कांस्टेबल रूपा तोमर हत्याकांड : दोस्ती और प्यार की खौफनाक प्रेम कहानी – भाग 1

10 अप्रैल की दोपहर को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बुलंदशहर (Bulandshahar) की शहर कोतवाली पुलिस को टेलीफोन से सूचना मिली कि महिला  सिपाही रूपा तोमर (Lady Constable Rupa Tomar) ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. रूपा कोतवाली में ही तैनात थी और शहर के कृष्णानगर मोहल्ले में सुनील सिंह के यहां किराए पर रहती थी. सूचना पा कर थानाप्रभारी जितेंद्र कालरा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. रूपा का शव दुपट्टे के सहारे छत के कुंडे से लटका हुआ था. जिस छोटे से कमरे में रूपा रहती थी उस का हर सामान बड़े सलीके से रखा हुआ था.

पुलिस ने घटनास्थल की जांच की, तो वहां 2-3 लाइन का एक सुसाइड नोट मिला. उस में बड़े ही संतुलित शब्दों में लिखा था, ‘मैं अपनी मरजी से जान दे रही हूं. अपनी मौत की मैं खुद ही जिम्मेदार हूं. इस मामले में किसी से पूछताछ न की जाए.’

थाना प्रभारी ने इस मामले की सूचना पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

सूचना पा कर एसपी (सिटी) अजय कुमार साहनी और डिप्टी एसपी (सिटी) राकेश कुमार भी मौके पर पहुंच गए. कुंडे पर लटके शव और मौके पर मिले सुसाइड नोट से प्रथमदृष्टया यह मामला आत्महत्या का ही लग रहा था. रूपा का मोबाइल भी वहीं रखा हुआ था. मोबाइल में कुछ मिस काल थीं, जो रात से ले कर सुबह तक आई थीं. इस से अंदाजा लगाया गया कि उस ने रात में ही किसी वक्त अपनी जीवनलीला समाप्त की होगी.

पुलिस ने रूपा का रिकौर्ड देखा तो पता चला कि वह मूलरूप से जिला बागपत के गांव हिलवाड़ी निवासी मांगेराम तोमर की बेटी थी. पुलिस ने उस के घरवालों को सूचना भिजवा दी. रूपा ने 24 घंटे की छुट्टी ले रखी थी. घटना के समय वह छुट्टी पर थी. सवाल यह था कि आत्महत्या करने के लिए क्या उस ने सोचसमझ कर अवकाश लिया था?

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23 वर्षीया रूपा के अचानक इस तरह आत्महत्या कर लेने से उस के साथी पुलिसकर्मी हैरान थे क्योंकि वह हंसमुख स्वभाव की युवती थी. उस ने ऐसा कभी कुछ जाहिर भी नहीं किया था जिस से लगता कि वह परेशान है. उस की जिंदगी में कोई परेशानी है इस बात का उस ने किसी को संकेत भी नहीं दिया था.

रूपा ने अपने साथियों को बताया था कि एक महीने बाद उस का विवाह होने वाला है. ऐसे में उस ने अचानक ऐसा कदम क्यों उठाया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. आत्महत्या का कोई स्पष्ट कारण भी नहीं था. ऐसे में यही सोचा गया कि उस ने किन्हीं निजी कारणों से आत्महत्या की होगी. रूपा ने चूंकि किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया था. इसलिए विशेष जांच का कोई औचित्य नहीं था. फिर भी ऐहतियात के तौर पर पुलिस ने फौरेंसिक एक्सपर्ट की टीम को घटनास्थल पर बुलवाया.

इस टीम द्वारा मुआयना कर के मौके से जरूरी नमूने एकत्र किए गए. प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने रूपा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और उस के परिजनों के थाने आने का इंतजार करने लगी.शाम तक उस के पिता मांगेराम, चाचा संजीव तोमर व भाई सुनील तोमर बुलंदशहर पहुंच गए. उन से भी पूछताछ की गई.

उन्होंने बताया कि एक महीना पहले ही रूपा की सगाई हुई थी. 16 जून को उस का विवाह होना था. वे लोग विवाह की तैयारियों में जुटे थे. अपने विवाह के लिए वह खुद भी खरीदारी करने वाली थी.

रूपा के घर वाले ऐसी कोई वजह नहीं बता सके, जिस के चलते रूपा हताशा के पायदान पर पहुंच गई हो. उस की साथी महिला पुलिसकर्मियों का भी कहना था कि रूपा अपने विवाह को ले कर खुश थी.

थाने में चूंकि रूपा की राइटिंग मौजूद थी इसलिए पुलिस ने पुष्टि के लिए सुसाइड नोट की राइटिंग का मिलान रूपा की राइटिंग से कर के देखा. उस की राइटिंग सुसाइड नोट से पूरी तरह मेल खा रही थी. इस से स्पष्ट हो गया कि सुसाइड नोट उसी का लिखा हुआ था. उधर 2 डाक्टरों की टीम ने रूपा की लाश का पोस्टमार्टम किया.

पोस्टमार्टम के बाद रूपा के शव को उस के घरवालों के हवाले कर दिया गया. रूपा ने खुद आत्महत्या की थी. न उसे किसी ने उकसाया था और न ही इस के लिए उस ने किसी को जिम्मेदार ठहराया था, इसलिए पुलिस ने जांच बंद कर दी.

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अगले दिन पुलिस को रूपा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, तो वह चौंकी. रिपोर्ट में साफतौर पर लिखा था कि रूपा की मौत गला दबाने से सांस रूकने के चलते हुई थी. यानि उस की हत्या की गई थी. रिपोर्ट में हत्या का समय 8 से 10 बजे के बीच बताया गया था.

अब यह बात साफ हो गई थी कि रूपा की हत्या करने के बाद उस के शव को दुपट्टे से लटकाया गया था ताकि मामला आत्महत्या का लगे. लेकिन सवाल यह था कि अगर हत्या हुई थी, तो रूपा ने सुसाइड नोट क्यों लिखा? ताज्जुब की बात यह थी कि मौके पर जोर जबरदस्ती के चिह्न भी नहीं थे जिस से यह माना जाता कि किसी ने उस से दबाव में ऐसा कराया होगा.

हकीकत जानने के बाद एसएसपी उमेश कुमार सिंह चौंके. मामला चूंकि उन के ही विभाग की सिपाही की हत्या का था, इसलिए उन्होंने जांच में थाना पुलिस के साथसाथ अपराध शाखा की टीम को भी लगा दिया. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि हत्यारा बहुत चालाक है. वह आया और हत्या को आत्महत्या का रूप दे कर चला गया. सुसाइड नोट की लाइन ‘इस बारे में किसी से पूछताछ न की जाए.’ उस ने जानबूझ कर लिखवाई होगी ताकि पुलिस किसी से पूछताछ न कर के इसे आत्महत्या माने और जांच बंद कर दे.

यह बात साफ थी कि हत्यारा रूपा का ही कोई ऐसा जानकार था जिसे अपने कमरे पर आने से वह इनकार नहीं कर सकती थी. दूसरे उसे कोई डर होता तो वह शोर मचाती या किसी को बताती. यहां यह सवाल महत्त्वपूर्ण हो गया कि ऐसा कौन आदमी रहा होगा जो रूपा की मरजी से उस के पास पहुंचा और उस की हत्या कर के चला गया?

पुलिस ने रूपा के घरवालों को बुलवा कर उन से विस्तृत पूछताछ की, तो वे ऐसे किसी व्यक्ति के बारे में नहीं बता सके जिस पर संदेह किया जा सके. उन की खुद भी समझ में नहीं आ रहा था कि रूपा के साथ ऐसा किस ने और क्यों किया.

उन्होंने बताया कि रूपा का रिश्ता मेरठ के कस्बा जानी में रहने वाले राहुल के साथ हुआ था. राहुल सीआईएसएफ में सिपाही था. फिलहाल उस की तैनाती बिहार की राजधानी पटना में थी. राहुल और रूपा के साथसाथ दोनों परिवार भी इस रिश्ते से खुश थे.

रूपा का मोबाइल हत्या का राज खोल सकता था. पुलिस ने उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स हासिल कर के उस की छानबीन की तो पता चला कि एक नंबर पर उस की सब से ज्यादा बातें होती थीं. उस नंबर के बारे में उस के घर वालों से पूछा गया तो पता चला वह नंबर राहुल का था.

हत्या वाले दिन और उस से पहले रूपा की राहुल से बराबर बात हो रही थी. जबकि 1 तारीख की दोपहर के बाद दोनों के बीच किसी प्रकार का संपर्क नहीं हुआ था. पुलिस ने राहुल का नंबर मिलाया, लेकिन वह स्विच्ड औफ आ रहा था. इस से पुलिस के शक की सूई राहुल पर जा कर ठहर गई.

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 1

कमरा नंबर 204 बाहर से बंद था. होटल के मैनेजर ने उसे खोल कर देखा तो कमरे के पलंग पर एक  युवती की लाश पड़ी हुई थी. युवती की आंखें फैली हुई थीं और मुंह से झाग निकल रहे थे.

मैनेजर ने तुरंत होटल मालिक को फोन कर के इस लाश की सूचना दी और उस के कहने पर गाजियाबाद के थाना वेव सिटी को लाश के बारे में बता कर होटल अनंत में आने को कह दिया. वहां मौजूद दानिश अपनी 22 वर्षीय बहन जोया की लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा था.

थोड़ी देर में होटल अनंत में थाना वेव सिटी के एसएचओ अंकित चौहान और एसीपी सलोनी अग्रवाल पहुंच गईं. अंकित चौहान ने थाने से चलते समय एसीपी को लाश की सूचना दे दी थी. एसीपी सलोनी अग्रवाल और एसएचओ ने लाश का निरीक्षण किया. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि युवती को जहर दिया गया है तथा उस का मुंह दबा कर उसे मारा गया है.

गोरी, छरहरी, लंबी कदकाठी वाली जोया उर्फ शहजादी बेशक किसी राजा की राजकुमारी नहीं थी, लेकिन रहनसहन और अपनी खूबसूरत छवि की वजह से वह किसी राजकुमारी से कम नहीं लगती थी.

शहजादी को घर और बाहर जोया भी कहते थे, इसलिए शहजादी भी अपना यही नाम सब को बताती थी. इस शहजादी को पाने की ललक हर युवा दिल में थी, लेकिन शहजादी के दिल में कोई और बसा हुआ था. शहजादी जिसे दिलोजान से प्यार करती थी, उस का नाम अजरुद्दीन उर्फ अजरू था.

अजरुद्दीन शादीशुदा और 5 बच्चों का बाप था. उस की पत्नी जीनत बेगम थी, जो बेहद खूबसूरत थी. करीब 4 साल पहले अलीगढ़ की एक ज्वैलरी शाप में वह अपनी पत्नी जीनत के लिए सोने की अंगूठी खरीद रहा था, वहीं पर उस ने पहली बार जोया को देखा था. उस की खूबसूरती देख कर वह ठगा सा रह गया था.

कोई उसे देख कर अपने होश भी खो सकता है, यह जान कर जोया अचंभित रह गई थी. वह खुद को संभाल कर अजरुद्दीन के पास आ कर बैठ गई मुसकराते हुए बोली थी, ”होश में आइए जनाब, मैं इंसानी बुत हूं, कोई आसमान से उतरी हुई अप्सरा नहीं हूं.’’

”तुम अप्सराओं से भी बढ़ कर हो,’’ अजरू के मुंह से बरबस ही निकल गया. वह अपनी पूर्व स्थिति में लौट आया था.

”मेरे हुस्न की तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ जोया मुसकरा कर बोली, ”क्या मैं आप का नाम जान सकती हूंï?’’

”मेरा नाम अजरुद्दीन है. प्यार से लोग मुझे अजरू कहते हैं. गाजियाबाद से थोड़ी दूरी पर कल्लूगढ़ी गांव है, वहीं रहता हूं.’’

”मैं धोलाना (हापुड़) की बसरा कालोनी में रहती हूं.’’ जोया ने हंस कर कहा, ”एक प्रकार से हम और आप पड़ोसी हुए.’’

”धोलाना मेरा आनाजाना रहता है. यहां क्या खरीदने आई हैं आप?’’

”मेरी हाथ की अंगुली सूनी है, एक रिंग थी वह पता नहीं नहाते वक्त कहां निकल कर गटर में चली गई…’’

”बदनसीब रही वह रिंग.’’ अजरू ने दर्शन बघारा, ”इस खूबसूरत अंगुली का साथ पाने को तो अंगूठियां तरसती होंगी.’’

अजरू जौहरी की तरफ घूमा. वह किसी अन्य कस्टमर को अटेंड कर रहा था.

अजरुद्दीन ने जोया की तरफ इशारा कर के कहा, ”सेठजी, आप इन के लिए बेहतरीन अंगूठी दिखाइए.’’ उस ने बेझिझक जोया की कलाई पकड़ कर जौहरी के सामने कर दी.

जोया उस की जिंदादिली पर अवाक रह गई. वह कुछ कहती, उस से पहले ही जौहरी ने खूबसूरत अंगूठियों का बौक्स उस के सामने रख कर कहा, ”आप पसंद कर लीजिए, एक से बढ़ कर एक डिजाइन हैं.’’

जोया ने नगीने की अंगूठी पसंद की और जौहरी से पूछा, ”कितनी कीमत  है इस अंगूठी की?’’

”15 हजार की है.’’ जौहरी ने अंगूठी का वजन करने के लिए कहा तो जोया अपना पर्स खोलने लगी.

”आप रहने दीजिए, इस की कीमत मैं अदा कर रहा हूं.’’ अजरू तुरंत बोला और उस ने अपनी जेब से 15 हजार रुपए निकाल कर तुरंत जौहरी को दे दिए.

जोया हैरान परेशान हो गई. एक अजनबी जिस से कुछ पलों पहले मुलाकात हुई थी, उस की पसंद वाली अंगूठी की कीमत चुका रहा है, वह भी 10-5 रुपए नहीं, पूरे 15 हजार. कुछ क्षण तो जोया की जुबान तालू से चिपक गई, फिर वह बोली, ”अजरू, यह अंगूठी मैं ने खरीदी है, फिर आप इस की कीमत क्यों अदा कर रहे हैं?’’

”यह मेरी तरफ से आप को गिफ्ट है.’’ अजरू मुसकरा कर बोला, ”वैसे आप ने अपना नाम नहीं बताया अभी तक?’’

”मेरा नाम जोया उर्फ शहजादी है.’’ जोया ने प्यार भरी नजरों से अजरू को देखते हुए अपने लब खोले, ”यदि आप मुझे यह गिफ्ट दे रहे हैं तो अपने हाथ से इसे मेरी अंगुली में पहना भी दीजिए.’’

अजरू ने जोया की कलाई पकड़ कर उस की अंगुली में अंगूठी पहना दी. जोया ने वह अंगुली चूम ली और भावुक स्वर में बोली, ”अजरू, आज से आप मेरे बहुत करीब आ गए हैं. मैं आप के इस अनमोल गिफ्ट को जीवन भर संभाल कर रखूंगी.’’

अजरू मुसकरा दिया. इस के बाद दोनों दुकान से बाहर आ कर अपनेअपने रास्ते चले गए. मगर जाने से पहले उन्होंने एकदूसरे को अपना मोबाइल नंबर दे दिया था.

अजरू क्यों बताना चाहता था शादीशुदा होने की बात

जोया उर्फ शहजादी और अजरू के बीच पहले मोबाइल पर प्यारभरी बातों का सिलसिला शुरू हुआ, फिर वह पिकनिक स्पौट, रेस्तरां और पार्कों में मुलाकातें करने लगे. उन दोनों के बीच प्यार गहराने लगा.

अजरू ने अभी तक जोया को अपने शादीशुदा होने की बात नहीं बताई थी. वह जोया को अपनी शादी की बात बता देना चाहता था, क्योंकि जोया उसे बहुत गहराई से चाहने लगी थी. उसे ले कर वह शादी के सपने देखने लगी थी. अजरू उस से सच्चाई छिपा कर उसे इस मोड़ तक नहीं ले जाना चाहता था, जहां पहुंचने के बाद जोया को वापस लौटने में तकलीफ हो.

जल्लाद डाक्टर ने किए लाश के 500 टुकड़े

साल 1981 में राजतिलक द्वारा निर्देशत एक फिल्म आई थी ‘चेहरे पे चेहरा’. यह एक थ्रिलर और  हौरर फिल्म थी. फिल्म के केंद्रीय पात्र संजीव कुमार थे, जिन्होंने एक वैज्ञानिक और डा. विल्सन का किरदार निभाया था. विल्सन एक ऐसा कैमिकल ईजाद कर लेता है, जो आदमी की बुराइयों को खत्म कर सकता है. इस कैमिकल का प्रयोग वह सब से पहले खुद पर करता है, लेकिन इस का असर उलटा हो जाता है. विल्सन के भीतर की बुराइयों का प्रतिनिधित्व करता एक और किरदार ब्लैक स्टोन उस की अच्छाइयों पर हावी होने लगता है.

सी ग्रेड की यह फिल्म हालांकि दर्शकों ने ज्यादा पसंद नहीं की थी, लेकिन फिल्म यह संदेश देने में सफल रही थी कि आदमी के अंदर अच्छाइयां और बुराइयां दोनों मौजूद रहती हैं. इन में से जिसे अनुकूलताएं मिल जाती हैं, वह बढ़ जाती हैं.

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के एक डाक्टर सुनील मंत्री की कहानी या किरदार काफी हद तक विल्सन के दूसरे चेहरे ब्लैक स्टोन से मिलताजुलता है, जिस के भीतर का हैवान या पिशाच बगैर कोई कैमिकल दिए ही जाग गया था.

होशंगाबाद के आनंदनगर में रहने वाले इस हड्डी रोग विशेषज्ञ की पोस्टिंग नजदीक के कस्बे इटारसी के सरकारी अस्पताल में थी. सुनील मंत्री पोस्टमार्टम भी करता था, लिहाजा लाशों को चीरफाड़ कर मौत की वजह निकालना उस का काम था. अकसर होशंगाबाद-इटारसी अपडाउन करने वाले इस डाक्टर की जिंदगी की कहानी भी हिंदी फिल्मों सरीखी ही है.

अब से कोई सवा साल पहले तक सुनील मंत्री की जिंदगी में कोई कमी नहीं थी. उस के पास वह सब कुछ था, जिस की तमन्ना हर कोई करता है. इज्जतदार पेशा, खुद का मकान व कारें और सुंदर पत्नी सुषमा के अलावा बेटा श्रीकांत और बेटी जो नागपुर के एक नामी कालेज में पढ़ रही है. बेटा श्रीकांत भी मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है.

वक्त काटने और कुछ और पैसा कमाने की गरज से सुषमा ने साल 2010 में एक बुटीक खोला था. इसी दौरान उन के संपर्क में रानी पचौरी नाम की महिला आई, तो उन्होंने उसे भी अपने बुटीक में काम पर लगा लिया.  रानी मेहनती और ईमानदार थी, इसलिए देखते ही देखते सुषमा की विश्वासपात्र बन गई. सुषमा भी उसे घर के सदस्य की तरह मानने लगी थी.

सुनील मंत्री की दिलचस्पी बुटीक में कोई खास नहीं थी लेकिन जब से उस ने रानी को देखा था, तब से उस के होश उड़ गए थे. रानी का पति वीरेंद्र उर्फ वीरू पचौरी एक तरह से निकम्मा और बेरोजगार था, जो कभीकभार छोटेमोटे काम कर लिया करता था. नहीं तो वह पत्नी की कमाई पर ही आश्रित था. वीरू जैसे पतियों की समाज में कमी नहीं है. ऐसे लोगों के लिए एक कहावत है, ‘काम के न काज के, दुश्मन अनाज के.’

रानी जैसी पत्नियों की भी यह मजबूरी हो जाती है कि वे ऐसे पति को ढोती रहें, जो कहने भर का पति होता है. उस से उन्हें कुछ नहीं मिलता सिवाय एक सामाजिक सुरक्षा के, इसलिए वह वीरू को ढो ही रही थी.

पत्नी की मौत के बाद डाक्टर ने  रानी में ढूंढा मन का सुकून

यह कोई हैरानी या हर्ज की बात नहीं थी, पर ऐसे मामलों में जैसा कि अकसर होता है, इस में भी हुआ यानी कि डा. सुनील मंत्री और रानी के बीच भी सैक्स की खिचड़ी पकने लगी. चूंकि रानी के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए दोनों को साथ वक्त गुजारने में कोई दिक्कत नहीं आती थी.

उस दौरान डा. सुनील मंत्री का वक्त कैसे गुजरता था, यह तो कोई नहीं जानता लेकिन 7 अप्रैल, 2017 को डाक्टर की पत्नी सुषमा की भोपाल के बंसल हौस्पिटल में मौत हो गई. पत्नी के देहांत के बाद तनहा रह गए डा. सुनील मंत्री का अधिकांश वक्त रानी के साथ ही गुजरने लगा.

सुषमा के बाद दिखावे के लिए बुटीक का काम रानी ने संभाल लिया था, लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि रानी ने और कई चीजों की डोर अपने हाथ में ले ली थी. जब तक सुषमा थी तब तक रानी का पति वीरू रानी को उस के यहां आनेजाने पर कोई ऐतराज नहीं जताता था लेकिन बाद में रानी पहले से कहीं ज्यादा वक्त बुटीक में बिताने लगी तो उस का माथा ठनका, जो स्वाभाविक बात थी. क्योंकि सुनील मंत्री अब अकसर अकेला रहता था.

रानी जब अपने घर में होती थी तब भी डा. सुनील मंत्री से फोन पर लंबीलंबी और अंतरंग बातें करती रहती थी. वीरू को शक तो था कि डाक्टर साहब और रानी के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है लेकिन उस का शक तब यकीन में बदल गया जब उस ने खुद अपने कानों से डाक्टर और रानी के बीच हुई अंतरंग बातचीत को सुन लिया.

दरअसल हुआ यह था कि मोबाइल फोन खराब हो जाने के कारण रानी ने अपना सिम कार्ड कुछ दिनों के लिए वीरू के फोन में डाल लिया था. न जाने कैसे बातचीत की रिकौर्डिंग वीरू के फोन में रह गई. वही रिकौर्डिंग वीरू ने सुन ली तो उस का खून खौल उठा.

पहले तो उस के जी में आया कि बेवफा बीवी और उस के आशिक डाक्टर का टेंटुआ दबा दे, पर जब उस ने धैर्य से विचार किया तो बस इतना सोचा कि क्यों न डा. सुनील मंत्री को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना कर रोज एक अंडा हासिल किया जाए. क्योंकि वह अगर डा. सुनील मंत्री को मारता या हल्ला मचाता तो उस के हाथ कुछ नहीं लगना था, उलटे लोग यही कहते कि गलती डाक्टर के साथसाथ रानी की भी थी.

लिहाजा एक दिन वीरू ने सुनील मंत्री को बता दिया कि वह उस के और अपनी पत्नी रानी के अवैध संबंधों के बारे में जान गया है और इस की वाजिब कीमत चाहता है. इस पेशकश पर शुरू में सुनील मंत्री को कोई नुकसान नजर नहीं आया, उलटे फायदा यह दिखा कि वीरू का डर खत्म हो गया.

यानी वह अपनी मरजी से ब्लैकमेल होने को तैयार हो गया. शुरू में सुनील मंत्री जिसे मुनाफे का सौदा समझ रहा था, वह धीरेधीरे बहुत घाटे का साबित होने लगा. क्योंकि वीरू अब जब चाहे तब उसे ब्लैकमेल करने लगा था. उस का मुंह सुरसा की तरह खुलता और बढ़ता जा रहा था.

डाक्टर की इस दिक्कत या कमजोरी का वीरू पूरा फायदा उठा रहा था. डाक्टर अगर पुलिस में रिपोर्ट भी करता तो बदनामी उसी की ही होती. लिहाजा वह रानी को अपने पहलू में बनाए रखने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई वीरू को सौंपने को मजबूर था.

वक्त गुजरता रहा और वीरू डा. सुनील मंत्री को अपने हिसाब से निचोड़ता रहा. इस से डाक्टर को लगने लगा कि ऐसे तो वह एक दिन कंगाल हो जाएगा और रानी भी हाथ से निकल जाएगी.

यह डा. सुनील मंत्री की 56 साला जिंदगी का बेहद बुरा वक्त था. रानी से मिल रहे देह सुख की कीमत जब उस की हैसियत पर भारी पड़ने लगी तो उस ने एक बेहद खतरनाक फैसला ले लिया. चेहरे पे चेहरा फिल्म का हैवान ब्लैक स्टोन उस के भीतर जाग उठा और उस ने वीरू की इतनी नृशंस तरीके से हत्या कर डाली कि देखने सुनने वालों की रूह कांप उठे. हर किसी ने यही कहा कि यह डाक्टर है या जल्लाद.

डाक्टर बना जल्लाद

डा. सुनील मंत्री फंस इसलिए गया था कि उस के और रानी के नाजायज ताल्लुकातों के सबूत वीरू के पास थे, नहीं तो तय था कि वह रानी को छोड़ देता. ये सबूत जो कभी सार्वजनिक या उजागर नहीं हो सकते, अब पुलिस के पास हैं.

वीरू की ब्लैकमेलिंग से आजिज आ गए सुनील मंत्री ने उसे अपने यहां बतौर ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया. पगार तय की 16 हजार रुपए महीना.

इस जघन्य हत्याकांड का एक विरोधाभासी पहलू यह भी चर्चा में है कि डाक्टर ने वीरू को समझाया था कि तुम मेरे ड्राइवर बन जाओ तो चौबीसों घंटे मुझे देखते रहोगे. इस से तुम्हारा शक दूर हो जाएगा.

जबकि हकीकत में डा. सुनील मंत्री वीरू की हत्या का खाका काफी पहले से ही दिमाग में बना चुका था. उसे दरकार थी तो बस एक अदद मौके की, जिस से वीरू नाम की बला से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सके. 3 फरवरी, 2019 की सुबह वीरू डा. सुनील को कार से होशंगाबाद से इटारसी ले कर गया था.

दोनों शाम कोई 4 बजे वापस लौट आए. लेकिन वीरू अपने घर नहीं पहुंचा. दूसरे दिन रानी ने फोन पर यह खबर अपने ससुर लक्ष्मीकांत पचौरी को दी.

5 फरवरी की सुबह लक्ष्मीकांत होशंगाबाद आए और बेटे की ढुंढाई शुरू की. रानी ने उन्हें इतना ही बताया था कि वीरू ने 2 दिन पहले ही डा. सुनील मंत्री के यहां ड्राइवर की नौकरी शुरू की है.

यह बात सुन कर वह सीधे डा. सुनील मंत्री की कोठी पर जा पहुंचे और बेटे वीरू की बाबत पूछताछ की तो डाक्टर ने उन्हें गोलमोल जवाब दे कर टरकाने की कोशिश की. इस पर बुजुर्ग और अनुभवी लक्ष्मीकांत का माथा ठनकना स्वाभाविक था. उन्होंने डाक्टर से उस के घर के अंदर जाने की जिद की तो डाक्टर ने अचकचा कर मना कर दिया.

इस पर दोनों में झगड़ा शुरू हो गया. बेटे की चिंता में हलकान हुए जा रहे लक्ष्मीकांत डाक्टर पर वीरू को गायब करने का आरोप लगा रहे थे और डाक्टर उन के इस आरोप को खारिज कर रहा था. झगड़ा होते देख वहां भीड़ जमा हो गई. इन में कुछ डा. सुनील मंत्री के पड़ोसी भी थे, जिन की नजरों में सुनील मंत्री पिछले 2 दिन से संदिग्ध हरकतें कर रहा था.

इत्तफाक से इसी दौरान पुलिस की एक गश्ती गाड़ी वहां से गुजर रही थी, जिस के पहिए यह झगड़ा देख रुक गए.

आखिर माजरा क्या है, यह जानने के लिए पुलिस वाले गाड़ी से नीचे उतरे और बात को समझने की कोशिश करने लगे. लक्ष्मीकांत ने फिर आरोप दोहराते हुए कहा कि डाक्टर ने उन के बेटे को गायब कर दिया है और अब कोठी के अंदर भी नहीं देखने दे रहा.

इस पर पुलिस वालों को हैरानी हुई कि अगर डाक्टर ने कुछ नहीं किया है तो उसे किसी के अंदर जाने पर इतना सख्त ऐतराज या जिद नहीं करनी चाहिए. लिहाजा खुद पुलिस वालों ने अंदर जाने का फैसला ले लिया.

कीमे के रूप में मिली लाश

अंदर जाने के बाद सख्त दिल पुलिस वाले भी दहल उठे, क्योंकि ड्राइंगरूम में जगहजगह खून बिखरा पड़ा था. इतना ही नहीं, मांस के छोटेछोटे टुकड़े भी यहांवहां बिखरे पड़े थे मानो यह आलीशान कोठी कोई गलीकूचे की मटन शौप हो. पुलिस वालों के साथ अंदर गए लक्ष्मीकांत पहले से ही किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त थे. उन्होंने खोजबीन की तो एक ड्रम में उन्हें एक कटा हुआ सिर दिखा, जिसे देख वे दहाड़ मार कर रोने लगे. वह सिर उन के जवान बेटे वीरू का था.

जब पुलिस वालों ने घर का और मुआयना किया तो उन्हें टौयलेट में 4 आरियां मिलीं. इन में से 2 आरियों के बीच वीरू के एक पैर के दरजन भर टुकड़े फंसे हुए थे. जब ड्रम को गौर से देखा गया तो एसिड में वीरू के कटे सिर के साथसाथ हाथपैर भी पडे़ दिखे. डाक्टरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दस्ताने भी खून से सने हुए थे. इस हैवान डाक्टर ने वीरू के शरीर के 4-6 नहीं बल्कि करीब 500 टुकड़े कर डाले थे.

अब बारी सुनील मंत्री की थी, जिस ने शराफत से अपना जुर्म स्वीकारते हुए बताया कि वह वीरू की ब्लैकमेलिंग से आजिज आ गया था, इसलिए उस ने उस की हत्या कर डाली.

दरअसल, 3 फरवरी को वीरू के दांत में दर्द था. यह बात उस ने डा. सुनील मंत्री को बताई तो उस ने इटारसी जाते वक्त एक गोली दी. लेकिन होशंगाबाद वापस आने के बाद वीरू ने फिर दांत दर्द की बात कही तो डा. सुनील के अंदर बैठे ब्लैक स्टोन ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. इसी बेहोशी में उस ने वीरू का गला रेता और फिर उस की लाश के टुकड़े करने शुरू कर दिए.

एक दिन में लाश को काट कर टुकड़ेटुकड़े कर डालना मुश्किल काम था, इसलिए दूसरे दिन भी वह यही करता रहा और इटारसी अस्पताल भी गया था. लेकिन जल्द ही वापस आ गया था. जाते समय उस ने वीरू के खून से सने कपड़े बाबई के पास फेंक दिए थे. दोनों दिन उस ने घर की लाइटें नहीं जलाई थीं ताकि कोई मरीज न आ जाए. दूसरे दिन लाश के टुकड़े वह दूसरी मंजिल पर ले गया था.

सुनील मंत्री अपनी योजना के मुताबिक काफी दिनों से एसिड इकट्ठा कर रहा था. चूंकि वह डाक्टर था, इसलिए दुकानदार उस पर शक नहीं कर रहे थे और वह भी पहले से ही बता देता था कि वह स्वच्छ भारत अभियान के तहत एसिड खरीद रहा है. डाक्टर होने के नाते सुनील बेहतर जानता था कि लाश के टुकड़े गल कर नष्ट हो जाएंगे और किसी को हवा भी नहीं लगेगी.

लेकिन जब हवा होशंगाबाद, इटारसी से भोपाल होते हुए देश भर में फैली तो सुनने वालों का कलेजा मुंह को आ गया कि डाक्टर ऐसा भी होता है. ऐसा हो चुका था और डा. सुनील मंत्री खुद पुलिस वालों को बता भी रहा था कि ऐसा कैसे और क्यों हुआ.

इस खुलासे पर सनसनी मची तो होशंगाबाद के तमाम आला पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के आते ही डाक्टर की हालत खस्ता हो गई और वह ऊटपटांग हरकतें करने लगा. कभी वह गुमसुम बैठ जाता था तो कभी रोने लगता था. कहीं वह कुछ उलटासीधा न कर बैठे, इस के लिए उस के इर्दगिर्द दरजन भर पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए और उस का पैर जंजीर से बांध दिया गया.

यह बात सच है कि डा. सुनील अपना दिमागी संतुलन अस्थाई रूप से खो बैठा था. उस की शुगर और ब्लडप्रेशर दोनों बढ़ गए थे और वह सोडियम पोटैशियम इम्बैलेंस का भी शिकार हो गया था, जिस में मरीज कुछ भी बकने लगता है और ऊटपटांग हरकतें करनी शुरू कर देता है.

इन बीमारियों पर काबू पाया गया तो एक के बाद एक वीरू की हत्या से ताल्लुकात रखते राज खुलते गए कि इस की आखिर वजह क्या थी.

फंस ही गया डाक्टर चक्रव्यूह में

छानबीन और जांच में पुलिस वालों की जानकारी में जब डाक्टर की पत्नी सुषमा मंत्री की मौत संदिग्ध होनी पाई गई तो एक टीम भोपाल के नामी बंसल हौस्पिटल भी पहुंची. दरअसल, सुषमा की मौत भी सुनील के लगाए गए इंजेक्शन के रिएक्शन से हुई थी. इंजेक्शन लगाने के बाद सुषमा के शरीर में संक्रमण फैलने लगा तो सुनील उसे भोपाल ले कर आया था. इस संदिग्ध मौत के बाद भी सुषमा का पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया था, इस बात की जांच पुलिस कथा लिखे जाने तक कर रही थी.

रानी के बयान और किरदार दोनों अहम हो चले थे, लेकिन पूछताछ में वह अनभिज्ञता जाहिर करती रही. पुलिस ने जब सुनील मंत्री से उस के संबंधों के बारे में पूछा तो वह खामोश रही. इस से पुलिस को रानी की भूमिका ज्यादा संदिग्ध नजर आई, जिस की जांच पुलिस कथा लिखने तक कर रही थी. सुनील मंत्री से उस की फोन पर हुई बात की रिकौर्डिंग भी पुलिस ने हासिल कर ली.

पुलिस ने मामला दर्ज कर के वीरू की टुकड़ेटुकड़े बनी लाश पोस्टमार्टम के बाद उस के परिजनों को सौंप दी, जिस का दाह संस्कार भी हो गया. कुछ सामान्य होने के बाद सुनील कहने लगा कि हां, उस ने वीरू की हत्या की थी लेकिन अब अदालत में उस का वकील बोलेगा.

रिमांड पर लिए जाने के बाद वह अदालत में असामान्य दिखा, जिस से उस की हिरासत की अवधि लगातार बढ़ाई जा रही है. हालांकि सच यह है कि किसी अंतिम निष्कर्ष पर पुलिस तभी पहुंचेगी, जब रानी मुंह खोलेगी. पुलिस सुषमा की मौत को भी संदिग्ध मान कर काररवाई कर रही है कि कहीं वह भी हत्या तो नहीं थी.

सब कुछ मुमकिन है लेकिन जिस तरह वीरू की हत्या डा. सुनील मंत्री ने की वह जरूर हैरत वाली बात है कि कोई डाक्टर जो जिंदगियां बचाता है, वह इतने वीभत्स, हिंसक और जघन्य तरीके से किसी की जिंदगी भी छीन सकता है.

हसरतों की उड़ान : स्टूडेंट के प्यार में उजाड़ी गृहस्थी

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 3

एटीएम से आरोपी तक पहुंची पुलिस

जबकि राहुल जिंदा है और फोन बंद कर के फरार है. अब तक जो पुलिस को शक था, राहुल के इस तरह फोन बंद कर के लापता होने से विश्वास में बदलने लगा था. इसलिए पुलिस ने अपना पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित कर दिया. पर उस का पता कैसे चले, क्योंकि उस ने अपना फोन तो बंद कर रखा था.

इस बीच पुलिस ने पता किया कि राहुल का खर्च कैसे चलता था. घर वाले पैसे देते थे तो कैश देते थे या बैंक के माध्यम से भेजते थे. पूछने पर घर वालों ने बताया था कि वह अपना खर्च चलाने के लिए प्राइवेट नौकरी करता था. उस का बैंक में अकाउंट है, कंपनी का वेतन उसी में आता था.

राहुल

पुलिस का सोचना था कि राहुल अगर जिंदा है तो उसे खर्च के लिए पैसों की जरूरत तो पड़ती ही होगी. खर्च के लिए वह एटीएम से पैसे जरूर निकालता होगा. पुलिस ने जब इस बारे में बैंक से पता किया तो पता चला कि राहुल ने अपने बैंक अकाउंट से एटीएम द्वारा दिल्ली से पैसे निकाले थे.

राहुल को दिल्ली में कैसे पकड़ा जाए, पुणे पुलिस इस बात पर विचार कर ही रही थी कि उस का फोन कुछ देर के लिए चालू हुआ. लेकिन थोड़ी हो देर में फिर स्विच औफ हो गया. पुलिस ने जब उस की लोकेशन पता की तो वह कोलकाता की थी. पता चला कि उस ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के बात की थी.

उस रिश्तेदार से राहुल ने क्या बात की थी, जब पुलिस ने रिश्तेदार से पूछा तो उस ने बताया कि राहुल कह रहा था कि अब वह पुणे कभी लौट कर नहीं आएगा. क्योंकि उस का उस के एक दोस्त से झगड़ा हो गया है. इसलिए उस ने पुणे हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया है.

राहुल की लोकेशन कोलकाता की मिली थी. इस से पहले कि पुलिस कोलकाता जाती या वहां की पुलिस से संपर्क करती, राहुल की लोकेशन मुंबई की मिली. फिर तो पुणे पुलिस ने राहुल को फोन की लोकेशन के आधार पर मुंबई के अंधेरी स्टेशन से 27 जून, 2023 की रात को गिरफ्तार कर लिया.

क्या इसी को कहते हैं प्यार

राहुल को पुणे ला कर अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 जुलाई तक के लिए रिमांड पर लिया गया. पूछताछ में राहुल ने दर्शना की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने अपनी बाइक और वह कटर भी बरामद करा दिया था, जिस का उपयोग उस ने दर्शना की हत्या में किया था.

पुलिस कस्टडी में आरोपी राहुल

राहुल ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो एसपी (ग्रामीण) अमित गोयल की मौजूदगी में राहुल को पत्रकारों के सामने पेश किया गया, जहां उस ने दर्शना की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

साथसाथ पढ़ाई करते और उठतेबैठते राहुल हंडोरे को दर्शना से प्यार हो गया था. पर उस ने कभी अपने प्यार का इजहार दर्शना से किया नहीं था. क्योंकि उसे लगता था कि जब उचित समय आएगा, तब वह दर्शना से दिल की बात कह देगा. उस के लिए उचित समय तब आता, जब उस की कहीं नौकरी लग जाती.

दर्शना उस के मन की बात जानती थी. उसे भी राहुल पसंद था. पर उस के मन में यही था कि जब दोनों की नौकरी लग जाएगी, तब दोनों शादी कर लेंगे. दोस्ती दोनों में थी ही, वे एकदूसरे से हर बात उसी तरह शेयर करते थे, जैसे कोई अपने बौयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड से करता है.

जब दर्शना की नौकरी लग गई और राहुल की नहीं लगी तो दर्शना राहुल से दूर होने लगी. घर वालों ने उस के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया. जब इस बात की जानकारी राहुल को हुई तो उस ने दर्शना के सामने ही उस के मम्मीपापा से विवाह के लिए बात की.

दर्शना के मम्मीपापा ने उस के साथ दर्शना का विवाह करने से साफ मना कर दिया. इस के बाद उस ने दर्शना की ओर देखा तो दर्शना की नजरों में उसे पैरेंट्स की बात में सहमति नजर आई. इस तरह राहुल ने दर्शना के साथ विवाह का जो सपना सालों से संजोया था, वह टूट गया. इस से राहुल को बेइज्जती सी महसूस हुई.

वह वहां से तो चुपचाप चला आया, पर उस ने मन ही मन दर्शना से बदला लेने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि दर्शना उस की नहीं तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. अब वह मौके की तलाश में था.

11 जून को पुणे में दर्शना को कोचिंग सेंटर वालों ने सम्मानित करने के लिए बुलाया तो राहुल भी वहां उस से मिलने गया. अगले दिन उस ने दर्शना के साथ वेल्हा तहसील स्थित रायगढ़ और सिंहगढ़ किला घूमने का आयोजन किया तो दर्शना उस के साथ जाने के लिए खुशीखुशी तैयार हो गई. क्योंकि अच्छा दोस्त होने की वजह से वह उस पर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. यह बात दर्शना ने अपने दोस्तों और घर वालों को बता भी दी थी.

अगले दिन यानी 12 जून को दोनों सुबह राजगढ़ और सिंहगढ़ के किलों की ट्रैकिंग के लिए निकल गए. राजगढ़ के किले के अंदर एकांत पा कर राहुल ने एक बार फिर दर्शना से विवाह की बात छेड़ दी. तब दर्शना ने साफ कह दिया कि वह वहीं विवाह करेगी, जहां उस के घर वाले चाहेंगे.

राहुल तो ठान कर ही आया था कि उसे अपने अपमान का बदला लेना है, इसीलिए तो वह दर्शना की हत्या करने के लिए हथियार के रूप में कटर ले कर आया था. दर्शना के मना करते ही राहुल ने उस पर कटर से हमला बोल दिया और उस की हत्या कर दी.

दर्शना की हत्या करने के बाद राहुल ने उस की लाश उठा कर पहाड़ी के नीचे तलहटी में फेंक दी. उसी के साथ उस के फोन, चश्मा, जूते आदि भी फेंक दिए और फिर वहां से अपने फोन को स्विच्ड औफ कर के अकेला ही लौट आया. कमरे पर बाइक खड़ी कर के वह फरार हो गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 3 जुलाई, 2023 को राहुल को फिर अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 4

एसएचओ मीणा और एसआई जयकिशन ने मौके पर जा कर जला हुआ ट्रक देखा. बालेश की कंकाल में परिवर्तित बौडी को पोस्टमार्टम हाउस में देखने के बाद वह भी इसी नतीजे पर पहुंचे कि बालेश कुमार की जल जाने की वजह से मौत हो गई है.

दोनों बुझे मन से दिल्ली लौट आए. राजेश वर्मा की हत्या का जिम्मेदार सुंदर लाल उन की गिरफ्त में था. अब उसी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए उन्हें चार्जशीट तैयार करनी थी.

पुलिस फाइल में बालेश मर चुका था और सुंदर लाल को राजेश वर्मा की हत्या का दोषी मान कर कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा भी मिल गई थी. एक प्रकार से यह हत्या का केस यहीं समाप्त हो गया था और इस केस की फाइल बंद कर दी गई थी.

लेकिन 19 साल बीत जाने के बाद यह केस अक्तूबर, 2023 में फिर से चौंका देने वाली स्थिति में खुल गया. 19 साल पहले जिस बालेश कुमार को थाना बवाना और डांडियावास पुलिस मरा हुआ मान चुकी थी, वह जिंदा था और सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) के एसआई महक सिंह की टीम ने उसे नजफगढ़ (दिल्ली) के एक मकान से गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल, सन 2000 में कोटा हाउस (दिल्ली) के औफिसर मेस में चोरी हुई थी. औफिसर मेस से कीमती मैडल व प्राचीन वस्तुएं रात को चोरी कर ली गई थीं. इस चोरी में बालेश कुमार, उस के पिता चंद्रभान और साला राजेश उर्फ खुशीराम पकड़े गए थे.

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पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार

दिल्ली के थाना तिलक मार्ग में तीनों के खिलाफ एफआईआर 341/2000 पर धारा 457/380/411/34 आईपीसी के तहत केस दर्ज हुआ था. उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई थी. पुलिस ने इन के पास से चोरी का सामान बरामद कर लिया था. इसी की फाइल अपराध शाखा के स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव के पास आई थी.

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इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार

उन्होंने पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार के सुपरविजन में इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार के नेतृत्व में एसआई महक सिंह, यशपाल सिंह, एएसआई दीपक कुमार त्यागी, सुदेश कुमार, अनिल कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप कुमार, करण सिंह, महिला सिपाही रानी की एक टीम बनाई.

हैडकांस्टेबल संदीप कुमार

इस टीम को कोटा हाउस के औफिसर मेस में बहुमूल्य सामान की चोरी करने वालों के अपराध रिकौर्ड चेक करने थे और देखना था कि इन्होंने भारतीय पुरातत्व संस्थान के किसी अन्य जगह पर भी ऐसी चोरी तो नहीं की है.

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महिला सिपाही रानी

एसआई महक सिंह इस मामले की जांच कर रहे थे कि 17 अक्तूबर को उन के खास मुखबिर ने उन्हें फोन पर सूचना दी कि 19 साल पहले जिस कातिल बालेश कुमार की ट्रक में जल जाने से मौत हो गई थी, वह जिंदा है. वह आरजेड-167, रोशन गार्डन, नजफगढ़ (दिल्ली) में अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से रह रहा है. उस की पत्नी और बच्चे उसी के साथ में हैं. बालेश कुमार प्रौपर्टी खरीदने बेचने का धंधा कर रहा है.

मुखबिर की इसी सूचना पर सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) की टीम ने उसे उस के घर से दबोच लिया था. दिलचस्प कहानी को आगे बढ़ाने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि बालेश कौन है.

बालेश कुमार पुत्र चंद्रभान मूलरूप से पट्टी कल्याण, समालखा, पानीपत (हरियाणा) का निवासी है. वह कक्षा 8वीं तक पढ़ा है. 1981 में यह नौसेना में स्टीवर्ड (मैस सहायक) के रूप में भरती हुआ और 1996 तक सेवा में रहा.

सेवानिवृत्ति के बाद बालेश कुमार अपने परिवार के साथ दिल्ली में संतोष पार्क (उत्तम नगर) में रहने लगा और प्रौपर्टी का काम करने लगा. सन 2000 में इस ने अपने पिता चंद्रभान और साले राजेश के साथ कोटा हाउस (तिलक मार्ग) में चोरी की.

तीनों पकड़े गए, चोरी का सामान इन के पास से बरामद हो गया. जमानत पर आने के बाद 2003 में बालेश ने अपने भाई महेंद्र के नाम से एक ट्रक एचआर38 एफ4832 फाइनैंस करवाया, जिसे वह खुद चलाने लगा.

खुद को मरा दिखाने के लिए कर दिए 2 और कत्ल

बालेश की पत्नी संतोष सुंदर और गृहकार्य में निपुण थी, फिर भी बालेश दूर के रिश्ते में साला लगने वाले राजेश उर्फ खुशीराम की पत्नी निशा के साथ अवैध संबंध बना कर निशा पर अपनी कमाई लुटाता रहता था. राजेश इस बात से चिढ़ता था. वह बालेश से खुन्नस रखता था. शायद मौका मिलने पर वह बालेश की हत्या कर देता, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया.

20 अप्रैल, 2004 को बालेश ने अपने भाई सुंदर लाल के साथ मिल कर राजेश की हत्या कर दी. सुंदर लाल पकड़ा गया, बालेश फरार हो गया. जब वह फरार हुआ था तो 52 साल का था. अब वह 63 साल का हो चुका है. उसे अपराध शाखा के औफिस में लाया गया. सूचना पा कर स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव और डीसीपी अंकित सिंह वहां पहुंच गए. उन के सामने बालेश कुमार से पूछताछ की गई.

”तुम राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या कर के राजस्थान भाग गए थे. जिस ट्रक को तुम चला रहे थे, उस में आग लग गई थी और तुम जिंदा जल गए थे. हमें बताओ, वह क्या नाटक था?’’ एसआई महक सिंह ने सामने बैठे बालेश से प्रश्न किया.

”ट्रक ले कर मैं जब भागा था, तब मैं ने एक फुलप्रूफ योजना अपने दिमाग में बिठा ली थी. मैं ने बाईपास से 2 मजदूरों को काम देने का वायदा कर के अपने ट्रक में बिठा लिया था. वे दोनों बिहार के थे. उन के नाम मनोज और मुकेश थे.

”मैं ट्रक ले कर जोधपुर के थाना डांडियावास इलाके में पिथावास बाईपास रोड पर पहुंचा तो एक सुनसान जगह पर मैं ने ट्रक रोक दिया. बाईपास के एक शराब के ठेके से मैं ने 2 बोतल शराब खरीद ली थी. मैं ने ट्रक में मुकेश और मनोज को शराब पिलाई.

”दोनों जब ज्यादा शराब पीने से नशे में लुढ़क गए तो मैं ने मुकेश को जो मेरी कदकाठी का था, उसे अपने कपड़े पहना दिए और ट्रक की ड्राइविंग सीट पर बिठा दिया. मैं ने दिल्ली से ही पेप्सी लेबल के खाली गत्ते ट्रक में भर लिए थे. उन पर पेट्रोल डाल कर मैं ने ट्रक में आग लगा दी. मेरी आईडी और अन्य कागजात सामने के हिस्से में थे.

”ट्रक में आग लगाने के बाद दूर जा कर एक झाड़ी में दुबक कर मैं बैठ गया. काफी देर बाद वहां से गुजर रहे एक कार चालक ने पुलिस को फोन किया. जब फायर बिग्रेड और पुलिस वहां आई, तब तक ट्रक आग से काफी हद तक जल गया था. मैं अब निश्चिंत था.

”मैं ने घर पर फोन कर के अपने पिता और पत्नी को अपनी योजना बता दी. डांडियावास थाने की पुलिस द्वारा छानबीन करने के बाद मेरे पिता चंद्रभान को थाने में बुलाया गया तो मेरी पत्नी संतोष और भाई बिशन, महेंद्र सिंह, भीम सिंह भी उन के साथ डांडियावास थाने में आ गए. उन्हें ट्रक में जले 2 मानव कंकाल दिखाए गए तो एक की पहचान उन्होंने मेरे (बालेश) के रूप में कर दी.’’

”अपनी मौत का नाटक तुम ने इसलिए रचा ताकि राजेश के कत्ल के इलजाम से बच सको, क्या मैं ठीक कह रहा हूं?’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार ने पूछा.

योजना हुई फेल तो बालेश पहुंचा जेल

बालेश मुसकराया, ”बेशक यही कारण था साहब, मैं ने अपनी मौत हो जाने का नाटक कर के अपनी पत्नी को लाभ पहुंचाया था.’’

”वो कैसे?’’

”मेरी पत्नी और पिता ने डांडियावास से मेरी मौत का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया था. मेरी पत्नी ने मेरा बीमा पालिसी की साढ़े 6 लाख रुपए की राशि, ट्रक इंश्योरेंस का 4 लाख रुपया हासिल कर लिया और मेरी पेंशन भी अपने नाम करवा ली.

”ओह!’’ सभी को इस खुलासे से हैरानी हुई. अपराध शाखा के पुलिस आयुक्त रविंद्र कुमार यादव ने बालेश को घूरा, ”तुम अपनी पत्नी के साथ मौत का नाटक करने के बाद कब से रह रहे हो?’’

”साहब, मौत का नाटक करने के बाद मैं 2-3 महीने इधर उधर रहा. पत्नी ने सारे रुपए हासिल कर लिए तो मैं ने नजफगढ़ में प्लौट ले लिया और अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से बीवी बच्चों के साथ रहने लगा.

”मैं ने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड, पहचान पत्र आदि अमन सिंह के नाम से बनवा लिए, ताकि सभी मुझे अमन सिंह ही समझें. मैं इत्मीनान से प्रौपर्टी का धंधा करने लगा. वक्त गुजरता गया. मैं निश्चिंत था कि अब पकड़ा नहीं जाऊंगा.’’

”हम ने पकड़ लिया.’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार मुसकरा कर बोले, ”अब तुम जिंदगी भर जेल में सड़ोगे.’’

बालेश कुमार ने सिर झुका लिया.

उस के खिलाफ एफआईआर 232/2023 दर्ज करके आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 474 और 120बी लगा कर उसे कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया.

अपराध शाखा (सेंट्रल रेंज) ने यह केस बवाना थाने के वर्तमान एसएचओ राकेश कुमार को सौंप दिया. उन्होंने बालेश कुमार की पत्नी संतोष को पकडऩे के लिए नजफगढ़ वाले घर पर रेड डाली, लेकिन संतोष पति के पकड़े जाते ही भूमिगत हो गई थी.

डांडियावास थाना (जोधपुर) ने यह मामला सीआरपीसी की धारा 174 के तहत 2004 में दर्ज किया था, कोई आपराधिक केस नहीं बनाया था. उसे यह सूचित कर दिया गया कि ट्रक में मरने वाला बालेश कुमार नहीं, उस का मजदूर मुकेश था. दूसरी लाश मनोज की थी. बालेश ने 2 हत्याएं उन के थानाक्षेत्र में की थीं, उस पर काररवाई की जाए.

बालेश कुमार जेल में था. पुलिस उस की पत्नी संतोष की तलाश कर रही थी, जो कथा लिखने तक फरार थी.

नोट: कथा में निशा नाम परिवर्तित है.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 2

11 जून को कोचिंग सेंटर वालों ने दर्शना को सम्मानित किया. सम्मानित करने के बाद कोचिंग के प्रबंधक ने उस से अपने बारे में कुछ कहने के लिए कहा तो दर्शना ने जो बातें कही और जिस तरह कही, वे कोचिंग में पढऩे वाले बच्चों के लिए प्रेरणादायक तो थी ही, उस की इन बातों से वे सभी भी बहुत प्रभावित हुए जो निम्नमध्यम वर्ग के लोगों को कुछ नहीं समझते.

उस की बातों से उन लोगों की समझ में आ गया कि ज्ञान सचमुच बलवान बनाता है. इस से दर्शना को और तमाम लोग भी जान गए. दर्शना द्वारा कही गई बातों का लोगों ने वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर भी वायरल किया, जिस से दर्शना का तो मान बढ़ा ही, उस संस्थान की भी प्रतिष्ठा बढ़ गई, जहां पढ़ कर दर्शना ने यह कामयाबी हासिल की थी. इस के बाद दर्शना पुणे में ही अपनी सहेली के यहां रुक कर दोस्तों से मिलती रही.

12 जून को उस ने अपनी सहेली से कहा कि आज वह अपने दोस्त राहुल हंडोरे के साथ राजगढ़ और सिंहगढ़ का किला देखने जा रही है. उस ने यह बात फोन कर के अपने पैरेंट्स को भी बता दी थी. दर्शना को किला देखने जाने से किसी ने मना नहीं किया, क्योंकि सभी जानते थे कि दर्शना ने खूब मेहनत की है, तभी उसे यह सफलता मिली है. इसलिए थोड़ा घूमेगी फिरेगी तो उस का मन भी बहल जाएगा और पढ़ाई की थकान भी उतर जाएगी.

दर्शना जिस राहुल हंडोरे के साथ जा रही थी, वह वही राहुल है, जिस के साथ वह अहमदनगर में पढ़ी थी और पुणे में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए आई थी. उस के साथ कहीं जाने में घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि दोनों पुराने और घनिष्ठ मित्र थे. फिर अब दर्शना खुद हर तरह सक्षम और समझदार हो गई थी. वह खुद अपना अच्छाबुरा सोच सकती थी.

दर्शना को तो नौकरी मिल गई थी, पर राहुल का अभी कुछ नहीं हुआ था. वह अभी तैयारी ही कर रहा था, साथ ही अपना खर्च चलाने के लिए पुणे में प्राइवेट नौकरी भी कर रहा था.

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राजगढ़ का किला

12 जून की सुबह दोनों राजगढ़ का किला देखने के लिए बाइक से निकल गए. दर्शना और राहुल के दोस्तों और घर वालों को पता था कि दोनों किला देखने गए हैं. पर जब शाम को इन के घर वालों ने हालचाल जानने के लिए फोन किया तो दोनों के ही फोन स्विच्ड औफ बता रहे थे.

फिर तो दोनों के ही घर वाले घबरा गए. उन के दोस्तों से पता किया गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक दोनों लौट कर ही नहीं आए हैं. इस के बाद तो दोनों के ही घर वाले बेचैन हो उठे. क्योंकि दर्शना की जहां अच्छी बढिय़ा नौकरी लग चुकी थी, वहीं राहुल भी पढऩे में ठीकठाक था और मेहनत से तैयारी कर रहा था. इसलिए उस के घर वालों को भी उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल उसे भी कोई न कोई अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी.

दर्शना और राहुल के बारे में जब कुछ पता नहीं चला और न उन के फोन चालू हुए तो अगले दिन उन के घर वाले उन्हें खोजने के लिए पुणे आ गए. अपने हिसाब से उन्होंने दोनों को पुणे में खोजा, किले में भी गए, पर उन का कुछ पता नहीं चला. अब दोनों के ही घर वालों की बेचैनी और बढ़ गई थी. क्योंकि उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दोनों कहां चले गए.

जब दोनों ही परिवार उन्हें ढूंढ ढूंढ कर थक गए तो 14 जून, 2023 को दर्शना के घर वालों ने जहां थाना सिंहगढ़ में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी, तो राहुल के घर वालों ने थाना मालवाड़ी में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

पहाड़ी की तलहटी में मिली दर्शना की लाश

दर्शना अपनी कामयाबी से उस इलाके में चर्चा का विषय बन चुकी थी. उसे लगभग हर कोई जानने लगा था. गांव वाले भले न जानते रहे हों, पर शहर और कस्बे का तो लगभग हर कोई उसे जानता था.

इसलिए जब एक तरह से पूरे इलाके में सेलिब्रिटी हो चुकी दर्शना की गुमशुदगी की दर्ज कराई गई तो पुलिस भी सन्न रह गई. चूंकि मामला गंभीर और रहस्यमयी था, इसलिए थाना पुलिस के साथसाथ क्राइम ब्रांच पुलिस भी इस मामले की जांच में लग गई.

क्राइम ब्रांच ने दर्शना और राहुल की खोज के लिए 5-5 पुलिस वालों की 5 टीमें बनाईं और सभी टीमों को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप दीं.

ग्रामीण पुलिस इस मामले में जीजान से लगी थी. पर उसे कोई कामयाबी नहीं मिल रही थी. 19 जून को किसी अजनबी ने पुलिस को सूचना दी कि किले के पास पहाड़ी के नीचे तलहटी में एक महिला की लाश पड़ी है.

सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दर्शना और राहुल की गुमशुदगी दर्ज थी. वे दोनों किले से ही गायब हुए थे. इस से पुलिस को लगा कि कहीं यह लाश दर्शना की तो नहीं है. तुरंत दर्शना के घर वालों को बुलाया गया. लाश देखते ही दर्शना के घर वालों पर तो जैसे दुख का पहाड़ टूट पड़ा. क्योंकि वह लाश दर्शना की ही थी. परिवार की सारी खुशियां पलभर में दुख में बदल गईं. सभी का रोतेरोते बुरा हाल हो गया.

ग्रामीण पुलिस मामले की जांच कर ही रही थी. लाश देख कर पुलिस यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी कि यह मामला हत्या का है या दर्शना के साथ कोई अनहोनी हुई है. क्योंकि लाश की स्थिति बहुत खराब थी. अब तक वह काफी हद तक सडग़ल चुकी थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

सीसीटीवी फुटेज

इसी बीच पुलिस को किले के पास एक होटल पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में सुबह करीब साढ़े 8 बजे दर्शना राहुल के साथ बाइक से किले की ओर जाती दिखाई दी. पर दिन के करीब 10 बजे राहुल किले की ओर से लौटा तो बाइक पर अकेला ही था यानी लौटते समय दर्शना उस के साथ नहीं थी. इस से साफ हो गया कि दर्शना के साथ जो कुछ भी हुआ, वह किले के अंदर या उस के आसपास ही हुआ था.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 3

मनदीप ने सुंदर लाल को कालर से पकड़ा तो वह घबरा कर बोला, ”मुझे टार्चर रूम में मत ले जाइए, मैं सब कुछ बताता हूं.’’

”बताओ, कल रात को राजेश उर्फ खुशीराम तुम्हारे साथ था या नहीं?’’ एसआई जयकिशन ने पूछा.

”था साहब, मैं ने और राजेश ने कल सुरेंद्र शर्मा के यहां जनकपुरी में शराब की पार्टी की थी. फिर हम तीनों मेरी मारुति वैन में बैठ कर पीरागढ़ी की ओर आ गए थे. यहां एक ठेके से मैं ने शराब की बोतल और जनरल स्टोर से नमकीन खरीदी. राजेश नशे में होने के बावजूद अभी और पीने के मूड में था, इसलिए घर नहीं जाना चाहता था.

”मेरा कई बार उस से झगड़ा हुआ था, आज उस से हिसाब किताब करने का सही मौका मिल गया था. मैं ने अपने भाई बालेश कुमार को फोन कर के कहा कि पीरागढ़ी आ जाओ, राजेश मेरे साथ है, उसे निपटा देते हैं. बालेश ने हामी भर दी. यह बात सुरेंद्र शर्मा ने सुनी तो वह बहाना बना कर वैन से उतर गया और अपने घर चला गया.’’

सुंदरलाल ने रुक कर सांसें दुरुस्त कीं फिर आगे बताने लगा, ”मेरा बड़ा भाई बालेश पीरागढ़ी आ गया तो मैं वैन को चला कर शाहबाद डेरी की ओर ले आया. रास्ते में फलवालों की रेहड़ी के पास से नायलोन की रस्सी मैं ने मांग ली थी. शाहबाद डेरी में खड़े ट्रकों की आड़ में मैं ने वैन रोक दी और 3 पैग बनाए. मैं ने राजेश के गिलास में ज्यादा शराब डाली ताकि वह नशे में और बेसुध हो जाए.

”2 पैग पीते ही राजेश पर गहरा नशा चढ़ा तो वह बालेश को अपनी बीवी निशा के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगा कर गालियां देने लगा. बालेश से यह सहन नहीं हुआ तो उस ने राजेश के चेहरे पर 3-4 घूंसे जड़ दिए. इस से राजेश अद्र्धबेहोशी में चला गया.

”मैं ने बालेश को राजेश के पैर पकडऩे का इशारा किया तो उस ने राजेश के पैर दबोच लिए. मैं ने नायलोन की रस्सी राजेश वर्मा के गले में डाल कर पूरी ताकत से कस दी, राजेश का शरीर फडफ़ड़ाया फिर शांत हो गया. बालेश और मैं उस की लाश को ले कर प्रह्लादपुर आए और सर्वोदय बाल विद्यालय के सामने उसे फेंक कर अपने घर चले गए.’’

”तुम्हारा बड़ा भाई बालेश इस समय कहां पर है?’’

”वह अपने घर में होगा साहब, उस का पता आरजेड-121, संतोष पार्क, उत्तम नगर है.’’

एसआई जयकिशन ने सुंदर लाल को हवालात में बंद कर दिया और 4-5 पुलिस वालों को साथ ले कर बालेश की गिरफ्तारी के लिए उत्तम नगर के लिए रवाना हो गए.

ट्रक में लगी आग से भस्म हो गया आरोपी?

एसआई जयकिशन पुलिस टीम के साथ संतोष पार्क, उत्तम नगर बालेश के घर पहुंचे तो मालूम हुआ वह घर पर नहीं है. उस की पत्नी संतोष से उस के उठने बैठने के ठिकाने मालूम कर के वहां पर दबिश डाली गई, लेकिन बालेश नहीं मिला.

परेशान हो कर एसआई जयकिशन टीम के साथ थाने में लौट आए. उन्होंने यह रिपोर्ट एसएचओ राम अवतार मीणा को दी तो उन्होंने बालेश की टोह पाने के लिए अपने खास मुखबिर लगा दिए.

एक हफ्ता निकल गया लेकिन बालेश कुमार का सुराग नहीं मिला. इस बीच राजेश की लाश का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों के हवाले कर दी गई और सुंदर लाल को न्यायालय में पेश कर के 2 दिन की रिमांड पर ले लिया गया.

राजेश की हत्या के लिए प्रयोग की गई नायलोन की रस्सी, शराब की खाली बोतल, गिलास आदि उस जगह से एकत्र कर लिए गए, जहां सुंदर और बालेश ने राजेश की हत्या की थी.

राजेश की हत्या का यह केस एफआईआर 146/2004 दफा 302/201 आईपीसी की धारा में दर्ज कर लिया गया. इस केस की मजबूती के लिए बी-2, बी/98 जनकपुरी से सुरेंद्र शर्मा को थाने बुलवा कर उस का बयान लिया गया.

उस ने अपने बयान में बताया कि पीरागढ़ी में सुंदर लाल ने भाई बालेश को फोन पर यह कहा था कि राजेश नशे में है, आ जाओ, आज उसे निपटा देते हैं. मैं सुंदर लाल का खतरनाक इरादा भांप कर वैन से उतर गया था. मुझे पक्का विश्वास है कि राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या सुंदर लाल और बालेश कुमार ने ही की है.’’

2 दिन बाद रिमांड की अवधि समाप्त होने पर सुंदर लाल को फिर से न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मर चुका बालेश 19 साल बाद कैसे हुआ जिंदा

बालेश कुमार की टोह में मुखबिर लगे हुए थे. उन्हें केवल इतना पता चला कि बालेश बाईपास पर खड़े अपने ट्रक नंबर एचआर 38एफ 4832 में सवार हो कर राजस्थान भाग गया है. थाना बवाना पुलिस को पहली मई, 2004 को शाम 5 बजे डांडियावास थाना, जोधपुर (राजस्थान) से बालेश के पिता चंद्रभान ने फोन कर के एक बुरी खबर दी.

चंद्रभान ने एसएचओ राम अवतार मीणा को बताया कि उन का बेटा बालेश दिल्ली पुलिस से बचने के लिए अपने ट्रक से राजस्थान भागा था, मगर पीथावास बाईपास, थाना डांडियावास (जोधपुर) पर उस के ट्रक में आग लग गई और अपने क्लीनर के साथ बालेश जिंदा जल कर मर गया है.

एसएचओ रामअवतार मीणा ने उच्चाधिकारियों को सारी बात बता कर राय मांगी तो उन से कहा गया, ”हत्या का केस है और बालेश वांछित आरोपी है. जा कर खुद इस बात कि जांच करें कि चंद्रभान की बात में कितनी सच्चाई है. अपने बेटे को बचाने के लिए चंद्रभान झूठ भी बोल सकता है.’’

एसएचओ मीणा, एसआई जयकिशन के साथ जोधपुर के थाना ट्रेन से डांडियावास रवाना हुए. दूसरे दिन वह डांडियावास थाने में थे. थाने में बालेश का पिता चंद्रभान, बालेश की पत्नी संतोष और बालेश के 2 भाई महेंद्र कुमार, भीमसिंह मौजूद थे. चारों के चेहरे मुरझाए हुए थे.

डांडियावास थाने के थानेदार ने इस बात की पुष्टि कर दी कि बालेश का ट्रक पीथावास बाईपास रोड पर जल गया है. ड्राइविंग सीट पर बालेश की बुरी तरह जल चुकी बौडी और उस के अधजले पहचान के कागज मिले हैं.

उस के पिता चंद्रभान और पत्नी संतोष का कहना था कि वह जली हुई डैडबौडी बालेश की है. मैं ने पूरी कागजी काररवाई कर के अपनी संतुष्टि कर ली है. आप जैसा उचित समझें, काररवाई करें.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 1

लाश पहाड़ी की तलहटी में पड़ी थी, जो काफी हद तक सड़गल गई थी. लाश देख कर ही लग रहा था कि इस की मौत कई दिनों पहले हुई है. पुलिस ने जब बारीकी से लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर और सिर पर चोट के निशान थे. इस से पुलिस को लगा कि शायद इस की हत्या की गई है. पुलिस को लाश से थोड़ी दूर पर एक मोबाइल फोन, जूता और चश्मा पड़ा मिला. पुलिस ने अंदाजा लगया यह सामान मरने वाली लड़की का ही होगा.

Lash ke paas mila darshna ka samaan

लाश के पास मिला दर्शना का सामान

रेंज फारेस्ट औफीसर (Range Forest Officer) दर्शना पवार (Darshana Pawar) की लाश तो मिल गई थी, पर उस के दोस्त राहुल का अभी भी कुछ पता नहीं था. इसलिए अब पुलिस की जांच 2 दिशाओं में बंट गई. एक ओर पुलिस राहुल को खोज रही थी तो दूसरी ओर पुलिस अब यह पता कर रही थी कि दर्शना की मौत कैसे हुई? अगर यह दुर्घटना है तो दुर्घटना कैसे हुई? अगर हत्या हुई है तो किस ने और क्यों दर्शना की हत्या की? राहुल का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उस के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था.

दर्शना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर साफ हो गया कि उस की मौत दुर्घटना से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. क्योंकि उस के शरीर पर चोट के जो निशान मिले थे, वे दुर्घटना के नहीं थे, बल्कि किसी नुकीली चीज द्वारा चोट पहुंचाए जाने के थे.

पुलिस को तो पहले ही हत्या की आशंका थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से साफ हो गया कि दर्शना की हत्या की गई थी. अगर दुर्घटना हुई होती तो राहुल उस के साथ ही था, चोट उसे भी लगती. वह किसी अस्पताल में होता या फिर दर्शना के घायल होने या पहाड़ी में नीचे गिरने की सूचना देता. पर वह तो गायब था, इसलिए पुलिस को अब उस पर ही शक होने लगा.

महाराष्ट्र (Maharashtra) के जिला अहमदनगर (Ahmednagar) का एक कस्बा है कोपरगांव. दर्शना अपने मम्मीपापा के साथ यहीं रहती थी. उस का एक निम्नमध्यमवर्गीय परिवार था. उस के पापा अहमदनगर की एक शुगर मिल में ड्राइवर थे और मां घर संभालती थीं.

दर्शना पढऩे में ठीकठाक थी. इसलिए मम्मीपापा उस की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे. वे सोचते थे कि बिटिया पढ़लिख कर कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी सुधर जाएगी. उन्होंने जिस तरह अभावों भरा जीवन जिया है, कम से कम वैसा जीवन उसे नहीं जीना पड़ेगा. इसीलिए वे तमाम परेशानियों को झेल कर उसे पढ़ा रहे थे.

अहमदनगर से पढ़ाई पूरी करने के बाद दर्शना सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना चाहती थी. अहमदनगर से यह संभव नहीं था. इस के लिए उसे पुणे जाना पड़ता. क्योंकि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाली अच्छी कोचिंग वहीं थी. मम्मीपापा उसे पुणे भेजने में थोड़ा झिझक रहे थे, क्योंकि एक तो उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, दूसरे वह बेटी को अकेली इतने बड़े शहर में भेजने से घबरा रहे थे. तब इस के लिए मदद की दर्शना के एक दोस्त राहुल हंडोरे ने.

वैसे तो राहुल हंडोरे (Rahul Handore)  मूलरूप से नासिक की सिन्नार तहसील के शाह गांव का रहने वाला था, लेकिन उस ने बचपन से ही अहमदनगर में रह कर दर्शना के साथ ही पढ़ाई की थी. बचपन से ही दोनों साथ पढ़े थे, इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

राहुल दर्शना के घर भी आताजाता था, इसीलिए जब दर्शना के घर वाले उसे पुणे भेजने में हिचके तो राहुल ने कहा, ”चिंता की कोई बात नहीं है. मैं भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिए पुणे जा रहा हूं. इसलिए आप लोग दर्शना को निङ्क्षश्चत हो कर भेज दीजिए. मेरे रहते दर्शना को वहां कोई परेशानी नहीं होने पाएगी.’’

राहुल घर के सदस्य जैसा हो गया था, इसलिए दर्शना के मम्मीपापा उसे पुणे भेजने के लिए राजी हो गए. उन्होंने दर्शना से कहा, ”देखो बेटा, जैसे तैसे हम अपना काम चला लेंगे, पर तुम्हारे करिअर में किसी तरह की अड़चन नहीं आने देंगे.’’

इस तरह दर्शना अपने अरमान पूरे करने पुणे आ गई. महाराष्ट्र का पुणे शहर शिक्षा के मामले में बहुत आगे है. जिस तरह दिल्ली में सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिए तमाम कोचिंग सेंटर खुले हैं, वैसा ही कुछ पुणे में भी है. इसी वजह से लोग इसे स्टूडेंट्स का शहर कहते हैं. क्योंकि तमाम कोचिंग सेंटर होने की वजह से उस इलाके के ज्यादातर लड़के लड़कियां तैयारी के लिए यहां आ कर रहते हैं. दर्शना भी राहुल के साथ पुणे आ कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने लगी.

तैयारी में किसी तरह की कमी न रह जाए, इस के लिए दर्शना जीजान से जुट गई. अपने मकसद में सफल होने के लिए उस से जितनी मेहनत हो सकती थी, वह उतनी मेहनत करने लगी. अपना करिअर बनाने के लिए उस ने एक तरह से अपनी पूरी ताकत झोंक दी. आखिर इस का परिणाम भी अच्छा ही आया.

बेटी की कामयाबी पर गदगद हुआ परिवार

दर्शना की लगन और मेहनत का ही नतीजा था कि इस साल के महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन (एमपीएससी) का रिजल्ट आया तो दर्शना का तीसरा स्थान था. इस तरह उस का चयन रेंज फारेस्ट औफीसर के रूप में हो गया था.

मृतका दर्शना

दर्शना के पापा एक मामूली कर्मचारी थे. उन की बेटी ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की तो अब लोग बेटी के नाम से उन्हें भी जानने लगे. उन की खुशी की तो कोई सीमा ही नहीं थी. एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने जो तपस्या की थी, बेटी की इस कामयाबी से उन्हें उस का फल मिल गया था. लोग बेटी की तारीफ तो कर ही रहे थे, साथ ही यह भी कह रहे थे कि आप भाग्यशाली हैं, जो आप को ऐसी बेटी मिली है.

दर्शना के इस तरह नौकरी पाने से उस के घर सब कुछ बहुत अच्छा हो गया था. चारों ओर उस की इस कामयाबी की चर्चा हो रही थी. इस की वजह यह थी कि वह नीचे स्तर से इस ऊंचाई पर पहुंची थी. यही वजह थी कि उस की इस कामयाबी के लिए उसे जगह जगह सम्मानित किया जा रहा था, जिस से उस के साथसाथ घर वालों का मान भी बढ़ रहा था.

इसी क्रम में दर्शना को सम्मानित करने के लिए सदाशिव पेठ स्थित उस कोचिंग वालों ने भी बुलाया, जिस कोचिंग में पढ़ कर दर्शना को यह कामयाबी मिली थी.

चयनित होने के बाद दर्शना कोपरगांव स्थित अपने घर चली गई थी. कोचिंग द्वारा बुलाए जाने पर दर्शना 9 जून, 2023 को एक बार फिर पुणे आई और इस बार वह अपनी एक सहेली के यहां ठहरी. क्योंकि चयन होने के बाद उस ने अपना कमरा छोड़ दिया था.