प्यार में मिली मौत की सौगात

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के औरास थाना क्षेत्र के टिकरा सामद गांव के रहने वाले परमेश्वर कनौजिया का नाम खुशहाल लोगों में गिना जाता था. इस के साथ ही उन की गांव में अच्छी धाक भी थी. इस का एक कारण यह भी था कि उन की पत्नी उर्मिला देवी टिकरा सामद गांव की पूर्व प्रधान रह चुकी थी.

जब तक परमेश्वर कनौजिया के परिवार में ग्राम प्रधानी रही, तब तक वह गांव वालों के हर सुखदुख में शुमार होते रहे लेकिन अगले चुनाव में हाथ से ग्राम प्रधानी चली जाने के बाद वह अपने 3 बेटों जिस में बड़े रिंकू, मझले जितेंद्र व 18 वर्षीय छोटे बेटे धर्मेंद्र के साथ मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन के पास रेलवे कालोनी में लौंड्री का काम करने लगे थे.

यहां रहते हुए उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र काम के साथ पढ़ाई भी करता रहा और साल 2020 में उस ने 12वीं की परीक्षा भी दी थी.

लेकिन साल 2020 लगते ही कोरोना के चलते देश के हालात खराब होने लगे तो सरकार ने देश भर में लौकडाउन लगाने का फैसला कर लिया तो लोग शहरों से वापस अपने गांव में पलायन करने लगे.

चूंकि मुंबई में लौकडाउन होने से सारे कामधंधे बंद होने लगे थे, ऐसे में परमेश्वर कनौजिया को भी लौंड्री का बिजनैस अस्थाई रूप से बंद करना पड़ा.

शुरू में परमेश्वर कनौजिया को लगा कि सरकार कुछ दिनों बाद लौकडाउन खोल देगी. लेकिन बाद में जब उन्हें लौकडाउन में ढील के कोई आसार नहीं दिखे तो उन्होंने अप्रैल 2020 में अपने तीनों बेटों के साथ गांव वापस आने का फैसला कर लिया और किसी तरह लौकडाउन के समय में ही मुंबई से गांव लौट आए.

मुंबई से गांव वापस आने के बाद लौकडाउन के चलते कोई कामधंधा करना संभव नहीं था. इसलिए परमेश्वर कनौजिया अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पूरा दिन घर पर ही बिता रहे थे. लेकिन उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया अकसर ही गांव में टहलने निकल जाता था.

उधर जैसेजैसे देश में कोरोना के केस कम हुए तो सरकार ने भी लौकडाउन में छूट देनी शुरू कर दी थी, जिस से धीरेधीरे कामकाज भी पटरी पर आना शुरू हो चुका था.

साल 2020 का जुलाई आतेआते तमाम लोग जो मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों से वापस गांव आ गए थे, वे फिर से कामकाज की तलाश में वापस जाना शुरू कर चुके थे.

लेकिन परमेश्वर कनौजिया अभी भी गांव से वापस मुंबई नहीं गए थे. ऐसे में वह अपने बेटों के साथ घर के कामकाज निबटाते रहे.

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रोज की तरह परमेश्वर कनौजिया का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया दोपहर का खाना खा कर 19 अगस्त, 2020 को भी घर से टहलने निकला था, लेकिन हर रोज की तरह वह जब शाम तक वापस न लौटा तो परिजन धर्मेंद्र के मोबाइल पर काल लगाने लगे. लेकिन उस का फोन भी स्विच्ड औफ बताया जा रहा था.

ऐसे में परमेश्वर कनौजिया अपने परिजनों के साथ धर्मेंद्र की तलाश में घर से निकल कर आसपास पता करने लगे, लेकिन धर्मेंद्र के बारे में किसी से कुछ भी पता नहीं चला.

परमेश्वर कनौजिया को धर्मेंद्र के गायब होने का कोई कारण भी समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि वह और उन के परिवार के सभी सदस्य धर्मेंद्र से बेहद प्यार करते थे, इसलिए कभी उसे डांटफटकार भी नहीं पड़ती थी.

वह ज्यादा परेशान हो उठे थे. वहीं उन की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी जिस से लगे कि किसी ने दुश्मनी निकालने के लिए उन के बेटे को गायब कर दिया हो. रही बात कहीं जाने की तो वह हाल में ही लौकडाउन के चलते मुंबई से आया था.

वह अपने घर के लोगों के साथ धर्मेंद्र के दोस्तों और परिचितों के यहां जब देर रात तक उसे खोजते रहे और उस का कोई पता नहीं चला तो उन्होंने पुलिस को बेटे की गुमशुदगी की सूचना देने का निर्णय लिया और 20 अगस्त की सुबह थाना औरास पहुंचे.

थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की जानकारी दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने जांच की बात कह कर उन्हें लौटा दिया.

थाने से पुलिस से अपेक्षित सहयोग न मिलने से निराश हो कर धर्मेंद्र के पिता गांव वापस लौट आए और फिर से आसपास तलाश करने लगे. परमेश्वर कनौजिया अपने दोनों बेटों के साथ धर्मेंद्र की तलाश कर ही रहे थे कि उन्हें अपने घर से करीब 300 मीटर दूर धर्मेंद्र की चप्पलें पड़ी हुई मिल गईं.

धर्मेंद्र के चप्पल मिलने के बाद उस के घर वालों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगी थीं. घर वाले किसी अनहोनी के अंदेशे के साथ चप्पल मिलने वाली जगह से आगे बढ़े तो 200 मीटर दूर गिरिजाशंकर द्विवेदी के आम के बाग के पास से निकले सकरैला नाले में धर्मेंद्र का औंधे मुंह शव पड़ा देखा, जहां धर्मेंद्र का पूरा शरीर पानी में और सिर बाहर था. इसे देख कर सभी बदहवास हो रोने लगे.

इस के बाद रोतेबिलखते धर्मेंद्र  के पिता परमेश्वर कनौजिया ने औरास थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की सूचना दी. धर्मेंद्र की हत्या की सूचना पा कर थानाप्रभारी राजबहादुर ने इस की  सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी और वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने ग्रामीणों की मदद से धर्मेंद्र कनौजिया के शव को बाहर निकलवाया. उधर घटना की सूचना पा कर बांगरमऊ सीओ गौरव त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच चुके थे.

नाले से धर्मेंद्र की लाश बाहर निकालने के बाद पिता परमेश्वर व मां उर्मिला देवी का कहना था कि उन के बेटे की हत्या की गई है और शरीर में मारपीट जैसे चोट के निशान भी हैं क्योंकि धर्मेंद्र के चेहरे पर सूजन, पैंट की जेब में मिले मोबाइल में खून के निशान थे. जिस के आधार पर वे बारबार बेटे की हत्या किए जाने की बात दोहरा रहे थे.

वहीं दूसरी ओर पुलिस का कहना था कि मृतक धर्मेंद्र की लाश पर किसी तरह के चोट का निशान नहीं दिखाई पड़ रहा था. लिहाजा पोस्टमार्टम से पहले कहना मुश्किल था कि उस की हत्या की गई है. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक पुलिस ने जांच शुरू कर दी थी और मृतक के पिता परमेश्वर कनौजिया से किसी से दुश्मनी होने की बात पूछी तो उन्होंने बताया कि उन का या उन के परिवार के किसी भी सदस्य का किसी से भी झगड़ा या दुश्मनी नहीं थी.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की मौत के कारणों को ले कर छानबीन कर ही रही थी कि अगले दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत का कारण स्पष्ट नहीं था. इस वजह से धर्मेंद्र का विसरा सुरक्षित कर जांच के लिए भेज दिया गया. जिस के कुछ दिनों बाद ही विसरा की जांच रिपोर्ट भी आ गई. विसरा रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत जहर से होनी बताई गई थी.

विसरा रिपोर्ट मिलने के बाद यह तो साफ हो गया था कि धर्मेंद्र की हत्या की गई है. लेकिन पुलिस को हत्या का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था जिस के आधार पर हत्यारों तक पहुंचा जा सके. इसलिए पुलिस के सामने हत्या के कारण और हत्यारों तक पहुंचना चुनौती बना हुआ था.

ऐसे में पुलिस ने सर्विलांस की मदद से धर्मेंद्र के हत्यारों तक पहुचने का प्रयास शुरू कर दिया और मृतक के मोबाइल नंबर की पिछले एक सप्ताह की काल डिटेल्स खंगालनी शुरू कर दी.

धर्मेंद्र की हत्या के लगभग एक महीना बीतने को था, लेकिन पुलिस अभी भी हत्या के कारणों का पता लगाने व हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही थी. धर्मेंद्र की काल डिटेल्स के आधार पर भी हत्यारों तक पहुंचना पुलिस को कठिन लग रहा था.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की हत्या के मामले की जांच कर ही रही थी, इसी दौरान परमेश्वर कनौजिया को पता चला कि धर्मेंद्र के गायब होने वाले दिन आखिरी बार उसे गांव के ही रहने वाले लक्ष्मण, राहुल कनौजिया, संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत कनौजिया के साथ देखा गया था.

यह जानकारी मिलते ही परमेश्वर कनौजिया ने 17 सितंबर, 2020 को औरास थाने पहुंच कर संजीत व रंजीत, राहुल और लक्ष्मण के खिलाफ बेटे की हत्या में शामिल होने की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जब पुलिस आरोपियों के घर पहुंची तो सभी हत्यारोपी घर से फरार मिले. इस के आधार पर आरोपियों पर पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गया. पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन आरोपी हाथ नहीं आए.

धर्मेंद्र की हत्या के कई माह बीत चुके थे और पुलिस लगातार आरोपियों के घर और संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन इस मामले में पुलिस के हाथ अब भी खाली थे.

इसे ले कर मृतक के घर वाले आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कई बार एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी के साथसाथ उच्चाधिकारियों से गुहार भी लगा चुके थे.

इसी बीच थानाप्रभारी राजबहादुर की जगह औरास थाने की कमान तेजतर्रार हरिप्रसाद अहिरवार को सौंप दी गई थी.

चूंकि इस मामले का परदाफाश न होना पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. ऐसे में एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी और एएसपी शशिशेखर ने खुद इस मामले पर नजर रखते हुए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार को केस का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया.

अब नए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार  ने नए सिरे से आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाना शुरू किया. इसी बीच उन्हें 20 मई, 2021 को मुखबिरों से खबर मिली कि लक्ष्मण, राहुल, संजीत रंजीत उन्नाव की मड़ैचा तिराहे के पास हैं और कहीं भागने की फिराक में हैं.

इस सूचना के बाद थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार ने हैडकांस्टेबल दिलीप सिंह, कांस्टेबल प्रशांत, हर्षदीप व आशीष के साथ जाल बिछा कर मड़ैचा तिराहे से चारों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस आरोपियों को पकड़ कर थाने ले आई और धर्मेंद्र कनौजिया की हत्या के बारे में पूछताछ करने लगी. लेकिन चारों ही धर्मेंद्र की हत्या में शामिल होने की बात से नकारते रहे.

जब पुलिस को लगा कि आरोपी आसानी से हत्या की बात कुबूलने वाले नहीं हैं तो कड़ाई से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में चारों टूट गए और उन्होंने धर्मेंद्र की हत्या की बात कुबूल ली.

आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि उन लोगों ने वारदात वाले दिन राहुल, संजीत व रंजीत की मदद से धर्मेंद्र को गांव के बगीचे में बुला कर मछली के साथ शराब पार्टी रखी थी. जहां पहले से ही धर्मेंद्र की हत्या करने के लिए जहर खरीद कर रख लिया था.

आरोपियों ने धर्मेंद्र को जम कर शराब पिलाई और जब वह नशे में धुत हो गया तो मौका देख राहुल ने उस के शराब के गिलास में जहर मिला दिया. जहर मिली शराब पीने के बाद धर्मेंद्र अचेत हो कर गिर पड़ा. इस के बाद धर्मेंद्र की मौत का इंतजार करते रहे और जब उस की मौत हो गई तो धर्मेंद्र की लाश सकरैला नाले में फेंक दी.

पुलिस ने जब आरोपियों से हत्या का कारण पूछा तो आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि धर्मेंद्र कनौजिया उस की बेटी से प्रेम करता था और वह अकसर उस के घर उस की बेटी से मिलने आया करता था.

लक्ष्मण ने बताया कि वह अकसर दोनों को समझाता रहता था. लेकिन धर्मेंद्र के सिर पर प्रेम का मानो भूत सवार था.

धर्मेंद्र लगातार उस की बेटी के साथ नजदीकियां बढ़ाता जा रहा था. इसी बीच लक्ष्मण के घर पर गांव के ही राहुल का आनाजाना शुरू हो गया, उस ने भी जब पहली बार लक्ष्मण की बेटी को देखा तो उस की खूबसूरती और चढ़ती जवानी को देख उस पर लट्टू हो गया.

अब राहुल लक्ष्मण के बेटी को देखने अकसर बहाने से उस के घर आने लगा था. वह जब भी आता तो लक्ष्मण की बेटी को देख अपनी सुधबुध खो बैठता था. उस के मन में लक्ष्मण की बेटी को ले कर कब प्यार की कोपलें पनपने लगीं, उसे पता ही नहीं चला.

लेकिन उस के सामने एक बड़ी समस्या धर्मेंद्र था. क्योंकि वह भी उसी के चक्कर में अकसर लक्ष्मण के घर आया करता था. इधर लगातार राहुल के घर आने से लक्ष्मण की बेटी का प्यार धर्मेंद्र से कम होता गया और वह राहुल की तरफ आकर्षित होने लगी.

अब वह धर्मेंद्र की जगह राहुल से प्यार करने लगी और दोनों में काफी नजदीकियां भी बढ़ चुकी थीं. इस वजह से अब वह धर्मेंद्र से दूरी बनाने लगी थी. लेकिन धर्मेंद्र दूरी नहीं बनाना चाहता था क्योंकि वह उस से हद से ज्यादा प्यार करने लगा था.

लक्ष्मण ने बताया कि उस की बेटी राहुल से प्यार के चलते धर्मेंद्र से पीछा छुड़ाना चाहती थी, लेकिन धर्मेंद्र उस से दूर जाने के बजाय और करीब आने की कोशिश करने लगा था.

कई बार मना करने के बावजूद भी धर्मेंद्र का रोजाना घर आना उसे बरदाश्त नहीं था. इसलिए उस ने धर्मेंद्र को रास्ते से हटाने का खौफनाक निर्णय ले लिया. इस के लिए लक्ष्मण ने बेटी के दूसरे प्रेमी राहुल के साथ ही संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत को भी धर्मेंद्र की हत्या की साजिश में शामिल कर लिया.

फिर तय प्लान के अनुसार धर्मेंद्र को विश्वास में ले कर उसे शराब और मछली की पार्टी के लिए गांव से सटे बगीचे में बुलाया, जहां 19 अगस्त, 2020 को पार्टी के दौरान उस के शराब के पैग में जहर मिला कर उस की हत्या कर दी और लाश पास के नाले में फेंक दी.

पुलिस ने धर्मेंद्र की हत्या के नौवें महीने में साजिश का परदाफाश कर दिया और आरोपियों के बयान दर्ज कर धारा 302, 201, 34 भादंवि के तहत न्यायलय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक आरोपी जेल में ही थे.

सिरफिरा आशिक : बना अपनी ही प्रेमिका का कातिल

घटना 13 मार्च, 2021 की है, उस समय दिन के यही कोई 10 बज रहे थे, मनीषा गेडाम अपनी पेइंगगेस्ट सहेली जेनेट के साथ बैठ कर गपशप कर रही थी कि तभी जेनेट के मोबाइल पर काल आई, ‘‘जेनेट, फोन मत काटना प्लीज, मुझे मनीषा से कुछ खास बात करनी है. एक मिनट के लिए उसे फोन दो.’’

‘‘मनीषा, मैं सागर बोल रहा हूं, मैं तुम से एक बार मिलना चाहता हूं. फिर मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगा. मैं इस समय तुम्हारी बिल्डिंग के नीचे खड़ा हूं. प्लीज, तुम नीचे आ जाओ.’’

उस की यह बात सुन कर जेनेट और मनीषा दोनों इमारत के नीचे आईं और पूछा, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’

‘‘मैं जौब के लिए विदेश जा रहा हूं. यह देखो मेरी टिकट आ गई है,’’ अपने मोबाइल में टिकट का फोटो दिखाते हुए बोला.

‘‘ठीक है, अब तुम मुझे भूल जाओ. तुम विदेश जाते हो तो जाओ, इस से मुझे क्या.’’ मनीषा ने कहा

‘‘पर मेरी एक विनती है मनीषा, तुम मेरे साथ सिर्फ एक दिन बिताओ. हम कहीं घूमनेफिरने चलते हैं. शाम को मैं तुम्हें वापस घर पर छोड़ दूंगा. हम दोनों महाबलेश्वर जाएंगे.’’ सागर ने विनती करते हुए कहा, ‘‘अगर तुम आती हो तो… क्योंकि इस के बाद मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगा, तुम्हें यहां छोड़ने के बाद मैं सीधे अपने गांव चला जाऊंगा.’’

अपने पूर्व प्रेमी आनंदराव गुडव उर्फ सागर की इस विनती पर मनीषा यह सोच कर उस के साथ जाने को तैयार हो गई कि चलो इस के बाद उस से पीछा तो छूट जाएगा. वह उस की बाइक पर बैठ कर निकल गई.

सुबह 10 बजे की गई मनीषा जब काफी रात तक नहीं लौटी तो मनीषा की सहेली जेनेट को उस की चिंता हुई, उस ने उसे कई बार फोन लगाया. लेकिन हर बार उस का फोन स्विच्ड औफ बता रहा था.

आखिरकार परेशान हो कर जेनेट ने सारी बातें मनीषा के भाई प्रतीक को बताईं. जेनेट की बातें सुन कर प्रतीक के होश उड़ गए थे. प्रतीक ने कहा, ‘‘ये सारी बातें तुम मां को बताओ, मैं भी मां से बात करता हूं.’’

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प्रतीक की सलाह पर जेनेट ने मनीषा की मां चित्रा से संपर्क किया और उन्हें सारी बातें बताईं. यह सुन कर वह बेहोश सी हो गई थीं. जब उन्हें होश आया तो मां ने पुलिस थाने में मनीषा की शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा था.

परिवार वालों के कहने पर जेनेट पुणे के चंदननगर थाने पहुंच कर थानाप्रभारी सुनील जाधव से मिली और उन्हें सारी जानकारी दी. तब थानाप्रभारी ने मनीषा की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

थानाप्रभारी सुनील जाधव ने इस मामले को संज्ञान में तो लिया, लेकिन जिस तरह से उन्हें काररवाई करनी चाहिए थी, वैसा कुछ नहीं हुआ. पुलिस इस मामले को एक साधारण शिकायत की तरह जांच करती रही. गायब मनीषा की बरामदगी की कोशिश करने के बजाय पुलिस सामान्य तौर पर मनीषा की तलाश करती रही.

इसी तरह 13-14 दिन निकल जाने के बाद मनीषा के घर वालों का धैर्य टूटने लगा तो मनीषा का भाई पुणे आया और एसीपी नामदेव चौहान से मिल कर उन्हें सारी बातें बताईं और अपनी बहन मनीषा के गायब होने में सागर का हाथ बताया. उस ने कहा कि वह उस से एकतरफा प्यार करता था और अकसर उसे परेशान किया करता था. एसीपी नामदेव चौहान ने मामले की जांच इंसपेक्टर (क्राइम) सुनील थोपटे को सौंप दी.

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन पर इंसपेक्टर सुनील थोपटे ने सहायकों की एक टीम बनाई, जिस में उन्होंने एएसआई गजानंद जाधव, भालचंद जाधव, सिपाही गणेश आवाले को शामिल कर मामले की जांच शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि आनंदराव गुडव उर्फ सागर अमरावती जिले के थाना चादुर बाजार क्षेत्र में स्थित पपलपुरा गांव का रहने वला था. पुणे पुलिस ने जब सागर का फोन ट्रैक किया तो उस की लोकेशन चादुर बाजार क्षेत्र की मिली.

यह जानकारी मिलने पर पुणे पुलिस सक्रिय हो गई. तुरंत चादुर बाजार थाने से संपर्क कर उन्हें सारी बातें बता कर पुणे पुलिस की एक टीम सागर के गांव के लिए रवाना हो गई. गांव पहुंच कर पुलिस टीम ने चादुर बाजार पुलिस की सहायता से आनंदराव गुडव उर्फ सागर को अपनी गिरफ्त में लिया.

इंसपेक्टर सुनील थोपटे ने उस से पूछताछ की तो वह पहले तो इधरउधर की बातें कर पुलिस टीम को गुमराह करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सी सख्ती दिखाई तो वह टूट गया और अपना गुनाह कुबूल करते हुए कहा कि वह मनीषा की हत्या कर चुका है. उस ने मनीषा हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी.

28 साल की सुंदर और महत्त्वाकांक्षी मनीषा गेडाम महाराष्ट्र के जिला अमरावती के गांव श्रीकृष्ण नगर की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम बापूराव गेडाम था.

परिवार में मां चित्रा के अलावा 3 भाईबहन थे. भाई का नाम प्रतीक और बड़ी बहन का नाम सुहासिनी गेडाम था. सुहासिनी की शादी हो चुकी थी. वह अपने परिवार के साथ पुणे के हडपसर की शिंदे बस्ती में रहती थी. भाई प्रतीक अमरावती के पाटे कालेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था.

परिवार में प्यार था. पिता बापूराव गेडाम अपनी बड़ी बेटी सुहासिनी से कभीकभी मिलने के लिए पुणे आतेजाते रहते थे.

मनीषा बीए तक पढ़ाई करने के बाद पुणे के मंत्री अपार्टमेंट विजयनगर में स्थित आईजीटी कंपनी में नौकरी करने लगी थी. वह अपनी एक सहेली जेनेट अमित पारकर के साथ पेइंगगेस्ट की तरह रहने लगी थी.

बेटी की राजदार मां होती है. मनीषा हर छोटीबड़ी बात मां से शेयर करती थी, इसलिए मनीषा ने जब अपनी मां चित्रा को बताया कि वह अपने कालेज के एक लड़के सागर गुडव से प्यार करती है और दोनों शादी कर के अपना एक सुनहरा संसार बसाना चाहते हैं तो मां को एक झटका सा लगा था.

उन्होंने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘वह लड़का कैसा है?’’

‘‘अच्छा है मां,’’ मनीषा ने बताया.

‘‘ठीक है, इस विषय में मैं तुम्हारे पापा से बात करती हूं.’’

शाम को घर आए पति बापूराव गेडाम को चित्रा ने जब बेटी मनीषा के बारे में बताया तो वह दंग रह गए. लेकिन करते भी तो क्या, मामला नाजुक था.

उन्होंने सागर के बारे में पता लगाया तो उस के विषय में उन्हें जो जानकारी मिली, उस से उन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया था. वह उन का दामाद बनने लायक नहीं था. क्योंकि वह शराब सप्लायर के अलावा कई गलत काम करता था.

मौका देख कर मनीषा को परिवार वालों ने समझाया और कहा, ‘‘बेटी, तुम जिस से शादी करना चाहती हो वह संभव नहीं है.’’

‘‘क्यों पापा, सागर में बुराई क्या है?’’ मनीषा ने पूछा.

‘‘बेटी, उस में एक बुराई हो तो बताऊं, वह अपराधी प्रवृत्ति का लड़का है. तुम होशियार और समझदार हो. तुम जो करोगी, अच्छा करोगी. लेकिन बेटी समाज में अपनी भी कुछ इज्जत और मानसम्मान है. क्या तुम चाहती हो कि समाज में अपनी गरदन झुक जाए.’’ पिता ने कहा.

परिवार वालों के समझाने पर मनीषा ने सागर से शादी करने का अपना इरादा बदल दिया और उस से शादी करने से साफसाफ मना कर दिया था. कहा कि वह अपने परिवार वालों की पंसद से शादी करेगी.

मनीषा की इस बात से सागर के तनबदन में आग सी लग गई थी. पहले उस ने मनीषा को कई बार फोन किया. फोन बंद पा कर सागर ने मनीषा का रास्ता रोकना, उस पर दबाब और धमकाना शुरू किया, ‘‘देखो मनीषा, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. अगर तुम मुझे से शादी नहीं करोगी तो अंजाम बहुत बुरा होगा. मैं तुम्हें तो तकलीफ दूंगा ही, तुम्हारे पूरे परिवार को खत्म कर दूगा.’’

सागर के इस तरह के बर्ताव से परेशान हो कर मनीषा अपनी बहन सुहासिनी के घर पुणे चली गई थी. यह बात 2018 की है.

पुणे आने के कुछ दिनों बाद मनीषा को एक अच्छी सी नौकरी मिल गई थी. मनीषा की नौकरी लगने के बाद वह अपनी बहन का घर छोड़ जेनेट के साथ जा कर शेयरिंग में रहने लगी और अपना मोबाइल नंबर भी बदल दिया था.

मनीषा का नंबर बदल जाने के बाद सागर पागल सा हो गया था. मनीषा का नंबर पाने के लिए वह एक दिन उस के घर पहुंच गया. घर पर मनीषा की मां मिली. पूछने पर मां चित्रा ने उसे मनीषा के बारे में कुछ नहीं बताया तो सागर ने मां चित्रा को उन के साथ मारपीट की और उन्हें डरायाधमकाया.

उस की धमकियों से डरी चित्रा अपने एक रिश्तेदार के साथ चादुर बाजार थाने पहुंच गईं और सागर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. जिस पर पुलिस ने सागर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. उस के जेल जाने के बाद थोडे़ दिनों तक तो माहौल शांत रहा.

लेकिन जेल से छूटने के बाद सागर का वही नाटक शुरू हो गया था. उसे इस बीच किसी तरह मनीषा की सहेली जेनेट का फोन नंबर मिल गया था और वह मनीषा से बातें करने लगा. उसे शादी के लिए परेशान करने लगा. उस ने धमकी दी, ‘‘तुम अगर मुझ से शादी नहीं करोगी तो मैं तुम्हारी मां को खत्म कर दूंगा.’’ इस तरह की धमकी से कुछ दिन निकल गए थे.

14 फरवरी को बापूराव अपने बेटे प्रतीक के साथ पुणे में अपनी बड़ी बेटी सुहासिनी के यहां गए हुए थे, वहां उन की दोनों बेटियों के साथ उन का महाबलेश्वर घूमने का कार्यक्रम बन गया था. यहां सागर ने मनीषा को कई बार फोन किया था, पर मनीषा ने उस के एक भी फोन का जवाब नहीं दिया था, बल्कि अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया था.

इस से नाराज सागर वापस मनीषा के घर गया और उस की मां चित्रा से मारपीट की, मनीषा को जब यह जानकारी मिली तो वह अपने पापा और भाई के साथ गांव आई और चादुर बाजार थाने में सागर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दिया. फिर वह वापस पुणे लौट आई थी.

पुलिस ने सागर को फिर से जेल भेज दिया. 15 दिन जेल में रहने के बाद जब सागर बाहर आया तो उसे मनीषा से सख्त नफरत हो गई थी और इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार कर ली थी. अपनी योजना के अनुसार वह पुणे आ गया था और उस की सहेली जेनेट को फोन किया. लेकिन उस दिन उस का काम नहीं बना, मनीषा ने उस दिन उस से बात करने से मना कर दिया था.

घटना के दिन मनीषा को आखिर सागर ने अपनी बातों के जाल फंसा ही लिया था और उस के साथ कुछ समय बिताने के लिए तैयार हो गई थी.

मनीषा के साथ सागर ने पहले महाबलेश्वर जाने की योजना बनाई. लेकिन चंदननगर पुणे रोड पर आने के बाद उस ने अपना इरादा बदल दिया. उस का मानना था कि वहां तक जाने में काफी रात हो जाएगी, इसलिए उस ने अपनी बाइक भाटघर की तरफ मोड़ दी.

जोगवाड़ी, ब्राह्मण घर घूमने के बाद भाटघर वाटर बैंक के पास एक पत्थर पर जा कर दोनों बैठ गए थे. इस के पहले कि वे कुछ बात करते, मनीषा का फोन आ गया था. जिस पर उस की लंबी बातचीत चलने लगी.

इस पर जब सागर ने पूछा कि फोन किस का था, तो मनीषा ने कहा, ‘‘तुम्हें क्या करना है, मेरा फोन है.’’

‘‘लेकिन…’’ सागर कुछ आगे बोलता. मनीषा ने उस की बातों को काटते हुए कहा, ‘‘मेरी तुम से शादी नहीं हुई है, जो तुम मुझ पर इतना दबाव बनाओगे.’’

इस बात को ले कर दोनों में काफी कहासुनी हुई और क्रोध में आ कर सागर ने पास में ही पडे़ पत्थर को उठा कर मनीषा के सिर पर दे मारा. पत्थर के जोरदार हमले से मनीषा की एक दर्दनाक चीख निकल कर वहां के शांत वातावरण में खो गई थी.

कुछ समय के बाद मनीषा के खत्म होते ही उस ने अपनी बाइक उठाई और अपने गांव अमरावती आ गया था. गांव आ कर अपना फोन बंद कर चुपचाप बैठ गया था, जहां से पुलिस ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. फौरी तौर पर पूछताछ करने के बाद उसे उस जगह ले कर गए, जहां मनीषा की हत्या हुई थी.

उस जगह पहुंच कर के पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मनीषा का मोबाइल आदि को अपने कब्जे में ले कर लाश का पंचनामा तैयार किया. फिर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

आनंदराव गुडव उर्फ सागर से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने भादंवि की धारा 364, 302, 34 के अंतर्गत मुकदमा कर उसे पुणे की यरवदा जेल भेज दिया.

सिसकती मोहब्बत : प्यार बना जान का कारण

—श्वेता पांडेय

महासमुंद जिले में स्थित श्रीराम कालोनी के पास स्वीपर कालोनी भी है. दोनों कालोनियों के बीच एक छोटा सा मैदान है. अगर वह मैदान नहीं होता तो दोनों कालोनियों को एक ही माना जाता. इसी श्रीराम कालोनी में पूनम यादव रहती थी, उस के 3 बेटे थे रोहित, शिव और कान्हा यादव.

इसी कालोनी में जीवन साहू भी अपने परिवार के साथ रहता थ. उस के 3 बेटियां थीं. हम इस कहानी में सिर्फ नीतू का ही उल्लेख कर रहे हैं जिस का संबंध इस कहानी से है. 24 वर्षीय नीतू साहू जीवन साहू की ही बेटी थी. एक ही मोहल्ले के बाशिंदे होने के कारण स्वाभाविक रूप से रोहित यादव और नीतू साहू की अकसर मुलाकात हो जाया करती थी.

इस का परिणाम यह निकला कि कब दोनों एकदूसरे को चाहने लगे, उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा था. 3 महीने तक दोनों ने अपनी चाहतों को मन में ही छिपा कर रखा.

कभी न कभी तो इस चाहत को मुखर होना ही था. पहल रोहित यादव की ओर से हुई. एक दिन वह अपनी बाइक से कहीं जा रहा था कि उस की नजर कपड़े के शोरूप में गई. उस शोरूम के भीतर नीतू कपड़े पसंद करती दिखाई दी.

उस शोरूम का दरवाजा कांच का बना हुआ था, अत: अंदर की हलचल बाहर आतेजाते लोगों को दिखाई देती थी. उस शोरूम के बाहर रोहित ने बाइक खड़ी की और दरवाजा खोल कर अंदर घुस गया. वह सीधे उस काउंटर पर पहुंचा जहां नीतू कपड़े पसंद कर रही थी.

वहां ढेरों कपड़े बिखरे पड़े थे लेकिन उसे कुछ पसंद नहीं आ रहा था. नीतू के चेहरे पर झुंझलाहट साफसाफ दिखाई दे रही थी. रोहित ने उस के करीब पहुंच कर उस के कंधे पर हाथ रखा. नीतू चिहुंक कर पीछे पलटी. रोहित मुसकराते हुए बोला, ‘‘सूट खरीद रही हो क्या?’’

‘‘हां, कोई सूट जंच ही नहीं रहा.’’

‘‘क्या मैं इस में तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं?’’ बगैर नीतू को बोलने का मौका दिए काउंटर पर खड़ी लड़की की ओर मुखातिब होता हुआ अंगुली से इशारा करते हुए रोहित बोला, ‘‘मैडम, वो जो तीसरे रैक पर पिंक कलर का है, उसे दिखाइए.’’

पिंक कलर वाला सूट निकाल कर उस सेल्सगर्ल ने काउंटर पर रख दिया. रोहित सूट की तह खोल कर नीतू के सामने रखते हुए बोला, ‘‘यह तुम पर बहुत फबेगा.’’

उलटपलट कर देख कर नीतू ने भी उसे पसंद कर लिया. सहयोग के लिए शुक्रिया. पैक्ड सूट का पेमेंट कर नीतू काउंटर के स्टैंड पर रखा एक कैप हाथ में लेते हुए बोली, ‘‘ये कैप तुम पर बहुत जंचेगी.’’

फिर रोहित को कुछ बोलने का मौका दिए बगैर उस के सिर पर कैप लगाते हुए बोली, ‘‘देखो, बहुत जंच रहे हो.’’

रोहित ने पेमेंट करनी चाही, पर उस ने रोहित को ऐसा करने से रोका, ‘‘ये मेरी ओर से तुम्हारे लिए, प्लीज.’’

दोनों शोरूम से बाहर आए. नीतू बोली, ‘‘अच्छा किया तुम ने यहां आ कर. मेरी मदद हो गई.’’

‘‘कहां जाओगी?’’ रोहित ने पूछा.

नीतू जिस काम से आई थी, वह तो पूरा हो गया था. अब घर ही जाना था. वह कुछ कहती उस के पहले रोहित बोला, ‘‘कुछ समय मेरे लिए नहीं निकालोगी? एकएक कप कौफी हो जाए, उस के बाद मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.’’

फिर खामोशी से उस ने उस के प्रस्ताव पर स्वीकृति दे दी. दोनों बाइक पर सवार हो कर कौफी शौप पर पहुंचे. रोहित ने बाइक स्टैंड पर खड़ी की. नीतू के एक हाथ में पौलीथिन का कैरीबैग था. उस के खाली हाथ को रोहित ने थाम लिया. नीतू ने देखा मगर बोली कुछ नहीं.

एक खाली टेबल पर दोनों पहुंचे. उस समय कौफी शौप में बहुत भीड़ थी. टेबल के आमनेसामने दोनों बैठ गए.

‘‘कुछ और लोगी?’’ रोहित ने पूछा.

नीतू ने इनकार में अपना सिर हिलाया.

‘‘सिर्फ कौफी,’’ रोहित ने 2 कप कौफी का और्डर दिया.

5 मिनट बाद कौफी सर्व हुई. खामोशी के साथ दोनों कौफी का सिप लेते रहे.

लब खामोश थे. निगाहें बातें कर रही थीं. कौफी खत्म कर दोनों कौफी शौप से बाहर आए. बाइक पर नीतू को बिठा कर रोहित श्रीराम कालोनी पहुंचा.

नीतू के घर से थोड़ी दूरी पर उस ने बाइक रोकी. नीतू बाइक से उतर कर अपने घर की ओर बढ़ी ही थी कि रोहित ने आवाज लगाई, ‘‘नीतू, सुनो.’’

नीतू ने पलट कर रोहित की ओर सवालिया निगाहों से देखा. रोहित बोला, ‘‘कल वहीं मिलोगी क्या उस सूट के साथ? सच्ची कह रहा हूं, उस सूट में तुम्हें देखना चाहता हूं.’’

नीतू मुसकराते हुए बोली, ‘‘सोचूंगी.’’

फिर वह वहां रुकी नहीं. घर की ओर बढ़ गई. उस ने एक बार पीछे पलट कर देखा तो रोहित बाइक की सीट पर बैठा उसे बाय कर रहा था.

करार के मुताबिक अगले दिन नीतू उस से नहीं मिली और न ही 3-4 दिन तक दिखाई दी. परेशान हो कर रोहित नीतू के घर के सामने बाइक की सीट पर बैठा टकटकी बांधे उस के घर की ओर देखता रहा.

एक घंटे इंतजार के बाद नीतू उसे घर की छत पर कपड़े डालती हुई दिखाई दी. रोहित ने हाथ हिला कर अपनी ओर आकर्षित करना चाहा लेकिन जानबूझ कर नीतू ने अनदेखा कर दिया.

रोहित को बहुत गुस्सा आया. इधरउधर देखा और पास से एक पत्थर उठा कर जोर से छत की ओर उछाल दिया. पत्थर नीतू के पास जा कर गिरा.

नीतू को मालूम था कि ऐसा किस ने किया होगा. उस ने चौंकने की शानदार एक्टिंग की. इधरउधर निगाहें घुमाने के बाद रोहित पर जा कर ठहर गईं. रोहित ने उसे हाथ से इशारा किया साथ ही हवा में मुक्का घुमाया.

रोहित के ऐसा करने पर नीतू खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के हंसने से रोहित का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने गुस्से में अपने सिर के बालों को नोचने का नाटक किया. नीतू को हाथ का पंजा दिखा कर इशारे से बताया 5 बजे. फिर उस ने हाथ उठा कर चाय की चुस्की का इशारा किया.

हरी झंडी मिलते ही रोहित के चेहरे पर रौनक आ गई. बाइक पर बैठा और चल पड़ा.  तय समय से 15 मिनट पहले रोहित कौफी शौप में जा कर एक टेबल के पास लगी कुरसी पर बैठ गया. घड़ी की सुइयां धीरेधीरे सरक रही थीं. सवा 5 होने जा रहा था. वह उठ कर बाहर जाने ही वाला था कि दरवाजा खोल कर नीतू आती दिखाई दी.

उठने को तत्पर रोहित फिर से वहीं बैठ गया. नीतू पिंक कलर का वही सूट पहन कर आई थी. टेबल के करीब पहुंच कर कुरसी पर बैठती हुई बोली, ‘‘ज्यादा इंतजार तो नहीं करना पड़ा हुजूर को? बस 15 मिनट लेट हुई हूं.’’

‘‘और वो 5 दिन जिस में तुम ने मुझ से मिलने का वादा किया था? वो इंतजार में शामिल नहीं है?’’

‘‘गुस्सा ठंडा कीजिए हुजूर.’’

फिर रोहित ने नारमल होते हुए कौफी मंगाई. कौफी पीते समय इधरउधर की बातें होती रहीं. मौका देख कर नीतू बोली, ‘‘तुम ने बुलाया मैं आ गई. हो गई तसल्ली.’’

‘‘5 दिन के इंतजार का ये सिला?’’

‘‘15 मिनट बहुत होते हैं जनाब.’’ कहते हुए नीतू कौफी शौप से बाहर निकल गई.

वक्त के साथ दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. प्यार का अंकुर अब बड़ा दरख्त बन चुका था. दोनों साल भर से एकदूसरे को प्यार कर रहे थे. इन दिनों में इन लोगों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाईं लेकिन इस का क्या किया जाए कि समय को कुछ और ही मंजूर था.

10 जुलाई, 2021 को श्रीराम कालोनी में रात 9 बजे किसी की जन्मदिन की पार्टी चल रही थी. उस वक्त रोहित नीतू के घर के सामने बल्कि दरवाजे पर चिल्लाचिल्ला कर नीतू का नाम ले कर दरवाजा पीटे जा रहा था.

पार्टी में व्यवधान हो रहा था. सोनू प्रजापति और जागेश्वर साहू ने रोहित को ऐसा करने से मना किया. इस बीच सोनू ने किशन पांडेय को फोन कर श्रीराम कालोनी पहुंचने को कहा. सोनू ने जिस समय किशन को फोन किया, उस वक्त वह थोड़ी ही दूरी पर था. 2 मिनट में ही वह वहां पहुंच गया.

आननफानन बाइक को स्टैंड पर खड़ी कर गुत्थमगुत्था हो रहे सोनू, जागेश्वर और रोहित के बीच में वह भी घुस गया. ये 3 और रोहित अकेला. फिर भी तीनों पर भारी पड़ रहा था.

स्ट्रीट लाइट की रोशनी उन तक पहुंच रही थी. होहल्ला सुन कर नीतू छत पर पहुंच गई. रोहित काबू में नहीं आ रहा था. तीनों को मांबहन की गालियां देते हुए देख लेने की धमकी दिए जा रहा था.

नीतू ने रोहित को पहचान लिया. नीतू ने देखा कि उन तीनों में से एक के हाथ में चाकू था जिसे उस ने ऊपर उठाया और बगैर मौका दिए रोहित पर वार करता चला गया. छत पर खड़ी नीतू चिल्लाई, ‘‘छोड़ दो उसे…छोड़ दो उसे. कोई बचाओ.’’

उन चारों के पास कोई मोहल्ले वाला नहीं आया तब नीतू ने प्रेमी को बचाने के लिए छत से नीचे छलांग लगा दी और रोहित की ओर बढ़ना चाहा लेकिन उस के पैरों ने जवाब दे दिया. उस के पैर फ्रैक्चर हो चुके थे. एक पैर टूट ही गया. फिर भी वह वहीं जमीन पर पड़ी हुई चीखतीचिल्लाती रही.

सोनू प्रजापति, जागेश्वर साहू और किशन पांडेय रोहित को चाकू से मार कर फरार हो गए. उन के भागने के बाद मोहल्ले वाले वहां पहुंचे, जहां रोहित अपने ही खून में डूबा हुआ था. किसी ने रोहित के चाचा लालू यादव और पिता पूनम यादव को दौड़ कर यह सूचना दी.

दोनों भाई वहां पहुंचे. रोहित खून से तरबतर पड़ा था. आननफानन में पुलिस को बुलाया गया. तत्काल रोहित को पास के जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां चैकअप के बाद डाक्टरों ने रोहित को मृत घोषित कर दिया गया.

लालू यादव की रिपोर्ट पर महासमुंद सिटी कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. थानाप्रभारी शेर सिंह बंदे अपने साथ टीकाराम सारथी, सुशील शर्मा, योगेश सोनी आदि पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल पर पहुंचे.

वहां लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि रोहित पर 3 लोगों ने हमला किया था. लोगों ने यह भी बता दिया कि एक हमलावर कुम्हारपाड़ा का रहने वाला जग्गू साहू उर्फ जागेश्वर रायपुर की ओर भागा है.

तीनों फरारों के हुलिए के हिसाब से पुलिस ने जिले से बाहर जाने वाले रास्तों पर नाकाबंदी कर दी.

इस का नतीजा यह निकला कि महासमुंद के घोड़ारी के पास से पुलिस ने जागेश्वर को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर उस ने 2 लोग सोनू प्रजापति जोकि मूर्तिकार है और किशन पांडेय को घटना में शामिल बताया.

घटना के अगले दिन पुलिस ने दोनों को अलगअलग जगहों से धर दबोचा. इन लोगों ने अपने बयानों में बताया कि रोहित की दबंगई पहले से ही उन की आंखों में खटक रही थी.

उस दिन हम ने रोहित को समझाया लेकिन वह उत्तेजित हो कर हम तीनों को ही गालियां देने लगा था. रोहित हाथापाई पर उतर आया था. तब हम लोगों ने मजबूर हो कर उसे सबक सिखाया.

उसी रात नीतू को जिला अस्पताल में एडमिट कराया गया. वह बारबार बेहोश हो रही थी. और जब भी होश आता तो एक ही सवाल करती, ‘‘रोहित…मेरा रोहित कैसा है?’’

जो भी हालचाल पूछने अस्पताल पहुंचता, हर किसी से यही पूछती कि रोहित कैसा है. ठीक तो है न. कथा लिखने तक वह अस्पताल में भरती थी. लोगों की खामोशी ने नीतू को बहुत कुछ समझा दिया है. अपने दर्द को भूल कर वह रोहित की सलामती की कामना करती हुई बैड पर पड़ी थी.

रोहित के चाचा लालू यादव की रिपोर्ट पर महासमुंद पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 34 कायम कर आरोपियों को कोर्ट में पेश कर 14 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

कहानी लिखी जाने तक पुलिस पड़ताल में जुटी हुई थी. हत्या में प्रयुक्त चाकू और घटना के समय पहन रखे कपड़े पुलिस ने जब्त कर लिए.

प्रेमी की जान बचाने के लिए नीतू ने छत से छलांग लगा दी थी, लेकिन इस के बाद भी उस का प्रेमी नहीं बच सका. कथा लिखने तक नीतू का अस्पताल में इलाज चल रहा था.

उसे इस बात की सूचना नहीं दी कि उस का प्रेमी रोहित अब इस दुनिया में नहीं है. प्रेमी की मौत की जब भी उसे जानकारी मिलेगी, यकीनन उसे बहुत बड़ा सदमा लगेगा.

बदनामी से बचने के लिए खेला मौत का खेल – भाग 2

पुलिस हर प्रकार से विपिन शुक्ला की तलाश कर के थक चुकी थी. मुखबिरों का भी सहारा लिया गया था. लेकिन उन से भी कोई लाभ नहीं मिला. शहर के बदनाम लोगों से भी पूछताछ की गई, पर नतीजा शून्य ही रहा.

इंसपेक्टर वेदप्रकाश पर एसएसपी स्वप्न शर्मा की ओर से काफी दबाव डाला जा रहा था. इसलिए उन्होंने नए सिरे से जांच करते हुए एयरफोर्स कालोनी के निवासियों और कैंटीन कर्मचारियों से पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्हें लगा कि विपिन की गुमशुदगी में कालोनी के ही किसी आदमी का हाथ है.

उन्होंने अपने मुखबिरों को कालोनी वालों पर नजर रखने को कहा. पुलिस और मुखबिर कालोनी में सुराग ढूंढने में लगे थे. अगले दिन यानी 21 फरवरी को वेदप्रकाश ने शैलेश को पूछताछ करने के लिए थाने बुलाना चाहा तो पता चला कि बिना एयरफोर्स अधिकारियों से इजाजत लिए पूछताछ करना संभव नहीं है.

इस पर वेदप्रकाश ने एयरफोर्स के अधिकारियों से इजाजत ले कर सार्जेंट शैलेश से उन्हीं के सामने पूछताछ शुरू की. दूसरी ओर एसएसपी स्वप्न शर्मा के आदेश पर एसपी औपरेशन गुरमीत सिंह और डीएसपी देहात कुलदीप सिंह के नेतृत्व में एक सर्च टीम तैयार की गई, जिस में एयरफोर्स के अधिकारियों सहित 40 जवानों, छोटेबड़े 85 पुलिस वालों और 30 मजदूरों सहित एयरफोर्स के स्निफर डौग एक्सपर्ट की टीम को शामिल किया गया.

इस भारीभरकम टीम ने एयरफोर्स कालोनी में सुबह 9 बजे से सर्च अभियान शुरू करते हुए एकएक क्वार्टर की तलाशी लेनी शुरू की. दूसरी ओर सार्जेंट शैलेश से पूछताछ चल रही थी. पूछताछ में शैलेश ने बताया कि अन्य लोगों की तरह उस की भी विपिन से जानपहचान थी. लेकिन वह उस की गुमशुदगी के बारे में कुछ नहीं जानता. लेकिन थानाप्रभारी के पास कुछ ऐसी जानकारियां थीं, जिन्हें शैलेश छिपाने की कोशिश कर रहा था.

शैलेश से अभी पूछताछ चल ही रही थी कि कालोनी में सर्च अभियान चलाने वाली टीम में शामिल स्निफर डौग भौंकते हुए सार्जेंट शैलेश शर्मा के क्वार्टर में घुस गया. कुत्ते के पीछे पुलिस अफसर भी घुस गए. सार्जेंट शैलेश शर्मा को भी वहीं बुला लिया गया. पूरे क्वार्टर में अजीब सी दुर्गंध फैली थी. जब विश्वास हो गया कि इस क्वार्टर में लाश जैसी कोई चीज है तो पुख्ता सबूत के लिए इलाका मजिस्ट्रैट और तहसीलदार भसीयाना को बुला लिया गया.

सब की मौजूदगी में जब सार्जेंट शैलेश के क्वार्टर की तलाशी ली गई तो वहां से जो बरामद हुआ, उस की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. वहां का लोमहर्षक दृश्य देख कर पत्थरदिल एयरफोर्स और पुलिस के जवानों के भी दिल कांप उठे. कुछ लोगों को तो चक्कर तक आ गए.

क्वार्टर में लापता विपिन शुक्ला की लाश के 16 टुकड़े पड़े थे, जिन्हें काले रंग की 16 अलगअलग थैलियों में पैक कर के पैकेट बना कर फ्रिज में रखा गया था. लाश के टुकड़े बरामद होते ही सार्जेंट शैलेश ने इलाका मजिस्ट्रैट, तहसीलदार, एयरफोर्स के अधिकारियों और पुलिस के वरिष्ठ अफसरों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि उसी ने अपनी पत्नी अनुराधा और अपने साले शशिभूषण के साथ मिल कर विपिन शुक्ला की हत्या कर के लाश के टुकड़े कर के फ्रिज में रखे थे. पुलिस ने लाश के टुकडे़ और फ्रिज कब्जे में ले लिया. लाश के टुकड़ों का पंचनामा कर के उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

अपहरण की धारा 365 के तहत दर्ज इस मुकदमे में योजनाबद्ध तरीके से की गई हत्या की धारा 302, 120बी और लाश को खुर्दबुर्द करने के लिए धारा 201 जोड़ दी गई. सार्जेंट शैलेश और उस की पत्नी अनुराधा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस हत्या का तीसरा आरोपी शशिभूषण फरार हो गया था.

उस की तलाश में पुलिस टीम उत्तराखंड भेजी गई. उसी दिन शाम को यानी 21 फरवरी, 2017 को एसपी औपरेशन गुरमीत सिंह ने प्रैसवार्ता कर इस हत्याकांड के संबंध में विस्तार से जानकारी दी, साथ ही दोनों गिरफ्तार अभियुक्तों शैलेश और अनुराधा को मीडिया के सामने पेश किया.

पुलिस अधिकारियों द्वारा पूछताछ करने पर सार्जेंट शैलेश और अनुराधा ने विपिन शुक्ला की गुमशुदगी से ले कर हत्या करने तक की जो कहानी बताई, वह अवैधसंबंधों और बदनामी से बचने के लिए की गई हत्या का नतीजा थी—

सार्जेंट शैलेश मूलरूप से उत्तराखंड का निवासी था. लगभग 7 साल पहले उस की अनुराधा से शादी हुई थी. उस का एक 5 साल का बेटा है. इन दिनों उस की पत्नी गर्भवती थी.

बदनामी से बचने के लिए खेला मौत का खेल – भाग 1

विपिन ने रात का खाना अपनी पत्नी कुमकुम के साथ खाया था. खाना खाने के बाद उसे गुड़ खाने की आदत थी. उस ने पत्नी से गुड़ मांगा. कुमकुम पति को गुड़ दे कर टेबल के बरतन समेटने लगी. गुड़ खाते हुए विपिन ने पत्नी से कहा कि वह जरा टहल कर आता है और घर के बाहर निकल गया. रात का खाना खा कर टहलना विपिन की पुरानी आदत थी. कुमकुम घर का काम निपटाने लगी. काम निपटा कर वह बिस्तर पर लेट कर पति का इंतजार करने लगी. यह 8 फरवरी, 2017 की बात है.

विपिन मूलरूप से गांव बेनीनगर, जिला गोंडा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता का नाम त्रिवेणी शुक्ला था. 27 साल का विपिन कई साल पहले पंजाब के जिला बठिंडा में आ कर बस गया था. वहां उसे बठिंडा एयरबेस के एयरफोर्स स्टेशन में एयरफोर्स कर्मचारियों द्वारा बनाई गई कैंटीन एयरफोर्स वाइव्ज एसोसिएशन में नौकरी मिल गई थी.

इस कैंटीन में ज्यादातर एयरफोर्स के अधिकारियों की पत्नियां ही घरेलू सामान खरीदने आया करती थीं. विपिन सुबह 9 बजे से शाम के 7 बजे तक कैंटीन में रहता था. उस के बाद घर आ कर वह कुछ देर आराम करता. इस के बाद रात का खाना खा कर टहलने निकल जाता. टहलते हुए एयरफोर्स कालोनी का एक चक्कर लगाना उस की दिनचर्या में शामिल था.

एयरफोर्स की कैंटीन में काम करने की वजह से उसे एयरफोर्स कालोनी का स्टाफ क्वार्टर रहने के लिए मिला हुआ था, जिस में वह अपनी पत्नी के साथ रहता था. उन दिनों उस के घर गांव से उस के पिता और चाचा संतोष शुक्ला भी आए हुए थे. बहरहाल बिस्तर पर लेटेलेटे कुमकुम की आंख लग गई. जब उस की नींद टूटी तो विपिन लौट कर नहीं आया था. घबरा कर उस ने घड़ी की ओर देखा.

रात के 12 बजने वाले थे. विपिन अभी तक लौट कर नहीं आया था. पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. आधे घंटे में वह लौट कर आ जाता था, पर उस रात… कुमकुम उठी और बगल वाले कमरे में गई, जहां सो रहे विपिन के पिता और चाचा को जगा कर उस ने विपिन के अब तक घर न लौटने की बात बताई. वे भी चिंतित हो उठे. इस के बाद सभी विपिन की तलाश में निकल पड़े.

तलाश में पड़ोस के भी 5-7 लोग साथ हो गए थे. पूरी रात ढूंढने पर भी विपिन का कहीं पता नहीं चला. अगले दिन यानी 9 फरवरी, 2017 की सुबह कुमकुम अपने ससुर और चचिया ससुर के साथ कैंटीन पर गई. विपिन वहां भी नहीं था.

इस के बाद उस ने एयरफोर्स के अधिकारियों को विपिन के लापता होने की सूचना दी. उसी दिन कुमकुम ने बठिंडा के थाना सदर की पुलिस चौकी बल्लुआना जा कर विपिन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद सभी अपने स्तर से भी विपिन की तलाश करते रहे.  पर उस का कहीं कोई सुराग नहीं मिला.

धीरेधीरे विपिन को लापता हुए एक सप्ताह बीत गया. इस मामले में एयरफोर्स के अधिकारियों ने भी कोई विशेष काररवाई नहीं की थी. पुलिस ने भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया था.

हर ओर से निराश हो कर 14 फरवरी, 2017 को कुमकुम बठिंडा के एसएसपी स्वप्न शर्मा के औफिस जा कर उन से मिली और पति के लापता होने की जानकारी दे कर निवेदन किया कि उस के पति की तलाश करवाई जाए.

एसएसपी स्वप्न शर्मा ने उसी समय फोन द्वारा थाना सदर के थानाप्रभारी वेदप्रकाश को आदेश दिया कि मुकदमा दर्ज कर के इस मामले में तुरंत काररवाई करें. इस के बाद पुलिस चौकी बल्लुआना में कुमकुम के बयान नए सिरे से दर्ज किए गए, इस बार कुमकुम ने आशंका व्यक्त की थी कि या तो उस के पति विपिन शुक्ला का अपहरण हुआ है या हत्या कर के लाश कहीं छिपा दी गई है. कुमकुम के इस बयान के आधार पर पुलिस ने विपिन की गुमशुदगी के साथ अपहरण का मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

इस के बाद भी विपिन की गुमशुदगी को एक सप्ताह और बीत गया. इन 15 दिनों में पुलिस और एयरफोर्स के अधिकारियों द्वारा ढंग से कोई काररवाई नहीं की गई. इसी का नतीजा था कि विपिन शुक्ला का कोई सुराग इन लोगों के हाथ नहीं लगा. इस बीच कुमकुम एसएसपी स्वप्न शर्मा से 2-3 बार मिल कर गुहार लगा चुकी थी.

विभा ने खुद ही चुनी कांटों भरी राह – भाग 3

विमल ने विभा पर पानी की तरह पैसा बहाया था. यहां तक कि उस की बड़ी बेटी काव्या के दिमागी बुखार से पीडि़त होने पर उस ने उस के इलाज पर हैसियत से ज्यादा पैसा खर्च किया था. इस के बाद भी विभा किसी और के साथ नजदीकियां बढ़ा रही थी. उस ने विभा से शादी की बात की तो उस ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया. इस पर विमल का माथा ठनक गया. वह अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा था. आखिर उस ने विभा को सबक सिखाने की ठान ली.

उस ने सोच लिया कि विभा उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. विभा की हरकतें उस के दिमाग में कौंधती रहती थीं. वह विभा की हत्या को कैसे अंजाम दे, यह सोच कर उस ने कई हौलीवुड फिल्में और टीवी पर क्राइम बेस्ड सीरियल देखे. उन्हीं सब के आधार पर उस ने सोचविचार कर विभा की बरबादी की पूरी योजना तैयार की. उसे इस काम के लिए दोस्तों की मदद की जरूरत थी. उन्हें इस सब के लिए कैसे राजी करना है, यह भी उस ने सोच लिया था.

उस ने अपने शहर के ही भवनापुर में रहने वाले अपने दोस्त दिलीप शर्मा से बात की. दिलीप अपने घर में ही मोबाइल शौप चलाता था. इस से पहले वह फार्मासिस्ट का काम कर चुका था. दिलीप का भी विभा के साथ पैसों के लेनदेन का कोई विवाद था. विमल के कहने पर वह उस का साथ देने को तैयार हो गया. इस के बाद विमल ने उसे पूरी योजना बता दी.

फिर उस ने अपने दूसरे दोस्तों राहुल, मुकेश, जुबेर और पंकज से अलगअलग बात कर के उन्हें भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. इस के लिए उस ने हर दोस्त को 10 हजार रुपए देने की बात कही थी. कुछ दोस्ती के नाते और कुछ 10 हजार रुपए के लालच में वे लोग उस का साथ देने को तैयार हो गए.

सारे दोस्तों को तैयार कर के उस ने सब के साथ बैठ कर इस योजना पर काम किया. इस बैठक में यह बात भी उठी कि विभा की हत्या के बाद उस की बेटियां उन के लिए खतरा बन सकती हैं, जबकि वे लोग कोई भी खतरा नहीं उठाना चाहते थे. इसलिए विभा के साथ उस की बेटियों की हत्या करने की बात भी तय हो गई. दिलीप ने अस्पताल के कुछ पुराने परिचितों के जरिए 2 इंच चौड़े टेप का इंतजाम कर लिया.

ऐसे दिया गया तिहरे हत्याकांड को अंजाम

12 जनवरी की शाम 7 बजे दुकान का कुछ सामान खरीदने के बहाने विमल विभा को बाइक से दिलीप की दुकान पर ले गया. वहां विमल के सभी दोस्त मौजूद थे. उन्होंने विभा को दबोच लिया और उस के मुंह को टेप से बंद कर दिया, जिस से वह चिल्ला न सके. फिर उन लोगों ने कंप्यूटर के केबल से विभा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी.

इस के बाद विमल फिर विभा के घर गया और उस की दोनों बेटियों को अपने साथ ले आया. उन दोनों को दबोच कर उन के मुंह पर भी टेप लगा दिया गया. इस के बाद विभा की तरह ही उस की बेटियों काव्या और कामना की भी कंप्यूटर केबल से गला घोंट कर हत्या कर दी गई. विमल के दोस्त मुकेश ने मासूम काव्या के शव के साथ संबंध बनाए.

विमल ने विभा पर पानी की तरह पैसा बहाया था. यहां तक कि उस की बड़ी बेटी काव्या के दिमागी बुखार से पीडि़त होने पर उस ने उस के इलाज पर हैसियत से ज्यादा पैसा खर्च किया था. इस के बाद भी विभा किसी और के साथ नजदीकियां बढ़ा रही थी. उस ने विभा से शादी की बात की तो उस ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया. इस पर विमल का माथा ठनक गया. वह अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा था. आखिर उस ने विभा को सबक सिखाने की ठान ली. उस ने सोच लिया कि विभा उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. विभा की हरकतें उस के दिमाग में कौंधती रहती थीं. वह विभा की हत्या को कैसे अंजाम दे, यह सोच कर उस ने कई हौलीवुड फिल्में और टीवी पर क्राइम बेस्ड सीरियल देखे. उन्हीं सब के आधार पर उस ने सोचविचार कर विभा की बरबादी की पूरी योजना तैयार की. उसे इस काम के लिए दोस्तों की मदद की जरूरत थी. उन्हें इस सब के लिए कैसे राजी करना है, यह भी उस ने सोच लिया था. उस ने अपने शहर के ही भवनापुर में रहने वाले अपने दोस्त दिलीप शर्मा से बात की. दिलीप अपने घर में ही मोबाइल शौप चलाता था. इस से पहले वह फार्मासिस्ट का काम कर चुका था. दिलीप का भी विभा के साथ पैसों के लेनदेन का कोई विवाद था. विमल के कहने पर वह उस का साथ देने को तैयार हो गया. इस के बाद विमल ने उसे पूरी योजना बता दी. फिर उस ने अपने दूसरे दोस्तों राहुल, मुकेश, जुबेर और पंकज से अलगअलग बात कर के उन्हें भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. इस के लिए उस ने हर दोस्त को 10 हजार रुपए देने की बात कही थी. कुछ दोस्ती के नाते और कुछ 10 हजार रुपए के लालच में वे लोग उस का साथ देने को तैयार हो गए. सारे दोस्तों को तैयार कर के उस ने सब के साथ बैठ कर इस योजना पर काम किया. इस बैठक में यह बात भी उठी कि विभा की हत्या के बाद उस की बेटियां उन के लिए खतरा बन सकती हैं, जबकि वे लोग कोई भी खतरा नहीं उठाना चाहते थे. इसलिए विभा के साथ उस की बेटियों की हत्या करने की बात भी तय हो गई. दिलीप ने अस्पताल के कुछ पुराने परिचितों के जरिए 2 इंच चौड़े टेप का इंतजाम कर लिया. ऐसे दिया गया तिहरे हत्याकांड को अंजाम 12 जनवरी की शाम 7 बजे दुकान का कुछ सामान खरीदने के बहाने विमल विभा को बाइक से दिलीप की दुकान पर ले गया. वहां विमल के सभी दोस्त मौजूद थे. उन्होंने विभा को दबोच लिया और उस के मुंह को टेप से बंद कर दिया, जिस से वह चिल्ला न सके. फिर उन लोगों ने कंप्यूटर के केबल से विभा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद विमल फिर विभा के घर गया और उस की दोनों बेटियों को अपने साथ ले आया. उन दोनों को दबोच कर उन के मुंह पर भी टेप लगा दिया गया. इस के बाद विभा की तरह ही उस की बेटियों काव्या और कामना की भी कंप्यूटर केबल से गला घोंट कर हत्या कर दी गई. विमल के दोस्त मुकेश ने मासूम काव्या के शव के साथ संबंध बनाए. सुबह होने पर विमल और दिलीप ने आधेआधे पैसे मिलाए और बाजार जा कर एक बैग, 3 टाट के बोरे, रस्सी और नमक खरीद कर ले आए. आगे की योजना यह थी कि तीनों लाशों को जमीन में दफना दिया जाए. इस के लिए पंकज के खैराबाद थाना क्षेत्र के गांव गणेशपुर स्थित खेत को चुना गया. आननफानन में गड्ढा खोदने के लिए जेसीबी भी तय कर ली गई. इस के बाद खेत में खुदाई का काम चालू कर दिया गया. यह देख कर पंकज के घर वालों और गांव वालों ने पूछताछ की तो पंकज ने बताया कि खाद बनाने के लिए गड्ढा खुदवा रहा है. लोगों द्वारा की गई इस पूछताछ के बाद पंकज की हिम्मत जवाब दे गई. उस ने अपने खेत में लाशों को दफनाने से साफ इनकार कर दिया. घटना का पहला दिन इसी सब में गुजर गया. तीनों लाशें दिलीप की दुकान में पड़ी रहीं. पंकज के विरोध के बाद विमल और उस के अन्य दोस्तों को अपना प्लान बदलने को मजबूर होना पड़ा. इसी बीच विमल को याद आया कि उस के साथी राहुल की रिश्तेदारी में जाइलो कार है, जिस का इस्तेमाल किया जा सकता है. जाइलो कार सीतापुर के खैराबाद थाना क्षेत्र के नानकारी गांव निवासी राजेश की थी. चूंकि वह राहुल का रिश्तेदार था, इसलिए वह इस काम के लिए तैयार हो गया. उस ने 10 हजार रुपए के एवज में यह काम अपने हाथ में ले लिया. कार में डाल कर तीनों लाशें लगाईं ठिकाने योजना बदलने के बाद विभा और कामना की लाश को टाट के बोरे में लपेटा गया. साथ ही काव्या की लाश को बोरे में लपेट कर बैग में रखा गया. तीनों लाशों के साथ नमक और 2-2 ईंटें भी रख दी गईं. इस तैयारी के बाद तीनों लाशों को कार में लाद दिया गया. रात में कोहरा अधिक था, जिस की वजह से उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई. सभी कार में बैठ कर थाना कोतवाली शहर के अंतर्गत आने वाले खजुरिया गांव के पास सरायन नदी पर पहुंचे. विभा की लाश नदी में डाल दी गई. इस के बाद ये लोग बारीबारी से शारदा नहर के रिक्शा पुल और उमरिया पुल पर पहुंचे और काव्या और कामना की लाश को नहर में डाल दिया. लेकिन यहां कोहरा उन के लिए विलेन बन गया. कोहरे के कारण ये लोग ठीक से नहीं देख सके. नहर में ज्यादा पानी नहीं था, वह सूखी थी. नहर में पानी होता तो लाश पानी में डूब जातीं, लेकिन सूखी होने के कारण ऐसा न हो सका. अपने काम को अंजाम देने के बाद सब दोस्त अपनेअपने घर लौट आए. लेकिन अगले दिन 14 जनवरी की सुबह काव्या व विभा की लाशें मिलते ही उन की उल्टी गिनती शुरू हो गई. आखिर जल्द ही वे सभी पुलिस की गिरफ्त में आ गए. राजेश की जाइलो कार यूपी53ए एल2905 भी उस के घर के बाहर से बरामद हो गई. हत्या में इस्तेमाल कंप्यूटर केबल भी पुलिस ने बरामद कर लिया. थानाप्रभारी अश्विनी कुमार ने मुकदमे में भादंवि की धाराएं 147, 376 व 34 और बढ़ा दीं. सातों अभियुक्तों का मैडिकल कराने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से सब को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में थे. - कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुबह होने पर विमल और दिलीप ने आधेआधे पैसे मिलाए और बाजार जा कर एक बैग, 3 टाट के बोरे, रस्सी और नमक खरीद कर ले आए. आगे की योजना यह थी कि तीनों लाशों को जमीन में दफना दिया जाए. इस के लिए पंकज के खैराबाद थाना क्षेत्र के गांव गणेशपुर स्थित खेत को चुना गया. आननफानन में गड्ढा खोदने के लिए जेसीबी भी तय कर ली गई. इस के बाद खेत में खुदाई का काम चालू कर दिया गया. यह देख कर पंकज के घर वालों और गांव वालों ने पूछताछ की तो पंकज ने बताया कि खाद बनाने के लिए गड्ढा खुदवा रहा है.

लोगों द्वारा की गई इस पूछताछ के बाद पंकज की हिम्मत जवाब दे गई. उस ने अपने खेत में लाशों को दफनाने से साफ इनकार कर दिया. घटना का पहला दिन इसी सब में गुजर गया. तीनों लाशें दिलीप की दुकान में पड़ी रहीं. पंकज के विरोध के बाद विमल और उस के अन्य दोस्तों को अपना प्लान बदलने को मजबूर होना पड़ा.

इसी बीच विमल को याद आया कि उस के साथी राहुल की रिश्तेदारी में जाइलो कार है, जिस का इस्तेमाल किया जा सकता है. जाइलो कार सीतापुर के खैराबाद थाना क्षेत्र के नानकारी गांव निवासी राजेश की थी. चूंकि वह राहुल का रिश्तेदार था, इसलिए वह इस काम के लिए तैयार हो गया. उस ने 10 हजार रुपए के एवज में यह काम अपने हाथ में ले लिया.

कार में डाल कर तीनों लाशें लगाईं ठिकाने

योजना बदलने के बाद विभा और कामना की लाश को टाट के बोरे में लपेटा गया. साथ ही काव्या की लाश को बोरे में लपेट कर बैग में रखा गया. तीनों लाशों के साथ नमक और 2-2 ईंटें भी रख दी गईं. इस तैयारी के बाद तीनों लाशों को कार में लाद दिया गया. रात में कोहरा अधिक था, जिस की वजह से उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई.

सभी कार में बैठ कर थाना कोतवाली शहर के अंतर्गत आने वाले खजुरिया गांव के पास सरायन नदी पर पहुंचे. विभा की लाश नदी में डाल दी गई. इस के बाद ये लोग बारीबारी से शारदा नहर के रिक्शा पुल और उमरिया पुल पर पहुंचे और काव्या और कामना की लाश को नहर में डाल दिया.

लेकिन यहां कोहरा उन के लिए विलेन बन गया. कोहरे के कारण ये लोग ठीक से नहीं देख सके. नहर में ज्यादा पानी नहीं था, वह सूखी थी. नहर में पानी होता तो लाश पानी में डूब जातीं, लेकिन सूखी होने के कारण ऐसा न हो सका. अपने काम को अंजाम देने के बाद सब दोस्त अपनेअपने घर लौट आए.

लेकिन अगले दिन 14 जनवरी की सुबह काव्या व विभा की लाशें मिलते ही उन की उल्टी गिनती शुरू हो गई. आखिर जल्द ही वे सभी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

राजेश की जाइलो कार यूपी53ए एल2905 भी उस के घर के बाहर से बरामद हो गई. हत्या में इस्तेमाल कंप्यूटर केबल भी पुलिस ने बरामद कर लिया. थानाप्रभारी अश्विनी कुमार ने मुकदमे में भादंवि की धाराएं 147, 376 व 34 और बढ़ा दीं.

सातों अभियुक्तों का मैडिकल कराने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से सब को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मेजर का खूनी इश्क : शैलजा के इंकार ने ली जान – भाग 5

निखिल शैलजा के प्यार में पागल हो चुका था. उस ने शैलजा को मनाने की कोशिश जारी रखी. उसे पता चला कि शैलजा अभी भी बेस अस्पताल जाती रहती हैं तो उस ने अपने बेटे को पेट दर्द की बात बता कर अस्पताल में भरती करा दिया. वह अस्पताल में शैलजा से मिलने की कोशिश करता रहता था.

उस की सनक को देखते हुए शैलजा ने उस से दूरी बना ली. बेटे की तीमारदारी के लिए निखिल ने अपनी पत्नी नलिनी को अस्पताल में छोड़ दिया था. 22 जून, 2018 को भी मेजर निखिल हांडा ने शैलजा से मिलने की इच्छा जाहिर की. उन्होंने मना कर दिया तो वह विनती करने लगा कि आखिरी बार मिल लो. इस के बाद मैं परेशान नहीं करूंगा.

आखिर दीवानगी में बन गया हत्यारा

शैलजा मान गई और उन्होंने 23 जून को अस्पताल में मिलने के लिए कह दिया. निखिल अब एक दिलजला आशिक बन गया था. उस ने तय कर लिया था कि यदि इस बार भी शैलजा ने उस की बात नहीं मानी तो वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा. इस के लिए उस ने सर्जिकल ब्लेड भी खरीद लिया था.

23 जून को सुबह करीब साढ़े 8 बजे निखिल ने शैलजा को फोन किया तो उस ने कह दिया कि वह कुछ देर में अस्पताल पहुंच रही है. रोजाना मेजर अमित ही औफिस जाते समय पत्नी को अस्पताल छोड़ देते थे लेकिन उस दिन शैलजा ने उन के साथ जाने से यह कह कर मना कर दिया कि वह आज अस्पताल देर से जाएगी. बाद में उस ने पति के सरकारी ड्राइवर को फोन कर के बुला लिया और ड्राइवर ने शैलजा को अस्पताल के गेट पर उतार दिया.

मेजर निखिल को उस दिन शैलजा से मिलने का बेसब्री से इंतजार था. अस्पताल में भरती बेटे को देखने के बाद वह अस्पताल के गेट पर पहुंचा और वहां से शैलजा को अपनी कार में बैठा लिया. इस के बाद वह अस्पताल कैंपस से बाहर निकल गया. निखिल ने फिर से शैलजा को समझाने की कोशिश की. उधर शैलजा भी उसे समझा रही थी कि वह फालतू की बातें न करे. तबाही के अलावा इन से कुछ हासिल नहीं होगा.

उधर मेजर निखिल की पत्नी नलिनी को भी शक हो गया था कि उस का पति शैलजा के पीछे दीवाना बन गया है. उसी समय नलिनी का निखिल के मोबाइल पर फोन आया. निखिल ने फोन का स्पीकर औन कर उस से बात की. नलिनी उस के और शैलजा के बारे में बात कर रही थी. निखिल ने पत्नी को डांटते हुए काल डिसकनेक्ट कर दी. फिर वह शैलजा से बोला, ‘‘तुम्हारे लिए मैं पत्नी से लड़ रहा हूं और उसे तलाक देने को तैयार हूं लेकिन तुम बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रहीं.’’

‘‘निखिल, यह तुम्हारी बेकार की जिद है. तुम अस्पताल में अपनी बीवीबच्चे के पास जाओ.’’ शैलजा ने सलाह दी.

निखिल को लगा कि अब यह नहीं मानेगी तो उस ने गाड़ी के डैशबोर्ड से सर्जिकल ब्लेड निकाला. उस समय कार बरार स्क्वायर में थी और सड़क सुनसान थी. इस से पहले कि शैलजा कुछ समझ पाती, उस ने सर्जिकल ब्लेड बराबर की सीट पर बैठी शैलजा के गले पर चला दिया. कार में खून फैलने लगा तो उस ने साइड का दरवाजा खोल कर शैलजा को धक्का दे कर सड़क पर गिरा दिया. इस के बाद उस ने तड़पती हुई शैलजा के ऊपर

2-3 बार कार चढ़ा दी, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई. यह उस ने इसलिए किया ताकि मामला दुर्घटना का लगे.

शैलजा का फोन कार में ही गिर गया था, जिस का सिम निकाल कर उस ने तोड़ दिया और फोन भी पत्थर से कुचल दिया. उस की गाड़ी के अंदर और टायरों पर खून लगा था जो उस ने एक जगह धुलवा दिया लेकिन टायरों का खून पूरी तरह साफ नहीं हुआ था.

इस के बाद वह अस्पताल में अपने बेटे को देखने गया. वहां से चितरंजन पार्क में रहने वाले अपने चाचा राघवेंद्र के पास गया और उन से 20 हजार रुपए लिए. फिर उस ने भाई रजत के साथ बीयर पी.

गाड़ी में कोई सबूत न रहे, इस के लिए वह उस के टायर बदलवाना चाहता था या उस की अच्छी तरह धुलाई करवाना चाहता था. मेरठ में पोस्टिंग के दौरान उस की कुछ गैराज वालों से पहचान हो गई थी, इसलिए वह दिल्ली से मेरठ चला गया, जहां पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

मेजर निखिल से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 25 जून को पटियाला हाउस कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी मनीषा त्रिपाठी की अदालत में पेश कर के 96 घंटे के लिए पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर एक कूड़ेदान से शैलजा का कुचला हुआ मोबाइल बरामद किया गया. लेकिन पुलिस हत्या में प्रयुक्त सर्जिकल ब्लेड, आरोपी के खून सने कपड़े, शैलजा का पर्स, छाता, कार से खून साफ करने वाला तौलिया बरामद नहीं कर सकी.

आरोपी मेजर निखिल राय हांडा से विस्तार से पूछताछ के बाद उसे फिर से न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित