
हत्या की बताई चौंकाने वाली वजह
इस शिकायती और संदेह वाली बातों पर पुलिस ने पूछा, ”तुम ने इस बारे में कभी पता लगाने की कोशिश की कि उस के पास पैसे हैं या नहीं? हो सकता है उस के पास उस वक्त पैसे नहीं हों, जब तुम मांगते होगे.’’
”नहीं सर, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन नहीं देती थी.’’ मनोज बोला.
”चलो मान लिया, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन उसी ने तुम्हें काम पर भी रखवाया था. वहां से पैसे मिले होंगे…उस का तुम ने क्या किया?’’ पुलिस ने पूछा.
”एक माह के ही मिले थे, सारे पैसे मैं ने अपने घर भेज दिए थे.’’ मनोज बोला.
”प्रतिमा को कुछ भी नहीं दिया?’’
”उसे क्यों देता, उसे भी तो पैसे मिले थे?’’ मनोज बोला.
”तुम्हें उस ने साथ रखा था, पति की तरह रहते थे. तुम्हारी भी तो घर चलाने की जिम्मेदारी थी.’’ पुलिस ने समझाया.
”लेकिन सर, वह अपने पैसे दूसरों पर खर्च करती थी, मुझे मालूम था वह कोई रिश्तेदार नहीं था. उस का एक प्रेमी था.’’ मनोज फिर प्रेमिका के चरित्र पर शंका के लहजे में बोला.
”इस का तुम ने कुछ पता किया या फिर यूं ही संदेह करते रहे?’’
”मैं क्या उस के बारे में पूछता. एक बार कुछ बोलने वाला ही था कि वह चीखने लगी… ताने मारने लगी… मुझे ही भलाबुरा कहने लगी थी.’’
”मुझे तो मालूम हुआ है कि प्रतिमा की कुछ माह से नौकरी छूट गई थी.’’
”हां, इस की जिम्मेदार भी वही थी. झगड़ालू स्वाभाव था. अपने मालिक से बातबात पर झगड़ पड़ती थी. उसे नौकरी से निकाल दिया था.’’ मनोज ने बताया.
”हो सकता है, दूसरे काम की तलाश में लोगों से फोन पर बात करती हो और तुम उसी को ले कर शक करने लगे हो.’’
”मैं इतना बुद्धू नहीं हूं सर, जो किसी लड़की के फोन पर हंस हंस कर बात करने का मतलब नहीं समझ पाऊं.’’ मनोज बोला.
”खैर, छोड़ो इन बातों को, सचसच बताओ 18 नवंबर, 2023 को क्या हुआ था?’’ पुलिस अब असली मुद्दे पर आ गई थी.
”असल में 18 तारीख को उस ने मुझ से कमरे का किराया देने के लिए पैसे मांगे. मेरे पास पैसे नहीं थे. इस पर उस ने मुझे दुकान से एडवांस मांगने को कहा, जो मुझ से नहीं हो सकता था. कारण, वहां से पहले ही एडवांस ले चुका था.’’
”फिर तुम ने क्या किया?’’
”मैं क्या करता, पैसे मेरे पास नहीं थे. इस बात को ले कर काफी बहस होने लगी. मैं परेशान हो गया. उस ने मुझे गालियां देनी शुरू कर दीं. दोपहर से हमें झगड़ते हुए शाम घिर आई. मैंं गुस्से से घर से बाहर निकल पड़ा. कुछ समय में ही वापस लौट आया. आते ही वह बरस पड़ी, ”आ गए, आटा लाए?’’
इस पर मैं ने जैसे ही कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है तो वह एक बार फिर बरस पड़ी. गालियां देती हुई बोली, ”नहीं है तो भूखे रहो… मरो यहीं, मैं चली.’’
इत्मीनान से रखी सूटकेस में लाश
मनोज ने आगे बताया, ”तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. प्रतिमा ने अपना बैग उठाया और पैर पटकती हुई घर से जाने लगी. मैं ने तुरंत उस का हाथ खींच लिया, जिस से उस का संतुलन बिगड़ गया और गिरने को हो आई. उस के बाद प्रतिमा और भी गुस्से में आ गई. आंखें लाल करती हुई गालियां देने लगी. मेरे खानदान तक को कोसने लगी.’’
मनोज ने आगे बताया, ”असल में उस का हाथ खींचने से चुन्नी उस के गले में फंस गई थी. इस कारण उस ने समझा कि मैं ने उस का गला जानबूझ कर कसने की कोशिश की है. गालियां देती हुई मुझ पर आरोप लगा दिया कि मैं उसे गला कस कर मारना चाहता हूं.
”यह बात मेरे दिमाग में बैठ गई और उस की हत्या की बात कीड़े की तरह पलक झपकते ही दिमाग में कुलबुलाने लगी. फिर क्या था, ऐसा हुआ कि मानो मैं ने अपना होश खो दिया हो…
”मेरा गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था. मैं ने 2-3 जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. थप्पड़ खा कर वह जमीन पर गिर गई. तिलमलाती हुई वह उठने लगी, लेकिन जब तक वह उठ पाती, मैं ने दोनों हाथों से उस का गला दबा दिया. अपनी भाषा में गाली दी और हाथों की पकड़ मजबूत कर दी.
”कुछ सेकेंड बाद ही दुबलीपतली प्रतिमा बेजान हो चुकी थी. उस की चीख भी बंद हो चुकी थी. गुस्से में आ कर उस की हत्या तो हो गई, लेकिन उस के बाद मैं घबरा गया.’’
”और इस तरह तुम ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर डाली. उस के बाद तूने क्या किया?’’ जांच अधिकारी ने पूछा.
”रात के 10 बजने को हो आए थे. मैं अपने हाथों से प्रतिमा की हत्या से घबरा गया था. थोड़ी देर तक उस के पास बैठा सोचता रहा, उस की मौत का मातम मनाता रहा, लेकिन पकड़े जाने, कड़ी सजा होने…जैसे खयाल मन में आने लगे. इसी बीच मेरी नजर घर में रखे उसी के एक बड़े सूटकेस पर गई. मैं ने झट उसे खाली किया और कपड़ों की तह के बीच जैसेतैसे कर के उस की लाश को ठूंस दिया.
”उस सूटकेस को ले कर कमरे पर से निकल गया. उस वक्त रात के करीब पौने 12 हो चुके थे. सायन से आटोरिक्शा लिया और कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस जा पहुंचा. मैं सूटकेस को रेलवे स्टेशन के किसी इलाके में छोडऩा चाहता था, लेकिन लोगों की भीड़ देख कर ऐसा नहीं कर पाया. वापस लौट आया…’’ मनोज बोलतेबोलते रुक गया.
”आगे बताओ,’’ जांच अधिकारी ने कहा.
”उस के बाद मैं और भी घबरा गया क्योंकि आटोरिक्शा वाला बारबार मुझ से कह रहा था कि साहब जल्दी उतरो स्टेशन आ गया है. मैं पशोपेश में था कि क्या करना है और क्या नहीं! आखिरकार मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया.
”वापस कमरे पर जाने के बारे में सोचते हुए दूसरा आटोरिक्शा लिया और सीएसटी पुल के नीचे सार्वजनिक शौचालय के सामने चेंबूर सांताक्रुज चैनल कुर्ला पश्चिम में एक जगह पर आया. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. रात का समय था. एकदम सुनसान. वह जगह मुझे उचित लगी.’’
मनोज ने आगे बताया, ”मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया. उस के जाने के बाद इधरउधर देखा. कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. आम लोगों को जाने से रोकने के लिए कई बैरिकेड्स लगे थे. मैं ने तुरंत एक बैरिकेड को थोड़ा खिसका कर सूटकेस को अंदर सरका दिया. कुछ देर वहां रुकने के बाद मैं आगे बढ़ गया और आटो ले कर सायन धारावी लौट आया.’’
आगे की जानकारी देता हुआ मनोज बारला बोला, ”मैं कमरे पर जा कर फिर गहरी नींद में सो गया. अगले रोज 19 नवंबर को देर से नींद खुली. फटाफट तैयार हुआ और सुबह 11 बजे के करीब ओडिशा जाने के लिए रेलवे स्टेशन चला आया, किंतु ट्रेन पकडऩे से पहले ही क्राइम ब्रांच द्वारा पकड़ लिया गया.’’
पुलिस ने मनोज बारला के इस बयान को दर्ज कर लिया गया. आगे की काररवाई के बाद उसे गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के सामने हाजिर कर दिया गया. वहां से जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
सूटकेस खुलते ही क्यों चौंकी पुलिस
बात बीते साल 2023 में नवंबर माह के 19 तारीख की है. मुंबई के कुर्ला इलाके में मेट्रो कंस्ट्रक्शन साइट पर गश्त करती पुलिस को एक लावारिस सूटकेस मिला. संदिग्ध सूटकेस में विस्फोटक होने की आशंका के साथ इस की सूचना निकट के थाने को दे दी गई.
सूचना पाते ही बम स्क्वायड पहुंच गया. सूटकेस के नंबर वाला लौक बड़ी मुश्किल से खुल पाया. उस की चेन भी भीतर पड़े कपड़े और महीन धागे से फंस गई थी. सूटकेस खुला तो उस के अंदर एक युवती की लाश निकली. क्राइम ब्रांच के सामने सब से पहला सवाल था कि लाश किस की है?
इस की तहकीकात के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी राज तिलक रौशन ने अलगअलग टीमें बनाईं. लावारिस लाश भरा सूटकेस उस वक्त मिला था, जब पूरे देश की निगाहें क्रिकेट वल्र्ड कप के फाइनल मुकाबले पर टिकी थीं.
आरोपी तक कैसे पहुंची पुलिस
पुलिस की एक जांच टीम मौके पर लगे सीसीटीवी कैमरे और इंटेलीजेंस की मदद से तहकीकात में जुट गई, जबकि दूसरी टीम लाश की पहचान के लिए उस की शिनाख्त करने लगी.
मामला कुर्ला पुलिस स्टेशन में दर्ज कर लिया गया था. शव को राजावाड़ी अस्पताल ले जाया गया. वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उस के बाद महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिला की गला दबा कर हत्या की बात सामने आई. उस आधार पर कुर्ला पुलिस धारा 302, 201 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. इस दौरान मृत महिला के गले में क्रास और शरीर पर कपड़ों से पुलिस ने उस के ईसाई समाज के मध्यमवर्गीय परिवार से होने का अंदाजा लगाया.
पुलिस की टीम ने मौके पर लगे हुए सीसीटीवी कैमरों और इंटेलीजेंस की मदद से आरोपी के बारे में पता लगाना शुरू किया. सूचना के आधार पर पुलिस ने आरोपी की तलाश शुरू की.
अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त लखमी गौतम, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शशि कुमार मीना के आदेशानुसार एवं पुलिस उपायुक्त राज तिलक रौशन के मार्गदर्शन में गठित कुल 8 टीमें लावारिस लाश की गुत्थी सुलझाने में जुट गई थीं. सभी सीसीटीवी फुटेज की जांच करने लगीं. गुप्त खबरची के माध्यम से मृतका के पहचान की भी कोशिश होने लगी. उस की तसवीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी गईं. जल्द ही इस के नतीजे भी सामने आ गए. मृतका की बहन ने लाश की पहचान कर ली. मृतका की पहचान प्रतिमा पवल किस्पट्टा के रूप में हुई. उस की उम्र 25 साल के करीब थी.
उन से मिली जानकारी के अनुसार मृतका धारावी में किराए की एक खोली (कमरा) में रह रही थी. उस के साथ पति भी रहता था. पति मूलत: ओडिशा के एक गांव का रहने वाला था. उस के बारे में आसपास के लोगों से पूछताछ के बाद सिर्फ यही मालूम हो पाया कि वह गांव गया हुआ है. उस ने पड़ोसियों को बताया था कि उस की बहन बीमार है. लोगों ने पति का नाम मनोज बताया.
पड़ोसियों से मालूम हुआ कि पहले प्रतिमा अकेली ही थी, लेकिन वह बीते एक माह से मनोज उस के साथ रह रहा था. उस के बारे में पुलिस को यह भी मालूम हुआ कि वह 18 नवंबर, 2023 के बाद नहीं देखा गया था.
इस तहकीकात के साथसाथ सीसीटीवी खंगालने वाली दूसरी टीम को मनोज के कुछ सुराग हाथ लग गए थे. 18 नवंबर की रात को वह एक आटो धारावी से ले कर आसपास के कुछ इलाके में घूमता नजर आया था. आटो किसी रेलवे स्टेशन के रास्ते पर जाने के बजाए कुर्ला में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक गया था. उस के बाद उस का पता नहीं चल पाया था.
जांच की एक अन्य टीम मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर भी जा पहुंची थी, उन में मुंबई का लोकमान्य तिलक टर्मिनस खास था. वहां पुलिस टीम को एक घबराया हुआ युवक दिख गया, जिस का हुलिया दूसरी जांच टीम से मिली जानकारी से मेल खाने वाला था. उस के पास पुलिस तुरंत जा पहुंची. पास आई पुलिस को देख कर युवक भागने लगा, जिसे पुलिस ने दौड़ कर पकड़ लिया.
पकड़ा गया युवक मनोज बारला था. उसे ठाणे पुलिस ला कर पूछताछ की गई. जब सूटकेस वाली लावारिस महिला की लाश के बारे में उस से पूछा गया, तब वह खुद को रोक नहीं पाया. रोने लगा. एक पुलिसकर्मी ने उसे पीने के लिए पानी दिया. कुछ सेकेंड बाद पानी पी कर जब वह सामान्य हुआ, तब उस से दोबारा पूछताछ की जाने लगी. फिर उस ने लाश के साथ अपने संबंध के बारे में जो कुछ बताया, वह काफी दिल दहला देने वाला था.
दरअसल, यह अभावग्रस्त जिंदगी से तंग आ चुके प्रेमियों की कहानी थी, जो बीते एक माह से बिना शादी किए रह रहे थे. इसे पुलिस रिकौर्ड में लिवइन रिलेशन दर्ज कर लिया गया. उन का प्रेम खत्म हो चुका था और प्रेमी सलाखों के पीछे जाने के काफी करीब था. उस ने जो आगे की कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—
मनोज ने पुलिस को बताया कि मुझे दुख है कि मैं ने अपने हाथों से अपनी प्रेमिका प्रतिमा पवल किस्पट्टा का गला घोंट दिया. उसी प्रेमिका को मार डाला, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मुझे नौकरी दिलाने के लिए ओडिशा से यहां बुलाया था.
उस ने बताया कि प्रतिमा के कहने पर ही वह मुंबई में आया था. मुंबई में स्थित वड़ापाव की एक मशहूर दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था. वह एमजी नगर रोड, धारावी में प्रेमिका प्रतिमा के साथ ही रहने लगा था. उन्होंने शादी नहीं की थी, लेकिन प्रतिमा उसे अपना पति बना चुकी थी. इस तरह से उन के लिवइन रिलेशनशिप की शुरुआत हो गई थी.
उन्होंने साथ रहते हुए भविष्य के सुनहरे सपने देखे थे. किंतु वे आर्थिक तंगी से भी गुजर रहे थे. पैसे की कमी को ले कर उन के बीच कभीकभार बहस भी हो जाती थी.
मनोज शिकायती लहजे में बताने लगा, ”सर, प्रतिमा मेरी प्रेमिका जरूर थी, पैसा भी कमाती थी. मैं जब भी अपने खर्चे के लिए मांगता था, तब किचकिच करने लगती थी. इसी बात पर मेरी उस से लड़ाई हो जाती थी. वह बारबार कहती थी कि अपना खर्च कम करो, अपनी कमाई के पैसे लाओ, फिर मुझ से मांगना.’’
इसी के साथ मनोज ने प्रतिमा के चरित्र पर भी शंका के लहजे में बोला, ”सर, प्रतिमा का कोई यार भी था. उस से बहुत देर तक वह फोन पर बातें करती थी. मैं सब समझता हूं सर! एक समय में कभी वह मुझ से भी फोन पर देरदेर तक बातें करती थी…’’
किसी तरह से जब सूटकेस खुला, तब पुलिस टीम देख कर चौंक गई. क्योंकि उस में थोड़े से कपड़ेलत्तों के बीच एक युवती का शव था. शव को किसी तरह से ठूंस कर सूटकेस को बंद किया गया था. उस के बाल और दुपट्टे का एक कोना सूटकेस की चेन में फंसा हुआ था.
सूटकेस में मिली लाश की खबर मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच को दे दी गई. शव की हालत देख कर यह निश्चित था कि युवती की हत्या कर उसे ठिकाने लगाने की कोशिश की गई है.
कोरोना काल 2020 का समय चरम पर था. पूरे देश में लौकडाउन लग चुका था. सभी तरह के यातायात ठप थे. दुकानें, औफिस, छोटेबड़े कलकारखाने सब बंद कर दिए गए थे. सुनसान सड़कों पर केवल वही गाडिय़ां दौड़ रही थीं, जिन में खानेपीने और रोजमर्रा के जरूरी सामान, हरी सब्जियां, दूध, दवाइयां आदि होते थे या फिर सुरक्षा में जुटे पुलिसकर्मी और मरीजों को अस्पतालों तक पहुंचाने वाली एंबुलेंस आदि थी.
दूरदराज से रोजीरोटी के लिए आए शहरों और महानगरों में लाखों लोग हर हाल में जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहते थे. उन्हीं दिनों मजदूरों के लिए मुंबई से अलगअलग राज्यों के मुख्य शहरों तक जाने वाली कुछ स्पैशल ट्रेनें चलाई गई थीं. मुंबई से ओडिशा तक जाने वाली खचाखच भरी एक स्पैशल ट्रेन में मनोज किसी तरह से सवार हो गया था.
उस ने बड़ी मुश्किल से बैठने के लिए सीट पर जगह बना ली थी. पसीने से लथपथ था. बोगी में काफी शोरगुल था. छोटे तौलिए से अपना मुंह पोंछने के बाद सीट के नीचे घुसाए अपने बैग से पानी की बोतल निकालने के लिए झुका ही था कि इसी बीच एक लड़की उसे डपटती हुई बोली, ”अरे! तुम मेरी सीट पर कैसे बैठ गए? यहां तो मैं बैठी थी.’’
”तुम कैसे बैठी थी. यहां पहले से 5 लोग थे. मैं किसी तरह से बैठ पाया हूं. तुम्हारा सामान कहां है?’’ मनोज बोला.
”मैं एक बैग सीट पर रख कर दूसरा बड़ा सामान लाने गई थी. तुम ने मेरे बैग को सीट के नीचे डाल दिया और मजे में बैठ गए. गलत बात है.’’ लड़की नाराजगी से बोली.
बैठने को ले कर बहस होते देख सामने बैठी एक महिला बोली, ”कोई बात नहीं, सभी को जाना है, तुम भी इसी में किसी तरह जगह बना लो. दिल में जगह होनी चाहिए, बस!’’
”कहां जगह है?’’ लड़की बोली.
तभी मनोज के बगल में बैठा आदमी बोल पड़ा, ”यहां बैठ जाना, मैं ट्रेन चलने पर ऊपर चला जाऊंगा.’’
”चलो, हो गया इंतजाम. लाओ दूसरा सामान, इसे सीट के नीचे डाल देता हूं.’’ मनोज बोला.
थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी. लड़की को भी बैठने की जगह मिल गई थी. बगल में बैठे मनोज ने पूछा, ”तुम्हें कहां जाना है?’’
”आखिरी स्टेशन तक, ओडिशा!’’ लड़की बोली.
”वहां से?’’ मनोज दोबारा पूछा.
”वहां से अपने गांव…पता नहीं वहां जाने के लिए कोई सवारी मिलेगी या नहीं?’’ लड़की गांव का नाम बताती हुई वहां तक पहुंचने को ले कर चिंतित भी हो गई.
”चिंता की कोई बात नहीं है, कोई न कोई गाड़ी तो मिल ही जाएगी?’’ मनोज बोला.
इसी के साथ मनोज ने बताया कि वह ओडिशा के एक गांव का रहने वाला है, लेकिन बेंगलुरु में काम करने गया था. वहां मन लायक काम नहीं मिला, तब कुछ समय पहले ही काम की तलाश में मुंबई आया था, लेकिन वहां आ कर वह फंस गया था.
बातों बातों में दोनों अपनीअपनी समस्याएं बताने लगे. बोलचाल की भाषा और लहजे से मालूम हुआ कि दोनों एक ही प्रदेश के हैं, लेकिन उन के गांव अलगअलग हैं. उन के बीच दोस्ती हो गई. लड़की ने मनोज को अपना नाम प्रतिमा पवल किस्पट्टा बताया. उस ने कहा कि मुंबई में काफी समय से हाउसकीपिंग का काम कर रही है.
ट्रेन के सफर में हुई जानपहचान के दौरान ही उन्हें मालूम हुआ कि वे दोनों क्रिश्चियन समुदाय से हैं. उन्होंने अपनेअपने फोन में एकदूसरे का नंबर सेव कर लिया. साथ ही मनोज ने मुंबई में उस के लिए कोई काम तलाशने का आग्रह किया.
स्पैशल ट्रेन काफी देरी से ओडिशा की राजधानी पहुंच गई थी. वहां से दोनों अपनेअपने गांव चले गए. उन के बीच फोन पर बातें होती रहीं. उन्होंने फोन पर ही अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर दिया था. कोरोना का दौर खत्म होने में काफी वक्त लग गया था. पूरी तरह से लौकडाउन खत्म होने के बाद ही प्रतिमा मुंबई काम के लिए साल 2022 के शुरुआती माह में लौट पाई थी. वहां उस की बहन अपने परिवार समेत पहले से रहती थी. उस की मदद से उसे हाउसकीपिंग का काम मिल गया था.
इस बीच उस की फोन पर मनोज से भी बात होती रहती थी. वह मनोज से प्यार करने लगी थी, लेकिन उसे ओडिशा में कोई ढंग का काम नहीं मिल पाया था. काम की तलाश में बेंगलरु चला गया था, लेकिन उसे वहां भी पहले जैसा काम नहीं मिल पाया था.
कारण बिल्डिंग कंस्ट्रशन का काम पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया था. इस बारे में उस ने प्रेमिका को फोन पर ही अपनी समस्याएं गिनाई थीं. एक दिन प्रतिमा ने उस से कहा, ”मनोज, अगर वहां रेगुलर काम नहीं मिल रहा है तो क्यों नहीं मुंबई आ जाते हो.’’
”कोरोना से पहले मुंबई गया था, लेकिन वहां भी काम नहीं मिला था. कंस्ट्रक्शन वाले उन कंपनियों के बंदों को लेते हैं, जिन का मुंबई में काम चल रहा हो.’’ मनोज ने अपनी समस्या बताई. ”कोई बात नहीं, यहां की किसी कंपनी में तुम्हारा रजिस्ट्रैशन मैं करवाने का इंतजाम करती हूं.’’ प्रतिमा बोली.
”अगर ऐसा हो जाए, तब मुझे वहां काम मिल सकता है.’’ मनोज खुशी से बोला.
”तुम आज ही मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ लो. यहां आते ही कोई न कोई काम मिल जाएगा. तुम्हें नहीं पता मुंबई एक मायावी नगरी है, यहां कोई भी भूखा नहीं सोता. मेहनत और ईमानदारी से काम करने पर दो पैसे जरूर मिलते हैं.’’ प्रतिमा समझाने लगी.
बीच में ही मनोज बोल पड़ा, ”ठीक है, ठीक है मैं कल की किसी ट्रेन से मुंबई के लिए निकल पड़ूंगा. अपना एड्रेस और लोकेशन भेज देना.’’ मनोज ने कहा.
कुछ ही देर में मनोज को प्रतिमा ने मुंबई का एड्रैस भेज दिया. उस ने तुरंत मुंबई जाने की तैयारी की और अगले रोज मुंबई जाने वाली ट्रेन की लोकल बोगी में सवार हो गया.
राजेश ने मकान का ठेका अपने दोस्त हेमंत सोनकर के रिश्तेदार इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर को दे दिया. ठेका मिलने के बाद शैलेंद्र ने राजेश के घर आनाजाना शुरू कर दिया. इसी आनेजाने में शैलेंद्र सोनकर की नजर राजेश की खूबसूरत पत्नी उर्मिला पर पड़ी. पहली ही नजर में उर्मिला उस के दिलो दिमाग में रचबस गई. उर्मिला भी जवान और हैंडसम शैलेंद्र को देख कर प्रभावित हुई.
इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर
उर्मिला देह सुख से वंचित थी, इसलिए उस का मन बहकने लगा. जब औरत का मन बहकता है तो उसे पतित होने में देर नहीं लगती. इस के बाद उर्मिला की आंखों के सामने शैलेंद्र की तसवीर घूमने लगी. वैसे भी उर्मिला ने महसूस किया था कि वह जब भी घर आता है, उस की मोहक नजरें हमेशा ही उस से कुछ मांगती सी प्रतीत होती हैं.
दोनों के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो गए. फिर जल्द ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.
आखिर क्यों बहकी उर्मिला
कुछ समय बाद उर्मिला शैलेंद्र की इस कदर दीवानी हो गई कि वह अपने निर्माणाधीन मकान पर भी जाने लगी. मौका निकाल कर वह वहां भी शैलेंद्र के साथ मौजमस्ती कर लेती थी.
विवाहित और 2 बच्चों की मां उर्मिला ने पति से विश्वासघात कर शैलेंद्र के साथ अवैध संबंध तो बना लिए थे, लेकिन उस वक्त उस ने यह नहीं सोचा था कि इस का अंजाम क्या होगा. 2 नावों पर पैर रखना हमेशा नुकसानदायक ही होता है.
हुआ यह कि मार्च 2023 की एक दोपहर राजेश अचानक स्कूल से घर वापस आ गया और उस ने उर्मिला व शैलेंद्र को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. फिर तो राजेश का खून खौल उठा. शैलेंद्र फुरती से भाग गया. तब उस ने उर्मिला की जम कर पिटाई की.
बाद में उस ने शैलेंद्र को खूब फटकार लगाई. उर्मिला की अनैतिकता को ले कर कभीकभी झगड़ा इतना बढ़ जाता कि वह उर्मिला को जानवरों की तरह पीटता.
एक दिन तो हद ही हो गई. राजेश की पिटाई से आहत हो कर उर्मिला नग्नावस्था में ही घर के बाहर आ गई थी. अड़ोसपड़ोस तथा परिवार के लोग उर्मिला की अनैतिकता से वाकिफ थे, इसलिए किसी ने भी उस का पक्ष नहीं लिया.
पति की पिटाई से उर्मिला राजेश से नफरत करने लगी थी. इसी नफरत के चलते उस ने एक रोज राजेश को खाने में जहर दे दिया. उस की तबीयत बिगड़ी तो घर वालों ने उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया, जहां उस का 2 सप्ताह इलाज चला. तब जा कर वह ठीक हुआ.
उर्मिला अपने आशिक शैलेंद्र को भी पति के खिलाफ उकसाती थी. वह वीडियो काल कर उसे अपने शरीर के जख्म दिखाते हुए ताने देती थी कि यह जख्म तुम्हारे प्यार की निशानी के तौर पर दिए गए हैं. उर्मिला के शरीर पर जख्म देख कर शैलेंद्र का गुस्सा फट पड़ता था.
पति की हत्या क्यों कराना चाहती थी उर्मिला
एक दिन उर्मिला ने शैलेंद्र से कहा, ”मैं अब अपने पति से छुटकारा चाहती हूं. वह हम दोनों के मिलन में बाधा बना है. प्रताडि़त भी करता है. तुम इस कांटे को हमेशा के लिए दूर कर दो. राजेश के पास 3 करोड़ का जीवन बीमा और 20 करोड़ की अचल संपत्ति तथा यह 6 करोड़ का आलीशान मकान है. उस के मरने के बाद यह सब हमारा होगा. मैं तुम से ब्याह कर लूंगी. फिर हम दोनों आराम से रहेंगे. उस की सरकारी नौकरी भी मुझे मिल जाएगी.’’
शैलेंद्र सोनकर का ममेरा भाई विकास सोनकर शास्त्री नगर में रहता था. वह ड्राइवर था. उस ने अपनी मंशा उसे बताई तो विकास ने शैलेंद्र को अपने साथी ड्राइवर सुमित कठेरिया से मिलवाया, जो आवास विकास-3 कल्याणपुर में रहता था.
सुमित ने शैलेंद्र को एक ट्रक ड्राइवर से मिलवाया. ट्रक ड्राइवर ने राजेश को ट्रक से कुचल कर मारने का वादा किया और 2 लाख में हत्या की सुपारी ली. इस के बाद उर्मिला ने रुपयों का इंतजाम किया और डेढ़ लाख रुपए ड्राइवर को दे दिए, लेकिन उस ट्रक ड्राइवर ने काम तमाम नहीं किया और डेढ़ लाख रुपया ले कर फरार हो गया.
उस के बाद सुमित कठेरिया ने विकास के साथ मिल कर राजेश की हत्या की सुपारी 4 लाख में ली. उर्मिला और शैलेंद्र हर हाल में राजेश को मौत के घाट उतारना चाहते थे, अत: उन्होंने रकम मंजूर कर ली. इस के बाद उर्मिला, शैलेंद्र, सुमित व विकास ने राजेश को कुचल कर मारने की पूरी योजना बनाई.
4 नवंबर, 2023 की सुबह 6 बजे राजेश गौतम मार्निंग वाक पर निकला, तभी उस की पत्नी उर्मिला ने शैलेंद्र को फोन पर सूचना दे दी. सूचना पा कर सुमित कठेरिया अपनी ईको स्पोर्ट कार से तथा शैलेंद्र विकास के साथ अपनी वैगनआर कार से स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए.
उन लोगों ने पहले रेकी की, फिर राजेश की पहचान कर सुमित कठेरिया ने अपनी ईको स्पोर्ट कार से राजेश को जोरदार टक्कर मारी. राजेश टकरा कर करीब 20 मीटर दूर जा गिरा और तड़पने लगा.
टक्कर मारने के बाद भागते समय सुमित की कार बिजली के खंभे से टकरा गई और उस का टायर फट गया. तब सुमित अपनी कार वहीं छोड़ कर कुछ दूरी बनाए खड़ी शैलेंद्र की वैगनआर कार के पास पहुंचा और उस में बैठ कर शैलेंद्र के साथ फरार हो गया.
पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 30 नवंबर, 2023 को आरोपी उर्मिला गौतम, शैलेंद्र सोनकर तथा विकास सोनकर को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी सुमित कठेरिया ने भी बाद में अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.
राजेश के दोनों बेटे अपने ताऊ ब्रह्मदीन के पास रह रहे थे. ताऊ ने दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी ली है.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
पहली नवंबर, 2018 की शाम लगभग साढ़े 5 बजे की बात है. 22 वर्षीय पायल अपनी मां गजाला से यह कह कर गई थी कि वह अपनी सहेली के साथ शौपिंग करने जा रही है. एकदो घंटे में लौट आएगी.
उत्तर प्रदेश के जनपद रामपुर के मोहल्ला दरख्त कैथ हमाम के रहने वाले शाहनवाज की बेटी जैनब उर्फ पायल पढ़ीलिखी और समझदार थी. वह अकेली बाजार जाती रहती थी. घर वालों को उस की तरफ से कोई चिंता नहीं रहती थी. इसलिए मां गजाला ने उस के अकेले जाने पर कोई ऐतराज नहीं किया.
पायल को घर से गए हुए 2 घंटे से ज्यादा का समय हो गया, लेकिन वह घर नहीं लौटी. मां ने उस का नंबर मिलाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. मां को चिंता हुई कि रात के 8 बज गए और पायल अभी तक नहीं आई, उस का फोन भी बंद है. वह ऐसी कौन सी चीज खरीदने गई है जो उसे इतनी देर लग गई. वह जिस सहेली के साथ जाने को कह कर गई थी उस का फोन नंबर भी मां के पास नहीं था. इसलिए उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी रात को वह बेटी को कहां ढूंढ़े.
गजाला ने फोन कर के जानकारी अपने पति शाहनवाज को दी तो वह भी अपने घर आ गए. तब तक रात के 10 बज चुके थे. उन्होंने अपने स्तर से बेटी को इधरउधर ढूंढा लेकिन उस के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो वह भी परेशान हो गए.
अपनी रिश्तेदारियों में भी उन्होंने फोन किए पर वह वहां भी नहीं पहुंची थी. मोहल्ले में भी जवान बेटी के गायब होने के बारे में नहीं पूछा जा सकता था. क्योंकि इस में उन्हीं की बदनामी होती. लिहाजा वह बेटी के बारे में सोचसोच कर बहुत परेशान थे.
जवान बेटी के गायब होने से घर वालों की उड़ी नींद
चूंकि रात अधिक हो चुकी इसलिए उन्होंने सोचा कि अगले दिन उसे और तलाशेंगे. बेटी की चिंता में शाहनवाज और उन की पत्नी को नींद नहीं आई. रात भर उन के दिमाग में बेटी को ले कर तरहतरह के विचार आते रहे.
2 नवंबर को शाहनवाज अपने परिवार वालों के साथ दिन भर बेटी को ढूंढते रहे. ढूंढतेढूंढते थक गए तो वह घर लौट आए. बेटी के बारे में कोई खबर नहीं मिलने पर गजाला का रोरो कर बुरा हाल था. उन की आंखें सूज गई थीं.
परिवार वालों की सलाह पर शाहनवाज बेटी के गुम होने की सूचना देने के लिए गंज कोतवाली पहुंच गए. उन्होंने कोतवाली निरीक्षक नरेंद्र त्यागी को बेटी के लापता होने की जानकारी विस्तार से दे दी. शाहनवाज की सूचना पर पुलिस ने जैनब उर्फ पायल की गुमशुदगी दर्ज कर ली.
उधर पायल का बड़ा भाई राहिल खान, जोकि अपने बिजनैस के काम से मुंबई गया हुआ था जब उसे बहन के गायब होने की खबर मिली तो वह भी परेशान हो गया. राहिल खान ने जहांगीर को फोन कर के छोटी बहन पायल के बारे में पूछा तो जहांगीर ने बताया कि उसे पायल के बारे में कुछ पता नहीं है. जब उस से हमारा रिश्ता ही खत्म हो गया तो पायल से उस का क्या वास्ता.
जहांगीर ने धमकी भरे लहजे में उस से कहा कि अब तो मुझे फोन कर दिया आगे फोन किया तो अंजाम बुरा होगा. राहिल रामपुर लौट आया और सीधे कोतवाली निरीक्षक से मिला. उस ने शक जताया कि शहर के ही मोहल्ला गंज में रहने वाले जहांगीर और जहांगीर के 2 दोस्त इमरोज निवासी जेल रोड व प्रभजीत उर्फ सागर का उस की बहन को गायब करने में हाथ हो सकता है.
कोतवाली प्रभारी ने राहिल से इस आरोप के पीछे की वजह पूछी तो राहिल खान ने बताया कि उस की बहन पायल जहांगीर को प्यार करती थी. इतना ही नहीं वह उस के साथ शादी करने पर तुली हुई थी. जबकि पायल और मां के अलावा घर के सभी लोग जहांगीर से उस की शादी करने के खिलाफ थे.
मां की वजह से न चाहते हुए भी घर के अन्य लोग उस की शादी जहांगीर से कराने के लिए तैयार हो गए थे. मार्च 2016 में पायल और जहांगीर की मंगनी हो गई. मंगनी के बाद पायल कभीकभार जहांगीर के साथ बाजार आदि घूमने चली जाती थी.
सब कुछ ठीक था. हम लोग पायल की शादी की तैयारी में जुटे थे कि 2 महीने पहले जहांगीर के पिता ताहिर ने हमारे अब्बू को बताया कि मेरे बेटे जहांगीर को आप की लड़की पसंद नहीं है, जिस वजह से हम यह रिश्ता तोड़ रहे हैं. रिश्ता टूटने पर हमारे परिवार की समाज में बदनामी हुई. पायल ने इस बारे में जहांगीर से पूछा तो उस ने बताया कि उस के सामने एक ऐसी मजबूरी है, जिस की वजह से वह उस से शादी नहीं कर सकता. लेकिन वह उसे अभी भी पहले की तरह ही प्यार करता है. जहांगीर ने वह मजबूरी नहीं बताई.
पायल जहांगीर को दिलोजान से चाहती थी. वह इस बात का पता लगाने में जुट गई कि आखिर जहांगीर ने मंगनी क्यों तोड़ी. थोड़ी कोशिश के बाद पायल को इस की वजह पता चल गई. जानकारी मिली कि जहांगीर ने किसी और मालदार घर की लड़की से शादी करने की खातिर यह मंगनी तोेड़ी थी. पायल जब तब जहांगीर से इस की शिकायत करती रहती थी.
राहिल की शिकायत पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने नामजद आरोपियों के घर दबिश दी तो तीनों घरों से फरार मिले. पुलिस का दबाव बढ़ने पर इन में एक आरोपी इमरोज 11 नवंबर, 2018 को गंज कोतवाली में हाजिर हो गया.
जहांगीर ने बुलवाया था पायल को
पुलिस ने इमरोज से पायल के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि पहली नवंबर को जहांगीर ने मेरे माध्यम से पायल को बुलवाया था. मैं उस के कहने पर पायल को अपनी स्कूटी से जहांगीर के कोसी नदी के पास स्थित फार्महाउस पर ले गया था. वहां जहांगीर उस का इंतजार कर रहा था. पायल को जहांगीर के पास छोड़ कर मैं वापस अपने घर चला गया था.
इस के बाद पायल कहां गई, इस का मुझे पता नहीं. इस जानकारी के बाद पुलिस को लगा कि जांच सही दिशा में चल रही है. यानी पायल जहांगीर के पास पहुंची तो थी लेकिन वहां से कहां गई इस की जानकारी जहांगीर से ही मिल सकती थी. यह सूचना उच्चाधिकारियों को देने के बाद थाना पुलिस ने जहांगीर की सरगर्मी से तलाश शुरू कर दी.
पायल के लापता होने की खबर जब इलेक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी तो पुलिस की किरकिरी होने लगी. लोगों में भी पुलिस की लापरवाही के चर्चे होने लगे. बरेली मुरादाबाद मंडल के एडीजी प्रेमप्रकाश ने इस केस को गंभीरता से लेते हुए रामपुर पुलिस को लताड़ लगाई. रामपुर के एसपी शिवहरि मीणा को उन्होंने निर्देश दिए कि जल्द के जल्द पायल का पता लगाएं.
एडीजी प्रेमप्रकाश का निर्देश मिलते ही जिला पुलिस पूरी तत्परता से इस केस को सुलझाने में जुट गई. एडीजी प्रेमप्रकाश जिला पुलिस से इस मामले से जुड़ी पलपल की जानकारी लेते रहे.
दूसरी तरफ पायल के घर वाले भी पुलिस पर पायल की बरामदी के लिए लगातार दबाव बना रहे थे. मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर भी पायल का मुद्दा गरमाया हुआ था.
पुलिस ने हिरासत में लिए एक आरोपी इमरोज को पायल के अपहरण के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने जहांगीर की रिश्तेदारियों वगैरह में भी दबिशें डालीं. पर वह कहीं नहीं मिला.
जहांगीर को यह पता चल गया था कि इमरोज को पुलिस ने पकड़ लिया है. उसे आशंका थी कि पुलिस पूछताछ में इमरोज ने सब कुछ बता दिया होगा तो पुलिस किसी न किसी तरह उस तक पहुंच जाएगी. पुलिस के डर से बचने के लिए जहांगीर 14 नवंबर को अपने ऊपर चल रहे एक पुराने मामले में अदालत में हाजिर हो कर जेल चला गया.
पुलिस ने दूसरे आरोपी प्रभजीत उर्फ सागर को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी यही बताया कि पहली नवंबर को पायल जहांगीर के पास पहुंची थी. इस के बाद वह कहां गई, यह जानकारी प्रभजीत को भी नहीं थी. पुलिस ने उसे भी अपहरण के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
गंज पुलिस को जहांगीर के जेल जाने की जानकारी मिल चुकी थी. 22 नवंबर को पुलिस ने अदालत में दरख्वास्त दे कर आरोपी जहांगीर का रिमांड मांगा. अदालत ने इस की सुनवाई के लिए 23 नवंबर तय कर दी. पायल को जल्द से जल्द बरामद करने की मांग को ले कर परिवार वालों ने एसपी कार्यालय के सामने एकदिवसीय धरना दिया. एसपी शिवहरि मीणा ने शाहनवाज और उस के घर वालों को भरोसा दिया कि पुलिस की जांच सही दिशा में चल रही है. जल्द ही पायल के बारे में जानकारी मिल जाएगी.
23 नवंबर को अदालत में जहांगीर को पुलिस रिमांड पर भेजने के मामले में सुनवाई हुई. अदालत ने जहांगीर को 25 नवंबर से 4 दिन के रिमांड पर सौंपने के आदेश दिए.
पुलिस ने रिमांड अवधि में जहांगीर से पायल के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह अजमेर में है. एक पुलिस टीम जहांगीर को ले कर अजमेर चली गई. अजमेर में जहांगीर पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा.
वह अपने साथ 4 वकीलों को भी ले गया था. पुलिस को पता लगा कि वह झूठ बोल रहा है तो पुलिस ने धमकी दी कि पायल के गायब कराने में तुम्हारे सभी घर वालों का भी हाथ है. लिहाजा थाने बुला कर उन सभी से पूछताछ की जाएगी.
जहांगीर ने कबूला अपराध
पुलिस की इस धमकी से जहांगीर डर गया और उस ने स्वीकार कर लिया कि वह पायल की हत्या कर चुका है. उस ने यह भी बताया कि उस ने पायल की लाश के टुकड़े कर के कोसी नदी के किनारे दफन कर दिए हैं.
यह जानकारी मिलते ही पुलिस 26 नवंबर की रात में ही कोसी नदी किनारे पहुंच गई. उस की निशानदेही पर जमीन में दबा पायल का शव बरामद हो गया जो 3 टुकड़ों में बंटा था.
जहांगीर ने बताया कि उस ने पायल की हत्या पहली नवंबर को ही कर दी थी. शव गल चुका था. उस की गरदन अलग थी और धड़ भी 2 भागों में बंटा था. घर वालों ने उस की शिनाख्त चप्पल और कपड़ों से की.
पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश के टुकड़े पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. साथ ही डीएनए जांच के लिए सैंपल सुरक्षित रखवा लिए गए. इस के अलावा जहांगीर की निशानदेही पर ही कत्ल में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी और गड्ढा खोदने के लिए प्रयोग किया फावड़ा भी भूसे के ढेर से बरामद कर लिए गए.
27 नवंबर, 2018 को एसपी शिवहरि मीणा ने एक प्रैस कान्फ्रैंस कर के इस केस में खुलासे की घोषणा की. जहांगीर से पूछताछ के बाद पायल की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी—
पायल मूलरूप से रामपुर शहर के मोहल्ला दरख्त कैथ हमाम निवासी शाहनवाज की बेटी थी. बेटी के अलावा शाहनवाज के 3 बेटे थे. यानी 3 भाइयों की लाडली थी पायल. पहली नवंबर, 2018 को पायल अपनी मां गजाला के पास बैठी थी तभी उस के मोबाइल पर उस के प्रेमी के दोस्त इमरोज का फोन आया.
इमरोज ने पायल को बताया था कि उस के प्रेमी जहांगीर ने उसे कुछ जरूरी बात करने के लिए बुलाया है. जहांगीर का नाम सुनते ही पायल खुश हो गई. उस के हां करते ही इमरोज ने उस से कहा कि वह स्कूटी ले कर उस के घर के नजदीक पहुंच जाएगा. वहां से उसे स्कूटी पर बैठा कर वह उसे जहांगीर के पास पहुंचा देगा.
फोन पर बात करने के बाद पायल ने अपनी मां से झूठ बोलते हुए कहा कि वह सहेली के साथ शौपिंग करने जा रही है, 1-2 घंटे में लौट आएगी. मां ने उसे जाने की इजाजत दे दी. वह जल्दी से कपड़े पहन कर तैयार हो गई.
कुछ देर में इमरोज उस के घर के नजदीक पहुंच गया. उस ने फोन कर के यह बात पायल को बता दी, तब तक पायल तैयार हो चुकी थी, वह घर के बाहर आ गई. इमरोज उसे स्कूटी पर बैठा कर कोसी नदी के पास जहांगीर के फार्म हाउस पर ले गया. जहांगीर का नौकर निसार वहां पहले से ही मौजूद था, जो कि बिहार का रहने वाला था. उसी समय जहांगीर का एक और दोस्त प्रभजीत उर्फ सागर भी वहां आ गया.
जहांगीर पायल से बोला, ‘‘तुम ने अच्छा नहीं किया. तुम से रिश्ता टूटने के बाद मेरी मंगनी रामनगर की जाह्नवी के साथ हो गई थी. मेरे बारे में उल्टासीधा कह कर तुम ने मेरा और तुम्हारा रिश्ता टूटने की बात वहां बता दी. इतना ही नहीं तुम ने मेरे खिलाफ उसे भड़काया भी. तुम ने उसे मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को भी उकसाया था. इतना ही नहीं तुम ने सोशल मीडिया पर निशा के परिवार व मुझे बदनाम करने की धमकी भी दी थी.’’
ज्ञात हो कि पायल से मंगनी टूटने के बाद 2018 में जहांगीर की मंगनी रामनगर के एक उच्च परिवार की युवती जाह्नवी के साथ हो गई थी. जहांगीर ने अपना प्रभाव दिखाने के लिए मंगनी से पहले रामनगर में एक रिसोर्ट किराए पर ले लिया था. उस रिसोर्ट को वह अपना बताता था.
बताया जाता है कि जहांगीर को उम्मीद थी कि जाह्नवी के घर वालों की तरफ से दहेज में एक कार व 10 लाख रुपए मिलेंगे. जब पायल को इस मंगनी का पता चला तो वह बौखला गई. उस ने तय कर लिया कि वह जाह्नवी से होने वाली उस की शादी को तोड़वा कर दम लेगी.
जैसेतैसे उस ने रामनगर में जाह्नवी का पता खोज निकाला. बस फिर क्या था, पायल अपने चाचा के लड़के के साथ रामनगर में जाह्नवी के घर पर पहुंच गई. वहां जा कर पायल ने पूरे मोहल्ले में हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने जाह्नवी के घर वालों से कहा कि मार्च 2016 में जहांगीर के साथ मेरी मंगनी हो चुकी है.
पायल ने अपनी मंगनी के समय खींचे गए फोटो भी लोगों को दिखाए. उस ने यह भी कहा कि मेरी मंगनी के बाद भी जहांगीर ने कई अन्य लड़कियों से मंगनी की है. वह लालची है. इस के बाद जाह्नवी के घर वालों ने भी जहांगीर से अपनी बेटी जाह्नवी की मंगनी तोड़ दी. जाह्नवी के घर वालों ने पायल से कहा कि हमें नहीं पता था कि जहांगीर इतना बड़ा लालची और चालाक है.
जब जहांगीर को यह सब पता चला कि पायल ने जाह्नवी के घर वालों को सब कुछ बता कर जाह्नवी के साथ होने वाली उस की मंगनी तुड़वा दी है तो उसे पायल पर बहुत गुस्सा आया. उस ने पायल को सबक सिखाने की ठान ली. उधर पायल को उम्मीद थी कि जाह्नवी से मंगनी टूट जाने के बाद जहांगीर का झुकाव उस की तरफ हो जाएगा. क्योंकि पायल अभी भी अपने दिल में जहांगीर को बसाए हुए थी.
बन गई हत्या की योजना
जहांगीर ने पायल को खत्म करने की योजना बना ली थी. इसलिए उस ने पायल को बारबार फोन कर के नजदीकियां बनानी शुरू कर दी थीं. जिस से पायल उस के भ्रमजाल में फंसती गई.
इसी योजना के तहत पहली नवंबर को जहांगीर ने अपने दोस्त इमरोज की मार्फत पायल को अपने फार्महाउस पर बुला लिया. जहांगीर ने एक बार फिर उसे समझाया, ‘‘अब भी कह रहा हूं कि तुम मेरे रास्ते से हट जाओ. मैं वादा करता हूं कि पहले मैं जाह्नवी से शादी कर लूं, उस के बाद तुम से निकाह कर लूंगा.’’
पायल उस की इस बात पर सहमत नहीं हुई. वह जहांगीर से कह रही थी कि मेरी मंगनी तुम से हुई है, इसलिए तुम जाह्नवी को भूल जाओ. पायल अपनी इसी बात पर अड़ी रही.
इसी दौरान गरमागरमी में बात इतनी बढ़ गई कि जहांगीर ने पायल को पकड़ कर जमीन पर गिरा दिया और अपने हाथों से उस का गला घोंट कर मौत के घाट उतार दिया. जहांगीर को इतने पर भी संतोष नहीं हुआ. उस ने अपने नौकर निसार, दोस्त इमरोज, प्रभजीत उर्फ सागर के साथ मिल कर पहले से साथ लाई कुल्हाड़ी से पायल का पहले धड़ से सिर अलग किया. फिर धड़ को भी 2 हिस्सों में काट डाला फिर चारों ने कोसी नदी के किनारे गड्ढा खोद कर पायल के तीनों टुकड़ों को दबा दिया.
पायल की हत्या और लाश मिलने से शहर भर में अशांति का माहौल बन गया था. क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए शहर में भारी मात्रा में पुलिस तैनात कर दी गई थी. पोस्टमार्टम स्थल पर भी पुलिस का खास इंतजाम था. सपा नेता और पूर्व मंत्री मोहम्मद आजम खां भी पायल के घर वालों को सांत्वना देने के लिए पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे.
पोस्टमार्टम के बाद भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पायल की टुकड़ों में बंटी लाश का अंतिम संस्कार किया गया. जहांगीर ने पुलिस को बताया कि पायल की हत्या करने के बाद इस की जानकारी उस ने अपने पिता ताहिर खां व अपने चचेरे भाई दानिश खां को दे दी थी.
जबकि पुलिस ने जहांगीर के पिता ताहिर खां से पूछताछ की थी तो उस ने बताया कि जब से जहांगीर का रिश्ता खत्म हुआ है, हमारा उन से कोई वास्ता नहीं है. वह हम पर नाहक शक कर रहे हैं.
पुलिस ने जहांगीर से पूछताछ के बाद उसे भी कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस की विवेचना में 3 नाम और पुलिस की निगाह में आए ताहिर खां, दानिश खां और नौकर निसार.
यह तीनों आरोपी भी अपने ठिकानों से गायब हो गए थे. जब तीनों नहीं मिले तो पुलिस ने उन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है. एसपी शिवहरि मीणा ने बिहार निवासी नौकर निसार पर 20 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में जाह्नवी परिवर्तित नाम है.
महानगर मुंबई से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुणे शहर में 21 नवंबर, 2018 को 2-2 जगहों पर हुई गोलीबारी ने शहर के लोगों के दिलों में डर पैदा कर दिया था. इस गोलीबारी में एक महिला की मौत हो गई थी और क्राइम ब्रांच का एक अधिकारी घायल हो गया था. उस अधिकारी की हालत गंभीर बनी हुई थी.
घटना चंदन नगर थाने के आनंद पार्क इंद्रायणी परिसर की सोसायटी स्थित धनदीप इमारत के अंदर घटी. सुबह के समय 3 गोलियां चलने की आवाज से वहां रहने वाले लोग चौंके. गोलियों की आवाज इमारत की पहली मंजिल और दूसरी मंजिल के बीच बनी सीढि़यों से आई थी.
आवाज सुनते ही पहली और दूसरी मंजिल पर रहने वाले लोग अपने फ्लैटों से बाहर निकल आए. वहां का दृश्य देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया. सीढि़यों पर एकता बृजेश भाटी नाम की युवती खून से लथपथ पड़ी थी. वह पहली और दूसरी मंजिल के 3 फ्लैटों में अपने परिवार के साथ किराए पर रहती थी. शोरशराबा सुन कर इमारत में रहने वाले अन्य लोग भी वहां आ गए.
लोग घायल महिला को अस्पताल ले गए, लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल द्वारा थाना चंदन नगर पुलिस को सूचना दे दी गई.
सुबहसुबह इलाके में घटी इस सनसनीखेज घटना की खबर पा कर थाना चंदन नगर के थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक अपनी टीम के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. अस्पताल में राजेंद्र मुलिक को पता चला कि एकता भाटी को उस के फ्लैट पर ही गोलियां मारी गई थीं. डाक्टरों ने बताया कि एकता को 2 गोलियां लगी थीं. एक गोली उस के पेट में लगी थी और दूसरी सिर को भेदते हुए आरपार निकल गई थी. थानाप्रभारी अस्पताल में 2 कांस्टेबलों को छोड़ कर घटनास्थल पर पहुंच गए.
वहां जाने पर यह जानकारी मिली कि मृतका एकता भाटी सुबह अपने परिवार वालों के साथ चायनाश्ता के लिए अपनी पहली मंजिल वाले फ्लैट में दूसरी मंजिल से आ रही थी. उस का पति बृजेश भाटी 5 मिनट पहले ही नीचे आ चुका था. वह अपने पिता और बच्चों के साथ बैठा पत्नी के आने का इंतजार कर रहा था. उसी समय यह घटना घटी.
थानाप्रभारी ने मुआयना किया तो एक गोली का निशान सीढि़यों के पास दीवार पर मिला. इस का मतलब हमलावर की एक गोली दीवार पर लगी थी. बृजेश भाटी ने पुलिस को बताया कि उन्होंने 3 गोलियां चलने की आवाज सुनी थी.
मामला काफी संगीन था, अत: थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक ने मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पुलिस कंट्रोल रूम और फोरैंसिक टीम को भी दे दी. सूचना पाते ही शहर के डीसीपी घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया.
पुलिस समझ नहीं पाई हत्या का कारण
मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी फिर से अस्पताल पहुंचे और एकता भाटी के शव को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून डाक अस्पताल भेज दिया.
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस के उच्च अधिकारियों ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिस में शहर के कई थानों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ क्राइम ब्रांच के डीसीपी शिरीष सरदेशपांडे भी शामिल हुए. मामले पर विचारविमर्श करने के बाद पुलिस ने अपनी जांच शुरू कर दी.
महानगर मुंबई हो या फिर पुणे, इन शहरों में छोटीबड़ी कोई भी घटना घटती है तो स्थानीय पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच अपनी समानांतर जांच शुरू कर देती है. डीसीपी शिरीष सरदेशपांडे ने भी एकता भाटी की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए 2 टीमें गठित कीं, जिस की कमान उन्होंने इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव और क्राइम ब्रांच यूनिट-2 के इंसपेक्टर गजानंद पवार को सौंपी.
सीनियर अफसरों के निर्देशन में स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच ने तेजी से जांच शुरू कर दी. उन्होंने सब से पहले पूरे शहर की नाकेबंदी करवा कर अपने मुखबिरों को सजग कर दिया.
मृतक एकता भाटी का परिवार दिल्ली का रहने वाला था, इसलिए मामले के तार दिल्ली से भी जुड़े होने का संदेह था. इस के साथसाथ उन्होंने घटना की तह तक पहुंचने के लिए आसपास लगे सारे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को खंगालना शुरू कर दिया.
पुलिस को इस से पता चला कि हत्यारे मोटरसाइकिल पर आए थे. वह मोटरसाइकिल पुणे वड़गांव शेरी के शिवाजी पार्क के सामने लावारिस हालत में खड़ी मिली. यह भी जानकारी मिली कि मोटरसाइकिल पुणे की मार्केट से चोरी की गई थी. मोटरसाइकिल वहां छोड़ कर वह सारस बाग की तरफ निकल गए थे. लिहाजा क्राइम ब्रांच की टीम हत्यारों की तलाश में जुट गई.
उसी दिन शाम करीब 4 बजे इंसपेक्टर गजानंद पवार की टीम को एक मुखबिर द्वारा खबर मिली कि चंदन नगर गोलीबारी के दोनों अभियुक्त पुणे रेलवे स्टेशन पर आने वाले हैं. वे प्लेटफार्म नंबर-3 से साढ़े 5 बजे छूटने वाली झेलम एक्सप्रैस से दिल्ली भागने वाले हैं.
धरे गए हत्यारे
यह खबर उन के लिए काफी महत्त्वपूर्ण थी. यह खबर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे कर वह हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी की योजना तैयार करने में जुट गए. गाड़ी छूटने के पहले उन्हें अपना मोर्चा मजबूत करना था, इसलिए उन्होंने इस मामले की खबर चंदन नगर पुलिस के साथसाथ वड़गांव पुलिस और पुणे स्टेशन की जीआरपी को भी दे दी.
इंसपेक्टर गजानंद पवार अपनी टीम और क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव की टीम ने पुणे रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-3 पर खड़ी झेलम एक्सप्रेस पर शिकंजा कस दिया. स्थानीय पुलिस टीम भी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-3 पर नजर रखे हुए थी, जबकि इंसपेक्टर गजानंद पवार कांस्टेबल मोइद्दीन शेख के साथ स्टेशन के सीसीटीवी के कैमरों के कंट्रोल रूम में बैठ कर आनेजाने वाले मुसाफिरों को बड़े ध्यान से देख रहे थे.
जैसेजैसे गाड़ी के छूटने का समय नजदीक आ रहा था, वैसेवैसे उन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. एक बार तो उन्हें लगा कि शायद अभियुक्तों ने अपना इरादा बदल दिया होगा. लेकिन दूसरे ही क्षण उन की निगाहें चमक उठीं. गाड़ी छूटने में सिर्फ 10 मिनट बचे थे, तभी उन्होंने बदहवासी की हालत में 2 संदिग्ध लोगों को तेजी से बोगी नंबर-9 की तरफ बढ़ते हुए देखा.
यह समय पुलिस के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण था. इंसपेक्टर गजानंद पवार ने पुलिस टीमों को सावधान कर दिया. वह खुद कोच नंबर 9 के पास पहुंच गए. उन्होंने आगे बढ़ कर उन दोनों को डिब्बे में चढ़ने से रोक लिया और उन से अपनी आईडी दिखाने को कहा. उन में से एक ने अपनी आईडी दिखाने के बहाने अपनी जेब से रिवौल्वर निकाला और इंसपेक्टर गजानंद पवार को अपना निशाना बना कर 3 गोलियां चला दीं.
अचानक चली गोली से इंसपेक्टर पवार ने खुद को बचाने की कोशिश की लेकिन एक गोली उन के जबड़े में लग गई. दूसरी गोली उन के कंधे को टच करती हुई निकली जो एक आदमी को जा कर लगी.
प्लेटफार्म पर चली गोलियों की आवाज से स्टेशन पर मौजूद मुसाफिरों में भगदड़ मच गई. इसी भगदड़ का लाभ उठा कर बदमाश अपनी रिवौल्वर लहराते हुए भागने लगे. लेकिन इस में सफल नहीं हो सके. कुछ दूरी पर मुस्तैद इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव ने दौड़ कर इंसपेक्टर गजानंद पवार को संभाला.
अन्य पुलिस वाले हमलावरों के पीछे भागे. स्टेशन से निकल कर दोनों हमलावर सड़क पर भागने लगे. पुलिस भी उन के पीछे थी. सड़क पर चल रही भीड़ की वजह से पुलिस उन पर गोली भी नहीं चला सकती थी. तभी मालधक्का रेडलाइट पर तैनात बड़ गार्डन ट्रैफिक पुलिस के कांस्टेबल राजेंद्र शेलके ने एक हमलावर को दबोच लिया. दूसरे को जीआरपी ने पकड़ कर क्राइम ब्रांच के हवाले कर दिया.
हमलावरों की गोली से घायल इंसपेक्टर गजानंद पवार और घायल आदमी को पास के ही रूबी अस्पताल में भरती करवा दिया गया था, जहां घायल आदमी की मृत्यु हो गई थी, जबकि इंसपेक्टर गजानंद पवार की हालत नाजुक बनी हुई थी.
सुपारी ले कर बाप बेटे ने की हत्या
पकड़े गए हमलावरों से पूछताछ की गई तो उन में से एक ने अपना नाम शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव बताया जबकि दूसरा उस का 19 वर्षीय बेटा मुकेश उर्फ मोंटी शिवलाल राव था. दोनों ही मूलरूप से राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले थे, पर फिलहाल दिल्ली के उत्तम नगर में रहते थे. उन्होंने एकता भाटी की हत्या करने का अपराध स्वीकार किया.
क्राइम ब्रांच को दोनों हमलावरों से गहन पूछताछ करनी थी, इसलिए दूसरे दिन उन्हें पुणे के प्रथम मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट गजानंद नंदनवार के सामने पेश कर उन्हें 7 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.
रिमांड अवधि में उन से पूछताछ की गई तो पता चला कि मृतका एकता के पति बृजेश भाटी का दिल्ली की किसी महिला के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था. यानी एकता पति की प्रेमकहानी की भेंट चढ़ी थी. इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी निकल कर आई, वह बेहद दिलचस्प थी.
बात सन 2014 की थी. उस समय भाटी परिवार दिल्ली में रहता था. उन का अपना छोटा सा कारोबार था, जिस की देखरेख एकता भाटी और पति बृजेश भाटी करते थे. आमदनी कुछ खास नहीं थी, बस किसी तरह परिवार की गाड़ी चल रही थी. लेकिन ऐसा कितने दिनों तक चल सकता था. इसे ले कर दोनों पतिपत्नी अकसर परेशान रहते थे.
वे अच्छी आमदनी के लिए गूगल पर सर्च करते रहते थे. इसी खोज में बृजेश भाटी की संध्या पुरी से फेसबुक पर दोस्ती हो गई. दोनों की यह दोस्ती बहुत जल्द प्यार में बदल गई. संध्या पुरी खूबसूरत युवती थी. बृजेश भाटी ने अपने फेसबुक प्रोफाइल में खुद को अनमैरिड लिखा था, जबकि वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था.
पति का इश्क बना एकता की मौत का कारण
बृजेश भाटी को अनमैरिड जान कर ही संध्या पुरी ने उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था. संध्या पुरी बृजेश भाटी को ले कर खुशहाल जीवन के सुनहरे सपने देखने लगी थी. संध्या पुरी के इस अंधे प्यार का चतुर चालाक बृजेश भाटी ने भरपूर फायदा उठाया. उस ने संध्या पुरी से शादी का वादा कर उस से काफी पैसा ऐंठा. साथ ही उस ने संध्या की कार भी हथिया ली थी.
इस तरह बृजेश भाटी संध्या पुरी के पैसों पर मौज कर रहा था. जब संध्या पुरी ने बृजेश पर शादी का दबाव डालना शुरू किया तो वह योजनानुसार संध्या पुरी की कार बेच कर परिवार सहित पुणे चला गया.
पुणे जाने के बाद बृजेश और एकता ने कैटरिंग का काम शुरू किया. शुरूशुरू में उन के लिए यह काम कठिन था लेकिन धीरेधीरे सब ठीक हो गया. उन की और परिवार की मेहनत से थोड़े ही दिनों में उन का यह कारोबार चल निकला. उन्होंने पुणे की कई आईटी कंपनियों में अपनी एक खास जगह बना ली थी.
उन कंपनियों के खाने के डिब्बों की जिम्मेदारी उन के ऊपर आ गई थी. उन के खाने में जो टेस्ट था, वह किसी और के डिब्बों में नहीं था.
काम बढ़ा तो पैसा आया और पैसा आया तो उन के परिवार का रहनसहन बदल गया. उन्होंने पुणे के पौश इलाके की धनदीप बिल्डिंग में 3 फ्लैट किराए पर ले लिए. 2 फ्लैट बिल्डिंग की पहली मंजिल पर थे तो एक दूसरी मंजिल पर था. दूसरी मंजिल के फ्लैट को उन्होंने अपना बैडरूम बनाया. पहली मंजिल का एक फ्लैट उन्होंने अपने दोनों बच्चों और पिता के लिए रखा.
दूसरे फ्लैट को उन्होंने खाने का मेस बना लिया. मेस में काम करने के लिए नौकर और नौकरानी भी रख ली थी, जो खाना बनाने और टिफिन तैयार करने का काम किया करते थे. सुबह की चायनाश्ता पूरा परिवार साथसाथ नीचे वाले फ्लैट में करता था.
बृजेश के शादीशुदा होने की जानकारी जब संध्या पुरी को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि वह बृजेश को दिलोजान से चाहती थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस शख्स पर उस ने अपना तन, मन और धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया, वह 2 बच्चों का बाप है.
संध्या को इस का बहुत दुख हुआ. वह ऐसे धोखेबाज को सबक सिखाना चाहती थी, लेकिन वह दिल्ली से फरार हो चुका था. संध्या हार मानने वालों में से नहीं थी. उस ने निश्चय कर लिया कि वह बृजेश भाटी को ढूंढ कर ही रहेगी. इस के लिए भले ही उस के कितने भी पैसे खर्च हो जाएं. लिहाजा वह अपने स्तर से बृजेश को तलाशने लगी.
उस की कोशिश रंग लाई. उसे फरवरी 2017 में पता चल गया कि बृजेश इस समय पुणे में अपने परिवार के साथ रह रहा है. वह उस के पास पुणे चली गई. वहां वह उस के घर वालों से भी मिली. पहले तो बृजेश ने संध्या को पहचानने से इनकार कर दिया लेकिन जब उस ने अपने तेवर दिखाए तो वह लाइन पर आ गया.
संध्या ने जब शादी की बात कही तो उस ने शादी करने से इनकार कर दिया. उस समय बृजेश की पत्नी एकता ने संध्या को बुरी तरह बेइज्जत कर के घर से निकाल दिया था.
इस से नाराज और दुखी हो कर संध्या दिल्ली लौट आई. बृजेश को सबक सिखाने के लिए उस के खिलाफ उत्तम नगर थाने में बलात्कार और धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज हो जाने के बाद दिल्ली पुलिस ने बृजेश भाटी को पुणे से गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया. करीब डेढ़ महीने जेल में रहने के बाद वह जमानत पर बाहर आ गया तो संध्या पुरी ने उस से अपनी कार और पैसों की मांग शुरू कर दी.
इस पर बृजेश भाटी के परिवार वालों और संध्या पुरी में जम कर तकरार हुई थी. तब संध्या ने धमकी दी कि अगर उस की कार और पैसे वापस नहीं मिले तो पूरे परिवार को नहीं छोड़ेगी. भाटी परिवार ने इसे संध्या पुरी की एक कोरी धमकी समझा था.
बृजेश भाटी से छली जा चुकी संध्या पुरी ने भाटी परिवार को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. वह उसे साकार करने में जुट गई थी. वह जिस तरह तड़प रही थी, उसी तरह धोखेबाज बृजेश को भी तड़पते देखना चाहती थी. इस काम में उस के एक जानपहचान वाले शख्स ने उस की मदद की. उस ने संध्या को आपराधिक प्रवृत्ति वाले शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव से मिलवाया.
पकड़ में आई हत्या कराने वाली प्रेमिका
संध्या पुरी बृजेश भाटी की पत्नी एकता भाटी की हत्या कराना चाहती थी. इस के लिए उस ने शिवलाल उर्फ शिवा को मोटी सुपारी दी. सुपारी लेने के बाद शिवा अपने बेटे मुकेश उर्फ मोंटी राव के साथ पुणे पहुंच गया.
पुणे आ कर दोनों ने पहले बृजेश भाटी के घर की पूरी रेकी की और घटना के दिन उन्होंने पुणे मार्केट से एक मोटरसाइकिल चुरा ली और सुबहसुबह आ कर एकता भाटी को अपना निशाना बना कर वहां से भाग निकले. वे शहर से बाहर निकल जाना चाहते थे. लेकिन पुलिस के सक्रिय होने से वह पुणे में ही रह गए थे.
उन्हें पता था कि पुणे से शाम साढ़े 5 बजे दिल्ली के लिए झेलम एक्सप्रैस जाती है. इसी ट्रेन से उन्होंने दिल्ली भाग जाना उचित समझा, इसलिए शाम 4 बजे तक उन्होंने सारसबाग के एक होटल में समय बिताया. फिर वे प्लेटफार्म नंबर 3 पर खड़ी झेलम एक्सप्रैस में चढ़ने को हुए तो उन का सामना पुलिस से हो गया. शिवलाल ने शक होने पर गोली चला दी, जिस से इंसपेक्टर गजानंद पवार घायल हो गए.
शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव और मुकेश उर्फ मोंटी राव से पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच की एक टीम संध्या पुरी को गिरफ्तार करने दिल्ली निकल गई. 26 नवंबर, 2018 को दिल्ली में उत्तम नगर पुलिस की सहायता से संध्या पुरी को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस संध्या को पुणे ले गई.
पूछताछ के बाद संध्या पुरी ने पूरी कहानी बता दी.॒पुलिस ने संध्या पुरी, शिवलाल और उस के बेटे मुकेश उर्फ मोंटी को कोर्ट में पेश कर के यरवदा जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में बंद थे. आगे की जांच चंदन नगर थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक कर रहे थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
पुलिस जांच से अब तक यह साफ हो चुका था कि उर्मिला और ठेकेदार इंजीनियर शैलेंद्र के बीच कोई चक्कर है. पुलिस ने अब हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनाई. पुलिस टीम ने विकास सोनकर, शैलेंद्र सोनकर व सुमित कठेरिया को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर दबिश दी, लेकिन वह अपने घरों से फरार थे.
29 नवंबर, 2023 की शाम 5 बजे एसएचओ पवन कुमार को मुखबिर के जरिए पता चला कि उर्मिला व उस के साथी इस समय कोयला नगर स्थित गणेश चौराहे पर मौजूद हैं. शायद वे शहर से फरार होने की फिराक में हैं.
चूंकि सूचना खास थी, अत: एसएचओ पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और उर्मिला को उस के 2 साथियों के साथ हिरासत में ले लिया. लेकिन सुमित कठेरिया वहां से फरार हो गया था. तीनों को थाने लाया गया.
पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो तीनों ने राजेश की हत्या में शामिल होने का जुर्म कुबूल कर लिया.
चूंकि तीनों हत्यारोपियों ने शिक्षक राजेश की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, इसलिए मृतक के बड़े भाई ब्रह्मदीन की तरफ से शैलेंद्र सोनकर, विकास, सुमित कठेरिया तथा उर्मिला गौतम के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और सुमित के अलावा तीनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. सुमित कठेरिया की तलाश में पुलिस जी जान से जुट गई.
पुलिस कस्टडी में आरोपी
पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपियों के बयानों एवं मृतक के घर वालों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर इस वारदात के पीछे औरत और जुर्म की एक ऐसी कहानी सामने आई, जिस ने प्यार और प्रौपर्टी के लालच में अपने ही सुहाग की सुपारी दे दी.
उर्मिला की शादी की अजीब थी कहानी
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के चकेरी थाने के अंतर्गत आता है- दहेली सुजानपुर. 2 दशक पहले दहेली सुजानपुर गांव था और यहां खेती होती थी. लेकिन जैसे जैसे शहर का विकास हुआ, यह गांव शहर की परिधि में आ गया. कानपुर विकास प्राधिकरण ने किसानों की जमीन अधिग्रहण कर कालोनियां बनाईं और लोगों को बसाया. प्रौपर्टी डीलरों ने भी प्लौट काट कर बेचे तथा फ्लैट भी बनाए. सालों पहले जो जमीन कौडिय़ों के दाम बिकती थी, वही जमीन अब लाखोंकरोड़ों की हो गई है.
इसी दहेली सुजानपुर में राजाराम गौतम रहते थे. उन के 3 बेटे ब्रह्मïादीन, राजेश व महेश थे. राजाराम के पास 20 एकड़ जमीन थी. उन्होंने अपने जीते जी मकान व जमीन का बंटवारा तीनों बेटों में कर दिया था. हर बेटे के हिस्से में करोड़ों की जमीन आई थी. उन के 2 बेटे ब्रह्मदीन व महेश, सनिगवां में मकान बना कर परिवार सहित रहने लगे थे. बड़ा बेटा ब्रह्मदीन एमईएस चकेरी में नौकरी करता था. ब्रह्मादीन के बेटे कुलदीप का इंडियन नेवी में चयन हो गया था.
राजेश गौतम 3 भाइयों में मंझला था. वह अन्य भाइयों से ज्यादा तेजतर्रार था. वह दहेली सुजानपुर में ही रहता था. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 2 बेटे थे. वह सरसौल ब्लाक के सुभौली गांव स्थित प्राथमिक पाठशाला में अध्यापक था. राजेश दबंग शिक्षक था.
वर्ष 2012 में राजेश का विवाह खूबसूरत उर्मिला के साथ बड़े ही नाटकीय ढंग से हुआ था. दरअसल, राजेश अपने दोस्त विमल के लिए उर्मिला को देखने उस के साथ बनारस गया था. विमल ने तो उर्मिला को देखते ही पसंद कर लिया था, लेकिन उर्मिला ने विमल को यह कह कर नकार दिया था कि विमल गंजा है. वहीं उस ने राजेश को पसंद कर लिया था.
बनारस से लौटने के बाद उर्मिला और राजेश के बीच मोबाइल फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. 2-3 महीने बाद उर्मिला ने अपने घर वालों को और राजेश ने भी अपने घर वालों से एकदूसरे से शादी कराने की बात कही तो घर वालों ने भी इजाजत दे दी. उस के बाद 17 जून, 2012 को उर्मिला का विवाह राजेश के साथ धूमधाम से हो गया.
राजेश गौतम और उर्मिला
खूबसूरत उर्मिला को पा कर राजेश गौतम अपने भाग्य पर इतरा उठा था. उर्मिला भी उस से शादी कर के खुश थी. उर्मिला ने आते ही घर संभाल लिया था और पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी. शादी के एक साल बाद उर्मिला ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से घर में खुशियां दोगुनी हो गईं.
इस के 2 साल बाद उर्मिला ने एक और बेटे को जन्म दिया. 2 बच्चों के जन्म के बाद राजेश ने पत्नी की इच्छाओं पर गौर करना कम कर दिया. क्योंकि उस ने नौकरी के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया था.
पति की बेरुखी पर उर्मिला रात भर बेचैन रहती. उसे घर में सब सुख था, किसी चीज की कमी न थी, लेकिन पति के प्यार से वंचित थी. इस तरह उर्मिला नीरस जिंदगी गुजारने लगी. उस ने दोनों का एडमिशन कोयला नगर स्थित मदर टेरेसा स्कूल में करा दिया.
राजेश गौतम ने प्रौपर्टी डीलिंग में करोड़ों रुपए कमाए. साथ ही कोयला नगर क्षेत्र में ही उस ने 5-6 प्लौट भी खरीद लिए, जिन की कीमत करोड़ों रुपए थी. राजेश कमाई में इतना व्यस्त हो गया कि पत्नी की भावनाओं की कद्र करना ही भूल गया.
30 करोड़ की संपत्ति थी राजेश के पास
वह सुबह उठता, पहले टहलने जाता, फिर तैयार होकर स्कूल चला जाता. दोपहर बाद स्कूल से आता, फिर प्रौपर्टी के काम में व्यस्त हो जाता. इस के बाद देर रात आता और खाना खा कर सो जाता. यही उस का रुटीन था.
राजेश गौतम की तमन्ना थी कि वह कोयला नगर में एक ऐसा आलीशान मकान बनाए, जिस की चर्चा क्षेत्र में हो. अपनी तमन्ना पूरी करने के लिए उस ने 300 वर्गगज वाले अपने प्लौट पर मकान बनाने का फैसला किया. इस के लिए उस ने 6 करोड़ रुपए का इंतजाम भी कर लिया.
उर्मिला ने शैलेंद्र को रिझाने के जतन शुरू कर दिए. कभी वह उसे तिरछी नजरों से देख कर मुसकराती तो कभी शरमाने का अभिनय करती. शैलेंद्र पहले से ही उसे हसरत भरी निगाहों से देखता था. उर्मिला ने मुसकरा कर उसे देखना शुरू किया तो उस की हसरतें उफान मारने लगीं.
जब उर्मिला के कामुक बाणों का शैलेंद्र पर प्रभाव हुआ तो वह एक कदम आगे बढ़ी. यही नहीं, अब वह निर्माणाधीन मकान देखने भी जाने लगी. वहां दोनों खुल कर बतियाते और हंसीमजाक भी करते. शैलेंद्र समझ गया कि उर्मिला उस की बांहों में समाने को बेताब है.
एक दिन उस ने साहस दिखाते हुए उर्मिला को बाहुपाश में जकड़ लिया, ”भाभी, बहुत ललचा चुकी हो, आज मर्यादा टूट जाने दो.’’
”तोड़ दो,’’ उम्मीद के विपरीत उर्मिला शैलेंद्र की आंखों में देखते हुए मुसकराई, ”मैं भी यही चाहती हूं.’’
राजेश गौतम स्कूल गया था और दोनों बेटे पढऩे के लिए स्कूल जा चुके थे. सुनहरा मौका देख कर शैलेंद्र उर्मिला को बैड पर ले गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.
4 नवंबर, 2023 की सुबह 7 बजे किसी परिचित ने कानपुर के अनिगवां निवासी ब्रह्मदीन गौतम को फोन पर सूचना दी कि उन का शिक्षक भाई राजेश गौतम स्वर्ण जयंती विहार स्थित पार्क के पास सड़क पर घायल पड़ा है. उस का एक्सीडेंट हुआ है. किसी तेज रफ्तार कार ने उसे कुचल दिया है. यह जानकारी मिलते ही ब्रह्मदीन ने अपने बेटे कुलदीप को साथ लिया और स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए. वहां पार्क के पास राजेश सड़क पर औंधे मुंह पड़ा था.
उस के सिर से खून बह रहा था. थोड़ी ही देर में घर के अन्य लोगों के साथ राजेश की पत्नी उर्मिला भी वहां पहुंच गई. पति की हालत देख कर उर्मिला की चीख निकल गई. ब्रह्मदीन व महेश भी भाई की हालत देख कर हैरान रह गए थे. कुलदीप तो समझ ही नहीं पा रहा था कि चाचा हर रोज मार्निंग वाक पर इसी सड़क पर आते थे, लेकिन आज इतना खतरनाक एक्सीडेंट कैसे हो गया.
राजेश को हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. लेकिन सांस की आस में राजेश को कांशीराम अस्पताल ले जाया गया, जहां के डाक्टरों ने उसे रीजेंसी ले जाने को कहा. इसी बीच किसी ने राजेश के एक्सीडेंट की सूचना थाना सेन पश्चिम पारा पुलिस को दे दी थी.
सूचना मिलते ही एसएचओ पवन कुमार कुछ पुलिसकर्मियों के साथ कांशीराम अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों के अनुसार राजेश की सांसें थम चुकी थीं, लेकिन घर वालों की जिद की वजह से पुलिस उसे पहले रीजेंसी फिर जिला अस्पताल हैलट ले गई. वहां के डाक्टरों ने भी राजेश गौतम को मृत घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले लिया और घटना की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.
कुछ देर बाद एसएचओ पवन कुमार दुर्घटनास्थल का निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां भीड़ जुटी थी. सुबह की सैर करने वाले कई लोग भी वहां मौजूद थे. उन में से एक कमल गौतम ने बताया कि राजेश गौतम से वह परिचित था. वह हर रोज मार्निंग वाक पर आते थे.
आज सुबह साढ़े 6 बजे के लगभग वह सड़क पर तेज कदमों से टहल रहे थे, तभी एक कार उन के नजदीक से पास हुई. फिर उसी कार ने कुछ दूरी पर जा कर यू टर्न लिया और तेज रफ्तार से आ कर राजेश को टक्कर मार दी. राजेश उछल कर दूर जा गिरे.
एसएचओ पवन कुमार घटनास्थल पर जांच कर ही रहे थे, तभी एसीपी (घाटमपुर) दिनेश कुमार शुक्ला तथा एडीसीपी अंकिता शर्मा भी वहां पहुंच गईं. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.
अंतिम संस्कार के बाद मृतक का भाई ब्रह्मदीन, महेश तथा भतीजा कुलदीप, उर्मिला के घर में ही रात को रुक गए. रात में राजेश की मौत पर चर्चा शुरू हुई तो कुलदीप बोला, ”उर्मिला चाची, हमें लगता है कि चाचा को सोचीसमझी रणनीति के तहत मौत के घाट उतारा गया है और दुर्घटना का रूप दिया गया है. लगता है कि चाचा से कोई खुन्नस खाए बैठा था.’’
”कुलदीप, ऐसा कुछ भी नहीं है. तुम सब लोग मेरे घर पर फालतू की बकवास मत करो और मेरा दिमाग खराब न करो. अच्छा होगा, तुम सब हमारे घर से चले जाओ.’’
घर वालों को उर्मिला पर क्यों हुआ शक
उर्मिला का व्यवहार देख कर कुलदीप ने उर्मिला से बहस नहीं की और अपने पिता व परिवार के अन्य लोगों के साथ वापस घर लौट आया.
इधर तमतमाई उर्मिला सुबह 10 बजे ही एडीसीपी कार्यालय जा पहुंची. उस ने एडीसीपी अंकिता शर्मा को एक तहरीर देते हुए कहा कि उसे शक है कि पति के भतीजे कुलदीप व उस के घर वालों ने पति की करोड़ों की प्रौपर्टी हड़पने के लिए दुर्घटना का रूप दे कर उन की हत्या की है.
एडीसीपी अंकिता शर्मा
इधर कुलदीप को जब पता चला कि उर्मिला चाची ने उस के व घर वालों के खिलाफ शिकायत की है तो कुलदीप एडीसीपी अंकिता शर्मा से मिला और बताया कि वह नेवी में कार्यरत है. उसे शक है कि उस के चाचा राजेश की मौत किसी षड्यंत्र के तहत हुई है. वह चाहता है कि इस की गंभीरता से जांच हो.
इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाली. इस से पता चला कि राजेश को कुचलने के बाद कार बेकाबू हो कर खंभे से टकराई तो कार चालक पीछे आ रही दूसरी वैगन आर कार में सवार हो कर भाग गया था.
इन सबूतों को देख कर एडीसीपी अंकिता शर्मा ने एसीपी दिनेश शुक्ला की देखरेख में एक जांच टीम भी गठित कर दी. टीम में 2 महिला सिपाही व एक तेजतर्रार महिला एसआई को भी शामिल किया गया.
पुलिस कैसे पहुंची आरोपियों तक
ईको स्पोर्ट कार, जिस से राजेश को टक्कर मारी गई थी, का पता लगाया तो वह कार आवास विकास 3 कल्याणपुर, कानपुर निवासी सुमित कठेरिया की निकली. वैगनआर कार के नंबर की जांच करने पर पता चला कि यह नंबर फरजी है. यह नंबर किसी लोडर का था. अब पुलिस का शक और गहरा गया.
जांच में पुलिस टीम को 12 संदिग्ध मोबाइल नंबर मिले थे, उन में एक नंबर मृतक राजेश की पत्नी उर्मिला का भी था. पुलिस ने जब उर्मिला के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस ने एक फोन नंबर पर महीने भर में 400 बार काल्स की थीं. घटना वाले दिन भी उस की इस नंबर पर कई बार बातें हुई थीं. पुलिस ने इस नंबर की जांचपड़ताल की तो पता चला कि यह नंबर शैलेंद्र सोनकर का है.
पुलिस ने शैलेंद्र सोनकर के बारे में मृतक के घर वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला कि शैलेंद्र सोनकर आर्किटेक्ट इंजीनियर है. उसी ने राजेश के कोयला नगर वाले मकान को बनाने का ठेका लिया था. मकान बनवाने के दौरान ही शैलेंद्र का उर्मिला के घर आनाजाना शुरू हुआ और दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी थीं.
दीवार पर लगी घड़ी की ओर देखते हुए संजय गुप्ता ने बेटी को आवाज दी, ‘‘बेटी चेतना जल्दी करो, ट्यूशन के लिए देर हो रही है.’’ चेतना ने कोई जवाब नहीं दिया तो संजय गुप्ता ने पुन: आवाज लगाई, ‘‘जल्दी करो बेटा, देर हो रही है.’’
पिता के दोबारा आवाज लगाने पर चेतना टोस्ट का टुकड़ा मुंह में ठूंसते हुए बोली, ‘‘बस आई पापा, दो मिनट.’’
कह कर चेतना ने किताबें और नोटबुक समेटीं और जल्दी से संजय गुप्ता के पास आ कर बोली, ‘‘चलिए पापा.’’
‘‘चलो.’’ कह कर संजय गुप्ता बाहर आ गए. उन्होंने स्कूटी निकाल कर स्टार्ट की तो चेतना फुर्ती से उन के पीछे बैठ गई. इस के बाद उन्होंने स्कूटी आगे बढ़ा दी. संजय गुप्ता और चेतना का यह रोज का काम था. चेतना गुप्ता जगराओं के डीएवी कालेज से बीकौम कर रही थी. वह कालेज दोपहर के बाद जाती थी, इसीलिए सुबह साढ़े 8 बजे से साढ़े 11 बजे तक ट्यूशन पढ़ने जाती थी. यही वजह थी कि दुकान पर जाते समय संजय गुप्ता चेतना को साथ लेते जाते थे. उसे ट्यूशन वाले मास्टर की गली के मोड़ पर छोड़ कर वह अपनी दुकान पर चले जाते थे.
संजय गुप्ता शरीफ और नेकदिल इंसान तो थे ही, शहर के जानेमाने व्यवसाई भी थे. जगराओं रामनगर में ‘एस.के. टेक्सटाइल्स’ नाम से उन का कपड़ों का भव्य शोरूम था. उन के परिवार में पत्नी सीमा गुप्ता के अलावा बेटा साहिल गुप्ता और बेटी चेतना गुप्ता थी. साहिल पिता के साथ शोरूम संभालता था, जबकि चेतना अभी पढ़ रही थी. चेतना छोटी थी, इसलिए संजय गुप्ता बेटे से अधिक बेटी को प्यार करते थे.
उस दिन सुबह 8 बजे के आसपास चेतना को वह गली के मोड़ पर ले कर पहुंचे तो वहां उन्हें सफेद रंग की एक मारुति स्विफ्ट कार खड़ी दिखाई दी. ड्राइविंग सीट पर एक लड़का बैठा था, जो अपना चेहरा दूसरी ओर किए था. कार की पिछली सीट पर 2 लड़के बैठे थे और 2 लड़के कार के बाहर दरवाजे के पास खड़े थे. कार के दोनों पिछले दरवाजे खुले थे.
चेतना स्कूटी से उतर कर जैसे ही कार के पास पहुंची, बाहर खड़े दोनों लड़कों ने अचानक उसे पकड़ कर कार के अंदर झोंक दिया. चेतना के कार के अंदर गिरते ही कार में बैठे लड़कों ने उसे खींच कर दबोच लिया. इस के बाद बाहर खड़े लड़के भी फुर्ती से कार में बैठ गए तो कार तेजी से चल पड़ी. यह 29 जनवरी, 2014 की बात है.
यह सब इतनी तेजी से और अचानक हुआ था कि जल्दी न संजय गुप्ता ही समझ पाए और न चेतना ही कि यह क्या हो रहा है. जब दोनों की समझ में आया कि अपहरण हो गया तो कार के अंदर से जहां चेतना चिल्लाई, ‘पापा बचाओ,’ वहीं स्कूटी संभालते हुए संजय गुप्ता भी चिल्लाए, ‘‘अरे कार रुकवाओ भई, मेरी बेटी को बदमाश उठा ले गए.’’
संजय गुप्ता चिल्लाए ही नहीं, बेटी को इस तरह आंखों के सामने उठा कर ले जाते देख चिल्लाते हुए कार के पीछे स्कूटी लगा दी. आगे उन के भाई की दुकान थी. भाई दुकान पर आ गए थे. शोरशराबा सुन कर वह भी बाहर आ गए. भाई को चिल्लाते हुए स्कूटी से कार का पीछा करते देख वह भी अपना एक्टिवा स्कूटर उठा कर कार का पीछा करने लगे. उन्हीं के साथ कुछ अन्य लोगा भी माजरा समझ कर अपने अपने वाहनों को ले कार के पीछे लपके. लेकिन लाख प्रयास के बाद भी कार पकड़ में नहीं आई और देखते देखते आंखों से ओझल हो गई.
जो भी इस तरह सरेआम अपहरण की बात सुनता, वही दौड़ पड़ता. धीरेधीरे पूरा बाजार जमा हो गया. संजय गुप्ता तो बदहवास हो कर सड़क पर ही बैठ गए थे. व्यापारी साथियों ने उन्हें सांत्वना देने के साथ ही इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ थाना जगराओं और सिटी पुलिस को भी दे दी थी.
सूचना मिलते ही थाना सिटी के थानाप्रभारी मोहम्मद जमील पुलिस दल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और संजय गुप्ता द्वारा की गई शिकायत के आधार पर काररवाई करते हुए उन्होंने वायरलैस द्वारा संदेश दे कर जगराओं शहर से बाहर जाने वाली सभी सीमाओं को सील करवाने के साथ चेतना गुप्ता के अपहरण की रिपोर्ट मनीष मल्होत्रा और उस के 4 अज्ञात दोस्तों के खिलाफ दर्ज करा दी.
संजय गुप्ता ने रिपोर्ट दर्ज कराते समय पुलिस को बताया था कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक को वह पहचानते थे. उस का नाम मनीष मल्होत्रा था, जबकि उस के साथियों को वह नहीं जानते थे, लेकिन सामने आने पर वह उन्हें पहचान सकते थे. मनीष को वह इसलिए पहचानते थे, क्योंकि वह पहले भी कई बार चेतना से छेड़छाड़ कर चुका था, जिस की उन्होंने पुलिस से शिकायत भी की थी.
संजय गुप्ता ने रिपोर्ट में मनीष और उस के दोस्तों के अलावा इस अपहरण की साजिश में मनीष के पिता जोगिंदर पाल, चाचा राज मल्होत्रा, मां ऊषा रानी, चाची, बुआ के बेटे आकाश धवन उर्फ अभी के नाम भी लिखाए थे. उन का कहना था कि इन सभी लोगों ने साजिश रच कर चेतना का अपहरण करवाया है.
चूंकि अपहरण शहर के एक प्रसिद्ध व्यवसाई के बेटी, जो छात्रा भी थी, का हुआ था, इसलिए इस मामले में छात्र भी हंगामा कर सकते थे. इस बात को ध्यान में रख कर थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने घटना की सूचना एसपी सिटी, डीएसपी सुरेंद्र कुमार, क्राइम टीम और स्पेशल फोर्स को भी दे दी थी.
संजय गुप्ता ने चेतना के अपहर्त्ताओं में से मुख्य अभियुक्त का नाम बता दिया था, इसलिए थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने तुरंत मनीष मल्होत्रा के बारे में पता किया. प्राप्त जानकारी के अनुसार, मनीष मल्होत्रा जगराआें के रायकोटा रोड पर भट्ठा गुरु के नजदीक मकान नंबर 2982 में रहने वाले शहर के प्रसिद्ध व्यवसाई जोगिंदर पाल मल्होत्रा का बेटा था. उन का जगराओं में मल्होत्रा फिल स्टेशन के नाम से पेट्रेल पंप तो था ही, उन के पास कोकपेप्सी की ऐजेंसी भी थी.
जोगिंदर पाल का संयुक्त परिवार था. भाई राज मल्होत्रा भी उन्हीं के साथ रहते थे. उन के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा विशाल शादीशुदा था. वह चाचा राज मल्होत्रा के साथ पैट्रोल पंप का कामकाज देखता था. छोटा बेटा मनीष पढ़ाई पूरी करने के बाद मटरगश्ती करता था.
थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने एएसआई जरनैल सिंह के साथ मनीष के घर छापा मारा तो वह घर से फरार मिला. उस के बारे में पता करने के लिए वह जोगिंदर पाल के पेट्रोल पंप और कोकपेप्सी ऐजेंसी के औफिस गए तो पुलिस के डर से वह भी भूमिगत हो गए थे. पुलिस अपनी काररवाई कर रही थी, लेकिन जनता उस से संतुष्ट नहीं थी. इसलिए आम लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा था. शहर के व्यवसाई ही नहीं, आम लोग भी एकत्र होने लगे थे.
जब अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई तो उन्होंने हाईवे और शहर की प्रमुख सड़कों पर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. शहर के बाजार और व्यापारिक गतिविधियां बंद करा दी गईं. लोग सड़कों पर ही धरने पर बैठ गए. धरने पर बैठे लोग पुलिसप्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. इस तरह पुलिस के लिए परेशानी खड़ी हो गई. प्रदर्शनकारियों को भी संभालना था और अपहर्त्ताओं की तलाश कर चेतना को सकुशल बरामद भी करना था.
जांच में परेशानी हो रही थी, क्योंकि कहींकहीं पुलिस और जनता के बीच झड़पें हो रही थीं. एक एएसआई जोगा सिंह से जनता काफी नाराज थी, क्योंकि सूचना देने के बावजूद वह घटनास्थल पर काफी देर से पहुंचे थे. धरने पर बैठे लोग अपहर्त्ताओं को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर के चेतना को बरामद करने की मांग कर रहे थे.
जनता को धरनाप्रदर्शन करते देख नेता भी अपनी रोटियां सेंकने पहुंच गए. इनकलाबी क्लब पंजाब के नेता कमलजीत खन्ना ने धरना पर बैठे लोगों को संबोधित करते हुए यहां तक कह डाला कि यह घटना भी पंजाब के चर्चित श्रुति अपहरण कांड की ही तरह है. अपहर्त्ताओं ने पुलिस और सत्ता पार्टी में बैठे नेताओं के साथ मिल कर इस घटना को अंजाम दिया है.
विधायक एस.आर. कलेर ने हाथ जोड़ कर प्रदर्शनकारियों और धरना पर बैठे लोगों से शांत रहने की अपील की. लेकिन उन की बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. डीएसपी सुरेंद्र कुमार जब धरना पर बैठे लोगों को समझाने पहुंचे तो गुस्साए लोगों ने उन के विरोध में नारे तो लगाए ही, उलझने की भी कोशिश की.
शाम होतेहोते यह आक्रोश इस कदर बढ़ गया कि लोगों ने थाने का घेराव करने के साथ थानाप्रभारी मोहम्मद जमील के औफिस के बाहर चादर बिछा कर भीख मांगते हुए जोरजोर से चिल्ला कर कहने लगे, ‘‘हम जानते हैं, पुलिस बिना पैसा लिए कोई काम नहीं करती, इसलिए हमें भिक्षा में पैसे दो, जिसे दे कर हम चेतना बिटिया को वापस ला सकें.’’
लोग उस चादर में 10, 20, 50 और सौ रुपए डालते हुए कह रहे थे कि ‘चाहे जितने पैसे ले लो, लेकिन चेतना को अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त करा दो.’ जनता की इस हरकत से परेशान हो कर एसपी और डीएसपी ने आ कर धरना पर बैठे लोगों से माफी मांगी और अपहर्त्ताओं को शीघ्र गिरफ्तार करने का आश्वासन दिया. इस के बाद भीड़ थोड़ा शांत हुई.
पुलिस ने उस रात अपहर्त्ताओं की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन अपहर्त्ता पुलिस के हाथ नहीं लगे. उन के परिजनों और निकट संबंधियों पर शिकंजा कसा गया. मनीष के परिजनों और मित्रों को थाने ला कर पूछताछ की गई. इस तरह मनीष और पुलिस के बीच पूरी रात चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा. अंत में 30 जनवरी की सुबह एएसआई जरनैल सिंह से मनीष के ताऊ विजय मल्होत्रा ने फोन कर के कहा कि मनीष पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना चाहता है. इस के लिए वह कचहरी चौक पर आ जाएं. मनीष के आत्मसमर्पण की सिफारिश एक अकाली नेता ने भी की थी.
बहरहाल, पुलिस अधिक झमेले में नहीं पड़ना चाहती थी, क्योंकि वैसे ही इस मामले में अब तक पुलिस की काफी किरकिरी हो चुकी थी. इसलिए थानाप्रभारी मोहम्मद जमील के आदेश पर एएसआई जरनैल सिंह पुलिस टीम के साथ कचहरी चौक पर पहुंच गए. मनीष के कुछ रिश्तेदार वहां पहले से ही मौजूद थे.
पुलिस किसी से कुछ पूछताछ करती, उस के पहले ही वहां मौजूद लोगों में भगदड़ सी मच गई. पुलिस उन्हें संभालती, भगदड़ का फायदा उठा कर एकएक कर के सभी रिश्तेदार खिसक गए. लेकिन मनीष और चेतना पुलिस के हाथ लग गए. इस तरह चेतना सकुशल बरामद हो गई. एएसआई जरनैल सिंह दोनों को ले कर थाने आ गए.
थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने दोनों का सिविल अस्पताल में मैडिकल चेकअप कराया. रिपोर्ट के अनुसार मनीष और चेतना के बीच किसी प्रकार के सैक्स संबंध की पुष्टि नहीं हुई. मैडिकल चैकअप के बाद उसी दिन दोनों को इलाका मजिस्ट्रेट श्री गुरमीत सिंह की अदालत में पेश किया गया. पूछताछ के लिए पुलिस ने मनीष को 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. जबकि चेतना गुप्ता को धारा 164 के अंतर्गत बयान दिला कर उसे उस के पिता संजय गुप्ता को सौंप दिया गया. रिमांड के दौरान मनीष से की गई पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह अपहरण की न हो कर आपसी प्रेमसंबंधों में आई खटास की थी.
दरअसल, चेतना गुप्ता और मनीष मल्होत्रा के बीच पिछले काफी समय से प्रेमसंबंध थे. पुलिस के अनुसार, मनीष ने चेतना गुप्ता को बड़ेबड़े सपने दिखाए थे. कहने को तो उस के पिता जोगिंदर पाल के पास पेट्रोल पंप ही नहीं, कोकपेप्सी की ऐजेंसी भी थी, लेकिन सच्चाई यह थी कि उन पर काफी कर्ज था.
चूंकि मनीष चेतना को पसंद करता था और उस से शादी करना चाहता था, इसलिए लगातार उस से झूठ बोलता आ रहा था. जबकि हकीकत यह थी कि चेतना को घुमानेफिराने के लिए वह अपने यारोंदोस्तों की गाडि़यां तो मांग कर लाता ही था, उसे गिफ्ट देने के लिए भी उन्हीं से उधार पैसे ले कर खरीद कर लाता था.
चेतना को बिलकुल पता नहीं था कि मनीष और उस के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी डांवाडोल हो चुकी है. हां, अगर मनीष सच्चाई बता कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर देता तो शायद बात कुछ और होती. लेकिन वह उस के झूठ के मकड़जाल में फंसती चली गई और उसे दिल से चाहने लगी. जबकि मनीष उसे लगातार धोखा देता आ रहा था.
मनीष और चेतना आपस में शादी करना चाहते थे. लेकिन इस शादी में सब से बड़ी अड़चन चेतना के मातापिता की ओर से थी. क्योंकि दोनों की जाति अलग थी. चेतना गुप्ता जहां बनियों की बेटी थी, वहीं मनीष पंजाबी झांगी जाति से था. चेतना अच्छी तरह जानती थी कि उस के मातापिता इस शादी के लिए हरगिज तैयार नहीं होंगे.
अंत में काफी सोचविचार कर दोनों ने फैसला लिया कि वे चोरी से कोर्टमैरिज कर लेंगे. इस बात का जिक्र वे घर में नहीं करेंगे. अगर उन के मातापिता शादी के लिए राजी हो जाएंगे, तब तो ठीक है, अन्यथा वे मैरिज प्रमाण पत्र दिखा कर बता देंगे कि उन्होंने पहले ही शादी कर ली है. तब मजबूरन उन्हें झुकना होगा.
इस के बाद चेतना और मनीष ने वकील से बात की. वकील ने उन्हें सलाह दी कि अगर वे किसी मंदिर या गुरुद्वारे में शादी कर के वहां से शादी का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें कोर्टमैरिज में आसानी होगी. दोनों किसी ऐसे मंदिरगुरुद्वारे की तलाश में लग गए, जहां से विवाह का प्रमाण पत्र मिल जाए. आखिर उन्हें एक ऐसा गुरुद्वारा मिल गया, जो उन के मातापिता की गैरमौजूदगी में उन की शादी करा सकता था. वह जगराओं के शेरपुरा रोड पर डीएवी कालेज के पास स्थिति गुरुद्वारा साहिब बाल खेतारामजी था.
12 सितंबर, 2013 को मनीष चेतना को ले कर गुरुद्वारा साहिब बाल खेतारामजी पहुंचा और शादी कर के कुछ फोटो खिंचवाने के बाद विवाह का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया. इस के बाद दोनों ने चंडीगढ़ हाईकोर्ट जा कर किसी वकील के माध्यम से गुरुद्वारा द्वारा दिए गए शादी के प्रमाणपत्र के आधार पर नोटरी से शादी रजिस्टर्ड करवा ली.
अपनेअपने मातापिता से जान का खतरा बता कर उन्होंने सुरक्षा के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन भी कर दिया. लेकिन इस के बाद जब चेतना को मनीष की आर्थिक स्थिति का पता चला तो उसे उस से नफरत हो गई. क्योंकि मनीष ने उसे प्रेमजाल में फंसाने के लिए झूठ बोला था. उसे यह भी पता चल गया था कि उसे तोहफे देने के लिए वह दोस्तों से पैसे उधार लेता रहता था.
चेतना ने जब इस बारे में मनीष से पूछा तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि यह सब झूठ है. उस के लगातार झूठ पर झूठ बोलने से चेतना को उस से इतनी घृणा हो गई कि उस ने उस से मिलना तक बंद कर दिया. यही नहीं, उस ने अपने पिता से भी कह दिया कि वह उस के लिए कोई अच्छा सा लड़का देख कर उस की शादी कर दें.
दूसरी तरफ मनीष के वे दोस्त, जो उस की शादी में गवाह थे, उसे ताना देने लगे, ‘‘यार! तू कैसा पति है. तू यहां अकेला पड़ा सड़ रहा है और पत्नी मायके में ऐश कर रही है.’’
मनीष चेतना को लाना चाहता था, जबकि वह आने को तैयार नहीं थी. क्षुब्ध हो कर उस ने दोस्तों के साथ मिल कर चेतना के अपहरण की योजना बना डाली. इस में उस ने लुधियाना के शिमला पुरी के रहने वाले अपनी बुआ के बेटे अभी की मदद लेने के साथ अपने 3 दोस्तों कालू, सीता और आकाश को शामिल किया. जिस स्विफ्ट कार से चेतना का अपहरण किया गया था, वह उस की बुआ के बेटे आकाश उर्फ अभी की ही थी. घटना के समय आकाश उर्फ अभी भी साथ था.
चेतना का अपहरण कर के वे उसे ले कर जगराओं से रायकोट पहुंचे. वहां कालू और सीता को उतार कर वे मुल्लापुर होते हुए लुधियाना के शिमलापुरी स्थित अभी के घर पहुंचे. वहां सभी ने चायनाश्ता किया. वहीं से फोन कर के मनीष ने जगराओं के मित्रों से वहां होने वाली गतिविधियों की जानकारी ली.
शाम को जब मनीष को पता चला कि पुलिस को उस के लुधियाना के शिमलापुरी में होने की जानकारी मिल गई है तो उस ने अभी से बात की. अभी ने जालंधर के रहने वाले अपने जीजा ललित मेहता को सारी बात बता कर सहायता मांगी. ललित ने उन्हें फौरन जालंधर आने को कहा.
मनीष और अभी तुरंत चेतना को ले कर जालंधर के लिए निकल पड़े. लेकिन लाडोवाल टोल ब्रिज पर पहुंच कर चेतना शोर मचाने लगी. उस के शोर मचाने पर कई लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. टोलनाका पर लगे कैमरों में भी चेतना का फोटो आ गया था. इसलिए डर के मारे मनीष ने वह कार वहीं छोड़ दी और ललित को फोन से स्थिति बताई तो उन्होंने अपनी टवेरा कार भेज कर उन्हें वापस जगराओं जा कर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने की सलाह दी. इस के बाद मनीष ने जगराओं आ कर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने ललित की टवेरा भी बरामद कर ली है.
मनीष ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा था कि अगर चेतना ने उस के साथ बेवफाई न की होती तो शायद आज उसे यह अपराध न करना पड़ता. भला कौन अपनी पत्नीप्रेमिका का अपहरण करना चाहेगा. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने मनीष को पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासम में भेज दिया गया. फरार अभियुक्तों की पुलिस तलाश कर रही थी.
— कथा पुलिस सूत्रों व जन चर्चा पर आधारित