ASI रंजना ने पुलिस अफसरों पर दुष्कर्म का आरोप लगा कर वसूले लाखों

सामान्य दिनों की तरह शुक्रवार 24 जून, 2022 को इंदौर महानगर के पुलिस कमिश्नर के औफिस में चहलपहल बनी हुई थी. पुलिसकर्मी दोपहर बाद के अपने रुटीन वाले काम निपटाने में व्यस्त थे. साथ ही उन के द्वारा कुछ अचानक आए काम भी निपटाए जा रहे थे.दिन में करीब 3 बजे का समय रहा होगा.

वहीं पास में स्थित पुलिस आयुक्त परिसर में गोली चलने की आवाज आई. सभी पुलिसकर्मी चौंक गए. कुछ सेकेंड में ही एक और गोली चलने की आवाज सुन कर सभी दोबारा चौंके. अब वे अलर्ट हो गए थे और तुरंत उस ओर भागे, जिधर से गोलियां चलने की आवाज आई थी. पुलिस आयुक्त के कमरे के ठीक बाहर बरामदे का दृश्य देख कर सभी सन्न रह गए.

पुलिस कंट्रोल रूम में ही काम करने वाली एएसआई रंजना खांडे जमीन पर अचेत पड़ी थी. उस के सिर के नीचे से खून रिस रहा था. कुछ दूरी पर ही भोपाल श्यामला हिल्स थाने के टीआई हाकम सिंह पंवार भी अचेतावस्था में करवट लिए गिरे हुए थे.खून उन की कनपटी से तेजी से निकल रहा था. उन्हें देख कर कहा जा सकता था कि दोनों पर किसी ने गोली चलाई होगी. किंतु वहां किसी तीसरे के होने का जरा भी अंदाजा नहीं था. हां, टीआई के पैरों के पास उन की सर्विस रिवौल्वर जरूर पड़ी थी.

एक महिला सिपाही ने रंजना खांडे के शरीर को झकझोरा. वह उठ कर बैठ गई. उसे गोली छूती हुई निकल गई थी. वह जख्मी थी. उस की गरदन के बगल से खून रिस रहा था. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. जबकि टीआई के शरीर को झकझोरने पर उस में कोई हरकत नहीं हुई. उन की सांसें बंद हो चुकी थीं.

रंजना के साथ टीआई को भी अस्पताल ले जाया गया.गोली चलने की इस वारदात की सूचना पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र को भी मिल गई. वह भी भागेभागे घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक की हुई जांच के मुताबिक टीआई हाकम सिंह के गोली मार कर खुदकुशी करने की बात चर्चा में आ चुकी थी. सभी को यह पता था कि यह प्रेम प्रसंग का मामला है. मरने से पहले टीआई ने ही एएसआई रंजना खांडे पर गोली चलाई थी.

इस के बाद अपनी कनपटी पर रिवौल्वर सटा कर गोली मार ली थी. रंजना खांडे की गरदन को छूती हुई गोली निकल गई थी. गरदन पर खरोंच भर लगी थी, किंतु वह वहीं धड़ाम से गिर पड़ी थी. रंजना के गिरने पर टीआई ने उसे मरा समझ लिया था. परंतु ऐसा हुआ नहीं था. पुलिस जांच में यह बात भी सामने आई कि रंजना ने टीआई पंवार पर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था. जबकि पंवार रंजना पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगा चुके थे.

रंजना टीआई को कर रही थी ब्लैकमेल,रंजना और टीआई पंवार के बीच गंभीर विवाद की यही मूल वजह थी. इसे दोनों जल्द से जल्द निपटा लेना चाहते थे. इस सिलसिले में उन की कई बैठकें हो चुकी थीं, लेकिन बात नहीं बन पाई थी.टीआई पंवार तनाव में चल रहे थे. इस कारण 21 जून को बीमारी का हवाला दे कर छुट्टी पर इंदौर चले गए थे. उन्हें घटना के दिन रंजना ने 24 जून को मामला निपटाने के लिए दिन में डेढ़ बजे कौफीहाउस बुलाया था.

जबकि रंजना खुद अपने भाई कमलेश खांडे के साथ 10 मिनट देरी से पहुंची थी. उन के बीच काफी समय तक बातचीत होती रही. उसे बातचीत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे एकदूसरे से बहस कर रहे थे, जो आधे घंटे बीत जाने के बाद भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी. बगैर किसी नतीजे पर पहुंचे दोनों सवा 2 बजे कौफीहाउस से बाहर निकल आए थे.

पुलिस कमिश्नर औफिस के पास रीगल थिएटर है. उसी के सामने कौफीहाउस बना हुआ है. यह केवल पुलिस वालों के लिए ही है. बाहर निकलने पर भी दोनों में बहस होती रही. बताते हैं कि वे काफी तैश में थे. बहस करीब 40 मिनट तक चलती रही. इसी सिलसिले में यह भी बात सामने आई कि रंजना टीआई को ब्लैकमेल कर 50 लाख रुपए वसूल चुकी थी. वह उस का इकलौता शिकार नहीं थे, बल्कि पहले भी 3 पुलिसकर्मियों पर दुष्कर्म का आरोप लगा कर उन से लाखों रुपए वसूल चुकी थी. रंजना खांडे मूलरूप से खरगोन के धामनोद की रहने वाली थी.

उस के बाद ही करीब 3 बजे पुलिस कमिश्नर के औफिस के बाहर गोलियां चली थीं. टीआई पंवार इस वारदात को ले कर घर से ही पूरा मन बना कर आए थे. यहां तक कि वह अपनी पत्नी तक से आक्रोश जता चुके थे. उन्होंने कहा था कि गोविंद जायसवाल से पैसे ले कर ही लौटेंगे. कपड़ा व्यापारी गोविंद को उन्होंने 25 लाख रुपए दिए थे, जो लौटाने में आनाकानी कर रहा था. उन्होंने पत्नी लीलावती उर्फ वंदना से यह भी कहा था कि यदि उस ने पैसे नहीं दिए तो वह उसे मार डालेंगे. बात नहीं बनी तो अपनी जान भी दांव पर लगा देंगे.

58 साल के हाकम सिंह पंवार की नियुक्ति इसी साल 6 फरवरी को भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में हुई थी. इस से पहले वह गौतमपुर, खुडेल, सर्राफा थाना, इंदौर कोतवाली, खरगोन, भिकमगांव महेश्वर, राजगढ़ में पदस्थापित रह चुके थे.उन का निवास स्थान वटलापुर इलाके में था. वहां उन्होंने एक फ्लैट किराए पर ले रखा था, लेकिन रहने वाले मूलत: उज्जैन जिले के तराना कस्बे के थे. वह भोपाल में अकेले रहते थे. मध्य प्रदेश पुलिस में वह सन 1988 में कांस्टेबल के पद पर भरती हुए थे. बताया जाता है कि उन्होंने 5 शादियां कर रखी थीं.

पहली शादी उन्होंने लीलावती उर्फ वंदना से की थी. बताया जाता है कि दूसरी शादी उन्होंने सीहोर की रहने वाली सरस्वती से की. गौतमपुरा में पोस्टिंग के दौरान उन की मुलाकात रेशमा उर्फ जागृति से हुई जो मूलरूप से इंदौर की पुरामत कालोनी की रहने वाली थी. वह उन की तीसरी पत्नी बनी. मजीद शेख की बेटी रेशमा ने टीआई हाकिमसिंह पंवार पर अपना इस तरह प्रभाव जमा लिया था कि वह उनसे जब चाहे तब पैसे ऐंठती रहती थी. चौथी प्रेमिका के रूप में रंजना खांडे उन के जीवन में आई. हाकमसिंह की सर्विस बुक में लता पंवार का नाम है. चर्चा यह भी है कि भोपाल में तैनाती के दौरान उन्होंने माया नाम की महिला से शादी की थी. पुलिस इन सब की जांच कर रही है.

रंजना 3 पुलिस वालों से ऐंठ चुकी थी ,70 लाख रुपए जांच में पता चला कि सन 2012 में मध्य प्रदेश पुलिस में भरती हुई रंजना धार जिले के कस्बा धामनोद की रहने वाली थी और मौजूदा समय में इंदौर की सिलिकान सिटी में रह रही थी. उस की पंवार से अकसर मुलाकात महेश्वर थाने में होती थी. वह महेश्वर थाने पर पंवार से मिलने के लिए 12 किलोमीटर की दूरी तय कर आती थी. रंजना के साथ उसका भाई कमलेश खांडे भी पंवार से मिलता रहता था.

रजंना और कमलेश ने मिल कर ब्लैकमेलिंग का तानाबाना बुना था. 28 वर्षीय कमलेश रंजना का भाई था. उस के बारे में मालूम हुआ कि वह एक आवारा किस्म का व्यक्ति था. 3 पुलिसकर्मियों को ब्लैकमेल करने में उस की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी. तीनों से दोनों बहनभाई ने करीब 70 लाख रुपए की वसूली की थी. उन का तरीका एक औरत के लिए शर्मसार करने वाला था, लेकिन रंजना को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह पैसे की इस कदर भूखी थी कि उस ने अपनी इज्जत, शर्म और मानमर्यादा को ताक पर रख दिया था.

एएसआई रंजना की दिलफेंक अदाओं पर पंवार तभी फिदा हो गए थे, जब वह पहली बार महेश्वर थाने में मिली थी. दरअसल, रंजना 2018 में थाने के काम से महेश्वर आई थी, वहां उस की मुलाकात टीआई पंवार से हुई थी.पंवार ने उस की मदद की थी, जिस से रंजना ने उसे साथ कौफी पीने का औफर दे दिया था. पंवार उस के औफर को ठुकरा नहीं पाए थे. उन के बीच दोस्ती की पहली शुरुआत कौफी टेबल पर हुई, जो जल्द ही गहरी हो गई.

साथ में पैग छलका कर टीआई से बनाए थे शारीरिक संबंध फिर एक दिन अपने भाई के साथ पंवार के कमरे पर आ धमकी. उस ने बताया कि उस के भाई का बिजनैस में किसी के साथ झगड़ा हो गया है. मामला उन्हीं के थाने का है. वह चाहें तो मामले को निपटा सकते हैं. इस संबंध में पंवार ने रंजना को मदद करने का वादा किया. इस खुशी में रंजना ने उन्हें एक छोटी सी पार्टी देने का औफर दिया और भाई से शराब की बोतलें मंगवा लीं. कमलेश विदेशी शराब की बोतलें और खाने का सामान रख कर चला गया.

पंवार के सामने शराब और शबाब दोनों थे. वह उस रोज बेहद खुश थे. उन की खुशी को बढ़ाने में रंजना ने भी खुले मन से साथ दिया था. देर रात तक शराब का दौर पैग दर पैग चलता रहा. इस दरम्यान रंजना ने टीआई हाकम सिंह पंवार के लिए न केवल अपने दिल के दरवाजे खोल दिए, बल्कि पंवार के सामने कपडे़ खोलने से भी परहेज नहीं किया.

बैडरूम में शराब की गंध के साथ दोनों के शरीर की गंध कब घुलमिल गई, उन्हें इस का पता ही नहीं चला. बिस्तर पर अधनंगे लेटे हुए जब उन की सुबह में नींद खुली, तब उन्होंने एकदूसरे को प्यार भरी निगाह से देखा. आंखों- आखों में बात हुई और एकदूसरे को चूम लिया. कुछ दिनों बाद रंजना पंवार से मिलने एक बार फिर अपने भाई के साथ आई. उस ने पंवार को धन्यवाद दिया और कहा कि उस की बदौलत ही उस का मामला निपट पाया. इसी के साथ रंजना ने एक दूसरी घरेलू समस्या भी बता दी. वह समस्या नहीं, बल्कि पैसे से मदद करने की थी.

रंजना ने बताया कि उस के परिवार को तत्काल 5 लाख रुपए की जरूरत है. पंवार पहले तो इस बड़ी रकम को ले कर सोच में पड़ गए, किंतु जब उस ने शराब की बोतल दिखाई तब वह पैसे देने के लिए राजी हो गए. टीआई पंवार ने उसी रोज कुछ पैसे अपने घर से मंगवाए और कुछ दोस्तों से ले कर रंजना को दे दिए. बदले में रंजना को पहले की तरह ही रात रंगीन करने में जरा भी हिचक नहीं हुई. इस तरह पंवार को रंजना से जहां यौनसुख मिलने लगा, वहीं रंजना के लिए पंवार सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन चुके थे. धीरेधीरे रंजना उन से लगातार पैसे की मांग करने लगी. पंवार भी उस की पूर्ति करते रहे. लेकिन आए दिन की जाने वाली इन मांगों से पंवार काफी तंग आ चुके थे.

हद तो तब हो गई जब रंजना ने एक बार पूरे 25 लाख रुपए की मांग कर दी. उस ने न केवल रुपए मांगे, बल्कि भाई के लिए एक कार तक मांग ली. इस मांग के बाद पंवार का पारा बढ़ गया. वह गुस्से में आ गए. फोन पर ही धमकी दे डाली. किंतु रंजना ने बड़ी शालीनता से उन की धमकी का जवाब एक वीडियो क्लिपिंग के साथ दे दिया.

टीआई की रखैल रेशमा भी करने लगी ब्लैकमेल रंजना ने कुछ मिनट की एक वीडियो क्लिपिंग उन्हें वाट्सऐप कर दी. उसे देखते ही पंवार का दिमाग सुन्न हो गया. तभी रंजना के भाई ने फोन कर धमकी दी कि उस तरह के कई वीडियो उस के पास हैं. उन्होंने अगर जरा सी भी होशियारी दिखाई और पैसे नहीं दिए, तब वह सीधा बहन के साथ बलात्कार का आरोप लगा देगा. उस के बाद की पूरी प्रक्रिया क्या हो सकती है, उसे वह अच्छी तरह जानता है.

बाद में रेशमा उर्फ जागृति भी रंजना से मिल गई. फिर इन्होंने मिल कर टीआई पंवार को मानसिक रूप से प्रताडि़त करना शुरू कर दिया. इस की पुष्टि पंवार के मोबाइल नंबर की साइबर फोरैंसिक जांच से हुई.इस बारे में पंवार के घर वालों ने भी पुलिस से शिकायत की थी. पूछताछ में पंवार की पत्नी लीलावती, भाई रामगोपाल, भतीजा भूपेंद्र पंवार, मुकेश पंवार और पिता भंवरसिंह पंवार ने फोन पर धमकी मिलने की बात बताई.

उन्होंने बताया कि हाकम सिंह से रंजना ही नहीं, बल्कि उस की बहन और भाई भी पैसे की मांग करते थे. पैसे नहीं देने पर बलात्कार के झूठे मुकदमे में फंसा देने की धमकी भी देते थे.पंवार की मौत गोली मार कर आत्महत्या किए जाने की पुष्टि के बाद पुलिस की जांच में 4 लोगों के खिलाफ प्रताडि़त करने की एफआईआर दर्ज की गई. उन 4 लोगों में मुख्य आरोपी रंजना खांडे, रेशमा उर्फ जागृति, कमलेश और गोविंद जायसवाल का नाम था.

एफआईआर में उन्होंने झूठी रिपोर्ट दर्ज करवा कर जेल भेजने की धमकी देने और पैसा मांगने की बात कही गई थी. जांच में पाया गया कि 31 मार्च से 24 जून, 2022 के बीच मृतक के मोबाइल पर रेशमा उर्फ जागृति ने फोन कर के धमकियां दी थीं. ये धमकियां पूरी तरह से ब्लैकमेल करने और मानसिक प्रताड़ना की थीं. टीआई पंवार ने अपने मोबाइल में इन की रिकौर्डिंग कर रखी थी. मोबाइल पर मिली कुल 7 धमकियां तिथिवार रिकौर्ड थीं.

धमकी देने वाले आरोपियों में रेशमा ने पंवार से मकान के लिए पैसे और रजिस्ट्री के लिए प्रताडि़त किया था. ऐसा नहीं करने पर बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने और अश्लील फोटो वायरल करने की धमकी दी थी. ऐसे ही रंजना और उस के भाई कमलेश 25 लाख रुपए और गाड़ी की मांग कर रहे थे. रंजना ने टीआई पंवार से कहा था कि उन्होंने कपड़ा व्यापारी गोविंद जायसवाल को रखने के लिए जो 25 लाख रुपए दिए थे, वह उस से मांग कर दें. दूसरी तरफ गोविंद जायसवाल पैसा वापस नहीं कर रहा था. वह टालमटोल कर रहा था.

पंवार को रेशमा ने 24 जून को गोविंद से पैसा लाने का दबाव बनाया था. उसी समय रंजना और कमलेश भी पैसा और गाड़ी के लिए पंवार को इंदौर में इंडियन कैफे हाउस के सामने बुलाया था. इस तरह से पंवार दोतरफा मानसिक तनाव में आ चुके थे.मुख्यालय के प्रांगण में ही बहा खून

टीआई पंवार को गोविंद से पैसे ले कर अश्लील वीडियो के वायरल होने से रोकने के लिए रंजना, रेशमा और कमलेश को देने थे. पंवार ने कमलेश और रंजना से इंडियन कौफीहाउस में बातचीत के दौरान गोविंद से मोबाइल पर काल कर अपने रुपए मांगे थे. उन्होंने बातचीत में खुद को बहुत परेशान बताया था और अनर्थ होने तक की बात कही थी. इसी क्रम में रेशमा काल कर पंवार को मोबाइल पर धमकियां देती रही. उस ने फोन पर यहां तक कह दिया था कि जो पैसा और चैक नहीं दे रहा है, उसे मार कर खुद मर जाए.

यह बात पंवार के दिमाग में बैठ गई. और फिर उन्होंने जो निर्णय लिया वह उन्हें खतरनाक राह पर ले गया. रेशमा, रंजना, कमलेश और गोविंद जायसवाल की एक साथ मिली प्रताड़नाओं से पंवार टूट गए.

करीब 50 मिनट तक वह मानसिक उत्पीड़न से जूझते रहे. एक समय आया जब उन्होंने मानसिक संतुलन खो दिया और अपनी सर्विस रिवौल्वर हाथ में पकड़ ली. कौफीहाउस से निकलने के बाद बरामदे में उन्होंने रंजना के हाथ से उस का मोबाइल छीनने की कोशिश की, क्योंकि उसी में अश्लील वीडियो थीं. मोबाइल रंजना के हाथ से नीचे गिर गया, जिसे रंजना ने तुरंत उठा लिया.

तभी उन्होंने रिवौल्वर रंजना खांडे पर तान दी. जब तक रंजना कुछ कहतीसुनती, तब तक रिवौल्वर से गोली निकल चुकी थी. गोली चलते ही रंजना वहीं जमीन गिर पड़ी थी. पंवार ने तुरंत रिवौल्वर को अपनी कनपटी से सटाया और दूसरी गोली चला दी. इस तरह हत्या और आत्महत्या की इस वारदात में हत्या तो नहीं हो पाई लेकिन आत्महत्या जरूर हो गई.

इस मामले की जांच पूरी होने के बाद रेशमा, रंजना खांडे, कमलेश खांडे, कपड़ा व्यापारी गोविंद जायसवाल को भादंवि की धारा 384, 385, 306 के तहत अजाक थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एडिशनल पुलिस कमिश्नर राजेश हिंगणकर ने एएसआई रंजना खांडे को निलंबित कर दिया. आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम ने उन के ठिकानों पर दबिश डाली, लेकिन वह वहां से फरार मिले. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने महाकाल मंदिर क्षेत्र में बसस्टैंड के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में रंजना ने टीआई पंवार से अपने अवैध संबंधों की बात कुबूली. उस ने बताया कि उन्हीं संबंधों की वीडियो से ब्लैकमेल कर वह टीआई से क्रेटा कार मांग रही थी.इस के बाद पुलिस ने टीआई की पत्नी का दावा करने वाली रेशमा को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात के करीब 2 हफ्ते बाद रंजना के भाई कमलेश की आग से झुलस कर मौत हो गई. दरअसल, कमलेश धामोद स्थित अपने घर पर दालबाटी बना रहा था. उस समय उपले गीले होने की वजह से जल नहीं पा रहे थे. उन्हें जलाने के लिए कमलेश ने जैसे ही पैट्रोल डाला, तभी उस के कपड़ों में आग लग गई. घर में आग से वह काफी देर तक छटपटाता रहा. घर वालों ने किसी तरह उस की आग बुझाई और उसे इलाज के लिए धार अस्पताल ले गए. हालत गंभीर होने की वजह से उसे एमवाई अस्पताल रैफर कर दिया. जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

इंदौर के हनुमान मंदिर के पास एलआईजी सोसायटी में रहने वाला व्यापारी गोविंद जायसवाल कथा लिखने तक गिरफ्तार नहीं हो सका था. पुलिस ने आरोपी रंजना खांडे और रेशमा उर्फ जागृति से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

वकील ने खून से लिखा केस

एडवोकेट मनमोहन कुमार की पंचकूला अदालत में अच्छी प्रैक्टिस चलती थी. परिवार में उस की पत्नी रजनी के अलावा 2 बेटे,  9 वर्षीय निखिल और 7 वर्षीय तन्मय थे. मनमोहन कुमार पंचकूला के सेक्टर-19 में रहता था, उस के मातापिता भी साथ ही रहते थे.

सब कुछ ठीक चल रहा था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. लेकिन उस दिन एक अलग सी चिंता वाली बात हो गई.

16 जनवरी, 2018 की सुबह मनमोहन रोजाना की तरह तैयार हो कर घर से अदालत के लिए निकला. रजनी घर पर ही थी, उस ने अपने दोनों बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया. बड़े बेटे ने कहा था कि आज वह पनीर की सब्जी खाएगा तो रजनी ने भी पलट कर कह दिया था कि वह उस की मनपसंद सब्जी बना कर रखेगी.

लेकिन दोपहर बाद पौने 3 बजे जब बच्चे स्कूल से घर लौटे तो उन की मां घर पर नहीं थी. बच्चों के दादा ने उन से कहा कि रजनी बाजार गई होगी, थोड़ी देर में लौट आएगी. इसी बीच बड़े बेटे निखिल ने पिता को फोन कर के इस बारे में बताया. मनमोहन ने भी सहज भाव से कह दिया कि किसी काम से गई होगी, लौट आएगी.

एक घंटे बाद मनमोहन ने घर पर फोन कर के पत्नी के बारे में पूछा. पता चला कि रजनी अभी तक वापस नहीं लौटी थी. यह जानने के बाद वह अपना काम छोड़ कर लौट आया. उस ने इस बारे में पहले पिता से बात की, फिर कई जगह फोन करने के अलावा यहांवहां पत्नी की तलाश की. लेकिन रजनी के बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं मिली.

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अंतत: मनमोहन ने रात में थाना सेक्टर-20 जा कर अपनी पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. वह बहुत ज्यादा परेशान नजर आ रहा था. बातबात पर उस की आंखें भर आती थीं.

शिकायत एक वकील की ओर से की गई थी. पुलिस ने तुरंत मामला दर्ज कर गुमशुदा की फोटो फ्लैश कर के काररवाई शुरू कर दी. रजनी की तलाश में तमाम संभावित जगहों पर पुलिस पार्टियां भेज दी गई थीं.

पुलिस ने भागदौड़ में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन पुलिस भी रजनी का कोई सुराग हासिल करने में कामयाब नहीं हुई.

देखतेदेखते रजनी को गायब हुए 4 दिन गुजर गए. पुलिस को उसे ढूंढने में कोई कामयाबी नहीं मिली. मनमोहन भी पत्नी को तलाशता रहा, लेकिन उस की भागदौड़ किसी काम नहीं आ रही थी. इस से वह हताशा का शिकार होने लगा था. बात करते हुए लगता था, जैसे अभी रो देगा.

20 जनवरी को पुलिस को आंशिक सफलता तब मिली, जब पंचकूला के सेक्टर-25 स्थित डंपिंग ग्राउंड के पास से रजनी की एक जूती बरामद हुई. मनमोहन को बुलवा कर जूती की शिनाख्त करवाई गई तो यह संदेह पुख्ता होने लगा कि संभवत: रजनी की हत्या कर के उस के शव को डंपिंग ग्राउंड में दफना दिया गया है.

आननफानन में पंचकूला पुलिस की एक टीम और फोरैंसिक टीम ने वहां संभावित जगह की खुदाई करवानी शुरू कर दी. यह खुदाई शिकायतकर्ता मनमोहन के सामने ही शुरू की गई. अपने कुछ कनिष्ठ अधिकारियों के साथ पंचकूला के डीसीपी मनवीर सिंह भी मौके पर मौजूद रहे.

खुदाई के लिए जेसीबी मशीन लाई गई थी. 3 फुट गहरी खुदाई होने पर कपड़े में लपेट कर दबाया गया एक शव दिखाई दिया. सब को लगा कि वह शव वकील मनमोहन की गुमशुदा बीवी रजनी का होगा. इस से अजीब किस्म की सनसनी सी फैलने लगी. मनमोहन ने शव देखने से पहले ही फफकफफक कर रोना शुरू कर दिया.

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मृतका रजनी

लेकिन कुछ देर बाद इस रहस्य पर से परदा उठ गया. रहस्य यह था कि वह शव किसी महिला का न हो कर एक कुत्ते का था. इस बात से वहां सनसनी में और इजाफा हो गया. इस की वजह यह थी कि कुत्ते के शव को जिस कपड़े में लपेट कर दफनाया गया था, वह रजनी का दुपट्टा था.

मनमोहन परेशान तो पहले से ही था, यह सब सामने आने पर वह बदहवास सा हो गया. पहले तो वह फूटफूट कर रोया. फिर चीखचीख कर कहने लगा कि किसी ने षडयंत्र रच कर उस की रजनी को गायब कर दिया है.

पुलिस ने अपनी कारवाई के लिए कुत्ते का शव कब्जे में ले कर खोदी गई जगह पर मिट्टी भरवा दी. दूसरी ओर पुलिस रजनी के मोबाइल नंबर से जुड़ी काल डिटेल्स खंगालने का प्रयास कर रही थी. इस प्रयास में पुलिस के सामने यह बात आई कि उस के नंबर पर जिस नंबर से ज्यादा काल्स आई थीं, वह मोनिका के नाम से सेव था. मनमोहन ने इस बारे में बताया कि मोनिका उस की पत्नी रजनी की सहेली है और अलीगढ़ की रहने वाली है. दोनों अकसर एकदूसरे से फोन पर बातें करती रहती थीं.

पुलिस ने इस नंबर पर फोन कर के मोनिका से बात की. उस ने बताया कि वह मूलरूप से अलीगढ़ की रहने वाली है लेकिन इन दिनों चंडीगढ़ के कस्बे मनीमाजरा में रह कर अपना ब्यूटीपार्लर चला रही है. उस ने बेझिझक पुलिस को अपना पता भी दे दिया. पुलिस ने उस के ब्यूटीपार्लर पर पहुंच कर उस से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की.

पूछताछ में मोनिका जरा भी नहीं घबराई. उस ने पूरे आत्मविश्वास से पुलिस को बताया, ‘‘मेरी बहन की अपने पति संदीप के साथ बिलकुल नहीं बनती थी, जबकि संदीप निहायत भला आदमी है. आखिर मेरी बहन और जीजा के बीच तलाक लेने की नौबत आ गई. मेरे जीजा ने अपना केस लड़ने के लिए वकील मनमोहन कुमार को नियुक्त किया था.

‘‘मनमोहनजी बहुत भले और मिलनसार व्यक्ति ही नहीं निकले, बल्कि उन की पत्नी इस सब में उन से भी बढ़ कर थीं. अपने जीजा के साथ मैं भी उन के यहां चली जाती थी. इस वजह से मेरी उन से पहचान हुई और फिर रजनी दीदी से पक्की दोस्ती हो गई.

‘‘हम दोनों एकदूसरे से फोन पर बातें करती रहती थीं. अब दीदी के गायब होने का पता चला है. मैं तो खुद नहीं समझ पा रही हूं कि इस तरह अचानक वह कहां चली गईं. इन लोगों की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है. दोनों खूब हंसमुख हैं. पतिपत्नी के बीच कभी कोई मनमुटाव हुआ हो, ऐसी भी कोई बात सामने नहीं आई. दोनों का अपने बच्चों से भी बहुत लगाव है.’’ मोनिका ने पुलिस को बताया.

यह बताने के बावजूद मोनिका खुद पुलिस के संदेह के दायरे में आ गई. वजह यह कि उस से इतना कुछ पूछा नहीं गया था, जितना वह बता गई थी.

लेकिन एक बात उस के हक में जा रही थी. रजनी के गायब होने से पहले उस के मोबाइल नंबर पर जो अंतिम काल आई थी, वह मोनिका की नहीं थी. यह काल किसी अज्ञात नंबर से आई थी. रजनी ने यह नंबर सेव नहीं कर रखा था. पुलिस ने उस नंबर का पता लगा लिया.

वह नंबर एक रिक्शाचालक का था. पूछताछ करने पर उस ने पुलिस को बताया कि 16 जनवरी को दिन के 10 से साढ़े 10 बजे वह अपना रिक्शा ले कर कहीं जा रहा था. तभी उसे रास्ते में रोक कर एक युवती ने उस से पूछा था कि क्या उस के पास मोबाइल है. उस के हां कहने पर युवती ने कहा कि वह अपना मोबाइल घर भूल आई है.

फिर उस ने पैसों का लालच दे कर उस के फोन से एक काल कर लेने को कहा. उस ने अपना मोबाइल युवती को दे दिया. वह नहीं जानता कि उस युवती ने उस के फोन पर किस से क्या बात की थी.

रिक्शाचालक को ले जा कर जब मोनिका के सामने खड़ा किया गया तो उस ने उसे पहचानते हुए बोल दिया, ‘‘जी हां, यही मेमसाहब थीं, जिन्होंने मेरे फोन से बात की थी.’’

इस पर पुलिस मोनिका को संदिग्ध मानते हुए थाने ले आई. वहीं उस के मोबाइल पर उस के जीजा संदीप का फोन आ गया. उस वक्त वह सेक्टर-20 पुलिस स्टेशन के प्रभारी विकास कुमार के औफिस में बैठी थी. उस से मनोवैज्ञानिक पूछताछ का सिलसिला शुरू होने ही जा रहा था कि उस के जीजा का फोन आ गया तो मोनिका के जरिए संदीप की लोकेशन मालूम कर ली गई.

उस वक्त वह पंचकूला में ही था. एक पुलिस पार्टी जा कर उसे भी राउंडअप कर लाई. थाने में दोनों से पूछताछ शुरू ही हुई थी कि दोनों ने रजनी का कत्ल करने की बात मानते हुए सीधेसीधे कह दिया कि भले ही रजनी को मौत के घाट उन दोनों ने उतारा था, लेकिन उस की लाश को अंतिम रूप से ठिकाने लगाने का काम खुद रजनी के पति एडवोकेट मनमोहन कुमार ने ही किया था. यहां तक कि इस खूनी साजिश को रचा भी मनमोहन ने ही था.

27 जनवरी, 2016 की बात है. मोनिका और संदीप की थाने में विधिवत गिरफ्तारी दिखाने के बाद उसी दिन पंचकूला के सूरज थिएटर के पास से वकील मनमोहन को भी पकड़ लिया गया. तीनों को एक सप्ताह के कस्टडी रिमांड में ले कर गहन पूछताछ की गई.

इस पूछताछ में इन लोगों ने पुलिस को जो कुछ बताया, उस से रजनी के गायब होने से ले कर उस के कत्ल तक की सिलसिलेवार गाथा कुछ इस तरह सामने आई—

मोनिका का जीजा पेशे से ट्रक ड्राइवर था. पत्नी की अपेक्षा वह अपनी साली को ज्यादा पसंद करता था. इसी वजह से पतिपत्नी के रिश्तों में खटास आ गई थी और मामला तलाक तक जा पहुंचा था. इसी सिलसिले में संदीप की मुलाकात पंचकूला के वकील मनमोहन कुमार से हुई थी.

चूंकि संदीप पंचकूला में रहता था और मोनिका मनीमाजरा में, इसलिए दोनों की अकसर मुलाकात होती रहती थी. वैसे भी पंचकूला और चंडीगढ़ का कस्बा मनीमाजरा एकदूसरे से सटे हुए हैं. संदीप मोनिका को बहुत सुलझी हुई और समझदार मानता था. इसी वजह से वह वकील मनमोहन के पास जाते वक्त अकसर उसे भी साथ ले जाया करता था. मोनिका भी उन की बातों में दिलचस्पी लेते हुए कभीकभार अपनी राय दे देती थी, जिस से वकील मनमोहन अकसर सहमत हो जाता था.

एक रोज मोनिका और मनमोहन की कुछ इस अंदाज में आंखें चार हुईं कि दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे. मेल मुलाकातें होने लगीं. आखिर एक ऐसी स्टेज आ गई जब यह तय हो गया कि मनमोहन अपनी पत्नी को तलाक दे कर मोनिका से शादी कर लेगा. मोनिका पहले ही कुंवारी थी.

रजनी किसी पतिव्रता नारी से कम नहीं थी. उसे कितना भी परेशान कर लिया जाता, वह तलाक के लिए कभी राजी न होती. इस सिलसिले में मनमोहन ने हर तरह के हथकंडे अपना लिए थे, मगर बात बनती नजर नहीं आई.

आखिर रजनी को रास्ते से हटाने के लिए उसे मौत के घाट उतारने की योजना बनाई गई. मोनिका और मनमोहन तो इस योजना का हिस्सा थे ही, संदीप को भी डेढ़ लाख रुपयों का लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया गया.

योजना के तहत मोनिका किसी न किसी काम के बहाने मनमोहन के घर जाने लगी, जहां उस की मुलाकात रजनी से हो गई. उस ने रजनी से घनिष्ठता बढ़ाने में देर नहीं लगाई. जल्दी ही दोनों पक्की सहेलियां बन गईं. दोनों फोन पर भी आपस में खूब बतियाने लगी थीं.

कई बार एक साथ शौपिंग करने भी चली जाती थीं. मोनिका रजनी की खूब खातिरदारी भी करती थी. वह उसे अच्छेअच्छे रेस्टोरेंट्स में ले जा कर ऐसीऐसी चीजें खिलाया करती थी, जिन से रजनी की तबीयत खुश हो जाए. फलस्वरूप उसे मोनिका बहुत अच्छी और अपनी हितैषी लगने लगी थी.

एक बार रजनी ने बताया कि उस के पास एक साड़ी है, जिस से मैच करता पेटीकोट ब्लाउज नहीं मिल पा रहा है. उस की बात सुन मोनिका ने छूटते ही कहा, ‘‘इतनी सी बात के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हें ऐसी दुकान पर ले जाऊंगी, जहां सब कुछ आसानी से मिल जाएगा. जब भी उस तरफ जाना हुआ, मैं तुम्हें साथ ले चलूंगी.’’

योजना के तहत जिस मौके का मोनिका को इंतजार था, वह उस के सामने था. उस ने इस बारे में संदीप और मनमोहन से बात की. मनमोहन शुरू से ही उन्हें कहता आया था कि उस की बनाई योजना के चलते रजनी को मौत के घाट उतार देने पर भी वे कभी नहीं फंसेंगे.

और अगर बुरी किस्मत के चलते फंस भी गए तो भूल कर भी पुलिस के सामने मेरा नाम नहीं लेना. आखिर तुम लोगों को बचाना तो मुझे ही है. वैसे तुम लोगों को यह भी बता दूं कि अगर तुम अपने काम में सफल हो गए तो मैं रजनी की लाश को वहां पहुंचा दूंगा, जहां उसे कभी कोई ढूंढ ही नहीं पाएगा.

                                                           अभियुक्त संदीप

संदीप और मोनिका तो पहले ही से वकील मनमोहन से प्रभावित थे. उन की नजर में उस जैसा चतुर दूसरा कोई नहीं हो सकता था. योजना को अंतिम रूप देते हुए 16 जनवरी को दिन के साढ़े 10 बजे मोनिका ने एक रिक्शाचालक से उस का फोन ले कर रजनी को काल कर के सेक्टर-21६ में एक जगह बुलवाया.

बनाई गई योजना के तहत मोनिका अपना मोबाइल फोन पहले ही चंडीगढ़ में किसी के पास छोड़ आई थी. ऐसा उस ने इसलिए किया था ताकि अगर पुलिस उस पर शक करने भी लगे तो घटना के वक्त के उस की फोन लोकेशन चंडीगढ़ की आए.

खैर, करीब घंटे डेढ़ घंटे बाद रजनी उस जगह पहुंच गई, जहां पहुंचने के लिए मोनिका ने कहा था.

मोनिका उस वक्त अपनी कार में थी, जिसे संदीप चला रहा था. रजनी के आने पर मोनिका ने उसे कार की पिछली सीट पर बिठाया और खुद भी अगली सीट से उठ कर पीछे उस की बगल में बैठ गई.

बैठते ही रजनी ने साथ लाए लिफाफे में से साड़ी निकाल कर मोनिका को दिखानी शुरू कर दी, जिस ने उसे उलटपलट कर देखते ही कहा, ‘‘इस साड़ी से मैच करता पेटीकोट ब्लाउज तो उस दुकान से बड़े आराम से मिल जाएगा.’’

इस के बाद दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गईं, जबकि संदीप कार को एक वीराने में ले गया. वहां पहुंच कर मोनिका ने रजनी की नजर बचाते हुए पहले तो उस का सेलफोन उठा कर स्विच औफ कर दिया. फिर कार के शीशे से बाहर की ओर देखते हुए चिल्ला कर कहा, ‘‘वो देखो कितना खूबसूरत बंदरों का जोड़ा.’’

उस वक्त रजनी का चेहरा सामने की तरफ था. मोनिका की बात सुन कर उत्सुकतावश वह भी अपना चेहरा घुमा कर खिड़की से बाहर देखने लगी. तभी मोनिका ने बड़ी तेजी से अपने साथ लाई नायलौन की रस्सी रजनी के गले में लपेटते हुए कस दी.

रजनी छटपटाने लगी तो संदीप ने कार रोक कर वहीं से पीछे घूम कर उस के घुटने दबा दिए.

कुछ देर छटपटाने के बाद रजनी शांत हो गई, उस के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. वहीं पास में डंपिंग ग्राउंड था, जहां उन्होंने शव को गिरा कर उस पर कचरा डाल दिया.

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अभियुक्त वकील मनमोहन कुमार

इस के बाद इन्होंने इस बारे में मनमोहन को बताया, जिस ने 2 लाख में सौदा कर के मध्य प्रदेश से 2 बदमाश बुलाए जो रजनी का शव निकाल कर अपने साथ ले गए. उस की जगह उन्होंने एक कुत्ता मार कर रजनी के दुपट्टे में लपेटा और वहां थोड़ी ज्यादा गहराई में दफना दिया. वहीं पास ही में रजनी की एक जूती गिरा दी गई.

एक जबरदस्त योजना के तहत इस अपराध को पूरी सफाई से अंजाम दिया गया था. तीनों को अपने पकड़े जाने का अंदेशा नहीं था. मगर तीनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए और पूछताछ के वक्त की गई सख्ती के आगे सच्चाई को छिपा नहीं पाए.

कथा तैयार करने तक तीनों अभियुक्त न्यायिक हिरासत में अंबाला की सेंट्रल जेल में बंद थे. रजनी का शव बरामद करना तो दूर, पुलिस शव को पंचकूला के डंपिंग ग्राउंड से निकाल कर ले जाने वाले बदमाशों तक का पता लगाने में असफल रही.

पंचकूला पुलिस के इतिहास का यह पहला केस माना जा रहा है, जिस में कत्ल हुआ, कातिल भी पकड़े गए और पुलिस के सामने उन्होंने अपराध भी स्वीकार कर लिया. लेकिन मकतूल की लाश बरामद नहीं की जा सकी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक ऐसी भी औरत : पति और प्रेमी से बेवफाई का अंजाम

बीना कानपुर शहर के मोहल्ला दीनदयालपुरम की केडीए कालोनी निवासी मेवालाल की बड़ी बेटी थी. बीना के अलावा उस की 2  और बेटियां थीं. बेटियों से छोटा एक बेटा था करन. मेवालाल की पत्नी कुसुम घरेलू महिला थी जबकि वह फेरी लगा कर कपड़े बेचा करता था.

बीना जवान हो चुकी थी. मेवालाल चाहता था कि कोई सही लड़का मिल जाए तो वह उस के हाथ पीले कर दे. थोड़ी खोजबीन के बाद उसे कानपुर देहात के कस्बा मूसानगर निवासी भीखाराम का बड़ा बेटा रामबाबू पसंद आ गया. भीखाराम के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी और कस्बे के मुर्तजा नगर में अपना मकान भी था.

रामबाबू व उस के घर वालों ने जब खूबसूरत बीना को देखा तो वह उन्हें पसंद आ गई. बीना को देख कर भीखाराम बिना किसी दहेज के बेटे की शादी करने के लिए तैयार हो गया. अंतत: सामाजिक रीतिरिवाज से 10 जून, 2008 को बीना और रामबाबू का विवाह हो गया. इस शादी से रामबाबू भले ही खुश था लेकिन बीना खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि बीना ने जिस तरह पढ़ेलिखे और स्मार्ट पति के सपने संजोए थे, रामबाबू वैसा नहीं था.

बीना ससुराल में हफ्ते भर रही, पर वह पति के साथ भावनात्मक रूप से नहीं बंध सकी. हफ्ते बाद वह मायके आई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. कुसुम ने कारण पूछा तो वह रोआंसी हो कर बोली, ‘‘मां, तुम लोगों ने सिर्फ ये देखा कि वे दहेज नहीं मांग रहे, पर यह नहीं देखा कि लड़का कैसा है.’’

‘‘सब कुछ तो है उन के पास, तुझे किस चीज की कमी है. तुझे तो पता है कि अभी तेरी 2 बहनें और हैं. हमें उन्हें भी ब्याहना है.’’ कुसुम ने अपनी मजबूरी जाहिर की तो बीना चुप हो गई.

मां के इस जवाब के बाद बीना ने हालात से समझौता कर लिया. वह ससुराल में पति के साथ रहने लगी. ससुराल का वातावरण दकियानूसी था. बातबात पर रोकटोक होती थी. पति की कमाई भी सीमित थी, जिस के कारण बीना को अपनी इच्छाएं सीने में ही दफन करनी पड़ती थीं.

वक्त के साथ बीना 2 बच्चों शिवम और शिवानी की मां बन गई. परिवार बढ़ा तो खर्चे भी बढ़ गए. जब बीना को लगा कि रामबाबू की कमाई से घर का खर्च नहीं चल पाएगा तो उस ने पति को कानपुर शहर जा कर नौकरी या कोई काम करने की सलाह दी. पत्नी की यह बात रामबाबू को भी ठीक लगी.

रामबाबू का एक दोस्त था सजीवन, जो कानपुर शहर की योगेंद्र विहार कालोनी में रहता था. वह किसी फैक्ट्री में काम करता था. कहीं काम दिलाने के संबंध में उस ने सजीवन से बात की. सजीवन ने उसे सुझाव दिया कि वह साइकिल मरम्मत का काम शुरू करे. पंक्चर लगाने आदि से उसे अच्छी कमाई होने लगेगी.

रामबाबू को दोस्त की सलाह पसंद आ गई, उस ने खाडे़पुर कालोनी मोड़ पर साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली और योगेंद्र विहार कालोनी में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगा.

रामबाबू का साइकिल रिपेयरिंग का काम अच्छा चलने लगा. पैसा आने लगा तो रामबाबू पत्नी और बच्चों को भी शहर ले आया. शहर आ कर बीना खुश थी. शहर आने के बाद वह बनसंवर कर रहने लगी. बीना ने घर के पास ही स्थित शिशु मंदिर में बच्चों का दाखिला करा दिया. बच्चों को स्कूल भेजने व लाने का काम वह खुद करती थी.

पिंटू नाम का एक युवक रामबाबू की दुकान पर अपनी साइकिल रिपेयर कराने आता था. पिंटू बर्रा 8 में रहता था और नौबस्ता स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करता था. पिंटू की रामबाबू से दोस्ती हो गई. जरूरत पड़ने पर रामबाबू पिंटू से पैसे भी उधार ले लेता था. कभीकभी दोनों साथ बैठ कर शराब भी पी लेते थे. पीनेपिलाने का खर्च पिंटू ही उठता था.

एक दिन पिंटू दुकान पर आया तो रामबाबू बोला, ‘‘पिंटू, आज मेरे बेटे शिवम का जन्मदिन है. मेरी तरफ से आज तुम्हारी दावत है. शाम को फैक्ट्री से सीधे घर आ जाना, भूलना मत.’’

‘‘ठीक है, मैं जरूर आऊंगा.’’ कहते हुए पिंटू फैक्ट्री चला गया. शाम को पिंटू गिफ्ट ले कर रामबाबू के घर पहुंच गया. रामबाबू उस का ही इंतजार कर रहा था. उस ने पिंटू को गले लगाया फिर पत्नी को आवाज दी, ‘‘बीना, देखो तो कौन आया है.’’

बेटे का जन्मदिन होने की वजह से बीना पहले से ही सजीधजी थी. पति की आवाज सुन कर वह आ गई. वह पिंटू की ओर देख कर बोली, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘भाभीजी, जब मैं आप के घर कभी आया ही नहीं तो पहचानेंगी कैसे? मैं रामबाबू भैया का दोस्त हूं, नाम है पिंटू.’’ वह बोला.

पिंटू की बीना से यह पहली मुलाकात थी. पहली ही मुलाकात में बीना पिंटू के दिलोदिमाग पर छा गई. रामबाबू ने पिंटू की खूब खातिरदारी की. उस समय बीना भी मौजूद रही. इस के बाद पिंटू ने ठान लिया कि वह किसी भी तरह बीना को हासिल कर के रहेगा.

वह उसे हासिल करने का प्रयास करने लगा. पिंटू जानता था कि बीना तक पहुंचने का रास्ता रामबाबू ही है. अत: उस ने रामबाबू को शराब का आदी बनाने की सोची. इसी के चलते वह शराब की बोतल ले कर रामबाबू के घर जाने लगा. घर में दोनों बैठ कर शराब पीते फिर खाना खाते. इस बीच पिंटू की निगाहें बीना के जिस्म पर ही गड़ी रहती थीं. शराब के नशे में पिंटू कभीकभी बीना से मजाक व छेड़खानी भी कर लेता था.

बीना जल्द ही पिंटू के आने का मकसद समझ गई थी. वह बीना की आर्थिक मदद भी करने लगा. बच्चों की जरूरत का सामान और खानेपीने की चीजें भी लाने लगा. धीरेधीरे पिंटू ने अपने अहसानों व लच्छेदार बातों से बीना के दिल में जगह बना ली. अब बीना भी पिंटू से खुल कर हंसनेबोलने लगी थी.

एक दिन बीना सजधज कर बाजार के लिए घर से निकलने वाली थी, तभी पिंटू आ गया. वह बीना को एकटक देखता रहा, फिर बोला, ‘‘भाभी बनठन कर किस पर बिजली गिराने जा रही हो?’’

‘‘मक्खनबाजी बंद करो, अभी मुझे कहीं जाना है. बाद में बात करेंगे. ओके…’’ कहते हुए बीना बाजार के लिए चल दी. पिंटू भी वहां से चला गया.

एक दिन बीना का पति रामबाबू मूसानगर गया हुआ था और बच्चे स्कूल. बीना घर के काम निपटाने के बाद बच्चों को स्कूल से लाने की तैयारी कर रही थी, तभी पिंटू आ गया. इस अकेलेपन में पिंटू खुद को रोक नहीं सका और उस ने बीना को अपनी बांहों में भर लिया. बीना ने कसमसा कर हलका प्रतिरोध किया, लेकिन पिंटू की पकड़ मजबूत थी सो वह छूट नहीं सकी.

हकीकत में बीना पिंटू की बांहों में एक अकल्पनीय सुख महसूस कर रही थी. यही वजह थी कि उस के सोए हुए अरमान जाग उठे. वह भी पिंटू से अमरबेल की तरह लिपट गई. इस के बाद उन्माद के तूफान में उन की सारी मर्यादाएं बह गईं.

उस दिन बीना तो मर्यादा भूल ही गई थी, पिंटू भी भूल गया था कि वह अपने दोस्त की गृहस्थी में आग लगा रहा है. जल्दी ही बीना पिंटू के प्यार में इतनी दीवानी हो गई कि वह पति से ज्यादा प्रेमी का खयाल रखने लगी. पिंटू भी अपनी कमाई बीना पर खर्च करने लगा. बीना जो भी डिमांड करती, पिंटू उसे पूरी करता. रामबाबू उन दोनों के मिलन में बाधक न बने, इसलिए पिंटू रामबाबू को शराब की दावत दे कर उस का विश्वासपात्र दोस्त बना रहता था.

ऐसे रिश्तों को ज्यादा दिनों तक छिपा कर नहीं रखा जा सकता, देरसबेर पोल खुल ही जाती है. जब पिंटू का रामबाबू की अनुपस्थिति में बीना के यहां ज्यादा आनाजाना हो गया तो पड़ोसियों को शक होने लगा. कालोनी में उन के संबंधों को ले कर कानाफूसी शुरू हो गई. किसी तरह बात रामबाबू के कानों तक भी पहुंच गई. रामबाबू अपने दोस्त पिंटू पर अटूट विश्वास करता था, इसलिए उस ने सुनीसुनाई बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन उस के मन में शक का कीड़ा जरूर कुलबुलाने लगा.

शक के आधार पर एक रोज रामबाबू ने बीना से पिंटू के बारे में पूछा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘पिंटू तुम्हारा दोस्त है. तुम्हीं उसे ले कर घर आए थे. वह आता है तो मैं उस से हंसबोल लेती हूं. पासपड़ोस के लोग जलते हैं, पड़ोसियों की झूठी बातों में आ कर तुम भी मुझ पर शक करने लगे.’’

‘‘मैं शक नहीं कर रहा, केवल पूछ रहा हूं.’’ रामबाबू प्यार से बोला.

‘‘पूछना क्या है, अगर तुम्हें मुझ से ज्यादा पड़ोसियों की बातों पर भरोसा है तो पिंटू को घर आने से मना कर दो. लेकिन सोच लो, पिंटू हमारी मदद भी करता है और तुम्हारी पार्टी भी. तुम्हारी कमाई से मकान का किराया, बच्चों की फीस और घरगृहस्थी का खर्च क्या चल पाएगा?’’

पत्नी की बात पर विश्वास कर रामबाबू शांत हो गया.

एक दिन रामबाबू दुकान पर गया और काम भी किया. लेकिन 2 घंटे बाद उसे लगा कि बदन टूट रहा है और बुखार है. वह दुकान बंद कर के घर पहुंच गया. कमरा अंदर से बंद था. कुंडी खुलवाने के लिए उस ने जंजीर की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि तभी उसे कमरे के अंदर से पत्नी के हंसने की आवाज आई. रामबाबू ने अपना हाथ रोक लिया. उस ने दरवाजे की झिर्री से देखा तो दंग रह गया. उस की पत्नी आपत्तिजनक स्थिति में थी.

रामबाबू का खून खौल उठा. लेकिन उस समय वह बोला कुछ नहीं. वह कुछ देर जड़वत खड़ा रहा. फिर खटखटाने पर दरवाजा खुला तो उसे देख कर बीना व पिंटू अपराधबोध से कांपने लगे. दोनों ने रामबाबू से माफी मांगी और भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का वादा किया.

दोनों को माफ करने के अलावा रामबाबू के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. पत्नी की बेवफाई से रामबाबू को गहरी ठेस लगी थी. उसे अब अपनी इज्जत बचानी थी, इसलिए उस ने कानपुर शहर छोड़ कर घर जाने का निश्चय कर लिया.

बीना को घर वापस जाने की बात पता चली तो उस ने बच्चों की पढ़ाई का सवाल उठाया. लेकिन रामबाबू मानने को तैयार नहीं हुआ. पत्नी और बच्चों को साथ ले कर वह मूसानगर स्थित अपने घर आ गया. रामबाबू खेतीकिसानी व मजदूरी कर के बच्चों का पालनपोषण करने लगा. उस ने दोनों बच्चों का दाखिला कस्बे के प्राइमरी स्कूल में करा दिया.

बीना के गांव चले जाने के बाद पिंटू परेशान हो उठा. उसे बीना की याद आने लगी. पिंटू से जब नहीं रहा गया तो वह बीना की ससुराल पहुंच गया. वहां रामबाबू ने उसे बेइज्जत किया और बीना से नहीं मिलने दिया. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. पिंटू आता और बेइज्जत हो कर वापस हो जाता.

कुछ महीने ससुराल में रहने के बाद बीना ने विरोध शुरू कर दिया. दरअसल बीना ससुराल में कैदी जैसा जीवन व्यतीत कर रही थी. घर से बाहर निकलने पर पाबंदी थी, जबकि वह स्वतंत्र विचरण करना चाहती थी. साथ ही वह अभावों से भी जूझ रही थी.

एक दिन बीना ने रामबाबू से साफ कह दिया कि वह शहर जा कर खुद कमाएगी और अपना व बच्चों का पालनपोषण करेगी. रामबाबू ने विरोध किया लेकिन वह नहीं मानी. बीना ससुराल छोड़ कर कानपुर शहर चली गई.

नौबस्ता थाने के अंतर्गत धोबिन पुलिया कच्ची बस्ती में किराए पर मकान ले कर वह अकेली ही रहने लगी. उस ने नौकरी के लिए दौड़धूप की तो उसे आवासविकास नौबस्ता स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई.

नौकरी मिल जाने के बाद बीना अपने दोनों बच्चों को भी साथ रखना चाहती थी. लेकिन रामबाबू ने बच्चों को उस के साथ भेजने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन बच्चों के लिए उस का मन तड़पता तो वह जबतब बच्चों से मिलने जाती और उन्हें खर्चा दे कर चली आती. कभीकभी वह बच्चों से मोबाइल पर भी बात कर लेती थी.

पिंटू को जब पता चला कि बीना वापस कानपुर शहर आ गई है तो उस ने फिर से बीना से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. पर बीना ने उसे पहले जैसी तवज्जो नहीं दी.

बीना जिस प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करती थी, वहीं पर 25-26 साल का सुनील भी काम करता था. सुनील बीना के घर से कुछ दूरी पर कच्ची बस्ती में ही रहता था. बीना और सुनील हंसमुख स्वभाव के थे, इसलिए दोनों में खूब पटती थी. छुट्टी वाले दिन वह सुनील के साथ घूमने भी जाती थी, सुनील उसे चाहने लगा था.

धीरेधीरे सुनील और बीना नजदीक आते गए और दोनों में नाजायज संबंध बन गए. सुनील सुबह बीना के घर आता. दोनों साथ चायनाश्ता करते और फिर साथसाथ फैक्ट्री चले जाते. शाम को भी सुनील बीना का घर छोड़ देता. कभीकभी वह बीना के घर रुक जाता, फिर रात भर दोनों मौजमस्ती करते.

बीना के सुनील के साथ संबंध बन गए तो उस ने पहले प्रेमी पिंटू को भाव देना बंद कर दिया. अब पिंटू जब भी उस के पास आता तो बीना विरोध करती. वह उसे घर में शराब पीने को भी मना करती.

पिंटू को वह अपने पास फटकने नहीं देती थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि बीना में इतना बड़ा बदलाव कैसे आ गया. उस ने गुप्त रूप से पता किया तो सच्चाई सामने आ गई. उसे पता चल गया कि बीना के सुनील से संबंध बन गए हैं.

सुनील को ले कर बीना और पिंटू में झगड़ा होने लगा. पिंटू बीना पर दबाव डालने लगा कि वह सुनील का साथ छोड़ दे लेकिन बीना इस के लिए तैयार नहीं थी. प्रेमिका की इस बेवफाई से पिंटू परेशान रहने लगा.

10 फरवरी, 2018 को पिंटू रात 8 बजे शराब के ठेके से बोतल खरीद कर बीना के घर पहुंचा तो वहां सुनील मौजूद था. सुनील वहां से चला गया तो पिंटू ने बीना से सुनील के बारे में पूछा. बीना ने उसे सब कुछ सच बता दिया. इस पर पिंटू को गुस्सा आ गया.

पिंटू ने तेज धार वाला चाकू साथ लाया था. उस ने चाकू निकाला और उस की गरदन पर वार कर दिया. बीना जमीन पर गिर गई. उस के बाद पिंटू बीना के सीने पर बैठ गया और यह कहते हुए उस की गरदन रेत दी कि बेवफाई की सजा यही है. बीना की हत्या करने के बाद पिंटू ने शराब पी फिर बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर फरार हो गया.

11 फरवरी की सुबह सुनील बीना के घर पहुंचा तो दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी. वह कुंडी खोल कर कमरे में गया तो उस के होश उड़ गए. फर्श पर बीना की खून से सनी लाश पड़ी थी. सुनील ने पहले पासपड़ोस के लोगों फिर थाना नौबस्ता पुलिस को सूचना दी.

सूचना पाते ही नौबस्ता थानाप्रभारी अखिलेश जायसवाल पुलिस टीम के साथ आ गए. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना अपने अधिकारियों को दे दी. कुछ देर बाद ही एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा, एसपी (साउथ) अशोक कुमार वर्मा वहां पहुंच गए.

मृतका की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी. फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर जांच की. पुलिस अधिकारियों ने सूचना देने वाले सुनील तथा मृतका के पति रामबाबू से पूछताछ की. रामबाबू ने पत्नी की हत्या का शक अपने दोस्त पिंटू करिया पर जताया. रामबाबू की तहरीर पर पुलिस ने पिंटू करिया के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी.

शाम करीब 5 बजे नौबस्ता थानाप्रभारी अखिलेश जायसवाल ने मुखबिर की सूचना पर पिंटू करिया को नौबस्ता के दासू कुआं के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि बीना ने उस के साथ विश्वासघात किया था. इसी खुन्नस में उस ने उसे मार डाला.

पुलिस ने पिंटू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने 12 फरवरी, 2018 को उसे कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

गुनाह के दाग

कभी कभी कोई रात आदमी के लिए इतनी भारी हो जाती है कि उसे काटना मुश्किल हो जाता है. जय लक्ष्मी गुरव के लिए भी वह रात ऐसी ही थी. उस पूरी रात वह पलभर के लिए भी नहीं सो सकी थी. कभी वह बिस्तर पर करवटें बदलती तो कभी उठ कर कमरे में टहलने लगती. उस के मन में बेचैनी थी तो आंखों में भय था.

एकएक पल उसे एकएक साल के बराबर लग रहा था. किसी अनहोनी की आशंका से उस का दिल कांप उठता था. सवेरा होते ही जयलक्ष्मी बेटे के पास पहुंची और उसे झकझोर कर उठाते हुए बोली, ‘‘तुम यहां आराम से सो रहे हो और तुम्हारे पापा रात से गायब हैं. वह रात में गए तो अभी तक लौट कर नहीं आए हैं. वह घर से गए थे तो उन के पास काफी पैसे थे, इसलिए मुझे डर लग रहा है कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई?’’

जयलक्ष्मी बेटे को जगा कर यह सब कह रही थी तो उस की बातें सुन कर उस की ननद भी जाग गई, जो बेटे के पास ही सोई थी. वह भी घबरा कर उठ गई. आंखें मलते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, भैया कहां गए थे, जो अभी तक नहीं आए. लगता है, तुम रात में सोई भी नहीं हो?’’

‘‘मैं सोती कैसे, उन की चिंता में नींद ही नहीं आई. उन्हीं के इंतजार में जागती रही. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है.’’ कह कर जयलक्ष्मी रोने लगी.

बेटा उठा और पिता की तलाश में जगहजगह फोन करने लगा. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. उस के पिता विजय कुमार गुरव के बारे में भले पता नहीं चला, लेकिन उन के गायब होने की जानकारी उन के सभी नातेरिश्तेदारों को हो गई. इस का नतीजा यह निकला कि ज्यादातर लोग उन के घर आ गए और सभी उन की तलाश में लग गए.

जब सभी को पता चला विजय कुमार के गायब होने के बारे में

विजय कुमार गुरव के गायब होने की खबर मोहल्ले में भी फैल गई थी. मोहल्ले वाले भी मदद के लिए आ गए थे. हर कोई इस बात को ले कर परेशान था कि आखिर विजय कुमार कहां चले गए? इसी के साथ इस बात की भी चिंता सता रही थी कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. क्योंकि वह घर से गए थे तो उन के पास कुछ पैसे भी थे. किसी ने उन पैसों के लिए उन के साथ कुछ गलत न कर दिया हो.

38 साल के विजय कुमार महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले की तहसील सावंतवाड़ी के गांव भड़गांव के रहने वाले थे. उन का भरापूरा शिक्षित और संपन्न परिवार था. सीधेसादे और मिलनसार स्वभाव के विजय कुमार गडहिंग्लज के एक कालेज में अध्यापक थे. अध्यापक होने के नाते समाज में उन का काफी मानसम्मान था. गांव में उन का बहुत बड़ा मकान और काफी खेती की जमीन थी. लेकिन नौकरी की वजह से उन्होंने गडहिंग्लज में जमीन खरीद कर काफी बड़ा मकान बनवा कर उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे.

विजय कुमार के परिवार में पत्नी जयलक्ष्मी के अलावा एक बेटा था. पत्नी और बेटे के अलावा उन की एक मंदबुद्धि बहन भी उन्हीं के साथ रहती थी. मंदबुद्धि होने की वजह से उस की शादी नहीं हुई थी. बाकी का परिवार गांव में रहता था. विजय कुमार को सामाजिक कार्यों में तो रुचि थी ही, वह तबला और हारमोनियम बहुत अच्छी बजाते थे. इसी वजह से उन की भजनकीर्तन की अपनी एक मंडली थी. उन की यह मंडली गानेबजाने भी जाती थी.

दिन कालेज और रात गानेबजाने के कार्यक्रम में कटने की वजह से वह घरपरिवार को बहुत कम समय दे पाते थे. उन की कमाई ठीकठाक थी, इसलिए घर में सुखसुविधा का हर साधन मौजूद था. आनेजाने के लिए मोटरसाइकिलों के अलावा एक मारुति ओमनी वैन भी थी.

इस तरह के आदमी के अचानक गायब होने से घर वाले तो परेशान थे ही, नातेरिश्तेदारों के अलावा जानपहचान वाले भी परेशान थे. सभी उन की तलाश में लगे थे. काफी प्रयास के बाद भी जब उन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो सभी ने एकराय हो कर कहा कि अब इस मामले में पुलिस की मदद लेनी चाहिए.

इस के बाद विजय कुमार का बेटा कुछ लोगों के साथ थाना गडहिंग्लज पहुंचा और थानाप्रभारी को पिता के गायब होने की जानकारी दे कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. यह 7 नवंबर, 2017 की बात है.

पुलिस ने भी अपने हिसाब से विजय कुमार की तलाश शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की इस कोशिश का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला. पुलिस ने लापता अध्यापक विजय कुमार की पत्नी जयलक्ष्मी से भी विस्तार से पूछताछ की.

पत्नी ने क्या बताया पुलिस को

जयलक्ष्मी ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार रोज की तरह उस दिन कालेज बंद होने के बाद 7 बजे के आसपास वह घर आए तो नाश्तापानी कर के कमरे में बैठ कर पैसे गिनने लगे. वे पैसे शायद फीस के थे, जिन्हें अगले दिन कालेज में जमा कराने थे. पैसे गिन कर उन्होंने पैंट की जेब में वापस रख दिए और लेट की टीवी देखने लगे.

रात का खाना खा कर साढ़े 11 बजे के करीब विजय कुमार पत्नी के साथ सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. जयलक्ष्मी ने सवालिया निगाहों से पति की ओर देखा तो उन्होंने कहा, ‘‘देखता हूं, कौन है?’’

विजय कुमार ने दरवाजा खोला तो शायद दस्तक देने वाला विजय कुमार का कोई परिचित था, इसलिए वह बाहर निकल गए. थोड़ी देर बाद अंदर आए और कपड़े पहनने लगे तो जयलक्ष्मी ने पूछा, ‘‘कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, थोड़ा काम है. जल्दी ही लौट आऊंगा.’’ कह कर वह बाहर जाने लगे तो जयलक्ष्मी ने क हा, ‘‘गाड़ी की चाबी तो ले लो?’’

‘‘चाबी की जरूरत नहीं है. उन्हीं की गाड़ी से जा रहा हूं.’’ कह कर विजय कुमार चले गए. वह वही कपड़े पहन कर गए थे, जिस में पैसे रखे थे. इस तरह थोड़ी देर के लिए कह कर गए विजय कुमार गुरव लौट कर नहीं आए.

पुलिस ने विजय कुमार के बारे में पता करने के लिए अपने सारे हथकंडे अपना लिए, पर उन की कोई जानकारी नहीं मिली. 3 दिन बीत जाने के बाद भी थाना पुलिस कुछ नहीं कर पाई तो घर वाले कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर एसएसपी दयानंद गवस और एसपी दीक्षित कुमार गेडाम से मिले. इस का नतीजा यह निकला कि थाना पुलिस पर दबाव तो पड़ा ही, इस मामले की जांच में सीआईडी के इंसपेक्टर सुनील धनावड़े को भी लगा दिया गया.

जब सीआईडी के इंसपेक्टर को सौंपी गई जांच

सुनील धनावड़े जांच की भूमिका बना रहे थे कि 11 नवंबर, 2017 को सावंतवाड़ी अंबोली स्थित सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर एक लाश मिलने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही एसपी दीक्षित कुमार गेडाम, एसएसपी दयानंद गवस इंसपेक्टर सुनील धनावड़े पुलिस बल के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी.

यह पिकनिक पौइंट बहुत अच्छी जगह है, इसलिए यहां घूमने वालों की भीड़ लगी रहती है. यहां ऊंचीऊंची पहाडि़यां और हजारों फुट गहरी खाइयां हैं. किसी तरह की अनहोनी न हो, इस के लिए पहाडि़यों पर सुरक्षा के लिए लोहे की रेलिंग लगाई गई है.

दरअसल, यहां घूमने आए किसी आदमी ने रेलिंग के पास खून के धब्बे देखे तो उस ने यह बात एक दुकानदार को बताई. दुकानदार ने यह बात चौकीदार दशरथ कदम को बताई. उस ने उस जगह का निरीक्षण किया और मामले की जानकारी थाना पुलिस को दे दी.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल के निरीक्षण में सैकड़ों फुट गहरी खाई में एक शव को पड़ा देखा. शव बिस्तर में लिपटा था. वहीं से थोड़ी दूरी पर एक लोहे की रौड पड़ी थी, जिस में खून लगा था. इस से पुलिस को लगा कि हत्या उसी रौड से की गई है. पुलिस ने ध्यान से घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां से कुछ दूरी पर कार के टायर के निशान दिखाई दिए.

इस से साफ हो गया कि लाश को कहीं बाहर से ला कर यहां फेंका गया था. पुलिस ने रौड और बिस्तर को कब्जे में ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

सीआईडी इंसपेक्टर सुनील धनावड़े विजय कुमार गुरव की गुमशुदगी की जांच कर रहे थे, इसलिए उन्होंने लाश की शिनाख्त के लिए जयलक्ष्मी को सूचना दे कर अस्पताल बुला लिया.

लाश तो मिली पर नहीं हो सकी पुख्ता शिनाख्त

लाश की स्थिति ऐसी थी कि उस की शिनाख्त आसान नहीं थी. फिर भी कदकाठी से अंदाजा लगाया गया कि वह लाश विजय कुमार गुरव की हो सकती है. चूंकि उन के घर वालों ने संदेह व्यक्त किया था, इसलिए पुलिस ने लाश की पुख्ता शिनाख्त के लिए डीएनए का सहारा लिया. जिस बिस्तर में शव लिपटा था, उसे जयलक्ष्मी को दिखाया गया तो उस ने उसे अपना मानने से इनकार कर दिया.

भले ही लाश की पुख्ता शिनाख्त नहीं हुई थी, लेकिन पुलिस उसे विजय कुमार की ही लाश मान कर जांच में जुट गई. जिस तरह मृतक की हत्या हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या प्रेमसंबंधों में हुई है. पुलिस ने विजय कुमार और उन की पत्नी जयलक्ष्मी के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि विजय कुमार और जयलक्ष्मी के बीच संबंध सामान्य नहीं थे.

इस की वजह यह थी कि जयलक्ष्मी का चरित्र संदिग्ध था, जिसे ले कर अकसर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ करता था. जयलक्ष्मी का सामने वाले मकान में रहने वाले सुरेश चोथे से प्रेमसंबंध था, इसलिए घर वालों का मानना था कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ हो सकता है.

यह जानकारी मिलने के बाद सुनील धनावड़े समझ गए कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे उन की पत्नी जयलक्ष्मी और उस के प्रेमी सुरेश का हाथ है. उन्होंने जयलक्ष्मी से एक बार फिर पूछताछ की. वह उस की बातों से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन कोई ठोस सबूत न होने की वजह से वह उसे गिरफ्तार नहीं कर सके. उन्होंने सुरेश चोथे को भी थाने बुला कर पूछताछ की. उस ने भी खुद को निर्दोष बताया. उस के भी जवाब से वह संतुष्ट नहीं थे, इस के बावजूद उन्होंने उसे जाने दिया.

उन्हें डीएनए रिपोर्ट का इंतजार था, क्योंकि उस से निश्चित हो जाता कि वह लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस डीएनए रिपोर्ट का इंतजार कर ही रही थी कि पुलिस की सरगर्मी देख कर जयलक्ष्मी अपने सारे गहने और घर में रखी नकदी ले कर सुरेश चोथे के साथ भाग गई. दोनों के इस तरह घर छोड़ कर भाग जाने से पुलिस को शक ही नहीं, बल्कि पूरा यकीन हो गया कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है.

शक के दायरे में आई पत्नी और उस का प्रेमी

पुलिस सुरेश चोथे और जयलक्ष्मी की तलाश में जुट गई. पुलिस उन की तलाश में जगहजगह छापे तो मार ही रही थी, उन के फोन भी सर्विलांस पर लगा दिए थे. इस से कभी उन के दिल्ली में होने का पता चलता तो कभी कोलकाता में. गुजरात और महाराष्ट्र के शहरों की भी उन की लोकेशन मिली थी. इस तरह लोकेशन मिलने की वजह से पुलिस कई टीमों में बंट कर उन का पीछा करती रही थी.

आखिर पुलिस ने मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर जयलक्ष्मी और सुरेश को मुंबई के लोअर परेल लोकल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना गडहिंग्लज लाया गया, जहां एसएसपी दयानंद गवस की उपस्थिति में पूछताछ शुरू हुई. अब तक डीएनए रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस से साफ हो गया था कि सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर खाई में मिली लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस के पास सारे सबूत थे, इसलिए जयलक्ष्मी और सुरेश ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों के बताए अनुसार, विजय कुमार की हत्या की कहानी इस प्रकार थी—

कैसे हुआ जयलक्ष्मी और सुरेश में प्यार

34 साल का सुरेश चोथे विजय कुमार गुरव के घर के ठीक सामने रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चों के अलावा मातापिता, एक बड़ा भाई और भाभी थी. वह गांव की पंचसंस्था में मैनेजर के रूप में काम करता था. घर में पत्नी होने के बावजूद वह जब भी जयलक्ष्मी को देखता, उस के मन में उसे पाने की चाहत जाग उठती.

37 साल की जयलक्ष्मी थी ही ऐसी. वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही वाचाल और मिलनसार भी थी. उस से बातचीत कर के हर कोई खुश हो जाता था, इस की वजह यह थी कि वह खुल कर बातें करती थी. ऐसे में हर कोई उस की ओर आकर्षित हो जाता था. पड़ोसी होने के नाते सुरेश से उस की अकसर बातचीत होती रहती थी.

बातचीत करतेकरते ही वह उस का दीवाना बन गया था. जयलक्ष्मी का बेटा 18 साल का था, लेकिन उस के रूपयौवन में जरा भी कमी नहीं आई थी. शरीर का कसाव और चेहरे के निखार से वह 25 साल से ज्यादा की नहीं लगती थी. उस के इसी यौवन और नशीली आंखों के जादू में सुरेश कुछ इस तरह खोया कि अपनी पत्नी और बच्चों को भूल गया.

कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. जयलक्ष्मी तक पहुंचने की राह आखिर सुरेश ने खोज ही ली. विजय कुमार से दोस्ती कर के वह उस के घर के अंदर तक पहुंच गया था. इस के बाद धीरेधीरे उस ने जयलक्ष्मी से करीबी बना ली. भाभी का रिश्ता बना कर वह उस से हंसीमजाक करने लगा. हंसीमजाक में जयलक्ष्मी के रूपसौंदर्य की तारीफ करतेकरते उस ने उसे अपनी ओर इस तरह आकर्षित किया कि उस ने उसे अपना सब कुछ सौंप दिया.

विजय कुमार गुरव दिन भर नौकरी पर रहते और रात में गानेबजाने की वजह से अकसर बाहर ही रहते थे. इसी का फायदा जयलक्ष्मी और सुरेश उठा रहे थे. जयलक्ष्मी को अपनी बांहों में पा कर जहां सुरेश के मन की मुराद पूरी हो गई थी, वहीं जयलक्ष्मी भी खुश थी. दोनों विजय कुमार की अनुपस्थिति में मिलते थे, इसलिए उन्हें पता नहीं चल पाता था.

लेकिन आसपास वालों ने विजय कुमार के घर में न रहने पर सुरेश को अकसर उस के घर आतेजाते देखा तो उन्हें शंका हुई. उन्होंने विजय कुमार को यह बात बता कर शंका जाहिर की तो विजय कुमार हैरान रह गए. उन्हें तो पत्नी और पड़ोसी होने के नाते सुरेश पर पूरा भरोसा था.

इस तरह दोनों विजय कुमार के भरोसे का खून कर रहे थे. उन्होंने पत्नी और सुरेश से इस विषय पर बात की तो दोनों कसमें खाने लगे. उन का कहना था कि उन के आपस में संबंध खराब करने के लिए लोग ऐसा कह रहे हैं.

भले ही जयलक्ष्मी और सुरेश ने कसमें खा कर सफाई दी थी, लेकिन विजय कुमार जानते थे कि बिना आग के धुआं नहीं उठ सकता. लोग उन से झूठ क्यों बोलेंगे? सच्चाई का पता लगाने के लिए वह पत्नी और सुरेश पर नजर रखने लगे. इस से जयलक्ष्मी और सुरेश को मिलने में परेशानी होने लगी, जिस से दोनों बौखला उठे. इस के अलावा सुरेश को ले कर विजय कुमार अकसर जयलक्ष्मी की पिटाई भी करने लगे थे.

इस तरह बनी विजय कुमार की हत्या की हत्या की योजना

इस से जयलक्ष्मी तो परेशान थी ही, प्रेमिका की पिटाई से सुरेश भी दुखी था. वह प्रेमिका की पिटाई सहन नहीं कर पा रहा था. जयलक्ष्मी की पिटाई की बात सुन कर उस का खून खौल उठता था. प्रेमी के इस व्यवहार से जयलक्ष्मी ने एक खतरनाक योजना बना डाली. उस में सुरेश ने उस का हर तरह से साथ देने का वादा किया.

योजना के अनुसार, घटना वाले दिन जयलक्ष्मी ने खाने में नींद की गोलियां मिला कर पति, ननद और बेटे को खिला दीं, जिस से सभी गहरी नींद सो गए. रात एक बजे के करीब सुरेश ने धीरे से दरवाजा खटखटाया तो जयलक्ष्मी ने दरवाजा खोल दिया. सुरेश लोहे की रौड ले कर आया था. उसी रौड से उस ने पूरी ताकत से विजय कुमार के सिर पर वार किया. उसी एक वार में उस का सिर फट गया और उस की मौत हो गई.

विजय कुमार की हत्या कर के लाश को दोनों ने बिस्तर में लपेट दिया. इस के बाद जयलक्ष्मी ने लाश को अपनी मारुति वैन में रख कर उसे सुरेश से सावंतवाड़ी के अंबोली सावलेसाद पिकनिक पौइंट की गहरी खाइयों में फेंक आने को कहा.

सुरेश लाश को ठिकाने लगाने चला गया तो जयलक्ष्मी कमरे की सफाई में लग गई. उस के बाद सुरेश लौटा तो जयलक्ष्मी ने वैन की भी ठीक से सफाई कर दी. इस के बाद उस ने विजय कुमार की गुमशुदगी की झूठी कहानी गढ़ डाली. लेकिन उस की झूठी कहानी जल्दी ही सब के सामने आ गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयलक्ष्मी के कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया तो दीवारों पर भी खून के दाग नजर आए. पुलिस ने उन के नमूने उठवा लिए. इस तरह साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हिमांशु के सीने पर गांव वालों ने दागी गोलियां, प्रेमिका सोनी लापता

बिहार के जिला भागलपुर स्थित कजरैली इलाके का एक गांव है गौराचक्क. वैसे तो इस गांव में सभी जातियों के लोग रहते हैं. लेकिन यहां बहुतायत यादवों की है. यहां के यादव साधनसंपन्न हैं. उन में एकता भी है. उन की एकजुटता की वजह से पासपड़ोस के गांवों के लोग उन से टकराने से बचते हैं.

इसी गांव में परमानंद यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 1 बेटी और 2 बेटे थे. बेटी बड़ी थी, जिस का नाम सोनी था. साधारण शक्लसूरत और भरेपूरे बदन की सोनी काफी मिलनसार और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के अंदर काफी कुछ कर गुजरने की जिजीविषा थी.

2 बेटों के बीच एकलौती बेटी होने की वजह से सोनी को घर में सभी प्यार करते थे. उस की हर एक फरमाइश वह पूरी करते थे. सोनी के पड़ोस में हिमांशु यादव रहता था. रिश्ते में सोनी उस की बुआ लगती थी. यानी दोनों में बुआभतीजे का रिश्ता था. दोनों हमउम्र थे और साथसाथ पलेबढे़ पढ़े भी थे. वह बचपन से एकदूसरे के करीब रहतेरहते जवानी में पहुंच कर और ज्यादा करीब आ गए. यानी बचपन के रिश्ते जवानी में आ कर सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुए प्यार के रिश्ते की माला में गुथ गए.

सोनी और हिमांशु एकदूसरे से प्यार करते थे. इतना प्यार कि एकदूसरे के बिना जीने की सोच भी नहीं सकते थे. वे जानते थे कि उन के बीच बुआभतीजे का रिश्ता है. इस के बावजूद अंजाम की परवाह किए बगैर प्यार की पींग बढ़ाने लगे. बुआभतीजे का रिश्ता होने की वजह से घर वालों ने भी उन की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया.

एक दिन दोपहर का वक्त था. सोनी से मिलने हिमांशु उस के घर गया. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. सोनी सोफे पर अकेली बैठी कुछ सोच रही थी. हिमांशु को देखते ही मारे खुशी के उस का चेहरा खिल उठा. हिमांशु के भी चेहरे पर रौनक आ गई. वह भी मुसकरा दिया. तभी सोनी ने उसे पास बैठने का इशारा किया तो वह उस के करीब बैठ गया.

‘‘क्या बात है सोनी, घर में इतना सन्नाटा क्यों है?’’ हिमांशु चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला, ‘‘चाचाचाची कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

‘‘हां, आज सुबह ही मम्मीपापा किसी काम से बाहर चले गए. वे शाम तक ही घर लौटेंगे और दोनों भाई भी स्कूल गए हैं.’’ वह बोली.

‘‘इस एकांत में बैठी तुम क्या सोच रही थी?’’  हिमांशु ने पूछा.

‘‘यही कि सामाजिक मानमर्यादाओं को तोड़ कर जिस रास्ते पर हम ने कदम बढ़ाए हैं, क्या समाज हमारे इस रिश्ते को स्वीकार करेगा?’’ सोनी बोली.

‘‘शायद समाज हमारे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’ हिमांशु ने तुरंत कहा.

‘‘फिर क्या होगा हमारे प्यार का? मुझे तो उस दिन की सोच कर डर लगता है, जिस दिन हमारे इस रिश्ते के बारे में मांबाप को पता चलेगा तो पता नहीं क्या होगा?’’ सोनी ने लंबी सांस लेते हुए कहा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वे हमें जुदा करने की कोशिश करेंगे.’’ सोनी की आंखों में आंखें डाले हिमांशु आगे बोला, ‘‘इस से भी जब उन का जी नहीं भरेगा तो हमें सूली पर चढ़ा देंगे. अरे हम ने प्यार किया है तो डरना क्या? सोनी, मेरे जीते जी तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘सच में इतना प्यार करते हो मुझ से?’’ वह बोली.

‘‘चाहो तो आजमा लो, पता चल जाएगा.’’ हिमांशु ने तैश में कहा.

‘‘ना बाबा ना. मैं ने तो ऐसे ही तुम्हें तंग करने के लिए पूछ लिया.’’

‘‘अच्छा, अभी बताता हूं, रुक.’’ कहते हुए हिमांशु ने सोनी को बांहों में भींच लिया. वह कसमसाती हुई उस में समाती चली गई. एकदूसरे के स्पर्श से उन के तनबदन की आग भड़क उठी. कुछ देर तक वे एकदूसरे में समाए रहे, जब होश आया तो वे नजरें मिला कर मुसकरा पड़े. फिर हिमांशु वहां से चला गया.

लेकिन उन का यह प्यार और ज्यादा दिनों तक घर वालों की आंखों से छिपा हुआ नहीं रह सका. सोनी के पिता को जब जानकारी मिली तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. परमानंद यादव बेटी को ले कर गंभीर हुए तो दूसरी ओर उन्होंने हिमांशु से साफतौर पर मना कर दिया कि आइंदा वह न तो सोनी से बातचीत करेगा और न ही उन के घर की ओर मुड़ कर देखने की कोशिश करेगा. अगर उस ने दोबारा ऐसी ओछी हरकत करने की कोशिश की तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.

प्रेम प्रसंग की बातें गांवमोहल्ले में बहुत तेजी से फैलती  हैं. परमानंद ने बहुत कोशिश की कि यह बात वह किसी और के कानों तक न पहुंचे पर ऐसा हो नहीं सका. लाख छिपाने के बावजूद पूरे मोहल्ले में सोनी और हिमांशु की प्रेम कहानी के चर्चे होने लगे. इस से परमानंद का मोहल्ले में निकलना दूभर हो गया.

परमानंद ने सोनी पर कड़ा पहरा बिछा दिया. सोनी के घर से बाहर अकेला जाने पर पाबंदी लगा दी. पत्नी से भी उन्होंने कह दिया कि सेनी को अगर घर से बाहर जाना भी पड़ेगा तो उस के साथ घर का कोई एक सदस्य जरूर जाएगा.

पिता द्वारा पहरा बिठा देने से हिमांशु और सोनी की मुलाकात नहीं हो पा रही थी. सोनी की हालत जल बिन मछली की तरह हो गई थी. उसे न तो खानापीना अच्छा लगता था और न ही किसी से मिलनाजुलना. उस के लिए एकएक पल काटना पहाड़ जैसा लगता था.

सोनी की एक झलक पाने के लिए वह बेताब था. पागलदीवानों की तरह वह यहांवहां भटकता फिरता था. उस की हालत देख कर मां जेलस देवी काफी परेशान रहती थी. मां ने भी बेटे को काफी समझाया कि उस ने जो किया, उसे समाजबिरादरी कभी मान्यता नहीं दे सकती. रिश्ते के बुआभतीजे की शादी को कोई स्वीकार नहीं करेगा. बेहतर है, तुम इसे बुरा सपना समझ कर भूल जाओ.

मगर हिमांशु मां की बात को मानने को तैयार नहीं था. उधर सोनी ने भी अपनी मां से कह दिया कि वह हिमांशु के अलावा किसी और लड़के से शादीनहीं करेगी. मां ने बहुत समझाया लेकिन प्रेम में अंधी सोनी की समझ में नहीं आया. वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

मां भी क्या करती, जब समझातेसमझाते वह थक गई तो उस ने कुछ भी कहना छोड़ दिया. काफी देर बाद सोनी की समझ में आया कि उसे आजादी पानी है तो पहले घर वालों को विश्वास दिलाना होगा कि वह हिमांशु को पूरी तरह भूल चुकी है. घर वालों को जब उस पर विश्वास हो जाएगा तब वह इस का फायदा उठा कर हिमांशु तक पहुंच सकती है. अगर एक बार वह उस के पास पहुंच गई तो उसे कोई रोक नहीं पाएगा.

ये दिमाग में विचार आते ही सोनी का चेहरा खिल उठा और वह घडि़याली आंसू बहाते हुए मां की गोद में जा कर समा गई, ‘‘मां मुझे माफ कर दो. वाकई मुझ से बड़ी भूल हो गई थी. मैं ने आप की बात नहीं मानी, इसलिए आप के मानसम्मान को ठेस पहुंची. मेरी ही वजह से आप को और पापा को बेइज्जती का सामना करना पड़ा. पता नहीं ये सब कैसे हो गया. बताओ अब मैं क्या करूं.’’

‘‘देख बेटी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. फिर तू तो मेरा अपना खून है.’’ मां ने सोनी को समझाया, ‘‘मैं तो कहती हूं बेटी कि जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जा. तेरी शादी मैं अच्छे से अच्छे खानदान में करूंगी.’’

उस के बाद मांबेटी एकदूसरे के गले मिल कर पश्चाताप के आंसू पोंछती रहीं. मां को विश्वास में ले कर सोनी मन ही मन खुश थी. उस के होंठों पर एक अजीब सी कुटिल मुसकान थिरक उठी थी.

मांबाप को भी जब पक्का यकीन हो गया कि सोनी ने हिमांशु से बात तक करनी बंद कर दी है तो उन्होंने धीरेधीरे उस के ऊपर की पाबंदी हटा ली. पिता परमानंद अब उस के लिए लड़का ढूंढने लगे ताकि वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें.

परमानंद को इस बात की जरा भी भनक नहीं थी, उन की बेटी मांबाप की आंखों में धूल झोंक रही है. जबकि उस की योजना प्रेमी के साथ फुर्र हो जाने की है.

योजना मुताबिक, सोनी ने मां के सामने ननिहाल जाने की इच्छा प्रकट की तो मां उसे मना नहीं कर सकी. सोचा कि बेटी ननिहाल घूम आएगी तो मन भी बदल जाएगा. यही सोच कर सितंबर, 2016 में उसे बेटे के साथ ननिहाल भेजवा दिया.

ननिहाल पहुंचते ही सोनी आजाद पंछी की तरह हो गई. उस ने हिमांशु को फोन कर दिया कि वह ननिहाल में आ गई है. यहां उस पर किसी तरह की कोई पाबंदी या बंदिश नहीं है. इसलिए वह यहां आ कर उस से मिल सकता है. यह खबर मिलते ही हिमांशु उस की ननिहाल पहुंच गया.

महीनों बाद दोनों एकदूसरे से मिले थे. उन्होंने पहले जी भर कर एकदूसरे को प्यार किया. उसी वक्त सोनी ने हिमांशु से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वो उसे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चले, जहां उन के अलावा कोई तीसरा न हो. हिमांशु भी यही चाहता था कि सोनी को ले कर वह इतनी दूर चला जाए, जहां अपनों का साया तक न पहुंच सके.

सोनी घर से भागने के लिए हिमांशु पर दबाव बनाने लगी. प्यार के सामने विवश हिमांशु यार दोस्तों से कुछ रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे ले कर दिल्ली भाग गया. परमानंद को जब पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस ने हिमांशु और उस के घर वालों के खिलाफ कजरैली थाने में बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

अपहरण का मुकदमा दर्ज होते ही कजरैली  थाने की पुलिस सक्रिय हुई. पुलिस ने हिमांशु के घर पर दबिश दी. हिमांशु घर से गायब मिला तो पुलिस हिमांशु की मां जेलस देवी को थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाई. तब पुलिस ने जेलस देवी को घर भेज दिया.

कई महीने बाद भी जब सोनी का पता नहीं चला तो पुलिस हिमांशु और सोनी को हाजिर कराने के लिए जेलस देवी पर बारबार दबाव बनाती रही. कहीं से यह बात हिमांशु को पता चल गई कि पुलिस उस की मां को बारबार परेशान कर रही है. तब 8 महीने बाद हिमांशु सोनी को ले कर घर लौट आया.

सोनी ने अदालत में हाजिर हो कर न्यायाधीश के सामने यह बयान दिया कि वह बालिग हो चुकी है. अपनी मनमरजी से कहीं आजा सकती है. उसे अच्छेबुरे का ज्ञान है. अब रही बात मेरे अपहरण करने की तो मैं अपने मरजी से ननिहाल गई थी. वहीं रह रही थी, हिमांशु ने मेरा अपहरण नहीं किया था. बल्कि मैं अपनी मरजी से कहीं गई थी. हिमांशु निर्दोष है.

भरी अदालत में सोनी के बयान सुन कर परमानंद और उन के साथ आए लोग दंग रह गए, क्योंकि उस ने हिमांशु के पक्ष में बयान दिया था. सोनी के बयान के आधार पर अदालत ने उसे मुक्त दिया.

यह सब सोनी की वजह से ही हुआ था. इसलिए परमानंद भीतर ही भीतर जलभुन कर रह गया. उस समय तो उस ने समझदारी से काम लिया. वह सोनी को ले कर घर आ गया और हिमांशु अपने घर चला गया. घर ला कर परमानंद ने सोनी को बंद कमरे में खूब मारापीटा. फिर उसे उसी कमरे में बंद कर के बाहर से ताला लगा दिया.

इस के बाद परमानंद ने ठान लिया कि हिमांशु की वजह से ही पूरे समाज में उस के परिवार की नाक कटी है, इसलिए वह उसे ऐसा सबक सिखाएगा कि सब देखते रह जाएंगे. वह धीरेधीरे गांव के लोगों को भी हिमांशु के खिलाफ भड़काने लगा कि उस की वजह से ही पूरे गांव की बदनामी हुई है.

योजना को अंजाम देने के लिए परमानंद ने एक योजना बनाई. योजना के अनुसार, वह और उस का परिवार एकदम शांति से रहने लगा ताकि हिमांशु को रास्ते से हटाने के बाद सभी को यही लगे कि इस में उस का कोई हाथ नहीं है. परमानंद अभी यह तानाबाना बुन ही रहा था कि एक नई घटना घट गई.

20 अप्रैन, 2017 को सोनी फिर हिमांशु के साथ भाग गई. इस बार हिमांशु के साथ हिमांशु का परिवार भी खड़ा था. दोनों का प्यार देख कर घर वालों ने दोनों की सहमति से मंदिर में शादी करा दी थी. शादी के 15 दिनों बाद हिमांशु और सोनी फिर गांव लौट आए. इस बार सोनी अपने घर के बजाय हिमांशु के घर गई.

हिमांशु और सोनी के लौटने की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई. गांव वाले दोनों की हिम्मत देख कर हतप्रभ थे कि हिम्मत तो देखिए रिश्तों को कलंकित करते कलेजे को ठंडक नहीं पहुंची जो गांव को बदनाम करने फिर से यहां आ गए. खैर, जैसे ही ये खबर परमानंद को मिली तो उस का खून खौल उठा. वह आपे से बाहर हो गया.

अगले दिन यानी 5 जून, 2017 को सुबह के करीब 10 बजे गांव में पंचायत बुलाई गई. पंचायत परमानंद के दरवाजे के सामने रखी गई. उस में सैकड़ों की तादाद में गांव वालों के अलावा 21 पंच जुटे. सभी पंच परमानंद के पक्ष में खड़े उस की हां में हां मिला रहे थे. पंचायत में हिमांशु के परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं था.

पंचायत की अगुवाई गांव का गणेश यादव कर रहा था. एक दिन पहले ही गणेश यादव जेल से जमानत पर रिहा हुआ था. पंचायत में प्रताप यादव सिपाही भी था. वह बक्सर में तैनात था और कुछ दिनों की छुट्टी पर घर आया था. इसी की मध्यस्थता में पंचायत शुरू हुई थी.

10 बजे शुरू हुई पंचायत शाम 5 बजे तक चली. अंत में पंचों ने एकमत हो कर हिमांशु के खिलाफ तुगलकी फरमान सुना दिया कि हिमांशु ने जो किया वह बहुत गलत किया. उस की करतूतों से गांव की भारी बदनामी हुई है. उसे उस की गलती की सजा तो मिलनी ही चाहिए ताकि आइंदा गांव का कोई दूसरा युवक ऐसी जुर्रत करने के बारे में सोच भी न सके.

सभी पंचों ने कहा कि हिमांशु की गलती की सजा मौत है. उसे जान से मार देना चाहिए. इस पर पंचायत के सभी लोग सहमत हो गए. सभी ने लाठी, डंडा, तलवार, पिस्टल, ईंट आदि ले कर उस के घर पर एकाएक हमला बोल दिया.

हिमांशु यादव घर पर ही था. उस के घर का दरवाजा बंद था. दरवाजे को तोड़ कर लोग उसे घर के भीतर से खींच लाए और उस का शरीर गोलियों से छलनी कर के पूरी भड़ास निकाल दी. इस के बाद महिलाएं उस की गर्भवती पत्नी सोनी को भी कमरे से खींच कर कहीं ले गईं. उस दिन के बाद से आज तक उस का कहीं पता नहीं चला कि वह जिंदा भी है या उस के साथ कोई अनहोनी हो चुकी है.

बेटे और बहू को बचाने गई हिमांशु की मां जेलस देवी भी पंचों के कोप का शिकार बन गई. उसे भी मारमार कर अधमरा कर दिया गया. पंच बने आतताइयों का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उन्होंने उस के घर को आग लगा दी और फरार हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना की सूचना जैसे ही थाना कजरैली के थानाप्रभारी विजय कुमार को मिली तो उन के हाथपांव फूल गए. वह तत्काल मयफोर्स के घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मौके पर पहुंचते ही सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएसपी मनोज कुमार, एसपी (सिटी)  और सीओ गौराचक्क गांव पहुंच गए. पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने के बाद पुलिस ने आतताइयों के घर दबिश दी लेकिन वे सभी अपनेअपने घरों से फरार मिले.

पुलिस ने हिमांशु की घायल मां जेलस देवी को इलाज के लिए मायागंज अस्पताल पहुंचवा दिया. हिमांशु की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. मौके से कई खाली खोखे बरामद हुए. गांव का तनावपूर्ण माहौल देखते हुए एसएसपी ने वहां पीएसी की 2 टुकडि़यां तैनात कर दीं ताकि शांति व्यवस्था बनी रहे.

पुलिस ने अस्पताल में जेलस देवी के बयान लिए तो उस ने पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. उस के बयान के आधार पर कजरैली थाने में हत्या, हत्या का प्रयास और बलवा करने की विभिन्न धाराओं में 21 आरोपियों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज हुआ.

मामले में बहू सोनी के पिता और मुख्य आरोपी परमानंद यादव सहित सुनील यादव, भितो यादव, सुमन यादव, सीताराम यादव, विवेक यादव, प्रकाश यादव उर्फ विक्की, पूसो यादव, राजा यादव, पंकज यादव, प्रकाश यादव, अधिक यादव, प्रताप यादव (सिपाही), विजय यादव, अजब लाल यादव, गणेश यादव, वरुण यादव, सुमन यादव, अरुण यादव, कुशी यादव और गोपाल यादव को नामजद आरोपी बनाया गया.

हिमांशु यादव की पत्नी सोनी यादव के अपहरण का अलग से मुकदमा दर्ज किया गया. इस मुकदमे में आरोपी आशा देवी, राधा देवी, रुक्मिणी देवी, मनीषा देवी, अंजू देवी, अन्नू देवी, नागो यादव और अब्बो देवी को नामजद दिया गया. यह सब भी अपनेअपने घर से फरार मिलीं. पर 2 हमलावर प्रकाश यादव और राजा यादव पुलिस के हत्थे चढ़ गए. पुलिस ने उन से पूछताछ कर उन्हें जेल भेज दिया. घटना के बाद गांव के लोग 2 खेमों में बंट गए.

धीरेधीरे 10-12 दिन बीत गए. हिमांशु हत्याकांड और सोनी अपहरण के आरोपियों का पुलिस पता तक नहीं लगा सकी. समाचार पत्र इस लोमहर्षक घटना की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर रहे थे. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने 20 जून, 2017 को न्यायालय से आरोपियों की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए.

आरोपियों को जब पता चला कि पुलिस ने न्यायालय से उन की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए हैं तो सीताराम यादव, सुनील यादव, विवेक यादव, अरुण यादव, कुशो यादव और सुमन यादव ने 14 जुलाई, 2017 को अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार मिश्रा की कोर्ट में सरेंडर कर दिया. कोर्ट से सभी आरोपियों को जेल भेज दिया.

इस के पहले भी 2 आरोपियों ने कोर्ट में सरेंडर किया था और 3 को पुलिस पहले गिरफ्तार कर चुकी थी. बाकी अभियुक्तों को भी पुलिस तलाशती रही. 30 जुलाई, 2017 को मुख्य आरोपी परमानंद यादव को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बांका जिले से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से सोनी के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जताई.

इस केस में अजब लाल यादव भी आरोपी था. जबकि उस के घर वालों का कहना है कि उस का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है. उस की बेटी अनुष्ठा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयेग को पत्र लिख कर कहा कि उस के पिता को गलत फंसाया गया है. मानवाधिकार आयोग ने 8 जनवरी, 2018 को एसएसपी मनोज कुमार से हिमांशु हत्याकांड की ताजा रिपोर्ट देने को कहा.

आयोग के सवालों के जवाब देने के लिए एसएसपी ने डीएसपी (सिटी) को अधिकृत कर दिया. कथा लिखे जाने तक जवाब तैयार नहीं हुआ था. अपहृत सोनी का कुछ पता नहीं चल सका था. हिमांशु के घर वालों ने अपहरण कर के सोनी की हत्या की आशंका जताई है.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अवैध संबंधों में हुई थी भाजपा नेता की हत्या

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को दोपहर 12 बजे के करीब थाना फीलखाना से सूचना मिली कि भाजपा के दबंग नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर माहेश्वरी मोहाल में जानलेवा हमला किया गया है. दोनों को मरणासन्न हालत में हैलट अस्पताल ले जाया गया है.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए वह एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह मौजूद थे. सत्तापक्ष के नेता पर हमला हुआ था, इसलिए मामला बिगड़ सकता था.

इस बात को ध्यान में रख कर एसएसपी साहब ने कई थानों की पुलिस और फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुला लिया था. माहेश्वरी मोहाल के कमला टावर चौराहे से थोड़ा आगे संकरी गली में बालाजी मंदिर रोड पर दिनदहाड़े यह हमला किया गया था. सड़क खून से लाल थी. अखिलेश कुमार मीणा ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद फोरैंसिक टीम ने अपना काम किया.

घटनास्थल पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसरा हुआ था. दुकानों के शटर गिरे हुए थे, आसपास के लोग घरों में दुबके थे. वहां लोग कितना डरे हुए थे, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि वहां कोई कुछ भी कहने सुनने को तैयार नहीं था. बाहर की कौन कहे, छज्जों पर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. यह 29 नवंबर, 2017 की बात है.

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घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद अखिलेश कुमार मीणा हैलट अस्पताल पहुंचे. वहां कोहराम मचा हुआ था. इस की वजह यह थी कि जिस भाजपा नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर हमला हुआ था, डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया तो दहल उठे.

मृतक सतीश कश्यप का पूरा शरीर धारदार हथियार से गोदा हुआ था. जबकि ऋषभ पांडेय के शरीर पर मात्र 3 घाव थे. इस सब से यही लगा कि कातिल के सिर पर भाजपा नेता सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन को मारने का जुनून सा सवार था.

अस्पताल में मृतक सतीश कुमार की पत्नी बीना और दोनों बेटियां मौजूद थीं. सभी लाश के पास बैठी रो रही थीं. ऋषभ की मां अर्चना और पिता राकेश पांडेय भी बेटे की लाश से लिपट कर रो रहे थे. वहां का दृश्य बड़ा ही हृदयविदारक था. अखिलेश कुमार मीणा ने मृतकों के घर वालों को धैर्य बंधाते हुए आश्वासन दिया कि कातिलों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक सतीश कश्यप की पत्नी बीना और बेटी आकांक्षा से हत्यारों के बारे में पूछताछ की तो आकांक्षा ने बताया कि उस के पिता की हत्या शिवपर्वत, उमेश कश्यप और दिनेश कश्यप ने की है. एक महिला से प्रेमसंबंधों को ले कर शिवपर्वत उस के पिता से दुश्मनी रखता था. उस ने 10 दिनों पहले धमकी दी थी कि वह उस के पिता का सिर काट कर पूरे क्षेत्र में घुमाएगा.

मृतक सतीश कश्यप ने इस की शिकायत थाना फीलखाना में की थी, लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और एक महिला सपा नेता के कहने पर समझौता करा दिया. अगर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया होता और शिवपर्वत पर काररवाई की होती तो आज भाजपा नेता सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय जिंदा होते.

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अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक ऋषभ के घर वालों से पूछताछ की तो उस की मां अर्चना पांडेय ने बताया कि उन का बेटा अकसर नेताजी के साथ रहता था. वह उन का विश्वासपात्र था, इसलिए वह जहां भी जाते थे, उसे साथ ले जाते थे. आज भी वह उन के साथ जा रहा था. ऋषभ स्कूटी चला रहा था, जबकि नेताजी पीछे बैठे थे. रास्ते में कातिलों ने हमला कर के दोनों को मार दिया.

मृतक सतीश कश्यप की बेटी आकांक्षा ने जो बताया था, उस से साफ था कि ये हत्याएं प्रेमसंबंध को ले कर की गई थीं. इसलिए एसएसपी साहब ने थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह को आदेश दिया कि वह लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर तुरंत रिपोर्ट दर्ज करें और हत्यारों को गिरफ्तार करें.

मृतक सतीश कश्यप के घर वालों ने शिवपर्वत पर हत्या का आरोप लगाया था, इसलिए देवेंद्र सिंह ने सतीश कश्यप के बड़े भाई प्रेम कुमार की ओर से हत्या का मुकदमा शिवपर्वत व 2 अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि बंगाली मोहाल का रहने वाला शिवपर्वत नगर निगम में सफाई नायक के पद पर नौकरी करता था. वह दबंग और अपराधी प्रवृत्ति का था. उस के इटावा बाजार निवासी राकेश शर्मा की पत्नी कल्पना शर्मा से अवैधसंबंध थे. इधर कल्पना शर्मा का मिलनाजुलना सतीश कश्यप से भी हो गया था. इस बात की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो वह सतीश कश्यप से दुश्मनी रखने लगा. इसी वजह से उस ने सतीश की हत्या की थी.

शिवपर्वत को गिरफ्तार करने के लिए एसपी अनुराग आर्या ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, चौकीप्रभारी फूलचंद, एसआई आशुतोष विक्रम सिंह, सिपाही नीरज, गौतम तथा महिला सिपाही रेनू चौधरी को शामिल किया.

शिवपर्वत की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए, लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका. इस के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन के आधार पर उसे फूलबाग चौराहे से गिरफ्तार कर लिया गया. शिवपर्वत को गिरफ्तार कर थाना फीलखाना लाया गया.

एसपी अनुराग आर्या की मौजूदगी में उस से पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी बहानेबाजी के सीधे सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस की प्रेमिका कल्पना शर्मा की बेटी की शादी 30 नवंबर को थी. इस शादी का खर्च वही उठा रहा था, जबकि सतीश कश्यप भी शादी कराने का श्रेय लूटने के लिए पैसे खर्च करने लगे थे. यही बात उसे बुरी लगी थी.

उस ने उन्हें चेतावनी भी दी थी, लेकिन वह नहीं माने. उस की नाराजगी तब और बढ़ गई, जब कल्पना शर्मा ने सतीश कश्यप को भी शादी में निमंत्रण दे दिया. इस के बाद उस ने सतीश कश्यप की हत्या की योजना बनाई और शादी से एक दिन पहले उन की हत्या कर दी. ऋषभ को वह नहीं मारना चाहता था, लेकिन वह सतीश कश्यप को बचाने लगा तो उस पर भी उस ने हमला कर दिया. इस के अलावा वह जिंदा रहता तो उस के खिलाफ गवाही देता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उस से हथियार, खून सने कपड़े बरामद कराने के लिए कहा तो उस ने फेथफुलगंज स्थित जगमोहन मार्केट के पास के कूड़ादान से चाकू और खून से सने कपडे़ बरामद करा दिए. बयान देते हुए शिवपर्वत रोने लगा तो अनुराग आर्या ने पूछा, ‘‘तुम्हें दोनों की हत्या करने का पश्चाताप हो रहा है क्या?’’

शिवपर्वत ने आंसू पोंछते हुए तुरंत कहा, ‘‘सर, हत्या का मुझे जरा भी अफसोस नहीं है. मैं यह सोच कर परेशान हो रहा हूं कि मेरी प्रेमिका इस बात को ले कर परेशान हो रही होगी कि पुलिस मुझे परेशान कर रही होगी.’’

सतीश कश्यप और ऋषभ की हत्याएं कल्पना शर्मा की वजह से हुई थीं, इसलिए पुलिस को लगा कि कहीं हत्या में कल्पना शर्मा भी तो शामिल नहीं थी. इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस टीम ने कल्पना शर्मा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना से पहले और बाद में शिवपर्वत की उस से बात हुई थी.

इसी आधार पर पुलिस पूछताछ के लिए कल्पना को भी 3 दिसंबर, 2017 को थाने ले आई, जहां पूछताछ में उस ने बताया कि सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन की हत्या की योजना में वह भी शामिल थी. इस के बाद देवेंद्र सिंह ने उसे भी साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. शिवपर्वत और कल्पना शर्मा से विस्तार से की गई पूछताछ में भाजपा नेता सतीश कश्यप और उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

महानगर कानपुर के थाना फीलखाना का एक मोहल्ला है बंगाली मोहाल. वहां की चावल मंडी में सतीश कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी बीना के अलावा 2 बेटियां मीनाक्षी, आकांक्षा और एक बेटा शोभित उर्फ अमन था.

सतीश कश्यप काफी दबंग था. उस की आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी थी, इसलिए वह किसी से भी नहीं डरता था. इस की वजह यह थी कि उस का संबंध बब्बन गैंग के अपराधियों से था. इसीलिए बाद में उसे लोग छोटे बब्बन के नाम से पुकारने लगे थे.

इसी नाम ने सतीश को दहशत का बादशाह बना दिया था.फीलखाना के बंगाली मोहाल, माहेश्वरी मोहाल, राममोहन का हाता और इटावा बाजार में उस की दहशत कायम थी. लोग उस के नाम से खौफ खाते थे. उस पर तमाम मुकदमे दर्ज हो गए. वह हिस्ट्रीशीटर बन गया. 10 सालों तक इलाके में सतीश की बादशाहत कायम रही. लेकिन उस के साथ घटी एक घटना से उस का हृदय परिवर्तित हो गया. उस के बाद उस ने अपराध करने से तौबा कर ली.

दरअसल उस के बेटे का एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की जान बच गई. इसी के बाद से सतीश ने अपराध करने बंद कर दिए. अदालत से भी वह एक के बाद एक मामले में बरी होता गया.

अपराध से किनारा करने के बाद सतीश राजनीति करने लगा. पहले वह बसपा में शामिल हुआ. सपा सत्ता में आई तो वह सपा में चला गया. सपा सत्ता से गई तो वह भाजपा में आ गया. राजनीति की आड़ में वह प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करता था. वह विवादित पुराने मकानों को औने पौने दामों में खरीद लेता था. इस के बाद उस पर नया निर्माण करा कर महंगे दामों में बेचता था. इस में उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

ऋषभ सतीश कश्यप का दाहिना हाथ था. उस के पिता राकेश पांडेय इटावा बाजार में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना के अलावा बेटा ऋषभ और बेटी रेनू थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. 8वीं पास कर के ऋषभ सतीश कश्यप के यहां काम करने लगा था.

वह उम्र में छोटा जरूर था, लेकिन काफी होशियार था. सतीश कश्यप का सारा काम वही संभालता था. हालांकि सतीश का बेटा अमन और बेटी आकांक्षा भी पिता के काम में हाथ बंटाते थे, लेकिन ऋषभ भी पूरी जिम्मेदारी से सारे काम करता था. इसलिए सतीश हमेशा उसे अपने साथ रखते थे. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा था.

बंगाली मोहाल में ही शिवपर्वत वाल्मीकि रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह नगर निगम में सफाई नायक था. उसे ठीकठाक वेतन तो मिलता ही था, इस के अलावा वह सफाई कर्मचारियों से उगाही भी करता था. लेकिन वह शराबी और अय्याश था, इसलिए हमेशा परेशान रहता था. उस की नजर हमेशा खूबसूरत महिला सफाईकर्मियों पर रहती थी, जिस की वजह से कई बार उस की पिटाई भी हो चुकी थी.

एक दिन शिवपर्वत इटावा बाजार में बुटीक चलाने वाली कल्पना शर्मा के घर के सामने सफाई करा रहा था, तभी उस की आंख में कीड़ा चला गया. वह आंख मलने लगा और दर्द तथा जलन से तड़पने लगा. उसे परेशान देख कर कल्पना शर्मा ने रूमाल से उस की आंख साफ की और कीड़ा निकाल दिया. कल्पना शर्मा की खूबसूरत अंगुलियों के स्पर्श से शिवपर्वत के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. वह भी काफी खूबसूरत थी, इसलिए पहली ही नजर में शिवपर्वत उस पर मर मिटा.

इस के बाद शिवपर्वत कल्पना के आगेपीछे घूमने लगा, जिस से वह उस के काफी करीब आ गया. वह उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. कल्पना अनुभवी थी. वह समझ गई कि यह उस का दीवाना हो चुका है. कल्पना का पति राजेश कैटरर्स का काम करता था. वह अकसर बाहर ही रहता था. ज्यादातर रातें उस की पति के बिना कटती थीं, इसलिए उस ने शिवपर्वत को खुली छूट दे दी, जिस से दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

नाजायज संबंध बने तो शिवपर्वत अपनी पूरी कमाई कल्पना पर उड़ाने लगा, जिस से उस के अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई. पत्नी और बच्चे भूखों मरने लगे. पत्नी वेतन के संबंध में पूछती तो वह वेतन न मिलने का बहाना कर देता. पर झूठ कब तक चलता. एक दिन रामदुलारी को पति और कल्पना शर्मा के संबंधों का पता चल गया. वह समझ गई कि पति सारी कमाई उसी पर उड़ा रहा है.

औरत कभी भी पति का बंटवारा बरदाश्त नहीं करती तो रामदुलारी ही कैसे बरदाश्त करती. उस ने पति का विरोध भी किया, लेकिन शिवपर्वत नहीं माना. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो आजिज आ कर वह बच्चों को ले कर मायके चली गई. इस के बाद तो शिवपर्वत आजाद हो गया. अब वह कल्पना के यहां ही पड़ा रहने लगा. उस की बेटी उसे पापा कहने लगी.

खूबसूरत और रंगीनमिजाज कल्पना शर्मा की सतीश कश्यप से भी जानपहचान थी. सतीश की उस के पति राजेश से दोस्ती थी. उसी ने कल्पना से उस को मिलाया था. उस के बाद दोनों में दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई थी. लेकिन ये संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं चल सके. दोनों अलग हो गए थे.

कल्पना शर्मा की बेटी सयानी हुई तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगी. बेटी की शादी धूमधाम से करने के लिए वह मकान का एक हिस्सा बेचना चाहती थी. सतीश कश्यप को जब इस बात का पता चला तो वह कल्पना शर्मा से मिला और उस का मकान खरीद लिया. मकान खरीदने के लिए वह कल्पना शर्मा से मिला तो एक बार फिर दोनों का मिलना जुलना शुरू हो गया. सतीश ने उसे आश्वासन दिया कि वह उस की बेटी की शादी में हर तरह से मदद करेगा.

मदद की चाह में कल्पना शर्मा का झुकाव सतीश की ओर हो गया. अब वह शिवपर्वत की अपेक्षा सतीश को ज्यादा महत्त्व देने लगी. एक म्यान में 2 तलवारें भला कैसे समा सकती हैं? प्रेमिका का झुकाव सतीश की ओर देख कर शिवपर्वत बौखला उठा. उस ने कल्पना शर्मा को आड़े हाथों लिया तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा, ‘‘शिव, तुम्हें किसी ने झूठ बताया है. हमारे और नेताजी के बीच कुछ भी गलत नहीं है.’’

कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी तय कर दी थी. शादी की तारीख भी 30 नवंबर, 2017 रख दी गई. गोकुलधाम धर्मशाला भी बुक कर लिया गया. वह शादी की तैयारियों में जुट गई. शिवपर्वत शादी की तैयारी में हर तरह से मदद कर रहा था. लेकिन जब उसे पता चला कि सतीश कश्यप भी शादी में कल्पना की मदद कर रहा है तो उसे गुस्सा आ गया.

शिवपर्वत ने कल्पना शर्मा को खरीखोटी सुनाते हुए कहा कि अगर सतीश उस की बेटी की शादी में आया तो ठीक नहीं होगा. अगर उस ने उसे निमंत्रण दिया तो अनर्थ हो जाएगा. प्रेमिका को खरीखोटी सुना कर उस ने सतीश को फोन कर के धमकी दी कि अगर उस ने कल्पना से मिलने की कोशिश की तो वह उस का सिर काट कर पूरे इलाके में घुमाएगा. देखेगा वह कितना बड़ा दबंग है.

शिवपर्वत सपा का समर्थक था. सपा के कई नेताओं से उस के संबंध थे. उस के भाई भी सपा के समर्थक थे और उस का साथ दे रहे थे. सतीश ने शिवपर्वत की धमकी की शिकायत पुलिस से कर दी. सीओ कोतवाली ने शिवपर्वत को थाने बुलाया तो वह सपा नेताओं के साथ थाने आ पहुंचा. सपा नेताओं ने विवाद पर लीपापोती कर के समझौता करा दिया.

शिवपर्वत के मना करने के बावजूद कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी का निमंत्रण सतीश कश्यप को दे दिया था. जब इस की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो उस ने कल्पना शर्मा को आड़ेहाथों लिया. तब कल्पना ने कहा कि सतीश कश्यप दबंग है. उस से डर कर उस ने उसे शादी का निमंत्रण दे दिया है. अगर वह चाहे तो उसे रास्ते से हटा दे. इस में वह उस का साथ देगी.

‘‘ठीक है, अब ऐसा ही होगा. वह शादी में शामिल नहीं हो पाएगा.’’ शिवपर्वत ने कहा.

इस के बाद उस ने शादी के एक दिन पहले सतीश कश्यप की हत्या करने की योजना बन डाली. इस के लिए उस ने फेरी वाले से 70 रुपए में चाकू खरीदा और उस पर धार लगवा ली. 29 नवंबर की सुबह सतीश किसी नेता से मिल कर घर लौटे तो उन्हें किसी ने फोन किया. फोन पर बात करने के बाद वह ऋषभ के साथ स्कूटी से निकल पड़े. पत्नी बीना ने खाने के लिए कहा तो 10 मिनट में लौट कर खाने को कहा और चले गए.

करीब 11 बजे वह बालाजी मंदिर मोड़ पर पहुंचे तो घात लगा कर बैठे शिवपर्वत ने स्कूटी रोकवा कर उन पर हमला कर दिया. सतीश कश्यप सड़क पर ही गिर पड़े. सतीश को बचाने के लिए ऋषभ शिवपर्वत से भिड़ गया तो उस ने उस पर भी चाकू से वार कर दिया. ऋषभ जान बचा कर भागा, लेकिन आगे गली बंद थी. वह जान बचाने के लिए घरों के दरवाजे खटखटाता रहा, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

पीछा कर रहे शिवपर्वत ने उसे भी घायल कर दिया. ऋषभ जमीन पर गिर पड़ा. इस पर शिवपर्वत का गुस्सा शांत नहीं हुआ. लौट कर उस ने सड़क पर पड़े तड़प रहे सतीश कश्यप पर चाकू से कई वार किए. एक तरह से उस ने उस के शरीर को गोद दिया. इस के बाद इत्मीनान से चाकू सहित फरार हो गया.

शिवपर्वत ने इस बात की सूचना मोबाइल फोन से कल्पना शर्मा को दे दी थी. इस के बाद रेल बाजार जा कर कपड़ों की दुकान से उस ने एक जींस व शर्ट खरीदी और सामुदायिक शौचालय जा कर खून से सने कपड़े उतार कर नए कपड़े पहन लिए और फिर रेलवे स्टेशन पर जा कर छिप गया.

इस वारदात से इलाके में दहशत फैल गई थी. दुकानदारों ने शटर गिरा दिए थे और गली के लोग घरों में घुस गए थे. लेकिन किसी ने घटना की सूचना पुलिस और सतीश कश्यप के घर वालों को दे दी थी.

खबर पाते ही सतीश कश्यप की पत्नी बीना अपनी दोनों बेटियों मीनाक्षी और आकांक्षा तथा बेटे अमन के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचीं. उन की सूचना पर ऋषभ के पिता राकेश और मां अर्चना भी आ गईं. थाना फीलखाना के प्रभारी देवेंद्र सिंह भी आ गए. उन्होंने घायलों को हैलट अस्पताल भिजवाया और वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

पूछताछ के बाद थाना फीलखाना पुलिस ने अभियुक्त शिवपर्वत और कल्पना शर्मा को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें नहीं हुई थीं. कल्पना शर्मा के जेल जाने से उस की बेटी का रिश्ता टूट गया.

सोचने वाली बात यह है कि शिवपर्वत को मिला क्या? उस ने जो अपराध किया है, उस में उसे उम्रकैद से कम की सजा तो होगी नहीं. उस ने जिस कल्पना के लिए यह अपराध किया, क्या वह उसे मिल पाएगी? उस ने अपनी जिंदगी तो बरबाद की ही, साथ ही कल्पना और उस की बेटी का भी भविष्य खराब कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कविता की प्रेम कविता का अंजाम

18 नवंबर की सुबह 8 बज कर 9 मिनट पर पूर्वी दिल्ली के थाना गाजीपुर को फोन पर सूचना मिली कि गाजीपुर के पेपर मार्केट में सीएनजी पंप के सामने खड़े एक ट्रक के पिछले टायर के आगे एक युवक की रक्तरंजित लाश पड़ी है. लाश मिलने की सूचना पर एएसआई धर्मसिंह, हेड कांस्टेबल राजकुमार को साथ ले कर मोटरसाइकिल से पेपर मार्केट पहुंचे. वहां एक 22 पहियों वाली विशालकाय ट्रक खड़ी थी, जिस के बाईं तरफ पहिए के नीचे एक युवक की लाश पड़ी थी, जिस की गरदन को बेरहमी से रेता गया था. गरदन के नीचे काफी खून पड़ा था.

मृतक लाल रंग की चैकदार शर्ट और ग्रे कलर की पैंट पहने हुए था. हत्या का मामला था. एएसआई ने तत्काल इस की सूचना गाजीपुर के थानाप्रभारी अमर सिंह को दे दी. थोड़ी देर में थानाप्रभारी अमर सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और लाश का बारीकी से मुआयना करने लगे.

मृतक नंगे पैर था और उस के पैर फुटपाथ की तरफ थे. उस का नंगे पैर होना शक पैदा करता था कि उस की हत्या किसी और जगह की गई होगी. उस की गरदन पर दाहिनी ओर किसी धारदार हथियार का गहरा घाव था.

थानाप्रभारी ने आसपास के लोगों और वहां से आनेजाने वालों को रोक कर मृतक की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. तब उन्होंने क्राइम टीम बुला कर लाश और घटनास्थल की फोटो करा लीं और लाश 7 घंटे के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी.

एएसआई राजेश को घटनास्थल की निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अमर सिंह थाने लौट आए. उन्होंने थाने में आइपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया. इस केस की तफ्तीश की जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं अपने हाथ में ली. थानाप्रभारी अमर सिंह ने अब तक की सारी काररवाई का ब्यौरा एसीपी आनंद मिश्रा और डीसीपी ओमबीर सिंह को दे दिया.

कल्याणपुरी के एसीपी आनंद मिश्रा ने थानाप्रभारी अमर सिंह, सब इंसपेक्टर सोनू तथा कांस्टेबल नीरज की एक टीम बना कर इस मामले को जल्द से जल्द हल करने के आदेश दिए. पुलिस टीम इस ब्लाइंड मर्डर केस की जांच में जुट गई. थानाप्रभारी टीम के साथ गाजीपुर के पेपर मार्केट में घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने हत्या से जुड़े संभावित सुरागों की तलाश में वहां के पासपड़ोस के बहुत से लोगों से पूछताछ की. लेकिन उन्हें वहां ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो मृतक को पहचानता हो.

कई घंटे तक घटनास्थल की खाक छानने के बाद भी जब अमर सिंह को इस हत्याकांड से जुड़ा कोई सुराग नहीं मिला तो वह वापस थाने लौट आए. उन्होंने सभी निकटवर्ती थानोंं को इस वारदात की जानकारी दे कर उन के यहां हाल ही में गुम हुए लोगों के बारे में पूछताछ की, लेकिन किसी का भी हुलिया मृतक के हुलिए से मेल नहीं खा रहा था.

उसी दिन शाम के वक्त एक औरत अपने 2 जानने वालों के साथ गाजीपुर थाने के ड्यूटी औफिसर के पास पहुंची. उस ने बताया कि उस का पति मिथिलेश ओझा पिछली रात से घर वापस नहीं लौटा है. वह नोएडा में नौकरी करता था. उस ने अपने पति का फोटो भी दिखाया. जब थाने में मौजूद ड्यूटी औफिसर ने उसे अज्ञात मृतक की फोटो दिखाई तो उसे देखते ही वह बुरी तरह से बिलख उठी.

उस ने रोते हुए बताया कि यह फोटो उस के पति मिथिलेश ओझा का है. इस के बाद उसे लाश दिखाने के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में ले जाया गया, जहां उस ने लाश को देखते ही उस की शिनाख्त अपने पति मिथिलेश ओझा के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उसे थाना गाजीपुर ला कर फिर से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि उस का नाम कविता है. वह अपने पति और 2 बच्चों के साथ दल्लूपुरा में किराए के एक मकान में रहती है. कल यानी 16 नवंबर को उस का पति रोज की तरह सुबह घर से काम पर नोएडा के लिए निकला था. वह नोएडा के सेक्टर 63 स्थित एक प्राइवेट कंपनी में ड्राइवर था.

काम खत्म होने के बाद वह रात को 9 बजे तक घर लौट आता था. लेकिन कल रात वह घर नहीं लौटा. पति के नहीं लौटने से वह बहुत परेशान थी. उस ने पति के मोबाइल पर काल भी की लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था.

कविता ने अपने सभी नातेरिश्तेदारों को फोन कर के पति के बारे में पूछा. लेकिन उसे कहीं से भी मिथिलेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पूरे दिन पति को इधरउधर तलाश करने के बाद वह अपने जीजा अरविंद मिश्रा और पति के दोस्त विजय कुमार के साथ पति की गुमशुदगी दर्ज करवाने थाने आ गई.

कविता के पति मिथिलेश ओझा के कातिलों का सुराग हासिल करने के लिए उस से मिथिलेश की किसी से संभावित दुश्मनी के बारे में पूछताछ की गई. उस ने बड़ी मासूमियत से बताया कि उस का पति बहुत मिलनसार स्वभाव का था. उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. उस की बात सुन कर थानाप्रभारी अमर सिंह सोच में पड़ गए.

दरअसल, ऐसा कोई कारण जरूर था, जिस की वजह से बीती रात उस के पति मिथिलेश ओझा की हत्या हो गई थी. अब या तो कविता को अपने पति की हत्या के कारण की जानकारी नहीं थी, या वह जानबूझ कर पुलिस से कुछ छिपा रही थी. निस्संदेह यह तफ्तीश का विषय था. थानाप्रभारी ने कविता से उस के और उस के पति के साथ उस के सभी नजदीकी परिजनों के मोबाइल नंबर पूछ कर अपनी डायरी में नोट कर लिए. इस के बाद उन्होंने कविता को घर जाने को इजाजत दे दी.

जब इन सभी नंबरों की काल डिटेल्स मंगवाई गई तो विजय कुमार और कविता के फोन नंबरों की काल डिटेल्स की जांच पड़ताल के दौरान थानाप्रभारी अमर सिंह की आंखें चमक उठीं. उन्होंने देखा कि दोनों के बीच मोबाइल पर अकसर बातें होती थीं. घटना वाले दिन शाम के वक्त विजय ने ही मिथिलेश के मोबाइल पर आखिरी काल की थी. यह देख कर उन्हें विजय कुमार और मृतक की पत्नी कविता पर शक हुआ.

उन्होंने विजय को थाने बुला कर उस के और कविता के बीच होने वाली बातचीत के बारे में पूछताछ की. पहले तो विजय कुमार ने उन्हें अपनी बातों से बरगलाने की कोशिश की, लेकिन बाद में वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. कविता से भी उस के तथा विजय के संबंधों के बारे में काफी पूछताछ की गई.

पूछताछ के दौरान कविता ने स्वीकार किया कि उस के और विजय कुमार के बीच अवैध संबंध हैं, लेकिन पति की हत्या में उस की संलिप्तता नजर नहीं आई. जबकि विजय ने अपने इकबालिया बयान में बताया कि उस ने अपने दूसरे साथी दुर्गा प्रसाद के साथ मिल कर इस जघन्य वारदात को अंजाम दिया था.

विजय को उसी वक्त गिरफ्तार कर लिया गया. विजय की सुरागरसी पर उस के साथी दुर्गाप्रसाद को भी उसी दिन उस के घर दल्लूपुरा से गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के दौरान उस ने मिथिलेश की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. दोनों आरोपियों के बयान तथा कविता से हुई पूछताछ के बाद मिथिलेश ओझा की हत्या की एक ऐसी सनसनीखेज दास्तान उभर कर सामने आई.

35 वर्षीय मिथिलेश ओझा बिहार के जिला रोहतास का मूल निवासी था. अपनी पत्नी कविता तथा 2 बच्चों के साथ वह नोएडा के हरौला गांव में किराए के मकान में रहता था. वह नोएडा के सेक्टर-63 स्थित एक प्राइवेट कंपनी की लोडर गाड़ी चलाता था. उस की पत्नी कविता सुंदर और चंचल स्वभाव की थी.

उन्हीं दिनों हरौला गांव मं विजय कुमार ने सुनार की दुकान खोली. दुकान की ओपनिंग के मौके पर उस ने बिहार के लोगों को अपनी दुकान पर आमंत्रित किया था. उस प्रोग्राम में कविता भी काफी सजधज कर आई थी. विजय की नजर जब कविता पर पड़ी तो वह उसे एकटक देखता रह गया. विजय को अपनी तरफ देखता देख कर वह एकदम शरमा गई.

उस वक्त वहां बहुत सारे लोग एकत्र थे, इसलिए विजय ने कविता से कुछ नहीं कहा. फिर भी प्रोग्राम के दौरान उस ने चलाकी से कविता से उस का नाम और मोबाइल नंबर ले लिया. कविता को भी विजय का यह अपनापन बहुत अच्छा लगा. वहां से जाते वक्त उस ने अपने घर का पता बता कर उसे अपने घर चाय पीने के लिए आमंत्रित किया.

एक दिन बाद ही विजय कविता से मिलने उस के घर जा पहुंचा. विजय को अपने घर आया देख कर कविता बहुत खुश हुई. उस ने विजय को बिठा कर उस की खूब आवभगत की. थोड़ी देर के बाद कविता का पति मिथिलेश ओझा भी वहां आ गया. कविता ने विजय का परिचय मिथिलेश से कराया तो वह बड़ी गर्मजोशी से मिला. विजय ने बताया कि वह भी बिहार के रोहतास का रहने वाला है.

कुछ देर वहां रहने के बाद विजय वहां से चला गया, लेकिन इस दौरान आंखों ही आंखों में अपने दिल की बात कविता पर जाहिर कर दी. जवाब में कविता ने भी उस की ओर देख कर आंखों के इशारे से यह जता दिया कि जो आग उस के दिल में लगी है, वही आग उस के सीने में भी धधक रही है.

इस तरह कविता के घर आतेजाते विजय और कविता का मिलनाजुलना शुरू हो गया. एक दिन विजय जानबूझ कर कविता के घर उस समय पहुंचा, जब मिथिलेश घर में नहीं था. कविता ने विजय को घर में बिठा कर उस से मीठीमीठी बातें शुरू कर दीं.

विजय को इसी दिन का इंतजार था. उस ने कविता कोे दरवाजा बंद करने का इशारा किया तो कविता ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और उस के पास आ कर बैठ गई. एकांत का फायदा उठाते हुए विजय ने कविता को अपनी बांहों में भर लिया.

प्रेमी की गर्म सांसों में पिघल कर कविता ने उसे मनमानी करने की खूली छूट दे दी. उस दिन के बाद जब भी उन्हें मौका मिलता, वे जमाने की आंखों से छिप कर शारीरिक संबंध बना लेते थे. इस तरह 4-5 साल किसी को भी उन के प्रेमिल संबंधों की जानकारी नहीं हुई.

लेकिन बाद में कुछ लोगों ने मिथिलेश को बताया कि उस की गैरमौजूदगी में विजय उस के घर आता है और काफी देर तक रुकता है. यह जानने के बाद मिथिलेश ने कविता को डांटा और भविष्य में विजय से नहीं मिलने को कहा. उस वक्त तो कविता ने उस की बात मान ली, लेकिन बाद में उस का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी रहा.

कुछ दिन तक तो मिथिलेश को लगा कि उस की पत्नी सुधर गई है, लेकिन बाद में जब उसे पता चला कि उस की गैरहाजिरी में कविता और विजय का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी है तो इस से परेशान हो कर वह हरौला छोड़ कर दिल्ली के दल्लूपुरा में शिफ्ट हो गया.

दूसरी ओर विजय कुमार कविता के इश्क में इस तरह पागल था कि जिस दिन उस की कविता से बात नहीं होती थी, उस के दिल को चैन नहीं मिलता था. कविता के नोएडा से दिल्ली आ जाने के बाद वह सारा दिन कविता से मिलने के बारे में सोचता रहता था.

जब उसे कविता की बहुत याद सताती तो वह उस के मोबाइल पर बातें कर के अपने दिल की चाहत बयां कर लिया करता था. कुछ दिनों के बाद विजय ने कविता से उस के घर का पता पूछा और उस से मिलने उस के घर आना शुरू कर दिया.

अभी मिथिलेश ओझा दल्लूपुरा में नया शिफ्ट हुआ था. वहां उसे जानने वालों की संख्या बहुत कम थी. उस के घर कौन कब आता है… कब जाता है, इस से किसी को कोई मतलब नहीं था. विजय कभी कविता से मिलने उस के घर आ जाता तो कभी कविता उस से मिलने चली जाती थी.

विजय के पास इंडिका कार थी. वह कविता को कार में बिठा कर लौंग ड्राइव पर ले जाता. रास्ते में कहीं एकांत जगह पर कार खड़ी कर के दोनों अपनी वासना की आग ठंडी कर लेते थे. इस तरह कविता और विजय दोनों मिथिलेश की आंखों में धूल झोंक कर काफी दिनों तक शारीरिक संबंध बनाते रहे.

घटना से कुछ दिन पहले एक दिन मिथिलेश ओझा के मकान मालिक ने उसे अपने घर पर बुला कर कहा कि उस ने कल उस के दोस्त विजय की मोटर साइकिल पर कविता को बैठे देखा था. कविता विजय की मोटरसाइकिल के पीछे उस की कमर में हाथ डाले बैठी थी.

यह सुन कर मिथिलेश के तनबदन में आग लग गई. उस ने मकान मालिक का शुक्रिया अदा किया और घर लौट कर कविता को खूब डांट पिलाई. दूसरे दिन वह अपने दोस्त विजय से मिला और उसे अपने घर आने से मना कर के धमकी दी कि अगर उस ने कविता से मिलनाजुलना नहीं छोड़ा तो अपने भतीजे मुन्ना की मदद से उस की हत्या करा देगा.

विजय मिथिलेश की बात सुन कर डर गया. वह जानता था कि गुड़गांव में रहने वाला मिथिलेश का भतीजा मुन्ना कई खतरनाक बादमाशों को जानता है और अगर मुन्ना चाहे तो बड़ी आसानी से बदमाशों से उस की हत्या करा सकता है. दूसरे वह कविता के बिना भी रह नहीं सकता था.

मिथिलेश की धमकी के बाद विजय के मन में सदा यह डर बना रहता था कि अगर उस ने मिथिलेश को अपने रास्ते से नहीं हटाया तो किसी भी दिन उस की हत्या की जा सकती है. इस बारे में कई दिनों तक सोचने के बाद उस ने मन में मिथिलेश की हत्या करने का इरादा बना लिया. लेकिन यह बात उस ने कविता को नहीं बताई.

एक दिन उस ने अपने दोस्त दुर्गा प्रसाद को विश्वास में ले कर उसे पूरी बात बताई. साथ ही कहा भी कि अगर वह मिथिलेश की हत्या में उस का साथ दे तो इस के बदले उसे अच्छी खासी रकम देगा.

40 वर्षीय दुर्गाप्रसाद दिल्ली में छोटामोटा काम कर के अपने परिवार की गुजरबसर कर रहा था. उस की बड़ी बेटी शादी के लायक हो गई थी, इसलिए उसे बड़ी रकम की जरूरत थी. वह विजय कुमार का साथ देने के लिए राजी हो गया. बदले में विजय ने उस की बेटी की शादी में आर्थिक मदद करने की बात मान ली.

17 नवंबर, 2017 की शाम विजय कुमार ने फोन कर के दुर्गाप्रसाद को अपनी दुकान पर बुलाया. दुकान के बाहर उस की सिल्वर कलर की इंडिका कार खड़ी थी.

योजना के अनुसार दोनों कार में सवार हो कर नोएडा के सेक्टर-11 की रेड लाइट पर पहुंच कर मिथिलेश ओझा के काम से लौटने का इंतजार करने लगे. करीब साढ़े 8 बजे मिथिलेश ओझा अपनी साइकिल पर उधर से आता हुआ दिखाई दिया तो विजय ने उसे आवाज दे कर बुला लिया.

फिर उस से बातें करते हुए अपनी कार के पास आ कर बोला, ‘‘यार, बड़ी सर्दी हो रही है, चलो कार में बैठ कर बातें करते हैं.’’ बातें करतेकरते विजय कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और मिथिलेश ओझा ने अपनी साइकिल वहीं पर खड़ी कर दी और कार की पिछली सीट पर बैठे दुर्गा प्रसाद की बगल में जा बैठ गया.

मिथिलेश से विजय ने कहा कि एक जगह चलना है. उस की बात सुन कर मिथिलेश ओझा उस के साथ जाने को राजी हो गया. इस के बाद कार टी पौइंट से हो कर कोंडली में शराब के ठेके के पास पहुंची. वहां से शराब की बोतल और कोल्डड्रिंक ले कर विजय ने कार में बैठ कर तीनों के लिए पैग बनाए.

इसी बीच मिथिलेश की नजर बचा कर विजय ने मिथिलेश के पैग में नींद की गोलियां मिला कर उसे पैग पीने के लिए दे दिया. थोड़ी देर में आने वाली मौत की आहट से बेखबर मिथिलेश जाम से जाम टकराने के बाद शराब की चुस्कियां लेने लगा. बोतल की शराब खत्म होने पर भी जब मिथिलेश को अधिक नशा नहीं हुआ, तब विजय फिर ठेके पर पहुंचा और शराब का एक अद्धा और खरीद लाया.

विजय और दुर्गा प्रसाद ने कम शराब पी और मिथिलेश को जानबूझ कर इतनी अधिक पिला दी जिस से वह बेहोश हो गया. उस के बेहोश होते ही विजय और दुर्गा प्रसाद एक दूसरे की ओर देख कर मुसकराए.

विजय कार चलाते हुए गाजीपुर के पेपर मार्केट में पहुंचा, जहां एक सुनसान सी जगह पर 22 पहियों वाला ट्रक खड़ा था. उस के बराबर कार में रोक कर विजय पिछली सीट पर पहुंचा और दुर्गा प्रसाद की मदद से एक रस्सी से मिथिलेश का गला घोंट दिया.

मिथिलेश की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को घसीट कर कर की पिछली सीट से नीचे उतारा और उस विशालकाय ट्रक के पिछले पहिए के सामने रख दिया. विजय ने दुर्गा प्रसाद से सड़क पर निगरानी करने के लिए कहा और खुद एक पेपर कटर ले कर बेदर्दी से मिथिलेश का गला रेत दिया.

विजय ने सोचा कि रात के अंधेरे में ड्राइवर ट्रक चलाएगा तो मिथिलेश का चेहरा बुरी तरह कुचला जाएगा, जिस से पुलिस उस की शिनाख्त नहीं कर पाएगी. मिथिलेश की जेब में रखे कागजात, मोबाइल फोन और उस की चप्पलनिकाल कर विजय और दुर्गा प्रसाद कार से वापस नोएडा के टी प्वाइंट पर पहुंचे. रास्ते में उन्होंने मिथिलेश की चप्पल, मोबाइल की बैटरी फेंक दी. इस के बाद दुर्गाप्रसाद को उस के घर दल्लूपुरा में छोड़ कर विजय अपने घर लौट गया.

सुबह साढ़े 7 बजे विजय फिर लाश के पास पहुंचा तो ट्रक को वहीं खड़ा देख कर उसे डर सा लगा. उस ने वहीं से दुर्गा प्रसाद को फोन कर के मिथिलेश की साइकिल को रात वाली जगह से हटा कर कहीं पर छिपा देने के लिए कहा. इस के बाद वह अपने घर आ गया.

थोड़ी देर बाद उस के मोबाइल पर कविता का फोन आया. कविता ने उसे बताया कि रात में उस का पति घर नहीं लौटा है. उसकी बात सुन कर वह सहानुभूति का नाटक करने उस के घर दल्लूपुरा पहुंचा. फिर वह कविता और उस के जीजा अरविंद मिश्रा के साथ मिथिलेश ओझा की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए गाजीपुर थाने पहुंच गया.

थानाप्रभारी अमर सिंह ने 11 नवंबर को मिथिलेश हत्याकांड में दोनों आरोपियों विजय कुमार और दुर्गा प्रसाद को दिल्ली के कड़कड़डुमा की अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

दीवानगी की हद में मंगेतर बना दरिंदा

अपनी रोजमर्रा की रफ्तार से चल रहे कोटा शहर का शुक्रवार 8 दिसंबर का दिन बेहद सर्द था.  एक दिन पहले बारिश हो कर हटी थी, जिस से ठिठुरन में खासा इजाफा हो गया था. बादलों की वजह से सूरज सुबह से ही ओझल था. लिहाजा पूरा शहर धुंधलके की गिरफ्त में था. चंबल नदी के करीब होने के कारण शहर के स्टेशन का इलाका कुछ ज्यादा ही सर्द था. लगभग आधा दरजन छोटीमोटी बस्तियों में बंटे इस इलाके में तकरीबन 20 हजार की आबादी वाला क्षेत्र नेहरू नगर कहलाता है.

मिलीजुली बिरादरी वालों की इस बस्ती में ज्यादातर निम्नमध्य वर्ग के दिहाड़ी कामकाजी लोग रहते हैं. बस्ती के करीब से अच्छीखासी चौड़ाई में फैला एक नाला गुजरता है. इसलिए इस की तरफ से गुजरने वाला करीब एक फर्लांग का फासला कुछ संकरा हो जाता है.

इसी बस्ती की रहने वाली शाहेनूर अपनी छोटी बहन इशिका के साथ कोचिंग के लिए जा रही थी. हाथों में किताबें थामे दोनों बहनें चलतेचलते आपस में बातचीत करती जा रही थीं. जैसे ही वे नेहरू नगर बस्ती से निकलने वाले रास्ते की तरफ कदम बढ़ाने को हुईं, शाहेनूर एकाएक ठिठक  कर रह गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर पीछे देखा. पीछे एक बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई क्योंकि वह उस युवक को जानती थी. शाहेनूर ने तुरंत अपनी छोटी बहन का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ‘‘जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

इशिका ने बहन को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा माजरा समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

दाढ़ीमूंछ और सख्त चेहरे वाला वह युवक साबिर था, जो शाहेनूर का मंगेतर था. पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. उस युवक को देख कर दोनों बहनों की चाल में लड़खड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर शाहेनूर ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही साबिर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए शाहेनूर का गला दबोच लिया. गले पर कसती सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए शाहेनूर ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, साबिर ने जेब में रखा मिर्च पाउडर उस के ऊपर फेंक दिया.

चीखते हुए शाहेनूर ने एक हाथ से आंखें मलने लगी और दूसरे हाथ से छोटी बहन इशिका का हाथ पकड़ने की कोशिश की. इशिका भी बहन के लिए चीखने लगी. तभी साबिर ने चाकू निकाल कर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए.

बदहवास इशिका ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. तब तक दरिंदगी पर उतारू साबिर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करता हुआ उसे छलनी कर चुका था. उस की दर्दनाक चीखों से आसपास का इलाका गूंज रहा था और उस के शरीर से फव्वारे की मानिंद छूटता खून जमीन को सुर्ख कर रहा था.

उधर से गुजरते लोगों ने यह खौफनाक नजारा देखा भी, लेकिन बीचबचाव करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. सभी मुंह फेर कर चलते बने. इशिका ने राहगीरों को मदद के लिए पुकार भी लगाई, लेकिन उस की कोशिश नाकाम रही. नतीजतन उस ने वापस अपने घर की तरफ गली में दौड़ लगा दी. घर पहुंच कर उस ने बहन पर हमले वाली बात घर वालों को बता दी.  यह खबर सुन कर घर वालों की चीख निकल गई.

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वे रोतेबिलखते इशिका के साथ चल दिए. करीब 5 मिनट बाद वे घटनास्थल पर पहुंच गए. शाहेनूर की खून से लथपथ लाश वहां पड़ी थी. घर वाले दहाड़ें मार कर रोने लगे. कुछ लोग वहां जमा हो चुके थे. खबर आग की तरह इलाके में फैली तो भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा.

किसी ने इस वारदात की खबर फोन द्वारा भीममंडी थाने को दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका की छोटी बहन इशिका ने सारी बात पुलिस को बता दी. इस से पुलिस को पता चल गया कि इस का हत्यारा साबिर है. घटनास्थल पर उस की मोटरसाइकिल भी खड़ी थी.

पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो गली में दूर तक खून सने पावों के निशान मिले, जो निश्चित रूप से भागते हुए साबिर के थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और खुद वहां मौजूद लोगों से बातें करने लगे. अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी अंशुमान भोमिया, एडिशनल एसपी अनंत कुमार और सीओ शिवभगवान गोदारा समेत अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद लोगों में डर बैठ गया. एसपी अंशुमान भोमिया ने सीओ शिवभगवान गोदारा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा सहित अन्य तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया.

टीम ने आरोपी साबिर की संभावित जगहों पर तलाश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली. उस के बाद मुखबिर की सूचना पर साबिर को मुरगीफार्म के पास जंगल से दबोच लिया गया. वह चंबल नदी क्षेत्र के घने जंगल में छिपने की कोशिश कर रहा था. अगर एक बार वह बीहड़ में पहुंच जाता तो उस का गिरफ्त में आना मुश्किल था.

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शाहेनूर की मां शमीम बानो

छाबड़ा में तैनात शाहेनूर के पिता असलम खान को हादसे की खबर कर दी गई, लेकिन तब तक वह कोटा नहीं पहुंचे थे. शव इस कदर क्षतविक्षत था कि एक पल के लिए तो डाक्टर भी स्तब्ध रह गए. उन के मुंह से निकले बिना नहीं रहा कि लगता है हमलावर साइकोपेथी का शिकार था और वह अपना दिमागी संतुलन पूरी तरह खो चुका था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शाहेनूर के शरीर पर 2 दरजन से ज्यादा घाव मिले थे. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह वे घातक वार बने, जिन्होंने दाएं फेफड़े और लीवर को पंक्चर कर दिया था. चाकू के गहरे वार पीठ, सीना, हाथ सिर, मुंह और आंखों सहित हर जगह पाए गए. चाकू का हर वार 2 से 3 सेंटीमीटर चौड़ा था. डाक्टरों के मुताबिक हर वार पूरी ताकत से किया गया था.

शुरुआती पूछताछ में शाहेनूर के मामा फिरोज अहमद और मां शमीम बानो ने पुलिस को बताया कि पिछले साल अगस्त में शाहेनूर उर्फ शीनू की मंगनी साबिर हुसैन से की गई थी. साबिर फेब्रिकेशन का काम करता था. इस के बाद साबिर का उन के घर आनाजाना शुरू हो गया.

इसी दौरान उन्हें साबिर के चालचलन के बारे में कई जानकारियां मिलीं. पता चला कि साबिर न सिर्फ अव्वल दरजे का नशेड़ी है, बल्कि उस की सोहबत जरायमपेशा किस्म के लोगों से भी है. शमीम बानो ने कहा, ‘तब हम ने घर बैठ कर आपस में मशविरा कर के इस नतीजे पर पहुंचे कि साबिर से बेटी का रिश्ता कायम रखने का मतलब शाहेनूर सरीखी संजीदा लड़की का भविष्य दांव पर लगाना होगा. नतीजतन रिश्ता तोड़ना ही बेहतर समझा गया. काफी सोचनेसमझने के बाद करीब 6 महीने पहले हम ने साबिर से रिश्ता तोड़ दिया.’

साबिर असलम खान के घर आनेजाने का आदी हो चुका था और शाहेनूर से प्यार भी करने लगा था. वह शाहेनूर से शादी करना चाहता था. शमीम बानो का कहना था कि मंगनी तोड़ने से साबिर इस हद तक बौखला गया कि एक दिन वह तूफान मचाता हुआ घर पहुंच गया. उन की मौजूदगी में शाहेनूर के साथ मारपीट कर बैठा.

शाहेनूर के पिता असलम उन दिनों घर पर नहीं थे. वह छाबड़ा में अपनी नौकरी पर थे. असलम छोटीछोटी बातों पर बहुत गुस्सा करने वाले इंसान थे. बेटी की पिटाई वाली बात उन्हें इसलिए नहीं बताई गई कि वह गुस्से में आगबबूला हो कर कोई अनर्थ न कर बैठें या कहीं कोई बवाल ना मच जाए.

इस के बाद यह बात आईगई हो गई. साबिर का भी असलम के यहां आनाजाना एक तरह से बंद हो गया. पर वह अकसर शाहेनूर के घर के आसपास की गलियों में घूमता दिखाई देता था.

बाद में जब असलम को बात पता चली तो उन्होंने पुलिस में जाना इसलिए जरूरी नहीं समझा, क्योंकि खामखाह बिरादरी में बदनामी होती. शाहेनूर से दूरी बनाने के बजाय साबिर उसे फोन पर परेशान करने लगा. शाहेनृर ने यह बात घर वालों को बताई तो घर वालों ने उस से यह कह दिया कि वह साबिर से बात न करे.

साबिर की हिम्मत दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. शाहेनूर 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस ने ऐच्छिक विषय उर्दू ले रखा था, इस की वजह से वह 3 बजे के करीब एक इंस्ट्टीयूट में उर्दू की पढ़ाई करने जाती थी. साबिर जब शाहेनूर को रास्ते में परेशान करने लगा तो घर का कोई न कोई सदस्य उसे कोचिंग तक छोड़ने जाने लगा.

4 बेटियों के पिता असलम खान कोटा से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर बारां जिले के छाबड़ा कस्बे में नौकरी करते थे. वह थर्मल में बतौर तकनीशियन तैनात थे. शाहेनूर और इशिका के अलावा उन की 2 बेटियां और थीं, जो काफी छोटी थीं. नौकरी के लिहाज से असलम छाबड़ा में ही रहते थे. लेकिन हफ्तापंद्रह दिन में कोटा में अपने घर आते रहते थे.

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पुलिस ने जिस वक्त चंबल के बीहड़ों से साबिर को गिरफ्तार किया था. उस की कलाइयां लहूलुहान थीं और वो नशे में धुत था. तलाशी में पुलिस ने उसकी जेब से पाउडर सरीखा जहरीला पदार्थ बरामद किया था. पूछताछ में उस ने कबूल किया कि आत्महत्या करने की कोशिश में उस ने अपनी कलाई की नसें काटने की कोशिश की थी. जहर की पुडि़या भी उस ने खुदकुशी की खातिर ही अपने पास रखी थी. लेकिन वह उसे इस्तेमाल करता, इस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

साबिर ने पुलिस को बताया कि वह पहले अपने परिवार के साथ बोरखेड़ा में रहता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से खेडली इलाके में कमरा किराए  पर ले कर अकेला रह रहा था. पूछताछ के दौरान वह हर सवाल पर ठहाके मार कर हंस रहा था.

सुबह होने पर जब उस का नशा उतरा तो उस ने रोना शुरू कर दिया. शायद उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर सोमवार 12 दिसंबर को कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

13 दिसंबर को पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने शाहेनूर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का दिल तो उसी दिन टूट गया था, जिस दिन शाहेनूर से उस का रिश्ता टूटा था. वह उसे दिलोजान से चाहता था, पर उस ने मेरी मोहब्बत को तरजीह नहीं दी.

साबिर ने बताया कि उसे मारने के बाद वह खुद भी मर जाना चाहता था. इसलिए उस ने अपनी कलाई की नसें काटीं. वह जंगल में जहर खा कर मर जाता, लेकिन पुलिस ने उस की मंशा पूरी नहीं होने दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कनाडा से मिला सुराग : प्यार में जिम ट्रेनर बना कातिल

करीब ढाई साल पहले पति विनोद बराड़ा की हत्या कराने के बाद निधि ने पति के इंश्योरेंस के 50 लाख रुपए और करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा कर लिया था, लेकिन कनाडा से मिले एक क्लू के बाद पुलिस ने जब इस केस की दोबारा जांच की तो हत्या का ऐसा खुलासा हुआ कि पुलिस अधिकारी भी चौंक गए.

पानीपत (हरियाणा) पुलिस के एसपी अजीत सिंह शेखावत उस दिन बेहद उलझन में थे, क्योंकि  उन के पास पिछले 2 दिनों से वाट्सऐप पर लगातार एक विदेशी फोन नंबर से मैसेज आ रहा था. मैसेज भेजने वाले ने बताया था कि सदर थाना क्षेत्र की परमहंस कुटिया कालोनी में ढाई साल पहले 15 दिसंबर, 2021 को विनोद बराड़ा नाम के व्यक्ति की घर में घुस कर देव वर्मा उर्फ दीपक नाम के व्यक्ति ने 2 गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

मैसेज भेजने वाले ने खुद को मृतक विनोद बराड़ा का भाई बताते हुए दावा किया था कि उसे शक है कि इस हत्याकांड को देव वर्मा से अंजाम दिलवाया गया है. अगर पुलिस ठीक से जांच करे तो इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड और कारण दोनों सामने आ सकते हैं.

वाट्सऐप मैसेज के कारण उलझन में फंसे एसपी अजीत सिंह ने सीआईए-3 के प्रभारी इंसपेक्टर दीपक कुमार को अपने पास बुलाया और उन्हें मैसेज दिखा कर मैसेज भेजने वाले का पता करने और विनोद बराड़ा नाम के व्यक्ति की हत्या से जुड़ी जानकारी जुटाने के काम पर लगा दिया.

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     मृतक विनोद बरारा पत्नी निधि के साथ

2 दिन बाद सीआईए-3 के इंसपेक्टर दीपक कुमार ने बताया कि वाट्सऐप पर आए ये मैसेज आस्ट्रेलिया के नंबर से भेजे गए थे और वह किसी प्रमोद कुमार का नंबर है. प्रमोद कुमार मृतक विनोद बराड़ा का छोटा भाई है, जो आस्ट्रेलिया में रहता है. इस के अलावा इंसपेक्टर दीपक कुमार ने रिकौर्ड रूम से निकलवाई गई विनोद बराड़ा हत्याकांड की फाइल भी उन के सामने रख दी.

अजीत सिंह शेखावत ने जब हत्याकांड की फाइल का अध्ययन किया तो अचानक ही इस मामले में उन की दिलचस्पी बढऩे लगी. क्योंकि देखने में यह एक सीधासादा और बदला लेने के लिए हुई हत्या का केस नजर आ रहा था.

दरअसल, हुआ यूं था कि पानीपत शहर में परमहंस कुटिया कालोनी में अपनी पत्नी निधि और एक बेटे व बेटी के साथ रहने वाला विनोद बराड़ा सुखदेव नगर में एक कंप्यूटर सेंटर चलाता था.

5 अक्तूबर, 2021 की शाम विनोद बराड़ा परमहंस कुटिया के गेट पर बैठा था, तभी पंजाब नंबर की एक पिकअप गाड़ी के ड्राइवर ने विनोद बराड़ा को सीधी टक्कर मार दी थी. इस एक्सीडेंट में विनोद की जान तो बच गई, लेकिन उस की दोनों टांगे टूट गईं.

विनोद के पड़ोस में रहने वाले उस के चाचा वीरेंद्र सिंह ने सिटी थाने में आरोपी गाड़ी चालक के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया था. पुलिस ने गाड़ी के चालक पंजाब के भटिंडा निवासी देव वर्मा उर्फ दीपक को शहर थाना पुलिस ने लापरवाही से गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार कर उस की गाड़ी जब्त कर के उसे जेल भेज दिया था. 3 दिन बाद वाहन चालक देव वर्मा की कोर्ट से जमानत भी हो गई.

लेकिन इस के करीब 15 दिन बाद देव वर्मा परमहंस कुटिया कालोनी में विनोद बराड़ा के घर पहुंच गया. वह दुर्घटना के लिए माफी मांगने लगा और विनोद से कहने लगा कि उस के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस ले ले.

लेकिन विनोद ने समझौता करने से मना कर दिया, क्योंकि उस के कारण वह अपनी टांगें तुड़वा चुका था. लेकिन ऐसा लगता था कि ऐक्सीडेंट करने वाली गाड़ी का चालक देव वर्मा कोई सनकी या पागल इंसान था, क्योंकि जातेजाते वह विनोद बराड़ा को समझौता नहीं करने का अंजाम भुगतने की धमकी दे कर चला गया.

घर में घुसा और मार दी गोली

विनोद बराड़ा ऐसे लागों को अच्छी तरह जानता था, इसलिए इस बात को वह एक पागल आदमी की बात समझ कर भूल गया. लेकिन देव वर्मा नहीं भूला. इस बात की रंजिश उस ने इस हद तक कर ली कि देव वर्मा 15 दिसंबर, 2021 को पिस्तौल ले कर विनोद के घर पर आया और अंदर घुस कर दरवाजा बंद कर कुंडी लगा ली.

यह देख किचन में काम कर रही विनोद की पत्नी शोर मचाते हुए घर के बाहर भागी और पड़ोस में रहने वाले चाचा ससुर वीरेंद्र को सहायता के लिए पुकारने लगी. 1-2 पड़ोसियों के साथ वीरेंद्र सिंह जब विनोद के घर पहुंचे तो पाया कि विनोद के कमरे की कुंडी अंदर से बंद थी.

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            आरोपी देव वर्मा

दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इस के बाद उन्होंने खिड़की से देखा तो आरोपी देव ने विनोद को बैड से नीचे गिरा कर पिस्तौल से कमर और सिर में गोली मार दी.

इस के बाद जैसे ही वह कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकला तो वीरेंद्र सिंह ने अपने बेटे यश और एक पड़ोसी चंदन के साथ आरोपी देव को मौके पर ही पहले तो काबू किया, उस के बाद पड़ोसियों के साथ मिल कर जम कर पीटा. फिर पुलिस को बुला कर उस के हवाले कर दिया था.

वीरेंद्र सिंह खून से लथपथ अपने भतीजे विनोद को अग्रसेन हौस्पिटल ले कर गए. वहां डाक्टरों ने विनोद को मृत घोषित कर दिया. पति की मौत पर वीरेंद्र की पत्नी निधि का रोरो कर बुरा हाल था.

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वीरेंद्र सिंह की शिकायत पर थाना सिटी में हत्या का मुकदमा दर्ज कर कानूनी काररवाई अमल में लाई गई. इस मामले में पुलिस ने हत्या के आरोप में आरोपी देव वर्मा को जेल भेज दिया. उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया था. कुछ महीने बाद पुलिस ने उस के खिलाफ हत्या की चार्जशीट भी अदालत में दाखिल कर दी. इस मामले में ट्रायल भी शुरू हो गया था.

वैसे तो फाइल पढऩे से एसपी अजीत सिंह शेखावत को ये साधारण केस ही लगा था. लेकिन अचानक वाट्सऐप पर विनोद के भाई प्रमोद के मैसेज का खयाल आते ही उन के जेहन में सवाल उठा कि देव के ऊपर दर्ज हुए ऐक्सीडेंट का केस तो एक मामूली केस था. इसलिए इस में समझौता न करने पर आखिर कोई हत्या क्यों करेगा. क्योंकि सड़क हादसे के केस में न ही बहुत ज्यादा सजा होती है और ये धारा भी जमानती होती है. जबकि हत्या के केस में उम्रकैद से ले कर फांसी तक हो सकती है. फिर देव वर्मा ने ऐसा घातक काम क्यों किया.

आस्ट्रेलिया वाले भाई ने दिया खास क्लू

एसपी अजीत सिंह को यहीं से शक शुरू हो गया. उन्हें लगा कि कहीं न कहीं कोई ऐसी वजह जरूर है, जिस के कारण प्रमोद भाई की हत्या में अन्य लोगों के शामिल होने का शक जता रहा है.

उन्हें लगा कि प्रमोद ने जो दावा किया है, कहीं न कहीं उस के पीछे कोई वजह जरूर होगी. उन्होंने तय किया कि सारा माजरा समझने के लिए उन्हें प्रमोद से बात करनी होगी. लिहाजा उन्होंने प्रमोद को वाट्सऐप पर एक मैसेज भेजा कि वह उन से बात करे.

जिस के बाद प्रमोद ने उन से वाट्सऐप पर आस्ट्रेलिया से बात की. प्रमोद ने बताया कि वह पिछले 15 सालों से आस्ट्रेलिया में नौकरी करता है. भाई की हत्या के बाद उस ने अपने पिता हरेंद्र सिंह व भाई प्रमोद के बड़े बेटे हर्ष को अपने पास ही बुला लिया था.

”प्रमोदजी, मैं आप से यह जानना चाहता हूं कि आप को इस बात का कैसे शक है कि आप के भाई की हत्या में देव वर्मा के अलावा कोई और भी शामिल है?’’ एसपी अजीत सिंह शेखावत ने प्रमोद से सवाल किया तो उस ने जो जवाब दिया उसे सुन कर शेखावत के कान खड़े हो गए.

प्रमोद ने बताया कि उस के भाई विनोद बराड़ा (48 वर्ष) का जब ऐक्सीडेंट हुआ था तो उस के बाद से भाई विनोद और भाभी निधि में अकसर किसी न किसी बात को ले कर झगड़ा होता रहता था. प्रमोद ने बताया कि उस के भाई ने एक बार बातों बातों में इशारा किया था कि निधि अपने जिम ट्रेनर के साथ इश्क के चक्कर में पड़ी हुई है.

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                        जिम ट्रेनर सुमित उर्फ बंटू पुलिस कस्टडी में 

यह बात भाई विनोद को पता चल गई थी, इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होता था. इस के अलावा जब विनोद की हत्या हो गई तो उस के बाद उस की भाभी निधि का व्यवहार भी एकदम बदल गया था. वह उस के पिता हरेंद्र सिंह से बदतमीजी से बात करने लगी थी.

उस के भाई विनोद के इंश्योरेंस के 50 लाख रुपए में से निधि ने परिवार को फूटी कौड़ी भी नहीं दी. उस ने सारी प्रौपर्टी और दुकान मकान पर एक तरह से अपना हक कायम कर लिया था. इतना ही नहीं, वह परिवार वालों से बिना अनुमति लिए अकसर कईकई दिनों के लिए बाहर घूमने चली जाती थी.

इतना ही नहीं, जब अदालत में देव वर्मा के खिलाफ उस के भाई की हत्या का ट्रायल शुरू हुआ तो अचानक निधि मार्च, 2022 में कोर्ट में अपने बयान से मुकर गई और उस ने देव को पहचानने से ही इंकार कर दिया कि हत्या वाले दिन वह उस के घर आया था.

प्रमोद ने एसपी अजीत सिंह शेखावत को बताया कि उसे लगा कि हो न हो उस के भाई की हत्या में निधि या उस के किसी करीबी की भी मिलीभगत हो सकती है. इसीलिए उस ने अपने पिता को जो भाई की हत्या के बाद से निधि के पास रहने लगे थे, उन्हें व भतीजे हर्ष को भारत से अपने पास ही बुला लिया.

प्रमोद बराड़ा से पूरी बात जानने के बाद शेखावत की समझ में सारा माजरा आ गया. उन्होंने प्रमोद से कहा, ”मिस्टर प्रमोद, आप जल्द से जल्द भारत आ जाइए, हम आप का केस फिर से इनवेस्टिगेट करा रहे हैं.’’

प्रमोद ने उन्हें आश्वस्त कर दिया कि वह अगले हफ्ते तक भारत आ जाएगा.

ढाई साल बाद फिर से शुरू हुई जांच में क्या मिला

इस के बाद एसपी अजीत सिंह ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सीआईए-3 प्रभारी इंसपेक्टर दीपक कुमार को इस मामले की गोपनीय तरीके से जांच करने और कानूनी प्रक्रिया अपनाने का आदेश दिया. इंसपेक्टर दीपक कुमार ने इस केस की जांच के लिए एक अलग टीम बना कर उस में शामिल पुलिसकर्मियों को अलगअलग काम पर लगा दिया.

एक टीम ने अदालत में चल रही काररवाई की फाइल की कौपी हासिल की तो एक टीम ने मृतक के चाचा वीरेंद्र सिंह को बुला कर उन से केस से जुड़ी जानकारी हासिल की. पुलिस ने हत्या के आरोपी देव वर्मा के मोबाइल की पुरानी डिटेल्स निकाल कर उस की भी छानबीन शुरू कर दी.

इस दौरान विनोद के चाचा वीरेंद्र से निधि का मोबाइल नंबर भी हासिल कर लिया और उस की पिछले 3 सालों की सारी काल डिटेल्स निकलवा ली.

एक टीम को अदालत में दर्ज केस की फाइल में लगे सबूतों को स्टडी करने के काम पर लगा दिया गया. जब जांच आगे बढ़ी तो कडिय़ां भी जुडऩे लगीं. सामने आया कि विनोद की हत्या के आरोपी देव वर्मा की विनोद की हत्या से 4 महीने पहले से सुमित उर्फ बंटू  नाम के युवक से लगातार बातचीत होती थी.

पुलिस ने जब बंटू के फोन नंबर की काल डिटेल निकाली तो पता चला कि वह गोहाना का रहने वाला है और पानीपत शहर में सेक्टर 11/12 की मार्केट में ‘योर बौडी फिटनैस सेंटर’ में जिम ट्रेनर था. मृतक विनोद बराड़ा की पत्नी निधि से सुमित उर्फ बंटू काफी बातचीत करता था.

दोनों के बीच विनोद की हत्या से काफी पहले से ही बातचीत व वाट्सऐप मैसेज के आदानप्रदान का सिलसिला चल रहा था. निधि के मोबाइल के काल रिकौर्ड से भी पता चला कि वह लगातार सुमित उर्फ बंटू से बातचीत करती थी.

इतना ही नहीं, जब पुलिस ने निधि के बैंक खाते की डिटेल निकाली तो पता चला कि वह अब तक अपने बैंक खाते से करीब 20 लाख रुपए निकाल चुकी थी.

इस तमाम जांच से अब तक यह बात तो साफ हो गई कि इस पूरे मामले में कहीं न कहीं निधि और सुमित उर्फ बंटू विनोद बराड़ा के हत्यारोपी देव वर्मा के साथ जुड़ रहे थे और वह एक पूरी कड़ी थी, जो साबित करती थी कि विनोद बराड़ा की हत्या में उन का हाथ है.

एक सप्ताह के बाद प्रमोद भी भारत आ गया और वह पानीपत पहुंच कर एसपी अजीत सिंह शेखावत से मिला. उस ने रूबरू हो कर उन्हें सारी कहानी सुनाई.

इस दौरान पुलिस टीम ने फाइल का दोबारा गहनता से अध्ययन किया और नए साक्ष्यों का संदर्भ दे कर कोर्ट से अनुमति ले कर विनोद बराड़ा केस की दोबारा से आधिकारिक जांच करने की अनुमति मांगी. अच्छी बात यह रही कि अदालत ने अनुमति भी दे दी, फिर पुलिस ने जांच शुरू कर दी.

पुलिस टीम ने विनोद की हत्या के बाद उस के घर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज जब्त की थी, जो अदालत में जमा थी. पुलिस टीम ने नई जांच के संदर्भ में जब इस सीसीटीवी फुटेज को दोबारा देखा तो साफ हो गया कि वारदात वाले दिन निधि ने अपने पति विनोद बराड़ा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की थी.

सीसीटीवी  फुटेज में साफ दिखाई दे रहा था कि आरोपी ने घर के अंदर आते ही विनोद की पत्नी निधि को नमस्ते किया और फिर वह विनोद के कमरे में घुस गया. तभी निधि अपनी बेटी के साथ घर से बाहर भाग गई. इस के बाद कमरा अंदर से बंद कर आरोपी ने विनोद की गोली मार कर हत्या कर दी.

सीसीटीवी फुटेज में निधि अपनी बेटी के साथ बाहर भागती दिखाई दी. इस के थोड़ी देर बाद बाहर से 2 लोग अंदर आए और दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगे, लेकिन तब तक शूटर अंदर कुंडी लगा कर विनोद बराड़ा को गोलियां मार चुका था.

किन सबूतों पर गिरफ्तार किए गए आरोपी

पुलिस के पास अब शक के दायरे में आए सभी आरोपियों को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के पर्याप्त आधार थे. लिहाजा पुलिस ने सब से पहले देव वर्मा से गहनता से पूछताछ करने के लिए 3 जून, 2024 को जेल से उसे 5 दिनों की रिमांड पर लिया. देव से कड़ी पूछताछ हुई तो उस ने चौंकाने वाली जानकारी दी.

इस के बाद सीआईए टीम ने 7 जून, 2024 को आरोपी सुमित उर्फ बंटू को सेक्टर 11/12 की मार्केट स्थित उस के जिम से हिरासत में लिया और कड़ी पूछताछ शुरू कर दी. पहले तो वह खुद को बेगुनाह बता कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब उसे निधि और देव वर्मा से हुई बातचीत की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस ने अपना गुनाह स्वीकार लिया.

पुलिस ने आरोपी सुमित उर्फ बंटू को गिरफ्तार कर कोर्ट से उसे 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. उस ने जो जानकारी दी, उस के बाद 10 जून, 2024 को निधि को भी हिरासत में ले लिया गया.

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                                             एसपी अजीत सिंह शेखावत

तीनों आरोपियों को आमनेसामने बैठा कर जब एसपी अजीत सिंह शेखावत ने खुद पूछताछ की तो ढाई साल पहले हुई विनोद बराड़ा की हत्या की असल कहानी सामने आ गई.

आरोपी सुमित उर्फ बंटू ने पुलिस को बताया कि साल 2021 में वह पानीपत के एक जिम में ट्रेनिंग देता था. विनोद की पत्नी निधि भी वहां एक्सरसाइज करने के लिए आती थी. निधि खूबसूरत और जवान होने के साथ चंचल स्वभाव की थी. सुमित भी हंसमुख स्वभाव का था, दोनों की दोस्ती हो गई. दोनों आपस में काफी बातचीत करने लगे.

निधि और सुमित की दोस्ती कब शारीरिक आकर्षण में बदल गई, पता ही नहीं चला. दरअसल, निधि का पति विनोद उसे प्यार तो बहुत करता था, लेकिन उस के प्यार में वो कशिश नहीं थी, जो निधि को बांध कर रख सके. इसीलिए जब उसे अपने मिजाज के सुमित से लगाव हुआ तो वह पूरी तरह उस के बहाव में बह गई.

कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. ऐसा ही हुआ. जिम जातेजाते अचानक निधि की जीवनशैली में बदलाव और उस का बातबात में चीजों को छिपाने से विनोद को लगा कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला हैं. उस ने निधि की निगरानी की तो जल्द ही पता चल गया कि वह अपने जिम ट्रेनर सुमित के इश्क में डूबी हुई है.

विनोद को उन दोनों के बारे में पता चला तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. जिस बीवी को उस ने खुद से ज्यादा चाहा और उस के मुंह से निकली हर फरमाइश पूरी की, उस ने उस के साथ धोखा कैसे कर दिया. इस के बाद विनोद निधि के साथ झगड़ा भी करने लगा. सुमित से भी उस की जम कर कहासुनी हुई.

लेकिन जब तक ये हुआ, पानी सिर से उपर जा चुका था. निधि और सुमित साथ जीनेमरने की कसमें खा चुके थे.

जब विनोद ने निधि पर हाथ छोडऩा शुरू किया तो विनोद के लिए उस के दिल में बचा हुआ प्यार भी खत्म हो गया. लिहाजा दोनों ने मिल कर फैसला लिया कि विनोद से छुटकारा पाने के लिए उस की हत्या करवा दी जाए. इस के बाद इस बात पर मंथन शुरू हो गया और लंबी बातचीत के लिए उन्होंने विनोद को ऐक्सीडेंट में मरवाने का फैसला कर लिया.

सुमित उर्फ बंटू का एक जानकार ट्रक ड्राइवर था देव वर्मा उर्फ दीपक, जो भटिंडा के बलराज नगर का रहने वाला था. उस के परिवार में 2 बच्चे व पत्नी थी. उस ने देव को अपने भरोसे में ले कर कहा कि अगर वह एक्सीडेंट कर के विनोद बराड़ा की हत्या कर देगा तो उसे 5 लाख रुपए देगा. इतना ही नहीं, वह उस की जमानत भी करा देगा और एक्सीडेंट करने के लिए गाड़ी भी खरीद कर देगा.

हत्या करने के क्यों बनाए 2 प्लान

देव मुफलिसी की जिंदगी जी रहा था, इसलिए वह लालच में आ गया और यह काम करने के लिए तैयार हो गया.

सुमित ने देव को पंजाब के नंबर की एक पुरानी लोडिंग पिकअप गाड़ी खरीद कर दे दी. इस के बाद देव विनोद की लगातार रेकी करने लगा कि वह किस वक्त घर से निकलता है, कब घर लौटता है.

देव वर्मा ने 5 अक्तूबर, 2021 को इसी पिकअप गाड़ी से विनोद को सीधी टक्कर मार कर उस का ऐक्सीडेंट कर दिया. उस वक्त विनोद परमहंस कुटिया कालोनी के गेट पर बैठा था. ऐक्सीडेंट में विनोद की मौत तो नहीं हुई, लेकिन उस की दोनों टांगें टूट गईं. इस मामले में देव गिरफ्तार हो गया और उस की 3 दिन में जमानत भी हो गई. पहली प्लानिंग फेल हो चुकी थी. लिहाजा निधि और सुमित ने फिर से प्लानिंग बनाई और दोनों ने गोली मार कर विनोद को मरवाने का प्लान बनाया.

उन्होंने देव वर्मा की जमानत करवाई और उस को दोबारा से विनोद की हत्या के लिए राजी किया और वादा किया कि उसे 5 लाख रुपए और दिए जाएंगे तथा उस के परिवार तथा बच्चों की पढ़ाई के साथ मुकदमा लडऩे का खर्च भी वही उठाएंगे. बाद में चश्मदीद गवाह के रूप में गवाह बनने के बाद निधि अपने बयान से भी मुकर जाएगी.

प्लान फुलप्रूफ था, इसलिए पैसे के लालच में देव वर्मा फिर से तैयार हो गया. सुमित ने उसे अवैध पिस्तौल व कारतूस खरीद कर दे दिए. हथियार उपलब्ध करवाने के बाद पहले देव को माफी मांगने के बहाने विनोद बराड़ा के पास भेजा गया.

समझौता नहीं होने के बाद अंजाम भुगतने की धमकी भी दिलाई गई ताकि पूरी तरह लगे कि उस ने इंतकाम लेने के लिए विनोद की हत्या की. इस के बाद 15 दिसंबर, 2021 को देव वर्मा ने घर में घुस कर तमंचे से विनोद बराड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी.

सुमित व निधि ने हत्या की जैसी स्क्रिप्ट लिखी थी, सब कुछ वैसा ही हुआ और विनोद की हत्या के आरोप में देव वर्मा जेल चला गया. चूंकि ओपन व शट केस था और देव वर्मा हत्या के बाद मौके पर ही पकड़ा गया था, इसलिए पुलिस ने भी उस वक्त गहनता से जांच नहीं की और वह जेल चला गया. सुमित उर्फ बंटू जेल में बंद देव के केस और घर पर परिवार का पूरा खर्च खुद देता रहा था. प्लान के अनुसार निधि मार्च 2024 में अदालत में अपनी गवाही से मुकर गई.

निधि ने विनोद की हत्या के बाद अपनी आगे की जिंदगी के लिए एक पूरी योजना बना रखी थी. इस योजना के मुताबिक, पहले विनोद का कत्ल होना था. इस के बाद उस की प्रौपर्टी और इंश्योरेंस की रकम से शूटर की डिमांड पूरी करनी थी और ये सब होने के बाद जिम ट्रेनर सुमित के साथ जिंदगी शुरू करनी थी.

निधि अपनी हवस की आग में इस कदर अंधी थी कि विनोद की हत्या के कुछ दिन बाद वह बहाने से सुमित के साथ घूमने मनाली भी गई. लोग हैरान थे कि अपने पति को खोने वाली निधि के चेहरे से गम के आंसू इतनी जल्दी कैसे सूख गए. शायद किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उस पूरे हत्याकांड को अंजाम देने वाली निधि ही थी.

तीनों आरोपियों से रिमांड अवधि में पूछताछ पूरी होने के बाद पुलिस ने देव वर्मा के साथ निधि व सुमित को भी हत्या व साजिश रचने का आरोपी मान कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेजा गया. इतना ही नहीं, अब आरोपियों के खिलाफ ऐक्सीडेंट केस में भी भादंवि धारा 307 और 120बी जोड़ ली गई है.

—कहानी पुलिस जांच व दिए गए तथ्यों पर आधारित

प्रेमी को पाने के लिए रची अनूठी साजिश

28 नवंबर, 2017 की सुबह 8 बजे के करीब सुधाकर किसी काम से बाहर गया हुआ था. स्वाति बच्चों  को स्कूल के लिए तैयार कर के उन के लंच बौक्स में खाना रख रही थी. उसे खुद भी अस्पताल जाना था, इसलिए वह सारे काम जल्दी जल्दी निपटा रही थी. जब वह लंच बौक्स तैयार कर के बच्चों के बैग में रख रही थी, तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

स्वाति ने मोबाइल उठा कर स्क्रीन पर नजर डाली तो डिसप्ले हो रहा नंबर बिना नाम का था. मतलब फोन किसी अपरिचित का था. उस ने फोन रिसीव कर के जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से किसी पुरुष की दमदार आवाज आई, ‘‘यह नंबर सुधाकर रेड्डी का है?’’

‘‘जी, यह उन्हीं का नंबर है. मैं उन की पत्नी बोल रही हूं. आप कौन हैं और उन से क्या काम है? वह अभी बाहर गए हुए हैं. घर आते ही उन्हें बता दूंगी.’’ स्वाति ने कहा.

‘‘बताने की कोई जरूरत नहीं है. वह मेरे परिचितों में हैं.’’ दूसरी ओर से हड़बड़ाई आवाज में कहा गया.

‘‘फिर फोन क्यों किया?’’ स्वाति ने पूछा.

‘‘भाभीजी, कालोपुर कालोनी के पास किसी ने सुधाकर पर तेजाब फेंक कर उसे घायल कर दिया है.’’

‘‘क्याऽऽ?’’ सुन कर स्वाति घबरा गई. फोन काट कर वह कालोपुर कालोनी की ओर भागी. वहां पहुंच कर उस ने देखा तो पति सड़क किनारे घायल पड़ा तड़प रहा था. उस ने फोन कर के यह जानकारी सास को दी. इस के बाद तो घर में ही नहीं, रिश्तेदारी में भी कोहराम मच गया.

थोड़ी देर में सभी वहां पहुंच गए. सुधाकर को जिला अस्पताल ले जाया गया, वहां के डाक्टरों ने उस की हालत देख कर हैदराबाद रेफर कर दिया. स्वाति पति सुधाकर को ले कर हैदराबाद पहुंची, जहां उसे जाने माने अपोलो अस्पताल में भरती कराया गया. दूसरी ओर सुधाकर के भाई ने थाना नगरकुरनूल में उस पर हुए हमले की अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

सुधाकर रेड्डी का चेहरा और सीना तेजाब से बुरी तरह से झुलस गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस उस का बयान लेने अस्पताल पहुंची. लेकिन वह बयान देने की स्थिति में नहीं था.

पुलिस अपनी जरूरी काररवाई कर के चली गई. पुलिस के जाने के बाद स्वाति ने सासससुर को फोन कर के बताया कि डाक्टरों ने चेहरे के दागों को मिटाने के लिए उस के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करने की सलाह दी है. इस के लिए घर वालों ने हामी भर दी. उन्होंने कहा कि जैसा डाक्टर कहते हैं, वह करे. सर्जरी में जो भी खर्च आएगा, वे देने को तैयार हैं. पैसे की कोई चिंता न करे, बस सुधाकर किसी भी तरह स्वस्थ हो जाए.

सुधाकर का चेहरा तेजाब से बुरी तरह विकृत हो गया था और सूजा हुआ था. एकबारगी देख कर उसे कोई भी नहीं पहचान सकता था. लेकिन जब से वह इलाज के लिए अस्पताल में भरती हुआ था, तब से अजीब अजीब हरकतें कर रहा था. नाते रिश्तेदार उसे देखने आ रहे थे. लेकिन वह उन में से बहुतों को पहचान नहीं पा रहा था. यह देख कर घर वाले और रिश्तेदार हैरान थे कि उस की याद्दाश्त को क्या हो गया है? वह किसी को पहचान क्यों नहीं पा रहा है? कहीं सुधाकर की जगह वह कोई बहुरूपिया तो नहीं है.

आखिर घर वालों ने यह सोच कर संतोष कर लिया कि यह उन का वहम भी हो सकता है. संभव है, इस हादसे का उस के दिमाग पर गहरा असर हुआ हो, जिस की वजह से वह अजीबगरीब हरकतें कर रहा है. इस के बाद उन लोगों ने उस की हरकतों पर ध्यान देना बंद कर दिया. कोई रिश्तेदार कुछ कहता तो वह कह देते कि हादसे की वजह से शायद इस की याद्दाश्त चली गई है. स्वाति हर समय अस्पताल में पति के साथ मौजूद रहती थी.

8 दिसंबर, 2017 को स्वाति सुधाकर की देखरेख के लिए एक रिश्तेदार को छोड़ कर किसी काम के लिए बाहर चली गई. रिश्तेदार भरोसे का था, इसलिए वह निश्चिंत थी. मरीजों को खाना अस्पताल से ही मिलता था और रोजाना अलगअलग खाना दिया जाता था. उस दिन नाश्ते में मटन सूप था. खाना देने वाला बौय मटन सूप ले कर आया और उसे सुधाकर को पीने को दिया तो वह नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं शुद्ध शाकाहारी हूं. मांस मछली खाने की कौन कहे, मैं छूता तक नहीं.’’

सुधाकर की यह बात सुन कर रिश्तेदार चौंका. वह सोच में पड़ गया कि ऐसा कैसे हो सकता है. सुधाकर तो मांसाहारी खाना खाता था. मटन सूप तो उसे खूब पसंद था. फिर उस ने मना क्यों किया. उस की अजीब हरकतों को ले कर सब वैसे ही परेशान थे, इस बात ने उन की परेशानी और बढ़ा दी.

अस्पताल में मटन सूप न पीने पर हुआ शक

यह बात उस रिश्तेदार के दिमाग में खटकी लेकिन उस ने कुछ कहा नहीं. थोड़ी देर में स्वाति आई तो उस ने यह बात उस से भी नहीं कही. बिना कुछ कहे ही वह चला गया. उस रिश्तेदार ने यह बात स्वाति से भले ही नहीं कही, लेकिन सुधाकर के पिता को जरूर बता दी. साथ ही उन से पूछा भी, ‘‘सुधाकर तो मांस मछली का बड़ा शौकीन था, उस ने यह सब खाना कब से छोड़ दिया था? अस्पताल में उसे मटन सूप पीने को दिया गया तो वह चिल्लाने लगा कि वह मांसाहारी नहीं शाकाहारी है.’’

इस बात ने सुधाकर के पिता को भी हैरान कर दिया. वह भी सोच में पड़ गए. इस की वजह थी सुधाकर की अजीब हरकतें. वह सोच ही रहे थे कि क्या करें, तभी उसी दिन दोपहर किसी ने फोन कर के उन्हें जो बताया, उसे सुन कर वह हैरान रह गए. सहसा उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ.

उस आदमी ने उन्हें बताया कि अस्पताल में भरती जिस आदमी के इलाज पर वह लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं, वह उन का बेटा एम. सुधाकर रेड्डी नहीं, बल्कि एक तरह से उन का दुश्मन है. वह सुधाकर की हत्या कर के उस की जगह लेने की कोशिश कर रहा है.

यह जान कर सुधाकर के पिता परेशान हो उठे कि यह हो क्या रहा है, ऐसा कैसे हो सकता है. कोई आदमी किसी की हत्या कर के उस की जगह कैसे ले सकता है. यह सब सोच कर वह चिंतित हो उठे. इस तरह उन के सामने 2 चीजें आ गईं, जिन से उन्हें शंका हुई.

सुधाकर जब से अस्पताल में भरती हुआ था, तब से उस का बातव्यवहार, चालचलन और हावभाव काफी बदला बदला सा लग रहा था. कभीकभी घर वालों को उस पर शक तो होता था कि वह उन का बेटा सुधाकर नहीं है, लेकिन उन के पास कोई सबूत नहीं था. लेकिन जब ये 2 बातें उन के सामने आईं तो उन का शक यकीन में बदल गया.

उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो पत्नी ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? यह कोई फिल्म थोड़े ही है कि कोई किसी की हत्या कर के उस की जगह ले ले.’’

सुधाकर के पिता ने पत्नी को इस बात के लिए राजी किया कि क्यों न हकीकत का पता लगाया जाए कि वह हमारा बेटा सुधाकर ही है या कोई और, जो बेटे के रूप में उस की जगह लेना चाहता है. पत्नी राजी हो गईं तो वह कुछ रिश्तेदारों को ले कर अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने रिश्तेदारों के सामने खड़ा कर के सुधाकर से पूछा कि ये हमारे कौन रिश्तेदार हैं, कहां रहते हैं, इन का नाम क्या है?

यह पूछने पर सुधाकर एकदम से हड़बड़ा गया. वह चूंकि उन रिश्तेदारों को पहचानता ही नहीं था तो क्या बताता. वह चुप रहा तो सुधाकर के मातापिता जहां परेशान हो उठे, वहीं स्वाति भी परेशान हुई. वह इधरउधर की बातें करने लगी.

अब सुधाकर के घर वालों को पूरा विश्वास हो गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. सुधाकर का भाई प्रभाकर पिता के साथ थाना नगरकुरनूल गया और थानाप्रभारी श्रीनिवास राव को सारी बात बता कर सच्चाई का पता लगाने का आग्रह किया.

आधार कार्ड से खुली पोल

मामला हैरान करने वाला था. श्रीनिवास राव ने उन्हें आश्वासन दे कर घर भेज दिया. वह भी सोच में पड़ गए, क्योंकि ऐसा मामला उन की जिंदगी में पहली बार सामने आया था. उन्होंने एसपी एस. कमलेश्वर को पूरी बात बताई. वह भी हैरान रह गए. यह मामला किसी सस्पेंस फिल्म जैसा पेचीदा था. जिस व्यक्ति को खुद घर वाले नहीं पहचान पा रहे थे, उसे दूसरा कोई कैसे पहचान सकता था.

एसपी एस. कमलेश्वर ने औफिस में मीटिंग बुलाई, जिस में एडीशनल एसपी जे. चेनायाह, एएसपी लक्ष्मीनारायण और थानाप्रभारी श्रीनिवास राव शामिल हुए.

मीटिंग से पहले श्रीनिवास राव ने सुधाकर के पिता से उस की पहचान से संबंधित जरूरी जानकारी के अलावा आधार कार्ड, पैनकार्ड तथा वोटर आईडी वगैरह ले लिया था.

पुलिस अधिकारियों के सामने चुनौती यह थी कि अस्पताल में जिस आदमी का इलाज चल रहा था, वह सुधाकर रेड्डी नहीं था तो कौन था? इस की पहचान कैसे की जाए. एस. कमलेश्वर ने सुधाकर की पहचान के सारे प्रमाण अपने पास मंगवा लिए थे. 2-3 घंटे चली बैठक में काफी माथापच्ची के बाद पुलिस अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुधाकर रेड्डी की पहचान आधार कार्ड के माध्यम से की जाए, क्योंकि उस में फिंगरप्रिंट होते हैं, जो दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे.

थानाप्रभारी श्रीनिवास राव मीटिंग से सीधे अस्पताल पहुंचे और जब सुधाकर रेड्डी का अंगूठा रख कर उस का आधार खोला गया तो सुधाकर का आधार कार्ड खुलने के बजाय किसी सी. राजेश रेड्डी का आधार कार्ड खुल गया. इस से पूरा मामला साफ हो गया.

श्रीनिवास राव ने यह बात एसपी एस. कमलेश्वर को बताई तो वह भी समझ गए कि अस्पताल में भरती युवक एम. सुधाकर रेड्डी नहीं बल्कि उस की जगह राजेश रेड्डी इलाज करा रहा है. अब यह पता लगाना जरूरी हो गया था कि राजेश रेड्डी कौन है और सुधाकर रेड्डी की जगह अस्पताल में क्यों भरती है. अगर वह राजेश रेड्डी है तो सुधाकर रेड्डी कहां है? साथ ही यह भी कि स्वाति उस अजनबी को सुधाकर रेड्डी यानी अपना पति बता कर उस का इलाज क्यों करा रही है?

एसपी एस. कमलेश्वर ने थानाप्रभारी श्रीनिवास को आदेश दिया कि स्वाति और राजेश को किसी तरह का कोई शक हो, इस से पहले स्वाति को हिरासत में ले कर पूछताछ करो और राजेश के कमरे के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दो.

10 दिसंबर, 2017 की सुबह महिला पुलिस की मदद से स्वाति को हिरासत में ले लिया गया और राजेश के कमरे के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया, जिस से वह भाग न सके. स्वाति को थाना नगरकुरनूल लाया गया, जहां उस से पूछताछ शुरू हुई. स्वाति कोई क्रिमिनल तो थी नहीं, जो पूछताछ में पुलिस को छकाती. पूछताछ में उस ने जल्दी ही सारी सच्चाई उगल दी.

उस ने बताया कि अस्पताल में भरती युवक उस का पति एम. सुधाकर रेड्डी नहीं बल्कि प्रेमी सी. राजेश रेड्डी है. प्रेमी के साथ मिल कर उस ने सुधाकर की 26 नवंबर की सुबह हत्या कर के उस की लाश को वहां से 150 किलोमीटर दूर जिला महबूबनगर के मैसन्ना जंगल में ले जा कर जला दिया था.

उस ने पुलिस को सुधाकर की हत्या से ले कर राजेश के तेजाब से झुलस कर अस्पताल में भरती होने तक की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. स्वाति ने पुलिस को सुधाकर की हत्या और राजेश के तेजाब से झुलस कर अस्पताल में भरती होने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

32 वर्षीय एम. सुधाकर रेड्डी मेहनती आदमी था, उस का भरापूरा परिवार था. वह नगरकुरनूल की पौश कालोनी कोलापुर में पत्नी एम. स्वाति रेड्डी और 2 बच्चों आशीष और मिली के साथ किराए के मकान में रहता था. जबकि उस के मांबाप छोटे बेटे प्रभाकर के साथ गांव में रहते थे. सुधाकर पत्थर तोड़ने वाले एक यूनिट में नौकरी करता था. उसे वहां से अच्छाखासा पैसा मिलता था. नौकरी की वजह से उसे ज्यादातर घर से बाहर रहना पड़ता था. स्वाति एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी.

स्वाति जवान और खूबसूरत थी. उस के दिल में कुछ अरमान थे. उन्हीं के सहारे वह जी रही थी. पति काम की वजह से अकसर बाहर ही रहता था. पति के बिना स्वाति को बिस्तर काटने को दौड़ता था. उस की रातें करवटें बदलते हुए बीतती थीं. पति घर आता तो स्वाति उस से मन की पीड़ा कहती, सुधाकर पत्नी की पीड़ा को समझता था, लेकिन वह चाह कर भी उस की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था. वह नौकरी की दुहाई दे कर उसे समझाता. स्वाति पति की विवशता समझती थी, लेकिन वह मन का क्या करती, जो उस के काबू में नहीं था.

पहली ही मुलाकात में राजेश रेड्डी को दे बैठी दिल

स्वाति नर्स थी. अस्पताल के काम से उसे दूसरे अस्पतालों में फिजियोथेरैपिस्ट से मिलने जाना पड़ता था. बात 2 साल पहले की है. वह अस्पताल की ओर से एक प्राइवेट अस्पताल के फिजियोथेरैपिस्ट से मिलने गई थी. वहीं उस की मुलाकात सी. राजेश रेड्डी से हुई. उसे देख कर वह चौंकी, क्योंकि उस का चेहरा मोहरा और कदकाठी उस के पति सुधाकर से काफी मेल खा रहा था.

एकबारगी उसे देख कर कोई भी उस में और सुधाकर में फर्क नहीं कर सकता था. इसी पहली मुलाकात में स्वाति उस की मुरीद हो गई. स्वाति सुंदर तो थी ही, राजेश ने भी पहली मुलाकात में ही उसे अपने दिल की मलिका बना लिया. स्वाति अपना काम कर के चली तो आई लेकिन दिल राजेश के पास ही छोड़ आई.

इस के बाद किसी न किसी बहाने दोनों की मुलाकातें होने लगीं. इन्हीं मुलाकातों ने उन दोनों को एकदूसरे से प्यार करने को मजबूर कर दिया. राजेश की शादी नहीं हुई थी, जबकि स्वाति शादीशुदा थी. उस के 2 बच्चे भी थे. लेकिन अब यह सब कोई मायने नहीं रखते थे. राजेश की पर्सनैलिटी पर स्वाति इस तरह मर मिटी कि उसे न पति का खयाल रहा, न बच्चों का.

राजेश रेड्डी अपने मांबाप और भाई के साथ कोलापुर में रहता था. उस का परिवार काफी संपन्न था. मांबाप उसे पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहते थे. राजेश मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए जीजान से जुटा भी रहा, लेकिन वह डाक्टर नहीं बन सका. हां, फिजियोथेरैपिस्ट जरूर बन गया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी मिल गई थी, वहीं उस की मुलाकात स्वाति से हुई थी.

स्वाति और राजेश का प्यार दिनोंदिन बढ़ता गया. एक ऐसा समय भी आया जब वे एकदूसरे को देखे बिना नहीं रह पाते थे. उन के बीच की सारी दूरियां मिट चुकी थीं. मर्यादाओं को तोड़ कर वे कब के जिस्म के बंधन में बंध गए थे. स्वाति को राजेश के जिस्म की खुशबू सुधाकर के जिस्म से ज्यादा अच्छी लग रही थी. अब उसे पति से ज्यादा प्रेमी प्यारा लगने लगा था.

स्वाति के संबंध पतिपत्नी की तरह बन गए थे. स्वाति का हाल तो यह था कि वह राजेश की एक दिन की जुदाई भी बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. पति जितने दिन बाहर रहता, स्वाति उसे साथ रखती थी. बच्चे छोटे थे, इसलिए वे कुछ भी नहीं जानसमझ पा रहे थे. स्वाति राजेश से कहने लगी थी कि वह उस से शादी कर के उसे सुधाकर से मुक्ति दिलाए. 2 सालों तक दोनों के प्यार की किसी को भनक तक नहीं लग पाई थी.

स्वाति चाहती तो सुधाकर से तलाक ले कर राजेश से शादी कर सकती थी लेकिन न जाने क्यों उसे लगता था कि सुधाकर के जीते जी ऐसा नहीं हो पाएगा. उसे लगता था कि राजेश से तभी शादी कर पाएगी, जब सुधाकर रास्ते से हट जाए.

यही सोच कर स्वाति राजेश के साथ मिल कर सुधाकर को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगी. लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था. सुधाकर को ठिकाने लगाना तो आसान था, लेकिन खुद बचाना भी जरूरी था. वे दोनों इस के लिए आपराधिक धारावाहिक और इसी तरह की फिल्में देखने लगे. आखिर उन्हें श्रुति हसन की सुपरहिट फिल्म ‘येवाडु’ से सुधाकर को रास्ते से हटाने का आइडिया मिल गया.

इस फिल्म में दिखाया गया था कि पत्नी प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर देती है और बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिए प्रेमी का चेहरा पति जैसा करा देती है. उस के बाद प्रेमी प्रेमिका के साथ उसी के घर में रहने लगता है. कुछ दिनों बाद दोनों वह शहर छोड़ कर दूसरे शहर में रहने चले जाते हैं.

जैसा फिल्म में देखा था, स्वाति और राजेश ने तय किया कि वे भी ऐसा ही करेंगे. सुधाकर की हत्या कर के बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिए राजेश का चेहरा सुधाकर जैसा बनवा दिया जाएगा. उस के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह साथ रहेंगे. इस से किसी को शक भी नहीं होगा. कुछ दिनों बाद वे यह शहर छोड़ कर पुणे जा कर बस जाएंगे.

सुधाकर के पास कार और स्कूटर दोनों थे. कभी वह नौकरी पर कार से जाता था तो कभी स्कूटर से. 21 नवंबर को वह स्कूटर से ड्यूटी पर गया था. उस के जाने के बाद स्वाति ने फोन कर के राजेश को बुला लिया और कार से उस के साथ घूमने निकल गई.

संयोग से सुधाकर के चचेरे भाई ने उसे राजेश के साथ कार में जाते देख लिया. वह राजेश को पहचानता नहीं था, इसलिए उस ने भाभी को किसी अजनबी के साथ जाने की बात सुधाकर को फोन कर के बता दी.

प्रेमी को ले कर पति से हुआ झगड़ा

सुधाकर चिंता में पड़ गया कि पत्नी किस के साथ घूम रही है. उसे गुस्सा भी आया. यह बात उसे परेशान कर रही थी. उस का मन नौकरी पर नहीं लगा तो वह घर वापस आ गया. तब तक स्वाति घर नहीं आई थी. जब वह आई तो राजेश को ले कर पतिपत्नी में खूब झगड़ा हुआ. सुधाकर राजेश के बारे में पूछता रहा लेकिन स्वाति ने कुछ नहीं बताया. ऐसा 3 दिनों तक चलता रहा.

स्वाति ने राजेश से कह दिया कि उस की वजह से 3 दिनों से घर में लड़ाई झगड़ा हो रहा है. उन के संबंधों के बारे में किसी और को पता चले, उस के पहले ही सुधाकर को रास्ते से हटा दिया जाए. राजेश स्वाति की बात मान कर उस का साथ देने को तैयार हो गया.

25 नवंबर को राजेश मां से विजयवाड़ा जाने की बात कह कर घर से निकला और सीधे स्वाति के घर जा पहुंचा. उस समय सुधाकर कहीं गया हुआ था.

स्वाति ने राजेश को घर में ही बैड के नीचे छिपा दिया. उस दिन भी स्वाति और सुधाकर में खूब झगड़ा हुआ था, लेकिन स्वाति ने यह नहीं बताया था कि राजेश कौन है और उस का उस से क्या संबंध है. इसी वजह से घर में खाना तक नहीं पका था. स्वाति ने राजेश को घर में छिपा तो लिया था, लेकिन उसे डर लग रहा था कि अगर राजेश के घर में होने की खबर सुधाकर को हो गई तो कयामत आ जाएगी.

बहरहाल, किसी तरह रात कट गई. 26 नवंबर की सुबह 4 बजे के आसपास स्वाति जागी. दबे पांव बिस्तर से उतर कर उस ने बैड के नीचे छिपे राजेश को उठाया. इस के बाद पर्स से एनेस्थेसिया का इंजेक्शन निकाला और राजेश की मदद से सुधाकर की गरदन में लगा दिया. सुधाकर बेहोश हो गया.

इस के बाद राजेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर तब तक दबाए रखा, जब तक कि उस की मौत नहीं हो गई. उसे हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. वह मर चुका था. लाश को उन्होंने कार में रखा और उसे 150 किलोमीटर दूर महबूबनगर के मैसन्ना जंगल में ले गए. जंगल में बीचोबीच लाश जला कर वे लौट आए.

स्वाति और राजेश खुश थे कि उन्होंने रास्ते का कांटा हटा दिया है. अब उन्हें कोई रोकने टोकने वाला या लड़ाई झगड़ा करने वाला नहीं बचा. साजिश का पहला पायदान वे चढ़ चुके थे. अब दूसरी साजिश को अंजाम देना था.

योजनानुसार प्रेमी के ऊपर खुद फेंका तेजाब

27 नवंबर की सुबह स्वाति और राजेश शहर के एक प्राइवेट अस्पताल पहुंचे, जहां सर्जरी की सुविधा उपलब्ध थी. दोनों ने वहां पता किया कि 30 प्रतिशत तक जले मरीज की सर्जरी पर कितना खर्च आता है. वहां उन्हें बताया गया कि इस तरह के मरीज पर 3 से 5 लाख रुपए का खर्च आ सकता है.

दोनों घर लौट आए और आगे क्या और कैसे करना है, इस की रूपरेखा तैयार की. स्वाति और राजेश ने तय किया कि अगली सुबह कालोनी के बाहर सुनसान जगह पर दूसरी घटना को अंजाम दिया जाएगा.

28 नवंबर की सुबह साढ़े 7 बजे स्वाति ने बच्चों को स्कूल भेज दिया और राजेश को ले कर कालोनी के बाहर सुनसान जगह पर पहुंच गई. योजना के अनुसार, स्वाति और राजेश पहले गले मिले, उस के बाद साथ लाए तेजाब को स्वाति ने राजेश के चेहरे पर फेंक दिया. चेहरे के साथ उस की गरदन भी झुलस गई. प्रेमी की पीड़ा से स्वाति को काफी दुख पहुंचा, लेकिन ऐसा करना उस की मजबूरी थी. क्योंकि अब राजेश को सुधाकर बनवाना था. योजना को अंजाम दे कर वह घर लौट आई.

घर पहुंच कर स्वाति ने त्रियाचरित्र रचते हुए सासससुर को फोन कर के बताया कि सुधाकर के ऊपर किसी ने तेजाब फेंक दिया है. वह उसे ले कर अस्पताल जा रही है. सासससुर के अस्पताल पहुंचने तक राजेश के चेहरे पर मरहमपट्टी हो चुकी थी. चेहरा पट्टी से ढका होने के कारण वे उसे पहचान नहीं सके.

लेकिन शारीरिक बनावट और कदकाठी देख कर उन्हें संदेह तो हुआ, पर उस समय वे कुछ कह नहीं सके. राजेश को सुधाकर बना कर अस्पताल लाने वाली स्वाति ने सासससुर को अपनी बातों में कुछ इस तरह उलझाए रखा कि उन्हें राजेश को सुधाकर मानने के लिए विवश होना पड़ा.

सुधाकर पर हुए तेजाब के हमले की जांच पुलिस कर रही थी. इस जांच में पुलिस को कोलापुर कालोनी के पास लगे सीसीटीवी कैमरे से इस हमले की फुटेज मिल गई. उस फुटेज में साफ दिख रहा था कि स्वाति राजेश के साथ कालोनी के बाहर हंसहंस कर बातें करते हुए टहल रही थी. दोनों गले मिले और उस के बाद स्वाति ने बोतल का तेजाब राजेश के चेहरे पर फेंक दिया. राजेश तेजाब की जलन से वहीं बैठ कर छटपटाने लगा, जबकि स्वाति घर चली गई. इस के बाद क्या हुआ, कहानी के शुरू में ही उल्लेख किया जा चुका है.

स्वाति द्वारा रची गई साजिश का परदाफाश हो गया था. प्रेमी को पति का रूप दे कर जीवन भर साथ रहने का उस का सपना टूट चुका था. दूसरी ओर राजेश की मां बेटे को ले कर परेशान थी. वह शादी में विजयवाड़ा जाने की बात कह कर निकला था. कई दिन बीत जाने के बाद भी वह घर नहीं लौटा था. उसे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी थी, क्योंकि राजेश से फोन पर भी बात नहीं हो पा रही थी.

प्रेमी को पति बनाने की ख्वाहिश रह गई अधूरी

बेटे को ले कर परेशान राजेश की मां ने स्वाति से कई बार पूछा था, लेकिन उस ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. दरअसल, उन्हें राजेश और स्वाति के संबंधों के बारे में पता था. राजेश ने ही मां को उस के बारे में बताया था. इसलिए वह स्वाति से राजेश के बारे में बारबार पूछ रही थीं. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो वह इतनी शर्मिंदा हुई कि राजेश के कहने पर भी उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

स्वाति और राजेश की साजिश का खुलासा होने के बाद 10 दिसंबर, 2017 को पुलिस ने एम. सुधाकर रेड्डी की हत्या के आरोप में उस की पत्नी एम. स्वाति रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया था. सी. राजेश रेड्डी का अभी इलाज चल रहा था, इसलिए पुलिस ने उसे फिलहाल गिरफ्तार नहीं किया. पूछताछ में उस ने भी सुधाकर की हत्या का अपना अपराध कबूल कर लिया था.

राजेश के इलाज का खर्च 5 लाख आया था, जिस में से सुधाकर के मांबाप ने बेटा समझ कर डेढ़ लाख रुपए अस्पताल में जमा करा दिए थे. सच्चाई का पता चलने के बाद बाकी रकम उन्होंने जमा नहीं की. अब बाकी पैसे राजेश से मांगे जा रहे थे. पुलिस को उस के स्वस्थ होने का इंतजार था ताकि स्वस्थ होते ही उसे गिरफ्तार किया जा सके.

पुलिस ने एम. सुधाकर रेड्डी की हत्या के आरोप में स्वाति और राजेश के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. स्वाति जेल में बंद है, जबकि राजेश का अभी इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित