Murder Story : प्यार के लिए दोस्त को जिंदा जलाया

Murder Story : सतपाल ने अपने लंगोटिया यार को खत्म करने का ऐसा खौफनाक प्लान बनाया कि रुह तक कांप जाए. उस ने नरेंद्र को जम कर शराब पिलाने के बाद उसी की कार में डाल कर जिंदा जला दिया. आखिर एक दोस्त क्यों बना गद्दार? पढ़ें, यह दिलचस्प कहानी.

एक दिन जब नरेंद्र टैक्सी ले कर चला गया और तीनों बच्चे स्कूल चले गए तो रीना ने अपने प्रेमी सतपाल को फोन कर दिया, ”हैलो सतपाल, कैसे हो?’’ रीना ने पूछा.

”ये मत पूछो मुझे कि मैं कैसा हूं रीना. तुम्हारी याद से तो मेरा एकएक पल गुजारना मुश्किल हो रहा है.’’ सतपाल ने कहा.

”सतपाल, आज तुम से मिल कर कुछ जरूरी बात करनी है. तुम गोहाना चौराहे पर आ जाना. मैं घर का सामान खरीदने का बहाना बना कर वहां पर आ जाऊंगी. बहुत जरूरी काम है, अच्छा फोन रखती हूं.’’ कहते हुए रीना ने फोन काट दिया. सतपाल अपनी बाइक से जैसे ही गोहाना के चौराहे पर पहुंचा तो उस ने रीना को फोन कर दिया. रीना के बच्चे उस समय स्कूल गए हुए थे. वह तुरंत चौराहे पर पहुंची तो सतपाल उसे अपनी बाइक पर बिठा कर एक रेस्टोरेंट में ले गया, जहां पर दोनों एक केबिन में बैठ गए. सतपाल ने चाय पकौड़ी का आर्डर दे दिया.

”हां रीना, बताओ, क्या विशेष काम है? क्या बात करना चाहती हो मुझ से?’’ सतपाल ने पूछा.

”ये देखो, आजकल नरेंद्र मेरी किसी तरह से रोजरोज जानवरों की तरह कुटाई कर रहा है.’’ कहते हुए रीना ने अपनी पीठ दिखाई.

सतपाल ने देखा कि उस की पीठ पर डंडे के नीले निशान बने हुए थे. उस के चेहरे और होंठों पर भी पिटाई के निशान साफसाफ दिखाई दे रहे थे.

”रीना, अब तो पानी सिर से ऊपर जा रहा है. बोलो, मैं क्या मदद कर सकता हूं.’’ सतपाल ने रीना के हाथों को सहलाते हुए कहा.

”देखो सतपाल, अब मैं नरेंद्र के साथ एक पल भी रहना नहीं चाहती हूं. तुम अपनाओगे मुझे?’’ रीना ने उस की आंखों में देखते हुए कहा.

”रीना, मैं तुम्हारे लिए सब कुछ कर सकता हूं. तुम्हारे लिए तो मैं अपनी बीवी को भी छोड़ सकता हूं.’’ सतपाल ने रीना की आंखों में देखते हुए कहा.

”तो फिर ठीक है, अब तुम्हें नरेंद्र नामक कांटे को हमारी जिंदगी से दूर करना होगा. बोलो, क्या तुम तैयार हो? या फिर ऐसे ही आशिकी का दम भर रहे हो?’’ रीना ने साफसाफ कह डाला.

”इस में यदि हम फंस गए तो फिर हम दोनों ही जेल चले जाएंगे.’’ सतपाल ने आशंकित होते हुए कहा.

”मुझे पता था कि तुम केवल नाम के ही शेर हो. अरे मेरे पास ऐसा प्लान है कि हमारे ऊपर कोई रत्ती भर का शक भी नहीं कर सकेगा. फिर हम दोनों आराम से साथ रह सकेंगे.’’ यह कहते हुए रीना ने सतपाल के कान में अपना गोपनीय प्लान बता दिया.

”रीना यार, वाकई में तुम्हारा प्लान तो बड़ा सटीक है. ऐसे में हम दोनों के ऊपर कभी आंच तक नहीं आ पाएगी.’’ सतपाल ने खुशी के मारे रीना के दोनों हाथ पकड़ लिए.

”अच्छा, अब काफी देर हो चुकी है, आजकल नरेंद्र कभी भी घर पर आ धमकता है. बस तुम अब उस से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दो.’’ यह कहते हुए रीना वहां से चली गई.

साजिश के तहत एक दिन सतपाल नरेंद्र से जा कर मिला और उस के पैरों पर गिर कर माफी मांगते हुए बोला, ”नरेंद्र भाई, मैं अपनी भूल स्वीकार करता हूं, तुम मेरे बचपन के दोस्त हो, तुम्हारे बगैर मुझे एक पल काटना भी दूभर हो गया है. मुझ पर विश्वास रखो, मैं अब दोबारा रीना भाभी से कभी कोई ऐसी बात नहीं करूंगा.’’ यह कह कर माफी मांगते हुए सतपाल नाटकीय ढंग से नरेंद्र के सीने से लग कर फूटफूट कर रोने लगा था.

नरेंद्र ने भी अब सतपाल पर विश्वास करते हुए उसे अपने दिल से माफ कर दिया था. उस के बाद वे दोनों फिर अकसर बैठ कर शराब पीने लगे थे.

…और लंगोटिया यार को जला दिया जिंदा

29 सितंबर, 2024 को रीना ने सतपाल के साथ मिल कर प्लान बनाया. प्लान के मुताबिक सतपाल ने नरेंद्र को शाम के समय एक जगह शराब पार्टी के बहाने बुला लिया. उस ने जानबूझ कर नरेंद्र को खूब शराब पिला दी और उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दीं. शराब पी कर जब नरेंद्र बेहोश हो गया तो सतपाल ने नरेंद्र की स्विफ्ट डिजायर कार में ही नरेंद्र को डाल दिया और कार को गोहाना के बुटाना माइनर की पटरी पर ग्रीनफील्ड हाइवे के पास एक सुनसान जगह पर ले गया. वहां उस ने पेट्रोल डाल कर नरेंद्र को टैक्सी में ही जला दिया और फिर पैदल ही चल कर अपने घर आ गया. इस वारदात की खबर उस ने रीना को भी दे दी कि काम हो गया है.

30 सितंबर को लोगों ने गोहाना में सड़क किनारे वह जली हुई कार देखी, जिस में एक व्यक्ति की डैडबौडी भी थी. फिर यह बात आसपास के गांवों में फैली तो उसे देखने के लिए लोगों का हुजूम जुट गया. कार की नंबर प्लेट के आधार पर पता चला कि वह कार गोहाना सोनीपत के बिचपड़ी गांव के नरेंद्र सिंह की है. वहां मौजूद अनिरुद्ध सिंह ने उस डैडबौडी की शिनाख्त अपने चचेरे भाई 38 वर्षीय नरेंद्र के रूप में की. सूचना पा कर गोहाना (सदर) थाने के एसएचओ महीपाल सिंह भी वहां पहुंच गए. उन्होंने मौकामुआयना कर फोरैंसिक टीम को बुला लिया.

मौके की जांचपड़ताल करने के बाद एसएचओ ने अनिरुद्ध से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का चचेरा भाई नरेंद्र उम्र 38 वर्ष करीब एक साल से कंवल किशोर के पास ड्राइवर का काम कर रहा था. वह 29 सितंबर, 2024 की रात घर पर नहीं लौटा. हम ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की, मगर उस का फोन नंबर भी बंद आ रहा था. बाद में उसे किसी के द्वारा इस जली हुई कार के बारे में सूचना मिली तो वह अपने फेमिली वालों के साथ यहां पहुंचा तो कार पूरी तरह से जल चुकी थी और कार के अंदर पिछली सीट पर नरेंद्र का शव अधजली हालत में पड़ा था.

उस ने आगे बताया कि उस के भाई नरेंद्र की किसी ने हत्या कर शव को उसी की स्विफ्ट डिजायर कार में डाल कर उस की सुनियोजित ढंग से हत्या कर दी, लिहाजा आरोपियों के खिलाफ तुरंत काररवाई की जानी चाहिए और मेरे भाई के हत्यारों को सजा दी जानी चाहिए. पुलिस ने मौके की जांच करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश ठिकाने लगाने की रिपोर्ट दर्ज कर ली. गोहाना (सदर) थाने में केस दर्ज होते ही एसीपी (गोहाना) के सुपरविजन में एक विशेष टीम का गठन किया गया, जिस में एसएचओ थाना गोहाना (सदर) महीपाल सिंह और एएसआई जगदीश व अन्य को शामिल किया गया. पुलिस गहनता से इस केस की छानबीन में जुट गई थी.

पुलिस टीम ने डैडबौडी का पोस्टमार्टम कराने के बाद वह उस के फेमिली वालों को सौंप दी. इस घटना के सबूत जुटाते हुए पुलिस ने जब जांच की तो पुलिस को मृतक की पत्नी रीना और नरेंद्र के दोस्त सतपाल के बीच अवैध संबंधों के बारे में जानकारी मिली. उस के बाद जब पुलिस ने रीना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस पर शक और भी पक्का हो गया. पता चला कि रीना और उस के प्रेमी सतपाल के बीच रोज लंबीलंबी बातचीत होती थी. वाट्सऐप पर भी दोनों की काफी अश्लील चैटिंग होती थी. घटना की रात 29 सितंबर, 2024 को भी बातचीत और मैसेज किए जाने का पता चला. उस के बाद पुलिस ने रीना और सतपाल को हिरासत में ले कर जब उन दोनों से अलगअलग कड़ाई से पूछताछ की तो उन्होंने नरेंद्र के मर्डर का खुलासा कर दिया.

रीना और उस के प्रेमी सतपाल ने बताया कि उन्होंने बड़े ही सुनियोजित तरीके से नरेंद्र की हत्या की थी. पुलिस पूछताछ में दोनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद नरेंद्र की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

नरेंद्र हरियाणा के सोनीपत जिले की गोहाना तहसील के गांव बिचपड़ी का रहने वाला था. इस गांव को फै्रक्चर के उपचार के लिए भी जाना जाता है. यहां अनेक लोग हड्डी फ्रैक्चर का घरेलू इलाज करते हैं. नरेंद्र अपने घर पर सब से बड़ा था. उस की 2 शादीशुदा बहनें हैं. नरेंद्र का विवाह भी हो चुका था. नरेंद्र का विवाह 9 साल पहले रीना से हुआ था. वह पहले अपने घर पर ही खेती का काम देखा करता था. धीरेधीरे उस का परिवार बढ़ा और उस का एक बेटा व 3 बेटियां भी हो गए. समय गुजरने के साथसाथ नरेंद्र के मम्मीपापा भी काफी बुजुर्ग हो चुके थे. घर का खर्च बढऩे पर नरेंद्र की पत्नी बारबार उसे गांव से कहीं बाहर जा कर नौकरी करने का उलाहना देती रहती थी, लेकिन नरेंद्र बारबार अपने मम्मीपापा की सेवा की बात कह कर रीना को समझा लिया करता था.

लेकिन कुछ समय बाद एकाएक नरेंद्र के पापा की तबीयत खराब हो गई और हार्ट अटैक के कारण उन की मृत्यु हो गई. उस के 2 महीने बाद ही उस की मम्मी की भी मृत्यु हो गई. इस के बाद रीना नरेंद्र को बारबार बाहर नौकरी करने के लिए कहने लगी. नरेंद्र को कार और ट्रक चलाना आता था. उस के पास ड्राइविंग लाइसेंस भी था, इसलिए वह अपने परिचितों और दोस्तों से नौकरी की बात करने लगा था. तभी एक दिन अपने एक दोस्त से नरेंद्र को गोहाना के एक व्यवसायी कंवल किशोर के बारे में पता चला, जिन्हें एक अच्छे चालचलन वाले ड्राइवर की जरूरत थी. नरेंद्र गोहाना जा कर कवल किशोर से मिला और उन्होंने नरेंद्र के ड्राइविंग लाइसेंस और उस के अच्छे व्यवहार को देखा तो उन्होंने उसे ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया.

कंवल किशोर की अपनी कुछ टैक्सियां किराए पर भी चलती थीं. जब कहीं बुकिंग से लौटते समय कोई सवारी मिल जाती तो नरेंद्र की भी कुछ एक्स्ट्रा इनकम हो जाया करती थी. जब अच्छे पैसे हाथ में आने लगे तो नरेंद्र ने गोहाना के विष्णु नगर में किराए पर 2 कमरे ले लिए और अपनी पत्नी रीना और तीनों बच्चों को ले कर आ गया. उस ने एक स्कूल में बच्चों का दाखिला भी करा दिया. एक दिन बुकिंग के बाद सवारी को छोड़ कर नरेंद्र सोनीपत के रेलवे स्टेशन पर जा कर चाय पीने लगा. उसे लगा कि यदि कोई गोहाना या आसपास की सवारी होगी तो वह सवारी को बैठा लेगा.

चाय पी कर नरेंद्र अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठा ही था कि तभी एक युवक लगभग भागते हुए अपने हाथों में 2 बैग उठाए उस के पास आया. वह उस से बोला, ”भाई साहब, मुझे गोहाना से आगे एक गांव में जाना है, ले चलोगे?’’

”ठीक है, बैठो.’’ नरेंद्र ने कहा

”भाई साहब, मेरे पीछेपीछे एक कुली मेरा सामान ले कर आ रहा है. थोड़ी देर रुक जाइए,’’ युवक ने कहा.

नरेंद्र को जल्दी थी, इसलिए युवक की ओर अधिक ध्यान न देते हुए उस का सारा सामान कार की डिक्की और छत पर रखवा दिया. युवक तसल्ली से पीछे की सीट पर बैठ गया. नरेंद्र ने गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़ा.

जब भीड़भाड़ समाप्त हुई और टैक्सी सुनसान रास्ते पर चलने लगी तो नरेंद्र ने युवक से पूछा, ”भाई साहब, आप को किस गांव में जाना है.’’

”मुझे गोहाना तहसील के गांव बिचपड़ी जाना है.’’ युवक ने कहा.

नरेंद्र के कानों में जब अपने गांव का नाम सुनाई दिया तो उस ने टैक्सी की स्पीड कम करते हुए पूछा, ”भाई साहब, बिचपड़ी गांव में आप को किस के घर जाना है?’’

”किस के घर पर जाने का मैं मतलब समझा नहीं भाई. किस के घर का क्या मतलब? जब मैं उसी गांव में रहता हूं तो अपने ही घर जाऊंगा. वैसे ड्राइवर साहब, आप ने बिचपड़ी गांव का नाम सुना है? क्या आप वहां पहले कभी गए हैं?’’ युवक ने पूछा.

”अरे भाई साहब, सही बात तो यह है कि मैं खुद बिचपड़ी का रहने वाला हूं. अब आप मुझे अपना परिचय तो दीजिए.’’ नरेंद्र ने सामने के मिरर से पीछे देखते हुए कहा.

”मेरा नाम सतपाल है और आप का?’’ युवक ने अपना परिचय देते हुए कहा.

जैसे ही नरेंद्र के कानों में सतपाल का नाम सुनाई दिया, उस ने झटके से कार के ब्रेक लगा दिए और गाड़ी से उतर कर पीछे का गेट खोल दिया और फिर चिल्ला कर बोला, ”अरे सतपाल, आज पूरे 8 साल के बाद तुझे देख रहा हूं. अरे भाई, मैं नरेंद्र हूं तेरे बचपन का दोस्त!’’ यह कहते हुए उस ने अपनी दोनों बाहें फैला दीं. उधर जब सतपाल को नरेंद्र के बारे में पता चला तो वह तुरंत कार से बाहर निकल कर नरेंद्र की छाती से चिपट गया. दोनों में काफी देर तक बचपन की बातें होती रहीं, ”देख सतपाल, इतने सालों के बाद आज मिला है तू मुझे, इसलिए आज तुझे मेरे घर पर रुकना होगा. कल में तुझे गांव छोड़ क र आ जाऊंगा. तेरी पत्नी और बच्चे कहां हैं?’’ नरेंद्र ने पूछा.

”नरेंद्र भाई, मैं तो परसों दिल्ली पहुंच गया था, वहां से अपनी पत्नी के मायके में रहा. वह 2-4 दिन वहीं रहेगी, फिर उस का भाई उसे और बच्चों को गांव ले कर आ जाएगा. यार, तेरी शादी में मैं आ नहीं पाया था, इसलिए आज तुम्हारे घर पर ही रुक जाऊंगा. इसी बहाने भाभीजी से मुलाकात हो जाएगी.’’ सतपाल ने कहा.

दोस्त को घर ले जाना नरेंद्र की हुई सब से बड़ी भूल असल में सतपाल और नरेंद्र ने ड्राइविंग भी साथसाथ सोनीपत में सीखी थी. सतपाल को विदेश जाना था, इसलिए वह बड़ी गाडिय़ों को चलाने का लाइसेंस लेने और सीखने दिल्ली चला गया था. उस के बाद सतपाल दुबई चला गया और फिर बीच में वह एकाएक छुट्टी पर आया और शादी कर के अपनी पत्नी को भी दुबई ले कर चला गया था. इसलिए न तो सतपाल और न ही नरेंद्र एकदूसरे की शादी में शामिल हो पाए थे.

नरेंद्र सतपाल को अपने कमरे पर ले गया. सतपाल का सारा सामान एक कमरे में रखने के बाद नरेंद्र सतपाल को ले कर अपने कमरे में चला गया. कमरे में सतपाल को कुरसी पर बिठाने के बाद नरेंद्र ने अपनी पत्नी रीना को आवाज दी, ”रीना, जरा यहां तो आओ, तुम से मिलने को आज मैं किसे ले कर आया हूं.’’

अगले ही पल रीना एक लंबा सा घूंघट काढ़े, सकुचातेशरमाते हुए कमरे में आ कर एक ओर खड़ी हो गई.

”रीना, देखो तो सही, यह मेरे बचपन का दोस्त सतपाल है. हम साथसाथ पढ़े, साथसाथ खेलकूदे और आज पूरे 8 साल बाद इस से मुलाकात हुई तो मैं इसे रेलवे स्टेशन से सीधे घर ले आया. हमारी शादी में भी ये शामिल नहीं हो पाया था, इसलिए आज तुम से मिलने आ गया.’’ नरेंद्र ने रीना से उस का परिचय कराते हुए कहा.

”देख भाई नरेंद्र, तुम ने मेरा पूरा परिचय भाभीजी से तो करा दिया, पर मेरी भाभीजी तो इतना लंबा सा घूंघट काढ़े मेरे सामने खड़ी है. ऐसे में भला परिचय कैसे हो सकता है? घूंघट के भीतर से इन्होंने मेरी शक्ल तो देख ली, लेकिन मुझे भाभी का दीदार नहीं हो पाया. अब तुम्हीं बताओ कि यदि भविष्य में कभी हमारा मिलना होगा तो हम दोनों एकदूसरे को कैसे पहचान पाएंगे.’’ सतपाल ने मुसकराते हुए कहा.

इस बात पर नरेंद्र भी सहमत था. उस ने तुरंत पत्नी से कहा, ”रीना, देखो यह मेरा बचपन का जिगरी दोस्त सतपाल है, रिश्ते में यह तो तुम्हारा देवर ही है न. इसलिए देवर के सामने तुम घूंघट हटा कर अपना चेहरा दिखा दोगी तो कोई हर्ज भी नहीं होगा. देखो रीना, देवर को तो अपनी भाभी को देखने का अधिकार भी होता है न.’’ नरेंद्र ने रीना से मनुहार करते हुए कहा. अब जब पति का आदेश हो तो पत्नी उस के आदेश की अवहेलना भला कैसे कर सकती है. रीना ने जैसे ही घूंघट हटाया तो सतपाल की आंखें फटी सी रह गई थीं. उसे सचमुच अपने दोस्त नरेंद्र की किस्मत पर जलन सी होने लगी थी.

रीना सचमुच में ही सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी. रीना के माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, गालों पर गुलाब सी सुर्खी, कलाइयों में हरीहरी चूडिय़ां, बालों में महकती सी सुगंध, पैरों में महावर, यह सब देख कर एकबारगी सतपाल तो ठगा सा रह गया. इस स्थिति में न चाहते हुए भी उस के मुंह से एकाएक निकल पड़ा, ”नरेंद्र भाई, बहुत ही खुशकिस्मत हो तुम कि तुम्हें इतनी सुंदर पत्नी मिली है. यार, मेरी भाभीजी तो इतनी खूबसूरत हैं कि उन्हें मेरी नजर ही न लग जाए. देख भाई नरेंद्र, तू तो मेरा जिगरी यार रहा है, भाभीजी से कह न कि अपना घूंघट एक बार फिर से डाल लें, कहीं मेरी नीयत ही न डोल जाए,’’ कह कर सतपाल जोरों से हंस पड़ा था.

रीना और सतपाल आए एकदूसरे के करीब अब सतपाल नरेंद्र का बचपन का दोस्त था तो उसे अपने दोस्त की इस बात का तनिक भी बुरा नहीं लगा. वह भी मजाकमजाक में बोल पड़ा, ”यार सतपाल, तू तो मेरा बचपन का लंगोटिया यार ठहरा, याद तेरी नीयत खराब भी हो गई तो मुझे तो कोई आपत्ति नहीं. क्योंकि जैसे मैं हूं, वैसे ही तू भी तो है. अब तू अपनी भाभीजी से पूछ ले कि उसे कोई ऐतराज तो नहीं है न?’’

अपने पति के मुंह से खुल्लमखुल्ला ऐसी बात सुन कर तो रीना पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया था. वह शरम से लाल हो गई. शरम के मारे उस ने वहां पर रहना अब उचित भी नहीं समझा और वह दोनों के लिए चाय बनाने का बहाना करते हुए अपना मुंह छिपाते हुए रसोई का ओर बढ़ गई थी. सतपाल ने जब से रीना को देखा था, तब से वह उस के दिलोदिमाग में इस तरह से छा गई थी कि वह अब दिनरात उसी के सपने देखने लगा था. उधर दूसरी तरफ रीना भी सतपाल से काफी प्रभावित थी. भले ही वह 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन उस की उम्र, मन सतपाल की नजरों से बंध सा गया था. सतपाल की आकर्षक पर्सनैलिटी, उस की अमीरी और उस का बात करने का अंदाज यह सब कुछ रीना को रिझाने लगा था.

अब कभी भी सतपाल जब सामान आदि खरीदने गोहाना आता था तो रीना के पास जरूर जाता था. रीना भी उसे खास तरजीह देती थी. दोनों में अब हंसीमजाक और छेडख़ानी भी होने लगी थी. एकदूसरे का मामूली सा स्पर्श भी उन्हें रोमांच की गहरी अनुभूति से भर देता था. प्यार की यह चिंगारी दोनों के दिलों में दबी रही. वक्त आगे गुजरता रहा, लेकिन यह चिंगारी धीरेधीरे सुलगती रही. अब तो सतपाल खासकर उस समय रीना से मिलने आता था, जब नरेंद्र घर पर नहीं रहता था. सतपाल ने अपने गांव मैं एक जनरल स्टोर खोल लिया था, जिस के लिए सामान लेने वह अकसर गोहाना आनेजाने लगा था.

एक दिन सतपाल अपनी बाइक से रीना के घर पहुंच गया, उसे पता था कि आज सुबह नरेंद्र बुकिंग पर दिल्ली गया हुआ है. उस दिन रीना के बच्चे स्कूल जा चुके थे और वह सजसंवर कर जरूरी खरीदारी करने बाजार जाने की तैयारी करने लगी, तभी वहां पर सतपाल आ गया. बाइक खड़ी कर के जैसे ही वह घर के भीतर गया तो वह रीना का खिला हुआ रूप देख कर ठगा सा खड़ा रह गया था. उस के मुंह से एकाएक निकल पड़ा, ”भाभीजी, आज आप को देख कर दिल खुश हो गया. आप बहुत ही खूबसूरत लग रही हैं. आज मुझे सचमुच उस दिन की याद आ गई, जिस दिन मैं ने इसी घर पर आप के चांद से चेहरे का दीदार किया था.’’

अपनी तारीफ हर औरत को अच्छी लगती है, वह भी उलाहना देते हुए बोल पड़ी, ”देवरजी, उस दिन आज की तरह तुम आंखें फाडफ़ाड़ कर बस मुझे ही देखे जा रहे थे. बड़े बेशरम हो तुम देवरजी!’’ कहते हुए रीना मुसकरा पड़ी थी.

”आप एकदम सही कह रही हैं भाभीजी, मैं ने जब पहली बार आप को देखा था तो मुझे नरेंद्र के भाग्य से जलन भी होने लगी थी. उस समय मैं सोच रहा था कि काश! अगर आप मुझे पहले मिल जातीं तो मैं आप को अपनी पत्नी जरूर बना लेता.’’ सतपाल ने रीना की आंखों में आंखे डालते हुए कहा.

”देखो देवरजी, आप कुछ ज्यादा ही रोमांटिक हो रहे हो. ये बात ठीक नहीं है, आप की शिकायत करनी पड़ेगी.’’  रीना ने कहा.

”हां भाभी, मैं तो आप के रूपसौंदर्य का पुजारी हो गया हूं. दिनरात सपने में बस मुझे केवल आप ही दिखाई देती हैं. वैसे एक बात कहूं…’’ सतपाल ने उस के नजदीक आते हुए कहा.

”हां बोलो देवरजी, अब आप से क्या परदा? आप खुल कर अपने दिल की बात अब कह ही डालो.’’ रीना ने अपना बायां होंठ दबाते हुए कहा.

”आप मुझ में अभी भी काफी फर्क महसूस करती हैं. आप ने तो अब तक मुझे समझा ही नहीं है और न ही कभी मुझे समझने की कोशिश भी की है.’’ सतपाल ने कहा.

”ऐसी बात बिलकुल भी नहीं है देवरजी. मैं ने उन में और आप में कभी कोई फर्क न तो समझा है और न ही किया.’’ रीना ने कहा.

”भाभीजी, उस दिन नरेंद्र ने कहा था कि मुझ में और उस में कुछ भी फर्क नहीं है, बस अगर तुम्हारी भाभी मान जाए तो…’’ कहते हुए सतपाल ने रीना की आंखों में झांका तो वह भीतर तक सिहर उठी थी. वह बस चुपचाप ही रही.

एकाएक सतपाल की हिम्मत कुछ बढ़ी और वह रीना के एकदम पास चला गया और उस के गालों पर अपनी हथेलियां रखते हुए बोला, ”भाभीजी, सच बात तो यह है कि आप मुझे अपना मानती ही कब हैं, तभी तो मुझे अब तक आप ने अपने से इतना दूर रखा है.’’

रीना ने जब सतपाल की आंखों में झांका तो सतपाल की आंखों में प्यार का समंदर हिलोरें ले रहा था. वह भी प्यार से सतपाल की नशीली आंखों को देखती रही.

”भाभीजी, बस एक बार आप को पाना चाहता हूं. देखो न, उस दिन भी तो आप ने मेरे लिए अपना घूंघट उठाया था, याद होगा न आप को या बिलकुल ही भूल गई हो!’’ सतपाल ने रीना के गालों को चूमते हुए कहा.

सतपाल की इस हरकत से रीना किसी नईनवेली दुलहन की तरह शरमान लगी. उस की आंखें शरम से नीचे झुकने लगीं तो सतपाल ने उस के कान में धीरे से कह दिया, ”भाभीजी, उस दिन तो आप ने मेरे कहने पर अपना घूंघट हटा दिया था, आज मैं जो कुछ भी हटाना चाहूं तो हट सकता है क्या?’’ कहते हुए उस ने रीना के सीने से दुपट्टा खींच लिया और अब उस की दोनों हथेलियां रीना के सीने को स्पर्श करने लगी थीं. सतपाल के इस मादक स्पर्श ने रीना के दिल में दबी हुई चिंगारी को हवा दे डाली थी, इसलिए रीना के मुंह से न तो ‘हां’ निकला और न ही ‘न’ निकला. उस ने तो बस चुपचाप अपना दुपट्टा सतपाल के हाथ से सरक जाने दिया और अब वह सतपाल की हर हरकत का मजा भी लेने लगी थी.

उधर दूसरी तरह सतपाल पूरे 4 महीने से उस मादक रूप को अपनी बांहों में झूलते देख रहा था, जिस को पाने की वह पुरजोर कोशिशों में लगा हुआ था. उस दिन तो रीना की प्यासी देह भी सतपाल से पनाह चाह रही थी, रीना तो बस एक कठपुतली की तरह सतपाल के हाथों और उस के मादक स्पर्श का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इसी बेचैनी में रीना ने अब सतपाल को कस कर पकड़ लिया और अपने बैडरूम में ले कर आ गई और उस के बाद दोनों एकदूसरे के जिस्म में खोते चले गए.

रीना और सतपाल का रिश्ता एक बार अमर्यादित हुआ तो फिर यह लव अफेयर पूरे डेढ़ साल तक बिना किसी रोकटोक से चलता रहा. एक दिन जब नरेंद्र अपनी बुकिंग पर टैक्सी ले कर चला गया तो रीना ने सतपाल को फोन कर के अपने घर पर बुला लिया और दोनों बैडरूम में चले गए. इधर दूसरी तरफ, जब नरेंद्र बुकिंग पर पहुंचा तो पता चला कि उस घर में अचानक किसी की डैथ हो गई थी, इसलिए बुकिंग करने वालों ने उस दिन की बुकिंग ही कैंसिल कर दी थी.

ऐसे अचानक खुली पोल

उस दिन नरेंद्र ने सुबहसुबह जल्दी में जाने के कारण नाश्ता भी नहीं किया था. इसलिए उस ने सोचा कि पहले घर जा कर नाश्ता कर के फिर अपने मालिक के घर पर चला जाएगा. नरेंद्र जब घर पर पहुंचा तो उसे अपने घर के सामने सतपाल की बाइक खड़ी दिखाई दी. नरेंद्र ने सोचा कि सतपाल कुछ सामान लेने गोहाना आया होगा, साथ में अपनी पत्नी को अपनी भाभी से मिलाने घर आ गया होगा. इसलिए नरेंद्र ने टैक्सी खड़ी की और घर के अंदर आ गया. घर खुला हुआ था, मगर वहां पर कोई नहीं था. नरेंद्र ने देखा कि बैडरूम का दरवाजा बंद था, मगर उस में अंदर से चिटकनी नहीं लगाई हुई थी.

नरेंद्र ने किवाड़ों को धकेला और जब उस की नजर अपने बैडरूम पर पड़ी तो उस ने देखा कि उस की पत्नी रीना और उस के बचपन का दोस्त सतपाल आपत्तिजनक अवस्था में एकदूसरे से गुंथे हुए वासना के समंदर में गोते लगा है. उस की आंखें ये सब देख कर खुली की खुली रह गईं. उसे अपनी पत्नी और अपने बचपन के दोस्त सतपाल की इस शर्मनाक हरकत पर बहुत गुस्सा आया. सतपाल ने जब नरेंद्र को देखा तो वह फटाफट अपने कपड़े उलटेपुलटे पहन कर अपनी बाइक ले कर वहां से निकल भागा. अब नरेंद्र के हाथ में रीना आई तो उस ने रीना की लातघूसों से जम कर पिटाई की. इस के साथ ही उस ने रीना के बाहर जाने और सतपाल से घर पर या बाहर मिलने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी.

इस प्रतिबंध का किसी तरह एक महीना गुजर गया था. दरअसल, रीना और सतपाल तो एकदूसरे के दीवाने हो चुके थे. अब न तो सतपाल को अपनी पत्नी की फिक्र थी और न ही रीना को अपने पति नरेंद्र की. नरेंद्र को ठिकाने लगाने के बाद सतपाल बेफिक्र हो गया था कि हत्या में अब उस का नाम नहीं आ पाएगा, लेकिन कानून के लंबे हाथ उस की गरदन तक पहुंच ही गए.

सतपाल और उस की प्रेमिका रीना से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.

 

 

 

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Murder Story : अजमल आलम ने कल्लू का अपहरण कर के उसे मार डाला था. उस की लाश अजमल ने सतलुज नदी में बहा दी थी निस्संदेह यह बड़ा अपराध था, लेकिन यह भी सच है कि अजमल को ऐसा जघन्य अपराध करने का मौका लल्लू के मातापिता ने ही दिया था, अगर वे समय रहते…

काफी हताश होने के बाद आखिर कन्नू लाल ने तय कर लिया कि अब वह अपने बेटे लल्लू को तलाश करने में समय बरबाद नहीं करेगा और इस के लिए पुलिस की मदद भी लेगा. यह बात उस ने अपनी पत्नी और रिश्तेदारों को भी बताई. फिर उसी शाम वह अपने पड़ोसी भानु को ले कर लुधियाना के थाना डिवीजन नंबर-2 की पुलिस चौकी जनकपुरी जा पहुंचा. कन्नू लाल मूलरूप से गांव मछली, जिला गोंडा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. कई साल पहले वह काम की तलाश में अपने किसी रिश्तेदार के साथ लुधियाना आया था और काम मिल जाने के बाद यहीं का हो कर रह गया था. काम जम गया तो कन्नू लाल ने गांव से अपनी पत्नी कंचन और बच्चों को भी लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना में वह इंडस्ट्रियल एरिया में लक्ष्मी धर्मकांटा के पास अजीत अरोड़ा के बेहड़े में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. कन्नू लाल के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. बड़ी बेटी कुसुम 20 साल की थी और शादी के लायक थी. कन्नू लाल का सब से छोटा बेटा वरिंदर उर्फ लल्लू 11 साल का था, जो कक्षा-4 में पढ़ता था. 27 जुलाई, 2017 को लल्लू दोपहर को अपने स्कूल से लौटा और खाना खाने के बाद गली में बच्चों के साथ खेलने लगा. यह उस का रोज का नियम था. कन्नू की पत्नी कंचन और बाकी बच्चे घर में सो रहे थे. शाम करीब 4 बजे कंचन ने चाय बना कर लल्लू को बुलाने के लिए आवाज दी.

लेकिन लल्लू गली में नहीं था. लल्लू हमेशा अपने घर के आगे ही खेलता था, दूर नहीं जाता था. कंचन ने गली में खेल रहे बच्चों से पूछा तो सभी ने बताया कि लल्लू थोड़ी देर पहले तक उन के साथ खेल रहा था, पता नहीं बिना बताए कहां चला गया. चाय पीनी छोड़ कर सब लल्लू की तलाश में जुट गए. शाम को जब लल्लू को पिता कन्नू लाल काम से लौट कर घर पहुंचा तो वह भी बेटे की तलाश में जुट गया. पूरी रात तलाशने के बाद भी लल्लू का कहीं पता नहीं चला. सभी यह सोच कर हैरान थे कि आखिर 11 साल का बच्चा अकेला कहां जा सकता है. इस के पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था.

अगला दिन भी लल्लू की तलाश में गुजरा. शाम को कन्नू लाल ने लल्लू की गुमशुदगी पुलिस चौकी में दर्ज करा दी. ड्यूटी अफसर हवलदार भूपिंदर सिंह ने धारा 146 के तहत कन्नू की गुमशुदगी दर्ज कर के यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही लल्लू का हुलिया और उस का फोटो आसपास के सभी थानों में भेज दिया गया. लल्लू की तलाश में न तो पुलिस ने कोई कसर छोड़ी और न उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने. पर लल्लू का कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. कन्नू लाल गरीब मजदूर था, जो दिनरात मेहनत कर के अपने बच्चों का पालनपोषण करता था, इसलिए फिरौती का तो सवाल ही नहीं था. हां, दुश्मनी की बात सोची जा सकती थी.

दुश्मनी के चक्कर में कोई लल्लू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता था, इसीलिए पुलिस बारबार कन्नू से यह पूछ रही थी कि उस का किसी से लड़ाईझगड़ा तो नहीं है. लल्लू को गुम हुए एक सप्ताह गुजर चुका था पर कहीं से भी उस का कोई सुराग नहीं मिला. घटना के 9 दिन बाद अचानक कन्नू लाल के मोबाइल फोन पर एक शख्स का फोन आया. फोन करने वाले का कहना था कि लल्लू उस के कब्जे में है. अगर बेटा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो 2 लाख रुपया बैंक एकाउंट नंबर 0003333 में डलवा दो. लल्लू मिल जाएगा. कन्नू लाल ने तुरंत इस फोन की सूचना पुलिस को दे दी. अब मामला केवल लल्लू की गुमशुदगी का नहीं रह गया था. उस का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था सो पुलिस हरकत में आ गई.

एडीसीपी गुरप्रीत सिंह के सुपरविजन में एक टीम का गठन किया गया, जिस का इंचार्ज एसीपी वरियाम सिंह को बनाया गया. पुलिस ने पहले दर्ज मामले में धारा 365 और 384 भी जोड़ दीं. अपहरण के 9 दिन बाद 4 अगस्त को लल्लू के पिता कन्नू लाल के मोबाइल पर फोन कर के 2 लाख रुपए फिरौती मांगने के बाद फोनकर्ता ने नंबर स्विच्ड औफ कर दिया था. जांच आगे बढ़ाते हुए कन्नू लाल के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई. साथ ही उस के फोन को सर्विलांस पर भी लगा दिया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि कन्नू लाल को स्थानीय बसअड्डे से फोन किया गया था. यह सोच कर तुरंत एक पुलिस टीम वहां भेजी गई कि हो न हो कोई संदिग्ध मिल जाए, क्योंकि बसअड्डा क्षेत्र काफी बड़ा और भीड़भाड़ वाला इलाका था. पास में ही रेलवे स्टेशन भी था. लेकिन वहां पुलिस को कुछ नहीं मिला.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि लल्लू का अपहरणकर्ता जो भी रहा हो, वह कन्नू लाल का कोई नजदीकी या फिर रिश्तेदार ही होगा. क्योंकि अपहरणकर्ता ने जो 2 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी, वह कन्नू लाल की हैसियत देख कर ही मांगी थी. भले ही कन्नू लाल गरीब था, पर अपने बच्चे के लिए 2 लाख का इंतजाम तो कर ही सकता था. इस के लिए उसे गांव की जमीन भी बेचनी पड़ती तो वह भी बेच देता. अपहर्त्ता जो भी था, कन्नू के परिवार को गांव तक जानता था. इस सोच के बाद पुलिस ने कन्नू लाल और उस के परिवार के हर छोटेबड़े सदस्य से पूछताछ की. कुछ खबरें पड़ोसियों से भी ली गईं. मुखबिरों का भी सहारा लिया गया. आखिर अंदर की बात पता चल ही गई. इस से पुलिस को लगने लगा कि अब वह जल्द ही अपरहणकर्ता तक पहुंच कर लल्लू को सकुशल बचा लेगी.

कन्नू लाल के परिवार से पता चला कि कुछ दिन पहले उन का अजमल आलम से झगड़ा हुआ था. 30 वर्षीय अजमल आलम उन के पड़ोस में ही रहता था और कपड़े पर कढ़ाई का बहुत अच्छा कारीगर था. उस की कमाई भी अच्छी थी और उस का कन्नू के घर काफी आनाजाना था. वह उस के परिवार के काफी करीब था और सभी बच्चों से घुलामिला हुआ था. खासकर कन्नू की बड़ी बेटी कुसुम से. 7 साल पहले जब अजमल आलम की उम्र करीब 22-23 साल थी और कुसुम की 14 साल तभी दोनों एकदूसरे के करीब आ गए थे.  अजमल मूलरूप से गांव भयंकर दोबारी, जिला किशनगंज, बिहार का रहने वाला था. 7 साल पहले उस ने खुद को अविवाहित बता कर कुसुम को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था.

इस के 2 साल बाद उस ने कुसुम से शादी करने का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए थे. यह सिलसिला अभी तक चलता रहा था. कह सकते हैं कि उस ने 7 वर्ष तक कुसुम का इस्तेमाल अपनी पत्नी की तरह किया था. अजमल से कुसुम के संबंध कितने गहरे हैं, यह बात कन्नू और उस की पत्नी कंचन को भी पता थी. उन की नजरों में अजमल अविवाहित था और अच्छा कमाता था. वह कुसुम से बहुत प्यार करता था और शादी करना चाहता था. कन्नू लाल और उस की पत्नी कंचन को इस पर कोई ऐतराज नहीं था. फलस्वरूप जैसा चल रहा था, उन्होंने वैसा चलने दिया. उन लोगों ने न कभी बेटी पर कोई अंकुश लगाया और न अजमल को अपने घर आने से रोका.

जून 2018 में अचानक किसी के माध्यम से कंचन और कुसुम को पता चला कि अजमल पहले से ही शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. इतनी बड़ी बात छिपा कर वह कुसुम के साथ लगातार 7 सालों तक दुष्कर्म करता रहा था. हकीकत जान कर मांबेटी के होश उड़ गए. उस समय अजमल अपने कमरे पर ही था. कुसुम और कंचन ने जा कर उस के साथ झगड़ा किया और उस की खूब पिटाई की. यह बात मोहल्ले की पंचायत तक भी पहुंची. पंचायत के कहने पर कंचन ने अजमल को धक्के मार कर मोहल्ले से बाहर निकाल दिया. अजमल ने भी वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. क्योंकि मोहल्ले वालों के सामने हुई जबरदस्त बेइज्जती के बाद वह वहां नहीं रह सकता था, इसलिए वह अपना सामान लिए बिना मोहल्ले से चला गया था.

यह कहानी जान लेने के बाद पुलिस को लगा कि लल्लू के अपहरण के पीछे अजमल का ही हाथ हो सकता है. कुसुम वाले मामले में उस की काफी बेइज्जती हुई थी. यहां तक कि उसे अपना घर भी छोड़ कर भागना पड़ा था. बदला लेने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. कन्नू के परिवार के पास अजमल का फोन नंबर था. पुलिस ने वह नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया और उस की लोकेशन ट्रेस करने की कोशिश करने लगी. कन्नू को किए गए पहले फोन के 2 दिन बाद फोन कर के उस से दोबारा पैसों की मांग की गई. इस बार फोन कैथल, हरियाणा से आया था. पुलिस टीम फोन की लोकेशन ट्रेस करते हुए जब कैथल पहुंची तो कन्नू को दिल्ली से फोन किया गया.

इस बार फोन करने वाले ने रुपयों की मांग के साथ कुसुम से बात करने की भी इच्छा जताई तो साफ हो गया कि लल्लू के अपरहण में अजमल का ही हाथ है. इस के बाद वह कन्नू को बारबार मैसेज करता रहा. अजमल को पकड़ने के लिए पुलिस की टीमों ने कैथल व दिल्ली में एक साथ 15 जगह रेड डाली लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अब तक की जांच में सामने आया कि जो बैंक खाता नंबर उस ने फिरौती के पैसे डलवाने के लिए दिया था, वह लुधियाना के एक युवक का था. खास बात यह कि उस युवक से अजमल की दूरदूर तक कोई जानपहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने उसे शक के दायरे में ही रखा. आखिर लंबे चले इस चोरसिपाही के खेल के बाद पुलिस ने अजमल की फोन लोकेशन का पीछा करते हुए उसे 8 अगस्त को दिल्ली से धर दबोचा.

अगले दिन 9 अगस्त को पुलिस ने अजमल को अदालत में पेश कर के लल्लू की बरामदगी और आगामी पूछताछ के लिए उसे 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पूछताछ के दौरान अजमल ने बताया कि लल्लू की हत्या उस ने उसी दिन यानी 27 जुलाई को ही कर दी थी और उस की लाश को सतलुज नदी में बहा दिया था. उस ने बताया कि मोहल्ले से बेइज्जत होने के बाद वह अपनी बहन के पास कैथल चला गया था. लेकिन कुसुम के बिना उस का मन नहीं लग रहा था. उस ने कुसुम से प्यार किया था और वह भी उसे प्यार करती थी, लेकिन अब उस ने बेवफाई की थी. उस का मन बारबार कहता था कि कुसुम और उस की मां से बेइज्जती का हिसाब लिया जाए.

इस के लिए वह लुधियाना छोड़ कर जाने के डेढ़ महीने बाद 27 जुलाई को ट्रेन से लुधियाना आया. दोपहर को जब लल्लू स्कूल से वापस घर जा रहा था तो उस ने उसे रोक कर साथ चलने को कहा, लेकिन उस ने मना कर दिया और घर जा कर अपनी बहन को उस के आने की सूचना दी. बाद में जब लल्लू खेलने के लिए घर से बाहर निकला तो उस ने लल्लू को घुमाने का लालच दिया और आटो में बिठा कर सतलुज नदी पर ले गया. नदी पर पहुंच कर अजमल ने लल्लू को नदी में नहाने और तैरना सिखाने के लिए उकसाया. जब लल्लू नहाने के लिए कपड़े उतार कर अजमल के साथ दरिया में घुसा तो अजमल ने नहाते समय लल्लू की गरदन पकड़ कर उसे पानी में डुबो कर मार दिया और उस की लाश पानी में बहा कर बस द्वारा वापस कैथल चला गया. बाद में वह दिल्ली पहुंच गया था. वहीं से वह कन्नू को फोन पर एसएमएस भेजता था.

अजमल की निशानदेही पर पुलिस ने सतलुज में गोताखोरों की टीम को उतारा. पर लल्लू की लाश नहीं मिली. बरसात के दिन होने के कारण नदी में पानी का तेज बहाव था. ऐसे में संभव था कि लाश पानी में तैरती हुई कहीं दूर निकल गई हो. पुलिस लल्लू की लाश को कई दिनों तक नदी में दूरदूर तक तलाशती रही लेकिन लाश नहीं मिली. रिमांड की अवधि खत्म होने के बाद 13 अगस्त, 2018 को अजमल को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया. खेलखेल में लल्लू की गुमशुदगी से शुरू हुआ यह ड्रामा अंत में इतने भयानक अंजाम तक पहुंचेगा, इस बात की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कुसुम परिवर्तित नाम है.

 

Love Story : मेल पर चेट करते करते सरिता को हो गया प्यार

Love Story : कई बार चाहते हुए भी मन की बात कहना मुश्किल होता है. सरिता की हालत भी कुछ ऐसी ही थी. फिर भी अंजाम की सोचे बिना उस ने मन की बात कह दी. आखिर…

3 दिनों से बंद फ्लैट की साफसफाई और हर चीज व्यवस्थित कर के साक्षी लैपटौप और मोबाइल फोन ले कर बैठी तो फोन में बिना देखे तमाम मैसेज पड़े थे. लैपटौप में भी तमाम मेल थे. पिछले 3 दिनों में लैपटौप की कौन कहे, मोबाइल तक देखने को नहीं मिला था. मां को फोन भी वह तब करती थी, जब बिस्तर पर सोने के लिए लेटती थी. मां से बातें करतेकरते वह सो जाती तो मां को ही फोन बंद करना पड़ता. पहले उस ने लैपटौप पर मेल पढ़ने शुरू किए. वह एकएक मैसेज पढ़ने लगी. ‘‘हाय, क्या कर रही हो? आज आप औनलाइन होने में देर क्यों कर रही हैं?’’

‘‘अरे कहां है आप? कल भी पूरा दिन इंतजार करता रहा, पर आप का कोई जवाब ही नहीं आया?’’

‘‘अब चिंता हो रही है. सब ठीकठाक तो है न?’’

‘‘मानता हूं काम में बिजी हो, पर एक मैसेज तो कर ही सकती हो.’’ सारे मैसेज एक ही व्यक्ति के थे. मैसेज पढ़ कर हलकी सी मुसकान आ गई सरिता के चेहरे पर. उसे यह जान कर अच्छा लगा कि कोई तो है जो उस की राह देखता है, उस की चिंता करता है. उस ने मैसेज टाइप करना शुरू किया.

‘‘मैं अपने इस संबंध को नाम देना चाहती हूं. आखिर हम कब तक बिना नाम के संबंध में बंधे रहेंगे. आप का तो पता नहीं, पर मैं तो अब संबंध की डोर में बंध गई हूं. यही सवाल मैं ने आप से पहले भी किया था, पर न जाने क्यों आप इस सवाल का जवाब टालते रहे. जवाब देने की कौन कहे, आप बात ही करना बंद कर देते हो. आखिर क्यों.?

‘‘एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए. बिना किसी नाम का दिशाहीन संबंध मुझे पसंद नहीं है. हमेशा दुविधा में रहना अच्छा नहीं लगता. पिछले 3 दिनों से आप के संदेश की राह देख रही हूं. गुस्सा तो बहुत आता है पर आप पर गुस्सा करने का हक है भी या नहीं, यह मुझे पता नहीं. आखिर मैं आप के किसी काम की या आप मेरे किस काम के..?

‘‘आप के साथ भी मुझे मर्यादा तय करनी है. है कोई मर्यादा? आप को पता होना चाहिए, अब मैं दुविधा में नहीं रहना चाहती. मैं आप को किसी संबंध में बांधने के लिए जबरदस्ती मजबूर नहीं कर रही हूं. पर अगर संबंध जैसा कुछ है तो उसे एक नाम तो देना ही पड़ेगा. खूब सोचविचार कर बताइएगा.

‘‘मेरे लिए आप का जवाब महत्त्वपूर्ण है. मैं आप की कौन हूं? इतनी निकटता के बाद भी यह पूछना पड़ रहा है, जो मुझे बहुत खटक रहा है. —आप के जवाब के इंतजार में सरिता.’’

सरिता काफी देर तक लैपटौप पर नजरें गड़ाए रही. उन के बीच पहली बार ऐसा नहीं हो रहा था. इस के पहले भी सरिता ने कुछ इसी तरह की या इस से कुछ अलग तरह की बात कही थी. पर हर बार किसी न किसी बहाने बात टल जाती थी. देखा जाए तो दोनों के बीच कोई खास संबंध नहीं था. दोनों कभी मिले भी नहीं थे. एकदूसरे से न कोई वादा किया था, न कोई वचन दिया था. बस, उन के बीच बातों का ही व्यवहार था. कभी खत्म न हो, ऐसी बातें. उस की बातें सरिता को बहुत अच्छी लगती थीं. दोनों दिनभर एकदूसरे को मेल या चैटिंग करते रहते. बीचबीच में अपना काम कर के फिर चैटिंग पर लग जाते. समयसमय पर मेल भी करते.

दोनों की जानपहचान अनायास ही हुई थी. मेल आईडी टाइप करने में हुई एक अक्षर की अदलाबदली की तरह से. ध्यान नहीं दिया और मेल सैंड हो गया. उस के रिप्लाय में आया. सौरी, सामने से फिर जवाब, करतेकरते दोनों को एकदूसरे का जवाब देने की आदत सी पड़ गई. जल्दी ही उन की बातें एकदूसरे की जरूरत बन गईं. दोनों का परिचय हुए 3 महीने हो चुके थे, पर ऐसा लगता था, जैसे वे न जाने कब से परिचित हैं, दोनों में गहरा लगाव हो गया था, उन का स्वभाव भी अलग था और व्यवसाय भी, फिर भी दोनों नजदीक आ गए थे. वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कालेज में हिंदी का प्रोफेसर था. साहित्य का भंडार था उस के पास. कभी वह खुद की लिखी कोई गजल या शायरी सुनाता तो कभी अपनी यूनिवर्सिटी की मजाकिया बातें कह कर हंसाता.

सरिता उस की छोटी से छोटी बात ध्यान से सुनती और पढ़ती. उस के साथ के क्षणों में, उस की बातों में आसपास का सब बिसार कर खो सी जाती. पर जब वह 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई तो मन जैसे अपनी बात कहने को विकल हो उठा. आज दिल की बात कह ही देनी है, यह निश्चय कर के वह दाहिने कान के पीछे निकल आई लट को अंगुलियों में ले कर डेस्क पर रखे लैपटौप की स्क्रीन में खो गई. जैसे वह सामने बैठा है और वह उस की आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात कह रही है. वह मैसेज टाइप करने लगी.

‘‘हाय 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई थी. जाने का प्लान अचानक बना, इसलिए तुम्हें बता नहीं सकी, बहुत परेशान किया न तुम्हें? पर सच कहूं, 3 दिनों तक तुम से दूर रह कर मेरे मन में हिम्मत आई कि मैं अपने मन की बात तुम से खुल कर कह सकूं. क्या करूं, थोड़ी डरपोक हूं न? आज तुम्हें मैं अपने एक दूसरे मित्र से मिलवाती हूं. अभी नईनई मित्रता हुई है जानते हो किस से? जी हां, दरिया से… हां, दरिया, समुद्र, सागर…

‘‘नजर में न भरा जा सके, इतना विशाल, चाहे जितना देखो, कभी मन न भरे. इतना आकर्षक कि मन करता है हमेशा देखते रहो. मेरे लिए यह सागर हमेशा एक रहस्य ही रहा है. कहीं कलकल बहता है तो कहीं एकदम शांत तो कहीं एकदम तूफानी.

‘‘समुद्र मुझे बहुत प्यारा लगता है. घंटों उस के सान्निध्य में बैठी रहती हूं, फिर भी थकान नहीं लगती. पर मेरा यह प्यार दूरदूर से है. दूर से ही बैठ कर उस की लहरों को उछलते देखना, उस की आवाज को मन में भर लेना. इस तरह देखा जाए तो यह सागर मेरा ‘लौंग डिसटेंस फ्रेंड’ कहा जा सकता है, एकदम तुम्हारी ही तरह. हम मन भर कर बात करते हैं, कभीकभी एकदूसरे से गुस्सा भी होते हैं, पर जब नजदीकी की बात आती है तो मैं डर जाती हूं. दूर से ही नमस्कार करने लगती हूं.

‘‘पर इस सब को कहीं एक किनारे रख दो. मैं भले ही सागर के करीब न जाऊं, दूर से ही उसे देखती रहूं, पर वह किसी न किसी युक्ति से मुझे हैरान करने आ ही जाता है. दूर रहते हुए भी उस की हलकी सी हवा का झोंका मेरे शरीर में समा जाता है. मजाल है कि मैं उस के स्पर्श से खुद को बचा पाऊं. एकदम तुम्हारी ही तरह वह भी जिद्दी है.

‘‘उस की इस शरारत से कल मेरे मन में एक नटखट विचार आया. मन में आया कि क्यों न हिम्मत कर के एक कदम उस की ओर बढ़ाऊं. चप्पल उतार कर उस की ओर बढ़ी. एकदम किनारे रह कर पैर पानी में छू जाए इतना ही बढ़ी थी. वह पहले से भी ज्यादा पागल बन कर मेरी ओर बढ़ा और मुझे पूरी तरह भिगो दिया. जैसे कह रहा हो, बस मैं तुम्हारी पहल की ही राह देख रहा था, बाकी मैं तो तुम्हें कब से भिगोने को तैयार था.

‘‘मैं उस के इस अथाह प्रेम में डूबी वहीं की वहीं खड़ी रह गई. मैं ने तो केवल पैर धोने के लिए पानी मांगा था, उस ने मुझे पूरी की पूरी अपने में समा लिया था. कहीं सागर तुम्हारा रूप ले कर तो नहीं आया था? शायद नाम की वजह से दोनों का स्वभाव भी एक जैसा हो. वह समुद्र और तुम सागर. दोनों का स्थान मेरे मन में एक ही है. सच कहूं, अगर मैं एक कदम आगे बढ़ाऊं तो क्या तुम मुझे खुद में समा लोगे? —तुम्हारी बनने को आतुर सरिता’’

क्या जवाब आता है, यह जानने के लिए सरिता का दिल जोजोर से धड़कने लगा था. दिल में जो आया, वह कह दिया. अब क्या होगा, यह देखने के लिए वह एकटक स्क्रीन को ताकती रही. सागर में उछाल मार रहे समुद्र की एक फोटो भेजी. मतलब सरिता की पहल को उस ने स्वीकार कर लिया था. प्रकृति के नियम के अनुसार फिर एक सरिता बहती हुई अपने सागर मे मिलने का अनोखा मिलन रचने जा रही थी.

 

Murder story : बहन के प्रेमी को भाई ने उतारा मौत के घाट

Murder story : जोबन और पम्मी एक ही गांव के थे. दोनों यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि एक ही गांव के लड़केलड़की की शादी नहीं हो सकती. इसके बावजूद भी वह एकदूसरे से प्यार कर बैठे. फिर उन के प्यार का भी वही अंजाम हुआ, जैसा कि ऐसे मामलों में होता है…

जुलाई का महीना था. अन्य महीनों की अपेक्षा उस दिन गरमी कुछ अधिक थी. जतिंदर उर्फ जोबन ने चाटी से लस्सी निकाल उस में बर्फ मिलाया. फिर एक गिलास भर कर अपने पिता तरसेम सिंह को देते हुए कहा, ‘‘ले बापू, लस्सी पी ले. आज बड़ी गरमी है.’’

20 वर्षीय जोबन अपने 60 वर्षीय पिता के साथ घर के आंगन में बैठा गपशप कर रहा था. लस्सी का गिलास अपने हाथ में लेते हुए तरसेम सिंह बोले, ‘‘बेटा, गरमी हो या सर्दी, हम जट्ट किसानों को तो खेतों में ही रहना पड़ता है. हम एसी में तो नहीं बैठ सकते न.’’

जोबन ने पिता से मजाक करते हुए कहा, ‘‘बापू क्यों न हम अपने खेतों में एसी लगवा लें.’’

‘‘क्या ये बिना सिरपैर की बातें कर रहा है.’’ तरसेम बेटे की बात पर हंसते हुए बोले, ‘‘कहीं खेतों में भी एसी लगते हैं.’’

यूं ही फिजूल की इधरउधर की बातें कर के बापबेटा अपना मन बहला रहे थे कि जोबन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अचानक फोन की घंटी ने उन की बातों पर विराम लगा दिया. जोबन पिता के पास से उठ कर एक तरफ चला गया और फोन पर किसी से बातें करने लगा. तरसेम सिंह अपनी जगह ही बैठे रहे. जोबन फोन पर बातें करते हुए जब घर से बाहर जाने लगा तो तरसेम सिंह ने उसे टोका, ‘‘ओए पुत्तर, खाने के वक्त कहां जा रहा है?’’

‘‘अभी आया पापाजी,’’ जोबन ने फोन सुनते हुए ही पिता को आवाज दे कर कहा और बातें करते हुए घर से बाहर निकल गया. यह बात 17 जुलाई, 2018 रात 9 बजे की है. जोबन के चले जाने के बाद तरसेम सिंह पोतेपोतियों से बातें करने लगे. तरसेम सिंह पंजाब के जिला अमृतसर देहात के कस्बा ब्यास के पास वाले गांव शेरों निगाह के रहने वाले थे. गांव में उन का बहुत बड़ा कुनबा था. उन के पिता मोहन सिंह गांव के नामी जमींदार थे. उन की मृत्यु के बाद तरसेम सिंह ने भी अपने पुरखों की जागीर को संभाल कर रखा था. तरसेम सिंह ने 2 शादियां की थीं. दोनों ही पत्नियों की मृत्यु हो चुकी थी.

पहली पत्नी से उन की 2 बेटियां और 2 बेटे थे. पहली पत्नी की मृत्यु के बाद बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने दूसरी शादी की थी. दूसरी पत्नी से उन्हें 2 बेटियां और एक बेटा जतिंदर उर्फ जोबन था. पूरे परिवार में जोबन ही सब से छोटा था और इसी वजह से सब का प्यारा था. तरसेम सिंह के सभी बेटे शादीशुदा थे और गांव में पासपास बने घरों में रहते थे. जोबन को घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. जबकि अपने पिता से वह यह कह कर गया था कि अभी लौट आएगा. तरसेम सिंह के पोतेपोतियां भी सोने चले गए थे. उन्होंने समय देखा तो रात के 11 बज चुके थे. उन का चिंतित होना स्वाभाविक ही था. उन्होंने जोबन को फोन मिलाया तो उस का फोन बंद मिला. बारबार फोन मिलाने पर भी जब हर बार फोन बंद मिला तो वह अकेले ही गांव में उस की तलाश के लिए निकल पड़े.

उन्होंने पूरा गांव छान मारा पर जोबन का कहीं कोई पता नहीं चला. अंत में उन्होंने घर लौट कर अपने दूसरे बेटों को जगा कर सारी बात बताई. बेटे की तलाश के लिए उन्होंने अपने भाई सुखविंदर सिंह और शादीशुदा दोनों बेटियों को भी फोन कर के अपने यहां बुला लिया था. सभी लोग एक बार फिर से जोबन को ढूंढने के लिए निकल पड़े. तरसेम के बेटों के साथ गांव के कुछ और लोग भी थे. पूरा कुनबा सारी रात ढूंढता रहा पर जोबन का पता नहीं चला. उसे हर उस संभावित जगह पर तलाशा गया था, जहां उस के मिलने की उम्मीद थी.

अगली सुबह जोबन के लापता होने की खबर थाना ब्यास में दे दी गई. उस की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस ने भी उस की तलाश शुरू कर दी. अपने घर फोन पर किसी से बात करतेकरते जोबन अचानक कहां गायब हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. जोबन को लापता हुए 24 घंटे से भी अधिक का समय बीत चुका था. उस का फोन अब भी बंद था. शाम के समय गांव जोधा निवासी जोबन के एक दोस्त तरसपाल सिंह ने तरसेम सिंह को फोन पर बताया कि उस ने पहली जुलाई की रात जोबन को सुखबीर सिंह के साथ गांव से बाहर जाते देखा था.

उस वक्त सुखबीर के साथ 2 लड़के और भी थे. वह उन्हें पहचान नहीं पाया, क्योंकि उन दोनों ने अपने चेहरे कपड़े से ढक रखे थे. इस से पहले रात करीब 8 बजे सुखबीर उस के घर आया था और बहुत घबराया हुआ था. बता रहा था कि उस का स्कूल के ग्राउंड में किसी से झगड़ा हो गया था. विस्तार से बात समझने के लिए तरसेम सिंह ने तरसपाल को अपने पास बुलवा लिया और उस से पूरी बात पूछी. उस के बाद तरसेम सिंह को पूरा विश्वास हो गया कि उन के बेटे के लापता होने में सुखबीर का ही हाथ हो सकता है. वह जानते थे कि जोबन का सुखबीर की बहन के साथ चक्कर चल रहा था. उन के दिमाग में यह बात भी आई कि कहीं इस रंजिश की वजह से सुखबीर ने जोबन को सबक सिखाने के लिए गायब तो नहीं करवा दिया.

बहरहाल, तरसेम ने इन सब बातों से अपने रिश्तेदारों को अवगत करवाया और तरसपाल को अपने साथ ले कर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी किरणदीप सिंह को उन्होंने जोबन के लापता होने से ले कर अब तक की पूरी बात विस्तार से बता दी. थानाप्रभारी के पूछने पर तरसपाल ने बताया कि जोबन को फोन कर के सुखबीर सिंह उर्फ हीरा ने ही बुलाया था. सुखबीर के साथ 2 और युवक भी थे, जिन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. वे तीनों जोबन को गांव शेरो बागा के स्कूल के ग्राउंड में ले गए थे, जहां पर झगड़े के दौरान सुखबीर ने जोबन के सिर पर ईंट से वार किया. इस से जोबन की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस के बाद सुखबीर ने अपने साथियों के साथ मिल कर जोबन की लाश ब्यास नदी में फेंक दी.

तरसपाल का बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी किरणदीप सिंह ने 3 जुलाई, 2018 को भादंवि की धारा 302 के तहत सुखबीर सिंह और 2 अन्य लोगों के खिलाफ जोबन की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सुखबीर के घर दबिश दे कर उसे गिरफ्तार कर लिया. सुखबीर से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर जोबन की हत्या में शामिल दूसरे युवक लवप्रीत सिंह को भी गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. 4 जुलाई, 2018 को पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ के दौरान सुखबीर सिंह ने जोबन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. विस्तार से की गई पूछताछ के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार से थी. कह सकते हैं कि यह मामला औनर किलिंग का था.

सुखबीर सिंह उर्फ हीरा अमृतसर के गांव अर्क के एक मध्यवर्गीय परिवार से था. उस के पिता बलबीर सिंह इतना कमा लेते थे जिस से घर खर्च और अन्य जरूरतें आराम से पूरी हो जाती थीं. सुखबीर 2 भाईबहन थे. किसी कारणवश सुखबीर ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. अब सुखबीर और उस के मातापिता का एक ही सपना था कि वे किसी तरह अपनी बेटी पम्मी को उच्चशिक्षा दिलाएं. इस के लिए सुखबीर भी जीतोड़ मेहनत कर रहा था. एक कहावत है कि जब इंसान के जीवन में 16वां साल तूफान बन कर आता है तो कोई विरला ही अपने आप को इस तूफान से बचा पाता है, ज्यादातर लोग तूफान की चपेट में आ जाते हैं. जोबन और पम्मी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था. जोबन करीब 20 साल का  था और पम्मी 16 पार कर चुकी थी. दोनों एक ही गांव के और एक ही जाति के थे.

आग और घी जब आसपास हों तो आंच पा कर घी पिघल ही जाता है. दुनिया और समाज के अंजाम की परवाह किए बिना जोबन और पम्मी प्रेम अग्नि के कुंड में कूद पड़े थे. लगभग एक साल तक तो किसी को उन की प्रेम कहानी का पता नहीं चला था. क्योंकि मिलनेजुलने में दोनों बड़ी ऐहतियात बरतते थे. पर ये बात जगजाहिर है कि इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं छिपते. एक न एक दिन किसी न किसी को तो खबर लग ही जाती है. किसी माध्यम से सुखबीर को जब अपनी बहन के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चला तो जैसे घर में तूफान आ गया. सुखबीर को ज्यादा गुस्सा इस बात पर था कि वह बहन पम्मी को ऊंचाई तक पहुंचाना चाहता था और वह गलत रास्ते पर जा रही थी. गुस्सा या मारपीट करने से कोई लाभ नहीं था. उस ने पम्मी को प्यार से काफी समझाया.

पम्मी ने भी भाई को साफसाफ बता दिया कि वह जोबन के बिना नहीं रह सकती. सुखबीर अपनी बहन की खुशियों के लिए शायद उस की बात मान भी लेता, पर समस्या यह थी कि जोबन पर अदालत में एक आपराधिक मुकदमा चल रहा था. सुखबीर नहीं चाहता था कि उस की बहन ऐसे आदमी से शादी करे जो अपराधी किस्म का हो. बहन को समझाने के बाद उस ने जोबन के पास जा कर उस के सामने हाथ जोड़ कर उसे समझाया, ‘‘जोबन, हम एक ही गांव के हैं और एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए हैं. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं कि मेरी बहन का पीछा छोड़ दो और हमें और हमारे सपनों को बरबाद न करो.’’

जोबन ने आश्वासन तो दे दिया कि वह आइंदा पम्मी से नहीं मिलेगा पर ऐसा हुआ नहीं. वह पम्मी से मिलता रहा. घटना से एक दिन पहले सुखबीर ने जोबन को पम्मी के साथ गांव के बाहर खेतों में देख लिया. उस समय वह खून का घूंट पी कर खामोश रह गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस समस्या का समाधान कैसे करे. काफी सोचने के बाद उस ने जोबन को अपनी बहन की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर करने का फैसला कर लिया. पर यह काम वह अकेले नहीं कर सकता था, इसलिए इस काम के लिए उस ने अपने दोस्त लवप्रीत और सुरजीत को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. जोबन सहित ये सभी लोग एकदूसरे के दोस्त थे.

अगले दिन पहली जुलाई की रात में सुखबीर ने जोबन को फोन कर के मिलने के लिए गांव के स्कूल के ग्राउंड में बुलाया. उस ने कहा था कि पम्मी के बारे में जरूरी बात करनी है. उस वक्त लवप्रीत और सुरजीत उस के साथ थे. सुखबीर ने पहले से ही तय कर लिया था कि पहले वह जोबन को समझाएगा. अगर वह नहीं माना तो उसे अंत में ठिकाने लगा देगा. पर ऐसा नहीं हुआ. बातोंबातों में उन के बीच बात इतनी बढ़ गई कि दोनों का आपस में झगड़ा हो गया. इसी दौरान सुखबीर ने पास पड़ी ईंट उठा कर पूरी ताकत से जोबन के सिर पर दे मारी, जिस से जोबन लुढ़क गया और मौके पर ही उस की मौत हो गई.

जोबन की मौत के बाद तीनों घबरा गए. अपना अपराध छिपाने के लिए उन्होंने मिल कर उस की लाश पास में बह रही ब्यास नदी में बहा दी और अपनेअपने घर चले गए. चूंकि नदी से जोबन की लाश बरामद करनी थी, इसलिए पुलिस ने गोताखोरों की टीम बुलवा कर काफी खोजबीन की. 4-5 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद भी जोबन की लाश नहीं मिल सकी. जिन थाना क्षेत्रों से नदी गुजरती थी, थानाप्रभारी ने वहां की पुलिस से भी संपर्क किया कि उन के क्षेत्र में कोई लाश तो बरामद नहीं हुई है. कथा लिखे जाने तक जोबन की लाश पुलिस को नहीं मिली थी.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया. इस हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुरजीत की पुलिस तलाश कर रही है.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पम्मी परिवर्तित नाम है.

UP Crime : प्यार करने के बहाने प्रेमिका को बाहों में भरकर घोंटा गला

UP Crime : शादीशुदा होने के बावजूद साथ काम करने वाली प्रभावती पर तेजभान का दिल आया तो कोशिश कर के उस ने उस से संबंध बना लिए. फिर इस संबंध का भी वैसा ही अंत हुआ, जैसा अकसर होता आया है. प्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे

लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलनेखाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनी अपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा.

रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी. प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर आ जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई. अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बातहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं आ पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ.

ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए. अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी.

प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए. उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा. बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थीं.

समय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी. मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी. जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा.

प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था. रायबरेली का मंशा देवी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है. करीब 5 साल पहले सितंबर महीने के पहले रविवार को प्रभावती मनोज के साथ वहां गई. दोनों ने मंदिर में मंशा देवी के सामने एकदूसरे को पतिपत्नी मानते हुए जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद एकदूसरे के गले में फूलों की जयमाल डाल कर दांपत्य बंधन में बंध गए.

मंदिर में शादी कर के मनोज प्रभावती को अपने कमरे पर ले गया. मनोज को इसी दिन का बेताबी से इंतजार था. वह प्रभावती के यौवन का सुख पाना चाहता था. अब इस में कोई रुकावट नहीं रह गई थी, क्योंकि प्रभावती ने उसे अपना जीवनसाथी मान लिया था. इसलिए अब उस की हर चीज पर उस का पूरा अधिकार हो गया था. मनोज को प्रभावती किसी परी की तरह लग रही थी. छरहरी काया में उस की बोलती आंखें, मासूम चेहरा किसी को भी बहकने पर मजबूर कर सकता था. प्रभावती में वह सब कुछ था, जो मनोज को दीवाना बना रहा था. मनोज के लिए अब इंतजार करना मुश्किल हो रहा था.

वह प्रभावती को ले कर सुहागरात मनाने के लिए कमरे में पहुंचा. प्रभावती को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. मन तो वह पहले ही सौंप चुकी थी, उस दिन तन भी सौंप दिया. इस तरह प्रभावती की विवाहित जीवन की कल्पना साकार हो गई थी. यह बात प्रभावती ने अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने बुरा नहीं माना. कुछ दिनों तक रायबरेली में साथ रहने के बाद वह मनोज के साथ उस के घर बंगाल चली गई. मनोज बंगाल के हुगली शहर के रेल बाजार का रहने वाला था. लेकिन मनोज अपने घर न जा कर कोलकाता की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा और वहीं मकान ले कर प्रभावती के साथ रहने लगा. साल भर बाद प्रभावती ने वहीं एक बेटे को जन्म दिया. मनोज नौकरी करता था तो प्रभावती घर और बेटे को संभाल रही थी. दोनों मिलजुल कर आराम से रह रहे थे.

मनोज बेटे और प्रभावती के साथ खुश था. लेकिन वह प्रभावती को अपने घर नहीं ले जा रहा था. प्रभावती कभी ले चलने को कहती तो वह कोई न कोई बहाना कर के टाल जाता. कोलकाता में रहते हुए काफी समय हो गया तो प्रभावती को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन उस ने मनोज से रायबरेली चलने को कहा तो मनोज ने कहा, ‘‘यहां हमें रायबरेली से ज्यादा वेतन मिल रहा है, इसलिए अब मैं वहां नहीं जाना चाहता. अगर तुम चाहो तो जा कर अपने घर वालों से मिल आओ. वहां से आने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

मातापिता से मिलने के लिए प्रभावती रायबरेली आ गई. कुछ दिनों बाद वह मनोज के पास कोलकाता पहुंची तो पता चला कि मनोज तो पहले से ही शादीशुदा है. क्योंकि प्रभावती के रायबरेली जाते ही मनोज अपनी पत्नी सीमा को ले आया था. उस की पत्नी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया. उसे धमकाते हुए सीमा ने कहा, ‘‘तुम जैसी औरतें मर्दों को फंसाने में माहिर होती हैं. जवानी के लटकेझटके दिखा कर पैसों के लिए किसी भी मर्द को फांस लेती हैं. अब यहां कभी दिखाई मत देना. अगर यहां फिर आई तो ठीक नहीं होगा.’’

सीमा की बातें सुन कर प्रभावती के पास वापस आने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. उसे जलालत पसंद नहीं थी. वह एक बार मनोज से मिल कर रिश्ते की सच्चाई के बारे में जानना चाहती थी. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी न तो मनोज उस के सामने आया और न उस ने फोन पर बात की. उस से मिलने के चक्कर में प्रभावती कुछ दिन वहां रुकी रही. लेकिन जब वह उस से मिलने को तैयार नहीं हुआ तो वह परेशान हो कर रायबरेली वापस चली आई.

जिस मनोज को उस ने पति मान कर अपना सब कुछ सौंप दिया था, वह बेवफा निकल गया था. प्रभावती का दिल टूट चुका था. वापस आने पर उस की परेशानियां और भी बढ़ गईं. अब मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ बेटे की भी जिम्मेदारी थी. गुजरबसर के लिए प्रभावती फिर से काम करने लगी. बदनामी के डर से वह प्लाईवुड फैक्ट्री में नहीं गई. थोड़ी दौड़धूप करने पर उसे रायबरेली शहर में दूसरा काम मिल गया था. जीवन फिर से पटरी पर आने लगा था. शादी के बाद प्रभावती की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार आ गया था. दूसरी जगह काम करते हुए उस की मुलाकात तेजभान से हुई. तेजभान उसी की जाति का था. प्रभावती रोजाना अपने काम पर साइकिल से रायबरेली आतीजाती थी.

कभी कोई परेशानी होती या देर हो जाती तो तेजभान उसे अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंचा देता था. लगातार मिलनेजुलने से दोनों के बीच नजदीकी बढ़ने लगी. तेजभान के साथ प्रभावती को खुश देख कर उस के मांबाप भी खुश थे. तेजभान रायबरेली के ही डीह गांव का रहने वाला था. एक दिन प्रभावती को कुछ ज्यादा देर हो गई तो तेजभान ने उस से अपने कमरे पर ही रुक जाने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद प्रभावती तेजभान के कमरे पर रुक गई. मनोज से संबंध टूटने के बाद शारीरिक सुख से वंचित प्रभावती एकांत में तेजभान का साथ पाते ही पिघलने लगी. उस की शारीरिक सुख की कामना जाग उठी थी. तेजभान तो उस से भी ज्यादा बेचैन था.

उम्र में बड़ा होने के बावजूद तेजभान का जिस्म मजबूत और गठा हुआ था. उस की कदकाठी मनोज से काफी मिलतीजुलती थी. वह मनोज जैसा सुंदर तो नहीं दिखता था, लेकिन बातें उसी की तरह प्यारभरी करता था. प्रभावती की सोई कामना को उस ने अंगुलियों से जगाना शुरू किया तो वह उस के करीब आ गई. इस के बाद दोनों के बीच वह सब हो गया जो पतिपत्नी के बीच होता है. तेजभान और प्रभावती के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हो गए थे. वह प्रभावती के घर तो पहले से ही आताजाता था, लेकिन अब उस के घर रात में रुकने भी लगा था. प्रभावती के मातापिता से भी वह बहुत ही प्यार और सलीके से पेश आता था. इस के चलते वे भी उस पर भरोसा करने लगे थे.

तेजभान के पास जो मोटरसाइकिल थी, वह पुरानी हो चुकी थी. वह उसे बेच कर नई मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था. लेकिन इस के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. अपने मन की बात उस ने प्रभावती से कही तो उस ने उसे 10 हजार रुपए दे कर नई मोटरसाइकिल खरीदवा दी. तेजभान का प्यार और साथ पा कर वह मनोज को भूलने लगी थी. तेजभान में सब तो ठीक था, लेकिन वह थोड़ा शंकालु स्वभाव का था. वह प्रभावती को कभी किसी हमउम्र से बातें करते देख लेता तो उसे बहुत बुरा लगता. वह नहीं चाहता था कि प्रभावती किसी दूसरे से बात करे. इसलिए वह हमेशा उसे टोकता रहता था.

प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया. जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा आ गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’

प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से न रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया. वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी.

प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’

प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’

एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’

‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’

‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.

प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गया. प्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.

तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया. मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया.

प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया. प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.

प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है. 11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई.

घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ पर ‘आई लव यू’ लिखा है. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.

थाने आ कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस आ चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी.

प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया. शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी. प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी.

मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’

पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime story : आशिक ने माशूका के चेहरे को चाकू से गोद डाला

Crime story : मार्निंग वौक पर निकले कुछ लोगों ने हाईवे के किनारे एक महिला की लाश पड़ी देखी तो उन्होंने  इस बात की सूचना थाना नौबस्ता पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां काफी लोग इकट्ठा थे, लेकिन उन में से कोई भी महिला की शिनाख्त नहीं कर सका. मृतका की उम्र 35 साल के आसपास थी. वह साड़ीब्लाउज और पेटीकोट पहने थी. उस के सिर पर गंभीर चोट लगी थी, चेहरा किसी नुकीली चीज से Crime story गोदा गया था. गले में भी साड़ी का फंदा पड़ा था.

लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए कानपुर स्थित लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया. लेकिन घटनास्थल की काररवाई में पुलिस ने काफी समय बरबाद कर दिया था, इसलिए देर हो जाने की वजह से उस दिन लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका. यह 5 जुलाई, 2014 की बात थी.

अगले दिन यानी 6 जुलाई को कानपुर से निकलने वाले समाचार पत्रों में जब एक महिला का शव नौबस्ता में हाईवे पर मिलने का समाचार छपा तो थाना चकेरी के मोहल्ला रामपुर (श्यामनगर) के रहने वाले शिवचरन सिंह भदौरिया को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि उस की पत्नी नीलम उर्फ पिंकी पिछले 2 दिनों से गायब थी. इस बीच उस ने अपने हिसाब से उस की काफी खोजबीन की थी, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला था. अखबार में समाचार पढ़ने के बाद शिवचरन सिंह अपने दोनों बेटों, सचिन और शिवम को साथ ले कर थाना नौबस्ता पहुंचा और थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह को बताया कि उस की पत्नी परसों से गायब है. वह हाईवे के किनारे मिली महिला की लाश को देखना चाहता है.

चूंकि शव पोस्टमार्टम हाऊस में रखा था, इसलिए थानाप्रभारी ने उन लोगों को एक सिपाही के साथ वहां भेज दिया. शिवचरन सिंह बेटों के साथ वहां पहुंचा तो लाश देखते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा. क्योंकि वह लाश उस की पत्नी नीलम की थी. उस के दोनों बेटे सचिन और शिवम भी मां की लाश देख कर रोने लगे थे. इस तरह हाईवे के किनारे मिले महिला के शव की शिनाख्त हो गई थी. लाश की शिनाख्त कर शिवचरन सिंह बेटों के साथ थाने आ गए. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने शिवचरन से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी नीलम 4 जुलाई की शाम 4 बजे से गायब है. घर से निकलते समय उस ने बच्चों से कहा था कि वह उन की स्कूली ड्रेस लेने दर्जी के यहां जा रही है. उधर से ही वह घर का सामान भी ले आएगी. लेकिन वह गई तो लौट कर नहीं आई.

आज सुबह उस ने अखबार में महिला के शव मिलने की खबर पढ़ी तो वह थाने आया और पोस्टमार्टम हाउस जा कर देखी तो पता चला कि उस की तो हत्या हो चुकी है.

‘‘हत्या किस ने की होगी, इस बारे में तुम कुछ बता सकते हो?’’ थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, हमें संदेह नहीं, पूरा विश्वास है कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है. वह हमारे बड़े भाई का चचेरा साला है. उस का हमारे घर बहुत ज्यादा आनाजाना था. उस के नीलम से अवैध संबंध थे. पीछा छुड़ाने के लिए उसी ने उस की हत्या की है. वह अपने परिवार के साथ बर्रा में रहता है. इन दिनों उस की तैनाती लखनऊ में है.’’

शिवचरन सिंह ने जैसे ही कहा कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है, थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने उसे डांटा, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है. नीलम की हत्या नहीं हुई है. मुझे लगता है, उस की मौत एक्सीडेंट से हुई है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आएगी तो पता चल जाएगा कि वह कैसे मरी है.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नीलम की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस की मौत सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. उस के चेहरे को चाकू की नोक से गोदा गया था. गला भी साड़ी से कसा गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो गया था कि नीलम की हत्या हुई थी. इस के बावजूद थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस का मतलब था कि जगराम सिंह ने सिफारिश कर दी थी. विभागीय मामला था, इसलिए थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह उस का पक्ष ले रहे थे.

हत्या के इस मामले को दबाने की खबर जब स्थानीय अखबारों में छपी तो आईजी आशुतोष पांडेय ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने इस मामले को ले कर थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह से 2 बार बात की, लेकिन उस ने उन्हें कोई उचित जवाब नहीं दिया. इस के बाद उन्होंने क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश को इस मामले की जांच कर के तुरंत रिपोर्ट देने को कहा.

क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश ने उन्हें जो रिपोर्ट दी, उस में सबइंसपेक्टर जगराम सिंह पर हत्या का संदेह व्यक्त किया गया था. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने जो किया था, उस से पुलिस की छवि धूमिल हुई थी, इसलिए आईजी आशुतोष पांडेय ने उन्हें लाइनहाजिर कर दिया और खुद 10 जुलाई को थाना नौबस्ता जा पहुंचे. उन्होंने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को थाने बुला कर पूछताछ की और उसे साथ ले कर घटनास्थल का निरीक्षण भी किया.

मृतका नीलम और जगराम सिंह के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस में नीलम के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन जगराम सिंह का ही आया था. दोनों के बीच बात भी हुई थी. इस के बाद नीलम का फोन बंद हो गया था. नीलम के मोबाइल फोन की अंतिम लोकेशन थाना चकेरी क्षेत्र के श्यामनगर की थी. काल डिटेल्स से पता चला कि जगराम और नीलम की रोजाना दिन में कई बार बात होती थी. कभीकभी दोनों की घंटों बातें होती थीं.

सारे सुबूत जुटा कर आईजी आशुतोष पांडेय ने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह से नीलम की हत्या के बारे में पूछा तो उसने स्वीकार कर लिया कि साले की मदद से उसी ने नीलम की Crime story हत्या की थी और लाश ले जा कर नौबस्ता में हाईवे के किनारे फेंक दी थी. जगराम सिंह ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थाना नौबस्ता पुलिस ने शिवचरन सिंह भदौरिया की ओर से नीलम की हत्या का मुकदमा सबइंसपेक्टर जगराम सिंह और उस के साले लक्ष्मण सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. इस के बाद जगराम सिंह ने नीलम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह जिस्म के नाजायज रिश्तों में जिंदगी लेने वाली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के कस्बा खागा के रहने वाले राम सिंह के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटे पप्पू, बब्बू और बेटी नीलम उर्फ पिंकी थी. राम सिंह पक्का शराबी था. अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा वह शराब में उड़ा देता था. बाप की देखा देखी बड़े बेटे पप्पू को भी शराब का शौक लग गया. जैसा बाप, वैसा बेटा. पप्पू कुछ करता भी नहीं था.

नीलम उर्फ पिंकी राम सिंह की दूसरे नंबर की संतान थी. वह सयानी हुई तो राम सिंह को उस की शादी की चिंता हुई. उस के पास कोई खास जमापूंजी तो थी नहीं, इसलिए वह इस तरह का लड़का चाहता था, जहां ज्यादा दानदहेज न देना पड़े. उस ने तलाश शुरू की तो जल्दी ही उसे कानपुर शहर के थाना चकेरी के श्यामनगर (रामपुर) में किराए पर रहने वाला शिवचरन सिंह भदौरिया मिल गया. शिवचरन सिंह शहर के मशहूर होटल लिटिल में चीफ वेटर था. राम सिंह को शिवचरन पसंद आ गया. उस के बाद अपनी हैसियत के हिसाब से लेनदेन कर के उस ने नीलम की शादी शिवचरन सिंह के साथ कर दी.

नीलम जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर शिवचरन बेहद खुश था.  से समय गुजरने लगा. समय के साथ नीलम 2 बेटों सचिन और शिवम की मां बनी. बच्चे होने के बाद खर्च तो बढ़ गया, जबकि आमदनी वही रही. शिवचरन को 5 हजार रुपए वेतन मिलता था, जिस में से 2 हजार रुपए किराए के निकल जाते थे, हजार, डेढ़ हजार रुपए नीलम के फैशन पर खर्च हो जाते थे. बाकी बचे रुपयों में घर चलाना मुश्किल हो जाता था. इसलिए घर में हमेशा तंगी बनी रहती थी.

पैसों को ले कर अक्सर शिवचरन और नीलम में लड़ाईझगड़ा होता रहता था. रोजरोज की लड़ाई और अधिक कमाई के चक्कर में शिवचरन ने नीलम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया. पत्नी की किचकिच की वजह से वह तनाव में भी रहने लगा. इस सब से छुटकारा पाने के लिए वह शराब पीने लगा. संयोग से उसी बीच शिवचरन के घर उस के बड़े भाई के चचेरे साले यानी नीलम की जेठानी प्रीति के चचेरे भाई जगराम सिंह का आनाजाना शुरू हुआ.

जगराम सिंह अपने परिवार के साथ बर्रा कालोनी में रहता था. वह हेडकांस्टेबल था, लेकिन इधर प्रमोशन से सबइंस्पेक्टर हो गया था. उस की ड्यूटी लखनऊ में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री सुदीप रंजन सेन के यहां थी. नीलम जगराम सिंह की मीठीमीठी बातों और अच्छे व्यवहार से काफी प्रभावित थी. एक तरह से नीलम उस की बहन थी, लेकिन 2 बच्चों की मां होने के बावजूद नीलम की देहयष्टि और सुंदरता ऐसी थी कि किसी भी पुरुष की नीयत खराब हो सकती थी. शायद यही वजह थी कि भाई लगने के बावजूद जगराम सिंह की भी नीयत उस पर खराब हो गई थी.

घर आनेजाने से जगराम सिंह को नीलम की परेशानियों का पता चल ही गया था, इसलिए उस तक पहुंचने के लिए वह उस की परेशानियों का फायदा उठाते हुए हर तरह से मदद करने लगा. नीलम जब भी उस से पैसा मांगती, वह बिना नानुकुर किए दे देता. अगर कभी शिवचरन पैसे मांग लेता तो वह उसे भी दे देता. शिवचरन भले ही जगराम की मन की बात से अंजान था, लेकिन नीलम सब जानती थी. वह जान गई थी कि जगराम उस पर इतना क्यों मेहरबान है. उस की नजरों से उस ने उस के दिल की बात जान ली थी. एक तो नीलम को पति का सुख उस तरह नहीं मिल रहा था, जिस तरह मिलना चाहिए था, दूसरे जगराम अब उस की जरूरत बन गया था.

इसलिए उसे जाल में फंसाए रखने के लिए नीलम उस से हंसी मजाक ही नहीं करने लगी, बल्कि उस के करीब भी आने लगी थी. आसपड़ोस में सभी लोगों को उस ने यही बता रहा था कि यह उस के जेठानी का भाई है. इसलिए नीलम को लगता था कि उस के आने जाने पर कोई शक नहीं करेगा. नीलम की मौन सहमति पा कर एक दिन उसे घर में अकेली पा कर जगराम सिंह ने उस का हाथ पकड़ लिया. बनावटी नानुकुर के बाद उस ने जगराम को अपना शरीर सौंप दिया. जगराम से उसे जो सुख मिला, उस ने रिश्तों की मर्यादा को भुला दिया.

इस के बाद नीलम और जगराम जब भी मौका पाते, एक हो जाते. नीलम को जगराम सिंह के साथ शारीरिक सुख में कुछ ज्यादा ही आनंद आता था, इसलिए वह उस का भरपूर सहयोग करने लगी थी. कभीकभी तो जगराम से मिलने वाले सुख के लिए वह बच्चों को बहाने से घर के बाहर भी भेज देती थी. कुछ सालों तक तो उन का यह संबंध लोगों की नजरों से छिपा रहा, लेकिन जगराम सिंह का शिवचरन के घर अक्सर आना और घंटो पड़े रहना, लोगों को खटकने लगा. नीलम और उस के सबइंसपेक्टर भाई के हावभाव और कार्यशैली से लोगों को विश्वास हो गया कि उन के बीच गलत संबंध है.

जगराम सिंह बेहद चालाकी से काम ले रहा था. वह जब भी शिवचरन की मौजूदगी में आता, काफी गंभीर बना रहता. वह इस बात का आभास तक न होने देता कि उस के और नीलम के बीच कुछ चल रहा है. तब वह पूरी तरह से रिश्तेदार बना रहता. लेकिन एकांत मिलते ही वह रिश्तेदार के बजाय नीलम का प्रेमी बन जाता. जब मामला कुछ ज्यादा ही बढ़ गया तो पड़ोसियों ने शिवचरन के कान भरने शुरू किए. उसने अतीत में झांका तो उसे भी संदेह हुआ. फिर एक दिन जगराम घर आया तो वह होटल जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन आधे घंटे बाद ही वापस आ गया. उस ने देखा कि दोनों बेटे बाहर खेल रहे हैं और कमरे की अंदर से सिटकनी बंद है.

उस ने सचिन से पूछा, ‘‘क्या बात है, कमरे का दरवाजा क्यों बंद है, तुम्हारी मम्मी कहां हैं.?’’

‘‘मम्मी और मामा कमरे में हैं. हम कब से उन्हें बुला रहे हैं, वे दरवाजा खोल ही नहीं रहे हैं.’’ सचिन ने कहा.

शिवचरन को संदेह तो था ही, अब विश्वास हो गया. वह नीलम को आवाज दे कर दरवाजा पीटने लगा. अचानक शिवचरन की आवाज सुन कर दोनों घबरा गए. वे जल्दी से उठे और अपने अपने कपड़े ठीक किए. इस के बाद नीलम ने आ कर दरवाजा खोला. नीलम की हालत देख कर शिवचरन सारा माजरा समझ गया. उसे कुछ कहे बगैर वह कमरे के अंदर आया तो देखा जगराम सोने का नाटक किए चारपाई पर लेटा था. शिवचरन खून का घूंट पी कर रह गया. उस समय उस ने न तो नीलम से कुछ कहा और न ही जगराम सिंह से. लेकिन उस के हावभाव से नीलम समझ गई कि उस के मन में क्या चल रहा है. उस ने अपने भयभीत चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन तनाव में होने की वजह से सफल नहीं हो पाई.

शिवचरन सोच ही रहा था कि वह क्या करे, तभी जगराम जम्हुआई लेते हुए उठा और शिवचरन को देख कर बोला, ‘‘अरे तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए, तबीयत तो ठीक है?’’

शिवचरन ने जगराम सिंह के चेहरे पर नजरें जमा कर दबे स्वर में कहा, ‘‘तबीयत तो ठीक है, लेकिन दिमाग ठीक नहीं है.’’

इतना कह कर ही शिवचरन बाहर चला गया. उस ने जिस तरह यह बात कही थी, उसे सुन कर जगराम ने वहां रुकना उचित नहीं समझा और चुपचाप बाहर निकल गया. उस के जाते ही शिवचरन वापस लौटा और नीलम की चोटी पकड़ कर बोला, ‘‘बदलचन औरत, इस उम्र में तुझे यह सब करते शरम भी नहीं आई? वह भी उस आदमी के साथ जो तेरा भाई लगता है.’’

नीलम की चोरी पकड़ी गई थी, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई. गुस्से में तप रहे शिवचरन ने नीलम को जमीन पर पटक दिया और लात घूसों से पिटाई करने लगा. नीलम चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन शिवचरन ने उसे तभी छोड़ा, जब वह उसे मारते मारते थक गया. इस के बाद शिवचरन नीलम पर नजर रखने लगा था. उस ने बेटों से भी कह दिया था कि जब भी मामा घर आए, वे उस से बताएं. जिस दिन शिवचरन को पता चलता कि जगराम आया था, उस दिन शिवचरन नीलम पर कहर बन कर टूटता था. अब जगराम और नीलम काफी सावधानी बरतने लगे थे. वह तभी नीलम से मिलने आता था, जब उसे पता चलता था कि घर पर न बेटे हैं और न शिवचरन.

इसी बात की जानकारी के लिए जगराम सिंह ने नीलम को एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. इस से दोनों की रोजाना बातें तो होती ही रहती थीं, इसी से मिलने का समय भी तय होता था. एक दिन शिवचरन ने नीलम को जगराम से बातचीत करते पकड़ लिया तो मोबाइल फोन छीन कर पटक दिया. लेकिन अगले ही दिन जगराम ने उसे दूसरा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया. काफी प्रयास के बाद भी शिवचरन नीलम और जगराम को अलग नहीं कर सका तो उस ने जगराम के घर जा कर उस की पत्नी लक्ष्मी से सारी बात बता दी. इस के बाद जगराम के घर कलह शुरू हो गई. यह कलह इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लक्ष्मी ने बच्चों के साथ आत्मदाह करने की धमकी दे डाली.

पत्नी की इस धमकी से जगराम डर गया. उस ने पत्नी से वादा किया कि अब वह नीलम से संबंध तोड़ लेगा. उस ने नीलम से मिलना कम कर दिया तो इस से नीलम नाराज हो गई. इधर उस ने पैसों की मांग भी अधिक कर दी थी, जिस से जगराम को परेशानी होने लगी थी. एक ओर जगराम सिंह अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ नहीं सकता था. दूसरी ओर अब नीलम से भी पीछा छुड़ाना आसान नहीं रह गया था. वह बदनाम करने की धमकी देने लगी थी. उस की धमकी और मांगों से तंग आ कर जगराम सिंह ने नीलम से पीछा छुड़ाने के लिए अपने साले लक्ष्मण के साथ मिल कर उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

संयोग से उसी बीच नीलम ने बच्चों की ड्रेस, फीस, कापीकिताब और घर के खर्च के लिए जगराम से 10 हजार रुपए मांगे. जगराम ने कहा कि पैसों का इंतजाम होने पर वह उसे फोन से बता देगा. 24 जुलाई, 2014 की शाम 4 बजे जगराम सिंह ने नीलम को फोन किया कि पैसों का इंतजाम हो गया है, वह श्यामनगर चौराहे पर आ कर पैसे ले ले. फोन पर बात होने के बाद नीलम ने बेटों से कहा कि वह उन की ड्रेस लेने दर्जी के पास जा रही है और उधर से ही वह घर का सामान भी लेती आएगी.

नीलम श्यामनगर चौराहे पर पहुंची तो जगराम अपने साले लक्ष्मण सिंह के साथ कार में बैठा था. नीलम को भी उस ने कार में बैठा लिया. कार चल पड़ी तो नीलम ने जगराम से पैसे मांगे. लेकिन उस ने पैसे देने से मना कर दिया. तब नीलम नाराज हो कर उसे बदनाम करने की धमकी देने लगी. नीलम की बातों से जगराम को भी गुस्सा आ गया. वह उस से छुटकारा तो पाना ही चाहता था, इसलिए पैरों के नीचे रखी लोहे की रौड निकाली और नीलम के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. उसी एक वार में नीलम लुढ़क गई. इस के बाद जगराम ने नीलम की साड़ी गले में लपेट Crime story कर कस दी. नीलम मर गई तो चाकू से उस के चेहरे को गोद दिया.

जगराम अपना काम करता रहा और लक्ष्मण कार चलाता रहा. चलती कार में नीलम की बेरहमी से हत्या कर के जगराम और लक्ष्मण ने देर रात उस की लाश को नौबस्ता ले जा कर हाईवे के किनारे फेंक दिया और खुद कार ले कर अपने घर चले गए.

पूछताछ के बाद 10 जुलाई, 2014 को थाना नौबस्ता पुलिस ने अभियुक्त सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को कानपुर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. उस का साला लक्ष्मण फरार था. पुलिस उस की तलाश में जगहजगह छापे मार रही थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder Story : कैटामाइन इंजेक्शन लगवा कर पति को दी दर्दनाक मौत

Murder Story : भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो यानी आईबी के सहायक तकनीकी सूचना अधिकारी चेतन प्रकाश गलाना बीती 14 फरवरी को 2 दिन की छुट्टी पर दिल्ली से अपने घर कोटा जिले की रामगंज मंडी आए थे. दिल्ली में वह अकेले रहते थे. उन के मातापिता रामगंज मंडी में और पत्नी अनीता 2 छोटे बेटों के साथ झालावाड़ में रहती थी. चेतन आमतौर पर महीने में 1-2 बार छुट्टी पर घर आ जाते थे. जब भी वह घर आते तो रामगंज मंडी में रहने वाले मातापिता से मिलने जरूर जाते थे. उस दिन भी वह रामगंज मंडी में अपने घर वालों से मिल कर शाम 6 बजे की ट्रेन से झालावाड़ के लिए रवाना हुए थे. उन्हें करीब एक घंटे में झालावाड़ पहुंच जाना चाहिए था. जब रात 8 बजे तक चेतन घर नहीं पहुंचे तो उन की पत्नी अनीता ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के चेतन के बारे में बताया.

अनीता के कहने पर झालावाड़ की गायत्री कालोनी में रहने वाले रिश्तेदार मनमोहन मीणा ने चेतन की तलाश शुरू की. इसी खोजबीन में रात करीब साढ़े 8 बजे चेतन झालरापाटन-भवानी मंडी मार्ग पर रेलवे की रलायता पुलिया के पास बेहोश पड़े मिले. मनमोहन मीणा ने अनीता को चेतन के अचेत पड़े होने की सूचना दी. इस के बाद रिश्तेदार बेहोश चेतन को एआरजी अस्पताल ले गए. जांच के बाद डाक्टरों ने चेतन को मृत घोषित कर दिया. संदिग्ध मौत का मामला होने की वजह से अस्पताल से पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर शव का निरीक्षण किया, लेकिन शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं मिला.

पुलिस ने रलायता पुलिया के पास उस जगह का भी मौका मुआयना किया, जहां चेतन अचेत पड़े मिले थे. लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से पता चलता कि चेतन की मौत कैसे हुई. रिश्तेदारों की सूचना पर रामगंज मंडी से चेतन के मातापिता और अन्य घर वाले भी झालावाड़ आ गए.

पिता को था बेटे की हत्या का संदेह

चेतन के पिता महादेव मीणा ने झालावाड़ के थाना सदर में बेटे की संदिग्ध मौत का मामला दर्ज करा दिया. पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 में मामला दर्ज कर जांच शुरू की. पुलिस ने 15 फरवरी को चेतन के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद चेतन का विसरा जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया. खुफिया अधिकारी की मौत का मामला होने के कारण पुलिस हर एंगल से जांच कर रही थी. इन में 3 मुख्य बिंदु थे, पहला हार्ट अटैक, दूसरा Murder Story आत्महत्या और तीसरा हत्या. चेतन के शरीर पर चोट या हाथापाई के कोई निशान नहीं मिले थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया, जिस से मौत का रहस्य खुलता.

अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि चेतन जब ट्रेन से झालावाड़ आ रहे थे तो वह रलायता पुलिया कैसे पहुंचे और उन की मौत कैसे हुई? पुलिस कई दिनों तक इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करती रही, लेकिन कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं मिली, जिस से चेतन की मौत के कारणों का पता चल पाता. इस बीच, चेतन के पिता महादेव मीणा ने अदालत में इस्तगासा दायर कर दिया. इस्तगासे में कहा गया कि चेतन की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई है. इस पर अदालत ने पुलिस को चेतन की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. तब तक चेतन की हत्या को 3 महीने हो चुके थे.

अप्रैल के दूसरे सप्ताह में झालावाड़ के सदर थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईबी औफिसर चेतन प्रकाश गलाना की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. एसपी आनंद शर्मा ने चेतन की हत्या के मामले का खुलासा करने के लिए एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में सदर थानाप्रभारी संजय मीणा, एएसआई अजीत मोगा, हैडकांस्टेबल मदन गुर्जर, कुंदर राठौड़, महेंद्र सिंह, हेमंत शर्मा और कुछ कांस्टेबलों की टीम गठित की.

पत्नी को किया गिरफ्तार

पुलिस की इस टीम ने चेतन प्रकाश की दिनचर्या के बारे में पता लगाया. इस के बाद उन के दोस्तों, परिचितों और दुश्मनी रखने वालों को चिह्नित कर के उन से पूछताछ की. इंटेलीजेंस ब्यूरो के दिल्ली कार्यालय में चेतन प्रकाश के साथी कर्मचारियों से भी पूछताछ की गई. पुलिस टीम ने रामगंज मंडी, झालावाड़ रेलवे स्टेशन और रलायता पुलिया के आसपास घटनास्थल का कई बार दौरा कर के तथ्यों का पता लगाने का प्रयास किया. साइबर टीम ने कई जगह के मोबाइल टावरों का रिकौर्ड निकलवाया. साथ ही चेतन के घरपरिवार की पूरी जानकारी प्राप्त कर के घर वालों से भी पूछताछ की गई.

जांचपड़ताल में यह बात सामने आई कि चेतन के अपनी पत्नी अनीता के साथ संबंध अच्छे नहीं थे. इस के बाद पुलिस ने तकनीकी जांच और मुखबिरों की मदद से चेतन की मौत की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं. लंबी चली जांचपड़ताल के बाद 25 जून को पुलिस ने आईबी औफिसर चेतन प्रकाश की हत्या के मामले में उन की पत्नी अनीता को गिरफ्तार कर लिया. अनीता से की गई पूछताछ में चेतन की हत्या की पूरी तसवीर सामने आ गई. जांच में पता चला कि चेतन की हत्या पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के साथ मिल कर सुनियोजित तरीके से की थी. चेतन की पत्नी अनीता भी पति की हत्या में शामिल थी. कांस्टेबल प्रवीण के चेतन की पत्नी अनीता से अवैध संबंध थे. इन संबंधों को ले कर चेतन का अपनी पत्नी अनीता से कई बार विवाद भी हुआ था.

चेतन को शक था कि छोटा बेटा उस का नहीं, बल्कि प्रवीण का है. चेतन ने छोटे बेटे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता और प्रवीण को अपने अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था. इसी वजह से उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया. कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के सहयोग से चेतन को मौत के घाट उतारने के लिए 5 प्रयास किए थे. 3 बार की असफलता के बाद चौथी बार चेतन को दिल्ली में उन के घर पर मारने की योजना बनाई गई, लेकिन उस में भी कामयाबी नहीं मिली. अंतत: 5वीं बार वे चेतन को मौत की नींद सुलाने में कामयाब हो गए.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ पहले झालावाड़ पुलिस की स्पैशल टीम में तैनात था. बाद में वह प्रतिनियुक्ति पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी में चला गया. एसीबी में भी वह झालावाड़ में ही तैनात रहा. पुलिस कांस्टेबल होने के कारण प्रवीण को आपराधिक पैंतरों की अच्छी जानकारी थी कि हत्या के मामले को साधारण मौत में कैसे दर्शाया जाए, वह अच्छी तरह जानता था. इस के लिए उस ने चेतन का अपहरण किया और उसे कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुला दिया.

कैटामाइन इंजेक्शन प्रतिबंधित नशीली दवा है. यह बाजार में खुले तौर पर नहीं मिलती. कैटामाइन इंजेक्शन अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में ही काम आता है. खास बात यह कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस इंजेक्शन के बारे में पता नहीं चल पाता. पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद चेतन की हत्या के मामले में उस की पत्नी अनीता के साथसाथ अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों से की गई पूछताछ और पुलिस की जांच में चेतन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह है. झालावाड़ में मंगलपुरा रोड पर रहने वाले रमेशचंद का बेटा प्रवीण राठौड़ जब पढ़ता था, तभी से अनीता उसे जानती थी.

बचपन के प्यार ने हिलोरें मारे तो बन गई हत्या की योजना

अनीता भी झालावाड़ में रहती थी. पढ़नेलिखने की उम्र में दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. सन 2008 में अनीता का चयन अध्यापिका के पद पर हो गया. उसी साल प्रवीण राठौड़ की नौकरी भी राजस्थान पुलिस में लग गई. सरकारी नौकरी मिल जाने पर प्रवीण का बचपन का प्यार हिलोरें मारने लगा. उस ने अनीता के सामने अपने प्यार का इजहार करते हुए शादी का प्रस्ताव रखा, लेकिन परिस्थितियां ऐसी रहीं कि घर वालों की रजामंदी न मिलने से दोनों की शादी नहीं हो सकी. अनीता से शादी न हो पाने से प्रवीण की हसरत मन में ही रह गई. अपनी अधूरी हसरतों को मन में लिए प्रवीण पुलिस की नौकरी करता रहा और अनीता सरकारी स्कूल में शिक्षिका की.

बाद में जनवरी 2011 में अनीता की शादी चेतन प्रकाश गलाना से हो गई. अनीता सुंदर भी थी और पढ़ीलिखी भी. वह झालावाड़ के पास असनावर गांव के स्कूल में नियुक्त थी. परेशानी यह थी कि चेतन की नियुक्ति दिल्ली में थी और अनीता की घर के पास ही. इसलिए दोनों को अलगअलग रहना पड़ रहा था. उन के बीच झालावाड़ से दिल्ली की लंबी दूरी थी. चेतन छुट्टी मिलने पर 15-20 दिन बाद 1-2 दिन के लिए घर आते थे, तभी वह अनीता से मिल पाते थे. नईनई शादी और इतने दिनों का अंतराल दोनों को बहुत खलता था. लेकिन दोनों की ही अपनीअपनी नौकरी की मजबूरियां थीं. उन का गृहस्थ जीवन ठीकठाक चल रहा था.

शादी के कुछ महीने बाद ही अनीता के पैर भारी हो गए. चेतन को पता चला तो वह बहुत खुश हुए. सन 2012 में अनीता ने बेटे को जन्म दिया. पहली संतान के रूप में बेटा पा कर चेतन का पूरा परिवार खुश था. बेटे का नाम क्षितिज रखा गया. क्षितिज समय के साथ बड़ा होने लगा. इस बीच 2011 में ही प्रवीण राठौड़ की भी शादी हो गई. प्रवीण की पत्नी भी पढ़ीलिखी थी. दिसंबर 2014 में प्रवीण की पत्नी का भी सरकारी अध्यापिका के पद पर चयन हो गया. उस की नियुक्ति भी असनावर के उसी स्कूल में हुई, जहां अनीता नियुक्त थी.

प्रवीण कई बार पत्नी को स्कूल छोड़ने या स्कूल से वापस लाने चला जाता था. उसी स्कूल में अनीता भी नियुक्त थी. फलस्वरूप अनीता और प्रवीण की फिर से मुलाकातें होने लगीं. इन मुलाकातों का असर यह हुआ कि उन का बचपन और जवानी का प्यार फिर से अपने पंख फैलाने लगा. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के निकट आ गए. अनीता को डर था कि उसे प्रवीण के साथ देख कर कहीं उस की पत्नी और दूसरे लोग गलत न सोचने लगें, इसलिए अगस्त 2015 में रक्षाबंधन पर अनीता ने प्रवीण को राखी बांधी और पति चेतन प्रकाश से उस का परिचय धर्मभाई के रूप में कराया.

मिलने के लिए बनाया नया आशियाना

प्रवीण की पत्नी और अनीता के एक ही स्कूल में अध्यापिका के पद पर तैनात होने से चेतन को किसी तरह का कोई संदेह नहीं हुआ. वह पहले की तरह ही अनीता पर भरोसा करते रहे. अपनी नौकरी की वजह से चेतन झालावाड़ में नहीं रह सकते थे. प्रवीण ने चेतन की इस मजबूरी का फायदा उठाया. अनीता और प्रवीण की मुलाकातें गुल खिलाने लगीं. उन दोनों के बीच शारीरिक Murder Story संबंध बन गए. जनवरी, 2017 के बाद वे लगभग रोजाना ही एकदूसरे से मिलने लगे. उस समय अनीता गायत्री कालोनी, झालावाड़ स्थित अपने मातापिता के घर रह रही थी.

जून, 2017 में प्रवीण ने अनीता को झालावाड़ के हाउसिंग बोर्ड में 35 लाख रुपए का नया मकान दिलवा दिया. मकान के पैसे अनीता ने दिए. चर्चा है कि प्रवीण ने अनीता को मकान दिलवाने में दलाली के 10 लाख रुपए खुद रख लिए थे. अनीता हाउसिंग बोर्ड के नए मकान में रहने लगी. प्रवीण इस मकान में बेरोकटोक आनेजाने लगा. वहां उसे रोकने वाला कोई नहीं था. बेटा 5-साढ़े 5 साल का था. चेतन प्रकाश महीने में एकदो बार ही आते थे. कभीकभार चेतन के मातापिता भी बहू के पास आ जाते थे. वे भी एकदो दिन रुक कर चले जाते थे. प्रवीण ने अनीता से बातें करने के लिए उसे एक मोबाइल और सिम अलग से दिलवा रखी थी, प्रवीण से वह इसी फोन पर बात करती थी. इसी दौरान अनीता गर्भवती हो गई.

अकेली रह रही बहू के घर में प्रवीण का बेरोकटोक आनाजाना चेतन के मातापिता को अच्छा नहीं लगता था. उन्होंने प्रवीण को साफ कह दिया कि वह तभी आया करे, जब चेतन घर में हो. उन्होंने यह बात चेतन को भी बताई. चेतन ने भी अनीता को प्रवीण के घर आनेजाने और उस से रिश्ता रखने के लिए मना कर दिया. इस बात को ले कर चेतन और अनीता के बीच झगड़ा होने लगा. अक्तूबर 2017 में अनीता ने एक निजी अस्पताल में बेटे को जन्म दिया. इस दौरान प्रवीण भी अस्पताल में मौजूद रहा. चेतन और उस के घर वालों को ज्यादा शक तब हुआ, जब प्रवीण ने नवजात के नैपकिन बदले. इस पर चेतन के घर वालों ने प्रवीण को फिर टोका, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.

प्रसव के बाद अनीता अपने घर आ गई. लेकिन प्रवीण को ले कर उन के घर में आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे. रोजाना की कलह के कारण अनीता ने 7 नवंबर, 2017 को आत्महत्या करने का प्रयास किया, लेकिन उसे बचा लिया गया. अनीता के घर में होने वाली कलह को ले कर चेतन प्रवीण की आंखों में खटकने लगे. फलस्वरूप उस ने चेतन को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. प्रवीण की दोस्ती वाहनों की खरीदफरोख्त करने और आरटीओ एजेंट का काम करने वाले शाहरुख से थी. शाहरुख झालावाड़ के तोपखाना मोहल्ले का रहने वाला था.

प्रवीण ने दिसंबर 2017 में शाहरुख को बताया कि उस की रिश्ते की बहन को उस का पति मारतापीटता है. वह दिल्ली में कंप्यूटर पर काम करता है, उस की हत्या करनी है. इस के लिए प्रवीण ने शाहरुख को 3 लाख रुपए की सुपारी दी. प्रवीण ने शाहरुख को चेतन की शक्ल भी दिखा दी. शाहरुख ने चेतन की हत्या की जिम्मेदारी ले कर इस काम के लिए अपने कुछ साथियों को शामिल कर लिया.

4 बार हत्या के प्रयास रहे विफल

प्रवीण और शाहरुख ने चेतन की हत्या के प्रयास शुरू कर दिए. प्रवीण ने अनीता के जरिए पता कर लिया था कि 25 दिसंबर, 2017 को चेतन छुट्टी बिता कर ट्रेन से दिल्ली जाएंगे. यह जान कर हत्यारों ने ट्रेन में चेतन का पीछा किया, लेकिन सर्दी का मौसम होने के कारण चेतन ने मुंह पर मफलर लपेट रखा था, जिस से वे उन्हें पहचान नहीं पाए और दिल्ली जा कर वापस लौट आए. इस के बाद 4 जनवरी, 2018 को चेतन छुट्टी ले कर झालावाड़ आए तो उन्हें ट्रक से कुचल कर मारने की योजना बनाई गई. इस के लिए बदमाशों ने झालावाड़ा के नला मोहल्ला निवासी ट्रक चालक शाकिर को 20 हजार रुपए दिए थे.

योजना के मुताबिक शाकिर को प्रवीण राठौड़ द्वारा उपलब्ध कराए गए ट्रक से चेतन की स्कूटी को रामगंज मंडी से झालावाड़ आते समय रास्ते में टक्कर मारनी थी, लेकिन उस दिन ट्रक पीछे ही रह गया जबकि स्कूटी आगे निकल गई. यह प्रयास विफल होने पर तय किया गया कि 5 जनवरी को चेतन जब झालावाड़ से स्कूटी से रामगंज मंडी जाएंगे, तब उन्हें ट्रक से टक्कर मार कर कुचल दिया जाएगा. उस दिन शाकिर ने पीछा कर के झरनिया घाटी के पास ट्रक से स्कूटी को टक्कर मार कर चेतन को कुचलने का प्रयास किया, लेकिन इस हादसे में चेतन गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद बच गए, अलबत्ता उन की स्कूटी जरूर क्षतिग्रस्त हो गई थी.

3 प्रयास विफल होने पर चेतन को दिल्ली में उन के घर में मारने की योजना बनाई गई. इस योजना के तहत झालावाड़ से आए बदमाश दिल्ली की निरंकारी कालोनी गुरु तेगबहादुर नगर स्थित चेतन के मकान पर पहुंच गए, लेकिन वहां पर कैमरे लगे होने के कारण वे वारदात को अंजाम दिए बगैर झालावाड़ वापस लौट आए. प्रवीण को अनीता से चेतन प्रकाश के आने और जाने की सारी जानकारियां मिलती रहती थीं. अंतिम बार भी प्रवीण को पता चल गया था कि चेतन 14 फरवरी की शाम को ट्रेन से रामगंज मंडी से झालावाड़ आएंगे. उस दिन पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों शाहरुख, फरहान और एक नाबालिग किशोर के साथ मिल कर योजना बना ली. योजना के अनुसार चेतन का झालावाड़ रेलवे स्टेशन से अपहरण करना था, फिर उन्हें कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुलानी थी.

योजना को ऐसे दिया अंजाम

योजना के तहत नाबालिग किशोर शाहरुख को बाइक से सुकेत छोड़ आया. सुकेत से शाहरुख रामगंज मंडी पहुंचा और ट्रेन से ही चेतन का पीछा करने लगा. ट्रेन के पहुंचने से कुछ समय पहले ही उस ने मोबाइल पर प्रवीण को झालावाड़ पहुंचने के बारे में बता दिया था. इस पर प्रवीण अपनी कार में फरहान और नाबालिग किशोर को साथ ले कर रेलवे स्टेशन पहुंच गया. स्टेशन पर उन्हें शाहरुख मिल गया. चेतन स्टेशन से पैदल घर जा रहे थे. हाउसिंग बोर्ड के सुनसान रास्ते में चेतन को रोक कर प्रवीण ने अपने तीनों साथियों की मदद से जबरन कार की पीछे वाली सीट पर बैठा लिया. वे लोग चेतन को कार से आकाशवाणी के पीछे की तरफ हल्दीघाटी रोड पर ले गए. वहां प्रवीण और चेतन की अनीता को ले कर नोकझोंक हुई.

प्रवीण ने कहा कि तुम अपनी प्रौपर्टी अनीता के नाम क्यों नहीं करते. उस ने यह भी कहा कि तुम यह क्यों कहते हो कि छोटा बेटा मेरा है. इस पर चेतन ने कहा कि छोटा लड़का तो तुम्हारा ही है. चेतन के यह कहते ही प्रवीण ने अपने साथियों को इशारा किया. उन्होंने चेतन के दोनों हाथ पकड़ लिए. प्रवीण ने जेब से कैटामाइन के इंजेक्शन निकाले और सिरिंज में हैवी डोज भर कर चेतन की दोनों जांघों में लगा दी. इस के बाद उस ने चेतन की नाक भी दबा दी. इंजेक्शन लगने और नाक दबाए जाने से कुछ ही मिनटों में उन के प्राण निकल गए.

चेतन को मौत की नींद सुलाने के बाद प्रवीण ने उन की जेब से मोबाइल निकाला और पुलिस को गुमराह करने के लिए अनीता को मैसेज किया कि वह औटोरिक्शा से पाटन हो कर घर आ रहे हैं. इस के बाद प्रवीण और उस के साथी चेतन का शव रलायता पुलिया के पास फेंक कर वापस चले गए. रलायता रेलवे पुलिया के पास चेतन के अचेत पड़े मिलने की कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं. एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल की तो सब से पहले पुलिस शाहरुख तक पहुंची. पुलिस ने उसे 20 जून को गिरफ्तार कर लिया. शाहरुख से पूछताछ में चेतन की हत्या का राज खुल गया. दूसरे ही दिन 21 जून को पुलिस ने उस ट्रक चालक शाकिर को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस ने 5 जनवरी को चेतन को ट्रक से कुचलने का प्रयास किया था.

22 जून को पुलिस ने एक निजी अस्पताल के औपरेशन थिएटर इंचार्ज संतोष निर्मल को गिरफ्तार कर लिया. वह पहले अस्थाई रूप से राजकीय हीराकुंवर महिला अस्पताल और एक अन्य निजी अस्पताल में मेल नर्स का काम कर चुका था. उसे औपरेशन प्रक्रिया में काम आने वाली निश्चेतक दवाओं की अच्छी जानकारी थी. कांस्टेबल प्रवीण के साथ जिम जाने और क्रिकेट खेलने की वजह से दोनों में दोस्ती थी. प्रवीण ने पिछले साल 31 दिसंबर को रेव पार्टी में नशा करने के लिए संतोष निर्मल से कैटामाइन इंजेक्शन मांगा था. संतोष ने दोस्ती के नाम पर उसे अस्पताल के औपरेशन थिएटर के स्टोर से चोरी कर के 500 मिलीग्राम के 2 इंजेक्शन दे दिए थे. ये इंजेक्शन प्रवीण ने संभाल कर रखे और चेतन की हत्या के लिए इन का उपयोग किया. इस इंजेक्शन के सबूत फोरैंसिक जांच में भी नहीं मिलते हैं.

परत दर परत खुलते गए राज

इस के बाद पुलिस ने 24 जून को चेतन की हत्या में शामिल एक नाबालिग किशोर को पकड़ा. उस से वारदात में इस्तेमाल की गई बाइक और मोबाइल बरामद किए गए. यह किशोर शाहरुख की आरटीओ एजेंट की दुकान पर काम करता था. चालाक कांस्टेबल प्रवीण ने वारदात के दिन खुद का मोबाइल साथ नहीं रखा था. उस ने शाहरुख से बात करने के लिए उस किशोर के मोबाइल का उपयोग किया था. यह किशोर चेतन की हत्या की योजना में 25 दिसंबर से 14 फरवरी तक शामिल रहा. शाहरुख पहले इस किशोर को 50 रुपए रोजाना देता था, लेकिन चेतन की हत्या के बाद उसे डेढ़ सौ रुपए रोजाना देने लगा था. पुलिस ने इस किशोर को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर के बाल सुधार गृह भेज दिया.

चेतन की हत्या में पत्नी अनीता की भूमिका सामने आने पर पुलिस ने 25 जून को उसे भी गिरफ्तार कर लिया. चेतन को दिल्ली से कब किस ट्रेन से आनाजाना है और दिल्ली में उस का पताठिकाना कहां है, प्रवीण को यह जानकारी अनीता ने ही दी थी. झालावाड़ से रामगंज मंडी आनेजाने की जानकारी भी अनीता ने ही प्रवीण को दी थी. पुलिस ने अनीता के मोबाइल की जांच की तो उस में चेतन और अनीता के तनावपूर्ण दांपत्य जीवन के बारे में कई वाट्सऐप मैसेज मिले. प्रवीण के कहने पर अनीता ने मोबाइल फौरमेट करवा कर पूरा डेटा नष्ट कर दिया था. चेतन की हत्या के बाद प्रवीण ने अनीता को दी हुई सिम भी वापस ले ली थी.

अनीता से पूछताछ में पता चला कि प्रवीण उस के प्यार में इतना डूब गया था कि चेतन से बेइंतहा नफरत करने लगा था. वह नहीं चाहता था कि अनीता किसी और से बात करे या संबंध रखे. उस ने अनीता से कह कर उस के पति के साथ फेसबुक पर पोस्ट किए हुए फोटो भी हटवा दिए थे. वह अनीता से कहता था कि अगर उस ने उस का साथ नहीं दिया तो वह आत्महत्या कर लेगा. ऐसे में अनीता सहीगलत का फैसला नहीं कर पाती थी और प्रवीण के कहे मुताबिक उस का साथ देती थी.

चेतन की हत्या के बाद भी अनीता व प्रवीण के संबंध पहले जैसे ही बने रहे. प्रवीण उसे कहता रहा कि पोस्टमार्टम और विसरा की जांच में कुछ नहीं आएगा. इस दौरान दोनों ने कुछ कानूनविदों से भी मशविरा किया था. अनीता ने पुलिस को बताया कि उस के पति चेतन को छोटे बेटे रिवान पर शक था कि वह उस की पैदाइश नहीं है. इस बात पर घर में कई बार लड़ाई हुई. इस पर चेतन व उस के परिजनों ने बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता व प्रवीण के अवैध Murder Story संबंधों का राज खुलने का डर था, इसलिए उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया.

पुलिस ने 28 जून को झालावाड़ निवासी फरहान को भी गिरफ्तार कर लिया. वह वारदात के बाद से फरार चल रहा था. फरहान भी चेतन की हत्या के मामले में प्रवीण व शाहरुख के साथ था.

बहुत कुछ खोया अनीता और प्रवीण ने

जांच में प्रवीण के अलावा झालावाड़ के 2 अन्य पुलिस कांस्टेबलों पर भी शक की सुई घूमती रही. ये दोनों प्रवीण के करीबी थे और चेतन की हत्या में इन की भूमिका संदिग्ध थी. इस पर एसपी आनंद शर्मा ने दोनों कांस्टेबलों रवि दुबे और आवेश मोहम्मद को 28 जून को निलंबित कर दिया. ये दोनों कांस्टेबल पुलिस की गोपनीय शाखा में कार्यरत थे. प्रवीण भी एसीबी में प्रतिनियुक्ति से पहले इसी शाखा में रहा था, इसलिए दोनों उस के करीबी थे. इन दोनों कांस्टेबलों के खिलाफ जांच की जा रही है. कथा लिखे जाने तक पुलिस चेतन की हत्या के मुख्य सूत्रधार कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ की तलाश में जुटी थी. वह 14 जून को सरकारी काम से अजमेर जाने की बात कह कर फरार हो गया था. हत्या के मामले में आरोपी होने पर एसीबी ने उस की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर दी. एसपी ने एक जुलाई को उसे निलंबित कर दिया था.

पुलिस ने सरकारी अध्यापिका अनीता के दुराचरण की रिपोर्ट शिक्षा विभाग को भेज कर विभागीय काररवाई के लिए भी लिख दिया है. चेतन की हत्या में गिरफ्तार आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में थे. यह अनीता का त्रियाचरित्र ही था कि उस ने अपनी हंसतीखेलती दुनिया अपने ही हाथों से उजाड़ ली. चेतन की मौत से महादेव के बुढ़ापे की लाठी टूट गई. चेतन प्रकाश के 6 साल के बड़े बेटे क्षितिज के सिर से पिता का साया उठ गया. 8 महीने का छोटा बेटा रिवान भी मां के साथ जेल में है.

विद्यार्थियों को अच्छा नागरिक बनने की सीख देने वाली अनीता के हाथ पति के खून से न रंगे होते तो वह जल्दी ही स्कूल की प्रिंसिपल की कुरसी पर बैठी होती, क्योंकि उस की पदोन्नति हो गई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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Murder Story

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Bathroom में संबंध बनाने के बाद विधवा को तीन टुकड़ों में काटा

प्रभाकर को लगता था कि अगर उस ने विधवा कांता से शादी की तो मांबाप की इज्जत बरबाद हो जाएगी. इस इज्जत को बचाने के लिए उस ने जो किया, उस से इज्जत तो बरबाद हुई ही, वह सलाखों के पीछे भी पहुंच गया. महानगर मुंबई के उपनगर चेंबूर की हेमू कालोनी रोड पर स्थित चरई तालाब घूमनेटहलने के लिए ठीक उसी तरह मशहूर है, जिस तरह दक्षिण मुंबई का मरीन ड्राइव यानी समुद्र किनारे की चौपाटी और उत्तर मुंबई का सांताकुंज-विलेपार्ले का जुहू. ये ऐसे स्थान हैं,

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Social Crime Stories : 5 लाख रुपए के डिमांड ड्राफ्ट से हुई लाश की पहचान

Social Crime Stories : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से पहाड़ों की रानी मंसूरी जाने वाले राजपुर रोड पर आनंदमयी आश्रम के पास पड़ी लाश पर सुबहसुबह किसी की नजर पड़ी तो धीरेधीरे  वहां भीड़ लग गई. एकदूसरे को देख कर उत्सुकतावश लोग वहां रुकने लगे थे. लाश देख कर सभी के चेहरों पर दहशत थी. इस की  वजह यह थी कि लाश देख कर ही लग रहा था कि उस की हत्या की गई थी. किसी ने लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजपुर को दी तो थानाप्रभारी अमरजीत सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. मृतक की उम्र 50 साल के आसपास थी. उस के गले पर दबाए जाने का निशान साफ झलक रहा था. इस का मतलब था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस की कनपटी पर भी चोट का निशान था.

मामला हत्या का था और यह भी साफ था कि हत्यारों ने कहीं और हत्या कर के शव को यहां ला कर फेंका था. क्योंकि वहां संघर्ष का कोई निशान नहीं था. फिर उस व्यस्त मार्ग पर किसी की हत्या करना भी आसान नहीं था. कब कौन सा मामला पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण बन जाए, इस बात को खुद पुलिस भी नहीं जानती. हत्या की वारदात में जांच को आगे बढ़ाने के लिए मृतक की पहचान जरूरी होती है. इसलिए सब से पहले पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन जब कोई उस की पहचान नहीं कर सका तो पुलिस ने इस आशय से उस की जेबों की तलाशी ली कि शायद ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

पुलिस की यह युक्ति काम कर गई. तलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड और कुछ कागजात के साथ 5 लाख रुपए का एक डिमांड ड्राफ्ट मिला. इस सब से मृतक की पहचान हुई तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया, क्योंकि मृतक राज्य के रसूखदार कृषि मंत्री हरक सिंह रावत का निजी सचिव रहा था. वैसे तो वह जिला रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लाक का रहने वाला था, लेकिन देहरादून में वह यमुना कालोनी स्थित हरक सिंह रावत के सरकारी आवास में रहता था.

घटना की सूचना पा कर एसएसपी केवल खुराना, एसपी (सिटी) डा. जगदीशचंद्र और सीओ (मंसूरी) जया बलूनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल से पुलिस को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक का नाम युद्धवीर था. चूंकि वह एक मंत्री से जुड़ा था, इसलिए राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैल गई. यह 1 अगस्त, 2013 की घटना थी.

मामला राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा था, इसलिए पुलिस की जवाबदेही बढ़ गई थी. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू और आईजी (कानून व्यवस्था) राम सिंह मीणा ने इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. डीआईजी अमित कुमार सिन्हा ने अधीनस्थ अधिकारियों से बातचीत कर के जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए स्पेशल औपरेशन गु्रप के प्रभारी रवि सैना को भी टीम के साथ लगा दिया था. सूचना पा कर मृतक युद्धवीर का भाई प्रदीप रावत देहरादून आ गया था. जिस की ओर से थाना राजपुर में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

अब तक की जांच में पता चला था कि युद्धवीर 2 मोबाइल नंबरों का उपयोग करता था. ये दोनों ही नंबर  ड्यूअल सिम वाले मोबाइल में उपयोग में लाए जाते थे. पुलिस ने दोनों ही नंबरों की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा ली. पूछताछ में पता चला था कि 9 अगस्त को वह सुबह ही घर से निकल गए थे. चलते समय उन्होंने कोठी के माली का मोबाइल फोन मांग लिया था. ऐसा उन्होंने पहली बार किया था.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू की, जिन की युद्धवीर से 8 अगस्त को बात हुई थी. उन्हीं में से एक बलराज था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में बलराज ने पुलिस को बताया था कि उस ने एसजीआरआर मैडिकल कालेज में अपनी भांजी का एडमिशन कराने के लिए युद्धवीर से बात की थी. इस के लिए उस ने उस से 60 लाख रुपए मांगे थे. उस ने उन्हें 5 लाख रुपए का ड्राफ्ट और 14 लाख रुपए नकद दे भी दिए थे. बाकी रकम एडमिशन होने के बाद देनी थी. लेकिन एडमिशन नहीं हुआ तो वह अपने 14 लाख रुपए वापस मांगने लगा था.

उन्हीं पैसों के लिए बलराज भी सुबह उस के पास गया था. तब उस ने उस से कहा था कि वह उस का इंतजार करे. आज वह एडमिशन करा कर आएगा या फिर पैसे वापस ले कर आएगा. कई घंटे तक वह उस का इंतजार करता रहा. जब वह नहीं आया तो उस ने उसे कई बार फोन किया. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. तब वह लौट गया था. रात में उस के मोबाइल फोन का स्विच औफ हो गया था.

आवास पर रहने वाले अन्य लोगों ने भी पुलिस को बताया था कि बलराज वहां आया था. उन्हीं लोगों से पूछताछ में पता चला था कि युद्धवीर दोपहर 2 बजे तक कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के पीएसओ प्रदीप चौहान के साथ था. उस ने कहीं जाने की बात कही थी तो प्रदीप चौहान ने उसे 3 बजे के आसपास दरबार साहिब पर छोड़ा था. अंतिम लोकेशन और पूछताछ से पता चला था कि युद्धवीर शाम 6 बजे चकराता रोड स्थित नटराज सिनेमा के बाहर दिखाई दिया था.

मृतक राजनीतिक आदमी से तो जुड़ा ही था, उस का अपना भी राजनीतिक वजूद था. वह रुद्रप्रयाग के अगस्त्य मुनि क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य और जखोली ब्लाक का ज्येष्ठ प्रमुख भी रह चुका था. मंत्री हरक सिंह रावत ने भी उस के परिजनों को सांत्वना दे कर घटना का शीघ्र से शीघ्र खुलासे का आश्वासन दिया था. हत्या को ले कर रंजिश, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और प्रेमप्रसंग Social Crime Stories को ले कर चर्चाएं हो रही थीं. पुलिस को लूटपाट की भी संभावना लग रही थी. लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि वह माली का मोबाइल फोन मांग कर क्यों ले गया था.

पुलिस ने अपना सारा ध्यान इसी बात पर केंद्रित कर दिया. जांच में यह भी पता चला था कि युद्धवीर छात्र छात्राओं के एडमिशन कराने का काम करता था. ऐसे में यह भी संभावना थी कि एडमिशन न होने से खफा हो कर किसी व्यक्ति ने उस की हत्या कर दी हो. तरहतरह के सवाल उठ रहे थे, जिन का माकूल जवाब पुलिस के पास नहीं था. जांच कर रही पुलिस टीम के हाथ एक सुबूत यह लगा था कि युद्धवीर को चकराता रोड पर जब अंतिम बार देखा गया था, तब उस के साथ एक महिला थी. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वह महिला कौन थी? पुलिस ने काल डिटेल्स की बारीकी से जांच की तो उस में देहरादून के ही पौश इलाके इंदिरानगर की रहने वाली सुधा पटवाल का नंबर सामने आया.

पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो मिली जानकारी चौंकाने वाली थी. सुधा प्रौपर्टी डीलिंग से ले कर मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन कराने वाली शहर की जानीमानी रसूखदार लौबिस्ट थी. कई राजनैतिक लोगों से भी उस के घनिष्ठ रिश्ते थे. पुलिस को उस पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन की लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि उस के मोबाइल की लोकेशन चकराता रोड और लाश मिलने के स्थान की भी थी. इस के साथ एक और मोबाइल की लोकेशन मिल रही थी, जिस से सुधा की लगातार बात होती रहती थी.

उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर हरिओम वशिष्ठ उर्फ बिट्टू का निकला. वह उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना नौचंदी के शास्त्रीनगर के रहने वाले बृजपाल का बेटा था. उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए निकल पड़ी. आखिर सर्विलांस से मिल रही लोकेशन के आधार पर पुलिस ने सुधा और हरिओम को हिरासत में ले लिया.

पहले तो सुधा ने अपने राजनीतिक संपर्कों की धौंस दिखा कर पुलिस को रौब में लेने कोशिश की थी. लेकिन पुलिस के पास ऐसे सुबूत थे कि उस की यह धौंस जरा भी नहीं चली. फिर तो पूछताछ में उस ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया, सुन कर पुलिस दंग रह गई. दरअसल युद्धवीर की हत्या की साजिश सुधा ने ही रची थी. उस ने शातिर चाल चल कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की थी.

सुधा और हरिओम से की गई पूछताछ में युद्धवीर की हत्या की चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की रहने वाली सुधा का परिवार कई साल पहले मेरठ में आ कर बस गया था. मेरठ आने के बाद सुधा ने देहरादून के रहने वाले देवराज पटवाल से विवाह कर लिया था. देवराज कंप्यूटर इंस्टिट्यूट तो चलाता ही था, साथ ही कंप्यूटर का बिजनेस भी करता था. वह बड़ेबड़े व्यापारिक और सरकारी संस्थानों में कंप्यूटर सप्लाई करता था.

सुधा बेहद महत्त्वाकांक्षी और शातिर दिमाग महिला थी. अंगे्रजी के अलावा फे्रंच पर भी उस की अच्छी पकड़ थी. जिंदगी को जीने का उस का अपना एक अलग ही अंदाज था. उसे रसूख भी पसंद था और ऊंचे ओहदे वाले लोगों से रिश्ता भी. इस के लिए वह कांगे्रस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर के रसूख वाले लोगों से संपर्क बनाने लगी.

पैसे कमाने के लिए सुधा पार्टटाइम प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ छात्रछात्राओं के बड़े कालेजों में एडमिशन कराने लगी. करीब 4 साल पहले सुधा के पति देवराज को लकवा मार गया, जिस से वह चलनेफिरने में लाचार हो गया. इस का असर उस के बिजनेस पर पड़ा. घटतेघटते एक दिन ऐसा आया कि उस का बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया.

पति के बिस्तर पर पड़ने के बाद सुधा आजाद हो गई. दौड़धूप कर के उस ने तमाम छोटेबड़े नेताओं से संबंध बना लिए. इस का उसे लाभ भी मिलने लगा. संपर्कों की ही वजह से उस का दलाली का काम बढि़या चल निकला. अब सब कुछ सुधा के हाथ में था. उस की एक बेटी थी, जो दिल्ली से बीटेक कर रही थी. वह बेटी को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहती थी. सुधा की पकड़ मोहल्ले से ले कर सत्ता के गलियारों तक हो गई थी. दलाली की कमाई से वह ठाठबाट से रह रही थी. इंदिरानगर की वह जिस कोठी में रहती थी, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था. ऐशोआराम की जिंदगी के लिए वह पैसा पानी की तरह बहाती थी. लोगों पर रौब गांठने के लिए वह नेताओं से अपने संबंधों की धमकी देती थी.

हरक सिंह रावत के यहां भी सुधा का आनाजाना था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात युद्धवीर से हुई तो बातचीत में पता चला कि वह भी एडमिशन कराता है. दोनों की राह एक थी, इसलिए उन में अच्छी पटने लगी. जुलाई में युद्धवीर ने मैडिकल कालेज में एडमिशन कराने की बात की तो उस ने 60 लाख रुपए मांगे. युद्धवीर ने एडमिशन कराने के लिए 14 लाख रुपए एडवांस के रूप में सुधा को दे दिए. लेकिन दिक्कत तब आई, जब एडमिशन नहीं हुआ. ये 14 लाख रुपए बलराज के थे. वह अपने रुपए वापस मांगने लगा तो युद्धवीर सुधा को टोकने लगा.

सुधा इस पेशे की खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को टरकाना उसे अच्छी तरह आता था. इसी तरह के एक मामले में उस पर थाना पिलखुआ में ठगी का एक मुकदमा भी दर्ज हो चुका था. लौबिस्ट के रूप में उस की पहचान बन चुकी थी, इसलिए तमाम लोग उस के पास एडमिशन के लिए आते रहते थे. ऐसे में इस तरह की बातें उस के लिए आम थीं. हरिओम वशिष्ठ भी उस का ऐसा ही शिकार था. सुधा से उस की मुलाकात मेरठ में हुई थी. बातचीत में उस ने हरिओम से देहरादून में प्रौपर्टी में पैसा लगाने को कहा. सुधा की बातचीत और ठाठबाट से हरिओम समझ गया कि यह बेहद प्रभावशाली महिला है. कुछ महीने पहले देहरादून के झाझरा इलाके में 4 बीघा जमीन दिलाने के नाम पर सुधा ने हरिओम से 8 लाख रुपए ले लिए.

बाद में जमीन के कागज फर्जी निकले तो हरिओम को अपने ठगे जाने का भान हुआ. उस ने सुधा से रुपए मांगे तो वह उसे टरकाने लगी. लेकिन हरिओम भी कमाजेर नहीं था. वह उस के पीछे पड़ गया. मजबूर हो कर सुधा ने गहने बेच कर उस के 3 लाख रुपए लौटाए, बाकी रुपए देने का वादा कर लिया. हरिओम को सुधा झेल ही रही थी. अब युद्धवीर वाला मामला भी फंस गया था. दोनों ही पैसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बना रहे थे. हरिओम रकम डूबने से काफी खफा था. वैसे तो इस तरह के मामले सुधा अपने रसूख के बल पर दबा देती थी, लेकिन युद्धवीर और हरिओम का मामला ऐसा था, जिस में उस का रसूख काम नहीं कर रहा था. उस की परेशानी तब और बढ़ गई, जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में हरिओम ने उसे फोन कर के पैसे वापस करने के लिए धमकी दे दी.

हरिओम की धमकी से सुधा की चिंता बढ़ गई. वह समझ गई कि अगर उस ने हरिओम के पैसे नहीं लौटाए तो वह कुछ भी कर सकता है. आदमी के दिमाग में कब क्या आ जाए, कोई नहीं जानता. परेशानी में दिमाग बचाव के लिए तरहतरह के रास्ते खोजता है. सुधा भी बचाव के Social Crime Stories लिए दिमाग दौड़ाने लगी. फिर उस के दिमाग में जो आया, उस से उसे लगा कि इस से वह सुकून से रह सकेगी. इंसान की फितरत भी है कि वह अपने हिसाब से सिर्फ अपने पक्ष में ही सोचता है. ऐसे में उसे गलत रास्ता भी सही नजर आता है. सुधा के साथ भी ठीक ऐसा ही हो रहा था.

सुधा का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था उमेश चौधरी. वह हरिद्वार के थाना कनखल के रहने वाले मदनपाल का बेटा था. उस के खिलाफ अलगअलग जिलों में हत्या के 4 मुकदमे दर्ज थे. उमेश की दोस्ती सुधा से भी थी और हरिओम से भी. बात कर के सुधा ने युद्धवीर को खत्म करने के लिए उमेश को 5 लाख रुपए की सुपारी दे दी. रकम काम होने के बाद देना था.

उमेश तैयार हो गया तो सुधा ने कहा, ‘‘तुम्हें हरिओम के साथ ही देहरादून आना है, लेकिन तुम इस बारे में उसे कुछ नहीं बताओगे.’’

‘‘सुपारी ली है मैडम तो बात भी मानूंगा.’’ उमेश ने कहा.

इस के बाद सुधा ने हरिओम को फोन किया, ‘‘1 अगस्त को तुम देहरादून आ जाना. इंतजाम कर के तुम्हारे पैसे दे दूंगी.’’

सुधा की इस बात से खुश हो कर हरिओम ने कहा, ‘‘इस बार मुझे मेरे पूरे पैसे देने होंगे.’’

‘‘ठीक है, हरिओम मैं खुद ही तुम्हारे पैसे दे देना चाहती हूं. लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां हैं. और हां, तुम एक काम करना.’’

‘‘क्या?’’

‘‘आते समय अपने साथ उमेश को भी लेते आना.’’

‘‘ठीक है.’’ इस के बाद फोन काट दिया गया.

1 अगस्त को हरिओम अपनी स्कार्पियो से पहले हरिद्वार पहुंचा और वहां से उमेश को ले कर देहरादून पहुंच गया. वह उमेश के साथ त्यागी रोड स्थित एक होटल में ठहरा. सुधा हरिओम से मिलने आई तो 3-4 दिनों में उस ने रुपए देने की बात कही. इस के बाद भी सुधा की हरिओम से मोबाइल पर तो बात होती ही रहती थी, वह उस से मिलने भी आती रही. वह हरिओम को एकएक दिन कर के टाल रही थी. 8 अगस्त को हरिओम ने हरिद्वार के रहने वाले अपने दोस्त संजीव को फोन कर के बुला लिया. उसी दिन सुधा ने हरिओम को बताया कि उसे युद्धवीर की हत्या करनी है, क्योंकि युद्धवीर को 14 लाख रुपए वापस करने हैं. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस की हत्या करा देगा. इस काम में उसे उस का साथ देना होगा. इस के बाद वह उस के बाकी पैसे वापस कर देगी.

उसी बीच उमेश ने सुधा का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘क्या फर्क पड़ता है यार हरिओम. मुझे इस काम के लिए मैडम ने 5 लाख रुपए देने को कहा है. काम होने पर उस में से मैं आधे तुम्हें दे दूंगा. इस के अलावा तुम्हें अपनी डूबी रकम भी मिल जाएगी. इसलिए तुम्हें मैडम का साथ देना चाहिए.’’

हरिओम इस बात से बेखबर था कि युद्धवीर की हत्या Social Crime Stories का उमेश से पहले ही सौदा हो चुका है. आखिर कुछ देर की बातचीत के बाद हरिओम साथ देने को तैयार हो गया. सुधा का सोचना था कि युद्धवीर की हत्या के बाद उसे 14 लाख रुपए वापस नहीं करने पड़ेंगे. इस के अलावा अगर युद्धवीर का लाया एडमिशन हो गया तो 60 लाख में से बाकी के 46 लाख रुपए भी उसे मिल जाएंगे. इस के बाद वह हरिओम को भी ब्लैकमेल करतेहुए उस के रुपए देने से मना कर देगी.

8 अगस्त को बलराज अपने पैसे लेने आया तो युद्धवीर ने सुधा को फोन किया. सुधा ने उसे गुरुद्वारा साहिब पहुंचने को कहा. प्रदीप चौहान ने उसे गुरुद्वारा साहिब छोड़ दिया. इस के बाद सुधा ने उसे चकराता रोड आने को कहा. उस ने हरिओम को भी वहीं बुला लिया था. हरिओम अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से था, जबकि सुधा अपनी स्कूटी से आई थी. उस ने हरिओम का परिचय छद्म नाम से कराते हुए युद्धवीर से कहा, ‘‘यह अनिल श्रीवास्तव हैं.यही कालेज के एडमिशन हेड हैं. इन्हीं को मैं ने 14 लाख रुपए दिए थे. हमें राजपुर रोड चलना होगा. वहीं यह हमें पैसे देंगे.’’

युद्धवीर को क्या पता था कि उसे जाल में उलझाया जा रहा है. पैसों के लिए वह साथ चलने को तैयार हो गया. सुधा युद्धवीर को स्कूटी से ले कर आगेआगे चलने लगी तो उस के पीछेपीछे हरिओम भी अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से चल पड़ा. राजपुर रोड पर आ कर सभी रुक गए. सुधा ने अपनी स्कूटी वहीं खड़ी कर दी और गाड़ी चला रहे हरिओम के बगल वाली सीट पर बैठ गई. युद्धवीर पिछली सीट पर उमेश और संजीव के साथ बैठ गया. स्कार्पियो एक बार फिर चल पड़ी. उन लोगों के मन में क्या है, युद्धवीर को पता नहीं था. चलते हुए ही युद्धवीर ने रुपए लौटाने की बात शुरू की तो सुधा का चेहरा तमतमा उठा.

सुधा के इस अंदाज और अंजान लोगों के साथ होने से युद्धवीर को उस पर शक हुआ तो उस ने भागना चाहा. लेकिन स्कार्पियो के दरवाजे से सिर टकरा जाने की वजह से वह गाड़ी के अंदर ही गिर गया. तभी उमेश ने उस के गले में रस्सी डाल कर एकदम से कस दिया. युद्धवीर जान बचाने के लिए छटपटाया, लेकिन उन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कुछ नहीं कर सका. अंतत: उस की मौत हो गई. युद्धवीर की हत्या कर के वे उस की लाश को सहस्रधारा नदी की उफनती धारा में फेंकना चाहते थे. युद्धवीर की लाश को उन्होंने बाएं दरवाजे की ओर इस तरह बैठा दिया कि देखने वाले को लगे कि वह सो रहा है. युद्धवीर के मोबाइल फोन जेब से निकाल कर स्विच औफ कर दिए.

रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग कर रही थी, जिसे देख कर हरिओम घबरा गया और आगे जाने से मना कर दिया. सुधा और उमेश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना और गाड़ी घुमा ली. लौटते हुए ही उन्होंने लाश आनंदमयी आश्रम के पास सड़क के किनारे फेंक दी. सुधा अपनी स्कूटी ले कर अपने घर चली गई, जबकि हरिओम, उमेश और संजीव स्कार्पियो से हरिद्वार चले गए.

युद्धवीर की हत्या कर सुधा निश्चिंत हो गई कि अब उसे किसी के पैसे नहीं देने पड़ेंगे. उसे विश्वास था कि अगर उस का नाम सामने आया भी तो अपने Social Crime Stories प्रभाव से वह छूट जाएगी. लेकिन उस के मंसूबों पर पानी फिर गया. हरिओम और सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद कर ली. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने उमेश को भी गिरफ्तार कर लिया. जबकि संजीव हरिद्वार में अपने खिलाफ पहले से दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले की जमानत रद्द करवा कर जेल चला गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. सुधा ने महत्त्वाकांक्षाओं में जिंदगी को न उलझाया होता और युद्धवीर ने उस पर विश्वास न किया होता तो शायद यह नौबत न आती.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime Stories : साली की वजह से दोस्त का कत्ल

Love Crime Stories : लालची स्वभाव की काजल ने अपने जीजा आशुतोष राजपूत उर्फ प्रिंस के दोस्त आयुष गुप्ता से दोस्ती कर नजदीकियां तो बढ़ा लीं, लेकिन उसे इस के अंजाम की तनिक भी आशंका नहीं थी. फिर एक दिन इस का ऐसा खौफनाक नतीजा सामने आया कि…

सर्दी बहुत ज्यादा थी. हो भी क्यों न, जनवरी का सर्द महीना जो था. इस मौसम में धूप बहुत अच्छी लगती है, लेकिन सूरज के भी खुल कर दीदार नहीं हो पा रहे थे. गलियां ऐसे मौसम में बेरौनक हो जाती हैं क्योंकि ज्यादातर लोग घरों के दरवाजे बंद कर के रोजमर्रा का काम करते हैं. शाहजहांपुर के गदियाना मोहल्ले में रहने वाले आशुतोष राजपूत उर्फ प्रिंस उर्फ बबुआ की साली काजल इस सर्द मौसम में उस के यहां आई हुई थी, किंतु ठंड ने उसे रजाई में दुबका कर बिठा दिया था. दिन के 11 बज रहे थे. काजल नित्य कर्म से फारिग होने के बाद रजाई में आ कर बैठ गई थी. वह मोबाइल में यूट्यूब देखने में खोई हुई थी.

 

कमरे में उस की बहन पलक चाय की ट्रे ले कर आई तो काजल को रजाई में दुबकी देख कर मुसकरा पड़ी, ”तुम तो घूमने के इरादे से आई थी काजल .’’

”सर्दी बहुत है दीदी, बिस्तर से पांव नीचे रखने की हिम्मत नहीं हो रही है, तुम घूमने की बात कह रही हो.’’ काजल ठिठुरन भरे लहजे में बोली.

”चाय लो, शरीर में स्फूर्ति और गरमी आ जाएगी.’’ चाय का प्याला काजल की ओर बढ़ाते हुए पलक बोली.

”चाय भी कुछ ही देर के लिए गरमी देती है दीदी.’’

”तो किसी पुरुष से दिल लगाओ न, शरीर से ठंडी उडऩछू हो जाएगी.’’ काजल की बात काट कर पलक ने हंसते हुए कहा.

काजल और पलक दोनों बहनें जरूर थीं, लेकिन एक साथ रहते हुए दोनों हर तरह की बातें दिल खोल कर करती थीं.

”ओह!’’ काजल ने पलकें झपकाईं, ”यह मंत्र तुम ने शादी के बाद सीखा है क्या दीदी?’’

”अरी नहीं.’’ पलक झेंप गई, ”मैं ने सुना है. वैसे इस दिल लगाने का मेरी नजर में यह मतलब निकलता है कि दिल लगाने से नारी का मन पुरुष के खयालों में ही उलझा रहता है. उस से कहां मिलना है, कब मिलना है, इसी में उलझी नारी अपने अंदर ठंड का अहसास नहीं करती या यूं समझ लो ठंड उस के पास नहीं फटकती.’’

”यह तो मैं मान सकती हूं दीदी, ठंड को महसूस किया जाए या याद किया जाएगा तो वह हमें आ कर चिपकेगी. मन इधरउधर लगा रहेगा तो ठंड का अहसास ही नहीं होगा. किंतु ठंड का अहसास न हो इस के लिए पुरुष से ही दिल क्यों लगाया जाए, कुछ और भी तो किया जा सकता है.’’

”पुरुष की कंपनी मिलेगी तो हम लंबे समय के लिए बिजी हो सकते हैं. दूसरा काम तो शुरू किया और घंटे 2 घंटे में खत्म.’’

”यह बात तो है दीदी.’’

”तो फिर निकलो रजाई से और किसी सुंदर, सजीले पुरुष की तलाश करो, जिस से तुम दिल लगा सको.’’

”तुम मुझे यह सलाह दे रही हो दीदी?’’ काजल से पलकें झपकाईं.

”क्या हुआ, आज का मौडर्न जमाना है, तुम अपने लिए बौयफ्रैंड चुन लोगी तो मम्मीपापा और हमारी टेंशन भी दूर हो जाएगी. हम तुम्हारी उस लड़के से शादी कर देंगे.’’

”शादी न कर के मैं उस के साथ फुर्र हो गई तो..?’’ काजल ने आंखें नचा कर कहा.

”तो और भी अच्छा होगा. हमारा शादी का खर्चा बच जाएगा.’’ पलक ने कहा और हंस पड़ी, ”मैं जानती हूं तुझे, तू ऐसा कदम नहीं उठाएगी.’’

”क्यों नहीं उठाऊंगी?’’

”क्योंकि तू हम लोगों से प्यार करती है.’’ पलक ने मुसकरा कर कहा.

काजल थोड़ी देर खामोश रही फिर बोली, ”दीदी, तुम सचमुच कह रही हो न कि मुझे कोई बौयफ्रैंड ढूंढना चाहिए?’’

”हां.’’ पलक ने सिर हिलाया, ”इस में गलत क्या है, तू जवान हो गई है, तुझे अपने लिए हैंडसम लड़का ढूंढ लेना चाहिए. हां, यह याद रखना, लड़का हैंडसम ही न हो, उस की जेब मे माल भी होना चाहिए. यानी दौलतमंद लड़का हो.’’ काजल ने होंठों को गोल दायरे में सिकोड़ कर सीटी बजाई.

”ऐसा एक लड़का मैं ने यहीं गौटिया मंदिर में कल ही देखा था. शाम को जब मैं माथा टेकने मंदिर गई थी तो वह वहां मुझे नजर आया था.’’

”तूने कैसे भांप लिया वह दौलतमंद है?’’

”उस के पास बढिय़ा बाइक थी. उस ने मंदिर के बाहर बैठे गरीबों को 50-50 रुपए का दान भी दिया.’’

”शक्लसूरत से कैसा है तेरा वह दौलतमंद?’’ पलक ने मुसकरा कर पूछा.

”दुबलापतला है, खूबसूरत भी है. कहो तो मैं उस का आज नामपता मालूम कर आऊं!’’

”कर ले.’’ पलक ने हरी झंडी दे दी, ”लड़का अच्छा हुआ तो तेरे लिए हम रिश्ते की बात कर लेंगे.’’

”ठीक है, मैं आज शाम को मंदिर हो कर आऊंगी. अब तुम मुझे बढिय़ा खाना बना कर खिलाओ दीदी. पेट में चूहे दौडऩे लगे हैं.’’

”बनाती हूं, सब्जी पक रही है. बस वह तैयार होते ही रोटियां बना कर परोस दूंगी.’’ पलक ने कहा और कप ट्रे में रख कर वह कमरे से बाहर निकल गई.

आयुष गुप्ता को फांसने के लिए काजल ने चुना अनोखा तरीका

काजल ने जिस लड़के को गौटिया मंदिर में देखा था, उस का नाम आयुष गुप्ता था. उस के पापा दिलीप कुमार गुप्ता काफी पैसे वाले थे. उन का टेंट का बड़ा कारोबार था, जिस की देखभाल की जिम्मेदारी उन्होंने बेटे आयुष के कंधे पर डाल दी थी. अब आयुष ही टेंट के कारोबार को देखता था. आयुष बहुत सीधा और धार्मिक प्रवृत्ति वाला इंसान था. वह रोज मंदिर जाता था और गरीबों को खाना खिलाने के लिए रुपयों का दान करता था. काजल ने अपनी बहन पलक के कहने पर उसी शाम मंदिर में जा कर आयुष के बारे में वहां के गरीब लोगों से मालूम कर लिया था. गरीब लोग आयुष को काफी समय से पहचानते थे. उन्होंने ही बताया था कि आयुष गुप्ता बगैर नागा किए इस मंदिर में शाम को जरूर आता है.

काजल ने दूसरी शाम आयुष की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए बहुत खूबसूरत नाटक किया था. वह शाम को शाल ओढ़ कर उन गरीब लोगों की पंगत में जा कर बैठ गई थी, जो आयुष से कुछ पाने की आस में रोज कतार लगा कर मंदिर की सीढिय़ों पर बैठ जाते थे. आयुष अपने समय पर मंदिर में आया तो उस के हाथ में पूजा की टोकरी थी, जिस में फूल और पूजा करने के लिए धूपबत्ती, माचिस, चंदन आदि था. आयुष ने मंदिर में जा कर पहले पूजा की, फिर खाली टोकरी ले कर वह बाहर सीढिय़ों की ओर आ गया.

सीढिय़ों पर गरीब लोग कतार में उसी का इंतजार करते बैठे रहते थे. आयुष ने जेब से रुपए निकाल कर सभी को 50-50 रुपए देने शुरू किए और कतार की अंतिम छोर तक आ गया. यहां बैठी काजल ने हथेली ऊपर उठा कर आयुष की तरफ देखा. आयुष उस की खूबसूरती देख कर क्षण भर को चौंका, फिर सिर झटक कर उस ने 50 रुपए का नोट काजल की तरफ बढ़ाया, ”लो, इस से अपने लिए खाना खरीद लेना.’’

”मुझे यह रुपए नहीं चाहिए,’’ काजल ने गंभीर स्वर में कहा.

”तो क्या चाहिए?’’ आयुष ने हैरानी से पूछा.

”मुझे आप चाहिए. संपूर्ण रूप से.’’ बेझिझक काजल ने कह दिया.

”क्या कह रही हैं आप?’’ आयुष चौंकता हुआ बोला.

”जो आप ने सुना है. मैं चाहती हूं आप मुझे 50 रुपए का दान न दें, बल्कि पूर्णरूप से मुझे मिल जाएं.’’

”आप को मालूम है आप क्या मांग रही है?’’

”हां. यही पाने के लिए तो मैं भी आप की तरह रोज इस मंदिर में आ कर माथा टेकती हूं. मैं आप को पाना चाहती हूं, आयुष बाबू.’’

”खड़ी हो जाइए,’’ आयुष ने गंभीर हो कर कहा.

काजल खड़ी हो गई. आयुष ने उस की सुंदरता को ऊपर से नीचे तक निहारा, फिर बोला, ”आप को विश्वास है, आप जो मांग रही हैं, वह आप को मिल जाएगा?’’

”मैं दान पाने वालों की लाइन में बैठी हूं. यह दान देने वाले की इच्छा पर डिपेंड करता है कि वह मुझे दान दे सकेगा या नहीं.’’

”आप बहुत होशियार हैं, आप की मंशा पूरी कर के कोई भी धन्य हो जाएगा. मैं तो बहुत तुच्छ हूं.’’

”आप समर्थ हैं आयुषजी.’’ काजल गंभीर हो गई, ”आप मेरी मनोकामना पूरी कर सकते हैं.’’

”लेकिन मैं आप के बारे में कुछ नहीं जानता हूं.’’ आयुष गंभीर स्वर में बोला, ”आइए, वहां सामने चाय का स्टाल है, वहीं बैठ कर एकदूसरे को करीब से जान लेते हैं.’’

आयुष से दोस्ती कर गदगद क्यों हुई काजल

काजल आयुष के साथ चाय के स्टाल पर आ गई. दोनों वहां कोने की मेज के सामने की कुरसियों पर आ कर बैठे. आयुष ने चाय बिसकुट का और्डर दिया.

”क्या नाम है आप का?’’ आयुष ने पूछा.

”मेरा नाम काजल है.’’

”कहां रहती हो?’’

”मैं यहां अपने जीजा के पास रहती हूं. वह मोहल्ला गदियाना, सदर बाजार थाना क्षेत्र में रहते हैं.’’

”गदियाना में..?’’ आयुष चौंका, ”क्या नाम है आप के जीजा का?’’

”आशुतोष राजपूत उर्फ प्रिंस उर्फ बबुआ.’’

”क्याऽऽ’’ आयुष हैरानी से बोला, ”आप प्रिंस की साली हैं? अरे! वह तो मेरा फ्रेंड है. वाह! क्या अजीब संयोग है, प्रिंस से दोस्ती थी, अब उस की साली साहिबा मेरी जिंदगी में एंट्री कर रही हैं.’’

”ओह! आप मेरे जीजा के फ्रेंड हैं. यह तो और अच्छी बात हो गई.’’ काजल हंस पड़ी, ”अब तो आप मुझे अपना बनाने का मेरा प्रस्ताव मंजूर कर लेंगे न?’’

”बेशक!’’ आयुष हंस कर बोला, ”आप सुंदर हैं, हसीन हैं, आप का प्रस्ताव मैं कैसे ठुकरा दूं.’’ आयुष ने हाथ आगे बढ़ाया. काजल ने मुसकरा कर अपना हाथ आयुष के हाथ में दे दिया.

आयुष से दोस्ती हो जाने के बाद काजल बहुत खुश हुई.

यह बात जब उस ने अपनी बहन पलक को बताई तो उस ने भी काजल की पसंद की सराहना की क्योंकि आयुष एक अमीर बिजनैसमैन का बेटा था.

धीरेधीरे काजल और आयुष के बीच दोस्ती का दायरा बढ़ता गया. हालांकि आयुष शादीशुदा था, इस के बावजूद उस का काजल के साथ चक्कर चल गया. वह उसे अपनी गाड़ी से इधरउधर घुमाता और शौपिंग कराता था. काजल और पलक दोनों बहनें लालची स्वभाव की थीं, इसलिए कभीकभी काजल Love Crime Stories अपनी बहन पलक को भी आयुष के साथ घूमने के लिए बुला कर ले जाती थी. आयुष दोनों बहनों को शौपिंग कराता और महंगे रेस्टोरेंट में खाना खिलाता था.

दिनदहाड़े आयुष को किस ने मारी गोली

उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के थाना सदर बाजार में 2 दिसंबर, 2024 की दोपहर बाद कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि ओसीएफ रामलीला मैदान में 2 गुटों में जम कर मारपिटाई हुई है, जिस में एक पक्ष के युवक को गोली मार दी है. मौका मुआयना किया जाए. एसएचओ सुरेंद्र पाल सिंह ने इस सूचना को रोजनामचे में दर्ज कर के अपनी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर कूच कर दिया. पुलिस जब ओसीएफ रामलीला मैदान पहुंची तो वहां कुछ लोगों की भीड़ नजर आ रही थी. इन्हीं में उस युवक के घर वाले भी थे, जिस को गोली मार देने की सूचना कंट्रोल रूम से दी गई थी.

एसएचओ सुरेंद्र पाल सिंह ने पास जा कर देखा तो जमीन पर एक 24-25 साल का युवक खून से लथपथ औंधा पड़ा हुआ था. उस की खोपड़ी के पीछे वाले भाग पर एक छोटा सा सुराख नजर आ रहा था, जिस में से गाढ़ा खून बह कर उस के कपड़ों को रंग रहा था. चूंकि खून गाढ़ा हो चुका था, इस से अनुमान लगाया गया कि युवक के सिर में जो गोली मारी गई है, उसे बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ है. युवक के शरीर में प्राण नहीं रह गए थे. वह इस दुनिया को छोड़ चुका था. युवक के पास 2-3 युवक, एक बुजुर्ग दंपति और कुछ महिलाएं थीं. बुजुर्ग और एक महिला दहाड़ें मार कर रो रहे थे. शायद ये दोनों इस मृत युवक के मम्मीपापा हो सकते थे.

”आप लोग इस के पास से हट जाइए. हमें अपनी काररवाई करने दीजिए.’’ एसएचओ ने गंभीर स्वर में कहा.

यह सुनने के बाद फैमिली वाले उठ कर युवक के शव के पास से दूर खड़े हो गए. एसएचओ सुरेंद्र पाल अपनी जांच में जुट गए. उन्होंने युवक की नब्ज टटोली तो वह थम चुकी थी. युवक के शरीर पर चोट के भी निशान नजर आ रहे थे, लग रहा था उसे पहले जम कर पीटा गया है. मृतक का अच्छी तरह मुआयना कर लेने के बाद एसएचओ ने सब से पहले एसपी राजेश एस. को इस घटना की सूचना दे दी.

इस के बाद एसएचओ मृतक के फैमिली वालों के पास आए. वह अभी भी जारजार रो रहे थे.

”यह युवक आप का क्या लगता था?’’ एसएचओ ने सहानुभूति से पूछा.

”यह मेरा बेटा है साहब.’’ बुर्जुग व्यक्ति रोते हुए बोला, ”इस का मैं अभागा बाप हूं. मेरा नाम दिलीप कुमार गुप्ता है और यह मेरी पत्नी रानी गुप्ता है. आयुष मेरा एकलौता बेटा था, जिसे उन लोगों ने मार डाला.’’

”आप बताएंगे, आप के बेटे का किन लोगों से झगड़ा हुआ था और इस झगड़े का कारण क्या रहा था.’’

”साहब, मेरा बेटा बहुत सीधासादा था. उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. इस को जिस व्यक्ति ने मारा है, उस का नाम प्रिंस है. नामालूम उस ने मेरे बेटे की जान क्यों ली है.’’

”यह हम मालूम कर लेंगे, आप यहां की काररवाई पूरी हो जाने के बाद रिपोर्ट दर्ज करवा देना. हम आरोपियों के खिलाफ सख्त ऐक्शन लेंगे.’’

”जी साहब, मैं चाहता हूं कि मेरे बेटे के कातिल को फांसी की सजा मिले.’’ दिलीप कुमार रोते हुए बोला.

”ऐसा ही होगा.’’ एसएचओ गंभीर हो गए.

चूंकि एसपी राजेश एस फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट और फोटोग्राफर्स की टीम के साथ वहां आ गए थे, इसलिए एसएचओ सुरेंद्र पाल सिंह मृतक के फैमिली वालों के पास से हट गए और एसपी साहब के पास आ गए. उन्होंने एसपी साहब को सैल्यूट किया और युवक के शव को दिखा कर बोले, ”सर, इस युवक के सिर में गोली मारी गई है. इस के फादर दिलीप कुमार गुप्ता का कहना है कि इसे प्रिंस नाम के व्यक्ति ने गोली मारी है.’’

एसपी साहब युवक के शव के पास आए और उस का मुआयना करने लगे. थोड़ी देर बाद उन्होंने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और फोटोग्राफर्स को अपनी काररवाई करने का इशारा कर दिया.

”इस युवक के सिर में गोली मारी गई है सिंह साहब, आप मालूम कीजिए ये कौन हैं और उन्होंने यह कदम क्यों उठाया है. मुझे आप जांच कर कल तक रिपोर्ट देंगे.’’ एसपी साहब बोले.

”ठीक है सर.’’ एसएचओ सुरेंद्र पाल सिंह ने सिर हिला कर कहा.

सीसीटीवी में कैद हुए हत्यारे

एसपी राजेश एस. एसएचओ को कुछ हिदायतें दे कर घटनास्थल से चले गए. उन्होंने वहां मौजूद कुछ चश्मदीदों से घटना के बारे में पूछा तो उन्हें बताया गया कि यहां 2 गुटों का आपस में झगड़ा हुआ था. एक पक्ष के लोग कुछ ज्यादा थे. सभी लाठीडंडों से लैस थे. वही इस युवक के गुट पर भारी पड़ गए थे. उन्होंने भगदड़ मचने पर इस युवक को पीछे से गोली मारी. गोली लगते ही यह नीचे गिर कर तड़पने लगा तो सब भाग गए. उन सभी के नाम वह नहीं बता पाए. जब युवक के पास से सबूत एकत्र करने का काम पूरा कर लिया गया तो शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

वहां पुलिस की ड्यूटी लगा दी गई ताकि सबूत नष्ट करने की कोई कोशिश न हो. एसएचओ सुरेंद्र पाल सिंह वापस थाने लौट आए. उन के साथ युवक के पापा दिलीप कुमार गुप्ता भी थे. मृतक आयुष के पापा दिलीप कुमार गुप्ता शाहजहांपुर के ही रहने वाले आशुतोष राजपूत उर्फ प्रिंस उर्फ बबुआ, उस की पत्नी पलक, साली काजल के अलावा स्वप्निल शर्मा, निशांत मिश्रा, अरविंद वर्मा, अनमोल सक्सेना, शेखर मौर्य, अनुज सिंह, आर्यन सिंह, पीयूष राठौर, कमल, मोहम्मद आदिल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने इन के खिलाफ बीएनएस की धारा 191 (2), 191 (3), 190/61 (2), 103 (1) के तहत मामला दर्ज कर लिया.

मुख्य अभियुक्त आशुतोष राजपूत को बनाया गया था, जो सत्यपाल का बेटा था. यह मोहल्ला गदियाना में रहता था. शेष अभियुक्तों के बारे में विवेचना कर के ही मालूम किया जाना था. एसएचओ सुरेंद्र पाल सिंह ने एसपी राजेश एस को दूसरे ही दिन यह जानकारी दे दी. उन्होंने एएसपी (सिटी) के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में सीओ (सिटी) पंकज पंत, एसएचओ सुरेंद्र पाल सिंह, एसआई दिलशाद खां, प्रदीप शर्मा, अहसान अली, दिनेश कुमार, जगेंद्र प्रताप सिंह, कांस्टेबल मोनू चौधरी, आकिब सैफी, अंकित धाना और विनीत कुमार को शामिल किया गया.

इस टीम को सब से पहले प्रिंस के खिलाफ ठोस सबूत एकत्र करने थे. 2 दिसंबर, 2024 को दिनदहाड़े ओसीएफ रामलीला मैदान में यह घटना घटी थी. इस घटना में कौनकौन लोग शामिल थे, यह जांच कर के ही मालूम किया जाना था. पुलिस टीम ने इस की जांच रामलीला Love Crime Stories ग्राउंड से ही शुरू की. रामलीला ग्राउंड में कई सीसीटीवी लगे हुए थे. जाहिर था यह घटना उन सीसीटीवी में रिकौर्ड हुई होगी. यही बात ध्यान में रख कर पुलिस टीम रामलीला ग्राउंड में पहुंच गई.

वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक करने का काम शुरू हुआ तो बहुत कुछ स्पष्ट होता गया. सीसीटीवी कैमरों ने यह रिकौर्ड कर लिया था कि 2 दिसंबर की दोपहरी में वहां क्या कुछ घटित हुआ था. उन फुटेज में 2 गुट वहां दिखाई दिए थे. पहले से एक गुट के लोग वहां मोर्चा संभाले नजर आ रहे थे. मृतक युवक आयुष गुप्ता बाद में अपने साथ 5-7 युवकों के साथ पार्क में पहुंचता दिखाई दिया. पहले से वहां मौजूद युवकों के पास लाठीडंडे थे.

आयुष जब वहां पहुंचा तो एक 25-26 साल का युवक उस के पास आया था. उस के साथ 3-4 अन्य युवक थे. पास आ कर उस ने आयुष से कुछ कहा था. फिर आयुष के साथ धक्कामुक्की शुरू कर दी थी. वह युवक बहुत गुस्से में था. आयुष के साथ आए युवकों ने बीचबचाव करना चाहा था, तब उन में मारपिटाई शुरू हो गई थी. लाठीडंडे चलते दिखाई दे रहे थे. सभी एकदूसरे से गुत्थमगुत्था हो रहे थे. फिर आयुष का दल भागता दिखाई दिया. आयुष एक बाइक पर बैठने की कोशिश में उस के पीछे दौड़ रहा था, तभी उसे किसी व्यक्ति ने गोली मार दी थी. आयुष को वहां बुलाने वाला दूसरे दल का लीडर कौन था, यह अनुमान लगाया जा रहा था. उस की पहचान के लिए दिलीप कुमार गुप्ता को वहां पर बुलवाया गया.

उन्हें जब सीसीटीवी की फुटेज दिखाई गई तो उन्होंने पहचान कर बताया, ”साहब, यह पतला सा युवक प्रिंस राजपूत है. दूसरा युवक अरविंद वर्मा, तीसरा पीयूष राठौर है. यह मोहल्ला जलाल नगर बजरिया, थाना सदर बाजार में रहता है. मैं अन्य को नहीं पहचानता.’’

”हमारे हाथ प्रिंस आ गया तो सभी के नाम सामने आते जाएंगे.’’ सीओ (सिटी) पंकज पंत बोले, ”फिलहाल हमें अपना ध्यान प्रिंस के ऊपर केंद्रित करना है. उसे गिरफ्तार करना जरूरी है.’’

सीसीटीवी कैमरों की फुटेज ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. प्रिंस को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर दबिश दी गई तो वह घर से फरार मिला. पुलिस ने उस के घर पर गुप्तरूप से निगरानी के लिए एक पुलिसकर्मी को लगा दिया.

डैडबौडी रख कर ढाई घंटे तक क्यों किया हाइवे जाम

4 दिसंबर, 2024 को फैमिली वालों को जिला अस्पताल से आयुष गुप्ता का शव पोस्टमार्टम के बाद मिल गया. चूंकि अभी तक पुलिस उस की हत्या में शामिल नामजद अभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी, इसलिए आयुष के फैमिली वालों में काफी गुस्सा था. उन्होंने आयुष की डैडबौडी शाहजहांपुर-पीलीभीत हाइवे पर रख कर जाम लगा दिया. पुलिस ने उन्हें समझाया और सड़क को सुचारू रूप चलने देने के लिए शव हटा कर उस का अंतिम संस्कार करने को कहा तो वे लोग नहीं माने. उन की एक ही मांग थी कि पुलिस पहले हत्यारों को गिरफ्तार करे, तभी आयुष का अंतिम संस्कार होगा.

मौके पर डीएम प्रवेंद्र सिंह और सीओ (सिटी) पंकज पंत भी वहां आ गए, लेकिन आयुष के फैमिली वाले नहीं माने. जाम बढऩे लगा, तब पुलिस ने आलाधिकारियों को फोन किया तो एसपी राजेश एस स्वयं घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फैमिली वालों को आश्वासन दिया कि 24 घंटे में वह मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार करके जेल पहुंचा देंगे. उन के समझाने पर ढाई घंटे बाद वह आयुष की डैडबौडी को राजमार्ग से हटाने पर राजी हुए. फिर आयुष के शव का विधिविधान से अंतिम संस्कार कर दिया गया.

उसी शाम को आशुतोष राजपूत उर्फ प्रिंस उर्फ बबुआ, आर्यन उर्फ शुभांकर व काजल को गिरफ्तार कर लिया गया. इन से पूछताछ करने पर 11 अन्य लोगों के नाम सामने आए. पुलिस ने प्रिंस से वह तमंचा और 2 कारतूस भी हासिल कर लिया, जिस से आयुष की खोपड़ी में गोली मारी गई थी. आयुष को उस की प्रेमिका काजल, जो प्रिंस की साली लगती थी, उस के द्वारा झूठ बोल कर ओसीएफ रामलीला ग्राउंड में बुलवाया गया था. काजल ने आयुष से कहा था कि वह वहां पर उस का इंतजार कर रही है. लेकिन आयुष को दाल में कुछ काला लगा था, क्योंकि एक दिन पहले ही उस की प्रिंस से झड़प हो गई थी.

दरअसल, प्रिंस और आयुष गुप्ता दोस्त थे, लेकिन प्रिंस ने उसे पहली दिसंबर, 2024 को अपनी पत्नी पलक और साली काजल के साथ आयुष को नैशनल हाइवे पर एक ढाबे से एक साथ बाहर निकलते देख लिया था. यह देख कर वह आयुष पर आगबबूला हो कर बोला था, ”तेरी हिम्मत कैसे हो गई मेरी पत्नी और साली को इस ढाबे में लाने की. मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा. तू कल ओसीएफ ग्राउंड में आना, वहां देखूंगा तुझे.’’

इसी धमकी की वजह से 5-7 लड़के ले कर दोपहरी में ओसीएफ रामलीला ग्राउंड में आयुष गया था, लेकिन वहां प्रिंस ने पहले से 12-13 लड़के इकट्टे कर रखे थे, जिन्होंने आयुष को घेर कर मारना शुरू कर दिया था. आयुष घबरा कर अपने साथियों के साथ भागने लगा था, तब पीछे से उस की खोपड़ी में गोली मार दी गई थी. जिस से आयुष की मौके पर ही मौत हो गई थी. पुलिस टीम के सामने 14 लोगों के नाम सामने आए तो एसपी राजेश एस. ने 4 पुलिस टीमें बना कर शेष अभियुक्तों को पकडऩे का आदेश दे दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने मोहित, अमन खां, पीयूष राठौर को पकड़ कर जेल भेज दिया था.

अन्य फरार अभियुक्तों में हिंदू युवा वाहिनी का पूर्व जिलाध्यक्ष स्वप्निल शर्मा, शेखर मौर्या, अनमोल सक्सेना और अनुज भी हैं. पुलिस टीमें इन्हें पकडऩे के लिए पूरा जोर लगाए हुए थीं. इन की गिरफ्तारी पर एसपी ने 25-25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. उम्मीद है कि ये लोग भी शीघ्र पुलिस के हत्थे चढ़ जाएंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित