड़ा रमेश फफक कर रो पड़ा. क्योंकि बोरी से निकली लाश उस के भाई राजेश की थी.

हत्या की सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) सुरेंद्रनाथ तिवारी भी आ गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद मृतक के भाई रमेश से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि राजेश के पड़ोस में ही रहने वाली साधना से नाजायज संबंध थे. उसे शक है कि उसी ने राजेश की हत्या कराई है. एसपी थानाप्रभारी को जल्दी से जल्दी हत्यारों को पकड़ने का आदेश दे कर चले गए.

आर.के. सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर गांव वालों से पूछताछ की तो पता चला कि पहले राजेश और साधना के बीच प्रेमसंबंध थे. इधर साधना ने लालू से रिश्ते बना लिए थे. इस जानकारी से थानाप्रभारी को लगा कि राजेश का कत्ल नाजायज संबंधों की ही वजह से हुआ है.

25 नवंबर को वह लालू को पकड़ कर थाने ले आए और सख्ती से पूछताछ की तो उस ने राजेश की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि साधना के साथ मिल कर उसी ने राजेश की हत्या की थी, क्योंकि वह साधना को ब्लैकमेल कर रहा था. इस के बाद साधना को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पुलिस को राजेश की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर (देहात) जनपद की तहसील घाटमपुर के थाना सजेती का एक गांव है बसई. इसी गांव में रामबाबू अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शांति देवी के अलावा 2 बेटियां रमन, साधना और बेटा अजय था. साधना का विवाह उन्होंने गोविंद के साथ किया था. वह थाना सजेती के अंतर्गत आने वाले गांव रामपुर के रहने वाले रघुवर का बेटा था. वह गांव में ही रह कर पिता के साथ खेती करवाता था.

गोविंद साधना जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर बहुत खुश था. साधना भी गोविंद को खूब चाहती थी. दोनों की जिंदगी हंसीखुशी से बीत रही थी. इसी तरह 3 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इस बीच साधना ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अंकुर रखा. बेटे के जन्म के बाद उन का भरापूरा परिवार हो गया.

पर उन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रह सकी. होनी ने ऐसे पैर पसारे कि दोनों की जिंदगी में तबाही आ गई. गोविंद एक दिन खादबीज लेने घाटमपुर गया तो लौटते वक्त उस का बस से एक्सीडेंट हो गया, जिस में वह बुरी तरह से घायल हो गया. उस के सिर में गंभीर चोट आई थी.

साधना ने पति का काफी इलाज कराया. वह ठीक तो हो गया, लेकिन दिमाग में चोट लगने से वह अर्धविक्षिप्त हो गया. अब वह न काम करता था, न घरपरिवार की देखभाल करता था. वह पागलों की तरह गलीगली में घूमता रहता था. साधना खूबसूरत और जवान थी. पति की दूरी उसे खलने लगी. वह मर्द सुख के लिए बेचैन रहने लगी.

उस ने इस बात पर गहराई से विचार किया तो उस की नजरें पड़ोस में रहने वाले राजेश पर टिक गईं. वह उस के पड़ोस में ही बड़े भाई रमेश के साथ रहता था. उस के मातापिता की मौत हो चुकी थी. वह शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. उस का दूध का कारोबार था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर के वह मंडी में ले जा कर बेच आता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो रही थी.

राजेश और गोविंद हमउम्र थे. दोनों में दोस्ती भी थी. इसलिए राजेश का साधना के घर भी आनाजाना था. लेकिन गोविंद के पागल होने के बाद उस का साधना के घर आना काफी कम हो गया था. पर देवरभाभी का रिश्ता होने की वजह से दोनों जब भी मिलते, हंसीमजाक कर लेते थे. साधना के मन में उस के लिए चाहत पैदा हुई तो वह उस से खुल कर हंसीमजाक करने लगी.

राजेश को साधना के मन की बात का अंदाजा हुआ तो उस का उस के घर आनाजाना बढ़ गया. साधना को खुश करने के लिए वह खानेपीने की चीजें और उपहार भी लाने लगा. इन चीजों को पा कर साधना खूब खुश होती. अब हंसीमजाक के साथ छेड़छाड़ भी होने लगी. साधना अपनी मोहक अदाओं से राजेश को नजदीक आने का निमंत्रण देती, लेकिन राजेश आगे बढ़ने में हिचकता था.

परंतु साधना के खुले आमंत्रण पर हिचकिचाहट त्याग कर जल्दी ही राजेश ने साधना की मन की मुराद पूरी कर दी. मर्यादा की दीवार गिरी तो सिलसिला चल निकला. अब साधना के लिए राजेश ही सब कुछ हो गया. वह भी साधना की देह का ऐसा दीवाना हुआ कि अपनी सारी कमाई उसी पर लुटाने लगा.

घर में क्या हो रहा है, विक्षिप्त होने की वजह से गोविंद को कोई मतलब नहीं था. उस की मौजूदगी में भी कभीकभी साधना राजेश के साथ संबंध बना लेती थी. अगर वह कुछ कहता तो दोनों उसे मारपीट कर भगा देते थे. इस के बाद डर के मारे वह कई दिनों तक घर नहीं आता था.

साधना पूरी तरह स्वच्छंद थी. सास की मौत हो चुकी थी. ससुर साधु बन कर गांव छोड़ कर तीर्थों में भटक रहा था. साधना को कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था, इसलिए वह खुल कर राजेश के साथ रंगरलियां मना रही थी. राजेश रात में घर से निकलता और साधना के घर पहुंच जाता. सुबह होने से पहले वह अपने घर आ जाता.

लेकिन एक रात भेद खुल गया. आधी रात को रमेश की आंख खुली तो उस ने भाई को गायब पाया. मुख्य दरवाजा बाहर से बंद था, इस से वह समझ गया कि राजेश घर से बाहर गया है. वह उस के लौटने का इंतजार करने लगा. राजेश लगभग 2 घंटे बाद घर लौटा तो रमेश उस पर बरस पड़ा. भाई की डांट से राजेश डर गया. उस ने बता दिया कि वह साधना के घर गया था और उस से उस के नाजायज संबंध हैं.

रमेश समझ गया कि राजेश अपनी सारी कमाई साधना के साथ अय्याशी में खर्च कर रहा है, इसीलिए कारोबार में घाटा बता रहा है. रमेश ने भाई को डांटफटकार कर साधना के घर जाने पर रोक लगा दी. यही नहीं, राजेश से सख्ती से हिसाब लेने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि राजेश के पास अब पैसे नहीं बचते थे, जिस से वह साधना की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था.

राजेश ने पैसे देने बंद किए तो साधना ने भी उसे लिफ्ट देना बंद कर दिया. कभी चोरीछिपे राजेश साधना के घर पहुंचता तो वह उसे दुत्कार कर भगा देती. वह अपमानित हो कर लौट आता. उसी बीच साधना के 3 साल के बेटे अंकुर को डेंगू बुखार हो गया. उस के इलाज के लिए उस ने राजेश से 10 हजार रुपए उधार मांगे.

लेकिन राजेश ने पैसे देने से मना कर दिया. रुपयों को ले कर साधना और राजेश में जम कर झगड़ा हुआ. साधना ने साफ कह दिया कि अगर अब वह उस के घर आया तो वह उसे धक्के मार कर भगा देगी. इस के बाद राजेश का साधना के घर आनाजाना बिलकुल बंद हो गया. साधना को बेटे के इलाज के लिए रुपयों की सख्त जरूरत थी, इसलिए उस ने गांव के ही लालू यादव से 10 हजार रुपए ब्याज पर उधार ले लिए.

इन रुपयों से साधना ने बेटे का इलाज कराया. उचित इलाज होने से अंकुर पूरी तरह स्वस्थ हो गया. बेटा तो स्वस्थ हो गया, लेकिन अब उसे रुपए वापस करने की चिंता सताने लगी. साधना के पास खेती की कमाई के अलावा आमदनी का कोई दूसरा जरिया नहीं था. खेती की कमाई से वह किसी तरह घर का खर्च चला पाती थी. लालू के रुपए लौटाने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे.

लालू महीने के अंत में ब्याज के रुपए लेने आता था. साधना उसे किसी न किसी बहाने टरका देती थी. जब कई महीने तक साधना ब्याज का पैसा नहीं दे पाई तो लालू का माथा ठनका. वह अपने रुपए कैसे वसूले, इस बात पर विचार करने लगा. उस ने सोचा कि अगर साधना रुपए नहीं देती तो क्यों न वह उस के शरीर से रुपए वसूल ले.

यह विचार आते ही लालू साधना से हंसीमजाक करने लगा. लालू हृष्टपुष्ट युवक था, जिस से साधना को उस के हंसीमजाक में आनंद आने लगा. उस ने सोचा कि अगर लालू उस के रूपजाल में फंस जाता है तो उस की शारीरिक जरूरत तो पूरी होगी ही, उसे उस के पैसे भी नहीं देने होंगे. इस के बाद उस ने लालू को पूरी छूट दे दी. फिर तो जल्दी ही दोनों के बीच संबंध बन गए.

लालू से उस के संबंध क्या बने, वह उस की दीवानी हो गई. लालू भी उस के लिए पागल हो चुका था, इसलिए दिल खोल कर उस पर पैसे खर्च करने लगा. यही नहीं, उस ने अपने पैसे भी मांगने बंद कर दिए.

लालू और साधना के अवैध संबंध बिना किसी रोकटोक के चल रहे थे. लेकिन अचानक राजेश बीच में कूद पड़ा. जब उसे पता चला कि साधना ने लालू से संबंध बना लिए हैं तो वह साधना को ब्लैकमेल करने की कोशिश करने लगा. उस ने साधना से कहा कि वह उस से भी संबंध बनाए वरना वह गांव में सभी से उस के और लालू के संबंधों के बारे में बता देगा.

राजेश की इस धमकी से साधना डर गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी बात मानने को तैयार हूं, लेकिन इस के लिए मुझे थोड़ा वक्त दो.’’ इस के बाद जब लालू आया तो साधना ने रोते हुए उस से कहा, ‘‘मेरे और तुम्हारे संबंधों की जानकारी राजेश को हो गई है. अब वह भी मुझ से संबंध बनाने को कह रहा है. संबंध न बनाने पर गांव में सब को बताने की धमकी दे रहा है.’’

साधना की इस बात पर लालू का खून खौल उठा. उस ने कहा, ‘‘तुम किसी भी कीमत पर राजेश से संबंध मत बनाना. मैं उसे ऐसा सबक सिखाऊंगा कि वह जिंदगी में कभी भूल नहीं पाएगा. लेकिन इस के लिए मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.’’

साधना लालू की मदद करने के लिए राजी हो गई तो लालू ने राजेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली और मौके का इंतजार करने लगा.

21 नवंबर, 2016 की रात 10 बजे राजेश के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उस ने देखा, साधना का फोन था. फोन रिसीव कर के वह खुश हो कर बोला, ‘‘कहो, कैसे फोन किया?’’

‘‘राजेश, मैं ने तुम्हारी बात मान ली है. तुम अभी आ जाओ.’’ साधना ने कहा.

राजेश तुरंत साधना के घर जा पहुंचा और उसे बांहों में भर लिया. तभी कमरे में छिप कर बैठा लालू निकला और राजेश को पकड़ कर पीटने लगा. राजेश कुछ कर पाता, उस के पहले ही लालू ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कस दिया. राजेश छटपटाने लगा तो साधना ने उस की छाती पर सवार हो कर उसे काबू में कर लिया.

राजेश की मौत हो गई तो दोनों ने उस की लाश को एक बोरी में भरा और रात में ही साइकिल से ले जा कर गांव के बाहर नहर के किनारे फेंक आए. पूछताछ के बाद आर.के. सिंह ने साधना और लालू के खिलाफ राजेश की हत्या का मुकदमा दर्ज कर 26 नवंबर, 2016 को कानपुर (देहात) की माती अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. suspense story in hindi

 – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Latest Crime Story in Hindi : रिलेशनशिप में रह रही प्रेमिका की चाकू मारकर की हत्या

Latest Crime Story in Hindi : नोएडा के खोड़ा कालोनी के वंदना एनक्लेव स्थित 4 मंजिला मकान में कुल 33 कमरे थे. सभी कमरों में नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली में काम करने वाले किराएदार रह रहे थे. इन में से कुछ लोग अपने परिवार के साथ रहते थे. लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे थे जो अकेले ही रहते थे. चूंकि सभी लोग नौकरीपेशा थे, इसलिए वे सुबह ही अपनी ड्यूटी पर चले जाते और देर शाम या रात को वापस अपने कमरों पर लौटते थे.

12 जून, 2018 की रात करीब 11 बजे की बात है. उस समय अधिकांश लोग अपने कमरों में सोने की तैयारी में थे. तभी कुछ लोगों को भयंकर बदबू आई. बदबू कहां से आ रही है, यह जानने के लिए कुछ किराएदार अपने कमरों से बाहर निकल आए. उसी समय एक युवक चौथी मंजिल से एक बड़े आकार का भूरे रंग का ट्रौली बैग अपने साथ ले कर सीढि़यों से उतरता दिखा.

वहां रहने वाले उस युवक के बारे में केवल इतना जानते थे कि वह ऊपर की मंजिल पर रहता है. उस का नाम किसी को मालूम नहीं था. ट्रौली बैग ले कर वह जिधर जा रहा था, उधर ही बदबू बढ़ती जा रही थी.

लोगों को शक हुआ कि उस के बैग में ऐसा क्या है जो इतनी बदबू आ रही है. एकदो लोगों ने उस से इस बारे में पूछा भी, लेकिन उस ने ठीक से कोई जवाब देने के बजाए उन्हें झिड़क दिया. इस के बाद उन लोगों को उस पर और भी ज्यादा शक बढ़ गया और वे उत्सुकतावश नीचे ग्राउंड फ्लोर पर आ गए.

दरअसल, पिछले 2 दिनों से उस मकान में एक अजीब तरह की सड़ांध आ रही थी. कई किराएदारों ने सड़ांध का पता लगाने की कोशिश की थी लेकिन कुछ भी पता नहीं चल पाया था. लेकिन ट्रौली बैग देख कर वे लोग समझ गए कि सड़ांध उसी बैग से आ रही है.

ग्राउंड फ्लोर पर उतरने के बाद वह युवक लाल रंग की कार की तरफ बढ़ रहा था, तभी लोगों ने इस की सूचना उस मकान के केयरटेकर राधेमोहन त्रिपाठी को दे दी. राधेमोहन त्रिपाठी उस ट्रौली बैग वाले युवक के पास पहुंचे. वह उस युवक को पहचान गए. वह युवक चौथी मंजिल पर रहने वाला किराएदार शिवम विरदी था.

राधेमोहन ने शिवम से बैग के बारे में पूछा तो वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका. इस पर राधेमोहन ने उसे कार में बैठने से रोक लिया और नोएडा पुलिस के कंट्रोलरूम को फोन कर दिया. जो किराएदार नीचे उतर आए थे, वे उस लाल रंग की कार के आगे खड़े हो गए ताकि वह कार ले कर वहां से न भाग सके. तब तक शिवम वह ट्रौली बैग ले कर कार में बैठ चुका था. उस ने कार का हौर्न बजा कर सामने खडे़ लोगों से हट जाने का संकेत किया. लेकिन वे नहीं हटे तो शिवम के चेहरे पर घबराहट दिखाई देने लगी.

शिवम ने जब देखा इतने सारे लोग उस के पीछे पड़ गए हैं तो वह कार से उतरा और उसे लौक कर के वहां से पैदल ही भाग खड़ा हुआ. लोग उस के पीछे भागे भी पर वह किसी की पकड़ में नहीं आया.

थोड़ी देर में खोड़ा थाने के थानाप्रभारी धर्मेंद्र कुमार वहां आ गए. लोगों ने उन्हें पूरी बात बताई. कार के सामने पहुंच कर वह उस का मुआयना करने लगे. कार के दरवाजे लौक थे, इस के बावजूद कार से कुछ बदबू बाहर आ रही थी. उन्होंने साथ में आए स्टाफ से कार का शीशा तोड़ कर कार में रखा ट्रौली बैग बाहर निकालने को कहा.

पुलिसकर्मियों ने कार का शीशा तोड़ कर ट्रौली बैग बाहर निकाला तो उस में से बहुत तेज बदबू आ रही थी. इस से थानाप्रभारी ने बैग खुलवाया तो उन की शंका सच साबित हुई. उस में एक लड़की की लाश थी.

लाश काफी खराब अवस्था में थी. लाश देख कर लोगों ने बताया कि लाश शिवम की पत्नी ज्योति की है. ज्योति कई दिनों से दिखाई भी नहीं दे रही थी. लाश का मुआयना करने पर थानाप्रभारी ने देखा उस पर घाव के निशान थे. थानाप्रभारी धर्मेंद्र कुमार ने वरिष्ठ अधिकारियों को फोन कर के मामले की सूचना दे दी और जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. उन्होंने लाल रंग की स्विफ्ट कार अपने कब्जे में ले ली.

मकान के केयरटेकर राधेमोहन त्रिपाठी से पुलिस ने पूछताछ की तो उस ने बताया कि कार छोड़ कर फरार हुआ शिवम लुधियाना, पंजाब का रहने वाला है और पिछले 8 महीने से वह अपनी पत्नी ज्योति के साथ यहां रह रहा था. केयरटेकर को साथ ले कर थानाप्रभारी चौथी मंजिल स्थित शिवम के कमरे पर पहुंचे.

कमरे पर ताला लगा हुआ था. ताला तोड़ कर पुलिस टीम अंदर पहुंची तो देखा फर्श की अच्छी तरह सफाई कर दी गई थी. कमरे की तलाशी में पुलिस को कुछ कागजात मिले, उन में से एक में ज्योति के भाई का पता और फोन नंबर मिल गया.

थानाप्रभारी ने उस के भाई को फोन कर के बताया कि उस की बहन के साथ अनहोनी हो गई है, इसलिए वह जितनी जल्दी हो सके, नोएडा के खोड़ा थाने पहुंच जाए. उस कमरे को सील कर के पुलिस टीम थाने लौट गई.

अगले दिन सुबह फरार शिवम का हुलिया पता कर के नोएडा के बसस्टैंड तथा मैट्रो स्टेशन पर उस की तलाश की गई, मगर वह कहीं नहीं मिला. उधर थानाप्रभारी को बेसब्री से ज्योति के भाई के आने का इंतजार था. उस के आने के बाद ही आगे की काररवाई की जानी थी.

12 जून, 2018 की शाम को ज्योति का भाई लोधी सिंह वर्मा खोड़ा थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी ने सब से पहले उसे अस्पताल में रखी लाश दिखाई. लाश देखते ही वह रोने लगा. उस ने उस की शिनाख्त अपनी छोटी बहन ज्योति के रूप में कर दी. लोधी सिंह की शिकायत पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने लोधी सिंह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की बहन पिछले साल अक्तूबर में दिल्ली के एक सैलून में जौब मिलने की बात बता कर लुधियाना से नोएडा चली आई थी.

चूंकि उस ने परिवार को अच्छी सैलरी मिलने की बात बताई थी, वैसे भी ज्योति तेजतर्रार थी, इसलिए उस के दिल्ली आने पर किसी ने ऐतराज नहीं किया था.

नौकरी लग जाने पर उस ने बताया था कि वह दिल्ली में अपनी एक सहेली के साथ किराए पर कमरा ले कर रहती है. यहां आने के बाद भी वह प्रतिदिन अपने घर फोन कर के अपने बारे में जानकारी देती रहती थी. जब तक वह यहां रही, परिवार का कोई सदस्य उसे देखने के लिए नहीं आया.

इस वारदात के बाद लोधी सिंह को पता लगा कि वह किसी सहेली के साथ नहीं बल्कि शिवम के साथ रह रही थी. लोधी सिंह से बात करने के बाद थानाप्रभारी ने फरार शिवम को तलाशने के लिए मुखबिर लगा दिए.

13 जून, 2018 की शाम को खोड़ा के कुछ लोगों ने नोएडा के लेबर चौक के पास शिवम को खड़े देखा. वह शायद किसी गाड़ी के इंतजार में वहां खड़ा था. पुलिस को सूचना देने से पहले ही लोगों ने उसे पकड़ लिया और इस की सूचना खोड़ा पुलिस को दे दी.

शिवम के पकड़े जाने की बात सुन कर थानाप्रभारी धर्मेंद्र कुमार फौरन पुलिस टीम के साथ लेबर चौक पहुंच गए. वहां कुछ लोग शिवम को दबोचे खड़े थे. पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से उस की पत्नी ज्योति की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि ज्योति की हत्या उस ने नहीं की है, बल्कि उस ने आत्महत्या की थी.

शिवम ने बताया कि 9 जून की रात को वह शराब पी कर घर लौटा तो ज्योति उस से नाराज हो गई. दोनों के बीच कहासुनी हुई तो ज्योति गुस्से में बाथरूम में गई और फंदा बना कर लटक गई.

आधी रात होने पर जब उस का नशा उतरा तो उस ने ज्योति को ढूंढना शुरू किया. वह उसे ढूंढते हुए बाथरूम में पहुंचा तो उस की लाश फंदे में झूल रही थी. यह देख कर वह घबरा गया और पुलिस से बचने के डर से उस ने 2 दिनों तक उस की लाश कमरे में ही छिपाए रखी. कल जब वह उसे ठिकाने लगाने के लिए जा रहा था, तभी लोगों ने उसे घेर लिया और लाश ठिकाने नहीं लगा सका.

यह सब बतातेबताते शिवम थानाप्रभारी से बारबार नजरें चुरा रहा था. यह देख कर थानाप्रभारी को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. इस के बाद उन्होंने शिवम से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि ज्योति की हत्या उस ने ही की थी. उस ने ज्योति की हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

26 वर्षीय शिवम लुधियाना के फतेहपुर अवाना राजगुरू नगर में अपने पिता जगदीश विरदी और मां के साथ रहता था. उस के पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे. 2 साल पहले वह लुधियाना के एक मौडर्न सैलून के सामने से गुजर रहा था, तो उस की मुलाकात ज्योति से हुई. ज्योति उसी सैलून में नौकरी करती थी.

पहली ही नजर में ज्योति की खूबसूरती उस के दिल को भा गई. उस ने उत्सुकतावश पूछ लिया कि इस सैलून में लेडीज और जेंट्स दोनों की हेयर सेटिंग होती है? इस पर ज्योति ने उसे बताया कि यहां दोनों के लिए अलगअलग सैलून हैं और वह भी इसी सैलून में काम करती है. अगर उसे कभी जरूरत हो तो उसे फोन कर के आ जाए.

इस के बाद उस ने अपना फोन नंबर बताया तो शिवम ने जल्दी से उस का नाम पूछ कर उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया. इस के बाद उस ने अपना नाम और नंबर भी ज्योति को बता दिया. यह उन दोनों की पहली मुलाकात थी. इस के बाद तो आए दिन किसी न किसी बहाने से दोनों की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया जो जल्दी ही प्यार में बदल गया.

दोनों का जब भी दिल करता, आपस में प्यार की मीठीमीठी बातें कर अपनी चाहतों का इजहार करने से नहीं चूकते थे. धीरेधीरे 2 साल गुजर गए. इस बीच शिवम ने लुधियाना के नामी इंस्टीट्यूट से बीसीए का कोर्स भी पूरा कर लिया. अब उसे भी नौकरी की तलाश थी. वह जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो कर ज्योति को अपनी दुलहन बनाना चाहता था.

ज्योति के परिवार में उस के पिता की कुछ साल पहले ही मौत हो चुकी थी. इस समय घर में 2 बडे़ भाई धर्मेंद्र सिंह वर्मा और लोधी सिंह वर्मा तथा 5 बहनें थीं. बहनों में वह सब से छोटी थी.

दोनों को ऐसा लगता था कि उन की शादी में परिवार वाले बाधक नहीं बनेंगे. फिर भी दोनों फूंकफूंक कर कदम रख रहे थे. मजे की बात यह थी कि काफी समय गुजर जाने के बाद भी उन के परिवार वालों को उन के अफेयर की जानकारी नहीं थी.

इस बीच एक दिन जब दोनों मिले तो शिवम ने उसे बताया कि वह नौकरी की तलाश में दिल्ली जा रहा है और नौकरी मिलते ही उसे भी वहां बुला लेगा. ज्योति इस के लिए पहले से ही राजी थी, इसलिए उस ने शिवम के प्रस्ताव पर फौरन हामी भर दी.

ज्योति के साथ नया जीवन गुजारने की उमंग में वह मन में नएनए सपने बुनता हुआ नोएडा आ गया. यहां उसे वीवो कंपनी में नौकरी मिल गई. वह कंपनी के कस्टमर केयर डिपार्टमेंट में काम करने लगा.

6 महीने बाद उस ने ज्योति को भी फोन कर के अपने पास बुला लिया. अक्तूबर में ज्योति नोएडा आ गई. साथ रहने के लिए दोनों ने खोड़ा कालोनी के वंदना एनक्लेव में वन रूम सेट किराए पर ले लिया और लिवइन में रहने लगे. वहां शिवम ने ज्योति को अपनी पत्नी बताया था. कुछ दिन बाद ज्योति वर्मा को भी गाजियाबाद के वसुंधरा एनक्लेव के एक ब्यूटीपार्लर में ब्यूटीशियन की नौकरी मिल गई. चूंकि दोनों ही नौकरी कर रहे थे, इसलिए उन्हें अब किसी तरह की टेंशन नहीं थी. दोनों खुश थे.

ज्योति और शिवम के शुरुआत के 3-4 महीने बेहद खुशनुमा थे, लेकिन परेशानी तब शुरू हुई, जब ज्योति शिवम के जल्दी शादी करने के प्रस्ताव को किसी न किसी बहाने टालने लगी. यह देख कर शिवम मन ही मन बहुत परेशान रहने लगा. इस के अलावा उन दोनों की सैलरी में भी भारी अंतर था. शिवम को जहां 14 हजार रुपए मिलते थे, वहीं ज्योति की सैलरी 22 हजार रुपए महीने थी.

इस के अलावा ज्योति ने अप्रैल महीने से घर लेट पहुंचना शुरू कर दिया था. इस से शिवम ने मन में सोचा कि ज्योति को कोई अमीर आशिक मिल गया है, इसलिए वह उस से किनारा करना चाह रही है. अपना शक दूर करने के लिए वह रोज ज्योति के घर लौटने पर उस का मोबाइल चैक करने लगा.

शिवम को अपना मोबाइल चैक करते देख कर ज्योति लपक कर उस से मोबाइल छीन लेती थी, साथ ही ऐसा करने से मना भी करती थी. इस के बाद शिवम का शक और बढ़ गया. नतीजतन आए दिन दोनों के बीच रोज लड़ाई होने लगी. शिवम को अब पक्का यकीन हो गया कि ज्योति जरूर किसी के साथ डेट पर जाने लगी है.

9 जून, 2018 की शाम शिवम विरदी ने शराब पी. उस ने सोचा कि आज वह ज्योति का मोबाइल छीन कर उस के वाट्सऐप और फेसबुक की फ्रैंडलिस्ट चैक करेगा. देर शाम जब ज्योति घर लौटी तो पहले से गुस्से में भरे बैठे शिवम ने उस से मोबाइल छीन लिया. जब ज्योति ने इस का पुरजोर विरोध किया तो दोनों के बीच जम कर लड़ाई हो गई.

गुस्से में शिवम रसोई से चाकू उठा लाया और उस के पेट पर कई वार कर दिए. थोड़ी देर तड़प कर ज्योति ने दम तोड़ दिया. ज्योति के मरने के बाद शिवम को लगा, उस से बहुत बड़ी गलती हो गई. लेकिन अब क्या हो सकता था. वह 72 घंटों तक लाश को एक ट्रौली बैग में बंद कर के रखे रहा और उसे ठिकाने लगाने के बारे में सोचता रहा.

12 जून को उस ने दिल्ली के लक्ष्मीनगर से एक सेल्फ ड्राइव स्विफ्ट कार किराए पर ली और उसे वंदना एनक्लेव स्थित मकान के सामने ले आया. जब वह ट्रौली बैग को उस में रखने जा रहा था, उसी समय ज्योति की लाश से निकलने वाली बदबू के कारण उस का भांडा फूट गया और वह खोड़ा के थानाप्रभारी के हत्थे चढ़ गया.

14 जून, 2018 को नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण, एसपी आकाश तोमर ने नोएडा स्थित अपने औफिस में प्रैस कौन्फ्रैंस कर मीडिया को ज्योति वर्मा मर्डर केस का खुलासा होने की जानकारी दी.

उसी दिन आरोपी शिवम विरदी को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

तमाम युवक और युवतियां लिवइन में रहते हैं और अपनीअपनी नौकरी करते हैं, लेकिन सभी के अनुभव अच्छे नहीं होते. इस की वजह होती है दोनों की अंडरस्टैंडिंग ठीक न बन पाना. ज्योति और शिवम के मामले में भी यही हुआ. Latest Crime Story in Hindi

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Stories Love : कल्पना की अधूरी उड़ान – हत्यारा आशिक

Hindi Stories Love : उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना एलाऊ क्षेत्र में एक गांव है नगला लालमन. उसी गांव के 2 भाई यशपाल और शेषपाल सुबह 10 बजे किसी काम से जा रहे थे. गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित जल्लापुर निवासी दिनेश यादव के खेत के पास से गुजर रहे थे. तभी उन की नजर खेत में झाड़ी की ओर गई तो वहां का दृश्य देख कर दोनों भाइयों के पैर थम गए.

झाड़ी के पीछे 21-22 साल की युवती की लाश पड़ी थी. पास जा कर देखा तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह लाश गांव के ही फेरू सिंह की 22 वर्षीय बेटी कल्पना की थी. उस के चारों ओर खून फैला हुआ था. किसी ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी थी. उसी समय दोनों भाइयों ने कल्पना के भाई अवधपाल सिंह को इस बात की जानकारी फोन से दे दी. यह बात अवधपाल ने अपने घर बताने के साथ ही पड़ोसियों को भी बताई.  खबर सुनते ही परिवार में कोहराम मच गया. घरवालों के साथ ही लालमन गांव के लोग खेत की ओर दौड़े.

गांव की युवती को दिनदहाड़े खेतों पर गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया गया था. इस से गांव में सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. यह 17 मार्च, 2021 की सुबह की बात है. भाई अवधपाल व ग्रामीणों ने पास जा कर देखा तो कल्पना की कनपटी पर गोली मारी गई थी. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही थाना एलाऊ के थानाप्रभारी सुरेशचंद्र शर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. युवती की हत्या की खबर आसपास के गांवों में भी फैल चुकी थी, जिस से वहां देखने वालों की भीड़ जमा हो गई.

लाश देख कर लोग आक्रोशित थे और हंगामा कर रहे थे. थानाप्रभारी ने बिना देर किए अपने उच्चधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया.

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सूचना मिलने पर एसपी अविनाश पांडेय, एएसपी मधुबन सिंह, सीओ (सिटी) अभय नारायण राव के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. एसपी के आदेश पर फोरैंसिक टीम, डौग स्क्वायड की टीम भी वहां पहुंच गई. उच्चाधिकारियों ने युवती के शव का निरीक्षण किया. शव की दशा इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि गोली मारने से पहले उस के साथ मारपीट भी की गई थी. क्योंकि उस के दाएं हाथ पर चोट के निशान थे, जिन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वह टूटा हुआ है. गोली बाएं कान के नीचे सटा कर मारी गई थी. इस से लग रहा था कि हत्यारे जानपहचान वाले ही होंगे. चेहरे के चारों ओर खून फैला हुआ था.

पुलिस ने मृतका के घरवालों से बात की. उन्होंने बताया कि कल्पना आज तड़के साढ़े 5 बजे अपने घर से दिशामैदान के लिए निकली थी. लेकिन जब वह 2 घंटे तक वापस नहीं आई तो घर वाले उस की तलाश में जुट गए. जब उस की तलाश की जा रही थी, तभी उन्हें उस की हत्या की खबर मिली. घर वालों ने बताया कि कल्पना अपने पास मोबाइल रखती थी, लेकिन वह अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गई थी. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी या रंजिश तो नहीं है तो कल्पना के भाई अवधपाल सिंह ने बताया कि गांव में उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. फिर सवाल यह था कि हत्या किस ने और क्यों की है?

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए. मृतका के कपड़ों से कुछ भी नहीं मिला. हां, उस का दुपट्टा वहीं खेत की मेड़ पर तह बना कर हुआ रखा मिला. पुलिस का खोजी कुत्ता भी घटनास्थल से कुछ दूरी तक खेतों में गया. इस पर पुलिस ने खेतों की तलाशी की. लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिल सका, जिस से हत्यारे का सुराग मिलता. पानी का डिब्बा गायब था. कई घंटे तक जांच करने के बाद जब पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए शव को उठाना चाहा तो ग्रामीणों ने विरोध किया. उन्होंने कहा कि गुत्थी सुलझने के बाद ही कल्पना का शव उठने दिया जाएगा.

एसपी अविनाश पांडेय ने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर हत्यारों का पता लगाया जाएगा. उन्होंने आक्रोशित लोगों को आश्वासन दिया कि पुलिस शीघ्र ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद ग्रामीण शांत हो गए. तब पुलिस ने काररवाई कर शव को मोर्चरी भेज दिया. मृतका के भाई अवधपाल ने इस संबंध में गांव के ही 2 सगे भाइयों दिनेश और विक्रम के खिलाफ कल्पना की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. आरोपित दिनेश शिक्षक है और कुरावली क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत है. वहीं उस का भाई विक्रम गांव में रोजगार सेवक है.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस जांच में जुट गई. पुलिस ने दोनों की गिरफ्तारी के लिए उन के घर पर दबिश दी, लेकिन वे घर पर नहीं मिले. मृतका के घर वालों से पुलिस ने पूछताछ की. लेकिन परिवार के लोग कल्पना की हत्या का कारण नहीं बता सके. जबकि भाई अवधपाल ने गांव के ही 2 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी. अवधपाल ने बताया कि दोनों आरोपित घटना के समय से फरार हैं, इसलिए उन पर शक है. घर वालों की ओर से बताए गए घटनाक्रम पर पुलिस पूरे तौर पर विश्वास नहीं कर रही थी. युवती की हत्या के मामले में पुलिस की नजर में परिवार के लोग भी शक के दायरे में थे. पुलिस किसी भी तथ्य को नजरंदाज नहीं कर रही थी.

जांच शुरू हुई तो नामजद आरोपियों के खिलाफ कोई भी साक्ष्य नहीं मिला. इस के चलते अन्य पहलुओं पर पुलिस ने जांच शुरू की. घटना का राजफाश करने के लिए सीओ (सिटी) अभय नारायण राय के नेतृत्व में स्वाट और सर्विलांस सहित 4 टीमों को लगाया गया. शाम तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. इस में गोली से मौत होने के साथ ही मृतका की बांह पर चोट के निशान थे लेकिन बांह की हड्डी नहीं टूटी थी. इस बात से यह स्पष्ट हो गया कि युवती का हत्यारे के साथ संघर्ष हुआ था. इसी के चलते उस की बांह में चोट लगी थी.

पुलिस ने ग्रामीणों से भी इस संबंध में पूछताछ की. पुलिस की जानकारी में आया कि मृतका के गांव के ही एक युवक से प्रेम संबंध थे. पुलिस ने इस बीच कल्पना का मोबाइल फोन कब्जे में ले लिया. काल डिटेल्स की जांच की गई. मोबाइल में एक नंबर ऐसा था, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं. पुलिस ने जब इस संबंध में जानकारी की तो पता चला कि यह नंबर गांव के ही अजब सिंह का है. अजब सिंह की तलाश हुई तो वह गायब था. इस से पुलिस के शक की सुई उस की तरफ घूम गई. जांच के दौरान पता चला कि अजब सिंह अपनी ससुराल फर्रुखाबाद में है. सर्विलांस के जरिए पुलिस को उस के बारे में अहम सुराग मिलने शुरू हो गए.

दूसरे दिन गुरुवार की रात इंसपेक्टर एलाऊ सुरेशचंद्र शर्मा पूछताछ के लिए उसे ससुराल से थाने ले आए.  पुलिस ने जब उस से पूछताछ शुरू की उस ने युवती के घर वालों पर ही हत्या करने का आरोप लगाते हुए बताया कि जब उस के बुलावे पर कल्पना खेत पर आ गई तो हम लोग झाड़ी की आड़ में बातचीत करने लगे. इसी बीच कल्पना के घर वाले आ गए. हम लोगों को बातचीत करते देख उन लोगों ने कल्पना के साथ मारपीट शुरू कर दी. जब मैं ने उन्हें रोका तो मेरे साथ भी मारपीट की. कल्पना को गोली मारने के बाद उस के परिवार वाले उसे भी गाड़ी में डाल कर ले गए थे.

एक स्थान पर उसे मुंह बंद करने की हिदायत दे कर वे लोग गाड़ी से उतार कर चले गए थे. राहगीरों ने उसे अस्पताल में भरती कराया. इस के बाद वह अपनी ससुराल चला गया. इतनी बड़ी घटना के बाद भी पुलिस को घटना की सूचना क्यों नहीं दी? पुलिस के सवालों में वह उलझ गया. पुलिस की सख्ती करने पर फिर उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. अजब सिंह ने बताया कि उसी ने नाराज हो कर अपनी प्रेमिका कल्पना की गोली मार कर हत्या की थी. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटना में प्रयुक्त बाइक और तमंचा तथा अजब सिंह का मोबाइल भी बरामद कर लिया.

19 मार्च को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी अविनाश पांडेय ने इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया. शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता आरोपी अजब सिंह और मृतका के बीच प्रेम संबंध थे. कल्पना की शादी तय होने की जानकारी मिलने के बाद अजब सिंह बौखला गया था. उस ने कल्पना के सामने हमेशा साथ रहने की फरमाइश रख दी. जब इस बात पर वह राजी नहीं हुई तो उस ने उस की गोली मार कर हत्या कर दी. इस घटना को औनर किलिंग का मामला बनाने के लिए उस ने ड्रामा रचा, लेकिन पुलिस ने सर्विलांस के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस संबंध में जो खौफनाक कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

कल्पना का पिता फेरू सिंह दिल्ली में काम करता है. अवधपाल की गांव में खुद की जमीन कम होने के कारण वह उगाही पर गांव के लोगों की जमीन ले कर खेती करता था. गांव के ही अजब सिंह की छोटी उम्र में ही शादी हो गई थी. वह 2 बच्चों का पिता है.  खेतीकिसानी के कारण उस के कल्पना के घर वालों के साथ अच्छे संबंध थे. उस का कल्पना के घर भी आनाजाना था. एक दिन अजब सिंह की नजर उस पर पड़ी. कल्पना सुंदर थी. वह उस की सुंदरता देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उस से दोस्ती करने का निर्णय ले लिया.

अजब सिंह टकटकी लगाए उसे निहारता रहा. कल्पना को भी इस बात का अहसास हो गया कि अजब सिंह उसे देख रहा है. अजब सिंह कसी हुई कदकाठी का युवक था. जवानी की दलहीज पर पहुंची कल्पना का दिल भी उस पर रीझ गया. उसे देख कल्पना का दिल तेजी से धड़कने लगा था. अब जब भी अजब सिंह कल्पना के घर आता, वह पीने के लिए पानी मांगता. जब कल्पना उसे पानी का गिलास देती वह उस का धीरे से हाथ दबा देता. कल्पना उस के मन की बात जान कर मुसकरा देती. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती हुई फिर प्यार हो गया.

दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे, जिस से फोन पर भी उन की बातें होने लगीं. इस के बाद उन का प्यार और गहराता गया. उन के प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी. अजब सिंह के शादीशुदा होने से कल्पना के परिजनों को उस पर शक नहीं हुआ. इसी आड़ में वह लगातार कल्पना से मिलताजुलता रहा और उस पर काफी पैसा खर्च करने लगा. कल्पना अब जवान हो गई थी. घर वालों को उस की शादी की चिंता होने लगी. घर वालों ने भागदौड़ कर कल्पना की शादी तय कर दी थी. इस की जानकारी अजब सिंह को हो गई थी.

17 मार्च की सुबह साढ़े 5 बजे अजब सिंह ने मैसेज कर कल्पना को मिलने खेत पर बुलाया. वह भी अपने खेतों की सिंचाई के बहाने बाइक से वहां पहुंच गया था. कुछ ही देर में कल्पना भी आ गई. अजब सिंह ने उस से कहा, ‘‘कल्पना, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. लेकिन अब मैं देख रहा हूं कि जब भी फोन करता हूं तुम्हारा फोन बिजी मिलता है. तुम शायद अपने मंगेतर से ज्यादा बातें करती हो. कल्पना, तुम अपने मंगेतर से बात करना बंद कर दो.’’

अजब सिंह और कल्पना के बीच पिछले 4 साल से दोस्ती थी. दोनों के बीच गहरे प्रेम संबंध थे. अजब सिंह अपनी 2 बीघा जमीन भी प्यार की भेंट चढ़ा चुका था. वह कल्पना पर बहुत पैसा खर्च करता था. उस ने 4 सालों में कई मोबाइल फोन भी ला कर उसे दिए थे. सब कुछ ठीक चल रहा था. कल्पना के घर वालों ने कल्पना की शादी तय कर दी थी. यह बात प्रेमी अजब सिंह को नागवार गुजरी. उस ने कल्पना से कहा, ‘‘कल्पना, मैं तुम्हें पहले की तरह प्यार करता रहूंगा. तुम्हारी शादी जरूर हो रही है लेकिन तुम शादी के बाद भी मुझ से संबंध खत्म मत करना.’’

‘‘देखो, मेरे और तुम्हारे बीच अब तक जो कुछ था, वह अब सब खत्म हो गया है. अब तुम मुझे फोन और मुझ से मिलने की कोशिश भी मत करना. क्योंकि मेरी शादी होने वाली है. और हां, मैं अपने मंगेतर से बात करनी बंद नहीं करूंगी.’’ कल्पना ने जवाब दिया.

अपनी प्रेमिका की इस बेरुखी से अजब सिंह बौखला गया. उसे डर था कि शादी के बाद उस की मोहब्बत उस से छिन जाएगी. इसी बात को ले कर दोनों के बीच बहस होने लगी. गुस्से में उस ने कल्पना की बांह मोड़ दी, जिस से वह दर्द से कराह उठी और खेत में गिर गई. इसी बीच अजब सिंह ने तमंचा निकाल कर उस की कनपटी पर रख कर गोली चला दी. कुछ देर तड़पने के बाद कल्पना ने दम तोड़ दिया. इस के बाद अजब सिंह बाइक से वहां से चला गया. आरोपी अजब सिंह गजब का ड्रामेबाज निकला. उस ने कल्पना के घर वालों को औनर किलिंग में फंसाने के लिए पूरा घटनाक्रम तैयार किया था.

उस ने हत्या करने के बाद कुछ दूरी पर अपना मोबाइल तो कुछ दूर जा कर तमंचा फेंक दिया. इस के बाद सीने पर अपने नाखूनों से खरोंच करने के बाद सिर पत्थर पर मार कर खुद को घायल किया. फिर उस ने कानपुर नगर के बिल्हौर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के रास्ते में जा रहे राहगीरों की मदद से अपने ऊपर गांव के कुछ युवकों द्वारा मारुति वैन में डाल कर पीटने और यहां फेंकने की बात कह कर स्वास्थ्य केंद्र में भरती हो गया. वहां से खुद को कन्नौज के एक अस्पताल में रेफर कराया, जहां से अपनी ससुराल फर्रुखाबाद आ गया.

अपने ऊपर हमले की झूठी अफवाह फैलाई. पुलिस को उस की यह कहानी समझ नहीं आई थी. कल्पना के घर वालों को फंसाने में वह कामयाब होता, इस से पहले ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने अजब सिंह को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस प्रकार 2 निर्दोष भाई जेल जाने से बच गए. कल्पना ने एक बालबच्चेदार व्यक्ति से मोहब्बत कर जो भूल की थी, उस का खामियाजा उसे अपनी जान दे कर चुकाना पड़ा. Hindi Stories Love

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित