प्रेम कहानी जो अधूरी रह गयी

उत्तर प्रदेश के जिला एटा के थाना मलावन क्षेत्र के गांव बहादुरपुर का एक आदमी नहर की पटरी से होता हुआ  अपने खेतों पर जा रहा था. तभी उसे नहर की पटरी के किनारे वाली झाडि़यों में किसी लड़की के कराहने की आवाज सुनाई दी. वह आवाज सुन कर चौंका. जब उस ने झाडि़यों के पास जा कर देखा तो खून से लथपथ एक युवती कराह रही थी. उस ने नीले रंग का सूट पहना हुआ था. उस आदमी ने हिम्मत कर के पूछा कौन है, लेकिन युवती की ओर से कोई जवाब नहीं आया.

उस व्यक्ति ने शोर मचाया तो उधर से गुजर रहे कुछ लोग वहां आ गए. उन्होंने जब झाडि़यों में घायल युवती को देखा तो उसे झाडि़यों से बाहर निकाला. युवती की गरदन से खून रिस रहा था.

युवती उन के गांव की नहीं थी, इसलिए वे उसे पहचान नहीं पाए. सभी परेशान थे कि युवती की ऐसी हालत किस ने की है. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस के 100 नंबर पर दे दी. यह बात 10 जुलाई, 2019 की सुबह करीब साढ़े 6 बजे की है.

चूंकि वह क्षेत्र थाना मलावन के अंतर्गत आता था, इसलिए खबर पा कर थाना मलावन के थानाप्रभारी विपिन कुमार त्यागी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस को युवती लहूलुहान अवस्था में तड़पती मिली. युवती के गले से बहा खून उस के कुरते तक फैला हुआ था. पुलिस ने वहां जुटी भीड़ से उस की पहचान कराने की कोशिश की लेकिन गांव वालों ने बताया कि युवती उन के गांव की नहीं है.

पुलिस ने युवती को गंभीर हालत में जिला अस्पताल में भरती करा दिया, जहां उपचार के दौरान उसे होश आ गया. पुलिस पूछताछ में उस ने बताया कि उस का नाम निशा है और वह एटा के थाना कोतवाली देहात क्षेत्र के बारथर निवासी अफरोज की बेटी है. फिलहाल वह अपने परिवार के साथ अलीगढ़ के जमालपुर हमदर्द नगर में रह रही थी.

उस ने पुलिस को खुल कर पूरा घटनाक्रम बताया कि 6 जुलाई, 2019 को उस के मांबाप, छोटे भाई व मामा ने अलीगढ़ में उसी की आंखों के सामने उस के प्रेमी आमिर उर्फ छोटू की हत्या कर दी थी.

प्रेमी की हत्या के बाद वह अपने परिजनों के खिलाफ हो गई. इस के बाद परिजनों ने उसे मारपीट कर घर में कैद कर लिया था. उन्हें शक था कि मैं हत्या का राज जाहिर कर बखेड़ा खड़ा कर सकती हूं, इसलिए मुझे गुमराह कर उसी रात मांबाप व मामा एटा के थाना मलावन के गांव बारथर ले आए, जहां मुझे 2 दिन तक रखा गया. मुझे किसी से भी मिलने नहीं दिया गया. फिर वापस अलीगढ़ ले जाने के बहाने रास्ते में ला कर गोली मार दी और मरा समझ कर झाड़ी में फेंक कर भाग गए. निशा ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह रोंगटे खड़े करने वाली थी.

डाक्टरों ने निशा को अलीगढ़ के जे.एन. मैडिकल कालेज के लिए रैफर कर दिया. पुलिस ने बहादुरपुर निवासी पंकज तिवारी की तरफ से निशा के पिता अफरोज, मां नूरजहां और मामा हफीज उर्फ इशहाक के खिलाफ भादंवि की धारा 307 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद आरोपियों को पकड़ने के लिए मलावन पुलिस ने बारथर गांव में दबिश दी. लेकिन वहां कोई आरोपी नहीं मिला. पुलिस ने वहां रहने वाले निशा के 2 चाचाओं से पूछताछ की लेकिन वे कोई जानकारी नहीं दे सके.

उधर 7 जुलाई की सुबह अलीगढ़ में भमोला में रेलवे ट्रैक के किनारे एक 25 वर्षीय युवक का शव मिलने से सनसनी फैल गई. सूचना पर अलीगढ़ के थाना सिविल लाइंस के इंसपेक्टर अमित कुमार पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए.

पुलिस को मृतक के गले व शरीर के अन्य भागों पर चोट के निशान मिले. पुलिस को अंदेशा था कि युवक रात के समय ट्रेन से यात्रा के दौरान रेलवे ट्रैक पर गिर गया, जिस से उस की मौत हो गई. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

पुलिस ने मृतक की तलाशी ली तो उस की पैंट की जेब से मिले आधार कार्ड के पते पर उस के घर वालों को सूचित किया. वह जमालपुर के हमदर्द नगर निवासी अकील अहमद का बेटा आमिर था.

सूचना मिलने पर उस के परिजन वहां पहुंच गए. अकील अहमद ने बताया कि शनिवार की रात को आमिर के फोन पर किसी का फोन आया था, जिस के बाद वह घर से निकल गया था. वह रात भर नहीं लौटा. फोन मिलाया लेकिन उस का फोन बंद आ रहा था.

सुबह उस का शव मिला. आमिर का मोबाइल गायब था. पिता ने इसे रेल हादसा नहीं बल्कि हत्या बताया. उन्होंने आमिर की हत्या की आशंका में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

आमिर की हत्या की गुत्थी सुलझाने में जुटी सिविल लाइंस पुलिस ने आमिर के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो एक नंबर ऐसा मिला जो अलीगढ़ के ही जमालपुर हमदर्द नगर की एक युवती का था. उस नंबर पर आमिर की सब से अधिक बातें होती थीं. प्रेम प्रसंग की जानकारी होने पर पुलिस ने छानबीन की तो घटना की परतें खुलती गईं.

अलीगढ़ पुलिस ने मृतक आमिर के घर वालों से विस्तृत जानकारी ली और इस मामले से संबंधित सारे तथ्य जुटा लिए. पुलिस ने हत्या में युवती निशा के घर वालों के शामिल होने के शक में 8 जुलाई को उन के घर पर दबिश दी लेकिन वहां ताला लटका मिला. इस के चलते पुलिस का शक पूरी तरह यकीन में बदल गया.

10 जुलाई की सुबह मलावन थाना पुलिस ने निशा को अलीगढ़ के जे.एन. मैडिकल कालेज में भरती कराया. इस से आमिर की हत्या व निशा को गोली मारने के तार आपस में जुड़ गए.

डाक्टरों ने बताया कि गोली निशा के गले के पार हो गई थी लेकिन रात भर बेहोशी की हालत में पड़ी रहने व अत्यधिक खून बह जाने से उस की हालत गंभीर हो गई थी. फिर भी वह बातचीत कर रही थी. पुलिस अधिकारियों ने निशा के बयान मजिस्ट्रैट के समक्ष दर्ज कराए. यह मामला अब तक 2 थाना क्षेत्र एटा के मलावन थाना और अलीगढ़ के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र से जुड़ गया था.

अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुलहरि ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सिविल लाइंस पुलिस को आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एटा भेजा. पुलिस टीम ने निशा के पिता अफरोज के बारथर गांव में दबिश दी लेकिन वहां दरवाजे पर ताला लटका था. इस के चलते अलीगढ़ पुलिस भी खाली हाथ वापस लौट आई.

12 जुलाई को मलावन पुलिस अलीगढ़ अस्पताल पहुंची. निशा की हालत गंभीर थी. उसे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था.  हालत में सुधार होने पर उस ने एक बार फिर अपने मातापिता और मामा पर गोली मार कर घायल करने का आरोप लगाया. निशा के बयानों के आधार पर मलावन पुलिस ने अलीगढ़ में दबिश दी, लेकिन मातापिता व मामा का कुछ पता नहीं चला.

पुलिस ने पूछताछ के लिए निशा के 2 रिश्तेदारों को हिरासत में ले लिया, जिन से पूछताछ में पुलिस के हाथ घटना से जुड़े कई अहम सबूत मिले. अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही निशा से मिलने कोई रिश्तेदार तक नहीं आया जबकि अलीगढ़ में उस के दूसरे मामा व अन्य रिश्तेदार रहते थे.

एसएसपी के आदेश पर अस्पताल में दोनों घटनाओं की एकमात्र चश्मदीद गवाह निशा की सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी. उस की सुरक्षा के लिए एक एसआई, 2 सिपाही और एक महिला सिपाही तैनात कर दिए गए.

पकड़े गए निशा के अब्बू अम्मी

हत्यारों की सुरागरसी के लिए मलावन पुलिस ने चारों ओर मुखबिरों का जाल फैला दिया था. 13 जुलाई की दोपहर को मलावन पुलिस को एक मुखबिर ने सूचना दी कि घटना के आरोपी नूरजहां और उस का पति अफरोज आसपुर से बागवाला जाने वाली रोड पर मौजूद हैं और कहीं जाने की फिराक में हैं.

इस सूचना पर थानाप्रभारी विपिन कुमार त्यागी ने पुलिस टीम के साथ उस जगह की घेराबंदी कर के अफरोज व उस की पत्नी नूरजहां को हिरासत में ले लिया. उन से वारदात में प्रयुक्त मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली गई. अफरोज की निशानदेही पर पुलिस ने घटना में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा और कारतूस का खोखा भी बरामद कर लिया.

केस का खुलासा होने पर एसएसपी एटा स्वप्निल ममगाई ने प्रैसवार्ता आयोजित की. पुलिस पूछताछ और पत्रकारों के सामने निशा के मातापिता ने आमिर की हत्या और अपनी बेटी निशा की हत्या की कोशिश करने की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

25 वर्षीय आमिर 7 भाइयों में दूसरे नंबर का था. उस का बड़ा भाई सलमान पिता अकील के साथ बिजली के काम में हाथ बंटाता था. जबकि आमिर टाइल्स लगाने का काम करता था. इसी दौरान उस की मुलाकात निशा के पिता अफरोज से हुई.

अफरोज राजमिस्त्री का काम करता था. इसी के चलते आमिर का निशा के घर आनाजाना शुरू हो गया. सुंदर और चंचल निशा को देखते ही आमिर उस की ओर आकर्षित हो गया. निशा की नजरें जब आमिर से टकरातीं तो वह मुसकरा देता. यह देख निशा नजरें झुका लेती थी.

आंखों ही आंखों में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. जब भी आमिर निशा के पिता को काम पर चलने के लिए बुलाने आता, उस दौरान उस की मुलाकात निशा से हो जाती. धीरेधीरे दोनों बातचीत करने लगे. दोनों ने एकदूसरे को मोबाइल नंबर भी दे दिए. दोनों की अकसर बातें होती रहतीं.

बेटी के प्रेम संबंधों की जानकारी होने के बाद अफरोज आमिर से नाराज और दूर रहने लगा था. इतना ही नहीं, वह निशा के साथ भी मारपीट कर चुका था. लेकिन प्रेमी युगल दुनिया से बेखबर अपनी ही दुनिया में मस्त रहते थे.

निशा उम्र के ऐसे मोड़ पर थी, जहां उस के कदम बहक सकते थे. इस के चलते अब घर वाले 24 घंटे उस पर नजर रखने लगे थे. बंदिशों के चलते प्रेमी युगल ने रात के समय घर पर ही मिलने की गुप्त योजना बनाई थी.

6 जुलाई, 2019 की रात अलीगढ़ में अफरोज के परिवार के सभी लोग छत पर सो रहे थे. लेकिन 20 वर्षीय निशा की आंखों की नींद तो उस के 25 वर्षीय प्रेमी आमिर ने चुरा ली थी. परिजनों की सख्ती के चलते आमिर का अफरोज के घर आना बंद हो गया था. इसलिए निशा ने चोरीछिपे आमिर को फोन कर के रात में घर आने के लिए कहा.

आमिर भी अपनी प्रेमिका के दीदार को तरस रहा था. निशा का फोन सुनने के बाद वह उस से मिलने के लिए उस के घर पहुंच गया. निशा ने उस के लिए घर का दरवाजा पहले ही खुला छोड़ दिया था.

निशा और आमिर कमरे में बैठ कर बातें करने लगे. इसी दौरान निशा के मामा हफीज उर्फ इशहाक को टौयलेट लगी तो वह छत से उठ कर नीचे जाने लगा. मगर सीढि़यों का दरवाजा बंद था. दरवाजा खटखटाने पर निशा ने काफी देर बाद दरवाजा खोला. पूछने पर निशा ने बताया कि वह भी पानी लेने छत से नीचे आई थी.

शक होने पर मामा ने आसपास की तलाशी ली तो कमरे में छिपा हुआ आमिर मिल गया. इस के बाद उस ने उसी समय अपने जीजा अफरोज, बहन नूरजहां और 14 वर्षीय नाबालिग भांजे को आवाज दे कर छत से बुला लिया. गुस्से में चारों ने लाठीडंडों से आमिर की पिटाई शुरू कर दी. फिर गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

प्रेमी के साथ मारपीट करने का निशा ने विरोध भी किया था. लेकिन हत्यारों के आगे उस की एक नहीं चली. निशा के सामने ही घर वालों ने उस के प्रेमी की हत्या कर दी थी, जिस का निशा को बहुत दुख हुआ.

अफरोज व हफीज ने शव को बोरी में बंद किया और उसे मोटरसाइकिल पर रख कर रात में ही ले गए. वे लोग भमोला रेलवे ट्रैक पर आमिर के शव को बोरी से निकाल कर फेंक आए.

पूरा घटनाक्रम निशा की आंखों के सामने घटित हुआ था. घर वालों ने सोचा कि कुछ दिन निशा यहां से बाहर रहेगी तो इस घटना को भूल जाएगी. मामला शांत होने पर उसे वापस ले आएंगे. यह सोच कर उसी रात मांबाप व मामा निशा को ले कर एटा के गांव बारथर के लिए मोटरसाइकिलों से रवाना हो गए.

बारथर में निशा गुमसुम सी रहती थी. उस की आंखों के सामने प्रेमी की पिटाई और हत्या का दृश्य घूमता रहता था. घर वाले उस से कुछ पूछते तो उस की आंखों से आंसू बहने लगते थे.

समझाने से नहीं मानी निशा

सभी लोग उसे 2 दिनों तक समझाते रहे और किसी को कुछ न बताने का दबाव डालते रहे. लेकिन निशा के बगावती तेवर देख कर वे लोग घबरा गए. उन्होंने सोचा कि यदि निशा जिंदा रही तो आमिर की हत्या के मामले में फंसा देगी. घर वालों की बात न मानने पर मांबाप व मामा ने निशा को भी ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इस के लिए फूलप्रूफ योजना बनाई गई. उस की हत्या करने से पहले 3 दिन तक वह लाश ठिकाने लगाने के लिए जगह ढूंढते रहे.

9 जुलाई, 2019 की रात 8 बजे हफीज उर्फ इशहाक व मांबाप 2 मोटरसाइकिलों पर यह कह कर निकले कि सभी लोग अलीगढ़ जा रहे हैं. निशा उन के साथ थी. एक मोटरसाइकिल पर निशा और उस की मां नूरजहां बैठी, जिसे पिता अफरोज चला रहा था. दूसरी पर निशा का 14 वर्षीय भाई बैठा, जिसे मामा हफीज चला रहा था.

गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर निकलने के बाद बहादुरपुर गांव में प्रवेश करते ही दोनों मोटरसाइकिलों ने रास्ता बदल दिया. मोटरसाइकिलों के नहर की पटरी की तरफ मुड़ने पर निशा ने कहा, ‘‘ये तो अलीगढ़ का रास्ता नहीं है अब्बू्. आप कहां जा रहे हैं?’’

लेकिन कोई कुछ नहीं बोला. निशा को शक हुआ लेकिन वह बेबस थी. अफरोज व मामा ने आगे जा कर एक जगह मोटरसाइकिलें रोक दीं. तब तक रात के 9 बज चुके थे.

नहर की पटरी पर पहुंचते ही निशा को मोटरसाइकिल से उतार लिया गया और पकड़ कर एक ओर ले जाने लगे. निशा को समझते देर नहीं लगी कि आज उस के साथ कुछ गलत होने वाला है. वह चिल्लाई, लेकिन रात का समय था और दूरदूर तक वहां कोई नहीं था.

पिता और मां ने निशा के हाथ पकड़ लिए. मामा ने तमंचे की नाल उस की गरदन पर सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही तीखी चीख के साथ वह वहीं गिर गई. उस के गिरते ही उसे झाडि़यों में फेंक कर सभी लोग वहां से चले गए.

हत्यारोपियों ने सोचा था कि बेटी को मार कर अलीगढ़ से दूर फेंक दिया है. उस की शिनाख्त नहीं हो सकेगी और पुलिस लावारिस मान कर लाश का अंतिम संस्कार कर देगी. आमिर और निशा दोनों की हत्या राज ही बनी रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. गले में गोली लगने के बाद भी निशा बच गई और  पुलिस को सच्चाई बता दी. अन्यथा औनर किलिंग की यह घटना हादसा बन कर रह जाती.

आमिर का परिवार निशा के साथ उस के रिश्ते से बेखबर था. आमिर के पिता अकील के मुताबिक आमिर ने कभी निशा के साथ रिश्ते को ले कर घर में जिक्र नहीं किया था. आमिर का रिश्ता अगलास थाना क्षेत्र की एक युवती के साथ तय हो गया था. घर वाले उस की शादी की तैयारियों में मशगूल थे. आमिर की मौत से परिवार गम में डूब गया.

निकाह तय होने के बाद आमिर घर वालों से खफा रहने लगा था. वह अलीगढ़ से दूर जा कर निशा के साथ अपनी अलग दुनिया बसाना चाहता था. आमिर और निशा ने इस की तैयारी भी कर ली थी. लेकिन इन का सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया.

उधर अलीगढ़ पुलिस ने आमिर की मौत को हादसा समझ कर मुकदमा दर्ज कर लिया था. हालांकि पुलिस इस की जांच कर रही थी, लेकिन निशा के जिंदा मिलने पर पूरी घटना साफ हो गई.

इस जानकारी के बाद अलीगढ़ पुलिस ने इस मामले को हत्या में दर्ज करने के साथ ही निशा के मामा हफीज व नाबालिग भाई को क्वासी के शहंशाहबाद इलाके वाले घर से गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में इंसपेक्टर अमित कुमार एसएसआई योगेश चंद्र गौतम, एसआई चमन सिंह, नितिन राठी, कांस्टेबल पंकज कुमार, जनक सिंह और ऋषिपाल सिंह यादव शामिल थे.

अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुलहरि ने प्रैसवार्ता में बताया कि आरोपी चालाकी कर के बचना चाहते थे. बेटी के प्रेमी की हत्या अलीगढ़ में और बेटी की हत्या एटा जिले में कर के उन्होंने पुलिस को गुमराह करने का प्रयास किया था. लेकिन उन की योजना निशा के बच जाने से धरी की धरी रह गई.

बहरहाल, हफीज, अफरोज व नूरजहां को आमिर के कत्ल व निशा की हत्या के प्रयास में जेल और नाबालिग को बालसुधार गृह भेज दिया गया. इस तरह एक प्रेमकहानी पूरी होने से पहले ही खत्म हो गई.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क में दिल हुआ बागी : प्रेमी ही बना अपराधी

गुरुवार 10 फरवरी, 2022 का दिन ढल चुका था. शाम के यही कोई 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के जिला भिंड के सिटी कोतवाली स्थित थाने के ड्यूटी अफसर थाने पहुंचे ही थे कि एक युवक बदहवास हालत में थाना परिसर में दाखिल हुआ. उस के बाल बिखरे हुए थे. कपड़ों पर भी खून के ताजा दाग लगे हुए थे.

पहरा ड्यूटी पर मुस्तैदी के साथ तैनात संतरी ने उसे रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सीधे ड्यूटी अफसर के सामने जा खड़ा हुआ और फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘सर, मेरा नाम रितेश शाक्य है. मैं भिंड जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर नौकरी करता हूं और गांधीनगर में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता हूं.

कुछ देर पहले मैं ने स्टाफ नर्स के पद पर काम करने वाली अपनी प्रेमिका नेहा की गोली मार कर हत्या कर दी है. उस की लाश नवीन आईसीयू वार्ड के स्टोर रूम में पड़ी हुई है. सर, क्योंकि मैं ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर के बड़ा अपराध किया है, अत: मुझे गिरफ्तार कर लीजिए.

युवक की बातें सुन कर ड्यूटी पर तैनात सुरजीत तोमर सन्न रह गए. वह आंखें फाड़े उस युवक को देखने लगे कि कहीं यह नशेड़ी या सनकी तो नहीं है जो इस तरह की बात कर रहा है.

हालांकि थाने में आ कर कोई इस तरह का मजाक करने का साहस तो नहीं कर सकता, इसलिए जब उन्होंने उस युवक को गौर से देखा तो मासूम सा दिखने वाला वह युवक काफी संजीदा लगा. इस का मतलब साफ था कि वह जो कुछ कह रहा है, सच है.

तोमर ने इस बात की जानकारी कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव को दी तो उन्होंने तुरंत उस युवक को हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तोमर ने तुरंत युवक को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी उस समय क्षेत्र में थे. सूचना पा कर वह तुरंत थाने पहुंच गए.

सुरजीत यादव ने आरोपी रितेश से पूछताछ करने के बाद अस्पताल परिसर में स्थित पुलिस चौकी पर तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत से बात की तो उन्होंने भी घटना की पुष्टि कर दी.

साथ ही यह भी बताया कि घटना के विरोध में अस्पताल की नर्सें और अन्य कर्मचारी अस्पताल में धरने पर बैठ गए हैं. धरने को ले कर लोगों में काफी आक्रोश है.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी शैलेंद्र सिंह को दी. इस के बाद एसपी के आदेश पर जिले के कई थानों की पुलिस जिला अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सब से पहले अस्पताल के स्टोर रूम में पहुंच कर स्टाफ नर्स नेहा की लाश अपने कब्जे में ली. वह वहां खून से लथपथ पड़ी थी.

उस की कनपटी के बाईं ओर गोली मारी गई थी. वह सलवारसूट के ऊपर सफेद रंग का एप्रिन पहने हुए थी, जो खून से भीगा हुआ था.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद नर्सों से पूछताछ करने पर यह मालूम हुआ कि मृतका आज ड्यूटी खत्म होने के बाद छुट्टी की एप्लीकेशन दे कर एक सप्ताह के लिए अपने मातापिता के पास अपना जन्मदिन मनाने के लिए मंडला जाने वाली थी. इस से पहले कि नेहा अवकाश पर मंडला के लिए रवाना हो पाती, यह घटना घट गई.

नेहा का जन्मदिन 14 फरवरी, 2022 को उस के गृहनगर मंडला में धूमधाम से मनाया जाने वाला था. स्टाफ नर्स की हत्या के बाद दिए जा रहे धरने से स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ा जाने और वहां से तनावपूर्ण हालात के बारे में सूचना पा कर एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान एसपी (सिटी) आनंद राय, एसडीएम उदय सिंह सिकरवार फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए थे.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. फोरैंसिक टीम का काम खत्म होते ही एसपी ने सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल सहित जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. देवेश शर्मा की मौजूदगी में घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण तो किया ही, साथ ही जिला अस्पताल में कार्यरत स्टाफ से पूछताछ कर नेहा के अतीत के बारे में जानकारी एकत्र की.

इस से पता चला कि जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत रितेश नेहा से प्रेम करता था और उस से मिलने उस के धर्मपुरी स्थित कमरे पर भी आताजाता रहता था. लेकिन आज उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ, किसी को पता नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने नेहा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और उस के परिजनों को भी इस घटनाक्रम से अवगत कराते हुए शीघ्र भिंड आने के लिए कहा.

वहीं इस हत्याकांड की विवेचना का दायित्व सीएसपी आनंद राय को सौंप दिया. इस से पहले जिला अस्पताल पुलिस चौकी में तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा आर्म्स एक्ट 25, 27, 54, 59 के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया.

जिला अस्पताल की नर्स नेहा चंदेला की हत्या के विरोध में नर्सों का दूसरे दिन भी धरना जारी रहा. इस से जिला अस्पताल के अंदर वार्डों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह लड़खड़ा गई थी. तमाम लोग अपने मरीज की वक्त पर देखभाल न होने की वजह से मरीज को बिना छुट्टी के ही बेहतर उपचार के लिए वहां से ग्वालियर ले कर रवाना हो गए.

हड़ताली नर्सों को समझाने के लिए एसडीएम उदय सिंह सिकरवार, सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल ने काफी जतन किया, लेकिन जब वे इस में सफल नहीं हुए तो उन्हें थकहार कर नर्सेज एसोसिएशन की प्रांतीय अध्यक्ष रेखा पवार को ग्वालियर वाहन भेज कर बुलाना पड़ा, जिस के बाद उन की समझाइश पर आक्रोशित नर्सें शाम 4 बजे काम पर लौटने के लिए राजी हुईं.

हालांकि इस से पहले जिला अस्पताल के द्वार पर ताला जड़े रहने से उपचार के अभाव में नयापुरा निवासी फिरोज खान की बेगम नाजिया की मृत्यु हो गई थी.

रोज की तरह 10 फरवरी, 2022 को भी नेहा चंदेला अपनी ड्यूटी पर पहुंच कर अपने कामकाज में जुट गई थी. शाम के कोई 5 बजे के करीब उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उसे हैरानी हुई कि ड्यूटी समाप्त होने को है इस वक्त कौन फोन कर रहा है.

लेकिन जब मोबाइल फोन की स्क्रीन पर चिरपरिचित नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुई कि रितेश कैसा बेशरम शख्स है जो उस के मना करने के बावजूद भी हाथ धो कर पीछे पड़ गया है.

फोन रिसीव न करना शिष्टाचारवश उसे उचित नहीं लगा, क्योंकि वह इस बात को भलीभांति जानती थी कि रितेश तब तक काल करता रहेगा, जब तक कि वह उस की काल रिसीव नहीं कर लेगी.

लिहाजा नेहा ने मन मार कर रितेश का फोन रिसीव कर लिया तो रितेश ने उस से अनुरोध किया, ‘‘आज शाम छुट्टी खत्म करने के बाद मंडला जाने से पहले प्लीज एक मर्तबा तुम मुझ से अकेले में मुलाकात कर लो. इस के बाद मुझे कभी भी तुम से बात करने का मौका नहीं मिलेगा.’’

नेहा असमंजस में पड़ गई कि क्या करे क्या न करे. रितेश शाक्य नेहा का बौयफ्रैंड था. वह भी उसी अस्पताल में वार्डबौय था.

6 दिसंबर को नेहा की सगाई गौरव पटेल के साथ तय हो जाने के बाद उस ने रितेश से न सिर्फ बातचीत करनी बंद कर दी थी, बल्कि मेलमुलाकात करनी भी लगभग बंद कर दी थी. नेहा ने रितेश से साफतौर पर कह दिया था कि मेरी सगाई हो जाने के बाद मैं अब तुम से किसी भी तरह का रिश्ता नहीं रखना चाहती.

नेहा का रिश्ता तय होने से खार खाए बैठे रितेश ने नेहा से मोबाइल पर गिड़गिड़ाते हुए कहा था कि आज मिलने के बाद आइंदा वह न तो कभी फोन करेगा और न कभी मिलने की कोशिश करेगा, यह उस का वायदा है.

जिस दिन से नेहा ने रितेश से बात करनी और अकेले में मेलमुलाकात का सिलसिला बंद किया था, उसी दिन से रितेश काफी तनाव में रहने लगा था. रितेश के अनुरोध पर नेहा ने ड्यूटी खत्म होने के बाद स्टोररूम में सिर्फ अंतिम बार बात करने के लिए इस शर्त के साथ अनुमति दे दी थी कि वह अपनी बात मनवाने के लिए किसी तरह की हठ नहीं करेगा.

ड्यूटी समाप्त होने से कुछ समय पहले शाम 5 बज कर 10 मिनट पर रितेश कमर में देशी पिस्टल लगा कर स्टोररूम में दाखिल हुआ. रितेश को देख कर नेहा ने रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है जल्दी करो, मुझे छुट्टी का एप्लीकेशन दे कर मंडला के लिए निकलना भी है.’’

वार्डबौय रितेश को इतनी तो समझ थी ही कि जिस नम्रता के साथ अपनी प्रेमिका से अंतिम बार मिलने के बहाने स्टोररूम में दाखिल हुआ है, उसी का आश्रय ले कर वह अपनी बात मनवाने के लिए नेहा पर दबाव बनाने का प्रयास करेगा.

बातचीत की शुरुआत में ऐसा हुआ भी. उस ने नेहा से एक बार फिर गुजारिश की कि वह उस का ज्यादा वक्त नहीं लेगा, सिर्फ 10 मिनट ही इत्मीनान के साथ बातचीत करेगा.

नेहा चूंकि जिला अस्पताल में ड्यूटी पर थी, इसलिए उसे किसी तरह का खतरा रितेश से महसूस नहीं हुआ. नेहा का सोचना था कि रितेश अंतिम बार उस से इत्मीनान के साथ बातचीत कर अपनी भड़ास निकाल लेगा तो उस की शादी करने वाली हठ खत्म हो जाएगी.

इस के बाद हमेशा के लिए उस का रितेश से पीछा छूट जाएगा. यही सब सोच कर उस ने रितेश को बातचीत करने के लिए अपनी सहमति दी थी. उस वक्त उसे इस बात का कतई अंदेशा नहीं था कि आज रितेश के सिर पर हैवानियत सवार है. और वह उसे चिरनिद्रा में सुलाने की मंशा से आ रहा है.

बातचीत का दौर शुरू करने से पहले जैसे ही रितेश ने कमर में लगा देसी पिस्टल निकाल कर मेज पर रखा तो नेहा को यह समझते जरा भी देर नहीं लगी कि उस ने रितेश को बातचीत के लिए बुला कर बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है.

नेहा के साथ बातचीत का दौर शुरू होते ही रितेश ने नेहा से दोटूक शब्दों में कहा, ‘‘तुम सिर्फ मेरी हो, मेरी ही रहोगी. मैं हरगिज किसी भी सूरत में तुम्हारी शादी गौरव पटेल के साथ नहीं होने दूंगा. बोलो, मेरे से शादी करोगी या नहीं?’’

नेहा ने रितेश से कहा, ‘‘तुम पहले से ही शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों के बाप भी हो. इसलिए मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. मेरे मांबाप ने जिस लड़के से मेरा रिश्ता तय किया है, मैं उसी के साथ शादी करूंगी.’’

इतना सुनते ही रितेश बुरी तरह बौखला गया. उस ने तत्काल मेज पर रखी देसी पिस्टल उठा कर उस की नाल का रुख नेहा की बाएं कनपटी की ओर कर के ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही नेहा कुरसी पर बैठे ही बैठे चिरनिद्रा में डूब गई.

गोली चलने की आवाज सुनते ही अस्पताल का स्टाफ स्टोर रूम की ओर गया तो नेहा को कुरसी पर लहूलुहान देख कर सभी के जैसे होश उड़ गए. वार्डबौय रितेश के हाथ में तमंचा देख कर उन्हें वाकया समझने में देर नहीं लगी. रितेश सभी को धमकाते हुए अस्पताल से निकल कर सिटी कोतवाली थाने में चला गया और आत्मसमर्पण कर दिया.

कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव ने मृतका के मातापिता का पता ले कर उस के घर वालों को मंडला फोन कर के घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर नेहा का बड़ा भाई करीबी रिश्तेदारों को ले कर दूसरे दिन भिंड पहुंच गया.

पुलिस ने रितेश के पिता को भी थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रितेश का नेहा नाम की नर्स से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस की वजह से रितेश की अपनी पत्नी से भी अनबन चल रही थी. वह नेहा से शादी करना चाह रहा था, लेकिन उन्हें इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि वह उक्त नर्स की हत्या कर देगा.

पूछताछ के बाद रितेश के पिता को घर जाने की अनुमति दे दी गई. पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वाले अंतिम संस्कार के लिए मंडला ले आए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत गोली लगने से हुई थी.

जांच में पुलिस को पता चला कि नेहा और रितेश के इश्क की नींव वर्ष 2018 में उस वक्त रखी गई, जब वह मंडला से भिंड जिला अस्पताल में बतौर स्टाफ नर्स की नौकरी करने आई थी.

उन दोनों की पहली मुलाकात अस्पताल परिसर में बनी चाय की गुमटी पर हुई थी. उस समय नेहा चाय पीने वहां आई थी, संयोग से तभी रितेश भी वहां पर चाय पीने आया हुआ था. चूंकि रितेश भी जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत था.

दरअसल, वह नेहा से काफी सीनियर था इसलिए नौकरी के साथ शुरुआती दौर में नर्स के कार्य के गुर सिखाने में उस ने नेहा की काफी मदद की थी.

नेहा उस के इस उपकार से काफी प्रभावित हुई थी. दोनों की जान पहचान होने के बाद उन के बीच मोबाइल पर बातचीत होनी शुरू हो गई. हालांकि रितेश की नौकरी 2009 में संविदा वार्डबौय के तौर पर भिंड के जिला अस्पताल में लगी थी. लेकिन उसे इस बात की उम्मीद थी कि निकट भविष्य में वह स्थाई हो जाएगा. नेहा से मोबाइल पर होने वाली लंबी बातचीत से उस की दोस्ती गहरी होती गई और मित्रता कब इश्क में बदल गई पता नहीं चला.

कहते हैं कि इश्क अंधा होता है वह जातपात के भेद को नहीं मानता. नेहा और रितेश अलगअलग जाति के थे, इस के बावजूद भी रितेश ने तय कर रखा था कि वे ताउम्र साथ रहेंगे और दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी.

नेहा से रोज मुलाकात कर के वह अपने भावी जीवन के सुनहरे सपने देखने लगा था. कहते हैं कि इश्क को कितना भी छिपाने का जतन किया जाए, वह छिपता नहीं है.

नेहा के साथ काम करने वाले स्टाफ से ले कर रितेश के घर वालों को पता चल गया था कि ड्यूटी खत्म होने के बाद रितेश नेहा को बाइक पर ले कर खुल्लम खुल्ला घूमता फिरता है.

रितेश नेहा के प्यार में इतना दीवाना हो गया था कि वह अपनी पत्नी प्रीति की भी उपेक्षा करने लगा था. इस बारे में प्रीति ने रितेश से बात की तो उस ने झिड़कते हुए साफतौर पर कह दिया था कि वह नेहा से सिर्फ प्यार ही नहीं करता है, बल्कि उसे अपने दिल की रानी बना चुका है. निकट भविष्य में वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने वाला है.

पति का यह फैसला सुनने के बाद प्रीति भी परेशान रहने लगी कि आखिर वह पति को कैसे समझाए. इस बात को ले कर उन दोनों का आपस में झगड़ा भी रहता था.

रितेश से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे भिंड जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

रितेश ने नासमझी और मूर्खतापूर्ण कदम उठा कर न सिर्फ नेहा को असमय मौत की नींद सुला दिया, बल्कि अपने सुनहरे भविष्य पर भी कालिख पोत ली. रितेश के जेल जाने के बाद उस के दोनों मासूम बच्चों सहित पत्नी के भविष्य पर भी ग्रहण लग गया है.

—पंकज द्विवेदी

बेवफाई का बेरहम बदला

कोटा के तुल्लापुर स्थित पुरानी रेलवे कालोनी के सेक्टर-3 के क्वार्टर नंबर 169 से गुनीषा नाम की 6 साल की बच्ची गायब हो गई. यह क्वार्टर श्रीकिशन कोली का था जो रेलवे कर्मचारी था.

6 वर्षीय गुनीषा श्रीकिशन की बेटी गीता की बेटी थी. रात को जब परिवार के सभी सदस्य गहरी नींद में थे, तभी कोई गुनीषा को उठा ले गया था. बच्ची के गायब होने से सभी हैरान थे, क्योंकि गीता अपनी बेटी गुनीषा के साथ दालान में सो रही थी. क्वार्टर का मुख्य दरवाजा बंद था. किसी के भी अंदर आने की संभावना नहीं थी.

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श्रीकिशन के क्वार्टर में शोरशराबा हुआ तो अड़ोस पड़ोस के सब लोग एकत्र हो गए. पता चला घर में 9 सदस्य थे, जिन में गुनीषा गायब थी. जिस दालान में ये लोग सो रहे थे, उस के 3 कोनों में कूलर लगे थे. रात में करीब एक बजे गीता की मां पुष्पा पानी पीने उठी तो उस ने गुनीषा को सिकुड़ कर सोते देखा. कूलरों की वजह से उसे ठंड लग रही होगी, यह सोच कर पुष्पा ने उसे चादर ओढ़ा दी और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई.

रात को साढ़े 3 बजे गीता जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बगल में लेटी गुनीषा को गायब देख चौंकी. उस ने मम्मीपापा को उठाया. उन का शोर सुन कर बाकी लोग भी उठ गए. गुनीषा को घर के कोनेकोने में ढूंढ लिया गया, लेकिन वह नहीं मिली. उन लोगों के रोने चीखने की आवाजें सुन कर पास पड़ोस के लोग भी आ गए.

मासूम बच्चियों के साथ हो रही दरिंदगी की सोच कर लोगों ने श्रीकिशन कोली को सलाह दी कि हमें तुरंत पुलिस के पास जाना चाहिए.

पड़ोसियों और घर वालों के साथ श्रीकिशन कोली जब रेलवे कालोनी थाने पहुंचा, तब तक सुबह के 4 बज चुके थे. गुनीषा की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अनीस अहमद ने इस की सूचना एसपी सुधीर भार्गव को दी और श्रीकिशन के साथ पुलिस की एक टीम घटनास्थल की छानबीन के लिए भेज दी.

अनीस अहमद ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देते हुए अलर्ट भी जारी करवा दिया. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने पूरे मकान को खंगाला. पुलिस टीम को श्रीकिशन की इस बात पर नहीं हुआ कि मकान का मुख्य दरवाजा भीतर से बंद रहते कोई अंदर नहीं आ सकता. लेकिन जब पुलिस की नजर पिछले दरवाजे पर पड़ी तो उन की धारणा बदल गई.

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                       गुनीषा

पिछले दरवाजे की कुंडी टूटी हुई थी. दरवाजा तकरीबन आधा खुला हुआ था. 3 कमरों वाले उस क्वार्टर में एक रसोई के अलावा बीच में दालान था. मकान की छत भी करीब 10 फीट से ज्यादा ऊंची नहीं थी. पूरे मकान का मुआयना करते हुए एसआई मुकेश की निगाहें बारबार पिछले दरवाजे पर ही अटक जाती थीं.

इसी बीच एक पुलिसकर्मी रामतीरथ का ध्यान छत की तरफ गया तो उस ने श्रीकिशन से छत पर जाने का रास्ता पूछा. लेकिन उस ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ऊपर जाने के लिए सीढि़यां नहीं हैं.

आखिर पुलिसकर्मी कुरसी लगा कर छत पर पहुंचा तो उसे पानी की टंकी नजर आई. उस ने उत्सुकतावश टंकी का ढक्कन उठा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. रस्सियों से बंधा बच्ची का शव टंकी के पानी में तैर रहा था.

बच्ची की लाश देख कर पुलिसकर्मी रामतीरथ वहीं से चिल्लाया, ‘‘सर, बच्ची की लाश टंकी में पड़ी है.’’

रामतीरथ की बात सुन कर सन्नाटे में आए एसआई मुकेश तुरंत छत पर पहुंच गए. यह रहस्योद्घाटन पूरे परिवार के लिए बम विस्फोट जैसा था. बालिका की हत्या और शव की बरामदगी की सूचना मिली तो थानाप्रभारी अनीस अहमद भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि बच्ची का गला किसी बनियाननुमा कपड़े से बुरी तरह कसा हुआ था. गुनीषा की हत्या ने घर में हाहाकार मचा दिया.

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इसी पानी की टंकी में मिला था गुनीषा का शव

यह खबर कालोनी में आग की तरह फैली. पुलिस टीम ने गुनीषा के शव को कब्जे में कर तत्काल रेलवे हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बच्ची की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस ने यह मामला धारा 302 में दर्ज कर लिया.

एडिशनल एसपी राजेश मील और डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने मौके पर पहुंचे अपराध विशेषज्ञों तथा डौग स्क्वायड टीम की भी सहायता ली. लेकिन ये प्रयास निरर्थक रहे. न तो अपराध विशेषज्ञ घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिंट ही उठा सके और न ही खोजी कुत्ते कोई सुराग ढूंढ सके.

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  एडिशनल एसपी राजेश मील

लेकिन एडिशनल एसपी राजेश मील को 3 बातें चौंकाने वाली लग रही थीं, पहली यह कि जब घर में पालतू कुत्ता था तो वह भौंका क्यों नहीं. इस का मतलब बच्ची का अपहर्त्ता परिवार के लिए कोई अजनबी नहीं था.

दूसरी बात यह थी कि गीता का अपने पति घनश्याम यानी गुनीषा के पिता से तलाक का केस चल रहा था. कहीं इस वारदात के पीछे घनश्याम ही तो नहीं था. श्रीकिशन कोली ने भी घनश्याम पर ही शक जताया. उस ने मौके से 3 मोबाइल फोन के गायब होने की बात बताई. राजेश मील यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उन मोबाइलों में क्या राज छिपा था कि किसी ने उन्हें गायब कर दिया.

गुरुवार 30 मई को पोस्टमार्टम के बाद बच्ची का शव घर वालों को सौंप दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची का गला घोंटा जाना ही मृत्यु का मुख्य कारण बताया गया.

जिस निर्ममता से बच्ची की हत्या की गई थी, उस का सीधा मतलब था कि किसी पारिवारिक रंजिश के चलते ही उस की हत्या की गई थी. पुलिस अधिकारियों के साथ विचारविमर्श के बाद एसपी सुधीर भार्गव ने एडिशनल एसपी राजेश मील के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़, रोहिताश्व कुमार और सीआई अनीस अहमद को शामिल किया गया.

ANIS AHMED, THANADHIKARI

            सीआई अनीस अहमद

पूरे घटनाक्रम का अध्ययन करने के बाद एएसपी राजेश मील ने हर कोण से जांच करने के लिए पहले श्रीकिशन के उन नाते रिश्तेदारों को छांटा, जो परिवार के किसी भलेबुरे को प्रभावित कर सकते थे. साथ ही इलाके के ऐसे बदमाशों की लिस्ट भी तैयार की, जिन की वजह से परिवार के साथ कुछ अच्छाबुरा हो सकता था.

पुलिस ने गीता से उस के पति  घनश्याम से चल रहे विवाद के बारे में पूछा तो वह सुबकते हुए बोली, ‘‘वह शराब पी कर मुझ से मारपीट करता था. इसलिए मुझे उस से नफरत हो गई थी. मैं तलाक दे कर उस से अपना रिश्ता खत्म कर लेना चाहती थी.’’

उस का कहना था कि उस की वजह से मैं पहले ही अपनी एक औलाद खो चुकी हूं. यह बात संदेह जताने वाली थी, इसलिए डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ ने फौरन पूछा, ‘‘क्या घनश्याम पहले भी तुम्हारे बच्चे की हत्या कर चुका है?’’

गीता ने जवाब दिया तो हिंगड़ हैरान हुए बिना नहीं रहे. उस ने बताया, ‘‘साहबजी, उस के साथ लड़ाई झगड़े के दौरान मेरा गर्भपात हो गया था.’’

पुलिस संभवत: इस विवाद की छानबीन कर चुकी थी, इसलिए हिंगड़ ने पूछा कि तुम ने तो घनश्याम के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा रखा है. गीता जवाब देने के बजाए इधरउधर देखने लगी तो हिंगड़ को लगा कि कुछ न कुछ ऐसा है, जिसे छिपाया जा रहा है.

थाने में चली लगातार 12 घंटे की पुलिस पूछताछ में श्रीकिशन यह तो नहीं बता पाया कि गुनीषा के गले में कसा पाया गया बनियान किस का था, लेकिन 2 बातें पुलिस के लिए काफी अहम थीं. पहली, जब आरोपी गुनीषा को उठा कर ले जा रहा था तो उस ने चीखने चिल्लाने की कोशिश की होगी. लेकिन उस की आवाज किसी को सुनाई क्यों नहीं दी?

इस सवाल पर श्रीकिशन सोचते हुए बोला, ‘‘साहबजी, आवाज तो जरूर हुई होगी, लेकिन अपहरण करने वाले ने बच्ची का मुंह दबा दिया होगा. यह भी संभव है कि हलकी फुलकी चीख निकली भी होगी, तो 3 कूलरों की आवाज में सुनाई नहीं दी होगी.’’

पुलिस ने श्रीकिशन से पूछा कि मौके से जो 3 मोबाइल गायब हुए, वे किस किस के थे. इस बात पर श्रीकिशन ने भी हैरानी जताई. फिर उस ने बताया कि उस का, गीता का और उस के बेटे राजकुमार के मोबाइल गायब थे.

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पुलिस अधिकारियों ने घटना के समय घर में मौजूद सभी परिजनों के अलावा अन्य नातेरिश्तेदारों, इलाके में नामजद अपराधियों सहित करीब 100 लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई.

संदेह के घेरे में आए गीता के पति घनश्याम की टोह लेने के लिए थानाप्रभारी अनीस अहमद गुरुवार 30 मई को तड़के उडि़या बस्ती स्थित उस के घर जा पहुंचे. उस का पता भी श्रीकिशन कोली ने ही बताया था. पुलिस जब घनश्याम तक पहुंची तो वह अपने घर में सो रहा था.

इतनी सुबह आधीअधूरी नींद से जगाए जाने और एकाएक सिर पर खड़े पुलिस दस्ते को देख कर घनश्याम के होश फाख्ता हो गए. अजीबोगरीब स्थिति से हक्काबक्का घनश्याम बुरी तरह सन्नाटे में आ गया. उस के घर वाले भी जाग गए. घनश्याम के पिता मच्छूलाल और परिवार के लोगों ने ही पूछने का साहस जुटाया, ‘‘साहब, आखिर हुआ क्या? क्या कर दिया घनश्याम ने?’’

उसे जवाब देने के बजाए थानाप्रभारी अनीस अहमद ने उसे डांट दिया. मच्छूलाल ने एक बार अपने रोआंसे बेटे की तरफ देखा, फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘साहब, आप बताओ तभी तो पता चलेगा?’’

‘‘गुनीषा बेटी है न घनश्याम की?’’ थानाप्रभारी ने कड़कते स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा सुबह 3 बजे उस की हत्या कर के यहां आ कर सो गया.’’

मच्छूलाल तड़प कर बोला, ‘‘क्या कहते हो साहब, घनश्याम तो रात एक बजे ही दिल्ली से आया है. वहीं नौकरी करता है. खानेपीने के बाद हमारे साथ बातें करते हुए सुबह 4 बजे सोया था.’’

थानाप्रभारी अनीस अहमद के चेहरे पर असमंजस के भाव तैरने लगे. लेकिन उन का शक नहीं गया. उन्होंने घनश्याम को थाने चलने को कहा. घनश्याम के साथ तमाम लोग थाने आए.

भीड़ में उन्हें दिलीप नामक शख्स ऐतबार के काबिल लगा. उस का कहना था, ‘‘साहब, खूनखराबा घनश्याम के बस का नहीं है. यह तो अपनी बेटी से इतना प्यार करता था कि उस के बारे में बुरा करना तो दूर, सोच भी नहीं सकता. वैसे भी यह दिल्ली रेलवे में नौकरी करता है. कल रात ही तो आया था. नहीं साहब, किसी ने आप को गलत सूचना दी है.’’

घनश्याम के पक्ष की बातें सुन कर अनीस अहमद को उस की डोर ढीली छोड़ना ही बेहतर लगा. उन्होंने उसे अगले दिन सुबह आने को कह कर जाने दिया.

शुक्रवार 31 मई को घनश्याम नियत समय पर थाने पहुंच गया. इस से पहले कि पुलिस उस से कुछ पूछती, उस की आंखों में आंसू आ गए, ‘‘साहब, गीता से तो मेरी नहीं पटी पर अपनी बेटी गुनीषा से मुझे बहुत प्यार था. मुझे गीता से अलग होने का कोई दुख नहीं था लेकिन मुझे बेटी गुनीषा की बहुत याद आती थी. इतना घिनौना काम तो मैं…’’

‘‘तुम्हारे बीच अलगाव कैसे हुआ?’’ पूछने पर घनश्याम कुछ देर जमीन पर नजरें गड़ाए रहा. उस ने डबडबाई आंखों को छिपाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘सर, छोटी तनख्वाह में बड़े अरमान कैसे पूरे हो सकते हैं?’’

कोटा शहर में रेलवे कर्मचारियों के लिए बनाए गए आवास 2 कालोनियों में बंटे हुए हैं. अधिकारी और उन के मातहत कर्मचारी नई कालोनी में रहते हैं. यह कालोनी कोटा रेलवे जंक्शन से सटी हुई है. नई कालोनी करीब 2 रकबों में फैली है. जबकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नजदीक की तुल्लापुर इलाके में आवास आवंटित किए गए हैं.

रेलवे स्टेडियम के निकट बनी इस कालोनी को पुरानी रेलवे कालोनी के नाम से जाना जाता है. लगभग 300 क्वार्टरों वाली इस कालोनी में क्वार्टर नंबर 169 में श्रीकिशन रह रहा था. श्रीकिशन की पत्नी का नाम पुष्पा था.

इस दंपति के गीता और मीनाक्षी 2 बेटियों के अलावा 2 बेटे राजकुमार और राहुल थे. श्रीकिशन की संगीता और जैमा नाम की 2 बहनें भी थीं. दोनों बहनें विवाहित थीं. लेकिन घटना के दिन श्रीकिशन के घर आई हुई थीं.

लगभग 25 साल की सब से बड़ी बेटी गीता विवाहित थी. लापता हुई 6 वर्षीया गुनीषा उसी की बेटी थी. करीब 7 साल पहले गीता का विवाह तुल्लापुरा के निकट ही उडि़या बस्ती में रहने वाले मच्छूलाल के बेटे घनश्याम से हुआ था.

घनश्याम दिल्ली स्थित तुगलकाबाद रेलवे स्टेशन पर नौकरी कर रहा था. घनश्याम और गीता का दांपत्य जीवन करीब 4 साल ही ठीकठाक चला. बाद में उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. पतिपत्नी के रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि नौबत तलाक तक आ पहुंची.

गीता पिछले 3 सालों से अपने पिता के पास कोटा में ही रह रही थी. तलाक का मामला कोटा अदालत में विचाराधीन था. गीता ने कोटा के महिला थाने में घनश्याम के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला भी दर्ज करा रखा था.

छानबीन के इस दौर में पुलिस के सामने 3 बातें आईं. इन गुत्थियों को सुलझा कर ही  हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. पहली यह कि आरोपी जो भी था, घर के चप्पे चप्पे से वाकिफ था. ऐसा कोई परिवार का सदस्य भी हो सकता था और परिवार से बेहद घुलामिला व्यक्ति भी, जिस निर्दयता से मासूम बच्ची की हत्या की गई थी, निश्चित रूप से वह गीता से गहरी नफरत करता होगा.

गीता ज्यादा कुछ बोलने बताने की स्थिति में नहीं थी. वह सदमे में थी और बारबार बेहोश हो रही थी. वैवाहिक विवाद की स्थिति में घनश्याम सब से ज्यादा संदेहास्पद पात्र था. पुलिस ने हर कोण और हर तरह से उस से पूछताछ की लेकिन वह कहीं से भी अपराधी नहीं लगा. आखिर उसे इस हिदायत के साथ जाने दिया गया कि वह पुलिस को बताए बिना कोटा से बाहर न जाए.

राजेश मील को यह बात बारबार कचोट रही थी कि गीता जवान है, कमोबेश खूबसूरत भी है. लेकिन ऐसा क्या था कि अपनी बसीबसाई गृहस्थी छोड़ कर पिता के पास रह रही थी. पति घनश्याम के बारे में जो जानकारी पुलिस ने जुटाई थी, उस से उस का हत्या का कोई ताल्लुक नहीं दिखाई दे रहा था.

इस बीच पुलिस को यह भी पता चल चुका था कि वह सीधासादा नेकनीयत का आदमी था. इतना सीधा कि उसे कोई भी घुड़की दे कर डराधमका सकता था.

सवाल यह था कि दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए क्या पतिपत्नी के बीच कोई तीसरा भी था? ऐसे किस्से की तसदीक तो मोबाइल ही हो सकती है. लिहाजा राजेश मील ने फौरन सीआई को हिदायत देते हुए कहा, ‘‘अनीस, गीता के गायब हुए मोबाइल का नंबर है न तुम्हारे पास? फौरन उस की काल डिटेल्स ट्रैस करने का बंदोबस्त करो.’’

अनीस अहमद फौरन इस काम पर लग गए. काल ट्रैसिंग के नतीजे वाकई चौंकाने वाले थे. अनीस अहमद ने जो कुछ बताया, उस ने एसपी राजेश मील की आंखों में चमक पैदा कर दी. गीता के मोबाइल की मौजूदगी दिल्ली के तुगलकाबाद में होने की तसदीक कर रही था. साफ मतलब था कि आरोपी दिल्ली के तुगलकाबाद में मौजूद था.

सीआई अनीस अहमद के नेतृत्व में दिल्ली पहुंची पुलिस टीम ने जो जानकारी जुटाई, उस के मुताबिक आरोपी का नाम कालूचरण बेहरा था. कालूचरण को पुलिस ने घनश्याम के पुल प्रह्लादपुर स्थित घर के पास वाले मकान से धर दबोचा.

कालूचरण घनश्याम का पड़ोसी निकला. गीता के दिल्ली में रहते हुए कालूचरण से प्रेमिल संबंध बन गए थे. घनश्याम और गीता के बीच अलगाव की बड़ी वजह यह भी थी. दिल्ली गई पुलिस टीम ने घनश्याम के मकान सहित अन्य जगहों से कई महत्त्वपूर्ण सुराग एकत्र किए. कालूचरण दिल्ली स्थित कानकोर में औपरेटर था.

पुलिस कालूचरण बेहरा को दिल्ली से हिरासत में ले कर सोमवार 3 जून को कोटा पहुंची. यहां शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की गिरफ्तारी दिखा कर मंगलवार 4 जून को न्यायालय में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर ले लिया. पुलिस की शुरुआती पूछताछ में मासूम गुनीषा की हत्या को ले कर कालूचरण ने जो खुलासा किया, वह चौंकाने वाला था.

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                पुलिस हिरासत में अभियुक्त कालूचरण

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में घनश्याम के पड़ोस में रहने के दौरान ही कालूचरण के घनश्याम की पत्नी गीता से प्रेमिल संबंध बन गए थे. गीता के कोटा चले जाने के बाद भी कालू कोटा आ कर गीता से मिलताजुलता रहा. लेकिन पिछले कुछ दिनों से गीता के किसी अन्य युवक से संबंध बन गए थे. नतीजतन उस ने कालू से कन्नी काटनी शुरू कर दी थी.

कालू ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस ने उसे बुरी तरह दुत्कार दिया था. बेवफाई और अपमान की आग में सुलगते कालू ने गीता को सबक सिखाने की ठान ली. इस रंजिश की बलि चढ़ी मासूम गुनीषा.

पड़ोसी होने के नाते घनश्याम और कालू के बीच अच्छा दोस्ताना था. पतिपत्नी के बीच अकसर होने वाले झगड़े में कालू गीता का पक्ष लेता था. नतीजतन गीता का झुकाव कालू की तरफ होने लगा. गीता का रंगरूप बेशक गेहुआं था, लेकिन भरे हुए बदन की गीता के नैननक्श काफी कटीले थे.

कालू से निकटता बढ़ी तो गीता पति की अनुपस्थिति में कालू के कमरे पर भी आने लगी. यहीं दोनों के बीच अनैतिक संबंध बने. अनैतिक संबंध बनाने के लिए कालू ने उसे अपने प्यार का भरोसा दिलाते हुए कहा था कि वह शादी नहीं करेगा और सिर्फ उसी का हो कर रहेगा.

दिल्ली में पतिपत्नी के बीच झगड़े इस कदर बढे़ कि गीता ने घनश्याम को छोड़ने का फैसला कर लिया और बेटी गुनीषा को ले कर कोटा आ गई.

पिता के लिए बेटी का साझा दुख था. इसलिए उस ने भी बेटी का साथ दिया. यह 3 साल पहले की बात है. इस बीच गीता ने घनश्याम पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए तलाक का मुकदमा दायर कर दिया था. यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है.

गीता के कोटा आ जाने के बावजूद कालू के साथ उस के संबंध बने रहे. कालू अकसर कोटा आता रहता था और 4-5 दिन गीता के घर पर ही रुकता था. कालू ने गीता को खुश रखने के लिए पैसे लुटाने में कोई कसर नहीं रखी थी.

पिछले करीब 6 महीने से कालू को अपने और गीता के रिश्तों में कुछ असहजता महसूस होने लगी. दिन में 10 बार फोन करने वाली गीता न सिर्फ उस का फोन काटने लगी थी, बल्कि अपने फोन को व्यस्त भी दिखाने लगी थी. कालू ने गीता की बेरुखी का सबब जानने की जुगत लगाई तो पता चला कि उस की माशूका किसी और के हाथों में खेल रही है. उस ने अपने रसूखों से इस बात की तसदीक भी कर ली.

हालात भांपने के लिए जब वह कोटा पहुंचा तो गीता में पहले जैसा जोश नहीं था. उस ने कालू को यहां तक कह दिया कि अब वह यहां न आया करे. गुस्से में उबलता हुआ कालू दिल्ली लौटा तो इसी उधेड़बुन में जुट गया कि गीता को कैसे उस की बेवफाई का ताजिंदगी याद रखने वाला सबक सिखाए. उस ने गीता की बेटी और पूरे परिवार की चहेती गुनीषा को मारने का तानाबाना बुन लिया.

अपनी योजना को अंजाम देने के लिए वह 29 मई की रात को ट्रेन से कोटा आया. घर का चप्पाचप्पा उस का देखाभाला था.  30 मई की देर रात वह करीब 2 बजे पीछे के रास्ते से घर में घुसा और सब से पहले उस ने तख्त पर पड़े तीनों मोबाइल कब्जे में किए. फिर गीता के पास सोई गुनीषा को चद्दर समेत ही उठा लिया.

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नींद में गाफिल गुनीषा कुनमुनाई भी, लेकिन कालू ने उस का मुंह बंद कर दिया. कूलरों के शोर में वैसे भी गुनीषा की कुनमुनाहट दब गई. गुनीषा का गला घोंट कर टंकी में डालने की योजना वह पहले ही बना चुका था. छत पर जाने का रास्ता भी उसे पता था.

गुनीषा को दबोचे हुए वह छत पर पहुंचा. अलगनी से उठाई गई बनियान से उस का गला घोंट कर कालू ने उसे पानी की टंकी में डाल दिया फिर वह जिस खामोशी से आया था, उसी खामोशी से बाहर निकल गया. मोबाइल इस मंशा से उठाए थे, ताकि इस बात की तह तक पहुंचा जा सके कि गीता के आजकल किस से संबंध थे. लेकिन मोबाइल ही उस की गिरफ्तारी का कारण बन गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार में हुई संतकबीर नगर की नेत्री की हत्या

भीड़ समझ नहीं पा रही थी कि रोते रोते आरती राजभर ने कमरे की ओर इशारा क्यों किया? आखिर वहां  क्या हो सकता था? कुछ गांव वाले हिम्मत कर के कमरे की ओर बढ़े तो कमरे के अंदर का दिल दहला देने वाला नजारा देख कर कांप उठे.

फर्श पर चारों ओर खून फैला था और नंदिनी राजभर (Nandini Rajbhar) अपने ही खून में सनी पड़ी थी. किसी ने नंदिनी का कत्ल कर दिया था, वह मर चुकी थी. दिनदहाड़े नंदिनी (Nandini Rajbhar Murder) की हत्या की खबर सुनते ही वहां भीड़ जमा होने लगी थी.

हत्या किसी आम इंसान की नहीं हुई थी, बल्कि एक राजनीतिक पार्टी (Political Party) की प्रदेश महासचिव की हुई थी. देखते ही देखते पलभर में यह खबर जंगल में आग की तरह समूचे संतकबीर नगर (Sant Kabir Nagar)  जिले में फैल गई थी. उसी भीड़ में से किसी ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी.

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संतकबीर नगर जिले की कोतवाली थाने के अंतर्गत एक गांव पड़ता है (Digha) डीघा. इस गांव में अधिकांश लोग राजभर बिरादरी के रहते हैं. इसी गांव में बालकृष्ण राजभर अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पतिपत्नी के अलावा 2 बेटे थे, जो परदेश में जा कर कमाते थे.

क्षेत्र में बालकृष्ण की गिनती मजबूत हैसियतदार और बड़े काश्तकारों में होती थी. लेकिन उन का रहन सहन मध्यमवर्गीय परिवार जैसा ही था. उन्हें देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह दौलतमंद इंसान होंगे. इन्हीं की बहू थी नंदिनी राजभर, जो घरपरिवार और गांव समाज का नाम रोशन कर रही थी.

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28 वर्षीय नंदिनी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (महिला प्रकोष्ठ) की प्रदेश महासचिव थी. नंदिनी जितनी सौम्य और गंभीर थी, उतनी ही खूबसूरत भी थी. किसी जन्नत की हूर से कम नहीं थी वह. उसे अपनी खूबसूरती पर बहुत नाज और गुरूर भी था.

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खैर, वह राजनीति की एक नवोदित नेत्री थी, जो अपनी मेहनत की बदौलत वटवृक्ष का रूप ले रही थी. उस के गांव समाज को उस पर नाज था. क्योंकि नंदिनी गांव की बहू होने के साथ दबे कुचले और मजलूमों का एक मजबूत सहारा बनी हुई थी तो एक बुलंद आवाज भी.

गांव के किसी भी व्यक्ति को कोई तकलीफ होती तो वह एक पैर उन के साथ खड़ी रहती थी. तभी तो गांव वाले उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते थे और उसे एक मंत्री बनते हुए देखना चाहते थे.

खैर, बात 10 मार्च, 2024 की शाम की है, जब नंदिनी की सास आरती देवी बाहर काम से अपने घर लौटी थीं. उस समय शाम के 4 बजे थे. बाहर का दरवाजा आपस में भिड़का हुआ था. जब वह पहुंचीं तो दरवाजे पर खड़ी हो कर ही बहू नंदिनी को 3-4 बार आवाज दी. भीतर से कोई आवाज नहीं आई.

उन्हें लगा कि शायद बहू दरवाजा बंद कर सो रही है. कई बार आवाज देने के बाद जब बहू नंदिनी ने दरवाजा नहीं खोला तो आरती देवी ने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया. धक्का देते ही दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुल गए.

थकी प्यासी आरती देवी बाहर से आई थीं. जोरों की प्यास और भूख भी लगी थी, इसलिए धड़धड़ाती हुई वह कमरे में दाखिल हुईं. उन्हें बहू पर गुस्सा आ रहा था कि इतनी देर से वह उसे बुला रही हैं, लेकिन वो है कि जवाब ही नहीं दे रही. आखिर कर क्या रही है?

बरामदे से होती हुई वह सीधा बहू नंदिनी के कमरे में दाखिल हुईं. कमरे में पूरी तरह से अंधेरा था. वह दरवाजे पर खड़ी हो गईं और वहीं खड़ी हो कर भीतर का जायजा लेने लगीं. भीतर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था तो दरवाजे के दाईं ओर लगे बोर्ड से स्विच औन किया.

स्विच औन होते ही कमरा रोशनी से भर गया. आरती देवी ने कमरे में इधर उधर देखा. फिर जैसे ही उन की नजर बेड के नीचे फर्श पर पड़ी तो उन के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकल पड़ी. वह चीखती हुई उल्टे पांव बाहर की ओर भागीं.

आरती देवी की चीख सुन कर पासपड़ोस के लोग वहां जमा हुए थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक से उन्हें क्या हो गया जो इतनी जोरजोर से चीख रही थीं. वह कमरे की ओर इशारा कर गश खा कर जमीन पर दोहरी होती हुई गिर पड़ीं.

मौके पर जमा लोग जब कमरे में पहुंचे तो वहां आरती देवी की बहू नंदिनी राजभर लहूलुहान हालत में मृत पड़ी थी. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि दिनदहाड़े किस ने घर में घुस कर उन्हें चाकू से गोद डाला.

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. आननफानन में पुलिस कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी कोतवाली थाने के इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल को देते हुए फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंचने को कह दिया.

घटना की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल आननफानन में फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का जायजा लिया. मृतका नंदिनी राजभर की खून में लथपथ लाश का मुआयना करने लगे.

इस बीच घटना की सूचना सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के अध्यक्ष और योगी सरकार में मंत्री बने ओमप्रकाश राजभर को मिल गई थी. सूचना मिलते ही वह भी स्तब्ध रह गए कि नंदिनी अब इस दुनिया में नहीं रही. खुद को संभालते हुए उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं को घटना की जानकारी दी और मौके पर पहुंचने का आदेश दिया.

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                    लोगों को सांत्वना देते अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर

अध्यक्ष ओमप्रकाश का आदेश मिलते ही पार्टी कार्यकर्ता मौके पर जुट गए और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इधर इंसपेक्टर पटेल घटनास्थल की जांच करने में जुटे हुए थे. उन्होंने बड़ी बारीकी से मौके का जायजा लिया. हत्यारों ने चाकू से गला रेत कर नंदिनी की हत्या की थी. शरीर पर चाकू के कई निशान मौजूद थे.

क्राइम सीन स्टडी करने से यही लग रहा था जैसे हत्यारा मृतका से काफी खार खाए हुए था, तभी तो उस ने चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उसे निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया था. यही नहीं हत्यारे ने किसी भारी चीज से उसके सिर पर भी वार किया था, क्योंकि मृतका के सिर के पिछले वाले हिस्से पर चोट के निशान मौजूद थे और वहां का खून उस समय भी हलका हलका गीला था.

कमरे की छानबीन करने पर सभी चीजें अपनी जगह पर तरीके से रखी मिलीं, बस मृतका का मोबाइल फोन ही कहीं नहीं दिख रहा था. आशंका जताई जा रही थी कि सबूत छिपाने के लिए हत्यारे उसे अपने साथ ले गए होंगे, ताकि पुलिस उस तक आसानी से पहुंच न सके.

एक बात तो साफ जाहिर हो रही थी कि हत्यारों का निशाना सिर्फ नंदिनी ही थी. इसीलिए उन्होंने घर के किसी भी सामान को हाथ नहीं लगाया था. इस बीच फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर पहुंच कर घटनास्थल की जांच कर ली थी. टीम फर्श पर पड़े खून को एक छोटी डिब्बी में तेज चाकू से खुरच कर रख रही थी. मौके से उन्हें कोई फिंगरप्रिंट नहीं मिला था.

पुलिस और फोरैंसिक टीम अपनी काररवाई में जुटी थी. तब तक डीएम महेंद्र सिंह तंवर, एसपी सत्यजीत गुप्ता, एएसपी शशिशेखर सिंह, सांसद प्रवीण निशाद सहित कई थानों की पुलिस मौके पर पहुंच चुकी थी. पुलिस लाश का पंचनामा भर कर जैसे ही पोस्टमार्टम के लिए बौडी ले कर जाने के लिए तैयार हुई, तभी गांव वाले गुस्से में आ गए और लाश को हाथ लगाने से पुलिस को मना कर दिया.

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इधर गुस्साए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के कार्यकर्ता अपनी नेता नंदिनी राजभर के हत्यारों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. उन का कहना था कि जब तक नंदिनी के हत्यारों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक पुलिस लाश को यहां से ले कर नहीं जा सकती. आंदोलनकारियों और गांव वालों ने गांव के ही एक यादव परिवार पर अपने नेता की हत्या किए जाने का आरोप लगाया.

ससुर के हत्यारों से जुड़े नंदिनी केस के तार

दरअसल, 10 दिन पहले 29 फरवरी, 2024 की सुबह खलीलाबाद रेलवे लाइन के पास नंदिनी के चचिया ससुर बालकृष्ण राजभर की संदिग्ध अवस्था में लाश पाई गई थी. पहली नजर में यह मामला हत्या का लग रहा था, लेकिन परिस्थितियां आत्महत्या की ओर भी संकेत कर रही थीं. लेकिन उन के आत्महत्या किए जाने की बात किसी के गले से नहीं उतर था.

इस के पीछे का तर्क यह था कि बालकृष्ण ने गांव के श्रवण यादव, धु्रवचंद यादव और पन्ने यादव से अपनी जमीन का सौदा किया था. यादव बंधुओं ने जमीन की कीमत पहले से कम आंकी थी और पैसे देते वक्त तय रकम में से भी औनेपौने दाम दे कर जमीन पर कब्जा जमा लिया.

अपने साथ हुए धोखे से बालकृष्ण राजभर काफी दुखी थे. उन्होंने अपनी बात बहू नंदिनी से बता कर न्याय की गुहार भी लगाई. चूंकि नंदिनी की पहुंच सत्ता के गलियारों तक थी. उन्हें यकीन था कि उन की बहू राजनीतिक दबाव बना कर उन के पैसे दिलवा देगी. नंदिनी ने चचेरे ससुर को विश्वास भी दिलाया था कि वह उन के साथ अन्याय नहीं होने देगी, यादव बंधुओं से बकाए की रकम दिलवा कर ही दम लेगी.

अभी ये सलाहमशविरा हो ही रहा था कि 29 फरवरी को बालकृष्ण के आत्महत्या करने की बात सामने आ गई. उन के आत्महत्या करने पर किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था.

नंदिनी ने श्रवण यादव, धु्रवचंद यादव और पन्ने यादव के खिलाफ कोतवाली थाने में ससुर बालकृष्ण राजभर की हत्या किए जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भेजने के लिए पुलिस पर दबाव डालने लगी थी. तीनों आरोपियों में से एक श्रवण यादव गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. बाकी दोनों आरोपी फरार थे.

इस के ठीक 10वें दिन दिनदहाड़े नंदिनी की भी हत्या हो गई. इसीलिए ग्रामीणों ने नंदिनी की हत्या का आरोप यादव बंधुओं पर लगा कर उन्हें तत्काल गिरफ्तार करने की मांग की. इस के बाद ही मृतका का शव वहां से ले जाने की बात कही थी.

पुलिस, ग्रामीण और आंदोलनकारियों के बीच मान मनौवल का खेल करीब 6 घंटों तक चलता रहा. एसपी सत्यजीत गुप्ता ने आक्रोशित लोगों को विश्वास दिलाया कि उन के साथ न्याय होगा. दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वो कितने भी ताकतवर क्यों न हों, उन्हें उन के किए की सजा कानून से मिल कर ही रहेगी.

फिर एसपी गुप्ता ने मंत्री ओमप्रकाश राजभर से बात कर न्यायिक कार्य में सहयोग करने की अपेक्षा रखी. मंत्री राजभर ने कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि उन के प्रिय नेता के साथ न्याय होगा और हत्यारे पकड़े जाएंगे. पुलिस को उन का काम करने दें. तब कहीं जा कर रात 11 बजे आंदोलनकारियों ने पुलिस को पोस्टमार्टम के लिए शव ले जाने दिया.

इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल ने लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए संतकबीर नगर जिला अस्पताल भिजवा दी और मृतका की सास आरती देवी की लिखित तहरीर पर 5 आरोपियों आनंद यादव, धु्रव यादव, श्रवण यादव, पन्ने यादव और निर्मला यादव के खिलाफ हत्या की धारा 302 का मुकदमा दर्ज कर उन की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी थी. उक्त नामजद आरोपियों में श्रवण यादव, बालकृष्ण राजभर की संदिग्ध मौत के आरोप में पहले से ही जेल में बंद था.

अगले दिन 11 मार्च को पुलिस ने अन्य नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर सुबहसुबह दबिश दी थी. मौके से धु्रव यादव, पन्ने यादव और निर्मला पकड़ लिए गए. चौथा आरोपी आनंद यादव फरार हो गया था.

आनंद ही नंदिनी को धमकी दे रहा था कि वह बालकृष्ण की मौत की अदालत में पैरवी करना बंद कर दे, चुपचाप अपनी राजनीति करे, वरना इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है.

कुल मिलाजुला कर पुलिस ने मृतका नंदिनी राजभर हत्याकांड में नामजद 5 आरोपियों में से 4 को गिरफ्तार कर घटना की इतिश्री कर दी थी. गिरफ्तार चारों आरोपियों से कोतवाली थाने में सख्ती से पूछताछ जारी थी.

काल डिटेल्स से क्यों घूम गई जांच

आरोपी रट्टू तोते की तरह एक ही जवाब दिए जा रहे थे कि नंदिनी की हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. उन्होंने उसे नहीं मारा है, लेकिन पुलिस आरोपियों के जवाब को सिरे से नकार रही थी और अपने हिसाब से जितनी सख्ती बरती जानी थी, उतनी सख्ती से पेश आने में किसी किस्म का गुरेज नहीं कर रही थी.

क्योंकि बालकृष्ण राजभर की मौत में यादव परिवार का तार जुड़ चुका था, ऊपर से नंदिनी को धमकी भी इसी परिवार मिल रही थी, इसलिए पुलिस अपनी जगह कायम थी कि नंदिनी की हत्या में इसी परिवार का हाथ है. धमकी आनंद यादव दे रहा था, जो मौके से फरार था.

परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से आईने की तरह घटना साफ हो चुकी थी कि नंदिनी राजभर की हत्या यादव परिवार ने की है. लेकिन फिर भी पुलिस को पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था जैसे घटना आईने की तरह साफ होते हुए भी साफ नहीं है. मसलन यह कि उन की नजरों से कुछ छूट रहा है. जो दिख रहा है, आधा सच है, फिर आधा सच और क्या हो सकता है?

खैर, पुलिस इधर जांच के दौरान ही कहानी में एक नया मोड़ आया. डीआईजी (रेंज बस्ती) आर.के. भारद्वाज ने इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल से घटना में हुई लापरवाही के एवज में थानेदारी छीन ली थी और उन्हें अपने दफ्तर से अटैच कर दिया था. इस लापरवाही की जांच एएसपी शशिशेखर सिंह को सौंप दी गई थी.

साथ ही हत्याकांड की जांच और भूमाफियाओं के द्वारा जबरन जमीन लिखवाने वालों को चिह्नित कर काररवाई करने लिए एसआईटी गठित की गई थी और इस की मौनिटरिंग खुद डीआईजी रेंज आर.के. भारद्वाज ने अपने हाथों में ले ली थी, ताकि काररवाई की पलपल की सूचना उन्हें मिलती रहे.

पुलिस अपनी जांच की दिशा सही मान कर उसी दिशा की ओर फूंकफूंक कर कदम बढ़ा रही थी. जांच को और तेज करते हुए उस ने सब से पहले मृतका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो तमाम नंबरों में 2 ऐसे नंबर मिले जो संदिग्ध थेे.

उन दोनों नंबरों में से एक नंबर से नंदिनी की लंबी लंबी और सब से ज्यादा बातें हुुई थीं, जबकि दूसरे नंबर पर थोड़ा कम. घटना वाले दिन भी घटना से कुछ देर पहले उसी पहले वाले नंबर से नंदिनी की बात हुई थी. इसीलिए पुलिस ने उस नंबर की मृतका के पति विजय से पहचान कराई, लेकिन वह नंबर पहचान नहीं पाया.

पुलिस ने दोनों नंबरों की डिटेल्स निकलवाई. एक नंबर आनंद यादव के नाम से आवंटित था, जिस पर थोड़ी बातचीत हुई थी जबकि दूसरा नंबर किसी साहुल राजभर का था, जिस से मृतका (नंदिनी) की लंबीलंबी बातें होती रहती थीं.

पुलिस ने विजय को थाने बुला कर साहुल के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि साहुल पड़ोसी तेनू राजभर का साला है. उस की बहन की शादी उस से हुई है और वो यहीं (डीघा गांव) रहता है. यहीं रह कर मैडिकल स्टोर चलाता है.

साहुल राजभर के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के बाद कोतवाली पुलिस ने विजय को घर भेज दिया. पुलिस नंदिनी और साहुल के बीच के रिश्ते को खंगालने में जुट गई थी. तकनीकी साक्ष्य और मुखबिर के जरिए पुलिस को दोनों के रिश्तों के बारे में चौंकाने वाली एक ऐसी सूचना मिली, जिस से उस के पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई.

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            आरोपी साहुल राजभर

पता चला कि नंदिनी और साहुल के बीच करीब एक साल से प्रेम संबंध चल रहा था. किसी बात को ले कर इन दिनों उन के बीच अनबन चल रही थी और घटना वाले दिन भी दोनों के बीच फोन पर काफी विवाद हुआ था. इस जानकारी ने घटना की दिशा ही मोड़ दी. मसलन नंदिनी की हत्या जमीनी विवाद में नहीं, बल्कि प्रेम प्रसंग में हुई थी.

ये जानकारी इंसपेक्टर शैलेष सिंह ने कप्तान सत्यजीत गुप्ता को दी तो वह भी चौंक गए थे. उन्होंने शैलेष सिंह को कुछ जरूरी हिदायत दे कर जल्द से जल्द केस वर्कआउट करने का आदेश दिया.

इंसपेक्टर सिंह ने ऐसा ही करने का वायदा किया और आगे की प्रक्रिया में जुट गए थे. उन्होंने मृतका नंदिनी और साहुल के रिश्तों की बाबत जानकारी जुटाई तो मुखबिर की बात सच निकली. फिर क्या था, 21 मार्च, 2024 की सुबह डीघा गांव में उस के बहनोई के घर से साहुल को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए कोतवाली थाने ले आए.

प्रेमी ने क्यों की नंदिनी की हत्या

करीब 2 घंटे चली कड़ी पूछताछ के बाद साहुल ने अपना अपराध कुबूल कर लिया कि उसी ने अपनी प्रेमिका नंदिनी की हत्या की थी. उस ने हत्या की वजह का विस्तार करते हुए आगे बताया कि उस ने उस के साथ धोखा किया था, इसलिए उसे मौत के घाट उतार दिया. और फिर पूरी कहानी विस्तार से पुलिस के सामने बयान करता चला गया.

12 दिनों से जो नंदिनी हत्याकांड विवादों के चक्रव्यूह में उलझा हुआ था, पुलिस ने उस की गुत्थी सुलझा ली थी. आननफानन में उसी दिन (21 मार्च) शाम 3 बजे एसपी सत्यजीत गुप्ता ने पुलिस लाइंस में प्रैसवार्ता का आयोजन किया और पत्रकारों के सामने नंदिनी की हत्या का खुलासा कर दिया.

उस के बाद पुलिस ने आरोपी साहुल राजभर को अदालत में पेश किया. अदालत ने आरोपी साहुल को 14 दिनों की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजने का आदेश दिया. आरोपी ने प्रेमिका नंदिनी की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की थी, वह कुछ इस तरह थी.

27 वर्षीय साहुल राजभर की बहन ममता की शादी डीघा गांव निवासी तेनू राजभर के साथ हुई थी. बीते कई सालों से साहुल अपने बहनोई तेनू के घर रहता था. वहीं रह कर वह एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करता था. पढ़ालिखा तो था ही, ऊपर से काफी जीनियस भी था. उस के घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. अच्छी नौकरी की तलाश में वह यहांवहां हाथपैर मार रहा था. लेकिन उसे अच्छी नौकरी नहीं मिली. जब उस के मनमुताबिक अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी कर ली थी, क्योंकि उसे पैसों की सख्त जरूरत थी.

बात घटना से करीब डेढ़ साल पहले की है. नंदिनी राजभर नाम की एक बेहद खूबसूरत युवती ने साहुल की जिंदगी में दबे पांव कदम रखा तो जैसे उस को जीवन जीने के लिए संजीवनी मिल गई हो. नीरस हो चुके जीवन में बहार आ चुकी थी.

एक दिन की बात है. सुबह का समय था. दुकान पर उस समय कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी. एकदो ग्राहक ही दवा लेने पहुंचे थे. उस समय वह दुकान पर अकेला ही था और स्टाफ अभी आए नहीं थे, आने वाले ही थे. खैर, जैसे ही वह एक ग्राहक को दवा देने के लिए पलटा, एक मीठी आवाज उस के कानों के परदे से टकराई, ”एक्सक्यूज मी, भाईसाहब.’’

आवाज सुनते ही साहुल के कदम वहीं रुक गए, जहां वह खड़ा था. पलट कर सामने देखा तो पिंक साड़ी में गोरीचिट्टी और बला की खूबसूरत एक युवती खड़ी थी और उस ने ही आवाज दी थी. उस खूबसूरत युवती को देख कर एक पल के लिए जैसे उस ने अपनी सुधबुध खो दी थी, ”आ रहा हूं दवा ले कर, एक सेकेंड रुकिए.’’ साहुल ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

”कोई बात नहीं, मैं वेट करती हंू. आप इन को दवा दे दीजिए.’’ युवती ने भी मुसकराते हुए जवाब दिया.

वह युवती कोई और नहीं नंदिनी राजभर थी. कुछ पल बाद वह दवा ग्राहक को दे कर वह नंदिनी की ओर मुखातिब हुआ. उस समय नंदिनी दुकान पर अकेली थी.

”जी मैम, बताएं मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ साहुल ने नंदिनी की ओर देखते हुए कहा.

”ये दवा चाहिए थी मुझे.’’ नंदिनी ने दवा की परची उस की तरफ बढ़ा कर पूछा, ”क्या ये दवा मिल सकती है, अर्जेंट था?’’

साहुल ने परची ले कर उस में लिखी दवा का नाम पढ़ा और दवा निकाल कर उसे दे दी. दवा ले कर नंदिनी वहां से चली गई. साहुल अपलक उसे तब तक निहारता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हुई थी.

ऐसे पनपा नंदिनी और साहुल का प्यार

नंदिनी दवा ले कर चली तो गई थी, लेकिन साहुल उस की खूबसूरती के तीर से घायल हो गया था. पहली ही नजर में साहुल नंदिनी को दिल दे बैठा. अभी भी उस की आंखों के सामने नंदिनी का मुसकराता हुआ गोरा मुखड़ा थिरक रहा था. कुछ पल सोचने के बाद उस के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी और मुसकराता हुआ वह अपने काम में जुट गया.

उस दिन के बाद साहुल हर सुबह नंदिनी के आने की राह ताकता रहता था और दिल से पुकारता था कि उस की एक झलक दिख जाए. जिस दिन नंदिनी का दीदार नहीं होता था, साहुल दिन भर बेचैन रहता था. जैसे ही उसे देखता, उस की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहता था. मन नाच उठता था उस का.

दवा की दुकान पर आतेजाते नंदिनी और साहुल दोनों के बीच एक मधुर परिचय बन गया था. साहुल उसे जान भी गया था और पहचान भी गया था. जिस दिन से उस ने नंदिनी को देखा था और उस की सलोनी सूरत दिल में घर कर गया था, उस दिन के बाद से उस ने उस के बारे में सारी जानकारियां जुटानी शुरू कर दी थीं.

साहुल जान चुका था कि वह एक बड़ी पौलिटिकल हस्ती है और सुहेलदेव भारतीय समाजवादी पार्टी की प्रदेश महासचिव भी. उसी गांव में वह भी रहती है, जिस गांव में वह रहता है. वह यही सोचता था कि नंदिनी भले ही किसी ब्याहता हो, इस से उसे कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है. अब से नंदिनी पर सिर्फ मेरा हक होगा, सिर्फ मेरा, किसी भी कीमत पर उसे पा कर रहूंगा. चाहे इस के लिए कोई भी कुरबानी क्यों न देनी पड़े, पीछे नहीं हटूंगा.

नंदिनी कोई दूधपीती बच्ची नहीं थी, जो साहुल के मंसूबे को नहीं समझती. वह जान चुकी थी कि साहुल उसे प्यार करता है. धीरेधीरे वह भी उस की ओर आकर्षित होती चली गई. बातचीत करने के लिए दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. मोबाइल नंबर मिल जाने के बाद दोनों फोन पर प्यार भरी लंबीलंबी बातें करते थे. फोन पर ही दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी किया था.

आहिस्ता आहिस्ता दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. साहुल प्रेमिका नंदिनी को ले कर उस के साथ प्यार का घरौंदा बसाने का आंखों में सुनहरा सपना संजोने लगा. कहते हैं खुली आंखों से दिन में देखे गए सपने कभी पूरे नहीं होते. फिर ये सपने सिर्फ साहुल के थे, जिसे खुली आंखों से वह दिन में देख रहा था.

प्यार जब परवान चढ़ा तो प्रेमिका अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए प्रेमी साहुल से पैसों की डिमांड करने लगी. ये प्यार प्यार नहीं था, बल्कि नंदिनी के लिए साहुल एक एटीएम मशीन बन कर रह गया था. जब चाहती प्यार का कार्ड डाल कर कैश कर लेती थी.

दिल की गहराइयों से प्यार करने वाला, प्यार में अंधा साहुल उसे पैसे दे देता था. पैसों के साथसाथ उस ने 25 हजार रुपए का सैमसंग  कंपनी का एक मोबाइल फोन भी उसे गिफ्ट किया था.

नंदिनी जितनी खूबसूरत दिखती थी, उस का प्यार उतना ही खूबसूरत छलावा था. दिखावे के तौर पर वह साहुल से प्यार का नाटक कर रही थी, उस के दिल को खिलौना समझ कर खेल रही थी. ऐसे नहीं वह राजनीति का चमकता हुआ सितारा कहलाती थी. उस की झोली में साहुल जैसे न जाने कितने आशिक पड़े रहे होंगे, जो उस के हुस्न के दीवाने थे, लेकिन उस ने किसी को भी घास नहीं डाली थी.

वह बखूबी जानती थी कि इश्क के राज से जब परदा उठेगा तो समाज में कितनी बदनामी होगी. मुंह दिखाना दुश्वार हो जाएगा. लोग क्या कहेंगे? वह तो बस उस के लिए एक टाइम पास है, जब तक दिल चाहेगा, इश्क का छलावा करती रहूंगी, फिर उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह अपने जिंदगी से निकाल फेंकूंगी.

ऐसी सोच रखती थी नंदिनी अपने प्रेमी साहुल के लिए, जबकि साहुल तो उस के प्यार में मजनू बना फिरता था. उस की रगों में बहने वाले खून की धारा में नंदिनी समाई हुई थी. दिल के हरेक पन्ने पर प्रेमिका नंदिनी का नाम लिख दिया था. उसी के नाम से सुबह होती थी तो रात भी उसी के नाम से.

नंदिनी के प्यार से साहुल की जिंदगी महक उठी थी. उसे क्या पता था कि जिसे वह प्यार की देवी समझ रहा है, जिस पर अपनी जान छिड़कता है, उस के दिल में उस के लिए कितना प्यार है, वह तो जहरीली नागिन से कम नहीं है.

साहुल को क्यों हुआ प्रेमिका पर शक

बहरहाल, साहुल के प्रति नंदिनी का प्यार धीरेधीरे कम होता गया और अब उसे देख कर वह रास्ता बदल लेती थी. उस से पीछा छुड़ाने के लिए वह दूरियां भी बनाती गई और तो और साहुल उसे जब भी काल करता, उस का फोन व्यस्त मिलता था.

यह देख उसे गुस्सा भी आता और परेशान भी रहता था. उस के मन में नंदिनी के प्रति शक का बीज अंकुरित हो गया था. उसे यह शक हो चला था कि नंदिनी का किसी और के साथ चक्कर चल रहा है. तभी तो वह इतनी लंबी लंबी बातचीत करने में व्यस्त रहती है. इसीलिए उस से दूरियां बढ़ानी शुरू की है.

नंदिनी के इस बर्ताव से साहुल टूट गया था. वह उस से मिल कर अनजाने में हुए सारे गिलेशिकवे दूर करना चाहता था, लेकिन नंदिनी उस से बात करने के लिए तैयार नहीं थी, न ही फोन पर और न ही मिल कर. उस की इस हरकत से साहुल और भी गुस्से से पागल हो गया था.

इसी गुस्से में आ कर उस ने उसे जो भी गिफ्ट, पैसे और मोबाइल फोन दिया था, उसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बनाने लगा था. नंदिनी ने उसे कुछ भी वापस लौटाने से इंकार कर दिया था. फिर साहुल ने उसे गिफ्ट वापस न लौटाने पर बुरा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी भी दी.

कल तक नंदिनी पर जान छिड़कने वाला प्रेमी साहुल अब बदले की आग में धधकने लगा था. उसे हर कीमत पर पाना चाहता था. उस ने यह भी निश्चय कर लिया था कि उस का दिल कोई खिलौना नहीं था, जिसे जब तक चाहा खेला और जब जी भर गया तो तोड़ दिया. अगर वह मेरी नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. उसे तो मरना ही होगा.

इश्क की आग में जलता हुआ प्रेमी साहुल 10 मार्च, 2024 को दोपहर करीब 2 बजे नंदिनी के घर पहुंचा. उसे पता था उस समय घर पर उस के सिवाय कोई और नहीं है. घर के सभी सदस्य अपनेअपने काम से बाहर गए हुए थे.

दोपहर का समय होने की वजह से घर के आसपास गहरा सन्नाटा भी फैला हुआ था. नंदिनी घर पर अपने कमरे में अकेली बैड पर लेटी हुई थी. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. साहुल ने इधर उधर देखा, जब उसे कोई नहीं दिखाई दिया तो दबे पांव कमरे में घुस गया और भीतर से दरवाजे पर सिटकनी चढ़ा दी ताकि कमरे में कोई आ न सके.

दरवाजे की सिटकनी बंद होने की आवाज सुन कर नंदिनी उठ बैठी. देखा तो सामने साहुल खड़ा था. यह देख कर नंदिनी गुस्से से चिल्ला उठी, ”तुम्हारी इतनी हिम्मत कि बिना आवाज लगाए मेरे कमरे में घुस आए! तुम जानते नहीं कि मैं कौन हूं और तुम्हारी इस बदतमीजी की क्या सजा दे सकती हूं?’’

”जानता हूं, अच्छी तरह जानता हूं, तुझ जैसी दो टके की औरतों को. जिस का न तो कोई ईमान होता है और न कोई धर्म.’’ साहुल आग की दरिया में धधकता हुआ आगे बोला, ”आज मैं तुम से कोई बहस करने नहीं आया हूं. अपने प्यार का हिसाब करने आया हूं. मेरे सवालों का सीधासीधा जवाब दे दो, मैं यहां से चुपचाप चला जाऊंगा…’’

”और जवाब न दिया तो…’’ नंदिनी बीच में बात काटती हुई बोली.

इतना सुनते ही साहुल को गुस्सा आ गया. उस ने आव देखा न ताव, कमर में खोंसा फलदार चाकू निकाला. चाकू देख कर नंदिनी बुरी तरह डर गई और जान बचाने के लिए बैड से कूद कर नीचे भागी.

लेकिन अपने मजबूत हाथों से साहुल ने उसे पकड़ लिया और फर्श पर पटक दिया और फलदार चाकू से शरीर पर ताबड़तोड़ वार तब तक करता रहा, जब तक उस की मौत न हुई. इतने पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने बैड के पास रखे हथौड़े से उस के सिर पर वार किया.

जब उसे यकीन हो गया कि नंदिनी मर चुकी है तो उस ने उस का फोन और हथौड़ा अपने कब्जे में लिया और चुपके से दरवाजा खोल कर फुरती से बाहर निकला और तेजी से चला गया. न तो उसे आते हुए किसी ने देखा था और न ही जाते हुए.

इधर कमरे के फर्श पर नंदिनी अपने ही खून में सनी मरी पड़ी थी. शाम 4 बजे जब उस की सास आरती देवी बाहर से घर लौटीं तो बहू को खून में सना देखा.

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कहानी लिखे जाने तक पुलिस ने प्यार में धोखा खाए प्रेमी साहुल राजभर के खिलाफ आरोपपत्र अदालत में दाखिल करने की तैयारी कर ली थी. हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू और हथौड़ा भी पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर बरामद कर लिया. साहुल जेल में बंद अपने किए की सजा काट रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति की दूरी ने बढ़ाया प्रेमी से प्यार

घटना मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र की है. 17 मार्च,  2019 की दोपहर 2 बजे का समय था. इस समय अधिकांशत:  घरेलू महिलाएं आराम करती हैं. ग्वालियर के पुराने हाईकोर्ट इलाके में स्थित शांतिमोहन विला की तीसरी मंजिल पर रहने वाली मीनाक्षी माहेश्वरी काम निपटाने के बाद आराम करने जा रही थीं कि तभी किसी ने उन के फ्लैट की कालबेल बजाई. घंटी की आवाज सुन कर वह सोचने लगीं कि पता नहीं इस समय कौन आ गया है.

बैड से उठ कर जब उन्होंने दरवाजा खोला तो सामने घबराई हालत में खड़ी अपनी सहेली प्रीति को देख कर वह चौंक गईं. उन्होंने प्रीति से पूछा, ‘‘क्या हुआ, इतनी घबराई क्यों है?’’

‘‘उन का एक्सीडेंट हो गया है. काफी चोटें आई हैं.’’ प्रीति घबराते हुए बोली.

‘‘यह तू क्या कह रही है? एक्सीडेंट कैसे हुआ और भाईसाहब कहां हैं?’’ मीनाक्षी ने पूछा.

‘‘वह नीचे फ्लैट में हैं. तू जल्दी चल.’’ कह कर प्रीति मीनाक्षी को अपने साथ ले गई.

मीनाक्षी अपने साथ पड़ोस में रहने वाले डा. अनिल राजपूत को भी साथ लेती गईं. प्रीति जैन अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 208 में अपने पति हेमंत जैन और 2 बच्चों के साथ रहती थी.

हेमंत जैन का शीतला माता साड़ी सैंटर के नाम से साडि़यों का थोक का कारोबार था. इस शाही अपार्टमेंट में वे लोग करीब साढ़े 3 महीने पहले ही रहने आए थे. इस से पहले वह केथ वाली गली में रहते थे. हेमंत जैन अकसर साडि़यां खरीदने के लिए गुजरात के सूरत शहर आते जाते रहते थे. अभी भी वह 2 दिन पहले ही 15 मार्च को सूरत से वापस लौटे थे.

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मीनाक्षी माहेश्वरी डा. अनिल राजपूत को ले कर प्रीति के फ्लैट में पहुंची तो हेमंत की गंभीर हालत देख कर वह घबरा गईं. पलंग पर पड़े हेमंत के सिर से काफी खून बह रहा था. वे लोग हेमंत को तुरंत जेएएच ट्रामा सेंटर ले गए, जहां जांच के बाद डाक्टरों ने हेमंत को मृत घोषित कर दिया.

पुलिस केस होने की वजह से अस्पताल प्रशासन द्वारा इस की सूचना इंदरगंज के टीआई को दे दी. इस दौरान प्रीति ने मीनाक्षी को बताया कि उसे एक्सीडेंट के बारे में कुछ नहीं पता कि कहां और कैसे हुआ.

प्रीति ने बताया कि वह अपने फ्लैट में ही थी. कुछ देर पहले हेमंत ने कालबेज बजाई. मैं ने दरवाजा खोला तो वह मेरे ऊपर ही गिर गए. उन्होंने बताया कि उन का एक्सीडेंट हो गया. कहां और कैसे हुआ, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया और अचेत हो गए. हेमंत को देख कर मैं घबरा गई. फिर दौड़ कर मैं आप को बुला लाई.

अस्पताल से सूचना मिलते ही थाना इंदरगंज के टीआई मनीष डाबर मौके पर पहुंचे तो प्रीति जैन ने वही कहानी टीआई मनीष डाबर को सुनाई, जो उस ने मीनाक्षी को सुनाई थी.

एक्सीडेंट की कहानी पर संदेह

टीआई मनीष डाबर को लगा कि हेमंत की कहानी एक्सीडेंट की तो नहीं हो सकती. इस के बाद उन्होंने इस मामले से एसपी नवनीत भसीन को भी अवगत करा दिया. एसपी के निर्देश पर टीआई अस्पताल से सीधे हेमंत के फ्लैट पर जा पहुंचे.

उन्होंने हेमंत के फ्लैट की सूक्ष्मता से जांच की. जांच में उन्हें वहां की स्थिति काफी संदिग्ध नजर आई. प्रीति ने पुलिस को बताया था कि एक्सीडेंट से घायल हेमंत ने बाहर से आ कर फ्लैट की घंटी बजाई थी, लेकिन न तो अपार्टमेंट की सीढि़यों पर और न ही फ्लैट के दरवाजे पर धब्बे तो दूर खून का छींटा तक नहीं मिला. कमरे में जो भी खून था, वह उसी पलंग के आसपास था, जिस पर घायल अवस्था में हेमंत लेटे थे.

बकौल प्रीति हेमंत घायलावस्था में थे और दरवाजा खुलते ही उस के ऊपर गिर पड़े थे, लेकिन पुलिस को इस बात का आश्चर्य हुआ कि प्रीति के कपड़ों पर खून का एक दाग भी नहीं था.

टीआई मनीष डाबर ने इस जांच से एसपी नवनीत भसीन को अवगत कराया. इस के बाद एडीशनल एसपी सत्येंद्र तोमर तथा सीएसपी के.एम. गोस्वामी भी हेमंत के फ्लैट पर पहुंच गए. सभी पुलिस अधिकारियों को प्रीति द्वारा सुनाई गई कहानी बनावटी लग रही थी.

प्रीति के बयान की पुष्टि करने के लिए टीआई ने फ्लैट के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज अपने कब्जे में लिए. फुटेज की जांच में चौंकाने वाली बात सामने आई. पता चला कि घटना से करीब आधा घंटा पहले हेमंत के फ्लैट में 2 युवक आए थे. दोनों कुछ देर फ्लैट में रहने के बाद एकएक कर बाहर निकल गए थे.

उन युवकों के चले जाने के बाद प्रीति भी एक बार बाहर आ कर वापस अंदर गई और कपड़े बदल कर मीनाक्षी को बुलाने तीसरी मंजिल पर जाती दिखी.

मामला साफ था. सीसीटीवी फुटेज में घायल हेमंत घर के अंदर या बाहर आते नजर नहीं आए थे. अलबत्ता 2 युवक फ्लैट में आते जाते जरूर दिखे थे. प्रीति ने इन युवकों के फ्लैट में आने के बारे में कुछ नहीं बताया था. जिस की वजह से प्रीति खुद शक के घेरे में आ गई.

जो 2 युवक हेमंत के फ्लैट से निकलते सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए थे, पुलिस ने उन की जांच शुरू कर दी. जांच में पता चला कि उन में से एक दानाखोली निवासी मृदुल गुप्ता और दूसरा सुमावली निवासी उस का दोस्त आदेश जैन था.

दोनों युवकों की पहचान हो जाने के बाद मृतक हेमंत की बहन ने भी पुलिस को बताया कि प्रीति के मृदुल गुप्ता के साथ अवैध संबंध थे. इस बात को ले कर प्रीति और हेमंत के बीच विवाद भी होता रहता था.

यह जानकारी मिलने के बाद टीआई मनीष डाबर ने मृदुल और आदेश जैन के ठिकानों पर दबिश दी लेकिन दोनों ही घर से लापता मिले. इतना ही नहीं, दोनों के मोबाइल फोन भी बंद थे. इस से दोनों पर पुलिस का शक गहराने लगा.

लेकिन रात लगभग डेढ़ बजे आदेश जैन अपने बडे़ भाई के साथ खुद ही इंदरगंज थाने आ गया. उस ने बताया कि मृदुल ने उस से कहा था कि हेमंत के घर पैसे लेने चलना है. वह वहां पहुंचा तो मृदुल और प्रीति सोफे के पास घुटने के बल बैठे थे जबकि हेमंत सोफे पर लेटा था.

इस से दाल में कुछ काला नजर आया, जिस से वह वहां से तुरंत वापस आ गया था. उस ने बताया कि वह हेमंत के घर में केवल डेढ़ मिनट रुका था. आदेश के द्वारा दी गई इस जानकारी से हेमंत की मौत का संदिग्ध मामला काफी कुछ साफ हो गया.

दूसरे दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. रिपोर्ट में बताया गया कि हेमंत के माथे पर धारदार हथियार के 5 और चेहरे पर 3 घाव पाए गए. उन के सिर पर पीछे की तरफ किसी भारी चीज से चोट पहुंचाई गई थी, जिस से उन की मृत्यु हुई थी.

इसी बीच पुलिस को पता चला कि मृतक की पत्नी प्रीति जैन रात के समय घर में आत्महत्या करने का नाटक करती रही थी. सुबह अंतिम संस्कार के बाद भी उस ने आग लगा कर जान देने की कोशिश की. पुलिस उसे हिरासत में थाने ले आई.

दूसरी तरफ दबाव बढ़ने पर मृदुल गुप्ता भी शाम को अपने वकील के साथ थाने में पेश हो गया. पुलिस ने प्रीति और मृदुल से पूछताछ की तो बड़ी आसानी से दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि हेमंत की हत्या उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से की थी.

पूछताछ के बाद हेमंत की हत्या की कहानी इस तरह सामने आई—

हेमंत के बड़े भाई भागचंद जैन करीब 20 साल पहले ग्वालियर के खिड़की मोहल्लागंज में रहते थे. हेमंत का अपने बड़े भाई के घर काफी आनाजाना था. बड़े भाई के मकान के सामने एक शुक्ला परिवार रहता था. प्रीति उसी शुक्ला परिवार की बेटी थी. वह हेमंत की हमउम्र थी.

बड़े भाई और शुक्ला परिवार में काफी नजदीकियां थीं, जिस के चलते हेमंत का भी प्रीति के घर आनाजाना हो जाने से दोनों में प्यार हो गया. यह बात करीब 18 साल पहले की है. हेमंत और प्रीति के बीच बात यहां तक बढ़ी कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. तब दोनों ने घर वालों की मरजी के खिलाफ प्रेम विवाह कर लिया था.

इस से शुक्ला परिवार ने बड़ी बेइज्जती महसूस की और वह अपना मोहल्लागंज का मकान बेच कर कहीं और रहने चले गए जबकि प्रीति पति के साथ कैथवाली गली में और फिर बाद में दानाओली के उसी मकान में आ कर रहने लगी, जिस की पहली मंजिल पर मृदुल गुप्ता अकेला रहता था. यहीं पर मृदुल की प्रीति के पति हेमंत से मुलाकात और दोस्ती हुई थी.

हेमंत ने साड़ी का थोक कारोबार शुरू कर दिया था, जिस में कुछ दिन तक प्रीति का भाई भी सहयोगी रहा. बाद में वह कानपुर चला गया. इधर हेमंत का काम देखते ही देखते काफी बढ़ गया और वह ग्वालियर के पहले 5 थोक साड़ी व्यापारियों में गिना जाने लगा. हेमंत को अकसर माल की खरीदारी के लिए गुजरात के सूरत शहर जाना पड़ता था.

हेमंत का काम काफी बढ़ चुका था, जिस के चलते एक समय ऐसा भी आया जब महीने में उस के 20 दिन शहर से बाहर गुजरने लगे. इस दौरान प्रीति और दोनों बच्चे ग्वालियर में अकेले रह जाते थे. इसलिए उन की देखरेख की जिम्मेदारी हेमंत अपने सब से खास और भरोसेमंद दोस्त मृदुल को सौंप जाता था.

हेमंत मृदुल पर इतना भरोसा करता था कि कभी उसे बाहर से बड़ी रकम ग्वालियर भेजनी होती तो वह मृदुल के बैंक खाते में ही ट्रांसफर कर देता था. इस से हेमंत की गैरमौजूदगी में भी मृदुल का प्रीति के घर में लगातार आनाजाना बना रहने लगा था.

प्रीति की उम्र 35 पार कर चुकी थी. वह 2 बच्चों की मां भी बन चुकी थी लेकिन आर्थिक बेफिक्री और पति के अति भरोसे ने उसे बिंदास बना दिया था. इस से वह न केवल उम्र में काफी छोटी दिखती थी बल्कि उस का रहनसहन भी अविवाहित युवतियों जैसा था.

कहते हैं कि लगातार पास बने रहने वाले शख्स से अपनापन हो जाना स्वाभाविक होता है. यही प्रीति और मृदुल के बीच हुआ. दोनों एकदूसरे से काफी घुलेमिले तो थे ही, अब एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे. उन के बीच दोस्तों जैसी बातें होने लगी थीं, जिस के चलते एकदूसरे के प्रति उन का नजरिया भी बदल गया था. इस का नतीजा यह हुआ कि लगभग डेढ़ साल पहले उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

दोस्त बन गया दगाबाज

प्रीति का पति ज्यादातर बाहर रहता था और मृदुल अभी अविवाहित था. इसलिए दैहिक सुख की दोनों को जरूरत थी. उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं था. क्योंकि खुद हेमंत ने ही मृदुल को प्रीति और बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. इसलिए हेमंत के ग्वालियर में न रहने पर मृदुल की रातें प्रीति के साथ उस के घर में एक ही बिस्तर पर कटने लगीं.

दूसरी तरफ प्रीति के नजदीक बने रहने के लिए मृदुल जहां हेमंत के प्रति ज्यादा वफादारी दिखाने लगा, वहीं जवान प्रेमी को अपने पास बनाए रखने के लिए प्रीति न केवल उसे हर तरह से सुख देने की कोशिश करने लगी, बल्कि मृदुल पर पैसा भी लुटाने लगी थी.

इसी बीच करीब 6 महीने पहले एक रोज जब हेमंत ग्वालियर में ही बच्चों के साथ था, तब बच्चों ने बातों बातों में बता दिया कि मम्मी तो मृदुल अंकल के साथ सोती हैं और वे दोनों दूसरे कमरे में अकेले सोते हैं.

बच्चे भला ऐसा झूठ क्यों बोलेंगे, इसलिए पलक झपकते ही हेमंत सब समझ गया कि उस के पीछे घर में क्या होता है. हेमंत ने मृदुल को अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया और उस के अपने यहां आनेजाने पर भी रोक लगा दी.

इस बात को ले कर उस का प्रीति के साथ विवाद भी हुआ. प्रीति ने सफाई देने की कोशिश भी की लेकिन हेमंत ने मृदुल को फिर घर में अंदर नहीं आने दिया. इस से प्रीति परेशान हो गई.

दोनों अकेलेपन का लाभ न उठा सकें, इसलिए हेमंत अपना घर छोड़ कर परिवार को ले कर अपनी बहन के साथ आ कर रहने लगा. ननद के घर में रहते हुए प्रीति और मृदुल की प्रेम कहानी पर ब्रेक लग गया. लेकिन हेमंत कब तक अपना परिवार ले कर  बहन के घर रहता, सो उस ने 3 महीने पहले पुराना मकान बेच कर इंदरगंज में नया फ्लैट ले लिया. यहां आने के बाद प्रीति और मृदुल की कामलीला फिर शुरू हो गई.

प्रीति अपने युवा प्रेमी की ऐसी दीवानी थी कि उस ने मृदुल पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह उसे अपने साथ रख ले. इस पर जनवरी में मृदुल ने प्रीति से कहीं दूर भाग चलने को कहा लेकिन प्रीति बोली, ‘‘यह स्थाई हल नहीं है. पक्का हल तो यह है कि हम हेमंत को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दें.’’

मृदुल को भी अपनी इस अनुभवी प्रेमिका की लत लग चुकी थी, इसलिए वह इस बात पर राजी हो गया. जिस के बाद दोनों ने घर में ही हेमंत की हत्या करने की योजना बना कर 17 मार्च, 2019 को उस पर अमल भी कर दिया.

योजना के अनुसार उस रोज प्रीति ने पति की चाय में नींद की ज्यादा गोलियां डाल दीं, जिस से वह जल्द ही गहरी नींद में चला गया. फिर मृदुल के आने पर प्रीति ने गहरी नींद में सोए पति के पैर दबोचे और मृदुल ने हेमंत की गला दबा दिया.

इस दौरान हेमंत ने विरोध किया तो दोनों ने उसे उठा कर कई बार उस का सिर दीवार से टकराया, जिस से उस के सिर से खून बहने लगा और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

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टीआई मनीष डाबर ने प्रीति और मृदुल से विस्तार से पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से प्रीति को जेल भेज दिया और मृदुल को 2 दिनों के रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया ताकि उस से वह कपड़े बरामद हो सकें जो उस ने हत्या के समय पहन रखे थे.

कथा लिखने तक पुलिस मृदुल से पूछताछ कर रही थी. हेमंत की हत्या में आदेश जैन शामिल था या नहीं, इस की पुलिस जांच कर रही थी.

मौसेरे भाई बहन के घातक रिश्ते की डोर

कानपुर जनपद के टिक्कन-पुरवा के रहने वाले पुत्तीलाल मौर्या की बेटी कोमल शाम को नित्य क्रिया जाने की बात कह कर घर से निकली थी, लेकिन जब वह रात 8 बजे तक घर लौट कर नहीं आई तो घर वालों को चिंता  हुई. उस का फोन भी बंद था. इसलिए यह भी पता नहीं चल पा रहा था कि वह कहां है.

पुत्तीलाल की पत्नी शिवदेवी ने बेटी को इधर उधर ढूंढा लेकन वह नहीं मिली. इस के बाद पुत्तीलाल भी उसे तलाशने के लिए निकल गया. पर उस को पता नहीं लगा. पुत्तीलाल का घबराना लाजिमी था. अचानक आई इस आफत से उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. बेचैनी से शिवदेवी का हलक सूखने लगा तो वह पति से बोली, ‘‘कोमल हमारी इज्जत पर दाग लगा कर कहीं प्रमोद के साथ तो नहीं भाग गई?’’

‘‘कैसी बातें करती हो, शुभशुभ बोलो. फिर भी तुम्हें शंका है तो चल कर देख लेते हैं.’’

इस के बाद पुत्तीलाल अपनी पत्नी के साथ प्रमोद के पिता रामसिंह मौर्या के घर जा पहुंचे जो पास में ही रहता था. वैसे रामसिंह रिश्ते में पुत्तीलाल का साढ़ू था. उस समय रात के 10 बज रहे थे. रामसिंह पड़ोस के लोगों के साथ अपने चबूतरे पर बैठा था.

पुत्तीलाल को देखा तो उस ने पूछा, ‘‘पुत्तीलाल, इतनी रात गए पत्नी के साथ. सब कुशल मंगल तो है.’’

‘‘कुछ भी ठीक नहीं है भैया. कोमल शाम से गायब है. उस का कुछ पता नहीं चल रहा. मैं आप से यह जानकारी करने आया हूं कि प्रमोद घर पर है या नहीं?’’ पुत्तीलाल बोला.

‘‘प्रमोद भी घर पर नहीं है. उस का फोन भी बंद है. शाम 7 बजे वह पान मसाला लेने जाने की बात कह कर घर से निकला था. तब से वह घर वापस नहीं आया. इस का मतलब प्रमोद और कोमल साथ हैं.’’ रामसिंह ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘हां, भैया मुझे भी ऐसा ही लगता है. उन्हें अब ढूंढो. कहीं ऐसा न हो कि दोनों कोई ऊंचनीच कदम उठा लें, जिस से हम दोनों की बदनामी हो.’’ इस के बाद दोनों मिल कर प्रमोद और कोमल को खोजने लगे. उन्होंने बस अड्डा, रेलवे स्टेशन के अलावा हर संभावित जगह पर दोनों को ढूंढा. लेकिन उन का कुछ भी पता नहीं चला. यह बात 27 मार्च, 2019 की है.

28 मार्च, 2019 की सुबह गांव की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने गांव के बाहर शीशम के पेड़ से फंदा से लटके 2 शव देखे. यह देख कर महिलाएं भाग कर घर आईं और यह बात लोगों को बता दी. इस के बाद तो टिक्कनपुरवा गांव में कोहराम मच गया. जिस ने सुना, वही शीशम के पेड़ की ओर दौड़ पड़ा. सूरज की पौ फटतेफटते वहां सैकड़ों की भीड़ जुट गई. पेड़ से लटकी लाशें कोमल और प्रमोद की थीं.

चूंकि कोमल और प्रमोद बीतीरात से घर से गायब थे. अत: दोनों के परिजन भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पेड़ से लटके अपने बच्चों के शवों को देखते ही वे दहाड़ें मार कर रो पड़े. कोमल की मां शिवदेवी तथा प्रमोद की मां मंजू रोते बिलखते अर्धमूर्छित हो गईं.

घटनास्थल पर प्रमोद का भाई पंकज भी मौजूद था. वह सुबक तो रहा था, लेकिन यह भी देख रहा था कि दोनों मृतकों के पैर जमीन छू रहे हैं. वह हैरान था कि जब पैर जमीन छू रहे हैं तो उन की मौत भला कैसे हो गई.

उसे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि प्रमोद को कोमल के घर वालों ने मार कर पेड़ से लटका दिया है. पंकज ने यह बात अपने घर वालों को बताई तो उन्हें पंकज की बात सच लगी. इस से घर वालों में उत्तेजना फैल गई. गांव के लोग भी खुसरफुसर करने लगे.

इसी बीच किसी ने बिठूर थाने में फोन कर के पेड़ से 2 शव लटके होने की जानकारी दे दी. सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी सुधीर कुमार पवार कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. पवार ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

उन्होंने देखा कि प्लास्टिक के मजबूत फीते को पेड़ की डाल में लपेटा गया था फिर उस फीते के एकएक सिरे को गले में बांध कर दोनों फांसी पर झूल गए थे. लेकिन उन के पैर जमीन को छू रहे थे. उन के होंठ भी काले पड़ गए थे. कोमल के पैरों में चप्पलें थीं, जबकि प्रमोद के पैर की एक चप्पल जमीन पर पड़ी थी. घटनास्थल पर बालों में लगाने वाली डाई का पैकेट, एक ब्लेड तथा मोबाइल पड़ा था. इन सभी चीजों को पुलिस ने जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया.

सुधीर कुमार ने फोरैंसिक टीम को मौके पर बुलाए बिना दोनों शवों को चादर में लपेट कर मंधनाबिठूर मार्ग पर रखवा दिया और शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने हेतु लोडर मंगवा लिया.

मृतक प्रमोद के भाई पंकज व अन्य लोगों ने आरोप लगाया कि यह आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का मामला है. इसलिए मृतक के भाई पंकज ने हत्या का आरोप लगा कर थानाप्रभारी सुधीर कुमार पवार से कहा कि वे मौके पर फोरैंसिक व डौग स्क्वायड टीम को बुलाएं. लेकिन पंकज की बात सुन कर थानाप्रभारी सुधीर कुमार की त्योरी चढ़ गईं. उन्होंने पंकज और उस के घर वालों को डांट दिया.

थानाप्रभारी की इस बदसलूकी से मृतक के परिजन व ग्रामीण भड़क उठे और पुलिस से उलझ गए. उन्होंने पुलिस से दोनों शव छीन लिए और पथराव कर लोडर को भी क्षतिग्रस्त कर दिया.

इतना ही नहीं, ग्रामीणों ने मंधनाबिठूर मार्ग पर जाम लगा दिया और हंगामा करने लगे. उन्होंने मांग रखी कि जब तक क्षेत्रीय विधायक व पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आ जाते तब तक शवों को नहीं उठने नहीं देंगे.

आक्रोशित ग्रामीणों को देख कर थानाप्रभारी पवार ने पुलिस अधिकारियों तथा क्षेत्रीय विधायक को सूचना दे दी. सूचना पाते ही एडिशनल एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार घटनास्थल पर आ गए. तनाव को देखते हुए उन्होंने आधा दरजन थानों की फोर्स बुला ली.

सीओ अजय कुमार ने मृतक प्रमोद के भाई पंकज से बात की. पंकज ने हाथ जोड़ कर फोरैंसिक टीम व डौग स्क्वायड टीम को घटनास्थल पर बुलाने की विनती की ताकि वहां से कुछ सबूत बरामद हो सकें. इस के अलावा उस ने थानाप्रभारी द्वारा की गई बदसलूकी की भी शिकायत की.

इसी बीच क्षेत्रीय विधायक अभिजीत सिंह सांगा भी वहां आ गए. उन के आते ही ग्रामीणों में जोश भर गया और वह पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे. विधायक के समक्ष उन्होंने मांग रखी कि बदसलूकी करने वाले थानाप्रभारी पवार को तत्काल थाने से हटाया जाए तथा मौके पर फोरैंसिक टीम को बुला कर जांच कराई जाए.

अभिजीत सिंह सांगा बिठूर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के चर्चित विधायक हैं. उन्होंने ग्रामीणों को समझाया और उन की मांगें पूरी करवाने का आश्वासन दिया तो लोग शांत हुए.

इस के बाद उन्होंने धरना प्रदर्शन बंद कर जाम खोलवा दिया. तभी सीओ अजय कुमार ने फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को बुलवा लिया. यही नहीं उन्होंने आननफानन में जरूरी काररवाई करा कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.

फोरैंसिक टीम ने एक घंटे तक घटनास्थल पर जांच कर के साक्ष्य जुटाए. वहीं डौग स्क्वायड ने भी खानापूर्ति की. खोजी कुत्ता कुछ देर तक घटनास्थल के आसपास घूमता रहा फिर पास ही बह रहे नाले तक गया. वहां टीम को एक चप्पल मिली. यह चप्पल मृतक प्रमोद की थी. उस की एक चप्पल पुलिस घटनास्थल से पहले ही बरामद कर चुकी थी.

एडिशनल एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन ने बवाल की आशंका को देखते हुए टिक्कनपुरवा  गांव में भारी मात्रा में पुलिस फोर्स तैनात कर दी थी. इतना ही नहीं पोस्टमार्टम हाउस पर भी पुलिस तैनात कर दी. प्रमोद व कोमल के शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल ने किया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उन की मौत हैंगिंग से हुई थी. रिपोर्ट में डाई पीने की पुष्टि नहीं हुई. पोस्टमार्टम के बाद कोमल व प्रमोद के शव उन के परिजनों को सौंप दिए गए. परिजनों ने अलगअलग स्थान पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया.

प्रमोद और कोमल कौन थे और उन्होंने एक साथ आत्महत्या क्यों की, यह जानने के लिए हमें उन के अतीत में जाना होगा.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर से 25 किलोमीटर दूर एक धार्मिक कस्बा है बिठूर. टिक्कनपुरवा इसी कस्बे से सटा हुआ गांव है. यह बिठूर मंधना मार्ग पर स्थित है. इसी गांव में पुत्तीलाल मौर्या अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शिवदेवी के अलावा 4 बेटियां थीं. इन में कोमल सब से बड़ी थी. पुत्तीलाल खेतीबाड़ी कर के अपने परिवार का भरण पोषण करता था.

टिक्कनपुरवा गांव में ही शिवदेवी की चचेरी बहन मंजू ब्याही थी. मंजू का पति रामसिंह मौर्या दबंग किसान था. उस के पास खेती की काफी जमीन थी. रामसिंह के 2 बेटे प्रमोद व पंकज के अलावा एक बेटी थी. प्रमोद पढ़ालिखा था. वह कल्याणपुर स्थित एक बिल्डर्स के यहां बतौर सुपरवाइजर नौकरी करता था. जबकि पंकज कास्मेटिक सामान की फेरी लगाता था.

चूंकि रामसिंह व पुत्तीलाल के बीच नजदीकी रिश्ता था. अत: दोनों परिवारों में खूब पटती थी. उनके बच्चों का भी एक दूसरे के घर बेरोकटोक आना जाना था. जरूरत पड़ने पर दोनों परिवार एक दूसरे के सुखदुख में भी भागीदार बनते थे. पुत्तीलाल को जब भी आर्थिक संकट आता था, रामसिंह उस की मदद कर देता था.

कोमल ने आठवीं पास करने के बाद सिलाई सीख ली थी. वह घर में ही सिलाई का काम करने लगी थी. 18 साल की कोमल अब समझदार हो चुकी थी. वह घर के कामों में मां का हाथ भी बंटाती थी. प्रमोद अकसर अपनी मौसी शिवदेवी के घर आता रहता था. कोमल से उस की खूब पटती थी, क्योंकि दोनों हमउम्र थे. बचपन से दोनों साथ खेले थे, इसलिए एकदूसरे से खूब घुलेमिले हुए थे.

दोनों भाईबहन जरूर थे लेकिन वह जिस उम्र से गुजर रहे थे, उस उम्र में यदि संयम और समझदारी से काम न लिया जाए तो रिश्तों को कलंकित होने में देर नहीं लगती. कह सकते हैं कि अब प्रमोद का कोमल को देखने का नजरिया बदल गया था. वह उसे चाहने लगा था.

लेकिन जब उसे अपने रिश्ते का ध्यान आता तो वह मन को निंयत्रित करने की कोशिश करता. प्रमोद ने बहुत कोशिश की कि वह रिश्ते की मर्यादा बनाए रखे लेकिन दिल के मामले में उस का वश नहीं चला. वह कोशिश कर के हार गया, क्योंकि वह कोमल को चाहने लगा था.

दरअसल, कोमल के दीदार से उस के दिल को सुकून मिलता था और आंखों को ठंडक. दिन में जब तक वह 1-2 बार कोमल से मिल नहीं लेता, बेचैन सा रहता था. वह चाहता था कि कोमल हर वक्त उस के साथ रहे. लेकिन कोमल का साथ पाने की उस की इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी.

काफी सोचविचार के बाद प्रमोद ने फैसला किया कि वह कोमल से अपने दिल की बात जरूर कहेगा. कोमल की वजह से प्रमोद अकसर मौसी के घर पड़ा रहता था. बराबर उस के संपर्क में रहने के कारण कोमल भी उस के आकर्षणपाश में बंध गई थी.

एक दिन कोमल अपने कमरे मे बैठी सिलाई कर रही थी कि तभी प्रमोद आ गया. वह मन में ठान कर आया था कि कोमल से अपने दिल की बात जरूर कहेगा. वह उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘कोमल, आज मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहना चाहते हो बताओ?’’ कोमल ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मुझे डर है कि तुम मेरी बात सुन कर नाराज न हो जाओ.’’ प्रमोद बोला.

‘‘पता तो चले, ऐसी क्या बात है, जिसे कहने से तुम इतना डर रहे हो.’’

‘‘कोमल, बात दरअसल यह है कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. क्या तुम मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’ प्रमोद ने कोमल का हाथ अपने हाथ में लेकर एक ही झटके में बोल दिया.

‘‘क्या…?’’ सुन कर कोमल चौंक पड़ी, उसे एकाएक अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ.

‘‘हां कोमल, मैं सही कह रहा हूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘प्रमोद तुम ये कैसी बातें कर रहे हो? तुम अच्छी तरह जानते हो कि हमारे बीच भाईबहन का रिश्ता है.’’

‘‘कोमल, मैं ने कभी भी तुम्हें बहन की नजर से नहीं देखा. मुझे अपने प्यार की भीख दे दो. मैं तुम्हारे लिए पूरी दुनिया से लड़ जाऊंगा.’’ उस ने मिन्नत की.

‘‘हम घर परिवार व समाज की नजर में भाईबहन हैं. जब लोगों को पता चलेगा तो जानते हो क्या होगा? तुम किसकिस से लड़ोगे?’’

‘‘मुझे किसी की फिक्र नहीं है.  बस, तुम मेरा साथ दो. तुम इस बारे में ठंडे दिमाग से सोच लो. कल सुबह मुझे कंपनी के काम से लखनऊ जाना है. शाम तक लौट आऊंगा. तब तक तुम सोच लेना और मुझे जवाब दे देना.’’ कह कर प्रमोद कमरे से बाहर चला गया.

रात को खाना खाने के बाद कोमल जब बिस्तर पर लेटी तो नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस के कानों में प्रमोद के शब्द गूंज रहे थे. उसने अपने दिल में झांकने की कोशिश की तो उसे लगा कि वह भी जाने अनजाने में प्रमोद से प्यार करती है. लेकिन भाईबहन के रिश्ते के डर से प्यार का इजहार नहीं कर पा रही है.

उस ने सोचा कि जब प्रमोद प्यार की बात कर रहा है तो उसे भी पीछे नहीं हटना चाहिए. जिंदगी में सच्चा प्यार हर किसी को नहीं मिलता. ऐसे में वह प्रमोद के प्यार को क्यों ठुकराए? काफी सोचविचार कर उस ने आखिर फैसला ले ही लिया.

अगले दिन सुबह कोमल के लिए कुछ अलग ही थी. वह प्रमोद के प्यार में डूबी हुई, खोईखोई सी थी. लेकिन घर में किसी को भनक तक नहीं लगी कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है. अब वह प्रमोद के लौटने का बेसब्री से इंतजार करने लगी. प्रमोद रात को लगभग 8 बजे घर लौटा और घर के लोगों से मिल कर सीधा कोमल के कमरे में पहुंच गया. उस ने आते ही कोमल से पूछा, ‘‘कोमल, जल्दी बताओ तुम ने क्या फैसला लिया?’’

‘‘प्रमोद, मैं ने रात भर काफी सोचा और फैसला लिया कि…’’ कोमल ने अपनी बात बीच में ही रोक दी.

यह देख प्रमोद के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. वह उत्सुकतावश कोमल का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘बोलो कोमल, मेरी जिंदगी तुम्हारे फैसले पर टिकी है. तुम्हारे इस तरह चुप हो जाने से मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’

प्रमोद की हालत देख कर कोमल एकाएक खिलखिला कर हंस पड़ी. उसे इस तरह हंसते देख प्रमोद ने उस की ओर सवालिया निगाहों से देखा तो वह बोली, ‘‘मेरा फैसला तुम्हारे हक में है.’’

यह सुन कर प्रमोद खुशी से झूम उठा और उस ने कोमल को बांहों में भर लिया. कोमल खुद को उस से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘अपने ऊपर काबू रखो, अगर किसी ने हमें इस तरह देख लिया तो कयामत आ जाएगी. हमारा प्यार शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘ठीक है, लेकिन लोगों की नजर में हम भाईबहन हैं, इसलिए वे हमारी शादी नहीं होने देंगे.’’

‘‘हमारी शादी जरूर होगी और कोई भी हमें नहीं रोक पाएगा. लेकिन यह तो बाद की बात है. वैसे एक बात बताऊं कि हमारे बीच जो भाईबहन का रिश्ता है, यह एक तरह से अच्छा ही है. इस से हम पर कोई जल्दी शक नहीं करेगा.’’ प्रमोद मुसकराते हुए बोला.

कोमल भी प्रमोद की बात से सहमत हो गई ओैर फिर उस दिन से दोनों का प्यार परवान  चढ़ने लगा. समय निकाल कर दोनों धार्मिक स्थल बिठूर घूमने पहुंच जाते फिर नाव मेें बैठ कर गंगा की लहरों के बीच अठखेलियां करते. कभीकभी दोनों फिल्म देखने के लिए कानपुर चले जाते थे.

प्रमोद और कोमल मौसेरे भाईबहन थे. ऐसे में उन के बीच जो कुछ भी चल रहा था उसे प्यार नहीं कहा जा सकता था. दोनों बालिग थे, इसलिए इसे नासमझी भी नहीं समझा जा सकता था. कहा जा सकता था. बहरहाल उन के बीच पक रही खिचड़ी की खुशबू बाहर पहुंची तो लोग उन्हें शक की नजरों से देखने लगे और तरह तरह की बातें करने  लगे.

धीरेधीरे यह खबर दोनों के घर वालों तक पहुंच गई. सच्चाई का पता लगते ही दोनों घरों में कोहराम मच गया. परिवार के लोगों ने एक साथ बैठ कर दोनों को समझाया.

रिश्ते की दुहाई दी . लेकिन उन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ. हालाकि घर वालों के सामने दोनों ने उन की हां में हां मिलाई और एकदूसरे से न मिलने का वादा किया. उस वादे को दोनों ने कुछ दिनों तक निभाया भी, लेकिन बाद में दोनों फिर मिलने लगे.

यह देख कर पुत्तीलाल व उस की पत्नी शिवदेवी ने कोमल पर सख्ती की और उस का घर से निकलना बंद कर दिया. यही नहीं उन्होंने प्रमोद के अपने घर आने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. इस से प्रमोद और कोमल का मिलनाजुलना एकदम बंद हो गया. दोनों के पास मोबाइल फोन थे अत: जब भी मौका मिलता मोबाइल पर बातें कर के अपनेअपने मन की बात कह देते.

इधर रामसिंह और पुत्तीलाल व उन की पत्नियों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए गहन विचारविमर्श किया. विचारविमर्श के बाद तय हुआ कि दोनों की शादी कर दी जाए. शादी हो जाएगी तो समस्या भी हल हो जाएगी. कोमल अपनी ससुराल चली जाएगी तो प्रमोद भी बीवी के प्यार में बंध कर कोमल को भूल जाएगा.

इस के बाद रामसिंह प्रमोद के लिए तो पुत्तीलाल कोमल के लिए रिश्ता ढूंढ़ने लगे. रामसिंह को जल्द ही सफलता मिल गई. दरअसल उस के गांव का एक परिवार गुजरात के जाम नगर में बस गया था, जो उस की जातिबिरादरी का था. होली के मौके पर वह परिवार गांव आया था. इसी परिवार की लड़की से रामसिंह ने प्रमोद का रिश्ता तय कर दिया. 7 मई को तिलक तथा 12 मई को शादी की तारीख तय हो गई.

यद्यपि प्रमोद इस रिश्ते के खिलाफ था लेकिन घर वालों के आगे उस की एक नहीं चली. प्रमोद के रिश्ते की बात कोमल को पता चली तो उसे सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं हुआ. सच्चाई जानने के लिए कोमल ने घर वालों से छिप कर प्रमोद से मुलाकात की और पूछा, ‘‘प्रमोद, तुम्हारा रिश्ता तय हो जाने के बारे में मैं ने जो कुछ सुना है, क्या वह सच है?’’

‘‘हां, कोमल, तुम ने जो सुना है वह बिलकुल सच है. घर वालों ने मेरी मरजी के बिना रिश्ता तय कर दिया है.’’  प्रमोद ने बताया.

प्रमोद की बात सुन कर कोमल ने नाराजगी जताई और याद दिलाया, ‘‘प्रमोद तुम ने तो जीवन भर साथ रहने का वादा किया था. अब क्या हुआ. तुम्हारे उस वादे का?’’

इस पर प्रमोद ने उस से कहा कि वह अपने वादे को नहीं भूला है. उस के अलावा वह किसी और को अपनी जिंदगी नहीं बना सकता.

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’ कह कर कोमल उसके गले लग गई. फिर वह वापस घर आ गई.

इधर पुत्तीलाल ने भी कोमल का रिश्ता उन्नाव जिले के परियर सफीपुर निवासी विनोद के साथ तय कर दिया था. गुपचुप तरीके से पुत्तीलाल ने कोमल को दिखला भी दिया था. विनोद और उस के घर वाले कोमल को पसंद कर चुके थे. गोदभराई की तारीख 28 मार्च तय हो गई थी.

एक दिन कोमल ने अपने रिश्ते के संबंध में मांबाप की खुसुरफुसुर सुनी तो उस का माथा ठनका. उस से नहीं रहा गया तो उस ने मां से पूछ लिया. ‘‘मां, तुम पिताजी से किस के रिश्ते की खुसुरफुसुर कर रही थीं?’’

‘‘तेरे रिश्ते की. मैं ने तेरा रिश्ता परियर सफीपुर गांव के विनोद के साथ कर दिया है. 28 मार्च को तेरी गोद भराई है.’’ शिवदेवी बोली.

कोमल रोआंसी हो कर बोली, ‘‘मां आप ने मुझ से पूछे बिना ही मेरा रिश्ता तय कर दिया. जबकि आप जानती हैं कि मैं प्रमोद से प्यार करती हूं और उसी से शादी करना चाहती हूं.’’

‘‘मुझे पता है कि तू रिश्ते को कलंकित करना चाहती है. पर मैं अपने जीते जी ऐसा होने नहीं दूंगी. इसलिए तेरा रिश्ता पक्का कर दिया है. वेसे भी जिस प्रमोद से तू शादी करने की बात कह रही है. उस का भी रिश्ता तय हो चुका है. इसलिए मेरी बात मान और पुरानी बातों को भूल कर इस रिश्ते को स्वीकार कर ले.’’

कोमल मन ही मन बुदबुदाई कि मां यह तो समय ही बताएगा कि तुम्हारी बेटी दुलहन बनती है या फिर उस की अर्थी उठती है. फिर वह कमरे में चली गई और इस गंभीर समस्या के निदान के लिए मंथन करने लगी. मंथन करतेकरते उस ने सारी रात बिता दी लेकिन कोई हल नहीं निकला. आखिर उसने प्रमोद से मिल कर समस्या का हल निकालने की सोची.

दूसरे रोज कोमल ने किसी तरह प्रमोद से मुलाकात की और कहा, ‘‘प्रमोद मेरे घर वालों ने भी मेरी शादी तय कर दी है और 28 मार्च को गोदभराई है. लेकिन मैं इस शादी के खिलाफ हूं. क्योंकि मैं ने जो वादा किया है, वह जरूर निभाऊंगी. प्रमोद मैं आज भी कह रही हूं कि तुम्हारे अलावा किसी अन्य की दुलहन नहीं बनूंगी.

कोमल और प्रमोद किसी भी तरह एकदूसरे से जुदा नहीं होना चाहते थे. अत: दोनों ने सिर से सिर जोड़ कर इस गंभीर समस्या का मंथन किया. हल यह निकला कि दोनों के घर वाले इस जनम में उन्हें एक नहीं होने देंगे. इसलिए दोनों मर कर दूसरे जनम में फिर मिलेंगे. यानी दोनों ने साथसाथ आत्महत्या करने का फैसला कर लिया.

उन्होंने अपने घर वालों तक को यह आभास नहीं होने दिया कि वे कौन सा भयानक कदम उठाने जा रहे हैं.

27 मार्च, 2019 की दोपहर प्रमोद कस्बा बिठूर गया. वहां एक दुकान से उस ने बालों पर कलर करने वाली डाई के 2 पैकेट तथा एक ब्लेड खरीदा और घर वापस आ गया. शाम 7 बजे उस ने घर वालों से कहा कि वह पान मसाला लेने जा रहा है. कुछ देर में आ जाएगा. गांव के बाहर निकल कर उस ने कोमल को  फोन किया कि वह नाले के पास आ जाए. वह उस का वही इंतजार कर रहा है.

कोमल की दूसरे रोज यानी 28 मार्च को गोदभराई थी. वह गोदभराई नहीं कराना चाहती थी, इसलिए वह शौच के बहाने घर से निकली और गांव के बाहर बह रहे नाले के पास जा पहुंची.

प्रमोद वहां पहले से ही उस का इंतजार कर रहा था. कोमल को साथ ले कर उस ने नाला पार किया. नाला पार करते समय उस की एक चप्पल टूट गई. इस के बाद दोनों शीशम के पेड़ के पास पहुंचे.

वहां बैठ कर दोनों ने कुछ देर बातें कीं. फिर प्रमोद ने जेब से डाई के पैकेट निकाले. उस ने एक पैकेट को ब्लेड से काट कर खोला. उन का मानना था कि डाई में भी जहरीला कैमिकल होता है. इसे पीकर दोनों अत्महत्या कर लेंगे लेकिन डाई को घोलने के लिए उन के पास न पानी था और न गिलास. अत: दोनों ने सूखी डाई फांकने का प्रयास किया. जिस से डाई उन के होंठों पर लग गई.

उसी समय प्रमोद की निगाह प्लास्टिक के फीते पर पड़ी जो सामने के खेत के चारों ओर बंधा था. प्रमोद ब्लेड से फीते को काट लाया. उस ने पेड़ पर चढ़ कर डाल में फीते को राउंड में लपेट दिया. इस के बाद उस ने फीते के दोनों सिरों पर फंदे बना दिए.

फिर एकएक फंदे में गरदन डाल कर दोनों झूल गए. कुछ देर बाद गला कसने से दोनों की मौत हो गई. मृतकों के शरीर के भार से प्लास्टिक का फीता खिंच गया, जिस से दोनों के पैर जमीन को छूने लगे थे.

28 मार्च, 2019 की सुबह जब गांव की कुछ औरतें नाले की तरफ गईं तो उन्होंने दोनों को शीशम के पेड़ से लटके देखा. उन की सूचना पर ही गांव वाले मौके पर पहुंचे.

चूंकि मृतकों के परिजनों ने पुलिस को कोई तहरीर नहीं दी. इसलिए पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया. इस के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया कि प्रमोद और कोमल ने आत्महत्या की थी. अत: पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी. लेकिन लापरवाही बरतने के आरोप में एडिशनल एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन ने थानाप्रभारी सुधीर कुमार पवार को लाइन हाजिर कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपना कातिल ढूंढने वाली औरत

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का डा. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय देश भर में प्रसिद्ध है. थाना कृष्णानगर क्षेत्र में आने वाले इस विश्वविद्यालय की पार्किंग बाउंड्री वाल के बाहर है. 23 मार्च, 2019 को जब मौर्निंग वाक पर निकले कुछ लोग उधर से गुजरे तो उन की निगाह फुटपाथ पर पड़े एक बड़े से बैग पर चली गई.

सामान्य रूप से लोगों ने समझा कि या तो कोई अपना बैग वहां रख कर भूल गया है या मौर्निंग वाक पर आए किसी व्यक्ति ने उसे वहां रख दिया है, जो वापस लौटते वक्त ले लेगा. हालांकि बैग का बड़ा साइज इन संभावनाओं को नकार रहा था.

लेकिन लोगों की यह सोच तब बदल गई, जब लौटते समय भी उन्होंने बैग को वहीं पड़े देखा. बैग में विस्फोटक रखे होने की आशंका के चलते किसी ने भी उसे हाथ लगाने की हिम्मत नहीं की. इस से बेहतर यही था कि पुलिस को बुला लिया जाए. ऐसा ही किया भी गया.

सूचना मिलते ही थाना कृष्णानगर के थानाप्रभारी दिनेश मिश्रा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने बैग खोला तो उस के होश उड़ गए. बैग में 30-40 साल की किसी महिला का सिर, दोनों पैर और दोनों हाथ थे. बैग में 521 प्रीमियम राइस की 25 किलो की बोरी और बेबी क्लब का बैग निकले. चावल की बोरी में महिला के पैर और सिर था, जबकि बेबी क्लब के बैग में दोनों हाथ रखे हुए थे. मृतका ने सोने की अंगूठी पहन रखी थी और एक हाथ पर टैटू गुदा हुआ था.

हाल फिलहाल पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि उस महिला के धड़ को कहां और कैसे खोजा जाए. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमों ने धड़ को खोजने की कोशिश की. इस के लिए डौग स्क्वायड की भी मदद ली गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

एसएसपी कलानिधि नैथानी और सीओ लालप्रताप सिंह भी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने भी लाश के टुकड़ों और उस जगह को अपने नजरिए से देखा समझा. प्रथम संभावना में उस महिला को घरेलू हिंसा की शिकार माना गया.

अंतत: यह तय हुआ कि बरामद अंगों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाए और जितनी भी संभावनाएं हों, सभी की सिलसिलेवार जांच की जाए. पुलिस ने केस दर्ज कर के आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली. साथ ही जो भी तरीके हो सकते थे, पुलिस ने उन तरीकों से भी महिला की पहचान कराने की कोशिश की. साथ ही धड़ की खोजबीन भी जारी रखी.

जिस जगह पर बैग रखा मिला था, उस के आसपास की छानबीन में पुलिस को लाल स्याही से हाथ से लिखे एक पत्र के दरजनों टुकड़े मिले, जिन्हें समेट कर सावधानी से रख लिया गया. एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि अलसुबह 4 बजे जब वह मौर्निंग वाक पर जा रहा था तो उस ने एक व्यक्ति को पीठ पर बोरा लाद कर ले जाते देखा था. इतना ही नहीं, उस ने फुटपाथ पर बोरा भी उस के सामने ही रखा था.

पुलिस द्वारा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गईं तो उन में से एक फुटेज में एक व्यक्ति को पीठ पर बैग लाद कर ले जाते हुए देखा गया. लेकिन बैग ले जा रहे व्यक्ति का चेहरा साफ नहीं था, इसलिए उसे पहचानना संभव नहीं था.

महिला की पहचान के लिए कोई रास्ता न निकलता देख पुलिस ने महिला के हाथ में पहनी अंगूठी, हाथ पर बने टैटू, लाश वाला बैग, उस के अंदर मिली चावल की बोरी और बेबी क्लब का बैग वगैरह चीजों का कोलाज बना कर जारी किया. साथ ही घोषणा की कि उस महिला की पहचान करने या उस के बारे में सूचना देने वाले को 25 हजार रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा.

25 मार्च रविवार की सुबह बीबीखेड़ा निवासी महिला कीर्ति सिंह जब दूध ले कर लौट रही थी तो उस ने न्यू कांशीराम कालोनी के पास स्थित हैमिल्टन स्कूल के पीछे से गुजरते समय तेज बदबू महसूस की. उस ने देखा तो पौलीथिन में कुछ लिपटा नजर आया. कीर्ति ने घर जा कर यह बात अपने पति अमरेंद्र सिंह को बताई. अमरेंद्र ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के सूचना दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना पारा को दी. पुलिस ने वहां पहुंच कर देखा तो पौलीथिन में लिपटा उसी महिला का धड़ मिला, जिस का सिर और हाथपांव डा. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के बाहर पार्किंग में पड़े थैले में रखे मिले थे. हत्यारे ने महिला के धड़ को लाल काले रंग की दरी में लपेट कर प्लास्टिक की बोरी में डाला था ताकि खून न बहे.

एसपी (पूर्व) सुरेशचंद रावत सहित क्राइम ब्रांच, फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड भी मौके पर पहुंचे. थाना पारा और थाना कृष्णानगर की पुलिस तो वहां थी ही. कृष्णानगर थानाक्षेत्र जहां महिला का सिर और पैर मिले थे, वहां से थाना पारा का वह इलाका जहां धड़ मिला था, के बीच 6 किलोमीटर की दूरी थी.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे ने कृष्णानगर या पारा के आसपास किसी घर में महिला की हत्या की होगी और लाश के टुकड़ों को 2 जगहों पर इसलिए फेंका होगा कि पुलिस असमंजस में पड़ जाए कि हत्या कृष्णानगर क्षेत्र में हुई या पारा क्षेत्र में. यह सब उस ने पुलिस से बचने के लिए किया होगा. पुलिस का यह भी अनुमान था कि हत्यारा कोई एक ही व्यक्ति रहा होगा.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. धड़ और अन्य अंग एक ही महिला के हैं, इस का पता लगाने के लिए डीएनए कराने को लिखा गया. घटना का खुलासा जल्दी हो, इस के लिए एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एसपी (पूर्वी) सुरेशचंद्र रावत के नेतृत्व में सीओ क्राइम, सीओ कृष्णानगर और डीसीआरबी प्रभारी को खुलासे की जिम्मेदारी सौंपते हुए 3 पुलिस टीमें बनाईं.

इन टीमों ने उसी दिन यानी 24 मार्च की शाम तक 20 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस के साथ ही पुलिस अधिकारियों ने लखनऊ जोन के सभी जिलों के थानों में दर्ज महिलाओं की गुमशुदगी व अपहरण के मुकदमों की जानकारी मांगी. गहन छानबीन के मद्देनजर बीट के 100 सिपाहियों को घूमघूम कर महिला की पहचान कराने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में भेजा गया. महिला से संबंधित जानकारी पुलिस को देने के लिए जगहजगह पोस्टर भी लगवाए गए.

पारा क्षेत्र में रहने वाले बाबूलाल कनौजिया ने 25 मार्च को थाना पारा में गुमशुदगी दर्ज कराई कि उस का भाई सुनील कनौजिया 2 हफ्ते से लापता है. बाबूलाल ने यह भी बताया कि सुनील पिछले 4-5 महीने से अपनी पत्नी भारती पांडेय के साथ हंसखेड़ा, न्यू कांशीराम कालोनी में किराए के मकान में रह रहा था.

सुनील की कोई जानकारी न मिलने पर उस के भाई बाबूलाल ने थाना चौकी के चक्कर लगाने शुरू कर दिए थे. इस मामले की जांच कर रहे सबइंसपेक्टर ने सुनील के फोटो लगा पोस्टर छपवा कर विभिन्न जगहों पर लगवाने को कहा.

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         हत्यारा पति सुनील कनौजिया

लेकिन बाबूलाल के पास सुनील का कोई फोटो नहीं था. अंतत: सुनील के गुम होने के 11वें दिन यानी 4 अप्रैल को फोटो की तलाश में जांच अधिकारी बाबूलाल के साथ सुनील के कमरे पर पहुंचे. ताला तोड़ने के अलावा उन के पास कोई विकल्प नहीं था.

ताला तोड़ कर कमरे के अंदर छानबीन की गई तो यह रहस्य सामने आया कि सुनील की पत्नी भारती पांडेय भी लापता थी. पुलिस ने कमरे से मिले सुनील और भारती पांडेय के सामूहिक फोटो और कृष्णानगर क्षेत्र में मिली लाश के अंगों के फोटो आसपड़ोस के लोगों को दिखाए तो कई लोगों ने सोने की अंगूठी, टैटू और चेहरा पहचान लिया. ये चीजें भारती पांडेय की ही थीं.

पुलिस ने कमरे को खंगाला तो टंकी के पाइप में रखे युवक के गीले कपड़ों पर खून के धब्बे नजर आए. इस के साथ ही यह बात भी साफ हो गई कि जिस महिला का धड़, सिर और अन्य अंग मिले थे, उस की हत्या इसी कमरे में की गई थी यानी वह भारती पांडेय ही थी.

छानबीन में भारती के बारे में कई जानकारियां मिलीं

पुलिस ने मकान मालिक दिलीप कुमार को बुला कर इस मामले में पूछताछ की. उस ने बताया कि भारती पांडेय नाम की महिला ने 5 महीने पहले 18 सौ रुपए महीने पर उन के मकान का कमरा किराए पर लिया था. उस ने आईडी की प्रति देते हुए बताया था कि वह नाका क्षेत्र की एक कंपनी में काम करती है. आईडी में भारती के पति का नाम रामगोपाल पांडेय और नाका के होलीग्राम स्कूल आर्यनगर का पता दर्ज था.

इसपर पुलिस ने नाका क्षेत्र में रामगोपाल की तलाश शुरू की. जांच के दौरान खुलासा हुआ कि पश्चिम बंगाल के कोलकाता की मूल निवासी भारती पांडेय 12 साल पहले अपने बेटे राजकुमार के साथ लखनऊ आई थी. उस ने रामगोपाल पांडेय से दूसरी शादी की थी. बाद में उस ने रामगोपाल को छोड़ कर सुनील से शादी कर ली थी. सुनील से भारती को कोई बच्चा नहीं था.

भारती ने पहली शादी कोलकाता में और दूसरी गोंडा के कर्नलगंज निवासी रामगोपाल पांडेय जो होलीग्राम स्कूल का रिक्शाचालक था, से की थी. रामगोपाल पांडेय ने भारती के बेटे राजकुमार को अपना लिया था. तीनों लोग नेवाजखेड़ा में रहने लगे थे. भारती इलाके की एक चाऊमीन फैक्ट्री में काम कर के घर के खर्च में हाथ बंटाने लगी थी. इस बीच उस ने 2 बेटियों चांदनी व लक्ष्मी को जन्म दिया था.

शव की शिनाख्त के लिए पुलिस की एक टीम भारती पांडेय के दूसरे पति रामगोपाल पांडेय की तलाश में गोंडा भेजी गई. पुलिस रामगोपाल व उस की एक बेटी को लखनऊ ले आई. रामगोपाल ने बैग में मिले शरीर के टुकड़ों की पहचान अपनी पूर्वपत्नी भारती पांडेय के रूप में कर दी.

रामगोपाल ने पुलिस को जानकारी दी कि भारती के पहले पति का बेटा राजकुमार पश्चिम बंगाल में अपनी ननिहाल में रहता है. कोलकाता से आई भारती 8 साल रामगोपाल की पत्नी बन कर उस के साथ रही. इस के बाद उस के संबंध सुनील कनौजिया से हो गए. भारती का हाथ थामने से पहले सुनील ने अपनी पहली पत्नी से नाता तोड़ लिया था.

बाबूलाल व अन्य लोगों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि सुनील की पहली पत्नी इंदिरानगर इलाके में रहती है. भारती पांडेय की हत्या के बाद सुनील के पहली पत्नी के पास लौटने की संभावना को देखते हुए पुलिस ने जांच की, लेकिन सुनील वहां नहीं मिला.

छानबीन में पता चला कि चाऊमीन फैक्ट्री में काम करने के दौरान दिलफेंक भारती की आंखें फ्रेमिंग का काम करने वाले सुनील कनौजिया से लड़ गई थीं. सुनील एल्युमीनियम के फ्रेम तैयार करने वाली जिस दुकान में काम करता था, वह चाऊमीन फैक्ट्री के सामने थी. जब भी भारती फैक्ट्री से निकलती, उस की नजर दुकान पर काम करते सुनील पर ही टिकी होतीं. जब कभी नजरें मिल जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे. यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. इस बीच दोनों की बातचीत होने लगी और फिर दोस्ती हो गई.

कोलकाता से साथ लाए बेटे और रामगोपाल से पैदा अपनी दोनों बेटियों को छोड़ कर भारती ने साढ़े 3 साल पहले सुनील का हाथ थाम लिया था.

रामगोपाल ने दोनों बच्चियों की देखरेख के लिए भारती को काफी समझाया. लेकिन उस के सिर पर चढ़े इश्क के भूत के आगे उसे हार माननी पड़ी. भारती को समझाने का कोई नतीजा न निकलने पर वह तीनों बच्चों को ले कर गोंडा स्थित अपने घर चला गया.

भारती करीब ढाई साल सुनील के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही. पिछले साल दोनों ने राजाजीपुरम की महिला शक्ति कल्याण समिति द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शादी कर ली थी.

पुलिस ने भारती व सुनील की शादी कराने वाली संस्था की अध्यक्ष रजनी यादव व कालोनी में रहने वाले भारती के पड़ोसियों से पूछताछ की. पता चला कि भारती का फिर किसी से अफेयर हो गया था और वह अकसर फोन पर बातचीत करती रहती थी, जिसे ले कर उस का पति सुनील उस पर शक करता था. वह उसे फोन पर बात करने से मना करता था, लेकिन भारती पर इस का कोई असर नहीं होता था.

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    मृतका भारती पांडेय

भारती के आचरण पर शक

इसी बात को ले कर दोनों में आए दिन झगड़ा होने लगा था. इस पर भारती ने पति को छोड़ कर दिलीप कुमार के मकान में किराए का अलग कमरा ले लिया था. कई दिन तक भारती के न मिलने पर सुनील उस की तलाश करता रहा और आखिरकार किसी तरह उस के कमरे तक पहुंच ही गया.

सुनील ने उस से पूछा कि वह उसे अकेला छोड़ कर बिना बताए क्यों चली आई? इस बात को ले कर उस ने भारती को डांटाफटकारा, जिस ले कर दोनों में झगड़ा हो गया. हालांकि बाद में वह भारती के पास ही रहने लगा था. हालांकि कमरा लेते वक्त भारती ने मकान मालिक को बताया था कि उस का पति बाहर काम करता है और वह यहां अकेली रहेगी.

पुलिस ने भारती पांडेय के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने के बाद सुनील के भाई बाबूलाल से गहराई से पूछताछ की. सुनील अपने भाई बाबूलाल की दुकान पर ही काम करता था. पुलिस ने उसी दुकान के शीशा कटिंग व फ्रेमिंग के कारीगर प्रेमप्रकाश व नरेंद्र को हिरासत में ले कर पूछताछ की, ये दोनों भारती से परिचित थे.

पड़ताल में जुटे पुलिस अफसरों का मानना था कि तीसरा पति सुनील कनौजिया भारती की अन्य लोगों से नजदीकी से नाराज था, इसीलिए उस ने उस की हत्या की थी. हत्या में अन्य लोगों के शामिल होने की भी पुलिस गहनता से जांच में लग गई. पुलिस ने आशंका व्यक्त की कि फ्रेमिंग के लिए एल्युमीनियम काटने वाली आरी से भारती के शव के टुकड़े किए गए थे.

पुलिस का मानना था कि फोन पर बातचीत को ले कर हुए विवाद के बाद 23 मार्च की रात में सुनील ने भारती की गला दबा कर हत्या की होगी और उस के बाद आरी से उस के टुकड़े किए होंगे. बाद में वह उन टुकड़ों को 2 अलगअलग जगहों पर फेंक कर फरार हो गया होगा. जांच के दौरान यह भी पता चला कि भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हो गया था.

सुनील के बड़े भाई बाबूलाल ने पुलिस को बताया कि सुनील 24 मार्च की रात में उस के घर आया था. इस दौरान उस ने खाना भी खाया था. भतीजी ने जब सुनील से पूछा, ‘‘चाचा, चाची को साथ क्यों नहीं लाए?’’ तो सुनील ने कहा, ‘‘तुम्हारी चाची भारती अपने मायके गई हुई है.’’

सुनील ने 25 मार्च को अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था. जिस के बाद से उस का कोई सुराग नहीं लग पा रहा था.

कमरे में टंकी के पाइप पर सुनील की पीली जींस व काली शर्ट पर खून के हलके धब्बों के अलावा कोई साक्ष्य नहीं मिला. इस पर एसएसपी कलानिधि नैथानी ने फोरैंसिक टीम भेज कर जांच कराई.

बेंजिडाइन टेस्ट में कमरे में रखे वाइपर, प्लास्टिक के टब, स्टील के मग और फर्श पर खून के धब्बे नजर आने लगे. फोरैंसिक जांच में सुनील की जींस और टीशर्ट पर मिले खून के धब्बों में भारती के ब्लड सेल्स मिलने की पुष्टि हुई. हालांकि सुनील ने पूरा कमरा साफ कर दिया था, लेकिन बेंजिडाइन टेस्ट की वजह से खून के धब्बे मिल ही गए.

पुलिस व क्राइम ब्रांच की टीम ने इस बीच विधि विश्वविद्यालय की तरफ जाने वाले विभिन्न मार्गों के सीसीटीवी कैमरों के 22 मार्च की शाम से 23 मार्च की सुबह तक के फुटेज खंगाले, लेकिन सुनील या अन्य कोई संदिग्ध नजर नहीं आया.

एक फुटेज में बैग लादे एक युवक दिखा भी, लेकिन उस का चेहरा साफ नहीं दिखाई दे रहा था. अपर पुलिस अधीक्षक नगर (पूर्वी) का कहना है कि मार्ग से गुजरे एक आटो को संदेह के घेरे में लिया गया है. आशंका है कि सुनील 22 मार्च की रात आटो या किसी अन्य वाहन से भारती पांडेय के हाथ, पैर व सिर से भरा बैग ले कर राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के सामने उतरा होगा और वहां बैग को छोड़ कर चला गया होगा.

भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हुआ. इस के अगले दिन कृष्णानगर इलाके में बैग में महिला के शरीर के टुकड़े और 24 मार्च को पारा इलाके में बोरी में धड़ बरामद होने की खबर विभिन्न अखबारों में छपी, टीवी चैनलों के साथ सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई, लेकिन भारती के किसी भी दोस्त ने उस की सुध नहीं ली.

पुलिसकर्मियों ने उस के हाथ व चेहरे के फोटो ले कर कांशीराम कालोनी के लोगों से संपर्क किया, पोस्टर लगवाए, लेकिन उसे किसी ने नहीं पहचाना. न भारती के लापता होने की जानकारी पुलिस को दी. भारती का जेठ बाबूलाल भी चुप्पी साधे रहा. सुनील कनौजिया के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने पर पुलिस को पता चला कि उस ने 25 मार्च को अपने भाई बाबूलाल कनौजिया से बात करने के बाद फोन बंद कर लिया था.

इस पर पुलिस ने बाबूलाल से कड़ाई से पूछताछ की, तब खुलासा हुआ कि भारती की अन्य युवकों से दोस्ती के चलते सुनील बेहद नाराज था. जब सुनील 24 मार्च को भाई के घर खाना खाने आया तब उस ने पत्नी की हत्या की कोई जानकारी नहीं दी थी.

सुनील ने 25 मार्च को बाबूलाल को फोन किया था. उस ने बताया, ‘‘भाई, मैं ने अपनी भारती की हत्या कर दी है. उस के शव को भी ठिकाने लगा दिया है.’’

सुनील ने आगे कहा, ‘‘अब वह आत्महत्या करने जा रहा है.’’

बाबूलाल ने बताया कि वह सुनील से कुछ कहता, इस से पहले ही सुनील ने फोन काट दिया था. फिर उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. इस के बाद ही बाबूलाल ने पारा थाने में सुनील की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हुआ. इस के अगले ही दिन कृष्णानगर में बैग में उस की लाश मिली.

भारती की हत्या कर शव के टुकड़े करने के मामले में पुलिस आरोपित पति सुनील की लोकेशन का पता नहीं लगा पाई. हालांकि 25 मार्च के बाद से आरोपित का मोबाइल बंद है. इस मामले में पुलिस ने कई जगहों पर दबिश दी, लेकिन लापता कथित हत्यारे पति सुनील का कोई सुराग नहीं मिला.

इंसपेक्टर कृष्णानगर दिनेश मिश्रा के मुताबिक मामले की छानबीन की जा रही है. महिला के जेठ बाबूलाल से कई चरणों में पूछताछ की गई.

कपड़ों की तरह प्रेमियों को बदलने वाली स्वार्थी भारती ने अपने बच्चों की तरफ भी ध्यान नहीं दिया. उन्हें छोड़ कर उस ने अपने तीसरे प्रेमी के साथ शादी रचा ली. लेकिन जब वह चौथे प्रेमी से इश्क लड़ाने लगी तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ी. उस के तीसरे पति ने उस की हत्या कर उस की लाश को टुकड़ों में बांट दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दोस्ती की अधूरी कहानी : एकतरफा प्यार में प्रेमिका की हत्या

बीते 6 मार्च की सुबह की बात है. होटल माही-7 के रूम अटेंडेंट ने कमरा नंबर 107 के दरवाजे की कुंडी खटखटाई. लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई. उस ने 1-2 बार फिर कुंडी बजाई. फिर भी कमरे के अंदर कोई हलचल सुनाई नहीं दी.

परेशान हो कर रूम अटेंडेंट ने होटल के रिसैप्शन पर जा कर मैनेजर और अन्य कर्मचारियों को यह बात बताई. इस पर होटल के कर्मचारियों ने उस कमरे के बाहर पहुंच कर कई बार कुंडी खटखटाई. साथ ही तेज स्वर में आवाजें भी दीं. लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया. कर्मचारी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बात क्या है.

होटल कर्मचारियों ने खिड़की से अंदर झांक कर देखा तो उन्हें मामला कुछ गड़बड़ नजर आया. कमरे में ठहरा हुआ दिव्यांग युवक ओमप्रकाश जाखड़ फर्श पर पड़ा था. होटल कर्मचारी ओमप्रकाश जाखड़ को जानते थे. लग रहा था जैसे वह अचेत हो. कमरे में बैड पर एक युवती पड़ी दिख रही थी. खिड़की से देखने पर न तो युवक में कोई हलचल नजर आ रही थी और न ही युवती में. होटल कर्मचारियों ने इस बारे में पुलिस को सूचना देना मुनासिब समझा.

फोन पर मिली सूचना के आधार पर पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया. कमरे के अंदर बैड पर एक युवती पड़ी थी, जिस का मुंह कंबल से ढका हुआ था. गले पर गहरे निशान थे. साथ ही गले में कपड़ा भी बंधा हुआ था. उस की सांसें थम चुकी थीं.

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पुलिस अधिकारियों ने उस की नब्ज देखी, लेकिन उस में जीवन के लक्षण नजर नहीं आए. लग रहा था कि वह घंटों पहले मरी होगी. मौके के हालात से यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि युवती के साथ दुष्कर्म या सहवास तो नहीं हुआ था.

कमरे में फर्श पर पड़े दिव्यांग युवक ओमप्रकाश जाखड़ की सांसें चल रही थीं, वह अचेत था. पुलिस अधिकारियों ने ओमप्रकाश को तत्काल अस्पताल भिजवाया. युवती के शव को भी पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया. होटल के कमरे में युवती का शव और बेहोश युवक मिलने की बात सुन कर बड़ी संख्या में आसपास के लोग एकत्र हो गए. पुलिस ने होटल के कमरे की तलाशी ली. तलाशी में युवक युवती के शैक्षणिक दस्तावेज और 2-3 जोड़ी कपड़े मिले.

इस के अलावा सब्जियों पर छिड़कने वाला जहरीला कैमिकल भी मिला. इस से अंदाजा लगाया गया कि युवक ने जहरीला कैमिकल खा लिया होगा, जिस से वह अचेत हो गया था. यह बात साफ नहीं हो सकी कि युवती ने भी जहरीला कैमिकल खाया था या नहीं.

होटल वाले ओमप्रकाश को पहचानते थे, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि वह कहां का रहने वाला है. वहां मिले दस्तावेजों के आधार पर पता चला कि ओमप्रकाश जाखड़ सीकर में दासा की ढाणी निवासी हरलाल जाखड़ का बेटा था. युवती का नाम कल्पना (बदला हुआ नाम) था. वह भी सीकर की रहने वाली थी.

पुलिस ने होटल कर्मचारियों से युवक युवती के ठहरने के संबंध में पूछताछ की. पता चला कि ओमप्रकाश इसी होटल के पास डीजे की दुकान चलाता था. इसलिए होटल मालिक और होटल के सभी कर्मचारी उसे खूब अच्छी तरह जानते थे.

वह उस युवती के साथ 5 मार्च की शाम को अपने दोस्त श्रवण के साथ अर्टिगा कार से होटल आया था. होटल के कर्मचारियों ने उसे ठहरने के लिए कमरा नंबर 107 दिया था.

कमरे में ठहरने के बाद ओमप्रकाश ने अपने दोस्त श्रवण से बातें की थीं. बाद में उस ने अपने बिजनैस पार्टनर मनोज को बुला कर उस से भी कुछ बातें की थीं. मनोज को उस ने करीब 70 हजार रुपए भी दिए थे. 1-2 अन्य लोगों से भी उस ने मुलाकात की थी.

6 मार्च की सुबह करीब 7 बजे ओमप्रकाश ने अपने कमरे में चाय मंगा कर पी थी. बाद में उस ने अपने दोस्त श्रवण को होटल बुलाया. होटल से श्रवण और ओमप्रकाश कहीं गए थे. कुछ देर बाद दोनों वापस लौट आए थे. आपस में कुछ बातें करने के बाद ओमप्रकाश होटल के कमरे में चला गया और श्रवण वहां से लौट गया था.

काफी देर बाद जब होटल कर्मचारियों ने ओमप्रकाश के कमरे के दरवाजे की कुंडी खटखटाई तो अंदर से कोई हलचल सुनाई नहीं दी. इस पर पुलिस को सूचना दे दी गई थी. पूछताछ में यह बात सामने आई कि होटल में ठहरे ओमप्रकाश और कल्पना के बीच कई साल से प्रेम संबंध थे.

यह घटना राजस्थान के सीकर की है. होटल माही-7 जयपुर-झुंझुनू रोड पर है. कल्पना की मौत का पता चलने पर उस के घर वाले भी होटल पहुंच गए. कल्पना का शव देख कर उस का भाई गश खा कर जमीन पर गिर गया. वहां मौजूद लोगों ने उसे संभाला. काफी देर बाद वह होश में आया.

घर वालों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने एक दिन पहले यानी 5 मार्च को उद्योग नगर थाने में कल्पना की गुमशुदगी की सूचना दी थी. उस के परिजनों ने होटल मालिकों और कर्मचारियों पर संदेह जताते हुए पुलिस को बताया वे 5 मार्च की शाम को होटल आए थे और होटल में ओमप्रकाश की स्कूटी खड़ी देखी थी. स्कूटी वहां खड़ी देख कर उन्होंने कल्पना और ओमप्रकाश के बारे में पूछताछ की थी, लेकिन होटल वालों ने कहा था कि यहां कोई नहीं ठहरा है.

होटल में शव मिलने पर कल्पना के घर वालों ने थाना उद्योग नगर में दिव्यांग ओमप्रकाश जाखड़, होटल संचालक मनफूल जाखड़, अरविंद, सोनू जाखड़ और अन्य लोगों के खिलाफ अपहरण, सामूहिक ज्यादती और हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

परिजनों ने पुलिस को बताया कि एमए फाइनल में पढ़ने वाली कल्पना पड़ोस में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाती थी. वह 5 मार्च की शाम को भी घर से स्कूटी पर ट्यूशन पढ़ाने के लिए निकली थी, लेकिन वापस घर नहीं लौटी तो उन्होंने पुलिस में गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि करीब 6 महीने पहले कल्पना ने उन्हें बताया था कि ओमप्रकाश उसे फोन कर परेशान करता है. इस पर घर वालों ने ओमप्रकाश को समझाया था. इस के बावजूद ओमप्रकाश ने कहा था कि एक दिन वह कल्पना को उठा ले जाएगा. लेकिन कल्पना के घर वालों ने इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था. ओमप्रकाश कई साल पहले 8वीं कक्षा में कल्पना के साथ पढ़ा था.

उधर अचेत अवस्था में अस्पताल में भरती कराए गए दिव्यांग ओमप्रकाश की हालत नाजुक बनी हुई थी, इसलिए डाक्टरों ने सीकर से उसे जयपुर रैफर कर दिया.

कल्पना के परिजनों ने शव का पोस्टमार्टम मैडिकल बोर्ड से कराने और आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग करते हुए शव लेने से इनकार कर दिया. करीब 7 घंटे तक चली समझाइश में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ जल्द काररवाई का आश्वासन दिया. इस के बाद पोस्टमार्टम करवा कर कल्पना का शव उस के परिजनों को सौंपा गया.

इस दौरान पुलिस ने होटल के कमरे से घटना से संबंधित तथ्य जुटाए. प्रारंभिक जांच पड़ताल के साथसाथ होटल के सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर जब्त कर ली गई. होटल के 2 कर्मचारियों को भी पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया. पुलिस को होटल परिसर में दिव्यांग युवक ओमप्रकाश की स्कूटी भी खड़ी मिल गई.

पुलिस ने जो जांचपड़ताल शुरू की, लेकिन जांच से कई सवाल ऐसे उठे, जिन के जवाब मिलने पर ही जांच आगे बढ़ सकती थी. पहला सवाल तो यह था कि जब होटल के पास ही ओमप्रकाश की डीजे की दुकान थी, तो उसे युवती के साथ होटल वालों ने कमरा कैसे और किस आधार पर दिया.

दूसरे कमरे में ओमप्रकाश को जहरीला पदार्थ किस ने दिया और कब ला कर दिया. युवती का ओमप्रकाश से संपर्क कैसे और कब हुआ और वह घर से होटल तक कैसे पहुंची.

ओमप्रकाश दिव्यांग था, उसे उतारने चढ़ाने के लिए आमतौर पर किसी के सहारे की जरूरत पड़ती थी. फिर उस ने युवती की हत्या कैसे की होगी.

इन सवालों के जवाब पुलिस को ओमप्रकाश से ही मिल सकते थे, लेकिन दूसरे दिन 7 मार्च को अस्पताल में उस की मौत हो गई. हालांकि इस से पहले 6 मार्च की शाम को कुछ देर होश में आने पर उस ने पुलिस को बयान दे दिए थे. इन बयानों में उस ने कल्पना की हत्या की बात स्वीकार की थी. ओमप्रकाश ने भले ही पुलिस को बयान दे दिए थे, लेकिन विस्तृत पूछताछ नहीं होने से कई सवालों के जवाब पुलिस को अभी नहीं मिल सके थे.

अपने बयानों में ओमप्रकाश ने बताया कि वह कल्पना से प्रेम करता था और उस से शादी करना चाहता था. इस के लिए उस ने दासा की ढाणी के रहने वाले अपने दोस्त श्रवण के साथ मिल कर योजना बनाई थी. लेकिन कल्पना शादी के लिए तैयार नहीं थी.

कल्पना को समझाने के लिए वह उस के साथ होटल आ कर वहां ठहरा था. कल्पना के शादी से इनकार करने की बात पर दोनों के बीच काफी देर बहस चलती रही. इस बीच दोनों में झगड़ा हो गया. इस से वह तनाव में आ गया.

वह काफी देर तक सोचता रहा. कल्पना भी होटल के कमरे में बैड पर पड़ी रोती रही. आधी रात के बाद ओमप्रकाश ने होटल के कमरे में बैड पर बिछी बैडशीट को फाड़ कर अपने हाथों से कल्पना का गला घोंट दिया. वह तब तक उस के गले को दबाए रहा, जब तक उस की आंखें बाहर नहीं निकल आईं.

कल्पना की मौत हो जाने पर ओमप्रकाश उसी बैड पर लाश के पास बैठा रहा. वह आगे की बातें सोचने लगा. उसे होटल वालों से रात को ही यह पता चल गया था कि कल्पना के घर वाले उन्हें ढूंढ रहे हैं. उसे पता था कि यह मामला पुलिस में जाएगा तो पुलिस उसे तलाश करेगी. इसलिए उस ने भी अपनी जान देने का फैसला कर लिया.

सुबह उस ने होटल वालों से मंगा कर चाय पी. फिर अपने दोस्त श्रवण को फोन कर के होटल बुलाया. श्रवण कुछ ही देर में होटल आ गया. ओमप्रकाश ने उसे कल्पना की हत्या के बारे में बता दिया. साथ ही यह भी बता दिया कि अब वह भी जीवित नहीं रहेगा. ओमप्रकाश ने जहरीला पदार्थ खा कर अपनी जान देने की बात कही.

श्रवण ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन ओमप्रकाश नहीं माना. श्रवण और ओमप्रकाश जहरीला पदार्थ लाने के लिए बाजार गए. वहां से लौट कर ओमप्रकाश होटल के कमरे में चला गया और श्रवण अपने घर लौट गया. ओमप्रकाश ने होटल के कमरे में जा कर जहरीला पदार्थ खा लिया. इस से वह अचेत हो गया.

पुलिस के लिए अब सब से पहले श्रवण को ढूंढना जरूरी था. उसी से ओमप्रकाश और कल्पना के बारे में सारी बातें पता चल सकती थीं. पुलिस ने श्रवण की तलाश में उस के घर दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाते हुए मृतक ओमप्रकाश के बिजनैस पार्टनर मनोज और होटल मालिक अमित से पूछताछ की. मृतका कल्पना के घर वालों से भी पूछताछ कर पुलिस ने मामले की तह में जाने का प्रयास किया.

इस बीच पुलिस ने ओमप्रकाश के मोबाइल की जांचपड़ताल की, जिस से ओमप्रकाश और कल्पना की प्रेम कहानी सामने आ गई. पता चला कि दोनों के बीच लंबे समय से बातचीत हो रही थी. कल्पना की मौत से पहले 5 दिनों के भीतर दोनों के बीच करीब 6 घंटे से ज्यादा समय तक बातचीत हुई थी.

जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने 10 मार्च को वह अर्टिगा कार जब्त कर ली, जिस से ओमप्रकाश और श्रवण कल्पना के साथ होटल पहुंचे थे. यह कार दिनेश पंवार की थी. दिनेश कार को किराए पर चलाता था. श्रवण 5 मार्च को यह कार दिनेश से ले गया था. दिनेश के बारे में पता लगने पर पुलिस उस की तलाश में जुट गई थी.

कई दिनों तक तमाम लोगों से पूछताछ और भागदौड़ के बाद पुलिस ने 15 मार्च को होटल माही-7 के संचालक अमित कुमार उर्फ सोनू को गिरफ्तार कर लिया. वह भी दासा की ढाणी का रहने वाला था.

कई दिनों से फरार चल रहा दासा की ढाणी का ही रहने वाला श्रवण भी पुलिस की गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने श्रवण और अमित उर्फ सोनू से पूछताछ की तो होटल में कल्पना की हत्या और उस के प्रेमी ओमप्रकाश के जहर खा कर जान देने की अधूरी प्रेम कहानी सामने आ गई.

सीकर के दासा की ढाणी में रहने वाला ओमप्रकाश दिव्यांग था. वह पैरों से चलने में लाचार था, लेकिन उस का बदन मजबूत था. कल्पना सीकर की रहने वाली थी. कल्पना और ओमप्रकाश एक स्कूल में पढ़े थे. इसी दौरान ओमप्रकाश मन ही मन कल्पना से प्यार करने लगा.

कल्पना की नजर में ओमप्रकाश उस का सहपाठी था. वह उस से हंसबोल लेती थी. स्कूली पढ़ाई छोड़ने के बाद कल्पना तो पढ़ाई में आगे बढ़ती गई. लेकिन ओमप्रकाश आगे नहीं पढ़ सका.

उस ने कुछ साल पहले अपने दोस्त मनोज के साथ मिल कर शादीब्याह में डीजे बजाने का काम शुरू कर दिया था. इस के लिए उन्होंने होटल माही-7 के पास ही दुकान ले रखी थी. ओमप्रकाश और मनोज का डीजे का काम अच्छा चल रहा था. इस से दोनों को अच्छी कमाई हो जाती थी.

इस बीच कल्पना ग्रैजुएशन करने के बाद एमए की पढ़ाई करने लगी थी. पढ़ाई के साथ वह बच्चों के घर जा कर उन्हें ट्यूशन भी पढ़ाती थी. ओमप्रकाश उसे फोन करता रहता था. कल्पना उसे दोस्त समझ कर उस से बात कर लेती थी. कभी कभी ओमप्रकाश प्रेम प्यार की बातें भी करता था, लेकिन कल्पना उस की बातों को तवज्जो नहीं देती थी.

कुछ महीने पहले ओमप्रकाश ने कल्पना को फोन कर के प्यार की पींगें बढ़ाने की कोशिश की तो कल्पना ने अपने परिवार वालों से उस की शिकायत कर दी. इस पर कल्पना के घर वालों ने ओमप्रकाश को समझाया था, लेकिन वह समझने के बजाए उल्टी सीधी बातें करने लगा.

बाद में ओमप्रकाश ने जब कई बार मोबाइल पर काल की तो कल्पना ने उस से बात नहीं की. एक दिन गलती से कल्पना ने उस का फोन उठा लिया तो ओमप्रकाश अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगा. इस पर कल्पना ने भी पुरानी बातों को भुला दिया.

फिर न जाने ऐसा क्या हुआ कि ओमप्रकाश और कल्पना दोबारा मोबाइल पर बातें करने लगे. उन की रोजाना कई बार बातें होने लगीं. ओमप्रकाश कल्पना से शादी रचाने के सपने संजोने लगा था. कल्पना की उस के साथ सहानुभूति तो थी, लेकिन उस ने ओमप्रकाश के साथ शादी के बारे में कभी नहीं सोचा था.

ओमप्रकाश के लिए भी यह काम आसान नहीं था. इसलिए उस ने कल्पना को झांसे में ले कर सीकर से बाहर ले जा कर शादी करने की योजना बनाई.

इस काम में ओमप्रकाश ने अपने दोस्त श्रवण की मदद ली. श्रवण को उस ने अपनी पूरी योजना बता दी थी. श्रवण ने इस बारे में टैक्सी का काम करने वाले अपने दोस्त दिनेश पंवार से बात की. दिनेश ने एक प्रेमी जोड़े को देहरादून ले जा कर अपने परिचित दलाल के माध्यम से उन की शादी करवाई थी.

दिनेश ने श्रवण की देहरादून के अपने परिचित दलाल से बात भी करा दी. साथ ही सीकर से देहरादून जाने के लिए किराए पर अपनी अर्टिगा कार भी भेजने की बात पक्की कर ली. श्रवण ने ओमप्रकाश से बात कर 5 मार्च को गाड़ी भेजने की बात तय कर ली.

योजना के अनुसार, ओमप्रकाश ने 4 मार्च को ही कल्पना को कह दिया कि वह अगले दिन तैयार रहे, कहीं बाहर चलेंगे. ओमप्रकाश ने कल्पना को अपनी मार्कशीट और शैक्षणिक योग्यता के दस्तावेज के अलावा 2-3 जोड़ी कपड़े भी साथ लाने को कह दिया था. कल्पना ने थोड़ी नानुकुर के बाद साथ चलने की हामी भर ली. उस समय तक ओमप्रकाश ने कल्पना को शादी के बारे में नहीं बताया था.

6 मार्च को ओमप्रकाश और श्रवण अर्टिगा कार ले कर कल्पना के घर के पास पहुंच गए. कल्पना अपने घर से स्कूटी पर आई तो उस की स्कूटी को उन्होंने रास्ते में खड़ी करवा दी. फिर कल्पना को साथ ले कर ओमप्रकाश और श्रवण अर्टिगा कार से दिल्ली की ओर रवाना हो गए.

सीकर से कुछ आगे चलने पर ओमप्रकाश ने कल्पना को बताया कि वे कहीं बाहर चल कर शादी करेंगे. शादी की बात सुन कर कल्पना नाराज हो गई. इस पर ओमप्रकाश और उस के बीच विवाद होने लगा. दोनों के बीच काफी देर तक विवाद होता रहा.

इस पर ओमप्रकाश ने रास्ते में एक जगह गाड़ी रुकवा कर कल्पना को समझाने की कोशिश की, लेकिन कल्पना किसी भी कीमत पर ओमप्रकाश से शादी को तैयार नहीं हुई.

कल्पना के विरोध को देखते हुए ओमप्रकाश और श्रवण ने वापस सीकर लौटने का मन बना लिया. उन्होंने ड्राइवर से गाड़ी वापस सीकर ले चलने को कहा. सीकर पहुंच कर ओमप्रकाश ने कल्पना को किसी होटल के कमरे में बैठ कर बातें करने के लिए राजी कर लिया.

ओमप्रकाश, कल्पना और श्रवण 6 मार्च की शाम को अर्टिगा कार से होटल माही-7 पहुंच गए. ओमप्रकाश को होटल के सभी कर्मचारी जानते थे. वह भी होटल मालिकों से ले कर सभी कर्मचारियों को जानता था. इसलिए होटल स्टाफ ने उसे कमरा नंबर 107 दे दिया.

रात होने पर कल्पना अपने घर जाने को कहने लगी. ओमप्रकाश उसे समझाने की कोशिश करता रहा. कल्पना ने उस से शादी करने से साफतौर पर इनकार कर दिया तो दोनों में फिर विवाद शुरू हो गया. रात गहराने के साथ दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. अंतत: ओमप्रकाश ने कल्पना की हत्या करने का फैसला कर लिया.

आधी रात के बाद जब कल्पना बैड पर दूसरी ओर मुंह कर लेटी हुई अपनी गलतियों के बारे में सोच रही थी, तब ओमप्रकाश ने होटल के कमरे में बैड पर बिछी बैडशीट फाड़ कर उस से कल्पना का गला घोंट दिया. इस से कल्पना की आंखें बाहर निकल आईं और उस की सांसें थम गईं.

कल्पना की हत्या करने के बाद ओमप्रकाश अपने भविष्य के बारे में सोचने लगा. उसे अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा था. निस्संदेह पुलिस और कल्पना के घर वालों को सब कुछ पता चल जाना था. ओमप्रकाश ने सोचा कि पुलिस उसे गिरफ्तार करेगी तो उस की और परिवार की बदनामी होगी.

यह सोच कर उसे अपनी करतूत पर पछतावा होने लगा. लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था. काफी सोचविचार के बाद ओमप्रकाश ने फैसला किया कि वह भी अपनी जान दे देगा. उस ने मन ही मन सोचा कि जब कल्पना उस की नहीं हो सकी तो वह भी जी कर क्या करेगा.

सुबह होने पर ओमप्रकाश ने होटल स्टाफ से चाय मंगा कर पी. फिर अपने दोस्त श्रवण को फोन कर के होटल बुलाया. श्रवण को उस ने कल्पना की हत्या की बात बता दी और अपनी जान देने के फैसले के बारे में भी बता दिया. श्रवण ने उसे काफी समझाया, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ा रहा.

आखिर श्रवण उसे बाजार ले जाने को तैयार हो गया. ओमप्रकाश और श्रवण होटल से स्कूटी द्वारा बाजार गए, जहां ओमप्रकाश ने बीज भंडार की एक दुकान से 360 रुपए में सब्जियों पर छिड़कने वाला कीटनाशक खरीदा.

वहां से दोनों वापस होटल आ गए. श्रवण के वापस लौट जाने के बाद ओमप्रकाश ने होटल के कमरे में जा कर कीटनाशक खा लिया. कुछ घंटों तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद ओमप्रकाश ने भी दम तोड़ दिया.

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पुलिस ने बाद में कल्पना के अपहरण में सहयोगी मानते हुए अर्टिगा कार के मालिक दिनेश पंवार को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने वे 70 हजार रुपए भी बरामद कर लिए, जो ओमप्रकाश ने 5 मार्च की शाम को अपने बिजनैस पार्टनर मनोज को दिए थे. मनोज ने यह रकम होटल स्टाफ को रखने के लिए दे दी थी.

हत्या से पहले युवती से दुष्कर्म हुआ या नहीं, इस की स्लाइड जांच के लिए भेज दी गई. पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि ओमप्रकाश और कल्पना के बीच दिन में 10 से 15 बार तक बातें होती थीं.

यह तय है कि अगर श्रवण और होटल वालों ने गलतियां नहीं की होतीं तो शायद कल्पना और ओमप्रकाश आज जीवित होते. होटल वालों ने 5 मार्च की शाम को सच्चाई छिपा ली थी.

कल्पना के घर वाले जब पूछताछ करने होटल पहुंचे तो उन्होंने उस के वहां नहीं होने की बात कही, जबकि उस समय ओमप्रकाश और कल्पना होटल के कमरे में ही थे. श्रवण ने भी सब कुछ पता होने के बावजूद किसी को इस की जानकारी नहीं दी.

विडंबना यह रही कि ओमप्रकाश ने एकतरफा प्यार किया. कल्पना से कभी उस के दिल की बात नहीं पूछी. कल्पना भी उसे अपना दोस्त मानती रही. दोनों की नासमझी ने दोस्ती की कहानी को अधूरा छोड़ कर उस के पन्ने ही फाड़ दिए.

खून से रंगे हाथ : बहन और उसके प्रेमी की हत्या

कानपुर से 40 किलोमीटर दूर बेलाविधूना मार्ग पर एक कस्बा है रसूलाबाद. इसी कस्बे से सटा एक गांव है बादशाहपुर., जहां रहता था रामचंद्र का परिवार. उस के परिवार में पत्नी जमना के अलावा 2 बेटे रघुनंदन उर्फ रघु, शिवनंदन उर्फ शिव तथा 2 बेटियां सपना और सुरेखा थीं. रामचंद्र गांव का संपन्न किसान था. वह गांव का प्रधान भी रह चुका था, इसलिए गांव में लोग उस की इज्जत करते थे.

रामचंद्र की छोटी बेटी सुरेखा दसवीं में पढ़ रही थी, जबकि बड़ी बेटी सपना ने बारहवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. रामचंद्र उसे पढ़ालिखा कर मास्टर बनाना चाहता था. लेकिन सपना के पढ़ाई छोड़ देने से उस का यह सपना पूरा नहीं हो सका. पढ़ाई छोड़ कर वह घर के कामों में मां की मदद करने लगी थी.

गांव के हिसाब से सपना कुछ ज्यादा ही सुंदर थी. जवानी में कदम रखा तो उस की सुंदरता में और निखार आ गया. गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, तीखे नाकनक्श, गुलाबी होंठ और कंधों तक लहराते बाल हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे. अपनी इस खूबसूरती पर सपना को भी बहुत नाज था.

यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह इस तरह घूरती मानो खा जाएगी. उस की इन खा जाने वाली नजरों से ही लड़के उस से डर जाते थे. लेकिन रामनिवास सपना की इन नजरों से जरा भी नहीं डरा था. वह सपना के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. उस के पिता शिव सिंह की मौत हो चुकी थी. वह मां और भाइयों अनिल तथा रावेंद्र के साथ रहता था.

पिता की मौत के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी, इसलिए उसे अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी. पढ़ाई छोड़ कर उस ने अपनी खेती संभाल ली थी. उसे गानेबजाने का शौक था. उस का गला भी सुरीला था, वह भजनकीर्तन अच्छा गा लेता था. उस ने ‘धमाका’ नाम से एक कीर्तन मंडली बना ली और बुकिंग पर जाने लगा था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो रही थी.

सपना के भाई रघुनंदन की रामनिवास से खूब पटती थी. आसपड़ोस में होने की वजह से दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना होता था. एक दिन दोनों बैठे बातें कर रहे थे तो रघुनंदन ने कहा, ‘‘यार रामनिवास! मुझे भी भजनकीर्तन सिखा कर अपनी मंडली में शामिल कर लो. 4 पैसे मुझे भी मिलने लगेंगे.’’

रामनिवास रघुनंदन को अच्छा दोस्त मानता था, इसलिए उसे भजनकीर्तन सिखाने लगा. रामनिवास जब भी रघुनंदन के घर आता था, सपना उसे घर के कामों में लगी दिखाई देती थी. वैसे तो वह उसे बचपन से देखता आया था, लेकिन पहले वाली सपना में और अब की सपना में काफी फर्क आ गया था. पहले जहां वह बच्ची लगती थी, अब वही सपना जवान होने पर ऐसी हो गई थी कि उस पर से नजर हटाने का मन ही नहीं होता था.

एक दिन रामनिवास सपना के घर पहुंचा तो सामने वही पड़ गई. उस ने पूछा, ‘‘रघु कहां है?’’

‘‘मम्मी और भैया तो कस्बे गए हैं. कोई काम है क्या?’’ सपना बोली.

‘‘नहीं, कोई खास काम नहीं था, बस ऐसे ही आ गया था.’’

‘‘भइया को सचमुच भजनकीर्तन सिखा रहे हो या ऐसे ही टाइम पास करा रहे हो?’’

‘‘भजनकीर्तन गाना इतना आसान नहीं है, जो हफ्ता-10 दिन में सीख जाएगा. इसे भी सीखने में समय लगता है. अगर इसी तरह लगा रहा तो एक दिन जरूर सीख जाएगा. उस के बाद महीने में 5-6 हजार रुपए कमाने लगेगा.’’ रामनिवास ने कहा.

‘‘5-6 हजार रुपए कमाने लगेगा?’’

‘‘मेहनत करेगा तो क्यों नहीं कमाने लगेगा? मैं कमाता नहीं हूं? अच्छा अब मैं चलता हूं. रघु आए तो बता देना, मैं आया था.’’

‘‘बैठो, भइया आते ही होंगे.’’ सपना ने कहा तो वहीं पड़ी चारपाई पर रामनिवास बैठ गया.

रामनिवास बैठ गया तो सपना रसोई की ओर बढ़ी. उसे रसोई की ओर जाते देख रामनिवास ने कहा, ‘‘सपना, चाय बनाने की जरूरत नहीं है. मैं चाय पी कर आया हूं. मेरे लिए बेकार में चूल्हा जलाओगी.’’

‘‘चूल्हा जल रहा है और मैं ने अपने लिए चाय भी चढ़ा रखी है. उसी में थोड़ा दूध और डाल देना है.’’ कह कर सपना रसोई में चली गई.

थोड़ी देर बाद वह 2 गिलासों में चाय ले आई. एक गिलास उस ने रामनिवास को थमा दिया तो दूसरा खुद ले कर बैठ गई. चाय पीते हुए रामनिवास ने कहा, ‘‘सपना बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

‘‘कहो.’’ उत्सुक नजरों से देखते हुए सपना बोली.

‘‘अगर तुम जैसी खूबसूरत और ढंग से घर के काम करने वाली पत्नी मुझे मिल जाए तो मेरी किस्मत ही खुल जाए.’’

रामनिवास की इस बात का जवाब देने के बजाय सपना उठी और रसोई में चली गई. उसे इस तरह जाते देख रामनिवास को लगा वह नाराज हो गई है, इसलिए उस ने कहा, ‘‘सपना लगता है तुम नाराज हो गई? मेरी इस बात का कोई गलत अर्थ मत लगाना. मैं ने तो यूं ही कह दिया था.’’

इतना कह रामनिवास चला गया. लेकिन इस के बाद वह जब भी रघु के घर जाता, मौका मिलने पर सपना से 2-4 बातें जरूर कर लेता. उन की इस बातचीत का घर वालों को कोई ऐतराज भी नहीं था. क्योंकि रिश्ते में दोनों भाईबहन लगते थे. गांवों में तो वैसे भी रिश्तों को काफी अहमियत दी जाती है. फिर सपना और रामनिवास तो एक ही जाति और परिवार के थे.

लेकिन रामनिवास और सपना रिश्ते की मर्यादा निभा नहीं पाए. मेलमुलाकात और बातचीत में रामनिवास के दिलोदिमाग पर सपना की खूबसूरती और बातव्यवहार ने ऐसा असर डाला कि वह उसे जीवनसाथी के रूप में पाने के सपने देखने लगा. लेकिन अपने मन की बात वह सपना से कह नहीं पाता था. क्योंकि उस का रिश्ता ऐसा था कि इस तरह की बात कहना आसान नहीं था.

कहीं सपना बुरा मान गई और उस ने यह बात घर वालों से बता दी तो वह मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. लेकिन यह उस का भ्रम था. सपना के मन में भी वही सब था, जो उस के मन में था. जब दोनों ही ओर चाहत के दिए जल रहे हों तो खुलासा होने में ज्यादा देर नहीं लगती. ऐसा ही सपना और रामनिवास के साथ भी हुआ.

दोनों के बीच प्यार का इजहार हो गया तो उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. आए दिन होने वाली मुलाकातों ने दोनों को जल्दी ही करीब ला दिया. वे भूल गए कि रिश्ते में भाईबहन हैं. रामनिवास सपना के प्यार के गाने गाने लगा. इस तरह दोनों मोहब्बत की नाव में सवार हो कर काफी आगे निकल गए.

सपना और रामनिवास के बीच नजदीकियां बढ़ीं तो मनों में शारीरिक सुख पाने की कामना पैदा होने लगी. इस के बाद मौका मिला तो दोनों सारी मर्यादाएं तोड़ कर एकदूसरे की बांहों में समा गए. एक बार दोनों ने पाप के दलदल में कदम रखा तो जल्दी ही उस में गले तक समा गए. घर बाहर जहां भी मौका मिलता, वे शरीर की आग शांत करने लगे.

इसी का नतीजा था कि वे गांव वालों की नजरों मे आ गए. उन के प्यार के चर्चे पूरे गांव में होने लगे. उड़ते उड़ाते यह खबर रामचंद्र के कानों में पड़ी तो सुन कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. एकाएक उसे विश्वास नहीं हुआ कि रामनिवास उस की इज्जत पर हाथ डाल सकता है. वह तो उसे अपने बेटों की तरह मानता था. यह सब जान कर उस ने सपना पर तो पाबंदी लगा ही दी, रामनिवास से भी कह दिया कि वह उस के घर न आया करे.

बात इज्जत की थी, इसलिए रघुनंदन को दोस्त की यह हरकत अच्छी नहीं लगी. उस ने रामनिवास को समझाया ही नहीं, धमकी भी दी कि अगर उस ने अब उस की बहन पर नजर डाली तो वह भूल जाएगा कि वह उस का दोस्त और चचेरा भाई है. इज्जत के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. इस के बाद उस ने सपना की पिटाई भी की और उसे समझाया कि उस की वजह से गांव में सिर उठा कर चलना दूभर हो गया है. वह ठीक से रहे अन्यथा अनर्थ हो जाएगा.

रामचंद्र जानता था कि बात बढ़ाने पर उसी की बदनामी होगी, इसलिए बात बढ़ाने के बजाय वह पत्नी और बेटों से सलाह कर के सपना के लिए लड़के की तलाश करने लगा. इस बात की जानकारी सपना को हुई तो वह बेचैन हो उठी. एक रात मौका निकाल कर वह रामनिवास से मिली और रोते हुए बोली, ‘‘घर वाले मेरे लिए लड़का ढूंढ रहे हैं, जबकि मैं तुम्हारे अलावा किसी और से शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस में रोने की क्या बात है? हमारा प्यार सच्चा है, इसलिए दुनिया की कोई ताकत हमें जुदा नहीं कर सकती.’’ सपना को रोते देख रामनिवास विचलित हो उठा. वह सपना के आंसू पोंछ कर उस का चेहरा हथेलियों में ले कर बोला, ‘‘तुम मुझ पर भरोसा करो. मैं तुम्हारे साथ बिताए मधुर क्षणों को कैसे भूल सकता हूं? मैं ने तुम्हें मनप्राण से चाहा है. मेरे रोमरोम में तुम्हारा प्यार रचाबसा है. तुम्हें क्या लगता है कि तुम से अलग हो कर मैं जी पाऊंगा, बिलकुल नहीं.’’

यह कहतेकहते रामनिवास की आंखें भर आईं. उस की आंखों में आंखें डाल कर सपना बोली, ‘‘मुझे पता है कि हमारा प्यार सच्चा है, तुम दगा नहीं दोगे. फिर भी न जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है. अच्छा, अब मैं चलती हूं. कोई खोजते हुए कहीं आ न जाए.’’

‘‘ठीक है, मैं कोई योजना बना कर तुम्हें बताता हूं.’’ कह कर रामनिवास अपने घर की ओर चल पड़ा तो मुसकरती हुई सपना अपने घर चली गई.

रामचंद्र सपना के लिए लड़का ढूंढ़ढूंढ़ कर थक गया, लेकिन कहीं शादी तय नहीं हुई. वह जहां भी जाता, बेटी की चरित्रहीनता आड़े आ जाती. शादी तय न होने से जहां सपना के घर वाले परेशान थे, वहीं सपना और रामनिवास खुश थे. इस बीच घर वाले थोड़ा लापरवाह हो गए तो वे फिर से चोरीछिपे मिलने लगे थे.

एक दिन रघुनंदन ने खेतों पर सपना और रामनिवास को हंसीमजाक करते देख लिया तो उस ने सपना की ही नहीं, रामनिवास की भी जम कर पिटाई की. इसी के साथ धमकी भी दी कि अगर फिर कभी उस ने दोनों को इस तरह देख लिया तो उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेगा.

रघुनंदन की इस पिटाई से दोनों का प्यार कम हो जाना चाहिए था. लेकिन उन का प्यार कम होने के बजाए बढ़ गया था. रघुनंदन ने रामनिवास की शिकायत उस के घर वालों से की तो उन्होंने कहा, ‘‘इस सब से तो अच्छा है रामनिवास और सपना की शादी कर दी जाए.’’

इस से रघुनंदन का गुस्सा और बढ़ गया. पैर पटकते हुए वह घर वापस आ गया. फसल की रखवाली के लिए रामनिवास रात को खेतों पर सोता था. सपना को जब कभी मौका मिलता, वह रात में उस से मिलने खेतों पर पहुंच जाती थी. काम हो जाने के बाद वह दबे पांव घर आ जाती.

27 मार्च की सुबह 4 बजे के आसपास सपना घर से दबे पांव रामनिवास से मिलने के लिए निकली. सपना को घर से निकलते हुए रघुनंदन ने देख लिया. उसे संदेह हुआ तो वह उस के पीछेपीछे चल पड़ा.

खेत पर उस ने जो देखा, सन्न रह गया. सपना और रामनिवास आपत्तिजनक स्थिति में थे. उन्हें इस तरह देख कर रघुनंदन की देह में आग लग गई. उस ने कहा, ‘‘हरामजादे, मना करने के बावजूद तू ने मेरी इज्जत पर हाथ डाला. आज मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

इतना कह कर रघुनंदन ने दोनों हाथों से कुल्हाड़ी हवा में लहराई और पूरी ताकत से रामनिवास की गरदन पर वार कर दिया. इसी एक वार में रामनिवास धराशाई हो गया. गुस्से में रघुनंदन ने ताबड़तोड़ कई वार कर के उसे खत्म कर दिया.

भाई का गुस्सा देख कर सपना जान बचा कर घर की ओर भागी. रघुनंदन ने पीछे से आवाज दी, ‘‘भाग कर कहां जाएगी. मैं आज तुझे भी नहीं छोड़ूंगा.’’

कहते हुए रघुनंदन ने सपना को दौड़ा लिया. सपना घर तक तो पहुंच गई, लेकिन वह खुद को कमरे में बंद कर पाती, उस के पहले ही आंगन में रघुनंदन ने उस पर भी उसी कुल्हाड़ी से वार कर दिया. सपना चीखी तो घर वाले भाग कर आ गए. उन्होंने रघुनंदन को पकड़ कर कुल्हाड़ी छीन ली. लेकिन सपना पर एक वार जो पड़ चुका था, उस से वह बुरी तरह जख्मी हो गई थी. उस का शरीर खून से तरबतर हो गया.

सूरज की किरण फूटने के साथ ही इस सनसनीखेज घटना की जानकारी रामनिवास के घर वालों और गांव वालों को हुई तो कोहराम मच गया. किसी ने इस घटना की खबर थाना रसूलाबाद पुलिस को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी सुनील कुमार सिपाहियों को साथ ले कर गांव बादशाहपुर पहुंच गए.

सब से पहले तो थानाप्रभारी ने गंभीर रूप से घायल सपना को इलाज के लिए अस्पताल भिजवाया. इस के बाद वहां जा पहुंचे, जहां रामनिवास की लाश पड़ी थी.

रामनिवास की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर पर 8-10 गहरे घाव थे, जिस से उस की मौत हो चुकी थी. घटनास्थल का निरीक्षण कर उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इस के बाद पूछताछ में मृतक रामनिवास के भाई अनिल ने बताया कि रामनिवास की हत्या रघुनंदन ने की थी. वह उस की बहन सपना से प्यार करता था और शादी करना चाहता था. रघुनंदन इस बात का विरोध करता था. आज उस ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया तो रामनिवास की हत्या कर दी.

थानाप्रभारी सुनील कुमार ने अनिल की ओर से रामनिवास की हत्या का मुकदमा रघुनंदन के खिलाफ दर्ज कर के उसे उस के घर से हिरासत में ले लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के वह कुल्हाड़ी भी बरामद करा दी, जिस से उस ने रामनिवास की हत्या की थी और सपना को घायल किया था.

पूछताछ के बाद थाना रसूलाबाद पुलिस ने अभियुक्त रघुनंदन को कानपुर देहात की मांती कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिय गया. कथा लिखे जाने तक रघुनंदन की जमानत नहीं हुई थी. सपना अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एकतरफा प्यार में मासूम की हत्या

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर से कोई 40-45 किलोमीटर दूर बसा है बीरबल अकबरपुर गांव. इसी गांव में शिवबालक निषाद अपनी पत्नी ममता और 2 बेटियों व एक बेटे के साथ रहता था.

बात 25 जनवरी, 2019 की है. शिवबालक शाम को घर लौटा तो उस का 10 वर्षीय बेटा विवेक घर में नहीं दिखा. पूछने पर बड़ी बेटी ने बताया कि विवेक दोपहर 12 बजे स्कूल से लौट कर खाना खाने के बाद घर से यह कह कर निकला था कि खेलने जा रहा है, तब से वह घर नहीं लौटा.

बेटी की बात सुन कर शिवबालक का माथा ठनका. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बेटा कहां चला गया जो अभी तक नहीं आया. पत्नी घर में नहीं थी, वह अपने मायके फफुआपुर गई हुई थी, इसलिए वह बेटे को ढूंढने के लिए निकल पड़ा. उस ने पड़ोस के बच्चों से पूछा तो उन्होंने बताया कि दोपहर के समय तो विवेक उन के साथ खेल रहा था. उस के बाद कहां गया, उन्हें पता नहीं.

शिवबालक के पड़ोस में हरिकिशन का घर था. शिवबालक ने उस के मंझले बेटे अनिल को विवेक के गायब होने की बात बताई तो वह भी परेशान हो उठा. वह गांव के युवकों को ले कर शिवबालक के साथ विवेक को ढूंढने में जुट गया. इन लोगों ने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विवेक का कहीं पता नहीं चला. घुरऊपुर, गुरडूनपुरवा टैंपो स्टैंड, सजेती बसस्टाप, बाजार आदि जगहों पर भी उस की खोज की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

शिवबालक ने बेटे के गायब होने की जानकारी पत्नी को दे दी थी. ममता को यह खबर मिली तो वह तुरंत गांव लौट आई. उस ने भी अपने हिसाब से विवेक को खोजा. आधी रात तक खोजबीन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला.

किसी अनहोनी की आशंका में शिवबालक और ममता ने जैसेतैसे रात बिताई. रात भर उन के मन में तरहतरह के खयाल आते रहे. सवेरा होते ही पड़ोसी हरिकिशन का बेटा अनिल शिवबालक के पास आया. वह बोला, ‘‘चाचा, विवेक को हम लोगों ने बहुत खोज लिया. अब हमें पुलिस का सहारा लेना चाहिए. चलो थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं.’’

उस की बात शिवबालक को भी ठीक लगी. तब दोनों थाना सजेती जा पहुंचे. सुबह का समय था, इसलिए एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह थाने में ही मौजूद थे. शिवबालक ने उन्हें अपने बेटे के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने विवेक की गुमशुदगी दर्ज करा कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

अमरेंद्र बहादुर भी कई सिपाहियों के साथ गांव के नजदीक के खेतों में बच्चे को ढूंढने लगे. पुलिस के साथ गांव वाले भी थे. वह भी पुलिस की मदद कर रहे थे. इस बीच पुलिस ने गौर किया कि विवेक की खोज में अनिल निषाद कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखा रहा है.

सर्च अभियान के दौरान ही अनिल ने एसओ से कहा, ‘‘दरोगाजी, चलिए उधर सरसों के खेत में देख लेते हैं.’’

अनिल की यह बात एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह की समझ में नहीं आई कि यह सरसों के खेत की ओर चलने को क्यों कह रहा है. फिर भी वह बिना कुछ कहे अनिल के पीछेपीछे सरसों के खेत की ओर चल पडे़.

खेत के अंदर जा कर उस ने सरसों के कुछ पौधों को हाथ से इधरउधर किया, फिर चीख कर बोला, ‘‘सर, विवेक की लाश यहां पड़ी है.’’

उस की बात सुनते ही एसओ तुरंत उस के पास पहुंच गए. सचमुच सरसों की फसल के बीच विवेक की लाश पड़ी थी. लाश को घासफूस से ढका गया था. लेकिन हवा के झोंकों से घासफूस बिखर गया था. जिस से लाश साफ दिखाई दे रही थी.

बेटे की लाश देख कर शिवबालक दहाड़ें मार कर रोने लगा. इस के बाद तो गांव में जिस ने भी सुना, वही लाश देखने भाग खड़ा हुआ. सूचना मिलने पर मृतक विवेक की मां ममता भी रोतीबिलखती वहां पहुंच गई और शव से लिपट कर रोने लगी.

इधर थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर ने बच्चे की लाश बरामद करने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. नतीजतन कुछ देर बाद एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह और सीओ (घाटमपुर) शैलेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

उन्हें उस के शरीर पर कोई घाव दिखाई नहीं दिया. गले के निशान से ही अंदाजा लग गया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. उस के मुंह और नाक में मिट्टी भी भरी हुई थी. हत्या के समय हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि मृतक की आवाज न निकल सके.

सीओ शैलेंद्र सिंह ने विवेक के पिता शिवबालक से पूछा कि उन्हें बेटे की हत्या का किसी पर शक तो नहीं है.

‘‘साहब, बीते साल जून महीने में गांव के इंद्रपाल निषाद के बेटे सर्वेश ने मेरी बेटी नीलम (परिवर्तित नाम) को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी. इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई तो पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भेज दिया था. 2 महीने पहले ही वह जेल से छूट कर आया है. हो सकता है मेरे बेटे की हत्या में उस का हाथ हो.’’ शिवबालक ने बताया.

उसी समय थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर सिंह की निगाह अनिल निषाद पर पड़ी. वह कुछ दूरी पर एक बच्चे से बात कर रहा था और उसे अंगुली दिखा कर धमका रहा था.

थानाप्रभारी की निगाह में अनिल पहले ही शक के घेरे में था. अब उन का शक और गहरा गया. जिस बच्चे को वह धमका रहा था, उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है, किस गांव में रहते हो?’’

‘‘मेरा नाम सुमित है. मैं इसी गांव में रहता हूं.’’ बच्चे ने बताया.

‘‘तुम विवेक को जानते थे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां साहब, वह मेरा पक्का दोस्त था. वह कक्षा 3 में और मैं कक्षा 4 में पढ़ता हूं.’’

‘‘विवेक को कल किसी के साथ जाते देखा था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां साहब, अनिल उसे खेतों की ओर ले गया था. अनिल ने मुझे 20 रुपए दे कर विवेक को बुलवाया था. तब मैं विवेक को बुला लाया था. इस के बाद अनिल उसे खेतों की तरफ ले कर चला गया था. अनिल अभी मुझे इसी बात की धमकी दे रहा था कि यह बात किसी को न बताना.’’ सुमित ने बताया.

सुमित ने जो बातें पुलिस को बताईं, उस से अनिल पूरी तरह से शक के घेरे में आ गया. उधर शिवबालक के बयानों से सर्वेश पर भी शक था. गांव वालों से भी पुलिस को पता चला कि सर्वेश और अनिल गहरे दोस्त हैं. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह को दे दी तो उन्होंने उन दोनों लड़कों से पूछताछ करने के निर्देश दिए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के विवेक का शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय, कानपुर भिजवा दिया. फिर उन्होंने सर्वेश निषाद और अनिल को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आए.

पुलिस ने सब से पहले सर्वेश निषाद को अनिल से अलग ले जा कर विवेक की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विवेक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सर्वेश ने बताया कि उस ने अपने दोस्त अनिल की मदद से विवेक की हत्या की थी.

सर्वेश निषाद ने हत्या का जुर्म कबूला तो अनिल को भी टूटते देर नहीं लगी. दोनों से पूछताछ के बाद विवेक की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर से 47 किलोमीटर दूर एक बड़ी आबादी वाला गांव बीरबल अकबरपुर बसा हुआ है. यह एक ऐतिहासिक गांव है. मुगल बादशाह अकबर का यहां किला है, जो समय के थपेड़ों के साथ अब खंडहर में तब्दील हो गया है.

यमुना किनारे बसे इस गांव की आबादी लगभग 10 हजार है. बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर जब आगरा से अकबरपुर आते थे, तो इसी किले में दरबार लगाते थे.

इसी किले में अकबर की मुलाकात बीरबल से हुई थी. बीरबल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया. अपनी बुद्धिमत्ता के चलते बीरबल दरबार में चर्चित हुए तो इस अकबरपुर गांव का नाम बीरबल अकबरपुर पड़ गया. समय बीतते सरकारी रिकौर्ड में भी गांव का नाम बीरबल अकबरपुर दर्ज हो गया.

हाजिरजवाबी और बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाने वाले बीरबल का जन्म अकबरपुर गांव से एक किलोमीटर दूर तिलौची में हुआ था. बीरबल के बाल्यावस्था के समय ही उन के पिता की मृत्यु हो गई थी. निर्धन परिवार में जन्मे बीरबल का पालनपोषण उन की मां ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में किया था. खेतों पर मजदूरी करने के दौरान मां बीरबल को बांस की टोकरी में लिटा कर लाती थीं और खेत के एक कोने में टोकरी को रख देती थीं.

कहा जाता है कि एक रोज एक साधु खेत से हो कर गुजर रहा था, तभी उस की नजर बीरबल पर पड़ी. उस साधु ने बीरबल की हस्तरेखा तथा मस्तक की लकीरों को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘माई, तुम्हारा यह लाल बड़ा बुद्धिमान होगा. यह अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा बड़ेबड़ों से मनवाएगा और पूरे देश में चर्चित होगा. यह राजदरबारी होगा.’’

उस साधु की बात सुन कर बीरबल की मां उस के चरणों में झुक गईं और बोलीं, ‘‘बाबा, मैं मजदूरी करती हूं. बेहद गरीब हूं. तुम्हें दक्षिणा भी नहीं दे सकती और न ही भोजन करा सकती हूं. मुझे क्षमा करना.’’ कहते हुए वह रोने लगीं.

साधु बोला, ‘‘रो मत माई, मैं तुम से कुछ मांगने नहीं आया हूं. मैं तो इधर से जा रहा था तो मेरी नजर पड़ गई.’’

इस के बाद वह साधु बीरबल को आशीर्वाद दे कर चला गया. समय बीतते इस साधु की भविष्यवाणी सच निकली. बीरबल, अकबर के राजदरबारी बने और अपनी हाजिरजवाबी के लिए चर्चित हुए.

इसी बीरबल अकबरपुर गांव में शिवबालक निषाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा विवेक था.

शिवबालक ड्राइवर था. वह लोडर चलाता था. इस के अलावा उस के पास 3 बीघा खेती की जमीन भी थी. लेकिन वह जमीन ऊसरबंजर थी. उस में ज्वारबाजरा के अलावा कोई दूसरी फसल नहीं होती थी. अतिरिक्त आमदनी के लिए शिवबालक ने दूध का व्यवसाय शुरू कर दिया था. वह सुबह उठ कर गांव से दूध इकट्ठा करता फिर दूध को घाटमपुर कस्बा ले जा कर बेचता था.

वक्त यों ही गुजरता गया. वक्त के साथ शिवबालक के बच्चे भी सालदरसाल बड़े होते गए. बड़ी बेटी नीलम 14 साल की उम्र पार कर चुकी थी. तीनों बच्चे गांव के एसएस शिक्षा सदन स्कूल में पढ़ते थे. नीलम नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शारदा के घर से कुछ दूरी पर सर्वेश निषाद रहता था. वह एक अच्छे परिवार का था. सर्वेश अपने पिता की 3 संतानों में मंझला था. वह थोक में सब्जी बेचने का काम करता था. गांव के किसानों से सस्ते दाम पर सब्जियां खरीद कर उन्हें कानपुर की नौबस्ता थोक सब्जी मंडी में अच्छे दामों पर बेचा करता था.

चूंकि सर्वेश अच्छा कमाता था, सो खूब ठाटबाट से रहता था. गले में सोने की चेन, अंगुलियों में अंगूठियां और कलाई में महंगी घड़ी उस की पहचान थी. उस के पास महंगा मोबाइल रहता था. सर्वेश जिस तरह से अच्छी कमाई करता था, उसी तरह शराब और अय्याशी में वह अपनी कमाई लुटाता था.

उस के पिता इंद्रपाल उस की इस फिजूलखर्ची से परेशान थे. उन्होंने उसे बहुत समझाया और डांटा फटकारा भी लेकिन सर्वेश का रवैया नहीं बदला.

एक रोज नीलम स्कूल जा रही थी, तभी सर्वेश की नजर उस पर पड़ी. खूबसूरत नीलम को देख कर सर्वेश का मन मचल उठा. वह उसे फांसने का तानाबाना बुनने लगा. मौका मिलने पर वह उस से बात करने का प्रयास करता. लेकिन नीलम उसे झिड़क देती थी. तब सर्वेश खिसिया जाता.

आखिर जब उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने एक रोज मौका मिलने पर नीलम का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारी खूबसूरती ने मेरा चैन छीन लिया है. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.’’

नीलम अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली, ‘‘सर्वेश, तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो, मैं तुम्हारी जातिबिरादरी की हूं और इस नाते तुम मेरे भाई लगते हो. भाई को बहन से इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए.’’

‘‘प्यार अंधा होता है नीलम. प्यार जातिबिरादरी नहीं देखता.’’ वह बोला.

‘‘होगा, लेकिन मैं अंधी नहीं हूं. मैं ऐसा नहीं कर सकती. नफरत करती हूं. और हां, आइंदा कभी मेरा रास्ता रोकने या हाथ पकड़ने की कोशिश मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा, समझे.’’ नीलम ने धमकाया.

सर्वेश समझ गया कि नीलम अब ऐसे नहीं मानेगी. उसे अपनी खूबसूरती और जवानी का इतना घमंड है तो वह उस के घमंड को हर हाल में तोड़ कर रहेगा.

सर्वेश का एक दोस्त था अनिल निषाद. दोनों ही हमउम्र थे सो उन में खूब पटती थी. एक रोज दोनों शराब पी रहे थे, उसी दौरान सर्वेश बोला, ‘‘यार अनिल, मैं नीलम से प्यार करता हूं, लेकिन वह हाथ नहीं रखने दे रही.’’

‘‘देख सर्वेश, मैं एक बात बताता हूं कि नीलम ऐसीवैसी लड़की नहीं है. उस का पीछा छोड़ दे. कहीं ऐसा न हो कि उस का पंगा तुझे भारी पड़ जाए.’’ अनिल ने सर्वेश को समझाया.

‘‘अरे छोड़ इन बातों को, मैं भी जिद्दी हूं. मैं आज चैलेंज करता हूं कि नीलम अगर राजी से नहीं मानी तो मुझे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा.’’ सर्वेश ने कहा.

सर्वेश ने नीलम के ऊपर लाख डोरे डालने की कोशिश की लेकिन हर बार उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा. बात 13 जून, 2018 की है. उस रोज शाम 5 बजे नीलम दिशा मैदान जाने को घर से निकली, तभी सर्वेश ने उस का पीछा किया. नीलम जैसे ही झाडि़यों की तरफ पहुंची, तभी सर्वेश ने उसे दबोच लिया और उसे जमीन पर पटक कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगा.

नीलम उस की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी लेकिन सर्वेश पर जुनून सवार था. तब नीलम ने हिम्मत जुटाई और सर्वेश के हाथ पर दांत से काट लिया. सर्वेश की पकड़ ढीली हुई तो वह चिल्लाती हुई सिर पर पैर रख कर गांव की ओर भागी. अपने घर पहुंचते ही नीलम मूर्छित हो कर देहरी पर गिर पड़ी.

ममता ने नीलम को अस्तव्यस्त कपड़ों में देखा तो समझ गई कि उस के साथ क्या हुआ है. मां ने नीलम के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो कुछ देर बाद उस ने आंखें खोल दीं. उस के बाद उस ने मां को सर्वेश की करतूत बताई. यह सुन कर ममता गुस्से से भर उठी.

वह शिकायत ले कर सर्वेश के पिता इंद्रपाल के पास पहुंची तो उस ने बेटे को डांटनेसमझाने के बजाय उस का पक्ष लिया और उलटे उस की बेटी नीलम के चरित्र पर ही अंगुली उठाने लगा.

ममता ने यह बात अपने पति को बताई. इस के बाद दोनों पतिपत्नी थाना सजेती पहुंच गए. उन्होंने सर्वेश के खिलाफ दुष्कर्म की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हुई और आननफानन में सर्वेश को गिरफ्तार कर कानपुर जेल भेज दिया.

सर्वेश 4 महीने जेल में रहा. 20 अक्तूबर, 2018 को उस की जमानत हुई. जेल से बाहर आने के बाद सर्वेश के दिल में ममता और उस की बेटी नीलम के प्रति बदले की आग भभक रही थी. क्योंकि उन की वजह से वह जेल जो गया था.

बदला कैसे लिया जाए, इस विषय पर उस ने अपने दोस्त अनिल से विचारविमर्श किया तो तय हुआ कि ममता के कलेजे के टुकड़े विवेक को मार दिया जाए. विवेक शिवबालक का एकलौता बेटा था. इस के बाद दोनों ने योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे.

25 जनवरी, 2019 को अपराह्न 2 बजे शिवबालक का 10 वर्षीय बेटा विवेक अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा था, तभी सर्वेश की नजर उस पर पडी़. अनिल भी उस के साथ था. सर्वेश ने अनिल के कान में कुछ कानाफूसी की फिर गांव के बाहर चला गया.

इधर अनिल ने विवेक के साथ खेल रहे सुमित को अपने पास बुलाया और उसे 20 रुपए का नोट दे कर कहा, ‘‘सुमित, तुम विवेक को ले कर गांव के बाहर ले आओ. वहां तुम दोनों को बिस्कुट, टौफी खिलाएंगे.’’

सुमित लालच में आ गया. वह विवेक को ले कर गांव के बाहर पहुंच गया. अनिल वहां विवेक के आने का ही इंतजार कर रहा था.

अनिल ने सुमित को वहीं से वापस कर दिया. वह विवेक को बहला कर सरसों के खेत पर ले गया. वहां सर्वेश पहले से मौजूद था. नफरत से भरे सर्वेश ने विवेक का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए खेत के अंदर ले गया. और विवेक को जमीन पर पटक कर बोला, ‘‘तेरी बहन ने मुझे जेल भिजवाया था. उस का बदला आज तुझे जान से मार कर लूंगा.’’

अनिल जो अब तक खेत के बाहर रखवाली कर रहा था, वह भी खेत के अंदर पहुंच गया. इस के बाद दोनों मिल कर विवेक का गला दबाने लगे. विवेक चीखने लगा तो दोनों ने गला दबाकर विवेक को मार डाला और फिर लाश को घासफूस से ढक कर वापस घर आ गए.

इधर शाम 5 बजे शिवबालक घर आया तो उसे विवेक दिखाई नहीं दिया, विवेक के बारे में उस ने शारदा से पूछा तो उस ने गली में खेलने की बात बताई. लेकिन शिवबालक का माथा ठनका.

वह उस की खोज में जुट गया. लेकिन विवेक नहीं मिला. दूसरे दिन उस की लाश सरसों के खेत में पुलिस की मौजूदगी में मिली. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो बदला लेने के लिए मासूम की हत्या का परदाफाश हुआ.

27 जनवरी, 2019 को थाना सजेती पुलिस ने अभियुक्त सर्वेश निषाद व अनिल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित