
12 मई, 2017 की बात है. उस दिन पंजाब के शहर जालंधर का रहने वाला रिंकू सुबह से ही काफी परेशान था. क्योंकि तलाक के मामले में उस की पेशी थी. वह उस रात भी सो नहीं सका था. उस के दोनों बच्चे स्कूल चले गए तो कमरे में बैठ कर वह कुछ सोचने लगा. 10 बजे वह बच्चों को खाना पहुंचाने स्कूल गया, जहां से 11 बजे लौटा.
इस के बाद वह कमरे में बैठ कर कुछ लिखने लगा. दोपहर को 11 साल की बेटी पलक घर लौटी तो उस ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने का दृश्य देख कर वह चीख पड़ी. उस के पिता बलविंदर उर्फ रिंकू कपड़े के फंदे में पंखे से लटके थे.
पलक की चीख और रोने की आवाज सुन कर घर वालों के अलावा पड़ोसी भी आ गए. रिंकू को उस हालत में देख कर उस के पिता प्रेमनाथ भी फफकफफक कर रो पड़े. यह पुलिस केस था, इसलिए लाश को नीचे नहीं उतारा. किसी ने फोन कर के इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.
सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जीवन सिंह एएसआई कुलविंदर सिंह, हवलदार जगजीत सिंह, सुरजीत सिंह, सिपाही जसप्रीत सिंघौर, महिला सिपाही वीना रानी के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने रिंकू की लाश उतार कर कब्जे में ले ली.
चूंकि आमतौर पर आत्महत्या के मामलों में आसपास सुसाइड नोट मिल जाता है, इसलिए पुलिस ने कमरे की तलाशी शुरू कर दी. इस तलाशी में बैड के गद्दे के नीचे एक सुसाइड नोट मिल गया. जिस में रिंकू ने अपनी मौत का जिम्मेदार अपनी पत्नी ज्योति और उस के प्रेमी रजनीश को ठहराया था. सुसाइड नोट में साफसाफ लिखा था कि इन्हीं दोनों के डर की वजह से वह मौत को गले लगा रहा है.
पुलिस ने मृतक के घर वालों से जरूरी पूछताछ कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया और मृतक के पिता प्रेमनाथ के बयान और सुसाइड नोट के आधार पर ज्योति और उस के प्रेमी रजनीश मल्होत्रा के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज कर लिया.
पुलिस घटनास्थल पर काररवाई कर ही रही थी कि रोतीबिलखती ज्योति वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी के आदेश पर महिला सिपाही वीना रानी ने ज्योति को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपने प्रेमप्रसंग से ले कर पति के आत्महत्या करने तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी-
ज्योति जालंधर शहर की बस्ती दनिशां के कटरा मोहल्ले के रहने वाले बलविंदर उर्फ रिंकू की पत्नी थी. रिंकू 4 भाईबहनों में सब से बड़ा था. उस के पिता प्रेमनाथ का टैंट हाउस था. वह पिता के साथ उसी पर बैठता था. करीब 14 साल पहले सन 2003 में ज्योति के साथ उस की शादी हुई थी. ज्योति जम्मू की रहने वाली थी.
दोनों की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. ज्योति 2 बच्चों की मां बन गई थी. वह काफी बोल्ड स्वभाव की थी. शादी से पहले उस के कहीं आनेजाने पर रोक नहीं थी. पर शादी के बाद उस की स्थिति खूंटे से बंधी गाय की तरह हो गई थी. वह घर से निकल कर बाहर घूमना चाहती थी. वह चाहती थी कि उस के ऊपर किसी तरह की कोई पाबंदी न हो. जहां उस का मन करे, वह आएजाए. रिंकू से वह अपने मन की यह बात कहती तो वह खुद के व्यस्त होने की बात कह देता.
एक बार ज्योति पति के साथ जालंधर के शेखां बाजार स्थित आर्टिफिशियल ज्वैलरी के शोरूम पर गई. यह शोरूम जालंधर के टांडा रोड के रहने वाले रजनीश मल्होत्रा का था. वह काफी बड़ा शोरूम था, जहां तमाम लड़कियां काम करती थीं. ज्योति बेहद खूबसूरत थी.
रजनीश मल्होत्रा दिलफेंक किस्म का इंसान था. हालांकि वह बालबच्चेदार था, इस के बावजूद वह सुंदर महिलाओं की तरफ आकर्षित हो जाता था. ज्योति भी उस के दिल की घंटी बजा गई. इसलिए वह उस के बारे में जानने के लिए बेचैन हो उठा. बहरहाल, अपने यारदोस्तों से उस ने पता कर लिया कि जो महिला उस के दिल की घंटी बजा कर बेचैन कर गई है, उस का नाम ज्योति है और वह कटरा मोहल्ले के रहने वाले रिंकू की बीवी है. इस के बाद रजनीश ने कटरा मोहल्ले के ही रहने वाले अपने एक दोस्त से ज्योति और उस के परिवार के बारे में पता किया और ज्योति से नजदीकी संबंध बनाने के उपाय खोजने लगा.
रजनीश ने सोचा कि पहले ज्योति के पति से दोस्ती की जाए, पर पता चला कि रिंकू तो दिन भर पिता के साथ टैंट हाउस पर बैठा रहता है. वह किसी के साथ उठताबैठता नहीं है.
दोस्त ने बताया कि ज्योति को घर में कैद रहना पसंद नहीं है. वह कहीं नौकरी करना चाहती है. यह सुन कर रजनीश खुश हो गया. उस ने दोस्त से कहा कि वह किसी से ज्योति के पास तक यह खबर पहुंचवा दे कि उस की ज्वैलरी शौप में एक काउंटर गर्ल की जरूरत है. दोस्त ने यह बात ज्योति तक पहुंचा दी.
ज्योति अपने घर वालों की इच्छा के खिलाफ नौकरी के लिए रजनीश के शोरूम पर पहुंच गई. रजनीश ने औपचारिक बातचीत के बाद उसे नौकरी पर रख लिया. इस के बाद दोनों में बातें होने लगीं. जल्दी ही उन में दोस्ती भी हो गई.
रजनीश ने अपनी लच्छेदार बातों से ज्योति को जल्द ही अपने जाल में फांस लिया. कुछ ही दिनों में ज्योति वहां केवल मुलाजिम ही नहीं रही, बल्कि रजनीश के दिल पर राज करने लगी. केवल रजनीश ही उसे नहीं चाहता था, बल्कि वह भी रजनीश की दीवानी हो गई थी. ज्योति और रजनीश के बीच अवैधसंबंध बन गए थे.
ज्योति के अवैधसंबंधों की बात गलीमोहल्ले में फैली तो प्रेमनाथ की बदनामी होने लगी. वह सीधेसादे शरीफ इंसान थे. चार लोगों के बीच उन का उठनाबैठना था. लोग उन का बड़ा सम्मान करते थे. बहू के बारे में ऐसी बातें सुन कर उन का सिर शर्म से झुक गया.
और यही बात जब मोहल्ले से होते हुए रिंकू के कानों तक पहुंची तो घर में क्लेश होने लगा. रिंकू ने ज्योति को प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘तुम शादीशुदा और 2 बच्चों की मां हो. हमारे बच्चे अब बड़े हो रहे हैं. घर की बड़ी बहू होने के नाते परिवार के प्रति तुम्हारी कुछ जिम्मेदारियां हैं, जिन से तुम मुंह नहीं मोड़ सकती. ऐसी बातें तुम्हें शोभा नहीं देतीं.’’
‘‘दम घुटता है मेरा यहां, मैं खुले आसमान और खुली हवा में जीना चाहती हूं. अपनी खुशी के लिए अगर मैं किसी से हंसबोल लेती हूं तो बताओ किसी का क्या बिगड़ जाता है.
नहीं बनना है मुझे किसी के घर की छोटीबड़ी बहू. मत पढ़ाओ मुझे खोखली मर्यादाओं और खोखले संस्कारों का पाठ. मैं किसी बात की परवाह नहीं करती. मैं जैसी हूं, वैसी ही बनी रहना चाहती हूं. मुझे जंजीरों में जकड़ने की कोशिश मत करो.’’ ज्योति ने मन की बात कह दी.
पत्नी की बातें सुन कर रिंकू का मुंह खुला का खुला रह गया. वह जानने की कोशिश कर रहा था कि बड़ों का सम्मान करने वाली ज्योति एकदम से बदल कैसे गई. रिंकू को मुंह तोड़ जवाब दे कर ज्योति की जैसे हिम्मत ही बढ़ गई थी. अब वह अपनी मरजी से घर के बाहर जाती, मरजी से लौटती और कभीकभी तो लौटती ही नहीं थी.
जब ज्योति बेकाबू हो गई तो रिंकू ने इस बात की शिकायत उस के मायके वालों से कर दी. ज्योति के पिता कृष्णलाल ने भी उसे समझाया, पर उस पर तो इश्क का जुनून सवार था, इसलिए उस पर पिता की भी बात का कोई असर नहीं हुआ. समय के साथ मामला इतना बढ़ गया कि ज्योति की शह पर रिंकू के घर में रजनीश का पूरा दखल हो गया.
जब भी रिंकू पत्नी को समझाने की कोशिश करता, रजनीश उस के घर आ जाता और रिंकू को बुराभला कहता. कई बार तो उस ने ज्योति के सामने रिंकू की पिटाई भी की. रिंकू बच्चों के भविष्य और परिवार की इज्जत की खातिर अपना मुंह बंद किए रहा. पतिपत्नी के झगड़े के बीच अब अकसर बातबात में ज्योति तलाक की मांग करने लगी.
लगभग 6 महीने पहले रिंकू की बेटी पलक का जन्मदिन था. ज्योति ने घर पर छोटी सी पार्टी रखी थी, जिस में रजनीश ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. रिंकू के पिता इस पार्टी में नहीं आए थे. पिता होने के नाते रिंकू को बच्चों के साथ बैठना पड़ा.
पार्टी के दौरान ही रजनीश के सामने ज्योति ने तलाक की बात छेड़ते हुए कहा कि उसे हर हालत में तलाक चाहिए. उसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि रजनीश ने बच्चों के सामने ही रिंकू के गालों पर 3-4 थप्पड़ जड़ दिए. इस के 2 दिनों बाद ही ज्योति ने पति का घर छोड़ दिया और वह मखदूमपुर के चरनजीतपुरा में अलग कमरा ले कर रहने लगी.
दिखावे के लिए उस ने यह कमरा अपने आप लिया था, पर वास्तविकता यह थी कि यह कमरा उसे रजनीश ने दिलवाया था और वह भी उसी के साथ रहता था. मार्च, 2017 मे रिंकू ने थाना डिवीजन-5 में ज्योति के घर छोड़ने और रजनीश द्वारा मारपीट करने की शिकायत दर्ज करवा दी थी.
इस के पहले भी समयसमय पर रिंकू ने थाने जा कर अपने घर में बढ़ रहे रजनीश के दबदबे की शिकायत की थी, पर रजनीश अपने प्रभाव से उस की शिकायत की सुनवाई नहीं होने देता था. स्थानीय भाजपा नेता होने के कारण रजनीश का क्षेत्र में काफी दबदबा था. पर इस बार रिंकू ने पुलिस के बड़े अधिकारियों के सामने गुहार लगाई थी, इसलिए उसे थाने में पेश होना पड़ा.
पुलिस पर दबाव बनाने के लिए रजनीश पार्टी कार्यकर्ताओं के पूरे काफिले के साथ थाने पहुंचा था. उस ने पुलिस के सामने लिखित में माफी मांगते हुए रिंकू से कहा था कि आज के बाद वह उस के घर में कोई दखल नहीं देगा. यह 16 मार्च, 2017 की बात है.
इस के 2 दिनों बाद ही रिंकू को ज्योति का तलाक के लिए भेजा हुआ अदालत का नोटिस मिला था. उसी शाम ज्योति ने रिंकू के घर पहुंच कर उसे धमकी दी थी कि बात बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है, वह उसे तलाक दे कर अपना पीछा छुड़ा ले वरना अंजाम बड़ा भयानक होगा.
रिंकू अदालत की नोटिस से उतना नहीं डरा था, जितना ज्योति की धमकी से डर गया था. वह अच्छी तरह से जानता था कि ज्योति की इस धमकी के पीछे रजनीश का हाथ है. वह रजनीश की दबंगई से अच्छी तरह परिचित था. इस के बाद रिंकू डराडरा रहने लगा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस मामले में क्या करे.
पत्नी की वजह से रिंकू की समाज में काफी बदनामी हो चुकी थी. पत्नी की वजह से उस का परिवार समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहा था. इस के अलावा रजनीश ने पिटाई कर के उसे कई बार बेइज्जत किया था. इस से वह काफी हताश हो गया था. इसलिए उस ने 12 मई, 2017 को पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली. पूछताछ के बाद ज्योति को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
रजनीश कुछ दिनों तक अपने बचाव के लिए सिफारिशें करवाता रहा. उस ने भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं से थाने और रिंकू के पिता के पास फोन करवा कर मामले को रफादफा करवाने की कोशिश की, पर उस की दाल नहीं गली, अंत में उस ने थाने में आत्मसमर्पण कर दिया. पूछताछ के बाद उसे भी कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
मौकाएवारदात पर पुलिस को जो सूचना मिली थी, वह उस ने गोपनीय रखी ताकि घटना के असल कारणों का पता लगा कर मुलजिमों को आसानी से सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सके. थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह ने विजयपाल को कानोंकान भनक नहीं लगने दी कि वे घटना की तह तक पहुंच गए हैं.
अगले दिन पुलिस को विवेक चौहान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह हैड इंजरी बताया गया था. हत्यारों ने किसी नुकीली और वजनदार चीज से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा था. यही नहीं हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए विवेक की लाश को फ्लाईओवर के पास फेंक दिया था, ताकि पुलिस इसे दुर्घटना मान ले और हत्यारे साफ बच निकलें.
विवेक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और किरन की हत्या को ले कर सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम काफी सक्रिय थे. दोहरे हत्याकांड की निगरानी सीओ गौतम ही कर रहे थे. पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए किरन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकवाई.
काल डिटेल्स से पता चला कि उस ने सब से ज्यादा फोन एक ही नंबर पर किए थे. उसी नंबर पर 9 मार्च, 2018 की रात 10 बजे के करीब भी किरन की बात हुई थी.
वह नंबर विवेक का निकला. जांच में यह भी पता चला कि विवेक विजयपाल के साढ़ू का बेटा था. विवेक और किरन मौसेरे भाईबहन थे. फिर भी उन के बीच सालों से प्रेमसंबंध था.
9 मार्च की रात विवेक चौहान को मूड़ाघाट गांव में देखा गया था. वह अपने मौसा के घर आया था. उस के बाद से वह गायब था. अगले दिन उस की लाश बरामद हुई थी. पुलिस के लिए यह सूचना पर्याप्त थी. इस से पुलिस का यह शक यकीन में तब्दील हो गया कि इस घटना में विजयपाल चौहान और उस के परिवार का ही हाथ है.
विजयेंद्र सिंह ने किरन की हत्या के संबंध में पूछताछ के लिए विजयपाल, उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और छोटे भाई जनार्दन को थाने बुलवा लिया.
सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम थाने में पहले से मौजूद थे. थानाप्रभारी ने विजयपाल से सवाल किया, ‘‘क्या बता सकते हो कि कल फ्लाईओवर के पास जो लाश बरामद हुई थी, किस की थी?’’
‘‘साहब, मुझे क्या पता वो किस की लाश थी?’’ विजयपाल चौहान ने गंभीरता से जवाब दिया.
‘‘सच कहते हो तुम, भला तुम्हें कैसे पता होगा कि वह लाश किस की थी. तुम्हें तो उस के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है.’’
‘‘हां साहब, सचमुच मुझे उस लाश के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही मैं उसे पहचानता हूं.’’ विजयपाल ने उत्तर दिया.
‘‘ठीक है, कोई बात नहीं चलो मैं ही तुम्हारी कुछ मदद कर देता हूं.’’ विजयेंद्र सिंह ने व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘‘किसी विवेक चौहान उर्फ रामू को जानते हो?’’ विजयपाल से सवाल कर के उन्होंने उस के चेहरे पर अपनी तीखीं नजरें गड़ा दीं. उन की सवालिया नजरों को देख कर विजयपाल एकदम से सकपका गया.
‘‘साहब, आप तो मुझे ऐसे देख रहे हैं, जैसे मैं ने ही उस की हत्या की है.’’ विजयपाल बोला.
‘‘हम ने कब कहा कि तुम ने उस की हत्या नहीं की है.’’ इस बार सीओ गौतम बोले, ‘‘भलाई इसी में है कि तुम अपना जुर्म कबूल कर लो और सचसच बता दो कि तुम ने विवेक की हत्या क्यों की? वादा करता हूं, मैं सरकार से सिफारिश करूंगा कि तुम्हें कम से कम सजा हो.’’
‘‘हां, साहब. मैं ने ही रामू की हत्या की है.’’ विजयपाल सीओ (सदर) के पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘साहब मुझे माफ कर दीजिए, मुझे बचा लीजिए, मैं ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन हालात से मजबूर हो कर मुझे यह कदम उठाना पड़ा. रामू ने मेरी इज्जत की बखिया उधेड़ कर रख दी थी. लाख समझाने के बावजूद भी वह मेरी बेटी का पीछा नहीं छोड़ रहा था. उस दिन तो उस ने हद ही कर दी और…’’ भावावेश में आ कर विजयपाल चौहान पूरी कहानी सुनाता चला गया.
विजयपाल चौहान द्वारा अपना जुर्म कबूल कर लेने के बाद उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और भाई जनार्दन ने भी अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों ने स्वीकार किया कि विवेक और किरन की हत्या में उन्होंने विजयपाल का साथ दिया था. 36 घंटे के भीतर जिले को दहला देने वाली 2-2 सनसनीखेज हत्याओं का पर्दाफाश हो चुका था.
विवेक किरन हत्याकांड के परदाफाश पर पुलिस कप्तान नरेंद्र कुमार सिंह ने पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत के सामने पेश कर के उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के आधार पर कहानी कुछ इस तरह सामने आई—
विजयपाल के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पतिपत्नी और 3 बच्चे. 3 बच्चों में 2 बेटे थे गोलू उर्फ शंभू और गुलाब तथा एक बेटी थी किरन, जिस की उम्र 20 वर्ष थी. विजयपाल प्राइवेट नौकरी करता था. तीनों संतानों में किरन दूसरे नंबर की औलाद थी. किरन चंचल और हंसमुख स्वभाव की युवती थी. वह बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. गांव से कालेज वह साइकिल से जाती थी.
किरन की मौसी परिवार सहित गोरखपुर के बड़हलगंज के चिल्लुपार विधानसभा के बरगदवा में रहती थी. उस का एक ही एकलौता बेटा रामू उर्फ विवेक था. विवेक 21-22 साल का गबरू जवान था. साढ़े 5 फीट लंबा और स्मार्ट.
विवेक की अपनी कोई बहन नहीं थी. रक्षाबंधन के अवसर पर उसे बहन की कमी काफी खलती थी. विवेक की मां से बेटे की मायूसी देखी नहीं जाती थी. इसलिए विवेक की मां सुमन अपनी बड़ी बहन की बेटी किरन को रक्षाबंधन पर अपने यहां बुला लेती थी. किरन विवेक की कलाई पर राखी बांध कर अपने घर लौट आती थी. ऐसा हर साल होता था.
किरन और विवेक करीबकरीब हमउम्र थे. भाईबहन के रिश्ते के नाते दोनों के बीच काफी नजदीकियां थीं, विवेक जब भी किरन को देखता था, ख्ुशी के मारे उस का दिल बागबाग हो उठता था. किरन भी विवेक को देख कर खुश हो जाती थी.
गतवर्ष रक्षाबंधन के मौके पर विवेक ने मौसेरी बहन किरन को तोहफे में एक मोबाइल फोन दिया था. जब भी विवेक का मन किरन से बात करने का होता था, वह फोन कर लेता था और जब देखने की इच्छा होती तो बस्ती जा कर किरन से मिल आता था.
अजय ने बाथरूम में जा कर हाथमुंह धोया और तौलिए से पोंछने के बाद कुरसी पर आ कर बैठ गया. सामने किचन में कविता खड़ी चाय बना रही थी.
अब उस के शरीर पर लाल जोड़े की जगह सफेद सलवारसूट था. कलाई में चूडि़यां भी नहीं थीं. उस ने चेहरा पानी से जरूर धो लिया था, पर मेकअप की मौजूदगी अब भी नुमायां हो रही थी.
आंखें मिलते ही कविता मुसकराई, ‘‘जीजाजी, खूब मजे से सोए.’’
अजय ने मन ही मन में जवाब दिया, ‘सपने में बिजली गिरा कर मासूम बन रही हो.’ लेकिन जुबान से बोला, ‘‘मजा ले कर सो रहा था या कजा से गुजर रहा था, बाद में बताऊंगा. पहले तुम बताओ, कब आईं?’’
‘‘थोड़ी ही देर में आ गई थी. घर आ कर देखा तो आप सो गए थे. इसलिए मैं भी घर के कामों मे लग गई थी.’’ कविता ने मुसकरा कर कहा और उस के सामने टेबल पर चाय का कप रख दिया. फिर उसी के पास बैठ गई.
अजय को उस समय वहां अपनी सास की मौजूदगी खल रही थी. कविता अकेली होती तो वह उसे रिझाने का प्रयास करता. अजय की मजबूरी यह थी कि वह न सास को वहां से जाने को कह सकता था और न कविता का हाथ पकड़ कर अकेले में बात करने के लिए ले जा सकता था.
रात को खाना खाने के बाद अजय को कविता के कमरे में सोने के लिए पहुंचा दिया गया. और कविता सविता के कमरे में उस के साथ सो गई.
अगले दिन सुबह होने पर अजय के सासससुर खेतों पर चले गए. सविता स्कूल चली गई. इस से अजय को कविता से बात करने का मौका मिल गया. उस समय कविता नहाने जा रही थी. अजय ने उस से पूछा, ‘‘कविता, नहाने के बाद तुम कौन से कपड़े पहनोगी?’’
कविता ने सहजता से उत्तर दिया, ‘‘मुझे कहीं जाना तो है नहीं, इसलिए घर में जो पहनती हूं, वही पहन लूंगी.’’
‘‘घर में पहनने वाले नहीं,’’ अजय ने मन की परतें उस के सामने खोलनी शुरू कर दीं, ‘‘तुम वही लाल जोड़ा पहनो, जो तुम ने कल पहना था.’’
‘‘वह रोज पहनने के लिए थोड़े ही है,’’ कविता मुसकरा कर बोली,‘‘ वह लाल जोड़ा विशेष अवसरों पर पहनने के लिए बनवाया है. कहीं विशेष प्रोग्राम होता है, तभी पहनती हूं.’’
अजय कविता के सामने आ कर खड़ा हो गया और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘तुम मुझे चाहती हो न?’’
कविता जीजा के मन का मैल नहीं समझ सकी. उस ने सहजता से जवाब दिया, ‘‘हां, चाहती हूं.’’
‘‘अगर तुम मुझे चाहती होगी तो वही लाल जोड़ा पहनोगी.’’
‘‘जीजाजी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि तुम लाल जोड़े को पहनने की जिद क्यों कर रहे हो?’’ वह बोली.
‘‘इसलिए कि उसे पहन कर तुम दुलहन जैसी लगती हो.’’
‘‘इस का मतलब यह हुआ कि आप लोग मेरा विवाह कर के मुझे इस घर से निकालने पर तुले हैं.’’ कविता हंसी, ‘‘अब तो मैं उसे हरगिज नहीं पहनने वाली.’’ कह कर कविता तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गई.
लड़की ‘न’ कहे तो उस की ‘हां’ समझना चाहिए, सोच कर अजय के होंठों पर मुसकान फैल गई. अजय पहले ही तैयार हो चुका था. इसलिए वह बैठ कर अखबार पढ़ने लगा.
कुछ देर बाद जब कविता नहा कर तैयार हुई तो मन ही मन खयाली पुलाव पका रहे अजय ने देखा तो जैसे उस के अरमान बिखर कर रह गए. कविता ने लाल जोड़ा नहीं पहना था. उस ने मेहंदी कलर का सलवारसूट पहन रखा था.
उस सलवार सूट में भी उस का सौंदर्य कयामत ढा रहा था. भीगे बालों से टपकती बूंदें उस के चेहरे पर आ कर ठहर गई थी, जिस से भीगाभीगा उस का सौंदर्य दिल को लुभाने वाला था. अजय बेकाबू हो उठा और उस ने कविता को बांहों में भर लिया और उस के गालों को चूम लिया.
कविता स्तब्ध रह गई. जीजा ने यह क्या गजब कर डाला. किसी तरह उस ने स्वयं को अजय के चंगुल से आजाद किया और कमरे से निकल भागी. तभी सास भी घर लौट आई.
जबकि उन्होंने दीदी से प्रेम विवाह किया है.
दोपहर को अजय को भोजन कराने के बाद उषा किसी काम से बाजार चली गई. अजय कविता के कमरे में गया और उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘कविता जब से तुम को लाल जोड़े में देखा है, दिल वश में नहीं है. कुछ करो कविता, वरना मैं तुम्हारे वियोग में तड़पतड़प कर मर जाऊंगा.’’
‘‘अब मैं क्या कर सकती हूं, आप की शादी तो सरिता दीदी से हो गई और वह भी आप ने लव मैरिज की है.’’
‘‘तुम पहले मिल जाती तो सरिता से बिलकुल शादी नहीं करता. लेकिन अब भी देर नहीं हुई है शादी टूटने में कितनी देर लगती है. तुम हां बोलो तो मैं सरिता को तलाक दे कर तुम से विवाह करने का जतन करूं.’’ अजय बेबाकी से बोला.
‘‘धत्त,’’ कविता हंसते हुए बैड से उठ खड़ी हुई, ‘‘जीजा, तुम पागल हो गए हो.’’
उस के बाद उस ने हाथ छुड़ाया और कमरे से जाने लगी तो अजय बेसब्र हो उठा और उस का हाथ पकड़ कर खींच कर बैड पर गिरा लिया. इस के बाद वह उसे पागलों की तरह चूमने लगा.
कविता के कुंवारे बदन को परपुरुष का कामुक स्पर्श मिला तो वह भी बहक गई. उस के बाद उन के बीच अनैतिक रिश्ता कायम हो गया. कविता को अपने जीजा के प्यार में गजब का न भूलने वाला आनंद मिला. इस के बाद जब तक अजय रहा, वह कविता के साथ मजे लेता रहा.
संबंधों का यह सिलसिला चलता रहा. दूसरी ओर सरिता ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम तनु रखा गया. लेकिन अजय तो कविता के प्यार में पागल था. अब वह ससुराल के अधिक चक्कर लगाने लगा.
इज्जत के नाम पर दबा दी बात
अपराधबोध के कारण प्रवींद्र ने सिर झुका लिया. फिर जब ऊषा का गुस्सा ठंडा पड़ गया तो प्रवींद्र ने बहन के पैर पकड़ लिए, ‘‘दीदी, जवानी के जोश में हम और संगीता बहक गए थे. इस बार माफ कर दो. आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.’’चूंकि बेटी का मामला था. ज्यादा शोर मचाने से उसी की बदनामी होती, इसलिए ऊषा ने हिदायत दे कर प्रवींद्र को माफ कर दिया. प्रवींद्र अपने घर चला गया. इस के बाद करीब 3 महीने तक प्रवींद्र बहन के घर नहीं आया. हां, इतना जरूर था कि संगीता और प्रवींद्र जबतब मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे और अपने दिल की लगी बुझा लेते थे.
3 माह बाद जब प्रवींद्र को संगीता की ज्यादा याद सताने लगी तो वह एक रोज बहन के घर आ पहुंचा. ऊषा ने प्रवींद्र के आने पर ऐतराज तो नहीं जताया, लेकिन संगीता से दूर रहने की हिदायत दी. प्रवींद्र अब ऊषा के सामने ही संगीता से बात करता तथा रात को घर के अंदर के बजाए घर के बाहर सोता. इस तरह प्रवींद्र का आनाजाना फिर से शुरू हो गया.कहावत है कि आग और फूस एक साथ होंगे तो धुआं तो उठेगा ही और जलेंगे भी. संगीता और प्रवींद्र भी आगफूस की तरह थे. कुछ दिनों तक तो वे दोनों सुलगते रहे. आखिर में जब नहीं रहा गया तो वे पुन: सतर्कता के साथ मिलने लगे. ऊषा और रमेश दोनों ही संगीता व प्रवींद्र पर नजर रखते थे, परंतु वे उन की पकड़ में नहीं आए.
संगीता अब तक 20 साल की उम्र पार करचुकी थी और उस के कदम भी बहक गए थे. इसलिए ऊषा और रमेश चाहते थे कि जितना जल्दी हो, उस के हाथ पीले कर दिए जाएं. संगीता का विवाह करने के लिए दोनों ने उपयुक्त घरवर की तलाश भी शुरू कर दी.संगीता को शादी वाली बात पता चली तो वह प्रवींद्र की छाती से मुंह छिपा कर बिलख पड़ी, ‘‘कुछ करो मामा, किसी दूसरे से मेरी शादी हो गई तो मैं जहर खा कर मर जाऊंगी.’’प्रवींद्र की आंखें भी बरसने लगीं, ‘‘तुम्हारे बगैर मैं भी कहां जिंदा रह सकता हूं. तुम ने जहर खाया तो मैं भी जहर खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लूंगा.’’
‘‘हमारी आशिकी का जनाजा निकलने में देर नहीं है, इसलिए कह रही हूं कि जल्दी ही कुछ करो.’’
‘‘करना तो चाहता हूं पर समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं.’’ प्रवींद्र उलझन में पड़ा हुआ था, ‘‘हम दोनों की शादी हो नहीं सकती और हमेशा के लिए तुम्हें अपना बनाने का रास्ता सूझ नहीं रहा है.’’
‘‘प्रवींद्र, मुझे एक तरकीब सूझी है,’’ संगीता अचानक उल्लास से भर गई, ‘‘अगर तुम उस पर अमल करने को राजी हो जाओ तो हम हमेशा के लिए एक हो सकते हैं.’’‘कैसी तरकीब?’’ प्रवींद्र ने पूछा ‘‘चलो हम भाग चलें,’’ संगीता ने राह सुझाई, ‘‘दिल्ली, मुंबई जैसे शहर में हम अपने प्यार की अलग दुनिया बसाएंगे. वहां इतनी भीड़ रहती है कि कोई भी हमें ढूंढ नहीं सकेगा.’’प्रवींद्र कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘संगीता, तुम्हारी तरकीब तो सही है लेकिन मुझे डर सता रहा है.’’
‘‘कैसा डर?’’ संगीता ने अचकचा कर पूछा. ‘‘यही कि मैं तुम्हें ले कर भागा तो तुम्हारे घर वाले मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा देंगे. फिर पुलिस हमें पकड़ेगी. उस के बाद तुम अपने मातापिता के सुपुर्द कर दी जाओगी. और मैं जेल जाऊंगा. जब तक मैं जेल से बाहर आऊंगा, तब तक पता चलेगा कि घर वालों ने तुम्हें समझाबुझा कर किसी दूसरे से तुम्हारी शादी कर दी है. ऐसे मामलों में अकसर यही होता है.’’ प्रवींद्र बोला. प्रवींद्र की बात सुन कर संगीता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं. अपनी बात का असर पड़ता देख प्रवींद्र आगे बोला, ‘‘दूसरी बात यह है कि घर से भाग कर दूसरे शहर में बसना आसान नहीं. उस के लिए पैसे चाहिए. और पैसे हमारे पास हैं नहीं.’’
संगीता कुछ देर सोच में डूबी रही. उस के बाद बोली, ‘‘प्रवींद्र, मुझे मातापिता का विरोध और तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं होती. हम हर हाल में अपना घर बसाना चाहते हैं. इस के लिए तुम कुछ भी करो, मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’ ‘‘तो सुनो, एक तरकीब है मेरे पास. लेकिन उस के लिए तुम्हें अपना कलेजा मजबूत करना होगा. उस तरकीब से हमारी सारी समस्या हल हो जाएगी और धन भी मिल जाएगा.’’ प्रवींद्र ने कहा.
‘‘ऐसी कौन सी तरकीब है?’’ संगीता ने विस्मय से पूछा.‘‘मुझे अपने बहनबहनोई और तुम्हें अपने मातापिता को मौत की नींद सुलाना होगा. फिर घर से नकदी और गहने ले कर फरार हो जाएंगे. इस तरकीब से किसी को हम पर शक भी नहीं होगा. लोग समझेंगे कि बदमाशों ने घर में लूट की और विरोध पर दोनों की हत्या कर दी और लड़की का अपहरण कर लिया.’’
बन गई खून बहाने की योजना
संगीता, प्रवींद्र के प्यार में अंधी हो चुकी थी, इसलिए वह खूनी मांग सजाने को तैयार हो गई. उस ने प्रेमी मामा प्रवींद्र की तरकीब को मान लिया और अपनों का खून बहाने को राजी हो गई.इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने रमेशचंद्र और ऊषा के कत्ल की योजना बनाई. योजना के तहत प्रवींद्र अपने गांव चला गया ताकि बहन के पड़ोसियों को उस पर शक न हो. गांव में रहने के दौरान वह संगीता के संपर्क में बना रहा.
8 अक्तूबर, 2019 की सुबह प्रवींद्र ने संगीता से मोबाइल पर बात की और रात में घटना को अंजाम दे कर फरार होने की बात बताई. उस ने यह भी कहा कि वह रात 10 बजे उस के घर पहुंचेगा, दरवाजा खुला रखे. प्रेमी मामा से बात होने के बाद संगीता घर से भागने की तैयारी में जुट गई.
उस ने मां से चोरीछिपे बैग में अपने कपड़े तथा जरूरी सामान रख लिया. बैग को उस ने कमरे में रखे बड़े संदूक में छिपा दिया. अन्य दिनों के अपेक्षा उस शाम संगीता ने कुछ जल्दी खाना बना कर मांबाप को खिला दिया. खाना खा कर ऊषा और रमेश कमरे में पड़े तख्त पर जा कर लेट गए. कुछ देर बाद दोनों गहरी नींद सो गए.इधर रात 10 बजे प्रवींद्र संगीता के दरवाजे पर पहुंचा. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो संगीता ने दरवाजा खोल कर उसे घर के अंदर कर लिया. वह बेसब्री से उसी का इंतजार कर रही थी. संगीता प्रवींद्र को कमरे में ले गई. एकांत पा कर प्रवींद्र का मन मचल उठा और वह संगीता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा.
12 अप्रैल, 2017 को जैसेजैसे रात गहराती जा रही थी, जगमोहन की चिंता बढ़ती जा रही थी. कभी वह दरवाजे की ओर ताकते तो कभी टिकटिक करती घड़ी की ओर. इस की वजह यह थी कि उन का जवान बेटा शिवकुमार शाम 4 बजे घर से निकला था तो अभी तक लौट कर नहीं आया था. परेशानी की बात यह थी उस का मोबाइल फोन स्विच औफ आ रहा था. बेटे से संपर्क नहीं हो सका तो जगमोहन ने रिश्तेदारों तथा उस के यारदोस्तों से पूछा, लेकिन कोई भी उस के बारे में कुछ नहीं बता सका. उन्होंने अपनी रिश्तेदार ममता से भी उस के बारे में पूछा था, उस ने भी कुछ नहीं बताया था.
जगमोहन ने वह रात चहलकदमी करते गुजारी. सवेरा होते ही जब उन्होंने पड़ोसियों से बेटे के गायब होने की चर्चा की तो किसी ने बताया कि वेदप्रकाश के बाग में पेड़ से एक युवक की लाश लटक रही है. जगमोहन पड़ोसियों के साथ वहां पहुंचे तो पेड़ से लटक रही लाश देख कर चीख पड़े.
क्योंकि वह लाश उन के बेटे शिवकुमार की थी. थोड़ी ही देर में यह बात पूरे गांव में फैल गई. फिर तो पूरा गांव वेदप्रकाश के बाग में इकट्ठा हो गया. लोगों का यही कहना था कि शिवकुमार ने फांसी लगा कर आत्महत्या की है. लेकिन जगमोहन यह बात कतई मानने को तैयार नहीं था. किसी ने फोन द्वारा इस घटना की सूचना थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी.
थाना घाटमपुर के थानाप्रभारी अरविंद कुमार सिंह ने मिली सूचना की जानकारी अपने अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ बडेरा गांव पहुंच गए. उस समय तक बाग में काफी भीड़ लग चुकी थी. घटनास्थल पर मौजूद जगमोहन ने अरविंद कुमार सिंह को बताया कि फांसी के फंदे पर लटक रहा युवक उन का बेटा शिवकुमार है, जो कल शाम 4 बजे से गायब था.
अरविंद कुमार सिंह ने बारीकी से घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 साल के आसपास थी. वह अपनी ही शर्ट के फंदे से लटक रहा था. उस के पैर जमीन को छू रहे थे. उस के शरीर पर भी चोटों के निशान थे. इस सब से यही लग रहा था कि पहले मृतक की जम कर पिटाई की गई थी. उस के बाद उसे फांसी पर लटकाया गया था. देखने में ही मामला पूरी तरह से संदिग्ध लग रहा था.
अरविंद कुमार सिंह लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि एसपी (ग्रामीण) सुरेंद्रनाथ तिवारी और सीओ (घाटमपुर) जितेंद्र कुमार भी आ गए. अधिकारियों ने भी लाश और घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद मृतक के पिता जगमोहन से पूछताछ की गई. जगमोहन ने बताया कि उस के बेटे ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई थी और गुमराह करने के लिए लाश को यहां लटका दिया गया है.
‘‘तुम्हें क्या किसी पर शक है?’’ एसपी सुरेंद्रनाथ तिवारी ने पूछा.
‘‘जी साहब, मुझे गांव की ममता और उस के प्रेमी पप्पू पर शक है.’’ जगमोहन ने कहा.
सुरेंद्रनाथ तिवारी ने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि लाश की पोस्टमार्टम की काररवाई के बाद ममता और उस के प्रेमी पप्पू से पूछताछ की जाए. मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया.
ममता बडेरा गांव के ही अमित की पत्नी थी. अरविंद कुमार ने ममता को थाने बुलवा लिया. उस से शिवकुमार की मौत के बारे में पूछताछ की गई तो वह साफ मुकर गई कि उसे कुछ नहीं पता. इस का कहना था कि शिवकुमार उस की जातिबिरादरी का तो था ही और रिश्तेदार भी था. भला वह उस की हत्या क्यों करेगी. उस के घर वाले उसे झूठा फंसा रहे हैं.
ममता के साथ उस का 8 साल का बेटा कल्लू भी था. ममता उसे अपने साथ लाई थी. अरविंद कुमार ने उस मासूम को एकांत में ले जा कर उस से प्यार से पूछा तो उस ने सारा भेद खोल दिया. उस ने बताया कि उस की मम्मी और पप्पू चाचा ने मिल कर शिवकुमार चाचा को खूब पीटा था. उस के बाद रात में ही दोनों शिवकुमार चाचा को घर के बाहर ले गए थे.
बच्चे के बयान के बाद थानाप्रभारी ने ममता पर सख्ती की तो वह टूट गई. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि हालात ऐसे बन गए कि उसे शिवकुमार की हत्या करनी पड़ी. इस के बाद पुलिस उस के प्रेमी पप्पू को भी हिरासत में ले कर थाने ले आई गई.
दोनों से की गई पूछताछ में शिवकुमार की हत्या के पीछे प्रेमत्रिकोण में की गई हत्या की कहानी सामने आई, जो इस प्रकार थी-
उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के डेरापुर थाने के तहत एक गांव है मटेरा. इसी गांव में जयकुमार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के पास खेती की जो थोड़ीबहुत पुश्तैनी जमीन थी, उसी के सहारे वह अपना परिवार पाल रहा था.
उस की 3 बेटियां थीं, जिन में ममता सब से छोटी थी. बड़ी बेटियों की शादी करने के बाद छोटी बेटी ममता भी शादी के लायक हो गई थी. वह उस के हाथ पीले कर के चिंतामुक्त हो जाना चाहता था. इसलिए उस के लिए भी लड़का देखने लगा. उसे किसी से अमित बारे में पता चला तो वह उसे देखने पहुंच गया.
अमित कानपुर जनपद के कस्बा घाटमपुर से 2 किलोमीटर दूर बडेरा गांव का रहने वाला था. उस के पास भी खेती की ठीकठाक जमीन थी. उस के बड़े भाई अमन की शादी हो चुकी थी. अमित का मन न तो पढ़ाई में लगा और न ही खेती में. वह घाटमपुर स्थित कपड़ों के एक शोरूम पर काम करने लगा था जयकुमार को अमित ठीकठाक लगा तो उस ने ममता की शादी उस के साथ कर दी.
अमित ममता को पा कर बेहद खुश था, क्योंकि ममता उस की कल्पना के अनुरूप निकली थी. हंसीखुशी से उन की गृहस्थी की गाड़ी चल निकली थी. उसी दौरान ममता एक बेटे कमल उर्फ कल्लू की मां बनी.
ममता की जेठानी बरखा तेजतर्रार थी. चूंकि ममता उस से ज्यादा खूबसूरत थी, इसलिए वह उस से ईर्ष्या करती थी. जबतब वह उसे महारानी कह कर ताने भी मारती थी. घरेलू कामकाज को ले कर भी दोनों में अकसर झगड़ा होता रहता था.
बरखा पति पर अलग रहने का दबाव बनाने लगी, लेकिन अमन राजी नहीं था. कुछ दिनों बाद बरखा ने त्रियाचरित्र की ऐसी चाल चली कि दोनों भाइयों के बीच खेती की जमीन और मकान का बंटवारा तक हो गया.
अमित अलग रहने लगा तो उस के ऊपर नौकरी के अलावा जमीन की देखरेख की भी जिम्मेदारी आ गई. वह दिनरात काम में व्यस्त रहने लगा, साथ ही वह शराब भी पीने लगा. कुल मिला कर व्यस्तता की वजह से वह पत्नी को समय नहीं दे पाता था.
एक दिन ममता घर में अकेली थी, तभी शिवकुमार आ गया. वह उसी की जाति का था और गांव के पूर्वी छोर पर रहता था. वह गांव के जानेमाने किसान जगमोहन का एकलौता बेटा था. वह पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था. वह रंगीनमिजाज था और बनसंवर कर रहता था.
शिवकुमार की दोस्ती अमित से थी, इसलिए ममता उसे अच्छी तरह जानती थी. ममता और शिवकुमार का आमनासामना हुआ तो दोनों एकदूसरे को अपलक देखते रह गए. ममता की खूबसूरती ने शिवकुमार के दिल में हलचल मचा दी. कुछ पलो बाद ममता के होंठ फड़के, ‘‘कैसे आना हुआ शिव, कोई काम था क्या?’’
‘‘हां भाभी, अमित के पास आया था. उस ने कुछ पैसे उधार लिए थे?’’ शिवकुमार ने कहा.
‘‘वह तो हैं नहीं, अभी खेतों पर गए हैं?’’ ममता ने कहा.
‘‘तो फिर मैं चलता हूं. कल सुबह आऊंगा.’’ शिवकुमार ने कहा.
‘‘अरे वाह, ऐसे कैसे चले जाओगे. आज इतने दिनों बाद तो आए हो, कम से कम चाय तो पीते जाओ.’’ ममता ने मुसकराते हुए कहा.
शिवकुमार भी यही चाहता था. कुछ देर में ही ममता चाय बना लाई. चाय पीने के दौरान शिवकुमार की नजरें ममता की देह पर ही टिकीं रहीं. जब दोनों की नजरें टकरातीं शिवकुमार कामुक अंदाज से मुसकरा देता. उस की मुसकराहट से ममता के दिल में हलचल मच जाती.
शिवकुमार ममता से मिल कर अपने घर लौटा तो ममता का खूबसूरत चेहरा उस के दिलोदिमाग में ही घूमता रहा. दूसरी ओर ममता का भी यही हाल था. वह शिवकुमार की आंखों की भाषा पढ़ चुकी थी. इस के बाद शिवकुमार ममता के नजदीक आने की तरकीबें सोचने लगा.
ममता का पति अमित शराब पीता था. इसी का उस ने फायदा उठाया. वह देर शाम शराब की बोतल ले कर उस के घर पहुंच जाता और दोनों जाम से जाम टकराने लगते थे. खानेपीने का खर्चा शिवकुमार ही उठाता था. वह ममता पर भी खर्च करने लगा था. उस की इस दरियादिली की ममता अपने पति से खूब तारीफ करती.
एक दिन शिवकुमार दोपहर को ममता के घर पहुंचा. उस समय वह घर में अकेली थी और चारपाई पर लेटी थी. शिवकुमार को देख कर वह उठ कर खड़ी होते हुए मुसकरा कर बोली, ‘‘अरे, तुम इस वक्त कैसे चले आए, तुम्हारी महफिल तो शाम को सजती है?’’
‘‘तुम ठीक कहती हो भाभी, लेकिन आज मैं दोस्त से नहीं, तुम से मिलने आया हूं.’’
‘‘अच्छा,’’ ममता खिलखिला कर हंसी, ‘‘इरादा तो नेक है.’’
‘‘नेक है तभी तो अकेले में मिलने आया हूं. भाभी मैं तुम से बहुत प्यार करने लगा हूं.’’ शिवकुमार ने सीधे ही मन की बात कह दी.
‘‘शिव, यह तुम ने कह तो दिया पर जानते हो प्यार की राह में कितने कांटे हैं?’’ ममता ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं शादीशुदा और एक बच्चे की मां हूं.’’
‘‘जानता हूं, फिर भी जब तुम चाहोगी, मैं सारी बाधाओं को तोड़ दूंगा.’’ शिवकुमार ने ममता के करीब जा कर कहा.
इस के बाद शिवकुमार के गले में बांहें डाल कर ममता ने कहा, ‘‘शिव, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. लेकिन शर्म की वजह से दिल की बात नहीं कह पा रही थी.’’
शिवकुमार ने ममता को पकड़ कर सीने से लगा लिया. फिर तो मर्यादा भंग होते देर नहीं लगी. जिस्मानी रिश्ते की नींव पड़ गई तो वासना का महल खड़ा होने लगा. शिवकुमार को जब भी मौका मिलता, वह ममता के घर आ जाता और इच्छा पूरी कर चला जाता. जब शिवकुमार का आने का सिलसिला बढ़ने लगा तो आसपड़ोस के लोगों की नजरों में दोनों खटकने लगे. मोहल्ले में इस बारे में चर्चा होेने लगी तो उड़तेउड़ते यह खबर अमित के कानों तक पहुंच गई.
अमित अपनी पत्नी ममता पर बहुत विश्वास करता था. पर इस बात ने उसे विचलित कर दिया. उसे पत्नी और विश्वासघाती दोस्त पर बहुत गुस्सा आया. उस ने शिवकुमार को खूब खरीखोटी सुनाई और ममता की जम कर पिटाई कर दी. ममता की जेठानी बरखा ने इस बात को चटकारे ले कर खूब प्रचार किया.
अमित की सख्ती के बाद शिवकुमार का उस के घर आनाजाना बंद हो गया. काफी दिनों तक ममता भी घर से बाहर नहीं निकली. इस से अमित ने सोचा कि शायद अब वह सुधर गई है. लेकिन उस की सोच गलत निकली. इस बीच उस ने पड़ोसी गांव मानपुर के रहने वाले पप्पू यादव से संबंध बना लिए थे. वह दबंग किस्म का युवक था और ब्याज पर पैसे देता था.
अमित ने भी उस से कुछ पैसे ब्याज पर ले रखे थे. पैसा व ब्याज वसूली के लिए वह अमित के घर आता रहता था. इसी आनेजाने में ममता ने उस से नाजायज संबंध बना लिए थे.
शिवकुमार कुछ समय तक ममता से नहीं मिल सका था, लेकिन बाद में वह चोरीछिपे उस से मिलने आने लगा था. अब ममता के पप्पू और शिवकुमार दोनों से संबंध बनाए थे. वह दोनों में से किसी को भी नाराज नहीं करना चाहती थी. किसी तरह अमित को पता चल गया कि ममता ने पप्पू यादव से संबंध बना लिए हैं तो वह बहुत दुखी हुआ.
काफी समझाने पर भी जब ममता नहीं मानी तो उस ने कलह करने के बजाय उस से दूर रहना उचित समझा. अत: वह पत्नी से अलग घाटमपुर में रहने लगा. बीचबीच में वह अपने बेटे से मिलने आ जाता था.
एक दिन शिवकुमार ममता से मिल कर घर से निकल रहा था, तभी पप्पू यादव आया. शक होने पर पप्पू ने ममता से पूछा. त्रियाचरित्र करते हुए उस ने कहा, ‘‘शिवकुमार मेरा रिश्तेदार है. इसलिए वह मेरे साथ जबरदस्ती करता है.’’
ममता की बात सुन कर पप्पू गुस्से से बोला, ‘‘अगर ऐसी बात है तो उसे सबक सिखाना पड़ेगा. तुम भी ध्यान रखो कि मेरी हो तो मेरी ही रहो. एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं.’’
इस के बाद पप्पू यादव शिवकुमार पर कड़ी नजर रखने लगा. 12 अप्रैल, 2017 की रात 10 बजे शिवकुमार ममता के घर पहुंचा. उस समय पप्पू यादव ममता के घर में ही था. आते ही शिवकुमार ममता के साथ जबरदस्ती करने लगा. उस ने पप्पू को देखा नहीं था.
ममता ने विरोध किया, लेकिन शिवकुमार नहीं माना. तभी पप्पू यादव ने उसे ललकारा. दोनों के बीच मारपीट होने लगी. उसी बीच ममता एक डंडा ले आई और शिवकुमार को पीटने लगी. शिवकुमार चीखने लगा. चीख से ममता के बेटे कल्लू की आंखें खुल गईं. डर की वजह से वह बिस्तर पर ही पड़ा रहा.
कुछ ही देर में शिवकुमार पस्त पड़ गया. इस के बाद ममता ने शिवकुमार के पैर पकड़ लिए और पप्पू यादव ने उस का गला दबा दिया. शिवकुमार की हत्या कर लाश को ठिकाने लगाना जरूरी था. आधी रात बीतने के बाद दोनों ने शिवकुमार की लाश को साइकिल पर रखा और उसे गांव के बाहर वेदप्रकाश के बाग में ले गए.
मामला आत्महत्या का लगे, इस के लिए उन्होंने शिवकुमार की शर्ट निकाल कर एक बांह उस की गरदन में कस दी और दूसरी पेड़ से बांध दी. शिवकुमार की लाश को लटका कर दोनों अपनेअपने घर आ गए.
सुबह के समय गांव के किसी व्यक्ति ने बाग में लटक रही लाश देखी तो उस ने यह बात गांव वालों को बता दी. जानकारी मिली तो जगमोहन बाग में पहुंचा तो बेटे की लाश देख कर दहाड़ें मार कर रोने लगा. इसी बीच किसी ने घाटमपुर पुलिस को सूचना दे दी थी.
पुलिस ने 15 अप्रैल, 2017 को अभियुक्त पप्पू यादव और ममता को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष माती अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें स्वीकार नहीं हुई थीं. ?
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
सियाराम के तीसरे नंबर के बेटे अनिल कुमार उर्फ बंटू की पत्नी सोनी उर्फ सुनीता ने शादी के डेढ़ साल बाद बेटे को जन्म दिया था. अनिल ने जब फोन कर के यह खुशखबरी गांव में रह रहे अपने पिता को दी तो पूरे परिवार में खुशी छा गई.
घर में जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो गईं. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अनिल भी पत्नी सोनी और नवजात शिशु के साथ गांव आ गया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि परिवार की खुशियों को अचानक ऐसा ग्रहण लगेगा कि 2-2 लाशें बिछ जाएंगी.
उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना नगला खंगर क्षेत्र में एक गांव है गलपुरा. इस गांव में रहने वाले सियाराम के 5 बेटे हैं, इन में 3 बेटों राजेश, संजय व अनिल कुमार उर्फ बंटी की शादी हो चुकी थी, जबकि 19 साल का श्यामगोपाल उर्फ बबलू व सब से छोटा लवकुश अभी अविवाहित थे. बड़े बेटे राजेश की सीमा से, संजय की विनीता से और अनिल उर्फ बंटी की शादी सोनी से हुई थी.
22 साल की सोनी की शादी डेढ़ साल पहले ही अनिल के साथ हुई थी. संजय की पत्नी विनीता और अनिल की पत्नी सोनी सगी बहनें थीं. दोनों का मायका जिला इटावा के थाना जसवंतनगर क्षेत्र के गांव बनामई में था.
13 अगस्त, 2018 को सोमवार था. परिवार के लोग सुबह ही खेत पर धान की रोपाई करने चले गए थे. बहू विनीता कुछ देर पहले ही घर वालों के लिए खाना ले कर खेत पर गई थी. घर में केवल लवकुश और उस की भाभी सोनी ही थे.
अचानक घर के अंदर से गोली चलने की आवाज आई. कोई कुछ समझ पाता इस से पहले ही घर के अंदर से लवकुश का बड़ा भाई श्यामगोपाल उर्फ बबलू तेजी से बाहर निकला, उस के हाथ में तमंचा था. घर से 10-12 कदम की दूरी पर गली में पहुंचते ही उस ने अपने सिर में गोली मार ली. गोली लगते ही वह रास्ते में गिर गया. उस के सिर से खून बह रहा था.
गोलियां चलने की आवाज सुन कर गांव में सनसनी फैल गई. सियाराम के घर के बाहर गांव वालों की भीड़ लग गई. घर के अंदर बबलू की भाभी सोनी और घर के बाहर देवर बबलू की लहूलुहान लाशें पड़ी थीं.
बबलू की लाश के पास ही .315 बोर का तमंचा भी पड़ा था. बबलू ने अपनी भाभी सोनी को गोली मार कर हत्या करने के बाद खुद को गोली मार ली थी.
सियाराम के दूसरे नंबर के बेटे संजय की शादी विनीता के साथ हुई थी. शादी के समय संजय की साली सोनी और भाई बबलू जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे थे. कभीकभी बबलू अपनी भाभी को विदा कराने उस के मायके बनामई जाता था. वहीं पर सोनी और बबलू की नजरें एकदूसरे से टकरा गईं. बबलू को सोनी अच्छी लगी. सुंदर, चंचल और अल्हड़ सोनी को भी गठे बदन का बबलू मन भा गया. कुछ ही मुलाकातों में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.
दोनों के बीच काफीकाफी देर तक प्यार भरी बातें होने लगीं. बातों के बीच चुहलबाजी भी खूब होती. दोनों ही एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. एक दिन अकेले में मौका पा कर बबलू ने सोनी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘इस जन्म में ही नहीं, हम 7 जन्मों तक साथ रहेंगे.’’
दोनों ने एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाईं. प्यार के इजहार के बाद दोनों भविष्य के इंद्रधनुषी सपने संजोने लगे. अब दोनों को केवल सही वक्त का इंतजार था.
सोनी और बबलू अपने प्यार की पीठ पर सवार हो कर भविष्य के सपने देख रहे थे. लेकिन इसी बीच सोनी की बड़ी बहन विनीता को अपने देवर और बहन के बीच पनपे प्रेम की खबर लग गई.
विनीता ने यह बात घरपरिवार के लोगों को बता दी. कच्ची उम्र के दोनों प्रेमी कोई ऐसा भी कदम उठा सकते थे, जिस से परिवार की बदनामी हो. इसलिए उन लोगों ने सोनी की शादी बबलू के बड़े भाई अनिल से तय कर दी. बबलू चाह कर भी इसलिए कुछ नहीं कर सका, क्योंकि शादी दोनों परिवारों की मरजी से तय हुई थी.
दरअसल सोनी के घर वालों को मालूम था कि बबलू सोनी से उम्र में छोटा तो है ही, गुस्सैल स्वभाव का भी है. वह शराब भी पीता था. जबकि अनिल की हेयर कटिंग की दुकान थी, जिस से वह ठीकठाक पैसा कमा लेता था.
दूसरी ओर सोनी और बबलू के दिलों में बराबर की आग लगी थी. बबलू इस इंतजार में था कि भाई अनिल की शादी हो जाने के बाद वह अपनी प्रेमिका सोनी से शादी करेगा. लेकिन अचानक ऐसी स्थिति बन जाएगी, इस बारे में उस ने सोचा तक नहीं था.
सोनी ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि उसे अपने प्रेमी बबलू के घर उस के भाई की पत्नी बन कर जाना पड़ेगा. उस के दिल के अरमान आंसुओं में बह गए थे. मजबूरी में उस ने दिल पर पत्थर रख लिया. अंतत: अनिल और सोनी की शादी हो गई.
सोनी बबलू की भाभी बन कर उसी के घर में आ गई थी. प्रेमिका की शादी बड़े भाई से हो जाने की वजह से बबलू पूरी तरह टूट गया. वह चोरीछिपे सोनी से अपने प्यार का इजहार करता, लेकिन उस की ओर से अब कोई जवाब नहीं मिलता था.
घर में सोनी के जेठजेठानी, बहन, ससुर, सास जावित्री के अलावा छोटा देवर लवकुश भी था. एक तो संयुक्त परिवार, दूसरे बदनामी का डर, इसलिए सोनी ने शादी के बाद बबलू के प्यार को हवा नहीं दी. इस से बबलू परेशान रहने लगा. वह बिन पानी की मछली की तरह तड़प रहा था. गुस्सेबाज तो वह था ही, ऐसी स्थिति में उस का गुस्सा और भी बढ़ गया. घर हो या बाहर वह किसी से भी उलझ पड़ता था. अब गांव में बबलू का मन नहीं लगता था.
घर वालों के कहने पर बबलू गुड़गांव की एक कंपनी में काम करने चला गया. बबलू घर से दूर जरूर चला आया, लेकिन सोनी की यादों को दिल से दूर नहीं कर सका. उस के साथ बिताए पल उसे याद आते रहते थे. सोतेजागते उस की आंखों के सामने सोनी की तसवीर घूमती रहती थी. वह चाहता था कि सोनी को भूल जाए, लेकिन चाह कर भी वह उसे भुला नहीं पा रहा था.
इसी बीच अनिल अपनी पत्नी सोनी को ले कर सिरसागंज चला गया और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा. सिरसागंज में अनिल की हेयर कटिंग की दुकान भदान रेलवे फाटक के पास थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. शादी के डेढ़ साल बाद सोनी ने बेटे को जन्म दिया. इस की जानकारी उस ने गांव में रह रहे अपने परिवार को दी, तो सभी खुश हुए. उन्होंने जश्न मनाने की तैयारी शुरू कर दी.
घटना से 20 दिन पूर्व अनिल अपनी पत्नी व 25 दिन के बच्चे के साथ गांव आ गया. उधर घर में सोनी के आ जाने की जानकारी मिलने पर बबलू भी गुड़गांव से गांव आ गया. घर पहुंचते ही उस की नजर भाभी बनी सोनी से मिली तो दिल में समाई पुरानी यादें फिर से ताजा हो गईं.
बच्चे को गोद में ले कर उस ने खूब प्यार किया. एक दिन अकेले में मौका मिलने पर जब उस ने सोनी के सामने अपने प्यार का वास्ता दिया तो सोनी ने उस का कड़ा विरोध करते हुए पुरानी बातें भूल जाने को कहा. बबलू को सोनी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. प्रेमिका रह चुकी सोनी की इस बेरुखी से बबलू अंदर तक टूट गया.
बबलू को गुड़गांव से आए अभी कुछ दिन ही हुए थे. 13 अगस्त की सुबह 7 बजे सोनी ने लंच बना कर अपने पति अनिल को दिया. लंच ले कर अनिल अपनी कटिंग की दुकान पर चला गया. परिवार के सदस्य खेत पर धान की रोपाई करने गए हुए थे. सियाराम की पत्नी जावित्री 8 दिन पहले अपनी बेटी की ससुराल गांव दौकेली चली गई थी.
जावित्री की बेटी गर्भवती थी, इस लिए उस ने मदद के लिए मां को अपने पास बुला लिया था. उस दिन बबलू सुबह ही घर से निकल कर गांव में घूमने चला गया था. सोनी और उस की बहन विनीता ने मिल कर खाना बनाया. विनीता सभी के लिए खाना ले कर खेतों पर चली गई. छोटा देवर लवकुश कमरे में बैठा खाना खा रहा था.
उस समय 10 बजे थे. सुनीता उर्फ सोनी हैंडपंप से पानी भर रही थी. वह एक बार पानी भर कर अंदर रख आई थी. दूसरी बार जब वह पानी लेने जा रही थी तभी बबलू घर आ गया. घर में आते ही उस ने आंगन में खड़ी सोनी के सामने गुस्से में बीती बातों को दोहराया. इस पर सोनी ने झुंझलाते हुए कहा कि तुम्हें घर और समाज में इज्जत से रहना है तो बीती बातों को भूलना होगा.
सोनी के इतना कहते ही बबलू ने अपनी कमर में खोंसा हुआ तमंचा निकाला और उस की कनपटी पर लगा कर गोली चला दी. गोली लगते ही सोनी कटे पेड़ की तरह आंगन में गिर पड़ी. बबलू ने जैसे ही दोबारा तमंचे में कारतूस डालने का प्रयास किया, कमरे में खाना खा रहा छोटा भाई लवकुश चीखता हुआ उस की तरफ दौड़ा और उसे रोकने की कोशिश की.
इस पर बबलू तमंचा लोड कर के घर के बाहर भागा और घर से 10-12 कदम चलते ही उस ने तमंचे से अपने सिर में गोली मार ली. गोली लगते ही वह गिर कर ढेर हो गया.
गांव वालों ने इस घटना की सूचना पुलिस और बबलू के घर वालों को दी. जब यह खबर खेत पर पहुंची, तब सभी लोग खाना खा रहे थे, घर पर खूनी खेल खेला जाएगा इस का उन्हें अंदाजा नहीं था. सभी खाना छोड़ कर घर की ओर दौड़े. उधर कुछ गांव वालों ने अनिल की दुकान पर जा कर उस की पत्नी की हत्या की जानकारी दी. अनिल दुकान बंद कर के आ गया.
सूचना मिलते ही नगला खंगर के थानाप्रभारी दीपक चंद्र दीक्षित, क्षेत्राधिकारी सिरसागंज अजय कुमार चौहान घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस वारदात की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एसएसपी फिरोजाबाद सचिंद्र पटेल, एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह गांव गलपुरा पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथसाथ गांव वालों व घर वालों से घटना की विस्तार से जानकारी ली.
पुलिस ने आंगन में पड़ी सोनी की लाश के पास से खाली कारतूस तथा बबलू की लाश के पास से तमंचा व उस में फंसा खोखा जब्त कर लिया. मृतका का पति अनिल जब गांव पहुंचा तो घर पर पुलिस व गांव वालों की भीड़ मौजूद थी. जावित्री को भी सूचना दे कर बुला लिया गया था.
जावित्री ने जैसे ही बहू सोनी की लाश देखी तो वह उस से लिपट कर रोने लगी. गांव वालों के अनुसार बबलू सोनी को गोली मारने के बाद उस की लाश पर ही खुद को गोली मारना चाहता था, लेकिन भाई लवकुश के शोर मचाने पर उस ने घर के बाहर जा कर आत्महत्या कर ली.
घटना के संबंध में अनिल ने अपने भाई बबलू के खिलाफ अपनी पत्नी सोनी की हत्या की रिपोर्ट भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत थाना नगला खंगर में दर्ज कराई. पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया.
बबलू के सिर इश्क का जुनून इस कदर हावी था कि वह अपना पराया कुछ भी नहीं सोच पा रहा था. इसी के चलते उस ने यह घातक कदम उठाया. उस ने भाई की बसीबसाई गृहस्थी तो उजाड़ी ही, उस के दुधमुंहे बच्चे से उस की मां भी छीन ली.
सोनी को बेटा पैदा होने पर सियाराम के परिवार में खुशियां मनाई जानी थीं, लेकिन परिवार की खुशियों में 2-2 मौतों से ग्रहण लग गया.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.
वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’
रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दी.
पुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया.
पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे.
कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था.
स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.
एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी.
यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी.
रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी.
एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गए.
मुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.
सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी.
सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान न आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.
जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी.
सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.
सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे.
नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थी.
वैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.
सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं था.
वह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थे.
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी ए.के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.
एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था.
अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था.
नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी.
इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना है.
रवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं.
एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते.
एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने आ कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई.
अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया.
रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था.
रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया.
बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.
घटना 18 मई, 2018 की है. माधव नगर थाने के थानाप्रभारी गगन बादल अपने औफिस में बैठे विभागीय कार्य निपटा रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के वल्लभ नगर में मां बादेश्वरी मंदिर के सामने रहने वाली दीपा वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में धुआं निकल रहा है. शायद वहां आग लग गई है. यह थाना मध्य प्रदेश के जिला उज्जैन के अंतर्गत आता है.
थानाप्रभारी ने यह जानकारी दमकल विभाग के अलावा एसपी सचिन अतुलकर को भी दे दी. इस के बाद वह खुद सूचना में बताए गए पते की तरफ रवाना हो गए.
जब तक वह मौके पर पहुंचे, तब तक दमकल विभाग की गाड़ी भी वहां पहुंच चुकी थी. पता चला कि दीपा वर्मा के घर में आग लगी थी. इस से पहले कि आग भयावक रूप लेती, दमकलकर्मी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने कुछ देर में आग बुझा दी. आग बुझने के बाद दमकल कर्मियों के साथ थानाप्रभारी जब उस मकान के अंदर पहुंचे तो किचिन में लिहाफ गद्दे वगैरह पड़े मिले. वह अधजले थे. उन कपड़ों से धुआं उठ रहा था.
दमकलकर्मियों ने उन अधजले लिहाफगद्दों को हटाया तो वहां का नजारा देख कर पुलिस चौंक गई. क्योंकि उन लिहाफगद्दों के नीचे एक महिला का शव औंधे मुंह पड़ा हुआ था. उस की दोनों कलाइयों की नशें भी कटी हुई थीं. साथ ही उस की गरदन पर धारदार हथियार का घाव था.
मकान मालिक ने मृतका की पहचान 35 वर्षीय दीपा वर्मा के रूप में की. उस ने बताया कि यह 5 महीने से अशोक वर्मा के साथ इस मकान में रह रही थी. अशोक के अलावा इस के पास और भी कई युवक आते थे. कुछ ही देर में एसपी सचिन अतुलकर और एफएसल अधिकारी डा. प्रीति भी टीम के साथ मौके पर पहुंच गईं.
पुलिस ने जब जांच की तो बेडरूम में खून के धब्बों के अलावा सामान भी अस्तव्यस्त मिला. बेडरूम का दरवाजा भी टूटा हुआ था. इस से यह अनुमान लगाया कि घटना से पहले दीपा और हमलावर के बीच संघर्ष हुआ होगा. इस के बाद उस की हत्या कर लाश किचिन में ले जा कर जलाने की कोशिश की.
लाश को जलाने का तरीका भी अनोखा था. हत्यारे ने दीपा वर्मा की हत्या के बाद एलपीजी गैस सिलेंडर की नली चूल्हे से निकालने के बाद उसे दीपा वर्मा की जांघों के बीच डाल कर ऊपर से लिहाफगद्दे डाल दिए. फिर रैग्युलेटर से गैस औन कर के आग लगाई थी.
इस से इस बात की आशंका को बल मिला कि हत्या का मामला अवैध संबंधों से जुड़ा हो सकता है. दीपा वर्मा की हत्या की सूचना पा कर भैरवगढ़ में जेल रोड की ज्ञान टेकरी पर रहने वाला दीपा का भाई भी मौके पर पहुंच गया. उस ने दीपा के साथ लिवइन रिलेशन में रहने वाले अशोक शर्मा पर उस की हत्या का आरोप लगाया.
उस का कहना था कि दीपा पिछले 8 सालों से अशोक के साथ रह रही थी. पुलिस ने दीपा के भाई की तहरीर पर हत्या का मामला दर्ज कर लिया. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के दीपा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.
पुलिस ने दीपा के साथ लिवइन रिलेशन में रहने वाले अशोक के बारे में जानकारी हासिल की. पता चला कि अशोक पहले से शादीशुदा है. उस की ब्याहता गांव में रहती है. वह दीपा के पास 1-2 दिन में चक्कर लगाता था.
उधर 3 डाक्टरों के पैनल ने दीपा का पोस्टमार्टम किया जिस में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि दीपा को जिंदा ही जलाया गया था. मरने से पहले दीपा के साथ बलात्कार किया गया था या नहीं इस की जांच के लिए उस की स्लाइड बना कर सागर जिले की लैबोरेटरी भेज दी. मामला गंभीर था इसलिए एसपी सचिन अतुलकर ने थाना माधव नगर के थानाप्रभारी गगन बादल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. एसआई बी.एस. मंडलोई, संजय राजपूत आदि के साथ साइबर सेल प्रभारी इंसपेक्टर दीपिका शिंदे और संतोष राव को उन की टीम में शामिल किया गया.
इंसपेक्टर शिंदे ने सब से पहले अशोक को पूछताछ के लिए बुलाया. अशोक ने बताया कि वह पिछले 8 सालों से दीपा के संपर्क में था. इसलिए वह अब उसे क्यों मारेगा. साथ ही उस ने बताया कि मेरी गैरमौजूदगी में दीपा दूसरे कई युवकों को अपने पास बुलाती और उन के साथ मौजमस्ती करती थी. उस ने उसे कई बार समझाया लेकिन दीपा ने अपनी आदत नहीं बदली थी. अशोक ने दीपा के प्रेमियों के नाम भी पुलिस को बता दिए.
उन में 2 को पुलिस ने पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उन दोनों से पूछताछ में दीपा के एक और प्रेमी धर्मेंद्र गहलोत का नाम सामने आया. धर्मेंद्र देवास रोड पर रहता था. इंसपेक्टर दीपिका शिंदे और थानाप्रभारी गगन बादल दोनों टीम के साथ धर्मेंद्र के घर जा धमके.
संयोग से धर्मेंद्र घर पर ही मौजूद था. उस के दोनों हाथ की अंगुलियों में ताजे घाव थे. इंसपेक्टर शिंदे उस की चोट देखते ही समझ गईं कि दीपा वर्मा का कातिल उन के हाथ लग चुका है. इसलिए उन्होंने उस से सीधे सवाल किया, ‘‘दीपा को तूने क्यों मारा.’’
धर्मेंद्र को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि पुलिस इतनी जल्दी उस तक पहुंच जाएगी. इंसपेक्टर शिंदे का सवाल सुन कर वह हतप्रभ सा रह गया. वह इधरउधर की बातें करने लगा.
तभी पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली तो घर में छिपा कर रखे खून सने कपड़े और दीपा के दोनों मोबाइल फोन मिल गए. इस के बाद धर्मेंद्र के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. सो उस ने चुपचाप अपना जुर्म कबूल कर लिया.
उस से पूछताछ के बाद दीपा वर्मा की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—
दीपा वर्मा का परिवार उज्जैन का रहने वाला था. भैरवगढ़ इलाके में जेल रोड की ज्ञान टेकरी पर दीपा की मां अपने 2 बेटों के साथ रहती थी. दीपा बेहद खूबसूरत और चंचल स्वभाव की थी. उस के इस स्वभाव को निमंत्रण समझ कर मोहल्ले के युवक उस की गली के चक्कर लगाने लगे थे.
बेटी के पैर बहक न जाएं, इसलिए महज 14 साल की उम्र में उस के पिता ने दीपा की शादी देवास के जलाल खेड़ी में रहने वाले राकेश वर्मा के साथ कर दी थी. इस तरह खेलनेकूदने की उम्र में ही दीपा पति के साथ वयस्कों की दुनिया देख चुकी थी.
पति राकेश उस की सुंदरता का कायल था. उम्र बढ़ने के साथ दीपा ने जब जवानी में कदम रखा तो उस की शारीरिक जरूरतें पहले से ज्यादा बढ़ गईं. लेकिन अब तक राकेश वर्मा को घरपरिवार की चिंता सताने लगी थी. इसलिए राकेश रोजीरोटी के चक्कर में यहांवहां भटकने लगा था, इस से परेशान हो कर दीपा ने इधरउधर ताकाझांकी शुरू कर दी.
राकेश को जब पता चला तो वह शराब पी कर उस के साथ मारपीट करने लगा. पति की ज्यादती से दीपा बहुत परेशान हो गई थी. शादी के 10 साल बाद 24 साल की दीपा गुस्से में पति को छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी.
अपना गुजारा करने के लिए उस ने फ्रीगंज इलाके में फाल, पीको की दुकान कर ली. मायके में आ कर कुछ समय तक तो दीपा की जिंदगी आराम से कटी लेकिन फिर उसे अपनी शारीरिक जरूरतें महसूस होने लगीं.
यूं तो दीपा चाहती तो उस के बचपन के दीवाने अब भी मोहल्ले में मौजूद थे, जो उसे अभी भी ललचाई नजरों से घूरते रहते थे. लेकिन दीपा अब बच्ची नहीं थी. उस की आंखों को अब ऐसे मर्द की तलाश थी, जो उस की दैहिक के अलावा दूसरी तमाम जरूरतें भी पूरी कर सके.
एक दिन उस की मुलाकात अशोक से हुई तो दीपा ने अशोक के लिए अपने दिल की लगाम ढीली छोड़ दी. राजनीति में दखल रखने वाला अशोक वर्मा शादीशुदा और एक बच्चे का पिता था. लेकिन उस के पास इतना पैसा था कि वह दीपा की जिंदगी भर तमाम जरूरतें पूरी कर सकता था.
दीपा का रूप उस के दिल को भा चुका था. इसलिए दीपा को राजी देख उस ने उस के सामने साथ रहने का प्रस्ताव रखा, जिसे दीपा ने तुरंत स्वीकार कर लिया.
तब अशोक ने दीपा को किराए का मकान दिला कर घर की तमाम जरूरतें भी पूरी कर दीं. जिस के बाद दीपा अशोक के साथ बिना शादी किए ही पत्नी की तरह रहने लगी. यह करीब 8 साल पहले की बात है.
अशोक राजनीति में भी दखल रखता था. उस के पास पैसा भी खूब था, इसलिए दीपा को काम करने की जरूरत नहीं रह गई थी. फिर भी समय काटने के लिए उस ने फाल लगाने और पीको करने का काम बंद नहीं किया था. लेकिन ऐसे मामले में वही हुआ जो होता है.
दीपा के साथ 4-5 साल गुजारने के बाद अशोक का मन उस से भर गया. हालांकि वह अपने वादे से तो नहीं मुकरा, वह दीपा की हर आर्थिक जरूरत पूरी करता रहा. पर दीपा के पास उस का आनाजाना जरूर कम हो गया. अब वह 1-2 दिन बाद दीपा के पास आता.
लेकिन दीपा जिस मिट्टी से बनी थी उस के चलते उसे रोजाना पुरुष संग की जरूरत थी. इसलिए अशोक की गैरमौजूदगी का फायदा उठा कर उस ने कई दूसरे युवकों से दोस्ती कर ली. वह उन्हें रात के अंधेरे में अपने घर बुलाने लगी. लेकिन ऐसी बातें छिपती कहां हैं.
यानी अशोक को यह बात पता चल गई. अशोक ने उसे बहुत समझाया, पर उस ने अपनी आदत नहीं बदली. अशोक की गैरमौजूदगी में दूसरे युवक दीपा के घर में आ कर रात गुजारने लगे. अशोक तो दीपा का दीवाना था इसलिए उस के बदचलन होने के बावजूद भी उस ने दीपा का साथ नहीं छोड़ा.
जिस मकान में दीपा की हत्या हुई वह मकान इसी साल जनवरी के महीने में अशोक ने ही किराए पर ले कर उसे रहने के लिए दिया था. कोई 3 साल पहले धर्मेंद्र की पत्नी दीपा की दुकान पर अपनी साड़ी पर फाल लगवाने के लिए साड़ी दे कर चली गई थी. बाद में धर्मेंद्र दीपा की दुकान पर वह साड़ी लेने गया था. तभी दीपा से उस की पहली मुलाकात हुई थी.
वैसे दीपा धर्मेंद्र से उम्र में काफी बड़ी थी. लेकिन उस की खूबसूरती देख कर धर्मेंद्र का मन पागल हो गया. इसलिए उस के हाथ से साड़ी लेते समय उस ने जानबूझ कर उस की अंगुलियों को छू दिया.
ऐसा कर के धर्मेंद्र को इस बात का डर था कि कहीं वह बुरा न मान जाए. लेकिन दीपा काफी बोल्ड थी. उस ने सीधे कहा, ‘‘बड़े हिम्मत वाले हो जो पहली ही मुलाकात में अंगुली पकड़ रहे हो. इस बार अंगुली पकड़ी है तो लगता है अगली बार सीधे पहुंचा पकड़ोगे.’’
यह सुन कर धर्मेंद्र झेंप गया तो वह जोर से हंस दी. जिस के बाद दोनों की दोस्ती हो गई और फोन पर बातें होने लगीं. धर्मेंद्र दीपा से मिलना चाहता था. लेकिन उस से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. 10-15 दिन बाद एक रोज खुद दीपा ने ही कहा कि कब तक फोन पर बातें कर के आग भड़काते रहोगे, मिलोगे नहीं क्या?
‘‘मिलना तो चाहता हूं पर कहां मिलूं. यह बात समझ में नहीं आ रही है. अच्छा तुम एक काम करो, कल महाकाल मंदिर आ जाओ, वहीं मिलते हैं.’’ धर्मेंद्र बोला.
‘‘क्यों, मेरे साथ वहां क्या भजन करना है, जो मंदिर में बुला रहे हो. तुम सीधे मेरे घर आ जाओ, वहीं घंटा बजाएंगे.’’ कहते हुए दीपा ने अपने घर का पता बता दिया.
उसी दिन शाम को धर्मेंद्र दीपा के किराए वाले मकान में पहुंच गया. दोनों ने एकांत का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी कीं. जल्द ही दीपा ने धर्मेंद्र को अपनी अदाओं से वश में कर लिया.
इस के बाद धर्मेंद्र उस पर काफी पैसे भी लुटाने लगा था. दीपा से मिलनेजुलने में दिक्कत न हो इसलिए धर्मेंद्र ने उस के पति अशोक से भी दोस्ती बना ली थी. जब मन होता दोनों शराब और चिकन की पार्टी भी करते.
लेकिन कुछ समय बाद ही धर्मेंद्र को पता चल गया कि अशोक दीपा का पति नहीं है, बल्कि वह उस के साथ रखैल बन कर रह रही है. इतना ही नहीं दूसरे और युवकों के साथ भी दीपा के संबंध होने की जानकारी धर्मेंद्र को लग गई. यहां तक कि धर्मेंद्र जिन दोस्तों को दीपा के यहां ले गया था, उन के साथ भी दीपा ने अवैध संबंध बना लिए थे.
धर्मेंद्र ने दीपा को समझाया कि वह ऐसा न करे लेकिन उस ने उलटे धर्मेंद्र से ही मिलना बंद कर दिया. धर्मेंद्र उस से मिलने की चाहत व्यक्त करता तो वह किसी न किसी बहाने से उसे टाल देती थी.
धर्मेंद्र की पत्नी को भी यह जानकारी मिल गई कि उस का पति दीपा नाम की किसी महिला के पास जाता है. धर्मेंद्र पत्नी से लगातार झूठ बोलता रहा. जब उस ने दीपा से मिलना नहीं छोड़ा तो वह उस से झगड़ने लगी.
एक दिन धर्मेंद्र दीपा के पास गया तो वहां पर उस के 2 दोस्त कुक्कू और रवि मिले. दीपा ने उस दिन धर्मेंद्र को घर से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया था.
धर्मेंद्र अपने घर वापस आ गया लेकिन उस की नजरों के सामने दीपा की कुक्कू और रवि के साथ अय्याशी की तसवीरें किसी फिल्म की तरह चलती रहीं. इसलिए सुबह होते ही वह फिर से दीपा के घर पहुंचा. उस समय दीपा अकेली थी.
कुक्कू और रवि के साथ मस्ती करने के फेर में रात भर शायद वह सोई नहीं थी. इसलिए अपनी नींद में खलल पड़ने से वह धर्मेंद्र पर नाराज होते हुए को उलटासीधा बोलने लगी. यह देख कर धर्र्मेंद्र का खून खौल उठा और उस ने दीपा की पिटाई की. गुस्से में उस ने उस की दोनों कलाइयों की नसें भी काट दीं, जिस से कमरे में खून फैल गया और वह बेहोश हो गई. अब वह उसे जीवित नहीं छोड़ना चाहता था.
हाजा वह उसे खींच कर रसोई में ले गया और उस की सलवार निकाल कर उस ने एलपीजी सिलेंडर का पाइप गैस चूल्हे से निकाल कर उस की दोनों जांघों के बीच फंसा कर ऊपर से लिहाफ, दरी, गद््दा डाल कर रैग्युलेटर से गैस चालू कर दी, फिर आग लगा कर वह वहां से चला गया. उस ने सोचा कि सिलेंडर फटने के बाद लोग इसे दुर्घटना समझेंगे और वह बच जाएगा.
लेकिन जब मकान में धुआं निकलना शुरू ही हुआ था, तभी पड़ोसी राकेश वर्मा ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. धर्मेंद्र से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. बैडरूम का दरवाजा कैसे टूटा, यह बात पुलिस पता नहीं लगा सकी.
उज्जैन के आईजी राकेश गुप्ता ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम के कार्य की सराहना करते हुए पुरस्कृत करने की घोषणा की.
(कथा में कुछ नाम परिवर्तित हैं)
सादिक का एक पैर खराब था, जिस की वजह से वह लंगड़ाकर चलता था लिहाजा लोग उसे सादिक लंगड़ा के नाम से पुकारते थे. रुखसार जब उस की शरीक ए हयात बनकर आई तो वह अपनी इस कमजोरी को भूलने लगा.
इतनी खूबसूरत बीवी पा कर किसी का भी इतराना कुदरती बात होती है लेकिन शायद पैर की कमजोरी के चलते रुखसार उसे मन से नहीं अपना पाई. हालांकि सादिक शारीरिक तौर पर किसी सामान्य पुरुष से उन्नीस नहीं था.
रुखसार की जवानी के समंदर में सादिक ऐसा डूबा कि उस ने अपने काम धाम पर ध्यान देना छोड़ दिया और दिन रात बीवी के साथ बिस्तर में पड़ा जवानी और जिंदगी का लुत्फ उठाते भूल गया कि घर चलाने के लिए पैसा भी उतना ही जरूरी है जितना कि सेक्स.
जब जवानी की खुमारी पर भूख और जरूरतें भारी पड़ने लगीं तो सादिक जल्द और ज्यादा पैसे कमाने की गरज से गलत राह पर चल पड़ा. वह नशे का कारोबार करने लगा. जो लोग नशे के आइटम यानि ड्रग्स का धंधा और स्मगलिंग करते हैं आमतौर पर उन्हें भी इस की लत लग जाती है यही सादिक के साथ हुआ. वह ड्रग्स बेचतेबेचते उस का नशा भी करने लगा था.
पति की हरकतों से परेशान रुखसार को भी नशे की लत लग गई. वह खुद तो नशा करने ही लगी शौहर के साथ नशे का कारोबार भी मिल कर करने लगी. उस के दिल में एक कसक हमेशा बनी रही कि उसे वैसा शौहर नहीं मिला, जैसा मिलना चाहिए था.
यह कसक कुंठा में बदलने लगी जिस का अहसास कम पढ़ीलिखी रुखसार को था या नहीं, यह तो वही जाने पर बाहर की हवा लग जाने से उसे महसूस हुआ कि सादिक और घर के अलावा भी एक जिंदगी और है, जिस में कुछ और हो न हो लेकिन पैसा ठीकठाक है.
सादिक को भी इस बात का अहसास था कि वह अपनी बीवी की दिली पसंद और चाहत नहीं बल्कि मजबूरी है इसलिए धीरेधीरे वह आक्रामक होने लगा. इस दौरान दोनों का एक बेटा भी हुआ.
अब पैसा तो ठीकठाक आ रहा था लेकिन रुखसार की सादिक के लंगड़ेपन को ले कर असंतुष्टि सर उठाने लगी थी. वह सीधे तो सादिक से कुछ नहीं कहती थी लेकिन जब भी सादिक नशे में बिस्तर पर आता तो उसे उस की हरकतें नागवार गुजरने लगी. एक पुरानी कहावत है जिस का सार यह है कि औरत पति से 2 चीजें ही चाहती है पहली यह कि वह खाने पीने की कमी न होने दे और दूसरी यह कि सैक्स में संतुष्टि देता रहे.
रुखसार के साथ तीसरी वजह भी जुड़ गई थी जो शादी के वक्त से उस के मन में सादिक की कमजोरी को ले कर थी. लिहाजा उस का मुंह शौहर के सामने खुलने लगा. सादिक ने इस से ज्यादा कुछ नहीं सोचासमझा कि यह सब उस की पैर की कमजोरी के चलते रुखसार जानबूझ कर उसे जलील करने के लिए करती है.
लिहाजा दोनों में रोज रोज कलह होने लगी और एक दिन तो इतनी हुई कि सादिक ने गुस्से में आ कर 3 बार ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर रुखसार की मुराद पूरी कर दी. वह आम औरतों की तरह पति के सामने रोई गिड़गिड़ाई नहीं बल्कि अपना सामान समेट कर उस का घर ही छोड़ दिया.
घर छोड़ने के बाद वह मायके इंदौर नहीं गई बल्कि महू में ही अलग किराए का मकान लेकर रहने लगी. ये कुछ दिन उस ने सुकून से गुजारे जहां सादिक की जोर जबरदस्ती और कलह नहीं थी, थी तो एक आजाद जिंदगी जिसे वह अपनी मरजी से जी रही थी.
रुखसार को तलाक दे कर सादिक को अहसास हुआ कि उस के बिना जिंदगी में काफी कुछ अधूरा है. दोनों अब अलगअलग अपने नशे की दुकान चला रहे थे और खुद भी नशा कर रहे थे.
रुखसार को भी मर्द की तलब लगने लगी थी. इसी दरम्यान उस की जानपहचान हरदीप नाम के नौजवान से हुई जो रंगीनमिजाज और आवारा होने के साथ बेरोजगार भी था. उसे भी नशे की लत थी, जिस के चलते उस की जानपहचान रुखसार से हुई थी और उस के हुस्न में फंसने से खुद को रोक नहीं पाया था.
इस हवसनुमा प्यार का नया अहसास रुखसार को उस जिंदगी में ले गया जिस के सपने वह शादी के पहले देखा करती थी. अब दोनों बिस्तर साझा करने लगे. प्यार की झोंक में ही रुखसार ने अपने दाहिने हाथ पर हरप्रीत के नाम का टैटू गुदवा लिया.
लेकिन हरदीप चालूपुर्जा निकला. कुछ महीनों में ही उस का रुखसार से जी भर गया तो वह उस से कन्नी काटने लगा. रुखसार अब दुनियादारी का ककहरा समझने लगी थी लिहाजा उस ने पैसों के लिए छोटीमोटी लूटपाट का भी धंधा शुरु कर दिया. इसी के चलते एक बार वह गिरफ्तार भी हुई और पीथमपुरा थाने में भी रही जिस का जिक्र पहले किया गया है.
हरदीप भी एक आपराधिक मामले में फंस कर जेल जा चुका था, लेकिन वह लौट कर दोबारा रुखसार के पास नहीं आया. उस के यूं मुंह मोड़ लेने से रुखसार की जिस्मानी जरूरतें सर उठाने लगी थीं लेकिन इन्हें पूरा करना उसे जोखिम भरा काम लग रहा था.
यही हालत सादिक की भी थी, लिहाजा हिम्मत कर एक दिन वह रुखसार के पास जा पहुंचा और उस से सुलह की बात कही लेकिन रुखसार अब मुड़ कर देखना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने उस की दोबारा शादी की पेशकश ठुकरा दी.
इस से सादिक का दिल दोबारा तो टूटा लेकिन एक अच्छी बात यह रही कि रुखसार इस बात पर राजी हो गई कि कभी कभार वह उसे शरीर सुख दे देगी. ऐसा होने भी लगा. जब सादिक को जरूरत पड़ती थी तो वह रुखसार के घर जा कर सैक्स की अपनी भूख प्यास मिटा लेता था और जब यही जरूरत रुखसार को महसूस होती थी तो वह सादिक के घर चली जाती थी.
दोनों अब एक समझौते के तहत जिंदगी जी रहे थे, जिस में किसी की कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी. सौदा मरजी का था, जिस से दोनों खुश थे. सादिक का खून हालांकि यह जान कर खौला जरूर था कि तलाक के बाद रुखसार ने हरदीप से संबंध बनाए थे. लेकिन चूंकि अब वह उस की बीवी नहीं रही थी, इसलिए वह कोई ऐतराज नहीं जता पाया. वैसे भी जो सुख उसे रुखसार से चाहिए था वह मिल रहा था इसलिए खामोश रहने में ही उस ने भलाई समझी.
आजकल के डिजिटल युग में महू के पत्तीपुरा में ठेला लगा कर देवी देवताओं और फिल्मी नायिकाओं के पोस्टर बेचने वाले अधेड़ अनूप माहेश्वरी की दोस्ती सादिक से थी. अनूप भी नशेड़ी था और दिल फेक भी, इसी के चलते पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी.
3 साल पहले एक बार वह अपने ही घर में एक कालगर्ल के साथ मौजमस्ती करते गिरफ्तार भी हुआ था, जिस से समाज में उस की खासी बदनामी हुई थी और वह एक तरह से बहिष्कृत जिंदगी जी रहा था.