ब्यूटी पार्लर: क्वीन का मायाजाल

प्रियंका चौधरी अपनी खूबसूरती और टैलेंट से 2019 में मिसेज इंडिया राजस्थान चुनी गई थी. इस ब्यूटी क्वीन की लाइफ में आखिर ऐसी कौन सी वजह रही, जिस के कारण उसे हनीट्रैप के आरोप में जेल जाना पड़ा?

3 जून, 2021 की बात है. सरिया व्यापारी घासीराम चौधरी जब जयपुर में श्यामनगर थाने पहुंचा, तो उसे गेट पर संतरी खड़ा मिला. उस ने संतरी से पूछा, ‘‘एसएचओ मैडम बैठी हैं क्या?’’

संतरी ने उस पर एक नजर डालते हुए पूछा, ‘‘मैडम से क्या काम है?’’

‘‘भाईसाहब, एक रिपोर्ट दर्ज करानी है, इसलिए मैडम से मिलना है.’’ घासीराम ने संतरी को अपने हाथ में लिए कागज दिखाते हुए कहा.

‘‘मैडम तो अपने औफिस में बैठी हैं. अगर आप को रिपोर्ट लिखानी है तो वहां ड्यूटी औफिसर के पास चले जाओ.’’ संतरी ने हाथ से इशारा करते हुए घासीराम से कहा.

‘‘भाईसाहब, रिपोर्ट लिखाने वहां चला तो जाऊंगा, लेकिन पहले मैं एक बार मैडम से मिलना चाहता हूं.’’ घासीराम ने विनती करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, आप की जैसी मरजी. मैडम अपने औफिस में बैठी हैं. जा कर मिल लो.’’ संतरी ने घासीराम को हाथ के इशारे से थानाप्रभारी का कमरा बता दिया.

घासीराम थानाप्रभारी के कमरे के सामने जा कर एक बार ठिठका. फिर गेट खोल कर सीधा उन के कमरे में चला गया. सामने एसएचओ संतरा मीणा किसी फाइल को पढ़ रही थीं. कमरे में आगंतुक की आहट सुन कर उन्होंने सिर उठा कर देखा तो सामने 40-45 साल का एक शख्स खड़ा था.

उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बताएं, क्या काम है?’’

‘‘मैडम, मैं बड़ी परेशानी में फंसा हुआ हूं. एक महिला मुझ से नजदीकियां बढ़ा कर लाखों रुपए ऐंठ चुकी है और अब बलात्कार का झूठा मामला दर्ज कराने की धमकी  दे रही है.’’ घासीराम ने खड़ेखड़े ही अपनी व्यथा बताई.

‘‘आप कुरसी पर बैठ जाओ और बताओ कि आप कौन हैं और आप को ब्लैकमेल करने वाली महिला कौन है?’’ मैडम ने अपने हाथ में पकड़ी फाइल को बंद कर मेज पर रखते हुए उस से कहा.

‘‘मैडम, मेरा नाम घासीराम चौधरी है. जयपुर में निर्माण नगर की पार्श्वनाथ कालोनी में रहता हूं और सरियों का व्यापारी हूं.’’ घासीराम ने कुरसी पर बैठते हुए अपना परिचय दिया.

‘‘ठीक है, घासीरामजी, आप के साथ हुआ क्या है, वह बताएं?’’ एसएचओ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘अगर आप को कोई ब्लैकमेल कर रहा है तो हम काररवाई करेंगे.’’

‘‘मैडम, मैं इसी उम्मीद से आप के पास आया हूं.’’ घासीराम ने चेहरे पर संतोष के भाव ला कर कहा, ‘‘मैडम, परेशानी यह है कि उस महिला का पति आप के पुलिस डिपार्टमेंट में ही हैडकांस्टेबल है. इसलिए मुझे संदेह है कि पुलिस कोई काररवाई करेगी या नहीं?’’

‘‘घासीरामजी, अपराधी कोई भी हो. अपराधी सिर्फ अपराधी होता है. पति के पुलिस डिपार्टमेंट में होने से किसी महिला को अपराध करने की छूट नहीं मिल जाती है.’’ थानाप्रभारी मीणा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘आप के साथ क्या वाकयात पेश आए हैं, तफसील से सारी बात बताओ.’’

थानाप्रभारी के आश्वासन पर घासीराम ने प्रियंका चौधरी से मुलाकात होने और बाद में उस से किसी न किसी बहाने से लाखों रुपए ऐंठने और अब बलात्कार का झूठा मामला दर्ज करवाने की धमकी देने तक की सारी बातें विस्तार से बता दीं.

घासीराम से सारा वाकया सुनने के बाद थानाप्रभारी संतरा मीणा ने उस से कहा, ‘‘आप सारी बातें लिख कर दे दें. हम रिपोर्ट दर्ज कर लेंगे. जांच में जो भी दोषी मिलेगा, उस पर काररवाई होगी.’’

‘‘मैडम, मैं तहरीर लिख कर लाया हूं.’’ घासीराम ने कुछ कागज उन की ओर बढ़ाते हुए कहा.

थानाप्रभारी ने उन कागजों पर सरसरी नजर डाली. फिर घंटी बजा कर अर्दली को बुलाया. अर्दली कमरे में आया, तो उसे वे कागज दे कर कहा, ‘‘इन साहिबान को ड्यूटी औफिसर के पास ले जाओ और ड्यूटी औफिसर से कहना कि यह रिपोर्ट दर्ज कर लें.’’

थानाप्रभारी ने घासीराम को अर्दली के साथ जाने का इशारा किया. घासीराम कुरसी से उठ कर मैडम को धन्यवाद देता हुआ ड्यूटी औफिसर के पास चला गया. पुलिस ने उसी दिन उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

घासीराम की ओर से दर्ज कराई रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह था कि सन 2016 में प्रियंका चौधरी अपने पति रामधन चौधरी के साथ एक दिन उस के घर आई थी. प्रियंका राजस्थान के टोंक जिले की रहने वाली थी. घासीराम की ससुराल भी टोंक जिले में प्रियंका के गांव के पास ही थी. इसलिए घासीराम की पत्नी सीता उसे पहचान गई. प्रियंका को वह अच्छी तरह जानती थी. शादी होने के बाद सीता जयपुर आ गई थी.

प्रियंका उस दिन जयपुर में पहली बार सीता के घर आई थी. सीता ने अपने पति घासीराम का परिचय प्रियंका से कराते हुए कहा कि यह मेरी छोटी बहन जैसी है. प्रियंका कहां चूकने वाली थी. उस ने घासीराम की ओर मुसकरा कर देखते हुए सीता से कहा कि दीदी, अब मैं इन को जीजाजी ही कहूंगी. जीजासाली का रिश्ता बनने पर घासीराम मंदमंद मुसकरा कर रह गए.

इस दौरान प्रियंका ने भी अपने पति का परिचय कराया कि ये रामधन चौधरीजी पुलिस में हैडकांस्टेबल हैं. सीता के पीहर वालों के प्रियंका के परिवार वालों से गांव में अच्छे संबंध थे. इसलिए सीता और घासीराम ने प्रियंका और उस के पति रामधन की खूब आवभगत की.

बातों ही बातों में प्रियंका ने घासीराम से कहा, ‘‘जीजाजी, हम जयपुर में किराए का मकान तलाश कर रहे हैं, लेकिन हमें कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा है. आप की नजर में कोई अच्छा मकान हो तो हमें किराए पर दिलवा दीजिए.’’

प्रियंका आई घासीराम के संपर्क में

प्रियंका को किराए के मकान की जरूरत का पता लगने पर सीता ने अपने पति से कहा कि अपना गौतम मार्ग निर्माण नगर वाला फ्लैट खाली पड़ा है, वो इन्हें ही किराए पर दे दो. हमें इन से अच्छा किराएदार और कौन मिलेगा?

पत्नी से बात करने के बाद घासीराम ने प्रियंका को अपना निर्माण नगर वाला फ्लैट किराए पर दे दिया. इस के बाद प्रियंका का घासीराम के घर आनाजाना शुरू हो गया. कई बार प्रियंका पूरेपूरे दिन सीता के घर पर ही रहती और उस के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाती थी.

सीता के घर पर लगातार आनेजाने से प्रियंका ने उस के परिवार की तमाम जानकारियां हासिल कर लीं. घासीराम के व्यापार और कमाई वगैरह की जानकारी भी ले ली.

प्रियंका जब सीता के घर आती थी, तब अगर घासीराम मिल जाते तो वह जीजाजी जीजाजी कह कर चुहलबाजी भी कर लेती थी. घासीराम भी कभीकभी अपनी पत्नी के साथ प्रियंका के फ्लैट पर चले जाते. इस तरह दोनों परिवारों में घनिष्ठ संबंध बन गए.

आरोप है कि कुछ दिनों बाद प्रियंका ने किसी काम से घासीराम को अपने फ्लैट पर बुलाया. घर पर प्रियंका अकेली थी. घासीराम ने उस के पति रामधन के बारे में पूछा तो प्रियंका ने बताया कि वे कहीं गए हुए हैं. इस दौरान अकेली प्रियंका ने घासी से नजदीकियां बढ़ाने की बातें कीं.

नजदीकियों से हुई जेब खाली

बाद में धीरेधीरे उस ने घासी से नजदीकियां बढ़ा लीं. एक बार प्रियंका ने घासी से कहा कि जीजाजी, आप के पास पैसे की कोई कमी नहीं है. हमारा कुछ सहयोग कर दोगे तो हम भी जयपुर में एक फ्लैट या मकान ले लेंगे. इस के लिए जितना लोन मिलेगा, लेंगे और बाकी पैसे आप उधार दे देना. घासीराम ने उस समय उसे टाल दिया.

बाद में प्रियंका और उस के पति रामधन ने घासीराम के मकान के पास ही फ्लैट खरीद लिया. घासीराम ने बताया कि यह फ्लैट खरीदने और वुडन वर्क के नाम पर प्रियंका ने उस से 49 लाख रुपए ले लिए. इस रकम के बदले प्रियंका और उस के पति ने उसे ब्लैंक चैक दिए और स्टांप पेपर पर लिखित लेनदेन किया. इस फ्लैट की किस्त 28 हजार रुपए महीना थी.

इस बीच, सन 2019 में जयपुर में हुए आयोजन में प्रियंका मिसेज इंडिया राजस्थान चुनी गई. ब्यूटी पीजेंट पौश इंफोटेनमेंट के इस आयोजन में 100 से ज्यादा महिलाओं ने भाग लिया था. फाइनल के अलगअलग राउंड में 27 महिलाओं ने भागीदारी की थी. इस में प्रियंका चौधरी विनर घोषित हुई थी.

बाद में प्रियंका फ्लैट के लोन के रुपए जमा कराने की बात कह कर घासीराम से रुपए मांगने लगी और नहीं देने पर बलात्कार का मामला दर्ज कराने की धमकी देने लगी.

घासीराम डर गया. वह झूठे केस में जेल जाने और व्यापार बरबाद होने की चिंता में दबाव में आ गया. वह समयसमय पर प्रियंका को लाखों रुपए देता रहा और उस की फरमाइशें पूरी करता रहा. प्रियंका की फरमाइश पर घासी ने उसे 30 लाख रुपए के जेवर भी दिलवा दिए. उसे नई लग्जरी कार दिलवाई.

घासी के पैसों से ही प्रियंका ने अपने फ्लैट में महंगे सोफे, एसी, एलईडी और दूसरे कीमती सामान ले लिए. बच्चों की फीस के नाम पर 5 लाख रुपए लिए. प्रियंका ने अपनी बेटियों के नाम सुकन्या योजना के पैसे भी घासीराम से ही जमा करवाए.

घासीराम का आरोप है कि प्रियंका और उस के पति रामधन ने अलगअलग बहाने से उस से करीब सवा करोड़ रुपए ऐंठ लिए थे. इस के बाद प्रियंका उस से 400 गज का प्लौट मांग रही थी.

इसी साल अप्रैल में वाट्सऐप काल कर प्रियंका ने घासी से प्लौट दिलाने की बात कही थी. वह जिस प्लौट की बात कर रही थी, उस की कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपए के आसपास थी.

घासीराम ने प्लौट दिलाने से इनकार कर दिया तो उस ने बलात्कार का मामला दर्ज कराने की धमकी दी. प्रियंका की धमकियों से डर कर घासीराम ने उस के खाली चैक और स्टांप पेपर उसे लौटा दिए.

प्रियंका ने कराई रिपोर्ट दर्ज

बाद में पूर्व मिसेज इंडिया राजस्थान प्रियंका चौधरी ने 21 मई, 2021 को श्यामनगर थाने में घासीराम के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस में कहा कि घासीराम 20 मई को मेरे घर पर आया और गालीगलौज की. घर में घुसने से रोकने पर मारपीट करने लगा. मैं ने बचाव किया तो हाथ पर काट खाया. मेरे सीने और पेट पर लात मारी. मैं नीचे भाग कर आई. मेरी बहन और बेटियों के चिल्लाने पर आसपास के लोग बाहर आ गए, तब वह वहां से भाग गया.

बाद में मुझे और मेरे पति को जान से मारने की धमकी दी. मुझ से कहा कि तेजाब फेंक कर जला दूंगा. पुलिस ने प्रियंका की रिपोर्ट पर मामला दर्ज कर उस का मैडिकल कराया.

आरोप है कि घासीराम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रियंका ने उसे धमकी दी कि यह तो ट्रेलर है. चाहती तो बलात्कार का मामला भी दर्ज करा सकती थी और अब भी करा सकती हूं. राजीनामा करने के लिए वह 400 गज का प्लौट और रुपए मांग रही थी.

प्रियंका की धमकियों और उस की डिमांड से परेशान हो कर घासीराम ने 3 जून, 2021 को प्रियंका और उस के पति रामधन चौधरी के खिलाफ श्यामनगर थाने में मामला दर्ज करा दिया.

डीसीपी (दक्षिण) हरेंद्र महावर ने इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच के लिए एडिशनल डीसीपी अवनीश कुमार, सोडाला एसीपी भोपाल सिंह भाटी के निर्देशन और श्यामनगर थानाप्रभारी संतरा मीणा के नेतृत्व में पुलिस टीम गठित की. इस टीम में एएसआई जयसिंह, कांस्टेबल राजेश और महिला कांस्टेबल बीना व बाला कुमारी को शामिल किया गया.

पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद हनीट्रैप का मामला बताते हुए 12 जून, 2021 को 33 वर्षीया पूर्व मिसेज इंडिया राजस्थान प्रियंका चौधरी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उसे रिमांड पर ले कर पूछताछ की.

पूछताछ के आधार पर पुलिस ने प्रियंका के कब्जे से 3 एसी, एलईडी और लैपटौप आदि बरामद किए. पुलिस ने 13 जून को उसे अदालत में पेश किया. अदालत ने उसे जेल भेज दिया.

लग्जरी लाइफ थी प्रियंका की

प्रियंका चौधरी के ब्यूटी क्वीन बनने से जेल जाने तक का सफर उस के लग्जरी लाइफ जीने के सपनों से भरा रहा है. टोंक जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली प्रियंका सरकारी स्कूल में पढ़ी थी.

वह भले ही गांव में रहती थी, लेकिन उस का रूपसौंदर्य सब से अलग था. प्रियंका को अपनी सुंदरता पर नाज था, लेकिन गांव में रहने के कारण वह अपने सपनों की उड़ान नहीं भर पा रही थी.

सन 2008 में उस की शादी रामधन से हो गई. रामधन राजस्थान पुलिस में नौकरी करता है. रामधन जैसे गबरू जवान को पति के रूप में पा कर प्रियंका मन ही मन निहाल हो उठी. रामधन भी खुश था और प्रियंका भी. समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा. प्रियंका ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

प्रियंका के अपने सपने थे. वह महत्त्वाकांक्षी थी, इसलिए शादी के बाद भी वह पढ़ाई करती रही. पति पुलिस में नौकरी करता था, लेकिन उस की तनख्वाह से उस के शौक पूरे नहीं हो सकते थे. उस ने अपने शौक पूरे करने के लिए जयपुर में रहने का फैसला किया. वह 2016 में जयपुर आ गई.

2019 में जब उसे पता चला कि जयपुर में मिसेज इंडिया राजस्थान कांटेस्ट हो रहा है, तो उस ने इस में भाग लेने का फैसला किया. रूपसौंदर्य में वह किसी से कम नहीं थी. इसलिए उसे पूरा भरोसा था कि वह कंटेस्ट जीतेगी. हुआ भी वही. प्रियंका मिसेज इंडिया राजस्थान चुनी गई.

आरोप है कि ब्यूटी क्वीन बनने के बाद प्रियंका की दबी हुई महत्त्वाकांक्षाएं हिलोरें मारने लगीं. उस के लग्जरी लाइफ जीने के सपने उड़ान भरने लगे. पति की तनख्वाह से ऐशोआराम की जिंदगी संभव नहीं थी. इसलिए उस ने घासीराम से नजदीकियां बढ़ाईं. वह उस से समयसमय पर रुपए ऐंठती रही.

2 बेटियों के भविष्य के नाम पर जब उस ने घासीराम पर 400 गज का प्लौट दिलाने का दबाव बनाया तो बात बिगड़ गई. नतीजा यह हुआ कि प्रियंका को जेल जाना पड़ा. लग्जरी लाइफ जीने की शौकीन प्रियंका के पास लग्जरी गाड़ी, फ्लैट है. उस की 2 बेटियां महंगे स्कूलों में पढ़ती हैं.

ब्यूटी क्वीन हुई गिरफ्तार

प्रियंका कितनी पाकसाफ है, यह अदालत तय करेगी, लेकिन उस की गिरफ्तारी को ले कर पुलिस पर आरोप लग रहे हैं. पुलिस ने घासीराम की रिपोर्ट पर प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया.

उस से न तो किसी तरह की कोई अश्लील वीडियो बरामद हुई और न ही कोई दूसरी आपत्तिजनक सामग्री मिली, जिस से यह साबित हो कि प्रियंका उस आधार पर उसे बलात्कार के झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे रही थी. पुलिस ने घासीराम के मोबाइल में रिकौर्ड बातचीत के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया. पैसों के लेनदेन के मामले में पुलिस जांचपड़ताल कर रही है.

दूसरी तरफ, प्रियंका ने 21 मई को श्यामनगर थाने में घासीराम के खिलाफ घर आ कर मारपीट करने और तेजाब डालने की धमकी देने का जो मामला दर्ज कराया था, उस पर पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की.

पुलिस का कहना है कि इस मामले की अभी जांच चल रही है. घटनास्थल पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई हैं. उस में घासीराम कहीं नजर नहीं आ रहा है. उस आवासीय परिसर में रहने वाले लोगों ने भी मारपीट की घटना होने से इनकार किया है.

क्षेत्र में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि आखिर प्रियंका के हाथ व्यापारी घासीराम की ऐसी कौन सी कमजोर कड़ी हाथ लग गई थी, जिस से उस ने लाखों रुपए प्रियंका को आसानी से दे दिए. वरना बिना किसी लालच व स्वार्थ के कोई किसी पर इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं कर सकता. जरूर कोई तो ऐसा राज है, जिसे केवल घासीराम और प्रियंका ही जानते हैं. अब देखना यह है कि पुलिस जांच में वह राज सामने आ सकेगा या नहीं.

बहरहाल, घासीराम की रिपोर्ट पर पुलिस ने प्रियंका के साथ उस के पति रामधन चौधरी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है. रामधन टोंक जिले में हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात है. कथा लिखे जाने तक पुलिस को रामधन के खिलाफ इस मामले में कोई सबूत नहीं मिले थे.

पैसे का गुमान: सस्ती दोस्ती की मिली सजा – भाग 2

कुलदीप गुप्ता ऐसा पहले भी कर चुके थे. इस कारण मुस्तफा ने उस रोज की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

उसी वक्त सड़क के दूसरी ओर बाइक पर एक आदमी आया. वह हेलमेट पहने हुए था. कुलदीप उस की बाइक पर बैठ कर चले गए. यह सब 5-7 मिनट में ही हो गया.

दुकान के कर्मचारी अपनेअपने काम में लग गए. सेल्समैन का काम संभालने वाला मुस्तफा काउंटर पर आ गया. इस तरह दुकान की दिनचर्या शुरू हो गई.

मुस्तफा ने बताया कि दोपहर होने पर दुकान की चहलपहल थोड़ी कम हो गई. 12 बजे के बाद बगैर किसी सूचना के कुलदीप की पत्नी सुनीता जब दुकान पर पहुंची तो वह चौंक गया. उन्होंने अपने हैंडबैग से निकाल कर एक मोटा पैकेट पकड़ा दिया.

पैकेट के बारे में पूछने से पहले ही सुनीता ने बताया कि उस के पति ने 4 लाख रुपए बैंक से निकलवाए हैं. इस में वही पैसे हैं. इतना कह कर सुनीता जाने की जल्दबाजी के साथ बोलीं कि उसे पास में कुछ खरीदारी करनी है और घर पर बहुत काम पसरा पड़ा है, इसलिए वह तुरंत दुकान से चली गईं.

उन के जाने के तुरंत बाद मुस्तफा के पास कुलदीप का फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि एक आदमी बाइक पर पैसे लेने आएगा. सुनीता जो पैसे दे गई है वह उसे दे देना.

मुस्तफा ने कुलदीप को बता दिया कि सुनीता मैडम पैसा अभीअभी दे गई हैं. इतनी मोटी रकम और उसे लेने के बारे में कुलदीप ने अधिक बातें नहीं बताईं.

दोपहर एक बजे के करीब कुलदीप के बताए अनुसार एक आदमी काले रंग की बाइक पर आया. उस में नंबर प्लेट नहीं लगी थी.

मुस्तफा ने समझा कि बाइक मरम्मत के दौरान ट्रायल पर होगी. हेलमेट पहने मास्क लगाए व्यक्ति ने मुस्तफा से कहा कि उसे कुलदीप ने पैसा लेने के लिए भेजा है.

मुस्तफा ने इशारे से सामने बैठने को कहा और कुलदीप को फोन लगाया. तुरंत फोन रिसीव कर कुलदीप बोले, ‘‘इस आदमी को पैसे दे दो.’’

मुस्तफा ने कुछ पूछना चाहा, किंतु कुलदीप ने फोन कट कर दिया. लग रहा था, जैसे वह काफी हड़बड़ी में थे.

तब तक वह व्यक्ति अपना हेलमेट उतार चुका था और मास्क हटा रहा था. मुस्तफा ने उस से बगैर कोई सवालजवाब किए पैसे का पैकेट उसे दे दिया.

पैकेट से पैसे निकाल कर वह वहीं काउंटर पर गिनने लगा. पैकेट में 2 हजार और 5 सौ के नोटों के बंडल थे. बंडल के नोट गिनते समय उस के मोबाइल पर फोन आया. उस ने फोन का स्पीकर औन कर बोला, ‘‘हां, पैसे मिल गए हैं, मैं अभी गिन रहा हूं.’’

दूसरी तरफ से डांटने की आवाज आई, ‘‘मैं ने तुम्हें पैसे लेने भेजा है या गिनने? पैसा ले और  वहां से निकल.’’ यह आवाज कुलदीप की नहीं थी. उस के बाद मुस्तफा दुकान के कामकाज में लग गया.

उसे सुनीता का फोन शाम को 5 बजे के करीब आया. उन्होंने घबराई आवाज में कुलदीप का फोन बंद होने की बात बताई. यह सुन कर मुस्तफा कुछ समय में ही दुकान बंद कर कुलदीप के घर आ गया. उस दिन बिक्री का हिसाब और पैसे उन्हें दिए और कुछ देर रुक कर चला गया.

इतनी जानकारी मिलने के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने मामले को अपने हाथों में ले लिया और एसओजी टीम के प्रभारी अजय पाल सिंह एवं सर्विलांस टीम के प्रभारी आशीष सहरावत के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.

कुलदीप की गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर तलाशी की काररवाई की. शुरुआत फोन ट्रेसिंग से  की गई. इस जांच से संबंधित पलपल के जांच की जानकारी डीआईजी शलभ माथुर उन से ले रहे थे..

कुलदीप के फोन की आखिरी लोकेशन बिजनौर के नजीबाबाद कस्बे की मिली. मुरादाबाद पुलिस तुरंत वहां रवाना हो गई. इस की जानकारी बिजनौर पुलिस को भी दे दी गई. प्रभाकर चौधरी ने 3 अन्य टीमों का भी गठन किया.

बिजनौर जनपद की सीमाओं पर कुलदीप की आखिरी लोकेशन के आधार पर छानबीन जारी थी. फोन की लोकेशन कभी चांदपुर तो कभी नूरपुर और कभी नगीना की मिल रही थी. इस तरह से 5 जून का पूरा दिन ऐसे ही निकल चुका था.

रात के 8 बजे बिजनौर में कस्बा थाना स्यौहारा के गंगाधरपुर गांव में एक शव पड़े होने की सूचना मिली. इस की जानकारी स्यौहारा के थानाप्रभारी नरेंद्र कुमार को गांव वालों ने दी थी.

सूचना के आधार पर खून सनी लाश बरामद हुई. लाश सड़क के किनारे पड़ी हुई थी. उस के सिर और शरीर पर चोटों के निशान साफ दिख रहे थे.

लाश बरामदगी की सूचना और हुलिया समेत तसवीरें तुरंत मुरादाबाद पुलिस को भेज दी गईं. लाश कुलदीप गुप्ता के होने की आशंका के साथ उन के भाई संजीव गुप्ता को तुरंत शिनाख्त के लिए बुला लिया गया.

संजीव ने तसवीर और हुलिए के आधार पर लाश की पहचान अपने भाई कुलदीप के रूप में कर दी. इसी के साथ उन्होंने दुखी मन से इस की सूचना अपने परिवार वालों को भी दी.

कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया. सुनीता, इशिता, दिव्यांशु का रोरो कर बुरा हाल था. पूरे परिवार पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

मुरादाबाद की पुलिस के सामने अब सब से बड़ी चुनौती हत्या के बारे में पता लगाने और हत्यारे को धर दबोचने की थी. उसी रात लाश को पंचनामे के साथ बिजनौर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

पोस्टमार्टम के बाद लाश कुलदीप के घर वालों को सौंप दी गई. उन का मुरादाबाद के लोकोशेड मोक्षधाम में अंतिम संस्कार कर दिया गया.

उधर बिजनौर और मुरादाबाद जिले की पुलिस ने दोनों जगहों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की. कुलदीप की दुकान के कर्मचारियों से एक बार फिर डिटेल में पूछताछ हुई. पैसा लेने आए व्यक्ति के हुलिए के आधार पर छानबीन शुरू की गई.

मुस्तफा ने घटना के दिन उस व्यक्ति और नंबर प्लेट के बगैर काली मोटरसाइकिल की मोबाइल से ली गई तसवीर पुलिस को उपलब्ध करवा दी. पुलिस को मृतक कुलदीप की काल डिटेल्स भी मिल चुकी थी.

जल्द ही 2 व्यक्तियों नंदकिशोर और कर्मवीर उर्फ भोलू को गिरफ्तार कर लिया. उन से कुलदीप की हत्या के कारण की जो कहानी सामने आई, वह पैसा, दोस्ती, गुमान और अपमान से पैदा हुई परिस्थितियों की दास्तान निकली—

मुरादाबाद के कस्बा पाकबाड़ा के रहने वाले कुलदीप के 2 बड़े भाई संजीव गुप्ता और राजीव गुप्ता के अलावा उन का अपना छोटा सा परिवार था. पत्नी सुनीता और 2 बच्चों में बेटा दिव्यांशु और बेटी इशिता के साथ मिलन विहार कालोनी में रह रहे थे.

मंदिर में बाहुबल-भाग 2 : पाठक परिवार की दबंगाई

हमलावरों के जाने के बाद कोतवाल आलोक दूबे ने निरीक्षण किया तो 2 लाशें घटनास्थल पर पड़ी थीं. एक लाश शिवकुमार चौबे के बेटे मंजुल चौबे की थी तथा दूसरी उस की चचेरी बहन सुधा की. घायलों में संजय चौबे, अंशुल चौबे, अंकुर शुक्ला तथा अजीत एडवोकेट थे. सभी घायलों को कानपुर के हैलट अस्पताल भेजा गया.

कोतवाल आलोक दूबे ने डबल मर्डर की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित, सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव तथा डीएम अभिषेक सिंह भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा कोतवाल आलोक दूबे से जानकारी हासिल की. डीएम अभिषेक सिंह ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया जबकि एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

चूंकि डबल मर्डर का यह मामला अति संवेदनशील था और कातिल रसूखदार थे. इसलिए एसपी सुश्री सुनीति ने घटना की जानकारी आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल पर आसपास के थानों की पुलिस फोर्स तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए.

डबल मर्डर से चौबे परिवार में कोहराम मचा हुआ था. शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा मंदिर परिसर में बेटे की लाश के पास गुमसुम बैठे थे. वहीं संजय भाई की लाश के पास  बैठा फूटफूट कर रो रहा था. आशीष चौबे भी अपनी बहन सुधा के पास विलाप कर रहा था. संजय चौबे व उन की बहन रागिनी एसपी सुश्री सुनीति के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि हमलावरों को जल्दी गिरफ्तार करो वरना वे लोग इस से भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं.

एसपी सुनीति मृतकों के घर वालों को हमलावरों की गिरफ्तारी का भरोसा दे ही रही थीं कि सूचना पा कर एडीजी जयनारायण सिंह तथा आईजी मोहित अग्रवाल घटनास्थल पर पहुंच गए.

अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी ली. पुलिस अधिकारी इस बात से आश्चर्यचकित थे कि पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग हुई और 2 हत्याएं हो गईं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि हमलावर कितने दबंग थे.

आईजी मोहित अग्रवाल ने घटनास्थल पर मौजूद मृतकों के घर वालों से बात की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे ने बताया कि बाहुबली कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती जमीन पर कब्जा करना चाहता था. जबकि उन का परिवार व मोहल्ले के लोग विरोध कर रहे थे. पुजारी की मौत के बाद वह मंदिर की चाबी मांगने आए थे. इसी पर उन से विवाद हुआ और पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक, उन के भाइयों तथा सहयोगियों ने फायरिंग शुरू कर दी.

मुनुवा चौबे ने आरोप लगाया कि अगर पुलिस चाहती तो फायरिंग रोकी जा सकती थी. लेकिन शहर कोतवाल आलोक दूबे एमएलसी कमलेश पाठक के दबाव में थे. इसलिए उन्होंने न तो हमलावरों को चेतावनी दी और न ही उन के हथियार छीनने की कोशिश की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे का आरोप सत्य था, अत: आईजी मोहित अग्रवाल ने एसपी सुनीति को आदेश दिया कि वह दोषी पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करें.

आदेश पाते ही सुनीति ने कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी को निलंबित कर दिया. इस के बाद जरूरी काररवाई पूरी कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. बवाल की आशंका को भांपते हुए पुलिस ने रात में ही पोस्टमार्टम कराने का निश्चय किया. इसी के मद्देनजर पोस्टमार्टम हाउस में भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई थी.

इस दुस्साहसिक घटना को आईजी मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह ने बेहद गंभीरता से लिया था. दोनों पुलिस अधिकारियों ने औरैया कोतवाली में डेरा डाल दिया. हमलावरों को ले कर औरैया शहर में दहशत का माहौल था और मृतकों के घर वाले भी डरे हुए थे.

दहशत कम करने तथा मृतकों के घर वालों को सुरक्षा देने के लिए पुलिस अधिकारियों ने पुलिस का सख्त पहरा लगा दिया. एक कंपनी पीएसी तथा 4 थानाप्रभारियों को प्रमुख मार्गों पर तैनात किया गया. इस के अलावा 22 एसआई व 48 हेडकांस्टेबलों को हर संदिग्ध व्यक्ति पर निगाह रखने का काम सौंपा गया. घर वालों की सुरक्षा के लिए 3 एसआई और आधा दरजन पुलिसकर्मियों को लगाया गया.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. तभी एसपी सुनीति की नजर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे 2 वीडियो पर पड़ी. वायरल हो रहे वीडियो संघर्ष के दौरान हो रही फायरिंग के थे, जिसे किसी ने मोबाइल से बनाया था. एक वीडियो में एमएलसी का गनर अवनीश प्रताप सिंह एक युवक की छाती पर सवार था और पीछे खड़ा युवक उसे डंडे से पीटता दिख रहा था.

उसी जगह कमलेश पाठक गनर की कार्बाइन थामे खड़े दिख रहे थे. दूसरे वायरल हो रहे वीडियो में कमलेश पाठक के भाई संतोष पाठक व अन्य फायरिंग करते नजर आ रहे थे. वीडियो देख कर एसपी सुनीति ने गनर अवनीश प्रताप सिंह को निलंबित कर दिया. साथ ही साक्ष्य के तौर पर दोनों वीडियो को सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर औरैया कोतवाली में हमलावरों के खिलाफ 3 अलगअलग मुकदमे दर्ज किए गए. पहला मुकदमा मृतका सुधा के भाई आशीष चौबे की तहरीर पर भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 504, 506 के तहत दर्ज किया गया.

इस मुकदमे में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष पाठक, रामू पाठक, रिश्तेदार विकल्प अवस्थी, कुलदीप अवस्थी, शुभम अवस्थी, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, कथावाचक राजेश शुक्ला तथा 2 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया. दूसरी रिपोर्ट चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी ने उपरोक्त 9 नामजद तथा 10-15 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कराई. उन की यह रिपोर्ट 7 क्रिमिनल ला अमेडमेंट एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई. आरोपियों के खिलाफ तीसरी रिपोर्ट आर्म्स एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई.

आईजी मोहित अग्रवाल व एडीजी जयनारायण सिंह ने नामजद अभियुक्तों को पकड़ने के लिए एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित तथा सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव की अगुवाई में 3 टीमें बनाईं. इन टीमों में तेजतर्रार इंसपेक्टर, दरोगा व कांस्टेबलों को शामिल किया गया. सहयोग के लिए एसओजी तथा क्राइम ब्रांच की टीम को भी लगाया गया. हत्यारोपी बाहुबली एमएलसी कमलेश पाठक औरैया शहर के मोहल्ला बनारसीदास में रहते थे, जबकि उन के भाई संतोष पाठक व रामू पाठक पैतृक गांव भड़ारीपुर में रहते थे जो औरैया से चंद किलोमीटर दूर था.

मंदिर में बाहुबल-भाग 1 : पाठक परिवार की दबंगई

उत्तर प्रदेश के औरैया शहर के मोहल्ला नारायणपुर में 15 मार्च, 2020 को सुबहसुबह खबर फैली कि पंचमुखी हनुमान मंदिर के पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक ब्रह्मलीन हो गए हैं. जिस ने भी यह खबर सुनी, पुजारी के अंतिम दर्शन के लिए चल पड़ा.

देखते ही देखते उन के घर पर भीड़ बढ़ गई. चूंकि पंचमुखी हनुमान मंदिर की देखरेख एमएलसी कमलेश पाठक करते थे और उन्होंने ही अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था, अत: पुजारी के निधन की खबर सुन कर वह भी लावलश्कर के साथ नारायणपुर पहुंच गए. उन के भाई रामू पाठक और संतोष पाठक भी आ गए.

अंतिम दर्शन के बाद एमएलसी कमलेश पाठक और उन के भाइयों ने मोहल्ले वालों के सामने प्रस्ताव रखा कि पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक इस मंदिर के पुजारी थे, इसलिए इन की भू समाधि मंदिर परिसर में ही बना दी जाए.

यह प्रस्ताव सुनते ही मोहल्ले के लोग अवाक रह गए और आपस में खुसरफुसर करने लगे. चूंकि कमलेश पाठक बाहुबली पूर्व विधायक, दरजा प्राप्त राज्यमंत्री और वर्तमान में वह समाजवादी पार्टी से एमएलसी थे. औरैया ही नहीं, आसपास के जिलों में भी उन की तूती बोलती थी, सो उन के प्रस्ताव पर कोई भी विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सका.

नारायणपुर मोहल्ले में ही शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा चौबे रहते थे. उन का मकान मंदिर के पास था. कमलेश पाठक व मुनुवा चौबे में खूब पटती थी, सो मंदिर की चाबी उन्हीं के पास रहती थी. पुजारी उन्हीं से चाबी ले कर मंदिर खोलते व बंद करते थे.

मोहल्ले के लोगों ने भले ही भय से मंदिर परिसर में पुजारी की समाधि का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था किंतु शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे व उन के अधिवक्ता बेटे मंजुल चौबे को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था. मंजुल भी दबंग था, मोहल्ले में उस की भी हनक थी.

दरअसल, पंचमुखी हनुमान मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती जमीन बाजार से सटी हुई थी. शिवकुमार चौबे व उन के बेटे मंजुल चौबे को लगा कि कमलेश पाठक दबंगई दिखा कर पुजारी की समाधि के बहाने जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. चूंकि इस कीमती भूमि पर मुनुवा व उन के वकील बेटे मंजुल चौबे की भी नजर थी, सो उन्होंने भू समाधि का विरोध किया.

मंजुल चौबे को जब मोहल्ले वालों का सहयोग भी मिल गया तो कमलेश पाठक ने विरोध के कारण भू समाधि का विचार त्याग दिया. इस के बाद उन्होंने धूमधाम से पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक की शवयात्रा निकाली और यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया.

शाम 3 बजे अंतिम संस्कार के बाद कमलेश पाठक वापस मंदिर परिसर आ गए. उस समय उन के साथ भाई रामू पाठक, संतोष पाठक, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, सरकारी गनर अवनीश प्रताप, कथावाचक राजेश शुक्ल तथा रिश्तेदार आशीष दुबे, कुलदीप अवस्थी, विकास अवस्थी, शुभम अवस्थी और कुछ अन्य लोग थे. इन में से अधिकांश के पास बंदूक और राइफल आदि हथियार थे. कमलेश पाठक ने मंदिर परिसर में पंचायत शुरू कर दी और शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे को पंचायत में बुलाया.

मुनुवा चौबे का दबंग बेटा मंजुल चौबे उस समय घर पर नहीं था. अत: वह बड़े बेटे संजय के साथ पंचायत में आ गए. पंचायत में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे से मंदिर की चाबी देने को कहा, लेकिन मुनुवा ने यह कह कर चाबी देने से इनकार कर दिया कि अभी तक मंदिर में तुम्हारा पुजारी नियुक्त था. अब वह मोहल्ले का पुजारी नियुक्त करेंगे और मंदिर की व्यवस्था भी स्वयं देखेंगे.

मुनुवा चौबे की बात सुन कर एमएलसी कमलेश पाठक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. दोनों के बीच विवाद होने लगा. इसी विवाद में कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे के गाल पर तमाचा जड़ दिया. मुनुवा का बड़ा बेटा संजय बीचबचाव में आया तो कमलेश ने उसे भी पीट दिया. मार खा कर बापबेटा घर चले गए. इसी बीच कुछ पत्रकार भी आ गए.

मंदिर परिसर में विवाद की जानकारी हुई, तो नारायणपुर चौकी के इंचार्ज नीरज त्रिपाठी भी आ गए. थानाप्रभारी एमएलसी कमलेश पाठक की दबंगई से वाकिफ थे, सो उन्होंने विवाद की सूचना औरैया कोतवाल आलोक दूबे को दे दी. सूचना पाते ही आलोक दूबे 10-12 पुलिसकर्मियों के साथ मंदिर परिसर में आ गए और कमलेश पाठक से विवाद के संबंध में आमनेसामने बैठ कर बात करने लगे.

उधर अधिवक्ता मंजुल चौबे को कमलेश पाठक द्वारा पिता और भाई को बेइज्जत करने की बात पता चली तो उस का खून खौल उठा. उस ने अपने समर्थकों को बुलाया फिर भाई संजय,चचेरे भाई आशीष तथा चचेरी बहन सुधा को साथ लिया और मंदिर परिसर पहुंच गया. पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक और मंजुल चौबे के बीच तीखी बहस होने लगी.

इसी बीच मंजुल चौबे के समर्थकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. एक पत्थर एमएलसी कमलेश पाठक के पैर में आ कर लगा और वह घायल हो गए. कमलेश पाठक के पैर से खून निकलता देख कर उन के भाई रामू पाठक, संतोष पाठक का खून खौल उठा.

उन्होंने पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग शुरू कर दी. उन के अन्य समर्थक भी फायरिंग करने लगे. कमलेश पाठक का सरकारी गनर अवनीश प्रताप व ड्राइवर छोटू भी मारपीट व फायरिंग करने लगे. संतोष पाठक की ताबड़तोड़ फायरिंग में एक गोली मंजुल की चचेरी बहन सुधा के सीने में लगी और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगी. चंद मिनटों बाद ही सुधा ने दम तोड़ दिया.

चचेरी बहन सुधा को खून से लथपथ पड़ा देखा तो मंजुल चौबे उस की ओर लपका. लेकिन वह सुधा तक पहुंच पाता, उस के पहले ही एक गोली उस के माथे को भेदती हुई आरपार हो गई. मंजुल भी धराशाई हो गया. फायरिंग में मंजुल गुट के कई समर्थक भी घायल हो गए थे और जमीन पर पड़े तड़प रहे थे. फिल्मी स्टाइल में हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से इतनी दहशत फैल गई कि पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने को भाग खड़े हुए. मीडियाकर्मी भी जान बचा कर भागे. जबकि तमाशबीन घरों में दुबक गए. खूनी संघर्ष के बाद एमएलसी कमलेश पाठक अपने भाई रामू, संतोष तथा अन्य समर्थकों के साथ फरार हो गए.

खूनी संघर्ष के दौरान घटनास्थल पर कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी मय पुलिस फोर्स के मौजूद थे. लेकिन पुलिस नेअपने हाथ नहीं खोले और न ही किसी को चेतावनी दी.

फोटो से खुला हत्या का राज : कैसे पकड़ा अय्याश पति रंगेहाथ

सरकारी स्कूल की शिक्षिका चंदा अय्याश पति संजय लूथरा को अपनी आदतें सुधारने के लिए समझाती थी, लेकिन संजय अपने दोस्त डा. रजत भारद्वाज के साथ घर में ही बाहरी लड़कियों को बुला कर अय्याशी करता था. एक दिन चंदा ने उन्हें रंगेहाथ पकड़ लिया. फिर…

उस समय सुबह के करीब 4 बज रहे थे. इतनी सुबह मोबाइल की घंटी बजने पर मोहित ने काल रिसीव करने से पहले

सोचा कि सुबहसुबह किस का फोन आ गया? उस ने काल रिसीव कर जैसे ही हैलो कहा. दूसरी ओर से उस के जीजा संजय लूथरा की भर्राई आवाज सुनाई दी, ‘‘रात को चंदा का कोलेस्ट्राल बढ़ने से अटैक पड़ गया, जिस से उस की मौत हो गई.’’ चंदा मोहित की बहन थी.

यह सुनते ही मोहित के मुंह से चीख निकल गई. मोहित की चीख सुन कर घर वालों की नींद टूट गई. पता नहीं सुबहसुबह मोहित क्यों रो रहा है, यह जानने के लिए सभी उस के कमरे की ओर दौड़े. मोहित ने उन्हें बताया कि बहन चंदा की मौत हो गई है. संजय का फोन आया था. यह सुनते ही घर में कोहराम मच गया. यह बात 21 फरवरी, 2021 की है.

यह दुखद खबर मिलने के बाद चंदा के पिता ओमप्रकाश अरोड़ा घर के अन्य लोगों के साथ सुबह ही खतौली से मेरठ के शास्त्रीगनर स्थित चंदा की ससुराल जा पहुंचे. वहां घर के बाहर टेंट लगा था और बैठने के लिए कुरसियां लगी थीं. 38 वर्षीय शिक्षिका चंदा का शव बैड पर पड़ा था.

लाडली बेटी के शव को देखते ही मां सुनीता, पिता ओमप्रकाश, बहन ज्योति व भाई मोहित बिलखने लगे. मायके वालों ने शव को गौर से देखा. शव पर चोटों के निशान देखते ही घर वालों ने हंगामा कर दिया.

पति संजय पर चंदा की हत्या का आरोप लगाते हुए मोहित ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ देर में थाना नौचंदी पुलिस शास्त्रीनगर थानाप्रभारी प्रेमचंद्र शर्मा ने हंगामा कर रहे मृतका के घर वालों को शांत कराया. हंगामे की जानकारी होने पर सीओ (सिविल लाइंस) देवेश सिंह फोरैंसिक टीम के साथ  घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस बीच वहां काफी भीड़ जमा हो गई. चंदा के मायके वालों ने आरोप लगाया कि चंदा की उस के पति संजय ने पीटपीट कर हत्या की है.

उस के शरीर पर चोट के निशान भी हैं. मायके वालों ने बताया कि पति संजय की गंदी आदतों का चंदा विरोध करती थी. इस बात को ले कर दोनों के बीच झगड़ा रहता था.

पुलिस ने किसी तरह समझाबुझा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पुलिस संजय को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. चूंकि मृतका एक शिक्षिका थी, इसलिए सूचना मिलने पर मुजफ्फरनगर शिक्षक संघ के अध्यक्ष बालेंद्र सिंह अपने साथियों संजीव, ओमप्रकाश, अभिषेक, सुमित, नीतू, रजनीश, अशोक, मनीष आदि के साथ थाने पहुंच गए और दोषी के खिलाफ काररवाई की मांग की.

पूछताछ में संजय ने पुलिस को बताया, ‘‘रात करीब ढाई बजे चंदा को हार्ट अटैक आया था. इस के चलते वह बैड से नीचे गिर गई और उस की मौके पर ही मौत हो गई.’’

पुलिस को मृतका की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, उस में हत्या का कारण स्पष्ट नहीं था. तब पुलिस ने संजय को निर्दोष मानते हुए क्लीन चिट दे दी और थाने से छोड़ दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई संदिग्ध

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका के शरीर की चोटों का कोई उल्लेख ही नहीं किया गया था. वहीं हत्या का कारण जानने के लिए मृतका के विसरा को सुरक्षित रखवा दिया गया.

इस से नौचंदी पुलिस की भूमिका पर सवाल उठने लगे. मृतका के मायके वालों का आरोप था कि चंदा के शरीर पर चोट के निशान थे. उन का जिक्र पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्यों नहीं किया गया. और पूरी जांच किए बिना ही नौचंदी पुलिस ने उस के पति संजय को क्लीन चिट कैसे दे दी?

मृतका के पिता ओमप्रकाश अरोड़ा का आरोप था कि मर्डर प्रीप्लान हुआ है. क्योंकि चंदा की मौत होने के बाद उस का जल्दी अंतिम संस्कार करने की पूरी तैयारी संजय ने पहले से ही कर ली थी. यहां तक कि श्मशान घाट तक शव ले जाने के लिए शव वाहन भी मंगा लिया था.

मायके वालों की शिकायत पर एसएसपी अजय साहनी ने मामला अपने हाथ में ले कर जांच शुरू कराई. उन्होंने संजय के जब्त किए गए मोबाइल की जांच की जिम्मेदारी नौचंदी थाने के इंसपेक्टर (क्राइम) राम सजीवन को सौंपी. उन्होंने इस मोबाइल को जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया.

फोरैंसिक जांच में खुलासा हुआ कि मोबाइल से फोटो घटना वाली रात ही डिलीट किए गए थे. वह फोटो पुलिस ने रिकवर कराए तो पुलिस के पांव तले जमीन खिसक गई. उन फोटो से पूरे केस का परदाफाश हो गया.

उन में से एक फोटो में एक व्यक्ति बैड पर लेटी चंदा का तकिए से मुंह दबाता हुआ नजर आ रहा था. इस के बाद एसएसपी ने चंदा के पति संजय को दोबारा हिरासत में ले कर उस से गहनता से पूछताछ की.

संजय खुद को निर्दोष बताता रहा. वह एक ही राग अलापता रहा कि चंदा की मौत हार्ट अटैक से हुई थी. पुलिस ने संजय को मोबाइल से रिकवर फोटो दिखाया, जिस में चंदा की तकिए से मुंह दबा कर हत्या की जा रही थी.

फोटो देखते ही संजय के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं. पूछताछ के दौरान वह सवालों में घिर गया. आखिर में उस ने पत्नी चंदा की हत्या का आरोप अपने दोस्त डा. रजत भारद्वाज पर लगाते हुए चंदा की हत्या की सच्चाई उगल दी.

एसएसपी अजय साहनी ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश 24 फरवरी, 2021 को आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में कर दिया. एसएसपी ने 2 हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. पुलिस ने दोनों की निशानदेही पर तकिया, नशीली गोलियां और कपड़े बरामद कर लिए.

दोनों से चंदा हत्याकांड के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने चंदा की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. हत्याकांड के पीछे अपनी अय्याशी के रास्ते की कांटा बनी पत्नी चंदा को हटाने और उस के बीमे की धनराशि हड़पने की योजना थी.

इस षडयंत्र में जागृति विहार निवासी दोस्त डा. रजत भारद्वाज भी शामिल था. उसी ने हत्या की सुपारी ली थी.  इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह निकली—

टेंट कारोबारी संजय लूथरा की शादी करीब 9 साल पहले 2012 में खतौली के अशोक मार्केट निवासी ओमप्रकाश अरोड़ा की बेटी चंदा के साथ हुई थी. चंदा खतौली के लौहड्डा स्थित प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर तैनात थी.

चंदा और संजय लूथरा के दांपत्य जीवन में काफी पहले खटास आ चुकी थी. वर्ष 2015 में दोनों के बीच संबंध काफी बिगड़ गए, तब दोनों के बीच तलाक भी हो गया था. तलाक के बाद चंदा अपने 3 साल के बेटे को ले कर मायके चली गई थी.

6 महीने तक दोनों अलग रहे. परिवार की पंचायत में समझौता होने और संजय द्वारा माफी मांगे जाने के बाद  फिर से दोनों ने कोर्ट मैरिज की और साथ रहने लगे.

कुछ दिन सब ठीकठाक रहा. इस के बाद संजय अपनी बुरी आदतों से बाज नहीं आया.  वह अपने बचपन के दोस्त डा. रजत भारद्वाज के साथ घर पर फिर से बाहरी युवतियों को लाने लगा.

एक दिन चंदा स्कूल से लौटी तो घर का नजारा देख कर शर्म से पानीपानी हो गई. घर में एक बाहरी युवती के साथ संजय और उस का दोस्त डा. रजत मौजूद था. उस ने दोनों को घर में अय्याशी करते रंगेहाथों पकड़ लिया. चंदा ने दोनों को जम कर खरीखोटी सुनाई. उस ने कहा, वह पहले भी इस गलत काम के लिए मना कर चुकी है लेकिन तुम लोगों पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

चंदा बनी अय्याशी में रोड़ा

उस समय तो संजय खून का घूंट पी कर रह गया, पर रात में उस ने चंदा की बेरहमी से पिटाई की. यह बात घटना से लगभग डेढ़ महीने पहले की थी. अपनी अय्याशी में रोड़ा बनने वाली पत्नी को उस ने रास्ते से हटाने का फैसला ले लिया.

संजय ने चंदा की हत्या की योजना बनाने के बाद उस का 50 लाख रुपए का जीवन बीमा भी करा दिया था, ताकि उस की हत्या के बाद ऐश की जिंदगी जी सके.

पत्नी को रास्ते से हटाने के लिए संजय ने पूरी प्लानिंग की. संजय की अपने पड़ोसी और बचपन के दोस्त डा. रजत भारद्वाज पर 1.35 लाख की रकम उधार थी, जिसे माफ करने की एवज में संजय ने रजत को अपनी पत्नी चंदा की हत्या के लिए राजी कर लिया.

कुछ दिनों से चंदा बीमार चल रही थी. संजय डा. रजत से ही उस का इलाज करा रहा था. इस का फायदा उठाते हुए 20 फरवरी, 2021 को डा. रजत ने संजय को नशीली गोलियां देते हुए रात को दवा के बहाने खिलाने की सलाह दी.

घटना वाली रात पौने 2 बजे डा. रजत उस के घर पहुंच गया. इस से पहले ही संजय अपनी पत्नी को नशीली गोलियां खिला कर सुला चुका था. डा. रजत ने बैड पर सो रही चंदा के मुंह पर तकिया रखा और फिर जान निकलने तक दबाए रखा.

नींद व नशे में होने के कारण वह विरोध भी नहीं कर सकी. इस दौरान संजय ने घटना के फोटो खींच लिए थे. लेकिन जानकारी होने पर डाक्टर ने वे फोटो तत्काल डिलीट करा दिए. संजय को उम्मीद थी कि कत्ल का उस का मास्टर प्लान राज ही रहेगा. लेकिन कहते हैं न कि गुनाह कभी छिपता नहीं और गुनहगार कभी बचता नहीं. आखिर कत्ल का राज उस की जेब में रखे मोबाइल में ही मिल गया.

पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों संजय लूथरा और डा. रजत भारद्वाज को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. इसी के साथ इस मामले में आननफानन में मृतका के पति को क्लीन चिट देने वाले इंसपेक्टर नौचंदी प्रेमचंद्र शर्मा की भी एसएसपी द्वारा जांच कराई जा रही थी.

कथा लिखने तक चंदा का 8 वर्षीय बेटा अपनी नानी के पास रह रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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सोनू पंजाबन : गोरी चमड़ी के कारोबार की बड़ी खिलाड़ी – भाग 2

कुछ समय बाद गीता ने निक्कू से कुछ पैसा ले कर गीता कालोनी में ही अपना खुद का ब्यूटीपार्लर खोल लिया और इस की आड़ में खुद तो जिस्मफरोशी का धंधा करती ही थी, साथ में उस ने नौकरी दे कर कुछ लड़कियों को भी पार्लर में जोड़ लिया.

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक बार फिर उस की खुशियों को ग्रहण लग गया. साल 2000 में एक दिन ऐसा आया जब यूपी पुलिस ने निक्कू त्यागी को हापुड़ के पास मुठभेड़ में मार गिराया.

एक बार फिर गीता के सिर से उस के सरपरस्त का साया उठ गया और वह उदास हो गई. लेकिन तब तक वह जिस्मफरोशी की दुनिया के जिस धंधे में वह उतर चुकी थी, उस ने गम की परछाई को ज्यादा दिन गीता के ऊपर रहने नहीं दिया.

गीता धीरेधीरे यमुनापार के गरीब परिवार की खूबसूरत लड़कियों को अपने साथ जोड़ कर उन से धंधा कराने लगी.

एक दिन गीता की मुलाकात दीपक जाट से हुई. दीपक उस के पास आया तो था अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए, लेकिन वह गीता की अदाओं और हुस्न के जाल में इस तरह उलझा कि तन ही नहीं, मन से भी उस से प्यार करने लगा. इस के बाद तो दीपक अकसर गीता से मिलनेजुलने लगा.

ऐसा लगता था कि तकदीर ने गीता की जिंदगी में आने वाले हर मर्द के हाथों में अपराध की लकीरें बना कर भेजी थीं. नजफगढ़ इलाके का रहने वाला दीपक भी विजय और निक्कू की तरह अपराधी ही था. उस की गिनती दिल्ली के नामी वाहन चोरों में होती थी.

दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में दीपक और उस के छोटे भाई हेमंत उर्फ सोनू का जबरदस्त खौफ था.

गीता जीवन में आई तो दीपक को लगने लगा कि जैसे भटकती जिंदगी को किनारा मिल गया हो. कुछ समय बाद दीपक ने बिना सात फेरे लिए ही गीता के साथ पतिपत्नी की तरह रहना शुरू कर दिया.

लेकिन 2003 में असम पुलिस ने दीपक को स्कौर्पियो कार चुराने के आरोप में मुठभेड़ में मार गिराया. गीता फिर तन्हा हो गई. लेकिन इस बार उस का ये तन्हापन ज्यादा दिन नहीं रहा क्योंकि इस बार उसे सहारा देने वाला कोई और नहीं वरन दीपक का छोटा भाई हेमंत उर्फ सोनू था.

दीपक के भाई हेमंत उर्फ सोनू ने भाई की मौत के बाद गीता से अपनी इकरारे मोहब्बत बयान कर उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया.

सोनू भी दिल्ली से ले कर हरियाणा और यूपी के कई गैंगस्टरों के साथ मिल कर लूट, डकैती, अपहरण, जबरन वसूली और ठेके पर हत्या करने की वारदातों को अंजाम देता था.

लेकिन 6 मार्च, 2006 को स्पैशल सेल के एसीपी संजीव यादव की टीम ने गुड़गांव के सागर अपार्टमेंट में हेमंत को उस के 2 साथियों जसवंत और जयप्रकाश के साथ मुठभेड़ में मार गिराया.

हेमंत की मौत के बाद गीता एक बार फिर अकेली हो गई. लेकिन अब तक गीता का नाम बदल चुका था. सोनू की पत्नी होने के कारण लोग उसे गीता की जगह सोनू और जाति से पंजाबी होने के कारण पंजाबन ज्यादा कहने लगे थे.

एक बार सोनू नाम क्या पड़ा कि जल्द ही गीता अरोड़़ा सोनू पंजाबन के नए नाम से विख्यात हो गई. अपने अतीत की वजह से सोनू पंजाबन का अपराध से करीब का रिश्ता बन चुका था.

सोनू पंजाबन हेमंत के एक दोस्त गैंगस्टर अशोक बंटी से पहले से परिचित थी. इस के बाद उस ने बुलंदशहर के अशोक उर्फ बंटी के साथ दिलशाद गार्डन में रखैल की तरह रहना शुरू कर दिया. लेकिन सोनू को शायद पता नहीं था कि अपराध से उस ने जो नाता जोड़ा है, उस से अभी उस का पीछा छूटा नहीं है.

उसे शायद ये भी नहीं पता था कि उस की किस्मत में स्थायी रूप से किसी मर्द का साथ लिखा ही नहीं था.

बंटी को अप्रैल 2006 में एक दिन दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने मुठभेड़ में मारा गिराया.

सोनू के जीवन में जो भी मर्द आया वह पुलिस के हाथों मारा गया. इसलिए अब उस ने किसी का आसरा लेने की जगह जिस्मफरोशी के अपने धंधे को ही चमकाने और बढ़ाने का काम शुरू किया. वह अपने धंधे को संगठित रूप से बढ़ाने व चलाने लगी.

सोनू गीता कालोनी इलाके में बदनामी के कारण अपने बेटे को अपनी मां और भाइयों के पास छोड़ कर साकेत के पर्यावरण कौंप्लैक्स में रहने चली गई और वहीं से धंधा औपरेट करने लगी.

सोनू पंजाबन को जिस्मफरोशी के आरोप में पहली बार 31 अगस्त, 2007 को प्रीत विहार पुलिस ने 7 लड़कियों के साथ गिरफ्तार किया था. इस के बाद सोनू पूरी तरह एक कालगर्ल सरगना के रूप में बदनाम हो गई.

उस ने प्रीत विहार छोड़ कर साकेत में नया ठिकाना बना लिया. लेकिन वहां भी 21 नवंबर, 2008 को साकेत पुलिस ने सोनू को सैक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

सोनू ने फिर ठिकाना बदला और प्रीत विहार में एक दूसरा बंगला किराए पर ले लिया. लेकिन 22 नवंबर, 2009 को वहां भी प्रीत विहार पुलिस ने छापा मार दिया. सोनू को फिर से 4 लड़कियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद तो सोनू के दिमाग से पुलिस का खौफ पूरी तरह निकल गया. अब वह खुल कर बड़े पैमाने पर धंधा करने लगी.

उस ने अपराध की दुनिया से जुड़े प्रेमियों और जिस्मफरोशी के कारोबार से जुटाई गई दौलत से दिल्ली के महरौली इलाके के सैदुल्लाजाब के अनुपम एनक्लेव में एक आलीशान फ्लैट खरीद लिया और वहीं से अंडरग्राउंड रह कर धंधे का संचालन करने लगी.

सोनू अब लड़कियों को खुद ले कर नहीं जाती थी उस ने एजेंट रख लिए. सोनू ने अपने सभी फोन नंबर भी बदल लिए थे. वह आमतौर पर अंजान लोगों से फोन पर बात नहीं करती बल्कि किसी पुराने ग्राहकों का रैफरेंस देने पर ही नए ग्राहकों को लड़की उपलब्ध कराती थी.

5 अप्रैल, 2011 को सोनू को महरौली पुलिस ने 5 लड़कियों और साथ धर दबोचा. इस बार पुलिस ने उस के ऊपर मकोका कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया.

इस बार उस के साथ पकड़ी गई लडकियों में ज्यादातर लड़कियां मौडल या टेलीविजन कार्यक्रमों में काम करने वाली अभिनेत्रियां थीं.

इस बार यह खुलासा हुआ कि सोनू का धंधा कई राज्यों तक फैल चुका था. उस का पूरा कारोबार संगठित तरीके से चलता था.

हालांकि पुलिस सोनू पंजाबन पर मकोका कानून के आरोप सिद्ध नहीं कर सकी, इसीलिए 2013 में वह मकोका के आरोप से बरी हो कर जेल से रिहा हो गई.

3 साल जेल में रहने के बाद सोनू पंजाबन अदालत से बरी हुई तो उस ने बेहद सावधानी से अपने धंधे को आगे बढ़ाना शुरू किया. अब वह खुद सामने नहीं आती थी बल्कि अपने लोगों को सामने रख कर इस काम को करती थी.

सोनू पंजाबन ने अब लड़कियों को अपने यहां काम पर रख लिया है. इन लड़कियों को वह ग्राहक के पैसों में हिस्सा नहीं देती थी, बल्कि उन्हें एकमुश्त सैलरी देती थी.

यूं कहें तो गलत न होगा कि उस ने अपने काम करने के तरीके को एकदम कारपोरेट शैली में बदल दिया था.

उस के सिंडीकेट से जुड़े हर शख्स का काम बंटा हुआ था. कोई लड़कियों को एस्कार्ट करता था तो कोई उन का ड्राइवर बन कर उन्हें बड़ेबड़े ग्राहकों के पास छोड़ कर आता था.

ऊधमसिंह नगर में धंधा पुराना लेकिन तरीके नए : भाग 2

इस सूचना के आधार पर एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट प्रभारी ने सीओ अमित कुमार के साथ मीटिंग कर इस अपराध को जड़ से मिटाने का निर्णय लिया. इस की जानकारी एसएसपी दलीप सिंह को दे कर अनुमति मांगी गई. अनुमति मिलते ही अमित कुमार ने ठोस कदम उठाए. उस योजना को अंजाम देने के लिए पुलिस ने नगर में चल रहे स्पा सेंटरों पर मुखबिरों का जाल बिछा दिया. पुलिस को जहां से भी जानकारी मिलती, वहां तुरंत छापेमारी की जाने लगी.

इस सिलसिले में मैट्रोपोलिस सिटी बिग बाजार स्थित सेवेन स्काई स्पा सेंटर में कुछ संदिग्ध युवकयुवतियां दबोचे गए. एक कमरे के केबिन से 2 युवकों को 3 युवतियों के साथ, जबकि दूसरे कमरे में बने केबिनों में 2-2 युवकयुवतियां मसाज में तल्लीन पकड़े जाने पर दबोचा गया. सभी अर्धनग्नावस्था में थे.

सेंटर की गहन छानबीन में प्रयोग किए गए और नए महंगे कंडोम बरामद हुए. रिसैप्शन काउंटर से भी कंडोम बरामद किए गए.

कस्टमर एंट्री रजिस्टर से पुलिस को ग्राहकों के एंट्री की तारीख और समय का पता चला. सेंटर की संचालिका सोनू थी. उस ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि स्पा सेंटर का मालिक हरमिंदर सिंह हैं, उन के निर्देश पर ही सेंटर में सब कुछ होता रहा है. सेंटर से बरामद 5 युवतियों ने स्वीकार किया कि उन्हें एक ग्राहक के साथ हमबिस्तर होने पर 500 रुपए मिलते थे.

इस मामले को पंतनगर थाने में दर्ज किया गया. गिरफ्तार युवकयुवतियों और सेंटर के मालिक हरमिंदर सिंह के खिलाफ रिपोर्ट लिख ली गई. बिलासपुर जिला रामपुर निवासी हरमिंदर सिंह फरार था. पुलिस उस की तलाश में लगा दी गई थी. इसी तरह ऊधमसिंह नगर में चल रहे स्पा सेंटर पर भी 13 अगस्त को छापेमारी की गई.

उस के बाद वहां बसंती आर्या ने सभी स्पा सेंटरों व होटल मालिकों को आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए.

उन से कहा गया कि सभी ठहरने वाले ग्राहकों के आईडी की फोटो कौपी रखें और उन के नाम व पते रिसैप्शन सेंटर पर जरूर दर्ज करें. साथ ही होटल में सभी जगह पर सीसीटीवी कैमरे चालू हालत में रखने अनिवार्य कर दिए गए.

कहते हैं, जहां चाह वहां राह, तो इस धंधे को स्मार्टफोन से नई राह मिल गई है. देह व्यापार में लिप्त काशीपुर की सैक्स वर्करों ने स्मार्टफोन को ग्राहक तलाशने का जरिया बना लिया है. पुरुष भी धंधेबाज औरतों की तलाश आसानी से करने लगे हैं.

देह व्यापार में लिप्त महिलाएं मोबाइल पर चंद अश्लील बातें कर अपने ग्राहकों को फंसा लेती हैं. पैसे का लेनदेन भी उसी के जरिए हो जाता है.

वाट्सऐप और वीडियो कालिंग तो इस धंधे के लिए वरदान साबित हो रहा है. इस पर वे अपनी अश्लील फोटो या वीडियो भेज कर उन को लुभा लेती हैं.

फिर वह ग्राहक की सुविधानुसार कुछ समय के लिए किराए पर ले रखे कमरे पर ही उसे बुला लेती हैं या उस के बताए ठिकाने पर पहुंच जाती हैं.

जो महिलाएं कल तक मंडी से जुड़ी हुई थीं, वे अब इसी तरीके से अपना धंधा चला रही हैं, यही उन की रोजीरोटी का साधन बन चुका है.

जांच में यह भी पता चला कि काशीपुर में कुछ ऐसी बस्तियां हैं, जहां पर कई औरतें अपना धंधा चला कर मोटी कमाई कर रही हैं. उन में कुछ औरतें अधेड़ उम्र की हैं, वे  नई लड़कियों के लिए ग्राहक ढूंढने के साथसाथ उन की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी निभाती हैं. ऐसी औरतें ही किराए का मकान या कमरा ले कर रखती हैं. उन में वह खुद रहती हैं.

किसी ग्राहक की मांग आते ही वह उन से सौदा तय कर आगे के काम में लग जाती हैं. उन्हें थोड़े समय के लिए अपना घर उपलब्ध करवा देती हैं.

ग्राहक को 15 मिनट से ले कर आधे घंटे तक का समय मिलता है. इसी समय के लिए 300 से 500 रुपए वसूले जाते हैं.  इस आय में आधा हिस्सा लड़की को मिलता है. कभीकभी लड़की को ज्यादा भी मिलता है.

यह ग्राहक की संतुष्टि और उस से मिलने वाले अतिरिक्त बख्शीश पर निर्भर करता है. इस गिरोह में घरेलू किस्म की औरतें, स्टूडेंट या पति से प्रताडि़त या उपेक्षित सफेदपोश संभ्रांत किस्म की महिलाएं शामिल होती हैं, जिन के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता कि उस पर भी गंदे धंधे के दाग लगे हुए हैं. उन की पब्लिसिटी पोर्न वेबसाइटों के जरिए भी होती रहती है.

इस तरह के देह व्यापार का धंधा काशीपुर ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड में अपने पैर पसारता जा रहा है. बताते हैं कि यहां लड़कियां तस्करी के माध्यम से उपलब्ध करवाई जाती हैं, जिन में अधिकतर मजबूर महिलाएं और युवतियां ही होती हैं.

इसी साल जुलाई माह की भी ऐसी एक घटना 21 तारीख को रुद्रपुर में सामने आई. एंटी ह्यूमन टै्रफिकिंग यूनिट के प्रभारी को ट्रांजिट कैंप गंगापुर रोड के पास मोदी मैदान में खड़ी एक संदिग्ध कार के बारे में सूचना मिली. मुखबिर ने एक कार यूके06एए3844 में कुछ पुरुष और महिलाओं के द्वारा अश्लील हरकतें करने की जानकारी दी.

इस सूचना पर काररवाई करते हुए इंसपेक्टर बसंती आर्या अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचीं. अपनी टीम के साथ चारों तरफ से कार को घेरते हुए उस कार से 3 लोगों को पकड़ा गया. उन में एक आदमी और 2 औरतें थीं.

जब वे पकड़े गए, तब उन की हरकतें बेहद आपत्तिजनक थीं. तीनों को अपनी कस्टडी में ले कर पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

आदमी की पहचान उत्तर प्रदेश में बरेली जिले के बहेड़ी थाना के रहने वाले 29 वर्षीय भगवान दास उर्फ अर्जुन के रूप में हुई. महिला की पहचान 32 वर्षीया भारती के रूप में हुई.

उस ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश में रामपुर जिले के अंतर्गत दिनकरी की रहने वाली है, लेकिन अब वह ऊधमसिंह नगर जिला में  सिडकुल ढाल ट्रांजिट कैंप में रहती है.

आदित्य किडनैपिंग-मर्डर केस: 5 साल की जद्दोजहद के बाद

हाईप्रोफाइल मामला होने के कारण कोर्ट परिसर और आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. आरोपियों को न्यायालय में कड़ी सुरक्षा के बीच लाया गया था. फैसले को ले कर कोर्टरूम पत्रकारों, वकीलों व अन्य लोगों से भरा हुआ था. लेकिन जब कोर्ट की काररवाई शुरू हुई तो कोरोना के कारण अंदर आरोपी एवं पीडि़त पक्ष के वकीलों सहित कुछ अन्य वकील ही मौजूद रहे.

आने वाले फैसले पर उद्योग जगत की भी निगाहें लगीं थीं. कई उद्यमी दोपहर में फैसला आने से पहले कोर्टरूम के बाहर आ कर खड़े हो गए थे. आरोपियों के परिवार की महिलाएं भी वहां थीं.

सभी को फैसले का बड़ी बेसब्री से इंतजार था. निर्धारित समय पर अदालत के विशेष जज आजाद सिंह कोर्टरूम में आ कर अपनी कुरसी पर बैठे तो वहां मौजूद सभी लोगों की नजरें उन पर जम गईं.

आगे बढ़ने से पहले आइए हम इस चर्चित कांड को याद कर लें. यह अपहरण और हत्याकांड इतना दिल दहलाने वाला था कि इस की गूंज प्रदेश भर में सुनाई दी थी. इस घटना ने प्रदेश के कारोबारियों को स्तब्ध कर दिया था.

सुहागनगरी के नाम से प्रसिद्ध फिरोजाबाद शहर के चूड़ी कारोबारी अतुल मित्तल का 24 वर्षीय बेटा आदित्य मित्तल 22 अगस्त, 2016 को सुबह साढ़े 8 बजे हमेशा की तरह अपने घर शांति भवन से कार से थाना टूंडला क्षेत्र स्थित आर्चिड ग्रीन जिम के लिए निकला था. जिम के बाद आदित्य अपनी फैक्ट्री चला जाता था. लेकिन उस दिन जब वह फैक्ट्री नहीं पहुंचा, तब घर वालों को चिंता हुई.

आदित्य ने बेंगलुरु की क्राइस्ट यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद सन 2014 में फिरोजाबाद वापस आ कर संभाला था. वह अपने पिता के साथ ओम ग्लास का कामकाज संभाले हुए था.

आदित्य का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. कई घंटे तक जब आदित्य लौट कर नहीं आया, तब घर वालों ने उस की खोजबीन शुरू की. इस बीच आदित्य के ताऊ प्रदीप मित्तल के मोबाइल पर एक मैसेज आया. इस में लिखा था, ‘आदित्य का अपहरण हो गया है. किसी को पता नहीं चलना चाहिए, मेरे अगले फोन का इंतजार करना.’

जवान बेटे के अपहरण की सूचना पा कर घर वाले परेशान हो गए. चूंकि अपहर्त्ताओं ने किसी को सूचना न देने की धमकी दी थी, इसलिए घर वालों ने पुलिस को खबर नहीं दी और वे अपहर्त्ता के फोन का इंतजार करने लगे.

अपहर्त्ता ने उन से संपर्क किया और बताया कि आदित्य की कार थाना नारखी के नगला बीच में खड़ी है, उसे उठवा लो. उसी दिन आदित्य की कार नारखी थाना क्षेत्र से बरामद हो गई.

मांगी 10 करोड़ की फिरौती

रात में अपहर्त्ता ने फोन कर के उन से 10 करोड़ रुपए की फिरौती की मांग की. अपहर्त्ता इस से कम लेने पर राजी नहीं हुए, तब घर वालों ने इस की सूचना थाना टूंडला में दे दी. कारोबारी के बेटे के अपहरण की सूचना पर पुलिस सक्रिय हो गई. यह बात 22 अगस्त, 2016 की है.

पुलिस ने शहर की पौश कालोनी गणेश नगर निवासी आदित्य के दोस्तों बिल्डर रोहन सिंघल व कारोबारी अर्जुन से भी आदित्य के बारे में पूछा, लेकिन दोनों ने उस के बारे में कोई जानकारी होने से मना कर दिया.

घर वालों ने अपने स्तर पर आदित्य के सभी दोस्तों के साथ उसे सभी संभव जगहों पर तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. दूसरे दिन अपहर्त्ताओं का फोन आया, उन्होंने अब फिरौती के रूप में 10 करोड़ की जगह 30 किलोग्राम सोने की मांग किए जाने के साथ ही पुलिस में खबर करने पर आदित्य को मार डालने की धमकी दी.

चूंकि रोहन सिंघल आदित्य का घनिष्ठ दोस्त था, इसलिए आदित्य के घर वालों ने रोहन सिंघल को फोन कर के आदित्य के बारे में पूछताछ की तो उस ने उन से सीधे मुंह बात न कर के टालमटोल करने की कोशिश की.

रोहन को शक था कि कहीं उस का फोन रिकौर्ड न किया जा रहा हो. इसी शक के चलते उस ने फोन  को जल्दबाजी में डिसकनेक्ट कर दिया. जबकि रोहन अपहरण से एक दिन पहले 21 अगस्त की रात आदित्य के घर गया था और उस की मां के सामने सुबह जिम जाने की बात की थी.

रोहन की इस हरकत पर घर वालों को उस पर शक हुआ. आदित्य के ताऊ प्रदीप मित्तल ने घटना के 2 दिन बाद बिल्डर रोहन सिंघल, उस के भाई पवन सिंघल व कारोबारी अर्जुन के विरुद्ध थाना टूंडला में आदित्य का अपहरण करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

आरोपी चढ़े हत्थे

अपहरण के 3 दिन बाद 25 अगस्त की शाम थाना शिकोहाबाद पुलिस ने शिकोहाबाद क्षेत्र की भूड़ा स्थित नहर में आदित्य का शव बरामद किया. शव के हाथपैर रस्सी से बंधे थे. घर वालों ने शिकोहाबाद आ कर आदित्य के शव की शिनाख्त कर ली. नहर किनारे से आदित्य की चप्पलें भी बरामद हुईं.

अपहृत आदित्य का शव मिलने के बाद पुलिस ने जांच करने के बाद रईसजादे रोहन सिंघल और उस के फार्महाउस के राजमिस्त्री पवन कुमार निवासी सरजीवन नगर को गिरफ्तार कर लिया. तत्कालीन एसएसपी अशोक कुमार शर्मा ने प्रैस कौन्फ्रैंस में अपहरण व हत्याकांड का खुलासा करते हुए घटना में शामिल 2 हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर तत्कालीन एसपी (सिटी) संजीव वाजपेई पुलिस बल के साथ कर्मयोगी अपार्टमेंट पहुंचे और वहां से रस्सी व सीरींज आदि बरामद कीं. इस के साथ ही अन्य आरोपियों पर शिकंजा कसने के लिए जांच अधिकारी टूंडला थानाप्रभारी राजीव यादव ने जांच आगे बढ़ाई.

कई राजनैतिक दलों व विभिन्न संगठनों ने इस घटना में शामिल सभी आरोपियों की गिरफ्तारी व उन्हें कड़ी सजा दिलाए जाने की पुरजोर मांग की. इस के साथ ही नगर में कैंडिल मार्च निकालने का सिलसिला शुरू हो गया. इलैक्ट्रौनिक और पिं्रट मीडिया में भी यह घटना सुर्खियों में थी. जब यह मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो अधिकारियों पर दवाब पड़ा. आखिर पुलिस ने सक्रियता दिखाई और शेष आरोपियों की गिरफ्तारी कर लिया.

पुलिस विवेचना में रोहन के दोस्त अर्जुन का नाम हट गया. तफ्तीश के दौरान पुलिस ने हत्या में शामिल राजमिस्त्री पवन कुमार के साथी गोपाल निवासी सरजीवन व फार्महाउस में काम करने वाले श्रमिक मुकेश निवासी मोतीलाल की ठार, आसफाबाद के साथ ही रोहन के भाई पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद अपहरण की पूरी कहानी पुलिस के सामने आ गई.

आदित्य के बचपन का एक दोस्त था अर्जुन. उस के पिता गत्ता कारोबारी थे. बिल्डर के धंधे की वजह से कर्ज में डूबे शहर के रईसजादे रोहन सिंघल ने तब एक घिनौनी साजिश रची. उस ने कौमन फ्रैंड अर्जुन के जरिए वारदात से 3 महीने पहले आदित्य से दोस्ती की और लगातार रैकी करता रहा. साथ ही उस के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. आदित्य के परिवार का कारोबार देख उस ने कर्ज से मुक्ति पाने के लिए आदित्य के अपहरण की साजिश रची.

21 अगस्त को रोहन सिंघल आदित्य के घर आया और दूसरे दिन जिम जाने की प्लानिंग की. घटना के दिन 22 अगस्त को आदित्य अपनी कार से आर्चिड ग्रीन स्थित जिम जाने के लिए निकला.

लौटते समय वह आदित्य को आर्चिड ग्रीन कालोनी के गेट से अपनी रिवौल्वर से फायर कराने के बहाने अपने साथ जलेसर रोड स्थित निर्माणाधीन कालोनी कर्मयोगी अपार्टमेंट ले गया और वहां अपने राजमिस्त्री पवन कुमार की सहायता से उसे बंधक बना लिया.

डर की वजह से की हत्या

रस्सी से आदित्य के हाथपैर बांध कर उसे नशे के इंजेक्शन लगाए गए ताकि वह बेहोश रहे. जब दूसरे दिन शहर में आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर लोगों ने कैंडिल मार्च निकाला तब रोहन डर गया. गुजरते वक्त के साथ उसे अपने पकड़े जाने का खतरा सताने लगा था.

हड़बड़ी में उस ने आदित्य को लगातार कई इंजेक्शन दिए, जिस से उस की मौत हो गई. अब वह लाश को ठिकाने लगाने के प्रयास में जुट गया.

24 अगस्त की रात में अन्य आरोपियों के साथ शव को ले जा कर शिकोहाबाद नहर में फेंक दिया गया, जो 25 अगस्त को नहर किनारे बबूल के पेड़ों में अटक गया, जिसे शिकोहाबाद पुलिस ने बरामद किया. फिरौती वसूलने से पहले ही उस ने आदित्य को मार डाला और अपने ही जाल में फंस गया.

इस बीच रोहन सिंघल ने बेहद चालाकी का परिचय दिया. आदित्य के घर वालों के शक से बचने के लिए वह अपहरण के बाद भी उन के संपर्क में रहा. वह जानना चाहता था कि परिजनों द्वारा क्या काररवाई की जा रही है.

आदित्य के अपहरण से पहले शातिर दिमाग रोहन ने फरजी नामों से 3 सिम खरीदे थे. इस के बाद उस ने वायस चेंजर ऐप के माध्यम से आदित्य के घर वालों से फिरौती मांगी. पहले 10 करोड़ मांगे. बाद में कैश की जगह 30 किलोग्राम सोने की डिमांड रख दी. घर वालों ने  कहा कि वे इतनी बड़ी फिरौती देने में असमर्थ हैं.

पुलिस पूछताछ में रोहन ने जानकारी दी कि उसे पकड़े जाने का डर था. फिरौती में सोना मांग कर वह पुलिस को भटकाना चाहता था, ताकि पुलिस को लगे कि आदित्य का अपहरण किसी बाहरी गैंग द्वारा किया गया है. पुलिस ने रोहन की लाइसैंसी रिवौल्वर भी जब्त कर ली.

पुलिस ने आदित्य के अपहरण व हत्या में 6 लोगों के विरुद्ध न्यायालय में चार्जशीट  दाखिल की थी. मामला सेशन के सुपुर्द हो कर सुनवाई के लिए पहुंचा.

भादंवि की धारा 120बी के आरोपी पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल की जमानत हाईकोर्ट से मंजूर हो गई थी और वे जेल से बाहर आ गए थे.

इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई करीब पौने 5 साल तक फिरोजाबाद जिले के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (षष्टम) एवं विशेष जज आजाद सिंह के न्यायालय में चल रही थी. सत्र न्यायाधीश द्वारा 7 अप्रैल, 2021 को इस केस का फैसला सुनाया जाना था.

सुनवाई के दौरान न्यायालय में सरकारी गवाह सहित 15 गवाहों की पेशी हुई. पीडि़त परिवार की ओर से न्यायालय के समक्ष तमाम साक्ष्य प्रस्तुत किए गए. दोषियों को जल्दी सजा दिलाने के लिए हाईकोर्ट तक दौड़ लगाई.

आरोपियों को मिली सजा

हाईकोर्ट द्वारा भी 4 बार दिशानिर्देश जारी किए गए. आरोपियों ने अदालत में खुद को बेकसूर बताया. गवाहों के बयान और दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह सुनने के बाद विशेष जज आजाद सिंह ने सबूतों के आधार पर 7 अप्रैल, 2021 को अपना फैसला सुनाया.

जज आजाद सिंह ने आरोपियों रोहन सिंघल, पवन कुमार, मुकेश व गोपाल को अपहरण व हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

न्यायाधीश ने रोहन पर 2.40 लाख रुपए व अन्य तीनों पर 2.3-2.30 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया. जुरमाना न देने पर दोषियों को एकएक वर्ष की अतिरिक्त सजा भुगतने का ऐलान किया गया. वहीं साक्ष्य के अभाव में न्यायाधीश ने पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल को बरी कर दिया.

अभियोजन पक्ष की ओर से न्यायालय में पैरवी विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने की. फैसला सुनाए जाने के बाद उन्होंने बताया कि पवन व अनीता को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी, जबकि शेष चारों आरोपी तभी से जेल में बंद थे.

जैसे ही दोषियों को सजा सुनाई गई तो उन के परिवार की महिलाएं बिलखने लगीं. दोषियों को कड़ी सुरक्षा के बीच ले जाया गया. जेल ले जाते समय परिवार की महिलाएं काफी दूर तक उन के पीछेपीछे गईं.

आदित्य मित्तल के पिता अतुल मित्तल को यह खबर मिली कि बेटे की हत्या के मामले में विशेष जज ने 4 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है तो उन के दिल को सुकून मिला.

आखिर इतनी मशक्कत के बाद दोषियों को सजा मिल गई. मित्तल परिवार आरोपियों को फांसी की सजा दिलाने तक पैरवी करेगा. गलत शख्स से दोस्ती ने आदित्य की जान ले ली. दोषियों को सजा जरूर मिल गई है, लेकिन बेटे को खोने का गम आज भी परिवार के सदस्यों की आंखों में झलकता है.

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सोनू पंजाबन : गोरी चमड़ी के कारोबार की बड़ी खिलाड़ी – भाग 1

दिल्ली की तिहाड़ जेल के महिला वार्ड के विशेष सेल में बंद गीता अरोड़ा उर्फ सोनू पंजाबन (41) जमीन पर लगे बिस्तर पर लेटी छत की तरफ देखते हुए शून्य में निहार रही थी. रहरह कर अतीत का एकएक घटनाक्रम उस की आंखों के आगे चलचित्र की तरह तैर रहा था.

दिल्ली ही नहीं, देश भर के अय्याश लोगों के दिलों में सोनू पंजाबन रानी की तरह राज करती थी. चाहे किसी पांच सितारा होटल में रात की रंगीनियां बिखेरनी हों या किसी फार्महाउस में प्राइवेट पार्टी करनी हो. अमीरजादों को दिल बहलाने वाली खूबसूरत हसीनाओं की जरूरत होती तो उन्हें एक ही नाम याद आता था सोनू पंजाबन का.

यूं कहे तो गलत न होगा कि सोनू पंजाबन दिल्ली से ले कर मुंबई तक में एक ऐसा नाम रहा है, जिसे जिस्मफरोशी की दुनिया की क्वीन यानी रानी कहा जाता था.

लेकिन प्रीति के साथ उस ने जो भी किया था, उस ने एक झटके में उस की जिंदगी बदल दी. बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमने वाली और नोटों की गड्डियों का बिस्तर बिछा कर सोने वाली सोनू पंजाबन इन दिनों जेल की सलाखों के पीछे पथरीली जमीन पर कंबलों का बिस्तर बिछा कर सोने के लिए मजबूर थी.

22 जुलाई, 2020 को द्वारका कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रीतम सिंह ने सोनू पंजाबन को आईपीसी की धारा 328, 342, 366ए, 372, 373 और 120बी के तहत कुल 24 सालों के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी.

इसी मामले में सोनू के साथ संदीप बेदवाल को भी कोर्ट ने 20 सालों तक जेल में रहने की सजा सुनाई थी.

हालांकि गीता अरोड़ा उर्फ सोनू पंजाबन ने अपनी सजा को एक महीने बाद ही दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दे दी थी. जिस पर जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की एकल पीठ ने सोनू पंजाबन की याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए कहा.

सोनू पंजाबन के वकील आर.एम. तुफैल और आस्था की सोनू के खिलाफ दिए गए ट्रायल कोर्ट का फैसले को टालने व उसे जमानत दिए जाने की याचिका पर सुनवाई टलती रही.

सोनू पंजाबन कभी दिल्ली शहर की सब से नामचीन कालगर्ल हुआ करती थी, लेकिन जल्द ही उस ने गोरी चमड़ी बेच कर पैसा कमाने की कला के सारे गुर सीख लिए तो वह बाद में खुद धंधा छोड़ कर दूसरी लड़कियों से धंधा कराने लगी और खुद बन गई कालगर्ल सरगना.

लेकिन सोनू ने आखिर ऐसा कौन सा गुनाह किया था कि जिस्मफरोशी का धंधा करने के गुनाह में अदालत को उस के खिलाफ इतनी बड़ी सजा का ऐलान करना पड़ा, जितनी सजा आज तक इस धंधे के किसी गुनाहगार को नहीं दी थी. इस के लिए सोनू पंजाबन के काले अतीत में झांकना होगा.

हिंदुस्तान के बंटवारे के बाद लाखों रिफ्यूजियों की तरह ही गीता अरोड़ा उर्फ सोनू पंजाबन के दादा अपने परिवार को ले कर पाकिस्तान से भारत चले आए थे. दादा के साथ परिवार के दूसरे लोग तो रोहतक में ही बस गए.

बाद में ओमप्रकाश अरोड़ा काम की तलाश में अपने परिवार को ले कर दिल्ली आए और यहां गीता कालोनी में किराए के मकान में रहने लगे.

वह आटोरिक्शा चलाने लगे. ओमप्रकाश के परिवार में पत्नी बीना अरोड़ा, 2 बेटे व 2 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की शादी उन्होंने दिल्ली के ही रहने वाले सतीश से कर दी.

1981 में जन्म लेने वाली गीता से छोटे उस के 2 भाई थे. गीता परिवार की आर्थिक तंगी के कारण 10वीं कक्षा से ज्यादा नहीं पढ़ सकी.

गीता महत्त्वाकांक्षी और विद्रोही स्वभाव की थी. उस के नाकनक्श अपनी उम्र की दूसरी लड़कियों से ज्यादा आकर्षक और सुंदर थे.

गीता ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर के गीता कालोनी के ही एक बड़े पार्लर में नौकरी करने लगी. उन दिनों दिल्ली में ब्यूटीपार्लर की आड़ में चोरीछिपे जिस्मफरोशी का धंधा जोर पकड़ रहा था. गीता जिस पार्लर मे काम करती थी, वहां भी ये काम होता था.

उन्हीं दिनों गीता की जिंदगी में विजय नाम का शख्स आया, जिस के बाद उस के जीवन ने एक नई करवट ली. विजय सिंह हरियाणा के रोहतक का रहने वाला था और पेशे से अपराधी था.

हरियाणा, दिल्ली और यूपी में लूटमार और हफ्तावसूली उस का पेशा था. विजय सिंह जरायम से जुड़े अपने दोस्तों के पास दिल्ली में पनाह ले कर रहता था. यहीं उस की मुलाकात गीता से हुई.

दोनों में पहले प्रेम हुआ फिर गीता अरोड़ा ने परिवार के विरोध के बावजूद विजय से प्रेम विवाह कर लिया. विजय सिंह की कमाई से गीता परिवार की भी मदद करने लगी. गीता की जिंदगी मजे से गुजर रही थी. गीता ने एक बेटे को जन्म दिया.

गीता की हसंतीखेलती जिंदगी अचानक एक दिन तबाह हो गई. दरअसल, यूपी पुलिस की एसटीएफ ने विजय को उस के एक साथी के साथ गढ़मुक्तेश्वर के पास पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया. ये 1998 की बात है. गीता पर विजय की मौत वज्रपात बन कर गिरी.

विजय की मौत के कुछ दिन बाद ही बीमारी और सदमे के कारण गीता के पिता ओमप्रकाश अरोड़ा की भी मौत हो गई. गीता के दुखों का पहाड़ और भारी हो गया. गीता ने परिवार की गुजरबसर व पेट पालने के लिए ब्यूटीपार्लर की नौकरी कर ली.

कुछ समय बाद निक्कू उस की जिंदगी में सहारा बन कर सामने आया जो उस के पहले पति विजय का दोस्त था और वह उस से पहले से परिचित थी.

निक्कू त्यागी भी दबंग और दिलेर होने के साथ अपराध की दुनिया का जानामाना नाम था. गीता बेटे को अपनी मां और भाइयों के पास छोड़ कर गीता कालोनी में ही निक्कू के साथ कमरा ले कर रखैल के रूप में उस के साथ रहने लगी. निक्कू ज्यादातर दिल्ली से बाहर ही रहता था.

इसी दौरान गीता को दिल्ली के बड़े होटलों और डांस बार में जाने की लत लग गई. वह डिस्को और पब में जाने की आदी हो गई थी.

खूबसूरत वह थी ही अकसर वहां रंगीनमिजाज रईसजादों के साथ रातें गुजारने लगी. बाद में धीरेधीरे जिस्म बेच कर पैसे कमाने का उस का ये शौक पेशे में बदल गया.

नजरिए का खोट : कैसे शांत हो गई रश्मि की जिंदगी

घरपरिवार से अलग स्वच्छंद जीवन जीने की इच्छुक लड़कियों का कमोबेश रश्मि जैसा ही हाल होता है. चिराग पटेल ने भले ही हत्या का अपराध किया, लेकिन उस की हत्या की भूमिका तभी बननी शुरू हो गई थी जब रश्मि ने जानबूझ कर शादीशुदा चिराग के साथ रिलेशनशिप में रहना शुरू किया था. काश! रश्मि ने अपने पिता परिवार…

60वर्षीय जयंतीभाई वनमाली कटारिया अपनी दोनों बेटियों तनु और रश्मि के साथ गुजरात के सूरत जिले के बारदोली कस्बे के रोहितफालिया इलाके में रहते थे. वह गांव के प्रतिष्ठित काश्तकार थे. परिवार संपन्न और इज्जतदार था. किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन की ख्वाहिश थी कि वह अपनी दोनों बेटियों को उच्चशिक्षा दिलाएं ताकि वे पढ़लिख कर समाज और बिरादरी में अपना एक अलग स्थान बनाएं.

अपनी दोनों बेटियों के साथ वह बेटों जैसा व्यवहार करते थे. उन्होंने उन्हें अपनी तरफ से पूरी आजादी दे रखी थी. लेकिन जयंती भाई को यह पता नहीं था कि उन की आजादी एक दिन उन्हें बहुत भारी पड़ेगी. उन की बड़ी बेटी तो सरल स्वभाव की थी, लेकिन छोटी बेटी रश्मि काफी तेज और चंचल थी.

23 वर्षीय रश्मि कटारिया आधुनिक और ब्रौड माइंडेड युवती थी. वह जितनी शोख चंचल थी, उतनी ही सुंदर और स्मार्ट भी थी. फैशनपरस्त होने के साथसाथ वह पुराने दकियानूसी रस्मोरिवाजों को नहीं मानती थी. उस का कहना था कि जब तक खूबसूरती और जवानी है, एंजौय करो. शादीविवाह तो बंधन है, जिस की समय के साथ जरूरत पड़ती है. इसी वजह से रश्मि चिराग पटेल नाम के युवक के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहती थी.

15 नवंबर, 2020 दीपावली का दूसरा दिन था. लोग खुशियां मना रहे थे. अपने जानपहचान वालों, नातेरिश्तेदारों को दीपावली की बधाइयों केसाथ गिफ्ट दे रहे थे. कटारिया परिवार भी इस सब में पीछे नहीं था. उन्होंने भी अपनी बेटी रश्मि को गिफ्ट देने के लिए फोन कर के घर बुलाया. फोन रश्मि के साथ लिवइन में रहने वाले चिराग पटेल ने रिसीव किया और कहा, ‘‘अंकल रश्मि तो नहाने के लिए बाथरूम गई है.’’

‘‘ठीक है बेटा, नहाने के बाद तुम लोग घर आ जाना.’’ रश्मि के पिता जयंतीभाई कटारिया ने अनुरोध किया.

दूसरी तरफ से संतोषजनक जवाब पाने के बाद जयंतीभाई कटारिया ने फोन रख दिया और उन के आने का इंतजार करने लगे. लेकिन पूरा दिन निकल जाने के बाद भी न तो बेटी रश्मि आई और न ही उस का कोई फोन आया.

इस से उन्हें रश्मि की चिंता हुई. उन्होंने रश्मि और चिराग को कई बार फोन लगाया लेकिन कोई रिस्पौंस नहीं मिला. हर बार दोनों का फोन स्विच्ड औफ मिला. फिर आउट औफ कवरेज एरिया बताने लगा.

बेटी की चिंता में जयंतीभाई कटारिया की रात जैसेतैसे बीत गई. पर सुबह होते ही उन्होंने रश्मि और चिराग के फोन फिर ट्राई किए. लेकिन नतीजा वैसा ही रहा. ऐसे में कटारिया और उन के परिवार का धैर्य टूट गया.

ऐसा कभी नहीं हुआ था कि रश्मि के मांबाप, बहन फोन करें और उस का उन्हें जवाब न मिले. दिन में एक 2 बार तो रश्मि का उन के साथ संपर्क हो ही जाता था. लंबी बातें भी हुआ करती थीं. भले ही उन की बेटी लंबे समय से एक गैरजाति वाले चिराग के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी, लेकिन परिवार के लोगों को उस के प्रति किसी प्रकार की नाराजगी नहीं थी.

17 नवंबर, 2020 को जब रश्मि की चिंता हद से गुजर गई तो जयंतीभाई कटारिया अपने भतीजे हीरेन कटारिया के साथ सुबहसुबह रश्मि के फ्लैट पर पहुंच गए. वहां उन्हें न तो रश्मि मिली और न ही चिराग पटेल मिला. वहां सिर्फ उस की नौकरानी और रश्मि का 3 साल का बेटा मिला. पूछताछ में नौकरानी ने उन्हें बताया कि रश्मि और चिरागभाई कहीं बाहर घूमने गए हैं. नौकरानी से बातचीत करने केबाद जयंतीभाई कटारिया अपने नाती को साथ ले कर घर आ गए.

नौकरानी और  पड़ोसियों ने जो बताया उसे ले कर उन का मन अशांत था. कुछ सवाल थे जो बारबार खटक रहे थे. उन का मानना था कि अगर रश्मि और चिराग बाहर घूमने गए थे तो बेटे को क्यों नहीं ले गए. इतने छोटे बच्चे को छोड़ कर मां कभी बाहर नहीं जाती.

दूसरी बात यह थी कि उन दोनों के मोबाइल क्यों बंद थे. यह सब सोच कर उन का माथा ठनका तो उन्होंने अपनी जानपहचान और नातेरिश्तेदारों के यहां उन की तलाश शुरू कर दी. जल्दी ही इस का नतीजा भी सामने आ गया. चिराग कहीं नहीं गया था, वह अपने रिश्तेदारों के यहां था. अगर कोई गया था तो वह थी रश्मि, उन की बेटी. उन्होंने इस बारे में जब चिराग से पूछा तो उस का कहना था कि रश्मि कहां गई, उसे नहीं पता.

संदेह का सूत्र

इस पर जयंतीभाई कटारिया परिवार का संदेह बढ़ गया. उन्होंने बिना किसी विलंब के 20 नवंबर को थाना बारदोली के थानाप्रभारी से मिल कर बेटी रश्मि की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवाते हुए डीवाईएसपी रूपल सोलंकी को सारी बात बताई. साथ ही बेटी की तलाश करने का अनुरोध किया.

जयंतीभाई कटारिया के अनुरोध पर डीवाईएसपी रूपल सोलंकी ने मामले को गंभीरता से लिया और बारदोली थानाप्रभारी को जांच के निर्देश दे दिए.

मामला एक बड़े किसान परिवार से जुड़ा और काफी जटिल था, जिसे सुलझाने के लिए सावधानी की जरूरत थी. इस के लिए थानाप्रभारी ने अपने सहायकों के साथ विचारविमर्श कर संदिग्ध चिराग को थाने बुला कर फौरी तौर पर पूछताछ की.

चिराग ने जिस तरह रश्मि की गुमशुदगी में अनभिज्ञता जाहिर की, वह थानाप्रभारी और उन के सहायकों के गले नहीं उतरी. उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था.

इस के लिए थानाप्रभारी ने अपने सहायकों के साथ चिराग के जानपहचान और उस के परिवार की कुंडली खंगाली तो चिराग रडार पर आ गया. पुलिस ने चिराग को जब दूसरी बार पूछताछ के लिए थाने बुलाया तो वह घबरा गया और सच बोलने के सिवा उस के पास और कोई चारा नहीं बचा. उसे रश्मि की गुमशुदगी के रहस्य से परदा उठाना ही पड़ा.

चिराग के बयान और पुलिस जांच के अनुसार रश्मि की गुमशुदगी और लिवइन रिलेशनशिप की जो कहानी सामने आई, उस की पृष्ठभूमि काफी सनसनीखेज थी, जिसे जान कर लोगों का कलेजा मुंह को आ गया.

32 वर्षीय चिराग पटेल उसी तालुका बारदोली का रहने वाला था, जहां की रश्मि रहने वाली थी. उस के पिता का नाम सुरेशभाई पटेल था. सुरेशभाई की गिनती वहां के धनी और संपन्न किसानों में की जाती थी. उन की अच्छी उपजाऊ जमीन थी, जिस पर वह आधुनिक तरीके से खेती करवाते थे. तैयार होने पर उन की फसल सीधे शहर की बड़ी मंडियों में जाती थी.

स्वस्थ, सुंदर और महत्त्वाकांक्षी चिराग पटेल उन का एकलौता बेटा था, जिसे परिवार से खूब लाड़प्यार मिला था. पिता की तरह उसे भी खेतीबाड़ी से प्यार था. इसी के चलते उस ने अपनी पढ़ाई कृषि विज्ञान से पूरी की और घर आ कर पूरी तरह काश्तकारी संभाल ली.

चिराग को अपने पैरों पर खड़ा देख परिवार वालों को उस की शादी की चिंता हुई तो उन्होंने उस के लिए लड़की की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने अपनी जानपहचान और नातेरिश्तेदारों में उस की शादी की बात चलाई. फलस्वरूप उन्हें अपने ही रिश्तेदारी के बालोद गांव की रहने वाली सुंदर, सुशिक्षित, सुशील लड़की पसंद आ गई. उसी के साथ उन्होंने चिराग पटेल की शादी पूरे रस्मोरिवाज के साथ धूमधाम से कर दी. चिराग अपनी शादी से बहुत खुश था. जल्दी ही वह एक बच्चे का पिता भी बन गया.

पिता बन गया चिराग

समय अपनी गति से चल रहा था. चिराग अपने परिवार में खुश था कि अचानक उस की जिंदगी में उस की पुरानी क्लासमेट रश्मि कटारिया दाखिल हो गई. खेती के कामों से शहर आतेजाते जब चिराग की नजर रश्मि से टकराई तो आधुनिक पोशाक में स्मार्ट और मौडर्न रश्मि को देख कर उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

यही हाल रश्मि का भी था. वह भी स्मार्ट और सुंदर चिराग को अचानक देख कर स्तब्ध रह गई. थोड़ी सी औपचारिकता के बाद दोनों खुल गए. उन्होंने अपने जीवन और दिल की बातें शेयर की और एकदूसरे के सामने जिंदगी की पूरी किताब खोल कर रख दी. अपनी शादी और जीवनसाथी के बारे में रश्मि ने बताया कि उस ने अभी इस बारे में सोचा ही नहीं है. वैसे भी यह एक बेकार का काम है, क्योंकि उस के नजरिए से जीवन मौजमजे का नाम है.

रश्मि की बेबाक बातें सुन कर चिराग उस की तरफ आकर्षित हो गया. उसे एक ऐसी ही सुंदर पार्टनर की जरूरत थी, जिस के साथ वह मौजमजा कर सके. यह सोच कर चिराग ने जब रश्मि की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो रश्मि ने भी देरी नहीं की.

पहले दोनों में दोस्ती हुई और फिर उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. अब चिराग जबजब शहर जाता, अपने साथ रश्मि को भी ले कर जाता. दोनों शहर के होटलों में मौजमस्ती करते. मौलों में शौपिंग करते, घूमतेफिरते.

यह बात जानते हुए भी कि चिराग शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है, रश्मि कटारिया चिराग के प्यार में आकंठ डूब गई. वह उस के साथ आजादी से घूमतीफिरती. चिराग का रहनसहन और वैभव देख कर उसे अहसास हो रहा था कि उस के साथ उस का भविष्य और सपने दोनों सुरक्षित रहेंगे. इसी वजह से परिवार वालों के रोकने और समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ.

रिलेशनशिप की शुरुआत

चिराग के परिवार वालों को उस का रश्मि के साथ मिलनाजुलना पसंद नहीं था. इस के पहले कि वे चिराग को समझा कर रश्मि से अलग कर पाते, रश्मि लिवइन रिलेशन में रहने के लिए उन के बंगले पर आ गई और घरपरिवार वालों से कहा कि चिराग को वह अपना पति मानती है, उस से शादी करेगी. इस बात को चिराग ने भी स्वीकार किया. उस का भी यही कहना था कि वह रश्मि को बहुत प्यार करता है, उस के बिना नहीं रह सकता.

परिवार वालों को चिराग और रश्मि से यह उम्मीद नहीं थी. इस बात का परिवार और गांव वालों ने कड़ा विरोध किया. उन्होंने चिराग और रश्मि को कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि अगर उन दोनों ने एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ा तो उन्हें गांव में नहीं रहने दिया जाएगा. वह किसी दूसरे गांव में जा कर रहें.

आखिरकार पत्नी, मां और गांव परिवार के विरोध के चलते चिराग और रश्मि को गांव छोड़ना पड़ा और वे वागेन तालुका सूरत आ कर वहां के एक लग्जरी अपार्टमेंट में किराए का फ्लैट लेकर रहने लगे. लिवइन रिलेशनशिप के इस सफर को 5 साल कैसे बीत गए उन्हें पता ही नहीं चला. इस बीच रश्मि एक स्वस्थ सुंदर बच्चे की मां बन चुकी थी.

बीतते वक्त के साथ धीरेधीरे दोनों का पारिस्पारिक आकर्षण खत्म होने लगा. 5 सालों में चिराग के इश्क का भूत उतर चुका था. अब रश्मि उसे बोझ लगने लगी थी. वह उस से छुटकारा पाना चाहता था.

ऐसे में रश्मि जब दोबारा गर्भवती हुई तो वह चिड़चिड़ा हो गया. जब यह बात चिराग की पत्नी और मां तक पहुंची तो वे आगबबूला हो गईं. दोनों ने रश्मि के फ्लैट पर पहुंच कर उन्हें आड़े हाथों लिया. खरीखोटी सुनाते हुए रश्मि के साथ मारपीट की, जिस से वह बुरी तरह डर गई थी.

इस घटना से रश्मि को अपने और अपने बच्चे के भविष्य की चिंता सताने लगी. उस का और बच्चे का भविष्य सुरक्षित हो, इस के लिए रश्मि चिराग पर शादी का दबाव बनाने लगी, जो उसे मान्य नहीं था. दूसरी ओर रश्मि शादी को ले कर अड़ गई थी. इस से दोनों के बीच कहासुनी होने लगी. कभीकभी स्थिति मारपीट तक भी पहुंच जाती थी.

दीपावली की रात लक्ष्मी पूजन के बाद जब रश्मि ने शादी की बात उठाई तो दोनों के बीच तकरार बढ़ गई और चिराग आपा खो बैठा. गुस्से में वह रश्मि का गला पकड़ कर तब तक दबाता रहा जब कि उस के प्राण नहीं निकल गए. इस तरह उसे रश्मि से छुटकारा तो मिल गया, लेकिन अब वह उस के शव का क्या करे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था.

मिल ही गई कब्र की जगह

काफी सोचविचार के बाद चिराग को अपनी ससुराल के गांव बालोद की याद आई, जहां सरकारी पाइप डालने का काम चल रहा था और गहरे गड्ढे खोदे गए थे. वहां पाइपलाइन किसानों के खेतों से जा रही थी.

यह खयाल आते ही चिराग ने रश्मि का शव बैडशीट में लपेट कर अपनी कार  में डाला और बालोद गांव पहुंच गया. वहां उस ने एक जेसीबी मशीन के ड्राइवर से बात कर के रश्मि के शव को दफन करवा दिया और अपने रिश्तेदारों के यहां चला गया.

चिराग से पूछताछ के बाद बारदोली पुलिस ने मामले की जानकारी बालोद पुलिस अधीक्षक और एसडीएम को दी. घटनास्थल पर पहुंच कर अधिकारियों ने एफएसएल की मौजूदगी में जेसीबी मशीन की सहायता से रश्मि कटारिया का शव बाहर निकलवाया.

शव को बाहर निकलवा कर उस का बारीकी से निरीक्षण किया और पोस्टमार्टम के लिए स्थानीय अस्पताल भेज कर चिराग पटेल और जेसीबी के ड्राइवर को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

पोसटमार्टम रिपोर्ट में रश्मि 4 महीने की गर्भवती पाई गई. पुलिस के अनुसार भले ही चिराग ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया, लेकिन पुलिस उस के बयानों से संतुष्ट नहीं थी. उन का मानना था कि इस हत्याकांड में वह अकेला नहीं रहा होगा. परदे के पीछे और लोग भी हो सकते हैं. वे लोग कौन हैं, यह जांच का विषय है.

चूंकि रश्मि कटारिया अनुसूचित जाति की थी, इसलिए आगे की जांच अनुसूचित जाति/जनजाति सेल के डीवाईएसपी भार्गव पंडया को सौंप दी गई.

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