निशा के जीवन की रक्तिम रात – भाग 3

जितेंद्र सुबह 9 बजे घर से निकलता तो उस की घर वापसी रात 12 बजे से पहले नहीं होती थी. एक दिन अचानक तबीयत खराब हुई तो जितेंद्र शाम 5 बजे ही घर जा पहुंचा. जब वह अपने घर पहुंचा, कमरे के अंदर से निशा की खिलखिलाहट सुनाई दी. जितेंद्र के पैर जहां के तहां ठिठक गए. वह मन ही मन सोचने लगा कि जब मैं घर में होता हूं तो निशा की त्यौरियां चढ़ रहती हैं. कुछ कहता हूं तो चिढ़ जाती है. कहीं वजह इस खिलखिलाहट में ही तो नहीं छिपी.

जितेंद्र का माथा ठनका. उस ने कदम बढ़ाया, लेकिन फिर पीछे खींच लिया. निशा कह रही थी, ‘‘तुम्हारे जोश की तो मैं दीवानी हूं. अरे छोड़ो यार, तुम किस लल्लू का जिक्र कर रहे हो. कहां तुम कहां वह. पति किसी लायक होता तो तुम से क्यों दिल लगाती.’’

निशा किस से बात कर रही थी, यह तो नहीं पता चला लेकिन वह यह जरूर समझ गया कि निशा खुश भी है और जोश में भी. उस की आवाज फिर सुनाई दी. वह कह रही थी, ‘‘तुम्हारे इसी जोश की तो मैं दीवानी हूं.’’

एकतरफा संवाद से जितेंद्र ने अनुमान लगाया कि कमरे में निशा के अलावा कोई और नहीं है. वह मोबाइल पर किसी से रसीली बातें कर रही होगी. जितेंद्र की खोपड़ी घूम गई. निशा बीवी उस की थी और जोश का गुणगान किसी दूसरे का कर रही थी. गुस्से में उस ने दरवाजे को धक्का दिया. भीतर से बंद न होने के कारण दरवाजा खुल गया.

सामने ही निशा कान से मोबाइल लगाए टहलते हुए किसी से बातें कर रही थी. पति को देखते ही हड़बड़ा कर उस ने मोबाइल डिसकनेक्ट कर दिया. निशा ने चेहरे पर मुसकान सजाने की जबरन कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अरे तुम, आज इतनी जल्दी आ गए?’’

‘‘यह जानने के लिए कि तू किस के जोश की दीवानी है.’’ जितेंद्र ने लपक कर निशा के हाथ से मोबाइल छीन लिया.

फोन का काल लौग चैक करने पर जितेंद्र ने पाया कि निशा जिस नंबर पर बात कर रही थी, वह होटल के मैनेजर विकास का था. वही विकास जिसे उस ने ही नौकरी पर रखा था. जितेंद्र का दिमाग पहले से गरम था, अब और भी गरम हो गया. उस ने निशा की कनपटी पर जोरदार थप्पड़ जड़ा और उसे धाराप्रवाह गालियां देने लगा.

निशा विकास के जोश की तारीफ करते रंगेहाथ पकड़ी गई थी, इसलिए उस के पास सफाई में कहने को कुछ नहीं था. निशा की खामोशी उस के गुनाह का इकरार था. पलपल जितेंद्र का क्रोध बढ़ता गया. उस ने निशा को लात, घूसों और थप्पड़ों से खूब धुना. हर प्रहार के साथ उस का प्रश्न होता था, ‘‘बता, तू विकास के जोश की दीवानी क्यों और कैसे हुई? कब से चल रहा है ये सब?’’

पति के तेवर देख निशा समझ गई कि जान बचानी है तो सच उगलना ही पड़ेगा. अंतत: उस ने पिटते पिटते रोते और सिसकते हुए अपने पतन की पूरी कहानी बयान कर दी. साथ ही दोबारा गलती न करने का वादा भी किया.

निशा को मारपीट कर जितेंद्र होटल पहुंचा तो विकास उसे काउंटर पर ही मिल गया. उसे देखते ही जितेंद्र आपा खो बैठा. वह विकास को घसीटते हुए कमरे में ले गया और बोला, ‘‘मैं ने तुझ पर तरस खा कर नौकरी दी और भरोसा कर के तुझे घर जाने की छूट दी. लेकिन तूने मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया. मैं तुझे आज और इसी वक्त नौकरी से निकाल रहा हूं. आज के बाद तू न तो होटल में नजर आएगा और न ही मेरे घर के आसपास.’’

पत्नी की बेवफाई से टूट गया जितेंद्र

विकास समझ गया कि किसी तरह उस के और निशा के नाजायज संबंधों की जानकारी जितेंद्र को हो गई है. वह वहां से चला गया. इस घटना के बाद निशा और विकास का मिलन बंद हो गया. लेकिन विकास के प्यार में पागल निशा ज्यादा दिनों तक उस से दूर नहीं रह सकी. उस ने फिर से विकास से संपर्क बना लिया. इस के बाद दोनों का फिर से शारीरिक मिलन होने लगा. यह अलग बात थी कि अब उन का मिलन घर के बजाए बाहर होता था.

इधर पत्नी की बेवफाई से जितेंद्र बुरी तरह टूट गया था. वह शराब तो पहले भी पीता था. लेकिन अब कुछ ज्यादा ही पीने लगा था. होटल से वह रात 12 बजे नशे में धुत हो कर घर आता और कभी खाना खा कर तो कभी बिना खाए ही बैड पर पसर कर सो जाता. नाजायज रिश्तों को ले कर अब निशा और जितेंद्र में अकसर झगड़ा होने लगा था. कभीकभी झगड़ा इतना बढ़ जाता था कि जितेंद्र निशा की पिटाई कर देता. बाद में निशा पूरे दिन सिसकियां भरती रहती.

बन गई खतरनाक योजना

रोजरोज के झगड़े व पिटाई से तंग आ कर एक दिन निशा ने एकांत में विकास से मुलाकात की और उस से बोली, ‘‘विकास, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती. जितेंद्र हम दोनों के मिलन में बाधक है. इस बाधा को दूर कर दो. अगर किसी दिन उस ने हम दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया तो हमारी जान ही ले लेगा.’’

‘‘आप कहना क्या चाहती हैं भाभी,  साफसाफ बताओ.’’ विकास ने निशा के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘यही कि जितेंद्र को रास्ते से हटा दो. उस की करोड़ों की जायदाद है, हम दोनों मौज करेंगे.’’

‘‘यह पाप है भाभी.’’ मरने मारने की बात से विकास हड़बड़ा गया.

‘‘जब तू मेरे शरीर से खेलता है, तब तुझे पाप दिखाई नहीं देता. बड़ा आया पाप पुण्य वाला.’’ निशा का बातचीत का अंदाज ही बदल गया, ‘‘मैं ने तो सुना था कि प्रेमी अपनी प्रेमिका को पाने के लिए एक कत्ल तो क्या, खून की नदी बहाने को तैयार हो जाते हैं. एक तू है जो एक खून के लिए घबरा रहा है, धिक्कार है तेरी मर्दानगी पर.’’

निशा ने विकास की मर्दानगी को चुनौती दी तो विकास जितेंद्र का खून करने को राजी हो गया. इस के बाद दोनों ने सिर से सिर जोड़ कर हत्या की योजना बनाई.

इस योजना के तहत विकास फतेहपुर शहर के चौगलिया बाजार गया और वहां से तेज धार वाला चाकू खरीद लाया. चाकू उस ने छिपा कर अपने बैग में रख लिया. योजना के तहत ही निशा ने अपने दोनों बच्चों तनु मनु को ननिहाल भेज दिया था. इस के बाद वे दोनों सही समय का इंतजार करने लगे.

30 अप्रैल, 2019 की रात जितेंद्र यादव महेंद्र होटल से 12 बजे अपने घर गढ़ीवा पहुंचा. उस समय वह नशे में धुत था, आते ही पलंग पर पसर गया और कुछ देर बाद खर्राटे लेने लगा.

सही मौका देख कर निशा ने विकास को वाट्सऐप मैसेज भेजा कि वह तुरंत आ जाए. रात को लगभग एक बजे विकास निशा के घर पहुंच गया. निशा ने मेनगेट पहले ही खोल रखा था. विकास आसानी से घर के अंदर दाखिल हो गया.

निशा और विकास ने कमरे के अंदर सो रहे जितेंद्र पर एक नजर डाली, फिर दोनों ने मिल कर जितेंद्र के शरीर को चाकू से गोद डाला. नशे की अधिकता के कारण जितेंद्र ज्यादा चीखचिल्ला भी नहीं सका. जितेंद्र के शरीर से खून की धार बहने लगी, जिस से बिस्तर व फर्श पर खून ही खून नजर आने लगा.

जितेंद्र की हत्या के बाद निशा व विकास ने लूट का नाटक रचा. विकास ने अलमारी खोल कर उस का सारा सामान बिखेर दिया और निशा ने आभूषण व नकदी निकाल कर विकास को थमा दिए. इस के बाद विकास ने खून से सने कपड़े, चाकू, बेल्ट तथा जूता अपने बैग में रख लिए. उस ने खून सने हाथ बाथरूम में जा कर धोए. वह एक जोड़ी कपड़े साथ लाया था, सो उस ने साथ लाए कपड़े बदल लिए.

इस के बाद विकास ने निशा को दूसरे कमरे में ले जा कर उस की साड़ी से उस के हाथपैर बांध दिए और बाहर से कुंडी लगा दी. फिर वह बैग ले कर घर से निकल गया. बैग ले जा कर उस ने बैजू बनिया बाग में शिवमंदिर के पास कुएं में फेंक दिया.

इधर निशा कमरे में कुछ देर शांत रही, फिर सुबह 4 बजे दरवाजा पीटने लगी. आवाज सुन कर किराएदार विनोद आया और उस ने कमरे की कुंडी खोली. कमरे के अंदर निशा बदहवास थी. विनोद ने साड़ी से बंधे उस के हाथपैर खोले और पानी पिलाया.

बंधन खुलते ही निशा दहाड़ मार कर रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए. जिन्हें निशा ने बताया कि रात में 2 बदमाश लूट के इरादे से घर में घुस आए थे. जितेंद्र ने लूट का विरोध किया तो उन्होंने उस की हत्या कर दी और जेवर, नकदी लूट ले गए. इसी बीच किसी ने कोतवाली पुलिस को सूचना दे दी थी. पुलिस जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ.

3 मई, 2019 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त विकास यादव और निशा यादव को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

निशा के जीवन की रक्तिम रात – भाग 2

मैनेजर विकास को जितेंद्र ने ही नौकरी पर रखा था

विकास यादव होटल का मैनेजर था और जितेंद्र यादव ने ही उसे मैनेजर के पद पर नियुक्त किया था. पूछताछ से यह भी पता चला कि विकास यादव का जितेंद्र के घर आनाजाना लगा रहता था.

होटल स्टाफ से पूछताछ के बाद पूजा यादव का माथा ठनका. वह सोचने लगीं कि कहीं विकास और निशा के बीच नाजायज संबंध तो नहीं थे, जिस के चलते दोनों ने मिल कर जितेंद्र की हत्या कर दी हो और निशा लूट का नाटक रच कर पुलिस को गुमराह कर रही हो. लेकिन बिना सबूत के दोनों पर शक नहीं किया जा सकता था. इस बारे में पूजा यादव ने सीओ कपिलदेव मिश्रा से विचारविमर्श किया. मिश्रा भी पूजा की बात से सहमत थे.

पूजा यादव के पास निशा का मोबाइल फोन था. उन्होंने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि एक विशेष नंबर पर वह रोजाना लंबीलंबी बातें किया करती थी. उस नंबर की जांच की गई तो वह फतेहपुर शहर के रामगंज पक्का तालाब निवासी विकास यादव का निकला. यह विकास यादव कोई और नहीं, बल्कि महेंद्र सिंह के होटल का मैनेजर ही था. मोबाइल की जांच से यह भी पता चला कि निशा ने घटना वाली रात इसी नंबर पर वाट्सऐप मैसेज भेज कर विकास को घर बुलाया था.

अब सबूत मिल चुका था, लिहाजा 2 मई 2019 की शाम को एडिशनल एसपी पूजा यादव ने अपनी टीम सहित जा कर निशा यादव और विकास यादव को उन के घरों से हिरासत में ले लिया. थाना कोतवाली ला कर दोनों से जितेंद्र की हत्या के संबंध में पूछा गया तो दोनों साफ मुकर गए. लेकिन जब सख्ती की गई तो दोनों टूट गए और जितेंद्र की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने जितेंद्र के हत्यारों को तो पकड़ लिया, लेकिन अभी तक हत्या में इस्तेमाल हथियार और गहने आदि बरामद नहीं हो पाए थे. इस संबंध में पुलिस ने विकास यादव से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कत्ल वाला चाकू और गहने उस ने भिटौरा रोड पर स्थित बैजू बनिया बाग में शिवमंदिर के कुएं में छिपा दिए हैं.

यह पता चलते ही पुलिस विकास को कुएं पर ले गई. वहां उस ने कुएं से बैग बरामद करा दिया. उस बैग में खून से सना चाकू, खून सने कपड़े, जूते व बेल्ट थी. यह सारा सामान पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. विकास यादव ने एक दूसरी जगह से गहने और नकदी भी बरामद करा दी. गहनों को निशा ने पहचान लिया. गहने उसी के ही थे, जो उस ने पति के कत्ल के बाद विकास को दे दिए थे.

जितेंद्र की हत्या का खुलासा करने व अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना एडिशनल एसपी पूजा यादव ने एसपी कैलाश सिंह को दे दी. एसपी ने आननफानन में प्रैसवार्ता की और अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. निशा यादव ने अपना सिंदूर खुद ही मिटाने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर शहर के गढ़ीवा निवासी जितेंद्र यादव की शादी निशा से करीब 10 साल पहले हुई थी. निशा बला की खूबसूरत थी. निशा को पा कर जितेंद्र खूब खुश था. जितेंद्र का अपना दोमंजिला मकान था. उस के पास जरूरत की सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

जितेंद्र यादव के चाचा महेंद्र सिंह यादव शहर के चर्चित कारोबारी थे. वह समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता थे. उन की पत्नी फूलमती बहुआ ब्लौक प्रमुख थीं. शहर के वर्मा चौराहे पर उन का आलीशान महेंद्र कांटिनेंटल होटल था. इस होटल का संचालन उन का भतीजा जितेंद्र यादव करता था. होटल के अलावा भी जितेंद्र उन के दूसरे कारोबारों की देखरेख करता था. महेंद्र यादव की शहर में अच्छीखासी प्रौपर्टी थी. वह साफसुथरी छवि वाले नेता थे.

जितेंद्र यादव पढ़ालिखा व हंसमुख था. उस के इसी स्वभाव व कुशल संचालन से महेंद्र होटल सदैव गुलजार रहता था. महेंद्र सिंह यादव जितेंद्र पर पूरा विश्वास करते थे.

होटल चलाने में उन का कोई दखल नहीं था. जितेंद्र सुबह 9 बजे घर से निकलता था. उस की वापसी देर रात ही हो पाती थी. निशा की नजरें हर समय जितेंद्र के इंतजार में दरवाजे पर लगी रहती थीं.

जितेंद्र के घर सारी सुखसुविधाएं थीं. उस का जीवन सुखमय था. कालांतर में निशा ने 2 बेटों तनु व मनु को जन्म दिया. 2 बच्चों के जन्म के बाद घर में खुशी छा गई. निशा की बोरियत भी कम हो गई. वह बच्चों की देखभाल में जुटी रहती थी. समय के साथ बच्चे बड़े हुए तो वे स्कूल जाने लगे.

2 बच्चों के जन्म के बाद जितेंद्र ने पत्नी निशा की तरफ ध्यान देना कम कर दिया. वहीं निशा की कामेच्छा बढ़ गई थी. जितेंद्र रात 12 बजे घर आता और खाना खा कर सो जाता था. निशा उसे सैक्स के लिए उकसाती तो वह उसे झिड़क देता था.

विकास आया निशा की जिंदगी में

निशा रात भर गीली लकड़ी तरह सुलगती रहती थी. कामेच्छा की पूर्ति न होने से निशा का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात पर पति से झगड़ने लगी थी.

उन्हीं दिनों निशा की नजर विकास यादव पर पड़ी. विकास यादव रामगंज पक्का तालाब के पास रहता था और महेंद्र कांटिनेंटल होटल में मैनेजर था. उसे निशा के पति जितेंद्र यादव ने ही मैनेजर के पद पर नियुक्त किया था. किसी न किसी काम से विकास का जितेंद्र के घर आनाजाना लगा रहता था. विकास शरीर से हृष्टपुष्ट था और स्मार्ट भी.

विकास निशा को भाभी कहता था. वह हंसमुख व बातूनी था, इसलिए निशा जल्दी ही उस से घुलमिल गई थी. विकास निशा की सुंदरता पर रीझ गया था और मन ही मन उसे चाहने लगा था. लेकिन वह अपनी चाहत का इजहार नहीं कर पा रहा था. जबकि निशा विकास की नजरों की चाहत भांप गई थी. उसे अब पति जितेंद्र विकास की तुलना में कमतर नजर आने लगा था. इसलिए वह विकास को ज्यादा तवज्जो देने लगी थी.

विकास जब भी निशा के सामने होता, वह उस की सुंदरता की तारीफ करता और अपनी लच्छेदार बातों से उसे रिझाता. इस सब में निशा को खूब आनंद आने लगा था. ज्यादातर औरतें अपनी प्रशंसा सुन कर गदगद हो जाती हैं. निशा को भी अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था.

एक दिन मन के भाव जाहिर न कर के उस ने विकास से पूछा, ‘‘विकास, मुझ में तुम्हें ऐसा क्या खूबसूरत लगा कि मेरी तारीफ करते नहीं थकते? कुछ कहने से पहले यह भी सोच लेना चाहिए कि मैं 2 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘भाभी, तुम 2 बच्चों की मां जरूर हो, लेकिन इस से तुम्हारी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई है. तुम्हारे लंबे बाल, शरबती आंखें, रसीले होंठ सब कुछ लाजवाब हैं.’’ विकास आप से तुम पर आ गया.

‘‘पर तुम्हारे भैया ने तो मेरी खूबसूरती की कभी तारीफ नहीं की.’’ निशा ने बात आगे बढ़ाने वाली चाल चली.

‘‘भैया बुद्धू हैं, वह रातदिन होटल में व्यस्त रहते हैं. उन्हें शायद पता नहीं है कि औरत को पेट की भूख के अलावा और भी कुछ चाहिए होता है. मैं ने कुछ गलत तो नहीं कहा, भाभी.’’

‘‘नहीं, तुम सच कह रहे हो, विकास. मैं वाकई उन के साथ नीरस जिंदगी जी रही हूं. जब से तुम घर आने लगे हो तब से मेरे मन में कुछ आस जागी है. तुम्हारी रसभरी बातों से मुझे सुकून मिलता है. जब तुम चले जाते हो तो घर फिर सूनासूना सा लगने लगता है.’’

भले ही स्वार्थ के लिए सही, निशा और विकास दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. लेकिन दिल की बात खुल कर कहने में दोनों ही संकोच कर रहे थे. दोनों तरफ प्यार की आग बराबर लगी थी.

एक दिन दोपहर को विकास, निशा के घर पहुंचा. इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने निशा को छेड़ा, ‘‘भाभी, कब तक तड़पाओगी’’

‘‘तुम निरे बुद्धू हो, विकास. मैं तुम्हें नहीं तड़पा रही, बल्कि तुम मुझे तड़पा रहे हो.’’ कहते हुए निशा की आंखों में निमंत्रण उतर आया.

निशा के इस आमंत्रण पर विकास रोमांचित हो गया. उस की नसों में सनसनी सी दौड़ गई. उस ने आगे बढ़ कर निशा को अपनी बाहों में भींच लिया. निशा भी विकास से लता की तरह लिपट गई.

थोड़ी देर बाद जब दोनों एकदूसरे से अलग हुए तो खूब खुश थे. दोनों के मन की चाहत पूरी हो गई थी.

उस दिन के बाद जब भी निशा और विकास को मौका मिलता, एकदूसरे को अपनी देह समर्पित कर देते. निशा अब तन के साथसाथ मन से भी विकास की हो गई थी. अब वह अपने प्रेमी विकास का तो खूब खयाल रखती थी, लेकिन पति की उपेक्षा करने लगी थी. कभीकभी वह बिना बात के पति से झगड़ने भी लगती थी. जितेंद्र निशा की बेरुखी और बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं समझ पा रहा था.

निशा के जीवन की रक्तिम रात – भाग 1

कुछ लोग सुबह 5 बजे उठ जाते हैं, जबकि ज्यादातर लोगों के लिए यह गहरी नींद का समय होता है. ऐसे में किसी के रोने की आवाज कानों में पड़ जाए तो उस की स्थिति बड़ी अजीब हो जाती है. क्योंकि रोने की आवाज को इग्नोर कर के बिस्तर पर पड़े रहना मुश्किल होता है.

1 मई, 2019 की सुबह भी यही हुआ था. कानपुर के गढ़ीवा मोहल्ले में रहने वाले जितेंद्र के घर से आती रोनेपीटने की आवाजों ने अड़ोसपड़ोस के लोगों की नींद खराब कर दी. रोने वाली जितेंद्र की पत्नी निशा थी.

कुछ लोग और महिलाएं जितेंद्र के घर पहुंचे तो निशा छाती पीटपीट कर रो रही थी. लोगों को आया देख उस का रुदन और तेज हो गया. वह रोने के साथसाथ छाती पीटते हुए कहने लगी, ‘‘मैं तो लुट गई, बरबाद हो गई. अब मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘आखिर हुआ क्या?’’ एक महिला ने पूछा तो निशा कमरे की ओर इशारा करते हुए बोली, ‘‘घर में बदमाश घुस आए और लूटपाट करने लगे. मनु के पापा ने विरोध किया तो उन्होंने मार डाला उन्हें.’’

अपनी बात कह कर निशा फिर जोरजोर से रोने लगी. मनु निशा के बेटे का नाम था. अब औरतें समझ गईं कि निशा के पति की हत्या हो गई है. जितेंद्र के कत्ल की बात सुन कर मोहल्ले के तमाम लोग एकत्र हो गए. मोहल्ले भर में कोहराम सा मच गया. जितेंद्र फतेहपुर के रहने वाले समाजवादी पार्टी के नेता और कारोबारी महेंद्र सिंह का भतीजा था.

कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. किसी ने मोबाइल पर इस बात की सूचना महेंद्र सिंह को दे दी. साथ ही पुलिस को भी बता दिया. सूचना मिलते ही थाना कोतवाली के प्रभारी इंसपेक्टर एस.के. सिंह पुलिस टीम के साथ गढ़ीवा मोहल्ले में जितेंद्र के घर पहुंच गए. उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी.

कुछ ही देर में एसपी कैलाश सिंह, एडिशनल एसपी पूजा यादव और सीओ कपिलदेव मिश्रा भी वहां आ गए. फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया था.

पुलिस ने देखा मकान के एक कमरे के अंदर बैड पर जितेंद्र की लाश पड़ी थी. हत्यारों ने उस का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था. उस की गरदन, पेट और सीने पर चाकू के करीब दरजन भर घाव थे. बिस्तर और फर्श खून से लाल थे. कमरे की अलमारी खुली हुई थी. देखने से लग रहा था कि जितेंद्र की हत्या लूट के चक्कर में की गई थी. फोरैंसिक टीम ने बैड, अलमारी और कुछ अन्य जगहों से फिंगरप्रिंट उठाए.

इस बीच निशा जितेंद्र के शव के पास आ बैठी थी और निरंतर रोए जा रही थी. मोहल्ले की औरतें उसे संभाल रही थीं. एडिशनल एसपी पूजा यादव भी उन महिलाओं में शामिल हो गईं.

उन्होंने उस से घटना के बारे में पूछा तो निशा ने रोतेरोते बताया, ‘‘रात में करीब 12 बजे ये होटल से घर आए थे. खाना खा कर हम लोग कुछ देर बातें करते रहे. फिर ये उसी बैड पर सो गए. मैं भी सोने चली गई. कुछ देर बाद कमरे में खटपट की आवाज सुनाई दी तो मेरी आंखें खुल गईं. मैं ने कमरे में जा कर देखा तो 2 बदमाश थे, जो अलमारी का सामान निकाल कर फेंक रहे थे.

‘‘मैं ने उन का विरोध किया तो बदमाशों ने चाकू निकाल लिया, जिसे देख कर मेरी घिग्घी बंध गई. तभी ये भी जाग गए. इन्होंने बदमाशों का विरोध किया तो उन्होंने इन के ऊपर चाकू से हमला कर दिया और इन्हें चाकू से गोद कर मार डाला. इस के बाद वे लाखों के जेवर, नकदी लूट कर ले गए.

‘‘मैं चीखने लगी तो बदमाशों ने मेरी गरदन पर चाकू रख दिया. फिर मुझे बगल वाले कमरे में ले गए और हाथपैर साड़ी से बांध दिए. फिर वे लोग बाहर से कमरे की कुंडी बंद कर के भाग गए.’’

निशा ने आगे बताया कि कुछ देर बाद वह घिसट घिसट कर दरवाजे के पास आई और दरवाजा पीटने लगी. डर की वजह से उस की आवाज भी नहीं निकल रही थी.

दरवाजा पीटने की आवाज सुन कर किराएदार विनोद आया और उस ने बाहर की कुंडी खोल कर उसे कमरे से बाहर निकाला. सब से पहले उस ने विनोद को ही घटना की जानकारी दी. बाद में अड़ोस पड़ोस की औरतें भी आ गईं.

किराएदार विनोद घटनास्थल पर मौजूद था. एसपी कैलाश सिंह ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह रात करीब 10 बजे अपने कमरे में सो गया था. सुबह लगभग 4 बजे उसे दरवाजा पीटने की आवाज सुनाई दी. इस के बाद वह कमरे के पास पहुंचा और बाहर से कुंडी खोल कर कमरे के अंदर गया.

वहां देखा तो निशा भाभी के हाथपैर बंधे हुए थे और उन के मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही थी. उन के हाथ पैरों को खोलने के बाद उस ने उन्हें पीने के लिए एक गिलास पानी दिया. फिर निशा भाभी ने बताया कि बदमाशों ने जितेंद्र भैया की हत्या कर दी है और सामान लूट ले गए हैं.

पुलिस अधिकारियों ने पूरे घर को खंगाला तो पाया कि घर में घुसने का एक ही रास्ता है मेनगेट. सवाल यह था कि बदमाश घर के अंदर दाखिल हुए तो कैसे? घर में 2 ही लोग थे विनोद व निशा. इस का मतलब यह कि बदमाशों के लिए या तो विनोद ने दरवाजा खोला या फिर निशा ने. निशा जिस तरह से पति की मौत पर आंसू बहा रही थी, उस स्थिति में उसे थाने ले जा कर उस से पूछताछ करना संभव नहीं था. इसलिए पुलिस ने निशा को तो हिरासत में नहीं लिया, लेकिन विनोद को पूछताछ के लिए थाने ले आई.

बहरहाल, शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने जितेंद्र का शव पोस्टमार्टम के लिए फतेहपुर जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही खून आलूदा मिट्टी का नमूना ले कर जांच के लिए सुरक्षित रख लिया गया.

इस बीच मृतक जितेंद्र के चाचा सपा नेता महेंद्र सिंह भी घर आ गए थे. उन्होंने भतीजे की हत्या पर आश्चर्य व्यक्त किया. साथ ही कोतवाली फतेहपुर जा कर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या व लूट की रिपोर्ट दर्ज करा दी. उन्होंने पुलिस अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे जल्द से जल्द हत्यारों का पता लगाने की कोशिश करें.

एडिशनल एसपी और सीओ को सौंपी गई जांच

चूंकि मामला रसूखदार व्यवसायी व नेता महेंद्र सिंह के भतीजे की हत्या का था, इसलिए एसपी कैलाश सिंह ने इस हत्याकांड की जांच एडिशनल एसपी पूजा यादव और सीओ (सदर) कपिलदेव मिश्रा को सौंप दी.

युवा व तेजतर्रार पुलिस अफसर पूजा यादव ने अपनी टीम के साथ एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने इस बात का पता लगाया कि घटनास्थल के आसपास कहीं सीसीटीवी कैमरे तो नहीं लगे हैं. इस में उन्हें सफलता मिल गई. मृतक के घर के सामने ही सीसीटीवी कैमरा लगा था.

पुलिस ने घर के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे की रात की फुटेज देखी. घटना वाली रात को फुटेज में एक व्यक्ति करीब एक बजे मेनगेट से जितेंद्र के घर में प्रवेश करता हुआ दिखा. फिर वही व्यक्ति रात में 2 बजे उसी मेनगेट से निकल कर बाहर आता दिखाई दिया. फुटेज धुंधली होने से घर में प्रवेश करने वाले उस शख्स का चेहरा साफ नहीं दिख रहा था.

फुटेज देख कर पुलिस औफिसर पूजा यादव का माथा ठनका. क्योंकि मृतक जितेंद्र की पत्नी निशा यादव ने अपने बयान में कहा था कि उस के घर में 2 बदमाश घुसे थे. जबकि सीसीटीवी फुटेज में एक ही आदमी दिख रहा था. इस से जाहिर हो रहा था कि निशा झूठ बोल रही थी. उस के झूठ में क्या राज छिपा है, उन्हें इस का पता लगाना था. निशा संदेह के घेरे में आई तो पूजा यादव ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया.

पूजा यादव को यह भी शक हुआ कि फुटेज में दिख रहा व्यक्ति विनोद तो नहीं है. कहीं विनोद और निशा ने मिल कर तो जितेंद्र  की हत्या नहीं कर दी. विनोद पुलिस हिरासत में पहले से था. अब पूजा यादव ने उस से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन वह अपने बयान पर कायम रहा.

उस ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हत्या में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया. हां, उस ने यह जरूर बताया कि किसी बात को ले कर कुछ दिन पहले जितेंद्र भैया और निशा भाभी में खूब झगड़ा हुआ था. तब भैया ने भाभी को पीटा भी था.

काफी पूछताछ के बाद जब लगा कि विनोद बेकसूर है तो एडिशनल एसपी पूजा यादव ने उसे क्लीन चिट दे कर घर भेज दिया. इस के बाद पूजा यादव सीओ कपिलदेव मिश्रा को ले कर वर्मा चौराहा स्थित महेंद्र कांटिनेंटल होटल पहुंचीं.

यह आलीशान होटल सपा नेता महेंद्र सिंह यादव का था और इस होटल का संचालन मृतक जितेंद्र सिंह यादव करता था. पुलिस अधिकारियों ने होटल स्टाफ से पूछताछ की तो पता चला कि किसी बात को ले कर जितेंद्र की विकास यादव से तूतू मैंमैं हुई थी.

एकतरफा प्यार में मासूम की हत्या

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर से कोई 40-45 किलोमीटर दूर बसा है बीरबल अकबरपुर गांव. इसी गांव में शिवबालक निषाद अपनी पत्नी ममता और 2 बेटियों व एक बेटे के साथ रहता था.

बात 25 जनवरी, 2019 की है. शिवबालक शाम को घर लौटा तो उस का 10 वर्षीय बेटा विवेक घर में नहीं दिखा. पूछने पर बड़ी बेटी ने बताया कि विवेक दोपहर 12 बजे स्कूल से लौट कर खाना खाने के बाद घर से यह कह कर निकला था कि खेलने जा रहा है, तब से वह घर नहीं लौटा.

बेटी की बात सुन कर शिवबालक का माथा ठनका. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बेटा कहां चला गया जो अभी तक नहीं आया. पत्नी घर में नहीं थी, वह अपने मायके फफुआपुर गई हुई थी, इसलिए वह बेटे को ढूंढने के लिए निकल पड़ा. उस ने पड़ोस के बच्चों से पूछा तो उन्होंने बताया कि दोपहर के समय तो विवेक उन के साथ खेल रहा था. उस के बाद कहां गया, उन्हें पता नहीं.

शिवबालक के पड़ोस में हरिकिशन का घर था. शिवबालक ने उस के मंझले बेटे अनिल को विवेक के गायब होने की बात बताई तो वह भी परेशान हो उठा. वह गांव के युवकों को ले कर शिवबालक के साथ विवेक को ढूंढने में जुट गया. इन लोगों ने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विवेक का कहीं पता नहीं चला. घुरऊपुर, गुरडूनपुरवा टैंपो स्टैंड, सजेती बसस्टाप, बाजार आदि जगहों पर भी उस की खोज की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

शिवबालक ने बेटे के गायब होने की जानकारी पत्नी को दे दी थी. ममता को यह खबर मिली तो वह तुरंत गांव लौट आई. उस ने भी अपने हिसाब से विवेक को खोजा. आधी रात तक खोजबीन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला.

किसी अनहोनी की आशंका में शिवबालक और ममता ने जैसेतैसे रात बिताई. रात भर उन के मन में तरहतरह के खयाल आते रहे. सवेरा होते ही पड़ोसी हरिकिशन का बेटा अनिल शिवबालक के पास आया. वह बोला, ‘‘चाचा, विवेक को हम लोगों ने बहुत खोज लिया. अब हमें पुलिस का सहारा लेना चाहिए. चलो थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं.’’

उस की बात शिवबालक को भी ठीक लगी. तब दोनों थाना सजेती जा पहुंचे. सुबह का समय था, इसलिए एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह थाने में ही मौजूद थे. शिवबालक ने उन्हें अपने बेटे के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने विवेक की गुमशुदगी दर्ज करा कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

अमरेंद्र बहादुर भी कई सिपाहियों के साथ गांव के नजदीक के खेतों में बच्चे को ढूंढने लगे. पुलिस के साथ गांव वाले भी थे. वह भी पुलिस की मदद कर रहे थे. इस बीच पुलिस ने गौर किया कि विवेक की खोज में अनिल निषाद कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखा रहा है.

सर्च अभियान के दौरान ही अनिल ने एसओ से कहा, ‘‘दरोगाजी, चलिए उधर सरसों के खेत में देख लेते हैं.’’

अनिल की यह बात एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह की समझ में नहीं आई कि यह सरसों के खेत की ओर चलने को क्यों कह रहा है. फिर भी वह बिना कुछ कहे अनिल के पीछेपीछे सरसों के खेत की ओर चल पडे़.

खेत के अंदर जा कर उस ने सरसों के कुछ पौधों को हाथ से इधरउधर किया, फिर चीख कर बोला, ‘‘सर, विवेक की लाश यहां पड़ी है.’’

उस की बात सुनते ही एसओ तुरंत उस के पास पहुंच गए. सचमुच सरसों की फसल के बीच विवेक की लाश पड़ी थी. लाश को घासफूस से ढका गया था. लेकिन हवा के झोंकों से घासफूस बिखर गया था. जिस से लाश साफ दिखाई दे रही थी.

बेटे की लाश देख कर शिवबालक दहाड़ें मार कर रोने लगा. इस के बाद तो गांव में जिस ने भी सुना, वही लाश देखने भाग खड़ा हुआ. सूचना मिलने पर मृतक विवेक की मां ममता भी रोतीबिलखती वहां पहुंच गई और शव से लिपट कर रोने लगी.

इधर थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर ने बच्चे की लाश बरामद करने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. नतीजतन कुछ देर बाद एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह और सीओ (घाटमपुर) शैलेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

उन्हें उस के शरीर पर कोई घाव दिखाई नहीं दिया. गले के निशान से ही अंदाजा लग गया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. उस के मुंह और नाक में मिट्टी भी भरी हुई थी. हत्या के समय हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि मृतक की आवाज न निकल सके.

सीओ शैलेंद्र सिंह ने विवेक के पिता शिवबालक से पूछा कि उन्हें बेटे की हत्या का किसी पर शक तो नहीं है.

‘‘साहब, बीते साल जून महीने में गांव के इंद्रपाल निषाद के बेटे सर्वेश ने मेरी बेटी नीलम (परिवर्तित नाम) को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी. इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई तो पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भेज दिया था. 2 महीने पहले ही वह जेल से छूट कर आया है. हो सकता है मेरे बेटे की हत्या में उस का हाथ हो.’’ शिवबालक ने बताया.

उसी समय थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर सिंह की निगाह अनिल निषाद पर पड़ी. वह कुछ दूरी पर एक बच्चे से बात कर रहा था और उसे अंगुली दिखा कर धमका रहा था.

थानाप्रभारी की निगाह में अनिल पहले ही शक के घेरे में था. अब उन का शक और गहरा गया. जिस बच्चे को वह धमका रहा था, उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है, किस गांव में रहते हो?’’

‘‘मेरा नाम सुमित है. मैं इसी गांव में रहता हूं.’’ बच्चे ने बताया.

‘‘तुम विवेक को जानते थे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां साहब, वह मेरा पक्का दोस्त था. वह कक्षा 3 में और मैं कक्षा 4 में पढ़ता हूं.’’

‘‘विवेक को कल किसी के साथ जाते देखा था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां साहब, अनिल उसे खेतों की ओर ले गया था. अनिल ने मुझे 20 रुपए दे कर विवेक को बुलवाया था. तब मैं विवेक को बुला लाया था. इस के बाद अनिल उसे खेतों की तरफ ले कर चला गया था. अनिल अभी मुझे इसी बात की धमकी दे रहा था कि यह बात किसी को न बताना.’’ सुमित ने बताया.

सुमित ने जो बातें पुलिस को बताईं, उस से अनिल पूरी तरह से शक के घेरे में आ गया. उधर शिवबालक के बयानों से सर्वेश पर भी शक था. गांव वालों से भी पुलिस को पता चला कि सर्वेश और अनिल गहरे दोस्त हैं. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह को दे दी तो उन्होंने उन दोनों लड़कों से पूछताछ करने के निर्देश दिए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के विवेक का शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय, कानपुर भिजवा दिया. फिर उन्होंने सर्वेश निषाद और अनिल को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आए.

पुलिस ने सब से पहले सर्वेश निषाद को अनिल से अलग ले जा कर विवेक की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विवेक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सर्वेश ने बताया कि उस ने अपने दोस्त अनिल की मदद से विवेक की हत्या की थी.

सर्वेश निषाद ने हत्या का जुर्म कबूला तो अनिल को भी टूटते देर नहीं लगी. दोनों से पूछताछ के बाद विवेक की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर से 47 किलोमीटर दूर एक बड़ी आबादी वाला गांव बीरबल अकबरपुर बसा हुआ है. यह एक ऐतिहासिक गांव है. मुगल बादशाह अकबर का यहां किला है, जो समय के थपेड़ों के साथ अब खंडहर में तब्दील हो गया है.

यमुना किनारे बसे इस गांव की आबादी लगभग 10 हजार है. बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर जब आगरा से अकबरपुर आते थे, तो इसी किले में दरबार लगाते थे.

इसी किले में अकबर की मुलाकात बीरबल से हुई थी. बीरबल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया. अपनी बुद्धिमत्ता के चलते बीरबल दरबार में चर्चित हुए तो इस अकबरपुर गांव का नाम बीरबल अकबरपुर पड़ गया. समय बीतते सरकारी रिकौर्ड में भी गांव का नाम बीरबल अकबरपुर दर्ज हो गया.

हाजिरजवाबी और बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाने वाले बीरबल का जन्म अकबरपुर गांव से एक किलोमीटर दूर तिलौची में हुआ था. बीरबल के बाल्यावस्था के समय ही उन के पिता की मृत्यु हो गई थी. निर्धन परिवार में जन्मे बीरबल का पालनपोषण उन की मां ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में किया था. खेतों पर मजदूरी करने के दौरान मां बीरबल को बांस की टोकरी में लिटा कर लाती थीं और खेत के एक कोने में टोकरी को रख देती थीं.

कहा जाता है कि एक रोज एक साधु खेत से हो कर गुजर रहा था, तभी उस की नजर बीरबल पर पड़ी. उस साधु ने बीरबल की हस्तरेखा तथा मस्तक की लकीरों को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘माई, तुम्हारा यह लाल बड़ा बुद्धिमान होगा. यह अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा बड़ेबड़ों से मनवाएगा और पूरे देश में चर्चित होगा. यह राजदरबारी होगा.’’

उस साधु की बात सुन कर बीरबल की मां उस के चरणों में झुक गईं और बोलीं, ‘‘बाबा, मैं मजदूरी करती हूं. बेहद गरीब हूं. तुम्हें दक्षिणा भी नहीं दे सकती और न ही भोजन करा सकती हूं. मुझे क्षमा करना.’’ कहते हुए वह रोने लगीं.

साधु बोला, ‘‘रो मत माई, मैं तुम से कुछ मांगने नहीं आया हूं. मैं तो इधर से जा रहा था तो मेरी नजर पड़ गई.’’

इस के बाद वह साधु बीरबल को आशीर्वाद दे कर चला गया. समय बीतते इस साधु की भविष्यवाणी सच निकली. बीरबल, अकबर के राजदरबारी बने और अपनी हाजिरजवाबी के लिए चर्चित हुए.

इसी बीरबल अकबरपुर गांव में शिवबालक निषाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा विवेक था.

शिवबालक ड्राइवर था. वह लोडर चलाता था. इस के अलावा उस के पास 3 बीघा खेती की जमीन भी थी. लेकिन वह जमीन ऊसरबंजर थी. उस में ज्वारबाजरा के अलावा कोई दूसरी फसल नहीं होती थी. अतिरिक्त आमदनी के लिए शिवबालक ने दूध का व्यवसाय शुरू कर दिया था. वह सुबह उठ कर गांव से दूध इकट्ठा करता फिर दूध को घाटमपुर कस्बा ले जा कर बेचता था.

वक्त यों ही गुजरता गया. वक्त के साथ शिवबालक के बच्चे भी सालदरसाल बड़े होते गए. बड़ी बेटी नीलम 14 साल की उम्र पार कर चुकी थी. तीनों बच्चे गांव के एसएस शिक्षा सदन स्कूल में पढ़ते थे. नीलम नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शारदा के घर से कुछ दूरी पर सर्वेश निषाद रहता था. वह एक अच्छे परिवार का था. सर्वेश अपने पिता की 3 संतानों में मंझला था. वह थोक में सब्जी बेचने का काम करता था. गांव के किसानों से सस्ते दाम पर सब्जियां खरीद कर उन्हें कानपुर की नौबस्ता थोक सब्जी मंडी में अच्छे दामों पर बेचा करता था.

चूंकि सर्वेश अच्छा कमाता था, सो खूब ठाटबाट से रहता था. गले में सोने की चेन, अंगुलियों में अंगूठियां और कलाई में महंगी घड़ी उस की पहचान थी. उस के पास महंगा मोबाइल रहता था. सर्वेश जिस तरह से अच्छी कमाई करता था, उसी तरह शराब और अय्याशी में वह अपनी कमाई लुटाता था.

उस के पिता इंद्रपाल उस की इस फिजूलखर्ची से परेशान थे. उन्होंने उसे बहुत समझाया और डांटा फटकारा भी लेकिन सर्वेश का रवैया नहीं बदला.

एक रोज नीलम स्कूल जा रही थी, तभी सर्वेश की नजर उस पर पड़ी. खूबसूरत नीलम को देख कर सर्वेश का मन मचल उठा. वह उसे फांसने का तानाबाना बुनने लगा. मौका मिलने पर वह उस से बात करने का प्रयास करता. लेकिन नीलम उसे झिड़क देती थी. तब सर्वेश खिसिया जाता.

आखिर जब उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने एक रोज मौका मिलने पर नीलम का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारी खूबसूरती ने मेरा चैन छीन लिया है. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.’’

नीलम अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली, ‘‘सर्वेश, तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो, मैं तुम्हारी जातिबिरादरी की हूं और इस नाते तुम मेरे भाई लगते हो. भाई को बहन से इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए.’’

‘‘प्यार अंधा होता है नीलम. प्यार जातिबिरादरी नहीं देखता.’’ वह बोला.

‘‘होगा, लेकिन मैं अंधी नहीं हूं. मैं ऐसा नहीं कर सकती. नफरत करती हूं. और हां, आइंदा कभी मेरा रास्ता रोकने या हाथ पकड़ने की कोशिश मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा, समझे.’’ नीलम ने धमकाया.

सर्वेश समझ गया कि नीलम अब ऐसे नहीं मानेगी. उसे अपनी खूबसूरती और जवानी का इतना घमंड है तो वह उस के घमंड को हर हाल में तोड़ कर रहेगा.

सर्वेश का एक दोस्त था अनिल निषाद. दोनों ही हमउम्र थे सो उन में खूब पटती थी. एक रोज दोनों शराब पी रहे थे, उसी दौरान सर्वेश बोला, ‘‘यार अनिल, मैं नीलम से प्यार करता हूं, लेकिन वह हाथ नहीं रखने दे रही.’’

‘‘देख सर्वेश, मैं एक बात बताता हूं कि नीलम ऐसीवैसी लड़की नहीं है. उस का पीछा छोड़ दे. कहीं ऐसा न हो कि उस का पंगा तुझे भारी पड़ जाए.’’ अनिल ने सर्वेश को समझाया.

‘‘अरे छोड़ इन बातों को, मैं भी जिद्दी हूं. मैं आज चैलेंज करता हूं कि नीलम अगर राजी से नहीं मानी तो मुझे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा.’’ सर्वेश ने कहा.

सर्वेश ने नीलम के ऊपर लाख डोरे डालने की कोशिश की लेकिन हर बार उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा. बात 13 जून, 2018 की है. उस रोज शाम 5 बजे नीलम दिशा मैदान जाने को घर से निकली, तभी सर्वेश ने उस का पीछा किया. नीलम जैसे ही झाडि़यों की तरफ पहुंची, तभी सर्वेश ने उसे दबोच लिया और उसे जमीन पर पटक कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगा.

नीलम उस की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी लेकिन सर्वेश पर जुनून सवार था. तब नीलम ने हिम्मत जुटाई और सर्वेश के हाथ पर दांत से काट लिया. सर्वेश की पकड़ ढीली हुई तो वह चिल्लाती हुई सिर पर पैर रख कर गांव की ओर भागी. अपने घर पहुंचते ही नीलम मूर्छित हो कर देहरी पर गिर पड़ी.

ममता ने नीलम को अस्तव्यस्त कपड़ों में देखा तो समझ गई कि उस के साथ क्या हुआ है. मां ने नीलम के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो कुछ देर बाद उस ने आंखें खोल दीं. उस के बाद उस ने मां को सर्वेश की करतूत बताई. यह सुन कर ममता गुस्से से भर उठी.

वह शिकायत ले कर सर्वेश के पिता इंद्रपाल के पास पहुंची तो उस ने बेटे को डांटनेसमझाने के बजाय उस का पक्ष लिया और उलटे उस की बेटी नीलम के चरित्र पर ही अंगुली उठाने लगा.

ममता ने यह बात अपने पति को बताई. इस के बाद दोनों पतिपत्नी थाना सजेती पहुंच गए. उन्होंने सर्वेश के खिलाफ दुष्कर्म की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हुई और आननफानन में सर्वेश को गिरफ्तार कर कानपुर जेल भेज दिया.

सर्वेश 4 महीने जेल में रहा. 20 अक्तूबर, 2018 को उस की जमानत हुई. जेल से बाहर आने के बाद सर्वेश के दिल में ममता और उस की बेटी नीलम के प्रति बदले की आग भभक रही थी. क्योंकि उन की वजह से वह जेल जो गया था.

बदला कैसे लिया जाए, इस विषय पर उस ने अपने दोस्त अनिल से विचारविमर्श किया तो तय हुआ कि ममता के कलेजे के टुकड़े विवेक को मार दिया जाए. विवेक शिवबालक का एकलौता बेटा था. इस के बाद दोनों ने योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे.

25 जनवरी, 2019 को अपराह्न 2 बजे शिवबालक का 10 वर्षीय बेटा विवेक अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा था, तभी सर्वेश की नजर उस पर पडी़. अनिल भी उस के साथ था. सर्वेश ने अनिल के कान में कुछ कानाफूसी की फिर गांव के बाहर चला गया.

इधर अनिल ने विवेक के साथ खेल रहे सुमित को अपने पास बुलाया और उसे 20 रुपए का नोट दे कर कहा, ‘‘सुमित, तुम विवेक को ले कर गांव के बाहर ले आओ. वहां तुम दोनों को बिस्कुट, टौफी खिलाएंगे.’’

सुमित लालच में आ गया. वह विवेक को ले कर गांव के बाहर पहुंच गया. अनिल वहां विवेक के आने का ही इंतजार कर रहा था.

अनिल ने सुमित को वहीं से वापस कर दिया. वह विवेक को बहला कर सरसों के खेत पर ले गया. वहां सर्वेश पहले से मौजूद था. नफरत से भरे सर्वेश ने विवेक का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए खेत के अंदर ले गया. और विवेक को जमीन पर पटक कर बोला, ‘‘तेरी बहन ने मुझे जेल भिजवाया था. उस का बदला आज तुझे जान से मार कर लूंगा.’’

अनिल जो अब तक खेत के बाहर रखवाली कर रहा था, वह भी खेत के अंदर पहुंच गया. इस के बाद दोनों मिल कर विवेक का गला दबाने लगे. विवेक चीखने लगा तो दोनों ने गला दबाकर विवेक को मार डाला और फिर लाश को घासफूस से ढक कर वापस घर आ गए.

इधर शाम 5 बजे शिवबालक घर आया तो उसे विवेक दिखाई नहीं दिया, विवेक के बारे में उस ने शारदा से पूछा तो उस ने गली में खेलने की बात बताई. लेकिन शिवबालक का माथा ठनका.

वह उस की खोज में जुट गया. लेकिन विवेक नहीं मिला. दूसरे दिन उस की लाश सरसों के खेत में पुलिस की मौजूदगी में मिली. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो बदला लेने के लिए मासूम की हत्या का परदाफाश हुआ.

27 जनवरी, 2019 को थाना सजेती पुलिस ने अभियुक्त सर्वेश निषाद व अनिल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंटीरियर डिजाइनर का खूनी इश्क – भाग 3

योजना के अनुसार, अमृता ने इस दौरान ओमवीर से दूरी बना ली. उसे ओमवीर से जो बात करनी होती वह या तो उसे फोन कर देती या फिर वाट्सऐप पर मैसेज कर के बात कर लेती थी. इधर रूपेंद्र इस बात से अनजान था कि ओमवीर तथा अमृता उस के खिलाफ एक खूनी साजिश रच चुके हैं. इस साजिश को अमली जामा पहनाने के लिए ओमवीर ने अपनी ही सोसायटी के एक गार्ड सुमित को भी पैसे का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

सुमित हापुड़ जिले की बाबूगढ़ तहसील के गांव भडंगपुर का रहने वाला था. पिछले 2 सालों से वह गैलेक्सी-2 सोसायटी में गार्ड की नौकरी कर रहा था. सुमित हैबतपुर गांव में किराए का एक कमरा ले कर रह रहा था.

सुमित ओमवीर से कई बार कह चुका था कि वह कोई ऐसा काम बताए, जिस से उसे मोटी रकम मिल सके. उस रकम से वह अपना कोई कामधंधा शुरू कर लेगा. ओमवीर के कहने पर सुमित ने जिला बुलंदशहर के बीबीनगर के रहने वाले अपने एक दोस्त भूले को भी इस साजिश में शामिल कर लिया.

लेकिन बिना पैसा लिए वे इस काम को अंजाम देने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने इस काम के लिए 3 लाख रुपए की मांग की थी. ओमवीर ने यह बात अमृता को बताई तो अमृता ने 23 अप्रैल को ओमवीर के साथ जा कर अपनी सोने की 2 चूडि़यां और एक हार बेच कर एडवांस में डेढ़ लाख रुपए दे दिए.

लालची ओमवीर ने इन पैसों में से 50 हजार रुपए अपने पास रख कर 50-50 हजार रुपए सुमित और भूले को दे दिए. बाकी रकम उस ने काम पूरा होने के बाद देने का वायदा कर लिया.

काम को अंजाम देने के लिए सुमित ने 8 हजार रुपए में .32 बोर की कंट्री मेड पिस्टल और कुछ कारतूस खरीद लिए. अब सही मौका देख कर सुमित की हत्या की वारदात को इस तरह अंजाम देना था कि लूट की घटना लगे.

28 अप्रैल, 2019 को रविवार का दिन था और रूपेंद्र की उस दिन छुट्टी थी. ओमवीर ने उस दिन को खासतौर से इसलिए चुना था क्योंकि उन्हें जो कहानी बनानी थी, उस के लिए रूपेंद्र की छुट्टी का दिन ही सब से मुफीद लगा था.

ओमवीर छुट्टी के दिन अकसर रूपेंद्र के घर उस से मिलने चला जाता था. उस दिन भी वह उस के घर आया. वे दोनों चाय पी कर निबटे ही थे कि अमृता ने रूपेंद्र से दोपहर के वक्त कहा कि रसोई की चिमनी खराब हो गई है उसे दूसरी चिमनी खरीदनी है. लिहाजा दोपहर के वक्त रूपेंद्र चिमनी खरीदने की बात कह कर अपने फ्लैट से निकला.

घर में घुस कर विश्वास जीता फिर लगा दिया ठिकाने

रूपेंद्र के साथ लिफ्ट में नीचे तक ओमवीर भी आया. लेकिन वह नीचे आ कर रूपेंद्र से यह कह कर अपने फ्लैट की तरफ बढ़ गया कि उसे हैबतपुर जाना है, वह पार्किंग से गाड़ी निकाल कर सोसायटी के बाहर उस का इंतजार करे. तब तक वह अपने फ्लैट से कुछ सामान ले कर आता है.

रूपेंद्र अपनी कार निकालने के लिए पार्किंग की तरफ चला गया. तभी ओमवीर ने सुमित और भूले को सोसायटी के बाहर पहुंचने को कहा. इतनी देर में ओमवीर अपने फ्लैट पर पहुंचा और वहां से पिस्टल और कारतूस जेब में रख कर सोसायटी के बाहर पहुंच गया.

रूपेंद्र को भी पार्किंग से कार ले कर बाहर पहुंचने में 15 मिनट का समय लगा. वहां रुक कर वह ओमवीर का इंतजार करने लगा. सोसायटी से थोड़ा आगे वह रूपेंद्र के पास पहुंचा तो उस ने कुछ ही दूरी पर खड़े सुमित व भूले से पूछा, ‘‘अरे भाई, तुम यहां कैसे खड़े हो, किस का इंतजार कर रहे हो?’’

सुमित ने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘भैया, आटो का इंतजार कर रहे हैं. तिगड़ी गोलचक्कर तक जाना है.’’

ओमवीर ने वहीं से चिल्ला कर कहा, ‘‘अरे आ जाओ, रूपेंद्र भैया उधर ही जा रहे हैं. तुम लोगों को भी छोड़ देंगे.’’

ओमवीर खुद तो रूपेंद्र की कार में बैठ ही गया, उस ने रूपेंद्र से सुमित व उस के साथी को भी तिगड़ी गोलचक्कर तक लिफ्ट देने की सिफारिश कर कार में बिठा लिया.

गरमी के कारण गौर सिटी की हैबतपुर जाने वाली सर्विस रोड पर दिन के वक्त छुट्टी वाले दिन कुछ ज्यादा ही सन्नाटा रहता है. सोसायटी के करीब ढाई किलोमीटर दूर जाने पर अचानक ओमवीर ने रूपेंद्र से कार रोकने को कहा तो रूपेंद्र ने बिना कुछ सोचेसमझे कार रोक दी.

कार रोकने के बाद उस ने ओमवीर से जैसे ही पूछा कि क्या हुआ, कार क्यों रुकवाई तो वह यह देख कर चौंक गया कि तब तक ओमवीर अपनी कमर में खोंसे पिस्टल को निकाल कर उस की तरफ तान चुका था. जब तक रूपेंद्र कुछ समझता तब तक ओमवीर ने उस की कनपटी से पिस्टल सटा कर गोली चला दी.

गोली चलते ही खून की धारा बहने के साथ ही रूपेंद्र का सिर स्टीयरिंग पर लुढ़क गया. उसे जब इत्मीनान हो गया कि वह ढेर हो चुका है तो उन तीनों ने रूपेंद्र की घड़ी, पर्स, अंगूठी और गले में पहनी सोने की चेन निकाल ली ताकि पुलिस यही समझे कि मामला लूटपाट के लिए हुई हत्या का है. चूंकि दोपहर के वक्त इलाके में सन्नाटा था, इसलिए न तो किसी ने गोली की आवाज सुनी और न ही किसी ने उन्हें वारदात को अंजाम देते हुए देखा.

इस के बाद तीनों वहां से निकले और पिस्टल बाकी बचे कारतूसों के साथ कुछ ही दूरी पर झाडि़यों के पीछे एक गड्ढे में फेंक दी. भूले वारदात के बाद अपने गांव चला गया था, जबकि ओमवीर तथा सुमित सोसायटी में वापस आ गए. सुमित वापस आ कर सोसायटी में अपनी ड्यूटी करने लगा जबकि ओमवीर ने घर पर आ कर अपने कपड़े बदले क्योंकि उस की शर्ट पर खून के निशान लग गए थे.

इस के 3-4 घंटे बाद योजना के मुताबिक अमृता ने अपना नाटक शुरू किया. उस ने ओमवीर को बुला कर कहा कि अब सभी से यही कहना है कि रूपेंद्र घर से गहने ले कर निकला था. वह गहने उसे गाजियाबाद में पीसी ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने थे. दोनों ने यही कहानी गढ़ी.

उसी के बाद ओमवीर ने घटना का गवाह बनाने के लिए रूपेंद्र के पड़ोसी प्रशांत को फोन कर के इस बारे में बताया और उस के बाद रूपेंद्र को ढूंढने का नाटक शुरू हुआ. सब कुछ पहले से तय था. इन लोगों ने सुमित को इसलिए जानबूझ कर साथ लिया कि वह नाटक रचते हुए उन्हें रूपेंद्र की कार तक ले जाए. यही उस ने किया भी.

चूंकि पुलिस को जांच के दौरान पता चला था कि रूपेंद्र का मोबाइल तो उस की जेब में है लेकिन उस का पर्स, अंगूठी और सोने की चेन उस के पास नहीं थी, इसलिए उस रात पुलिस भी इस वारदात को लूटपाट के लिए हुई हत्या की घटना मान कर जांच करने में लगी थी.

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अमृता का व्यवहार ही बना शक की वजह

लेकिन अगले दिन बिसरख के एसएचओ मनोज पाठक को पहली बार रूपेंद्र की पत्नी अमृता का यह व्यवहार अजीब लगा कि पति की हत्या की सूचना के बाद जब वह घटनास्थल पर पहुंची तो उस ने पुलिस को कोई शिकायत नहीं दी. वह बस यही कहती रही कि किसी ने जेवर लूटने के लिए उस के पति की हत्या कर दी. अगले दिन भी जब उस ने कोई शिकायत नहीं दी तो उस पर शक और गहरा गया.

जांच में एसएचओ का शक उस वक्त और भी ज्यादा बढ़ गया जब अमृता से पूछताछ की तो वह एक रटीरटाई थ्यौरी के मुताबिक बेधड़क हो कर मामले को लूटपाट का बताने पर अड़ी रही.

जब उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि जिस समय दोपहर में रूपेंद्र को गोली मारी गई थी, उसी वक्त ओमवीर ने उसे फोन कर के लंबी बातचीत की थी और वाट्सऐप पर कहा था कि काम हो गया है.

हालांकि ओमवीर और सुमित ने पूछताछ में यह बताया था कि वे वारदात के वक्त सोसायटी में थे. लेकिन वारदात के वक्त उन के मोबाइल की लोकेशन रूपेंद्र के मोबाइल की लोकेशन के साथ ही मैच हो रही थी.

सोसायटी के आउट गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे की जांच करने पर पता चला कि जिस वक्त रूपेंद्र सोसायटी के बाहर अपनी कार ले कर निकला था, उस के 2-4 मिनट के अंतराल से ओमवीर तथा सुमित एक अन्य व्यक्ति के साथ पैदल सोसायटी के बाहर निकले थे. इतना ही नहीं, सुमित और ओमवीर डेढ़ घंटे बाद एक साथ सोसायटी के अंदर प्रवेश करते हुए सीसीटीवी फुटेज में दिखे.

ओमवीर और सुमित के बीच इसी दौरान हुई बातचीत और ओमवीर की अमृता के साथ लंबीलंबी बातचीत तथा वाट्सऐप संदेशों ने भी पुलिस को ओमवीर तथा अमृता पर शक करने की वजह दे दी. ओमवीर पर पुलिस का शक उस वक्त यकीन में बदल गया जब 29 अप्रैल की सुबह रूपेंद्र के बैंक खाते से किसी ने 10 हजार रुपए की 2 बार एटीएम में ट्रांजैक्शन की. इस का मैसेज पुलिस के कब्जे में मौजूद रूपेंद्र के फोन पर आया तो पुलिस चौंकी.

पुलिस की एक टीम उसी समय उस एटीएम की जांच करने के लिए गई. शाम होतेहोते सीसीटीवी की फुटेज देखने पर पुलिस को पता चला कि यह रकम एटीएम से ओमवीर ने निकाली थी. बस फिर क्या था, पुलिस के सामने सारी कडि़यां जुड़ती चली गईं. पुलिस ने सब से पहले ओमवीर को हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की. उस ने सारा सच उगल दिया. इस के बाद इंसपेक्टर पाठक की टीम ने उसी दिन सुमित और भूले को भी धर दबोचा.

जब तीनों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, तभी अमृता को अपनी गिरफ्तारी की आशंका हो गई थी. पुलिस उस तक पहुंचती, उस से पहले ही वह फरार हो गई. इंसपेक्टर पाठक ने ओमवीर तथा उस के साथियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल और कई जिंदा कारतूस भी बरामद किए.

पुलिस ने ओमवीर, सुमित और भूले को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने अमृता को पकड़ने के लिए जाल बिछाया. सर्विलांस की मदद से आखिर 4 मई को अमृता को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस से मिली जानकारी के बाद ओमवीर को एक बार फिर से पुलिस रिमांड पर लिया तो उस की शिनाख्त पर पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से डेढ़ लाख रुपए में बेचे गए आभूषण भी बरामद कर लिए.

अगर पुलिस रूपेंद्र की हत्या को केवल लूटपाट का विरोध करने के दौरान हुई मौत पर ही अपनी जांच केंद्रित करती तो अमृता और ओमवीर अपनी साजिश में कामयाब हो जाते. आरोपियों ने एक के बाद एक ऐसी कई छोटीछोटी गलतियां कर दी थीं कि पुलिस धीरेधीरे उन कडि़यों को जोड़ कर उन तक पहुंच गई.

—कथा पुलिस की आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

इंटीरियर डिजाइनर का खूनी इश्क – भाग 2

सुबह से ही इंसपेक्टर पाठक ने रूपेंद्र हत्याकांड की जांच का काम तेज कर दिया. उन्होंने एसआई पीयूष और वीरपाल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. साथ ही उन्होंने एसपी (देहात) की टीम के कांस्टेबल सुधीर और संजीव को मृतक के परिवार के सभी सदस्यों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने और उन के फोन को सर्विलांस पर लगवाने की जिम्मेदारी सौंप दी.

पुलिस टीम ने रूपेंद्र के परिजनों से पूछताछ की. इस के अलावा गैलेक्सी सोसायटी में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगालनी शुरू कर दी.

काल डिटेल्स, सीसीटीवी कैमरों की फुटेज आदि की जांच के बाद पुलिस ने पहली मई को ओमवीर को हिरासत में ले लिया. ओमवीर मृतक का बहनोई था. इंसपेक्टर मनोज पाठक ने थाने ला कर जब उस से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपने खिलाफ पुलिस के पास मौजूद सबूतों को देख कर आसानी से सच उगल दिया.

पुलिस के सामने जब रूपेंद्र की हत्या का सच आया तो सब हैरान रह गए क्योंकि ओमवीर ने रूपेंद्र की हत्या अपनी सोसायटी के गार्ड सुमित और एक अन्य साथी भूले के साथ मिल कर की थी. पुलिस की एक टीम ने उसी दिन उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया. ओमवीर और उस के दोनों साथियों से पूछताछ हुई तो रूपेंद्र हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

रूपेंद्र सिंह चंदेल (33 वर्ष) मूलरूप से उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के गांव मोहारी का रहने वाला था. उस के पिता अर्जुन सिंह चंदेल पीएसी में हैडकांस्टेबल हैं और इन दिनों उन की नियुक्ति प्रयागराज में है. रूपेंद्र का एक मंझला भाई राघवेंद्र भी शादीशुदा है और गांव में रहता है. राघवेंद्र वकालत की पढ़ाई कर रहा है. रूपेंद्र का एक छोटा भाई भी है, जो दिल्ली में रहता है. रूपेंद्र ने एमबीए किया था और पढ़ाई पूरी करने के बाद सन 2012 में उस की नौकरी ग्रेटर नोएडा की बिसकुट कंपनी हिंज प्राइवेट लिमिटेड में लग गई थी.

नौकरी लगने के एक साल बाद सन 2013 में परिवार वालों ने उस की शादी महोबा की रहने वाली अमृता सिंह से कर दी. अमृता न सिर्फ सुंदर थी बल्कि पोस्टग्रैजुएट भी थी. अमृता से शादी के बाद रूपेंद्र की जिंदगी में तेजी से बदलाव आने लगा.

एक साल बाद ही वह एक बच्चे का पिता बन गया, जिस का नाम आयुष्मान रखा. अमृता के जीवन में आने के बाद रूपेंद्र ने तेजी के साथ तरक्की की सीढि़यां चढ़ीं और वह सेल्स मैनेजर के ओहदे तक पहुंच गया.

करीब 3 साल पहले उस ने फोर्ड फिगो कार खरीदी थी, उस के बाद एक साल पहले यानी मई 2018 में रूपेंद्र ने गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 में 35 लाख रुपए में 2 बैडरूम का फ्लैट भी खरीद लिया था. रूपेंद्र की अच्छी सैलरी थी, इसलिए ये तमाम चीजें उस ने लोन ले कर खरीदी थीं. मकान खरीदने के बाद रूपेंद्र ने अपने मकान में 2-3 लाख रुपए खर्च कर के इंटीरियर डिजाइनिंग का कुछ काम भी कराया था.

ओमवीर इंटीरियर डिजाइनर से बना बहनोई

रूपेंद्र के फ्लैट में इंटीरियर का काम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के मोहारी गांव के रहने वाले ओमवीर सिंह ने किया था. ओमवीर गैलेक्सी-2 सोसायटी के फ्लैट संख्या ई-244 में अपने भाई कृष्णवीर तथा 2 रिश्तेदारों के साथ रहता था. ये सभी गौर सिटी की सोसायटियों में इंटीरियर डिजाइनिंग का काम करते थे.

उस ने गैलेक्सी-2 सोसायटी में भी करीब 20 से अधिक फ्लैटों का इंटीरियर डिजाइन किया था. रूपेंद्र को जब ओमवीर से बातचीत में यह बात पता चली कि ओमवीर भी ठाकुर है तो उस ने अपने फ्लैट की इंटीरियर डिजाइन का काम ओमवीर से ही कराया.

कुछ दिन रूपेंद्र के घर में काम करने के दौरान ओमवीर और रूपेंद्र की दोस्ती हो गई. ओमवीर 4 भाइयों में सब से बड़ा था. उस का एक छोटा भाई कृष्णवीर उसी के साथ काम करता था जबकि बाकी दोनों भाई गांव में ही रह कर खेती करते थे. ओमवीर पढ़ालिखा और अच्छे परिवार का लड़का था.

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जब रूपेंद्र से ओमवीर की दोस्ती हो गई तो रूपेंद्र के घर उस का अकसर आनाजाना हो गया. रूपेंद्र रोजाना सुबह को नौकरी पर निकल जाता और शाम को ही घर लौटता था. लेकिन ओमवीर का अपना काम था. वह ज्यादातर गैलेक्सी सोसायटी में ही रहता था. इसलिए वह जब तब रूपेंद्र की गैरमौजूदगी में भी उस के घर चला जाता था.

चूंकि ओमवीर रूपेंद्र का दोस्त था, इसलिए ओमवीर जब भी रूपेंद्र की अनुपस्थिति में उस के घर जाता तो अमृता ओमवीर को एक पारिवारिक दोस्त की तरह सम्मान और सत्कार देती थी. शुरुआत में तो ओमवीर कभीकभार ही रूपेंद्र के घर आता था, लेकिन धीरेधीरे अमृता की खूबसूरती उस के मन में बस गई.

अमृता को पति से प्यारा लगने लगा ओमवीर

इस के बाद तो वह रोज ही कुछ घंटों के लिए रूपेंद्र की गैरमौजूदगी में उस के घर जाने लगा. शुरू में ओमवीर और अमृता औपचारिक रूप से ही बातचीत करते थे, लेकिन जब ओमवीर का अकसर आनाजाना शुरू हुआ तो दोनों की झिझक दूर हो गई और वे खुल कर बातचीत करने लगे.

जनवरी 2019 में दोनों की झिझक इस हद तक दूर हो गई कि ओमवीर अमृता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. जब अमृता ने उस की इस तरह की हंसीमजाक का कोई विरोध नहीं किया तो ओमवीर की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद वह इस से भी एकदो कदम आगे बढ़ गया.

उस ने हंसीमजाक में पहले अमृता को एकदो बार अपनी बांहों में भर लिया था. लेकिन जब अमृता ने इस का भी विरोध नहीं किया तो बात इस के आगे चुंबन तक पहुंच गई. दरअसल, रूपेंद्र जहां गंभीर और सीधे स्वभाव का युवक था, वहीं ओमवीर तेजतर्रार और आधुनिक विचारधारा का लड़का था.

अमृता ओमवीर जैसे तेजतर्रार लोगों को पसंद करती थी. यही कारण रहा कि उस ने कभी ओमवीर की किसी हरकत का बुरा नहीं माना था. इस से ओमवीर की हरकतें और बढ़ने लगीं. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूट गई. दोनों के बीच उस रिश्ते ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध संबंध कहता है. अमृता को ओमवीर के जिस्म का ऐसा चस्का लगा कि बाद में दोनों के बीच अकसर ही यह खेल खेला जाने लगा.

रूपेंद्र उन के खेल से पूरी तरह अनजान था. अमृता की शारीरिक जरूरतें पूरी होने लगीं तो उस ने धीरेधीरे पति में दिलचस्पी लेनी बंद कर दी. ओमवीर ही उस के लिए सब कुछ हो गया था. लेकिन ओमवीर के मन में कुछ और ही खिचड़ी पकने लगी थी. उस ने सोचा कि अमृता के साथ अगर रूपेंद्र का ये मकान भी उसे मिल जाए तो नोएडा जैसी औद्योगिक नगरी में वह अपना बड़ा बिजनैस खड़ा कर सकता है. इसलिए अब उस ने धीरेधीरे अमृता के दिलोदिमाग में रूपेंद्र के खिलाफ जहर के बीज बोने शुरू कर दिए.

अपनी लच्छेदार बातों में फंसा कर ओमवीर ने अमृता के दिमाग में नफरत भर दी. बात यहीं खत्म नहीं हुई. 2019 के फरवरी महीने में रूपेंद्र की मौसी की लड़की शिखा 15 दिन के लिए रूपेंद्र के घर रहने के लिए आई थी. शिखा अमृता जैसी खूबसूरत तो नहीं थी लेकिन सीधीसादी थी. उसे देख कर ही ओमवीर के मन में खयाल आया कि क्यों न रूपेंद्र के घर में बेरोकटोक आने के लिए शिखा से शादी कर ली जाए.

जब यह बात उस ने अमृता से कही तो बात उस की भी समझ में आ गई. अमृता ने इस बारे में पति से बात की तो रूपेंद्र को भी लगा कि जवान मौसेरी बहन के लिए अगर ओमवीर जैसा बिरादरी का ही लड़का मिल जाए तो इस से अच्छा और क्या होगा. ओमवीर ठीकठाक कमा भी लेता था.

रूपेंद्र ने जब महोबा में रहने वाली अपनी मौसी से यह बात की तो वह तैयार हो गईं. फरवरी के आखिरी हफ्ते में दोनों परिवारों की रजामंदी से ओमवीर और शिखा की शादी हो गई. शादी के कुछ रोज बाद शिखा अपने पति ओमवीर के पास नोएडा आ गई. वह गैलेक्सी-2 सोसायटी में पति के साथ रहती थी. शिखा का अभी गौना भी होना था, लिहाजा 10 दिन बाद वह अपने मायके चली गई.

लेकिन इसी दौरान एक दिन न जाने क्यों रूपेंद्र को अमृता के किसी व्यवहार से शक हो गया कि ओमवीर से उस के संबंध कुछ अलग तरह के हो चुके हैं. हालांकि उसे सिर्फ शक था लेकिन फिर भी उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. लिहाजा रूपेंद्र ने अमृता से ओमवीर से दूरी बना कर रखने की बात कह दी. रूपेंद्र के ऐसा कहते ही अमृता समझ गई कि हो न हो रूपेंद्र को उन के संबंधों पर शक हो गया है.

बनने लगी हत्या की योजना

अमृता ने जब यह बात ओमवीर को बताई तो उसे भी लगा कि उसे अगर अमृता व उस की संपत्ति हासिल करनी है तो रूपेंद्र को रास्ते से हटाना होगा. यह काम करने का यही अच्छा मौका है. यह बात उस ने अमृता से कही. अमृता तो उस के प्यार में अंधी हो चुकी थी, लिहाजा वह पति की हत्या कराने के लिए तैयार हो गई.

ओमवीर ने अमृता से कहा कि अगर वह कुछ पैसे खर्च कर दे तो वह ऐसे लोगों का इंतजाम कर देगा जो रूपेंद्र को उन के रास्ते से हटा देंगे. अमृता ने ओमवीर से कह दिया कि वह उसे पैसे दे देगी, वह भाड़े के हत्यारों का इंतजाम कर ले.

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क

तीसरी ताकत का खेल

दिल्ली के दक्षिण पश्चिमी जिले में दिनदहाड़े एक युवक की हत्या और 77 हजार रुपए लूटने की खबर जब वायरलैस पर प्रसारित हुई तो पूरे जिले की पुलिस हरकत में आ गई. यह वारदात 23 सितंबर, 2014 को थाना उत्तरी द्वारका के क्षेत्र में घटी थी.

सूचना मिलने पर जिले की डीसीपी सुमन गोयल ने सभी थानाप्रभारियों को अपनेअपने क्षेत्र में बैरिकेड्स लगा कर वाहनों की सघन तलाशी के आदेश दिए. लुटेरे बाइक पर सवार थे, इसलिए पुलिस की निगाहें बाइक सवारों पर थीं. थाना दिल्ली कैंट की पुलिस भी बैरिकेड्स लगा कर लुटेरों की जांच में लगी हुई थी.

उसी समय दोपहर एक बजे के करीब कैंट इलाके में आरआर अस्पताल के पीछे से एक आदमी भाग कर आता हुआ दिखाई दिया. उस की उम्र करीब 25-30 साल थी. उस के सिर से खून बह रहा था. उस ने पिकेट पर तैनात पुलिस को अपना नाम कीरत सिंह बताया. उस ने बताया कि उस के दोस्त नकुल धीर और मुकीम ने चलती कार में उस के सिर पर गोली मारी है, जान बचाने के लिए वह कार से कूद कर भाग आया है.

कीरत सिंह के सिर से खून बह रहा था इसलिए पुलिस उसे तुरंत एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) के ट्रामा सेंटर ले गई और यह सूचना थाना कैंट के ड्यूटी औफिसर को दे दी. जिस इलाके में घटना घटी थी वह कैंट थाने की सुब्रोतो पार्क चौकी क्षेत्र में आता था. चौकी इंचार्ज के.बी. झा को खबर मिली तो वह भी उस जगह पहुंच गए जहां घटना घटी थी. इस के बाद वह एम्स के ट्रामा सेंटर पहुंचे.

कीरत सिंह का इलाज कर रहे डाक्टरों ने सबइंसपेक्टर के.बी. झा को बताया कि वह बेहोश है और बयान देने की स्थिति में नहीं है. कीरत सिंह कहां का रहने वाला था, उस के दोस्त कहां रहते थे और उन्होंने उसे गोली क्यों मारी? यह सारी जानकारी उस से बात करने के बाद ही मिल सकती थी. लिहाजा के.बी. झा उस के होश में आने का इंतजार करने लगे.

दोस्तों ने कीरत सिंह के सिर में 2 गोलियां मारी थीं. दोनों गोलियां सिर के पिछले हिस्से को छूती हुई निकली थीं. इसलिए उस की हालत कोई ज्यादा सीरियस नहीं थी. अगले दिन जब वह होश में आया तो चौकी इंचार्ज के.बी. झा ने उस से बात की.

कीरत सिंह ने उन्हें बताया कि वह शाहदरा की चंद्रलोक कालोनी में रहता है. कल वह अपने दोस्त नकुल धीर, जो नवीन शाहदरा में रहता है, के साथ कार से गुड़गांव जा रहा था. रास्ते में नकुल का दोस्त मुकीम उर्फ राहुल मिला. राहुल लोनी में रहता है. कार पालम फ्लाईओवर के नजदीक पहुंची तभी मुकीम ने उसे मारने के लिए उस के सिर पर 2 गोलियां चलाईं. लेकिन वह अपनी जान बचाने के लिए चलती कार से ही कूद गया.

कीरत सिंह से पूछताछ के बाद सबइंसपेक्टर के.बी. झा ने यह बात दिल्ली कैंट के थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा को बताई. चूंकि हत्यारों का नामपता पुलिस को मिल चुका था इसलिए डीसीपी सुमन गोयल ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा, चौकीइंचार्ज के.बी. झा, एसआई राजेंद्र सिंह, एएसआई जयकिशन, कांस्टेबल अवतार सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने नकुल धीर और मुकीम के घरों पर दबिश डाली लेकिन वे दोनों अपनेअपने घरों से फरार मिले. उन्हें उन के और भी संभावित ठिकानों पर तलाशा गया लेकिन वे नहीं मिले. असफलता मिलने पर पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. 3 अक्तूबर को एक मुखबिर द्वारा चौकी इंचार्ज के.बी. झा को सूचना मिली कि आरोपी नकुल धीर अपने घर आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस टीम उस के नवीन शाहदरा स्थित घर पहुंच गई.

मुखबिर की सूचना सही निकली. नकुल धीर घर पर ही मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. पुलिस चौकी सुब्रोतो पार्क ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपने दोस्त कीरत सिंह पर जानलेवा हमला करने की बात स्वीकार ली. उस ने कहा कि वह कीरत सिंह की हत्या करना चाहता था, लेकिन इत्तेफाक से निशाना चूक गया जिस से गोली उस के सिर को छूती हुई निकल गई और वह बच गया.

वह कीरत की हत्या क्यों करना चाहता था, यह पूछने पर उस ने जो कहानी बताई, वह नाजायज संबंधों के तानेबाने पर गढ़ी हुई निकली.

28 वर्षीय कीरत सिंह अपने परिवार के साथ उत्तर पूर्वी दिल्ली के शाहदरा क्षेत्र स्थित चंद्रलोक कालोनी में रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा मांबाप और एक बहन थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था.

कीरत सिंह का एक दोस्त था नकुल धीर, जो नवीन शाहदरा में ही रहता था. उस का टूर ऐंड ट्रैवल का काम था, जिस से उसे अच्छी आमदनी होती थी. दोस्त होने की वजह से नकुल धीर का कीरत के यहां आनाजाना था. नकुल की जैसी आमदनी थी, उसी के अनुसार वह अपने ऊपर खर्च भी करता था. उसे बनठन कर रहने का शौक था.

कीरत सिंह की आमदनी सीमित थी. महीने की जो बंधीबंधाई तनख्वाह मिलती थी, उसी से वह घरपरिवार का गुजारा करता था. ममता उस से अपनी कोई फरमाइश करती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था, जिस से वह खिन्न हो जाती थी. उस के अरमान तंगहाली की आंच में झुलस रहे थे. मगर कीरत सिंह को इस बात की कोई फिक्र नहीं थी. वह उस की भावनाओं की कद्र करने के बजाय बाहरी महिलाओं के साथ मौजमस्ती करता था.

कीरत सिंह 1 बच्चे का बाप बन चुका था, इस के बावजूद वह बाहरी महिलाओं के चक्कर में लगा रहता था. ममता को जब पति की हरकतों की जानकारी मिली तो वह बहुत नाराज हुई. उस ने पति को समझाया लेकिन उस ने अपनी छिछोरेपन की आदत नहीं छोड़ी. इसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच अकसर नोकझोंक होती रहती थी.

पिछले साल तो कीरत सिंह ने हद कर दी. उस ने शाहदरा की ही रहने वाली अलका नाम की एक परिचित युवती के साथ बलात्कार कर दिया. अलका ने शाहदरा थाने में उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी, जिस के बाद उसे जेल भी जाना पड़ा. पति की इस कारगुजारी पर ममता को बहुत शर्मिंदा होना पड़ा.

पति के जेल जाने के बाद ममता के सामने आर्थिक परेशानी खड़ी हो गई. पति ही कमाने वाला था. वह भी इतनी पढ़ीलिखी नहीं थी, जिस से उसे आसानी से नौकरी मिल जाती. इस परेशानी में उस की मदद पति के 26 वर्षीय दोस्त नकुल धीर ने की.

नकुल ने आर्थिक सहयोग तो किया ही, साथ ही वह कीरत को जेल से बाहर निकलवाने की कोशिश में भी लग गया. ममता के साथ वह वकील के पास जाता और जेल जा कर कीरत से मुलाकात भी करता. कुल मिला कर नकुल ममता की हर तरह से मदद कर रहा था.

लंबे समय तक नकुल धीर के साथ रहने पर ममता का उस से लगाव हो गया. यहां तक कि बाद में उन के बीच अवैध संबंध भी बन गए. ममता को कोई रोकने टोकने वाला तो था नहीं, इसलिए वह उस के साथ बिना किसी डर के मौजमस्ती करने लगी. चूंकि नकुल के द्वारा ममता की ख्वाहिशें पूरी हो रही थीं इसलिए वह उस से खुश थी.

उन दोनों के बीच यह खेल लंबे समय तक चलता रहा. इसी वजह से ममता नहीं चाहती थी कि उस का पति जेल से जमानत पर बाहर आए. लेकिन अपने सासससुर के दबाव की वजह से उसे पति की जमानत के लिए पैरवी करनी पड़ी. अंतत: करीब सवा साल जेल में रहने के बाद कीरत सिंह की जमानत हो गई.

बाहर आने के बाद कीरत सिंह ने किसी तरह अलका को समझाबुझा कर केस वापस लेने के लिए तैयार कर लिया. अलका द्वारा केस वापस लेने पर कीरत ने राहत की सांस ली. इसी बीच उसे यह भी जानकारी मिल गई कि उस के जेल में रहने के दौरान उस की पत्नी नकुल के साथ गुलछर्रे उड़ाती थी. कीरत ने इस बारे में ममता से बात की तो उस ने बताया कि लोग उसे बिना वजह बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.

पत्नी का जवाब सुन कर कीरत ने बात रफादफा जरूर कर दी थी लेकिन उस के दिमाग में शक का कीड़ा घर कर चुका था. वह पत्नी की गतिविधियों पर इस तरह नजर रखने लगा ताकि उसे आभास न हो.

उधर पति की मौजूदगी के मद्देनजर ममता ने भी नकुल से मिलने में सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी. एक बार पति के सो जाने के बाद ममता बाथरूम में जा कर फोन पर अपने आशिक नकुल से बात कर रही थी. आधी रात के करीब कीरत सिंह की आंखें खुलीं तो उस ने पत्नी को बेड से नदारद पाया. उस ने सोचा कि शायद वह टायलेट गई होगी. 15 मिनट बाद तक भी जब ममता कमरे में नहीं लौटी तो वह बिस्तर से उतर कर दबेपांव कमरे से बाहर निकला.

तभी उस ने बाथरूम की तरफ पत्नी की आवाज सुनी. वह धीरे से जा कर बाथरूम के बाहर खड़ा हो गया और कान लगा कर पत्नी की बातें सुनने लगा. वह फोन पर प्यारभरी बातें कर रही थी. कीरत समझ गया कि जरूर वह अपने यार से बात कर रही है. उस का मन तो किया कि अभी उस की जम कर धुनाई करे, लेकिन आधी रात को वह कोई हंगामा खड़ा नहीं करना चाहता था.

गुस्से का घूंट पी कर वह कमरे में आ कर बिस्तर पर लेट गया. उस के सामने पत्नी की बेवफाई की तसवीरें घूमने लगीं. नींद उस की आंखों से कोसों दूर जा चुकी थी. उस ने तय कर लिया कि सुबह होते ही वह ममता की खबर लेगा.

अपने प्रेमी नकुल से काफी देर बतियाने के बाद ममता चुपके से आ कर पति के पास बिस्तर पर लेट गई. जब वह बिस्तर पर आई, तब कीरत जाग रहा था. वह चुपचाप लेटा अंदर ही अंदर गुस्से से भुन रहा था.

सुबह होने पर कीरत ने पत्नी से पूछा, ‘‘रात को तुम कहां चली गई थी, मेरी आंख खुली तो तुम बिस्तर पर नहीं थीं?’’

‘‘बाथरूम गई थी.’’ ममता ने साधारण तरीके से जवाब दिया.

‘‘बाथरूम में किस से बात कर रही थीं?’’

इतना सुनते ही ममता सकपकाते हुए बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘झूठ मत बोलो, सच बताओ तुम किस से बात कर रही थीं?’’ कहते हुए कीरत ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. साथ ही उसे हिदायत दी कि यदि उस ने अपना रवैया नहीं बदला तो वह उसे घर से निकाल देगा.

पिटाई से ममता का शरीर दुख रहा था. 2-4 दिन वह घर में ही रही. उस ने नकुल से भी बात नहीं की. बाद में नकुल धीर का फोन आया तो उस ने पिटाई की बात उसे बता दी. इस का नकुल को बहुत दुख हुआ.

एक दिन मौका पा कर ममता ने नकुल से मुलाकात कर के उस के सामने अपना दर्द बयान कर दिया. नकुल ने उसे कीरत को ठिकाने लगाने की सलाह दी. उस ने कहा कि कीरत को रास्ते से हटाने के बाद हम लोग शादी कर लेंगे.

यह बात ममता की समझ में आ गई. उस ने इस के लिए हामी भर दी. यह काम नकुल अकेले नहीं कर सकता था. उस ने लोनी के रहने वाले मुकीम उर्फ राहुल से बात की. इस के बदले में उस ने मुकीम को 50 हजार रुपए देने की पेशकश की तो मुकीम इस के लिए तैयार हो गया.

इस के बाद नकुल धीर, मुकीम और ममता ने कीरत सिंह को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. इस योजना के अनुसार 23 सितंबर, 2014 को नकुल धीर अपने एक दोस्त की मारुति जेन कार ले कर कीरत के घर पहुंचा. किसी बहाने से उस ने कीरत को गुड़गांव जाने के लिए तैयार कर लिया. कीरत को कार में बिठा कर वह गुड़गांव की ओर निकल गया. रास्ते में नकुल ने एक अन्य युवक को कार में बैठा लिया. नकुल ने उस का नाम मुकीम बताते हुए कहा कि वह उस का दोस्त है.

कार नकुल चला रहा था, कीरत उस के बराबर वाली सीट पर बैठा था. मुकीम पीछे की सीट पर बैठ गया. कार अपनी गति से आगे बढ़ रही थी. तीनों आपस में बातें कर रहे थे. तभी कार के दिल्ली कैंट की तरफ जाने वाले फ्लाईओवर पर चढ़ने से पहले ही मुकीम ने तमंचा निकाल कर कीरत पर एक फायर कर दिया. गोली उस के सिर को छूती हुई चली गई. उसी समय नकुल ने भी तमंचे से एक फायर कीरत के सिर पर किया.

वह गोली भी कीरत के सिर को छूती हुई निकल गई. कीरत समझ गया कि उस की जान खतरे में है. इसलिए वह कार का गेट खोल कर चलती कार से कूद गया. उस के सिर से खून बह रहा था. वह भागता हुआ पिकेट पर तैनात पुलिस के पास पहुंच गया और सारी बात बता दी. पुलिस उसे एम्स के ट्रामा सेंटर ले गई.

नकुल धीर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 4 अक्तूबर को कीरत सिंह की पत्नी ममता और मुकीम उर्फ राहुल को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. 4 अक्तूबर को ही पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को पटियाला हाउस कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी धीरज मित्तल के समक्ष पेश कर के उन्हें 3 दिन के रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में पुलिस ने उन की निशानदेही पर मारुति जेन कार, वारदात में प्रयुक्त तमंचे आदि बरामद किए. काररवाई पूरी होने पर पुलिस ने आरोपियों को पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. उधर कीरत सिंह की हालत सुधरने पर उस की अस्पताल से छुट्टी कर दी गई थी. उस का कहना है कि वह बेवफा पत्नी से वास्ता नहीं रखेगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.

इंटीरियर डिजाइनर का खूनी इश्क – भाग 1

पिछले 15-20 सालों में नोएडा और ग्रेटर नोएडा का बहुत तेजी से विकास हुआ है. इस के आसपास के गांव भी विकास की दौड़ में शामिल हैं. ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का गांव बिसरख 20 साल पहले भले ही गांव था, लेकिन अब छोटेमोटे शहरों से बेहतर है. यहां पर गौर सिटी-2 की टाउनशिप बन गई है.

प्रशांत कुमार गौर सिटी-2 के गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 के फ्लैट नंबर ए-1468 में रहता था. उस के फ्लैट से 2 फ्लोर नीचे उस के दोस्त रूपेंद्र सिंह चंदेल का फ्लैट था. प्रशांत और रूपेंद्र के बीच गहरी दोस्ती थी.

28 अप्रैल, 2019 को रविवार की छुट्टी थी. उस दिन शाम करीब साढ़े 6 बजे प्रशांत घर पर ही था और पत्नी व बच्चों के साथ मौल घूमने जाने की तैयारी में लगा था. उसी वक्त उस के मोबाइल पर रूपेंद्र के बहनोई ओमवीर का फोन आया.

ओमवीर इसी सोसायटी के फ्लैट नंबर-244 में रहता था. ओमवीर ने फोन पर प्रशांत को जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चिंतित हो उठा. ओमवीर ने बताया था कि रूपेंद्र दोपहर में अपनी सफेद रंग की फोर्ड फिगो कार ले कर घर से गया था. उसे कुछ पैसों की जरूरत थी. वह घर से पत्नी के गहने ले कर गाजियाबाद के पी.सी. ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने के लिए निकला था. लेकिन साढ़े 3 घंटे गुजर जाने के बावजूद अभी तक वह घर नहीं लौटा है.

ओमवीर ने यह भी बताया कि रूपेंद्र की पत्नी अमृता और वह खुद कई बार रूपेंद्र से फोन पर संपर्क करने की कोशिश कर चुके हैं, मगर दूसरी ओर से काल रिसीव नहीं की जा रही.

यह ऐसी बात थी जिसे सुन कर किसी को भी चिंता हो सकती थी. रूपेंद्र तो वैसे भी प्रशांत का बहुत अच्छा दोस्त था. लिहाजा वह फटाफट जीने की सीढि़यां उतर कर रूपेंद्र के फ्लैट पर पहुंच गया. ओमवीर वहां पहले से ही मौजूद था. रूपेंद्र की पत्नी अमृता के चेहरे पर उड़ रही हवाइयां साफ बता रही थीं कि वह बेहद परेशान है. प्रशांत ने जब अमृता से रूपेंद्र के बारे में पूछा तो उस ने भी वही सब बताया जो कुछ देर पहले ओमवीर ने फोन पर उसे बताया था.

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वह घबराते हुए बोली, ‘‘भैया, वो सोने के जेवर ले कर गए हैं. इतनी देर हो गई, न तो वापस आए हैं और न ही फोन रिसीव कर रहे हैं. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है. आप को तो पता है कि यह इलाका कितना खराब है. यहां आए दिन लूटपाट और न जाने क्याक्या होता रहता है. कहीं उन के साथ कुछ ऐसावैसा तो नहीं हो गया? मैं चाहती हूं कि एक बार आप लोग सोसायटी के बाहर जा कर उन्हें आसपास के इलाके में देख लें.’’

कहतेकहते अमृता की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘घबराइए मत भाभीजी, कुछ नहीं होगा रूपेंद्र को. हम लोग अभी पुलिस को खबर कर देते हैं.’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘नहीं प्रशांत भाई, अभी हमें पुलिस को इनफौर्म नहीं करना है. मैं चाहता हूं कि पहले हम कुछ लोग मिल कर रूपेंद्र को तलाश कर लें, अगर वह नहीं मिलता तो फिर पुलिस को सूचना दे देंगे.’’ ओमवीर ने बीच में बात काट कर अपनी राय दी.

‘‘हां, यह भी ठीक है. पहले हम लोग तलाश कर लेते हैं.’’ प्रशांत बोला.

पुलिस में जाने से पहले प्रशांत की खोजबीन

इस के बाद प्रशांत और ओमवीर सोसायटी के दफ्तर में पहुंचे. वहां से ओमवीर ने सोसायटी के गार्ड और औपरेटर का काम करने वाले सुमित को अपने साथ ले लिया. प्रशांत ने सोसायटी में रहने वाले अपने दोस्तों संजीव और रोबिन को भी साथ ले लिया.

इस के बाद वे सभी कार ले कर आसपास के इलाके में रूपेंद्र को तलाश करने के लिए निकल पड़े. एक घंटे में उन लोगों ने आसपास के 6-7 किलोमीटर का रास्ता देख लिया लेकिन न तो उन्हें कहीं रूपेंद्र की कार दिखाई दी और न ही आसपास के इलाके में कहीं कोई दुर्घटना होने की जानकारी मिली.

सभी लोग आगे की काररवाई पर विचार करने के लिए वापस सोसायटी की तरफ लौटने लगे. तब तक रात के 10 बज चुके थे. गौर सिटी से कुछ दूर ब्रह्मा मंदिर है. जैसे ही वे लोग कार से मंदिर के पास से गुजरे कि तभी सुमित ने चिल्ला कर कहा, ‘‘सर, कार रोको… कार रोको.’’

‘‘क्या हुआ भाई, कुछ हो गया क्या?’’ कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे प्रशांत ने कार की गति धीमी करते हुए सुमित से पूछा.

सुमित ने मंदिर के पास सर्विस रोड की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘सर, वो देखो वहां एक सफेद रंग की कार खड़ी है. मुझे लगता है, वह रूपेंद्र सर की ही है.’’

सभी ने चौंकते हुए सर्विस रोड की तरफ देखा तो वहां वाकई एक सफेद रंग की कार खड़ी नजर आई. प्रशांत ने फौरन अपनी कार आगे बढ़ा दी. कुछ दूर आगे जा कर यू टर्न ले कर वह कार को सर्विस रोड पर वहां ले गया, जहां सफेद रंग की कार खड़ी थी.

पास पहुंचते ही प्रशांत ने देखा कि वाकई वह फोर्ड फिगो कार थी और उस का नंबर यूपी95जे 9096 था, जो रूपेंद्र की कार का था. कार का नंबर पढ़ते ही प्रशांत और ओमवीर साथियों के साथ जल्दी से नीचे उतरे और उन्होंने गाड़ी के शीशे से भीतर झांका तो उन के हलक से चीख निकल गई. क्योंकि कार के भीतर ड्राइविंग सीट पर खून से लथपथ रूपेंद्र का शव पड़ा था.

प्रशांत व ओमवीर ने दरवाजा खोल कर रूपेंद्र को हिलाडुला कर देखा तो ओमवीर की मौत हो चुकी थी.

‘‘ओह माई गौड! मुझे जिस बात का शक था, वही हुआ. लगता है बदमाशों ने लूटपाट कर के रूपेंद्र को मार दिया है.’’ कहते हुए ओमवीर ने अपना माथा पकड़ लिया.

जिस की तलाश में प्रशांत और उस के साथी निकले थे, वह तलाश पूरी हो चुकी थी. रूपेंद्र जिंदा तो नहीं मिला अलबत्ता उस की लाश जरूर मिल गई थी. उस की मौत कैसे हुई? क्या हादसा हुआ? यह पता लगाना पुलिस का काम था.

लिहाजा करीब साढ़े 10 बजे प्रशांत ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी. कुछ ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. ओमवीर ने भी तब तक अपनी पत्नी और रूपेंद्र की पत्नी को इस बारे में खबर कर दी थी. गौर सिटी के कुछ दूसरे लोग भी रूपेंद्र की लाश मिलने की सूचना पा कर वहां पहुंच गए.

पीसीआर गाड़ी से आए पुलिसकर्मियों ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद यह खबर स्थानीय बिसरख थाने को दे दी. बिसरख थाने के एसएचओ मनोज पाठक पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल की जांचपड़ताल के बाद सीओ पीयूष कुमार सिंह, एसपी (देहात) विनीत जायसवाल और फोरैंसिक टीम को खबर कर दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम और पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जांचपड़ताल में पुलिस को घटनास्थल पर ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से पता चल पाता कि रूपेंद्र की हत्या लूटपाट के लिए या लूटपाट का विरोध करने के कारण हुई है. सब से बड़ी बात यह थी कि उस की हत्या उस के निवास से करीब ढाई किलोमीटर की दूरी पर हुई थी.

रूपेंद्र की पत्नी अमृता भी अपने 6 साल के बेटे आयुष्मान के साथ वहां पहुंच गई थी. पति की मौत के बाद एक पत्नी का दुख और सदमा उस पर क्या असर करता है, अमृता का विलाप देख कर समझा जा सकता था. ओमवीर की पत्नी शिखा जो रिश्ते में अमृता की ननद थी, उस ने कुछ दूसरी महिलाओं व लोगों के साथ मिल कर रो रही अमृता को सांत्वना दी.

फोरैंसिक टीम ने मृतक की कार के भीतर से फिंगरप्रिंट व दूसरी तरह के नमूने एकत्र कर लिए थे. मौके की काररवाई निपटाने के बाद इंसपेक्टर मनोज पाठक ने रूपेंद्र का शव रात में ही पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही उन्होंने मृतक के परिजनों से इस मामले की एफआईआर दर्ज कराने के लिए लिखित शिकायत देने के लिए अगली सुबह थाना बिसरख आने के लिए कहा.

थाने में रिपोर्ट लिखाने से भी किया मना

लेकिन हैरत की बात यह कि अगली सुबह रूपेंद्र की पत्नी या उस के बहनोई ओमवीर में से कोई भी थाने नहीं पहुंचा. हां, रूपेंद्र का दोस्त प्रशांत जरूर अपने दोस्तों को ले कर बिसरख थाने पहुंच गया था. इंसपेक्टर पाठक ने जब उस से पूछा कि रूपेंद्र की पत्नी या परिवार के लोगों में से कोई एफआईआर कराने क्यों नहीं आया तो प्रशांत ने बताया कि उस ने रूपेंद्र के परिवार वालों से थाने चलने के लिए कहा था. लेकिन उन्होंने कहा कि रिपोर्ट लिखाने से क्या होगा, इस से रूपेंद्र जिंदा तो हो नहीं जाएंगे.

परिजनों का जवाब बेहद चौंकाने वाला था, लेकिन पुलिस को जांच आगे बढ़ाने के लिए महज शिकायत की जरूरत होती है. घटना से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा कोई भी शख्स शिकायत कर सकता है.

लिहाजा इंसपेक्टर पाठक ने प्रशांत से ही लिखित में शिकायत ले कर 29 अप्रैल, 2019 को भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने उसी दिन रूपेंद्र के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के घर वालों को सौंप दिया. तब तक रूपेंद्र के पिता और भाई के अलावा उस के दूसरे रिश्तेदार तथा अमृता के परिजन भी आ चुके थे.

वरदीवाला दिलजला : प्रेमिका और उसके मंगेतर की हत्या

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हिंडन नदी किनारे स्थित साईं उपवन बड़ा ही रमणीक स्थल है. यहां पर साईंबाबा का प्रसिद्ध मंदिर है. 25 मार्च, 2019 सोमवार को सुबह का वक्त था. श्रद्धालुजन साईं मंदिर में आते जा रहे थे. उसी समय लाल रंग की स्कूटी से गोरे रंग की खूबसूरत युवती और एक स्मार्ट सा दिखने वाला युवक वहां पहुंचे.

स्कूटी को उपवन परिसर के बाहर एक ओर खड़ी कर वे दोनों मंदिर में प्रवेश कर गए. कोई 10 मिनट के बाद जब वे दोनों साईंबाबा के दर्शन कर के बाहर निकले तो उन के चेहरे खिले हुए थे. यह हसीन जोड़ा आसपास से गुजरने वाले लोगों की नजरों का आकर्षण बना हुआ था. लेकिन उन दोनों को लोगों की नजरों की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी. वे अपनी ही दुनिया में मशगूल थे.

जैसे ही दोनों बाहर निकले वह रमणीक इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. तभी वहां मौजूद लोगों को एक आदमी युवक युवती की लाशें बिछा कर तेजी से लिंक रोड की तरफ भागता हुआ दिखाई दिया. लोगों ने देखा कि लाशें उसी नौजवान खूबसूरत जोड़े की थीं, जो अभीअभी वहां से हंसते मुसकराते हुए मंदिर से बाहर निकला था. इसी दौरान किसी ने इस सनसनीखेज घटना की सूचना 100 नंबर पर गाजियाबाद पुलिस को दे दी.

थोड़ी ही देर में सिंहानी गेट के थानाप्रभारी जयकरण सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मंदिर परिसर के अंदर लाल सूट पहने एक युवती और एक युवक की रक्तरंजित लाशें औंधे मुंह पड़ी थीं. जयकरण सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया.

युवक युवती के कपड़े खून से सने थे. वहां पर काफी लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. जयकरण सिंह ने उन की नब्ज टटोली, लेकिन उन की सांसें उन का साथ छोड़ चुकी थीं. उन्होंने जल्दी से क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को बुला कर घटनास्थल की फोटोग्राफी करवाई और वहां उपस्थित चश्मदीदों से इस घटना के बारे में पूछताछ करनी शुरू की.

कुछ लोगों ने बताया कि मृतक युवती और युवक कुछ ही देर पहले लाल स्कूटी से एक साथ मंदिर आए थे, जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के बाद बाहर निकल रहे थे, तभी पहले से घात लगाए हत्यारे ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

पुलिस ने जब दोनों लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की तो भीड़ ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. यह देख इंसपेक्टर जयकरण सिंह ने आरटीओ औफिस से उस लाल रंग की स्कूटी का विवरण मालूम किया, जिस से वे आए थे. आरटीओ औफिस से मृतका की शिनाख्त प्रीति उर्फ गोलू, निवासी विजय विहार (गाजियाबाद) के रूप में हुई.

तय हो गई थी शादी

पुलिस द्वारा सूचना मिलने पर थोड़ी देर में युवती के घर वाले भी रोते बिलखते हुए घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवती की शिनाख्त के साथसाथ युवक की भी शिनाख्त कर दी. मृतक सुरेंद्र चौहान उर्फ अन्नू था. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि उन की बेटी प्रीति और सुरेंद्र चौहान बहुत जल्द परिणय सूत्र में बंधने वाले थे. सुरेंद्र के मातापिता भी इस रिश्ते के लिए राजी थे.

घटनास्थल की जांच के दौरान वहां पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के कुछ खोखे और मृतका प्रीति की लाल रंग की स्कूटी बरामद हुई, जिसे पुलिस टीम ने अपने कब्जे में ले लिया. मृतका के पिता प्रमोद कुमार से युवक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह के बारे में जानकारी मिल गई. पुलिस ने उन्हें भी इस दुखद घटना के बारे में बता दिया. इस के बाद खुशहाल सिंह भी अपने परिजनों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो चुकी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

25 मार्च को ही मृतका प्रीति के पिता प्रमोद कुमार की शिकायत पर इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा कोतवाली सिंहानी गेट में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

इस केस की आगे की तफ्तीश थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने खुद संभाली. उन्होंने इस घटना के बारे में एसपी श्लोक कुमार और सीओ सिटी धर्मेंद्र चौहान को भी अवगत करा दिया.

एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसपी श्लोक कुमार के निर्देशन और सीओ धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी जयकरण सिंह के साथ इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राजेश कुमार, एसआई श्रीनिवास गौतम, हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह, माइकल बंसल, कांस्टेबल अशोक कुमार, संजीव गुप्ता, सेगेंद्र कुमार, संदीप कुमार और गौरव कुमार को शामिल किया गया.

जांच टीम ने एक बार फिर साईं उपवन पहुंच कर वहां के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ शुरू की तो पता चला कुछ लोगों ने एक लंबी कदकाठी के आदमी को वहां से भागते हुए देखा था. वह अधेड़ उम्र का आदमी था जो कुछ दूरी तक भागने के बाद वहां खड़ी एक कार में सवार हो कर फरार हो गया था.

हालांकि मंदिर परिसर में 8 सीसीटीवी कैमरे लगे थे लेकिन दुर्भाग्यवश सभी खराब थे. मृतका के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रीति सुबह 7 बजे ड्यूटी पर जाने के लिए निकली थी. वह वसुंधरा के वनस्थली स्कूल के यूनिफार्म स्टौल पर नौकरी करती थी.

उस के काम पर चले जाने के बाद  वह बुलंदशहर जाने वाली बस में सवार हो गए थे. अभी उन की बस लाल कुआं तक ही पहुंची थी कि उन्हें मोबाइल फोन पर प्रीति को गोली मारे जाने का दुखद समाचार मिला. जिसे सुनते ही वह फौरन घटनास्थल पर आ गए थे.

पिता ने बताई उधार की कहानी

प्रमोद कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह को भी कोतवाली बुला कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन के बेटे की हत्या में कल्पना नाम की औरत का हाथ हो सकता है. दरअसल, सुरेंद्र का गाजियाबाद के ही प्रताप विहार में शीशे के सामान का कारोबार था, इसी कारोबार के लिए सुरेंद्र ने कुछ समय पहले कल्पना से कुछ रुपए उधार लिए थे. कल्पना रुपए वापस करने के लिए लगातार तकादा कर रही थी.

चूंकि सुरेंद्र के पास उसे देने लायक पैसे इकट्ठे नहीं हुए थे. इसलिए वह कल्पना को कुछ दिन तक और रुकने को कह रहा था.

2 दिन पहले शनिवार के दिन भी कल्पना उन के घर पर अपने रुपए लेने आई थी, इस दौरान कल्पना ने गुस्से में आ कर सुरेंद्र को बहुत बुराभला कहा था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम इस हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाने के लिए उन तमाम पहलुओं पर विचारविमर्श करने लगी, जिस पर आगे बढ़ कर हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. इस में पहला तथ्य घटनास्थल पर मिले पौइंट 9 एमएम पिस्टल से फायर की गई गोलियों के खोखे थे. इस प्रकार के पिस्टल का इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस अधिकारी करते हैं. यह सुराग इस तथ्य की ओर इशारा कर रहा था कि हत्यारे का कोई न कोई संबंध पुलिस डिपार्टमेंट से है.

दूसरा तथ्य मृतक सुरेंद्र उर्फ अन्नू के पिता खुशहाल सिंह के अनुसार उन के बेटे को कर्ज देने वाली औरत कल्पना से जुड़ा था. तीसरा सिरा मृतका प्रीति और उस के मंगेतर सुरेंद्र की बेमेल उम्र से ताल्लुक रखता था.

दरअसल प्रेमी सुरेंद्र की उम्र अभी केवल 26 साल थी जबकि उस की प्रेमिका प्रीति की उम्र 32 साल थी. इसलिए यहां इस बात की संभावना थी कि उन के बीच उम्र का यह फासला उन के परिवार के लोगों में से किसी सदस्य को पसंद नहीं आ रहा हो और आवेश में आ कर उस ने इस घटना को अंजाम दे दिया हो.

इस के अलावा एक और भी महत्त्वपूर्ण बिंदु था, जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. प्रीति उर्फ गोलू की उम्र अधिक थी. यह भी संभव था कि उस के प्रेम संबंध पहले से किसी और युवक के साथ रहे हों. पहले प्रेमी को पता चल गया हो कि प्रीति की शादी सुरेंद्र चौहान से हो रही है. संभव था कि उस ने प्रीति को सबक सिखाने के लिए सुरेंद्र का काम तमाम कर दिया.

चूंकि वारदात के समय उस के साथ उस का मंगेतर सुरेंद्र चौहान भी था, इसलिए गुस्से से बिफरे पहले प्रेमी ने उस को भी मार डाला हो. बहरहाल इन तमाम बिंदुओं पर विचार विमर्श कर के पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के प्रयास में जुटी थी.

पुलिस टीम ने 27 मार्च को एक बार फिर दोनों के परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों तथा वारदात के वक्त साईं उपवन में मौजूद चश्मदीदों को बुला कर पूछताछ की. साथ ही प्रीति और सुरेंद्र के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की गहन जांच की.

इस जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. प्रीति के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि उन का एक रिश्तेदार दिनेश कुमार दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में एएसआई के पद पर तैनात है. उस का चौहान परिवार के घर पर काफी आनाजाना था.

लेकिन जिस दिन यह दोहरा हत्याकांड हुआ उस दिन के बाद वह बुलाए जाने के बावजूद वारदात वाली जगह पर नहीं आया था. और तो और प्रीति के अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ था. यह बात प्रमोद कुमार और उन के परिवार के सदस्यों को बहुत अटपटी लगी थी. जब पुलिस ने उन से डिटेल्स में बात की तो प्रमोद कुमार ने अपने मन की सब बातें विस्तार से बता दीं.

जिन्हें सुनते ही पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस में ट्रैफिक विभाग में तैनात एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करने का मन बना लिया. चूंकि घटनास्थल पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के खाली खोखे मिले थे, जिस की वजह से भी वारदात में किसी पुलिस वाले के शामिल होने का शक था, इसलिए अब एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करना बेहद जरूरी हो गया था.

पुलिस वाला आया शक के घेरे में

थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने एएसआई दिनेश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए. आखिरकार 30 मार्च की सुबह एक मुखबिर की सूचना पर उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया. जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ शुरू की गई तो उस ने जो कुछ बताया उस से रिश्तों में उलझी एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई.

प्रमोद कुमार अपने परिवार के साथ गाजियाबाद के विजय विहार में रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. वह बड़ी बेटी के हाथ पीले कर चुके थे. दूसरी बेटी प्रीति उर्फ गोलू और उस से छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही थी. 22 वर्षीय प्रीति मिलनसार स्वभाव की थी. वह जिंदगी के हर एक पल का पूरा लुत्फ उठाने में विश्वास रखती थी.

बड़ी बेटी की शादी के एक साल बाद प्रमोद कुमार ने प्रीति के भी हाथ पीले कर देने की सोची. उन्होंने उस के लिए कई जगह रिश्ते की बात चलाई, मगर आखिर अपनी हैसियत के अनुसार मौके पर प्रीति किसी न किसी बहाने से शादी करने से इनकार कर देती थी.

प्रीति का अपनी बड़ी बहन के घर काफी आनाजाना था. अपने हंसमुख स्वभाव की वजह से वह बहन की ससुराल में भी काफी घुलमिल गई थी. उस के जीजा का जीजा दिनेश कुमार दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. दिनेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पिलखुआ का रहने वाला था.

उस की पत्नी और बच्चे पिलखुआ में ही रहते थे. दिनेश जब भी रमेश के घर आता वह प्रीति से खूब बातेें करता था. बला की हसीन और दिलकश प्रीति की चुलबुली मीठी बातें सुन कर वह भावविभोर हो जाता था.

प्रीति को भी दिनेश से बातें करने में खुशी मिलती थी. वह उस समय उम्र के उस पड़ाव पर भी पहुंच गई थी, जहां एक मामूली सी चूक भविष्य के लिए नासूर बन जाती है. लेकिन इस समय प्रीति या उस की बहन सीमा ने इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

धीरेधीरे प्रीति की जिंदगी में दिनेश का दखल बढ़ने लगा. अब वह प्रीति से उस के गाजियाबाद स्थित घर पर भी मिलने आने लगा था. इतना ही नहीं जब कभी प्रीति या उस के परिवार में अधिक रुपयों की जरूरत होती वह अपनी ओर से आगे बढ़ कर उन की मदद करता था.

प्रीति के पिता प्रमोद कुमार भी दिनेश कुमार के बढ़ते अहसानों के बोझ तले इतने दब चुके थे कि दिनेश के रुपए वापस करना उन के वश के बाहर हो गया. दिनेश कुमार ये रुपए प्रीति के घर  वालों को यूं ही उधार नहीं दे रहा था.

रिश्तों में सेंध

दरअसल दिनेश कुमार अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की प्रीति के ऊपर न केवल पूरी तरह से फिदा था बल्कि उस के साथ उस के शारीरिक संबंध भी स्थापित हो चुके थे. वह प्रीति को किसी न किसी बहाने से अपने साथ घुमाने ले जाता था, जहां दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

समय का पहिया अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, दिनेश कुमार सन 1994 में कांस्टेबल के पद पर दिल्ली पुलिस में भरती हुआ था. सन 2008 में उस का प्रमोशन हेड कांस्टेबल के पद पर हो गया. इस के 8 साल बाद एक बार फिर उस का प्रमोशन हुआ और वह एएसआई बन गया. इन दिनों वह ट्रैफिक विभाग में सीमापुरी सर्कल में तैनात था.

प्रीति के साथ जिस सुरेंद्र कुमार नाम के युवक की जान गई थी, वह मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. उस के पिता खुशहाल सिंह सेना में रह चुके थे. रिटायरमेंट के बाद वह अपने गांव में सेटल हो गए. 2 बेटों के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा सुधीर हरिद्वार में रहता था. वह अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुके थे और इन दिनों एक पोल्ट्री फार्म चला रहे थे.

करीब 2 साल पहले उन का छोटा बेटा सुरेंद्र कुमार उर्फ अन्नू उत्तराखंड से गाजियाबाद आ गया था और प्रताप विहार में शीशे का बिजनैस करने लगा था. 2 साल तक अथक मेहनत करने के बाद आखिर उस का काम चल निकला.

इस के बाद उस ने अपने मातापिता को भी अपने पास बुला लिया था. कुछ ही महीने पहले उस की मुलाकात प्रीति उर्फ गोलू से हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

सुरेंद्र से मुलाकात होने के बाद प्रीति फोन से सुरेंद्र से अकसर बात करती रहती थी. दिन गुजरने लगे उन के प्यार का रंग गहरा होता चला गया. कुछ दिनों के बाद सुरेंद्र और प्रीति का प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी हो गए थे. शादी की बात तय हो जाने पर दोनों प्रेमी खुश हुए. हालांकि प्रीति की उम्र सुरेंद्र से करीब 6 साल ज्यादा थी मगर दोनों में से किसी को इस पर जरा भी एतराज नहीं था.

प्रीति सुरेंद्र के साथ शादी के लिए तो दिलोजान से रजामंद थी किंतु उस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि दिनेश के साथ उस के विगत कई सालों से जो प्रेमिल संबंध थे उन से निकलना आसान नहीं था. वजह यह कि दिनेश कुमार किसी भी हालत में उस की शादी किसी और से नहीं होने देना चाहता था.

प्रीति को अपने काबू में रखने के लिए उस ने उस की हर जायज नाजायज मांगें पूरी की थीं. हाल ही में उस ने प्रीति के पिता को 3 लाख रुपए उधार भी दिए थे. एएसआई दिनेश कुमार के बयान कितने सच और कितना झूठ है यह तो पुलिस की जांच के बाद पता चलेगा. परंतु इतना तय है कि प्रीति के घर में उस का इतना दखल था कि वह बेधड़क जब चाहे तब उस के घर आ जा सकता था.

प्रीति और सुरेंद्र के बीच जब से प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था तब से प्रीति ने एएसआई दिनेश से मिलनाजुलना कम कर दिया था. पहले तो दिनेश कुमार प्रीति और सुरेंद्र के प्यार से अनजान था, लेकिन 4-5 दिन पहले जब प्रीति ने उस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया तो वह सोच में पड़ गया.

दिल्ली पुलिस में 25 सालों से नौकरी कर रहे एएसआई दिनेश कुमार को यह समझने में देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. फिर भी उस ने किसी तरह प्रीति को फोन कर के उस से बातें करने की कोशिश जारी रखी. लेकिन 2 दिन पहले प्रीति ने दिनेश कुमार के लगातार आने वाले फोन से परेशान हो कर अपने मोबाइल फोन का सिम बदल लिया.

मामला बिगड़ता देख एएसआई दिनेश कुमार समझ गया कि प्रीति किसी कारण उस से संबंध तोड़ने पर आमादा है. जिस के फलस्वरूप उस ने प्रीति को सबक सिखाने की ठान ली. 24 मार्च, 2019 को दिनेश की रात की ड्यूटी थी.

25 मार्च की सुबह अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद वह शाहदरा निवासी अपने दोस्त पिंटू शर्मा के पास गया. उस की मारुति स्विफ्ट कार पर सवार हो कर वह प्रीति के घर जा पहुंचा. कार पिंटू शर्मा चला रहा था. प्रीति के घर पहुंच कर जब उसे पता चला कि प्रीति साईं उपवन मंदिर गई है तो वह उस का पीछा करता हुआ वहां भी पहुंच गया.

अचानक की गईं दोनों की हत्याएं

उधर साईं मंदिर में दर्शन करने के बाद जैसे ही प्रीति और सुरेंद्र अपने जूतों की ओर बढ़े, तभी एएसआई दिनेश कुमार प्रीति से बातें करने के लिए आगे बढ़ा. उस ने प्रीति को अपनी ओर बुलाया मगर प्रीति ने उस की ओर देख कर अपनी नजरें फेर लीं.

यह देख दिनेश कुमार की त्यौरियां चढ़ गईं. वह आगे बढ़ा और प्रीति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगा, मगर प्रीति ने उस का हाथ झटक दिया. प्रीति की यह बात एएसआई दिनेश कुमार को बहुत बुरी लगी. तभी उस ने अपना सर्विस पिस्टल निकाला और प्रीति के ऊपर फायर कर दिए.

प्रीति को खतरे में देख कर सुरेंद्र उसे बचाने के लिए दौड़ा तो दिनेश ने उस के भी सीने में 3 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह बाहर स्विफ्ट कार में इंतजार कर रहे पिंटू शर्मा के साथ वहां से फरार हो गया.

गाजियाबाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए 5 दिनों तक दिनेश कुमार अपने रिश्तेदारों के घर छिपा रहा. दिनेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने शाहदरा से इस हत्याकांड में शामिल रहे उस के दोस्त पिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात में प्रयोग की गई एएसआई दिनेश कुमार की सर्विस पिस्टल, 3 जीवित कारतूस तथा स्विफ्ट कार भी गाजियाबाद पुलिस ने बरामद कर ली. 2 अप्रैल, 2019 को दिल्ली पुलिस ने भी एएसआई दिनेश कुमार को उस के पद से बर्खास्त कर दिया. इस समय दोनों हत्यारोपी जेल में बंद हैं.

उधर गाजियाबाद पुलिस के आला अधिकारियों ने इस सनसनीखेज वारदात की गुत्थी सुलझाने वाली टीम का मनोबल बढ़ाते हुए 25 हजार रुपए के पुरस्कार से नवाजा है, पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.