सूइयों के सहारे सीने में उतरी मौत

राजेश विश्वास के घर पर कोहराम मचा हुआ था. सुबहसवेरे उस की पत्नी प्रिया जोरजोर से रो रही थी और राजेश को पुकार रही थी. रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. लोगों ने घर में देखा तो राजेश मृत अवस्था में पड़ा हुआ था.

लोगों ने कयास लगाया कि राजेश की  मौत हो गई है. राजेश विश्वास का बड़ा भाई  रमेश विश्वास, उस की पत्नी और समाज के लोग भी आ जुटे और फटाफट उसे यह सोच कर स्थानीय सरकारी अस्पताल ले जाया गया कि शायद उस की सांस चल रही हो, लेकिन डाक्टरों ने परीक्षण के बाद राजेश विश्वास की मृत्यु की घोषणा कर दी.

चूंकि उस की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई लग रही थी, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना धर्मजयगढ़ पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही सुबहसवेरे एसएचओ अमित तिवारी सहयोगियों के साथ मौके पर पहुंचे और राजेश विश्वास के शव की जांच कर उस का पंचनामा बनाया गया. कागजी काररवाई पूरी कर वह थाने लौट आए.

यह करीब एक साल पहले की बात है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के मोवा स्थित बालाजी हौस्पिटल में एक बिस्तर पर लीवर और किडनी का इलाज करवा रहे राजेश विश्वास ने रुंधे गले से बमुश्किल कहा, ”यह लाइलाज बीमारी मेरा पीछा पता नहीं कब छोड़ेगी. कितने रुपए लग गए, मगर मैं ठीक ही नहीं हो पा रहा हूं. और शायद कभी हो भी नहीं पाऊंगा…’’

यह सुनते ही उस की पत्नी प्रिया ने अपने हाथ की अंगुलियां पति राजेश के मुंह पर रख चुप कराते हुए ढांढस बंधाते कहा, ”ऐसा नहीं कहते, मर्ज जब आता है तो धीरेधीरे ठीक भी हो जाता है…’’

इस पर दुखी स्वर में राजेश ने कहा, ”मेरे गैरेज का कामधंधा बंद हो गया, इनकम का साधन भी नहीं रहा. मैं कमाऊंगा नहीं तो मेरा इलाज कैसे होगा. फिर तुम्हारे लिए भी तो कुछ जिम्मेदारियां हैं मेरी.’’

इस पर प्रिया ने कहा, ”आप के घर वाले देखो, किस तरह हाथ पैर बांधे बैठे हुए हैं. उन्हें कम से कम इस समय तो मदद के लिए आना चाहिए. कितने दिन बीत गए, मदद की बात तो दूर कोई देखने तक भी नहीं आया है.’’

ऐसी ही अनेक परेशानियों को झेलते हुए राजेश विश्वास (32 वर्ष) और प्रिया विश्वास (24 वर्ष) युगल दंपति छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बालाजी हौस्पिटल में महीना भर रहे. इलाज के बाद जब राजेश विश्वास कुछ स्वस्थ हुआ तो दोनों वापस रायगढ़ के धर्मजयगढ़ में स्थित अपने घर आ गए.

राजेश विश्वास का प्रिया से कुछ महीनों पहले ही विवाह हुआ था. विवाह से पहले भी वह यदाकदा बीमार रहता था, मगर प्रिया को अपनी बुरी आदत और बीमारी के बारे में बिना बताए ही विवाह की डोर में बंध गया.

उन का दांपत्य जीवन धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था और उस के साथ ही राजेश की बीमारी सामने आती चली गई. अब सब कुछ प्रिया के सामने था. मगर विवाह बंधन के बाद उस के पास और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. रायपुर में इलाज चलने लगा था.

राजेश और प्रिया का जीवन इस तरह धीरेधीरे जिंदगी की दुश्वारियों से गुजरता हुआ खट्टेमीठे रिश्तों के साथ आगे बढऩे लगा.

अस्पताल में प्रिया ने की खूब सेवा

प्रिया विश्वास पति की देखरेख करती थी और जिंदगी की गाड़ी धीरेधीरे चल रही थी. वैवाहिक जीवन की शुरुआत में ही उस के चेहरे की खुशियां मानो उड़ सी गई थीं. वह चाह कर भी हंस नहीं पाती थी. पति की बीमार सूरत हमेशा उस के आगे घूमती रहती थी. वह क्या करे, जिस से कि उस का जीवन खुशियों से भर जाए. सोचती रहती थी.

उसे धीरेधीरे लगने लगा कि उस की जिंदगी रेगिस्तान बन गई है, जहां उसे आने वाले समय में दूरदूर तक कहीं भी खुशियों की आहट दिखाई नहीं दे रही थी. वह कभीकभी अपने भाग्य को रोती आंसू बहा लेती थी.

धर्मजयगढ़ के पास ही दुर्गापुर में रहने वाली प्रिया उस दिन को कोसती थी, जब उस ने राजेश को पसंद किया था और उस के प्रपोज करने पर उस के साथ जिंदगी के रास्ते तय करने की स्वीकृति दे कर विवाह बंधन में बंध गई थी.

धीरेधीरे राजेश के स्वास्थ्य को ले कर सारा सच उस के सामने आईने की तरह उजागर हो चुका था. साथ ही कभीकभी वह दुव्र्यवहार पर उतर आता था. ज्यादा शराब पीने के बाद लीवर और फिर किडनी की दिक्कत के कारण राजेश का मिजाज नरम गरम बना रहता था.

यह देखते समझते प्रिया की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था. क्या वह जिंदगी भर दुखदर्द से जिएगी, यह सोच कर ही प्रिया बहुत परेशान हो गई. मगर अब देर हो चुकी थी, उस के पास रास्ता क्या बचा था?

नवंबरदिसंबर 2023 के एक दिन प्रिया पति राजेश विश्वास को बालाजी हौस्पिटल में इलाज के लिए फिर रायपुर ले आई. राजेश को अस्पताल में भरती कर लिया गया था. प्रिया सब कुछ संभाल रही थी. एक स्त्री होने के बावजूद जिस तरह राजेश का सहारा बन कर पत्नी के रूप में प्रिया ने अस्पताल में भूमिका निभाई, उस से राजेश विश्वास भी मन ही मन प्रिया का मुरीद  हो गया था.

दूसरी तरफ आत्मविश्वास के साथ हौस्पिटल के डाक्टर से बात करती और दवाइयों की व्यवस्था करती. पति के इलाज के लिए उस ने अपना सोने का एक कंगन भी बेच दिया था. यह सब राजेश देख रहा था और मन ही मन प्रिया के प्रति उस का प्रेम बढ़ता चला गया.

कभीकभी राजेश सोचता कि प्रिया जैसी पत्नी उसे मिल गई, यह उस का भाग्य ही तो है वरना कौन आज किसी का इस तरह साथ देता है.

मगर प्रिया के पत्नी भाव को देख कर राजेश की आंखें भर आती हैं. आखिरकार एक दिन राजेश से रहा नहीं गया तो उस ने कहा, ”तुम ने मुझे बताया भी नहीं और अपना सोने का कंगन बेच दिया, तुम ने भला ऐसा क्यों किया?’’

इस पर इठला कर प्रिया ने कहा, ”सोने का कंगन मैं ने अपने सुहाग के लिए बेचा है तो भला क्या गलत किया है. बताओ तो सही.’’

”नहींनहीं तुम्हें अपने गहने बेचने की जरूरत नहीं है, मै कहीं से भी रुपए की व्यवस्था कर लूंगा.’’ राजेश ने कहा.

”वह जब होगा, कर लेना, आज आप के इलाज के लिए हमे यहां रुपयों की जरूरत है. भला हमें यहां कौन पैसे देगा और फिर यह सोनाचांदी होता ही इसी दुख की घड़ी के लिए तो है.’’

”तुम ठीक कर रही हो,’’ राजेश की आंखें भींग आईं.

इसी दरमियान एक दिन राजेश और प्रिया की मुलाकात अस्पताल के कंपाउंडर फिरीज यादव उर्फ कृष से हुई. उस समय राजेश को कुछ दवाइयों की जरूरत थी और प्रिया के पास रुपए खत्म हो गए थे. प्रिया सोच रही थी कि क्या करूं. प्रिया को असमंजस में देख कर फिरीज ने पूछ लिया था, ”क्या हुआ, क्या बात है? आप दवाइयां क्यों नहीं ला रही हैं?’’

प्रिया के भावशून्य चेहरे को देख कर के शायद फिरीज समझ गया. बिना कुछ कहे उस ने प्रिया के हाथ से दवाइयां लिखा कागज ले कर उधार में दवाइयां ले कर इलाज शुरू करवा दिया. इस घटना के बाद राजेश, प्रिया विश्वास और फिरीज यादव में एक तरह से आत्मीय संबंध बनते चले गए.

धीरेधीरे प्रिया का आकर्षण फिरीज यादव के प्रति बढऩे लगा. बालाजी अस्पताल में कोई भी आवश्यकता होती, इशारा करते ही फिरीज यादव सामने खड़ा होता.

दोनों ही आपस में बातें करते. प्रिया उसे अपना सारा दुखदर्द बताती कि अब तो राजेश उस के साथ मारपीट भी करने लगा है. एक दिन तो गुस्से में उस पर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया था और वह थाने तक चली गई थी. अब तो उस की जिंदगी मानो उजाड़ हो गई है.

प्रिया की दास्तां सुन कर फिरीज यादव सहानुभूति व्यक्त कर कोई न कोई रास्ता निकल आने की बात कह तसल्ली देता.

प्रिया को चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा लिया कंपाउंडर ने

एक दिन बातोंबातों में फिरीज यादव ने कहा, ”तुम सचमुच ग्रेट हो, आज की दुनिया में तुम जैसा मैं ने नहीं देखा. पति के प्रति तुम्हारा समर्पण प्रेम पागलपन से भरा हुआ है. मगर एक बात कहूं, बुरा मत मानना.’’

”नहींनहीं बोलिए क्या बात है, क्या कहना चाहते हैं.’’ वह बोली.

”तुम्हारे पति राजेश ने तुम्हें धोखा दिया है, तुम से झूठ बोला और शादी कर ली.’’

”क्या झूठ बोला है मेरे सुहाग ने मुझ से.’’ अंजान सी बन प्रिया विश्वास बोली.

”वह खुद बिस्तर पर है गंभीर बीमारी से घिरा हुआ है और तुम से उस ने झूठ बोल कर विवाह कर लिया. उस ने तुम्हें बताया भी नहीं कि ऐसी बीमारियों के बाद उसे तुम से प्यार और ब्याह नहीं करना चाहिए था. यह तो सरासर धोखा है. मैं तो कहता हूं कि तुम जैसी मासूम की जिंदगी बरबाद करने का उसे क्या अधिकार था.’’

”नहींनहीं, इस में सिर्फ उन की ही गलती नहीं, यह सब ऊपर वाले का दोष है.’’ आंसू बहाते हुए प्रिया विश्वास ने कहा.

इस पर फिरीज यादव उर्फ कृष ने कहा, ”तुम जैसी भोलीभाली लड़कियां इस तरह भ्रमजाल में फंस कर अपनी जिंदगी बरबाद कर लेती हैं. मगर मैं यह मानता हूं कि तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है.’’

धर्मजयगढ़ वापस आ जाने के बाद राजेश और प्रिया विश्वास की जिंदगी की गाड़ी धीरेधीरे चल रही थी. राजेश कभी बीमार पड़ जाता तो स्थानीय स्तर पर ही उस का इलाज करा लेते थे. उस ने बीमारी के कारण अपने गैरेज के साथ एक स्कौर्पियो खरीद ली, जिसे वह किराए पर चला रहा था, जिस से परिवार का खर्च आराम से निकल रहा था.

एक दिन फिरीज यादव को प्रिया विश्वास ने मोबाइल पर काल की. उस ने मधुर स्वर में कहा, ”प्रिया, कैसी हो, मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है. तुम्हारी जिंदगी का दर्द, तुम्हारा चेहरा मैं भूल नहीं पाता हूं और सोचता हूं कि इस में भला तुम्हारी मैं क्या मदद कर सकता हूं.’’

फिरीज यादव की बातें सुन कर प्रिया विश्वास ने कहा, ”क्या तुम मेरी कोई मदद नहीं कर सकते. मेरी जिंदगी दोराहे पर खड़ी है, जहां सिर्फ पतझड़ ही पतझड़ नजर आती है. सच कहूं तो मुझे समझ में नहीं आता कि मैं किस पिंजरे में आ कर फंस गई हूं. मेरा क्या होगा, मैं अब जिंदगी से निराश हो चली हूं.’’

”बताओ, मैं क्या कर सकता हूं?’’ फिरीज यादव ने असहाय स्वर में कहा.

”देखो, मेरी एक सहेली है पायल, मैं उस से दिल की हर बात करती हूं. वह कह रही थी कि तुम एक डाक्टर हो, इतने बड़े अस्पताल में हो, कुछ तो रास्ता होगा?’’ प्रिया विश्वास ने आशा के भाव से कहा.

”अच्छा कौन है पायल, बात करवाना मुझ से. खैर, तुम इतना कह रही हो तो मैं कुछ योजना बनाता हूं. मेरे अनुसार अगर तुम दोनों चल सकीं तो कुछ दिनों में तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी.’’

”सच! भला वह कैसे?’’ उत्सुकता से प्रिया विश्वास ने कहा.

इस के बाद फिरीज यादव ने प्रिया की सहेली पायल से बात की और फिर यह सिलसिला चल निकला. एक दिन प्रिया को विश्वास में लेते हुए भविष्य के लिए कुछ करने को कहा तो प्रिया तुरंत तैयार हो गई और फिर आगे एक ऐसी योजना बनाई गई, जिसे भविष्य में 4 लोगों ने अंजाम दिया.

फिल्म अभिनेत्री पायल को किया साजिश में शामिल

15 जनवरी, 2024 दिन सोमवार की शाम फिरीज यादव रायपुर से चल कर के खरसिया स्टेशन पर उतरा और वहां से बस से धर्मजयगढ़ पहुंच गया. यहां उसे प्रिया विश्वास के कहने पर शेख मुईन ने बाइक से पहुंच कर रिसीव किया और होटल सीएम में पहले बुक किए गए रूम में ठहराया. दूसरी तरफ राजेश और प्रिया विश्वास अपने घर पर सामान्य सा दिन व्यतीत कर रहे थे. राजेश ने देर शाम तक शराब पी और खाना खा कर रात 11 बजे बिस्तर पर लेट गया.

फिरीज यादव को प्रिया की पड़ोस में रहने वाली सहेली पायल विश्वास के कहने पर बौयफ्रेंड शेख मुईन रात को फिरीज यादव को होटल से ले कर आ गया. उस समय राजेश गहरी नींद में सो रहा था. मौका देख कर फिरीज एक इंजेक्शन राजेश के सीने में लगा रहा था तभी आधी नींद में राजेश ने चीख कर एक लात पैरों के पास खड़ी प्रिया को मारी. फिरीज यादव घबरा गया, जिस से इंजेक्शन की सुई भी टेढ़ी हो गई. मगर राजेश विश्वास अभी भी नींद में था और उस पर इंजेक्शन का असर दिखाई देने लगा था.

इस के बाद सोए हुए राजेश विश्वास के पैर उस की पत्नी प्रिया विश्वास ने पकड़े, हाथों को शेख मुईन ने पकड़ लिया और राजेश के सीने में फिरीज यादव ने एनेस्थीसिया के कुल 3 इंजेक्शन एकएक कर के लगा दिए.

इस से निपट कर फिरीज यादव ने कहा, ”प्रिया, मेरे अनुमान से अब यह कभी होश में नहीं आएगा…’’

और वह रहस्यमय ढंग से मुसकराने लगा. इस पर प्रिया बोली, ”मुझे तो शक है, कहीं यह होश में आ गया तो?’’

कुछ सोचविचार करने के बाद फिर फिरीज ने कहा, ”ऐसा है तो मैं कुछ और इंजेक्शन लगा देता हूं.’’ और उस ने 3 इंजेक्शन और सीने में लगा दिए. थोड़ी ही देर में उन्होंने महसूस किया कि राजेश विश्वास की नींद में ही मौत हो गई है.

16 जनवरी, 2024 को सुबह के समय प्रिया के रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग जमा हो गए. सभी लोग अचानक राजेश की मौत पर अचंभे में पड़ गए. राजेश का भाई तुरंत राजेश को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

इस दरमियान डाक्टरों की टीम ने सनसनीखेज खुलासा किया कि मृतक राजेश विश्वास के सीने में 6 निशान सूई से इंजेक्ट हैं. यह सुनते ही एसएचओ अमित तिवारी के कान खड़े हो गए. उन्हें लगभग 10 साल पहले हुए एक हत्याकांड की याद आ गई.

छत्तीसगढ़ के बालोद शहर में ऐसे ही हृदय के पास इंजेक्शन दे कर 2 व्यक्तियों की हत्या की गई थी, जिस का आरोपी पकड़ते पकड़ते बच निकला था. अमित तिवारी ने दृढ़ निश्चय किया कि राजेश की हत्या के मामले में तत्काल जांचपड़ताल शुरू की जाएगी, ताकि आरोपी कानून की जद से बच न सके.

एसएचओ अमित तिवारी ने तत्काल अपने उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन लिया और जांच तेज कर दी. दूसरी तरफ राजेश विश्वास के घर और शहर का माहौल गमगीन बन गया था. राजेश विश्वास लोकप्रिय शख्स था, जिस के कारण लोग और परिचित तरहतरह की बातें करने लगे थे. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद राजेश विश्वास का शव परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया.

17 जनवरी को आशीष विश्वास अध्यक्ष बंग समाज, धर्मजयगढ़ के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने थाने पहुंच कर के एसडीपीओ दीपक मिश्रा से मुलाकात की और मृतक राजेश विश्वास की संदिग्ध मृत्यु को ले कर एक ज्ञापन सौंपा और निष्पक्ष जांच कर के दोषियों को पकडऩे की गुहार लगाई.

राजेश विश्वास का मामला दीपक मिश्रा के निगाहों में था. उन्होंने एसपी (रायगढ़) सदानंद कुमार से मार्गदर्शन लिया और एसएचओ अमित तिवारी व साइबर सेल को जांच कर के आरोपियों को पकडऩे की जिम्मेदारी दे दी.

प्रिया ने उगल दिया सारा राज

राजेश विश्वास की पत्नी प्रिया से एसएचओ अमित तिवारी ने पूछताछ शुरू की और पहला सवाल किया, ”यह बताओ कि राजेश विश्वास की हत्या करने में और किस ने तुम्हारा साथ दिया है?’’

यह सुनते ही प्रिया विश्वास घबरा कर इधरउधर देखने लगी और कोई जवाब नहीं दिया.

इस पर अमित तिवारी ने उसे अलग से बुला कर कहा, ”देखो, अगर तुम से अनजाने में यह भूल हो गई है तो सच बता दो. आज तो मैं जा रहा हूं, मगर कल तुम्हें मैं हिरासत में ले लूंगा.’’

पुलिस ने प्रिया विश्वास के मोबाइल को अपने कब्जे में ले लिया और दूसरे दिन पाया कि बहुत सी जानकारियां मोबाइल से डिलीट कर दी गई हैं. साइबर क्राइम के सहयोग से जब मोबाइल की जानकारियां रिकवर की गईं तो कई ऐसी बातें सामने आ गईं, जिस से प्रिया विश्वास के फिरीज यादव से बातचीत और वाट्सऐप और सीसीटीवी के सबूतों से खुलासा होता चला गया कि प्रिया विश्वास का पति राजेश विश्वास की हत्या में हाथ है.

इस के बाद तथ्यों को सामने रखते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रिया से पूछताछ की तो आखिरकार प्रिया विश्वास टूट गई और अपना अपराध स्वीकार कर के अपना इकबालिया बयान दिया, जिस की पुलिस ने वीडियो रिकौर्डिंग भी करा ली.

प्रिया से पूछताछ के बाद फिरीज यादव को रायपुर  पुलिस की मदद से मोवा में पकड़ लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि प्रिया विश्वास के प्यार में पागल हो कर उस ने राजेश विश्वास के सीने में बेहोशी के इंजेक्शन में काम आने वाली एनेस्थीसिया का प्रयोग किया था और राजेश को मौत की नींद सुला दिया. उसे विश्वास था कि पोस्टमार्टम होते होते एनेस्थीसिया का असर खत्म हो जाएगा और उसे कोई पकड़ नहीं सकता.

राजेश विश्वास की हत्या में इस तरह प्रिया विश्वास, उस की खास सहेली छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेत्री और धर्मजयगढ़ निवासी पायल विश्वास और उस के बौयफ्रेंड शेख मुईन ने साथ दिया था. पुलिस ने इन्हें भी हिरासत में ले लिया और उन के बयान दर्ज कर लिए.

19 जनवरी, 2024 को पुलिस अधिकारियों ने प्रैस कौन्फ्रेंस कर के मामले का खुलासा कर दिया. एसडीपीओ (धर्मजयगढ़) दीपक मिश्रा ने मीडिया को बताया कि आरोपियों के कब्जे से हत्या की वारदात में प्रयुक्त मोटरसाइकिल, फिरीज यादव से बस टिकट, होटल के फुटेज, इस्तेमाल किए गए ग्लव्स और सिरिंज, घटना के समय फिरीज यादव द्वारा पहने गए कपड़े, सभी के मोबाइल फोन पुलिस द्वारा जब्त कर लिए.

पूछताछ में पता चला कि वारदात को अंजाम देने के लिए मृतक की पत्नी प्रिया विश्वास, प्रेमी फिरीज यादव, फिल्म अभिनेत्री पायल विश्वास और उस के प्रेमी शेख मुईन राजा ने मिल कर योजना बनाई. योजना के तहत फिरीज यादव के रुकने की व्यवस्था करने के लिए पायल विश्वास ने नकद और फोन पे के जरिए पैसे शेख मुईन को दिए थे. उस ने धर्मजयगढ़ के होटल सीएम पार्क में अपनी आईडी से रूम बुक किया.

चारों आरोपी गिरफ्तार कर भेजे जेल

फिरीज यादव उर्फ कृष रायपुर बस से 15 जनवरी की शाम धर्मजयगढ़ पहुंचा. इस केबाद शेख मुईन से वाट्सऐप काल के जरिए बात की. फिर चारों ने 15 की रात तक राजेश की हर गतिविधि पर नजर रखी और मौका देख कर जब प्रिया ने काल की तो फिरीज यादव होटल से राजेश के घर पंहुच गया.

एसएचओ अमित तिवारी के नेतृत्व में प्रिया विश्वास और पायल विश्वास को धर्मजयगढ़ के निवास से गिरफ्तार किया गया. शेख मुईन खान पहले से भाग कर छाल में छिपा बैठा था. पुलिस टीम ने छाल हाटी रोड पर घेराबंदी कर उसे गिरफ्तार कर लिया. वारदात के बाद फिरीज यादव रायपुर आ गया था. प्रिया विश्वास की गिरफ्तारी के बाद पहले से रायपुर में उपस्थित एसडीओपी दीपक मिश्रा ने रायपुर एएसपी और क्राइम डीएसपी की निगरानी में पंडरी मोवा थाना पुलिस

की मदद से उसे हिरासत में लिया.

पुलिस की जांच में यह बात सामने आई  कि फिरीज यादव ने अपने सोशल मीडिया में स्वयं को डाक्टर बताया है. पुलिस ने चारों आरोपियों फिरीज यादव उर्फ कृष उर्फ बबलू यादव (24 साल) निवासी गोपाल भौना, जिला सारंगढ़- बिलाईगढ़ हाल मुकाम दलदल सिवनी, जिला रायपुर, शेख मुईन राजा (20 साल) निवासी बेहरा पारा, धरमजयगढ़, जिला रायगढ़, प्रिया विश्वास (24 साल) निवासी धर्मजयगढ़ जिला रायगढ़ और पायल उर्फ मोनी विश्वास (28 साल) को भादंवि की धारा 302, 201, 120 के तहत गिरफ्तार कर लिया.

चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस ने 19 जनवरी, 2024 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पेश किया, जहां से चारों आरोपियों को पुलिस रिमांड में जिला जेल रायगढ़ भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस की जांच जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सलमा का लाल सलाम

अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से इंदौर में 3 दिनों के लिए ग्लोबल इनवेस्टर्स मीट का आयोजन था. इस आयोजन में करीब 2500 देसी विदेशी उद्योगपति, व्यवसाई आने थे. मीट का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना था. इस की तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही थी. हर उस रास्ते को सजाया गया था, जहांजहां से मेहमानों का आवागमन होने वाला था. आईजी पुलिस से ले कर सिपाही तक समयसमय पर रातदिन इन रास्तों पर गश्त करते रहते थे.

23 सितंबर को दिन के 10 बजे एरोड्रम थानाप्रभारी कन्हैयालाल दांगी इसी सिलसिले में क्षेत्र की गश्त पर थे. सुपर कारिडोर से गुजरते समय उन्होंने सर्विस रोड पर भीड़ देखी तो फौरन अपनी जीप भीड़ के पास ले गए. वहां एक 40 वर्षीय व्यक्ति का शव पड़ा था. पास ही एक बाइक भी पड़ी थी. आधा शव घास पर था तो पैरों की ओर वाला आधा हिस्सा वही गिरी पड़ी बाइक पर था. ऐसा लग रहा था जैसे दुर्घटना हुई हो.

कन्हैयालाल ने थाना एरोड्रम फोन कर के कुछ सिपाही बुला लिए. साथ ही फोरेंसिक एक्सपर्ट और पुलिस के बड़े अधिकारियों को भी सूचित कर दिया.

घटनास्थल पर आ कर लाश देखने के बाद फोरेंसिंक एक्सपर्ट ने बताया कि मृतक की मौत दुर्घटना से नहीं हुई है. लाश को घसीटने के भी निशान नहीं थे. अलबत्ता मृतक के शरीर पर चोट के निशान जरूर थे. लाश को इस तरह रख कर यह दर्शाने की कोशिश की गई थी, जैसे मृतक दुर्घटना में मरा हो. जबकि हकीकत में उस की हत्या की गई थी. मृतक के कपड़ों की तलाशी में ऐसी एक भी चीज नहीं मिली, जिस से पता चल पाता कि वह कौन था.

प्राथमिक जांच के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. हालांकि यह ब्लाइंड मर्डर था, पर गनीमत यही थी कि रोशनी की एक किरण के रूप में मृतक की बाइक मौजूद थी. बाइक के नंबर से पता लगाया जा सकता था कि मृतक कौन है.

अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी कन्हैयालाल दांगी ने मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने बाइक के नंबर के आधार पर आरटीओ औफिस से बाइक मालिक का पता लगाया. वह बाइक देवास जिले के बदरका गांव निवासी सादिक पटेल के नाम पर रजिस्टर्ड थी.

पुलिस ने बदरका गांव के सादिक पटेल से संपर्क किया तो उस ने बताया कि बाइक उसी की है, पर उसे उज्जैन के गांव मलानाकलां का रहने वाला अरमान पटेल ले गया था. इस पर पुलिस ने सादिक को बताया कि अरमान पटेल की लाश इंदौर के थाना एरोड्रम क्षेत्र में मिली है. सादिक से अरमान के पिता इब्राहीम पटेल का मोबाइल नंबर मिल गया. थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने इब्राहीम पटेल को यह दुखद सूचना दे कर इंदौर आने को कहा.

सूचना मिलते ही इब्राहीम पटेल कार से अपने परिवार के साथ इंदौर आ गए.

थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने उन्हें अस्पताल लेजा कर लाश दिखाई तो पूरा परिवार बिलखने लगा. लाश उन के बेटे अरमान की ही थी. पुलिस ने लिखापढ़ी कर के अरमान की लाश उस के घरवालों को सौंप दी, जिसे वे उज्जैन ले गए.

पूछताछ में इब्राहीम पटेल ने यह बात साफ कर दी थी कि अरमान की किसी से रंजिश थी या नहीं, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. कन्हैयालाल दांगी ने उन से अरमान का मोबाइल नंबर ले लिया.

मामले की जांच आगे बढ़ाने के लिए कन्हैयालाल दांगी ने अरमान के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस डिटेल्स में एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर रोजाना लंबीलंबी बातें होती थीं.

उस नंबर के बारे में पता लगाया गया तो वह धार के पास स्थित गुनावदा गांव की एक महिला सलमा का निकला. अरमान की हत्या से पहले सलमा की अरमान से लंबी बातें हुई थीं. खास बात यह कि इस बातचीत के वक्त सलमा के नंबर की लोकेशन धार में थी. दांगी ने सलमा के नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. उस की और अरमान की काल डिटेल्स में कुछ ऐसे नंबर भी मिले, जिन पर दांगी को संदेह हुआ.

जिन नंबरों पर संदेह हुआ, घटना के दिन उन की भी लोकेशन धार की ही थी. जिन नंबरों पर शक था, कन्हैयालाल दांगी ने उन नंबरों की सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों से उन के धारकोें के नामपते निकलवाए. उन में 2 नंबर अल्लाहनूर और अमजद के थे, एक रईस का और एक देवीलाल कुमावत का. इन में अल्लाहनूर और अमजद के पिता का नाम मुराद और पता एक ही था. इस का मतलब वे दोनों सगे भाई थे.

चूंकि ये सब लोग धार के ही रहने वाले थे, इसलिए इमरान की हत्या का शक इन्हीं लोगों पर गया. दांगी ने अल्लाहनूर, अमजद, आई एफ रईस और देवीलाल कुमावत तक पहुंचने के लिए एक पुलिस टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर पवार, सिपाही जीतू सरदार, कमलेश रविंद्र और दीनदयाल को शामिल किया गया.

इस पुलिस टीम को सब के पते दे कर धार रवाना कर दिया गया. पुलिस टीम ने मुराद के घर पर छापा मारा तो उस का 23 वर्षीय बेटा अल्लाहनूर घर पर ही मिल गया. जबकि अमजद फरार था. रईस अल्लाहनूर के मामा का लड़का था, वह भी घर पर ही मिल गया. पुलिस ने पूछताछ के लिए दोनों को हिरासत में ले लिया.

देवीलाल गांव कोटा मिडोला, थाना सरदारपुर जिला धार का रहने वाला था. पुलिस उस के घर गई तो वह भी फरार मिला. इस पर पुलिस टीम रईस और अल्लाहनूर को ले कर इंदौर लौट आई. थाने ला कर जब दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि वे लोग इस बारे में कुछ नहीं जानते.

लेकिन जब पुलिस ने उन के साथ सख्ती बरतते हुए उन्हें बताया कि उन के मोबाइल की काल डिटेल्स से पता चल गया है कि उन दोनों के अलावा उन के साथी अमजद और देवीलाल के नंबर न केवल अरमान की काल डिटेल्स में पाए गए हैं, बल्कि घटना के समय उन के नंबरों की लोकेशन भी इंदौर में थी तो वे टूट गए.

अल्लाहनूर और रईस से पूछताछ के बाद पता चला कि यह मामला प्रेमप्रसंग का था. इस के पीछे की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी.

करीब 5 साल पहले सन 2010 में देवास के पास एक गांव में शादी समारोह था. इस शादी में मुराद के घर वाले भी शामिल हुए और जिला उज्जैन के गांव मलानाकलां के इब्राहीम पटेल के घर वाले भी. यहीं पर अरमान की मुलाकात धार निवासी मुराद की बेटी सलमा से हुई.

अरमान और सलमा दोनों ही न केवल शादीशुदा थे, बल्कि मांबाप भी थे. अरमान के 4 बच्चे थे तो सलमा 2 बच्चों की मां थी. अरमान लंबे कद का आकर्षक व्यक्तित्व वाला आदमी था. सलमा भी कम खूबसूरत नहीं थी. सलमा और अरमान को शादी के समारोह में 4 दिन रुकना पड़ा. इन 4 दिनों में वे एकदूसरे से खूब घुलमिल गए.

शादी समारोह के बाद अरमान अपने गांव मलानाकलां चला गया और सलमा जिला धार स्थित अपनी ससुराल गुनावदा. सलमा का मायका धार में था. समारोह के दौरान ही सलमा और अरमान ने अपने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए थे. इस के बाद दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला जुड़ गया.

जब सलमा का पति अंसार पटेल काम पर चला जाता था और बच्चे स्कूल तो फ्री हो कर वह अरमान से बात करती थी. लंबीलंबी बातें होने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे से खुलने लगे. सलमा को पति की वजह से एहतियात बरतनी पड़ती थी, इसलिए उस ने अरमान से कह रखा था कि अगर उसे खतरा महसूस हुआ तो वह कभी भी मोबाइल स्विच्ड औफ कर सकती है.

अगर बात करतेकरते कभी खतरा महसूस होता था तो सलमा फोन काट देती थी. इस के बाद अरमान दोबारा फोन नहीं मिलाता था. यह बात दोनों के बीच तय थी.

एक दिन अरमान ने फोन कर के सलमा से कहा कि वह धार आ रहा है. वह भी मायके जाने की बात कह कर गुनावदा से धार आ जाए. अरमान ने उस से यह भी कहा था कि वह धार के जिस होटल में ठहरेगा, फोन कर के उसे बता देगा. वह बुरका पहन कर वहां आ जाए, ताकि किसी की नजर न पड़े.

धार पहुंचने के बाद अरमान ने फोन कर के सलमा को सूचना दे दी कि वह कौन से होटल के किस कमरे में ठहरा है. अरमान का गांव मलानाकलां धार से करीब 125 किलोमीटर दूर था. वह बाइक से धार पहुंचा था. उस का फोन मिलने पर सलमा बस पकड़ कर गुनावदा से 20-22 किलोमीटर दूर धार आ गई. वह पति से मायके जाने की बात कह कर आई थी.

धार आ कर उस ने बुरका पहना और सीधे होटल पहुंच गई. वहां दोनों ने खुल कर अपने अरमान पूरे किए. इस के बाद सलमा ने फिर बुरका पहना और अपने मायके चली गई. मायके में थोड़ी देर रुक कर वह अपनी ससुराल गुनावदा चली गई.

इस के बाद बुरके की आड़ में यह सिलसिला चल पड़ा. जब भी मन होता अरमान धार जा कर उसी होटल में ठहर जाता और सलमा मायके जाने के बहाने वहां आ जाती. मौजमस्ती के बाद दोनों अपनीअपनी राह चले जाते.

सब ठीकठाक चल रहा था कि एक बार सलमा का पति अंसार किसी काम से जल्दी घर आ गया. सलमा उस वक्त फोन पर अरमान से बातें कर रही थी. उस की बातों के कुछ आपत्तिजनक अंश अंसार ने सुन लिए.

सलमा ने अंसार को सामने देखा तो जल्दी से फोन काट दिया. उस के चेहरे पर घबराहट साफ नजर आ रही थी. अंसार समझ तो बहुत कुछ गया था, पर बोला कुछ नहीं. अलबत्ता उस के मन में शक की बुनियाद पड़ गई.

अब की बार सलमा जब मायके जाने के बहाने धार गई तो उस के जाने के घंटा भर बाद अंसार भी बाइक ले कर घर से निकल गया. वह सीधा अपनी ससुराल पहुंचा, लेकिन सलमा वहां नहीं थी. अंसार ने किसी से कुछ कहासुना नहीं. वह एकडेढ़ घंटा ससुराल में रुक कर अपने घर लौट आया. तब तक सलमा लौट आई थी.

अंसार ने उस से पूछा, ‘‘हो आईं मायके?’’

‘‘हां, वहां सब ठीकठाक हैं. तुम्हें पूछ रहे थे.’’ सलमा ने कहा तो अंसार के तनबदन में आग लग गई. इस के बावजूद उस ने सलमा से न कुछ कहा और न पूछा. अलबत्ता वह समझ जरूर गया कि सलमा कुछ गड़बड़ घोटाला कर रही है.

करीब 15 दिनों बाद सलमा जब फिर मायके जाने के बहाने धार के लिए रवाना हुई तो पहले से तैयार अंसार के एक दोस्त ने फोन कर के उसे बता दिया कि सलमा बस से निकल गई है. इस पर अंसार ने उस दोस्त से कहा कि वह सीधा धार बस स्टैंड पहुंचे, वह वहीं आ रहा है.

दोनों दोस्त धार बस स्टैंड पहुंच गए. इस के थोड़ी देर बाद गुनावदा की बस आ गई. अंसार और उस का दोस्त दूर खड़े देख रहे थे. तभी बुरका पहने चेहरा ढंके एक महिला बस से उतरी. अंसार ने बुरके के डिजाइन से पहचान लिया कि वह सलमा ही है. अंसार और उस के दोस्त ने थोड़ा फासला रख कर सलमा का पीछा किया. वे उस समय आश्चर्य में रह गए, जब सलमा मायके जाने के बजाय एक होटल में चली गई.

वे दोनों भी उस के पीछे पीछे होटल पहुंच गए. अंसार ने अपने दोस्त को अंदर भेज दिया और खुद बाहर ही खड़ा रहा. दोस्त ने लौट कर बताया कि होटल के एक कमरे के बाहर एक गोराचिट्टा आदमी खड़ा था, सलमा उस के साथ कमरे में चली गई. इस के बाद दोनों उस कमरे में गए.

उन्होंने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक व्यक्ति की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’ इस पर अंसार के दोस्त ने कहा, ‘‘साहब, नाश्ता.’’

अरमान ने दरवाजा खोला तो दोनों अंदर घुस गए. अरमान ने उन्हें अंदर आया देख कहा कि यह क्या बदतमीजी है.

अंसार जो देखना चाहता था, देख चुका था. सलमा का बुरका और ओढ़नी कमरे में पड़ी टेबल पर रखे थे. वह कमरे में डबल बेड पर बैठी थी. अंसार को देख कर उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं. अरमान चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था. वह समझ गया था कि आगंतुक कौन है. न तो अरमान के मुंह से एक शब्द निकला और न ही सलमा के मुंह से. दोनों रंगेहाथ पकड़े गए थे.

अंसार ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘आज से हमारे सारे रिश्ते खत्म हो गए. मैं अभी इसी समय तुम्हें तलाक देता हूं, तलाक तलाक तलाक.’’

अपनी बात कह कर अंसार तेजी से कमरे के बाहर चला गया. उस ने सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि सलमा को अपने दिल से, अपनी जिंदगी से निकालने का फैसला भी कर लिया. उस ने घर आते ही सलमा का सारा सामान पैक किया और बच्चों को ले कर उस के मायके छोड़ आया. यह देख कर सलमा के अब्बा और भाई सन्न रह गए. सलमा कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी.

बाद में मुराद अपने बेटे अल्लाहनूर और अमजद को ले कर अंसार के गांव गुनावदा गए. उन्होंने उस से सलमा को इस तरह छोड़ आने का कारण पूछा तो अंसार गुस्से में बोला, ‘‘बेहतर होगा, यह बात आप अपनी बेटी से ही पूछें. बस इतना समझ लीजिए कि अब मैं उस औरत को बिलकुल बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

‘‘हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’ मुराद ने कहा तो अंसार बोला, ‘‘आप की बेटी के उज्जैन के अरमान से नाजायज संबंध हैं, मैं ने होटल में दोनों को रंगेहाथों पकड़ा है. ऐसी बदचलन औरत से मैं अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता.’’

जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो आदमी क्या कर सकता है? मुराद अपनी बेइज्जती को बरदाश्त कर के बेटों के साथ धार लौट गए. घर लौट कर उन्होंने सलमा को खूब लताड़ा. इस के बाद बाप होने के नाते मुराद ने काफी कोशिश की कि अंसार सलमा को ले जाए. लेकिन वह पत्नी को किसी भी कीमत पर साथ ले जाने को तैयार नहीं हुआ.

मजबूरी में मुराद को बेटी को अपने ही घर में पनाह देनी पड़ी, पर इस हिदायत के साथ कि आइंदा वह कोई भी ऐसीवैसी हरकत नहीं करेगी. अगर उस ने कुछ भी ऐसावैसा किया तो वे उसे घर से निकाल देंगे.

समय के साथ सब कुछ सामान्य हो गया. देखते देखते एक वर्ष बीत गया. इस बीच सलमा और अरमान का संपर्क चूंकि पूरी तरह टूटा रहा, इसलिए बात आई गई हो गई. चूंकि दोनों के ही परिवार इज्जतदार थे, सो इस नाजायज रिश्ते की बात दब सी गई.

कहावत है कि चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए. इस मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ. अरमान ने एक मोबाइल खरीद कर अपने एक परिचित के माध्यम से सलमा के पास भिजवा दिया. सलमा ने उस के भेजे मोबाइल को घर वालों से छिपा कर रखा. वह उस फोन की हिफाजत अपनी जान से भी ज्यादा करती थी.

घर वालों की वजह से सलमा और अरमान के बीच बातचीत तो कम ही हो पाती थी, पर मैसेजबाजी खूब होती थी. अरमान टाइल्स कटिंग और फिटिंग का कुशल कारीगर था. इस काम से उसे अच्छी आय होती थी. इस बीच सलमा चूंकि घर से बाहर आनेजाने लगी थी, इसलिए होटलों में फिर से दोनों का मिलना होने लगा था.

सब कुछ ठीक चल रहा था. अरमान और सलमा फिर से मिलने लगे हैं, इस बात की किसी को भनक तक नहीं थी. लेकिन यह बात छिप नहीं सकी. हुआ यह कि एक दिन सलमा बाथरूम में नहाने गई तो मोबाइल बेड पर रखा छोड़ गई.

इत्तफाक से तभी अल्लाहनूर घर आ गया. वह किसी काम से सलमा के कमरे में गया तो बेड पर मोबाइल रखा देख चौंका. उसी वक्त मोबाइल पर एक मैसेज आ गया. मैसेज अरमान का था. उस ने लिखा था कि वह 12-1 बजे के आसपास आएगा. मैसेज देखने के बाद अल्लाहनूर ने मोबाइल उसी जगह रख दिया. यह 22 सितंबर, 2014 की बात है.

इस से यह बात खुल गई कि सलमा के पास मोबाइल है और वह अभी भी अरमान के संपर्क में है. अल्लाहनूर ने सलमा के पास मोबाइल होने और उसे अरमान का मैसेज आने की बात अमजद को बताई. अमजद ने सुना तो उस के भी तनबदन में आग लग गई.

दोनों भाइयों ने मिल कर तय किया कि जिस अरमान की वजह से उन की बहन का घर टूटा है और जो अब भी उसे बरबादी की ओर ले जा रहा है, उसे सबक जरूर सिखाएंगे. लेकिन दोनों ने इस मुद्दे पर जब गंभीरता से बात की तो उन्हें लगा कि इस काम के लिए एकदो साथी और होने चाहिए.

इस के लिए अल्लाहनूर और अमजद ने अपने मामा इशाक पटेल के बेटे रईस से बात की. रईस भी उन दोनों का हमउम्र था. अल्लाहनूर और अमजद ने परिवार की इज्जत का वास्ता दे कर रईस को सारी बातें बता दीं. शुरू में तो रईस डर रहा था, लेकिन परिवार की इज्जत के नाम पर वह साथ देने को तैयार हो गया. लेकिन इस शर्त पर कि अरमान को जान से नहीं मारा जाएगा.

रईस का दोस्त था देवीलाल कुमावत. वह गांव कोटा मिडोला का रहने वाला था. रईस ने उस से बात की तो दोस्ती के नाम पर वह भी साथ देने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद चारों ने मिल कर योजना बनाई. तय हुआ कि अल्लाहनूर और अमजद फोन पर बात कर अरमान से मिलने की बात करेंगे.

इस के बाद लेबड़ गांव के थोड़ा पहले रास्ते के किनारे खड़े हो कर उस के लौटने का इंतजार करेंगे. रईस और देवीलाल छिप कर खड़े हो जाएंगे. जब अरमान आएगा तो दोनों बातचीत के बहाने उसे रोक लेंगे. सब मिल कर उसे समझाएंगे और थोड़ा धमकाएंगे भी. जिस रास्ते पर मिलने की बात हुई थी, वह इंदौर से धार की ओर आने का शार्टकट रास्ता था.

योजनानुसार 23 सितंबर को अल्लाहनूर और अमजद लेबड़ गांव से थोड़ा पहले रास्ते के किनारे खड़े हो कर अरमान के आने का इंतजार करने लगे. रईस और देवीलाल छिप कर खड़े हो गए. दिन के करीब एक बजे अरमान बाइक से आता दिखाई दिया. उस वक्त दोपहर का समय था और उस रास्ते पर आवाजाही बिलकुल नहीं थी. जब अरमान पास आया तो अल्लाहनूर और अमजद ने बात करने के बहाने उसे रोक लिया.

अरमान के रुकते ही अल्लाहनूर बोला, ‘‘अरमान भाई, हम आप से जरूरी बात करना चाहते हैं. यहां सड़क पर बात करना ठीक नहीं है. अगर आप को परेशानी न हो तो आप हमारे साथ चलिए, पास ही हमारा खेत है, वहीं बैठ कर आराम से बात करेंगे.’’

अरमान को किसी तरह का कोई शक तो था नहीं, सो उस ने अल्लाहनूर को अपनी बाइक पर बैठा लिया. वह उसे रास्ता बताने लगा. अमजद इन दोनों के साथ अपनी अलग बाइक पर चल रहा था.

रईस और देवीलाल के पास भी बाइक थी. वे दोनों कुछ फासले से उन के पीछे चल दिए. करीब 10 किलोमीटर चलने के बाद वे एक खेत में रुके, जहां एक झोपड़ी बनी हुई थी. जब अल्लाहनूर, अमजद और अरमान वहां पहुंचे तो पीछे से रईस और देवीलाल भी आ गए. इस के बाद चारों ने मिल कर अरमान को दबोच लिया.

वहां दूरदूर तक इन पांचों के अलावा कोई नहीं था. इन लोगों ने अरमान को एक पेड़ से बांध कर उस के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और फिर सब ने लातघूंसों और बेल्ट से उस की जम कर पिटाई की. पिटते पिटते अरमान बेहोश हो गया. अल्लाहनूर, अमजद, रईस और देवीलाल जब उसे पीटते पीटते थक गए तो वहीं बैठ कर अपनी थकान उतारने लगे.

थोड़ी देर बाद अल्लाहनूर ने अरमान को झंझोड़ कर जगाना चाहा, लेकिन वह मर चुका था. यह देख कर चारों घबरा गए. जल्दबाजी में कुछ नहीं सूझा तो वे उसे खोल कर घसीटते हुए झोपड़े में ले गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें, क्योंकि वह खेत उन के एक रिश्तेदार का था. लाश को वहां छोड़ना ठीक नहीं था. इसलिए सब ने मिल कर तय किया कि रात हो जाने पर लाश को कहीं दूर फेंक आएंगे.

रात 8 बजे के बाद इन लोगों ने अरमान की लाश को जैसेतैसे बाइक पर बीच में बिठाया और अपनेअपने चेहरे पर रूमाल बांध लिए. उन्होंने अरमान की लाश के मुंह पर भी रूमाल बांध दिया. एक बाइक देवीलाल ने तो दूसरी रईस ने संभाली. अल्लाहनूर और अमजद ने अरमान की बाइक पर बीच में उस की लाश रख ली.

इस के बाद ये लोग वहां से करीब 60 किलोमीटर दूर इंदौर के एरोड्रम थानाक्षेत्र में बने 8 लेन मार्ग सुपर कारीडोर तक आए. तब तक रात गहरा गई थी. इन लोगों ने अरमान की लाश को एक जगह सुपर कारीडोर की सर्विस रोड पर घास पर लिटा दिया. उस की बाइक भी इन्होंने वहीं डाल कर, उस का एक पैर बाइक पर इस तरह रख दिया जैसे हादसा हुआ हो और उसी की वजह से उस की मौत हो गई हो.

23 सितंबर को थानाप्रभारी श्री दांगी ने गश्त के वक्त अरमान की लाश देखी थी. पोस्टमार्टम में पता चला कि अरमान की मौत बहुत ज्यादा मारपीट के कारण हुई थी. अल्लाहनूर और रईस पकड़े जा चुके थे. अगले 24 घंटे में देवीलाल भी पकड़ा गया.

अल्लाहनूर ने रोते हुए अपने बयान में बताया कि उन लोगों ने अरमान को कई बार समझाया था कि वह सलमा से मिलना छोड़ दे. उन्होंने अरमान की पत्नी को भी उस की करतूत बता दी थी. पर वह बाज नहीं आ रहा था. उन लोगों का इरादा उसे जान से मारने का बिलकुल नहीं था. देवीलाल ने भी यही बयान दिया.

विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस तरह सलमा और अरमान के नाजायज रिश्ते की वजह से दो हंसते खेलते परिवार बरबाद हो गए. अमजद अभी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. पुलिस उसे खोज रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

बहन के प्रेमी के साथ मिल कर रची अपने ही अपहरण की साजिश

बात 12 दिसंबर, 2018 की है. भोपाल के ऐशबाग के टीआई अजय नायर रात 8 बजे के करीब अपने औफिस में थे तभी ऐशबाग के रहने वाले शील कुमार अपनी 24 वर्षीय बेटी रुचिका चौबे के साथ थाने पहुंचे.

उन्होंने बताया कि उन का 19 वर्षीय बेटा आयुष शाम को किसी से मिलने एक कोचिंग की तरफ घर से निकला था. लेकिन इस के कुछ देर बाद ही बेटे के मोबाइल फोन से किसी ने काल कर के कहा कि आयुष उस के कब्जे में है. बेटे को छोड़ने के बदले उस ने एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. शील कुमार ने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर उसे बरामद करने की मांग की.

मामला अपहरण का था, इसलिए टीआई ने उसी समय सूचना एसपी राहुल लोढ़ा व एडीशनल एसपी संजय साहू तथा जहांगीरबाद सीएसपी सलीम खान को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों पुलिस अधिकारी ऐशबाग थाने पहुंच गए.

शील कुमार अपनी बेटी के साथ थाने में ही मौजूद थे. एसपी राहुल लोढा ने बाप बेटी दोनों से गहन पूछताछ की. पर उन की कहानी एसपी साहब के गले नहीं उतरी. इस का कारण यह था कि शील कुमार एक निजी बस कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करते थे. उन का वेतन इतना कम था कि घर भी ठीक से नहीं चल सकता था. जबकि उन की बेटी रुचिका एक बीमा कंपनी में 14 हजार रुपए महीने की सैलरी पर नौकरी कर रही थी.

जाहिर है, कोई बदमाश एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए ऐसे साधारण परिवार के बेटे का अपहरण नहीं करेगा. बाप बेटी ने यह भी बताया कि आयुष के घर से निकलने के कुछ ही घंटे बाद बदमाश ने फिरौती की रकम के लिए फोन किया था. जबकि बदमाश किसी का अपहरण कर के 2-4 दिन बाद फिरौती की मांग तब करते हैं जब पीडि़त परिवार टूट चुका होता है.

फिरौती के लिए शील कुमार के घर जो फोन काल आई थी वह भी आयुष के फोन से की गई थी. बाद में फोन स्विच्ड औफ कर दिया गया था. बहरहाल, पुलिस ने शील कुमार और उन की बेटी से जरूरी जानकारी लेने के बाद आयुष के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें यह आश्वासन दे कर घर भेज दिया कि पुलिस जल्द ही आयुष को तलाश लेगी.

इस के बाद एसपी के निर्देशन में थानापुलिस आयुष को तलाशने लगी. पुलिस ने आयुष के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया था. इस के अलावा पुलिस ने जांच कर यह भी पता लगा लिया कि जिस समय आयुष के फोन से फिरौती की काल की गई, उस समय उस की लोकेशन बीना शहर में थी.

इस के बाद फोन बंद कर दिया गया था. कोई और रास्ता मिलते न देख पुलिस अपहर्त्ताओं के फोन आने का इंतजार करने लगी. पुलिस ने शील कुमार को समझा दिया था कि उन्हें फोन पर अपहर्त्ताओं से कैसे बात करनी है.

एक तरफ पुलिस आयुष का पता लगाने में जुटी हुई थी, वहीं दूसरी ओर उस पर आयुष को सुरक्षित बरामद करने का दबाव बढ़ता जा रहा था. आयुष की बहन रुचिका और उसी क्षेत्र में रहने वाला उन के परिवार का पुराना परिचित गौरव जैन थानाप्रभारी से मिलने रोज थाने आते और आयुष के बारे में जल्द पता लगाने की मांग करते थे.

अपहर्त्ता ने बताई जगह

पुलिस ने अपने मुखबिरों का जाल फैला रखा था. आयुष के साथ पढ़ाई कर रहे उस के दोस्तों से भी आयुष के बारे में पूछताछ की कि उस की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी या किसी लड़की के साथ प्यार का चक्कर तो नहीं था. दोस्तों ने दोनों ही बातों से इनकार किया. पुलिस को कोई ऐसा ठोस सुराग हाथ नहीं मिला, जिस से जांच की काररवाई आगे बढ़ पाती.

उधर समय बीतने के साथ अपहर्त्ता बारबार फोन कर के आयुष के परिवार पर जल्द से जल्द फिरौती की रकम पहुंचाने का दबाव बना रहे थे. लेकिन समस्या यह थी कि वह हर बार नई जगह से फोन करते थे. 24 दिसंबर को एक बदमाश ने आयुष के पिता को फोन कर के धमकी दी और कहा कि वह कल यानी 25 दिसंबर को दोपहर में सीहोर के क्रिसेन वाटर पार्क पर पैसा ले कर पहुंच जाए. पैसे मिलने के बाद आयुष को रिहा कर दिया जाएगा.

शील कुमार ने यह बात एडीशनल एसपी संजय साहु और टीआई अजय नायर को बता दी. एसपी ने इस बात से अनुमान लगा लिया कि बदमाश बहुत चालाक हैं. क्योंकि 25 दिसंबर को प्रदेश में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह था और आला अधिकारियों को उस समारोह में व्यस्त रहना था.

लेकिन एडीशनल एसपी संजय साहू यह मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने टीआई के अलावा अन्य पुलिस टीमों को सादा कपड़ों में सुबह से ही सिहोर के क्रिसेन वाटर पार्क में तैनात कर दिया ताकि अपहर्त्ता किसी भी हाल में बच न पाएं.

पुलिस को यह पता लग गया था कि 24 दिसंबर को अपहर्त्ता के फोन की लोकेशन विदिशा जिले के गंज वासोदा में थी. बहरहाल पुलिस ने सुबह से ही क्रिसेन वाटर पार्क में घेराबंदी कर दी और शपथ ग्रहण कार्यक्रम से फुरसत होते ही एडीशनल एसपी भी सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचे. पुलिस वहां दिनभर नजरें गड़ाए रही लेकिन शील कुमार से रुपयों से भरा बैग लेने कोई नहीं पहुंचा, इसलिए पुलिस टीम निराश हो कर शाम को वापस लौट आई. लेकिन इस बीच टीआई अजय नायर को आशा की एक किरण नजर आने लगी थी.

हुआ यूं कि घर वापस आने के कुछ देर बाद ही शील कुमार के पास अपहर्त्ता की तरफ से फोन आया जिस में उस ने पुलिस को साथ लाने के लिए उन्हें भद्दीभद्दी गालियां दीं. साथ ही धमकी भी दी कि आगे से पुलिस को साथ ले कर आए तो आयुष की लाश तुम्हारे घर भेज दी जाएगी. यह सुन कर शील कुमार घबरा गए. उन्होंने बदमाश की इस नई धमकी के बारे में टीआई अजय नायर को भी बता दिया.

पुलिस को मिली जांच की सही दिशा

अब तक पुलिस बाहरी लोगों पर ही शक कर रही थी. अब वह समझ गई कि आयुष के परिवार के साथ ऐसा व्यक्ति मिला हुआ है जो उन की सारी गतिविधियों की जानकारी बदमाशों तक पहुंचा रहा है. इसीलिए टीआई अजय नायर ने शील कुमार से पूछा कि ‘‘आप के अलावा आप के परिवार में या फिर जानपहचान वालों में से ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे पुलिस की एकएक गतिविधि की जानकारी मिल रही है.’’

‘‘सर, मैं अपनी बेटी रुचिका के अलावा और किसी को कुछ नहीं बताता.’’ शील कुमार बोले. टीआई ने सोचा कि सगी बहन भाई का अपहरण करने वाले का साथ क्यों देगी.

एएसपी संजय साहू के निर्देश पर टीआई नायर ने रुचिका चौबे की काल डिटेल्स निकलवाई. साथ ही रुचिका के बारे में और भी जांच कराई. पता चला कि मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली रुचिका की न केवल जीवनशैली हाईप्रोफाइल थी, बल्कि उस के सपने भी ऊंचे थे.

पुलिस को यह खबर भी लग गई थी रुचिका का एक बौयफ्रैंड गौरव जैन भी उस आयुष के बारे में काफी रुचि ले रहा था. गौरव जैन रुचिका का पड़ोसी था और दवा कारोबारी था. ऐसे में पुलिस के समाने शक करने के लिए 2 नाम थे. पहला रुचिका जो खुद आयुष की सगी बड़ी बहन थी और दूसरा गौरव जैन जो शहर का बड़ा थोक दवा कारोबारी था.

पुलिस ने रुचिका और गौरव जैन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो एएसपी साहू के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उन्होंने देखा कि जितनी बार भी अपहर्त्ता ने शील कुमार के नंबर पर फिरौती के लिए फोन किया था, उस के कुछ देर पहले और कुछ देर बाद रुचिका ने गौरव से फोन पर बात की थी.

घर से ही खेला जा रहा था खेल

इतना ही नहीं रुचिका से बात होने के ठीक बाद गौरव ने हर बार एक दूसरे फोन नंबर पर बात की थी. यह संयोगवश नहीं हो सकता था. क्योंकि संयोग एक बार होता है, बारबार नहीं. पुलिस ने यह जानकारी भी जुटा ली कि रुचिका से बात करने के बाद गौरव जिस फोन नंबर पर बात करता था, वह उस की दुकान पर काम करने वाले नौकर अतुल का है. पुलिस टीम ने अतुल के बारे में पता कराया तो मालूम हुआ कि वह उसी दिन से छुट््टी ले कर गायब है, जिस दिन आयुष लापता हुआ था.

इस जानकारी के बाद एएसपी संजय साहू के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. इसलिए उन्होंने पुलिस टीम को गौरव को हिरासत में लेने के निर्देश दे दिए. पता चला कि गौरव भी भोपाल में नहीं है. उस के मोबाइल की लोकेशन आगरा की आ रही थी. इसलिए ऐशबाग थाने की टीम आगरा रवाना हो गई.

लेकिन इस से पहले कि टीम आगरा पहुंचती, गौरव के मोबाइल की लोकेशन आगरा से चल कर भोपाल की तरफ बढ़ने लगी. लोकेशन बदलने के समयानुसार पुलिस ने हिसाब लगाया कि गौरव तमिलनाडु एक्सप्रेस में सवार हो कर भोपाल आ रहा है. इसलिए ट्रेन के भोपाल पहुंचने से पहले ही पुलिस की टीम ने वहां पहुंच कर टे्रन से उतरे गौरव को हिरासत में ले लिया.

जाहिर है इस बात की उम्मीद गौरव के अलावा किसी और को भी नहीं थी. जैसे ही गौरव को पूछताछ के लिए पुलिस हिरासत में थाने लाया गया. उस के पकड़े जाने की बात सुन कर रुचिका भी थाने पहुंच गई. यह देख कर एएसपी श्री साहू समझ गए कि पुलिस ने सही जगह निशाना साधा है.

गौरव आदतन अपराधी तो था नहीं, जो पुलिस को चकमा देने की कोशिश करता, इसलिए जरा सी पूछताछ में ही वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि अपनी प्रेमिका रुचिका की आर्थिक मदद करने के लिए उस ने आयुष के अपहरण का नाटक रचा था, जिस में रुचिका के साथ खुद आयुष भी शामिल था. गौरव ने यह भी बताया कि इस काम में उस ने अपने नौकर अतुल को भी शामिल कर रखा था.

गौरव ने पुलिस को यह भी बता दिया कि कल तक आयुष और अतुल भी उस के साथ आगरा में थे. वहां से तीनों साथ ही लौटे थे. आयुष अलग डिब्बे में सवार था. आयुष भोपाल स्टेशन पर उतर कर दूसरी ट्रेन में सवार हो कर इंदौर चला गया. जबकि अतुल उस के साथ ही था. चूंकि पुलिस अतुल को नहीं पहचानती थी इसलिए जैसे ही स्टेशन पर पुलिस ने गौरव को दबोचा उस से चंद कदम पीछे चल रहा अतुल वहां से गायब हो गया.

अब आगे की काररवाई से पहले आयुष को गिरफ्तार करना जरूरी था. पुलिस ने गौरव से यह जानकारी ले ली कि आयुष इंदौर में कहां ठहरेगा. इस के बाद भोपाल पुलिस ने यह जानकारी इंदौर पुलिस को दे दी. इंदौर पुलिस ने आयुष को गिरफ्तार कर लिया और उसे लाने के लिए भोपाल पुलिस की एक टीम इंदौर के लिए रवाना हो गई.

भोपाल पुलिस टीम आयुष को इंदौर से ले कर आ गई. पूरे मामले में रुचिका का नाम पहले ही सामने आ चुका था. इसलिए पुलिस ने रुचिका को भी गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों की गिरफ्तारी के बाद आयुष के अपहरण की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

दवाइयों का थोक कारोबारी गौरव जैन भी ऐशबाग थाना इलाके की उसी गली में रहता था जिस में रुचिका अपने मातापिता और छोटे भाई आयुष के साथ रहती थी. सीमित आय वाले परिवार के पास जो कुछ उल्लेखनीय था वह केवल रुचिका की सुंदरता और गरीबी में भी अच्छे तरीके से रहने का उस का अंदाज था.

रुचिका के सपने भी बड़े थे. वह अपने भाई को बड़ा आदमी बनाना चाहती थी. इसलिए स्वयं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने एक निजी बीमा कंपनी में नौकरी कर ली थी. वैसे रुचिका के पिता मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले थे.

संयोग से पड़ोस में रहने वाले गौरव जैन का अपनी दुकान पर जाने और रुचिका का औफिस के लिए निकलने का समय एक ही था, सो गली में दोनों का अकसर रोज ही आमनासामना हो जाता था. जिस के चलते पहले आंखों से आंखें टकराईं फिर एकदूसरे को देख कर चेहरे पर मुसकराहटें आनी शुरू हो गईं.

गौरव और रुचिका की प्रेम कहानी

गौरव का दिल रुचिका पर आ गया था. दूसरी ओर रुचिका के मन को भी गौरव भा गया था. आखिर रुचिका ने जल्द ही उस के बढ़े कदमों को दिल तक आने का रास्ता दे दिया. दोनों में प्यार हुआ तो पहले घर से बाहर मुलाकातों का सिलसिला चला, फिर गौरव ने रुचिका के परिवार वालों से भी मिलना शुरू कर दिया.

बाद में गौरव रुचिका के घर भी आनेजाने लगा. रुचिका के परिवार की आर्थिक स्थिति गौरव से छिपी नहीं थी. जबकि गौरव की जेब में कभी पैसों की कमी नहीं रहती थी. वह समयसमय पर रुचिका के कहने पर उस के परिवार की आर्थिक मदद करने लगा.

जाहिर सी बात है ऐसे मददगार के लिए आदमी खुद अपनी आंखें बंद कर लेता है, यह समझते हुए भी कि जवान खूबसूरत बेटी का दोस्त बिना किसी मतलब के यूं मेहरबान नहीं होता. रुचिका के मातापिता सब कुछ जान कर अंजान बने रहे. जिस से रुचिका और गौरव का प्यार दिनबदिन गहराता गया.

इतना ही नहीं गौरव रुचिका को अपने साथ ले कर घूमने जाता तो लौटने पर उस की मां भी बेटी से कोई सवाल नहीं करती. क्योंकि गौरव ने उस समय इस परिवार की मदद की थी जब पैसों के अभाव में रुचिका के छोटे भाई आयुष का दाखिला अटकता दिखाई दे रहा था.

आयुष अब बड़ा हो चुका था. वह अच्छी तरह से जानता था कि गौरव केवल उस की बहन से दोस्ती रखने के लिए ही परिवार की मदद करता है. यह जानने के बाद भी वह गौरव को पसंद करता था. इतना ही नहीं कई बार तो वह गौरव और बहन के साथ घूमने भी चला जाता था. जब उसे लगता कि उसे दोनों के साथ नहीं होना चाहिए तो वह किसी बहाने से दाएं बाएं हो जाता था. इसलिए धीरेधीरे रुचिका और गौरव का प्यार इस हद तक पहुंच गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

रुचिका के परिवार को तो इस शादी से कोई ऐतराज नहीं था. गौरव की जिद के चलते उस के परिवार वाले भी उन दोनों के विवाह के लिए मन बना चुके थे. गौरव रुचिका की लगातार आर्थिक मदद कर रहा था. लेकिन रुचिका की जरूरतें गौरव की मदद से कहीं बड़ी थीं. जरूरतें पूरी करने के लिए रुचिका ने विभिन्न बैंकों से बड़ा कर्ज ले लिया था. वह सोचती थी कि कुछ समय बाद जब गौरव से उस की शादी हो जाएगी तो गौरव उस का कर्ज चुका देगा.

 पिता ने शराब के नशे में बिगाड़ा खेल

लेकिन इसी बीच हालात ने पलटा खाया. हुआ यह कि करीब 2 साल पहले गौरव के घर में आयोजित एक पारिवारिक कार्यक्रम में रुचिका के परिवार को भी आमंत्रित किया गया. रुचिका अपनी मां और भाई के साथ उस कार्यक्रम में शामिल हुई. उस के पिता उस समय कंपनी की बस ले कर खंडवा गए थे.

संयोग से जब रुचिका का परिवार कार्यक्रम में गया हुआ था. तभी उस का पिता शील कुमार शराब पी कर घर लौट आया. घर पर ताला बंद देख कर उसे गुस्से आ गया. जब उसे पता चला कि रुचिका के साथ पूरा परिवार गौरव के यहां गया हुआ है, तो वह नशे की हालत में वहां पहुंच कर गालीगलोच करने लगा. उस ने गौरव के रिश्तेदारों के सामने रुचिका और गौरव के संबंधों को भी उजागर कर दिया.

इस घटना के बाद गौरव के घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ हो गए, जिस के चलते गौरव को मजबूरी में रुचिका के बजाए परिवार की पसंद की लड़की से शादी करना पड़ी. इस घटना के बाद गौरव का रुचिका के घर भले ही आनाजाना कम हो गया लेकिन दोनों के प्रेमसंबंध पहले की तरह बने रहे. इस में रुचिका का भाई आयुष भी दोनों की मदद करता था.

इस के बदले गौरव भी दोनों की कुछ न कुछ मदद करता रहता था. लेकिन गौरव से शादी हो जाने के भरोसे रुचिका ने बैंकों से जो लोन लिया था, वह उस के गले की फांस बन गया. क्योंकि रुचिका की आय इतनी नहीं थी कि वह उस लोन की किश्त भी समय पर चुका पाती.

गौरव उस की मदद तो करना चाहता था पर इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कर पाना उस के लिए भी संभव नहीं था. इसलिए आयुष, रुचिका और गौरव तीनों मिल कर इस समस्या से निपटने का रास्ता खोजने लगे. इस के लिए रुचिका और आयुष ने अपने पिता पर भी दबाव बनाया कि वह जबलपुर स्थित अपने हिस्से की पुश्तैनी जमीन बेच दे.

दोनों का मानना था कि उस से लगभग एक करोड़ रुपए हाथ आ जाएंगे. लेकिन शील कुमार इस के लिए तैयार नहीं था. गौरव की पत्नी के पेट में इन दिनों 7 महीने का गर्भ था. इसलिए गौरव ज्यादा से ज्यादा वक्त रुचिका के साथ बिताना चाहता था. उस की योजना आयुष की मदद से नए साल पर रुचिका को ले कर भोपाल से बाहर जाने की थी.

उस का विचार था कि आयुष अपनी बहन को साथ ले कर निकलेगा और पीछे से वह उन के साथ हो जाएगा. इस की योजना बनाने के लिए कुछ दिन पहले तीनों एक होटल में मिले. आयुष ने गौरव से कहा कि तुम दीदी को ले कर कहीं चले जाओ. इधर हम उस के अपहरण की बात फैला कर पिताजी से एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग लेंगे. इस तरह आप को दीदी के साथ नया साल मनाने का मौका मिल जाएगा और हमें पैसा.

‘‘आइडिया अच्छा है, लेकिन तुम्हारी दीदी और मैं एक साथ गायब हुए तो पल भर में सब को बात समझ में आ जाएगी. हां, एक काम हो सकता है कि तुम गायब हो जाओ. तुम्हारे अपहरण के नाम पर 2-4 दिन में ही तुम्हारे पिता से मैं ओर रुचिका पैसा ले लेंगे. फिर नए साल पर हम तीनों घूमने चलेंगे.’’ गौरव ने कहा.

मिलजुल कर बनाई योजना

गौरव का सुझाया यह आइडिया तीनों को अच्छा लगा. योजना बनी कि आयुष गायब हो जाएगा और इधर बेटे को बचाने के लिए रुचिका के पिता शील कुमार आसानी से जबलपुर की जमीन बेच कर फिरौती में एक करोड़ रुपए दे देंगे. जिस से रुचिका का कर्ज भी चुक जाएगा और बाकी की जिंदगी भी आराम से गुजर जाएगी.

इस काम में फिरौती के लिए फोन करने और फिरौती की रकम लेने जाने के लिए गौरव ने अपनी दुकान के एक नौकर अतुल को पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस के बाद पूरी योजना को फाइनल कर 12 दिसंबर को कोचिंग के नाम पर आयुष घर से निकल कर गौरव से मिला. गौरव ने उसे अतुल के साथ मिसरोद के एक होटल में ठहरा दिया. कुछ ही देर बाद अतुल ने आयुष के घर फिरौती के लिए फोन कर दिया.

एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए फोन आने के बाद पुलिस सक्रिय हो गई तो आयुष को मिसरोद से निकाल कर पहले कुछ दिन छतरपुर में रखा गया और फिर उसे अतुल के साथ आगरा भेज दिया गया. लेकिन इस बीच एसपी अतुल लोढ़ा के निर्देशन और एएसपी संजय साहू के नेतृत्व में आयुष की तलाश में जुटी पुलिस टीम ने एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए केस का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने रुचिका उस के भाई आयुष और प्रेमी गौरव जैन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जबकि कथा लेखन तक अतुल की तलाश जारी थी.

डा. सरिता तोषनीवाल हत्याकांड : एकतरफा प्यार का खतरनाक कनेक्शन

डिब्रूगढ़ का असम मैडिकल कालेज अस्पताल असम राज्य का जानामाना सरकारी मैडिकल कालेज और अस्पताल  है. 24 वर्षीय डाक्टर सरिता तोषनीवाल इसी मैडिकल कालेज की अंतिम वर्ष की छात्रा थीं. अस्पताल के महिला रोग विभाग में बतौर जूनियर डाक्टर उन की अकसर ड्यूटी लगती रहती थी. 8 मई, 2014 की रात भी वह अपनी ड्यूटी पर थीं. उस रात उन्होंने महिला वार्ड में सुबह 4 बजे तक ड्यूटी की. इस के बाद वह डाक्टर विश्रामगृह में आराम करने चली गईं.

सुबह 7 बजे ड्यूटी पर आई एक नर्स को जब डा. सरिता तोषनीवाल दिखाई नहीं दीं, तो वह यह सोच कर डाक्टर विश्रामगृह में चली गई कि रात की थकीहारी डा. सरिता शायद गहरी नींद सो गई होंगी. उस समय महिला वार्ड में लेडी डाक्टर की जरूरत थी. डा. सरिता विश्रामगृह में बेड पर कंबल ओढ़े लेटी थीं. नर्स ने उन्हें उठाने के लिए कई आवाजें दीं, लेकिन उन के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई.

संदेह हुआ तो नर्स ने डा. सरिता के शरीर पर पड़ा कंबल हटा कर देखा. कंबल हटाते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. डा. सरिता का शरीर खून से लथपथ था और उन के गले में चाकू घुसा हुआ था. यह देख कर नर्स चीखते हुए बाहर भागी. वह बदहवासी की स्थिति में थी और रोने चीखने के अलावा किसी को कुछ नहीं बता पा रही थी.

नर्स का इशारा समझ कर कई डाक्टर, नर्स, वार्डबौय और अन्य कर्मचारी दौड़ कर विश्राम गृह में पहुंचे. डा. सरिता की हालत देख कर सभी हतप्रभ रह गए. निस्संदेह उन की मौत हो चुकी थी. अस्पताल में हत्या जैसा बड़ा हादसा हुआ था, इसलिए तुरंत इस की सूचना स्थानीय थाने को दी गई.

सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई. डा. सरिता की हत्या औपरेशन में इस्तेमाल होने वाले सर्जिकल चाकू से की गई थी और हत्या के बाद चाकू को गले में ही छोड़ दिया गया था.

मृतका के शरीर के कपड़े उतारे गए थे, इस से लगा कि डा. सरिता के साथ दुष्कर्म करने की भी चेष्टा की गई थी. डैड बौडी और घटनास्थल का मुआयना करने के बाद पुलिस ने डा. सरिता का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. साथ ही रात्रि ड्यूटी पर मौजूद डाक्टरों, नर्सों और वार्डबौय से भी पूछताछ की गई. इस बीच इस घटना की सूचना डा. सरिता के घर वालों को भी दे दी गई थी.

डा. सरिता का परिवार डिबू्रगढ़ से 470 किलोमीटर दूर जिला शिवसागर के अमोला पट्टी में रहता था. उन के पिता किशनलाल तोषनीवाल का सेंट्रल मार्केट में अपना व्यवसाय था, जबकि मां कृष्णा तोषनीवाल गृहिणी थीं. यह परिवार मूलत: राजस्थान का रहने वाला था, जो सालों पहले असम जा कर बस गया था. घटना वाले दिन सरिता की मां कृष्णा राजस्थान गई हुई थीं, उन्हें वहीं सूचना दी गई.

डा. सरिता तोषनीवाल की उसी अस्पताल में हत्या कर दी गई थी, जहां वह काम करती थीं. अंगे्रजों के जमाने में बने असम मैडिकल कालेज अस्पताल की गिनती प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में होती है. वहां के अस्पताल में एक डाक्टर की हत्या हो जाना कोई मामूली बात नहीं थी. इस घटना से राजधानी डिबू्रगढ़ में तहलका सा मच गया था.

असम मैडिकल कालेज अस्पताल का पूरा स्टाफ और स्टूडेंट घबराए हुए थे. स्थिति को देखते हुए क्षेत्रीय एसपी राणा भुईंया ने इस मामले की जांच की कमान खुद संभाली. उन्होंने अपनी टीम के साथ सब से पहले उन लोगों से पूछताछ करने का निर्णय लिया, जो उस रात ड्यूटी पर थे.

पुलिस टीम ने तत्काल पूरे स्टाफ को एकत्र कर लिया. जब सब लोगों से पूछताछ की जा रही थी तो एक पुलिस अफसर की निगाह वार्डबौय किरु मैक के चेहरे पर ठहर गई. उस के चेहरे पर किसी के नाखूनों के ताजा निशान थे. पुलिस अफसर को शक हुआ तो उस ने किरु मैक से तीखे स्वर में सीधा सवाल किया, ‘‘तुम ने डा. सरिता की हत्या क्यों की? बलात्कार करना चाहते थे क्या?’’

पल भर के लिए किरु के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. उस की समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे. फिर भी वह जैसे तैसे खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘सर, आप को गलतफहमी हो रही है, मैं ने कुछ नहीं किया. मैं तो ड्यूटी पर था, मुझे कुछ पता नहीं है.’’

‘‘ठीक है, थाने चल कर गलतफहमी दूर कर लेते हैं.’’ कह कर अफसर ने किरु का हाथ पकड़ा तो उस के शरीर की कंपकंपाहट अफसर से छिपी न रह सकी. अफसर ने एसपी राणा भुईंया को बता दिया कि हत्यारा किरु मैक है. पुलिस उसे साथ ले कर थाने लौट आई.

थाने में किरु मैक से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि डा. सरिता तोषनीवाल की हत्या उसी ने की थी, लेकिन अकेले नहीं. इस हत्या में डा. सरिता का बैचमेट डा. दीपमणि सैकिया भी शामिल था. डा. दीपमणि का नाम सामने आने से पुलिस भी हैरान रह गई.

किरु मैक से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के और डा. दीपमणि सैकिया के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/34 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस ने मुर्दाघर में रखी डा. सरिता की डैडबौडी के नाखूनों के अंदर फंसी खाल के कण भी प्राप्त कर लिए, ताकि उन कणों का मिलान लेबोरेटरी में किरु मैक की स्किन से कराया जा सके.

एक ओर पुलिस ने डा. दीपमणि की खोजबीन शुरू की तो दूसरी ओर किरु मैक का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने इकबालिया बयान दर्ज कराया. इस के साथ ही उसे 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर भी ले लिया गया.

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डा. सरिता तोषनीवाल की हत्या को ले कर असम मैडिकल कालेज अस्पताल में ही नहीं, बल्कि पूरे डिब्रूगढ़ में असंतोष फैला हुआ था. लोग तुरंत डा. दीपमणि की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे. देर शाम तक डा. सरिता के घर वाले भी डिबू्रगढ़ पहुंच गए. बेटी की लाश देख कर वे होश खो बैठे. राजस्थान में होने की वजह से डा. सरिता की मां कृष्णा उस दिन डिब्रूगढ़ नहीं पहुंच पाई थीं.

पुलिस ने डा. दीपमणि को पकड़ने की काफी कोशिश की, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद डा. सरिता की लाश उन के घर वालों के हवाले कर दी गई. मैडिकल कालेज और अस्पताल का पूरा स्टाफ ही नहीं, बल्कि डिब्रूगढ़ के हजारों लोग भी डा. सरिता के परिवार के साथ थे और हत्यारे डाक्टर को जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे.

लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद भी जब डा. दीपमणि सैकिया को गिरफ्तार नहीं किया जा सका तो असम मैडिकल कालेज अस्पताल के डाक्टरों ने हड़ताल कर दी. उन्होंने ऐलान किया कि जब तक हत्यारा नहीं पकड़ा जाता और हकीकत सामने नहीं आती हड़ताल जारी रहेगी. डाक्टरों के दबाव की वजह से पुलिस डा. दीपमणि को गिरफ्तार करने की पूरी कोशिश कर रही थी.

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डा. सरिता के घर वालों और सहकर्मियों से पता चला कि उन का और उन के बैचमेट डा. रोशन अग्रवाल का विवाह तय हो गया था. दोनों की शादी. 7 जुलाई, 2014 को होनी थी और इस के लिए दोनों परिवार तैयारियों में लगे थे. यह उन दोनों का प्रेमविवाह था, जो दोनों के परिवारों की सहमति से हो रहा था.

डा. सरिता और डा. रोशन के बीच पढ़ाई के दौरान ही प्यार हुआ था. 2013 में दोनों ने अपनी शादी की इच्छा अपनेअपने घर वालों से जाहिर कर दी थी. इस के बाद आपसी बातचीत कर के दोनों परिवार उन की शादी के लिए तैयार हो गए थे. लेकिन डा. सरिता की हत्या ने दोनों परिवारों की खुशियां लील लीं.

काफी भागदौड़ के बाद पुलिस ने आखिर 14 मई को डा. दीपमणि सैकिया को गिरफ्तार कर लिया. इस बीच वह समझ चुका था कि अब किसी तरह भी बचना संभव नहीं है. इसलिए पुलिस पूछताछ में उस ने डा. सरिता की हत्या की पूरी कहानी बता दी. हत्या की योजना डा. सैकिया की खुद की थी, जबकि किरु को उस ने लालच दे कर इस पाप में शामिल किया था.

दरअसल, सरिता, रोशन और दीपमणि असम मैडिकल कालेज में साथसाथ पढ़ रहे थे. हंसमुख स्वभाव की खूबसूरत सरिता सभी साथियों को पसंद थी. पढ़ाईलिखाई में भी वह होशियार थी. सरिता के दीपमणि से भी अच्छे संबंध थे और रोशन अग्रवाल से भी. तीनों के बीच खूब बातें होती थीं, आमने सामने भी और फोन पर भी. इसी सब के चलते दीपमणि सैकिया सरिता से एकतरफा प्यार करने लगा था. अपने मन की बात वह सरिता से कह नहीं पाया, यह अलग बात थी.

डाक्टरी की पढ़ाई के आखिरी साल में सरिता और उन के बैचमेट्स डा. दीपमणि की ड्यूटी बतौर जूनियर डाक्टर असम मैडिकल कालेज के अस्पताल में लगा दी गई. सरिता और दीपमणि चूंकि महिला रोग चिकित्सक के रूप में ग्रैजुएशन कर रहे थे, इसलिए दोनों की ड्यूटी महिला रोग एवम प्रसूति विभाग में लगाई गई. जबकि डा. रोशन अग्रवाल का विषय अलग था, सो उन की ड्यूटी दूसरे विभाग में लगी.

डा. रोशन अग्रवाल और डा. सरिता तोषनीवाल पिछले 2 सालों से एकदूसरे को पसंद करते थे. इसी बीच दोनों में प्यार हुआ और दोनों के परिवारों की सहमति से शादी तय हो गई थी. डा. रोशन अग्रवाल नगांव कठिया तुली के रहने वाले थे.

डा. सरिता और डा. दीपमणि एक विभाग में तैनात होने की वजह से एकदूसरे से मोबाइल पर बात भी करते रहते थे और यदाकदा मैसेज भी भेजते रहते थे. डा. सरिता समझदार लड़की थीं. जब उन्होंने देखा कि डा. दीपमणि उन के साथ कुछ ज्यादा ही नजदीकियां बनाने की कोशिश कर रहा है तो उन्होंने उस से बात करना बंद कर दिया. इस की वजह यह थी कि उन की शादी तय हो चुकी थी और वह कतई नहीं चाहती थीं कि किसी के मन में कोई गलतफहमी पैदा हो.

एक लड़की के रूप में लिया गया उन का यह फैसला बिलकुल सही था. लेकिन डा. सरिता का बातचीत बंद करना डा. दीपमणि सैकिया को बहुत बुरा लगा. उस ने डा. सरिता को कई मैसेज भेजे, ताकि वह उस की भावनाओं को समझ सकें, लेकिन उन्होंने उस के किसी मैसेज का जवाब देने के बजाय उसे लताड़ दिया.

डा. दीपमणि को यह बात बहुत बुरी लगी और उस ने मन ही मन डा. सरिता को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. यह काम चूंकि वह स्वयं नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने वार्डबौय किरु मैक की मदद लेने का फैसला किया. किरु मैक डिब्रूगढ़ के गांव लाहोवाल का रहने वाला था. वह कई अपराधों में शामिल रह चुका था. इस के बावजूद किसी की सिफारिश पर उसे असम मैडिकल कालेज अस्पताल में अस्थाई वार्डबौय की नौकरी मिल गई थी.

डा. दीपमणि किरु मैक को पसंद करता था और उस की ड्यूटी अपनी ड्यूटी के समय ही लगवाता था. जब डा. सरिता ने डा. दीपमणि से बातें करना बंद कर दिया तो एक दिन उस ने किरु मैक से कहा, ‘‘अगर तुम एक काम में मेरी मदद करोगे तो मैं अस्पताल के अध्यक्ष महेंद्र पटवारी से कह कर तुम्हारी नौकरी स्थाई करा दूंगा. वह मेरे काफी करीबी हैं.’’

किरु लालच में आ गया तो डा. दीपमणि ने उसे बता दिया कि डा. सरिता को ठिकाने लगाना है. सुन कर पहले तो वह हिचका, लेकिन जब दीपमणि ने उसे लालच दे कर अपनी योजना समझाई तो वह मान गया. दोनों ने तय किया कि वे 24 अप्रैल को अपनी योजना को अंजाम देंगे. लेकिन 24 अप्रैल को मरीजों की संख्या अधिक थी, जिस की वजह से डा. सरिता की व्यस्तता बढ़ गई थी. फलस्वरूप उस दिन इन लोगों की योजना सफल नहीं हो सकी.

पहली नाकामयाबी के बाद इन दोनों ने अपनी योजना के लिए अगली तारीख 9 मई तय की. 8 मई की शाम को डा. सरिता समय पर अस्पताल आईं और अपनी ड्यूटी पर लग गईं. उस वक्त वह बहुत खुश थीं. डा. दीपमणि की भी उस दिन नाइट ड्यूटी थी, लेकिन उस ने अपनी तबीयत खराब बता कर छुट्टी ले ली थी. इस के बावजूद वह अस्पताल में ही छिप कर बैठ गया था. उस ने ड्यूटी पर तैनात किरु मैक से कह दिया था कि जब मौका मिले उसे बता दे. हर हालत में आज काम हो जाना चाहिए.

डा. सरिता ने रात भर ड्यूटी की और करीब 4 बजे डाक्टर विश्रामगृह में जा कर सो गईं. रात्रि ड्यूटी वाली एक नर्स वहां पहले ही सोई हुई थी. 9 मई की सुबह साढ़े 5 बजे वार्डबौय किरु मैक रोजाना की तरह अस्पताल का  रजिस्टर वार्ड में जमा कराने जा रहा था, तभी ब्लड बैंक के पास छिपे डा. दीपमणि ने उस से पूछा कि रात की ड्यूटी वाली नर्स गई क्या? इस पर उस ने बताया कि नर्स अभी सो रही है. डा. दीपमणि ने उस से कहा, ‘‘उसे कहो कि ड्यूटी का समय खत्म हो चुका है, इसलिए अब घर जाए.’’

रजिस्टर जमा कराने के बाद किरु मैक विश्रामगृह में पहुंचा और नर्स को जगा कर कहा, ‘‘7 बज गए हैं, घर नहीं जाना क्या?’’

उस समय साढ़े 5 बजे थे. नर्स नींद में थी. उसे लगा किरु कह रहा है तो 7 ही बजे होंगे. वक्त पर ध्यान न दे कर वह बाहर निकल गई. उस के जाने के 10 मिनट बाद डा. दीपमणि और किरु मैक पिछले दरवाजे से आईसीयू के पास स्थित डाक्टर विश्रामगृह में जा पहुंचे.

डा. दीपमणि सैकिया पहले ही सोच कर आया था कि उसे क्या करना है. इस के लिए वह एक सर्जिकल चाकू और फिनाइल की बोतल साथ लाया था. उस ने हाथों में डाक्टरों द्वारा ड्यूटी के समय इस्तेमाल किए जाने वाले ग्लव्ज पहन रखे थे. ये तीनों चीजें उस ने अस्पताल से ही हासिल की थीं. विश्रामगृह में आ कर डा. दीपमणि ने दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद कर दी.

डा. सरिता उस समय गहरी नींद में थीं. किरु और दीपमणि ने मिल कर सरिता का गला दबाना शुरू कर दिया. इस से उन की आंख खुल गईं और अपना बचाव करने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ा कर किरु मैक का चेहरा पकड़ने की कोशिश की. इसी चक्कर में उस के गालों पर डा. सरिता के नाखूनों के निशान बन गए.

हालांकि गला दबाने से डा. सरिता अधमरी हो गई थीं, लेकिन डा. दीपमणि उन्हें किसी भी तरह जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने साथ लाई फिनाइल की बोतल खोल कर डा. सरिता के मुंह में उड़ेल दी. इतना सब करने के बाद भी दीपमणि को चैन नहीं मिला तो उस ने साथ लाए सर्जिकल चाकू से डा. सरिता के गले की नस काट कर चाकू गले में ही छोड़ दिया.

इस तरह डा. सरिता को ठिकाने लगा कर डा. दीपमणि और किरु मैक ने मिल कर डा. सरिता के कपड़े उतार दिए और उन की लाश पर कंबल डाल कर पिछले दरवाजे से अस्पताल के बाहर चले गए.

विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने किरु मैक की निशानदेही पर उस के कमरे से डा. सरिता का मोबाइल बरामद कर लिया. उस की जांच से पता चला कि उन्होंने रात में आखिरी काल अपने मंगेतर डा. रोशन अग्रवाल को की थी. अपनी जांच में पुलिस ने डा. दीपमणि सैकिया और किरु मैक के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की भी जांच की.

पता चला कि डा. सरिता ने पिछले एक महीने से डा. दीपमणि को न तो कोई फोन किया था और न कोई मैसेज भेजा था. अलबत्ता दीपमणि और किरु मैक के बीच बातें जरूर हुई थीं. पुलिस हिरासत में किरु मैक चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि डा. सरिता की हत्या के लिए वह दोषी जरूर है, लेकिन उस से बड़ा गुनाहगार डा. दीपमणि सैकिया है. इसलिए फांसी की सजा दोनों को मिलनी चाहिए.

बहरहाल, विस्तृत पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. वैसे इस मामले में डा. दीपमणि सैकिया के मातापिता का कहना है कि उन के बेटे को साजिशन फंसाया गया है. शेष सच विस्तृत जांच के बाद ही सामने आएगा.

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क – भाग 3

थाने में आने के बाद एसआई हरेंद्र ने दोनों को अपने सामने बिठाया तो रवि परेशान स्वर में बोला, ”सर, हमें यह तो बताइए, आप किस जुर्म में हम दोनों को थाने लाए हैं?’’

”आलोक सिंह की हत्या के जुर्म में तुम्हें यहां लाया गया है.’’ एसआई अपने स्वर को गंभीर बना कर बोले, ”आलोक सिंह को तो तुम पहचानते होगे? उस की हत्या हुई है.’’

”कौन आलोक?’’ रवि हैरानी से बोला, ”मेरे पहचान के 2-3 लोग हैं साहब, जिन का नाम आलोक सिंह है.’’

”मै देवला गांव, पक्षी विहार में रहने वाले आलोक सिंह की बात कर रहा हूं.’’

”अरे.’’ रवि बुरी तरह चौंका, ”क्या आलोक सिंह की हत्या हो गई है? कब, कैसे?’’

”बनो मत.’’ एसआई हरेंद्र गुर्राए, ”आलोक सिंह की तुम ने ही हत्या की है.’’

”यह झूठ है साहब, मैं तो आलोक को बड़े भाई की तरह मानता था. बहुत इज्जत करता था उन की.’’

”ओह!’’ एसआई हरेंद्र सिंह मुसकराए, ”तभी उस की इज्जत से खेल रहे थे. क्या तुम्हारे आलोक की बीवी प्रियंका के साथ नाजायज संबंध नहीं हैं?’’

रवि ने सिर झुका लिया. कुछ क्षणों तक वह खामोश रहा फिर बोला, ”यह ठीक है साहब कि मेरे प्रियंका के साथ नाजायज संबंध हैं. लेकिन इस में मेरा जितना दोष है, उतना दोष प्रियंका का भी है. उसी ने मुझे अपने प्रेमजाल में फांसा था. मुझे उस ने खुला निमंत्रण दिया था तो मैं बहक गया. वैसे प्रियंका अच्छी औरत नहीं है साहब, उस का पहले सर्वेश से भी प्रेम संबंध रहा है.’’ रवि ने बात खत्म कर सिर खुजाया फिर बोला, ”मैं समझ गया साहब, हत्या किस ने की है?’’

”किस ने की है?’’ एसआई ने उसे घूरा.

”सर्वेश ने की होगी साहब. मेरा पूरा यकीन है कि वही ऐसा करेगा, क्योंकि आलोक के साथ मैं ने 29 अक्तूबर, 2023 को सर्वेश की अच्छे से ठुकाई कर दी थी. सर्वेश ने आलोक से उसी ठुकाई का बदला लिया होगा.’’

”तुम ने और आलोक ने सर्वेश की पिटाई की थी, भला क्यों?’’ एसआई हरेंद्र सिंह ने पूछा.

”साहब, आलोक सिंह ने मुझे बताया था कि सर्वेश प्रियंका को रास्ते में परेशान करता है. गंदेगंदे कमेंट करता है.’’

”तुम तो कह रहे हो कि प्रियंका का सर्वेश भी आशिक था.’’

”हां साहब, सर्वेश से भी प्रियंका ने इश्क लड़ाया था. उस से मिलती थी, फिर उसे घर भी लाने लगी. आलोक सीधासादा इंसान था, वह प्रियंका को पाकसाफ समझता था, उसे प्रियंका पर यह संदेह नहीं था कि वह दूसरे व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाती होगी. वह तो सर्वेश को उस का हमदर्द दोस्त समझता था.

”प्रियंका ने काफी दिनों तक सर्वेश से रिश्ता रखा, फिर न जाने क्यों वह उस से कटने लगी. शायद इसीलिए सर्वेश उसे रास्ते में तंग करने लगा था. वह तिलमिलाया हुआ इंसान था. प्रियंका ने इस की शिकायत अपने पति आलोक से की होगी, तभी आलोक ने सर्वेश को सबक सिखाने के लिए मुझ से मदद मांगी थी. मैं ने आलोक का साथ दिया था साहब. इसी से नाराज हो कर सर्वेश ने आलोक की हत्या कर दी होगी. मैं अपनी मां की कसम खा कर कहता हूं साहब, मैं ने आलोक की हत्या नहीं की है.’’

”ठीक है, मैं सर्वेश को चैक करता हूं. लेकिन तुम भी शक के दायरे में हो, कहीं जाओगे नहीं, जब तक यह मालूम न हो जाए कि आलोक का कातिल कौन है.’’ एसआई हरेंद्र ने कांस्टेबल नवीन मलिक को इशारे से पास बुला कर कहा, ”इन दोनों को दूसरे कमरे में बिठा दो और इन पर नजर रखना.’’

”ठीक है सर.’’ नवीन मलिक ने कहा और दोनों को ले कर एसआई के कक्ष से बाहर निकल गया.

प्रियंका ने सुना दी डबल इश्क की दास्तां

एसभाई हरेंद्र सिंह ने महिला कांस्टेबल को भेज कर मृतक आलोक की पत्नी प्रियंका को थाने में बुलवा लिया. प्रियंका पति की मौत से बेहद दुखी दिखाई दे रही थी. उस की आंखें रोने के कारण सूज गई थीं.

आलोक सिंह की लाश पोस्टमार्टम के बाद उस के घर वालों को सौंपी जा चुकी थी और उस के बड़े भाई रामवीर ने बहुत गमगीन हालत में छोटे भाई की अंत्येष्टि कर दी थी.

इश्क के रंग में रंगी प्रियंका को शायद अब समझ में आ रहा था कि उस के गलत आचरण के कारण ही उस का खुद का घर उजड़ चुका है और वह पति को गंवा बैठी.

उस ने थाने में चुपचाप कुबूल कर लिया कि उस के सर्वेश और रवि के साथ नाजायज संबंध थे. सर्वेश उस की जिंदगी में पहले आया था, जिस के साथ उस ने काफी दिन मौजमस्ती की, फिर रवि की ओर झुक गई. इस से सर्वेश चिढ़ गया. वह उसे बीच राह में परेशान करने लगा था. वह उसे बदनाम करने की धमकियां देता था.

यह बात उस ने अपने पति को बताई तो उन्होंने सर्वेश को 2-3 बार प्यार से समझाया. प्रियंका ने बताया कि जब सर्वेश अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो उन्होंने रवि के साथ मिल कर सर्वेश की धुनाई कर दी थी. शायद इसी बात से खफा हो कर उस ने मेरे पति आलोक की हत्या कर दी है.

प्रियंका ने आगे कहा कि मैं बेशक बदचलनी पर चली, लेकिन मैं बच्चों की कसम खा कर कहती हूं कि मैं ने किसी से नहीं कहा कि मेरे पति की हत्या कर दो. यह काम सर्वेश का है. उसे गिरफ्तार कर लीजिए साहब.

एसआई हरेंद्र सिंह ने प्रियंका से सर्वेश का पता मालूम किया तो उस ने बता दिया. सर्वेश, गांव धनसिंह पुरवा, जिला हरदोई का रहने वाला था. पुलिस टीम ने सर्वेश के पते पर दबिश दी तो वह घर से फरार मिला. उस के पीछे मुखबिर लगा दिए गए. जल्द ही एक विश्वासपात्र मुखबिर ने बताया कि सर्वेश अपने फुफेरे भाई रिंकू उर्फ भूपेंद्र सिंह के साथ सूरजपुर में पैरामाउंट अंडरपास पर आने वाला है. इस सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने घेराबंदी कर ली. सर्वेश वहां रिंकू के साथ आया तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

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सर्वेश ने क्यों की थी आलोक की हत्या

थाने में पूछताछ हुई तो सर्वेश ने बताया कि वह प्रियंका से प्रेम करता था. प्रियंका ने उस से किनारा करना चाहा तो वह सहन नहीं कर पाया, वह प्रियंका से अपना प्यार लौटाने के लिए गिड़गिड़ाता था. प्रियंका उसे दुत्कार रही थी. उस ने अपने पति से कहा कि मैं उसे आते जाते राह में परेशान करता हूं.

उस ने कहा कि आलोक ने प्रियंका के दूसरे प्रेमी रवि के साथ मिल कर मेरे मोहल्ले में मेरी पिटाई कर दी थी. मैं इस से काफी अपमानित महसूस करने लगा था. मैं ने अपने फुफेरे भाई रिंकू उर्फ भूपेंद्र सिंह को साथ लिया और रवि को सबक सिखाने के लिए उस की तलाश में निकला, लेकिन रवि हमें नहीं मिला.

तब हम सनप्लास्ट कंपनी साईट-बी, इंडस्ट्रियल एरिया पहुंचे. आलोक यहां नौकरी करता था. वह शाम को ड्यूटी कर के कंपनी से बाहर आया और घर जाने लगा तो मैं ने और रिंकू ने उसे घेर लिया.

हम उसे ट्राला के केबिन में ले आए. वहां उस से मारपीट की. मैं ने लोहे के टायर लीवर से आलोक के सिर पर वार किया तो उस का सिर फट गया. सर्वेश ने बताया कि वह बेहोश हो कर गिरा तो मैं ने उस का गला दबा कर जान ले ली. मैं साथ दो निशाने साधना चाहता था. मैं ने रिंकू की मदद से आलोक की लाश मिग्सन ग्रीन सोसायटी की ग्रीन बेल्ट (ग्रेटर नोएडा) में फेंक दी, ताकि यहां रहने वाले रवि पर हत्या का शक जाए. रवि यदि हत्या के शक में पकड़ा जाता और जेल जाता तो प्रियंका फिर मेरी तरफ झुक जाती.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पुलिस ने मुझे और रिंकू उर्फ भूपेंद्र सिंह, मैस कटरा, जिला कानपुर देहात को पैरामाउंट अंडरपास से गिरफ्तार कर लिया.

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              आरोपी रिंकू

सर्वेश ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया तो उसे और रिंकू को उसी दिन कोर्ट में पेश कर के रिमांड पर ले लिया गया.

कड़ी पूछताछ से उन से हत्या में प्रयुक्त टायर लीवर, ट्राला जिस का रजिस्ट्रेशन नंबर- पीबी 10एचडी 1859 था और जिस के केबिन में आलोक की हत्या की गई थी, बरामद कर लिया गया.

ट्राला की खून सनी सीट बैल्ट, सीट कवर और ट्राला में गिर कर सूख चुके खून के नमूने भी एकत्र कर लिए गए. केस को मजबूती देने वाले साक्ष्य इकट्ठा करने के बाद जब रिमांड अवधि खत्म हुई तो पुलिस ने रिंकू उर्फ भूपेंद्र और सर्वेश को कोर्ट में पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

रवि और उस के दोस्त बबलू उर्फ अशरफ अली को रिहा कर दिया गया. छोड़ तो प्रियंका को भी दिया गया था, लेकिन उसे अब अपने आप से नफरत हो गई थी. पति की मौत का वह खुद को जिम्मेदार मानती थी. वह काफी गुमसुम हो गई थी और बच्चों के साथ सादगी भरा जीवन जी रही थी. शायद यही उस का पछतावा था. अब घटना की जांच मौजूदा एसएचओ पुष्पराज कर रहे हैं.

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बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क – भाग 2

किस ने की आलोक की हत्या

पहली नवंबर, 2023 थाना सूरजपुर (गौतम बुद्ध नगर) पुलिस को दोपहर में किसी अज्ञात व्यक्ति से सूचना मिली कि मिग्सन ग्रीन सोसायटी के पास ग्रीन बेल्ट (ग्रेटर नोएडा में) एक व्यक्ति की लाश पड़ी हुई है.

थाना सूरजपुर के एसआई हरेंद्र सिंह सूचना मिलते ही रजिस्टर में अपनी रवानगी दर्ज कर के मौके पर तफ्तीश के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल पर भीड़ जमा थी. पुलिस को देख कर भीड़ इधरउधर हो गई. एसआई हरेंद्र सिंह उस जगह आए, जहां युवक की लाश पड़ी हुई थी.

युवक का सिर फटा हुआ था, जिस से उस के कपड़े खून से लथपथ हो चुके थे. लग रहा था कि उस के सिर पर कोई भारी चीज का वार किया गया है.

युवक की तलाशी ली गई, लेकिन उस की जेब में ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से यह मालूम हो सकता कि यह कौन है, कहां रहता है. उस को भीड़ में भी कोई नहीं पहचान पाया. एसआई हरेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी और फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया.

थोड़ी देर में ही एडिशनल डीसीपी (सेंट्रल नोएडा) हृदेश कठेरिया घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवक की लाश का बारीकी से मुआयना किया. फोरैंसिक टीम भी आ गई थी, वह अपने काम में जुट गई थी.

अभी जांच का काम चल ही रहा था कि एक युवक भीड़ को चीरता हुआ घटनास्थल पर आ गया. युवक ने लाश को गौर से देखा तो दहाड़ें मार कर रोने लगा.

रामवीर ने भाभी पर क्यों जताया हत्या का शक

एसआई हरेंद्र सिंह उस के पास आ गए. युवक के कंधे पर उन्होंने सहानुभूति से हाथ रख कर उस क ा कंधा थपथपा कर सांत्वना देने की कोशिश करते हुए पूछा, ”तुम्हारा क्या लगता था यह?’’

”साहब, मेरा छोटा भाई है यह.’’ युवक ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, ”इस का नाम आलोक सिंह है और मेरा नाम रामवीर. मैं ने कल शाम को थाना सूरजपुर में इस की गुमशुदगी लिखवाई थी साहब. वहां पर इस का फोटो भी जमा करवाया था मैं ने.’’

”यह मेरे संज्ञान में नहीं है. मैं तो इस युवक की शिनाख्त के लिए परेशान था कि तुम ने मेरी टेंशन दूर कर दी.’’

”मैं आज फिर से थाना सूरजपुर गया था, यह मालूम करने कि मेरे भाई का कोई पता लगा या नहीं, वहां ड्यूटी अफसर ने मुझे बताया कि मिग्सन ग्रीन सोसायटी की ग्रीन बेल्ट (ग्रेटर नोएडा) में एक युवक की लाश मिली है, साहब वहां तफ्तीश के लिए गए हैं. तब यह देखने कि लाश किस की है, मैं यहां आ गया. लाश मेरे भाई की है साहब.’’

”क्या नाम बताया तुम ने अपने भाई का?’’

”आलोक सिंह, साहब!’’

”यह कब से लापता था?’’

”29 नवंबर, 2023 को यह रोज की तरह अपने काम पर गया था साहब. शाम को यह घर नहीं पहुंचा. हम सभी रात भर इस के घर आने का इंतजार करते रहे. 30 नवंबर को जब यह शाम तक भी नहीं लौटा तो मैं ने इस की गुमशुदगी थाने में दर्ज करवा दी थी.’’

”तुम्हारा नाम क्या है?’’

”रामवीर सिंह मूलरूप से हमारे पिता महेंद्र सिंह गांव कोकामऊ, माल्लवा, हरदोई (उत्तर प्रदेश) के निवासी हैं. वर्तमान में भाई आलोक सिंह देवला गांव, पक्षी विहार, इंडेन गैस गोदाम के पास अनुरुद्र के मकान में किराए पर रह रहा है. यह थाना क्षेत्र सूरजपुर में स्थित है.’’

एसआई हरेंद्र सिंह ने पूछा, ”तुम्हारे भाई की हत्या हुई है. तुम्हें किसी पर संदेह है. ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे भाई आलोक सिंह का दुश्मन रहा हो?’’

”साहब, घर की इज्जत हर एक को प्यारी होती है, लेकिन जब कोई घर की इज्जत ही खराब करना चाहे तो चुप रहने में कोई फायदा नहीं होगा.’’ रामवीर बहुत गंभीर नजर आने लगा, ”मेरे भाई आलोक सिंह की हत्या में इस की पत्नी प्रियंका का हाथ है. मुझे पक्का विश्वास है कि उसी ने अपने प्रेमी रवि के साथ मिल कर मेरे भाई की हत्या करवाई है.’’

”ओह!’’ एसआई हरेंद्र सिंह हैरानी से बोले, ”यानी तुम्हारे भाई की पत्नी अच्छे चालचलन वाली नहीं है.’’

”बेशक उस ने कभी अपने पति आलोक सिंह की इज्जत का खयाल नहीं किया. वह भाई के पीठ पीछे रवि नाम के युवक से इश्क लड़ा रही थी. उस ने आलोक पर पता नहीं साहब क्या जादू किया हुआ था कि वह रवि के ऊपर कभी शक नहीं करता था.

”रवि उस की मौजूदगी में और गैरमौजूदगी में बेधड़क घर पर आया जाया करता था. मैं ने देखा तो नहीं, लेकिन प्रियंका और रवि के हावभाव से मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि दोनों में अनैतिक संबंध बने हुए हैं. यह बात मैं ने नोट की है साहब.’’

”बोलो,’’ एसआई ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ”यह रवि रहता कहां है?’’

”रवि यहीं मिग्सन ग्रीन सोसायटी, ग्रेटर नोएडा में रहता है. उस का मूल निवास, पहाड़पुर, थाना अनूपशहर (बुलंदशहर) है.’’

एसआई हरेंद्र सिंह ने यह एड्रैस अपनी डायरी में नोट कर लिया और वहां मौजूद एडिशनल डीसीपी (सेंट्रल नोएडा) हृदेश कठेरिया को मृतक के भाई रामवीर से मिली जानकारी से अवगत करा दिया.

एडिशनल डीसीपी हृदेश कठेरिया ने निर्देश दिया, ”आप रामवीर की बात को ध्यान में रख कर अपनी काररवाई करिए. आलोक सिंह की पत्नी प्रियंका को पूछताछ के दायरे में लाइए. यदि रामवीर की बातों में सच्चाई है तो प्रियंका अवश्य टूट जाएगी.’’

”ठीक है सर, मैं पहला काम प्रियंका से पूछताछ का ही करूंगा.’’

एडिशनल डीसीपी कुछ निर्देश दे कर वहां से चले गए. तब एसआई ने अपनी कागजी काररवाई पूरी करने के बाद उस लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. फिर वह रामवीर को साथ ले कर थाना सूरजपुर के लिए रवाना हो गए.

दूसरे प्रेमी से पुलिस को मिली नई जानकारी

आलोक सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में यह कहा गया था कि सिर पर लगी गंभीर चोट और गला दबाए जाने से आलोक सिंह की जान गई थी.

यह हत्या का मामला था. एसआई हरेंद्र सिंह ने रामवीर सिंह को बुलवा कर उस की लिखित तहरीर के आधार पर यह केस भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत दर्ज किया.

रामवीर सिंह ने अपनी तहरीर में छोटे भाई आलोक सिंह की हत्या का दोष आलोक की पत्नी प्रियंका और उस के प्रेमी रवि तथा रवि के साथ मैकेनिक का काम करने वाले उस के दोस्त बबलू उर्फ अशरफ अली, निवासी बांदोली, जिला बुलंदशहर के ऊपर लगाया. रामवीर सिंह की लिखित तहरीर के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एडिशनल डीसीपी हृदेश कठेरिया ने एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस का नेतृत्व एसआई हरेंद्र सिंह को दिया गया था.

थाना सूरजपुर के तत्कालिन एसएचओ अवधेश प्रताप सिंह पूरे मामले पर नजर रखे थे. एसआई जितेंद्र चौहान और हरेंद्र सिंह ने रवि और बबलू उर्फ अशरफ अली को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर दबिश दी तो दोनों घर पर ही मिल गए. दोनों को पुलिस थाना सूरजपुर ले आई.

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क – भाग 1

मृतक की उम्र 35 से 40 वर्ष के बीच की लग रही थी. वह पैंटशर्ट पहने हुए था. उस के जिस्म पर चोट के निशान थे और सिर फटा हुआ था. सिर के गहरे जख्म से खून बह कर उस के सारे चेहरे और शर्ट पर फैल कर सूख चुका था. इस से अनुमान लगाया गया कि युवक को मरे हुए 10-12 घंटे से ऊपर हो गए हैं.

जमीन पर खून दिखाई नहीं दे रहा था और न ही ऐसे चिह्न वहां थे, जिस से यह समझा जा सके कि युवक की हत्या इसी जगह की गई है. साफ लग रहा था कि युवक की हत्या कहीं और की गई होगी, उस के बाद उसे ला कर यहां पर फेंक दिया गया था.

मिग्सन ग्रीन सोसायटी (गौतमबुद्ध नगर) का रहने वाला रवि कहीं जाने के लिए नहाधो कर तैयार हुआ था. उस ने अभी जूते के फीते बांधे ही थे कि जेब में रखे मोबाइल की घंटी बजने लगी. रवि ने मोबाइल निकाला. स्क्रीन पर उस की प्रेमिका प्रियंका का फोन नंबर फ्लैश हो रहा था.

रवि तुरंत काल रिसीव कर आतुरता से बोला, ”बोलो जानम, इस गरीब की याद कैसे आ गई तुम्हें?’’

”गरीब क्यों कहते हो अपने आप को रवि. मेरी नजर में तो तुम राजा हो राजा.’’ दूसरी ओर से प्रियंका का स्वर उभरा.

रवि हंस पड़ा, ”चलो, तुम्हारी नजर में मेरी कुछ तो कीमत है. कहो, कैसे याद किया मुझे?’’

”कहां हो?’’

”घर पर ही हूं.’’

”मेरे घर चले आओ, मैं अकेली हूं आज.’’ प्रियंका के स्वर में कामुकता का भाव था.

”तुम्हारा पति आलोक कहां गया?’’ रवि ने पूछा.

”अपनी बहन के यहां गया है, कल लौटेगा. तुम आ जाओ, रात रंगीन करने का बहुत अच्छा मौका हाथ आया है.’’

”मैं अभी आया मेरी जान.’’ आतुरता से बोला रवि, ”बोलो, क्या ले कर आऊं, चिकन या मटर पनीर?’’

”मैं ने चिकन मंगवा रखा है, पीने का मन हो तो अपनी चौइस का ब्रांड लेते आना.’’

”ठीक है,’’ रवि ने कहा और काल डिसकनेक्ट कर उस ने मोबाइल जेब के हवाले कर लिया. घर से निकल कर एक ठेके से उस ने अद्धा खरीदा, उसे जेब में रख कर उस ने आटो किया और देवला गांव, पक्षी विहार, गौतमबुद्ध नगर में स्थित आलोक के घर पहुंच गया. उस ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा प्रियंका ने खोला.

रवि अंदर आ गया. प्रियंका ने दरवाजा बंद कर दिया और वह भी रवि के पीछे अंदर बैडरूम में पहुंच गई. उस ने बढिय़ा बनावशृंगार किया हुआ था.

”बच्चे दिखाई नहीं दे रहे हैं प्रियंका.’’ रवि ने पलंग पर बैठते हुए पूछा.

”मैं ने उन्हें नानी के यहां भेज दिया है.’’ प्रियंका अंगड़ाई लेते हुए रवि की बगल में आ बैठी.

”बहुत समझदार हो.’’

”यार रवि, जब एंजौय करते हैं तो किसी प्रकार का डिस्टरबेंस नहीं होना चाहिए. अब पूरी रात हमारी है.’’ प्रियंका ने कहने के बाद रवि के गले में अपनी नाजुक कलाइयां डाल दीं, ”तुम्हारी शिकायत थी कि मैं तुम्हें कभी पूरा मौका नहीं देती.’’

”मैं गलत कहां कहता हूं, तुम अपना सारा प्यार सर्वेश पर लुटाती रही हो.’’ रवि के स्वर में शिकायत थी.

”पहले वह मुझे अच्छा लगता था, लेकिन जब तुम मेरी जिंदगी में आए तो मैं ने तुम दोनों को तराजू में रख कर तोला. तुम और तुम्हारा प्यार सर्वेश से कहीं अधिक वजनी निकला, इसलिए मैं ने सर्वेश की ओर से किनारा कर लिया.’’ प्रियंका ने अपना गाल रवि के गाल से रगड़ते हुए कहा.

रवि ने प्रियंका की कमर में बाहें लपेट कर उसे अपनी गोद में खींच लिया, ”मैं ने तुम्हें दिल से प्यार किया है स्वीट हार्ट. सर्वेश की तरह मैं तुम्हारे जिस्म का भूखा नहीं बना. हम कई दिनों से मिल रहे हैं, आज तुम ने पहली बार मुझे बिस्तर पर आमंत्रित किया है. मैं अपने आप को खुशनसीब मान रहा हूं.’’

”अब समय मत गंवाओ… मैं तुम्हारे प्यार के लिए तड़प रही रही हूं.’’

रवि ने प्रियंका के यौवन को दुलारना शुरू कर दिया. उस की अंगुलियां प्रियंका के गुदाज जिस्म पर फिसलने लगीं. प्रियंका पल प्रतिपल उन्मादित होती चली गई और वह पल भी आ गया, जब रवि ने उसे पूरी तरह अपने आगोश में समेट लिया और उस पर छाता चला गया.

वह रात प्रियंका और रवि ने पूरी मौजमस्ती से गुजारी. सुबह वहीं से फ्रैश हो कर रवि काम पर जाने के लिए निकला तो उसी वक्त प्रियंका का पति आलोक वहां आ गया.

भेद खुलतेखुलते ऐसे बचा

रवि एक बार के लिए आलोक को देख कर सकपका गया, फिर उस ने तुरंत अपने आप को संभाल लिया, ”आलोक भैया नमस्ते. मैं आप से ही मिलने आया था, भाभी ने बताया आप बाहर गए हुए हो, लौट रहा था कि आप आ गए.’’

”कैसे हो, बहुत दिनों बाद इधर आए हो.’’ आलोक ने आत्मीयता से पूछा.

”समय ही नहीं मिलता भैया.’’ रवि बोला, ”आज सोचा सुबह सुबह मिल लूंगा, अच्छी किस्मत है मेरी, मेरा आना बेकार नहीं गया. आप आ गए.’’

”कुछ काम था क्या मुझ से?’’

”काम कुछ नहीं भैया, अगले हफ्ते मेरा बर्थडे है. मैं छोटी सी पार्टी दे रहा हूं. आप भाभीजी को ले क र आ जाना.’’ रवि ने झूठ बोला.

”जरूर आऊंगा, दिन और समय बता दो.’’

”2 अक्तूबर.’’ रवि हंस कर बोला, ”उस दिन बापूजी का जन्मदिन होता है. मैं भी उसी दिन पैदा हुआ था. आप शाम को 5 बजे आ जाइए, खाना भी वहीं खाइएगा.’’

”ठीक है, मैं जरूर आऊंगा.’’ आलोक कह कर रवि के साथ बाहर आ गया. उस ने इधरउधर देखा, फिर धीरे से बोला, ”रवि, एक बात कहनी है तुम से.’’

”कहिए न भैया.’’ धड़कते दिल से रवि ने कहा.

”यह सर्वेश अजकल तुम्हारी भाभी प्रियंका को कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहा है. गलती प्रियंका की ही थी, जो उसे मुंह लगा लिया. प्रियंका ने तो उस से अपनापन जताया था, अब वह उसी पर हावी होने की कोशिश कर रहा है. प्रियंका कहीं बाहर जाती है तो वह उस पर गलत कमेंट करता है. उसे 1-2 बार समझाया, लेकिन वह बाज ही नहीं आ रहा है.’’

”धुनाई कर दो हरामी की. मैं आप के साथ हूं.’’ रवि जोश में भर कर बोला, ”ऐसे व्यक्ति को सबक मिलना जरूरी है.’’

”ठीक कहते हो, जब जरूरत होगी, मैं तुम्हें बुला लूंगा.’’ आलोक ने कहा.

”मैं आप का फोन सुनते ही आ जाऊंगा भैया. अब चलता हूं, काम के लिए देर हो रही है.’’ कहने के बाद रवि इजाजत ले कर पैदल ही वहां से चल पड़ा.

वह अब काफी संतुष्ट था, क्योंकि आलोक की गैरमौजूदगी में उस के घर रात भर रहने की बात रहस्य ही बनी रही थी. आलोक को उस पर थोड़ा सा भी शक नहीं हुआ था.

नाजायज रिश्तों में हक जमाने की भूल

सईद जिस मकान में रह रहा था, वह उस के साले शकील का था. शकील अपनी पत्नी शबनम और बच्चों के साथ मकान के भूतल पर रहता था जबकि सईद प्रथम तल पर रह रहा था. सईद छत पर लगे लोहे के जाल से शबनम और शकील की गतिविधियों नजर रखे रहता था. जैसे ही शकील काम पर जाने के लिए घर से निकलता, सईद झट से शबनम के पास पहुंच जाता था. इस के बाद दोनों जी भर कर अपनी हसरतें पूरी करते थे.

35 वर्षीय शकील लखनऊ के हसनगंज थाना क्षेत्र के रमबगिया खदरा मोहल्ले में रहता था. उस के पिता अहमद हुसैन दरजी थे. पिता से यही काम सीखने के बाद वह भी टेलर बन गया था. करीब 10 साल पहले उस की शादी लखनऊ से सटे हरदोई जिले के संडीला कस्बे के महताब मूसापुर गांव की रहने वाली शबाना अंजुम उर्फ शबनम से हुई थी. एमए तक पढ़ी शबनम खूबसूरत युवती थी.

अपने से 5 साल छोटी, खूबसूरत और पढ़ी लिखी पत्नी घर में आने के बाद शकील की जिम्मेदारियां और भी बढ़ गई थीं. सुबह को दुकान पर गया शकील अब ज्यादा देर तक दुकान पर बैठने लगा. वह पत्नी की सारी जरूरतों का तो खयाल रखता, लेकिन उस के मन की चाहत पर ध्यान नहीं दे पाता था. वह सजी धजी पत्नी की भावना को समझने के बजाय करवट बदल कर जल्दी सो जाता था. शबनम कभी पहल करती तो वह तवज्जो नहीं देता था.

कह सकते हैं कि शबनम वासना की आग में जलती रहती थी. यह भी सच है कि वासना की आग में जलने वाली औरत अकसर गुमराह हो जाती है. ऐसे में वह अपनी और घर की बदनामी के बारे में भी नहीं सोचती.

इसी दौरान शकील का बहनोई सईद अख्तर उर्फ कल्लू उर्फ माटू उस के यहां रहने के लिए आ गया था. कानपुर के थाना अनवरगंज के कुली बाजार में रहने वाले सईद का विवाह शकील की बहन नजमा से हुआ था. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी नजमा मां नहीं बन सकी थी. सईद अकसर शकील के घर आताजाता रहता था.

एक दिन दोनों के बीच बातचीत हुई तो शकील ने सईद से लखनऊ में रह कर अपना कोई काम करने की बात कही. सईद को साले का यह सुझाव अच्छा लगा. उस ने सोचा कि लखनऊ में रह कर काम करने पर उस की आमदनी बढ़ सकती है. बात जब रहने के इंतजाम की आई तो शकील ने उसे अपने मकान की पहली मंजिल पर रहने को कह दिया.

कुछ दिनों बाद शकील अपने सामान के साथ कानपुर से लखनऊ आ गया. पत्नी नजमा को वह कानपुर में ही छोड़ आया था. लखनऊ आ कर उस ने तसला बनाने का काम शुरू कर दिया.

शकील सुबह काम पर जाता तो देर रात ही घर लौटता था. जबकि सईद कुछ घंटे काम कर के कमरे पर लौट आता था. खाली समय होने पर वह शबनम के साथ बैठ कर बातें करता. चूंकि दोनों में ननदोई सलहज का रिश्ता था, इसलिए आपस में हंसीमजाक होता रहता था. सईद शबनम को अपनी बाइक पर बैठा कर घुमाने ले जाता और बाजार में अच्छी से अच्छी चीजें खिलाता पिलाता था.

शबनम भी इतनी नासमझ नहीं थी, जो ननदोई की आंखों की भाषा न पढ़ पाती. इस के बावजूद वह जल्दबाजी में अपने कदम उस की तरफ नहीं बढ़ाना चाहती थी.

एक दिन पति के जाने के बाद शबनम सईद के लिए चाय बना रही थी. उस समय कमरे में बैठा सईद उसे अपलक निहार रहा था. शबनम ने उसे कनखियों से देखा तो मन ही मन खुश हुई. चाय का कप ले कर वह सईद के पास आई और कप उस की ओर बढ़ाते हुए मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम्हारे पास कोई काम नहीं है क्या, जो मुझे टकटकी लगा कर देखते रहते हो?’’

सईद ने बेहिचक जवाब दिया, ‘‘शबनम, तुम्हें देखना भी तो काम ही है. वैसे एक बात बताऊं, मैं तुम्हें देखता कम हूं, तुम्हारे बारे में सोचता ज्यादा हूं.’’

यह सुनते ही शबनम की धड़कनें बढ़ गईं. वह उस के सामने बैठ गई. फिर घुटने पर कोहनी रख कर हथेली पर ठोड़ी टिकाते हुए मुसकराई, ‘‘क्या सोचते हो, जरा मुझे भी तो बताओ.’’

‘‘यही कि शकील निरा बुद्धू है. इतनी खूबसूरत बीवी मिली है, लेकिन उस की कद्र तक करना नहीं जानता. देखो न क्या हाल बना कर रखा है.’’ सईद ने शबनम को पैरों से ले कर सिर तक निहारते हुए कहा.

शबनम को लगा कि सईद उस के मन की ही बात कह रहा है. वह बोली, ‘‘क्या करें, उन्हें तो सिर्फ पैसों से प्यार है, मगर पैसे के अलावा घरगृहस्थी की और भी जरूरतें होती हैं, इस बात को वो नहीं समझते.’’

शबनम के इतना कहते ही सईद ने लोहा गर्म देख शब्दों का वार किया, ‘‘शबनम, शकील अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता तो न सही. तुम परेशान क्यों होती हो, मैं हूं न.’’

शबनम के लिए यह खुला आमंत्रण था. उस के गालों पर हया की सुर्खी दौड़ी तो लाज से निगाहें झुक गई. वह झिझकते हुए बोली, ‘‘कहते हुए सोच तो लिया करो कि क्या कह रहे हो.’’

‘‘शबनम, यह बात मैं तुम से काफी दिनों से कहना चाह रहा था, लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’ सईद ने व्याकुल हो कर उस का हाथ पकड़ लिया.

शबनम मन ही मन खुश थी. उस का मन चाह रहा था कि सईद उसे बांहों में भर कर सीने से लगा ले और उसे खूब प्यार करे. इस के बावजूद वह दिखाने के लिए नाटकीय अंदाज में बोली, ‘‘छोड़ो न मुझे, यह क्या कर रहे हो? किसी ने देख लिया तो हमारी शामत आ जाएगी.’’

‘‘इस मकान में हम दोनों के सिवा है कौन, जो हमें देख लेगा. मेन गेट मैं ने पहले से बंद कर रखा है. इसलिए बाहर से कोई अंदर नहीं आ सकता.’’ फिर सईद उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘वैसे भी समझदार मर्द वही है, जो औरत के इनकार को ही उस का इकरार समझे.’’

सईद ने उसे बांहों में उठाया और ले जा कर बेड पर लिटा दिया. वह खुद भी उस के पहलू में लेट गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सईद का प्यार पा कर शबनम बहुत खुश हुई. ननदोई सलहज के बीच एक बार अवैध संबंध क्या बने कि वे रोज रोज यह खेल खेलने लगे. शकील को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के जाने के बाद पत्नी और बहनोई क्या गुल खिला रहे हैं. समय के साथ उन के रिश्ते परवान चढ़ने लगे.

लखनऊ की आबोहवा देखने के बाद शबनम भी कहीं नौकरी करना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो उस ने उसे नौकरी करने की इजाजत दे दी. एमए पास शबनम अखबारों में छपे नौकरी के विज्ञापन देखने लगी. अपनी योग्यता के अनुसार उस ने कई कंपनियों में आवेदन किया. कई जगह इंटरव्यू भी दिए. आखिर उसे सफलता मिल ही गई.

शबनम को हजरतगंज में शक्ति भवन के पीछे स्थित आइडिया कंपनी के काल सेंटर में नौकरी मिल गई. नौकरी मिलने पर वह बहुत खुश हुई. उसे अलगअलग शिफ्ट में काम पर जाना होता था. सुबह जल्दी जाना होता तो वह टैंपो से चली जाती और शाम को जाना होता तो सईद उसे अपनी बाइक से छोड़ आता था.

शबनम काफी मिलनसार और हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए वह औफिस में काम करने वाले लोगों से जल्दी ही घुलमिल गई. उस के औफिस में संजय नाम का एक युवक काम करता था. चूंकि औफिस के काम के मामले में शबनम एकदम नई थी, इसलिए संजय ही उस की हेल्प करता था. जल्दी ही दोनों के बीच अच्छीभली दोस्ती हो गई.

संजय शबनम की खूबसूरती पर फिदा था. वह उस का पूरी तरह से खयाल रखता था. शबनम को भी उस का साथ अच्छा लगने लगा. इस की एक वजह यह थी कि संजय उस का हमउम्र था जबकि सईद उस से 20 साल बड़ा था. धीरेधीरे दोनों में दूरियां घटती गईं और वे काफी नजदीक आ गए. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत थी. एक दिन संजय ने शबनम के सामने अपने प्यार का इजहार किया तो शबनम ने सहजता से उस का प्यार कुबूल कर लिया.

संजय से प्यार होने के बावजूद शबनम ने सईद से दूरी नहीं बनाई. वह उस की ख्वाहिशों को पूरा करती रही. वह उसे इसलिए छोड़ना नहीं चाहती थी क्योंकि उस ने उस समय उस का साथ दिया था, जब उसे एक साथी की सख्त जरूरत थी. इस तरह शबनम पति के अलावा 2 नावों की सवारी कर रही थी.

5 मार्च, 2014 को सुबह करीब साढ़े 5 बजे शबनम घर से औफिस जाने के लिए निकली. उस के जाने के बाद शकील कुछ देर के लिए बेड पर यूं ही लेट गया. अभी मुश्किल से 15-20 मिनट ही हुए थे कि घर के बाहर किसी चीज के गिरने की आवाज आई और शोर भी सुनाई दिया. शकील बाहर निकल कर आया तो उस ने शबनम को दरवाजे के बाहर लहूलुहान हालत में पड़े पाया. गिरने के बाद वह बेहोश हो गई थी. पड़ोसी भी उस की हालत देख कर वहां पहुंच गए थे.

पत्नी को इस हाल में देख कर शकील घबरा गया. पड़ोसियों की मदद से वह शबनम को उठा कर बलरामपुर अस्पताल ले गया. लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घेषित कर दिया. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल से इस की सूचना हसनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी दिनेश सिंह पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला शबनम के गले व पेट पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. शबनम के पति से बात करने के बाद थानाप्रभारी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

शकील की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

केस दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. लेकिन 10 दिनों की तफ्तीश के बाद भी उन्हें हत्यारों के बारे में कोई क्लू नहीं मिला. इस सिलसिले में उन्होंने कई मर्तबा शकील और उस के बहनोई सईद से पूछताछ की. पूछताछ के बाद उन्हें सईद पर शक होने लगा.

15 मार्च, 2014 को दोपहर के समय पुलिस ने सईद को थाने बुला कर फिर से पूछताछ की. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने शबनम की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह चौंकने वाली थी.

शबनम जब काल सेंटर में नौकरी करने लगी तो सईद को किसी तरह पता चल गया कि उस की दोस्ती उस के साथ काम करने वाले किसी लड़के के साथ हो गई है. जबकि उसे शबनम का दूसरे पुरुषों से मिलना, बातें करना अच्छा नहीं लगता था. वह बारबार उस पर इस बात का दबाव डालता था कि वह किसी बाहरी मर्द से बात न किया करे.

सईद ने कोशिश की तो उसे यह जानकारी मिल गई कि शबनम औफिस के जिस युवक के साथ ज्यादा मिलतीजुलती है उस का नाम संजय है. इस के बाद वह खुद उस की जासूसी करने लगा. एक दिन सईद ने शबनम को संजय के साथ औफिस के नजदीक एक रेस्टोरेंट में देख लिया. उस समय तो सईद ने शबनम से कुछ नहीं कहा लेकिन घर लौटने पर उस ने शबनम से नाराजगी जताई.

इस के जवाब में शबनम ने कहा कि जब वह नौकरी करने जाएगी तो औफिस के लोगों से बातचीत होगी ही. वह उन से बातचीत न करे, ऐसा मुमकिन नहीं है. इस से सईद को विश्वास हो गया कि शबनम के संजय के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती. इस बात को ले कर दोनों में कभीकभी झगड़ा भी हो जाता था. लेकिन शबनम ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया था.

सईद नहीं चाहता था कि शबनम उस के रहते किसी दूसरे के साथ मौजमस्ती करे. उस ने शबनम को कई बार समझाया. जब वह नहीं मानी तो उस ने शबनम की हत्या करने की ठान ली.

5 मार्च, 2014 को जब शबनम सुबह साढ़े 5 बजे घर से अपने औफिस जाने के लिए निकली तो सईद भी चुपके से उस के पीछे हो लिया. सईद ने अपना चेहरा कपड़े से छिपा लिया था.

शबनम घर से लगभग 200 मीटर दूर ही पहुंची होगी कि सईद उस के सामने जा कर खड़ा हो गया. यह देख कर शबनम ठिठकी लेकिन वह कुछ समझती, उस से पहले ही सईद ने उस के गले व पेट पर साथ लाई कैंची से कई प्रहार किए और वहां से भाग गया. वहां से भाग कर वह पास के कब्रिस्तान में गया और खून से सनी कैंची चारदीवारी के किनारे झाडि़यों में छिपा दी. फिर वह छिपते छिपाते जल्दी ही घर पहुंच गया.

शबनम घायल जरूर हो गई थी लेकिन उस ने भी हिम्मत नहीं हारी थी. पेट पर हाथ रख कर वह लड़खड़ाते हुए अपने घर तक पहुंच गई, लेकिन घर के दरवाजे पर पहुंचते पहुंचते उस की सांसों की डोर टूट गई और धड़ाम की आवाज के साथ जमीन पर गिर गई.

पुलिस ने सईद से पूछताछ के बाद उस की निशानदेही पर कब्रिस्तान के पास छिपा कर रखी कैंची बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित