UP Crime : पत्नी के प्रेमी की हत्या फिर शव को तिरपाल में लपेटकर कुएं में फेंका

UP Crime : तेज रफ्तार से दौड़ते आज के जमाने में पतिपत्नी के रिश्ते को सात जन्मों का बंधन कहना या बताना बेमानी है. अब तो एक जन्म ही ईमानदारी से गुजर जाए, बड़ी बात है. ऐसे में अगर किसी तीसरे की घुसपैठ हो जाए तो…

घर वालों को लवकुश की तलाश करते हुए 5 दिन हो गए थे, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल रहा था. आखिर थकहार कर 9 अगस्त, 2020 को उस के छोटे भाई रामू शर्मा ने पचोखरा थाने जा कर लवकुश के लापता होने की जानकारी दी. इस पर पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगवा दिया. जिला फिरोजाबाद के थाना पचोखरा क्षेत्र के गांव नगला गंगाराम का रहने वाला 26 वर्षीय लवकुश शर्मा 5 अगस्त, 2020 को घर से बिना बताए चला गया था. वह देर रात तक घर नहीं लौटा तो घर वाले परेशान हो गए. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. इस से घर वालों की चिंता और भी बढ़ गई.

कुछ परिचितों को साथ ले कर घर वालों ने रात में ही लवकुश की तलाश शुरू कर दी. वे लोग उसे काफी रात तक खोजते रहे, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. दूसरे दिन से लवकुश के घर वालों ने उस की तलाश के लिए भागदौड़ कर रिश्तेदारियों में भी पता किया लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. 12 अगस्त को रामू शर्मा फिर थाने गया और भाई के बारे में जानकारी हासिल की. इस पर पुलिस ने तहरीर देने को कहा. तब रामू ने कुलदीप की गुमशुदी दर्ज करा दी. पुलिस ने रामू से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली. रामू ने बताया, ‘‘लवकुश 5 अगस्त की शाम को घर वालों को बिना बताए कहीं गया था. लेकिन आज 8 दिन बाद भी उस का कोई पता नहीं चल रहा है. उस का मोबाइल भी बंद है. हम ने उसे हर जगह तलाशा लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.’’

पुलिस लवकुश की तलाश में जुट गई. जांच कर रही पचोखरा थाने की पुलिस को जानकारी मिली कि लवकुश के गांव के ही रहने वाले उस के दोस्त कुलदीप की पत्नी मधुरिमा (परिवर्तित नाम) से प्रेमिल रिश्ते थे. कुलदीप उस का दूर के रिश्ते का भाई था. पत्नी से लवकुश के प्रेमिल रिश्ते से परेशान हो कर कुलदीप ने काफी दिनों पहले गांव छोड़ दिया था. वह अपने परिवार के साथ आगरा के खंदौली क्षेत्र स्थित मुड़ी चौराहे के पास किराए के मकान में रह रहा था. उस की ससुराल भी वहां से कुछ ही दूर थी. पुलिस ने लवकुश का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर पहले ही लगा दिया था. उस के मोबाइल की अंतिम लोकेशन खंदौली क्षेत्र की ही मिली थी.

13 अगस्त, 2020 को सीओ देवेंद्र सिंह के निर्देश पर पचोखरा थाने के थानाप्रभारी संजय सिंह पुलिस टीम के साथ खंदौली के मुड़ी चौराहे पहुंच गए और कुलदीप को उठा लिया. पुलिस ने उस से लवकुश के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि लवकुश उस का दोस्त है. काफी दिन से कोरोना के कारण हम लोग मिले नहीं थे. मेरा उस से मिलने का मन था तो 5 अगस्त को मैं ने उसे फोन कर मिलने के लिए खंदौली बुलाया था. उस दिन अधिक रात होने के कारण वह मेरे घर पर ही रुक गया था. दूसरे दिन सुबह लगभग 9 बजे वह अपने घर वापस चला गया था. उस के बाद वह कहां गया, उसे नहीं पता. कुलदीप समझ रहा था कि पुलिस उस की बताई कहानी को सच मान लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

थानाप्रभारी संजय सिंह ने कहा, ‘‘देखो कुलदीप, तुम पुलिस को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हो. मैं तुम से आखिरी बार पूछता हूं कि लवकुश कहां है?’’

थानाप्रभारी तमतमा गए. उन्होंने आगे कहा, ‘‘लवकुश के मोबाइल पर तुम्हारी पत्नी ने फोन किया था. उस के खंदौली आने के बाद उस का मोबाइल बंद कैसे हो गया? अगर वह कहीं चला गया था तो अपना मोबाइल तो चालू रख सकता था.’’

पुलिस ने तेवर दिखाए तो कुलदीप टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि लवकुश अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने अपने साले भोला के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी है.

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थानाप्रभारी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘सर, उस की हत्या करने के बाद हम ने उस की लाश तिरपाल में लपेट कर यहां से डेढ़ किलोमीटर दूर गांव नगला हरसुख के पास स्थित एक सूखे कुएं में डाल दी थी और उस का मोबाइल फोन बंद कर के रास्ते में फेंक दिया था.’’

पुलिस कुलदीप को ले कर उस कुएं के पास पहुंची, जिस में उस ने लाश डालने की बता कही थी. थानाप्रभारी ने कुएं में झांका तो वास्तव में कुएं में तिरपाल में लिपटी लाश पड़ी थी. पुलिस ने फोन कर के लवकुश के घर वालों को भी बुला लिया. पुलिस ने लवकुश की लाश निकलवाने के लिए रस्से आदि का प्रबंध किया. तब तक कुएं में लाश पड़ी होने की खबर पूरे इलाके में फैल गई थी. वहां पर लोगों का हुजूम जुट गया. सूखे कुएं में एक आदमी को उतारा गया. उस ने तिरपाल के दोनों सिरों को 2 रस्सों से बांध दिया. इस के बाद लोगों ने खींच कर शव को बाहर निकाल लिया. तिरपाल को खोला गया तो उस में लवकुश की लाश निकली. एक हफ्ते तक तिरपाल में बंद रहने से लाश फूल गई थी, जिस से चेहरा पहचानने में नहीं आ रहा था. मृतक के बड़े भाइयों मनोज और अतुल ने कपड़ों से मृतक की शिनाख्त अपने भाई लवकुश के रूप में कर ली.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव घर वालों को सौंप दिया. लाश की पक्की शिनाख्त के लिए डीएनए टेस्ट हेतु सैंपल ले लिया गया था.उधर पुलिस  की दूसरी टीम कुलदीप के साले भोला को मुड़ी चौराहे के पास स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर चुकी थी. चूंकि हत्या का खुलासा हो चुका था और दोनों आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए थे, इसलिए एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की और केस का खुलासा कर हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. पुलिस पूछताछ में कुलदीप और उस के साले भोला ने हत्या की जो दास्तान बताई, वह इस प्रकार थी—

थाना पचोखरा क्षेत्र के गांव नगला गंगाराम निवासी रामप्रकाश शर्मा के 4 बेटे व एक बेटी थी. रामप्रकाश के पास खेती की जमीन थी. साल 2007 में उन का निधन हो गया था. 2 बेटों मनोज व अतुल की शादी हो चुकी थी, जबकि तीसरा 26 वर्षीय लवकुश व उस से छोटा रामू अविवाहित थे. छोटी बहन अभी पढ़ रही थी. लवकुश को क्रिकेट खेलने का शौक था, इसलिए उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा. वह 8वीं जमात से आगे नहीं पढ़ सका. वह खेतीकिसानी के काम में भाइयों की मदद करने लगा. लवकुश की दूर के रिश्ते की बुआ सरोज देवी का बेटा 28 वर्षीय कुलदीप भारद्वाज कई साल पहले अपनी पत्नी मधुरिमा व 2 बच्चों के साथ लवकुश के पड़ोस में किराए के मकान में रहा था. उस का परिवार हर तरह से सुखी था. हमउम्र व रिश्तेदार होने के कारण कुलदीप के साथ लवकुश की गहरी दोस्ती हो गई थी. टाइम पास करने के लिए वह अकसर अपने दोस्त कुलदीप के घर चला जाता था.

कुलदीप वैल्डिंग का काम करता था. कुलदीप की पत्नी मधुरिमा लवकुश की रिश्ते में भाभी लगती थी. लवकुश जहां बांका जवान था, वहीं मधुरिमा सुंदर व चंचल थी. लवकुश भाभी से हंसीमजाक करता रहता था. धीरेधीरे देवरभाभी एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए और एकदूसरे को चाहने लगे. एक शादीशुदा औरत के इश्क में लवकुश ऐसा डूबा कि पूरी तरह उसी का हो कर रह गया. उस का हाल ऐसा हो गया कि कुलदीप के काम पर जाते ही वह मधुरिमा से मिलने पहुंच जाता. दो जवां दिल एक लय में धड़के तो जल्दी ही दोनों एकदूसरे को पूरी तरह समर्पित हो गए.

कुलदीप को इस की भनक लगी तो उस ने मधुरिमा को समझाया, ‘‘मैं ने सुना है, मेरी गैरमौजूदगी में लवकुश सारे दिन घर में पड़ा रहता है.’’

‘‘हां, कभीकभी किसी काम से आ जाता है, बच्चों से मिलने के लिए.’’ मधुरिमा ने पति से झूठ बोल दिया.

‘‘तुम्हें पता है, मोहल्ले वाले तुम दोनों को ले कर किस तरह की बातें करने लगे हैं?’’

‘‘लवकुश तुम्हारा भाई है, वह मुझ से भाभी के रिश्ते से हंसबोल लेता है तो इस में क्या बुरी बात है. पड़ोसियों का क्या है, वे किसी को खुश कहां देख सकते हैं, इसी के चलते वे मनगढ़ंत किस्से तुम्हें सुनाते हैं. तुम भी उन पर आंख मूंद कर यकीन कर लेते हो.’’

इस पर कुलदीप शांत हो गया. इस के बाद भी जब दोनों ने मिलनाजुलना बंद नहीं किया, तो कुलदीप परेशान हो गया. उस ने इस की शिकायत लवकुश के घर वालों से की. उस ने धमकी दी कि यदि लवकुश ने उस के घर आनाजाना बंद नहीं किया तो इस के गंभीर परिणाम होंगे. मामला बढ़ने पर पंचायत हुई और इस के बाद लवकुश सोनीपत चला गया. वहां वह एक प्रिंटिंग प्रैस में काम करने लगा. घटना से 2 साल पहले लवकुश सोनीपत से अपने गांव वापस आ गया. आते ही वह कुलदीप से बड़ी आत्मीयता से मिला. कुलदीप ने भी सोचा कि लवकुश पुरानी बातों को भूल चुका होगा. कुछ दिन सब ठीक रहा. लेकिन 2 साल बाद पुराने प्रेमीप्रेमिका जब रूबरू हुए तो उन की कामनाएं जाग उठीं और वह बिना मिले नहीं रह सके.

सोनीपत में रह कर भी लवकुश और मधुरिमा मोबाइल पर बातचीत करते रहते थे. दोनों एकदूसरे से फिर से मोबाइल पर बातचीत करने लगे. मौका मिलते ही दोनों मुलाकात भी कर लेते. लेकिन उन का यह खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. उन के फिर से मिलने की बात कुलदीप को पता चल गई. कुलदीप पत्नी को समझा चुका था. लेकिन वह मान नहीं रही थी, लिहाजा उस ने निर्णय लिया कि अब वह यहां नहीं रहेगा. कुछ दिन बाद ही वह बिना किसी को बताए पत्नी व बच्चों को ले कर गांव से चला गया. लवकुश को भी जानकारी नहीं मिली कि उस की प्रेमिका अब कहां है. क्योंकि उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. लवकुश मधुरिमा के चले जाने से उदास रहने लगा.

सावन का सुहाना मौसम भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था. उस का दिन काटे से नहीं कटता था. बारिश का मौसम होने से वह दोस्तों के साथ क्रिकेट भी नहीं खेल पा रहा था. एक दिन उस की खुशियों को जैसे पंख लग गए. दोपहर के समय उस के मोबाइल पर मधुरिमा का फोन आया.

‘‘कैसे हो माई लव?’’

‘‘इतने दिनों बाद पूछ रही हो मेरा हाल. एकएक पल तुम्हारे बिना सालों की तरह गुजर रहा है. तुम बिना बताए चली गईं. अब कहां हो? तुम्हारा नंबर भी नहीं मिल रहा.’’

मधुरिमा ने लवकुश को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘इतना बेकरार क्यों हो रहे हो. हम लोग दिल्ली आ गए हैं. ये काम पर गए हुए हैं. मौका मिलते ही तुम्हें फोन लगाया है. फोन इसलिए नहीं मिल रहा होगा क्योंकि कुलदीप ने मेरा नंबर बदल दिया है.’’

उस ने लवकुश को अपना पता बता दिया. बिना पानी के जैसे मछली तड़पती है, वैसे ही तड़परहे लवकुश की मधुरिमा से बात हुई तो सुकून मिला. कुछ दिन बाद लवकुश अपनी प्रेमिका से मिलने दिल्ली जा पहुंचा. कुलदीप को पता चल गया कि लवकुश दिल्ली में भी मधुरिमा से मिलने आने लगा है. उस ने पत्नी को लवकुश से न मिलने की हिदायत दी. इसी बीच कुलदीप का एक व्यक्ति से झगड़ा हो गया. ऐसे में दिल्ली में वह अकेला पड़ गया. मजबूर और परेशान हो कर 2 महीने बाद ही कुलदीप पत्नी और दोनों बच्चों को ले कर टूंडला आ गया और वहीं कामधंधा करने लगा. उस ने पत्नी को हिदायत दी कि अगर अब उस ने लवकुश से मोबाइल पर बात की या उसे अपना पताठिकाना बताया तो ठीक नहीं होगा.

पति के तेवर देख कर मधुरिमा डर गई. लेकिन कहते हैं प्यार अंधा होता है. मधुरिमा भी लवकुश को दिलोजान से चाहती थी. इतने दिन साथ रही थी, लेकिन अब उस की कमी उसे अखरने लगी थी. इस बीच वह तीसरे बच्चे की मां भी बन गई थी. इस के बावजूद प्रेमी लवकुश को वह चाह कर भी नहीं भुला पा रही थी. दिल्ली से आने के कुछ महीने बाद उस ने फोन कर लवकुश को बताया कि वह दिल्ली से अब टूंडला आ गई है. लवकुश वहां भी पहुंच गया. मधुरिमा प्रेमी को उस समय घर बुलाती जब उस का पति काम पर गया होता था. एक दिन कुलदीप ने लवकुश को घर के पास देख लिया. घर आ कर उस ने पत्नी से लवकुश के आने की बात पूछी, पर मधुरिमा ने स्पष्ट मना कर दिया. लवकुश को टूंडला में देख कर कुलदीप का माथा ठनका.

उस ने सोचा कि आखिर लवकुश को यह कैसे पता चल जाता है कि वह किस जगह रह रहा है. वह समझ गया कि उस की पत्नी ही लवकुश को फोन कर जानकारी दे देती है. उस ने कई बार पत्नी का मोबाइल भी चैक किया लेकिन उस का शक निराधार निकला. मधुरिमा अत्यधिक चालाक थी वह दूसरे सिम से बात कर प्रेमी लवकुश को अपना पता बता देती थी. तब लवकुश उस जगह पहुंच जाता था. दोनों मौका देख कर घर के बाहर मिल लेते थे. कुलदीप पत्नी के प्रेमी से अपने घर को बचाने के लिए लगातार घर बदलता रहा. जब इस बात का पता चला कि लवकुश अब भी उस का पीछा नहीं छोड़ रहा है तो वह टूंडला से आगरा आ गया और खंदौली क्षेत्र के मुंडी चौराहा पर पत्नी व बच्चों के साथ अपने साले भोला के चाचा गोविंद के यहां किराए पर रहने लगा. मुंडी चौराहे पर ही भोला रहता था. कुलदीप वहीं काम करने लगा.

उस ने सोचा कि अब उसे ससुरालवालों का सहारा मिलेगा तो लवकुश यहां आने की हिम्मत नहीं करेगा. लेकिन लवकुश और उस की प्रेमिका मधुरिमा पर तो प्यार का भूत सवार था. वे किसी भी कीमत पर एकदूसरे से दूर नहीं रह पाते थे. इस के चलते लवकुश खंदौली मुंडी चौराहा स्थित उस के घर भी चोरीछिपे आनेजाने लगा. सीधेसादे पति कुलदीप को इस बात का पता चल गया. पत्नी से लवकुश के संबंधों का कुलदीप पुरजोर विरोध करता था. अपने रिश्ते में आए ‘वो’ से अपने घर को बचाने के लिए गांव नगला गंगानगर से दिल्ली, वहां से टूंडला और फिर टूंडला से खंदौली. भागतेभागते कुलदीप थक गया. वह समझ गया कि इस सब के पीछे उस की पत्नी का ही हाथ है. क्योंकि वह चाहती तो लवकुश को उस के घर का पता नहीं चलता.

अब कुलदीप का काम पर जाने का मन नहीं होता था. उस के मन में डर बना रहता था कि उस के घर से बाहर जाते ही मधुरिमा अपने प्रेमी को फोन कर बुला लेगी. कुलदीप बदनामी के डर से पुलिस में लवकुश की शिकायत नहीं करना चाहता था. वह चाहता था कि बस किसी तरह लवकुश से उस की पत्नी का पीछा छूट जाए. सभी उपाय नाकाम साबित होने के बाद आखिर उस ने लवकुश से छुटकारा पाने का निर्णय कर लिया. उस ने अपने साले भोला को पूरी बात बताई. भोला उस का साथ देने को तैयार हो गया. योजनानुसार कुलदीप ने पत्नी से 5 अगस्त को लवकुश को फोन करा कर मिलने के लिए खंदौली बुला लिया. वह मधुरिमा से मिलने उस के घर पहुंच गया. लवकुश मधुरिमा से बात कर ही रहा था कि घर में छिपे बैठे कुलदीप ने पीछे से लवकुश के सिर पर जोर से डंडा मारा.

डंडे का वार इतना घातक और सटीक था कि लवकुश नीचे गिर गया. उस के फर्श पर गिरते ही कुलदीप और भोला उस पर पागलों की तरह लगातार वार करते रहे. फलस्वरूप कुछ ही देर में उस की मृत्यु हो गई. लवकुश के मरने पर कुलदीप, भोला और मधुरिमा घबरा गए. उस की हत्या में वे लोग फंस न जाएं, इसलिए कुलदीप ने उस की जेब से मोबाइल निकाल कर स्विच्ड औफ कर दिया. फिर कुलदीप और भोला ने एक तिरपाल में उस की लाश लपेट दी. इस बीच अंधेरा हो गया था. दोनों ने लाश को मोटरसाइकिल पर रखा और वहां से कोई डेढ़ किलोमीटर दूर सूखे कुएं में डाल आए. उस का मोबाइल फोन उन्होंने रास्ते में ही फेंक दिया.

थानाप्रभारी संजय सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर लवकुश की हत्या में प्रयुक्त डंडा और लाश ठिकाने लगाने के लिए इस्तेमाल हुई मोटरसाइकिल बरामद कर ली. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लवकुश की हत्या में मधुरिमा की संलिप्तता न पाए जाने पर पुलिस ने उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया था.

—कथा परिजनों व पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

पति चाहिए पैसा नही : बच्चे को अगवा कर पत्नी ने जताया दर्द

Kidnapping Case : किसी का अपहरण करने का मकसद होता है फिरौती की मोटी रकम. लेकिन मंशा ने अपनी जानकार शिवानी के 3 साल के बेटे मृत्युंजय का अपहरण किसी दूसरे मकसद से किया था. फिरौती के रूप में उस ने शिवानी से जो मांग की, उसे जान कर पुलिस भी हैरान रह गई…

शाम 7 बजे शिवानी बाजार से घर आई. उस ने सामान वाला थैला कमरे में रखा फिर चारों ओर नजर दौड़ाई. जब उसे छोटा बेटा मृत्युंजय दिखाई नहीं पड़ा, तब उस ने बड़े बेटे से पूछा, ‘‘गोलू, मृत्युंजय कहां है? नजर नहीं आ रहा है. जब मैं बाजार गई थी, तब तुझ से कह कर गई थी कि उस का खयाल रखना. पर तुझे खेलने से फुरसत मिले तब न.’’

गोलू सहम कर बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हारे जाने के कुछ देर बाद मृत्युंजय सो गया था. तब मैं दोस्तों के साथ गली में खेलने चला गया था. उस के बाद वह कहां गया, मुझे पता नहीं.’’

3 वर्षीय मासूम मृत्युंजय शिवानी का छोटा बेटा था. उसे घर से नदारद पा कर शिवानी घबरा गई. वह घर से बाहर निकली और गली में बेटे को खोजने लगी. जब वह गली में कहीं नहीं दिखा, तब शिवानी ने आसपड़ोस के घरों में उस की खोजबीन की, पर उस का कुछ भी पता नहीं चला. उस ने गली के कई दुकानदारों से भी पूछा, पर सभी ने ‘न’ में गरदन हिलाई. कानपुर के बर्रा क्षेत्र की जिस गली में शिवानी रहती थी, उसी गली के आखिरी मोड़ पर शिवानी की ननद श्यामा रहती थी. शिवानी ने सोचा कि कहीं वह बुआ के घर न चला गया हो. वह तुरंत ननद के घर पहुंची, लेकिन मृत्युंजय वहां भी नहीं था. फिर ननदभौजाई ने मिल कर कई गलियां छान मारीं, लेकिन मृत्युंजय का पता न चला. शिवानी के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं, मन घबराने लगा था.

शिवानी का पति दुर्गेश सोनी एक स्वीट हाउस में काम करता था. उस समय वह ड्यूटी पर था. शिवानी ने उसे मृत्युंजय के गायब होने की जानकारी देने के लिए अपना फोन ढूंढा, पर उस का मोबाइल गायब था. शिवानी समझ गई कि घर में कोई आया था, जो मृत्युंजय के साथसाथ उस का मोबाइल भी साथ ले गया है. अब शिवानी की धड़कनें और भी तेज हो गई थीं. उस ने अपने दूसरे मोबाइल फोन से उस फोन नंबर पर काल की जो गायब था, तो वह स्विच्ड औफ था. घबराई शिवानी ने पति को सारी जानकारी दी और तुरंत घर आने को कहा. अपने मासूम बेटे मृत्युंजय के गायब होने की जानकारी पा कर दुर्गेश घबरा गया. वह तुरंत घर आ गया. उस ने आसपास पूछताछ की लेकिन किसी से उसे कोई सुराग न मिला.

उस की चिंता बढ़ गई. उस ने स्कूटर से आसपास की सड़कों और गलियों के चक्कर लगाए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. आखिरकार निराश हो कर वह घर लौट आया. उस के मन में बारबार सवाल उठ रहा था कि 3 साल का नन्हा सा बच्चा कहां चला जाएगा. यदि वह भटक भी गया होता, तो वह उसे ढूंढ लेते. उस के मन में विचार आया, कहीं किसी ने उस के बेटे का अपहरण तो नहीं कर लिया. दुर्गेश कुमार सोनी और शिवानी का विवाह करीब 10 साल पहले हुआ था. शिवानी के 2 बच्चे थे. पहला 8 साल का गोलू और दूसरा 3 साल का मृत्युंजय. मृत्युंजय चंचल स्वभाव का था, दुर्गेश और शिवानी भी उसे भरपूर प्यार देते थे. शिवानी के लिए मृत्युंजय जिगर के टुकड़े जैसा था.

दुर्गेश कुमार सोनी ने जब घर आ कर बताया कि मृत्युंजय का कहीं पता नहीं लग रहा है. तब घर में रोनाधोना शुरू हो गया. आसपड़ोस के लोग भी आ गए. मृत्युंजय के गायब होने से सभी चिंतित थे. शिवानी का तो रोरो कर बुरा हाल था. वह बारबार पति से अनुरोध कर रही थी कि जैसे भी संभव हो, उस के जिगर के टुकड़े को वापस लाओ. दुर्गेश शिवानी को धैर्य बंधा रहा था. यह बात 28 जुलाई, 2020 की है. शिवानी और दुर्गेश ने पूरी रात आंखों आंखों में बिताई. सवेरा होते ही पूरे बर्रा क्षेत्र में मासूम मृत्युंजय के गायब होने की खबर फैल गई. लोग दुर्गेश के घर पर जुटने शुरू हो गए. दुर्गेश अपने बेटे के गायब होने के संबंध में पड़ोसियों से विचारविमर्श कर ही रहा था कि उस के मोबाइल पर काल आई. काल पत्नी के उसी नंबर से आई थी, जो घर से गायब था.

दुर्गेश ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘दुर्गेश, जरा अपनी रंगीली बीवी को फोन दो. मैं उसी से बात करूंगी.’’

फोन करने वाली युवती की बात सुन कर दुर्गेश चौंका. उसे यी आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. जिज्ञासावश उस ने फोन शिवानी को पकड़ा दिया, ‘‘हां, हैलो, मैं शिवानी बोल रही हूं. आप कौन?’’ शिवानी बोली. युवती खिलखिला कर हंसी फिर बोली, ‘‘मैं मंशा गुप्ता बोल रही हूं. कैसी हो शिवानी, आजकल तो खूब मौज कर रही होगी.’’

‘‘मंशा, मैं बहुत परेशानी में हूं. बीती शाम से मेरा बेटा गायब है. उस का कुछ भी पता नहीं चल रहा है.’’ कहते हुए शिवानी सुबकने लगी.

मंशा गुस्से से बोली, ‘‘शिवानी, तुम ने भी तो मेरे पति प्रह्लाद को अपने पल्लू से बांध रखा है. क्या तुम्हें मेरी परेशानी का अंदाजा नहीं है?’’

‘‘यह कैसी बातें कर रही हो मंशा, मुझ पर झूठा इलजाम मत लगाओ. मैं वैसे ही परेशान हूं.’’ शिवानी ने कहा.

‘‘झूठ मत बोलो शिवानी, वह जब भी मुझ से झगड़ता है, तुम्हारे पहलू में ही आता है. कल भी वह झगड़ा कर के तुम्हारे पास ही आया होगा. खैर, मैं तुम से एक सौदा करना चाहती हूं.’’ मंशा बोली.

‘‘ कैसा सौदा मंशा?’’ शिवानी ने अटकते हुए पूछा.

‘‘यही कि तुम मेरे पति को अपने पल्लू से छोड़ दो, मैं तुम्हारे जिगर के टुकड़े को तुम्हें वापस कर दूंगी. मुझे मृत्युंजय की फिरौती में रुपया नहीं पति चाहिए.’’ मंशा ने सीधे कहा.

‘‘तुम्हारा पति प्रह्लाद मेरे घर नहीं आया. वह कहीं और गया होगा. मंशा, मेरे बेटे को मुझे वापस कर दो. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, पैर पड़ती हूं.’’ शिवानी गिड़गिड़ाई.

‘‘शिवानी झूठ मत बोल. मेरी बात कान खोल कर सुन ले, मेरे पति को जिंदा या मुर्दा भेज या मैं तेरे बेटे की मुंडी काट कर भेजूं.’’ कहते हुए मंशा ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. मंशा गुप्ता प्रह्लाद की पत्नी थी. वह विवेकानंद स्कूल के पास वाली बस्ती में रहती थी. शिवानी की जानपहचान प्रह्लाद से थी. उस का शिवानी के घर आनाजाना था. मंशा को शक था कि उस के पति प्रह्लाद का शिवानी से नाजायज रिश्ता है. वह उस से जलन की भावना रखती थी और उस से झगड़ती रहती थी. जब यह बात पता चल गई कि मासूम मृत्युंजय का अपहरण मंशा ने किया है तो शिवानी अपने पति दुर्गेश के साथ थाना बर्रा पहुंच गई. उस समय सुबह के 10 बज रहे थे और थानाप्रभारी हरमीत सिंह थाने में मौजूद थे.

दुर्गेश ने थानाप्रभारी को अपनी व्यथा बताई और मंशा गुप्ता के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर बेटे को सहीसलामत बरामद करने की गुहार लगाई. मासूम बालक के अपहरण की बात सुन कर थानाप्रभारी हरमीत सिंह सतर्क हो गए. दरअसल, बर्रा क्षेत्र के संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस की घोर लापरवाही सामने आई थी, जिस के कारण संजीत की हत्या हो गई थी और फिरौती के 30 लाख रुपए भी अपहर्त्ता ले गए थे. इस लापरवाही में थानेदार से ले कर एसपी व सीओ तक पर शासन की गाज गिरी थी और उन्हें निलंबित कर दिया गया था. इसी किरकिरी से बचने के लिए थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मासूम बालक मृत्युंजय के अपहरण को बेहद गंभीरता से लिया और पुलिस अधिकारियों को अवगत कराते हुए आननफानन में दुर्गेश कुमार की तहरीर पर भादंवि की धारा 364 के तहत मंशा पत्नी प्रह्लाद, निवासी बस्ती, बर्रा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

चूंकि मामला मासूम बच्चे के अपहरण का था, अत: रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा सीओ विकास पांडेय बर्रा आ गए. उन्होंने बच्चे के मातापिता से जानकारी हासिल की फिर बच्चे को बरामद करने के लिए पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थानाप्रभारी हरमीत सिंह, एसआई सतीश कुमार, आदेश कुमार, महिला एसआई छवि, महिला सिपाही संगीता यादव, कांस्टेबल कृष्णकांत, देवेंद्र सिंह, विनोद गर्ग तथा सर्विलांस टीम को सम्मिलित किया गया. टीम की कमान सीओ विकास पांडेय को सौंपी गई. गठित विशेष पुलिस टीम ने मृत्युंजय की खोज शुरू की. टीम ने सब से पहले मृत्युंजय की मां शिवानी तथा पिता दुर्गेश से अपहरण के संबंध में पूरी जानकारी हासिल की. शिवानी ने बताया कि मंशा उस का मोबाइल फोन भी अपने साथ ले गई है. उसी नंबर से उस ने दुर्गेश के फोन पर बच्चे के अपहरण की जानकारी दी थी. फिर उस ने मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिया था.

यह जानकारी मिलते ही टीम ने शिवानी का मोबाइल फोन नंबर जो मंशा के पास था, सर्विलांस पर लगा दिया. उस की लोकेशन उन्नाव बाईपास की मिली. पता चला उन्नाव में मंशा का मायका है. मंशा को पकड़ने तथा मासूम मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद करने के मकसद से पुलिस टीम उन्नाव पहुंच गई. पर मंशा को पकड़ नहीं पाई. कारण मंशा ने फोन बंद कर दिया था, जिस से पुलिस भटक गई थी. शाम 5 बजे पुलिस टीम वापस कानपुर रवाना लौटने वाली थी, तभी सर्विलांस टीम से जानकारी मिली कि मंशा की लोकेशन रायबरेली शहर की मिल रही है. इस सूचना पर पुलिस टीम रायबरेली पहुंच गई. लेकिन रायबरेली पहुंचने पर पुलिस टीम को पता चला कि मंशा कानपुर की ओर लौट रही है और उस की लोकेशन जायस व तकिया के बीच की मिल रही है. लोकेशन का पीछा करते हुए पुलिस टीम भी मंशा के पीछे लगी रही.

कानपुर गंगापुल तक मंशा की लोकेशन मिलती रही, उस के बाद बंद हो गई. शायद उस ने मोबाइल फोन बंद कर लिया था. लेकिन इतना तय था कि मंशा कानपुर शहर में ही है. 30 जुलाई, 2020 की सुबह बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह को किसी ने फोन पर सूचना दी कि एक महिला दामोदर नगर नहरिया पर मौजूद है. उस के साथ एक मासूम बच्चा भी है, जो रो रहा है. महिला हावभाव से संदिग्ध लग रही है. सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, थानाप्रभारी हरमीत सिंह पुलिस टीम के साथ दामोदर नगर नहरिया पहुंचे और उस महिला को हिरासत में ले कर थाना बर्रा लौट आए. थाने में जब उस महिला से पूछताछ की गई तो उस ने अपना नाम मंशा गुप्ता पति का नाम प्रह्लाद निवासी बस्ती बर्रा बताया. उस ने यह भी बताया कि उस के साथ जो बच्चा है, वह शिवानी का है. शिवानी कर्रही में रहती है. उस ने ही बच्चे का अपहरण किया था. वह शिवानी को सबक सिखाना चाहती थी.

थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मासूम मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद करने तथा अपहर्त्ता मंशा गुप्ता को गिरफ्तार करने की सूचना अधिकारियों तथा बच्चे के मातापिता को दे दी. सूचना पाते ही एसपी (साउथ) दीपक भूकर, सीओ विकास पांडेय तथा बच्चे के मातापिता थाना बर्रा आ गए. महिला एसआई छवि कुमारी ने जब मासूम मृत्युंजय को उस की मां की गोद में दिया तो शिवानी की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े. पुलिस अधिकारियों ने अपहर्त्ता मंशा गुप्ता से बच्चे के अपहरण के संबंध में विस्तृत पूछताछ की. साथ ही अपहरण का मकसद भी पूछा. जवाब में मंशा गुप्ता ने बताया कि मृत्युंजय के अपहरण का उद्देश्य फिरौती नहीं था, बल्कि वह अपने पति की रिहाई चाहती थी. जिसे शिवानी ने अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था. वह शिवानी को सबक सिखाना चाहती थी कि किसी का प्यार छीनने का दर्द कितना गहरा होता है.

चूंकि मंशा ने बच्चे के अपहरण करने का जुर्म स्वीकार लिया था और उस के खिलाफ पहले से अपहरण की रिपोर्ट भी दर्ज थी, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने उसे विधिसम्मत गिरफ्तरी की लिया. पुलिस पूछताछ में मंशा गुप्ता ने दिल को झकझोर देने वाली अपहरण की कहानी बताई. मंशा गुप्ता मूलरूप से उन्नाव की रहने वाली थी. उस के पिता रामऔतार गुप्ता उन्नाव स्थिति टेनरी में काम करते थे और उन्नाव बाईपास पर किराए के मकान में रहते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं, जिस में मंशा गुप्ता सब से बड़ी थी. टेनरी में मिलने वाले वेतन से ही वह घर खर्च चलाते थे. लगभग 10 साल पहले रामऔतार ने मंशा का विवाह सूरज के साथ किया था. सूरज उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का रहने वाला था और भाईबहनों में सब से बड़ा था. कानपुर शहर में वह संजय नगर में रहता था और दादा नगर स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करता था.

शादी के बाद कुछ दिनों तक सूरज ने मंशा को शाहजहापुर में रखा फिर अपने साथ कानपुर ले आया. विवाह के साल भर बाद ही मंशा गुप्ता ने बेटे मोहित को जन्म दिया और उस के 3 साल बाद वह बेटी मोहिनी की मां बन गई. 2 बच्चों के जन्म के बाद सूरज ने अपने पतिधर्म की इतिश्री मान ली. उस का विचार था कि पत्नी को जब मातृत्व की प्राप्ति हो जाती है, तब उस का पूरा ध्यान बच्चों पर रहता है. संजनेसंवरने और पति की संगत की लालसा नहीं रह जाती. मंशा का मन भी भोगविलास में नहीं रह गया होगा. सूरज का ऐसा सोचना गलत था. पति की उपेक्षा मंशा का जी जलाती थी वह मन मसोस कर दिन गुजारती रही. पति से थोड़ाबहुत प्यार मिलता था, उस से ही वह संतोष करती रही. मंशा गुप्ता संजय नगर स्थित जिस मकान में किराए पर रहती थी. हाल ही में वहां एक नया किराएदार रहने आया. उस का नाम था प्रह्लाद. मंशा गुप्ता ने प्रह्लाद को देखा तो देखती ही रह गई.

उस दिन से प्रह्लाद के प्रति मंशा की सोच बदल गई. वह उसे लालच की नजरों से देखने लगी. प्रह्लाद को मंशा की नीयत समझते देर नहीं लगी. वह भी उसे चाहत की नजरों से देखने लगा. चूंकि चाहत दोनों ओर से थी, सो उन के बीच नाजायज रिश्ता बनने में ज्यादा समय न लगा. फिर तो अकसर दोनों का मिलन होने लगा. प्रह्लाद और मंशा ज्यादा से ज्यादा एकदूसरे के निकट रहने का प्रयास करने लगे. जब भी मौका मिलता, दोनों एकाकार हो जाते. परिणाम यह हुआ कि जल्द ही दोनों बदनाम हो गए.  लेकिन इस बदनामी की चिंता न मंशा को थी और न ही प्रह्लाद को. दोनों शादी करने के मंसूबे बना रहे थे. सूरज को जब प्रह्लाद व मंशा के नाजायज रिश्तों की बात पता चली तो उस ने पत्नी को समझाया, बच्चों का वास्ता दिया पर प्रेम दीवानी मंशा नहीं मानी.

उस ने एक रोज पति से साफ कह दिया, ‘‘अब न तुम जोशीले रहे, न रसीले, तुम्हारे साथ जवानी जलाते रहने से क्या फायदा? मैं तो प्रह्लाद के साथ रहूंगी.’’

मंशा ने जो कहा, कर दिखाया. एक रोज वह प्रह्लाद के साथ गोविंद नगर स्थित दुर्गा मंदिर पहुंची और प्रह्लाद के गले में माला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. फिर विवेकानंद स्कूल के पास कच्ची बस्ती बर्रा में प्रह्लाद के साथ रहने लगी. उस के पूर्वपति सूरज ने अपमान और ग्लानि से कानपुर शहर छोड़ दिया और अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर घर शाहजहांपुर आ कर रहने लगा. परिवार की मदद से वह बच्चों का भरणपोषण करने लगा. दूसरी ओर मंशा गुप्ता प्रह्लाद से प्रेम विवाह करने के बाद 3 साल तक हंसीखुशी से रही. उस के बाद दोनों के बीच नोंकझोंक होने लगी. दरअसल मंशा फैशनपरस्त थी. वह प्रह्लाद की आधी से अधिक कमाई अपने फैशन और मौजमस्ती में खर्च कर देती थी, जिस से प्रह्लाद को घर चलाना मुश्किल हो जाता था. पैसों को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा था.

प्रह्लाद फैक्ट्री में काम करता था. उसे मासिक वेतन ही मिलता था. प्रह्लाद का एक दोस्त था रामू. वह बर्रा थाने के कर्रही मोहल्ले में किराए पर रहता था. जब भी प्रह्लाद का पत्नी से झगड़ा होता था, वह दोस्त के घर आ जाता था और अपनी व्यथा साझा कर मन हल्का कर लेता था. इसी मकान में शिवानी अपने पति दुर्गेश के साथ किराए पर रहती थी. दुर्गेश गोविंद नगर की एक मिठाई की दुकान पर कारीगर था. उस के बेटे थे गोलू और मृत्युंजय थे. एक रोज प्रह्लाद दोस्त रामू के घर पहुंचा तो शिवानी और मकान मालिक में किराए को ले कर झगड़ा हो रहा था. शिवानी कह रही थी कि पति को वेतन मिलेगा तब किराया चुकता करेगी जबकि मकान मालिक को तुरंत किराया चाहिए था. मकान मालिक ने शिवानी को इतना जलील किया कि वह रोने लगी थी.

प्रह्लाद से देखा नहीं गया तो वह शिवानी के आंसू पोंछने पहुंच गया. प्रह्लाद ने उस रोज शिवानी के आंसू ही नहीं पोंछे, बल्कि 2 हजार का नोट मकान मालिक को थमा कर किराया भी चुकता कर दिया. इस सहानुभूति के बाद प्रह्लाद का शिवानी के घर आनाजाना शुरू हो गया. शिवानी भी उसे भाव देने लगी. धीरेधीरे दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए. प्रह्लाद बच्चों के बहाने शिवानी को भी उपहार लाने लगा. जिन्हें वह नानुकुर के बाद स्वीकार कर लेती. प्रह्लाद के शिवानी से मधुर संबंध बने तो वह मंशा की उपेक्षा करने लगा. उस से बातबेबात झगड़ने लगा. वह उसे एकएक पैसे को भी तरसाने लगा. घर कभी आता, कभी नहीं भी आता. कभीकभी तो 2-2 दिन गायब हो जाता था. मंशा पूछती तो कोई न कोई नया बहाना बना देता. मंशा उस की बातों पर सहज ही विश्वास कर लेती.

लेकिन विश्वास की भी एक सीमा होती है. मंशा का विश्वास डगमगाया तो उस ने पति की निगरानी शुरू कर दी. तब उसे पता चला कि उस के पति प्रह्लाद के शिवानी से नाजायज संबंध हैं. वह अपनी कमाई उसी पर खर्च करता है और उसे पाईपाई को तरसाता है. शिवानी को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. लड़झगड़ कर प्रह्लाद शिवानी के घर पहुंच जाता और वहीं पड़ा रहता. कई बार मंशा ने प्रह्लाद को शिवानी के घर पकड़ा भी. तब उस ने शिवानी और पति को जलील किया. किंतु वे दोनों नहीं माने. 28 जुलाई, 2020 की दोपहर भी शिवानी को ले कर मंशा का पति से झगड़ा हुआ. गुस्से में प्रह्लाद ने मंशा को पीटा और उस का मोबाइल ले कर घर से चला गया. मंशा घंटों तक आंसू बहाती रही और अपने भाग्य को कोसती रही. उसे पति से ज्यादा शिवानी पर गुस्सा आ रहा था.

मंशा को शक था कि उस का पति प्रह्लाद शिवानी के घर ही पड़ा होगा. अत: वह उस की खोज में शाम 6 बजे शिवानी के घर पहुंची. शिवानी उस समय घर पर न थी. उस का 3 साल का बेटा मृत्युंजय पलंग पर पड़ा सो रहा था. मंशा ने सोचा कि शिवानी उस के पति के साथ ऐश करने गई होगी. उस ने पलक झपकते ही शिवानी को सबक सिखाने की ठानी. उस ने सामने अलमारी में रखा शिवानी का मोबाइल फोन कब्जे में किया फिर मृत्युंजय को गोद में उठा कर चुपके से फरार हो गई. शिवानी घरेलू सामान खरीदने कर्रही बाजार गई थी. वह शाम 7 बजे घर वापस आई तो मृत्युंजय गायब था. उस ने पहले बेटे की हर संभव खोज की, नहीं मिला तो पति दुर्गेश को फोन कर घर बुलाया. दुर्गेश शिवानी रात भर बेटे की खोज में जुटे रहे. अगली सुबह जब मंशा ने दुर्गेश को फोन किया तब मृत्युंजय के अपहरण की जानकारी हुई.

उस के बाद दुर्गेश पत्नी शिवानी के साथ थाना बर्रा पहुंचा और मंशा गुप्ता के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. थाना बर्रा पुलिस ने 36 घंटे में मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद कर अपहर्त्ता मंशा गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. 31 जुलाई, 2020 को थाना बर्रा पुलिस ने अभियुक्ता मंशा गुप्ता को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मंशा गुप्ता का पति प्रह्लाद पुलिस के डर से फरार था. उसे डर था कि कहीं पुलिस उसे भी दोषी न ठहरा दें.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime Story : प्रेम में अंधी पत्नी ने रात को प्रेमी से करवाया पति का कत्ल

Love Crime Story : सीआरपीएफ के जवान बलवीर सिंह चौहान की पत्नी रेखा 3 बच्चों की मां थी. उसे किसी भी तरह की आर्थिक समस्या नहीं थी. इस के बावजूद ऐसा क्या हुआ कि रेखा ने सीआरपीएफ के ही दूसरे जवान रवि कुमार पनिका के साथ मिल कर…

सूरज सिर पर चढ़ जाने के बावजूद बलवीर सिंह चौहान सो कर नहीं उठे तो उन की पत्नी रेखा को चिंता हुई. दीवार पर टंगी घड़ी में उस समय सुबह के 9 बज चुके थे. अपनी दिनचर्या के मुताबिक, वह सुबह 6 बजते ही उठ जाते थे. 54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान सीआरपीएफ में हेडकांस्टेबल थे. रेखा ने छत के फर्श पर दरी बिछा कर सो रहे पति को पहले तो आवाज दे कर जगाने की कोशिश की. लेकिन जब वह नहीं उठे तो उस ने पति को हिलाडुला कर उठाने की कोशिश की. लेकिन बलवीर के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो रेखा समझ गई कि अब वह दुनिया में नहीं रहे. उन की मौत हो चुकी थी.

पति के शव के पास बैठी रेखा जोरजोर से रोने लगी. मां के रोने की आवाज सुन कर उस के तीनों बच्चे दौडे़भागे छत पर पहुंचे. मां को रोते देख वे भी हकीकत समझ गए, इसलिए वे भी पिता की मौत पर रोने लगे. अचानक बलवीर के घर में रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी उन के घर पहुंचने लगे. लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि चौहान साहब की अचानक मृत्यु कैसे हो गई. जिस ने भी बलवीर सिंह की मौत की खबर सुनी, हैरान रह गया. रेखा ने फोन कर के पति की मौत की सूचना सीआरपीएफ के अधिकारियों को दे दी थी. हेडकांस्टेबल बलवीर की अचानक मौत की सूचना पा कर अधिकारी भी चकित रह गए. मामला संदिग्ध था, अधिकारियों ने स्थानीय पुलिस को सूचना दी.

बलवीर की मौत की सूचना मिलने के कुछ देर बाद माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह, एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी (सिटी) रविंद्र वर्मा बलवीर के घर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले छत का मुआयना किया, जहां बलवीर सिंह चौहान का शव बिस्तर पर पड़ा हुआ था. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि बलवीर की मौत स्वाभाविक रूप से हुई है. क्योंकि खून कान से निकल कर नाक की ओर बहा था, जो पतली रेखा के रूप में जम कर सूख गया था. गले पर दाहिनी ओर चोट जैसा निशान दिख रहा था. कुल मिला कर बलवीर की मौत रहस्यमई लग रही थी, जबकि मृतक की पत्नी रेखा पुलिस अधिकारियों के सामने चीखचीख कर बारबार यही कह रही थी कि ड्यूटी से देर रात घर लौट कर इन्होंने कपड़े बदले, फ्रैश होने के बाद खाना खाया.

फिर ज्यादा गरमी की वजह से कमरे में न सो कर छत पर सोने चले आए थे, जबकि वह बेटी के साथ कमरे में सो गई थी. दोनों बेटे रमेश और चंदन दूसरे कमरे में सो रहे थे. आदत के मुताबिक वह रोज सुबह 6 बजे उठ जाते थे. जब सुबह के 9 बजे भी वह छत से नीचे नहीं आए तो चिंता हुई. उन्हें जगाने छत पर पहुंची तो देखा वह बिस्तर पर मरे पड़े थे. कहतेकहते रेखा फिर से रोने लगी. खैर, पुलिस ने कागजी काररवाई पूरी कर के मृतक बलवीर की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही बलवीर की मौत की सही मिल सकती थी. यह 18 जून, 2020 की बात है.

हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की रहस्यमय मौत से पूरी बटालियन में शोक था.खुशमिजाज और अपनी बातों से सभी को गुदगुदाने वाले चौहान साहब सदा के लिए खामोश हो चुके थे. पुलिस अधिकारियों को जिस बात की आशंका थी, वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सच साबित हुई. बलवीर की मौत स्वाभाविक नहीं थी, बल्कि उन की गला दबा कर हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफतौर पर बताया गया था बलवीर की मौत गले की हड्डी टूट कर सांस रुकने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद आईजी राकेश गुप्त ने एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा को घटना का जल्द से जल्द परदाफाश करने का आदेश दिया.

आईजी का आदेश मिलने के बाद एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा ने उसी दिन अपने औफिस में मीटिंग बुलाई. मीटिंग में एएसपी अमरेंद्र सिंह और माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह भी शामिल थे. रवींद्र वर्मा ने एएसपी अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. घटना की मौनिटरिंग एएसपी अमरेंद्र सिंह को करनी थी. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह के साथसाथ अमरेंद्र सिंह खुद भी घटना के एकएक पहलू पर नजर गड़ाए हुए थे. इधर रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी रेखा की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रघुवीर सिंह को सौंपी गई.

रघुवीर सिंह ने फूंकफूंक कर एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए जांच शुरू की. उन के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि बलवीर की हत्या किस ने और क्यों की? उन की मौत से सब से ज्यादा फायदा किसे होने वाला था? इन सवालों का जवाब बलवीर के घर से ही मिल सकता था. इसलिए उन्होंने चौहान की मौत की वजह उन के घर से ही खोजनी शुरू की. विवेचना के दौरान मृतक की पत्नी रेखा का चरित्र संदिग्ध लगा तो पुलिस की नजर उस के क्रियाकलापों पर जम गई. पुलिस ने रेखा का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया. साथ ही उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उस के अध्ययन में जुट गई. इसी बीच पुलिस को एक खास जानकारी मिली. पता चला कि रेखा से पहले बलवीर की 2 शादियां हुई थीं. उन की पहली पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि दूसरी पत्नी की एक हादसे में मौत हो चुकी थी.

सन 2003 में बलवीर ने रेखा से शादी की थी. बलवीर के तीनों बच्चे रेखा से ही जन्मे थे. बलवीर और रेखा की उम्र में करीब 20 साल का अंतर था. इस से भी बड़ी बात यह थी कि पतिपत्नी दोनों के रिश्ते खराब थे. दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे. पुलिस ने रेखा के फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि घटना वाली रात रेखा की एक ही नंबर पर कई बार बातचीत हुई थी. आखिरी बार दोनों के बीच उसी नंबर पर करीब साढ़े 11 बजे बात हुई थी. तमाम सबूत रेखा के खिलाफ थे. वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर पुलिस यह मान चुकी थी कि बलवीर की हत्या में उस की पत्नी रेखा का ही हाथ है. शक के आधार पर पुलिस रेखा को हिरासत में ले कर थाने ले आई. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह ने इस की सूचना एएसपी अमरेंद्र सिंह को दे दी थी.

सूचना मिलते ही एएसपी अमरेंद्र सिंह उस से पूछताछ करने के लिए थाने पहुंच गए. यह 20 जून, 2020 की बात है.

‘‘रेखा, मैं जो सवाल करूंगा, उस का जवाब ठीक से देना, तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा.’’ समझाते हुए एएसपी अमरेंद्र ने रेखा से सख्त लहजे में कहा. रेखा बुत बनी बैठी रही तो उन्होंने सवाल किया, ‘‘यह बताओ कि तुम ने बलवीर की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने उन की हत्या नहीं की, मैं निर्दोष हूं.’’ रेखा ने सपाट लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो तुम ऐसे नहीं बताओगी. ठीक है, मत बताओ. यह तो बता सकती हो कि रवि कौन है और उसे तुम कैसे जानती हो?’’ एएसपी अमरेंद्र ने रेखा की आंखों में झांक कर सवाल किया. सवाल सुन कर रेखा सन्न रह गई.

‘‘क..क..क…कौन रवि.’’ वह हकलाती हुई बोली, ‘‘मैं किसी रवि को नहीं जानती.’’

‘‘वही रवि, जिस से घटना वाले दिन फोन पर तुम्हारी कई बार बात हुई थी.’’

सिर पर एक महिला सिपाही खड़ी थी. एएसपी ने उसे इशारा कर के कहा, ‘‘अगर ये झूठ बोले तो बिना कहे शुरू हो जाना.’’

इस पर रेखा हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘सर, पति की हत्या मैं ने ही अपने प्रेमी रवि के साथ मिल कर की थी, मुझे माफ कर दीजिए. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही अपने हाथों अपना घर उजाड़ दिया.’’

इस के बाद रेखा पति की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बताती चली गई. हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की हत्या के मामले से पुलिस ने 72 घंटे के भीतर परदा उठा दिया था. रेखा का प्रेमी रवि भी सीआरपीएफ का जवान था. वह शहडोल में तैनात था. पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने शहडोल पहुंची तब तक वह फरार हो गया था. अगले दिन एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी रवींद्र वर्मा ने मिल कर प्रैसवार्ता की. पत्रकारों के सामने भी रेखा ने अपना जुर्म कबूल लिया. उस ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली थी—

54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान मूलरूप से उज्जैन में माधवनगर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी रेखा के अलावा 2 बेटे रमेश और चंदन और एक बेटी शालिनी थी. कहने को तो बलवीर का दांपत्य जीवन खुशहाल था लेकिन हकीकत में वह अपनी पत्नी रेखा से खुश नहीं रहते थे. रेखा ने जब बलवीर के जीवन में कदम रखा, तब से उन के जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं. रेखा उन की तीसरी पत्नी थी. बलवीर सिंह चौहान की 2 शादियां पहले भी हुई थीं. बलवीर की पहली पत्नी किरन थी. जब वह ब्याह कर ससुराल आई थी, बलवीर की किस्मत का ताला खुल गया था. शादी के बाद उन की सीआरपीएफ में नौकरी पक्की हुई थी.

बलवीर की नईनई शादी हुई थी. घर में नई दुलहन आई थी. अभी किरन के हाथों की मेहंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा था कि उसे अकेले घर पर छोड़ बलवीर नौकरी चले गए. रात में पत्नी जब बिस्तर पर होती तो पति के बिना बिस्तर काटने को दौड़ता था. वह बेचैन हो जाती थी. पति की दूरियां उस से बरदाश्त नहीं हो रही थीं. जब सब कुछ बरदाश्त के बाहर हो गया तो किरन ने कमरे के पंखे से झूल कर आत्महत्या कर कर ली. पत्नी की आत्महत्या से बलवीर बुरी तरह टूट गए. वह बेपनाह मोहब्बत करते थे. लेकिन नौकरी के फर्ज और घर की जिम्मेदारी के बीच पिस कर उन्होंने 28 साल की उम्र में पत्नी को गंवा दिया था. पत्नी की मौत के बाद से बलवीर गुमसुम रहने लगे. पूरी जिंदगी सामने थी. अकेले काटना मुश्किल था. इसी नजरिए से मांबाप उन की दूसरी शादी की सोचने लगे. बलवीर सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन की दूसरी शादी के लिए कई प्रस्ताव आए. काफी सोचने के बाद मांबाप ने उस की दूसरी शादी आभा से करवा दी.

जब आभा बलवीर की जिंदगी में पत्नी बन कर आई, तो धीरेधीरे बलवीर के जीवन में बदलाव आने लगा. लेकिन बलवीर की ये खुशी भी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रही. एक सड़क हादसे ने बलवीर से आभा को भी छीन लिया. एक बार फिर अकेले पड़ गए. 2-2 पत्नियों की मौत से बलवीर जीवन से निराश होने लगे. कुछ दिनों बाद बलवीर की जिंदगी में रेखा तीसरी पत्नी बन कर आई. वह दोनों की यह शादी साल 2003 में मंदिर में हुई थी. दोनों की उम्र में करीब 20 साल का फासला था. रेखा के आने से बलवीर की जिंदगी फिर से संवर गई. पहले की दोनों बीवियों से बलवीर की कोई संतान नहीं थी, लेकिन रेखा से बलवीर के यहां 3 बच्चे पैदा हुए. 2 बेटे रमेश व चंदन और एक बेटी शालिनी. रेखा भले ही बलवीर के 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन वह पति के प्यार से संतुष्ट नहीं थी. इसी के चलते रेखा के पांव बहक गए.

शहडोल जिले के उमरिया की रहने वाली रेखा को अपना पुराना प्यार याद आ गया. उस का नाम था रवि कुमार पनिका. रवि और रेखा कालेज के जमाने से एकदूसरे को जानते थे. उन्हीं दिनों दोनों में प्यार हुआ था. लेकिन दोनों के सपने पूरे नहीं हुए थे. रेखा बलवीर की जिंदगी की डोर से बंध गई थी. यह बात घटना से करीब 4 साल पहले की है. रेखा का वही प्यार एक बार फिर से जवां हो गया. उस के तीनों बच्चे 10-12 साल के हो चुके थे. पति अकसर ड्यूटी पर घर से बाहर रहते थे. इस बीच रेखा घर पर अकेली रहती थी. इस अकेलेपन के दौरान वह रवि के साथ फोन पर चिपकी रहती थी. कभीकभार बलवीर जब बच्चों का हालचाल लेने के लिए पत्नी को फोन लगाता तो वह अकसर व्यस्त मिलता था. यह देख कर बलवीर की त्यौरी चढ़ जाती थी कि आखिर दिन भर वह फोन पर किस से चिपकी रहती है.

35 वर्षीय रवि कुमार पनिका सीआरपीएफ का जवान था. वह रायपुर के जगदलपुर में तैनात था, शादीशुदा. उस के भी बालबच्चे थे. उस का परिवार उमरिया में रहता था. बीचबीच में छुट्टी मिलने पर वह घर जाता था.  रेखा रवि की पुरानी प्रेमिका थी. कालेज के दिनों में दोनों एकदूसरे से जुनूनी हद तक प्यार करते थे. उस समय तो दोनों एक नहीं हो सके थे लेकिन अब दोनों एक होने को लालायित थे. जब से रेखा ने प्रेमी रवि को दिल से पुकारा था, रवि का दीवानापन हद से ज्यादा बढ़ गया था. रायपुर से नौकरी से छुट्टी ले कर रवि रेखा से मिलने उज्जैन स्थित उस के घर पहुंच जाता था. दोनों अपनी जिस्मानी आग ठंडी करते और फिर रवि रायपुर लौट जाता. रेखा प्रेमी रवि को घर तभी बुलाती थी जब उस के तीनों बच्चे स्कूल में होते थे और पति नौकरी पर.

रेखा की इस आशनाई का खेल सालों तक चलता रहा. अब रेखा पति को देख कर वैसा आनंदित नहीं होती थी, जैसे पहले हुआ करती थी. पहले की अपेक्षा रेखा के तेवर और रूपरंग में भी बदलाव आ गया था. उस के बदलेबदले तेवर और रूपरंग को देख कर बलवीर को उस पर शक गया. ऊपर से हर समय उस के फोन का बिजी आना. ये उस के शक को और बढ़ावा दे रहा था. वह ठहरा एक पुलिस वाला, जिन की एक आंख में शक तो दूसरी आंख में यकीन होता है. ऐसे में रेखा पति की नजरों से कहां बचने वाली थी. एक दिन बलवीर ने पत्नी से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा फोन अक्सर बिजी क्यों रहता है. जब भी फोन लगाओ तुम किसी से बात करती मिलती हो, किस से बात करती रहती हो? कौन है वो?’’

पति का इतना पूछना था कि रेखा बिदक गई, ‘‘आप मुझ पर शक करते हो. मैं ऐसीवैसी औरत नहीं हूं जो पति की गैरमौजूदगी में यहांवहां मुंह मारती फिरूं.’’

रेखा ने पति की आंखों के सामने ज्यामिति की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी रेखा खींची कि उस की बोलती बंद कर दी. भले ही रेखा ने अपने त्रियाचरित्र से पति की आंखों पर परदा डाल दिया था, लेकिन बलवीर को यकीन हो चुका था कि पत्नी का किसी गैरपुरुष से नाजायज रिश्ता है. इस बात को ले कर अकसर दोनों के बीच विवाद होता रहता था. रेखा जान चुकी थी कि पति को उस पर शक हो गया है. लेकिन पति नाम के कांटे को वह अपने जीवन से कैसे निकाले, समझ नहीं पा रही थी. बात पिछले साल दिसंबर 2019 की है. बलवीर अपने जानकारों से जान चुके थे कि पत्नी का नाजायज रिश्ता उस के पुराने आशिक रवि कुमार पनिका से बन गया है. इसे ले कर दोनों के बीच खूब लड़ाई हुई. घर में शांति और सुकून जैसे गायब हो गया था. जब देखो पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था. मांबाप के झगड़ों से बच्चे भी परेशान हो चुके थे. लेकिन वे कर भी क्या सकते थे, चुप रहने के अलावा.

पति से नाराज हो कर रेखा प्रेमी रवि के पास रायपुर चली गई. अगले 25 दिनों तक वह उसी के साथ रही. इस दौरान दोनों ने जबलपुर, कटनी, मंडसला और रायपुर के अलगअलग होटलों में रातें रंगीन कीं. इसी दौरान दोनों ने बलवीर सिंह चौहान को रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बनाई. योजना ऐसी कि बलवीर की मौत स्वाभाविक लगे और दोनों का लाखों का फायदा हो. रवि ने रेखा को बताया कि बलवीर का एक बड़ी रकम का जीवन बीमा करा दिया जाए. उस की मौत के बाद वह रकम उस की पत्नी यानी तुम्हें मिल जाएगी. उस रकम को हम दोनों आधाआधा बांट लेंगे. किसी को हम पर शक भी नहीं होगा और हमारा काम भी हो जाएगा. इस तरह साला बूढ़ा तेरे जीवन से भी निकल जाएगा. फिर हमें मौजमस्ती करने से कोई नहीं रोक सकेगा.

पूरी योजना बन जाने के बाद रेखा घर लौट आई और घडि़याली आंसू बहाते हुए पति के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांग ली. बलवीर ने उसे माफ कर दिया लेकिन उसे अपना नहीं सके. सामाजिक मानप्रतिष्ठा के चलते बलवीर ने समझदारी से काम लिया. उन्होंने बच्चों को देखते हुए रेखा को घर में पनाह तो दे दी, लेकिन दोनों के बीच गहरी खाई खुद चुकी थी, जो पट नहीं सकती थी. रेखा को पति की भावनाओं से कोई लेनादेना नहीं था. बच्चों से भी उस का कोई वास्ता नहीं था. वह तो योजना बना कर अपने रास्ते के कांटे को सदा के लिए हटाने के लिए आई थी. योजना के अनुसार, रवि और रेखा ने मिल कर 54 साल के बलवीर का 40 लाख रुपए का जीवन बीमा करा दिया, जिस की किस्त 45 हजार रुपए वार्षिक बनी. पहली किस्त के रूप में रवि ने 25 हजार और रेखा ने 20 हजार यानी 45 हजार रुपए फरवरी महीने में जमा करा दिए और निश्चिंत हो गए.

अब बारी थी बलवीर को रास्ते से हटाने की. दोनों बेकरार थे कि उन्हें कब सुनहरा मौका मिलेगा. आखिरकार उन्हें वह अवसर मिल ही गया. मई, 2020 के आखिरी सप्ताह में बलवीर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर आए. रेखा यह सुनहरा अवसर अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती थी. 29 मई को फोन कर के उस ने रवि को बता दिया कि शिकार हलाल होने के लिए तैयार है, आ जाओ. प्रेमिका की ओर से हरी झंडी मिलते ही रवि तैयार हो गया. रवि उन दिनों अपने घर शहडोल आया हुआ था. शहडोल से उज्जैन की दूरी 738 किलोमीटर थी. सड़क मार्ग से ये दूरी करीब 18 घंटे में तय की जा सकती थी. रेखा के हां करते ही रवि 30 मई, 2020 को अपनी मोटरसाइकिल से शहडोल से उज्जैन रवाना हो गया.

अगले दिन 31 मई को वह उज्जैन पहुंच गया और एक होटल में ठहरा. फिर फोन कर के रेखा को बता दिया कि वह उज्जैन पहुंच चुका है. आगे की योजना बताओ. रेखा ने रात ढलने तक होटल में ही रुके रहने को कहा. साथ ही यह भी कि जब वह फोन करे तो घर आ जाए. होटल से रेखा का घर कुछ ही दूरी पर था. रेखा ने रात साढ़े 11 बजे फोन कर के रवि को घर बुला लिया. साथ ही बता भी दिया कि घर का मुख्यद्वार खुला रहेगा. चुपके से घर में आ जाए. उस समय बलवीर नीचे अपने कमरे में सोए हुए थे और तीनों बच्चे दूसरे कमरे में सो रहे थे. बेचैन रेखा बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. ठीक साढ़े 11 बजे रवि रेखा के घर पहुंच गया और दबेपांव घर में घुस आया. वैसे भी वह घर के कोनेकोने से वाकिफ था.

रवि को आया देख वह खुशी से उछल पड़ी और उस की बांहों में समा गई. थोड़ी देर बाद रेखा जब होश में आई तो बिस्तर पर पति को सोता देख उस ने नफरत भरी नजर डाली और रवि को इशारा किया. फिर इशारा मिलते ही रवि ने अपने हाथों से बलवीर का गला तब तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत हुई. बलवीर की मौत हो चुकी थी. हत्या की घटना को दोनों स्वाभाविक मौत दिखाना चाहते थे. इसलिए दोनों ने योजना बनाई. रेखा छत पर बिस्तर लगा आई. फिर दोनों बलवीर की लाश उठा कर छत पर ले गए और बिस्तर पर ऐसे लिटा दिया जैसे वह खुद वहां आ कर सो गए हों. रेखा और रवि के रास्ते का कांटा हट गया था. सुबह होते ही जब रवि जाने लगा तो रेखा ने उस से कहा कि वह उसे कमरे में बंद कर दरवाजे पर बाहर से सिटकनी चढ़ा दे. रवि ने वही किया, जैसा रेखा ने करने को कहा था.

सुबह जब बच्चे उठे तो मां का कमरा बाहर से बंद देख चौंके. उन्होंने कमरे की सिटकनी खोल दी. बच्चों ने देखा उन के पिता कमरे में नहीं थे. पापा के बारे में मां से पूछा तो उस ने बच्चों से झूठ बोलते हुए कहा कि तुम्हारे पापा देर रात लौटे थे और छत पर सो गए. वहीं सो रहे होंगे. उस के बाद रेखा समय का इंतजार करने लगी ताकि अपना ड्रामा शुरू करे. रेखा और रवि ने बलवीर की हत्या को इस तरह अंजाम दिया था कि उस की मौत स्वाभाविक लगे, लेकिन पुलिस तहकीकात ने उन के सारे राज से परदा उठा दिया. उन के 40 लाख के सपने धरे के धरे रह गए. रेखा तो गिरफ्तार कर ली गई, लेकिन रवि कुमार पनिका फरार था. रवि को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने कई जगह दबिश दी लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ सका.

72 घंटे के भीतर घटना का खुलासा करने पर आईजी राकेश गुप्ता ने पुलिस टीम को 25 हजार रुपए नकद देने की घोषणा की. कथा लिखे जाने तक रेखा जेल में थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affair : गन्ने के खेत में बुला कर पत्नी ने कराई हत्या

Extramarital Affair : पतिपत्नी के बीच सब से बड़ी डोर विश्वास होती है, जिस के सहारे घरगृहस्थी चलती है. इसी विश्वास के नाते लाखों लोग घर से सैकड़ोंहजारों किलोमीटर दूर नौकरियां करते हैं. लेकिन जब किसी तीसरे की वजह से विश्वास की डोर कमजोर पड़ती है तो कई जिंदगियों में जलजला सा…

जिला मुरादाबाद से करीब 19 किलोमीटर दूर है थाना मूंढापांडे. इसी थाना क्षेत्र का एक गांव है जैतपुर विशाहट. रोहित सिंह इसी गांव का मूल निवासी था. वैसे वह अपनी पत्नी अन्नू के साथ मुरादाबाद शहर में रहता था. मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार में उस ने 400 वर्गगज में अपना मकान बनवा रखा था. रोहित पेशे से ट्रक ड्राइवर था और बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी करता था. रोहित हफ्ते में कम से कम एक बार अपने गांव जैतपुर जरूर जाता था. गांव में उस के पिता सत्यभान सिंह परिवार के साथ रहते थे. रोहित का गांव मूंढापांडे कस्बे से करीब 6 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह गांव से बाइक से मूंढापांडे तक आता था और वहां पर भारतीय स्टेट बैंक के पास एक मोटर मैकेनिक की दुकान पर बाइक खड़ी कर के बस से बरेली चला जाता था.

23 अगस्त, 2020 को रोहित बरेली जाने के लिए अपने गांव जैतपुर विशाहट से दोपहर करीब 12 बजे बाइक ले कर  निकला. रात करीब 8 बजे रोहित के पिता सत्यभान सिंह ने रोहित को फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. पिता ने उसे कई बार फोन मिलाया लेकिन हर बार फोन बंद मिला. ऐसा कभी नहीं होता था, इसलिए फोन न मिलने से सत्यभान सिंह चिंतित हुए. उन्होंने बरेली की उस ट्रांसपोर्ट कंपनी में फोन किया, जहां रोहित नौकरी करता था. पता चला रोहित उस दिन अपनी ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था. सत्यभान परेशान हो गए. उन्होंने मुरादाबाद में रह रही रोहित की पत्नी अन्नू से पूछा तो उस ने  बताया कि वह मुरादाबाद नहीं आए, अपनी ड्यूटी पर ही होंगे. जबकि रोहित ड्यूटी पर नहीं पहुंचा था.

बेटे की चिंता में सत्यभान और उन के घर वालों को रात भर नींद नहीं आई. सुबह होने पर वह उस मोटर मैकेनिक की दुकान पर पहुंचे, जहां रोहित अपनी बाइक खड़ी किया करता था. मैकेनिक ने बताया कि रोहित ने उस के यहां बाइक खड़ी नहीं की थी और न ही आया था. उधर अन्नू भी पति का फोन बंद मिनने से परेशान थी. अपनी चिंता वह ससुर से व्यक्त कर रही थी. सत्यभान ने अपने तमाम रिश्तेदारों के यहां भी फोन कर के रोहित के बारे में  पता किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. अंतत: सत्यभान ने 24 अगस्त, 2020 को थाना मूंढापांडे में बेटे रोहित की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी नवाब सिंह ने गुमशुदगी दर्ज होने के बाद जरूरी काररवाई  शुरू कर दी.

2 दिन हो गए, रोहित का कहीं पता नहीं चला. घरवाले उस की चिंता में परेशान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. 25 अगस्त, 2020 मंगलवार  के अखबारों में अमरोहा देहात थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की लाश मिलने की खबर छपी. लाश गांव कंकरसराय के गन्ने के एक खेत से मिली थी. उस का सिर कुचला हुआ था. सत्यभान के एक रिश्तेदार अमरोहा में रहते थे. रिश्तेदार ने सत्यभान को गन्ने के खेत में लाश मिली होने की जानकारी दी. साथ ही यह भी बताया कि मृतक के हाथ पर रोहित लिखा हुआ है, इसलिए आप अमरोहा देहात थाने आ कर लाश देख लें.

खबर मिलते ही सत्यभान सिंह 26 अगस्त को परिवार के लोगों के साथ अमरोहा देहात थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी ने सत्यभान को बरामद लाश के फोटो व कपड़े दिखाए. कपड़ों से सत्यभान ने पहचान लिया कि कपड़े उन के बेटे रोहित के हैं. थानाप्रभारी लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें जिला अस्पताल ले गए. मोर्चरी में रखी लाश देखते ही सत्यभान फूटफूट कर रोने लगे. वह लाश उन के बेटे रोहित की ही थी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद लाश उसी दिन मृतक के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम में पता चला कि रोहित की मौत गला दबाने से हुई थी. इस के अलावा उस के सिर और लिंग को ईंट से बुरी तरह कुचला गया था. चूंकि गुमशुदगी का मामला थाना मूंढापांडे में दर्ज हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट थाना मूंढापांडे पुलिस के पास आ गई.

थानाप्रभारी नवाब सिंह मामले को सुलझाने में जुट गए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे की मृतक रोहित से कोई गहरी दुश्मनी थी, इसलिए उस ने इतनी क्रूरता दिखाई. उन्होंने मृतक के पिता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है? अगर उन्हें किसी पर कोई शक हो तो बता दें. सत्यभान सिंह ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार निवासी अजय पाल व 2 अन्य लोगों पर शक जताया. इस के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम गठित की और 28 अगस्त को नामजद आरोपी अजय पाल और उस के साथी कुलदीप सैनी को मुरादाबाद स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मान लिया कि रोहित की हत्या उन्होंने ही की थी और यह सब कुछ मृतक की पत्नी अन्नू के इशारे पर किया था.

पुलिस ने अन्नू और अजय पाल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन दोनों ने आपस में कई बार बात की थी और एकदूसरे को मैसेज भी भेजे थे. दोनों से पूछताछ के बाद रोहित की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी. करीब 10 साल पहले रोहित सिंह की शादी संभल जिले के गांव भोजपुर की अन्नू के साथ हुई थी. उस समय रोहित मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाया करता था. रोहित का गांव मुरादाबाद शहर से करीब 19 किलोमीटर दूर था, इसलिए उसे रोजाना आनेजाने में परेशानी होती थी. इस परेशानी से बचने के लिए उस ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती में 400 वर्गगज का एक प्लौट खरीद लिया.

5 साल पहले उस ने प्लौट पर अपना मकान बनवा लिया. उस की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. उस के 2 बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी. रोहित का एक दोस्त था अजय पाल. वह भी मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाता था. इसलिए दोनों की दोस्ती हो गई थी. शाम को दोनों अकसर साथ बैठ कर शराब पीते थे. अजय पाल का रोहित के घर आनाजाना लगा रहता था. बाद में रोहित सिंह की बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी लग गई. वह ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक चलाता था, जिस की वजह से वह कईकई दिन बाद घर लौटता था. उसी दौरान अजय पाल के रोहित की पत्नी अन्नू से अवैध संबंध बन गए. पति की गैरमौजूदगी में अन्नू अपने प्रेमी के साथ खूब मौजमस्ती करती थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए किसी का डर भी नहीं था.

रोहित जब बरेली से घर लौटता तो पत्नी को फोन कर के सूचना दे देता था. अन्नू सतर्क हो जाती और प्रेमी से भी सतर्क रहने के लिए कह देती थी. घर लौटने के बाद रोहित की अपने दोस्त अजय पाल के साथ महफिल सजती थी. रोहित दोस्त पर विश्वास करता था, यह अलग बात थी कि वही दोस्त विश्वास की आड़ में उस के घर में सेंध लगा चुका था. 2-3 दिन घर रुकने के बाद रोहित मातापिता से मिलने अपने गांव जैतपुर वशाहट जाता और फिर अगले दिन वहीं से ड्यूटी पर बरेली चला जाता था. उधर अन्नू और अजय पाल के संबंध गहरे होते जा रहे थे. उन्होंने जीवन भर साथ रहने की कसम खा ली थी. अजय अन्नू पर घर से भाग चलने का दबाव डालता था, लेकिन अन्नू घर से भागने को मना कर देती. वह कहती थी कि घर से भागने की जरूरत क्या है, यदि रोहित का काम तमाम कर दो तो रास्ता अपने आप साफ हो जाएगा.

अन्नू के प्यार में अंधे हो चुके अजय पाल को प्रेमिका की यह सलाह बहुत अच्छी लगी. उस ने अन्नू से वादा कर दिया कि वह रोहित का काम तमाम करा देगा. इस के बाद अन्नू और अजय पाल ने रोहित को ठिकाने लगाने की योजना बनानी शुरू कर दी. अजय ने इस बारे में अपने दोस्त कुलदीप सैनी से बात की. वह भी अजय का साथ देने को तैयार हो गया. फिर वे उचित मौके का इंतजार करने लगे. 23 अगस्त, 2020 को उन्हें यह मौका मिल गया. क्योंकि उस दिन रोहित ड्यूटी से अपने घर मुरादाबाद आया हुआ था और उसी दिन उसे मुरादाबाद से अपने गांव जैतपुर वशाहट जाना था. सुबह 9 बजे नाश्ता करने के बाद वह बाइक से गांव जाने के लिए निकल गया.

अन्नू ने यह जानकारी फोन से अजय को दे दी. योजना के अनुसार अजय पाल अपने साथी कुलदीप सैनी को ले कर पीतल बस्ती के आगे गुलाबबाड़ी में सड़क किनारे खड़े हो कर रोहित के आने का इंतजार करने लगा. रोहित वहां पहुंचा तो अजय ने हाथ दे कर उस की बाइक रुकवाई. अजय ने कुलदीप का परिचय रोहित से कराते हुए कहा कि इस की बहन मूंढापांडे में रहती है. हम लोग वहीं जा रहे हैं. तुम हमें मूंढापांडे छोड़ कर अपने गांव निकल जाना. रोहित दोस्त की बात नहीं टाल सका. वह दोनों को अपनी बाइक पर बैठा कर चल दिया. अजय पाल और कुलदीप को मूंढापांडे छोड़ने के बाद रोहित अपने गांव जैतपुर विशाहट चला गया. उस ने अजय को बता दिया कि वह मातापिता से मिलने के बाद आज ही ड्यूटी पर बरेली चला जाएगा. उस का गांव मूंढापांडे से करीब 6 किलोमीटर दूर था.

अजय पाल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए वह मूंढापांडे में ही रोहित के लौटने का इंतजार करने लगा. अजय को यह बात पता थी कि रोहित अपनी बाइक मूंढापांडे में एक मैकेनिक के पास खड़ी कर के बस से बरेली जाता है, इसलिए अजय और कुलदीप उस के आने का इंतजार करने लगे. मातापिता से मिलने के बाद रोहित ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकल गया. उसे अपनी बाइक मैकेनिक के पास खड़ी करनी थी, लेकिन उस से पहले ही रास्ते में उसे अजय पाल और कुलदीप  खड़े मिले. उन्हें देखते ही रोहित ने बाइक  रोक दी. उस ने पूछा, ‘‘तुम लोग अभी तक यहीं हो.’’

‘‘हां, हम तुम्हारे आने का इंतजार कर रहे थे.’’ अजय बोला.

‘‘क्यों, क्या कोई खास बात है?’’ रोहित ने पूछा.

‘‘हां भाई, बात खास है तभी तो तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ अजय ने कहा.

‘‘बताओ क्या बात है?’’

‘‘रोहित बात यह है कि यहां पर कुलदीप के किसी के पास मोटे पैसे फंसे हुए थे. आज सारे पैसे मिल गए. इसलिए हम लोग बहुत खुश हैं और इसी खुशी में आज पार्टी करना चाहते हैं.’’ अजय बोला.

‘‘नहीं यार, अभी तो मैं ड्यूटी पर जा रहा हूं. फिर कभी पार्टी कर लेंगे.’’

‘‘अरे यार, एकएक पेग लेने में क्या बुराई है.’’ अजय ने जोर डाला.

रोहित अपने दोस्त की बात को टाल नहीं सका. तभी अजय का दोस्त कुलदीप सैनी एक बोतल और पकौड़े ले आया. तीनों ने पकौड़े के ठेले पर ही शराब पीनी शुरू कर दी. रोहित पर नशा ज्यादा चढ़ गया तो वह बोला, ‘‘आज मैं ड्यूटी नहीं जाऊंगा.’’ वे तीनों बाइक से दलपतपुर जीरो पौइंट हाइवे पर आ गए. हाइवे से सटा हुआ एक गांव है मछरिया. वहीं पर कुलदीप ने रोहित का मोबाइल ले कर उस की बैटरी निकाल दी, ताकि उस का किसी से संपर्क न हो सके.

इस के बाद तीनों हाइवे से होते हुए कस्बा पाकवड़ा पहुंचे. पाकवड़ा में तीनों ने फिर शराब पी और खाना खाया. खाना खाने के बाद रोहित ने घर चलने को कहा तो अजय बोला, ‘‘अभी चलते हैं. हमें अमरोहा में कुछ जरूरी काम है. अमरोहा यहां से थोड़ी ही दूर है. बस, काम निपटा कर आ जाएंगे.’’

अजय और कुलदीप अपनी योजना के अनुसार रोहित को अमरोहा ले गए. रात करीब 10 बजे तीनों अमरोहा देहात के गांव कंकरसराय पहुंचे. उस समय तक रोहित को ज्यादा नशा चढ़ चुका था. नशे की हालत में दोनों उसे गन्ने के खेत में ले गए और गला दबा कर उस की हत्या कर दी. रोहित की हत्या करने के बाद उन्होंने उस का सिर ईंट से कुचल दिया, जिस से उस का चेहरा पहचान में न आ सके. इस के अलावा उन्होंने उस के लिंग को भी ईंट से कुचल दिया. हत्या से पहले अजय के मोबाइल पर रोहित की पत्नी अन्नू का फोन आया था. अंजू ने उस से कहा था कि किसी भी हालत में रोहित को जिंदा मत छोड़ना.

मरने से पहले रोहित दोनों के सामने गिड़गिड़ाया था कि यार मुझ से क्या गलती हो गई, मुझे क्यों मार रहे हो लेकिन उन का दिल नहीं पसीजा. कुलदीप ने रोहित की टांगें पकड़ लीं और अजय ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. अजय ने हत्या की जानकारी अन्नू को दे दी थी. हत्यारों को  विश्वास था कि यहां रोहित की लाश कुछ दिनों में सड़गल जाएगी और पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंचेगी लेकिन उन की यह सोच गलत साबित हुई. वे पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए. अभियुक्त अजय पाल और कुलदीप सैनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें रोहित की हत्या कर शव छिपाने के आरोप में गिरफ्तार कर 28 अगस्त, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया.

इस मामले में मृतक रोहित की पत्नी अन्नू का भी हाथ था, इसलिए पुलिस ने 29 अगस्त को अन्नू को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अन्नू ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस ने उसे भी न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Stories : पत्नी ने पति को लॉकअप में बंद करने की दी धमकी तो पति ने कर दी हत्या

Crime Stories : मानव मन की मनमानी उड़ान तभी तक ठीक होती है, जब तक मर्यादा में रहे. जबजब मन की उड़ान ने मर्यादाओं की देहरी को लांघा, तबतब वजूद मिटे हैं. प्रियंका ने भी…

प्रियंका कानपुर जिले के गांव मझावन निवासी राजकुमार विश्वकर्मा की सब से छोटी बेटी थी. सन 2015 में उस की शादी अशोक विश्वकर्मा से हो गई. अशोक कानपुर शहर की इंदिरा बस्ती में किराए के मकान में रहता था और लोडर चलाता था. खूबसूरत पत्नी पा कर अशोक अपने को खुशकिस्मत समझ रहा था, जबकि प्रियंका दुबलेपतले सांवले अशोक को पा कर मन ही मन अपनी बदकिस्मती पर रोती थी. पत्नी खूबसूरत हो, तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन जाता है. अशोक भी प्रियंका का शैदाई बन गया. प्रियंका ने अशोक की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी अंगुलियों पर नचाना शुरू कर दिया. वह सुबह 8 बजे घर से निकलता और फिर रात 8 बजे ही घर लौटता था. वह पूरी पगार प्रियंका के हाथ पर रख देता था.

अशोक मूलरूप से सरसौल का रहने वाला था. उस के 2 भाई सर्वेश व कमलेश थे. मातापिता की मृत्यु के बाद तीनोें भाइयों में घर, खेत का बंटवारा हो गया था. कमलेश खेती करता था, जबकि सर्वेश प्राइवेट नौकरी कर रहा था. अशोक की अपने भाई कमलेश से नहीं पटती थी, इसलिए अशोक ने अपने हिस्से की जमीन बंटाई पर दे रखी थी. घर में प्रियंका को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. पहली बात तो यह थी कि पति कम कमाता था, ऊपर से वह स्मार्ट भी नहीं था. अत: वह पत्नी के दबाव में रहता था. प्रियंका को सिर्फ इस बात की खुशी थी कि पति उस की जीहुजूरी करता है. अपनी दूसरी हसरतें पूरी न हो पाने की वजह से वह मन ही मन खिन्न रहती थी.

अशोक विश्वकर्मा का एक दोस्त था राकेश. हृष्टपुष्ट, हंसमुख व स्मार्ट. वह बिजली मेकैनिक था. किदवई नगर में वह रामा इलैक्ट्रिकल्स की दुकान पर काम करता था. जिस दिन अशोक काम पर नहीं जाता था, उस दिन वह दुकान पर पहुंच जाता. दोनों खातेपीते और खूब बतियाते. खानेपीने का इंतजाम राकेश ही करता था. एक सुबह अशोक ड्यूटी पर जाने को निकला, तो राकेश को कह गया कि उस के घर की बिजली बारबार चली जाती है, जा कर फाल्ट देख आए. दोपहर को समय निकाल कर राकेश, अशोक के घर पहुंचा, तो उस समय भी बिजली नहीं आ रही थी. गरमी के दिन थे और उमस भी खूब हो रही थी. पसीने से बेहाल प्रियंका अपनी साड़ी के आंचल को ही पंखा बना कर हवा कर रही थी. उस का खुला वक्षस्थल राकेश की आंखों के आगे कामना की रोशनी बिखेरने लगा.

राकेश को आया देख कर प्रियंका ने आंचल संभाला और चहकती हुई बोली, ‘‘वाह देवर जी, शादी के दिन दिखे, उस के बाद कभी घर नहीं आए.’’

‘‘अब आ तो गया हूं, भाभी.’’ राकेश मुसकराया.

‘‘वह तो बिजली ठीक करने आए हो, तुम्हारे पास हम जैसे गरीबों से मिलने का वक्त कहां है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है भाभी, काम में इतना व्यस्त रहता हूं कि समय नहीं मिलता. फिर भैया से कभीकभी मुलाकात हो ही जाती है.’’

राकेश ने अपने औजारों का थैला टेबल पर रखा और बिजली की लाइन पर नजर डाली, ‘‘भाभी एक स्टूल तो दो.’’

प्रियंका फटाफट स्टूल ले आई. स्टूल रखने को वह झुकी, तो आंचल गिर गया. एक बार फिर से राकेश की आंखों में हुस्न की चांदनी कौंधी. प्रियंका ने आंचल संभाला फिर हंसती हुई बोली, ‘‘मैं तो तंग आ गई हूं इस बिजली से. कभीकभी रात को 2-2 घंटे अंधेरे में रहना पड़ता है.’’

राकेश ने टकटकी लगा कर प्रियंका की आंखों में देखा, ‘‘शादी वाले दिन तो आप को ठीक से देखा नहीं था. खूबसूरत तो तब भी थी आप, पर अब तो आप के हुस्न में गजब का निखार आ गया है. आप तो खुद ही रोशनी का खजाना हैं, आप के आगे बिजली की क्या हैसियत?’’

राकेश ने प्रशंसा का पुल बना कर प्रियंका के दिल में घुसपैठ करनी चाही.

‘‘हटो, बहुत मजाक करते हो तुम.’’ प्रियंका हया से लजाई, ‘‘फटाफट लाइन जोड़ दो. देखो मैं पसीने से भीगी जा रही हूं.’’

राकेश ने लाइन जोड़ कर स्विच औन किया तो पंखा चल पड़ा और कमरा रोशनी से भर गया. प्रियंका ने प्रशंसा भरी निगाहों से उसे देखा और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे लिए शरबत बनाती हूं.’’

प्रियंका ने प्यार से राकेश को शरबत पिलाया. दोनों के बीच कुछ देर बातें हुईं फिर राकेश सामान थैले में रख कर जाने लगा तो प्रियंका ने पूछा, ‘‘अच्छा ये तो बताओ, कितने पैसे हुए?’’

‘‘किस बात के?’’

‘‘अरे तुम ने बिजली ठीक की है.’’

‘‘अच्छा भाभी, अपनों से भी कोई पैसे लेता है. एक मिनट में बेगाना बना दिया. देना ही है तो कोई ईनाम दो.’’ राकेश के होंठों पर अर्थपूर्ण मुसकान तैरने लगी.

‘‘मांगो क्या चाहिए?’’

‘‘तुम्हारा प्यार चाहिए भाभी. पहली ही नजर में तुम मेरी आंखों में रचबस गई हो.’’

‘‘धत पहली ही बार में सब कुछ पा लेना चाहते हो.’’ कह कर प्रियंका ने नजरें झुका लीं.

‘‘ठीक है, दूसरी बार में पा लूंगा. जब मुझे ईनाम देने का मन हो फोन कर के बुला लेना.’’ राकेश ने एक पर्चे पर अपना मोबाइल नंबर लिख कर प्रियंका को दे दिया. उस के बाद अपना थैला उठाया और फिर चला गया.

जब राकेश अपने प्यार का ट्रेलर दिखा गया, तो प्रियंका के कदम क्यों नहीं बहकते. पूरी रात वह राकेश के बारे में सोचती रही. अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रियंका ने राकेश का नंबर मिला दिया. उस ने फोन उठाया तो प्रियंका ने खनकती आवाज में झूठ बोला, ‘‘बिजली फिर चली गई है, ठीक कर जाओ.’’

राकेश इसी इंतजार में बैठा था. उस ने भी सांकेतिक शब्दों में कहा, ‘‘ठीक है भाभी, अपने हुस्न की रोशनी बिखेर कर रखो. मै अभी आ रहा हूं.’’

राकेश दोस्त के घर पहुंचा तो बिजली आ रही थी. उस ने चाहत भरी नजरों से प्रियंका को देखा, जो मंदमंद मुसकरा रही थी. राकेश ने पूछा, ‘‘भाभी, झूठ क्यों बोला?’’

‘‘झूठ कहां बोला,’’ प्रियंका ने मदभरी नजरों से उसे देखा, ‘‘बत्ती आ रही है पर मेरे मन में अंधेरा है. पंखा चल रहा है, पर मैं अंदर से पसीने से तर हूं.’’

खुला आमंत्रण पा कर राकेश 2 कदम आगे बढ़ा और प्रियंका को अपनी बांहों में भर लिया. फिर तो कमरे में अनीति का अंधेरा गहराता चला गया. प्रियंका की चूडि़यां राकेश की पीठ पर बजने लगीं और दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अविवाहित राकेश ने पहली बार यह सुख पाया था. इसलिए वह तो निहाल हो ही गया. प्रियंका भी राकेश की कायल हो गई. थकी सांसों वाले अशोक से वह पहले ही ऊब गई थी, राकेश का साथ मिला तो प्रियंका अपनी सारी मर्यादा भूल गई. अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. जिस रात अशोक लोडर पर माल लाद कर दूसरे शहर जाता, उस रात प्रियंका फोन कर राकेश को घर बुला लेती फिर रात भर दोनों रंगरलियां मनाते.

अशोक को इस बात की भनक भी नहीं थी कि उस का दोस्त उस की बीवी का बिस्तर सजा रहा है. राकेश का बारबार अशोक के घर आना पासपड़ोस के लोगों को खलने लगा. उन के बीच कानाफूसी होने लगी कि राकेश और अशोक की बीवी प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है. एक कान से दूसरे कान होते हुए जब यह बात अशोक के कानों तक पहुंची तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत प्रियंका से जवाब तलब किया तो वह साफ मुकर गई. यही नहीं वह त्रियाचरित्र दिखा कर अशोक पर ही हावी हो गई. अशोक उस समय तो चुप हो गया परंतु उस के मन में शक जरूर पैदा हो गया. अब वह घर पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम भी जल्द ही उस के सामने आ गया.

उस रोज अशोक दोपहर को घर आया तो राकेश उस के घर की तरफ से आता दिखा. उस ने आवाज दे कर राकेश को रोकने का प्रयास भी किया. पर वह उस की आवाज अनसुनी कर स्कूटर से भाग गया. घर पहुंच कर अशोक ने पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, क्या राकेश घर आया था?’’

‘‘नहीं तो. यह तुम राकेश…राकेश क्या रटते रहते हो. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं. क्या मैं बदचलन हूं, वेश्या हूं? हे भगवान! मुझे मौत दे दो.’’

औरत के आंसू मर्द की कमजोरी बन जाते है. जब प्रियंका आंसू बहाने लगी तो अशोक को झुकना पड़ा. उस ने वादा किया कि अब वह उस पर शक नहीं करेगा. आंसुओं से प्रियंका ने अशोक का शक तो दूर कर दिया, किंतु मन ही मन वह डर भी गई थी. उस ने राकेश को भी बता दिया कि अशोक उन दोनों पर शक करने लगा है, हमें अब सतर्कता बरतनी होगी. इंदिरा बस्ती में अशोक का एक रिश्तेदार शिव रहता था. एक रोज उस ने बताया कि राकेश उस के घर अकसर आता है. प्रियंका का उस से लगाव है. उस के आते ही प्रियंका दरवाजा बंद कर लेती है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता होगा, यह तो तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूं. इसलिए प्रियंका को समझाओ कि वह घर की इज्जत नीलाम न करे.

शिव की बात अशोक को तीर की तरह चुभी. वह शराब के ठेके पर गया और जम कर शराब पी. नशे में धुत हो कर वह घर पहुंचा और पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, सचसच बता, तेरा राकेश के साथ टांका कब से भिड़ा है?’’

‘‘नशे में तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो. मैं तुम्हें सुबह जवाब दूंगी.’’ प्रियंका बोली.

‘‘नहीं, मुझे अभी और इसी वक्त जवाब चाहिए.’’ अशोक ने जिद की.

‘‘राकेश से मेरा कोई गलत संबंध नहीं हैं.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘साली, बेवकूफ बनाती है. पूरी बस्ती जानती है कि तू राकेश के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. आज मैं भी जान गया, इसलिए तुझे ऐसी सजा दूंगा कि तू बरसों तक नहीं भूलेगी.’’ कहते हुए अशोक ने प्रियंका को जम कर पीटा. कहते हैं शक की विषबेल बहुत जल्दी पनपती है. अशोक के साथ भी यही हुआ. दिन पर दिन उस का शक बढ़ता गया. आए दिन दोनों के बीच कलह व मारपीट होने लगी. कभी प्रियंका भारी पड़ती तो कभी अशोक प्रियंका की देह सुजा देता. इस कलह के कारण राकेश ने प्रियंका से मिलना तथा उस के घर आना बंद कर दिया था. अशोक राकेश को भी खूब खरीखोटी सुनाता था. कई बार उस ने दुकान पर जा कर भी उसे सब के सामने जलील किया था.

9 जुलाई, 2020 की शाम अशोक को पता चला कि दोपहर में राकेश उस के घर के आसपास मंडरा रहा था. इस पर उसे शक हुआ कि वह जरूर प्रियंका से मिलने आया होगा. अत: राकेश को ले कर अशोक और प्रियंका में पहले तूतूमैंमैं हुई फिर अशोक ने प्रियंका की पिटाई कर दी. गुस्से में प्रियंका थाना किदवई नगर जा कर पति प्रताड़ना की शिकायत कर दी. शिकायत मिलते ही थानाप्रभारी धनेश कुमार ने 2 सिपाहियों को भेज कर अशोक को थाने बुलवा लिया. थाने पर उस ने सच्चाई बताई, परंतु पुलिस ने उस की एक न सुनी और हवालात में बंद कर दिया. अशोक रात भर हवालात में रहा. सुबह माफी मांगने तथा फिर झगड़ा न करने पर उसे थाने से घर जाने दिया गया.

पत्नी द्वारा थाने में बंद करवाना अशोक को नागवार लगा था. वह मन ही मन जलभुन उठा था. 10 जुलाई की सुबह जब वह घर पहुंचा तो प्रियंका पड़ोस की महिलाओं से पति को पिटवाने और बंद करवाने की शेखी बघार रही थी. पति को सामने देख कर उसे सांप सूंघ गया. वह घर के अंदर चली गई. दोपहर लगभग 12 बजे दोनों में फिर राकेश को ले कर बहस होने लगी. इसी बीच प्रियंका ने दोबारा लौकअप में बंद कराने की धमकी दी तो अशोक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने कमरे में रखी लोहे की रौड उठाई और प्रियंका पर प्रहार करने लगा. रौड के प्रहार से प्रियंका का सिर फट गया. वह चीखतेचिल्लाते घर के बाहर निकली और गली में गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद अशोक फरार हो गया.

मकान मालिक कमल कुमार व अन्य लोग बाहर निकले तो खून से सना प्रियंका का शव गली में पड़ा था. इस के बाद तो इंदिरा बस्ती में सनसनी फैल गई. सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ आई. इसी बीच मकान मालिक कमल कुमार ने थानाप्रभारी धनेश कुमार को इस की सूचना दे दी. थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को इस घटना से अवगत करा दिया. कुछ ही देर में एसपी (साउथ) दीपक भूकर, तथा एसएसपी प्रीतिंदर सिंह घटनास्थल आ गए. उन्होंने शव का निरीक्षण किया फिर मकान मालिक कमल कुमार तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.

चूंकि पूछताछ से यह बात साफ हो गई थी कि अशोक ने ही अपनी पत्नी प्रियंका की हत्या की है. इसलिए थानाप्रभारी धनेश कुमार ने मकान मालिक कमल कुमार की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अशोक विश्वकर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उस की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए. रात 10 बजे धनेश कुमार को पता चला कि अशोक सोंटा वाले मंदिर के पास मौजूद है. इस सूचना पर वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और हत्यारोपी अशोक को हिरासत में ले लिया. उसे थाना किदवई नगर लाया गया.

थाने में जब उस से प्रियंका की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड भी बरामद करा दी, जो उस ने घर के अंदर छिपा दी थी. पूछताछ में अशोक ने बताया कि प्रियंका बदचलन थी, अपनी गलती मानने के बजाय वह उस पर हावी हो जाती थी. इसलिए उस ने गुस्से में उस की हत्या कर दी. उसे इस गुनाह की सजा का खौफ नहीं है. 11 जुलाई, 2020 को थानाप्रभारी ने अभियुक्त अशोक विश्वकर्मा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra Crime News : कोल्ड ड्रिंक में कीटनाशक मिलाकर पत्नी के प्रेमी को पिलाया

Agra Crime News : कर्ज वसूलने के चक्कर में शिशुपाल का सोहनवीर के घर आनाजाना हुआ तो उसी दौरान सोहनवीर की पत्नी चंचल से उस के संबंध बन गए. इस का जो नतीजा निकला वह…

चंचल, जैसा नाम वैसा ही स्वभाव था उस 35 वर्षीय खूबसूरत नारी का. 12 वर्ष पहले उस का विवाह आगरा के सिकंदरा थाना क्षेत्र के गांव पनवारी में रहने वाले सोहनवीर सिंह से हुआ था. सोहनवीर प्राइवेट नौकरी करता था. उस की इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च आसानी से चल पाता. चंचल इस से खुश नहीं थी लेकिन अपना भाग्य मान कर वह पति सोहनवीर के साथ निर्वाह कर रही थी. सोहनवीर पत्नी भक्त था, वह चंचल से बेइंतहा प्यार करता था. पति के इस बर्ताव ने आहिस्ताआहिस्ता चंचल के स्वभाव को बदल दिया. एक शाम जब सोहनवीर लौटा तो चंचल ने उसे हाथपैर धोने के लिए गरम पानी दिया. हाथमुंह धो कर सोहनवीर रसोई में चंचल के पास ही बैठ गया, जहां चंचल उस के लिए गरम रोटियां सेंक रही थी.

खाना खा कर सोहनवीर उठा और बैड पर जा कर लेट गया. सारा काम खत्म करने के बाद चंचल भी उस के पास आ कर बैड पर लेट गई. चंचल को पति के मुंह से शराब की गंध महसूस हुई तो बोली, ‘‘तुम ने शराब पी है?’’

‘‘हां आज ज्यादा ठंड लग रही थी इसीलिए, लेकिन कल से नहीं पीऊंगा, वादा करता हूं.’’ सोहनवीर गलती मान कर बोला.

‘‘आज माफ किए देती हूं, आइंदा शराब पी कर घर में आए तो घर में घुसने नहीं दूंगी. फिर ठंड में सारी रात बाहर ही ठिठुरते रहना, समझे.’’ चंचल ने आंखें दिखा कर कहा.

उस रात सोहनवीर ने चंचल से वादा तो किया कि दोबारा शराब को हाथ नहीं लगाएगा, लेकिन वो वादा रात के साथ ही कहीं खो गया. अगले दिन सोहनवीर शराब के नशे में घर लौटा तो पतिपत्नी के बीच कहासुनी हो गई. इस के बाद चंचल फिर से पति सोहनवीर से चिढ़ने लगी. अब सोहनवीर चंचल को जरा भी नहीं सुहाता था. वह उस से हमेशा कटीकटी रहने लगी. सोहनवीर चूंकि चंचल का पति था, इसलिए वह चाहे जैसा भी था, उसे उस के साथ रहना ही था. दिन गुजरते गए, समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाख कोशिशों के बाद भी चंचल सोहनवीर की शराब छुड़वा पाने में असफल रही. समय के साथ चंचल एक बेटे और एक बेटी की मां भी बन गई.

इस बीच सोहनवीर शराब का आदी हो गया था. शराब के चक्कर में उस ने कई लोगों से पैसे भी उधार लिए थे. वह पहले उधार लिए गए पैसे चुका नहीं पाता था, फिर से उधार मांगने लगता था. इसी के चलते लोगों ने उसे उधार देना बंद कर दिया था. लोग तगादा करते तो सोहनवीर उन के सामने आने से बचने लगा. इस पर लोग उस के घर के बाहर आ कर तगादा करने लगे. सोहनवीर घर नहीं होता तो लोग चंचल को ही बुराभला बोल कर चले जाते थे. चंचल चुपचाप सब के ताने सुनती, फिर दरवाजा बंद कर के रोती रहती. पति से कुछ कहती तो उस के सितम उस के जिस्म पर उभर कर दिखाई देने लगते. एक दिन दोपहर में सोहनवीर कमरे में खाना खा रहा था. तभी किसी ने जोरजोर से दरवाजे की कुंडी बजाई. सोहनवीर समझ गया कि कोई लेनदार दरवाजे पर आया है. उस ने चंचल से कहा, ‘‘तुम जा कर देखो और मुझे पूछे तो दरवाजे से ही चलता कर देना.’’

‘‘हां, यही काम तो है मुझे कि हर किसी से झूठ बोलती रहूं.’’ कह कर चंचल झल्ला कर उठी.

सोहनवीर उसे लाल आंखों से घूर रहा था. चंचल ने दरवाजा खोला तो सामने एक व्यक्ति खड़ा था. उसे देख कर चंचल ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं शिशुपाल सिंह हूं. कहां है सोहनवीर, जब से पैसा लिया है, दिखाई ही नहीं दे रहा.’’ शिशुपाल रूखे स्वर में बोला.

‘‘वो तो घर पर नहीं हैं, आप बाद में आ जाना.’’

‘‘मेरा यही काम है क्या. लोगों को पैसा दे कर भलाई करूं और जब पैसे लेने का वक्त आए तो देनदार घर से गायब मिले. कहे देता हूं, इस तरह नहीं चलेगा. अपने आदमी को कहना मेरा पैसा वापस कर दे, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ शिशुपाल कड़क कर बोला.

‘‘आप नाराज क्यों होते हैं, वो आएंगे तो मैं बोल दूंगी. मैं ने तो आप को पहली बार देखा है.’’ चंचल बोली.

और भी हिदायतें दे कर शिशुपाल सिंह वहां से चला गया. चंचल ने दरवाजा बंद किया और फिर से आ कर रोटियां सेंकने लगी.

‘‘सारी उम्र लोगों की गालियां सुनवाते रहना लेकिन ये दारू मत छोड़ना.’’ चंचल गुस्से में पति से बोली.

‘‘ऐ तू मुझे आंखें दिखाती है, साली मैं तेरा मर्द हूं. जानती है पति परमेश्वर होता है. तू है कि मुझे ही आंखें दिखा रही है.’’ सोहनवीर चिल्ला कर बोला.

‘‘पति के अंदर परमेश्वर वाले गुण हों तभी तो. तुम में पति जैसा है कुछ.’’ चंचल बोली तो सोहनवीर उस के बाल पकड़ कर रसोई से बाहर ले आया और लातघूंसों से बुरी तरह पिटाई करने लगा. चंचल रोतीबिलखती खुद को पति के हाथों से छुड़ाती रही लेकिन सोहनवीर उसे तब तक पीटता रहा, जब तक खुद थक नहीं गया. चंचल रात भर दर्द से तड़पती रही और सोहनवीर शराब पी कर एक ओर लुढ़क गया. 3-4 दिन बाद शिशुपाल एक बार फिर से पैसों की वसूली के लिए सोहनवीर के घर आया तो इत्तेफाक से दरवाजा खुला था. शिशुपाल भीतर घुसता चला आया. चंचल आइने में देख कर बाल संवार रही थी. शिशुपाल पर नजर पड़ी तो उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘अरे शिशुपालजी आप! अरे आप खड़े क्यों हैं, बैठिए न.’’

शिशुपाल चुप था और एकटक चंचल की ओर देख रहा था. चंचल उस के करीब आई और कुरसी उठा कर उस की ओर सरकाते हुए बोली, ‘‘आप बैठिए, मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं, मुझे चाय नहीं पीनी. मैं तो सोहनवीर से मिलने आया था. कहां है वो मेरे पैसे कब देगा?’’ शिशुपाल ने पूछा.

‘‘आप के पैसे मिल जाएंगे, चिंता मत कीजिए.’’ चंचल अब भी मुसकरा रही थी. वह रसोई में चली गई और 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट, नमकीन ले आई. उस ने शिशुपाल की ओर चाय का कप बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कितने रुपए हैं आप के?’’

‘‘आप को नहीं मालूम.’’ शिशुपाल ने कप हाथ में ले कर पूछा.

‘‘जब पति पत्नी को सारी बातें बताए, तभी उसे हर बात की जानकारी रहती है. जो आदमी पत्नी को सिवाय पैर की जूती के कुछ नहीं समझता वो…खैर जाने दीजिए मैं भी कहां आप से अपना रोना ले कर बैठ गई.’’ चंचल बोल रही थी, शिशुपाल खामोशी से उस की बातें सुन रहा था. काफी देर तक इंतजार के बाद भी सोहनवीर घर नहीं आया तो शिशुपाल जाने लगा. चंचल ने उसे थोड़ी देर और रुकने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं रुका. चंचल ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया और बोली, ‘‘वो आएंगे तो मैं आप को फोन कर के बता दूंगी.’’

शिशुपाल वहां से चला गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सोहनवीर की पत्नी चंचल उस पर इतनी मेहरबान क्यों हो गई. फिर उस ने सिर को झटका और सोचने लगा कि उसे तो अपने पैसे चाहिए चाहे पत्नी दे या पति. सोचता हुआ वह अपने घर पहुंच गया. शिशुपाल सिंह संपन्न किसान था. करीब 18 साल पहले उस का विवाह सीता से हुआ था. सीता से उसे 2 बेटे और एक बेटी हुई. करीब डेढ़ साल पहले आपसी विवाद के कारण सीता हमेशा के लिए घर छोड़ कर चली गई. शिशुपाल अकेला पड़ गया. गांव के लोगों को वह ब्याज पर पैसा देता था. एक दिन सोहनवीर ने उस से किसी जरूरी काम के लिए पैसे उधार मांगे तो शिशुपाल ने दे दिए. पैसे उधार मिलने के बाद सोहनवीर ने शिशुपाल की तरफ जाना ही छोड़ दिया. काफी समय बीतने के बाद सोहनवीर शिशुपाल से नहीं मिला तो शिशुपाल सोहनवीर के घर तक पहुंच गया.

सोहनवीर घर पर नहीं मिला तो चंचल ने शिशुपाल की आवभगत की. शिशुपाल उस दिन ये कह कर चला गया कि 4 दिन बाद फिर आएगा. 4 दिन गुजर गए. चंचल को आज शिशुपाल का इंतजार था. पति और बच्चे तो सुबह ही चले गए थे. उन के जाने के बाद चंचल ने घर का सारा काम खत्म किया और खुद सजसंवर कर बैठ गई. अपने बताए समय पर शिशुपाल सोहनवीर के घर पहुंच गया. दरवाजे की कुंडी खड़की तो चंचल ने घड़ी की ओर देखा, ठीक 11 बज रहे थे. चेहरे पर मुसकान बिखेर कर एक बार वह आइने के सामने आ कर मुसकराई, फिर मन ही मन लजाई, उस ने साड़ी के पल्लू से खुद को लपेटा और सामने के बालों को गोल कर गालों पर गिरा लिए. चंचल का निखरा गोरा बदन दूध की तरह दमक रहा था.

उस ने दरवाजा खोला तो सामने शिशुपाल खड़ा था. उसे देखते ही चंचल ने मुसकान बिखेरी और निगाहें नीची कर लीं. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘अंदर आइए न.’’

‘‘जी, सोहनवीर नहीं है क्या?’’ शिशुपाल ने हिचकिचा कर पूछा.

‘‘मैं तो हूं, आप की ही राह देख रही थी.’’ चंचल बोल पड़ी.

‘‘जी आप मेरी राह!’’ शिशुपाल चौंका तो चंचल ने बिना किसी हिचक के उसे हाथ बढ़ा कर अंदर आने का इशारा किया. शिशुपाल अंदर आ गया तो चंचल ने अंदर से कुंडी लगा दी और पलट कर शिशुपाल से बोली, ‘‘आप अभी तक खड़े हैं.’’

चंचल ने कुरसी निकाल कर देनी चाही तो शिशुपाल बोला, ‘‘आज मैं अपने पैसे ले कर ही जाऊंगा, बुलाओ सोहनवीर को जो मुंह छिपा कर बैठा है.’’

‘‘आप के तो दिमाग में दिन रात पैसा ही पैसा सवार रहता है. ये देखो कितना पैसा है मेरे पास.’’ चंचल ने स्वयं ही साड़ी का पल्लू हटा कर उस से कहा. यह देख शिशुपाल ठगा सा देखता रह गया. उस की निगाहें चंचल के तराशे हुए जिस्म पर थीं. वह अपलक देखे जा रहा था.

‘‘सचमुच सांचे में तराशा हुआ बदन है तुम्हारा.’’ शिशुपाल बोला. चंचल ने झट से पल्लू से खुद को लपेट लिया. शिशुपाल चंचल के दिल की मंशा जान चुका था. उस ने चंचल को लपक कर अपनी ओर खींचा और बाजुओं में जकड़ लिया. चंचल के सारे बदन में एक अजीब सा रोमांच उठने लगा. उस ने दोनों बांहें शिशुपाल के कंधों पर जमा लीं. शिशुपाल ने चंचल को बांहों में उठा कर पलंग पर लिटा दिया. वह सुहागन हो कर भी शादीशुदा औरत की सारी मर्यादाएं भूल कर वासना के अंधे कुंए में कूद पड़ी थी, जिस में कूदने के बाद चंचल ने असीम आनंद का अनुभव किया.

वह शिशुपाल की दीवानी हो गई. उस ने कहा, ‘‘अब बताओ इस दौलत में सुख है या फिर तुम्हारी तिजोरी वाली दौलत में?’’

‘‘सच कहूं तो मैं ने जब पहली बार तुम्हें देखा था तो तिजोरी की दौलत को भूल गया था और तुम्हारी इस दौलत का दीवाना हो गया था.’’

शिशुपाल की बांहों की गरमी पा कर चंचल को लगने लगा था कि अब उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गईं. चंचल अब शिशुपाल के वश में हो चुकी थी. जब जी करता दोनों एकदूसरे में समा जाते थे. 21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल खेत से चारा लाने की बात कह कर घर से निकला लेकिन दोपहर तक नहीं लौटा. घरवालों ने उसे सभी जगह तलाशा, लेकिन कोई पता नहीं चला. कई दिन बाद भी जब शिशुपाल का पता नहीं लगा तो उस के भाई नवल सिंह ने 30 जुलाई को सिकंदरा थाने में शिशुपाल के गुम होने की सूचना दी. जिस पर इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने गुमशुदगी दर्ज कर जांच एसआई अमित कुमार को सौंप दी.

पुलिस ने हर जगह शिशुपाल का पता किया लेकिन कुछ पता नहीं लगा. इस पर पुलिस ने जानकारी जुटा कर पता किया कि शिशुपाल से कौनकौन मिलने आता है और शिशुपाल कहांकहां जाता था. इसी जांच में सोहनवीर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पता चला कि शिशुपाल हर रोज सब से ज्यादा समय सोहनवीर के घर बिताता था. शिशुपाल और सोहनवीर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स की जांच की गई तो जानकारी मिली कि घटना वाले दिन सुबह साढ़े 10 बजे दोनों के बीच बात हुई थी. फोन सोहनवीर ने किया था. उसी के बाद से शिशुपाल लापता हो गया था.

12 अगस्त, 2020 को इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने पुलिस टीम के साथ जा कर सोहनवीर सिंह को उस के घर से हिरासत में ले लिया. थाने  ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने शिशुपाल की हत्या कर देने की बात स्वीकार कर ली. इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने उस की निशानदेही पर अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत के पास सीवर नाले से शिशुपाल की लाश बरामद कर ली. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद वह थाने लौट आए. पुलिस ने सोहनवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करने के बाद उस से विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि शिशुपाल और चंचल के नाजायज रिश्ते की इमारत जैसेजैसे बनती गई, वह लोगों की नजरों में आने लगी थी. लोगों की नजरों में बात आई तो सोहनवीर तक पहुंचते देर नहीं लगी. तब सोहनवीर ने अपने घर की इज्जत पर हाथ डालने वाले शिशुपाल को जान से मार देने का फैसला कर लिया.  उस ने घटना से 1-2 दिन पहले मोबाइल पर शिशुपाल से बात की और कहा कि कुछ परेशानी थी, इस वजह से वह उस का पैसा नहीं दे पाया लेकिन अब जल्द ही दे देगा. शिशुपाल तो वैसे भी अपनी दी गई रकम का ब्याज उस की पत्नी के बदन से वसूल रहा था. इसलिए उस ने कह दिया कि ठीक है जब पैसा हो जाए दे देना.

21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल चारा लाने के लिए घर से खेत की तरफ जाने के लिए निकला. वह खेत पर था तब करीब साढ़े 10 बजे सोहनवीर ने फोन कर के उसे मिलने के लिए बुलाया. शिशुपाल उस के पास पहुंचा तो सोहनवीर उसे अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत में ले गया. वहीं पर उस ने कोल्ड ड्रिंक में कीटनाशक मिला कर शिशुपाल को पिला दी, जिसे पीने के कुछ ही देर में शिशुपाल की मौत हो गई. सोहनवीर ने शिशुपाल की लाश इमारत के पास वाले सीवर नाले में डाल दी और घर चला गया. कागजी खानापूर्ति करने के बाद इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने सोहनवीर को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में चंचल परिवर्तित नाम है)

 

Love Crime : इश्क में अंधी बेटी ने प्रेमी के संग मिलकर मां को डंडे से पीट कर मार डाला

Love Crime : जावेद से शादी हो जाने के बाद भी सबीना ने शादी से पहले के प्रेमी मोइन से संबंध बनाए रखे. यही उस की सब से बड़ी भूल साबित हुई. फिर एक दिन…

10 अगस्त, 2020 की सुबह. जिला कौशांबी के गांव चपहुआ के लोग अपने खेतों की ओर जा रहे थे. तभी कुछ लोगों की नजर नाले के पास उगी झाडि़यों की तरफ गई. वहां कुछ था. उन लोगों ने करीब जा कर देखा तो किसी महिला की लाश पड़ी थी. ध्यान से देखने पर पता चला कि लाश उन के गांव की रहने वाली 45 वर्षीय गुडि़या की है. गुडि़या बब्बू हसन की पत्नी थी, जो पिछले 2 दिनों से घर से गायब थी. काफी खोजबीन के बाद भी जब उस का पता नहीं चल पाया था तो बब्बू के साले यानी गुडि़या के भाई आफताब ने चरवा कोतवाली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

गुडि़या की गुमशुदगी दर्ज होते ही चरवा थाने की पुलिस उस की खोजबीन में जुट गई थी. पुलिस तो उस का पता नहीं लगा पाई, लेकिन 10 अगस्त को नाले के पास झाडि़यों में उस की लाश मिल गई. लाश मिलने की सूचना किसी ने चरवा थाने को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संतशरण सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और इस बात से एएसपी समरबहादुर को भी अवगत करा दिया. थानाप्रभारी ने लाश की बारीकी से जांचपड़ताल की तो पाया कि मृतका के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर उसे मौत के घाट उतारा गया था. मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने गुडि़या की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के भाई आफताब की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मृतका गुडि़या की हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एएसपी समरबहादुर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में थानाप्रभारी संतशरण सिंह, एसआई शिवशरण, हेडकांस्टेबल शिवसागर, कांस्टेबल श्रवण कुमार, छाया शर्मा आदि को शामिल किया गया. इंसपेक्टर संतशरण सिंह ने सब से पहले मृतका की शादीशुदा बेटी सबीना से पूछताछ की, लेकिन उस का रोरो कर बुरा हाल था.  वह ठीक से कुछ नहीं बता पाई.पता चला कि सबीना अपनी बहनों रुबीना, गुलिस्ता और छोटे भाई हसनैन में दूसरे नंबर की थी.

करीब 4 साल पहले उस की शादी कौशांबी के ही दारानगर निवासी जावेद अहमद से हुई थी. पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन हत्या को एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी कुछ पता नहीं चल सका. एएसपी समरबहादुर मामले की प्रगति की बराबर रिपोर्ट ले रहे थे. थानाप्रभारी संतशरण सिंह ने इस बात का पता लगाना शुरू किया कि सबीना अपने पति को छोड़ कर मायके में क्यों रह रही थी, जबकि उस का अपने पति से तलाक भी नहीं हुआ था. पता चला कि सबीना का पति जावेद उम्रदराज था, जिसे वह पसंद नहीं करती थी, इसी वजह से वह अपने बच्चों को ले कर मायके में मां के पास रहती थी.

मुखबिरों का जाल बिछाया गया तो परतें खुलने लगीं, जिस में पुलिस को सबीना संदिग्ध नजर आई. पता चला कि सबीना का आए दिन अपनी मां गुडि़या के साथ विवाद होता था. मांबेटी के बीच विवाद की क्या वजह थी, इस दिशा में पड़ताल की गई तो जानकारी मिली कि शादी के बाद भी सबीना का अपने ही गांव के मोइन से इश्क चल रहा था. अपनी मां की आंखों में धूल झोंक कर वह मोइन से खेतों में मिला करती थी. पुलिस के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. चूंकि सबीना शुरू से ही संदेह के दायरे में थी, इसलिए आगे की काररवाई के लिए सबीना और उस के प्रेमी मोइन को पूछताछ के लिए थाने लाया गया और दोनों से पूछताछ की गई.

संदेह पर पुलिस की नजर पूछताछ के दौरान शुरू में सबीना और उस का प्रेमी मोइन अपने आप को निर्दोष बताते रहे. मोइन ने तो यहां तक कहा कि हम दोनों एक ही गांव के रहने वाले हैं, इस लिहाज से हमारा रिश्ता भाईबहन जैसा है. हां, पड़ोसी होने के नाते मेरा इस के घर में शुरू से ही आनाजाना था. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि यह मेरी माशूका है. मैं इसे अपनी बहन मानता हूं. किसी ने आप को गलत सूचना दे कर हमें फंसाने और बदनाम करने की साजिश की है. सबीना भी पीछे रहने वाली नहीं थी. उस ने भी मोइन की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मृतका मेरी सौतेली नहीं, सगी मां थी, जिस ने मुझे जन्म दिया था. मैं भला अपनी मां की हत्यारिन कैसे हो सकती हूं.’’

सबीना आवाज में थोड़ा तीखापन लाते हुए आगे बोली, ‘‘मोइन भाई से मेरा कोई ऐसावैसा संबंध नहीं है. आप लोग सुनीसुनाई बातों में आ कर नाहक हमें रुसवा करने पर तुले हैं. मैं आप की इस हरकत की शिकायत बड़े अधिकारियों से करूंगी.’’

थाने के अंदर मोइन और सबीना का यह ड्रामा काफी देर तक चला. लेकिन पुलिस के पास दोनों के अवैध संबंधों की पुख्ता जानकारी थी. इसलिए पुलिस ने जब अपना हथकंडा अपनाया तो दोनों थोड़ी ही देर में टूट गए और अपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद गुडि़या की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही सबीना मोइन को चाहने लगी थी, मोइन उस का हमउम्र और पड़ोसी था. प्यार की छलांग में दोनों काफी आगे निकल चुके थे. उन्हें किसी की परवाह नहीं थी न गांव वालों की और न ही अपनेअपने घर वालों की. दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे, उन का प्यार आंखों की बेकरारी से उतर कर शारीरिक संबंधों तक पहुंच गया था.

जिस की जानकारी सबीना की मां गुडि़या को हुई तो उस ने बेटी को काफी समझाया पर सबीना कहां मानने वाली थी. उस पर तो मोइन के प्यार का नशा चढ़ा था, जिस की वह कोई भी कीमत अदा करने को तैयार थी. जब वह नहीं मानी तो घर वालों ने उस की शादी कौशांबी जिले के दारानगर निवासी जावेद से तय कर दी. जावेद उम्र में उस से काफी बड़ा था. सबीना ने इस शादी का विरोध किया लेकिन मांबाप, बहनोंबहनोइयों, नातेरिश्तेदारों के आगे उस की एक न चली और आननफानन में जावेद अहमद के साथ उस का निकाह हो गया. सबीना के सारे अरमान धरे रह गए. समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. देखतेदेखते सबीना 3 बच्चों की मां बन गई. लेकिन उस के दिल को मोइन की मोहब्बत और साथ हमेशा सालता रहा.

अब उसे पति जावेद बूढ़ा नजर आने लगा था. किसी न किसी बात पर सबीना उस से झगड़ती रहती थी. फिर एक दिन वह भी आया जब पति से उस की कुछ ज्यादा ही कहासुनी हो गई. वह पति से नाराज हो कर अपने मायके आ गई. करीब साल भर से वह मायके में ही रह रही थी. सबीना के मायके लौट आने से मोइन की तो जैसे लाटरी लग गई. फिर से दोनों का मिलन होने लगा. अब दोनों बेखौफ हो कर एकदूसरे से मिलते, सबीना की मां गुडि़या इस का पुरजोर विरोध करती थी. लेकिन सबीना के आगे उस की एक नहीं चलती थी. सबीना मां को सफाई दे कर मोइन के साथ मौजमस्ती करती रही.

एक दिन गुडि़या ने सबीना को मोइन के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. खेतों से लौट कर उस ने सबीना को अपने पति के पास लौट जाने को कहा, लेकिन सबीना मोइन के प्रेम में दीवानी थी. उस पर मां की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उलटे वह मां से लड़नेझगड़ने लगी.

फिर तो आए दिन मांबेटी के बीच झगड़ा होने लगा. मां उसे बारबार अपनी ससुराल जाने को कहती लेकिन वह ससुराल जाने से मना कर देती थी. हत्या की योजना आखिरकार रोजरोज की चिकचिक से आजिज सबीना ने एक कठोर निर्णय ले लिया. मोइन के प्यार में पागल, दीवानी बेटी ने अपनी मां की हत्या की साजिश रच डाली. उसे प्रेमी का प्रेम या हवस के आगे मां सब से बड़ी दुश्मन नजर आने लगी. सबीना ने मां गुडि़या की हत्या की योजना प्रेमी मोइन को बता दी. पहले तो उस ने ऐसा करने से मना किया, लेकिन बाद में हत्या की योजना में शामिल हो गया. सबीना की तरह प्यार में अंधा मोइन प्रेमिका के लिए कुछ भी करने को तैयार था. मोइन ने अपनी योजना में अपने दोस्तों मोनू और मोहम्मद सद्दाम से बात की तो वे उस का साथ देने को तैयार हो गए थे.

तय योजना के अनुसार 8 अगस्त, 2020 को मोइन और उस के साथियों मोनू और मोहम्मद सद्दाम ने मिल कर गुडि़या को उस समय मौत के घाट उतार दिया, जब वह घूमने के लिए खेतों की तरफ निकली थी, उस की हत्या डंडे से पीटपीट कर की गई थी. सिर में भी डंडा मारा गया था जो जानलेवा साबित हुआ. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या के लिए प्रयुक्त डंडा, मृतका की एक जोड़ी चप्पलें बरामद कीं. गुडि़या की हत्या के आरोप में उस की बेटी सबीना, उस के आशिक मोइन मोनू उर्फ निहाल और मोहम्मद सद्दाम को जिला न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

Moradabad News : 4 बच्चों की मां ने कराई पति की हत्या

Moradabad News : शादीशुदा और 4 बच्चों की मां रीनू ने पहली गलती कपिल से अवैध संबंध बना कर की, दूसरी गलती उस ने इस संबंध को स्थाई बनाने के लिए अपनी छोटी बहन की शादी कपिल से करा कर की. उस की तीसरी गलती कपिल को रिश्तेदार बना कर घर में रखने की थी. और चौथी गलती पति शिवकुमार को मौत के घाट उतरवाने की. इतनी गलतियां करने के बाद…

20 जून, 2020 की सुबह की बात है. मुरादाबाद शहर के सिरकोई भूड़ की रहने वाली वीरवती रोजाना कीतरह सुबह की सैर के लिए निकली थीं. लेकिन उन्होंने मोहल्ले में जो कुछ देखा, उसे देख वह हक्कीबक्की रह गईं. वीरवती जब गली नंबर एक के पास पहुंचीं तो वहां एक युवक की लाश पड़ी थी. जिज्ञासावश वह लाश के नजदीक पहुंचीं तो उन की चीख निकल गई, क्योंकि वह लाश उन के सगे भांजे  शिवकुमार की थी. शिवकुमार उसी गली में रहता था, जिस गली में उस की लाश पड़ी थी. वीरवती रोती हुई शिवकुमार के घर पहुंचीं और यह खबर दी. शिवकुमार के पिता रामकुमार परिवार के लोगों के साथ तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

शिवकुमार का सिर कुचला हुआ था और पास में ही खून से सनी एक ईंट पड़ी थी. ईंट को देख कर वह समझ गए कि उसी से शिवकुमार का सिर कुचला गया है. घर वालों की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले के और लोग भी वहां जमा हो गए. कुछ ही देर में शिवकुमार की हत्या की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. फिर क्या था, थोड़ी ही देर में वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि शिवकुमार की हत्या किस ने और क्यों की. इसी दौरान किसी ने फोन कर के इस की सूचना थाना मझोला पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह उसी समय रात्रि गश्त से लौटे थे, हत्या की खबर सुन कर वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश और घटनास्थल का मुआयना किया.

उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया और यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सुबूत जुटाए. पुलिस ने खून से सनी ईंट अपने कब्जे में ले ली. सूचना मिलने के बाद एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद और तत्कालीन एएसपी दीपक भूकर भी वहां आ गए. मृतक के घर वाले वहां मौजूद थे, मृतक की शिनाख्त हो चुकी थी. हत्यारे ने जिस तरह से शिवकुमार का सिर कुचला था, उसे देख कर लग रहा था कि हत्यारे की उस से कोई गहरी रंजिश रही होगी. मृतक के घर वालों और अन्य लोगों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शिवकुमार का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पूछताछ में मृतक की पत्नी रीनू ने बताया कि उस के पति ने 2 लोगों से कर्ज ले रखा था. कर्ज न चुकाने की वजह से वे शिवकुमार को काफी तंग कर रहे थे. रीनू ने आरोप लगाया कि शायद उन्हीं लोगों ने उस के पति की हत्या की होगी.

जबकि मृतक के छोटे भाई राजकुमार ने हत्या का शक मृतक के साढ़ू कपिल उर्फ मोनू पर जताया. इतना ही नहीं, उस ने थाने पहुंच कर कपिल उर्फ मोनू के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करा दी. नामजद रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी. संदिग्ध आरोपी कपिल मुरादाबाद शहर के ही लाइनपार इलाके के प्रकाशनगर में रहता था. पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. इस से उस पर पुलिस का शक बढ़ गया. कपिल से पूछताछ जरूरी थी, लिहाजा पुलिस ने उस की खोजबीन शुरू कर दी. थानाप्रभारी ने कपिल की तलाश में मुखबिर भी लगा दिए. इस का नतीजा यह निकला कि 23 जून, 2020 को एक मुखबिर से मिली सूचना के बाद पुलिस ने शिवकुमार के साढ़ू कपिल उर्फ मोनू को मुरादाबाद दिल्ली हाइवे पर स्थित बस स्टाप से  गिरफ्तार कर लिया. वह दिल्ली भागने की फिराक में था.

थाने ला कर कपिल से शिवकुमार की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई, तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि शिवकुमार की हत्या में उस की पत्नी रीनू भी शामिल थी. कपिल उर्फ मोनू से पूछताछ के बाद शिवकुमार की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी—

महानगर मुरादाबाद का एक मोहल्ला है सिरकोई भूड़. रामकुमार अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहते थे. उन के परिवार  में 4 बेटियों के अलावा 2 बेटे थे. रामकुमार मुरादाबाद के जलकल विभाग में नलकूप औपरेटर थे. इस नौकरी से ही वह परिवार का पालनपोषण करते थे. उन्होंने सन 2007 में बड़े बेटे शिवकुमार की शादी मुरादाबाद जिले के ही  गांव मझरा निवासी नरेश कुमार की बेटी रीनू के साथ की थी. जैसेजैसे रामकुमार का रिटायरमेंट का समय नजदीक आता जा रहा था, वैसेवैसे उन की चिंता बढ़ती जा रही थी. वजह यह थी कि उन के दोनों बेटों में से कोई भी पढ़लिख कर काबिल नहीं बन सका था. करीब 2 साल पहले रामकुमार रिटायर हो गए, लेकिन इस से पहले उन्होंने नगर आयुक्त संजय चौहान से अनुरोध कर बड़े बेटे शिवकुमार को जलकल विभाग में संविदा के तौर पर नलकूप चालक की नौकरी दिलवा दी थी.

शिवकुमार की ड्यूटी उस के घर से कुछ ही दूर पर कांशीराम नगर में थी. उस का काम नलकूप चला कर पानी का टैंक भरने का था. बेटे की नौकरी लग जाने के बाद रामकुमार ने राहत की सांस ली. मुरादाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा विकसित किए गए कांशीराम नगर के पास ही बुद्धा पार्क है. इस पार्क में सैकड़ों लोग घूमने आते हैं, जिस से सुबहशाम चहलपहल रहती है. इसी पार्क के बाहर कपिल उर्फ मोनू फास्टफूड का काउंटर लगाता था. वह शहर के लाइनपार स्थित प्रकाश नगर में रहता था. कपिल बहुत स्वादिष्ट फास्टफूड बनाता था, उस के पास ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी. शिवकुमार की पत्नी रीनू अकसर कपिल का फास्टफूड खाने जाती थी. कपिल बहुत बातूनी था. रीनू को भी उस से बात करना अच्छा लगता था. बातचीत के दौरान दोनों की दोस्ती हो गई.

इस के बाद कपिल रीनू के कहने पर उस के घर पर ही बर्गर, पिज्जा आदि देने के बहाने जाने लगा. दोनों जब फुरसत में होते तो फोन पर खूब बातें करते थे. बातचीत का दायरा बढ़ा तो दोनों का एकदूसरे की तरफ झुकाव हो गया, दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. रीनू यह भी भूल गई कि वह शादीशुदा ही नहीं, 4 बच्चों की मां भी है. वह जो कर रही है वह सही नहीं है. वह कपिल के आकर्षण में बंध चुकी थी. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. रीनू का पति शिवकुमार अकसर रात की ड्यूटी करता था. उस के ड्यूटी चले जाने के बाद मीनू फोन कर के कपिल को अपने घर बुला लेती थी. उस के बाद दोनों अपनी हसरतें पूरी करते थे.

ढूंढ लिया स्थाई जुगाड़ पिछले करीब 2 साल से उन का यही सिलसिला चल रहा था. रीनू किसी भी तरह कपिल से दूर नहीं होना चाहती थी. इस के लिए उस ने एक योजना बनाई. इस योजना के तहत उस ने कपिल के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि वह उस की छोटी बहन रिंकी से शादी कर ले तो इस रिश्ते की आड़ में उन के संबंध यूं ही बने रहेंगे और उन पर किसी को शक भी नहीं होगा. यह बात कपिल की समझ में आ गई. रीनू और कपिल ने अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए योजना तो बना ली थी, लेकिन यह योजना शिवकुमार के बिना साकार नहीं हो सकती थी. लिहाजा एक दिन रीनू ने पति से कहा, ‘‘हम लोग काफी दिनों से रिंकी के लिए लड़का तलाश रहे हैं, लेकिन अभी तक कहीं कोई बात नहीं बनी. हम लोग बुद्धा पार्क के पास जिस कपिल के पास फास्टफूड खाने जाते हैं, वह मुझे सही लगा. तुम उस से बात कर के देखो.’’

शिवकुमार को पत्नी की चाल का पता नहीं था. उसे कपिल अच्छा लड़का नजर आया, क्योंकि वह अच्छा कमा रहा था. उस ने सोचा कि अगर रिंकी की शादी कपिल से हो जाएगी तो वह सुख से रहेगी. सोचविचार कर शिवकुमार ने कपिल के सामने अपनी साली रिंकी के साथ शादी का प्रस्ताव रखा. इस पर कपिल ने कहा कि पहले वह लड़की को देखेगा, उस के बाद ही कोई जवाब देगा. निर्धारित समय पर रीनू ने अपने घर पर ही लड़की दिखाने का प्रोग्राम निश्चित कर लिया. कपिल अपने घर वालों के साथ रीनू के घर पहुंचा. उन्होंने लड़की को पसंद कर लिया. आगे की बातचीत करने के बाद रिंकी से कपिल की शादी हो गई. यह करीब डेढ़ साल पहले की बात है. शिवकुमार ने साली की शादी में दिल खोल कर पैसा खर्च किया.

रिंकी से शादी हो जाने के बाद कपिल का रीनू के घर आनाजाना बढ़ गया. अब दोनों रिश्तेदार हो गए थे, इसलिए दोनों के रिश्ते पर किसी को शक नहीं हुआ. लेकिन गलत काम ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता. एक न एक दिन पोल खुल ही जाती है.कोरोना महामारी के बाद पूरे देश में लौकडाउन लग गया. लौकडाउन लगने के बाद कपिल का फास्टफूड का काउंटर भी बंद हो गया था. इस के बाद वह अकसर रीनू के घर पर ही पड़ा रहने लगा. शिवकुमार को शक हुआ कि वह उस के घर पर ही क्यों पड़ा रहता है. उस ने कपिल पर निगाह रखनी शुरू कर दी. अपनी पत्नी और कपिल के व्यवहार से शिवकुमार को शक हो गया कि दोनों के बीच जरूर कोई चक्कर चल रहा है.

शिवकुमार की नजरों में चढ़ा कपिल इस बारे में उस ने पत्नी से बात की तो रीनू ने उसे समझाया कि लौकडाउन में काम बंद पड़ा है, इसलिए कपिल यहां आ जाता है. लेकिन शिवकुमार पत्नी की इस बात से संतुष्ट नहीं हुआ. तब उस ने पत्नी के साथ सख्ती बरती. उस ने अपने साढ़ू कपिल से भी कह दिया कि वह घर न आया करे. पति की यह बात रीनू को बहुत बुरी लगी. वह कपिल के पक्ष में खड़ी हो गई. उस ने कहा कि जब ये हमारे रिश्तेदार हैं तो इन्हें आने से कैसे रोक सकते हैं. इस बात को ले कर शिवकुमार और कपिल के बीच कई बार झगड़ा हुआ. इस के बाद भी कपिल ने रीनू के पास आना बंद नहीं किया. शिवकुमार रात को जब अपनी ड्यूटी पर चला जाता, कपिल उस के घर पहुंच जाता था.

19-20 जून, 2020 की रात को करीब 12 बजे शिवकुमार अपनी ड्यूटी पर चला गया. पति के जाते ही मीनू ने फोन कर के कपिल को घर बुला लिया. इस के बाद दोनों अपनी हसरतें पूरी करने में जुट गए. उधर 3-4 घंटे में पानी का टैंक भरने के बाद शिवकुमार सुबह करीब 4 बजे घर लौट आया. दरवाजा खुलवाने के लिए उस ने रीनू को आवाज दी. लेकिन वह कपिल के साथ रंगरलियां मना रही थी. शिवकुमार की आवाज सुन कर दोनों हड़बड़ा गए. अपने कपड़े संभालती हुई रीनू दरवाजा खोलने आई. उस समय शिवकुमार शराब के नशे में था. उस ने कमरे में कपिल को देखा तो आगबबूला हो गया. उसे समझते देर न लगी कि कमरे में क्या हो रहा था.

गुस्से में आगबबूला शिवकुमार कपिल से भिड़ गया. रीनू उस का बचाव करने के लिए सामने आई, तो शिवकुमार ने पत्नी को भी गालियां दीं. शोरशराबा हुआ तो रीनू और कपिल को विश्वास हो गया कि अब उन की पोल खुल जाएगी. लिहाजा दोनों ने एकदूसरे की ओर देख कर आंखों ही आंखों में इशारा कर एक षडयंत्र रच लिया. फंस गया शिवकुमार इस षडयंत्र के तहत कपिल ने शिवकुमार को बिस्तर पर गिरा लिया और उस के सीने पर सवार हो गया. तभी रीनू ने तकिया उठा कर कपिल को दे दिया. कपिल ने तकिया शिवकुमार के मुंह पर रख कर जोरों से दबाया. रीनू ने पति के पैर दबा रखे थे. सांस घुटने से कुछ ही देर में शिवकुमार की मौत हो गई.

खुद को बचाने के लिए दोनों ने  शिवकुमार की लाश गली में डाल दी. वह कहीं जीवित न रह जाए, इसलिए कपिल ने गली में पड़ी एक ईंट से शिवकुमार के सिर को बुरी तरह से कुचल दिया. इस काम को अंजाम देने के बाद कपिल अपने घर चला गया. सुबह करीब 5 बजे जब शिवकुमार की मौसी वीरवती घर से सैर के लिए निकलीं, तब उन्होंने गली में शिवकुमार की लाश देखी. इस के बाद उन्होंने शोर मचा कर हत्या की जानकारी घर वालों को दी. कपिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रीनू को भी गिरफ्तार कर लिया. रीनू ने भी पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने 23 जून,2020 को कपिल कुमार उर्फ मोनू और रीनू को शिवकुमार की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hardoi News : पत्नी से संबंध बना रहा था भाई, पति ने देखा तो कर दी हत्या

Hardoi News : एक कलंकित रिश्ता परिवार को बिखेर सकता है, अपने ही खून के हाथों खून करा सकता है. ऐसा ही कुछ…

शिवराज कुशवाहा जनपद हरदोई के गांव देहीचोर अंटवा में अपने परिवार के साथ रहते थे. काम था खेतीकिसानी का. परिवार में पत्नी कैलाशा देवी और 3 बेटे थे— अर्जुन, अमर सिंह और कैलाश. अर्जुन लखनऊ में एक ट्रैक्टर एजेंसी में काम करता था. अमर सिंह नोएडा की किसी फैक्टरी में कार्यरत था और कैलाश गांव में खेती करता था. शिवराज ने तीनों का विवाह कर के जमीन का बंटवारा कर दिया था. तीनों भाई परिवार के साथ अपनेअपने हिस्से में रहते थे. करीब 6 साल पहले अमर सिंह का विवाह विनीता से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. कैलाश की शादी 4 साल पहले कंचनलता से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे.

घर से दूर नोएडा में रहने की वजह से अमर सिंह की पत्नी विनीता का गांव में मन नहीं लगता था. पति 2-3 महीने में घर का चक्कर लगाता था, फलस्वरूप विनीता पति से मिलने वाले सुख के लिए बेचैन रहती थी. काफी समय तक पति सुख से वंचित रहने के कारण उस का तन विद्रोह करने लगा था. विनीता का देवर कैलाश घर पर ही रहता था. जब वह उस से हंसीमजाक करता तो कभीकभी अपनी सीमाएं लांघ जाता था. विनीता समझ गई कि कैलाश भले ही शादीशुदा है, लेकिन उसे शायद घर की दाल में मजा नहीं आ रहा, इसलिए वह बाहर की बिरयानी खाने की जुगत में है. इसी वजह से वह उस पर डोरे डालने की कोशिश कर रहा है.

कैलाश भी जानता था कि उस का बड़ा भाई अमर सिंह बाहर रहता है, इसलिए उस की भाभी प्यासी मछली की तरह तड़पती होंगी. वह अपनी भाभी को अपने आगोश में लेने के लिए सारे जतन कर रहा था.  विनीता भी उस की मंशा भांप कर खुश थी. क्योंकि उस प्यासी के लिए तो कुआं घर में ही मौजूद था, बाहर तलाशने की जरूरत नहीं थी. दोनों ही एकदूसरे में समाने को आतुर हुए तो विनीता ने मिलन का रास्ता भी\ बना लिया. एक दिन दोपहर के समय विनीता चारपाई पर लेटी थी तभी कैलाश वहां आ गया. उसे देख कर विनीता पैरों में दर्द का बहाना कर के कराहने लगी. उस ने साड़ी को घुटने तक खींच लिया. कैलाश ने उस की हालत देखी तो बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी, ऐसे कराह क्यों रही हो?’’

‘‘क्या बताऊं…पैरों में बड़ी जोर से दर्द हो रहा है.’’ विनीता अपने हाथ से दायां पैर दबाने की कोशिश करती हुई बोली.

‘‘अरे आप क्यों परेशान हो रही हैं, मैं दबा देता हूं पैर.’’ कह कर कैलाश उस के नग्न पैरों को अपने हाथों से दबाने लगा. इस पर विनीता उस को तेल की शीशी देते हुए बोली, ‘‘इस तेल से मालिश कर दो, कुछ आराम मिल जाएगा.’’

कैलाश ने उस के हाथों से तेल की शीशी ले कर थोड़ा तेल निकाला और भाभी के पैरों की मालिश करने लगा. पराए मर्द के हाथों के स्पर्श से विनीता के तन में चिंगारियां फूटने लगीं. तनबदन मचल उठा. जैसेजैसे कैलाश मालिश कर रहा था, विनीता साड़ी को थोड़ाथोड़ा ऊपर खींचते हुए मालिश करने को कहती गई, ‘‘थोड़ा और ऊपर मालिश कर दो. जैसेजैसे मालिश कर रहे हो, दर्द नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है.’’ मस्ती से सराबोर हो कर विनीता ने कहा. इस के बाद उस ने साड़ी को कूल्हों तक खींच लिया.

कैलाश कोई नादान नहीं था. वह भाभी की मंशा समझ गया और मालिश करतेकरते अपना नियंत्रण खोने लगा. उस के हाथ आगे बढ़ते गए. अंतत: विनीता ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. उस के बाद उन के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. इस के बाद दोनों के बीच संबंधों का यह सिलसिला चलने लगा. लेकिन ऐसे संबंध एक न एक दिन उजागर हो ही जाते हैं. अमर सिंह को अपनी पत्नी व भाई के बीच के नाजायज संबंधों का पता चल गया तो वह गांव आ गया. उस ने गुस्से में विनीता को तो जम कर पीटा ही, कैलाश के साथ भी मारपीट की. विनीता और बच्चों को वह अपने साथ नोएडा ले गया.

विनीता के चले जाने के बाद कैलाश भी काम के सिलसिले में हैदराबाद चला गया. कैलाश की पत्नी कंचनलता 2 बच्चों के साथ घर पर रह रही थी. कंचनलता को घर में अकेले देख कर कैलाश का चचेरा भाई रमाकांत उस के पास आने लगा. रमाकांत पड़ोस में ही रहता था और अविवाहित था. उस की चाय समोसे की दुकान थी. कंचनलता की कंचन काया छरहरी थी. रमाकांत उस पर आसक्त हो गया. 2 बच्चों की मां कंचनलता अपने हुस्न से तमाम लड़कियों को मात दे सकती थी. खूबसूरत हुस्न की मालकिन कंचन पति कैलाश के बिना मुरझाईमुरझाई सी रहने लगी. वह हंसती तो लगता जैसे दिखावटी हंसी हंस रही हो. रमाकांत उस के मुरझाने का कारण बखूबी समझता था. इसलिए रमाकांत उस के पास जाता तो उसे हंसाने की कोशिश करता. कंचनलता को भी उस की बातें अच्छी लगती थीं. वह उस से घुलनेमिलने लगी.

एक दिन बातोंबातों में रमाकांत कंचनलता के दर्द को अपनी जुबां पर ले आया, ‘‘भाभी, मैं देख रहा हूं कि जब से कैलाश भैया गए हैं, तब से आप उदास सी रहने लगी हो.’’

‘‘तो क्या करूं, उन के जाने पर नाचूं या हंसू?’’ कंचनलता ने बड़ी कड़वाहट से जवाब दिया.

‘‘आप को भी उन के साथ चले जाना चाहिए था, आखिर आप की भी अपनी कुछ जरूरतें और इच्छाएं हैं.’’

‘‘उन को मेरी चिंता ही कहां है.’’ वह बुझे मन से बोली.

‘‘जब उन्हें आप की चिंता नहीं है तो आप भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिओ. आप को भी पूरी आजादी है, मैं आप का हर तरह से साथ देने को तैयार हूं.’’ रमाकांत बोला. यह सुन कर कंचनलता मुसकराई और अपनी नजरें झुका लीं. रमाकांत ने अपने दाएं हाथ से कंचनलता की ठोढ़ी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया और उस की आंखों में देखा. इस पर कंचनलता कुछ देर यूं ही उस की आंखों में देखती रही. फिर उस के अंदाज की कायल हो कर उस से लिपट गई. रमाकांत ने भी कंचनलता को अपनी बांहों में भर लिया. फिर उन के बीच की सारी मर्यादाएं टूट गईं, दोनों के जिस्म एक हो गए. उन के बीच यह खेल निरंतर खेला जाने लगा.

देश में लौकडाउन हुआ तो अमर सिंह को सपरिवार नोएडा से गांव आना पड़ा. कैलाश भी हैदराबाद से गांव वापस लौट आया. सभी के घर आ जाने के बाद कैलाश और विनीता ने मौका मिलने पर फिर से संबंध बनाने शुरू कर दिए. कैलाश रोज रात में 11 बजे गर्रा नदी किनारे अपने मक्का के खेत की रखवाली के लिए चला जाता था और सुबह 4 बजे घर लौटता था. लेकिन 22 अगस्त, 2020 की सुबह कैलाश काफी देर तक घर नहीं लौटा तो कंचनलता उसे बुलाने खेतों पर गई. वहां खेत में उसे पति की लाश पड़ी मिली. उस ने रोतेपीटते घर वालों को घटना की सूचना दी. कुछ ही देर में घर वाले और गांव के लोग वहां एकत्र हो गए.

कैलाश के दोनों भाई भी वहां पहुंच गए थे. वह समझ नहीं पा रहे थे कि कैलाश की हत्या किस ने कर दी. भाई अमर सिंह ने सांडी थाना पुलिस को घटना की सूचना दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर अखिलेश यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थाने से रवाना होते समय उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना की सूचना दे दी थी. घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर यादव ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के सिर व हाथों पर किसी तेज धारदार हथियार के घाव थे. आसपास का निरीक्षण करने पर उन्हें कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. उन्होंने कंचनलता, अमर सिंह व अन्य घरवालों से आवश्यक पूछताछ की. इसी बीच एएसपी (पूर्वी) अनिल सिंह यादव और सीओ बिलग्राम एस.आर. कुशवाहा भी मौके पर पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, उस के बाद उन्होंने मृतक के घर वालों से पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर अखिलेश यादव को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर यादव ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल स्थित मोर्चरी भेज दी और अमर सिंह को साथ ले कर थाने लौट गए. थाने पहुंच कर उन्होंने अमर सिंह की तरफ से अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इंसपेक्टर यादव ने केस की जांच शुरू की. घर वालों ने मामला जमीनी रंजिश का बताया था, लेकिन वैसा लग नहीं रहा था. गांव वालों व पड़ोसियों से पूछताछ के बाद घटना की वजह कुछ और ही नजर आ रही थी. इंसपेक्टर यादव ने कैलाश के घर आनेजाने वालों व घर के बराबर में रहने वाले कैलाश के भाईबंधुओं के बारे में पता किया, तब उन्हें पता चला कि लाश मिलने के एक दिन पहले रात में अमर सिंह और उस के चचेरे भाई रमाकांत को एक साथ गांव के बाहर जाते देखा गया था.

यह भी पता चला कि रमाकांत कैलाश की गैरमौजूदगी में उस के घर में ही घुसा रहता था. कैलाश के संबंध अमर सिंह की पत्नी से थे, जिस की वजह से अमर सिंह पत्नी को नोएडा ले गया था. यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर यादव ने अमर सिंह और रमाकांत को 30/31 अगस्त की रात करीब ढाई बजे गांव बरोलिया के मंदिर के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी. लौकडाउन में घर वापस आने के बाद कैलाश और विनीता में फिर से संबंध बनने लगे तो यह बात छिप न सकी. अमर सिंह को भी यह जानकारी मिल चुकी थी. अमर सिंह गुस्से से आगबबूला हो उठा.

उस ने अपने छोटे भाई कैलाश को काफी समझाया, पर उन दोनों पर उस के समझाने का कोई असर नहीं पड़ा. कैलाश बड़े भाई की बात मानने को तैयार नहीं था. ऐसे में अमर सिंह ने उसे मौत की नींद सुलाने का फैसला कर लिया. एक बार अमर सिंह ने चचेरे भाई रमाकांत को कैलाश की पत्नी कंचनलता से संबंध बनाते देख लिया था. तब रमाकांत ने अमर सिंह से माफी मांग ली थी और अमर सिंह भी चुप हो गया. अमर सिंह को कैलाश की हत्या में साथ देने के लिए एक साथी की जरूरत थी. वह साथी उसे रमाकांत के रूप में मिल गया. अमर सिंह ने भाई कैलाश की हत्या में रमाकांत से मदद मांगी तो वह मना करने लगा. इस पर अमर सिंह ने कहा कि उन दोनों के रास्ते का कांटा एक ही है. वह उसे इसलिए मारना चाहता है क्योंकि वह उस की पत्नी से संबंध बना कर उस का घर खराब कर रहा है. कैलाश के रास्ते से हटने पर उस का रास्ता साफ हो जाएगा, फिर वह बेरोकटोक कंचनलता से मिल सकेगा.

अमर सिंह की बात रमाकांत के भेजे में घुस गई और रमाकांत अमर सिंह का साथ देने को तैयार हो गया. 21 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे कैलाश अपने मक्के की फसल की रखवाली के लिए घर से निकल गया. योजनानुसार रात साढे़ 12 बजे के करीब अमर सिंह और रमाकांत घर से निकले. दोनों अपने साथ एक कुल्हाड़ी भी लाए थे. दोनों खेत पर पहुंचे तो कैलाश को गहरी नींद में सोते पाया. यह देख अमर सिंह ने कुल्हाड़ी से उस के सिर पर वार किया. इस के बाद उस ने कई वार किए. रमाकांत ने भी उस से कुल्हाड़ी ले कर उस पर कई वार किए.

लहूलुहान कैलाश चारपाई से नीचे गिर गया. लेकिन कुल्हाड़ी के अनगिनत वारों के कारण कैलाश की सांसें ज्यादा देर तक चल न सकीं और उस की मौत हो गई. उसे मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने अपने खून सने कपड़े उतारे और दूसरे कपड़े पहन कर रक्तरंजित कपड़ों और कुल्हाड़ी को एक जगह छिपा दिया और घर वापस लौट आए. लेकिन गुनाह छिप न सका और वे पकड़े गए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने कुल्हाड़ी और खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनोें को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें जेल दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affair : सरिता क्यों बनी पति की कातिल

Extramarital Affair : पति की एक्सीडेंट में मौत हो जाने के बाद 34 वर्षीय सरिता ने कुख्यात बदमाश सोनू नागर से शादी कर ली थी. कुछ दिनों बाद ही ऐसा क्या हुआ कि सरिता को सोनू नागर की हत्या की सुपारी देनी पड़ी? पढ़ें, फेमिली क्राइम की यह खास स्टोरी.

मोबाइल फोन की घंटी लगातार रुकरुक कर बज रही थी. गुरमीत उस समय बाथरूम में था. जैसे ही फोन की घंटी की आवाज गुरमीत के कानों में पड़ी तो वह फटाफट नहा कर बाथरूम से बाहर आ गया. गुरमीत ने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश होते नाम को देखा तो उस के चेहरे पर मुसकान तैर गई. उस ने तुरंत काल रिसीव कर ली.

”हैलो बग्गा! आज सुबहसुबह कैसे याद आ गई अपने यार की?’’ गुरमीत ने चहक कर पूछा.

”तुझे तो मैं हर वक्त दिल में रखता हूं गुरप्रीत.’’ बग्गा सिंह दूसरी ओर से बोला, ”फिर याद तो अपनों को ही किया जाता है.’’

”ठीक है.’’ गुरमीत हंसा, ”बोल, कैसे फोन किया?’’

”एक मुरगे को टपकाना है गुरमीत.’’

”टपका देंगे.’’ गुरमीत ने लापरवाही से गरदन झटकी, ”मुरगा वजनदार तो है ना?’’

”मैं वजनदार मुरगा ही हलाल करता हूं गुरमीत. पूरे डेढ़ लाख में सौदा किया है.’’

”वाह!’’ गुरमीत ने होंठों पर जुबान फिराई, ”मोटी कटेगी यार, लेकिन सौदा फिफ्टीफिफ्टी का रहेगा बग्गा भाई.’’

”नहीं, पार्टी मेरी है इसलिए मैं तुम्हें 50 हजार दूंगा.’’ बग्गा सिंह की आवाज में अडिय़लपन था, ”देख, जब तेरी पार्टी होती है तो मैं भी वही लेता हूं जो तू देता है.’’

गुरमीत ने बात काट दी, ”वो सब ठीक है बग्गा, लेकिन 50 कुछ कम है.’’

”चल मैं 10 हजार और बढ़ा देता हूं.’’ बग्गा ने कहा, ”अब कुछ नहीं कहना.’’

”ओके.’’ गुरमीत ने गहरी सांस ली, ”मुरगा कहां टपकाना है?’’

”दिल्ली में.’’ बग्गा सिंह ने धीमी आवाज में कहा, ”तू आज ही दिल्ली पहुंच. मैं भी घर से निकल रहा हूं.’’

”तू इस वक्त कहां है?’’

”मैं भटिंडा में हूं, लेकिन हर हाल में शाम तक दिल्ली पहुंच जाऊंगा. तू मुझे फोन कर लेना. हमें कहां मिलना है, कहां ठहरना है, मैं तुझे बता दूंगा. अब तू तैयार हो, मैं काल काट रहा हूं.’’ बग्गा की तरफ से कहा गया. फिर संपर्क काट दिया गया.

गुरमीत ने मोबाइल टेबल पर रखा और दिल्ली जाने की तैयारी करने लगा. आधा घंटा बाद ही वह बैग ले कर घर से निकला और बसअड्ïडे के लिए आटो से रवाना हो गया.

3 फरवरी, 2025 की सुबह उत्तरी दिल्ली में शक्ति नगर के एफसीआई गोदाम के पास बहने वाले नाले में एक युवक औंधे मुंह पड़ा हुआ था. वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने उस युवक को देखा तो वह ठिठक गया. उसे लगा कि शायद कोई शराबी नशे में गिर गया होगा. वह उसे गौर से देखने लगा. वह व्यक्ति नाले में औंधे मुंह पड़ा था, लेकिन उस के शरीर में कोई हरकत नहीं दिखी तो उस ने अनुमान लगा लिया कि शायद इस की मौत हो चुकी है. उस ने अपना शक दूर करने के लिए दूर खड़े 2 व्यक्तियों को इशारे से अपने पास आने को कहा. वे दोनों व्यक्ति आपस में बातें कर रहे थे. इशारा मिलने पर वह उस व्यक्ति के पास आ गए.

”क्या आप हमें जानते हैं?’’ उन में से एक व्यक्ति ने पूछा.

”नहीं भाई, मैं आप दोनों को नहीं जानता. मुझे तो यहां नाले में पड़े इस युवक को देख कर संदेह हो रहा है कि वह युवक जीवित भी है या नहीं. आप देख कर बताएं.’’

नाले में मिली लाश

दोनों व्यक्ति नाले में देखने लगे. वहां पड़े युवक को देख कर वे घबरा गए. उन में से एक बोला, ”नूर, सरक ले यहां से. यह लाश है, यदि पुलिस आ गई तो बेकार के लफड़े में फंस जाएंगे हम लोग.’’

उस के साथ वाला व्यक्ति यह सुनते ही तेजी से एक तरफ चल पड़ा. उस के साथ वाला व्यक्ति उस के पीछे लपका. वहां खड़ा पहले वाला व्यक्ति जिम्मेदार नागरिक था. वह वहां से नहीं भागा, बल्कि उस ने जेब से मोबाइल निकाल कर वहां पड़ी लाश की सूचना दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कंट्रोल रूम से उसे वहीं खड़े रहने को कह दिया गया. करीब आधा घंटा बाद पुलिस वैन वहां सायरन बजाती हुई आ गई. इस वैन में रूपनगर थाने के एसएचओ रमेश कौशिक थे. उन के साथ पुलिस के 5 कांस्टेबल भी थे. सभी सावधानी से नाले में उतर गए. वह लाश औंधे मुंह पड़ी थी, उसे सीधा करने से पहले उस लाश की बहुत बारीकी से जांच की गई.

पीठ की ओर उन्हें कोई जख्म नजर नहीं आया. इसी एंगल से उस की मोबाइल द्वारा फोटो खींची गईं, फिर उसे सीधा किया गया. यह कोई 40-45 साल का व्यक्ति था. उस के शरीर पर पैंटशर्ट थी. उस के चेहरे पर गौर से देखने पर खिंचाव महसूस हो रहा था. एसएचओ रमेश कौशिक को लगा कि वह व्यक्ति जान निकलते समय बहुत तड़पा है. ऐसा उस हाल में होता है जब किसी का गला घोंटा जाता है. सांसें रुकने से व्यक्ति छटपटाता है और तड़पते हुए उस के प्राण निकलते हैं. कौशिक ने उस आदमी के गले का निरीक्षण किया तो उन का अनुमान सही साबित हुआ. उस के गले पर दबाब के कारण लाल निशान पड़ गए थे, जो साफ दिखाई दे रहे थे.

लाश की जेबों की तलाशी ली गई तो उस की जेब में कुछ नहीं मिला. इस से अनुमान लगाया गया कि इस की हत्या करने के बाद जेब से सारा सामान निकाल लिया गया है, ताकि कोई सुराग पुलिस के हाथ न आ पाए. रमेश कौशिक की सूचना पर नौर्थ डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी राजा बांठिया और एसीपी (सिविल लाइंस) विनीता त्यागी भी थोड़ी देर में मौके पर पहुंच गईं. उस से पहले एसएचओ रमेश कौशिक ने एक बार और मृतक की जेबें टटोलीं. हाथ की कलाई देखी, ताकि कोई गुदा हुआ नाम दिख जाए. लेकिन न जेबों में कुछ मिला, न उस की कलाई पर कुछ गुदा हुआ था.

नाले के ऊपर अब तक लाश की सूचना पा कर काफी लोग एकत्र हो गए थे. रमेश कौशिक ने ऊपर आ कर उन लोगों से लाश की पहचान करने को कहा, लेकिन किसी ने भी उस युवक को नहीं पहचाना. इस से यह अनुमान लगाया गया कि इस की हत्या कहीं और कर के उसे यहां ला कर फेंक दिया गया है, इस क्षेत्र में इस आदमी की लाश को शायद ही कोई पहचान पाएगा. यह व्यक्ति इस क्षेत्र का नहीं है. काफी पूछताछ करने के बाद भी उस व्यक्ति की पहचान नहीं हो पाई. उसी दौरान फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट की टीम भी वहां पहुंच चुकी थी. 2 फोटोग्राफर्स भी इस टीम में थे.

आते ही यह टीम अपने काम में लग गई. एसएचओ ने डीसीपी को बताया कि लाश की शिनाख्त नहीं हो पा रही है, लगता है इसे कहीं और मारा गया है. पहचान न हो, इसलिए इस की लाश को यहां ला कर नाले में फेंक दिया गया है.

”इंसपेक्टर कौशिक, लाश की पहचान तो आवश्यक है. अपराधी तक हम तभी पहुंचेंगे, जब इस की पहचान होगी.’’ डीसीपी गंभीर स्वर में बोले.

”जी सर.’’ एसएचओ ने सिर हिलाया, ”हम पूरी कोशिश कर रहे हैं.’’

डीसीपी बांठिया ने युवक की लाश का निरीक्षण किया. गले पर लाल निशान देख कर वह समझ गए थे कि इस की हत्या गला घोंट कर की गई है. वहां ऐसे सुराग नजर नहीं आ रहे थे, जिस से समझा जा सके कि इसे यहीं खत्म किया गया है. हत्या कहीं और कर के इस की लाश को यहां फेंक दिया गया है.

पूरा निरीक्षण कर लेने के बाद डीसीपी ने इंसपेक्टर कौशिक से कहा, ”मामला पेचीदा लग रहा है. मैं आप की हैल्प के लिए स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित को भी बुला लेता हूं.’’

”यह उचित रहेगा सर. स्पैशल स्टाफ के आने से यह केस आसानी से सौल्व हो जाएगा. आप रोहितजी को बुलवा लीजिए.’’

डीसीपी बांठिया ने स्पैशल स्टाफ (नौर्थ डिस्ट्रिक्ट) के इंसपेक्टर रोहित से बात की और पूरी बात बता कर उन्हें घटनास्थल पर बुला लिया. इंसपेक्टर रोहित अपनी टीम के साथ कुछ ही देर में वहां आ गए. उन की टीम ने युवक की लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. इंसपेक्टर रोहित ने फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट से बात कर के कुछ निर्देश दिए और इंसपेक्टर कौशिक को लाश पोस्टमार्टम हेतु हिंदूराव हौस्पिटल भेजने को कह दिया.

दिशानिर्देश दे कर डीसीपी और एसीपी भी घटनास्थल से चले गए. इंसपेक्टर कौशिक लाश का पंचनामा बनाने में जुट गए. यह काम पूरा होने तक स्पैशल स्टाफ वहां नहीं रुक सकता था, वे आगे की जांच के लिए वहां से निकल गए. इंसपेक्टर कौशिक ने लाश की शेष काररवाई निपटा कर पोस्टमार्टम के लिए हिंदूराव हौस्पिटल भेज दी और थाना रूपनगर लौट आए. यह केस बहुत पेचीदा था. मरने वाला व्यक्ति कौन है, उसे किस ने गला घोंट कर मारा, उस का कुसूर क्या था. इन सभी बातों का जवाब तभी मिल सकता था, जब उस की पहचान हो जाती. उस की लाश उस के परिजनों के लिए पोस्टमार्टम करवा कर सुरक्षित रखवा दी गई थी. अभी तक उस की पहचान नहीं हुई थी.

मृतक था दिल्ली का घोषित बदमाश

उस की पहचान करने के लिए इंसपेक्टर कौशिक और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोई सूत्र हाथ नहीं लग रहा था, लाश को ज्यादा दिनों तक रखा भी नहीं जा सकता था. पुलिस ने उस के शव की शिनाख्त के लिए पैंफ्लेट छपवा कर शक्ति नगर, रूपनगर और आसपास के क्षेत्र मे चस्पा कर दिए थे. अखबारों में भी शव की पहचान करने की अपील छपवाई गई, लेकिन कोई रिस्पौंस नहीं मिला. अब स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने आखिरी उपाय करने के लिए युवक के फिंगरप्रिंट्स को कमला मार्किट क्रिमिनल रिकौर्ड औफिस (सीआरओ) भेजा गया. आशा नहीं थी, यह उपाय कारगर सिद्ध होगा, लेकिन ऐसा करने से पुलिस को सफलता मिल गई. उस के फिंगरप्रिंट्स क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में पहले से दर्ज फिंगरप्रिंट्स से मेल खा गए.

पहले वाले फिंगरप्रिंट्स सोनू नागर नाम के अपराधी के थे. यह युवक हौजकाजी थाने का घोषित बदमाश था और इस पर 10 से अधिक आपराधिक मामले कई थानों में दर्ज थे, विशेष कर हौजकाजी थाने में. यहां से उस के घर का एड्रैस मिल गया. यह युवक गुलाबी बाग, सीनियर सैकेंड्री गवर्नमेंट स्कूल के पास टाइप वन के क्वार्टर में रहता था. क्वार्टर का नंबर 570 था. इंसपेक्टर रमेश कौशिक और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित सारस्वत, मनोज कुमार और हैडकांस्टेबल जितेंद्र के साथ उस क्वार्टर पर पहुंच गए. क्वार्टर 570 में एक महिला मिली. इस का नाम सरिता था. उस की उम्र करीब 34 साल थी. दरवाजे पर पुलिस को देख कर उस के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया, किंतु तुरंत ही उस ने खुद को संभाल कर प्रश्न कर दिया, ”आप कोई अच्छी खबर ले कर आए हैं मेरे लिए.’’

इंसपेक्टर रोहित सारस्वत उस महिला के चेहरे पर नजरें जमाए हुए थे. पुलिस को सामने वाले के चेहरे के उतारचढ़ाव से उस की मनोस्थिति का अनुमान लगाना सिखाया जाता है. इंसपेक्टर रोहित मन ही मन मुसकराए. प्रत्यक्ष में वह चौंकने का अभिनय करते हुए बोले, ”अच्छी खबर! क्या तुम्हें उम्मीद थी कि पुलिस तुम्हारे दरवाजे पर अच्छी खबर ले कर आने वाली है?’’

”जी हां.’’ सरिता ने सिर हिलाया, ”मेरे पति कुछ दिनों से गुम हैं. मैं समझ रही हूं कि आप उन के बारे में अच्छी खबर ले कर आए हैं.’’

”तुम्हारे पति गुम हैं?’’ इंसपेक्टर ने चौंकते हुए कहा, ”क्या नाम है तुम्हारे पति का?’’

”सोनू… सोनू नागर पूरा नाम है जी.’’

”वह कब से लापता है?’’

”2 फरवरी की रात से.’’ सरिता ने बताया.

”क्या तुम ने सोनू नागर के गुम होने की सूचना लिखवाई है?’’

”हां साहब,’’ सरिता ने सिर हिलाया, ”मैं ने 7 फरवरी को थाना गुलाबी बाग में पति के गुम होने की सूचना लिखवा दी थी. वह 2 फरवरी की रात 10 बजे घर से गए थे, तब से वापस नहीं लौटे हैं. क्या वह आप को मिल गए हैं?’’

”मिले तो हैं लेकिन,’’ इंसपेक्टर रोहित ने बात अधूरी छोड़ दी.

”लेकिन क्या साहब, जल्दी बताइए… मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’

”तुम्हारा पति अब इस दुनिया में नहीं रहा है, उस की डैडबौडी हमें शक्तिनगर में गंदे नाले के पास मिली है.’’

”ओहऽऽ नहींऽऽ’’ सरिता जोर से चीखी और दहाड़े मार कर रोने लगी.

उस की रोने की आवाज सुन कर अंदर से एक महिला निकल कर बाहर आ गई. सरिता को रोती देख कर उस ने घबरा कर पूछा, ”क्या हुआ बहू, तू रो क्यों रही है?’’

”मांजी हम लुट गए, बरबाद हो गए. पुलिस को तुम्हारे बेटे की लाश मिल गई है.’’ सरिता ने रोते हुए बताया.

वह महिला भी रोने लगी. पुलिस ने उन का मन हलका होने दिया. फिर सरिता को टोका, ”हमें सोनू नागर की हत्या की जांच करनी है. तुम हमारे साथ थाने चलो, वहीं तुम से कुछ बात करनी है.’’

”चलिए साहब. अब तो यही सब होगा, मेरा पति जान से गया है. मुझे अन्य सभी टोकेंगे.’’

पुलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया कि वह क्या बोल रही है. वह तो दोनों को ले कर थाने में आ गए. सरिता की सास का नाम मिथिलेश था. फिलहाल उन दोनों का रोनाधोना थम गया था. इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने सरिता से पूछा, ”2 फरवरी की रात को तुम्हारा पति सोनू नागर घर से गया तो क्या वह तुम्हें कुछ बता कर गया था?’’

”सिर्फ इतना कहा था साहब, मैं बाहर ही हूं, इन से बात कर के मैं आ रहा हूं. फिर वह उन दोनों व्यक्तियों के साथ बाहर चले गए थे. तब से उन का कुछ पता नहीं चल रहा था.’’

”वह 2 व्यक्ति आखिर कौन थे

जिन के साथ तुम्हारे पति सोनू नागर बाहर

गए थे?’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने पूछा.

”मैं उन्हें नहीं जानती. वे दोनों साढ़े 11 बजे बाइक से मेरे घर आए थे. उन से मेरे पति की कुछ बातें हुईं. क्या बातें हुईं, यह मैं नहीं सुन सकी. मेरे पति उन के साथ घर से निकलते हुए इतना ही बोले कि मैं थोड़ी देर में वापस आ रहा हूं. लेकिन काफी देर बीत जाने पर भी वह नहीं लौटे तो मुझे चिंता होने लगी. मैं ने उन्हें फोन लगाया, लेकिन उस वक्त उन की काल नहीं लगी. यह सोच कर कि वह किसी काम में उलझ गए होंगे, मैं सो गई थी.’’

”फिर अगले दिन तुम्हारे पति नहीं लौटे तो क्या तुम ने उन्हें तलाश करने की जरूरत नहीं समझी?’’ सारस्वत ने प्रश्न किया.

”दूसरे दिन मैं ने उन्हें तलाश किया था साहब. दोस्तों, रिश्तेदारी सब जगह तलाश किया था, लेकिन वह नहीं मिले.’’ सरिता ने बताया, ”उन को 2-4 दिन और ढूंढा, फिर हार कर गुलाबी बाग थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी.’’

”वह 2 व्यक्ति दिखने में कैसे लग रहे थे?’’ इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने पूछा.

”उन की उम्र 35-40 के बीच की थी. रंग सांवला था. सामान्य कदकाठी के थे. एक के सिर पर ब्लैक कलर की कैप थी, जिस के हेड पर क्करू्र लिखा था.’’

”हूं, तुम मोबाइल इस्तेमाल करती हो?’’ कौशिक ने प्रश्न किया.

”जी हां.’’ सरिता ने कह कर अपना मोबाइल दिखाया.

मोबाइल फोन में मिले अहम सबूत

इंसपेक्टर कौशिक ने वह मोबाइल ले लिया और बाहर निकल गए. बाहर आ कर उन्होंने मोबाइल से की गई काल लिस्ट देखी, उस में काफी नंबर थे. इंसपेक्टर ने 2 और 3 तारीख की आउटगोइंग काल्स देखी. वह चौंक पड़े. 2 फरवरी की रात को सरिता की ओर से 12 बजे रात को किसी एक नंबर पर फोन किया गया था. वही नंबर बाद में भी था. यानी सरिता ने उस नंबर पर रात में 3-4 बार अलगअलग समय पर काल कर के काफी देरदेर तक बातें की थी.

इंसपेक्टर रमेश कौशिक के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह अंदर आ गए और सरिता से बोले, ”तुम्हारा मोबाइल हम कस्टडी में ले रहे हैं. इस की जांच करनी है हमें.’’

”ज…जी, मेरे फोन में ऐसा क्या है साहब,’’ सरिता अचकचा कर बोली.

”वह बाद में मालूम हो जाएगा. तुम यह बताओ, यह सोनू नागर तुम्हारी जिंदगी में कैसे आया? यह तो यहां के हौजकाजी थाने का घोषित अपराधी था. इस पर 10 अपाराधिक मामले दर्ज हैं.’’

सरिता ने नीचे सिर झुका लिया. कुछ देर वह खामोश रही, फिर एक गहरी सांस भर कर वह बोली, ”साहब, मेरा नाम सरिता है. मेरी शादी पहले किसी और से हुई थी. उस से मुझे एक लड़की और एक लड़का हुआ. मेरा पति तीस हजारी कोर्ट के पास पान की दुकान लगाता था. यहां पर सोनू नागर आताजाता रहता था. यहीं से मैं सोनू नागर को जानने लगी.

”अभी 8 महीने पहले मेरे पति की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई. तब सोनू मेरी मदद के लिए आगे आया. मैं उस के अहसान तले दब गई और उस के सहारे रहने लगी. फिर मैं ने उस से शादी कर ली. नियति को मुझ से न जाने क्या नाराजगी है, उस ने मेरा यह दूसरा पति भी मुझ से छीन लिया.’’ कहतेकहते सरिता भावुक हो गई और रोने लगी.

”अपने आप को संभालो और घर जाओ, जरूरत पड़ी तो बुलवा लेंगे.’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने उस से कहा और उठ कर खड़े हो गए.

सरिता अपनी सास के साथ थाने से बाहर निकल गई. उन के जाने के बाद इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने कहा, ”मुझे सरिता पर संदेह है. इस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाइए. इस ने पति के लापता होने वाली रात यानी 2 फरवरी को रात में 3-4 बार एक ही नंबर पर बातें की थीं. मालूम करना है वह नंबर किस का और क्या सरिता पहले भी इस नंबर के संपर्क में रही है?’’

इंसपेक्टर सारस्वत ने हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार को मोबाइल दे दिया और जनवरीफरवरी माह की तमाम काल डिटेल्स निकलवा कर लाने का आदेश दे दिया. अगले दिन उन की टेबल पर सरिता के मोबाइल की जनवरी-फरवरी माह की काल डिटेल्स रखी थी. उस को बहुत बारीकी से देखा गया. सरिता द्वारा एक नंबर पर जनवरी फरवरी माह की 10 तारीख तक कईकई बार बातें की गई थीं. इस नंबर की फोन प्रदाता कंपनी से जांच की गई तो यह नंबर पंजाब के किसी बग्गा सिंह नाम के व्यक्ति का निकला. उस का एड्रैस भी मिल गया. यह था गांव लांबी, जिला श्रीमुक्तसर साहिब, पंजाब. इस के बाद गुप्तरूप से सोनू नागर के घर गुलाबी बाग के आसपास इस नंबर की जांच की गई तो पुलिस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. 2 फरवरी की रात साढ़े 11 बजे से 12 बजे तक इस नंबर की लोकेशन वहां थी.

इस तरह सरिता ने खोला राज

यह विश्वास हो जाने के बाद कि बग्गा सिंह का सोनू नागर की हत्या में कोई न कोई रोल है, श्रीमुक्तसर साहिब जा कर बग्गा सिंह को घर से उठा लिया गया. उसे दिल्ली लाया गया. थाने में जब 19 वर्षीय बग्गा सिंह से सरिता से संबंध के विषय में पूछा गया तो पहले वह किसी सरिता को पहचानने से इंकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह कांपते हुए बोला, ”साहब, मैं सरिता को पहचानता हूं. उस से मेरी मुलाकात एक महीने पहले भटिंडा में हुई थी.’’

”सरिता वहां क्या करने गई थी?’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने पूछा.

”वहां उस की बहन रहती है.’’

”हूं.’’ इंसपेक्टर ने सिर हिलाया, ”सरिता तुम से किस मकसद से मिली थी?’’

”साहब, वह मुझ से अपने पति का खून करवाना चाहती थी.’’ बग्गा सिंह ने चौंकाने वाला खुलासा किया.

”ओह!’’ इंसपेक्टर हैरानी से बोले, ”यानी सरिता अपने पति सोनू नागर की हत्या तुम से करवाना चाहती थी.’’

”जी साहब.’’ बग्गा ने सिर हिलाया.

”इस सुपारी की तुम्हें कितनी रकम मिली बग्गाï?’’

”डेढ़ लाख रुपए में यह सौदा हुआ था. सरिता ने 50 हजार रुपए पेशगी दी थी.’’

”पेशगी लेने के बाद तुम ने सोनू की हत्या कैसे की, अब यह भी बता दो हमें.’’ बग्गा के चेहरे पर नजरें जमा कर इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने पूछा.

”साहब, मेरा एक दोस्त है गुरमीत, वह भी सुपारी किलर है. मैं ने उसे फोन कर के 2 फरवरी को दिल्ली पहुंचने को कहा. मैं भी दिल्ली आ गया. हम कश्मीरी गेट बस अड्ïडा पर मिले, वहां से एक होटल में ठहर गए. सरिता से संपर्क कर के हम ने उसे बता दिया कि हम दिल्ली आ गए हैं. सरिता ने हमें सोनू नागर का काम तमाम करने के लिए रात को आने को कहा. हम ने दिन में ही सरिता के मकान की रेकी कर ली थी और रात को साढ़े 11 बजे हर ओर सन्नाटा होने पर उस के दरवाजे पर पहुंच गए.

”सरिता ने चुपके से घर का कुंडी खोल दी. हम दबे पांव अंदर घुसे. सोनू नागर उस वक्त सो चुका था. हम ने सोते हुए सोनू नागर को दबोच लिया. सरिता ने पांव पकड़े. गुरमीत ने सोनू नागर के हाथ पकड़े. मैं ने छाती पर चढ़ कर सोनू की गरदन दबा कर उस की हत्या कर दी.

”सोनू नागर की हत्या करने के बाद उस की लाश को हम ने बाइक पर बीच में इस तरह बिठा लिया, जैसे वह जीवित हो और हम कहीं जा रहे हों. हम सोनू की लाश ले कर शक्ति नगर के एरिया में आए और सुनसान पड़े नाले में इस लाश को फेंक दिया. इस के बाद सरिता को सब बता कर हम होटल चले गए. अगले दिन हम सरिता से रुपए ले कर श्रीमुक्तसर साहिब गुरमीत के घर आ गए.’’

बग्गा सिंह का यह बयान कलमबद्ध कर लिया गया. सरिता को पकड़ कर थाने लाने के लिए इंसपेक्टर रमेश कौशिक अपनी पुलिस टीम के साथ गुलाबी बाग पहुंच गए. सरिता घर में ही थी. उसे महिला पुलिस ने पकड़ कर पुलिस की गाड़ी में बिठा लिया. सरिता चिल्लाई, ”मुझे इस तरह पकड़ कर पुलिस की गाड़ी में क्यों बिठाया गया है? इंसपेक्टर साहब, यह कैसी बेहूदगी है?’’

”बेहूदगी कहां है सरिताजी, हम तो तुम्हें थाने ले जा रहे हैं, वहां हम ने तुम्हारे पति के कातिल को पकड़ कर बिठा लिया है. तुम्हें वही दिखाने ले जा रहे हैं.’’ इसपेक्टर कौशिक ने मुसकरा कर कहा. सरिता यह सुन कर खामोश बैठ गई.

थाने में उसे जब बग्गा सिंह के सामने ला कर खड़ा किया गया तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया, वह धम्म से कुरसी पर बैठ गई. सरिता ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. पूछताछ में उस ने कहा कि पहले पति की मौत के बाद उस की जिंदगी में सोनू नागर आ गया. कुछ दिनों तक वह सोनू नागर के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही, फिर उस से शादी कर ली. शादी के बाद उसे मालूम हुआ कि सोनू नागर अपराधी प्रवृत्ति का आदमी है, उस की नजर उस की दुकान और मकान पर थी. वह उन्हें बेचने के चक्कर में था.

उस ने मेरी बेटी, जो स्कूल में पढ़ती थी, उस की इज्जत पर भी हाथ डाला. मैं सोनू से डरती थी, इसलिए खून का घूंट पी कर रह गई. सोनू मुझ से गालीगलौज और मारपीट भी करने लगा था. मुझे यह भी लगा कि मेरी जायदाद के लिए वह मेरी हत्या कर सकता है, इसलिए तंग आ कर मैं ने बग्गा सिंह को उस के कत्ल की सुपारी डेढ़ लाख रुपए में दे दी.

बग्गा ने अपने साथी गुरमीत के साथ

सोनू की हत्या 2 फरवरी, 2025 की रात को कर दी और लाश शक्ति नगर ले जा कर नाले में फेंक दी, जो 3 फरवरी को रूपनगर पुलिस को मिली थी. सरिता के इकबालिया बयान के बाद इस अपराध को भारतीय न्याय संहिता की धारा-103(1) के तहत सरिता और सुपारी किलर बग्गा सिंह को सक्षम न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. गुरमीत को पकडऩे के लिए पुलिस टीम श्री मुक्तसर साहिब में छापेमारी करने गई तो वह फरार हो गया था. कथा लिखे जाने तक वह पुलिस के हाथ नहीं आया था.