अक्षम्य अपराध : कृष्णा को बनाया शिकार – भाग 2

उन्होंने गांव वालों की उपस्थिति में मिट्टी हटाई तो अंदर उन के बेटे कृष्णा की ही लाश निकली. लाश देखते ही वे लोग भी आश्चर्य में पड़ गए.

कुछ देर बाद सत्येंद्र ने थाना रसूलपुर पुलिस को अपने लापता बच्चे की लाश पाए जाने की सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय एसआई सविता सेंगर, कांस्टेबल कन्हैयालाल, अक्षय कुमार, वंदना कुमारी व रचना को साथ ले कर गांव बड़ा लालपुर के लिए रवाना हो गए. रवाना होने से पहले उन्होंने इस संबंध में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था.

जिस समय थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय बड़ा लालपुर दुर्गामाता मंदिर के पास पहुंचे, उस समय वहां लोगों की भारी भीड़ जुटी थी. वह उस जगह पहुंचे, जहां मासूम बालक लौकिक उर्फ कृष्णा का शव पड़ा था.

बच्चे का शव देख कर उन्हें आशंका हुई कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या 2 दिन पहले ही कर दी गई थी. यानी जिस दिन कृष्णा का अपहरण किया गया उसी दिन उसे मार दिया गया. शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं थे, जिस से स्पष्ट था कि उस की हत्या तंत्रमंत्र के चलते नहीं की गई थी.

थानाप्रभारी अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी सचींद्र पटेल, एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार, एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह तथा सीओ (सिटी) इंदुप्रभा घटनास्थल पर आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने मृत बच्चे के मातापिता से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया कि जल्द ही हत्यारा पुलिस की गिरफ्त में होगा.

निरीक्षण के दौरान एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने पाया कि जिस जगह बच्चे का शव दफन था, उसी के पास एक 2 मंजिला मकान था. उन के मन में शक पैदा हुआ तो उन्होंने उस मकान के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह मकान कृष्णा के ताऊ महेश कुमार का ही है.

डौग स्क्वायड टीम ने भी जांच शुरू की. खोजी कुतिया को घटनास्थल पर छोड़ा गया तो वह कृष्णा के शव को सूंघ कर महेश के मकान की ओर भागी. मकान की दूसरी मंजिल पर पहुंच कर कुतिया एक कमरे में जा कर भौंकने लगी.

टीम के सदस्यों ने कमरे की जांच की तो वहां उन्हें मानव सड़ांध महसूस हुई. टीम के सदस्यों को समझते देर नहीं लगी कि बालक कृष्णा की हत्या इसी कमरे में की गई फिर जब लाश से बदबू आने लगी तो लाश दफन कर दी गई.

डौग स्क्वायड टीम ने अपनी जांच से पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया तो वे चौंके. एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह व सीओ इंदुप्रभा ने मकान मालिक महेश यादव से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मकान में वह अपनी पत्नी नीतू यादव तथा बेटे भानु के साथ रहता है.

उस की 10 वर्षीय बेटी गार्गी की 3 सितंबर को संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी. बड़ी बेटी रितु हरिद्वार में पढ़ती है. जमालपुर में हमारा शराब ठेका है. उसी ठेके पर हम तीनों भाई काम करते हैं. महेश कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘सर, आप लोग मुझ से यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारे भतीजे कृष्णा की हत्या तुम्हारे मकान में ही की गई थी.’’ एसपी (सिटी) ने कहा.

‘‘सर, यह आप क्या कह रहे हैं?’’ महेश बुरी तरह चौंका.

‘‘हम बिलकुल सही कह रहे हैं, इसलिए तुम्हें और तुम्हारी पत्नी नीतू को थाने चलना होगा. वहां सब स्पष्ट हो जाएगा.’’

इस के बाद पुलिस ने महेश व उस की पत्नी नीतू को हिरासत में ले लिया और महेश के मकान को सील बंद कर दिया ताकि कोई सबूतों से छेड़छाड़ न कर सके.

पुलिस ने कृष्णा के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उपद्रव की आशंका को देखते हुए अधिकारियों ने गांव में फोर्स भी तैनात कर दी.

पुलिस ने महेश तथा उस की पत्नी नीतू से दिन भर पूछताछ की लेकिन दोनों टस से मस नहीं हुए. महेश ने बताया कि कृष्णा उस का भतीजा था. वह उसे बेहद प्यार करता था. उसे कंधों पर बिठा कर खूब घुमाया था. उस की हत्या के बाबत वह सपने में भी नहीं सोच सकता.

मैं उस रोज ठेके पर ही था. साथ में सत्येंद्र और कुलदीप भी थे. आप उन दोनों से ही पूछ लीजिए. कृष्णा के लापता होने की खबर मिलने के बाद हम तीनों घर आ गए थे.

महेश के बयान से पुलिस अधिकारियों को लगा कि यदि वह सच बोल रहा है तो कातिल उस की पत्नी नीतू है. सीओ इंदुप्रभा ने नीतू से सख्ती से पूछताछ की.

कड़ी पूछताछ में नीतू टूट गई और उस ने मासूम बच्चे लौकिक उर्फ कृष्णा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि देवरानी शशि द्वारा ताने मारे जाने से वह गुस्से से भर गई थी, फिर गुस्से में ही उस ने कृष्णा की हत्या कर दी थी. हत्या की जानकारी उस के पति महेश को नहीं थी. नीतू द्वारा जुर्म स्वीकार करने के बाद पुलिस ने महेश को थाने से घर भेज दिया.

नीतू ने जुर्म कबूला तो एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह व सीओ इंद्रप्रभा ने थाना रसूलपुर में संयुक्त प्रैस कौन्फ्रैंस की. पुलिस ने हत्यारोपी नीतू यादव को मीडिया के समक्ष पेश कर मासूम बच्चे लौकिक उर्फ कृष्णा की हत्या का खुलासा कर दिया.

चूंकि नीतू ने लौकिक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने भादंवि की धारा 363, 302, 201 के तहत नीतू यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. पुलिस जांच में विवेकशून्य ताई के अक्षम्य अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना रसूलपुर के क्षेत्र में एक गांव है बड़ा लालपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में महेश कुमार, सत्येंद्र कुमार तथा कुलदीप 3 भाई रहते थे.

भाइयों में सब से बड़ा महेश था. पढ़लिख कर जब वह जवान हुआ तो उस ने घर की माली हालत सुधारने के लिए प्रयास तेज कर दिए. वह तेज दिमाग का था. वह कोई ऐसा धंधा करना चाहता था, जिस में आमदनी अच्छी हो. उस ने इस बारे अपने मित्रों से सलाहमशविरा किया तो उन्होंने शराब ठेका चलाने की सलाह दी.

पर शराब का ठेका मिलना आसान नहीं था. ठेका बोली में अच्छीखासी पूंजी भी लगानी थी. लेकिन महेश ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने ठान लिया कि वह ठेका हासिल कर के ही दम लेगा.

महेश ने एक ओर पूंजी जुटाई तो दूसरी ओर आबकारी विभाग के अधिकारियों से संपर्क बनाया. पूरी गोटियां बिछाने के बाद आखिर नीलामी में उसे शराब का ठेका मिल ही गया.

महेश ने अपने गांव से कुछ दूरी पर जमालपुर में शराब बिक्री का काम शुरू किया. गांव में देशी शराब की बिक्री खूब होती है, अत: महेश के ठेके पर भी खूब बिक्री होने लगी. महेश ने अपने भाई सत्येंद्र व कुलदीप को भी ठेके के काम पर लगा लिया था. सत्येंद्र ठेके पर सेल्समैन के रूप में काम करता था. कुलदीप कभी काउंटर पर बैठता था तो कभी अन्य व्यवस्थाएं देखता था.

प्यार में जहर का इंजेक्शन – भाग 3

सविता अनीश की बीवी से मिली और उसे अपने और अनीश के प्रेमसंबंधों के बारे में बता दिया. यही नहीं, उस ने अनीश के साथ के अपने कुछ फोटो भी उसे दिखा दिए. फोटो देख कर अनीश की पत्नी को बहुत गुस्सा आया. शाम को उस ने अनीश से पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया.

चूंकि वह सविता के साथ उस के फोटो देख चुकी थी, इसलिए वह उस पर भड़क उठी. दोनों के बीच जम कर नोकझोंक हुई. इस का नतीजा यह निकला कि अनीश की नवविवाहिता उसे छोड़ कर मायके चली गई. वह आज तक लौट कर ससुराल नहीं आई है.

अनीश की पत्नी के चली जाने से सविता बहुत खुश हुई, क्योंकि उस के और अनीश के बीच जो दीवार खड़ी हो गई थी, वह गिर चुकी थी. लिहाजा दोनों के बीच फिर पहले की तरह संबंध हो गए. पर ये संबंध ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सके. सविता के पिता की हालत दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी. उन की इच्छा थी कि अपने जीतेजी वह सविता के हाथ पीले कर दें.

किसी रिश्तेदार से उन्हें रवि कुमार के बारे में पता चला. रवि कुमार उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के कुआंगई गांव के रहने वाले प्रमोद कुमार का बेटा था. प्रमोद कुमार सेना से रिटायर होने के बाद कानपुर की किसी कंपनी में नौकरी कर रहे थे. रवि कुमार दिल्ली के सदर बाजार स्थित कोटक महिंद्रा बैंक में कैशियर था.

लड़की लड़का पसंद आने के बाद सुरेशचंद्र और प्रमोद कुमार ने बातचीत कर के 13 जुलाई, 2016 को सामाजिक रीतिरिवाज से उन की शादी कर दी. हालांकि सविता अनीश से ही शादी करना चाहती थी, लेकिन रिश्ता तय होने के बाद पिता की भावनाओं को ठेस पहुंचाना उस ने उचित नहीं समझा. शादी के बाद वह मैनपुरी स्थित अपनी ससुराल चली गई.

शादी के बाद सविता ने अनीश से संबंध खत्म कर लिए और पूरी तरह से ससुराल में रम गई. उस की शादी हो जाने से अनीश जल बिन मछली की तरह तड़पने लगा. सविता की वजह से ही उस की बसीबसाई गृहस्थी उजड़ी थी और अब वही उसे धोखा दे कर चली गई थी. इस का उसे बड़ा दुख हुआ.

अनीश ने सविता से बात की तो उस ने उसे अपनी मजबूरी बता दी. उस ने पति के बारे में सब कुछ बता कर वाट्सएप से उस का फोटो भी भेज दिया. जबकि वह उस की एक भी बात सुनने को तैयार नहीं था. उस ने सविता पर पति से तलाक लेने का दबाव बनाया, लेकिन वह तैयार नहीं हुई. कुल मिला कर किसी भी तरह से वह पति को छोड़ने को तैयार नहीं थी.

अनीश तो सविता के प्यार में जैसे पागल था. उस के बिना हर चीज उसे बेकार लगती थी. उस ने सदर बाजार जा कर एक बार रवि कुमार से मुलाकात भी की. उस ने उसे अपने और सविता के प्यार के बारे में बता भी दिया. इस पर रवि ने उस से कहा कि सविता शादी से पहले क्या करती थी, इस से उसे कोई मतलब नहीं है. वह उस के अतीत को नहीं जानना चाहता, अब वह उस की पत्नी है और अपनी जिम्मेदारियां ठीक से निभा रही है.

अनीश को रवि कुमार की बातों पर हैरानी हुई. वह सोचने लगा कि यह कैसा आदमी है, जो पत्नी की सच्चाई जान कर भी चुप है. बहरहाल निराश हो कर वह घर लौट आया. कहते हैं, जिम करने से ब्रेकअप का दर्द कम हो जाता है, पर अनीश तो खुद जिम टे्रनर था. इस के बावजूद वह सविता से बिछुड़ने की पीड़ा नहीं भुला पा रहा था. वह सविता को पाने के उपाय खोजने लगा.

ऐसे में ही उस के दिमाग में आइडिया आया कि अगर वह रवि की हत्या करा दे तो सविता उसे मिल सकती है. यही उसे उचित लगा. वह रवि को ठिकाने लगाने का ऐसा उपाय खोजने लगा, जिस से उस पर कोई आंच न आए. वह तरीका कौन सा हो सकता है, इस के लिए वह इंटरनेट पर सर्च करने लगा. उस ने तमाम तरीके देखे, पर हर तरीके में बाद में कातिल पकड़ा गया था.

वह ऐसे तरीके की तलाश में था, जिस में कातिल पकड़ा न गया हो. इंटरनेट पर महीनों की सर्च के बाद आखिर उसे वह तरीका मिल गया. लंदन और जर्मनी में 2 हत्याएं हुई थीं, जो पिन चुभो कर की गई थीं. पिन द्वारा जहर उन के शरीर में पहुंचाया गया था और वे मर गए थे. ठीक इसी तरह शीतयुद्ध के दौरान बुल्गारिया के रहने वाले बीबीसी के पत्रकार जर्जेई मर्कोव की हत्या की गई थी.

मर्कोव कम्युनिस्टों की निगाह में था. उन्होंने उसे मारने का फतवा भी जारी किया था. मर्कोव बस में जा रहा था, तभी एक हट्टेकट्टे आदमी ने एक छाता उस के ऊपर गिरा दिया था. इस के लिए उस आदमी ने मर्कोव से सौरी भी कहा था. मर्कोव ने भी सोचा कि छाता गलती से गिर गया होगा. लिहाजा उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया.

मर्कोव की जांघ में कुछ चुभा था, जहां उस ने हाथ से मसला भी था. 3 दिनों बाद उसे बहुत तेज बुखार आया और वह मर गया. यह बात सन 1978 की थी. जेम्स बौंड स्टाइल में उस छाते के पिन में रिसिन जहर लगाया गया था. रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ने इसे ईजाद किया था.

इस मामले में कोई पकड़ा नहीं जा सका था. इटली के जासूस पिकोडिली पर आरोप लगा था, पर कुछ साबित नहीं हो पाया था. मर्कोव खुद भी एक कैमिकल इंजीनियर था. अनीश को यह तरीका सब से अच्छा लगा.

इस के बाद वह ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा, जो उस का यह काम कर सके. वह जहर कहां से लाए, यह भी उस के लिए समस्या थी. इस के लिए वह किसी डाक्टर की तलाश करने लगा, क्योंकि पढ़ाई के दौरान डाक्टरों को जहर के बारे में भी पढ़ाया जाता है. कोई डाक्टर उस का यह काम करने को तैयार हो जाएगा, इस बात का शंशय उस के मन में था. अनीश का एक दोस्त था डा. प्रेम सिंह. वह फिजियोथैरेपिस्ट था. प्रेम सिंह जालौन का रहने वाला था. करीब 4 साल पहले वह दिल्ली आया था. गाजियाबाद के एक इंस्टीट्यूट से फिजियोथैरेपिस्ट का कोर्स करने के बाद द्वारका के पालम विहार में उस ने अपना क्लीनिक खोला था, पर उस का काम ज्यादा अच्छा नहीं चल रहा था.

बहन के सुहाग पर कब्जा : बबीता ने डाला बबली के सुहाग पर डाका – भाग 2

बबली के बयानों के आधार पर पुलिस ने शिवम को चकेरी से गिरफ्तार कर लिया. शिवम चकेरी में कमरा ले कर रह रहा था और पढ़ाई तथा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. थाने में भाभी बबली को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. फिर उस ने भी हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

शिवम ने बताया कि बबली भाभी व उस के बीच प्रेम संबंध थे. भाभी उस से मिलने चकेरी आती थी. किसी तरह बबीता को यह बात पता लग गई थी तो वह शिकायत दिलीप भैया से कर देती थी.

फिर दिलीप भैया हम दोनों को पीटते थे. इसी खुन्नस में हम दोनों ने गला घोट कर बबीता को मार डाला. शिवम ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी पुलिस को बरामद करा दी जो उस ने झाडि़यों में फेंक दी थी.

चूंकि बबीता की हत्या की वजह साफ हो गई थी, इसलिए थानाप्रभारी ललितमणि त्रिपाठी ने दहेज हत्या की रिपोर्ट को खारिज कर बबली व शिवम के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली और दोनों को गिरफ्तार कर सिपाही दिलीप व उस के मातापिता को क्लीन चिट दे दी.

पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपियों के बयानों और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर नाजायज रिश्तों एवं सौतिया डाह की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली-

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का एक छोटा सा गांव है रूपापुर. इसी गांव में डा. बृजपाल सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां बबली और बबीता थीं. बृजपाल सिंह गांव के सम्मानित व्यक्ति थे. वह डाक्टरी पेशे से जुड़े थे. उन के पास उपजाऊ जमीन भी थी. कुल मिला कर वह हर तरह से साधनसंपन्न और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे.

उन्होंने बड़ी बेटी बबली की शादी फर्रुखाबाद जिले के गंज (फतेहगढ़) निवासी सोनेलाल के बेटे दिलीप कुमार के साथ तय कर दी. दिलीप कुमार उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही था. सोनेलाल भी उत्तर प्रदेश पुलिस में एसआई थे. उन का छोटा बेटा शिवम पढ़ रहा था. सोनेलाल का परिवार भी खुशहाल था.

दोनों ही परिवार पढ़ेलिखे थे, इसलिए सगाई से पहले ही परिजनों ने एकांत में बबली और दिलीप की मुलाकात करा दी थी. क्योंकि जिंदगी भर दोनों को साथ रहना है तो वे पहले ही एकदूसरे को देखसमझ लें. दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया तो 11 दिसंबर, 2012 को सामाजिक रीतिरिवाज से दोनों की शादी हो गई.

शादी के बाद बबली कुछ महीने ससुराल में रही फिर दिलीप को कानपुर के कैंट थाने में क्वार्टर मिल गया. क्वार्टर आवंटित होने के बाद दिलीप अपनी पत्नी को भी गांव से ले आया. वहां दोनों हंसीखुशी से जिंदगी व्यतीत करने लगे.

दिलीप जब ससुराल जाता तो उस की निगाहें अपनी खूबसूरत साली बबीता पर ही टिकी रहती थीं. वह महसूस करने लगा कि बबली से शादी कर के उस ने गलती की. उस की शादी तो बबीता से होनी चाहिए थी. ऐसा नहीं था कि बबली में किसी तरह की कमी थी. वह सुंदर, सुशील के साथ घर के सभी कामों में दक्ष थी.

लेकिन बबीता अपनी बड़ी बहन से ज्यादा सुंदर और चंचल थी, इसलिए दिलीप का मन साली पर इतना डोल गया कि उस ने फैसला कर लिया कि वह बबीता को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उस से दूसरा विवाह करने की कोशिश करेगा.

रिश्ता जीजासाली का था सो दिलीप और बबीता के बीच हंसीमजाक होता रहता था. एक दिन दिलीप ससुराल में सोफे पर बैठा था तभी बबीता उसी के पास सोफे पर बैठ कर उस की शादी का एलबम देखने लगी. दोनों के बीच बातों के साथ हंसीमजाक हो रहा था. अचानक दिलीप ने एलबम में लगे एक फोटो की ओर संकेत किया, ‘‘देखो बबीता, मेरे बुरे वक्त में कितने लोग साथ खड़े हैं.’’

बबीता ने गौर से उस फोटो को देखा, जिस में दिलीप दूल्हा बना हुआ था और कई लोग उस के साथ खड़े थे. फिर वह खिलखिला कर हंसने लगी, ‘‘शादी और आप का बुरा वक्त. जीजाजी, बहुत अच्छा मजाक कर लेते हैं आप.’’

‘‘बबीता, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं सच बोल रहा हूं.’’ चौंकन्नी निगाहों से इधरउधर देखने के बाद दिलीप फुसफुसा कर बोला, ‘‘बबली से शादी कर के मैं तो फंस गया यार.’’

‘‘पापा ने दहेज में न कोई कसर छोड़ी है और न दीदी में किसी तरह की कमी है.’’ हंसतेहंसते बबीता गंभीर हो गई, ‘‘फिर आप दिल दुखाने वाली ऐसी बात क्यों कर रहे हैं.’’

‘‘बबली को जीवनसाथी चुन कर मैं ने गलती की थी.’’ कह कर दिलीप बबीता की आंखों में देखने लगा फिर बोला, ‘‘सच कहूं, मेरी पत्नी के काबिल तो तुम थी.’’

गंभीरता का मुखौटा उतार कर बबीता फिर खिलखिलाने लगी, ‘‘जीजाजी, आप भी खूब हैं.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ. अगर बबली से मेरा रिश्ता न हुआ होता और मैं तुम्हें प्रपोज करता तो क्या तुम मुझ से शादी करने को राजी हो जाती.’’ कह कर दिलीप ने उस के मन की टोह लेनी चाही.

बबीता से कोई जवाब देते न बना, वह गहरी सोच में डूब गई.

‘‘सच बोलूं?’’ बबीता ने कहा, ‘‘आप बुरा तो नहीं मानेंगे.’’

दिलीप का दिल डूबने सा लगा, ‘‘बिलकुल नहीं, लेकिन सच बोलना.’’

‘‘सच ही बोलूंगी जीजाजी,’’ शर्म से बबीता के गालों पर गुलाबी छा गई, ‘‘और सच यह है कि मैं आप से शादी करने को फौरन राजी हो जाती.’’

यह सुन कर दिलीप का दिल बल्लियों उछलने लगा किंतु मन में एक संशय भी था, सो उस ने तुरंत पूछ लिया, ‘‘कहीं मेरा मन रखने के लिए तो तुम यह जवाब नहीं दे रही.’’

‘‘हरगिज नहीं, बहुत सोचसमझ कर ही मैं ने आप को यह जवाब दिया है.’’ बबीता आहिस्ता से निगाहें उठा कर बोली, ‘‘आप हैं ही इतने हैंडसम और स्मार्ट कि किसी भी लड़की के आइडियल हो सकते हैं.’’

‘माया’ जाल में फंसा पति – भाग 3

‘‘सर, मेरे भाई के बाए हाथ के पंजे में अंगूठा नहीं था. इस कंकाल के भी बाएं हाथ में सिर्फ चार अंगुलियों की हड्डियां हैं. अंगूठे की हड्डी गायब है. मेरे भाई के बाएं हाथ का अंगूठा एक दुर्घटना में पूरी तरह कट गया था.’’

फूलचंद ने विश्वास का कारण बताया तो इंसपेक्टर पाठक को भी लगा कि संभव है, कंकाल फूलचंद के भाई शिवलोचन का ही हो. वजह यह थी कि शिवलोचन काफी दिनों से गायब था. लेकिन कंकाल शिवलोचन का ही है, इस की वैज्ञानिक रूप से पुष्टि डीएनए टेस्ट होने पर ही हो सकती थी.

पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा के आदेश पर पुलिस ने नरकंकाल का पंचनामा भरवा कर उसे डीएनए टेस्ट के लिए भिजवाने की औपचारिकता पूरी की. डीएनए मिलान के लिए फोरेंसिक टीम के डाक्टरों ने शिवलोचन की मां चुनकी देवी का ब्लड सैंपल ले लिया.

पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा ने सीओ शिववचन सिंह को निर्देश दिया कि वह चुनकी देवी और उन के बेटे फूलचंद से शिवलोचन के गायब होने की शिकायत ले कर मुकदमा दर्ज करें. साथ ही शिवलोचन की लापता पत्नी माया और उस के दोनों बच्चों का भी पता लगाए.

पहाड़ी थाने के प्रभारी इंसपेक्टर अरुण पाठक ने शुरू में इस मामले को जितने सहज ढंग से लिया था, केस उतना ही पेचीदा निकला. यह जानकर उन्हें और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ कि 2 महीने पहले माया अपने बच्चों को मां के पास छोड़ कर कहीं चली गई थी.

इंसपेक्टर अरुण पाठक ने शिवलोचन और माया के संबंधों के बारे में गहराई से पता लगाने के लिए गांव के लोगों और शिवलोचन के परिवार के सभी सदस्यों से एकएक कर के पूछताछ करनी शुरू कर दी. उन लोगों से मिली जानकारी के बाद यह साफ हो गया कि शिवलोचन के घर में जो नरकंकाल मिला वह शिवलोचन का ही है.

शिवलोचन के घर वालों और लोहदा गांव के लोगों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अरुण पाठक की समझ मेंआ गया कि शिवलोचन के रहस्यमय ढंग से गायब होने और उस की पत्नी के लापता हो जाने के पीछे क्या राज है.

अरुण पाठक ने फूलचंद से तहरीर ले कर 7 जुलाई की रात को ही पहाड़ी थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत शिवलोचन की पत्नी माया और लोहदा गांव के टुल्लू लोध, जिसे रज्जन भी कहते थे, के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा के निर्देश पर एसएचओ अरुण पाठक ने मुकदमे की जांच का काम खुद ही शुरू कर दिया. सहयोग के लिए उन्होंने एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में सिपाही मुकद्दर सिंह, वीरेंद्र सिंह, रामअजोर सरोज और महिला सिपाही रुचि सिंह को शामिल किया गया.

पुलिस अधीक्षक के आदेश पर क्राइम व साइबर सेल की टीम भी थाना पहाड़ी पुलिस की मदद में लग गई. थानाप्रभारी अरुण पाठक ने सब से पहले टुल्लू लोध उर्फ रज्जन के पिता लिसुरवा और भाई लल्लन को हिरासत में ले कर उन से यह जानने का प्रयास किया कि टुल्लू इन दिनों कहां है.

पूछताछ में पता चला कि वह मुंबई में है. पुलिस ने जब कड़ी पूछताछ की तो उस के घर वालों ने टुल्लू का मोबाइल नंबर भी दे दिया. अरुण पाठक ने टुल्लू तक पहुंचने के लिए उस के पिता की उस से बात कराई.

बात से पहले ही मोबाइल फोन का स्पीकर औन करवा दिया गया था. उन्होंने लिसुरवा को हिदायत दे दी थी कि वह सामान्य ढंग से बात करे और टुल्लू को जरा भी अहसास न होने दे कि बात पुलिस की मौजूदगी में हो रही है.

इंसपेक्टर अरुण पाठक की टुल्लू के पिता की उस से बातचीत कराने की तरकीब काम कर गई. उन्हें पता चल गया कि टुल्लू मुंबई में है और माया भी उसी के साथ है. टुल्लू से हुई बातचीत में अरुण पाठक को यह भी पता चला कि टुल्लू अपने पिता से मिलने और उन की आर्थिक मदद के लिए आना चाहता है. उस ने अपने पिता से कहा था कि 15 जुलाई को वह कर्वी बस अड्डे पर पहुंच जाएं.

अरुण पाठक ने लिसुरवा तथा उस के परिवार के सदस्यों को 15 जुलाई तक पुलिस की निगरानी में रहने का निर्देश दिया. उन के मोबाइल फोन भी इंसपेक्टर पाठक ने अपने कब्जे में ले लिए, जिस से वे लोग टुल्लू को सतर्क न कर सकें. इस के बाद इंसपेक्टर पाठक और उन की पुलिस टीम बेसब्री से 15 जुलाई का इंतजार करने लगे.

15 जुलाई की सुबह टुल्लू ने अपने भाई लल्लन के मोबाइल पर फोन किया. पुलिस ने अपनी निगरानी में उस की बात कराई. टुल्लू ने लल्लन को फोन पर बताया कि वह माया के साथ चित्रकूट रेलवे स्टेशन पर है और दोपहर एक बजे तक कर्वी बसअड्डे पर पहुंचेगा. पाठक ने लल्लन व उस के पिता लिसुरवा को साथ लिया और पुलिस टीम के साथ कर्वी बस अड्डे के आसपास पुलिस का जाल बिछा दिया.

पुलिस ने लल्लन व उस के पिता को बस अड्डे के पास अकेले छोड़ दिया. सादे कपड़ों में 2 पुलिस वाले दोनों के आसपास मंडराते रहे. करीब एक बजे कर्वी बस अड्डे के टिकट काउंटर के पास बेसब्री से बेटे का इंतजार कर रहे लिसुरवा के पास एक युवक व महिला पहुंचे. आगंतुक युवक ने जब लिसुरवा के पैर छुए तो इंसपेक्टर पाठक समझ गए कि वही टुल्लू है.

नजरें गड़ाए बैठी पुलिस टीम ने उन लोगों को चारों ओर से घेर लिया. पूछताछ में पता चला कि युवक टुल्लू लोध उर्फ रज्जन राजपूत ही है और उस के साथ जो खूबसूरत सी महिला है, वह माया है. पुलिस टुल्लू और माया को उस के घर वालों के साथ थाना पहाड़ी ले आई. टुल्लू लोध और माया को हिरासत में लिए जाने की खबर उच्चाधिकारियों को भी मिल चुकी थी.

टुल्लू तथा मायादेवी से पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा और क्षेत्राधिकारी शिवबचन सिंह के समक्ष पूछताछ की गई. दोनों से पूछताछ में शिवलोचन हत्याकांड की हैरान करने और दिल दहलाने वाली कहानी सामने आई.

पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि शिवलोचन के घर से जो नरकंकाल बरामद हुआ था, वह शिवलोचन का ही था. एक रात माया और टुल्लू ने उस की हत्या कर के लाश को घर में ही जमीन में गाड़ दिया था.

कातिल बहन की आशिकी : क्या था पूजा का गुनाह – भाग 2

थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने अवध पाल से पूछताछ की तो उस ने पूजा से प्रेम संबंधों को तो स्वीकार कर लिया, पर हत्या व लाश ठिकाने लगाने में शामिल होने से साफ मना कर दिया. अनिल ने भी वारदात में शामिल होने से इनकार किया. उस ने कहा कि अवध पाल उस का दोस्त है. अवध पाल व पूजा की दोस्ती को मजबूत करने में उस ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. लेकिन रचना की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

पूजा के इस कथन पर पुलिस को यकीन तो नहीं हुआ, फिर भी जांच करने के लिए पुलिस पूजा के घर पहुंची. पुलिस ने कमरे में लगे पंखे को देखा, उस पर धूल जमी थी और उस के ब्लेड जैसे के तैसे थे. रस्सी या दुपट्टा भी नहीं मिला. कमरे में पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं था, जिस से साबित होता कि रचना ने फांसी लगाई थी.

पुलिस को लगा कि पूजा बेहद शातिर है. वह पुलिस से झूठ बोल रही है. लिहाजा महिला पुलिसकर्मियों ने पूजा से सख्ती से पूछताछ की तो जल्द ही उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बहन रचना की हत्या कर डेडबौडी खुद ही तालाब में फेंकी थी. पूजा से पूछताछ के बाद उस की छोटी बहन की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में एक गांव है सराय एसर. शहर से नजदीक बसे इसी गांव में श्याम सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सर्वेश कुमारी के अलावा एक बेटा था विवेक तथा 2 बेटियां थीं पूजा और दीपांशी उर्फ रचना. श्याम सिंह यादव शहर के एक प्राइवेट स्कूल में वैन चलाता था. स्कूल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण हो रहा था.
श्याम सिंह के बच्चों में पूजा सब से बड़ी थी. चेहरेमोहरे से वह काफी सुंदर थी. पूजा जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. उस के हुस्न ने बहुतों को दीवाना बना दिया था. अवध पाल भी पूजा का दीवाना था.

अवध पाल ने पूजा पर डाले डोरे

अवध पाल यादव, सरैया चुंगी पर रहता था. उस के भाई वीरपाल की दूध डेयरी थी. अवध पाल भी भाई के साथ दूध डेयरी पर काम करता था. अवध पाल का एक दोस्त अनिल यादव था जो सराय एसर में रहता था. अनिल, पूजा के परिवार का था और पूजा के घर के पास ही रहता था. अवध पाल का अनिल के घर आनाजाना था. उस के यहां आतेजाते ही अवध पाल की नजर पूजा पर पड़ी थी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा था.

अवध पाल भाई के साथ खूब कमाता था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. अवध पाल जिस चाहत के साथ पूजा को देखता था, उसे पूजा भी समझती थी. उस की नजरों से ही वह उस के मन की बात भांप चुकी थी. धीरेधीरे पूजा भी उस की दीवानी होने लगी. उस के मन में भी अवध पाल के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

पूजा पंचशील इंटर कालेज में पढ़ती थी. इसी कालेज में उस की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना भी पढ़ती थी. पूजा इंटरमीडिएट की छात्रा थी जबकि दीपांशी 10वीं में पढ़ रही थी. पूजा घर से पैदल ही स्कूल जाती थी.

अवध पाल ने जब से पूजा को देखा था, तब से उस ने उसे अपने दिल में बसा लिया था. पूजा के स्कूल आनेजाने के समय वह उस के पीछेपीछे स्कूल तक जाता था. पूजा भी उसे कनखियों से देखती रहती थी.

पूजा की इस अदा से अवध पाल समझ गया कि पूजा भी उसे चाहने लगी है. दोनों के दिलों में प्यार की हिलोरें उमड़ने लगीं. प्यार के समंदर को भला कौन बांध कर रख सका है. वैसे भी कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

अवध पाल को पीछे आते देख कर एक दिन पूजा ठिठक कर रुक गई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. पूजा के अचानक रुकने से अवध पाल भी चौंक कर ठिठक गया. आखिर उस से रहा नहीं गया और वह लंबेलंबे डग भरता हुआ पूजा के सामने जा कर खड़ा हो गया.
‘‘तुम आजकल मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’ पूजा ने माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर अवध पाल से पूछा.
‘‘तुम से एक बात कहनी थी पूजा.’’ अवध पाल ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
तभी अवध पाल ने अपनी जेब से कागज की एक परची निकाली और पूजा को थमा कर बोला, ‘‘घर जा कर इसे पढ़ लेना, सब समझ में आ जाएगा.’’
मन ही मन मुसकराते हुए पूजा ने वह कागज ले लिया और बिना कुछ बोले अपने घर चली गई. हालांकि पूजा को इस बात का अहसास था कि उस परची में क्या लिखा होगा, फिर भी वह उसे पढ़ कर अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाहती थी.

घर पहुंच कर पूजा ने अपने कमरे में जा कर अवध पाल का दिया हुआ कागज निकाल कर पढ़ा. उस पर लिखा था, ‘मेरी प्यारी पूजा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हें देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता. इसीलिए अकसर स्कूल तक तुम्हारे पीछे आता हूं. तुम अगर मुझे न मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा अवध पाल सिंह.’

पत्र पढ़ कर पूजा के दिल के तार झनझना उठे. उस की आकांक्षाओं को पंख लग गए. उस दिन पूजा ने उस पत्र को कई बार पढ़ा. पूजा के मन में सतरंगी सपने तैरने लगे थे. उसी दिन रात को पूजा ने अवध पाल के नाम एक पत्र लिखा.

पत्र में उस ने सारी भावनाएं उड़ेल दीं, ‘प्रिय अवध पाल, मैं भी तुम से इतना प्यार करती हूं जितना कभी किसी ने नहीं किया होगा. कह इसलिए नहीं सकी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम्हारे बिना मैं भी जीना नहीं चाहती. मैं तो चाहती हूं कि हर समय तुम्हारी बांहों के घेरे में बंधी रहूं. तुम्हारी पूजा.’

उस दिन मारे खुशी के पूजा को नींद नहीं आई. अगली सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से निकली तो अवध पाल उसे पीछेपीछे आता दिखाई दिया. दोनों की नजरें मिलीं तो वे मुसकरा दिए. पूजा बेहद खुश नजर आ रही थी. सावधानी से पूजा ने अपना लिखा खत जमीन पर गिरा दिया और आगे चली गई.

पीछेपीछे चल रहे अवध पाल ने इधरउधर देखा और उस पत्र को उठा कर दूसरी तरफ चला गया. एकांत में जा कर उस ने पूजा का पत्र पढ़ा तो खुशी से झूम उठा. जो हाल पूजा के दिल का था, वही अवध पाल का भी था. पूजा ने पत्र का जवाब दे कर उस का प्यार स्वीकार कर लिया था.

शुरू हो गई प्रेम कहानी

दोपहर बाद जब कालेज की छुट्टी हुई तो पूजा ने गेट पर अवध पाल को इंतजार करते पाया. एकदूसरे को देख कर दोनों के दिल मचल उठे. वे दोनों एक पार्क में जा पहुंचे.
पार्क के सुनसान कोने में बैठ कर दोनों ने अपने दिल का हाल एकदूसरे को कह सुनाया. पार्क में कुछ देर प्यार की अठखेलियां कर के दोनों घर लौट आए. दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर दोनों अकसर मिलने लगे.

अंजाम ए मोहब्बत : पिता कैसे बने दोषी – भाग 2

इस हत्या की क्या वजह हो सकती है, जानने के लिए पुलिस ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को थाने बुलाया. उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मीनाक्षी की हत्या उस के पिता राजकुमार चौरसिया ने की है, क्योंकि मीनाक्षी ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से लवमैरिज की थी. इस बात से उस के घर वाले नाराज थे.

चूंकि बृजेश ने सीधा आरोप अपने ससुर राजकुमार पर लगाया था, इसलिए पुलिस उसे तलाश करने लगी. लेकिन वह अपने घर से फरार मिला. आखिर राजकुमार चौरसिया के मोबाइल फोन की लोकेशन के सहारे पुलिस उस के पास पहुंच ही गई और उसे उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज में स्थित उस के पैतृक घर से दबोच लिया.

मुंबई ला कर उस से उस की बेटी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो राजकुमार ने अपनी बेटी की हत्या के मामले में अनभिज्ञता जाहिर की लेकिन पुलिस टीम ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह टूट गया और तोते की तरह बोलते हुए अपना गुनाह स्वीकार लिया.

इस के बाद पुलिस ने राजकुमार चौरसिया को कोर्ट में पेश कर 7 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से की गई पूछताछ के बाद मीनाक्षी चौरसिया हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी—

55 वर्षीय राजकुमार चौरसिया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

गांव में उस के परिवार की सिर्फ नाममात्र की काश्तकारी थी. उस का पुश्तैनी काम पान बेचने का था. गांव के बाजारों से जो आमदनी होती थी, उस से ही घर और परिवार की रोजीरोटी चलती थी. इस आमदनी से राजकुमार संतुष्ट नहीं था.

लिहाजा अपनी रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर महानगर मुंबई चला आया. क्योंकि यहां उस के इलाके के और भी लोग काम करते थे. मुंबई शहर के बारे में उस ने यह सुन रखा था कि वह एक ऐसा शहर है, जहां मेहनत करने वाला इंसान कभी भूखा नहीं सोता है.

उन दिनों मुंबई की सूरत आज जैसी नहीं थी. न तो भीड़ थी और न जमीनों की कीमत आसमान छू रही थी. उस समय वहां आदमी को मामूली किराए पर दुकान और घर मिल जाते थे.

राजकुमार चौरसिया ने 2-4 दिन इधरउधर भटकने के बाद घाटकोपर नारायणनगर में अपना पुश्तैनी काम करने के लिए एक खोखा लगा लिया, जो धीरेधीरे एक पान की दुकान में बदल गया था.

कुछ ही दिनों में उस की दुकान चल निकली और उस से अच्छी कमाई होने लगी. जिस से उस ने अपने रहने के लिए दुकान के पास ही अपना एक घर ले लिया. इस के अलावा वह अपनी कमाई से घरपरिवार की भी मदद करने लगा था, जिस से घर की आर्थिक स्थिति भी पटरी पर आने लगी थी.

इस के बाद राजकुमार की शादी भी हो गई. शादी के थोड़े दिनों बाद वह अपनी पत्नी को भी मुंबई बुला लाया. समयसमय पर वह अपने गांव जाता रहता था, जिस से गांव के लोगों से उस का संपर्क बना रहा.

समय अपनी गति से बीतता गया और राजकुमार 3 बच्चों का पिता बन गया. 20 वर्षीय मीनाक्षी राजकुमार की सब से छोटी और लाडली बेटी थी. उस से बड़े उस के 2 बेटे थे. मीनाक्षी पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. वह जवान हुई तो राजकुमार को उस की शादी की चिंता हुई. वह बेटी के योग्य वर की तलाश में लग गया.

जहां एक तरफ राजकुमार मीनाक्षी के लिए वर की तलाश में था, वहीं मीनाक्षी ने अपने लिए बृजेश चौरसिया को चुन लिया था. 27 वर्षीय बृजेश चौरसिया उस की जाति बिरादरी का था. वह भी प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

सन 2016 में जब बृजेश चौरसिया अपना गांव छोड़ कर महानगर मुंबई आया था तो राजकुमार चौरसिया ने उसे अपने यहां सहारा दे कर उस की मदद की थी. उस ने उसे अपनी दुकान पर कुछ दिनों तक काम पर लगाया. राजकुमार और परिवार वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते थे. मीनाक्षी कभीकभी दुकान पर बैठे बृजेश के लिए खाना देने जाती थी.

इसी बीच दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करते और हंसतेहंसाते थे. इस हंसनेहंसाने में दोनों में कब प्यार हो गया, इस बात का उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं आता था.

इस के पहले कि दोनों के संबंधों की भनक राजकुमार चौरसिया और उस के परिवार के कानों में पहुंचती, बृजेश चौरसिया ने राजकुमार की पान की दुकान पर बैठना छोड़ दिया और उसी इलाके में एक दुकान किराए पर ले कर काम शुरू कर दिया.

एक तरफ जहां मीनाक्षी और बृजेश का प्यार मजबूत हो रहा था, वहीं दूसरी ओर राजकुमार जब कभी बृजेश से मिलता था तो बृजेश से मीनाक्षी के लिए किसी योग्य लड़के की तलाश करने को कहता था. बृजेश भी राजकुमार का मन रखने के लिए उसे हां बोल दिया करता था.

बृजेश और मीनाक्षी ने मिलना बंद नहीं किया. वे समय निकाल कर कहीं न कहीं मुलाकात कर ही लेते थे. एक दिन जब उन के संबंधों की जानकारी राजकुमार को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन सरक गई थी.

हुआ यह कि राजकुमार ने जब मीनाक्षी की शादी के लिए मुंबई के विरार में एक लड़का फाइनल किया तो मीनाक्षी ने उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. मीनाक्षी ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह शादी केवल बृजेश से ही करेगी.

तब राजकुमार ने मीनाक्षी को आडे़हाथों लिया था. उसे मारापीटा और धमकाते हुए कहा कि यह कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह उस के ही गांव और उसी की जाति का है. उस ने इस मामले में बृजेश को भी काफी धमकाया.

पत्नी की विदाई : पति ही बना कातिल – भाग 2

थाने लौटने के बाद उन्होंने नैंसी और साहिल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. साहिल चोपड़ा की काल डिटेल्स से पुलिस को पता चला कि 11 नवंबर की रात और 12 नवंबर को वह शुभम और बादल नाम के लड़कों के संपर्क में था. इन दोनों के साथ उस की लोकेशन हरियाणा के पानीपत की थी. जांच में पता चला कि शुभम उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर का और बादल करनाल के घरोंडा गांव का रहने वाला है.

ये तीनों पानीपत क्यों गए थे, यह जानकारी तीनों में से किसी से पूछताछ करने पर ही मिल सकती है. साहिल तो घर से लापता था, इसलिए पुलिस टीम सब से पहले करनाल के गांव घरोंडा स्थित बादल के घर पहुंची. वह घर पर मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने शुभम को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. पूछताछ में पता चला कि शुभम साहिल के औफिस में काम करता था और बादल शुभम का ममेरा भाई था.

दिल्ली ला कर जब दोनों से नैंसी के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि नैंसी अब दुनिया में नहीं है. साहिल ने उस की हत्या कर लाश पानीपत में फेंक दी थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी.

चूंकि नैंसी के पिता संजय शर्मा ने साहिल और उस के घर वालों के खिलाफ अपहरण और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था, इसलिए पुलिस ने साहिल के घर वालों को थाने बुलवा लिया.

किसी तरह साहिल चोपड़ा को जब यह खबर मिली कि उस के घर वालों को पुलिस ने थाने में बैठा रखा है तो वह खुद भी थाने पहुंच गया. साहिल को यह पता नहीं था कि पुलिस उस की साजिश का न सिर्फ परदाफाश कर चुकी है बल्कि शुभम और बादल पकड़े भी जा चुके हैं.

पुलिस ने साहिल से नैंसी के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने 11 नवंबर, 2019 को नैंसी को पश्चिम विहार फ्लाईओवर के पास छोड़ दिया था.

थानाप्रभारी जयप्रकाश समझ गए साहिल बेहद चालाक है, आसानी से अपना जुर्म नहीं कबूलेगा. लिहाजा उन्होंने हिरासत में लिए गए शुभम और बादल को साहिल के सामने  बुला लिया. उन दोनों को देखते ही साहिल हक्काबक्का रह गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा उस ने स्वीकार कर लिया कि वह अपनी पत्नी नैंसी की हत्या कर चुका है. अपने कर्मचारी शुभम और उस के दोस्त बादल के साथ नैंसी की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस की लाश पानीपत में ठिकाने लगा दी थी.

इस के बाद एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की मौजूदगी में साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से पूछताछ की गई तो नैंसी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह झकझोर देने वाली थी—

पश्चिमी दिल्ली के हरिनगर के रहने वाले संजय शर्मा इलैक्ट्रिक मोटर वाइंडिंग का काम करते थे. उन की बड़ी बेटी नैंसी शर्मा (17 वर्ष) करीब 3 साल पहले विकासपुरी में कंप्यूटर सेंटर में जाती थी. वह कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. वहीं पर उस की मुलाकात साहिल चोपड़ा (18 वर्ष) से हुई. साहिल चोपड़ा का पास में ही सेकेंडहैंड कारों की सेल परचेज का औफिस था. साहिल से पहले यह व्यवसाय उस के पिता अश्विनी चोपड़ा संभालते थे.

साहिल चोपड़ा का कार सेल परचेज का व्यवसाय अच्छा चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. नैंसी शर्मा और साहिल की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. दोनों ही जवानी के द्वार पर खड़े थे, इसलिए आकर्षण में बंध कर एकदूसरे को चाहने लगे.

इस के बाद नैंसी साहिल के साथ कार में बैठ कर सैरसपाटे करने लगी. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ रहने का वादा भी कर लिया था.

नैंसी उस समय नाबालिग थी, इस के बावजूद वह साहिल के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. करीब 3 साल तक सुभाषनगर में लिवइन रिलेशन में रहने के बाद दोनों ने 27 मार्च, 2019 को गुरुद्वारे में शादी कर ली.

नैंसी ने शादी अपने घर वालों की मरजी के बिना की थी, इसलिए वह उस से खुश नहीं थे. घर वालों को शादी की सूचना भी उस समय मिली, जब नैंसी ने अपनी ससुराल पहुंच कर वाट्सऐप पर शादी के फोटो भेजे.

दरअसल, नैंसी तब छोटी ही थी, जब उस की मां उसे और पिता को छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह अपने साथ छोटे बेटे को ले गई थी. नैंसी की परवरिश उस की दादी और चाची ने की थी. संजय शर्मा बिजनैस के सिलसिले में राजस्थान जाते रहते थे. बाद में उन्होंने दूसरी शादी कर ली.

बेटी बालिग थी. उस ने साहिल चोपड़ा से शादी अपनी मरजी से की थी, इसलिए वह कर भी क्या सकते थे. जवान बेटी के इस तरह चले जाने पर उन्हें बदनामी के साथ दुख भी अधिक हुआ.

नैंसी जनकपुरी के बी-ब्लौक स्थित अपनी ससुराल में पति के साथ खुश थी. साहिल उस का हर तरह से खयाल रखता था. बहरहाल, उन की जिंदगी हंसीखुशी बीत रही थी. लेकिन उन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. नैंसी और साहिल के बीच कुछ महीनों बाद ही मतभेद शुरू हो गए.

सेक्स को मना करने पर हिंसा करता था पति, पत्नी ने की हत्या

पति पत्नी के संबंध में जहां सेक्स का हौआ हावी हो गया, वह घर तो टूटन की कगार पर खड़ा ही मानो. वैसे, एकदूसरे की भावनाओं को समझते हुए, आपसी सहमति से सेक्स संबंध बनाया जाए तो कारगर रहता है नहीं तो लड़ाई झगड़ा होना लाजिम है. पर सेक्स के लिए पत्नी को प्रताड़ित करना और बदतमीजी से बोलना व बच्चों के सामने उसे बेइज्जत करना आम घरों की समस्या से रूबरू कराता है. वाकई यह हमारी घिनौनी सोच का ही नतीजा है.

कोलकाता में भी एक ऐसी घटना सामने आई है, जिस में पत्नी ने पति द्वारा तंग करने पर उस की हत्या करने में जरा भी गुरेज नहीं किया.

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अपने पति की हत्या करने वाली अनिंदिता पौल डे ने पुलिस को इस के पीछे की अहम वजह बताई. हालांकि वह बारबार अपना बयान बदलती नजर आई. कहीं न कहीं वह अपने पति से आजिज आ चुकी थी, तभी उस ने अपने पति की हत्या करने जैसा कठोर कदम उठाया.

यह दंपती न्यू टाउन इलाके में रहता था. अनिंदिता पौल डे ने बताया कि उस का पति पेशे से वकील था. वह आए दिन उस का यौन उत्पीडन करता था.

अनिंदिता ने आगे बताया कि पिछले हफ्ते मैडिकल सलाह के खिलाफ जा कर उस के पति ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की जिस से गुस्से में आ कर अनिंदिता ने पति रजत डे की हत्या कर दी.

हालांकि मामला संगीन है. मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि महिला ने दावा किया है कि उस का पति जिस्मानी और दिमागी तौर पर उसे परेशान किया करता था. इस वजह से दोनों के बीच दूरियां पैदा हो गईं. इसी तरह की एक अजीबोगरीब हरकत पर अनिंदिता ने अपने पति की हत्या कर दी.

पुलिस जांच कर रही है कि यह हत्या अनिंदिता ने अकेले ही की थी या फिर किसी ने उस की मदद की थी.

अनिंदिता के वकील चंद्रशेखर बाग ने बताया कि अनिंदिता के पति ने उस का यौन शोषण किया था. 2 महीने पहले उन की फैलोपियन ट्यूब की सर्जरी हुई थी. इस के बाद डाक्टरों ने आराम करने की सलाह दी थी लेकिन रजत ने अनिंदिता के साथ जबरदस्ती की थी.

यह तो पति को भी सोचना चाहिए कि पत्नी की परेशानी क्या है पर इस ओर उस ने जरा भी ध्यान नहीं दिया और जबरदस्ती पर उतर आया. उस ने अपनी पत्नी की जरा भी नहीं सुनी और अपनी मनमानी करने लगा. जब बात हद से गुजर गई तो उस ने अपने पति की हत्या कर दी.

मामला चाहे जो हो पत्नी ने अपने हाथों को खून से सन ही लिया है. इस हत्या का अनिंदिता की जिंदगी पर कैसा असर पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन सोचने वाली बात यह भी है मर्दऔरत को एकसाथ रखने वाला प्यार जानलेवा कैसे बन गया? क्या इस के पीछे मर्दवादी सोच है, जो पति के लिए पत्नी रात में दिल बहलाने का खिलौना भर है, चाहे वह किसी बीमारी के चलते सेक्स करने से परहेज करना चाहती हो?

नागिन से जहरीली औरत : पति का किया किनारा

घड़ी का अलार्म बजने के साथ ही संगीता सो कर उठ गई. उस समय सुबह के साढ़े 5 बजे थे. संगीता के उठने का रोज यही समय था. उस के पति मुकेश की लुधियाना की दुर्गा कालोनी स्थित अपने घर में ही किराने की दुकान थी. इस कालोनी में अधिकांश मजदूर तबके के लोग रहते थे, जो सुबह ही रोजमर्रा की चीजें दूध, चीनी, चायपत्ती आदि सामान लेने उस की दुकान पर आते थे, इसलिए वह सुबह जल्दी दुकान खोल लेता था. लेकिन उस दिन उस ने दुकान अभी तक नहीं खोली थी.

मुकेश छत पर सो रहा था. गैस चूल्हे पर चाय कापानी चढ़ाने के बाद संगीता ने पति को जगाने के लिए बड़ी बेटी को छत पर भेजा. दरअसल एक दिन पहले स्वतंत्रता दिवस का दिन होने की वजह से पूरे परिवार ने छत पर पतंगें उड़ाने के साथ हुल्लड़बाजी की थी.

उसी मोहल्ले में रहने वाला मुकेश का छोटा भाई रमेश भी अपनी पत्नीबच्चों के साथ वहां आ गया था, लेकिन रात को खाना खाने के बाद वह पत्नीबच्चों सहित अपने घर चला गया था. संगीता अपने बच्चों के साथ सोने के लिए नीचे गई थी. जबकि मुकेश छोटे बेटे करन के साथ छत पर ही सो गया था.

मुकेश को जगाने के लिए बेटी जब छत पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर उस की चीख निकल गई. बेटी के चीखने की आवाज सुन कर संगीता छत पर गई तो वह भी अपनी चीख नहीं रोक सकी. क्योंकि उस का पति मुकेश लहूलुहान पड़ा था. उस की मौत हो चुकी थी. संगीता रोने लगी. उस की और बेटी की रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. तभी किसी ने पुलिस को और मुकेश के भाई रमेश को यह खबर कर दी.

रमेश चूंकि उसी मोहल्ले में रहता था, इसलिए भाई की हत्या की खबर सुन कर वह तुरंत वहां पहुंच गया. बड़े भाई की लाश देख कर उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्योंकि रात को तो सब ने मिल बैठ कर खाना खाया था.कुछ ही देर में थाना फोकल पौइंट के इंसपेक्टर अमनदीप सिंह बराड़ दलबल के साथ दुर्गा कालोनी पहुंच गए.

इंसपेक्टर अमनदीप ने घटनास्थल का मुआयना किया. मुकेश की खून से लथपथ लाश एक चारपाई पर पड़ी थी. देख कर लग रहा था कि उस के सिर और चेहरे पर किसी भारी चीज से वार किए गए थे.

छत पर 3 कमरे बने थे. एक कमरे में मृतक का दोस्त शामजी पासवान अपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था. एक कमरे में मृतक का 7 वर्षीय बेटा करन सो रहा था और मृतक आंगन में बिछी चारपाई पर था.

जब मृतक पर वार किया गया होगा तो उस की चीख भी निकली होगी. यही सोच कर पुलिस ने शामजी पासवान से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गहरीनींद में सोने की वजह से उस ने कोई आवाज नहीं सुनी थी.

निरीक्षण करने पर इंसपेक्टर अमनदीप ने देखा कि छत पर जाने का केवल एक ही रास्ता था. उस दरवाजे में ताला लगाया जाता था. मृतक की पत्नी संगीता से पूछने पर पता चला कि सीढि़यों के दरवाजे पर ताला उस रात भी लगाया गया था. जब ताला लगा था तो वह किस ने खोला. इंसपेक्टर ने संगीता से पूछा तो वह कुछ नहीं बोली.

कुल मिला कर यह बात साबित हुई कि बिना ताला खोले या घर वालों की मरजी के बिना किसी का भी छत पर जाना संभव नहीं था.

बहरहाल घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और रमेश की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की तहकीकात शुरू कर दी. यह बात 16 अगस्त, 2018 की है.

पूछताछ करने पर रमेश ने इंसपेक्टर अमनदीप को बताया, ‘‘कल 15 अगस्त होने की वजह से भैया मुकेश ने हमें अपने घर बुला लिया था. दिन भर हम सब लोग मिल कर पतंगें उड़ाते रहे. शाम को संगीता भाभी ने खाना बनाया.

‘‘भैया और मैं ने पहले शराब पी फिर खाना खाया. बाद में मैं अपने बच्चों के साथ रात के करीब 9 बजे अपने घर चला गया था. सुबह होने पर मुझे भैया की हत्या की खबर मिली.’’

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस में बताया गया कि मुकेश की मौत सिर पर किसी भारी चीज के वार करने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद इंसपेक्टर अमनदीप अपने अधीनस्थों के साथ बैठे इस केस पर चर्चा कर रहे थे.

उन की समझ में यह नहीं आ रहा था कि कोई बाहर का आदमी मृतक की छत पर कैसे पहुंच सकता है. क्योंकि मृतक के मकान के साथ ऊंचेऊंचे मकान बने हुए हैं.

उन ऊंचे मकानों से नीचे वाले मकान पर उतरना बहुत खतरनाक था. मान लो अगर कोई किसी तरह नीचे उतर भी गया तो मुकेश की हत्या कर के वहां से कैसे गया. क्योंकि संगीता के अनुसार सीढि़यों वाला और घर का दरवाजा अंदर से बंद था. सुबह उस ने ही सीढि़यों का और घर का मुख्य दरवाजा खोला था.

संदेह करने वाली बात यह थी कि छत पर रहने वाले किराएदार शामजी को इस बात की तनिक भी भनक नहीं थी और ना ही उस ने कोई आवाज सुनी थी. यह हैरत की बात थी. यह सब देखनेसमझने के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि जो भी हुआ था, घर के अंदर ही हुआ था. इस मामले में बाहर के किसी आदमी का हाथ नहीं था.

क्योंकि मृतक या उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पड़ोसियों ने भी किसी को उस के यहां आतेजाते नहीं देखा था. इंसपेक्टर अमनदीप सिंह ने अपने खबरियों को इस परिवार की कुंडली निकलने के लिए कहा.

जल्द ही पुलिस को कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. इस के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने मृतक के छोटे भाई रमेश को थाने बुला कर उस से बड़ी बारीकी से पूछताछ की तो मुकेश की हत्या का कारण समझ में आ गया.

रमेश से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने पुलिस टीम के साथ संगीता के घर छापा मारा लेकिन तब तक वह और उस का किराएदार शामजी पासवान घर से फरार हो चुके थे.

थानाप्रभारी ने संगीता और शामजी को तलाश करने के लिए एसआई रिचा, एएसआई हरजीत सिंह, हवलदार विजय कुमार, हरविंदर सिंह, अनिल कुमार, बुआ सिंह और सिपाही परमिंदर की टीम को उन की तलाश के लिए लगा दिया.

पुलिस टीम ने सभी संभावित जगहों पर उन्हें तलाशा लेकिन वह नहीं मिले. फिर एक मुखबिर की सूचना पर इस टीम ने 22 अगस्त, 2018 को संगीता और शामजी पासवान को ढंडारी रेलवे स्टेशन से दबोच लिया.

दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने मुकेश की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसी दिन दोनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड में दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के दौरान मुकेश की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

संगीता बचपन से ही अल्हड़ किस्म की थी. अपने मांबाप की लाडली होने के कारण वह मनमरजी करती थी. मात्र 12 साल की उम्र में उस की शादी मुकेश के साथ कर दी गई. मुकेश बिहार के लक्खीसराय जिले के गांव महिसोनी का रहने वाला था. मुकेश अपने 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

मांबाप का नियंत्रण न होने की वजह से संगीता पहले से ही बिगड़ी हुई थी. मुकेश से शादी हो जाने के बाद भी वह नहीं सुधरी. ससुराल में भी उस ने कई लड़कों से संबंध बना लिए. ससुराल वालों ने उसे ऊंचनीच और मानमर्यादा का पाठ पढ़ाया पर संगीता की समझ में किसी की कोई बात नहीं आती थी.

कई साल पहले मुकेश काम की तलाश में लुधियाना आ गया था. लुधियाना में काम सेट होने के बाद मुकेश संगीता को यह सोच कर अपने साथ ले आया कि गांव से दूर एक नए माहौल में शायद वह सुधर जाए. बाद में अपने दोनों भाइयों को भी उस ने लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना आने के बाद मुकेश ने कड़ी मेहनत कर के पैसापैसा बचाया और दुर्गा कालोनी में अपना खुद का मकान बना लिया.

करीब 3 साल पहले मुकेश ने फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और अपने घर में ही किराने की दुकान खोल ली. अब घर रह कर ही उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. मकान के ऊपर एक कमरा उस ने शामजी पासवान को किराए पर दे रखा था. शामजी मुकेश का दोस्त था. कभी दोनों एक साथ फैक्ट्री में काम किया करते थे.

शामजी बड़ा चतुर था. उस की नजर शुरू से ही संगीता पर थी. मुकेश ने जब साइकिल पार्ट्स फैक्ट्री का काम छोड़ दिया, तब उस की जगह संगीता ने फैक्ट्री में जाना शुरू कर दिया था. संगीता और शामजी दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. यहीं से दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए.

शामजी शादीशुदा था. लेकिन उस का कोई बच्चा नहीं था. उस की पत्नी साधारण और सीधीसादी थी. उसे अपने पति और संगीता के बींच संबंधों का पता नहीं चल पाया था.

एक दिन संगीता के बेटे ने अपनी मां शामजी को एक बिस्तर में देखा तो उस ने यह बात अपने पिता को बता दी. इस के बाद मुकेश सतर्क हो गया. एक दिन उस ने भी अपनी पत्नी को शामजी के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने शामजी को खरीखोटी सुनाई और उस से कमरा खाली करने के लिए कह दिया.

संगीता मुकेश पर हावी रहती थी उस ने पति से झगड़ा करते हुए कह दिया कि शामजी उसी मकान में रहेगा. अगर उसे निकाला गया तो वह भी उसी के साथ चली जाएगी. इस धमकी पर मुकेश डर गया. फलस्वरूप संगीता ने शामजी को कमरा खाली नहीं करने दिया.

इस बात को ले कर घर में हर समय कलह रहने लगी. मुकेश पत्नी से नौकरी छोड़ने को कहता था, जबकि वह नौकरी छोड़ने को तैयार नहीं थी.

मुकेश ने किसी तरह पत्नी को समझा कर साइकिल फैक्ट्री से नौकरी छुड़वा कर, के.एस. मुंजाल धागा फैक्ट्री में लगवा दी. अलग फैक्ट्री में काम करने से संगीता और शामजी की बाहर मुलाकात नहीं हो पाती थी.

इस से संगीता और शामजी दोनों परेशान रहने लगे. अंतत: दोनों ने मुकेश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. योजना बनाने के बाद संगीता ने पति से अपने किए पर माफी मांग ली और वादा किया कि भविष्य में वह शामजी से नहीं मिलेगी.

योजना को अंजाम देने के लिए शामजी ने 2 हथौड़े खरीद लिए थे. इस के बाद दोनों हत्या करने का मौका तलाशते रहे. संगीता के 5 बच्चे थे. वह अकसर घर पर रहते थे, जिन की वजह से उन्हें हत्या करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर 15 अगस्त वाले दिन उन्हें मौका मिल गया.

मुकेश शराब पीने का आदी था. शाम को मुकेश ने अपने छोटे भाई रमेश के साथ शराब पी थी. खाना खा कर रमेश अपने घर चला गया था. संगीता ने पति से झगड़ा किया. संगीता जानती थी कि झगड़े के बाद पति छत पर ही सोएगा. हुआ भी यही.

मुकेश अपने छोटे बेटे के साथ छत पर सो गया. संगीता नीचे आ गई. इस के बाद जब रात गहरा गई तो रात 2 बजे संगीता छत पर पहुंची. शामजी भी अपने कमरे से बाहर निकल आया. बिना कोई अवसर गंवाए संगीता ने अपने पति के पैर कस कर पकड़े और पासवान ने उस के सिर पर हथौड़े के भरपूर वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

नशे में धुत होने के कारण उस की चीख तक नहीं निकल सकी. मुकेश की हत्या के बाद शामजी पासवान अपने कमरे में सोने चला गया. जबकि संगीता नीचे कमरे में आ गई. लेकिन उसे सारी रात नींद नहीं आई. सुबह जब बेटी ने छत पर जा कर खून देख कर शोर मचाया. जिस के बाद संगीता ने रोने का ड्रामा करना शुरू कर दिया. पुलिस को पहले से ही संगीता पर शक था. क्योंकि संगीता का रोना महज एक ढोंग दिखाई दे रहा था.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने उन दोनों की निशानदेही पर घर के पीछे खाली प्लौट में भरे पानी में फेंका गया हथौड़ा बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद संगीता और शामजी को फिर से अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर दोनों को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

इस पूरे प्रकरण में दया की पात्र शामजी की पत्नी थी. वह इतनी साधारण और भोली थी कि उसे अभी तक यह भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उस के पति ने मकान मालिक की हत्या कर दी है. वह मृतक मुकेश के पांचों बच्चों का ध्यान रखे हुए है और सभी को सुबहशाम खाना बना कर खिला रही है.     ?

-पुलिस सूत्रों पर आधारित