दिल के टुकड़ों का रिसना – भाग 1

दोपहर का वक्त था. कुसुम रसोई में खाना बना रही थी. पति अर्जुन और ससुर दीपचंद खेतों पर थे, जबकि देवर अशोक उर्फ जग्गा कहीं घूमने निकल गया था. खाना बनाने के बाद कुसुम भोजन के लिए पति, देवर व ससुर का इंतजार करने लगी. तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.

कुसुम ने अपने कपड़े दुरुस्त किए और यह सोच कर दरवाजे पर आई कि पति, ससुर भोजन के लिए घर आए होंगे. कुसुम ने दरवाजा खोला तो सामने 2 जवान युवतियां मुंह ढके खड़ी थीं. कुसुम ने उन से पूछा, ‘‘माफ कीजिए, मैं ने आप को पहचाना नहीं. कहां से आई हैं, किस से मिलना है?’’

दोनों युवतियों ने कुसुम के सवालों का जवाब नहीं दिया. इस के बजाय एक युवती ने अपना बैग खोला और उस में से एक फोटो निकाल कर कुसुम को दिखाते हुए पूछा, ‘‘आप इस फोटो को पहचानती हैं?’’

‘‘हां, पहचानती हूं. यह फोटो मेरे देवर अशोक उर्फ जग्गा का है.’’ कुसुम ने बताया.

‘‘कहां हैं वह, आप उन्हें बुलाइए. मैं जग्गा से ही मिलने आई हूं.’’ युवती ने कहा.

‘‘वह कहीं घूमने निकल गया है, आता ही होगा. आप अंदर आ कर बैठिए.’’

दोनों युवतियां घर के अंदर आ कर बैठ गईं. कुसुम ने शिष्टाचार के नाते उन्हें मानसम्मान भी दिया और नाश्तापानी भी कराया. इस बीच कुसुम ने बातोंबातों में उन के आने की वजह जानने की कोशिश की लेकिन उन दोनों ने कुछ नहीं बताया.

चायनाश्ते के बाद वे दोनों जाने लगीं. जाते वक्त फोटो दिखाने वाली युवती कुसुम से बोली, ‘‘जग्गा आए तो बता देना कि 2 लड़कियां आई थीं.’’

दोनों युवतियों को घर से गए अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि जग्गा आ गया. कुसुम ने उसे बताया, ‘‘देवरजी, तुम से मिलने 2 लड़कियां आई थीं. मैं ने उन का नामपता और आने का मकसद पूछा, पर उन्होंने कुछ नहीं बताया. वे पैदल ही आई थीं और पैदल ही चली गईं.’’

अशोक समझ गया कि उस से मिलने उस की प्रेमिका अपनी किसी सहेली के साथ आई होगी. वह मोटरसाइकिल से उन्हें खोजने निकल गया. कुसुम खाना खाने के बहाने उसे रोकती रही, पर वह नहीं रुका. यह बात 27 अगस्त, 2019 की है. उस समय अपराह्न के 2 बजे थे.

जग्गा के जाने के बाद दीपचंद और अर्जुन भोजन के लिए घर आ गए. कुसुम ने पति व ससुर को भोजन परोस दिया. फिर खाना खाने के दौरान कुसुम ने पति को बताया कि अशोक की तलाश में 2 लड़कियां घर आई थीं. उस वक्त अशोक घर पर नहीं था, सो वे चली गईं. अशोक बाइक ले कर उन्हीं से मिलने गया है.

अर्जुन अभी भोजन कर ही रहा था कि कोई जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा, ‘‘अर्जुन भैया, जल्दी दरवाजा खोलो.’’

अर्जुन समझ गया कि कुछ अनहोनी हो गई है. उस ने निवाला थाली में छोड़ा और लपक कर दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजा खोला तो सामने जग्गा का दोस्त लखन खड़ा था. उस के पीछे गांव के कुछ अन्य युवक भी थे.

अर्जुन को देखते ही लखन बोला, ‘‘अर्जुन भैया, जल्दी चलो, नहर की पटरी पर तुम्हारा भाई जग्गा खून से लथपथ पड़ा है. किसी ने उस के पेट में चाकू घोंप दिया है.’’

लखन की बात सुन कर घर में कोहराम मच गया. अर्जुन अपने पिता दीपचंद व लखन के साथ मनौरी नहर की पटरी पर पहुंचा. वहां खून से लथपथ पड़ा जग्गा तड़प रहा था. लोगों की भीड़ जुट गई थी. वहां तरहतरह की बातें हो रही थीं.

अर्जुन ने बिना देर किए पिता दीपचंद और गांव के युवकों की मदद से जग्गा को टैंपो में लिटाया. वे लोग जग्गा को प्रकाश अस्पताल ले गए. अशोक की मोटरसाइकिल उस से थोड़ी दूरी पर खड़ी मिली थी, जिसे उस के घर भिजवा दिया गया था. लेकिन अशोक की नाजुक हालत देख कर डाक्टरों ने उसे जिला अस्पताल ले जाने की सलाह दी. लेकिन जिला अस्पताल पहुंचतेपहुंचते जग्गा ने दम तोड़ दिया.

डाक्टरों ने जग्गा को देखते ही मृत घोषित कर दिया. जग्गा की मौत की सूचना गांव पहुंची तो मरूखा मझौली गांव में कोहराम मच गया. कुसुम भी देवर की मौत की खबर से सन्न रह गई. वह रोतीपीटती अस्पताल पहुंची और देवर की लाश देख कर फफक पड़ी.

पति अर्जुन ने उसे धैर्य बंधाया. हालांकि वह भी सिसकते हुए अपने आंसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रहा था. दीपचंद भी बेटे की लाश को टुकुरटुकुर देख रहा था. उस की आंखों के आंसू सूख गए थे.

कुछ देर बाद जब दीपचंद सामान्य हुआ तो उस ने बेटे अशोक की हत्या की सूचना थाना हलधरपुर पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा पुलिस बल के साथ मऊ के जिला अस्पताल पहुंचे. उन्होंने घटना की सूचना बड़े पुलिस अधिकारियों को दे दी, फिर मृतक अशोक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया.

अशोक उर्फ जग्गा के पेट में चाकू घोंपा गया था, जिस से उस की आंतें बाहर आ गई थीं. आंतों के बाहर आने और अधिक खून बहने की वजह से उस की मौत हो गई थी. जग्गा की उम्र 24 साल के आसपास थी, शरीर से वह हृष्टपुष्ट था.

थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अनुराग आर्य व एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव जिला अस्पताल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया. फिर शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

इस के बाद पुलिस अधिकारी मनौरी नहर पटरी पर उस जगह पहुंचे, जहां अशोक को चाकू घोंपा गया था. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. आलाकत्ल चाकू बरामद करने के लिए पटरी के किनारे वाली झाडि़यों में खोजबीन कराई, लेकिन चाकू बरामद नहीं हुआ.

घटनास्थल पर पुलिस को आया देख लोगों की भीड़ जुट गई. एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव ने कई लोगों से पूछताछ की. उन लोगों ने बताया कि वे खेतों पर काम कर रहे थे. यहीं खड़ा अशोक 2 लड़कियों से बातचीत कर रहा था. किसी बात को ले कर एक लड़की से उस की तकरार हो रही थी.

इसी बीच अशोक की चीख सुनाई दी. चीख सुन कर जब वे लोग वहां पहुंचे तो अशोक जमीन पर खून से लथपथ पड़ा तड़प रहा था. उस के पेट में चाकू घोंपा गया था. हम लोगों ने नजर दौड़ाई तो 2 लड़कियां पुराना पुल पार कर मोटरसाइकिल वाले एक युवक से लिफ्ट मांग रही थीं. उस ने दोनों लड़कियों को मोटरसाइकिल पर बिठाया, फिर तीनों मऊ शहर की ओर चले गए.

औनर किलिंग के जरिए प्यार की बलि – भाग 1

गर्म और उमस भरी रात थी. रात के एक बजे थे. मोनू चौहान बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. आंखों से नींद गायब थी. उसे बस रीना की चिंता खाए जा रही थी. बारबार रीना का चेहरा उस की आंखों के सामने घूम रहा था. सोच रहा था, ‘‘पता नहीं किस हाल में होगी वह? उस पर क्या बीत रही होगी?’’

उस का चिंतित होना स्वाभाविक था. खुद को कोस रहा था, क्योंकि उस ने ही उसे घर से भागने के लिए उकसाया था. भाग कर अलग दुनिया बसाने की उसी ने सलाह दी थी और रीना थी कि उस की बातों में तुरंत आ गई थी. बगैर आगेपीछे सोचेविचारे 2-3 जोड़ी कपड़े और मां के कुछ गहने ले कर उस के साथ घर से भाग गई थी.

रीना और मोनू बचपन से ही साथ खेलेकूदे और एक ही कक्षा में पढ़ाई करते हुए जवान हुए थे. एक वक्त ऐसा भी आया, जब जवां दिलों की धड़कनें उन्हें काफी करीब ले आई थीं. उन की धड़कनें एक साथ धड़कने को बेताब थीं. वे शादी करना चाहते थे.

यह कहें कि प्रेम संबंध को परिणय सूत्र से बांध लेना चाहते थे, लेकिन उन के घर वालों को यह मंजूर नहीं था. खासकर रीना के घर वाले इस के विरोधी थे. सामाजिक कारण था उन के परिवारों के गोत्र का एक होना, जबकि वे एक ही बिरादरी के थे.

मोनू ने जिस 17 वर्षीय रीना के साथ शादी के सपने देखे थे, वह विगत 3 दिनों से गायब थी. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. रीना से उस के प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता 8 महीने पहले और अधिक आ गई थी. उन के मधुर संबंध उस के और रीना के घर वालों को भी पसंद नहीं थे. दोनों एक ही गोत्र के थे. इस कारण उन के घर वालों और समाज की निगाह में वे भाईबहन थे.

जब रीना और मोनू को पक्का विश्वास हो गया कि उन के घर वाले उन की किसी भी सूरत में शादी नहीं होने देंगे, तब वे घर से भाग कर देहरादून चले गए थे. हालांकि उन्हें देहरादून पहुंचते ही इस बात का तुरंत अहसास भी हो गया था कि रीना को शादी के लिए बालिग होने में अभी 3 माह बचे हुए थे.

इस कारण वे बैरंग लिफाफे  की तरह अपनेअपने घर लौट आए. उन के लौटने के बाद से मोनू की रीना से 3 दिनों तक कोई बात नहीं हो पाई थी. इसी चिंता में मोनू उस रात करवटें बदलता हुआ सुबह होने का इंतजार कर रहा था.

रीना का परिवार उत्तराखंड के हरिद्वार जिले की लक्सर कोतवाली के अंतर्गत स्थित रामपुर रायघटी गांव का रहने वाला है. यह गांव हरिद्वार से बिजनौर की ओर बहती गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. इस क्षेत्र के अधिकतर लोग खेतीकिसानी करते हैं. उन का मुख्य कार्य खेती के अलावा गंगा की तलहटी से रेत निकालने का भी है. रीना और मोनू के घर वालों का भी मुख्य पेशा खनन के कारोबार का था.

रीना और मोनू की दोस्ती बीते 6 साल पहले तब हुई थी, जब वे गांव के ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे. मोनू पहले तो अकसर रीना को केवल निहारा करता था, लेकिन जल्द ही उन के बीच दोस्ती भी हो गई थी.

कुछ सालों तक उन के बीच हायहैलो और स्कूली किताबों एवं पढ़ाईलिखाई के संबंध में सीमित बातचीत की दोस्ती चलती रही. लेकिन उन की वही दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला.

फिर तो वे एकदूसरे के गजब के दीवाने बन गए. जिस दिन वे आपस में बातें नहीं कर लेते, उस दिन उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. साथसाथ उठनाबैठना, खानापीना, घंटों बैठ कर इधरउधर की बातें करना आम बात हो गई थी. उन के बीच जिंदगी की फिलास्फी के साथसाथ घरपरिवार, गांव, खेतखलिहान, सिनेमा, फैशन हीरोहीरोइनों आदि की बातें होने लगी थीं.

फिर तो दोनों की हालत ऐसी हो गई थी कि वे एक दिन भी एकदूसरे को देखे बगैर नहीं रह पाते थे. दोनों एकदूसरे के साथ शादी करने के सपने देखने लगे थे, किंतु तब कोरोना का दौर था. उन का स्कूल जाना बंद हो चुका था और प्यार के पंख लगने के बावजूद उड़ान नहीं भर पा रहे थे.

पाबंदियों और परेशानियों से भरा यह दौर 2021 का अंत आतेआते तब खत्म हुआ, जब एक रोज रीना ने ही मोनू से फोन पर कहा, ‘‘हम लोग कब तक मिलने की आस लगाए लौकडाउन में कैद बने रहेंगे?’’

‘‘थोड़ा और धैर्य रखो, कोई न कोई रास्ता निकल आएगा,’’ मोनू ने फोन पर ही उसे आश्वासन दिया था.

किंतु रीना ने बताया कि उस ने अगर जल्द कोई कदम नहीं उठाया, तब उस के खिलाफ घर वाले कुछ भी कदम उठा सकते हैं.

यह बात मोनू के दिमाग में घर कर गई और उस ने रीना को साथ ले कर देहरादून चले जाने की योजना बना ली थी. वे सुनियोजित कार्यक्रम के अनुसार देहरादून चले तो गए थे, लेकिन अगले ही रोज लौट भी आए थे.

रीना की चिंता में मोनू को कब नींद लग गई, पता ही नहीं चला. सुबह जब आंखें खुलीं, तब उस का सिर भारीभारी लग रहा था. उस के अनापशनाप अनहोनी जैसे विचार दिमाग में कौंध रहे थे. उसे सपने में रीना बेहाल दिखी थी. सपने के दृश्य किसी हौरर मूवी की तरह अभी भी उस के दिमाग में गड्डमड्ड हो गए थे.

वह उसे एकदूसरे से जोड़ कर उस का अर्थ समझने की कोशिश करने लगा. उस ने सपने में रीना को बेतहाशा दौड़तेभागते देखा था. वह ऐसे भाग रही थी मानो कोई उसे भगा रहा हो, भगाने वाले कोई नहीं दिखे थे. वह पानी की लहर पर भागती जा रही थी.

मोनू समझ गया कि इसी सपने की वजह से उस का सिर भारी लग रहा है. दिन का सूरज भी निकल आया था. बिस्तर से उठने के बाद वह सीधा बाथरूम गया. फ्रैश हो कर नाश्ता किया और हिम्मत जुटा कर लक्सर कोतवाली की ओर चल पड़ा.

करीब 15 मिनट में वह कोतवाली पहुंचा. वहां उसे कोतवाल यशपाल सिंह बिष्ट और एसएसआई अंकुर शर्मा मिले. उन्होंने मोनू से आने का कारण पूछा. सकपकाया और थोड़ा डरा हुआ मोनू कुछ समय तक उन के सामने नि:शब्द खड़ा रहा.

एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम – भाग 1

नीलेश शहर के उस प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट में अपनी पत्नी नेहा के साथ अपने विवाह की दूसरी सालगिरह मनाने आया था. वह आर्डर देने ही वाला था कि सामने से एक युगल आता दिखा. लड़की पर नजर टिकी तो पाया वह उस के प्रिय दोस्त मनीष की पत्नी सुलेखा है. उस के साथ वाले युवक को उस ने पहले कभी नहीं देखा था.

मनीष के सभी मित्रों और रिश्तेदारों से नीलेश परिचित था. पड़ोसी होने के कारण वे बचपन से एकसाथ खेलेकूदे और पढ़े थे. यह भी एक संयोग ही था कि उन्हें नौकरी भी एक ही शहर में मिली. कार्यक्षेत्र अलग होने के बावजूद उन्हें जब भी मौका मिलता वे अपने परिवार के साथ कभी डिनर पर चले जाते तो कभी किसी छुट्टी के दिन पिकनिक पर. उन के कारण उन दोनों की पत्नियां भी अच्छी मित्र बन गई थीं.

मनीष का टूरिंग जाब था. वह अपने काम के सिलसिले में महीने में लगभग 10-12 दिन टूर पर रहा करता था. इस बार भी उसे गए लगभग 10 दिन हो गए थे. यद्यपि उस ने फोन द्वारा शादी की सालगिरह पर उन्हें शुभकामनाएं दे दी थीं किंतु फिर भी आज उसे उस की कमी बेहद खल रही थी. दरअसल, मनीष को ऐसे आयोजनों में भाग लेना न केवल पसंद था बल्कि समय पूर्व ही योजना बना कर वह छोटे अवसरों को भी विशेष बना दिया करता था.

मनीष के न रहने पर नीलेश का मन कोई खास आयोजन करने का नहीं था किंतु जब नेहा ने रात का खाना बाहर खाने का आग्रह किया तो वह मना नहीं कर पाया. कार्यक्रम बनते ही नेहा ने सुलेखा को आमंत्रित किया तो उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है पर उसे इस समय देख कर तो ऐसा नहीं लग रहा है कि उस की तबीयत खराब है. वह उस युवक के साथ खूब खुश नजर आ रही है.

नीलेश को सोच में पड़ा देख नेहा ने पूछा तो उस ने सुलेखा और उस युवक की तरफ इशारा करते हुए अपने मन का संशय उगल दिया.

‘‘तुम पुरुष भी…किसी औरत को किसी मर्द के साथ देखा नहीं कि मन में शक का कीड़ा कुलबुला उठा…होगा कोई उस का रिश्तेदार या सगा संबंधी या फिर कोई मित्र. आखिर इतनेइतने दिन अकेली रहती है, हमेशा घर में बंद हो कर तो रहा नहीं जा सकता, कभी न कभी तो उसे किसी के साथ की, सहयोग की जरूरत पड़ेगी ही,’’ वह प्रतिरोध करते हुए बोली, ‘‘न जाने क्यों मुझे पुरुषों की यही मानसिकता बेहद बुरी लगती है. विवाह हुआ नहीं कि वे स्त्री को अपनी जागीर समझने लगते हैं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है नेहा, तुम ही तो कह रही थीं कि जब तुम ने डिनर का निमंत्रण दिया था तब सुलेखा ने कह दिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है और अब वह इस के साथ यहां…यही बात मन में संदेह पैदा कर रही है…और तुम ने देखा नहीं, वह कैसे उस के हाथ में हाथ डाल कर अंदर आई है तथा उस से हंसहंस कर बातें कर रही है,’’ मन का संदेह चेहरे पर झलक ही आया.

‘‘वह समझदार है, हो सकता है वह दालभात में मूसलचंद न बनना चाहती हो, इसलिए झूठ बोल दिया हो. वैसे भी किसी स्त्री का किसी पुरुष का हाथ पकड़ना या किसी से हंस कर बात करना सदा संदेहास्पद क्यों हो जाता है? फिर भी अगर तुम्हारे मन में संशय है तो चलो उन्हें भी अपने साथ डिनर में शामिल होने का फिर से निमंत्रण दे देते हैं…दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’

नेहा ने नीलेश का मूड खराब होने के डर से बीच का मार्ग अपना लेना ही श्रेयस्कर समझा.

‘‘हां, यही ठीक रहेगा,’’ किसी के अंदरूनी मामले में दखल न देने के अपने सिद्धांत के विपरीत नीलेश, नेहा की बात से सहमत हो गया. दरअसल, वह उस उलझन से मुक्ति पाना चाहता था जो उस के दिल और दिमाग को मथ रही थी. वैसे भी सुलेखा कोई गैर नहीं, उस के अभिन्न मित्र की पत्नी है.

वे दोनों उठ कर उन के पास गए. उन्हें इस तरह अपने सामने पा कर सुलेखा चौंक गई, मानो वह समझ नहीं पा रही हो कि क्या कहे.

‘‘दरअसल सुलेखा, हम लोग यहां डिनर के लिए आए हैं. वैसे मैं ने सुबह तुम से कहा भी था पर उस समय तुम ने कह दिया कि तबीयत ठीक नहीं है पर अब जब तुम यहां आ ही गई हो तो हम चाहेंगे कि तुम हमारे साथ ही डिनर कर लो. इस से हमें बेहद प्रसन्नता होगी,’’ नेहा उसे अपनी ओर आश्चर्य से देखते हुए भी सहजता से बोली.

‘‘पर…’’ सुलेखा ने झिझकते हुए कुछ कहना चाहा.

‘‘पर वर कुछ नहीं, सुलेखाजी, मनीष नहीं है तो क्या हुआ, आप को हमेंकंपनी देनी ही होगी…आप भी चलिए मि…आप शायद सुलेखाजी के मित्र हैं,’’ नीलेश ने उस अजनबी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘यह मेरा ममेरा भाई सुयश है,’’ एकाएक सुलेखा बोली.

‘‘वेरी ग्लैड टू मीट यू सुयश, मैं नीलेश, मनीष का लंगोटिया यार, पर भाभी, आप ने कभी इन के बारे में नहीं बताया,’’ कहते हुए नीलेश ने बडे़ गर्मजोशी से हाथ मिलाया.

‘‘यह अभी कुछ दिन पूर्व ही यहां आए हैं,’’ सुलेखा ने कहा.

‘‘ओह, तभी हम अभी तक नहीं मिले हैं, पर कोई बात नहीं, अब तो अकसर ही मुलाकात होती रहेगी,’’ नीलेश ने कहा.

अजीब पसोपेश की स्थिति में सुलेखा साथ आ तो गई पर थोड़ी देर पहले चहकने वाली उस सुलेखा तथा इस सुलेखा में जमीनआसमान का अंतर लग रहा था…जितनी देर भी साथ रही चुप ही रही, बस जो पूछते उस का जवाब दे देती. अंत में नेहा ने कह भी दिया, ‘‘लगता है, तुम को हमारा साथ पसंद नहीं आया.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, तबीयत अभी भी ठीक नहीं लग रही है,’’ झिझकते हुए सुलेखा ने कहा.

बात आईगई हो गई. एक दिन नीलेश शौपिंग मौल के सामने गाड़ी पार्क कर रहा था कि वे दोनों फिर दिखे. उन के हाथ में कुछ पैकेट थे. शायद शौपिंग करने आए थे. आजकल तो मनीष भी यही हैं, फिर वे दोनों अकेले क्यों आए…मन में फिर संदेह उपजा, फिर यह सोच कर उसे दबा दिया कि वह उस का ममेरा भाई है, भला उस के साथ घूमने में क्या बुराई है.

मनीष के घर आने पर एक दिन बातोंबातों में नीलेश ने कहा, ‘‘भई, तुम्हारा ममेरा साला आया है तो क्यों न इस संडे को कहीं पिकनिक का प्रोग्राम बना लें. बहुत दिनों से दोनों परिवार मिल कर कहीं बाहर गए भी नहीं हैं.’’

‘‘ममेरा साला, सुलेखा का तो कोई ममेरा भाई नहीं है,’’ चौंक कर मनीष ने कहा.

‘‘पर सुलेखा भाभी ने तो उस युवक को अपना ममेरा भाई बता कर ही हम से परिचय करवाया था, उसे सुलेखा भाभी के साथ मैं ने अभी पिछले हफ्ते भी शौपिंग मौल से खरीदारी कर के निकलते हुए देखा था. क्या नाम बताया था उन्होंने…हां सुयश,’’ नीलेश ने दिमाग पर जोर डालते हुए उस का नाम बताते हुए पिछली सारी बातें भी उसे बता दीं.

‘‘हो सकता है, कोई कजिन हो,’’ कहते हुए मनीष ने बात संभालने की कोशिश की.

‘‘हां, हो सकता है पर पिकनिक के बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ नीलेश ने फिर पूछा.

‘‘मैं बाद में बताऊंगा…शायद मुझे फिर बाहर जाना पडे़,’’ मनीष ने कहा.

नीलेश भी चुप लगा गया. वैसे नीलेश की पारखी नजरों से यह बात छिप नहीं पाई कि उस की बात सुन कर मनीष परेशान हो गया है. ज्यादा कुछ न कह कर मनीष कुछ काम है, कह कर उस के पास से हट गया. उस दिन उसे पहली बार महसूस हुआ कि दोस्ती चाहे कितनी भी गहरी क्यों न हो पर कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें व्यक्ति किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहता.

मर्यादा की हद से आगे – भाग 1

सुबह टहलने वाले कुछ लोगों ने पनकी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित नगर निगम के पार्क में एक युवक की लाश पड़ी देखी. पार्क में लाश पड़ी होने की खबर फैली तो वहां भीड़ जुट गई. इस भीड़ में चेयरमैन (फैक्ट्री) विजय कपूर भी मौजूद थे. उन्होंने लाश की सूचना थाना पनकी पुलिस को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी.

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण शुरू किया. युवक की लाश हरेभरे पार्क के पश्चिमी छोर की आखिरी बेंच के पास पड़ी थी. उस की हत्या किसी नुकीली चीज से सिर कूंच कर की गई थी. लकड़ी की बेंच के नीचे शराब की खाली बोतल, प्लास्टिक के 2 खाली गिलास और कोल्डड्रिंक की एक खाली बोतल पड़ी थी.

अजय प्रताप सिंह ने अनुमान लगाया कि पहले खूनी और मृतक दोनों ने शराब पी होगी. फिर किसी बात को ले कर उन में झगड़ा हुआ होगा और एक ने दूसरे की हत्या कर दी.

मृतक की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस का शरीर स्वस्थ और रंग सांवला था. वह हरे रंग की धारीदार कमीज व ग्रे कलर की पैंट पहने था. पैरों में हवाई चप्पलें थीं, जो शव के पास ही पड़ी थीं. इस के अलावा मृतक के बाएं हाथ की कलाई पर मां काली गुदा हुआ था, साथ ही दुर्गा का चित्र भी बना था. इस से स्पष्ट था कि मरने वाला युवक हिंदू था. जामातलाशी में उस की जेबों से ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती.

अजय प्रताप सिंह घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजीत कुमार सिंह घटनास्थल पर आ गए. अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

उन्होंने थानाप्रभारी अजय प्रताप से घटना के संबंध में जानकारी ली. घटनास्थल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटी थी. लोगों में शव देखने, शिनाख्त करने की जिज्ञासा थी. लेकिन अब तक कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाया था.

कई घंटे बीतने के बाद भी युवक के शव की पहचान नहीं हो सकी. आखिर पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने फोटोग्राफर बुलवा कर शव के विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवाए.

फिर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. थाना पनकी लौट कर अजय प्रताप ने वायरलैस से अज्ञात शव पाए जाने की सूचना प्रसारित करा दी. यह 29 जून, 2019 की बात है.

अज्ञात शव की शिनाख्त के लिए पुलिस ने क्षेत्र के शराब ठेकों, फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों तथा नहर किनारे बसी बस्तियों में लोगों को मृतक की फोटो दिखा कर पहचान कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उस की पहचान नहीं कर सका. पुलिस हर रोज शव की शिनाख्त के लिए लोगों से पूछताछ कर रही थी, कोई नतीजा निकलता न देख अजय प्रताप सिंह की चिंता बढ़ती जा रही थी.

5 जुलाई, 2019 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि एक अधेड़ व्यक्ति ने उन के औफिस में प्रवेश किया. वह कुछ परेशान दिख रहा था. अजय प्रताप सिंह ने उस अधेड़ व्यक्ति को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा कर के पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं, जो भी परेशानी हो साफसाफ बताओ.’’

‘‘सर, मेरा नाम जगत पाल है. मैं कानपुर देहात जिले के गांव दौलतपुर का रहने वाला हूं. मेरा छोटा भाई पवन पाल पनकी गल्ला मंडी में पल्लेदारी करता है. वह पनकी गंगागंज कालोनी में रहता है. पवन हफ्ते में एक बार घर जरूर आता था.

‘‘लेकिन इस बार 2 सप्ताह बीत गए, वह घर नहीं आया. उस का मोबाइल भी बंद है. आज मैं उस के क्वार्टर पर गया तो वहां ताला बंद मिला. पूछने पर पता चला कि वह सप्ताह भर से क्वार्टर में आया ही नहीं है. मुझे डर है कि कहीं… पवन को खोजने में आप मेरी मदद करने की कृपा करें.’’

जगत पाल की बात सुन कर थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने पूछा, ‘‘तुम्हारे भाई की उम्र कितनी है, वह शादीशुदा है या नहीं?’’

‘‘साहब, उस की उम्र 35-36 साल है. अभी उस की शादी नहीं हुई.’’ जगत ने बताया.

29 जून को पनकी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित नगर निगम के पार्क में लाश मिली थी. उस युवक की उम्र तुम्हारे भाई से मिलतीजुलती है. पहचान न हो पाने के कारण हम ने पोस्टमार्टम करा दिया था. लाश के कुछ फोटोग्राफ हमारे पास हैं. तुम उन्हें देख लो.’’ अजय प्रताप ने फाइल से फोटो निकाल कर जगत पाल के सामने रख दिए.

जगत पाल ने एकएक फोटो को गौर से देखा, फिर रोते हुए बोला, ‘‘साहब, ये सभी फोटो मेरे छोटे भाई पवन पाल के ही हैं.’’

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने जगत पाल को धैर्य बंधाया, फिर पूछा, ‘‘जगत पाल, तुम्हारे भाई की किसी से रंजिश या फिर लेनदेन का कोई झगड़ा तो नहीं था?’’

‘‘सर, मेरा भाई सीधासादा और कमाऊ था. उस की न तो किसी से रंजिश थी और न ही किसी से लेनदेन का विवाद था.’’

‘‘कहीं पवन की हत्या दोस्तीयारी में तो नहीं की गई. उस का कोई दोस्त था या नहीं?’’

जगत पाल कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘सर, पवन का एक दोस्त रमाशंकर निषाद है. वह भी पवन के साथ ही पल्लेदारी करता था. पवन उसे अपने साथ गांव भी लाया था. वह उसे कल्लू कह कर बुलाता था. बातचीत में पवन ने बताया था कि कल्लू नहर किनारे की कच्ची बस्ती में रहता है. पवन की तरह वह भी खानेपीने का शौकीन है.’’

बहन की सौतन बनने की जिद – भाग 1

पति से मतभेद हो जाने पर शादी के 2 साल बाद ही नेहा मायके में रहने लगी. उसी दौरान उसे मझली बहन निशा सिंह के पति श्याम से प्यार हो गया. वह छोटी बहन की सौतन बनने को बेताब थी. बहन का मंसूबा रोकने के लिए निशा ने जो कदम उठाया वह…

11जून, 2022 की रात करीब 10 बजे नेहा सिंह अपनी स्कूटी से घर जा रही थी. बेहद खूबसूरत दिखने वाली नेहा बिहार के बेगूसराय में स्थित तनिष्क ज्वैलर्स के शोरूम में बतौर सेल्सगर्ल काम करती थी. अकसर वह इसी समय के आसपास ड्यूटी से घर लौटती थी.

उस दिन भी वह अपने समय पर घर लौट रही थी, अचानक उस की स्कूटी के सामने आड़ेतिरछी कर के एक बाइक आ कर रुकी, जिस पर 2 युवक थे. सामने बाइक आते ही नेहा ने तेजी से ब्रेक ले कर अपनी स्कूटी रोक दी और बाइक से टकरातेटकराते बची.

‘‘दिखता नहीं, अंधे हो क्या तुम?’’ नेहा गुस्से से चिल्लाई. उस की सांसें तेजतेज से चल रही थीं, ‘‘अभी एक्सीडेंट हो जाता तो..?’’

‘‘दिखता भी है और मैं अंधा भी नहीं.’’ बाइक सवार नीचे उतरते हुए तल्ख हो कर बोला, ‘‘रही बात एक्सीडेंट की तो मैडम, बता दूं कि मैं एक्सपर्ट रेसर हूं. कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं कि बाइक ठोक दूं.’’

‘‘तुम एक्सपर्ट रेसर हो या अनाड़ी, इस से मुझे क्या लेनादेना. लेकिन तुम ने मेरी स्कूटी के सामने अपनी बाइक क्यों रोकी, ये बताओ?’’

‘‘मेरी मरजी, मैं जहां चाहूं वहां बाइक रोकूं. तुम पूछने वाली कौन होती हो?’’

‘‘एक तो गलती कर रहे हो ऊपर से आंखें भी दिखा रहे हो. तुम्हारी हेकड़ी से डरने वाली नहीं हूं मैं, समझे?’’

‘‘साऽऽली…’’ युवक गालियां देता हुआ नेहा के करीब जा पहुंचा और गुर्राते हुए बोला, ‘‘डरने वाली नहीं है तू…’’ कहते हुए कमर में खोंस रखा पिस्टल बाहर निकाला और नेहा के सीने से सटा दिया.

पिस्टल देख नेहा बुरी तरह डर गई. उस के चेहरे का रंग उड़ गया और अभी वह कुछ समझ पाती, तब तक युवक ने ट्रिगर दबा दिया. और बाइक पर सवार हो कर दोनों वहां से फरार हो गए.

गोली लगते ही नेहा स्कूटी सहित लहराती हुई धड़ाम से जा गिरी और तड़पने लगी. चूंकि रात का समय था और चारों ओर सन्नाटा फैला था, गोली चलने की आवाज आनंदपुर मोहल्ले तक साफ सुनाई दी.

इधर नेहा के घर वाले दीवार पर टंगी घड़ी को देखते रहे. रात के जब 11 बज गए और नेहा घर नहीं पहुंची तो मां रिंकू देवी को चिंता हुई. उन्होंने बेटे पवन से कहा कि शोरूम के मैनेजर को फोन कर के पूछो कि नेहा घर क्यों नहीं पहुंची.

पवन ने वैसा ही किया जैसा उस की मां ने करने को कहा था. उधर से जवाब मिला कि नेहा तो अपने टाइम पर शोरूम से घर के लिए रवाना हुई थी जैसे रोज जाती है.

यह सुन कर मां रिंकू ही नहीं घर के सारे लोग परेशान हो गए कि नेहा ऐसा तो कभी नहीं करती. फिर आज उसे क्यों देर हो रही है. मां तो मां होती है. उस ने बेटे से कहा, ‘‘जा तू देख, वह किसी परेशानी में तो नहीं है. उसे साथ ले कर ही आना.’’

‘‘मां, तुम बेकार में परेशान हो रही हो. दीदी कोई छोटी बच्ची नहीं हैं, जो रास्ता भटक जाएंगी. अरे आती होंगी. थोड़ी देर उन का और वेट कर लो.’’

‘‘बेटा, मेरा दिल घबरा रहा है. तू मेरी बात क्यों नहीं सुनता?’’ रिंकू देवी बेटे पर झुंझलाई, ‘‘तू जाता है पता करने या मैं जाऊं?’’

‘‘तुम्हारी यही जिद मुझे अच्छी नहीं लगती मां. जाता हूं, आप यहीं बैठो.’’ कहते हुए पवन बाइक ले कर बड़ी बहन नेहा को तलाशने अकेला ही निकल पड़ा.

खून से लथपथ मिली नेहा

घर से पवन बमुश्किल 200 मीटर आगे बढ़ा था क एक स्कूटी रास्ते में गिरी पड़ी दूर से ही नजर आई. स्कूटी के पास एक युवती भी पड़ी थी. दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. स्कूटी के पास पहुंच कर उस ने अपनी बाइक रोक दी.

मोबाइल की टौर्च जला कर उस की रोशनी में देखा तो स्कूटी उस की बहन नेहा की थी और वह उस के ऊपर गिरी पड़ी थी. यह देख कर उस के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकली. ध्यान से देखा तो उस के कपड़े खून से सने हुए थे और शरीर से खून अभी भी बह रहा था.

उस ने तुरंत बहन के ऊपर से स्कूटी हटाई और बहन को आवाज दे कर हिलायाडुलाया लेकिन नेहा के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई. तब पवन जोरजोर से रोने लगा. उस के रोने की आवाज सुन कर उधर से गुजरने वाले लोग रुक गए. उसी दौरान किसी जानने वाले ने पवन के घर जा कर नेहा के मर्डर की खबर दे दी.

घर में कोहराम मच गया और जो जैसे था, उसी हालत में मौके पर जा पहुंचा. आननफानन में उसे कार में लाद कर बेगूसराय जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया.

नेहा की हत्या की सूचना किसी ने लोहिया नगर थाने में दे दी थी. सूचना मिलते ही एसएचओ अजीत प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ जिला अस्पताल पहुंच गए और लाश अपने कब्जे में ले ली.

एसएचओ अजीत प्रताप सिंह ने इस की जानकारी अपने सीनियर एसडीपीओ अमित कुमार और एसपी योगेंद्र कुमार को दे दी थी. जानकारी मिलते ही दोनों अधिकारी जिला अस्पताल पहुंच गए.

अफसरों ने नेहा की बौडी की जांच की. हत्यारों ने उसे पिस्टल सटा कर गोली मारी थी. जांचपड़ताल में ऐसा पता चला था, क्योंकि गोली लगने वाले स्थान के उतनी दूरी के कपड़े जले हुए थे. ऐसा तभी होता है जब किसी को पिस्टल सटा कर गोली मारी जाती है. उस के बाद पुलिस मृतका के घर वालों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंची, जहां नेहा को गोली मारी गई थी. वह इलाका आनंदपुर चौक और पन्हास के बीच था. घटनास्थल से मृतका का घर महज 200 मीटर दूर था.

खून से सनी स्कूटी मौके पर सड़क पर गिरी थी. पुलिस ने मौके से खून सनी मिट्टी आदि जांच के लिए कब्जे में ले लिए. मौके से पुलिस को पिस्टल के 2 खोखे बरामद हुए थे. वह सबूत के लिए पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए.

2 साल बाद : प्यार कैसे बना सजा – भाग 1

पढ़ी लिखी ज्योति ने घर वालों की मरजी के खिलाफ रोहित से अंतरजातीय विवाह किया था. रोहित सरकारी नौकरी करता था, इसलिए ज्योति उस के साथ हंसीखुशी से रह रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद पतिपत्नी के साथ ऐसा वाकया हुआ, जिस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक गांव है बृजपुरा. इसी गांव के निवासी महेश सिंह यादव पेशे से किसान थे. उन का बड़ा बेटा रोहित पशु पालन

विभाग में नौकरी करता था. 9 जुलाई, 2020 की बात है. रोहित की पत्नी ज्योति की तबियत अचानक खराब हो गई थी. बुखार के साथ उस के पेट में भी दर्द था.

ज्योति की तबियत खराब होने से रोहित परेशान था.. शाम हो गई थी. जब घरेलू उपायों से कोई लाभ नहीं हुआ तो घर वालों ने रोहित से ज्योति को कीरतपुर के किसी डाक्टर को दिखाने को कहा. क्योंकि बृजपुरा में कोई अच्छा डाक्टर नहीं था.

घर वालों की बात मान कर रोहित ने ज्योति से कहा, ‘‘चलो डाक्टर को दिखा आते हैं. रात में ज्यादा तबियत खराब हो गई तो किसे दिखाएंगे.’’

ज्योति डाक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो गई.

ब्रजपुरा से कीरतपुर लगभग 5 किलोमीटर दूर था. रोहित अपनी मोटरसाइकिल से ज्योति को कीरतपुर के एक डाक्टर के क्लीनिक पर ले गया. ज्योति का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने दवा दे दी और 2 दिन बाद आने को कहा.

डाक्टर से दवा लेने के बाद रोहित पत्नी को ले कर अपने घर जाने के लिए चल दिया. लौटते समय रात हो गई थी.

रोहित की मोटरसाइकिल जब सिंहपुर नहर पुल की हुर्रइया पुलिया के पास पहुंची, तब तक रात के सवा 8 बजे थे. सड़क पर सन्नाटा था. ज्योति रोहित को पकड़े बाइक पर बैठी थी. उस ने कहा, ‘‘अंधेरे में मुझे डर लग रहा है. तुम गाड़ी तेज चलाओ जिस से हम घर जल्दी पहुंच जाएं.’’

रोहित कुछ कह पाता, तभी वहां घात लगाए बैठे हमलावरों ने उन पर हमला कर दिया. दोनों को जिस बात का डर था वही हुआ. ऐसा लग रहा था बदमाश जैसे उन दोनों का ही इंतजार कर रहे थे. अचानक हुए हमले से दोनों घबरा गए. रोहित ने मोटरसाइकिल की स्पीड बढ़ा कर वहां से भागने का प्रयास किया.

लेकिन हमलावरों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. तभी एक गोली रोहित के पेट में लगी और दोनों बाइक सहित सड़क पर गिर गए. कई गोली लगने से ज्योति गंभीर रूप से घायल हो गई थी. हमलावर 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर आए थे.

रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज सुन कर आसपास के ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंच गए. गांव वालों के वहां पहुंचने से पहले ही हमलावर निकल थे. कुछ ग्रामीणों ने घायल दंपति को पहचान लिया और बृजपुरा उन के घर फोन कर घटना की जानकारी दे दी.

घटना की जानकारी मिलते ही रोहित के घर में कोहराम मच गया. छोटा भाई मोहित, पिता महेश व अन्य घर वाले गांव वालों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. ज्योति और रोहित सड़क किनारे बिजली के खंभे के पास लहूलुहान पड़े थे. इसी बीच किसी ने मैनपुरी थाना पुलिस को भी घटना की सूचना दे दी थी.

सड़क पर बाइक सवार दंपति को गोली मारने की सूचना पर थाने में हड़कंप मच गया. घटनास्थल थाने से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर था. इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह कुछ ही देर में पुलिस टीम व एंबुलेंस के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने गंभीर रूप से घायल दंपति को एंबुलेंस से उपचार के लिए जिला अस्पताल में भिजवाया.

वारदात हैरान कर देने वाली थी

दंपति पर जानलेवा हमले की वारदात से गांव वालों में रोष था. उन के रोष को भांप कर थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत करा दिया. खबर मिलते ही एएसपी मधुबन सिंह और सीओ अभय नारायण राय घटनास्थल पर पहुंच गए. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

घटनास्थल से पुलिस को जहां 2 खोखे मिले, वहीं घटनास्थल से लगभग 150 मीटर की दूरी पर भी एक खोखा मिला. पुलिस ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटा कर मौके की जरूरी काररवाई निपटाई. सीओ साहब ने गुस्साए ग्रामीणों को भरोसा दिया कि पुलिस हमलावरों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद गांव वाले शांत हुए.

पुलिस बदमाशों की तलाश में जुट गई. लेकिन रात का समय होने के कारण बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. हमलावरों ने दंपति को घायल करने के बाद उन की बाइक, नकदी व आभूषण को नहीं लूटा था. इस से पुलिस को आशंका हुई कि बदमाशों ने हमला लूटपाट के लिए नहीं किया, बल्कि इस के पीछे जरूर कोई रंजिश रही होगी.

घटनास्थल से अधिकारी सीधे जिला चिकित्सालय पहुंचे. उन्होंने घायलों के बारे में डाक्टरों से जानकारी ली. डाक्टरों ने बताया कि रोहित के पेट में एक गोली लगी थी, जबकि ज्योति के शरीर में 6 गोलियां लगी थीं. घायल रोहित ने अधिकारियों को हमलावरों के नाम भी बता दिए.

अस्पताल में मौजूद रोहित के छोटे भाई मोहित ने रंजिश के चलते अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा, उस के बेटे गुलशन व हिमांशु मिश्रा, बृजेश के छोटे भाई अशोक मिश्रा तथा उस के 2 बेटों राघवेंद्र उर्फ टेंटा व रघुराई पर वारदात को अंजाम देने का आरोप लगाया.

घायल दंपति का जिला अस्पताल मैनपुरी में उपचार शुरू किया गया. उपचार के दौरान दोनों की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें मैडिकल कालेज सैफई रैफर कर दिया. पुलिस व घर वाले जब एंबुलेंस से घायल दंपति को सैफई ले जा रहे थे तो ज्योति की रास्ते में मौत हो गई. जबकि रोहित का सैफई पहुंचते ही इलाज शुरू हो गया. गोली उस के पेट में लगी थी जो पार हो गई थी.

औपरेशन के बाद चिकित्सकों ने रोहित को आईसीयू में भरती कर दिया था. रोहित की सुरक्षा के लिए थानाप्रभारी ने 2 सिपाही भी तैनात कर दिए गए थे.

गलती गुरतेज की : क्यों बना बीवी का हत्यारा

गुरतेज सिंह के 2 और भाई थे. ये सभी बठिंडा के थाना संगत के गांव मुहाला के आसपास रहते थे. गुरतेज भाइयों से अलग रहता था. उस के पास पैसा भी था और रुतबा भी. शादी के 2 सालों बाद ही वह एक बेटे का बाप बन गया था.

वह सुबह खेती के काम के लिए निकल जाता तो शाम को ही लौटता था. पतिपत्नी एकदूसरे से बहुत खुश थे. लेकिन एक दिन गुरतेज के एक दोस्त ने उसे जो बताया, उस से इस घर की खुशियों में ग्रहण लगना शुरू हो गया. गुरतेज के उस खास दोस्त ने बताया था कि उस ने जसप्रीत भाभी को एक लड़के के साथ शहर के बाजार में घूमते देखा था. लेकिन गुरतेज को उस की बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ.

लेकिन यही बात कुछ दिनों बाद किसी दूसरे दोस्त ने बताई तो गुरतेज सोचने को मजबूर हो गया कि दोनों दोस्तों को एक जैसा धोखा नहीं हो सकता.

इसलिए शाम को घर लौट कर उस ने जसप्रीत से इस बारे में पूछा तो उस ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘लगता है, आप के दोस्त भांग पी कर घूमते हैं, इसीलिए आप से बहकीबहकी बातें करते हैं. आप खुद ही सोचिए, मैं आप के बगैर शहर क्या करने जाऊंगी?’’

जसप्रीत के इस जवाब से गुरतेज लाजवाब हो गया. लेकिन यह धोखा नहीं था. इस के 10 दिनों बाद की बात है. यही बात एक रिश्तेदार ने गुरतेज से कही तो घर में झगड़ा होना स्वाभाविक था, जबकि जसप्रीत का अब भी वही कहना था, जो उस ने पहले कहा था.

जसप्रीत की बातों से गुरतेज को लगता कि वही गलत है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सच है और कौन झूठा? लेकिन एक बात तय थी कि कोई न कोई तो झूठ बोल रहा था. काफी सोचनेविचारने के बाद भी गुरतेज को इस समस्या का कोई हल नजर नहीं आया. इसी तरह ऊहापोह में कुछ दिन और बीत गए, इस बार उस के छोटे भाई जगतार ने एक दिन उस से कहा, ‘‘भाई, आप होश में आ जाइए, कहीं ऐसा न हो कि पानी सिर के ऊपर से गुजर जाए और आप को इस की खबर तक न लगे.’’

इस बार भाई जगतार ने जसप्रीत के बारे में खबर दी तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि सभी सच थे, झूठ जसप्रीत ही बोल रही थी. इसलिए उस दिन गुरतेज ने सख्ती से काम लिया. उस ने जसप्रीत को खूब डांटाफटकारा.

इस के बाद पतिपत्नी दोनों ही सतर्क हो गए. जसप्रीत जहां घर से बाहर निकलने में सावधानी बरतने लगी, वहीं गुरतेज गुपचुप तरीके से उस पर नजर रखने के साथ पड़ोसियों से उस के बारे में पूछता रहता था. इस से गुरतेज को पता चल गया कि उस के खेतों पर जाने के बाद कोई लड़का उस के घर आता है. उस के आने के बाद जसप्रीत बेटे को किसी पड़ोसी के घर छोड़ कर उस लड़के के साथ चली जाती है.

वह लड़का कौन था, यह कोई नहीं जानता था. इस से साफ हो गया कि जसप्रीत के किसी लड़के से संबंध हैं. इस बारे में गुरतेज ने जसप्रीत से कुछ नहीं पूछा. दरअसल, वह उसे रंगेहाथों पकड़ना चाहता था, इसलिए एक दिन घर से वह खेतों पर जाने की बात कह कर गांव में ही छिप गया.

करीब एक घंटे बाद एक टाटा 407 टैंपो आ कर रुका. उस में से एक लड़का उतर कर गांव की ओर चला गया. गुरतेज ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि इस तरह लोगों के रिश्तेदार अपनी गाडि़यों से आते रहते थे. लेकिन जब कुछ देर बाद टैंपो स्टार्ट होने लगा तो उस ने झांक कर देखा. लड़के के साथ टैंपो में जसप्रीत बैठी थी.

गुरतेज मोटरसाइकिल से टैंपो के पीछेपीछे चल पड़ा, लेकिन वह टैंपो का पीछा नहीं कर सका. कुछ दूर जा कर टैंपो उस की आंखों से ओझल हो गया. कुछ देर वह सड़क पर खड़ा सोचता रहा, उस के बाद घर लौट आया. घर के अंदर कदम रखते ही उस का दिमाग चकरा गया, क्योंकि जसप्रीत घर में बैठी बेटे को खाना खिला रही थी. उसे देख कर गुरतेज की बोलती बंद हो गई.

उस ने सोचा था कि जसप्रीत यार से मिल कर लौटेगी तो वह पूछेगा कि कहां से आ रही है? पर उस ने अपनी आंखों से जो देखा, वह भी झूठा हो गया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, उस ने उसे खुद टैंपो में बैठ कर जाते देखा था. यह धोखा कैसे हो गया? गुरतेज के पास अब कहने को कुछ नहीं बचा था, इसलिए वह खामोश रह गया.

लेकिन उस ने जसप्रीत का पीछा करना नहीं छोड़ा. आखिर एक दिन उस ने जसप्रीत को बाजार में एक लड़के के साथ घूमते देख लिया. दोनों उस से कुछ दूरी पर थे. वहां भीड़ थी. गुरतेज के वहां पहुंचने तक लड़का तो गायब हो गया, पर जसप्रीत खड़ी रह गई. अब जसप्रीत के पास अपनी सफाई में कहने को कुछ नहीं था.

गुरतेज ने घर आ कर जसप्रीत की जम कर पिटाई की, लेकिन उस ने प्रेमी का नाम बताना तो दूर, यह भी नहीं माना कि उस के साथ बाजार में कोई था. लेकिन अब गुरतेज को सच्चाई का पता चल गया था. इसलिए पतिपत्नी में क्लेश रहने लगा. घर में रोजाना लड़ाईझगड़ा और मारपीट आम बात हो गई.

आखिर एक दिन गुरतेज को कुछ बताए बगैर जसप्रीत बेटे को छोड़ कर घर से भाग गई. लेकिन वह अपने किसी प्रेमी के साथ नहीं भागी थी, अपने पिता के घर गई थी. हालांकि जसप्रीत के पिता ने उसे काफी समझाया, पर उस ने उन की एक नहीं सुनी. पिता के घर कुछ दिन रहने के बाद वह अपनी बड़ी बहन के पास बाड़ी गांव चली गई.

दरअसल, जसप्रीत बहन के यहां कुछ दिन रह कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाना चाहती थी. लेकिन उस की बहन को न जाने कैसे इस बात का पता चल गया. उस ने यह बात अपने पति को भी बता दी. उन लोगों ने सोचा कि अगर जसप्रीत उन के घर से भागती है तो उन की बदनामी तो होगी ही, साथ ही लोग यही कहेंगे कि जसप्रीत को उन्हीं लोगों ने भगाया है.

यही सोच कर उन्होंने गुरतेज को अपने गांव बुलाया और पतिपत्नी में समझौता करा दिया. गुरतेज जसप्रीत को ले कर गांव आ गया. जसप्रीत ने भी पति से माफी मांगी और वादा किया कि अब वह कभी वैसी गलती नहीं करेगी. पतिपत्नी फिर पहले की ही तरह रहने लगे. जिंदगी की गाड़ी एक बार फिर से पटरी पर दौड़ने लगी.

27 जुलाई, 2017 की रात आम दिनों की तरह गुरतेज और जसप्रीत ने साथसाथ रात का खाना खाया. बेटा पहले ही खाना खा कर सो गया था. खाना खाते ही गुरतेज को बहुत जोर से नींद आ गई तो वह जा कर बैड पर लेट गया. वह पिछले एक सप्ताह से देख रहा था कि खाना खाते ही उसे नींद आ जाती है. लेकिन उस ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

बहरहाल, खाना खा कर वह सो गया. सुबह 4 बजे के करीब उस की आंख खुली तो उसे लगा कि उस का सिर भारीभारी है. वह बिस्तर पर चुपचाप पड़ा रहा. तभी उसे किसी के हंसने और बातें करने की आवाजें सुनाई दीं. उस ने ध्यान लगा कर सुना तो उन की आवाजों के साथ चूडि़यों के खनकने की भी आवाजें आ रही थीं.

अब उस से रहा नहीं गया. वह बैड से उठा. कमरे से बाहर आ कर उस ने जो देखा, उस से उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. गुस्सा और उत्तेजना से उस का पूरा शरीर कांपने लगा. सामने आंगन में बिछी चारपाई पर जसप्रीत एक लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. उस दृश्य ने उसे आकाश की ऊंचाइयों से उठा कर पाताल में झोंक दिया था. वही क्या, उस की जगह कोई भी होता, उस का यही हाल होता.

गुरतेज कमरे में गया और दीवार पर टंगी लाइसेंसी बंदूक उतारी और आंगन में पड़ी चारपाई के पास पहुंच कर उस ने बिना कुछ कहे एक गोली जसप्रीत की छाती में तो दूसरी गोली उस के यार को मार कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया.

पत्नी और उस के प्रेमी को मौत के घाट उतार कर गुरतेज ने यह बात दोनों भाइयों, गुरप्रीत सिंह और जगतार सिंह को बता दी. इस के बाद इधरउधर भागने के बजाय उस ने थाना पुलिस को फोन कर के कहा कि उस ने अपनी पत्नी और उस के प्रेमी को गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया है. पुलिस आ कर उन की लाशें बरामद कर के उसे गिरफ्तार कर ले. वह घर में बैठा पुलिस का इंतजार कर रहा है.

इस के बाद गुरतेज ने अपने छोटे भाई जगतार से नाश्ता बनवाने तथा बेटे को संभालने को कहा. इस के बाद नहाधो कर घर के आंगन में कुरसी डाल कर बैठ कर पुलिस का इंतजार करने लगा.

सचना मिलते ही थाना संगत के थानाप्रभारी इंसपेक्टर परमजीत सिंह एसआई सुरजीत सिंह, हवलदार जसविंदर सिंह, सिपाही राकेश कुमार, तारा सिंह, तेज सिंह, महिला सिपाही चरनजीत कौर और कर्मजीत कौर को साथ ले कर गांव मलीहा पहुंच गए.

गुरतेज आंगन में कुरसी डाले बैठा था. बाहर गांव वालों की भीड़ लगी थी. वहीं चारपाई पर जसप्रीत और उस के प्रेमी की रक्तरंजित निर्वस्त्र लाशें पड़ी थीं. परमजीत सिंह ने लाशों पर चादर डलवा कर सारी काररवाई कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

गुरतेज सिंह उर्फ तेजा को हिरासत में ले कर थाने आ गए. उस के बयान के आधार पर अपराध संख्या 174/2017 पर आईपीसी की धारा 302 और 27 आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. उसी दिन उसे जिला मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस के बाद परमजीत सिंह ने जसप्रीत के साथ मारे गए उस के प्रेमी के बारे में पता किया तो पता चला कि उस का नाम गुरप्रीत सिंह था. वह गांव मिडू खेड़ा के रहने वाले दिलवीर सिंह का बेटा था. वह टैंपो चलाता था. करीब 2 सालों से जसप्रीत कौर से उस के अवैध संबंध थे.

दोनों शादी करना चाहते थे, वे शादी करते, उस के पहले ही गुरतेज ने उन्हें खत्म कर दिया. लेकिन यहां गलती गुरतेज ने भी की. बेशर्म पत्नी और उस के प्रेमी को मार कर उन्हें क्या मिला, वह तो हत्या के आरोप में जेल चले गए. शायद उन्हें सजा भी हो जाए. ऐसे में उन का घर तो बरबाद हुआ ही, बेटा भी अनाथ हो गया.     ?

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंकिता भंडारी मर्डर : बाप की सियासत के बूते बेटे का अपराध – भाग 1

अंकिता भंडारी महज 19 साल की थी. जितनी सुंदर, गोरीचिट्टी, उतनी ही आकर्षक. यौवन की दहलीज पर ग्लैमर और हंसमुख स्वभाव से लबालब. बातचीत में मधुर और आचरण से शालीन. वह जीवन में कुछ कर गुजरने का सपना लिए अपने घर से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर ऋषिकेश 28 अगस्त, 2022 को आई थी. वह पौड़ी गढ़वाल में श्रीकोटा पट्टी नादलस्यू की रहने वाली थी. घर में मांबाप और परिवार के अन्य सदस्य थे.

दरअसल, उसे गंगा भोगपुर स्थित वंतरा रिजौर्ट में 10 हजार रुपए पर रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिली थी. आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे परिवार वालों ने उसे खुशीखुशी घर से भेजा था. वे इस बात से थोड़े आश्वस्त और निश्चिंत थे क्योंकि उस के रहनेठहरने का इंतजाम रिजौर्ट में ही कर्मचारियों के बने कमरे में किया गया था.

अंकिता जल्द ही रिसैप्शनिस्ट का काम सीख गई थी. वहां आने वाले लोगों से बातें करते हुए रिजौर्ट की सुविधाओं के बारे में उन के पूछे गए सवालों के जवाब सलीके से देती थी. साथ ही वहां के सीनियर कर्मचारियों के साथ अनुशासित तरीके से पेश आती थी. सभी का आदर करती थी और वहां के कायदेकानून के बारे में भी जान गई थी.

इसी सिलसिले में उसे मालूम हो गया था कि यह रिजौर्ट किसी बड़े राजनेता का है. इस के मालिक कहने को तो भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश के बड़े नेता और पूर्व मंत्री विनोद आर्य थे, लेकिन वह उन के बेटे पुलकित आर्य की देखरेख में चल रहा था.

उस का रिजौर्ट में अकसर आना होता था. उस के भाई को भी मौजूदा सरकार में राज्यमंत्री का दरजा मिला हुआ था और वह भाजपा में ओबीसी मोर्चे का पदाधिकारी भी था. अंकिता को वहां काम करते हुए एक सप्ताह बीत चुका था. उस के कामकाज पर 2 मैनेजर अंकित गुप्ता और सौरभ भास्कर नजर रखते थे. उन्हें अपने कामकाज की रोजाना रिपोर्ट देनी होती थी और उन के आदेशों का पालन करना होता था.

अंकित गुप्ता उस की हर गतिविधियों पर ध्यान देता था. काम में जरा सी चूक होने पर डांट देता था. सही तरह से काम करने के बारे में समझाते हुए आगे से गलती नहीं होने की हिदायत भी देता था.

वहां आने वाले ग्राहकों से बहुत ही प्यार से बात करने को कहता था. यहां तक कि उस के तीखे बोल या रूखे व्यवहार पर भी उसे कोई वैसी जवाबी प्रतिक्रिया नहीं जतानी थी, जिस से ग्राहक नाराज हो जाए.

अंकिता अपना कामकाज बखूबी निभा रही थी. उसे जब भी समय मिलता था तो वह जम्मू में काम करने वाले अपने फेसबुक फ्रैंड  पुष्पदीप से वाट्सऐप चैटिंग कर लेती थी. उस से फोन पर अकसर बात भी कर लिया करती थी. उसे अपने नए काम के बारे में बताती रहती थी. हर छोटीमोटी जानकारी उसे देती थी.

दोस्त को सारी बातें बता देती थी अंकिता

एक दिन अंकिता पुष्पदीप से चैट कर रही थी तो उस ने दिन में उस के साथ हुई एक घटना और मैनेजर की डांट के बारे में भी लिख दिया. साथ ही यह भी लिखा कि उसे वहां कुछ अच्छा नहीं लग रहा है. जब वाट्सऐप पर ही उस के दोस्त ने पूछा बात क्या है, तब उस ने लिखा, ‘लगता है कि वह यहां आ कर फंस गई है.’

यह बात 17 सितंबर, 2022 की है. चैट में उस के साथ की घटना के बारे में पुष्पदीप के पूछने पर अंकिता ने रिजौर्ट के मैनेजर से ले कर मालिक तक के बारे में लिख दिया. उस में सब से बड़ी बात लिख दी कि रिजौर्ट में गलत काम होता है… उसे भी उस में शामिल करने का दबाव बनाया रहा है.

घटना के बारे में अंकिता ने बताया था कि रिजौर्ट में आए एक गेस्ट ने नशे की हालत में उसे गले से लगा लिया था. इसे ले कर उस ने हंगामा खड़ा कर दिया था. उस से अधिक हंगामा उस के मैनेजर ने गेस्ट से माफी मांगने को ले कर खड़ा कर दिया था.

बाद में रिजौर्ट के मालिक ने गेस्ट से माफी मांगी थी, जबकि मैनेजर अंकित ने इस मामले में अंकिता को चुप रहने की हिदायत दी थी.  अंकिता ने अपने वाट्सऐप चैट में दोस्त को लिखा, ‘अगर मैनेजर अंकित ने इस तरह की दोबारा बात की तब मैं रिजौर्ट में काम नहीं करूंगी. ये लोग चाहते हैं कि मैं प्रोस्टिट्यूट बन जाऊं.’

एक चैट में अंकिता ने लिखा था, ‘आज अंकित मेरे पास आया और मुझ से कहा कि वह उस से कुछ खास बात करना चाहता है. मैं मान गई और अपने रिसैप्शन डेस्क के पास एक कोने में चली गई. वहां उस ने मुझ से पूछा कि क्या तुम एक ऐसे मेहमान को अतिरिक्त सेवाएं देने के लिए तैयार हो, जो 10 हजार रुपए देने को तैयार है. इस पर मैं ने उसे दोटूक कह दिया था कि मैं गरीब हो सकती हूं, लेकिन मैं आप के रिजौर्ट में 10 हजार रुपए के लिए खुद को नहीं बेचूंगी.’

अगले रोज 18 सितंबर की शाम 6 बजे अंकिता की पुष्पदीप से बात हुई थी. उस समय वह फोन पर ही फूटफूट कर रोने लगी थी. रोने के कारण वह अपनी पूरी बात बता नहीं पाई. उस ने सिर्फ इतना कहा कि रात को पूरी बात बताऊंगी.

अंकिता ने दोस्त को यह जरूर बताया कि पुलकित आर्य ने पुलिस को फोन कर उस के खिलाफ शिकायत की है. पुलकित उस के बारे में कह रहा था कि ‘यहां एक अश्लील लड़की है. इस को यहां से ले जाओ.’ शायद, वह उसे डराने के लिए गिरफ्तारी की धमकी दे रहा था. उस पर सैक्स के लिए दबाव बनाया जा रहा था.

उसी 18 सितंबर की रात करीब साढ़े 8 बजे अंकिता का फोन पुष्पदीप के पास आया. उस समय कई गाडि़यों की आवाजें आ रही थीं. आवाज सुन कर दोस्त ने पूछा, ‘कहां हो?’ अंकिता ने कहा, ‘मैं बाहर हूं. सर (पुलकित) ने मुझे कुछ जरूरी बात करने के लिए

बाहर चलने को कहा है.’ उस के बाद फोन कट गया.

पुष्पदीप ने समझा उस के लिए यह कोई नई बात नहीं है. वे लोग शाम के समय में काम के सिलसिले में बराबर बाहर जाते रहते थे. फिर भी अंकिता ने सैक्स के लिए दबाव बनाने की जो बात कही थी, उसे ले कर पुष्पदीप चिंतित हो गया था.

पुष्पदीप हो गया परेशान

अगले दिन जब पुष्पदीप ने अंकिता को फोन किया, तब उस का फोन बंद मिला. फिर उस ने पुलकित को भी फोन किया. उस का भी फोन बंद था. तब उस ने रिजौर्ट के मैनेजर अंकित को फोन किया. उस ने बताया कि वह जिम में है. कुछ समय बाद पुष्पदीप ने रिजौर्ट के रसोइया से बातचीत की, उस ने कहा कि कल (18 सितंबर) से अंकिता को नहीं देखा है.

शराबी की विनाश लीला – भाग 1

शराब पीना अलग बात है और शराबी होना अलग. शराबी जब मनमाफिक शराब पी लेता है तो उसे न तो अच्छेबुरे का ज्ञान रहता है और न रिश्तेनातों का. शराब ने हजारों घर उजाड़े हैं. यही हाल रामभरोसे  का था. दुख की बात यह है कि सजा उस की पत्नी और 4 बेटियों को भोगनी पड़ी.

अगर… श्यामा निरंकारी बालिका इंटर कालेज में रसोइया के पद पर कार्यरत थी. वह छात्राओं के लिए मिड डे मील तैयार करती थी. वह 2 दिन से काम पर नहीं आ रही थी, जिस से छात्राओं को मिड डे मील नहीं मिल पा रहा था. श्यामा शांतिनगर में रहती थी. वह काम पर क्यों नहीं आ रही, इस की जानकारी लेने के लिए कालेज की प्रधानाचार्य ने एक छात्रा प्रीति को उस के घर भेजा. प्रीति श्यामा के पड़ोस में रहती थी और उसे अच्छी तरह जानती थी.

प्रीति सुबह 9 बजे श्यामा देवी के घर पहुंची. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. प्रीति ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला, न ही अंदर कोई हलचल हुई. श्यामा की बेटी प्रियंका प्रीति की सहेली थी, दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. प्रीति ने आवाज दी, ‘‘प्रियंका, ओ प्रियंका दरवाजा खोलो. मुझे मैडम ने भेजा है.’’

प्रीति की काफी कोशिश के बाद भी दरवाजा नहीं खुला, न ही कोई हलचल हुई.

पड़ोस में श्यामा का ससुर रामसागर रहता था. प्रीति ने दरवाजा न खोलने की जानकारी उसे दी तो वह श्यामा के घर आ गया. उस ने दरवाजा पीटा और ‘बहू…बहू’ कह कर आवाज दी. लेकिन दरवाजा नहीं खुला.

रामसागर ने दरवाजे की झिर्री से झांकने की कोशिश की तो अंदर से तेज बदबू आई. इस से उसे लगा कि जरूर कोई गंभीर बात है. उस ने घबरा कर पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने उसे पुलिस में सूचना देने की सलाह दी. यह 1 फरवरी, 2020 की बात है.

सुबह 10 बजे रामसागर बदहवास सा फतेहपुर सदर कोतवाली पहुंचा. कोतवाल रवींद्र कुमार श्रीवास्तव कोतवाली में ही थे. उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति को बदहवास हालत में देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है, इतने घबराए हुए क्यों हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम रामसागर है. मैं शांतिनगर में रहता हूं. पड़ोस में मेरा बेटा रामभरोसे अपनी पत्नी श्यामा और 4 बेटियों के साथ रहता है. उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद है और भीतर से तेज दुर्गंध आ रही है. मुझे किसी अनिष्ट की आशंका हो रही है. आप मेरे साथ चलें.’’

रामसागर ने जो कुछ बताया, गंभीर था. थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने पुलिस टीम साथ ली और रामसागर के साथ रामभरोसे के घर पहुंच गए. उस समय वहां पड़ोसियों का जमघट लगा था. लोग दबी जुबान से कयास लगा रहे थे.

थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव लोगों को परे हटा कर दरवाजे पर पहुंचे. दरवाजा अंदर से बंद था, उन्होंने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे. घर के अंदर मां और उस की 4 बेटियां थीं. अंदर से दुर्गंध आ रही थी. निस्संदेह कोई गंभीर बात थी. थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने इस मामले की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी.

जानकारी मिलने पर एसपी प्रशांत वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा मौके पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने पहले जानकारी जुटाई, फिर थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव को कमरे का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया. रवींद्र कुमार ने अपनी पुलिस टीम की मदद से दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तेज दुर्गंध का भभका निकला.

पुलिस अधिकारियों ने घर के अंदर जा कर देखा तो उन का दिल कांप उठा. वहां का दृश्य बड़ा वीभत्स था. फर्श पर आड़ीतिरछी 5 लाशें एकदूसरे के ऊपर पड़ी थीं. मृतकों की पहचान रामसागर ने की. उस ने बताया कि मृतकों में एक उस की बहू श्यामा है, 4 उस की नातिन पिंकी (20 वर्ष), प्रियंका (14 वर्ष), वर्षा (13 वर्ष) और रूबी उर्फ ननकी (10 वर्ष) हैं.

सभी लाशें फर्श पर पड़ी थीं. देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे सभी ने जहरीला पदार्थ पी कर आत्महत्या की थी. क्योंकि लाशों के पास ही एक भगौना रखा था, जिस में कोई जहरीला पदार्थ आटे में घोला गया था. संभवत: उसी पदार्थ को पी कर मां तथा बेटियों ने आत्महत्या की थी.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की जांच हेतु फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच की तो पता चला कि उन लोगों ने जहरीला पदार्थ (क्विक फास) पी कर जान दी थी. घर से क्विक फास के 7 पैकेट मिले, 4 खाली 3 भरे हुए.

फोरैंसिक टीम ने जहरीले पदार्थ के सातों पैकेट जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिए. भगौना तथा उस में घोला गया जहरीला पदार्थ भी जांच के लिए रख लिया गया.

श्यामा और उस की 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबर जिस ने भी सुनी, वही स्तब्ध रह गया. इस दुखद घटना की खबर जब निरंकारी बालिका इंटर कालेज पहुंची तो वहां शोक की लहर दौड़ गई. प्रधानाचार्य ने कालेज की छुट्टी कर दी. छुट्टी के बाद 20-25 छात्राएं शांतिनगर स्थित मृतकों के घर पहुंची. दरअसल, मृतका प्रियंका, रूबी और वर्षा निरंकारी बालिका इंटर कालेज में ही पढ़ती थीं.

जांचपड़ताल के बाद पुलिस अधिकारी इस नतीजे पर पहुंचे कि श्यामा ने आर्थिक तंगी और शराबी पति की क्रूरता से तंग आ कर बेटियों सहित आत्महत्या की है. हत्या जैसी कोई बात नहीं थी. पुलिस अधिकारियों ने पांचों शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घर में 5 लाशें पड़ी हुई थीं, इतना कुछ हो गया था, लेकिन घर के मुखिया रामभरोसे का कुछ अतापता नहीं था. पुलिस अधिकारियों ने उस के संबंध में पिता रामसागर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रामभरोसे शराबी है. वह दिन भर मजदूरी करता है और शाम को शराब के ठेके पर जा कर शराब पीता है. उस की तलाश ढाबों व शराब ठेकों पर की जाए तो वह मिल सकता है.

उधार की बीवी बनी चेयरमैन : रहमत ने नसीम को ठगा – भाग 1

5 अगस्त, 2018 को एक डेली न्यूजपेपर में एक खबर प्रमुखता से छपी, जिस की हैडलाइन ऐसी थी जिस पर जिस की भी नजर गई, उस ने जरूर पढ़ी. न्यूज कुछ इस तरह से थी— ‘भरोसे पर दोस्त ने दोस्त को पत्नी उधार दी थी, चेयरमैन बन गई तो वापस नहीं किया.’

इस न्यूज में उधार में दी गई बीवी वाली बात पढ़ने वाला हर आदमी हैरत में था. इस हैडलाइन की न्यूज में यह भी शामिल था कि महिला के पति की ओर से बीवी को वापस दिलाने के लिए अदालत में अर्जी लगाई गई है.

इस न्यूज के हिसाब से एक शादीशुदा व्यक्ति को अपनी बीवी को नेता बनाने का ऐसा खुमार चढ़ा कि उस ने पत्नी को सियासी गलियारों में उतारने के लिए यह सोच कर बीवी अपने दोस्त को उधार दे दी कि वह उसे चुनाव लड़ाएगा.

यह संयोग ही था कि उस की बीवी चुनाव जीतने के बाद चेयरमैन बन गई. लेकिन चेयरमैन बनने के बाद पत्नी ने पति को भुला दिया. शर्त के मुताबिक चुनाव जीतने के बाद महिला के पति ने दोस्त से बीवी लौटाने को कहा तो दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. यहां तक कि दोस्त ने महिला के पति को पहचानने तक से इनकार कर दिया. इस पर मामला गरमा गया. नतीजा यह हुआ कि जो बात अभी तक 3 लोगों के बीच थी, वह सार्वजनिक हो गई.

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के थाना कुंडा, जसपुर के थाना क्षेत्र में एक गांव है बावरखेड़ा. नसीम अंसारी का परिवार इसी गांव में रहता है. नसीम के अनुसार, मुरादाबाद जिले के भोजपुर निवासी पूर्व नगर अध्यक्ष शफी अहमद के साथ उस की काफी समय से अच्छी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के नाते शफी अहमद का उस के घर आनाजाना था. कुछ महीने पहले शफी ने उसे विश्वास में ले कर उस की पत्नी रहमत जहां को भोजपुर से चेयरमैन का चनुव लड़ाने की बात कही.

शफी अहमद ने नसीम को बताया कि इस बार चेयरमैन की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. जबकि वह सामान्य जाति के अंतर्गत आने के कारण अपनी बीवी को चुनाव नहीं लड़ा सकता. नसीम अपने दोस्त के झांसे में आ गया और उस ने दोस्त की मजबूरी समझते हुए चुनाव लड़ाने के लिए अपनी बीवी उस के हवाले कर दी.

लेकिन दूसरे की बीवी को चुनाव लड़ाना इतना आसान काम नहीं था. यह बात नसीम ही नहीं, नसीम की बीवी रहमत जहां भी जानती थी. इस के लिए सब से पहले रहमत जहां का कानूनन शफी अहमद की बीवी बनना जरूरी था. शफी की बीवी का दरजा मिलने के बाद ही वह चुनाव लड़ने की हकदार होती.

चुनाव के लिए इशरत बनी शमी की पत्नी

चुनाव लड़ने में आ रही अड़चन को दूर करने के लिए दोनों दोस्तों और रहमत जहां ने साथ बैठ कर गुप्त रूप से समझौता किया. उसी समझौते के तहत शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद शफी अहमद ने अपने पद और रसूख के बल पर जल्दी ही सरकारी कागजातों में रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शा कर उस का आईडी कार्ड और आधार कार्ड बनवा दिया. रहमत जहां का आधार कार्ड बनते ही उस ने चुनाव की अगली प्रक्रिया शुरू कर दी.

इस से पहले सन 2012 से 2017 तक भोजपुर के चेयरमैन की कुरसी पर शफी अहमद का ही कब्जा रहा था. शफी को पूरा विश्वास था कि इस बार भी जनता उन्हीं का साथ देगी. लेकिन इस बार आरक्षण के कारण शफी को सपा से टिकट नहीं मिल पाया. वजह यह थी कि इस बार भोजपुर चेयरमैन की सीट पिछड़े वर्ग की महिला के लिए आरक्षित कर दी गई थी.

शफी अहमद सामान्य वर्ग में आते थे. इस समस्या से निपटने के लिए शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर के उसे कानूनन अपनी बीवी बना कर निर्दलीय चुनाव लड़वाया. शफी के पुराने रिकौर्ड और रसूख की वजह से रहमत जहां चुनाव जीत गई. उस ने अपनी प्रतिद्वंदी परवेज जहां को 117 वोटों से हरा कर जीत हासिल की थी.

रहमत जहां को चेयरमैन बने हुए अभी 8 महीने ही हुए थे कि नसीम अंसारी ने अपनी बीवी रहमत जहां को वापस ले जाने के लिए शफी अहमद से बात की तो बात बढ़ गई. शफी ने इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए नसीम से कहा कि वह स्वयं ही रहमत जहां से बात करे.

नसीम ने जब इस बारे में रहमत जहां से बात की तो उस ने साफ कह दिया कि तुम से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. मैं ने शफी अहमद से कोर्टमैरिज की है. वही मेरे कानूनन पति हैं. मैं तुम्हें नहीं जानती.

रहमत जहां की बात सुन कर नसीम स्तब्ध रह गया. उस ने बच्चों का वास्ता दे कर रहमत से ऐसा न करने को कहा, लेकिन उस ने उस के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया.

नसीम ने वापस मांगी बीवी

इस पर नसीम ने फिर से शफी अहमद से बात की और अपनी बीवी वापस मांगी, लेकिन उस ने रहमत जहां को देने से साफ मना कर दिया. शफी अहमद का कहना था कि उस ने रहमत के साथ निकाह किया है और वह कानूनन उस की बीवी है. उसे जो करना है करे, वह रहमत को वापस नहीं देगा.

उस के बाद नसीम के पास एक ही रास्ता था कि वह अदालत की शरण में जाए. उस ने जसपुर के अधिवक्ता मनुज चौधरी के माध्यम से जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र दिया, जिस में कहा गया कि शफी अहमद ने उस की बीवी से जबरन निकाह कर लिया.

नसीम अंसारी ने अदालत में जो प्रार्थनापत्र दिया, उस में कहा कि वर्ष 2006 में उस का निकाह सरबरखेड़ा निवासी दादू की बेटी रहमत जहां के साथ हुआ था, जिस से उस का एक बेटा और एक बेटी हैं.

17 नवंबर, 2017 की रात 10 बजे शफी अहमद, नईम चौधरी, मतलूब, जिले हसन निवासी भोजपुर, उस के घर आए. उन लोग ने मेरी कनपटी पर तमंचा रखा और मेरी पत्नी को कार में डाल कर ले गए. बाद में शफी अहमद ने उस की बीवी के साथ जबरन निकाह कर लिया. उस के कुछ समय बाद कुछ लोग कार से फिर उस के घर आए और उस के दोनों बच्चों को उठा ले गए.