17 महीने से छिपी लाश का रहस्य

नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रागिनी गायिका को मिला मौत का तोहफा

ग्रेटर नोएडा की बीटा-2 कोतवाली के प्रभारी सुरजीत उपाध्याय शाम 8 बजे खाना खाने के बाद अपने औफिस में पहुंचे. वह वहां से गश्त के लिए निकलने की तैयारी कर रहे थे, तभी पीसीआर द्वारा उन्हें सूचना मिली कि मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी के गेट पर बदमाशों ने एक महिला की गोली मार कर हत्या कर दी है. महिला को उस के साथी कैलाश अस्पताल ले कर गए हैं.

हत्या जैसी वारदात किसी भी अधिकारी के मुंह का स्वाद कसैला कर देती है. बावजूद इस के सुरजीत उपाध्याय ने देर नहीं की. उन्होंने एसआई अनूप के नेतृत्व में एक टीम मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी की तरफ रवाना कर दी और खुद एसआई संदीप कालखंडे, हेडकांस्टेबल किशोरीलाल, कांस्टेबल अंशुल, दीपक, राशिद और सुमित को ले कर कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

वहां पता चला कि जिस महिला को गोली लगी है, वह रागिनी व लोकगीतों की मशहूर गायिका सुषमा है. अस्पताल में सुषमा के परिवार और जानपहचान वालों की भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस के अस्पताल पहुंचने से पहले ही डाक्टरों ने सुषमा को मृत घोषित कर दिया था. जिस कारण अस्पताल में सुषमा के परिजनों का विलाप शुरू हो गया था.

चूंकि अब यह वारदात हत्या की हो चुकी थी, इसलिए परिजनों से पूछताछ करने से पहले थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय ने इस घटना की जानकारी ग्रेटर नोएडा की सीओ (प्रथम) तनु उपाध्याय के साथ एसपी (ग्रामीण) रणविजय सिंह और एसएसपी वैभव कृष्ण को दे दी. कुछ ही देर में ये तीनों अधिकारी भी कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

सुषमा की बहन सोनू ने घटना के बारे में विस्तार से पुलिस को सारी बात बता दी.

सोनू ने बताया कि उस रात यानी पहली अक्तूबर की रात के करीब 8 बजे वह अपनी बहन सुषमा, सहेली वैशाली और ड्राइवर सचिन के साथ अपनी ब्रेजा कार से ग्रेटर नोएडा स्थित मित्रा सोसायटी के बाहर पहुंची थी. उस की बहन सुषमा दूध लेने के लिए सोसाइटी के बाहर ही कार से नीचे उतर गई थी.

ठीक उसी वक्त मित्रा सोसाइटी के गेट से एक पल्सर बाइक बाहर निकली, जिस पर चालक समेत 2 लोग सवार थे. दोनों ने ही  हेलमेट पहने हुए थे. एक क्षण के लिए उन की बाइक सोसाइटी के बाहर सुषमा की कार के समीप आ कर रुकी. तब तक सुषमा अपनी कार का दरवाजा खोल कर नीचे उतर चुकी थी.

अचानक रुकी बाइक की पिछली सीट पर बैठा युवक बाइक से नीचे उतर कर सुषमा के बेहद करीब पहुंच गया. फुरती के साथ उस ने जेब से पिस्टल निकाली और सुषमा पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं.

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सुषमा को 4 गोलियां लगीं, जिस में से एक सिर में, दूसरी सीने में और बाकी 2 गोलियां शरीर के दूसरे हिस्सों में लगीं. एक के बाद एक 4 गोलियां लगने के बाद सुषमा लहरा कर वहीं गिर पड़ी. अचानक सुषमा पर हुए इस हमले को जब तक वे तीनों समझते और कार से नीचे उतर कर सुषमा की मदद करते, तब तक गोलीबारी करने वाले बाइक पर सवार हो कर फरार हो गए थे.

जिस समय यह वारदात हुई थी, उस वक्त सोसाइटी में चहलपहल थोड़ी कम थी. लेकिन इस के बावजूद मुख्य द्वार पर बने गार्ड रूम से सिक्योरिटी गार्ड बाहर निकल आए और गोलियों की आवाज सुन कर सोसाइटी में इधरउधर टहल रहे लोग भी दरवाजे पर आ गए.

किसी की समझ में नहीं आया कि अचानक यह हमला कैसे हुआ और हमलावर कौन थे. वे सोसाइटी के भीतर कैसे पहुंचे. सुषमा की बहन सोनू मदद के लिए चीखने चिल्लाने लगी तब तक वहां लोगों की भीड़ एकत्र हो चुकी थी. किसी ने सुषमा को जल्द हौस्पिटल ले जाने की बात कही, तो सोनू ने सचिन की मदद से खून से लथपथ सुषमा को दोबारा अपनी गाड़ी में डाला.

कुछ ही देर में उन की कार समीप के कैलाश हौस्पिटल पहुंची, जहां तत्काल सुषमा को आईसीयू में भरती कर के उस का उपचार शुरू कर दिया गया. तब तक सोनू ने अपने परिचितों और परिवार वालों को फोन कर के सुषमा पर हुए हमले की जानकारी दे दी और उन से अस्पताल पहुंचने के लिए कहा. इस दौरान किसी ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को भी गोलीबारी से हुए इस हमले की सूचना दे दी थी.

जिस के बाद पीसीआर की गाड़ी जब मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी पर पहुंची तो पता चला कि इस हमले में रागिनी गायिका सुषमा गंभीर रूप से घायल हुई है और उसे कैलाश अस्पताल ले जाया गया है.

जिस जगह यह वारदात हुई थी, वह क्षेत्र बीटा-2 कोतवाली क्षेत्र में आता है. पीसीआर ने बीटा-2 कोतवाली को पूरी वारदात की जानकारी दे कर आगे की काररवाई के लिए कैलाश अस्पताल पहुंचने को कहा था.

थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय ने सुषमा की बहन सोनू के साथ कार में सवार वैशाली और कार चालक सचिन के बयान भी दर्ज किए. सोनू के बयान के आधार पर थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसएसपी वैभव कृष्ण ने एसपी (ग्रामीण) रणविजय सिंह को निर्देश दिया कि वह अपनी निगरानी में जल्द से जल्द हत्या की इस वारदात का खुलासा करें. इसीलिए एसपी रणविजय सिंह ने बीटा-2 थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय को इस केस की जांच का जिम्मा सौंप कर उन की मदद के लिए क्राइम ब्रांच की स्टार-2 टीम के इंचार्ज यतेंद्र सिंह, हेड कांस्टेबल सत्येंद्र सिंह, कृष्ण कुमार, प्रवीण मलिक, अमित शर्मा और उदयवीर को तैनात कर दिया. सीओ तनु उपाध्याय को पूरे मामले की मौनिटरिंग करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

मरने वाली सुषमा उसी मित्रा एन्क्लेव सोसायटी के फ्लैट नंबर सी-104 में रहती थी. जिस वक्त अपार्टमेंट के बाहर सुषमा को गोली मारी गई थी, उस वक्त सुषमा का पति गजेंद्र भाटी अपने 2 बच्चों के साथ घर में ही मौजूद था. जैसे ही उसे पत्नी को गोली मारे जाने की सूचना मिली तो उस के होशोहवास उड़ गए और वह तत्काल कैलाश हौस्पिटल पहुंच गया.

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच का काम तेजी से शुरू कर दिया. पुलिस की टीमें प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ करने लगीं. पुलिस ने सुषमा के फोन की काल डिटेल्स खंगाली. मित्रा सोसाइटी के गेट और आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज को देखा जाने लगा, सुषमा की जिंदगी के हर पन्ने को पुलिस बारीकी से पढ़ने लगी.

सुषमा से दोस्ती और दुश्मनी रखने वाले तमाम लोगों को पुलिस ने जांच के केंद्र में ले लिया और धीरेधीरे पुलिस कातिलों के करीब पहुंचने लगी.

6 अक्तूबर, 2019 की शाम करीब 7 बजे का वक्त था. एक अहम सूचना के बाद थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच की स्टार-2 की टीम ने सिग्मा-4 सैक्टर के समीप सर्विस रोड पर बदमाशों को पकड़ने के लिए घेराबंदी की हुई थी. तभी तेजी से आती एक फौर्च्युनर कार को पुलिस ने वहां रोकने का प्रयास किया. लेकिन कार चालकों ने कार को रोकने के बजाए पुलिस पर गोली चला दी.

इस के बाद दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं. 10 मिनट बाद कार से उतर कर भाग रहे 2 बदमाशों के पैरों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिस से वे घायल हो गए. पुलिस ने जब उन्हें काबू कर के पूछताछ की तो हैरान करने वाली जानकारी सामने आई.

दोनों कुख्यात अपराधी थे. इन में से एक मुकेश पड़ोसी जिले बुलंदशहर के थाना अगौता के गांव जोलीगढ़ का और दूसरा संदीप गौतमबुद्ध नगर के थाना जेवर इलाके में स्थित गांव थोरा का रहने वाला था.

दोनों बदमाशों के पैर में गोली लगी थी, इसलिए उन्हें तत्काल इलाज के लिए अस्पताल में भरती करा दिया गया. पुलिस की एक टीम जहां उन से पूछताछ का काम कर रही थी तो दूसरी टीम उन से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर छापेमारी करने में जुट गई. संदीप और मुकेश जिस फौर्च्युनर गाड़ी में सवार थे, पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस में से एक 30 एमएम का पिस्टल और .315 बोर का तमंचा बरामद हुआ था.

बुलंदशहर के रहने वाले मुकेश के बारे में जब जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि उस के खिलाफ लूट, डकैती जैसे गंभीर अपराधों के 22 मुकदमे पहले से दर्ज हैं, जबकि संदीप के खिलाफ भी लूट के 2 मुकदमे दर्ज होने की जानकारी सामने आई.

पुलिस की टीम ने जब इलाज के दौरान दोनों से पूछताछ की तो अचानक रागिनी गायिका सुषमा की हत्या की गुत्थी सुलझती चली गई. संदीप और मुकेश से हुई पूछताछ के आधार पर पुलिस की 2 अलगअलग टीमों ने छापेमारी शुरू कर दी.

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पुलिस ने उसी रात सुषमा के पति गजेंद्र भाटी, गजेंद्र के ड्राइवर अमित, गजेंद्र के गांव बिलासपुर में रहने अमित के तयेरे भाई अजब सिंह, बुलंदशहर के मेहसाना गांव में रहने वाले अजब सिंह के दोस्त प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

जब इन सभी आरोपियों से पूछताछ हुई, तो सुषमा हत्याकांड की हैरान कर देने वाली कहानी सामने आई-

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जहांगीरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है नेकपुर. इसी गांव में रहने वाले जाट परिवार में सुषमा का जन्म हुआ था. 26 साल की सुषमा अपने मातापिता की 6 संतानों में सब से बड़ी थी. सुषमा की 5 बहनें और एक भाई है. भाई तीसरे नंबर का है. 3 छोटी बहनों को छोड़ कर सभी का विवाह हो चुका था.

सुषमा जब स्कूल में पढ़ती थी और उस की उम्र 13 साल थी, उसी समय से उसे रागिनी और लोकगीत गाने का ऐसा शौक लगा कि वह जल्द ही रागिनी गायकों की मंडली में जा कर गाने लगी.

16 साल की उम्र तक आतेआते सुषमा इलाके की जानीमानी युवा रागिनी गायिका बन गई. सुषमा को उस के गांव के नाम नेकपुर के नाम से पुकारा जाने लगा. धीरेधीरे उस की पहचान रागिनी गायिका सुषमा नेकपुर के रूप में कायम हो गई.

सुषमा की कला को देख कर उस की तीसरे नंबर की बहन सोनू को भी स्कूली समय से ही गानेबजाने का शौक लग गया और वह भी बाद में अपनी बहन सुषमा की तरह न सिर्फ स्टेज पर रागिनी गायिका की तरह परफौर्म करने लगी, बल्कि रागिनी पर होने वाले ग्रुप डांस में भी शामिल होने लगी. सोनू को बचपन से ही मर्दाना लिबास और मर्दाना रूपरंग में रहने का शौक था. इसलिए वह ज्यादातर पैंटशर्ट पहनती. उस के हेयरस्टाइल भी मर्दों जैसे ही थे.

धीरेधीरे सोनू के साथ एक उपनाम भी जुड़ गया सम्राट और लोग उसे सोनू सम्राट के नाम से जानने लगे.

सुषमा ने छोटी बहन सोनू के हुनर को देख कर उसे भी अपने साथ जोड़ लिया. सुषमा और सोनू की मंडली का ग्रेटर नोएडा की सिसौदिया म्यूजिक कंपनी से करार था. सुषमा के स्टेज शो को सिसौदिया म्यूजिक कंपनी ही रिकौर्ड कर के उस की सीडी बाजार में बेचती थी. साथ ही सुषमा के स्टेज शो और रागिनी के वीडियो यूट्यूब पर भी डाले जाते थे, जिस पर सिसौदिया म्यूजिक कंपनी का ही अधिकार था.

सुषमा और सोनू सम्राट कुछ ही सालों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी इतनी लोकप्रिय हो गईं कि लोग जागरण से ले कर स्टेज शो कराने के लिए उन्हें मुंहमांगी रकम दे कर बुलाने लगे.

गांव देहात में रहने वाले लोगों को जवान होती बेटी के हाथ पीले करने की बहुत जल्दबाजी होती है. सुषमा ने जैसे ही जवानी की दहलीज पर कदम रखा, उस के मातापिता ने उस के लिए लड़के देखने शुरू कर दिए. लेकिन इसी दौरान सुषमा को गाजियाबाद में रहने वाला एक युवक संदीप कौशिक पसंद आ गया.

जब परिवार वालों ने सुषमा के लिए लड़कों की खोजबीन शुरू की, तो सुषमा ने उन्हें अपनी पसंद के बारे में बताया. सुषमा अपने पैरों पर खड़ी थी, वह बालिग थी और साथ ही परिवार की मदद भी करती थी. इसलिए मातापिता ने विजातीय होने के बावजूद सुषमा को संदीप कौशिक से शादी करने की मंजूरी इसलिए दे दी, क्योंकि वह ब्राह्मण जैसी उच्च जाति का लड़का था.

संदीप एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता था. संयुक्त परिवार में रहता था और विजातीय होने के कारण उस के परिवार के रस्मोरिवाज और संस्कार भी सुषमा से अलग थे.

सुषमा ज्यादातर जागरण की पार्टियों और शादी समारोह के फंक्शन में अपने ग्रुप के साथ जाती थी. इन सब कारणों से सुषमा समय बेसमय अपनी ससुराल आतीजाती थी, जिस के चलते जल्द ही अपने पति संदीप कौशिक और उस के परिवार वालों से सुषमा की अनबन शुरू हो गई.

7-8 महीने भी नहीं बीते थे कि सुषमा और संदीप का मनमुटाव इस मुकाम तक पहुंच गया कि उस ने सुषमा से अलग होने का फैसला कर लिया.

सुषमा और संदीप अलगअलग तो रहने लगे, लेकिन उन का संबंध इतनी आसानी से खत्म नहीं हुआ. परिवार वालों के कहने पर सुषमा ने गाजियाबाद कोर्ट में अपने पति संदीप के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया.

यह मामला 2-3 साल तक अदालत में चलता रहा. इस दौरान सुषमा अपनी बहन सोनू के साथ पूरी तरह रागिनी गायन के कार्यक्रमों में व्यस्त रहने लगी. सुषमा ने अब अपने गांव नेकपुर की जगह ग्रेटर नोएडा में ही फ्लैट ले कर रहना शुरू कर दिया था. क्योंकि गांव से आनेजाने में उसे काफी परेशानी होती थी.

सुषमा दिनोंदिन लोकप्रियता की सीढि़यां चढ़ रही थी. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले रागिनी के शौकीनों में उस की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी. इधर 4 साल पहले अदालत में चल रहे दहेज उत्पीड़न के मुकदमे से परेशान हो कर संदीप कौशिक ने सुषमा से अदालत से बाहर उसे 10 लाख रुपए का हरजाना दे कर समझौता कर लिया और दोनों के बीच रजामंदी से तलाक हो गया.

पति से तलाक के बाद सुषमा एक बार फिर आजाद हो गई. सुषमा अब अपने रागिनी गायन के काम में पूरी तरह खो गई थी. अब ग्रामीण क्षेत्र की बहुत सी लड़कियां भी सुषमा की शिष्या बन कर उस से रागिनी की कला और गायन विद्या सीखने लगी थीं.

जिन दिनों अदालत में सुषमा का अपने पति से तलाक का मुकदमा चल रहा था, उन्हीं दिनों सुषमा की जिंदगी में गजेंद्र भाटी ने प्रवेश किया. गौतमुद्धनगर के बिलासपुर का रहने वाला गजेंद्र भाटी (30) एक जमींदार परिवार का नौजवान था.

परिवार में पत्नी रीना के अलावा 3 बच्चे भी थे. गजेंद्र भाटी को उस के दोस्त गज्जी के नाम से पुकारते थे. उस के बिलासपुर और दनकौर में 2 ईंट भट्ठे थे. इस के अलावा गांव में उस की खेती की कई बीघा जमीन थी. उस ने ग्रेटर नोएडा में साईं प्रौपर्टी के नाम से प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस भी खोल रखा था. ग्रेटर नोएडा की कई सोसाइटियों में उस ने फ्लैट खरीद कर पैसे का निवेश भी किया हुआ था.

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      हत्यारोपी गजेंद्र भाटी

कहते हैं जब इंसान के पास दौलत आती है तो साथ में बुरी आदतें भी आनी शुरू हो जाती हैं. गजेंद्र को भी अमीरी के साथ शराब पीने और लड़कियों के साथ अय्याशी की लत लग गई थी. वह अकसर दोस्तों के साथ अपने औफिस और फार्महाउसों में शराब की पार्टियां करता था. कभीकभी इन पार्टियों में कालगर्ल भी बुलाई जाती थी.

गज्जी की पत्नी रीना गांव की एक सीधीसादी और साधारण शक्लसूरत वाली थी, इसलिए वह घर से बाहर खूबसूरत लड़कियों में अपने लिए खुशी तलाशता था. करीब 5 साल पहले गज्जी की सुषमा से पहली मुलाकात नोएडा की सिसौदिया कैसेट कंपनी के औफिस में हुई थी. गजेंद्र भाटी वहां सुषमा की आवाज में एक भजन की कैसेट रिकौर्ड करवाने के लिए आया था.

अमूमन सोनू और सुषमा साथ ही परफौर्म करती थीं, पर उस भजन कैसेट में सुषमा ने अकेले ही परफौर्म किया था, क्योंकि ये भाटी की डिमांड थी. गजेंद्र पहली मुलाकात में ही सुषमा पर फिदा हो गया. उस ने सुषमा को उस भजन के लिए मुंहमांगी रकम दी थी, जिस से सुषमा भी पहली ही बार में उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी.

सुषमा और गजेंद्र की मुलाकात जल्द ही दोस्ती में बदल गई. सुषमा की लोकप्रियता के चर्चे गजेंद्र ने पहले भी सुने थे. जब सुषमा हकीकत में गजेंद्र की दोस्त बन गई तो गजेंद्र उसे अपने साथ इधरउधर घुमाने लगा.

गजेंद्र के पास पैसे की कमी नहीं थी. लिहाजा सुषमा को प्रभावित करने के लिए वह उसे महंगे तोहफे देता था. इस सब का असर यह हुआ कि दोनों के बीच एकदूसरे के लिए प्यार और अपनत्व के भाव पैदा हो गए.

हर औरत को एक मर्द के सहारे की जरूरत होती है. लिहाजा जब गजेंद्र जैसा अमीर और जवान दोस्त सुषमा के प्यार में डूबा तो सुषमा भी उस के प्यार में डूबने से बच न सकी. दोनों के बीच जल्द ही जिस्मानी संबध भी कायम हो गए.

एक बार दोनों के बीच रिश्ते कायम हुए तो फिर अकसर ही ऐसा होने लगा. इस के बाद जल्द ही गजेंद्र ने सुषमा के सारे खर्चे भी उठाने शुरू कर दिए. जिस फ्लैट में सुषमा अपनी बहन सोनू सम्राट के साथ रहती थी, उस के किराए से ले कर घर के तमाम खर्चे भी गजेंद्र ही उठाने लगा. एक तरह से गजेंद्र और सुषमा बिना शादी के पतिपत्नी के तौर पर साथ रहने लगे थे.

चूंकि तब तक सुषमा का संदीप के साथ कानूनी तलाक नहीं हुआ था, इसलिए सुषमा और गजेंद्र ने लिवइन रिलेशन में रहने के बावजूद अपने संबंधों को दुनिया से छिपा रखा था. लेकिन जब 4 साल पहले सुषमा का तलाक हो गया तो सुषमा ने अपने परिवार के सामने गजेंद्र के साथ अपने प्रेम संबधों का इजहार कर दिया.

चूंकि गजेंद्र ने सुषमा से वायदा किया था कि वह जल्द ही उस के साथ शादी कर लेगा, इसलिए सुषमा के परिजनों ने गजेंद्र के साथ भी उस के संबधों को कबूल कर लिया.

इस के बाद कुछ ऐसा हुआ कि सुषमा की जिद पर गजेंद्र ने एक मंदिर में जा कर पुजारी के सामने सुषमा के गले में माला डाल कर मांग में सिंदूर भर कर उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. लेकिन उस ने वायदा किया कि अपने परिवार को मनाने और पत्नी को तलाक देने के बाद वह उस के साथ विधिवत रूप से शादी कर लेगा. सुषमा ने उस वक्त गजेंद्र की इस बात पर पूरी तरह भरोसा कर लिया.

गुपचुप ढंग से की गई शादी के कुछ दिन बाद सुषमा को पहले पति से हरजाने के रूप में जो 10 लाख रुपए मिले थे, उस में से 7 लाख रुपए गजेंद्र ने सुषमा से ये कह कर ले लिए थे कि उस के सारे खाते इनकम टैक्स विभाग ने सीज कर दिए हैं और उसे पैसों की जरूरत है.

सुषमा से लिए हुए पैसों से भाटी ने ब्रेजा कार खरीदी, लेकिन उसे भी उस ने अपने नाम करा लिया था. ये कार उस ने किसी ब्रजपाल नाम के व्यक्ति के नाम पर ली, जिस के बारे में सुषमा को जरा सा भी इल्म नहीं हुआ. यही कार उस ने सुषमा को इस्तेमाल करने के लिए दी हुई थी.

इधर वक्त बीतने के साथ सुषमा बीचबीच में अकसर पूरे समाज के सामने गजेंद्र को शादी करने का वचन याद दिलाने लगी. वक्त इसी तरह तेजी से बीतने लगा. इस दौरान उस ने गजेंद्र के 2 बच्चों के रूप में साढे़ 3 साल पहले एक बेटी और उस के डेढ़ साल बाद एक बेटे को जन्म दिया. हालांकि गजेंद्र अब समाज में सुषमा को एक पत्नी की हैसियत से अपने साथ ले कर आताजाता था. लेकिन उस ने अपने परिवार के बीच अभी भी उसे वह दरजा नहीं दिया था.

गजेंद्र ने जब सुषमा से संबध बनाए थे, तभी उस ने वायदा किया था कि वह उस के और बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए एक फ्लैट खरीद कर देगा. 2 साल पहले उस ने ग्रेटर नोएडा के बीटा-2 सेक्टर की मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी में सी-104 नंबर का 3 बैडरूम का फ्लैट खरीदा और तभी से सुषमा अपनी बहन और बच्चों के साथ वहां जा कर रहने लगी थी. लेकिन गजेंद्र ने इस मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराई थी.

इस फ्लैट को भाटी ने यह बोल कर खरीदा था कि वो सुषमा के लिए है. इसीलिए सुषमा ने कहा कि मेरे नाम मत खरीदो, इसे बेटे के नाम कर दो. लेकिन उस ने दोनों के नाम न कर के रजिस्ट्री खुद के नाम करा ली. इस से सुषमा को अपने दोनों बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी थी.

इन वजहों से अब गजेंद्र और सुषमा के बीच अकसर विवाद होने लगा था. पहला तो यह कि सुषमा पूरे समाज के सामने गजेंद्र से अपने संबधों की मान्यता चाहती थी, दूसरे वह अपने व अपने बच्चों के भविष्य के लिए मित्रा सोसाइटी के फ्लैट को अपने नाम कराने की जिद करने लगी थी.

यह विवाद वक्त के साथसाथ इस तरह बढ़ने लगा कि अकसर कईकई दिन तक दोनों के बीच बातचीत तक बंद हो जाती थी. मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराने का विवाद धीरेधीरे इस कदर बढ़ता चला गया कि सुषमा अब गजेंद्र से अपना और अपने बच्चों का हक भी मांगने लगी थी.

तब गजेंद्र को लगने लगा कि उस ने अपने गले में मुसीबत डाल ली है. वह कभीकभी इतना परेशान हो जाता कि खुद को खत्म करने की बात सोचने लगता, तो कभी उस के मन में सुषमा से पीछा छुड़ाने के खयाल आने लगते.

13 फरवरी, 2018 को तो सुषमा और गजेंद्र के बीच इसी बात को ले कर विवाद इतना बढ़ गया कि गजेंद्र ने सुषमा को अपनी जान देने की धमकी देनी शुरू कर दी. एक दिन उस ने सुषमा को डराने के लिए आत्महत्या का नाटक भी किया. उस ने स्टूल पर चढ़ कर फांसी लगाने का नाटक किया था. लेकिन बाद में उस का ये नाटक हकीकत में बदल गया. उस का पैर स्टूल से ऐसे फिसला कि वो वहीं लटक गया.

उस दिन घर में मौजूद सुषमा व सोनू ने किसी तरह उसे रस्सी के फंदे से उतार कर अस्पताल पहुंचाया और उसे बचा लिया. ठीक होने के बाद कुछ दिन तक सब कुछ सामान्य रहा. लेकिन बाद में सुषमा अपने बच्चों के लिए जमीन में हिस्सेदारी और अन्य तरह की मांगें फिर करने लगी.

रोजरोज की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए गजेंद्र ने आखिर फैसला किया कि अपनी जान देने से अच्छा है कि सुषमा नाम के कांटे को ही अपनी जिंदगी से निकाल दिया जाए. इसीलिए करीब 7 महीने पहले से ही गजेंद्र ने सुषमा की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया.

इस के लिए पहले गजेंद्र ने सुषमा के मोबाइल फोन पर कुछ ऐेसे संदिग्ध फोन कर के उसे जान से मारने की धमकी देनी शुरू कर दी, जिस से लोगों को लगे कि सुषमा को पहले से ही धमकियां दी जा रही थीं. बाद में उस ने अपने लोगों के जरिए सुषमा के फेसबुक व सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणियां करवानी शुरू कर दीं, ताकि वह बदनाम हो जाए.

जब यह बात सुषमा ने गजेंद्र को बतानी शुरू की तो गजेंद्र ने सुषमा को ये विश्वास दिलाना शुरू कर दिया कि शायद सुषमा का पहला पति संदीप उसे परेशान कर रहा है. दरअसल अब गजेंद्र को सुषमा पर यह भी शक होने लगा था कि सुषमा का उस के अलावा किसी अन्य के साथ भी संबध बना हुआ है. क्योंकि वह अब ज्यादातर घर से बाहर रहने लगी थी.

जब गजेंद्र उर्फ गज्जी समझ गया कि सुषमा को रास्ते से हटाने की पृष्ठभूमि तैयार है तो उस ने अपने ड्राइवर अमित से एक दिन कहा कि यार ये सुषमा आजकल बहुत परेशान कर रही है. कोई ऐसा आदमी बता, जो सफाई से इस का काम कर दे और मेरे ऊपर भी कोई शक न जाए. गजेंद्र ने ये भी कहा कि इस काम के लिए वो कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार है.

अमित गजेंद्र का बहुत पुराना ड्राइवर था. उस के हर सुखदुख के साथ उस के हर राज में भागीदार रहता था. जब उस ने देखा कि गजेंद्र भैया बहुत परेशान हैं, तो उस ने इस बारे में अपने गांव बिलासपुर में रहने अपने चाचा अजब सिंह से बात की. अजब सिंह कुंवारा था. क्योंकि बचपन से ही वह अपराधियों की सोहबत में रहा था, इसलिए उस ने शादी भी नहीं की थी.

अजब सिंह ने अमित और गजेंद्र से इस बारे में विस्तार से बात की. जब वह उन का मकसद समझ गया तो अजब सिंह ने बुलंदशहर के मेहसाणा गांव में रहने वाले अपने दोस्त प्रमोद को एक दिन ग्रेटर नोएडा बुलवा लिया.

प्रमोद ने जब पूरी बात जान ली तो उस ने गजेंद्र से सुषमा की हत्या करने के लिए 15 लाख रुपए मांगे. लेकिन जब गजेंद्र ने इतने रुपए देने से मना किया तो सौदेबाजी होने लगी. आखिर में 8 लाख रुपए में प्रमोद से सुषमा की हत्या का सौदा तय हो गया.

गजेंद्र ने तय रकम में से आधे यानी 4 लाख एडवांस दे दिए थे, जबकि बाकी काम होने के बाद देने तय हुए. लेकिन गजेंद्र ने शर्त रखी थी कि काम इस तरह होना चाहिए कि उस के ऊपर कोई आंच न आए. लिहाजा इस के लिए एक योजना तैयार की गई.

प्रमोद ने इस के लिए एक क्लाइंट बन कर सुषमा से मुलाकात की और अपने गांव मेहसाणा में 19 अगस्त, 2019 को एक रागिनी कार्यक्रम के लिए उसे 15 हजार रुपए में आमंत्रित कर लिया. इस के अलावा प्रमोद ने अपने गांव में भी समारोह के लिए टैंट आदि लगवाए और उस में लोगों को आमंत्रित कर लिया. इस काम में भी जो खर्चा हुआ, वह गजेंद्र ने ही वहन किया था.

19 अगस्त, 2019 को सुषमा सोनू व एक शिष्या वैशाली और ड्राइवर को ले कर मेहसाणा गांव पहुंच गई. उस के ग्रुप के बाकी लोगों को सीधे अपने साधन से वहीं पहुंचना था. लेकिन वहां जा कर एक अजीब सा हादसा हो गया.

सुषमा को तो लगा था कि गांव में पहुंच कर उस का भव्य स्वागत होगा. हालांकि वह तय समय पर ही समारोह में पहुंच गई थी, लेकिन वहां पहंचते ही समारोह के आयोजक प्रमोद के अलावा कई लोगों ने उन के साथ इस बात को ले कर झगड़ा करना शुरू कर दिया कि वे समारोह में 2 घंटे देर से पहुंचे हैं और उन के बहुत से मेहमान वापस लौट गए. सुषमा ने जब उन्हें समझाना चाहा कि वे समय पर पहुंचे हैं तो प्रमोद व उस के साथी भड़क गए.

कई लोग उन से हाथापाई करने लगे. कुछ लोगों ने अचानक उस की गाड़ी पर लाठियों से हमला बोल दिया, जिस से उस की गाड़ी के शीशे टूट गए.

1-2 लोगों ने जब लाठियों का रुख सुषमा की तरफ किया तो सुषमा मौके की नजाकत को समझ कर तत्काल गाड़ी में बैठ गई. इस से पहले कि कोई कुछ समझता, ड्राइवर सचिन ने गाड़ी वहां से दौड़ा दी. लेकिन इस आपाधापी में सुषमा को कुछ चोटें जरूर लगीं.

इस घटना में सुषमा के साथ उस की बहन और साथी जान बचा कर भाग निकलने में कामयाब रहे थे. सुषमा के कहने पर सचिन ने गाड़ी का रुख बुलंदशहर कोतवाली देहात की तरफ मोड़ दिया. उस ने वहां जा कर कार्यक्रम के संचालक प्रमोद के अलावा अंजान लोगों के खिलाफ जानलेवा हमले का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

इधर जब ग्रेटर नोएडा वापस लौटने के बाद सुषमा ने गजेंद्र को अपने ऊपर हुए हमले की जानकारी दी तो उस ने सुषमा को बताया कि हो न हो, इस हमले के पीछे भी संदीप के लोगों का ही हाथ है. हालांकि उस दिन सुषमा का खात्मा नहीं होने के कारण गजेंद्र को अजब सिंह, अमित और प्रमोद पर गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन उस ने किसी तरह खुद को संभाल लिया.

गजेंद्र ने उस दिन सुषमा के साथ ऐसा बर्ताव किया मानो उसे ही सुषमा की सब से ज्यादा फिक्र हो और उस के लिए बेहद चिंतित है. गजेंद्र ने सुषमा को तमाम मतभेदों के बाद इस बात की सख्त हिदायत दी कि अब वह जहां भी जाएगी, अपने बारे सारी जानकारी उसे जरूर देगी ताकि उसे पता तो रहे कि वह कहां है और क्या कर रही है.

मेहसाणा गांव में सुषमा की हत्या करने की योजना के नाकाम होने से सुषमा की हत्या की सुपारी लेने वाला प्रमोद, अजब सिंह और अमित हतोत्साहित जरूर हुए थे. लेकिन इस के बावजूद उन्होंने गजेंद्र भाटी से वायदा किया कि हर हाल में वे अब की बार शिकार का कत्ल कर के ही उसे अपना मुंह दिखाएंगे.

इस के बाद अजब सिंह और प्रमोद ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने परिचित जेवर के एक अपराधी संदीप और अगौता के रहने वाले मुकेश को इस योजना में शामिल कर लिया. प्रमोद ने सुपारी की रकम में से 2 लाख रुपए भी उन दोनों को दिए साथ ही उन्हें अलीगढ़ से एक पिस्टल व तमंचा खरीद कर उन दोनों को ला कर दे दिया.

इधर, बुलंदशहर कोतवाली देहात पुलिस ने प्रमोद के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज किया था, उस में उन्होंने प्रमोद की तलाश शुरू की दी थी, लेकिन वह अपने घर से फरार था. लिहाजा पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर दिया. इस दौरान सुषमा लगातार बुलंदशहर पुलिस के अधिकारियों से संपर्क कर के खुद पर जानलेवा हमला करने वालों की गिरफ्तारी का दबाव बनाती रही.

दूसरी तरफ गजेंद्र भी सुषमा की हत्या के लिए फाइनल साजिश तैयार करने में जुटा था. उस ने एक दिन इस साजिश में शामिल लोगों को ग्रेटर नोएडा बुला कर उन्हें पूरी रणनीति समझा दी. उस ने सभी आरोपियों को वारदात करने के लिए नए सिमकार्ड खरीद कर दिए और हिदायत दी कि इस काम के संबध में सभी लोग नए सिम का ही प्रयोग करेंगे.

इस के अलावा गजेंद्र ने संदीप, मुकेश, प्रमोद, अजब सिंह और अमित को 15 सिंतबर को मित्रा सोसायटी के सामने बनी अंसल सोसाइटी में एक फ्लैट किराए पर ले कर दिया और सभी बदमाशों ने उस फ्लैट में डेरा डाल दिया. इस फ्लैट में गजेंद्र भी जाता रहता था.

घटना वाली सुबह गजेंद्र सुषमा के साथ ही घर में था. सुषमा अपनी बहन और वैशाली को साथ ले कर उसे यह बता कर बुलंदशहर गई थी कि वह शाम तक लौट आएगी.

गजेंद्र ने उसी दिन सुषमा की हत्या का फैसला कर लिया. क्योंकि सुषमा उसे बता चुकी थी कि वह 1-2 दिन में बीजेपी जौइन करने वाली है. गजेंद्र जानता था कि कि अगर सुषमा ने सत्ताधारी पार्टी को जौइन कर लिया तो उसे मारना भी मुश्किल हो जाएगा और बुलंदशहर में हमले का राज भी खुल सकता है. क्योंकि पुलिस उस की छानबीन फिर तेज कर सकती है.

गजेंद्र जानता था कि सुषमा ने बतौर कलाकार के तौर पर तो बहुत नाम कमा लिया था. लेकिन वह अब राजनीति में जा कर कोई मुकाम हासिल करना चाहती थी. हालांकि उस ने कई साल पहले ही बीएसपी जौइन कर ली थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में बुलंदशहर के किसी विधानसभा क्षेत्र से वह पार्टी का टिकट चाहती थी. लेकिन पार्टी ने उसे टिकट नहीं दिया था.

सुषमा ने उस वक्त कई मौकों पर खुद को बतौर बीएसपी की भावी विधानसभा प्रत्याशी के तौर पर प्रचारित करते हुए उस के पोस्टर व होर्डिंग भी लगवाए थे. इसीलिए निराश हो कर अब उस ने भाजपा नेताओं के साथ अपनी जानपहचान बढ़ानी शुरू कर दी थी और जल्द ही पार्टी में शामिल होने वाली थी.

उस दिन सुषमा इसी मकसद से बुलंदशहर गई थी, जहां वह बुलंदशहर भाजपा जिला अध्यक्ष हिमांशु मित्तल से जिला कैंप कार्यालय पर मिली थी. मित्तल ने उसे 1-2 दिन में ही किसी कार्यक्रम में पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराने का आश्वासन दिया था. राजनीति में आने के बाद सुषमा अपनी पकड़ मजबूत कर के जल्द ही चुनाव लड़ने का सपना देख रही थी.

राजनीतिक रूप से मजबूत होने के बाद सुषमा उस के लिए और ज्यादा घातक और बड़ी मुसीबत बन सकती है, इसलिए उस दिन दोपहर बाद से ही गजेंद्र सुषमा से लगातार फोन पर बात करते हुए उस की लोकेशन की पलपल की जानकारी ले कर अपने साथियों को देता रहा. उस ने उन्हें हिदायत दी कि सुषमा का आज ही काम तमाम होना है.

शाम 6 बजे गजेंद्र की सुषमा से हुई बात से यह पता चल गया कि अगले 2 घंटे के भीतर सुषमा घर लौट आएगी तो मुकेश व संदीप अपनी बाइक ले कर हैलमेट लगा कर पहले ही सोसाइटी में आ कर छिप गए. संयोग से किसी ने उन्हें भीतर आने से नहीं रोका, न ही उन की गाड़ी का नंबर नोट किया गया.

वारदात को अंजाम देने के बाद मुकेश व संदीप को बैकअप देने के लिए सोसाइटी से कुछ ही दूर गजेंद्र की फौर्च्युनर कार में अमित, प्रमोद व अजब सिंह भी बैठे थे. वारदात से आधा घंटा पहले संदीप और मुकेश ने अपने मोबाइल बंद कर दिए थे. क्योंकि गजेंद्र उन्हें बता चुका था कि किसी भी वक्त सुषमा अपनी ब्रेजा कार से सोसायटी के गेट पर आ कर रुकने वाली है.

गजेंद्र ने उन्हें यह भी बता दिया था सुषमा गेट पर ही गाड़ी से उतर जाएगी क्योंकि उस ने सोसाइटी के बाहर एक स्टाल से दूध लाने के लिए उसे बोला है. बस मुकेश और संदीप सोसाइटी के भीतर बाइक पर सवार हो कर मुख्यद्वार की तरफ देखने लगे ताकि जैसे ही सुषमा गेट पर उतरे, वे उस का काम तमाम कर दें. वैसा ही हुआ जैसी योजना तैयार हुई थी.

सोसाइटी के मुख्य द्वार पर सुषमा ने गाड़ी रुकवाई और वह नीचे उतर गई. ठीक उसी समय दोनों शूटर संदीप और मुकेश ने बाइक स्टार्ट की और ठीक मुख्यद्वार के पास सुषमा के समीप जा कर रोक दी. बाइक पर पीछे बैठे मुकेश ने नीचे उतर कर पिस्टल निकाल कर सुषमा पर ताबड़तोड़ 4 गोलियां चला दीं. मुश्किल से 2 से 3 मिनट में संदीप और मुकेश ने अपने काम को अंजाम दे दिया और उस के बाद बाइक से फरार हो गए.

करीब 2 किलोमीटर दूर जाने के बाद मुकेश ने अपने मोबाइल में से नया सिम निकाल कर उस में अपना पुराना सिम डाला और उस से गजेंद्र के पर्सनल नंबर पर फोन कर के सूचना दी कि उन्होंने अपना काम कर दिया है. बस यहीं पर उन से चूक हो गई.

पुलिस ने जब इस मामले की छानबीन शुरू की तो मामले के जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने ऐसा महसूस किया कि सुषमा की हत्या के बाद गजेंद्र और उस का चालक अमित सब से ज्यादा ड्रामा कर रहे हैं. दोनों ही अस्पताल में सब से ज्यादा रो रहे थे. ऐसा आमतौर पर वही लोग करते हैं जो ऐसा जताना चाहते हैं कि उन पर किसी को शक न हो.

हालांकि गजेंद्र पोस्टमार्टम आदि कराने के बाद नेकपुर स्थित सुषमा के गांव भी पहुंचा था और उस ने ही सुषमा के शव को मुखाग्नि भी दी थी. यही कारण था कि सुषमा के परिवारजनों को उस पर जरा भी शक नहीं हुआ था.

मामले के जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय को सुषमा की बहन सोनू ने सिर्फ यही बताया था कि वारदात वाली रात 8 बजे वह अपनी बहन सुषमा के साथ बुलंदशहर जिले से लौटी थी. वहां वे किसी काम से भाजपा कार्यालय गए थे. इस के बाद सुषमा कोतवाली देहात थाने में अपने ऊपर हमले के पुराने केस के सिलसिले में भी प्रगति जानने के लिए पहुंची थी.

वारदात वाले दिन सुषमा की कार खुर्जा के कलेना गांव निवासी उस का ड्राइवर सचिन चला रहा था. साथ में उस की शिष्या वैशाली भी थी. वारदात वाली रात को सोनू ने किसी पर भी शक नहीं जताया था. लेकिन अगली सुबह उस ने पुलिस को जो शिकायत लिख कर दी, उस में सोनू ने लिख कर दिया था कि हैलमेट लगाने वाले हमलावर मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी में रहने वाले बृजेश की बाइक पर सवार थे. इस शिकायत में बाइक का नंबर भी लिखा गया था.

पुलिस ने जब सोसाइटी में रहने वाले बृजेश से पूछताछ की तो पता चला उस के पास तो बाइक है ही नहीं. यह भी पता चला कि न तो वह सुषमा को जानता है और न ही सुषमा से उस का कोई लेनादेना है. साथ ही छानबीन में पता चला कि जो नंबर सोनू ने शिकायत में लिख कर दिया था, उस नंबर की कोई बाइक पंजीकृत ही नहीं थी.

जब जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने सोनू से इस बारे में बात की तो उस ने बताया कि यह शिकायत उस के जीजा गजेंद्र भाटी ने लिख कर उसे दी थी. बस इसी के बाद गजेंद्र भाटी जांच अधिकारी के शक के दायरे में आ गया.

गजेंद्र भाटी पर पुलिस का शक तब यकीन में बदल गया, जब अगले दिन सोनू ने जांच अधिकारी के सामने एक नया खुलासा किया.

दरअसल, सोनू इस बात से भलीभांति वाकिफ थी कि सुषमा और गजेंद्र में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसीलिए सोनू ने वारदात के बाद ही गजेंद्र से पूछ लिया था कि गजेंद्र सच बताओ इस के पीछे किस का हाथ है.

गजेंद्र जानता था कि सोनू बहुत कुछ जानती है और वह सुषमा और उस के बारे में पुलिस को काफी कुछ बता सकती है. इसलिए उस ने सुषमा का अंतिम संस्कार करने के बाद सोनू से कहा, ‘‘सोनू, तुम तो जानती ही हो कि सुषमा ने किस तरह मेरी जिंदगी को नरक कर के रख दिया था, इसलिए मजबूरी में मुझे ही सुषमा का काम तमाम कराना पड़ा.’’

चूंकि गजेंद्र जानता था सुषमा की मौत के बाद अब उस के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रह जाएगी. इसलिए उस ने सोनू को लालच दिया कि वह किसी तरह पुलिस को बरगला कर इस मामले को शांत करवा दे इस के बदले वह उसे 50 लाख रुपया दे देगा ताकि उस की आगे की जिंदगी संवर सके.

लेकिन सोनू ने अगले ही दिन यह बात जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय को बता दी, जिस के बाद गजेंद्र पूरी तरह पुलिस की नजर में चढ़ गया. इसी के बाद पुलिस ने गजेंद्र और सुषमा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली. इस की जांचपड़ताल के बाद पता चला कि वारदात वाले दिन गजेंद्र ने सुषमा से अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा बात की थी.

साथ ही यह बात भी पता चली कि गजेंद्र सुषमा से बात होने के बाद हर बार अलगअलग नंबरों पर कुछ देर बात करता था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि जिस वक्त सुषमा को गोली लगी, उस के कुछ देर बाद गजेंद्र के मोबाइल पर एक अलग नंबर से काल आई थी.

क्राइम ब्रांच की टीम के प्रभारी यतेंद्र ने जब उस नंबर की जांच की तो पता चला कि यह नंबर उसी मोबाइल फोन में चल रहा था, जिस पर सुषमा की हत्या होने से पहले एक दूसरा सिम लगा था और गजेंद्र उस नंबर पर बात कर रहा था.

इस जांच के बाद कडि़यों से कडि़यां जुड़ती चली गईं और पुलिस की दोनों जांच टीमों ने गजेंद्र, उस के ड्राइवर अमित, अमित के चाचा अजब सिंह, प्रमोद, संदीप और मुकेश को संदेह के दायरे में रख कर जांच आगे बढ़ानी शुरू कर दी.

तब तक पुलिस ने गजेंद्र को ये आभास नहीं होने दिया कि वह शक के दायरे में है. इन सभी के मोबाइल की निगरानी शुरू की गई तो पता चला 6 अगस्त की शाम को इन सभी की लोकेशन एक ही जगह पर है.

इसी के आधार पर पुलिस ने अपनी घेराबंदी शुरू कर दी और शाम को मुकेश और संदीप के साथ पुलिस की मुठभेड़ हो गई, जिस में घायल होने के बाद संदीप और मुकेश पुलिस के चंगुल में फंस गए.

बस इस के बाद पुलिस को जांच के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा और इस के बाद गजेंद्र, अमित, अजब सिंह और प्रमोद सभी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी के गेट से कब्जे में ली गई सीसीटीवी फुटेज से भी सुषमा पर गोली चलाने वाले संदीप और मुकेश के हुलिए का मिलान कराया तो उन का हुलिया मेल खा गया.

पुलिस ने वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जिसे हत्या को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

पूछताछ में पता चला कि गजेंद्र पिछले कई महीनों से सुषमा से छुटकारा पाने की साजिश बनाने में जुटा था. किसी को उस पर शक न हो इस के लिए उस ने वारदात के बाद सुषमा के पूर्व पति संदीप कौशिक के खिलाफ सुषमा के मन में जहर भरना शुरू कर दिया था. ताकि सुषमा की हत्या के बाद पुलिस पूरी तरह संदीप कौशिक को शक के दायरे में रख कर जांचपड़ताल में उलझ जाए.

इस के लिए सुषमा ने गजेंद्र के कहने पर अपनी हत्या से कुछ माह पहले बीटा-2 थाने में और व एसएसपी कार्यालय में शिकायत दी थी कि उस का पहला पति उसे इसलिए परेशान करता है, क्योंकि उस ने दूसरी शादी कर ली है.

सुषमा ने संदीप कौशिक के खिलाफ फेसबुक समेत सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी किए जाने की शिकायत पुलिस से की थी. लेकिन पुलिस ने इस शिकायत को उस वक्त गंभीरता से नहीं लिया था.

इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने वाली बीटा-2 थाने की पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम को गौतमबुद्धनगर के एसएसपी वैभव कृष्ण ने 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों और परिजनों से हुई पूछताछ पर आधारित

मंगेतर की जिद ने ले ली जान

उस युवती की उम्र कोई ज्यादा नहीं होगी. 20-22 साल के आसपास की थी वह. एकएक अंग सांचे में ढला हुआ था. ऐसा लग रहा था कि किसी मूर्तिकार ने बहुत फुरसत से उसे तराशा है. उस की हिरणी सी आंखों में गजब का आकर्षण था, उस के संतरे की फांक जैसे पतले और रसीले होंठों की मुसकान बरबस मन को मोह लेती थी. यौवन रस से भरपूर उस की जवानी उफान पर थी.

सुलतान की नजरें उस हसीन युवती पर से हट ही नहीं रही थीं. हटतीं भी कैसे. पार्टी के जश्न में आई हुई अनेक युवतियों में एक वह ही हसीन और बला की खूबसूरत नजर आ रही थी.

वह हसीना लाल रंग की शार्ट कुरती और मखमली शरारा पहने हुई थी. वक्ष पर गुलाबी रंग का सितारों जड़ा दुपट्टा था, जो उस के कंधे से बारबार फिसल रहा था. जब उस का दुपट्टा फिसलता था, उस के उन्नत उभारों की झलक मिल जाती थी, जो दिल की धड़कनें बढ़ा देती थीं.

वह हसीन युवती अपनी सहेली से बातें कर रही थी, किंतु तिरछी नजर से वह सुलतान को भी घूर रही थी. शायद उसे यह अहसास हो गया था कि वह युवक उसे बहुत देर से देख रहा है.

सुलतान को जैसे उस का कोई खौफ नहीं था. होता भी क्यों, भला उस की आंखों का क्या दोष, वह हसीन चीजों को तो ताकेंगी ही. वह अपनी आंखों से उस युवती की खूबसूरती को अपलक ताक रहा था.

एकाएक वह हसीन युवती अपनी जगह से हिली. उस ने सुलतान को फाड़ खाने वाली नजरों से देखा, फिर उस की तरफ बढ़ गई. सुलतान संभल कर खड़ा हो गया. उस की आंखें अब भी उस युवती के ऊपर जमी हुई थीं.

वह युवती पास आ कर रुकी और नागिन की तरह फुंफकार कर बोली, ”ऐ मिस्टर, यह क्या बदतमीजी है.’’

सुलतान ने चौंकने का शानदार अभिनय किया, ”क्या आप ने मुझ से कुछ कहा?’’

”नहीं,’’ युवती ने उसे घूरा, ”यहां आप का जिन्न खड़ा है, मैं उसी से कह रही हूं.’’

”तो कहिए, आप को किस ने रोका है.’’

”ऐ मिस्टर, मैं आप से कह रही हूं.’’

”मेरा नाम सुलतान है मिस हसीना.’’ सुलतान ने मुसकरा कर कहा.

”मेरा नाम भी हसीना नहीं, शमा है.’’ युवती ने झुंझला कर कहा, ”मैं काफी देर से देख रही हूं, आप मुझे घूर रहे हैं.’’

”आप बेहद हसीन हैं इसलिए. हसीन चीज को देखना गुनाह नहीं हो सकता.’’ सुलतान ने सादगी से कहा.

”मैं इसे गुस्ताखी कहूंगी. यहां पार्टी में मैं अकेली तो नहीं हूं, जो मुझे ही देखा जाए.’’

”कमाल हो तुम.’’ सुलतान तुरंत तुम पर उतर आया, ”कभी आईना देखना. इस महफिल में तुम से हसीन कोई भी नहीं है.’’

”तुम बातूनी और चालाक हो.’’ शमा झुंझला कर बोली.

”शुक्रिया मेरी तारीफ के लिए.’’

”मुझे तुम से हसीन युवती यहां नजर आती तो मैं उसे देखता, लेकिन सच कह रहा हूं, तुम्हारे मुकाबले में एक भी लड़की यहां नहीं है.’’

”लेकिन मिस्टर सुलतान, इस तरह युवतियों को घूरना अच्छे इंसान को शोभा नहीं देता. मैं काफी देर से देख रही थी, तुम एकटक मुझे ही देखे जा रहे थे, इसलिए मुझे यहां आना पड़ा.’’ इस बार शमा कुछ नरम लहजे में बोली.

सुलतान ने आह भरी, ”मशविरे के लिए शुक्रिया. वैसे इतनी गुस्ताखी कर चुका हूं तो एक गुस्ताखी और कर लेता हूं. क्या मुझे बताओगी, तुम कहां रहती हो?’’

”क्या करोगे जान कर?’’ शमा ने उसे घूरा.

”तुम्हारे घर आऊंगा और तुम्हारे अब्बा से तुम्हारा हाथ मागूंगा.’’

”शक्ल देखी है आईने में?’’ शमा ने मुंह बिगाड़ा, ”लंगूर जैसे लगते हो तुम.’’

सुलतान हंसा, ”निकाह के बाद तुम्हें अपनी उछलकूद से खूब हंसाऊंगा. इस लंगूर के साथ तुम्हारी जिंदगी हंसीखुशी से गुजर जाएगी.’’

”ख्वाब देखते रहो. मेरे लिए एक से एक खूबसूरत लड़कों की लाइन लगी हुई है. मैं तुम्हें घास नहीं डालने वाली.’’

”देखूंगा.’’ सुलतान इस बार गंभीर हो गया, ”तुम मुझे घास भी डालोगी और प्यार से मुझ से गले भी मिलोगी.’’

”इतना कौंफीडेंस है तुम्हें.’’ शमा ने उसे घूरा.

”हां, मेरी जिंदगी भी अब रोशन इसी शमा से होगी. यह याद रखना.’’ सुलतान दृढ़ स्वर में बोला.

”मुंह धो लेना किसी गटर के पानी से. तुम्हारी यह हसरत कभी पूरी नहीं होगी.’’ शमा ने कहा और पांव पटकती हुई अपनी सहेली की तरफ बढ़ गई.

सुलतान मुसकरा कर उस ओर बढ़ गया जहां कोल्ड ड्रिंक सर्व की जा रही थी. शमा उस के जज्बात भड़का गई थी. सुलतान ठंडा पी कर उन जज्बातों को शांत करना चाहता था.

आज मौसम बहुत सर्द था. नवंबर महीने का बेहद ठंडा दिन कह सकते है इसे. मंसूर ऊपर से नीचे तक गरम कपड़े पहन कर काम पर आया था. वह दिल्ली के विश्वास नगर में स्थित एक मकान के फस्र्ट फ्लोर पर आ कर बंद दरवाजे के पास बैठ गया था, क्योंकि शानू अभी तक नहीं आया था. इस फ्लोर की चाबी शानू के पास ही रहती थी.

इस फ्लोर पर मोहम्मद सुलतान ने फ्लिपकार्ट के डिलीवरी होने वाले सामानों का गोदाम बना रखा था. शानू और मंसूर वहीं पर पैकिंग का काम करते थे.

पौलीथिन में पैक मिली लड़की की लाश

सर्दी से मंसूर कांप रहा था. वह चाहता था कि शानू जल्दी से आ जाए ताकि दरवाजा खोल कर वह इत्मीनान से कमरे में बैठ सके. दोपहर 2 बजे शानू आया. वह भी गरम जैकेट, टोपी पहने था.

”कितनी देर से बैठे हो?’’ उस ने मंसूर से पूछा.

”बाद में पूछना यार. जल्दी से दरवाजा खोल, मेरी कुल्फी जम रही है.’’

शानू ने जेब से चाबी निकाल कर दरवाजे पर लटक रहा ताला खोलते हुए कहा, ”आज कल से ज्यादा ठंड है.’’

मंसूर बोला नहीं. शानू ने जैसे ही ताला खोला, मंसूर दरवाजे को धकेल कर अंदर आ गया.

शानू भी अंदर आ गया. उस ने लाइट जलाई और दरवाजा बंद कर के कुरसी की तरफ बढ़ा तो सामने दीवार से टिके एक बड़े से पौलीथिन बैग को देख चौंक पड़ा.

”इतना बड़ा बैग यहां कहां से आ गया, हमारे यहां से तो छोटे बंडल पैक होते हैं.’’

”सुलतान ने माल मंगवाया होगा. यह तो सुलतान ही बताएगा कि उस ने फ्लिपकार्ट से क्या आइटम मंगवाया है.’’ मंसूर ने बैग पर एक सरसरी नजर डाल कर कहा और कुरसी सरका कर बैठ गया. शानू भी बैठ गया.

यह सुलतान का औफिसनुमा गोदाम था. वह यहां ईकामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट का माल मंगवा कर औनलाइन बेचता था. मंसूर और शानू उस के इस काम में हैल्पर थे. सुलतान ने इन्हें अच्छी तनख्वाह पर काम पर लगा रखा था.

दोनों बहुत भरोसे के आदमी थे. सुलतान के इस औफिस की एक चाबी शानू के पास रहती थी, एक सुलतान अपने पास रखता था. सुलतान की गैरमौजूदगी में औफिस खोल लेता था. उन की ड्यूटी डेढ़ बजे से रात 9 बजे तक की थी.

दोनों अपने काम में लग गए. जो माल का और्डर सुलतान ने रजिस्टर में दर्ज किया हुआ था, उस की वह पैकिंग बनाने में लग गए. वे काम में इस कदर मशगूल हुए कि उन्हें समय का कुछ पता ही नहीं चला.

शाम के साढ़े 6 बजे मंसूर उठा और बाथरूम की ओर वह गया. जब वह वापस आया तो उस ने दीवार से सटे बैग की ओर देखा. उस में से हलकी बदबू आ रही थी.

नथुनों को सिकोड़ कर उस ने लंबी सांस खींची तो उस का जी खराब हो गया. तेज बदबू आ कर नाक में समा गई थी.

”यार शानू, तुझे कुछ बदबू सी आ रही है क्या?’’ मंसूर ने पूछा.

”हां. मैं काफी समय से महसूस कर रहा हूं कि कमरे में अजीब सी बदबू भरी है ऐसी जैसे कोई चीज सड़ रही हो यहां. तू खामोशी से काम कर रहा था, इसलिए मैं ने कुछ नहीं बोला. यह बदबू इस पौलीथिन बैग से आ रही है. मैं ने अभी जोर से सांस ली तो मुझे यह महसूस हुई है. जरा देख तो इस में क्या चीज है.’’ मंसूर ने कहा.

शानू अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. पौलीथिन बैग के पास आ कर उस ने उस की रस्सी खोली तो उस के मुंह से दहशत भरी चीख निकल गई.

”लाऽऽश…’’

लाश का नाम सुनते ही मंसूर घबरा गया. वह लपक कर पास आ गया. उस ने बैग के खुले मुंह से अंदर झांका तो उस के हाथपांव कांप गए. वह घबरा कर पीछे हट गया.

”शानू, इस में किसी युवती की लाश है. यहां से भाग चलते हैं.’’

”भागने से तो हम ही फंस जाएंगे.’’ शानू हिम्मत बटोर कर बोला, ”सभी जानते हैं हम यहां दोपहर की ड्यूटी में काम करने आते हैं.’’

”तो क्या करें?’’ मंसूर ने पूछा.

”पुलिस को फोन करते हैं. ऐसा करने से हमारी जिम्मेदारी पुलिस महसूस करेगी और हम लपेटे में नहीं आएंगे.’’

”चल, तू जैसा ठीक समझे. नीचे पब्लिक बूथ से हम पुलिस को यहां लाश मिलने की जानकारी दे देते हैं.’’

शानू ने सिर हिलाया और मंसूर के साथ वह पहली मंजिल से नीचे गली में आ गया. नीचे पब्लिक बूथ से शानू ने उसी समय फर्श बाजार थाने की पुलिस को विश्वास नगर की गली नंबर-10 के मकान नंबर डी-510 में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना दे दी. दोनों इस वक्त काफी डरे हुए थे.

मंसूर ने कांपती हुई आवाज में शानू से कहा, ”तुम सुलतान को भी फोन कर दो. वह यहां आ जाएगा.’’

शमा की किस ने की थी हत्या

शानू ने अपने मोबाइल से सुलतान को फोन मिलाया तो दूसरी ओर से स्विच्ड औफ होने की सूचना मिली. काफी समय तक वह सुलतान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ ही बताता रहा.

इसी बीच वहां पर पुलिस जीप आ गई. पुलिस जिप्सी से इंसपेक्टर बाबूलाल उतरे. उन के साथ 3 पुलिसकर्मी भी थे.

शानू और मंसूर उन के पास आ गए. बाबूलाल ने दोनों को सिर से पांव तक देखा और पूछा, ”क्या तुम ने ही पुलिस को फोन किया था?’’

”हां सर!’’

”लाश कहां है?’’

”आप साथ आइए.’’ शानू हिम्मत बटोर कर बोला और सीढिय़ों से उन को ऊपर ले आया. कमरे में ला कर उस ने पौलीथिन बैग दिखा दिया.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने आगे बढ़ कर पौलीथिन बैग को टटोला. अंदर युवती की लाश देख कर उन्होंने सब से पहले इस की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. फोरैंसिक टीम को भी उन्होंने इत्तला दे दी. उन्होंने उच्चाधिकारियों के आने तक कमरे का निरीक्षण किया और शानू तथा मंसूर से पूछताछ करते रहे.

”यहां क्या काम होता है?’’

”साहब हमारे मालिक का नाम मोहम्मद सुलतान है. यहां पर वह ईकामर्स फ्लिपकार्ट से माल मंगवा कर औनलाइन सप्लाई करते हैं. मैं और मंसूर उन के पास काम करते हैं.’’

”यह लाश यहां गोदाम में किस ने ला कर रखी?’’

”मालूम नहीं साहब. मैं शानू और मेरा साथी मंसूर दोपहर 2 बजे काम पर आए थे. एक चाबी मेरे पास रहती है. मैं ने ताला खोला था. यह पौलीथिन बैग मुझे और मंसूर को कमरे में घुसते ही नजर आ गया था. हम ने सोचा सुलतान ने माल मंगवाया होगा. ज्यादा इस पर ध्यान न दे कर हम काम करने में व्यस्त हो गए. 2-ढाई घंटे बाद मंसूर और मुझे बदबू महसूस हुई तो मैं ने बैग देखने की इच्छा से इस का मुंह खोल दिया. अंदर नजर पड़ी तो दहशत से मेरी चीख निकल गई. अंदर युवती की लाश देख कर हम घबरा गए. हम ने पब्लिक बूथ से फोन कर के थाने में इत्तला दे दी.’’

”मोहम्मद सुलतान आज नहीं आया क्या?’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने पूछा.

”वह सुबह आते हैं. किसी दिन नहीं आते तो फोन से हमारी बात हो जाती है. आज वह यहां आए थे या नहीं, मालूम नहीं. उन का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है.’’

”सुलतान का नंबर लिखवा दो मुझे.’’

शानू ने सुलतान का नंबर बता दिया. इंसपेक्टर बाबूलाल ने यह नंबर अपने फोन से मिलाया तो उन्हें भी स्विच्ड औफ होने का संदेश सुनाई दिया.

नीचे डीसीपी रोहित मीणा, एडीशनल डीसीपी राजीव कुमार, एसीपी विजय नागर (शाहदरा) और एसीपी गुरुदेव आ गए थे. वह सब ऊपर कमरे में आ गए. फोरैंसिक टीम भी उन के साथ आ गई थी. फोरैंसिक टीम ने डीसीपी रोहित मीणा के इशारे पर अपना काम शुरू कर दिया. पौलीथिन बैग के ऊपर से फिंगरप्रिंट्स उठाने के बाद उस की फोटोग्राफी की गई, फिर उस में से लाश को बाहर निकाला गया.

यह 20-22 साल की जवान युवती की लाश थी. उस के हाथपांव रस्सी से बंधे हुए थे और गले में चुन्नी लिपटी हुई थी. चुन्नी से उस का गला घोंटा लगता था, क्योंकि युवती की आंखें दम घुटने से फट पड़ी थीं. वह छरहरे जिस्म वाली खूबसूरत युवती थी.

शानू और मंसूर उस युवती की लाश देख कर हैरत में आ गए थे. इंसपेक्टर बाबूलाल ने यह बात महसूस की तो शानू के पास आ गए.

”कौन है यह युवती?’’ शानू के चेहरे पर नजरें जमा कर उन्होंने धीरे से पूछा.

”इस का नाम शमा है साहब, यह हमारे मालिक की मंगेतर है.’’

”ओह!’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने होंठ सिकोड़े, ”तुम्हारा मालिक सुलतान मोबाइल स्विच्ड औफ कर के बैठा है. जाहिर है उस ने अपनी मंगेतर की गला घोंट कर हत्या कर दी और फरार हो गया.’’

”ऐसा नहीं है साहब. हमारे मालिक सुलतान तो शमा भाभी को दिल से प्यार करते रहे हैं.’’ शानू ने अपनी बात कही तो इंसपेक्टर बाबूलाल मुसकरा दिए, ”ऐसी बात है तो वह फोन स्विच्ड औफ क्यों कर के बैठा है.’’

”यह तो मैं नहीं बता सकता, साहब.’’

”शमा कहां रहती है और तुम्हारे मालिक सुलतान का ठिकाना कहां है, सब सहीसही हमें नोट करवा दो. झूठ बोलोगे तो मैं तुम्हें अंदर कर दूंगा.’’

शानू ने शमा और सुलतान के एड्रैस इंसपेक्टर बाबूलाल को बता दिए.

मंगेतर सुलतान पर हुआ शक

डीसीपी रोहित मीणा और एडिशनल डीसीपी राजीव कुमार ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. यह युवती का गला घोंट कर हत्या किए जाने का मामला था. फोरैंसिक टीम ने अपनी ओर से सारे सबूत एकत्र कर लिए थे.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने अधिकारियों को शानू द्वारा पूछताछ में मिली सारी जानकारी दे दी.

पुलिस को मृतका का नाम और पता मालूम हो गया था. उन का पूरापूरा संदेह सुलतान पर जा रहा था. उन्होंने इंसपेक्टर बाबूलाल को निर्देश दिया कि वह मोहम्मद सुलतान को दोषी मान कर अपनी जांच करें. इस के बाद उच्चाधिकारी वहां से चले गए.

लाश की कागजी काररवाई निपटाने के बाद उसे पोस्टमार्टम हेतु सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने सुलतान का फोन फिर मिलाया, किंतु वह अभी भी स्विच औफ ही आ रहा था. थाने आ कर उन्होंने मुकदमा संख्या 548/23, आईपीसी की धारा 302/201 के अंतर्गत मामला रजिस्टर में दर्ज कर लिया.

उसी दिन 25 नवंबर, 2023 की रात करीब 10 बजे शमा के परिजन थाना फर्श बाजार (शाहदरा) पहुंचे. उन्होंने थाने में शमा की गुमशुदगी दर्ज करवाई. उस वक्त इंसपेक्टर बाबूलाल थाने में ही मौजूद थे.

पुलिस की 2 टीमें जुटीं जांच में

शमा की हत्या का केस डीसीपी रोहित मीणा ने उन्हें ही देखने के लिए कहा था और इस सिलसिले में वह फर्श बाजार के एसएचओ अमूल त्यागी के साथ बैठ कर विचारविमर्श कर रहे थे. तभी एक सिपाही ने यह सूचना दी कि शमा नाम की लड़की की गुमशुदगी दर्ज करवाने उस के परिजन आए हैं. इंसपेक्टर बाबूलाल और एसएचओ अमूल त्यागी उठ कर अपने कक्ष से बाहर आ गए. वहां बाहर शमा की अम्मी और चाचा खड़े थे.

”आप ही शमा की गुमशुदगी दर्ज करवाने आई हैं?’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने पूछा.

”जी साहब, मेरी बच्ची सुबह अपने काम पर गई थी, वह अभी तक वापस नहीं आई है. हम यहां उस की गुमशुदगी दर्ज करवाने आए हैं. आप मेरी बच्ची को ढूंढ दीजिए.’’ शमा की अम्मी गिड़गिड़ाते हुए बोली.

”शमा कहां काम करती थी?’’

”जी हेडगेवार हौस्पिटल के पास ब्यूटी पार्लर है, वह वहीं काम करने जाती थी.’’

”आप को किसी पर संदेह है क्या?’’

”मुझे सुलतान पर शक है, साहब. मेरी बेटी शमा उस से प्यार करती है. उसी के साथ शमा की शादी हम लोगों ने तय कर दी है लेकिन…’’

”लेकिन क्या?’’ बाबूलाल ने शमा की अम्मी के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

”सुलतान चालाक है, वह मेरी बेटी के लायक नहीं है, लेकिन शमा की खातिर हमें सुलतान की मम्मी के आगे झुकना पड़ा है. अब देखें आप, हम दोपहर से सुलतान को फोन लगा रहे हैं, लेकिन वह फोन उठा ही नहीं रहा है. अब तो उस का फोन भी बंद हो गया है.’’

”वह फोन उठाएगा भी नहीं,’’ इंसपेक्टर बाबूलाल गंभीर हो गए, ”क्योंकि वह शमा की हत्या कर के फरार हो गया है.’’

इंसपेक्टर बाबूलाल के मुंह से यह सुनते ही शमा की मां दहाड़े मार कर रोने लगी. अन्य परिजन भी गमगीन हो गए. कुछ देर तक वहां पर गम का माहौल बना रहा. फिर शमा की मां ने सिसकते हुए पूछा, ”यह आप किस आधार पर कह रहे हैं कि मेरी बेटी शमा की हत्या हो गई है.’’

”हम ने शाम को विश्वास नगर की गली नंबर 10 से शमा की लाश बरामद की है. उस को गला घोंट कर मारा गया है. अब उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल में है, आप लोग वहां जा कर पोस्टमार्टम के बाद लाश को अपने कब्जे में ले कर उस का क्रियाकर्म करवाइए. मैं आप लोगों के साथ सिपाही यतेंद्र को भेज रहा हूं.’’

”साहब, मेरी बेटी का कातिल सुलतान ही है. विश्वास नगर में गली नंबर-10 में उसी का गोदाम है. मेरी बेटी उसी से मिलने उस के गोदाम पर गई होगी, जहां उस ने शमा की हत्या कर दी.’’ शमा की मां ने भर्राए गले से कहा.

”हमें भी सुलतान पर शक है. उस की तलाश की जा रही है.’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने कहा फिर कांस्टेबल यतेंद्र को समझा कर उन लोगों को जिला अस्पताल के लिए भेज दिया.

मामला दिल्ली ईस्टर्न रेंज के एडिशनल सीपी सागर कलसी की जानकारी में आ चुका था, इसलिए डीसीपी रोहित मीणा ने शमा की हत्या में संदिग्ध मोहम्मद सुलतान को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस और स्पैशल स्टाफ की एक टीम गठित कर दी.

टीम में थाना फर्श बाजार (शाहदरा) के इंसपेक्टर बाबूलाल, एएसआई दीपक (टेक्नीकल सर्विस) डा. विजय खोखर, एसआई सुनील (स्पैशल स्टाफ शाहदरा), हैडकांस्टेबल शशांक (फर्श बाजार थाना), कांस्टेबल यतेंद्र, एसआई पंकज कसाना और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर विकास कुमार को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व विकास कुमार को सौंपा गया था.

इस टीम ने विश्वास नगर की गली नंबर 10 को जोडऩे वाले मुख्य मार्ग पर लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. सुलतान के घर दबिश दी गई, लेकिन वह घर नहीं मिला. उस की मां नूरजहां ने पुलिस पर आरोप मढ़ा कि वह उस के बेटे सुलतान को फंसाना चाहती है. वह तो खुद 25 नवंबर से लापता है.

नूरजहां ने 26 नवंबर को फर्श बाजार थाने में जा कर सुलतान के गुम होने की सूचना लिखवा दी. उस ने कहा कि वह कल 25 नवंबर को सुबह ही शमा के घर न्यू संजय अमर कालोनी में जा कर सुलतान का रिश्ता शमा से तय कर आई है. ऐसे में सुलतान अपनी मंगेतर शमा की हत्या क्यों करेगा. सुलतान से चिढऩे वाले किसी व्यक्ति ने सुलतान का अपहरण कर लिया है.

पुलिस उस के किसी तर्क को मानने को तैयार नहीं थी. चूंकि सुलतान कल से ही लापता था और उस ने फोन भी औफ कर लिया था, शक उसी पर जा रहा था कि वह अपनी मंगेतर शमा की हत्या कर के फरार हो गया है.

पुलिस टीम ने सुलतान के फोन की लोकेशन मालूम करने के लिए उस का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. आखिर 27 नवंबर, 2023 को पुलिस को सफलता मिली. सर्विलांस टीम को उस के फोन की लोकेशन मुंबई की मिली.

तुरंत एक टीम मुंबई भेज दी गई. उस ने सर्विलांस की मदद से आखिर में मुंबई के मुलुंद इलाके से सुलतान को दबोच लिया. वहां पुलिस औपचारिकता पूरी करने के बाद टीम 28 नवंबर को सुलतान को दिल्ली ले कर चल दी. दिल्ली पहुंच कर उसे कोर्ट में पेश कर के 3 दिन की रिमांड पर ले लिया गया.

सुलतान ने क्यों की मंगेतर शमा की हत्या

रिमांड में पूछताछ हुई तो सुलतान ने चुपचाप स्वीकार कर लिया कि उस ने 25 नवंबर, 2023 की शाम को अपने विश्वास नगर वाले औफिस में शमा का उसी की चुन्नी से गला घोंट कर हत्या कर दी थी. शव छिपाने के उद्ïदेश्य से उस ने शमा की लाश बड़े पौलीथिन बैग में हाथपांव बांध कर ठूंस दी थी. वह उसे ठिकाने नहीं लगा सका. डर की वजह से वह लाश औफिस में छोड़ कर ताला बंद कर के भाग गया था.

उस ने नई दिल्ली से रात 10 बजे मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ ली थी. रास्ते में उस ने शमा का फोन फेंक दिया था. उस ने शमा को क्यों मारा, इस सवाल पर उस ने बताया, ”3 साल पहले शमा को मैं ने एक पार्टी में देखा था, तभी उस के लिए मेरे दिल में प्यार जाग गया था. शमा गुरूर से भरी थी, वह मुझ से शुरू में दोस्ती नहीं करना चाहती थी, लेकिन मैं उसे बारबार फोन करता रहा तो वह पिघल गई और मुझ से मिलने आने लगी. मैं और शमा 3 साल से गहरे अटूट प्यार में बंधे खुशीखुशी जी रहे थे. मैं शमा को अपनी पत्नी बनाना चाहता था.

”मेरे पिता मोहम्मद सलाउद्दीन गांव चिरइया, जिला मोतिहारी (बिहार) में रहते है. मेरी मां नूरजहां दिल्ली में मेरी बड़ी बहन के पास रहती है. मैं भी फर्श बाजार में बहन के साथ रहता हूं. मेरी 5 बहनें हैं. 3 की शादी हो गई है. 2 कुंवारी हैं. मैं फ्लिपकार्ट कंपनी के माल को औनलाइन बेचने का खुद का काम करता हूं. विश्वास नगर में राजीव शर्मा के फ्लैट में मैं ने फस्र्ट फ्लोर पर अपना औफिस बना रखा है. यह फ्लैट गली नंबर 10 में है. मेरे साथ मंसूर और शानू भी काम करते थे.

”मैं शमा को दिल से चाहता था, लेकिन मैं ने उसे किसी दूसरे युवक से बातें करते देख लिया था. शमा का मेरी तरफ झुकाव भी कम होने लगा था. मैं परेशान था, इसलिए मैं ने फोन कर के शमा को 25 नवंबर को विश्वास नगर बुलाया. वह ब्यूटी पार्लर में नौकरी करती है. मेरी उम्र 19 साल है, जबकि 4 साल बड़ी शमा 23 साल की है. शमा काम पर नहीं गई, वह सुबह मेरे औफिस में आ गई थी. शानू और मंसूर 2 बजे औफिस में आते थे.

”शमा को मैं ने प्यार से समझाया कि वह मुझ से प्यार करती है, शादी करना चाहती है तो दूसरे युवक से बात न करे. शमा ने कहा कि मैं उसे दूसरे युवक से बातें करने से नहीं रोकूंगा. मेरा मन जहां चाहेगा, मैं वहां हंसूंगी बोलूंगी. शादी के बाद भी यही होगा.

”साहब, बहुत समझाने पर भी शमा नहीं मानी तो मैं ने गुस्से में उसे नीचे पटक दिया और चुन्नी से उस का गला घोंट कर मार दिया. मुझे उस की हत्या करने का दुख है, लेकिन वह जिद्दी थी, इसलिए मैं ने उसे मार दिया.’’

सुलतान ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. पुलिस ने उसे फिर से कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी ने किए प्रेमिका के 31 टुकड़े

पुलिस टीम जब उस जंगल में पहुंची, तब तक वहां पर ग्रामीणों की भारी भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस ने जब गड्ढे की खुदाई कराई तो वहां का मंजर देख कर सभी के दिल दहल उठे थे. एक युवती की लाश के पूरे 31 टुकड़े कर हत्यारे ने जमीन में दफन कर रखे थे.

जब लाश के टुकड़ों को गड्ढे से बाहर निकाला गया तो वह टुकड़े पिछले 3 दिनों से लापता तिलबती के निकले. लाश की सूचना मिलते ही पुलिस ने तिलबती के घर वालों को घटनास्थल पर बुलवा लिया. घर वालों ने लाश की शिनाख्त लापता तिलबती के रूप में कर दी. पुलिस अब आगे की जांच में जुट गई थी.

शाम का धुंधलका चारों तरफ घिर आया था. अंधेरा घिरते ही गांव के सभी लोग अपनेअपने घरों को रोजमर्रा की भांति लौटने लगे थे. गांव के अन्य लोगों की तरह लुदुराम गोंड भी अपने खेत से काम निपटा कर अपने घर पहुंच गया था.

जब वह अपने घर पहुंचा तो उस ने देखा कि उस की पत्नी मृदुला कुछ परेशान सी दिखाई दे रही थी. पत्नी के माथे पर उसे चिंता की लकीरें साफसाफ नजर आ रही थीं. यह सब देख कर लुदुराम का चौंकना स्वाभाविक था.

”अरे मृदुला क्या बात है, आज तुम कुछ परेशान सी दिखाई दे रही हो?’’ लुदुराम ने पत्नी से पूछा.

”अब मैं परेशान न होऊं तो क्या करूं? अरे हमारे घर में एक बहुत परेशानी वाली बात जो हो गई है.’’ मृदुला ने चिंता भरे स्वर में कहा.

”जरा मुझे भी तो बताओ, आखिर बात क्या है?’’ लुदुराम ने पूछा.

”तुम्हारी लाडली बेटी तिलबती सुबह 10 बजे से घर से निकली हुई है, अब शाम के 6 बज गए हैं, लेकिन अभी तक लौट कर घर नहीं आई है.’’ मृदुला ने कहा.

”अगर वह अभी तक घर नहीं लौटी है तो बेटे माधव से पता करा सकती थी न तुम?’’ लुदुराम बोला.

”माधव शाम को 5 बजे से अपनी छोटी तिलबती को इधरउधर ढूंढने में ही तो लगा हुआ है. मगर तिलबती का अब तक कहीं भी कोई पता नहीं चला.’’ मृदुला ने चिंतित होते हुए कहा.

पत्नी मृदुला की बात सुन कर लुदुराम भी एकदम चिंता में पड़ गया था. तिलबती (23 वर्ष) उस के जिगर का टुकड़ा थी, जिसे वह अपने सभी बच्चों से ज्यादा प्यार करता था.

”देखो मृदुला, तुम घबराओ मत. मैं गांव में उसे ढूंढने जा रहा हूं. हमारी बिटिया हमें जल्द ही मिल जाएगी.’’ कहते हुए लुदुराम घर से निकल पड़ा था.

तिलबती अकसर अपनी सहेली निर्मला के घर अपने करिअर की बातें करने चली जाया करती थी. लुदुराम सब से पहले निर्मला के घर पर गया, जो उस के घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था. लुदुराम ने निर्मला का दरवाजा खटखटाया तो निर्मला ने दरवाजा खोल दिया.

”अरे काका, आप इतनी शाम को कैसे हमारे घर पर आ गए? आइए बैठिए तो.’’ निर्मला ने लुदुराम को अंदर आने को कहा.

”अरे बेटी, हमारी तिलबती का सुबह से ही कुछ पता नहीं चल रहा है. जरूर तुम्हारे घर पर ही आई होगी. हम सब बहुत परेशान हो रहे हैं.’’ लुदुराम ने जल्दीजल्दी कहा.

”काका, तिलबती को तो मैं ने सुबह से ही नहीं देखा है. आज उस का फोन भी नहीं आया, नहीं तो वह मुझे दिन में एक बार फोन तो जरूर कर लेती है. अरे काका, आप घबराओ मत, मैं अभी उस से बात करती हूं.’’ कहते हुए निर्मला ने अपने मोबाइल से फोन किया.

मगर दूसरी तरफ से मोबाइल स्विच्ड औफ का मैसेज आ रहा था. निर्मला ने 4-5 बार काल किया, मगर दूसरी ओर से हर बार यही मैसेज सुनने को मिल रहा था.

”क्या हुआ बेटी, तिलबती का फोन लगा क्या?’’ लुदुराम ने आशाभरी निगाहों से देखते हुए कहा.

”नहीं काका, तिलबती का फोन तो बंद आ रहा है. चलो काका, मैं भी आप के साथ तिलबती को ढूंढने चलती हूं.’’ कहती हुई निर्मला भी लुदुराम साथ चल पड़ी थी.

तब तक तिलबती के गायब होने की बात सुन कर गांव के अन्य लोग भी लुदुरामू के साथ आ गए थे. सभी ने मिल कर तिलबती को ढूंढा, परंतु उस का पता नहीं चल पाया. बेटी के न मिलने के कारण तिलबती की मां मृदुला का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. गांव की महिलाएं उसे ढांढस बंधा रही थीं.

पूरी रात भर सभी गांव वालों ने मिल कर तिलबती की पूरे गांव भर में तलाशी ली, परंतु उस का कहीं भी कुछ भी सुराग नहीं मिल सका.

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      मृतका तिलबती

लुदुराम गोंड ओडिशा के नवरंगपुर जिले के गांव बागबेड़ा, थाना राईघर का रहने वाला एक किसान था. उस के परिवार में एक बेटा माधव व 2 बेटियां सौम्या और तिलबती थीं. सब से बड़ी बेटी सौम्या का विवाह हो चुका था, उस से छोटा बेटा माधव था, जो खेती में लुदुराम का हाथ बंटाता था, जबकि सब से छोटी बेटी तिलबती थी, जिस की उम्र 23 वर्ष की हो चुकी थी.

तिलबती को पढऩे लिखने, चित्रकारी करने और सिलाईकढ़ाई करने का बड़ा शौक था. उस ने बारहवीं कक्षा पास करने के बाद कई कोर्स कर लिए थे और वह नौकरी के लिए काफी लंबे समय से प्रयासरत भी थी. लेकिन वह 22 नवंबर, 2023 को ऐसी गायब हुई कि उस का पता नहीं चला.

अगले दिन बृहस्पतिवार 23 नवंबर को लुदुराम गांव के कुछ संभ्रांत लोगों के साथ थाना राईघर पहुंचा और बेटी के गायब होने की सूचना दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में लुदुराम ने बेटी तिलबती के अपहरण की आशंका से साफ इंकार किया तो पुलिस भी पशोपेश में पड़ गई थी. तब पुलिस को ऐसा लगा कि किसी ने रंजिशन तिलबती को गायब करा दिया होगा.

जब लुदुराम ने किसी से रंजिश होने से इंकार किया तो पुलिस की यह आशंका भी निर्मूल साबित हुई. प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद पुलिस अपनी आवश्यक खोजबीन में जुट गई.

तिलबती के मिले 31 टुकड़े

5 दिन से लापता तिलबती की खोज में राईघर पुलिस दिनरात जांच में जुटी थी, तभी एक मुखबिर ने एसडीपीओ आदित्य सेन को एक गुप्त सूचना देते हुए कहा, ”हुजूर, मुरुमडीही गांव के पास स्थित जंगल में एक गड्ढे के अंदर से किसी का हाथ बाहर दिखाई दे रहा है. शायद किसी जंगली जानवर ने इंसान की लाश को खाने की वजह से खोद डाला. वहां पर गांव वाले भी इकट्ठा हो गए हैं. मामला काफी गंभीर लग रहा है?’’

यह सूचना सुन कर एसडीपीओ आदित्य सेन तुरंत अपनी पुलिस टीम व फोरैंसिक टीम को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े.

पुलिस जंगल में पहुंची तो वहां भारी संख्या में लोग जमा थे. पुलिस ने जब गड्ढा खुदवाया तो उस में एक युवती की 31 टुकड़ों में कटी लाश मिली. लाश की शिनाख्त 23 वर्षीय तिलबती के रूप में हुई. लाश के टुकड़े देख कर गांव के लोग आक्रोशित हो गए और वह पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

आखिर किस ने की तिलबती की हत्या

सचमुच में प्यार एक ऐसा अहसास है, जिसे समझ पाना बड़ा ही मुश्किल होता है. प्यार एक ऐसा अहसास होता है, जिस में किसी के प्रति हर दिन बहुत ही लगाव बढऩे लगता है. जो भी इस अनोखे प्यार में अपने आप को डाल देता है, वह पहले से ज्यादा खुश और खूबसूरत हो जाता है.

ऐसा ही कुछ तिलबती के साथ भी हुआ. तिलबती एक दिन बाजार जाने के लिए बस का इंतजार कर रही थी, तभी एक युवक बाइक ले कर उस के पास आ कर रुक गया.

दोनों की नजरें मिलीं तो युवक ने तिलबती से कहा, ”मुझे लगता है कि आप शायद मार्केट की तरफ जा रही हैं. अभी करीब एक घंटे तक यहां बस आने की कोई उम्मीद नहीं है. मैं मार्केट की तरफ ही जा रहा हूं. अगर आप चाहें तो मैं आप को वहां ड्रौप कर दूंगा.’’

”ये कौन सी बात हुई कि जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान. मैं तो आप को जानती तक नहीं हूं.’’ तिलबती ने गुस्से से कहा.

”देखिए जी, मैं रोज इसी जगह से निकलता हूं, आप को देखता हूं. आज एक बस का एक्सीडेंट हो गया है, इसलिए बाकी बसें उसी जगह पर खड़ी हैं. पब्लिक ने बवाल कर के रख दिया है वहां पर. वैसे मैं तो आप की मदद ही करना चाहता था, मगर आप तो तो मुझ पर गुस्सा करने लगी हैं.’’ युवक ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

”अरे आप तो बड़े अजीब इंसान हैं, इतनी जल्दी नाराज हो गए.’’ तिलबती ने मुसकराते हुए कहा, ”आप ने बात ही ऐसी की थी कि मेरा नाराज होना स्वाभाविक था. चलना है तो बताओ, मुझे देर हो रही है,” युवक ने अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए कहा.

”आप कम से कम अपना नाम तो बता दीजिए जनाब?’’ तिलबती ने कहा.

”मेरा नाम चंद्रा राउत है, मैं मुरुमडीही गांव का रहने वाला हूं और खेतीकिसानी करता हूं.’’ युवक ने अपना परिचय देते हुए कहा.

”अरे वाह, आप का नाम तो बहुत ही सुंदर है. मेरा नाम…’’

तिलबती अपनी बात भी पूरी नहीं कर सकी, तभी चंद्रा राउत बोल पड़ा, ”मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानता हूं. तुम्हारा नाम तिलबती गोंड पिता का नाम लुदुराम गोंड, गांव बागबेड़ा. यही है न!’’ चंद्रा राउत ने मुसकराते हुए कहा.

”अरे, तुम्हें तो मेरे बारे में सब कुछ पता है. इसलिए मैं अब आप के साथ चल सकती हूं.’’ तिलबती ने चंद्रा की बाइक पर बैठते हुए कहा.

उस दिन के बाद से दोनों में दोस्ती हो गई थी. चंद्रा राउत रोजरोज बाइक से तिलबती को पास के कस्बे में ले जाने लगा था. उन दिनों तिलबती पास के कस्बे से सिलाई का कोर्स कर रही थी. उस के अलावा तिलबती नौकरी के लिए औनलाइन आवेदन भी करती रहती थी, जिस में चंद्रा राउत अब तिलबती की मदद करता रहता था.

अब तिलबती चंद्रा राउत के साथ फिल्म देखने भी जाने लगी थी. इस दौरान तिलबती यह महसूस करने लगी थी कि बातचीत करने के दौरान चंद्रा राउत उस के नजदीक आने की काफी कोशिश करता है. चंद्रा राउत की बात भी बड़ी मजेदार होती थीं. अब तिलबती को भी लगने लगा था कि वह चंद्रा के प्रति आकर्षित होती जा रही है.

एक दिन चंद्रा राउत ने तिलबती से कहा, ”तिलबती, मैं एकांत में तुम से कुछ बात करना चाहता था.’’

तिलबती ने सोचा कि कुछ बात करना चाहता होगा, इसलिए उस ने हामी भर दी. यह चंद्रा राउत की एक चाल थी. उस ने कस्बे के एक होटल में एक कमरा पहले से बुक करा रखा था. चंद्रा उसे उस कमरे में ले गया.

”ये तुम मुझे अकेले में कहां पर ले कर आ गए हो चंद्रा?’’ तिलबती ने पूछा.

”तिलबती, मैं तुम से बेइंतहा मोहब्बत करने लगा हूं,’’ चंद्रा ने होटल के कमरे में उसे बांहों में भरते हुए कहा.

”अरे, ये तुम क्या कर रहे हो? तुम्हें पता है न कि मैं एक कुंवारी लड़की हूं. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो मैं कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’ तिलबती अपने आप को चंद्रा की बाहों से छुड़ाते हुए बोली.

”देखो तिलबती, मेरी मोहब्बत के दिल को देखो, वह तुम्हारे लिए कितना तड़प रहा है. मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम से मैं बाकायदा सब के सामने विवाह करूंगा. मेरे पास धनदौलत की बिलकुल भी कमी नहीं है. मैं तुम्हें सदा अपने दिल की रानी बना कर रखूंगा,’’ कहते हुए चंद्रा ने तिलबती को एक बार फिर अपनी बाहों में जकड़ लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

तिलबती को लगा कि जब उस का प्रेमी उस को जिंदगी भर के लिए अपनाने को तैयार है और अब वह भी उस को प्यार करने लगी है तो उसे लगा कि सब कुछ अब उस के कंट्रोल से बाहर होता जा रहा है. उस दिन की तन्हाई में चंद्रा राउत ने आखिरकार उस दिन अपनी हसरतें पूरी कर ही लीं. उस दिन के बाद से उन दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए. इस के बाद तो उन की दुनिया ही बदल गई थी.

सहेली से पता चला प्रेमी का राज

एक दिन तिलबती चंद्रा राउत से मिल कर आ रही थी, तभी उस की सहेली निर्मला ने उसे रोक लिया. वह बोली, ”कहो तिलबती, कहां से मौजमस्ती कर के आ रही हो?’’ निर्मला ने सीधेसीधे उस पर सवाल दाग दिया.

”अरे निर्मला तुम. कहीं से नहीं यार, बस एक दोस्त से मिल कर आ रही थी.’’ तिलबती ने मुसकराते हुए कहा.

”देखो तिलबती, हम दोनों बचपन से एक साथ पलेबढ़े, एक साथ स्कूल में भी पढे हैं. तुम तो अब एकदम बदल ही गई हो. सचमुच मुझे तुम से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी. पहले तो तुम मुझे रोज मिला करती थी, अपनी सारी बातें मुझे सिलसिलेवार बताया करती थी. मगर पिछले कुछ महीनों से तुम मुझ से बहुत कुछ छिपाने लगी हो.’’ निर्मला ने उसे अपने कमरे में बुला लिया था.

”निर्मला, ऐसी बात तो नहीं है. बस मैं प्यार में इतनी मदहोश हो गई थी कि सचमुच तुम्हें भी भूल गई थी. मुझे माफ कर देना प्लीज,’’ कहते हुए तिलबती ने निर्मला के दोनों हाथ पकड़ लिए थे.

”तिलबती तुम इतनी समझदार हो कर भी ऐसे कैसे बहक सकती हो. तुम्हारे घर वाले तुम्हें इतना प्यार करते हैं. उन्होंने तुम्हें इतनी छूट दे रखी है तो इस का मतलब तो यह नहीं कि तुम उन सब को खुलेआम धोखा दे डालो?’’ निर्मला ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

”साफ साफ बताओ निर्मला, आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?’’ तिलबती ने गुस्से से कहा.

”तो सुनो, तुम पिछले 2 सालों से चंद्रा राउत के प्यार में पड़ी हो और यह बात अब मुझे पता चली!’’ निर्मला ने कहा.

”अरे यार निर्मला, प्यार करना गुनाह है क्या? वैसे मैं तुम्हें बताने ही वाली थी, मगर इतनी ज्यादा व्यस्त थी कि तुम से बात करने का मौका ही नहीं मिल सका.’’ तिलबती बोली.

निर्मला ने कहा, ”तुम्हें फुरसत कहां है तिलबती, दिनरात चंद्रा के साथ गुलछर्रे उड़ाने से तुम्हें समय कहां मिल पाता है. अब तो पानी सिर के ऊपर आ गया है. तुम इतनी बेवकूफ होगी, मुझे ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता था तिलबती,’’

”निर्मला, प्यार करना अगर बेवकूफी है तो हां, मैं हूं बेवकूफ. बस और भी कुछ कहना है तुम्हें तो कहो, मैं अपने घर जा रही हूं.’’ तिलबती अब उठ कर खड़ी हो गई थी.

”जरा, ये तो सुन कर जाओ कि जिस से तुम पिछले 2 सालों से बेइंतहा प्यार कर रही हो, वह शादीशुदा है.’’ निर्मला ने जब यह बात कही तो तिलबती चौंक गई.

”तुम यह कैसे जानती हो? और चंद्रा राउत के बारे में तुम्हें क्याक्या पता है? सब कुछ कह दो,’’ तिलबती बोली.

”चंद्रा राउत हमारी दूर की रिश्तेदारी में आता है. मुझे तो यह बात कल ही पता चली कि तुम और चंद्रा एकदूसरे से प्यार करते हो. मैं ने सोचा चंद्रा तो एक मर्द हो कर भूल कर सकता है, मगर तुम तो एक लड़की हो. भला इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकती हो. आगे सुनो, चंद्रा की पत्नी का नाम सिया राउत है और उस के 5 बच्चे भी हैं.’’

”बसबस आगे तुम कुछ मत कहो निर्मला, चंद्रा का घर मुरुमडीही में कहां पर है?’’ तिलबती ने पूछा.

”चंद्रा राउत का गांव में आखिरी घर है और वहां से जंगल का इलाका शुरू हो जाता है.’’ निर्मला और कुछ भी कहना चाहती थी परंतु तिलबती यह सुनते ही अपने घर की ओर चल पड़ी थी.

प्रेमी की पत्नी हुई हत्या में शामिल

चंद्रा के बारे में यह जानकारी पा कर उस पूरी रात तिलबती सो न सकी थी. चंद्रा राउत अपने प्रेम के जाल में फंसा कर उस का शारीरिक शोषण कर रहा था, यह बात बारबार तिलबती के दिल को कचोट रही थी. उस ने फैसला कर लिया था कि वह चंद्रा राउत से मिल कर उसे सबक जरूर सिखाएगी ताकि वह किसी दूसरी लड़की के साथ ऐसा घिनौना काम न कर सके.

प्रेमी से मिलने 10 किलोमीटर पैदल चली थी तिलबती, जहां पर मिली मौत की सौगात.

रात तो किसी तरह तिलबती ने गुजार दी, मगर सुबहसुबह किसी से मिलने का बहाना बना कर वह पैदल ही घर से निकल गई. प्रेम प्रसंग के चलते तिलबती कई बार चंद्रा राउत से शादी की जिद भी कर चुकी थी, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बना कर चंद्रा शादी करने से मना कर देता था.

उस दिन तिलबती आर या पार का फैसला अपने मन में बना कर अपने प्रेमी से मिलने उस के घर पहुंच गई. वहां पहुंचते ही उस ने चंद्रा राउत के ऊपर गालियों की बौछार कर दी थी.

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             चंद्रा राउत

चंद्रा राउत की पत्नी सिया राउत पहले कुछ नहीं समझी, परंतु जब सारी बात उस की समझ में आई तो उस ने अपने पति से तिलबती को घर के भीतर बुलाने को कहा. चंद्रा राउत भी किसी न किसी तरह तिलबती से अपना पीछा छुड़ाना चाहता था. उधर दूसरी तरफ सिया भी अपने और अपने 5 बच्चों के भविष्य को ले कर चिंता में पड़ गई थी, इसलिए दोनों ने आंखों ही आंखों में एक खतरनाक फैसला कर लिया. उन्होंने तिलबती को अपने रास्ते से हमेशा हमेशा के लिए हटाने की बात तय कर ली.

प्लान के मुताबिक चंद्रा राउत ने तिलबती को अंदर आ कर बात करने के लिए समझाया और कहा, ”तिलबती, तुम घर के भीतर तो चलो, यहां बाहर चिल्ला कर इस समस्या का हल होने वाला नहीं है. मेरी पत्नी सिया भी एक समझदार औरत है, हम तीनों आपस में बैठ कर इस समस्या का कोई न कोई हल अवश्य निकाल लेंगे.’’

तिलबती प्रेमी चंद्रा राउत की बातों में आ कर उस के साथ कमरे में चली गई. जैसे ही तिलबती घर के भीतर घुसी, सिया राउत ने घर का दरवाजा बंद कर के चिटकनी और कुंडा लगा दिया.

दोनों ने मिल कर पहले तिलबती से जम कर मारपीट की, जब तिलबती घायल हो गई तो दोनों ने मिल कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

हत्यारे यहीं नहीं रुके उन्होंने मीट काटने वाले चापड़ से तिलबती की लाश के पूरे 31 टुकड़े कर दिए. उस के बाद उन्होंने अंधेरा होने का इंतजार किया और फिर अंधेरा होने पर लाश जंगल में ले गए. जंगल में गड्ढा खोद कर तिलबती की लाश के टुकड़े दफन कर दिए. उन्होंने लाश के टुकड़ों के ऊपर नमक डाल दिया था ताकि वह जल्दी गल जाएं.

चंद्रा राउत और उस की पत्नी सिया राउत ने सोचा कि तिलबती को गांव में आते किसी ने देखा भी नहीं होगा. उस की लाश उन्होंने नमक डाल कर दफन कर दी. इसलिए उन का राज हमेशा हमेशा के लिए दफन हो कर रह जाएगा, मगर ऐसा न हो सका.

अपराध चाहे कैसा भी क्यों न हो, कितनी ही चतुराई से क्यों न किया गया हो, उस का परदाफाश हो ही जाता है.

तिलबती मर्डर केस में भी ऐसा ही हुआ. रात को जंगली जानवरों ने गड्ढे को खोद दिया, जिस में से तिलबती का हाथ बाहर आ गया. जिसे गांव के एक युवक ने देख लिया और पुलिस को खबर कर दी. इस घटना के बाद ग्रामीणों में काफी रोष था. उन्होंने दोनों आरोपियों के लिए फांसी का मांग की थी.

एक युवती को प्यार करने की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी, उसे ऐसी दर्दनाक मौत दी गई कि जिसे सुन कर रोंगटे खड़े हो जाएं.

युवती का कसूर सिर्फ इतना ही था कि वह जिस शख्स से प्यार करती थी, उस के साथ अपनी सारी जिंदगी गुजारना चाहती थी, लेकिन वह पहले से ही शादीशुदा था. बावजूद इस के उस कातिल प्रेमी ने उसे अपने प्यार के जाल में फंसाया, जिस का अंजाम युवती को अपनी जान दे कर भुगतना पड़ा.

कथा लिखी जाने तक राईघर गांव पुलिस ने इस संबंध में आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर दोनों आरोपियों चंद्रा राउत और उस की पत्नी सिया राउत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

—कथा में मृदुला, सौम्या, माधव और निर्मला परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.

समाज की डोर पर 2 की फांसी

डेयरी संचालक भूरा राजपूत अपना काम निपटा कर वापस घर आया तो उस की नजर घरेलू कामों में लगीं बेटियों पर पड़ी. उन की 4 बेटियों में 3 तो घर में थीं लेकन सब से बड़ी बेटी शैफाली घर में नजर नहीं आई. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘रेनू, शैफाली दिखाई नहीं दे रही. वह कहीं गई है क्या?’’

‘‘अपनी सहेली शिवानी के घर गई है. कह रही थी, उस की किताबें वापस करनी हैं.’’ रेनू ने पति को बताया.

पत्नी की बात सुन कर भूरा झल्ला उठा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि शैफाली को अकेले घर से मत जाने दिया करो, लेकिन मेरी बात तुम्हारे दिमाग में घुसती कहां है. उसे जाना ही था तो अपनी छोटी बहन को साथ ले जाती. उस पर अब मुझे कतई भरोसा नहीं है.’’

पति की बात सही थी. इसलिए रेनू ने कोई जवाब नहीं दिया.

शैफाली सुबह 10 बजे अपनी मां रेनू से यह कह घर से निकली थी कि वह शिवानी को किताबें वापस कर घंटा सवा घंटा में वापस आ जाएगी. लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह घर नहीं लौटी थी. उसे गए हुए 3 घंटे हो गए थे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे रेनू और उस के पति भूरा की चिंता बढ़ती जा रही थी.

रेनू बारबार उस का मोबाइल नंबर मिला रही थी, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. जब भूरा से नहीं रहा गया तो शैफाली का पता लगाने के लिए घर से निकल पड़ा. उस ने बेटे अशोक को भी साथ ले लिया था.

शैफाली की सहेली शिवानी का घर गांव के दूसरे छोर पर था. भूरा राजपूत वहां पहुंचा तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. भूरा ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद शिवानी के भाई संदीप ने दरवाजा खोला. शैफाली के पिता को देख कर संदीप घबरा गया. लेकिन अपनी घबराहट को छिपाते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंकल आप, कैसे आना हुआ?’’

भूरा गुस्से में बोला, ‘‘शैफाली और शिवानी कहां हैं?’’

‘‘अंकल शैफाली तो यहां नहीं आई. मेरी बहन शिवानी मातापिता और भाई के साथ गांव गई है. वे लोग 2 दिन बाद वापस आएंगे.’’ संदीप ने जवाब दिया.

संदीप की बात सुन कर भूरा अपशब्दों की बौछार करते हुए बोला, ‘‘संदीप, तू ज्यादा चालाक मत बन. तू ने मेरी भोलीभाली बेटी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा है. तू झूठ बोल रहा है कि शैफाली यहां नहीं आई. उसे जल्दी से घर के बाहर निकाल वरना पुलिस ला कर तेरी ऐसी ठुकाई कराऊंगा कि प्रेम का भूत उतर जाएगा.’’

‘‘अंकल मैं सच कह रहा हूं, शैफाली नहीं आई. न ही मैं ने उसे छिपाया है.’’ संदीप ने फिर अपनी बात दोहराई.

यह सुनते ही भूरा संदीप से भिड़ गया. उस ने संदीप के साथ हाथापाई की. फिर पुलिस लाने की धमकी दे कर चला गया. उस के जाते ही संदीप ने दरवाजा बंद कर लिया. यह बात 13 जून, 2019 की है. भूरा राजपूत लगभग 2 बजे पुलिस चौकी मंधना पहुंचा.  संयोग से उस समय बिठूर थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह भी चौकी पर मौजूद थे.

भूरा ने उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरा नाम भूरा राजपूत है और मैं कछियाना गांव का रहने वाला हूं. मेरे गांव में संदीप रहता है. उस ने मेरी बेटी शैफाली को बहलाफुसला कर अपने घर में छिपा रखा है. शायद वह शैफाली को साथ भगा ले जाना चाहता है. आप मेरी बेटी को मुक्त कराएं.’’

चूंकि मामला लड़की का था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस के साथ कछियाना गांव निवासी संदीप के घर जा पहुंचे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, साथ ही आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

संदीप के दरवाजे पर पुलिस देख कर पड़ोसी भी अपने घरों से बाहर आ गए. वे लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर संदीप के घर ऐसा क्या हुआ जो पुलिस आई है. जब दरवाजा नहीं खुला तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ पड़ोसी विजय तिवारी की छत से हो कर संदीप के घर में दाखिल हुए.

घर के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर सभी पुलिस वाले दहल उठे. कमरे के अंदर संदीप और शैफाली के शव पंखे के सहारे साड़ी के फंदे से झूल रहे थे. इस के बाद गांव में कोहराम मच गया. भूरा राजपूत और उस की पत्नी रेनू बेटी का शव देख कर फफक पड़े. शैफाली की बहनें भी फूटफूट कर रोने लगीं. पड़ोसी विजय तिवारी ने संदीप द्वारा आत्महत्या करने की सूचना उस के पिता दिनेश कमल को दे दी.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने प्रेमी युगल द्वारा आत्महत्या करने की बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ अजीत कुमार घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और फंदों से लटके शव नीचे उतरवाए. मृतक संदीप की उम्र 20-22 वर्ष थी, जबकि मृतका शैफाली की उम्र 18 वर्ष के आसपास. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी जांच की.

टीम ने मृतक संदीप की जेब से मिले पर्स व मोबाइल को जांच के लिए कब्जे में ले लिया. मृतका शैफाली की चप्पलें और मोबाइल भी सुरक्षित रख ली गईं. पुलिस टीम ने वह साड़ी भी जांच की काररवाई में शामिल कर ली जिस से प्रेमीयुगल ने फांसी लगाई थी.

दोनों के परिजनों ने लगाए एकदूसरे पर आरोप

अब तक मृतक संदीप के मातापिता  व भाईबहन भी गांव से लौट आए थे और शव देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. संदीप की मां माधुरी गांव जाने से पहले उस के लिए परांठा सब्जी बना कर रख कर गई थी. संदीप ने वही खाया था.

पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों से घटना के संबंध में पूछताछ की और दोनों के शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल कानपुर भिजवा दिए. मृतकों के परिजन एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे, जिस से गांव में तनाव की स्थिति बनती जा रही थी. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से गांव में पुलिस तैनात कर दी. साथ ही आननफानन में पोस्टमार्टम करा कर शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कानपुर महानगर से 15 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. जो थाना बिठूर के क्षेत्र में आता है. मंधना कस्बे से कुरसोली जाने वाली रोड पर एक गांव है कछियाना. मंधना कस्बे से मात्र एक किलोमीटर दूर बसा यह गांव सभी भौतिक सुविधाओं वाला गांव है.

भूरा राजपूत अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता है. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा एक बेटा अशोक तथा 4 बेटियां शैफाली, लवली, बबली और अंजू थीं. भूरा राजपूत डेयरी चलाता था. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भाईबहनों में बड़ी शैफाली थी. वह आकर्षक नयननक्श वाली सुंदर युवती थी. वैसे भी जवानी में तो हर युवती सुंदर लगती है. शैफाली की तो बात ही कुछ और थी. वह जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस ने सरस्वती शिक्षा सदन इंटर कालेज मंधना से हाईस्कूल पास कर लिया था. फिलहाल वह 11वीं में पढ़ रही थी.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण उस के नाज नखरे कुछ ज्यादा ही थे. लेकिन संस्कार अच्छे थे. स्वभाव से वह तेजतर्रार थी, पासपड़ोस के लोग उसे बोल्ड लड़की मानते थे.

कछियाना गांव के पूर्वी छोर पर दिनेश कमल रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 2 बेटे थे. संदीप उर्फ गोलू, प्रदीप उर्फ मुन्ना और बेटी शिवानी थी. दिनेश कमल मूल रूप से कानपुर देहात जनपद के रूरा थाने के अंतर्गत चिलौली गांव के रहने वाले थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. दिनेश ने कछियाना गांव में ही एक प्लौट खरीद कर मकान बनवा लिया था. इस मकान में वह परिवार सहित रहते थे. वह चौबेपुर स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे.

दिनेश कमल का बेटा संदीप और बेटी शिवानी पढ़ने में तेज थे. इंटरमीडिएट पास करने के बाद संदीप ने आईटीआई कानपुर में दाखिला ले लिया. वह मशीनिस्ट ट्रेड से पढ़ाई कर रहा था.

शैफाली की सहेली का भाई था संदीप

शिवानी और शैफाली एक ही गांव की रहने वाली थीं, एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. अत: दोनों में गहरी दोस्ती थीं. दोनों सहेलियां एक साथ साइकिल से कालेज आतीजाती थीं. जब कभी शैफाली का कोर्स पिछड़ जाता तो वह शिवानी से कौपी किताब मांग कर कोर्स पूरा कर लेती और जब शिवानी पिछड़ जाती तो शैफाली की मदद से काम पूरा कर लेती. दोनों के बीच जातिबिरादरी का भेद नहीं था. लंच बौक्स भी दोनों मिलबांट कर खाती थीं.

एक रोज कालेज से छुट्टी होने के बाद शिवानी और शैफाली घर वापस आ रही थीं. तभी रास्ते में अचानक शैफाली का दुपट्टा उस की साइकिल की चेन में फंस गया. शैफाली और शिवानी दुपट्टा निकालने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन वह निकल नहीं रहा था.

उसी समय पीछे से शिवानी का भाई संदीप आ गया. वह मंधना बाजार से सामान ले कर लौट रहा था. उस ने शिवानी को परेशान हाल देखा तो स्कूटर सड़क किनारे खड़ा कर के पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, तुम परेशान दिख रही हो?’’

‘‘हां, भैया देखो ना शैफाली का दुपट्टा साइकिल की चेन में फंस गया है. निकल ही नहीं रहा है.’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं निकाल देता हूं.’’ कहते हुए संदीप ने प्रयास किया तो शैफाली का दुपट्टा निकल गया. उस रोज संदीप और शैफाली की पहली मुलाकात हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. खूबसूरत शैफाली को देख कर संदीप को लगा यही मेरी सपनों की रानी है. हृष्टपुष्ट स्मार्ट संदीप को देख कर शैफाली भी प्रभावित हो गई.

सहेली के भाई से हो गया प्यार

उसी दिन से दोनों के दिलों में प्यार की भावना पैदा हुई तो मिलन की उमंगें हिलोरें मारने लगीं. आखिर एक रोज शैफाली से नहीं रहा गया तो उस के कदम संदीप के घर की ओर बढ़ गए. उस रोज शनिवार था. आसमान पर घने बादल छाए थे, ठंडी हवा चल रही थी. संदीप घर पर अकेला था. वह कमरे में बैठा टीवी पर आ रही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ देख रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. संदीप ने दरवाजा खोला तो सामने खड़ी शैफाली मुसकरा रही थी.

‘‘शिवानी है?’’ वह बोली.

‘‘वह तो मां के साथ बाजार गई है, आओ बैठो. मैं शिवानी को फोन कर देता हूं.’’ संदीप ने कहा.

‘‘मैं बाद में आ जाऊंगी.’’ शैफाली ने कहा ही था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘‘अब कहां जाओगी?’’

‘‘जी.’’ कहते हुए शैफाली कमरे में आ गई और संदीप के पास बैठ कर फिल्म देखने लगी.

कमरे का एकांत हो 2 युवा विपरीत लिंगी बैठे हों, और टीवी पर रोमांटिक फिल्म चल रही हो तो माहौल खुदबखुद रूमानी हो जाता है. ऐसा ही हुआ भी शैफाली ने फिल्म देखते देखते संदीप से कहा, ‘‘संदीप एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो?’’

‘‘प्यार करने वालों का अंजाम क्या ऐसा ही होता है.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं.’’ संदीप ने कहा, ‘‘प्यार  करने वाले अगर समय के साथ खुद अनुकूल फैसला लें और समझौता न कर के आगे बढ़ें तो उन का अंत सुखद होगा.’’

‘‘अपनी बात तो थोड़ा स्पष्ट करो.’’

‘‘देखो शैफाली, मैं समझौतावादी नहीं हूं. मैं तो तुरत फुरत में विश्वास करता हूं और दूसरे मेरा मानना है कि जो चीज सहज हासिल न हो उसे खरीद लो.’’

‘‘अच्छा संदीप अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करती हूं, तब तुम मेरा प्यार हासिल करना चाहोगे या खरीदना पसंद करोगे?’’

शैफाली के सवाल पर संदीप चौंका. उस का चौंकना स्वाभाविक था. वह यह तो जानता था कि शैफाली बोल्ड लड़की है, लेकिन उस की बोल्डनैस उसे क्लीन बोल्ड कर देगी, वह नहीं जानता था. संदीप, शैफाली के प्रश्न का उत्तर दे पाता, उस के पहले ही शिवानी मां के साथ बाजार से लौट आई. आते ही शिवानी ने चुटकी ली, ‘‘शैफाली, संदीप भैया से मिल लीं. आजकल तुम्हारे ही गुणगान करता रहता है ये.’’

‘‘धत…’’ शैफाली ने शरमाते हुए उसे झिड़क दिया. फिर कुछ देर दोनों सहेलियां हंसी मजाक करती रहीं. थोड़ा रुक कर शैफाली अपने घर चली गई.

बढ़ने लगा प्यार का पौधा

उस दिन के बाद दोनों में औपचारिक बातचीत होने लगी. दिल धीरेधीरे करीब आ रहे थे. संदीप शैफाली को पूरा मानसम्मान देने लगा था. जब भी दोनों का आमना सामना होता, संदीप मुसकराता तो शैफाली के होंठों पर भी मुसकान तैरने लगती. अब दोनों की मुसकराहट लगातार रंग दिखाने लगी थी.

एक रविवार को संदीप यों ही स्कूटर से घूम रहा था कि इत्तेफाक से उस की मुलाकात शैफाली से हो गई. शैफाली कुछ सामान खरीदने मंधना बाजार गई थी. चूंकि शैफाली के मन में संदीप के प्रति चाहत थी. इसलिए उसे संदीप का मिलना अच्छा लगा. उसने मुसकरा कर पूछा, ‘‘तुम बाजार में क्या खरीदने आए थे?’’

‘‘मैं बाजार से कुछ खरीदने नहीं बल्कि घूमने आया था. मुझे पंडित रेस्तरां की चाय बहुत पसंद है. तुम भी मेरे साथ चलो. तुम्हारे साथ हम भी वहां एक कप चाय पी लेंगे.’’

‘‘जरूर.’’ शैफाली फौरन तैयार हो गई.

पास ही पंडित रेस्तरां था. दोनों जा कर रेस्तरां में बैठ गए. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद संदीप शैफाली से मुखातिब हुआ, ‘‘बहुत दिनों से मैं तुम से अपने मन की बात कहना चाह रहा था. आज मौका मिला है, इसलिए सोच रहा हूं कि कह ही दूं.’’

शैफाली की धड़कनें तेज हो गईं. वह समझ रही थी कि संदीप के मन में क्या है और वह उस से क्या कहना चाह रहा है. कई बार शैफाली ने रात के सन्नाटे में संदीप के बारे में बहुत सोचा था.

उस के बाद इस नतीजे पर पहुंची थी कि संदीप अच्छा लड़का है. जीवनसाथी के लिए उस के योग्य है. लिहाजा उस ने सोच लिया था कि अगर संदीप ने प्यार का इजहार किया तो वह उस की मोहब्बत कबूल कर लेगी.

‘‘जो कहूंगा, अच्छा ही कहूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने शैफाली का हाथ पकड़ा और सीधे मन की बात कह दी, ‘‘शैफाली मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शैफाली ने उसे प्यार की नजर से देखा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं संदीप, और यह भी जानती हूं कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती. लेकिन दिल की तसल्ली के लिए एक प्रश्न पूछना चाहती हूं. यह बताओ कि मोहब्बत के इस सिलसिले को तुम कहां तक ले जाओगे?’’

साथ निभाने की खाईं कसमें

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक.’’ संदीप भावुक हो गया, ‘‘शैफाली, मेरे लफ्ज किसी तरह का ढोंग नहीं हैं. मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं. प्यार से शुरू हो कर यह सिलसिला शादी पर खत्म होगा. उस के बाद हमारी जिंदगी साथसाथ गुजरेगी.’’

शैफाली ने भी भावुक हो कर उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘प्यार के इस सफर में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘शैफाली,’’ संदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘जान दे दूंगा पर इश्क का ईमान नहीं जाने दूंगा.’’

शैफाली ने संदीप के होंठों को तर्जनी से छुआ और फिर उंगली चूम ली. उस की आंखों की चमक बता रही थी कि उसे जैसे चाहने वाले की तमन्ना थी, वैसा ही मिल गया है.

शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी. गुपचुप मेलमुलाकातें और जीवन भर साथ निभाने के कसमेवादे, दिनों दिन उन का पे्रमिल रिश्ता चटख होता गया. दोनों का मेलमिलाप कराने में शैफाली की सहेली शिवानी अहम भूमिका निभाती रही.

एक दिन प्यार के क्षणों में बातोंबातों में संदीप ने बोला, ‘‘शैफाली, अपने मिलन के अब चंद महीने बाकी हैं. मैं कानपुर आईटीआई से मशीनिस्ट टे्रड का कोर्स कर रहा हूं. मेरा यह आखिरी साल है. डिप्लोमा मिलते ही मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

संदीप की बात सुन कर शैफाली खिलखिला कर हंस पड़ी.

संदीप ने अचकचा कर उसे देखा, ‘‘मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और तुम हंस रही हो.’’

‘‘बचकानी बात करोगे तो मुझे हंसी आएगी ही.’’

‘‘मैं ने कौन सी बचकानी बात कह दी?’’

‘‘शादी की बात.’’ शैफाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुद्धू शादी के बाद पत्नी की सारी जिम्मेदारियां पति की हो जाती हैं. एक पैसा तुम कमाते नहीं हो, मुझे खिलाओगे कैसे? मेरे खर्च और शौक कैसे पूरे करोगे?’’

‘‘यह मैं ने पहले से सोच रखा है,’’ संदीप बोला, ‘‘डिप्लोमा मिलते ही मैं दिल्ली या नोएडा जा कर कोई नौकरी कर लूंगा. शादी के बाद हम दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

बनाने लगे सपनों का महल

संदीप की यह बात शैफाली को मन भा गई. दिल्ली उस के भी सपनों का शहर था. इसीलिए संदीप ने उस से दिल्ली में बसने की बात कही तो उस का मन खुशी से झूम उठा.

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़ने लिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले अना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्ल सूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

नहीं बनी शादी की बात

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

संदीप ने बुला लिया शैफाली को

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए. दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

दोनों ने लगा लिया मौत को गले

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने लगने लगी थी. यह सुनते ही भूरा का मथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था. शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा. इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई.

इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.

इश्क में अंधी मां का गुनाह

11 साल के वंश (Vansh) और 7 साल के यश (Yash) की लाशें गन्ने के खेत में पड़ी थीं. उन की हत्या गला घोंट कर की गई थी. दोनों ही बच्चे स्कूल की ड्रेस में थे. दोनों भाइयों की लाशें देख कर पुलिस का कलेजा भी कांप उठा था. पुलिस ने मौके पर ही फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों बच्चों की लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

सोनीपत (Sonipat), हरियाणा के खूबसूरत पिकनिक स्थल सिटी पार्क के अंदर दाखिल हो कर रूबी ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. अंदर घास पर और पेड़ों के नीचे अनेक प्रेमी जोड़े सिर से सिर जोड़े बैठे प्रेमालाप में मग्न दिखाई दिए. उन में वह नहीं था, जिस के लिए रूबी अपना काम छोड़ कर यहां आई थी.

रूबी का मन उदास हो गया. निराशा उसे घेरती इस से पहले ही किसी ने उस के पीछे से उस की आंखों पर हथेलियां रख दीं, एक चहकता स्वर रूबी के कानों से टकराया, ”पहचानो कौन?’’

”नितिन,’’ रूबी खुशी से चहक पड़ी. उस ने हाथ बढ़ा कर आंखें बंद करने वाले के हाथ पकड़ लिए और उस की तरफ पलट गई.

उस के सामने नितिन खड़ा मुसकरा रहा था. वह फूलों के डिजाइन वाली शानदार शर्ट और आसमानी रंग की जींस पहने हुए था, पैरों में काले रंग के स्पोट्र्स शूज थे. आधुनिक कपड़ों में उस की पर्सनैल्टी बहुत प्रभावित कर रही थी.

नितिन को ऊपर से नीचे तक हैरानी से देखते हुए रूबी बोली, ”आज तो बहुत जंच रहे हो.’’

”तुम भी तो कयामत बरपा रही हो जान,’’ नितिन ने उस के गाल पर चिकोटी काटते हुए कहा.

”तुम्हें यहां न देख कर मैं निराश हो गई थी,’’ रूबी ने विषय बदला, ”कहां रह गए थे?’’

”यहीं था, उस पेड़ के पीछे खड़ा तुम्हारी राह देख रहा था. तुम्हें छकाने के लिए पेड़ की ओट में छिप गया था.’’

”छिपे क्यों?’’ रूबी ने हैरानी से पूछा.

”देख रहा था, मुझे न पा कर तुम कितनी बेचैन होती हो.’’

रूबी ने गहरी सांस भरी. नितिन की बांहों को थाम कर वह भावुक स्वर में बोली, ”मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह पाऊंगी नितिन, यह मुझे आज महसूस हुआ. यहां तुम नजर नहीं आए तो मेरा दिल तड़प उठा था. मैं यूं उदास हो गई, जैसे मेरी अपनी कोई प्यारी चीज गुम हो गई हो.’’

नितिन ने रूबी को बांहों में ले लिया, ”मेरा भी हाल तुम्हारे जैसा ही है रूबी. तुम्हें बगैर एक बार देखे मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तुम्हारे लिए मैं बेचैन हो जाता हूं.’’

”तो फिर मुझे हमेशा के लिए अपना क्यों नहीं बना लेते तुम?’’

”अपनाऊंगा मेरी जान, इसी विषय पर बात करने के लिए मैं ने तुम्हें आज काम से नागा कर यहां बुलाया है.’’ नितिन थोड़ा गंभीर हो गया, ”आओ, कहीं बैठ कर बात करते हैं.’’

रूबी की कमर में हाथ डाले नितिन पार्क में एक पेड़ की तरफ बढ़ गया, उस पेड़ के आसपास कोई जोड़ा नहीं बैठा था. एकदम सन्नाटे भरी जगह थी वह. दोनों पेड़ से सट कर बैठ गए.

”तुम मुझे कितना चाहती हो रूबी?’’ नितिन ने रूबी की आंखों में झांकते हुए पूछा.

”अपनी जान से ज्यादा.’’ रूबी तपाक से बोली, ”लेकिन तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’’

”तुम शादीशुदा हो न रूबी?’’ नितिन एकदम गंभीर हो गया.

”शादीशुदा हूं नहीं, थी नितिन. मैं ने अपने पति से 4 साल पहले तलाक ले लिया था. यह बात मैं ने तुम्हें उसी वक्त बता दी थी, जब तुम प्यार का इजहार करने पहली बार मेरे करीब आए थे.’’

”हां. तब तुम ने यह भी बताया था कि तुम अपनी स्वर्गवासी बहन के 2 बच्चे पाल रही हो.’’

”तब तुम ने आज यह सवाल क्यों उठाया है?’’

”इसलिए कि तुम्हारा मुझ से शादी करने के बाद फिर से अपने पूर्वपति की ओर झुकाव तो नहीं हो जाएगा.’’

रूबी ने नितिन को घूरा, ”दारू पी कर आए हो क्या आज?’’ रूबी तिलमिला गई, ”यदि मुझे ऐसा ही करना होता तो मैं तुम्हारी ओर प्यार भरा हाथ नहीं बढ़ाती, कभी का अपने पूर्व पति की चौखट पर चली जाती. लेकिन मैं ने ऐसा नहीं किया. मैं ने अपने पति से तलाक लिया है. 4 साल से उस से अलग रह रही हूं. 4 साल बहुत होते हैं नितिन. मैं ने पति को छोड़ कर अकेला जीना सीख लिया है. तुम मेरी जिंदगी में आने वाले दूसरे मर्द हो, तुम्हें मैं ने अपना दिल दिया है, मैं तुम से सच्ची मोहब्बत करती हूं. यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो हम रास्ता बदल लेते हैं.’’

”ऐसा मत कहो रूबी, तुम मेरी जान हो, मेरी जिंदगी हो.’’ नितिन का स्वर भीग गया. उस की आंखों में आंसू आ गए.

”रास्ता बदलने की बात फिर कभी मत करना. मैं जी नहीं पाऊंगा तुम्हारे बगैर,’’ रूबी ने तेवर ढीले कर लिए. उस ने अपनी बाहें फैला दीं और नितिन को अपनी ओर खींच लिया. नितिन उस के सीने से बच्चे की तरह सट गया. अब दोनों की ही आंखें बरस रही थीं. यह उन के प्यार का सच्चा सबूत हो सकता था.

22 फरवरी, 2024 को अच्छी धूप खिली थी. सोनीपत के सिविल लाइंस थाने के एसएचओ सतबीर सिंह कक्ष से बाहर धूप में बैठे अखबार देख रहे थे, तभी एक 30-32 साल की महिला बदहवासी की हालत में वहां आई.

एसएचओ सतबीर ने अखबार एक ओर कर के उस महिला को गौर से देखते हुए पूछा, ”क्या हुआ, तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’

”साहब, मेरे बच्चे गुम हो गए हैं.’’

”बच्चे…’’ एसएचओ चौंके, ”कितने बच्चे गुम हुए हैं तुम्हारे?’’

”2 बच्चे साहब. कल दोनों सुबह स्कूल गए थे, लेकिन तब से अभी तक घर नहीं लौटे हैं.’’ कहते हुए महिला रोने लगी.

एसएचओ उठ कर खड़े हो गए. उन्होंने हैरानी से पूछा, ”कल बच्चे स्कूल गए थे और घर नहीं लौटे. वे दोपहर में घर आते होंगे तब कल से अभी तक तुम यह गुमशुदगी दर्ज करवाने यहां क्यों नहीं आई?’’

”साहब, मैं एक फैक्ट्री में काम करने जाती हूं. सुबह जाती हूं तो शाम को ही लौटती हूं. कल बच्चों को स्कूल भेज कर मैं काम पर चली गई थी. शाम को लौटी तो मुझे घर के दरवाजे पर ताला लगा दिखा. जबकि रोज घर का दरवाजा खुला मिलता था. मैं ने सोचा बच्चे आसपड़ोस में जा कर बैठ गए होंगे. मैं ने आसपास के घरों में उन्हें तलाश किया.

मुझे पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने बच्चों को दोपहर में यहां नहीं देखा. वह घर लौटे या नहीं, उन लोगों को नहीं मालूम. तब मैं बहुत घबरा गई. मैं ने बच्चों के स्कूल जा कर पता किया तो वहां मौजूद चौकीदार ने बताया कि बच्चे दोपहर को स्कूल बंद हुआ तो घर के लिए चले गए थे. मैं रात भर इधरउधर जानपहचान वालों के घर दौड़ती रही, लेकिन बच्चे कहीं भी नहीं मिले. साहब, मेरे बच्चों का किसी ने अपहरण कर लिया है. आप उन्हें ढूंढ दीजिए,’’ महिला जोरजोर से रोने लगी.

”चुप हो जाओ.’’ एसएचओ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ”रोने से बच्चे नहीं मिलेंगे. बैठ जाओ और विस्तार से सब बताओ मुझे.’’

महिला कुरसी पर बैठ गई. उस ने दुपट्टे से अपने आंसू पोंछे तो एसएचओ ने एक सिपाही से पानी मंगवा कर महिला को पीने को दिया. जब वह थोड़ा सामान्य हुई तो एसएचओ ने दूसरी कुरसी पर बैठते हुए पूछा.

”क्या नाम है तुम्हारा?’’

”जी रूबी.’’

”जो बच्चे गुम हुए हैं उन के नाम, उम्र बताओ.’’

”बड़े का नाम वंश है साहब, उम्र 11 वर्ष है. दूसरे का नाम यश है, वह 7 साल का है.’’

”इन के पिता का नाम क्या है?’’

”बच्चों के पिता का नाम राहुल है साहब, लेकिन उस से मेरा 7 साल बाद तलाक हो गया था. मैं उस से अलग आदर्श नगर की गली नंबर 5 में बच्चों के साथ रहती हूं साहब. एक फैक्ट्री में काम कर के अपना और बच्चों का पेट भरती हूं.’’

”बच्चे किस स्कूल में पढ़ते थे?’’ एसएचओ सतवीर सिंह ने पूछा.

”वह मशद मोहल्ला में स्थित स्कूल में पढ़ते थे साहब, आप उन्हें तलाश करवाइए साहब. मैं अपने बच्चों के बगैर जिंदा नहीं रह पाऊंगी,’’ रूबी फिर से रोने लगी .

”बच्चों के फोटो लाई हो तुम?’’

”जी हां, साहब.’’ रूबी ने कहने के बाद चोली में रखे पर्स से निकाल कर दोनों बच्चों के फोटो एसएचओ को दे दिए.

एसएचओ ने रूबी के दोनों बच्चों की गुमशुदगी को अज्ञात के खिलाफ धारा-365 के अंतर्गत दर्ज करवा कर रूबी से 2-3 सवाल और पूछे. फिर उसे यह आश्वासन दे कर रूबी को घर भेज दिया कि उस के बच्चों की तलाश में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी जाएगी.

एसएचओ सतबीर ने रूबी के 2 बच्चों के लापता होने की जानकारी डीसीपी नरेंद्र कादयान और एसीपी नरसिंह को भी दे दी.

2 बच्चों का अपहरण बहुत गंभीर बात थी. डीसीपी नरेंद्र कादयान ने इस मामले की जांच के लिए सेक्टर-7 की एंटी गैंगस्टर यूनिट को जिम्मेदारी सौंपते हुए एसएचओ सतबीर सिंह को भी पूरी तरह मामले में सक्रिय रहने का निर्देश दे दिया.

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एसआई सबल सिंह

एंटी गैंगस्टर यूनिट का गठन आपराधिक गतिविधियों में लिप्त गैंगस्टर्स और पेचीदा केसेस के लिए किया गया था. इस यूनिट के इंचाज इंसपेक्टर अजय धनखड़ थे. इन की टीम में एसआई रविकांत, सबल सिंह, एएसआई संदीप, जितेंद्र, हैडकांस्टेबल प्रदीप और सिपाही विनोद कुमार थे.

इंसपेक्टर अजय धनखड़ ने रूबी के बच्चों वंश और यश के फोटो एसएचओ सतबीर सिंह से ले कर सभी थानों में फ्लैश करवा दिए. थानों में सूचना भिजवा दी गई कि इन बच्चों के विषय में कोई भी जानकारी मिलने पर एंटी गैंगस्टर यूनिट, सेक्टर-7 को सूचित किया जाए.

यूनिट की टीम सब से पहले रूबी से पूछताछ करने उस के घर गली नंबर- 5 आदर्श नगर पहुंच गई. रूबी घर पर ही थी. उस ने बच्चों के विषय में पूछताछ करने पर इस टीम को भी वही सब कुछ बताया, जो वह सिविल लाइंस थाने के एसएचओ सतबीर को कल सुबह बता कर आई थी.

”तुम्हारा पति से तलाक क्यों हुआ था?’’ इंचार्ज धनखड़ ने उस से सवाल पूछा.

”मेरा पति राहुल और उस के परिवार वाले अच्छे लोग नहीं थे साहब, मुझे शादी के बाद से ही छोटीछोटी बातों पर परेशान करते थे. राहुल दारू पीता था और घर वालों के उकसाने पर मुझे मारता था. मैं उस के 2 बच्चों की मां बन गई, फिर भी राहुल का व्यवहार मेरे प्रति पहले जैसा ही रहा. वह घर वालों के कहने पर चलने वाला अक्खड़ इंसान था. आखिर तंग आ कर मैं ने उस से कोर्ट द्वारा तलाक ले लिया और यहां रहने लगी.’’

”बच्चे तो राहुल के भी थे, उस ने अपने बच्चे तुम्हें कैसे सौंप दिए?’’

”वह बच्चे नहीं देता साहब. यह तो मैं ने कोर्ट से गुहार लगाई कि बच्चे छोटे हैं, उन्हें मैं ही पाल सकती हूं, इन का बाप दारूबाज और लापरवाह इंसान है. वह बच्चों को ठीक से नहीं संभाल पाएगा, तब कोर्ट ने बच्चों को मेरे हवाले कर दिया था.’’

”तुम्हारा पति राहुल कहां रहता है, उस का पता बताओ.’’

”वह विकास नगर में रहता है साहब.’’ रूबी ने कहने के बाद राहुल का पता टीम इंचार्ज को लिखवा दिया. फिर रोते हुए बोली, ”साहब, वंश और यश मेरी आंखों के तारे हैं, मेरे बुढ़ापे का सहारा वही बनते साहब. आप मेरे बच्चों की तलाश कर के उन्हें मेरी झोली में डाल दीजिए.’’

”तुम्हें किसी पर शक है? ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे साथ दुश्मनी रखता हो?’’

”यहां आप आसपड़ोस में मेरे व्यवहार के बारे में पूछताछ कर लें, मैं सभी के साथ अच्छे पड़ोसी की तरह रहती आई हूं. यहां सभी मेरे बच्चों से बहुत प्यार करते थे, इसलिए यहां तो मेरे बच्चों का कोई दुश्मन नहीं हो सकता. हां, मुझे राहुल पर शक है, वह बच्चों को अपने साथ रखने के लिए उन का अपहरण कर सकता है. आप उस से पूछताछ करिए.’’

”ठीक है, हम राहुल से पूछताछ कर लेंगे. तुम्हें यदि बच्चों के बारे में कुछ भी पता चले तो हमें खबर देना.’’

रूबी को हिदायत दे कर इस टीम ने रूबी के आसपड़ोस में उस के बच्चों वंश और यश से रूबी के व्यवहार के विषय में जानकारी जुटाई. उन्हें बताया गया कि रूबी अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी, वह यहां सब के साथ मेलमिलाप के साथ रहती है. उस के बच्चों से सभी प्यार करते हैं. दोनों बच्चे बहुत मासूम और हंसमुख हैं, उन्हें जल्दी तलाश किया जाए.

इंचार्ज अजय धनखड़ ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि रूबी के बच्चों को शीघ्र सकुशल तलाश कर के रूबी को सौंप दिया जाएगा. टीम रूबी के पूर्वपति से पूछताछ करने के लिए विश्वास नगर के लिए रवाना हो गई.

एंटी गैंगस्टर यूनिट की टीम ने राहुल के बारे में धारणा बनाई थी कि वह नशेड़ी स्वभाव और अक्खड़ दिमाग वाला व्यक्ति होगा, लेकिन जब टीम राहुल के घर गई तो शांत स्वभाव वाले दुबले पतले व्यक्ति ने उन का स्वागत किया. यह राहुल था.

राहुल को देख कर नहीं लगता था कि वह नशा करता होगा. इस टीम को अपने दरवाजे पर देख कर उस ने बहुत हैरानी से पूछा, ”कौन हैं आप लोग? मैं ने आप को पहले कभी नहीं देखा.’’

”हम हरियाणा पुलिस की एंटी गैंगस्टर यूनिट से हैं, तुम से मिलने आए हैं.’’ एसआई सबल सिंह ने बताया.

”ओह!’’ राहुल चौंक कर बोला, ”आप सब अंदर आ कर बैठिए.’’

टीम में 7 लोग थे, वे अंदर आ गए.

यह साधारण सा कमरा था, बहुत व्यवस्थित और साफसुथरा. अंदर पलंग और सोफा था. एंटी गैंगस्टर यूनिट के लोग पलंग और सोफा पर बैठ गए.

”क्या सेवा करूं मैं आप लोगों की?’’ हाथ जोड़ कर राहुल ने शिष्टाचार दर्शाते हुए पूछा, ”ठंडा लेंगे या गरम?’’

”हम कुछ देर पहले ही लंच कर के तुम्हारे पास आए हैं, इसलिए परेशान मत होओ. सामने बैठ जाओ, हमें तुम से कुछ पूछताछ करनी है.’’ राहुल स्टूल खींच कर उस पर बैठ गया, ”पूछिए साहब, आप मुझ से क्या पूछना चाहते हैं?’’

”राहुल, तुम्हारे बच्चे वंश और यश का 21 फरवरी को किसी ने अपहरण कर लिया है.’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने गंभीर स्वर में कहा तो राहुल कुछ पल के लिए हैरान रह गया.

”क्या कह रहे हैं साहब,’’ राहुल विचलित हो कर अपनी जगह खड़ा हो गया, ”किस ने किया मेरे बच्चों का अपहरण?’’

”यह हम तुम से पूछने आए हैं, तुम्हारी पूर्वपत्नी रूबी का कहना है कि तुम ने बच्चों का अपहरण किया है.’’

”झूठ बोलती है साहब रूबी, भला मैं अपने बच्चों का अपहरण क्यों करूंगा. मेरी तो वे आंखों के तारे हैं, साहब.’’

”तुम्हारे बच्चे 21 फरवरी को स्कूल गए थे, तभी से वे घर नहीं लौटे हैं. रूबी ने उन्हें हर जगह ढूंढ लिया है. तुम्हें किसी पर शक है?’’ राहुल कुछ देर शांत बैठा कुछ सोचता रहा. फिर एकदम से बोला, ”साहब, यह काम रूबी ही कर सकती है, बच्चे रूबी ने ही लापता किए हैं. नाम मेरा ले रही है.’’

”रूबी बच्चों को अपनी जान से ज्यादा चाहती है, वह अपने ही बच्चों को भला क्यों गायब करेगी.’’

”उसे अपने प्रेमी से शादी रचानी है साहब. बच्चों को उस ने लापता ही नहीं किया होगा, हो सकता है कि उस ने बच्चों का अहित भी कर दिया हो.’’ राहुल आक्रोश में आ गया, ”मैं ने तलाक के समय ही कोर्ट से प्रार्थना की थी कि बच्चे मुझे सौंपे जाएं, मैं बाप हूं उन का, लेकिन कोर्ट ने बच्चे उस निर्लज्ज रूबी के हवाले कर दिए. आज अपनी आशिकी में अंधी हो कर उस ने बच्चों को गायब कर दिया है.’’

राहुल द्वारा बताई गई बात ने सभी को चौंका दिया. यूनिट इंचार्ज अजय धनखड़ ने हैरानी से पूछा, ”क्या तुम दावे के साथ कह रहे हो कि रूबी का कोई आशिक भी है.’’

”आशिक है साहब, मुझ से तलाक लेने के बाद ही रूबी उस के प्रेमजाल में फंस गई थी.’’

”उस का नामपता, ठिकाना जानते हो तुम?’’

”हां, नितिन पुत्र राकेश सिंह. साहब, यह बागपत के बरनावा गांव का है, वह सेक्टर-27, कबीरपुर में किराए पर रहता है. यहां बढ़ई का काम करता है. मेरे बच्चों का अपहरण इस ने ही रूबी के कहने पर किया होगा.’’

”तुम ने हमें नई जानकारी दी है. हम नितिन को चैक करते हैं.’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ उठते हुए बोले. वह टीम के साथ बाहर आ गए. राहुल की जानकारी से इस केस में नया मोड़ आ गया था.

एंटी गैंगस्टर यूनिट (क्राइम ब्रांच) की टीम को राहुल के बयान से एक नई राह मिल गई थी. वह उसी दिशा में काम कर रही थी. 2 दिन बीत गए थे, लेकिन अभी तक रूबी के लापता हुए दोनों बेटों वंश और यश का कुछ पता नहीं चला था. रूबी 2 दिनों से थाना सिविल लाइंस के चक्कर लगा रही थी, उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

एसएचओ सतबीर उसे एक ही बात कहते, ”धीरज रखो, तुम्हारे बच्चों की खोज जारी है, वह शीघ्र मिल जाएंगे. उन्हें सकुशल हासिल किया जाएगा.’’

इधर एंटी गैंगस्टर यूनिट के एसआई सबल सिंह टीम के साथ उस स्कूल में पहुंच गए थे, जहां वंश और यश पढ़ते थे. स्कूल प्रशासन का कहना था, ”21 फरवरी को दोनों बच्चों को उन की मां रोज की तरह स्कूल छोडऩे आई थी. दोनों बच्चे दोपहर में स्कूल की छुट्टी होने तक स्कूल में ही थे. फिर छुट्टी के बाद अपने घर के लिए निकल गए थे.’’

बच्चे स्कूल से अपने घर आदर्श नगर के लिए पैदल ही जाते थे तो जाहिर सी बात थी स्कूल और घर के बीच ही उन का अपहरण किया गया होगा.

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                                                 मृतक यश और वंश

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम स्कूल के आसपास लगे सीसीटीवी चैक करना चाहती थी. स्कूल के सामने वाली सड़क पर सीसीटीवी कैमरा था, जो मुख्य दरवाजे को कवर कर रहा था. यूनिट टीम ने उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज हासिल कर के देखी तो उन के चेहरे खुशी से चमक उठे.

21 फरवरी की फुटेज में वंश और यश स्कूल के मेनगेट से थोड़ा आगे एक बाइक पर बैठते दिखाई दे गए. बाइक को पकड़ कर जो व्यक्ति खड़ा था, वह लंबे कद वाला दुबलापतला था. एंटी गैंगस्टर यूनिट वाले उसे उस कैमरे की फुटेज में नहीं पहचान पाए. आगे लगे दूसरे कैमरों की फुटेज देखी गई तो यूनिट के लोगों की बांछें खिल गईं.

आगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में उस बाइक वाले का चेहरा साफ दिखाई दे रहा था. वंश और यश बाइक के पीछे जिस इत्मीनान से बैठे थे, उस से लग रहा था कि वह बाइक वाले से अच्छी तरह परिचित हैं. अनुमान लगाया गया कि यह रूबी का प्रेमी नितिन ही होगा.

नितिन को दबोचना जरूरी था. क्योंकि बच्चे वही ले कर गया था. एंटी गैंगस्टर यूनिट के टीम प्रभारी अजय घनखड़ के नेतृत्व में सेक्टर-27 के कबीरपुर में पहुंच गई. नितिन का घर ढूंढने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा.

यह यूनिट टीम अभी नितिन के घर पहुंची भी नहीं थी कि घर की छत से कोई भागने के चक्कर में नीचे कूदा. यूनिट की टीम उस की तरफ दौड़ी, लेकिन वह कूद कर भागने लायक नहीं रह गया था. उस की टांग टूट गई थी. दर्द से वह बुरी तरह चीखने लगा था.

”कौन हो तुम?’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने उसे घूरते हुए पूछा.

”नितिन,’’ वह दर्द से कराहते हुए बोला.

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम ने उसे वैन में डाल लिया और सोनीपत के जिला अस्पताल में ले आए. उसे वहां उपचार के लिए भरती करवा दिया गया. डाक्टरों को जब मालूम हुआ कि यह व्यक्ति मुलजिम है और साथ में पुलिस की टीम है तो उस की टूटी हुई टांग का तुरंत एक्सरे आदि कर के प्लास्टर चढ़ा दिया गया. नितिन दर्द सह सके, इस के लिए उसे पेनकिलर दवा दे दी गई.

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                                                          हत्यारोपी नितिन

जब नितिन थोड़ा सामान्य हुआ तो एंटी गैंगस्टर यूनिट इंचार्ज अजय धनखड़ ने उस से पूछताछ शुरू की. बगैर भूमिका बांधे उन्होंने नितिन से सवाल किया, ”नितिन, तुम 21 फरवरी को वंश और यश को स्कूल पास से बाइक पर बिठा कर कहां ले गए थे?’’

”हम घूमने गए थे साहब,’’ नितिन ने हलकी कराहट के साथ बताया, ”बच्चे कई दिनों से घूमने की जिद कर रहे थे मुझ से.’’

”ओह!’’ अजय घनखड़ उस के सफेद झूठ पर मुसकराए, ”घूमने गए थे तो, तुम ने वापसी में दोनों बच्चों को कहां छोड़ा था? बच्चे तो उस दिन घर पहुंचे ही नहीं.’’

”मैं ने तो दोनों को आदर्श नगर में ही छोड़ा था साहब, मुझे नहीं पता फिर बच्चे कहां गए.’’ इस बार भी उस ने सफेद झूठ बोला था.

अजय धनखड़ ने उस के प्लास्टर वाली टांग पर जोर से प्रहार किया तो नितिन दर्द से बिलबिला कर बुरी तरह चीखा.

”झूठ बोलोगे तो मैं तुम्हारी टांग दोबारा तोड़ दूंगा. मुझे सचसच बताओ, वंश और यश कहां हैं?’’

”मैं ने उन्हें मार दिया साहब,’’ नितिन ने कराहते हुए खुलासा किया तो एंटी गैंगस्टर यूनिट की टीम के लोग स्तब्ध रह गए.

थोड़ी देर तक सभी सदमे में रहे. टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने चुप्पी तोड़ी, ”तुम ने बच्चों की हत्या कहां की थी?’’

”साहब, बागपत के पास बाघु और नौराजपुर गांव के बीच में गौरीपुर गांव के गन्ने के खेत हैं. मैं दोनों बच्चों को घुमाने के बहाने से गन्ने के खेत में ले गया और बारीबारी से उन की गरदन दबा कर उन्हें मार दिया है. उन की लाश गन्ने के खेत में ही छिपा दी थी मैं ने.’’ नितिन बोला.

”एक बात बताओ, तुम और रूबी एकदूसरे से गहरा प्रेम करते थे फिर तुम को वंश और यश की हत्या करने की क्यों सूझी. उन मासूम बच्चों से तुम्हें क्या परेशानी थी?’’ प्रभारी अजय धनखड़ ने पूछा.

”साहब, वे बच्चे राहुल के थे. रूबी मुझ पर शादी का दबाब डाल रही थी. मैं उसे अपनाने को तैयार था, लेकिन मैं नहीं चाहता था कि मेरे साथ शादी के बंधन में बंध जाने के बाद वह पिछली शादी की यादें मेरे घर, मेरी जिंदगी में लाए. पहले रूबी कहती थी कि बच्चे उस की स्वर्गवासी बहन के हैं. बाद में मुझे मालूम हुआ कि बच्चे रूबी के ही हैं.

”इस बात पर मेरा रूबी से कई बार झगड़ा हुआ, लेकिन रूबी बच्चों को खुद से दूर करने को राजी नहीं हुई तो मैं ने मन ही मन कठोर निर्णय कर लिया कि मैं बच्चों को रास्ते से हटाने के लिए उन की हत्या कर दूंगा.

”मैं ने यही किया. रूबी ने थाने में बच्चों की गुमशुदगी लिखवा दी थी. तब मैं ने रूबी को बता दिया कि मैं वंश और यश की हत्या कर चुका हूं. रूबी थोड़ी देर रोई, फिर मेरे प्यार की खातिर वह खामोश हो गई. अब वह मुझ से शादी करना चाहती है.’’ नितिन इतना बता कर चुप हो गया.

”कैसी खुदगर्ज औरत है यह. मां के नाम पर कलंक.’’ टीम इंचार्ज बड़बड़ाए.

दोनों बच्चे अब इस दुनिया में नहीं रहे थे. उन की मौत की खबर रूबी को देने पर उसे किसी प्रकार का शाक नहीं लगना था, क्योंकि वह पहले से ही यह बात जानती थी. हां, इस खबर से यदि किसी को दुख पहुंचता तो वह रूबी का पूर्वपति राहुल था. उसे बच्चों की हत्या हो जाने की खबर देना आवश्यक थी.

यूनिट के प्रभारी अजय धनखड़ ने फोन द्वारा राहुल को फौरन सोनीपत के जिला अस्पताल में आने को कह दिया. उन्होंने टीम के एएसआई जितेंद्र और हैडकांस्टेबल प्रदीप को रूबी को यहां लाने के लिए भेज दिया. इन लोगों को यह हिदायत दी गई कि वह रूबी से अभी कुछ न बताएं.

करीब आधा घंटे में राहुल जिला अस्पताल आ गया. वह हैरान था कि यूनिट टीम के इंचार्ज अजय धनखड़ ने उसे अस्पताल में क्यों बुलाया है. उसे अजय धनखड़ बाहर गेट पर ही मिल गए. अजय धनखड़ उसे ले कर उस कमरे में आ गए जहां पर नितिन को रखा गया था.

”इसे पहचानते हो राहुल?’’ अजय धनखड़ ने नितिन की ओर इशारा कर के पूछा.

”यही तो रूबी का प्रेमी है साहब.’’ राहुल ने हैरानी से कहा, ”यह यहां? इस हाल में कैसे है?’’

अजय धनखड़ गंभीर हो गए, ”तुम्हारे बेटों की हत्या की है इस ने, हम इसे पकडऩे इस के घर गए, यह छत से भागने के इरादे से कूदा तो टांग टूट गई.’’

दोनों बेटों की हत्या हो जाने की बात पर राहुल रो पड़ा. टीम इंचार्ज उसे कंधा थपथपा कर सांत्वना देते रहे.

कुछ देर के लिए वहां का माहौल बोझिल बना रहा, फिर राहुल आंसू पोंछता हुआ एक स्टूल पर जा कर बैठ गया. उस ने रूबी को उस कक्ष में टीम के लोगों के साथ अंदर आता देख लिया था.

एएसआई जितेंद्र और हैडकांस्टेबल प्रदीप के साथ रूबी वहां आई थी. अपने प्रेमी नितिन को बैड पर पड़ा देख कर वह समझ गई कि वंश और यश की हत्या का भेद अब भेद नहीं रह गया है. वह मुंह छिपा कर रोने लगी.

”तुम्हारे आंसू अब किसी की सहानुभूति नहीं बटोर सकते रूबी, तुम मां नहीं मां के नाम पर कलंक हो. अपनी मांग में नितिन का सिंदूर सजाने के लिए तुम ने दोनों बेटों की बलि चढ़वा दी.’’ अजय धनखड़ मुंह बिगाड़ कर बोले, ”यह मालूम होते हुए भी कि नितिन तुम्हारे बच्चों की हत्या कर चुका है. तुम पुलिस के साथ उन को ढूंढ लेने की नौटंकी करती रही हो, तुम भूल गई कि अभी हम लोग जिंदा हैं, ऐसे केस का राज जगजाहिर करने के लिए हम रातदिन एक कर देते हैं.’’

”मैं प्यार में अंधी हो गई थी साहब, अपने स्वार्थहित में मैं ने अपने फूल जैसे बच्चों को खो दिया.’’ रूबी कहने के बाद फूटफूट कर रोने लगी.

टीम इंचार्ज अजय धनखड़ आगे की काररवाई में लग गए थे.

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम रात के समय नितिन और रूबी को साथ ले कर बागपत पहुंच गई. गौरीपुर गांव से संबधित थाने में यहां आने का मकसद बता कर उन्होंने आमद दर्ज करवाई. एसएचओ ने एसीपी नरेंद्र प्रताप सिंह को सूचना दी तो वह आधी रात को थाना में आ गए. बिना समय गंवाए सभी नितिन द्वारा बताए जा रहे गौरीपुर गांव में उस गन्ने के खेत में पहुंच गए, जहां नितिन ने वंश और यश की हत्या कर दिए जाने की बात कुबूली थी.

नितिन ने टौर्च की रोशनी में खेत में छिपा कर रखी लाशें बरामद करवा दीं. दोनों बच्चों के शरीर पर स्कूल की ड्रैस थी. उन की लाशें देख कर रूबी दहाड़े मार कर रोने लगी. वहां मौजूद सभी पुलिस वालों की आंखें भी नम हो गईं.

भारी मन से वहां की कागजी काररवाई पूरी की गई और रात के 4 बजे बच्चों की लाश ले कर एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम वापस सोनीपत के लिए रवाना हो गई.

सिविल लाइंस थाना सेक्टर-27 में पहुंच कर टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने वंश और यश की लाशें पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भिजवा दीं. नितिन ने इन बच्चों की हत्या का आरोप स्वीकार कर लिया था. उस के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 302, 364 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

एंटी गैंगस्टर टीम की सफलता पर उन्हें बधाई देने पुलिस कमिश्नर सतीश वालान, डीसीपी नरेंद्र कादयान और एसीपी नरसिंह थाने में आ गए. इस मामले में एसएचओ सतबीर सिंह, कोर्ट के पास वाली ओल्ड चौकी इंचार्ज एसआई रोहित तथा एसआई शिव माणी और हैडकांस्टेबल टीकम का भी योगदान था. सभी की पीठ थपथपा कर उच्चाधिकारियों ने शाबाशी दी.

नितिन और रूबी को उसी दिन कोर्ट में पेश किया गया. नितिन को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया. रूबी की ओर से उस के पिता हरपाल सिंह ने बेटी की शक्ल देखने से मना कर दिया था, अत: कोर्ट ने रूबी को नारी निकेतन भेज दिया.

पोस्टमार्टम हो जाने के बाद दोनों बच्चों के शव राहुल को सौंप दिए गए. उस ने परिजनों के साथ नम आंखों से बच्चों का अंतिम संस्कार कर दिया. अब उस के पास बच्चों की यादों के अलावा कुछ भी नहीं बचा था.

हवस का शिकार पति

ज्यों ज्यों रात बीतती जा रही थी, त्योंत्यों महाराज सिंह की चिंता बढ़ती जा रही  थी. उन की निगाह कभी घड़ी की सुइयों पर टिक जाती तो कभी दरवाजे पर. बात ही कुछ ऐसी थी, जिस से वह बेहद परेशान थे.

उन का बेटा सुनील कुमार जो उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में टीचर था, घर नहीं लौटा था. वह घर से यह कह कर कार से निकला था कि घंटे 2 घंटे में लौट जाएगा, लेकिन आधी रात बीत जाने पर भी वह वापस नहीं आया था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. यह बात 30 मई, 2019 की है.

सुबह हुई तो महाराज सिंह ने अपने कुनबे वालों को सुनील कुमार के लापता होने की जानकारी दी तो वे भी चिंतित हो उठे और महाराज सिंह के साथ सुनील को ढूंढने में जुट गए. महाराज सिंह ने मोबाइल से फोन कर के नाते रिश्तेदारों से बेटे के बारे में पूछा. लेकिन सुनील कुमार का कोई पता नहीं चला.

दुर्घटना की आशंका को देखते हुए इटावा, भरथना, सैफई आदि के अस्पतालों में भी जा कर देखा गया, लेकिन सुनील की कोई जानकारी नहीं मिली.

घर वालों के साथ बेटे की खोजबीन कर महाराज सिंह शाम को घर लौटे तो उन की बहू रेखा दरवाजे पर ही खड़ी थी. उस ने महाराज सिंह से पूछा, ‘‘पिताजी, उन का कहीं कुछ पता चला?’’

जवाब में ‘नहीं’ सुन कर रेखा फूटफूट कर रोने लगी. महाराज सिंह ने उसे धैर्य बंधाया, ‘‘बहू, सब्र करो. सुनील जल्द ही वापस आ जाएगा.’’

सुनील कुमार का एक दोस्त था सुखवीर सिंह यादव. वह भी टीचर था और कुसैली गांव में रहता था. उस का सुनील के घर खूब आनाजाना था. महाराज सिंह ने उसे सुनील के लापता होने की जानकारी दी तो वह तुरंत उन के यहां आ गया और महाराज सिंह के साथ सुनील की खोज में जुट गया. वह उन के साथ जरूरत से कुछ ज्यादा ही अपनत्व दिखा रहा था.

उस ने महाराज सिंह से कहा कि वह परेशान न हों, सुनील मनमौजी है इसलिए बिना कुछ बताए कहीं घूमनेफिरने चला गया होगा. कुछ दिन घूमघाम कर वापस लौट आएगा.

महाराज सिंह की बहू रेखा जो अब तक आंसू बहा रही थी, सुखवीर के आने के बाद उस के आंसू रुक गए. वह भी सुखवीर की हां में हां मिलाने लगी थी. वह अपने ससुर महाराज सिंह को तसल्ली दे रही थी कि पिताजी सुखवीर भाईसाहब सही कह रहे हैं. वह कहीं घूमने चले गए होंगे जल्दी ही लौट आएंगे. घबराने की जरूरत नहीं है.

बहू के इस बदले हुए व्यवहार से महाराज सिंह को आश्चर्य तो हुआ लेकिन उन्होंने उस से कुछ कहासुना नहीं. महाराज सिंह बेटे की खोज कर ही रहे थे कि एक अज्ञात नंबर से उन के मोबाइल पर काल आई. फोन करने वाले ने बताया कि सुनील की कार कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर कार पार्किंग में खड़ी है.

यह बताने के बाद उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. महाराज सिंह ने कुछ और जानकारी के लिए काल बैक की तो स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन्होंने कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे.

रेखा के पास पति की कार की डुप्लीकेट चाबी थी. वह पति के दोस्त सुखवीर सिंह तथा ससुर महाराज सिंह के साथ कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची. वहां पार्किंग में सुनील की कार खड़ी थी. पार्किंग वालों को उन लोगों ने सुनील के बारे में बताया, फिर तीनों वहां से कार ले कर लौट आए. घर पहुंच कर सुखवीर सिंह और रेखा ने महाराज सिंह को एक बार फिर धैर्य बंधाया.

लेकिन जब एक सप्ताह बीत गया और सुनील वापस नहीं आया तो महाराज सिंह का धैर्य जवाब देने लगा. उन्होंने बहू रेखा पर दबाव डाला कि वह थाने जा कर सुनील की गुमशुदगी दर्ज कराए. रेखा रिपोर्ट दर्ज कराना नहीं चाहती थी, लेकिन दबाव में उसे तैयार होना पड़ा.

8 जून, 2019 को रेखा अपने ससुर महाराज सिंह के साथ थाना चौबिया पहुंची और थानाप्रभारी सतीश यादव को अपना परिचय देने के बाद पति सुनील कुमार के सप्ताह भर पहले लापता होने की जानकारी दी. बहू के साथ आए महाराज सिंह ने भी थानाप्रभारी से बेटे को खोजने की गुहार लगाई.

थानाप्रभारी सतीश यादव ने सुनील कुमार की गुमशुदगी दर्ज कर के उन दोनों से कुछ जरूरी जानकारियां हासिल कीं, फिर उन्हें भरोसा दिया कि वह सुनील को ढूंढने की पूरी कोशिश करेंगे.

सुनील कुमार गांव केशवपुर राहिन के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक  था. उस का समाज में अच्छा सम्मान था. उस के अचानक लापता होने से विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षकों व आसपास के कई गांवों के शिक्षकों में बेचैनी थी. पुलिस की निष्क्रियता से उन का रोष बढ़ता जा रहा था. शिक्षक भी अपने स्तर से सुनील कुमार की खोज कर रहे थे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी.

आखिर जब शिक्षकों के सब्र का बांध टूट गया तो उन्होंने और माखनपुर गांव के लोगों ने थाना चौबिया के सामने धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. सूचना पा कर इटावा के एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा, एडिशनल एसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह तथा एडिशनल एसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह थाना चौबिया पहुंच गए.

उन्होंने धरनाप्रदर्शन कर रहे शिक्षकों को समझा कर आश्वासन दिया कि सुनील कुमार की खोज के लिए एक स्पैशल टीम गठित की जाएगी ताकि जल्द से जल्द उन का पता चल सके. एसएसपी के इस आश्वासन के बाद शिक्षकों ने आंदोलन समाप्त कर दिया.

इस के बाद एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा ने एक स्पैशल टीम गठित कर दी. टीम में थाना चौबिया प्रभारी सतीश यादव, क्राइम ब्रांच प्रभारी सत्येंद्र यादव, सीओ (सैफई), अपराध शाखा तथा फोरैंसिक टीम के सदस्यों को शामिल किया गया. टीम का संचालन एडिशनल एसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह तथा एडिशनल एसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह को सौंपा गया.

पुलिस टीम ने जांच शुरू की तो पता चला कि लापता शिक्षक सुनील कुमार की दोस्ती कुसैली गांव के शिक्षक सुखवीर सिंह यादव से है. उस का सुनील के घर बेधड़क आनाजाना था.

पुलिस टीम ने गुप्त रूप से पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि सुखवीर सिंह यादव सुनील की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आता था. यह भी पता चला कि सुनील की पत्नी रेखा और सुखवीर के बीच नाजायज संबंध हैं. रेखा सुखवीर के साथ घूमने भी जाती थी.

अवैध रिश्तों की जानकारी मिली तो पुलिस टीम का माथा ठनका. टीम को शक हुआ कि कहीं अवैध रिश्तों के चलते इन दोनों ने सुनील को ठिकाने तो नहीं लगा दिया.

बहरहाल, पुलिस टीम को पक्का विश्वास हो गया था कि सुनील के लापता होने का भेद रेखा और सुखवीर के पेट में ही छिपा है. लिहाजा पुलिस ने 15 जून, 2019 को शक के आधार पर रेखा और सुखवीर को उन के घरों से हिरासत में ले लिया.

थाने ले जा कर पुलिस ने उन दोनों के मोबाइल कब्जे में ले कर उन की काल डिटेल्स की जांच की तो 30 मई की शाम से ले कर रात तक दोनों की कई बार बात होने की पुष्टि हुई. सुखवीर के मोबाइल से एक और नंबर पर कई बार बात हुई थी. उस नंबर के बारे में पूछने पर सुखवीर ने बताया कि यह नंबर उस के रिश्तेदार रामप्रकाश यादव का है, जो औरैया जिले के ऐरवा कटरा थाना के बंजाराहारा गांव में रहता है.

पुलिस टीम ने रेखा और सुखवीर सिंह से लापता शिक्षक सुनील कुमार के संबंध में पूछताछ शुरू की. सख्ती करने पर दोनों टूट गए.

उस के बाद सुखवीर सिंह ने जो बताया, उसे सुन कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने बताया कि सुनील कुमार अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने अपने रिश्तेदार रामप्रकाश की मदद से उस की हत्या कर शव के टुकड़ेटुकड़े कर गड्ढे में डाल कर जला दिए. फिर झुलसे हुए शव को गड्ढे में ही दफन कर दिया.

पुलिस टीम सुनील कुमार के शव को बरामद करने के लिए सुखवीर को साथ ले कर उस के गांव कुसैली पहुंची. गांव में उस के 2 मकान थे. एक मकान में वह स्वयं रहता था तथा दूसरा खाली पड़ा था.

इसी खाली मकान में उस ने अपने दोस्त का शव दफनाया था. सुखवीर की निशानदेही पर पुलिस टीम ने एक कमरे में खुदाई कराई तो गड्ढे से सुनील कुमार की लाश के जले हुए टुकड़े बरामद हो गए.

टीम ने शव बरामद होने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दी तो वह मौकामुआयना करने वहां पहुंच गए. बुलाई गई फोरैंसिक टीम ने भी साक्ष्य जुटाए. जिस फावड़े से हत्या की गई थी, उसे भी बरामद कर लिया गया.

यह जानकारी जब गांव वालों को हुई तो वहां भीड़ जुट गई. मृतक के घर वाले भी वहां आ पहुंचे. बढ़ती भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने आसपास के थानों से भी पुलिस फोर्स बुला ली. महाराज सिंह बेटे का शव देख कर बदहवास थे. उन की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

पुलिस टीम ने भारी पुलिस सुरक्षा के बीच मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए इटावा भेज दी. सुखवीर सिंह की निशानदेही पर हत्या में शामिल उस के रिश्तेदार रामप्रकाश को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब रेखा और सुखवीर से उस का सामना हुआ तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. रामप्रकाश ने बताया कि सुखवीर सिंह ने उसे हत्या करने में सहयोग करने के लिए 10 हजार रुपए दिए थे.

इस के बाद एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की और तीनों कातिलों को पत्रकारों के सामने पेश कर शिक्षक सुनील कुमार की हत्या का खुलासा कर दिया. पुलिस कप्तान ने केस का खुलासा करने वाली टीम को 10 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा की.

कानपुर देहात जिले का बड़ी आबादी वाला एक कस्बा है रूरा. इसी रूरा कस्बे में भगवानदीन अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रुचि के अलावा 2 बेटियां रेखा व बरखा थीं. भगवानदीन गल्ले का व्यापार करते थे. इस धंधे में उन्हें अच्छी कमाई होती थी. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भगवानदीन स्वयं तो ज्यादा पढ़लिख नहीं पाए थे, लेकिन वह बेटियों को पढ़ालिखा कर योग्य बनाना चाहते थे. उन की बड़ी बेटी रेखा खूबसूरत और पढ़नेलिखने में तेज थी. वह बीए में पढ़ रही थी, उसी दौरान उसे शिक्षा मित्र के पद पर नौकरी मिल गई. वह गुलाबपुर भोरा गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने लगी.

जब रेखा शादी योग्य हुई तो भगवानदीन उस के लिए वर की खोज में जुट गए. रेखा चूंकि शिक्षक थी, इसलिए भगवानदीन उस के लिए शिक्षक वर की ही तलाश रहे थे. काफी दौड़धूप के बाद भगवान दीन को रेखा के लिए सुनील कुमार पसंद आ गया.

सुनील कुमार इटावा जिले के माखनपुर गांव के रहने वाले महाराज सिंह का बेटा था. सुनील के अलावा महाराज सिंह की एक बेटी थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. सुनील उच्चतर माध्यमिक विद्यालय केशवपुर रोहिन में पढ़ाता था.

उम्र में सुनील रेखा से करीब 7 साल बड़ा था, पर वह सरकारी नौकरी पर था इसलिए रेखा को भी उस से शादी करने में कोई आपत्ति नहीं थी. अंतत: जनवरी 2008 में उन का विवाह हो गया.

ससुराल में रेखा खुश थी. दोनों का दांपत्य जीवन सुखमय बीतने लगा. सुनील के पास कार थी. छुट्टी वाले दिनों में वह रेखा को कार से घुमाने के लिए निकल जाता था, जिस से उस की खुशियां और भी बढ़ जाती थीं.

समय बीतता गया और रेखा एक के बाद एक 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. बच्चों के जन्म से घर में किलकारियां गूंजने लगी थीं. रेखा के ससुर महाराज सिंह घर में केवल खाना खाने के लिए ही आते थे. उन का ज्यादातर समय खेतों पर ही बीतता था. वहां उन्होंने एक कमरा भी बनवा लिया था. वह उसी कमरे में रहते थे. वहां रह कर वे ट्यूबवेल तथा फसल की रखवाली करते थे.

रेखा 3 बच्चों की मां जरूर बन गई थी, लेकिन उस की सुंदरता में कमी नहीं आई थी. इस के अलावा वह बिस्तर पर पति का रोजाना ही साथ चाहती थी. लेकिन सुनील उस का साथ नहीं दे पाता था, जिस की वजह से रेखा के स्वभाव में बदलाव आ गया था. वह बात बेबात पति से झगड़ने लगी.

सुनील कुमार का एक शिक्षक दोस्त सुखवीर सिंह यादव था. वह चौबिया थाने के कुसैली गांव का रहने वाला था. दोनों दोस्तों में खूब पटती थी. सुखवीर की आर्थिक स्थिति सुनील से बेहतर थी. वह ठाटबाट से रहता था.

एक रोज सुनील ने अपने दोस्त सुखवीर सिंह यादव को पार्टी देने के लिए अपने घर बुलाया. उस रोज पहली बार सुखवीर ने रेखा को देखा था. पहली नजर में ही रेखा उस की आंखों में रचबस गई. खानेपीने के दौरान सुखवीर की निगाहें रेखा की खूबसूरती पर ही टिकी रहीं. रेखा भी अपनी खूबसूरती का जादू चला कर सुखवीर के दिल को घायल करती रही.

पार्टी के बाद सुखवीर जब जाने लगा तो उस ने रेखा से कहा, ‘‘भाभी, आप बेहद खूबसूरत हैं.’’

यह सुन रेखा सुखवीर को गौर से निहारने लगी फिर उस ने मुसकरा कर सिर झुका लिया. रेखा को दिल में बसा कर सुखवीर चला गया.

इस के बाद सुनील व सुखवीर जब कभी मिलते तो सुनील उसे घर ले आता. सुखबीर चाहता भी यही था. रेखा व उस के बच्चों को रिझाने के लिए कभी वह खानेपीने की चीजें लाता तो कभी खिलौने.

रेखा इन चीजों को थोड़ा नानुकुर के बाद स्वीकार कर लेती थी. सुनील को शक न हो या बुरा न लगे, इस के लिए वह सुनील की भी खातिरदारी करता. दरअसल, सुखवीर बियर पीने का शौकीन था. उस ने इस का चस्का सुनील को भी लगा दिया था.

30-32 वर्षीय सुखवीर शरीर से हृष्टपुष्ट व हंसमुख स्वभाव का था. रेखा से नजदीकी बनाने के लिए वह खूब खर्च करता था. कभीकभी वह रेखा के हाथ पर भी हजार 2 हजार रुपए रख देता था. रेखा मुसकरा कर उन्हें रख लेती थी.

बाद में सुखवीर सुनील की गैरमौजूदगी में भी आने लगा था. वह रेखा को भाभी कहता था. इस बहाने वह उस से खुल कर हंसीमजाक भी करनेलगा. रेखा उस की हंसीमजाक का बुरा नहीं मानती थी, बल्कि सुखवीर की रसीली बातें उस के दिल में हलचल पैदा करने लगी थीं.

सच तो यह है कि रेखा भी सुखवीर को चाहने लगी थी. क्योंकि सुखवीर एक तो उम्र में उस के बराबर था, दूसरे वह हंसमुख स्वभाव का था.

एक रोज सुखवीर स्कूल न जा कर रेखा के घर जा पहुंचा. उस समय रेखा घर में अकेली थी. बच्चे स्कूल गए थे और पति सुनील अपनी ड्यूटी पर. घर का कामकाज निपटा कर रेखा नहाधो कर सजीसंवरी बैठी थी कि सुखवीर आ गया. रेखा की खूबसूरती पर रीझ कर सुखवीर बोला, ‘‘भाभी, बनसंवर कर किस का इंतजार कर रही हो. क्या सुनील भैया जल्दी घर आने वाले हैं?’’

‘‘उन्हें मेरी फिक्र ही कब रहती है, जो जल्दी घर आएंगे.’’ रेखा तुनक कर बोली.

‘‘भैया को फिक्र नहीं तो क्या हुआ, मुझे तो आप की फिक्र है. मैं तो रातदिन तुम्हारी ही खूबसूरती में डूबा रहता हूं.’’ कहते हुए सुखवीर ने दरवाजा बंद किया और रेखा को अपनी बांहों में भर लिया. इस के बाद उस ने रेखा से छेड़छाड़ शुरू कर दी.

दिखावे के लिए रेखा ने उस की छेड़छाड़ का हलका विरोध किया, लेकिन जब उसे सुखद अनुभूति होने लगी तो वह भी उस का सहयोग करने लगी. इस तरह दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

एक ओर सुखवीर जहां रेखा से मिले सुख से निहाल था, वहीं रेखा भी थकी सांसों वाले पति सुनील से ऊब गई थी. सुखवीर का साथ पा कर वह फूली नहीं समा रही थी. उन दोनों ने एक बार मर्यादा की सीमा लांघी तो फिर लांघते ही चले गए. दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में समा जाते.

सुनील पत्नी के प्रेम प्रसंग से अनभिज्ञ था. उसे पत्नी व दोस्त दोनों पर भरोसा था. लेकिन दोनों ही उस के विश्वास का गला घोंट रहे थे.

सुनील भले ही पत्नी के प्रेम प्रसंग से अनभिज्ञ था, लेकिन पासपड़ोस के लोगों में रेखा और सुखवीर के नाजायज रिश्तों की चर्चा चल पड़ी थी. लेकिन उन दोनों ने इस की परवाह नहीं की. सुखवीर रेखा का दीवाना था तो रेखा उस की मुरीद. रेखा पत्नी तो सुनील की थी, लेकिन उस पर अधिकार उस के प्रेमी सुखवीर का हो गया था.

रेखा और सुखवीर के संबंधों के चर्चे गांव की हर गली के मोड़ पर होने लगे तो बात सुनील के कानों तक पहुंची. उस ने इस बारे में पत्नी से पूछा, ‘‘रेखा, आजकल तुम्हारे और सुखवीर के बारे में गांव में जो चर्चा है, क्या वह सच है?’’

‘‘कैसी चर्चा?’’

‘‘यही कि तुम्हारे और सुखवीर के बीच नाजायज संबंध हैं.’’

‘‘गांव वाले हमें बदनाम करने के लिए तुम्हारे कान भर रहे हैं. इस के बाद भी अगर तुम्हें अपने दोस्त पर भरोसा नहीं तो उस से साफसाफ कह दो कि वह घर न आया करे.’’

सुनील ने उस समय पत्नी की बात पर भरोसा कर लिया, लेकिन उस के मन में शक जरूर बैठ गया. अब वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ने की जुगत में लग गया. उसे यह मौका जल्द ही मिल गया.

उस रोज रविवार था. सुनील ने रेखा से कहा कि वह किसी काम से इटावा जा रहा है, देर शाम तक ही वापस आ पाएगा.

इधर सुनील घर से निकला उधर रेखा ने फोन कर के सुखवीर को घर बुला लिया. आते ही सुखवीर ने रेखा को बांहों में कैद किया और बिस्तर पर जा पहुंचा. इसी दौरान रेखा को दरवाजा पीटने की आवाज सुनाई दी. रेखा ने कपड़े दुरुस्त करने के बाद दरवाजा खोला तो सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया और उस की घिग्घी बंध गई.

सुनील पत्नी की घबराहट भांप गया. रेखा को परे ढकेल कर सुनील घर के अंदर गया तो कमरे में उस का दोस्त सुखवीर बैठा मिला. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

सुनील को देख कर सुखवीर चेहरे पर बनावटी मुसकान बिखेरते हुए बोला, ‘‘आप तो इटावा गए थे. रेखा ने चंद मिनट पहले ही बताया था. मैं इधर से चौबिया जा रहा था तो सोचा आप से मिलता चलूं.’’

सुनील बोला, ‘‘हां दोस्त, गया तो इटावा था लेकिन यह सोच कर वापस आ गया कि तुम दोनों घर में क्या गुल खिला रहे हो, यह भी देख लूं. बहरहाल, तुम ने दोस्ती का अच्छा फर्ज निभाया और मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया. तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो. अब तुम्हारी खैरियत इसी में है कि आज के बाद हमारे घर में कदम मत रखना.’’

सुखवीर एक तरह से रंगेहाथ पकड़ा गया था. इसलिए वह बिना जवाब दिए ही घर से चला गया. उस के बाद सुनील का सारा गुस्सा रेखा पर उतरा. उस ने पत्नी को बेतहाशा पीटा. रेखा पिटती रही लेकिन अपराध बोध के कारण उस ने जवाब नहीं दिया.

उस दिन के बाद रेखा और सुखवीर का मिलना बंद हो गया. सुनील और सुखवीर की दोस्ती में भी गांठ पड़ गई. लेकिन यह दूरियां अधिक दिनों तक नहीं चल पाईं. एक दिन जब दोनों का सामना हुआ तो सुखवीर ने पैर पकड़ कर सुनील से माफी मांग ली.

सुनील साफ दिल का था इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया. इस के बाद दोनों में पहले जैसी दोस्ती हो गई. फिर से सुखवीर के घर आनेजाने लगा. रेखा इस से बहुत खुश थी.

एक रोज सुनील घर से निकला तो इत्तफाक से सुखवीर आ गया. रेखा और सुखवीर अपने प्यार के सिलसिले में बातें करने लगे. तभी रेखा बोली, ‘‘सुखवीर इस तरह लुकाछिपी का खेल कब तक चलेगा?’’

‘‘जब तक तुम चाहोगी.’’

‘‘नहीं, मुझे यह पसंद नहीं. अब मैं कोई स्थाई समाधान चाहती हूं.’’ रेखा ने कहा.

‘‘मतलब?’’ सुखवीर चौंकते हुए बोला.

‘‘मतलब यह कि मैं सुनील से छुटकारा चाहती हूं. अब मैं तुम से तभी बात करूंगी, जब तुम सुनील से छुटकारा दिला दोगे.’’

सुखवीर कुछ पल गहरी सोच में डूबा रहा फिर बोला, ‘‘ठीक है, मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है.’’

इस के बाद रेखा और सुखवीर ने मिल कर सुनील की हत्या की योजना बनाई. अपनी इस योजना में सुखवीर ने अपने एक रिश्तेदार रामप्रकाश को 10 हजार रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया.

योजना के अनुसार, 30 मई, 2019 की शाम 4 बजे सुखवीर सिंह अपने दोस्त सुनील कुमार के घर पहुंचा और उस ने उसे पार्टी की दावत दी. सुनील राजी हो गया तो सुखवीर ने अपने रिश्तेदार रामप्रकाश को फोन कर घर पहुंचने को कहा.

शाम लगभग 6 बजे सुखवीर, सुनील को साथ ले कर अपने गांव कुसैली आ गया. सुनील अपनी कार से आया था. सुखवीर ने सुनील को अपने खाली पड़े मकान में ठहराया. फिर वहीं पर पार्टी की व्यवस्था की. रात 8 बजे के लगभग रामप्रकाश भी कुसैली पहुंच गया. उस के बाद तीनों ने मिल कर बियर की पार्टी की. खाने पीने के बाद सुनील वहीं चारपाई पर सो गया.

आधी रात को जब गांव में सन्नाटा पसर गया तब सुखवीर और रामप्रकाश ने गहरी नींद सो रहे सुनील को दबोच लिया और फावड़े से गरदन काट कर उसे मौत की नींद सुला दी. इस के बद उन दोनों ने शव को दफनाने के लिए कमरे में गहरा गड्ढा खोदा और शव को फावड़े से काट कर कई टुकड़ों में विभाजित कर गड्ढे में डाल दिया.

लाश के उन टुकड़ों पर उस ने केरोसिन उड़ेल कर आग लगा दी फिर उन अवशेषों को गड्ढे में दफन कर दिया. सुबह होने से पहले रामप्रकाश ने गड्ढे को समतल कर गोबर से लीप दिया और उस के ऊपर चारपाई बिछा दी.

लोगों को गुमराह करने के लिए सुखवीर सुनील की कार को कानपुर ले आया और कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन के बाहर पार्किंग में खड़ी कर वापस आ गया. 3 दिन बाद उस ने ही अज्ञात फोन नंबर से फोन कर कार पार्किंग में खड़ी होने की सूचना सुनील के पिता महाराज सिंह को दे दी.

इधर रात 8 बजे महाराज सिंह खेत से घर भोजन करने आए तो पता चला कि सुनील कार ले कर कहीं गया है और वापस नहीं आया. महाराज सिंह यह सोच कर घर में रुक गए कि बच्चेबहू घर में अकेले हैं. जब तक सुनील वापस नहीं आया तो उन की चिंता बढ़ती गई.

धीरेधीरे एक सप्ताह बीत गया पर सुनील का पता न चला, तब महाराज सिंह ने बहू रेखा पर दबाव डाल कर थाना चौबिया में गुमशुदगी दर्ज कराई.

17 जून, 2019 को थाना चौबिया पुलिस ने सुखवीर सिंह यादव, रामप्रकाश यादव तथा रेखा से विस्तार से पूछताछ करने के बाद तीनों को 17 जून को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें इटावा की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेवफाई का बेरहम बदला

कोटा के तुल्लापुर स्थित पुरानी रेलवे कालोनी के सेक्टर-3 के क्वार्टर नंबर 169 से गुनीषा नाम की 6 साल की बच्ची गायब हो गई. यह क्वार्टर श्रीकिशन कोली का था जो रेलवे कर्मचारी था.

6 वर्षीय गुनीषा श्रीकिशन की बेटी गीता की बेटी थी. रात को जब परिवार के सभी सदस्य गहरी नींद में थे, तभी कोई गुनीषा को उठा ले गया था. बच्ची के गायब होने से सभी हैरान थे, क्योंकि गीता अपनी बेटी गुनीषा के साथ दालान में सो रही थी. क्वार्टर का मुख्य दरवाजा बंद था. किसी के भी अंदर आने की संभावना नहीं थी.

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श्रीकिशन के क्वार्टर में शोरशराबा हुआ तो अड़ोस पड़ोस के सब लोग एकत्र हो गए. पता चला घर में 9 सदस्य थे, जिन में गुनीषा गायब थी. जिस दालान में ये लोग सो रहे थे, उस के 3 कोनों में कूलर लगे थे. रात में करीब एक बजे गीता की मां पुष्पा पानी पीने उठी तो उस ने गुनीषा को सिकुड़ कर सोते देखा. कूलरों की वजह से उसे ठंड लग रही होगी, यह सोच कर पुष्पा ने उसे चादर ओढ़ा दी और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई.

रात को साढ़े 3 बजे गीता जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बगल में लेटी गुनीषा को गायब देख चौंकी. उस ने मम्मीपापा को उठाया. उन का शोर सुन कर बाकी लोग भी उठ गए. गुनीषा को घर के कोनेकोने में ढूंढ लिया गया, लेकिन वह नहीं मिली. उन लोगों के रोने चीखने की आवाजें सुन कर पास पड़ोस के लोग भी आ गए.

मासूम बच्चियों के साथ हो रही दरिंदगी की सोच कर लोगों ने श्रीकिशन कोली को सलाह दी कि हमें तुरंत पुलिस के पास जाना चाहिए.

पड़ोसियों और घर वालों के साथ श्रीकिशन कोली जब रेलवे कालोनी थाने पहुंचा, तब तक सुबह के 4 बज चुके थे. गुनीषा की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अनीस अहमद ने इस की सूचना एसपी सुधीर भार्गव को दी और श्रीकिशन के साथ पुलिस की एक टीम घटनास्थल की छानबीन के लिए भेज दी.

अनीस अहमद ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देते हुए अलर्ट भी जारी करवा दिया. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने पूरे मकान को खंगाला. पुलिस टीम को श्रीकिशन की इस बात पर नहीं हुआ कि मकान का मुख्य दरवाजा भीतर से बंद रहते कोई अंदर नहीं आ सकता. लेकिन जब पुलिस की नजर पिछले दरवाजे पर पड़ी तो उन की धारणा बदल गई.

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                       गुनीषा

पिछले दरवाजे की कुंडी टूटी हुई थी. दरवाजा तकरीबन आधा खुला हुआ था. 3 कमरों वाले उस क्वार्टर में एक रसोई के अलावा बीच में दालान था. मकान की छत भी करीब 10 फीट से ज्यादा ऊंची नहीं थी. पूरे मकान का मुआयना करते हुए एसआई मुकेश की निगाहें बारबार पिछले दरवाजे पर ही अटक जाती थीं.

इसी बीच एक पुलिसकर्मी रामतीरथ का ध्यान छत की तरफ गया तो उस ने श्रीकिशन से छत पर जाने का रास्ता पूछा. लेकिन उस ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ऊपर जाने के लिए सीढि़यां नहीं हैं.

आखिर पुलिसकर्मी कुरसी लगा कर छत पर पहुंचा तो उसे पानी की टंकी नजर आई. उस ने उत्सुकतावश टंकी का ढक्कन उठा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. रस्सियों से बंधा बच्ची का शव टंकी के पानी में तैर रहा था.

बच्ची की लाश देख कर पुलिसकर्मी रामतीरथ वहीं से चिल्लाया, ‘‘सर, बच्ची की लाश टंकी में पड़ी है.’’

रामतीरथ की बात सुन कर सन्नाटे में आए एसआई मुकेश तुरंत छत पर पहुंच गए. यह रहस्योद्घाटन पूरे परिवार के लिए बम विस्फोट जैसा था. बालिका की हत्या और शव की बरामदगी की सूचना मिली तो थानाप्रभारी अनीस अहमद भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि बच्ची का गला किसी बनियाननुमा कपड़े से बुरी तरह कसा हुआ था. गुनीषा की हत्या ने घर में हाहाकार मचा दिया.

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इसी पानी की टंकी में मिला था गुनीषा का शव

यह खबर कालोनी में आग की तरह फैली. पुलिस टीम ने गुनीषा के शव को कब्जे में कर तत्काल रेलवे हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बच्ची की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस ने यह मामला धारा 302 में दर्ज कर लिया.

एडिशनल एसपी राजेश मील और डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने मौके पर पहुंचे अपराध विशेषज्ञों तथा डौग स्क्वायड टीम की भी सहायता ली. लेकिन ये प्रयास निरर्थक रहे. न तो अपराध विशेषज्ञ घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिंट ही उठा सके और न ही खोजी कुत्ते कोई सुराग ढूंढ सके.

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  एडिशनल एसपी राजेश मील

लेकिन एडिशनल एसपी राजेश मील को 3 बातें चौंकाने वाली लग रही थीं, पहली यह कि जब घर में पालतू कुत्ता था तो वह भौंका क्यों नहीं. इस का मतलब बच्ची का अपहर्त्ता परिवार के लिए कोई अजनबी नहीं था.

दूसरी बात यह थी कि गीता का अपने पति घनश्याम यानी गुनीषा के पिता से तलाक का केस चल रहा था. कहीं इस वारदात के पीछे घनश्याम ही तो नहीं था. श्रीकिशन कोली ने भी घनश्याम पर ही शक जताया. उस ने मौके से 3 मोबाइल फोन के गायब होने की बात बताई. राजेश मील यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उन मोबाइलों में क्या राज छिपा था कि किसी ने उन्हें गायब कर दिया.

गुरुवार 30 मई को पोस्टमार्टम के बाद बच्ची का शव घर वालों को सौंप दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची का गला घोंटा जाना ही मृत्यु का मुख्य कारण बताया गया.

जिस निर्ममता से बच्ची की हत्या की गई थी, उस का सीधा मतलब था कि किसी पारिवारिक रंजिश के चलते ही उस की हत्या की गई थी. पुलिस अधिकारियों के साथ विचारविमर्श के बाद एसपी सुधीर भार्गव ने एडिशनल एसपी राजेश मील के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़, रोहिताश्व कुमार और सीआई अनीस अहमद को शामिल किया गया.

ANIS AHMED, THANADHIKARI

            सीआई अनीस अहमद

पूरे घटनाक्रम का अध्ययन करने के बाद एएसपी राजेश मील ने हर कोण से जांच करने के लिए पहले श्रीकिशन के उन नाते रिश्तेदारों को छांटा, जो परिवार के किसी भलेबुरे को प्रभावित कर सकते थे. साथ ही इलाके के ऐसे बदमाशों की लिस्ट भी तैयार की, जिन की वजह से परिवार के साथ कुछ अच्छाबुरा हो सकता था.

पुलिस ने गीता से उस के पति  घनश्याम से चल रहे विवाद के बारे में पूछा तो वह सुबकते हुए बोली, ‘‘वह शराब पी कर मुझ से मारपीट करता था. इसलिए मुझे उस से नफरत हो गई थी. मैं तलाक दे कर उस से अपना रिश्ता खत्म कर लेना चाहती थी.’’

उस का कहना था कि उस की वजह से मैं पहले ही अपनी एक औलाद खो चुकी हूं. यह बात संदेह जताने वाली थी, इसलिए डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ ने फौरन पूछा, ‘‘क्या घनश्याम पहले भी तुम्हारे बच्चे की हत्या कर चुका है?’’

गीता ने जवाब दिया तो हिंगड़ हैरान हुए बिना नहीं रहे. उस ने बताया, ‘‘साहबजी, उस के साथ लड़ाई झगड़े के दौरान मेरा गर्भपात हो गया था.’’

पुलिस संभवत: इस विवाद की छानबीन कर चुकी थी, इसलिए हिंगड़ ने पूछा कि तुम ने तो घनश्याम के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा रखा है. गीता जवाब देने के बजाए इधरउधर देखने लगी तो हिंगड़ को लगा कि कुछ न कुछ ऐसा है, जिसे छिपाया जा रहा है.

थाने में चली लगातार 12 घंटे की पुलिस पूछताछ में श्रीकिशन यह तो नहीं बता पाया कि गुनीषा के गले में कसा पाया गया बनियान किस का था, लेकिन 2 बातें पुलिस के लिए काफी अहम थीं. पहली, जब आरोपी गुनीषा को उठा कर ले जा रहा था तो उस ने चीखने चिल्लाने की कोशिश की होगी. लेकिन उस की आवाज किसी को सुनाई क्यों नहीं दी?

इस सवाल पर श्रीकिशन सोचते हुए बोला, ‘‘साहबजी, आवाज तो जरूर हुई होगी, लेकिन अपहरण करने वाले ने बच्ची का मुंह दबा दिया होगा. यह भी संभव है कि हलकी फुलकी चीख निकली भी होगी, तो 3 कूलरों की आवाज में सुनाई नहीं दी होगी.’’

पुलिस ने श्रीकिशन से पूछा कि मौके से जो 3 मोबाइल गायब हुए, वे किस किस के थे. इस बात पर श्रीकिशन ने भी हैरानी जताई. फिर उस ने बताया कि उस का, गीता का और उस के बेटे राजकुमार के मोबाइल गायब थे.

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पुलिस अधिकारियों ने घटना के समय घर में मौजूद सभी परिजनों के अलावा अन्य नातेरिश्तेदारों, इलाके में नामजद अपराधियों सहित करीब 100 लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई.

संदेह के घेरे में आए गीता के पति घनश्याम की टोह लेने के लिए थानाप्रभारी अनीस अहमद गुरुवार 30 मई को तड़के उडि़या बस्ती स्थित उस के घर जा पहुंचे. उस का पता भी श्रीकिशन कोली ने ही बताया था. पुलिस जब घनश्याम तक पहुंची तो वह अपने घर में सो रहा था.

इतनी सुबह आधीअधूरी नींद से जगाए जाने और एकाएक सिर पर खड़े पुलिस दस्ते को देख कर घनश्याम के होश फाख्ता हो गए. अजीबोगरीब स्थिति से हक्काबक्का घनश्याम बुरी तरह सन्नाटे में आ गया. उस के घर वाले भी जाग गए. घनश्याम के पिता मच्छूलाल और परिवार के लोगों ने ही पूछने का साहस जुटाया, ‘‘साहब, आखिर हुआ क्या? क्या कर दिया घनश्याम ने?’’

उसे जवाब देने के बजाए थानाप्रभारी अनीस अहमद ने उसे डांट दिया. मच्छूलाल ने एक बार अपने रोआंसे बेटे की तरफ देखा, फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘साहब, आप बताओ तभी तो पता चलेगा?’’

‘‘गुनीषा बेटी है न घनश्याम की?’’ थानाप्रभारी ने कड़कते स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा सुबह 3 बजे उस की हत्या कर के यहां आ कर सो गया.’’

मच्छूलाल तड़प कर बोला, ‘‘क्या कहते हो साहब, घनश्याम तो रात एक बजे ही दिल्ली से आया है. वहीं नौकरी करता है. खानेपीने के बाद हमारे साथ बातें करते हुए सुबह 4 बजे सोया था.’’

थानाप्रभारी अनीस अहमद के चेहरे पर असमंजस के भाव तैरने लगे. लेकिन उन का शक नहीं गया. उन्होंने घनश्याम को थाने चलने को कहा. घनश्याम के साथ तमाम लोग थाने आए.

भीड़ में उन्हें दिलीप नामक शख्स ऐतबार के काबिल लगा. उस का कहना था, ‘‘साहब, खूनखराबा घनश्याम के बस का नहीं है. यह तो अपनी बेटी से इतना प्यार करता था कि उस के बारे में बुरा करना तो दूर, सोच भी नहीं सकता. वैसे भी यह दिल्ली रेलवे में नौकरी करता है. कल रात ही तो आया था. नहीं साहब, किसी ने आप को गलत सूचना दी है.’’

घनश्याम के पक्ष की बातें सुन कर अनीस अहमद को उस की डोर ढीली छोड़ना ही बेहतर लगा. उन्होंने उसे अगले दिन सुबह आने को कह कर जाने दिया.

शुक्रवार 31 मई को घनश्याम नियत समय पर थाने पहुंच गया. इस से पहले कि पुलिस उस से कुछ पूछती, उस की आंखों में आंसू आ गए, ‘‘साहब, गीता से तो मेरी नहीं पटी पर अपनी बेटी गुनीषा से मुझे बहुत प्यार था. मुझे गीता से अलग होने का कोई दुख नहीं था लेकिन मुझे बेटी गुनीषा की बहुत याद आती थी. इतना घिनौना काम तो मैं…’’

‘‘तुम्हारे बीच अलगाव कैसे हुआ?’’ पूछने पर घनश्याम कुछ देर जमीन पर नजरें गड़ाए रहा. उस ने डबडबाई आंखों को छिपाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘सर, छोटी तनख्वाह में बड़े अरमान कैसे पूरे हो सकते हैं?’’

कोटा शहर में रेलवे कर्मचारियों के लिए बनाए गए आवास 2 कालोनियों में बंटे हुए हैं. अधिकारी और उन के मातहत कर्मचारी नई कालोनी में रहते हैं. यह कालोनी कोटा रेलवे जंक्शन से सटी हुई है. नई कालोनी करीब 2 रकबों में फैली है. जबकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नजदीक की तुल्लापुर इलाके में आवास आवंटित किए गए हैं.

रेलवे स्टेडियम के निकट बनी इस कालोनी को पुरानी रेलवे कालोनी के नाम से जाना जाता है. लगभग 300 क्वार्टरों वाली इस कालोनी में क्वार्टर नंबर 169 में श्रीकिशन रह रहा था. श्रीकिशन की पत्नी का नाम पुष्पा था.

इस दंपति के गीता और मीनाक्षी 2 बेटियों के अलावा 2 बेटे राजकुमार और राहुल थे. श्रीकिशन की संगीता और जैमा नाम की 2 बहनें भी थीं. दोनों बहनें विवाहित थीं. लेकिन घटना के दिन श्रीकिशन के घर आई हुई थीं.

लगभग 25 साल की सब से बड़ी बेटी गीता विवाहित थी. लापता हुई 6 वर्षीया गुनीषा उसी की बेटी थी. करीब 7 साल पहले गीता का विवाह तुल्लापुरा के निकट ही उडि़या बस्ती में रहने वाले मच्छूलाल के बेटे घनश्याम से हुआ था.

घनश्याम दिल्ली स्थित तुगलकाबाद रेलवे स्टेशन पर नौकरी कर रहा था. घनश्याम और गीता का दांपत्य जीवन करीब 4 साल ही ठीकठाक चला. बाद में उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. पतिपत्नी के रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि नौबत तलाक तक आ पहुंची.

गीता पिछले 3 सालों से अपने पिता के पास कोटा में ही रह रही थी. तलाक का मामला कोटा अदालत में विचाराधीन था. गीता ने कोटा के महिला थाने में घनश्याम के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला भी दर्ज करा रखा था.

छानबीन के इस दौर में पुलिस के सामने 3 बातें आईं. इन गुत्थियों को सुलझा कर ही  हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. पहली यह कि आरोपी जो भी था, घर के चप्पे चप्पे से वाकिफ था. ऐसा कोई परिवार का सदस्य भी हो सकता था और परिवार से बेहद घुलामिला व्यक्ति भी, जिस निर्दयता से मासूम बच्ची की हत्या की गई थी, निश्चित रूप से वह गीता से गहरी नफरत करता होगा.

गीता ज्यादा कुछ बोलने बताने की स्थिति में नहीं थी. वह सदमे में थी और बारबार बेहोश हो रही थी. वैवाहिक विवाद की स्थिति में घनश्याम सब से ज्यादा संदेहास्पद पात्र था. पुलिस ने हर कोण और हर तरह से उस से पूछताछ की लेकिन वह कहीं से भी अपराधी नहीं लगा. आखिर उसे इस हिदायत के साथ जाने दिया गया कि वह पुलिस को बताए बिना कोटा से बाहर न जाए.

राजेश मील को यह बात बारबार कचोट रही थी कि गीता जवान है, कमोबेश खूबसूरत भी है. लेकिन ऐसा क्या था कि अपनी बसीबसाई गृहस्थी छोड़ कर पिता के पास रह रही थी. पति घनश्याम के बारे में जो जानकारी पुलिस ने जुटाई थी, उस से उस का हत्या का कोई ताल्लुक नहीं दिखाई दे रहा था.

इस बीच पुलिस को यह भी पता चल चुका था कि वह सीधासादा नेकनीयत का आदमी था. इतना सीधा कि उसे कोई भी घुड़की दे कर डराधमका सकता था.

सवाल यह था कि दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए क्या पतिपत्नी के बीच कोई तीसरा भी था? ऐसे किस्से की तसदीक तो मोबाइल ही हो सकती है. लिहाजा राजेश मील ने फौरन सीआई को हिदायत देते हुए कहा, ‘‘अनीस, गीता के गायब हुए मोबाइल का नंबर है न तुम्हारे पास? फौरन उस की काल डिटेल्स ट्रैस करने का बंदोबस्त करो.’’

अनीस अहमद फौरन इस काम पर लग गए. काल ट्रैसिंग के नतीजे वाकई चौंकाने वाले थे. अनीस अहमद ने जो कुछ बताया, उस ने एसपी राजेश मील की आंखों में चमक पैदा कर दी. गीता के मोबाइल की मौजूदगी दिल्ली के तुगलकाबाद में होने की तसदीक कर रही था. साफ मतलब था कि आरोपी दिल्ली के तुगलकाबाद में मौजूद था.

सीआई अनीस अहमद के नेतृत्व में दिल्ली पहुंची पुलिस टीम ने जो जानकारी जुटाई, उस के मुताबिक आरोपी का नाम कालूचरण बेहरा था. कालूचरण को पुलिस ने घनश्याम के पुल प्रह्लादपुर स्थित घर के पास वाले मकान से धर दबोचा.

कालूचरण घनश्याम का पड़ोसी निकला. गीता के दिल्ली में रहते हुए कालूचरण से प्रेमिल संबंध बन गए थे. घनश्याम और गीता के बीच अलगाव की बड़ी वजह यह भी थी. दिल्ली गई पुलिस टीम ने घनश्याम के मकान सहित अन्य जगहों से कई महत्त्वपूर्ण सुराग एकत्र किए. कालूचरण दिल्ली स्थित कानकोर में औपरेटर था.

पुलिस कालूचरण बेहरा को दिल्ली से हिरासत में ले कर सोमवार 3 जून को कोटा पहुंची. यहां शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की गिरफ्तारी दिखा कर मंगलवार 4 जून को न्यायालय में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर ले लिया. पुलिस की शुरुआती पूछताछ में मासूम गुनीषा की हत्या को ले कर कालूचरण ने जो खुलासा किया, वह चौंकाने वाला था.

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                पुलिस हिरासत में अभियुक्त कालूचरण

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में घनश्याम के पड़ोस में रहने के दौरान ही कालूचरण के घनश्याम की पत्नी गीता से प्रेमिल संबंध बन गए थे. गीता के कोटा चले जाने के बाद भी कालू कोटा आ कर गीता से मिलताजुलता रहा. लेकिन पिछले कुछ दिनों से गीता के किसी अन्य युवक से संबंध बन गए थे. नतीजतन उस ने कालू से कन्नी काटनी शुरू कर दी थी.

कालू ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस ने उसे बुरी तरह दुत्कार दिया था. बेवफाई और अपमान की आग में सुलगते कालू ने गीता को सबक सिखाने की ठान ली. इस रंजिश की बलि चढ़ी मासूम गुनीषा.

पड़ोसी होने के नाते घनश्याम और कालू के बीच अच्छा दोस्ताना था. पतिपत्नी के बीच अकसर होने वाले झगड़े में कालू गीता का पक्ष लेता था. नतीजतन गीता का झुकाव कालू की तरफ होने लगा. गीता का रंगरूप बेशक गेहुआं था, लेकिन भरे हुए बदन की गीता के नैननक्श काफी कटीले थे.

कालू से निकटता बढ़ी तो गीता पति की अनुपस्थिति में कालू के कमरे पर भी आने लगी. यहीं दोनों के बीच अनैतिक संबंध बने. अनैतिक संबंध बनाने के लिए कालू ने उसे अपने प्यार का भरोसा दिलाते हुए कहा था कि वह शादी नहीं करेगा और सिर्फ उसी का हो कर रहेगा.

दिल्ली में पतिपत्नी के बीच झगड़े इस कदर बढे़ कि गीता ने घनश्याम को छोड़ने का फैसला कर लिया और बेटी गुनीषा को ले कर कोटा आ गई.

पिता के लिए बेटी का साझा दुख था. इसलिए उस ने भी बेटी का साथ दिया. यह 3 साल पहले की बात है. इस बीच गीता ने घनश्याम पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए तलाक का मुकदमा दायर कर दिया था. यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है.

गीता के कोटा आ जाने के बावजूद कालू के साथ उस के संबंध बने रहे. कालू अकसर कोटा आता रहता था और 4-5 दिन गीता के घर पर ही रुकता था. कालू ने गीता को खुश रखने के लिए पैसे लुटाने में कोई कसर नहीं रखी थी.

पिछले करीब 6 महीने से कालू को अपने और गीता के रिश्तों में कुछ असहजता महसूस होने लगी. दिन में 10 बार फोन करने वाली गीता न सिर्फ उस का फोन काटने लगी थी, बल्कि अपने फोन को व्यस्त भी दिखाने लगी थी. कालू ने गीता की बेरुखी का सबब जानने की जुगत लगाई तो पता चला कि उस की माशूका किसी और के हाथों में खेल रही है. उस ने अपने रसूखों से इस बात की तसदीक भी कर ली.

हालात भांपने के लिए जब वह कोटा पहुंचा तो गीता में पहले जैसा जोश नहीं था. उस ने कालू को यहां तक कह दिया कि अब वह यहां न आया करे. गुस्से में उबलता हुआ कालू दिल्ली लौटा तो इसी उधेड़बुन में जुट गया कि गीता को कैसे उस की बेवफाई का ताजिंदगी याद रखने वाला सबक सिखाए. उस ने गीता की बेटी और पूरे परिवार की चहेती गुनीषा को मारने का तानाबाना बुन लिया.

अपनी योजना को अंजाम देने के लिए वह 29 मई की रात को ट्रेन से कोटा आया. घर का चप्पाचप्पा उस का देखाभाला था.  30 मई की देर रात वह करीब 2 बजे पीछे के रास्ते से घर में घुसा और सब से पहले उस ने तख्त पर पड़े तीनों मोबाइल कब्जे में किए. फिर गीता के पास सोई गुनीषा को चद्दर समेत ही उठा लिया.

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नींद में गाफिल गुनीषा कुनमुनाई भी, लेकिन कालू ने उस का मुंह बंद कर दिया. कूलरों के शोर में वैसे भी गुनीषा की कुनमुनाहट दब गई. गुनीषा का गला घोंट कर टंकी में डालने की योजना वह पहले ही बना चुका था. छत पर जाने का रास्ता भी उसे पता था.

गुनीषा को दबोचे हुए वह छत पर पहुंचा. अलगनी से उठाई गई बनियान से उस का गला घोंट कर कालू ने उसे पानी की टंकी में डाल दिया फिर वह जिस खामोशी से आया था, उसी खामोशी से बाहर निकल गया. मोबाइल इस मंशा से उठाए थे, ताकि इस बात की तह तक पहुंचा जा सके कि गीता के आजकल किस से संबंध थे. लेकिन मोबाइल ही उस की गिरफ्तारी का कारण बन गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार में हुई संतकबीर नगर की नेत्री की हत्या

भीड़ समझ नहीं पा रही थी कि रोते रोते आरती राजभर ने कमरे की ओर इशारा क्यों किया? आखिर वहां  क्या हो सकता था? कुछ गांव वाले हिम्मत कर के कमरे की ओर बढ़े तो कमरे के अंदर का दिल दहला देने वाला नजारा देख कर कांप उठे.

फर्श पर चारों ओर खून फैला था और नंदिनी राजभर (Nandini Rajbhar) अपने ही खून में सनी पड़ी थी. किसी ने नंदिनी का कत्ल कर दिया था, वह मर चुकी थी. दिनदहाड़े नंदिनी (Nandini Rajbhar Murder) की हत्या की खबर सुनते ही वहां भीड़ जमा होने लगी थी.

हत्या किसी आम इंसान की नहीं हुई थी, बल्कि एक राजनीतिक पार्टी (Political Party) की प्रदेश महासचिव की हुई थी. देखते ही देखते पलभर में यह खबर जंगल में आग की तरह समूचे संतकबीर नगर (Sant Kabir Nagar)  जिले में फैल गई थी. उसी भीड़ में से किसी ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी.

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संतकबीर नगर जिले की कोतवाली थाने के अंतर्गत एक गांव पड़ता है (Digha) डीघा. इस गांव में अधिकांश लोग राजभर बिरादरी के रहते हैं. इसी गांव में बालकृष्ण राजभर अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पतिपत्नी के अलावा 2 बेटे थे, जो परदेश में जा कर कमाते थे.

क्षेत्र में बालकृष्ण की गिनती मजबूत हैसियतदार और बड़े काश्तकारों में होती थी. लेकिन उन का रहन सहन मध्यमवर्गीय परिवार जैसा ही था. उन्हें देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह दौलतमंद इंसान होंगे. इन्हीं की बहू थी नंदिनी राजभर, जो घरपरिवार और गांव समाज का नाम रोशन कर रही थी.

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28 वर्षीय नंदिनी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (महिला प्रकोष्ठ) की प्रदेश महासचिव थी. नंदिनी जितनी सौम्य और गंभीर थी, उतनी ही खूबसूरत भी थी. किसी जन्नत की हूर से कम नहीं थी वह. उसे अपनी खूबसूरती पर बहुत नाज और गुरूर भी था.

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खैर, वह राजनीति की एक नवोदित नेत्री थी, जो अपनी मेहनत की बदौलत वटवृक्ष का रूप ले रही थी. उस के गांव समाज को उस पर नाज था. क्योंकि नंदिनी गांव की बहू होने के साथ दबे कुचले और मजलूमों का एक मजबूत सहारा बनी हुई थी तो एक बुलंद आवाज भी.

गांव के किसी भी व्यक्ति को कोई तकलीफ होती तो वह एक पैर उन के साथ खड़ी रहती थी. तभी तो गांव वाले उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते थे और उसे एक मंत्री बनते हुए देखना चाहते थे.

खैर, बात 10 मार्च, 2024 की शाम की है, जब नंदिनी की सास आरती देवी बाहर काम से अपने घर लौटी थीं. उस समय शाम के 4 बजे थे. बाहर का दरवाजा आपस में भिड़का हुआ था. जब वह पहुंचीं तो दरवाजे पर खड़ी हो कर ही बहू नंदिनी को 3-4 बार आवाज दी. भीतर से कोई आवाज नहीं आई.

उन्हें लगा कि शायद बहू दरवाजा बंद कर सो रही है. कई बार आवाज देने के बाद जब बहू नंदिनी ने दरवाजा नहीं खोला तो आरती देवी ने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया. धक्का देते ही दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुल गए.

थकी प्यासी आरती देवी बाहर से आई थीं. जोरों की प्यास और भूख भी लगी थी, इसलिए धड़धड़ाती हुई वह कमरे में दाखिल हुईं. उन्हें बहू पर गुस्सा आ रहा था कि इतनी देर से वह उसे बुला रही हैं, लेकिन वो है कि जवाब ही नहीं दे रही. आखिर कर क्या रही है?

बरामदे से होती हुई वह सीधा बहू नंदिनी के कमरे में दाखिल हुईं. कमरे में पूरी तरह से अंधेरा था. वह दरवाजे पर खड़ी हो गईं और वहीं खड़ी हो कर भीतर का जायजा लेने लगीं. भीतर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था तो दरवाजे के दाईं ओर लगे बोर्ड से स्विच औन किया.

स्विच औन होते ही कमरा रोशनी से भर गया. आरती देवी ने कमरे में इधर उधर देखा. फिर जैसे ही उन की नजर बेड के नीचे फर्श पर पड़ी तो उन के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकल पड़ी. वह चीखती हुई उल्टे पांव बाहर की ओर भागीं.

आरती देवी की चीख सुन कर पासपड़ोस के लोग वहां जमा हुए थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक से उन्हें क्या हो गया जो इतनी जोरजोर से चीख रही थीं. वह कमरे की ओर इशारा कर गश खा कर जमीन पर दोहरी होती हुई गिर पड़ीं.

मौके पर जमा लोग जब कमरे में पहुंचे तो वहां आरती देवी की बहू नंदिनी राजभर लहूलुहान हालत में मृत पड़ी थी. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि दिनदहाड़े किस ने घर में घुस कर उन्हें चाकू से गोद डाला.

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. आननफानन में पुलिस कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी कोतवाली थाने के इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल को देते हुए फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंचने को कह दिया.

घटना की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल आननफानन में फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का जायजा लिया. मृतका नंदिनी राजभर की खून में लथपथ लाश का मुआयना करने लगे.

इस बीच घटना की सूचना सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के अध्यक्ष और योगी सरकार में मंत्री बने ओमप्रकाश राजभर को मिल गई थी. सूचना मिलते ही वह भी स्तब्ध रह गए कि नंदिनी अब इस दुनिया में नहीं रही. खुद को संभालते हुए उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं को घटना की जानकारी दी और मौके पर पहुंचने का आदेश दिया.

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                    लोगों को सांत्वना देते अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर

अध्यक्ष ओमप्रकाश का आदेश मिलते ही पार्टी कार्यकर्ता मौके पर जुट गए और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इधर इंसपेक्टर पटेल घटनास्थल की जांच करने में जुटे हुए थे. उन्होंने बड़ी बारीकी से मौके का जायजा लिया. हत्यारों ने चाकू से गला रेत कर नंदिनी की हत्या की थी. शरीर पर चाकू के कई निशान मौजूद थे.

क्राइम सीन स्टडी करने से यही लग रहा था जैसे हत्यारा मृतका से काफी खार खाए हुए था, तभी तो उस ने चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उसे निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया था. यही नहीं हत्यारे ने किसी भारी चीज से उसके सिर पर भी वार किया था, क्योंकि मृतका के सिर के पिछले वाले हिस्से पर चोट के निशान मौजूद थे और वहां का खून उस समय भी हलका हलका गीला था.

कमरे की छानबीन करने पर सभी चीजें अपनी जगह पर तरीके से रखी मिलीं, बस मृतका का मोबाइल फोन ही कहीं नहीं दिख रहा था. आशंका जताई जा रही थी कि सबूत छिपाने के लिए हत्यारे उसे अपने साथ ले गए होंगे, ताकि पुलिस उस तक आसानी से पहुंच न सके.

एक बात तो साफ जाहिर हो रही थी कि हत्यारों का निशाना सिर्फ नंदिनी ही थी. इसीलिए उन्होंने घर के किसी भी सामान को हाथ नहीं लगाया था. इस बीच फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर पहुंच कर घटनास्थल की जांच कर ली थी. टीम फर्श पर पड़े खून को एक छोटी डिब्बी में तेज चाकू से खुरच कर रख रही थी. मौके से उन्हें कोई फिंगरप्रिंट नहीं मिला था.

पुलिस और फोरैंसिक टीम अपनी काररवाई में जुटी थी. तब तक डीएम महेंद्र सिंह तंवर, एसपी सत्यजीत गुप्ता, एएसपी शशिशेखर सिंह, सांसद प्रवीण निशाद सहित कई थानों की पुलिस मौके पर पहुंच चुकी थी. पुलिस लाश का पंचनामा भर कर जैसे ही पोस्टमार्टम के लिए बौडी ले कर जाने के लिए तैयार हुई, तभी गांव वाले गुस्से में आ गए और लाश को हाथ लगाने से पुलिस को मना कर दिया.

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इधर गुस्साए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के कार्यकर्ता अपनी नेता नंदिनी राजभर के हत्यारों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. उन का कहना था कि जब तक नंदिनी के हत्यारों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक पुलिस लाश को यहां से ले कर नहीं जा सकती. आंदोलनकारियों और गांव वालों ने गांव के ही एक यादव परिवार पर अपने नेता की हत्या किए जाने का आरोप लगाया.

ससुर के हत्यारों से जुड़े नंदिनी केस के तार

दरअसल, 10 दिन पहले 29 फरवरी, 2024 की सुबह खलीलाबाद रेलवे लाइन के पास नंदिनी के चचिया ससुर बालकृष्ण राजभर की संदिग्ध अवस्था में लाश पाई गई थी. पहली नजर में यह मामला हत्या का लग रहा था, लेकिन परिस्थितियां आत्महत्या की ओर भी संकेत कर रही थीं. लेकिन उन के आत्महत्या किए जाने की बात किसी के गले से नहीं उतर था.

इस के पीछे का तर्क यह था कि बालकृष्ण ने गांव के श्रवण यादव, धु्रवचंद यादव और पन्ने यादव से अपनी जमीन का सौदा किया था. यादव बंधुओं ने जमीन की कीमत पहले से कम आंकी थी और पैसे देते वक्त तय रकम में से भी औनेपौने दाम दे कर जमीन पर कब्जा जमा लिया.

अपने साथ हुए धोखे से बालकृष्ण राजभर काफी दुखी थे. उन्होंने अपनी बात बहू नंदिनी से बता कर न्याय की गुहार भी लगाई. चूंकि नंदिनी की पहुंच सत्ता के गलियारों तक थी. उन्हें यकीन था कि उन की बहू राजनीतिक दबाव बना कर उन के पैसे दिलवा देगी. नंदिनी ने चचेरे ससुर को विश्वास भी दिलाया था कि वह उन के साथ अन्याय नहीं होने देगी, यादव बंधुओं से बकाए की रकम दिलवा कर ही दम लेगी.

अभी ये सलाहमशविरा हो ही रहा था कि 29 फरवरी को बालकृष्ण के आत्महत्या करने की बात सामने आ गई. उन के आत्महत्या करने पर किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था.

नंदिनी ने श्रवण यादव, धु्रवचंद यादव और पन्ने यादव के खिलाफ कोतवाली थाने में ससुर बालकृष्ण राजभर की हत्या किए जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भेजने के लिए पुलिस पर दबाव डालने लगी थी. तीनों आरोपियों में से एक श्रवण यादव गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. बाकी दोनों आरोपी फरार थे.

इस के ठीक 10वें दिन दिनदहाड़े नंदिनी की भी हत्या हो गई. इसीलिए ग्रामीणों ने नंदिनी की हत्या का आरोप यादव बंधुओं पर लगा कर उन्हें तत्काल गिरफ्तार करने की मांग की. इस के बाद ही मृतका का शव वहां से ले जाने की बात कही थी.

पुलिस, ग्रामीण और आंदोलनकारियों के बीच मान मनौवल का खेल करीब 6 घंटों तक चलता रहा. एसपी सत्यजीत गुप्ता ने आक्रोशित लोगों को विश्वास दिलाया कि उन के साथ न्याय होगा. दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वो कितने भी ताकतवर क्यों न हों, उन्हें उन के किए की सजा कानून से मिल कर ही रहेगी.

फिर एसपी गुप्ता ने मंत्री ओमप्रकाश राजभर से बात कर न्यायिक कार्य में सहयोग करने की अपेक्षा रखी. मंत्री राजभर ने कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि उन के प्रिय नेता के साथ न्याय होगा और हत्यारे पकड़े जाएंगे. पुलिस को उन का काम करने दें. तब कहीं जा कर रात 11 बजे आंदोलनकारियों ने पुलिस को पोस्टमार्टम के लिए शव ले जाने दिया.

इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल ने लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए संतकबीर नगर जिला अस्पताल भिजवा दी और मृतका की सास आरती देवी की लिखित तहरीर पर 5 आरोपियों आनंद यादव, धु्रव यादव, श्रवण यादव, पन्ने यादव और निर्मला यादव के खिलाफ हत्या की धारा 302 का मुकदमा दर्ज कर उन की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी थी. उक्त नामजद आरोपियों में श्रवण यादव, बालकृष्ण राजभर की संदिग्ध मौत के आरोप में पहले से ही जेल में बंद था.

अगले दिन 11 मार्च को पुलिस ने अन्य नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर सुबहसुबह दबिश दी थी. मौके से धु्रव यादव, पन्ने यादव और निर्मला पकड़ लिए गए. चौथा आरोपी आनंद यादव फरार हो गया था.

आनंद ही नंदिनी को धमकी दे रहा था कि वह बालकृष्ण की मौत की अदालत में पैरवी करना बंद कर दे, चुपचाप अपनी राजनीति करे, वरना इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है.

कुल मिलाजुला कर पुलिस ने मृतका नंदिनी राजभर हत्याकांड में नामजद 5 आरोपियों में से 4 को गिरफ्तार कर घटना की इतिश्री कर दी थी. गिरफ्तार चारों आरोपियों से कोतवाली थाने में सख्ती से पूछताछ जारी थी.

काल डिटेल्स से क्यों घूम गई जांच

आरोपी रट्टू तोते की तरह एक ही जवाब दिए जा रहे थे कि नंदिनी की हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. उन्होंने उसे नहीं मारा है, लेकिन पुलिस आरोपियों के जवाब को सिरे से नकार रही थी और अपने हिसाब से जितनी सख्ती बरती जानी थी, उतनी सख्ती से पेश आने में किसी किस्म का गुरेज नहीं कर रही थी.

क्योंकि बालकृष्ण राजभर की मौत में यादव परिवार का तार जुड़ चुका था, ऊपर से नंदिनी को धमकी भी इसी परिवार मिल रही थी, इसलिए पुलिस अपनी जगह कायम थी कि नंदिनी की हत्या में इसी परिवार का हाथ है. धमकी आनंद यादव दे रहा था, जो मौके से फरार था.

परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से आईने की तरह घटना साफ हो चुकी थी कि नंदिनी राजभर की हत्या यादव परिवार ने की है. लेकिन फिर भी पुलिस को पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था जैसे घटना आईने की तरह साफ होते हुए भी साफ नहीं है. मसलन यह कि उन की नजरों से कुछ छूट रहा है. जो दिख रहा है, आधा सच है, फिर आधा सच और क्या हो सकता है?

खैर, पुलिस इधर जांच के दौरान ही कहानी में एक नया मोड़ आया. डीआईजी (रेंज बस्ती) आर.के. भारद्वाज ने इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल से घटना में हुई लापरवाही के एवज में थानेदारी छीन ली थी और उन्हें अपने दफ्तर से अटैच कर दिया था. इस लापरवाही की जांच एएसपी शशिशेखर सिंह को सौंप दी गई थी.

साथ ही हत्याकांड की जांच और भूमाफियाओं के द्वारा जबरन जमीन लिखवाने वालों को चिह्नित कर काररवाई करने लिए एसआईटी गठित की गई थी और इस की मौनिटरिंग खुद डीआईजी रेंज आर.के. भारद्वाज ने अपने हाथों में ले ली थी, ताकि काररवाई की पलपल की सूचना उन्हें मिलती रहे.

पुलिस अपनी जांच की दिशा सही मान कर उसी दिशा की ओर फूंकफूंक कर कदम बढ़ा रही थी. जांच को और तेज करते हुए उस ने सब से पहले मृतका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो तमाम नंबरों में 2 ऐसे नंबर मिले जो संदिग्ध थेे.

उन दोनों नंबरों में से एक नंबर से नंदिनी की लंबी लंबी और सब से ज्यादा बातें हुुई थीं, जबकि दूसरे नंबर पर थोड़ा कम. घटना वाले दिन भी घटना से कुछ देर पहले उसी पहले वाले नंबर से नंदिनी की बात हुई थी. इसीलिए पुलिस ने उस नंबर की मृतका के पति विजय से पहचान कराई, लेकिन वह नंबर पहचान नहीं पाया.

पुलिस ने दोनों नंबरों की डिटेल्स निकलवाई. एक नंबर आनंद यादव के नाम से आवंटित था, जिस पर थोड़ी बातचीत हुई थी जबकि दूसरा नंबर किसी साहुल राजभर का था, जिस से मृतका (नंदिनी) की लंबीलंबी बातें होती रहती थीं.

पुलिस ने विजय को थाने बुला कर साहुल के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि साहुल पड़ोसी तेनू राजभर का साला है. उस की बहन की शादी उस से हुई है और वो यहीं (डीघा गांव) रहता है. यहीं रह कर मैडिकल स्टोर चलाता है.

साहुल राजभर के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के बाद कोतवाली पुलिस ने विजय को घर भेज दिया. पुलिस नंदिनी और साहुल के बीच के रिश्ते को खंगालने में जुट गई थी. तकनीकी साक्ष्य और मुखबिर के जरिए पुलिस को दोनों के रिश्तों के बारे में चौंकाने वाली एक ऐसी सूचना मिली, जिस से उस के पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई.

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            आरोपी साहुल राजभर

पता चला कि नंदिनी और साहुल के बीच करीब एक साल से प्रेम संबंध चल रहा था. किसी बात को ले कर इन दिनों उन के बीच अनबन चल रही थी और घटना वाले दिन भी दोनों के बीच फोन पर काफी विवाद हुआ था. इस जानकारी ने घटना की दिशा ही मोड़ दी. मसलन नंदिनी की हत्या जमीनी विवाद में नहीं, बल्कि प्रेम प्रसंग में हुई थी.

ये जानकारी इंसपेक्टर शैलेष सिंह ने कप्तान सत्यजीत गुप्ता को दी तो वह भी चौंक गए थे. उन्होंने शैलेष सिंह को कुछ जरूरी हिदायत दे कर जल्द से जल्द केस वर्कआउट करने का आदेश दिया.

इंसपेक्टर सिंह ने ऐसा ही करने का वायदा किया और आगे की प्रक्रिया में जुट गए थे. उन्होंने मृतका नंदिनी और साहुल के रिश्तों की बाबत जानकारी जुटाई तो मुखबिर की बात सच निकली. फिर क्या था, 21 मार्च, 2024 की सुबह डीघा गांव में उस के बहनोई के घर से साहुल को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए कोतवाली थाने ले आए.

प्रेमी ने क्यों की नंदिनी की हत्या

करीब 2 घंटे चली कड़ी पूछताछ के बाद साहुल ने अपना अपराध कुबूल कर लिया कि उसी ने अपनी प्रेमिका नंदिनी की हत्या की थी. उस ने हत्या की वजह का विस्तार करते हुए आगे बताया कि उस ने उस के साथ धोखा किया था, इसलिए उसे मौत के घाट उतार दिया. और फिर पूरी कहानी विस्तार से पुलिस के सामने बयान करता चला गया.

12 दिनों से जो नंदिनी हत्याकांड विवादों के चक्रव्यूह में उलझा हुआ था, पुलिस ने उस की गुत्थी सुलझा ली थी. आननफानन में उसी दिन (21 मार्च) शाम 3 बजे एसपी सत्यजीत गुप्ता ने पुलिस लाइंस में प्रैसवार्ता का आयोजन किया और पत्रकारों के सामने नंदिनी की हत्या का खुलासा कर दिया.

उस के बाद पुलिस ने आरोपी साहुल राजभर को अदालत में पेश किया. अदालत ने आरोपी साहुल को 14 दिनों की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजने का आदेश दिया. आरोपी ने प्रेमिका नंदिनी की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की थी, वह कुछ इस तरह थी.

27 वर्षीय साहुल राजभर की बहन ममता की शादी डीघा गांव निवासी तेनू राजभर के साथ हुई थी. बीते कई सालों से साहुल अपने बहनोई तेनू के घर रहता था. वहीं रह कर वह एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करता था. पढ़ालिखा तो था ही, ऊपर से काफी जीनियस भी था. उस के घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. अच्छी नौकरी की तलाश में वह यहांवहां हाथपैर मार रहा था. लेकिन उसे अच्छी नौकरी नहीं मिली. जब उस के मनमुताबिक अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी कर ली थी, क्योंकि उसे पैसों की सख्त जरूरत थी.

बात घटना से करीब डेढ़ साल पहले की है. नंदिनी राजभर नाम की एक बेहद खूबसूरत युवती ने साहुल की जिंदगी में दबे पांव कदम रखा तो जैसे उस को जीवन जीने के लिए संजीवनी मिल गई हो. नीरस हो चुके जीवन में बहार आ चुकी थी.

एक दिन की बात है. सुबह का समय था. दुकान पर उस समय कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी. एकदो ग्राहक ही दवा लेने पहुंचे थे. उस समय वह दुकान पर अकेला ही था और स्टाफ अभी आए नहीं थे, आने वाले ही थे. खैर, जैसे ही वह एक ग्राहक को दवा देने के लिए पलटा, एक मीठी आवाज उस के कानों के परदे से टकराई, ”एक्सक्यूज मी, भाईसाहब.’’

आवाज सुनते ही साहुल के कदम वहीं रुक गए, जहां वह खड़ा था. पलट कर सामने देखा तो पिंक साड़ी में गोरीचिट्टी और बला की खूबसूरत एक युवती खड़ी थी और उस ने ही आवाज दी थी. उस खूबसूरत युवती को देख कर एक पल के लिए जैसे उस ने अपनी सुधबुध खो दी थी, ”आ रहा हूं दवा ले कर, एक सेकेंड रुकिए.’’ साहुल ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

”कोई बात नहीं, मैं वेट करती हंू. आप इन को दवा दे दीजिए.’’ युवती ने भी मुसकराते हुए जवाब दिया.

वह युवती कोई और नहीं नंदिनी राजभर थी. कुछ पल बाद वह दवा ग्राहक को दे कर वह नंदिनी की ओर मुखातिब हुआ. उस समय नंदिनी दुकान पर अकेली थी.

”जी मैम, बताएं मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ साहुल ने नंदिनी की ओर देखते हुए कहा.

”ये दवा चाहिए थी मुझे.’’ नंदिनी ने दवा की परची उस की तरफ बढ़ा कर पूछा, ”क्या ये दवा मिल सकती है, अर्जेंट था?’’

साहुल ने परची ले कर उस में लिखी दवा का नाम पढ़ा और दवा निकाल कर उसे दे दी. दवा ले कर नंदिनी वहां से चली गई. साहुल अपलक उसे तब तक निहारता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हुई थी.

ऐसे पनपा नंदिनी और साहुल का प्यार

नंदिनी दवा ले कर चली तो गई थी, लेकिन साहुल उस की खूबसूरती के तीर से घायल हो गया था. पहली ही नजर में साहुल नंदिनी को दिल दे बैठा. अभी भी उस की आंखों के सामने नंदिनी का मुसकराता हुआ गोरा मुखड़ा थिरक रहा था. कुछ पल सोचने के बाद उस के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी और मुसकराता हुआ वह अपने काम में जुट गया.

उस दिन के बाद साहुल हर सुबह नंदिनी के आने की राह ताकता रहता था और दिल से पुकारता था कि उस की एक झलक दिख जाए. जिस दिन नंदिनी का दीदार नहीं होता था, साहुल दिन भर बेचैन रहता था. जैसे ही उसे देखता, उस की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहता था. मन नाच उठता था उस का.

दवा की दुकान पर आतेजाते नंदिनी और साहुल दोनों के बीच एक मधुर परिचय बन गया था. साहुल उसे जान भी गया था और पहचान भी गया था. जिस दिन से उस ने नंदिनी को देखा था और उस की सलोनी सूरत दिल में घर कर गया था, उस दिन के बाद से उस ने उस के बारे में सारी जानकारियां जुटानी शुरू कर दी थीं.

साहुल जान चुका था कि वह एक बड़ी पौलिटिकल हस्ती है और सुहेलदेव भारतीय समाजवादी पार्टी की प्रदेश महासचिव भी. उसी गांव में वह भी रहती है, जिस गांव में वह रहता है. वह यही सोचता था कि नंदिनी भले ही किसी ब्याहता हो, इस से उसे कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है. अब से नंदिनी पर सिर्फ मेरा हक होगा, सिर्फ मेरा, किसी भी कीमत पर उसे पा कर रहूंगा. चाहे इस के लिए कोई भी कुरबानी क्यों न देनी पड़े, पीछे नहीं हटूंगा.

नंदिनी कोई दूधपीती बच्ची नहीं थी, जो साहुल के मंसूबे को नहीं समझती. वह जान चुकी थी कि साहुल उसे प्यार करता है. धीरेधीरे वह भी उस की ओर आकर्षित होती चली गई. बातचीत करने के लिए दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. मोबाइल नंबर मिल जाने के बाद दोनों फोन पर प्यार भरी लंबीलंबी बातें करते थे. फोन पर ही दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी किया था.

आहिस्ता आहिस्ता दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. साहुल प्रेमिका नंदिनी को ले कर उस के साथ प्यार का घरौंदा बसाने का आंखों में सुनहरा सपना संजोने लगा. कहते हैं खुली आंखों से दिन में देखे गए सपने कभी पूरे नहीं होते. फिर ये सपने सिर्फ साहुल के थे, जिसे खुली आंखों से वह दिन में देख रहा था.

प्यार जब परवान चढ़ा तो प्रेमिका अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए प्रेमी साहुल से पैसों की डिमांड करने लगी. ये प्यार प्यार नहीं था, बल्कि नंदिनी के लिए साहुल एक एटीएम मशीन बन कर रह गया था. जब चाहती प्यार का कार्ड डाल कर कैश कर लेती थी.

दिल की गहराइयों से प्यार करने वाला, प्यार में अंधा साहुल उसे पैसे दे देता था. पैसों के साथसाथ उस ने 25 हजार रुपए का सैमसंग  कंपनी का एक मोबाइल फोन भी उसे गिफ्ट किया था.

नंदिनी जितनी खूबसूरत दिखती थी, उस का प्यार उतना ही खूबसूरत छलावा था. दिखावे के तौर पर वह साहुल से प्यार का नाटक कर रही थी, उस के दिल को खिलौना समझ कर खेल रही थी. ऐसे नहीं वह राजनीति का चमकता हुआ सितारा कहलाती थी. उस की झोली में साहुल जैसे न जाने कितने आशिक पड़े रहे होंगे, जो उस के हुस्न के दीवाने थे, लेकिन उस ने किसी को भी घास नहीं डाली थी.

वह बखूबी जानती थी कि इश्क के राज से जब परदा उठेगा तो समाज में कितनी बदनामी होगी. मुंह दिखाना दुश्वार हो जाएगा. लोग क्या कहेंगे? वह तो बस उस के लिए एक टाइम पास है, जब तक दिल चाहेगा, इश्क का छलावा करती रहूंगी, फिर उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह अपने जिंदगी से निकाल फेंकूंगी.

ऐसी सोच रखती थी नंदिनी अपने प्रेमी साहुल के लिए, जबकि साहुल तो उस के प्यार में मजनू बना फिरता था. उस की रगों में बहने वाले खून की धारा में नंदिनी समाई हुई थी. दिल के हरेक पन्ने पर प्रेमिका नंदिनी का नाम लिख दिया था. उसी के नाम से सुबह होती थी तो रात भी उसी के नाम से.

नंदिनी के प्यार से साहुल की जिंदगी महक उठी थी. उसे क्या पता था कि जिसे वह प्यार की देवी समझ रहा है, जिस पर अपनी जान छिड़कता है, उस के दिल में उस के लिए कितना प्यार है, वह तो जहरीली नागिन से कम नहीं है.

साहुल को क्यों हुआ प्रेमिका पर शक

बहरहाल, साहुल के प्रति नंदिनी का प्यार धीरेधीरे कम होता गया और अब उसे देख कर वह रास्ता बदल लेती थी. उस से पीछा छुड़ाने के लिए वह दूरियां भी बनाती गई और तो और साहुल उसे जब भी काल करता, उस का फोन व्यस्त मिलता था.

यह देख उसे गुस्सा भी आता और परेशान भी रहता था. उस के मन में नंदिनी के प्रति शक का बीज अंकुरित हो गया था. उसे यह शक हो चला था कि नंदिनी का किसी और के साथ चक्कर चल रहा है. तभी तो वह इतनी लंबी लंबी बातचीत करने में व्यस्त रहती है. इसीलिए उस से दूरियां बढ़ानी शुरू की है.

नंदिनी के इस बर्ताव से साहुल टूट गया था. वह उस से मिल कर अनजाने में हुए सारे गिलेशिकवे दूर करना चाहता था, लेकिन नंदिनी उस से बात करने के लिए तैयार नहीं थी, न ही फोन पर और न ही मिल कर. उस की इस हरकत से साहुल और भी गुस्से से पागल हो गया था.

इसी गुस्से में आ कर उस ने उसे जो भी गिफ्ट, पैसे और मोबाइल फोन दिया था, उसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बनाने लगा था. नंदिनी ने उसे कुछ भी वापस लौटाने से इंकार कर दिया था. फिर साहुल ने उसे गिफ्ट वापस न लौटाने पर बुरा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी भी दी.

कल तक नंदिनी पर जान छिड़कने वाला प्रेमी साहुल अब बदले की आग में धधकने लगा था. उसे हर कीमत पर पाना चाहता था. उस ने यह भी निश्चय कर लिया था कि उस का दिल कोई खिलौना नहीं था, जिसे जब तक चाहा खेला और जब जी भर गया तो तोड़ दिया. अगर वह मेरी नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. उसे तो मरना ही होगा.

इश्क की आग में जलता हुआ प्रेमी साहुल 10 मार्च, 2024 को दोपहर करीब 2 बजे नंदिनी के घर पहुंचा. उसे पता था उस समय घर पर उस के सिवाय कोई और नहीं है. घर के सभी सदस्य अपनेअपने काम से बाहर गए हुए थे.

दोपहर का समय होने की वजह से घर के आसपास गहरा सन्नाटा भी फैला हुआ था. नंदिनी घर पर अपने कमरे में अकेली बैड पर लेटी हुई थी. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. साहुल ने इधर उधर देखा, जब उसे कोई नहीं दिखाई दिया तो दबे पांव कमरे में घुस गया और भीतर से दरवाजे पर सिटकनी चढ़ा दी ताकि कमरे में कोई आ न सके.

दरवाजे की सिटकनी बंद होने की आवाज सुन कर नंदिनी उठ बैठी. देखा तो सामने साहुल खड़ा था. यह देख कर नंदिनी गुस्से से चिल्ला उठी, ”तुम्हारी इतनी हिम्मत कि बिना आवाज लगाए मेरे कमरे में घुस आए! तुम जानते नहीं कि मैं कौन हूं और तुम्हारी इस बदतमीजी की क्या सजा दे सकती हूं?’’

”जानता हूं, अच्छी तरह जानता हूं, तुझ जैसी दो टके की औरतों को. जिस का न तो कोई ईमान होता है और न कोई धर्म.’’ साहुल आग की दरिया में धधकता हुआ आगे बोला, ”आज मैं तुम से कोई बहस करने नहीं आया हूं. अपने प्यार का हिसाब करने आया हूं. मेरे सवालों का सीधासीधा जवाब दे दो, मैं यहां से चुपचाप चला जाऊंगा…’’

”और जवाब न दिया तो…’’ नंदिनी बीच में बात काटती हुई बोली.

इतना सुनते ही साहुल को गुस्सा आ गया. उस ने आव देखा न ताव, कमर में खोंसा फलदार चाकू निकाला. चाकू देख कर नंदिनी बुरी तरह डर गई और जान बचाने के लिए बैड से कूद कर नीचे भागी.

लेकिन अपने मजबूत हाथों से साहुल ने उसे पकड़ लिया और फर्श पर पटक दिया और फलदार चाकू से शरीर पर ताबड़तोड़ वार तब तक करता रहा, जब तक उस की मौत न हुई. इतने पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने बैड के पास रखे हथौड़े से उस के सिर पर वार किया.

जब उसे यकीन हो गया कि नंदिनी मर चुकी है तो उस ने उस का फोन और हथौड़ा अपने कब्जे में लिया और चुपके से दरवाजा खोल कर फुरती से बाहर निकला और तेजी से चला गया. न तो उसे आते हुए किसी ने देखा था और न ही जाते हुए.

इधर कमरे के फर्श पर नंदिनी अपने ही खून में सनी मरी पड़ी थी. शाम 4 बजे जब उस की सास आरती देवी बाहर से घर लौटीं तो बहू को खून में सना देखा.

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कहानी लिखे जाने तक पुलिस ने प्यार में धोखा खाए प्रेमी साहुल राजभर के खिलाफ आरोपपत्र अदालत में दाखिल करने की तैयारी कर ली थी. हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू और हथौड़ा भी पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर बरामद कर लिया. साहुल जेल में बंद अपने किए की सजा काट रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लाश को मिला नाम

पंचकूला के थाना मनसादेवी के पास सेक्टर-5 के निकट मजदूरों और कामगारों ने अपने रहने के लिए कच्चे  झोपड़ीनुमा मकान बना रखे हैं. 27 अप्रैल, 2019 की सुबह 6 बजे इन्हीं झुग्गियों की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने झाडि़यों के बीच एक लाश से धुआं उठते देखा.

यह देखते ही महिलाएं उलटे पांव भागती हुई बस्ती में लौट आईं. उन्होंने शोर मचा कर यह बात सब को बताई. लाश के जलने की बात सुन कर बस्ती के लोग महिलाओं द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. उन्होंने भी वहां एक लाश से धुआं उठते देखा. लाश बुरी तरह झुलस चुकी थी.

इसी दौरान किसी ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन किया. चंडीगढ़ पुलिस कंट्रोलरूम ने घटना की सूचना संबंधित थाना मनीमाजरा को भेज दी. थोड़ी देर बाद थाना मनीमाजरा पुलिस मौके पर पहुंची तो उस ने बताया कि जिस जगह लाश पड़ी है, वह क्षेत्र के पंचकूला इलाके में आता है.

मनीमाजरा पुलिस ने यह खबर पंचकूला के थाना मनसादेवी को भेज दी. सूचना मिलने पर थाना मनसादेवी के एसएचओ विजय कुमार अपनी टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंच गए. साथ ही उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी दी.

कुछ ही देर में डीसीपी कमलदीप गोयल, एसीपी (क्राइम) नुपूर बिश्नोई, पंचकूला क्राइम इनवैस्टीगेशन एजेंसी के प्रभारी अमन कुमार फोरैंसिक टीम सहित मौके पर पहुंच गए. जिस लाश के बारे में सूचना दी गई थी, वह मनसादेवी कौंप्लेक्स, विश्वकर्मा मंदिर की बैक साइड पर थाना मनसादेवी से मात्र 500 मीटर की दूरी पर झाडि़यों में पड़ी थी.

पुलिस जब वहां पहुंची, तब भी शव से धुआं उठ रहा था. इस से पुलिस को लगा कि कुछ देर पहले ही शव में आग लगाई गई थी. वह लाश किसी युवती की थी. पुलिस ने मौके पर देखा कि उस के गले में फंदा लगा हुआ था. युवती की जीभ भी बाहर निकली हुई थी और टांगें पूरी तरह फैली हुई थीं. यह सब देख कर दुष्कर्म की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता था.

मौके पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने भी वहां से कुछ सबूत जुटाए. झाडि़यों पर पड़ी बोरी भी कब्जे में ले ली गई. पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आया कि युवती की किसी अन्य जगह पर गला घोंट कर हत्या करने के बाद शव को यहां ठिकाने लगाने की कोशिश की गई थी.

शिनाख्त जरूरी थी

झाडि़यों के पास कच्चे रास्ते पर किसी दोपहिया वाहन के टायरों के निशान भी मिले. ऐसा लगता था, युवती का शव किसी वाहन से वहां तक लाया गया होगा. पुलिस को लगा, जब हत्यारे शव लाए होंगे तो कहीं न कहीं किसी सीसीटीवी कैमरे में कैद जरूर हुए होंगे. युवती के शरीर पर घाव के कई निशान भी मिले.

बहरहाल, मनसादेवी थाना पुलिस ने घटनास्थल पर सब से पहले पहुंचे पीसीआर में तैनात हैडकांस्टेबल सतीश की सूचना पर हत्या और लाश को ठिकाने लगाने की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. शव को सेक्टर-6 जनरल अस्पताल की मोर्चरी में 72 घंटों के लिए सुरक्षित रखवा दिया गया.

लाश इतनी बुरी तरीके से जल चुकी थी कि उस की शिनाख्त करनी बहुत मुश्किल थी. पुलिस के सामने पहला अहम काम था शव की शिनाख्त कराना. उस के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था.

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. चंडीगढ़ पुलिस से भी घटनास्थल के रास्ते की तरफ आने वाले क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों को चैक करने की सहायता मांगी गई. इस काम में सीआईए, सेक्टर-19, क्राइम ब्रांच और कई थानों की टीमें लगी थीं.

मृतका के फोटो भी सभी थानों में भिजवा दिए गए थे और पिछले माह लापता हुई 20 से 30 साल की युवतियों के रिकौर्ड भी खंगाले गए. इस के अलावा अधजले शव की पहचान के लिए डीसीपी कमलदीप गोयल के आदेश पर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर की पुलिस को भी सूचना भेज दी गई.

सीआईए इंसपेक्टर अमन कुमार ने सीसीटीवी कैमरे में दिखने वाली एक कार के चालक को हिरासत में ले लिया था, लेकिन लंबी पूछताछ के बाद जब उस से हत्या के संबंध में कोई क्लू नहीं मिला तो उसे छोड़ दिया गया. वहीं मनसादेवी थाना पुलिस ने भी इस मामले में कई संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की, पर कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस इस मामले की हर पहलू से जांच कर रही थी.

कार चालक को सीआईए ने भले ही छोड़ दिया था, लेकिन उसे क्लीन चिट नहीं दी थी क्योंकि उस की काले रंग की अल्टो कार की लोकेशन आईटी पार्क से मनसादेवी कौंप्लेक्स के बीच रात एक से 3 बजे के बीच ट्रेस की गई थी.

पुलिस ने मृतका की शिनाख्त के लिए गली गली में उस के पोस्टर लगवा दिए थे, इस के अलावा विभिन्न अखबारों, लोकल टीवी चैनलों पर भी उस की फोटो दिखाई गई थी. इस का नतीजा यह निकला कि लाश मिलने के 2 दिन बाद अखबार से खबर पढ़ कर इंदिरा कालोनी निवासी लल्लन प्रसाद थाना मनसादेवी पहुंच गया.

उस ने एसएचओ से कहा, ‘‘साहब, अखबार में जो अधजली लाश बरामद होने की खबर छपी है, वह लाश मेरी बेटी गुरप्रीत की है.’’

लल्लन की बात सुन कर एसएचओ ने उस से पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है?’’

‘‘हां साहब, मुझे शक नहीं विश्वास है कि यह काम मेरी बेटी के प्रेमी ने किया होगा.’’ लल्लन ने फूटफूट कर रोते हुए यह बात पुलिस को बताई.

लल्लन ने बताया कि उस की बेटी गुरप्रीत नौवीं कक्षा में पढ़ती थी. उस का प्रेम प्रसंग इंदिरा कालोनी के ही रहने वाले एक लड़के से चल रहा था. वह लड़का दूसरी बिरादरी का था, इसलिए हम ने अपनी बेटी को समझाया और जब वह नहीं मानी तो हम ने 2 महीने पहले उस की मंगनी अपनी रिश्तेदारी के एक लड़के के साथ तय कर दी थी.

वह 23 मार्च, 2019 को सुबह 8 बजे स्कूल जाने के लिए घर से निकली थी. लेकिन शाम तक नहीं लौटी. हम ने भी इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि गुरप्रीत इस से पहले भी अपने प्रेमी के साथ घर से चोरीछिपे कई बार जा चुकी थी. लेकिन 1-2 दिन बाद वह अपने आप ही घर लौट आती थी. उन्हें उम्मीद थी कि इस बार भी वह 1-2 दिन में लौट आएगी. पर इस बार ऐसा नहीं हुआ.

जब 2 दिन तक वह घर नहीं लौटी तो हम ने पहले तो रिश्तेदारी में बेटी की तलाश की, लेकिन जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो चंडीगढ़ के मनीमाजरा थाने में उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी. वह तो नहीं मिली लेकिन इस बार उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

हालांकि पहले तो पुलिस ने उस की बातों पर विश्वास नहीं किया, लेकिन जब युवती की फोटो सीआईए प्रभारी के पास पहुंची तो वह भी दंग रह गए.

पहचान ली गई लाश

उन्होंने तुरंत वह फोटो मनसादेवी थानाप्रभारी को भेजी और दावा करने वाले व्यक्ति को एसएचओ विजय कुमार के पास भेज दिया. विजय कुमार ने उसे मोर्चरी में रखी झुलसी हुई लाश को पहचानने के लिए अस्पताल चलने को कहा. इस पर लल्लन अपनी पत्नी प्रभा के साथ अस्पताल पहुंच गया.

दोनों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई दी तो लल्लन प्रसाद और उस की पत्नी प्रभा ने लाश को पहचान कर उस की शिनाख्त अपनी बेटी गुरप्रीत के रूप में की. अखबारों से मिली जानकारी के बाद उसी दिन अधजले शव की पहचान के लिए अस्पताल में 60 से अधिक लोग पहुंचे थे, जिस में ट्राइसिटी के अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर आदि जगहों के लोग भी शामिल थे, जिन की बेटियां, पत्नियां पिछले कुछ महीनों से लापता थीं. लेकिन शव की शिनाख्त उन में से किसी ने भी नहीं की थी.

30 अप्रैल, 2019 को डाक्टरों के पैनल ने लाश का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि मृतका की हत्या गला घोंट कर की गई थी और उस के पेट में चाकू से 3 वार भी किए गए थे. महिला 5 माह की गर्भवती थी. अंत में कागजी काररवाई करने के बाद उस की लाश लल्लन के हवाले कर दी गई थी. उसी दिन उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया था.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस को अब लल्लन की बेटी के हत्यारों और हत्या के कारण का पता लगाना था. इस के पहले कि इस मामले में पुलिस आगे कुछ कर पाती, अगले दिन दिनांक 30 अप्रैल को कहानी में एक नया मोड़ आ गया.

कहानी में आया नया मोड़

इस ट्विस्ट से पंचकूला पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. लल्लन अपनी जिस बेटी गुरप्रीत का अंतिम संस्कार कर चुका था, वही गुरप्रीत अपने गायब होने के करीब 38 दिनों बाद 30 अप्रैल को रात करीब 9 बजे आईटी थाने में अचानक पहुंच गई.

उस ने पुलिस को बताया कि मैं जिंदा हूं, मेरे प्रेमी को बेवजह मेरी हत्या के आरोप में फंसाया जा रहा है. इस में मेरे पिता की कोई चाल हो सकती है. गुरप्रीत ने बताया कि वह जहां भी गई थी, अपनी मरजी से गई थी. जब उस ने समाचारपत्रों में अपनी हत्या की खबर पढ़ी तो वह हैरान रह गई. इसलिए सच्चाई बताने के लिए वह सीधे थाने चली आई.

आईटी थानाप्रभारी लखबीर सिंह ने इस बात की सूचना एसएचओ मनसादेवी को देने के बाद देर रात तक गुरप्रीत से पूछताछ की. अगले दिन यानी पहली मई को उस का मैडिकल करवाने के बाद उसे सिटी मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर उस का इकबालिया बयान दर्ज करवाया.

एसएचओ मनसादेवी विजय कुमार ने जब लल्लन और उस की पत्नी प्रभा को थाने बुला कर इस बारे में पूछा तो वह गिड़गिड़ा कर कहने लगा, ‘‘साहब, आप ने लाश और उस के जो फोटो हमें दिखाए थे, उस के नाक और कान मेरी बेटी से बिलकुल मिलते थे. इसीलिए हम ने उसे अपनी बेटी की लाश समझा.’’

लल्लन तो इतनी बात कह कर बच निकला पर पंचकूला पुलिस को इस मामले से बचना इतना आसान नहीं था. उस की खिल्ली उड़ रही थी. बहरहाल, गुरप्रीत के लौट आने से लल्लन और चंडीगढ़ पुलिस ने तो चैन की सांस ली पर पंचकूला पुलिस की मुश्किलें बढ़ गई थीं.

लल्लन के गलत शिनाख्त करने के बाद पुलिस ने मृतका को गुरप्रीत मान कर उस का अंतिम संस्कार करवा दिया था और आस लगाए बैठी थी कि लाश की शिनाख्त हो गई है तो उस के हत्यारे भी जल्द पकड़े जाएंगे, पर नए हालात में पुलिस के हाथ खाली थे.

पुलिस एक ऐसी अंधेरी खाई में घुस चुकी थी, जहां से जल्दी निकलना संभव नहीं था. न तो पुलिस के पास मृतका के बारे में कोई जानकारी थी और न हत्यारों का कोई सुराग. कुल मिला कर पुलिस को इस ब्लाइंड केस को सुलझाने के लिए नए सिरे से तहकीकात करनी थी. क्योंकि मृतका गर्भवती थी, इसलिए पुलिस अब इसे औनर किलिंग के एंगल से भी देख रही थी.

दूसरी ओर लल्लन की बेटी के वापस आने से उस के तथाकथित प्रेमी की मां ताज ने अपने रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों के साथ थाने जा कर हंगामा खड़ा कर दिया और थाने में बैठे लल्लन और उस की पत्नी प्रभा को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘मैं कहती थी न कि मेरा बेटा ऐसा कभी नहीं कर सकता, वह गुरप्रीत से सच्ची मोहब्बत करता है, उस की हत्या नहीं कर सकता. लल्लन और उस के परिवार ने पुरानी रंजिश निकालने के  लिए मेरे बेटे को फंसाने की कोशिश की है.’’

आखिर लाश की हो गई शिनाख्त

अब थाना मनसादेवी पुलिस इस की जांच करने में जुट गई कि आखिर वह युवती कौन थी, जिस का अंतिम संस्कार लल्लन ने अपनी बेटी गुरप्रीत जान कर किया. थोड़ी कोशिश के बाद मनसादेवी पुलिस को मृतका के बारे में एक छोटी सी जानकारी मिली.

पता चला कि वह लाश सूरजपुर की रहने वाली किसी युवती की थी. पुलिस जब सूरजपुर पहुंची तो वहां मृतका का पिता ऋषिपाल मिला. मनसादेवी पुलिस ने ऋषिपाल से बात की तो उस ने बताया कि उस की बेटी आरती 26 अप्रैल की रात से लापता है. उस ने पुलिस में गुमशुदगी दर्ज करा दी है.

इस बार पुलिस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पुलिस ने युवती की झुलसी हुई लाश के जो सैंपल सुरक्षित रखे हुए थे, उन से ऋषिपाल का डीएनए मैच करवा कर देखा तो वह मिल गया. इस से यह बात भी साबित हो गई कि मृतका ऋषिपाल की ही बेटी थी. अब इस बात की पुष्टि हो गई कि वह अधजला शव ऋषिपाल की 28 वर्षीय बेटी सुनीता उर्फ आरती का था.

सुनीता शादीशुदा महिला थी. उस की 11 साल की एक बेटी भी है. सुनीता की शादी लगभग 12 साल पहले हुई थी. पिछले 3-4 सालों से उस की अपने पति से अनबन चल रही थी, जिस कारण वह अपने मातापिता और भाई भाभी के साथ सूरजपुर में ही रह रही थी.

पुलिस ने मृतका के परिजनों से उस का मोबाइल नंबर ले कर उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की. उस में एक ऐसा नंबर हाथ लगा, जिस से मृतका की घंटों तक बातें हुआ करती थीं. वह नंबर चेक टाउन के रहने वाले 26 वर्षीय आनंद नाम के युवक का था.

पुलिस ने आनंद के नंबर की जांच की तो 27 अप्रैल, 2019 को उस के फोन की लोकेशन भी उसी जगह की मिली, जहां सुनीता उर्फ आरती की झुलसी हुई लाश मिली थी. सारे सबूत मिल जाने के बाद 3 मई, 2019 को सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर अमन कुमार ने अपनी टीम के साथ मनीमाजरा, पीपली से आनंद और उस के छोटे भाई आजाद को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के दौरान आनंद ने बिना कोई नौटंकी किए अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने ही सुनीता उर्फ आरती की हत्या की थी, क्योंकि वह उसे शादी करने के लिए ब्लैकमेल कर रही थी.

हालांकि बाद में ब्लैकमेल वाली बात झूठी साबित हुई थी. बहरहाल, उसी दिन डीएसपी कमल गोयल ने प्रैसवार्ता कर इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया था. अगले दिन आनंद और आजाद को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान की गई विस्तृत पूछताछ में इस हत्याकांड की कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई.

जिस प्रकार मृतका सुनीता उर्फ आरती का अपने पति से विवाद चल रहा था और वह अपनी बेटी के साथ अपने भाई के घर अकेली रह रही थी, ठीक उसी तरह से आनंद भी अपनी पत्नी के साथ विवाद के चलते अकेला अपने मांबाप के साथ रह रहा था.

आज से लगभग 9 महीने पहले सुनीता अपनी भाभी के साथ किसी शादी में जाने के लिए लहंगा खरीदने सेक्टर-19 की मार्केट स्थित एक शोरूम में गई थी. आनंद भी उसी शोरूम पर काम करता था. यहीं दोनों की पहली मुलाकात हुई थी और पहली नजर में ही दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. दोनों ने अपने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए थे और अकसर रात को फोन पर घंटों बातें किया करते थे.

अकेले रहने के कारण दोनों देहसुख पाने के लिए तड़प रहे थे. सो इस के बाद दोनों के बीच संबंध बन गए थे. पहले तो दोनों बाहर कहीं होटल आदि में मिल कर अपनी प्यास बुझा लिया करते थे, लेकिन बाद में मृतका आनंद के घर पीपली टाउन जाने लगी थी.

वैसे इन दोनों के संबंधों का दोनों के घर वालों को पता था. उन दोनों के बीच सब ठीकठाक ही चल रहा था. दोनों खुश भी थे और आपस में शादी कर लेना चाहते थे.

एक दिन अचानक सुनीता को पता चला कि वह गर्भवती हो गई है तो उस ने यह बात आनंद को बताते हुए कहा कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है और अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. आनंद को यह बात अच्छी नहीं लगी. उस ने बात टालते हुए कहा, ‘‘इस बारे में बाद में बात करेंगे.’’

सुनीता को उस का यह रूखा व्यवहार अच्छा नहीं लगा. कहां तो उस ने सोचा था कि बच्चे वाली बात सुन कर आनंद खुश हो जाएगा, लेकिन यहां तो बात उलटी ही निकली. बच्चे की बात को ले कर दोनों के बीच तनाव पैदा हो गया था. आरती जब भी आनंद से शादी की बात करती तो वह टाल देता था. इसी तरह तनाव भरे माहौल में समय बीतता गया और आरती के पेट में पल रहा बच्चा 5 माह का हो गया था.

अब तो आरती के शरीर में भी परिवर्तन आ गया था. दूसरी ओर आनंद शादी से साफ इनकार करने लगा था. दरअसल आनंद शुरू से ही शादी वादी के लिए तैयार नहीं था. वह बस मुफ्त में मजे लेने के पक्ष में था. उस का कहना था कि हम दोनों केवल अपने अपने शरीर की जरूरतें पूरी करते हैं. जबकि सुनीता इस मामले में गंभीर थी.

छली गई थी सुनीता

आनंद हर समय सुनीता पर इस बात का दबाव डालता था कि वह अबार्शन करवा कर इस मुसीबत से छुटकारा पा ले. एक दिन तो शादी को ले कर हो रही बहस के दौरान उस ने आरती से यहां तक कह दिया, ‘‘मैं कैसे मान लूं कि यह बच्चा मेरा ही है. क्या पता मेरे अलावा तुम्हारे संबंध न जाने किनकिन लोगों के साथ होंगे.’’

यह बात आरती को बहुत बुरी लगी. इस बात को ले कर दोनों में काफी नोकझोंक हुई. आनंद सुनीता से अपना पीछा छुड़ाने की पहले से ही योजना बना चुका था. अब उसे अपनी योजना को अमली जामा पहनाना था. 26 अप्रैल को दोनों की फोन पर शादी वाली बात को ले कर काफी बहस हुई. अंत में आनंद ने उसे रात 8 बजे घर पर मिलने के लिए बुलाया.

जब सुनीता वहां पहुंची तो आनंद के साथ उस का छोटा भाई आजाद भी था. आनंद ने फिर से उसे गर्भपात कराने के लिए कहा, जबकि सुनीता किसी भी कीमत पर गर्भपात कराने के लिए तैयार नहीं थी. वह अपनी बात पर अड़ी थी. इसे ले कर आनंद और सुनीता के बीच झगड़ा हो गया.

आनंद ने सुनीता पर अबार्शन का दबाव बनाने के लिए गुस्से में आ कर कई थप्पड़ मारे. इस पर सुनीता ने गुस्से में आ कर अपना गला अपनी चुन्नी से दबा लिया, जिस से वह बेहोश हो कर जमीन पर पड़ी थी. तभी दोनों भाइयों ने वह चुन्नी और खींच दी, जिस से उस का गला घुटने से मौत हो गई और उस की जीभ भी बाहर निकल आई. इस के बाद आनंद ने चाकू से पेट और आसपास के हिस्से में 3 वार किए.

हत्या करने के बाद दोनों भाइयों ने सुनीता के शव को जूट की बोरी में डाला और लाश को सुनीता की ही एक्टिवा पर अगले हिस्से में रख लिया. मनीमाजरा से चल कर दोनों भाई मनसादेवी थाने के क्षेत्र में पहुंचे, जहां उन्होंने सुनीता का शव झाडि़यों में डाल दिया. वहां घुप्प अंधेरा था और जगह भी एकदम सुनसान थी.

लाश को ठिकाने लगाने के लिए उन्हें यह जगह ठीक लगी. इस के बाद दोनों भाई मनीमाजरा स्थित पैट्रोल पंप पर पहुंचे, जहां उन्होंने एक्टिवा की टंकी फुल करवाई और वापस लाश के पास पहुंच गए.

एक्टिवा की टंकी से पैट्रोल निकाल कर उन्होंने लाश पर छिड़का और आग लगा कर वहां से अपने घर चले आए. यह बात 26-27 अप्रैल की रात की है. हालांकि आरोपियों ने अपनी तरफ से हत्या का कोई सबूत नहीं छोड़ा था, फिर भी पुलिस मोबाइल डिटेल्स के सहारे दोनों हत्यारोपियों तक पहुंच ही गई.

दोनों भाइयों से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि के दौरान सीआईए पुलिस ने मृतका की एक्टिवा और हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. मामले की तफ्तीश चल रही है. पुलिस महिला की हत्या के आरोपी आनंद और आजाद को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है.

पुलिस को संदेह है कि इस हत्याकांड में कोई और भी शामिल हो सकता है. पुलिस सभी पहलुओं पर जांच कर रही है. इस के अलावा पुलिस यह भी जांच कर रही है कि 38 दिनों तक गुरप्रीत आखिर कहां और किस के साथ रही थी.