प्यार की भूल : सब्र की सीमा ने किया परिवार तबाह – भाग 2

योजना के अनुसार शमा निर्धारित समय पर नरेंदर के पास जालंधर पहुंच गई. फिर वहां से बस द्वारा दोनों चंडीगढ़ पहुंच गए. पहले उन्होंने एक मंदिर में शादी की फिर उस शादी को नोटरी पब्लिक के जरिए रजिस्टर भी करवा लिया.

नरेंदर शमा से शादी कर के बहुत खुश था. उस ने अपनी शादी के लिए बहुत बढि़या इंतजाम कर रखा था. हनीमून को वह यादगार बनाना चाहता था इसलिए उस ने चंडीगढ़ में ही एक थ्रीस्टार होटल में सुइट बुक करवा रखा था. वह बेहद उत्सुक था पर उस रात उस की उत्सुकता ठंडी पड़ गई. उस के सारे अरमानों पर पानी फिर गया.

उस के दिल को इतना बड़ा धक्का लगा कि उस ने सोचा भी नहीं होगा. क्योंकि अपनी मनपसंद की जिस शमा को वह जीजान से चाहता था, सब के विरोध के बावजूद जिस से उस ने शादी की, वह लड़की नहीं बल्कि किन्नर निकली. अब पूरा ब्रह्मांड उसे घूमता नजर आ रहा था. वह बुदबुदाने लगा कि मैं समाज को अब क्या मुंह दिखाऊंगा.

इस के बाद वह बैड से उठ कर जोरजोर से रोने लगा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. गुस्से से तमतमाते हुए उस ने शमा के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘बताओ, मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था. अपनी जान से ज्यादा तुम्हें प्यार किया था और तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया. बताओ, क्यों किया ऐसा? सच बताओ नहीं तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा.’’ नरेंदर के सिर पर जैसे खून सवार हो गया था.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती नरेंदर, तुम्हारे प्यार की कसम. मैं तो बचपन से ही ऐसी हूं. मां ने कहा था कि शादी के बाद अपने आप ठीक हो जाऊंगी.’’ शमा ने मासूमियत से जवाब दिया था.

नरेंदर समझ गया कि या तो शमा इतनी भोली है कि उसे इस बारे में कुछ पता नहीं या वह बेहद चालाक है. लेकिन बात कुछ भी रही हो, पर अब वह क्या करे. यह प्रश्न बारबार नरेंदर के दिमाग में घूम रहा था. वक्त की बेरहम आंधी ने उस की खुशियों के चमन को एक झटके में उखाड़ कर तहसनहस कर दिया था. शमा के मिन्नतें करने पर नरेंदर उसे अपने घर ले गया.

2 दिन अपने घर पर रखने के बाद उस ने शमा को घर से निकालते हुए कह दिया, ‘‘शमा, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. अब मैं यह बताना चाहता हूं कि तुम इस घटना को एक बुरा सपना समझ कर भूल जाना. मैं भी भूलने की कोशिश करूंगा. हां, एक बात याद रखना कि आज के बाद कभी भूल कर भी मेरे सामने मत आना. जिस दिन तुम मेरे सामने आ गई तो समझ लेना कि वह दिन तुम्हारी जिंदगी का आखिरी दिन होगा.’’

शमा को इतनी जल्दी भुला देना नरेंदर के लिए आसान नहीं था. इसलिए उस ने जालंधर से दूर जाना उचित समझा. वह अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर अपनी मां को ले कर दिल्ली आ गया. यहां उस ने औटो चलाना शुरू कर दिया. दूसरी ओर शमा भी अपनी मां के पास चली गई.

वक्त के साथ सब कुछ सामान्य होता चला गया था. दूसरी ओर शमा की बड़ी बहन की शादी राजकुमार नामक युवक के साथ हो गई. शादी के बाद भोली के ऊपर लोगों का कर्ज भी हो गया था.

मां जो मेहनतमजदूरी करती, उस से बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल पाता था. ऐसी हालत में शमा ने मां का हाथ बंटाना जरूरी समझा. उस ने एक आर्केस्ट्रा ग्रुप जौइन कर लिया. इस काम में अच्छीखासी कमाई थी सो घर के हालात धीरेधीरे बदलने लगे.

शमा जालंधर के आर्केस्ट्रा ग्रुप में काम करती थी. गांव से जालंधर आने में शमा को परेशानी होती थी, इसलिए वह अपनी मां और भाईबहन को जालंधर ले आई. वहीं उस ने एक किराए का कमरा ले लिया. शमा और नरेंदर दोनों अपनेअपने काम में लग गए थे, इसलिए उन की प्रेमकहानी का अंत हो चुका था.

वक्त के बेरहम थपेड़ों में दोनों ने एकदूसरे को भुला दिया था. इस तरह वक्त का पहिया अपनी गति से घूमता रहा था. एकएक कर इस बात को पूरे 11 साल गुजर गए थे. न तो नरेंदर को पता था कि शमा अब कहां है और न ही शमा यह जानती थी कि उसे अपने घर से निकालने के बाद नरेंद्र कहां और किस हाल में है.

पहली मई 2017 की बात है. शमा रात 8 बजे अपने घर से अपनी स्कूटी पर किसी काम से बाजार जाने के लिए निकली. चलते समय उस ने अपनी मां से कहा था कि वह किसी जरूरी काम से बाहर जा रही है, थोड़ी देर में लौट आएगी. लेकिन वह उस रात घर नहीं लौटी तो भोली ने शमा को फोन मिलाया. पर उस का फोन बंद था.

रात भर तलाशने पर भी शमा का कहीं कोई पता नहीं चला. अगली सुबह शमा की एक सहेली ने बताया कि रात शमा उस को बस्ती शेख के तेजमोहन नगर की गली नंबर 6 के कोने पर मिली थी, पूछने पर उस ने बताया था किसी रिश्तेदार से मिलने जा रही है.

‘‘लेकिन यहां हमारा कोई रिश्तेदार तो क्या, कोई जानकार भी नहीं रहता.’’ भोली ने बताया.

बहरहाल, भोली अपने बेटे और दामाद को साथ ले कर तेजमोहन नगर की गली नंबर 6 में पहुंची तो मकान नंबर 3572/19 के सामने शमा की स्कूटी खड़ी मिली. आसपास के लोगों से पूछने पर पता चला कि वह मकान पिछले 4 महीनों से किसी नरेंदर चौहान ने किराए पर ले रखा था.

मकान के बाहर छोटा सा ताला था. भोली और उस के बेटे और दामाद ताला खोल कर जब भीतर गए तो वहां का नजारा देख कर उन सब के होश उड़ गए. बैड पर शमा की लाश पड़ी थी. तब भोली ने इस की सूचना थाना डिवीजन-5 पुलिस को दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखबीर सिंह अपने सहयोगी इंसपेक्टर नरेश जोशी के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल का मुआयना करने से पता चला कि मृतका के गले में दुपट्टा कसा हुआ था. इस के अलावा उस की गरदन पर गहरा घाव भी था.

पूछताछ करने पर पता चला था कि उस मकान में नरेंदर चौहान किराए पर रहता था. वह मृतका का पति था. पड़ोसियों ने बताया कि शमा रात करीब सवा 8 बजे वहां पहुंची थी. इस के कुछ देर बाद ही उस के कमरे से लड़ाईझगड़े की जोरजोर की आवाजें आने लगी थीं. कुछ देर बाद आवाजें आनी बंद हो गईं. रात करीब साढ़े 10 बजे उन्होंने नरेंदर और उस की मां को घर के बाहर निकल कर कहीं जाते हुए देखा था.

भोली ने भी अपने बयान में यही बताया था कि शमा की हत्या उस के दामाद नरेंदर चौहान और उस की मां सुदेश चौहान ने मिल कर की है.

कन्नौज बहन की साजिश – भाग 2

पुलिस टीम ने पिंकी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह एक नंबर पर सब से ज्यादा बात करती थी. इस नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला यह नंबर प्रदीप यादव निवासी आदमपुर थाना सौरिख (कन्नौज) का है. पुलिस को एक और चौंकाने वाली जानकारी मिली कि बलराम की हत्या के एक दिन पहले तथा हत्या वाले दिन भी पिंकी की बात प्रदीप से हुई थी.

रिकौर्ड के अनुसार 14 सितंबर की रात 7 बजे तथा 15 सितंबर की सुबह 4 बजे पिंकी और प्रदीप के बीच बात हुई थी. बलराम की हत्या की जो तसवीर अभी तक धुंधली थी, अब साफ होने लगी थी. पिंकी और प्रदीप अब पूर्णरूप से शक के घेरे में आ गए थे. बस उन का कबूलनामा शेष था.

23 सितंबर, 2019 को सुबह 10 बजे पुलिस टीम इंदरगढ़ थाने के गांव गसीमपुर पहुंची और लायक सिंह की बेटी सावित्री उर्फ पिंकी यादव को हिरासत में ले लिया. पिंकी को पुलिस हिरासत में देख कर गांव में कानाफूसी होने लगी. खासकर महिलाएं चटखारे ले कर तरहतरह की बातें करने लगीं. पुलिस पिंकी को थाने ले आई. थाने में आते ही पिंकी का चेहरा उतर गया.

पुलिस ने पिंकी यादव से बलराम की हत्या के संबंध में पूछताछ शुरू की तो वह भावनात्मक रूप से पुलिस को बरगलाने का प्रयास करने लगी. लेकिन जब पुलिस टीम ने महिला दरोगा अनीता सिंह को सच उगलवाने का आदेश दिया तो पिंकी टूट गई और उस ने भाई की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पिंकी ने बताया कि भाई बलराम की हत्या का षडयंत्र उस ने अपने प्रेमी प्रदीप यादव और उस के दोस्त रामू के साथ मिल कर रचा था.

दोनों हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस ने पिंकी की मार्फत जाल बिछाया. पुलिस के पास पिंकी का मोबाइल फोन था. उसी मोबाइल से पुलिस ने पिंकी की बात उस के प्रेमी प्रदीप से कराई और जरूरी बात बताने का बहाना बना कर शाम 5 बजे खैरनगर नहर पुलिया पर मिलने को कहा. प्रदीप आने को तैयार हो गया.

अपनी व्यूह रचना के तहत पुलिस टीम पिंकी को साथ ले कर शाम 4 बजे ही खैरनगर नहर पुल पर पहुंच गई. पुलिस के सदस्य सादा कपड़ों में पुल के आसपास झाडि़यों में छिप गए और वहीं से निगरानी करने लगे.

पुलिस को निगरानी करते अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि 2 युवक मोटरसाइकिल पर आए और पुल पर बैठी पिंकी को मोटरसाइकिल पर बैठने का संकेत किया.

ठीक उसी समय झाड़ी में छिपे टीम के सदस्यों ने उन दोनों को अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन की मोटरसाइकिल भी कस्टडी में ले ली. वे दोनों युवक प्रदीप और उस का दोस्त रामू थे. मोटरसाइकिल सहित दोनों को थाना ठठिया लाया गया.

थाने पर जब उन दोनों से बलराम की हत्या के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रदीप ने बताया कि वह बलराम की बहन पिंकी से प्यार करता था. पिंकी भी उस से प्यार करती थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन बलराम उन दोनों के प्यार में बाधा बन रहा था. इसी बाधा को दूर करने के लिए उस ने पिंकी और दोस्त रामू की मदद से बलराम की हत्या कर दी थी और उस की मोटरसाइकिल तथा शव को निचली गंगनहर में फेंक दिया था.

रामू ने पुलिस को बताया कि प्रदीप उस का दोस्त है. बलराम की हत्या में उस ने दोस्त का साथ दिया था. प्रदीप की निशानदेही पर पुलिस ने नहर पुल के पास झाड़ी से खून सना चाकू बरामद कर लिया. हत्या में प्रयुक्त प्रदीप की मोटरसाइकिल भी जाब्ते में ले ली गई.

पुलिस टीम ने बलराम की हत्या का परदाफाश करने तथा आलाकत्ल सहित कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को दी. उन्होंने थाने पहुंच कर प्रैसवार्ता की और कातिलों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

कन्नौज जिले के इंदरगढ़ थानांतर्गत एक गांव है गसीमपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में लायक सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामदेवी के अलावा एक बेटा बलराम सिंह तथा बेटी सावित्री उर्फ पिंकी थी. लायक सिंह के पास 5 बीघा उपजाऊ जमीन थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कृषि उपज से ही लायक सिंह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

बलराम सिंह लायक सिंह का एकलौता बेटा था. बलराम सिंह ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद नौकरी के लिए दौड़धूप शुरू की. नौकरी नहीं मिली, तो वह पिता के साथ कृषिकार्य में उन का हाथ बंटाने लगा. बलराम सिंह को घूमनेफिरने का शौक था, अत: उस ने पिता से कहसुन कर मोटरसाइकिल खरीद ली थी.

बलराम सिंह से 10 साल छोटी सावित्री उर्फ पिंकी थी. भाईबहन के बीच गहरा प्रेम था. पिंकी तन से ही नहीं, मन से भी खूबसूरत थी. इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था. 16 वर्ष की कम उम्र में ही वह जवान दिखने लगी थी. पिंकी से नजदीकियां बढ़ाने के लिए गांव के कई युवक उस के आगेपीछे घूमते रहते थे, लेकिन प्रदीप के मन में वह कुछ ज्यादा ही रचबस गई थी.

कसरती देह का हट्टाकट्टा गबरू जवान प्रदीप यादव मूलरूप से कन्नौज जिले के गांव आदमपुर का रहने वाला था. उस के पिता अवसान सिंह यादव किसान थे. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उस का मन खेती के काम में नहीं लगा तो उस ने ड्राइविंग सीख ली. कुछ समय बाद वह एक सड़क ठेकेदार की जेसीबी का ड्राइवर बन गया.

जनवरी, 2019 में ठेकेदार को गसीमपुर खैरनगर लिंक रोड बनाने का ठेका मिला. तब प्रदीप यादव गसीमपुर आया. सड़क निर्माण के दौरान प्रदीप की मुलाकात बलराम सिंह यादव से हुई. चूंकि दोनों हमउम्र थे और एक ही जातिबिरादरी के थे, सो दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई. प्रदीप को खानेपीने और रात में सोने की दिक्कत थी. उस ने अपनी समस्या बलराम को बताई तो उस ने प्रदीप के ठहरने और खानेपीने का इंतजाम अपने ही घर में कर दिया.

वित्री उर्फ पिंकी पर पड़ी. पहली ही नजर में पिंकी प्रदीप की आंखों में रचबस गई. वह उसे रिझाने की कोशिश करने लगा. जब भी मौका मिलता, वह उस से प्यार भरी बातें करता और उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करता. प्रदीप कभीकभी उस से छेड़छाड़ भी कर लेता था.

प्रदीप की छेड़छाड़ से पिंकी सिहर उठती, इस से उसे सुखद अनुभूति होती. धीरेधीरे कच्ची उम्र की पिंकी प्रदीप की तरफ आकर्षित होने लगी. अब उस के मन में हलचल मचने लगी थी.

इस तरह एकदूसरे के साथ रहते हुए दोनों के दिलों में प्यार का समंदर हिलोरें मारने लगा. दोनों एकदूसरे के लिए छटपटाहट महसूस करने लगे. मौका मिलने पर वह प्रदीप के कमरे में भी पहुंचने लगी थी. दोनों वहां बैठ कर प्यार भरी बातें करते और साथ जीनेमरने की कसमें खाते. दोनों की मोहब्बत परवान जरूर चढ़ रही थी, लेकिन घर वालों को कानोकान खबर नहीं थी.

माशूका की खातिर : अपनी ही गृहस्थी को क्यों उजाड़ा – भाग 2

तीनों लाशों का पोस्टमार्टम कराने के बाद लाशें उन के घर वालों को सौंप दी गईं. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. रिपोर्ट में बताया कि किसी पतले तार से अनुपमा का गला घोंटा गया था.

जबकि दोनों बच्चों अभय कुमार व आभा कुमारी का गला किसी धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से उन की श्वांस नली कट गई थी. आगे की जांच के लिए तीनों का विसरा भी सुरक्षित रख लिया गया था.

राजेंद्र प्रसाद की तहरीर पर थानाप्रभारी मनोज कुमार ने फरार उन्हीं के बेटे भैरवनाथ शर्मा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उसे तलाश करने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित की गईं.

पुलिस ने अनुपमा के परिजनों से पूछताछ की तो उस के पिता राजेंद्र राय ने चौंका देने वाली बात बताई, ‘‘दामाद भैरवनाथ से बेटी के संबंध कुछ अच्छे नहीं थे. बेटी के साथ वह अकसर मारपीट करता था.’’

अफेयर बना कलह की वजह

‘‘मारपीट करता था, क्यों?’’ इंसपेक्टर मनोज कुमार ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘मारपीट करने के पीछे कोई खास वजह थी क्या?’’

‘‘जी सर, एक युवती से दामाद का अफेयर थे. अनुपमा पति की करतूत को जान चुकी थी. वह ऐसा करने से मना करती थी. इसी बात से चिढ़ कर वह उसे मारतापीटता था.’’

‘‘वह युवती कौन है? उस का नामपता वगैरह कुछ है?’’ मनोज कुमार ने पूछा.

‘‘हां है, सब कुछ है. युवती का नाम रूपा देवी है और उस का मोबाइल नंबर ये है..’’ कहते हुए राजेंद्र राय ने पौकेट डायरी निकाल कर उस में से रूपा का नंबर उन्हें बता दिया. थानाप्रभारी ने उसी समय अपने फोन से वह नंबर डायल किया तो वह नंबर बंद मिला.

पुलिस टीम ने भैरवनाथ को पकड़ने के लिए उस के खासखास ठिकानों पर दबिश दी. मुखबिरों को भी लगा दिया. पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. घटना हुए 9 दिन बीत गए, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. पुलिस मायूस नहीं हुई. वह उस की तलाश में जुटी रही.

10वें दिन यानी 14 अक्तूबर 2017 को मुखबिर ने पुलिस को एक खास सूचना दी.  उस ने पुलिस को बताया कि आरोपी भैरवनाथ ने जहर खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की है. वह बोकारो के एक प्राइवेट अस्पताल की आईसीयू में भरती है.

पुलिस टीम बिना समय गंवाए बोकारो रवाना हो गई. सब से पहले बोकारो के उस अस्पताल पहुंची, जहां भैरवनाथ का इलाज चल रहा था. वह वहीं मिल गया. उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए डाक्टरों की सलाह मानते हुए पुलिस ने उसे उसी अस्पताल में भरती रहने दिया और खुद उस की निगरानी में लगी रही.

3 दिन बाद जब भैरव की हालत सामान्य हुई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर धनबाद ले आई. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस को पत्नी और बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली –

34 वर्षीय अनुपमा मूलरूप से झारखंड के हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा की रहने वाली थी. उस के पिता राजेंद्र राय ने सन 2013 में बड़ी धूमधाम से उस की शादी बोकारो के पुडरू गांव के रहने वाले भैरवनाथ शर्मा से की थी. भैरव के साथ अनुपमा हंसीखुशी से रह रही थी. बाद में वह एक बेटी और एक बेटे की मां भी बनी.

जीविका चलाने के लिए भैरवनाथ पत्नी और बच्चों को ले कर बोकारो से धनबाद आ गया था और वहां न्यू कालोनी में किराए के 2 कमरे ले कर रहने लगा. उस ने एक कारखाने में नौकरी कर ली.

जब दो पैसे की बचत होने लगी तो उस ने मातापिता को अपने पास बुला लिया. मातापिता कुछ दिनों उस के पास और कुछ दिनों गांव में रहने लगे. बड़ी हंसीखुशी के साथ परिवार के दिन कटने लगे. यह बात सन 2015 के करीब की है.

साल भर बाद भैरवनाथ और अनुपमा की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया, जिस ने दोनों की जिंदगी तिनके के समान बिखेर कर रख दी. घर की खुशियों में आग लगाने वाली उस तूफान का नाम था रूपा देवी.

दरअसल रूपा देवी भैरवनाथ की चचेरी भाभी थी. उस का परिवार बोकारो के भाटडीह मुदहा में रहता है. 2 साल पहले उस के पति की लीवर कैंसर से मौत हो गई थी. उस दौरान भैरव ने चचेरे भाई की तीमारदारी में तनमन और धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया था. भाई को बचाने के लिए उस ने दिनरात एक कर दिया था.

भाई की मौत के बाद भैरव भाभी रूपा देवी का दुख देख कर टूट गया. उसे उस समय बड़ा दुख होता था, जब वह जवान भाभी के तन पर सफेद साड़ी देखता था. सफेद साड़ी के बीच लिपटी रूपा का मन उसे रंगीन दिखता था. दरअसल, पति की तीमारदारी के दौरान रूपा का झुकाव भैरव की ओर हो गया था. रंगीनमिजाज भैरव ने भाभी के निमंत्रण को कबूल कर लिया था.

एक दिन दोनों ने मौका देख कर एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. ड्यूटी से लौट कर आने के बाद भैरव सारा काम छोड़ मोबाइल ले कर घंटों तक रूपा से प्यारभरी बातें करने बैठ जाता था. पत्नी जब पूछती कि किस से बातें कर रहे हो तो वह इधरउधर की बातें कह कर टाल देता था. उस के दबाव बनाने पर वह उस पर चिल्ला पड़ता था.

जब पत्नी के सामने खुली भैरव की पोल

बात 1-2 बार की होती तो समझ में आती, लेकिन मोबाइल पर लंबीलंबी बातें करना तो भैरव की दिनचर्या में ही शामिल हो गई थी. ड्यूटी से घर आने के बाद बच्चों का हालचाल लेना तो दूर की बात, उन की ओर देखता भी नहीं था और घंटों मोबाइल से चिपका रहता था.

पति की इस हरकत ने अनुपमा को उस पर संदेह करने के लिए विवश कर दिया था. लेकिन वह इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ थी कि उस का पति उस के पीठ पीछे क्या गुल खिला रहा है. ये बातें ज्यादा दिनों तक कहां छिपती हैं. जल्द ही भैरव की सच्चाई खुल कर अनुपमा के सामने आ गई.

इस के बाद अनुपमा ने घर में विद्रोह कर दिया. कलई खुलते ही भैरवनाथ के सिर से इश्क का भूत उतर गया. अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए पत्नी के सामने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगा कि अब ऐसा नहीं करेगा, गलती हो गई. पति के लाख सफाई देने के बावजूद अनुपमा ने पति की बातों पर यकीन नहीं किया. बच्चों को ले कर वह मायके चली गई. उस ने मांबाप से पति की करतूत बता दी.

उस वक्त अनुपमा के पिता राजेंद्र राय ने भैरवनाथ से तो कुछ नहीं कहा, वह बेटी को ही समझाते रहे कि अगर पति को ऐसे ही छोड़ दोगी तो मामला बनने की बजाय और बिगड़ जाएगा. अपना गुस्सा थूक दो और पति के पास लौट जाओ पर अनुपमा ने पति के पास लौटने से साफ इनकार कर दिया.

अगले भाग में पढ़ें- ऐसे दिया वारदात को अंजाम

सहनशीलता से आगे : जब पत्नी ने लिया बदला – भाग 2

वमसी लता अपने कमरे में बैठी रोरो कर अपना गुस्सा निकाल रही थी. उस का रोना वाजिब था क्योंकि यह सच है कि अगर पति पत्नी एकदूसरे को न समझें, समन्वय न रखें तो उन का परिवार तबाह हो जाता है. इस घर के नौनिहाल सीमा और राजेश का भविष्य मातापिता के दोजख बने जीवन में झुलस रहा था.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. विश्वनाथ जब भी छुट्टी पर आते थे, ऐसा ही होता था. एक बार छुट्टी पर आए विश्वनाथ ने रात में शराब पी कर पत्नी की पिटाई की. साथ ही चीखचीख कर कहा भी, ‘‘तुम मेरा घर छोड़ कर चली जाओ. जब तुम पत्नीधर्म नहीं निभा सकती, तो मेरे घर में क्या कर रही हो?’’

लता ने रोतेरोते जवाब दिया, ‘‘इस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. तुम्हारे कर्म ही ऐसे हैं, मैं ने ही तुम से विवाह कर के अपना जीवन बर्बाद कर लिया है.’’

इस के बाद विश्वनाथ उसे भद्दीभद्दी गालियां देने लगे.

‘‘मुझे अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना है, दूसरों से क्या मतलब. तुम शराब पीना और मारपीट करना बंद नहीं करोगे, मैं अच्छी तरह जानती हूं. तुम कभी नहीं सुधर सकते.’’

यह सुन कर विश्वनाथ शर्मा ने बेल्ट से लता की और पिटाई की. वह चीखनेचिल्लाने लगी. लेकिन विश्वनाथ को उस पर जरा भी दया नहीं आई. उसी दिन वमसी लता के मन में पहली बार यह बात आई थी कि क्यों न वह अपने पति को जहर दे कर मार डाले. जब तक वह जिंदा रहेगा उसे सुखचैन की सांस नहीं लेने देगा.

रक्तरंजित विश्वनाथ

उस के पास पति से मुक्ति का इस के अलावा कोई रास्ता नहीं था. उस के पास पैसों की कमी नहीं थी, अच्छा बैंक बैलेंस, सोनाचांदी व जवाहरात सब कुछ था. साथ ही हर माह मकान का अच्छाखासा किराया भी मिलता था. अगर पति की आकस्मित मृत्यु हो जाती, तो उसे नेवी से अच्छीखासी रकम भी मिलने की उम्मीद थी.

20 जुलाई, 2019 की सुबह सीमा बाथरूम जाने के लिए उठी तो पिता विश्वनाथ शर्मा के कमरे से कराहने की आवाज आई. आवाज में पीड़ा थी, फलस्वरूप सीमा के पांव खुदबखुद पिता के कमरे की ओर बढ़ गए. कमरे के अंदर जा कर उस ने जैसे ही लाइट औन की. उस की आंखें फटी रह गईं. मुंह से जोरों की चीख निकल गई.

विश्वनाथ शर्मा खून से लथपथ कराह रहे थे. उसे कुछ समझ नहीं आया तो वह उल्टे पांव मां के कमरे में पहुंची और चिल्ला कर मां को जगाया.

मां आंखें मलते हुए उठी तो सीमा घबराए स्वर में बोली, ‘‘मां…पापा…’’ सीमा के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी.

कुसुमलता ने घबराई हुई सीमा को देखा तो पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

‘‘मां…पापा… खून?’’ सीमा ने हकलाते हुए कहा तो वमसी लता झटके से उठ कर पति के कमरे की तरफ भागी. पीछेपीछे सीमा और राजेश भी थे. वहां का दृश्य देख कर लता दहाड़ मार कर रोने लगी. बच्चे भी रोने लगे. रोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग आ गए.

के. विश्वनाथ का चेहरा बुरी तरह कुचला हुआ था. चादर कपड़े सब रक्तरंजित. पड़ोसियों की मदद से विश्वनाथ को अस्पताल पहुंचाया गया. विश्वनाथ शर्मा का चेहरा कुचल दिया गया था. मुंह से सिर्फ कराहने की आवाज आ रही थी. अस्पताल पहुंचने तक वह जीवित थे, वहां जा कर उन की मृत्यु हो गई. अस्पताल प्रबंधन ने वमसी कुसुमलता से के. विश्वनाथ के संदर्भ में आवश्यक जानकारी प्राप्त की. मामला प्रथमदृष्टया संदिग्ध नजर आ रहा था. इसलिए प्रबंधन ने घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. जब पुलिस अस्पताल पहुंची तो के. विश्वनाथ की पत्नी और बच्चे वहीं थे.

गुढि़यारी थाने के थानाप्रभारी सुशांतो बनर्जी ने अस्पताल पहुंच कर सबसे पहले मृतक के बारे में वमसी लता का बयान लिया. अपने बयान में उस ने बताया कि उस के पति विश्वनाथ मर्चेंट नेवी में इंजीनियर थे और छुट्टी पर घर आए हुए थे.

उस ने सुबहसुबह उन्हें उन के कमरे में खून से लथपथ देखा तो उस के होश उड़ गए, पता नहीं कौन घर में  घुस आया और उन्हें बुरी तरह घायल कर के चला गया. दोनों बच्चों राजेश व सीमा ने भी यही बात बताई.

सुशांतो बनर्जी ने वमसी लता के साथ आए अन्य लोगों का भी बयान लिया. इस के बाद उन्होंने एसएसपी आरिफ शेख, एडिशनल एसपी प्रफुल्ल ठाकुर, एसपी (सिटी) अभिषेक माहेश्वरी को इस वारदात के बारे में बता दिया.

अधिकारियों के आने के बाद जब मुआयना और लिखापढ़ी हो गई तो थाना गुढि़यारी पुलिस ने विश्वनाथ की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

मामला मर्चेंट नेवी के इंजीनियर की हत्या का था. इसलिए अधिकारियों ने अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए केस की जांच के लिए क्राइम ब्रांच की एक टीम गठित कर के जांच शुरू करा दी. थानाप्रभारी सुशांतो बनर्जी और एडिशनल एसपी प्रफुल्ल ठाकुर ने एक बार फिर घटनास्थल का मुआयना किया.

आसपास के लोगों से बातचीत की गई तो इस घटना की सच्चाई प्याज के छिलके की तरह परतदर परत खुल कर सामने आने लगी. पता चला कि पतिपत्नी के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं था.

दोनों की अनबन पासपड़ोस के लोगों से छिपी नहीं थी. थोड़ी सी पड़ताल में यह जानकारी भी मिली कि वमसी लता ने पति के खिलाफ गुढि़यारी थाने में 4 बार मारपीट की रिपोर्ट लिखाई थी.

वमसी लता को थाने ले जा कर जब एडिशनल एसपी प्रफुल्ल ठाकुर और थानाप्रभारी सुशांत बनर्जी ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह फूटफूट कर रोने लगी. लेकिन पति के. विश्वनाथ शर्मा की मौत के बारे में कुछ भी जानने से इनकार करती रही. बाद में जब पुलिस ने लता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक चौंकाने वाली बात सामने आई.

घटना की रात 2 बजे उस के मोबाइल पर एक काल आई थी. पुलिस ने पता लगाया तो नंबर के. विश्वनाथ शर्मा और वमसी कुसुमलता के किराएदार लवकुश शुक्ला का निकला. पुलिस लवकुश को पकड़ कर थाने ले आई. थाने पहुंच कर वह सूखे पत्ते की तरह थरथर कांपने लगा. पुलिस की थोड़ी सी सख्ती पर उस ने के. विश्वनाथ शर्मा की हत्या का सारा राज खोल दिया.

लवकुश के बताने पर अविनाश को भी पकड़ लिया गया. वह लवकुश के यहां नौकरी करता था. पूछताछ में उस ने स्वयं ही विश्वनाथ की हत्या करने की बात मान ली. इस के बाद पुलिस के सामने जो कहानी आई, उस का लब्बोलुवाब यह था.

एक रोटी के लिए हत्या – भाग 2

हत्यारे का सुराग लगाने के लिए पुलिस ने घर में लगे सीसीटीवी कैमरों की भी जांच की. लेकिन सीसीटीवी कैमरे बंद मिले. जांच में पता चला कि सीसीटीवी कैमरे पिछले डेढ़ महीने से खराब थे.

इस के बाद पुलिस ने गली में घरों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों  की जांच की. लेकिन अधिकतर कैमरे बंद मिले. हत्यारा किसी भी कैमरे में दिखाई नहीं दिया. राजिंदर सिक्का और उन के बेटे दीपांशु ने बताया कि उन्हें किसी प्रौपर्टी के पेपर बनवाने के लिए तहसील जाना था.

आज काम नहीं हुआ, तो आराम करने के लिए दोनों बापबेटे अपने क्रेशर चले गए थे. तभी नौकर राजेश का फोन आया था. बहरहाल जगाधरी सिटी पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रोजी के ब्लाइंड मर्डर की रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

इस केस को पुलिस हर छोटेबडे़ एंगल से देख रही थी. अब तक की तफ्तीश में जो सामने आया था, उस से यह माना जा रहा था कि इस घटना में किसी जानकार का हाथ हो सकता है, जिस ने घर में आसानी से घुस कर इत्मीनान से मर्डर किया और फरार हो गया.

सिक्का परिवार ने अब तक न तो किसी पर संदेह जताया था और न ही किसी के साथ अपनी निजी या कारोबारी दुश्मनी होना बताया था. दीपांशु और रोजी की शादी 28 फरवरी, 2018 को हुई थी. पुलिस इस में भी कोई पुराना ऐंगल ढूंढ रही थी.

एसपी कुलदीप यादव ने मामले की जांच के लिए सीआईए समेत 4 टीमें गठित कर दीं. लेकिन अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया था. घटनास्थल पर लूट या चोरी के चिह्न भी नहीं मिले थे.

प्रारंभिक जांच में मामला केवल रोजी की हत्या करने का ही सामने आया था. लेकिन जिस बेरहमी से हत्या की गई थी, उस से व्यक्तिगत रंजिश का होना साफ दिखाई दे रहा था. पुलिस टीमों ने क्राइम सीन को एक बार दोबारा बारीकी से चेक किया.

इस बार पुलिस ने सामने वाले उस प्लौट को भी चेक किया जिस में नौकर राजेश रहता था. पुलिस को वहां कुछ ऐसे सबूत मिले जिस की वजह से पुलिस सिक्का परिवार के नौकर राजेश को पूछताछ के लिए थाने ले गई.

दरअसल सीआईए-2 के इंचार्ज इंसपेक्टर श्रीभगवान यादव को पहले से ही नौकर राजेश पर कुछ शक था. यह शक उस के कमरे की तलाशी लेने के बाद और पुख्ता हो गया था.

पहला शक मर्डर के बाद जब उस के मालिक और पुलिस राजिंदर सिक्का की कोठी पर पहुंची तो नौकर राजेश भी दुखी होने का नाटक करते हुए जोरजोर से रोने लगा था. दूसरा शक दीपांशु से फोन पर बात करने के 10 मिनट बाद जब राजिंदर सिक्का ने उसे फोन पर कहा कि वह घर जा कर देखे, बहू फोन क्यों नहीं उठा रही.

इस पर राजेश ने बताया था कि वह जर्दा लेने के लिए आया है. अभी कोठी जा कर देख लेगा, क्या बात है. जबकि 10 मिनट पहले उस ने दीपांशु को बताया था कि वह कपड़े धो रहा है.

तीसरा शक और पुख्ता सबूत यह था कि जिस मकान में नौकर राजेश रहता था, वहां से कुछ ऐसे कपड़े बरामद हुए थे, जिन्हें उसी समय धोया गया था. वे पूरी तरह से गीले थे. शायद उन्हें जल्दी सुखाने के लिए ही राजेश को मशीन की जरूरत थी.

इस के अलावा पानी की टंकी के पास से एक साबुन भी बरामद हुआ था, जिस पर एक जगह हल्का खून लगा हुआ था. संभवत: उस साबुन से ही उस ने हाथ साफ किए थे. इंसपेक्टर भगवान सिंह यादव ने कपड़ों सहित बाकी सभी चीजों को कब्जे में ले कर लैब में भिजवा दिया था.

सीआईए स्टाफ-2 के कार्यालय में पूछताछ के दौरान नौकर राजेश पहले तो कई घंटे तक पुलिस वालों को घुमाता रहा. उस ने अपने एबनार्मल होने का ड्रामा भी किया. लेकिन पुलिस ने जब सख्ती दिखाई तो उस ने अपना गुनाह कबूल लिया.

उस ने रोजी सिक्का की हत्या की जो कहानी सुनाई उस पर विश्वास करना बहुत मुश्किल था. राजेश ने बताया कि उस ने रोजी की हत्या इसलिए की थी क्योंकि वह उसे कम खाना देती थी. यह सुन कर पुलिस अधिकारी चौंके. उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि क्या कोई रोटी के लिए किसी की इस तरह हत्या कर सकता है. बहरहाल राजेश से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई इस प्रकार थी—

राजेश की मां का देहांत हो चुका था. उस के 5 भाईबहन थे. 3 भाई और 2 बहनें. उसे छोड़ कर बाकी सभी शादीशुदा थे. वह भी अपना घर बसाने के लिए पैसा कमाने अपने गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर जगाधरी आया था. वह पहले आर.के. क्रेशर खिदराबाद में नौकरी पर लगा था, इस के बाद वह राजिंदर सिक्का के पास नौकरी करने लगा.

सिक्का के यहां वह खुश था. यहां भरपेट खाने के साथ उसे अच्छा वेतन भी मिलता था. वह भी जीजान से सिक्का परिवार की सेवा करता था. नौकर और मालिकों के बीच सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक राजेश के जीवन में मुसीबतें किसी पहाड़ की तरह आ खड़ी हुई थीं.

एक दिन राजेश के पास उस के गांव से खबर आई कि उस के पिता का निधन हो गया है. वह अपने पिता से बहुत प्रेम करता था. 30 मार्च, 2019 को वह अपने पिता के निधन पर गांव गया और 19 अप्रैल को वह गांव से वापस अपनी नौकरी पर सिक्का परिवार में आ गया.

राजेश ने बताया कि दीपांशु साहब की शादी 28 फरवरी, 2018 को रोजी से हुई थी और उस की जिंदगी में असली समस्या उस घर में नई बहू के आने से ही शुरू हो गई थी. दीपांशु की शादी के पहले वह खुद कोठी में खाना बनाया करता था. पर शादी के दोढाई महीने बाद नई बहू रोजी ने खाना बनाना शुरू कर दिया था.

उसे रोजी के खाना बनाने से कोई एतराज नहीं था. उसे एतराज इस बात का था कि रोजी उसे कम खाना देती थी. उस ने इस बात की शिकायत राजिंदर और दीपांशु के अलावा रोजी से भी की थी.

लेकिन किसी ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और न उस की परेशानी को गंभीरता से समझा. अपने पिता की मौत के बाद गांव से वापस आने के बाद तो उस के खाने वाली समस्या ने और भी गंभीर रूप धारण कर लिया था.

भाई नहीं महबूबा चाहिए : परिवार बना कातिल

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद की विश्वपटल पर पीतल नगरी के नाम से पहचान बनी हुई है. मुरादाबाद के थाना  कटघर क्षेत्र में आने वाली वरबला खास मियां कालोनी में मुनव्वर अली अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी नूरजहां और 6 बच्चे थे, जिन में 2 बेटे आरिस व अरबाज के अलावा 4 बेटियां थीं.

मुनव्वर एक मैटल फर्म में काम करता था. उस ने अपने बड़े बेटे आरिस को एक टैंपो खरीद कर दे दिया था. उसी से वह बिल्डिंग मैटीरियल सप्लाई कर के अच्छीखासी कमाई कर लेता था. छोटे बेटे अरबाज को मुनव्वर ने एक मोटरसाइकिल मैकेनिक के पास काम सीखने के लिए लगा दिया था.

4 जुलाई, 2018 को अरबाज मोटरसाइकिल मैकेनिक की दुकान से रात 8 बजे घर पहुंचा. भाई को आया देख बड़ी बहन ने उसे पैसे दे कर पास की दुकान से दूध की थैली लाने के लिए भेज दिया.

उस ने दूध ला कर बहन को दे दिया. दूध दे कर वह बाहर जाने लगा, तो बहन ने टोका, ‘‘अब कहां जा रहा है, खाने का टाइम हो गया है. खाना तो खाता जा.’’

‘‘थोड़ी देर में आऊंगा, तभी खा लूंगा.’’ कह कर अरबाज घर से निकल गया.

अरबाज को गए हुए काफी देर हो गई लेकिन वह घर नहीं लौटा तो घर वाले परेशान हो गए. यह स्वाभाविक ही था, क्योंकि इस से पहले वह कभी घर से इतनी देर के लिए गायब नहीं हुआ था. घर वाले उसे ढूंढने के लिए निकल गए. उन्होंने पूरी कालोनी छान मारी लेकिन अरबाज नहीं मिला. उन्होंने उस के साथियों, दोस्तों से भी पूछा पर कोई जानकारी नहीं मिली. थकहार कर घर वाले रात 12 बजे घर लौट आए.

मुनव्वर का बड़ा बेटा आरिस बजरी ले कर कहीं गया हुआ था. वह भी घर नहीं लौटा था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. घर वालों ने समझा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अरबाज भी आरिस के साथ चला गया हो. यही सोच कर वे आरिस के लौटने का इंतजार करने लगे.

आरिस रात करीब डेढ़ बजे घर पहुंचा. अरबाज उस के साथ नहीं था. घर वालों ने आरिस से पूछा कि अरबाज तुम्हारे साथ तो नहीं गया था. इस पर आरिस ने कहा, ‘‘नहीं, वह मेरे साथ नहीं था. मैं तो अकेला ही गया था. उस की बात सुन कर सभी आश्चर्यभरी निराशा में डूब गए.’’

मुनव्वर ने बेटे से कहा, ‘‘बेटा, रात करीब साढ़े 8 बजे से अरबाज गायब है. पता नहीं कहां चला गया. हम ने सब जगह ढूंढ लिया.’’

अब्बू की बात सुन कर आरिस भी परेशान होते हुए बोला, ‘‘कहां गया होगा वह?’’ इस के बाद वह घर वालों के साथ 15 वर्षीय अरबाज को ढूंढने के लिए निकल पड़ा.

करीब एक घंटे बाद आरिस भी निराश हो कर घर लौट आया. घर वाले अरबाज की चिंता में रात भर ऐसे ही बैठे रहे. यह बात 3-4 जुलाई, 2018 की है.

अगले दिन सुबह करीब 6 बजे कालोनी के लोगों ने रेलवे क्रौसिंग के पास नवनिर्मित दुकान के अंदर अरबाज का शव पड़ा देखा तो इस की सूचना मुनव्वर अली को दी.

पूरा परिवार घटनास्थल पर पहुंच गया. अरबाज की लाश देख कर सब लोग बिलखबिलख कर रोने लगे. कुछ ही देर में वहां तमाम लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. खबर मिलते ही थाना कटघर पुलिस मौके पर पहुंच गई. थानाप्रभारी संजय गर्ग ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

अरबाज की लाश औंधे मुंह पड़ी थी. उस के सिर व हाथपैरों पर गहरी चोटों के निशान थे. गले पर लगे निशानों से लग रहा था कि उस की गला दबा कर हत्या की गई थी और उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था. सीओ सुदेश कुमार भी वहां आ गए थे. डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया गया.

खोजी कुत्ता निर्माणाधीन दुकान के अंदर गया और वहां से टूटी दीवार से निकल कर खाली प्लौट से होता हुआ सिद्दीकी कालोनी में पहुंच गया. करीब 200 मीटर चलने के बाद वह वापस आ गया.

मामला शहर की घनी आबादी के बीच का था, इसलिए वहां सैकड़ों की संख्या में लोग जमा हो गए. अरबाज की लहूलुहान लाश देख कर लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था. खबर मिलते ही एसपी (सिटी) अंकित मित्तल भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

गुस्साए लोगों ने अरबाज की लाश अपने कब्जे में ले कर सड़क पर रख दी और वहीं बैठ गए. इस से मुरादाबाद लखनऊ राजमार्ग व मुरादाबाद रामनगर मार्ग पर लंबा जाम लग गया. भीड़ हत्यारों को शीघ्र गिरफ्तार करने की मांग कर रही थी.

जाम की सूचना पर मुरादाबाद के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के समझाने पर करीब डेढ़ घंटे बाद लोगों ने जाम खोला. पुलिस ने फटाफट मौके की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिएभेज दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अरबाज की हत्या गला घोंट कर की गई थी. उस के एक हाथ की हड्डी भी टूटी पाई गई. कातिलों ने अरबाज के सिर पर भारी डंडे या धातु की रौड से वार किए थे, जिस से सिर की हड्डियां भी टूट गई थीं.

डाक्टरी रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई थी कि हत्यारे किसी भी सूरत में अरबाज की जान लेना चाहते थे.

मामले का जल्द खुलासा करने के लिए एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने 3 टीमों का गठन किया, जिन का नेतृत्व सीओ सुदेश कुमार, थानाप्रभारी संजय गर्ग और एसएसआई दिनेश शर्मा को करना था. निर्देशन का काम एसपी (सिटी) अंकित मित्तल को सौंपा गया.

पुलिस ने इस बारे में अरबाज के घर वालों से पूछताछ की, तो मृतक के बड़े भाई आरिस ने शहर के ही 7 लोगों सफदर, अशरफ, मुर्सलीम, सद्दाम, आसिफ, वाजिद व बड़े मियां (रामपुर वाले) पर शक जताया.

तीनों टीमें अपनेअपने तरीके से केस की जांच में जुट गईं. कुछ पुलिसकर्मियों को घटनास्थल के आसपास सादे कपड़ों में तैनात कर दिया गया, जो पलपल की रिपोर्ट अधिकारियों को दे रहे थे.

आरिस ने जिन 7 लोगों पर शक जताया था. पुलिस टीम से उन के घर दबिश दी, तो वे सभी लोग अपनेअपने घरों से फरार मिले. पुलिस ने वरबला खास के संभ्रांत लोगों से नामजद आरोपियों के बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि नामजद लोग बेहद गरीब हैं. उन का कोई आपराधिक रिकौर्ड भी नहीं है. उन्हें इस मामले में रंजिशन फंसाया जा रहा है.

इसी दौरान पुलिस को एक खास बात यह पता चली कि आरोपी मुर्सलीम की पत्नी अजरा से अरबाज के बड़े भाई आरिस के साथ अवैध संबंध थे. इस बात को ले कर दोनों पक्षों में आए दिन झगड़ा होता रहता था.

थानाप्रभारी संजय गर्ग ने महिला पुलिस को साथ ले कर नामजद अभियुक्त मुर्सलीम की पत्नी अजरा से भी पूछताछ की. अजरा ने स्वीकार किया कि उस के आरिस के साथ संबंध हैं. आरिस उसे इतना चाहता है कि उस से शादी करने को तैयार है. इतना ही नहीं, वह उसे भगा कर ले जाने की बात करता है.

कुल मिला कर आरिस उसे ले कर पागल बना हुआ था. अजरा ने बताया कि यह बात उस के पति मुर्सलीन को भी पता चल चुकी थी, जिस की वजह से मुर्सलीन और आरिस के बीच कई बार झगड़ा भी हुआ. अजरा ने बताया कि लड़ाई होना अलग बात है, लेकिन उस का पति और ससुराल वाले हत्या जैसा काम नहीं कर सकते.

यह बात थानाप्रभारी की भी समझ में आ गई. लेकिन यह उन की समझ में नहीं आ रही थी कि अजरा के पति मुर्सलीन और उस के घर वालों की दुश्मनी आरिस से थी तो उन्हें आरिस को मारना चाहिए था न कि अरबाज को.

अजरा से पूछताछ कर के थानाप्रभारी लौट आए. उधर आरिस पुलिस पर नामजद अभियुक्तों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का दबाव बना रहा था. पुलिस जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती थी, इसलिए वह आरिस को यह समझाबुझा कर घर भेज देती थी कि आरोपियों की तलाश में जगहजगह दबिश दी जा रही हैं.

थानाप्रभारी संजय गर्ग ने एसएसआई दिनेश शर्मा, एसआई मुकेश शुक्ला, कांस्टेबल गौरव कुमार और सत्यवीर पहलवान को आरिस की गतिविधियां चैक करने पर लगा दिया. इस पुलिस टीम को आरिस की गतिविधियां संदिग्ध लगीं.

इस के बाद पुलिस ने आरिस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उन्हें 2 फोन नंबर ऐसे मिले, जिन पर आरिस ने वारदात वाले दिन कई बार बात की थी. जिन नंबरों पर उस की बात हुई थी, उन की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उन नंबरों की लोकेशन घटनास्थल के पास पाई गई.

अब पुलिस के शक की सुई आरिस की तरफ घूम गई. जिन 2 नंबरों पर आरिस ने बात की थी, वह नंबर रामपुर दोराहा, बरवाला मझला निवासी सुलतान व जामा मसजिद निवासी जुनैद के निकले.

पुलिस ने उन दोनों को पूछताछ के लिए उठा लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने सब कुछ बता दिया है. उन्होंने बताया कि अरबाज की हत्या में उस का बड़ा भाई आरिस भी शामिल था.

यह सुन कर एसपी अंकित मित्तल सहित सभी यह सोच कर सन्न रह गए कि प्रेमिका को पाने के लिए सगा भाई इस हद तक जा सकता है कि प्रेमिका के पति और उस के परिवार को हत्या में फंसाने के लिए षडयंत्र रच कर अपने सगे भाई की हत्या करवा दे.

अभियुक्त सुलतान व जुनैद द्वारा अपना अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने आरिस को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जब आरिस को गिरफ्तार कर थाने ला रही थी तो आरिस ने पुलिस से पूछा कि मुझे थाने क्यों ले जाया जा रहा है. इस पर थानाप्रभारी संजय गर्ग ने कहा कि तुम्हारे भाई के हत्यारे पकड़े जा चुके हैं. थाने चल कर देख लो, वह कौन है.

थाने पहुंच कर पुलिस ने आरिस का सामना अभियुक्त सुलतान व जुनैद से करवाया तो उस के होश उड़ गए. थानाप्रभारी को गुस्सा आया तो उन्होंने आरिस के गाल पर एक तमाचा जड़ते हुए कहा कि इतने दिनों से नाटक कर हमें बेवकूफ बना रहा था. उन्होंने आरिस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गांव के मुर्सलीन की पत्नी अजरा से उस के नाजायज संबंध हैं.

प्रेमिका के पति और उस के घर वालों ने उस के साथ कई बार मारपीट की थी. उन्हें सबक सिखाने के लिए ही उस ने अपने छोटे भाई अरबाज की हत्या कर के मुर्सलीन और उस के घर वालों को फंसाने की योजना बनाई थी.

यह काम करने के लिए उस ने अपने दोस्त सुलतान और जुनैद से बात की तो वे उस का साथ देने के लिए तैयार हो गए. 3 जुलाई, 2018 को अरबाज जब दूध की थैली लेने गया था तो बाहर उसे आरिस मिल गया. उस ने अरबाज से कहा कि दूध की थैली घर रख कर आ जाना. मुझे पार्टी से पैसे लेने के लिए जाना है. पैसे मिलेंगे तो तुझे भी दूंगा. और हां, घर पर कुछ मत बताना. भाई की बात मान कर अरबाज दूध की थैली घर रख कर तुरंत बड़े भाई के पास आ गया.

उस समय बिजली गुल थी. आरिस अरबाज को अपने साथ ले गया. घर से करीब 100 मीटर दूर ताजपुर रेलवे क्रौसिंग के पास उसे जुनैद और सुलतान मिल गए. वे तीनों 15 वर्षीय अरबाज को वहीं पास में एक निर्माणाधीन दुकान के अंदर ले गए. फिर तीनों ने अरबाज का गला घोंट कर हत्या कर दी. बाद में रौड से उस के सिर पर कई वार भी किए. इस से पहले अरबाज ने कहा भी था कि भाई मुझे क्यों मार रहे हो, मैं ने क्या बिगाड़ा है. उस ने भागने की कोशिश भी की थी. लेकिन सुलतान ने उसे नीचे गिरा दिया था. जुनैद ने पैर पकडे़ और आरिस ने खुद ही अपने छोटे भाई का गला घोंटा था.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद एसपी (सिटी) ने आरिस के मामा व मां नूरजहां को भी थाने बुलवा लिया. उन के सामने आरिस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. आरिस ने बताया कि उस ने यह सब इसलिए किया था कि अरबाज की हत्या के आरोप में मुर्सलीन व उस के घर वाले जेल चले जाएं. उन के जेल जाने के बाद वह अपनी प्रेमिका अजरा से बिना किसी डर के मिलता रहता और उस से निकाह कर लेता.

लेकिन एक तीर से दो शिकार करने का उस का मकसद सफल नहीं हो सका. इस में उस ने अपने भाई को तो खो ही दिया साथ ही उसे खुद भी जेल जाना पड़ा.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें मुरादाबाद जिला जेल भेज दिया गया.  ?

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जीजासाली का खूनी इश्क : प्रेम ने तोड़ी सीमा – भाग 1

9 साल पहले जब अजय साहू उर्फ मोहित ने सरिता से विवाह किया था, तब सरिता से छोटी साली कविता 15 साल की थी. इस के 3 साल बाद 18 साल की उम्र में वह भरीपूरी युवती लगने लगी थी.

ससुराल में अजय के सासससुर के अलावा उस की 2 सालियां कविता और सविता थीं, कोई साला नहीं था. सविता काफी छोटी थी, इसलिए अजय को खिलानेपिलाने व उस की सुखसुविधा का खयाल रखने की जिम्मेदारी बड़ी साली कविता की थी. कविता भी अपने जीजा का हुक्म मानने के लिए एक पैर पर खड़ी रहती थी.

जीजा की जरूरतों का खयाल रखना साली का कर्त्तव्य होता है, इस में कोई नई बात नहीं है. अजय भी इन बातों को सामान्य रूप से लेता था. लेकिन एक दिन अचानक ही वह कविता के अद्भुत सौंदर्य की तेज रोशनी में चौंधिया गया.

एक दिन जब अजय ससुराल पहुंचा तो कविता किसी परिचित के यहां मांगलिक समारोह में जाने के लिए तैयार हो रही थी. कविता ने सुर्ख लाल जोड़ा पहन रखा था और अपने बाल खुले छोड़ रखे थे. कलाई में चूडि़यां और चेहरे पर सादगी भरा शृंगार. आंखों में काजल की रेखा और होंठों पर हलकी सी लिपस्टिक. उसे देख कर अजय की नजरें ऐसी चिपकीं कि हटने को ही तैयार नहीं हुईं.

कविता ने अजय को मीठा और पानी ला कर दिया, फिर चाय बना कर पिलाई. कुछ देर उस के पास बैठ कर अपनी बहन की खैरियत पूछी. फिर उस के पास से उठते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप आराम करो, मैं जल्दी ही लौट आऊंगी.’’

कविता चली गई और वह देखता रह गया. अजय बैड पर लेट गया और कविता के बारे में सोचने लगा कि इतनी सुंदर तो सरिता तब भी नहीं लगी थी, जब दुलहन बन कर उस के घर आई थी.

अजय ने अपने मन से कविता का खयाल निकालने की बहुत कोशिश की, पर कामयाब नहीं हो सका. कविता के सौंदर्य की तेज रोशनी से उस ने जितना दूर जाना चाहा, उतना ही मस्तिष्क से अंधा होता गया.

अजय सोचने लगा कि मेरी शादी भले ही सरिता से हो गई पर कविता भी तो उस की साली ही है. साली यानी आधी घरवाली.

अजय के मन में पाप समाया तो वह कविता को पाने की जुगत में लग गया.

उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के गांव पूरब थोक में राजेश चंद्र अपने परिवार के साथ रहते थे. वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. परिवार में पत्नी उषा और 3 बेटियां सरिता, कविता और सविता थीं. बेटा न होने का राजेश को कतई गम नहीं था. उन्होंने तीनों बेटियों की बेटों से बढ़ कर परवरिश की थी. सरिता ने इंटर की पढ़ाई पूरी कर ली थी.

कौशांबी के ही कुम्हियवा गांव में रामहित साहू रहते थे. वह भी खेतीकिसानी करते थे. उन के 3 बेटे थे, जिस में अजय उर्फ मोहित सब से बड़ा था. अजय ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई करने के बाद अपना खुद का काम करने का निर्णय लिया.

काफी सोचविचार के बाद उस ने डीजे संचालन का काम शुरू किया. उस का यह काम अच्छा चल गया. अपने इसी काम के दौरान एक वैवाहिक समारोह में उस की मुलाकात सरिता से हुई. सरिता उस समारोह में काफी सजधज कर आई थी. इस वजह से वह काफी खूबसूरत दिख रही थी.

डीजे पर डांस करने के दौरान सरिता ने ‘डीजे वाले बाबू मेरा गाना बजा दो’ गाना चलाने की मांग की. अजय औपरेटर के पास ही खड़ा था. उस की पीठ सरिता की तरफ थी. मधुर आवाज सुनते ही अजय पलटा तो पलटते ही सरिता को देखा तो देखता ही रह गया.

अजय काफी स्मार्ट था. उसे अपनी तरफ देखते पा कर सरिता भी लजा गई और बोली, ‘‘सौरी, मैं आप को डीजे वाला समझ बैठी. इसलिए अपनी पसंद का गाना चलाने के लिए कह दिया.’’

अजय उस के भोलेपन पर मुसकराते हुए बोला, ‘‘आप से कोई गलती नहीं हुई, मैं डीजे वाला बाबू ही हूं यानी इस डीजे का मालिक.’’

‘‘ओह…तो यह बात है, तो मेरा पसंदीदा गाना लगवा दें, जिस से मैं डांस कर सकूं.’’ सरिता ने तिरछी नजरों से अजय को निहारते हुए कहा.

अजय ने औपरेटर को बोल कर ‘डीजे वाले बाबू…’ गाना लगवा दिया. गाना भारीभरकम स्पीकरों पर गूंजने लगा तो सरिता अपनी सहेलियों के साथ डांस करने लगी. वह डांस कर जरूर रही थी, लेकिन उस का सारा ध्यान अजय पर ही था. अजय भी उसे देखते हुए मुसकरा रहा था.

वह इशारे से बारबार सरिता की तारीफ भी कर रहा था. उस की तारीफ पा कर सरिता लजा कर दूसरी ओर देखने लगती थी.

डांस खत्म होने के बाद भी दोनों वहां से हटने को तैयार नहीं थे. उन की निगाहें मिलने के बाद अब उन के दिल मिलने को तड़प रहे थे. वह तड़प उन की निगाहों में बखूबी नजर आ रही थी.

आखिर अजय ने उसे इशारे से अपने पीछेपीछे आने को कहा तो सरिता उस का इशारा समझ कर दिल के हाथों मजबूर हो कर उस के पीछेपीछे चली गई.

अजय एकांत में सुनसान जगह पर खड़ा हुआ तो शरमातेसकुचाते सरिता भी वहां पहुंच गई और पूछने लगी, ‘‘आप ने मुझे इशारे से अपने पीछे आने को क्यों कहा?’’

‘‘क्यों…क्या तुम्हें वास्तव में नहीं पता?’’ अजय उस की आंखों में देखते हुए बोला, ‘‘जरा अपने दिल पर हाथ रख कर अपनी धड़कनों को सुनो, जवाब मिल जाएगा.’’

‘‘सब दिल का ही तो मामला है, ये ऐसा मजबूर कर देता है कि इंसान अपनी सुधबुध खो बैठता है. और इंसान वही करने लगता है जो यह चाहता है. मैं भी दिल के हाथों मजबूर हो कर यहां आ गई हूं.’’ सरिता अपने दिल की व्यथा उजागर करती हुई बोली.

‘‘ये दिल ही तो है जब इस के अपने मन का मीत मिल जाता है तो प्यार की घंटी बजा कर आगाह कर देता है. देखो न, जब तुम्हारे दिल को मेरे दिल ने पुकारा तो तुम्हारा दिल मेरे पीछेपीछे खिंचा चला आया. कहने को हम अजनबी हैं, लेकिन हमारे दिलों ने हमारे बीच प्यार के रिश्ते की नींव रख दी है, जिस पर हमें मिल कर प्यार की इमारत खड़ी करनी है. अगर मेरा प्यार मेरा साथ मंजूर हो तो मेरे पास आ कर गले लग जाओ.’’ कहते हुए अजय ने बड़ी चाहत भरी नजरों से देखा तो सरिता उस की ओर खिंची चली गई और उस के गले लग गई.

यह ऐसा प्यार था, जिस ने बिना एकदूसरे के बारे में जाने उन के दिलों को मिला दिया था. उस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना, खूब ढेर सारी बातें कीं. मोबाइल नंबर एकदूसरे को दिए. फिर मिलने का वादा कर के जुदा हो गए.

उस दिन के बाद उन में बराबर बातें और मुलाकातें होने लगीं. करीब 9 साल पहले दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया. सरिता के घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था लेकिन अजय के घर वाले इस प्रेम विवाह के खिलाफ थे. अजय विवाह करने के बाद कौशांबी के सिराथू कस्बे में सैनी रोड पर किराए का कमरा ले कर सरिता के साथ रहने लगा. अजय अपनी जिंदगी से काफी खुश था.

सरिता की छोटी बहन कविता की खूबसूरती अजय का मन लुभाती तो थी, पर उस की नजरें बेईमान नहीं थीं. लेकिन उस दिन कविता को सुर्ख लाल जोड़े में सजासंवरा देखा तो वह उसे दुलहन सी हसीन लगी. बस, जीजा के मन में साली के लिए फितूर समा गया.

कविता के बारे में सोचते हुए अजय सो गया और सपने में भी कविता उस का चैन हरती रही. सुखद सपनों में खोया अजय न जाने कब तक सोया रहता कि उस की सास उषा ने आ कर जगा दिया, ‘‘अजय बेटा उठो, शाम हो गई है.’’

अजय हड़बड़ा कर उठ बैठा, ‘‘मैं दोपहर को सोया था और अब शाम ढल रही है. मम्मी, आप ने मुझे जगाया क्यों नहीं.’’

‘‘तुम्हारे आराम में विघ्न न पड़े, इसलिए मैं ने नहीं जगाया.’’ उषा बोली, ‘‘तुम उठ कर हाथमुंह धो लो, तब तक कविता चाय बना कर ले आएगी.’’

मामा का खूनी सिंदूर : परिवार ही बना निशाना – भाग 2

पारिवारिक और सामाजिक वर्जनाओं की वजह से आमतौर पर देखा गया है कि लड़कियां अपने रिश्ते के करीबी युवक से ज्यादा घुल जाती हैं. वह उन का मामा, जीजा, चचेरा या मौसेरा या ममेरा भाई कोई भी हो सकता है. वे उसे ही अपना दोस्त बना लेती हैं. संगीता के सब से नजदीक मामा प्रवींद्र ही था, अत: उन दोनों में भी ऐसा ही रिश्ता था.

प्रवींद्र की नजर थी खूबसूरत भांजी पर

शुरुआती दिनों में जब प्रवींद्र ने बहन ऊषा के घर आना शुरू किया था, तब उस के मन में संगीता के लिए कोई गलत भावना नहीं थी. रिश्ते में वह उस की भांजी थी. किंतु भावनाओं में तूफान आते और रिश्ता बदलते कितनी देर लगती है. संगीता से मेलमिलाप की वजह से प्रवींद्र की भावनाओं में भी तूफान आ गया और मामाभांजी के पवित्र रिश्ते पर कालिख लगनी शुरू हो गई. हुआ यह कि एक दिन प्रवींद्र ऊषा के घर पहुंचा तो वह परिवार सहित गांव में एक परिचित के घर समारोह में जाने को तैयार थी. संगीता भी खूब बनीसंवरी थी. उस ने गुलाबी सलवारसूट पहना था और खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे. उस समय संगीता बेहद खूबसूरत दिख रही थी.

संगीता का वह रूप प्रवींद्र की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गया. प्रवींद्र के मन में कामना की ऐसी आंधी चली कि उस की धूल ने सारे रिश्तेनाते को ढक लिया. वह भूल गया कि संगीता उस की भांजी है.प्रवींद्र का मन चाह रहा था कि संगीता उस के सामने रहे और वह उसे अपलक देखता रहे, लेकिन ऐसा कहां संभव था. वे लोग तो समारोह में जाने को तैयार थे.

प्रवींद्र को घर की तालाकुंजी दे कर वे सब चले गए. प्रवींद्र की नजरें तब तक संगीता का पीछा करती रहीं जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.उन के जाने के बाद प्रवींद्र खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस की आंखों में संगीता का अक्स बसा था और जेहन में उसी के खयाल उथलपुथल मचा रहे थे. कई बार प्रवींद्र की अंतरात्मा ने उसे झिंझोड़ा, ‘संगीता तुम्हारी भांजी है, उस के बारे में गंदे विचार तक मन में लाना पाप है. संगीता के बारे में गलत सोचना बंद कर दो.’

प्रवींद्र ने हर बार यह सोच कर अंतरात्मा की आवाज को दबा दिया कि हर लड़की किसी न किसी की भांजी होती है. अगर लोग मामाभांजी का ही रिश्ता निभाते रहे तो चल गई दुनिया. कहते हैं कि बुरे विचार अच्छे विचारों को जल्दी ही दबा देते हैं. प्रवींद्र की अच्छाई पर बुराई हावी हो गई.इधर ऊषा और रमेश रात को काफी देर से लौटे. सुबह वे जल्दी उठ कर अपनेअपने काम से लग गए. रमेशचंद्र और ऊषा खेत पर चले गए थे, जबकि संगीता घरेलू कामों में व्यस्त थी.

प्रवींद्र की आंखें खुलीं तो उस की नजर आंगन में काम कर रही संगीता पर पड़ी. वह मुंह से तो कुछ नहीं बोला लेकिन टकटकी लगाए संगीता को देखने लगा.
प्रवींद्र को इस तरह अपनी ओर ताकते देख संगीता ने टोका, ‘‘क्या बात है मामा, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे. बस टकटकी लगा कर मुझे ही देखे जा रहे हो.’’

‘‘इसलिए देख रहा हूं कि तुम बहुत खूबसूरत हो. जी चाहता है कि तुम सामने खड़ी रहो और मैं तुम्हें देखता रहूं. यह कमबख्त नजरें तुम्हारे चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही हैं.’’ वह बोला.

संगीता मामा के मन का मैल न समझ कर उन्मुक्त हंसी हंसने लगी. हंसी पर विराम लगा तो बोली, ‘‘यह कौन सी नई बात है. गांव में भी सब कहते हैं कि संगीता तुम खूबसूरत हो.’’फिर वह शरारत से उस की आंखों में देखने लगी, ‘‘कैसे मामा हो जिसे आज पता चला कि मैं खूबसूरत हूं.’’‘‘आज नहीं, मैं ने कल जाना कि तुम खूबसूरत हो.’’ प्रवींद्र के मन की बात उस की जुबान पर आ गई, ‘‘गुलाबी रंग का सलवारसूट तुम्हारे गोरे बदन पर बेहद फब रहा था.

ऊपर से तुम्हारा मेकअप तो मेरे दिल पर बिजली गिरा गया. किसी दुलहन से कम नहीं लग रही थी तुम…’’संगीता अपने सौंदर्य की तारीफ सुन कर गदगद हो गई, उस ने शरम से नजरें झुका लीं. साथ ही उस के मन में कांटा सा चुभा. वह सोचने लगी कि क्या मामा के दिल में खोट आ गया है, जो ऐसी बातें उस से कर रहे हैं. वह अभी ऐसा सोच ही रही थी कि तभी प्रवींद्र 2 कदम आगे बढ़ कर संगीता की कलाई पकड़ कर बोला, ‘‘संगीता, तुम वाकई बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

संगीता काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि उस के मामा प्रवींद्र के मन में उस के लिए बेपनाह प्यार है. सच तो यह था कि संगीता भी मन ही मन मामा प्रवींद्र को चाहती थी. यही कारण था कि जब प्रवींद्र ने अपनी मोहब्बत का इजहार किया तो संगीता ने फौरन इकरार करते हुए कह दिया, ‘‘हां, मैं भी तुम्हें दिल की गहराइयों से चाहती हूं.’’

मोहब्बत को मिली जुबान

खामोश मोहब्बत को जुबान मिली तो संगीता और प्रवींद्र की आशिकी के रंग निखरने लगे. प्रवींद्र का पहले से ही घर में आनाजाना था. रमेशचंद्र दोहरे भी उसे बेटे की तरह मानते थे, इसलिए संगीता से उस के मिलनेजुलने या एकांत में बातचीत करने में किसी प्रकार की बाधा नहीं थी. प्रवींद्र जब अपने गांव कतरतन्ना में होता तब वे दोनों मोबाइल फोन पर देर तक बातें करते थे.

संगीता उसे अपना हालेदिल सुनाया करती.बहन के घर जाने में भाई को बहाने की जरूरत नहीं होती. संगीता के बुलाने पर वह उस के यहां आ जाता. सब उसे देख कर खुश होते कि देखो भाईबहन में कितना प्यार है.लेकिन यह तो केवल संगीता जानती थी कि प्रवींद्र किसलिए आता है. ज्योंज्यों दिन गुजरते गए, संगीता और प्रवींद्र की मोहब्बत के तकाजे भी बढ़ते गए. उन की चाहत तनहाई और खुफिया मुलाकात की मांग करने लगी. यह तकाजा पूरा करने के लिए उन दोनों ने किसी तरह की कोताही नहीं की.

रात को जब सब लोग सो जाते, तब संगीता और प्रवींद्र चुपके से उठ कर छत पर चले जाते और वहां एकदूजे की बांहों में खो जाते. तनहाई और रात के सन्नाटे में 2 जिस्म मिले तो जज्बात भड़कते ही हैं. संगीता और प्रवींद्र भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा सके. पे्रमोन्माद में वे एकदूसरे को समर्पित हो गए.समय बीतता रहा. किसी को अब तक नहीं खबर नहीं थी कि संगीता और प्रवींद्र एकदूसरे से प्यार करते हैं. मन से ही नहीं, दोनों तन से भी एक हो चुके हैं. प्रवींद्र और संगीता के इश्क का खेल 2 सालों तक निर्बाध रूप से चलता रहा. लेकिन एक रोज उन का भांडा फूट ही गया.

उस दिन शाम को प्रवींद्र आया तो पता चला रमेश जीजा रिश्तेदारी में उन्नाव गए हैं. वह 3 दिन बाद घर लौटेंगे. ऊषा आंगन में अकेली बैठी थी और संगीता रसोई में खाना बना रही थी. ज्यों ही प्रवींद्र ऊषा के पास आ कर बैठा, उस ने वहीं से रसोई की ओर मुंह कर आवाज दी, ‘‘बेटी संगीता, मामा आए हैं, इन के लिए भी खाना बना लेना.प्रवींद्र चारपाई पर पसर गया और हंस कर बोला, ‘‘हां दीदी, मैं खाना भी खाऊंगा और रुकूंगा भी. जीजा बाहर गए हैं न इसलिए घर और तुम दोनों की देखभाल करना मेरा फर्ज है. वैसे भी दीदी तुम मुझे फोन पर बता देती तो मैं दौड़ा चला आता.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ ऊषा भी हंसने लगी, ‘‘मैं खुद तुझ से यहीं रुकने को कहने वाली थी. लेकिन तूने मेरे मुंह की बात छीन ली.’’ संगीता को पता चला कि मामा आए हैं तो उस का शरीर रोमांच से भर गया. वह जान गई कि आज की रात रंगीन होने वाली है. उस ने खाना बना कर तैयार किया फिर मां और मामा को खिलाया. उस के बाद खुद खाना खा कर घर की साफसफाई की.प्रवींद्र छत पर सोने चला गया और संगीता मां के साथ नीचे कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद ऊषा तो सो गई लेकिन संगीता की आंखों में नींद नहीं थी. ऊषा जब गहरी नींद सो गई तो संगीता दबेपांव उठी और प्रवींद्र के पास छत पर जा पहुंची. प्रवींद्र भी उस के आने का ही इंतजार कर रहा था. संगीता के पहुंचते ही उस ने उसे बांहों में भर लिया.

इधर आधी रात को ऊषा की आंखें खुलीं तो उस ने संगीता को चारपाई से नदारद पाया. वह उसे खोजते हुए आंगन में आई तो उसे छत पर खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी. वह जीने की ओर बढ़ी, तभी संगीता जीने से नीचे उतरी. शायद उसे मां के जागने का आभास हो गया था. कमरे में पहुंचते ही ऊषा ने पूछा, ‘‘संगीता, तू आधी रात को छत पर क्यों गई थी?’’‘‘मामा उल्टियां कर रहे थे. उन्हें पानी देने गई थी.’’ संगीता ने बहाना बना दिया.ऊषा ने संगीता की बात पर विश्वास तो कर लिया किंतु उस के मन में शक का बीज अंकुरित होने लगा. अब वह दोनों पर कड़ी नजर रखने लगीं. संगीता और प्रवींद्र कड़ी निगरानी के कारण सतर्कता बरतने लगे थे, लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रात ऊषा ने संगीता और प्रवींद्र को रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रात ऊषा ने संगीता की जम कर फटकार लगाई और उस की पिटाई भी कर दी. उस ने छोटे भाई प्रवींद्र को भी भलाबुरा कहा और रिश्ते को कलंकित करने का दोषी ठहराया.