बेवफाई का बदला : क्या था बच्ची का कसूर

दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में रहने वाली विवाहिता गीता के नाजायज संबंध पड़ोसी कालूचरण से हो गए थे, जिस की वजह से उस ने अपने पति घनश्याम से भी दूरी बना ली थी. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि कालूचरण ने गीता को सबक सिखाने के लिए उस की 6 साल की बेटी गुनीषा की हत्या कर दी…

समय- रात साढ़े 3 बजे

दिन-29 मई, बुधवार

स्थान- राजस्थान का कोटा शहर

कोटा के तुल्लापुर स्थित पुरानी रेलवे कालोनी के सेक्टर-3 के क्वार्टर नंबर 169 से गुनीषा नाम की 6 साल की बच्ची गायब हो गई. यह क्वार्टर श्रीकिशन कोली का था जो रेलवे कर्मचारी था. 6 वर्षीय गुनीषा श्रीकिशन की बेटी गीता की बेटी थी. रात को जब परिवार के सभी सदस्य गहरी नींद में थे, तभी कोई गुनीषा को उठा ले गया था. बच्ची के गायब होने से सभी हैरान थे, क्योंकि गीता अपनी बेटी गुनीषा के साथ दालान में सो रही थी. क्वार्टर का मुख्य दरवाजा बंद था. किसी के भी अंदर आने की संभावना नहीं थी.

श्रीकिशन के क्वार्टर में शोरशराबा हुआ तो अड़ोसपड़ोस के सब लोग एकत्र हो गए. पता चला घर में 9 सदस्य थे, जिन में गुनीषा गायब थी. जिस दालान में ये लोग सो रहे थे, उस के 3 कोनों में कूलर लगे थे. रात में करीब एक बजे गीता की मां पुष्पा पानी पीने उठी तो उस ने गुनीषा को सिकुड़ कर सोते देखा. कूलरों की वजह से उसे ठंड लग रही होगी, यह सोच कर पुष्पा ने उसे चादर ओढ़ा दी और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई. रात को साढ़े 3 बजे गीता जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बगल में लेटी गुनीषा को गायब देख चौंकी. उस ने मम्मीपापा को उठाया. उन का शोर सुन कर बाकी लोग भी उठ गए. गुनीषा को घर के कोनेकोने में ढूंढ लिया गया, लेकिन वह नहीं मिली. उन लोगों के रोनेचीखने की आवाजें सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

मासूम बच्चियों के साथ हो रही दरिंदगी की सोच कर लोगों ने श्रीकिशन कोली को सलाह दी कि हमें तुरंत पुलिस के पास जाना चाहिए. पड़ोसियों और घर वालों के साथ श्रीकिशन कोली जब रेलवे कालोनी थाने पहुंचा, तब तक सुबह के 4 बज चुके थे. गुनीषा की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अनीस अहमद ने इस की सूचना एसपी सुधीर भार्गव को दी और श्रीकिशन के साथ पुलिस की एक टीम घटनास्थल की छानबीन के लिए भेज दी. अनीस अहमद ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देते हुए अलर्ट भी जारी करवा दिया. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने पूरे मकान को खंगाला. पुलिस टीम को श्रीकिशन की इस बात पर नहीं हुआ कि मकान का मुख्य दरवाजा भीतर से बंद रहते कोई अंदर नहीं आ सकता. लेकिन जब पुलिस की नजर पिछले दरवाजे पर पड़ी तो उन की धारणा बदल गई.

पिछले दरवाजे की कुंडी टूटी हुई थी. दरवाजा तकरीबन आधा खुला हुआ था. 3 कमरों वाले उस क्वार्टर में एक रसोई के अलावा बीच में दालान था. मकान की छत भी करीब 10 फीट से ज्यादा ऊंची नहीं थी. पूरे मकान का मुआयना करते हुए एसआई मुकेश की निगाहें बारबार पिछले दरवाजे पर ही अटक जाती थीं. इसी बीच एक पुलिसकर्मी रामतीरथ का ध्यान छत की तरफ गया तो उस ने श्रीकिशन से छत पर जाने का रास्ता पूछा. लेकिन उस ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ऊपर जाने के लिए सीढि़यां नहीं हैं. आखिर पुलिसकर्मी कुरसी लगा कर छत पर पहुंचा तो उसे पानी की टंकी नजर आई. उस ने उत्सुकतावश टंकी का ढक्कन उठा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. रस्सियों से बंधा बच्ची का शव टंकी के पानी में तैर रहा था.

बच्ची की लाश देख कर पुलिसकर्मी रामतीरथ वहीं से चिल्लाया, ‘‘सर, बच्ची की लाश टंकी में पड़ी है.’’

रामतीरथ की बात सुन कर सन्नाटे में आए एसआई मुकेश तुरंत छत पर पहुंच गए. यह रहस्योद्घाटन पूरे परिवार के लिए बम विस्फोट जैसा था. बालिका की हत्या और शव की बरामदगी की सूचना मिली तो थानाप्रभारी अनीस अहमद भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि बच्ची का गला किसी बनियाननुमा कपड़े से बुरी तरह कसा हुआ था. गुनीषा की हत्या ने घर में हाहाकार मचा दिया. यह खबर कालोनी में आग की तरह फैली. पुलिस टीम ने गुनीषा के शव को कब्जे में कर तत्काल रेलवे हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बच्ची की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस ने यह मामला धारा 302 में दर्ज कर लिया.

एडिशनल एसपी राजेश मील और डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने मौके पर पहुंचे अपराध विशेषज्ञों तथा डौग स्क्वायड टीम की भी सहायता ली. लेकिन ये प्रयास निरर्थक रहे. न तो अपराध विशेषज्ञ घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिंट ही उठा सके और न ही खोजी कुत्ते कोई सुराग ढूंढ सके. लेकिन एडिशनल एसपी राजेश मील को 3 बातें चौंकाने वाली लग रही थीं, पहली यह कि जब घर में पालतू कुत्ता था तो वह भौंका क्यों नहीं. इस का मतलब बच्ची का अपहर्त्ता परिवार के लिए कोई अजनबी नहीं था.

दूसरी बात यह थी कि गीता का अपने पति घनश्याम यानी गुनीषा के पिता से तलाक का केस चल रहा था. कहीं इस वारदात के पीछे घनश्याम ही तो नहीं था. श्रीकिशन कोली ने भी घनश्याम पर ही शक जताया. उस ने मौके से 3 मोबाइल फोन के गायब होने की बात बताई. राजेश मील यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उन मोबाइलों में क्या राज छिपा था कि किसी ने उन्हें गायब कर दिया. गुरुवार 30 मई को पोस्टमार्टम के बाद बच्ची का शव घर वालों को सौंप दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची का गला घोंटा जाना ही मृत्यु का मुख्य कारण बताया गया.

जिस निर्ममता से बच्चों की हत्या की गई थी, उस का सीधा मतलब था कि किसी पारिवारिक रंजिश के चलते ही उस की हत्या की गई थी. पुलिस अधिकारियों के साथ विचारविमर्श के बाद एसपी सुधीर भार्गव ने एडिशनल एसपी राजेश मील के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़, रोहिताश्व कुमार और सीआई अनीस अहमद को शामिल किया गया. पूरे घटनाक्रम का अध्ययन करने के बाद एएसपी राजेश मील ने हर कोण से जांच करने के लिए पहले श्रीकिशन के उन नातेरिश्तेदारों को छांटा, जो परिवार के किसी भलेबुरे को प्रभावित कर सकते थे. साथ ही इलाके के ऐसे बदमाशों की लिस्ट भी तैयार की, जिन की वजह से परिवार के साथ कुछ अच्छाबुरा हो सकता था.

पुलिस ने गीता से उस के पति  घनश्याम से चल रहे विवाद के बारे में पूछा तो वह सुबकते हुए बोली, ‘‘वह शराब पी कर मुझ से मारपीट करता था. इसलिए मुझे उस से नफरत हो गई थी. मैं तलाक दे कर उस से अपना रिश्ता खत्म कर लेना चाहती थी.’’

उस का कहना था कि उस की वजह से मैं पहले ही अपनी एक औलाद खो चुकी हूं. यह बात संदेह जताने वाली थी, इसलिए डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ ने फौरन पूछा, ‘‘क्या घनश्याम पहले भी तुम्हारे बच्चे की हत्या कर चुका है?’’

गीता ने जवाब दिया तो हिंगड़ हैरान हुए बिना नहीं रहे. उस ने बताया, ‘‘साहबजी, उस के साथ लड़ाईझगड़े के दौरान मेरा गर्भपात हो गया था.’’

पुलिस संभवत: इस विवाद की छानबीन कर चुकी थी, इसलिए हिंगड़ ने पूछा कि तुम ने तो घनश्याम के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा रखा है. गीता जवाब देने के बजाए इधरउधर देखने लगी तो हिंगड़ को लगा कि कुछ न कुछ ऐसा है, जिसे छिपाया जा रहा है. थाने में चली लगातार 12 घंटे की पुलिस पूछताछ में श्रीकिशन यह तो नहीं बता पाया कि गुनीषा के गले में कसा पाया गया बनियान किस का था, लेकिन 2 बातें पुलिस के लिए काफी अहम थीं. पहली, जब आरोपी गुनीषा को उठा कर ले जा रहा था तो उस ने चीखनेचिल्लाने की कोशिश की होगी. लेकिन उस की आवाज किसी को सुनाई क्यों नहीं दी?

इस सवाल पर श्रीकिशन सोचते हुए बोला, ‘‘साहबजी, आवाज तो जरूर हुई होगी, लेकिन अपहरण करने वाले ने बच्ची का मुंह दबा दिया होगा. यह भी संभव है कि हलकीफुलकी चीख निकली भी होगी, तो 3 कूलरों की आवाज में सुनाई नहीं दी होगी.’’

पुलिस ने श्रीकिशन से पूछा कि मौके से जो 3 मोबाइल गायब हुए, वे किसकिस के थे. इस बात पर श्रीकिशन ने भी हैरानी जताई. फिर उस ने बताया कि उस का, गीता का और उस के बेटे राजकुमार के मोबाइल गायब थे. पुलिस अधिकारियों ने घटना के समय घर में मौजूद सभी परिजनों के अलावा अन्य नातेरिश्तेदारों, इलाके में नामजद अपराधियों सहित करीब 100 लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. संदेह के घेरे में आए गीता के पति घनश्याम की टोह लेने के लिए थानाप्रभारी अनीस अहमद गुरुवार 30 मई को तड़के उडि़या बस्ती स्थित उस के घर जा पहुंचे. उस का पता भी श्रीकिशन कोली ने ही बताया था. पुलिस जब घनश्याम तक पहुंची तो वह अपने घर में सो रहा था.

इतनी सुबह आधीअधूरी नींद से जगाए जाने और एकाएक सिर पर खड़े पुलिस दस्ते को देख कर घनश्याम के होश फाख्ता हो गए. अजीबोगरीब स्थिति से हक्काबक्का घनश्याम बुरी तरह सन्नाटे में आ गया. उस के घर वाले भी जाग गए. घनश्याम के पिता मच्छूलाल और परिवार के लोगों ने ही पूछने का साहस जुटाया, ‘‘साहब, आखिर हुआ क्या? क्या कर दिया घनश्याम ने?’’

उसे जवाब देने के बजाए थानाप्रभारी अनीस अहमद ने उसे डांट दिया. मच्छूलाल ने एक बार अपने रोआंसे बेटे की तरफ देखा, फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘साहब, आप बताओ तभी तो पता चलेगा?’’

‘‘गुनीषा बेटी है न घनश्याम की?’’ थानाप्रभारी ने कड़कते स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा सुबह 3 बजे उस की हत्या कर के यहां आ कर सो गया.’’

मच्छूलाल तड़प कर बोला, ‘‘क्या कहते हो साहब, घनश्याम तो रात एक बजे ही दिल्ली से आया है. वहीं नौकरी करता है. खानेपीने के बाद हमारे साथ बातें करते हुए सुबह 4 बजे सोया था.’’

थानाप्रभारी अनीस अहमद के चेहरे पर असमंजस के भाव तैरने लगे. लेकिन उन का शक नहीं गया. उन्होंने घनश्याम को थाने चलने को कहा. घनश्याम के साथ तमाम लोग थाने आए. भीड़ में उन्हें दिलीप नामक शख्स ऐतबार के काबिल लगा. उस का कहना था, ‘‘साहब, खूनखराबा घनश्याम के बस का नहीं है. यह तो अपनी बेटी से इतना प्यार करता था कि उस के बारे में बुरा करना तो दूर, सोच भी नहीं सकता. वैसे भी यह दिल्ली रेलवे में नौकरी करता है. कल रात ही तो आया था. नहीं साहब, किसी ने आप को गलत सूचना दी है.’’

घनश्याम के पक्ष की बातें सुन कर अनीस अहमद को उस की डोर ढीली छोड़ना ही बेहतर लगा. उन्होंने उसे अगले दिन सुबह आने को कह कर जाने दिया. शुक्रवार 31 मई को घनश्याम नियत समय पर थाने पहुंच गया. इस से पहले कि पुलिस उस से कुछ पूछती, उस की आंखों में आंसू आ गए, ‘‘साहब, गीता से तो मेरी नहीं पटी पर अपनी बेटी गुनीषा से मुझे बहुत प्यार था. मुझे गीता से अलग होने का कोई दुख नहीं था लेकिन मुझे बेटी गुनीषा की बहुत याद आती थी. इतना घिनौना काम तो मैं…’’

‘‘तुम्हारे बीच अलगाव कैसे हुआ?’’ पूछने पर घनश्याम कुछ देर जमीन पर नजरें गड़ाए रहा. उस ने डबडबाई आंखों को छिपाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘सर, छोटी तनख्वाह में बड़े अरमान कैसे पूरे हो सकते हैं?’’

कोटा शहर में रेलवे कर्मचारियों के लिए बनाए गए आवास 2 कालोनियों में बंटे हुए हैं. अधिकारी और उन के मातहत कर्मचारी नई कालोनी में रहते हैं. यह कालोनी कोटा रेलवे जंक्शन से सटी हुई है. नई कालोनी करीब 2 रकबों में फैली है. जबकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नजदीक की तुल्लापुर इलाके में आवास आवंटित किए गए हैं. रेलवे स्टेडियम के निकट बनी इस कालोनी को पुरानी रेलवे कालोनी के नाम से जाना जाता है. लगभग 300 क्वार्टरों वाली इस कालोनी में क्वार्टर नंबर 169 में श्रीकिशन रह रहा था. श्रीकिशन की पत्नी का नाम पुष्पा था.

इस दंपति के गीता और मीनाक्षी 2 बेटियों के अलावा 2 बेटे राजकुमार और राहुल थे. श्रीकिशन की संगीता और जैमा नाम की 2 बहनें भी थीं. दोनों बहनें विवाहित थीं. लेकिन घटना के दिन श्रीकिशन के घर आई हुई थीं. लगभग 25 साल की सब से बड़ी बेटी गीता विवाहित थी. लापता हुई 6 वर्षीया गुनीषा उसी की बेटी थी. करीब 7 साल पहले गीता का विवाह तुल्लापुरा के निकट ही उडि़या बस्ती में रहने वाले मच्छूलाल के बेटे घनश्याम से हुआ था.

घनश्याम दिल्ली स्थित तुगलकाबाद रेलवे स्टेशन पर नौकरी कर रहा था. घनश्याम और गीता का दांपत्य जीवन करीब 4 साल ही ठीकठाक चला. बाद में उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. पतिपत्नी के रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि नौबत तलाक तक आ पहुंची. गीता पिछले 3 सालों से अपने पिता के पास कोटा में ही रह रही थी. तलाक का मामला कोटा अदालत में विचाराधीन था. गीता ने कोटा के महिला थाने में घनश्याम के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला भी दर्ज करा रखा था.

छानबीन के इस दौर में पुलिस के सामने 3 बातें आईं. इन गुत्थियों को सुलझा कर ही  हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. पहली यह कि आरोपी जो भी था, घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ था. ऐसा कोई परिवार का सदस्य भी हो सकता था और परिवार से बेहद घुलामिला व्यक्ति भी, जिस निर्दयता से मासूम बच्ची की हत्या की गई थी, निश्चित रूप से वह गीता से गहरी नफरत करता होगा. गीता ज्यादा कुछ बोलनेबताने की स्थिति में नहीं थी. वह सदमे में थी और बारबार बेहोश हो रही थी. वैवाहिक विवाद की स्थिति में घनश्याम सब से ज्यादा संदेहास्पद पात्र था. पुलिस ने हर कोण और हर तरह से उस से पूछताछ की लेकिन वह कहीं से भी अपराधी नहीं लगा. आखिर उसे इस हिदायत के साथ जाने दिया गया कि वह पुलिस को बताए बिना कोटा से बाहर न जाए.

राजेश मील को यह बात बारबार कचोट रही थी कि गीता जवान है, कमोबेश खूबसूरत भी है. लेकिन ऐसा क्या था कि अपनी बसीबसाई गृहस्थी छोड़ कर पिता के पास रह रही थी. पति घनश्याम के बारे में जो जानकारी पुलिस ने जुटाई थी, उस से उस का हत्या का कोई ताल्लुक नहीं दिखाई दे रहा था. इस बीच पुलिस को यह भी पता चल चुका था कि वह सीधासादा नेकनीयत का आदमी था. इतना सीधा कि उसे कोई भी घुड़की दे कर डराधमका सकता था. सवाल यह था कि दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए क्या पतिपत्नी के बीच कोई तीसरा भी था? ऐसे किस्से की तसदीक तो मोबाइल ही हो सकती है. लिहाजा राजेश मील ने फौरन सीआई को हिदायत देते हुए कहा, ‘‘अनीस, गीता के गायब हुए मोबाइल का नंबर है न तुम्हारे पास? फौरन उस की काल डिटेल्स ट्रैस करने का बंदोबस्त करो.’’

अनीस अहमद फौरन इस काम पर लग गए. काल ट्रैसिंग के नतीजे वाकई चौंकाने वाले थे. अनीस अहमद ने जो कुछ बताया, उस ने एसपी राजेश मील की आंखों में चमक पैदा कर दी. गीता के मोबाइल की मौजूदगी दिल्ली के तुगलकाबाद में होने की तसदीक कर रही था. साफ मतलब था कि आरोपी दिल्ली के तुगलकाबाद में मौजूद था. सीआई अनीस अहमद के नेतृत्व में दिल्ली पहुंची पुलिस टीम ने जो जानकारी जुटाई, उस के मुताबिक आरोपी का नाम कालूचरण बेहरा था. कालूचरण को पुलिस ने घनश्याम के पुल प्रह्लादपुर स्थित घर के पास वाले मकान से धर दबोचा.

कालूचरण घनश्याम का पड़ोसी निकला. गीता के दिल्ली में रहते हुए कालूचरण से प्रेमिल संबंध बन गए थे. घनश्याम और गीता के बीच अलगाव की बड़ी वजह यह भी थी. दिल्ली गई पुलिस टीम ने घनश्याम के मकान सहित अन्य जगहों से कई महत्त्वपूर्ण सुराग एकत्र किए. कालूचरण दिल्ली स्थित कानकोर में औपरेटर था. पुलिस कालूचरण बेहरा को दिल्ली से हिरासत में ले कर सोमवार 3 जून को कोटा पहुंची. यहां शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की गिरफ्तारी दिखा कर मंगलवार 4 जून को न्यायालय में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर ले लिया. पुलिस की शुरुआती पूछताछ में मासूम गुनीषा की हत्या को ले कर कालूचरण ने जो खुलासा किया, वह चौंकाने वाला था.

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में घनश्याम के पड़ोस में रहने के दौरान ही कालूचरण के घनश्याम की पत्नी गीता से प्रेमिल संबंध बन गए थे. गीता के कोटा चले जाने के बाद भी कालू कोटा आ कर गीता से मिलताजुलता रहा. लेकिन पिछले कुछ दिनों से गीता के किसी अन्य युवक से संबंध बन गए थे. नतीजतन उस ने कालू से कन्नी काटनी शुरू कर दी थी. कालू ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस ने उसे बुरी तरह दुत्कार दिया था. बेवफाई और अपमान की आग में सुलगते कालू ने गीता को सबक सिखाने की ठान ली. इस रंजिश की बलि चढ़ी मासूम गुनीषा.

पड़ोसी होने के नाते घनश्याम और कालू के बीच अच्छा दोस्ताना था. पतिपत्नी के बीच अकसर होने वाले झगड़े में कालू गीता का पक्ष लेता था. नतीजतन गीता का झुकाव कालू की तरफ होने लगा. गीता का रंगरूप बेशक गेहुआं था, लेकिन भरे हुए बदन की गीता के नैननक्श काफी कटीले थे. कालू से निकटता बढ़ी तो गीता पति की अनुपस्थिति में कालू के कमरे पर भी आने लगी. यहीं दोनों के बीच अनैतिक संबंध बने. अनैतिक संबंध बनाने के लिए कालू ने उसे अपने प्यार का भरोसा दिलाते हुए कहा था कि वह शादी नहीं करेगा और सिर्फ उसी का हो कर रहेगा.

दिल्ली में पतिपत्नी के बीच झगड़े इस कदर बढे़ कि गीता ने घनश्याम को छोड़ने का फैसला कर लिया और बेटी गुनीषा को ले कर कोटा आ गई. पिता के लिए बेटी का साझा दुख था. इसलिए उस ने भी बेटी का साथ दिया. यह 3 साल पहले की बात है. इस बीच गीता ने घनश्याम पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए तलाक का मुकदमा दायर कर दिया था. यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है. गीता के कोटा आ जाने के बावजूद कालू के साथ उस के संबंध बने रहे. कालू अकसर कोटा आता रहता था और 4-5 दिन गीता के घर पर ही रुकता था. कालू ने गीता को खुश रखने के लिए पैसे लुटाने में कोई कसर नहीं रखी थी.

पिछले करीब 6 महीने से कालू को अपने और गीता के रिश्तों में कुछ असहजता महसूस होने लगी. दिन में 10 बार फोन करने वाली गीता न सिर्फ उस का फोन काटने लगी थी, बल्कि अपने फोन को व्यस्त भी दिखाने लगी थी. कालू ने गीता की बेरुखी का सबब जानने की जुगत लगाई तो पता चला कि उस की माशूका किसी और के हाथों में खेल रही है. उस ने अपने रसूखों से इस बात की तसदीक भी कर ली.

हालात भांपने के लिए जब वह कोटा पहुंचा तो गीता में पहले जैसा जोश नहीं था. उस ने कालू को यहां तक कह दिया कि अब वह यहां न आया करे. गुस्से में उबलता हुआ कालू दिल्ली लौटा तो इसी उधेड़बुन में जुट गया कि गीता को कैसे उस की बेवफाई का ताजिंदगी याद रखने वाला सबक सिखाए. उस ने गीता की बेटी और पूरे परिवार की चहेती गुनीषा को मारने का तानाबाना बुन लिया. अपनी योजना को अंजाम देने के लिए वह 29 मई की रात को ट्रेन से कोटा आया. घर का चप्पाचप्पा उस का देखाभाला था.  30 मई की देर रात वह करीब 2 बजे पीछे के रास्ते से घर में घुसा और सब से पहले उस ने तख्त पर पड़े तीनों मोबाइल कब्जे में किए. फिर गीता के पास सोई गुनीषा को चद्दर समेत ही उठा लिया.

नींद में गाफिल गुनीषा कुनमुनाई भी, लेकिन कालू ने उस का मुंह बंद कर दिया. कूलरों के शोर में वैसे भी गुनीषा की कुनमुनाहट दब गई. गुनीषा का गला घोंट कर टंकी में डालने की योजना वह पहले ही बना चुका था. छत पर जाने का रास्ता भी उसे पता था. गुनीषा को दबोचे हुए वह छत पर पहुंचा. अलगनी से उठाई गई बनियान से उस का गला घोंट कर कालू ने उसे पानी की टंकी में डाल दिया फिर वह जिस खामोशी से आया था, उसी खामोशी से बाहर निकल गया. मोबाइल इस मंशा से उठाए थे, ताकि इस बात की तह तक पहुंचा जा सके कि गीता के आजकल किस से संबंध थे. लेकिन मोबाइल ही उस की गिरफ्तारी का कारण बन गए.

Crime Story : 23 साल बाद मिला साधु के वेश में कातिल प्रेमी

उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा के बरसाना का नंदगांव यहीं है कुंजकुटी आश्रम. तपती 25 जून, 2023 को जून की गरमी से बेहाल 3 साधुओं की टोली कुंजकुटी आश्रम के दरवाजे पर आ कर रुक गई. इन के शरीर पर लाल, पीले रंग के साधुओं वाले कपड़े थे, तीनों ने सिर पर सफेद, भगवा अंगौछे बांध रखे थे. गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर चंदन का लेप था. तीनों साधु पसीने से तरबतर थे.

कंधे पर लटक रही लाल रंग की झोली से भगवा रुमाल निकाल कर चेहरे का पसीना पोंछते हुए एक साधु हैरत से बोला, “दरवाजे पर क्यों रुक गए गुरुदेव, भीतर प्रवेश नहीं करेंगे क्या?”

“मछेंद्रनाथ, मैं किसी आश्रम वासी के बाहर आने की राह देख रहा हूं. बगैर इजाजत लिए किसी भी जगह प्रवेश करना उचित नहीं होता.”

“आप का कहना ठीक है गुरुदेव,” मछेंद्रनाथ विचलित हो कर बोला, “लेकिन मुझे जोरों की भूख लग रही है. हम अंदर जाते तो मैं पेट की भूख शांत कर लेता.”

उस की बात पर दोनों साधु हंसने लगे. हंसते हुए गुरुदेव, जिन का नाम हरिहरनाथ था, बोले, “देखा कालीनाथ, इस पेटू मछेंद्र को, इसे खाने के अलावा कुछ नहीं सूझता.”

फिर वह मछेंद्रनाथ की तरफ पलटे और कुछ कहना ही चाहते थे कि आश्रम के दरवाजे पर एक भगवा वस्त्र धारी दुबलापतला साधु आ गया.

“आप दरवाजे पर क्यों रुक गए?” उस साधु के स्वर में हैरानी थी, “कोई और आने वाला है क्या?”

“नहीं महाराज, हम तो अंदर आने की इजाजत की प्रतीक्षा में यहां रुक गए थे.” हरिहरनाथ ने मुसकरा कर कहा.

“यहां इजाजत कौन देगा जी, गुरुजी की ओर से इस आश्रम में हर किसी को आने की छूट है. आप लोग अंदर आ जाइए.”

हरिहरनाथ अपनी साधु टोली के साथ अंदर आ गए. आश्रम में एक ओर रहने के लिए कमरे बने हुए थे. सामने दाहिनी ओर छप्परनुमा शेड था. नीचे चबूतरा था, इस के बीच में अग्निकुंड बना हुआ था. अग्निकुंड में लकडिय़ों की धूनी सुलग रही थी. उस के आसपास कई जटाधारी साधु बैठे हुए थे. कुछ चिलम पी रहे थे. कुछ आपस में बातें कर रहे थे. एक साधु बैठा हुआ कोई धार्मिक ग्रंथ पढऩे में तल्लीन था.

तीनों साधुओं को वहां लाने वाला साधु आदर से बोला, “आप लोग चाहें तो स्नान आदि कर लीजिए. मैं आप के खाने का बंदोबस्त करता हूं, खापी कर आप आराम कर लेना. गुरुदेव अपने कक्ष में हैं, उन से आप की भेंट शाम को 5 बजे होगी.”

“ठीक है महाराज,” हरिहर मुसकरा कर बोले.

वह अपनी टोली के साथ आश्रम के कोने में लगे हैंडपंप पर आ गए. उन्होंने बाहर ही हैंडपंप पर नहानाधोना किया. फिर चबूतरे पर आ गए. उन्हें वहां भोजन परोसा गया. खापी लेने के बाद वे चटाइयों पर विश्राम करने के लिए लेट गए.

अन्य साधुओं से बढ़ाई घनिष्ठता

शाम को उन की मुलाकात इस आश्रम के गुरु महाराज से हुई. वह वयोवृद्ध थे. उन्हें हरिहरनाथ ने हाथ जोड़ कर प्रणाम करने के बाद बताया, “हम काशी विश्वनाथ होते हुए मथुरा आए थे. यहां आप के आश्रम कुंजकुटी की बहुत चर्चा सुनी तो आप के दर्शन करने आ गए. हम यहां कुछ दिन ठहरना चाहेंगे गुरुदेव.”

“आप का आश्रम है हरिहरनाथ, आप अपनी मंडली के साथ ताउम्र यहां रहिए. यह साधुसंतों का डेरा है, यहां कोई भी कभी भी आजा सकता है.”

“धन्यवाद गुरुदेव,” हरिहरनाथ ने कहा.

गुरु महाराज के पास से उठ कर हरिहरनाथ ने चबूतरे के एक कोने में अपने उठने बैठने की व्यवस्था कर ली. तीनों ने वहां चटाइयां बिछा कर बिस्तर लगा लिया.

2-3 दिनों में ही हरिहरनाथ, मछेंद्रनाथ और कालीनाथ वहां आनेजाने और रहने वाले साधुसंतों से घुलमिल गए थे. वह उन से आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा करते. अपना मोक्ष पाने के लिए साधु वेश धारण करने की बात बता कर यह पूछते कि वह साधु क्यों बने? यह वेश धारण कर के उन्हें कैसा अनुभव हो रहा है?

आज उन्हें कुंजकुटी आश्रम में रुके हुए 4 दिन हो गए थे. गुरु हरिहरनाथ आज सुबह से ही उस साधु के साथ चिपके हुए थे जो पहले दिन उन्हें सब से अलग बैठा कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ता दिखाई दिया था. यह 50 वर्ष से ऊपर का व्यक्ति था. दुबलापतला गेहुंए रंग का वह व्यक्ति लाल कुरता, पीली जैकेट और लुंगी पहनता था. उस की दाढ़ीमूंछ के बालों में सफेदी झलकने लगी थी. यह साधु पहले दिन से ही सभी से अलगथलग रहने वाला दिखाई दिया था.

हरिहरनाथ ने शाम को खाना खा लेने के बाद उस के साथ गांजे की चिलम भर कर पी. गांजे का नशा हरिहरनाथ के दिमाग पर छाने लगा तो वह सिर झटक कर बोले, “मजा आ गया आप की चिलम में महाराज, मैं ने पहली बार गांजा की चिलम पी है. यह नशा मेरा सिर घुमा रहा है.”

“मैं रोज पीता हूं हरिहरनाथ. इसे पी लेने के बाद न अपना होश रहता है, न दुनिया की फिक्र.”

“क्यों क्या आप का इस दुनिया में अपना कोई नहीं है?” हरिहरनाथ ने पूछा.

“थे. मांबाप, बहनभाई और…” बतातेबताते वह रुक गया.

“एक पत्नी.” हरिहरनाथ ने उस की बात को पूरा किया, “क्यों मैं ने ठीक कहा न?”

वह साधु हंस पड़ा, “पत्नी नहीं थी, वह मेरी प्रेमिका थी, मैं उसे बहुत प्यार करता था.”

“प्यार करते थे तो पत्नी क्यों नहीं बना सके उसे?”

“वह बेवफा निकली हरिहर,” वह साधु गहरी सांस भर कर बोला, “उस ने किसी और से दिल लगा लिया था.”

“ओह!” हरिहरनाथ ने अफसोस जाहिर किया, “ऐसी बेवफा प्रेमिका को तो सजा मिलनी चाहिए थी. मेरी प्रेमिका ऐसा करती तो मैं उस का गला काट देता.”

“नहीं हरिहर, मैं ने उस बेवफा से सच्ची मोहब्बत की थी. मैं उस के गले पर छुरी नहीं चला सकता था. मैं ने उस को नहीं, उस के प्रेमी को यमलोक पहुंचा दिया.”

“ओह! आप ने अपनी प्रेमिका के यार को ही उड़ा डाला.” हरिहर हैरानी से बोले, “फिर तो आप को कत्ल के जुर्म में सजा हुई होगी.”

गांजे के नशे में आई सच्चाई बाहर

चिलम का एक गहरा कश लगा कर धुंआ ऊपर छोड़ते हुए वह साधु हंसने लगा, “सजा किसे मिलती महाराज, कातिल तो कत्ल कर के फुर्र हो गया था. आज 23 साल हो गए उस बात को, मैं साधु बन कर यहां बैठा हूं, पुलिस वहां मेरे लिए हाथपांव पटक रही है. सुना है, मुझ पर 45 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया है पुलिस कमिश्नर ने.” साधु फिर हा…हा… कर के हंसने लगा.

हंसी थमी तो बोला, “हरिहर, मुझ पर पुलिस 45 हजार क्या 45 लाख का इनाम घोषित कर दे, तब भी वह मुझे नहीं पकड़ पाएगी.”

हरिहर के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह कमर की ओर हाथ बढ़ाते हुए बोले, “तुम ने सुन रखा होगा मिस्टर पदम, कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. देख लो, फांसी का फंदा तुम्हारे गले तक पहुंच गया.”

“पदम,” वह साधु चौंक कर बोला, “तुम मेरा नाम कैसे जानते हो हरिहर?”

हरिहर का हाथ कमर से निकल कर बाहर आया तो उस में रिवौल्वर था. रिवौल्वर साधु की कनपटी पर सटा कर हरिहर गुर्राए, “मैं तेरा नाम भी जानता हूं और तेरा भूगोल भी. तू सूरत में विजय साचीदास की हत्या कर के फरार हो गया था. आज 23 साल बाद तू हमारी पकड़ में आया है.”

आप को बताते चलें कि साधु के वेश में यह सूरत की क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार एएसआई सहदेव थे, इन के साथ जो 2 साधु वेशधारी मछेंद्रनाथ और कालीनाथ थे, उन के नाम जनार्दन हरिचरण और अशोक थे. ये दोनों भी सूरत की क्राइम ब्रांच में एएसआई और हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात हैं.

इन दिनों सूरत की पुलिस ने मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू कर रखी है. पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा ने 3 सितंबर, 2001 को विजय साचीदास नाम के युवक की हत्या कर दी थी, वह सूरत से भाग गया था. पुलिस उसे सालों तक सूरत और उस के पैतृक गांव ओडिशा के गंजाम जिले में तलाश करती रही. वह हाथ नहीं लगा तो उस पर 45 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. निराश हो कर इस केस की फाइल बंद कर दी गई.

23 साल बाद पकड़ा गया हत्यारा

23 साल बाद विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल फिर से खोली गई. पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने भगोड़े मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू की थी. इसी मुहिम के तहत पीसीबी (प्रिवेशन औफ क्राइम ब्रांच) के 2 एएसआई और एक हैडकांस्टेबल को विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल सौंपी गई.

हत्यारे पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा के बारे में पुलिस को पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए साधु बन गया है और इस समय उत्तर प्रदेश में रह रहा है. उसे ढूंढते हुए यह टीम मथुरा आई. साधु वेश बना कर इस टीम ने 8 दिनों में 100 से अधिक धार्मिकस्थल, आश्रम और मठों की खाक छानी. इसी दौरान एक सर्विलांस टीम ने सूचना दी कि पदम साधु बना हुआ मथुरा के नंदगांव में रह रहा है, इसलिए यह टीम साधु के वेश में कुंजकुटी आश्रम में पहुंची.

पदम उन्हें कुंजकुटी आश्रम में मिला. साधु वेश धारण कर के 23 साल से वह यहां छिपा बैठा था. तेजतर्रार अपराध शाखा की टीम ने उसे अपनी सूझबूझ से ढूंढ निकाला. पदम उर्फ चरण पांडा की कनपटी पर रिवौल्वर रख कर एएसआई सहदेव ने अपने साथियों को इशारा किया. वह तुरंत पदम के सिर पर पहुंच गए.

पदम को घेर कर हथकड़ी लगा दी गई.

आश्रम में हडक़ंप मच गया. एक साधु जो 23 साल से कुंजकुटी आश्रम में रह रहा था, उस के हाथ में हथकड़ी देख कर सभी आश्रमवासी चौंक गए.

एएसआई सहदेव ने उन्हें इस साधु पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा की हकीकत बताई तो सभी दंग रह गए. एक हत्यारा 23 सालों से साधु बन कर वहां रह रहा था. अपराध शाखा की टीम पदम उर्फ चरण पांडा को ले कर 28 जून, 2023 को मथुरा से सूरत के लिए रवाना हो गई. जाने से पहले उन्होंने नंदगांव पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज के पास अपनी रवानगी दर्ज करवा दी थी.

पदम को रजनी से हुआ प्यार

पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा मूलरूप से ओडिशा के गंजाम जिले के श्रीराम नगर इलाके का निवासी था. उस का मांबाप और बहनभाई का एक बड़ा परिवार था, लेकिन इस परिवार के गुजरबसर के लिए ज्यादा कमाई नहीं थी. पदम के पिता मजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी को धकेल रहे थे.

पदम जवान हुआ तो घर की गरीबी उस से देखी नहीं गई. वह काम की तलाश में ट्रेन में सवार हो कर सूरत शहर आ गया. बहुत कम पढ़ालिखा था, इसलिए कोई अच्छी नौकरी तो मिलने वाली नहीं थी, मेहनत मजदूरी पदम करना नहीं चाहता था. यही करना था तो गंजाम जिले में ऐसे कामों की कमी नहीं थी.

बहुत सोचविचार कर के पदम ने गांधी चौराहे पर थोड़ी सी जगह ढूंढ कर भजिया (पकौड़े) की रेहड़ी लगा ली. पदम का यह काम चल निकला. उस ने शांतिनगर सोसायटी में रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. भजिया रेहड़ी से अच्छी कमाई हो रही थी. पदम बनसंवर कर रहने लगा. कमरे का किराया और अपना खर्चा निकाल कर वह अब गंजाम में अपने मांबाप के पास बचा हुआ पैसा भेजने लगा था.

शांतिनगर सोसायटी में ही किराए पर रजनी नाम की युवती रहती थी. रजनी 23 साल की साढ़े 5 फुट की नवयौवना थी. रंग गोरा, नाकनक्श तीखे, होंठ संतरे के फांक जैसे. जवानी के बोझ से लदी रजनी को देख कर कोई भी फिदा हो सकता था. पदम की नजर सीढिय़ों से उतरते हुए रजनी पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन का दीवाना हो गया. पहली नजर में ही उस को रजनी से प्यार हो गया.

रजनी ने भी किया प्यार का इजहार

वह रोज सीढिय़ों से चढ़ कर ऊपर तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में जाता तो रजनी के कमरे के सामने तब तक रुकता था, जब तक रजनी दरवाजे पर नहीं आ जाती थी. रजनी यह भांप चुकी थी कि इसी सोसाइटी में रहने वाला यह युवक उस का दीवाना है. अब वह पदम के शाम को लौट कर आने के वक्त पर खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी होने लगी थी.

उस की नजरें पदम से टकरातीं तो वह शरम से नजरें झुका लेती, ठंडी सांस भर कर आह भरता हुआ पदम सीढिय़ां चढ़ जाता था. पदम यह महसूस कर चुका था कि रजनी उसे चाहने लगी है. उस से मेलजोल बढ़ाने के इरादे से एक शाम वह भजिया मिर्च को अखबार में पैक कर के ले आया. रजनी अन्य दिनों की तरह उस दिन भी दरवाजे पर खड़ी मिली. पदम ने हिम्मत बटोर कर भजियामिर्च का पैकेट रजनी की तरफ बढ़ा दिया.

“क्या है इस में?” पहली बार उस की कोयल जैसी आवाज पदम के कानों में पड़ी.

“आप खुद देख लीजिए” पदम कह कर तेजी से सीढ़ियां चढ गया. दिन में रजनी उसे दिखाई नहीं देती थी, शायद वह कहीं काम पर जाती थी, लेकिन सुबह जब पदम सीढ़ियां उतर कर नीचे आया तो रजनी अपने दरवाजे पर खड़ी दिखाई दी.

पदम को देख कर वह मुसकराई, “भजिया स्वादिष्ट थी. कहां से लाए थे?”

“मेरे ठेले की है. मैं गांधी चौक पर भजिया का ठेला लगाता हूं, आप को भजिया स्वादिष्ट लगी है तो मैं रोज शाम को ले आया करूंगा.” पदम के स्वर में उत्साह भरा था.

“नहीं, अब तो मैं तुम्हारे पास गांधी चौक पर आ कर ही भजिया खाया करूंगी,” रजनी ने हंस कर कहा.

“मैं एक शर्त पर आप को भजिया खिलाऊंगा.”

“कैसी शर्त?”

“आप भजिया के पैसे नहीं देंगी.”

“ऐसा क्यों?” हैरानी से रजनी ने पूछा.

“अपनों से कोई पैसा नहीं लेता,” पदम ने हिम्मत बटोर कर कह डाला, “आप को दिल से प्यार करने लगा हूं मिस…”

हया से सिर झुका कर बोली रजनी, “मेरा नाम रजनी है, मैं भी आप को चाहने लगी हूं.”

पदम खुशी से उछल पड़ा. उस ने रजनी का हाथ पकड़ कर चूम लिया. रजनी शरमा कर अंदर भाग गई.

प्यार में मिला धोखा

उस दिन के बाद से रजनी शाम को उस के ठेले पर आने लगी. पदम उसे भजिया खिलाता. इस बीच दोनों प्यार भरी बातें करते. ये मुलाकातें भजिया की ठेली से हट कर सूरत के पिकनिक स्पौट, सिनेमा हाल और रेस्टोरेंट तक पहुंच गईं. पदम जो कमाता था, वह रजनी पर खर्च करने लगा. वह रजनी को सच्चे दिल से चाहने लगा था. रजनी से वह शादी करने का प्लान भी बना रहा था. रजनी से उस ने वादा भी ले लिया था कि वह उस से शादी करेगी.

प्रेम प्रसंग बढ़ने लगा तो पदम अब शादी के लिए रुपए भी जोड़ने लगा था. वह रजनी को पत्नी बना कर अपने घर ओडिशा ले जाना चाहता था, लेकिन एक दिन उस का ख्वाब बिखर गया.उस ने रजनी को एक युवक के साथ हाथ में हाथ डाले शौपिंग माल में खरीदारी करते हुए देखा. पदम वहां अपने लिए शर्ट खरीदने के लिए गया था. वह रजनी को चोरीछिपे देखता रहा.

शाम को उस ने रजनी से उस युवक के बारे में पूछा तो उस ने बड़ी बेशरमी से कहा, “वह विजय साचीदार है. तुम से अच्छा कमाता है. मैं उस के साथ खुश रह सकती हूं.”

“लेकिन तुम ने मेरे साथ शादी करने का वादा किया है रजनी, मुझे तुम छोड़ कर किसी दूसरे से दिल नहीं लगा सकती.”

“दिल मेरा है पदम…” रजनी कंधे झटक कर बोली, “मैं इसे कहीं भी लगाऊं. फिर तुम्हारे पास है भी क्या? किराए का कमरा है, फुटपाथ पर भजिया तलते हो. मैं एक ठेली वाले से शादी कर के अपनी जगहंसाई नहीं करवाना चाहती. अब तुम अपना रास्ता बदल लो.”

“नहीं. मैं अपना रास्ता नहीं बदलूंगा. रास्ता तुम्हें बदलना होगा रजनी. तुम मेरी थी, मेरी ही रहोगी.”

“कोई जबरदस्ती है तुम्हारी.” रजनी गुस्से से चीखी, “मैं विजय से शादी करूंगी, समझे.”

“मैं उस हरामी विजय को काट डालूंगा.” पदम गुस्से से बोला, “देखता हूं तुम कैसे उस से शादी करती हो.”

पदम कहने के बाद गुस्से में भरा वहां से चला गया. वह रात उस ने अपने ठेले पर फुटपाथ पर बिताई. वह विजय साचीदार के विषय में सोच रहा था जो उस के प्यार की राह में कांटा बन गया था. वह कब सोया उसे पता नहीं चला

रजनी के प्रेमी विजय की मिली लाश

4 सितंबर, 2001 दिन मंगलवार को मयूर विहार सोसायटी के शांतिनगर थाने में रजनी ने विजय साचीदार के लापता हो जाने की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए पुलिस के सामने बयान दिया कि विजय साचीदार को जान से मारने की धमकी पदम चरण ने दी थी. पदम चरण शांतिनगर सोसायटी में तीसरी मंजिल पर किराए पर रहता है और गांधी चौक पर भजिया की ठेली लगाता है. विजय साचीदार को लापता करने में पदम चरण का हाथ हो सकता है. उसे गिरफ्तार कर के पूछताछ की जाए.

रजनी द्वारा लिखित रिपोर्ट के आधार पर पुलिस शांतिनगर सोसायटी में पदम चरण के कमरे पर पहुंची. वहां ताला बंद था. पदम चरण की तलाश में उस की भजिया की ठेली (गांधी चौक) पर पुलिस पहुंची तो ठेली पर कोई नहीं था. पदम चरण दोनों जगह से लापता था. इस से उस पर शक गहरा गया कि उस ने विजय साचीदार का अपहरण किया है और कहीं दुबक गया है.

पुलिस पदम चरण का मूल पता लगाने का प्रयास कर ही रही थी कि उसे उधना क्षेत्र (खाड़ी) में विजय साचीदास की लाश मिलने की सूचना कंट्रोल रूम द्वारा दी गई. उधना क्षेत्र की पुलिस को खाड़ी में एक युवक की लाश पड़ी मिली थी. उस युवक की तलाशी में आधार कार्ड मिला, जिस में उस का नाम विजय साचीदार, उस का फोटो और एड्रेस था.

आधार कार्ड से पता चला कि विजय साचीदार शांतिनगर थाना क्षेत्र में रहता था, इसलिए कंट्रोल रूम द्वारा इस थाने को सूचित किया गया. शांतिनगर थाने ने उधना क्षेत्र थाने से यह लाश अपने अधिकार में ले कर जांच की. विजय को गला दबा कर मारा गया था. विजय का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. इस मामले को भादंवि की धारा 302 में दर्ज कर के पदम चरण की तलाश शुरू कर दी गई.

पदम चरण के बारे में रजनी से बहुत कुछ मालूम हो सकता था. पुलिस ने रजनी को थाने में बुला कर पूछताछ की तो रजनी ने बताया कि पदम का ओडिशा के गंजाम जिले में बरहमपुर इलाके में घर है. इस से अधिक वह कुछ नहीं जानती. रजनी ने पदम से प्रेम करने के दौरान जो फोटो खींचे थे, वे भी उस ने पुलिस को दे दिए.

शांतिनगर थाने की पुलिस पदम की तलाश में ओडिशा गई. वहां उस के मांबाप को श्रीराम नगर में ढूंढ निकाला गया. उन्होंने बताया पदम कई दिनों बाद घर आया था, लेकिन एक रात रुक कर वह चला गया. वह कहां गया, यह उन्हें नहीं मालूम. पुलिस ओडिशा से खाली हाथ वापस आ गई. इस के बाद पदम को सालों पुलिस यहांवहां ढूंढती रही, लेकिन वह कहां छिप गया, पुलिस को पता नहीं चला.

पदम के ऊपर घोषित हुआ ईनाम

पुलिस द्वारा उस के ऊपर 45 हजार का ईनाम भी घोषित कर दिया गया, लेकिन सब व्यर्थ. हताश हो कर विजय साचीदास हत्या केस की फाइल पुलिस को ठंडे बस्ते में डालनी पड़ी. जून 2023 को पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने सूरत शहर के भगोड़े व मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की लिस्ट तैयार करवाई तो उस में 23 सालों से फरार चल रहे पदम चरण उर्फ चरण पांडा का भी नाम था. उस पर 45 हजार का ईनाम भी घोषित था.

पदम को पकडऩे का जिम्मा अपराध शाखा के एएसआई सहदेव, एएसआई जनार्दन हरिचरण और हैडकांस्टेबल अशोक को सौंपा गया. इस टीम की पहली सफलता यह थी कि 23 साल से फोन बंद कर के बिल में छिपे पदम ने मोबाइल फोन से अपने परिजनों से संपर्क किया था.

ओडिशा के गंजाम जिले में श्रीराम नगर इलाके से गोपनीय जानकारी अपराध शाखा को मिली तो पदम के परिजनों से पदम का नया नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया गया. उस की लोकेशन ट्रेस की गई तो वह मथुरा के बरसाना की थी.

क्राइम ब्रांच को बनना पड़ा साधु

अपराध शाखा की टीम मथुरा के बरसाना पहुंची. वहां से टोह लेती हुई नंदगांव पहुंच गई. यहां की पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज की मदद से साधु वेश बना कर 8 दिन आश्रमों, मठों में पदम को तलाश करती रही. अपने असली नाम छिपा कर 100 से ज्यादा धार्मिक स्थलों में उसे खोजा गया, फिर कुंजकुटी आश्रम में तलाश करने पंहुचे तो उन्हें साधु वेश में रह रहे पदम चरण को पकडऩे में सफलता मिल गई.

पदम चरण को शांतिनगर थाना (सूरत) में ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि विजय साचीदास उस के और रजनी के प्रेम में बाधा बन गया था. उसे समझाने पर भी वह नहीं माना तो उस का अपहरण कर के वह उद्यान खाड़ी क्षेत्र में ले गया और वहां गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद वह ओडिशा भाग गया.

एक रात रुक कर वह मथुरा आया, यहां नंदगांव के कुंजकुटी में साधु वेश बना कर रहने लगा. उसे लगा कि विजय की हत्या हुए 23 साल गुजर गए हैं, पुलिस खामोश बैठ गई है तो उस ने मोबाइल खरीद कर परिजनों से बात की. इसी क्लू द्वारा पुलिस उस तक पहुंची और वह पकड़ा गया.

पुलिस ने पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा को सक्षम न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

कोबरा से डसवाने वाली प्रेमिका

15 जुलाई, 2023 की सुबह सैर पर निकले कुछ लोगों की नजर नाले के पास खड़ी एक कार पर पड़ी. पोलो कार वहां पर काफी समय से खड़ी थी. कार स्टार्ट थी, लेकिन काफी समय से न तो उस कार में कोई आया और न ही कार से बाहर निकला. कार के सभी शीशे भी पूरी तरह से बंद थे. इस कार को इस तरह से खड़े देख वहां पर राहगीर जमा हो गए थे.

तभी एक व्यक्ति ने हिम्मत जुटाई और कार का दरवाजा खोला तो उस कार की पिछली सीट पर एक व्यक्ति बैठा हुआ था. लेकिन कार का दरवाजा खुलने के बाद भी उस व्यक्ति ने किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं की, जिस से लोगों का शक हुआ. वहां पर मौजूद लोगों ने उस व्यक्ति को कई बार आवाज लगाई, लेकिन उस की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला.

तब तक वहां पर काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी. उसी भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति ने उसे पहचानते हुए बताया कि वह रामबाग कालोनी रामपुर रोड हल्द्वानी का होटल मालिक अंकित चौहान पुत्र धर्मपाल चौहान है. अंकित की पहचान होते ही उस के एक परिचित ने उस के छोटे भाई अभिमन्यु को सूचना दी. साथ ही वहां पर मौजूद लोगों ने हल्द्वानी कोतवाली में फोन कर इस की सूचना दे दी थी.

अंकित के इस हालत में मिलने की सूचना पाते ही उस का छोटा भाई अभिमन्यु और कोतवाल हरेंद्र चौधरी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. पुलिस ने कार खोल कर स्थिति का जायजा लिया. पुलिस ने अंकित चौहान को आवाज देते हुए हिलाया तो वह सीट पर ही लुढक़ गया. उस की नाक के पास हाथ लगा कर सांस चैक की तो उस की सांस नहीं चल रही थी.

पुलिस की मदद से भाई अभिमन्यु अंकित को ले कर सीधा सुशीला तिवारी अस्पताल गया, जहां पर उसे देखते ही डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. उस के बाद अंकित के शव को मोर्चरी ले जाया गया. जहां पर उस की मौत की खबर सुन कर परिचितों के साथसाथ सगेसंबंधियों की भीड़ लग गई. अंकित के पापा की कई साल पहले किसी बीमारी के चलते मौत हो गई थी.

घर में मां ऊषा देवी के अलावा भाईबहन रहते थे. 5 दिन पहले ही अंकित की मां ऊषा देवी अपनी बेटियों के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए गई हुई थी. उस वक्त सभी कटरा के पास थे. अंकित की मौत की सूचना पाते ही वे वहां से घर की तरफ वापस चल पड़े.

उधर पुलिस उस के शव को मोर्चरी में रखवा कर सीधे उस की कार के पास पहुंची. पुलिस ने गहनता से कार की जांचपड़ताल की. जिस वक्त सूचना पर पुलिस कार के पास पहुंची थी, कार स्टार्ट थी और एसी भी चल रहा था. लेकिन उस जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को ऐसी कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली, जिस से अंकित की मौत का पता चल सके.

जांच के दौरान पुलिस को कार से 53 हजार रुपए नकद और एक मोबाइल फोन भी मिला था. मोबाइल अंकित का ही था.  शुरुआती जांच में पुलिस ने अनुमान लगाया कि अंकित की मौत कार्बन मोनोआक्साइड गैस से हुई होगी. लेकिन इस के बावजूद भी पुलिस संशय में थी कि अंकित पिछली सीट पर क्यों बैठा था? उस वक्त उस की कार भी लौक नहीं थी. उस के सभी शीशे भी पूरी तरह से बंद थे.

इस में भी सब से बड़ा सवाल यह उठता था कि अगर अंकित पिछली सीट पर बैठा था तो उस की कार कौन चला रहा था. अंकित के पिछली सीट पर बैठे होने से यह तो पक्का हो ही गया था कि उस कार में उस के अलावा भी कोई दूसरा व्यक्ति रहा होगा.  पुलिस ने अपनी काररवाई कर मृतक की लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था.

पोस्टमार्टम के दौरान डाक्टरों को मृतक के शरीर पर किसी भी तरह के निशान नहीं मिले. लेकिन उस के दोनों ही पैरों पर एक जैसे सर्पदंश जैसे निशान जरूर नजर आए थे. जिस से कयास लगाया जा रहा था कि अंकित वहां पर पेशाब करने गाड़ी से उतरा होगा और उसी दौरान उस के पैरों में सांप ने काट लिया हो. लेकिन इस बात के भी 2 पहलू थे. अगर सांप काटता तो एक ही पैर में काटता. लेकिन उस के दोनों ही पैरों में एक जैसे ही निशान मिले थे. जिस से अंकित की मौत का मामला उलझता ही जा रहा था.

सोमवार को पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली. जिस में साफ लिखा गया था कि अंकित की मौत सांप के काटने से ही हुई थी. लेकिन इस बात को उस के घर वाले बिलकुल भी मानने को तैयार नहीं थे. कारण वही था कि अगर उस के पैर में सांप ने ही काटा था तो एक ही सांप ने उस के दूसरे पैर में ठीक उसी जगह पर कैसे काटा? उस के बाद उस की मौत का दूसरा पहलू यह भी था कि वह पिछली सीट पर क्यों बैठा पाया गया?

इस मामले को ले कर मृतक अंकित चौहान की बहन ईशा चौहान की तरफ से पुलिस को एक लिखित तहरीर दी गई थी, जिस के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया.

व्यापारियों के दबाव में आई पुलिस

अंकित के घर वालों के साथसाथ कुछ व्यापारियों की जिद के आगे पुलिस की एक न चली. व्यापारियों के दबाव के चलते नैनीताल के एसएसपी पंकज भट्ट ने तत्काल अधीनस्थों के साथ एक मीटिंग की. उस के बाद पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से मृत्यु के कारणों के संबंध में चर्चा करने के बाद पुलिस अन्य पहलुओं को ले कर फिर से उस की जांच में जुट गई.

केस के खुलासे के लिए एसएसपी पंकज भट्ट ने एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में कोतवाल हरेंद्र चौधरी, एसएसआई विजय मेहता, महेंद्र प्रसाद, मंगलपड़ाव चौकीप्रभारी जगदीप नेगी, एसआई कुमकुम धानिक, मंडी चौकीप्रभारी गुलाब कांबोज, इसरार नबी, घनश्याम रौतेला, चंदन नेगी, अरुण राठौर, बंशीधर जोशी, छाया, एसओजी प्रभारी राजवीर नेगी, कुंदन कठावत, त्रिलोक रौतेला, दिनेश नागर, अनिल गिरि, भानुप्रताप व अशोक को शामिल किया.

जिस जगह अंकित की कार खड़ी पाई गई थी, उस से काफी दूरी पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. पुलिस ने उस की फुटेज निकाल कर चैक की तो रात के 12 बजे के समय घटनास्थल पर एक कार की लाइट दिखाई दी थी. जिस के कुछ समय बाद ही कार की लाइट बंद हो गई थी. उस के बाद उस कार के पास एक और कार आ कर रुकी, जो थोड़ी देर बाद ही वहां से चली गई थी.

मृतक के दोनों पैरों में एक ही जैसे 2 निशान मिलने से पुलिस को भी शक था कि कहीं किसी ने जानबूझ कर तो सांप से कटवा कर उस की हत्या तो नहीं कर दी. उसी शक की बुनियाद पर पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाई. पुलिस ने फिर से मृतक के घर वालों से पूछताछ की.

घर वालों ने बताया कि रामपुर रोड छठ पूजा स्थल के पास रामबाग कालोनी से शुक्रवार की देर शाम वह अपनी कार सेनिकला था. लेकिन देर रात तक वह घर नहीं पहुंचा. घर वालों ने उस का देर रात तक इंतजार किया. अंकित कई बार होटल में ही सो जाता था. जिस के कारण उन्हें उस की कोई चिंता नहीं थी. उस के साथ उस रात क्या हुआ पता नहीं.

यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस के पास एक ही रास्ता बचा था. वह था अंकित के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालना. पुलिस को पूरी उम्मीद थी कि उस की मौत का राज जरूर उस के मोबाइल से ही मिल सकता है. यही सोच कर पुलिस ने अंकित के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक फोन नंबर ऐसा सामने आया, जिस पर अंकित की सब से ज्यादा बातें होती थीं. वह नंबर था हल्द्वानी के बरेली रोड गोरापड़ाव क्षेत्र में रहने वाली माही आर्या उर्फ डौली का. लेकिन वह उस वक्त बंद आ रहा था.

उस के बाद पुलिस ने माही के फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सर्च किया तो सभी अकाउंट बंद मिले. इस केस की तह तक जाने के लिए पुलिस को एक छोटा सा क्लू मिला तो पुलिस ने माही के मोबाइल की भी काल डिटेल्स निकलवाई. जिस से जानकारी मिली कि कई दिन से उस की लगातार 2 मोबाइल नंबरों पर बातें हो रही थीं. उस में एक नंबर था दीप कांडपाल का और दूसरा रमेश नाथ का. इन नंबरों के मिलते ही पुलिस ने इन को डायल किया तो ये दोनों नंबर भी बंद पाए गए.

काल डिटेल्स से मिली सफलता

इन दोनों नंबरों के बंद आने से पुलिस को एक आशा की किरण दिखाई दी. पुलिस को लगा कि जरूर अंकित की मौत का राज इन्हीं 2 फोन नंबरों में छिपा हुआ है. इस तरह से कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस ने दीप कांडपाल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में भी एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर वह हर रोज बातें करता था.

पुलिस उसी नंबर पर काल कर किसी तरह से उस के पास पहुंचने में कामयाब हो गई. उस युवक ने बताया कि वह दीप कांडपाल के साथ मिल कर शराब का कारोबार करता है. दीप कांडपाल दिल्ली, हरियाणा से शराब ला कर हल्द्वानी और उस के आसपास के क्षेत्र में सप्लाई करता है.

पुलिस ने उस युवक को अपनी गिरफ्त में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि माही आर्या अंकित चौहान की गर्लफ्रैंड है. वह हर रोज रात में उसी से मिलने जाता था. हर रात वह उसी के साथ खातापीता था. शराब पीने के बाद वह गालीगलौज भी करता था, जिस से माही आर्या तंग आ गई थी. उस के बाद से ही दोनों के संबंधों में खटास आने लगी थी.

पुलिस ने रमेशनाथ, दीप कांडपाल और माही के फोन नंबरों को पहले ही सर्विलांस पर लगा रखा था. सभी नंबर काफी समय से बंद चल रहे थे. लेकिन अचानक ही रमेश नाथ का मोबाइल औन हुआ. उसी दौरान पुलिस को उस की लोकेशन मिल गई. लोकेशन मिलते ही पुलिस आननफानन में उस के पीछे लग गई.

पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए रमेश नाथ को बरेली से गिरफ्तार कर लिया. रमेश नाथ एक सपेरा था. सपेरे को गिरफ्तार कर पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की. उस ने अंकित हत्याकांड का खुलासा कर दिया. रमेश नाथ ने स्वीकार किया कि अंकित की हत्या उस के द्वारा लाए गए सांप से कटवा कर ही की गई थी.

सपेरे रमेश नाथ ने बताया कि वह हल्द्वानी में मानपुर पश्चिम में किराए के मकान में रहता है. वहीं से वह घरघर जा कर मांगने, खाने व सांप पकडऩे का काम करता है. रमेश नाथ ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि अब से लगभग 7-8 महीने पहले एक युवक ने उसे माही उर्फ डौली से मिलवाया था.

युवती को किसी ज्योतिष ने बताया था कि उस पर कालसर्प योग है, जिस के उपचार के लिए किसी जहरीले नाग की पूजा करनी होगी. उस के बाद उस का कालसर्प योग खत्म हो जाएगा. सपेरे ने उस वक्त माही की मांग पर उसे एक सांप ला कर दिया था. जिस के बाद से सपेरे का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया था.

सपेरा रमेश नाथ ने खोला मुंह

माही के घर पर अंकित चौहान, दीप कांडपाल, नौकर रामऔतार और नौकरानी ऊषा का आनाजाना लगा रहता था. उसी दौरान एक दिन अंकित को छोड़ कर सभी माही के घर पर मौजूद थे. उसी दौरान दीप कांडपाल ने उसे बताया, “अंकित ने माही को परेशान कर रखा है. माही अब अंकित को प्यार नहीं करती. माही अब मुझ से प्यार करती है, लेकिन अंकित फिर भी उसे तंग करता रहता है. कभी भी वह उस के घर आ जाता है और शराब पी कर मारपीट करता है. उस ने इस का जीना हराम कर रखा है.

“माही की परेशानी को देख कर मुझे गुस्सा भी आ जाता है. मन करता है कि उस का खेल खत्म ही कर दूं. लेकिन पुलिस हम पर शक करके तुरंत ही गिरफ्तार कर लेगी. इसलिए हम चाहते हैं कि तुम हमें एक जहरीला सांप ला कर दे दो, जिस से कटवा कर हम उस की हत्या कर सकें. जिस से लोगों को लगे कि सांप के काटने से अंकित की मौत हो गई.”

इस काम के बदले माही ने उसे, नौकर रामऔतार व नौकरानी ऊषा को 10-10 हजार रुपए भी दिए.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने माही के नौकर और उस की नौकरानी की तरफ ध्यान दौड़ाया. पुलिस दिनरात एक कर के नौकर रामऔतार के पीछे पड़ी तो उस का कनेक्शन पीलीभीत से जुड़ा हुआ मिला. पुलिस जैसेतैसे कर के रामऔतार के घर पहुंची तो पता चला कि वह नेपाल भाग गया है. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस टीम नेपाल पहुंची.

नेपाल पहुंचते ही पुलिस ने वहां के तमाम होटल और कैसीनो भी छान मारे. लेकिन कहीं भी रामाऔतार का पता नहीं चल सका. उस के बाद नेपाल की सीमा पर भी निगरानी रखी,लेकिन कहीं भी कोई सफलता नहीं मिली. उस के बाद पुलिस टीम ने इन चारों की तलाश में दिल्ली व पीलीभीत में डेरा डाल दिया. साथ ही पुलिस ने माही समेत चारों पर 25-25 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया था.

आरोपियों तक पहुंचने के लिए पुलिस ने पहले ही मुखबिरों को लगा रखा था. उसी दौरान 23 जुलाई, 2023 को पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि दीप कांडपाल और उस की प्रेमिका माही आर्या पुलिस की पकड़ से बचने के लिए रुद्रपुर की कोर्ट में सरेंडर करने जा रहे हैं.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस और एसओजी की टीम ने घेराबंदी कर दोनों को कोर्ट में पेश होने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया. दोनों को गिरफ्तार कर पुलिस टीम उन्हें हल्द्वानी कोतवाली ले आई. कोतवाली लाते ही माही आर्या ने सहज ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने स्वीकार किया कि उस ने ही सपेरे से सांप मंगा कर अंकित को कटवाया था, जिस के कारण ही उस की मौत हुई थी.

पुलिस के सामने उस ने अपनी जिंदगी की जो फाइल खोल कर रखी, उस से इश्क, सैक्स, धोखा और कत्ल की लंबी कहानी उभर कर सामने आई.

स्कूल टाइम में ही बहक गई थी माही

नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर से रामपुर रोड पर लगभग 3 किलोमीटर दूर एक गांव पड़ता है प्रेमपुर लोश्यानी. माही आर्या उर्फ डौली का जन्म इसी गांव के एक साधारण परिवार में हुआ था. भले ही माही आर्या ने एक साधारण परिवार में जन्म लिया था. लेकिन जितनी देखनेभालने में वह खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा महत्त्वाकांक्षी भी थी. गरीबी में जन्म लेने के बाद उस का पालनपोषण भी आर्थिक तंगी में ही हुआ. लेकिन उस की खूबसूरती ने गरीबी के आगे भी हार नहीं मानी थी.

जैसेजैसे उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा, उस की सुंदरता में और भी निखार आता गया. जिस के कारण वह आसपड़ोसियों की भी चहेती बनी हुई थी. गरीबी से लड़तेझगड़ते उस ने किसी तरह से हाईस्कूल पास कर लिया. लेकिन हालात से हार कर उसे अपनी आगे की पढ़ाई बंद करनी पड़ी.

हाईस्कूल तक आतेआते कई युवक उस की खूबसूरती के दीवाने बन गए थे. उन सब में उस का सब से ज्यादा चहेता था विपिन कुमार (काल्पनिक नाम). स्कूल में सब से ज्यादा उस का टाइम उसी के साथ व्यतीत होता था. विपिन उस के दुखदर्द को भलीभांति समझता था.

यही कारण था कि माही सब से ज्यादा उसी पर विश्वास करती थी, जिस के कारण दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. उसी दोस्ती के सहारे माही ने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का प्रण भी कर लिया था. उसी दौरान दोनों के बीच अवैध संबंध भी स्थापित हो गए थे. यह सिलसिला दोनों के बीच काफी समय चलता रहा. लेकिन उन की यह प्रेमगाथा जल्दी ही जगजाहिर हो गई. जिस के कारण माही पर उस के घर वालों की पाबंदी लग गई और उस की आगे की पढ़ाई पर रोक लग गई.

आगे की पढ़ाई पर रोक लगते ही माही तिलमिला उठी. वह विपिन के वियोग में घुटघुट कर जीने लगी. उस के बाद भी दोनों ने जैसेतैसे मोबाइल के द्वारा संपर्क बनाए रखा. अपने घर वालों की पाबंदी से तंग आ कर माही ने विपिन पर घर से भागने का दबाव बनाया तो उस ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया.

विपिन ने अपने घर वालों से माही के साथ शादी करने की बात रखी तो उन्होंने उसे अपनाने से साफ मना कर दिया. यह बात सुनते ही माही को जिंदगी का सब से बड़ा झटका लगा. जब उस के घर वालों को पता चला कि वह अभी भी विपिन की पीछे पड़ी हुई है तो उन्होंने उसे घर से निकाल दिया. यह 2008 की बात है.

माही के साथ हुआ गैंगरेप

उस के बाद वह जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए इधरउधर भटकने लगी. उस वक्त उस की खूबसूरती ही उस के लिए अभिशाप बन गई थी. घर वालों ने ठुकराया तो वह हल्द्वानी आ गई. हल्द्वानी आते ही उस के साथ गैंगरेप की घटना घटी. जिस से आहत हो कर उस ने अधिक मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं.

उस की हालत बिगड़ गई. लेकिन जैसे ही उसे होश आया तो उस ने अपने को एक बूढ़ी औरत के घर में पाया. उस के ठीक होने तक उस बूढ़ी औरत ने उस की खूब सेवा की. बूढ़ी औरत की तरफ से सहानुभूति मिलते ही वह उसी के पास रहने लगी. लेकिन कुछ ही दिन बाद उसे पता चला कि वह उस औरत के पास आने के बाद एक दलदल में फंस कर रह गई.

हालांकि वह औरत बड़े लोगों के यहां पर काम कर के अपनी गुजरबसर करती थी. लेकिन उस के कुछ ऐसी औरतों से भी संबंध थे, जो जिस्मफरोशी के धंधे से जुड़ी थीं. माही ने जिंदगी से हार मानने हुए उन्हीं औरतों के साथ काम करना शुरू कर दिया. जहां पर रह कर माही की आर्थिक स्थिति सुधरी तो उसे पैसे का लालच आने लगा.

उसी धंधे के सहारे वह कुछ ही दिनों में पैसों में खेलने लगी और जल्दी ही उस ने शहर के बड़ेबड़े लोगों के साथ मजबूत संबंध बना लिए थे. उसी दौरान उस पर शहर के एक नामीगिरामी कांग्रेस नेता की कृपा बरसी और वह मकान मालिक बन बैठी.

उस कांग्रेसी नेता ने उस से खुश हो कर हल्द्वानी के गोरापड़ाव में उस का मकान ही बनवा दिया था. मकान बनते ही माही उस घर में अकेली ही ठाटबाट से रहने लगी थी. यही नहीं, उस ने अपने घर के कामकाज के लिए एक नौकरानी और नौकर भी रख लिया था.

कालगर्ल माही के ठाटबाट और रहनसहन से हल्द्वानी के पूर्व सभासद का बेटा भी उस के संपर्क में आया. वह माही की सुंदरता पर रीझ गया और उस ने उस के साथ दोस्ती करने के बाद उस से शादी भी कर ली थी. सभासद के बेटे के साथ शादी करने के बाद वह कुछ दिन अपनी ससुराल में रही.

लेकिन शादी के बाद भी उस की पुरानी हरकतें छूटने को तैयार नही थीं. जिस से उस के ससुराल वाले बुरी तरह से तंग आ चुके थे. यही कारण रहा कि कुछ ही दिनों में उसे शादी जैसा बंधन अखरने लगा. उस के बाद वह ट्रांसपोर्ट नगर स्थित अपनी ससुराल छोड़ कर गोरापड़ाव में अपने घर आ कर रहने लगी थी.

जिस्म परोस कर कमाने लगी पैसे

अपनी ऊंची ख्वाहिशों के कारण माही समाज में अकेली ही रह गई थी. उस ने अपने जिस्म को बेच कर इतना पैसा  कमा लिया था कि वह ऐशोआराम की जिंदगी जी रही थी. एक बार वह जिस्मफरोशी के धंधे में उतरी तो उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. अपने जिस्म के बूते पर उस ने जो चाहा उसे हासिल कर लिया. उसी वक्त उस ने एक कार खरीदने का मन बनाया.

कार खरीदने का मन बनाते ही उस ने पुरानी कार की तलाश शुरू कर दी थी. अंकित चौहान पुरानी कार खरीदनेबेचने का काम करता था. वह कार खरीदने के लिए उस से मिली. माही की खूबसूरती देखते ही अंकित चौहान भी उस का दीवाना हो गया. उसी बहाने से अंकित चौहान ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.

फिर दोनों में जल्दी ही दोस्ती भी हो गई. धीरेधीरे दोनों की नजदीकियां बढ़ीं तो वह भी उस के घरेलू कामों में उस की सहायता करने लगा था. अंकित हर रोज रात को माही के पास जाता था. वहीं पर रात का खाना खाता और उस के साथ ही रात रंगीन करता था. माही को पता था कि अंकित बहुत बड़ी प्रौपर्टी का मालिक है. उस के पास उस का अपना होटल भी है.

यही सोच कर उस ने उस के साथ शादी करने का मन बनाया. उस ने कई बार उस से शादी करने वाली बात भी कही, लेकिन उस ने एक कान से सुन कर दूसरे कान से बाहर निकाल दिया. जिस से माही को लगने लगा था कि वह केवल उस की देह का ही दीवाना है.

उसी दौरान माही को जानकारी मिली कि वह उस के साथसाथ किसी अन्य युवती से भी प्यार करता है. यह जानकारी मिलते ही माही परेशान हो उठी. फिर माही ने उस से पूरी तरह से पीछा छुड़ाने का मन बना लिया था. लेकिन इस के बावजूद अंकित उस पर अपना ही अधिकार जमाता था. हर रात उसी के साथ खातापीता और फिर उसे मारनेपीटने भी लगा था.

अंकित के व्यवहार से वह समझ गई कि वह उस से किसी भी कीमत पर शादी करने वाला नहीं. वह केवल उस के शरीर का ही उपयोग कर रहा है. उस के बाद धीरेधीरे उस के मन में अंकित के प्रति नफरत पैदा हो गई थी.

दीप कांडपाल बना नया प्रेमी

साल 2016 में उस की मुलाकात मोटाहल्दू निवासी दीप कांडपाल से हुई. दीप कांडपाल शराब बेचने का अवैध धंधा करता था. उस के साथ ही वह प्रौपर्टी खरीदनेबेचने का काम भी करता था. उस के पास काफी रुपयापैसा था. दीप कांडपाल भी उस की खूबसूरती पर इस कदर लट्टू हुआ कि उसे देखते ही पहली मुलाकात में उस से दोस्ती कर ली.

दीप कांडपाल से दोस्ती होते ही माही ने अंकित की अनदेखी करना शुरू कर दिया था. माही के लिए मर्द बदलना कपड़े बदलने के बराबर हो चुका था. कुछ ही दिनों में उस ने दीप कांडपाल के साथ भी संबंध बना लिए. वह भी उस के घर आनेजाने लगा था. यही नहीं, दीप कांडपाल ने उसे प्रौपर्टी डीलिंग के काम में अपने साथ रख लिया था.

माही ने पहले से ही अपने घर के काम के लिए ऊषा, उस के पति रामऔतार को रख रखा था. ऊषा ही माही के घर के कामकाज करने के साथ ही उस का खाना भी बनाती थी. माही के घर के सामने ही एक खाली प्लौट पड़ा हुआ था. ऊषा ने वहीं पर एक झोपड़ी डाल कर अपना बसेरा बना लिया था. अंकित ऊषा से बुरी तरह से चिढ़ता था. उस का भी एक कारण था कि ऊषा हर वक्त उसी के घर पर पड़ी रहती थी.

अंकित की मारपीट से बचने के लिए वह कभीकभी खाना भी वहीं पर खाती थी, जिस के कारण वह ऊषा देवी और उस के पति को अपनी अय्याशी में बाधा मानता था. जबकि उस से तंग आ कर दीपू कांडपाल, रामऔतार व उस की पत्नी ऊषा से उस की घनिष्ठता बढ़ गई थी.

अंकित से परेशान एक दिन माही ने किसी ज्योतिष को अपना हाथ दिखाया. तब उस ज्योतिष ने माही का हाथ देखते हुए बताया कि उस पर कालसर्प दोष चल रहा है, उस से छुटकारा पाने के लिए उसे कालसर्प दोष की पूजा करानी होगी. उस के लिए एक जहरीले नाग की जरूरत होगी.

अब से लगभग 8 महीने पहले माही की मुलाकात सपेरे रमेश नाथ से हुई. रमेश नाथ गलीगली घूम कर अपनी रोजीरोटी चलाता था. रमेश नाथ से मिल कर उस ने उस से एक जहरीला सांप लाने को कहा. रमेश नाथ जंगल से एक सांप पकड़ कर लाया. उस के बाद माही ने अपने घर में कालसर्प दोष की पूजा कराई. जिस के बाद उस ने रमेश नाथ को अपना गुरु मान लिया था.

रमेश नाथ तभी से बराबर उस के संपर्क में बना हुआ था. उसी आनेजाने के दौरान माही ने सपेरे रमेश नाथ के साथ भी अबैध संबंध बना लिए थे. वही पर रमेश नाथ की मुलाकात दीप कांडपाल, ऊषा और उस के पति रामऔतार से हुई.

अंकित नहीं छोड ऱहा था माही का पीछा

हालांकि माही ने अंकित से बात करना बिल्कुल ही बंद कर दिया था, इस के बावजूद अंकित उस का पीछा छोडऩे को तैयार न था. अंकित से तंग आ कर एक दिन माही स्कूटी से उस के घर के पास पहुंची और उस से कहा कि वह आज उस के घर वालों से उस की शिकायत करने आई है.

यह बात सुनते ही अंकित ने उसे उस वक्त तो समझाबुझा कर वापस भेज दिया. लेकिन कुछ ही दिनों में वह फिर से अपनी हरकतों पर आ गया. अंकित ने सोचा यह सब उस की नौकरानी ऊषा ही करा रही है. अंकित ने उस पर शक किया. उस के बाद उस ने खाली प्लौट के मालिक से शिकायत कर कहा कि वह बंगालन है वह आप के प्लौट पर टोनाटोटका भी करा सकती है. यह बात सुनते ही उस प्लौट के मालिक ने अपने प्लौट से उस की झोपड़ी हटवा दी.

इस मामले में दीप कांडपाल और अंकित में भी मनमुटाव हो गया था. झोपड़ी हटने के बाद ऊषा और उस का पति रामऔतार माही के घर पर ही रहने लगे थे. इस सब से तंग आ कर माही ने दीप कांडपाल के साथ मिल कर अंकित को मारने का प्लान बनाया.

अंकित को मौत की नींद सुलाने की योजना बनते ही माही और दीप कांडपाल ने एक टीवी सीरियल देखना शुरू किया. जिस से उन्हें सहज ही अंकित को मौत देने का कोई उचित तरीका मिल सके. सीरियल देख कर उन्हें सब से अच्छा तरीका सांप से कटवा कर मौत की नींद सुलाने का अच्छा लगा. उन के लिए सांप की व्यवस्था करने के लिए रमेश नाथ मौजूद था.

माही ने तुरंत ही रमेश नाथ को फोन कर के अपने घर बुला लिया. उस के बाद माही, दीप कांडपाल, ऊषा, रामऔतार और रमेश नाथ सब एक हो गए. जब अंकित को मौत की नींद सुलाने का पक्का प्लान बन गया तो माही ने रमेश नाथ से एक सांप की व्यवस्था करने को कहा.

उसी दौरान 6 जुलाई, 2023 को रमेश को फोन पर किसी ने बताया कि पंचायतघर के पास ब्यूटीपार्लर में एक सांप घुसा हुआ है. यह जानकारी मिलते ही रमेश नाथ ने मौके पर जा कर कोबरा प्रजाति का वह सांप पकड़ कर अपने पास रख लिया. यह बात उस ने माही और दीप कांडपाल को भी बता दी.

कोबरा से डसवा कर प्रेमी को दी मौत

सांप की व्यवस्था होते ही माही ने 8 जुलाई, 2023 को अंकित को मौत की नींद सुलाने का प्लान बनाया. क्योंकि उस दिन अंकित का बर्थडे था. उस दिन अंकित माही के घर पहुंचा और वहां पर मौजूद सभी लोगों के साथ शराब पी कर मौजमस्ती की. लेेकिन उस दिन ये लोग अंकित को मारने में नाकामयाब रहे.

उस के बाद 14 जुलाई को योजनानुसार माही ने अंकित को अपने घर बुलाया. उस दिन माही के घर दीप कांडपाल, सपेरा रमेश नाथ, नौकरानी ऊषा और उस का पति रामऔतार सभी मौजूद थे. माही ने सपेरे रमेश नाथ, ऊषा और उस के पति को इस मामले में सहयोग करने के लिए 10-10 हजार रुपए भी दिए.

अंकित के आने से पहले माही ने चारों को मंदिर वाले कमरे में रहने को कहा था. अंकित के आते ही वह उसे ले कर अपने बैडरूम में चली गई. माही ने वहीं पर पहले से ही जहर मिली शराब रख रखी थी. अंकित के साथ प्यार का नाटक करते हुए उस ने उसे जहरीली शराब पिला दी. जिस के पीते ही वह बेहोश हो गया.

अंकित के बेहोश होते माही ने चारों को बाहर बुला लिया. माही ने चारों आरोपियों की सहायता से उसे बैड पर उलटा लिटा कर उस के ऊपर एक कंबल डाल दिया. उस को उलटा लिटाते ही दीप कांडपाल ने उस के हाथ पकड़े और ऊषा व उस के पति ने उस के पैर पकड़े. उस के बाद सपेरे ने कोबरे से उस के पैर में डसवाया. फिर सभी उस के खत्म होने का इंतजार करने लगे.

लेकिन 10 मिनट गुजर जाने पर भी अंकित के शरीर में यूं ही हलचल होती रही. जिस के बाद फिर से दूसरे पैर में कोबरा से डसवा दिया, ताकि वह जल्दी खत्म हो जाए. इस के कुछ देर बाद ही अंकित की मौत हो गई.

लाश नहीं लगा सके ठिकाने

अंकित की हत्या करने के बाद उस की लाश को भुजियाघाट के पास फेंकने की योजना थी. अंकित की मौत हो जाने के बाद उस के शव को उसी की कार की पिछली सीट पर डाला. दीप कांडपाल कार चला रहा था. रमेश नाथ अगली सीट पर बैठा था.

रात के 11 बजे दोनों कार में शव डाल कर भुजियाघाट पहुंचे, लेकिन उस वक्त वहां पर कुछ कारें खड़ी थीं. जिस के कारण उन्हें वहां पर शव फेंकने का मौका नहीं मिला. इस की जानकारी दीप कांडपाल ने माही को दी और फिर कार को ले कर तीनपानी रेलवे क्रौसिंग के पास पहुंचे.

माही ने पहले ही दिल्ली के लिए कार बुक कर रखी थी. दीप कांडपाल से बात होते ही माही नौकर नौकरानी को साथ ले कर रेलवे क्रौसिंग पर पहुंची. उस के बाद अंकित की कार का एसी औन कर कार स्टार्ट कर के छोड़ दी. बाद में सभी आरोपी दिल्ली के लिए बुक कार से फरार हो गए.

माही की एक बहन की शादी दिल्ली में हुई थी. दिल्ली पहुंचते ही माही ने अपनी बहन से कहा कि हम 5 लोग तेरे घर पर आ रहे हैं. लेकिन उस की बहन उस की हरकतों को अच्छी तरह से जानती थी. इसी कारण उस ने उसे अपने घर आने से मना कर दिया.

उस के बाद पांचों ने रात दिल्ली में गुजारी और अगले ही दिन बस से बरेली पहुंचे. जहां पर पहुंचते ही सपेरा रमेश नाथ अपने गांव भोजीपुरा जाने की बात करने लगा. रमेश के अलग होने से पहले ही माही ने उस से कहा था कि वह अपना मोबाइल बंद ही रखे अन्यथा उस के कारण हम मुसीबत में भी फंस सकते हैं.

बरेली से नौकर नौकरानी दीप कांडपाल और माही को साथ ले कर अपने घर चले गए. उस के बाद वहां से नेपाल भाग गए. इन चारों से अलग होते ही रमेश नाथ ने अपना मोबाइल औन कर लिया था. उस ने सोचा था कि अगर किसी की काल भी आई तो वह उसे उठाएगा ही नहीं. लेकिन उसे पता नहीं था कि मोबाइल औन होते ही पुलिस उस के पास पहुंच जाएगी.

दुनिया में सब से ज्यादा शातिर इंसान का दिमाग ही होता है. जिस को चाहे जैसे यूज करो. इस केस की मास्टमाइंड रही जहरीली प्रेमिका माही उर्फ डौली ने भी यही सोचा था कि वह अंकित को सांप से कटवा कर पाकसाफ बच जाएगी. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से वह नहीं बच पाई.

इस मर्डर केस का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी पंकज भट्ट ने 5 हजार रुपए बतौर पुरस्कार देने की घोषणा की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क में दिल हुआ बागी : प्रेमी ही बना अपराधी

गुरुवार 10 फरवरी, 2022 का दिन ढल चुका था. शाम के यही कोई 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के जिला भिंड के सिटी कोतवाली स्थित थाने के ड्यूटी अफसर थाने पहुंचे ही थे कि एक युवक बदहवास हालत में थाना परिसर में दाखिल हुआ. उस के बाल बिखरे हुए थे. कपड़ों पर भी खून के ताजा दाग लगे हुए थे.

पहरा ड्यूटी पर मुस्तैदी के साथ तैनात संतरी ने उसे रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सीधे ड्यूटी अफसर के सामने जा खड़ा हुआ और फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘सर, मेरा नाम रितेश शाक्य है. मैं भिंड जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर नौकरी करता हूं और गांधीनगर में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता हूं.

कुछ देर पहले मैं ने स्टाफ नर्स के पद पर काम करने वाली अपनी प्रेमिका नेहा की गोली मार कर हत्या कर दी है. उस की लाश नवीन आईसीयू वार्ड के स्टोर रूम में पड़ी हुई है. सर, क्योंकि मैं ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर के बड़ा अपराध किया है, अत: मुझे गिरफ्तार कर लीजिए.

युवक की बातें सुन कर ड्यूटी पर तैनात सुरजीत तोमर सन्न रह गए. वह आंखें फाड़े उस युवक को देखने लगे कि कहीं यह नशेड़ी या सनकी तो नहीं है जो इस तरह की बात कर रहा है.

हालांकि थाने में आ कर कोई इस तरह का मजाक करने का साहस तो नहीं कर सकता, इसलिए जब उन्होंने उस युवक को गौर से देखा तो मासूम सा दिखने वाला वह युवक काफी संजीदा लगा. इस का मतलब साफ था कि वह जो कुछ कह रहा है, सच है.

तोमर ने इस बात की जानकारी कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव को दी तो उन्होंने तुरंत उस युवक को हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तोमर ने तुरंत युवक को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी उस समय क्षेत्र में थे. सूचना पा कर वह तुरंत थाने पहुंच गए.

सुरजीत यादव ने आरोपी रितेश से पूछताछ करने के बाद अस्पताल परिसर में स्थित पुलिस चौकी पर तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत से बात की तो उन्होंने भी घटना की पुष्टि कर दी.

साथ ही यह भी बताया कि घटना के विरोध में अस्पताल की नर्सें और अन्य कर्मचारी अस्पताल में धरने पर बैठ गए हैं. धरने को ले कर लोगों में काफी आक्रोश है.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी शैलेंद्र सिंह को दी. इस के बाद एसपी के आदेश पर जिले के कई थानों की पुलिस जिला अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सब से पहले अस्पताल के स्टोर रूम में पहुंच कर स्टाफ नर्स नेहा की लाश अपने कब्जे में ली. वह वहां खून से लथपथ पड़ी थी.

उस की कनपटी के बाईं ओर गोली मारी गई थी. वह सलवारसूट के ऊपर सफेद रंग का एप्रिन पहने हुए थी, जो खून से भीगा हुआ था.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद नर्सों से पूछताछ करने पर यह मालूम हुआ कि मृतका आज ड्यूटी खत्म होने के बाद छुट्टी की एप्लीकेशन दे कर एक सप्ताह के लिए अपने मातापिता के पास अपना जन्मदिन मनाने के लिए मंडला जाने वाली थी. इस से पहले कि नेहा अवकाश पर मंडला के लिए रवाना हो पाती, यह घटना घट गई.

नेहा का जन्मदिन 14 फरवरी, 2022 को उस के गृहनगर मंडला में धूमधाम से मनाया जाने वाला था. स्टाफ नर्स की हत्या के बाद दिए जा रहे धरने से स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ा जाने और वहां से तनावपूर्ण हालात के बारे में सूचना पा कर एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान एसपी (सिटी) आनंद राय, एसडीएम उदय सिंह सिकरवार फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए थे.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. फोरैंसिक टीम का काम खत्म होते ही एसपी ने सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल सहित जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. देवेश शर्मा की मौजूदगी में घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण तो किया ही, साथ ही जिला अस्पताल में कार्यरत स्टाफ से पूछताछ कर नेहा के अतीत के बारे में जानकारी एकत्र की.

इस से पता चला कि जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत रितेश नेहा से प्रेम करता था और उस से मिलने उस के धर्मपुरी स्थित कमरे पर भी आताजाता रहता था. लेकिन आज उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ, किसी को पता नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने नेहा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और उस के परिजनों को भी इस घटनाक्रम से अवगत कराते हुए शीघ्र भिंड आने के लिए कहा.

वहीं इस हत्याकांड की विवेचना का दायित्व सीएसपी आनंद राय को सौंप दिया. इस से पहले जिला अस्पताल पुलिस चौकी में तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा आर्म्स एक्ट 25, 27, 54, 59 के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया.

जिला अस्पताल की नर्स नेहा चंदेला की हत्या के विरोध में नर्सों का दूसरे दिन भी धरना जारी रहा. इस से जिला अस्पताल के अंदर वार्डों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह लड़खड़ा गई थी. तमाम लोग अपने मरीज की वक्त पर देखभाल न होने की वजह से मरीज को बिना छुट्टी के ही बेहतर उपचार के लिए वहां से ग्वालियर ले कर रवाना हो गए.

हड़ताली नर्सों को समझाने के लिए एसडीएम उदय सिंह सिकरवार, सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल ने काफी जतन किया, लेकिन जब वे इस में सफल नहीं हुए तो उन्हें थकहार कर नर्सेज एसोसिएशन की प्रांतीय अध्यक्ष रेखा पवार को ग्वालियर वाहन भेज कर बुलाना पड़ा, जिस के बाद उन की समझाइश पर आक्रोशित नर्सें शाम 4 बजे काम पर लौटने के लिए राजी हुईं.

हालांकि इस से पहले जिला अस्पताल के द्वार पर ताला जड़े रहने से उपचार के अभाव में नयापुरा निवासी फिरोज खान की बेगम नाजिया की मृत्यु हो गई थी.

रोज की तरह 10 फरवरी, 2022 को भी नेहा चंदेला अपनी ड्यूटी पर पहुंच कर अपने कामकाज में जुट गई थी. शाम के कोई 5 बजे के करीब उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उसे हैरानी हुई कि ड्यूटी समाप्त होने को है इस वक्त कौन फोन कर रहा है.

लेकिन जब मोबाइल फोन की स्क्रीन पर चिरपरिचित नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुई कि रितेश कैसा बेशरम शख्स है जो उस के मना करने के बावजूद भी हाथ धो कर पीछे पड़ गया है.

फोन रिसीव न करना शिष्टाचारवश उसे उचित नहीं लगा, क्योंकि वह इस बात को भलीभांति जानती थी कि रितेश तब तक काल करता रहेगा, जब तक कि वह उस की काल रिसीव नहीं कर लेगी.

लिहाजा नेहा ने मन मार कर रितेश का फोन रिसीव कर लिया तो रितेश ने उस से अनुरोध किया, ‘‘आज शाम छुट्टी खत्म करने के बाद मंडला जाने से पहले प्लीज एक मर्तबा तुम मुझ से अकेले में मुलाकात कर लो. इस के बाद मुझे कभी भी तुम से बात करने का मौका नहीं मिलेगा.’’

नेहा असमंजस में पड़ गई कि क्या करे क्या न करे. रितेश शाक्य नेहा का बौयफ्रैंड था. वह भी उसी अस्पताल में वार्डबौय था.

6 दिसंबर को नेहा की सगाई गौरव पटेल के साथ तय हो जाने के बाद उस ने रितेश से न सिर्फ बातचीत करनी बंद कर दी थी, बल्कि मेलमुलाकात करनी भी लगभग बंद कर दी थी. नेहा ने रितेश से साफतौर पर कह दिया था कि मेरी सगाई हो जाने के बाद मैं अब तुम से किसी भी तरह का रिश्ता नहीं रखना चाहती.

नेहा का रिश्ता तय होने से खार खाए बैठे रितेश ने नेहा से मोबाइल पर गिड़गिड़ाते हुए कहा था कि आज मिलने के बाद आइंदा वह न तो कभी फोन करेगा और न कभी मिलने की कोशिश करेगा, यह उस का वायदा है.

जिस दिन से नेहा ने रितेश से बात करनी और अकेले में मेलमुलाकात का सिलसिला बंद किया था, उसी दिन से रितेश काफी तनाव में रहने लगा था. रितेश के अनुरोध पर नेहा ने ड्यूटी खत्म होने के बाद स्टोररूम में सिर्फ अंतिम बार बात करने के लिए इस शर्त के साथ अनुमति दे दी थी कि वह अपनी बात मनवाने के लिए किसी तरह की हठ नहीं करेगा.

ड्यूटी समाप्त होने से कुछ समय पहले शाम 5 बज कर 10 मिनट पर रितेश कमर में देशी पिस्टल लगा कर स्टोररूम में दाखिल हुआ. रितेश को देख कर नेहा ने रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है जल्दी करो, मुझे छुट्टी का एप्लीकेशन दे कर मंडला के लिए निकलना भी है.’’

वार्डबौय रितेश को इतनी तो समझ थी ही कि जिस नम्रता के साथ अपनी प्रेमिका से अंतिम बार मिलने के बहाने स्टोररूम में दाखिल हुआ है, उसी का आश्रय ले कर वह अपनी बात मनवाने के लिए नेहा पर दबाव बनाने का प्रयास करेगा.

बातचीत की शुरुआत में ऐसा हुआ भी. उस ने नेहा से एक बार फिर गुजारिश की कि वह उस का ज्यादा वक्त नहीं लेगा, सिर्फ 10 मिनट ही इत्मीनान के साथ बातचीत करेगा.

नेहा चूंकि जिला अस्पताल में ड्यूटी पर थी, इसलिए उसे किसी तरह का खतरा रितेश से महसूस नहीं हुआ. नेहा का सोचना था कि रितेश अंतिम बार उस से इत्मीनान के साथ बातचीत कर अपनी भड़ास निकाल लेगा तो उस की शादी करने वाली हठ खत्म हो जाएगी.

इस के बाद हमेशा के लिए उस का रितेश से पीछा छूट जाएगा. यही सब सोच कर उस ने रितेश को बातचीत करने के लिए अपनी सहमति दी थी. उस वक्त उसे इस बात का कतई अंदेशा नहीं था कि आज रितेश के सिर पर हैवानियत सवार है. और वह उसे चिरनिद्रा में सुलाने की मंशा से आ रहा है.

बातचीत का दौर शुरू करने से पहले जैसे ही रितेश ने कमर में लगा देसी पिस्टल निकाल कर मेज पर रखा तो नेहा को यह समझते जरा भी देर नहीं लगी कि उस ने रितेश को बातचीत के लिए बुला कर बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है.

नेहा के साथ बातचीत का दौर शुरू होते ही रितेश ने नेहा से दोटूक शब्दों में कहा, ‘‘तुम सिर्फ मेरी हो, मेरी ही रहोगी. मैं हरगिज किसी भी सूरत में तुम्हारी शादी गौरव पटेल के साथ नहीं होने दूंगा. बोलो, मेरे से शादी करोगी या नहीं?’’

नेहा ने रितेश से कहा, ‘‘तुम पहले से ही शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों के बाप भी हो. इसलिए मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. मेरे मांबाप ने जिस लड़के से मेरा रिश्ता तय किया है, मैं उसी के साथ शादी करूंगी.’’

इतना सुनते ही रितेश बुरी तरह बौखला गया. उस ने तत्काल मेज पर रखी देसी पिस्टल उठा कर उस की नाल का रुख नेहा की बाएं कनपटी की ओर कर के ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही नेहा कुरसी पर बैठे ही बैठे चिरनिद्रा में डूब गई.

गोली चलने की आवाज सुनते ही अस्पताल का स्टाफ स्टोर रूम की ओर गया तो नेहा को कुरसी पर लहूलुहान देख कर सभी के जैसे होश उड़ गए. वार्डबौय रितेश के हाथ में तमंचा देख कर उन्हें वाकया समझने में देर नहीं लगी. रितेश सभी को धमकाते हुए अस्पताल से निकल कर सिटी कोतवाली थाने में चला गया और आत्मसमर्पण कर दिया.

कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव ने मृतका के मातापिता का पता ले कर उस के घर वालों को मंडला फोन कर के घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर नेहा का बड़ा भाई करीबी रिश्तेदारों को ले कर दूसरे दिन भिंड पहुंच गया.

पुलिस ने रितेश के पिता को भी थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रितेश का नेहा नाम की नर्स से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस की वजह से रितेश की अपनी पत्नी से भी अनबन चल रही थी. वह नेहा से शादी करना चाह रहा था, लेकिन उन्हें इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि वह उक्त नर्स की हत्या कर देगा.

पूछताछ के बाद रितेश के पिता को घर जाने की अनुमति दे दी गई. पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वाले अंतिम संस्कार के लिए मंडला ले आए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत गोली लगने से हुई थी.

जांच में पुलिस को पता चला कि नेहा और रितेश के इश्क की नींव वर्ष 2018 में उस वक्त रखी गई, जब वह मंडला से भिंड जिला अस्पताल में बतौर स्टाफ नर्स की नौकरी करने आई थी.

उन दोनों की पहली मुलाकात अस्पताल परिसर में बनी चाय की गुमटी पर हुई थी. उस समय नेहा चाय पीने वहां आई थी, संयोग से तभी रितेश भी वहां पर चाय पीने आया हुआ था. चूंकि रितेश भी जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत था.

दरअसल, वह नेहा से काफी सीनियर था इसलिए नौकरी के साथ शुरुआती दौर में नर्स के कार्य के गुर सिखाने में उस ने नेहा की काफी मदद की थी.

नेहा उस के इस उपकार से काफी प्रभावित हुई थी. दोनों की जान पहचान होने के बाद उन के बीच मोबाइल पर बातचीत होनी शुरू हो गई. हालांकि रितेश की नौकरी 2009 में संविदा वार्डबौय के तौर पर भिंड के जिला अस्पताल में लगी थी. लेकिन उसे इस बात की उम्मीद थी कि निकट भविष्य में वह स्थाई हो जाएगा. नेहा से मोबाइल पर होने वाली लंबी बातचीत से उस की दोस्ती गहरी होती गई और मित्रता कब इश्क में बदल गई पता नहीं चला.

कहते हैं कि इश्क अंधा होता है वह जातपात के भेद को नहीं मानता. नेहा और रितेश अलगअलग जाति के थे, इस के बावजूद भी रितेश ने तय कर रखा था कि वे ताउम्र साथ रहेंगे और दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी.

नेहा से रोज मुलाकात कर के वह अपने भावी जीवन के सुनहरे सपने देखने लगा था. कहते हैं कि इश्क को कितना भी छिपाने का जतन किया जाए, वह छिपता नहीं है.

नेहा के साथ काम करने वाले स्टाफ से ले कर रितेश के घर वालों को पता चल गया था कि ड्यूटी खत्म होने के बाद रितेश नेहा को बाइक पर ले कर खुल्लम खुल्ला घूमता फिरता है.

रितेश नेहा के प्यार में इतना दीवाना हो गया था कि वह अपनी पत्नी प्रीति की भी उपेक्षा करने लगा था. इस बारे में प्रीति ने रितेश से बात की तो उस ने झिड़कते हुए साफतौर पर कह दिया था कि वह नेहा से सिर्फ प्यार ही नहीं करता है, बल्कि उसे अपने दिल की रानी बना चुका है. निकट भविष्य में वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने वाला है.

पति का यह फैसला सुनने के बाद प्रीति भी परेशान रहने लगी कि आखिर वह पति को कैसे समझाए. इस बात को ले कर उन दोनों का आपस में झगड़ा भी रहता था.

रितेश से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे भिंड जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

रितेश ने नासमझी और मूर्खतापूर्ण कदम उठा कर न सिर्फ नेहा को असमय मौत की नींद सुला दिया, बल्कि अपने सुनहरे भविष्य पर भी कालिख पोत ली. रितेश के जेल जाने के बाद उस के दोनों मासूम बच्चों सहित पत्नी के भविष्य पर भी ग्रहण लग गया है.

—पंकज द्विवेदी

एकतरफा प्यार में मासूम की हत्या

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर से कोई 40-45 किलोमीटर दूर बसा है बीरबल अकबरपुर गांव. इसी गांव में शिवबालक निषाद अपनी पत्नी ममता और 2 बेटियों व एक बेटे के साथ रहता था.

बात 25 जनवरी, 2019 की है. शिवबालक शाम को घर लौटा तो उस का 10 वर्षीय बेटा विवेक घर में नहीं दिखा. पूछने पर बड़ी बेटी ने बताया कि विवेक दोपहर 12 बजे स्कूल से लौट कर खाना खाने के बाद घर से यह कह कर निकला था कि खेलने जा रहा है, तब से वह घर नहीं लौटा.

बेटी की बात सुन कर शिवबालक का माथा ठनका. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बेटा कहां चला गया जो अभी तक नहीं आया. पत्नी घर में नहीं थी, वह अपने मायके फफुआपुर गई हुई थी, इसलिए वह बेटे को ढूंढने के लिए निकल पड़ा. उस ने पड़ोस के बच्चों से पूछा तो उन्होंने बताया कि दोपहर के समय तो विवेक उन के साथ खेल रहा था. उस के बाद कहां गया, उन्हें पता नहीं.

शिवबालक के पड़ोस में हरिकिशन का घर था. शिवबालक ने उस के मंझले बेटे अनिल को विवेक के गायब होने की बात बताई तो वह भी परेशान हो उठा. वह गांव के युवकों को ले कर शिवबालक के साथ विवेक को ढूंढने में जुट गया. इन लोगों ने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विवेक का कहीं पता नहीं चला. घुरऊपुर, गुरडूनपुरवा टैंपो स्टैंड, सजेती बसस्टाप, बाजार आदि जगहों पर भी उस की खोज की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

शिवबालक ने बेटे के गायब होने की जानकारी पत्नी को दे दी थी. ममता को यह खबर मिली तो वह तुरंत गांव लौट आई. उस ने भी अपने हिसाब से विवेक को खोजा. आधी रात तक खोजबीन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला.

किसी अनहोनी की आशंका में शिवबालक और ममता ने जैसेतैसे रात बिताई. रात भर उन के मन में तरहतरह के खयाल आते रहे. सवेरा होते ही पड़ोसी हरिकिशन का बेटा अनिल शिवबालक के पास आया. वह बोला, ‘‘चाचा, विवेक को हम लोगों ने बहुत खोज लिया. अब हमें पुलिस का सहारा लेना चाहिए. चलो थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं.’’

उस की बात शिवबालक को भी ठीक लगी. तब दोनों थाना सजेती जा पहुंचे. सुबह का समय था, इसलिए एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह थाने में ही मौजूद थे. शिवबालक ने उन्हें अपने बेटे के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने विवेक की गुमशुदगी दर्ज करा कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

अमरेंद्र बहादुर भी कई सिपाहियों के साथ गांव के नजदीक के खेतों में बच्चे को ढूंढने लगे. पुलिस के साथ गांव वाले भी थे. वह भी पुलिस की मदद कर रहे थे. इस बीच पुलिस ने गौर किया कि विवेक की खोज में अनिल निषाद कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखा रहा है.

सर्च अभियान के दौरान ही अनिल ने एसओ से कहा, ‘‘दरोगाजी, चलिए उधर सरसों के खेत में देख लेते हैं.’’

अनिल की यह बात एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह की समझ में नहीं आई कि यह सरसों के खेत की ओर चलने को क्यों कह रहा है. फिर भी वह बिना कुछ कहे अनिल के पीछेपीछे सरसों के खेत की ओर चल पडे़.

खेत के अंदर जा कर उस ने सरसों के कुछ पौधों को हाथ से इधरउधर किया, फिर चीख कर बोला, ‘‘सर, विवेक की लाश यहां पड़ी है.’’

उस की बात सुनते ही एसओ तुरंत उस के पास पहुंच गए. सचमुच सरसों की फसल के बीच विवेक की लाश पड़ी थी. लाश को घासफूस से ढका गया था. लेकिन हवा के झोंकों से घासफूस बिखर गया था. जिस से लाश साफ दिखाई दे रही थी.

बेटे की लाश देख कर शिवबालक दहाड़ें मार कर रोने लगा. इस के बाद तो गांव में जिस ने भी सुना, वही लाश देखने भाग खड़ा हुआ. सूचना मिलने पर मृतक विवेक की मां ममता भी रोतीबिलखती वहां पहुंच गई और शव से लिपट कर रोने लगी.

इधर थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर ने बच्चे की लाश बरामद करने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. नतीजतन कुछ देर बाद एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह और सीओ (घाटमपुर) शैलेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

उन्हें उस के शरीर पर कोई घाव दिखाई नहीं दिया. गले के निशान से ही अंदाजा लग गया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. उस के मुंह और नाक में मिट्टी भी भरी हुई थी. हत्या के समय हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि मृतक की आवाज न निकल सके.

सीओ शैलेंद्र सिंह ने विवेक के पिता शिवबालक से पूछा कि उन्हें बेटे की हत्या का किसी पर शक तो नहीं है.

‘‘साहब, बीते साल जून महीने में गांव के इंद्रपाल निषाद के बेटे सर्वेश ने मेरी बेटी नीलम (परिवर्तित नाम) को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी. इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई तो पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भेज दिया था. 2 महीने पहले ही वह जेल से छूट कर आया है. हो सकता है मेरे बेटे की हत्या में उस का हाथ हो.’’ शिवबालक ने बताया.

उसी समय थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर सिंह की निगाह अनिल निषाद पर पड़ी. वह कुछ दूरी पर एक बच्चे से बात कर रहा था और उसे अंगुली दिखा कर धमका रहा था.

थानाप्रभारी की निगाह में अनिल पहले ही शक के घेरे में था. अब उन का शक और गहरा गया. जिस बच्चे को वह धमका रहा था, उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है, किस गांव में रहते हो?’’

‘‘मेरा नाम सुमित है. मैं इसी गांव में रहता हूं.’’ बच्चे ने बताया.

‘‘तुम विवेक को जानते थे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां साहब, वह मेरा पक्का दोस्त था. वह कक्षा 3 में और मैं कक्षा 4 में पढ़ता हूं.’’

‘‘विवेक को कल किसी के साथ जाते देखा था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां साहब, अनिल उसे खेतों की ओर ले गया था. अनिल ने मुझे 20 रुपए दे कर विवेक को बुलवाया था. तब मैं विवेक को बुला लाया था. इस के बाद अनिल उसे खेतों की तरफ ले कर चला गया था. अनिल अभी मुझे इसी बात की धमकी दे रहा था कि यह बात किसी को न बताना.’’ सुमित ने बताया.

सुमित ने जो बातें पुलिस को बताईं, उस से अनिल पूरी तरह से शक के घेरे में आ गया. उधर शिवबालक के बयानों से सर्वेश पर भी शक था. गांव वालों से भी पुलिस को पता चला कि सर्वेश और अनिल गहरे दोस्त हैं. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह को दे दी तो उन्होंने उन दोनों लड़कों से पूछताछ करने के निर्देश दिए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के विवेक का शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय, कानपुर भिजवा दिया. फिर उन्होंने सर्वेश निषाद और अनिल को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आए.

पुलिस ने सब से पहले सर्वेश निषाद को अनिल से अलग ले जा कर विवेक की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विवेक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सर्वेश ने बताया कि उस ने अपने दोस्त अनिल की मदद से विवेक की हत्या की थी.

सर्वेश निषाद ने हत्या का जुर्म कबूला तो अनिल को भी टूटते देर नहीं लगी. दोनों से पूछताछ के बाद विवेक की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर से 47 किलोमीटर दूर एक बड़ी आबादी वाला गांव बीरबल अकबरपुर बसा हुआ है. यह एक ऐतिहासिक गांव है. मुगल बादशाह अकबर का यहां किला है, जो समय के थपेड़ों के साथ अब खंडहर में तब्दील हो गया है.

यमुना किनारे बसे इस गांव की आबादी लगभग 10 हजार है. बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर जब आगरा से अकबरपुर आते थे, तो इसी किले में दरबार लगाते थे.

इसी किले में अकबर की मुलाकात बीरबल से हुई थी. बीरबल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया. अपनी बुद्धिमत्ता के चलते बीरबल दरबार में चर्चित हुए तो इस अकबरपुर गांव का नाम बीरबल अकबरपुर पड़ गया. समय बीतते सरकारी रिकौर्ड में भी गांव का नाम बीरबल अकबरपुर दर्ज हो गया.

हाजिरजवाबी और बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाने वाले बीरबल का जन्म अकबरपुर गांव से एक किलोमीटर दूर तिलौची में हुआ था. बीरबल के बाल्यावस्था के समय ही उन के पिता की मृत्यु हो गई थी. निर्धन परिवार में जन्मे बीरबल का पालनपोषण उन की मां ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में किया था. खेतों पर मजदूरी करने के दौरान मां बीरबल को बांस की टोकरी में लिटा कर लाती थीं और खेत के एक कोने में टोकरी को रख देती थीं.

कहा जाता है कि एक रोज एक साधु खेत से हो कर गुजर रहा था, तभी उस की नजर बीरबल पर पड़ी. उस साधु ने बीरबल की हस्तरेखा तथा मस्तक की लकीरों को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘माई, तुम्हारा यह लाल बड़ा बुद्धिमान होगा. यह अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा बड़ेबड़ों से मनवाएगा और पूरे देश में चर्चित होगा. यह राजदरबारी होगा.’’

उस साधु की बात सुन कर बीरबल की मां उस के चरणों में झुक गईं और बोलीं, ‘‘बाबा, मैं मजदूरी करती हूं. बेहद गरीब हूं. तुम्हें दक्षिणा भी नहीं दे सकती और न ही भोजन करा सकती हूं. मुझे क्षमा करना.’’ कहते हुए वह रोने लगीं.

साधु बोला, ‘‘रो मत माई, मैं तुम से कुछ मांगने नहीं आया हूं. मैं तो इधर से जा रहा था तो मेरी नजर पड़ गई.’’

इस के बाद वह साधु बीरबल को आशीर्वाद दे कर चला गया. समय बीतते इस साधु की भविष्यवाणी सच निकली. बीरबल, अकबर के राजदरबारी बने और अपनी हाजिरजवाबी के लिए चर्चित हुए.

इसी बीरबल अकबरपुर गांव में शिवबालक निषाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा विवेक था.

शिवबालक ड्राइवर था. वह लोडर चलाता था. इस के अलावा उस के पास 3 बीघा खेती की जमीन भी थी. लेकिन वह जमीन ऊसरबंजर थी. उस में ज्वारबाजरा के अलावा कोई दूसरी फसल नहीं होती थी. अतिरिक्त आमदनी के लिए शिवबालक ने दूध का व्यवसाय शुरू कर दिया था. वह सुबह उठ कर गांव से दूध इकट्ठा करता फिर दूध को घाटमपुर कस्बा ले जा कर बेचता था.

वक्त यों ही गुजरता गया. वक्त के साथ शिवबालक के बच्चे भी सालदरसाल बड़े होते गए. बड़ी बेटी नीलम 14 साल की उम्र पार कर चुकी थी. तीनों बच्चे गांव के एसएस शिक्षा सदन स्कूल में पढ़ते थे. नीलम नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शारदा के घर से कुछ दूरी पर सर्वेश निषाद रहता था. वह एक अच्छे परिवार का था. सर्वेश अपने पिता की 3 संतानों में मंझला था. वह थोक में सब्जी बेचने का काम करता था. गांव के किसानों से सस्ते दाम पर सब्जियां खरीद कर उन्हें कानपुर की नौबस्ता थोक सब्जी मंडी में अच्छे दामों पर बेचा करता था.

चूंकि सर्वेश अच्छा कमाता था, सो खूब ठाटबाट से रहता था. गले में सोने की चेन, अंगुलियों में अंगूठियां और कलाई में महंगी घड़ी उस की पहचान थी. उस के पास महंगा मोबाइल रहता था. सर्वेश जिस तरह से अच्छी कमाई करता था, उसी तरह शराब और अय्याशी में वह अपनी कमाई लुटाता था.

उस के पिता इंद्रपाल उस की इस फिजूलखर्ची से परेशान थे. उन्होंने उसे बहुत समझाया और डांटा फटकारा भी लेकिन सर्वेश का रवैया नहीं बदला.

एक रोज नीलम स्कूल जा रही थी, तभी सर्वेश की नजर उस पर पड़ी. खूबसूरत नीलम को देख कर सर्वेश का मन मचल उठा. वह उसे फांसने का तानाबाना बुनने लगा. मौका मिलने पर वह उस से बात करने का प्रयास करता. लेकिन नीलम उसे झिड़क देती थी. तब सर्वेश खिसिया जाता.

आखिर जब उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने एक रोज मौका मिलने पर नीलम का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारी खूबसूरती ने मेरा चैन छीन लिया है. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.’’

नीलम अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली, ‘‘सर्वेश, तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो, मैं तुम्हारी जातिबिरादरी की हूं और इस नाते तुम मेरे भाई लगते हो. भाई को बहन से इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए.’’

‘‘प्यार अंधा होता है नीलम. प्यार जातिबिरादरी नहीं देखता.’’ वह बोला.

‘‘होगा, लेकिन मैं अंधी नहीं हूं. मैं ऐसा नहीं कर सकती. नफरत करती हूं. और हां, आइंदा कभी मेरा रास्ता रोकने या हाथ पकड़ने की कोशिश मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा, समझे.’’ नीलम ने धमकाया.

सर्वेश समझ गया कि नीलम अब ऐसे नहीं मानेगी. उसे अपनी खूबसूरती और जवानी का इतना घमंड है तो वह उस के घमंड को हर हाल में तोड़ कर रहेगा.

सर्वेश का एक दोस्त था अनिल निषाद. दोनों ही हमउम्र थे सो उन में खूब पटती थी. एक रोज दोनों शराब पी रहे थे, उसी दौरान सर्वेश बोला, ‘‘यार अनिल, मैं नीलम से प्यार करता हूं, लेकिन वह हाथ नहीं रखने दे रही.’’

‘‘देख सर्वेश, मैं एक बात बताता हूं कि नीलम ऐसीवैसी लड़की नहीं है. उस का पीछा छोड़ दे. कहीं ऐसा न हो कि उस का पंगा तुझे भारी पड़ जाए.’’ अनिल ने सर्वेश को समझाया.

‘‘अरे छोड़ इन बातों को, मैं भी जिद्दी हूं. मैं आज चैलेंज करता हूं कि नीलम अगर राजी से नहीं मानी तो मुझे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा.’’ सर्वेश ने कहा.

सर्वेश ने नीलम के ऊपर लाख डोरे डालने की कोशिश की लेकिन हर बार उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा. बात 13 जून, 2018 की है. उस रोज शाम 5 बजे नीलम दिशा मैदान जाने को घर से निकली, तभी सर्वेश ने उस का पीछा किया. नीलम जैसे ही झाडि़यों की तरफ पहुंची, तभी सर्वेश ने उसे दबोच लिया और उसे जमीन पर पटक कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगा.

नीलम उस की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी लेकिन सर्वेश पर जुनून सवार था. तब नीलम ने हिम्मत जुटाई और सर्वेश के हाथ पर दांत से काट लिया. सर्वेश की पकड़ ढीली हुई तो वह चिल्लाती हुई सिर पर पैर रख कर गांव की ओर भागी. अपने घर पहुंचते ही नीलम मूर्छित हो कर देहरी पर गिर पड़ी.

ममता ने नीलम को अस्तव्यस्त कपड़ों में देखा तो समझ गई कि उस के साथ क्या हुआ है. मां ने नीलम के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो कुछ देर बाद उस ने आंखें खोल दीं. उस के बाद उस ने मां को सर्वेश की करतूत बताई. यह सुन कर ममता गुस्से से भर उठी.

वह शिकायत ले कर सर्वेश के पिता इंद्रपाल के पास पहुंची तो उस ने बेटे को डांटनेसमझाने के बजाय उस का पक्ष लिया और उलटे उस की बेटी नीलम के चरित्र पर ही अंगुली उठाने लगा.

ममता ने यह बात अपने पति को बताई. इस के बाद दोनों पतिपत्नी थाना सजेती पहुंच गए. उन्होंने सर्वेश के खिलाफ दुष्कर्म की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हुई और आननफानन में सर्वेश को गिरफ्तार कर कानपुर जेल भेज दिया.

सर्वेश 4 महीने जेल में रहा. 20 अक्तूबर, 2018 को उस की जमानत हुई. जेल से बाहर आने के बाद सर्वेश के दिल में ममता और उस की बेटी नीलम के प्रति बदले की आग भभक रही थी. क्योंकि उन की वजह से वह जेल जो गया था.

बदला कैसे लिया जाए, इस विषय पर उस ने अपने दोस्त अनिल से विचारविमर्श किया तो तय हुआ कि ममता के कलेजे के टुकड़े विवेक को मार दिया जाए. विवेक शिवबालक का एकलौता बेटा था. इस के बाद दोनों ने योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे.

25 जनवरी, 2019 को अपराह्न 2 बजे शिवबालक का 10 वर्षीय बेटा विवेक अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा था, तभी सर्वेश की नजर उस पर पडी़. अनिल भी उस के साथ था. सर्वेश ने अनिल के कान में कुछ कानाफूसी की फिर गांव के बाहर चला गया.

इधर अनिल ने विवेक के साथ खेल रहे सुमित को अपने पास बुलाया और उसे 20 रुपए का नोट दे कर कहा, ‘‘सुमित, तुम विवेक को ले कर गांव के बाहर ले आओ. वहां तुम दोनों को बिस्कुट, टौफी खिलाएंगे.’’

सुमित लालच में आ गया. वह विवेक को ले कर गांव के बाहर पहुंच गया. अनिल वहां विवेक के आने का ही इंतजार कर रहा था.

अनिल ने सुमित को वहीं से वापस कर दिया. वह विवेक को बहला कर सरसों के खेत पर ले गया. वहां सर्वेश पहले से मौजूद था. नफरत से भरे सर्वेश ने विवेक का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए खेत के अंदर ले गया. और विवेक को जमीन पर पटक कर बोला, ‘‘तेरी बहन ने मुझे जेल भिजवाया था. उस का बदला आज तुझे जान से मार कर लूंगा.’’

अनिल जो अब तक खेत के बाहर रखवाली कर रहा था, वह भी खेत के अंदर पहुंच गया. इस के बाद दोनों मिल कर विवेक का गला दबाने लगे. विवेक चीखने लगा तो दोनों ने गला दबाकर विवेक को मार डाला और फिर लाश को घासफूस से ढक कर वापस घर आ गए.

इधर शाम 5 बजे शिवबालक घर आया तो उसे विवेक दिखाई नहीं दिया, विवेक के बारे में उस ने शारदा से पूछा तो उस ने गली में खेलने की बात बताई. लेकिन शिवबालक का माथा ठनका.

वह उस की खोज में जुट गया. लेकिन विवेक नहीं मिला. दूसरे दिन उस की लाश सरसों के खेत में पुलिस की मौजूदगी में मिली. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो बदला लेने के लिए मासूम की हत्या का परदाफाश हुआ.

27 जनवरी, 2019 को थाना सजेती पुलिस ने अभियुक्त सर्वेश निषाद व अनिल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सूइयों के सहारे सीने में उतरी मौत

राजेश विश्वास के घर पर कोहराम मचा हुआ था. सुबहसवेरे उस की पत्नी प्रिया जोरजोर से रो रही थी और राजेश को पुकार रही थी. रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. लोगों ने घर में देखा तो राजेश मृत अवस्था में पड़ा हुआ था.

लोगों ने कयास लगाया कि राजेश की  मौत हो गई है. राजेश विश्वास का बड़ा भाई  रमेश विश्वास, उस की पत्नी और समाज के लोग भी आ जुटे और फटाफट उसे यह सोच कर स्थानीय सरकारी अस्पताल ले जाया गया कि शायद उस की सांस चल रही हो, लेकिन डाक्टरों ने परीक्षण के बाद राजेश विश्वास की मृत्यु की घोषणा कर दी.

चूंकि उस की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई लग रही थी, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना धर्मजयगढ़ पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही सुबहसवेरे एसएचओ अमित तिवारी सहयोगियों के साथ मौके पर पहुंचे और राजेश विश्वास के शव की जांच कर उस का पंचनामा बनाया गया. कागजी काररवाई पूरी कर वह थाने लौट आए.

यह करीब एक साल पहले की बात है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के मोवा स्थित बालाजी हौस्पिटल में एक बिस्तर पर लीवर और किडनी का इलाज करवा रहे राजेश विश्वास ने रुंधे गले से बमुश्किल कहा, ”यह लाइलाज बीमारी मेरा पीछा पता नहीं कब छोड़ेगी. कितने रुपए लग गए, मगर मैं ठीक ही नहीं हो पा रहा हूं. और शायद कभी हो भी नहीं पाऊंगा…’’

यह सुनते ही उस की पत्नी प्रिया ने अपने हाथ की अंगुलियां पति राजेश के मुंह पर रख चुप कराते हुए ढांढस बंधाते कहा, ”ऐसा नहीं कहते, मर्ज जब आता है तो धीरेधीरे ठीक भी हो जाता है…’’

इस पर दुखी स्वर में राजेश ने कहा, ”मेरे गैरेज का कामधंधा बंद हो गया, इनकम का साधन भी नहीं रहा. मैं कमाऊंगा नहीं तो मेरा इलाज कैसे होगा. फिर तुम्हारे लिए भी तो कुछ जिम्मेदारियां हैं मेरी.’’

इस पर प्रिया ने कहा, ”आप के घर वाले देखो, किस तरह हाथ पैर बांधे बैठे हुए हैं. उन्हें कम से कम इस समय तो मदद के लिए आना चाहिए. कितने दिन बीत गए, मदद की बात तो दूर कोई देखने तक भी नहीं आया है.’’

ऐसी ही अनेक परेशानियों को झेलते हुए राजेश विश्वास (32 वर्ष) और प्रिया विश्वास (24 वर्ष) युगल दंपति छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बालाजी हौस्पिटल में महीना भर रहे. इलाज के बाद जब राजेश विश्वास कुछ स्वस्थ हुआ तो दोनों वापस रायगढ़ के धर्मजयगढ़ में स्थित अपने घर आ गए.

राजेश विश्वास का प्रिया से कुछ महीनों पहले ही विवाह हुआ था. विवाह से पहले भी वह यदाकदा बीमार रहता था, मगर प्रिया को अपनी बुरी आदत और बीमारी के बारे में बिना बताए ही विवाह की डोर में बंध गया.

उन का दांपत्य जीवन धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था और उस के साथ ही राजेश की बीमारी सामने आती चली गई. अब सब कुछ प्रिया के सामने था. मगर विवाह बंधन के बाद उस के पास और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. रायपुर में इलाज चलने लगा था.

राजेश और प्रिया का जीवन इस तरह धीरेधीरे जिंदगी की दुश्वारियों से गुजरता हुआ खट्टेमीठे रिश्तों के साथ आगे बढऩे लगा.

अस्पताल में प्रिया ने की खूब सेवा

प्रिया विश्वास पति की देखरेख करती थी और जिंदगी की गाड़ी धीरेधीरे चल रही थी. वैवाहिक जीवन की शुरुआत में ही उस के चेहरे की खुशियां मानो उड़ सी गई थीं. वह चाह कर भी हंस नहीं पाती थी. पति की बीमार सूरत हमेशा उस के आगे घूमती रहती थी. वह क्या करे, जिस से कि उस का जीवन खुशियों से भर जाए. सोचती रहती थी.

उसे धीरेधीरे लगने लगा कि उस की जिंदगी रेगिस्तान बन गई है, जहां उसे आने वाले समय में दूरदूर तक कहीं भी खुशियों की आहट दिखाई नहीं दे रही थी. वह कभीकभी अपने भाग्य को रोती आंसू बहा लेती थी.

धर्मजयगढ़ के पास ही दुर्गापुर में रहने वाली प्रिया उस दिन को कोसती थी, जब उस ने राजेश को पसंद किया था और उस के प्रपोज करने पर उस के साथ जिंदगी के रास्ते तय करने की स्वीकृति दे कर विवाह बंधन में बंध गई थी.

धीरेधीरे राजेश के स्वास्थ्य को ले कर सारा सच उस के सामने आईने की तरह उजागर हो चुका था. साथ ही कभीकभी वह दुव्र्यवहार पर उतर आता था. ज्यादा शराब पीने के बाद लीवर और फिर किडनी की दिक्कत के कारण राजेश का मिजाज नरम गरम बना रहता था.

यह देखते समझते प्रिया की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था. क्या वह जिंदगी भर दुखदर्द से जिएगी, यह सोच कर ही प्रिया बहुत परेशान हो गई. मगर अब देर हो चुकी थी, उस के पास रास्ता क्या बचा था?

नवंबरदिसंबर 2023 के एक दिन प्रिया पति राजेश विश्वास को बालाजी हौस्पिटल में इलाज के लिए फिर रायपुर ले आई. राजेश को अस्पताल में भरती कर लिया गया था. प्रिया सब कुछ संभाल रही थी. एक स्त्री होने के बावजूद जिस तरह राजेश का सहारा बन कर पत्नी के रूप में प्रिया ने अस्पताल में भूमिका निभाई, उस से राजेश विश्वास भी मन ही मन प्रिया का मुरीद  हो गया था.

दूसरी तरफ आत्मविश्वास के साथ हौस्पिटल के डाक्टर से बात करती और दवाइयों की व्यवस्था करती. पति के इलाज के लिए उस ने अपना सोने का एक कंगन भी बेच दिया था. यह सब राजेश देख रहा था और मन ही मन प्रिया के प्रति उस का प्रेम बढ़ता चला गया.

कभीकभी राजेश सोचता कि प्रिया जैसी पत्नी उसे मिल गई, यह उस का भाग्य ही तो है वरना कौन आज किसी का इस तरह साथ देता है.

मगर प्रिया के पत्नी भाव को देख कर राजेश की आंखें भर आती हैं. आखिरकार एक दिन राजेश से रहा नहीं गया तो उस ने कहा, ”तुम ने मुझे बताया भी नहीं और अपना सोने का कंगन बेच दिया, तुम ने भला ऐसा क्यों किया?’’

इस पर इठला कर प्रिया ने कहा, ”सोने का कंगन मैं ने अपने सुहाग के लिए बेचा है तो भला क्या गलत किया है. बताओ तो सही.’’

”नहींनहीं तुम्हें अपने गहने बेचने की जरूरत नहीं है, मै कहीं से भी रुपए की व्यवस्था कर लूंगा.’’ राजेश ने कहा.

”वह जब होगा, कर लेना, आज आप के इलाज के लिए हमे यहां रुपयों की जरूरत है. भला हमें यहां कौन पैसे देगा और फिर यह सोनाचांदी होता ही इसी दुख की घड़ी के लिए तो है.’’

”तुम ठीक कर रही हो,’’ राजेश की आंखें भींग आईं.

इसी दरमियान एक दिन राजेश और प्रिया की मुलाकात अस्पताल के कंपाउंडर फिरीज यादव उर्फ कृष से हुई. उस समय राजेश को कुछ दवाइयों की जरूरत थी और प्रिया के पास रुपए खत्म हो गए थे. प्रिया सोच रही थी कि क्या करूं. प्रिया को असमंजस में देख कर फिरीज ने पूछ लिया था, ”क्या हुआ, क्या बात है? आप दवाइयां क्यों नहीं ला रही हैं?’’

प्रिया के भावशून्य चेहरे को देख कर के शायद फिरीज समझ गया. बिना कुछ कहे उस ने प्रिया के हाथ से दवाइयां लिखा कागज ले कर उधार में दवाइयां ले कर इलाज शुरू करवा दिया. इस घटना के बाद राजेश, प्रिया विश्वास और फिरीज यादव में एक तरह से आत्मीय संबंध बनते चले गए.

धीरेधीरे प्रिया का आकर्षण फिरीज यादव के प्रति बढऩे लगा. बालाजी अस्पताल में कोई भी आवश्यकता होती, इशारा करते ही फिरीज यादव सामने खड़ा होता.

दोनों ही आपस में बातें करते. प्रिया उसे अपना सारा दुखदर्द बताती कि अब तो राजेश उस के साथ मारपीट भी करने लगा है. एक दिन तो गुस्से में उस पर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया था और वह थाने तक चली गई थी. अब तो उस की जिंदगी मानो उजाड़ हो गई है.

प्रिया की दास्तां सुन कर फिरीज यादव सहानुभूति व्यक्त कर कोई न कोई रास्ता निकल आने की बात कह तसल्ली देता.

प्रिया को चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा लिया कंपाउंडर ने

एक दिन बातोंबातों में फिरीज यादव ने कहा, ”तुम सचमुच ग्रेट हो, आज की दुनिया में तुम जैसा मैं ने नहीं देखा. पति के प्रति तुम्हारा समर्पण प्रेम पागलपन से भरा हुआ है. मगर एक बात कहूं, बुरा मत मानना.’’

”नहींनहीं बोलिए क्या बात है, क्या कहना चाहते हैं.’’ वह बोली.

”तुम्हारे पति राजेश ने तुम्हें धोखा दिया है, तुम से झूठ बोला और शादी कर ली.’’

”क्या झूठ बोला है मेरे सुहाग ने मुझ से.’’ अंजान सी बन प्रिया विश्वास बोली.

”वह खुद बिस्तर पर है गंभीर बीमारी से घिरा हुआ है और तुम से उस ने झूठ बोल कर विवाह कर लिया. उस ने तुम्हें बताया भी नहीं कि ऐसी बीमारियों के बाद उसे तुम से प्यार और ब्याह नहीं करना चाहिए था. यह तो सरासर धोखा है. मैं तो कहता हूं कि तुम जैसी मासूम की जिंदगी बरबाद करने का उसे क्या अधिकार था.’’

”नहींनहीं, इस में सिर्फ उन की ही गलती नहीं, यह सब ऊपर वाले का दोष है.’’ आंसू बहाते हुए प्रिया विश्वास ने कहा.

इस पर फिरीज यादव उर्फ कृष ने कहा, ”तुम जैसी भोलीभाली लड़कियां इस तरह भ्रमजाल में फंस कर अपनी जिंदगी बरबाद कर लेती हैं. मगर मैं यह मानता हूं कि तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है.’’

धर्मजयगढ़ वापस आ जाने के बाद राजेश और प्रिया विश्वास की जिंदगी की गाड़ी धीरेधीरे चल रही थी. राजेश कभी बीमार पड़ जाता तो स्थानीय स्तर पर ही उस का इलाज करा लेते थे. उस ने बीमारी के कारण अपने गैरेज के साथ एक स्कौर्पियो खरीद ली, जिसे वह किराए पर चला रहा था, जिस से परिवार का खर्च आराम से निकल रहा था.

एक दिन फिरीज यादव को प्रिया विश्वास ने मोबाइल पर काल की. उस ने मधुर स्वर में कहा, ”प्रिया, कैसी हो, मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है. तुम्हारी जिंदगी का दर्द, तुम्हारा चेहरा मैं भूल नहीं पाता हूं और सोचता हूं कि इस में भला तुम्हारी मैं क्या मदद कर सकता हूं.’’

फिरीज यादव की बातें सुन कर प्रिया विश्वास ने कहा, ”क्या तुम मेरी कोई मदद नहीं कर सकते. मेरी जिंदगी दोराहे पर खड़ी है, जहां सिर्फ पतझड़ ही पतझड़ नजर आती है. सच कहूं तो मुझे समझ में नहीं आता कि मैं किस पिंजरे में आ कर फंस गई हूं. मेरा क्या होगा, मैं अब जिंदगी से निराश हो चली हूं.’’

”बताओ, मैं क्या कर सकता हूं?’’ फिरीज यादव ने असहाय स्वर में कहा.

”देखो, मेरी एक सहेली है पायल, मैं उस से दिल की हर बात करती हूं. वह कह रही थी कि तुम एक डाक्टर हो, इतने बड़े अस्पताल में हो, कुछ तो रास्ता होगा?’’ प्रिया विश्वास ने आशा के भाव से कहा.

”अच्छा कौन है पायल, बात करवाना मुझ से. खैर, तुम इतना कह रही हो तो मैं कुछ योजना बनाता हूं. मेरे अनुसार अगर तुम दोनों चल सकीं तो कुछ दिनों में तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी.’’

”सच! भला वह कैसे?’’ उत्सुकता से प्रिया विश्वास ने कहा.

इस के बाद फिरीज यादव ने प्रिया की सहेली पायल से बात की और फिर यह सिलसिला चल निकला. एक दिन प्रिया को विश्वास में लेते हुए भविष्य के लिए कुछ करने को कहा तो प्रिया तुरंत तैयार हो गई और फिर आगे एक ऐसी योजना बनाई गई, जिसे भविष्य में 4 लोगों ने अंजाम दिया.

फिल्म अभिनेत्री पायल को किया साजिश में शामिल

15 जनवरी, 2024 दिन सोमवार की शाम फिरीज यादव रायपुर से चल कर के खरसिया स्टेशन पर उतरा और वहां से बस से धर्मजयगढ़ पहुंच गया. यहां उसे प्रिया विश्वास के कहने पर शेख मुईन ने बाइक से पहुंच कर रिसीव किया और होटल सीएम में पहले बुक किए गए रूम में ठहराया. दूसरी तरफ राजेश और प्रिया विश्वास अपने घर पर सामान्य सा दिन व्यतीत कर रहे थे. राजेश ने देर शाम तक शराब पी और खाना खा कर रात 11 बजे बिस्तर पर लेट गया.

फिरीज यादव को प्रिया की पड़ोस में रहने वाली सहेली पायल विश्वास के कहने पर बौयफ्रेंड शेख मुईन रात को फिरीज यादव को होटल से ले कर आ गया. उस समय राजेश गहरी नींद में सो रहा था. मौका देख कर फिरीज एक इंजेक्शन राजेश के सीने में लगा रहा था तभी आधी नींद में राजेश ने चीख कर एक लात पैरों के पास खड़ी प्रिया को मारी. फिरीज यादव घबरा गया, जिस से इंजेक्शन की सुई भी टेढ़ी हो गई. मगर राजेश विश्वास अभी भी नींद में था और उस पर इंजेक्शन का असर दिखाई देने लगा था.

इस के बाद सोए हुए राजेश विश्वास के पैर उस की पत्नी प्रिया विश्वास ने पकड़े, हाथों को शेख मुईन ने पकड़ लिया और राजेश के सीने में फिरीज यादव ने एनेस्थीसिया के कुल 3 इंजेक्शन एकएक कर के लगा दिए.

इस से निपट कर फिरीज यादव ने कहा, ”प्रिया, मेरे अनुमान से अब यह कभी होश में नहीं आएगा…’’

और वह रहस्यमय ढंग से मुसकराने लगा. इस पर प्रिया बोली, ”मुझे तो शक है, कहीं यह होश में आ गया तो?’’

कुछ सोचविचार करने के बाद फिर फिरीज ने कहा, ”ऐसा है तो मैं कुछ और इंजेक्शन लगा देता हूं.’’ और उस ने 3 इंजेक्शन और सीने में लगा दिए. थोड़ी ही देर में उन्होंने महसूस किया कि राजेश विश्वास की नींद में ही मौत हो गई है.

16 जनवरी, 2024 को सुबह के समय प्रिया के रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग जमा हो गए. सभी लोग अचानक राजेश की मौत पर अचंभे में पड़ गए. राजेश का भाई तुरंत राजेश को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

इस दरमियान डाक्टरों की टीम ने सनसनीखेज खुलासा किया कि मृतक राजेश विश्वास के सीने में 6 निशान सूई से इंजेक्ट हैं. यह सुनते ही एसएचओ अमित तिवारी के कान खड़े हो गए. उन्हें लगभग 10 साल पहले हुए एक हत्याकांड की याद आ गई.

छत्तीसगढ़ के बालोद शहर में ऐसे ही हृदय के पास इंजेक्शन दे कर 2 व्यक्तियों की हत्या की गई थी, जिस का आरोपी पकड़ते पकड़ते बच निकला था. अमित तिवारी ने दृढ़ निश्चय किया कि राजेश की हत्या के मामले में तत्काल जांचपड़ताल शुरू की जाएगी, ताकि आरोपी कानून की जद से बच न सके.

एसएचओ अमित तिवारी ने तत्काल अपने उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन लिया और जांच तेज कर दी. दूसरी तरफ राजेश विश्वास के घर और शहर का माहौल गमगीन बन गया था. राजेश विश्वास लोकप्रिय शख्स था, जिस के कारण लोग और परिचित तरहतरह की बातें करने लगे थे. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद राजेश विश्वास का शव परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया.

17 जनवरी को आशीष विश्वास अध्यक्ष बंग समाज, धर्मजयगढ़ के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने थाने पहुंच कर के एसडीपीओ दीपक मिश्रा से मुलाकात की और मृतक राजेश विश्वास की संदिग्ध मृत्यु को ले कर एक ज्ञापन सौंपा और निष्पक्ष जांच कर के दोषियों को पकडऩे की गुहार लगाई.

राजेश विश्वास का मामला दीपक मिश्रा के निगाहों में था. उन्होंने एसपी (रायगढ़) सदानंद कुमार से मार्गदर्शन लिया और एसएचओ अमित तिवारी व साइबर सेल को जांच कर के आरोपियों को पकडऩे की जिम्मेदारी दे दी.

प्रिया ने उगल दिया सारा राज

राजेश विश्वास की पत्नी प्रिया से एसएचओ अमित तिवारी ने पूछताछ शुरू की और पहला सवाल किया, ”यह बताओ कि राजेश विश्वास की हत्या करने में और किस ने तुम्हारा साथ दिया है?’’

यह सुनते ही प्रिया विश्वास घबरा कर इधरउधर देखने लगी और कोई जवाब नहीं दिया.

इस पर अमित तिवारी ने उसे अलग से बुला कर कहा, ”देखो, अगर तुम से अनजाने में यह भूल हो गई है तो सच बता दो. आज तो मैं जा रहा हूं, मगर कल तुम्हें मैं हिरासत में ले लूंगा.’’

पुलिस ने प्रिया विश्वास के मोबाइल को अपने कब्जे में ले लिया और दूसरे दिन पाया कि बहुत सी जानकारियां मोबाइल से डिलीट कर दी गई हैं. साइबर क्राइम के सहयोग से जब मोबाइल की जानकारियां रिकवर की गईं तो कई ऐसी बातें सामने आ गईं, जिस से प्रिया विश्वास के फिरीज यादव से बातचीत और वाट्सऐप और सीसीटीवी के सबूतों से खुलासा होता चला गया कि प्रिया विश्वास का पति राजेश विश्वास की हत्या में हाथ है.

इस के बाद तथ्यों को सामने रखते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रिया से पूछताछ की तो आखिरकार प्रिया विश्वास टूट गई और अपना अपराध स्वीकार कर के अपना इकबालिया बयान दिया, जिस की पुलिस ने वीडियो रिकौर्डिंग भी करा ली.

प्रिया से पूछताछ के बाद फिरीज यादव को रायपुर  पुलिस की मदद से मोवा में पकड़ लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि प्रिया विश्वास के प्यार में पागल हो कर उस ने राजेश विश्वास के सीने में बेहोशी के इंजेक्शन में काम आने वाली एनेस्थीसिया का प्रयोग किया था और राजेश को मौत की नींद सुला दिया. उसे विश्वास था कि पोस्टमार्टम होते होते एनेस्थीसिया का असर खत्म हो जाएगा और उसे कोई पकड़ नहीं सकता.

राजेश विश्वास की हत्या में इस तरह प्रिया विश्वास, उस की खास सहेली छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेत्री और धर्मजयगढ़ निवासी पायल विश्वास और उस के बौयफ्रेंड शेख मुईन ने साथ दिया था. पुलिस ने इन्हें भी हिरासत में ले लिया और उन के बयान दर्ज कर लिए.

19 जनवरी, 2024 को पुलिस अधिकारियों ने प्रैस कौन्फ्रेंस कर के मामले का खुलासा कर दिया. एसडीपीओ (धर्मजयगढ़) दीपक मिश्रा ने मीडिया को बताया कि आरोपियों के कब्जे से हत्या की वारदात में प्रयुक्त मोटरसाइकिल, फिरीज यादव से बस टिकट, होटल के फुटेज, इस्तेमाल किए गए ग्लव्स और सिरिंज, घटना के समय फिरीज यादव द्वारा पहने गए कपड़े, सभी के मोबाइल फोन पुलिस द्वारा जब्त कर लिए.

पूछताछ में पता चला कि वारदात को अंजाम देने के लिए मृतक की पत्नी प्रिया विश्वास, प्रेमी फिरीज यादव, फिल्म अभिनेत्री पायल विश्वास और उस के प्रेमी शेख मुईन राजा ने मिल कर योजना बनाई. योजना के तहत फिरीज यादव के रुकने की व्यवस्था करने के लिए पायल विश्वास ने नकद और फोन पे के जरिए पैसे शेख मुईन को दिए थे. उस ने धर्मजयगढ़ के होटल सीएम पार्क में अपनी आईडी से रूम बुक किया.

चारों आरोपी गिरफ्तार कर भेजे जेल

फिरीज यादव उर्फ कृष रायपुर बस से 15 जनवरी की शाम धर्मजयगढ़ पहुंचा. इस केबाद शेख मुईन से वाट्सऐप काल के जरिए बात की. फिर चारों ने 15 की रात तक राजेश की हर गतिविधि पर नजर रखी और मौका देख कर जब प्रिया ने काल की तो फिरीज यादव होटल से राजेश के घर पंहुच गया.

एसएचओ अमित तिवारी के नेतृत्व में प्रिया विश्वास और पायल विश्वास को धर्मजयगढ़ के निवास से गिरफ्तार किया गया. शेख मुईन खान पहले से भाग कर छाल में छिपा बैठा था. पुलिस टीम ने छाल हाटी रोड पर घेराबंदी कर उसे गिरफ्तार कर लिया. वारदात के बाद फिरीज यादव रायपुर आ गया था. प्रिया विश्वास की गिरफ्तारी के बाद पहले से रायपुर में उपस्थित एसडीओपी दीपक मिश्रा ने रायपुर एएसपी और क्राइम डीएसपी की निगरानी में पंडरी मोवा थाना पुलिस

की मदद से उसे हिरासत में लिया.

पुलिस की जांच में यह बात सामने आई  कि फिरीज यादव ने अपने सोशल मीडिया में स्वयं को डाक्टर बताया है. पुलिस ने चारों आरोपियों फिरीज यादव उर्फ कृष उर्फ बबलू यादव (24 साल) निवासी गोपाल भौना, जिला सारंगढ़- बिलाईगढ़ हाल मुकाम दलदल सिवनी, जिला रायपुर, शेख मुईन राजा (20 साल) निवासी बेहरा पारा, धरमजयगढ़, जिला रायगढ़, प्रिया विश्वास (24 साल) निवासी धर्मजयगढ़ जिला रायगढ़ और पायल उर्फ मोनी विश्वास (28 साल) को भादंवि की धारा 302, 201, 120 के तहत गिरफ्तार कर लिया.

चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस ने 19 जनवरी, 2024 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पेश किया, जहां से चारों आरोपियों को पुलिस रिमांड में जिला जेल रायगढ़ भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस की जांच जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दुलारी की साजिश : प्रियंका बनी हत्यारी – भाग 3

उन के रिश्ते के मामा राधा उरांव राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे. राजनीति का ककहरा अनिल ने उसी मामा से सीखा और किस्मत आजमाने रामविलास पासवान के पास पहुंच गए. उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ अनिल के सिर पर रख दिया और उन्हें आदिवासी प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.

खद्दर का सफेद कुरता पायजामा पहन कर अनिल उरांव ताकतवर हो गए थे. यह घटना से 7 साल पहले की बात है.

अमीरों की तरह ठाठबाट थे प्रियंका के अनिल के पास अब पैसों के साथ साथ सत्ता की पावर थी और बड़ेबड़े माननीयों के बीच में उठनाबैठना भी. पहली बार अनिल ने सत्ता के गलियारे का मीठा स्वाद चखा था. माननीयों के सामने जब नौकरशाह सैल्यूट मारते थे, यह देख कर अनिल का दिल बागबाग हो जाता था.

यहीं से प्रियंका उर्फ दुलारी नाम की महिला अनिल उरांव की किस्मत में दुर्भाग्य की कुंडली मार कर बैठ गई थी. तब कोई नहीं जानता था कि यही प्रियंका एक दिन नागिन बन कर अनिल को डस लेगी.

36 वर्षीया प्रियंका हाट थानाक्षेत्र में स्थित केसी नगर कालोनी में दूसरे पति राजा के साथ रहती थी. पहला पति उसे बहुत पहले तलाक दे चुका था. उस के कोई संतान नहीं थी लेकिन दोनों बड़े ठाठबाट से रहते थे, अमीरों की तरह.

कई कमरों वाले उस के शानदार और आलीशान मकान में सुखसुविधाओं की सारी चीजें मौजूद थीं. घर में कमाने वाला सिर्फ उस का पति था. एक आदमी की कमाई में ऐसी शानोशौकत देख कर मोहल्ले वाले दंग रहते थे.

प्रियंका की शानोशौकत देख कर मोहल्ले वालों का दंग रहना जायज था. उस का पति राजा पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजनाथ यादव का एक मामूली सा कार ड्राइवर था. उस की इतनी आमदनी भी नहीं थी कि वह घर खर्च के अलावा नवाबों जैसी जिंदगी जिए. ये ऐशोआराम तो प्रियंका की खूबसूरती की देन थी.

गोरीचिट्टी और तीखे नयननक्श वाली प्रियंका की मोहल्ले में बदनाम औरतों में गिनती होती थी. शहर के बड़ेबड़े धन्नासेठों, भूमाफियाओं और नेताओं का उस के घर पर उठनाबैठना था. उस में लोजपा का युवा नेता अनिल उरांव का नाम भी शामिल था.

शादीशुदा होते हुए भी अनिल उरांव प्रियंका की गोरी चमड़ी के इस कदर दीवाने हुए कि उसे देखे बिना रह नहीं पाते थे. लेकिन प्रियंका उन से तनिक भी प्यार नहीं करती थी. वह तो केवल उन की दौलत से प्यार करती थी. वह जानती थी कि अनिल एक एटीएम मशीन है. बस, उस से दौलत निकालते जाओ, निकालते जाओ और ऐश करते जाओ.

ये भी पढ़ें – सुख की चाह में संतोष बनी कातिल

प्रियंका ने बनाई योजना

अनिल उरांव जिस प्रियंका के प्यार में दीवाने थे, पूर्णिया का शूटर अंकित यादव उर्फ अनंत भी उसी प्रियंका को बेपनाह चाहता था. अनिल का उस की प्रेमिका प्रियंका की ओर आकर्षित होना, अंकित के सीने पर सांप लोटने जैसा था.

उस ने प्रियंका से कह दिया था ‘‘तू अपने आशिक से कह देना कि मेरी चीज पर नजर न डाले, वरना जिस दिन मेरा भेजा गरम हो गया तो उस की खोपड़ी में रिवौल्वर की सारी गोलियां डाल दूंगा.’’

फिर उस ने अपने प्रेमी अंकित को समझाया, ‘‘देखो अंकित, तुम ठहरे गरम खून के इंसान. जब देखो गोली, कट्टा और बंदूक की बातें करते हो, कभी ठंडे दिमाग से काम नहीं लेते. जिस दिन से ठंडे दिमाग से सोचना शुरू कर दोगे, उस दिन बिना गोली, कट्टे के सारे काम बन जाएंगे. क्यों बेवजह परेशान हो कर अपना ब्लड प्रैशर बढ़ाते हो. मैं क्या कहती हूं, उसे ध्यान से सुनो. मेरे पास एक नायाब तरीका है. जिस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

‘‘बता क्या कहना चाहती है तू.’’ अंकित ने पूछा.

‘‘यही कि अनिल उरांव का अपहरण कर लेते हैं और बदले में उस के घर वालों से फिरौती की एवज में मोटी रकम ऐंठ लेते हैं. नेताजी की जान के बदले उस के घर वालों के लिए 10-20 लाख देना कोई बहुत बड़ी बात

नहीं होगी. बोलो क्या कहते हो?’’ प्रियंका ने प्लान बनाया.

‘‘ठीक है जो करना हो, जल्दी करना. उस गैंडे को तेरे नजदीक देख कर मेरे तनबदन में आग सी लग जाती है, कहीं ऐसा न हो कि मैं अपना आपा खो दूं और तू भी स्वाहा हो जाए. जो करना है, जल्दी करना, समझी.’’ अंकित बोला.

‘‘ठीक है, बाबा ठीक है. क्यों बिना मतलब के अपना खून जलाते हो. समझो कि काम हो गया और तुम्हारी राह का कांटा भी हट गया.’’ प्रियंका ने कहा.

प्रियंका और अंकित ने मिल कर अनिल के अपहरण की योजना बना ली. योजना के मुताबिक, 29 अप्रैल, 2021 की सुबह प्रियंका ने अनिल उरांव को फोन कर के अपने घर आने को कहा. अनिल भतीजे राजन को साथ ले कर मोटरसाइकिल से निकले और बीच रास्ते में खुद मोटरसाइकिल से नीचे उतर कर कहा प्रियंका के यहां जा रहा हूं. जब फोन करूं तो बाइक ले कर चले आना.

फिरौती ले कर बदल गई नीयत

अनिल प्रियंका के यहां पहुंचे तो उस के घर पर पहले से शूटर अंकित यादव उर्फ अनंत, उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव उर्फ मिट्ठू, मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर मौजूद थे.

अंकित को देख कर अनिल घबरा गए और वापस लौटने लगे तो चारों ने लपक कर उन्हें पकड़ लिया. अनिल ने बदमाशों के चंगुल से बचने के लिए खूब संघर्ष किया. कब्जे में लेने के लिए बदमाशों ने अनिल को लातघूंसों से खूब मारा और कपड़े वाली मोटी रस्सी से उन के हाथपैर बांध कर उन्हें कमरे में बंद कर दिया और उन का फोन भी अपने कब्जे में ले लिया ताकि वह किसी से बात न कर सकें.

फिर उन्हीं के फोन से अंकित ने अनिल के घर वालों को फोन कर के अपहरण होने की जानकारी देते हुए फिरौती के 10 लाख रुपए की मांग की. उस के बाद मोबाइल फोन से सिम निकाल कर तोड़ कर फेंक दिया ताकि पुलिस उन तक पहुंच न पाए.

30 अप्रैल, 2021 को फिरौती की रकम मिलने के बाद बदमाशों की नीयत बदल गई. चारों ने प्रियंका के घर पर ही अनिल की गला दबा कर हत्या कर दी और पेचकस जैसे नुकीले हथियार से अंकित ने अनिल की दोनों आंखें फोड़ दीं.

फिर उसी रात अनिल की लाश के. नगर थाने के डंगराहा के एक खेत में गड्ढा खोद कर दफना दी. जल्दबाजी में लाश दफन करते समय मृतक का एक हाथ बाहर निकला रह गया और वे कानून के शिकंजे में फंस गए.

कथा लिखे जाने तक फरार चल रहा मुख्य आरोपी अंकित यादव उर्फ अनंत और उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव दोनों दरभंगा जिले से नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिए गए थे. दोनों आरोपियों ने लोजपा नेता अनिल उरांव के अपहरण और हत्या  करने का जुर्म स्वीकार लिया था.

जांचपड़ताल में प्रियंका के असम में करोड़ों रुपए संपत्ति का पता चला है, जो अपराध से कमाई गई थी. पुलिस ने संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

कथा लिखे जाने तक पुलिस पांचों आरोपियों प्रियंका उर्फ दुलारी, अंकित यादव, मिट्ठू कुमार यादव, मोहम्मद सादिक और चुनमुन झा के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. पांचों आरोपी जेल की सलाखों के पीछे अपने किए की सजा भुगत रहे थे.

दुलारी की साजिश : प्रियंका बनी हत्यारी – भाग 2

‘‘तुम बहुत समझदार हो. बहुत जल्द मेरी बात समझ गई. रुपए का इंतजाम कर के रखना, जल्द ही फोन कर के बताऊंगा कि पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं.’’ इस के बाद दूसरी ओर से फोन कट गया.

स्क्रीन पर जिस नंबर को देख कर पिंकी की आंखों में चमक जागी थी, वह नंबर उस के पति का था. बदमाशों ने अनिल के फोन से काल कर के फिरौती की रकम मांगी थी. ताकि पुलिस उन तक पहुंच न सके.

खैर, पति के अपहरण की जानकारी पिंकी ने जैसे ही घर वालों को दी, उस की बातें सुन कर सभी स्तब्ध रह गए. किंतु उन्हें इस बात से थोड़ी तसल्ली हुई थी कि अनिल जिंदा हैं और बदमाशों के कब्जे में हैं. अगर उन्हें फिरौती की रकम दे दी जाए तो उन की सहीसलामत वापसी हो सकती है.

अनिल उरांव की मिली लाश

बदमाशों की धमकी सुन कर पिंकी और उस की ससुराल वालों ने पुलिस को बिना कुछ बताए 10 लाख रुपए का इंतजाम कर लिया और शाम होतेहोते बदमाशों के बताए अड्डे पर फिरौती के 10 लाख रुपए पहुंचा दिए गए.

बदमाशों ने रुपए लेने के बाद देर रात तक अनिल को छोड़ देने का भरोसा दिया था. पूरी रात बीत गई, लेकिन अनिल उरांव लौट कर घर नहीं पहुंचे तो घर वाले परेशान हो गए.

अनिल उरांव के फोन पर घर वालों ने काल की तो वह बंद आ रहा था. जिन दूसरे नंबरों से बदमाशों ने 3 बार काल की थी, वे नंबर भी बंद आ रहे थे. इस का मतलब साफ था कि फिरौती की रकम वसूलने के बाद भी बदमाशों ने अनिल उरांव को छोड़ा नहीं था. बदमाशों ने उन के साथ गद्दारी की थी. यह सोच कर घर वाले परेशान थे.

ये भी पढ़ें – बेवफाई की लाश

बात 2 मई, 2021 की सुबह की है. के. नगर थाने के झुन्नी इस्तबरार के डंगराहा गांव की महिलाएं सुबहसुबह गांव के बाहर खेतों में आई थीं. तभी उन्होंने खेत में जो दृश्य देखा, वह दंग रह गईं. किसी आदमी का एक हाथ जमीन के बाहर झांक रहा था. जमीन के बाहर हाथ देख कर महिलाएं उलटे पांव गांव की ओर भागीं और गांव पहुंच कर पूरी बात गांव के लोगों को बताई.

खेत में लाश गड़ी होने की सूचना मिलते ही गांव वाले मौके पर पहुंच गए और इस की सूचना के. नगर थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी डंगराहा पहुंच गए और गड्ढे से लाश बाहर निकलवाई. शव का निरीक्षण करने पर पता चला कि हत्यारों ने मृतक के साथ मानवता की सारी हदें पार कर दी थीं. उन्होंने किसी नुकीली चीज से मृतक की दोनों आंखें फोड़ दी थीं और शरीर पर चोट के कई जगह निशान थे.

डंगराहा में एक अज्ञात शव मिलने की सूचना जैसे ही अनिल के घर वालों को मिली, वे भी मौके पर जा पहुंचे थे. उन्होंने लाश देखते ही पहचान ली. घर वाले चीखचीख कर प्रियंका उर्फ दुलारी के ऊपर हत्या का आरोप लगा रहे थे.

लोजपा नेता की लाश मिलते ही क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. अपहर्त्ताओं ने धोखा किया था. रुपए लेने के बाद भी उन्होंने हत्या कर दी थी.

जैसे ही नेताजी की हत्या की सूचना लोजपा कार्यकर्ताओं को मिली, वे उग्र हो गए और शहर के हर खास चौराहों को जाम कर आग के हवाले झोंक दिया तथा पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इधर पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले कर वह पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी और आगे की काररवाई में जुट गए.

पुलिस ने मृतक के घर वालों के बयान के आधार पर उसी दिन दोपहर के समय मृतक की प्रेमिका प्रियंका उर्फ दुलारी को उस के घर से हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए के. हाट थाने ले आई. प्रियंका ने पहले तो पुलिस को खूब इधरउधर घुमाया, किंतु जब उस की दाल नहीं गली तो उस ने पुलिस के सामने अपने घुटने टेक दिए.

प्रेमिका प्रियंका ने उगला हत्या का राज

अपना जुर्म कबूल करते हुए प्रियंका ने कहा, ‘‘इस कांड को अंजाम देने में मैं अकेली नहीं थी. 4 और लोग शामिल थे. घटना का मास्टरमांइड अंकित यादव है और उसी ने योजना के तहत इस घटना को अंजाम दिया था.’’

प्रियंका के बयान के बाद उस की निशानदेही पर पुलिस ने 2 बदमाशों मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर को धर दबोचा और थाने ले आई. घटना का मास्टरमाइंड अंकित यादव और उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव उर्फ मिट्ठू फरार थे.

आरोपी मोहम्मद सादिक और चुनमुन झा ने भी अपने जुर्म कबूल कर लिए थे. पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के स्थान पर उपर्युक्त सभी को नामजद करते हुए भादंवि की धारा 302, 120बी, 364ए और एससी/एसटी ऐक्ट भी लगाया.

पुलिस ने गिरफ्तार तीनों आरोपियों प्रियंका उर्फ दुलारी, मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया और फरार आरोपियों अंकित यादव और मिट्ठू कुमार यादव की तलाश में सरगर्मी से जुट गई थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में आरोपितों के बयान के आधार पर कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

35 वर्षीय अनिल उरांव मूलरूप से बिहार के पूर्णिया जिले के के. हाट थाना क्षेत्र स्थित जेपी नगर के रहने वाले थे. पिता जयप्रकाश उरांव के 2 बच्चे थे. बड़ी बेटी सीमा और छोटा बेटा अनिल. जयप्रकाश एक रिहायशी एस्टेट के मालिक थे.

ये भी पढ़ें – सुख की चाह में संतोष बनी कातिल

विरासत में मिली अरबों की संपत्ति

पुरखों की जमींदारी थी. उन्हें अरबों रुपए की यह चलअचल संपत्ति विरासत में मिली थी. आगे चल कर यही संपत्ति उन के बेटे अनिल उरांव के नाम हो गई थी. क्योंकि पिता के बाद वही इस संपत्ति का इकलौता वारिस था.

जयप्रकाश एक बड़ी प्रौपर्टी के मालिक थे. उन का समाज में बड़ा नाम था. उन के घर से कोई गरीब दुखिया कभी खाली हाथ नहीं जाता था. गरीब तबके की बेटियों की शादियों में वह दिल खोल कर दान करते थे.

गरीबों की दुआओं का असर था कि कभी घर में धन की कमी नहीं हुई. अगर यह कहें कि लक्ष्मी घर के कोनेकोने में वास करती थी तो गलत नहीं होगा.

यही नहीं, उन्होंने अपनी बिरादरी के लिए बहुत कुछ किया था, इसलिए लोग उन का सम्मान करते थे. बाद के दिनों में जब जयप्रकाश का स्वर्गवास हुआ तो उन्हीं के नाम पर उस कालोनी का नाम जेपी नगर रख दिया गया था.

बहरहाल, अनिल को यह संपत्ति विरासत में मिली थी, इसलिए उस की कीमत वह नहीं समझ रहे थे. पुरखों की यह दौलत अपने दोनों हाथों से यारदोस्तों पर पानी की तरह बहाने में जरा भी नहीं हिचकिचाते थे.

समय के साथ अनिल की पिंकी के साथ शादी हो गई. गृहस्थी बसते ही वह 2 बच्चों प्रांजल और मोनू के पिता बने. अनिल की जिंदगी मजे से कट रही थी. खाने को अच्छा भोजन था, पहनने के लिए महंगे कपड़े थे और सिर ढकने के लिए शानदार और आलीशान मकान था.

कहते हैं, जब इंसान के पास बिना मेहनत किए दौलत आ जाए तो उस के पांव दलदल की ओर बढ़ने में देरी नहीं लगती है. अनिल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

जमींदार घर का वारिस तो थे ही वह. अरबों की अचल संपत्ति तो थी ही उन के पास. धीरेधीरे उन्होंने उन जमीनों को बेचना शुरू किया. बेशकीमती जमीनों के सौदों से उन के पास रुपए आते रहे. जब उन के पास रुपए आए तो राजनीति की चकाचौंध से आंखें चौधियां गई थीं.

दुलारी की साजिश : प्रियंका बनी हत्यारी – भाग 1

लोक जनशक्ति पार्टी के आदिवासी प्रकोष्ठ के युवा प्रदेश अध्यक्ष 35 वर्षीय अनिल उरांव रोजाना की तरह उस दिन भी नाश्ता कर के क्षेत्र में भ्रमण के लिए तैयार हो कर ड्राइंगरूम में बैठे अपने भतीजे के आने का इंतजार कर रहे थे. तभी उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अपनी शर्ट की जेब से मोबाइल निकाल कर डिसप्ले पर उभर रहे नंबर पर नजर डाली तो वह नंबर जानापहचाना निकला.

स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देख कर अनिल उरांव का चेहरा खुशियों से खिल उठा था. उन्होंने काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हैलो!’’

‘‘नेताजी, प्रणाम.’’ दूसरी ओर से एक महिला की मीठी सी आवाज अनिल उरांव के कानों से टकराई.

‘‘प्रणाम…प्रणाम.’’ उन्होंने जबाव दिया, ‘‘कैसी हो प्रियंकाजी?’’ उस महिला का नाम प्रियंका उर्फ दुलारी था.

‘‘ठीक हूं, नेताजी.’’ प्रियंका जबाव देते हुए बोली, ‘‘मैं क्या कह रही थी कि जनता की खैरियत पूछने जब क्षेत्र में निकलिएगा तो मेरे गरीबखाने पर जरूर पधारिएगा. मैं आप की राह तकूंगी.’’

‘‘सुबह….सुबह क्यों मेरी टांग खींच रही हैं प्रियंकाजी. कोई और नहीं मिला था क्या आप को टांग खींचने के लिए? आलीशान और शानदार महल कब से गरीबखाना बन गया?’’ अनिल ने कहा.

‘‘क्या नेताजी? क्यों मजाक उड़ा रहे हैं इस नाचीज का. काहे का शानदार महल. सिर ढंकने के लिए ईंटों की छत ही तो है. बहुत मजाक करते हैं आप मुझ से. अच्छा, अब मजाक छोडि़ए और सीरियस हो जाइए. ये बताइए कि दोपहर तक आ रहे हैं न मेरी कुटिया में, मुझ से मिलने. कुछ जरूरी मशविरा करना है आप से.’’ वह बोली.

‘‘ऐसा कभी हुआ है प्रियंकाजी कि आप बुलाएं और हम न आएं. फिर जब आप इतना प्रेशर मुझ पर बना ही रही हैं तो भला मैं कैसे कह दूं कि मैं आप की कुटिया पर नहीं पधारूंगा, मैं जरूर आऊंगा. मुझे तो सरकार के दरबार में हाजिरी लगानी ही होगी.’’

नेता अनिल उरांव की दिलचस्प बातें सुन कर प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी तो वह भी अपनी हंसी रोक नहीं पाए और ठहाका मार कर हंसने लगे. उस के बाद दोनों के बीच कुछ देर तक हंसीमजाक होती रही. फिर प्रियंका ने अपनी ओर से फोन डिसकनेक्ट कर दिया तो अनिल उरांव ने भी मोबाइल वापस अपनी जेब के हवाले किया.

फिर भतीजे राजन के साथ मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वह मनिहारी क्षेत्र की ओर निकल पड़े. वह खुद मोटरसाइकिल चला रहे थे और भतीजा पीछे बैठा था. यह 29 अप्रैल, 2021 की सुबह साढ़े 10 बजे की बात है.

अनिल उरांव को क्षेत्र भ्रमण में निकले तकरीबन 10 घंटे बीत चुके थे. वह अभी तक घर वापस नहीं लौटे थे और न ही उन का फोन ही लग रहा था. घर वालों ने साथ गए जब भतीजे से पूछा कि दोनों बाहर साथ निकले थे तो तुम उन्हें कहां छोड़ कर आए?

इस पर उस ने जबाव दिया, ‘‘चाचा को रेलवे लाइन के उस पार छोड़ कर आया था. उन्होंने कहा था कि वह प्रियंका के यहां जा रहे हैं, बुलाया है, मीटिंग करनी है. थोड़ी देर वहां रुक कर वापस घर लौट आऊंगा, तब मैं बाइक ले कर घर लौट आया था.’’

नेताजी अचानक हुए लापता

भतीजे राजन के बताए अनुसार अनिल प्रियंका से मिलने उस के घर गए थे. राजन उस के घर के पास छोड़ कर आया था तो फिर वह कहां चले गए? अनिल के घर वालों ने प्रियंका को फोन कर के अनिल के बारे में पूछा तो उस ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि नेताजी तो उस के यहां आए ही नहीं.

यह सुन कर सभी के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी. वह प्रियंका के यहां नहीं गए तो फिर कहां गए?

लोजपा नेता अनिल उरांव और प्रियंका काफी सालों से एकदूसरे को जानते थे. दोनों के बीच संबंध काफी मधुर थे. यह बात अनिल के घर वाले और प्रियंका के पति राजा भी जानते थे. बावजूद इस के किसी ने कभी कोई विरोध नहीं जताया था.

अनिल को ले कर घर वाले परेशान हो गए थे. उन के परिचितों के पास भी फोन कर के पता लगाया गया, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. घर वालों को अंदेशा हुआ कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई.

उसी दिन रात में नेता अनिल उरांव की पत्नी पिंकी कुछ लोगों को साथ ले कर हाट थाने पहुंची और पति की गुमशुदगी की एक तहरीर थानाप्रभारी सुनील कुमार मंडल को सौंप दी. तहरीर लेने के बाद थानाप्रभारी सुनील कुमार ने पिंकी को भरोसा दिलाया कि पुलिस नेताजी को ढूंढने का हरसंभव प्रयास करेगी. आप निश्चिंत हो कर घर जाएं. उस के बाद पिंकी वापस घर लौट आई.

मामला हाईप्रोफाइल था. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के आदिवासी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल उरांव की गुमशुदगी से  जुड़ा हुआ मामला था. उन्होंने अनिल उरांव की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली और आवश्यक काररवाई में जुट गए. चूंकि यह मामला राज्य के एक बड़े नेता की गुमशुदगी से जुड़ा हुआ था, इसलिए उन्होंने इस बाबत एसपी दया शंकर को जानकारी दे दी थी.

वह जानते थे कि अनिल उरांव कोई छोटीमोटी हस्ती नहीं है. उन के गुम होने की जानकारी जैसे ही समर्थकों तक पहुंचेगी, वो कानून को अपने हाथ में लेने से कभी नहीं हिचकिचाएंगे. इस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ सकती है, इसलिए किसी भी स्थिति से निबटने के लिए उन्हें मुस्तैद रहना होगा.

इधर पति के घर लौटने की राह देखती पिंकी ने पूरी रात आंखों में काट दी थी. लेकिन अनिल घर नहीं लौटे. पति की चिंता में रोरो कर उस का हाल बुरा था. दोनों बेटे प्रांजल (7 साल) और मोनू (2 साल) भी मां को रोता देख रोते रहे. रोरो कर सभी की आंखें सूज गई थीं.

फिरौती की आई काल

बात अगले दिन यानी 30 अप्रैल की सुबह की है. पति की चिंता में रात भर की जागी पिंकी की आंखें कब लग गईं, उसे पता ही नहीं चला. उस की आंखें तब खुलीं जब उस के फोन की घंटी की आवाज कानों से टकराई.

स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देख कर हड़बड़ा कर वह नींद से उठ कर बैठ गई. क्योंकि वह फोन नंबर उस के पति का ही था. वह जल्दी से फोन रिसीव करते हुए बोली, ‘‘हैलो! कहां हो आप? एक फोन कर के बताना भी जरूरी नहीं समझा और पूरी रात बाहर बिता दी. जानते हो कि हम सब आप को ले कर कितने परेशान थे रात भर. और आप हैं कि…’’

पिंकी पति का नंबर देख कर एक सांस में बोले जा रही थी. तभी बीच में किसी ने उस की बात काट दी और रौबदार आवाज में बोला, ‘‘तू मेरी बात सुन. तेरा पति अनिल मेरे कब्जे में है. मैं ने उस का अपहरण कर लिया है.’’

‘‘अपहरण किया है?’’ चौंक कर पिंकी बोली.

‘‘तूने सुना नहीं, क्या कहा मैं ने? तेरे पति का अपहरण किया है, अपहरण.’’

‘‘तुम कौन हो भाई.’’ बिना घबराए, हिम्मत जुटा कर पिंकी आगे बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? मेरे पति से तुम्हारी क्या दुश्मनी है, जो उन का अपहरण किया?’’

अपहर्त्ताओं को दिए 10 लाख रुपए

‘‘ज्यादा सवाल मत कर. जो मैं कहता हूं चुपचाप सुन. फिरौती के 10 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर के रखना. मेरे दोबारा फोन का इंतजार करना. मैं दोबारा फोन करूंगा. रुपए कब और कहां पहुंचाने हैं, बताऊंगा. हां, ज्यादा चूंचपड़ करने या होशियारी दिखाने की कोशिश मत करना और न ही पुलिस को बताना. नहीं तो तेरे पति के टुकड़ेटुकड़े कर के कौओं को खिला दूंगा, समझी.’’ फोन करने वाले ने पिंकी को धमकाया.

‘‘नहीं…नहीं उन्हें कुछ मत करना.’’ पिंकी फोन पर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘तुम जो कहोगे, मैं वही करूंगी. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. मैं पुलिस को कुछ नहीं बताऊंगी. प्लीज, उन्हें छोड़ दो. पैसे कहां पहुंचाने हैं, बता दो. तुम्हारे पैसे समय पर पहुंच जाएंगे.