बेटी ने दी बाप के कत्ल की सुपारी

अप्रैल के महीने में यूं तो इतनी गरमी नहीं पड़ती, लेकिन 2018 का अप्रैल महीना इस बार शुरू से ही कुछ ज्यादा गरमाने लगा था. इसीलिए जल्दी बंद होने वाले बाजार भी देर तक खुलने लगे थे. दिल्ली से मात्र 60 किलोमीटर दूर बसे उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक मोहल्ला है दयानंद नगर, जो शहर के सब से बड़े नाले के किनारे तंग गलियों वाला मोहल्ला है. इसी मोहल्ले में राकेश रूहेला अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कृष्णा के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था.

राकेश दिल्ली के शाहदरा के भोलानाथ नगर स्थित बाबूराम टैक्नीकल इंस्टीट्यूट में लैब टेक्नीशियन की नौकरी करते थे. वह सुबह 7 बजे अपने घर से निकल कर करीब डेढ़ किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन तक पैदल जाते थे. वहां से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में सवार हो कर वह शाहदरा रेलवे स्टेशन पर उतरते और अपने इंस्टीट्यूट पहुंचते थे. शाम को भी वह इसी तरह ड्यूटी पूरी कर घर पहुंचते थे. ये उन का लगभग रोज का रूटीन था.

7 अप्रैल, 2018 की रात भी राकेश रूहेला रोजमर्रा की तरह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली से अपनी ड्यूटी खत्म कर के ट्रेन से शामली पहुंचे और वहां से नाला पट्टी रोड से पैदल घर की तरफ जा रहे थे.

रात करीब पौने 10 बजे वह अपने घर की गली के मोड़ के करीब पहुंचे ही थे कि उन के पास अचानक 2 युवक तेजी से आए, उन में से एक ने उन के पास जा कर गोली चला दी.

फायर की आवाज सुन कर आसपास खुली इक्कादुक्का दुकानों पर खड़े लोगों ने जब तक पलट कर देखा तब तक राकेश लहरा कर जमीन पर गिर चुके थे और उन्हें गोली मारने वाले दोनों युवक तेजी से विपरीत दिशा की तरफ भाग रहे थे.

लोगों ने देखते ही पहचान लिया कि गोली लगने के बाद जमीन पर खून से लथपथ पड़ा व्यक्ति राकेश रूहेला है. गली के नुक्कड़ पर ही किराने की दुकान चलाने वाला शैलेंद्र कुछ लोगों की मदद से जख्मी राकेश को एक टैंपो में लाद कर जिला अस्पताल ले गया. कुछ लोगों ने तब तक राकेश के घर जा कर इस बात की सूचना दे दी कि किसी ने राकेश पर गोली चलाई है.

मौत पर पत्नी और बेटी का नाटक

इस के बाद उन के घर में कोहराम मच गया. राकेश की पत्नी कृष्णा और बेटा तत्काल आसपड़ोस के लोगों को साथ ले कर सरकारी अस्पताल पहुंच गए. कृष्णा ने 3 नंबर गली में रहने वाले अपने देवर मुकेश को फोन कर के सारी बात बताई और जल्दी से सरकारी अस्पताल पहुंचने के लिए कहा. सरकारी अस्पताल पहुंचने के बाद घर वालों को डाक्टरों ने बताया कि राकेश की रास्ते में ही मौत हो चुकी थी.

पति की मौत की खबर सुनते ही कृष्णा का विलाप शुरू हो गया. मुकेश कुछ लोगों को साथ ले कर शामली कोतवाली पहुंचा, उस वक्त तक रात के करीब 11 बज चुके थे. थाने में मौजूद एसएसआई रफी परवेज को उस ने भाई की हत्या की जानकारी दी.

उस वक्त थानाप्रभारी अवनीश गौतम क्षेत्र की गश्त पर निकले हुए थे. जैसे ही थानाप्रभारी को इस घटना की खबर मिली तो उन्होंने एसएसआई को शिकायत की तहरीर ले कर मुकदमा दर्ज कराने और पुलिस दल के साथ सरकारी अस्पताल पहुंचने के निर्देश दिए.

राकेश का शव अस्पताल में ही रखा हुआ था. एसएसआई रफी परवेज ने मुकेश से ली गई तहरीर के आधार पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस के बाद वह एसआई सत्यनारायण दहिया, महिला एसआई नीमा गौतम, कांस्टेबल प्रताप व अन्य स्टाफ को साथ ले कर सरकारी अस्पताल पहुंच गए. तब तक थानाप्रभारी अवनीश गौतम भी वहां पहुंच गए.

घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी. इसलिए सूचना मिलने के बाद सीओ (सिटी) अशोक कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस के सभी अधिकारियों ने मृतक के परिवार वालों के अलावा राकेश को अस्पताल लाने वाले शैलेंद्र से राकेश पर हमला करने वालों और घटनाक्रम के बारे में पूछताछ की. लेकिन न तो किसी ने ये बताया कि वे हमलावरों को पहचानते हैं, न ही परिजनों ने किसी पर हत्या का शक जताया.

हां, इतना जरूर पता चला कि मृतक अपने औफिस के लोगों और जानपहचान वालों के साथ मिल कर महीने की कमेटी डालने का काम करता था. अकसर उस के पास कमेटी की रकम होती थी.

परिजनों ने आशंका जताई कि कहीं राकेश को किसी ने लूटपाट के उद्देश्य से तो गोली नहीं मार दी. मगर घटनास्थल पर बतौर चश्मदीद शैलेंद्र व अन्य लोगों से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि गोली चलने के तुरंत बाद हमलावर तेजी से भाग गए थे. उन्होंने राकेश से किसी तरह की छीनाझपटी होते नहीं देखी.

पुलिस को भी चश्मदीदों की बात में सच्चाई दिखी, क्योंकि राकेश की जेब में रुपयों से भरा पर्स, अंगुली में सोने की अंगूठी, कलाई में घड़ी और हाथ में लिया बैग एकदम सहीसलामत थे. रात बहुत अधिक हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अगले दिन सीओ (सिटी) और थानाप्रभारी ने जांच अधिकारी रफी परवेज के साथ बैठ कर जब पूरे घटनाक्रम पर विचार करना शुरू किया तो उन्हें लगा कि मामला उतना सीधा नहीं है, जितना दिखाई पड़ रहा है.

क्योंकि अगर बदमाशों को लूटपाट या छीनाझपटी करने के लिए राकेश को गोली मारनी होती तो वे किसी सुनसान जगह को चुनते न कि उस के घर के पास ऐसी जगह को, जहां लोगों की काफी आवाजाही थी.

पुलिस को बेलने पड़े पापड़

पुलिस को लगा कि या तो हत्या किसी रंजिश के कारण की गई है या फिर किसी ऐसे कारण से जो फिलहाल पुलिस की नजरों से छिपा है. थानाप्रभारी एक बार फिर राकेश रूहेला के घर पहुंचे. उन्होंने राकेश की पत्नी, उन की दोनों बेटियों, बेटे और भाई मुकेश से पूछताछ की.

किसी ने भी राकेश की हत्या के लिए न तो किसी पर शक जाहिर किया और न ही किसी से रंजिश की बात बताई. सीओ (सिटी) अशोक कुमार सिंह ने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार को भी बुला कर अपराध की इस गुत्थी को सुलझाने के काम पर लगा दिया.

राकेश की हत्या के अगले दिन पुलिस का सारा वक्त घर वालों और जानपहचान वालों से पूछताछ में लग गया. दोपहर बाद पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद राकेश का शव घर वालों को सौंप दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि राकेश की मौत सिर में गोली लगने से हुई थी और गोली करीब डेढ़ फुट की दूरी से मारी गई थी, जिस का मतलब था कि हत्यारे राकेश की हत्या करना चाहते थे.

अगले दिन राकेश की हत्या की जांच का काम तेजी से शुरू हो गया. कातिल तक पहुंचने के लिए पुलिस के पास बस अब एक ही रास्ता था कि वह इलाके में लगे सीसीटीवी की फुटेज का सहारा ले कर पता लगाए कि राकेश को गोली मारने वाले कौन लोग थे.

हांलाकि इस दौरान क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार ने अपनी टीम के साथ इलाके में सक्रिय लूटपाट गिरोह से जुड़े कई बदमाशों को हिरासत में ले कर पूछताछ कर ली थी. सत्यता की जांच के लिए तमाम बदमाशों के मोबाइल नंबरों की लोकेशन भी देखी गई, मगर इस वारदात में किसी के भी शामिल होने की पुष्टि नहीं हो सकी.

सीसीटीवी से खुलना शुरू हुआ राज

इधर थानाप्रभारी अवनीश गौतम ने स्टेशन से घटनास्थल तक लगे 6 सीसीटीवी कैमरों की जांच की, तो पता चला कि उन में से एक खराब था. कुल बचे 5 सीसीटीवी कैमरे बाकायदा काम कर रहे थे. पुलिस को पूरी उम्मीद थी कि अगर हत्यारे काफी दूर से राकेश रूहेला का पीछा कर रहे थे तो कहीं न कहीं वे सीसीटीवी फुटेज में जरूर कैद हुए होंगे.

थाना पुलिस ने क्राइम ब्रांच की मदद से इन सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखनी शुरू कर दीं. इसी बीच 12 अप्रैल को कोतवाली प्रभारी अवनीश गौतम का तबादला हो गया. उन की जगह जितेंद्र सिंह कालरा आए.

जितेंद्र सिंह कालरा को यूपी पुलिस में सुपरकौप के नाम से जाना जाता है. कार्यभार संभालते ही नए थानाप्रभारी का सामना सब से पहले राकेश रूहेला के पेचीदा केस से हुआ. उन्होंने इस मामले में अब तक की गई जांच पर नजर डाली.

राकेश हत्याकांड के हर पहलू को बारीकी से समझने के बाद कालरा को लगा कि जांच आगे बढ़ने से पहले उन्हें उन सीसीटीवी फुटेज को जरूर देखना चाहिए.

कालरा ने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार और उन की टीम के साथ बैठ कर फुटेज देखने का काम शुरू किया. 5 घंटे तक फोरैंसिक एक्सपर्ट के साथ सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद आखिर पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली.

पता चला कि जिस जगह राकेश रूहेला को गोली मारी गई थी, उस से 50 कदम की दूरी पर एक इलैक्ट्रौनिक शौप से राकेश ने कुछ सामान खरीदा था. उसी समय 2 युवक राकेश का पीछा करते हुए दिखे. इन में से एक के हाथ में तमंचे जैसा हथियार दिखाई दे रहा था.

हालांकि उन के चेहरे पूरी तरह तो नहीं दिख रहे थे, लेकिन आकृति देख कर ऐसा कोई भी व्यक्ति जिस ने उन लोगों को पहले कभी देखा हो, पहचान कर बता सकता था कि वे कौन हैं. सब से पहले थानाप्रभारी ने उस रात घटनास्थल के चश्मदीदों, इस के बाद मुकेश को थाने बुला कर उन से फुटेज देख कर कातिल की पहचान करने को कहा.

राकेश रूहेला की पत्नी कृष्णा व दोनों बेटियों तथा कृष्णा के देवर मुकेश ने सीसीटीवी में दिखे उन 2 लोगों को पहचानने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन पुलिस को 2 ऐसे व्यक्ति मिल गए, जिन्होंने जांच को एक नई दिशा दे दी.

जिस किराने की दुकान के सामने राकेश को गोली मारी गई थी, उस समय उस दुकान के पास शैलेंद्र सिंह और राकेश का बेटा विशाल खड़े थे, उन्होंने सीसीटीवी में दिख रहे संदिग्धों की पहचान कर ली. शैलेंद्र ने फुटेज में दिख रहे दोनों युवकों की पहचान कर बताया कि राकेश को गोली मार कर जो युवक भागे थे, उन की आकृति बिलकुल सीसीटीवी फुटेज में दिखाई पड़ रहे युवकों जैसी ही थी.

संदेह गहराता गया, दायरा छोटा होता गया

शैलेंद्र ने बताया कि इन में से एक युवक को उस ने कई बार उसी गली में आतेजाते देखा था, जहां राकेश का घर था. कालरा ने गली के नुक्कड़ पर खड़े रहने वाले कुछ दूसरे लोगों से कुरेद कर पूछा तो उन्होंने भी दबी जुबान से बताया कि उन्होंने उस युवक को कई बार दिन में राकेश के घर आतेजाते देखा था.

इस के बाद थानाप्रभारी कालरा ने मृतक के परिजनों को भी सीसीटीवी फुटेज दिखाई. परिवार के सभी सदस्यों में से सिर्फ राकेश के 20 वर्षीय बेटे विशाल ने बताया कि सीसीटीवी में दिख रहे युवक का नाम समीर है, जो उस की बहन वैष्णवी उर्फ काव्या का पूर्व सहपाठी है और अकसर काव्या से मिलने के लिए भी आता था.

यह बात चौंकाने वाली थी. क्योंकि जब सीसीटीवी में दिख रहे युवक को राकेश की पत्नी व बेटियां जानतीपहचानती थीं तो उन्होंने उसे पहचानने से इनकार क्यों किया.

थानाप्रभारी कालरा को साफ लगने लगा कि दाल में कुछ काला है. क्योंकि जबजब उन्होंने कृष्णा और उस की दोनों बेटियों से पूछताछ की, तबतब वो रोनेबिलखने के साथ पूछताछ के मकसद को भटका देती थीं.

कालरा ने मृतक की पत्नी कृष्णा और उस के बच्चों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि कृष्णा की छोटी बेटी काव्या और समीर के बीच घटना के 2 दिन पहले से दिन और रात में कई बार बातचीत हुई थी. इतना ही नहीं जिस वक्त वारदात को अंजाम दिया गया, उस के कुछ देर बाद भी 3-4 बार दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई थी. समीर के मोबाइल नंबर की लोकेशन भी घटनास्थल के पास की मिली.

अब पूरी तरह साफ हो चुका था कि राकेश रूहेला की हत्या में कहीं न कहीं समीर शामिल है. पुलिस को यह भी पता चल गया कि समीर मोहल्ला हाजीपुरा नाला पटरी में रहने वाले डा. जरीफ का बेटा है.

समीर आया पुलिस की पकड़ में

थानाप्रभारी कालरा के पास अब समीर को पूछताछ के लिए हिरासत में लेने के लिए तमाम सबूत थे. उन्होंने टीम के सदस्यों को उस का सुराग लगाने को कहा. आखिर एक कांस्टेबल की सूचना पर उन्होंने 17 अप्रैल को नाला पटरी के पास खेड़ी करमू के रेस्तरां से उसे हिरासत में ले लिया. उस समय उस के साथ मृतक राकेश की बेटी काव्या के अलावा समीर का चचेरा भाई शादाब भी था.

थानाप्रभारी ने समीर को थाने ले जा कर पूछताछ की तो उसे टूटने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. समीर ने कबूल कर लिया कि राकेश रूहेला की हत्या उस ने ही अपने चचेरे भाई शादाब के साथ मिल कर की थी और हत्या करने के लिए काव्या ने ही उसे मजबूर किया था. समीर से पूछताछ के बाद हत्या की जो हैरतअंगेज कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी.

काव्या की समीर के साथ पिछले 3 सालों से दोस्ती थी. वे दोनों हाईस्कूल में साथ पढ़ते थे. इंटरमीडिएट तक पढ़ाई के बाद काव्या कैराना स्थित एक कालेज से बीएससी करने लगी, जबकि समीर को उस के घर वालों ने एमबीबीएस की कोचिंग करने के लिए राजस्थान के कोटा में अपने एक रिश्तेदार के पास भेज दिया.

दरअसल, समीर के पिता जरीफ बीएएमएस डाक्टर थे और शामली में अपना क्लीनिक चलाते थे. उन की चाहत थी कि समीर बड़ा हो कर डाक्टर बने. इसीलिए उन्होंने डाक्टरी की कोचिंग के लिए उसे कोटा भेज दिया था. उन के रिश्तेदार का बेटा भी समीर के साथ ही एमबीबीएस की तैयारी कर रहा था.

काव्या से शुरू हुई समीर की दोस्ती गुजरते वक्त के साथ प्यार में बदल गई थी. काव्या के प्रति समीर की चाहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि एक दिन उस ने अपने हाथ पर उस का नाम भी गुदवा लिया. काव्या को यह तो पता था कि समीर उस पर मरता है लेकिन उसे ये नहीं मालूम था कि उस की दीवानगी में वह उस का नाम अपने हाथ पर भी गुदवा लेगा.

इधर इंटरमीडिएट के बाद दोनों चोरीछिपे पढ़ाई के बहाने कभी घर में तो कभी घर के बाहर मिलतेजुलते थे. धीरेधीरे यह बात राकेश के कानों तक जा पहुंची. राकेश की पत्नी कृष्णा के संबध भी अपने पति से ठीक नहीं थे.

दरअसल, तेजतर्रार और चंचल स्वभाव वाली कृष्णा के चरित्र पर राकेश को पहले से ही शक था. राकेश को भनक थी कि कृष्णा उस के ड्यूटी जाने के बाद घर से बाहर अपने चाहने वालों से मिलती रहती है. राकेश को तो इस बात का भी शक था कि कृष्णा के चाहने वाले उस से मिलने के लिए घर में भी आते हैं.

यही कारण था कि अकसर राकेश और कृष्णा के बीच झगड़ा होता रहता था. अपनी इसी झल्लाहट में राकेश कृष्णा पर अकसर हाथ भी छोड़ देता था. जब राकेश शराब पी लेता तो वह कृष्णा को न सिर्फ गालियां देता, बल्कि मारपीट करने के दौरान यहां तक तंज कस देता कि उसे शक है कि उस की तीनों औलाद असल में उस की हैं या किसी और की.

पिता का विरोध करने के लिए जब उस की दोनों बेटियां वैशाली और वैष्णवी उर्फ काव्या कोशिश करतीं तो उन्हें भी राकेश की मार का शिकार होना पड़ता.

इस दौरान जब एक दिन राकेश को पता चला कि काव्या का चक्कर समीर नाम के एक मुसलिम युवक से चल रहा है तो उन का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने पत्नी के साथ अब दोनों बेटियों पर भी लगाम कसनी शुरू कर दी. हालांकि समीर एमबीबीएस की तैयारी करने के लिए कोटा जरूर चला गया था, लेकिन वह हर हफ्ते चोरीछिपे अपने परिवार को बताए बिना शामली आता और काव्या से मिल कर चला जाता था.

काव्या और समीर की दोस्ती और परवान चढ़ रहे प्यार की कहानी की खबर काव्या की मां कृष्णा और उस की बड़ी बहन वैशाली को थी. इस की जानकारी राकेश को जब मोहल्ले के कुछ लोगों से मिली तो उस ने काव्या के साथ सख्ती से पेश आना शुरू कर दिया.

राकेश थक गया था लोगों के ताने सुन कर

शक की आग में जल रहे राकेश के गुस्से में एक दिन उस समय घी पड़ गया, जब वह अपनी ड्यूटी से घर लौट रहा था. मोहल्ले के ही एक व्यक्ति ने उसे रोक कर कहा, ‘‘राकेश भाई, आंखों पर ऐसी कौन से पट्टी बांध रखी है आप ने, जो दूसरे मजहब का एक लड़का सरेआम आप की बेटी को ले कर घूमता है. आप के घर आताजाता है. लेकिन न तो आप उसे रोक रहे हैं और न ही आप की धर्मपत्नी. अरे भाई अगर कोई डर या कोई दूसरी वजह है तो हमें बताओ, हम रोक देंगे उस लड़के को.’’

उस दिन कालोनी के व्यक्ति का ताना सुन कर राकेश के तनबदन में आग लग गई. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. इस से पहले भी अलगअलग लोगों ने दबी जुबान में इस बात की शिकायत की थी, लेकिन अब काव्या की शिकायतें खुल कर होने लगीं. खुद राकेश ने भी एकदो बार समीर को अपने घर आते देखा था.

राकेश ने पहले समीर को समझा कर कह दिया कि वह उस के घर न आया करे, क्योंकि काव्या से उस का मिलनाजुलना उन्हें पसंद नहीं है. बाद में जब समझाने पर भी समीर नहीं माना तो उस ने समीर को एक बार 2-3 थप्पड़ भी जड़ दिए. साथ ही धमकी भी दी कि अगर फिर कभी काव्या से मिलने की कोशिश की तो वह उसे पुलिस को सौंप देंगे.

इस के बाद से समीर ने काव्या से मिलने में सावधानी बरतनी शुरू कर दी. अब या तो वह काव्या से सिर्फ उस के घर पर ही मिलता था या फिर दोनों शहर से बाहर कहीं दूर जा कर मिलते थे.

राकेश के ड्यूटी पर निकल जाने के बाद घर में क्याक्या होता, यह खबर रखने के लिए राकेश ने अपने घर में सीसीटीवी कैमरे लगवा लिए. इन सीसीटीवी कैमरों का मौनीटर उस ने अपने मोबाइल फोन में इंस्टाल करवा लिया. इसी सीसीटीवी के जरिए वह राज खुल गया, जिस का राकेश को शक था. उस ने मौनीटर पर खुद देखा कि किस तरह उस की गैरमौजूदगी में उस की पत्नी और बेटी से मिलने के लिए उन के आशिक उसी के घर में आते हैं.

पहले पत्नी उतरी विरोध पर

पत्नी और बेटी के चरित्र के इस खुलासे के बाद राकेश का मन बेटियों और पत्नी के प्रति खट्टा हो गया. राकेश के लिए पत्नी और बेटियों के साथ मारपीट करना अब आए दिए की बात हो गई.

रोजरोज की मारपीट और बंधनों से परेशान कृष्णा ने एक दिन अपनी दोनों बेटियों के सामने खीझते हुए बस यूं ही कह दिया कि जिंदा रहने से तो अच्छा है कि ये इंसान मर जाए, पता नहीं वो कौन सा दिन होगा जब हमें इस आदमी से छुटकारा मिलेगा.

बस उसी दिन काव्या के दिलोदिमाग में ये बात बैठ गई कि जब तक उस का पिता जिंदा है, वह और उस की मांबहनें आजादी की सांस नहीं ले सकतीं, न ही अपनी मरजी से जिंदगी जी सकती हैं.

काव्या के दिमाग में उसी दिन से उधेड़बुन चलने लगी कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि उस का पिता उन के रास्ते से हट जाए. अचानक उस की सोच समीर पर आ कर ठहर गई. उसे लगने लगा कि समीर उस से जिस कदर प्यार करता है, बस एक वही है, जो उस की खातिर ये काम कर सकता है.

लेकिन इस के लिए जरूरी था कि समीर को भावनात्मक रूप से और लालच दे कर इस काम के लिए तैयार किया जाए. इस बात का जिक्र काव्या ने अपनी मां से किया तो उस ने भी हामी भर दी. बस फिर क्या था काव्या मौके का इंतजार करने लगी.

एक दिन मौका मिल गया. समीर ने रोजरोज चोरीछिपे मिलने से परेशान हो कर काव्या से कहा कि वह इस तरह मिलनेजुलने से परेशान हो चुका है, क्यों न वे दोनों भाग जाएं और शादी कर लें.

पिता को बताया जल्लाद

काव्या ने कहा कि वह उस से भाग कर नहीं बल्कि पूरे जमाने के सामने ही शादी करेगी लेकिन इस के लिए एक समस्या है. काव्या ने समीर से कहा कि उस के पिता उन के प्रेम में बाधा बने हैं. उन के जीते जी कभी वे दोनों एक नहीं हो सकते. उन के मेलजोल के कारण ही पिता आए दिन पूरे परिवार के साथ मारपीट करते है.

यदि वह उन्हें रास्ते से हटा दे तो वह उस के साथ शादी कर लेगी. काव्या ने समीर को ये भी लालच दिया कि सहारनपुर में उन का एक 100 वर्गगज का प्लौट है. अगर वो उस के पिता की हत्या कर देगा तो वह प्लौट वह उस के नाम कर देगी.

‘‘काव्या, ये तुम कैसी बात कर रही हो. ठीक है वो तुम लोगों के साथ सख्ती करते हैं, लेकिन इस का मतलब ये तो नहीं कि तुम उन की हत्या करने की बात सोचो.’’ समीर बोला.

‘‘समीर, तुम मेरी बात समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हो. तुम्हें पता नहीं मेरा बाप इंसान नहीं है जानवर है, जानवर. वो सिर्फ मुझे ही नहीं मेरी बहन और मां को भी छोटीछोटी बात पर पीटता है.’’

काव्या ने समीर के सामने अपने पिता को ऐसे जल्लाद इंसान के रूप में पेश किया कि समीर को यकीन हो गया कि राकेश की हत्या के बाद ही काव्या और उस के घर वालों को चैन की सांस मिल सकेगी. लिहाजा उस ने काव्या से वादा किया कि वह किसी भी तरह उस के पिता की हत्या कर के रहेगा.

काव्या ने एक और बात कही, जिस से समीर का मनोबल और बढ़ गया. उस ने समीर को बताया कि उस के पिता कमेटी डालने का धंधा भी करते हैं, जिस की वजह से रोज उन के पास हजारों रुपए रहते हैं. काव्या ने उसे समझाया कि जब तुम उन्हें गोली मारो तो उन का बैग छीन कर भाग जाना, इस से लगेगा कि उन की हत्या लूट के लिए हुई है. और हां, बैग में जो भी रकम हो वो तुम्हारी.

इस के बाद समीर के सामने समस्या यह थी कि वह राकेश की हत्या करने के लिए हथियार कहां से लाए. लिहाजा उस ने काव्या से सवाल किया, ‘‘यार, तुम्हारे बाप को तो मैं मार दूंगा लेकिन समस्या ये है कि मेरे पास कोई पिस्तौल वगैरह तो है नहीं फिर मारूंगा कैसे?’’

‘‘तुम उस की फिक्र मत करो. कैराना में हुए दंगों के वक्त पापा ने अपनी हिफाजत के लिए एक तमंचा खरीदा था, साथ में कुछ कारतूस भी हैं. मैं 1-2 दिन में तुम्हें ला कर दे दूंगी. उसी से गोली मार देना उन को.’’

समीर न तो पेशेवर अपराधी था और न ही उस में अपराध करने की हिम्मत थी. इसलिए उस ने अपने चाचा अनीस के बड़े बेटे शादाब से बात की. वह समीर का ही हमउम्र था. दोनों की खूब पटती थी.

जब समीर ने अपनी मोहब्बत की मजबूरी शादाब के सामने बयां की तो वह भी पशोपेश में पड़ गया. समीर ने शादाब को ये भी बता दिया था कि इस काम को करने के बाद उसे न सिर्फ उस की मोहब्बत मिल जाएगी बल्कि सहारनपुर में 100 वर्गगज का एक प्लौट तथा वारदात के बाद कुछ नकदी भी मिलेगी, जिस में से वह उसे भी बराबर का हिस्सा देगा.

शादाब भी लड़कपन की उम्र से गुजर रहा था. लालच ने उस के मन में भी घर कर लिया. इसलिए उस ने समीर से कह दिया, ‘‘चल भाई, तेरी मोहब्बत के लिए मैं तेरा साथ दूंगा.’’

वारदात से 3 दिन पहले किसी बात पर राकेश ने फिर से अपनी पत्नी कृष्णा और बेटी काव्या की पिटाई कर दी. जिस के बाद काव्या को लगा कि अब पिता को रास्ते से हटाने में देर नहीं करनी चाहिए.

उस ने अगली सुबह ही समीर को फोन कर उसे एक जगह मिलने के बुलाया और वहां उसे घर में रखा पिता का तमंचा और 2 कारतूस ले जा कर सौंप दिए.

खेला मौत का खेल

उसी दिन उस ने अपने पिता की हत्या के लिए 7 अप्रैल की तारीख भी मुकर्रर कर दी. काव्या ने समीर से साफ कह दिया कि अब वह उस से उसी दिन मिलेगी जब वह उस के पिता की हत्या को अंजाम दे देगा. मोहब्बत से मिलने की आस में समीर ने भी अब देर करना उचित नहीं समझा.

7 अप्रैल को जब राकेश अपनी ड्यूटी पर गया तो उस दिन सुबह से ही समीर काव्या से लगातार फोन पर संपर्क में रहा. और दिन भर ये जानकारी लेता रहा कि उस के पिता दिल्ली से कब चलेंगे. काव्या वैसे तो अपने पिता को फोन नहीं करती थी, लेकिन उस दिन उस ने दिन में 2 बार उन्हें किसी न किसी बहाने फोन किया.

शाम को भी करीब साढे़ 8 बजे काव्या ने पिता को फोन कर के पूछा कि वह कहां हैं. राकेश ने बेटी को बताया कि वह ट्रेन में हैं. काव्या ने फोन करने की वजह छिपाने के लिए कहा कि इलैक्ट्रिक प्रेस का प्लग खराब हो गया है, जब वह घर आएं तो बिजली वाले की दुकान से एक प्लग लेते आएं.

बस ये जानकारी मिलते ही काव्या ने समीर को फोन कर के बता दिया कि उस के पिता रोज की तरह 9, सवा 9 बजे तक शामली स्टेशन पहुंच जाएंगे. जिस के बाद समीर भी शादाब को लेकर स्टेशन पहुंच गया.

रात को करीब साढ़े 9 बजे राकेश जब स्टेशन से बाहर आया तो समीर व शादाब उस का पीछा करने लगे. रास्ते में कई जगह ऐसा मौका आया कि एकांत पा कर वे राकेश पर गोली चलाने ही वाले थे कि अचानक किसी गाड़ी या राहगीर के आने पर वे राकेश को गोली न मार सके. इसी तरह पीछा करतेकरते दोनों राकेश के घर के करीब पहुंच गए.

इस दौरान राकेश ने बिजली की दुकान से इलैक्ट्रिक प्रेस का प्लग खरीदा और फिर घर की तरफ चल दिया. समीर को लगा कि अगर वह अब भी राकेश का काम तमाम नहीं कर सका तो मौका हाथ से निकल जाएगा और काव्या कभी उसे नहीं मिल सकेगी. उस ने तमंचा झट से शादाब के हाथ में थमा दिया और बोला, ‘‘ले भाई, मार दे इसे गोली.’’

सब कुछ अप्रत्याशित ढंग से हुआ. शादाब ने तमंचा हाथ में लिया और भागते हुए बराबर में पहुंच कर राकेश पर गोली चला दी. गोली मारने के बाद समीर और शादाब ने पलट कर यह भी नहीं देखा कि गोली राकेश को कहां लगी है और वो जिंदा है या मर गया.

बस उन्हें डर था कि वो कहीं पकड़े न जाएं, इसलिए वे तुरंत घटनास्थल से भाग गए. समीर ने सुरक्षित स्थान पर पहुंचते ही काव्या को फोन कर के सूचना दे दी कि उस ने उस के पिता को गोली मार दी है.

इस के बाद रात भर में काव्या और समीर के बीच कई बार बातचीत हुई. समीर को ये जान कर सुकून मिला कि गोली सही निशाने पर लगी और उस ने राकेश का काम तमाम कर दिया है.

समीर ने तमंचा और बचा हुआ एक कारतूस उसी रात घर के पास नाले के किनारे एक झाड़ी में छिपा कर रख दिया था, जिसे पुलिस ने गिरफ्तारी के बाद उस की निशानदेही पर बरामद कर लिया. पुलिस ने इस मामले में हत्या के अभियोग के अलावा समीर और शादाब के खिलाफ शस्त्र अधिनियम का मामला भी दर्ज कर लिया.

एक गोली ने खत्म की लव स्टोरी

विस्तृत पूछताछ के बाद थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह कालरा ने समीर और शादाब के साथ काव्या को भी हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

लिहाजा 3 दिन तक जांच और कुछ अन्य साक्ष्य जुटाने के बाद थानाप्रभारी कालरा के निर्देश पर पुलिस टीम ने कृष्णा और वैशाली को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पुलिस पूछताछ में राकेश की हत्या की साजिश में शामिल होने का अपराध कबूल कर लिया. पुलिस ने 17 अप्रैल को दोनों को जेल भेज दिया.

अनैतिक रिश्तों का विरोध करने वाले पति और पिता की हत्या की सुपारी देने वाली मां और बेटियां तो जेल में अपने किए की सजा भुगत ही रही हैं, लेकिन समीर ने प्रेम में अंधे हो कर अपने डाक्टर बनने के सपने को खुद ही तोड़ दिया.

कथा पुलिस की जांच और काररवाई पर आधारित

 

सपनों से सस्ता सिंदूर : पति को बनाया शिकार

31 वर्षीय कल्पना बसु कर्नाटक के जिला बीवी का धोखा में आने वाले तालुका माहेर की रहने वाली थी. उस का जन्म एक मध्यवर्गीय किसान परिवार में हुआ था. उस के जन्म के कुछ दिनों पहले ही पिता का निधन हो गया था. मां ने मेहनतमजदूरी कर उसे पालापोसा. पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह ज्यादा पढ़ाईलिखाई भी नहीं कर पाई थी.

कल्पना खूबसूरत होने के साथसाथ महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह चाहती थी कि उसे ऐसा जीवनसाथी मिले जो उस की तरह हैंडसम हो और उस की भावनाओं की कद्र करते हुए सभी इच्छाओं को पूरा करे. लेकिन उस के इन सपनों पर पानी तब फिर गया जब उस की शादी एक ऐसे मामूली टैक्सी ड्राइवर बसवराज बसु के साथ हो गई, जो उस के सपनों के पटल पर कहीं भी फिट नहीं बैठता था.

38 वर्षीय बसवराज बसु उसी तालुका का रहने वाला था, जिस तालुका में कल्पना रहती थी. प्यार तो उसे बचपन से ही नहीं मिला था. उस के पैदा होने के बाद ही मांबाप दोनों की मौत हो गई थी. उसे नानानानी ने पालपोस कर बड़ा किया था. नानानानी की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वह भी पढ़लिख नहीं सका. जिंदगी का बोझ उठाने के लिए जैसेतैसे वह टैक्सी ड्राइवर बन गया था. ड्राइविंग का लाइसैंस मिलने पर वह माहेर शहर आ कर कैब चलाने लगा. जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो नातेरिश्तेदारों ने उस की शादी कराने की सोची. आखिरकार उस की शादी कल्पना से हो गई.

खुले विचारों वाली कल्पना से शादी कर के वह खुश था. लेकिन कल्पना उस से खुश नहीं थी. ड्राइवर के साथ शादी हो जाने से उस की सारी ख्वाहिशों और सपनों पर जैसे पानी फिर गया था. पति के रूप में एक मामूली टैक्सी ड्राइवर को पा कर उस के सारे सपने कांच की तरह टूट कर बिखर गए थे.

कुल मिला कर बसवराज बसु और कल्पना का कोई मेल नहीं था, लेकिन मजबूरी यह थी कि वह करती भी तो क्या. बसवराज बसु अपनी आमदनी के अनुसार पत्नी की जरूरतों को पूरी करने की कोशिश करता था, पर पत्नी की ख्वाहिशें कम नहीं थीं. उस की आकांक्षाएं ऐसी थीं, जिन्हें पूरा करना बसवराज के वश की बात नहीं थी. लिहाजा वह अपनी किस्मत को ही कोसती रहती.

समय अपनी गति से चलता रहा. कल्पना 2 बच्चों की मां बन गई. इस के बाद कल्पना की जरूरतें और ज्यादा बढ़ गई थीं, जिन्हें बसवराज बसु पूरा नहीं कर पा रहा था. ऐसी स्थिति में कल्पना की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. उस का पति जब घर से टैक्सी ले कर निकलता था तो तीसरेचौथे दिन ही घर लौट कर आता था. घर आने के बाद भी वह कल्पना का साथ नहीं दे पाता था. ऐसे में कल्पना जल बिन मछली की तरह तड़प कर रह जाया करती थी.

उड़ान के लिए कल्पना को लगे पंख

कल्पना खूबसूरत और जवान थी. बस्ती में ऐसे कई युवक थे, जो उस को चाहत भरी नजरों से देखते थे. एक दिन कल्पना के मन में विचार आया कि क्यों न ऐसे युवकों से लाभ उठाया जाए. इस से उस के सपने तो पूरे हो ही सकते हैं, साथ ही शरीर की जरूरत भी पूरी हो जाएगी.

यही सोच कर कल्पना ने उन युवकों को हरी झंडी दे दी. कई युवक उस के जाल में फंस गए. बच्चों के स्कूल और पति के काम पर जाने के बाद वह मौका देख कर उन्हें घर बुला कर मौजमस्ती करने लगी, साथ ही उन से मनमुताबिक पैसे भी लेने लगी.

कल्पना का रहनसहन और घर के बदलते माहौल को पहले तो बसवराज समझ नहीं सका, लेकिन जब सच्चाई उस के सामने आई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि जिस पत्नी को वह अपनी जान से भी ज्यादा चाहता है, जिस के लिए वह रातदिन मेहनत करता है, उस के पीठ पीछे वह इस तरह का काम करेगी. उस ने यह भी नहीं सोचा कि दोनों बच्चों पर इस का क्या असर पड़ेगा.

मामला काफी नाजुक था. मौका देख कर बसवराज बसु ने जब कल्पना को समझाना चाहा तो वह उस पर ही बरस पड़ी. उस ने पति को घुड़कते हुए कहा कि तुम्हारे और बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद अगर मैं अकेली रहती हूं. ऐसे में अगर मैं किसी से दोचार बातें कर लेती हूं तो इस में बुरा क्या है. तुम्हें यह अच्छा नहीं लगता तो मैं आत्महत्या कर लेती हूं.

कल्पना का बदला व्यवहार और माहौल देख कर बसवराज बसु यह बात अच्छी तरह से समझ गया कि कल्पना को समझानेबुझाने से कोई फायदा नहीं होगा. इसलिए उस ने उस जगह को छोड़ देना ही सही समझा. वह पत्नी और बच्चों को ले कर बेलगांव शहर चला गया.

वहां बसवराज कुड़चड़े थाने के अंतर्गत आने वाले अनु अपार्टमेंट में किराए का फ्लैट ले कर रहने लगा. उस ने टैक्सी चलानी बंद कर दी और किसी की निजी कार चलाने लगा. उसे विश्वास था कि बेलगांव में रह कर पत्नी के आशिक छूट जाएंगे और वह सुधर जाएगी.

लेकिन बसवराज की यह सोच गलत साबित हुई. कल्पना चतुर और स्मार्ट महिला थी. बेलगांव आ कर वह और भी आजाद हो गई. यहां उसे न समाज का डर था और न गांव का. उस ने उसी अपार्टमेंट में रहने वाले पंकज पवार नाम के युवक को फांस लिया. पंकज एक निजी कंपनी में डाटा एंट्री औपरेटर था. वह मडगांव का रहने वाला था.

बसवराज की सोच हुई गलत साबित

31 वर्षीय पंकज पवार की शादी हो चुकी थी. उस के 2 बच्चे भी थे. लेकिन वह कल्पना के लटकोंझटकों से बच नहीं सका. कल्पना से संबंध बन जाने के बाद पंकज पवार उस के फ्लैट पर आनेजाने लगा. एक दिन पंकज कल्पना से मुलाकात कराने के लिए अपने 3 दोस्तों सुरेश सोलंकी, अब्दुल शेख और आदित्य को भी साथ ले आया. पहली ही मुलाकात में ही कल्पना ने उस के तीनों दोस्तों पर ऐसा जादू किया कि वे भी उस के मुरीद हो गए. उन तीनों से भी कल्पना के संबंध बन गए.

कुछ ही दिनों में कल्पना के यहां आने वाले युवकों की संख्या बढ़ने लगी. धीरेधीरे कल्पना के कारनामों की जानकारी इलाके भर में फैल गई. उस की वजह से बसवराज बसु की ही नहीं, बल्कि पूरे मोहल्ले की बदनामी होने लगी. ऐसे में बसवराज का वहां रहना मुश्किल हो गया. दोनों बच्चे अब काफी बड़े हो गए थे. बसवराज बसु ने अपने बच्चों के भविष्य के मद्देनजर कल्पना को काफी समझाया, लेकिन अपनी मौजमस्ती के आगे उस ने बच्चों को कोई अहमियत नहीं दी.

कल्पना पर जब पति के समझाने का कोई असर नहीं हुआ तो वह उसे छोड़ कर वहीं पर जा कर रहने लगा, जहां वह नौकरी करता था. इस के बावजूद वह अपनी पूरी पगार ला कर कल्पना को दे जाता था.
हालांकि कल्पना के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. बसवराज बसु के जाने के बाद वह और भी आजाद हो गई थी. वह अपने चारों दोस्तों के साथ बारीबारी से घूमतीफिरती और मौजमजा करती. इस के अलावा वह उन से अच्छीखासी रकम भी ऐंठती थी. वह पूरे समय अपने रूपयौवन को सजानेसंवारने में लगी रहती थी. यहां तक कि अब वह घर पर खाना तक नहीं बनाती थी. खाना पकाने के लिए उस ने अपने प्रेमी अब्दुल शेख की पत्नी सिमरन शेख को सेवा में रख लिया था.

2 अप्रैल, 2018 को बसवराज बसु की जिंदगी का आखिरी दिन था. एक दिन पहले उसे जो पगार मिली थी, उसे पत्नी को देने के लिए वह 2 अप्रैल को दोपहर में फ्लैट पर पत्नी के पास पहुंचा. घर का जो माहौल था, उसे देख कर उस का खून खौल उठा. कल्पना ने बेशरमी की हद कर दी थी. वहां पर सुरेश सोलंकी, आदित्य और अब्दुल शेख जिस अवस्था में थे, उसे देख कर साफ लग रहा था कि कल्पना उन के साथ क्या कर रही थी. यह देख कर बसवराज का खून खौल गया.

वह पत्नी को खरीखोटी सुनाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हें खर्चे के लिए पैसे देने के लिए आता हूं. लेकिन तुम्हारा यह घिनौना रूप देख कर तुम्हें पैसा देने और यहां आने का मन नहीं होता. लेकिन बच्चों के लिए यह सब करना पड़ता है.’’

बसवराज की मौत आई रस्सी में लिपट कर

पति की बात सुन कर कल्पना डरी नहीं बल्कि वह भी उस पर हावी होते हुए बोली, ‘‘तो मत आओ. मैं ने तुम्हें कब बुलाया और पैसे मांगे. तुम क्या समझते हो, मेरे पास पैसे नहीं हैं? तुम कान खोल कर सुन लो, मैं जिस ऐशोआराम से रह रही हूं, वह तुम्हारे पैसों से नहीं मिल सकता. तुम्हारी पूरी पगार से तो मेरा शैंपू ही आएगा. रहा सवाल बच्चों का तो उन की चिंता तुम छोड़ दो.’’

कल्पना की यह बात सुन कर बसवराज बसु को जबरदस्त धक्का लगा. इस के बाद पतिपत्नी के बीच झगड़ा बढ़ गया. तभी गुस्से में आगबबूला कल्पना ने अपने तीनों प्रेमियों को इशारा कर दिया. कल्पना का इशारा पाते ही उस के तीनों प्रेमियों ने मिल कर बसवराज बसु को पीटपीट कर बेदम कर दिया.
शारीरिक रूप से कमजोर बसवराज बसु बेहोश हो कर जमीन पर गिर गया. उसी समय अब्दुल शेख की बीवी सिमरन भी वहां आ गई. तभी कल्पना के घर के अंदर बंधी नायलौन की रस्सी खोल कर बसवराज के गले में डाल कर पूरी ताकत से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई. यह देख कर सिमरन सहम गई.

टुकड़ों में बंट गया पति

अब्दुल शेख और कल्पना ने सिमरन को धमकी दी कि अपना मुंह बंद रखे. अगर मुंह खोला तो उस का भी यही हाल होगा. डर की वजह से सिमरन चुप रही. कल्पना और उस के प्रेमियों का गुस्सा शांत हुआ तो वे बुरी तरह घबरा गए. हत्या के समय पंकज वहां नहीं था.

थोड़ी देर सोचने के बाद कल्पना और उस के प्रेमियों ने बसवराज बसु की लाश ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. कल्पना ने शव ठिकाने लगवाने के मकसद से पंकज को फोन कर के बुला लिया. लेकिन पंकज को जब हत्या का पता चला तो वह घबरा गया. पहले तो पंकज ने इस मामले से अपना हाथ खींच लिया, लेकिन अपनी प्रेमिका कल्पना को मुसीबत में घिरी देख कर वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया.
चारों ने मिल कर बसवराज बसु के शव को बाथरूम में ले जा कर उस के 3 टुकड़े किए और उन टुकड़ों को कपड़ों में लपेट कर प्लास्टिक की 3 बोरियों में भर दिया. मौका देख कर उसी रात 12 बजे इन लोगों ने तीनों बोरियों को अब्दुल शेख की कार की डिक्की में रख दिया. इस के बाद ये लोग कुड़चड़े महामार्ग के अनमोड़ घाट गए और उन बोरियों को एकएक किलोमीटर की दूरी पर घाट की घाटियों में दफन कर के लौट आए.

जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे इस हत्याकांड के सभी अभियुक्त बेखबर होते गए. उन का मानना था कि इस हत्याकांड से कभी परदा नहीं उठेगा और उन का राज राज ही रह जाएगा. लेकिन वे यह भूल गए थे कि उन के इस राज की साक्षी अब्दुल शेख की बीवी सिमरन शेख थी, जिस की आंखों के सामने बसवराज बसु की हत्या का सारा खेल खेला गया था. वह इस राज को अपने सीने में छिपाए हुए थी.
पता नहीं क्यों सिमरन को हत्या में शामिल लोगों से डर लगने लगा था. यहां तक कि अपने पति से भी उस का विश्वास नहीं रहा. उसे ऐसा लगने लगा जैसे उस की जान को खतरा है. वे लोग अपना पाप छिपाने के लिए कभी भी उस की हत्या कर सकते हैं. इस डर की वजह से सिमरन शेख बेलगांव की जानीमानी पत्रकार ऊषा नाईक देईकर से मिली और उस ने बसवराज बसु हत्याकांड की सारी सच्चाई बता दी.

आखिर राज खुल ही गया

बसवराज बसु की हत्या की सच्चाई जान कर ऊषा नाईक के होश उड़ गए. उन्होंने सिमरन शेख को साहस और सुरक्षा का भरोसा दे कर मामले की सारी जानकारी बेलगांव कुड़चड़े पुलिस थाने के थानाप्रभारी रवींद्र देसाई और उन के वरिष्ठ अधिकारियों को दी. वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में थानाप्रभारी रवींद्र देसाई ने अपनी जांच तेजी से शुरू कर दी.

उन्होंने 24 घंटे के अंदर बसवराज बसु हत्याकांड में शामिल कल्पना बसु के साथ पंकज पवार, अब्दुल शेख और सुरेश सोलंकी को गिरफ्त में ले कर वरिष्ठ अधिकारियों के सामने पेश किया, जहां सीपी अरविंद गवस ने उन से पूछताछ की. पुलिस गिरफ्त में आए चारों आरोपी कोई पेशेवर अपराधी नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

9 मई, 2018 को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस अनमोड़ घाट की उस जगह पर ले कर गई, जहां उन्होंने बसवराज बसु के शव के टुकड़े दफन किए थे. उन की निशानदेही पर पुलिस ने शव के तीनों टुकड़ों को बरामद कर लिया. घटना के समय बसवराज जींस पैंट पहने हुए था. उस की पैंट की जेब में उस का ड्राइविंग लाइसेंस मिला, जिस से यह बात सिद्ध हो गई कि शव बसवराज का ही था. शव को कब्जे में लेने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मडगांव के बांबोली अस्पताल भेज दिया.

पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए कल्पना बसु, पंकज पवार, सुरेश सोलंकी और अब्दुल शेख से विस्तृत पूछताछ कर के उन के विरुद्ध भांदंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. फिर चारों को मडगांव मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इस हत्याकांड का एक आरोपी आदित्य गुंजर फरार था, जिस की पुलिस बड़ी सरगरमी से तलाश कर रही थी.

चौधरी की भूलभुलैया : अपनी ही बनाई योजना में फंसा – भाग 3

उस के जाने के बाद मैं ने मुराद की ओर देखा, वह मेरे इशारों को समझ गया था. उस की उम्र लगभग 25 साल होगी. उस की आंखों में लोमड़ी सी मक्कारी भरी थी. वह बड़ी ढिठाई से बोला, ‘‘थानेदार साहब, मुझे यहां किस अपराध में गिरफ्तार कर के लाया गया है?’’

मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हें बहुत गंभीर अपराध में गिरफ्तार किया गया है. अगर तुम ने अपना अपराध आसानी से स्वीकार कर लिया तो फायदे में रहोगे.’’

वह मेरी बात से थोड़ा डरा, लेकिन कुछ देर बाद बोला, ‘‘जब मैं ने कोई अपराध ही नहीं किया तो किस बात को स्वीकार कर लूं?’’

मैं ने अपनी दराज में से कपड़े में लिपटा एक रिवौल्वर निकाला और उस की एक झलक उसे दिखाते हुए बोला, ‘‘इसे पहचानते हो?’’

रिवौल्वर को देख कर उस की आंखों में लोमड़ी जैसी चमक आ गई. मैं समझ गया कि उस ने रिवौल्वर को पहचान लिया है. उस ने बड़ी ढिठाई से कहा, ‘‘यह तो हथियार है. इस का मुझ से क्या संबंध है?’’

मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘इस रिवौल्वर का तुम से बहुत गहरा संबंध है. शराफत से मान जाओ, नहीं तो बहुत बड़ी मुसीबत तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

‘‘मैं किस बात को मान लूं?’’ उस ने अकड़ कर जवाब दिया.

‘‘यह मान लो कि तुम ने यह रिवौल्वर बशारत की चारे वाली गाड़ी में घास के अंदर छिपाया था.’’

‘‘यह झूठ है.’’ वह चीखा.

मैं ने कड़क कर कहा, ‘‘यह थाना है, तुम्हारी खाला का घर नहीं, ज्यादा तेज आवाज में बोलोगे तो जबान निकाल कर बाहर फेंक दूंगा.’’

मेरे तेवर बदलते देख कर वह कुछ नरम पड़ते हुए बोला, ‘‘सर, मैं इस रिवौल्वर के बारे में कुछ नहीं जानता.’’

‘‘मैं बताता हूं,’’ मैं ने तीखे स्वर में कहा, ‘‘यह वह रिवौल्वर है, जिस से तुम्हारे साथी मुश्ताक और सुग्गी की हत्या की गई है और यह काम तुम्हारे अलावा कोई नहीं कर सकता.’’

मेरी इस बात से वह और भी नरम हो कर बोला, ‘‘आप के पास इस बात का क्या सबूत है?’’

मैं ने थोड़ा झूठ मिला कर कहा, ‘‘पहला सब से बड़ा सबूत तो यह है कि इस पर तुम्हारी अंगुलियों के निशान हैं, जिन की जांच मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट से करवा ली है.’’

वह मेरी चाल में आ गया. उस ने कहा, ‘‘यह नहीं हो सकता, मैं ने तो…’’ वह बोलतेबोलते रुक गया. वह कुछ ऐसी बात कहना चाह रहा था, जो उसे फांसी तक ले जाती.

मैं ने उस की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वह इसलिए न कि तुम ने घास में रिवौल्वर छिपाते वक्त उस पर से अपनी अंगुलियों के निशान मिटा दिए थे.’’

वह बोला, ‘‘आप तो मुझे पागल कर देंगे.’’

‘‘पागल तो तुम हो, मैं तो तुम्हारे पागलपन का इलाज कर रहा हूं. बताओ, पागलपन में तुम ने उन दोनों की हत्या की थी, उन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘मैं ने किसी की हत्या नहीं की है.’’ उस की हठधर्मी जाने का नाम नहीं ले रही थी.

‘‘इस का मतलब यह है कि तुम शराफत की जबान नहीं समझते. तुम्हारी जबान खुलवाने के लिए चमन को बुलाना पड़ेगा.’’

‘‘सर, आप से कोई बड़ी गलती हो गई है.’’

मैं ने उसे एक मुक्का मार कर कहा, ‘‘गलती के बच्चे, क्या यह सही नहीं है कि कल दोपहर बाद 3 बजे तुम बशारत से खेतों पर मिले थे और बैलगाड़ी में चारा लदवाने में उस की मदद की थी?’’

वह इस बात से मुकरते हुए बोला, ‘‘मैं ने उस की शक्ल तक नहीं देखी.’’

मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘कल जब तुम उस के पास पहुंचे तो बशारत ने तुम से कहा था कि डेरे से फायरिंग की कैसी आवाज आई थी, इस पर तुम ने कहा था कि मैं तो नहर पार वाले खेतों की ओर से आ रहा हूं, इसलिए फायरिंग का कुछ पता नहीं.’’

‘‘यह बिलकुल झूठ है.’’

‘‘क्या झूठ है, फायरिंग का होना या बशारत का तुम से पूछना और उसे जवाब देना?’’

‘‘मैं बशारत की बात कर रहा हूं, मैं उस से न तो मिला था और न ही उस से कोई बात हुई थी.’’

‘‘तुम्हारा मतलब दूसरी बात ठीक है. फायरिंग वास्तव में हुई थी.’’

‘‘जी हां, फायरिंग की आवाज सुन कर तो मैं डेरे की ओर भागा था.’’

वह मेरे बिछाए जाल में फंस गया था, मैं ने उस से पूछा, ‘‘जब फायरिंग हुई थी, तब तुम कहां थे?’’

‘‘मैं नहर पार वाले खेतों में था.’’

‘‘तुम डेरे से इतनी दूर वहां क्या कर रहे थे?’’

उस ने कहा, ‘‘कल दोपहर में मैं ने और मुश्ताक ने एक साथ खाना खाया था. खाने के बाद मुश्ताक ने मुझ से नहर पार वाली जमीन पर जाने के लिए कहा. उधर कुछ काम था, मैं 2 बजे वहां चला गया और अपने काम में लग गया. कुछ ही देर हुई थी कि डेरे की ओर से फायरिंग की आवाज सुनाई दी. मैं सब काम छोड़ कर डेरे की ओर भागा. जब मैं वहां पहुंचा तो मुश्ताक और सुग्गी को बड़ी खराब हालत में देखा, वे खून में नहाए हुए थे.

‘‘उन की लाशें देख कर मैं तुरंत चौधरी के पास गया और उन्हें पूरी बात बताई. चौधरी मेरे साथ आए और देख कर थूथू करने लगे. बस यही कहानी थी सर.’’

‘‘बहुत अच्छी कहानी गढ़ी है तुम ने. तुम ने बशारत के बयान को तो झूठा बता दिया, बिलकीस के बारे में तुम क्या कहते हो?’’

‘‘क्या बिलकीस ने भी मेरे बारे में कुछ कहा है?’’

‘‘हां, उस ने बहुत कुछ कहा है.’’

‘‘क्या…क्या…’’ वह घबराते हुए बोला.

‘‘बताने का कोई फायदा नहीं, उस के बयान को तो तुम पहले ही झुठला चुके हो.’’

‘‘मैं समझा नहीं थानेदार साहब,’’ वह हैरत से मेरी ओर देखने लगा.

मैं ठहर कर बोला, ‘‘अभी कुछ देर पहले तुम ने कहा था कि मुश्ताक और सुग्गी के अवैध संबंधों का तुम्हें पता नहीं था और दूसरी ओर तुम बिलकीस को यह पट्टियां पढ़ाते रहे हो कि वह अपने पति पर नजर रखे, क्योंकि सुग्गी के साथ उस का कोई चक्कर चल रहा है और वह मुश्ताक से मिलने डेरे पर आती रहती है.’’

‘‘यह बात गलत है, मैं ने कभी बिलकीस से कोई बात नहीं की.’’

उस की बातों से लग रहा था कि वह हार मानने वाला नहीं है. मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘बशारत झूठा है और बिलकीस ने भी तुम्हारे बारे में गलत बयान दिया है. लेकिन एक बात याद रखो, तुम मेरे हत्थे चढ़े हो, मैं तुम्हें सीधा अदालत ले जाऊंगा और साथ में दोनों गवाहों को भी. फिर बिलकीस और बशारत की गवाही तुम्हें सीधा जेल भिजवा देगी.’’

मैं ने चमन शाह को बुला कर कहा कि यह तुम्हारा केस है, इसे ले जाओ और इस की अच्छी तरह खातिर करो. वह उसे अपने साथ ले गया.

अंधेरा होने से पहले चौधरी गनी थाने आया, वह काफी गरम दिखाई दे रहा था. आते ही बोला, ‘‘मलिक साहब, यह आप ने क्या अंधेर मचा रखी है. आप ने हत्यारे को खुला छोड़ कर एक निर्दोष को पकड़ लिया.’’

मैं ने अंजान बन कर कहा, ‘‘आप किस हत्यारे और किस निर्दोष की बात कर रहे हैं?’’

‘‘मैं बशारत और मुराद की बात कह रहा हूं.’’

‘‘अच्छा तो आप यह कहना चाहते हैं कि बशारत हत्यारा और मुराद निर्दोष है.’’

‘‘इस में क्या शक है?’’

‘‘आप के पास इस का कोई सबूत?’’ मैं ने पूछा.

वह मुझे घूरते हुए बोला, ‘‘सबूत तो आप के पास भी नहीं है.’’

‘‘मेरे पास बहुत सबूत हैं, सुबह तक दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.’’ मैं ने पूरे विश्वास से कहा.

चौधरी बहुत गुस्से में दिखाई दे रहा था. मुराद उस का खास आदमी था. वह उस के बचाव के लिए बोला, ‘‘या तो आप बशारत को भी बंद करें या मुराद को छोड़ दें.’’

मैं ने उसी के स्वर में जवाब दिया, ‘‘अब आप मुझे थानेदारी सिखाएंगे?’’

‘‘आप अच्छा नहीं कर रहे हैं, मलिक साहब.’’ उस की आवाज में धमकी छिपी थी.

‘‘मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, सोचसमझ कर रहा हूं. मैं अपने काम में किसी का दखल सहन नहीं कर सकता. अब आप जा सकते हैं.’’ मेरे इस व्यवहार से वह मुझे घूरता रहा, फिर फुफकारते हुए बोला, ‘‘मैं मुराद से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

मैं ने इनकार कर दिया.

वह पैर पटक कर जाते हुए कहने लगा, ‘‘मैं तुम्हें देख लूंगा थानेदार.’’

‘‘बता कर देखने आना चौधरीजी, ताकि मैं तैयार हो कर बैठूं.’’

मैं ने चमन शाह को बुलाया और मुराद के बारे में जरूरी निर्देश दिए कि अगर कोई मुराद से मिलने आए तो उसे हवालात के पास फटकने तक नहीं देना.

अगला दिन बड़ा हंगामे वाला गुजरा. मुश्ताक और सुग्गी की लाशें आ गईं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हिसाब से उन की मौत दोपहर 2 और 3 बजे के बीच हुई थी. यह रिपोर्ट मेरे अनुमान की पुष्टि कर रही थी. दोनों को उन की बेखबरी में गोली मारी गई थी. उन्हें संभलने का भी मौका नहीं मिला था.

रिपोर्ट के मुताबिक मुश्ताक को 4 और सुग्गी को 2 गोलियां मारी गई थीं, जिस से दोनों की मौत मौके पर ही हो गई थी. मैं ने जरूरी कागज तैयार कर के लाशें उन के घर वालों को सौंप दीं. फिर मैं ने हवलदार चमन शाह से पूछा कि हवालाती का क्या हाल है, उस ने कुछ कबूला या नहीं.

उस ने मूंछों पर ताव दे कर कहा, ‘‘क्या बात करते हैं सरजी, आप का शिष्य हूं, नाकाम कैसे हो सकता हूं. मैं ने उस से अपराध कबूलवा लिया है.’’

‘‘इस का मतलब है कि वह बयान देने के लिए तैयार है. उसे मेरे पास ले आओ.’’

कुछ देर बाद वह उसे ले आया. मैं समझ रहा था कि उस की हत्या ईर्ष्या की वजह से हुई होगी, लेकिन उस के बयान के मुताबिक दोनों की हत्या चौधरी के कहने पर की गई थी.

मुराद के बयान के मुताबिक चौधरी और सुग्गी के आपस में अवैध संबंध थे. यह चक्कर तब शुरू हुआ था, जब सुग्गी चौधरी की बीमार पत्नी नरगिस की मालिश करने आती थी. उसी दौरान चौधरी ने उस से संबंध बना लिए थे. इन दोनों का मिलन चलता रहा. इसी बीच चौधरी को पता लगा कि सुग्गी के संबंध उस के नौकर मुश्ताक से भी हैं. यह जान कर उसे बहुत गुसा आया. उस ने दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने और पहले से ज्यादा मिलने लगे.

अंत में मजबूर हो कर चौधरी ने मुराद से उन की हत्या करने के लिए कह दिया. घटना के दिन मुराद ने ही खाला मुखतारा को सुग्गी को बुलाने के लिए भेजा था और कहा था कि उसे मुश्ताक ने बुलाया है.

मुराद जानता था कि सुग्गी बशारत को खाना खिलाने के बाद सीधे मुश्ताक से मिलने आएगी. उस ने मुश्ताक से कहा कि वह नहर पार वाले खेतों पर जा रहा है. उस समय मुश्ताक ट्यूबवैल वाले कमरे में था. मुराद उन्हें धोखा देने के लिए वहां से चला गया. फिर उन की आंख बचा कर कमरे के पीछे चला गया और कमरे में आ कर तख्त के पीछे रिवौल्वर तैयार कर के खड़ा हो गया.

सुग्गी जैसे ही आई, मुश्ताक ने उसे कमरे में बुलाया और दरवाजा बंद कर लिया. दोनों मस्ती करने लगे. मुराद चुपके से निकला और दोनों को गोली मार दी. जब उस ने देखा कि दोनों मर गए हैं तो उस ने तख्त को कमरे से निकाल कर कबाड़ वाले कमरे में रख दिया.

जब मैं जांच के लिए वहां पहुंचा तो मुझे उस कमरे में कोई तख्त नहीं दिखाई दिया. दोनों की हत्या कर के चौधरी की योजना के अनुसार मुराद रिवौल्वर को बशारत के सामान में छिपाना चाहता था, जिस से छानबीन के दौरान पुलिस का शक बशारत पर ही जाए.

मुराद का बयान बहुत खास था. उस ने चौधरी के कहने से मुश्ताक और सुग्गी की हत्या की थी, इसलिए चौधरी भी इस अपराध में बराबर का भागीदार था और यह उसे जेल में डालने के लिए काफी था. मैं ने चौधरी को खुद गिरफ्तार करने का फैसला किया और हवलदार चमन से कहा कि मुराद की देखभाल जरूरी है, किसी को हवालात के पास तक आने नहीं देना.

मैं कांस्टेबल आफताब को साथ ले कर हवेली की ओर चल दिया. हमारी जीप चौधरी  की हवेली पहुंची. उस वक्त चौधरी हवेली से निकल रहा था. अगर हमें थोड़ी देर हो जाती तो वह चला जाता. मुझे देख कर चौधरी ठिठका. मेरा दिल तो कर रहा था कि उसे इसी समय हथकड़ी पहना दूं, लेकिन मैं उस से थोड़ी ठिठोली करना चाहता था.

मैं ने कहा, ‘‘चौधरी साहब, सब कुशल तो है? बनठन कर सुबहसुबह कहां चले?’’

‘‘मैं डीएसपी साहब से मिलने जा रहा हूं.’’ उस ने बताया.

‘‘कोई खास समस्या आ गई है क्या?’’

वह कहने लगा, ‘‘मलिक साहब, जिन अधिकारियों के आगे आप लोग सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं, वे मेरे दोस्तों में हैं. आप को पता नहीं चौधरी गनी कितना ताकतवर है.’’

उस ने मुझे हवेली में बैठने के लिए भी नहीं कहा. उसे यह पता नहीं था कि अभी कुछ ही देर में मैं उसे हवालात में डालने वाला हूं. मैं ने उसे और अधिक उल्लू बनाने के लिए कहा, ‘‘चौधरी साहब, मुझे आप की पावर का पता लग गया है. मेरे थाने में बडे़ अधिकारियों के भेजे हुए कुछ लोग आए बैठे हैं. लगता है, आप की पहुंच बहुत ही ऊपर तक है. तभी आप ने मेरी शिकायत ऊपर कर दी है.’’

‘‘आप ने भी तो बहुत अंधेर मचा रखी है.’’

मैं ने कहा, ‘‘जो हुआ, सो हुआ. इस समय आप मेरे साथ थाने चलें. मुराद का केस निपटाना है. मैं ने उसे हवालात में बंद कर के बहुत बड़ी गलती की है. आप डीएसपी साहब से फिर कभी मिल लेना.’’

वह मेरे झांसे में आ गया और बोला, ‘‘अच्छा, थाने में कौन आए हैं, क्या एसपी साहब ने अपने आदमी भेजे हैं?’’

इस बात से यह पता लग गया कि उस ने एसपी तक मेरी शिकायत की है. मैं ने कहा, ‘‘यहां खड़ेखड़े क्या बात होगी. आप मेरे साथ थाने चलें, वहीं चल कर बात करेंगे.’’

वह खुश हो गया और हम लोग थाने पहुंच गए. वहां मैं ने चौधरी को अपने कमरे में बिठाया. उस ने कमरे में चारों ओर देखा. दरअसल, वह यह देखना चाह रहा था कि कौन आया है.

मैं ने उस से कहा, ‘‘टांग के दर्द ने आप की अक्ल भी छीन ली है. मैं वर्दी पहने बैठा हूं और आप को मैं दिखाई नहीं दे रहा, वह बंदा मैं ही हूं.’’

‘‘आप मुझे धोखा दे कर यहां लाए हैं, यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’

‘चौधरी साहब, मैं केस की तफ्तीश पूरी कर चुका हूं. मुझे इस केस में आप की बहुत जरूरत है. आप के कहने से मुराद ने सुग्गी और मुश्ताक की हत्या की है.’’ फिर मैं ने उसे पूरी कहानी सुना दी.

वह कुरसी से खड़ा हो कर तैश में बोला, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’

मैं भी खड़ा हो कर बोला, ‘‘यह बदतमीजी नहीं, बल्कि सच्चाई है. जो कुछ आप ने सुना, वह मुराद का बयान है. आप ही के आदेश पर उस ने सुग्गी और मुश्ताक को निर्दयता से गोलियां मारीं.’’

उस का चेहरा एकदम सफेद पड़ गया, वह बोला, ‘‘क्या उस ने मेरे खिलाफ बयान दे दिया है, उस की इतनी हिम्मत?’’

मैं ने कहा, ‘‘चौधरी साहब, यह आप की हवेली नहीं, थाना है. अब आप भी पुलिस कस्टडी में हैं. आप भी मुराद के साथ जेल की ताजी ठंडी हवा का मजा लोगे.’’

वह बहुत गुस्सा हुआ और पैर पटकते हुए बोला, ‘‘उस की मैं अभी जबान काट लूंगा.’’

कह कर वह दरवाजे की ओर भागा. मैं ने तुरंत हवलदार चमन को आवाज दे कर कहा, ‘‘इसे देखो.’’

चमन शाह पहले से ही तैयार था, लेकिन चौधरी ने तेजी से उसे धक्का दिया, जिस से चमन डगमगा गया. वह संभल कर चौधरी के पीछे भागा. मैं अपने कमरे से निकला तो फायरिंग की आवाज आई.

मैं ने भाग कर देखा तो हवालात के बाहर चमन शाह ने चौधरी को दबोच रखा था और दूसरे कांस्टेबल उस से रिवौल्वर छीनने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने हवालात में देखा तो मुराद जमीन पर उल्टा पड़ा था और उस के शरीर से खून बह रहा था. उस ने उस का सीना छलनी कर दिया था.

चौधरी ने मेरा काम आसान कर दिया था, अब किसी तफ्तीश की जरूरत नहीं थी. उसे फांसी के फंदे तक पहुंचाने के लिए यही सबूत काफी थे.

मैं ने कागज तैयार कर के मुराद की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और चौधरी को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मुकदमा चला और उसे फांसी की सजा हो गई.

गायत्री की खूनी जिद : कैसे बलि का बकरा बन गया संजीव – भाग 3

एक दिन गायत्री की मां रामश्री की रात को नींद खुल गई. उस दिन मां ने गायत्री और रंजीत को रंगे हाथों पकड़ लिया. इस पर घर वालों ने गायत्री की पिटाई कर दी. इस के बाद गायत्री के लिए रिश्ते की तलाश होने लगी. आखिर उन्होंने गायत्री की शादी संजीव से कर के राहत की सांस ली. हालांकि गायत्री ने इस शादी का विरोध किया था लेकिन घर वालों ने उस की एक नहीं सुनी थी.

बेटी की शादी के बाद सब निश्चिंत थे, लेकिन शादी के बाद भी गायत्री के नाजायज संबंध रंजीत से बने रहे. एक दिन रंजीत उस की ससुराल भी पहुंच गया. गायत्री ने उसे अपना दूर का रिश्तेदार बताया. ससुराल वालों ने भी मान लिया, लेकिन बाद में दूर के इस रिश्तेदार का कुछ ज्यादा ही आनाजाना होने लगा तो ससुराल वालों ने आपत्ति जताई.

गायत्री नहीं चाहती थी कि यह बात मायके वालों तक जाए. अत: उस ने अब अपना पुराना फारमूला अपनाया. वह ससुरालियों को भी रात के खाने में नींद की गोलियां देने लगी. इस तरह वह ससुराल में भी बेखौफ इश्क लड़ाती रही. गायत्री यह जानती थी कि ऐसा हमेशा नहीं चल सकता.

अब संजीव को भी उस पर शक होने लगा था. उस ने साफ शब्दों में कहा कि अगर अब कभी उस ने रंजीत को घर में देखा तो बुरा होगा. गायत्री पर ससुराल में भी लगाम लगनी शुरू हो गई तो वह परेशान हो उठी. उसे अपना पति ही दुश्मन लगने लगा.

एक दिन गायत्री ने तय किया कि संजीव से छुटकारा पाने के बाद ही वह प्रेमी से बेखौफ मिल सकती है. इस बारे में उसे रंजीत से बात की. दोनों ने तय किया कि संजीव को ठिकाने लगा कर वे कहीं दूर जा कर दुनिया बसा लेंगे.

गायत्री को शादी के डेढ़ साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ था. गायत्री ने एक दिन अपनी सास से कहा कि एटा में एक अच्छा डाक्टर है. उस के इलाज से कई औरतों को बच्चा हुआ है. गायत्री ने सास से अपना इलाज उसी डाक्टर से कराने की बात कही. सास ने सोचा, अगर बच्चा हो गया तो गायत्री का मन भी घर में रमने लगेगा. अत: उस ने एटा के डाक्टर से इलाज कराने की इजाजत दे दी. गायत्री को कोई इलाज वगैरह नहीं कराना था, बल्कि यह उस का पति को ठिकाने लगाने का एक षड्यंत्र था.

लिखी जाने लगी हत्या की पटकथा

अब गायत्री का खुराफाती दिमाग काम करने लगा. उस ने पति के नाम मौत का वारंट जारी कर दिया और इस के लिए 13 मई, 2018 का दिन भी तय कर दिया. मौत की इस दस्तक से पूरा परिवार बेखबर था. पूरे घटनाक्रम की कहानी मोबाइल पर तय हो गई थी.

अपने इस काम में रंजीत ने रिजौर के ही रहने वाले अपने दोस्त राजेश उर्फ पप्पू को भी मिला लिया.

13 मई को गायत्री अपने पति संजीव के साथ बाइक नंबर यूपी 83एएल 6985 से एटा के लिए निकली. उस ने प्रेमी रंजीत को अपने एटा जाने की सूचना दे दी. रंजीत अपने दोस्त राजेश के साथ रिजौर से एटा पहुंच गया. इस के बाद न तो बहू और न ही बेटा घर वापस लौटे.

शाम तक जब दोनों घर नहीं लौटे तो पूरा परिवार चिंतित हो गया. उन्होंने एका थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को सूचना दे दी और अपने सभी रिश्तेदारों से भी फोन द्वारा पूछा. उन्होंने गायत्री के घर वालों को भी बता दिया था.

दोनों का फोन भी स्विच्ड औफ था. रोरो कर घर वालों का बुरा हाल था. इधर मायके वाले परेशान थे कि कहीं गायत्री ने ही तो कुछ नहीं कर डाला. गायत्री और संजीव के गुम होने की सूचना अन्य थानों को भी दे दी गई थी.

18 मई, 2018 को रिजौर के चौकीदार रमेश को किसी ने बताया कि कुरीना दौलतपुर मोड़ के पास जैन फार्महाउस के खेत में एक युवक की लाश पड़ी हुई है. चौकीदार ने तुरंत इस की सूचना रिजौर के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को दी. थानाप्रभारी तुरंत मौके पर पहुंचे.

उन्हें वहां एक युवक की लाश मिली, जिस की गला रेत कर हत्या की गई थी. मौके पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी लेकिन शव को कोई नहीं पहचान पाया. कुछ दूरी पर पुलिस को एक मोबाइल फोन मिला जिस में मिले नंबर पर काल की गई तो पता चला कि मोबाइल रंजीत नाम के व्यक्ति का है. लेकिन उस के परिवार वालों ने जब लाश देखी तो कहा कि वह उन का बेटा नहीं है.

रंजीत और गायत्री की हकीकत आई सामने

जब लाश रंजीत की नहीं थी तो उस का मोबाइल वहां क्यों मिला. यह बात कोई नहीं समझ पा रहा था. इसी बीच सोशल मीडिया पर लाश का फोटो वायरल हो गया तो सोनेलाल ने एका थाने से संपर्क किया. पता चला कि जैन फार्महाउस रिजौर में मिलने वाली लाश उन के बेटे संजीव की है. संजीव के घर वाले समझ गए कि जरूर इस हत्या में गायत्री का हाथ है. उन्होंने रिजौर थानाप्रभारी को सारी बात बता दी.
गायत्री का भाई और पिता भी रिजौर आ गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि गायत्री ऐसा कर सकती है. मौके पर संजीव की बाइक भी बरामद हो गई थी, लेकिन गायत्री का कोई अतापता नहीं था.

रिजौर थानाप्रभारी ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को गायत्री और रंजीत के प्रेम संबंधों का भी पता चल चुका था. रंजीत भी घर से गायब था. अत: अब पुलिस उन दोनों की तलाश में लग गई. अगले दिन संजीव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. जिसे देख कर पुलिस चौंक गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि युवक ने नशे का सेवन किया था. पूछताछ करने पर पता चला कि संजीव तो नशा करता ही नहीं था.

इसी बीच 18 मई, 2018 को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने प्रेमी युगल को बख्शीपुर तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. दोनों किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे. थाने ला कर गायत्री और रंजीत से पूछताछ की गई. गायत्री ने बताया कि वह तो रंजीत से प्यार करती थी. उसे जबरन प्रेमी से दूर कर के संजीव के गले बांध दिया गया. इसलिए उस ने उस से छुटकारा पाने का निश्चय कर किया. उस ने बताया कि उस ने रंजीत से पूर्व में शादी कर ली थी लेकिन पुलिस को वह शादी की कोई साक्ष्य नहीं दे पाई.

रंजीत ने भी अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा कि पिछले 2-3 सालों से वह और गायत्री एकदूसरे से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे लेकिन गायत्री के घर वाले इस के लिए राजी नहीं हुए. गायत्री की शादी के बाद भी वे दोनों अलग नहीं रह पाए और आखिर संजीव को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

गायत्री के प्यार की भेंट चढ़ा संजीव

उस दिन जब गायत्री अपने पति के साथ एटा पहुंची तो रास्ते में उस ने बाइक रुकवाई. मौका पा कर वह बोतल में भरे पानी में नींद की गोलियां मिला चुकी थीं. वही पानी उस ने पति संजीव को पीने को दिया. जिस जगह पर बैठ कर उस ने पानी पिया था कुछ ही देर में वह वहीं पर बेहोश हो गया.

तभी रंजीत अपने दोस्त के साथ वहां पहुंच गया. राजेश ने संजीव की बाइक संभाली और वह और गायत्री बेहोश हो चुके संजीव को आटो में डाल कर कुरीला गांव के पास दौलतपुर मोड़ पर ले आए. आटो वाले को पैसे दे कर उन्होंने वापस भेज दिया.

तभी राजेश भी वहां आ गया, फिर वे लोग संजीव को जैन फार्म हाउस के खेतों में ले आए. जहां गायत्री ने खुद चाकू से अपने पति का गला रेत दिया. इस के बाद राजेश अपने घर चला गया और वह दोनों एटा घूमते रहे. दोनों दिल्ली भाग जाना चाहते थे पर पैसों का इंतजाम करना था, इस से पहले कि वे एटा छोड़ पाते पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

गायत्री के मायके वालों को जब पता चला कि उन की बेटी ने खुद अपना सुहाग मिटा डाला है तो वे हैरान रह गए. उन्होंने कहा कि अब गायत्री से उन का कोई संबंध नहीं है. उसे उस की करनी की सजा मिलनी ही चाहिए.

संजीव के घर वाले दुखी हैं, उन्होंने तो सोचा तक नहीं था कि वह अपने सीधेसादे बेटे को खो देंगे. पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के अंतर्गत तीनों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कटवा दी जिंदगी की डोर : पत्नी और उस के प्रेमी ने ली जान – भाग 3

योजना को ऐसे दिया अंजाम

योजना के तहत नाबालिग किशोर शाहरुख को बाइक से सुकेत छोड़ आया. सुकेत से शाहरुख रामगंज मंडी पहुंचा और ट्रेन से ही चेतन का पीछा करने लगा. ट्रेन के पहुंचने से कुछ समय पहले ही उस ने मोबाइल पर प्रवीण को झालावाड़ पहुंचने के बारे में बता दिया था. इस पर प्रवीण अपनी कार में फरहान और नाबालिग किशोर को साथ ले कर रेलवे स्टेशन पहुंच गया. स्टेशन पर उन्हें शाहरुख मिल गया.

चेतन स्टेशन से पैदल घर जा रहे थे. हाउसिंग बोर्ड के सुनसान रास्ते में चेतन को रोक कर प्रवीण ने अपने तीनों साथियों की मदद से जबरन कार की पीछे वाली सीट पर बैठा लिया. वे लोग चेतन को कार से आकाशवाणी के पीछे की तरफ हल्दीघाटी रोड पर ले गए. वहां प्रवीण और चेतन की अनीता को ले कर नोकझोंक हुई.

प्रवीण ने कहा कि तुम अपनी प्रौपर्टी अनीता के नाम क्यों नहीं करते. उस ने यह भी कहा कि तुम यह क्यों कहते हो कि छोटा बेटा मेरा है. इस पर चेतन ने कहा कि छोटा लड़का तो तुम्हारा ही है. चेतन के यह कहते ही प्रवीण ने अपने साथियों को इशारा किया. उन्होंने चेतन के दोनों हाथ पकड़ लिए.

प्रवीण ने जेब से कैटामाइन के इंजेक्शन निकाले और सिरिंज में हैवी डोज भर कर चेतन की दोनों जांघों में लगा दी. इस के बाद उस ने चेतन की नाक भी दबा दी. इंजेक्शन लगने और नाक दबाए जाने से कुछ ही मिनटों में उन के प्राण निकल गए.

चेतन को मौत की नींद सुलाने के बाद प्रवीण ने उन की जेब से मोबाइल निकाला और पुलिस को गुमराह करने के लिए अनीता को मैसेज किया कि वह औटोरिक्शा से पाटन हो कर घर आ रहे हैं. इस के बाद प्रवीण और उस के साथी चेतन का शव रलायता पुलिया के पास फेंक कर वापस चले गए. रलायता रेलवे पुलिया के पास चेतन के अचेत पड़े मिलने की कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं.

एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल की तो सब से पहले पुलिस शाहरुख तक पहुंची. पुलिस ने उसे 20 जून को गिरफ्तार कर लिया. शाहरुख से पूछताछ में चेतन की हत्या का राज खुल गया. दूसरे ही दिन 21 जून को पुलिस ने उस ट्रक चालक शाकिर को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस ने 5 जनवरी को चेतन को ट्रक से कुचलने का प्रयास किया था.

22 जून को पुलिस ने एक निजी अस्पताल के औपरेशन थिएटर इंचार्ज संतोष निर्मल को गिरफ्तार कर लिया. वह पहले अस्थाई रूप से राजकीय हीराकुंवर महिला अस्पताल और एक अन्य निजी अस्पताल में मेल नर्स का काम कर चुका था. उसे औपरेशन प्रक्रिया में काम आने वाली निश्चेतक दवाओं की अच्छी जानकारी थी.

कांस्टेबल प्रवीण के साथ जिम जाने और क्रिकेट खेलने की वजह से दोनों में दोस्ती थी. प्रवीण ने पिछले साल 31 दिसंबर को रेव पार्टी में नशा करने के लिए संतोष निर्मल से कैटामाइन इंजेक्शन मांगा था. संतोष ने दोस्ती के नाम पर उसे अस्पताल के औपरेशन थिएटर के स्टोर से चोरी कर के 500 मिलीग्राम के 2 इंजेक्शन दे दिए थे. ये इंजेक्शन प्रवीण ने संभाल कर रखे और चेतन की हत्या के लिए इन का उपयोग किया. इस इंजेक्शन के सबूत फोरैंसिक जांच में भी नहीं मिलते हैं.

परत दर परत खुलते गए राज

इस के बाद पुलिस ने 24 जून को चेतन की हत्या में शामिल एक नाबालिग किशोर को पकड़ा. उस से वारदात में इस्तेमाल की गई बाइक और मोबाइल बरामद किए गए. यह किशोर शाहरुख की आरटीओ एजेंट की दुकान पर काम करता था. चालाक कांस्टेबल प्रवीण ने वारदात के दिन खुद का मोबाइल साथ नहीं रखा था.

उस ने शाहरुख से बात करने के लिए उस किशोर के मोबाइल का उपयोग किया था. यह किशोर चेतन की हत्या की योजना में 25 दिसंबर से 14 फरवरी तक शामिल रहा. शाहरुख पहले इस किशोर को 50 रुपए रोजाना देता था, लेकिन चेतन की हत्या के बाद उसे डेढ़ सौ रुपए रोजाना देने लगा था. पुलिस ने इस किशोर को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर के बाल सुधार गृह भेज दिया.

चेतन की हत्या में पत्नी अनीता की भूमिका सामने आने पर पुलिस ने 25 जून को उसे भी गिरफ्तार कर लिया. चेतन को दिल्ली से कब किस ट्रेन से आनाजाना है और दिल्ली में उस का पताठिकाना कहां है, प्रवीण को यह जानकारी अनीता ने ही दी थी. झालावाड़ से रामगंज मंडी आनेजाने की जानकारी भी अनीता ने ही प्रवीण को दी थी.

पुलिस ने अनीता के मोबाइल की जांच की तो उस में चेतन और अनीता के तनावपूर्ण दांपत्य जीवन के बारे में कई वाट्सऐप मैसेज मिले. प्रवीण के कहने पर अनीता ने मोबाइल फौरमेट करवा कर पूरा डेटा नष्ट कर दिया था. चेतन की हत्या के बाद प्रवीण ने अनीता को दी हुई सिम भी वापस ले ली थी.

अनीता से पूछताछ में पता चला कि प्रवीण उस के प्यार में इतना डूब गया था कि चेतन से बेइंतहा नफरत करने लगा था. वह नहीं चाहता था कि अनीता किसी और से बात करे या संबंध रखे. उस ने अनीता से कह कर उस के पति के साथ फेसबुक पर पोस्ट किए हुए फोटो भी हटवा दिए थे.

वह अनीता से कहता था कि अगर उस ने उस का साथ नहीं दिया तो वह आत्महत्या कर लेगा. ऐसे में अनीता सहीगलत का फैसला नहीं कर पाती थी और प्रवीण के कहे मुताबिक उस का साथ देती थी.

चेतन की हत्या के बाद भी अनीता व प्रवीण के संबंध पहले जैसे ही बने रहे. प्रवीण उसे कहता रहा कि पोस्टमार्टम और विसरा की जांच में कुछ नहीं आएगा. इस दौरान दोनों ने कुछ कानूनविदों से भी मशविरा किया था.

अनीता ने पुलिस को बताया कि उस के पति चेतन को छोटे बेटे रिवान पर शक था कि वह उस की पैदाइश नहीं है. इस बात पर घर में कई बार लड़ाई हुई. इस पर चेतन व उस के परिजनों ने बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता व प्रवीण के अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था, इसलिए उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया.

पुलिस ने 28 जून को झालावाड़ निवासी फरहान को भी गिरफ्तार कर लिया. वह वारदात के बाद से फरार चल रहा था. फरहान भी चेतन की हत्या के मामले में प्रवीण व शाहरुख के साथ था.

बहुत कुछ खोया अनीता और प्रवीण ने

जांच में प्रवीण के अलावा झालावाड़ के 2 अन्य पुलिस कांस्टेबलों पर भी शक की सुई घूमती रही. ये दोनों प्रवीण के करीबी थे और चेतन की हत्या में इन की भूमिका संदिग्ध थी. इस पर एसपी आनंद शर्मा ने दोनों कांस्टेबलों रवि दुबे और आवेश मोहम्मद को 28 जून को निलंबित कर दिया. ये दोनों कांस्टेबल पुलिस की गोपनीय शाखा में कार्यरत थे. प्रवीण भी एसीबी में प्रतिनियुक्ति से पहले इसी शाखा में रहा था, इसलिए दोनों उस के करीबी थे. इन दोनों कांस्टेबलों के खिलाफ जांच की जा रही है.

कथा लिखे जाने तक पुलिस चेतन की हत्या के मुख्य सूत्रधार कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ की तलाश में जुटी थी. वह 14 जून को सरकारी काम से अजमेर जाने की बात कह कर फरार हो गया था. हत्या के मामले में आरोपी होने पर एसीबी ने उस की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर दी. एसपी ने एक जुलाई को उसे निलंबित कर दिया था.

पुलिस ने सरकारी अध्यापिका अनीता के दुराचरण की रिपोर्ट शिक्षा विभाग को भेज कर विभागीय काररवाई के लिए भी लिख दिया है. चेतन की हत्या में गिरफ्तार आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में थे.

यह अनीता का त्रियाचरित्र ही था कि उस ने अपनी हंसतीखेलती दुनिया अपने ही हाथों से उजाड़ ली. चेतन की मौत से महादेव के बुढ़ापे की लाठी टूट गई. चेतन प्रकाश के 6 साल के बड़े बेटे क्षितिज के सिर से पिता का साया उठ गया. 8 महीने का छोटा बेटा रिवान भी मां के साथ जेल में है.

विद्यार्थियों को अच्छा नागरिक बनने की सीख देने वाली अनीता के हाथ पति के खून से न रंगे होते तो वह जल्दी ही स्कूल की प्रिंसिपल की कुरसी पर बैठी होती, क्योंकि उस की पदोन्नति हो गई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

45 लाख का खेल : बेटा बना दोषी – भाग 2

पूछताछ में पता चला कि गुजरात के पाटन जिले के रहने वाले रोहित कुमार शर्मा ने एक महीने पहले ही राधावल्लभ के मकान में यह औफिस किराए पर लिया था. फरवरी में बसंत पंचमी पर औफिस का मुहूर्त किया गया था.

औफिस में पार्थ और प्रियांशु ही काम करते थे. यही औफिस खोलते और लेनदेन करते थे. रोहित इस कंपनी का मैनेजर था. रोहित की कंपनी के देश के विभिन्न शहरों में करीब 15 औफिस हैं. इन सभी औफिसों में मनी ट्रांसफर का ही काम होता है.

मौके के हालात और पूछताछ में मिली जानकारियों से पुलिस अधिकारियों के गले कई बातें नहीं उतर रही थीं. सब से बड़ी बात यह थी कि 45 लाख की लूट होने के बावजूद दोनों कर्मचारी न तो चिल्लाए और न ही लुटेरे का पीछा किया. पुलिस को 3 घंटे देरी से सूचना देने के बारे में भी वे लोग संतोषजनक जवाब नहीं दे सके.

पुलिस अधिकारियों को शुरुआती जांच में यह अहसास हो गया कि वारदात में किसी नजदीकी आदमी का हाथ हो सकता है. इस का कारण यह था कि इस औफिस को खुले एक महीना भी नहीं हुआ था. इसलिए कोई बाहरी आदमी इतनी आसानी से वारदात नहीं कर सकता था.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर लुटेरे की तलाश शुरू कर दी. फुटेज में लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता हुआ दिखाई दिया. इस के बाद उस के फुटेज नहीं मिले. इस से अनुमान लगाया गया कि वह आगे किसी वाहन से भागा होगा.

पुलिस ने हुलिए के आधार पर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और जयपुर से बाहर जाने वाले रास्तों पर नाकेबंदी करा दी, लेकिन शाम तक कोई सुराग नहीं मिला.

इस बीच, गुजरात के पाटन जिले के हारिज बोरतवाड़ा निवासी हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा ने जयपुर नौर्थ पुलिस जिले के कोतवाली थाने में इस लूट का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मुकदमा आईपीसी की धारा 392 के तहत दर्ज कर लिया.

पुलिस के सामने हेलमेट से चेहरा छिपाए हुए लुटेरे को तलाश करना बड़ा चुनौती भरा काम था. इस का कारण यह था कि सीसीटीवी फुटेज में लुटेरे का चेहरा हेलमेट और मास्क लगा होने के कारण नजर नहीं आ रहा था. केवल उस की कदकाठी का ही अनुमान लग रहा था. हवाला कंपनी के कर्मचारियों और आसपास के लोगों से पूछताछ में भी कोई ऐसा क्लू नहीं मिला, जिस से लुटेरे का पता चलता.

लुटेरे का पता लगाने के लिए पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर (प्रथम) अजयपाल लांबा के निर्देश पर 3 टीमों का गठन किया गया. एक टीम में एडिशनल डीसीपी धर्मेंद्र सागर और प्रशिक्षु एसीपी कल्पना वर्मा के सुपरविजन में कोतवाली थानाप्रभारी विक्रम सिंह चारण और नाहरगढ़ थानाप्रभारी मुकेश कुमार को रखा गया.

दूसरी टीम में डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद के सुपरविजन में एडिशनल डीसीपी सुलेश चौधरी और सीएसटी प्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह को शामिल किया गया. तीसरी टीम में डीएसटी नौर्थ प्रभारी जयप्रकाश पूनिया के नेतृत्व में डीएसटी टीम को लिया गया. इन तीनों टीमों में 50 से ज्यादा पुलिसवाले शामिल किए गए.

तीनों पुलिस टीमों ने वारदातस्थल खूंटेटों का रास्ता से किशनपोल बाजार, अजमेरी गेट, अहिंसा सर्किल, गवर्नमेंट प्रेस चौराहा, विशाल मेगामार्ट, अजमेर पुलिया और 2 सौ फुट बाइपास तक सैकड़ों सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इन मार्गों पर चलने वाले आटो चालकों, मिनी व लो फ्लोर बस चालकों और कंडक्टरों से पूछताछ की गई.

दूसरे दिन फुटेज देखने से पता चला कि लुटेरा किशनपोल बाजार से आटो में सवार हो कर अहिंसा सर्किल तक गया. तीसरे दिन देखी गई फुटेज से पता चला कि लुटेरा अहिंसा सर्किल से मिनी बस में सवार हो कर पुलिस कमिश्नरेट तक गया. वहां से दूसरी बस में बैठ कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा.

हेलमेट, मास्क व दस्ताने पहन कर वारदात करने और इस के बाद बारबार वाहन बदलने से पुलिस को यह अहसास जरूर हो गया कि लुटेरा बहुत शातिर है. चौथे दिन पुलिस को कुछ और सुराग मिले.

इस बीच, पुलिस अधिकारी हवाला औफिस के दोनों कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु को रोजाना थाने बुला कर पूछताछ करते रहे.

आखिर पुलिस ने 14 मार्च को हवाला कंपनी के औफिस से हुई 45 लाख रुपए की लूट का खुलासा कर 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया.

इन में गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके के कंबोई गांव का रहने वाला प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी, उस का भाई रवि शर्मा, इन की मां हंसा शर्मा उर्फ पूजा के अलावा गुजरात के पाटन जिले के चंद्रूमाणा गांव के रहने वाले पार्थ व्यास, जयपुर के भांकरोटा इलाके में केशुपुरा का रहने वाला हनुमान सहाय बुनकर और जयपुर के चित्रकूट इलाके में गोविंद नगर डीसीएम का रहने वाला मोहित कुमावत शामिल थे.

इनमें प्रियांशु अपनी मां हंसा उर्फ पूजा और भाई रवि शर्मा के साथ आजकल जयपुर में चित्रकूट थाना इलाके के वैशाली नगर में सेल बी हौस्पिटल के पास रहता था. प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी इसी हवाला कंपनी में करता था. लुटेरे ने प्रियांशु और दूसरे कर्मचारी पार्थ को धमका कर टेप से उन के मुंह बंद कर दिए और हाथ बांध दिए थे.

आरोपी पार्थ व्यास को गुजरात के पाटन और बाकी 5 अपराधियों को जयपुर से पकड़ा गया. पुलिस ने इन आरोपियों से लूट की पूरी 45 लाख रुपए की रकम बरामद कर ली.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों से पुलिस की पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह रिश्तों में विश्वासघात का किस्सा था.

गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके में आने वाले गांव कंबोई की रहने वाली हंसा देवी शर्मा उर्फ पूजा का पति कैलाश चंद शर्मा लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम करता था. मार्च, 2020 में कोरोना के कारण हुए लौकडाउन के दौरान उस का काम ठप हो गया. मजदूर अपने गांव चले गए.

नफरत की इंतहा : प्रेमी बना गृहस्थी में ग्रहण – भाग 2

बुद्धि प्रकाश घर के बाहर बरामदे में तख्त पर मृत पड़ा था. थानाप्रभारी बदन सिंह शव का निरीक्षण करने लगे. वह कुछ अनुमान लगा पाते तब तक सीओ विजय शंकर शर्मा वहां पहुंच गए. उन्होंने शव का निरीक्षण किया तो उन के चेहरे पर हैरानी के भाव आए बिना नहीं रहे.

गले पर पड़े निशानों ने कौतूहल जगा दिया था. सीओ शर्मा ने झुक कर गौर किया तो वह चौंक पड़े. चेहरे पर ऐंठन और गले के निशान बहुत कुछ कह रहे थे. चेहरे पर ऐसी ऐंठन तो बेरहमी से गला दबाए जाने पर ही होती है.  स्वाभाविक प्रश्न था कि क्या किसी ने बुद्धि प्रकाश का गला दबाने की कोशिश की थी?

मामला पूरी तरह संदिग्ध लग रहा था. काले निशान भी रस्सी से गला दबाए जाने पर होते हैं. उन्होंने आसपास नजर दौड़ाई. ऐसी कोई रस्सी नजर नहीं आई. फोरैंसिक टीम को बुलाना अब जरूरी हो गया था.

छानबीन और मौके से सबूत जुटाने के लिए क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के साथ फोरैंसिक टीम भी पहुंच गई थी. फोरैंसिक टीम की जांच में चौंकाने वाले रहस्य उजागर हुए. बुद्धि प्रकाश के गले के दोनों ओर तथा पीछे की तरफ काले निशान बने हुए थे. लगता था कि रस्सी से गले को पूरी ताकत से कसा गया था. इस के अलावा चोट का कोई और निशान शरीर पर कहीं नहीं पाया गया.

लेकिन स्थितियां पूरी तरह संदेहास्पद थीं. घटनास्थल पर सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे होने के कारण किसी के वहां आनेजाने का साक्ष्य मिलना भी संभव नहीं था. सीओ विजय शंकर शर्मा ने घटनास्थल का बड़ी बारीकी से निरीक्षण किया. उन्होंने प्रियंका से दरजनों सवाल किए. लेकिन अपने मतलब की कोई बात नहीं उगलवा सके.

बिना किसी सबूत के प्रियंका पर हाथ डालने का कोई मतलब भी नहीं था. हालांकि पूछताछ के दौरान प्रियंका पूरी तरह सामान्य लग रही थी. उस के चेहरे पर भय या घबराहट की कोई रेखा तक नहीं थी. लेकिन उस के जवाब अटपटे थे.

मृतक करवट की स्थिति में था, जबकि प्रियंका का कहना था कि उस ने दिशामैदान से लौट कर उसे हिलाया- डुलाया था. दिल की धड़कन टटोलने के लिए शरीर को पीठ के बल कर दिया था. लेकिन प्रियंका और पड़ोसियों के बयानों में कोई तालमेल नहीं था. उन का कहना था हम ने बुद्धि प्रकाश को करवट की ही स्थिति में देखा था.

पुलिस के सामने अच्छेअच्छे के हौंसले पस्त पड़ जाते हैं. लेकिन प्रियंका चाहे अटकअटक कर ही सही, पूरे हौसले से हर सवाल का जवाब दे रही थी. बेशक बुद्धि प्रकाश शराब में धुत रहा होगा. लेकिन आखिर था तो हट्टाकट्टा मर्द. उसे अकेली प्रियंका के द्वारा काबू करना आसान नहीं था.

सीओ हत्या के हर संभावित कोण को समझ रहे थे. इसलिए एक बात पर तो उन्हें यकीन हो चला था कि अगर हत्या में प्रियंका शामिल थी तो उस का कोई मजबूत साथी जरूर रहा होगा. हत्या सुनियोजित ढंग से की गई थी. लेकिन सवाल यह था कि योजना किस ने बनाई और उसे कैसे अंजाम दिया?

पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव परिजनों को सौंप दिया. पोस्टमार्टम में प्रथमदृष्टया मौत का कारण दम घुटना माना गया. थाने लौट कर थानाप्रभारी बदन सिंह ने अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसपी शरद चौधरी ने इस मामले का खुलासा करने के लिए एडिशनल एसपी पारस जैन की निगरानी में सीओ विजय शंकर शर्मा, थानाप्रभारी बदन सिंह, हैडकांस्टेबल भरत, कांस्टेबल सतपाल, रामराज और महिला कांस्टेबल भारती बाना को शामिल किया.

प्रियंका के थाने आने से पहले की गई पूछताछ में पुलिस को कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई थी. लेकिन थाने लाए जाने के बाद हुई पूछताछ में महावीर मीणा का जिक्र आने के साथ ही घटना की गिरह खुलने लगी.

पुलिस का हवा में पूछा गया सवाल ही घटना का तानाबाना खोलता चला गया कि बुद्धि प्रकाश की शराबनोशी में उस का साथी कौन था? प्रियंका जिस भेद को छिपाए थी, वह खुल गया. प्रियंका को बताना पड़ा कि बुद्धि प्रकाश शनिवार 13 मार्च को दिन भर पड़ोसी महावीर मीणा के साथ शराब पी रहा था.

लेकिन पुलिस के इस सवाल पर प्रियंका बिफर पड़ी कि महावीर मीणा के साथ उस के अवैध रिश्ते हैं. उस का कहना था, ‘‘आप सुनीसुनाई बातों को ले कर मेरे चरित्र पर लांछन क्यों लगा रहे हैं.’’

लेकिन प्रियंका की काल डिटेल्स खंगाल चुके पुलिस अधिकारी पूरी तरह आश्वस्त थे. उन का एक ही सवाल प्रियंका के होश फाख्ता कर गया, ‘‘क्या तुम्हारे और महावीर के बीच देर रात को 2-2 घंटे तक बातें नहीं होती थीं?’’

प्रियंका के पास अब कोई जवाब नहीं बचा था. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस का कहना था कि बुद्धि प्रकाश उस के चालचलन पर शक करता था और रोज उस के साथ मारपीट करता था. इसलिए उस ने पति की हत्या कर दी.

यह आधा सच था. प्रियंका अपने आप को एक बेबस औरत के रूप में पेश कर रही थी. लेकिन पुलिस को उस की पूरी दास्तान सुनने का इंतजार था कि कैसे उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को मौत के घाट उतारा?

घातक निकली बीवी नंबर 2 – भाग 3

पुलिस टीम ने जितेंद्र की निशानदेही पर विधूना से निजाम अली तथा पसहा गांव से राघवेंद्र उर्फ मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को थाना सजेती की हवालात में डाल दिया गया. इस के बाद पुलिस टीम सूर्यविहार, नवाबगंज पहुंची और यह कह कर किरन को साथ ले आई कि दरोगा पच्चालाल के हत्यारे पकड़े गए हैं.

किरन थाना सजेती पहुंची तो उस ने अपने प्रेमी जितेंद्र तथा उस के साथियों को हवालात में बंद देखा. उन्हें देखते ही वह सब कुछ समझ गई. अब उस के लिए पुलिस को गुमराह करना मुमकिन नहीं था. उस ने पति की हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल कर लिया. जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल का लूटा गया पर्स, घड़ी व मोबाइल भी बरामद करा दिए, जिन्हें उस ने घर में छिपा कर रखा था.

चूंकि दरोगा पच्चालाल के हत्यारों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मुंशी अजयपाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 394 तथा 120बी के तहत जितेंद्र उर्फ महेंद्र, निजाम अली, राघवेंद्र उर्फ मुन्ना तथा किरन के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

7 जुलाई को एसएसपी अखिलेश कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस की, जिस में उन्होंने हत्या का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपए देने की घोषणा की. उन्होंने गिरफ्तार किए गए दरोगा के हत्यारों को पत्रकारों के सामने भी पेश किया, जहां हत्यारों ने अवैध रिश्तों में हुई हत्या का खुलासा किया.

पच्चालाल गौतम सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के गांव रामकुंड के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी कुंती देवी के अलावा 4 बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र व कमल थे. पच्चालाल पुलिस विभाग में दरोगा के पद पर तो तैनात थे ही, उन के पास खेती की जमीन भी थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी.

पच्चालाल की पत्नी कुंती देवी घरेलू महिला थीं. वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थीं, लेकिन स्वभाव से मिलनसार थीं. कुंती पति के साथसाथ बच्चों का भी ठीक से खयाल रखती थीं. पच्चालाल भी कुंती को बेहद चाहते थे, उन की हर जरूरत को पूरा करते थे. लेकिन बीतते समय में इस खुशहाल परिवार पर ऐसी गाज गिरी कि सब कुछ बिखर गया.

सन 2001 में कुंती देवी बीमार पड़ गईं. पच्चालाल ने पत्नी का इलाज पहले सीतापुर, लखनऊ व कानपुर में अच्छे डाक्टरों से कराया. पत्नी के इलाज में दरोगा ने पानी की तरह पैसा बहाया, लेकिन काल के क्रूर हाथों से वह पत्नी को नहीं बचा सके. पत्नी की मौत से पच्चालाल खुद भी टूट गए और बीमार रहने लगे.

जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे पत्नी की मौत का गम कम होता गया. पच्चालाल ड्यूटी और बच्चों के पालनपोषण पर पूरा ध्यान देने लगे. पच्चालाल का दिन तो सरकारी कामकाज में कट जाता था, लेकिन रात में पत्नी की कमी खलने लगती थी. पत्नी के बिना वह तनहा जिंदगी जी रहे थे. अब उन्हें अहसास हो गया था कि पत्नी के बिना आदमी का जीवन कितना अधूरा होता है.

सन 2002 में दरोगा पच्चालाल को हरदोई जिले के थाना बेनीगंज की कल्याणमल चौकी में तैनाती मिली. इस चौकी का चार्ज संभाले अभी 2 महीने ही बीते थे कि पच्चालाल की मुलाकात एक खूबसूरत युवती किरन से हुई. किरन अपने पति नरेश की प्रताड़ना की शिकायत ले कर चौकी आई थी.

किरन के गोरे गालों पर बह रहे आंसू, दरोगा पच्चालाल के दिल में हलचल मचाने लगे. उन्होंने सांत्वना दे कर किरन को चुप कराया तो उस ने बताया कि उस का पति नरेश, शराबी व जुआरी है. नशे में वह उसे जानवरों की तरह पीटता है. वह पति की प्रताड़ना से निजात चाहती है.

खूबसूरत किरन पहली ही नजर में दरोगा पच्चालाल के दिलोदिमाग पर छा गई. उन्होंने किरन के पति नरेश को चौकी बुलवा लिया और किरन के सामने ही उस की पिटाई कर के हिदायत दी कि अब वह किरन को प्रताडि़त नहीं करेगा. दरोगा की पिटाई और जेल भेजने की धमकी से नरेश डर गया और किरन से माफी मांग ली.

इस के बाद दरोगा पच्चालाल हालचाल जानने के बहाने अकसर किरन के घर आनेजाने लगे. वह किरन से मीठीमीठी बातें करते थे. किरन भी उन की रसीली बातों में आनंद का अनुभव करने लगी थी. किरन का पति नरेश घर आने पर ऐतराज न करे, यह सोच कर पच्चालाल ने उस से दोस्ती गांठ ली. दोनों की नरेश के घर पर ही शराब की महफिल जमने लगी. पच्चालाल उस की आर्थिक मदद भी करने लगे.

फिसलन भरे रास्तों की नायिका – भाग 3

कांस्टेबल ने उस युवक को डराधमका कर कुछ रुपए ऐंठे और आगे कोई हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया. युवक से पैसे ऐंठने के बाद वह शशि से मिला और उस ने उन पैसों में से कुछ पैसे शशि को दे दिए.

शशि ने पुलिस में बना ली जानपहचान

पुलिस वाले से जानपहचान हो जाने से शशि बहुत खुश हुई. वह सिपाही भी उस की कुशलक्षेम पूछने के बहाने उस के घर के चक्कर लगाने लगा. इस के बाद शशि घर वालों के साथसाथ पड़ोसियों पर भी रौब जमाने लगी. उस के घर वाले उस के त्रियाचरित्र से तंग आ चुके थे.

उन्होंने उस की इस हरकत की शिकायत पप्पू से की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. शशि के सामने पप्पू की एक नहीं चलती थी. शशि ने उसी पुलिस वाले के सहारे घर वालों से भी कई बार पंगा ले लिया था, जिस के बाद घर वालों ने उस से संबंध ही खत्म कर दिए थे. एक पुलिस वाले के सहारे वह कई पुलिस वालों के दिलों पर राज करने लगी थी.

पुलिस वालों से दोस्ती हो जाने के बाद शशि अपनी मनमानी करने लगी. जब उसे पैसों की जरूरत होती तो वह किसी न किसी मर्द को अपने मोहपाश में फंसा लेती और फिर उसे धौंस दिखा कर मनचाहे पैसे ऐंठती. पुलिस वालों के बल पर उस का धंधा फलनेफूलने लगा था.

पति के घर से निकलते ही शशि बच्चों को तैयार कर स्कूल भेज देती और फिर सजसंवर कर अपने धंधे के लिए निकल जाती. जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो घर वालों की शिकायत पर पप्पू ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह उलटे उसी पर राशन पानी ले कर चढ़ने लगी.

इस के बाद दोनों मियांबीवी में मनमुटाव रहने लगा. अब वह पति से पूरी तरह से खार खाने लगी थी. अपनी बीवी की बेवफाई से तंग आ कर पप्पू ने फार्म से काम छोड़ दिया और दारू के नशे में धुत रहने लगा.
उसी दौरान उस की मुलाकात जसपुर थाना कोतवाली के गांव टांडा निवासी भूपेंद्र सिंह से हुई. भूपेंद्र के पास अपने 2 ट्रैक्टर थे. वह गांव वालों से सस्ते में गन्ना खरीद कर सीधे शुगर फैक्ट्री में बेचता था, जिस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. भूपेंद्र को अपना दूसरा ट्रैक्टर चलाने के लिए एक ड्राइवर की जरूरत थी.

उस ने पप्पू से बात की तो वह उस का ट्रैक्टर चलाने को राजी हो गया. पप्पू ने फिर से शराब का सेवन बंद कर दिया और वह भूपेंद्र का ट्रैक्टर चलाने लगा, जिस के सहारे उस का पप्पू के घर आनाजाना शुरू हो गया.

भूपेंद्र की शशि से मुलाकात उस वक्त हुई जब वह किसी काम से काशीपुर गया हुआ था. उस दिन शशि के दोनों बच्चे भी स्कूल गए थे. उस दिन भूपेंद्र पप्पू को बुलाने उस के घर आया था. शशि जानती थी उस का पति उसी का ट्रैक्टर चलाता है. शशि ने भूपेंद्र की खूब खातिरदारी की. भूपेंद्र उस की सुंदरता पर मर मिटा. एक तरह से वह उस का दीवाना बन बैठा. भूपेंद्र ने शशि का मोबाइल नंबर ले लिया. बाद में उस की शशि से फोन पर बातें होने लगीं.

भूपेंद्र बन गया शशि का आशिक

फलस्वरूप कुछ ही दिन बाद दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. भूपेंद्र को अच्छी कमाई थी. वह शशि पर भी पैसा खर्च करने लगा. इस से शशि पूरी तरह से उस की प्रेम दीवानी हो गई. भूपेंद्र अकसर पप्पू को ट्रैक्टर ले कर बाहर भेज देता और फिर सीधा उस के घर पर आ जाता.

कई बार तो भूपेंद्र पप्पू की गैरमौजूदगी में सारीसारी रात उसी के घर पर पड़ा रहता. उस वक्त शशि अपने बच्चों को जल्दी खाना खिला कर सुला देती और फिर सारी रात भूपेंद्र के साथ मौजमसती में डूब जाती.

भूपेंद्र जब भी आता, शशि और उस के बच्चों के लिए फल और मिठाई ले कर आता था, इस के चलते शशि के बच्चे भी भूपेंद्र से हिलमिल गए थे. जिस दिन वह घर आता, इस की सूचना किसी तरह पप्पू तक पहुंच ही जाती थी.

पप्पू की बेटी उस के घर आने पर ताने मारते हुए कहती, ‘‘आप से बढि़या तो भूपेंद्र अंकल हैं, वह जब भी आते हैं, अपने साथ बहुत सारी चीजें लाते हैं. बच्चों की बात सुनते ही पप्पू का पारा हाई हो जाता था. पप्पू को विश्वास हो गया था कि उस की गैरमौजूदगी में भूपेंद्र उस के घर आता है. इसी बात को ले कर उस की पत्नी से लड़ाई होती. लेकिन वह उलटे उस के ऊपर ही राशनपानी ले कर चढ़ जाती थी.’’

इसी दौरान एक दिन शशि ने भूपेंद्र के सामने बोझिल मन से कहा कि इस तरह कब तक चलेगा. पप्पू जब भी आता है तो उस का मुंह फूला होता है. वह तुम्हारे चक्कर में मुझ से ठीक से बात भी नहीं करता. जिस से मेरा सारा दिन खराब हो जाता है. अगर तुम मुझे इतना ही प्यार करते हो तो कुछ ऐसा करो कि उस की टेंशन ही खत्म हो जाए. भूपेंद्र शशि का इशारा समझ गया था.

इसी दौरान उस के दिमाग में एक आइडिया आया. उसी आइडिया के तहत उस ने एक दिन मौका पाते ही अपने गांव के एक किसान की हैरो चुरा ली. भूपेंद्र ने वह हैरो ला कर अपने खेत के एक कोने में डाल दी. जब उस किसान को पता चला कि उस की हैरो चोरी हो गई है तो उस ने पहले तो आसपास ही इधरउधर तलाशने की कोशिश की.

तभी उसे पता चला कि उस की हैरो भूपेंद्र के खेत में कोने में पड़ी हुई है. इस की जानकारी मिलते ही वह सीधे भूपेंद्र के पास गया और अपनी चोरी हुई हैरो की बात बताते हुए पूछा कि उस के खेत में वह हैरो कैसे पहुंची. भूपेंद्र ने उस से साफ शब्दों में कहा कि मेरा ट्रैक्टर पप्पू ही चलाता है. यह बात उसे ही पता होगी. मेरे पास तो पहले से ही मेरी अपनी हैरो है, फिर मैं तुम्हारी हैरो किसलिए चोरी करूंगा. तुम्हें जो भी पूछना है पप्पू से पूछो.

अपने ही घर में पप्पू हो गया बेगाना

यही बात उस किसान ने पप्पू से पूछी तो उस ने भी साफ शब्दों में कहा कि मुझे आप की हैरो से कोई लेनादेना नहीं. मैं भूपेंद्र के यहां केवल नौकरी करता हूं. मेरे पास तो अपना ट्रैक्टर तक नहीं है, मैं आप की हैरो चुरा कर क्या करूंगा.

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया तो किसान ने पुलिस चौकी जा कर दोनों के नाम हैरो चोरी की एफआईआर दर्ज करा दी. पुलिस चौकी में पहले से ही शशि की अच्छी बात थी. उस ने वहां जा कर भूपेंद्र को बचाते हुए अपने पति पप्पू को ही हैरो चोरी के इलजाम में जेल भिजवा दिया.

पप्पू के जेल चले जाने के बाद भूपेंद्र और उस के बीच मिलने का रास्ता बिलकुल साफ हो गया. इस के बाद शशि पूरी तरह से निडर हो कर उस के साथ जिंदगी के मजे लेने लगी. उस ने पप्पू को जमानत पर छुड़वाने के लिए पैरवी भी नहीं की.

यह सब देख कर पप्पू के बड़े भाई राजपाल को बहुत दुख हुआ. उस ने पप्पू को छुड़ाने के लिए काफी हाथपांव मारे तो शशि ने उस के परिवार को भी जेल भिजवाने की धमकी दे डाली. इस के बाद भी राजपाल ने जैसेतैसे पप्पू के केस की पैरवी की. पप्पू पर कोई ज्यादा बड़ा केस तो था नहीं. एक महीना जेल में रह कर वह घर आ गया.

शरीरों के खेल में मासूम कार्तिक बना निशाना – भाग 3

इस के पहले विशाल कभी किसी महिला के इतने नजदीक नहीं आया था, जितना पिछले कुछ दिनों के दौरान कविता के करीब आ गया था. आखिर एक दिन उस ने कविता के सामने अपना प्यार जता ही दिया. उम्मीद के मुताबिक कविता गुस्सा नहीं हुई तो नए जमाने और माहौल में बड़े हुए विशाल को समझ आ गया कि दांव खाली नहीं गया है.

कविता सब कुछ समझते हुए भी मुंहबोले देवर के साथ नाजायज संबंधों की ढलान पर फिसली तो इस की वजह एक नया अहसास था, जो उस के तन और मन दोनों को झिंझोड़ रहा था.

परसराम रोज सैकड़ों ग्राहकों को डील करता था, लिहाजा पत्नी के नए हावभाव उस से छिपे नहीं रहे. पहले तो उस ने खुद को समझाने की कोशिश की कि यह उस की गलतफहमी और फिजूल का शक है, पर कुछ था जो उस के शक को बारबार कुरेद रहा था.

विशाल कुछ और सोचता था, कविता कुछ और

इधर विशाल की हालत खस्ता थी, जिसे वाकई कविता से प्यार हो गया था. वह चाहता था कि कविता पति को छोड़ कर उस से शादी कर ले. इस बचकानी पेशकश से कविता वाकिफ हुई तो सकते में रह गई. विशाल संबंधों को इतनी गंभीरता से लेगा, इस का अंदाजा या अहसास उसे नहीं था.

उस ने अपने इस नासमझ आशिक को समझाने की कोशिश की, पर यह खुल कर नहीं कह पाई कि तुम्हारे मेरे संबंध सिर्फ मौजमस्ती के हैं. एक 2 बच्चों की मां और किसी की जिम्मेदार पत्नी सुख और संतुष्टि के लिए शारीरिक संबंध तो बना सकती है, पर उम्र में 11 साल छोटे प्रेमी से शादी नहीं कर सकती.

विशाल कविता पर पति की तरह हक जमाने लगा था. उसे दुनियादारी से ताल्लुक रखने वाली बातों से कोई मतलब नहीं था. उस ने कविता को एक तरह से चेतावनी दे दी थी कि या तो वह उस से शादी कर ले, नहीं तो ठीक नहीं होगा. जबकि कविता अपने आप को चक्रव्यूह से घिरा पा रही थी, जिस से बाहर निकलने का एकलौता रास्ता उसे अपने उस पति में दिखा, जिस के साथ वह बेवफाई कर चुकी थी.

परसराम को शक हुआ या खुद कविता ने उस से अपनी तरफ से विशाल के बारे में कुछ शिकायत की, यह तो अब राज ही रहेगा, लेकिन परसराम ने सख्ती से विशाल के अपने घर आने पर पाबंदी लगा दी. इस से विशाल तिलमिला उठा. परसराम उसे अब रिश्ते का पड़ोस वाला बड़ा भाई नहीं, बल्कि दुश्मन नजर आने लगा था.

कविता ने अपनी चाल तो चल दी, लेकिन विशाल की मजबूत गिरफ्त वह भूल नहीं पा रही थी. लिहाजा अब वह दूसरी गलती चोरीछिपे विशाल से मिलने और फोन पर लंबीलंबी बातें करने तथा उस से फिर से संबंध बनाने की कोशिश कर रही थी.

काश! कविता अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगा लेती

एक पुरानी कहावत है कि चोरी के आम छांट कर नहीं खाए जाते, कविता की मंशा यह रहती थी कि विशाल उसे रौंदने के बाद चला जाए और विशाल था कि उस के साथ रोमांटिक बातें करता रहता था. मजबूरी में कविता को उस की रूमानी बातों की हां में हां मिलानी पड़ती थी.

इस से विशाल को लगा कि कविता उसे वाकई चाहती है, लिहाजा उस ने फिर अपनी शादी की पुरानी पेशकश दोहरा दी. दोनों कुछ तय कर पाते, इस के पहले ही परसराम ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया.

6 जनवरी को भी विशाल और कविता घर के पीछे के खेत में मिल रहे थे. तभी परसराम और उस का भाई दिलीप वहां आ गए और विशाल की पिटाई कर दी. दोनों उसे थाने भी ले गए, जहां विशाल की बेइज्जती हुई.

उस वक्त कविता का रोल और बयान अहम थे, जिस ने विशाल पर परेशान करने का आरोप लगा डाला तो प्यार की परिभाषा और भाषा न समझने वाला यह नौजवान आशिक तिलमिला उठा. उसे अब समझ आया कि कविता दरअसल उसे मोहरा बनाए हुए थी. वह उस का प्रेमी नहीं, बल्कि हवस पूरी करने वाली एक मशीन भर था.

अब उसे याद आ रहा था कि जबजब भी उस ने शादी की बात कही थी, तबतब कविता पतिबच्चों और गृहस्थी की दुहाई दे कर मुकर जाती थी. लेकिन आज तो उस ने अपनी असलियत ही दिखा दी थी.

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थाने में खुद को बेइंतहा बेइज्जत महसूस कर के ही विशाल ने ठान लिया था कि कविता को सबक सिखा कर रहेगा. इधर विशाल की मां ने परसराम को सालों के पारिवारिक संबंधों का वास्ता दिया तो उस ने उस के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखाई और माफ कर दिया.

पर विशाल ने कविता को माफ नहीं किया था. वह बुरी तरह खीझा हुआ था और बदले की आग में जल रहा था. 8 जनवरी को दोपहर में वह कार्तिक के स्कूल गया और उसे साथ ले आया. कार्तिक के मना करने की कोई वजह नहीं थी, क्योंकि उस मासूम को तो मालूम ही नहीं था कि क्याक्या हो चुका है.

विशाल का निशाना बना मासूम कार्तिक

कार्तिक को स्कूल से वह 200 मीटर की दूरी पर कृष्णा कौंप्लेक्स में ले आया. उस वक्त दुकान के मालिक सचिन श्रीवास्तव किसी जरूरी काम से गए हुए थे. विशाल के सिर पर इस तरह वहशीपन सवार था कि उसे बच्चे की मासूमियत पर कोई तरस नहीं आया. उस के दिलोदिमाग में तो कविता की बेवफाई और 2 दिन पहले थाने में किया गया उस का दोगलापन घूम रहे थे. इसी जुनून में उस ने अपने जूते का फीता खोला और उस से ही कार्तिक का गला घोंट दिया.

नन्ही सी जान फड़फड़ा कर शांत हो गई. अब समस्या उस की लाश को को ठिकाने लगाने की थी. सचिन के आने के पहले जरूरी था कि यह काम कर दिया जाए. लिहाजा उस ने कार्तिक की लाश को औफिस में पड़ी पार्सल की पुरानी बोरी में ठूंसा और उसे घसीटता हुआ औफिस से बाहर ले आया. लाश भरी बोरी को उस ने सामान की तरह मोटरसाइकिल पर बांधा और मुबारकपुर टोल नाके से कुछ दूर फेंक आया. यह सारा नजारा कौंप्लेक्स में लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद हो गया था.

पकडे़ जाने के बाद विशाल ने कुछ छिपाया नहीं. जब थाने में उस का सामना कविता से हुआ तो वह बड़े खूंखार और सर्द लहजे में बोला, ‘‘तूने मुझे अपने इश्क में फंसा कर बरबाद कर दिया.’’

इस पर कविता ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि सिर झुकाए रोती रही. शायद अपनी हरकत और जान से प्यारे बेटे की हत्या पर, जिस की जिम्मेदार वह भी थी.

शुरुआत में गुनाह से अंजान बनते रहे विशाल ने पुलिस को यह भी बताया कि कविता कई बार उस के साथ सीहोर घूमने गई थी और कई दफा खुद फोन कर उसे प्यार करने यानी शारीरिक संबंध बनाने के लिए बुलाती थी.

विशाल अब जेल में है और उसे सख्त सजा मिलना तय है, पर जुर्म की इस वारदात में कविता की भूमिका भी अहम है. ऐसे नाजायज संबंधों पर बारीकी से सोचने की जरूरत है कि औरत को भी अभियुक्त क्यों न माना और बनाया जाए. यह ठीक है कि उस का प्रत्यक्ष संबंध अपराध से नहीं, पर कहीं न कहीं अपराधी को उकसाने की वजह तो वह थी ही.