2 गज जमीन के नीचे : प्रेमियों का प्यार हुआ दफन

साल 2020 समाप्त होने में गिनती के दिन बचे थे. नया साल शीत लहर की चौखट पर खड़ा था. ऐसे में खरगोन जिला मुख्यालय से कुछ दूरी पर स्थित भीकनगांव के टीआई जगदीश प्रसाद गोयल पुलिस टीम के साथ गांव में रहने वाली छायाबाई के पिता को ले कर मोहनखेड़ी पहुंचे. पुलिस को देख कर गांव वालों की भीड़ भी संतोष गोलकर के नए बने मकान के सामने जमा हो गई.

दरअसल 2 दिन पहले गांव में अपने पिता के घर पर रहने वाली 25 वर्षीय छायाबाई अचानक लापता हो गई थी. जिस दिन छायाबाई लापता हुई, उसी रोज संतोष भी गांव से गायब था. दोनों का पे्रम प्रंसग पूरे गांव के लोगों की जुबान पर था, इसलिए गांव वालों का मानना था कि संतोष ही छायाबाई को ले कर भाग गया.

लेकिन छायाबाई के पिता को शक था कि उस की बेटी को संतोष ने अपने नए मकान में छिपा रखा है. इसी बात की जांच करने के लिए पुलिस मोहनखेड़ी आई थी.

संतोष के मकान में ताला पड़ा था. गांव में रहने वाले उस के मातापिता भी गायब थे. इसलिए पुलिस ने ताला तोड़ कर पूरे घर की तलाशी ली, लेकिन वहां केवल छिपकली और मकडि़यों के अलावा कोई तीसरा जीव दिखाई  नहीं दिया. इसलिए पुलिस टीम वापस लौट आई.  गांव वाले तो पहले ही मान चुके थे कि छायाबाई संतोष के साथ कहीं भाग गई है. अब पुलिस ने भी ऐसा ही मान लिया, लेकिन ऐसा मानने वालों के बीच केवल छायाबाई का परिवार ही ऐसा था, जो इस बात को मानने को राजी नहीं हो रहा था.

इसलिए  उन के बारबार कहने पर संतोष के मकान में एक कमरे के फर्श की खुदाई भी कर के देखी गई, लेकिन कुछ हाथ नहीं आया. धीरेधीरे गांव के लोग छायाबाई और संतोष को भूलने लगे और अपने कामों में जुट गए थे.

लेकिन छायाबाई के पिता लगातार बेटी की खोज में लगे हुए थे. कोई महीने भर बाद संतोष के बंद पडे़ मकान से आने वाली अजीब सी बदबू से लोग परेशान होने लगे. पहले तो लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन बदबू लगातार बढ़ने से पड़ोसियों का ध्यान संतोष के बंद मकान पर गया.

इस बात की खबर छायाबाई के पिता को लगी तो वह दौड़ेदौड़े अपने समाज के नेता के पास पहुंचे और उन्हेें सारी बात बताई. वह नेता छायाबाई के पिता को खंडवा एसपी के पास ले गया और एसपी को सारी कहानी से अवगत कराया. संतोष छायाबाई के लापता होने के मामले में संदिग्ध तो था ही, इसलिए उस के मकान से आने वाली बदबू की जानकारी को खंडवा एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान ने गंभीरता से लिया.

उन के निर्देश पर एएसपी (ग्रामीण) जितेंद्र पंवार ने एसडीपीओ प्रवीण कुमार उइके के नेतृत्व में एक पुलिस टीम प्रशासनिक अधिकारियों के साथ 27 जनवरी, 2021 को एक बार फिर मोहनखेड़ी भेजी.

संतोष गोलकर का मकान खोलते ही बदबू का तेज झोंका आने से पुलिस समझ गई की यह मांस सड़ने की बदबू है. इसलिए पूरे मकान की बारीकी से जांच की गई. जिस से पता चला कि तीसरे कमरे के फर्श में ताजा सीमेंट लगाया गया है.

इसलिए शक के आधार पर पुलिस ने उस जगह की खुदाई करवाई तो डेढ़ फुट नीचे एक कान की बाली और लगभग ढाई फुट नीचे एक लेडीज चप्पल मिली. जिन के बारे में बताया कि ये दोनों ही चीजें छायाबाई की हैं.

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खुदाई की गहराई बढ़ने के साथ बदबू भी बढ़ती जा रही थी. वास्तव में पुलिस का शक उस समय सही साबित हुआ, जब कोई 4 फुट की गहराई पर छायाबाई का सड़ागला शव बरामद हो गया.

इस के बाद जांच के लिए एफएसएल अधिकारी सुनील मकवाना भी पहुंच गए. जांच के बाद उन्होंने शव को लगभग एक महीने पुराना बताया. जिस के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. लेकिन शव की हालत अत्यधिक खराब होने की वजह से उस का पोस्टमार्टम इंदौर के एमवाई अस्पताल में किया गया.

जाहिर सी बात है कि अब तक पुलिस का मानना था कि संतोष छायाबाई को ले कर भाग गया है. लेकिन अब छायाबाई की लाश संतोष के मकान में दफन मिल चुकी थी. जबकि संतोष और उस का परिवार गायब था. इसलिए पुलिस का सीधा शक यही था की संतोष ने ही छायाबाई की हत्या की है.

चूंकि उस के परिवार के सभी सदस्य गायब थे, इसलिए वे भी शक के घेरे में थे. एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस ने मुखबिरों से मिली सूचना के आधार पर 6 फरवरी, 2021 को संतोष की मां सकुबाई, भाई सुनील एवं बुआ के बेटे अनिल को गिरफ्तार कर लिया.

संतोष की तलाश पुलिस तत्परता से कर रही थी. जिस के चलते टीआई जगदीश प्रसाद गोयल की टीम में शामिल एसआई अंतिमवाला भूरिया, एएसआई लक्ष्मीनारायण पाल, प्रधान आरक्षक नंदकिशोर राय, आरक्षक अभिलाष डोंगरे, जितेंद्र, कांस्टेबल अंजली रिछारिया एवं कमलेश की टीम ने सूचना मिलने पर उसे बैतूल से गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद यह कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

16 साल की उम्र में छायाबाई की शादी पास के ही गांव एकतासा में रहने वाले युवक  के साथ हुई थी. दोनों के 3 बच्चे भी हुए किंतु दोनों के बीच रिश्ता कुछ यूं बिगड़ा कि छायाबाई अपने पति का घर छोड़ कर मोहनखेड़ी में पिता के घर आ कर रहने लगी.

मोहनखेड़ी में ही संतोष भी रहता था. संतोष छायाबाई की उम्र का था और छायाबाई की शादी से पहले वह उस की गली में चक्कर लगाया करता था. संतोष की दीवानगी की जानकारी छायाबाई को भी थी, लेकिन उन का इश्क परवान चढ़ पाता, उस से पहले ही छायाबाई की शादी हो गई थी. इस के बाद यह कहानी वहीं खत्म हो गई थी.

कुछ दिन बाद संतोष की भी शादी हो गई. लेकिन करीब 3 साल पहले ही उस की पत्नी भी उसे छोड़ कर अपने मायके में जा कर रहने लगी. संतोष ने कुछ दिनों तक तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन पत्नी की गैरमौजूदगी में शारीरिक जरूरतें परेशान करने लगीं तो उसे छायाबाई का ध्यान आया जो खुद भी अपने पति को छोड़ कर बैठी थी. इसलिए उस ने अगले दिन ही छायाबाई की खातिर उस की गली में चक्कर लगाने शुरू कर दिए.

छायाबाई भी कई साल से पति से अलग रह रही थी. जैसे ही उस ने संतोष को देखा तो उसे अपने किशोर उम्र की याद आ गई, जब संतोष उस के लिए गली में चक्कर लगाया करता था.

इसलिए एक दिन छायाबाई ने भी मौका देख कर उसे सकारात्मक संदेश दे दिया. जिस के 4 दिन बाद ही दोनों गांव के बाहर एकांत में मिले और अपनी हसरतें पूरी कर प्यार के बंधन में बंध गए.

छायाबाई मायके में रहते हुए अपने मातापिता के ऊपर बोझ नहीं बनना चाहती थी. इसलिए वह गांव के कुछ घरों में झाड़ूपोंछा करने लगी थी. वह सुबह घर से निकल कर पहले अपना काम करती थी फिर सीधे संतोष के पास पहुंच जाती थी, जहां दोनों एकदूसरे के तन की प्यास पूरी करते थे. फिर छायाबाई वापस घर चली जाती थी.

दोनों एकांत में रोज मिला करते थे, इसलिए इस बात की जानकारी गांव वालों को हो गई थी. छायाबाई के परिवार तक भी यह खबर पहुंच चुकी थी. पिता ने अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की, लेकिन मामला हाथ से निकल चुका था.

इधर छायाबाई के साथ घर बसाने की ठान चुके संतोष ने अपना खेत बेच कर छायाबाई के लिए सपनों का घर बनवा दिया था. कुछ दिनों में संतोष का मकान बन कर तैयार हो गया तो वह छायाबाई को इस मकान में ला कर अय्याशी करने लगा.

बताया जाता है कि इसी दौरान छायाबाई की नजरें गांव के ही एक दूसरे युवक से लड़ गई थीं. वह संतोष की तुलना में रईस और जवान था. इसलिए छायाबाई संतोष से दूर जाने की कोशिश करने लगी.

इस बात की जानकारी लगने पर संतोष काफी खफा था. बताया जाता है कि उस ने छायाबाई की हत्या की योजना पहले से ही बना रखी थी. इसलिए उस ने पानी का एक अंडरग्राउंड टैंक बनाने के नाम पर एक कमरे में गहरा गड्ढा खुदवा लिया था. जिस के बाद उस ने 24 दिसंबर की रात को छायाबाई को अपने घर बुला कर पहले तो उस के साथ संबंध बनाए और फिर इसी दौरान मौका पा कर उस का गला दबा कर हत्या कर के शव को गड्ढे में डाल कर उस के ऊपर मिट्टी डाल दी और फरार हो गया.

उस ने सोचा था कि घर के अंदर लाश की खबर पुलिस को कभी नहीं मिल पाएगी. लेकिन एक महीने के बाद मकान से आ रही बदबू के बाद शक होने पर पुलिस ने लाश बरामद कर हत्या में सहयोग करने वाली संतोष की मां, भाई और अन्य 2 को गिरफ्तार कर लिया.

छायाबाई के लापता होने पर उस के पिता को उस की हत्या का शक हो गया था. इसलिए पिता के कहने पर पुलिस ने पहले भी एक बार संतोष के घर नए पर बने फर्श की खुदाई लाश की तलाश करने के लिए की थी. लेकिन उस समय कुछ नहीं मिला था. लेकिन बदबू आने पर जब दूसरे कमरे में खुदाई की गई तो वहां से छायाबाई का शव बरामद हुआ. गिरफ्तार किए मुख्य आरोपी संतोष के भाई ने बताया कि छायाबाई की हत्या कर लाश को गड्ढे में दबाने वाली बात संतोष ने सुबह घर आ कर बताई थी. इस के बाद वह घर से भाग गया था. संतोष के भाग जाने के बाद घर वालों ने पुलिस से बचने के लिए खुदाई वाली जगह पर फर्श बनवा दिया और घर का ताला लगा कर फरार हो गए.

पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

सुलेखा की खूनी स्क्रिप्ट : पति हुआ मौत का शिकार

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर शहर का एक मोहल्ला है मिश्रामऊ. इसी मोहल्ले में राजेश साहू अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और एक बेटी सुलेखा थी. राजेश घी का कारोबार करता था. वह फतेहपुर शहर के आसपास के गांवगांव जा कर लोगों के यहां से घी खरीदता और फतेहपुर शहर में बेचता. इस से उसे जो फायदा होता, उसी से उस के परिवार की गुजरबसर होती थी.

राजेश साहू की बेटी सुलेखा सुंदर होने के साथसाथ थोड़ी चंचल भी थी. इसलिए सयानी होने पर मोहल्ले के कई युवक उस पर डोरे डालने की कोशिश करने लगे. यह भनक राजेश को लगी तो उसे चिंता होने लगी. तब उस ने बेटी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. थोड़ी भागदौड़ के बाद उसे सदर कोतवाली के मोहल्ला बक्सपुर राधा नगर में एक लड़का मिल गया.

लड़के का नाम राजू प्रसाद साहू था. उस के पिता भगवानदीन साहू के पास 5 बीघा उपजाऊ भूमि थी. भगवानदीन के 2 बेटे रामबाबू तथा राजू प्रसाद थे. रामबाबू का विवाह हो चुका था. वह परिवार सहित अलग रहता था. राजू पिता के साथ खेतीकिसानी करता था.

बातचीत शुरू हुई तो राजू और सुलेखा का रिश्ता पक्का हो गया. फिर जल्द ही दोनों की शादी हो गई.

राजू सुंदर पत्नी पा कर खुश था, जबकि सुलेखा अपने सांवले व दुबलेपतले पति से खुश नहीं थी. शादी से पहले उस के मन में पति की जो छवि थी, राजू उस में कहीं भी फिट नहीं बैठता था. लेकिन अब विवाह हो गया था, इसलिए मजबूरी में उस के साथ तो रहना ही था. शादी के 3 साल बाद सुलेखा एक बेटी अर्पिता की मां बन गई थी.

अर्पिता के जन्म के बाद राजू ने पत्नी की भावनाओं की उपेक्षा करनी शुरू कर दी. जबकि बेटी जनने के बाद सुलेखा का रूप और निखर आया था और वह हर रात पति का साथ चाहती थी. राजू थकाहारा शाम को लौटता और खाना खा कर सो जाता.

सुलेखा कभी पहल करती, तो राजू झल्ला उठता, ‘‘आज बहुत थक गया हूं. अभी सोने दो.’’

पति की बात सुन कर सुलेखा मायूस हो जाती. राजू की कमाई से घर का खर्चा तो किसी तरह चल जाता था. लेकिन सुलेखा अपनी हसरतें पूरी नहीं कर पाती थी.

एक तो शारीरिक इच्छाएं, दूसरी अधूरी तमन्नाएं. ऐसे में औरत बहकने लगती है. सुलेखा भी बहकने लगी थी. उस ने पति को दिल से निकाल दिया था और तमन्नाएं पूरी करने के लिए किसी नए मीत की तलाश में जुट गई थी.

इन्हीं दिनों राजू प्रसाद साहू के घर रामराज का आनाजाना शुरू हुआ. रामराज बांदा जिले के करौली गांव का रहने वाला था. रिश्ते में रामराज राजू का मौसेरा भाई था. रामराज साहू ट्रक ड्राइवर था. वह खूब पैसा कमाता था. वह स्वयं तो पीता ही था, उस ने राजू को भी शराबी बना दिया था.

सुलेखा की सुंदरता और चंचलता की वजह से रामराज का दिल उस पर आ गया था. वह जब भी सुलेखा के घर आता, मौका मिलने पर उस से हंसीमजाक करने से नहीं चूकता. सुलेखा भी उस से खुल कर हंसीमजाक करती थी. वह भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी और अपनी तमन्नाएं पूरी करने को लालायित थी. रामराज गबरू जवान था.

एक दिन रामराज आया तो राजू प्रसाद घर में नहीं था. सुलेखा को अकेली पा कर उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. वैसा ही कुछ हाल सुलेखा का भी था. उस ने इठलाते हुए कहा, ‘‘आओ देवरजी, कैसे आना हुआ.’’

‘‘भाभी, ट्रक ले कर प्रयागराज जा रहा था. फतेहपुर के ढाबे पर रुका, तो अचानक तुम्हारी याद आई तो मन मचल उठा. मैं ने पहले तो मन को मनाने की कोशिश की, जब मन नहीं माना तो यह सोच कर चला आया कि चल कर प्यारी भाभी के दीदार कर लूं. कभीकभी सोचता हूं कि इतनी सुंदर भाभी कालेकलूटे राजू भैया के पल्ले कैसे पड़ गई?’’

‘‘अपनाअपना नसीब है देवरजी, मेरी तकदीर में यही लिखा था.’’ सुलेखा ने लंबी सांस ले कर कहा.

सुलेखा के इस जवाब से रामराज को लगा कि उस का तीर सही निशाने पर लगा है. वह उस के एकदम करीब आ कर बोला, ‘‘नसीब अपने हाथ में होता है भाभी, मैं आप से प्यार करता हूं. मैं कोई पराया तो हूं नहीं. वैसे भी मैं न जाने कब से तुम्हारी खूबसूरती का दीवाना हूं.’’

‘‘देवरजी, यह दीवानापन छोड़ो और अब चुपचाप चले जाओ. कहीं वह आ गए तो पता नहीं क्या सोचेंगे.’’ सुलेखा ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

रामराज ने उसे बांहों में भर कर कहा, ‘‘भाभी, मैं चला तो जाऊंगा, पर खाली हाथ नहीं जाऊंगा. आज तो तुम्हारा प्यार ले कर ही जाऊंगा.’’

सुलेखा को बांहों में भरते ही उस ने उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी थी. सुलेखा ने उस की इस हरकत का कोई विरोध नहीं किया. इस की वजह यह थी कि वह भी यही चाहती थी. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘भूखे भेडि़ए की तरह क्यों टूट पड़ रहे हो. थोड़ा सब्र से काम लो. दरवाजा खुला है. वैसे भी तुम जो कर रहे हो, वह ठीक नहीं है.’’

रामराज समझ गया कि सुलेखा को कोई आपत्ति नहीं है. इस का उस ने पूरा फायदा उठाया और अपने तथा सुलेखा के बीच की दूरियां मिटा दीं. इस तरह सुलेखा के कदम एक बार बहके तो बहकते ही चले गए. मौका मिलते ही रामराज सुलेखा के घर आ जाता. सुलेखा भी उस का हर तरह से सहयोग कर रही थी. इस की वजह यह थी कि वह उस के पति से हर मायने में इक्कीस था.

सुलेखा ने रामराज से अवैध रिश्ता बनाया तो वह उस की हर तमन्ना पूरी करने लगा. वह उस की आर्थिक मदद तो करता ही था, उस के लिए नई साडि़यां तथा अन्य सामान भी लाता था. राजू उस के आने पर कोई टोकाटाकी न करे, इस के लिए वह उसे मुफ्त में शराब पिलाता था.

सुलेखा और रामराज का यह अवैध संबंध चोरीछिपे सालों तक चलता रहा. आखिर कब तक उन का यह गलत संबंध छिपा रहता. वे समय के साथ लापरवाह होते गए. परिणामस्वरूप एक दिन राजू प्रसाद ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. फिर तो उसे समझते देर नहीं लगी कि उन के बीच यह खेल काफी दिनों से चल रहा है.

रामराज चूंकि उस का मौसेरा भाई था और उस से ज्यादा ताकतवर भी था, अत: राजू प्रसाद ने उस से सीधे टकराना उचित नहीं समझा. उस के जाने के बाद उस ने सुलेखा को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘शर्म आनी चाहिए तुम्हें यह सब करते हुए. एक बच्ची की मां होने के बाद तुम नीचता पर उतर आई हो.’’

इस के बाद जब दोनों में तूतूमैंमैं शुरू हुई तो बात बढ़ती गई. राजू को गुस्सा आ गया तो उस ने सुलेखा की जम कर पिटाई की. लेकिन इस पिटाई के बाद भी सुलेखा ने रामराज को नहीं छोड़ा. वह रामराज की इतनी दीवानी हो चुकी थी कि जब उसे घर में उस से मिलने का मौका नहीं मिलता तो वह किसी न किसी बहाने बाहर जा कर उस से मिलन कर लेती. जब इस का पता राजू प्रसाद को चलता तो वह शराब पी कर सुलेखा और रामराज को खूब गालियां बकता.

25 मार्च, 2021 की रात राजू प्रसाद ने एक बार फिर सुलेखा और रामराज को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. रामराज तो भाग गया, लेकिन सुलेखा कहां जाती. राजू ने सुलेखा को बेतहाशा पीटा और जम कर गालियां सुनाईं.

होली के एक दिन पहले यानी 27 मार्च को भी राजू ने सुलेखा को बहुत पीटा. पीटने के बाद वह घर के बाहर शराब पीने चला गया. उस के जाने के बाद सुलेखा ने अपने प्रेमी रामराज से मोबाइल फोन पर बात की और उसे दुम दबा कर भाग जाने का उलाहना दिया. उस ने यह भी बताया कि राजू ने पीटपीट कर उस की देह स्याह कर दी है. अब वह उस का जुल्म और बरदाश्त नहीं करेगी. जल्द ही कोई रास्ता निकालो. अब वह उस से तभी मिलेगी, जब रास्ते का कांटा साफ हो जाएगा.

28 मार्च, 2021 को होली थी. रामराज बाइक से दोपहर 12 बजे राजू प्रसाद के घर जा पहुंचा. उस के मन में तो नफरत थी. लेकिन उस ने दिखावे के तौर पर राजू के पैर छुए और बोला, ‘‘भैया आज होली है. गले मिलने आया हूं. अपनी गलतियों की माफी भी मांग रहा हूं. हो सके तो मुझे माफ कर दो.’’

राजू प्रसाद ने एक नजर रामराज के चेहरे पर डाली और फिर उसे गले लगा लिया. इस के बाद दोनों बातचीत करने लगे. बातचीत में उलझा कर रामराज ने उसे शराब पीने के लिए राजी कर लिया. इस बीच रामराज ने सुलेखा को इस बात की जानकारी दे दी कि आज वह चुभने वाला कांटा निकाल फेंकेगा. इस के बाद रामराज ने राजू को अपनी बाइक पर बिठाया और निकल गया.

दूसरे दिन सुलेखा रोते हुए जेठ रामबाबू के घर पहुंची और उसे बताया कि राजू कल दोपहर से घर से गायब हैं, पता नहीं कहां चले गए. रात भर वह उन के लौटने का इंतजार करती रही. उन का पता लगाओ. उस का जी घबरा रहा है.

रामबाबू ने सुलेखा को शक की नजर से देखा, लेकिन उस ने आश्वासन दिया कि वह राजू को ढूंढेगा. इस के बाद रामबाबू ने राजू प्रसाद की खोज शराब के ठेकों, बस अड्डा व टैंपो स्टैंड पर की, पर उस का कुछ पता नहीं चला. नातेदारों के यहां भी वह नहीं गया था.

30 मार्च की सुबह 10 बजे रामबाबू को पता चला कि थरियांव थाने के हंसवा गांव के पास स्थित पीएनसी प्लांट के पीछे झाडि़यों में किसी युवक की लाश पड़ी है. यह पता चलते ही रामबाबू वहां पहुंचा. उस ने लाश देखी तो वह फफक पड़ा.

उस समय मौके पर थरियांव थानाप्रभारी नंद लाल, एसपी सतपाल, एडिशनल एसपी राजेश कुमार तथा डीएसपी अनिल कुमार मौजूद थे. पुलिस अधिकारी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर रहे थे. रामबाबू ने सुबकते हुए बताया कि लाश उस के छोटे भाई राजू प्रसाद साहू की है. वह होली वाले दिन से गायब था.

शव की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम हेतु फतेहपुर भिजवा दिया. इस के बाद एसपी सतपाल ने हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने की जिम्मेदारी एएसपी राजेश कुमार को सौंपी. उन्होंने तब पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में इंसपेक्टर नंदलाल, एसआई उपदेश कुमार, ललित कुमार, महिला सिपाही प्रियंका, सरोज तथा सर्विलांस प्रभारी सुनील कुमार को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने मृतक के भाई रामबाबू से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के भाई राजू प्रसाद की हत्या उस के मौसेरे भाई रामराज ने की है. वह बांदा जनपद के मर्का थाने के करौली गांव का रहने वाला है. हत्या में मृतक भाई की पत्नी सुलेखा का भी हाथ है. रामराज और सुलेखा के बीच नाजायज रिश्ता बन गया था. इस रिश्ते का विरोध राजू करता था.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने रामराज के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया, जिस से उस की लोकेशन मलाका कस्बे की मिली. जांच से पता चला कि मलाका में रामराज का दोस्त नीरज पासवान रहता है. लोकेशन मिलते ही पुलिस टीम ने 2 अप्रैल, 2021 की सुबह करीब 5 बजे नीरज पासवान के घर छापा मारा और रामराज तथा नीरज को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद टीम ने सुबह 10 बजे सुलेखा को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. तीनों को थाना थरियांव लाया गया. पूछताछ में तीनों ने राजू की हत्या का जुर्म कबूल किया. यही नहीं, रामराज ने हत्या में प्रयुक्त मोटरसाइकिल तथा खून सना पत्थर भी बरामद करा दिया.

रामराज ने पुलिस को बताया कि उस के और सुलेखा के बीच नाजायज रिश्ता था, जिस का विरोध राजू प्रसाद करता था और सुलेखा को मारतापीटता था. होली के एक दिन पहले भी राजू प्रसाद ने सुलेखा को जम कर पीटा था, जिस की शिकायत उस ने मोबाइल फोन पर की थी और बाधक बन रहे पति को मिटाने की बात कही थी.

इसी के बाद उस ने राजू प्रसाद की हत्या की योजना बनाई और अपनी योजना में दोस्त नीरज पासवान को भी शामिल कर लिया. नीरज फतेहपुर जनपद के गाजीपुर थाने के मलाका का रहने वाला था.

योजना के तहत वह होली वाले दिन बाइक से राजू प्रसाद के घर पहुंचा और उसे शराब पिलाने का लालच दे कर अपने दोस्त नीरज पासवान के घर मलाका लाया. यहां पर उन्होंने शराब पी और खाना खाया. मलाका में शराब पीने के बाद वह, नीरज और राजू प्रसाद मोटरसाइकिल से घूमने निकले.

वह बाइक से हुसैनगंज, छिविलहा, हथगाम होते हुए पीएनसी प्लांट पहुंचे. प्लांट के पीछे बैठ कर उस ने राजू प्रसाद को फिर शराब पिलाई. इस के बाद राजू प्रसाद जब नशे में अर्धबेहोश हो गया तो उस ने नीरज की मदद से पत्थर से सिर कूंच कर राजू प्रसाद की हत्या कर दी और वापस मलाका आ गए, जहां से पुलिस ने उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

थानाप्रभारी नंदलाल ने बयान दर्ज करने के बाद मृतक के भाई रामबाबू की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत सुलेखा, रामराज व नीरज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

3 अप्रैल, 2021 को थाना थरियांव पुलिस ने अभियुक्त रामराज, नीरज व सुलेखा को फतेहपुर की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन तीनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मिटा दिया साया : पिता बने भविष्य पर बोझ

रात लगभग 2 बजे सुनील कुमार के घर में कोहराम मच गया. बरामदे में सुनील कुमार की लहूलुहान लाश पड़ी थी. लाश के पास में ही उस की पत्नी आशा देवी बैठी रो रही थी. शोर सुन कर आसपास के लोग भी आ गए. बेटे अनुज ने उसी समय थाना चित्राहाट में फोन कर घटना की जानकारी दी. यह घटना आगरा के चित्राहाट थाना क्षेत्र के नाहि का पुरा गांव में 25 मार्च, 2021 की रात को हुई थी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी महेंद्र सिंह भदौरिया उसी समय टीम के साथ गांव में जा पहुंचे. उन्होंने अनुज से घटना के बारे में जानकारी ली. इस के बाद उन्होंने घटना की जानकारी एसपी (पूर्वी) अशोक वेंकट को दी. वह भी कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए.

पूछताछ में अनुज ने पुलिस को बताया कि रोजाना की तरह पिता रात को बरामदे में चारपाई पर सो रहे थे. जबकि परिवार के अन्य सदस्य ऊपरी मंजिल पर सोए हुए थे.

रात लगभग 2 बजे पिता की चीख सुन कर आंखें खुल गईं. वह और मां दोनों बरामदे की ओर दौड़े. बरामदे में गांव का अनवर जो हमारे परिवार से रंजिश मानता है, पिता के सिर पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ प्रहार कर रहा था.

उन लोगों ने रोकने का प्रयास किया तो वह जान से मारने की धमकी देता हुआ भाग गया. सिर से निकले खून के छींटों से दीवार भी लाल हो गई थी. अचानक हुए हमले से पिता अपना बचाव नहीं कर सके और उन की मौत हो गई. घटनास्थल की काररवाई करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

घर वालों के अनुसार 21 मार्च को खेत पर अनुज और अनवर के बेटे विजय के बीच विवाद हो गया था. अनवर ने अपने बेटे विजय का पक्ष लेते हुए अनुज के सिर में ईंट मार दी थी, जिस से सिर से खून बहने लगा. इतना ही नहीं अनवर ने धमकी दी, ‘‘मैं तेरा काल हूं, तेरी बलि चढ़ाऊंगा.’’

घर आ कर अनुज ने पिता सुनील कुमार को घटना की जानकारी दी. इस पर सुनील अपने घायल बेटे को ले कर अनवर के घर पहुंचा. शिकायत करने पर अनवर के घर वालों ने गालीगलौज करने के साथ ही पितापुत्र को जान से मारने की धमकी दी थी.

इस के बाद थाना चित्राहाट में घटना की अनवर के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करा दी थी. लेकिन बाद में गांव के लोगों ने बीच में पड़ कर सुलह करा दी थी. इस के बाद अनवर ने वारदात को अंजाम दे दिया.

पीडि़त घर वालों ने पुलिस को बताया कि यदि आरोपी अनवर जल्द गिरफ्तार नहीं किया गया तो अनुज के साथ भी अनहोनी हो सकती है. अनुज की तरफ से अनवर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

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44 वर्षीय सुनील कुमार पूर्व प्रधान रामप्रकाश का बेटा था. सुनील के परिवार में पत्नी आशा देवी के अलावा बेटा अनुज और 2 बेटियां थीं. परिवार ने अनवर की धमकी को हलके में लिया था.

मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपी अनवर की तलाश में जुट गई. आरोपी के घर पर दबिश दी गई, लेकिन वह नहीं मिला. फरार आरोपी की गिरफ्तारी के लिए एसपी (पूर्वी) अशोक वेंकट ने पुलिस की टीम का गठन किया.

पुलिस टीम में थानाप्रभारी (बाह) विनोद कुमार पवार, थानाप्रभारी (जैतपुर) योगेंद्र पाल सिंह, थानाप्रभारी (चित्राहाट) महेंद्र सिंह भदौरिया, सर्विलांस टीम के प्रभारी नरेंद्र कुमार व उन की टीम को शामिल किया गया.

पुलिस जहां अनवर की गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी, वहीं वह घटना के संबंध में गहराई से जांचपड़ताल में जुटी थी. इस संबंध में पुलिस को गांव वालों ने बताया कि सुनील अय्याश किस्म का व्यक्ति था. गांव के अलावा आसपास के गांवों में कई महिलाओं से उस के अवैध संबंध थे. वह उन पर खूब पैसा खर्च करता था. इस के लिए वह पहले अपनी जायदाद बेच चुका था.

हाल ही में उस ने बेटी की शादी के नाम पर कुछ जमीन का सौदा भी कर दिया था. इसी को ले कर घर में क्लेश हो रहा था. सुनील की बेटी व बेटा भी इस बात से नाराज थे.

पुलिस का मानना था कि बच्चों के बीच हुए विवाद के बाद जब दोनों पक्षों में सुलह हो गई थी तब अनवर ने सुनील की हत्या क्यों की? और वह भी अकेले. हत्या जैसी घटना को अकेले अनवर अंजाम नहीं दे सकता था.

उस का कोई साथी भी इस में जरूर शामिल होगा. लेकिन मृतक के घर वालों से पूछताछ के साथ ही अनुज ने रिपोर्ट में भी केवल अनवर को ही नामजद किया था. इस बीच आरोपी अनवर की तलाश में जुटी पुलिस की टीमों के हाथ कई अहम सुराग लगे, जिस से वह पुलिस की पकड़ में आ गया. अनवर को पुलिस थाने ले लाई.

उस से कड़ाई से पूछताछ की गई. पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि सुनील की हत्या के बाद वह मौके पर पहुंचा था. मृतक का शव चारपाई से उस ने ही उतरवा कर जमीन पर रखवाया था. उस के बाद सुनील के घर वालों की कानाफूसी पर वह वहां से निकल गया था.

मृतक की पत्नी से भी पुलिस को अहम सुराग मिले थे, जिस से इस हत्याकांड में बेटा व बेटी के लिप्त होने की बात सामने आई थी.

पुलिस ने सुनील की हत्या के आरोप में मृतक के बेटे अनुज, बेटी अल्पना के साथ ही अल्पना के प्रेमी संजेश तथा संजेश के दोस्त मदन यादव को 29 मार्च, 2021 को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने हत्या में शामिल आरोपियों की गिरफ्तारी से पहले उन के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाए और 30 मार्च को सुनील हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

चारों आरोपियों ने हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल करते हुए हत्या में प्रयुक्त चारपाई का पाया, जिस से सुनील के सिर को कूंच कर हत्या की गई थी, को एक खेत से हत्यारोपियों की निशानदेही पर बरामद कर लिया.

पुलिस पूछताछ में हत्यारोपियों ने सुनील कुमार की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

सुनील कुमार अपनी जायदाद  बेचबेच कर अपने शौक पूरे कर रहा था. पिता की हरकतों से परिवार में क्लेश चल रहा था. हाल ही में सुनील ने अपनी 6 बीघा जमीन का 20 लाख रुपए में सौदा किया था. इस बात की जानकारी घर वालों को जैसे ही हुई, उन्होंने इस का कड़ा विरोध किया. ननिहाल वालों को भी इस संबंध में बताया, उन्होंने भी सुनील को समझाया लेकिन उन के समझाने का भी सुनील पर कोई असर नहीं हुआ.

इस पर बेटे अनुज और बेटी अल्पना को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. यदि पिता संपत्ति बेचबेच कर इसी तरह बरबाद करते रहे तो परिवार के सामने भूखों मरने की नौबत आ जाएगी. तब दोनों भाईबहनों ने पिता सुनील का पुरजोर विरोध किया तो सुनील ने अनुज और अल्पना के साथ मारपीट कर दी.

संपत्ति के विवाद में आए दिन हो रहे गृह क्लेश के बीच 21 मार्च को गांव में बच्चों के विवाद में अनुज का अनवर से झगड़ा हो गया. इसी घटना को आधार बना कर अनुज और अल्पना ने अपने पिता सुनील की हत्या की योजना बना डाली.

अल्पना के पिछले 6 सालों से सूरजनगर गांव के संजेश से प्रेम संबंध थे. उधर सुनील अल्पना की शादी के लिए रिश्ता तलाश रहा था, जबकि अल्पना संजेश से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी.

अनुज और अल्पना ने प्रेमी संजेश के साथ पिता सुनील कुमार की हत्या की साजिश रची. अल्पना ने संजेश को बताया कि पिता को हम दोनों के प्रेम संबंधों का पता चल गया है और वह उस की शादी के लिए रिश्ता तलाश रहे हैं, साथ ही वह अपने शौक पूरा करने के लिए जमीन भी बेच रहे हैं. यदि उन्होंने इसी तरह सारी जमीन बेच दी तो हमारे लिए कुछ नहीं बचेगा. उन्होंने 20 लाख रुपए में जमीन बेचने का सौदा भी कर लिया है. यदि उन्हें जल्दी से रास्ते से नहीं हटाया गया तो हम लोगों को पछताना पड़ेगा.

सुनील ने कुछ दिन पहले अल्पना व अनुज के साथ मारपीट की थी. ये बात संजेश को बुरी लगी थी. तब प्रेमी संजेश ने अपनी प्रेमिका अल्पना की खातिर सुनील को ठिकाने लगाने के लिए अपने गांव के ही दोस्त मदन यादव को तैयार कर लिया.

25 मार्च, 2021 की रात को संजेश की फोन काल पर ही मदन यादव सुनील की हत्या करने के लिए वहां पहुंच गया. रात 2 बजे घर के बरामदे में सो रहे सुनील के सिर पर चारपाई के पाए से ताबड़तोड़ वार कर उस की हत्या कर दी. हत्या को अंजाम देने के बाद संजेश और मदन अपने घर चले गए. उन के जाने के बाद योजनानुसार अनुज ने शोर मचाया.

पुलिस जब चारों आरोपियों अनुज, अल्पना, संजेश और मदन यादव को गिरफ्तार कर न्यायालय ले जा रही थी, तो वे हंस रहे थे. पिता की हत्या के बाद बेटे अनुज और बेटी अल्पना के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चरित्र की कच्ची कंचन : अवैध सम्बन्ध ने बनाया कातिल

रामकुमार की जानकारी में अपनी पत्नी कंचन की कुछ ऐसी बातें आई थीं, जिस के बाद कंचन उस के लिए अविश्वसनीय हो गई थी. बताने वाले ने रामकुमार को यह तक कह दिया, ‘‘कैसे पति हो तुम, घर वाली पर तुम्हारा जरा भी अकुंश नहीं. इधर तुम काम पर निकले, उधर कंचन सजधज कर घर से निकल जाती है. दिन भर अपने यार के साथ ऐश करती है और शाम को तुम्हारे आने से पहले घर पहुंच जाती है.’’

रामकुमार कंचन पर अगाध भरोसा करता था. पति अगर पत्नी पर भरोसा न करे तो किस पर करे. यही कारण था कि रामकुमार को उस व्यक्ति की बात पर विश्वास नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘हमारी तुम्हारी कोई नाराजगी या आपसी रंजिश नहीं है, मैं ने कभी तुम्हारा बुरा नहीं किया. इस के बावजूद तुम मेरी पत्नी को किसलिए बदनाम कर रहे हो, मैं नहीं जानता. हां, इतना जरूर जानता हूं कि कंचन मेकअपबाज नहीं है. शाम को जब मैं घर पहुंचता हूं तो वह सजीधजी कतई नहीं मिलती.’’

‘‘कंचन जैसी औरतें पति की आंखों में धूल झोंकने का हुनर बहुत अच्छी तरह जानती हैं.’’ उस व्यक्ति ने बताया, ‘‘तुम्हें शक न हो, इसलिए वह मेकअप धो कर घर के कपड़े पहन लेती होगी.’’

रामकुमार को तब भी उस व्यक्ति की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. वह उस का करीबी था, इसलिए उस ने उसे थोड़ा डांट दिया.

रामकुमार ने उस शख्स को डांट जरूर दिया था, लेकिन उस के मन में यह भी खयाल आया कि कोई इतनी बड़ी बात कह रहा है तो वह हवा में तो कह नहीं रहा होगा. उस ने खुद देखा होगा या उस के पास कोई ठोस सबूत या गवाह होगा. वैसे भी धुंआ वहीं उठता है, जहां आग लगी होती है. लिहाजा वह बेचैन हो गया. उस ने सोचा कि अपनी तसल्ली के लिए वह इस बारे में कंचन से बात जरूर करेगा.

घर पहुंचतेपहुंचते रामकुमार ने कंचन से उक्त संदर्भ में बात करने का इरादा बदल दिया. इस के पीछे कारण यह था कि कोई भी औरत अपनी बदचलनी स्वीकार नहीं करती तो कंचन कैसे कर लेगी. इसीलिए उस ने स्वयं मामले की असलियत का पता लगाने का फैसला कर लिया.

पत्नी के चरित्र को ले कर रामकुमार तनाव में था. उस का वह तनाव चेहरे और आंखों से साफ झलक रहा था. एक दिन कंचन ने उस से पूछा भी, लेकिन रामकुमार ने टाल दिया, बोला, ‘‘मन ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हारी दवा घर में रखी तो है, पी लो. जी भी ठीक हो जाएगा और चैन की नींद भी सो जाओगे.’’ वह बोली.

तनाव की अधिकता से रामकुमार का सिर फट रहा था. सिर हलका करने और चैन से सोने के लिए उसे स्वयं भी शराब की तलब महसूस हो रही थी. इसलिए वह कंचन से बोला, ‘‘ले आओ.’’

कंचन ने शराब की बोतल, पानी, नमकीन और एक गिलास ला कर पति के सामने रख दिया. रामकुमार ने एक बड़ा पैग बना कर हलक में उड़ेला और सोचने लगा कि कल उसे क्या करना चाहिए.

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उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के गांव गोहानी में रहता था शंभू सिंह. शंभू सिंह के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा एक बेटा कुलदीप और एक बेटी कंचन थी. कुलदीप पंजाब में रह कर काम करता था. उस की पत्नी गांव में रहती थी.

शंभू सिंह खेतिहर मजदूर था. कमाई कम थी, इसलिए घरपरिवार में किसी न किसी चीज का सदैव अभाव बना रहता था. सुंदर व चुलबुली कंचन मामूली चीजों तक को तरसती रहती थी.

पिता की कमाई कम थी और खर्च अधिक, इसलिए निजी जरूरतें और शौक पूरा करने के लिए कंचन को घर से वांछित रुपए मिल नहीं  सकते थे. इसीलिए वह कभी कोई चीज खाने को तरसती, कभी किसी को अच्छे कपड़े पहने देख ललचाती तो कभी सोचती कि सजनेसंवरने का सामान कैसे खरीदे.

किशोर उम्र की लड़कियों की मानसिकता समझने और उन से लाभ उठाने वालों की दुनिया में कोई कमी नहीं है. गोहानी गांव में भी कुछ ऐसे ठरकी थे. उन्होंने कंचन का लालच समझा तो वह उसे रिझाने लगे. खिलानेपिलाने या कुछ सामान दिलाने के नाम पर वह कंचन के साथ अश्लील हरकत करते.

कुछ समय में ही कंचन समझ गई कि कोई यूं मेहरबान नहीं होता. जो पैसा खर्च करता है, उस के एवज में कुछ चाहता भी है. वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों की इच्छाएं पूरी करने लगी. परिणाम यह हुआ कि कंचन कुछ ही दिनों में पूरे गांव में बदनाम हो गई.

बात पिता शंभू सिंह और मां पार्वती तक पहुंची तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया कि बेटी है या आफत की परकाला. छोटी सी उम्र में इतने बड़े गुल खिला रही है. दोनों ने कंचन को खूब मारापीटा, मगर कंचन ने अपनी राह नहीं बदली.

शंभू सिंह और पार्वती जब सारी कोशिश कर के हार गए तब उन्होंने सोचा कि कंचन की जल्द शादी कर के उसे ससुराल भेज दिया जाए, तभी थोड़ीबहुत इज्जत बची रह सकती है.

इस फैसले के बादशंभू सिंह ने कंचन के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. जल्द ही एक अच्छा रिश्ता मिल गया. प्रतापगढ़ जनपद के गांव धर्मपुर निवासी राजेश पटेल से कंचन का रिश्ता तय हो गया. 12 वर्ष पूर्व कंचन का विवाह राजेश पटेल से हो गया.

कंचन को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अब किसी और की जरूरत नहीं थी. पति राजेश उस की हर जरूरत पूरी करता था. कालांतर में कंचन ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

धीरेधीरे कंचन और राजेश में मतभेद रहने लगे, जिस वजह से उन के बीच वादविवाद होता था. यह वादविवाद कभीकभी विकराल रूप धारण कर लेता था. कंचन को अब अपनी ससुराल काटने को दौड़ती थी. उस का वहां मन नहीं लगता था.

इसी बीच कंचन की मुलाकात रामकुमार दुबे से हो गई. रामकुमार दुबे कन्नौज के गुरसहायगंज का रहने वाला था. 10 सालों से वह हरदोई जिले में रहने वाली अपनी बहन मिथलेश की ससुराल में रहता था. काम की तलाश में वह प्रतापगढ़ आ गया. यहीं पर उसे कंचन मिल गई.

पहली मुलाकात हुई तो उन के बीच बातें हुईं. दोनों की यह मुलाकात काफी अच्छी रही. दोनों ने एकदूसरे को अपना नंबर दे दिया. इस के बाद तो उन की मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. फोन पर भी बातें होने लगीं. कुछ ही दिनों में दोनों इतने करीब आ गए कि शादी कर के साथ रहने की सोचने लगे.

दोनों ने साथ रहने का फैसला लिया तो कंचन अपनी ससुराल छोड़ कर उस के पास आ गई. रामकुमार ने साथ रहने के लिए कंचन के कहने पर पहले ही जौनपुर के भुईधरा गांव में जमीन ले कर 2 कमरों का मकान बनवा लिया था. दोनों शादी कर के यहीं रहने लगे. यह 8 साल पहले की बात है. 4 साल पहले कंचन ने एक बेटे को जन्म दिया.

लेकिन अभावों ने कंचन का यहां भी पीछा न छोड़ा. रामकुमार की भी कमाई अधिक नहीं थी. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. कंचन की मुश्किलें बढ़ने लगीं तो उस ने इधरउधर देखना शुरू कर दिया. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उस की जरूरतों पर पैसा खर्च कर सके. इस खेल की तो वह पुरानी खिलाड़ी थी.

उस की तलाश रामाश्रय पटेल पर जा कर खत्म हुई. रामाश्रय जौनपुर के मुगरा बादशाहपुर थाना क्षेत्र के बेरमाव गांव का निवासी था. बेरमाव पंवारा थाना क्षेत्र की सीमा से सटा गांव था. रामाश्रय दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में काम करता था. कुछ दिनों बाद वह घर आता रहता था. रामाश्रय विवाहित था और उस के 3 बच्चे भी थे. लेकिन उस की अपनी पत्नी से नहीं बनती थी.

रामाश्रय भुईधरा गांव आता रहता था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात कंचन से हो गई थी. कंचन जान गई थी कि रामाश्रय आर्थिक रूप से काफी मजबूत है. कंचन और रामाश्रय की मुलाकातें होने लगीं. इन मुलाकातों में कंचन ने रामाश्रय के बारे में काफी कुछ जान लिया.

वह यह भी जान गई कि रामाश्रय की अपनी पत्नी से नहीं बनती. यह जान कर वह काफी खुश हुई, उस का काम आसान जो हो गया था. पत्नी से परेशान मर्द को बहला कर अपने पहलू में लाना आसान होता है, यह कंचन बखूबी जानती थी.

कंचन ने अब रामाश्रय को अपने लटकेझटके दिखाने शुरू कर दिए. रामाश्रय भी कंचन के नजदीक आ कर उसे पाने की चाहत रखता था. कंचन के लटकेझटके देख कर वह भी समझ गया कि मछली खुद शिकार होने को आतुर है. वह भी कंचन पर अपना प्रभाव जमाने के लिए खुल कर उस पर अपना पैसा लुटाने लगा.

कंचन की रामाश्रय से नजदीकी क्या हुई, कंचन के अंदर की अभिलाषा जाग गई. कंचन ने अपनी कामकलाओं का ऐसा जादू बिखेरा कि रामाश्रय सौसौ जान से उस पर न्यौछावर हो गया.

रामकुमार के काम पर जाते ही कंचन सजधज कर घर से निकल जाती और रामाश्रय के साथ घूमती और मटरगश्ती करती. रामाश्रय पर कंचन के रूप का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. रामकुमार के घर आने से पहले कंचन घर आ जाती थी. घर आने के बाद अपना मेकअप धो कर साफ कर लेती. घर के कपड़े पहन कर घर का काम करने लगती.

कंचन समझती थी कि किसी को उस की रंगरलियों की खबर नहीं है. जबकि वास्तविकता सब जान रहे थे.

एक दिन किसी शुभचिंतक ने रामकुमार को उस की पत्नी की रंगरलियों की दास्तान बयां कर दी.

रामकुमार ने इस बाबत कंचन से कोई सवाल नहीं किया. बल्कि उस ने अपने सारे पैग पीतेपीते सोच लिया कि हकीकत का पता करने के लिए उसे क्या करना है.

दूसरे दिन रामकुमार काम पर जाने के लिए घर से तो निकला, पर गया नहीं. कुछ दूरी पर एक जगह छिप कर बैठ गया. उस की नजर घर की ओर से आने वाले रास्ते पर जमी थी.

मुश्किल से आधा घंटा बीता होगा कि कंचन आती दिखाई दी. अच्छे कपड़े, आंखों में काजल, होठों पर लिपस्टिक, कलाइयों में खनकती चूडि़यां उस की खूबसूरती बढ़ा रही थी.

कंचन जैसे ही नजदीक आई. रामकुमार एकदम से छिपे हुए स्थान से निकल कर उस के सामने आ खड़ा हुआ. पति को अचानक सामने देख कर कंचन भौचक्की रह गई. वह रामकुमार से पूछना चाहती थी कि वह यहां कैसे, काम पर गए नहीं या लौट आए. मगर मानो वह गूंगी हो गई. चाह कर भी आवाज उस के गले से नहीं निकली.

रामकुमार ने कंचन की आंखों में देख कर भौंहें उचकाईं, ‘‘छमिया बन कर कहां चलीं… यार से मिलने? अपना मुंह काला करने और मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ाने.’’

कंचन घबराई, लेकिन जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहाधो कर घर से निकलना भी अब जुल्म हो गया. दुखी हो गई हूं मैं तुम से.’’

‘‘घर चल, तब मैं बताता हूं कि कौन किस से दुखी है.’’

दोनों घर आए तो उन के बीच जम कर झगड़ा हुआ. कंचन अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह रामाश्रय से मिलने नहीं, अपनी सहेली से मिलने जा रही थी.

रामकुमार ने कंचन पर अंकुश लगाने का हरसंभव प्रयास किया, मगर वह नाकाम रहा.

14 मई को गांव रामपुर हरगिर के पास शारदा नहर के किनारे लोगों ने एक लाश देखी. देखते ही देखते वहां काफी संख्या में लोग जमा हो गए. लाश को ले कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे. इसी बीच रामपुर हरगिर गांव के अजय कुमार नाम के व्यक्ति ने संबंधित थाना पंवारा को लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी सेतांशु शेखर पंकज अपनी टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र लगभग 35-36 वर्ष रही होगी. मृतक के शरीर की खाल पानी में रहने से गल गई थी. लाश देखने में 2-3 दिन पुरानी लग रही थी. मृतक के दाएं हाथ पर रामकुमार पटेल और कंचन गुदा हुआ था.

थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश के कई कोणों से फोटो खींचने के साथ नाम का जो टैटू था, उस की भी फोटो खींच ली. घटनास्थल का निरीक्षण किया गया तो पास से चाकू, रस्सी और कपड़े बरामद हुए.

वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की गई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश पोस्टमार्टम हेतु भेज दी. फिर अजय कुमार को साथ ले कर थाने आ गए.

अजय कुमार की लिखित तहरीर पर थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. थाने के सिपाहियों को लाश पर मिले टैटू की फोटो दे कर अपने थाना क्षेत्र और आसपास के थाना क्षेत्र में भेजा, जिस से मृतक के बारे में कोई जानकारी मिल सके. उन का यह प्रयास सफल भी हुआ.

गोहानी गांव में टैटू देख कर लोगों ने पहचाना कि कंचन तो उसी गांव की बेटी है, रामकुमार उस का पति है. वह टैटू देख कर यह लगा कि वह लाश रामकुमार की थी.

जानकारी मिली तो थानाप्रभारी सेतांशु शेखर गोहानी गांव पहुंच गए. रामकुमार की ससुराल गोहानी में थी. वहां रामकुमार की पत्नी कंचन मौजूद थी. उस के साथ में रामाश्रय था. रामाश्रय का पता पूछा तो उस का गांव बेरमाव था जोकि घटनास्थल से काफी करीब था.

रामकुमार की हत्या होना, उस समय उस की पत्नी कंचन का मायके में होना और उस के साथ जो व्यक्ति रामाश्रय मिला उस के गांव के नजदीक रामकुमार की लाश मिलना, यह सब इत्तिफाक नहीं था. सुनियोजित साजिश के तहत घटना को अंजाम देने की ओर इशारा कर रहा था.

इस बात को थानाप्रभारी बखूबी समझ गए थे. इसलिए उन्होंने शक के आधार पर पूछताछ हेतु दोनों को हिरासत में ले लिया और थाने वापस आ गए.

थाने ला कर उन दोनों से पहले अलगअलग फिर आमनेसामने बैठा कर कड़ाई से पूछताछ की गई तो वे दोनों टूट गए और हत्या के पीछे की वजह बयान कर दी.

कंचन और रामाश्रय दोनों के संबंधों को ले कर हर रोज घर में रामकुमार झगड़ा करने लगा. वह उन के मिलने में अड़चनें पैदा करने लगा तो कंचन ने रामाश्रय से रामकुमार को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने के लिए कह दिया. यह घटना से करीब एक हफ्ते पहले की बात है. दोनों ने पूरी योजना बना ली.

योजनानुसार कंचन अपने मायके गोहानी चली गई. 11/12 मई की रात रामाश्रय रामकुमार के पास गया. उस से कंचन से संबंध खत्म करने की बात कही. फिर एक नई शुरुआत करने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. रामकुमार को उस ने जम कर शराब पिलाई. देर रात एक बजे रामाश्रय रामकुमार को रामपुर हरगिर गांव के पास ले गया. उस समय रामकुमार नशे में धुत था.

रामाश्रय ने साथ लाए चाकू से गला काट कर रामकुमार की हत्या कर दी. उस के बाद उस के हाथपैर रस्सी और कपड़े से बांध कर लाश नहर में डाल दी लेकिन लाश नदी में स्थित बिजली के आरसीसी के बने खंभों में फंस कर रह गई. नदी के बहाव में वह नहीं बह सकी. रामाश्रय यह नहीं देख पाया.

वह तो चाकू वहीं फेंक कर घर चला गया. अगले दिन वह कंचन के पास उस के मायके पहुंच गया. वहां वह कंचन के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

मुकदमे में भादंवि की धारा 201/120बी/34 और जोड़ दी गईं. कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत दूसरी शादी की : पति बना रिश्तों में बोझ

21अप्रैल, 2021 को सुबह के यही कोई 6 बजे थे. तभी गांव सबरामपुरा के रहने वाले राकेश ओझा के घर से रोने की आवाज आने लगी. घर में एक महिला जोरजोर से रोते हुए कह रही थी, ‘‘अरे मेरे भाग फूट गए रे..मेरे पति ने फांसी लगा ली रे..कोई आओ रे. बचाओ रे..’’

रुदन सुन कर आसपड़ोस के लोग दौड़ कर राकेश ओझा के घर पहुंचे. तब तक मृतक की पत्नी मंजू ओझा ने कमरे में पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बना कर झूलते मृत पति को फंदे से नीचे उतार लिया था.

राकेश ओझा की लाश के पास उस की पत्नी मंजू सुबकसुबक कर रो रही थी. मृतक का बड़ा भाई राजकुमार ओझा भी खबर सुन कर वहां पहुंच गया था. वह भी भाई की मौत पर आश्चर्यचकित रह गया.

राजकुमार ओझा ने यह सूचना थाना कालवाड़ में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

घटनास्थल की जांच कर वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी कराई गई. मृतक की पत्नी मंजू ओझा से भी पूछताछ की गई. मंजू ने बताया कि रात में राकेश ने किसी समय साड़ी का फंदा गले में डाल कर फांसी लगा ली. आज सुबह जब मैं उठ कर कमरे में आई तो इन्हें फांसी पर लटका देख कर नीचे उतारा कि शायद जिंदा हों. मगर यह तो चल बसे थे. इतना कह कर वह फिर रोने लगी.

पुलिस ने वहां मौजूद मृतक के भाइयों और अन्य परिजनों से भी पूछताछ की. पूछताछ के बाद पुलिस को मामला संदिग्ध लग रहा था. आसपास के लोगों ने थानाप्रभारी को बताया कि राकेश आत्महत्या नहीं कर सकता. उसी समय मंजू रोने का नाटक करते हुए पुलिस की बातों को गौर से सुन रही थी. पुलिस वाले जब चुप होते तो वह रोने लग जाती. पुलिस वाले आपस में बोलते तो मृतक की पत्नी चुप हो कर सुनने लगती.

थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी ने संदिग्ध घटना की खबर उच्चाधिकारियों को दे कर दिशानिर्देश मांगे. जयपुर (पश्चिम) डीसीपी प्रदीप मोहन शर्मा के निर्देश पर एडिशनल डीसीपी राम सिंह शेखावत, एसीपी (झोटवाड़ा) हरिशंकर शर्मा ने कालवाड़ थानाप्रभारी से राकेश ओझा की संदिग्ध मौत मामले की पूरी जानकारी ले कर उन्हें कुछ दिशानिर्देश दिए.

थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया. मृतक राकेश का शव ले कर उस की पत्नी मंजू ओझा अपने देवर, जेठ वगैरह एवं तीनों बच्चों के साथ अपने पति के पुश्तैनी गांव रुआरिया, मुरैना लौट गई.

गांव रुआरिया में राकेश का अंतिम संस्कार कर दिया गया. राकेश ओझा बेहद जिंदादिल इंसान था. ऐसे में उस के इस तरह आत्महत्या करने की बात किसी के भी गले नहीं उतर रही थी. राकेश ओझा की मौत पुलिस को संदिग्ध लगी थी. पुलिस को जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो शक पुख्ता हो गया.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक राकेश को गला घोंट कर मारा गया था. तब डीसीपी प्रदीप मोहन शर्मा ने एक टीम गठित कर निर्देश दिए कि जल्द से जल्द राकेश ओझा हत्याकांड का परदाफाश कर हत्यारोपियों को गिरफ्तार किया जाए. टीम में एसीपी हरिशंकर शर्मा, थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी आदि को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन एडिशनल डीसीपी रामसिंह शेखावत के हाथों सौंपा गया.

पुलिस टीम ने साइबर सेल की मदद लेने के साथ मृतक के पड़ोस के लोगों से भी जानकारी ली. पुलिस टीम को जानकारी मिली कि मृतक की बीवी मंजू के पड़ोस में रहने वाले बीरेश उर्फ सोनी ओझा से अवैध संबंध थे. राकेश और बीरेश ओझा दोस्त थे और दोनों पीओपी का काम करते थे.

बीरेश अकसर राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर आयाजाया करता था. लोगों ने यहां तक कहा कि बीरेश जैसे ही राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर जाता, मंजू और बीरेश कमरे में बंद हो जाते थे.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने मंजू और बीरेश उर्फ सोनी ओझा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि जिस रात को राकेश की हत्या हुई थी, उस रात 10 बजे मंजू और बीरेश के बीच बात हुई थी. उस के बाद भी हर रोज दिन में कईकई बार बात होती रही. राकेश की हत्या से पहले भी मंजू और बीरेश के बीच दिन में कई बार बात होने का पता चला.

पुलिस को पुख्ता प्रमाण मिल गए थे कि राकेश की हत्या कर के उसे आत्महत्या दिखाने की साजिश रची गई थी. इस के बाद पुलिस ने बीरेश ओझा की गिरफ्तारी के प्रयास शुरू किए. मगर वह कहीं चला गया था. कुछ दिन बाद वह जैसे ही अपने घर आया, कांस्टेबल सुनील कुमार को इस की खबर मिल गई. तब पुलिस ने 27 अप्रैल, 2021 को उसे हिरासत में ले लिया.

बीरेश को थाना कालवाड़ ला कर पूछताछ की गई. पूछताछ में वह ज्यादा देर तक पुलिस के सवालों के आगे टिक नहीं पाया और अपनी प्रेमिका मंजू ओझा के कहने पर राकेश ओझा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी मंजू को भी गिरफ्तार कर लिया.

मंजू ओझा और बीरेश ओझा उर्फ सोनी से पूछताछ के बाद जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार से है—

राकेश ओझा मूलरूप से मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के गांव रुआरिया का रहने वाला था. वह काफी पहले गांव से जयपुर आ कर पीओपी का कामधंधा करने लगा था. राकेश की शादी मंजू से हुई थी. मंजू गोरे रंग की अच्छे नैननक्श की खूबसूरत युवती थी. शादी के कुछ महीने बाद राकेश पत्नी मंजू को भी अपने साथ जयपुर ले आया था.

राकेश तीजानगर इलाके के सबरामपुरा में किराए का घर ले कर बीवी के साथ रहता था. वक्त के साथ मंजू 3 बच्चों की मां बन गई. इन में एक बेटी और 2 बेटे हैं, जिन की उम्र 7 साल, 4 साल और 2 साल है.

राकेश पीओपी का अच्छा कारीगर था. इस कारण उस की मजदूरी भी अच्छी थी. वह महीने में 20-25 हजार रुपए आसानी से कमा लेता था. इस कारण उस के परिवार कागुजरबसर अच्छे से हो जाती थी. राकेश का छोटा भाई घनश्याम और बड़ा भाई राजकुमार भी जयपुर में काम करते थे. ये भी अपने परिवारों के साथ अलगअलग किराए पर रहते थे.

राकेश के पड़ोस में बीरेश उर्फ सोनी ओझा भी रहता था. बीरेश भी पीओपी का काम करता था. इसलिए दोनों दोस्त बन गए. बीरेश कुंवारा था और देखने में हैंडसम था. दोस्ती के नाते वह राकेश के घर आनेजाने लगा.

बीरेश की नजर राकेश की बीवी मंजू पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन पर मर मिटा. मंजू की उम्र उस समय 33 साल थी और वह उस समय 2 बच्चों की मां थी. इस के बावजूद उस की उम्र 20-22 से ज्यादा नहीं लगती थी.

मंजू का गोरा रंग व मादक बदन बीरेश की निगाहों में चढ़ा तो वह मंजू के इर्दगिर्द मंडराने लगा. बीरेश अकसर मौका पा कर राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर आता और मंजू की खूबसूरती की तारीफें करता. मंजू समझ गई कि आखिर बीरेश उस से क्या चाहता है.

राकेश ज्यादातर समय अपने काम पर बिताता और रात को घर लौटता तो खाना खा कर सो जाता. पत्नी की इच्छा पर वह ध्यान नहीं देता था. ऐसे में मंजू ने अपने से उम्र में 6 साल छोटे बीरेश से पहले नजदीकियां बढ़ाईं और फिर अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद यह सिलसिला चलता रहा.

बीरेश नई उम्र का जवान लड़का था. ऊपर से वह कुंवारा भी था. ऐसे में मंजू उसे पति से ज्यादा चाहने लगी.

काफी समय तक दोनों लुपछिप कर गुलछर्रे उड़ाते रहे. किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई. मगर जब अकसर राकेश की गैरमौजूदगी में बीरेश उस के घर आ कर दरवाजा बंद करने लगा तो आसपास के लोगों में कानाफूसी होने लगी. इसी दौरान मंजू तीसरे बच्चे की मां बन गई.

मंजू और बीरेश की बातें और आपस में व्यवहार देख कर राकेश को उन के संबंधों पर शक होने लगा था. ऐसे में राकेश को एक पड़ोसी ने इशारों में कह दिया कि बीरेश से दोस्ती खत्म करो. उस का घर आना बंद कराओ. यही तुम्हारे लिए ठीक रहेगा.

इस के बाद राकेश ने मंजू से सख्ती करनी शुरू कर दी तो मंजू बौखला गई. उस की आंखों में पति खटकने लगा.

मौका मिलने पर मंजू अपने प्रेमी बीरेश से मिली. दोनों काफी दिनों बाद मिले थे. मंजू ने बीरेश से कहा, ‘‘राकेश को हमारे संबंधों पर शक हो गया है. वह तुम से बात करने की मनाही करता है. लेकिन मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊंगी. राकेश हम दोनों को जीने नहीं देगा. ऐसा कुछ करो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

‘‘मंजू, मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. राकेश को रास्ते से हटा कर हम दोनों शादी कर लेंगे. इस के बाद हम अपने हिसाब से मौजमजे से जिंदगी जिएंगे.’’ बीरेश बोला.

‘‘मैं भी तुम से शादी करना चाहती हूं, मगर यह राकेश की मौत के बाद ही संभव है. हमें ऐसी योजना बनानी है कि राकेश की हत्या को आत्महत्या साबित करें. बाद में जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तब हम शादी कर लेंगे.’’ मंजू ने कहा.

इस के बाद दोनों ने योजना बना ली. 20 अप्रैल, 2021 की रात मंजू ने तीनों बच्चों को खाना खिला कर कमरे में सुला दिया और उन के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.

मंजू ने राकेश को खाने में नींद की गोलियां दे दी थीं, जिस से वह कुछ ही देर में गहरी नींद में चला गया. फिर रात 10 बजे मंजू ने बीरेश को फोन कर घर बुला लिया.

बीरेश और मंजू राकेश के कमरे में पहुंचे. बीरेश ने राकेश के गले में कपड़ा लपेट कर कस दिया. थोड़ा छटपटाने के बाद वह मौत की आगोश में चला गया.

राकेश मर गया. तब बीरेश और मंजू ने साड़ी राकेश के गले में लपेट कर उस के शव को पंखे के हुक से लटका दिया ताकि लोगों को लगे कि राकेश ने आत्महत्या की है.

इस के बाद बीरेश अपने घर चला गया और मंजू सो गई. अगली सुबह 6 बजे उठ कर मंजू ने योजनानुसार राकेश के कमरे में जा कर रोनाचिल्लाना शुरू कर दिया.

तब रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग और मृतक के भाई वगैरह घटनास्थल पर आए. तब तक मंजू ने राकेश का शव फंदे से उतार कर फर्श पर रख लिटा दिया था. इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई और पुलिस ने काररवाई कर राकेश ओझा हत्याकांड का परदाफाश किया.

पुलिस ने राजकुमार ओझा की तरफ से मंजू ओझा और उस के प्रेमी बीरेश ओझा उर्फ सोनी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

आरोपियों से मोबाइल और गला घोंटने का कपड़ा व साड़ी जिस का फंदा बनाया गया था, पुलिस ने बरामद कर ली. पूछताछ के बाद मंजू और बीरेश को 28 अप्रैल, 2021 को कोर्ट में  पेश कर न्यायिक हिराससत में भेज दिया गया.

प्रेमी के सिंदूर की चाहत : पति बना पत्नी का शिकार

17 मई की शाम करीब साढ़े 5 बजे थे जब दिल्ली में द्वारका सेक्टर 29 से सटे छावला के थाने के टेलीफोन की घंटी बजी. ड्यूटी औफिसर ने तुरंत फाइल समेटते हुए अपना हाथ टेलीफोन का रिसीवर उठाने के लिए आगे बढ़ाया. जैसे ही ड्यूटी औफिसर ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से किसी ने घबराते हुए बोला, ‘‘छावला पुलिस स्टेशन?’’

ड्यूटी औफिसर, ‘‘मैं छावला थाने से बोल रहा हूं. बताइए आप क्या कहना चाहते हैं?’’ ड्यूटी औफिसर ने कहा.

‘‘साहब, निर्मलधाम के पास सड़क किनारे एक आदमी की लाश पड़ी है. मैं यहां से गुजर रहा था तो मैं ने देखा. आप यहां आ कर देख लीजिए.’’

ड्यूटी औफिसर ने फोन के रिसीवर को अपने दांए कंधे और कान के सहारे दबाया, अपने दोनों हाथों को आजाद किया और टेबल पर कहीं पड़े नोट्स वाली डायरी ढूंढने लगे. वह लगातार फोन पर उस राहगीर से वारदात की घटना के बारे में पूछ रहे थे और डायरी ढूंढ रहे थे. टेबल पर बिखरे सारे सामान को उलटने पुलटने के बाद जब डायरी नहीं मिली तो एक फाइल के पीछे ही उन्होंने वारदात की जगह समेत बाकी जरूरी जानकारियां लिख डालीं. ड्यूटी औफिसर ने उस राहगीर को वारदात की जगह से कहीं भी हिलने से मना कर दिया और फोन काट दिया.

ये सारी जानकारी ड्यूटी औफिसर ने उस समय थाने में मौजूद थानाप्रभारी राजवीर राणा को दी. राजवीर राणा बिना किसी देरी के थाने में मौजूद स्टाफ को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

वहां पहुंचते ही पुलिस की टीम ने उस सुनसान सी सड़क के एक किनारे पर एक बाइक खड़ी देखी. बाइक के बिलकुल बगल में खून से लथपथ एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. लाश को देखते ही वहां मौजूद पुलिस टीम चौकन्नी हो गई और सबूत जमा करने के मकसद से घटनास्थल के इर्दगिर्द फैल गई.

थानाप्रभारी राजवीर राणा जब लाश का मुआयना करने के लिए बौडी के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उस के बदन पर किसी धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. जो साफ दिखाई दे रहे थे. उन्होंने लाश के अगलबगल नजर घुमाई तो एक मोबाइल फोन वहीं पास में पड़ा था, जो कि संभवत: मरने वाले शख्स का रहा होगा.

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रात होने को थी. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने बिना किसी देरी के बाइक और मोबाइल जब्त कर लिया और लाश की काररवाई आगे बढ़ाने के लिए क्राइम इनवैस्टीगैशन टीम के आने का इंतजार करने लगे.

उस सड़क से पैदल आने जाने वाले लोगों ने पुलिस और वहां मौजूद लाश को देख कर घटनास्थल पर जमावड़ा लगा दिया. सब टकटकी लगाए पुलिस को अपना काम करते देख आपस में फुसफुसाहट करने लगे.

जब वहां मौजूद पुलिस ने आसपास के मूकदर्शक बने लोगों से लाश की पहचान करने के लिए पूछताछ की तो कुछ लोगों ने लाश की शिनाख्त करते हुए कहा कि इस का नाम अशोक कुमार है और यह पेशे से टैक्सी ड्राईवर है.

तब तक मौके पर क्राइम इनवैस्टीगैशन टीम भी आ पहुंची. टीम ने अपना काम शुरू किया. उन्होंने सब से पहले लाश की फोटोग्राफी की. उन्होंने सबूत के तौर पर घटनास्थल से खून लगी मिट्टी के नमूने इकट्ठा कर लिए. यह सब काम कर लेने के बाद थानाप्रभारी राजवीर राणा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

सारे काम निपटा लेने के बाद पुलिस की टीम थाने लौट आई तथा इस केस के संबंध में काम आगे बढ़ाने लगी. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी राजवीर राणा ने स्वयं संभाली.

केस की तफ्तीश को आगे बढ़ाने के लिए थानाप्रभारी राणा ने सब से पहले घटनास्थल से बरामद किए गए मोबाइल फोन को निकलवाया. यह फोन टूटा नहीं था. सिर्फ बैटरी चार्जिंग खत्म होने की वजह से बंद हो गया था.

उस की काल डिटेल्स निकलवाई और देखा कि आखिरी बार एक नंबर से अशोक कुमार को कई बार काल की गई थी. इस के कुछ देर बाद ही अशोक कुमार की हत्या हो गई थी.

शक की सूई अब इसी आखिरी नंबर पर आ कर रुक गई थी. राजवीर राणा ने अपने फोन से इस नंबर को डायल किया तो दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई. थानाप्रभारी ने पहले अपना परिचय दिया और उस के बाद उस महिला से अशोक कुमार के रिश्ते के बारे में पूछा.

महिला ने अपना नाम शीतल और खुद को अशोक कुमार की बेटी बताया. राजवीर ने फोन पर बड़े दु:ख के साथ शीतल को बताया कि उस के पिता सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो चुके हैं, यह जानने के बाद शीतल उसी समय ही बिलखने लगी. उन्होंने उस से उस की मां के बारे में पूछा तो शीतल ने अपनी मां राजबाला से उन की बात करा दी.

थानाप्रभारी ने राजबाला को अशोक की मौत की खबर देते हुए उन से शीघ्र ही थाने पहुंचने को कहा 2-3 घंटे बाद जब राजबाला थाने पहुंची तो वह राजवीर राणा को देखते ही फफकफफक कर रोने लगी.

अपने पति की हत्या की खबर सुन कर वह आहत थी. राजवीर राणा ने राजबाला को हौसला रखने को कहा और उस से उस के पति से किसी से साथ दुश्मनी होने के बारे में पूछा. राजबाला ने रोते हुए कहा कि अशोक की किसी के साथ भी कोई दुश्मनी नहीं थी.

राजबाला से बात करते समय थानाप्रभारी राजवीर राणा को उस की बातों से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे पति की मौत का दुख है. बेशक राजबाला राजवीर राणा के सामने रो रही थी और दुखी दिखाई दे रही थी. लेकिन राजवीर को राजबाला पर शक हो चुका था.

राजबाला के आंसू घडि़याली लग रहे थे. दाल में कहीं तो कुछ काला जरुर था, जिस का पता लगाना जल्द से जल्द जरुरी था. आखिर एक व्यक्ति का कत्ल जो हुआ था.

राजबाला से पूछताछ खत्म होने पर वह अपने घर के लिए रवाना हो गई और पीछे कई तरह के शक और सवाल छोड़ गई.

इन सभी शकों को दूर करने के लिए और इस मामले से जुडे़ सभी सवालों के जवाब ढूंढने के लिए थानाप्रभारी ने शीतल और राजबाला की काल डिटेल्स मंगवाई. उन्होंने दोनों की काल डिटेल्स को बेहद बारीकी से परखी और उस की जांच की तो वह बेहद हैरान रह गए.

काल डिटेल्स से उन्हें यह पता लगा कि शीतल जिस समय अशोक को लगातार काल कर रही थी उस के ठीक बाद उस ने एक अन्य नंबर पर काफी देर तक बातचीत की थी. यह सब देख कर पुलिस ने यह अनुमान लगाया कि यदि इस मामले में शीतल को थोडा ढंग से कुरेदा जाए तो शायद इस केस में एक और लीड मिल सकती है. राजवीर ने बिना देरी किए फिर से एक बार राजबाला और शीतल को थाने बुला लिया.

उन्होंने इस बार दोनों से अलगअलग पूछताछ की. उन्होंने पहले शीतल से इस घटना के बारे में विस्तार से पूछा. शीतल का बयान लेने के बाद उन्होंने राजबाला से इस मामले में फिर से पूछताछ की. क्रास पूछताछ में दोनों की चोरी पकड़ी गई.

दोनों के बयान एक दूसरे से अलग थे. जब राजवीर राणा ने दोनों को कानून का थोड़ा डर दिखा कर उन पर दबाव बनाया तो शीतल ज्यादा देर टिक नहीं सकी. शीतल ने रोतेबिलखते, अपने हाथ से अपना सिर पीटते हुए अपनी मां राजबाला और उस के प्रेमी वीरेंद्र उर्फ ढिल्लू के साथ साजिश रच कर अपने पिता की हत्या कराने की बात कबूल कर ली.

यह सब सुनते ही बेटी के सामने राजबाला का चेहरा पीला पड़ गया. उसे जैसे न तो कुछ सुनाई दे रहा था और न ही कुछ दिखाई दे रहा था. थाने में शीतल के सामने राजबाला अपनी बेटी को घूरे जा रही थी. वह उसे ऐसे घूर रही थी जैसे मानो अगर उसे मौका मिलता तो वह वहीं पर शीतल का भी कत्ल कर बैठती.

शीतल द्वारा जुर्म कबूल करते ही पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. फिर राजबाला की निशानदेही पर उस के प्रेमी वीरेंद्र को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

वीरेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने अशोक की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. वीरेंद्र के बताए हुए पते पर जा कर पुलिस टीम ने अशोक कुमार की हत्या में इस्तेमाल किए जाने वाले चाकू और उस की कार बरामद कर ली. तीनों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में अशोक कुमार की हत्या के पीछे अवैध संबंधों की जो सनसनीखेज दास्तान सामने आई, कुछ इस तरह थी—

अशोक कुमार दिल्ली के नजफगढ़ के नजदीक भरथल गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. उस का 3 सदस्यों का छोटा परिवार था जिस में अशोक, उस की पत्नी राजबाला और बेटी शीतल ही थी. अशोक की कमाई का जरिया उस की टैक्सी थी. वह बेटी शीतल की शादी जाफरपुर कला के पास इशापुर गांव के रहने वाले हिमांशु से कर चुका था. शीतल अपने पति के साथ बेहद खुश थी. बेटी की शादी के बाद अशोक के सिर पर अब कोई और जिम्मेदारी नहीं थी.

लेकिन पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से पूरे देश में लौकडाउन लगा तो ज्यादातर लोगों की तरह अशोक भी अपने घर में कैद हो कर रह गया. उस का काम न के बराबर रह गया. घर पर रहने पर अशोक बहुत ज्यादा परेशान नहीं था.

अशोक को महसूस हुआ कि वैसे भी अपने काम के दौरान वह अकसर अपने घर से बाहर ही रहता है, ऐसे में न जाने कितने अरसे बाद उसे इतने लंबे समय के लिए घर में रहना नसीब हुआ है. अपने काम से हमेशा बाहर रहने वाले व्यक्ति को जब घर में कैद होना पड़ जाए तो जाहिर सी बात है कि वह घर की हर एक चीज को बारीकी से परखता है, गौर करता है.

ऐसे ही लौकडाउन के एक दिन अशोक घर का सामान लेने के लिए गांव में निकला तो दुकानदार से बातचीत के दौरान उस ने जो सुना उस से उस के होश ही उड़ गए.

दुकानदार ने कहा, ‘‘क्या भई अशोक. मजा आ रहा है घर में कैद हो कर?’’

‘‘कैद होना किस को अच्छा लगता है भला. अब समस्या सिर पर बैठी है तो हम बस उसे झेलने को मजबूर हैं. घर में रहने के अलावा और कुछ कर भी तो नहीं सकते.’’ अशोक बोला.

‘‘अब तो तुम्हारी महरिया भी तुम्हारे साथ कैद हो गई होगी. अब तो लोग आ जा भी नहीं सकते तुम्हारे घर. दुकानदार ने जोर देते हुए कहा.’’

‘‘वो घर में कैद हो गई…? क्या मतलब. और घर में लोगों के आने की क्या बात कह रहे हो.’’ अशोक भौंहें चढ़ाते हुए बोला.

दुकानदार ने धीमी, दबी आवाज में कहा, ‘‘अरे वो तो लौकडाउन लग गया तब जा कर तुम्हारी महरिया घर पर रुकने को मजबूर है. नहीं तो तुम्हारे घर से निकलते ही तुम्हारी महरिया आशिकी करने निकल जाती थी.’’

‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो. कौन है उस का आशिक?’’ अशोक ने गुस्से से पूछा.

दुकानदार दबी आवाज में बोला, ‘‘अरे ढिल्लू का नाम सुना है न तुम ने? वीरेंद्र का? वही तो है जो शीतल की मां के साथ आशिकी करता फिरता है. यह बात तो पूरे गांव वालों को पता है. चाहे तो पूछ लो.’’

ये सब सुनते ही अशोक के दाएं हाथ में थामी पौलिथिन थैली छूट गई. थैली फटने से चीनी, आटा, दाल और घर का कुछ और सामान नीचे पथरीली सड़क पर गिर कर फैल गया. अशोक को इस बात पर जितना सदमा लगा था उस से कहीं ज्यादा उसे इस बात को सुन कर गुस्सा आ रहा था. लोग उस की पत्नी राजबाला और गांव के बदमाश वीरेंद्र के बारे में उलटी सीधी बातें कर रहे थे.

दुकानदार से यह सब सुन कर उस ने 2-4 और लोगों से इस बारे में पूछताछ की. हर किसी ने दबी आवाज में अशोक को वही बताया जो कि उस दुकानदार ने बताया था.

दरअसल 43 वर्षीय वीरेंद्र उर्फ ढिल्लू भरथल का ही निवासी था. वीरेंद्र उस इलाके का नामचीन बदमाश था. दिल्ली के कई थानों में उस के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. एक तरह से जेल उस का दूसरा घर था.

लोगों के अनुसार जब अशोक घर पर नहीं रहता था तब उस के पीठ पीछे वीरेंद्र राजबाला के साथ गुलछर्रे उड़ाता था. अशोक ने बिना किसी हिचकिचाहट के राजबाला से इस बारे में पूछा.

लेकिन राजबाला ने पति की बात से कन्नी काट ली. उस ने उस की बात से साफ इनकार कर दिया. लेकिन उस दिन के बाद राजबाला अशोक की नजरों का ज्यादा देर तक सामना नहीं कर पाई.

राजबाला के मोबाइल पर जब कभी भी वीरेंद्र का फोन आता तो वह पति से दूर जा कर बात करती, जब अशोक उस से पूछता कि किस का फोन आया था तो वह रिश्तेदार होने का बहाना बनाने लगती. यह सब कुछ देख कर अशोक को यह यकीन जरूर हो गया कि दाल में जरूर कुछ काला है.

अकसर पति के घर पर रहने से पत्नी को खुशी होती है लेकिन अशोक के घर पर होने से राजबाला की खुशियों पर मानो बादल छा गए थे.

राजबाला वीरेंद्र से मिलने के लिए तड़पने लगी. उसे अपने पति से ज्यादा वीरेंद्र पसंद था. वीरेंद्र के साथ मां की आशिकी के किस्से बेटी शीतल से भी नहीं छिपे थे. वह भी उन के रिश्ते के बारे में बखूबी जानती थी और वह भी तो वीरेंद्र से पिता का महत्त्व देती थी.

शीतल वीरेंद्र को पिता अशोक से ज्यादा पसंद करती थी. क्योंकि अशोक जब घर पर नहीं रहता था, उस समय वीरेंद्र राजबाला से मिलने आता तो शीतल के लिए महंगे तोहफे साथ लाता था. दरअसल लौकडाउन की वजह से अशोक अपनी पत्नी राजबाला, बेटी शीतल और वीरेंद्र के लिए गले की हड्डी बन गया था.

लौकडाउन के चलते जेल में बंद वीरेंद्र को भी पैरोल पर छोड़ दिया गया था. एक दिन अशोक की नजरों से बचते बचाते वीरेंद्र राजबाला से मिला. उस दिन राजबाला ने वीरेंद्र पर इस कदर प्यार लुटाया जैसे वीरेंद्र के पर लग गए हों.

शारीरिक सुख भोग लेने के बाद जब राजबाला और वीरेंद्र एकदूसरे से अलग हुए तो उस ने वीरेंद्र्र से कहा कि अगर उस ने उस के पति अशोक को जल्द ठिकाने नहीं लगाया तो वह आत्महत्या कर लेगी. तब वीरेंद्र ने प्रेमिका से कहा, ‘‘तुम्हें आत्महत्या करने की जरूरत नहीं है. मैं उसे ही निपटा दूंगा.’’

इस के बाद राजबाला और वीरेंद्र ने योजना बनाई. इस योजना में उन्होंने शीतल को शामिल कर लिया. शीतल इस काम के लिए खुशी से तैयार हो गई.

17 मई, 2021 को शीतल ने अपने पिता अशोक को मिलने के लिए निर्मलधाम बुलाया. अशोक अपनी बाइक से निर्मलधाम के रास्ते में ही था. शीतल पलपल पिता को काल कर उस से खबर लेती रही. जब अशोक निर्मलधाम के नजदीक पहुंचा तो शीतल ने वीरेंद्र को काल कर यह बात बता दी.

वीरेंद्र अपनी हुंडई कार से वहां पहुंच गया और अशोक को सड़क किनारे रोक कर चाकू से गोद दिया. अशोक की लाश को वहीं छोड़ कर वीरेंद्र्र वहां से फरार हो गया. काम हो जाने पर वीरेंद्र्र ने राजबाला और शीतल को इस बात की जानकारी फोन कर के दी.

राजबाला, शीतल और वीरेंद्र्र तीनों अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे थे लेकिन पुलिस ने अपनी सूझबूझ के साथ 12 घंटे के अंदर ही अशोक कुमार हत्याकांड का परदाफाश कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी राजवीर राणा कर रहे थे.

पति और कातिल, दोनों में से कौन बड़ा हैवान – भाग 3

मौसी ने पूछा तो उस ने शराब के नशे में बताया कि उस से एक बड़ा गुनाह हो गया है. उस ने किसी औरत को मार दिया है. मौसी ने पुलिस को बताया कि यह सुन कर वह बहुत डर गई थी, इसलिए उस ने रामवीर से कह दिया कि वह तुरंत यहां से चला जाए. क्योंकि वह किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती.

रामवीर तक पहुंचने के लिए उस की मौसी अंतिम सिरा थी, जहां से उस के मिलने की उम्मीद थी, लेकिन इस के बाद पुलिस को उस की कोई खबर नहीं मिली.

रामवीर तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा एसीपी अंकिता शर्मा ने क्राइम ब्रांच की साइबर टीम को जांच के काम में साथ जोड़ कर रामवीर के मोबाइल को ट्रैक करने के काम पर लगा दिया.

रामवीर के मोबाइल की ट्रैकिंग के दौरान पुलिस को पता चला कि रामवीर लगातार सोनी के पति संदीप के साथ बातचीत कर उस के साथ संपर्क में बना हुआ था. पुलिस ने जब संदीप से पूछा कि क्या रामवीर साहू ने उस के साथ संपर्क किया है तो वह साफ मुकर गया कि रामवीर ने उस के साथ कोई संपर्क किया है.

पुलिस टीम समझ गई कि दाल में कुछ काला है जिस कारण संदीप सफेद झूठ बोल रहा है. पुलिस ने संदीप को बिना कुछ बताए उस के और रामवीर के मोबाइल की मौनिटरिंग और उस पर नजर रखनी शुरू कर दी.

7 फरवरी, 2022 को दोपहर में मोबाइल ट्रैकिंग से पता चला कि वे दोनों महामाया फ्लाईओवर के नीचे आपस में मिलने वाले हैं. इस सूचना के बाद थानाप्रभारी बी.एस. राठी ने अपनी टीम के साथ सादा कपड़ों में आसपास छिप कर निगरानी शुरू कर दी.

दोपहर करीब 3 बजे रामवीर साहू पहचान छिपाने के लिए सिर पर कपड़े का साफा बांध कर संदीप से मिलने पहुंचा तो पुलिस ने उन दोनों को हिरासत में ले लिया.

पुलिस की टीम दोनों को ले कर थाने पहुंची और उन से पूछताछ हुई तो मामूली पूछताछ के बाद ही सोनी यादव की हत्या का खुलासा हो गया.

दरअसल, संदीप ने बताया कि उसी ने अपनी पत्नी सोनी की हत्या रामवीर साहू के द्वारा पैसा दे कर करवाई थी.

संदीप की जब सोनी से शादी हुई तब दोनों की जिंदगी बेहद खुशहाल थी और संदीप सोनी को प्यार भी बहुत करता था. लेकिन एक दिन सोनी जब बाथरूम में नहा रही थी तो संदीप ने वैसे ही उस का मोबाइल चैक कर लिया.

उस दिन संदीप यह देख कर हैरान रह गया कि उस की बीवी सोनी उसे धोखा दे रही थी. शादी से पहले से ही उस के अपने गांव के अजय से संबंध थे. संदीप ने सोनी की सच्चाई उस पर उजागर नहीं होने दी, लेकिन इस दिन के बाद से वह सोनी से छुटकारा पाने की तरकीब सोचने लगा.

सोनी से छुटकारा पाने की सोच के पीछे एक दूसरी वजह यह भी थी कि अपनी ससुराल कासगंज में आतेजाते संदीप अपनी सब से छोटी साली रानी, जो सभी बहनों में सब से ज्यादा सुंदर थी, को पसंद करने लगा था.

सोनी से छुटकारा पाने की एक वजह यह भी थी कि डेढ़ साल होने को आया लेकिन अभी तक सोनी के मां बनने की कोई गुंजाइश नहीं बनी तो संदीप ने डाक्टरों को दिखाया तो उन्होंने बताया कि सोनी के मां बनने की संभावना बहुत कम है.

संदीप के पास सोनी से छुटकारा पाने की 3 वजह हो गई थीं. अब वह किसी भी हालत में सोनी से छुटकारा पा कर अपनी साली से शादी करने का फैसला कर चुका था.

संदीप ने फैसला किया कि अगर सही योजना बना कर सोनी की हत्या करवा दी जाए तो रानी से शादी का रास्ता साफ हो सकता है.

इस काम को कैसे अंजाम दिया जाए, यह बात सोच ही रहा था कि 19 जनवरी को अचानक उस की कालोनी में रहने वाला रामवीर जो उस का दोस्त भी बन चुका था, शाम को हमेशा की तरह दारू पीने के बाद उस के पास कचौरी खाने आया.

काम खत्म करने की तैयारी कर रहे संदीप से अचानक रामवीर ने अपनी आर्थिक तंगी का रोना रोते हुए कह दिया कि जिंदगी में पैसा बहुत बड़ी चीज है. इस को हासिल करने के लिए किसी का खून भी करना पड़े तो कर देना चाहिए.

रामवीर के मुंह से यह बात सुनते ही संदीप के दिमाग की बत्ती जलने लगी, उसे लगा कि अगर बात बढ़ाई जाए तो रामवीर उस का काम कर सकता है.

‘‘तो भाई कर दे तू भी खून. कमा ले पैसा.’’ संदीप ने अपनी तरफ से रामवीर को परखने के लिए पत्ता फेंका.

‘‘अरे भाई ऐसे ही किसी का खून कैसे कर दूं. कोई काम बताए, माल दे तभी तो करूं ये काम भी.’’

‘‘अगर मैं कोई काम बताऊं तो करेगा?’’ संदीप ने लोहा गरम होते देख तुरंत पूछ लिया.

‘‘तुझे किस का काम कराना है और तू पैसा कहां से देगा,’’ रामवीर की पुतलियां भी सोच में सिकुड़ गईं.

‘‘वो छोड़, तुझे तेरे काम का पैसा मिलेगा. पहले ये बता काम करेगा,’’ संदीप ने पूछा.

‘‘हां भाई, माल देगा तो काम क्यों नहीं करूंगा.’’ रामवीर ने उत्साहित होते हुए कहा.

‘‘तो ठीक है, मेरी बीवी को मार दे, पूरे 70 हजार रुपए दूंगा.’’

‘‘अबे पागल हो गया है क्या तू, जो अपनी बीवी को मरवाना चाहता है?’’ रामवीर ने फटी आंखों से पूछा.

‘‘वजह एक नहीं कई हैं भाई. एक तो कमीनी का शादी के पहले से ही गांव में किसी यार से चक्कर चल रहा है. दूसरा वह मां नहीं बन सकती और तीसरा मुझे उस की छोटी बहन बहुत पसंद है. इस का काम तमाम हो जाए तो मैं उस से शादी कर लूंगा.’’ संदीप ने इस दिन अपने मन की बात रामवीर को बताई तो उस ने कहा कि अभी शराब बहुत पी ली है. वह काम करेगा या नहीं, इस बारे में सोच कर कल बताएगा.

मामला बनता देख संदीप ने चलते समय रामवीर को 3 हजार रुपए दे दिए. रामवीर फिर से शराब के ठेके पर गया और फिर शराब पी और रात को घर चला गया. रामवीर ने सुबह शराब का नशा उतर जाने पर संदीप की कही बातों पर विचार किया तो काफी सोचविचार कर दोपहर एक बजे फिर से महामाया फ्लाईओवर के नीचे संदीप के ठिकाने पर पहुंच गया.

संदीप ने उस से पूछा, ‘‘क्या इरादा किया भाई?’’

‘‘इरादा तो ठीक है भाई, लेकिन तूने अपनी बीवी के मौत की कीमत बहुत कम लगाई है.’’

‘‘क्यों, तुझे कितना चाहिए?’’ संदीप ने पूछा.

‘‘देख, तू अपना दोस्त है तेरी परेशानी भी जायज है. लेकिन भी अगर कम से कम डेढ़ लाख खर्च करे तो काम किया जा सकता है.’’

थोड़ी देर तक संदीप और रामवीर के बीच कत्ल करने के लिए दी जाने वाली रकम को ले कर सौदेबाजी होती रही.

जब संदीप ने देखा कि रामवीर इस से कम पैसा लेने के लिए टस से मस नहीं हो रहा तो उस ने कहा, ‘‘ठीक है भाई, तुझे इतने ही पैसे मिलेंगे लेकिन काम बड़ी सफाई से होना चाहिए. काम होते ही सुबह पैसे दे दूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने जेब से 2 हजार रुपए और निकाले और रामवीर की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हो सके तो आज ही काम कर दे. शाम तक कालोनी में वैसे भी सन्नाटा रहेगा, मैं यहां हूं और सोनी घर में अकेली है. बस, जा कर ठिकाने लगा दे.’’

सारी बात तय हो गई तो डेढ़ लाख में सोनी को मारने की बात कह कर रामवीर वहां से निकल गया. उस ने उसी समय अपना मोबाइल भी बंद कर दिया. क्योंकि उस ने टीवी सीरियलों में देखा था कि मोबाइल की लोकेशन से पुलिस कातिल को खोज लेती है.

सब से पहले वह निकट के शराब ठेके पर पहुंचा. जम कर शराब पी. उस के बाद करीब 4 बजे संदीप के घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया.

उस वक्त पूरी कालोनी में सन्नाटा पसरा हुआ था. सोनी ने अंदर से ही पूछा, ‘‘कौन है?’’ तो उस ने बता दिया, ‘‘भाभीजी, मैं हूं साहू. संदीप ने आप को देने के लिए पैसे भेजे हैं.’’ रामवीर ने बात ही ऐसी की थी कि सोनी ने दरवाजा खोल दिया. वैसे भी वह साहू को जानती थी.

लेकिन जैसे ही सोनी ने दरवाजा खोला रामवीर ने उस के चेहरे पर एक जोरदार घूंसा मारा. सोनी की नाक पर घूंसा लगते ही उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह चीखते हुए कमरे के बीचोंबीच फर्श पर गिर पड़ी.

इतना मौका काफी था रामवीर के लिए. वह झट से कमरे में घुसा और दरवाजा भीतर से बंद कर जमीन पर पड़ी सोनी की तरफ पलटा. लेकिन कुछ पलों के लिए अचेत हुई सोनी पर निगाह पड़ते ही शराब के नशे में धुत रामवीर की आंखों में वासना के डोरे तैरने लगे.

दरअसल, चेहरे पर वार होने से संतुलन खो कर गिरने वाली सोनी के कपड़े इस कदर अस्तव्यस्त हो गए कि जांघों तक दिख रही सोनी की नग्न गोरी देह को देख कर रामवीर के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए.

उस ने सोचा कि सोनी को मारना तो है ही, क्यों न उस से पहले वह अपनी वासना की आग बुझा ले. यही सोच कर उस ने उस के साथ जमीन पर ही शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए.

लेकिन अपनी उत्तेजना के अतिरेक में वह कुछ करता, उस से पहले ही सोनी की चेतना लौट आई और वह शोर मचाने को कोशिश करते हुए विरोध करने लगी.

एक तो शराब का नशा, ऊपर से वासना का जुनून, सोनी रामवीर के लंबेचौड़े शरीर के नीचे दबी पड़ी थी. उस को शांत करने के लिए रामवीर ने सोनी के सिर को दोनों कनपटी से पकड़ कर 3-4 बार फर्श पर पटक दिया. सोनी कुछ पल छटपटाई, फिर उस का शरीर शांत हो गया.

लेकिन सोनी के शांत होते ही रामवीर के भीतर वासना का उफान आ गया. इस बात से अनजान कि सोनी की मौत हो चुकी है, रामवीर उस के जिस्म से खेलते हुए अपनी कामवासना शांत करता रहा.

जब वासना का भूत उतरा तो देखा कि अचेत पड़ी सोनी के सिर से काफी खून बह चुका था और वह मर चुकी थी. उस ने सोनी की साड़ी को घुटनों से नीचे कर दिया. कई बार उस के शव को हिला कर देखा कि उस में जान तो नहीं बाकी है.

करीब 5 बजे रामवीर ने घर का दरवाजा खोल कर देखा कि बाहर कोई है तो नहीं और उस के बाद रास्ता साफ देख कर वह कमरे का दरवाजा बंद कर के वहां से फरार हो गया. वारदात को अंजाम देने के बाद वह इतना सहम गया कि संदीप से भी संपर्क नहीं किया.

रामवीर ने 2 दिन तक अपना मोबाइल फोन भी औन नहीं किया. जब संदीप को बाद में पुलिस ने यह बात बताई कि उस के कातिल ने मौत के बाद इस के साथ संबंध बनाए थे तो उस को रामवीर पर बहुत गुस्सा आया.

कुछ दिन बाद गिरफ्तारी के डर से इधरउधर भागते फिर रहे रामवीर ने जब पैसे मांगने के लिए संदीप से फोन पर बात करते हुए संपर्क करना शुरू किया, तभी पुलिस को मोबाइल सर्विलांस के जरिए संदीप पर भी शक होना शुरू हो गया.

इस मामले में न तो मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से कोई मदद मिली. क्योंकि कातिल और साजिश रचने वाले के बीच कोई फोन संपर्क रिकौर्ड ही नहीं था. न ही रामवीर अपने फोन को औन कर के घटनास्थल पर गया था. न ही घटना का कोई चश्मदीद था, न ही रामवीर को घटनास्थल पर जाते किसी सीसीटीवी ने कैद किया था. इसलिए पुलिस अंधेरे में हाथपांव मार रही थी.

लेकिन अपने डर के कारण अगर रामवीर अपना घर छोड़ कर गायब नहीं होता और बाद में वह फोन पर संदीप से संपर्क नहीं करता तो शायद पुलिस कभी सोनी के हत्यारों तक पहुंच ही नहीं पाती.

अपनी साली को पाने की चाहत में संदीप ने अपनी बेवफा बीवी को मरवाने की साजिश रच कर जो घिनौना अपराध किया वो तो गलत था ही, लेकिन रामवीर ने सोनी की हत्या कर उस के मृत शरीर से वासना की जो भूख शांत की, वह हैवानियत की सभी सीमाओं से परे थी.

संदीप और रामवीर से पूछताछ के बाद पुलिस ने हत्या के इस मामले में साजिश की धारा 120बी जोड़ कर दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से पूछताछ पर आधारित

कलयुगी बेटा : अधेड़ उम्र का इश्क

रवि को मदन सेन के साथ अपनी मां जसवंती के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी थी. वह यह भी जानता था मदन अब उस की मां से तंग आ चुका था. इसलिए रवि ने अपनी मां को मौत के घाट उतारने के लिए मदन से संपर्क किया तो वह भी जसवंती की हत्या में शामिल हो गया.

15 मार्च, 2021 की सुबह 10 बजे का वक्त था. जब बैतूल जिले की मुलताई थाने की सीमा में बसे छोटे से गांव काथम की रहने वाली जसवंती और उस की 11 वर्षीया नातिन लविशा की हत्या की खबर गांव में आग की तरह फैली थी, जिस से घटना की जानकारी लगने पर टीआई मुलताई सुरेश सोलंकी भी कुछ देर में टीम ले कर मौके पर पहुंच गए.

कमरे के अंदर बिछे पलंग पर जसवंती और उस की नातिन के शव खून से लथपथ पडे़ थे. दोनों के सिर पर घातक चोटें थीं.

टीआई सोलंकी ने घटना की जानकारी बैतूल एसपी सिमला प्रसाद के अलावा एएसपी श्रद्धा जोशी और एसडीपीओ नम्रता सोधिया को भी दे दी. जिस से कुछ ही देर में उक्त अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

शुरुआती पूछताछ में पता चला कि पति की मौत के बाद जसवंती अपने बेटे रवि और बहू के साथ रहती थी. वह स्थानीय कलारी की रसोई में खाना बनाने का काम करती थी. कुछ दिनों में उस की नातिन लविशा भी आ कर उस के साथ रहने लगी.

जबकि घटना से 4 दिन पहले ही जसवंती ने लड़झगड़ कर बेटेबहू को उन के ढाई महीने के बच्चे के साथ घर से निकाल दिया था. जिस से रवि अपनी पत्नी को ले कर पास के गांव परसोडी में रहने वाले अपने मामा ससुर के घर जा कर रहने लगा था.

जसवंती का हालिया विवाद बेटे से हुआ था. इस के अलावा गांव में उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. लेकिन छोटी बात पर बेटा मां की हत्या करेगा, इस बात पर आसानी  से भरोसा नहीं किया जा सकता था.

इसलिए पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड में दूसरे एंगल से जांच करनी शुरू कर दी, जिस में पता चला कि जसवंती 45 की जरूर थी, लेकिन शारीरिक बनावट और खूबसूरती के चलते वह 35 से अधिक नहीं दिखती थी.

उस के पति की मौत कई साल पहले हो चुकी थी. इसलिए पुलिस जसंवती के अवैध संबंधों की जानकारी जुटाने में लग गई. जांच में पता चला कि जसवंती का प्रेम प्रसंग कई सालों से कलौरी में काम करने वाले मदन सेन के साथ चल रहा था.

मदन सेन मूलरूप से सागर जिले के बंडा का रहने वाला था. लेकिन कलारी में नौकरी के चलते यहां जसवंती के घर के पास ही किराए पर रहने लगा था. पूरे गांव को मदन और जसवंती के इश्क की जानकारी थी.

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लेकिन उन के बीच विवाद का कोई वाकया सामने नहीं आया था. पुलिस ने मदन से पूछताछ की, जिस में उस ने कबूल कर लिया कि उस के जसंवती से संबंध थे, किंतु उस की हत्या में उस ने अपना हाथ होने से मना कर दिया.

इसलिए एसपी सिमला प्रसाद ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एएसपी श्रद्धा जोशी के निर्देशन में और एसडीपीओ सोधिया के नेतृत्व में थानाप्रभारी मुलताई सुरेश सोलंकी की एक टीम गठित कर दी.

टीम ने जांच शुरू करते हुए चौतरफा प्रयास शुरू कर दिए, लेकिन जब इस में सफलता मिलती नहीं दिखाई दी तो एसपी सिमला प्रसाद ने साइबर सेल के एसआई राजेंद्र राजवंशी को मदन सेन के अलावा मृतक के बेटे रवि के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकालने के निर्देश दिए.

काल डिटेल्स में चौंका देने वाली जानकारी निकल कर सामने आई कि घटना के 2 दिन पहले से ही अचानक जसवंती के प्रेमी मदन की उस के बेटे से फोन पर कई बार बात हुई थी.

इतना ही नहीं, घटना की रात को रवि और उस के मामा ससुर दिलीप के मोबाइल की लोकेशन गांव में मदन सेन के मोबाइल के पास मिल रही थी. उस रात भी मदन और रवि के बीच कई बार बात हुई थी. जबकि 15 मार्च के बाद से मदन और रवि के बीच इक्कादुक्का बार बात हुई थी, वह भी बहुत कम समय के लिए.

साइबर सेल को रवि के मोबाइल की लोकेशन 15 मार्च को कामथ में मिली थी. इस का सीधा मतलब था कि वह घटना वाली रात को कामथ आया था. इसलिए रवि पर अपना शक पुख्ता करने के लिए टीआई सोलंकी ने रवि को थाने बुला कर बातोंबातों मे उस से पूछा, ‘‘जिस रात तुम्हारी मां का कत्ल हुआ, उस रात तुम कहां थे?’’

‘‘कहां होता साहब, मां ने घर से धक्का मार कर निकाल दिया था. इसलिए मैं अपने मामा ससुर के यहां जा कर रहने लगा. उस रात भी वहीं था.’’ रवि ने बताया.

‘‘ठीक है. इस मदन सेन के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है? लोग बताते हैं कि मदन की तुम्हारी मां के साथ अच्छी दोस्ती थी.’’ टीआई ने कहा.

‘‘आप ने सही सुना है, साहब. मुझे तो अपनी मां कहने में भी शर्म आने लगी थी. मदन हमारे घर के पास ही रहता है. कई बार वही आधी रात में भी मेरी मां से मिलने आया करता था. यह सब मेरी पत्नी ने अपनी आंखों से देखा था. इसलिए वह इस बात को ले कर

मुझे ताने दिया करती थी.’’ रवि बोला.

‘‘तुम ने मदन को रोका नहीं?’’ टीआई ने पूछा.

‘‘रोका था साहब. हमारे बीच काफी झगड़ा भी हो चुका है. लेकिन खुद मेरी मां ही उसे घर बुलाती थी.’’ वह बोला.

‘‘मदन से तुम्हारी बात होती थी कभी?’’

‘‘पहले होती थी, लेकिन जब पता चला कि उस के मेरी मां से अवैध संबंध हैं, तब हमारे बीच झगड़ा हुआ था. फिर उस से बातचीत बंद हो गई थी.’’

‘‘फोन पर तो होती होगी बात तुम्हारी मदन से.’’

‘‘नहीं, कभी नहीं.’’

जैसे ही रवि ने मदन से फोन पर बात होने से इनकार किया. तभी पुलिस ने उस के साथ थोड़ी सख्ती दिखाई तो वह टूट गया. फिर उस ने इस दोहरे हत्याकांड का राज उगल दिया.

उस ने बताया कि इस हत्याकांड में मामा ससुर दिलीप के अलावा मां का प्रेमी मदन भी शामिल था. रवि की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त मूसल एवं हथौड़ी भी बरामद कर ली. पुलिस ने रवि के मामा ससुर दिलीप व मां के प्रेमी मदन सेन को भी गिरफ्तार कर लिया.

हत्या करने के बाद वह जसवंती का मंगलसूत्र और लविशा की पायल ले गए थे, इसलिए पुलिस ने आरोपियों से ये दोनों जेवर भी बरामद कर लिए. उन से पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

पति की मृत्यु के बाद जसवंती ने न केवल परिवार संभाला, बल्कि बेटे की शादी भी धूमधाम से की. रवि मां का हाथ बंटाने के लिए छोटामोटा काम किया करता था, लेकिन लौकडाउन में काम छूट जाने से वह घर में कुछ महीनों से बैठा था.

जसवंती पिछले 5 सालों से कलारी के औफिस में खाना बनाने का काम करती थी. जसवंती सुंदर तो थी ही, साथ ही आकर्षक भी थी.

कलारी में सागर जिले का मदन सेन मैनेजर की हैसियत से पूरा हिसाबकिताब देखता था. मदन यहां अकेला रहता था, इसलिए उसे एक औरत की और जवानी में पति की मौत हो जाने से जसवंती को एक मर्द की आवश्यकता यदाकदा महसूस होती रहती थी.

ऐसे में मदन की नजर जसवंती पर थी. वह जानता था कि जसंवती का पति नहीं है, इसलिए उस तक पहुंचना उस के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था. उस ने काफी सोचसमझ कर ही जसवंती के पड़ोस में किराए का मकान ले कर उस में रहना शुरू किया.

कुछ समय बाद मदन ने धीरेधीरे जसवंती की तरफ बढ़ना शुरू किया तो अपनी खुद की जरूरतों से परेशान जसवंती ने भी अपने मन की लगाम ढीली छोड़ दी और मदन को अपनी मौन स्वीकृति दे दी, जिस से एक रोज आधी रात में मदन शराब पी कर जसवंती के घर पहुंचा तो जसवंती ने भी पहली मुलाकात में उस के सामने समर्पण कर दिया.

कहना नहीं होगा कि दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, इसलिए मदन और जसवंती दोनों ही कुछ दिनों बाद खुल कर अपनी प्रेम लीला करने लगे.

जसवंती की बेटी की शादी पहले ही हो चुकी थी. सो वह अपनी ससुराल में थी. बेटा रवि अपनी मां के साथ रहता था, उसे काबू में रखने के लिए मदन ने रवि को शराब पीने की आदत डाल दी और रोज ही उसे कलारी में शराब पीने के लिए पैसे देने लगा.

मदन के साथ मां के संबंध की बात पता होने के बाद भी शराब के लालच में रवि ने उस का कोई विरोध नहीं किया. यहां तक कि 2 साल पहले रवि की शादी हो जाने के बाद बहू के आ जाने पर भी मदन और जसवंती के संबंधों पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

लेकिन कहते हैं कि अवैध संबंधों की एक उम्र होती है. क्योंकि वक्त के साथ जहां औरत अपने प्रेमी पर ज्यादा अधिकार जताने लगती है, वहीं पे्रमी का मन उस से ऊबने लगता है. यही इस मामले में होने लगा था.

जसवंती मदन पर पूरा हक जमाने लगी थी. यहां तक कि वह उस पर दबाव बनाने लगी थी कि वह गांव में रहने वाली अपनी पत्नी को छोड़ कर उस के साथ उस के घर में पति की तरह रहे. लेकिन मदन इस के लिए राजी नहीं था. इस से मदन और जसंवती के बीच विवाद होने लगा.

लौकडाउन में काम बंद हो जाने से रवि पूरी तरह मां पर निर्भर हो गया. इसलिए वह जब भी मां से खर्च के पैसे मांगता तो मां उसे खरीखोटी सुना देती थी. ढाई महीने पहले ही रवि की पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया था, जिस से जसवंती रवि पर रोज कोई न कोई काम करने के लिए उस पर दबाव बनाने लगी थी. लेकिन रवि को कोई काम नहीं मिल पा रहा था.

इस दौरान जसवंती की बेटी की बेटी लवीशा भी उस के साथ आ कर रहने लगी, जिस से जसंवती रवि को खर्च के पैसे देने में और आनाकानी करने लगी. इस से रवि अपनी भांजी से भी नफरत करने लगा.

घटना के 4 दिन पहले रवि ने अपनी मां से खर्च के लिए पैसे मांगे तो जसवंती ने उसे बुरी तरह झिड़का ही नहीं, बल्कि पत्नी और बच्चे के साथ घर से निकलने का फरमान भी सुना दिया. जिस से गुस्से में आ कर रवि अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर अपने मामा ससुर दिलीप के वहां चला गया.

रवि को इस बात का डर था कि कहीं मां पूरी जायदाद भांजी लवीशा के नाम न लिख दे, जो उस के साथ आ कर रहने लगी थी. इसलिए उस ने मामा ससुर के साथ मिल कर मां की हत्या की योजना बना कर मदन को फोन किया.

वास्तव में रवि को पता था कि मां का प्रेमी मदन सेन भी अब उस से तंग आ चुका है. इसलिए रवि ने मदन को अपनी योजना बताई तो मदन इस में साथ देने को राजी हो गया. जिस के बाद घटना वाले दिन मामा ससुर दिलीप और रवि गांव पहुंचे तो वहां से मदन भी उन के साथ हो गया.

आधी रात के बाद तीनों ने चुपचाप घर में घुस कर सो रही जसवंती और उस की नातिन के सिर पर मूसल और हथौड़ी से वार कर उन की हत्या कर दी. पुलिस इस घटना को लूट की वारदात समझे, इसलिए रवि हत्या के बाद जसवंती का मंगलसूत्र और लविशा की पायल उतार कर साथ ले गया.

तीनों को भरोसा था कि पुलिस उन पर कभी शक नहीं करेगी. लेकिन पुलिस ने 7 दिनों में ही मामले का खुलासा कर दिया.

ललिता की खतरनाक लीला : पति बना दुश्मन

32 वर्षीया ललिता झारखंड के कोडरमा जिले के गांव दौंलिया की रहने वाली थी. उस की मां का नाम राजवती और पिता का नाम दुल्ली था. वह 4 भाइयों की इकलौती बहन थी. इसलिए घर में सभी की लाडली थी.

16 साल की होते ही उस पर यौवन की बहारें मेहरबान हो गई थीं. बाद में समय ऐसा भी आया कि वह किसी प्रेमी की मजबूत बांहों का सहारा लेने की कल्पना करने लगी. गांव के कई नवयुवक ललिता पर फिदा थे.

ललिता भी अपनी पसंद के लड़के से नैन लड़ाने लगी. इस के बाद तो दिन प्रतिदिन उस की आकांक्षाएं बढ़ने लगीं तो अनेक लड़कों के साथ उस के नजदीकी संबंध हो गए.

दुल्ली के कुछ शुभचिंतक उसे आईना दिखाने लगे, ‘‘तुम्हारी बेटी ने तो यारबाजी की हद कर दी. वह खुद तो खराब है, गांव के लड़कों को भी खराब कर रही है. लड़की जब दरदर भटकने की शौकीन हो जाए तो उसे किसी मजबूत खूंटे से बांध देना चाहिए. जितनी जल्दी हो सके, ललिता का विवाह कर दो, वरना तुम बहुत पछताओगे.’’

अपमान का घूंट पीने के बाद दुल्ली ने एक दिन ललिता को समझाया. उसी दौरान मां राजवती ने ललिता की पिटाई करते हुए चेतावनी दी, ‘‘आज के बाद तेरी कोई ऐसीवैसी बात सुनने को मिली तो मैं तुझे जिंदा जमीन में दफना दूंगी.’’

उस समय ललिता ने कसम खा कर किसी तरह अपनी मां को यकीन दिला दिया कि वह किसी लड़के से बात नहीं करेगी.

ललिता बात की पक्की नहीं, बल्कि ख्वाहिशों की गुलाम थी. कुछ समय तक ललिता ने अपनी जवानी के अरमानों को कैद रखा, लेकिन अरमान बेलगाम हो कर उस के जिस्म को बेचैन करते तो वह अंकुश खो बैठी और फिर से लड़कों के साथ मटरगश्ती करने लगी.

लेकिन यह मटरगश्ती अधिक दिनोें तक नहीं चल सकी. इस की वजह थी कि उस के पिता दुल्ली ने उस का रिश्ता तय कर दिया था.

ललिता का विवाह कोडरमा जनपद के ही गांव करौंजिया निवासी काली रविदास के बेटे सिकंदर रविदास से तय हुआ था.

सिकंदर किसान था और एकदम सीधासादा इंसान था. लेकिन एक पैर से दिव्यांग था. उस का एक छोटा भाई जितेंद्र रविदास था. सिकंदर की उम्र विवाह योग्य हो चुकी थी, इसलिए ललिता का रिश्ता सिकंदर के लिए आया तो काली रविदास मना नहीं कर सके.

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12 साल पहले दोनों का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया. कालांतर में ललिता 3 बेटों की मां बन गई.

विवाह के बाद से ही सिकंदर ललिता के साथ अलग मकान में रहने लगा था. सिकंदर का छोटा भाई जितेंद्र अपने मातापिता के साथ रहता था.

सिकंदर दिव्यांग होने पर भी खेतों में दिनरात मेहनत करता रहता था. इसलिए जब वह घर पर आता तो थकान से चूर हो कर सो जाता था, जिस से ललिता की ख्वाहिशें अधूरी रह जाती थीं.

पति के विमुख होने से ललिता बेचैन रहने लगी. इस स्थिति में कुछ औरतों के कदम गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं, ऐसा ही ललिता के साथ भी हुआ. अब उसे ऐसे शख्स की तलाश थी, जो उसे भरपूर प्यार दे और उस की भावनाओं की इज्जत करे.

उस शख्स की तलाश में उस की नजरों को अधिक भटकना नहीं पड़ा. घर में ही वह शख्स उसे मिल गया, वह था जितेंद्र. सिकंदर जहां अपने भविष्य के प्रति गंभीर तथा अपनी जिम्मेदारियों को समझने वाला था, वहीं जितेंद्र गैरजिम्मेदार था. जितेंद्र का किसी काम में मन नहीं लगता था.

जितेंद्र की निगाहें ललिता पर शुरू से थीं. वह देवरभाभी के रिश्ते का फायदा उठा कर ललिता से हंसीमजाक भी करता रहता था.  जितेंद्र की नजरें अपनी ललिता भाभी का पीछा करती रहती थीं. दरअसल जितेंद्र ने ललिता को विवाह मंडप में जब पहली बार देखा था, तब से ही वह उस के हवास पर छाई हुई थी.

अपने बड़े भाई सिकंदर के भाग्य से उसे ईर्ष्या होने लगी थी. वह सोचता था कि ललिता जैसी सुंदरी के साथ उस का विवाह होना चाहिए था. काश! ललिता उसे पहले मिली होती तो वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाता और उस की जिंदगी इस तरह वीरान न होती, उस की जिंदगी में भी खुशियां होतीं.

ललिता के रूप की आंच से आंखें सेंकने के लिए ही वह ललिता के घर के चक्कर लगाता. चूंकि वह घर का ही सदस्य था, इसलिए उस के आनेजाने और वहां हर समय बने रहने पर कोई शक नहीं करता था. जितेंद्र की नीयत साफ नहीं थी, इसलिए वह ललिता से आंखें लड़ा कर और हंसमुसकरा कर उस पर डोरे डाला करता था.

सिकंदर सुबह खेत पर जाता तो दीया बाती के समय ही लौट कर आता. जितेंद्र के दिमाग में अब तक ललिता के रूप का नशा पूरी तरह हावी हो गया था. इसलिए ललिता को पाने की चाह में उस के सिकंदर के घर के फेरे जरूरत से ज्यादा लगने लगे.

ललिता घर पर अकेली होती थी, इसलिए जितेंद्र के पास मौके ही मौके थे. एक दिन जितेंद्र दोपहर के समय आया तो ललिता दोपहर के खाने में तहरी बनाने की तैयारी कर रही थी, जिस के लिए आलू व टमाटर काट रही थी. जितेंद्र ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘लगता है, आज अपने हाथों से स्वादिष्ट तहरी बनाने जा रही हो.’’

‘‘हां, खाने का इरादा है क्या?’’

‘‘मेरा ऐसा नसीब कहां, जो तुम्हारे हाथों का बना स्वादिष्ट खाना खा सकूं. नसीब तो सिकंदर भैया का है, जो आप जैसी रूपसी उन को पत्नी के रूप में मिलीं.’’

यह सुन कर ललिता मुसकान बिखेरती हुई बोली, ‘‘ठीक है, मुझ से विवाह कर के तुम्हारे भैया ने अपनी किस्मत चमका ली तो तुम भी किसी लड़की की मांग में सिंदूर भर कर अपनी किस्मत चमका लो.’’

‘‘मुझे कोई दूसरी नहीं, तुम पसंद हो. भाभी, अगर तुम तैयार हो तो मैं तुम्हारे साथ अपना घर बसाने को तैयार हूं.’’

ललिता जितेंद्र के रोज हावभाव पढ़ती रहती थी. इसलिए जान गई थी कि जितेंद्र के दिल में उस के लिए नाजुक एहसास है. लेकिन वह इस तरह चाहत जाहिर कर के उस से प्यार की सौगात मांगेगा, ललिता ने सोचा तक न था.

अचानक सामने आई ऐसी असहज स्थिति से निपटने के लिए वह उस से आंखें चुराने लगी और कटी हुई सब्जी उठा कर रसोई की तरफ चल दी. तभी उस के बच्चे भी घर आ गए. प्यार में विघ्न पड़ता देख कर जितेंद्र भी वहां से उठ गया.

उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, वह ललिता के पास पहुंच जाता और अपने प्यार का विश्वास दिलाता. धीरेधीरे ललिता को उस के प्यार पर यकीन होने लगा. उसे भी अपने प्रति जितेंद्र की दीवानगी लुभाने लगी थी. उस की दीवानगी को देख कर ललिता के दिल में उस के लिए प्यार उमड़ पड़ा. कल तक जो ललिता जितेंद्र के हवास पर छाई थी, अब जितेंद्र ललिता के हवास पर छा गया.

एक दिन जितेंद्र ने फिर से ललिता के सामने अपने प्यार का तराना सुनाया तो वह बोली, ‘‘जितेंद्र, मेरे प्यार की चाहत में पागल होने से तुम्हें क्या मिलेगा. मैं विवाहित होने के साथसाथ 3 बच्चों की मां भी हूं. इसलिए मुझे पाने की चाहत अपने दिल से निकाल दो.’’

‘‘यही तो मैं नहीं कर पा रहा, क्योंकि यह दिल पूरी तरह से तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है.’’

ललिता कुछ नहीं बोल सकी. जैसे उस के जेहन से शब्द ही मिट गए थे. जितेंद्र ने अपने हाथ उस के कंधे पर रख दिए, ‘‘भाभी, कब तक तुम अपने और मेरे दिल को जलाओगी. कुबूल कर लो, तुम्हें भी मुझ से प्यार है.’’

ललिता ने सिर झुका कर जितेंद्र की आंखों में देखा और फिर नजरें नीची कर लीं. प्रेम प्रदर्शन के लिए शब्द ही काफी नहीं होते, शारीरिक भाषा भी मायने रखती है. जितेंद्र समझ गया कि मुद्दत बाद सही, ललिता ने उस का प्यार कुबूल कर लिया है. उस ने ललिता के चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. ललिता भी सुधबुध खो कर जितेंद्र से लिपट गई.

उस समय मन के मिलन के साथ तन की तासीर ऐसी थी कि ललिता का जिस्म पिघलने लगा.  इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. यह बात करीब 6 साल पहले की है. बाद में यह मौका मिलने पर चलता रहा.

13 मई, 2021 को दोपहर करीब 12 बजे सिकंदर दास लोचनपुर गांव के निजी कार चालक विजय दास के साथ चरवाडीह के संजय दास के यहां शादी समारोह में गया. सिकंदर और विजय दोनों कार से गए थे. कार विजय की थी. साढ़े 3 बजे शादी से दोनों निकल आए. लेकिन सिकंदर दास घर नहीं लौटा.

उस के नंबर पर सिकंदर के चाचा ने फोन किया गया तो विजय ने उठाया. उस से पूछा गया कि सिकंदर कहां है तो विजय द्वारा अलगअलग ठिकाने का पता बताते हुए फोन काट दिया. इस के बाद सिकंदर की काफी तलाश की गई, वह नहीं मिला.

16 मई को ललिता ने कोडरमा के थानाप्रभारी और एसपी को एक पत्र दिया, जिस में उस ने अपने पति सिकंदर दास के लापता होने की बात लिखी. सिकंदर के गायब होने का आरोप उस ने कार चालक विजय दास पर लगाया था.

चूंकि मामला चांदवारा थाना क्षेत्र के करौंजिया गांव का था. इसलिए एसपी पुलिस ने मामला चांदवारा थाने में ट्रांसफर कर दिया. चांदवारा थाने के थानाप्रभारी सोनी प्रताप सिंह ने पूरा मामला जान कर थाने में सिकंदर की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

थानाप्रभारी सोनी प्रताप ने 20 मई को जामू खाड़ी से विजय दास को गिरफ्तार कर लिया. सख्ती से पुलिस ने पूछताछ की तो विजय ने सिकंदर की हत्या करने की बात स्वीकारी. उस ने इस हत्या में सिकंदर की पत्नी ललिता और भाई जितेंद्र का भी हाथ होने की बात बताई.

20 मई को विजय के बाद ललिता और जितेंद्र को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर रात में कोटवारडीह के बंद पड़े मकान से सिकंदर की लाश बरामद कर ली. वह अर्द्धनिर्मित मकान सिकंदर का था. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद चांदवारा थाने के थानाप्रभारी सोनी प्रताप सिंह अभियुक्तों को ले कर थाने आ गए. थाने में सख्ती से की गई पूछताछ में उन्होंने हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

एक दोपहर को जितेंद्र और ललिता घर में बेधड़क रंगरलियां मना रहे थे कि अचानक किसी काम से सिकंदर खेतों से घर लौटा तो उस ने उन दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया.

यह देख कर उसे एक बार तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि उस की पत्नी ऐसा भी कर सकती है. वह ललिता पर खुद से भी ज्यादा विश्वास करता था. लेकिन हकीकत तो सामने उस की दगाबाजी की तरफ इशारा कर रही थी. दूसरी ओर सगा छोटा भाई जितेंद्र था, जिसे वह बहुत प्यार करता था, उस का खूब खयाल रखता था. वही उस की गृहस्थी में आग लगा रहा था.

अपनों की इस दगाबाजी से सिकंदर इतना आहत हुआ कि उस ने पूरे घर को सिर पर उठा लिया. ललिता और जितेंद्र ने भी उस से अपनी गलती की माफी मांग ली और भविष्य में ऐसा कुछ न करने का वादा किया तो सिकंदर शांत हुआ.

जितेंद्र और ललिता ने उस समय तो अपनी जान छुड़ाने के लिए वादा कर दिया था, लेकिन वे इस पर अमल करने को कतई तैयार नहीं थे. लेकिन उन का भेद खुल चुका था, इसलिए मिलन में उन को बहुत ऐहतियात बरतनी पड़ती थी. वे चोरीछिपे फिर से मिल लेते थे.

सिकंदर ने देखा तो उस ने विरोध किया. मामला घर की चारदीवारी से निकल कर गांव के लोगों तक पहुंच गया. पंचायत तक बैठ गई. भरी पंचायत में ललिता ने जितेंद्र के साथ रहने की बात कही. लेकिन फैसला न हो सका.

इस के बाद सिकंदर उन दोनों के बीच की एक बड़ी दीवार था, जिसे गिराए बिना वे हमेशा के लिए एक नहीं हो सकते थे. इसलिए ललिता और जितेंद्र ने सिकंदर की हत्या करने की ठान ली.

सिकंदर दास ने विजय दास से लोन दिलाने के नाम पर डेढ़ लाख रुपए लिए थे. सिकंदर ने जब लोन नहीं दिलाया तो विजय उस से अपने दिए रुपए वापस मांगने लगा. सिकंदर रुपए देने में टालमटोल कर रहा था. ऐसे में ललिता ने जितेंद्र से बात कर के विजय को अपने प्लान में शामिल करने की बात कही. उस ने यह भी कहा कि सिकंदर का काम तमाम होने के बाद वह अकेले विजय को उस की हत्या में फंसवा देगी, जिस से वे दोनों बच जाएंगे.

जितेंद्र को उस की बात सही लगी. दोनों ने विजय से बात की तो वह सिकंदर की हत्या में उन दोनों का साथ देने को तैयार हो गया.

13 मई, 2021 को एक शादी समारोह से लौटने के बाद विजय सिकंदर को ले कर कोटवारडीह में उस के अर्धनिर्मित मकान पर ले गया. वहां ललिता और जितेंद्र पहले से मौजूद थे. तीनों ने मिल कर सिकंदर की गला दबा कर हत्या कर दी और लाश एक कमरे में डाल कर कमरा बंद कर दिया.

लेकिन सिकंदर की हत्या में विजय को फंसाने की योजना ही ललिता और जितेंद्र को भारी पड़ गई. ललिता ने उस पर शक जताया तो पुलिस विजय को पकड़ कर उन तक पहुंच गई. तीनों अभियुक्तों के खिलाफ हत्या व साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर के चांदवारा पुलिस ने तीनों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लव ट्रायंगल की लाइफ : पति का किया किनारा – भाग 3

एक दिन उस ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने की सोची. फिर बीवी और अपनी बदनामी के डर से चुप रहा. उसे विश्वास था कि सुधा को उस का प्रेम एक न एक दिन खींच लाएगा.

इसी उधेड़बुन में चौथे दिन उसे सागर के भोपाल में ही नए ठिकाने का पता चल गया. वह तुरंत उस के किराए के मकान में गया. सागर मिल गया. सुधा और बच्चे को देखने की इच्छा जताई. उस वक्त सुधा और बच्चे घर में नहीं थे. शायद उन्हें सागर ने कहीं और छिपा रखा था.

सागर ने उस से मिलवाने से साफसाफ इनकार कर दिया. उस ने सख्ती से कहा, अब सुधा उस की बीवी बनने वाली है. शादी से पहले उस का परिचय और मुलाकात किसी से नहीं करवाएगा.

सागर की इस सख्ती वाले तेवर से अक्षय सहम गया. वह नरमी के साथ सागर से विनती करने लगा. उस के सामने गिड़गिड़ाया. हाथ जोड़े. यहां तक कि उस के पैर तक छू कर सुधा और बच्चे को मिलवाने के लिए कहा. फिर भी उसे उस की स्थिति पर तरस नहीं आया.

अक्षय निराशहताश अपने टीटी नगर स्थित कमरे पर लौट आया. करीब 2 हफ्ते बीतने को आए. सागर ड्यूटी पर नहीं आता था. उस ने समझ लिया कि सागर जरूर सुधा के साथ शादी करने के लिए गांव चला गया होगा.

इस बीच सागर के नए ठिकाने पर भी गया. वहां ताला लगा था. अक्षय अब बेहद टूट चुका था. शरीर से भी काफी कमजोर हो गया था.

उस दिन गुरुवार का दिन था. तारीख 21 अक्तूबर 2021 थी. अक्षय का सुबह से ही किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था. उस के मन में बहुत कुछ उलटपलट हो रहा था. विचारों का ऐसा घालमेल हो गया था कि जबरदस्त भूख होने के बावजूद कुछ भी खाने की इच्छा नहीं हो रही थी.

सुधा की बेवफाई और उस के द्वारा शादी के समय लिए साथसाथ जीने के कसमेवादे को ध्यान कर वह बेहद तिलमिला गया था. उस रोज वह ड्यूटी पर भी नहीं गया था. सुधा और बच्चे के बारे में सोचतेसोचते उस की कब आंखें लग गईं, पता ही नहीं चला.

शाम को करीब 8 बजे जब उस की नींद खुली, तब उस ने खुद को बेहद कमजोर महसूस किया. किसी तरह से फिर अपने लिए सुबह की पकाई खिचड़ी खा ली, जो कुकर में सुबह से ही बंद थी. सुबह उस ने खिचड़ी पकाई जरूर थी, लेकिन वह ज्यों की त्यों पड़ी थी.

सुबह टीटी नगर की पुलिस को अक्षय के फांसी पर झूलने की सूचना मिली, जो उस के पड़ोसी ने दी थी. पड़ोस के ही एक बच्चे ने खिड़की से अक्षय को फांसी पर झूलते तब देखा था, जब वह बाजार जा रहा था.

दरअसल, अक्षय ने उसे कह रखा था कि वह जब भी सुबह में दूध लाने बाजार जाए, तब उस के लिए भी दूध लाने के लिए मिल ले. इस कारण वह लड़का सुबह अक्षय के घर आया था. कुछ समय तक पीटने पर भी दरवाजा नहीं खुला, तब उस ने खिड़की के पास जा कर आवाज लगाई.

उस का भी कोई जवाब नहीं मिलने पर उस ने भिड़े हुए खिड़की के दरवाजे को धकेल दिया था. तभी उस की नजर फांसी पर लटके अक्षय पर गई थी और भाग कर इस की जानकारी उस ने अपने पिता को दी. उस के पिता ने तुरंत पुलिस को इस की सूचना दे दी.

पुलिस टीम घटनास्थल पर आ गई. उस ने देखा कि अक्षय ने साड़ी का फंदा बना कर फांसी लगा ली थी. तुरंत उस के घर वालों को भी इस की जानकारी दी गई. उस की मां कुसुम बाई और उस के भाई निलेश पड़ोसियों की मदद से उसे जेपी अस्पताल ले कर गए. लेकिन डाक्टर ने अक्षय को मृत घोषित कर दिया.

अक्षय की मौत की खबर तेजी से फैल गई. लोकल चैनल पर उस की मौत की खबर प्रसारित होने लगी. उस के जरिए सुधा और सागर को भी अक्षय के आत्महत्या की जानकारी मिल गई. सुधा भाग कर अक्षय के घर जा पहुंची. घर पर कोई नहीं था. आसपास सन्नाटा पसरा था. सभी अक्षय की लाश को ले कर अस्पताल जा चुके थे.

सुधा विचलित हो गई थी. उस ने फटाफट पास खड़ी मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाला और कमरे में जा कर खुद पर उड़ेल लिया. तुरंत उस ने खुद को आग लगा दी. इसी बीच बच्चा ‘मम्मीमम्मी’ पुकारता कमरे में आया और उसे पकड़ना चाहा, लेकिन बच्चा डर कर भाग गया.

आग के तेजी से फैले धुएं को देख कर पासपड़ोस के लोग आए. उन्होंने किसी तरह से आग बुझाई, लेकिन तब तक वह काफी जल चुकी थी. उसे भी जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

अक्षय की मौत को ले कर उस के भाई निलेश ने पुलिस से सागर पर मुकदमा चलाने के लिए कहा. उस का कहना था कि सागर ने अक्षय को धोखा दिया था.

उस ने उस की पत्नी सुधा को प्रेम जाल में फंसाया. और फिर सुधा अक्षय को छोड़ कर उसी दोस्त के साथ उस के घर पर रहने लगी. साथ में बेटे को भी ले गई. इस बात से अक्षय बहुत दुखी था.

पुलिस को अक्षय के पास से सुसाइड नोट बरामद हुआ है. इस सुसाइड नोट में उस ने लिखा है कि पत्नीबच्चे से मिलाने के लिए सागर के पैर तक छुए, लेकिन उस ने पत्नीबेटे से मिलने नहीं दिया. सागर ने मेरा जीवन तबाह कर दिया. मैं पत्नी और सागर की वजह से जान दे रहा हूं.

पुलिस ने सागर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. सुधा के बहके कदमों ने उसी के हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ दिया.